You are on page 1of 4

11/16/2018 इितहास की परी ा – ओम काश आिद – Geeta-Kavita

Search This Site...

Home Bal Kavita इितहास की परी ा – ओम काश आिद


Popular Poems

Posted on Dec 31, 2015 in Bal Kavita, Frustration Poems, Hasya Vyang Poems | िहमालय से भारत का नाता
1 comment — गोपाल िसंह नेपाली

Advertise Here!

इितहास की परी ा – ओम काश आिद


Introduction: See more

इितहास परी ा थी उस िदन‚ िचंता से दय धड़कता था,


थे बुरे शकुन घर से चलते ही‚ बाँ या हाथ फड़कता था।

मने सवाल जो याद िकये‚ वे केवल आधे याद ए,


उनम से भी कुछ ू ल तलक‚ आते आते बबाद ए।

तुम बीस िमनट हो लेट‚ ार पर चपरासी ने बतलाया,


म मेल–टे न की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया।

पचा हाथों म पकड़ िलया‚ आं ख मूंदीं टु क झूम गया,


पढ़ते ही छाया अंधकार‚ च र आया िसर घूम गया।

यह सौ नंबर का पचा है ‚ मुझको दो की भी आस नहीं,


चाहे सारी दु िनयां पलटे ‚ पर म हो सकता पास नहीं।

http://www.geeta-kavita.com/wordpress/poems/frustration-poems/itihaas-ki-pariksha-om-prakash-aditya/ 1/4
11/16/2018 इितहास की परी ा – ओम काश आिद – Geeta-Kavita
ओ –प िलखने वाले‚ ा मुंह लेकर उ र द हम,
तू िलख दे तेरी जो मज ‚ ये पचा है या एटम बम।

तूने पूछे वे ही सवाल‚ जो–जो थे मने रटे नहीं,


िजन हाथों ने ये िलखे‚ वे हाथ तु ारे कटे नहीं।

िफर आं ख मूंद कर बैठ गया‚ बोला भगवान दया कर दे ,


मेरे िदमाग म इन ों के उ र ठूँस ठूँस भर दे ।

मेरा भिव है खतरे म‚ म झूल रहा ं आँ य बाँ ए,


तुम करते हो भगवान सदा‚ संकट म भ ों की सहाय।

जब ाह ने गज को पकड़ िलया‚ तुमने ही उसे बचाया था,


जब ु पद–सुता की लाज लुटी‚ तुमने ही चीर बढ़ाया था।

ौपदी समझ करके मुझको‚ मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम,


म िवष खा कर मर जाऊंगा‚ वना ज ी आ जाओ तुम।

आकाश चीर कर अंबर से‚ आई गहरी आवाज़ एक,


रे मूढ़ थ ों रोता है ‚ तू आं ख खोल कर इधर दे ख।

गीता कहती है कम करो‚ फल की िचंता मत िकया करो,


मन म आए जो बात उसी को‚ पच पर िलख िदया करो।

मेरे अंतर के पाट खुले‚ पच पर कलम चली चंचल,


ों िकसी खेत की छाती पर‚ चलता हो हलवाहे का हल।

मने िल ा पानीपत का‚ दू सरा यु था सावन म,


जापान जमनी बीच आ‚ अ ारह सौ स ावन म।

िलख िदया महा ा बु महा ा गां धी जी के चेले थे, Link Ads


गां धी जी के संग वचपन म वे आं ख–िमचौली खेले थे।

राणा ताप ने गौरी को‚ केवल दस बार हराया था,


A love poems
अकबर ने िहं द महासागर‚ अमरीका से मंगवाया था।
About love poetry
महमूद गजनवी उठते ही‚ दो घंटे रोज नाचता था,
औरं गजेब रं ग म आकर‚ औरों की जेब काटता था।

इस तरह अनेको भावों से‚ फूटे भीतर के फ ारे ,


Find us on Facebook
जो–जो सवाल थे याद नहीं‚ वे ही पच पर िलख मारे ।

हो गया परी क पागल सा‚ मेरी कॉपी को दे ख दे ख, Geeta-Kavita


249 likes
बोल इन सब छा ों म‚ बस होनहार है यही एक।

औरों के पच फक िदये‚ मेरे सब उ र छां ट िलये,


Like Page
ज़ीरो नंबर दे कर बाकी के सारे नंबर काट िलये।

∼ ओम काश आिद Be the first of your friends to like this

 
Classic View   Home

 26,250 total views, 6 views today

http://www.geeta-kavita.com/wordpress/poems/frustration-poems/itihaas-ki-pariksha-om-prakash-aditya/ 2/4
11/16/2018 इितहास की परी ा – ओम काश आिद – Geeta-Kavita

1 Comment

Kirtee November 2, 2017

I love this poem so much

REPLY

Post a Reply
Your email address will not be published. Required elds are marked *

Comment

Name *

Email *

Website

SUBMIT COMMENT

Home Artwork of Garima Saxena Design + Code by Websolvant.com | Powered by WordPress

http://www.geeta-kavita.com/wordpress/poems/frustration-poems/itihaas-ki-pariksha-om-prakash-aditya/ 3/4
11/16/2018 इितहास की परी ा – ओम काश आिद – Geeta-Kavita

http://www.geeta-kavita.com/wordpress/poems/frustration-poems/itihaas-ki-pariksha-om-prakash-aditya/ 4/4

You might also like