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हद प रयोजना काय

महादे वी वमा
अनु म णका
• अभ
• माणप
• महादे वी वमा जी क जीवनी
• श ा
• मुख ृ तयाँ
• स् ोत
अभ
• म अपने सम्मा नत श क ी. यादव सर, साथ ही साथ हमारे
मा. ाचाय सर उनके त अपना वशेष धन्यवाद करना
चाहती ं, जन्ह ने मुझे सु स ले खका महादे वी वमा, उनके
त्व पर इस अ त ु प रयोजना को करने का सुनहरा
अवसर दया।
• फर म अपने माँ और दोस्त के त कृत ता करना
चाहती ं जन्ह ने प रयोजना क गणना के व भ चरण म
अपने ब मूलय् सुझाव और मागदशन के साथ मेरी मदद क
है।
माणप
• यह मा णत कया जाता है क म कु.मानसी कदम क ा
बारहव क छा ा ँ | मने इस हद प रयोजना को हमारे हद
अध्यापक मा. ी यादव सर उनके मागदशन से ब त
सफलतापूवक बनाया है|

• अध्यापक हस्ता र। ाचाय हस्ता र


महादे वी वमा
भारतीय ले खका और कव य ी (१९०७-१९८७)
जीवनी
महादे वी का जन्म 26 माच 1907 को ातः 8 बजे फ़ ख़ाबाद
उ र दे श, भारत म आ। उनके प रवार म लगभग 200 वष या
सात पी ढ़य के बाद पहली बार पु ी का जन्म आ था। अतः
बाबा बाबू बाँके वहारी जी हष से झूम उठे और इन्ह घर क दे वी
— महादे वी मानते ए पु ी का नाम महादे वी रखा। उनके पता ी
गो वद साद वमा भागलपुर के एक कॉलेज म ाध्यापक थे।
उनक माता का नाम हेमरानी दे वी था। हेमरानी दे वी बड़ी धम
परायण, कम न , भावुक एवं शाकाहारी म हला थ । ववाह के
समय अपने साथ सहासनासीन भगवान क मू त भी लायी थ वे
त दन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं वनय प का
का पारायण करती थ और संगीत म भी उनक अत्य धक च
थी।
इसके बल्कुल वपरीत उनके पता गो वन्द साद वमा सुनदर, ्
व ान, संगीत ेमी, ना तक, शकार करने एवं घूमने के शौक न,
माँसाहारी तथा हँसमुख थे। महादे वी वमा के मानस बंधु म
सु म ानन्दन पन्त एवं नराला का नाम लया जा सकता है, जो
उनसे जीवन पयन्त राखी बँधवाते रहे। नराला जी से उनक
अत्य धक नकटता थी, उनक पु कलाइय म महादे वी जी लगभग
चालीस वष तक राखी बाँधती रह ।
श ा
• महादे वी जी क श ा इन्दौर म मशन स्कूल से ारम्भ ई
साथ ही संसक् ृ त, अं ेज़ी, संगीत तथा च कला क श ा
अध्यापक ारा घर पर ही द जाती रही। बीच म ववाह जैसी
बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दन श ा स्थ गत रही।
ववाहोपरान्त महादे वी जी ने 1919 म ास्थवेट कॉलेज
इलाहाबाद म वेश लया और कॉलेज के छा ावास म रहने
लग । 1921 म महादे वी जी ने आठव क ा म ान्त भर म
थम स्थान ाप्त कया। यह पर उन्ह ने अपने का जीवन
क शु आत क । वे सात वष क अवस्था से ही क वता लखने
लगी थ और 1925 तक जब उन्ह ने मै क क परी ा उ ीण
क , वे एक सफल कव य ी के प म स हो चुक थ ।
व भ प -प का म आपक क वता का काशन होने
लगा था। कालेज म सुभ ा कुमारी चौहान के साथ उनक
घ न म ता हो गई। सुभ ा कुमारी चौहान महादे वी जी का
हाथ पकड़ कर स खय के बीच म ले जाती और कहत ―
“सुनो, ये क वता भी लखती ह”। 1932 म जब उन्ह ने
इलाहाबाद व व ालय से संसक् ृ त म एम॰ए॰ पास कया तब
तक उनके दो क वता सं ह नीहार तथा र म का शत हो चुके
थे।
मुख कृ तयाँ
• क वता सं ह
• १. नीहार २. र म
• ३. नीरजा ४. सांधयगीत

• ५. द प शखा ६. सप्तपणा
• ७. थम आयाम ८. अ नरेखा
• ीमती महादे वी वमा के अन्य अनेक का संकलन भी
का शत ह, जनम उपयु रचना म से चुने ए गीत
संक लत कये गये ह, जैसे आ मका, प र मा, स धनी (१९६५
), यामा (१९३६), गीतपव, द पगीत, स्मा रका, नीलांबरा और
आधु नक क व महादे वी आ द।
महादे वी वमा का ग सा हत्य

रेखा च : अतीत के चल च (१९४१) और स्मृ त क रेखाएं (१९४३),


संसमरण:
् पथ के साथी (१९५६) और मेरा प रवार (१९७२) और
संसमरण् (१९८३)
चुने ए भाषण का संकलन: संभाषण (१९७४)
नबंध: शृंखला क क ड़याँ[19] (१९४२), ववेचनात्मक ग (१९४२),
सा हत्यकार क आस्था तथा अन्य नबंध (१९६२), संक पता
(१९६९)
ल लत नबंध: णदा[20] (१९५६)
कहा नयाँ: गल्लू
संसमरण, ् रेखा च और नबंध का सं ह: हमालय (१९६३),
महादे वी वमा का बाल सा हत्य

महादे वी वमा क बाल क वता के दो संकलन छपे ह।

ठाकुरजी भोले ह
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स् ोत
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