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पितृ दोष एवं निवारण

By
Lokesh Agarwal
Hindi Section Editor: Rakesh Soni, Jaipur

दे वताभ्य पितृभ्यश्च महायोनिभ्य एव च।


िमः स्वाहायै स्यधायै नित्मेव िमो
िमः।।

विभिन्न पुराणों जैसे कि गरुड़ पुराण, मत्स्य पुराण


आकि में यह बताया गया है कि मृत्सयु िे बाि आत्समा
िी क्या और िैसी गभत होती है । शास्त्रों में ऐसा िी

उल्लेख भमलता है कि आत्समा वपतृ लोि में वपतृ िे
आठ रूप में िी भनिास िरती है । ि्तुतः वपतृ िौन होते
औ है और िैसे बनते हैं , ये समझने िे भलए जाति िो

गरुड़ पुराण िा अध्ययन िरना चाकहए। लेख में


औ मेरी चचाा िा विषय वपतृिोष िे सम्बन्ध में है ।
औ फलिीवपिा नामि ग्रन्थ में वपतरों िा िास
आ चंद्रलोि पर बताया गया है . मनुष्य पृथ्िी लोि में
औ रहते है और पृथ्िी से िे खने पर प्रतीत होता है कि
चन्द्रमा पर महीने िे पंद्रह किन (शुक्लपक्ष) सूया िा
प्रिाश रहता है तथा बािी िे पंद्रह किन (िृ ष्णपक्ष)
औ आ अँधेरा। िृ ष्णपक्ष िो वपतरों िा माना गया है . िसु,
रुद्र और आकित्सय वपतृलोि िे मुख्य िे िता हैं ।

विभिन्न लोगो ने वपतृिोष शब्ि िा ऐसा अथा


भनिाल किया है कि आज िे िैज्ञाभनि तथा ताकिाि
लोग वपतृ िोष कि िा्तवििता पर ही सिाल खड़े
िर रहे हैं । िुछ लोग िहते हैं िी वपतृ आपसे खुश नहीं हैं अतः आपिा अभनष्ट िर रहे हैं तो िुछ िहते हैं कि
आप वपतरों िी इच्छा पूरी नहीं िरते अतः िो आपसे नाराज़ हैं । मेरा ऐसा मानना है कि क्या िोई माता,
वपता, िािा ििी आपिा अभनष्ट िरने िी सोच सिते हैं ? उनिा आशीिााि आपिो भमले या नहीं ये इस बात पर
भनिार िरता है िी आपसे िो कितने खुश हैं परन्तु िो आपिो श्राप िें गे मुझे इस बात में सन्िे ह है । आत्समा तो िे ह
त्सयाग चुिी है और बस रह गए हैं तो व्यवि िे द्वारा किये गए िमा।

हाँलाकि मैंने जो अिी ऊपर बताया उसिा एि अपिाि िी है । ििी-ििी ऐसा िी पढ़ने-सुनने में आता है कि
अमुि व्यवि ने संपवि िे भलए या जजम्मेिारी से िागिर अपने माता वपता िो घर से भनिल किया या उनिी हत्सया

िर िी , संपवि िे वििाि में अपने चाचा, ताया िी हत्सया िर िी । ऐसी ज्तभथ में वपतृ िोष लगना तो

्िािाविि है ।
िा्तवििता में वपतृिोष शब्ि िा अथा क्या होना चाकहए? वपतृश्राप िा अथा क्या है ? आइये समझने िा प्रयास
िरते हैं ।

पितृदोष का शाब्ददक अर्थ

वपतृिोष िो शब्िों वपतृ एिं िोष से भमलिर बना है । िैसे तो वपतृ/वपतर शब्ि िा सीधा अथा वपता से है
परन्तु हमारे सिी पूिज
ा , हमारे िंश/खानिान िे सिी मृत व्यवि वपतरों कि श्रेणी में आते हैं . थोडा और िायरा
बढ़ािर मानि जाभत िे प्रारम्ि या प्राचीन पूिज
ा िे आधार पर विभिन्न पुराणों तथा िेिों ने वपतरों िी विभिन्न
श्रेजणयाँ बतायी हैं . मेरे विचार तथा अनुिि से ज्योभतष शास्त्र में वपतृिोष िो व्यवि िे वपछले तीन पूिज
ा ो
(वपता, वपतामह अथाात िािा, प्रवपतामह अथाात परिािा) से जोड़ना चाकहए। अथाात किसी व्यवि कि िुंडली िो
उसिे खुि िे िमा िे अलािा उसिी तीन पीकढ़यां प्रिावित िरती हैं . जजसिी िजह से वपतृिोष िा भनमााण िुंडली
में होता है . इसी बात िो ध्यान में रखते हुए इस लेख में हम वपतृिोष िो समझेंगे।
दोष शदद का अर्थ
English में िोष शब्ि िो Fault/Defect/Mistake िहते हैं । यहाँ यह समझना जरूरी है िी किसिा िोष?
किसिी Mistake? किसिा Fault? आपिे वपतरों िा िोष, आपिे पूिज
ा ों िी Mistake, आपिे वपतरों िा Fault
अथाात ् आपिे वपतरों िे द्वारा किये गए िोषयुि तथा अन्य अशुि िमा।
अब बुविजीिी तथा ताकिाि लोग यह प्रश्न िरते हैं िी “िरे िोई और िरे िोई” यह तो िमा भसिांत िे विपरीत है
तो मेरा ऐसा मानना है कि अपने वपतरों िे िमा िा फल उनिे पुत्रों िो िोगना ही पड़ता है । जैसे िी अगर
किसी वपता ने किसी व्यवि विशेष से धन अथिा िोई ि्तु ली हो तो उनिी मृत्सयु िे बाि िो आपिो चुिाना ही
पड़े गा चाहे आप उस धन/ि्तु िे बारे में जानते हों या नहीं। यही संसार िा भनयम है और मैं खुि इसिा इसिा
सामना िर चुिा हूँ। गंिीरता से समझने िे भलए माँ गंगा िी पृथ्िी अितरण िथा याि िररये जब राजा सगर िे
पुत्रों िे िष्ु िमा िी िजह से उनिे साथ हज़ार पुत्र िवपल ऋवष ने ि्म िर किए और किसी िा अंभतम सं्िार िी
न हो सिा तथा उसिे बाि उनिे िंशजों पर िोष लग गया। कफर किलीप िे पुत्र और सगर िे एि िंशज िगीरथ
घोर तप िरिे माँ गंगा िो पृथ्िी पर लाये और अपने पूिज
ा ों िा उिार किया। इसिे अभतररि ऐसा िी मन जाता
है कि ब्राह्मण हत्सया, गौ हत्सया तथा भ्रूण हत्सया से िी वपतृिोष लगता है ।

कं डली में पितृ दोष:

जन्मपवत्रिा से िी यह ज्ञात हो सिता कि वपतृ िोष है या नहीं ? विभिन्न ज्योभतष ग्रंथों जैसे कि
बृहत्सपाराशर होराशास्त्र, सारािली, मानसागरी आकि में वपतृ िोष िैसे बनता है उससे सम्बंभधत अनेि ग्रह
ज्तभथयाँ बतायी हैं . यह िी जरूरी नहीं कि बताये गए सिी योग सच में किसी व्यवि विशेष पर अपना पूरा प्रिाि
डालें। िई बार प्रायजित िरने से िी िोष िम हो जाता है या समाप्त िी हो जाता है । आईये वपतृ िोष
िो तिाानुसार समझने कि िोभशश िरते हैं

पितृ दोष के घटक:


1. लग्न और चन्द्र िुंडली िा निम िाि (धमा, वपता िा घर) तथा निमेश
2. निम िाि से निम िाि अथाात पञ्चम िाि (िािा िा घर) तथा पंचमेश
3. पञ्चम िाि से निम िाि अथाात लग्न (िािा िे वपता िा घर) तथा लग्नेश
4. वपता और आत्समा िारि ग्रह सूया जो जगत वपता िी है . साथ ही यह लग्न, निम और िशम िा िारि िी है
5. पंचम, निम तथा िशम िाि िा िारि होने िे नाते गुरु िो िी वपतरों िा िारि माना गया है .
6. हमारा रि िंश सम्बन्ध बताता है अतः रि िारि ग्रह मंगल
7. प्रेत योभन में गए वपतरों िे प्रभतभनभध ग्रह राहु और िेतु
8. सूया िा परम शत्रु शभन
9. निम िाि िा व्यय/हाभन िाि अथाात अष्टम िाि तथा अष्टमेश
वपतृ िोष िे घटिों िो मैंने तीन िाग में वििाजजत किया है .
१. लग्नानुसार वपतृ िाि तथा िािेश, २. वपतृ िारि ग्रह, ३. वपतृ िाि/िािेश/िारि िो िवू षत िरने िाले ग्रह।
अब इन घटिो िो आपस में जोड़िर वपतृ िोष िे विभिन्न योग पर प्रिाश डालते हैं ।

पितृ दोष के पवनिन्ि योि:

1. जन्म िुंडली िे प्रथम, पंचम ि निम िािों में से किसी एि िाि में सूया िी राहु अथिा शभन िे साथ युभत
वपतृिोष िा भनमााण िरता है । सूया अगर नीच िा है तो पररणाम गम्िीर िी हो सिते हैं .
2. सूया, मंगल अथिा गुरु इन तीनों में से िोई िी प्रथम, पंचम अथिा निम िाि में नीच िा होिर राहु/िेतु िे
साथ बैठा हो अथिा उस पर राहु/िेतु िी दृवष्ट हो।
3. अगर लग्न/पञ्चम/निम िाि पर शुि दृवष्ट न हो तो यहाँ बैठे राहु शभन िी युभत िी वपतृिोष िा भनमााण िर
िे ता है । अगर लग्नेश/पंचमेश/निमेश/सूया मजबूत होिर शुि प्रिाि में हो तो वपतृिोष िा प्रिाि िाफी हि
ति िम जरूर हो जाएगा।
4. अष्टमेश िा लग्नेश, पंचमेश अथिा निमेश िे साथ ्थान पररितान योग िी वपतृ िोष िा भनमााण िरता है ।
5. निमेश/पंचमेश/लग्नेश तीनों में से िोई अगर नीच िा होिर राहु से ग्रभसत हो.
6. लग्नेश यकि िमजोर/नीच होिर वत्रि िाि (6,8 या 12) में ज्थत हो तथा राहु लग्न िाि में अथिा अष्टमेश
राहु िे नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश िे नक्षत्र में हो तब िी वपतृिोष होता है ।
7. जब गुरू एिं सूया नीच निांश में ज्थत होिर शभन राहु िेतु से युभत-दृवष्ट संबंध बनाए तो वपतृिोष होता है ।
8. पंचम िाि में राहु-गुरू िी युभत िी वपतृिोष सूभचत िरता है .
9. वपतृिोष िे प्रथम २ प्रिार िे घटिों िा घटि ३ िे द्वारा पाप ितारी योग में आना िी वपतृिोष िे सिता है ।
उिाहरण : बलहीन सूया निम िाि में, राहु अष्टम में तथा शभन िशम में।
जाति िी िुंडली वििेचना िरने िाले से अनुरोध है तथा उसिा ििाव्य िी है कि किसी िी भनष्िषा पर
पहुँचने से पहले ग्रह िा षड्बल, अष्टििगा, शुि दृवष्ट, नक्षत्रपभत, िािबल आकि जरूर िे ख लें।

उदाहरण कं डनलयााँ:
१ िरुष जातक, जन्म ददिांक : िवंबर 10, 1983, समय : 20 : 12 : 0, जन्म स्र्ाि : ददल्ली
जाति िी िुंडली में नीच िा सूय,ा शभन िे साथ पंचम िाि में बैठा है . शभन अष्टमेश िी है । नीचिंग भनयम िे
अनुसार िुछ ज्योभतष िा िहना है कि शभन ने सूया िा नीच िंग किया हुआ है परन्तु क्या शभन अपने परम शत्रु
िा नीच िंग िरे गा ? पंचमेश शुक्र नीच िा होिर रििारि मंगल िे साथ है और राहु से दृष्ट है . चन्द्र िुंडली में
राहु पंचम िाि में बैठा है और पंचमेश नीच िा निम िाि में बैठा है . गुरु अपने नीच निमांश में बैठा है . इस
वपतृिोष िे िारण जाति िी िंश िृवि रुिी हुई है । सारी मेकडिल ररपोर्टसा ठीि होने िे बािजूि िी संतान सुख
नहीं भमल पा रहा। जाति िी तनख्िा अच्छी होने िे बािजूि िी आभथाि ज्तभथ सुदृढ़ नहीं है । जाति और
उसिी पत्नी िो िुछ उपाय िराये हैं । उनिा पररणाम आना बािी है ।

२ िरुष जातक, जन्म ददिांक : माचथ 25, 1978, समय : 06 : 29 : 0, जन्म Pandharpur
इस जाति िी िुंडली में वपतृिोष बनने िा िारण है : सूया तथा िेतु िी लग्न में युभत, रििारि और निमेश
मंगल िा नीच िा होिर पंचम िाि में िेतु से दृष्ट होना, पंचमेश (14:55 कडग्री) िा राहु (12:20 कडग्री) से ग्रभसत
होना। अगर आप निमांश िुंडली पर नजर डालें तो सूया और मंगल तो पीकड़त हैं ही साथ ही निमांश िुंडली िा
लग्नेश बुध िी नीच िा है . इस वपतृिोष िे िारण जाति िो अपनी आजीवििा में बहुत िकठनाइयों िा सामना
िरना पड़ रहा है । जाति िी िई बार नौिरी छूट चूकि है और अिी िो भशजक्षत होने िे बािजूि िी बेरोजगार है .

३ िरुष जातक, जन्म ददिांक : जिवरी 28, 1978, समय : 07 : 45 : स्र्ाि : Ahmedabad
इस जाति िी िुंडली में वपतृिोष बनने िा िारण है : लग्नेश शभन िा परमशत्रु अष्टमेश सूया िे साथ ्थान/राभश
पररितान, लग्नेश अष्टम िाि में पाप ग्रहों से भघरा हुआ, रििारि और चन्द्र िुंडली में निमेश मंगल िा नीच िा
होिर िेतु से दृष्ट होना, वपतृ िारि सूया िा परमशत्रु राभश में लग्न में होिर राहु से दृष्ट तथा षड्बल में बहुत
ज्यािा िमजोर होना, पंचमेश िी अष्टमेश िे साथ युभत और राहु से दृष्ट होना। राहु-शुक्र िशा में जाति िी
नौिरी छूट गयी तथा जाति भशजक्षत होने िे बािजूि वपछले 1.5 साल से बेरोजगार है । जाति िा एि बार
तलाि हो चुिा है तथा िस
ू री पत्नी से िी सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं और िब
ु ारा तलाि िी नौबत आन पड़ी है ।
भ्ांनतयां: अगर राहु निम िाि में हो तो वबना सूया, गुरु और मंगल िो िे खे िुछ ज्योभतषाचाया सीधा इसिो वपतृ
िोष बता िे ते हैं . जरा इस िुंडली पर नज़र डाभलये
िरुष जातक, जन्म ददिांक : नसतम्बर 9, 1963, समय : 09 : 26 : 0, जन्म स्र्ाि : ददल्ली
इस जाति िे निम िाि में राहु भमथुन राभश िा बैठा है . क्या वपतृ िोष बना? मैं िहूँगा नहीं। सूया तथा गुरु
्िगृही हैं , शभन िी ्िगृही होिर िेंद्र में है तथा रििारि मंगल लग्न में है . लग्न तथा मंगल पर योगिारि
शभन (जो शश पञ्च महापुरुष योग बना रहा है ) तथा राहु (वत्रिोण में अिेला बैठिर िाग्येश िी िूभमिा भनिा
रहा है ) िी दृवष्ट है . अगर हम जाति कि चन्द्र िुंडली पर नजर डालें तो लग्न में मूल वत्रिोण में चन्द्र, पंचम में
उच्च िा बुध, निम में ्िगृही शभन। इस जाति ने राहु महािशा में जजंिगी िे आयाम छूये। राहु महािशा में ही
समय से शािी, समय से बच्चे, बहुत अच्छी नौिरी, इक्षानुसार वििे श गमन आकि. जाति िे अनुसार राहु
महािशा में िह बहुत िाग्यशाली रहा.

पितृ दोष का निवारण:

जजस प्रिार हमने तिाानुसार वपतृिोष िो समझा उसी प्रिार उसिे भनिारण िो िी समझते हैं । ज्योभतषाचाया िो
चाकहए िी भनिारण से पहले वपतृिोष भनमााण िी िजह िो समझे उसिे बाि भनिारण िे उपाय बताये। वबना
बीमारी समझे ििाई िे ना िहाँ िी समझिारी होगी। हमने वपतृिोष िे िारणों िा ऊपर वििरण किया है तथा
उसिे आधार पर उपाय इस प्रिार हैं :
1. अगर निमेश/पंचमेश/लग्नेश िवू षत हैं तथा षड्बल में िी िमजोर हैं और अगर उनिी उपज्तभथ िेंद्र अथिा
वत्रिोण में है तो उनसे सम्बंभधत रत्न पहन िर उनिो मजबूत किया जा सिता है ।
2. हमने जो वपतृिोष िे तीसरे घटि बताए हैं (राहु/िेतु, शभन, अष्टमेश) उनमे से जो वपतृिोष िा भनमााण िर रहा
है उसिा उपाय, िान, जप, हिन, व्रत आकि िरिे उनिो शांत िरना चाकहए। इन सबिे उपाय िी हम अलग
से चचाा िर सिते हैं क्योंकि यह विषय िाफी बढ़ा है ।
3. यह पता िरें िी सूया, मंगल तथा गुरु में से िौन पीकड़त है जजसिी िजह से वपतृिोष िा भनमााण हो रहा है ।
उसिे बाि इन ग्रहों िी शुिता बढ़ाने िे भलए ये िाम किये जा सिते हैं :
a. अगर मंिल िवू षत है तो
i. रििान से अच्छा उपाय िोई हो ही नहीं सिता। रििान जीिन िान है । हमने ये पहले ही बताया था िी मंगल
रििारि ग्रह है और हमारा रि वपतृ/िंश सम्बन्ध बताता है । बुरे िमों िो िाटने िा यह सबसे अच्छा उपाय है
ii. घर में मंगल यंत्र ्थावपत किया जा सिता है । शुक्लपक्ष िे शुि किन, मंगलिार, मंगल िी होरा, शुि मुहूता
में ्थावपत िरना ज्यािा लाििारी होता है । प्रभतकिन इसिी पूजा िरें और िशान िरें ।
iii. रुद्राितार हनुमान िी पूजा तथा उज्जैन में ज्तथ मंगलनाथ मंकिर में अभिषेि विशेष फलिायी है ।
b. अगर सूयथ िवू षत हो तो
i. सूया िो ताम्बे (ताम्र) िे लोटे से “जल, गंगाजल, चािल, लाल फूल(गुडहल आकि), लाल चन्िन" भमला िर अर्घया िें |
जल िे ते समय ॐ अकित्सयाये नमः अथिा ॐ भिणी सूयााय नमः िा जाप िरे ।
ii. लाल रं ग िी मौली में ७ गांठें सूया मंत्र िो २१-२१ बार पड़ते हुए एि माला बना लें. इस माला िो सूया िे ि िो
नम्िार िरते हुए सुबहा िे समय गले में या िायें हाथ में धारण िर लें
iii. घर में माजणक्य युि सूया यंत्र ्थावपत किया जा सिता है । शुक्लपक्ष िे शुि किन, रवििार, सूया िी होरा, शुि मुहूता
में ्थावपत िरना ज्यािा लाििारी होता है । प्रभतकिन इसिी पूजा िरें और िशान िरें ।
iv. प्रभतकिन गायत्री मंत्र िा िम से िम 108 पाठ िरें । साल में िम से िम 1 बार गायत्री यज्ञ िी िरें /िराएं।

c. अगर िरु िवू षत हो तो


i. प्रत्सयेि अमाि्या िो एि ब्राह्मण िो िोजन िरायें, बेसन िे लड्डू और िेसर भमली खीर जरूर जखलाएं,
िजक्षणा-िस्त्र िेंट िें ।
ii. अपने गुरु िा सम्मान, आिर, सत्सिार िरना विशेष लाििायि है । अगर आपिा िोई गुरु नहीं है तो
िगिान भशि िा अपना गुरु मानिर पूजा अचाना िरें । िे िाकििे ि महािे ि ही इस ब्रह्माण्ड िे एिमेि गुरु हैं ।
iii. गुरुिार िे किन आटे िे लोयी में चने िी िाल, गुड़ एिं पीसी हल्िी डालिर गाय िो जखलाएं। साथ ही एि
बेसन िा लड्डू िी जखलाएं।
इसिे अलािा वपतृिोष भनिारण िे िुछ विभशष्ट उपाय इस प्रिार हैं :

1. मााँ िंिा
पतीत पािनी गंगा िे पािन जल िे अलािा किसी और में सामथ्या ही नहीं कि वपतरों िा उिार िर सिे। अतः
गंगा ्नान, गंगा किनारे वपतरों िा वपंडिान, तपाण और श्राि, गंगाजल से रुद्राभिषेि इसिा एि अचूि उपाय है ।

2. ििवाि पवष्ण
श्रीमद्भागित गीता िे १०िे अध्याय िे २९िे श्लोि में िगिान ् श्रीिृ ष्ण िहते है कि वपतरों में अयामा वपतृ मैं हूँ।
अिन्तश्चाब्स्म िािािां वरुणो यादसामहम ्।
पितृणामयथमा चाब्स्म यमः संयमतामहम ्।।29।।

अथाात ् मैं नागों में शेषनाग और जलचरों िा अभधपभत िरुण िे िता हूँ और वपंजरों में अयामा नामि वपतर तथा
शासन िरने िालों में यमराज मैं हूँ।(29)
अतः िगिान ् विष्णु िी पूजा वपतृिोष िो िरू िरती है । विष्णु सहस्त्रनाम िा भनयभमत पाठ िरें । िागित िथा
िा आयोजन िरें और श्रिण िरें ।

3. अमावस्या
● सोमिती अमाि्या वपतृिोष िरू िरने िे भलये अभतउिम है । सोमिती अमाि्या िे किन पीपल िे पेड िे
पास जाइये, उस ही पीपल िे िता िो एि जनेऊ अवपात िरे साथ ही िस
ु रा जनेऊ िगिान विष्णु जी िे
नाम से उसी पीपल िे पेड िो अवपात िरे , पीपल िे पेड और िगिान विष्णु िो नम्िार िर प्राथाना
िीजजये, अब एि सौ आठ पररक्रमा उस पीपल िे पेड िी िारे िध
ु िी बनी भमठाई िो हर पररक्रमा िे
साथ पीपल िो अवपात िरते जाईए। पररक्रमा िरते समय “ॐ नमो िगिते िासुिेिाय" मंत्र िो जपते

रहे । 108 पररक्रमा पूरी िरने िे बाि पीपल िे पेड और िगिान विष्णु से कफर प्राथाना िरे कि जाने
अन्जाने में हुये अपराधो िे भलए उनसे क्षमा मांभगये। और अपने वपतरो िे िल्याण िे भलए प्राथाना िरें
● प्रत्सयेि अमाि्या िो एि ब्राह्मण िो िोजन िराने ि िजक्षणा-िस्त्र िेंट िरने से वपतृिोष िम होता है ।
● हर अमाि्या िो अपने वपतरों िा ध्यान िरते हुए पीपल पर िच्चे िध
ू में गंगाजल, थोड़े िाले भतल,
चीनी, चािल, जल, पुष्पाकि चढ़ाते हुए ॐ पितृभ्यः िमः मंत्र तथा वपतृ सूि िा पाठ िरें ।

4. पितृ िक्ष
● वपतृिोष िे भनिारण िे भलए श्राि िाल में वपतृ सुि िा पाठ संध्या समय में तेल िा िीपि जलािर िरे ।
● वपतृ पक्ष में अपने वपतरों िा विभधित श्राि िरें ।
● अमाि्या, पुण्य भतभथ, अथिा श्राि भतभथ िो रुद्राभिषेि िरें /िराएं।

5. पितृ दोष और वास्त


1. वपतृिोष भनिारण िे भलए अपने घर िी िजक्षण किशा िी िीिार पर अपने कििंगत पूिज
ा ों िे फोटो लगािर
उन पर हार चढ़ािर सम्माभनत िरना चाकहए तथा प्रभतकिन उनिे सम्मुख घी िा िीपि जलाना चाकहए।
2. घर में पारि भशिभलंग िी ्थापना िर प्रभतकिन उनिी पूजा िरें ।

6. पितृ दोष और रुद्राक्ष


1. सूया अथिा गुरु िे िवू षत होने पर 5 मुखी रुद्राक्ष धारण िरें तथा भनत्सय द्वािश ज्योभतभलिंगों िे नामों िा
्मरण िरें ।
2. यकि मंगल िी िजह से वपतृ िोष है तो 3 मुखी रुद्राक्ष धारण िरें ।
3. अगर वपतृ िोष राहु िी िजह से बन रहा है तो 8 मुखी, िेतु िी िजह से बन रहा है तो 9 मुखी रुद्राक्ष
धारण िरें ।
4. 10 मुखी रुद्राक्ष पहनने से िगिान विष्णु िी विशेष िृ पा भमलती है और वपतृ िोष िी शाजन्त होती है ।
इभत भसिम

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