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श्री उपदे शामत


ृ ( रूप गोस्वामी कृत)

1. गुरु - वाणी का वेग


- मन की मााँगे
- क्रोध की क्रक्रयाएाँ
- जीभ का वेग
- उदर की माांग
- जनेन्द्रियों की हठ
- को सहन करे

2. भक्तत नाशक क्रियाएँ- आवश्यकता से अधधक खाना या सांग्रह

- साांसाररक वस्तओ
ु के लिए अधधक से अधधक उघम

- साांसररक ववषयों की अनावश्यक वाताा

- केवि बाहर से अध्यान्द्ममक ननयम पािन

- अभक्त सांग में रूधि रखना

- साांसाररक उपिन्द्धधयों के लिए िािानयत

3. भक्तत वर्धक क्रियाएँ - उमसाही बने रहना

- ननश्िय के साथ प्रयास

- धैयव
ा ान होना

- ननयामक लसद्धारतो अनस


ु ार काया करना

- अभक्तो की सांगती छोड़ दे ना

- पव
ू व
ा ती आिायों के िरणधिरहों पर ििना
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4. भततों की प्रेम क्रियाएँ - भक्तो को दान या उपहार दे ना

- दान या उपहार स्वीकार करना

- भक्तों से अपने मन की बात कहना

- उनसे सेवा ववषयी गह


ु य न्द्जज्ञासा करना

- भक्तों द्वारा ददए प्रसाद का सम्मान

- भक्तों को प्रसाद खखिाना

5. भततों के संग व्यव्हार - नाम जप करने वािे का मन से आदर करें

- दीक्षित व उरनत भक्त को दां डवत करे जो भगवान की


सेवा में िगे है |
- जो क्रकसी की ननांदा नहीां करते उनकी सेवा और श्रध्दा पव
ू क

उनका सांग प्राप्त करे |

6. भततो के प्रतत दृक्टि - कृष्ण भावना में भक्त अपने को शरीर नहीां मानता

- भक्त को भौनतक दृन्द्ष्ि से नहीां दे खना िादहये

- साधारण दृन्द्ष्ि में कई दोष हो सकते है

- परां रतु शद्


ु ध भक्त की काया कभी दवू षत नहीां होता

- वषाा ऋतु कीिड़ फेन आदद होने पर भी

- गांगा सदै व आध्यान्द्ममक रूप से ददव्य है

7. “नाम” चमत्कार - कृष्ण नाम, िररत्र, िीिाएां, क्रक्रयाकिाप सब आध्यान्द्ममक रूप


से मधुर है |

- हम अववद्या रूपी पीलिया से ग्रस्त रोगी है


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- इसी कारण न्द्जव्हा मीठी वस्तु का स्वाद नहीां िे सकती िेक्रकन


यह एक अद्भत
ु आश्िया है

- इन मधुर कृष्ण “नामो” का सावधानीपव


ू क
ा कीतान करने से

- न्द्जव्हा में प्राकृनतक स्वाद जागत


ृ हो उठता है

- समस्त रोग धीरे धीरे समि


ू नष्ि हो जाते है

8. “सार” उपदे श - समस्त उपदे शो का सार यही है

- मनष्ु य को अपना परू ा समय

- भगवान के ददव्य नाम, रूप, गण


ु , ननमय िीिायों का सर
ु दर ढां ग
से श्रवण, कीतान, अध्ययन एवां स्मरण में िगाये

- न्द्जव्हा एवां मन इसी में रहे

- इस क्रक्रया से वह मानस में ब्रजवास करे

- भक्तो के मागादशान में

- श्री कृष्ण की सेवा करे

- भक्तो के धिरहों का अनग


ु मन करे

- जो प्रगाढ़ भन्द्क्त में अनरु क्त है

9. सवधश्रेटठ “श्री रार्ाकुण्ड” - मथुरा वैकुण्ठ से श्रेष्ठ है कृष्ण वहाां प्रकि हुए

- वरृ दावन मथुरा से श्रेष्ठ है कृष्ण ने वहाां रासिीिा की

- गोवेधन
ा वरृ दावन से श्रेष्ठ है कृष्ण ने अपने हाथ से उसे उठाया

- राधाकांु ड गोवेधन
ा से भी श्रेष्ठ है वह प्रेम से आप्िाववत है

- कौन ऐसा है जो यहााँ पर सेवा न िाहे गा


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10. सवोच्च भाग्य - सकाम कमी जो उच्ि मल्


ू यों के ज्ञान में उरनत है भगवान उन
पर कृपा करते है

- ज्ञाननयों में उरनत मक्


ु त परु
ु ष है

- मक्
ु त परु
ु ष भन्द्क्त के अधधकारी है

- कृष्ण प्रेम प्राप्त भक्त अनत श्रेष्ठ है

- गोवपयााँ उनसे भी श्रेष्ठ है वे आधश्रत है

- श्री राधा सवाश्रेष्ठ है

- वे कृष्ण को अनतवप्रय है यह उनका ही कांु ड है

- कौन है जो आध्यान्द्ममक शरीर से उनकी सेवा नहीां करना


िाहे गा

- वे दोनों यहााँ ननमय अष्िकािीय िीिा सांपरन करते है

- जो राधा कांु ड के ति पर भन्द्क्त करते है

- वे ब्रह्माण्ड के सवााधधक भाग्यशािी जीव है

11.रार्ाकुण्ड स्नान - श्री राधा ननश्िय ही कृष्ण प्रेम की अमल्


ू य ननधध है
(प्रेम प्राक्तत उपाय) - मनु नयों ने उस प्रेम का वणान क्रकया है

- महान भक्तों के लिए भी राधाकुण्ड दि


ु भ
ा है

- सामारय के लिए तो कदठन है ही

- यदद कोई एक बार भी इस जि में स्नान करे

- तो कृष्ण के लिए उसमे शद्


ु ध प्रेम पण
ू त
ा : प्रकि हो जाता है

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