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Shri Updeshamrit
Shri Updeshamrit
- साांसाररक वस्तओ
ु के लिए अधधक से अधधक उघम
- धैयव
ा ान होना
- पव
ू व
ा ती आिायों के िरणधिरहों पर ििना
2
6. भततो के प्रतत दृक्टि - कृष्ण भावना में भक्त अपने को शरीर नहीां मानता
9. सवधश्रेटठ “श्री रार्ाकुण्ड” - मथुरा वैकुण्ठ से श्रेष्ठ है कृष्ण वहाां प्रकि हुए
- गोवेधन
ा वरृ दावन से श्रेष्ठ है कृष्ण ने अपने हाथ से उसे उठाया
- राधाकांु ड गोवेधन
ा से भी श्रेष्ठ है वह प्रेम से आप्िाववत है
- मक्
ु त परु
ु ष भन्द्क्त के अधधकारी है