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What is Testimony?
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द्वारा: प्रबल
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Darshanik Bharat
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शब्द (Testimony)
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Darshanik Bharat
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• शब्द, न्याय दशशन में स्वीकृत 4 प्रमाणों में से एक प्रमाण है।
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• चावाशक, बौद्ध और वैशेषिक के अषतररक्त सभी भारतीय दशशन
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‘शब्द’ को एक प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं।
Bh
• चावाशक ने शब्द को अनमु ान पर आधररत बताया है। इसषिए
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चावाशक अनमु ान के साथ साथ शब्द प्रमाण का भी खडं न कर देते हैं।
sh
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Darshanik Bharat
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Pr
शब्द का अथश = आप्त पुरुषों के वचन
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जो व्यषक्त सत्य को प्राप्त हैं वे ही आप्त परुु ष कहिाते हैं।
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अर्था त यथाथशवक्ता और दयािु व्यषक्तयों के वचन ही शब्द हैं।
Bh
आप्त + उपदे श:
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an आप्तोपदेश: शब्द:
जैस-े बद्ध
ु , महावीर, गरुु , डॉक्टर आषद आप्त परुु ष हैं।
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Pr
वही व्यषक्त षवश्वसनीय होता है, षजसकी बाते सत्य षसद्ध होती हैं।
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सामान्यतः ऐसा माना जाता है षक दयािु व्यषक्त यथाथशवक्ता होता है
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इसषिए उसके वचन यथाथश का ज्ञान देते हैं।
Bh
व्यषक्त की षवश्वसनीयता अनमु ान पर आधाररत होती है। (चावाशक)
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शब्द प्रमाण दो प्रकार से षवभाषजत षकया जाता है-
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1. शब्द ज्ञान के स्त्रोत के आधार पर-
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1. लौककक शब्द
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Bh
2. वैकदक शब्द
ik
2. शब्द ज्ञान के कवषय के आधार पर-
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1. दृष्ट
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2. अदृष्ट
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1. िौषकक शब्द
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Pr
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व्यकियों के वचन ही लौककक शब्द हैं। इनकी सत्यता
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कवश्वसनीयता द्वारा प्रमाकणत होती है।
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Bh
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जैस:े हमारे गुरु, डॉक्टर, दोस्त आषद के वचन।
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लौकिि = इस लोक का
2. वैषदक शब्द
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Pr
वेदों में सक
ं षित ईश्वरीय वचन ही वैषदक शब्द है।
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वेदों को अपौरुषेय कहा जाता है। यानी इनकी रचना मनष्ु य द्वारा नही की
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गई बषकक ईश्वर द्वारा की गई है।
Bh
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वेदों के वचन ईश्वरीय वचन है इसषिए ये प्रामाषणक है। यानी सत्य है।
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D
ज्ञान के षविय के आधार पर शब्द के प्रकार
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Pr
1. दृष्ट शब्द ज्ञान: ऐसे शब्द षजनके षविय का प्रत्यक्ष षकया सकता
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हो। जैस:े आज स्कूल बंद है।
a tb
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Bh
2. अदृष्ट शब्द ज्ञान: ऐसे शब्द षजनके षविय का प्रत्यक्ष नही षकया
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जा सकता। जैस-े स्वर्ग बहुत सदं र है।
sh
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Pr
अर्ा पर्
ू ा शब्द सयं ुक्त होकर वथक्यों की रचनथ करते हैं। यह वाक्य साथशक
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भी हो सकते हैं और षनरथशक भी।
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के वि साथशक वाक्य ही शाब्द ज्ञान के स्त्रोत होते हैं।
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sh
वाक्यों की साथशकता चार शतों पर षनभशर करती है- आकाांक्षा, योग्यता,
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सकननकि और तात्पयय
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1. आकाक्ष ां ा: वाक्य तभी साथशक रहता है जब वे परस्पर
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सबं षं धत रहते हैं। प्रत्येक वाक्य के प्रत्येक शब्द को वाक्य के
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Pr
अन्य शब्दों की अपेक्षा रहते है। इसे है आकथक्ष ं थ कहते हैं।
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जैस:े ‘दीषजये’ को आकांक्षा है ‘चीनी’ की।**चीनी दीजजये।
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2. योग्यता: वाक्य के शब्दों में पररस्पररक षवरोध का आभाव
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ही योग्यता है। an
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जैस:े रे त से तेि षनकाषिये
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1. सकननकि: वाक्य के शब्दों के बीच समय और स्थान की
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समीपता ही सषन्नषध है। वाक्य के साथशक होने के षिए शब्दो
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मे सषन्नषध होनी चाषहए।
Pr
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2. तात्पयय: वाक्य षजन पररषस्थषतयों अथवा प्रसगं के षिए
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कहा गया हैं, उसका अथश उन्ही पररषस्थषतयों/प्रसगं के
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अनरू an
ु प होना तात्पयश कहता है।
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जैसे: सैंिव
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शब्द की वषृ ियााँ (शब्दवषृ ि/वाक्यवषृ ि)
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Pr
षकसी शब्द के अथश को व्यक्त करने का शक्तक्त ही वकृ ि कहिाती है।
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शकि का अर्य- वह ईश्वरे च्छा षजसके अनुसार एक शब्दषवशेि का एक
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अथशषवशेि होता है।
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Bh
न्याय के अनसु ार शब्द में दो प्रकार की वषृ ियााँ पाई जाती है-
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1. अषभधा और
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2. िक्षणा
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अकििा
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अकििा शब्द का मख् ु य अर्य बताने वािी वषृ ि है। अषभधा द्वारा शब्द और
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उसके अथश के मध्य अिौषकक सबं धं का बोध होता है। अषभधा से शब्द के
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मख्ु य अथश या ईश्वरीय अथश का ज्ञान होता है।
Bh
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अषभधा शब्दशषक्त, शब्द के ईश्वर द्वारा षनधाशररत अथश को बताती है।
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िक्षणा शब्द के गौण अर्य का बोध कराता है। शब्द के मख्ु याथश में बाधा होने पर षजस
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Pr
शषक्त द्वारा शब्द के मख्ु याथश से षभन्न अथश की प्राषि होती है उसे िक्षणा शषक्त कहते हैं।
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जैस:े राम र्धा है।
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Bh
नव्या नैयाषयकों ने िक्षणा के 3 प्रकार बताये है-
1. जहत लक्षणा –(छोड़ देना)
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an
2. अजहत लक्षणा –(नहीं छोड़ना)
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षदया जाता है।
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जैस:े वह गंगा में षनवास करता है। (तट को छोड़ षदया)
Pr
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atb
1. अजहत लक्षणा (अजहतस्वार्ी): इसमे वाक्य के मख्ु य अथश
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को छोड़ा नही जाता बषकक उसे और षवस्तृत षकया जाता है।
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जैस-े कौवे से दही की रक्षा करो। (काके भ्यो दजध रक्ष्यतां)
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3. जहत-अजहत लक्षणा (जहदजहत्स्वार्ी): इसमे अश ां तः
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मख्
ु यार्य बना िी रहता है अश ां तः छूट िी जाता है।
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जै से: आद्वैत वे दाांत के चार महावाक्यों में से एक है- ‘तत्त्वमकस’
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कजसका अर्य है ‘वह तमु ही हो’
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तत्त्वमकस = तत् + त्वम + अकस
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तत् = कनगयणु ब्रह्म an
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त्वां = सगण
ु जीव
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इस टॉषपक पर नोट्स आपको षडषस्िप्शन में षमि जाएगा...
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िनयवाद!
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