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मात-िपता तुम मेरे, शरण गहँ म िकसक , वामी शरण गहँ म िकसक ।
तुम / भु िबन और न द ज ू ा, आस क ँ म जसक ॥
ॐ जय जगदीश हरे...
दीनब धु द ख
ु हता, तुम ठाकुर मेरे, वामी तुम र क मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ, ार पड़ा म तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे...
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