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पैग़म्बर और औलिया के वसीिे से दआ

ु माांगना कहााँ तक सही


है ?

ِ‫الر ِح ۡی ِم‬
َّ ‫ن‬ِِ ‫الر ۡح ٰم‬ ِِٰ ‫ِب ۡس ِِم‬
َّ ‫اّلل‬

कुछ िोग दआ
ु करते वक्त कभी औलिया के वसीिे से कभी पैग़म्बरों के
वसीिे से अल्िाह को राज़ी करने की कोलिि करते हैं और दआ
ु माांगते हैं.
ये कहााँ तक सही है और हदीस-ओ-क़ुरआन में इसके बारे में क्या ज़ज़क्र है ,
आइये दे खते हैं:

क़ुरआन से वसीिा की जो पहिी दिीि दी जाती है वह ये है

दिीि
"ऐे ईमान वािों, अल्िाह से डरो और उसकी तरफ वसीिा ढाँ ढो" तजम
ु ा-
कांजुि ईमान अहमद रजा बरै िवी

(सरह अि-मायदा आयत 35)

वजाहत
वसीिा िफ्ज़ को वसीिा ही इस्तेमाि ककया जाये तो मानी बबिकुि यही
होगा मगर अरबी के वसीिा का िफ़्ज़ी मानी क़ुबु (नज़दीकी) होता है चुनाांचे
तफ्सीर इब्ने कसीर ज़जसको उम्मत के तमाम कफके मानते है । उस में इस
आयत की तफ्सीर में लिखा है कक "मतिब यह है कक अल्िाह की मना कदाु
कामों से जो िख्स रूका रहे ,उस की तरफ कुबुत यानन नजदीकी तिाि करे ।
वसीिे के यही मायने हजरत इब्ने अब्बास रदीयल्िाहो अन्हो से मन्कि
है ।हजरत मुजाहीद , हजरत वाईि,हजरत हसन,हजरत इब्ने जैद
रदीयल्िाहो अन्हो और बहुत से मफ
ु स्सीरीन से भी मरवी है ।

( तफ्सीर इब्ने कसीर(सरु ह मायदा आयत नां-35 की तफ्सीर)

इस तरह जब हम सहाबा ककराम के फहम के मुताबबक सहीह तजम


ु ा पर ग़ौर
करें तो तजम
ु ा है : "ए इमान वािों ,अल्िाह से डरते रहो और उसका कुबु
तिाि करो" (सुरह मायदा-35)

यहाां मैं इांसाफ के साथ यह बता द ु कक बरे िवी उिेमा भी इस बात को मानते
है कक िफ्जे वसीिा का मतिब कुबु(नजदीकी)ही होता है जैसे कक तफ्सीरे
खजाईन जो कांजुि ईमान के हालिए पर लिखी हुई है ।उसमें इसी आयत की
तफ्सीर में लिखा है
"ज़जसकी बदौित तुम्हें उसका (अल्िाह) का तकरूुब हालसि हो" तफ्सीरे
खजाईन हालिया-96 सुरह मायदा 35

(कांजुि इमान)

इख्तेिाफ लसफु इस बात पर है कक अल्िाह का तकरूुब हालसि करने के लिए


ककसको जररया बनाया जाए? यानी जायज वसीिा क्या है ?इसके बारे में हमें
कुरआन और सहीह हदीस से लसर्फु तीन तरीका लमिता है

पहिा तरीका 👇
"और अल्िाह ही के बहुत अच्छे नाम तो उसे इन से पुकारो"

तजम
ु ा-कांजुि ईमान सुरह आराफ-180

इससे साबबत हुआ कक

*अल्िाह के लसफाती नामों का वसीिा िे सकते है *

जैसे अल्िाह का 1 लसफाती नाम है रज़्ज़ाक यानी ररज़्क़ दे ने वािा अब ककसी


को ररज़्क़ चाहहए तो वो यह कहे ए रज़्ज़ाक मझे अपने ख़ज़ाने से बेहतरीन
ररज़्क़ दे
दस
ु रा तरीका👇

" ए इमान वािों अल्िाह से डरो और उसकी तरफ वसीिा ढाँ ढो"

तजम
ु ा-कांजुि ईमान (सुरह मायदा-35)

अबु वइि िक़ीक़ बबन सिमा इस आयत की तफ़्सीर में फरमाते हैं
"अल्िाह का क़ुबु हालसि करो *अपने नेक आमाि से*..." (तफ़्सीर अि-
तबरी 5:35

हजरत इमाम कसीर रहीमहुल्िाह हजरत कतादा रदीयल्िाहो अन्हो के


हवािे से फरमाते है कक अल्िाह की इताअत और उसकी मजी के अमि
करने से उसके करीब होते जाओ"

तफ्सीर इब्ने कसीर(सुरह मायदा-35 की तफ्सीर)

"सहीह बख
ु ारी की हदीस में है कक 3 आदमी जब गार में फांस गये तो तीनों ने
बारी बारी से अपने नेक आमाि के वसीिे से अल्िाह से दआ
ु की और कफर
अल्िाह ने उनको ननजात दी। सहीह बख
ु ारी-3465

👉यहााँ से वसीिे का दस
ु रा तरीका साबबत हुआ की
*अपने नेक आमाि जो लसफु अल्िाह के लिए ककया जाये उस आमाि का
वसीिा िे सकते है *

नतसरा तरीका👇
सहीह बुखारी की हदीस मे है कक हजरत उमर रहदयल्िाहो अन्हो नबी
सल्ििल्िाहो अिेहीवसल्िम की वफात के बाद उनके चचा हजरत अब्बास
रदीयल्िाहो अन्हो से बारीि के लिए दआ
ु करवाई सहीह बख
ु ारी-3710

👉 यहााँ नतसरा तरीका यह साबबत हुआ कक


*नेक और स्वािेह इांसान से दआ
ु करवा सकते बिते वो हयाते जीदां गी में हो
न कक कब्र वािी ज़जदां गी में*

अल्िाह के तकरूुब और उसकी तरफ वसीिा िेने का इन तीन तरीकों के


अिावा कुरआन और सहीह हदीस में कही भी अिग तरीका नहीां लमिता

बरे िवी उिेमा स का अकीदा है कक अांबबया और औलिया ककराम का भी


वसीिा िे सकते है इसके लिए वो कुछ दिीि पेि करते है
दिीि:1"👇👇👇
और हमने हर रसि को लसफु इसलिए भेजा के अल्िाह के हुक्म से उसकी
फरमाबरदारी की जाये, और ये िोग जब कभी अपनी जानों पे ज़ल्
ु म करते,
तेरे पास आ जाते और अल्िाह से इस्तग़र्फार करते और रसि भी इनके लिए
इस्तग़र्फार करता तो यक़ीनन ये िोग अल्िाह को मुआफ करने वािा
मेहरबान पाते." (सरह अि-ननसा, आयत 64 इस आयत के साथ एक हदीस
भी बयाां की जाती है के अतबी का बयाां है के, मुहम्मद ‫ ﷺ‬की क़ब्र के पास बैठा
था इतने में एक अरबी आया और मुहम्मद ‫ ﷺ‬पे सिामती भेजी और कहा
के इस आयत को पढ़ कर मैं आपसे गुनाह बख्िवाने आया हाँ... कफर उसने
तारीफें की और कफर वो अरबी चिा गया... मेरी आाँख िग गयी और ख्वाब
में मुझे मुहम्मद ‫ﷺ‬का हुक्म लमिा के जा कर अरबी को कह दो के उसकी
मगकफरत हो गयी.

वजाहत: 👇👇👇
क़ुरआन की इस आयत का सही मर्फहम ये है के अल्िाह तआिा आसी और
ख़ताकारों को इरिाद फरमाता है के उन्हें रसि के पास आ कर अल्िाह से
इस्तग़र्फार करना चाहहए और खद
ु रसि से भी अज़ु करना चाहहए के वो
हमारे लिए दआ
ु करें इस आयत का हुक्म मुहम्मद ‫ ﷺ‬की ज़ज़न्दगी तक ही
था ववसाि के बाद नहीां. जैसा के तजम
ु े में भी वाज़ेह है के रसि से अज़ु करनी
चाहहए के वो हमारे लिए दआ
ु करें ... न के उनके नाम से दआ
ु करें भिे ही
उनका ववसाि हो चका हो. दसरी और अहम ् बात ये के जो हदीस इस आयत
के साथ बयाां की गयी है वो ककसी हदीस की ककताब से नहीां िी गयी बज़ल्क
लसफु एक मनघड़त ककस्सा है ज़जसकी कोई दिीि, कोई सनद मौजद नहीां
है . ये लसफु एक कहानी है .

दिीि:2 👇👇👇
हज़रत उस्मान बबन हनीफ रज़ज० से ररवायत है के एक नाबीना (अाँधा )
िख्स आप ‫ ﷺ‬के पास आया और बोिा "आप मेरे लिए दआ
ु कीज़जये के
अल्िाह मुझे लिफा आता फरमाये" . तो आप ‫ ﷺ‬ने र्फरमाया "अगर तम
ु सब्र
करो ये तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर होगा और अगर चाहो तो मैं तुम्हारे लिए
दआ
ु करूाँगा" तो उसने कहा "आप दआ
ु कीज़जये"

आप ‫ ﷺ‬ने र्फरमाया के जाओ अच्छी तरह वज़


ु करो और कफर दो रकात
नमाज़ पढ़ो और कफर इस तरह दआ
ु करो "ऐ अल्िाह, मैं तझ
ु से सवाि करता
हाँ और तेरी तरफ रुख करता हाँ और मह
ु म्मद ‫ ﷺ‬के वसीिे से मैं तझ
ु से दआ

करता हाँ, ऐ मह
ु म्मद ‫ ﷺ‬अपनी हाजत के लिए मैंने आपके वसीिे से अल्िाह
की तरफ रुख ककया, ऐ अल्िाह, ये वसीिा क़ुबि फरमा "

(नतलमुज़ी हदीस 3578) (इब्ने मजा, ककताब 5 ईकामतस्


ु सिात, हदीस नांबर
1448 )
वजाहत👇👇👇
ये सही हदीस है ज़जसमें नाबीना िख्स रसिे पाक ‫ ﷺ‬के वसीिे से दआ
ु करता
है मगर याद रहे के वो नाबीना िख्स, मुहम्मद ‫ ﷺ‬की ज़ज़न्दगी में ही दआ

करता है और अल्िाह के रसि ने अपने वसीिे से दआ
ु करना बताया और
उस िख्स ने उनकी ज़ज़न्दगी में ही वसीिे से अपने लिए दआ
ु की. इस हदीस
से बेिक ये साबबत होता है के हम ककसी नेक और सािेह इांसान को दआ
ु के
लिए वसीिा बना सकते हैं मगर उसकी हयात में ही, न के उसके फौत हो
जाने के बाद भी. कफर कही इस बात का सुबत ककसी हदीस से नहीां लमिता
के मुहम्मद ‫ ﷺ‬के इांतेक़ाि के बाद भी ककसी ने उनके वसीिे से कभी दआ
ु की
हो. इसलिए हम लसफु उन्ही िोगों का वसीिे से दआ
ु कर सकते हैं जो बा-
हयात हैं.

दिीि :3 हज़रते अनस रज़ज० रवायत करते हैं के हज़रते उमर बबन खत्ताब
रज़ज० ने क़हत (सखा) के दौरान हज़रते अब्बास बबन अब्दि
ु मत
ु ज़ल्िब
रज़ज० को वसीिा बना कर अल्िाह से बाररि के लिए दआ
ु की और र्फरमाया
"ऐ अल्िाह हम पहिे अपने नबी ‫ ﷺ‬के वसीिे से दआ
ु करते थे और त हमपे
बाररि बरसाता था, अब हम तेरे सामने अपने प्यारे नबी मह
ु म्मदरु
रसिल्
ु िाह ‫ ﷺ‬के चाचा को वसीिा बनाते हैं, हम पे बाररि बरसा "

और कफर खब बाररि हुई

(सही बुखारी हदीस नांबर 1010 और 3710)


इस हदीस से िोग ये साबबत करने की कोलिि करते हैं के हम नबी के साथ
साथ ककसी भी नेक और सािेह इांसान के वसीिे से दआ
ु कर सकते हैं.

वजाहत: 👇👇👇
ये हदीस सही है और इस हदीस पे ग़ौर करें तो खद
ु ही सच आईने की तरह
सार्फ हो जाता है . बेिक उनका कहना सही है के हम ककसी नेक और सािेह
इांसान के वसीिे से दआ
ु कर सकते हैं बिते के वो नेक इांसान ज़ज़ांदा हो जैसा
के इस हदीस से साबबत है .और अगर आप ग़ौर करें तो इस हदीस से ही यह
भी साबबत हो जाता है के हमे ककसी र्फौत हुए इांसान का वसीिा नहीां िेने
चाहहए चाहे वो पैग़म्बर ही क्यों न हों, क्यांकक मुहम्मदरु रसिुल्िाह ‫ﷺ‬
(ववसाि 11 हहजरी) के ववसाि के बाद की ये हदीस है और हज़रते उमर बबन
खत्ताब रज़ज० ये जानते थे के र्फौत हुए इांसान को वसीिा बनाना दरु
ु स्त नहीां
है इसलिए उन्होंने उनके चाचा हज़रते अब्बास बबन अब्दि
ु मुतज़ल्िब रज़ज०
(ववसाि 32 हहजरी) को बाररि के लिए वसीिा बनाया और उनके चाचा उस
वक्त बा-हयात थे .

इस हदीस से भी साबबत हुआ के र्फौत हुए इांसान (चाहे वो नबी हो या कोई


विी हो ) वसीिा बनाना दरु
ु स्त नहीां है .
बरे िवी हज़रात के पास ऐसी कोई सही दिीि नही (क़ुरआन और सही हदीस
की) ज़जससे ये साबबत होता होता हो वफात पा चुके ककसी नबी या कोई नेक
बुज़ुगु विी का वसीिा िगाया जा सकता है

दिीि :4👇👇👇
एक और मौज हदीस बयान की जाती है के हज़रते आदम अिैहहस्सिाम से
जब खता हो गयी तो उन्होंने मह
ु म्मदरु रसिल्
ु िाह ‫ ﷺ‬को वसीिा बन कर
दआ
ु की और अपने खताओां की अल्िाह से मआ
ु फी माांगी और अल्िाह ने
मआ
ु फ कर हदया.

वजाहत:👇👇👇
यह हदीस मौज़ है (यानी गढ़ी हुई है ) और मौज हदीस कतई सही और हुज्जत
नहीां होती और ये कुरआन से भी टकराती है क्यांकक हज़रते आदम
अिैहहस्सिाम ने जो दआ
ु की थी वो दआ
ु अल्िाह तआिा ने खुद ही आदम
अिैहहस्सिाम को लसखाया और वो दआ
ु है "रब्बना ज़िमना अनफुसना व-
इांिम तगकफरिना वतरहमना िनाकुननना मीनि खालसरीन" (सरह
आराफ) तजम
ु ा:- "ऐ हमारे रब, हमने अपनी जानों पे ज़ुल्म ककया और अगर
तने हमे मुआफ न ककया और हम पे रहम न ककया तो यक़ीनन हम
ख़साराउठने वािों में हो जायेंगे."(सरह 7 अि-आराफ, आयत 23 )उन्होंने
यही दआ
ु की थी जो अल्िाह तआिा ने उन्हें लसखाया था, इसके अिावा
अगर कोई और भी दआ
ु की होती तो यक़ीनन उसका ज़ज़क्र क़ुरआन में मौजद
होता. मगर कुछ ऐसा ककसी हदीस या क़ुरआन से साबबत नहीां है .

👉इमाम अबु हनीफा फरमाते हैं :


"दआ
ु बा-हक़ नबी और वािी के वसीिे से माांगना नापसांदीदा अम्ि है
इसलिए क्यांकक मख्िक़ का कुछ हक़ अल्िाह पर नहीां" (हहदाया , सफहा
नांबर 226)

👉 तमाम दिीिों से साबबत हुआ के दआ


ु में पैग़म्बरों और औलिया
ज़जनकी वर्फात हो चुकी है उनका वसीिा िेना बबिकुि भी जायज़ नहीां.
क़ुरआन और हदीस से साबबत तरीके से वसीिे जायज़ हैं बाकक सब लिकु
और गुमराही है .

अल्िाह रब्बि
ु ईज्जत से दआ
ु है कक इस मैसेज को हमारे बरे िवी भाइयों की
हहदायत का जररया बना दे और उनको उिेमा स के चांगि
ु ननकािकर
कुरआन और सहीह हदीस की तरफ रूज करने की तौफीक अता फरमाये
और

हम सबको मरते दम तक क़ुरआन और सुन्नत(हदीस) पर ज़ज़न्दगी गुज़ारने

की तौर्फीक़ अता फरमाये (आमीन)


आपका हदनी भाई

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