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अक़ीदा ए इल्मे गैब

और

उलमा ए दे वबंद की कलाबाज़िया (ह द


ं ी )

लेखक : मह
ु म्मद शान रज़ा अल हनफ़ी
अनव
ु ादक: आले रसल
ू अहमद कटिहारी

Published By: Jamia Ahsanul Banat Katihar


नात शरीफ
शैखुल इस्लाम हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी
ममयाां अल अशरफी अल जिलानी किछौछा शरीफ़

बड़े लतीफ़ हैं नाज़ि


ु से घर में रहते हैं
मेरे हुज़ूर मेरी चश्मे तर में रहते हैं

हमारे ददल में हमारे जिगर में रहते हैं


उन्ही िा घर है वह अपने घर में रहते हैं

यह वाकिया है मलबास बशर भी धोिा है


यह मि
ु ेज़ा है मलबासे बशर में रहते हैं

यिीन वाले िहााँ से चले और िहााँ पहुांचे


िो अहले शि है अगर में मगर में रहते हैं

खद
ु ा िे नरू िो अपनी तरह समझते हैं
यह िौन लोग है किस िे असा में रहते हैं

िो उन िे तसव्वुर में सुबह व शाम िरें


िहीां भी रहते हूाँ तैबा नगर में रहते हैं

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अक़ीदा इल्मे गैब
और
उलमा ऐ दे वबांद िी िलाबाजज़या
आप की खिदमत में अपना एक
और लेि पैश कर रहा हूँ जो कक इल्मे गैब (अनदे िी ज्ञान) जैसे
महत्वपर्ण मुद्दा से संबंधित है | अलहम्द ु ललल्लाह हमारा ववश्वास
इस मुद्दा पर बबलकुल स्पष्ट और साफ़ एवं पारदशी है जो पुस्तकें
ववद्वान ए अहले सुन्नत में सचीबद्ध है जैसे िाललसुल इतक़ाद,
अम्बाअल मस्
ु तफ़ा, जाअल हक़, तौज़ीहुल बयान, मक
ु ामे ववलायत व
नुबुवत आदद कयंकक आज मेरे लेि का ववषय अक़ीदा इल्मे गैब
(अनदे िी ज्ञान) एवं ववद्वान ए दे वबंद की कलाबाजजयूँ से संबंधित
है इसललए लेख़क मात्र अनदे िी ज्ञान एवं ववद्वान ए दे वबंद ही का
चचाण करे गा इसललए जजन साहब को हमारे अक़ीदा से संबंधित
वववरर् दे िनी हो उपरोकत पुस्तकों से संपकण करें |

इस लेि को पढ़ने के पश्चात आप


को ज्ञान हो जायेगा कक िुदा साख्ता (अल्लाह का बनाया हुवा)
अकीदा में और िुद साख्ता (स्वयंभ/ अपना बनाया हुवा) में
ककतना अंतर होता है (मतलब कक िद
ु ा के बयान ककये अकीदे में
ववरोिाभास नहीं होता जब कक अंग्रेजों के कहने पर इजततयार ककये
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गये अकीदा में ककतना मतभेद एवं ववरोिाभास है ) कोई दे वबंदी
मौलवी कुछ कहता है और कोई कुछ, एक मौलवी साहब ककसी
चीज़ को जरुरी क़रार दे ते हैं दोसरे इसी को लशकण, एक ककसी चीज़
का इक़रार करते हैं दोसरे साहब इसी को सख्त अपमाननत करार दे
कर ववरोि करते हैं, एक मौलवी साहब जजस अकीदा का इज़हार
करते हैं तो दोसरे मौलवी साहब इसी को नुससे कतईया (ग्रंथों के
आिाररत) के ववरोि क़रार दे ते हैं | मतलब हर तरफ़ एक अलग ही
अनस
ु ंिान, एक अलग ही संसार वोह संसार जो अंग्रेजों के कहने
पर बनाई गई जजसका लशकार कई मुस्लमान हुए और आज अपने
आपको दे वबंदी करार दे ते हैं अल्लाह तआला की तौफीक़ से फ़कीर
िाददम मसलके हक़ अहले सुन्नत व जमाअत शाने रज़ा मह
ु म्मदी
क़ादरी शोि पसंदीदा दे वबंदी पाठकों की सेवा में अपना लेि प्रस्तुत
करता हूँ और उनको धचंनतत ननमंत्रर् दे ता हूँ है कक जजस मज़हब
के ववद्वान का एक बहुत ही महत्वपर्ण मुद्दा में इस क़दर गंभीर
मतभेद हो तो वह मज़हब, शैतानी मज़हब हो सकते है रहमानी नहीं
| अल्लाह तआला मुझे हक बयान करने और पाठकों को हक़ पढ़
कर इसे कुबल करने की तौफ़ीक अता फरमाये आमीन |

अिीदा इल्मे गैब


में
इनिारी हज़राते दे वबांदी

इस शीषणक के तहत उन दे वबंदी


ववद्वान के हवाला ए जात उल्लेि ककये जायेंगे जो कक हजरु
सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम व दीगर अजम्बया अललदहमुस्सलाम के

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ललए इल्मे गैब साबबत करने के ववरोि हैं और जो साबबत करे
उसके अकीदा को लशकण, ईसाईयों से मुशाबहत, नुसस कतईया का
खिलाफ क़रार दे ते हैं| इन में शीषण तो मौलवी इस्माइल दे हलवी
साहब की व्यजकतगत है जजन्होंने ने अपनी अनथक प्रयासों से
अपनी सरकार अंग्रेज़ के कहने पर “तकवीयतुल इमान”ललि कर
उपमहाद्वीप में प्रलोभन का बीज़ बोया जो ऐसा खिला कक वहाबी
दे वबंदी संगठन अजस्तत्व में आया | यह वही पस्
ु तक है जजस के
संबजन्ित दे वबंदी मज़हब के ही ववश्वसनीय ववद्वान अनवर शाह
काश्मीरी ने कहा की इसी पुस्तक “तकवीयतुल इमान” के वजह से
मुसलमानों में बहुत झगड़ें हुये जमात अहले सुन्नत दो िड़ों में
ववतरर् हो गई (मल ु ाहज़ं मल्फज़ाते मह
ु दद्दस काश्मीरी पेज २०५)
िेर यह तो एक पक्ष की बात थी अब आता हूँ अपनी बात की
तरफ़ |
1. मौलवी इस्माइल दे हलवी ने जहाूँ अपनी पुस्तक में दीगर
कई गस्
ु ताखियाूँ की वही उसने यह भी कहा है कक “कयंकक गैब की
बात अल्लाह ही जनता है रसल को कया ख़बर “तकवीयतुल इमान
पेज 1३०” इस पाठ में वहाबीयूँ के इमाम मौलवी इस्माइल दे हलवी
ने तमाम रसलों से गैब की ख़बर की इनकार की है जजस से यह
पता चला कक इस्माइल साहब अजम्बया के ललए अिबारे अलल्गैब,
अम्बा इ अलल्गैब का अकीदा भी न रिते थे|
२. मौलवी रशीद अहमद गंगोही जजन को दे वबंदी गौसे आज़म
के उपनाम से याद करते हैं वोह अपनी पस्
ु तक “मसला दर इल्म
गैबे रसलल्लाह के पेज 1५४”पर ललिते हैं कक “पस इस में हर
चहार मज़ादहब व जुमला उलमा ऐ मुत्तकफ़क़ (सहमत) हैं कक

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अजम्बया अलैदहमुस्सलाम गैब पर मुत्तला (सधचत) नहीं होते”गंगोही
साहब की इस पाठ का अथण बबल्कुल स्पष्ट है कक अजम्बया
अलैदहमुस्सलाम गैब पर मुत्तला (सधचत) नहीं होते (मुआज़ल्ला)
जजस से पता चला कक गंगोही साहब अजम्बया के ललए इत्तला
अललगैब (गैब की ख़बर) के इनकारी है और अजीब व गरीब बात
कक इस पर आम सहमनत से नक़ल करते हैं |
३. दे वबंदी मज़हब में “इमाम”का दजाण रिने वाले मशहर
दे वबंदी मौलवी सरफ़राज़ सफ़दर साहब अपनी पस्
ु तक “तन्कीदे
मतीन पेज 1६३” पर हजुर सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम से अता ई
इल्मे (प्रदान अनदे िी ज्ञान) गैब की ववरोि करते हुवे ललिते हैं कक
“ गज़ण कक ला आलमल
ु गैब अल आयह से हजुर सल्लल्लाहु अलैदह
व सल्लम के ललए इल्मे गैब की नफी (ना होना) कतअन
(बबलकुल) और यकीनन साबबत है और इस आयत से नफी इल्मे
गैब पर सनद लाना मंसस व बा महल है और इल्मे गैब अताई ही
की नफी मरु ाद मत
ु ा यन है इसमें रत्ती बराबर शक व शब
ु ा नहीं”
मुआज़ल्लाह
दे वबंदी के इमाम सरफ़राज़ साहब की पाठ का स्पष्ट अथण हर
पाठक समझ सकता है कक सरफ़राज़ साहब के नज़दीक हजरु
सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम के ललए अनुदान अनदे िी ज्ञान की
इनकारी कतअन (बबलकुल) और यक़ीनन साबबत है इसमें जराण
बराबर भी गुंजाइश नहीं कयंकक यह मुद्दा (अनुदान अनदे िी ज्ञान
की इनकारी) कुरान पाक की पाठ से साबबत है | मआ
ु ज़ल्लाह |
४. दे वबंदी मज़हब के मौजदा दौर के इख्लाककयात से पैदल
मुनाजज़रे दे वबंदी मौलवी अब अय्यब (नाम ननहाद) कादरी साहब

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अपने एक लेि (जो कक नाम ननहाद "राहे सुन्नत" नामी ररसाला
में दो भागों में प्रकालशत हुवी) की पहला भाग में ललिते हैं कक
"बरादराने अहले सुन्नत वाल जमाअत ! नबी ए सल्लल्लाहु अलैदह
वसल्लम का इरशाद गरामी है "‫( "لتتبعن سنن من قبلکم‬बि
ु ारी शरीफ
भाग 1 पेज ४९1) यानी तुम जरूर बबलजरूर पहले लोगों की
तकलीद करोगे इस इरशादे गरामी के मुवाकफक हुवा कक लोगों ने
अपने अकीदे में यहद व नसारा की तकलीद की" कफर चंद इनतकाद
का जज़क्र करते हुवे मोसफ़ ललिते हैं कक
"तो बरे लवी हज़रात ने इसके मुकाबले में (यानी इसाई अकीदे के
मुकाबले में उनकी इजत्तबा करते हुवे मुआज़ल्लाह : द्वारा नाककल)
एक बात इल्मे गैब ननकाली यानी अल्लाह तआला ने आप
सल्लल्लाहु अलैदह वसल्लम को इल्मे गैब अता फ़रमाया है " (रहे
सुन्नत शुमारा ६ पेज २६)
गोया मौलवी अब अय्यब के नज़दीक अताई इल्मे गैब
मानना इसाईयूँ की इजत्तबा (अनुसरर् करना) है और उनके अकीदे
को अपनाना जो दीने ईस्वी में अपनी तरफ से अलभनव थी
मुआज़ल्लाह | हालाूँकक िुद दे वबंदी ववद्वान अनुदान अनदे िी ज्ञान
के सहमती हैं
५. दे वबंदी मज़हब के मुतकजल्लमे इस्लाम मौलवी इल्यास
घम्मन साहब के कलाम को भी पढ़ते जाएये कक इन साहब ने
अपनी ककताब में कया गुल खिलाये हैं | मौलवी इल्यास घम्मन
साहब अपनी ककताब "कफ़काण बरे लीववयत पाक व दहन्द का तहकीकी
जायेज़ा" में इल्मे गैब के हवाले ललिते हैं कक "अजम्बया
अलैदहमुस्सलाम पर गैब का इज़हार व इजत्तला होती है गैब की

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अता नहीं, अल्लाह ब ना लशरकत गैर इजत्तला द हं दा गैब है |
इसके बता ने और ज़ादहर करने से ककसी को गैब की इजत्तला होती
है | कुरान करीम ने तालीमे गैब को इज़हार गैब और इजत्तला गैब
के उन्वान से ताबीर ककया | इल्मे गैब से नहीं, कयंकक इल्मे गैब
िास्सा ए ख़ुदा वंदी है जजस में उसका कोई शरीक व सहीम नहीं"
(कफ़रका बरे लीववयत पाक व दहन्द का तह कीकी जायेज़ा पेज २३२)

घम्मन साहब कक पाठ का पररर्ाम


यह है कक इजम्बया अलैदहस्सलाम पर इजत्तला अललगैब या इज़हार
अलल्गैब होती है इसको इल्मे गैब नहीं कह सकते कयंकक "इल्मे
गैब" अल्लाह के ललए िास्सा है जो अल्ला के इलावा ककसी के
ललए हालसल नहीं, ना ज़ाती तौर पर ना ही अताइ तौर पर |
मुआज़ल्ल्ला
इसकी वजह भी घम्मन साहब ने उसी पेज पर बयान कर दी है
कक " दर अस्ल इल्मे गैब का मतलब यही है कक इसके होते हुए
भलम एवं आकाश का कोई ज़राण उसकी कोई चीज़ भी ककसी भी
समय छुपी ना रहे यही अथण क़ुरान व सन्
ु नत से साबबत है "
मतलब बबलकुल स्पष्ठ है कक घम्मन साहब बताना यह चाह रहा
है कक अगर ककसी के ललए इल्मे गैब का अकीदा माना जाये चाहे
अनुदान ही कयूँ ना हो इस से लाजजम यह आता है उस शख्स के
ललए भलम एवं आकाश का कोई ज़राण उसकी कोई चीज़ भी ककसी
भी वक़्त छुपी नहीं होती बजल्क वोह उसे दे ि रहा है और यह
दे वबंदी के नज़दीक लशकण है ललहाज़ा वह ननजी तौर पर इल्मे गैब
मानते हैं ना अनुदान के तौर पर कयंकक बकौल घम्मन साहब के
कक इल्मे गैब का यही अथण क़ुरान व सन्
ु नत से साबबत है "

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घम्मन साहब ने अपनी इस पाठ में हुजुर
सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम के ललए इजत्तला गैब मान कर अपने
कुतुबुल इरशाद व गौसे आज़म मौलवी रशीद अहमद गंगोई साहब
की बात का रद्द कर ददया है कयंकक गंगोही साहब के नज़दीक इस
बात पर सब सहमत है कक अजम्बया को गैब पर सधचत नहीं होती
अब दे वबंदी ही इस मद्द
ु े को समािान करें कक गंगोही साहब के
नज़दीक तो घम्मन साहब हुजुर सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम के
ललए इजत्तला गैब का अक़ीदा मान कर सब सहमती का ववरोिी
ठहरे और घम्मन साहब के नज़दीक गंगोही साहब इजत्तला गैब का
अक़ीदा ना मान कर कुरान के ववरोिी कहलाये अब दे वबंदी अपने
ककस मौलवी को बचाते हैं यह उनकी मज़ी है |

ननहायत इजख्तसार में ने लसफण पांच


ददग्गज ववद्वान की लेि प्रुस्तुत की हैं जजनका िुलासा यह है कक
"अजम्बया को अनदे िी ज्ञान की कोई सचना नहीं" अजम्बया
अनदे िी ज्ञान पर सधचत नहीं होते, हुजरु सल्लल्लाहु अलैदह व
सल्लम के ललए अनदे िी ज्ञान साबबत करना कुफ्र व लशकण है चाहे
वोह अनुदान ही कयूँ ना हो कयंकक कुरान में "ला अअमलमुलगैब" के
शब्द आये हैं और इससे मरु ाद अनुदाननत ज्ञान का इंकार करना है
और इसमें ककसी कक़स्म का कोई शक व शब
ु ा नहीं यह आयत
अनुदाननत अनदे िी ज्ञान की इनकारी में ननिाणररत है (मतलब कोई
दोसरा संभावना है ही नहीं) जो इल्मे गैब साबबत करे वोह इस
आयत का ववरोिी हो कर काकफ़र ठहरे कफर अनुदाननत अनदे िी

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ज्ञान का मुद्दा को इसाई पादरीयूँ की इजत्तबा में बनाया गया है
गोया यह उनकी तकलीद हुवी |

यह तो था धचत्र का पहला मोड़ अब


ज़रा धचत्र का दसरा मोड़ अन्य दे वबंदी मज़हब के ददग्गज
ववद्वान के कलम से पदढ़ये |

ददल िे फफोले िल उठे सीने िे दाग से


इस घर िो आग लग गयी घर िे चचराज़ से

गैरल्लाह (अल्लाह िे मसवा) िे मलए इल्मे गैब िा


साबबत िरने वाले ववद्वान दे वबांद

सब से पहले में जजन साहब का


हवाला उल्लेि कर रहा हूँ वह दे वबंदी मज़हब में ननहायत ही आला
मक
ु ाम रिते हैं जजनको दे वबंदी हकीमल
ु उम्मत कहते हैं यानी
मौलवी अशरफअली थानवी साहब|
मौलवी अशरफ अली थानवी साहब अपने ररसाले दहफजुल
ईमान के पेज नंबर 1३ पर ललिते हैं कक " कफर यह कक आप कक
ज़ात मक़ु द्दसा पर इल्मे गैब का हुकम ककया जाना अगर बक़ौल
ज़ैद सही हो तो दरयाफ्त तलब अम्र यह है कक इस गैब से मुराद
बअज़ गैब है या कुल गैब, अगर बअज़ उलमे गैबबया मुराद हैं तो
इस में हुजुर ही कक कया तख्सीस है , ऐसा इल्म गैब तो ज़ैद व
उमर बजल्क हर सबी (बच्चा) व मजनन (पागल) बजल्क जमी ऐ
है वानात (तमाम जानवरों) व बहाइम के ललए भी हालसल है "
मौआज़ल्ला

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मौलवी अशरफ अली थानवी कक
पाठ में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम की सराहतन तौहीन
साबबत है कक मौलवी अशरफ अली थानवी ने हुज़र सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम के ज्ञान को जानवारूं पागलं से तशबीह (मेच
करना) दी है जो ननस्संदेह रसलाल्लाह सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम
की अपमान है यही कक उस समय के ववद्वान ए अरब व अजम
(जजनकी तादाद २६८ से भी अिीक हैं) ने मौलवी अशरफ अली
थानवी की तकफीर की चंकक मेरा ववषय इस समय इल्म गैब से
सम्बंधित है इस ललए इस लेि के कुफ़्र होने पर तफ्सीली बहस
नहीं कर रहा, इस लेि का रद्द िुद दे वबंदी कलम से पढ़ने के ललए
आप हमारी वेब साईट (www.deobandimazhab.com) पर मौजदा
ननबन्ि " मौलवी अशरफ अली थानवी कक गुस्तािाना इबारत
उलमाए दे वबंद कक नज़र में " पढ़ सकते हैं |
िैर यह तो एक ओर बात थी अब चललए ववषय से संबंधित बहस
की तरफ आदरर्ीय पाठकों आप ने अगर इस लेि को बगौर पढ़ा
होगा तो आप इक दम है रान रह गये होंगे कक दे वबंदी मज़हब के
ववद्वान जब इल्म गैब के इंकार पर आयें तो हुज़र सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम तक के ललए मुत्लकन इल्म गैब का इनकार कर दें
ना लसफण इनकार बजल्क इस अक़ीदा इस्लालमया के लशकण दे ने से भी
ना चंक
ु े मगर जब अपनी ककसी गलत गलत ववचार को सही
साबबत कर ने के ललए ललिने पर आयें तो जानवारूं पागलं और
बच्चों तक के ललए इल्म गैब मान लें | मेरी इस बात की समथणन
पर थानवी साहब का आिरी जुमला दलालत कर रहा है कक " ऐसा
इल्म गैब तो ज़ैद व उमर बजल्क हर सबी (बच्चा) व मजनन

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(पागल) बजल्क जमी ऐ है वानात व बहा इम के ललए भी हालसल है
" मौअज़ल्ला
इस लेि में थानवी जी ने िुल्लम िुल्ला जानवारूं पागलं के ललए
इल्म गैब माना है |

अब यह तो दे वबंदी ज्ञानी ही बता सकते हैं कक


थानवी साहब उन जानवारूं के ललए ननजी इल्मे गैब मानते हैं या
अनुदाननत ? कयंकक अगर ननजी मानते हैं तो उसका कुफ्र होना
बबलकुल स्पष्ट है और अगर अनुदाननत मानते हैं तो भी जान नहीं
छटती कयंकक पीछे जज़क्र ककया जा चक
ु ा है कक सरफ़राज़ साहब ने
"‫ "الاعلم الغیب‬आयत को अताई इल्मे गैब की नफ़ी पर कतई क़रार
ददया है और नस्से कुरानी का इनकार बबल इजत्तफ़ाक कुफ्र |
ललहाज़ा थानवी साहब को बचने के ललए अताई इल्मे गैब की शब्दी
बचाओ नघरना भी दे व्बंददयूँ को लाभ दायक बबलकुल नहीं होगा
कयंकक यह वही शब्द है जजसे दे वबजन्दयूँ ने नस्से कुरानी के
खिलाफ और इसाईयूँ की तक़लीद कहा आदद |

यह वह हड्डी है जजसे ना उगलते


बात बनती है ना नगलते बात बनती है अलहम्द ु ललल्लाह यह है
नतीजा इहानते (अपमान) मस् ु तफा सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम का
जो हुजरु सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम की गस् ु तािी करे इस पर
दनु नया कैसे तंग हो जाती है इसकी वाज़ह लमसाल आपके सामने है
कक थानवी साहब का मुस्लमान होना िुद दे वबंदी लसद्धांतों के
खिलाफ है |

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२. मौलवी मुतज
ण ा हुसैन साहब चांदपुरी के कलम से सुबते
इल्मे गैब :
मौलवी मुतजण ा हुसैन साहब अपनी पुस्तक "तौजीहुल ब्यान
फी दहफ्ज़ल
ु ईमान" मैं मौलवी अशरफ अली थानवी की इस लेि का
रक्षा करते हुवे ललिते हैं कक "दहफ्ज़ुलईमान" में इस अम्र (आदे श)
को तस्लीम ककया गया है कक सरवरे आलम सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम को इल्मे गैब ब अताए इलाही हालसल है"
(तौजीहुल ब्यान फी दहफ्ज़ल
ु ईमान पेज़ ५)
इसी तरह पेज़ 1३ पर ललिते हैं कक "सादहबे" दहफ्ज़ुलईमान
का मुद्दा तो यह है कक सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम
को बावजदे इल्मे गैब अताई होने के आललमल
ु गैब कहना जायज़
नहीं"
अल्हम्दलु लल्लाह इसे कहते हैं कक हक़ बात वह जजसकी
गवाही दश्ु मन भी दे | मौलवी मुतज
ण ा हुसैन चांदपुरी साहब की पाठ
से साबबत हो गया कक मौलवी अशरफ अली थानवी और िद ु
मोसफ़ चांदपुरी का अक़ीदा भी यह है कक हुजुर सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम अताई तौर पर इल्मे गैब जानते हैं |

आदरर्ीय पाठकों अगर हम अहले सन्


ु नत व
जमात हुजुर सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ललए इल्मे गैब का
अताई अक़ीदा रिें तो दे वबंदी मौलवी हज़रात तकफीरे मस
ु लमीन
के मशीन चलाते हुए एक ही झटके में सब को काकफ़र और
मुशररक क़रार दे कर इसाई पादररयुं के मक़
ु जल्लद करार दें | ननस्से
कुरानी के मुनकर तक कहने से बाज़ ना आयें अब जब िुद
दे वबंदी मज़हब के मन
ु ाजजर जजस की सारी जज़न्दगी उलमाए दे वबंद

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की गुस्तािाना पाठ का रक्षा करते करते गुजरी वो कहैं कक हुजुर
सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम अताई तोर पर इल्मे गैब जानते थे कफर
भी उनकी मुसलमानी पर फकण ना आये और ना ही उनके तरफ़ से
कोई फतवा लगाया जाये | इस से यह भी पता चला कक दे वबंदी
मज़हब के मौलवी हज़रात में जराण भर भी ललल्लादहयत नहीं |
उनका हम अहले सुन्नत व जमात को काकफ़र व मुशररक कहना
इस्लाम कक जमीअत व सालललमयत को नकु सान पहुंचाना है |
अल्लाह दहदायत अता फरमाये आमीन |

दे वबंदी उलमा के कलम से इल्म


गैब के इस्बात पर मजीद हवाले पेश ककये जा सकते हैं मगर
क़स्दन तकण कर रहा हूँ कक जजसने मानना है उस के ललए इतना
ही काफी है और जजसको नहीं मानना है उसके ललए सुबतों का ढे ड़
भी बे फाइदह है | बाकी आज तक जजतने भी दे वबंदी मौलवी
दहफ्ज़ुल इमान को सही समझते आये हैं और समझ रहे हैं वोह भी
गोया कक इताई इल्मे गैब के मानने वाले हैं |
मद्द
ु ा इल्मे गैब में इजततलाफ ख़त्म हो सिता है
दे वबंदी मज़हब में इमाम का दजाण रिने वाले दे वबंदी मौलवी
सरफ़राज़ िान सफ़दर साहब अपने ककताब "अजालतुर रै ब" के पेज
४५३ पर ललिते हैं कक " बाकी हज़रात फुकहाए कराम में से
जजन्होंने तकफीर नहीं की तो उनकी इबारत का मफाद भी लसफण
यही है कक अगर कोई शख्श बअज़ इल्मे गैब का अक़ीदा रिता हो
तो वोह काकफ़र ना होगा"

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अलहम्दलु लल्लाह अक़ीदा अहले
सन्
ु नत व जमात की ताईद दे वबंदी मज़हब के बहुत बड़े इमाम से
हो गयी हम अहले सुन्नत व जमात भी हुजुर सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम का ललए जो इल्मे गैब मानते हैं उसे बअज़ ही
जानते हैं तफसील इस इजमाल की यह है कक अल्लाह तअला के
असीलमत ज्ञान मकु ाबले में हुजरु सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के
ज्ञान को वोह तुलना भी नहीं जो समुन्दर के एक कतरे को
समुन्दर से होती है कयंकक समुन्दर भी असीलमत है और कतरा भी
जब कक अल्लाह तअला का ज्ञान असीलमत और हुज़र का ज्ञान
सीलमत ललहाज़ा हुजरु सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम का ज्ञाने गैब
अल्लाह के ज्ञाने गैब के तुलना में बअज़ हुवा जब अल्लाह के
बराबर ज्ञान ना मन तो लशकण भी ना हुवा | अल्हम्दलु लल्लाह अब
रही बात इस अक़ीदा की कक हमारे ववद्वान के पश्ु तकों में हुजरु
सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ललए कुल्ली इल्म गैब के अलफ़ाज़
भी हैं तो इससे दे वबंदी हज़रात को िोिा में नहीं पड़ना चादहए
बजल्क इस इजमाल की तफसील को जानना चादहए तो अज़ण है कक
मिलक के ऐतबार से हमारा अक़ीदा है कक हुजरु सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम को अव्वलीन व आखिरीन अता ककये गये हैं (जैसा
कक मौलवी कालसम नानोतवी दे वबंदी ने भी अपनी ककताब
"तह्जीरुन्नास" में ललिा है ) चूँकक कुल मिलक का ज्ञान हुजरु
सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ज्ञान के तुलना में ऐसा ही है जैसे
समुद्र के तुलना में एक कतरा तो इस रूप से हुजुर सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम का ज्ञान कुल्ली हुवा | यह भी जान लेना चादहए
कक हम ने कभी भी हुजरु सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ललए

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अल्लाह के बराबर इल्म कुल्ली का दावा नहीं ककया (वववरर् के
ललए दे खिये पुस्तकें अहले सुन्नत : फ़तवा रजववया, जाअल हक़,
तौज़ीहुल बयान, मुकामे ववलायत व नुबुवत आदद)
इसललए दे वबंदी हज़रात को इस िोका में नहीं पड़ना चादहए
कक मुआज़ल्ला जब हम सुन्नी कुल्ली इल्म गैब का इस्बात हुजुर
सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ललए करते हैं तो इससे मुराद जमी
ए मालमाते इलादहया होती हैं | ऐसा अक़ीदा हरधगज़ हरधगज़
इस्लाम में जाएज़ नहीं है |
अब दे वबंदी मज़हब के अनुयानययों से मेरा प्रशन यह है कक
अगर हम हुजुर सल्लल्लाहु अलैदहवसल्लम के ललए बअज़ इल्मे
गैबे अताई गैर मुस्तककल का कौल करें तो आप लोग हमें काकफ़र
व मुशररक क़रार दे ते हैं जबकक आप के मज़हब के ननहायत ही
मोतबर तरीन आललम सफाणराज़ िान सफ़दर साहब बअज़ इल्म
गैब के अक़ीदा को हक़ ललि रहे हैं और यह याद रहे कक दे वबंदी
हज़रात के नजदीक अक़ाइदे कतई ही होते हैं) यानी इनका सब
ु त
दलीले कतइ (नस्से कतई, िबरे मत्वानतर या इज्माए कतई से
होता है ) (हवाला: तन्कीदे मतीन, अजालातुरैब आदद) िुलासे कलाम
यह है कक दे वबंदी हज़रात का यह अक़ीदा है कक हुजुर सल्लल्लाहु
अलैदहवसल्लम को बअज़ इल्मे गैब अता ककया गया है और यह
मुद्दा दलीले कतई से साबबत है और जब दलील कतइ का इंकार
करने वाला काकफ़र होता है तो बअज़ इल्मे गैब का इंकार करने
वाला भी काकफ़र हुवा |
इसललए कक आज कल के दे वबंदी हज़रात से गुजाररश है कक
जब आपके मज़हब के उलमा भी इल्मेगैब को हुजुर सल्लल्लाहु

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अलैदहवसल्लम के ललए मान रहे हैं तो उम्मत कक िैर िाही के
ललए कुफ्र व लशकण कक मशीन चला कर मुसलमानों पर कुफ्र कशीद
कर ने से परहे ज़ करें |

मेरा यह लेि ललिने का उद्देश्य


लसफण और लसफण इस तकफीरी मुहीम (जो दे वबंदी हज़रात की तरफ
से हम अहले सन्
ु नत व जमात के खिलाफ की जा रही है )
महरण कीन को आइना ददिाना है महज़ अपनी दकान दारी को
चमकाने के ललए अक़ीदा इल्म गैब को जान बझ कर पेचीदा बनाने
की कोलशश की जा रही है | चूँ कक लेिेक अपने आप को उलम
इस्लालमया का छोटा ववद्याथी समझता है इस ललए मुमककन है कक
मेरे ललिने में कोई गलती वाकअ हुवी हो इस ललए मैं पहले ही
अल्लाह की पनाह में आता हूँ और अपनी हर उस बात को मरदद
समझता हूँ जो क़ुरान व सन्
ु नत से टकराये | इस ललए अहले इल्म
हज़रात इस में कोई गलती मुलाहे ज़ा फरमायें तो सचना फरमा कर
िन्यवाद् का मौका फराहम फरमायें | अल्लाह तअला के बारगाहे
आलीशान में दस्ता बस्ता दव
ु ा है कक ऐ अल्लाह त जनता है कक
तेरे इस गुनाहगार बन्दे ने यह तहरीर तेरी ररज़ा के ललए ललिी है
मेरे इस ललिने में तासीर पैदा फरमा बदमज्हबं के ललए ललए हक़
कुबल करने और सुजन्नयुं के ललए ईमान कक मजबती का जरीया
बना और मझ
ु गन
ु ाह गार के हक़ व कफ्फारा सय्यात बना |
‫آمینبجاہالنبیالکریم‬
ताललबे दआ
ु ...............................
लेिक: मुहम्मद शान रज़ा अल- हनफ़ी
अनुवादक: आले रसल अहमद कदटहारी

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आला हज़रत िी आखरी वसीयत
जजस से अल्लाह व रसल की शान में अदना तौहीन पाओ
कफर वह तुम्हारा कैसा ही प्यारा हो फ़ौरन उससे जुदा हो जाओ
जजसको बारगाहे ररसालत में जरा भी गुस्तािी दे िो कफर वोह
तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम कयूँ न हो अपने अन्दर से उसे दि से
मकिी की तरह ननकाल कर फेंक दो | मैं ने पौने चोदह साल की
उम्र से यही बताता रहा और इस वक़्त कफर यही अज़ण करता हूँ
अल्लाह जरूर अपने दीन की दहमायत के ललए ककसी बन्दे को िड़ा
कर दे गा मगर नहीं मालम मेरे बाद जो आए कैसा हो और तम्
ु हें
कया बताये | इसललए इन बातों को िब सन ु लो हुज्जतुल्लाह
क़ाएम हो चुकी अब में कब्र से उठ कर तुम्हारे पास बताने न
आउं गा जजसने इसे सुना और माना कक़यामत के ददन उस के ललए
नर व ननज़ात है और जजस ने ना माना उस के ललए ज़ल्
ु मत व
हलाकत |

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‫دنچوےفیظ‬
‫ایزعزیایاہللاوسکیرمہبت‬ ‫‪:‬‬ ‫دعبامنزرجف‬
‫ایرکمیایاہللاوسکیرمہبت‬ ‫‪:‬‬ ‫دعبامنزرہظ‬
‫ایابجرایاہللاوسکیرمہبت‬ ‫‪:‬‬ ‫دعبامنزرصع‬
‫ایاتسرایاہللاوسکیرمہبت‬ ‫دعبامنزرغمب ‪:‬‬
‫ایافغرایاہللاوسکیرمہبت‬ ‫‪:‬‬ ‫دعبامنزاشعء‬
‫رہ امنز ےک دعب آۃی ارکلیس اکی رمہبت ‪ ،‬ہملک وتدیح ینعی ال اہل اہلل ودحہ ال رشکی ہل ہل اکلمل وہل‬
‫ئ‬
‫ادمحلووھ یلع لک یش دقری دس رمہبت ‪ ،‬ای دنلب آواز ےس مک از مک نیت ابر سناحب اہلل ‪33‬رمہبت‪ ،‬ادمحل ہلل ‪33‬‬
‫رمہبت‪ ،‬اہلل اربک ‪ 33‬رمہبت‪ ،‬ہملک دیجمت ینعی ناحب اہلل و ادمحل ہلل وال اہل اال اہلل واہلل اربک وال وحل وال وقۃ اال اباہلل‬
‫ایلعلامیظعلاکیرمہبتڑپاھرکےسدرودرشفیسجدقرزایدہڑپھےکسڑپاھرکےس‬

‫درودرشفیہیےہ‬
‫اللھمصلیوسلمعلیسیدنامحمدوعلیالسیدنامحمد‬
‫ٰ‬
‫ترضی بان تصلی علیہ ﷺ‬ ‫کماتحبو‬

‫اافغتسراوایلء‬
‫استغفرہللاربیمنکلجمیعما کرہہللا‬
‫قوالفعالسمعاناظراوالحول وال قوۃہللابا ہللا العلیالعظیم‬
‫روزاہنوسابرڑپےنھواالدنچاسولںےکدعبانگوہںےسوفحمظرفامایلاجاتےہس‬

‫اافغتسرالمہکئ‬
‫سبحانہللاوبحمدہسبحان ہللاالعظیموبحمدہاستغفرہللا‬
‫روزاہنوسابرڑپےنھواالرزقوعیساپاتےہس‬

‫‪Aqeeda e Ilm e Ghaib‬‬ ‫‪http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬ ‫‪Page 18‬‬


‫دودجسوںےکدرایم یکداعںیئ‬
‫رباغفرلی‪،‬رباغفرلی‪،‬رباغفرلی (سنن ابیداؤد)‬
‫اےریمےرب!ےھجماعمفرکدے‪،‬اےریمےرب!ےھجماعمفرکدے‪،‬اےریمےرب!ےھجماعمفرکدےس‬
‫اللھماغفرلیوارحمنیواھدنیواجبرنی وعافنیوارزرقنیوارفعنی‬
‫اےاہللزعولج!ےھجماعمفرکدے‪ ،‬ھجمرپرمحرفام‪،‬ےھجمدہاتیدے‪،‬ریمےاصقن وپرےرکدے‪،‬‬
‫ےھجماعتیفدے‪،‬ےھجمرزقدےاورےھجمدنلبیاطعرفامس(ننسایبداؤد‪،‬اجعمرتذمی‪،‬ننسانبامہج)‬

‫درودرشفی‬
‫اللهم صلى على سيدناوموالنامحمدوسيدناادم وسيدنانوح‬
‫وسيدناإبراهيم وسيدناموسى وسيدناعيسى وما بينهم من النبيين‬
‫والمرسلين صلوات اهلل و سالمه عليهم اجمعين اللهم صلى على‬
‫سيدناجبرائيل وسيدناميكائيل وسيدنا إسرافيل وسيدناعزرائيل و حملة‬
‫العرش و على المالئكةوالمقربين وعلى جميع االنبياء والمرسلين صلوات‬
‫اهللوسالمهعليهماجمعين‬

‫زماررپاحرضیاکرطہقی‬
‫رفام ِ دیساناٰیلعرضحتااممادمحراضرۃمحاہللہیلع‪:‬‬
‫زایرت ربق تیم ےک وماہج ںیم ڑھکے وہرک اوراس رطف ےس اجےئ ہک اس یک اگنہ اسےنم وہ‪ ،‬رساہےن ےس ہن‬
‫آےئہکرسااھٹرکدانھکیڑپےسالسم وااصیلوثاب ےکےیلارگدریرکاناچاتہ ےہ ُروبقبرھٹیباھےئ اورڑپاتھرےہایویلاک‬
‫یواویرہیہید‪9‬ہحفص‪)535‬‬
‫زمارےہوتاسےسضیفےل–واہللاعتا ٰیلا( م( ر‬

‫زماررپداعاکرطہقی‬
‫اٰیلعرضحترفامےتںیہہکافہحتےکدعبزارئاصِبحزمارےکوےلیسےسداعرکےاورا اناج ز دصق شیرکے‬
‫یواوی‬
‫رھپالسمرکاتوہاواسپآےئسزماروکہناہھتاگلےئہنوبہسدےس وطافاباالافتقاناج زےہاوردجسہرحامےہس( ر‬
‫رہیہید‪9‬صٖفحہ‪)555‬‬

‫‪Aqeeda e Ilm e Ghaib‬‬ ‫‪http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬ ‫‪Page 19‬‬


‫زماررشفیایربقرپوھپولںیکاچدرڈاےنلںیمرشًاعرحجںیہنہکلباہنتییہااھچرطہقیےہس‬

‫افدئہ‬
‫ربقوں رپ وھپل ڈاانل ہک بج کت وہ رَت رےہ اگ حیبست رکںی ےگ اس ےس تیم ےس اک دل اتلہب ےہ اور رتمح ارت یت‬
‫یواویاعریگملیںیمےہہکربقوںرپوھپولںاکرانھکااھچےہس‬
‫ےہس ر‬
‫درگیوحاہلاجتہیےہ‪......‬‬
‫یواویدنہہید‪5‬ہحفص‪،353‬‬
‫ر‬
‫یواویاامماقیضاخں‬
‫ر‬
‫ادمادااتفملح‬
‫ردااتخملرد‪3‬ہحفص‪606‬‬
‫یواویرہیہید‪9‬ہحفص‪305‬‬
‫ر‬

‫زماررپاچدرڑچاھان‬
‫زماررپبجاچدر وموجدوہ رخاب ہنوہیئوہ دبےنل یک احتج ںیہن وت اچدر ڑچاھان وضفل ےہ ہکلب وجدام اس ںیم‬
‫رصفرکںیاہللےکویلوکااصیلوثابرکےنےکےئلیسکاتحمجوکدںیس(ااکحمرشتعیٖہصحاولہحفص‪)35‬‬
‫آجمہاچدرڑچاھےنوکیہبسھچکھجمسایلےہاورڈوھلاتےشےکاسھتاچدرےلرکاجےتںیہہیریغرشیعاور‬
‫طلغرطہقیےہساسرطحےکرواوجںاکاالسمںیموکیئہگجںیہنےہس‬

‫ڑیپ‪،‬دویارایاتکرپافہحتدالان‬
‫ولوگں اک انہک ےہ ہک الفں ڑیپ رپ دیہش (ایوکیئ زبرگ) رےتہ ںیہ اور اس ڑیپای دویار ای اتک ےک اپس اجرک اھٹمیئ ‪،‬‬
‫اچول(ای یسک زیچ) رپ افہحتدالان ‪،‬اہر وھپل ڈاانل ‪ ،‬ولاب ای ارگیتب الجان اور ںیتنم ام ‪ ، ،‬رمادںیامہی ا ہی بس اباو وا‪ ،‬تت ‪ ، ،‬رار ‪،‬‬
‫رخاافتاوراجولہںوایلےبووقایفںاورےباینبداباو ںیہس(ااکحمرشتعیہصح‪3‬ہحفص‪)55‬‬

‫یسکزبرگایدیہشایویلیکاحرضیایوساریآان‬
‫ایس رطح ہی انھجمس ہک الفں آدیم ای وعرت رپ یسک زبرگ ای دیہش ای ویل یک احرضی وہیت ای وساری آیت ےہ ہی یھب‬
‫وضفل اور اجولہں یک ڑگیھ وہیئ ابت ےہ یسک ااسن ےک یسک یھب رطح ےس رمےن ےک دعب ایکس روح یسک ااسن ای یسک زیچ‬

‫‪Aqeeda e Ilm e Ghaib‬‬ ‫‪http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬ ‫‪Page 20‬‬


‫ںیمںیہنآیتکس‪،‬وجیتنج ںیہا وکاسرطحیک رضورت ںیہناوروج یمنہجںیہوہآںیہنےتکس‪ ،‬انجتاوراطیش رضوریسک‬
‫زیچ ای یسک اجیررای یسک ااسن ےک ک م وک ںاراں رکےن ےک ےیل آ ےتکس ںیہ س دازاد یھب اطیش انجت ںیم ےس وہات ےہوج رہ‬
‫ااسن ےک اسھت دیپا وہات ےہزدنیگ رھب اےکس اسھت راتہ ےہ اور اس ااسن ےک رمےن ےک دعب ای زدنیگ ںیم یہ یسک ےچب ای‬
‫ڑبےےکک مںیمسھگرکایکسزاب وباتلےہ‪،‬ایسوکاجلہاملسم دورسامنجاورےلھچپمنجیکابتھجمسےتیلںیہس‬
‫اہلل لج الجہل ںیمہ دیسےھ راےتس رپ الچےئ ینعی اایبنء ‪ ،‬دہشاء‪،‬دصنیقی‪ ،‬اصنیحل ور اوایلء رکام ےک راےتس رپ‬
‫الچےئاوررشتعیاکاپدنبانبےئسآنیم‬

‫دقسرسہ‬ ‫افہحتاطلس االوایلءوبحمبزیاینودبعارلزاقیررانیعل‬


‫ربوح ادقس رضحت اطلس االوایلء درۃ اتج االایفصء دمعۃ ااکلنیلم زدنۃ اولانیلص‪ ،‬نیع ویع‬
‫ب‬ ‫ن‬
‫ی یہ‪،‬‬ ‫ت‬ ‫ش‬‫ہ‬ ‫نیققحم‪،‬وارث ولعماایبنءو رمنیلس‪،‬اک رعاف ‪،‬اج اامی ‪،‬ماےئاخدنا ہیتشچ‪ ،‬اشنمےئ دودام‬
‫ن‬ ‫ل‬
‫اترکا مملکہاواوکلنین ‪،‬رمدشانیلقثل‪،‬اوالد نیسحدیہش رکالب ‪،‬ریررددیہافہمطزرہا‪ ،‬رگجوگہشءیلعرم ب ےر‪،‬‬
‫ض‬
‫ریبنہ رضحت دمحم مضطفے‪ ،‬اسکل رطق رطتقی ‪ ،‬امکل کلم تقیقح ‪ ،‬دتقماےئ اوایلء روزاگر ‪ ،‬ئاوشاےئ اایفصء‬
‫ن‬
‫کتت‬
‫ابکر‪ ،‬دصر ابراگر رکاتم دتقماےئ م ریخ اۃم ارختج وافق رومز اقحقئ ایہل‪ ،‬اکفش واققئ ال انتمیہ ‪،‬‬
‫رمیسغ اقف عطق العقئ ‪،‬ابہشز اضفےئ اقحقئ‪ ،‬عمش اتسبش دہاتی ‪ ،‬رہم ایرر اوج والتی ‪ ،‬المذ ارابب وشق و‬
‫دتقمی االانم‪ ،‬خیش االالسم‪ ،‬احظف رقاءت ہعبس اہجں تسگ دحود ارہعب‪،‬‬
‫ر‬ ‫رعافں‪ ،‬اعمذ ااحصب ذوق ودجاں ‪،‬‬
‫میقم رساواقت الجل مہبط ایلجتت امجل اذلی نم ادتقی ہب دقف اھدی ونم اخفل دقف لض و ر‬
‫وغی اتموعبۃ‬
‫لمت‬
‫اسوکل و اخمولۃ اھوکل ووھ اولاقففی اقمم القطتی یہا و ا ن یف رمام اوغلہیث‪،‬رہظم افصت رابین‪ ،‬ومرد ااطلف‬
‫ن‬ ‫ک‬‫م‬

‫ناحبین رضحت م ہ رمدا یین اخمہب ہب م بب وبحمب زیداین‪ ،‬دیسان و ومالان و ص ءء دصوران و لق انبانب‬
‫دتقماےئاوایلءریثکرضحتاریمریبکدخموماطلس دیسارشفاہجاینںاہجریگنانمسینااسلامینیرریشخباونلراین‬
‫رسہ ازعلزیو ربوح ادقس رضحت دقوۃ االربار دمعۃ االایخر رسواتسلگں ینسح اینیسحل ‪ ،‬اہنل وباتسں ینب ادملین‬
‫یررددیہ رضحت وبحمب ناحبین رسور ہنیس دیس دبعااقلدر الیجین‪ ،‬رہظم ارسار ارشیف ‪ ،‬رظنم ااظنر رگشیف احیج‬
‫ارحلنیم ارشلنیفی‪ ،‬اخمہب ہب م بب یررانیعل‪ ،‬زدبۃ اآلافق رمیض االالخق مہبط ایرار تخیشم یلع االالطق‬

‫‪Aqeeda e Ilm e Ghaib‬‬ ‫‪http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬ ‫‪Page 21‬‬


‫رضحت دیس دبعارل زاق یررانیعل ریض اہلل ہنع عم عیمج افلخء و رمدیاں ابکیر افہحت و ہس ابر االخص اب ولصات‬
‫وخبادین‬

‫ئ‬
‫اطیومہرکیخہبرسیودینجواںیمدمدے‬
‫ہببیبحو ی‬ ‫ایربہبدمحمورہبیلعہننسحاطلس دںیدمدے‬
‫ہبدیعسووغثالیجینہبیلعوبحمبرتںیدمدے‬ ‫ہبوبرکبودبعاولادحمہوبارفلحوےئپاکنھری‬
‫ےئپیررانیعلورہبنیسحہبدیہشوگہشںیشندمدے‬ ‫ےئپاحلفووباثیغلوافلضہندیبعوالجلوہشانمسں‬

‫رسورودیسدمحممضطفرےﷺ ےکواےطس‬ ‫دشخبےایربلجالجہلعیفشدورساےکواےطس‬


‫رضحتوما ٰیلیلعلکشماشکےکواےطس‬ ‫دنیوداینیکرمیبسےسںیلکشمآاس رک‬
‫طبس ارغصاسدیہشرکالبےکواےطس‬ ‫دوررکدےریمےوما ٰیلھجمےسرہرکبوالب‬
‫وغثامظعدنبہدقرتامنےکواےطس‬ ‫غیاث العا ملنی‬
‫اایغلث اایغلث ای َ‬
‫اولریےکواےطس‬
‫ارشفانمسںرمےوغث ر‬ ‫دویرںاعملیکرشاتفشخبدےوما ٰیلےھجم‬
‫یررنیعدبعرزاقاوایلءےکواےطس‬ ‫آھکن ںیمدےیررریمےرزق ںیمدےربںیتک‬
‫آرخںیم ‪...................................‬‬
‫ومت آےئ دریبنیلصاہللہیلعوملس رپ دیسد‬
‫ورہنوھت یڑییسزںیموہہشانمسںےکرقب‬
‫ارشف انمسں‬
‫د‬ ‫ریقف اقدری دگاےئ‬
‫آلروسلادمحاالرشدیفااقلددریاہیٹکدری‬
‫ِ‬
‫ل‬
‫(ا مملکہاارعلۃیبالسعودۃی)‬
‫‪Email: aalerasoolahmad@gmail.com‬‬
‫‪Bloger: http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬

‫‪Aqeeda e Ilm e Ghaib‬‬ ‫‪http://aalerasoolahmad.blogspot.com‬‬ ‫‪Page 22‬‬


Introduction to AIUMB
All India Ulama & Mashaikh Board (AIUMB) has been established with the basic
purpose of popularizing the message of peace of Islam and ensuring peace for the
country and community and the humanity. AIUMB is striving to propagate Sunni Sufi
culture globally .Mosques, Dargahs, Aastanas, and Khanqwahs are such fountain heads
of spirituality where worship of God is supplemented with worldly duties of propagating
peace, amity, brotherhood and tolerance.
AIUMB is a product of a necessity felt in the spiritual, ethical and social thought
process of Khaqwahs.Khanqwahs also have made up their mind to update the process
and change with the changing times. As it is a fact that Khanqwahs cannot ignore some
of the pressing problems of the community so the necessity to change the work culture of
these centers of preaching and learning and healing was felt strongly. AIUMB condemns
all those deeds and words that destabilize the country as it is well known that this religion
of peace never preaches hatred .Islam is for peace. Security for all is the real call. AIUMB
condemns violence in all its form and manifestation and always ready to heal the wounds
of all the mauled and oppressed human beings. The integral part of the manifesto of
AIUMB is peace and development. And that is why Board gives first priority to establish
centers of quality modern education in Sunni Sufi dominated ares of the country. The
other significant objectives of the Board are protection of waqf properties, development
of Mosques, Aastanas, Dargahs and Khanqwahs.
This Board is also active in securing workable reservation for Muslims in education and
employment in proportion to their population. For this we have been organizing meetings
in U.P, Rajasthan, Gujrat, Delhi, Bihar, West Bengal, Jharkhand, Chattisgadh, Jammu&
Kashmir, and other states besides huge Sunni Sufi conferences and Muslim Maha
Panchayets . Sunni conference (Muradabad 3rd Jan 2011)Bhagalpur(10th May 2010 )
and Muslim Maha Panchayet at Pakbara Muradabad ( 16th October 2011) and also
Mashaikh e tareeqat conference of Bareilly (26th November 2011 ) are some of the
examples.

HISTORICAL FACT AND THE NEED OF THE HOUR


The history of India bears witness to that fact that when Alama Fazle Haq
Khairabadi gave the clarion call to fight for the freedom of our country all the Khanqahs
and almost all the Ulama and Mashaikh of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat rose in unison and
gave proof of their national unity and fought for Independence which resulted in
liberation of our country from British rule.
But after gaining freedom, our Khanqahs and The Ulama of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat
went back to the work of dawa and spreading Islam, thinking that the efforts that were
undertaken to gain freedom are distant from religion and leaving it to others to do the
job. Thus the Independence for which our Ulama and Mashaikh paid supreme sacrifice
and laid down their lives resulted in us being enslaved and thereby depriving us
legimative right to participate in the governance of our country.
After the Independence hundreds of issues were faced by the Umma, whether
religious or economic were not dealt with in a proper way and we kept lagging behind.

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During the lat 50 years or so a handful of people of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat could
become MLA’s, MP’s and minister due to their individual efforts lacking all along solid
organized community backing as a result of which Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat remained
disassociated with the Government machinery and we find that we have not been able to
found foothold in the Waqf Board, Central Waqf Board, Hajj Committee, Board for
Development of Arbi, Persian & Urdu or Minorities Commission. Similarly when we look
towards political parties big or small we see a specific non-Sunni lobby having strong
presence. In all the Institution mentioned above and in all political parties Sunni presence
is conspicuous by its absence.
Time and again Ulama and Mashaikh have declared that the Sunni’s constitutes a
total of approximately 75% of all Muslim population. This assertion have lived with us as a
mere slogan and we have not been able to assert ourselves nor have we made any
concerted efforts to do so.
It is the need of the hour that The Ulama and Mashaikh should unite and come on single
platform under the banner of Ahl-E- Sunnah Wal-Jamaat to put forward their message to
the Sunni Qaum. To propagate our message Sunni conferences should be held in the
District Head Quarters and State Capitals at least once a year to show our strength and
numbers this is an uphill task and would require huge efforts but rest assured that once
we do that we shall be able to demonstrate our number leaving the non-Sunni way
behind thereby changing the perception of political parties towards us and ensuring
proper representation in every field.

AIMS AND OBJECTIVES OF AIUMB


To safeguard the right of Muslim in general and Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat in particular.

To fight for proper representation of responsible person of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat in


national and regional politics by creating a peaceful mass movement.

To ensure representation of Sunni Muslim in Government Organization specially in


Central Sunni Waqf Boards and Minorities Commission.

To fight against the stranglehold and authoritarianism of non-Sunni’s in State Waqf


Board.
To ensure representation of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat in the running of the state waqf
board.

To end the unauthorized occupation of the Waqf properties belonging to Dargahs,


Masajids, Khanqahs and Madarasas, by ending the hold of non-Sunni’s and to safeguard
Waqf properties and to manage them according to the spirit of Waqf.

To create an envoirment of trust and understanding among Sunni Mashaikh, Khanqahs


and Sunni Educational institution by realizing the grave danger being paced by Ahl-E-

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Sunnah Wal-Jamaat. To rise above pettiness, narrow mindedness and short sightedness
to support common Sunni mission.

To work towards helping financially weak educational institutions.

To provide help to people suffering from natural calamities and to work for providing help
from Government and other welfare institutions.

To help orphans, widows, disabled and uncared patients.

To help victims of communalism and violence by providing them medical, financial and
judicial help.

To organize processions on the occasion of Eid-Miladun-Nabi (SAW) in every city under


the leadership of Sunni Mashaikh. To restore the leadership of Sunni Mashaikh in Juloos-
E-Mohammadi (SAW) wherever they were organized by Wahabi and Deobandis.

To serve Ilm-O-Fiqah and to solve the problem in matters relating to Shariah by forming
Mufti Board to create awareness among the Muslims to understand Shariah

To establish Interaction with electronic and print media at district and state level to
express our viewpoint on sensitive issues.

Ashrafe–Millat Hazrat Allama Maulana Syed Mohammad Ashraf Kichhowchhwi


President & Founder All India Ulama & Mashaikh Board
Email : ashrafemillat@yahoo.com
Twitter : www.twitter.com/ashrafemillat
Facebook : www.facebook.com/AIUMBofficialpage Website:
www.aiumb.com

Head Office :
20, Johri Farm,
2nd Floor, Lane No. 1
Jamia Nagar, Okhla
New Delhi -25
Cell : 092123-57769
Fax : 011-26928700

Zonal Office
106/73-C,
Nazar Bagh, Cantt. Road,
Lucknow.
Email : aiumbdel@gmail.com

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