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तफ़सीलात

नाम
िफ़तना गौहर शाही
अज़ क़लम
दे मु तफ़ा मु मद सािबर क़ादरी

सना इशाअ़त कुल सफ़ह़ात


शाबान 1444 ि जरी 47
माच 2023 सवी

हमारे डज़ाइ नग पाटनर


PURE SUNNI
GRAPHICS

ना शर

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फ़ितना गौहर शाही

फ़ेहरिस्त
नाफशर की तरफ से कुछ अहम बातें ......................................... 3
मक़
ु द्दमा ............................................................................. 5
फकताब "दीने इलाही" का जाइजा ........................................... 6
तफससरा: .............................................................................. 6
क़ुर'आन की आयत से इस्तेदलाल............................................. 7
गौहर शाही हर मजहब में....................................................... 7
फ़िज़्र या फिष्णु महाराज? ...................................................... 8
हजरते आदम या शक ं र? ..................................................... 10
मंसरू हल्लाज से तशबीह..................................................... 12
गौहर शाही नमाज नहीं पढ़ता था। ......................................... 17
गौहर शाही के बचपन के हालात........................................... 18
चांद सरू ज पर गौहर शाही की तस्िीर ..................................... 20
नासा की ली गई तस्िीरें ...................................................... 21
हजरे असिद और मंफदर में तस्िीर ......................................... 22
महदी यानी चांद िाला........................................................ 23
औरतों से मल ु ाक़ात ........................................................... 23
फकताब "दीने इलाही" का ़िल ु ासा ........................................ 24
ररसाला "रोशनास" का जाइजा ............................................. 25
"तोहफतल ु मजाफलस" का जायजा ........................................ 28
1
फ़ितना गौहर शाही
फकताब "मीनारा-ए-नरू " का जाइजा ....................................... 29
ररसाला "इसरारे हक़ीक़त" का जाइजा.................................... 30
ररसाला "नमाजे हक़ीक़त" का जाइजा .................................... 31
ररसाला "रुहानी स़िर का जाइजा" ........................................ 31
ररसाला "रोजे का मक़सद" का जाइजा ................................... 34
फकताब "फतरयाक़े क़ल्ब" का जाइजा ..................................... 35
गौहर शाही के रद्द पर फकताबें ............................................... 36
(1) गौहर शाही की गौहर अ़िशाफनयां ..................................... 36
(2) चार फ़ितने ................................................................... 36
(3) दौरे जदीद का मसु ैलमा कज़्जाब "गौहर शाही" ..................... 36
(4) फ़ितना -ए- गौहरया ........................................................ 37
(5) गौहर शाही के अक़ाइद-ओ-नजररयात ................................ 37
खल ु ासा और खाफतमा ........................................................ 37
हमारी फकताबें फहदं ी में........................................................... 39

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फ़ितना गौहर शाही

नाशिर की तरफ से कुछ अहम बातें


मख़्ु तल़ि ममाफलक से कई फलखने िाले हमें अपना सरमाया इरसाल
़िरमा रहे हैं फजन्हें हम शाया (Publish) कर रहे हैं, हम ये बताना जरूरी
समझते हैं फक हमारी शाया करदा फकताबों की मंदु ररजात (Contents) की
फजम्मेदारी हम इस ह़द तक लेते हैं फक ये सब अहले सन्ु नत ि जमाअ़त से
है और ये जाफहर भी है फक हर फलखारी का ताल्लक़ ु अहले सन्ु नत से है,
दसू री जाफनब अकाफबरीने अहले सन्ु नत की जो फकताबें शाया की जा रही
हैं तो उन के मतु ाफल्लक़ कुछ कहने की हाजत ही नहीं। फफर बात आती है
लफ्जी और इमलाई ग़लफतयों की, तो जो फकताबें "टीम अ़सदे मस्ु त़िा
ऑफफफशयल" की पेशकश होती हैं उनके फलये हम फजम्मेदार हैं और िो
फकताबें जो मख़्ु तल़ि जराए से हमें मौसल ू होती हैं, उन में इस तरह की
ग़लफतयों के हिाले से हम बरी हैं फक िहााँ हम हर हर लफ्ज की छान फटक
नहीं करते और हमारा फकरदार बस एक नाफशर का होता है।
ये भी मफु म्कन है फक कई फकताबों में ऐसी बातें भी हों फजन से हम
इफि़िाक़ नहीं रखते, फमसाल के तौर पर फकसी फकताब में कोई ऐसी
ररिायत भी हो सकती है फक तहक़ीक़ से फजसका झटू ा होना अब साफबत
हो चक ु ा है लेफकन उसे फलखने िाले ने अदमे तिज्जो की फबना पर नक़्ल
कर फदया या फकसी और िजह से िो फकताब में आ गई जैसा फक अहले
इल्म पर म़िफी नहीं फक कई िजु हू ात की फबना पर ऐसा होता है, तो जैसा
हमने अज़ फकया फक अगचे उसे हम शाया करते हैं लेफकन इससे ये ना
समझा जाए फक हम उससे इफि़िाक़ भी करते हैं।
एक फमसाल और हम अहले सन्ु नत के माबैन इफख़्तला़िी मसाइल की
पेश करना चाहते हैं फक कई मसाइल ऐसे हैं फजन में उलमा -ए- अहले
सन्ु नत का इफख़्तला़ि है और फकसी एक अमल को कोई ह़राम कहता है
3
फ़ितना गौहर शाही
तो दसू रा उसके जिाज का क़ाइल है, ऐसे में जब हम एक नाफशर का
फकरदार अदा कर रहे हैं तो दोनों की फकताबों को शाया करना हमारा काम
है लेफकन हमारा मौफक़ि क्या है, ये एक अलग बात है, हम फरीकै ै़न की
फकताबों को इस बफु नयाद पर शाया कर सकते हैं फक दोनो अहले सन्ु नत से
हैं और ये इफख़्तला़िात फुरूई हैं।
इसी तरह हमने लफ़्जी और इमलाई गलफतयों का फजक्र फकया था फजस
में थोडी तफ़्सील ये भी मल ु ाफहजा ़िरमाएाँ फक कई अल्फाज ऐसे हैं के फजन
के तलफ़़्िुज और इमला में इफख़्तला़ि पाया जाता है, अब यहााँ भी कुछ
ऐसी ही सरू त बनेगी फक हम अगचे फकसी एक तरीक़े की फसह़्हह़त के क़ाइल
हों लेफकन उसके फ़िला़ि भी हमारी इशाअत में मौजदू होगा, इस ़िक़़ को
बयान करना जरूरी था ताफक क़ारईन में से फकसी को शसु हा न रहे।
टीम अ़सदे मस्ु त़िा ऑफ़िफशयल की इ़ल्मी, तहक़ीक़ी और इस्लाह़ी
फकताबें और ररसाले कई मराफहल ै़ से गजु रने के बाद शाया होते हैं लेफकन
इसके बािजदू इन में भी ऐसी ग़लफतयों का पाया जाना मफु म्कन है फलहाजा
अगर आप उन्हें पाएाँ तो हमें जरूर बताएाँ ताफक उसकी तस्हीह़ै़ की जा सके ।

साशबया वर्ुअल पशललके िन


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फ़ितना गौहर शाही

मुक़द्दमा
दौरे हाफजर को "दौरे परु फफतन" कहा जाता है क्योंफक इस दौर में फफतने
ही फफतने हैं, ये फफतने इस दौर के साथ ़िास नहीं बल्के तारी़ि उठा कर
देखें तो बे शमु ार फफतनों ने सर उठाए मगर अहले हक़ हमेशा से ग़ाफलब
रहे हैं और रहेंगे।
हक़ और बाफतल की ये जंग सफदयों से जारी है और हक़ की शान ये है
के थोडी देर के फलए ब'जाफहर हारता हुआ नजर आए तो भी असल में
फतेह इसी की होती है, इसे न कोई फमटा सका है और न फमटा सके गा।
इन फफतनों के बारे में अल्लाह के नबी ‫ َص ََّل ُہللا َت َع یاٰل َعلَ ْی ِہ َو یالِہٖ َو َسلََ َم‬ने सफदयों
पहले बता फदया था और इतनी त़िसील से बयान फरमाया के "फकताबल ु
फफतन" एक मस्ु तफक़ल फकताब (चैप्टर) है जो कुतबु े हदीस में देखने को
फमलता है, इसके इलािा फफतनों पर कई फकताबें भी फलखी गई हैं फजन में
फक़यामत तक और फबल खसु सू क़ुबे फक़यामय के फफतनों का त़िसीली
बयान मौजदू है। इन्हीं फफतनों में से एक "गौहर शाही" है फजसने कई
मसु लमानों को गमु राह फकया है, इनके अक़ाइद का दीने इस्लाम से दरू दरू
तक का कोई ताल्लक़ ु नहीं है, इन्होंने क़ुरआनो सन्ु नत की बाफतल
तशरीहात और तािीलात बयान की हैं और ये नये नये अक़ीदे ईजाद फकए
हैं इस ररसाले में इनके बाफतल अक़ाइद का बयान है, उम्मते मफु स्लमा को
गमु राह करने िाले ऐसे लोगों का रद्द करना बहुत जरूरी है ताफक इनकी
हक़ीक़त सब पर िाजेह हो, ये काम उल्मा ए अहले सन्ु नत बखबू ी कर रहे
हैं और उन्हीं का फै जान है के ़िक़ीर अपना फहस्सा भी इसमें शाफमल कर
रहा है, दआ ु है के अल्लाह त'आ़ला इसे क़बल ू फरमाए।
अ़लदे मुस्तफा
मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
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फ़ितना गौहर शाही

फकसी भी क़ौम, फगरोह, फफक़े और जमाअत के अक़ाइदो नजररयात का


पता उनकी फकताबों और बयानात से चलता है, फकताबों को पहला दजा़
हाफसल है क्योंफक बयानात भी इसी पर मबनी होते हैं, बयानात बदलते भी
रहते हैं पर जो फकताबों में फलखा है िो बाक़ी रहने िाला है और इसी की
बन्ु याद पर मक
ु ाफलमे, मनु ाजरे और मबु ाफहसे होते हैं।
फफतना-ए-गौहर शाही का नमु ाइदं ा यनु सु अल गौहर ररयाज गौहर शाही
की फकताब "दीने इलाही" के पेशे लफ़्ज में खदु फलखता है के "इनकी
(यानी ररयाज गौहर शाही की) फकताबों के जररए इनको पहचानने की
कोफशश करें "
(देफखए दीने इलाही पेशे लफ़्ज स़िहा 6)
यनु सु अल गौहर की इस बात से हम इिे़िाक करते हैं के िाक़ई
फकताबों के जररए ही फकसी की सही पहचान हो सकती है तो फ़िर अब हम
इनकी फकताबों का ही जाइजा लेते हैं ताफक हक़ीक़त िाजेह हो जाए।
सबसे पहले ररयाज अल गौहर शाही की फकताब "दीने इलाही" का
जाइजा लेते हैं।

शकताब "दीने इलाही" का जाइजा


फकताब के सरे िरक़ (टाइटल पेज) पर फलखा है के :
"ये फकताब हर मजहब, हर फफक़े और हर आदमी के फलए क़ाफबले ग़ौर
और क़ाफबले तह़क़ीक़ है और मफु न्कराने रूहाफनयत के फलए एक चैलेंज
है"
तशलसरा:
इससे मालमू होता है के ये फकताब सब के फलए फलखी गई है और
इसका मौजु "रूहाफनयत" है फलहाजा अब आइए फकताब के अंदर चलते
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फ़ितना गौहर शाही
हैं और देखते हैं के िाक़ई रूहाफनयत बयान की गई है या कुछ और...

क़ुर'आन की आयत से इस्तेदलाल


फकताब के दसु रे स़िहे पर क़ुरआने करीम की एक आयत फलखी हुई है
फजस में "दीफनल्लाह" यानी अल्लाह का दीन और इनके मतु ाफबक़ "दीने
इलाही" का लफ़्ज आया है, आयत दजे जेल है:
ْ َ ‫َ َ َ ْ َ َّ َ َ ْ ُ ُ ْ َ ِ ْ ْ ِ ه‬
‫اّٰلل اف َو ًاجا‬
‫و رایت الناس یدخلون یف ید یی ی‬
ये सरू तनु नस्र की दसू री आयत है, इस में से "दीफनल्लाह" से दीने इलाही
बताने िालों से हमारा एक सिाल है, अगर हो सके तो इसका जिाब लाए।ं
एक सिाल:
सिाल ये है के क़ुरआनो सन्ु नत में ईमान िालों का फजक्र मख़्ु तफलफ
अल्फाज के साथ फकया गया है और इस बात से फकसी को इख्तेला़ि नहीं
होना चाफहए, फमसाल के तौर पर देफखए के कहीं ़िरमाया अल्लाह सब्र
िालों के साथ है और लफ़्ज "साफबरीन" आया तो अब अगर कोई फगरोह
उठे और अपने नए नए अक़ाइद गढ़ कर एक फफक़ा़ बना ले और उसका
नाम साफबरीन रख ले और फफर कहे के क़ुरआन के मतु ाफबक़ अल्लाह
हमारे साथ है तो क्या उनका इतना कहना काफी होगा?
हरफगज नहीं, ये फबल्कुल ग़लत इस्तेदलाल है, अगर इसे सह़ीह़ क़रार
फदया जाए तो हर कोई एक आयत पेश करके अपने आपको हक़ पे साफबत
करे गा।

गौहर िाही हर मजहब में


फकताब के आगाज में गौहर शाही की तस्िीर मौजदू है और साथ ही ये
फलखा है फक ये िोह गौहर शाही हैं जो अल्लाह के इश्कक़ के फलए दफु नयां
से फकनारा कशी इफख्तयार कर चकु े थे फफर कई सालों के बाद अल्लाह के
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फ़ितना गौहर शाही
हुक्म से लोगों को फजक्र का जाम फपलाने के फलए आए और फफर हर मजहब
िालों ने गौहर शाही को मफस्जदों मंफदरों गरु द्वारो फगरजा घरों में दाित देना
शरू ु फकया और ये िहां रूहानी फखताब के फलए जाते फफर इनके बयान को
सनु कर लोग अल्लाह की तऱि आने लगे और फफर अल्लाह ने गौहर शाही
का चहरा चादं पर फदखाया फफर ह़जरे अस्िद पर चहरा जाफहर हुआ और
परू ी दफु नयां में शोहरत हो गई लेफकन कोरे चश्कम मौलफियों को और िफलयों
से बग़्जु ज ह़सद रखने िाले मसु लमानों को ये शख़्स पसंद न आया इनकी
फकताब और तह़रीरों में खयानत कर के इन पर िाजीबल ु क़त्ल के फतिे
लगाए...(मजीद फफर इन पर जो हमले हुए उसका बयान है)
(देफखए दीने इलाही, स़िह़ा 3)
इस इक़तेबास से मालमू हुआ फक मजहब की तमीज इनके दरफमयान
कोई चीज नहीं ये फकसी भी मजहब से कुछ भी ले लेते हैं और यंू कह लें
फक ये एक फमला जल ु ा (फमक्सचर) फक़स्म का फफतना है। इनके अक़ाइद
कई मजहबों से माखजू हैं जैसा फक गौहर शाही के बारे में खदु फलखा है फक
िोह मफस्जद मफं दर गरु द्वारा और फगरजा घरों में भी जाया करते थे और दसू री
बात क़ाफबल ए ग़ौर ये है फक शरीअ़त के सही अह़काम बयान करने िालों
से इन्हें बहुत फचढ़ है और “कोरे चश्कम मौलफियों" फलखना इस बात की
िाजेह दलील है।

श़िज़्र या शवष्णु महाराज?


इस फकताब के दीबाचे में ररयाज अहमद गौहर शाही के 6 अक़िाल
दज़ हैं:
दीबाचा कहते हैं उस तहरीर को जो फकसी फकताब के शरू ु में फलखी
जाती है, इसमें फकताब का तआरु़़ि थोडी तफसील और मक़सदे तालीफ
ि तसनीफ िगैरा बयान फकए जाते हैं, इसे पेशे लफ़्ज, आगाज, मक़ु द्दमा
8
फ़ितना गौहर शाही
और तमहीद िगैरा अल्फाज से भी ताबीर फकया जाता है। इस फकताब "दीने
इलाही" में दीबाचे के नीचे फलखा है के "अज ररयाज अहमद गौहर शाही"
यानी ये उनका ही फलखा हुआ है और ये 6 अक़िाल उन्हीं के हैं, इन
अक़िाल में से एक ये है के :
(1) तीन फहस्से इल्मे जाफहर के और एक फहस्सा इल्मे बाफतन का है जो
फ़िज़्र अ़लैफहस्सलाम (फिष्णु महाराज) के जररए आम हुआ।
(देफखए दीने इलाही स़िहा 7)
हमने पहले ही बयान फकया के ये फफतना फमला जल ु ा फक़स्म का है, अब
यहां देखें के हजरते फ़िज़्र अ़लैफहस्सलाम फलख कर कौसैन (Bracket) में
"फिष्णु महाराज" फलखा है (नऊ़जु फबल्लाह)
नोट : अ़लैफहस्सलाम के जगह फसफ़ ऐन की अलामत फलखी हुई है
और इस तरह फलखना जायज नहीं है, इसकी तफसील हमारे अनक़रीब
शाया होने िाले ररसाला "शॉट़कट दरुु द" में आप मल ु ाफहजा फरमाएंगे, ये
ररसाला जाफमउ़ल ़ितािा का एक फहस्सा है जो के 200 से जाइद फजल्दों
पर मश्कु तफमल होगी"
अब तक तो फकताब के दीबाचे और ताअ़रु़़ि िग़ैरा पर ही कलाम हुआ
फजसके नतीजे में इतनी बातें सामने आ गई,ं अब आइए फसयाह फकए गए
मजीद सफाहात का जाइजा लें।
पहला हिाला ऊपर गजु रा फजस में हजरते फ़िज़्र अ़लैफहस्सलाम को
फिष्णु महाराज फलखा गया, अब मजीद हिाले अदद के साथ नक़ल फकए
जायेंगे

(2) अल्लाह ने जब रूहों को पैदा ़िरमाया तो फररश्कतों की रूहें


अल्लाह के दाई ं तरफ (right side) थी जो अल्लाह का चेहरा न देख
सकी (स.8)
9
फ़ितना गौहर शाही
(3) अल्लाह के पीछे नूरी मअ
ु फक्कलात की रूहें थीं जो दफु नया में
आकर नफबयों और िफलयों की इमदादी हुई (स.8)

(4) अल्लाह के बाएं जाफनब (left side) फजन्नात की रूहें थीं, फफर
पीछे फसफली मअु फक्कलात फफर खबीसों की रूहें जो दफु नया में आकर
इबलीस की इमदादी हुई। (स.8)

2,3 और 4 से अल्लाह के फलए फजहत (Directions) का कौल फकया


जा रहा है, अल्लाह तआ़ला की जात फजहत से पाक है, यही िजह है के
अल्लाह तआ़ला को ऊपर िाला कहना जायज नहीं (तफसील के फलए
हमारा ररसाला "अल्लाह तआला को ऊपर िाला या अल्लाह फमयां
कहना कै सा?" मलु ाफहजा फरमाएं)

हजरते आदम या िंकर?


(5) आदम अ़लैफहस्सलाम फजन्हें शंकर भी कहते हैं, जन्नत की फमट्टी
से उनका फजस्म बनाया गया। (स.8)
यहां हजरते आदम अलैफहस्सलाम को शंकर क़रार फदया। (न'ऊ़जु
फबल्लाह)
ये सारी बातें फकताब "दीने इलाही" में देखी जा सकती हैं, हमने अपनी
तरफ से ये बातें नहीं फलखी हैं।

(6) अल्लाह की मफु हसब रूहें इस दफु नया में आई,ं कोई ग़ैर मफु स्लम के
घर, कोई फहदं ू के घर, कोई फसखों के और कोई ईसाइयों के घरों में पैदा हो
गई और
ं अपने मजहब के जररए अल्लाह को पाने की कोफशश करने लगीं।
(स.10)
10
फ़ितना गौहर शाही
तफससरा: ये इबारत भी इस बात पर दलील है के इनका अक़ीदा "फमला
जलु ा" है और ये हर मजहब से ऊपर उठकर "रहबाफनयत" को और
"अल्लाह की मोहसबत" को एक रास्ता क़रार देते हैं लेफकन जब ये िो
रास्ता है जो जहन्नम की तरफ ले जाने िाला है, ये बडे धोखे में हैं।

(7) फजक्र पाने का एक तरीक़ा ये है फक जब परू ा चादं मशररक की तऱि


हो ग़ौर से देखें जब सरू त ए गौहर शाही नजर आ जाए तो तीन दफा
अल्लाह, अल्लाह, अल्लाह कहें। (स.17)
तफससरा: ये फजक्र पाने का नहीं बफल्क शैतान का क़ुब़ पाने का तरीक़ा
है। अल्लाह त'आ़ला मसु लमानों को इस फफतने से मह़फूज फरमाये।

(8) कुछ इल्हामी फकताबों में फलखा है फक दफु नयां में 14 हजार आदम
आ चकु े हैं... इस दफु नया में िाक़ई बहुत से आदम हुऐ हैं। (स.22)
तफससरा: मसु लमानों का बच्चा बच्चा जानता और मानता है फक हजरते
आदम अ़लैफहस्सलाम दफु नया के पहले इन्सान हैं और अल्लाह के नबी हैं
इनका इल्हाम शैतानी है जो इस तरह़ की बातें इनके फदल में डालता है।

(9) फजसमें सब दीन जमा हो कर एक हो जाएं िहीं इश्कक़े इलाही और


दीने इलाही है। (स.27)

(10) तमाम सहीफें और आसमानी फकताबें अल्लाह का दीन नहीं हैं,


इन फकताबों में नमाज, रोजा और दाफढ़यां हैं जबफक अल्लाह इसका पाबंद
नहीं। (स.29)

(11) अल्लाह का दीन प्यार और मह़ु सबत है। (स.29)


11
फ़ितना गौहर शाही
(12) फजंदगी भर की तमाम सन्ु नतों और फज़ों का कफ्फारा दीदारे
इलाही है। (स.29)

तफससरा: इसी तरह की बातों से ये लोग आ’माल को हल्का बताते हैं


और लोगों को नमाज, रोजे से दरू करते हैं, दाढ़ी न रखने की तरगीब फदलाते
हैं।
(13) फिलायत, नबु व्ू ित का नेअमल बदल है। (स.29)

(14) नफबयों की शरीअ़त की पाबंदी उम्मत के फलए होती है िरना इन्हें


फकसी इबादत की जरूरत नहीं होती। (स.30)

(15) (हर आदमी) रोजे अजल से ही नबी होता है। (स.30)

तफससरा: 14 और 15 से ये साफबत करने की कोफशश की है के अमल


तो उसके फलए है फजसने इश्कक़े इलाही को नहीं पाया िरना अगर पा लेता
तो िो रोजे अजल से नबी तो है ही, फफर पा लेने के बाद उसे अमल की
कोई जरूरत ही नहीं होती।
इसी तरह ये लोग मसु लमानों को आसाफनयां फदखा कर गमु राह करते
हैं, ये सब क़ुर'आनो सन्ु नत की ग़लत तशरीहात हैं। (हम अल्लाह त'आ़ला
की पनाह चाहते हैं)

मस
ं ूर हल्लाज से तिबीह
खदु को हजरत सफययदनु ा मसं रू हल्लाज से तशबीह देते हुए फलखता है के :
ये बातें जो मैं कर रहा हं तारी़ि गिाह है के फजन्होंने भी इस इल्म को
खोला, शाह मंसरू की तरह क़त्ल कर फदए गए और आज गौहर शाही भी
12
फ़ितना गौहर शाही
इसी इ़ल्म की िजह से क़त्ल के दहाने पर खडा है। (स.29)
तफससरा: हजरते मंसरू हल्लाज का मआ़
ु मला मख़्ु तफलफ था (तफसील
के फलए हमारा ररसाला "मंसरू हल्लाज" मल ु ाफहजा फरमाएं) यहां
मआ़
ु मला उसके बर अक्स है, फजस तरह गौहर शाही ने कुर'आन सन्ु नत
की बाफतल तशरीहात बयान की है ये खल ु ी गमु राही है।

(16) अगर कोई सारी उम्र इबादत करता रहे, लेफकन आफखर में इमाम
मेहदी और हजरते ईसा की मख
ु ाफलफत कर बैठा फजन को दफु नया में दोबारा
आना है (ईसा का फजस्म समेत और मेहदी का अदी अरिाह के जररए
आना है) तो िो बलअम बाऊर की तरह मरददू है। (स.31)

(17) अगर कोई सारी उम्र कुिों जैसी फजंदगी बसर करता रहा लेफकन
आफखर में उनका साथ और उनसे महु सबत कर बैठा िो कुिे से हजरते
फक़तमीर (असहाबे कह़ि का कुिा) बनकर जन्नत में जायेगा। (स.31)

तफससरा: 16 और 17 में फबल्कुल साफ नजर आ रहा है के इनके इरादे


क्या हैं, कोई सारी उम्र इबादत करे और इनकी तस्दीक़ न करे (क्योंफक ये
अपने आप को मेहदी भी कह रहा है) तो िो जहन्नमी हो जायेगा, िो उनके
नजदीक इसलीस मरददू की तरह है लेफकन जो कुिों जैसी फजंदगी गजु ार
कर इनकी तस्दीक़ करे तो उनके फलए ये जन्नत की खश ु खबरी सनु ा रहे हैं,
इनकी ये मक्कारी िही लोग नहीं समझ पाएंगे के फजन की अक़्लें उनका
साथ छोड चक ु ी हैं।

(18) ख़्िाब में या रुहानी तौर पर हज करता है तो जाफहर में भी इस का


दजा़ फमलता है, बफल्क जाफहर से भी बहुत ज़्यादा। (स.32)
13
फ़ितना गौहर शाही
(19) रूहों की नमाज जाफहरी नमाज की हैफसयत रखती है, बफल्क कहीं
ज़्यादा, अगर जाफहर में भी नमाज पढ़ता है तो बाफतन में भी इस की नमाज
मेराज बन जाती है। (स.34)

तबफसरा: 18 और 19 में जो बातें लाई गई हैं िो हमने कई ढोंगी


बाबाओ ं के बारे में सनु ी है, ये लोग जाफहर में नमाज, हज िग़ैरा ना करके
बाफतन का दािा करते हैं और कहते हैं हम रूहाफनयत के मक़ ु ाम पर पहुचं े
हुए हैं, ना जाने ऐसा कौन सा रूहाफनयत का मक़ ु ाम है फक जहां पहुचं कर
बंदा ़िराइज इबादात से बेफनयाज हो जाता है, ये सब शैतानी ़िरु ा़िात हैं
इस फकताब के सरे िक़़ का एक जमु ला याद आ रहा है फक फजसमें
रूहाफनयत का फजक्र था और चैलेंज फकया गया था, अगर आपके जहन में
िो जमु ला है तो ठीक है िना़ एक-बार उसे पढ़ें और फफर हमारे इस जमु ले
को पढ़ें फक "हम इनसे मक़ ु ाबला नहीं कर सकते" ऐसी रूहाफनयत फसिाए
गमु राही के कुछ नहीं है, ये लोग कहते हैं हम "पहुचं गए हैं" तो बेशक ये
लोग जहन्नमु पहुचं चक ु े हैं।

(20) मफु स्लम कहता है फक: मैं सबसे आला ह,ाँ जबफक यहदी कहता
है: मेरा मक़
ु ाम मफु स्लम से भी ऊंचा है और ईसाई कहता है: मैं इन दोनों से
बफल्क सब मजहब िालों से ऊंचा हाँ लेफकन गौहर शाही कहता है फक:
सबसे बेहतर और बल ु ंद िही है फजसके फदल में अल्लाह की महु सबत है
ख्िाह िो फकसी भी मजहब से ना हो, जबान से फजक्र-ओ-सलात उसकी
इताअत और ़िरमांबरदारी का सबु तू है जबफक कलबी फजक्र अल्लाह की
महु सबत और राबते का िसीला है। (स.33)
तबफसरा: तमाम मजाफहब फजनमें मजहब इस्लाम को भी शाफमल फकया
गया और फफर इन सबसे बेहतर एक ऐसी हालत को क़रार फदया गया फक
14
फ़ितना गौहर शाही
जहां मजहब की कोई तमीज ही नहीं है बफल्क ये तक कहा गया फक मजहब
ना हो तो भी हज़ नहीं, ये खल ु ी गमु राही है और एक नया फ़िक़ा़ बनाना है
ये बातें जाफहलों को भली और अच्छी मालमू हो सकती हैं लेफकन इस की
हक़ीक़त बहुत गंदी और ़ितरनाक है। एक फमसाल हमारे जमाने में ऐसे
लोगों की भी है जो ़िदु को फसफ़ मसु लमान कहलिाना पसदं करते हैं और
बाक़ी सब का रद्द करते हैं, उनकी बातें भी लोगों को अच्छी मालमू होती
हैं लेफकन हक़ीक़त ये है फक िो तमाम फ़िक़़ों और अहले सन्ु नत से दरू हो
कर एक नया फ़िक़ा़ बना बैठे, गौहर शाही का मआ ु मला भी यही है फक
अल्लाह और उसके रसल ू ने जहां ़िैर बताई उससे अलग हो कर ़िैर को
तलाश फकया और गमु राह हो गए।

(21) अक़ीदे इधर रह जाऐगं े, अंदर की रूहें आगे जाएाँगी। (स.35)

तबफसरा : इस से बडी जहालत क्या होगी फक बंदा ़िदु को अक़ीदे से


भी अलग कर के फहदायत का दािा करे , एक तऱि ये अपने फ़िला़ि
अक़ीदे रखने िालों को जहन्नमी और इबलीस मदद़ू क़रार देते हैं और कहीं
ये कहते हैं फक अक़ीदे यहीं रह जाऐगं े इनकी बातों में तजाद भी बहुत पाया
जाता है और क्यों ना हो फक बाफतल की एक पहचान ये भी है।

अब तक हमने जो कुछ नक़ल फकया इस से उनके अक़ाइद अच्छी तरह


मालमू हो चक ु े लेफकन अभी हम इस पर मजीद त़िसील बयान करें गे ताफक
फकसी फकस्म का शबु ा ना रहे और हक़ क़बल ू करने िालों को राह फमले।
गौहर शाही की इसी फकताब "दीन इलाही" में एक उनिान है "गौहर शाही
का अक़ीदा" और अब उस के तहत जो अक़ाइद बयान फकए गए हैं, जरा
उन्हें भी मल
ु ाफहजा ़िरमा लें:
15
फ़ितना गौहर शाही
पहला अक़ीदा जो फलखा गया है िो ये है फक :
(22) सब मजाफहब के नेक लोगों और आफबदों को एक लाईन में खडा
कर फदया जाएगा, रब उन्हें देखेगा जो चमकते फदल िाले होंगे, अब चाहे
िो मजहब िाले हो या बे मजहब। (स.40) (नऊज-ु फबल्लाह)

तबफसरा : अब इतनी िजाहत के बाद इनकी गमु राही में कोई शक बाक़ी
नहीं रह जाता, ये फकतनी बडी जरु ़ त है और बेदीनी है फक फकसी ऐसे रास्ते
को नजात का रास्ता बताया जाये फक जहां कोई मजहब ही ना हो बफल्क
उसने तो मजीद आगे बढ़कर ये तक कहा फक अगरचे िो बद मजहब हो
(नऊज-ु फबल्लाह) फजस चमकते फदल को अल्लाह की नजरे रहमत के फलए
िजह बताया गया है के क्या िो फदल गंदे अक़ाइद के बाद भी चमकें गे?
क्या बतु ों की इबादत करने िालों के फदलों में भी िो चमक आएगी? क्या
हक़ और बाफतल की तमीज को फमटाने के बाद ये चमक फमलेगी? अगर
ऐसा है और यक़ीनन उनके नजदीक ऐसा ही है तो ये उन्हीं के फलए है, हम
ऐसी गमु राही को अपनाने पर अपनी जान देने को ़िौफक़यत देंगे।

(23) फहदं ू और फसख दीन, दीन ए आदम और दीन ए नहू की कडी हैं।
(स.36)

(24) मजहब िाले और फबना मजहब िालों के फलए अजकार बयान


फकए गए हैं ताफक नजात को पाया जा सके । (स.37)

(25) बहुत से लोग अपने मजहब के नबी और िलीयों का बहुत


एहफतराम और अक़ीदत, महु सबत रखते हैं लेफकन दसू रे मजहब के िलीयों
और नफबयों से बग़ु ज-ओ-इनाद और दश्कु मनी रखते हैं, ऐसे लोग भी
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फ़ितना गौहर शाही
अल्लाह की तऱि से कोई मक़ ु ाम हाफसल नहीं कर सकते क्योंफक फजनकी
बरु ाई करते हैं िो भी अल्लाह के दोस्तों में से हैं। (स.35)

तबफसरा: इस से ये जहन फदया जा रहा है फक दसू रे तमाम बाफतल


मजहबों में फजनको नबी या िली माना जाता है उनकी भी ताजीम की जाये
जैसा फक गौहर शाही ने फहदं ओ ू ं के देिताओ ं की ताजीम की है और फफर
कहता है फक जो बरु ाई करे गा िो अल्लाह की तऱि से कोई मक़ ु ाम नहीं
पाएगा, असल ये है फक िो अल्लाह की तऱि से तो मुक़ाम पाएगा मगर
जो मक़
ु ाम इन्हें शैतान ने फदया है िो नहीं पाएगा और ना हमें उस की तलब
है।

गौहर िाही नमाज नहीं पढ़ता था।

(26) गौहर शाही की ममानी (जो के इबादत गजु ार थी) ने पछ


ू ा के और
सब तो ठीक है लेफकन तू नमाज नहीं पढ़ता है, गौहर शाही ने जिाब फदया
फक नमाज रब तक तोह़िा है और मैं नहीं चाहता के नमाज के साथ साथ
बख़्ु ल, तकसबरु , हसद, कीना की फमलािट रब के पास भेजाँ,ू कभी भी
नमाज पढूाँगा तो सही नमाज पढूाँगा, तमु लोगों की तरह नहीं फक नमाज भी
पढ़ते हो और ग़ीबत, चगु ली, बोहतान जैसे कबीरा गनु ाह भी करते हो।
(स.41)

तबफसरा : गौहर शाही का नमाज ना पढ़ना इस बात को िाजेह करता


है फक ये शख़्स शरू
ु से ही ़िाफसक़-ओ-़िाफजर था और नमाज को हल्का
जानता था जब ममानी ने सिाल फकया तो जिाब फदया फक नमाज के साथ
दसू रे बरु े आमाल को नहीं भेजना चाहता तो इस का मतलब सा़ि है फक
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फ़ितना गौहर शाही
गौहर शाही बरु े आमाल में मबु तला था तभी तो कहा फक नमाज सही से
पढूाँगा (यानी जब ये सब गनु ाह ना करूाँ) ये तो िही बात हो गई फक पहले
से ही कोई गनु ाहों में मबु तला है, ऊपर से नमाज तक़ करने का गनु ाह भी
अपने सर ले फलया जाये, गौहर शाही ने भी यही फकया फक पहले से गनु ाहों
में मबु तला था ऊपर से नमाज को भी तक़ फकया फसफ़ इतना ही नहीं बफल्क
बेशमी की हद देखें फक अपनी ममानी को उनके गनु ाहों की िजह से ताना
भी फदया फक तमु लोगों की तरह में नमाज नहीं पढूाँगा और पढ़ता भी नहीं
था जब अच्छा हो जाऊाँ गा तब पढूाँगा, ये बडी अजीब बात है फक बंदा ़िदु
गनु ाहों में मबु तला है और सामने िाले को ताना दे रहा है। एक बात ये भी
काफबल-ए-ग़ौर है फक गौहर शाही और इस के मानने िाले तसव्ि़ि ु की
बातें कसरत से करते हैं तो बताएं फक क्या कोई स़ि ू ी ऐसा करता है फक
फकसी के गनु ाहों पर उसे मलामत करे ?
ये सिाल भी आता है फक क्या हसद, बग़ु ज, चगु ली िग़ैरा तभी क़ाफबले
फगरऱित है फक जब नमाज के साथ की जाये यानी कोई बदं ा ये मनु फकरात
करे और फफर नमाज भी पढ़ता हो तभी ये गनु ाह है? या बे नमाजी के फलए
भी इस में गनु ाह है? कोई भी यही कहेगा फक नमाजी हो या बे नमाजी सब
के फलए ये काम गनु ाह िाले हैं तो फफर उनको नमाज के तक़ से फकया
ताल्लक़ ु ?

गौहर िाही के बर्पन के हालात


़िदु अपने बचपन के हालात गौहर शाही ने यंू बयान फकए हैं फक दस
बारह साल की उम्र से ही ख़्िाब में रब से बातें होती थी और बैतल
ु मामरू
नजर आता था लेफकन मझु े उस की हक़ीक़त का इल्म नहीं था, फचल्ला
कशी के बाद जब िही बातें और िही मनु ाफजर सामने आए तो हक़ीक़त
आशकार हुई, एक द़िा का फजक्र है फक मेरा एक मामू जो फक ़िौज में
18
फ़ितना गौहर शाही
मल ु ाफजम है िो तिाइ़िों के कोठे पर जाया करता था, घर िालों के मना
करने की िजह से िो मझु े अपने साथ ले जाता फक घर िालों को शक ना
गजु रे , मझु े चाय और फबस्कुट खाने को देता और ़िदु अन्दर चला जाता,
जबफक मझु े तिाइ़िों और कोठों की समझ बझू नहीं थी, मामू मझु से यही
कहता फक ये औरतों का ऑफ़िस है, कुछ फदनों बाद मेरा फदल उस जगह
से उचाट हो गया तब मामू ने कहा फक ये औरतें हैं और अल्लाह ने इनको
इसी मक़सद के फलए बनाया है, यानी उसने मझु े मल ु व्िस करने की कोफशश
की, मामू की बातों का इतना असर हुआ फक नफ्स की कश्कमकश में रात-
भर ना सो सका फफर अचानक आाँख लग गई, देखता हाँ फक एक बडा गोल
चबतू रा है और मैं इस के नीचे खडा हाँ ऊपर से कराख्त फकस्म की आिाज
आती है "उस को लाओ" देखता हाँ फक मामू को दो आदमी पकड कर ला
रहे हैं और इशारा करते हैं फक ये है, फफर आिाज आती है फक इसको गजु ो
से मारो तब उस को मारते हैं तो िो ची़िें मारता रोता और दहाडता है और
चीखते चीखते उस की शक्ल सिु र की तरह बन जाती है फफर आिाज
आती है फक तू भी इस के साथ अगर शाफमल हुआ तो तेरा भी यही हाल
होगा, फफर मैं तौबा तौबा करता हाँ और आाँख खल ु ती है तो जबान पर यही
होता है फक "या रब मेरी तौबा "या रब मेरी तौबा और कई साल तक इस
ख़्िाब का असर रहा। (स.39)
तबफसरा: इस िाफक़या से आप ़िदु अंदाजा लगा सकते हैं फक गौहर
शाही का बचपन फकस तरह गजु रा है, हम यहां पर ये जरूर कहना चाहेंगे
फक फजना के ख़्याल पर गौहर शाही को ये ख़्िाब आ गया फजसमें उस के
मामू को अजाब फदया जा रहा है और ये भी कहा गया फक अगर तू ने ऐसा
फकया तो तेरा भी यही अंजाम होगा लेफकन नमाज जैसी ़िज़ इबादत छोडने
पर ना फक फसफ़ इरादे पर उसे कोई ख़्िाब नहीं आया, अब उस की पारसाई
बयान करने िालों को ही शम़ नहीं तो क्या कर सकते हैं।
19
फ़ितना गौहर शाही

र्ांद सूरज पर गौहर िाही की तस्वीर


इस फकताब में एक ़िास उनिान इसी पर है फजसमें गौहर शाही के चेहरे
के चांद और सरू ज पर नजर आने की िजाहत बयान की गई है, फलखा है
फक 1994 मैं मैनचेस्टर (इगं लैंड) के कुछ लोगों ने चांद पर गौहर शाही की
तस्िीर की फनशानदेही की फफर पाफकस्तान और दसू रे ममाफलक से शहादतें
फमलने लगी, िीफडयो के जरीये चांद की तस्िीरें उतारी गई फफर बैरून-ए-
ममु ाफलक और नासा से चांद की तस्िीरें माँगिाई गई, शरू ु शरू
ु में तस्िीरें
मद्धम थी, लेफकन गजु श्कता दो साल में इतनी िाजेह हो गई फक दरू बीन या
कम्पयटू र के बग़ैर भी देखी जा सकती हैं.. (आगे फलखा है फक) गौहर शाही
का एफशयन होने की िजह से नासा ़िामोश रहा, (फफर फलखा है फक) सबने
इस का मजाक़ उडाया और इस ़िबर का मोतफकदीन-ए-गौहर शाही (यानी
गौहर शाही से अधं ी अक़ीदत रखने िालों) के इलािा कहीं भी ना फदखा।
(स.43)
तबसीरा: हर आफशक़ को अपनी माशक़ ू ा का चेहरा चांद में नजर आता
है, ये सब बातें ़िुजल ू हैं और उनका ़िदु बयान है फक मोतफक़दीन के
इलािा फकसी ने तसदीक़ नहीं की, सबने मजाक़ उडाया ये बात ही मजाक़
है तो भला तसदीक़ कै से की जा सकती है? नासा जैसी ररसच़ कंपनी ने
जब उनकी अधं ी अक़ीदत का रद्द फकया तो इन्होंने ये फलख मारा फक चाँफू क
गौहर शाही एफशया का रहने िाला था इसफलए इन्होंने ़िामोशी इफख्तयार
की, अब इसे मजाक़ ना कहें तो और क्या कहें फक नासा ने एफशया के कई
लोगों और उनकी ररसच़ के बारे में जो एतरा़िात फकए हैं िो कसरत से देखे
जा सकते हैं फफर उनके मतु ाफबक़ देखा जाये तो नासा को उनके गौहर शाही
से ही जाती दश्कु मनी थी। गौहर शाही का तबक़ा जहालत के मज़ में इस क़दर
मफु सतला है फक दीनी और दफु नयािी उलमू से िाक़़िीयत रखने िालों पर
20
फ़ितना गौहर शाही
उनकी हक़ीक़त आशकार होने में देर नहीं लगेगी, बाक़ी जो अंधी अक़ीदत
में मबु तला हैं िो जब तक अपनी आाँखों को चश्कमा-ए-हक़ पर आकर सा़ि
नहीं करते तब तक कुछ नजर नहीं आएगा फसिाए गौहर शाही के ।

एक बात ये भी जहन नशीं कर लेना चाफहए फक जब इल्मी और


तहक़ीक़ी गफ़्ु तगु करने की सलाहीयत और हालत ना हो तभी इस तरह की
़िरु ा़िात का सहारा फलया जाता है, गौहर शाही के मानने िालों के पास
यही दलाइल हैं फक फजनसे भोले-भाले लोगों को तो बेिक़ू़ि बना सकते हैं
लेफकन अहले इल्म के सामने उनकी एक नहीं चलती।

नासा की ली गई तस्वीरें
इस फकताब में ये साफबत करने की परू ी कोफशश की गई है फक चादं पर
गौहर शाही का चेहरा नजर आता है लेफकन दलाइल ऐसे बचकाना फदए हैं
फक देखकर हसं ी आना लाफजम है चांद की ऊंची नीची सतह और रंग के
़िक़़ की िजह से बग़ौर देखने पर ऐसा महससू होता है फक िो फकसी का
चेहरा है लेफकन असलन ऐसा कुछ भी नहीं है, तहक़ीक़ यही है लेफकन
गौहर शाही के मानने िालों को तहक़ीक़ से मतलब ही कहााँ है।

हमने नासा की तस्िीरों के इलािा और कई तस्िीरों को बग़ौर देखा जो


इन्होंने फकताब में शाफमल की हैं, फकसी में भी िाजेह कोई सबु तू नहीं
फमलता, मैं कहता हाँ फक मैं ़िदु एक ग्राफ़िक डीजाइनर हाँ और जो कुछ इस
में फदखाया गया है इस तरह फकसी का भी चेहरा चादं में फदखाया जा सकता
है, इस तरह के कमजोर दलाइल से हक़्क़ाफनयत का सबु तू पेश करना ये
िाजेह करता है फक उनके पास और कोई दलील नहीं है, इनके नजररयात
की बफु नयाद फबलकुल कमजोर है।
21
फ़ितना गौहर शाही

हजरे असवद और मशं दर में तस्वीर


चादं और सरू ज पर ही इनकी ़िरु ा़िात ़ित्म नहीं हुई बफल्क आगे ये
तक साफबत करने की कोफशश की फक हजरे असिद में भी गौहर शाही का
चेहरा नजर आया है इस के बाद फशि के मंफदरों में पत्थर (फशिफलंग) पर
गौहर शाही का चेहरा नजर आया एक जगह गौहर शाही के हाथों की
तस्िीर लगा कर उस के हाथों की उभरी हुई नसों के बारे में फलखा है फक ये
इस्मे मोहम्मद ‫ َص ََّل ُہللا َت َع یاٰل َعلَ ْی ِہ َو یالِہٖ َو َسلََ َم‬है और उंगलीयों के मडु ने की जगह जो
चमडा जमा हो जाता है उसी पर फनशान लगा कर फलखा है फक ये इस्मे
अल्लाह है (इनकी नजरों को दलाईल तो नजर नहीं आते मगर गौहर शाही
की तस्िीर कहीं भी नजर आ जाती है)

(27) गौहर शाही की हजरत ईसा अलैफहस्सलाम से मल


ु ाक़ात हुई।
(स.68)

(28) तमाम इन्सानों की अदी अिा़ह इस दफु नया में कई बार दसू रे
फजस्मों में जन्म लेती हैं। (स.69)

(29) हुजरू ‫ َص ََّل ُہللا َت َع یاٰل َعلَ ْی ِہ َو یالِہٖ َو َسلََ َم‬की अदी अरिाह को महदी
अलैफहस्सलाम के फलए रोका हुआ था, फजस तरह आप ٖ‫َص ََّل ُہللا َت َع یاٰل َعلَ ْی ِہ َو یالِہ‬
ََ
‫ َو َسل َم‬के फजस्म के फकसी भी फहस्से यानी हाथ पाि ं को भी आमना का लाल
कह सकते हैं, इसी तरह हुजरू की समािी रूह के फकसी अलफहदा फहस्से
को भी अबदल्ु लाह का ़िज़ंद और आमना का लाल कह सकते हैं।
(स.70)
तबफसरा: यहां उसने फकस नजररया का दरिाजा खोलने की कोफशश की
22
फ़ितना गौहर शाही
है, ये अहले इल्म बेहतर समझ सकते हैं, इस की फमसालें पहले भी बयान
हो चक ु ी।

महदी यानी र्ांद वाला

(30) एक अहम नक़्ु ता


महदी का मतलब: फहदायत िाला
महदी का मतलब: चांद िाला
(स़िहा 67)

तबफसरा: अब आप समझ चक ु े होंगे फक गजु श्कता स़िहात में गौहर शाही


के चेहरे को चादं पर फदखाने के फलए ताबडतोड मेहनत क्यंू की गई पहले
चादं पे चेहरा बता कर महदी का मतलब चादं िाला फलख फदया, ये घमु ा
फफराकर बातें करते हैं क्योंफक सराहत के साथ दािा शरू ु में इन्हें िो फायदा
ना देगा जो इस तरह मनु ाफफक़त से फमलता है।

औरतों से मल
ु ाक़ात
इस फकताब में गौहर शाही के बैरूनी ममाफलक में फकए गए बयानात
की तस्िीरी भी हैं फक फजनमें बेपदा़ औरतों को सामने फबठा रखा है, इस से
भी िाजेह होता है फक उनकी पारसाई और तसव्ि़ि ु के दािे की हक़ीक़त
क्या है।

(31) अगर आप फकसी मजहब में हैं लेफकन अल्लाह की महु सबत से
महरूम हैं, इनसे बेहतर िो हैं जो फकसी मजहब में नहीं लेफकन अल्लाह
की महु सबत रखते हैं। (स़िहा78)
23
फ़ितना गौहर शाही
तबफसरा: जब बंदा बद मजहब हो या फकसी मजहब से ताल्लक़ ु ना
रखता हो तो अल्लाह की महु सबत कै से पा सकता है? अल्लाह ताला ने
ही अपने नफबयों को लोगों की फहदायत के फलए भेजा है और फकताबें अता
की फजसमें एक दीन, दीन-ए-इस्लाम पर क़ायम रहने का हुक्म ़िरमाया
और इस से ़िरूु ज करने िालों के फलए सख़्त िईदात िाररद हुई फफर इन
सबसे हट कर ये कौन सा मक़ु ाम है जहां अल्लाह की महु सबत फमल सकती
है? असल में ये शैतान की पैरिी है फजस पर इश्कक़-ए-इलाही का नाम चस्पााँ
कर फदया गया है।

(32) रब का कोई भी नाम ख्िाह फकसी भी जबान में हो िो काफबल


ताजीम है। (स़िहा78)

(33) हर इन्सान के दो मजहब होते हैं, एक फजस्म का मजहब जो मरने


के बाद ़ित्म हो जाता है, दसू रा अिा़ह का मजहब जो फक रोज-ए-अजल
में था यानी अल्लाह से महु सबत, इसी के जरीये इन्सान का मत़बा बल
ु ंद हो
सकता है। (स़िहा78)

(34) सब मजाफहब से बाला तर रब का इश्कक़ है और सब इबादत से


बाला तर रब का दीदार है। (स़िहा78)

शकताब "दीने इलाही" का ़िल


ु ासा
इस फकताब से कम-ओ-बेश 34 हिालाजात हमने पेश फकए और
फजमनन भी कई बातें आई फजनसे गौहर शाही के कु़िरीया अक़ाइदो
नजररयात ़िबू िाजेह हैं, अब हम इस फकताब का एक ़िल
ु ासा बयान
करते हैं।
24
फ़ितना गौहर शाही
इस फकताब का मौजू रूहाफनयत बताया गया है और यहां एक ऐसी
रूहाफनयत की दाित दी जा रही है जहां मजहब कोई शैय ही नहीं और इस
के इ़िफतयार करने ना करने की कोई एहमीयत नहीं है, इस मजहब को
फसफ़ फजस्म का मजहब क़रार फदया गया है और अिा़ह को इस से अलग
बताया गया है फफर ये फक रोजे अजल से उनकी एक कै ़िीयत ़िास की
गई है जो फक क़ुरआनो सन्ु नत से टकराने िाली बात है।
इश्कक़-ए-इलाही के नाम पर इस बात की तऱि बल ु ाया गया है फक
अक़ाइद-ओ-आमाल को एक तऱि रखकर फसफ़ इश्कक़ और फजक्र ही को
नजात का जरीया बनाया जाये जो फक खल ु ी हुई गमु राही और इस्लाम,
अहले इस्लाम और इस्लाम की तारी़ि को झटु लाने के बराबर है।

हर मजहब से अलग कर के इन्होंने अपने मजहब का तआरु़ि यंू


करिाया है फक फहदायत बस इनके पास है और यही अल्लाह तक पहुचं ा
सकते हैं, बाक़ी सब जहन्नमी और इबलीस की तरह मदद़ू हैं।
मस्ु लमानों को चाफहए फक ऐसों की हक़ीक़त को ़िबू अच्छी तरह जान
लें और उनसे अपने ईमान को बचाएं, ये लोग खल ु े दश्कु मन हैं।

अब हम उस की मजीद फकताबों का जायजा लेंगे ताफक इस हक़ की


इशाअत हो और बाफतल की हक़ीक़त जाफहर पर जाफहर हो।

ररसाला "रोिनास" का जाइजा


ये ररसाला 18 स़िहात पर मश्कु तफमल है, इस के आग़ाज में ही ये फलखा
गया है फक आजकल रूहाफनयत कहीं देखने को नहीं फमलती, उलमा-ओ-
मशाइ़ि भी इस से ़िाली नजर आते हैं, फफर इस्लाम के पााँच बफु नयादी
अरकान का फजक्र करके एक हदीस फजक्र की है फक "सबसे अ़िजल
25
फ़ितना गौहर शाही
अल्लाह का फजक्र है" और एक हदीस ये भी फक "जो शख़्स ़िराइज-ए-
दाइमी अदा नहीं करता तो अल्लाह उस के ़िज़-ए-िक़्ती को भी क़बल ू
नहीं करता" और इन अहादीस से ये जहनीयत देने की कोफशश की है फक
सबसे पहला और दाइमी ़िज़ ये है फक अल्लाह ताला से इश्कक़ फकया जाये
और उस का फजक्र फकया जाये तभी िक़्ती ़िराइज (नमाज, रोजा िग़ैरा
क़बलू फकए जाऐगं े िना़ कोई ़िायदा नहीं है।

इन जाफहलों को शैतान ने बडे धोके में डाल रखा है फक आमाल और


अक़ाइद से दरू ी उन्हें इश्कक़-ए-इलाही की राह पर ले जाएगी जबफक फहदायत
का तरीक़ा अक़ाइद-ओ-आमाल के साथ है।

ररसाले के दसू रे ही स़िहा पर एक और हदीस फलखी है फक "अल्लाह


तआला ना तम्ु हारी सरू तों को देखता है और ना ही तम्ु हारे आमाल को
लेफकन देखता है तो तम्ु हारे क़ुलबू और तम्ु हारी नीयतो को।"
(देफखए रोशनास, स़िहा2)
इस तरह की ररिायतें अव्िलन तो फबना फकसी हिाले के और साफनयन
एक तऱिा बयान करने का मक़सद सा़ि जाफहर है फक अक़ाइद और
आमाल को हल्का बताना चाहते हैं।

(35) 72 फ़िक़े इसी जाफहरी इल्म की पैदािार हैं। (स़िहा3)

(36) एक आम मस्ु लमान जाफकर की जकात 5000 रोजाना है (यानी


इस्म अल्लाह का फजक्र), इमाम मफस्जद की जकात 25,000 हजार है तब
उस को मक़
ु तफदयों पर ़िजीलत है, ग़ौस-ओ-क़ुतबु का दजा़ हाफसल करने
के फलए 72,000 की जकात है तब उस को इमामों पर ़िजीलत है, और
26
फ़ितना गौहर शाही
(़िक़ीर गौहर शाही की) जकात 125,000 है तब उसे ग़ौस-ओ-क़ुतबु पर
़िजीलत है। (स़िा4)

(37) एक फदन अल्लाह को ख़्याल आया फक मैं ़िदु को देखं।ू


(स़िहा9)

एक जगह फलखता है फक हाल ही में तक


ु ी के एक शख़्स के फदल का
ऑप्रेशन हुआ, फदल के ऊपर अल्लाह फलखा हुआ था और इस की ़िबर
अ़िबारों में शाय हुई। (स़िा12)

तफससरा: इनके बाफतल मजहब में बस यही सब है फक कहााँ कहााँ इस्म-


ए-जात जाफहर हो रहा है, कुछ लोगों को क़ुबा़नी के जानिर के बालों में
इस्म-ए-जात नजर आता है, कुछ को ससजीयों में और कुछ को फलों में तो
क्या गौहर शाही की तरह अब उन्हें भी पेशिा बना कर नए नए अक़ाइद
ईजाद कर लेने चाफहयें? ये सब जहालत के फसिा कुछ नहीं है।

(37) इस दफु नया में उम्मती की पहचान नाम, अमल, शक्ल और


काफलमा-ए-तफययबा से है लेफकन िहां पहचान चमक दमक से है।
(स़िहा13)

(38) नमाज-ए-सरू त का ताल्लक़


ु जबान से है, 72 फफरके िाले यही
नमाज पढ़ते हैं। (स़िहा16)

(39) ऐसी नमाज अगर परू े फदन में दो रकअत भी मयु स्सर आ जाये तो
फफर भी ब़िफशश की उम्मीद है। (स़िहा17)
27
फ़ितना गौहर शाही
(40) नमाज-ए-सरू त फदन रात पढ़ता रहे तब भी रब से दरू ही है।
(स़िहा 17)
अब हम उनकी एक और फकताब "तोह़ितल ु मजाफलस" का जायजा
लेंगे।

"तोहफतुल मजाशलस" का जायजा


इस फकताब में ररयाज गौहर शाही के ़ितु बात, बयानात और गफ़्ु तगु
को जमा फकया गया है, ये 42 स़िहात पर मश्कु तफमल है, नाफशर ने फलखा है
फक ये पहले चार फहस्सों में थी फफर यकजा करके एक बना दी गई, अब
पता नहीं िो चारों फहस्से फकतने स़िहात पर मश्कु तफमल थे जबफक ये
मक
ु म्मल 42 स़िहात हैं।
इस फकताब का पहला उनिान है "दरू ु द शरी़ि और फजक्रे कल्बी
फजसके तहत फलखा है फक:

(41) इबफतदा में फदल से दरूु द नहीं पढ़ा जा सकता (अल्लाह अल्लाह
पढ़ा जाये (स़िहा 3)

(42) हमारे उलमा नमाज पर बहुत जोर देते हैं लेफकन नमाज से ज़्यादा
सख़्त हुक्म जो है िो फजक्र है। (स़िहा 8)

तबसरा: क्या दलाइल से ये बात साफबत कर सकते हैं फक नमाज से


ज़्यादा सख़्त हुक्म फजक्र का है? नमाज ़िज़ है और इस का तक़ हराम है
जबफक फजक्र ़िज़ या िाफजब नहीं और फफर नमाज के अदं र फजक्र ़िदु ा
शाफमल नहीं? फफर ये कौन सा फजक्र है जो नमाज से सख़्त हुक्म रखता है
और इस की तशरीह कहााँ मजकूर है?
28
फ़ितना गौहर शाही
(43) नमाज पढ़ने िालों की इफं तहा मफस्जद और जमाअत है।
(स़िहा12)

(44) पहले आमाल हैं, फफर उस के बाद ईमान है और आमाल िही है


जो फदल के साथ हो। (स.15)

(45) ये एतराज सनु कर मनु फकर नकीर के छक्के छूट गए। (स.24)

अब हम उस की फकताब मीनारा-ए-नरू का जाइजा लेंगे।

शकताब "मीनारा-ए-नरू " का जाइजा


ये फकताब 48 स़िहात पर मश्कु तफमल है, फकताब के पहले स़िे पर फलखा
है फक ये फकताब मरु ीदों, ताफलब-ए-इल्मों के फलए उजाला और पीरो
़िक़ीरों के फलए कसौटी है, अब आईए देखते हैं फक इस में फकतनी ़िरु ा़िात
मौजदू हैं।

इस फकताब के शरू
ु से ही फजक्र का फजक्र फकया गया है और अब तक
जो कुछ हमने जाना इस से िाजेह है फक ये लोग फजक्र पर बहुत जोर देते हैं
हिा फक नमाज से भी ज़्यादा सख़्त हुक्म फजक्र का बताते हैं।

ये परू ी फकताब इस तज़ पर फलखी गई है फक ़िक़त इसे पढ़ा जाये तो


उनके अक़ाइद को समझना मफु श्ककल होगा। जगह जगह अहादीस के हिाले
और सफू ़ियाए फकराम के अक़्िाल का सहारा लेकर फजक्र की ़िजीलत पर
कलाम फकया गया है फफर आफ़िर में एक बाब सिाल जिाब का है फजसमें
देिबंदी िहाबी का रद्द भी मौजदू है। एक सिाल में इमामे अहले सन्ु नत,
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फ़ितना गौहर शाही
आला हजरत बरे लिी रह़ीमह़ुल्लाह का फजक्र भी है, सिाल औरतों के
मजार पे जाने के ताल्लक़
ु से है फजसमें फकसी ने पछ
ू ा है फक क्या औरतें
मजार पर जा सकती हैं? आला हजरत इस से मना करते हैं जिाब में इन्होंने
आला हजरत की ताईद की है फक दौर-ए-हाफजर के जो हालात हैं उस के
मतु ाफबक़ जाना मना होगा।

ये इनकी बडी अजीब पाफलसी है फक कहीं कुछ तो कहीं कुछ कहते हैं,
इतना ज़्यादा तजाद इस बात का सबतू है फक इनको ़िदु शऊर नहीं फक ये
क्या कहना चाहते हैं।

ररसाला "इसरारे हक़ीक़त" का जाइजा


ये ररसाला 27 स़िहात पर मश्कु तफमल है, दसू री फकताबों और ररसाले
की तरह इस में भी फजक्र का ही फजक्र है, ररसाले के सरे िक़़ पर ये हदीस
फलखी है फक फदलों की फश़िा अल्लाह के फजक्र में है, ररसाले के आग़ाज
में िली के मतु ाफल्लक़ फलखा है फक:
"िली उस को कहते हैं फजसने रब का दीदार फकया हो, उस के बग़ैर
फिलायत का दािा झटू ा है।"
कोई बता सकता है फक ये पैमाना इन्होंने कहााँ से अ़िज कर फलया?
इन लोगों के अपने ़िदु साख़्ता उसल ू हैं जो फक क़ाफबले एतबार नहीं।
इस परू े ररसाले में फजक्र की अक़साम और तरीक़ों पर कलाम फकया
गया है, इस का अक्सर मिाद "मीनारा-ए-नरू " में भी देखने को फमला, उस
से अलग करके ये एक अलग ररसाला बनाया गया है या उसे इस में शाफमल
फकया गया है फलहाजा अब हम एक और फकताब "नमाजे हक़ीक़त" की
तऱि आते हैं।

30
फ़ितना गौहर शाही

ररसाला "नमाजे हक़ीक़त" का जाइजा


ये 10 स़िा का ररसाला है फजसका परू ा नाम "नमाजे हक़ीक़त और
इक़साम-ए-बैअत" है, इस में जो मिाद है िो भी गजु श्कता फकताबों से ही
मा़िजू है फक फजन पर कलाम हो चक ु ा।
नमाजे हक़ीक़त और नमाजे सरू त का ़िक़़ करके ये फलखा गया है फक
नमाज-ए-सरू त 72 फ़िरक़े िाले पढ़ते हैं और ये फजस नमाज की दाित देते
हैं िो नमाजे हक़ीक़त है।
गजु श्कता फकताबों पर कलाम ही इस के फलए भी का़िी है फलहाजा अब हम
एक और ररसाले "रुहानी स़िर" की तऱि बढ़ते हैं।

ररसाला "रुहानी सफर का जाइजा"


गौहर शाही के बारे में ये बयान फकया जाता है फक िो दफु नया से फकनारा-
कश हो कर फचल्ला लगाने जंगलों में चला गया था, इस ररसाले में िो
िाफक़यात दज़ हैं जो इस "शैतानी स़िर" में पेश आए हम तिालत से बचने
के फलए िो मस्तानी, उस के भंग और नाचने और सीने पे हाथ रखने िाले
िाफक़यात नक़ल नहीं करें गे, फजसे पढ़ना हो तो िो इस ररसाले में देखे
सकता है।

एक जगह फलखा है फक लती़िाबाद में रहते हुए तीन साल हो गए, एक


द़िा बीिी ने कुछ ज़्यादा ही सताया और मैंने फफर जंगल की राह ली, लाल
बाग़ पहुचं ा तो देखा फक बाहर बहुत बडी दीिार बन गई है, सामने बडा गेट
है फजसमें ताला लगा हुआ है, मैं कोफशश के बािजदू बाग़ में दाफ़िल ना
हो सका िाफपस हुआ और सडक िाले होटल के मल ु ाजमीन से पछ
ू ा फक
ये दीिार कब बनी है? इन्होंने कहा फक कोई दीिार िग़ैरा नहीं है, एक ने
31
फ़ितना गौहर शाही
कहा फक मैं अभी अभी बाग़ से हो कर आया ह,ाँ मैं समझ गया दाफ़िले की
इजाजत नहीं है, होटल िाले िाफक़़ि थे उन्होंने होटल में ही फबस्तर लगा
फदया और मैं सौ गया, ख़्िाब में देखा हर फकस्म के खाने और हर फकस्म के
फल एक जगह ढेर लगे हुए हैं, कोई सदा दे रहा है फक तेरा जंगल का
फचल्ला शहरदारी में तबदील कर फदया गया है और ये नेअमतें तेरे नसीबे
में फलखी जा चकु ी हैं, अब तेरा उरूज इबादत से नहीं बफल्क फ़िदमत-ए-
़िलक़ से है, अब दफु नया में रह कर इस्म-ए-जात को फै लाना है, बीिी से
गजु ारा कर के ये भी सब्र का आला मक़ ु ाम है, अगर ताब नहीं तो बेशक
तलाक़ दे, उस फदन के बाद मेरी बीिी के फमजाज में तबदीली हो गई और
इस फकस्म के फल और खाने लोग पका पका कर फखलाने में मसरू़ि हो
गए और आज तक यही फसलफसला जारी है।
(देफखए रुहानी स़िर, स़िा17)

मजकूरा िाफक़या में एक ख़्िाब का फजक्र है फजसमें शैतान की तऱि से


पैग़ाम फमला फक अब इबादत के जरीये उरूज नहीं फमलेगा बफल्क फ़िदमत-
ए-खल्क़ से फमलेगा और तम्ु हें इस्म-ए-जात का परचार करना है, शैतान
का ये फमशन लेकर गौहर शाही फफर िाफपस आया और इबादत तो िैसे भी
नहीं करता था, और ऊपर से इस तरह के ख्िाबों में यही तरग़ीब भी दी
जाती थी, फफर उसने हर फकसी को शैतानी फमशन में दाफ़िल करने का काम
शरूु कर फदया और इस के चेले आज भी इसी में लगे हुए है।
इस फकताब में अपने कारनामों पर पदा़ डालने के फलए औफलयाए
फकराम का सहारा फलया और उनके बारे में फलखा फक बहुत से औफलया
भी मत़बा पाने के बाद फखलाफे -शरा कामों के फशकार हुए जैसे एक िली
नमाज नहीं पढ़ते थे, दाढ़ी नहीं रखते थे, उनकी ि़िात के बाद मौलफियों
ने बरु ा-भला कहा, इसी तरह एक िली नंगे बैठे रहते, फनसिार का नशा
32
फ़ितना गौहर शाही
करते रहते और नमाज भी नहीं पढ़ते लेफकन जो कलाम माँहु से फनकालते
परू ा हो जाता, एक िली औरतों जैसे फलबास पहनते और चडू ी पहनते,
औरतों जैसे फसंगार करते थे। (स.19)

कहााँ िो औफलयाए फकराम और उनके ़िास मआ ु मलात फक फजन्हें


शतफहययात से ताबीर फकया जाता है, ये एक इलमी मसअला है फजसकी
त़िसील उलमा ए फकराम ने बयान की है, मख़्ु तसर तौर पर पढ़ने के फलए
हमारे ररसाले "ला-इलाहा इल-लल्लाह, फचश्कती रसल ू ल्ु लाह?" मतु ाला
करें , और कहााँ ये जाफहल गौहर शाही फजसने आम हालत में उनका सहारा
लेकर अपने बाफतल अक़ाइदो नजररयात को हक़ साफबत करने की कोफशश
की।
इस फकताब में एक उनिान है "रुहानी स़िर के मोतररजीन के सिालो
के जिाबात" और इस के तहत जिाब देते हुए दोहरी पाफलसी अपनाई गई
है जो अहले इल्म पर ़िबू जाफहर है अब उनके बाफतल नजररयात की
तज़मु ानी करने िाले ख्िाबों की फगरफ्त की गई तो फलखते हैं फक ये ख्िाब,
मक ु ाश़िात और इलहामात हैं, अगर ये ग़ैर अ़िलाक़ी भी हो तो िो
शरीअत की जद में नहीं आते। (स.20)
मैं कहता हाँ फक ख्िाब और इलहामात के अहकाम अलग हैं लेफकन उन्हें
अलल-ऐलान बयान करना एक अलग बात है फजसकी िजह से कुफ़्र भी
लाफजम आ सकता है और अभी इतनी भी समझ नहीं फक इलहाम दीन में
हुज्जत नहीं है।
मस्तानी और भांग पी के नाचने के िाफक़यात पर ऐतराज के जिाब में
फलखा है फक: बेशक आग़ाज में इफि़िाक़न और नासमझी में शरीअत के
फ़िला़ि कई गलतीयां सरजद हुई, िो फस़ि़ इफि़िाक़ ही था ना फक हमारा
मामल ू और अक़ीदा है, जब अल्लाह तआला ने कुछ तौ़िीक़ और समझ
33
फ़ितना गौहर शाही
दी थी हमने रो-रो कर अल्लाह से ़िररयाद की थी, तौबा की थी, और
बख्शीश की दआ ु एं मांगी थी। (रुहानी स़िर, स.20)
मैं कहता हाँ फक इस तरह इन िाफक़यात को बयान करने की जरूरत ही
क्या थी? और अच्छा भी हुआ फक अपनी करततू ें बयान कर दी ताफक
अहले हक़ उनकी हक़ीक़त उनकी जबानी लोगों को बता सकें , ये कहते हैं
फक तौबा कर ली लेफकन ये झटू है क्योंफक परू ी उम्र का यही मामल
ू रहा है
और आज भी उनके चेले फखलाफ-ए-शरा कामों की तरग़ीब फदलाते हैं।

ररसाला "रोजे का मक़सद" का जाइजा


ये एक 5 स़िहे का ररसाला है, इस में भी जाफहर बाफतन और सरू त
हक़ीक़त िग़ैरा की बेहस ला कर अपना नजररया साफबत करने की कोफशश
की गई है।

(46) इन ़िज़ रोजे से इन्सान का नफ़्स फस़ि़ सधु र सकता है, पाक नहीं
हो सकता। (स.3)

तफससरा: ़िज़ की अदायगी सबसे पहले आती है, अगर उनमें कमी हो
तो फकसी फजक्र और ऩिली इबादत से परू ी नहीं की जा सकती लेफकन ये
लोग हर ़िज़ के मक़
ु ाबले में फजक्र को लाते हैं जो फक फकसी तरह दरुस्त
नहीं है।

(47) हदीस: बदं ा निाफ़िल के जरीये मझु से क़रीब हो जाता है फफर में
इस की जबान बन जाता ह।ाँ (स.3)
तफससरा: ये मक
ु म्मल हदीस नहीं है, इस से पहले भी इस हदीस को
आधी बता कर ़ियानत की गई है, इस हदीस में पहले ़िराइज का फजक्र
34
फ़ितना गौहर शाही
है इस के बाद निाफ़िल का फलहाजा फस़ि़ निाफ़िल को क़ुब़-ए-इलाही
का जरीया बताना बाफतल है।

शकताब "शतरयाक़े क़ल्ब" का जाइजा


ये आफ़िरी फकताब है फजसका जाइजा फलया जाएगा और फफर
इ़िफतताम की तऱि रुख फकया जाएगा।
ये 51 स़िहात पर मश्कु तफमल है, इस फकताब के सरे िक़़ पर फलखा है
फक "तसव्ि़ि ु पर मबनी मंजमू ात" और पेशे लफ़्ज में फलखा है फक हजरत
ररयाज गौहर शाही ने ये उस िक़्त फलखी हैं जब िो फसंध की पहाडीयों में
दन्ु या से दरू चले गए थे (फफर फलखा है फक "अगर ये कहा जाए फक हजरत
का ये कलाम इल्हामी है तो बेजा ना होगा।" अब आईए देखते हैं फक इस
फकताब में ऐसा फकया ़िास है।

(48) एक शेअर इस में यंू है:


यंू तो अल्लाहु है जा-ब-जा मगर एक नक़्ु ते में बात होती है
फमल जाये गर ये नक़्ु ता तो नरू की बरसात होती है

इस नक़्ु ते की तलाश में ताफलबों की उम्र बबा़द होती है


़िदु ा की क़सम इसी नक़्ु ते से मजबरू ़िदु ा की जात होती है

(49) एक शेअर यंू है:


फफर कहा अल्लाह ने में नाराज हाँ तझु से ऐ मसू ा
मैं कल बीमार था, तू देखने तक ना आया (स.34)
(50) यही सोच कर अल्लाह ने आदमी बनाया था
इसी बेि़िा को फफर सजदा भी कराया था
35
फ़ितना गौहर शाही

गौहर िाही के रद्द पर शकताबें

(1) गौहर िाही की गौहर अफिाशनयां


ये फकताब 369 स़िहात पर मश्कु तफमल है, इसे इसने लाल दीन ने फलखा
है और ये लाहौर, पाफकस्तान से फरिरी 2001 मैं शाया हुई है इस फकताब
में गौहर शाही का तआरु़ि, गौहर शाही की औरतों के साथ रंगीरफलया,
उनके कु़िरीया अक़ाइद, ़िदु -साख़्ता फजक्र, गौहर शाही की गस्ु ताफ़ियााँ
और अ़िसानिी फहकायतों, मरु ीदीन-ए-गौहर शाही की हक़ीक़त, इल्मे
बाफतन की ररिायत की असल, सफु न्नयत के फलबादे में धोका, महदी होने
के दािे की हक़ीक़त, चादं पर जाने का झटू , अमरीका और यरू ोप की पश्कु त
पनाही, मन्सब नबु व्ु ित पर डाका और मजहबे इश्कक़ िग़ैरा का बयान है।

(2) र्ार शफतने


ये फकताब अल्लामा मौलाना महु म्मद त़ि ु ै ल रजिी साफहब की है, ये
331 स़िहात पर मश्कु तफमल है, इस में चार फ़ितनों का एक साथ रद्द फकया
गया है फजनमें ररयाज अहमद गौहर शाही, शे़ि महु म्मद अमीन इदरीसी,
डाक्टर ताफहर उल-क़ादरी और जािेद अहमद ग़ामदी शाफमल हैं।

(3) दौरे जदीद का मुसैलमा कज़्जाब "गौहर िाही"


ये सययद अहमद जलालपरु ी की ताली़ि है, ये फकताब 241 स़िहात
पर मश्कु तफमल है, ये कराची (पाफकस्तान) से अक्तूबर 2000 मैं शाया हुई है।
नोट: ख़्याल रहे फक ये फकताब फलखने िाला सन्ु नी नहीं है बफल्क इस
का ताल्लक़ ु देिबंदी मकतबा -ए- फ़िक्र से है, यहां ़िक़त इसफलए इस का
फजक्र फकया गया क्योंफक गौहर शाही के रद्द पर कुतबु की फनशानदेही की
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फ़ितना गौहर शाही
जा रही है।

(4) शफतना -ए- गौहरया


ये फकताब अबू हमजा रजिी ने ततीब दी है, ये 94 स़िहात पर
मश्कु तफमल है और इस की इशाअत कराची (पाफकस्तान) से निबं र 1994
मैं हुई है। इस फकताब में गौहर शाही की फकताबों से इस के अक़ाइद और
फफर इस पर 26 मफु फ़्तयाने फकराम के ़ितािे को नक़ल फकया गया है
फजन्होंने मिु फ़िक़ा तौर पर इस की गमु राही बयान की है।

(5) गौहर िाही के अक़ाइद-ओ-नजररयात


ये मौलाना महु म्मद त़ि
ु ै ल रजिी की ताली़ि है, ये 88 स़िहात पर
मश्कु तफमल है और कराची (पाफकस्तान) से अप्रैल 2012 मैं शाया हुई है।

खुलासा और खाशतमा
जो दलाइल हमने पेश फकए उन्हें देखने के बाद गौहर शाही के गमु राह
होने में कोई शक बाक़ी नही रह जाता, और उलमा ए अहले सन्ु नत ने
ऐलान फरमा फदया है के इसके अकाइद हद्दे कुफ्र तक पहुचं े हुए हैं और
अब अगर कोई इनकी पैरिी कर के अपनी दन्ु या ि आफखरत तबाह करना
चाहते है तो िो बहुत खसारे में है।
हक़ िाजेह है और बाफतल भी िाजेह है, जो लोग नफ्स के धोके में आ
कर इनकी बताई हुई आसाफनयों को आज नजात का जररया समझ रहे हैं
िो जान लें के कल आपके गले में आग का तौक़ पहनाया जाने िाला है
और उस िक्त तौबा ि रुजु फकसी काम ना आएगा।
अल्लाह तआला से दआ ु है के िो हमें फहदायत पर रखे, अिामे अहले
सन्ु नत को इसके मक्रो फरे ब से बचाए और हमारी इस कोफशश को अपनी
37
फ़ितना गौहर शाही
बारगाह में क़ुबल
ू फरमाए।
(आमीन)
अलदे मुस्तफा
मह़ु म्मद साफबर क़ादरी

38
फ़ितना गौहर शाही

हमारी शकताबें शहदं ी में


(1) बहारे तह़रीर - अ़सदे मस्ु त़िा ऑफ़िफशयल (अब तक चौदह फहस्से)
(2) अल्लाह त'आला को ऊपरिाला या अल्लाह फमयााँ कहना कै सा?
- अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(3) अजाने फबलाल और सरू ज का फनकलना - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(4) इश्ककेै़ मजाजी (म ै़ ंतु ़िब मजामीन का मजमआु ) - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(5) गाना बजाना बंद करो, तुम मसु लमान हो! - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(6) शबे मेराज गौसे पाक - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(7) शबे मेराज नालैन अश़ पर - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(8) हजरते उिैस क़रनी का एक िाफक़या - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(9) डॉक्टर ताफहर और िक़ारे फमल्लत - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(10) ग़ैरे सहाबा में रफदअल्लाहु त'आला अन्हु का इफस्तमाल - अ़सदे मस्ु त़िा ऑफ़िफशयल
इस ररसाले में कई दलाइल से साफबत फकया गया है फक सहाबा के अलािा भी तरद्दी (यानी
रफदअल्लाहु त'आला अन्हु) का इफस्तमाल फकया जा सकता है।
(11) चंद िाफक़याते कब़ला का तहक़ीक़ी जाइजा - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(12) फबन्ते ह़व्िा (एक संजीदा तहरीर) - कनीजे अख़्तर
(13) सेक्स नॉलेज (इस्लाम में सोहबत के आदाब) - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(14) हजरते अययूब अलैफहस्सलाम के िाफक़ए पर तहकीक़ै़
- अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(15) औरत का जनाजा -ै़ जनाबे ग़जल साफहबा
(16) एक आफशक़ की कहानी अल्लामा इसने जौजी की जबु ानी
- अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(17) आईये नमाज सीखें (पाट़ 1)
- अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(18) फक़यामत के फदन लोगों को फकस के नाम के साथ पक ु ारा जाएगा?
- अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(19) फशक़ क्या है? - अल्लामा मह़ु म्मद अहमद फमस्बाही
(20) इस्लामी तअ़लीम (फहस़्सा अव्िल)
- अल्लामा मफ़्ु ती जलालुद्दीन अहमद अ़मजदी रहमतुल्लाह अलैह
ये फकताब इस्लाम की बफु नयादी मालमू ात पर मश्कु तफमल है, बच्चों को पढ़ाने के फलये ये एक
अच्छी फकताब है।
39
फ़ितना गौहर शाही
(21) महु ऱ म में फनकाह - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(22) ररिायतों की तहकीक़ै़ (पहला फहस्सा) - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(23) ररिायतों की तहकीक़ै़ (दसू रा फहस्सा) - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(24) ब्रेक अप के बाद क्या करें ? - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(25) एक फनकाह ऐसा भी - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(26) काफ़िर से सदू - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(27) मैं खान तू अंसारी - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(28) ररिायतों की तहकीक़ै़ (तीसरा फहस्सा) - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(29) जमु ा़ना - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(44) ला इलाहा इल्लल्लाह, फचश्कती रसल ू ुल्लाह? - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(31) हैज, फऩिास और इफस्तहाजा का बयान बहारे शरीअत से
- अल्लामा मफ़्ु ती अमजद अली आजमी
(32) रमजान और क़जा -ए- उमरी की नमाज - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(33) 40 अहादीसे श़िाअत - आला हजरत, इमाम अहमद रजा खान बरे लिी
(34) बीमारी का उड कर लगना - आला हजरत, इमाम अहमद रजा खान बरे लिी
(35) जन और यक़ीन - आला हजरत, इमाम अहमद रजा बरे लिी
(36) जमीन साफकन है - आला हजरत इमाम अहमद रजा खान बरे लिी
(37) अबू ताफलब पर तहक़ीक़ - आला हजरत इमाम अहमद रजा खान बरे लिी
(38) क़ुरबानी का बयान बहारे शरीअत से - अल्लामा मफ़्ु ती अमजद अली आजमी
(39) इस्लामी तालीम (पाट़ 2) - अल्लामा मफ़्ु ती जलालद्दु ीन अहमद अमजदी
(40) स़िीना -ए- बफख़्शश - ताजश्कु शररया, अल्लामा मफ़्ु ती अख़्तर रजा खान
(41) मैं नहीं जानता - मौलाना हसन नूरी गोंडिी
(42) जंगे बद्र के हालात इफख़्तसार के साथ
- मौलाना अबू मसरूर असलम रजा फमस्बाही कफटहारी
(43) तह़कीक़ेै़ इमामत - आला हजरत, इमाम अहमद रजा खान बरे लिी
(44) स़िरनामा फबलादे ़िमसा - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(45) मंसरू हल्लाज - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(46) ़िजी क़ब्रें - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(47) इमाम अबू यूसफ ु का फदफा - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हजरत रहीमहुल्लाहु त'आला
(48) इमाम क़ुरै शी होगा - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हजरत रहीमहुल्लाहु त'आला
(49) फहन्दस्ु तान दारुल ह़रब या दरुल इस्लाम? - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(50) िबा से ़िरार - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हजरत रहीमहुल्लाहु त'आला
(51) रजा या ररजा - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
40
फ़ितना गौहर शाही
(52) सलाफसल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे? - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(53) 786 और 92 की हक़ीक़त - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी
(54) फ़ितना गौहर शाही - अ़सदे मस्ु त़िा मह़ु म्मद साफबर क़ादरी

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