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َّ الر ْح ٰم ِن
الر ِحﻴﻢ َّ ـــــــــــــﻢ ِﷲ
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गिरोह कौनसा है ?
मुर्त्तब
ि ---- मोहम्मद हुसैन (अबू बबलाल)
🌴हदीस :- *""बनी इस्राइल में 72 फिरके हुए मेरी उम्मत में 73 फिरके होंिे उसमे से 72
जहन्नमी होंिे और ससिि 1 ही फिरका जन्नत में जायेिा ""*
👇👇अल जवाब👇👇
👆👆👆
बरे लवी मौलवी ससिि इतनी ही हदीस सुनाते है लेफकन मुकम्मल हदीस बबल्कुल नहीूं सुनाते
जो इसी की अिली ररवायत में मौजद
ू मक
ु म्मल हदीस इस तरह है
👇👇👇👇👇👇
"रसल
ू ल्
ु लाह ( )ﷺने िरमाया -मेरी उम्मत के साथ हूबहू वही सरू ते हाल पेश आएिी जो बनी
इस्राईल के साथ पेश आ चुकी है यहाूँ तक के उन में से फकसी ने अपनी माूँ के साथ ऐलानीया
जजना फकया होिा तो मेरी उम्मत में भी ऐसा शख्स होिा जो ऐसे काम को अूंजाम दे िा *""बनी
इस्राइल में 72 फिरके हुए मेरी उम्मत में 73 फिरके होंिे उसमे से 72 जहन्नमी होंिे और ससिि
1 ही फिरका जन्नत में जायेिा ""* सहाबा ने अजि फकया: अल्लाह के रसल
ू ! ये कौनसी जमाअत
होिी? आप ने िरमाया:"जो मेरे और मेरे सहाबा के नक्शे कदम पर होंिे"
ABU BILAL Page 4 of 28
📚 जामेय ततमीजी जजल्द-2 फकताबुल इमान हदीस नूंबर-2641
अब आप लोि समझ िये होंिे की बरे लवी उलेमा सू परु ी हदीस क्यूँू नहीूं सन
ु ाते क्योंफक इस
हदीस के आखखर में नबी()ﷺने जन्नती फिरके की तनशानदे ही िरमा दी है फक जो मेरे और मेरे
सहाबा के तरीके पर होिा वहीूं लोि जन्नत में जाएूंिे अब आप खुद िैसला कर ले फक क्या
नबी()ﷺऔर सहाबा फकराम ने पुरी जजूंदिी में कभी भी
बरे लवीयो के और भी इतने काम है फक अिर सलखना चालू फकया तो पूरा पोस्ट इसी से भर
जायेिा
बहरहाल जब दीन के यह काम नबी()ﷺऔर सहाबा ने नहीूं फकये जो आज बरे लवी इसको दीन
समझकर करता है तो फिर बरे लवी कैसे अपने आपको अहले सुन्नत वल जमात में दाखखल कर
रहे है ? और कैसे अपने आपको जन्नती फिरका समझते है ? अल्लाह इनको अक्ले सलीम दे
आमीन
👇👇अल जवाब 👇👇
जैसे में ने ऊपर बताया है फक ततमीजी वाली उस हदीस में अदमे जजक्र यानी आधी है इसकी
मक
ु म्मल इबारत इसकी अिली हदीस में मौजद
ू है और हदीस का उसल
ू है फक पहली ररवायत
की तफ्सीर अिली हदीस करती है लेफकन जजन मौलर्त्वयो को जजूंदिी भर न्याज िातेहा पढ़ने
और हलवा खाने से िुसित नहीूं वो कहाूँ हदीस और उसके उसूल समझेिें और बेचारी अवाम को
तो िुमराही का डर हदखाकर जजूंदिी भर के सलए कुरआन और हदीस से दरू कर हदया है बहरहाल
उन्होंने आधी हदीस से यह समझ सलया है फक फिरका बनाना सही है क्योंफक अिर फिरका
बनाना िलत होता तो फिर नबी ()ﷺने यह क्यों िरमाया फक मेरी उम्मत में 73 फिरके होिें ।
इस हदीस में नबी()ﷺने उम्मत में फिरका बनने की पेशनिोई िरमाई है न फक फिरका बनाने
का हुक्म हदया है क्योंफक अल्लाह ने कुरआन में फिरके बनाने से बबल्कुल साि और वाजेह तौर
पर मना िरमाया है दलील👇
अल कुरआन
*"और अल्लाह की रस्सी को मज़बूत थाम लो सब समल कर और आपस में िट न जाना (फिर्क़ों
में न बूँट जाना)"*
(नोट-तजम
ुि ा अहमद रजा के कूंजल
ु ईमान से हदया है ताफक तजम
ुि ें को लेकर एतराज की कोई
िुूंजाइश बाकी न रहे )
अब जो लोि कहते है फक नबी()ﷺकी 73 फिरको वाली हदीस से फिरके बनाना जायज है उनसे
मेरा सवाल है फक क्या माअजल्लाह नबी कुरआन के खखलाि बात कहें ि?े
अब भी अिर बरे लवी लोि नहीूं मानते तो फिर बरे लवीयो से मेरा सवाल है फक जब उस हदीस
में नबी()ﷺ73 फिरके की पेशीनिोई िरमाई तो आप लोिो ने फिरके बनाने को जायज समझ
सलया तो फिर उसी हदीस में नबी( )ﷺयह भी तो पेशनिोई िरमाई है फक बनी इस्राईल की तरह
मेरी उम्मत में भी ऐसा शख्स होिा जो अपनी माूँ के साथ खुलेआम जजना करे िा तो फिर इसको
भी जायज समझकर अमल करे इसी तरह और भी दस
ू री हदीसो में नबी()ﷺने यह पेशनिोई
िरमाई है फक जजना,रे शम,शराब और िाने बजाने को हलाल समझ सलया जायेिा(बख
ु ारी-
5590) तो फिर आप भी जजना करना शरू
ु कर दे , रे शम के कपड़े पहनना शरू
ु कर दे और शराब
को हलाल समझकर पीना शरू
ु कर दे
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*क्या दो तलवारे एक म्यान में रह सकती है ? क्या हर्क़ और बाततल एक हो सकते है ??*
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बबल्कुल नहीूं हो सकते और न ही हम ऐसा कहते है। हमारी दावत तो कुरआन और सहीह हदीस
की है और इसी की बतु नयाद पर मस
ु लमान एक हो सकते है ।रहा यह सवाल फक "हम सब
मुसलमान है हमको एक होकर रहना है " तो यह हम नहीूं कहते बजल्क अल्लाह तआला िरमाता
है दलील 👇
👇👇मैसेज👇👇
*अरे नादानों नमाज़ पढ़ने का नाम इस्लाम नही है , अिर तम
ु लोिो ने नमाज़ और कलमा
पढ़ने को इस्लाम जाना है तो यज़ीद भी नमाज़ पढता था ! वो भी कलमा पढता था , वो भी
अल्लाह को अल्लाह और रसल
ू को रसूल कहता था , अिर आप के हहसाब से चले तो कबिला की
जूंि ही नही होती ! इस्लाम हर्क़ और बाततल का िकि बताता है , इस्लाम हक्कातनयत की
पहचान है !*
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हम यह बबल्कुल नही कहते है फक ससिि नमाज पढ़ने का नाम ही इस्लाम है । नमाज दीने
इस्लाम का एक अहम िराईज है लेफकन तम
ु बरे लवी मौलवी नहीूं समझोिे क्योंफक तम
ु तो
हलवों वाली महफिलो के चक्कर में खद
ु के साथ अवाम की भी नमाज कजा करवा दे ते हो ससिि
हलवे और चूंद हदीये में समले रूपयो के सलए।रहा कबिला की जूंि का सवाल तो मैं चेंलेज के साथ
कहता हूूँ फक एक भी तारीखी ररवायत सही सनद के साथ हदखा दे जजसमें यह सलखा हो फक
इमाम हुसैन रहदयल्लाहो अन्हुमा की कबिला वाली जूंि में यजीद शासमल था।और उसने इमाम
हुसैन को शहीद फकया सलहाजा तम्
ु हारी यजीद की समसाल दे ना सरासर िलत है । इससे पहले
बिैर दलील के फकसी को भी बदनाम करना िलत है फिर चाहे वो यजीद हो या कोई और।
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जैसा फक मेने ऊपर दलील के साथ बताया है फक अहले सुन्नत वल जमात सहाबा फकराम की
जमात है और जो नबी()ﷺऔर सहाबा फकराम के तरीके पर होिा वहीूं अहले सुन्नत वल जमात
में शासमल है और लेफकन बरे लवीयो का अपने आपको अहले सन्
ु नत व जमात कहना बबल्कुल
वैसा हैं जैसे फकसी की जमीन पर नाजायज कब्जा करना बहरहाल बरे लवी फिरका हूं निी फिरके
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📚हयातअल मवात
👉शेख अब्दल
ु काहदर जजलानी का अकीदा👇
📚मलिूजात पेज-307
ये लो भाई हमने साबबत कर हदया फक अहमद रजा बरे लवी का अकीदा इमाम अबु हनीिा और
शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह दोनों के अकीदे से हट कर है ।
अब हम बरे लवीयो को चेलेंज करते है फक अिर वाकई में मस्लके आला हजरत इमाम अबु
हनीिा और शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह का है तो जरा ये साबबत करो फक क्या
इमाम अबु हनीिा और शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह ने अपनी परू ी जजूंदिी में
कभी नबी और औसलया से मदद माूँिी है ,कभी मजारों पर उसि मेले लिाये है ,कभी मजारों पर
चादरे चढ़ाई है,उनके तवाि फकये है,कभी न्याज िातेहा की है,कभी समलादन्ु नबी के जूलूस
तनकाले है ,कभी कुन्डे मनाये है ,खड़े होकर सलातो सलाम पढ़ी है । अिर साबबत नहीूं कर सके
तो परे शान होने की जरूरत नहीूं है हम तम्
ु हारी तरह हलाली-हरामी की शति नहीूं रखते क्योंफक
हमारे प्यारे नबी ने हमको िाली दे ने से मना फकया है । हम तो ससिि ये िुजारीश करते है फक
अल्लाह के वास्ते हठधमी को छोड़कर नबी( )ﷺऔर सहाबा के तरीके पर आ जाये और कुरआनो
और सहीह हदीस को ही अपना मस्लक बना ले बस
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बरे लवी उलेमा सू अपनी अवाम को अपने फिरके में बाूँधे रखने के सलए एक हगथयार यह भी
इस्तेमाल करते है फक वो अहले हदीस और दे वबूंदी को एक ही बताते है और दोनों को वहाबी
कहते है । जबफक हकीकत यह है फक अहले हदीस और दे वबूंदीयो के अकाईद और मसाईल में
जमीन आसमान का िकि है। दे वबूंदी भी बरे लवीयो की तरह इमाम अबु हतनिा के मक
ु ल्लीद है
और इनके अकाईद और मसाईल दोनों बरे लवीयो की तरह है ।और इसी की एक शाख तबलीिी
जमात है । दे वबूंदी भी बरे लवीयो की तरह इमाम अबु हनीिा की तकलीद करते है ।बरे लवी
फकताबों की तरह इनकी फकताब िजाईले आमाल,िजाईले सद्कात में भी बुजुिों के मूंनिढत
फकस्से कहाूँतनया मौजद
ू है। इन्हीूं के बज
ु ि
ु ों की ये फकताबें "ितावा रशीदीया,हहफ्जल
ु
ईमान,तहजहहरून्नास,बारहहने कातीया विैरह है जजनसे अक्सर बरे लवी लोि, "अल्लाह
तआला झूठ बोल सकता है (माजअल्लाह),नबी का जैसा इल्म बच्चों और पािलों को भी
है (माजअल्लाह),खत्मे नुबूवत पर डाका" जैसी कुफ्रीया इबारतों का हवाला दे ते रहते है । ये सब
इबारतें इन्हीूं दे वबूंदी उलेमाओ की है। अलहम्दसु लल्लाह अहले हदीस का इनसे से दरू -दरू तक
कोई ताल्लुक नहीूं है। अहले हदीस कोई नई फिरका नहीूं है।अिर ये नया फिरका होता तो हदिर
फिरको की तरह इसका भी कोई खास इमाम होता और इनकी भी खास फकताबें होती जबफक
अहले हदीस का इमाम "इमामुल अूंबबया,इमामे आजम मुहम्मदरु ि सुलुल्लाह( )ﷺहै और इनकी
फकताबें कुरआन शरीि के बाद सही बख
ु ारी,सही,मजु स्लम,ततमीजी,अबद
ु ाऊद,तनसाई, इब्ने
माजा और हदिर तमाम हदीस की फकताबें है । सहाबा फकराम का भी इमाम नबी()ﷺथा और
अहले हदीस का भी। सहाबा फकराम भी कुरआन और सहीह हदीस पर अमल करते थे और अहले
हदीस का भी यही मस्लक है यानी अहले हदीस ही सही मायनों में अहले सन्
ु नत वल जमात है ।
तम
ु पैदाईश के बारे में पछ
ू ते हो तो बताओ फक सहाबा फकराम में फकतने हूं निी थे,फकतने
मासलकी थे?फकतने शािई थे?फकतने हूं बली थे? क्या उनमें कोई दे वबूंदी,बरे लवी,तबलीिी भी
था? जाहहर सी बात है फक ये सारे फिरके बाद में बने है तो फिर फकस बबना पर अपने आपको
अहले सन्
ु नत वल जमात में दाखखल कर रहे हो? अरे तम्
ु हारे आला हजरत की पैदाईश को
*जाहहल िुस्ताखो 1857 से पहले जजतने भी लोि इस दतु नया से रुक्सत हुए
क्या वो सब मुशररक थे ??*
👇👇 अल जवाब 👇👇
माजल्लाह,अस्तिफिरूल्लाह,हमने कभी भी ये नहीूं कहा फक 1857 से पहले जजतने भी लोि
िुजरे है वो सब के सब मुशरीक थे बजल्क हम तो यह कहते है फक जजसने अल्लाह की जात और
ससिात में मख्लक
ू को शरीक फकया वो मश
ु रीक है । चूँफू क हक वालों पर झठ
ू े इल्जाम लिाना
बरे लवी उलेमा सू की फितरत में है। इससलए ये कोई नई बात नहीूं है
👇👇अल जवाब 👇👇
*तब जाकर तम
ु जैसे हरामी पैदा हुए... नही तो तम्
ु हारे उलमा ने तो नसबूंदी
जायज़ है कहा था ! सालो ऐहसान फ़रामोशो तम
ु लोिो की जज़ूंदिी भी
बरे लवी उलेमाओ की दी हुई भीख है !*
👇👇अल जवाब 👇👇
चूँफू क िाली बकना बरे लवीयो का एक अहम अकीदा है और मस्लके आला हजरत की पहचान
है। इनके पास दलील तो होती नहीूं इससलए इनके मौलवी इनको िाली दे ना ससखाते है फक जब
भी कोई तुमसे कुरआन और हदीस से दलील माूँिे तो िाली िलौच शुरू कर दे ना वो अपने आप
भाि जायेिा।खुद इनके अहमद रजा िाली िलौच करते थे दलील 👇
*िैर मक
ु ल्लीद व दे वबूंदी जहन्नम
ु के कुते है "*(ितावा ररहवीया 6-90)
दे खा आपने फकस तरह अहमद रजा अपने मुखासलिीनो को काफिर कह रहा है हालाूँफक
नबी()ﷺका िरमान है फक अिर फकसी ने मुसलमान को काफिर कहा तो अिर सामने वाला
वाकई में काफिर नहीूं है तो कहने वाला खुद काफिर हो जायेिा(दे खे! सही मुजस्लम-216) और
अल्लाह तआला ने तो िैर मजु स्लमो को भी िाली दे ने से मना िरमाया है (दे खे!सरु ह अन ्आम
*"हजरत अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास रहदयल्लाहो अन्हु ने अपने आपको अहले हदीस कहा*
*"अबू सईद खुदरी रहदयल्लाहो अन्हु ने (फकसी से) फ़रमाया फक हमारे बाद तुम अहले हदीस
हो।"* 📚 *शिुिल ख़तीब-12*
फकतनी अजीब बात है न फक सहाबा फकराम अपने आपको अहले हदीस कह रहे है और तम
ु
कहते हो फक अहले हदीस की पैदाईश को 150 से 160 ही हुए है। हम पुछते है फक क्या फकसी एक
सहाबा फकराम ने भी अपने आपको हूं निी,शािई,मसलकी,हूं बली,दे वबूंदी,तबलीिी, बरे लवी
कहा है ? अरे तम
ु ससिि 1857 से पहले फकसी एक शख्स का नाम बता तो जजसने अपने आपको
बरे लवी कहा हो।
*तम
ु लोिो के पैदा होने से पहले जन्नत के दरवाज़े बूंद थे क्या ? तम
ु लोिो के पैदा होने से पहले
कोई जन्नती नही था क्या ? अरे जाहहलो तम
ु लोि सुन्नी बरे लर्त्वयों को नही अहले सुन्नत वल
जमात पे ऐतराज़ कर रहे हो , नबी , सहाबा , ताबेईन , तबेताबेईन , ससद्दीकीन , शोहदा ,
सालेहीन , सरकार ए िौसे आज़म , ख्वाजा िरीब नवाज , हजरत तनजामुदीन , हजरत अशरि
👇👇अल जवाब 👇👇
सशकि बबद्अत तो बरे लवी करते है जजनकी पैदाईश को ससिि 150 भी नही हुआ है 1200 साल
पहले का तो मसला ही नहीूं है। पहले अपने आपको अहले सन्
ु नत वल जमात साबबत करे फिर
बोले फक हमने अहले सुन्नत वल जमात पर ऐतराज फकया है ।
👇👇अल जवाब 👇👇
तम
ु जजन िस्
ु तखाना इबारत हमारे खखलाि पेश करते हो वो सब की सब तम्
ु हारे बड़े फिक्ही
भाई दे वबूंदी मौलर्त्वयो(अशरि अली थानवी,रशीद अहमद िूंिोही,इस्माइल दे हलवी,विैरह
की है और अलहम्दसु लल्लाह अहले हदीसो का इस से दरू -दरू तक कोई वास्ता नहीूं है जैसे फक
मेने पहले के जवाबात में भी दलील के साथ बताया है ।
👉 *बरे लवीयो के आला हजरत अहमद रजा खान बरे लवी सलखता है फक "सय्यदी मस
ु ा सह
ु ाि
अल्लाह की बीवी" (नाऊजुबबल्लाह समन जासलक)*
👉 *"बरे लवीयो के आला हजरत अहमद रजा खान बरे लवी अपने पीर जक
ु ािनी के हवाले से
सलखता है फक "अूंबबया अलेहहस्सालम की कब्रों में उनकी बीवीया पेश की जाती है और वो उनके
साथ हमबबस्तरी भी करते है "(मआजल्लाह)*
👉 *बरे लवीयो के मौलवी अहमद यार खान नईमी कहते है फक नबी( )ﷺकुफ्िार को अपनी
तरि इस तरह मायल करते थे जैसे सशकारी जानवरों की सी आवाज तनकालकर सशकार करता
है (माजल्लाह अस्तिफिरूल्लाह)*जाअल हक्क सिा-145*
*📚अनवारे रजा-303*
अल जवाब 👉 हदीस को उठाकर बरे लवी लोि समझते है फक मुजस्लम उम्मत सशकि नहीूं
कर सकती हालाूँफक यह ससवाय इल्म की कमी के कुछ नहीूं है क्योंफक दस
ू री बहुत सारी हदीसे
है जो कहती है फक मस
ु लमानों में से कुछ लोि सशकि करें िे।
दलील-1
*"जो लोि ईमान लाये और अपने ईमान में जुल्म(सशकि)की समलावट नहीूं की वहीूं
लोि(कयामत के हदन)अमन में होिें और हहदायत याफ्ता होंिे"*
दलील-2
*"जब यह आयत "जो लोि ईमान लाये और अपने ईमान के साथ जुल्म की समलावट नहीूं
की"(सुरह अन ्आम आयत-82) नाजजल हुई तो मुसलमानों पर बड़ी मुजश्कल िुजरी और उन्होंने
नबी()ﷺसे अजि फकया फक हमसे से कौन है जजसने अपने ईमान के साथ जुल्म की समलावट न
की होिी? आप()ﷺने िरमाया इसका मतलब यह नहीूं बजल्क जल्
ु म से मरु ाद इस आयत में
सशकि है । क्या तुम ने नहीूं सुना फक लुक्मान अलेहहस्सलाम ने अपने बेटे से कहा था नसीहत
करते हुए फक ऐ मेरे बेटे अल्लाह के साथ फकसी को शरीक न ठहरा,बेशक सशकि बड़ा जल्
ु म है (सुरह
qaलुक्मान आयत-13)।"* 📚सहीह बुखारी फकताबुल अूंबबया हदीस नूंबर-3429*
दलील-3.
रसल
ू ल्
ु लाह()ﷺने िरमाया जजस मस
ु लमान के जनाजा में 40 ऐसे आदमी शासमल हो जो
अल्लाह के साथ सशकि न करते हो तो अल्लाह तआला(इस मय्यत के हक में )इनकी सशिारीश
कुबूल करता है "* *📚सहीह मुजस्लम हदीस फकताबुल जनाइज हदीस-948*
अब जो कहते है फक मजु स्लम उम्मत सशकि नहीूं करे िी उनसे सवाल है फक फिर नबी()ﷺको यह
कहने की क्या जरूरत थी फक *👉जो सशकि नही करते हो👈* क्योंफक जनाजे की नमाज तो
मुसलमान ही पढ़ते है िैर मुजस्लम तो नहीूं। सलहाजा इससे साबबत होता फक मस
ु लमान में भी
सशकि पाया जाता है।
यहाूँ तो बबल्कुल वाजेह बता हदया िया है फक उम्मते मुजस्लमा के कुछ लोि सशकि करे िें
दलील-4
*"अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा िरमाती है फक अिर यह डर न होता फक लोि
रसल
ू ल्
ु लाह()ﷺकी कब्र पर सहदे शरू
ु कर दे िें तो हम आप( )ﷺकी कब्र को जजयारत के सलए
खुली छोड़ दे ते"* सहीह बुखारी हदीस-1330*
जब नबी()ﷺने िरमा हदया फक मेरी उम्मत सशकि नहीूं करे िी तो फिर अम्मा आयशा
रहदयल्लाहो अन्हा को क्यों डर था फक लोि कब्रे रसल
ू पर सशकि शरू
ु कर दे िें।क्योंफक जजयारत
तो मुसलमान ही करे िे िैर मुजस्लम तो नही दरअसल अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा
नबी()ﷺकी हदीस का मतलब जानती थी फक आपने सशकि न करने वाली बात पुरी उम्मत के
सलए नहीूं बजल्क कुछ खास लोिो के सलए कही है ।उस जमाने में भी अम्मा आयशा रहदयल्लाहो
अन्हा को सशकि का डर था जबफक वह जमाना बेहतरीन जमाना था लेफकन आजकल के बरे लवी
उलेमा सू को सशकि का कोई डर नहीूं और अपनी अवाम को धोखा दे ते है फक उम्मत सशकि कर ही
नहीूं सकती। क्या अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा से हयादा यह लोि हदीस को समझते है ?
नोट👉जब नबी()ﷺको उम्मत सशकि करने का डर नहीूं था तो फिर आपने शिाअत के सलए
सशकि न करने की शति क्यों रखी?
सलहाजा इन तमाम दलाईलो से साबबत होता है फक नबी ()ﷺका उम्मत सशकि न करने वाली
पेशनिोई पुरी उम्मत के सलए नहीूं बजल्क एक खास जमाअत के सलए है। उस जमाअत के सलए
जजसके बारे में रसूलल्
ु लाह()ﷺने कहा फक एक जमाअत हक पर कायम रहे िी। दलील
*"रसल
ू ल्
ु लाह()ﷺने फ़रमाया फक जब शाम के लोिों में बबिाड़ आएिा तब आपके सलए कोई
भलाई नहीूं रहे िी। मेरी उम्मत में एक गिरोह हमेशा हर्क़ पर र्क़ायम रहे िा जजसकी मदद
अल्लाह करता रहेिा और उससे दश्ु मनी करने वाले उसको नुक्सान नहीूं पूंहुचा पाएूंिे यहाूँ तक
फक र्क़यामत कायम ही जाएिी।" इमाम ततसमिज़ी कहते हैं फक मेरे उस्ताद इमाम बुखारी
रहीमहुल्लाह ने कहा, और इमाम बख
ु ारी कहते हैं फक मेरे उस्ताद इमाम अली इब्ने मदनी
रहीमहुल्लाह ने कहा फक इस गिरोह से मुराद "अस'हबुल हदीस" (यातन अहले हदीस) है।*
*📚सहीह जामअ ततसमिज़ी, बाब: अल-फितन, जजल्द नम्बर 33, हदीस नम्बर 2351*
*तम
ु तो मस
ु लमानों को मश
ु ररक कहते हो, वो तो मश
ु ररक को मस
ु लमान बनाते थे !*
👇👇अल जवाब 👇👇
सबसे पहले तो यह जान ले फक िरीब नवाज ससिि और ससिि अल्लाह तआला की जात है । दस
ू री
बात यह फक इसकी क्या दलील है फक मईनुद्दीन गचश्ती अजमेरी मजारो पर गचल्ला करते थे
और उन्होंने 90 लाख हहूंद ू को मस
ु लमान बनाया जबफक उनके वक्त तो इतनी आबादी भी नहीूं
थी झूठ बोलने की भी हद होती है।
हम लोि कब्रो के नहीूं बजल्क मजारो के मुनफकर है क्योंफक हमारे नबी()ﷺने मजारो की
मजम्मत िरमाई है दलील👇
*"रसूलुल्लाह ()ﷺने िरमाया तुम कब्रो की जजयारत फकया करो क्योंफक वो तुम्हें मौत की याद
हदलाती है "*
बरे लवी अिर इस हदीस के तहत मजारो पर जाते है तो बताए फक क्या मजारो पर जाने से तुम्हें
मौत की याद आती है ? यह हुक्म कब्रो के सलए है मजारो के सलए नहीूं।
अिर कोई मस
ु लमान जाने अनजाने में सशकीया काम करता है तो अहले इल्म का िजि बनता
है फक वो कुरआनो सुन्नत की रौशनी में उसको वाजेह करे ताफक उसकी इस्लाह हो सके और
यही हम लोि करते है।
अल्लाह तआला तमाम बरे लवी भाईयो को दीन की सही समझ अता िरमाए और
कुरआनो सुन्नत की तरि रूजू करने की तौिीक अता िरमाये आमीन
अब्दल
ु अजीज़
अबु बबलाल