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َّ ‫الر ْح ٰم ِن‬
‫الر ِحﻴﻢ‬ َّ ‫ـــــــــــــﻢ ِﷲ‬
ِ ‫ﺴ‬
ْ ‫ِﺑ‬

नाम ---- 73 फिरको में से जन्नत में जाने वाला

गिरोह कौनसा है ?

लेखक---- अब्दलु अजीज मलनस (ितेहपरु राजस्थान)

मुर्त्तब
ि ---- मोहम्मद हुसैन (अबू बबलाल)

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आपसे िुज़ाररश है , की इस फकताब को िौर से पढे

*⭐आज कुछ लोि कहते है हम सब मुसलमान है एक दस


ू रे को बुरा ना कहो , सब अल्लाह को
मानने वाले है , सब नमाज़ , कलमा पढ़ने वाले है ! मैं पछ
ू ता हूूं फक सब नमाज़ , कलमा पढ़ने
वाले है अल्लाह को अल्लाह कहने वाले है , तो हुजरू की उस हदीस का क्या मतलब है जजसमे
सरकार ने िरमाया की ..........*

🌴हदीस :- *""बनी इस्राइल में 72 फिरके हुए मेरी उम्मत में 73 फिरके होंिे उसमे से 72
जहन्नमी होंिे और ससिि 1 ही फिरका जन्नत में जायेिा ""*

📚( हवाला : समश्कात शरीि : जजल्द न 1 , सिा न 52 / ततसमजी शरीि , जजल्द न 2 , सिा


न 89 )

👇👇अल जवाब👇👇

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बरे लवी मौलवी इस हदीस को सुनाकर कहते है फक हम ही अहले सुन्नत वल जमात(बरे लवी)
वो 73 में एक जन्नती फिरका है बाकी सब काफिर और जहन्नमी है । मै बरे लवी मौलर्त्वयो से
पुछता हूूँ फक क्या अल्लाह फक तरि से आपको जजब्राईल अलेहहस्साल आकर बता िये है या
आपको इल्हाम हुआ है फक वो जन्नती फिरका बरे लवीयो का ही है । हालाूँफक जन्नत की उम्मीद
रखना िलत नहीूं है लेफकन जजस तरह दावे के साथ कहते हो उससे तो लिता है फक शायद आप
पर अल्लाह की तरि से वही आई है। कहीूं आप काहदयानीयों की डिर पर तो नहीूं चल पड़े।
अल्लाह हहदायत दे

अब आते है इस हदीस की तरि


🌴हदीस :- *""बनी इस्राइल में 72 फिरके हुए मेरी उम्मत में 73 फिरके होंिे उसमे से 72
जहन्नमी होंिे और ससिि 1 ही फिरका जन्नत में जायेिा ""*

📚( हवाला : समश्कात शरीि : जजल्द न 1 , सिा न 52 / ततसमजी शरीि , जजल्द न 2 , सिा


न 89 )

👆👆👆

बरे लवी मौलवी ससिि इतनी ही हदीस सुनाते है लेफकन मुकम्मल हदीस बबल्कुल नहीूं सुनाते
जो इसी की अिली ररवायत में मौजद
ू मक
ु म्मल हदीस इस तरह है

👇👇👇👇👇👇

"रसल
ू ल्
ु लाह (‫ )ﷺ‬ने िरमाया -मेरी उम्मत के साथ हूबहू वही सरू ते हाल पेश आएिी जो बनी
इस्राईल के साथ पेश आ चुकी है यहाूँ तक के उन में से फकसी ने अपनी माूँ के साथ ऐलानीया
जजना फकया होिा तो मेरी उम्मत में भी ऐसा शख्स होिा जो ऐसे काम को अूंजाम दे िा *""बनी
इस्राइल में 72 फिरके हुए मेरी उम्मत में 73 फिरके होंिे उसमे से 72 जहन्नमी होंिे और ससिि
1 ही फिरका जन्नत में जायेिा ""* सहाबा ने अजि फकया: अल्लाह के रसल
ू ! ये कौनसी जमाअत
होिी? आप ने िरमाया:"जो मेरे और मेरे सहाबा के नक्शे कदम पर होंिे"
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📚 जामेय ततमीजी जजल्द-2 फकताबुल इमान हदीस नूंबर-2641

अब आप लोि समझ िये होंिे की बरे लवी उलेमा सू परु ी हदीस क्यूँू नहीूं सन
ु ाते क्योंफक इस
हदीस के आखखर में नबी(‫)ﷺ‬ने जन्नती फिरके की तनशानदे ही िरमा दी है फक जो मेरे और मेरे
सहाबा के तरीके पर होिा वहीूं लोि जन्नत में जाएूंिे अब आप खुद िैसला कर ले फक क्या
नबी(‫)ﷺ‬और सहाबा फकराम ने पुरी जजूंदिी में कभी भी

1- पक्की मजारे (दरिाह)बनाई?

2- क्या दरिाहों पर जाकर चादरे चढ़ाई?

3-दरिाहों पर मोमबती,अिरबती जुलाई?

4-दरिाहों पर कव्वालीयाूँ करवाकर झुमे और नाचे?

5- न्याज शीरनी,िातेह विैरह फकये?

6-खड़े होकर सलातो सलाम पढ़ा?

7-दरिाहों पर जाकर हाजते तलब,मुजश्कल कुशाई, विैरह फकये?

बरे लवीयो के और भी इतने काम है फक अिर सलखना चालू फकया तो पूरा पोस्ट इसी से भर
जायेिा

बहरहाल जब दीन के यह काम नबी(‫)ﷺ‬और सहाबा ने नहीूं फकये जो आज बरे लवी इसको दीन
समझकर करता है तो फिर बरे लवी कैसे अपने आपको अहले सुन्नत वल जमात में दाखखल कर
रहे है ? और कैसे अपने आपको जन्नती फिरका समझते है ? अल्लाह इनको अक्ले सलीम दे
आमीन

👇👇बरे लवी मैसेज 👇👇


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*अब जो लोि कहते है हम सब मस
ु लमान है हमको एक होकर रहना है , वो लोि इस हदीस का
जवाब दे ?*

👇👇अल जवाब 👇👇
जैसे में ने ऊपर बताया है फक ततमीजी वाली उस हदीस में अदमे जजक्र यानी आधी है इसकी
मक
ु म्मल इबारत इसकी अिली हदीस में मौजद
ू है और हदीस का उसल
ू है फक पहली ररवायत
की तफ्सीर अिली हदीस करती है लेफकन जजन मौलर्त्वयो को जजूंदिी भर न्याज िातेहा पढ़ने
और हलवा खाने से िुसित नहीूं वो कहाूँ हदीस और उसके उसूल समझेिें और बेचारी अवाम को
तो िुमराही का डर हदखाकर जजूंदिी भर के सलए कुरआन और हदीस से दरू कर हदया है बहरहाल
उन्होंने आधी हदीस से यह समझ सलया है फक फिरका बनाना सही है क्योंफक अिर फिरका
बनाना िलत होता तो फिर नबी (‫)ﷺ‬ने यह क्यों िरमाया फक मेरी उम्मत में 73 फिरके होिें ।

हालाूँफक आधी अधूरी हदीस पढ़कर मनमाना िहम लेना िम


ु राही की अलामत है। मक
ु म्मल
हदीस पढ़ने के बाद ही पुरी बात समझ में आती है । पूरी मुकम्मल हदीस ऊपर सलख दी है (जामेय
तामीजी जजल्द-2 फकताबल
ु इमान हदीस नूंबर-2641)

इस हदीस में नबी(‫)ﷺ‬ने उम्मत में फिरका बनने की पेशनिोई िरमाई है न फक फिरका बनाने
का हुक्म हदया है क्योंफक अल्लाह ने कुरआन में फिरके बनाने से बबल्कुल साि और वाजेह तौर
पर मना िरमाया है दलील👇

अल कुरआन
*"और अल्लाह की रस्सी को मज़बूत थाम लो सब समल कर और आपस में िट न जाना (फिर्क़ों
में न बूँट जाना)"*

*📗(सुरह आले इमरान आयत-103)*


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*"और उन जैसे न हो जाना जो आपस में िट िये और उनमें िूट पड़ िई की तरह न हो जाना
जो फिरकों में बूंट िए बाद उसके फक रौशन तनशानीयाूँ आ चक
ु ी थी और उनके सलए बड़ा अज़ाब
है "*

*📗(सुरह आले इमरान आयत-105)*

*"वो जजन्होंने दीन को जुदा-जद


ु ा राहें तनकाली और कई गिरोह हो िए,ऐ महबूब (सल्लल्लाहु
अलैहह वसल्लम)! तम्
ु हे इनसे कुछ ताल्लक
ु नहीूं, इनका मामला अल्लाह ही के हवाले है, फिर
वो इन्हें बताएिा जो कुछ वो करते थे"* *📗(सरु ह अनआम आयत-159)*

(नोट-तजम
ुि ा अहमद रजा के कूंजल
ु ईमान से हदया है ताफक तजम
ुि ें को लेकर एतराज की कोई
िुूंजाइश बाकी न रहे )

अब जो लोि कहते है फक नबी(‫)ﷺ‬की 73 फिरको वाली हदीस से फिरके बनाना जायज है उनसे
मेरा सवाल है फक क्या माअजल्लाह नबी कुरआन के खखलाि बात कहें ि?े

अब भी अिर बरे लवी लोि नहीूं मानते तो फिर बरे लवीयो से मेरा सवाल है फक जब उस हदीस
में नबी(‫)ﷺ‬73 फिरके की पेशीनिोई िरमाई तो आप लोिो ने फिरके बनाने को जायज समझ
सलया तो फिर उसी हदीस में नबी(‫ )ﷺ‬यह भी तो पेशनिोई िरमाई है फक बनी इस्राईल की तरह
मेरी उम्मत में भी ऐसा शख्स होिा जो अपनी माूँ के साथ खुलेआम जजना करे िा तो फिर इसको
भी जायज समझकर अमल करे इसी तरह और भी दस
ू री हदीसो में नबी(‫)ﷺ‬ने यह पेशनिोई
िरमाई है फक जजना,रे शम,शराब और िाने बजाने को हलाल समझ सलया जायेिा(बख
ु ारी-
5590) तो फिर आप भी जजना करना शरू
ु कर दे , रे शम के कपड़े पहनना शरू
ु कर दे और शराब
को हलाल समझकर पीना शरू
ु कर दे

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यफकनन आपका जवाब होिा फक इनसें जजना,रे शम,शराब विैरह का जवाज साबबत नहीूं होता
क्योंफक ये चीजें हराम है। इन हदीसों का मतलब यह है फक नबी(‫ )ﷺ‬ने आने वाले जमाने के बारे
में पहले ही बताकर उम्मत को खबरदार फकया है फक कुछ मुसलमान िम
ु राही में इस तरह के
हराम काम करने लि जायेिें।

बस हम भी तो यही समझना चाहते है फक 73 फिरको वाली हदीस से फिरके बनाने का


जवाज(जायज होना) साबबत नहीूं होता बजल्क ये तो नबी(‫)ﷺ‬ने आने वाले जमाने में फिरके बनने
को लेकर पहले ही खबरदार फकया है न फक फिरके बनाने का हुक्म हदया है । जजस तरह नबी
(‫)ﷺ‬की यह पेशनिोई फक "शराब को हलाल समझ सलया जाएिा" तो यह पेशनिोई परु ी होकर
रहेिी लेफकन इसका यह मतलब तो नहीूं फक हम लोि जानबूझकर शराब पीने लि जाये इसी
तरह नबी(‫ )ﷺ‬की 73 फिरके बनने वाली पेशनिोई है तो वह भी पुरी होकर रहे िी लेफकन इसका
ये कतई मतलब नहीूं फक हम इमामों के नाम पर अपना अलि अलि फिरका बना ले।

👇👇मैसेज👇👇
*क्या दो तलवारे एक म्यान में रह सकती है ? क्या हर्क़ और बाततल एक हो सकते है ??*

👇👇अल जवाब 👇👇
बबल्कुल नहीूं हो सकते और न ही हम ऐसा कहते है। हमारी दावत तो कुरआन और सहीह हदीस
की है और इसी की बतु नयाद पर मस
ु लमान एक हो सकते है ।रहा यह सवाल फक "हम सब
मुसलमान है हमको एक होकर रहना है " तो यह हम नहीूं कहते बजल्क अल्लाह तआला िरमाता
है दलील 👇

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"मुसलमान -मुसलमान भाई हैं तो अपने दो भाइयों में सुलह करो और अल्लाह से डरो फक तम

पर रहमत हो"

📗 *(सुरह हुजरात आयत -10 तजम


ुि ा कूंजल
ू ईमान)*

👇👇मैसेज👇👇
*अरे नादानों नमाज़ पढ़ने का नाम इस्लाम नही है , अिर तम
ु लोिो ने नमाज़ और कलमा
पढ़ने को इस्लाम जाना है तो यज़ीद भी नमाज़ पढता था ! वो भी कलमा पढता था , वो भी
अल्लाह को अल्लाह और रसल
ू को रसूल कहता था , अिर आप के हहसाब से चले तो कबिला की
जूंि ही नही होती ! इस्लाम हर्क़ और बाततल का िकि बताता है , इस्लाम हक्कातनयत की
पहचान है !*

👇👇अल जवाब 👇👇
हम यह बबल्कुल नही कहते है फक ससिि नमाज पढ़ने का नाम ही इस्लाम है । नमाज दीने
इस्लाम का एक अहम िराईज है लेफकन तम
ु बरे लवी मौलवी नहीूं समझोिे क्योंफक तम
ु तो
हलवों वाली महफिलो के चक्कर में खद
ु के साथ अवाम की भी नमाज कजा करवा दे ते हो ससिि
हलवे और चूंद हदीये में समले रूपयो के सलए।रहा कबिला की जूंि का सवाल तो मैं चेंलेज के साथ
कहता हूूँ फक एक भी तारीखी ररवायत सही सनद के साथ हदखा दे जजसमें यह सलखा हो फक
इमाम हुसैन रहदयल्लाहो अन्हुमा की कबिला वाली जूंि में यजीद शासमल था।और उसने इमाम
हुसैन को शहीद फकया सलहाजा तम्
ु हारी यजीद की समसाल दे ना सरासर िलत है । इससे पहले

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की आप खखजकर हमपर यजीदी लेबल लिाये मैं अपना अकीदा बता दूँ ू फक करोड़ों यजीद
समलकर भी हजरत इमाम हुसैन रहदयल्लाहो अन्हुमा के नाखुन मुबारक के बराबर भी नहीूं हो
सकते।सहाबी का मतिबा ताबईन से हर सलहाजा में बड़ा होता है और आप हुसैन रहदयल्लाहो
अन्हुमा तो अहले बैत में से है।

बिैर दलील के फकसी को भी बदनाम करना िलत है फिर चाहे वो यजीद हो या कोई और।

👇👇बरे लवी मैसेज👇👇

*आईये अब फिरको की हहस्री दे खते है ..........*

*जो लोि हम सन्


ु नी बरे लर्त्वयों को मश
ु ररक , कबर पज
ु वा इत्याहद कहते है वो लोि अपने
फिरके की पैदाइश बता दे ?? हम अहले सुन्नत व जमात 1400 सालो से चलते आ रहे है , जब
दे वबूंहदयों ने भी खुद को सुन्नी हनफ़ी , अहले सुन्नत वल जमात कहना शुरू फकया तो असली
सुजन्नयो की पहचान के सलए हमको उसमे तब्दीली करनी पड़ी और उसका नाम मसलके आला
हजरत रख हदया !*

👇👇अल जवाब 👇👇
जैसा फक मेने ऊपर दलील के साथ बताया है फक अहले सुन्नत वल जमात सहाबा फकराम की
जमात है और जो नबी(‫)ﷺ‬और सहाबा फकराम के तरीके पर होिा वहीूं अहले सुन्नत वल जमात
में शासमल है और लेफकन बरे लवीयो का अपने आपको अहले सन्
ु नत व जमात कहना बबल्कुल
वैसा हैं जैसे फकसी की जमीन पर नाजायज कब्जा करना बहरहाल बरे लवी फिरका हूं निी फिरके

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से तनकला है इस फिरके की पैदाईश अहमद रजा बरे लवी से हुई है । अहमद रजा का जन्म 14
जून 1857 में हुआ और विात 28 अक्टूबर 1921 में हुई।इसने उल्टे सीधे अकीदे बनाकर एक
नये फिरके को जन्म हदया जजसे हम बरे लवी फिरके के नाम से जानते है । तम
ु कहते हो फक हम
1400 से चले आ रहै है, अरे 1400 साल तो बहुत दरू की बात है मैं चें लेज के साथ कहता हूूँ फक
ससिि अहमद रजा बरे लवी से पहले फकसी एक शख्स को हदखा दे जजसने अपने आपको बरे लवी
कहा है या मस्लके आला हजरत को मानने वाला कहा है ।

तुम्हारा फिरका अहमद रजा बरे लवी से शरू


ु हुआ और इसी पर खत्म होता है अहमद रजा से
पहले तो तम्
ु हारे फिरके का नामों तनशान भी नहीूं था इससलए नाम तब्दील करने वाली बात
बबल्कुल झूठी है और फिर दे वबूंदी तो अपने आपको अहले सुन्नत *वल* जमात कहते है और
तुम अपने आपको अहले सुन्नत *व* जमात कहते हो यहाूँ वल और व का िकि तो मौजूद है
फिर नाम तब्दील करने की जरूरत क्यों पेश आई भई सच बात क्यों नहीूं कहते फक हमारा फिकाि
आला हजरत से शरू
ु हुआ है इससलए मस्लके आला हजरत नाम रखा।

👇👇बरे लवी मैसेज👇👇


*ये कोई नया मसलक नही है बजल्क ये वही इमाम अबू हनीिा का हनफ़ी मसलक है ! कोई
अपने बाप की हलाली औलाद है तो साबबत करे फक आला हजरत का अर्क़ीदा इमाम अबु हनीिा
के अर्क़ीदे से हट के है , िौसो , ख्वाजा के अर्क़ीदे से हट के है या अलि है !*

👇👇अल जवाब 👇👇

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चसलए दे खते फक क्या अहमद रजा का अकीदा इमाम अबु हनीिा रहीमहुल्लाह और शेख
अब्दल
ु काहदर जजलानी रहीमहुल्लाह के मुताबबक है या उनसे हटकर है ।

इमाम अबु हनीिा का अकीदा 👇

*"इमाम अबु हनीिा रहीमहुल्लाह िरमाते है -दआ


ु बा हक नबी और वली के वसीले से माूँिना
नापसूंदीदा अमल है इस सलए क्यूूँ फक मख्लक
ू का कुछ हक नहीूं अल्लाह पर"*

📗हहदाया पेज नूं-226

👉 अहमद रजा बरे लवी िरमाते है


*"औसलया से मदद माूँिना और उनको पक
ु ारना और उनके साथ वसीला करना शरई व
पसूंदीदा काम है "*

📚हयातअल मवात

👉शेख अब्दल
ु काहदर जजलानी का अकीदा👇

*"अल्लाह के ससवा फकसी के आिे अपनी हाजत पेश न करो"*

📚िुन्यतुतालेबीन जजल्द-2 सिा-451

जबफक अहमद रजा बरे लवी िरमाते है

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*"मेने जब भी मदद माूँिी तो या िौस(यानी अब्दल
ु कादीर जजलानी) ही कहा"*

📚मलिूजात पेज-307

ये लो भाई हमने साबबत कर हदया फक अहमद रजा बरे लवी का अकीदा इमाम अबु हनीिा और
शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह दोनों के अकीदे से हट कर है ।

अब हम बरे लवीयो को चेलेंज करते है फक अिर वाकई में मस्लके आला हजरत इमाम अबु
हनीिा और शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह का है तो जरा ये साबबत करो फक क्या
इमाम अबु हनीिा और शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी रहीमहुल्लाह ने अपनी परू ी जजूंदिी में
कभी नबी और औसलया से मदद माूँिी है ,कभी मजारों पर उसि मेले लिाये है ,कभी मजारों पर
चादरे चढ़ाई है,उनके तवाि फकये है,कभी न्याज िातेहा की है,कभी समलादन्ु नबी के जूलूस
तनकाले है ,कभी कुन्डे मनाये है ,खड़े होकर सलातो सलाम पढ़ी है । अिर साबबत नहीूं कर सके
तो परे शान होने की जरूरत नहीूं है हम तम्
ु हारी तरह हलाली-हरामी की शति नहीूं रखते क्योंफक
हमारे प्यारे नबी ने हमको िाली दे ने से मना फकया है । हम तो ससिि ये िुजारीश करते है फक
अल्लाह के वास्ते हठधमी को छोड़कर नबी(‫ )ﷺ‬और सहाबा के तरीके पर आ जाये और कुरआनो
और सहीह हदीस को ही अपना मस्लक बना ले बस

👇👇बरे लवी मैसेज👇👇

*अूँिरे ज़ र्त्वक्टोररयन की औलाद वहाबी , दे वबन्दी , अहले हदीस ससिि


अपनी पैदाइश बता दे *

👇👇अल जवाब 👇👇
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बरे लवी उलेमा सू अपनी अवाम को अपने फिरके में बाूँधे रखने के सलए एक हगथयार यह भी
इस्तेमाल करते है फक वो अहले हदीस और दे वबूंदी को एक ही बताते है और दोनों को वहाबी
कहते है । जबफक हकीकत यह है फक अहले हदीस और दे वबूंदीयो के अकाईद और मसाईल में
जमीन आसमान का िकि है। दे वबूंदी भी बरे लवीयो की तरह इमाम अबु हतनिा के मक
ु ल्लीद है
और इनके अकाईद और मसाईल दोनों बरे लवीयो की तरह है ।और इसी की एक शाख तबलीिी
जमात है । दे वबूंदी भी बरे लवीयो की तरह इमाम अबु हनीिा की तकलीद करते है ।बरे लवी
फकताबों की तरह इनकी फकताब िजाईले आमाल,िजाईले सद्कात में भी बुजुिों के मूंनिढत
फकस्से कहाूँतनया मौजद
ू है। इन्हीूं के बज
ु ि
ु ों की ये फकताबें "ितावा रशीदीया,हहफ्जल

ईमान,तहजहहरून्नास,बारहहने कातीया विैरह है जजनसे अक्सर बरे लवी लोि, "अल्लाह
तआला झूठ बोल सकता है (माजअल्लाह),नबी का जैसा इल्म बच्चों और पािलों को भी
है (माजअल्लाह),खत्मे नुबूवत पर डाका" जैसी कुफ्रीया इबारतों का हवाला दे ते रहते है । ये सब
इबारतें इन्हीूं दे वबूंदी उलेमाओ की है। अलहम्दसु लल्लाह अहले हदीस का इनसे से दरू -दरू तक
कोई ताल्लुक नहीूं है। अहले हदीस कोई नई फिरका नहीूं है।अिर ये नया फिरका होता तो हदिर
फिरको की तरह इसका भी कोई खास इमाम होता और इनकी भी खास फकताबें होती जबफक
अहले हदीस का इमाम "इमामुल अूंबबया,इमामे आजम मुहम्मदरु ि सुलुल्लाह(‫ )ﷺ‬है और इनकी
फकताबें कुरआन शरीि के बाद सही बख
ु ारी,सही,मजु स्लम,ततमीजी,अबद
ु ाऊद,तनसाई, इब्ने
माजा और हदिर तमाम हदीस की फकताबें है । सहाबा फकराम का भी इमाम नबी(‫)ﷺ‬था और
अहले हदीस का भी। सहाबा फकराम भी कुरआन और सहीह हदीस पर अमल करते थे और अहले
हदीस का भी यही मस्लक है यानी अहले हदीस ही सही मायनों में अहले सन्
ु नत वल जमात है ।
तम
ु पैदाईश के बारे में पछ
ू ते हो तो बताओ फक सहाबा फकराम में फकतने हूं निी थे,फकतने
मासलकी थे?फकतने शािई थे?फकतने हूं बली थे? क्या उनमें कोई दे वबूंदी,बरे लवी,तबलीिी भी
था? जाहहर सी बात है फक ये सारे फिरके बाद में बने है तो फिर फकस बबना पर अपने आपको
अहले सन्
ु नत वल जमात में दाखखल कर रहे हो? अरे तम्
ु हारे आला हजरत की पैदाईश को

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161साल हुए है और कहते हो फक हमारा फिरका 1400 साल से चला आ रहा है । भाई जजनके घर
शीशे के होते है वो दस
ू रों पर पत्थर नहीूं िेंका करते।

👇👇बरे लवी मैसेज👇👇

*जाहहल िुस्ताखो 1857 से पहले जजतने भी लोि इस दतु नया से रुक्सत हुए
क्या वो सब मुशररक थे ??*

👇👇 अल जवाब 👇👇
माजल्लाह,अस्तिफिरूल्लाह,हमने कभी भी ये नहीूं कहा फक 1857 से पहले जजतने भी लोि
िुजरे है वो सब के सब मुशरीक थे बजल्क हम तो यह कहते है फक जजसने अल्लाह की जात और
ससिात में मख्लक
ू को शरीक फकया वो मश
ु रीक है । चूँफू क हक वालों पर झठ
ू े इल्जाम लिाना
बरे लवी उलेमा सू की फितरत में है। इससलए ये कोई नई बात नहीूं है

👇👇बरे लवी मैसज👇👇

*अरे वहाबी दे वबूंहदयों , तब्लीिीयो जब इमरजेंसी का दौर था नसबूंदी का


िैसला सलया िया उस वक़्त दे वबन्दी उलमाओ ने नसबूंदी को जायज़ कहा
! जब बरे ली के ताजदार मजु फ्तये आज़म हहन्द ने नसबूंदी को हराम कहा
उसपर हराम का ितवा हदया*

👇👇अल जवाब 👇👇

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इसके सलए तुम्हारे तकलीदी ररश्तेदार दे वबूंदी उलेमा जजम्मेदार है।अहले हदीस का इनसे कोई
ताल्लुक नहीूं है ।

👇👇बरे लवी मैसज👇👇

*तब जाकर तम
ु जैसे हरामी पैदा हुए... नही तो तम्
ु हारे उलमा ने तो नसबूंदी
जायज़ है कहा था ! सालो ऐहसान फ़रामोशो तम
ु लोिो की जज़ूंदिी भी
बरे लवी उलेमाओ की दी हुई भीख है !*

👇👇अल जवाब 👇👇
चूँफू क िाली बकना बरे लवीयो का एक अहम अकीदा है और मस्लके आला हजरत की पहचान
है। इनके पास दलील तो होती नहीूं इससलए इनके मौलवी इनको िाली दे ना ससखाते है फक जब
भी कोई तुमसे कुरआन और हदीस से दलील माूँिे तो िाली िलौच शुरू कर दे ना वो अपने आप
भाि जायेिा।खुद इनके अहमद रजा िाली िलौच करते थे दलील 👇

*"कुफ्र पाटी वहाबीया का बज


ु ि
ु ि इब्लीस लईन खबीशो!तम
ु काफिर ठहर चक
ु े हो।इब्लीस के
मसखरे दहजाल के िधे अरे मुनाफिको वहाबीयों की पोच,जलील इमारत कारून की भाजन्त
तहतुस्सरा पहुूँचती है नजहदयत के कव्वे,सससकते वहाबीयत के बूम,बबलकते और मजबूह -
िुस्ताख भड़कते(2-20)*

*िैर मक
ु ल्लीद व दे वबूंदी जहन्नम
ु के कुते है "*(ितावा ररहवीया 6-90)

दे खा आपने फकस तरह अहमद रजा अपने मुखासलिीनो को काफिर कह रहा है हालाूँफक
नबी(‫)ﷺ‬का िरमान है फक अिर फकसी ने मुसलमान को काफिर कहा तो अिर सामने वाला
वाकई में काफिर नहीूं है तो कहने वाला खुद काफिर हो जायेिा(दे खे! सही मुजस्लम-216) और
अल्लाह तआला ने तो िैर मजु स्लमो को भी िाली दे ने से मना िरमाया है (दे खे!सरु ह अन ्आम

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आयत-108) और नबी(‫)ﷺ‬ने िाली दे ना मन
ु ाफिक की तनशानी बताया है (दे खे! सही बुखारी-
2459) इसके बावजूद बरे लवी उलेमा सू िाली िलौच करते है और फिर बड़ी बेशरमी के साथ
अपने आपको हक पर भी कहते है।

👇👇बरे लवी मैसज👇👇


*वहाबी , दे वबन्दी , तब्लीिी , अहले हदीस इत्याहद फिरके नए बने हुए है जजनकी पैदाइश 150
से 160 सालो में हुए है ! फिरके बनाये तुम लोिो ने और फिरका परस्ती का लेबल हमपर लिाते
हो मक्कारो ?? अपनी असल का पता नही और दस
ू रों में ऐब ढूूंढते हो !*

👇👇अल जवाब 👇👇J


यह बात बबल्कुल ठीक है फक दे वबूंदी और तबलीिी जमात की पैदाईश को 150 से 160 साल ही
हुए है क्योंफक दे वबूंदी फिरके की बतु नयाद रखने वाले मौलाना काससम नानोतवी की पैदाईश
सन ् 1866 में और तबलीिी जमात की बुतनयाद रखने वाले मुहम्मद इल्यास काूंधलवी की
पैदाईश सन ् 1886 में हुई है लेफकन जरा हहम्मत करके अपने फिरके की भी उम्र बता दे ।बरे लवी
फिरके की बुतनयाद रखने वाले अहमद रजा खान की पैदाईश 1857 में हुई। सलहाजा तुम्हारे
बरे लवी फिरके की उम्र 150 साल से हयादा नहीूं है । अब हम बताते है अहले हदीस की पैदाईश
कब हुई 👇

*"हजरत अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास रहदयल्लाहो अन्हु ने अपने आपको अहले हदीस कहा*

📚 *तारीखे बग़दाद अल ख़तीब 3/227*

*"अबू सईद खुदरी रहदयल्लाहो अन्हु ने (फकसी से) फ़रमाया फक हमारे बाद तुम अहले हदीस
हो।"* 📚 *शिुिल ख़तीब-12*

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*"इमाम शाबी रहीमहुल्लाह ताबई ने तमाम सहाबा इकराम को अहले हदीस कहा है और
आपने तकरीबन 500 सहाबा इकराम को दे खा था।"*

📚 *ताजहकरातुल हुफ्िाज़ 1/42*

फकतनी अजीब बात है न फक सहाबा फकराम अपने आपको अहले हदीस कह रहे है और तम

कहते हो फक अहले हदीस की पैदाईश को 150 से 160 ही हुए है। हम पुछते है फक क्या फकसी एक
सहाबा फकराम ने भी अपने आपको हूं निी,शािई,मसलकी,हूं बली,दे वबूंदी,तबलीिी, बरे लवी
कहा है ? अरे तम
ु ससिि 1857 से पहले फकसी एक शख्स का नाम बता तो जजसने अपने आपको
बरे लवी कहा हो।

अहले हदीस को नया फिरका बताने वाले काश तारीख का मत


ु ाअला करते। खुद बरे लवीय
फिरके की पैदाईश को ससिि 150 साल हुए है फिर इसी फिरके से
कादरी,ररहवी,गचश्ती,सोहरवदी,नक्शबूंदी,सैयदी,साबरी,मदारी,हशमती,अतारी,बरकाती और
न जाने फकतने फिरके बना सलए इससलए तम
ु पर फिरका परस्ती का लेबल लिा है । खद
ु की
अससलयत दे खे फिर दस
ू रों पर इल्जाम लिाये।

👇👇बरे लवी मैसेज👇👇


*अब मुझे बताओ जाहहलो तुमसे 1200 साल पहले जजतने भी लोि आये क्या वो जन्नती नही
है ? क्या वो लोि भी सशकि और बबदअत करते थे ?*

*तम
ु लोिो के पैदा होने से पहले जन्नत के दरवाज़े बूंद थे क्या ? तम
ु लोिो के पैदा होने से पहले
कोई जन्नती नही था क्या ? अरे जाहहलो तम
ु लोि सुन्नी बरे लर्त्वयों को नही अहले सुन्नत वल
जमात पे ऐतराज़ कर रहे हो , नबी , सहाबा , ताबेईन , तबेताबेईन , ससद्दीकीन , शोहदा ,
सालेहीन , सरकार ए िौसे आज़म , ख्वाजा िरीब नवाज , हजरत तनजामुदीन , हजरत अशरि

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ससमनानी , बाबा िरीद , वाररस ए पाक , साबबर र्त्पया , मीरा दाता , हाजी अली , इन सब की
जमात पर ऐतराज़ कर रहे हो !*

👇👇अल जवाब 👇👇
सशकि बबद्अत तो बरे लवी करते है जजनकी पैदाईश को ससिि 150 भी नही हुआ है 1200 साल
पहले का तो मसला ही नहीूं है। पहले अपने आपको अहले सन्
ु नत वल जमात साबबत करे फिर
बोले फक हमने अहले सुन्नत वल जमात पर ऐतराज फकया है ।

हमारा एतराज तो ससिि बरे लवीयत पर है । नबी(‫)ﷺ‬सहाबा


फकराम,ताबेईन,तबेताबेईन,ससद्दीकीन,शोहदा, सालेहीन,शेख अब्दल
ु कादीर जजलानी सब के
सब अहले सन्
ु नत वल जमात में से है। तम्
ु हारे सशकीया,बबद्अतीया कारनामों से यह हस्तीयाूँ
बबल्कुल पाक है। रहा सवाल हजरत अशरि ससमनानी,बाबा िरीद,वारीस ए पाक,साबबर
र्त्पया,मीरा दाता,हाजी अली का तो अिर इनके अकाईदो मसाईल कुरआन और सहीह हदीस के
मुताबबक थे तो बबल इतेिाक यह सब अहले सुन्नत वल जमात में शासमल है और अिर इनसे
हटकर थे तो फिर इनका मामला अल्लाह के हवाले है ।

👇👇बरे लवी मैसेज 👇👇


*( अपने फिरको की हहस्री दे खो जाहहलो एक से बढ़कर एक िुस्ताखी भरी इबारतें सलखी है
तुमलोिो के उलेमाओ ने पता नही तो मुजसे पूछो )*

👇👇अल जवाब 👇👇

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उपर के जवाबात में फिरको की हहस्री वाजेह कर दी है । अहले हदीस की फकताबें कुरआन और
सहीह हदीसे है । और मैं चेलेंज करता हूूँ फक कोई बड़े से बड़ा बरे लवी आसलम इन फकताबों से
िुस्तखाना इबारत हदखा दे। अरे हदखाना तो दरू वो सोच भी नहीूं सकता।

तम
ु जजन िस्
ु तखाना इबारत हमारे खखलाि पेश करते हो वो सब की सब तम्
ु हारे बड़े फिक्ही
भाई दे वबूंदी मौलर्त्वयो(अशरि अली थानवी,रशीद अहमद िूंिोही,इस्माइल दे हलवी,विैरह
की है और अलहम्दसु लल्लाह अहले हदीसो का इस से दरू -दरू तक कोई वास्ता नहीूं है जैसे फक
मेने पहले के जवाबात में भी दलील के साथ बताया है ।

👉👀अब जरा खुद के बरे लवी उलेमा सू की िुस्तखाना


इबारत दे ख👀 ले ताफक फिर कभी दस
ू रों पर ऊूँिली उठाने से
पहले तुम्हें अपनी हैससयत याद आ जाए

👉 *बरे लवीयो के आला हजरत अहमद रजा खान बरे लवी सलखता है फक "सय्यदी मस
ु ा सह
ु ाि
अल्लाह की बीवी" (नाऊजुबबल्लाह समन जासलक)*

*📚अल मलिूज भाि-3 पेज-245*

👉 *"बरे लवीयो के आला हजरत अहमद रजा खान बरे लवी अपने पीर जक
ु ािनी के हवाले से
सलखता है फक "अूंबबया अलेहहस्सालम की कब्रों में उनकी बीवीया पेश की जाती है और वो उनके
साथ हमबबस्तरी भी करते है "(मआजल्लाह)*

*📚अल मलिूज सिा-249*

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👉 *"बरे लवीयो के आला हजरत अहमद रजा खान बरे लवी सलखता है फक मुरीद अपनी बीवी
के साथ हमबबस्तरी करता है तो उसका पीर यह सब दे खता है "(ला हौल वला कुवत)*

*📚अल मलिूज भाि-2 पेज-150*

👉 *बरे लवीयो के मौलवी अहमद यार खान नईमी कहते है फक नबी(‫ )ﷺ‬कुफ्िार को अपनी
तरि इस तरह मायल करते थे जैसे सशकारी जानवरों की सी आवाज तनकालकर सशकार करता
है (माजल्लाह अस्तिफिरूल्लाह)*जाअल हक्क सिा-145*

👉 *बरे लवीयो के मौलवी अहमद यार खान नईमी रसल


ू ल्
ु लाह का मतिबा अल्लाह से ऊपर
बढ़ाते हुए सलखते हैं"खुदा को हर जिह हाजजर नाजजर मानना बे दीनी है ,हर जिह में होना तो
रसूले खुदा की शान है "(मआजल्लाह)*

*📚जाअल हक्क भाि-1 सिा-153*

👉 *सहाबा फकराम की शान में िस्


ु ताखी करते हुए एक बरे लवी मौलवी सलखता है फक "मैंनें
कुछ मशाइख को कहते हुए सुना है फक अहमद रजा को दे खकर सहाबा फकराम की जजयारत का
शौक कम हो िया है "(मआजल्लाह)*

*📚अनवारे रजा-303*

और भी इस तरह की हजारों इबारते बरे लवी कुतुब में भरी हुई है अब दस


ु रों पर कुफ्र और
िस्
ु ताखी का ितवा लिाने वाले हहम्मत करके बताए फक इन इबारतों पर क्या ितवा लिेिा?

👇👇बरे लवी मैसेज 👇👇


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*नबी ए पाक की हदीस:*

"🌴 हुजरू ने फ़रमाया की मझ


ु े *अल्लाह की कसम मझ
ु े मेरे बाद तम्
ु हारे सशकि में
मुबतला होने का कोई खौि नही है* "( उम्मत सशकि नही कर सकती )*

📚( हवाला : सही बुखारी )

*जब नबी कह रहे है फक मेरी उम्मत सशकि नही कर सकती तो


फिर तुम लोि दीन के ठे केदार क्यों बन रहे हो ? हम नबी की
माने या तुम जाहहलो िुस्ताख लोिो की माने ?*

अल जवाब 👉 हदीस को उठाकर बरे लवी लोि समझते है फक मुजस्लम उम्मत सशकि नहीूं
कर सकती हालाूँफक यह ससवाय इल्म की कमी के कुछ नहीूं है क्योंफक दस
ू री बहुत सारी हदीसे
है जो कहती है फक मस
ु लमानों में से कुछ लोि सशकि करें िे।

दलील-1
*"जो लोि ईमान लाये और अपने ईमान में जुल्म(सशकि)की समलावट नहीूं की वहीूं
लोि(कयामत के हदन)अमन में होिें और हहदायत याफ्ता होंिे"*

*📗सुरह अन ्आम आयत-82*

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इस आयत में अल्लाह तआला ने कामयाबी के सलए ससिि ईमान लाना कािी नहीूं बताया बजल्क
ईमान लाने के बाद सशकि न करने की शति रखी है । इससे पता चलता है फक एक मुसलमान सशकि
कर सकता है । इस आयत में जुल्म से मुराद सशकि है जैसे की दलील-2 में वजाहत है

दलील-2
*"जब यह आयत "जो लोि ईमान लाये और अपने ईमान के साथ जुल्म की समलावट नहीूं
की"(सुरह अन ्आम आयत-82) नाजजल हुई तो मुसलमानों पर बड़ी मुजश्कल िुजरी और उन्होंने
नबी(‫)ﷺ‬से अजि फकया फक हमसे से कौन है जजसने अपने ईमान के साथ जुल्म की समलावट न
की होिी? आप(‫)ﷺ‬ने िरमाया इसका मतलब यह नहीूं बजल्क जल्
ु म से मरु ाद इस आयत में
सशकि है । क्या तुम ने नहीूं सुना फक लुक्मान अलेहहस्सलाम ने अपने बेटे से कहा था नसीहत
करते हुए फक ऐ मेरे बेटे अल्लाह के साथ फकसी को शरीक न ठहरा,बेशक सशकि बड़ा जल्
ु म है (सुरह
qaलुक्मान आयत-13)।"* 📚सहीह बुखारी फकताबुल अूंबबया हदीस नूंबर-3429*

दलील-3.
रसल
ू ल्
ु लाह(‫)ﷺ‬ने िरमाया जजस मस
ु लमान के जनाजा में 40 ऐसे आदमी शासमल हो जो
अल्लाह के साथ सशकि न करते हो तो अल्लाह तआला(इस मय्यत के हक में )इनकी सशिारीश
कुबूल करता है "* *📚सहीह मुजस्लम हदीस फकताबुल जनाइज हदीस-948*

अब जो कहते है फक मजु स्लम उम्मत सशकि नहीूं करे िी उनसे सवाल है फक फिर नबी(‫)ﷺ‬को यह
कहने की क्या जरूरत थी फक *👉जो सशकि नही करते हो👈* क्योंफक जनाजे की नमाज तो
मुसलमान ही पढ़ते है िैर मुजस्लम तो नहीूं। सलहाजा इससे साबबत होता फक मस
ु लमान में भी
सशकि पाया जाता है।

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दलील-4
*"रसूलुल्लाह(‫)ﷺ‬ने िरमाया कयामत उस वक्त तक कायम नहीूं होिी यहाूँ तक के मेरी उम्मत
के कुछ कबीले मुशरीकीन से समल जाये और वह बुतो की ईबादत करने लि जाये"*

*📚जामेय ततमीजी हदीस-2219,समश्कात शरीि हदीस-5406(सहीह)*

यहाूँ तो बबल्कुल वाजेह बता हदया िया है फक उम्मते मुजस्लमा के कुछ लोि सशकि करे िें

दलील-4
*"अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा िरमाती है फक अिर यह डर न होता फक लोि
रसल
ू ल्
ु लाह(‫)ﷺ‬की कब्र पर सहदे शरू
ु कर दे िें तो हम आप(‫ )ﷺ‬की कब्र को जजयारत के सलए
खुली छोड़ दे ते"* सहीह बुखारी हदीस-1330*

जब नबी(‫)ﷺ‬ने िरमा हदया फक मेरी उम्मत सशकि नहीूं करे िी तो फिर अम्मा आयशा
रहदयल्लाहो अन्हा को क्यों डर था फक लोि कब्रे रसल
ू पर सशकि शरू
ु कर दे िें।क्योंफक जजयारत
तो मुसलमान ही करे िे िैर मुजस्लम तो नही दरअसल अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा
नबी(‫)ﷺ‬की हदीस का मतलब जानती थी फक आपने सशकि न करने वाली बात पुरी उम्मत के
सलए नहीूं बजल्क कुछ खास लोिो के सलए कही है ।उस जमाने में भी अम्मा आयशा रहदयल्लाहो
अन्हा को सशकि का डर था जबफक वह जमाना बेहतरीन जमाना था लेफकन आजकल के बरे लवी
उलेमा सू को सशकि का कोई डर नहीूं और अपनी अवाम को धोखा दे ते है फक उम्मत सशकि कर ही
नहीूं सकती। क्या अम्मा आयशा रहदयल्लाहो अन्हा से हयादा यह लोि हदीस को समझते है ?

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दलील-5
*"रसूलुल्लाह(‫ )ﷺ‬ने िरमाया मेरी शिाअत इूंशाअल्लाह मेरी उम्मत के हर उस शख्स के साथ
होिी जो इस हाल में मरे फक उसने अल्लाह के साथ फकसी को शरीक नहीूं फकया हो(यानी सशकि
न फकया हो)"*

*📚सहीह मजु स्लम फकताबल


ु ईमान हदीस-399*

नोट👉जब नबी(‫)ﷺ‬को उम्मत सशकि करने का डर नहीूं था तो फिर आपने शिाअत के सलए
सशकि न करने की शति क्यों रखी?

सलहाजा इन तमाम दलाईलो से साबबत होता है फक नबी (‫)ﷺ‬का उम्मत सशकि न करने वाली
पेशनिोई पुरी उम्मत के सलए नहीूं बजल्क एक खास जमाअत के सलए है। उस जमाअत के सलए
जजसके बारे में रसूलल्
ु लाह(‫)ﷺ‬ने कहा फक एक जमाअत हक पर कायम रहे िी। दलील

*"रसल
ू ल्
ु लाह(‫)ﷺ‬ने फ़रमाया फक जब शाम के लोिों में बबिाड़ आएिा तब आपके सलए कोई
भलाई नहीूं रहे िी। मेरी उम्मत में एक गिरोह हमेशा हर्क़ पर र्क़ायम रहे िा जजसकी मदद
अल्लाह करता रहेिा और उससे दश्ु मनी करने वाले उसको नुक्सान नहीूं पूंहुचा पाएूंिे यहाूँ तक
फक र्क़यामत कायम ही जाएिी।" इमाम ततसमिज़ी कहते हैं फक मेरे उस्ताद इमाम बुखारी
रहीमहुल्लाह ने कहा, और इमाम बख
ु ारी कहते हैं फक मेरे उस्ताद इमाम अली इब्ने मदनी
रहीमहुल्लाह ने कहा फक इस गिरोह से मुराद "अस'हबुल हदीस" (यातन अहले हदीस) है।*

*📚सहीह जामअ ततसमिज़ी, बाब: अल-फितन, जजल्द नम्बर 33, हदीस नम्बर 2351*

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सहाबा फकराम की हक वाली जमाअत उस वक्त से लेकर आज तक चली आ रही है और कयामत
तक कायम रहे िी जजसको आज हम अहले हदीस के नाम से जानते है ।नबी (‫)ﷺ‬ने अपनी उम्मत
की इसी जमाअत के बारे में कहा था फक मुझे सशकि का डर नहीूं इससलए तो आज तक यह
जमाअत यानी अहले हदीस सशकि से बबल्कुल पाक है और कयामत तक रहेिी।सब जानते है
फक उम्मत में सबसे हयादा सशकि के खखलाि अहले हदीस बोलते है और तौहीद पर इनका पुरा
जोर होता है।

👇👇बरे लवी मैसेज 👇👇


*🌴ख्वाजा िरीब नवाज रहमतुल्लाहह दाता अली हजवेरी की मज़ार पर जाते है , वहाूँ गचल्ला
करते है , ये कौन िरीब नवाज है ? ये वही िरीब नवाज है जजन्होंने 90 लाख हहूंदओ
ु ूं को
मुसलमान बनाये , और तुमलोि सशकि और बबदअत के नाम पर मुसलमानों को काफिर बनाते
हो ! अरे जाहहलो.. जो र्क़ब्रो पर जाने वाले 90 लाख लोिो को कलमा पढ़ाते है , और तुम र्क़ब्रो के
मुनफकऱो तुम्हारे अकाबबररन ने फकतनो को कलमा पढ़ाया बताओ ?*

*तम
ु तो मस
ु लमानों को मश
ु ररक कहते हो, वो तो मश
ु ररक को मस
ु लमान बनाते थे !*

👇👇अल जवाब 👇👇
सबसे पहले तो यह जान ले फक िरीब नवाज ससिि और ससिि अल्लाह तआला की जात है । दस
ू री
बात यह फक इसकी क्या दलील है फक मईनुद्दीन गचश्ती अजमेरी मजारो पर गचल्ला करते थे
और उन्होंने 90 लाख हहूंद ू को मस
ु लमान बनाया जबफक उनके वक्त तो इतनी आबादी भी नहीूं
थी झूठ बोलने की भी हद होती है।

हम लोि कब्रो के नहीूं बजल्क मजारो के मुनफकर है क्योंफक हमारे नबी(‫)ﷺ‬ने मजारो की
मजम्मत िरमाई है दलील👇

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*"हजरत जाबबर रजज. से ररवायत है की रसल
ू ुल्लाह (‫ )ﷺ‬ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर
बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़मािया है "*

📚 *सहीह मुजस्लम हदीस-2245 (970)*

जबफक कब्रो की जजयारत करने का नबी(‫)ﷺ‬ने हुक्म हदया है दलील👇

*"रसूलुल्लाह (‫)ﷺ‬ने िरमाया तुम कब्रो की जजयारत फकया करो क्योंफक वो तुम्हें मौत की याद
हदलाती है "*

*📚सहीह मजु स्लम फकताबल


ु जनाइज हदीस-2269*

बरे लवी अिर इस हदीस के तहत मजारो पर जाते है तो बताए फक क्या मजारो पर जाने से तुम्हें
मौत की याद आती है ? यह हुक्म कब्रो के सलए है मजारो के सलए नहीूं।

अिर कोई मस
ु लमान जाने अनजाने में सशकीया काम करता है तो अहले इल्म का िजि बनता
है फक वो कुरआनो सुन्नत की रौशनी में उसको वाजेह करे ताफक उसकी इस्लाह हो सके और
यही हम लोि करते है।

अल्लाह तआला तमाम बरे लवी भाईयो को दीन की सही समझ अता िरमाए और
कुरआनो सुन्नत की तरि रूजू करने की तौिीक अता िरमाये आमीन

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आपका हदनी भाई

अब्दल
ु अजीज़

आपका हदनी भाई

अबु बबलाल

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