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इस्लाम की श्रेष्ठता
लेखकः
इमाम महु म्मद बिन अब्दल
ु वह्हाि
इस्लाम की श्रेष्ठता
लेखकः
इमाम मुहम्मद बिन अब्दल
ु वह्हाि
इस्लाम की श्रेठता
1
सरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 85
2
सरा अल-अनआम, आयत संख्या : 153
3
इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अस-सल्ु ह (2550), मबु स्लम : अल-अबज़िया (1718),
अि दाऊद : अस-् सन्ु नह (4606), इब्ने माजा : अल-मक़ ु बिमा
(14), मसु नद अहमद (6/256)।
2
िख
ु ारी : अस-् सल्ु ह (2550), मबु स्लम : अल-अबज़िया (1718),
अि दाऊद : अस-सन्ु नह (4606), इब्ने माजा : अल- मक़ ु बिमा
(14) मसु नद अहमद (6/256)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अद-बदय्यात ( 6488 )।
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इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 20
2
मबु स्लम : अल-ईमान (8), बतरबम़िी : अल-ईमान ( 2610), नसई
: अल-ईमान व शराइउहु (4990), अि दाऊद : अस-सन्ु नह (
4695), इब्ने माजा : अल-मकु बिमा ( 63) अहमद (1/52)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
बतरबम़िी : अल-ईमान ( 2627), नसई : अल-ईमान व शराउहु
(4995), अहमद (2/379)।
2
नसई : अ़ि-़िकाह (2436), अहमद ( 5/3)।
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इस्लाम की श्रेठता
मसु लमान तम्ु हारी ़ििान और तम्ु हारे हाथ से सरु बित रहें।"
बिर उन्होंने प्रश्न बकया बक सवमश्रेष्ठ इस्लाम जया है? तो आिने
फ़रमाया : "ईमान।" उसने कहा बक ईमान जया है? तो आिने
फ़रमाया : "ईमान यह है बक तमु अल्लाह िर, उसके फ़ररश्तों
िर, उसकी उतारी हुई िस्ु तकों िर, उसके रसलों िर और मरने
के िाद दोिारा उठाए जाने िर बवश्वास रखो।"1
1
अहमद (4/114)
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इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 85
2
िख
ु ारी : अस-् सल्ु ह (2550), मबु स्लम : अल-अबज़िया (1718),
अि दाऊद : अस-् सन्ु नह (4606), इब्ने माजा : अल-मक़ ु बिमा
(14), मसु नद अहमद (6/256)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 89
2
मसु नद अहमद (3/387), अद-् दारमी : अल-मक़
ु िमा (435)।
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इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
1
बतरबम़िी : अल-अमसाल (2863), अहमद (4/130)।
2
िख
ु ारी : अल-बितन (6664) मबु स्लम : अल-इमारा (1849),
अहमद (1/297), दारमी : अस-बसयर (2519)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अन-बनसा, आयत संख्या : 48
2
सरा अन-् नह्ल, आयत संख्या : 25
20
इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अल-मनाबक़ि (3415), मबु स्लम : अ़ि-़िकाह (1066),
नसई : तहरीमदु -् दम (4102), अि दाऊद : अस-सन्ु नह (4767)
अहमद (1/131)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
मबु स्लम : अ़ि-़िकाह (1017), बतरबम़िी : अल-इल्म (2675),
नसई : अ़ि-़िकाह (2554), इब्ने माजा : अल-मक़ ु िमा (203),
अहमद (4/359) अद-दारमी : अल-मक़ ु िमा (514)।
2
मबु स्लम : अल-इल्म (2674), बतरबम़िी : अल-इल्म (2674),
अि दाऊद : अस-सन्ु नह (4609 ), अहमद (2/397), अद-् दारमी :
अल-मक़ ु िमा (513)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अत-तौहीद (6995), मबु स्लम : अ़ि-़िकाह (1064),
नसई : अ़ि-़िकाह (2578 ), अि दाऊद : अस-सन्ु नह (4764 ),
मसु नद अहमद (3/68)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
मबु स्लम : अल-बिरम वस-् बसलह वल-आदाि (2564)।
2
िखु ारी : अल-बफ़तन (6642), मबु स्लम : अल-फ़़िाइल (2297)
इब्ने माजा : अल-मनाबसक (3057), अहमद (5/393)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अल-मसु ाक़ात (2238), मबु स्लम : अत-तहारह (249),
31
इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अल-माइदा, आयत संख्या :117
2
िखु ारी : अल-जनाइ़ि (1292), मबु स्लम : अल-क़द्र (2658),
बतरबम़िी : अल-क़द्र (2138), अि दाऊद : अस-् सन्ु नह (4714),
मवु त्ता इमाम माबलक : अल-जनाइ़ि (569)।
33
इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अर-रूम, आयत संख्या : 30
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इस्लाम की श्रेठता
1
िख
ु ारी : अल-मनाबक़ि (3411), मबु स्लम : अल-इमारा (1847),
अि दाऊद : अल-बफ़तन वल-मलाबहम (4244), इ्िने माजा :
अल-बफ़तन (3979), अहमद (5/387)।
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इस्लाम की श्रेठता
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अल-िक़रा, आयत संख्या :131
2
सरा अल-िक़रा, आयत संख्या :132
3
सरा अल-िक़रा, आयत संख्या :130
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा अल-अनआम, आयत संख्या :153
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इस्लाम की श्रेठता
1
सरा हूद, आयत सख्ं या :116
2
मबस्लम : अल-ईमान (145), इब्ने माजा : अल-बितन (3986),
अहमद (2/389)।
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इस्लाम की श्रेठता
1
मसु नद अहमद (2/222)।
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नबद्अतों पर िेतावनी
इरिा़ि बिन साररया (रब़ियल्लाहु अनहु) से वबणमत
है, वह ियान करते हैं : अल्लाह के रसल (सल्लल्लाहु
अलैबह व सल्लम) ने हमें एक िड़ा ही प्रभावशाली उिदेश
बदया, बजससे हमारे बदल काूँि उठे और आूँखें आूँस िहाने
लगीं। हमने कहा बक ऐ अल्लाह के रसल! यह तो बवदाई
उिदेश जान िड़ता है। आि हमें वसीयत कीबजए। तो आिने
फ़रमाया : "मैं तम्ु हें अल्लाह से डरने तथा शासकों की िात
मानने और सनु ने की वसीयत करता हू,ूँ भले ही कोई दास
तम्ु हारा शासक िन जाए। तमु में सो जो व्यबि जीबवत रहेगा,
वह िहुत मतभेद देखेगा। ऐसी अवस्था में तमु मेरी सन्ु नत
और मेरे िाद समं ागी शासकों (खल ु फ़ा-ए- राबशदीन) का
तरीका अिनाए रखना और उसे िढता से थामे रहना और
धमम-मागम में नई आबवष्कृ त बिदअ ् तों से िचे रहना, जयोंबक हर
बिदअ ् त िथभ्रष्टता है।" 1 इस हदीस को इमाम बतरबम़िी ने
ररवायत बकया और हसन कहा है।
1
बतरबम़िी : अल-इल्म (2676), अि दाऊद : अस्-सन्ु नह (4607),
इब्ने माजा : अल-मक़ु बिमा (44), अहमद (4/126), दारमी : अल-
मक़
ु बिमा (95)।
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नवषय सि
ू ी
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