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ह ज़ करने के लये आज क आयत, सूरा बक़रा-256

ताग़त
ू से कु
‫ت َو يُ ۡٔو ِم ۡۢﻦ ِبا ﱣ ِ فَقَ ِد‬ ُ ‫الر ۡش ُد ِم َﻦ ۡالغَ ِّﯽ ۚ فَ َﻤ ۡﻦ يﱠ ۡﮑﻔُ ۡر بِال ﱠطا‬
ِ ‫غ ۡو‬ ‫َ ۤﻻ ا ِۡک َرا َه فِﯽ ال ِ ّد ۡي ِﻦ ۟ ۙ ﻗَ ۡد ﺗ ﱠ َﺒيﱠ َﻦ ﱡ‬
‫ﻋ ِﻠ ۡي ٌﻢ‬ َ ُ ‫صا َم لَ َہا ؕ َو ﱣ‬
َ ‫س ِﻤ ۡي ٌﻊ‬ َ ‫ک ِب ۡالعُ ۡر َو ِة ۡال ُو ۡث ٰقﯽ ٭ َﻻ ان ِﻔ‬
ۡ َ ‫س‬ ۡ
َ ‫است َ ۡﻤ‬
“द न म कोई ज़बरद ती नह ं है। सह बात ग़लत ख़यालात से अलग छाँट
कर रख द गई है। अब जो कोई ताग़त
ू का इनकार करके अ लाह पर
ईमान ले आया उसने एक ऐसा मज़बूत सहारा थाम लया जो कभी
टूटनेवाला नह ं।” (2:256)
ताग़त

दो तो! पूर इ सानी तार ख़ इस हक़ क़त पर गवाह है क इ सान को
जब-जब ताक़त हा सल होती है तो वो सरकश (ताग़त
ू ) हो जाता है ,(96:6)
लोग को अपना ग़ल
ु ाम बना लेता है , उनके ऊपर ज़ु म तोड़ता है और
ज़मीन म फ़साद बरपा करता है ।(89:10,11) जब इ सान कमज़ोर होता है
तो सहारे के लये अपने से ताक़तवर क ग़ल
ु ामी क़बूल कर लेता है , जो
उसे कामयाबी और ख़ुशहाल क रौशनी से नकालकर िज़ लत और
प ती क अँ धया रय म फक दे ता है ।(2:257) इसी लये अ लाह ने न बय
के ज़ रए इ सान को ताग़त
ू से कु करने और अ लाह क ब दगी
क़बूल करने क दावत द है । इस लहाज़ से बहुत ज़ र है क हम
ताग़त
ू को समझ, तो आइये समझते ह क ताग़त
ू कसे कहते ह?
ताग़त
ू अरबी ल ज़ ‘त ग़ य’ से बना है िजसका मतलब होता है पैमाने
या हद से बाहर हो जाना, दायरे से नकल जाना। इसी मफ़हूम म इसका
मतलब होता है सरकश हो जाना। जब दरया अपनी हद से ऊपर बहने
लगता है तो उसे तुग़यानी कहते ह। क़ुरआनी इि तलाह म ताग़त
ू कहते
ह ख़द
ु ा के अहकाम क हद से नकल जाना। ख़द
ु ा के क़ानन
ू से सरकशी
करना और ख़ुदा के अलावा कसी और क इताअत क़बूल कर लेना।
क़ुरआन म ये ल ज़ फ़रऔन के लए इ तेमाल हुआ है । कहा क

1
“इज़हब इला फ़रऔना इ नहू तग़ा” यानी “तुम फ़रऔन के पास जाओ
क वो सरकश हो गया है ।” (20:24)
मुना फ़क के बारे म कहा गया क- “अ लाहु ति ज़उ ब हम व
यमु दहु ु म फ़ तु ग़या नह म यअमहून” यानी “अ लाह इनसे मज़ाक़
कर रहा है वो इनक र सी दराज़ कये जाता है और ये अपनी सरकशी
म अ ध क तरह भटकते चले जाते ह।” (2:15)
इनके अंजाम के बारे म कहा क- “इ ना जह नमा कानत मसादा।
ल ाग़ीना मआबा। ला बसीना फ़ हा अ क़ाबा;” यानी “दरहक़ क़त जह नम
एक घात है , सरकश का ठकाना, िजसम वो हमेशा पड़े रहगे।” (78:21, 22)
ू के बारे म कहा- “क ज़बत समूदु बतग़वाहा;” यानी
क़ौमे-समद
“समद
ू ने अपनी सरकशी क बना पर हक़ को झठ
ु लाया।” (91:11)
क़ुरआन के मत
ु ाले से मालम
ू होता है क अ लाह का मत
ु ालबा सफ़
ये नह ं है एक श स महज़ ईमान ले आए, बि क हक़ क़ तौर पर
उसका मत
ु ालबा ये है क ईमान लाने से पहले ताग़त
ू का इनकार
कया जाए; इस हक़ क़त को क़ुरआन म इस तरह बयान कया है -
‫ت َو يُ ۡٔو ِم ۡۢﻦ بِا ﱣ ِ فَ َق ِد‬ ُ ‫الر ۡش ُد ِمﻦَ ۡالغَ ِّﯽ ۚ فَ َﻤ ۡﻦ يﱠ ۡﮑﻔُ ۡر بِال ﱠطا‬
ِ ‫غ ۡو‬ ‫َ ۤﻻ ا ِۡک َرا َه فِﯽ ال ِ ّد ۡي ِﻦ ۟ ۙ ﻗَ ۡد ﺗﱠﺒَيﱠﻦَ ﱡ‬
‫ﻋ ِﻠ ۡي ٌﻢ‬ َ ُ ‫ک ِب ۡالعُ ۡر َو ِة ۡال ُو ۡث ٰقﯽ ٭ َﻻ ۡان ِﻔصَا َم َل َہا ؕ َو ﱣ‬
َ ‫س ِﻤ ۡي ٌﻊ‬ ۡ
َ ‫استَ ۡﻤ‬
َ ‫س‬
“द न म कोई ज़बरद ती नह ं है। सह बात ग़लत ख़यालात से अलग छाँट कर
रख द गई है । अब जो कोई तागूत का इनकार करके अ लाह पर ईमान ले
आया उसने एक ऐसा मज़बूत सहारा थाम लया जो कभी टूटनेवाला नह ।ं ”
(2:256) एक दस
ू र जगह कहा गया
ّ َ‫غ ۡوتَ اَ ۡن يﱠ ۡعﺒُد ُۡوہَا َو ا َ َنابُ ۡۤوا اِلَﯽ ﱣ ِ لَ ُہ ُﻢ ۡالﺒُ ۡش ٰری ۚ َفﺒ‬
‫ش ِۡر ِﻋ َﺒا ِد‬ ُ ‫اجتَ َنﺒُوا ال ﱠطا‬
ۡ َ‫َو الﱠ ِذ ۡيﻦ‬
इसके बर ख़लाफ़ जो लोग तागूत (बड़े सरकश) क ब दगी से बचे और
अ लाह क तरफ़ पलट आए उनके लये ख़ुशख़बर है। (39:17)
अ लाह तआला ने तमाम न बय को भेजा ह इसी लये क वो लोग
को इस बात पर आमादा कर क वो ताग़त
ू क इताआत को छोड़कर
एक अ लाह क इताअत और फ़रमाँबरदार कर
2
ُ ‫اجتَنِﺒُوا ال ﱠطا‬
ۚ َ‫غ ۡوت‬ ۡ ‫اﻋﺒُدُوا ﱣ َ َو‬ ُ ‫َو لَقَ ۡد بَعَ ۡثنَا ِف ۡﯽ ُک ِ ّل ا ُ ﱠم ٍۃ ﱠر‬
ۡ ‫س ۡو ًﻻ ا َ ِن‬
हमने हर उ मत (समुदाय) म एक रसूल भेज दया और उसके ज़ रए से
सबको ख़बरदार कर दया क “अ लाह क ब दगी करो और ताग़त
ू (बढ़े
हुए सरकश) क ब दगी से बचो। (16:36) साथ म ये भी फ़रमाया क
ّ َ‫غ ۡوتَ ا َ ۡن يﱠ ۡعﺒُد ُۡوہَا َو اَنَابُ ۡۤوا ِالَﯽ ﱣ ِ لَ ُہ ُﻢ ۡالﺒُ ۡش ٰری ۚ فَﺒ‬
‫ش ِۡر ِﻋﺒَا ِد‬ ‫اجت َ َنﺒُوا ال ﱠ‬
ُ ‫طا‬ ۡ ‫َو الﱠ ِذ ۡي َﻦ‬
और जो लोग तागूत क ब दगी से बचे और अ लाह क तरफ़ पलट आए
उनके लये (आग से बचने क ) ख़ुशख़बर है। (39:17)
जब कोई श स ईमान लाकर इ लाम म दा ख़ल होता है तो उसे
िजस बात को लािज़मन त ल म करना होता है वो है ‘ला इलाहा
इ ल लाह, मुअह दरु -रसूलु लाह’ इस क लमे का सादा सा मतलब
ये है क ‘नह ं है कोई माबूद सवाय अ लाह के, मुह मद (स ल)
अ लाह के रसूल ह.’ इस क लमे म कहा गया क एक अ लाह के
मुक़ाबले पर जो भी आए अ ल म वह ताग़त
ू है .
सरू ा नसा म मो मन और का फ़र का फ़क़ बयान करते हुए कहा क-
‫ت فَقَا ِﺗﻠُ ۡۤوا‬ ُ ‫سﺒِ ۡي ِل ال ﱠطا‬
ِ ‫غ ۡو‬ َ ‫اَلﱠ ِذ ۡي َﻦ ٰا َمنُ ۡوا يُقَاﺗِﻠُ ۡو َن فِ ۡﯽ‬
َ ‫س ِﺒ ۡي ِل ﱣ ِ ۚ َو الﱠ ِذ ۡي َﻦ َکﻔَ ُر ۡوا يُقَا ِﺗﻠُ ۡو َن ِف ۡﯽ‬
‫ض ِع ۡيﻔًا‬
َ ‫َان‬ َ ‫ش ۡي ٰط ِﻦ ک‬
‫ش ۡي ٰط ِﻦ ۚ ا ﱠِن َک ۡي َد ال ﱠ‬
‫ا َ ۡو ِل َيا ٓ َء ال ﱠ‬
“िजन लोग ने ईमान का रा ता अपनाया है वे अ लाह क राह म क़ताल
करते ह और िज ह ने कु का रा ता अपनाया है वे ताग़त
ू क राह म लड़ते
ह। तो शैतान के सा थय से लड़ो और यक़ न जानो क शैतान क चाल
हक़ क़त म बहुत ह कमज़ोर ह।” सूरा नसा ह म कहा गया क
‫ک يُ ِر ۡيد ُۡونَ اَ ۡن‬َ ‫ک َو َم ۤا ا ُ ۡن ِز َل ِم ۡﻦ ﻗَ ۡﺒ ِﻠ‬ َ ‫ﻋ ُﻤ ۡونَ اَنﱠ ُہﻢۡ ٰا َمنُ ۡوا بِ َﻤ ۤا ا ُ ۡن ِز َل اِلَ ۡي‬ُ ‫اَلَﻢۡ ﺗ َ َر اِلَﯽ الﱠ ِذ ۡيﻦَ يَ ۡز‬
ۢ ٰ
‫ش ۡيطﻦُ اَ ۡن يﱡ ِﻀﻠﱠ ُہﻢۡ ض َٰﻠ ًﻼ بَ ِع ۡيدًا‬ ‫ت َو ﻗَ ۡد ا ُ ِم ُر ۡۤوا اَ ۡن يﱠ ۡﮑﻔُ ُر ۡوا ِب ٖہ ؕ َو يُ ِر ۡي ُد ال ﱠ‬ِ ‫غ ۡو‬ُ ‫يﱠتَحَا َک ُﻤ ۡۤوا اِلَﯽ ال ﱠطا‬
“ऐ नबी तुमने दे खा नह ं उन लोग को जो दावा तो करते ह क हम ईमान
लाए ह उस कताब पर जो तु हार तरफ़ नािज़ल क गई है और उन
कताब पर जो तुमसे पहले नािज़ल क गई थीं, मगर चाहते ये ह क
अपने मामलात का फ़ैसला कराने के लए ताग़त
ू क तरफ़ जू कर।
हालाँ क उ ह ताग़त
ू से कु करने का हु म दया गया था।” (4:60)

3
इस पूर तशर ह से ये बात मालम
ू होती है क
 अ लाह के मुक़ाबले म िजसक बड़ाई क़बूल क जाए वो ताग़त
ू है ,
 अ लाह के मुक़ाबले म िजसक बात को तरजीह द जाए वो ताग़त
ू है ,
 अ लाह के मुक़ाबले म िजसक इताअत क़बूल कर ल जाए वो ताग़त
ू है ,
 अ लाह के मुक़ाबले म िजसके क़ानून को त ल म करके उसक
फ़रमाँबरदार क़बूल क जाए और
 अ लाह के मुक़ाबले म िजसके मुता बक़ फ़ैसले कये जाएँ वो ताग़त ू है.
ۡ‫ﮏ يُ ِر ۡيد ُۡونَ اَن‬ َ ۡ ۡ ۤ
َ ‫ﮏ َو َما اُن ِز َل ِمن ق ۡب ِل‬ ۡ ۤ ٰ
َ ‫ع ُم ۡونَ ا َنﱠ ُہمۡ ا َمنُ ۡوا بِ َما اُن ِز َل اِلَ ۡي‬ ۡ
ُ ‫اَلَمۡ ت َ َر اِلَﯽ الﱠ ِذ ۡينَ يَز‬
‫ش ۡي ٰطنُ ا َ ۡن ﱡي ِضلﱠ ُہمۡ ض َٰل ۢ ًﻼ َب ِﻌ ۡيدًا‬ ‫ت َو َق ۡد ا ُ ِم ُر ۡۤوا ا َ ۡن ﱠي ۡکفُ ُر ۡوا ِب ٖہ ؕ َو يُ ِر ۡي ُد ال ﱠ‬
ِ ‫غ ۡو‬ُ ‫ﱠيتَحَا َک ُم ۡۤوااِلَﯽ ال ﱠطا‬
ऐ नबी! तुमने दे खा नह ं उन लोग को जो दावा तो करते ह क हम ईमान
लाए ह उस कताब पर जो तु हार तरफ़ उतार गई है और उन कताब पर
जो तुमसे पहले उतार गई थीं। मगर चाहते यह ह क अपने मामल का
फ़ैसला कराने के लए ताग़त
ू क तरफ़ जाएँ, हालाँ क उ ह ताग़त
ू से इनकार
करने का हु म दया गया था– शैतान उ ह भटकाकर सीधे रा ते से बहुत
दरू ले जाना चाहता है। (4:60)
अब दे खना ये है क हम ईमान लानेवाले भी कतने एक अ लाह के
पैरोकार ह और कतने ह जो ताग़त
ू क पैरोकार कर रहे ह. क़ुरआन
का फ़ैसला है क िज होने अपना हमायती ताग़त
ू को बनाया उनका
ठकाना जह नम है , जहाँ से उ ह कभी नकाला नह ं जाएगा.
ُ‫ت اِ َلﯽ ال ﱡن ۡو ِر ؕ َو ا ﱠلذ ِۡي َن َک َف ُر ۤ ۡوا اَ ۡو ِل ٰ ٓيئُہُم‬ ِ ‫َ ﱣ ُ َو ِلﯽﱡ ا ﱠلذ ِۡي َن ٰا َم ُن ۡوا ۙ يُ ۡخ ِر ُجہُمۡ ِ ّم َن ال ﱡظ ُل ٰم‬
‫ب ال ﱠن ِار ۚ ہُمۡ فِ ۡيہَا ٰخ ِلد ُۡو َن‬ ُ ‫ص ٰح‬ ۡ َ‫ﮏ ا‬ َ ِ‫ولئ‬ٓ ٰ ُ‫ت ؕ ا‬
ِ ‫ال ﱠطا ُغ ۡوتُ ۙ يُ ۡخ ِر ُج ۡو َنہُمۡ ِ ّم َن ال ﱡن ۡو ِر ِا َلﯽ ال ﱡظ ُل ٰم‬
जो लोग ईमान लाते ह, उनका हमायती और मददगार अ लाह है और वो
उनको अंधेर से रौशनी म नकाल लाता है। और जो लोग कु का रा ता
अपनाते ह, उनके हमायती और मददगार ताग़त ू [बढ़े हुए सरकश और
फ़साद ] ह, और वो उ ह रौशनी से अंधेर क तरफ़ खींच ले जाते ह। ये
आग म जानेवाले लोग ह, जहाँ ये हमेशा रहगे।

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