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Quran Ke Updesh, Hindi, by Dr. Najeeb Qasmi PDF
Quran Ke Updesh, Hindi, by Dr. Najeeb Qasmi PDF
क़ुरान के उपदे श
(सूरत अल-अलक़ से सूरत अल-नास तक
अं तम १९ सूरत क सं !"त तफ़सीर - वण'न)
www.najeebqasmi.com
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सभी अ धकार लेखक के लये सुर त ह।
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ु तक का नाम: क़ुरान के उपदे श
(सूरत अल-अलक़ से सूरत अल-नास तक अं तम १९ सूरत क सं !"त तफ़सीर)
प2
ु तक के लेखक: डा*टर मोह-मद नजीब क़ासमी संभल1
पहला 5हंद1 सं2करण: माच' २०१८
सं9या: ५०००
Published by:
Discover Publishing Ltd, Dublin, Ireland
ISBN: 9780995788506
http://www.najeebqasmi.com/
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Whatsapp: 00966508237446
2
Aवषय-सच
ू ी
C. Aवषय पेज नं
१ E2तावना: मोह8मद नजीब क़ासमी संभल9 ८
मुखबंध: हज़रत मौलाना अबल
ु क़ सम नोमानी -
२ ११
मोहत मम (कुलप>त) दा?ल उलूम दे वबंद
मुखबंध: हज़रत मौलाना मोह8मद ज़क5रBया संभल9 -
३ १३
शैख़-उल-Dद9E नदवातुल उलैमा, लखनऊ
मुखबंध: *ोफेसर डाJटर शफ क़ अहमद खां नदवी –
४ १५
पूवL अMय अरबी Nवभाग, जा मया मि.लया इ ला मया, Qद.ल9
५ Eारं =भक अGयाय १८
६ क़ुरान कर9म Jया है ? १९
७ वD9 ِ َوJया है ? १९
८ वD9 नािज़ल होने (उतरने) के कुछ तर9के (*कार) २०
९ क़ुरान कर9म के नािज़ल होने का सं Xत इ>तहास २१
१० क़ुरान कर9म के थोड़-थोड़ा नािज़ल होने का मक़सद २२
११ क़ुरान कर9म क Qहफाज़त (सुर ा) २४
हज़रत अबू बकर स[ीक़ (रिज़य.लाहु अ\हु) क
१२ २५
]खलाफत के काल म^ क़ुरान क Qहफाज़त
हज़रत उसमान गनी (रिज़य.लाहु
अ\हु) क
१३ २६
]खलाफत के काल म^ क़ुरान क Qहफाज़त
क़ुरान कर9म म^ अहकाम (आदे श_) क त`सील
१४ २८
(Nववरण) िज़a नह9 है
१५ क़ुरान कर9म से संबं धत जानकार9 ३२
१६ क़ुरान कर9म पढ़ने के फज़ाइल ३३
3
C. Aवषय पेज नं
१७ क़ुरान कर9म को समझ कर पढ़ना ३३
१८ क़ुरान कर9म के मज़ामीन (क़ुरान म^ Jया है ?) ३५
१९ क़ुरान कर9म और हम ३७
२० सूरह अल-अ़लक़ (इक़रा) क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ३९
२१ सबसे पहल9 वD9 ४०
२२ सूरह अल-क़K क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ४९
२३ क़ुरान कर9म का शबे क़e म^ नािज़ल होना ५०
२४ सूरह अलबिMयना क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ५४
२५ मुश5रक न-ए-मJका और अहल-ए-,कताब कौन थे? ५५
२६ सूरह अल-ज़लज़लाह क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ६४
एक Qदन ज़मीन अपने अ\दर के सभी इंसान_ और
२७ ६५
ख़ज़ान_ को बाहर >नकाल दे गी
एक Qदन इंसान_ के अfछे बुरे सभी कायg को ज़मीन
२८ ६७
बयान कर दे गी
२९ ज़लज़ले (भक
ू ं प) Jयँू आते ह? ७०
३० सूरह अल-आ5दयात क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ७३
३१ इ\सान अपने रब (अ.लाह) का बड़ा ना शुaा है ७४
३२ अ.लाह तआला का Nव भ\न चीज़_ क क़सम खाना ७६
३३ सूरह अल-क़ाOरया क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ८२
३४ एक Eूर पूर9 काएनात (द>ु नया) को ख़iम कर दे गा ८३
३५ क़यामत क होलनाक (भयानकता) ८४
३६ हज़रत इjाफ़ ल का सरू फंू कना ८७
4
C. Aवषय पेज नं
३७ सूरह अPतकासुर क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ९३
३८ Jया मरने के बाद कोई दस
ू र9 िज़\दगी है ? ९४
३९ क़यामत कब आएगी? ९५
४० Jया क़m म^ अज़ाब होता है ? ९६
४१ क़nm तान क िज़यारत ९९
४२ औरत^ क़nm तान Jय_ नह9ं जा सकतीं? ९९
४३ Jया मुदo सुनते भी ह? १००
४४ सूरह अल-अQ क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १०४
द>ु नया के नुक़सान से बचने और बड़ा लाभ *ाXत
४५ १०५
करने का क़ुरानी कानून
४६ सूरह अलहुमज़ा क सं !"त तफ़सीर (वण'न) ११३
चग
ु ल9, दोष लगाना, ताना मारना और दस
ू रे का माल
४७ ११४
हड़पना जह\नम म^ ले जाने वाले गुनाह (पाप) ह
४८ ग़ीबत Jया है ? ११५
४९ Jया माल का जमा करना गुनाह (पाप) है ? ११७
५० जह\नम Jया है ? ११८
५१ सूरतुल फ़ ल क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १२२
ख़ाना काबा से संबं धत ग़लत नीयत रखने वाले का
५२ १२३
अ\ज़ाम वह9 होगा जो अmहा के साथ हुआ था
५३ असहाबुल फ़ ल (हाथी वाल_) का वा,क़या (कहानी) १२३
५४ काबा शर9फ़ का >नमाLण १२९
५५ सूरह कुऱ ै श क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १३१
अ.लाह क इबादत करने वाल_ के लए अfछr रोज़ी,
५६ १३२
अमन और सुकून क िज़\दगी का वादा
5
C. Aवषय पेज नं
५७ सूरह अलमाऊन क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १३५
अ.लाह के हुक़ूक़ और ब\द_ के हुक़ूक़ क अदायगी
५८ १३६
क ख़ास ताक द
का,फ़र, मुना,फक़, मुश5रक, फ़ा सक़ और मो मन
५९ १३८
कौन?
आ]ख़रत म^ जज़ा (बदला) और सज़ा
६० १४०
और ज\नत ( वगL) या जह\नम (नरक) म^ *वेश
६१ यतीम_ का sयाल सबसे tयादा इ लाम म^ रखा गया है १४१
नमाज़ पढ़ने म^ सु ती करने वाल_ को जह\नम
६२ १४३
(नरक) म^ डाला जायेगा
६३ Qदखावा अfछे कायg क बबाLद9 का कारण है १४४
६४ सूरह अलकौसर क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १४७
कौसर ज\नत क एक नहर है , िजससे क़यामत के
६५ १४८
Qदन उ8मते मुह8मQदयह खूब पानी Nपये गी
६६ हुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का िज़a १४९
६७ हुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क न ल १५०
६८ होज़े कौसर Jया है ? १५२
६९ नमाज़़ पढ़ो और क़ुबाL
़ नी करो १५२
७० सूरह अलकाUफ़Vन क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १५५
७१ सूरह अWनQ क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १५९
सूरह अ\नj म^ नबी-ए-अकरम को अ.लाह के िज़a
७२ १६०
और इि तग़फ़ार करने क ताल9म
७३ सूरहतुXलहब (अलमसद) क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १६५
6
C. Aवषय पेज नं
नबी को तकाल9फ़ दे ने वाले अबू लहब और उसक
७४ १६५
पiनी का बुरा अ\जाम
७५ सूरतुल इख़लास क सं !"त तफ़सीर (वण'न) १७०
सूरह इख़लास म^ पूणL तौह9द और हर तरह के शकL
७६ १७१
से नफ़ है
सूरतुल इख़लास के कुछ फज़ाईल नबी अकरम
७७ १७५
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क ज़बानी
७८ सूरतुल इख़लास एक >तहाई क़ुरान के बराबर १७५
सूरतुल इख़लास क िज़यादा >तलावत करने वाला
७९ १७६
अ.लाह का अज़ीज
सूरतुल इख़लास से सfची मोहvबत करने वाला
८० १७७
ज\नत म^ जायेगा
सरू तल
ु इख़लास क >तलावत द>ु नयावी आफ़ात
८१ १७८
(परे शा>नय_) से Qहफ़ाजत (सुर ा) का ज़5रया
सूरह अल फ़लक़ और सूरह अWनास क सं !"त
८२ १८०
तफ़सीर (वण'न)
सूरह अल फ़लक़ और सूरह अ\नास के ज़5रए जाद ू
८३ १८१
और दस
ू र9 आफ़ात (मुसीबत_) से Qहफाज़त (सुर ा)
८४ Jया शैतान कोई अलग मख़लूक़ है ? १८३
८५ Jया जाद ू बरहक़ (सiय) है ? १८५
Jया नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर
८६ १८६
जाद ू हुआ था?
Jया दोन_ सरू त_ से द>ु नयावी और उख़रवी आफ़ात
८७ १८८
(परे शा>नय_) से Qहफाज़त (सरु ा) मुम,कन है ?
7
E2तावना
मोह-मद नजीब क़ासमी संभल1
क़ुरान-ए-कर9म अ.लाह तआला क ,कताब है , जो अ.लाह तआला ने
क़यामत तक आने वाले सभी िज\नात और इंसान_ के मागLदशLन के लए
Dज़रत इmाह9म अ़लQै ह सलाम और Dज़रत इ माईल अ़लQै ह सलाम क पीढ़9
(ख़ानदान) से ५७१ म^ मJका मक
ु रL मा म^ पैदा हुए अं>तम नबी Dज़रत
मोह8मद मु wफ़ा E.ल.लाहु अ़लQै ह वस.लम पर वD9 के ज़5रए उतार9।
रमज़ान के मह9ने क एक बरकत वाल9 रात “लायलातल
ु क़e” म^ अ.लाह
तआला ने “लौD-ए-मDफ़ूज़” (अ>त सरु त थान) से आसमान-ए-द>ु नया
पर क़ुरान-ए-कर9म उतारा और इसके बाद ज़?रत के अनस
ु ार थोड़ा थोड़ा
Dज़रत मोह8मद मु wफ़ा E.ल.लाहु अ़लQै हवस.लम पर उतरता रहा, और
६११ ई. से ६३४ ई. तक लगभग २३ वषL म^ क़ुरान-ए-कर9म परू ा उतरा।
अ.लाह क तरफ़ से नबी-ए-अकरम E.ल.लाहु अ़लQै हवस.लम को यह
िज़8मेदार9 स_पी गई ,क आप लोग_ के सामने अपनी क़ मती बात_ और
कायg से क़ुरान-ए-कर9म के आदे श और मसाइल प{ट तौर पर बयान कर^ ।
इस लए नबी-ए-अकरम E.ल.लाहु अ़लQै हवस.लम अ.लाह के आदे श के
अनस
ु ार EDाबा-ए-,कराम (रिज़य.लाहु अ़\हुम) को क़ुरान-ए-कर9म के अथL
क श ा ह9 नह9ं दे ते थे, बि.क उ\ह^ इसके शvद_ को भी याद कराते थे,
तथा क़ुरान-ए-कर9म क सरु ा के लए क़ुरान-ए-कर9म को लखवाने क भी
Nवशेष |यव था करते थे। इस लए आप E.ल.लाहु अ़लQै हवस.लम वD9
उतरने के बाद वD9 के लेखक_ को लखा Qदया करते थे।
यह मक़
ु [स ,कताब Dुज़ूर-ए-अकरम E.ल.लाहु अ़लQै हवस.लम के ज़माने से
लेकर रहती द>ु नया तक मागLदशLन बनी रहे गी, Jय,ूं क अ.लाह तआला ने
8
इस ,कताब क सरु ा अपने िज़8मे लेकर इसको सं Xत और संदभL
बनाया है ,क इमा>नयात (यक़ न), इबादात, लेनदे न, समािजक, आ थLक
और अथLशा } के >नयम क़ुरान-ए-कर9म म^ उ.लेख ह। हाँ! इनका Nववरण
नबी-ए-अकरम E.ल.लाहु अ़लQै ह वस.लम क क़ मती बात_ और अमल
(या>न Dाद9स_) म^ ह9 मौजद
ू ह।
मगर बहुत अफ़सोस और चंता क बात है ,क हमारा संबध
ं इस ,कताब से
रोज़ाना कम होता जा रहा है । यह ,कताब हमार9 मि जद_ और घर_ म^ बंद
होकर रह गई है , न >तलावत (पढ़ना) है , न सोच Nवचार है और न ह9
इसके अDकाम और मसाइल पर अ़मल। आज का मु लमान द>ु नया क
भाग दोड़ म^ इतना खो गया है ,क क़ुरान-ए-कर9म के अDकाम (आदे श)
और मसाइल को समझना तो अलग इसक >तलावत (पढ़ने) का भी समय
नह9ं है ।
क़ुरान-ए-कर9म क श ाओं को आम करने के लए नई टे Jनोलोजी से
लाभ उठाकर हर जुमा को % ऑनलाइन दसL-ए-क़ुरान और दसL-ए-Dद9E क
|यव था क गयी, िजसम^ २० मनट ऑनलाइन पाठ के बाद १० मनट का
समय *ƒन और उiतर के लए भी Qदया गया। ऑनलाइन Jलास_ क
वी„डयो को य…
ू यब
ू पर अपलोड करके उनको सोशल मी„डया पर शेयर भी
,कया गया। इस तरह अ.लाह क कृपा और उसक तौफ़ क़ से Nव भ\न
दे श_ से हज़ार_ लोग_ ने इन पाठक_ से लाभ उठाया, और यह सल सला
बराबर जार9 है ।
दसL-ए-क़ुरान के पहले चरण म^ क़ुरान-ए-कर9म क उन अं>तम सरू त_ (सरू ह
“अल अ़लक़” से सरू ह “अल नास” तक) क सं Xत त‡सीर बयान क गई
िजनको आम तौर पर मु लमान रोज़ाना पाँच समय क नमाज़_ म^ पढ़ते
ह।
9
सामा\य लाभ के लए दˆ
ु स-ए-क़ुरान और दˆ
ु स-ए-Dद9E को तीन भाषाओ‰
(उदL ,ू Qहंद9 और अंŠेज़ी) म^ तौफ़ क़-ए-इलाह9 और एक अहल-ए-ख़ैर क
सहायता से आम लोग_ Nवशेषकर कूल म^ पढ़ने वाले छा} और छा}ाओं
को % बाँटने के लए *का शत कर रहे ह, ता,क द9नी जानकार9 दे ने के
साथ बfच_ और बिfचय_ क ED9 तरnबयत (* श ण) भी हो सके। सभी
सबक़ हमार9 वेबसाइट (www.najeebqasmi.com) और हमार9 मोबाइल
ऐप (Deen-e-Islam) पर भी अपलोड कर Qदए गए ह। ,कताब_ क भषाओं
के NवशेषŒ_ से संपादन भी कराया गया। Qहंद9 के अनव
ु ाद म^ इस बात का
Nवशेष Mयान रखा गया है ,क अनव
ु ाद समा\य भाषा म^ हो, ता,क हर आम
और ख़ास के लए फ़ायदा उठाना आसान हो। अंŠेज़ी ,कताब_ को वैिƒवक
तर पर पेश करने का *यास ,कया गया है ता,क द>ु नया के पव
ू L और
पिƒचम म^ इस से लाभ उठाया जा सके।
अंत म^ अ.लाह तआला से दआ
ु करता हूँ ,क इन सेवाओं को वीकृ>त और
लोकN*यता से नवाज़ कर मझ
ु े और इन छह ,कताब_ के *काशन म^ िजस
|यिJत ने िजस तरह का भी सहयोग Qदया सभी को बड़ा अ• (बदला)
अता फ़रमाए। तथा Dज़रत मौलाना म‡
ु ती अबल
ु क़ा सम नौमानी साहब,
Dज़रत मौलाना मौह8मद ज़क5रBया संभल9 साहब और *ोफ़ेसर डाJटर
शफ़ क़ अहमद ख़ान नदवी साहब का शa
ु गज़
ु ार (आभार9) हूँ ,क उ\ह_ने
अपनी |य तगी के बावजद
ू मेर9 इन ,कताब_ को पढ़कर मख
ु बंध लखा।
श ा NवशेषŒ और मशहूर |यापार9 जनाब डॉJटर नद9म तर9न साहब और
जनाब डॉJटर शफ़ाअत.
ु लाह खान साहब क द>ु नया और आखरत क
कामयाबी के लए Nवशेषकर दआ
ु करता हूँ िजनके योगदान से तीन भाषाओ‰
म^ छह ,कताब_ के *काशन का या *ोजेJट (प5रयोजना) परू ा हुआ है ।
मोह8मद नजीब क़ासमी संभल9 (5रयाद), ३० जनवर9 २०१८
10
मुखबंध
हज़रत मौलाना अबुल क़=सम नोमानी jाkब
मोहत=मम (कुलप त) दाlल उलूम दे वबंद
11
तथा Dज के बारे म^ मागLदशLन (गाइड) के लए उदL ,ू Qहंद9 और अंŠेज़ी
म^ एक थायी ऐप (Hajj-e-Mabroor) इस Nवषय पर सेवा म^ लगी
हुई है । इसी के साथ मौलाना ने ऑनलाइन दˆ
ु स-ए-क़ुरान (क़ुरान के
पाठ) और दˆ
ु स-ए-Dद9E (Dद9E के पाठ) क ‘ंख
ृ ला शˆ
ु ,कया हुआ
है , िजससे Nव भ\न दे शो के लोग लाभ उठा रहे ह, तथा सोशल
मी„डया के ज़5रए यह दˆ
ु स (पाठ) लोग_ के पास बराबर पहुँचते रहते
ह।
यह बहुत ख़श
ु ी क बात है ,क इन दोन_ दˆ
ु स (पाठक_) का पहला
मजमूआ़ (संŠह) उदL ,ू Qहंद9 और अंŠेज़ी तीन_ भाषाओं म^ बड़ी सं#या
म^ *का शत होने वाला है । ब\दे ने दोन_ दˆ
ु स (पाठक_) पर नज़र
डाल9 और इनको उ8मत के लए बहुत ह9 फ़ायदे मंद पाया। भाषा और
अ\दाज़-ए-बयान आसान और आकषLक है । अ.लाह तआला इस
सल सले (‘ख
ंृ ला) को बाक़ रखने और अ धक वुसअत (Nव तार) क
तौफ़ क़ अता फ़रमाए और उ8मत को फ़ायदा Dा Eल करने का मौक़ा
अता फ़रमाए। आमीन
12
मुखबंध
हज़रत मौलाना मोह-मद ज़कOरMया संभल1 jाkब
शैख़-उल-kद1j नदवातुल उलैमा, लखनऊ
14
मुखबंध
Eोफ़ेसर डा*टर शफ़ क़ अkमद ख़ान नदवी jाkब
पूव' अGय! अरबी Aवभाग, जा=मया =मिXलया इ2ला=मया, 5दXल1
15
ह। अ.लाह तआ़ला के डर और आ]ख़रत क चंता पैदा होती है ।
अ.लाह के Dुक़ूक़ (अ धकार) और इंसान_ के Dुक़ूक़ (अ धकार) के
ऐह>तमाम (|यव था) के साथ साथ परू 9 इंसा>नयत और अ.लाह क
मख़लक़
ू के लए दया का जुनून उiतेिजत (बेदार) होता है , और Qदल_
का मैल कुचैल (ग\दगी) और ज़ंग भी साफ़ होता है , जैसा ,क
अ.लाह के रसल
ू E.ल.लाहु अ़लैQह वस.लम ने फ़रमाया है के क़ुरान
क >तलावत (पढ़ने) से Qदल_ क ज़ंग क सफाई होती हे ।
दख
ु क बात यह है ,क आ़मwौर पर क़ुरान-ए-कर9म को समझबझ
ू
(सोच Nवचार) के बग़ैर पढ़ा जाता है । बारगाह-ए-रब (अ.लाह के
दरबार) के सामने इबादत_ म^ लोग Jया पढ़ते ह? Jया कहते ह?
और Jया मांगते ह? इसके अथL से अनजान ह। ,कसी ग़ैर मिु लम
ने मुसलमान_ को नमाज़ पढ़ते दे खा तो पुछा, आप अपनी नमाज़_ म^
Jया कहते ह? अपने रब क इबादत करते ह तो Jया मांगते ह?
उiतर मला पढ़ने को तो हम यह पढ़ते ह ले,कन इसका अथL मालूम
नह9ं। इमाम साहब से पुछा गया तो उ\ह_ने भी माफ़ चाह9। ग़ैर
मुि लम Dैरान रह गया। उसने कहा: आप अपनी इबादत_ म^ सूरत^
पढ़ते ह, दआ
ु एँ करते ह, मुनाजात करते ह और कुछ मांगते ह, और
आपको इसका अथL मालूम नह9ं? Dैरत और अफ़सोस क बात है ।
17
Eारं =भक अGयाय:
18
क़ुरान कर1म *या है ?
क़ुरान कर9म अ.लाह तआला का वह पNव} कलाम है जो इंसान_ क
Qहदायत के लए खा लके कायनात (संसार के बनाने वाले) ने अपने
आखर9 रसूल हुजूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर नािज़ल
फरमाया। अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म क सुर ा खद ु अपने
िज़8मे ल9 जैसा ,क अ.लाह तआला का फैसला क़ुरान कर9म म^
मौजूद है (सूरह अलQहजर आयत ९) ‘‘यह िज़C (यानी क़ुरान) हमने
ह1 उतारा है और हम ह1 इसक 5हफाज़त करने वाले हw”
क़ुरान कर9म आखर9 आसमानी ,कताब है जो क़यामत तक लोग_ क
रहनुमाई करती रहे गी। इसके Nवपर9त पहल9 आसमानी ,कताब_ के,
वह खास कौम_ और खास ज़मान_ के लए थीं। इसी लए अ.लाह
तआला ने इन को क़यामत तक महफूज़ रखने क कोई ज़मानत नह9ं
द9 थी ले,कन अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म क सुर ा खुद अपने
िज़8मे ल9 है ।
वk1 ِ َو: क़ुरान कर9म च,ूं क हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम पर वD9 के ज़5रया नािज़ल ,कया गया है , इस लए सबसे
पहले वD9 के बारे म^ जान^ । वD9 वह कलाम है जो अ.लाह तआला
हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम के वा ते या nबला वा ते अपने
नnबय_ पर नािज़ल (उतारता) फरमाता है , िजसके ज5रया अ.लाह
तआला इंसान को दन
ु यावी िज़ंदगी गुज़ारने का तर9का बतलाता है
ता,क लोग उसके बतलाए हुए तर9के पर दन
ु यावी िज़ंदगी गुज़ार कर
जह\नम से बच कर हमेशा के लए ज\नत म^ दा]खल हो जाएं।
इंसान तीन ज़राए (सू}_) म^ से ,कसी एक ज़5रया (jोत) से Œान
*ाXत करता है । एक इंसान के इि\eयां यानी आँख, कान, मुंह और
19
हाथ पांव, दस
ू रा ज़5रया अक़ल और >तसरा ज़5रया वD9 है । इंसान को
बहुत सी बात^ अपने हवास (Sence) के ज़5रया मालूम हो जाती है
जब,क बहुत सी अक़ल के ज़5रया और जो बात^ उन दोन_ ज़राए से
मालूम नह9ं हो सकतीं उनका इ.म वD9 के ज़5रया अता ,कया जाता
है । हवास और अक़ल के ज़5रया *ाXत Œान म^ गलती क संभावना
होती है ले,कन वD9 के ज़5रया *ाXत Œान म^ गलती के इमकान
nब.कुल नह9ं होते Jय_,क यह इ.म खा लके कायनात क जा>नब से
नnबय_ के ज़5रया से इंसान_ को पहुंचता है । गरज़ (अथाLत) ये ,क
वD9 इंसान के लए वह उfचतम ज़5रया इ.म है जो उसे उसक
िजंदगी से मुतअि.लक उन सवालात का जवाब मुहैया करता है जो
अक़ल और हवास (इि\eयां) के ज़5रया हल नह9ं हो सकते। यानी
सफL अक़ल और मुशाQहदा (अवलोकन) इंसान क रहनुमाई के लए
काफ नह9ं है बि.क उसक Qहदायत के लए वD9-ए-इलाह9 एक
नागुज़ीर (अप5रहायL) जˆरत है । च,ूं क वD9 अक़ल और मुशाQहदा से
बढ़कर इ.म है लहाज़ा जˆर9 नह9ं ,क वD9 क हर बात अक़ल से
समझी जा सके।
वk1 नािज़ल होने (उतरने) के कुछ तर1के (Eकार)
हुजूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर Nव भ\न *कार से वD9
नािज़ल होती थी।
1) घंट9 क सी आवाज़ सुनाई दे ती और आवाज़ ने जो कुछ कहा
होता वह हुजरू अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को याद हो
जाता। जब इस तर9का पर वD9 नािज़ल होती थी तो आप पर
बहुत ›यादा बोझ पड़ता था।
2) फ5रशता ,कसी इंसानी शकल म^ आप स.ल.लाहु अलैQह
20
वस.लम के पास आता और अ.लाह तआला का पैगाम पहुंचा
दे ता। ऐसे अवसर पर हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम मशहुर
सहाबी हज़रत दQहया क.बी (रिज़य.लाहु अ\हु) क सूरत म^
तशर9फ लाया करते थे (*कट हुआ करते थे)।
3) हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम अपनी असल सूरत म^ तशर9फ
लाते थे, आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क उž म^ सफL तीन
बार ऐसा हुआ है । एक नुबुवत के nब.कुल इिvतदाई दौर
(आरं भक समय) म^ दस
ू र9 बार खद
ु हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम ने हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम से उनक
असल सुरत म^ दे खने क इfछा ज़ाQहर फरमाई थी और तीसर9
बार मेराज के मौक़ा पर।
4) nबला वा ता अ.लाह तआला से हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम क बातचीत हुई। यह सफL एक बार मेराज के समय
हुआ। नमाज़ क फज़’यत (अ>नवायLता) इसी मौक़ा पर हुई।
5) हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
के सामने आए बेगैर आप के सीने म^ डाल दे ते थे।
क़ुरान कर1म के नािज़ल होने का सं !"त इ तहास:
माहे रमज़ान क एक बरकत वाल9 रात “लैलतुलकदर” म^ अ.लाह
तआला ने लौहे महफूज़ (अ>त सुर त थान) से समा-ए-द>ु नया
(संसार से क़र9ब आसमान) पर क़ुरान कर9म नािज़ल फरमाया और
उसके बाद आवƒयकता अनसु ार थोड़ा-थोड़ा हुजरू ़ अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम पर नािज़ल होता रहा और तकर9बन २३ साल म^
क़ुरान कर9म पण
ू L नािज़ल हुआ। क़ुरान कर9म का नज़
ु ल
ू उस समय
शˆु हुआ जब आप क उž चाल9स साल थी। क़ुरान कर9म क सबसे
21
पहल9 जो आयत^ गारे (गुफा) Qहरा म^ उतर9ं वह सूरह अल-अ़लक़ क
आरं भक आयात ह। ‘‘पढ़ो अपने उस परवर5दगार के नाम से िजस ने
पैदा Uकया, िजसने इंसान को जमे हुए खनू से पैदा Uकया, पढ़ो और
तु-हारा परवर5दगार सबसे {यादा कर1म है ”
इस पहल9 वD9 के नुजल
ू ़ के बाद तीन साल तक वD9 का नुज़ूल ब\द
रहा। तीन साल के बाद वह9 फ5रशता जो गारे Qहरा म^ आया था आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के पास आया और सूरह अलमुदि सर
क आरं भक कुछ आयात आप पर नािज़ल फरमा¡। ‘‘ऐ कपड़े मu
=लपटने वाले उठो और लोग को खबरदार करो और अपने
परवर5दगार क बड़ाई बयान करो और अपने कपड़ को पाक रखो
और गंदगी से Uकनारा कर लो”
इसके बाद आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क वफात (अं>तम
समय) तक वD9 का सल सला जार9 रहा। क़ुरान कर9म का सबसे
छोटा भाग जो मुसत,कल नािज़ल हुआ वह (अन >नसा आयत ९५)
है , जो एक ल8बे आयत का टुकड़ा है । दस
ू र9 तरफ परू 9 सूरतुल इनाम
एक ह9 बार म^ नािज़ल हुई है । गरज़ ये ,क तकर9बन २३ साल के
अंतराल म^ क़ुरान कर9म परू ा नािज़ल हुआ।
क़ुरान कर1म के थोड़-थोड़ा नािज़ल होने का मक़सद
(उ•े‚य):
दस
ू र9 आसमानी ,कताब_ के बर]खलाफ क़ुरान कर9म को एक दफा
नािज़ल करने के बजाए थोड़ा-थोड़ा नािज़ल ,कया गया। इसका कारण
खद
ु अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म म^ मुशरे क न मJका के जवाब
म^ इन शvद_ म^ बताया है ।
‘‘और यह काUफर लोग कहते हw Uक इन पर सारा क़ुरान एक ह1 दफा
22
मu *य नािज़ल नह1ं कर 5दया गया? (ऐ पैग-बर) हमने ऐसा इस
=लए नह1ं Uकया ताUक इसके जOरये तु-हारा 5दल मज़बूत रखu और
हमने इसे ठहर ठहर कर पढ़वाया है और जब कभी यह लोग तु-हारे
पास कोई अनोखी बात लेकर आते हw, हम तु-हu (इसका) ठƒक ठƒक
जवाब और {यादा वज़ाहत (Aव2तार) के साथ अता कर दे ते हw।”
(सूरतुल फुरक़ान आयत ३२, ३३)
इमाम राज़ी (रहमतु.लाह अलैह) ने इस आयत क तफसीर म^ क़ुरान
कर9म के थोड़ा थोड़ा नािज़ल होने क जो Qहकमत^ बयान फरमाई ह,
उनका खल
ु ासा यह है ।
1) हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम उ8मी थे (उ\ह_ने ,कसी
से लखना पढ़ना नह9 सीखा था), इस लए अगर सारा क़ुरान एक
बार नािज़ल हो गया होता तो इसका याद रखना दभ
ू र हो जाता।
2) अगर पूरा क़ुरान एक दफा म^ नािज़ल हो जाता तो तमाम
अहकाम_ (आदे श_) क पाबंद9 फ़ौरन ज़ˆर9 हो जाती और यह उस
फैसले के ]खलाफ होता जो शर9अत मोह8मद9 म^ मतलूब है ।
3) हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को अपनी क़ौम क
तरफ से हर रोज़ नई कQठनाइयां उठानी पड़ती थी, हज़रत
िजबरईल अलैQह सलाम का बार बार क़ुरान कर9म लेकर आना इन
कQठनाइय_ और तकल9फ_ के मक़
ु ाबले को आसान बना दे ता था,
और आप क शिJत का कारण बनता था।
4) क़ुरान कर9म का एक भाग लोग_ के सवालात के जवाब और
Nव भ\न घटनाओं पर आधा5रत है , इस लए इन आयत_ का
नुज़ूल इसी समय मुना सब था िजस समय वह सवालात ,कए गए
या वह वाक़यात पेश आए (घटनाएं हु¡)।
23
क़ुरान कर1म क सरु !ा:
जैसा ,क िज़a ,कया गया ,क क़ुरान कर9म एक ह9 दफा म^ नािज़ल
नह9ं हुआ बि.क ज़ˆरत और हालात के इ>तबार से Nव भ\न आयात
नािज़ल होती रह9ं। क़ुरान कर9म क Qहफाज़त के लए सबसे पहले
क़ुरान को ज़बानी याद करने पर ज़ोर Qदया गया। इस लए हुज़ूर
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम शvद_ को उसी समय दोहराने
लगते थे ता,क वह अfछr तरह याद हो जाऐं। इस पर अ.लाह
तआला क जा>नब से वD9 नािज़ल हुई ,क उ\ह^ वD9 नािज़ल होने के
समय ज.द9 ज.द9 शvद_ को दौहराने (पढ़ने) क ज़ˆरत नह9ं है
बि.क अ.लाह तआला खद
ु आप म^ ऐसा हाफज़ा पैदा फरमा दे गा ,क
एक बार वD9 नािज़ल होने के बाद आप उसे भूल नह9ं सक^गे। इस
़
तरह हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पहले हा,फजे क़ुरान
ह। चन
ु ांचे हर साल रमज़ान के मह9ने म^ आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम हज़रत िजबरईल अलैQह सलाम के साथ क़ुरान के नािज़ल
होए Qह स_ का दौर फरमाया करते थे। िजस साल आप का इं>तकाल
हुआ उस साल आपने दो बार क़ुरान कर9म का दौर फरमाया। ,फर
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम सहाबा-ए-कराम को क़ुरान क
ताल9म ह9 नह9ं दे ते थे बि.क उसके शvद_ को भी याद कराते थे।
खद
ु सहाबा-ए-कराम को क़ुरान कर9म याद करने का इतना शौक था
,क हर |यिJत एक दस
ू रे से आगे बढ़ने क ,फa म^ रहता था।
चन
ु ांचे हमेशा सहाबा-ए-कराम म^ एक अfछr खासी जमाअत एसी
रहती जो क़ुरान क आयात को याद कर लेती और रात_ को नमाज़
म^ उसे दोहराती थी। गरज़ ये ,क क़ुरान कर9म क Qहफाज़त के लए
सबसे पहले क़ुरान को याद करने पर ज़ोर Qदया गया और उस समय
24
के लहाज़ से यह9 तर9का ›यादा महफूज़ और काnबले इ>तमाद था।
क़ुरान कर9म क Qहफाज़त के लए हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने क़ुरान कर9म को लखवाने क भी Nवशेष |यव था क ,
चन
ु ांचे वD9 के नािज़ल हे ने के बाद आप वD9 लखने वाल_ को
लखवा Qदया करते थे। हुजूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का
मामूल यह था ,क जब क़ुरान कर9म का कोई भाग नािज़ल होता तो
आप वD9 लखने वाल_ को को यह Qहदायत फरमाते थे ,क इसे उस
सूरत म^ उस आयत के बाद लखा जाए। उस ज़माने म^ कागज़ नह9ं
थे इस लए यह कुरानी आयात अ धकतर पiथर क सल_, चमड़^ के
पारच_, खजूर क शाखाओं, बांस के टुकड़_, पेड़ के पiत_ और जानवर
क ह„डडय_ पर लखी जाती थीं। वD9 लखने वाल_ म^ हज़रत जैद
nबन साnबत, खल
ु फाए रा शद9न, हज़रत ओबय nबन काब, हज़रत
ज़ुबैर nबन अ|वाम और हज़रत मआNवया रिज़य.लाहु अ\हुम के नाम
खास तौर पर िज़a ,कए जाते ह।
हज़रत अबू बकर =स•ीक़ (रिज़यXलाहु अWहु) क „खलाफत के काल
मu क़ुरान क 5हफाज़त (सुर!ा):
हज़रत अबू बकर स[ीक के काल म^ जब जंगे यमामा के दौरान
हु`फाज़े क़ुरान क एक बड़ी जमाअत शह9द हो गई तो हज़रत उमर
फाˆक (रिज़य.लाहु अ\हु) ने हज़रत अबू बकर स[ीक को क़ुरान
कर9म को एक जगह जमा करवाने का मशNवरा Qदया। हज़रत अबू
बकर स[ीक शˆ
ु म^ इस काम के लए तैयार नह9ं थे ले,कन बाद म^
वह भी इस बड़े काम के लए तैयार हो गए और वD9 लखने वाले
हज़रत जैद nबन साnबत को इस अहम और बड़े काम का िज़8मेदार
बनाया। इस तरह क़ुरान कर9म को एक जगह जमा करने का अहम
25
काम शुˆ हो गया।
हज़रत ज़ैद nबन साnबत खद
ु का>तबे वD9 होने के साथ पूरे क़ुरान
कर9म के हा,फज़ थे। वह अपनी याददाशत से भी पूरा क़ुरान लख
सकते थे, उनके अलावा उस समय क़ुरान कर9म के सैकड़_ हा,फज़
मौजूद थे मगर उ\ह_ने इह>तयात के पेशन
े ज़र सफL एक तर9क़े पर
बस नह9ं ,कया बि.क उन तमाम ज़राये (jोत) से एक साथ काम
लेकर उस समय तक कोई आयत क़ुरान म^ नह9ं लखी जब तक ,क
उसके मुतवा>तर (िजसको बहुत िज़यादा लोग_ ने 5रवायत ,कया) होने
क लखी हुई और ज़बानी शहादत^ नह9ं मल ग¡। इसके अलावा
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने क़ुरान क जो आयात
अपनी >नगरानी म^ लखवाई थीं वह अनेक सहाबा-ए-कराम के पास
महफूज़ थीं, हज़रत ज़ैद nबन साnबत ने उ\ह^ जमा ,कया ता,क नया
नुसखा उ\ह9 से नक़ल ,कया जाए, इस तरह पहले खल9फा हज़रत
अबू बकर स[ीक के अहदे ]खलाफत (काल) म^ क़ुरान कर9म एक
जगह जमा कर Qदया गया।
हज़रत उसमान गनी (रिज़यXलाहु अWहु) क „खलाफत के काल मu
क़ुरान क 5हफाज़त (सुर!ा):
जब हज़रत उसमान खल9फा बने तो इ लाम अरब से >नकल कर दरू
दराज़ गैर अरबी इलाक_ तक फैल गया था। हर नए इलाके के लोग
उन सहाबा और ताबेईन से क़ुरान सीखते िजनक बदौलत उ\ह^
इ लाम क नेमत *ाXत हुई थी। सहाबा-ए-कराम ने क़ुरान कर9म
हुज़रू अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से Nव भ\न ,करात_ के
मुताnबक सखा था। इस लए हर सहाबी ने अपने शा गदL को इसी
,करात के अनुसार क़ुरान पढ़ाया िजसके अनुसार खद
ु उ\ह_ने हुज़ूर
26
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से पढ़ा था। इस तरह ,करात_
का यह इि#तलाफ (अंतर) दरू दराज म.
ु क_ तक पहुंच गया। लोग_ ने
अपनी ,करात को हक और दस
ू र9 ,करात_ को गलत समझना शुˆ
कर Qदया, हालां,क अ.लाह तआला ह9 क तरफ से इजाज़त है ,क
Nव भ\न ,करात_ म^ क़ुरान को पढ़ा जाए। हज़रत उसमान गनी ने
हज़रत हफसा के पास पैगाम भेजा ,क उनके पास (हज़रत अबू बकर
स[ीक के तैयार कराए हुए) जो सह9फे मौजूद ह वह हमारे पास भेज
द^ । चन
ु ांचे हज़रत जैद nबन साnबत क सरपर ती म^ एक कमेट9 का
गठन करके उनको िज़8मेदार9 द9 गयी ,क वह हज़रत अबू बकर
स[ीक के सह9फे से नक़ल करके क़ुरान कर9म के चंद ऐसे नुसखे
तैयार कर^ िजनम^ सरू त_ को भी तरतीब Qदया गया हो। चन
ु ांचे क़ुरान
कर9म के चंद नुसखे तैयार हुए और उनको Nव भ\न जगह_ पर भेज
Qदया गया ता,क उसी के मुताnबक नुसखे तैयार करके तकसीम कर
Qदए जाए। इस तरह उ8मते मुि लमा म^ इख>तलाफ बाक न रहा
और पूर9 उ8मते मुि लमा इसी नुसखे के मत
ु ाnबक क़ुरान कर9म
पढ़ने लगी। बाद म^ लोग_ क आसानी के लए क़ुरान कर9म पर
नक
ु ते और हरकात (ज़बर, ज़ेर और पेश) भी लगाए गऐं। इसी तरह
बfच_ को पढ़ाने क आसानी के लए क़ुरान कर9म को तीस पार_ म^
तकसीम ,कया गया। नमाज़ म^ क़ुरान कर9म क >तलावत क
आसानी के लए ?कु क तरतीब भी रखी गई।
अ.लाह तआला हम^ इह>तमाम से क़ुरान कर9म क >तलावत करने
वाला बनाए, उसको समझ कर पढ़ने वाला बनाए, उसके अहकाम
और मसाएल पर अमल करने वाला बनाए और उसके पैगाम को
दस
ू र_ तक पहुंचाने वाला बनाए। आमीन
27
क़ुरान कर1म मu अहकाम क त…सील िज़C नह1 है :
क़ुरान कर9म म^ आम तौर पर अहकाम (आदे श) का Nववरण िज़a
नह9ं है यहां तक ,क इ लाम के मल
ू तंभ: नमाज़, रोज़ा, ज़कात
और हज के अहकाम भी क़ुरान कर9म म^ तफसील के साथ िज़a
नह9ं ह। नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने अ.लाह तआला
के हुकुम के मुताnबक अपनी क़ मती बात_ और अपने अमल से उन
अहकाम क तफसील बयान क है । अ.लाह तआला इसी लए नबी
और ˆसूल भेजता है ता,क वह अ.लाह तआला के अहकाम अपनी
क़ मती बात_ और अपने अमल से लोग_ के लए बयान कर^ । मसलन
अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म म^ Nव भ\न मक़ामात पर नमाज़
पढ़ने, ?कू करने और सजदा करने का हुकुम Qदया है ले,कन नमाज़
क तफसील क़ुरान कर9म म^ िज़a नह9ं है ,क एक Qदन म^ ,कतनी
नमाज़^ अदा करनी ह? क़याम या ?कू या सजदा कैसे ,कया जाएगा
और कब ,कया जाएगा? और इसम^ Jया पढ़ा जाएगा? एक समय म^
,कतनी रकात अदा करनी ह? इसी तरह क़ुरान कर9म म^ ज़कात क
अदाएगी का तो हुकुम है ले,कन तफसीलात के बारे िजa नह9ं ह ,क
ज़कात क अदाएगी रोज़ाना करनी है या साल भर म^ या पांच साल
म^ या िजंदगी म^ एक बार? ,फर यह ज़कात ,कस Qहसाब से द9
जाएगी? ,कस माल पर ज़कात अ>नवायL है और उसके लए Jया
Jया >नयम ह? गरज़ ये ,क अगर हद9स को कुराम क पहल9 अहम
और बु>नयाद9 तफसीर मानने से इंकार कर^ तो क़ुरान कर9म क वह
सैकड़_ आयात िजनम^ नमाज़ पढ़ने, रोज़ा रखने, ज़कात और हज क
अदाएगी का हुकुम है वह सब (अ.लाह क पनाह) बेमाना हो जाएंगी।
इसी तरह क़ुरान कर9म (सूरह अलमाइदा ३८) म^ हुकुम है ,क चोर9
28
करने वाले आदमी और औरत के हाथ काट Qदया जाए। अब सवाल
पैदा होता है ,क दोन_ हाथ काट^ या एक हाथ? और अगर एक हाथ
काट^ तो दQहना काट^ या बाँया? ,फर उसे काटे तो कहां से? बगल से
या कोहनी से या कलाई से? या इनके बीच म^ ,कसी जगह से? ,फर
,कतने माल क क़ मत क चोर9 पर हाथ काट^ ? इस मसअला क
मुक8मल वज़ाहत (पूणL Nववरण) हद9स म^ ह9 मलती है , मालूम हुआ
,क क़ुरान कर9म को हद9स के बेगैर नह9ं समझा जा सकता।
इसी तरह क़ुरान कर9म (सूरह अलजुमा) म^ इरशाद है ,क जब जुमा
क नमाज़ के लए पुकारा जाए तो अ.लाह के िज़a क तरफ दौड़ो
और |यापार छोड़ दो। सवाल यह है ,क जुमा का Qदन कौन-सा है ?
यह आज़ान कब द9 जाए? उसके शvद Jया ह_? जुमा क नमाज़ कब
अदा क जाए? इस को कैसे पढ़^ ? |यापार क Jया Jया >नयम ह?
इस मसअला क मुक8मल वज़ाहत हद9स_ म^ ह9 िज़a ह।
नुज़ूले क़ुरान क ि थ>त का बयान, Nव भ\न सूरत_ और आयात के
पढ़ने क खास फज़ीलत का िज़a, आयात का शाने नुजूल, क़ुरान
कर9म म^ मज़कूर नnबय_ और उनक उ8मत_ के वाक़यात क
तफसील, इसी तरह क़ुरान क Qहफाज़त के मराQहल (चरण_) का
बयान हद9स_ म^ ह9 तो है इस लए हद9स के बेगैर क़ुरान कर9म को
कैसे समझा जा सकता है ?
एक 2प†ट1करण: अ.लाह तआला ने हम^ क़ुरान कर9म म^ तदvबुर
और तफJकुर (सोच Nवचार) करने का हुकुम Qदया है मगर यह
तदvबुर और तफJकुर पहले मुफि सर हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम क बात_ और अमल क रौशनी म^ ह9 होना चाQहए
Jय_,क अ.लाह तआला ह9 ने बहुत सी जगह_ पर इरशाद फरमाया है
,क ऐ नबी! यह ,कताब हमन^ आप पर नािज़ल फरमाई है ता,क आप
29
इस कलाम को खोल खोल कर लोग_ के लए बयान कर द^ और
हमारा यह ईमान है ,क नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
अपनी इस िज8मेदार9 को बखबु ी अंजाम Qदया। ले,कन कुछ हज़रात
क़ुरान कर9म क तफसीर म^ नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
के अक़वाल और इरशादात को कमज़ोर करार दे कर अपनी राय
थोपना शुˆ कर दे ते ह जो ,क सरासर गलत है । यक नन हम^ क़ुरान
कर9म को समझ कर पढ़ना चाQहए Jय_,क यह ,कताब हमार9
Qहदायत और रहनुमाई के लए अ.लाह तआला ने नािज़ल फरमाई
है । और नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने क़ुरान कर9म के
अहकाम खोल खोल कर बयान फरमा Qदए ह ले,कन हमारे लए
जˆर9 है ,क िजन मसाएल म^ भी नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम के अक़वाल या आमाल से रहनुमाई मल सकती है चाहे
हद9स क सनद म^ थोड़ी कमज़ोर9 भी हो। इन मसाएल म^ अपने
इज>तहाद और क़यास और अपने अ¢ल9 घोड़े दौड़ाने के बजाए नबी
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के अक़वाल और आमाल के
मुताnबक ह9 अमल कर^ । नए नए मसाएल के हल के लए क़ुरान
कर9म म^ तदvबुर और तफJकुर (सोच Nवचार) और हद9स नबवी के
ज़खीरा म^ गोता अंदोज़ी जˆर कर^ मगर क़ुरान और हद9स को एक
तरफ रख कर नह9ं बि.क क़ुरान और हद9स क रौशनी ह9 म^ ।
एक संदेह: कुछ हज़रात क़ुरान कर9म क चंद आयात से गलत
मफहूम लेकर यह बयान करने क को शश करते ह ,क क़ुरान कर9म
म^ हर मसअला का हल है और क़ुरान कर9म को समझने के लए
हद9स क कोई खास जˆरत नह9ं है । हालां,क हद9स भी क़ुरान कर9म
क तरह शर9अते इ ला मया म^ दल9ल (तकL) है , जैसा ,क अ.लाह
तआला ने अपने क़ुरान कर9म म^ बहुत सी जगह_ पर पण
ू L Nववरण के
30
साथ िज़a ,कया है । तथा क़ुरान कर9म म^ यह कह9ं नह9 कहा है ,क
जो क़ुरान म^ हो बस उसी पर अमल करना लािजम
़ है बि.क क़ुरान
कर9म म^ अ.लाह तआला ने सैकड़_ आयात म^ ‘‘अXलाह और अXलाह
के रसूल क इताअत” का हुकुम Qदया है , बि.क रसूलु.लाह
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क इताअत को अपनी इताअत करार
Qदया है । अगर क़ुरान कर9म ह9 हमारे लए काफ है तो ,फर अ.लाह
तआला ने क़ुरान कर9म म^ जगह जगह रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम क इताअत का हुकुम Jय_ Qदया है ?
दोसरा संदेह: कुछ हज़रात सनद हद9स क बु>नयाद पर हुई हद9स_
क ,क़ म^ या राNवय_ को सकह (भरोसेमंद) करार दे ने म^ मुह[ेसीन
और फुकहा के इि#तलाफ (मतभेद) क वजह से हद9स को ह9 शक
और शुबहा (संदेह) क >नगाह से दे खते ह हालां,क उ\ह^ मालूम होना
चाQहए ,क अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म को क़यामत तक आने
वाले तमाम अरब और गैर अरब क रहनुमाई के लए अपने आखर9
रसूल स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर नािज़ल फरमाया और क़यामत
तक उसक Qहफाज़त का वादा ,कया है । और इसी क़ुरान कर9म म^
अ.लाह तआला ने बहुत सी जगह_ पर इरशाद फरमाया है ,क ऐ
नबी! यह ,कताब हमने आप पर नािज़ल फरमाई है ता,क आप इस
कलाम को खोल खोल कर लोग_ के लए बयान कर द^ । तो िजस
तरह अ.लाह तआला ने क़ुरान कर9म के शvद_ क Qहफाज़त क है ,
उसके मानी और मतलब जो नबी अकरम स.ल.लाहु अलैहे वस.लम
ने बयान फरमाए ह वह भी कयामत तक महफूज़ रह^ गे, इंशाअ.लाह।
क़ुरान कर9म के शvद_ के साथ उसके मानी और मतलब क Qहफाज़त
भी मतलूब है वरना नुज़ल
ू े क़ुरान का उ[ेƒय ह9 ख़तम हो जायेगा।
31
क़ुरान कर1म से संबंtधत जानकार1:
मनिजलu : क़ुरान कर9म म^ ७ मंिजल^
़ ह। यह मंिजल^
़ इस लए
>नरधा5रत क गई ह ता,क जो लोग एक सXताह म^ खiम क़ुरान
कर9म करना चाह^ तो वह रोज़ाना एक मंिजल
़ >तलावत फरमाऐं।
पारे : क़ुरान कर9म म^ ३० पारे ह। जो हज़रात एक माह म^ क़ुरान
कर9म खiम करना चाह^ वह रोज़ाना एक पारा >तलावत फरमाऐं।
बfच_ को क़ुरान कर9म सखने के लए भी इससे सहुलत होती है ।
सूरतu : क़ुरान कर9म म^ ११४ सूरत^ ह। हर सूरत के शˆ ु म^
nबि म.लाह लखी हुई है , सवाए सूरह तौबा के। सूरह अन नमल म^
nबि म.लाह एक आयत का भाग भी है , इस तरह क़ुरान कर9म म^
nबि म.लाह क तादाद भी सूरत_ क तरह ११४ ह9 है । इन तमाम
सूरत_ के नाम भी ह जो बतौर अलामत रखे गए ह बतौर उनवान
(शीषLक) नह9ं। मसलन सूरतुलफ ल का मतलब यह नह9ं ,क वह सूरह
जो हाथी के Nवषय पर नािज़ल हुई, बि.क इसका मतलब सफL यह
है ,क वह सूरह िजसम^ हाथी का िजa ़ आया है । इसी तरह
सूरतुलबकर का मतलब वह सूरह िजसम^ गाए का िजa
़ आया है ।
आयात: क़ुरान कर9म म^ छः हज़ार से कुछ ›यादा आयात ह।
सजदा-ए- तलावत: क़ुरान कर9म म^ १४ आयात ह, िजनक >तलावत
के समय और सुनने के समय सजदा करना वािजब हो जाता है ।
म*क और मदनी आयात और सूरतu : मQदना Qहजरत करने से पहले
तकर9बन १३ साल तक क़ुरान कर9म के नज़
ु ल
ू क आयात और
सरू त_ को मJक और मQदना मुन|वरा पहुंचने के बाद तकर9बन १०
साल तक क़ुरान कर9म के नज
ु ल
ू क आयात और सरू त_ को मदनी
कहा जाता है ।
32
क़ुरान कर1म पढ़ने के फज़ाइल:
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फरमाया ‘‘क़ुरान
का मा5हर िजसको खब
ू याद हो, खब
ू पढ़ता हो उनका हशर फOरशत
के साथ क़यामत के 5दन होगा।”
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फरमाया
क़यामत के Qदन साQहबे क़ुरान से कहा जाएगा ,क क़ुरान पढ़ता जा
और ज\नत के दरज_ पर चढ़ता जा और ठहर ठहर कर पढ़ जैसा
,क तो द>ु नया म^ ठहर ठहर कर पढ़ता था। सो तेरा मक़ाम वह9 होगा
जहां अखर9 आयत पर पहुंच।े (मुि लम)
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फरमाया जो
|यिJत क़ुरान पढ़े और उसपर अमल करे उसके माता-Nपता को
क़यामत के Qदन ताज पहनाया जाएगा, िजसक रौशनी सूरज क
रौशनी से भी ›यादा होगी। अगर वह सूरज तु8हारे घर_ म^ हो तो
Jया गुमान है तु8हारा उस |यिJत के बारे म^ जो खद
ु इसपर अमल
पैरा हो। (मुसनद अहमद, अबू दाउद)
33
कर दu , शायद गौर करu ।” (सूरह अन नहल ४४)
34
क़ुरान कर1म के मज़ामीन (Aवषय):
उलमा-ए-कराम ने क़ुरान कर9म के मज़ामीन क Nव भ\न ,क़ म^
िजa
़ क ह, उन मज़ामीन क बु>नयाद9 तकसीम इस तरह है ।
(१) अकाएद (मा\यता)
(२) अहकाम (आदे श)
(३) ,क से
क़ुरान कर9म म^ आम तौर पर सफL उसूल िजa
़ ,कए गए ह,
इस लए अकाएद और अहकाम क तफसील हद9स_ म^ ह9 मलती है
यानी क़ुरान कर9म के मज़ामीन को हम हद9स_ के बेगैर नह9ं समझ
सकते ह।
35
इबादती अहकाम (आदे श): नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज आQद के
अहकाम और मसाइल। क़ुरान कर9म म^ सबसे ›यादा ताक द नमाज़
पढ़ने के मुतअि.लक आयी है । क़ुरान कर9म म^ नमाज़ क अदाएगी
के आदे श के साथ आम तौर पर ज़कात का भी आदे श आया है ।
(३) Uक2से
Nपछले अि8बय-ए-कराम और उनक उ8मत_ के वाJयात (घटनाएं)
क तफसीलात (Nववरण)।
36
क़ुरान कर1म और हम:
यह मुक़[स ,कताब हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के
ज़माना से लेकर रहती द>ु नया तक मशअले राह (मागLदशLक) बनी
रहे गी Jय_,क अ.लाह तआला क यह ,कताब ऐसी है ,क ईमा>नयात,
इबादात, मामलात, समाजीयात, और आ थLक के कानून क़ुरान कर9म
म^ िज़a ह। हाँ! इन क तफसीलात हद9स_ म^ मौजूद ह।
मगर बड़े अफसोस क बात है ,क हमरा स8ब\ध इस ,कताब से
*>तQदन कम होता जा रहा है । यह ,कताब हमार9 मि जद_ और घर_
म^ गलाफ_ म^ कैद हो कर रह गई ह, ना >तलावत है ना तदvबुर
(सोच Nवचार) है और ना ह9 उसके अहकाम पर अमल। आज का
मुि लमामन द>ु नया क दौड़ म^ इस तरह गुम हो गया है ,क क़ुरान
कर9म के अहकाम और मसाइल को समझना तो दरू क बात है
उसक >तलावत के लए भी समय नह9ं है । अ.लामा इकबाल ने
अपने दौर के मुि लमान_ के हाल पर रोना रोते हुए असलाफ (पूवज
L _)
से उस समय के मुि लमान क तुलना इन शvद_ म^ ,कया था:
वह ज़माने म^ मुअ›ज थे मुि लमा हो कर
और हम #वार हुए ता5रके क़ुरान होकर
37
का इह>तमाम कर^ , उलमा क सरपर ती (संर कता) म^ क़ुरान और
हद9स के अहकाम समझ कर उन पर अमल कर^ और इस बात क
को शश कर^ ,क हमारे साथ हमारे बfचे, घर वाले, पड़ोसी, दो त और
5रƒतेदार भी हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के लाए हुए
तर9का पर िजंदगी गज ु ारने वाले बन जाएं।
38
)सरू ह अल-अ़लक़ (इक़रा
ﺳﻮرة اﻟﻌﻠﻖ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
اﻹﻧْ َﺴـﺎ َن ِﻣ ْـﻦ َﻋﻠَ ٍـﻖ)(२ ﻚ اﻟِ ﺬ ْي َﺧﻠَ َﻖ)َ (१ﺧﻠَ َﻖ ِْ إﻗْـ َﺮأْ ﺑِ ْ
ﺎﺳ ِﻢ َرﺑَ
اﻹﻧْ َﺴـﺎ َن ﻚ ْاﻷَ ْﻛ َﺮُم) (३اﻟِ ـﺬ ْي َﻋﻠَ ـﻢ ﺑِـﺎﻟْ َﻘﻠَ ِﻢ)َ (४ﻋﻠَ ـﻢ ِْ إﻗْـ َﺮأْ َوَرﺑَ
اﻹﻧْ َﺴ ـ ــﺎ َن ﻟَﻴَﻄْﻐَـ ـ ٰـﻰ ) (६أَن رآﻩُ َﻣ ـ ــﺎ ﻟَـ ـ ْـﻢ ﻳَـ ْﻌﻠَ ـ ـ ْـﻢ)َ (५ﻛ ـ ـ ـﻶ إِ ن ِْ
ـﺖ اﻟ ـ ـ ِـﺬ ْي ـﻚ اﻟ ﺮ ْﺟ َﻌ ـ ـ ٰـﻰ ) (८أ ََرأَﻳْ ـ ـ َ اﺳـ ـ ـﺘَـ ْﻐﻨَ ٰﻰ) (७إِ ن إِﻟَ ـ ـ ٰـﻰ َرﺑ ـ ـ َ
ْ
ـﺖ إِ ْن َﻛ ـ ــﺎ َن َﻋﻠَ ـ ــﻰ ﺻـ ـ ـﻠٰ ﻰ) (१०أ ََرأَﻳْ ـ ـ َ ﻳَـ ْﻨـ َﻬ ـ ـ ٰـﻰ)َ (९ﻋ ْﺒـ ـ ـ ًﺪا إِ َذا َ
بـﺖ إِ ْن َﻛ ـ ـ ـ ﺬ َ اﻟ ُْﻬ ـ ـ ـ َﺪ ٰى) (११أ َْو أ ََﻣـ ـ ـ َـﺮ ﺑِـ ـ ــﺎﻟﺘـ ْﻘ َﻮ ٰى) (१२أ ََرأَﻳْـ ـ ـ َ
َوﺗَ ـ َـﻮﻟٰ ﻰ) (१३أَﻟَـ ْـﻢ ﻳَـ ْﻌﻠَـ ْـﻢ ﺑِـﺄَ ن اﷲَ ﻳَـ َـﺮ ٰى)َ (१४ﻛـ ـﻼ ﻟَــﺌِ ْﻦ ﻟَـ ْـﻢ ﻳَـ ْﻨﺘَـ ِـﻪ
ِ
ﺎذﺑَـ ٍـﺔ َﺧﺎﻃﺌَ ـ ٍـﺔ) (१६ﻓَـﻠْﻴَـ ـ ْﺪعُ ﺎﺻ ــﻴ ٍﺔ َﻛ ِ
ِ ِ ِ
ﻟَﻨَ ْﺴـ ـ َﻔ ًﻌﺎ ﺑِﺎﻟﻨﺎﺻ ــﻴَﺔ) (१५ﻧَ َ
ِ ِ
ـﺠ ْﺪ اﺳ ـ ـ ُﻧَﺎدﻳَـ ــﻪ)َ (१७ﺳ ـ ــﻨَ ْﺪعُ اﻟ ﺰﺑَﺎﻧِﻴَـ ـ ـﺔَ)َ (१८ﻛ ـ ـ ـﻼ َﻻ ﺗُﻄ ْﻌ ـ ــﻪُ َو ْ
ب ۩ )(१९ َواﻗْـﺘَ ِﺮ ْ
39
सूरह ‘अल-अ़लक़’ (इक़रा) क सं !"त तफ़सीर
40
क उž-ए-मुबारक ४० वषL क थी। छठr आयत से सूरह के आ]ख़र
तक जो आयात ह वह “ग़ार-ए-QDरा” क घटना के फाफ़ बाद उतर9
थीं और उनक घटना यह है ,क “अबु जहल” Dुज़ूर-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का सsत (कठोर) दƒु मन था। एक Qदन
Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम “Dरम” म^ नमाज़ पढ़ रहे
थे तो उसने आपको नमाज़ पढ़ने से मना ,कया और यह भी कहा
,क अगर आपने नमाज़ पढ़9 तो म (मआ़ज़.लाह) आपक गदL न को
पैर से कुचल दँ ग
ू ा, इस मौक़े (अवसर) पर यह आयात उतर9 थीं
िजनम^ उसको बहुत सsत (कठोर) लहजे (अंदाज़) म^ जवाब Qदया
गया ,क वह अपनी Dरकत से ?क जाए, वरना (अ\यथा) उसक
पेशानी (माथे) के बाल_ को पकड़कर घसीट Qदया जाएगा।
Dद9E क कताब_ म^ आई हुई अDाद9E क रोशनी म^ जमहूर उलमा
क सहम>त है ,क सबसे पहल9 वD9 सूरह “अ़लक़” क पहल9 पाँच
आयात (यानी “इक़रा” से “मा लम यअ़लम” तक) उतर9 थीं, इसके
बाद लगभग ढ़ाई साल (वषL) तक वD9 का सल सला टूट गया था,
वD9 क दे र9 और ?कने क वजह से आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
को बहुत परे शानी हुई थी, ,फर उसके बाद सूरह “अलमु[ि सर” क
पहल9 कुछ आयत^ उतर9 थीं। कोई पूर9 एक सूरह जो सबसे पहले
उतर9 है वह सुरह “अल-फा>तDा” है , इस वजह से सूरह
“अलमु[ि सर” क पहल9 कुछ आयात या सुरह “अल-फा>तDा” को
कुछ उलमा ने पहल9 वD9 कह Qदया है , ले,कन ED9 (Dक़ क़ ) बात
यह है ,क सूरह “अ़लक़” क पहल9 पाँच आयात ह9 सबसे पहल9 वD9
है । Dद9E क कताब_ म^ पहल9 वD9 के उतरने क घटना इस तरह
बयान क गई है िजसके ज़5रए आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को
नुबु|वत और 5रसालत से नवाज़ा गया। सबसे पहले आप स.ल.लाहु
41
अलैQह वस.लम को सfचे sवाब (सपने) आने लगे थे, यानी जैसा
आप sवाब (सपने) म^ दे खते वैसी ह9 घटना पैश आती थी, उसके
बाद नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम मJका मुकरL मा के
* स• (मशहूर) पहाड़ “जबल-ए-नूर” क ऊँचाई पर ि थत “ग़ार-ए-
QDरा” म^ अ.लाह क इबादत करने लगे, आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम कुछ Qदन_ का खाना साथ ले जाते और “ग़ार-ए-QDरा” म^
अकेले अ.लाह क इबादत करते, तोशा (खाने पीने का सामान)
समाXत होने पर आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम Dज़रत ख़द9जा
रिज़य.लाहु अ\हा के पास तशर9फ़ लाते और ,फर कुछ Qदन_ के लए
खाना साथ ले जाते। एक Qदन आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम “ग़ार-
ए-QDरा” म^ अ.लाह क इबादत म^ लगे हुए थे ,क अचानक आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के पास Dज़रत िजmाईल अलैQह सलाम
तशर9फ़ लाए और आप से कहा: “इक़रा” यानी पQढ़ए, आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: “म पढ़ने वाला नह9ं हूँ”,
Dज़रत िजmाईल अलैQह सलाम ने Dुज़रू -ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को बाँह_ म^ लेकर दबाया और छोड़ Qदया, ,फर वह9 बात
कह9: “इक़रा”, Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने ,फर वह9
जवाब Qदया, Dज़रत िजmाईल अलैQह सलाम ने Dुज़ूर-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को दोबारा बाँह_ म^ लेकर दबाया, ,फर
छोड़ Qदया और ,फर कहा: “इक़रा”, Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने ,फर वह9 जवाब Qदया, म पढ़ने वाला नह9ं हूँ, तीसर9 बार
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को बाँह_ म^ लेकर दबाया और
छोड़कर सूरह “अ़लक़” क पहल9 पाँच आयात पढ़9ं, इसके बाद Dज़रत
िजmाईल अलैQह सलाम चले गए और आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
इस ि थ>त म^ घर तशर9फ़ लाए ,क आपका Qदल कांप रहा था,
42
Dज़रत ख़द9जा रिज़य.लाहु अ\हा के पास आकर फ़रमाया: मुझ पर
कपडा डाल दो, मुझ पर कपडा डाल दो। Dज़रत ख़द9जा रिज़य.लाहु
अ\हा ने आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर कपड़े डाले, आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के ऊपर उतरने वाल9 अ.लाह तआला क
वD9 क वजह से जो Dालत (प5रि थ>त) हो गई थी, जब समाXत हो
गई तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने पूर9 घटना Dज़रत ख़द9जा
रिज़य.लाहु अ\हा को सुनाई, Dज़रत ख़द9जा रिज़य.लाहु अ\हा (जो
पढ़9 लखी और आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से उž म^ प\eह
साल बड़ी थीं) ने आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को तस.ल9 द9
और ,फर अपने चचेरे भाई “वरक़ा इvन-ए-नौफ़ल” के पास ले ग¡ जो
बुतपर ती से तौबा करके ईसाई हो गए थे, Jयूं,क उस समय सfचा
द9न (धमL) था। उस समय के बड़े धा मLक >नदo शक (मागLदशLक)
“वरक़ा इvन-ए-नौफ़ल” ने जब पूर9 घटना सुनी तो कहा ,क यह वाह9
फ़5रƒता है जो Dज़रत मूसा अलैQह सलाम पर उतरा था और कहा ,क
काश म आपक नुबु|वत के ज़माने म^ शिJतशाल9 होता और काश
,क म उस समय िजंदा रहता जब आप क क़ौम (nबरादर9) आपको
वतन से >नकाल दे गी। Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
आƒचयL से पुछा ,क Jया मेर9 क़ौम मुझे >नकाल दे गी? “ वरक़ा इvन-
ए-नौफ़ल” ने कहा ,क नी:संदेह (यक़ नन) >नकाल दे गी, Jयूं,क जब
भी कोई |यिJत “द9न-ए-Dक़” को लेकर आया है जो आप लाए ह तो
उसक क़ौम ने उसको सताया है और अगर मने वह ज़माना पाया तो
म आपक भरपूर मदद (सहायता) कˆँगा। “वरक़ा इvन-ए-नौफ़ल” इस
घटना के कुछ Qदन बाद ह9 इं>तक़ाल कर गए (मर गए)।
“इक़रा nबि म रिvबक..ज़ी ख़लक़:” “पढ़ो अपने रब के नाम से
िजसने सबकुछ पैदा ,कया, अ.लाह तआला ने क़ुरान-ए-कर9म क
43
पहल9 वD9 क शु?आत “इक़रा” के शvद से फ़रमा कर क़यामत तक
आने वाले इंसान_ को इ.म (पढ़ाई) के ज़ेवर से सजने का पैग़ाम
Qदया और “nबि म रिvबक..ज़ी ख़लक़” और इसके बाद वाल9 आयात
से उस इ.म ( श ा) के बारे म^ वणLन भी फ़रमा Qदया ,क वा तNवक
Œान वह है िजसके ज़5रए इंसान अपने Dक़ क़ (वा तNवक) ख़ा लक़
(पैदा करने वाले), मा लक और रािज़क़ को पहचाने, िजसने एक
नापाक (अशु•) बँद
ू से इंसान को एक ख़ब
ू सूरत (सुंदर) शJल (ˆप)
म^ पैदा फ़रमाया। बहरDाल पहल9 वD9 से अ.लाह तआला ने इंसान
को यह श ा द9 ,क इ.म (Œान) सबसे पहला और बु>नयाद9 उ[ेƒय
(मक़Eद) मौला-ए-Dक़ क़ को मानकर रब चाह9 िज़ंदगी गुज़ारना है ,
अ.लाह तआला ने िजस जगह ( थान) पर भी क़ुरान म^ इ.म (Œान)
का उ.लेख ,कया है वहाँ पर अपनी ज़ात या नबी-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क 5रसालत का उ.लेख ,कया है । जैसे
“नून वल क़ल म वमा यसwुˆन” (सरू ह अलक़लम) म^ अ.लाह तआला
ने क़लम क क़सम खाकर लखने पढ़ने क Nवशेष अह मयत
(महiव) को रहती द>ु नया तक प{ट कर Qदया है । “वल क़ल म” से
तक़द9र (भNव{य) का क़लम है , और “वमा यसwुˆन” से वह फ़ैसल^
(>नणLय) मुराद ह जो फ़5रƒते लखते ह, मालूम हुआ ,क Dक़ क़
(वा तNवक) इ.म (Œान) वह है जो तक़द9र (भNव{य) क श ा दे ता
हो और प{ट है ,क क़ुरान और Dद9E और इन दोन_ से लया हुए
NवŒान म^ ह9 तक़द9र (भNव{य) पर ईमान लाने क श ा मलती है ।
सूरह “अ›ज़ुमर” आयत: (९) म^ अ.लाह तआला फ़रमाता है : “क़ुल
हल यसतNव.लाज़ीना याअ़लमूना व.लज़ीना ला याअ़लमून” Jया
अहल-ए-इ.म और न जानने वाले बराबर हो सकते ह? िज़a क हुई
आयत क शु?आत म^ और इससे पहल9 आयत म^ अ.लाह तआला ने
44
फ़रमाया ,क Jया का,फ़र |यिJत उस मो मन के बराबर हो सकता है
जो रात म^ इबादत करता है और आ]ख़रत क िज़\दगी को सामने
रखकर यह द>ु नयावी िज़ंदगी गुज़ारता है । इसके बाद आने वाल9
आयत म^ अ.लाह तआला ने फ़रमाया: “क़ुल या इबाQदय.लज़ीना
आ8नुiतक़ू रvvकुम” ऐ मेरे ईमान वाले ब\दो! अपने रब से डरो,”
मालूम हुआ ,क जानने वाले क न जानने वाले पर फ़ज़ीलत
(‘े{ठता) उस समय होगी जब ,क जानने वाला अ.लाह को मानकर
िज़\दगी गुज़ारने वाला बने। अ.लाह तआला का फ़रमान है :
“यरफ़इ.लाहु..ज़ीन आमनू म\कुम व.लज़ीना ऊतुल इ.मा दरजात”
(सूरह “अलमुजादला”: ११), “तुम म^ से जो लोग ईमान लाए ह और
िजन को इ.म Qदया गया है अ.लाह उनके दजg को ऊँचा करे गा”।
मालूम हुआ ,क इ.म (Œान) उसी ि थ>त म^ इ›ज़त (स8मान) का
कारण है जब ,क जानने वाला ईमान क महान दौलत से मालामाल
हो। अ.लाह तआला अपने Dबीब Dज़रत मुD8मद मु wफ़ा स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम को संबो धत करते हुए फ़रमाता है : “वला तजअ़ल
nबलक़ुरआ>न मन क़िvल अंयुक़ज़ा इलैका वDयुह, व क़ुरL िvब िज़दनी
इ.मा”। (सूरह wाहा: ११४), ऐ नबी! जब क़ुरान वD9 के ज़5रए उतर
रहा हो तो उसक पूरा होने से पहले ज.द9 न ,कया करो और यह
दआ
ु करते रहा करो ,क “ऐ मेरे रब! मेरे इ.म (Œान) म^ तरJक़
(उ\न>त) अता फ़रमा”। इस आयत से जहाँ यह मालूम हुआ ,क इ.म
(Œान) ऐसा समु\e है िजसका कोई ,कनारा नह9ं, और इंसान को हर
समय इ.म (Œान) म^ तरJक़ (उ\न>त) क को शश (*यास) और
दआ
ु करते रहना चाQहए, चाहे वह इ.म (Œान) क बुलंQदय_ पर पहुँच
जाए, वह9‰ यह मागLदशLन भी *ाXत हुआ ,क क़ुरान और Dद9E और
इन दोन_ से लया हुआ इ.म (Œान) ह9 Dक़ क़ (वा तNवक) इ.म है ।
45
“ख़लक़ल इ\साना मन अ़लक़:” अ.लाह तआला ने मख़लूक़ (जीव_) के
ज\म को िज़a करने के बाद इंसान क पैदाइश (ज\म) को थायी
ˆप से िज़a ,कया है , Jयूं,क इंसान को अशरफ़ुल मख़लूक़ात (महान)
बनाया है और वह पूर9 काएनात का सारांश (अथL) भी है , इसी लए
तमाम अंnबया-ए-,कराम इंसान ह9 होते ह और प{ट तौर पर पूर9
काएनात अ.लाह के DुJम (आदे श) से इंसान_ के ह9 अधीन (अंतगLत)
है । इंसान क पैदाइश कई दौर से गज
ु रती है , इसक शु?आत म¥ी
से हुई, ,फर इंसान के शa
ु ाणु (वीयL) यानी अशु• बूंद से पैदा होता है
जो बाद म^ “अ़लक़” यानी जमा हुआ खन ू (रJत) बन जाता है , ,फर
गोƒत और ह¦„डयाँ आQद पैदा क जाती ह। “अ़लक़” यानी जमा हुआ
खनू (रJत) इंसान क पैदाइश क एक बीच क प5रि त थ है , जो
यहाँ िज़a क गई है , इंसान क पैदाइश के Nव भ\न चरण_ के बारे
म^ अ.लाह तआला दस
ू रे थान पर इरशाद फ़रमाता है : ऐ लोगो!
अगर तु8ह^ दोबारा िजंदा होने के बारे म^ कुछ शक (संदेह) है तो (ज़रा
सोचो ,क) हमने तु8ह^ म¥ी से पैदा ,कया, ,फर नुwफ़े (शुaाणु, वीयL)
से, ,फर एक जमे हुए ख़न ू (रJत) से, ,फर एक गोƒत (मास) के
लोथड़े (टुकड़े) से जो (कभी) परू ा नह9ं बनता, ता,क हम तु8हारे लए
(तु8हार9) Dक़ क़त (अस लयत) खोलकर बता द^ , और हम (तु8ह^ )
माताओं के पेट म^ जब तक चाहते ह, एक >नधाL5रत समय तक
ठहराए रखते ह, ,फर त8
ु ह^ एक बfचे के आकार म^ बाहर लाते ह,
,फर (तु8ह^ पालते ह), ता,क तुम अपनी भरपूर उž तक पहुँच जाओ
और तुम म^ से कुछ वह ह जो पहले ह9 द>ु नया से उठा लए जाते ह
और तुम ह9 म^ कुछ वह होते ह िजनको बहुत tयादा बुढ़ापे तक
लोटा Qदया जाता है । (सूरह Dज: ५)
46
“अ़..ज़ी अ़.लमा nबलक़लम”: इंसान क पैदाइश के तुरंत बाद श ा
का िज़a ,कया गया, Jयूं,क श ा ह9 के ज़5रए इंसान दस
ू रे जीव
ज\तु से च>ु नंदा (Nव श{ट) होता है । श ा के दोन_ महiवपूणL ज़राए
(सू}_) (ज़बानी श ा और क़लमी श ा) को इस आयत म^ िज़a
फ़रमा कर अ.लाह तआला ने मानवता को यह पैग़ाम (संदेश) Qदया
,क श ा के लए सभी जाइज़ (वैध) तर9क_ को इ तेमाल करना
चाQहए। “अ़.लमल इ\साना मा लम याअ़लम” इंसान जब अपनी माँ
के पेट से पैदा होता है तो वह इस ि त थ म^ होता है ,क कुछ भी
नह9ं जानता, ,फर वह अ.लाह क मख़लूक़ात से फ़ायदा उठाकर ह9
इ.म ( श ा) *ाXत करता है , यानी इ.म (Œान) उसका अपना >नजी
( वयं) नह9ं है , बि.क अ.लाह तआला का Qदया हुआ है ।
क.ला इ\नल इ\साना लयwग़ा, अरL आ हुसतग़ना”: यह आयत
Dालां,क अबु जहल के बारे म^ उतर9 है , ले,कन इस Nवeोह9 (सकLश)
का नाम िज़a के बजाए अ.लाह तआला ने आम इंसान_ क एक
कमज़ोर9 को बयान ,कया है ,क जबतक वह दस
ू र_ का ज़ˆरतमंद
रहता है तो सीधा चलता है और जब उसको कुछ दौलत (धन) या
पद मल जाता है तो बग़ावत (Nवeोह) करने लगता है , लोगो पर
ज़ु.म (अ\याय) करने लगता है और अपने आप को बे>नयाज़
(>न: वाथ’) समझने लगता है ।
“इ\ना इला रिvबक?L जआ़:” यानी इ\सान को मालूम होना चाQहए ,क
आ]ख़रकार (अंत म^ ) उसको अपने रब (अ.लाह) क तरफ़ ह9 लौटकर
जाना है , तो ,फर Jयूँ अपनी अकड़ Qदखाता है ।
अराअयत..ज़ी यनहा:” जब अ.लाह तआला ने नबी-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को नमाज़ पढ़ने का DुJम (आदे श) Qदया
और आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने नमाज़ पढ़ना शुˆ क तो
47
“अबु जहल” ने आपको नमाज़ पढ़ने से मना ,कया और धमक द9
,क अगर उसके बाद नमाज़ पढ^ गे और सजदा कर^ गे तो मआ़ज़.लाह
आपक गदL न को पैर से कुचल दे गा। इसके जवाब म^ यह आयात
उतर9ं। हद9स_ म^ आता है ,क अगर वह अपनी इस नापाक (गंद9)
ग>तNव ध (*,aया) से न ?कता तो फ़5रƒते उसके चीथड़े उड़ा दे ते।
शुरआती वD9 यानी पाँच आयात के बाद ह9 इस घटना का उ.लेख
करके अ.लाह तआला ने सबको यह श ा द9 ,क अ.लाह और
उसके रसूल पर ईमान लाने के बाद सबसे महiवपूणL और पहला
कतL|य नमाज़ है । तथा हद9स_ म^ आता है ,क क़यामत के Qदन सबसे
पहले नमाज़ ह9 का Qहसाब होगा, तो “वसजुद वक़ त5रब” कहकर
अ.लाह तआला ने क़यामत तक के लए ऐलान कर Qदया ,क द>ु नया
म^ अ.लाह तआला से सबसे tयादा नज़द9क (>नकटता) सजदे क
Dालत (ि त थ) म^ होती है ।
अ.लाह तआला हम^ नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क
आँख_ क ठं डक यानी नमाज़ का अह>तमाम (पाब\द9) करने वाला
बनाए. आमीन।
48
सरू ह अलक़K
ﺳﻮرة اﻟﻘﺪر
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
إِﻧـ ـﺂ أَﻧْـ َﺰﻟْﻨَـ ــﺎﻩُ ﻓِـ ـ ْـﻲ ﻟَْﻴـﻠَـ ـ ِـﺔ اﻟْ َﻘ ـ ـ ْﺪ ِر)َ (१وَﻣ ـ ـﺂ أَ ْد َر َ
اك َﻣـ ــﺎ ﻟَْﻴـﻠَ ـ ـﺔُ
ـﻒ َﺷـ ْـﻬ ٍﺮ) (३ﺗَـﻨَ ـ ـ ﺰ ُل اﻟْ َﻘ ـ ْﺪ ِر) (२ﻟَْﻴـﻠَ ـﺔُ اﻟْ َﻘ ـ ْﺪ ِر َﺧ ْﻴ ــﺮ ﻣ ـﻦ أَﻟْـ ِ
ٌ ْ
ح ﻓِ ْﻴـ َﻬﺎ ﺑِِﺈ ْذ ِن َرﺑِ ﻬ ْﻢ ِﻣ ْﻦ ُﻛـ ﻞ أ َْﻣـ ٍﺮ)َ (४ﺳ َـﻼ ٌم َ ُوْ ﺮ اﻟو ﺔ
ُ ﻜَ اﻟْﻤﻶﺋِ
َ
ﻰ َﻣﻄْﻠَ ِﻊ اﻟْ َﻔ ْﺠ ِﺮ)(५ ِﻫ َﻲ َﺣﺘ ٰ
49
सूरह ‘अलक़K’ क सं !"त तफ़सीर (वण'न)
क़ुरान कर1म का शबे क़K मu नािज़ल होना
सूरह अलक़K का अनुवाद: बेशक हमने क़ुरान पाक को शबे क़दर म^
उतारा है (यानी क़ुरान कर9म को लौहे महफूज़ से आसमाने द>ु नया
पर इस रात म^ उतारा है ।) आपको कुछ मालूम है ,क शबे क़दर कैसी
बड़ी चीज़ है , (यानी इस रात क बड़ाई और फज़ीलत का आपको
इ.म भी है , ,कतनी खnू बयां और ,कस क़दर फज़ाइल इसम^ ह। इसके
बाद कुछ फज़ाइल (गण
ु ) का िज़a फरमाते ह,) शबे क़दर हज़ार
मह9न_ से बेहतर है (यानी हज़ार मह9न_ तक इबादत करने का
िजतना सवाब है उससे tयादा शबे क़दर क इबादत का है और
,कतना tयादा है ? यह अ.लाह ह9 को मालूम है ।) इस रात म^
फ5रशते और हज़रत िजबरइल अलैQह सलाम उतरते ह। अपने
परवरQदगार के हुकुम से हर अfछे मामले को लेकर ज़मीन क तरफ
उतरते ह। खैर और बरकत फजर के समय तक रहती है ।
50
है , इस लए इस आ]खर9 अशरे (दस Qदन) का एक ल8हा भी बरबाद
न होने द^ । पांच_ नमाज_ को जमाअत से पढ़ने क |यव था कर^ ,
Qदन म^ रोज़ा रख^ , रात का बड़ा भाग इबादत म^ गुजार^ , तरावीह और
तह›जुद क नमाज़ पढ़ने का एहतेमाम कर^ , अ.लाह तआला का
िज़a कर^ , अपने और उ8मते मुि लमा के लए दआ
ु एं कर^ और
क़ुरान कर9म क >तलावत tयादा से tयादा कर^ ।
51
जाना मुराद है या यह मतलब है ,क क़ुरान कर9म के नुज़ूल क
शु?आत इस रात म^ हुई और ,फर वाक़यात और हालात के मुताnबक़
थोड़ा थोड़ा करके २३ साल के अरसे (अव ध) म^ नबी अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर नािज़ल हुआ।
52
रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फरमाया शबे क़दर
को रमज़ान के अखीर अशरे क ताक़ (Nवषम) रात_ म^ तलाश ,कया
करो। (बुखार9) (मज़कूरा हद9स के मुताnबक़ शबे क़दर क तलाश
२१वीं, २३वीं, २५वीं, २७वीं और २९वीं रात_ म^ करनी चाQहए)।
53
सरू ह अलबिMयना
ﺳﻮرة اﻟﺒﻴﻨﺔ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ﺎب َواﻟ ُْﻤ ْﺸـ ِﺮﻛِ ْﻴ َﻦ ُﻣ ْﻨـ َﻔ ﻜ ْـﻴ َﻦ َﺣﺘٰ ـﻰْﻜﺘَ ِ ﻟَﻢ ﻳ ُﻜ ِﻦ اﻟِ ﺬﻳﻦ َﻛ َﻔﺮوا ِﻣﻦ أ َْﻫ ِﻞ اﻟ ِ
ْ َ ُْ ْ َْ
ـﺤ ًﻔﺎ ﻣﻄَ ﻬـ َـﺮًة) (२ﻓِ ْﻴـ َﻬــﺎ ﺻـ ُ ﺗَـﺄْﺗِﻴَـ ُﻬﻢ اﻟْﺒَـﻴـﻨَـﺔُ) (१رﺳــﻮ ٌل ﻣ ـﻦ ِ
اﷲ ﻳَـ ْﺘـﻠُـ ْـﻮ ُ َُْ َ ُ
ـﺎب إِﻻ ِﻣـ ْـﻦ ﺑَـ ْﻌـ ِـﺪ َﻣــﺎ ِ ِ
ﺐ ﻗَـﻴَ ﻤـﺔٌ)َ (३وَﻣــﺎ ﺗَـ َﻔ ـ ﺮ َق اﻟــﺬﻳْ َﻦ أ ُْوﺗُــﻮا اﻟْﻜﺘَـ َ ُﻛﺘُـ ٌ
ﺼ ْﻴ َﻦ ﻟَﻪُ اﻟﺪﻳْ َﻦ ﺟﺂءﺗْـ ُﻬﻢ اﻟْﺒـﻴـﻨَﺔُ) (५وﻣﺂ أ ُِﻣﺮوآ إِﻻ ﻟِﻴـ ْﻌﺒ ُﺪوا اﷲ ﻣ ْﺨﻠِ ِ
َُ َُ ََ ُْ َ َ ُ َ
ـﻚ ِدﻳْـ ُﻦ اﻟْ َﻘﻴَ ﻤ ِـﺔ ) (५إِ ن ﺼ َﻼةَ َوﻳُـ ْﺆﺗُـﻮا اﻟ ﺰَﻛـﺎةَ َو ٰذَﻟِ َ
ُﺣﻨَـ َﻔﺂءَ َوﻳُِﻘ ْﻴ ُﻤﻮا اﻟ
ﻢ َﺧﺎﻟِ ِـﺪﻳْ َﻦ ِ ِ ِ ِ ِ ِ
اﻟﺬﻳْ َﻦ َﻛ َﻔ ُﺮْوا ﻣ ْﻦ أ َْﻫ ِﻞ اﻟْﻜﺘَﺎب َواﻟ ُْﻤ ْﺸ ِﺮﻛ ْﻴ َﻦ ﻓ ْﻲ ﻧَـﺎ ِر َﺟ َﻬـﻨ َ
آﻣﻨُـ ـ ـ ْـﻮا َو َﻋ ِﻤﻠُ ـ ــﻮا ِ ِ ﻓِ ْﻴـ َﻬ ـ ــﺎ أُوﻟﺌِ ـ ـ َ
ـﻚ ُﻫ ـ ـ ْـﻢ َﺷـ ـ ـ ﺮ اﻟْﺒَ ِﺮﻳـ ــﺔ) (६إِ ن اﻟـ ــﺬﻳْ َﻦ َ
ﻚ ُﻫ ْﻢ َﺧ ْﻴـ ُﺮ اﻟْﺒَ ِﺮﻳِﺔ)َ (७ﺟ َﺰا ُؤ ُﻫ ْﻢ ِﻋ ْﻨ َﺪ َرﺑِ ﻬ ْـﻢ َﺟﻨُ
ـﺎت ﺎت أُوﻟَﺌِ َ ﺼﺎﻟِﺤ ِ
اﻟ َ
ِ ِِ ِ ِ ِ ٍ
ـﺎر َﺧﺎﻟــﺪﻳْ َﻦ ﻓ َﻴﻬــﺎ أَﺑَ ـ ًﺪا َرﺿـ َـﻲ اﷲُ َﻋ ـ ْﺪن ﺗَ ْﺠ ـ ِﺮ ْي ﻣـ ْـﻦ ﺗَ ْﺤﺘ َﻬــﺎ ْاﻷَﻧْـ َﻬـ ُ
ﻚ ﻟِ َﻤ ْﻦ َﺧ ِﺸ َﻲ َرﺑﻪُ)(८ ﺿﻮا َﻋ ْﻨﻪُ َذﻟِ َ َﻋ ْﻨـ ُﻬ ْﻢ َوَر ُ
54
सूरह ‘अलबिMयना’ क सं !"त तफ़सीर (वण'न)
55
गया है , मुश5रक न -ए-मJका और अहल-ए-,कताब। मुश5रक न-ए-
मJका अ.लाह तआला को ख़ा लक़-ए-काएनात (द>ु नया को पैदा करने
वाला) मानने के बावजूद अ.लाह के साथ दस
ू र9 ज़ात_ (वगg) को
शर9क मानते थे, इसी लए उ\ह_ने अपने दे वताओं के नाम पर
लगभग ३६० बुत (मू>तL) बनाकर बैतु.लाह (अ.लाह के घर) म^ रख
Qदए थे िजनक वह इबादत (*ाथना) ,कया करते थे, Dालां,क वह
बैतु.लाह का ऐDतराम (स8मान) भी ,कया करते थे, उसको अ.लाह
का घर माना करते थे, उसका तवाफ़ (चJकर लगाना) ,कया करते
थे, अपने तर9क़े के अनुसार Dज ,कया करते थे और मJका के
तीथLयाn}य_ क सेवा भी ,कया करते थे। मुश5रक न-ए-मJका Dुज़ूर-ए-
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को नबी बनाए जाने तक आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क शिsEयत (|यिJतiव) से बहुत
*भाNवत थे, ले,कन ४० वषL क उž म^ जब Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को नबी बनाया गया और आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने बाप दादा के धमL को छोड़ने और
इ लाम धमL को अपनाने क दावत द9 तो उनक बड़ी सं#या आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क Nवरोधी हो गई, यहाँ तक ,क आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के Dक़ क़ (वा तNवक) चचाओं म^ से
केवल दो ह9 इ लाम ला सके। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
EDाबा-ए-,कराम रिज़य.लाहु अ\हुम इ\ह9ं मुश5रक न-ए-मJका के
ज़.
ु म-व- सतम (उiपीड़न) के कारण मJका मक
ु रL मा से मद9ना
मुन|वरा Qहजरत (*वास / थानांतरण) कर गए थे, इसके अलावा ८
वषL तक मुश5रक न-ए-मJका अपने तर9क़े के अनुसार बैतु.लाह का
तवाफ़ (चJकर लगाना) ,कया करते रहे , Dज क अदाएगी करते रहे
56
और मू>तLय_ क पूजा करते रहे , ८ Qहजर9 म^ जब ,कसी खन
ू ख़राबे
के बग़ैर मJका मुकरL मा Nवजय हुआ तो आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने बौतु.लाह को बुत_ (मू>तLय_) से पाक और साफ़ ,कया, ८
Qहजर9 तक मJका मुकरL मा के कुछ लोग इ लाम ला चक
ु े थे, और
अfछr ख़ासी (ठrक ठाक) सं#या मJका Nवजय होने के समय नबी-ए-
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के अfछे बताLव को दे खकर
ईमान ले आई, इस तरह मJका मुकरL मा तौह9द का स^टर (क^e) बन
गया। ९ Qहजर9 म^ जब Dज फ़ज़L हुआ तो उस वषL आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम Dज के लए नह9ं गए, परं तु Dज़रत अबु बकर
रिज़य.लाहु अ\हु क दे ख रे ख म^ मुसलमान_ ने Dज क अदाएगी
क । १० Qहजर9 म^ लगभग एक लाख चोबीस हज़ार EDाबा-ए-,कराम
(रिज़य.लाहु अ\हुम) के साथ आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
Dज ,कया िजसको “D››तुल Nवदा” के नाम से जाना जाता है , Jयूं,क
इस Dज क अदाएगी के तीन मह9ने बाद आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम इि\तक़ाल फ़रमा गए।
क़ुरान-ए-कर1म मu अहल-ए-Uकताब का िज़C (उXलेख) बहुत Šयादा
आया है , श5रयत-ए-इ ला मया म^ आ]ख़र9 (अं>तम) नबी Dज़रत
मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर ईमान लाने के
साथ Dज़रत आदम, Dज़रत इmाह9म, Dज़रत मसू ा और Dज़रत ईसा
अलैQहमु सलाम जैसे दस
ू रे नnबय_ को भी मानना ज़ˆर9 है , यानी यह
सभी चन
ु े हुए रसलू ह, ले,कन उनक श5रयत Dुज़रू -ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के नबी बनाए जाने के बाद र[ (>नर त)
हो चक
ु है , यानी अब क़यामत तक शर9यत-ए-मुह8मQदया का पालन
,कए बग़ैर सफ़लता संभव नह9ं है । अहले-ए-,कताब म^ से यहूद9
57
Dज़रत याक़ूब अलैQह सलाम क औलाद म^ हुए सभी नnबय_ (जैसे
Dज़रत यूसुफ़, Dज़रत मूसा, Dज़रत हा?न, Dज़रत दाऊद, Dज़रत
सुलेमान, Dज़रत दा\याल, Dज़रत उज़ैर, Dज़रत याहया और Dज़रत
ज़क5रBया अलैQहमु सलाम) को मानते ह, ले,कन Dज़रत ईसा
अलैQह सलाम और Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को नबी नह9 मानते ह। अभी तक “तौरै त” को ह9 अपना
धा मLक Š\थ मानते ह जो कई हज़ार वषL पहले Dज़रत मूसा
अलैQह सलाम पर उतर9 थी, परं तु वह अभी तक अं>तम नबी के
इंतज़ार (*ती ा) म^ ह। द>ु नया म^ इनक केवल डेढ़ करोड़ क आबाद9
(जनसं#या) है जो आम तौर पर इज़राइल और अमे5रका म^ रहती है ।
इस समय यहूद9 द>ु नया म^ अथLशा } पर काफ़ *भावशाल9 ह।
अहल-ए-,कताब म^ ईसाई भी ह, वह Dज़रत आदम अलैQह सलाम से
Dज़रत ईसा अलैQह सलाम तक सभी नnबय_ को मानते ह, ले,कन
Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को नबी और रसूल
मानने के लए तैयार नह9ं ह, लगभग दो हज़ार वषL पहले Dज़रत
ईसा अलैQह सलाम पर उतर9 हुई ,कताब “इंजील” को ह9 आजतक
अपना धा मLक Š\थ मानते ह। दोन_ आसमानी ,कताब_ (Š\थ_) के
कई कॉपी (लेख, *>त लNप) इस समय द>ु नया म^ मौजद
ू ह, परं तु इन
कॉNपय_ (लेख_) म^ बहुत tयादा अंतर ह, यहाँ तक ,क इन दोन_
,कताब_ क कोई एक आयत भी ऐसी मौजद ू नह9ं ह िजसके बारे म^
कॉNपय_ (लेख_) म^ अंतर न हो, इसका म#
ु य कारण यह है ,क यह
दोन_ ,कताब^ असल9 शJल म^ अब द>ु नया म^ मौजद
ू नह9ं ह। यहूद9
और ईसाई क अ\य जनजा>तय_ ने अपने तौर पर Nव भ\न बदलाव
कर रखे ह। पिƒचमी लोग तौरै त और इंजील के संŠहण और इनके
58
कॉNपय_ (लेख_) म^ पाए जाने वाले बहुत tयादा अंतर पर अनदे खेपन
से काम लेते ह, ले,कन क़ुरान और Dद9E पर ऐतराज़ (आपिiत)
करते रहते ह, Dालां,क क़ुरान और Dद9E क सुर ा के लए जो
इि\तज़ामात (|यव था) ,कए गए ह उनका तौरै त और इंजील क
सुर ा के लए ,कए गए इि\तज़ामात (|यव था) से कोई तुलना भी
नह9ं क जा सकती, ,फर भी मुसलमान_ का यह अक़ दा (Nवƒवास) है
,क तौरै त और इंजील आसमानी ,कताब^ (Š\थ) ह, Dालां,क वह इस
समय द>ु नया म^ Nवकृत क हुई ह9 मौजूद है , जब,क क़ुरान-ए-कर9म
क सुर ा अ.लाह तआला ने ख़द ु अपने िज़8मे रखी है , इस लए
क़यामत तक इसम^ कोई बदलाव नह9ं हो सकता। क़ुरान-ए-कर9म ह9
द>ु नया म^ ऐसी ,कताब है िजसको ज़ुबानी (nबना दे खे) याद करने
वाले लाख_ लोग द>ु नया म^ हर जगह हर समय मौजूद रहते ह और
द>ु नया म^ सबसे tयादा पढ़9 जाने वाल9 ,कताब भी क़ुरान-ए-कर9म ह9
है ।
द>ु नया म^ इस समय सबसे tयादा ईसाई धमL को मानने वाले ह
िजनक सं#या दो अरब से tयादा है , दस
ू रे नंबर पर मु लमान ह,
िजनक सं#या दो अरब से कुछ कम है , एक अनुमान के अनस
ु ार
पचास वषL बाद मस
ु लमान_ क सं#या सबसे tयादा हो जाएगी।
बहरDाल आज द>ु नया क tयादातर आबाद9 (जनसं#या) का यह
ईमान है ,क द>ु नया म^ अंnबया-ए-,कराम लोग_ के मागLदशLन के लए
नेतiृ व करते ह, द>ु नया एक Qदन समाXत हो जाएगी और क़यामत म^
हर इंसान को अपने ,कये हुए कायg का बदला (ईनाम) या सज़ा
मलेगी और अ.लाह तआला ह9 इस काएनात को पैदा करने वाला
है । बुN• क मांग भी यह9 है ,क अ.लाह तआला ने जब इ\सान के
59
अंतगLत पूर9 काएनात कर द9 है तो इसके पैदा करने का कोई Nवशेष
उ[ेƒय ज़ˆर होना चाQहए, वरना जानवर और इंसान म^ फ़कL Jय_?
सूरह “अलबिBयना” को तरतीब (aम) के अनुसार सूरह “अल-अ़लक़”
और सूरह “अल-क़दर” के बाद िज़a ,कया गया है । सूरह “अल-
अ़लक़” से उi*ेरणा क शु?आत हुई, सूरह “अल-क़दर” म^ क़ुरान-ए-
कर9म के नािज़ल (उतरने) होने के समय को िज़a ,कया गया और
सूरह “अलबिBयना” म^ बयान ,कया गया ,क यह क़ुरान-ए-कर9म
Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर उतरा है । यह
ऐसा Nवशाल कलाम है िजसक इंसानी कलाम से कोई तुलना नह9ं क
जा सकती और िजसक तरह बि.क इसक एक सूरह या इसक एक
आयत क तरह पूर9 अरब क़ौम मलकर भी आजतक एक आयत
पैश नह9ं कर सक , इसका एक ऐसे |यिJत पर उतरना िजसने ,कसी
से पढ़ना लखना नह9ं न सीखा हो, ख़द
ु उसके नबी होने क प{ट
दल9ल (तकL) है ।
तौरै त और इंजील म^ भी Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम के रसूल और नबी होने का उ.लेख (िज़a) मौजूद है ,
ले,कन Dज़रत इmाह9म अलैQह सलाम के बाद Dज़रत ईसा अलैQह सलाम
तक सभी अंnबया-ए-,कराम Dज़रत इmाह9म अलैQह सलाम के बेटे (प}
ु )
Dज़रत इसDाक़ अलैQह सलाम के घराने से हुए सवाय Dज़रत मोह8मद
मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के ,क वह Dज़रत इmाह9म
अलैQह सलाम के बेटे Dज़रत इ माईल अलैQह सलाम के ख़ानदान से
हुए। अं>तम नबी Dज़रत इसDाक़ अलैQह सलाम के घराने (ख़ानदान) से
पैदा नह9ं हुए तो केवल इसी िज़[ क वजह से यहूद9 और ईसाई ने
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को नबी मानने से इंकार कर Qदया।
60
इस सूरह के शुˆ म^ अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता है ,क अहल-ए-
,कताब और मुश5रक न उस समय तक ?कने वाले नह9ं थे जबतक
,क उनके पास रोशन दल9ल (तकL) न आती, यानी एक अ.लाह का
रसूल जो अ.लाह क ,कताब को पढ़कर सुनाए, ले,कन अहल-ए-
,कताब और मुश5रक न ने उनके पास रोशन दल9ल यानी क़ुरान-ए-
कर9म आने के बावजूद Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को नबी और रसूल मानने से इंकार कर Qदया। इसके बाद
अ.लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया ,क क़ुरान-ए-कर9म म^ बु>नयाद9
>नयम (अDकाम) वह9 ह जो पहल9 ,कताब_ (Š\थ_) म^ मौजूद थे,
जैसे केवल अ.लाह क इबादत (पूजा) क जाए, उसके साथ ,कसी
को शर9क न ठहराया जाए, नमाज़ क Nवशेष |यव था क जाए और
ज़कात क अदाएगी क जाए, ले,कन अहल-ए-,कताब ने सफ़L जलन
(ई{याL) क बु>नयाद पर Dज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को अ.लाह का रसूल मानने से इंकार कर Qदया।
इस आयत से मालूम हुआ ,क नमाज़ और ज़कात क अदाएगी का
DुJम (आदे श) दस
ू र9 उ8मत_ को भी Qदया गया था, तथा क़ुरान-ए-
कर9म म^ नमाज़ और ज़कात का DुJम (आदे श) बार बार आया है ,
उलमा-ए-,कराम ने फ़रमाया है ,क नमाज़ तमाम शार95रक इबादत_
म^ और ज़कात तमाम माल9 इबादत_ म^ सबसे tयादा अह मयत
(महiव) रखती है , सारे नnबय_ के सरदार Dुज़रू -ए-अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम क िज़\दगी का काफ़ भाग नमाज़ क अदाएगी म^
गज़
ु रा। अ.लाह तआला ने क़ुरान-ए-कर9म (सरू ह अलमज़
ु ि8मल) म^
िज़a फ़रमाया है ,क आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम आधी रात या
इससे कुछ कम या इससे कुछ tयादा भाग इबादत ,कया करते थे।
61
नमाज़-ए-तह›जुद म^ लंबे क़याम (खड़े होना), लंबे ?कू और लंबे
सजदे क वजह से आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के क़दम-ए-
मुबारक (पैर_) पर वरम (सूजन) आ जाता था, इसके अलावा आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पाँच_ नमाज़_ के अह>तमाम (|यव था)
के साथ नमाज़-ए-Nवतर (Nव}), नमाज़-ए-इशराक़, नमाज़-ए-चाƒत,
नमाज़-ए-अ|वाबीन, तQDBBतुल मि जद, तQDBBतुल वुज़ू और दस
ू र9
नमाज़^ भी पढ़ा करते थे। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पूर9
िज़ंदगी कभी भी “EाQDब-ए->नEाब” नह9ं हुए िजसके कारण आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर ज़कात तो वािजब नह9ं हुई परं तु
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के पास जो भी माल या सामान
आता जबतक आप उसे सदक़ा न कर दे ते आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को नींद नह9ं आती थी।
छट9 और सातवीं आयत म^ अ.लाह तआला ने मरने के बाद सफलता
और असफलता का तर उ.लेख फ़रमाया है ,क अ.लाह को न
मानने वाले या अ.लाह क ज़ात और गुण_ म^ दस
ू र_ को शर9क करने
वाले हमेशा के लए जह\नम (नरक) म^ जाएंगे जहाँ सsत अज़ाब
होगा, Jयं,ू क वह अ.लाह तआला के नाफरमान (अवŒाकार9) बंदे ह
जो परू 9 काएनात म^ सबसे tयादा बरु े ह। अ.लाह और उसके रसल
ू
पर ईमान लाकर नेक कायL करने वाले ज\नत ( वगL) म^ दा]ख़ल
,कए जाएंगे जहाँ अ.लाह तआला ने Nव‘ाम और सजावट क ऐसी
ऐसी चीज़^ तैयार (उपलvध) कर रखी ह ,क हमार9 बNु • (समझ)
उनके बारे म^ सोच भी नह9ं सकतीं, नेक लोग ह9 सबसे tयादा अfछr
मख़लूक़ ह।
62
आ]ख़र9 आयत म^ ज\नत वाल_ क सबसे बड़ी *>तभा (उपहार) का
उ.लेख है , और वह अ.लाह क रज़ा (*स\नता) है । Dज़रत अबुसईद
ख़द
ु र9 रिज़य.लाहु अ\हु फ़रमाते ह ,क रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने इरशाद फ़रमाया ,क अ.लाह तआला जि\\तय_ से
]ख़ताब फ़रमाएँगे (कह^ गे): “ऐ जि\\तयो! िजसपर ज\न>त लोग
जवाब (उiतर) द^ गे: ऐ हमारे रब! हम हािज़र ह और आपके DुJम पर
अमल करने के लए तैयार ह और हर भलाई आप ह9 के क़vज़े म^
है । ,फर अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाएँगे: तुम सब राज़ी और ख़श
ु
हो। ज\न>त जवाब द^ गे, अब भी राज़ी ना होने क Jया मतलब है ?
जब,क आप ने हम^ सबकुछ अता फ़रमा Qदया जो ,कसी मख़लूक़ को
नह9ं मला। अ.लाह तआला फ़रमाएंगे ,क Jया म तुमको इससे भी
अफ़ज़ल और बेहतर उपहार दे दँ ?
ू ,फर फ़रमाएंगे ,क मने अपनी
रज़ा (सहम>त / *स\नता) तु8हारे ऊपर उतार द9, अब म तुमसे कभी
नाराज़ नह9ं हूँगा”। (बुख़ार9: बाब सफ़तुल ज\न>त व\नार9)
इस आयत म^ भी यह िज़a ,कया गया है ,क िजस तरह अ.लाह
तआला अपने ब\द_ से राज़ी होगा, इसी तरह तमाम ज\न>त भी
अ.लाह तआला से राज़ी और ख़श
ु ह_गे।
63
सरू ह अल ज़लज़लाह
ﺳﻮرة اﻟﺰﻟﺰﻟﺔ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ضـﺖ ْاﻷَ ْر ُ ض ِزﻟ َْﺰاﻟَ َﻬ ـ ـ ـ ـ ــﺎ) (१وأَ ْﺧﺮﺟ ـ ـ ـ ـ ـ ِ ـﺖ ْاﻷَ ْر ُ إِذَا ُزﻟْ ِﺰﻟَـ ـ ـ ـ ـ ِ
َ ََ
ﺴ ــﺎ ُن َﻣ ــﺎ ﻟَ َﻬ ــﺎ) (३ﻳَـ ْﻮَﻣﺌِـ ٍـﺬ ﺗُ َﺤـ ـﺪ ُ
ث اﻹﻧْ َـﺎل ِْأَﺛْـ َﻘﺎﻟَ َﻬ ــﺎ)َ (२وﻗَـ َ
ﻚ أَوﺣ ٰﻰ ﻟَﻬﺎ) (५ﻳـﻮﻣﺌِ ٍ
ـﺎس
ُ
ﻨ اﻟ ر
ُ ﺪ
ُ ﺼ
ْ ﻳ ﺬ َْ َ أَ ْﺧﺒَ َﺎرَﻫﺎ) (४ﺑِﺄَ ن َرﺑَ َ ْ َ
ـﻞ ِﻣﺜْـ َﻘـ َ
ـﺎل ذَ رٍة َﺧ ْﻴ ـ ًـﺮا
أَ ْﺷــﺘَﺎﺗًﺎ ﻟﻴُ ـ َـﺮْوا أَ ْﻋ َﻤــﺎﻟَ ُﻬ ْﻢ) (६ﻓَ َﻤـ ْـﻦ ﻳـ ْﻌ َﻤـ ْ
ﺎل ذَ رٍة َﺷ ﺮا ﻳـ َﺮﻩ )(८ ﻳـ َﺮﻩ)َ (७وَﻣﻦ ﻳـ ْﻌ َﻤ ْﻞ ِﻣﺜْـ َﻘ َ
64
सूरह ‘अल ज़लज़लाह’ क सं !"त तफ़सीर
*या एक 5दन ज़मीन अपने अWदर के सभी इंसान और
ख़ज़ान को बाहर नकाल दे गी?
65
क़ुरान और Dद9E क रोशनी म^ उ8मत-ए-मुि लमा क सहम>त है ,क
दो बार “Eूर” फँू का जाएगा, पहल9 बार “Eूर” फँू कने के बाद पूर9
द>ु नया ख़iम (न{ट) हो जाएगी और दस
ू र9 बार “Eूर” फँू कने के बाद
Dज़रत आदम अलैQह सलाम से लेकर क़यामत तक आने वाले सभी
मुदo िजंदा होकर ज़मीन से उठ^ गे। दस
ू र9 आयत से मालूम होता है ,क
इस सूरह म^ दस
ू र9 बार “Eूर” फँू कने के व¢त (समय) आने वाला
ददL नाक ज़लज़ला (भूकंप) मुराद है ।
“अEक़ाल” “ E¢ल” क जमा (बहुवचन) है , िजसका अथL “भार”
(वज़न) और “बोझ” है , इससे मुराद मुदo ह जो ज़मीन म^ दफ़न ह।
िजन मुदg को दफ़न करने के बजाए जला Qदया जाता है वह भी
मानो ज़मीन ह9 दफ़न ,कये जाते ह, Jयूं,क उनक जल9 हुई राख
और ह¦डी आQद सब ज़मीन ह9 का Qह सा (अंग) बन जाती ह, इसी
तरह वह लोग जो “सुनामी” के कारण मर जाते ह, Jयूं,क हक़ क़त
(वा तव) म^ समुe (सागर) भी ज़मीन ह9 का एक Qह सा (भाग) है ।
“ E¢ल” से वह खज़ाने भी मुराद ह जो ज़मीन म^ मौजूद ह, यानी
दस
ू र9 बार “Eूर” फँू कने के बाद ज़मीन तमाम इंसान_ और खज़ान_
को बाहर >नकाल दे गी। मसाइल और परमाणु बम के दौर म^ इसको
समझना बहुत आसान हो गया है , Jयं,ू क वतLमान समय म^ इंसान
क बनाई हुई नई टे Jनोलोजी के ज़5रए कमरे म^ बैठकर हज़ार_
,कलोमीटर क दरू 9 पर बम गराकर ,कसी भी े} को तरु ं त ह9 (उसी
समय) बबाLद (तबाह) ,कया जा सकता है ।
“व क़ालल इ\सानु मा लहा”: उस ददL नाक ि थ>त म^ इंसान पर जो
असर पड़ेगा, उसको अ.लाह तआला बयान फ़रमाता है : इंसान
66
घबराकर कह उठे गा ,क अरे , इस ज़मीन को Jया हो गया है ,क यह
तो Qटकने का नाम ह9 नह9ं ले रह9।
इंसान के अŒछे बरु े सभी काय• को धरती बयान कर दे गी
“यवमइिज़\न तुDQ[Eु अख़बारहा, nबअ\ना रvबका अवDालहा”: उस
Qदन ज़मीन अपनी पूर9 ख़बर^ बता दे गी, Jयूं,क तु8हारे रब ने उसे
यह9 DुJम (आदे श) Qदया होगा, यानी आ.लाह तआला जो ज़मीन
और आसमान का पैदा करने वाला है , उसके DुJम (आदे श) से सभी
इंसान_ के अfछे बुरे सभी कायg को ज़मीन बयान कर दे गी। जैसा
,क Dुज़ूर-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया:
“िजस Qदन ज़मीन अपनी तमाम (पूर9) ख़बर^ बता दे गी। तथा नबी-ए-
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: “Jया तुम जानते हो
,क ज़मीन क ख़बर^ Jया ह_गी? EDाबा-ए-,कराम (रिज़य.लाहु
अ\हुम) ने अज़L (कहा) ,कया: अ.लाह और उसका रसूल ह9 बेहतर
जानता है । नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
फ़रमाया: ज़मीन क ख़बर^ यह होगी ,क वह हर मदL और औरत पर
गवाह9 दे गी ,क उसने ज़मीन पर Jया Jया काम ,कया है और वह
बताएगी ,क उस |यिJत ने उस समय म^ यह-यह काम ,कया है ।
(>तर मज़ी) यानी िजस तरह बक से पूरा vयौरा (Nववरण) मालूम
,कया जा सकता है ,क खाते म^ ,कतना पैसा कहाँ कहाँ जमा ,कया
गया और ,कस तार9ख़ म^ ,कस ATM मशीन से ,कतना पैसा
>नकाला गया। आजकल WhatsApp के ज़5रए यह पता लगाया जा
सकता है फ़लाना (वह) |यिJत कहाँ कहाँ जाता है और उसने कौन
सा पल कहाँ गज़
ु ारा (nबताया)। सरकार क जाँच ट9म के मांगने पर
,कसी भी |यिJत क ग>तNव ध क परू 9 जानकार9 सोशल मी„डया के
67
मा लक_ से *ाXत क जा सकती है । इंसान समझता है ,क उसने
इ\टरनेट या WhatsApp से पूर9 जानकार9 मटा द9 ह, परं तु उसे
मालूम होना चाQहए ,क उसका लखा हुआ या बोला हुआ एक एक
शvद और ,कसी भी |यिJत को शेयर (भेजा हुआ) ,कया हुआ एक
एक फ़ोटो इंसान क तैयार क हुई टे Jनोलोजी म^ सुर त है , जो
,कसी भी व¢त (समय) सामने लाया जा सकता है । आजकल CCTV
कैमरे से बहुत सी जानकार9 सुर त हो जाती है । इसी तरह ज़मीन
अ.लाह के DुJम (आदे श) से इंसान क पूर9 िज़ंदगी के एक एक पल
का 5रकॉडL सेक^ड_ म^ >नकाल दे गी और इंसान उसको दे खकर हJका-
बJका (भ«चJका) रह जाएगा और कहे गा ,क आज इस ज़मीन को
Jया हो गया है ।
“यवमइिज़ं यEद?
ु न नासु अशतातल लयुरव अअ़मालहुम:” इसके दो अथL
हो सकते ह, एक याह ,क हर एक अकेला अपनी |यिJतगत (अलग
अलग) ि थ>त म^ होगा, इसका समथLन क़ुरान-ए-कर9म से भी होता है ,
अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : “अकेला हमारे पास आएगा”,
(सूरह मरयम: ८०) इनम^ से हर एक क़यामत के Qदन अ.लाह
तआला के दरबार म^ अकेला हािज़र (उपि थत) होगा”, (सरू ह मरयम:
९५)। दस
ू रा अथL यह भी हो सकता है , ,क वह सभी लोग जो हज़ार
वषL के बीच जगह जगह मरे थे, ज़मीन के कोने कोने से झंड
ु के झंड
ु
(दल के दल) चले आ रहे ह_गे, जैसा ,क अ.लाह तआला इरशाद
फ़रमाता है : “िजस Qदन Eरू फँू का जाएगा तो तुम फ़ौज के फ़ौज
आओगे”, (सरू ह नबा: १८)। बहरDाल िजस तरह द>ु नया म^ लोग
Power Point Presentation के ज़5रए अपनी या अपनी कंपनी क
उपलिvध (*दशLन) पैश करते ह, इसी तरह बि.क इस से लाख_ गुना
68
tयादा *मा]णक जानकार9 के साथ हर |यिJत को उसके ,कये हुए
सभी कायo Qदखाए जाएंगे।
फ़मयं यअ़मल मEक़ाला ज़रL >तन ख़यरयं यरह, वमयं यअ़मल मEक़ाला
ज़रL >तन शरL यं यरह:” यह आयत पहल9 आयत क तफ़Eील (vयौरा)
बयान कर रह9 है ,क िजसने थोड़ी सी भी नेक क होगी वह भी
उसके सामने आएगी और िजसने थोड़ी सी भी बुराई क होगी वह भी
उसके सामने आएगी। यहाँ यह बात याद रखनी है ,क हर मो मन
और का,फ़र क छोट9 बड़ी नेक या बुराई उसके सामने आएगी तो
ज़ˆर, ले,कन उस >नयम के अनुसार आएगी जो अ.लाह तआला ने
क़ुरान-ए-कर9म म^ दस
ू र9 जगह_ पर िज़a फ़रमाई है , यानी एक
मो मन यह दे खेगा ,क उससे ने,कय_ के साथ वह वह गल>तयाँ भी
हुई ह ले,कन अ.लाह तआला ने उसक इन इन ने,कय_ को इनका
क‡फ़ारा बना Qदया है , इसी तरह एक का,फ़र यह दे खेगा ,क उसने
बुराइय_ के साथ कुछ नेक काम भी ,कये ह, ले,कन वह नेक काम
उसके उन बुरे कायg और Nवƒवास (Nवचार_) के कारण न{ट कर Qदए
गए या उनका द>ु नया म^ ह9 कोई बदला दे Qदया गया था, Jयूं,क
आ]ख़रत क कामयाबी (सफलता) के लए सबसे ब>ु नयाद9 शतL
अ.लाह और उसके रसल
ू पर ईमान लाना है । सांसा5रक जीवन के
अfछे बरु े कायo दे खने के बाद हर |यिJत अपना Qठकाना समझ
जाएगा। इसी को अ.लाह तआला ने सरू ह “अलक़ा5रआत” म^ बयान
फ़रमाया है : “िजस |यिJत के पलड़े भार9 ह_गे (यानी िजसने द>ु नया
म^ अfछे कायo ,कये ह_गे) तो वह पसंद9दा जीवन म^ होगा (यानी
ज\नत म^ होगा) और िजसके पलड़े हलके ह_गे (यानी िजसने द>ु नया
म^ अपनी चाहत क पैरवी (पालन) क होगी) तो उसका Qठकाना एक
69
गहरा ग¦ढा होगा, और तु8ह^ Jया मालूम ,क वह गहरा ग¦ढा Jया
चीज़ है ? वह एक दहकती हुई आग है (िजसम^ अ.लाह तआला के
नाफ़रमान_ (अपरा धय_) और पाNपय_ को डाला जाएगा)।
70
से >निƒचत ˆप से फ़ायदा उठाएँ, ले,कन उसके अDकाम (आदे श_) का
पालन करते हुए, Jयूं,क एक Qदन ऐसा ज़ˆर आएगा ,क द>ु नया के
,कसी बड़े दे श के *मखु (*बंधक) होने के बावजूद, द>ु नया म^ सबसे
tयादा धन रखने के बावजूद, द>ु नया के बड़े से बड़ा वैŒा>नक बनने
के बावजूद और द>ु नया म^ बहुत tयादा लोकN*यता *ाXत करने के
बावजूद हम भी सभी इंसान_ क तरह एक Qदन ज़मीन म^ दफ़न कर
Qदये जाएंगे, और लोग धीरे धीरे हम^ भूल जाएंगे। पूणL ˆप से आज
साइंस (NवŒान) Nवकास (उ\न>त) करने के बावजूद भी यह समझने
से असमथL है ,क मौत का मज़ा न चखने क इfछा रखने के
बावजूद आ]ख़र सभी इंसान मर ह9 Jयूँ जाते ह और वह Jयूँ पैदा
हुए ह?
भूकंप के जो दन
ु यावी कारण िज़a (चचाL) ,कए जाते ह, उनका हम
इंकार नह9ं करते, Jयूं,क द>ु नया को अ.लाह तआला ने कारण_ का
घर बनाया है , ले,कन हमारा यह ईमान और अक़ दा (Nवƒवास) है ,क
िजस तरह पूर9 द>ु नया ख़द
ु बख़द
ु (अपने आप) थाNपत नह9ं हो गई,
इसी तरह भूकंप अपने आप नह9ं आते, असल म^ इसके पीछे अ.लाह
का DुJम (आदे श) होता है , इ सलए अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता
है : “लोग_ ने अपने हाथ_ से जो कमाई क , उसक वजह से सख
ू े और
गीलेपन (तर) म^ -{टाचार (दं गा) फैला, ता,क उ\ह_ने जो कायL ,कये
ह अ.लाह उनम^ से कुछ का मज़ा ( वाद) उ\ह^ चखाए, शायद वह
बाज़ आ जाएँ (?क जाएँ)”। (सरू ह ˆम: ४१) यानी द>ु नया म^ जो आम
(सावLज>नक) मस
ु ीबत^ लोग_ पर आ¡, जैसे अकाल, आफ़त (महामार9),
भूकंप, तानाशाह_ (अiयाचा5रय_) का शासन, उनका असल कारण यह
था ,क लोग_ ने अ.लाह तआला के DुJम_ (आदे श_) का उ.लंघन
71
,कया और इस तरह यह मुसीबत^ अपने हाथ_ मोल ल9ं और उनका
एक ल®य यह था ,क मुसीबत_ से Š त (पी„ड़त) होकर लोग_ के
Qदल कुछ नरम पड़^ और वह अपने बुरे कायg से ?क जाएँ।
72
सरू ह अलआ5दयात
ﺳﻮرة اﻟﻌﺎدﻳﺎت
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﺎت ﻗَـ ْﺪﺣﺎ) (२ﻓَـﺎﻟْﻤ ِﻐ ْﻴـﺮ ِ
ات ﺿ ْـﺒﺤﺎ) (१ﻓَﺎﻟْﻤﻮِرﻳ ِ
َ واﻟْﻌ ِ
ﺎدﻳ ِ
ـﺎت
ُ َ ً َ ْ ُ ً َ َ َ
ْﻦ ﺑِـﻪ َﺟ ْﻤ ًﻌــﺎ) (५إِ ن ِ
ﺻ ْـﺒ ًﺤﺎ) (३ﻓَـﺄَﺛَـ ْﺮ َن ﺑـﻪ ﻧَـ ْﻘ ًﻌـﺎ) (४ﻓَـ َﻮ َﺳـﻄ َ ُ
ﺸ ِﻬ ْﻴ ٌﺪ)َ (७وإِﻧﻪ ﺴﺎ َن ﻟَِﺮﺑِﻪ ﻟَ َﻜﻨُﻮ ٌد)َ (६وإِﻧﻪ َﻋﻠَ ٰﻰ ذَﻟِ َ
ﻚ ﻟَ َ ِْ
اﻹﻧْ َ
ﺸ ـ ِـﺪﻳْ ٌﺪ) (८أَﻓَـ َـﻼ ﻳَـ ْﻌﻠَـ ُـﻢ إِذَا ﺑُـ ْﻌﺜِ ـ َـﺮ َﻣ ــﺎ ﻓِ ــﻲ ﻟِ ُﺤ ـ
ـﺐ اﻟْ َﺨ ْﻴـ ـ ِﺮ ﻟَ َ
ﺼـ ُﺪ ْوِر) (१०إِ ن َرﺑـ ُﻬـ ْـﻢ ﺑِ ِﻬـ ْـﻢ ـﻞ َﻣــﺎ ﻓِــﻲ اﻟ ﺼـ َ اﻟْ ُﻘﺒُ ـ ْـﻮِر)َ (९و ُﺣ
ﻳَـ ْﻮَﻣﺌِ ٍﺬ ﻟَ ﺨﺒِْﻴـ ٌﺮ )(११
73
सूरह ‘अलआ5दयात’ क सं !"त तफ़सीर
इWसान अपने रब का बड़ा नाशुCा है
सूरह अलआ5दयात का अनुवाद: क़सम है उन घोड़_ क जो हाँफ़ हाँफ़
कर दोड़ते ह, ,फर जो (अपनी टाप_ से) चंगा5रयाँ उड़ाते ह, ,फर
सुबह के व¢त (समय) यलग़ार (आaमण-चढ़ाई) करते ह, ,फर उस
मौक़े पर ग़ब
ु ार (धल
ू ) उड़ाते ह, ,फर उसी व¢त (समय) ,कसी
जमघट (भीड़) के बीच म^ जा घुसते ह, ,क इ\सान अपने रब का
बड़ा नाशa
ु ा है , और वह ख़द
ु इस बात का गवाह है , Dक़ क़त
(सfचाई) यह है ,क वह माल क मुहvबत म^ बहुत पJका है , या>न
वह दौलत (धन) का र सया ( वादलोलप
ु |यिJत) है । भला Jया वह
समय उसे मालूम नह9ं है जब क़m_ म^ जो कुछ है उसे बाहर nबखेर
Qदया जाएगा और सीन_ म^ जो कुछ है उसे ज़ाQहर (सामने) कर Qदया
जाएगा। यक़ नन (>निƒचत ˆप से) उनका रब उस Qदन उन (क जो
हालत होगी उस) से पूर9 तरह बाख़बर है ।
74
इस अवसर पर ख़ास तौर पर जंगी घोड़_ क इंसान_ क र ा के लए
क़ुबाL>नय_ (ब लदान_) का बयान ,कया गया है ,क वह अपने वामी
यानी इंसान क DुJमबरदार9 (आŒाका5रता) और ]ख़दमत (सेवा) के
लए अपनी जान क बाज़ी लगा कर हर समय अपने दन ु यावी
(सांसा5रक) वामी क र ा के लए तैयार रहता है । पाँच आयत म^
क़सम खाने के बाद अ.लाह तआला ने इंसान क नाशुa का बयान
,कया है ,क वह अपने घोड़_ और अन गनत अ\य चीज़^ िजनको
अ.लाह तआला ने इंसान क सेवा के लए उपलvध ,कया है , से
सीख कर अपने असल9 मा लक क तरफ़ Jय_ नह9ं लौटता? इंसान_
का भी तो ख़ा लक़ मा लक और रािज़क़ वह9 है , घोड़_ से सबक़
(उदाहरण) *ाXत करके इंसान अपने असल9 मा लक के फ़रमांबरदार9
(अनुपालन) के लए उसके आदे श_ के अनुसार दन
ु यावी (सांसा5रक)
िज़\दगी (जीवन) Jयूँ नह9ं गुज़रता? अपनी मज़’ से द>ु नया के रात
Qदन Jय_ गुज़ारना चाहता है ?
आठवीं आयत म^ अ.लाह तआला ने इंसान के कंजूस होने पर उसक
>नंदा क है ,क अ.लाह तआला ह9 ने इंसान को धन, पद और
औलाद द9 है और यह परू 9 काएनात भी अ.लाह तआला के DुJम
(आदे श) से वज
ु द
ू (अि तiव) म^ आई है , ले,कन माल *ाXत करने के
बाद इंसान माल के बारे म^ अ.लाह तआला और लोग_ के अ धकार
परू 9 तरह अदा नह9ं करता बि.क गन गन कर छुपा छुपा कर रखता
है और लोग_ पर ज़.
ु म (अiयाचार) भी करता है , Dालां,क एक Qदन
ऐसा ज़ˆर आएगा ,क माल और दौलत और परू 9 जायदाद (संपिiत)
यह9ं रह जाएगी और ख़ाल9 हाथ द>ु नया को छोड़कर जाना पड़ेगा।
क़ुदरत का कैसा अनोखा >नज़ाम (*णाल9) है ,क हर सौ साल के बाद
75
द>ु नया के ज़ाQहर9 वामी ज़मीन के नीचे चले जाते ह और दस
ू रे
लोग ज़मीन के Nव भ\न Qह स_ पर क़vज़ा कर लेते ह, Dालां,क उ\ह^
भी ख़ाल9 हाथ इस द>ु नया से चले जाना है । कुछ Qदन प5रवारजन
मरने वाले अपने क़र9बी 5रƒतेदार_ को याद रखते ह, ,फर वह भी
अपनी दन
ु यावी (सांसा5रक) जीवन म^ ऐसे म त हो जाते ह ,क कभी
कभी केवल उनका चचाL ,कया करते ह, Dालां,क उ\ह^ भी अfछr तरह
मालूम है ,क ,कसी भी पल मौत का फ़5रƒता उनक भी ˆह (*ाण)
>नकालने के लए आ सकता है , या>न उ\ह^ भी इस द>ु नया से अपने
बाप दादा क तरह ख़ाल9 हाथ जाना है ।
77
श‹द क तkक़ क़ (अनुसंधान): “वाव” क़सम के लए है , “आQदयात”
का अथL “दोड़ने वाला” है , ले,कन यहाँ यह घोड़े क सफ़त (Nवशेषता)
के तौर पर आया है , Jयूं,क इसके बाद आने वाल9 चार सफ़ात
(Nवशेष गुण) घोड़े के अलावा ,कसी और चीज़ क नह9ं होतीं। “ज़vD”
वह ख़ास आवाज़ है जो घोड़े के दोड़ने के व¢त (समय) नथन
ु _ से
>नकलती है , िजसका अनुवाद “हांपना” ,कया गया है । “मू5रयात”
“ईरा” से बना है , िजसका अथL “आग >नकालना” है जैसे चक़माक़
पiथर रगड़ कर या मा चस को रगड़ कर >नकल9 जाती है । “क़दD”
का अथL “ठोकर लगाना और एक चीज़ को दस
ू र9 चीज़ से टकराना
है ”। पथर9ल9 ज़मीन पर जब घोड़ा तेज़ी से दोड़े, ख़ासकर जब,क
उसके पैर म^ लोहे क नाल भी हो तो टकराव से आग क चंगा5रयाँ
>नकलती ह। “मुग़ीरात” “इग़ारह” से बना है , िजसका अथL “Dमला
करना” है , सुबह के समय तख़EीE (Nवशेषता) आदत के तौर पर है ,
Jयूं,क अरब के लोग बहादरु 9 को Qदखाने के लए रात के अँधेरे म^
छापा मारने को अfछा नह9ं समझते थे, इस लए वह हमला सुबह
होने के बाद ,कया करते थे। “अEरना” “अEार” से बना है , िजसका
अथL “उड़ाना” और “उभरना” है , और “नक़अ” का अथL “गदL और
गब
ु ार” है , मरु ाद यह है ,क यह घोड़े मैदान म^ इतनी तेज़ दोड़ते ह
,क उनके खरु _ से धल
ू उड़कर छा जाती है । “फ़वसwना nबह9 जमआ”
यह दƒु मन_ क कतार_ म^ बेखोफ़ और ख़wर (>नडर होकर) घस
ु जाते
ह, उ\ह^ अपनी जान_ से tयादा अपने मा लक_ का मक़Eद (ल®य)
Xयारा होता है , इसके लए वह हर ख़wरा (संकट) से >नडर होकर
आगे बढ़ते ह और यह9 उनका मक़Eद (ल®य) है । बहरDाल अ.लाह
तआला ब\द_ के Dाल (प5रि थ>त) पर दया फ़रमाकर घोड़_ के
78
Nवभ\न ख़nू बय_ क क़सम खाकर इरशाद फ़रमाता है , ता,क घोड़_ क
तरह इंसान भी अ.लाह का शुaगुज़ार (आभार9) बंदा बनकर दोन_
जहां (द>ु नया) क सफलता *ाXत करने वाला बन जाए। “इ\नल
इनसाना लरिvबह9 लकनूद” यह वह असल बात है िजस पर गवाह9
के लए घोड़_ क कुछ ख़nू बय_ क क़सम^ खाई गई ह, यानी कुछ
क़सम^ खाकर ख़ा लक़-ए-काएनात ने फ़रमाया: “इंसान अपने रब का
बड़ा नाशुaा है । इस आयत म^ अ.लाह तआला ने इंसान को “कुनूद”
कहा है , िजसका अथL नाशुaा है । Dज़रत Dसन बसर9 रQDमहु.लाहु ने
फ़रमाया: “वह |यिJत जो दख ु _ को याद रखे और गुण_ (उपहार_) को
भूल जाए उसको “कुनूद” कहा जाता है । बहरDाल जो इंसान अपने
घोड़_ क यह सार9 जांबाज़ी (>नडरता) दे खता है और उनक क़ुबाL>नय_
से फ़ायदा उठाता है , परं तु उसे सोचने क तौफ़ क़ नह9ं होती ,क वह
भी अपने रब का गुलाम है , उसको भी ,कसी ने पैदा ,कया है , Jयूं,क
वह और पूर9 काएनात अपने आप कैसे थाNपत हो सकती है ? तो
उसक यह िज़8मेदार9 है ,क वह भी उ\ह9 घोड़_ क तरह अपने
असल9 मौला और आक़ा (रब) क आŒाका5रता (कतL|य) के लए हर
समय तैयार रहे । मालूम हुआ ,क इंसान नाशa
ु ा (|यथL-अनप
ु ादे य) है ,
Jयं,ू क घोडा जानवर होकर भी अपने मा लक का Dक़ पहचानता है ,
ले,कन इंसान मख़लक़
ू म^ सबसे महान होकर भी अपने असल9 रब
का Dक़ नह9ं समझता। इस जगह पर घोड़_ का िज़a केवल मEाल
(उदाहरण) के तौर पर ,कया गया है , अ\यथा (वरना) अ.लाह
तआला ने अपनी बेशुमार (अन गनत) मख़लक़
ू ात इंसान के अधीन
(तDत) कर द9 ह, इंसान के जीवन का कोई भी पल ऐसा नह9ं
गुज़रता है ,क वह अ.लाह तआला के सेकड़_ दान_ (उपहार_) से
79
फ़ायदा न उठा रहा हो, यहाँ तक ,क जो साँस लेता है वह भी
अ.लाह क कृपा और उसक मख़लूक़ात से फ़ायदा उठाए बग़ैर संभव
नह9ं है ।
“व इ\नहू अ़ला ज़ा लका लशह9द” अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता है
,क इंसान के नाशa ु ा होने पर ,कसी दल9ल (तकL) क ज़ˆरत
(आवƒयकता) नह9ं है , उसका |यवहार (बताLव) ह9 ख़द
ु गवाह9 दे ता है
,क वह नाशुaा है ।
“व इ\नहू लDुिvबल ख़यर9 लशद9द” इंसान के नाशुaा होने के लए
उसके च5र} (भू मका) से ह9 एक दल9ल (तकL) अ.लाह तआला पैश
फ़रमा रहा है ,क वह माल (धन) क बुहत िज़यादा मुहvबत का
शकार है । इंसान को अपने घोड़_ को दे खना चाQहए ,क वह जान क
बाज़ी लगाकर जो कुछ *ाXत करते ह वह सब मा लक का हो जाता
है , अपने लए ,कसी चीज़ का सवाल नह9ं करते, मा लक जो कुछ
उनके आगे डाल दे ता है उस पर संतु{ट हो जाते ह, ले,कन इंसान क
ि त थ यह है ,क जो माल भी अ.लाह क कृपा (दया) से *ाXत
होता है उसको सफ़L और सफ़L अपना समझकर अपनी इfछाओं
(आशाओं) का पालन करना चाहता है और माल के बारे म^ अ.लाह
तआला के Dुक़ूक़ (अ धकार_) को अदा करना तो अलग दस
ू रे इंसान_
के Dुक़ूक़ (अ धकार) भी खा जाता है ।
“अफ़ला यअ़लमु इज़ा बुअ़ Eरा मा,फ़ल क़ुब5ू र वDुि•Eला मा,फ़•Eद
ु रू ” इन
आयात से लापरवाह इंसान को अ.लाह तआला चेतावनी दे रहा है ,क
वह उस Qदन को भल
ू गया है जब मद
ु o क़m_ से िजंदा करके उठा लए
जाएँगे और Qदल_ म^ छुपी हुई बात^ खलु कर सामने आ जाएँगी,
Dालां,क इंसान जानता है ,क अ.लाह तआला सभी इंसान_ के Dालात
80
(प5रि थ>तय_) को ख़ब
ू जानता है , इस लए समझदार9 यह है ,क
इंसान अ.लाह तआला क नाशुa से ?क जाए और माल क
मुहvबत म^ ऐसा न डूब जाए ,क अfछे बुरे क पहचान भी न करे ,
Jयूं,क क़यामत के Qदन हर |यिJत से सवाल ,कया जाएगा ,क माल
कहाँ से कमाया? यानी संसाधन Dलाल (वैध) थे या Dराम (अवैध)?
तथा ख़चL कहाँ ,कया? यानी अ.लाह तआला और लोग_ के Dक़
(अ धकार) अदा ,कये या नह9ं?
“इ\ना रvबहुम nबQहम यवमिज़ल लख़ाबीर” कहकर अ.लाह तआला ने
यह ऐलान कर Qदया है ,क हर इंसान क िज़ंदगी के एक एक पल
को सुर त ,कया जा रहा है । आज के कंXयूटर के ज़माने म^ इसको
समझना बहुत आसान हो गया है , Jयूं,क जब इंसान के तैयार ,कये
हुए *ोŠाम_ के ज़5रए लोग_ क परू 9 *,aयाएँ (ग>तNव धयां) सुर त
हो जाती ह तो ,फर ख़ा लक़-ए-काएनात के >नज़ाम (*णाल9) म^ ऐसा
Jयूँ नह9ं हो सकता?
81
सरू ह अल-क़ाOरया
ﺳﻮرة اﻟﻘﺎرﻋﺔ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
اك َﻣـﺎ اﻟْ َﻘﺎ ِر َﻋـﺔُ) (३ﻳَـ ْـﻮَم اَﻟْ َﻘﺎ ِر َﻋﺔُ)َ (१ﻣﺎ اﻟْ َﻘﺎ ِر َﻋﺔُ)َ (२وَﻣـﺂ أَ ْد َر َ
ث) (४وﺗَ ُﻜـ ــﻮ ُن اﻟ ِ اش اﻟْﻤﺒﺜُـ ــﻮ ِ
ـﺎل
ْﺠﺒَـ ـ ُ َ ْ ـﺎس َﻛـ ــﺎﻟْ َﻔ َﺮ ِ َ ْ ْ ﻳَ ُﻜـ ـ ْـﻮ ُن اﻟﻨـ ـ ُ
ـﺖ َﻣ َﻮا ِزﻳﻨُــﻪ) (६ﻓَـ ُﻬـ َـﻮ ش) (५ﻓَﺄَ ﻣــﺎ َﻣـ ْـﻦ ﺛَـ ُﻘﻠَـ ْ َﻛ ـﺎﻟ ِْﻌ ْﻬ ِﻦ اﻟ َْﻤ ْﻨـ ُﻔـ ْـﻮ ِ
ـﺖ َﻣ َﻮا ِزﻳﻨُــﻪ) (८ﻓَﺄُﻣــﻪ اﺿــﻴَ ٍﺔ)َ (७وأَ ﻣــﺎ َﻣـ ْـﻦ َﺧ ﻔـ ْ
ﺸـ ٍـﺔ ر ِ ﻓِــﻲ ِﻋ ْﻴ َ
ﺎر َﺣ ِﺎﻣﻴَﺔٌ )(११ اك َﻣﺎ ﻫﻴَ ْﻪ) (१०ﻧَ ٌ
ﻫﺎ ِوﻳﺔٌ) (९وﻣﺂ أَ ْدر َ ِ
ََ َ َ َ
82
सूरह ‘अल-क़ाOरया’ क सं !"त तफ़सीर
एक सूर पूर1 कायनात को ख़Pम कर दे गा
सूरह अल-क़ाOरया का अनुवाद: याद करो वह वाक़ेया जो Qदल
दहलाकर रख दे गा। Jया है वह Qदल दहलाने वाला वाक़ेया? और
तु8ह^ Jया मालूम वह Qदल दहलाने वाला वाक़ेया Jया है िजस Qदन
सारे लोग फैले हुए परवान_ क तरह हो जाय^गे। और पहाड़ ध\
ु के हुए
रं गीन ऊन क तरह हो जाय^गे। िजस |यिJत के पलड़े वज़नी ह_गे
(या>न िजसने द>ु नया म^ अfछे आमाल ,कये ह_गे) तो वह मनपंसद
िज़\दगी म^ होगा (या>न ज\नत म^ होगा)। और िजस के पलड़े ह.के
ह_गे (या>न िजसने दन
ु यावी िज़\दगी को अपनी इfछा के अनस
ु ार
nबताया होगा) तो उसका Qठकाना एक गहरा गढ़ा होगा, और तु8ह^
Jया मालूम ,क वह गहरा गढ़ा Jया चीज़ है ? वह एक दहकती हुई
आग है (िजसम^ अ.लाह के नाफ़रमान_ और गुनाहगार_ को डाला
जायेगा)।
क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^ पूर9 उ8मते मुि लमा का सहमती
है ,क एक Qदन हज़रत इjाफ़ ल अलैQह सलाम के सूर से पूर9
कायनात म^ ऐसा ज़लज़ला आयेगा ,क दध
ू Nपलाने वाल9 माय^ अपने
दध
ू पीते बfच_ को भूल जाय^गी और गभLवती औरत_ के ह8ल (गभL)
गर जाय^गे। चीख़ और पुकार और ज़लज़ला क श[त बढ़ती
जायेगी, िजससे तमाम इ\सान और जानवर मरना शुˆ हो जाय^गे
यहां तक ,क कायनात म^ कोई भी िज़\दा बाक़ ना बचेगा, जैसा ,क
सूरह अरL हमान (२६-२७) म^ अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : इस
ज़मीन म^ जो कोई है वह खiम होने वाला है । और सफ़L तु8हारे
83
परवरQदगार क जलाल वाल9, फ़tल और करम वाल9 ज़ात बाक़ रह
जायेगी।
अ.लाह तआला ने क़ुरआने कर9म म^ उस Qदन का बार बार िज़a
फ़रमाया है , सफ़L यउमुल क़यामह का शvद ७० जगह_ पर वा5रद
हुआ है । दस
ू र9 मज़हबी ,कताब_ म^ भी उस Qदन का िज़a मलता है ,
यहाँ तक ईसाई और यहूद9 भी उस Qदन को सच मानते ह। अ¢ल
का तक़ाजा भी यह9 है ,क द>ु नया के इस बड़े >नज़ाम का आ]ख़र
कोई मु#य मक़सद (उ[ेƒय) ज़ˆर होना चाQहए और इस अजीब और
ग़र9ब >नज़ाम को चलाने वाल9 एक बहुत बड़ी ज़ात होनी चाQहए
िजसक शिJत का हम अ\दाज़ा नह9ं लगा सकते और इस द>ु नया म^
,कये गये अfछे और बुरे आमाल का बदला या सज़ा भी मलनी
चाQहए।
84
उस समय हर |यिJत को पता चल जायेगा ,क उसने Jया आगे
भेजा और Jया पीछे छोड़ा या>न Jया आमाल ,कये।’’ (सरू ह
अलइि\फ़तार)
“जब आसमान फट जायेगा... जब ज़मीन को खींच Qदया जायेगा
(या>न ज़मीन को रबर क तरह खींच का मौजूदा साइज़ से बहुत बड़ा
कर Qदया जायेगा ता,क उसम^ द>ु नया के वजूद से लेकर क़यामत तक
के सारे लोग समा सक^।) और उस के अ\दर जो कुछ है वह उसे
बाहर फ^क दे गी और ख़ाल9 हो जायेगी। ऐ इ\सान! तू अपने
परवरQदगार के पास पहुंचने तक लगातार ,कसी मेहनत (अ.लाह क
इताअत) म^ लगा रहे गा, यहां तक ,क उससे जा मलेगा।’’ (सूरह
अलइि\शक़ाक़)
“अ.लाह वह है ,क उसके सवा कोई माबूद नह9ं। वह तु8ह^ ज़ˆर
क़यामत के Qदन जमा करे गा िजसके आने म^ कोई शक नह9ं है । और
कौन है जो अ.लाह से tयादा बात का सfचा हो?’’ (सूरह अि\नसा)
“यक़ न जानो फैसले का Qदन एक >निƒचत समय है । िजस Qदन जब
सूर फूंका जायेगा तो तुम सब फ़ौज दर फ़ौज चले आओगे। और जब
आसमान खोल Qदया जायेगा तो उसके दरवाज़े ह9 दरवाज़े बन
जायेग^। और जब पहाड़_ को चलाया जायेगा तो वह रे त क तरह हो
जाएंगे। यक़ न जानो जह\नम घात लगाये बैठr है । वह पाNपय_ का
Qठकाना है । िजसम^ वह म[
ु त_ इस तरह तक़ल9फ़_ म^ रह^ गे ,क वह
उस म^ ना ठं डक का मज़ा चख^ गे और ना पीने के काnबल कोई चीज़
उनको द9 जायेगी, सवाय गमL पानी, पीप और लहू के। यह उनका
पूरा परा बदला होगा। वह अपने आमाल के Qहसाब का अक़ दा नह9ं
रखते थे। और उ\ह_ने हमार9 आयत_ को बढ़ चढ़कर झुठलाया था
85
और हमने हर चीज़ को लखकर महफूज़
़ कर रखा है । अब मज़ा
चखो! इस लए ,क हम तु8हारे लए सज़ा के सवा ,कसी चीज़ म^
बढ़ोतर9 नह9ं कर^ गे।’’ (सूरह अ\नबअ)
“हम उ\ह^ क़यामत के Qदन मुंह के बल इस तरह इक²ा कर^ गे ,क
वह अंधे, गूंगे और बहरे ह_गे। उनका Qठकाना जह\नम होगा। जब
कभी उसक आग धीमी होने लगेगी, हम उसे और tयादा भड़का
द^ गे। यह उनक सज़ा है , Jय_,क उ\ह_ने हमार9 आयत_ का इ\कार
,कया था और यह कहा था ,क Jया जब हम मरकर ह¦„डयाँ ह9
ह¦„डयाँ रह जाय^गे और चरू ा चरू ा हो जाय^गे तो Jया ,फर भी हम^
नये सरे से िज़\दा करके उठाया जायेगा? भला Jया उ\ह^ इतनी सी
बात ना सूझी ,क वह अ.लाह िजसने सारे इ\सान_ और ज़मीन को
पैदा ,कया है वह इस पर क़ाQदर है ,क उन जैसे आदमी ,फर से पैदा
कर दे ? और उसने उनके लए एक ऐसा समय >नधाL5रत कर रखा है
िजसके आने म^ ज़रा भी शक नह9ं है ।’’ (सूरह अलइसराअ)
क़यामत का Qदन पचास हज़ार साल के बराबर होगा जैसा ,क
अ.लाह तआला ने अपने कलाम म^ िज़a फ़रमाया है । ले,कन
क़यामत कब आयेगी? अ.लाह तआला के सवा ,कसी को इसका
इ.म नह9ं है , जैसा ,क अ.लाह तआला ने क़ुरआने कर9म म^ िज़a
फ़रमाया। इस समय सफ़L एक आयत पेश है : “यह लोग आपसे
क़यामत के बारे म^ पछ
ू ते ह ,क वह कब आयेगी? आप फ़रमा द9िजए
,क इसका इ.म सफ़L मेरे रब के पास है । वह9 उसे अपने समय पर
खोलकर Qदखायेगा, कोई और नह9ं। वह आसमान_ और ज़मीन म^
बड़ी भार9 चीज़ है । जब आयेगी तो तु8हारे पास अचानक आ
जायेगी।’’ (सूरह अलअअराफ़)
86
क़यामत के आने क तार9ख़ ऐसा राज़ है जो ख़ा लक़े कायनात ने
,कसी फ5रƒते या नबी को भी नह9ं बताया। हज़रत िज़mाईल
अलैQह सलाम ने नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से पूछा
तो उनको भी यह9 जवाब मला ,क िजससे पूछा जा रहा है वह पूछने
वाले से tयादा नह9ं जानता। (मुि लम)
हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने एक बार शहादत
(पहल9) और बीच वाल9 उं गल9 को मलाकर इरशाद फ़रमाया ,क
िजस तरह यह दोन_ उं ग लयां एक दस
ू रे से मल9 हुई ह, बस समझ^
,क म भी क़यामत के साथ इस तरह भेजा गया हूँ। (मुि लम)
या>न हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम और क़यामत के बीच
का समय द>ु नया के वजद
ू से लेकर हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम क बेअसत (नबी बनाये जाने) तक गज़ ु रे हुए ज़माने का
मुक़ाबले म^ बहुत कम है ।
87
सूर दो बार फूंका जायेगा, पहले सूर के बाद उस समय म^ मौजद
ू ़
सार9 मख़लूक़ मर जायेगी और दस
ू रे सूर के बाद िज़\दा हो जायेगी।
(सूरह अtज़ुमर ६८ और मुि लम)
दोन_ सूर फूंकने क द मLयानी मु[त अ.लाह तआला ह9 जानता है ।
(मुि लम)
सूर क शकल ,कसी जानवर के सींग क तरह होगी िजसम^ फूंक
मार9 जायेगी। (>त मLज़ी)
सूर क आवाज़ बहुत भयानक होगी ,क जैसे जैसे लोग उसक
आवाज़ सुनते जाय^गे मरते जाय^गे। (मुि लम)
दस
ू रे सूर के बाद लोग क़बर_ से उठकर गरोह दर गरोह अ.लाह
तआला क अदालत म^ हािज़र होना शुˆ हो जाय^गे। (सूरह अ\नबअ)
लोग अपनी क़बर_ से इस तेजी से उठ^ गे िजस तेजी से Qट¦„डयाँ
,फ़ज़ा म^ nबखरती ह। (सूरह अलक़मर)
हज़रत आयशा रिज़अ.लाहु अ\हा फ़रमाती ह ,क हुज़ूरे अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया: लोग क़यामत के
Qदन नंगे पांव_, नंगे बदन और ख़तना के बग़ैर इक²ा ,कये जाय^गे।
मने कहा: ऐ अ.लाह के रसल
ू ! Jया सब मदL और औरत^ एक दस
ू रे
क तरफ़ नह9ं दे ख^गे। हुज़रू े अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
इरशाद फ़रमाया: ऐ आयशा! वह Qदन इतना सsत होगा ,क ,कसी
ू रे क तरफ़ दे खने का होश भी ना होगा। (मिु लम)
को एक दस
क़यामत का 5दन:
द>ु नया के वुजद
ू ़ से लेकर क़यामत तक सारे इ\सान मैदाने ह‘ म^
जमा हो जाय^गे। (सूरह अलकहफ़ ४७) लोग_ के जमा होने क जगह
88
या>न मैदान ह‘ सर ज़मीने शाम म^ होगा। (मुसनद अहमद) हुज़ूरे
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया: क़यामत के
Qदन सूरज मख़लूक़ से सफ़L मील भर फ़ा सले पर आ जायेगा और
लोग अपने आमाल के मुताnबक़ पसीने म^ डूबे हुए ह_गे, कोई टखनो
तक, तो कोई घुटन_ तक पसीने म^ डूबा हुआ होगा। ले,कन नेक
लोग_ के लए ह‘ का पचास हजार साल का ल8बा असाL एक घड़ी
के बराबर महसूस होगा। (तबरानी, सह9ह nबन Qहvबान) ह‘ क गम’,
पसीना और ल8बी अव ध से तंग आकर अ.लाह के नाफ़रमान लोग
दआ
ु कर^ गे ,क या अ.लाह! हम^ ह‘ से छुटकारा दे चाहे उ\ह^
जह\नम म^ डाल Qदया जाये।
89
बादशाह। दस
ू रा वह नौजवान िजसने अपनी जवानी अ.लाह क
इबादत म^ लगाई। तीसरा अ.लाह का वह नेक बंदा िजसका Qदल
मि जद से अटका हुआ हो या>न समय पर नमाज़ अदा करता हो।
चौथा वह |यिJत जो अ.लाह के लए मोहvबत करता हो और
अ.लाह के लए ह9 दƒु मनी करता हो। पांचवा |यिJत वह है िजसे
ख़ब
ू सूरत और अfछे ख़ानदान क लड़क बदकार9 क दावत दे तो वह
कहे ,क म अ.लाह से डरता हूँ। छठा |यिJत वह है जो चप
ु के से
लोग_ क माल9 मदद करे और सातवां ख़श
ु नसीब |यिJत वह है
िजसने त\हाई म^ अ.लाह को याद ,कया हो और अ.लाह के ख़ौफ़ से
उसके आंसू बह गये ह_। (बुख़ार9)
90
,कया जा सकता है तो ख़ा लक़े कायनात सारे इ\सान_ क िज़\दगी
के अहवाल को Jय_ महफूज
़ नह9ं कर सकता? चन
ु ांचे पूर9 िज़\दगी
के Qहसाब और ,कताब के साथ हर |यिJत से पांच खास सवाल ,कये
जाय^गे। िज़\दगी कहां गुज़ार9? कहां लगाई? कहां से कमाया? या>न
*ाXत माल के असबाब हलाल थे या हराम। माल कहां खचL ,कया?
या>न माल से संबं धत अ.लाह और बंद_ के (हुक़ूक़) अ धकार अदा
,कये या नह9ं। इ.म पर ,कतना अमल ,कया? (>त मLज़ी) अ.लाह
तआला अपने करम से कुछ बंद_ को बग़ैर Qहसाब ,कताब के भी
ज\नत म^ दा]ख़ल फ़रमाय^गे।
91
है , केवल इस गंदे पानी के िजसम^ जह\नम वाल_ क पीप और पस
पड़ी होगी, िजसको गुनाहगार_ के सवा कोई नह9ं खाता पीता होगा।
(सूरह अ.हा¢क़ा)
हर |यिJत को जह\नम के ऊपर पुल सरात से गुज़रना होगा जो
बाल से tयादा बार9क और तलवार से tयादा तेज़ है । कुछ मो मन
पलक झपकने के बक़e उससे गुज़र जाय^गे। कुछ nबजल9 क तरह
गुज़र जाय^गे। कुछ प5रंदे क तेज़ी से, कुछ तेज़ र‡तार घोड़_ क
तरह और कुछ ऊंट_ क र‡तार से गुज़र^ गे। कुछ ख़ैर और आ,फ़यत
के साथ पुल पार कर^ गे, कुछ जsमी ,कये जाय^गे ले,कन पुल सरात
पार कर ल^ गे। जब,क बहुत से लोग ठोकर खाकर जह\नम म^ गर
जाय^गे। बाद म^ नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क
सफ़ा5रश पर ईमान वाले लोग_ को आQह ता आQह ता जह\नम से
>नकाल कर ज\नत म^ दा]ख़ल कर Qदया जायेगा। अ.लाह तआला
हम सबको बग़ैर Qहसाब ,कताब के ज\नतुल ,फरदौस म^ उfच मक़ाम
अता फ़रमाये। आमीन!
92
सूरह अPतकासुर
ﺳﻮرة اﻟﺘﻜﺎﺛﺮ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
أَﻟ َْﻬــﺎ ُﻛ ُﻢ اﻟﺘَ ﻜــﺎﺛُـ ُﺮ)َ (१ﺣﺘـ ٰـﻰ ُزْرﺗُـ ُـﻢ اﻟ َْﻤ َﻘــﺎﺑَِﺮ)َ (२ﻛـ ـﻼ َﺳـ ْـﻮ َ
ف
ف ﺗَـ ْﻌﻠَ ُﻤ ْـﻮ َن)َ (४ﻛ ـﻼ ﻟَ ْـﻮ ﺗَـ ْﻌﻠَ ُﻤ ْـﻮ َن ﺗَـ ْﻌﻠَ ُﻤ ْﻮ َن) (३ﺛُ ﻢ َﻛ ﻼ َﺳ ْـﻮ َ
ْﺠ ِﺤ ـ ْـﻴ َﻢ) (६ﺛُـ ـ ﻢ ﻟَﺘَـ َﺮُوﻧـ َﻬ ــﺎ َﻋ ـ ْـﻴ َﻦ ِ ِ
ﻋ ْﻠ ـ َـﻢ اﻟْﻴَﻘ ـ ْـﻴ ِﻦ) (५ﻟَﺘَـ ـ َـﺮُو ن اﻟ َ
اﻟْﻴَ ِﻘ ْﻴ ِﻦ) (७ﺛُ ﻢ ﻟَﺘُ ْﺴﺄَﻟُ ﻦ ﻳَـ ْﻮَﻣﺌِ ٍﺬ َﻋ ِﻦ اﻟﻨ ِﻌ ْﻴ ِﻢ)(८
93
सूरह ‘अPतकासुर’ क सं !"त तफ़सीर
*या मरने के बाद कोई दस
ू र1 िज़Wदगी है ?
सूरह अPतकासुर का अनुवाद: एक-दस
ू रे से बढ़-चढ़ कर (माल और
दौलत) *ाXत करने क हवस ने तु8ह^ ग़फ़़लत (लापरवाह9) म^ डाल
रखा है , यहाँ तक ,क तम
ु क़nm तान_ म^ पहुँच जाते हो। हर गज़ ऐसा
नह9ं चाQहए, तु8ह^ ज.द (शी³) ह9 सब पता चल जायेगा। ,फर (सुन
लो ,क) हर गज़ ऐसा नह9ं चाQहए, तु8ह^ ज.द (शी³) ह9 सब पता
चल जायेगा। हर गज़ नह9ं, अगर तुम यक़ नी इ.म (Nवƒवसनीय
Œान) के साथ ये बात जानते होते (तो तुम ऐसा न करते)। यक़ न
जानो (ये >निƒचत है ) ,क तुम दोज़ख (नरक) को ज़ˆर (अवƒय)
दे खोगे ,फर यक़ न जानो ,क तुम उसको >निƒचत ˆप से दे ख लोगे।
,फर उस Qदन तुमसे उन नेमत_ के बारे म^ पछ
ू ा जाएगा (,क उनका
Jया हक़ अदा ,कया)।
8 आयात पर मुƒतमल सूरह अiतकासुर के अहम मक़ा सद यह ह
,क हर |यिJत को चाQहए ,क वह द>ु नयावी िज़\दगी और उसके
व¢ती (अ थायी) आराम को अपना मंिज़ले मक़सूद ना समझे,
Jयो,क इस द>ु नयावी फ़ानी िज़\दगी के बाद एक ऐसी िज़\दगी शुˆ
होने वाल9 है जहाँ कभी मौत वाक़े नह9ं होगी, जहाँ क राहत और
सुकून के बाद कभी कोई तकल9फ़ नह9ं होगी। क़ुरआन और हद9स क
रोशनी म^ हर मुसलमान का यह ईमान और अक़ दा है ,क एक Qदन
ऐसा ज़ˆर आयेगा जब द>ु नया का सारा >नज़ाम ह9 दरहम बरहम हो
जायेगा, आसमान फट जायेगा, सूरज लपेट Qदया जायेगा, सतारे टूट-
टूट कर गर पड़^गे और हज़रत आदम अलैQह सलाम से लेकर द>ु नया
म^ आने वाले तमाम इ\सान_ और िजन_ को अ.लाह के दरबार म^
94
ऐसी हालत म^ हािज़र ,कया जायेगा ,क हर न‡स को सफ़L अपनी
ज़ात क ,फ़a होगी ,क उसका नामाए आमाल ,कस हाथ म^ Qदया
जायेगा। उसके बाद उ\ह^ द>ु नयावी िज़\दगी के आमाल क जज़ा या
सज़ा द9 जायेगी। इस Qदन को ‘यौमुल क़यामह’ कहा जाता है ।
क़ुरआन और हद9स म^ इस Qदन क सsती और हौलनाक को बयान
करते हुए फ़रमाया गया ,क क़यामत का Qदन पचास हज़ार साल के
बराबर होगा। क़ुरआने कर9म म^ तक़र9बन ७० जगह_ पर ‘यौमलु
क़यामह’ का शvद आया है और ‘अलयौमुल आ]ख़र’ और ‘दा?ल
आ]ख़रह’ जैसे शvद_ का िज़a क़ुरआने कर9म म^ बी सय_ बार हुआ
है । ना सफ़L मुसलमान_ बि.क ईसाइय_ और यहूQदय_ का भी अक़ दा
है ,क एक Qदन द>ु नया और द>ु नया क सार9 न¢ल और हरकत
ख़iम हो जायेगी और इ\सान के द>ु नयावी आमाल के मुताnबक़
अ.लाह के हुJम पर ज\नत या जह\नम का फ़ैसला सुनाया जायेगा।
दस
ू र9 क़ौम^ भी ,कसी ना ,कसी श¢ल म^ क़यामत के Qदन को मानती
ह। अ¢ल का तक़ाजा भी यह9 है ,क इस पूर9 क़ायनात के µजूद का
कोई अहम मक़सद ज़ˆर होना चाQहए और अशरफ़ुल मख़लूक़ात को
अपने ,कये हुए आमाल क जज़ा या सज़ा ज़ˆर मलनी चाQहए।
क़यामत कब आएगी?
सफ़L अ.लाह तआला ह9 जानता है , अलबiता क़यामत तक आने
वाले तमाम इ\सान_ और िज़न_ के नबी हज़रत मोह8मद मु तफ़ा
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने एक बार शहादत और बीच वाल9
उं गल9 को मलाकर इरशाद फ़रमाया ,क िजस तरह यह दोन_
उं ग लयाँ एक दस
ू रे से मल9 हुई ह, बस समझ^ ,क म भी क़यामत
95
के साथ इस तरह भेजा गया हूँ। (सह9ह मुि लम) या>न हुज़ूरे अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम और क़यामत के द मLयान द>ु नया के
वजूद से लेकर हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क बेअसत
(नबी बनाये जाने) तक गुज़रे हुए ज़माने के मुक़ाबले म^ बहुत कम है
और हज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के बाद
क़यामत तक कोई नबी नह9ं आयेगा। और इस उ8मत के लोग_ क
उमर^ बहुत कम है , इस लए हम^ हर समय उस बड़े Qदन क तैयार9
करनी चाQहए। क़यामत के वाक़े होने क तार9ख का इ.म तो अ.लाह
के पास है , हाँ िजस |यिJत क मौत वाक़े हो गयी उसके लए एक
तरह से क़यामत वाक़े हो जाती है Jय_,क क़ुरआन और हद9स क
रोशनी म^ हमारा यह ईमान और अक़ दा है ,क इ\सान क जज़ा या
सज़ा क़यामत तक थ गत नह9ं क जाती है बि.क मौत के बाद से
द>ु नया म^ ,कये गये आमाल क जज़ा या सज़ा शुˆ हो जाती है ।
चन
ु ांचे क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^ पूर9 उ8मते मुि लमा का
इiतेफ़ाक़ है ,क क़m ज\नत के बाग़ीच_ म^ से एक बाग़ीचा बनती है
या जह\नम के गढ़_ म^ से एक गढ़ा।
96
पहले इ\सान क ˆह िजस आलम म^ रहती है उसे आलमे बरजख़
कहा जाता है । इस आयत म^ बताया गया ,क ,फरऔन और उसके
सा थयो को आलमे बरजख़ म^ जह\नम के सामने पेश ,कया जाता है
ता,क उ\ह^ पता चले ,क उनका Qठकाना यह है ।
इसी तरह फ़रमाने इलाह9 है : इनको हम दो बार सज़ा द^ गे, ,फर
उनको ज़बरद त अज़ाब क तरफ धकेल Qदया जायेगा। (सूरह
अiतउबा १०१) इस आयत म^ प{ट ˆप से िज़a है ,क ज़बरद त
और बड़े अज़ाब या>न जह\नम से पहले भी उ\ह^ सज़ा द9 जायेगी।
क़m के अज़ाब के मुताअि.लक़ हुजूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम के सकड़_ फ़रमान हद9स_ क ,कताब_ म^ मौज़ूद ह। सं प
े
म^ सफ़L तीन हद9स^ पेश ह:
हुजरेू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का जब दो क़m_ पर से
गुज़र हुआ तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया:
इन दोनो क़m वाल_ पर अज़ाब हो रहा है और ,कसी बड़े गुनाह क
वजह से अज़ाब नह9ं हो रहा है । एक तो उनम^ से चग़
ु लखोर9 करता
था और दस
ू रा पेशाब से बचने म^ एह>तयात नह9ं करता था। उसके
बाद आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने एक हर9 टहनी मंगाई और
उसे चीर कर दो ,कया। हर एक क क़m पर एक एक गाड़ द9 और
फ़रमाया जब तक यह टहनी न सख
ू े, उ8मीद है ,क उनका अज़ाब
ह.का हो जाये। (सह9ह मिु लम)
सह9ह मिु लम क एक ल8बी हद9स म^ िज़a है ,क हुज़रू े अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: अगर यह sयाल ना होता
,क ,क तुम दफ़न करना छोड़ दोगे तो म खद
ु ा से दआ
ु करता ,क
वह तु8ह^ क़m का वह अज़ाब सुना दे जो म सुन रहा हूँ। उसके बाद
97
हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने सहाबाए ,कराम क
तरफ़ मत ु व›जेह (Mयानपूवक
L ) होकर फ़रमाया: क़m के अज़ाब से
अ.लाह क पनाह मांगो। (सह9ह मुि लम)
नीज़ फ़रमाने रसूल स.ल.लाहु अलैQह वस.लम है : जब आदमी मर
जाता है तो सुबह और शाम उसे उसका Qठकाना Qदखाया जाता है ।
अगर अहले ज\नत से होता है तो ज\नत और अगर अहले जह\नम
से होता है तो भड़कती हुई आग उसे Qदखाई जाती है और कहा जाता
है ,क यह वह तेरा Qठकाना है जहाँ क़यामत के Qदन तुझे उठाकर
पहुंचा Qदया जायेगा। (सह9ह मुि लम)
नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के इरशाद क रोशनी म^
उ8मते मुि लमा का इiतेफ़ाक़ है ,क क़m म^ हर |यिJत से तीन
सवाल ,कये जाते ह: १) तु8हारा रब कौन है ? २) तु8हारा मज़हब
Jया है ? ३) यह |यिJत कौन ह जो तु8हारे बीच रसूल बनाकर भेजे
गये? तीन_ सवाल के सह9 जवाब दे ने पर कामयाबी का फ़ैसला हो
जाता है और क़यामत तक के लए ज\नत क ]खड़क खोल द9
जाती है । सवालात के जवाब न दे ने पर उसे अज़ाब Qदया जाता है
और जह\नम क ]खड़क खोल द9 जाती है ।
क़m का अज़ाब असल म^ ˆह को होता है । सवालात भी हक़ क़त म^
ˆह ह9 से होते ह, इस लए अगर ,कसी |यिJत को दफ़न ना ,कया
जाये तब भी तीन_ सवालात होते ह, अलबiता कुछ हद9स_ से मालूम
होता है ,क ˆह के साथ बदन को भी अज़ाब होता है । बेशुमार
द>ु नयावी चीज़^ ना समझने के बावजद
ू हम उनको तसल9म करते ह,
इसी तरह आलमे बरजख़ म^ अज़ाब और आराम पर हम^ मुक8मल
ईमान लाना चाQहए चाहे इसक कै,फ़यत (ि थ>त) हम^ मालूम ना हो।
98
क़‘•2तान क िज़यारत:
हज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने कई बार
क़nm तान जाकर क़m_ क िज़यारत करने क तरग़ीब द9 है , चंद
हद9स^ पेश ह:
हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया:
क़nm तान जाकर क़m_ क िज़यारत ,कया करो, Jय_,क उसके ज़5रए
आख़रत याद आती है । (इvने माजा)
हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया: मने
तुम को क़m_ क िज़यारत करने से मना ,कया था। (अब च,ूं क तुम
ईमान और अक़ दे म^ मज़बूत हो गये हो, इस लए) क़nm तान जाया
करो Jय_,क उसके ज़5रए द>ु नया से दरू 9 और आख़रत क याद पैदा
होती है । (>त मLज़ी)
हुज़ूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम अपने घर वाल_ के साथ
अपनी माँ (हज़रत आमना) क क़m पर गये। ख़द
ु भी रोये और दस
ू र_
को भी ˆलाया और इरशाद फ़रमाया ,क मने अपने रब से अपनी माँ
क क़m क िज़यारत (दशLन) करने क इज़ाजत (आŒा) तलब क तो
मझ
ु े इज़ाजत दे द9 गई। तुम भी क़m_ क िज़यारत करो, Jय_,क
उसके ज़5रए तु8ह^ मौत याद आयेगी। (मिु लम)
99
हद9स क मशहूर ,कताब (>त मLज़ी) के मुसि\नफ़ हज़रत इमाम
>त मLज़ी रहमतु.लाह अलैइह ने तो बाब (अMयाय) का नाम ह9 रखा
है ,क औरत_ को क़m क िज़यारत करना मकˆह है । इस लए औरत_
को मBयत क तदफ़ न के लए जनाज़े के साथ चलने से हुज़ूरे
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने मना फ़रमाया। (सह9ह बुख़ार9)
चन
ु ांचे १४०० साल से उ8मते मुि लमा का यह9 अमल है ,क मBयत
को क़nm तान लेकर उसक तदफ़ न मदL हज़रात ह9 करते ह चाहे
मBयत मदL हो या औरत। औरत^ बहुत ज.द9 ,कसी भी चीज़ से
*भाNवत हो जाती ह, इस लए औरत^ को क़m_ क िज़यारत से मना
,कया गया, ता,क वह अपनी कमज़ोर9 क वजह से शक़L और
nबदआत जैसे बड़े गुनाह_ म^ मुvतला ना हो जाय^, हालां,क यह बात
मुस.लम है ,क क़m_ क िज़यारत करने से आख़रत याद आती है ।
100
और रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क 5रसालत तसल9म ना
करने पर िज़\दा होने के बावजूद मद
ु ाL कहा गया। दस
ू रे हज़रात क
राय है ,क ,कसी हद तक मुदo सुनते भी ह, ले,कन जवाब नह9ं दे
सकते। दल9ल के तौर पर हद9स क ,कताब_ म^ वा5रद कुछ वाक़ेयात
पेश ,कये जाते ह िजनसे मालूम होता है ,क मुदo सुनते भी ह।
मसलन सह9ह बुख़ार9 और सह9ह मुि लम म^ है ,क नबी-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: जब ब\दा अपनी क़m म^
दफ़न कर Qदया जाता है तो वह वापस पलटने वाले अपने सा थय_
क जू>तय_ क आवाज़ सुनते ह। इसी तरह सह9ह मुि लम म^ है ,क
जंगे बदर के बाद नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने बदर
म^ मरने वाल_ को मुख़ातब करके इरशाद फ़रमाया: तु8हारे साथ
तु8हारे रब ने जो वादा ,कया था, Jया तुमने उसे सच पा लया?
हज़रत उमर फ़ाˆक़ रिज़अ.लाहु अ\हु ने कहा: या रसूल अ.लाह!
Jया यह सुनते ह? Jया यह जवाब दे ते ह? हालां,क यह तो मर चक
ु े
ह। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया: उस ज़ात
क क़सम िजसके हाथ म^ मेर9 जान है , म जो कुछ कह रहा हूँ, तुम
उनसे tयादा नह9ं सुनते। हाँ यह तु8हार9 तरह जवाब नह9ं दे सकते।
इसी तरह एक हद9स है ,क अगर कोई |यिJत अपने ,कसी भाई क
क़m के पास से गज़
ु रता है िजसको वह जानता था और सलाम करता
है तो उसक ˆह लौटा द9 जाती है यहाँ तक वह सलाम का जवाब
दे ता है । इस हद9स क सनद म^ यक़ नन कमज़ोर9 है , ले,कन बड़े बड़े
उलमा हiता ,क अ.लमा इvने क़िBयम रहमत.
ु लाह अलैQह ने अपनी
मशहूर ,कताब अˆLह म^ यह हद9स िज़a क है ।
101
सह9ह मुि लम और हद9स क दस
ू र9 ,कताब_ म^ वा5रद है ,क नबी-ए-
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ज\नतुल बक़ अ जाकर
क़nm तान म^ मदफ़ून हज़रात को सलाम ,कया करते थे और पूर9
उ8मते मुि लमा अपने आ]ख़र9 नबी हज़रत मोह8मद मु तफ़ा
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के अक़वाल और अफआल क रोशनी म^
मुiत,फ़क़ है ,क हम जब भी क़nm तान जाय^ तो उ\ह^ सलाम कर^ ।
सऊद9 आ लमे द9न शेख मोह8मद अलमुsतार अƒशनक़ ती ने अपनी
,कताब “अज़वाउल बयान ४२१/६” म^ लखा है ,क हुज़ूरे अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का “अ सलामु अलैइकुम’’ और “वइ\ना
इंशाअ.लाहु nबकुम’’ जैसे (मुख़ातब) के अ.फ़ाज से ]ख़ताब करना
इस बात क प{ट दल9ल (तकL) है ,क क़nm तान म^ मदफ़ून हज़रात
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के सलाम को सुन रहे ह, Jय_,क
अगर वह आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के सलाम को नह9ं सुन
रहे होते तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के उनको सलाम करने
का Jया फ़ायदा। हाँ इस मसले म^ कुछ हज़रात ने ,कसी दल9ल के
बग़ैर हद से तज़ावुज़ ,कया है , मसलन वह समझते ह ,क क़m म^
मदफ़ून |यिJत हमारे मसाइल को हल कर दे गा जो यक़ नन ग़लत
है । इस तरह का अक़ दा रखना शक़L है । ग़ज़L ,क अगर हम अपने
,कसी 5रƒतेदार क क़m पर जाकर सलाम करते ह तो वह हमारे
सलाम को ज़ˆर सुनते ह चाहे जवाब दे ते ह या नह9ं। अ.लामा इvने
ु लाह अलैइह ने लखा है ,क इन दलाइल से मालूम
तै मयह रहमत.
हुआ ,क मBयत ,कसी हद तक िज़\दा |यिJत क बात को सुनते ह।
ले,कन यह ज़ˆर9 नह9ं ,क वह हमेशा हर बात को सुनते रह^ , ले,कन
कुछ बात_ को वह ज़ˆर सुनते ह। (मज़मूउल फ़तावा ३६६/५)
102
िजस तरह आलमे बरजख़ क िज़\दगी और उसम^ अज़ाब या आराम
और सुकून पर हमारा ईमान है इसी तरह हमारा यह ईमान है ,क
अ.लाह तआला ने नेक बंद_ के लए अपना मेहमान ख़ाना ज\नत
तैयार कर रखा है जहाँ आराम और आराइश का ऐसा सामान अ.लाह
तआला ने मुहBया कर रखा है ,क कोई ब\दा उसको सोच भी नह9ं
सकता। दस
ू र9 तरफ़ का,फ़र_ और गुनाहगार_ के
लए भड़कती हुई
आग क श¢ल म^ जह\नम है जहाँ पीप और बहता हुआ ख़न
ू खाने
के लए पेश ,कया जायेगा। अ.लाह तआला जह\नम से छुटकारा
और बग़ैर Qहसाब और ,कताब के ज\नतुल ,फरदौस का फ़ैसला
फ़रमाये। आमीन!
103
सूरह अलअQ
ﺳﻮرة اﻟﻌﺼﺮ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ِ ِ
ﺴـﺎ َن ﻟَﻔ ْـﻲ ُﺧ ْﺴـ ٍﺮ) (२إِﻻ اﻟـﺬﻳْ َﻦ َ
آﻣﻨُـ ْـﻮا اﻹﻧْ َﺼ ِﺮ) (१إِ ن ِْ
َواﻟ َْﻌ ْ
اﺻ ْﻮا ﺑِﺎﻟ و َﻋ ِﻤﻠُﻮا اﻟ ِ ِ
ﺼ ْﺒ ِﺮ)(३ اﺻ ْﻮا ﺑِﺎﻟْ َﺤ ﻖ َوﺗَـ َﻮ َ ﺼﺎﻟ َﺤﺎت َوﺗَـ َﻮ َ َ
104
सूरह ‘अलअQ’ क सं !"त तफ़सीर
द ु नया के नुक़सान से बचने और बड़ा लाभ Eा"त
करने का क़ुरानी कानून
सूरह अलअQ का अनुवाद: क़सम है ज़माने क ,क हर इ\सान बड़े
घाटे म^ है , मगर वह लोग जो ईमान लाये और उ\ह_ने अfछे काम
,कये और आपस म^ ताक द करते रहे सfचे द9न क और आपस म^
ताक द करते रहे धीरज और धैयL (सm) क ।
सूरह अलअQ क ख़ास फ़ज़ीलत:
यह क़ुरआने कर9म क बहुत मुsतसर सी सूरत है , िजसम^ चैदह
शvद_ क सफ़L तीन आयात ह, ले,कन ऐसी जामे ह ,क बक़ौल
हज़रत इमाम शाफ़ई रहमतु.लाह अलैइह (१५०Qहजर9-२०४Qहजर9) ,क
अगर लोग इस सूरत को ग़ौर और ,फ़a और तदvबुर (सोच-Nवचार)
के साथ पढ़ ल^ तो द9न और द>ु नया क द?
ु ती के लए काफ़ हो
जाये। (इvने कसीर) हज़रत अvद.
ु लाह nबन हुसैन रिज़अ.लाहु अ\हु
फ़रमाते ह ,क सहाबए ,कराम म^ से दो |यिJत आपस म^ मलते तो
उस समय तक जद
ु ा ना होते जब तक उनम^ से एक दस
ू रे के सामने
सरू ह अलअj ना पढ़ ले। (तबरानी)
श‹द क तkक़ क़ (अनुसंधान):
“वलअj’’ इस सरू त म^ अ.लाह तआला ने अलअj क क़सम खायी
है िजससे मरु ाद ज़माना है , Jय_,क इ\सान के तमाम हालात, उसक
परव5रश, आमाल और अख़लाक सब ज़माने के रात-Qदन म^ ह9 ह_गे।
जहां तक क़सम का ता.लुक़ है , अ.लाह तआला के कलाम म^ क़सम
के बग़ैर भी शक और शुबह क कोई गुंजाइश नह9ं है , ले,कन अ.लाह
105
तआला ब\द_ पर रहम फ़रमाकर ,कसी हुJम क खास ताक द और
उसक महiव के कारण से क़सम खाकर कोई हुJम बंदो को करता
है , ता,क बंदे उस हुJम क अह मयत को समझकर उस को कर^ और
हुJम (आदे श) मानने म^ कोई सु ती ना कर^ । अलबiता याद रख^ ,क
इ\सान_ के लए अ.लाह तआला के नाम के अलावा ,कसी चीज़ क
क़सम खाना जायज़ नह9ं है जैसा ,क नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम क प{ट ताल9मात हद9स_ क ,कताब_ म^ मौजूद ह,
मसलन लोग_ का कहना तेरे सर क क़सम या तेर9 क़सम वग़ैरह
इस तरह के शvद_ के साथ क़सम खाना जायज़ नह9ं है । वैसे तो
क़सम खाने से ह9 बचना चाQहए, Jय_,क क़सम खाकर कोई बात
कहना अfछा अमल नह9ं है , ले,कन अगर ,कसी मौक़े पर क़सम
खानी ह9 पड़े तो सफ़L अ.लाह के नाम क क़सम खानी चाQहए।
“अलइ\सान’’ म^ अ लफ लाम िज\स के लए है या>न क़यामत तक
आने वाला हर हर इ\सान इस हुJम म^ दा]ख़ल है चाहे मदL हो या
औरत, ग़र9ब हो या मालदार, ताक़तवर हो या कमज़ोर, बढ़ ू ा हो या
नौजवान और बादशाह हो या गुलाम।
“खj
ु ’’ कुरआने
़ कर9म म^ इ\सान के न‡स या माल या अहल और
अयाल या द>ु नया और आ]ख़रत के घाटे को Nव भन जगह_ पैर िज़a
,कया गया है । इस आयात म^ इ\सान के घाटे से अ.लाह क मरु ाद
Jया है ? यह समझने क ज़ˆरत है ।
“इ\नल इ\साना लफ़ खj
ु ’’ जुमला इि मयह (वाJय) होने क वजह
से इसम^ ताक द मौजूद है । अरबी ज़बान म^ शvद “इ\ना’’ का
इ तेमाल ताक द के लए होता है । और अ.लाह तआला क क़सम
खाकर इस बात को बयान करना ,कसी संदेह को nब.कुल ह9 ख़iम
106
कर दे ता है । नफ़ा म^ कमी या nब.कुल नफ़ा ना होना नुक़सान
कहलाता है , ले,कन अगर कुल धन (Capital) ह9 ख़iम हो जाये तो
उसे ख़सारा (नुक़सान) कहते ह। इस आयत म^ सफ़L जान या माल
का ख़सारा मुराद नह9ं बि.क इ\सानी ख़सारा मुराद है िजसका कोई
बदल संभव नह9ं है । इसी लए अ.लाह तआला ने क़सम खाकर बहुत
tयादा ताक द के साथ यह बात बयान फ़रमायी है । इसी तरह
अ.लाह तआला ने सूरह अiतीन म^ चार चीज़_ (इ\जीर, ज़ैतून,
तूरेसइना का पहाड़ और मJका मुकरL मा) क क़सम खाकर इरशाद
फ़रमाया: हम ने इ\सान को सु\दर आकार म^ ढाल कर पैदा ,कया
है , ,फर हम उसे प ती वाल_ म^ सबसे tयादा >नचल9 हालत म^ कर
दे ते ह, या>न जह\नम म^ फ^क दे ते ह, सवाये उनके जो ईमान लाये
और उ\ह_ने नेक अमल ,कये, तो उनको ऐसा अ• (प5रणाम) मलेगा
जो कभी ख़iम नह9ं होगा। अथाLत अगर हमने शैतान और न‡स क
sवाQहश के ]ख़लाफ़ और अ.लाह के अहकाम के मुताnबक़ िज़\दगी
गुज़ारने क को शश नह9ं क तो नाकामी है । हमेशा हमेशा क
कामयाबी पाने के लए सोने से भी tयादा क़ मती चीज़ या>न समय
का सह9 इ तेमाल करना पड़ता है । हर सकंड हमार9 उž कम हो
रह9 है और हम बराबर अपनी मौत के क़र9ब होते जा रहे ह, ,कसी
भी समय मौत का फ़5रƒता हमार9 ˆह क़vज करने आ सकता है ।
हमारा जो ल8हा (समय) भी अ.लाह और उसके रसल
ू क नाफ़रमानी
म^ गज़
ु र रहा है वह हम^ नक
ु सान क तरफ़ ले जा रहा है ।
107
द ु नया और आ„ख़रत क कामयाबी Eा"त करने के =लए चार आमाल:
इस मुsतसर सूरत म^ इ\सान और पूर9 कायनात को पैदा करने वाले
ने ज़माने क क़सम खाकर इरशाद फ़रमाया ,क हर इ\सान बड़े घाटे
और नुक़सान म^ है और घाटे से सफ़L वह9 लोग बच सकते ह िजनके
अ\दर चार Nवशेषताय^ मौजूद ह_:
1) अ.लाह और रसूल पर ईमान लाना, इसी तरह नबी-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क तमाम ताल9मात पर ईमान लाना।
अ.लाह पर ईमान लाने का मतलब यह है ,क इस बात का Qदल से
यक़ न करना और ज़बान से इक़रार करना ,क अ.लाह ह9 पूर9
कायनात को पैदा करने वाला है , उसी ने इ\सान, िजन, आसमान,
ज़मीन, पहाड़, सूरज, चांद, सतारे , आग, पानी, हवा, जानवर,
प5र\दे , द5र\दे और पेड़ अपनी क़ुदरत से पैदा ,कये। वह9 सारे जहां
का पालनहार है । उसका कोई शर9क नह9ं, ना वह ,कसी क औलाद
है और ना कोई उसक औलाद। वह हमेशा से है , हमेशा रहे गा।
ख़ƒु क और सम\दर म^ जो कुछ है वह इससे वा,क़फ है । ,कसी पेड़
का कोई पiता नह9ं गरता िजसका उस इ.म ना हो और ज़मीन क
अंधे5रय_ म^ कोई दाना या कोई ख़ƒु क या तर चीज़ ऐसी नह9ं है जो
उसके पास एक खल
ु 9 ,कताब म^ दजL ना हो। मुम,कन है ,क हमार9
अक़ल^ इस बात को समझने से क़ा सर (असमथL) ह_ मगर सकड़_
द>ु नयावी उमरू समझ म^ ना आने के बावजद
ू हम उनके आगे सर
झक
ु ा दे ते ह, मसलन हमार9 अक़ल^ यह भी समझने से क़ा सर ह ,क
इ\सान द>ु नया म^ Jय_ आता है और ना जाने क sवाQहश के
बावजूद सफL ६०-७० साल क उž म^ Jय_ चला जाता है ? हाँ हमार9
अक़ल^ यह ज़ˆर तसल9म करती ह ,क सार9 कायनात ख़द
ु बख़द
ु पैदा
108
नह9ं हो गयी, यक़ नन इन सार9 चीज़_ को पैदा करने वाल9 एक ज़ात
है , वह9 अ.लाह है िजसको हम अपनी अक़ल_ से नह9ं समझ सकते,
अलबiता अ.लाह क मख़लूक़ात म^ ग़ौर और ,फ़a करके अ.लाह
क शिJत और क़ुदरत को तसल9म ( वीकार) ,कये बग़ैर नह9ं रह
सकते, चन
ु ांचे आज भी द>ु नया क आबाद9 का बहुत बड़ा Qह सा
अ.लाह क ज़ात को ज़ˆर मानता है ।
इ\सान_ और िजन_ क तख़ल9क़ का मक़सद अ.लाह तआला क
इबादत करना है । हमार9 द>ु नयावी िज़\दगी कैसे इबादत बने इसके
लए अ.लाह तआला अपने कुछ बंद_ को चयन फ़रमाकर नबी और
रसूल बनाते ह। अ.लाह तआला फ5रƒत_ के ज़5रए नबी और रसूल के
पास अपने अहकाम नािज़ल फ़रमाता है ,क Jया काम करना है और
Jया काम नह9ं करना, Jया खाना है और Jया नह9ं खाना। नबी और
रसूल अपने क़ौल और अमल से लोग_ क रहनुमाई करता है । नnबय_
का यह सल सला हज़रत आदम अलैQह सलाम से शुˆ होकर हज़रत
इmाQहम, हज़रत मूसा और हज़रत ईसा अलैQह सलाम जैसे जल9लुल
क़e अंnबयाए ,कराम से होता हुआ हज़रत मोह8मद मु तफ़ा
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर ख़iम हो गया, Jय_,क आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क नबव ू त ,कसी क़बीला या जगह या
समय के साथ ख़ास नह9ं बि.क आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को
आलमी 5रसालत से नवाज़ा गया। अ.लाह के रसल
ू पर ईमान लाने
का मतलब यह9 है । इसी तरह क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^
हमारा यह ईमान है ,क इस द>ु नयावी िज़\दगी के ख़iम होने के बाद
उख़रवी िज़\दगी शुˆ होती है जहां क कामयाबी का दारो मदार
(>नभLरता) द>ु नयावी िज़\दगी म^ नेक आमाल करने पर है जैसा ,क
109
इसी सूरत म^ आगे बयान है । कामयाब लोग ज\नत म^ जाय^गे जहां
अ.लाह तआला ने राहत और सुकून के ऐसे इ\तज़ामात कर रखे ह
,क हम सोच भी नह9ं सकते और नाकाम लोग जह\नम क दहकाई
हुई आग म^ डाले जाय^गे जहां क आग क गम’ द>ु नयावी आग से
६९ गुना tयादा है ।
२) नेक आमाल (काम) करना। इ\सान क कामयाबी के लए दस
ू र9
बु>नयाद9 शतL नेक अमल है । नेक अमल के लए यह बु>नयाद9 शत¼
ह:
(क) अमल ख़ा लस अ.लाह क रज़ामंद9 के लए ,कया जाये।
(ख) तमाम नnबय_ के सरदार हुजरेू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम क ताल9मात के मुताnबक़ ,कया जाये, चाहे अमल का
ता.लुक़ इबादात से हो या लेनदे न से या समाज से या अख़लाक़ से।
३) हक़ क नसीहत करना। या>न ईमान लाने और नेक अमल करने
वाले लोग एक दस
ू रे को द9ने इ लाम क नसीहत करते रह^ । अ.लाह
तआला नेक बंद_ क Nवशेषताएं बयान करते हुए फ़रमाता है : मो मन
मदL और मो मन औरत^ आपस म^ एक दस ू रे के मददगार है । अfछr
बात_ का हुJम करते ह और बरु ाइय_ से रोकते ह, नमाज़ क़ायम
करते ह, ज़कात अदा करते ह, अ.लाह और उसके रसल ू क इताअत
करते ह। (सरू ह अiतउबा ७१) इस आयत म^ अ.लाह तआला ने
मोमनीन क सफ़ात म^ अž nबलमाˆफ़ और नह9 अ>नल मुनकर क
िज़8मेदार9 को नमाज़ और रोज़ा बि.क अ.लाह और उसके रसल
ू क
इताअत से भी पहले िज़a ,कया िजससे यक़ नन उस काम क
अह मयत और ताक द मालूम होती है । द9ने इ लाम क दावत दे ना
ख़द
ु एक नेक अमल है , मगर उ8मते मुह8मQदया का मक़सद लोग_
110
को अfछाइय_ क तरफ बुलाना है । क़ुरान क आयात और हद9स^ इस
हक़ क़त पर शाQहद ह, चन
ु ांचे फ़रमाने इलाह9 है : (मुसलमानो!) तुम
वह बेहतर9न उ8मत हो जो लोग_ के फ़ायदे के लए वजूद म^ लायी
गयी है । तुम अfछाइय_ का हुJम करते हो, बुराईय_ से रोकते हो और
अ.लाह तआला पर ईमान रखते हो। (सूरह आले इमरान ११०)
मुफ़ सर9न का इiतेफ़ाक़ (एकता) है ,क इस उ8मत का बेहतर9न
और ख़ैर उ8मत होना उसके दाई होने और अž nबलमाˆफ़ और नह9
अ>नल मुनकर क िज़8मेदार9 अ\जाम दे ने क वजह से है , इसी लए
इस िज़8मेदार9 को अ.लाह तआला ने अलग से िज़a फ़रमाया।
४) सm क तलक़ न करना (समझाते रहना)। या>न एक दस
ू रे को सm
क तलक़ न करते रह^ । अ.लाह तआला ने अपने पाक कलाम
“क़ुरआने कर9म’’ म^ जगह जगह सm करने क ताल9म द9। मसलन:
ऐ ईमान वालो! सm और नमाज़ से मदद हा सल करो। बेशक
अ.लाह सm करने वाल_ के साथ है और जो लोग अ.लाह के रा ते
म^ क़iल ह_ उनको मुदाL ना कहो। दरअसल वह िज़\दा ह, मगर तुम
को (उनक िज़\दगी का) एहसास नह9ं होता और दे खो हम तु8ह^
आजमाय^गे ज़ˆर (कभी) डर से और (कभी) भख
ू से और (कभी) माल
और जान और फल_ म^ कमी करके और जो लोग (ऐसे हालात म^ )
सm से काम ल^ उनको खश
ु खबर9 सुना दो। (सरू ह अलबक़रा १५३-
१५५) इसी तरह फ़रमाने इलाह9 है : ऐ ईमान वालो! सm करो और
दƒु मन के मक़
ु ाबले म^ डटे रहो। (सरू ह आले इमरान २००) क़यामत
तक आने वाले इ\सान_ और िजन_ के आ]ख़र9 नबी हज़रत मोह8मद
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने भी अपने क़ौल और अमल से सm
करने क तरग़ीब द9। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
111
फ़रमाया: nबला शुबह सm वह9 है जो तकल9फ़ के आगाज़ म^ ,कया
जाये। (सह9ह बुख़ार9 और सह9ह मुि लम)
ग़ज़L द9न और द>ु नया के ख़सारे से बचने और बड़ा लाभ *ाXत करने
का यह क़ुरआनी नु ख़ा चार भाग_ पर आधा5रत है िजनम^ पहले दो
भाग (ईमान और नेक आमाल) अपनी ज़ात क इ लाह से संबं धत ह
और दस
ू रे दो भाग दस
ू र_ क Qहदायत और इ लाह से संबं धत ह।
या>न हम अपनी ज़ात से भी अ.लाह तआला के अहकाम नबी-ए-
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क श ा के अनुसार बजा लाय^
और साथ म^ यह को शश कर^ ,क हमार9 औलाद, हमारे 5रƒतेदार,
हमारे पड़ोसी, हमार9 क8पनी म^ काम करने वाले हज़रात, हमारे शहर
म^ रहने वाले लोग और सार9 इ\सा>नयत अ.लाह क मज़’ के
अनुसार इस द>ु नयावी िज़\दगी को गुज़ारने वाल9 बने, ता,क हम सब
बड़े नुक़सान से बचकर हमेशा हमेशा क कामयाबी *ाXत करने वाले
बन जाय^। हर |यिJत अपनी िज़\दगी का जायज़ा ले ,क उसके
अ\दर यह चार औसाफ़ (गुण) मौजूद ह या नह9ं। क़ुरआने कर9म के
इस प{ट एलान से मालूम हुआ ,क अगर यह चार औसाफ़ या
उनम^ से कोई एक व फ़ (गणु ) भी हमारे अ\दर मौजद
ू नह9ं है तो
हम द>ु नया आख़रत म^ नाकामी और बड़े नक़
ु सान क तरफ़ जा रहे
ह। इस लए अभी समय है , मौत कब आ जाये ,कसी को नह9ं मालूम,
हम सब यह पJका इरादा कर^ ,क द>ु नया और आ]ख़रत क
कामयाबी *ाXत करने और बड़े नक़
ु सान से बचने के लए यह चार_
(गण
ु ) अपनी िज़\दगी म^ आज बि.क अभी से लाने क को शश
कर^ गे।
112
सूरह अलहुमज़ा
ﺳﻮرة اﻟﻬﻤﺰة
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﻞ ﻟِ ُﻜ ـ ﻞ ُﻫ َﻤـ َـﺰٍة ﻟُ َﻤـ َـﺰٍة) (१اﻟـ ِـﺬي َﺟ َﻤـ َـﻊ َﻣـ ً
ـﺎﻻ َو َﻋ ـ ﺪ َدﻩُ)(२ َوﻳْـ ٌ
ْﺤﻄَ َﻤ ِـﺔ)(४ ِ
ﺐ أَ ن َﻣﺎﻟَﻪُ أَ ْﺧﻠَ َﺪﻩُ)َ (३ﻛ ﻼ ﻟَﻴُـ ْﻨﺒَ َﺬ ن ﻓـﻲ اﻟ ُ ﺴُ ﻳَ ْﺤ َ
ـﺎر اﻟﻠـ ِـﻪ اﻟ ُْﻤﻮﻗَـ ـ َﺪةُ) (६اﻟﺘِ ــﻲ
ْﺤﻄَ َﻤـ ـﺔُ) (५ﻧَـ ُ
اك َﻣ ــﺎ اﻟ ُ َوَﻣ ــﺎ أَ ْد َر َ
ﺻـ َﺪةٌ) (८ﻓِـﻲ َﻋ َﻤ ٍـﺪ ِ ِ ِ
ﺗَﻄﻠ ُﻊ َﻋﻠَﻰ ْاﻷَﻓْﺌ َﺪة) (७إِﻧـ َﻬﺎ َﻋﻠَْﻴ ِﻬ ْﻢ ُﻣ ْﺆ َ
ُﻣ َﻤ ﺪ َد ٍة )(९
113
सूरह ‘अलहुमज़ा’ क सं !"त तफ़सीर
चुगल1, दोष लगाना, ताना मारना और दस
ू रे का माल
हड़पना जहWनम मu ले जाने वाले गुनाह (पाप) हw
सूरह अलहुमज़ा का अनुवाद: बड़ी खराबी है उस |यिJत क जो पीठ
पीछे दस
ू र_ पर ऐब लगाने वाला, (और) मँुह पर ताने दे ने का आद9
हो, िजसने माल इक²ा ,कया हो और उसे गनता रहता हो। वह
समझता है ,क उसका माल उसे हमेशा िज़\दा रखेगा। हर गज़ नह9ं!
उस को तो ऐसी जगह म^ फ^का जायेगा जो चरू ा चरू ा करने वाल9 है
और तु8ह^ Jया मालूम वह चरू ा चरू ा करने वाल9 चीज़ है ? अ.लाह
क सुलगाई हुई आग जो Qदल_ तक जा चढ़े गी। यक़ न जानो वह उन
पर बंद कर द9 जायेगी जब,क वह (आग के) ल8बे चौड़े सुतून_ म^
(>घरे हुए) ह_गे।
श‹द क तkक़ क़ (अनुसंधान): َوﻳْ ٌﻞवैलुन का मतलब बबाLद9, बड़ी
खराबी और अज़ाब के ह, और जह\नम क वाद9 का नाम भी वैल
है । या>न जो हज़रात तीन गुनाह_ (ग़ीबत, ताना दे ना और नाहक़
माल जमा करना) म^ |य त ह उ\ह^ जह\नम क वैल नामी वाद9 म^
डाला जायेगा। सूरह अलमाऊन म^ िज़a है ,क नमाज़_ म^ कोताह9
करने वाल_ को भी जह\नम क इसी वाद9 म^ डाला जायेगा। अ.लाह
तआला हम सबक Qहफ़ाजत फ़रमाये। ٍ ُﳘََﺰةٍ ﻟُ َﻤَﺰةहुमज़ह और लुमज़ह:
मुबालगे (अ>तशयोिJत) के शvद ह, ह8जुऩ के मअना इशारा बाज़ी
करने के और ल8ज़ुन के मअना ऐब लगाने या ताना दे ने के ह।
,कसी |यिJत का मज़ाक उड़ाना, ,कसी का ऐब >नकालना, ,कसी क
पीठ पीछे बुराई करना या>न ग़ीबत, इसी तरह ,कसी को ताने दे ना,
114
,कसी को ज़ल9ल करना और बुरा भला कहना यह सार9 शJल^ इस
आयत के अंतगLत आती ह और यह सब बड़े गन
ु ाह ह िजनसे बचना
हर |यिJत के लए ज़ˆर9 है । इन गुनाह_ को करने वाले |यिJतय_
को जह\नम म^ सsत अज़ाब Qदया जायेगा अगर मौत से पहले
हक़ क़ तौबा नह9ं क । ग़ज़L ,क अ.लाह के ब\द_ म^ बदतर9न लोग
वह ह जो चग़
ु लखोर9 करते ह और दो त_ और 5रƒतेदार_ के बीच
झगड़ा कराते ह, शर9फ_ क पग़„ड़याँ उछालते ह और बेगुनाह_ के ऐब
तलाश करते रहते ह। अ.लाह तआला सूरह अल हुजुरात आयत ११
म^ इरशाद फ़रमाता है ,क ना मदL दस
ू रे मदg का मज़ाक उड़ाय^, हो
सकता है ,क वह िजनका मज़ाक उड़ा रहे ह ख़द
ु उनसे बेहतर ह_
और ना औरत^ दस
ू र9 औरत_ का मज़ाक उडाय^, हो सकता है ,क वह
िजन का मज़ाक उड़ा रह9 ह ख़द
ु उनसे बेहतर ह_ और तुम एक दस
ू रे
को ताना न Qदया करो और ना एक दस
ू रे को बुरे शvद_ से पुकारो।
ईमान लाने के बाद गन
ु ाह करना बहुत बुर9 बात है । और जो लोग
इन बात_ से बाज़ ना आय^ तो वह ज़ा लम लोग ह।
ग़ीबत *या है ? इस आयत म^ हम^ ग़ीबत करने से मना ,कया गया
है । सबसे पहले इरशादे नबवी स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क रोशनी
म^ समझ^ ,क ग़ीबत Jया चीज़ है ? रसल ू .
ु लाह स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने सहाबाए ,कराम से फ़रमाया: Jया तु8ह^ मालूम है ,क
ग़ीबत Jया है ? सहाबाए ,कराम ने जवाब Qदया: अ.लाह और उसके
रसल
ू tयादा बेहतर जानते ह। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया: अपने भाई क उस चीज़ का िज़a करना िजसे वह नापसंद
करता हो। कहा गया अगर वह चीज़^ उसके अ\दर मौजूद ह_ तो?
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया ,क अगर वह चीज़
115
उसके अ\दर हो तो तुम ने ग़ीबत क और अगर ना हो तो वह
बोहतान (दोष) होगा। (मुि लम) हुजूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम के इस इरशाद से मालूम हुआ ,क ग़ीबत का मतलब यह है
,क दस
ू रे लोग_ के सामने ,कसी क बुराइय_ और कोताQहय_ का िज़a
,कया जाये िजसे वह बुरा समझे और अगर उसक तरफ़ ऐसी बात^
जोड़ द9 जाय^ जो उसके अ\दर मौजूद ह9 नह9ं ह तो वह बोहतान है ।
,कसी मुसलमान भाई क ,कसी के सामने बुराई बयान करना या>न
ग़ीबत करना ऐसा ह9 जैसे मुदाLर भाई का गोƒत खाना। भला कौन
ऐसा होगा जो अपने मुदाLर भाई का गोƒत खाना पसंद करे गा।
अ.लाह तआला ने ग़ीबत से बचने का हुJम Qदया है और उससे
नफ़रत Qदलायी है , इरशादे बार9 है : तुम म^ से कोई ,कसी क ग़ीबत
ना करे , Jया तुम म^ से कोई भी अपने मुदाL भाई का गोƒत खाना
पसंद करता है ? तुम को उससे >घन आयेगी। (सूरह अलहुजुरात १२)
मेअराज के सफ़र के दौरान हुजूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
को ज\नत और दोज़ख के हालात के साथ Nव भ\न गुनाहगार_ के
हालात भी Qदखाये गये िजनम^ से एक गुनाहगार के हालात पेश
करता हूँ ता,क इस गुनाह (ग़ीबत) से हम ख़द
ु भी बच^ और दस
ू र_
को भी बचने क तरग़ीब द^ । हज़रत अनस रिज़अ.लाहु अ\हु से
5रवायत है ,क रसल
ू .
ु लाह स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
फ़रमाया ,क िजस रात मझ ु े मेअराज कराई गयी, म ऐसे लोग_ पर
गज़
ु रा िजनके नाखन
ू तांबे के थे और वह अपने चेहर_ और सीन_ को
छrल रहे थे। मने िजmाइल (अलैQह सलाम) से पता ,कया ,क यह
कौन लोग ह? उ\ह_ने जवाब Qदया ,क वह लोग ह जो लोग_ के
116
गोƒत खाते ह (या>न उनक ग़ीबत करते ह) और उनक बेआबˆई
करने म^ पड़े रहते ह। (अबू दाऊद)
117
के। हुकूमत अ.लाह ह9 क है और उसी क तरफ़ हम सबको लौट
कर जाना है । इ\सान जहाँ भी होगा एक ना एक Qदन मौत उसे जा
पकड़ेगी, चाहे वह मज़बूत ,कल_ म^ ह9 Jय_ ना रह रहा हो। हर
|यिJत का मरना >निƒचत है , ले,कन मौत का समय और जगह
सवाए अ.लाह क ज़ात के ,कसी |यिJत को मालूम नह9ं। चन
ु ांचे
कुछ बचपन म^ , तो कुछ जवानी म^ और कुछ अधेड़ उž म^ , जब,क
बाक़ बुढ़ापे म^ मर जाते ह। कुछ व थ तंद? त नौजवान सवार9 पर
सवार होते ह ले,कन उ\ह^ नह9ं मालूम ,क वह मौत क सवार9 पर
सवार हो चक
ु े ह। इस लए हम^ तौबा करके नेक आमाल क तरफ़
बढ़ना चाQहए। हुजूरे अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
फ़रमाया: पांच चीज_ से पहले पांच चीज_ से फ़ायदा उठाया जाये।
बुढ़ापा आने से पहले जवानी से। मरने से पहले िज़\दगी से। काम
आने से पहले ख़ाल9 समय से। गुरबत से पहले माल से। बीमार9 से
पहले वा ªय से।
क.ला लयु8बज़\ना ,फ़ल हुतमह: हर गज़ नह9ं! उसको तो ऐसी जगह
म^ फ^का जायेगा जो चरू ा चरू ा करने वाल9 है । अलहुतमह: यह भी
मब
ु ालग़े (अ>तशयोिJत) का सीग़ा (शvद) है , या>न चरू ा चरू ा कर दे ने
वाल9। यह Jया चीज़ है ? यह सवाल उसक होलनाक (भयानकता)
बयान करने के लए है ,क यह कोई मामल
ू 9 चीज़ नह9ं है , बि.क इस
परू 9 कायनात के पैदा करने वाले क भड़कायी हुई आग है ।
118
फ़रमाने इलाह9 है : ना तो उनका काम तमाम ,कया जायेगा ,क वह
मर ह9 जाये और ना उनसे जह\नम का अज़ाब हलका ,कया जायेगा।
(सूरह फ़ा>तर ३६) या>न जह\नम म^ ना मौत आयेगी और ना ह9
अज़ाब कम ,कया जायेगा। क़ुरआने कर9म क Nव भ\न आयात म^
िज़a है ,क जह\न मय_ क ग़जा खौलता हुआ पानी, कांट_ वाला
खाना, गले म^ अटकने वाला खाना, जsम_ के धोवन और पीप,
Nपघला हुआ तांबा इiयाQद ह, या>न बहुत ›यादा तकल9फ़दह चीज़^ ह9
जह\न मय_ को खाने और पीने के लए द9 जाय^गी। अ.लाह तआला
इरशाद फ़रमाता है : जब एक दफ़ा उनक खाल जल चक
ु होगी तो
हम उसक जगह दस
ू र9 नयी खाल पैदा कर द^ गे ता,क अज़ाब चखते
ह9 रह^ । (सूरह अि\नसा ५६) इसी तरह फ़रमाने इलाह9 है : दोज़]ख़य_
को मारने के लए लोहे के गुज़L (एक ,क म का ह थयार) ह, वह
लोग जब भी जह\नम क घुटन से >नकलना चाह^ गे ,फर उसी म^
धकेल Qदये जाय^गे और उनसे कहा जायेगा ,क जलने का अज़ाब
चखते रहो। (सूरह अलहज २१-२२)
हुजरेू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया:
जह\नम को एक हज़ार साल तक ध«का गया तो उसक आग लाल
हो गयी। ,फर एक हज़ार साल तक ध«का गया तो उसक आग सफ़ेद
हो गयी। ,फर एक हजार साल तक ध«का गया तो उसक आग काल9
हो गयी। चन
ु ांचे जह\नम अब काले अंधेर9 वाल9 है । (>त मLज़ा, इvने
माजा) हुजरेू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया:
जह\न मय_ म^ सबसे हलका अज़ाब उस |यिJत पर होगा िजसक
दोनो जू>तयां और तसमे आग के ह_गे, िजनक वजह से हांडी क
तरह उसका Qदमाग़ खोलता होगा। वह समझेगा ,क मुझे सबसे
119
tयादा अज़ाब हो रहा है , हालां,क उसको सबसे कम अज़ाब होगा।
(बुख़ार9 और मुि लम) हुजरेू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
इरशाद फ़रमाया: तु8हार9 यह आग (िजसको तुम जलाते हो) दोज़ख
(नरक) के अज़ाब का सiतरवां भाग है । सहाबा ने अज़L ,कया ,क
जलाने को तो यह9 बहुत है । आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया: हाँ, उसके बावजूद द>ु नया क आग से जह\नम क आग
जलाने म^ ६९ दजाL बढ़9 हुई है । (बुख़ार9 और मुि लम)
जह\नम ऐसा Nवषय है ,क इस Nवषय पर सकड_ ,कताब^ लखी गयी
ह। मने सफ़L चंद बात^ क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^ लखीं ह।
इ\तहाई तकल9फ_ क जगह जह\नम से बचने का एक ह9 तर9क़ा है
,क अपनी द>ु नयावी िज़\दगी अ.लाह के अहकाम और नबी के तर9क़े
के मुताnबक़ गुज़ारने क को शश कर^ , जैसा ,क शायर म ‘क
अ.लामा इकबाल रहमुत.लाह अलैइह ने कहा है :
120
अ.लाह ने जह\नम म^ एक ऐसी ख़ास आग बनायी है िजसका सबसे
पहला हमला उन Qदल_ पर होगा िजनम^ लोग_ के लए इ{याL (जलन)
और माल क ऐसी मोहvबत जगह कर गयी थी ,क वह अ.लाह और
उसके रसूल क बात मानने से ˆकावट बनी। कुछ मुफ़ सर9न ने इस
आयत क तफ़सीर इस तरह बयान फ़रमायी है ,क द>ु नया क आग
जब इ\सान के बदन को लगती है तो Qदल तक पहुंचने से पहले ह9
इ\सान क मौत वाक़े हो जाती है , ले,कन आख़रत म^ मौत तो आती
नह9ं तो वह Qदल तक पहुंचग
े ी।
इWनहा अलइ5हम मूअसदतुन फ़ अम5दम मुम•दह: ल8बे ल8बे
त8भ का मतलब यह है ,क आग के इतने बड़े बड़े शोले ह_गे जैसे
त8भ होते ह और जह\नम वाले उसम^ बंद ह_गे। अ.लाह तआला
हम सब के लए जह\नम से छुटकारे का फैसला फ़रमा।
इस सूरह म^ हमारे लए सबक़ यह है ,क दस
ु रे गुनाह_ के साथ हम^
तीन गुनाह_ से हमेशा बचना चाQहए। ह8ज़ ल8ज़ और नाजायज़
वसाइल से माल जमा करना।
ह8ज़ और ल8ज़ के Nव भ\न मायने ह: ग़ीबत करना, ऐब जोई
करना, ताना दे ना, बरु ा भला कहना और ,कसी |यिJत क तौह9न
करना वग़ैरह। च,ंू क इन गुनाह_ का ता.लक़
ु बज़ाQहर ( प{ट) हुक़ूकुल
इबाद से है , इस लए इन गुनाह_ से nब.कुल बच^ , अपने ,कये हुए
गुनाह पर श मL\दा ह_ और आइ\दा ना करने का पJका इरादा करके
अ.लाह तआला से माफ़ मांगे और उस |यिJत से पहल9 फ़ुसLत म^
मामला साफ़ कर^ , इसी म^ दोन_ जहां क ख़ैर, इtज़त और कामयाबी
छुपी है ।
121
स ू र त ुल फ़ ल
ﺳﻮرة اﻟﻔﻴﻞ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﻚ ﺑِﺄَﺻ ِ ِ
ـﺤﺎب اﻟْﻔ ْﻴـ ِﻞ) (१أَﻟَ ْـﻢ ﻳَ ْﺠ َﻌ ْ
ـﻞ ـﻞ َرﺑَ ْ َ أَﻟَ ْﻢ ﺗَـ َـﺮ َﻛ ْﻴ َ
ـﻒ ﻓَـ َﻌ َ
ـﻞ َﻋﻠَـ ْـﻴ ِﻬ ْﻢ ﻃَْﻴ ـ ًـﺮا أَﺑَﺎﺑِْﻴ ـ َﻞ)(३ َﻛﻴ ـ َﺪﻫﻢ ﻓِــﻲ ﺗَ ْ ِ
ﻀــﻠ ْﻴ ٍﻞ)َ (२وأ َْر َﺳـ َ ْ ُْ
ﺼـ ـ ٍ ﺗَـ ـ ــﺮِﻣﻴ ِﻬﻢ ﺑِ ِﺤﺠ ـ ـ ٍ ِ ِ
ـﻒ ـﺎرة ﻣ ـ ـ ْـﻦ ﺳـ ـ ـ ﺠ ْﻴ ٍﻞ) (४ﻓَ َﺠ َﻌﻠَ ُﻬ ـ ـ ْـﻢ َﻛ َﻌ ْ
ْْ ْ َ َ
َﻣﺄْ ُﻛ ْﻮ ٍل)(५
122
सूरह ‘अल फ़ ल’ क सं !"त तफ़सीर
ख़ाना काबा से संबंtधत ग़लत नीयत रखने वाले का
अWजाम वह1 होगा जो अ•हा के साथ हुआ था
सूरतुल फ़ ल का अनुवाद: Jया तुम ने नह9ं दे खा ,क तु8हारे
परवरQदगार ने हाथी वाल_ के साथ कैसा मामला ,कया? Jया उसने
उन लोग_ क सार9 चाल^ बेकार नह9ं कर द9 थीं? और उन पर झु½ड
के झु½ड प5र\दे छोड़ Qदये थे। जो उन पर पJक म¥ी के पiथर
फ^क रहे थे। चन
ु ांचे उ\ह^ ऐसा कर डाला जैसे खाया हुआ भूसा।
123
पर बहुत ज़ु.म ,कये थे। उसने एक ल8बी ख़\दक ख़द
ु वाकर एक
अ.लाह क इबादत करने वाले तकर9बन बीस हज़ार ईसाइय_ को
आग म^ जला Qदया था िजसका िज़a सूरतुल बुˆज (असहाबुल
उख़दद
ू ) म^ है । ,कसी तरह यहां से बचकर दो ईसाइय_ ने क़ैसर मु.के
शाम के दरबार म^ जाकर फ़5रयाद क । क़ैसर मु.के शाम ने हvशा
(जो यमन से क़र9ब था) के ईसाई बादशाह से यमन पर हमला करने
को कहा। इस तरह अरबात और अmहा दो कमा\डर क नेतiृ व म^
यमन पर हमला करके पूर9 यमन को क़ौम Qहमयर से आज़ाद कर
Qदया। ,फ़र अरबात और अmहा दोन_ कमांडर_ म^ सiता को *ाXत
करने के लए आपसी जंग हुई, अरबात जंग म^ मारा गया और इस
तरह अmहा यमन का हा,कम मुक़रL र कर Qदया गया। अmहा ने यमन
पर क¾जा करने के बाद एक शानदार चचL इस मक़सद से बनाया ,क
यमन के लोग मJका मुकरL मा जाने के बजाये इसी कनीसा म^
इबादत कर^ । अरब क़बाइल म^ ग़म और गु से क लहर दौड़ गयी,
यहां तक ,क ,कसी ने रात के समय कनीसा म^ गंदगी फैला द9 और
उसके एक Qह से म^ आग लगा द9। अmहा को जब इसका पता चला
तो उसने म.
ु के हबशा के बादशाह क आŒा से काबा को ढ़ाने क
तैयार9 शˆ
ु कर द9। चन
ु ांचे हा थय_ के साथ एक सेना लेकर वह
मJका मक
ु रL मा क तरफ रवाना हो गया। अरब लोग बावजद
ू ,क वह
मुश5रक थे हज़रत इmाह9म और हज़रत इ माईल अलैQह सलाम के
बनाये हुए बैत.
ु लाह से बहुत अक़ दत रखते थे, चन
ु ांचे उ\होने अmहा
के ]ख़लाफ़ जंग लड़ी मगर अरब लोग मक़ ु ाबले म^ कामयाब ना हो
सके और अmहा आगे बढ़ता गया। ताइफ के मशहूर क़बीला सक़ फ़
ने उसके आगे ह थयार डाल Qदये। इस तरह वह मJका मुकरL मा से
124
चंद ,कलोमीटर के फ़ासले पर मैदाने अरफ़ात के क़र9ब पहुंच गया
जहां क़ुरै शे मJका के ऊंट चर रहे थे। अmहा के लƒकर (सेना) ने उन
ऊंट_ पर कvज़ा कर लया िजनम^दो सौ ऊंट हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के दादा हज़रत अvदलु मुiत लब के थे।
अmहा ने एक *>त>न ध मJका मुकरL मा भेजा ता,क वह क़ुरै श के
सरदार_ के पास जाकर सूचना दे ,क हम तुम से जंग करने नह9ं
आये ह, हमारा मक़सद बैतु.लाह को ढाना है । अगर तुम ने इसम^
?कावट नह9ं डाल9 तो तु8ह^ कोई नुकसान नह9ं पहुंचग
े ा। हज़रत
अvदल
ु मुiतस लब अmहा से मलने के लए पहुंचे और उससे अपने
दो सौ ऊंट_ का मुतालबा ,कया। अmहा को बड़ा आƒचयL हुआ ,क
क¿ीले का सरदार सफL अपने ऊंट_ क बात करता है , बैतुल.लाह के
मुiताि.लक़ कोई बात नह9ं करता। हज़रत अvदल
ु मुiत लब ने जवाब
Qदया ,क ऊंट_ का मा लक तो म हूँ, मुझे उनक ,फ़a है और
बैतु.लाह का म मा लक नह9ं हूँ बि.क उसका मा लक एक बड़ी ह ती
है जो अपने घर क Qहफ़ाज़त करना जानता है । अmहा ने कहा ,क
तु8हारा अ.लाह उसको मेरे हाथ से ना बचा सकेगा। हज़रत अvदल
ु
मiु त लब ने कहा ,क ,फर तु8ह^ इिsतयार है जो चाहो करो। हज़रत
अvदल
ु मiु त लब ऊंट लेकर वाNपस आये तो उ\ह_ने क़ुरै श क एक
जमाअत के साथ बैत.
ु लाह का दरवाज़ा पकड़कर अ.लाह से ख़ब
ू
दआ
ु एं मांगी और ,फर मJका वाल_ को साथ लेकर इस यक़ न के
साथ पहाड़_ म^ चले गये ,क यक़ नन अmहा क सेना पर अ.लाह का
अज़ाब नािज़ल होगा। सब ु ह हुई तो अmहा क सेना ने बैत.
ु लाह पर
हमलावर होने का इरादा ,कया तो उस का महमूद नाम का हाथी बैठ
गया और वह मJका मक
ु रL मा क तरफ चलने के लए तैयार नह9ं
125
हुआ, जब,क दस
ू र9 तरफ वह चलने लगता था। इसी दौरान प5र\द_
का एक ग़ौल नज़र आया, िजनम^ से हर एक के पास चने के बराबर
तीन कंक5रयां थीं, एक च_च म^ और दो पंज_ म^ , जो उ\ह_ने सेना के
लोग_ के ऊपर बरसानी शुˆ कर द9ं। इन कंक5रय_ ने वह काम ,कया
जो बाˆद9 गोल9 भी नह9ं कर सकती थी। िजस पर यह कंकर9 लगती
उसके पूरे िज म को छे दती हुई जमीन म^ धंस जाती थी। यह अज़ाब
दे खकर सारे हाथी भाग खड़े हुऐ। सेना के सपाQहय_ म^ से कुछ वह9ं
हलाक हो गये और कुछ लोग जो भाग >नकले, वह रा ता म^ मरे ,
और अmहा के िज म म^ ऐसा ज़हर फैल गया ,क उसका एक एक
Qह सा सड़ गल कर गरने लगा, उसी हालत म^ उसे यमन लाया
गया और वहां उसका सारा बदन बह बहकर ख़iम हो गया। उसक
मौत सब के लए इबरतनाक हुई। उसके दो हाथी बान मJका
मुकरL मा म^ रह गये थे जो अपाQहज और अ\धे हो गये थे। सहाबाए
,कराम ने उनको दे खा भी था।
हाtथय के साथ लाने का मक़सद:
उनका यह #याल था ,क बैतु.लाह के सुतून_ म^ लोहे क मज़बूत
और ल8बी जंजीर^ बांध कर उन जंजीर_ को हा थय_ के गले म^ बांध^
और उनको हं का द^ तो सारा बैत.
ु लाह (मआज़ अ.लाह) गर जायेगा।
यह अ.लाह का >नज़ाम है ,क हा थय_ का साथ लाना ह9 उनक
अपमानजनक हार का कारण बना।
असहाबे फ ल का वाUक़या कब पेश आया:
इस वा,क़ए क तार9ख़ और सन म^ इ>तहासकार_ का इिsतलाफ है ,
मोअतमद (Nवƒवसनीय) बात यह है ,क यह वा,क़या हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क पैदाइश के साल पेश आया था।
126
श‹द क तkक़ क़ (अनुसंधान):
अलमतरा: अ.लाह तआला अपने नबी से फ़रमाता है ,क Jया आप
ने नह9ं दे खा? हालां,क यह वा,क़या आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
क पैदाइश से कुछ Qदन पहले का है । इस तरह कहने का मतलब
यह है ,क वह घटना जो अनक़र9ब ह9 घट9 है , िजसक सचाई पर
कोई संदेह नह9ं है और िजसके असरात अभी तक नज़र आते ह।
तइरन अबाबील: से ऐसे प5र\दे मुराद ह जो अजीब तरह के थे, जो
इससे पहले कभी ना दे खे गये और कबूतर से कुछ छोटे थे जैसा ,क
हद9स_ म^ िज़a है ।
एक छोटा सा काले रं ग का प5र\दा जो अ\धेर9 जगह_ पर रहता है
िजसको उदL ू ज़बान म^ अबाबील कहते ह, वह यहां मुराद नह9ं है ।
nबQहजार >ति8मन स›जील: इन कंक5रय_ म^ कोई शिJत नह9ं थी,
मामूल9 गारे और आग से बनी हुई थीं, ले,कन अ.लाह तआला ने
वतLमान म^ मौजूद बाˆद9 गो लय_ से tयादा काम लया।
फ़जअलहुम कअ सफ़म माअकूल: अmहा क सेना िजस पर कंक5रय_
क मार पड़ी थी वह ऐसे हो गये जैसे जानवर_ का खाया हुआ भूसा।
ख़द
ु भस
ू ा ह9 nबखरे >तनके होते ह, ,फर जब,क उसे ,कसी जानवर ने
चबा भी लया हो तो >तनके भी अपने हाल पर नह9ं रहते और
द>ु नया म^ उसक कोई क़ मत भी नह9ं होती। ग़ज़L ,क अ.लाह
तआला ने अपना उसल
ू और ज़ाvता कल क़यामत तक के इ\सान_
और िजन_ के लए बयान कर Qदया ,क जो भी हमारे घर के बारे म^
ग़लत नीयत रखेगा उसका अंजाम वह9 होगा जो अmहा क सेना के
साथ हुआ था।
127
असहाबे फ़ ल (हाथी वाल_) के इस वा,क़ये क वजह से अरब_ म^
अ.लाह के घर और उसक >नगरानी करने वाले क़बीला क़ुरै श क
अह मयत और अज़मत बढ़ गयी। चन
ु ांचे वह उनसे कोई छे ड़ छाड़
नह9ं करते थे और इस तरह उनक या}ाय^ ,कसी भी ख़तरे से ख़ाल9
थीं। ग़ज़L ,क क़बीला क़ुरै श के लोग साल म^ दो सफ़र ,कया करते थे,
इन ह9ं सफ़र_ का िज़a अ.लाह तआला अगल9 सूरह म^ कर रहे ह।
128
दे खने वाल_ पर। हद9स म^ है ,क बैतु.लाह पर पहल9 नज़र पड़ने पर
जो दआ
ु मांगी जाती है वह अ.लाह तआला क़बूल फ़रमाता है । हुज़ूर
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क सु\नत के मुताnबक़ बैतु.लाह
शर9फ़ को हर साल गु ल भी Qदया जाता है ।
129
मुकाnबल द9वार म^ क़ायम कर Qदया ता,क हर |यिJत आसानी से
एक दरवाज़े से दा]ख़ल हो और दस
ू रे दरवाज़े से >नकल जाये। (हुज़ूर
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क sवाQहश भी यह9 थी)।
१०) ७३ Qहजर9 म^ ह›जाज nबन युसुफ ने काबा को दोबारा पुराने तज़L
के अनुसार कर Qदया (या>न हतीम क जा>नब से द9वार पीछे को
हटा द9 और दरवाजा ऊंचा कर Qदया, दस
ू रा दरवाजा बंद कर Qदया)।
११) १०२१ Qहजर9 म^ सु.तान अहमद तुकÀ ने छत बदलवायी और
द9वार_ क मर8मत क ।
१२) १०३९ Qहजर9 म^ सु.तान मुराद के ज़माने म^ सैलाब के पानी से
बैतु.लाह क कुछ द9वार^ गर गयी थीं तो सु.तान मुराद ने उनक
तामीर करायी।
१३) १४१७ Qहजर9 म^ शाह फ़हद nबन अvदल
ु अज़ीज ने बैतु.लाह क
कुछ तरमीम क ।
130
सूरह कुऱ ै श
ﺳﻮرة ﻗﺮﻳﺶ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ﻒ)(२ ﺸــﺘَ ِﺎء َواﻟ
ﺼـ ْـﻴ ِ ﺶ) (१إِﻳْ َﻼﻓِ ِﻬـ ْـﻢ ِر ْﺣﻠَ ـﺔَ اﻟ ِِﻹﻳ ـ َﻼ ِ
ف ﻗُـ َـﺮﻳْ ٍ ْ
ـﺖ) (३اﻟـ ِـﺬ ْي أَﻃ َْﻌ َﻤ ُﻬـ ْـﻢ ِﻣـ ْـﻦ ُﺟـ ْـﻮ ٍع ب َﻫ ـ َﺬا اﻟْﺒـ ْﻴـ ِ
َ ﻓَـ ْﻠﻴَـ ْﻌﺒُـ ُﺪ ْوا َر
ف)(४ وآﻣﻨَـﻬﻢ ِﻣﻦ َﺧﻮ ٍ
َ َ ُْ ْ ْ
131
सूरह ‘क़ुरै श’ क सं !"त तफ़सीर
अXलाह क इबादत करने वाल के =लए कुशादा
रोज़ी और अमन और सुकून क िज़Wदगी का वादा
सूरह क़ुरै श का अनुवाद: च,ूं क क़ुरै श के लोग आद9 ह, या>न वह सदÁ
और गम’ के मौसम_ म^ (यमन और शाम के) सफर करने के आद9
ह, इस लए उ\ह^ चाQहए ,क वह इस घर के मा लक क इबादत कर^
िजसने भूख क हालत म^ उ\ह^ खाने को Qदया और बदअमनी से उ\ह^
महफूज़़ रखा।
132
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क तशर9फ आवर9 से
पहले ज़मानाए जाQह लयत म^ अरब_ म^ क़iल और ग़ारत गर9 (हiया
करने) का बाज़ार गमL था। कोई |यिJत आसानी से सफ़र नह9ं कर
सकता था, Jय_,क कुछ लोग_ का काम ह9 यह9 था ,क वह राहगीर_
को लूट लया करते थे। ले,कन बैतु.लाह क >नगरानी करने वाले
क़बीला क़ुरै श को सारे लोग इtज़त क >नगाह से दे खते थे, िजसक
वजह से वह लुटेर_ से सुर त रहते थे। मJका मुकरL मा म^ बंजर
ज़मीन क वजह से खेती वग़ैरह नह9ं थी, इस लए वह अपनी
ज़ˆ5रयात पूर9 करने के लए साल भर म^ दो सफ़र ,कया करते थे।
सQदL य_ म^ मु.क यमन और ग मLय_ म^ मु.क शाम क तरफ।
133
क़ुरै श कौन हw?
क़ुरै श मJका मुकरL मा का एक मु#य क़बीला था। इ\सान_ और िजन_
के नबी हज़रत मोह8मद मु तफ़ा स.ल.लाहु अलैQह वस.लम का
इसी क़बीले क शाख़ बनू हा शम से तअ.लुक़ है । हुजरू ़ अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के तेरहवीं पुƒत म^ दादा नज़र nबन
,कनाना nबन ख़ज़
ु ैमा क औलाद को क़ुरै श कहा जाता है । तार9ख़
तबर9 के मुताnबक हुजरू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क छठr
पुƒत म^ दादा क़ुसई nबन ,कलाब वह पहले |यिJत ह िज\ह^ क़ुरै श
कहा गया। बनू ,कनाना हरम क ]ख़दमत क ग़जL से एक जगह
जमा रहते थे इस लए नज़र nबन ,कनाना क औलाद को कुरै़ श कहा
ज़ाता था। नज़र nबन ,कनाना क़ुरै श अकबर और क़ुसई nबन ,कलाब
को क़ुरै श असग़र कहा ज़ाता है । इस सूरह म^ इशारा है ,क अरब के
तमाम कबाइल म^ क़ुरै श को *ाथ मकता हा सल है । चन
ु ांचे हद9स म^
है ,क रसूले अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया
,क अ.लाह तआला ने इ माइल अलैQह सलाम क औलाद म^
,कनाना को और ,कनाना क औलाद म^ से क़ुरै श को और क़ुरै श म^
से बनू हा शम को और बनू हा शम म^ मुझे मु\तख़ब (चन
ु ा) ,कया
है ।
134
सूरह अलमाऊन
ﺳﻮرة اﻟﻤﺎﻋﻮن
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ﻚ اﻟـ ـ ِـﺬ ْي ﻳَـ ـ ُﺪعب ﺑِﺎﻟ ـ ـﺪﻳْ ِﻦ) (१ﻓَـ ـ َﺬﻟِ َ أَرأَﻳـ ـ َ ِ
ـﺖ اﻟـ ــﺬ ْي ﻳُ َﻜ ـ ـ ﺬ ُ َْ
ِ ِ ِ اﻟْﻴَﺘِ ـ ْـﻴ َﻢ)َ (२وَﻻ ﻳَ ُﺤـ ـ
ﺾ َﻋﻠـ ـﻰ ﻃَ َﻌ ــﺎم اﻟْﻤ ْﺴ ــﻜ ْﻴ ِﻦ) (३ﻓَـ َﻮﻳْ ـ ٌ
ـﻞ
ـﺎﻫ ْﻮ َن) (५اﻟِ ـﺬﻳْ َﻦ ﻟِﻠْﻤﺼﻠﻴﻦ) (५اﻟِ
ﺻ َـﻼﺗِ ِﻬ ْﻢ َﺳ ُ ـﻦ
َْ ْ ْ َ ﻋ
َ ـﻢ ﻫ
ُ ﻦ ﻳ ﺬ ُ َ َْ
ﺎﻋ ْﻮ َن)(७ُﻫ ْﻢ ﻳُـ َﺮاءُ ْو َن)َ (६وﻳَ ْﻤﻨَـ ُﻌ ْﻮ َن اﻟ َْﻤ ُ
135
सूरह ‘अलमाऊन’ क सं !"त तफ़सीर
सूरह अलमाऊन मu अXलाह के हुक़ूक़ और बWद के
हुक़ूक़ क अदायगी क ख़ास ताक द
यतीम के साथ बदसुलूक मोहताज क मदद ना करना, Oरयाकार1
और नमाज़़ और ज़कात क अदायगी मu कोताह1 मो=मन क शान
नह1ं
सूरहुल माऊन का अनुवाद: Jया तुम ने उसे दे खा जो द9ने इ लाम
या (क़यामत के Qदन क ) जज़ा और सज़ा को झुठलाता है ? वह9 तो
है जो यतीम को धJके दे ता है । और म क न को खाना दे ने क
तरग़ीब नह9ं दे ता। ,फर बड़ी ख़राबी (और वैल नामी जह\नम क
जगह) है उन हज़रात के लए जो अपनी नमाज़़ से ग़फलत बरतते
ह, या>न नमाज़़ क पाबंद9 नह9ं करते। जो Qदखावा करते ह और
दस
ू रो को ज़कात या मामूल9 चीज़ दे ने से भी इ\कार करते ह।
136
,कराम के अक़वाल (बात^ ) क रोशनी म^ दस
ू रे मायने (अथL) को ह9
पसंद ,कया है ।
इस सूरह म^ कु‡फ़ार और मुना,फ़क़ न के कुछ बुरे काम और उन पर
जह\नम क वईद (चेतावनी) िज़a है । अगर यह काम क़यामत के
Qदन जज़ा और सज़ा पर ईमान लाने वाले मो मन कर^ तो वह
अगरचे बड़े गुनाह ह, ले,कन इस सूरह म^ मज़कूर वईद (चेतावनी)
उस पर नह9ं है Jयूँ,क वह अ.लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने
के साथ क़यामत के Qदन और उसक जज़ा और सज़ा पर ईमान
लाया हुआ है । मगर इसम^ इशारा इस तरफ ज़ˆर है ,क यह बुरे
काम मो मन क शान से दरू ह, या>न एक मो मन को यह काम
कभी नह9ं करने चाQहए।
िजन बुरे काम का िज़a इस सूरह म^ ,कया गया है , वह यह ह:
यतीम के साथ बदसुलूक करना, क़ुदरत के बावजूद ग़र9ब क
सहायता ना करना और दस
ू र_ को इसक तरग़ीब ना दे ना, नमाज़़_ क
अदायगी म^ कोताह9 करना, 5रयाकार9 करना और ज़कात अदा ना
करना। यह सारे काम बड़े गुनाह होने के साथ अपनी ज़ात म^ भी बुरे
ह। क़यामत के Qदन और उसक जज़ा और सज़ा के इ\कार (या>न
कु`ऱ) के साथ यह काम करे तो उनक सज़ा हमेशा के लए
जह\नम है । अलबiता अ.लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने
वाला उनके आमाल क सज़ा भुगतने के बाद एक ना एक Qदन
जह\नम से >नकाल कर ज\नत म^ दा]ख़ल कर Qदया जायेगा। हाँ
अगर ,कसी मो मन ने मौत से पहले इन काम_ से सfची तौबा कर
ल9 तो ,फर इंशाअ.लाह इन काम_ क वजह से जह\नम म^ नह9ं
जायेगा। अ.लाह और उसके रसूल पर ईमान ना लाना या अ.लाह
137
क ज़ात और सफ़ात म^ ,कसी को शर9क ठहराना ऐसा जुमL है ,क
ख़ा लक़े कायनात (अ.लाह) के फ़ैसले के अनुसार मरने के बाद इन
गुनाह_ क माफ़ नह9ं है ।
पहल9 आयत म^ मज़कूर बात को समझने से पहले चंद बात_ का
समझना ज़ˆर9 है ।
काUफ़र कौन: वह |यिJत है जो अ.लाह और उसके रसूल और
आ]ख़रत पर ईमान ना लाये। या>न िजस तरह अ.लाह क ज़ात का
इ\कार करने वाला का,फ़र है , उसी तरह मोह8मद स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को नबी और रसूल तसल9म ना करने वाला भी का,फ़र है ।
मुशOरक कौन: अ.लाह तआला को मानकर अ.लाह क ज़ात या
सफ़ात म^ ,कसी दस
ू रे को शर9क ठहराने वाला मुश5रक है ।
मुनाUफक़ कौन: अ.लाह और उसके रसूल पर Qदल से ईमान ना
लाकर कुछ मसलहत_ के लए अपने ईमान को ज़ाQहर करने और
सफ़L Qदखावे क नमाज़़^ अदा करने वाला मुना,फ़क है , ग़ज़L ,क अगर
बात और काम म^ तज़ाद (खल
ु ा फ़क़L) हो तो यह >नफ़ाक क
अलामत है ।
मो=मन कौन: अ.लाह को माबद
ू े हक़ क़ तसल9म करके मोह8मद
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को अपना नबी और रहबर मानकर
उनक ताल9मात के मतु ाnबक़ िज़\दगी गज़
ु ारने वाला मो मन है ।
फ़ा=सक़ कौन: अ.लाह और उसके रसल
ू पर Qदल से ईमान लाने के
बावजद
ू बड़े गुनाह_ का को करने वाला फ़ा सक़ कहलाता है । क़ुरआन
और हद9स क रोशनी म^ परू 9 उ8मते मिु लमा का इiतेफाक़ है ,क
कु`ऱ या शकL या >नफ़ाक जैसे बड़े बड़े गुनाह भी मौत से पहले
ईमान लाने और सfची तौबा करने से माफ़ हो ज़ाते ह। ले,कन अगर
138
कोई |यिJत कु`ऱ या शकL या >नफ़ाक क हालत म^ मर जाये तो
उसके मुतअि.लक़ अ.लाह तआला ने अपना उसूल और ज़ाvता
अपनी ,कताब “क़ुरआने कर9म’’ म^ िज़a कर Qदया ,क ,फर उसक
माफ़ नह9ं है , उसे हमेशा हमेशा जह\नम म^ रहना होगा। कुछ
मुलQहद9न (िजनका कोई मज़हब ना हो) इस Nवषय के मुतअि.लक़
इसलाम पर एतराज़ करते ह, हालां,क इस द>ु नयावी िज़\दगी क
बेशुमार चीज़^ समझ म^ ना आने के बावजूद सार9 द>ु नया उनको
मानती है । मसलन ग़र9ब घराने म^ पैदा होने वाला |यिJत आम तौर
पर गुरबत म^ ह9 िज़\दगी गुज़ारकर द>ु नया से चला जाता है , तो ,फर
यहां एतराज Jय_ नह9ं ,कया जाता ,क ग़र9ब घर म^ पैदा होने वाले
मासूम बfचे ने Jया ज़ु.म ,कया ,क वह पूर9 िज़\दगी तकल9फ़_ म^
गुज़ारता है , जब,क मालदार घराने म^ पैदा होने वाला बfचा आम तौर
पर ऐश और आराम म^ िज़\दगी गुज़ारता है । इसी तरह इ\सान
द>ु नया म^ Jय_ आता है और द>ु नया से ना जाने क हर मुम,कन
को शश के बावजूद हर |यिJत Jय_ मौत का मज़ा चखता है ? कुछ
समय एक सेहतमंद नौजवान िजसक ]ख़दमात पूर9 क़ौम को दरकार
है सफL ठोकर खाकर ह9 मर ज़ाता है , जब,क कुछ बीमार बढ
ू े लोग
दस
ू र_ के सहारे पर साल_ िज़\दा रह जाते ह। इस तरह के हज़ार_
सवाल_ का जवाब हमार9 अक़ल^ दे ने से नाकाम ह। जब हज़ार_
द>ु नयावी मामले समझ म^ ना आने के बावजद
ू सारे इ\सान अपने
घट
ु ने टे क दे ते ह तो ,फर हम अ.लाह के हुJम के सामने सर Jयँू
ना झक ु ाएं?
139
आ„ख़रत मu जज़ा (बदला), सज़ा और जWनत या जहWनम मu Eवेश:
क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^ हमारा यह ईमान और अक़ दा है
,क एक Qदन यह द>ु नया खiम हो जायेगी और द>ु नया के वुजूद से
लेकर क़यामत तक आने वाले तमाम इ\सान_ और िजन_ को
क़यामत के मैदान म^ जमा ,कया जायेगा और द>ु नयावी िज़\दगी म^
अfछे और बुरे आमाल के एतबार से अ.लाह तआला ज\नत या
जह\नम का फ़ैसला फ़रमायेगा। ज\नत म^ अ.लाह तआला ने ऐसी
ऐसी आराम क चीज़^ उपलvध कर रखी ह ,क हमार9 अक़ल^ उनके
बारे म^ सोच भी नह9 सकतीं। ज\नत के तअ.लुक से बुख़ार9,
मुि लम और हद9स क दस
ू र9 ,कताब_ म^ िज़a एक हद9स पेश है ,क
हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: हज़रत मूसा
अलैQह सलाम ने अपने परवQदL गार से पुछा ,कया ,क सबसे कम
मतLबे वाला ज\नती कौन है ? अ.लाह तआला ने फ़रमाया वह
|यिJत है जो सब ज\न>तय_ के ज\नत म^ जाने के बाद आयेगा,
उससे कहा जायेगा, जाओ ज\नत म^ जाओ, वह कहे गा ऐ रब कैसे
जाऊँ, वहां तो सब लोग_ ने अपने अपने Qठकाने मुतअBयन
(>नधाL5रत) कर लये और अपनी अपनी जगह^ बना ल9ं। उससे कहा
जायेगा Jया तू इस बात पर राज़ी है ,क तझ
ु े इतना म.
ु क मले
िजतना द>ु नया के एक बादशाह के पास था? वह कहे गा परवरQदगार
म राज़ी हूँ। हुJम होगा जा इतना म.
ु क हमने तझ
ु े Qदया और उतना
ह9 और, और उतना ह9 और, और उतना ह9 और, और उतना ह9
और, और उतना ह9 और। पांचवीं बार म^ वह कहे गा परवरQदगार
(बस) म राज़ी हो गया। परवरQदगार फ़रमायेगा तू यह भी ले और
इसका दस गुना और ले, और जो तेर9 तबीयत चाहे और तेर9 आख_
140
को Xयारा मालूम हो वह भी ले। वह कहे गा परवरQदगार म राज़ी हो
गया। उसके बाद हज़रत मूसा अलैQह सलाम ने दरया‡त ,कया तो
सबसे बड़े मतLबे वाला ज\नती कौन है ? अ.लाह तआला ने फ़रमाया
वह तो वह हज़रात ह िजनको मने ख़द
ु मु\तख़ब ,कया और उनक
बुज़ुग
L ी और इtज़त को अपनी क़ुदरत से बंद कर Qदया और (,फर)
इस पर मोहर लगा द9। यह चीज़े तो ,कसी आंख ने नह9ं दे खीं और
ना ,कसी कान ने सुनीं और ना ,कसी इ\सान के Qदल पर इन
(नेमत_ और मतLब_) का sयाल गुज़रा और इस चीज़ क त द9क
(अ.लाह तआला का फ़रमान जो) उसक ,कताब म^ वह करता है ।
“,कसी को मालूम नह9ं ,क उनके लए उनक आंख_ क ठं डक का जो
सामान छुपाकर रखा गया है ।’’ (सह9ह मुि लम)
जह\नम क भड़कती हुई आग द>ु नयावी आग क तNपश (गम’) से
७० गुना tयादा है , जहां खन
ू और पीप बहता है । अ.लाह तआला
जह\नम से हमार9 Qहफ़ाज़त फ़रमाकर हमारे लए ज\नतुल ,फ़रदौस
का फ़ैसला फ़रमाये। द>ु नया म^ इस समय ७ करोड़ इ\सान बसते ह
िजनक अJस5रयत (अ धकांश) इस बात का यक़ न ज़ˆर रखती है
,क इस द>ु नयावी िज़\दगी के बाद एक दस
ू र9 िज़\दगी भी है िजसम^
इस द>ु नयावी िज़\दगी के आमाल क जज़ा या सज़ा मलेगी, जो
आखरत क िज़\दगी के बरहक़ (सiय) होने क ख़द
ु एक दल9ल
(तकL) है ।
141
थे, आप के वा लद मािजद (अvद.
ु लाह) उस समय इ\तक़ाल फ़रमा
गये जब आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम अपनी माँ (आमना) के
पेट म^ थे और वा लदा मािजदा का इ\तक़ाल उस समय हुआ जब
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ६ साल के थे। यतीम_ के लए आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के Qदल म^ बड़ी हमददÁ थी, इस लए
आप सहाबाए ,कराम को यतीम_ क ,कफ़ालत करने पर उकसाया
करते थे। एक बार हुज़रू अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
इरशाद फ़रमाया: म और यतीम क ,कफ़ालत करने वाला दोनो
ज\नत म^ इस तरह ह_गे, आपने >नकटता बयान करने के लए बीच
और शहादत क उं गल9 से इशारा फ़रमाया, या>न यतीम क
,कफ़ालत करने वाला हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के
साथ ज\नत म^ होगा। (बुख़ार9)
ज़Vरतमंद क ज़Vरत पूर1 करने क तरग़ीब और ताल1म इ2लाम
मज़हब मu सब से िज़यादह द1 गई है : शर9अते इ ला मया म^
मसाक न और ग़र9ब_ को खाना ]खलाने और उनक द>ु नयावी ज़ˆरत_
को पूरा करने क बार-बार तरग़ीब और ताल9म द9 गयी है । हुज़ूर
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से सवाल ,कया गया ,क इ लाम
म^ कौन सा कायL tयादा अफ़जल (उiतम) है ? आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम ने फ़रमाया लोग_ को खाना ]खलाना और हर
|यिJत को सलाम करना चाहे उसको पहचानो या ना पहचानो।
(बख़
ु ार9 और मिु लम)
मोह सने इ\सा>नयत नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया: ऐ लोग_! आपस म^ tयादा से tयादा सलाम करो, दस
ू र_ को
खाना ]खलाओ, 5रƒतेदार9 को जोड़ो और रात को ऐसे समय म^
142
नमाज़़ पढ़ो जब ,क लोग सो रहे ह_, (इंशाअ.लाह) ज\नत म^
सलामती के साथ दा]ख़ल हो जाओगे। (>त मLज़ी)
इसी तरह फ़रमाने रसूल है : जो |यिJत मो मन क कोई द>ु नयावी
मुिƒकल दरू करे गा, अ.लाह तआला क़यामत क सिsतय_ म^ से उस
पर से एक सsती दरू करे गा। और जो |यिJत ,कसी तंगद त पर
आसानी करे गा, अ.लाह तआला द>ु नया और आ]ख़रत म^ उस पर
आसानी करे गा..... जब तक ब\दा अपने भाई क मदद म^ लगा रहता
है , अ.लाह तआला भी उसक मदद म^ रहता है । (सह9ह मुि लम)
143
इ\तहाई गहर9 और शद9द गमL वाद9 ग़ई म^ डाला जायेगा, जहां ख़न
ू
और पीप बहता है । (३) तु8ह^ दोज़ख़ म^ ,कस चीज़ ने डाला। वह
जवाब द^ गे ,क हम ना नमाज़ी थे, ना मसक न_ को खाना ]खलाते
थे। (सूरतुल मु[ि सर ४२, ४४) ज\नती, ज\नत के बाला ख़ान_ म^
बैठे जह\न मय_ से सवाल कर^ गे ,क ,कस वजह से तु8ह^ जह\नम म^
डाला गया? तो वह जवाब द^ गे ,क हम द>ु नया म^ ना नमाज़ पढ़ते थे
और ना ह9 गर9ब_ को खाना ]खलाते थे। ग़ौर फ़रमाय^ ,क जह\नमी
लोग_ ने जह\नम म^ डाले जाने क सबसे पहल9 वजह नमाज़़ ना
पढ़ना बताया Jय_,क नमाज़़ ईमान के बाद इ लाम का अहम और
बु>नयाद9 ?Jन ( तंभ) है जो हर मुसलमान के िज़8मे है । इन तीन_
आयात क तफ़सीर के हवाल_ के लए मशहूर तफ़सीर_ को पढ़^ ।
144
के ,फतने से tयादा ख़तरनाक बात से आगाह ना कर दं ?
ू हमने अज़L
,कया ,क ज़ˆर या रसल
ू ु.लाह! आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया: शकL ख़फ़ (छुपा हुआ) द›जाल से भी tयादा ख़तरनाक है
और वह यह है ,क एक आदमी नमाज़ के लए खड़ा हो और नमाज़
को इस लए ल8बा करे ,क कोई आदमी उसे दे ख रहा है । (इvने
माजा) इसी तरह रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
फ़रमाया: िजसने Qदखावे क नमाज़़ पढ़9 उसने शकL ,कया। (मुसनद
अहमद)
ज़कात क अदायगी ना करने वाल को जहWनम मu डाला जायेगा:
क़ुरआन और सु\नत क रोशनी म^ उ8मते मुि लमा क सहम>त है
,क जो |यिJत ज़कात के फ़ज़L होने का इ\कार करे वह का,फ़र है ,
और ज़कात क अदायगी ना करने वाला गुनाहे कबीरा करने वाला है
िजसको आ]ख़रत म^ सsत सज़ाय^ द9 जाय^गी अगर मरने से पहले
उसने सfची तौबा नह9ं क ।
सूरह अiतैबा आयत न8बर ३४-३५ म^ अ.लाह तआला ने उन लोग_
के लए बड़ी सsत वईद (चेतावनी) बयान फ़रमायी है जो अपने माल
क उ चत ज़कात नह9ं >नकालते।
इस सरू ह के आ]ख़र9 शvद “माऊन’’ के मायने मामल
ू 9 चीज़ से ,कये
गये ह। इसी शvद के नाम पर सरू ह का नाम “माऊन’’ रखा गया है ।
असल म^ “माऊन’’ उन बरतने क मामल
ू 9 चीज़_ को कहते ह जो
आम तौर से एक दस
ू रे से मांग लया करते ह, जैसे बतLन वग़ैरह।
,फर हर ,क़ म क मामूल9 चीज़ को भी “माऊन’’ कह दे ते है । कुछ
सहाबाए ,कराम ने इसक तफ़सीर ज़कात से क है , Jय_,क वह भी
इ\सान क दौलत का मामूल9 (चाल9सवां) भाग होता है ।
145
इस सूरह मu हमारे =लए सबक़: अ.लाह और उसके रसूल पर ईमान
के साथ आ]ख़रत क जज़ा और सज़ा पर ईमान लाना। यतीम_ क
,कफ़ालत करने म^ बढ़ चढ़ कर भाग लेना। म क न और मोहताज
लोग_ क द>ु नयावी ज़ˆरत_ को पूरा करने म^ पहल करना। अगर ख़द
ु
ग़र9ब लोग_ क मदद नह9ं कर सकते तो कम से कम ऐसे काम_ म^
शर9क होना िजनके ज़5रए ग़र9ब लोग_ क मदद क जा रह9 हो।
खश
ु ूअ और ख़ज़
ु ूअ (अ.लाह के धयान) के साथ फज़L नमाज़_ का
एहतमाम करना। फ़ज़L नमाज़ के साथ सुनन और नवा,फ़ल क भी
पाबंद9 करना। हर नेक अमल सफ़L और सफ़L अ.लाह क रज़ा के
लए करना। Qदखावे और शोहरत आमाल क बबाLद9 का कारण ह।
माल पर ज़कात के फ़ज़L होने पर उसका Qहसाब लगाकर हर साल
ज़कात क अदायगी करना। अगर कोई पड़ोसी या 5रƒतेदार दै >नक
इ तेमाल म^ आने वाल9 चीज़^ मांग^ तो हiतल इमकान उसे मना ना
करना। हुक़ूक़ु.लाह के साथ हुक़ूक़ुल इबाद क अदायगी म^ कोई
कोताह9 ना करना। हुक़ूक़ु.लाह म^ ईमान के बाद सबसे अहम इबादत
नमाज़ और ज़कात है ।
146
सूरह अलकौसर
ﺳﻮرة اﻟﻜﻮﺛﺮ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ﺼ ـ ـ ـ ﻞ ﻟَِﺮﺑـ ـ ـ َ
ـﻚ َواﻧْ َﺤـ ـ ـ ْـﺮ)(२ إِﻧـ ـ ـﺂ أَ ْﻋﻄَْﻴـﻨَـ ـ ـ َ
ـﺎك اﻟْ َﻜـ ـ ـ ْـﻮﺛَـ َﺮ) (१ﻓَ َ
ﻚ ُﻫ َﻮ ْاﻷَﺑْـﺘَـ ُﺮ )(३ إِ ن َﺷﺎﻧِﺌَ َ
147
सूरह ‘अलकौसर’ क सं !"त तफ़सीर
कौसर जWनत क एक नहर है िजससे क़यामत के
5दन उ-मते मुह-म5दयह खूब पानी Aपये गी
सूरह अलकौसर का अनुवाद: (ऐ पैग़8बर!) यक़ न जानो हम ने तु8ह^
कौसर अता कर द9 है । इस लए तुम अपने परवरQदगार (क रज़ा) के
लए नमाज़़ पढ़ो और क़ुबाLनी करो। यक़ न जाने तु8हारा दƒु मन ह9
वह है िजसक जड़ कट9 हुई है , या>न तु8हारे दƒु मन का नाम लेने
वाला कोई नह9ं होगा।
148
मर मटने वाले बेशुमार लोग द>ु नया म^ मौजूद ह और इंशाअ.लाह
रह^ गे। ताना दे ने वाले को कोई जानता भी नह9ं और अगर कोई िज़a
भी करता है तो बुराई के साथ।
149
अलैQह वस.लम क शफ़ाअत हा सल करने के लए हम^ तह›जुद क
नमाज़ का एहतमाम करना चाQहए।
हुज़ूर-ए-अकरम सXलXलाहु अलै5ह वसXलम क न2ल:
नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क सार9 औलाद आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क पहल9 पiनी हज़रत ख़द9जा
रिज़अ.लाहु अ\हा से मJका मुकरL मा म^ हुई, सवाय आपके बेटे
हज़रत इmाQहम रिज़अ.लाहुअ\हु के, वह हज़रत मा5रया ,क़ब>तयह
रिज़अ.लाहु अ\हा से मद9ना मुन|वरा म^ पैदा हुए। हज़रत ख़द9जा
रिज़अ.लाहुअ\हा क उž >नकाह के समय ४० साल थी, या>न हज़रत
खद9ज़ा आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से उमर म^ १५ साल बड़ी
थीं। नीज़ वह नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के साथ
>नकाह करने से पहले दो शाQदयाँ कर चक
ु थीं और उनके पहले प>त
से बfचे भी थे। जब नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क
उमर ५० साल क हुई तो हज़रत ख़द9जा रिज़अ.लाहुअ\हा का
इ\तेकाल हो गया। इसी तरह नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने अपनी पूर9 जवानी (२५ से ५० साल क उमर) सफL एक
बेवा औरत हज़रत ख़द9जा रिज़अ.लाहुअ\हा के साथ गज़
ु ार द9।
नबी-ए-अकरम सXलXलाहु अलै5ह वसXलम के तीन बेटे:
१. हज़रत क़ा सम रिज़अ.लाहुअ\हु
२. हज़रत अvद.ु लाह रिज़अ.लाहु अ\हु
३. हज़रत इmाQहम रिज़अ.लाहुअ\हु।
नबी-ए-अकरम सXलXलाहु अलै5ह वसXलम क चार बे5टयाँ:
़
१. हज़रत जैनब रिज़अ.लाहु अ\हा
२. हज़रत ?क़Bया रिज़अ.लाहु अ\हा
150
३. हज़रत उ8मे कुलसूम रिज़अ.लाहु अ\हा
४. हज़रत फ़ा>तमा रिज़अ.लाहु अ\हा।
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क न ल आप क साहबज़ाQदय_ से
चल9 और इंशाअ.लाह कल क़यामत तक आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम क न ल बाक़ रहे गी। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को
मानने वाले जो आप क औलाद के दजo म^ ह, वह तो इतनी बड़ी
तादाद म^ ह_गे ,क Nपछले तमाम नnबय_ क उ8मत_ से भी बढ़
जाय^गे और उनका एज़ाज़ और इकराम भी दस
ू र9 उ8मत_ के मुक़ाबले
म^ tयादा होगा।
कौसर के ल<ज़ी मायने “बहुत Šयादा भलाई’’ के हw और कौसर
ज\नत क उस हौज़ का नाम भी है जो हुज़ूर अक़दस स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम के इिsतयार म^ द9 जायेगी और आप क उ8मत के
लोग इससे पानी Nपय^ गे। एक Qदन जब,क हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम मि जद म^ हमारे बीच थे, अचानक आप पर एक
,क़ म क नींद या बेहोशी क कै,फ़यत तार9 हुई, ,फर हं सते हुए
आप ने सरे मुबारक उठाया। हमने पूछा या रसूलु.लाह! आप के
हं सने क वजह Jया है ? तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया ,क मझ
ु पर इसी समय एक सरू ह नािज़ल हुई है , ,फर आप
ने nबि म.लाह के साथ सरू ह अलकौसर पढ़9। ,फर फ़रमाया: तुम
जानते हो कौसर Jया चीज़ है ? हमने अज़L ,कया: अ.लाह और उसके
रसल
ू tयादा जानते ह। आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने फ़रमाया
,क यह ज\नत क एक नहर है , िजसका मेरे रब ने मझु से वादा
फ़रमाया है , िजसम^ बहुत ख़ैर है और वह हौज़ है िजस पर मेर9
उ8मत क़यामत के Qदन पानी के लए आयेगी, उसके पानी पीने के
151
बतLन सतार_ क तादाद क तरह बहुत tयाद ह_गे। उस समय कुछ
लोग_ को फ5रƒते हौज़ से हटा द^ गे तो म कहूंगा ,क मेरे परवरQदगार
यह तो मेरे उ8मती ह। अ.लाह तआला फ़रमायेगा ,क आप नह9ं
जानते ,क उ\ह_ने आपके बाद Jया नया द9न अपनाया था। (बुख़ार9
और मुि लम)
152
और उसके शु,aया के लए आप को दो चीज़_ का हुJम Qदया गया।
एक: नमाज़़ क अदायगी और दसू रे क़ुबाLनी करना। क़ुरआन और
हद9स क रोशनी म^ पूर9 उ8मते मुि लमा का इiतेफाक़ है ,क ईमान
के बाद सबसे अहम इबादत नमाज़़ क अदायगी है । चन
ु ांचे अ.लाह
तआला ने अपने पाक कलाम (क़ुरआन मजीद) म^ सबसे tयादा
नमाज़़ का ह9 िज़a फ़रमाया है । मोह सने इ\सा>नयत के फ़रमान के
अनुसार क़यामत के Qदन सबसे पहले नमाज़़ ह9 का Qहसाब लया
जायेगा। नबी-ए-अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क आ]ख़र9
वसीयत भी नमाज़़ क पाबंद9 के मत
ु ाअि.लक़ है । नबी-ए-अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क २३ साला नबूवत वाल9 क़ मती
िज़\दगी का अ धक भाग नमाज़़ क अदायगी म^ ह9 लगा। इस लए
हम^ पांच_ नमाज़_ क पाबंद9 के साथ सुनन और नवा,फ़ल का भी
एहतमाम करना चाQहए।
कुबाLनी भी एक बड़ी इबादत है , चन
ु ांचे हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम ने ह›जतुल Nवदाअ के मौके पर सौ ऊंट_ क कुबाL
़ नी
पेश फ़रमायी थी िजसम^ से ६३ ऊंट_ क क़ुबाLनी आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम ने अपने मब
ु ारक हाथ_ से क थी और बाक़ ३७ ऊंट
हज़रत अल9 रिज़अ.लाहु अ\हु ने नहर (या>न िज़बह) फ़रमाये। इसी
तरह हुज़रू अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया
,क ज़ल
ु Qह›जा क १० तार9ख़ को कोई नेक अमल अ.लाह तआला
के नज़द9क क़ुबाLनी का ख़न
ू बहाने से बढ़कर महबब
ू और पसंद9दा
नह9ं। क़ुरआने कर9म क दस
ू र9 आयत म^ नमाज़़ के साथ कुबाLनी का
िज़a ,कया गया है । मसलन: (इ\ना सलाती व नस
ु ुक व महयाया व
ममाती ल.लाQह रिvबल आलमीन)
153
इ\ना शा>नअका हुवलअvतर: तु8हारा दƒु मन ह9 मक़तूउ\न ल होगा,
या>न उसका कोई नाम लेने वाला नह9ं होगा। आपक औलाद
इंशाअ.लाह क़यामत तक चलेगी चाहे लड़क क औलाद से हो।
आपके मानने वाले कल क़यामत तक बेशुमार ह_गे। और क़यामत के
Qदन आप क उ8मत सारे नnबय_ क उ8मत_ से tयादा तादाद म^
होगी।
154
सूरह अलकाUफ़Vन
ﺳﻮرة اﻟﻜﺎﻓﺮون
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﻞ ﻳَـ ـﺂ أَﻳـ َﻬ ــﺎ اﻟْ َﻜ ــﺎﻓِ ُﺮْو َن) (१ﻵ أَ ْﻋﺒُـ ـ ُﺪ َﻣ ــﺎ ﺗَـ ْﻌﺒُـ ـ ُﺪ ْو َن)َ (२وﻵ
ﻗُـ ْ
أَﻧْـﺘُ ْﻢ َﻋﺎﺑِ ُﺪ ْو َن َﻣﺎ أَ ْﻋﺒُ ُﺪ)َ (३وﻵ أَﻧَـﺎ َﻋﺎﺑِـ ٌﺪ ﻣـﺎ َﻋﺒَـ ْﺪﺗُ ْﻢ)َ (४وﻵ
أَﻧْـﺘُ ْﻢ َﻋﺎﺑِ ُﺪ ْو َن َﻣﺎ أَ ْﻋﺒُ ُﺪ) (५ﻟَ ُﻜ ْﻢ ِدﻳﻨُ ُﻜ ْﻢ َوﻟِ َﻲ ِدﻳْ ِﻦ)(६
155
सूरह ‘अलकाUफ़Vन’ क सं !"त तफ़सीर
सूरह अलकाUफ़Vन का अनुवाद: तुम कह दो ,क: “ऐ हक़ का इ\कार
करने वाल_! म उन चीज़_ क इबादत नह9ं करता िजनक तुम इबादत
करते हो। और तुम उसक इबादत नह9ं करते िजसक म इबादत
करता हूँ। और ना म (आई\दा) उसक इबादत करने वाला हूँ िजसक
इबादत तुम करते हो। और ना तुम उसक इबादत करने वाले हो
िजसक म इबादत करता हूँ। तु8हारे लये तु8हारा द9न और मेरे लए
मेरा द9न।
शाने नुजूल:
़ यह सूरह उस समय नािज़ल हुई थी जब मJका मुकरL मा
के कुछ सरदार_ ने िजन म^ वल9द nबन मुग़ीरह और आस nबन वाइल
आQद शा मल थे, हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के सामने
सुलह क यह तजवीज़ पेश क ,क एक साल आप हमारे माबूद_ क
इबादत कर लया कर^ तो दस
ू रे साल हम आपके माबूद_ क इबादत
कर ल^ गे। कुछ और लोग_ ने इसी ,क़ म के कुछ और उपाय भी पेश
,कये, िजनका ख़ल
ु ासा यह9 था ,क हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ,कसी ना ,कसी तरह उन का,फ़र_ के तर9क़े पर इबादत के
लए तैयार हो जाय^ तो आपस म^ सुलह हो सकती है । अ.लाह
तआला ने इस सूरह म^ दो टूक शvद_ म^ प{ट कर Qदया ,क कु`ऱ
और ईमान के बीच इस ,क़ म क कोई सुलह क़बूल नह9ं है िजससे
सह9 और गलत का अंतर समाXत हो जाये और द9ने बरहक़ म^ कु`ऱ
या शकL क मलावट कर द9 जाये। हाँ अगर तुम हक़ को क़बूल नह9ं
करते तो तुम अपने द9न पर अमल करो िजसके प5रणाम ख़द
ु
भुगतोगे और म अपने द9न पर अमल कˆंगा। इससे मालूम हुआ ,क
ग़ैर मुि लम_ से कोई ऐसी सुलह जायज़ नह9ं है िजसम^ उनके द9न
156
को इिsतयार करना पड़े। अलबiता अपने द9न पर क़ायम रहते हुए
अमन का समझौता हो सकता है ।
हज़रत आयशा रिज़ अ.लाहु अ\हा ने फ़रमाया ,क हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया ,क फ़• क स\
ु नत_
म^ पढ़ने के लए दो सूरत^ बेहतर ह: सूरह अलका,फ़ˆन और सूरह
अलइख़लास। सहाबा-ए-,कराम से मरवी है ,क नबीए अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम मग़5रब क सु\नत_ म^ यह दो सूरत^
(सूरह अलका,फ़ˆन और सरू ह अलइख़लास) आम तौर पर पढ़ा करते
थे। हद9स_ म^ िज़a है ,क तवाफ़ के बाद दो रकआत म^ यह दो सूरत^
(सूरह अलका,फ़ˆन और सूरह अलइख़लास) पढ़ना बेहतर है । आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम सहाबा-ए-,कराम को सूरह अलका,फ़ˆन
भी सोने से पहले पढ़ने क ताल9म Qदया करते थे। ग़ज़L ,क दस
ू रे
अज़कार के साथ सोने से पहले हम^ चार_ क़ुल पढ़ने का एहतमाम
करना चाQहए।
इस सूरह म^ चंद कलमात (बात^ ) दो बार आये ह, दो कलम^ (बात^ )
एक बार वतLमान के और दस
ू र9 बार भNव{य के मुतअि.लक़ आये ह।
या>न ना तो वतLमान म^ ऐसा हो रहा है ,क म तु8हारे माबद
ू _
(भगवान) क इबादत कˆं और तुम मेरे माबूद_ क इबादत करो।
और न भNव{य म^ ऐसा हो सकता है ,क म अपनी तौह9द पर और
तुम अपने शकL पर क़ायम रहते हुए एक दस ू रे के माबद
ू _ क इबादत
कर^ । इसलाम से tयादा कोई धमL रवादार9 (सहनशीलता) और दस ू र_
के साथ अfछा सल
ु क
ू करने क दावत नह9ं दे ता है । इ लाम ने
हमेशा ग़ैर मुि लम_ के हुक़ूक़ का sयाल रखा है । शर9यते इ ला मया
ने ,कसी भी ग़ैर मुि लम को इ लाम क़बूल करने पर कोई
157
ज़बरद ती नह9ं क , बि.क सफ़L और सफ़L तरग़ीब और ताल9म पर
इि\हसार (>नभLरता) ,कया। अ.लाह का फ़रमान है : द9न म^ ,कसी पर
ज़बरद ती नह9ं। (सूरह अलबक़रा: २५६) इसी तरह अ.लाह का
फ़रमान है : आप कह द9िजए ,क यह तु8हारे परवरQदगार क तरफ़ से
हक़ है अब िजसका जी चाहे मान ले और िजसका जी चाहे इ\कार
कर दे । (सूरह अलकहफ़: २९) मद9ना मुन|वरा Qहजरत के बाद
यहूQदय_ के साथ सुलह क सं ध * स• है । इ लाम ने रवादार9 क
अfछr मसाल पेश करके कु‡फारे मJका के साथ सुलह-ए-हुदैnबयह
भी क । मगर अ.लाह का इ\कार करने वाल_ के साथ सुलह म^
इ लाम के बु>नयाद9 अरकान पर कोई सुलह नह9ं हो सकती, या>न
अगर कोई |यिJत यह कहे ,क हम बुत_ क इबादत शुˆ कर द^ या
अ.लाह के साथ ,कसी को इबादत म^ शर9क ठहराय^ या मोह8मद
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को अपना आ]ख़र9 नबी तसल9म ना कर^
या मसािजद म^ नमाज़़ क अदायगी ना कर^ या अज़ान दे ना बंद कर
द^ तो इन काम_ म^ कोई समझौता नह9 ,कया जा सकता।
इस सूरह मu हमारे =लए सबक़: अ.लाह ह9 सफ़L इबादत के लायक़
है । अ.लाह के साथ ,कसी दस
ू र9 ज़ात को इबादत म^ शर9क करना
बड़ा पाप है , िजसक क़यामत के Qदन माफ़ नह9ं है । दस
ू रे मज़हब
को मानने वाल_ के साथ क़ुरआन और हद9स के फ़ैसले के ]ख़लाफ
कोई समझौता नह9ं हो सकता है । सफ़L इस तरह क सल
ु ह हो सकती
है ,क ग़ैर इ लामी दे श_ म^ दस
ू र9 क़ौम^ अपने धमg के अनस
ु ार
िज़\दगी गज़
ु ार^ और हम क़ुरआन और हद9स क रोशनी म^ िज़\दगी
गुज़ार^ । अलबiता Qहकमत के साथ अपने क़ौल (शvद_) और अमल
(कायg) से उनको द9न इ लाम क दावत दे ते रह^ ।
158
सूरह अWनQ
ﺳﻮرة اﻟﻨﺼﺮ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﺎس ﻳَـ ْﺪ ُﺧﻠُ ْﻮ َن ﻓِ ْـﻲﺖ اﻟﻨَ
ﺼﺮ ِ
اﷲ َواﻟْ َﻔ ْﺘ ُﺢ)َ (१وَرأَﻳْ َ إ َذا َﺟﺂءَ ﻧَ ْ ُ
ِ
اﺳ ـﺘَـ ْﻐ ِﻔ ْﺮﻩُ إِﻧــﻪ ﺴ ـﺒْ ﺢ ﺑِ َﺤ ْﻤـ ِـﺪ َرﺑـ َ
ـﻚ َو ْ اﺟــﺎ) (२ﻓَ َ
ِ ِ
دﻳْ ـ ِﻦ اﷲ أَﻓْـ َﻮ ً
َﻛﺎ َن ﺗَـ ﻮاﺑًﺎ )(३
159
सूरह ‘अWनQ’ क सं !"त तफ़सीर
सरू ह अWनQ मu नबी-ए-अकरम सXलXलाहु अलै5ह वसXलम
को अXलाह के िज़C और इि2तग़फ़ार करने क ताल1म
यह मs
ु तसर सी सरू ह मद9ना मुन|वरा म^ नािज़ल हुई। tयादा
मफ़
ु सर9न के मत
ु ाnबक़ यह सरू ह मJका फतह होने से कुछ पहले
नािज़ल हुई थी। इसम^ यह ख़श
ु ख़बर9 द9 गयी है ,क मJका मक
ु रL मा
फ़तेह (जीत) हो जायेगा और उसके बाद लोग झु½ड के झु½ड द9न
इ लाम म^ दा]ख़ल ह_गे। कुछ मुफ़ सर9न ने कहा है ,क यह सूरह
ह›जतुल Nवदाअ (आ]ख़र9 ह›ज) के मौक़े पर नािज़ल हुई, िजसके
तीन माह बाद (रबीउल अ|वल ११ Qहजर9) म^ आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम वफ़ात पा गये। यह क़ुरआने कर9म क आ]ख़र9 सूरह है ,
या>न उसके बाद कोई पूणL सूरह नािज़ल नह9ं हुई, अलबiता कुछ
आयात इसके बाद भी नािज़ल हुई ह।
161
Qहजर9 म^ अरब के कोने-कोने से बेशुमार *>त>न धमंडल हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क ]ख़दमत म^ हािज़र होकर इ लाम
क़बूल करने लगे। इसी लए इस साल को साले वुफ़ूद कहा ज़ाता है ।
162
हज़रत उ8मे सलमा रिज़अ.लाहुअ\हा फ़रमाती ह ,क इस सूरह के
नुज़ूल के बाद आप उठते बैठते और आते जाते हर समय यह दआ
ु
पढ़ते थे। सुvहान.लाQह वnबहमQदका अ तग़,फ़?.लाहा व अतुबू
इलैइह और फ़रमाते थे ,क मुझे इसका हुJम Qदया गया है और
दल9ल म^ इज़ा जाआ नस?.लाQह क >तलावत फ़रमाते।
163
रोज़ी अता फ़रमाते ह ,क जहां से उसको गुमान (अनुमान) भी नह9ं
होता। (अबू दाउद)
164
)सूरहतुXलहब (अलमसद
ﺳﻮرة اﻟﻤﺴﺪ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﺐ)َ (१ﻣ ـﺂ أَ ْﻏﻨ ـﻰ َﻋ ْﻨــﻪُ َﻣﺎﻟُــﻪ َوَﻣــﺎ ـﺐ وﺗَـ ﺖ ﻳَـ َﺪآ أَﺑِــﻲ ﻟَ َﻬـ ٍ
ﺗَـﺒ ـ ْ
ْ
ـﺐ) (३وا ْﻣ َﺮأَﺗُــﻪ َﺣ ﻤﺎﻟَـﺔَ ات ﻟَ َﻬـ ٍ
ـﺎرا َذ َ ﺼــﻠﻰ ﻧَـ ً ـﺐ)َ (२ﺳﻴَ ْ ﺴـ َ
َﻛ َ
ﺴ ٍﺪ)(५ ﻣ ﻦ ﺐ) (४ﻓِﻲ ِﺟﻴ ِﺪﻫﺎ ﺣﺒﻞ ِ
ﻣ ْﺤﻄَ ِ
َ ْ ْ َ َْ ٌ اﻟ َ
165
सूरह ‘अलमसद’ क सं !"त तफ़सीर
मोह=सने इंसा नयत को तकाल1फ़ दे ने वाले अबू लहब और
उसक पPनी का बुरा अंजाम
अ.लाह तआला ने अपनी ,कताब म^ एक पूणL सूरह (सूरहतु.लहब)
नािज़ल फ़रमाकर क़यामत तक आने वाले इ\सान_ और िजन_ को
यह बतला Qदया ,क सारे नnबय_ के सरदार हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम को तकाल9फ़ पहुंचाने वालो के लए द>ु नया म^ बबाLद9
के साथ आ]ख़रत म^ भी उनके लए ददL नाक अज़ाब तैयार ,कया गया
है ।
167
दे कर अपनी जान बचा लूंगा। इस पर यह आयत नािज़ल हुई ,क जब
उसको अ.लाह तआला के अज़ाब ने पकड़ा तो ना उसका माल काम
आया ना औलाद। यह तो उसका द>ु नया म^ हाल हुआ, आ]ख़रत म^
उसके साथ Jया मामला होगा तो फ़रमान इलाह9 है : वह भड़कते
शोल_ वाल9 आग म^ दा]ख़ल होगा।
168
और लक„ड़या अपने ऊपर लादकर लाती थी, इसी तरह जह\नम म^
लोहे के तार_ का तौक़ (फ\दा) उसके गले म^ डाल Qदया जायेगा।
169
सरू तल
ु इख़लास
ﺳﻮرة اﻻﺧﻼص
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ﺼ َﻤ ُﺪ) (२ﻟَ ْﻢ ﻳَﻠِ ْﺪ َوﻟَ ْﻢ ﻳُـ ْﻮﻟَ ْﺪ)(३
َﺣ ٌﺪ) (१اﷲُ اﻟ
ﻗُ ْﻞ ُﻫ َﻮ اﷲُ أ َ
َﺣ ٌﺪ)(४
َوﻟَ ْﻢ ﻳَ ُﻜ ْﻦ ﻟَﻪُ ُﻛ ُﻔ ًﻮا أ َ
170
सूरह ‘अलइख़लास’ क सं !"त तफ़सीर
सूरह इख़लास मu पूण' तौह1द और हर तरह के =शक'
से नफ़ है
सूरतुल इख़लास का अनुवाद:
ऐ मोह8मद! कह दो अ.लाह तआला एक है । अ.लाह तआला बे
>नयाज़ है , या>न सब उसके मोहताज ह, वह ,कसी का मोहताज
नह9ं। ना उसक कोई औलाद है और ना वह ,कसी क औलाद है और
उसके जोड़ का कोई भी नह9ं, या>न उस जैसा कोई भी नह9ं है ,
Jय_,क वह9 ख़ा लक़े हक़ क़ और माबूदे हक़ क़ है , बाक़ कायनात
का ज़राL ज़राL उसक मख़लूक है ।
171
,कया था और उनके जवाब म^ ह9 यह सूरत (सूरतुल इख़लास)
नािज़ल हुई थी।
श‹द क तkक़ क़ (अनुसंधान):
(क़ुल) इसके सबसे पहले मुख़ातब (संबो धत) तो नबी अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ह Jय_,क आप ह9 से सवाल ,कया गया
था ,क आप का रब कौन है और कैसा है ? ले,कन हुज़ूर स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम के बाद हर मुसलमान इसका मुख़ातब है , या>न हर
मुसलमान क यह िज़8मेदार9 है ,क वह अ.लाह तआला के एक होने
को बयान करे । (हु अ.लाहु अहद) अ.लाह उस ज़ाते अ¢दस का नाम
है जो हमेशा से है और हमेशा रहे गा, जो एक है , उसका कोई शर9क
नह9ं, िजसने अपनी क़ुदरत से यह पूर9 कायनात बनाई है और वह9
त\हा इस पूर9 कायनात के >नज़ाम (*णाल9) को चला रहा है ।
(अ.लाहु समद) अ.लाह तआला क पहल9 सफ़त बयान क गयी
,क वह समद है । ‘समद’ शvद का मफ़हूम उदL ू के ,कसी एक शvद से
अदा नह9ं हो सकता। उसके मफहूम म^ दो बात^ ह ,क सब उसके
मोहताज ह और वह ,कसी का मोहताज नह9ं है । (लम य लद वलम
यल
ू द) ना उसक कोई औलाद है और ना वह ,कसी क औलाद है ।
यह उन लोग_ का जवाब है िज\ह_ने अ.लाह तआला के नसबनामे
(वंशावल9) का सवाल ,कया था ,क अ.लाह रvबल
ु इtज़त को
मख़लक
ू पर क़यास नह9ं ,कया जा सकता है जो न ल (बfचा होना)
के ज5रए वज
ु द
ू म^ आती है । कुछ इसम^ उन लोग_ का जवाब है जो
फ5रƒत_ को अ.लाह तआला क बेQटयाँ कहते थे या हज़रत ईसा या
हज़रत उजैर अलैQह सलाम को अ.लाह तआला का बेटा क़रार दे ते
थे। (वलम युकु.लहु कुफुवन अहद) कुफ़ू के ल‡जी मायने म ल
172
और मुमा सल (उसके जैसा) के ह। या>न ना कोई उसका म ल है
और ना कोई उस जैसा है । बात दरअसल यह है ,क हम मौत को
आजतक अपनी अ¢ल_ से नह9ं समझ सके तो इस ज़ाते अ¢दस को
अपनी अ¢ल_ से कैसे समझ सकते ह जो िज़\दगी और मौत का
ख़ा लक़ हो। उसके दे खने, सुनने और हर तरह क ख़बर रखने को
मख़लूक के सुनने और दे खने पर क़यास (अंदाज़ा) नह9ं ,कया जा
सकता। हम^ अ.लाह क ज़ात को समझने के लए अ.लाह क
मख़लूक़ात म^ ग़ौर करना चाQहए, मसलन सूरज, चांद, सतारे ,
आसमान, ज़मीन, पानी, हवा, आग, धप
ू , दरsत, पहाड़, जानवर,
फल, सिvज़यां आQद कैसे वजूद म^ आ गये। खुद हम^ अपने िज म
पर भी ग़ौर करना चाQहए ,क हमारे िज म का सारा >नज़ाम कैसे
चल रहा है । सफL अंगूठे के >नशान पर ग़ौर कर^ ,क आज तक दो
इ\सान_ के अंगूठे का >नशान एक जैसा नह9ं हुआ।
तफ़सीर का सारांश: इस सूरत क इन चार मुsतसर आयात म^
अ.लाह तआला क तौह9द को इ\तहाई जामे अ\दाज़ म^ बयान
फ़रमाया गया है । पहल9 आयत (क़ुल हु अ.लाहु अहद) म^ उन लोग_
का इंकार है जो एक से tयादा बतु _ (*>तमा) क पज
ू ा करते ह।
दस
ू र9 आयत (अ.लाहु समद) म^ उन लोग_ का इंकार है जो अ.लाह
तआला को मानने के बावजदू ,कसी और को अपना मिु ƒकल कुशा
और हाजत रवा तसल9म करते ह। तीसर9 आयत (लम य लद वलम
यल
ू द) म^ उन लोग_ का इंकार है जो फ5रƒत_ को अ.लाह तआला क
बेQटयाँ कहते थे, या हज़रत ईसा या हज़रत उजैर अलैQह सलाम को
अ.लाह तआला का बेटा क़रार दे ते थे। और चौथी (वलम यकु.लहु
कुफ़ुवन अहद) म^ उन लोग_ क तरद9द है जो अ.लाह तआला क
173
,कसी भी सफ़त म^ ,कसी और क बराबर9 के कहने वाले ह। इस
तरह मुsतसर सी सूरत ने शकL क तमाम सूरत_ को बा>तल क़रार
दे कर ख़ा लस तौह9द साnबत क है । इसी लए इस सूरत को सूरतुल
इख़लास कहा जाता है ।
सूरतुल इख़लास मu पूण' तौह1द और हर तरह के =शक' से नफ़ है :
इस सूरत म^ हर तरह के मुश5रकाना sयालात क नफ़ करके पूणL
तौह9द का सबक Qदया गया है ,क अ.लाह ह9 सार9 कायनात का
खा लक़, मा लक और रtज़ाक है । वह9 हक़ क़ बादशाह है , वह हमेशा
से है और हमेशा रहे गा। इसे ऊंघ भी नह9ं आती है । वह ना कभी
सोता है , ना खाता है और ना वह पीता है । उसका कोई शर9क नह9ं
है । अगर कायनात म^ दो रब होते तो दोनो का आपस म^ इिsतलाफ
होने क वजह से द>ु नया का >नज़ाम कब का दरहम बरहम हो गया
होता। वह इ\सान क शहरग (महाधमनी) से tयादा क़र9ब है । वह
हर |यिJत के हर अमल से पूर9 तरह वा,कफ़ है । वह कायनात के
ज़रo ज़रo (कण-कण) का इ.म (Œान) रखता है । ना वह ,कसी क
औलाद है और ना कोई उसक औलाद है , बि.क सब उसक मखलूक
ह। इ\सान, िजन, च5रंद, प5रंद, द5रंद सब उसके मोहताज ह, वह
,कसी का मोहताज नह9ं है । वह सब के बग़ैर सब कुछ करने वाला है
और परू 9 कायनात मलकर भी उसक मज़’ के बग़ैर कुछ नह9ं कर
सकती। ज़?रत परू 9 करने वाला, मिु ƒकल कुशा और मसाइल हल
करने वाल9 जात सफL और सफL अ.लाह क है । वह9 मज़L और
शफा दे ने वाला है । वह9 इ›ज़त (मान) और िज़.लत (अपमान) दे ने
वाला है । वह9 िज़\दगी और मौत दे ने वाला है । उसी ने िज़\दगी और
174
मौत को बनाया है ता,क वह आज़माये ,क हम म^ से कौन अfछे
आमाल करने वाले ह।
सरू तुल इख़लास के कुछ फज़ाईल
नबी अकरम सXलXलाहु अलै5ह वसXलम क ज़बानी
सूरतुल इख़लास एक तहाई क़ुरान के बराबर:
एक बार हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने लोग_ से
फ़रमाया ,क सब जमा हो जाओ, म तु8ह^ एक >तहाई कुरान
सुनाऊंगा। जो जमा हो सकते थे जमा हो गये तो आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम तशर9फ लाये और क़ुल हु अ.लाहु अहद या>न
सूरतुल इख़लास क >तलावत फ़रमायी और इरशाद फ़रमाया ,क यह
सूरत एक >तहाई क़ुरान के बराबर है । (सह9 मुि लम)
हज़रत अबू सईद ख़द
ु र9 रिज॰ ने एक दस
ू रे सहाबी (हज़रत क़तादा
रिज॰) को दे खा ,क वह सूरह क़ुल हु अ.लाहु अहद बार बार दोहरा
रहे ह। सुबह हुई तो हज़रत अबू सईद खदु र9 रिज॰ रसूल स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम क ]ख़दमत म^ हािज़र हुए और नबी अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के सामने उसका िज़a ,कया Jय_,क वह
उसे मामूल9 अमल समझते थे (,क एक छोट9 सी सूरत को बार बार
दोहराया जाये)। हुजरू ़ अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद
फ़रमाया: उस ज़ात क क़सम िजसके क़vजे म^ मेर9 जान है । यह
सूरत क़ुरान कर9म के एक >तहाई के बराबर है । (सह9 बुख़ार9)
हद9स_ म^ सूरतुल इख़लास को एक >तहाई क़ुरान के बराबर क़रार
Qदया है , िजसक मफ
ु ि सर9न ने Nव भ\न तफसीर^ बयान फ़रमायी ह
१) क़ुरान कर9म ने ब>ु नयाद9 तौर पर तीन अक़ द_ पर ज़ोर Qदया है :
तौह9द, 5रसालत और आ]ख़रत। इस सरू त म^ इन तीन अक़ द_ म^ से
175
तौह9द के अक़ दे क पूणL वज़ाहत फ़रमायी गयी है । इस लए इस
सूरत को एक >तहाई क़ुरान कहा गया है ।
२) क़ुरान कर9म म^ तीन उमूर ख़ासतौर पर िज़a ,कये गये ह।
अ.लाह क सफ़ात, अहकामे श5रया और अंnबयाए ,कराम और
पहल9 उ8मत_ के ,क़ से। इस सूरत म^ अ.लाह क Nवशेषताओं को
इजमाल9 तौर पर िज़a ,कया गया है , या>न इस सूरत म^ तीन चीज_
म^ से एक चीज का मुक8मल तौर पर इजमाल9 िज़a आ गया है ,
इस लए इस सूरत को एक >तहाई क़ुरान कहा गया है ।
३) क़ुरान कर9म के मायने और मफ़हूम तीन उलम
ू पर मुƒत मल ह।
इ.मुiतौह9द, इ.मुƒशराए, इ.मुलअख़लाक़ और तज़,कया-ए-न‡स,
इस सूरत म^ इ.मुiतौह9द से मुतअि.लक बयान ,कया गया है , इस
वजह से सूरतुल इख़लास को नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने एक >तहाई क़ुरान के बराबर क़रार Qदया है ।
176
सफ़त अ.लाह क ह9 और म उसे पढ़ना अज़ीज रखता हूँ। हुज़ूर
अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इरशाद फ़रमाया ,क उ\ह^ बता
दो ,क अ.लाह भी उ\ह^ अज़ीज रखता है । (सह9 बुख़ार9)
177
ने फ़रमाया: तु8हे इस सूरत क मोहvबत यक नन (अवƒय) ज\नत
म^ दा]खल करे गी। (>त मLज़ी)
हज़रत अvद.
ु लाह nबन ख़ब
ु ैब रिज॰ से 5रवायत है ,क एक रात म^
बा5रश और सsत अंधेरा था। हम रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह
178
वस.लम को तलाश करने के लए >नकले, जब आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम को पा लया तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया कहो। मने अज़L ,कया ,क Jया कहूं? आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम ने फ़रमाया: क़ुल हु अ.लाहु अहद और मुअ|वज़तैन
तीन बार पढ़ो, जब सुबह और शाम हो तीन बार, यह पढ़ना तु8हारे
लए हर क{ट का समाधान होगा। (अबू दाऊद, >त मLज़ी, नसई)
सारांश:
जैसा ,क क़ुरान और हद9स क रोशनी म^ िज़a ,कया गया ,क
सूरतुल इख़लास क़ुरान कर9म क एक महान सूरत है । हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने इस सूरत को एक >तहाई क़ुरान के
बराबर क़रार Qदया है िजसक मुिsतलफ तौजीह बयान क गयी ह।
इस मुsतसर सी सूरत से मोहvबत करने वाल_ और इसको एहतमाम
से पढ़ने वाल_ को आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने ज\नत क
बशारत सुनाई है । मुअ|वज़तैन (सूरतुल फ़लक और सरु तु\नास) के
साथ सूरतुल इख़लास पढ़कर अपने ऊपर दम करने से कई आफ़ात
से Qहफ़ाजत (सरु ा) मुम,कन है । इस सरू त म^ अ.लाह तआला क
कई सफ़ात बयान क गयी ह, उन पर ग़ौर कर^ । अ.लाह क
वैहदा>नयत का इक़रार करते हुए अ.लाह क सफ़ात पर ईमान लाय^
और उसक ज़ात और सफ़ात म^ ,कसी को शर9क ना ठहराय^।
नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज आQद तमाम बदनी और माल9
इबादात म^ सफL अ.लाह क ज़ात क रज़ा मतलब
ू हो।
179
सरू ह अल फ़लक़
ﺳﻮرة اﻟﻔﻠﻖ
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ب اﻟْ َﻔﻠَ ِـﻖ)ِ (१ﻣ ْـﻦ َﺷـ ﺮ َﻣـﺎ َﺧﻠَ َـﻖ)َ (२وِﻣ ْـﻦ َﺷـ ﺮَﻋ ْـﻮذُ ﺑِ َـﺮ
ﻗُ ْﻞ أ ُ
ﺎﺳـ ٍـﻖ إِ َذا وﻗَــﺐ) (३وِﻣــﻦ َﺷ ـ ﺮ اﻟﻨـ ﻔﺎﺛَـ ِ
ـﺎت ﻓِــﻲ اﻟ ُْﻌ َﻘـ ِـﺪ)(४ ﻏَ ِ
َ َ َ ْ
ﺴ َﺪ)(५ ﺣ ا ذ
َ ِ
إ ﺪ وِﻣﻦ َﺷ ﺮ ﺣ ِ
ﺎﺳ ٍ
ََ َ َ ْ
सरू ह अWनास
ﺳﻮرة اﻟﻨﺎس
اﷲ اﻟ ﺮ ْﺣ ٰﻤ ِﻦ اﻟ ﺮِﺣ ْﻴ ِﻢ
ﺑِﺴ ِﻢ ِ
ْ
ـﺎس) (२إِﻟـ ِﻪ اﻟﻨِ ـﻚ اﻟﻨِ ـﺎس) (१ﻣﻠِ ِ َﻋ ْﻮذُ ﺑِ َـﺮ
ـﺎس)(३ ب اﻟﻨَ ِ ﻗُ ْﻞ أ ُ
ﺻـ ُﺪ ْوِر ﺎس) (४اﻟِ ﺬي ﻳـﻮﺳ ِﻮ ِ ِ ِ ِ
س ﻓﻲ ُ ُ ْ َ ُ ْ ﻨﺨَ ْ
ﻟ ا اس ﻮَ ﺳ
ْ ْﻮ
َ ﻟ ا ﺮ
ﺷَ ﻦْ ﻣ
ﺎس)(६ ﺎس)ِ (५ﻣﻦ اﻟ ِ
ْﺠﻨ ِﺔ َواﻟﻨ ِ اﻟﻨ ِ
َ
180
सरू ह ‘अलफ़लक़’ और सरू ह ‘अWनास’ क सं !"त तफ़सीर
सूरह अल फ़लक़ और सूरह अWनास के ज़Oरए जाद ू
और दस
ू र1 आफ़ात (मुसीबत ) से 5हफाज़त (सुर!ा)
182
से ख़ास तौर से पनाह मांगी गई है । ( मन श5रL ग़ा स,क़न इज़ा
वक़ब, व मन श5रÆ न न‡फ़ासा>त ,फ़ल उक़द) और (व मन श5रL
हा सQदन इज़ा हसद) और अँधेर9 रात के शर से जब वह फैल जाए
और उन जान_ के शर से जो (गंडे क ) गरह_ म^ फँू क मारती ह और
हसद (इ{याL) करने वाले के शर से जब वह हसद करे । अँधेर9 रात के
शर से ख़ास तौर से इस लए पनाह मांगी गई है ,क आम तौर पर
जादग
ू र_ क कारL वाइयाँ रात के अँधेर_ म^ हुआ करती ह।
(न‡फासात) म^ मदL और औरत दोन_ दा]ख़ल ह, जादग ू र मदL हो या
औरत धागे के गंडे बना कर उसम^ गाँठ लगाते जाते ह और उन पर
कुछ पढ़ पढ़ कर फूंकते रहते ह, उनके शर से पनाह मांगी गई है ।
नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर जाद ू रात म^ ,कया गया
था, गरह^ बांध कर ,कया गया था और आपसे हसद क बु>नयाद पर
,कया गया था, इस लए इन तीन चीज़_ से ख़ासतौर पर पनाह मांगी
गई। (हसद) के मायने ह ,कसी क नेमत और राहत को दे ख कर
जलना और ये चाहना ,क उससे ये नेमत ख़iम हो जाए चाहे उसको
भी *ाXत न हो। हसद हराम और गुनाहे कबीरा है । सूरह अल फलक़
म^ अ.लाह क एक सफत रvबल
ु फलक़ िज़a करके तीन चीज़_ से
पनाह मांगी गई थी। सरू ह अ\नास म^ अ.लाह तआला क तीन
सफात (रिvब\नास, म ल,क\नास) और (इलाQह\नास) िज़a करके
एक चीज़ से पनाह मांगी गई है और वह है शैतान के वसवसे डालने
से। (व वा सल ख़\नास) वसवास के मायने बार बार वसवसा डालने
के ह और ख़\नास के मायने ज़ाQहर होने के बाद छुपने या आने के
बाद पीछे हट जाने के ह। यानी वह बार बार वसवसा डालने क
183
को शश करता है , एक बार नाकामी पर दोबारा, >तबारा और बार बार
आता रहता है ।
*या शैतान कोई अलग मख़लूक़ है ?
इंसान, िज\नात और फ5रƒत_ क तरह शैतान कोई अलग मख़लूक़
नह9ं है बि.क शैतान इंसान_ और िज\नात म^ से अ.लाह के
नाफ़रमान ब\दे होते ह जो गुमराह होने के साथ दस
ू र_ को भी
गुमराह करते ह। शैतान_ का सरदार “इबल9स” िज\न म^ से है जैसा
,क फ़रमाने इलाह9 है : “इ.ला इबल9सा काना मनल िज\न” (सूरह
अलकहफ: ५०) अ.लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : “और (िजस तरह
ये लोग हमारे नबी से दƒु मनी कर रहे ह) इसी तरह हमने हर
(Nपछले) नबी के लए कोई न कोई दƒु मन पैदा ,कया था, यानी
इंसान_ और िज\नात म^ से शैतान ,क़ म के लोग, जो धोखा दे ने क
ख़ा>तर एक दस
ू रे को बड़ी चकनी चप
ु ड़ी बात^ सखाते रहते थे और
अगर अ.लाह तआला चाहता तो वह ऐसा न कर सकते। इस लए
उ\ह^ छोड़ द^ (उस के साथ) जो वह झूट घडत^ ह ।” (सूरह अल
अनआम: ११२) शैतान जो िज\नात म^ से होते ह वह नज़र नह9ं आते
और Qदल_ म^ वसवसे डालते ह^ , ले,कन इंसान_ म^ से जो शैतान होते
ह वह नज़र आते ह और उनक बात^ ऐसी होती ह ,क इ\ह^ सुन कर
इंसान के Qदल म^ तरह तरह के sयालात और वसवसे आ जाते ह,
इस लए इस सरू त म^ दोन_ ,क़ म के वसवसा डालने वाल_ से पनाह
मांगी गई है ।
184
Qदया गया है ,क अ.लाह तआला क पनाह मांगने और उसका िज़a
करने से पीछे हट जाता है । तथा सूरह अि\नसा ७६ म^ फ़रमाया गया
है ,क उसक चाल^ कमज़ोर ह और उसम^ इतनी शिJत नह9ं है ,क
वह इंसान को गुनाह पर मजबूर कर सके। सूरह इmाह9म २२ मे ख़द
ु
इसका ये एतराफ़ अ.लाह तआला ने नक़ल फ़रमाया है ,क मझे
इंसानो पर कोई इि¢तदार (सiता) *ाXत नह9ं। ये तो इंसान क एक
आज़माइश है ,क वह इंसान को बहकाने क को शश करता है ,
ले,कन जो ब\दा उसके बहकाने मे आने से इंकार करे , अ.लाह
तआला क पनाह मांग ले तो शैतान उसका कुछ भी नह9 nबगाड़
सकता।
185
के साथ शकL करना, जाद ू करना, ,कसी को नाहक़ क़iल करना, सूद
खाना, यतीम का माल नाहक़ हड़प करना, मैदाने जंग से भागना,
मासूम नेक औरत_ पर बरु ाई क तोहमत लगाना। (सह9 बुख़ार9, सह9
मुि लम) ,कसी भी सहाबी या ताबई ने जाद ू से इंकार नह9ं ,कया
और ये जाद ू उनके दौर म^ बि.क उसे भी बहुत पहले से मौजूद है ।
हज़रत सुलेमान अलैQह सलाम और हज़रत मूसा अलैQह सलाम के
दौर म^ जाद ू का िज़a तो वज़ाहत के साथ कुरआन मजीद मे आया
है । ग़रज़ ,क जाद ू बरहक़ है ले,कन जाद ू करना या करवाना हराम
और इंसान को हलाक करने वाला गुनाहे कबीरा है । कुछ उ.मा क
राए मे जाद ू करना या जाद ू करवाना कु`ऱ है । इस ज़माने म^ कुछ
लोगो ने अपनी अपनी दक
ु ाने खोल रखी है , इसमे से ९९ *>तशत
लोग ढ_गी होते है , न वह जाद ू करना जानते है और न ह9 उनको
जाद ू का तोड़ मालूम होता है , ये लोग अवाम ख़ास कर मQहलाओं को
बेवकूफ़ बना कर पैसे ठगते है ।
186
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम को पूरे वा¢ये क खबर द9। आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने उस कंघी को *ाXत ,कया। अ.लाह
तआला ने ये दोन_ सूरत^ नािज़ल फ़रमा¡ िजनम^ “यारह आयात ह,
आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम हर गाँठ पर एक आयत पढ़ कर
एक एक गाँठ खोलते रहे , यहाँ तक ,क सब गरह^ खल
ु ग¡ और
आपसे अचानक एक बोझ सा उतर गया।
कुछ हज़रात ने ये कह कर ,क हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम पर जाद ू का असर होना नुबु|वत के पद के Nव?• है ,
तमाम सह9 हद9स_ का इंकार करके कह Qदया ,क हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर कोई जाद ू नह9ं हुआ था। ले,कन
उनके इस मौ,क़फ़ क वजह से सह9 हद9स_ का इंकार करना लािज़म
आएगा जो ,कसी भी हाल म^ क़ाnबले कुबूल नह9ं है । हुज़ूर अकरम
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम पर हुए जाद ू के असरात सफ़L आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क ज़ात तक सी मत रहे यहाँ तक ,क
सहाबाए ,कराम को ये मालूम तक न हो सका ,क आप पर Jया
गुज़र रह9 है । रह9 आपके नबी होने क है सयत से तो आप
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के फराइज़ के अ\दर कोई ख़लल वाके न
होने पाया। ,कसी एक 5रवायत म^ ये भी नह9ं मलता ,क उस ज़माने
म^ आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क़ुरआन क कोई आयत भल ू
गए ह_ या आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम से नमाज़ छूट गई हो
या आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम क ज़बाने मब ु ारक से कोई
गलत बात >नकल9 हो। गरज़ ,क जाद ू का असर भी *ाकृ>तक कारण_
का असर होता है , कुछ *ाकृ>तक कारण_ से बख़
ु ार आ जाना या
मुख़त लफ़ ,क़ म के ददL और nबमा5रय_ का पैदा हो जाना एक तबई
187
(*ाकृ>तक) चीज़ है िजससे पैग8बर और अि8बया अलग नह9ं होते,
इसी तरह जाद ू का असर भी इसी ,क़ म से है ।
188
हज़रत आएशा रिज़० अ.लाहु अ\हा फ़रमाती ह ,क रसूलु.लाह
स.ल.लाहु अलैQह वस.लम हर रात जब nब तर पर आराम के लए
लेटते तो अपनी दोन_ हथे लय_ को एक साथ करके “क़ुल हुव.लाहु
अहद”, “क़ुल अऊज़ु nबरिvvल फलक़” और “क़ुल अऊज़ु nबरिvब\नास”
पढ़कर इन पर फँू कते थे और ,फर दोन_ हथे लय_ को जहाँ तक
मुम,कन होता अपने िज म पर फेरते थे। सर, चेहरा और िज म के
आगे के Qह से से शुˆ करते। ये अमल आप तीन बार करते थे।
(बाबु फ़ज़ लल मुअ|वज़ात)
हज़रत अvद.
ु लह nबन ख़ब
ु ैब रिज़० से 5रवायत है ,क एक रात म^
बा5रश और सsत अँधरे ा था, हम रसूलु.लाह स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम को तलाश करने के लए >नकले, जब आप स.ल.लाहु
अलैQह वस.लम को पा लया तो आप स.ल.लाहु अलैQह वस.लम ने
फ़रमाया कहो, मने अज़L ,कया Jया कहूँ? आप स.ल.लाहु अलैQह
वस.लम ने फ़रमाया “क़ुल हुव.लाहु अहद” और मुअ|वज़तैन पढ़ो
जब सुबह और शाम हो, तीन बार ये पढ़ना तु8हारे लए हर तकल9फ
से अमान होगा। (अबू दाउद, >त मLज़ी, नसई)
189
ख़ल
ु ासाए कलाम ये है ,क हुज़ूर अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम
और सहाबए ,कराम का इन दोन_ सूरत_ को सोते समय, सुबह और
शाम और हर नमाज़ के बाद पढ़ने का मामूल था। हम^ भी इसका
एहतमाम करना चाQहए, अ.लाह तआला के हुJम से जाद ू और बहुत
सी आफ़ात से Qहफ़ाज़त होगी। तथा हम^ हमेशा शैतानी ताक़त_ से
मुक़ाबला करके अ.लाह क इबादत म^ आगे बढ़ना चाQहए। अ.लाह
तआला क जा>नब से जो फराएज़ हम पर लािज़म ,कए गए ह उन
़
पर नबी अकरम स.ल.लाहु अलैQह वस.लम के तर9के के मुताnबक़
अमल करना चाQहए। अगर शैतानी ताक़त^ हमारे Qदला और Qदमाग
म^ इ लामी ताल9मात के ]ख़लाफ वसवसे डाल^ तो उ.माए ,कराम से
कुरआन और हद9स क रौशनी म^ ?जू फ़रमाएँ। बेशुमार द>ु नयावी
उमूर म^ भी बात समझ म^ आए या न आए हम ह थयार डाल दे ते
ह। मसलन एक ख़ब
ू सूरत सेहतमंद नौजवान िजसने पूर9 िज़\दगी
,कसी को तकल9फ़ भी नह9ं द9 और बेशुमार ख़nू बय_ का मा लक भी
है , मगर चलते चलते ठोकर खाकर मर जाए तो पूर9 द>ु नया बावजूद
,क उसके साथ हमददÁ रखती है अ.लाह तआला के फ़ैसले के सामने
सर झक
ु ा दे ती है । इ लाम क तो ब>ु नयाद ह9 ख़ा लक़े कायनात के
सामने अपने आपको झुकाने पर है , इस लए अगर शैतानी ताक़त^
अ.लाह क इबादत से हटाने क को शश कर^ तो अ.लाह क पनाह
(शरण) ल^ , उसका िज़a कर^ और उसके अहकाम पर अमल कर^ ।
इसी म^ मेर9, आपक और परू 9 इंसा>नयत क कामयाबी है ।
190