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अरबईन नववी

इमाम अबू ज़कररय्या यहया बबन शरफ़ नववी

अनव
ु ाद एवं संक्षिप्त व्याख्या

मश्ु ताक़ अहमद नदवी

प्रकाशक

दारुलहदीस, कटिहार (बबहार)


अरबईन नववी

सभी अधिकार लेखक के ललए सुरक्षित हैं।

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अरबईन नववी

ववषयसच
ू ी
अपनी बात 8

इमाम नववी की प्रस्तावना 12

पहली हदीस : नीयत का महत्व 17

दस
ू री हदीस : इस्लाम, ईमान तथा एहसान की व्याख्या 20

तीसरी हदीस : इस्लाम के स्तंभ 24

चौथी हदीस : शष्ृ टि के ववलभन्न चरण 27

पााँवीं हदीस : बबदअत का अग्रहणयोग्य होना 29

छठी हदीस : संदेहास्पद स्थानों से बचने की ताकीद 31

सातवीं हदीस : इस्लाम शुभाकांिा का िमम है 33

आठवीं हदीस : रक्त एवं िन का सम्मान 36

नवीं हदीस : बाल की खाल ननकालने तथा मतभेद की मनाही 38

दसवीं हदीस : हलाल रोज़ी का महत्व 40

ग्यारहवीं हदीस : संदेह से बचने का आदे श 42

बारहवीं हदीस : ननरथमक कामों से बचने का ननदे श 44

तेरहवीं हदीस : इस्लामी बंिुत्व के तक़ाज़े 45

चौदहवीं हदीस : नाहक़ रक्तपात से मनाही 47

4
अरबईन नववी

पंद्रहवीं हदीस : पडोसी एवं अनतधथ का सम्मान 49

सोलहवीं हदीस : क्रोि से बचने का आदे श 51

सत्रहवीं हदीस : हर काम अच्छे अंदाज़ में करने का आदे श 52

अठारहवीं हदीस : सद्वव्यवहार का आदे श 54

उन्नीसवीं हदीस : तक़दीर पर ईमान 56

बीसवीं हदीस : हया का महत्व 59

इक्कीसवीं हदीस : इस्लाम पर दृढ़ता से जमे रहने का आदे श 60

बाईसवीं हदीस : जन्नत का रास्ता 61

तेईसवीं हदीस : नेकी के कुछ महत्वपण


ू म कायम 63

चौबीसवीं हदीस : लोगों पर अल्लाह के कुछ उपकार 65

पच्चीवसीं हदीस : सदक़ा का व्यापक अथम 68

छब्बीसवीं हदीस : इनसान के हर जोड की ओर से सदक़ा 71

सत्ताईसवीं हदीस : नेकी और गन


ु ाह 73

अट्ठाईसवीं हदीस : शासकों का आज्ञापालन एवं सुन्नत का अनुसरण 75

उनतीसवीं हदीस : भलाई के द्ववार 77

तीसवीं हदीस : अल्लाह की सीमाओं का आदर 80

इकतीसवीं हदीस : दनु नया के मायाजाल से मष्ु क्त 82

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अरबईन नववी

बत्तीसवीं हदीस : हानन स्वीकायम नहीं 84

तेंतीसवीं हदीस : ननणमय के ननयम 86

चौंतीसवीं हदीस : बुराई से रोकना एक महत्वपूणम कतमव्य 88

पैंतीसवीं हदीस : इस्लामी बंिुत्व को कमज़ोर करने वाली कुछ चीज़ें 90

छत्तीसवीं हदीस : मस
ु लमानों की ज़रूरतें परू ी करने का महत्व 93

सैंतीसवीं हदीस : नेककयों की प्रेरणा 96

अडतीसवीं हदीस : अल्लाह के औललया 98

उनतालीसवीं हदीस : गलती से तथा भूलवश ककए हुए काम की पकड न होना100

चालीसवीं हदीस : दनु नया के माया मोह से दामन बचनाए रखने की ताकीद 102

इकतालीसवीं हदीस : नबी सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम का अनुसरण 104

बयालीसवीं हदीस : अल्लाह की असीम िमा 106

तेंतालीसवीं हदीस : मीरास की तक़सीम 109

चवालीसलवीं हदीस : दि
ू के ररश्ते 111

पैंतालीसवीं हदीस : हराम वस्तु को हलाल करने की तदबीर करना 113

नछयालीसवीं हदीस : नशीली चीज़ों की मनाही 115

सैंतालीसवीं हदीस : खान-पान में संतल


ु न 117

अडतालीसवीं हदीस : मुनाकफ़क़ की ननशाननयााँ 119

6
अरबईन नववी

उनचासवीं हदीस : अल्लाह पर पण


ू म ववश्वास 121

पचासवीं हदीस : अल्लाह के ष्ज़क्र का महत्व 123

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अरबईन नववी

अपनी बात

हज्जतल
ु -वदा के अवसर पर, जब अरफ़ा के मैदान में हज़ारों का मजमा
था, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया था कक
तुममें से जो लोग उपष्स्थत हैं, वे मेरा संदेश उन लोगों तक पहुाँचा दें ,
जो उपष्स्थत नहीं हैं। आपका यह आदे श केवल उन लोगों के ललए नहीं
था, जो उस टदन वहााँ उपष्स्थत थे, बष्ल्क क़यामत के टदन तक जन्म
लेने वाले और दनु नया के ककसी भी भाग में रहने वाले उन तमाम लोगों
के ललए था, ष्जनके पास क़ुरआन तथा हदीस का ज्ञान हो। यहीं से
क़ुरआन और हदीस का अनुवाद दस
ू री भाषाओं में करने का महत्व स्पटि
हो जाता है ; क्योंकक अपनी बात दसू रों तक पहुाँचाने का एक बडा और
व्यापक सािन अनुवाद है। हमें बडी खश ु ी होती है , जब हम दे खते हैं कक
इस्लालमक ववद्ववानों ने इस काम की आवश्यकता के मद्वदे नज़र, इसे
बहुत पहले ही शुरू कर टदया था और इस्लाम की मूल पुस्तकों को
अरबी के अनतररक्त अन्य बहुत सारी भाषाओं में ढालकर पूरी दनु नया के
सामने रखने के प्रयास में जुि गए थे। उदम ,ू फ़ारसी और बंगला भाषाएाँ
इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। लेककन, आज वैश्वीकरण और ज्ञान-
ववस्फोि के इस दौर में इस कायम का महत्व और बढ़ गया है और इसे
और व्यापकता प्रदान करने की ज़रूरत महसूस की जा रही है । खास तौर
से जब हम यह दे खते हैं कक टहंदी जैसी एक बहुत बडी भाषा में हदीस
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अरबईन नववी

की छह महत्वपूणम ककताबों, ष्जन्हें ‘कुतुब-ए-लसत्ता’ के नाम से जाना


जाता है , का भी अनुवाद नहीं हो पाया है , तो इस कायम की आवश्यकता
का अहसास और तीव्र हो जाता है।

यह अहसास वपछले कई सालों से लगातार मेरा पीछा करता रहा, लेककन


जब मैं आज से तीन साल पहले ववश्व प्रलसद्वि इस्लालमक वेबसाइि
‘इस्लाम हाउस’ से जुडा और इस अवधि में कई ककताबों और महत्वपूणम
प्रोजैक्ट्स को अरबी से टहंदी का रूप दे ने का अवसर प्राप्त ककया, ववशेष
रूप से ‘हदीस ज्ञानकोश’ के काम में शालमल होने का सौभाग्य प्राप्त
ककया, तो हदीस की ककताबों को टहंदी का रूप दे ने की आवश्यकता का
अहसास िीरे -िीरे एक संकल्प का रूप िारण करने लगा और अल्लाह
का नाम लेकर काम शुरू भी कर टदया गया, ष्जसका पहला नतीजा
आपके सामने है । मैं इसे महज़ अल्लाह की कृपा समझता हूाँ कक उसने
मुझे ‘अरबईन नववी’ को टहंदी का जामा पहनाने का सामर्थयम प्रदान
ककया और उससे दआ ु करता हूाँ कक हदीस-ए-रसूल के साथ शुरू होने
वाली मेरी यह यात्रा गंतव्य तक पहुाँचकर ही समाप्त हो। वैसे, इमाम
नववी ही की एक अन्य पस् ु तक ‘ररयाज़ अस-साललहीन’ के भी कुछ भाग
का काम हो चुका है और अल्लाह ने चाहा, तो कुछ टदनों में वह भी
आपके सामने होगी।

मैंने इमाम नववी के द्ववारा जमा की गई बयालीस हदीसों के साथ


प्रख्यात ववद्ववान इब्न-ए-रजब हं बली के द्ववारा जोडी गई आठ हदीसों को
भी शालमल कर ललया है , ताकक पाठकों को प्यारे रसलू (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) की ऐसी पचास हदीसों से लाभांववत होने का अवसर

9
अरबईन नववी

प्राप्त हो जाए, जो बडी व्यापक होने के साथ-साथ सफल जीवन के सभी


मूल्यों एवं आदशों को चररताथम करती हैं। इमाम नववी ने हर हदीस के
बाद इसका उल्लेख कर टदया था कक हदीस ककस ककताब से ली गई है ।
मैंने आसानी के मद्वदे नज़र उक्त ककताबों के हदीस नंबर भी दे टदए हैं।
मैंने पाठकों की आसानी के मद्वदे नज़र हर हदीस का शीषमक भी डाल
टदया है ।

इमाम नववी ने अपनी प्रस्तावना में इस बात का उल्लेख ककया है कक


उन्होंने ककताब के अंत में एक अध्याय जोडकर इस ककताब में दजम
हदीसों में जो कटठन तथा व्याख्या-तलब शब्द आए हैं, उनकी व्याख्या
कर दी है । चाँकू क अनुवाद के क्रम में आम तौर पर उन शब्दों का अथम
स्पटि हो गया है और ‘हदीस का संदेश’ के तहत भी कुछ बातें आ गई
हैं, इसललए उन्हें अलग से ष्ज़क्र करने की ज़रूरत महसस
ू नहीं की गई।

मैं यहााँ एक और महत्वपूणम बात का उल्लेख कर दे ना चाहता हूाँ। इमाम


नववी ने ककताब की प्रस्तवाना में ललखा है कक उलेमा इस बात पर
एकमत हैं कक ववलभन्न कायों के सवाब तथा दं ड के संबंि में ‘ज़ईफ़’
(दब
ु ल
म ) हदीसें ग्रहणयोग्य हैं। लेककन सच्चाई यह है कक इस ववषय में
उलेमा का हमेशा से मतभेद रहा है । कुछ ववद्ववानों ने दब
ु ल
म हदीस को
बबलकुल ही अग्रहणयोग्य माना है । यही प्रख्यात मुहद्वटदस इब्न-ए-मईन
का रुझान है और इसी को अल्लामा नालसरुद्वदीन अलबानी ने अष्ततयार
ककया है । जबकक ष्जन लोगों ने सवाब तथा दं ड के मामले में उसे
ग्रहणयोग्य माना है , उन्होंने उसके ललए कुछ शतें भी रखी हैं, ष्जन्हें
उसूल-ए-हदीस की ककताबों में दे खा जा सकता है ।

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अरबईन नववी

अनुवाद के बाद संक्षिप्त में हदीस का संदेश भी पेश कर टदया है और


इस बात का पूरा प्रयास ककया है कक भाषा सरल तथा सुबोि हो। मुझसे
जहााँ तक हो सका, बेहतर करने की कोलशश की है । लेककन मैं अपने
प्रयास में कहााँ तक सफल हो सका हूाँ, यह तो अल्लाह ही बेहतर जानता
है । पाठकों से मेरा अनुरोि है कक आप जहााँ भी कोई त्रुटि दे खें, कमी
महसूस करें या और अच्छा करने की गुंजाइश नज़र आए, मुझे ज़रूर
अवगत करें । आपके सझ
ु ाओं और प्रामशों को बखश
ु ी क़बल
ू ककया
जाएगा।

मैं उन तमाम लोगों का शकु क्रया अदा करता हूाँ, ष्जन्होंने इस कायम के
दौरान ककसी भी रूप में मुझे सहयोग टदया।

दआ
ु है कक अल्लाह मुष्स्लम समुदाय के प्रत्येक व्यष्क्त को, प्यारे नबी
मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के जीवन-मूल्यों को सामने
रखकर जीवन बबताने का सामर्थयम प्रदान करे ।

मुश्ताक़ अहमद नदवी

28 अप्रैल 2019

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अरबईन नववी

इमाम नववी की प्रस्तावना

‫بسم هللا الرحمن الرحيم‬

सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जो सारे संसार का पालनहार है , आकाशों


और िरनतयों का संरिक है और वही सारी सष्ृ टियों को अपने टहसाब से
चलाता है। उसने अपने बंदों की ओर रसल
ू भेजे, ताकक वे लोगों को
अिल प्रमाणों और स्पटि दलीलों के माध्यम से सत्य का मागम टदखाएाँ
और इस्लामी जीवन व्यतीत करने का तरीक़ा लसखाएाँ। मैं उसके सारे
उपकारों पर उसकी प्रशंसा करता हूाँ और उसकी अनुग्रह का प्राथी हूाँ तथा
गवाही दे ता हूाँ कक अल्लाह के लसवा कोई सत्य पज्
ू य नहीं, जो अकेला है ,
प्रभुत्वसंपन्न है , दयालु है और िमावान है ।

मैं गवाही दे ता हूाँ कक मह


ु म्मद (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) अल्लाह के
बंदे, उसके रसल ू और उसके परम-लमत्र हैं। आप सारी सष्ृ टियों से उत्तम
हैं। आपको क़ुरआन जैसी एक अद्वभत
ु पुस्तक दी गई है , जो सदयााँ
गज़
ु र जाने के बावजद
ू आज भी एक चमत्कार है । आपको ऐसी सन्
ु नत
भी दी गई है, जो सत्य का मागम तलाश करने वालों को राह टदखाती
रहे गी। आपकी एक और ववशेषता भी है । आपको कम से मक शब्दों में
बडी से बडी बात करने की शष्क्त प्रदान की गई थी। इसी तरह आपको
इस्लाम के रूप में एक उदार और व्यापक िमम भी टदया गया है। दरूद

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अरबईन नववी

व सलाम हो आपपर, सारे नबबयों और रसूलों पर, उन सभी महापुरुषों


की संतानों पर तथा सत्कलममयों और सदाचाररयों पर।

अल्लाह की प्रशंसा के बाद मुझे यह कहना है कक अली बबन अबू


ताललब, अब्दल्
ु लाह बबन मसऊद, मुआज़ बबन जबल, अबू दरदा,
अब्दल्
ु लाह बबन उमर, अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास, अनस बबन माललक, अबू
हुरैरा और अबू सईद खुदरी (रष्ज़यल्लाहु अनहुम) से बहुत-सी सनदों से
और अलग-अलग ररवायतों से हमें एक हदीस लमली है कक अल्लाह के
रसलू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “ष्जसने मेरी उम्मत
के ललए, उसके िमम से संबंधित चालीस हदीसें सरु क्षित कीं, उसे क़यामत
के टदन अल्लाह आललमों और फ़क़ीहों के साथ उठाएगा।”

तथा एक ररवायत में है : “उसे अल्लाह फ़क़ीह तथा आललम बनाकर


उठाएगा।”

अबू दरदा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) की ररवायत के अनुसार : “मैं क़यामत के


टदन उसकी लसफ़ाररश करूाँगा और उसके हक़ में गवाही दाँ ग
ू ा।”

अब्दल्
ु लाह बबन मसऊद (रष्ज़यल्लाहु अनहु) की ररवायत के अनुसार :
“उससे कहा जाएगा कक तुम जन्नत के ष्जस द्ववार से चाहो, प्रवेश कर
जाओ।”

तथा अब्दल्
ु लाह बबन उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहु) की ररवायत के मत
ु ाबबक़
: “उसे आललमों के धगरोह में ललख ललया जाएगा और शहीदों के साथ
उठाया जाएगा।”

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अरबईन नववी

यही कारण है कक उलेमा ने चालीस हदीसों पर आिाररत बहुत-सी


ककताबें ललखी हैं। मेरी जानकारी के अनुसार इस संबंि में सबसे पहले
क़लम अब्दल्
ु लाह बबन मब
ु ारक ने उठाई। कफर टदग्गज आललम मह
ु म्मद
बबन असलम तस
ू ी, कफर हसन बबन सुफ़यान नसवी, अबू बक्र आजुरी,
अबू बक्र मुहम्मद बबन इबराहीम असफ़हानी, दारक़ुतनी, हाककम, अबू
नुऐम, अबू अब्दरु म मान सुल्लमी, अबू साद मालीनी, अबू उसमान साबूनी,
मह
ु म्मद बबन अब्दल्
ु लाह अंसारी, अबू बक्र बैहक़ी तथा पहले और बाद के
अनधगनत लोगों ने इस ववषय पर ककताबें ललखी हैं। मैंने इन्हीं प्रख्यात
इमामों और हदीस के हाकफ़ज़ों का अनुसरण करते हुए चालीस हदीसें
जमा करने के संबंि में अल्लाह से ‘इष्स्तखारा’ (दो रकात नमाज़ पढ़ने
के बाद अल्लाह से यह दआ
ु करना कक ऐ अल्लाह अगर यह काम मेरे
ललए बेहतर है तो मुझे इस काम पर लगा दे और अगर मेरे ललए बेहतर
नहीं है तो मुझे इससे दरू कर दे ।) ककया। वैसे, उलेमा इस बात पर
एकमत हैं कक ववलभन्न कायों के सवाब तथा दं ड के संबंि में ‘ज़ईफ़’
(दब
ु ल
म ) हदीसें ग्रहणयोग्य हैं। लेककन, इसके बावजूद मैंने इस हदीस को
आिार बनाने की बजाय अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम)
की इस सहीह हदीस को आिार बनाया कक “तम
ु में से जो उपष्स्थत है ,
वह उसे पहुाँचा दे , जो उपष्स्थत नहीं है ” तथा आपके इस फ़रमान को
बुननयाद माना कक “अल्लाह उस व्यष्क्त को हरा-भरा (प्रसन्नधचत) रखे,
ष्जसने मेरी बात सुनी और उसे जैसे सन
ु ा था, उसी तरह पहुाँचा टदया।”

कफर, चालीस हदीसें जमा करते समय, कुछ अलेमा ने इस्लाम के


लसद्विांतों से संबंधित हदीसों को जमा ककया, कुछ ववद्ववानों ने शरई
आदे शों पर आिाररत हदीसों को एकत्र ककया, कुछ लोगों ने ष्जहाद से

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अरबईन नववी

ताल्लुक़ रखने वाली हदीसों का संग्रह तैयार ककया, ककसी ने दनु नया के
मायामोह से मुक्त रहने की हदीसें चुनीं, ककसी ने इस्लामी लशटिाचार को
उजागर करने वाली हदीसों पर ध्यान टदया, तो ककसी ने अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के भाषणों को एकत्र ककया। यह
सारे प्रशंसनीय उद्वदे श्य के तहत ककए गए काम हैं। (अल्लाह इन
उद्वदे श्यों के तहत काम करने वालों से प्रसन्न हो!)

लेककन, मैंने सोचा कक चालीस हदीसों का एक ऐसा संग्रह तैयार ककया


जाए, जो इन सभी संग्रहों से अधिक महत्वपण
ू म हो। ऐसी चालीस हदीसें
जमा की जाएाँ, जो उक्त तमाम ववषयों पर आिाररत हों। उनमें से हर
हदीस इस्लाम का कोई न कोई महत्वपूणम लसद्विांत प्रस्तुत करती हो।
उलेमा ने उसे इस्लाम का आिार, आिा इसला
् म, नतहाई इस्लाम या
इसी तरह कुछ और कहा हो। मैं इस बात की परू ी पाबंदी करूाँगा कक इस
संग्रह की सारी हदीसें सहीह हों, बष्ल्क अधिकतर हदीसें सहीह बुखारी
और सहीह मुष्स्लम की होंगी। मैं हदीस को सनद छोडकर नक़ल करूाँगा,
ताकक याद करने और लाभ उठाने में आसानी हो, (इन शाअल्लाह!) तथा
अंत में एक अध्याय में कटठन शब्दों का अथम भी बात दाँ ग
ू ा। हर
मुसलमान को, जो आखखरत को साँवारने की इच्छा रखता हो, चाटहए कक
इन हदीसों से अवगत हो, जो सचमुच बडी महत्वपूणम बातों पर आिाररत
हैं और ष्जनमें हर उस काम से आगाह ककया गया है , जो नेकी का काम
समझा जाता है। यह केवल दावा नहीं है , बष्ल्क सोच-ववचार करने वाले
इसे आसानी से समझ सकते हैं। मैं अल्लाह ही पर भरोसा करता हूाँ,
खुद को उसी के हवाले करता हूाँ और उसी के सहारे आगे बढ़ता हूाँ। उसी

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अरबईन नववी

की प्रशंसा है, वही उपकार करने वाला है , वही सामर्थयम प्रदान करता है
और वही हर परे शानी से बचाता है ।

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अरबईन नववी

पहली हदीस

नीयत का मत्वह

‫ "إِنَّ َما‬: ‫س ِم ْعتُ َرسُو َل هللاِ ﷺ يَقُو ُل‬ َ : ‫ب قَا َل‬ ِ ‫َطا‬َّ ‫ص عُ َم َر ب ِْن ْالخ‬
ٍ ‫ع ْن أ َ ِم ْي ِر ْال ُمؤْ ِمنِ ْينَ أَبِ ْي َح ْف‬
َ
‫للا َو َرس ْو ِل ِه فَ ِهجْرته إِلَى‬
ِ ‫ فَ َم ْن كَانَتْ هِجْ َرته إِلى‬، ‫ َوإنَّ َما ِلك ِ ِّل ا ْم ِرىء َما نَ َوى‬، ‫ت‬ِ ‫األ َ ْع َمال بِالنِِّيَّا‬
‫جْرته إِلى َما َهاج ََر‬ َ ‫ فَ ِه‬، ‫ أَو ا ْمرأَة يَ ْن ِكحهَا‬، ‫ َو َم ْن كَانَتْ هِجْ َرته ِلد ْنيَا ي ِصيْبهَا‬، ‫للا َو َرس ْو ِل ِه‬ ِ
‫ع ْب ِدهللاِ ُم َح َّم ُد ْب ُن إِ ْس َما ِع ْي َل ْب ِن إِ ْب َرا ِه ْي َم ْب ِن ْال ُم ِغ ْي َرةَ ْب ِن بَ ْرد ِْزبَ ْه‬
َ ‫إلَ ْي ِه"ـ َر َواهُ إِ َما َما ْال ُم َح ِدثِ ْينَ أ َبُ ْو‬
‫ص ِح ْي َح ْي ِه َما‬
َ ‫ فِ ْي‬، ‫سابُ ْو ِري‬ َ ُ‫َّاج ب ِْن ُم ْس ِل ٍم ْالق‬
َ ‫ش ْي ِري النِ ْي‬ ِ ‫س ْي ِن ُم ْس ِل ُم ْب ُن ْال َحج‬َ ‫ َوأ َبُ ْو ْال َح‬، ‫اري‬ ِ ‫ْالبُ َخ‬
‫صنَّفَ ِة ـ‬َ ‫ب ْال ُم‬ِ َ ‫صح ْال َكت‬ َ َ ‫اللَّذَ ْي ِن هُ َما أ‬

अनव
ु ाद

अमीरुल मोलमनीन अबू हफ़्स उमर बबन खत्ताब (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते
हैं कक मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते
हुए सन
ु ा है : “सारे कायों का दारोमदार नीयतों पर है और प्रत्येक
व्यष्क्त को उसकी नीयत के अनुरूप ही पररणाम लमलेगा। अतः, ष्जसने
अल्लाह और उसके रसूल के ललए टहजरत की, उसकी टहजरत अल्लाह
और उसके रसल
ू के ललए है और ष्जसने दनु नया प्राप्त करने या ककसी
स्त्री से शादी रचाने के ललए टहजरत की, उसे वही लमलेगा ष्जसके ललए
उसने टहजरत की।” इस हदीस को इमाम अबू अब्दल्
ु लाह मुहम्मद बबन
इसमाईल बबन इबराहीम बबन मुगीरा बबन बरदज़बा बुखारी जोफ़ी ने
सहीह बख
ु ारी [हदीस संख्या : 1, 54, 2529, 3898 और 5070] में और

17
अरबईन नववी

इमाम अबुल हुसैन मुष्स्लम बबन हज्जाज बबन मुष्स्लम क़ुशैरी नीसापूरी
ने सहीह मुष्स्लम [हदीस संख्या : 1907] में ररवायत ककया है । ज्ञात हो
कक यह दोनों ककताबें हदीस की सबसे सहीह ककताबें मानी जाती हैं।

संदेश

1. यह हदीस, उन हदीसों में से एक है, जो इस्लामी लशिाओं के


आिार की है लसयत रखती हैं। कुछ इस्लामी ववद्ववानों ने इसे
इस्लामी लशिाओं का आिा या एक नतहाई भाग क़रार टदया है ।
इसी हदीस से इमाम बुखारी ने अपनी ककताब का आरं भ ककया है ।
2. नीयत टदल के इरादे का नाम है । जबकक शरीयत की पररभाषा में
कोई काम करते समय अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने का इरादा
नीयत कहलाता है।
3. इस हदीस में उष्ल्लखखत शब्द ‘सारे कायों’ से अलभप्राय वह कायम
हैं, ष्जन्हें हम शरीयत की पररभाषा में ‘इबादत’ कहते हैं। इबादतों
के ग्रहणयोग्य होने के ललए ज़रूरी है कक उन्हें केवल अल्लाह की
प्रसन्नता प्राप्त करने के ललए ककया जाए। रही बात आम सांसाररक
कायों की, तो उन्हें भी यटद सांसाररक आवश्यकताओं की पनू तम के
साथ-साथ अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के ललए ककया जाए,
तो वह भी पुण्य के कायम बन जाते हैं।
4. टहजरत, ककसी ऐसे स्थान से, जहााँ इस्लाम पर अमल करने की
स्वतंत्रता न हो, ककसी सरु क्षित स्थान की ओर चले जाने को कहते
हैं और यह बडी नेकी का काम है । लेककन, इतने महत्वपूणम एवं
कटठन कायम को भी यटद अल्लाह को खुश करने की बजाय ककसी

18
अरबईन नववी

और इरादे से ककया जाए, तो वह नेकी का काम नहीं रह जाता।


बष्ल्क इसके उलि गुनाह का काम बन जाता है , जैसा कक कई
हदीसों में स्पटि रूप से उष्ल्लखखत है ।

19
‫‪अरबईन नववी‬‬

‫‪दस‬‬
‫‪ू री हदीस‬‬

‫‪इस्लाम, ईमान तथा एहसान की व्याख्या‬‬

‫علَيْنا َ َر ُج ٌل‬ ‫س ِع ْن َد َرسُ ْو ِل هللاِ ذَاتَ يَ ْو ٍم إ َ ْذ َ‬


‫طلَ َع َ‬ ‫ع ْنهُ قَا َل ‪ :‬بَ ْينَ َما نَ ْح ُن ُجلُ ْو ٌ‬
‫هللا ت َ َعالَى َ‬
‫ي ُ‬ ‫ع ْن عُ َم َر َر ِ‬
‫ض َ‬ ‫َ‬
‫س إلَى‬ ‫سف َِر َو َل يَ ْع ِرفُهُ ِمنَّا أ َ َح ٌد َحت َّى َجلَ َ‬
‫علَ ْي ِه أَث َ ُر ال َّ‬
‫ش ْع ِر َل ي َُرى َ‬ ‫س َوا ِد ال َّ‬ ‫ش ِد ْي ُد َ‬
‫ب َ‬
‫اض الثِيَا ِ‬ ‫ش ِد ْي ُد بَيَ ِ‬ ‫َ‬
‫الس َْل ِم ‪،‬‬ ‫علَى فَ ِخذَ ْي ِه َوقَا َل ‪ :‬يَا ُم َح َّم ُد أ َ ْخبِ ْرنِ ْي َ‬
‫ع ِن ْ ِ‬ ‫النَّبِي ِ فَأ َ ْسنَ َد ُر ْكبَت َ ْي ِه إلَى ُر ْكبَت َ ْي ِه َو َو َ‬
‫ض َع َكفَّ ْي ِه َ‬
‫للا ‪َ ،‬وت ِق ْي َم‬ ‫ش َه َد أ َ ْن َّّل إلَهَ إّلَّ للا َوأ َ َّن م َح َّمدَا َّرس ْول ِ‬ ‫سالَم أ َ ْن ت َ ْ‬ ‫ال ْ‬‫فَقَا َل َرسُو ُل هللاِ ﷺ ‪ِ ْ " :‬‬
‫ص َد ْقتَ ‪.‬‬
‫سبِيْال" قَا َل ‪َ :‬‬ ‫ست َ َ‬
‫ط ْعتَ إِل ْي ِه َ‬ ‫الزكَاةَ ‪َ ،‬وتَص ْو َم َر َمضَانَ ‪َ ،‬وتَح َّج ا ْلبَيْتَ إِ ِن ا ْ‬
‫ي َّ‬‫الص ََّالةَ ‪َ ،‬وت ْؤتِ َ‬
‫ان‪ ،‬قَا َل ‪" :‬أ َ ْن ت ْؤ ِمنَ بِا ِ‬
‫لل‪َ ،‬و َم َالئِ َكتِ ِه‪َ ،‬وكتبِ ِه ‪،‬‬ ‫ال ْي َم ِ‬ ‫ص ِدقُهُ‪ ،‬قَا َل ‪ :‬فَأ َ ْخبِ ْرنِ ْي َ‬
‫ع ِن ْ ِ‬ ‫فَعَ ِج ْبنَا لَهُ يَ ْسأَلُهُ َويُ َ‬
‫ان‪،‬‬
‫س ِ‬ ‫ال ْح َ‬ ‫ص َد ْقتَ ‪ ،‬قَا َل فَأ ْخبِ ْرنِ ْي َ‬
‫ع ِن ْ ِ‬ ‫َورس ِل ِه ‪َ ،‬وا ْليَ ْو ِم ْالَ ِخ ِر ‪َ ،‬وت ْؤ ِمنَ بِا ْلقَد َِر َخي ِْر ِه َوش ِ َِّر ِه"ـ قَا َل ‪َ :‬‬
‫ع ِة ‪ ،‬قَا َل ‪:‬‬ ‫ع ِن السَّا َ‬ ‫للا َكأَنَّكَ ت َ َراه‪َ ،‬ف ِإ ْن لَّ ْم تَك ْن ت َ َراه َف ِإ َّنه َي َراكَ "ـ قَا َل ‪ :‬فَأ َ ْخ ِب ْر ِني َ‬
‫قَا َل ‪" :‬أ َ ْن تَعْب َد َ‬
‫ارا ِتها ‪ ،‬قَا َل ‪" :‬أ َ ْن ت َ ِل َد األ َ َمة َر َّبتَهَا ‪،‬‬ ‫ع ْن أ َ َم َ‬
‫سا ِئ ِل" قَا َل ‪ :‬فَأ ْخ ِب ْر ِن ْي َ‬ ‫ع ْنهَا ِبأ َ ْعلَ َم ِمنَ ال َّ‬
‫" َما ا ْل َمسئول َ‬
‫ان" ثْ َّم ا ْن َ‬
‫طلَقَ فَلَ ِبثتُ َم ِليَّا ً ث ُ َّم قَا َل ‪:‬‬ ‫اول ْونَ فِي الب ْنيَ ِ‬ ‫ط َ‬‫َوأ َ ْن تَرى الحفَاةَ الع َراةَ العَالَةَ ِرعَا َء الشَّاءِ يَت َ َ‬

‫سائِل؟" قُ ْلتُ ُ‬
‫هللا َو َرسُ ْولُهُ أ َ ْعلَ ُم‪ ،‬قَا َل ‪" :‬فَ ِإنَّه ِجب ِْريْل أَتَاك ْم يعَلَّمك ْم ِد ْينَك ْم‪".‬‬ ‫"يَا ع َمر أَتَد ِْري َم ِن ال َّ‬
‫َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬

‫‪अनुवाद‬‬

‫‪उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहु) ही का वणमन है , वह कहते हैं कक एक टदन हम‬‬


‫‪लोग अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैटह व सल्लम) के पास बैठे हुए थे कक‬‬
‫े‪अचानक एक व्यष्क्त प्रकि हुआ। उसके वस्त्र अनत सफ़ेद एवं बाल अनत काल‬‬
‫े‪थे। उसके शरीर में यात्रा का कोई ननशान नहीं था और हममें से कोई उस‬‬
‫े‪पहचान भी नहीं रहा थाl वह नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के सामन‬‬
‫‪20‬‬
अरबईन नववी

बैठ गया। उसने अपने दोनों घुिने आपके घुिनों से लमला ललए और दोनों
हथेललयााँ दोनों रानों पर रख लीं। कफर बोला : ऐ मुहम्मद, मुझे बताइए कक
इस्लाम क्या है? आपने उत्तर टदया : “इस्लाम यह है कक तम
ु इस बात की
गवाही दो कक अल्लाह के अनतररक्त कोई पज्
ू य नहीं तथा मुहम्मद (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) अल्लाह के रसल
ू हैं, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, रमज़ान
के रोज़े रखो तथा यटद सामथय्म हो तो अल्लाह के घर काबा का हज करो।"
उसने कहा : आपने सही बताया। उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक हमें
आश्चयम हुआ कक यह कैसा व्यष्क्त है , जो पूछ भी रहा है और स्वयं उसकी पुष्टि
भी कर रहा है ?! उसने कफर कहा : मझ
ु े बताइए कक ईमान क्या है ? आप
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फरमाया : "ईमान यह है कक तुम ववश्वाश
रखो अल्लाह, उसके फररश्तों, उसकी पस्
ु तकों, उसके रसल
ू ों, अंनतम टदन तथा
भाग्य की अच्छाई और बुराई पर।" उस व्यष्क्त ने कहा : आपने सही
फ़रमायाl इसके बाद उसने कहा कक मझ
ु े बताइए एहसान ककया है ? आप
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने उत्तर टदया : “तम
ु अल्लाह की वंदना इस
तरह करो, जैसे तुम उसे दे ख रहे हो। यटद अल्लाह को दे खने की कल्पना
उत्पन्न न हो सके, तो कम-से-कम यह सोचो कक वह तुम्हें दे ख रहा हैl" उसने
कफर पूछा : मुझे बताइए कक क़यामत कब आएगी? आपने फ़रमाया : “ष्जससे
प्रश्न ककया गया है , वह इस ववषय में प्रश्न करने वाले से अधिक नहीं
जानता।" उसने कहा : तो कफर मुझे क़यामत की ननशाननयााँ ही बता दीष्जए?
आपने कहा : "क़यामत की ननशानी यह है कक दासी अपनी मालककन को

21
अरबईन नववी

जन्म दे ने लगे और तुम दे खो कक नंगे पैर, नंगे बदन, ननिमन और बकररयों के


चरवाहे ऊाँचे-ऊाँचे महलों पर गवम करने लगें ।" उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं
कक कफर वह व्यष्क्त चला गया। जब कुछ िण बीत गए, तो अल्लाह के रसल

(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने पूछा : "ऐ उमर, क्या तुम जानते हो कक यह

सवाल करने वाला व्यष्क्त कौन था?" मैंने कहा : अल्लाह और उसके रसूल ही
भली-भााँनत जानते हैंl तो आपने फरमाया : "यह ष्जबरील थे, जो तुम्हें
तम्
ु हारा िमम लसखाने आए थेl" इस हदीस को इमाम मष्ु स्लम [सहीह
मुष्स्लम हदीस संख्या : 8] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह एक महत्वपण
ू म हदीस है , ष्जसे ‘हदीस-ए-ष्जबरील’ के नाम से
जाना जाता है । क्योंकक ष्जबरील लोगों को इस्लाम की मूल बातों
से अवगत करने के ललए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व
सल्लम) के पास आए थे और आपसे कई महत्वपूणम प्रश्न ककए थे,
ष्जनके माध्यम से हमें इस्लाम की मल
ू बातों का ज्ञान होता है ।
2. ज्ञानी व्यष्क्तयों को चाटहए कक पूछने वाले को पूरा सम्मान दें ,
जैसा कक अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने
ष्जबरील को टदया, जो एक अजनबी के भेस में आकर आपसे पूछ
रहे थे।

22
अरबईन नववी

3. जानकारी लेने वाले को भी चाटहए कक ज्ञानी व्यष्क्तयों के साथ


लशटिाचारयुक्त एवं आदरपूणम व्यवहार करे , जैसा कक ष्जबरील ने
अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के साथ ककया।
4. जब इस्लाम तथा ईमान दोनों शब्द एक साथ आएाँ, तो इस्लाम की
व्याख्या ज़ाटहरी चीज़ों और ईमान की व्याख्या बानतनी चीज़ों से की
जाएगी।
5. इस्लाम के अकामन (स्तंभ) पााँच हैं, जबकक ईमान के मल
ू आिार
छह हैं।
6. एहसान अथामत प्रत्येक कायम को उत्तम तरीक़े से करने का अपना
एक अलग महत्व है।
7. जो बात मालम
ू न हो, उसके बारे ‘अल्लाह बेहतर जानता है ’ कहना
चाटहए।
8. क़यामत कब आएगी, यह केवल अल्लाह ही जानता है ।
9. इस हदीस में क़यामत की कुछ ननशाननयााँ बताई गई हैं। ‘दासी
अपनी मालककन को जन्म दे ’ के कई अथम बताए गए हैं, ष्जनमें से
एक यह है कक माता-वपता के साथ दव्ु यमवहार आम हो जाए और
बच्चे अपने माता-वपता के साथ ऐसा व्यवहार करने लगें कक मानो
वे उनके दास एवं दासी हों।

23
अरबईन नववी

तीसरी हदीस

इस्लाम के स्तंभ

َ :َ‫ع ْن ُه َما قَال‬


ُ‫س ِم ْعت‬ َ ‫هللا‬ ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ب َر‬ ِ ‫طا‬َّ ‫ع ْب ِد هللاِ ب ِْن عُ َم َر ب ِْن ْال َخ‬
َ ‫الر ْح َم ِن‬ َ ‫ع ْن أَبِ ْي‬
َّ ‫ع ْب ِد‬ َ
،ِ‫شهَا َد ِة أ َ ْن َّّلَ ِإلَهَ ِإّلَّ للا َوأ َ َّن م َح َّمدَا َّرس ْول للا‬
َ :‫علَى َخ ْمس‬ َ ‫السْالم‬ ِْ ‫ي‬ َ ‫ "ب ِن‬: ‫ي ﷺ َيقُ ْو ُل‬ َّ ‫النَّ ِب‬
ِ ‫ َوص َْو ِم َر َمضَانَ "ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬،ِ‫ج ا ْلبَ ْيت‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ َّ ِ‫ َوإِ ْيتَاء‬،‫َوإِقَ ِام الصَّال ِة‬
ِ ِّ ‫ َو َح‬،‫الزكَا ِة‬

अनव
ु ाद

अबू अब्दरु म हमान अब्दल्


ु लाह बबन उमर बबन खत्ताब (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा)
कहते हैं कक मैंने अल्लाह के रसल ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को
कहते हुए सुना है : “इसलाम की बुननयाद पााँच चीज़ों पर है ; इस बात
की गवाही दे ना कक अल्लाह के लसवा कोई सत्य पज् ू य नहीं है और
मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात दे ना, काबा
का हज करना और रमज़ान महीने के रोज़े रखना।” इस हदीस को
बख
ु ारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 8 तथा 4514] तथा मष्ु स्लम [सहीह
मष्ु स्ल हदीस संख्या : 16] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में इस्लाम को एक भवन के समान मानकर कहा गया


है कक उसके चार स्तंभ हैं; केवल अल्लाह के पूज्य होने और
मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पैगंबर होने की गवाही

24
अरबईन नववी

दे ना, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात दे ना, अल्लाह के घर काबा का


हज करना और रमज़ान महीने के रोज़े रखना।
2. केवल अल्लाह के पज्
ू य होने और मह ु म्मद (सल्लल्लाहु अलैटह व
सल्लम) के रसूल होने की गवाही दे ना मुसलमान होने की पहली
शतम है। इसके बबना इस्लाम की कल्पना संभव नहीं है ।
3. अल्लाह ने पााँच वक़्त की नमाज़ें फ़ज़म की हैं और हदीसों में उनके
जान-बझ
ू कर छोडने को कुफ़्र कहा गया है । नमाज़ क़ायम करने से
आशय है , उसे नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के बताए हुए
तरीक़े के मुताबबक़, उसके सारे फ़ज़म, वाष्जब और सुन्नतों का
ललहाज़ करते हुए, जमात के साथ पढ़ना और उसे पढ़ने का माहौल
बनाना।
4. ज़कात मुसलमानों के िन का वह ननष्श्चत भाग है , जो ननयलमत
रूप से उनसे लेकर ननिमनों और ज़रूरतमंदों को टदया जाता है।
ज़कात अदा न करने वालों को क़ुरआन और हदीस में बडी कटठन
यातनाओं की िमकी दी गई है ।
5. हज का मतलब है, ववशेष टदनों में मक्का जाना और अल्लाह की
इबादत के उद्वदे श्य से उसके पववत्र घर काबा का तवाफ़ करना,
सफ़ा एवं मरवा पहाडडयों के बीच दौड लगाना, अरफ़ा के मैदान में
रुकना, मुज़दललफ़ा और लमना में रात गुज़ारना, ववशेष स्थानों में
कंकड फेंकना, क़ुरबानी करना और सर के बाल मुाँडवाना अथवा
छोिे करवाना, जैसे कायम करना। यह हर स्वस्थ एवं सिम
मुसलमान पर जीवन में एक बार फ़ज़म है और शष्क्त होने के

25
अरबईन नववी

बावजूद उसे न करने वाले को यहूदी या ईसाई होकर मरने की


िमकी दी गई है।
6. रमज़ान के रोज़ों का अथम है , रमज़ान महीने के टदनों में अल्लाह
की वंदना के उद्वदे श्य से फ़ज्र से सूयामस्त तक खाने-पीने तथा अन्य
रोज़ा तोडने वाली वस्तुओं से बचे रहना। अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) का फ़रमान है : “ष्जसने अल्लाह
पर ईमान रखते हुए और सवाब की उम्मीद में रमज़ान महीने के
रोज़े रखे, उसके वपछले सारे गुनाह माफ़ कर टदए जाते हैं।”
7. इस्लाम के उक्त स्तंभों में से ककसी भी स्तंभ के अननवायम होने का
इनकार करते हुए उसे छोडने वाला मस
ु लमान नहीं रह जाता।

26
अरबईन नववी

चौथी हदीस

सष्ृ टि के ववलभन्न चरण

: ‫صد ُْو ُق‬ َّ ‫ َح َّدثَنَا َرسُ ْو ُل هللاِ ﷺ َوه َُو ال‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
ْ ‫صا ِد ُق ال َم‬ َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ َ ‫ع ْن‬
ِ ‫ع ْب ِد هللاِ ْب ِن َم ْسعُ ْو ٍد َر‬ َ
‫ضغَة‬ َ ‫ ث َّم يَك ْون‬،‫" ِإ َّن أ َ َحدَك ْم ي ْج َمع َخ ْلقه فِ ْي بَ ْط ِن أ ِ ِّم ِه أ َ ْربَ ِع ْينَ يَ ْو َما ن ْطفَة‬
ْ ‫ ث َّم يَك ْون م‬، َ‫علَقَة ِمثْ َل ذَ ِلك‬
َ ‫ب ِر ْزقِ ِه َوأ َ َج ِل ِه َو‬
‫ع َم ِل ِه‬ ِ ْ‫ بِ َكت‬: ‫ َويَ ْؤ َمر بِأ َ ْربَ ِع َك ِل َمات‬،َ‫سل إِلَ ْي ِه ال َملَك فَيَ ْنفخ فِ ْي ِه ال ٌّر ْوح‬
َ ‫ ث َّم ي ْر‬، َ‫ِمثْ َل ذَ ِلك‬
‫غيْره إِ َّن أ َ َحدَك ْم لَيَ ْع َمل بِعَ َم ِل أ َ ْه ِل ا ْل َجنَّ ِة َحتَّى َما يَك ْون بَ ْينَه‬ َ َ‫للا الَّذِي َّل إِلَه‬ َ ‫ي أ َ ْو‬
ِ ‫ فَ َو‬.ٌ‫س ِع ْيد‬ ٌّ ‫ش ِق‬
َ ‫َو‬
‫ َوإِ َّن أ َ َحدَك ْم لَيَ ْع َمل بِعَ َم ِل أ َ ْه ِل‬،‫علَ ْي ِه ال ِكتَاب فَيَ ْع َمل بِعَ َم ِل أ َ ْه ِل النَّ ِار فَيَدْخلهَا‬ ْ َ‫َوبَ ْينَهَا َّإّل ذ َِراعٌ فَي‬
َ ‫سبِق‬
‫علَ ْي ِه ال ِكتَاب فَيَ ْع َمل بِعَ َم ِل أ َ ْه ِل ال َجنَّ ِة فَيَدْخلهَا"ـ‬ ْ َ‫النَّ ِار َحتَّى َمايَكون بَ ْينَه َوبَ ْينَهَا َّإّل ذ َِراعٌ فَي‬
َ ‫سبِق‬
ِ ‫َر َواهُ ْالبُ َخ‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬

अनुवाद

अबू अब्दरु म हमान अब्दल्


ु लाह बबन मसऊद (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं
कक अल्लाह के रसल ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने, जो कक सच्चे थे
और ष्जनकी सच्चाई सवममान्य थी, हमें बताया : “तुममें से हर व्यष्क्त
की सष्ृ टि-सामग्री उसकी मााँ के पेि में चालीस टदनों तक वीयम के रूप में
एकत्र की जाती है। कफर इतने ही समय में वह जमे हुए रक्त का रूप
िारण कर लेती है। कफर इतने ही टदनों में मांस का लोथडा बन जाती
है । कफर उसकी ओर एक फ़ररश्ता भेजा जाता है , जो उसमें रूह फाँू कता
है । कफर उसे चार बातों का आदे श टदया जाता है ; उसे कहा जाता है कक
उसकी रोज़ी, उसकी आयु, उसके कमम तथा उसके अच्छे या बरु े होने को
ललख दे । अतः, उस अल्लाह की क़सम, ष्जसके लसवा कोई सत्य पज्
ू य

27
अरबईन नववी

नहीं है , तुममें से कोई जन्ननतयों के काम करता रहता है , यहााँ तक कक


उसके और जन्नत के बीच केवल एक हाथ की दरू ी रह जाती है कक
इतने में उसपर तक़दीर का ललखा गाललब आ जाता है और वह
जहन्नलमयों के काम करने लगता है और उसमें प्रवेश कर जाता है । इसी
तरह, तुममें से कोई जहन्नलमयों के काम करता रहता है , यहााँ तक
उसके और जहन्नम के बीच केवल एक हाथ की दरू ी रह जाती है कक
इतने में उसपर तक़दीर का ललखा गाललब आ जाता है और वह
जन्ननतयों के काम करने लगता है और जन्नत में प्रवेश कर जाता है ।”
इस हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 3208, 3332
एवं 6594] तथा इमाम मष्ु स्लम [सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 2643]
ने ररवायत ककया है।

संदेश

1. इस हदीस में इनसान की सष्ृ टि का वववरण प्रस्तत


ु ककया गया है
और उसकी ववलभन्न अवस्थाओं को धचष्ननत ककया गया है ।
2. इस हदीस से मालूम हुआ कक इनसान जब मााँ के पेि में होता है ,
तभी उसकी रोज़ी, आयु और कमम के साथ-साथ यह भी ललख टदया
जाता है कक वह अच्छा होगा या बुरा। इसी बात को मानने का
नाम तक़दीर पर ईमान है ।
3. इनसान का कमम उसके जन्नती या जहन्नमी होने का कारण है ।
4. इस हदीस से यह भी मालम ू हुआ कक असल एतबार इनसान के
अंनतम कमम का होता है ।

28
अरबईन नववी

पााँचवीं हदीस

बबदअत का अग्रहणयोग्य होना

‫ " َم ْن‬: ‫ﷺ‬ ِ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللا‬: ‫ت‬ ْ َ‫ قَال‬- ‫ع ْن َها‬


َ ُ‫ي هللا‬ ِ ‫ َر‬- َ‫شة‬
َ ‫ض‬ َ ‫ع ْن أ ُ ِم ْال ُمؤْ ِمنِينَ أ ُ ِم‬
َ ِ‫ع ْب ِد هللا‬
َ ِ‫عائ‬ َ
‫اري َو ُم ْس ِل ٌم ـ‬ِ ‫ْس ِم ْنه فَه َو َر ٌّد"ـ َر َوا ُه ْالبُ َخ‬
َ ‫َث فِ ْي أ َ ْم ِرنَا َهذَا َما لَي‬ َ ‫أ َ ْحد‬
"‫علَ ْي ِه أ َ ْمرنَا فَه َو َر ٌّدـ‬ َ ‫ع َمال لَي‬
َ ‫ْس‬ َ ‫ " َم ْن‬: ‫َوفِ ْي ِر َوايَ ٍة ِل ُم ْس ِل ٍم‬
َ ‫ع ِم َل‬

अनुवाद

मोलमनों की माता, उम्म-ए-अब्दल्


ु लाह आइशा (रष्ज़यल्लाहु अनहा) कहती
हैं कक अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया :
“ष्जसने हमारे इस िमम में कोई ऐसी नई चीज़ जारी की, जो उसका भाग
नहीं है , तो वह ग्रहणयोग्य नहीं है ।” इस हदीस को इमाम बख
ु ारी [सहीह
बुखारी हदीस संख्या : 2697] तथा इमाम मुष्स्लम [सहीस मुष्स्लम
हदीस संख्या : 1718 तथा 17 एवं 18] ने ररवायत ककया है ।

तथा मुष्स्लम की ररवायत में है : “ष्जसने कोई ऐसा कायम ककया, ष्जसके
बारे में हमारा आदे श नहीं है, तो वह ग्रहणयोग्य नहीं है ।”

संदेश

1. इस्लाम एक संपूणम िमम है , इसमें ककसी इज़ाफ़े की गुंजाइश नहीं


है ।
2. हर वह इबादत, जो ककसी दलील से साबबत न हो, अल्लाह के
ननकि ग्रहणयोग्य नहीं है ।

29
अरबईन नववी

3. वह सारे मामलात और अनुबंि, ष्जनसे इस्लाम ने मना ककया है ,


इस्लाम की नज़र में वह सब के सब अमान्य हैं।

30
अरबईन नववी

छठी हदीस

संदेहास्पद स्थानों से बचने की ताकीद

َّ‫ "إِن‬: ‫س ِم ْعتُ َرسُ ْو َل هللاِ ﷺ يَقُ ْو ُل‬ َ : ‫ع ْن ُه َما قَا َل‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ِ ‫ب ِْن بِ ِشيْر َر‬ ‫ان‬ َ ‫ع ْن أَبِ ْي‬
ِ ‫ع ْب ِد هللاِ الن ْع َم‬ َ
‫ فَ َم ِن ات َّ َقى‬،‫اس‬
ِ ‫شت َ ِبهَاتٌ ّلَ يَ ْع َلمهنَّ َكثِ ْي ٌر ِمنَ ال َّن‬
ْ ‫بَيِِّ ٌن َوبَ ْينَه َما أم ْو ٌر م‬ ‫ا ْلحَال َل بَيِِّ ٌن َوإِنَّ ا ْلح ََرا َم‬
‫َالرا ِعي يَ ْرعَى‬ ِ ‫ َو َم ْن َوقَ َع فِي الشُّبهَا‬،‫ستَب َْرأ َ ِل ِد ْينِ ِه و ِع ْر ِض ِه‬
َّ ‫ت َوقَ َع فِي الح ََر ِام ك‬ ْ ‫ت فَقَ ِد ا‬
ِ ‫الشُّبهَا‬
َّ‫ أ َ َّل وإِن‬،‫َارمه‬ ِ ‫ أ َ َّل َوإِنَّ ِح َمى‬. ‫ أ َ َّل َوإِنَّ ِلك ِ ِّل َم ِلك ِح َمى‬.‫شك أ َ ْن يَقَ َع فِ ْي ِه‬
ِ ‫للا َمح‬ ِ ‫الح َمى يو‬ ِ ‫ح َْو َل‬
َ ‫سد كلُّه أ َ َّل َوه‬
‫ي ا ْلقَ ْلب"ـ‬ َ َ‫سدَتْ ف‬
َ ‫س َد ا ْل َج‬ َ َ‫سد كلُّه َوإذَا ف‬
َ ‫صلَ َح ا ْل َج‬ َ ‫ضغَة إِذَا‬
َ ْ‫صلَ َحت‬ ْ ‫س ِد م‬َ ‫فِي ا ْل َج‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ِ ‫َر َواهُ ْالبُ َخ‬

अनव
ु ाद

अबू अब्दल्
ु लाह नोमान बबन बशीर (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते हैं कक मैंने
अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते हुए सुना :
"ननस्संदेह हलाल स्पटि है और हराम भी स्पटि है तथा दोनों के बीच कुछ चीज़ें
अस्पटि हैं, ष्जन्हें बहुत-से लोग नहीं जानते। अतः, जो अस्पटि चीज़ों से बचा,
उसने अपने िमम और मान-सम्मान की रिा कर ली तथा जो अस्पटि चीज़ों में
पडा, वह हराम में पड गया। जैसे, एक चरवाहा ककसी सुरक्षित चरागाह के
आस-पास जानवर चराए, तो संभावना रहती है कक जानवर उसके अंदर चले
जाएाँ। सुन लो, हर बादशाह का सुरक्षित चरागाह होता है । सुन लो, अल्लाह का
सुरक्षित चरागाह उसकी हराम की हुई चीज़ें हैं। सुन लो, शरीर के अंदर मांस का
एक िुकडा है , जब वह सही रहेगा, तो परू ा शरीर सही रहे गा और जब वह

31
अरबईन नववी

बबगडेगा, तो पूरा शरीर बबगड जाएगा। सन


ु लो, मांस का वह िुकडा, टदल है ।"
इस हदीस को ईमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2051] तथा
इमाम मष्ु स्लम [सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 107 तथा 108] ने
ररवायत ककया है।

संदेश

1. हलाल तथा हराम होने की दृष्टि से चीज़ें तीन प्रकार की होती हैं,

स्पटि रूप से हलाल, स्पटि रूप से हराम तथा ष्जसका हलाल


अथवा हराम होना स्पटि न हो।
2. इनसान को हलाल चीज़ों तक सीलमत रहना चाटहए और हराम तथा

अस्पटि वस्तओ
ु ं से बचना चाटहए।
3. अस्पटि चीज़ों का भी खास हुक्म होता है और कुछ लोग शरई

दलील के ज़ररए उसका पता लगा लेते हैं, परन्तु अधिकतर लोग
वहााँ तक पहुाँच नहीं पाते।
4. जो व्यष्क्त अस्पटि वस्तओ
ु ं से नहीं बचता, वह अपने आपको
लोगों की आलोचना का ननशाना बना लेता है ।
5. शरीर के अंदर टदल के महत्व को धचष्ननत ककया गया है और उसे

सही रखने की ताकीद की गई है ।


6. हराम की ओर ले जाने वाले रास्तों को बंद रखने की ताकीद की

गई है।

32
अरबईन नववी

सातवीं हदीस

इस्लाम शुभाकांिा का िमम है

: ‫ص ْي َحةُـ قُ ْلنَا‬ ِ " : ‫ي ﷺ قَا َل‬


ِ َّ‫الد ْي ُن الن‬ َّ ِ‫ع ْنهُ أ َ َّن النَّب‬
َ ُ‫ي هللا‬
َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ُرقَيَّةَ ت َ ِمي ِْم ب ِْن أ َ ْو ٍس الد‬
ِ ‫َّاري ِ َر‬ َ
َ ‫ َو‬، َ‫ َو ِل َئِ َّم ِة ْال ُم ْس ِل ِميْن‬،‫ َو ِل َرسُ ْو ِل ِه‬،‫ َو ِل ِكت َابِ ِه‬،‫ِل‬
.‫عا َّمتِ ِه ْم"ـ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬ ِ ِ : ‫ِل َم ْن ؟ قَا َل‬

अनव
ु ाद

अबू रुक़य्या तमीम बबन औस दारी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "िमम शुभधचंतन का नाम है ।"
हमने कहाः ककसका? तो फ़रमाया : "अल्लाह, उसकी ककताब, उसके रसल
ू ,
मुसलमान नेतत्ृ वकतामओं और आम मुसलमानों का।" इस हदीस को इमाम
मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 55 तथा 96] ने ररवायत ककया
है ।

संदेश

1. इस हदीस में िमम को शुभधचंतन का नाम टदया गया है । इससे


अंदाज़ा लगाया जा सकता है कक शभ
ु धचंतन ककतना महत्वपूणम कायम
है ।
2. अल्लाह के शुभधचंतन का अथम यह है कक बंदा उसपर ईमान रखे
और ककसी को उसका साझी ने ठहराए, उसे संपूणत
म ा और प्रताप
33
अरबईन नववी

की ववशेषताओं से ववशेवषत करे और सारी कलमयों से पववत्र जाने


तथा उसकी आज्ञा का पालन करे एवं अवज्ञा से बचे।
3. अल्लाह की ककताब के शभ
ु धचंतन का अथम यह है कक बंदा इस बात
पर ववश्वास रखे कक वह अल्लाह की ककताब है , ककसी इनसान की
वाणी उसकी तरह नहीं हो सकती और कोई इनसान उस तरह की
ककताब ला नहीं ला सकता। साथ ही उसका आदर करे , उसे अच्छी
तरह पढ़े , समझने का प्रयास करे , उसके आदे शों का पालन करे
और उसकी लशिाप्रद बातों से लशिा ग्रहण करे ।
4. अल्लाह के रसूल के शुभधचंतन का अथम यह है कक बंदा आपको
अल्लाह का रसूल माने, आपकी लाई हुई शरीयत पर ववश्वास रखे,
आपके आदे शों तथा ननषेिों का मानकर चले, आपसे प्रेम करने
वालों से प्रेम करे तथा आपसे दश्ु मनी रखने वालों से दश्ु मनी रखे,
आपकी सुन्नत को जीववत करने का प्रयास करे और लोगों को
उसकी ओर बल
ु ाए, आपके पररवार तथा सहाबा से मह
ु ब्बत रखे
और आपकी सुन्नत से मुाँह मोडने वालों से दरू रहे ।
5. मुसलमान नेतत्ृ वकतामओं में राजनीनतक नेतत्ृ वकताम और िालममक
नेतत्ृ वकताम दोनों शालमल हैं और उनके शुभधचंतन का मतलब यह
है कक सत्य के मामले में उनका सहयोग ककया जाए, उनकी बात
मानी जाए, उनसे सत्य पर चलने का आग्रह ककया जाए और उन्हें
टहकमत के साथ समझाया जाए तथा उनसे बगावत न की जाए।

34
अरबईन नववी

6. आम मुसलमानों के शुभधचंतन से आशय यह है कक उन्हें दनु नया


एवं आखखरत की भलाई का मागम टदखाया जाए, उन्हें ककसी तरह
का कटि पहुाँचाने से बचा जाए, हर तरह से उनकी सहायता की
जाए, उनकी कलमयों को छुपाया जाए, उन्हें नरमी के साथ भलाई
का आदे श टदया जाए और बुराई से रोका जाए, बडों के साथ
आदरपूणम और छोिों के साथ स्नेहपण
ू म बतामव ककया जाए, उनके
साथ िोखा न ककया जाए और द्ववेषपण
ू म भावना न रखी जाए,
उनकी जान तथा माल की सुरिा की जाए और उनके ललए वही
कुछ पसंद ककया जाए, जो अपने ललए पसंद है और उनके ललए
उसे नापसंद ककया जाए जो अपने ललए नापसंद है ।

35
अरबईन नववी

आठवीं हदीस

रक्त एवं िन का सम्मान

َ‫شهَدوا أ َ ْن َّّل ِإلَه‬ َ َّ‫ "أ ِم ْرت أ َ ْن أقَاتِ َل الن‬: ‫ع ْن ُه َما أ َ َّن َرسُ ْو َل هللاِ قَا َل‬
ْ َ‫اس َحتَّى ي‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬
ِ ‫ع ِن اب ِْن عُ َم َر َر‬
َ
َ َ‫ فَ ِإذَا فَعَلوا ذَ ِلك‬،َ‫الزكَاة‬
‫عصَموا ِمنِِّي ِد َما َءه ْم‬ ِ ‫ِإّلَّ للا َوأ َ َّن م َح َّمدَا َّرس ْول‬
َّ ‫للا َوي ِقيْم ْوا الصَّالةَ َوي ْؤتوا‬
ِ ‫للا تَعَالَى"ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬
‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ ِ ‫علَى‬ َ ‫سابه ْم‬ َ ‫ْالم َو ِح‬
ِ ‫الس‬ ِ ِّ ‫َوأ َ ْم َوالَه ْم إِّلَّ بِ َح‬
ِْ ‫ق‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "मुझे आदे श टदया गया है
कक लोगों से युद्वि करूाँ, यहााँ तक कक वे इस बात की गवाही दे दें कक अल्लाह
के लसवा कोई पज्
ू य नहीं है और मह
ु म्मद अल्लाह के रसल
ू हैं, नमाज़ क़ायम
करें और ज़कात अदा करें । जब उन्होंने इतना कर ललया, तो अपनी जान तथा
माल को इस्लाम के अधिकार के लसवा हमसे सुरक्षित कर ललया और उनका
टहसाब (उच्च एवं प्रभावशाली) अल्लाह पर है ।" इस हदीस को इमाम
बख
ु ारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 25] एवं इमाम मष्ु स्लम [सहीह
मुष्स्लम हदीस संख्या : 22] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

36
अरबईन नववी

1. अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) भी


अल्लाह के बंदे थे और आपको अल्लाह की ओर से आदे श प्राप्त
होते थे।
2. इस्लाम का सबसे महत्वपूणम स्तंभ इस बात की गवाही दे ना है कक
केवल अल्लाह ही एकमात्र पूज्य है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं। उसके बाद नमाज़ और
ज़कात की बारी आती है ।
3. इस्लाम रक्त, िन और मान-सम्मान की सुरिा की गारं िी प्रदान
करता है।
4. लोगों पर शरई अहकाम उनके ज़ाटहर के मुताबबक़ लागू होंगे,
अंतरात्मा का माललक तो बस अल्लाह है ।
5. दोनों गवाटहयााँ दे ने वाले, नमाज़ क़ायम करने वाले और ज़कात
अदा करने वाले की इस्लामी अधिकारों, जैसे कक़सास और हद
आटद की बबना पर पकड होगी।
6. रसूल का काम केवल अल्लाह का संदेश पहुाँचा दे ना है और
मखलूक़ का टहसाब लेना अल्लाह का काम है । इसी तरह, रसूल के
अत्तराधिकाररयों का काम भी केवल अल्लाह का संदेश पहुाँचा दे ना
है । मानने अथवा न मानने वालों का टहसाब अल्लाह लेगा।

37
अरबईन नववी

नवीं हदीस
बाल की खाल ननकालने तथा मतभेद करने की मनाही

‫س ِم ْعتُ َرسُ ْو َل‬ َ : ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ‫ي هللا تَعَالَى‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ص ْخ ٍر َر‬ َ ‫الر ْح َم ِن ب ِْن‬ َّ ‫ع ْب ِد‬ َ َ‫ع ْن أَبِي ه َُري َْرة‬
َ
َ‫طعْت ْم؛ فَ ِإنَّ َما أ َ ْهلَك‬
َ َ ‫ست‬ َ ‫ " َما نَ َهيْتك ْم‬: ‫هللاِ ﷺ يَقُ ْو ُل‬
ْ ‫ع ْنه فَا ْجتَنِب ْوه َو َما أ َ َم ْرتك ْم ِب ِه فأْت ْوا ِم ْنه َما ا‬

ِ ‫علَى أ َ ْنبِيَائِ ِه ْم"ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬


‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ َ ‫الَّ ِذ ْينَ ِم ْن قَ ْب ِلك ْم َكثْ َرة َم‬
َ ‫سائِ ِل ِه ْم َوا ْختِالفه ْم‬

अनुवाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने अल्लाह के रसल ू


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते हुए सुना है : “मैं तुम्हें ष्जस
चीज़ से रोकाँू , उससे रुक जाओ और ष्जस चीज़ का आदे श दाँ ,ू उसे जहााँ
तक हो सके करो, क्योंकक तम
ु से पहले के लोगों को उनके अधिक प्रश्न
पूछने की प्रववृ त्त और नबबयों के ववरोि ने हलाक ककया है ।” इस हदीस
को इमाम बख
ु ारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 7288] तथा इमाम
मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 1337 तथा 131] ने ररवायत
ककया है ।

संदेश

1. यह एक महत्वपूणम हदीस है , ष्जससे बहुत-से शरई अहकाम प्राप्त


होते हैं।
2. अल्लाह और उसके रसल
ू के आदे शों तथा ननषेिों का पालन करना
ज़रूरी है।

38
अरबईन नववी

3. इस्लाम इनसान को खटठनाई में नहीं डालता और ककसी ऐसी बात


का आदे श नहीं दे ता, जो उसकी शष्क्त से बाहर हो।
4. यहााँ अधिक प्रश्न करने से मना ककया गया है । वैसे, प्रश्न दो तरह
के होते हैं; एक वह प्रश्न जो जानने के उद्वदे श्य से ककए जाएाँ, जैसा
कक सहाबा करते थे और दस
ू रे वह जो बाल की खाल ननकालने के
ललए ककए जाएाँ। इस हदीस में इसी तरह के सवाल से मना ककया
गया है, क्योंकक यह ननरथमक होते हैं।
5. इस उम्मत के लोगों को अपने नबी के ववरोि से मना ककया गया
है , जैसा कक वपछली उम्मतों के लोग ककया करते थे और ष्जसके
नतीजे में उनका ववनाश हो गया था।
6. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के ककए हुए कायम
और आपकी बताई हुई बातें भी सुन्नत हैं, चाहे उनका उल्लेख
क़ुरआन में हो या न हो।

39
अरबईन नववी

दसवीं हदीस
हलाल रोज़ी का महत्व

َ َّ‫ب ّلَ يَ ْقبَل إِّل‬


َ‫طيِِّبَا َوإِ َّن للا‬ َ َ‫ "إِ َّن للا‬: ِ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللا‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
ٌ ِِّ‫طي‬ َ ‫ي هللاُ تَعَالَى‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ه َُري َْرةَ َر‬َ
‫ت َوا ْع َملوا‬ ِ ‫طيِِّبَا‬َّ ‫الرسل كلوا ِمنَ ال‬ ُّ ‫ }يَا أَيُّهَا‬: ‫ فَقَا َل تَعَالَى‬، َ‫س ِل ْين‬ َ ‫أ َ َم َر الم ْؤ ِمنِ ْينَ بِ َما أ َ َم َر بِ ِه الم ْر‬
َّ ‫ت َما َر َز ْق َناك ْم{ ث ُ َّم ذَك ََر‬
‫الر ُج َل ي ُِط ْي ُل‬ َ ‫ } َيا أ َ ُّيهَا ا َّل ِذينَ آ َمنوا كلوا ِم ْن‬: ‫ َوقَا َل ت َ َعالَى‬،{‫صَا ِلحا‬
ِ ‫ط ِِّي َبا‬
ُ ‫سه‬ َ ‫ َو َم ْل َب‬،‫و َم ْش َربُهُ َح َرا ٌم‬،
َ ‫ط َع ُمهُ َح َرا ٌم‬ْ ‫ َو َم‬،‫ب‬ ِ ‫ب َيا َر‬ َّ ‫ َي ُمد َي َد ْي ِه ِإلَى ال‬،‫ث أ َ ْغ َب َر‬
ِ ‫ِ َيا َر‬،‫س َماء‬ َ ‫سف ََر أ َ ْش َع‬
َّ ‫ال‬
ُ ‫ي ِب ْال َح َر ِام فَأَنَّى يُ ْست َ َج‬
.‫اب ِلذَ ِلكَ "ـ َر َوا ُه ُم ْس ِل ٌم‬ َ ‫ َوغُ ِذ‬،‫َح َرا ٌم‬

अनुवाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक अल्लाह के रसल


ू (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "ननश्चय अल्लाह पववत्र है और केवल पववत्र
चीज़ों को ही ग्रहण करता है। उसने ईमान वालों को वही आदे श टदया है , जो
रसूलों को टदया है। "उसने (रसूलों से) कहा : { ‫ت‬ َّ َ‫س ُل كُلُوا ِمن‬
ِ ‫الطيِبَا‬ ُ ‫يَا أَي َها الر‬
َ َ‫ ِإ ِني ِب َما ت َ ْع َملُون‬،‫صا ِل ًحا‬
‫ع ِلي ٌم‬ َ (अथामत, ऐ रसल
َ ‫}وا ْع َملُوا‬ ू ो, स्वच्छ चीज़ें खाओ और
अच्छे कायम करो। ननश्चय, तुम जो कुछ करते हो, मैं सब जानता हूाँ।) [सूरा
अल-मोलमनून : 51] तथा (ईमान वालों से) कहा : { ‫يَا أَي َها الَّذِينَ آ َمنُوا كُلُوا ِم ْن‬
‫ت َما َرزَ ْقنَاكُ ْم‬ َ } (अथामत, ऐ ईमान वालो, उन स्वच्छ चीज़ों में से खाओ, जो
ِ ‫طيِبَا‬
हमने तम्
ु हें प्रदान की हैं।) [सरू ा अल-बक़रा : 172] कफर अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने एक व्यष्क्त का ष्ज़क्र ककया, जो लंबी यात्रा
में है , उसके बाल बबखरे हुए हैं और शरीर िूल से अिा हुआ है । वह आकाश की

40
अरबईन नववी

ओर अपने दोनों हाथों को फैलाकर कहता है : ऐ मेरे प्रभु, ऐ मेरे प्रभु, लेककन
उसका खाना हराम, उसका पीना हराम, उसका वस्त्र हराम और उसकी परवररश
हराम से हुई है। ऐसे में भला उसकी दआ
ु कैसी क़बल
ू हो सकती है ? इस हदीस
को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 1015] ने ररवायत
ककया है ।

संदेश

1. यह, खाने-पीने तथा पहनने के मामले में हलाल-हराम का खयाल

रखने की ताकीद करने वाली एक महत्वपूणम हदीस है ।


2. अल्लाह की हस्ती, उसके नाम, उसके गुण, उसके कायम और उसके

आदे श पववत्रता से पररपण


ू म हैं।
3. अल्लाह केवल पववत्र चीजों ही को ग्रहण करता है ।

4. कमम दो प्रकार के हैं, कुछ अल्लाह के यहााँ ग्रहणयोग्य हैं, तो कुछ

ग्रहणयोग्य नहीं हैं।


5. हराम में संललप्त होने से इनसान की दआ
ु क़बल
ू नहीं होती।
6. इस हदीस में चार बातें ऐसी बयान की गई हैं, ष्जनके कारण दआ

क़बूल होती है ; लंबी यात्रा, खस्ता हालत, आकाश की और हाथ
फैलाना और बार-बार अल्लाह की प्रभुता का ष्ज़क्र करके उससे
आग्रह करना।

41
अरबईन नववी

ग्यारहवीं हदीस

संदेह से बचने का आदे श

‫ع ْن ُه َما‬
َ ُ‫ي هللا‬َ ‫ض‬ ِ ‫ب ِسب ِْط َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ َو َر ْي َحانَتِ ِه َر‬ َ ‫ع ِلي ِ ْب ِن أ َبِ ْي‬
ٍ ‫طا ِل‬ َ ‫بن‬ َ ‫ع ْن أَبِي ُم َح َّم ٍد ْال َح‬
ِ ‫س ِن‬ َ
‫سائِي‬ ْ ‫ " َد‬: ‫ظتَ ِم ْن َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ‬
َ َّ‫ع َما يَ ِريْبكَ إِلَى َما ّلَ يَ ِريْبكَ "ـ َر َواهُ التِ ْر ِم ِذي َوالن‬ ْ ‫ َح ِف‬: ‫قَا َل‬

َ ‫س ٌن‬
.‫ص ِح ْي ٌح‬ ٌ ‫ َح ِد ْي‬: ‫َوقَا َل التِ ْر ِم ِذي‬
َ ‫ث َح‬

अनुवाद

अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के नवासे हसन बबन
अली बबन अबू ताललब (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते हैं, मैंने अल्लाह के रसल

(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) से यह बात याद की है : “संदेह में डालने

वाली चीज़ों को छोडकर संदेह में न डालने वाली चीज़ों को अपनाओ।”


इस हदीस को इमाम नतरलमज़ी [सन
ु न-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या :
2518] और इमाम नसाई [अल-मुजतबा : 8/337] ने ररवायत ककया है
और नतरलमज़ी ने इसे हसन सहीह कहा है ।

संदेश

1. आदमी को चाटहए कक ष्जस चीज़ के हलाल अथवा हराम होने में


संदेह हो, उसे छोडकर वह चीज़ अपनाए, ष्जसमें संदेह न हो।
2. तमाम मामलों में यक़ीन पर अमल करना चाटहए और समझ-बूझ
से काम लेना चाटहए।

42
अरबईन नववी

3. ष्जन चीज़ों का हलाल अथवा हराम होना स्पटि न हो, उन्हें


अपनाने से टदल में बेचैनी पैदा होती है , इसललए हमेशा ऐसी चीज़ों
को अपनाना चाटहए, ष्जनसे टदल संतटु ि हो।

43
अरबईन नववी

बारहवीं हदीस

ननरथमक कामों से बचने का ननदे श

‫ْالم ا ْل َم ْرءِ ت َ ْركه َما‬


ِ ‫ " ِم ْن حس ِْن إِس‬: ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللاِ ﷺ‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
َ ُ‫ي هللا‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ه َُري َْرةَ َر‬
َ ‫ض‬ َ
.‫غ ْي ُرهُ َه َكذَا‬
َ ‫ َر َواهُ التِ ْر ِم ِذي َو‬،‫س ٌن‬ ٌ ‫ّلَ يَ ْعنِ ْي ِه"ـ َح ِد ْي‬
َ ‫ث َح‬

अनुवाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है , वह कहते हैं कक अल्लाह के


रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “आदमी के अच्छे
मुसलमान होने की एक ननशानी यह है कक वह ननरथमक कामों को छोड
दे ।” यह हदीस हसन दजे की है । इसे इमाम नतरलमज़ी [सन
ु न-ए-नतरलमज़ी
: 2317] आटद ने इसी तरह ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस इनसान को सदाचार की ऊाँचाई तक पहुाँचने का एक


लसद्विांत बताती है।
2. इनसान को चाटहए कक सभी अटहतकारी चीज़ों से दरू रहे , इससे
उसका समय भी नटि होने से बचेगा और दीन भी सरु क्षित रहे गा।
3. बेकार और ननरथमक चीज़ों से बचना इनसान के सच्चे मुसलमान
होने की ननशानी है।

44
अरबईन नववी

तेरहवीं हदीस

इस्लामी बंित्ु व के तक़ाज़े

َ ‫ع ْنهُ خَاد ِِم َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ‬


‫ع ِن‬ َ ‫ي هللاُ تَعَالَى‬ َ ‫ض‬ِ ‫بن َمالِكٍ َر‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي َح ْمزَ ة أَن َِس‬
َ
ِ ‫س ِه"ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬
‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ َّ ‫ " َّل ي ْؤ ِمن أَحَدك ْم َحتَّى ي ِح‬: ‫النَّبِي ِ ﷺ قَا َل‬
ُّ ‫ب ِأل َ ِخ ْي ِه َما ي ِح‬
ِ ‫ب ِلنَ ْف‬

अनुवाद

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के सेवक अबू हमज़ा


अनस बबन माललक (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “तुममें से कोई उस समय
तक मोलमन नहीं हो सकता, जब तक अपने भाई के ललए वही पसंद न
करे , जो अपने ललए पसंद करता हो।” इस हदीस को इमाम बख
ु ारी [सहीह
बुखारी हदीस संख्या : 13] तथा इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस
संख्या : 45] ने ररवायत ककया है ।

हदीस का संदेश

1. यह हदीस इस्लामी बंिुत्व और आत्मीयतापूणम संबंि के महत्व को


स्पटि करती है।
2. इस्लामी भाईचारा का तक़ाज़ा यह है कक आदमी अपने भाई के
ललए वही पसंद करे , जो अपने ललए पसंद करता है और इसका
लाष्ज़मी नतीजा यह है कक अपने भाई के ललए वही नापसंद करे ,
जो अपने ललए नापसंद करता है ।

45
अरबईन नववी

3. कोई भी ऐसी बात अथवा कायम करना हराम है , जो इस बंिुत्व के


ववरुद्वि हो।

46
अरबईन नववी

चौदहवीं हदीस

नाहक़ रक्तपात से मनाही

‫ " َّل يَ ِح ُّل دَم ا ْم ِرئ‬: ‫سلَّ َم‬


َ ‫علَ ْي ِه َو‬ ُ ‫صلَّى‬
َ ‫هللا‬ َ ِ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللا‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
َ ‫هللا‬ ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬
ِ ‫ع ِن اب ِْن َم ْس ُعو ٍد َر‬ َ
ُ‫ع ِة" َر َواه‬ َّ ‫ الث َّ ِيِّب‬: ‫س ِلم ِإّلَّ ِب ِإ ْحدَى ثَالث‬
َ ‫ َوالتَّارك ِل ِد ْينِ ِه ا ْلم َف ِارق ِل ْلج َما‬،‫ َوالنَّ ْفس ِبالنَّ ْف ِس‬،‫الزانِ ْي‬ ْ ‫م‬
ِ ‫ْالبُ َخ‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन मसऊद (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “ककसी मुसलमान का
रक्त तीन कारणों में से ककसी एक के बबना हलाल नहीं होता; वह
शादीशद
ु ा व्यलभचारी हो, प्राण के बदले प्राण ललया जाए तथा यह कक वह
अपना िमम त्याग करके मुष्स्लम समुदाय से अलग हो जाए।” इस हदीस
को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 6878] तथा इमाम मुष्स्लम
[सहीह मष्ु स्लम हहीस संख्या : 1676 तथा 25 एवं 26] ने ररवायत
ककया है ।

संदेश

1. यह, नाहक़ रक्तपात से रोकने वाली एक महत्वपण


ू म हदीस है ,
ष्जसमें कहा गया है कक ककसी मुसलमान का खून बहाना जायज़
होने के तीन ही कारण हो सकते हैं, या तो उसने शादीशुदा होने के
बावजद
ू व्यलभचार ककया हो या ककसी की जान-बझ
ू कर हत्या की हो

47
अरबईन नववी

या कफर इसलाम िमम त्यागकर मुष्स्लम समुदाय से अपना संबंि


तोड ललया हो।
2. हदीस में बताए गए तीनों काम हराम हैं और इनसे आदमी
मत्ृ युदंड का हक़दार बन जाता है ।
3. यह हदीस रक्त के साथ-साथ िमम, इज़्जज़त-आबरू और नसब की
रिा की ओर प्रेररत करती है ।
4. यह हदीस जमात से जड
ु े रहने के महत्व को भी दशामती है ।

48
अरबईन नववी

पंद्रहवीं हदीस

पडोसी एवं अनतधथ का सम्मान

ِ ‫ " َم ْن كَانَ ي ْؤ ِمن بِا‬: ‫ع ْنهُ أ َ َّن َرسُ ْو َل هللاِ ﷺ قَا َل‬
‫لل َوا ْليَ ْو ِم ْال ِخ ِر‬ َ ُ‫ي هللا‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ه َُري َْرةَ َر‬
َ ‫ض‬ َ
ِ ‫ َو َم ْن كَانَ ي ْؤ ِمن ِبا‬،‫َاره‬
‫لل‬ ِ ‫ َو َم ْن كَانَ ي ْؤ ِمن ِبا‬، ْ‫فَ ْليَق ْل َخي َْرا أَو ِليَصْمت‬
َ ‫لل َوا ْليَ ْو ِم ْال ِخ ِر فَ ْليك ِْر ْم ج‬
ِ ‫ض ْيفَه"ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ َ ‫وم ْال ِخ ِر فَ ْليك ِْر ْم‬
ِ َ‫َوا ْلي‬

अनव
ु ाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) से वखणमत है कक अल्लाह के रसूल


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “जो अल्लाह तथा अंनतम
टदन पर ईमान रखता हो, वह अच्छी बात करे या खामोश रहे , जो
अल्लाह तथा अंनतम टदन पर ईमान रखता हो, वह अपने पडोसी को
सम्मान दे और जो अल्लाह तथा अंनतम टदन पर ईमान रखता हो वह
अपने अनतधथ का आदर करे ।” इस हदीस को इमाम बुखारी [सहीह
बख
ु ारी हदीस संख्या : 6018 तथा 6136] और इमाम मष्ु स्लम [सहीह
मष्ु स्लम हदीस संख्या : 47] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस उत्तम आचरण और सदव्यवहार का पाठ पढ़ाती है।


2. अल्लाह तथा आखखरत के टदन पर ईमान एक ऐसा स्रोत है , जहााँ
से सारी भलाइयों की िाराएाँ बहती हैं।

49
अरबईन नववी

3. आदमी को चाटहए कक सोच-समझकर बोले तथा अच्छी बात करे ,


वरना खामोश रहे।
4. पडोसी के अधिकारों का खास खयाल रखना चाटहए।
5. अनतधथ के आदर में कोई कमी नहीं होने दे ना चाटहए।

50
अरबईन नववी

सोलहवीं हदीस

क्रोि से बचने का आदे श

‫ فردد‬،"‫َب‬
ْ ‫ " َّل ت َ ْغض‬: ‫ قَا َل‬،‫وصنِ ْي‬
ِ َ‫ أ‬: ‫َع ْن أَبِي ه َُري َْرةَ َر ِض َي هللاُ َع ْنهُ أَ َّن َر ُجلً قَا َل ِللنَّبيِ ﷺ‬
.‫ رواه البخاري‬."‫َب‬
ْ ‫ " َّل ت َ ْغض‬: ‫ قال‬،‫م ار اًر‬

अनव
ु ाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक एक व्यष्क्त ने नबी


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) से कहा : मुझे वसीयत कीष्जए! तो आपने
कहा : “गस्
ु सा न करो!” उसने कई बार प्रश्न दोहराया और आपने हर
बार कहा : “गस्
ु सा न करो!” इल हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी
हदीस संख्या : 6116] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में इनसान को उसकी एक बहुत बडी व्यष्क्तगत


कमज़ोरी अथामत क्रोि से मुष्क्त पाने को कहा गया है ; क्योंकक क्रोि
सारी बुराइयों की जड है ।
2. एक मस
ु लमान को चाटहए कक हमेशा अच्छे कामों के बारे में पछ
ू ता
रहे और जानकारी प्राप्त करता रहे ।
3. इनसान को उन तमाम बातों और कायों से बचना चाटहए, जो क्रोि
का कारण बनते हों।

51
अरबईन नववी

सत्रहवीं हदीस

हर काम अच्छे अंदाज़ में करने का आदे श

‫ب‬ َ ‫ "إِ َّن‬: ‫ع ْن َرسُو ِل هللاِ ﷺ قَا َل‬


َ َ ‫للا َكت‬ َ ‫ي هللاُ تَعَالَى‬
َ ُ‫ع ْنه‬ َ ‫ض‬ ِ ‫شدَّا ِد ْب ِن أ َ ْو ٍس َر‬َ ‫ع ْن أَبِي يَ ْعلَى‬
َ
‫ َو ْلي ِح َّد أَحَدك ْم‬،َ‫سنوا ال ِذِّ ْبحَة‬
ِ ‫ َو ِإذَا ذَبَحْت ْم فَأ َ ْح‬،َ‫سنوا ال ِقتْلَة‬
ِ ‫ فَ ِإذَا قَت َ ْلت ْم فَأ َ ْح‬.‫علَى ك ِ ِّل شَيء‬
َ َ‫سان‬ َ ‫ال ْح‬ِْ
‫ َو ْلي ِر ْح ذَ ِب ْي َحتَه"ـ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬،‫ش ْف َرتَه‬
َ

अनुवाद

अबू याला शद्वदाद बबन औस (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “अल्लाह ने हर काम अच्छे

अंदाज़ में करने का आदेश टदया है । अतः, जब क़त्ल करो, तो अच्छे अंदाज़
में क़त्ल करो और जब ज़बह करो, तो अच्छे अंदाज़ में ज़बह करो। तम
ु अपनी
छुरी को तेज़ कर लो और अपने ज़बीहे को आराम पहुाँचाओ।" इस हदीस को
इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 1955] ने ररवायत ककया
है ।

संदेश

1. इस हदीस में यह बताया गया है कक इनसान को हर काम, चाहे


वह इबादत हो या कोई सांसाररक कायम, अच्छे अंदाज़ में करना
चाटहए। कफर उसके दो उदाहरण भी टदए गए हैं।

52
अरबईन नववी

2. ककसी को क़त्ल ककया जाए, तो उस समय भी इस ननयम को


ध्यान में रखा जाए।
3. जानवरों के साथ भी अच्छा व्यवहार ककया जाए और उन्हें ज़बह
करते समय इस बात का प्रयास ककया जाए कक कटि कम से कम
हो।

53
अरबईन नववी

अठारहवीं हदीस

सद्वव्यवहार का आदे श

َ ‫ع ْن ُه َما‬
‫ع ْن َرسُ ْو ِل‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ِ ‫َر‬ ‫الر ْح َم ِن ُم َعا ِذ ْب ِن َج َب ٍل‬ َ ‫ب ْب ِن ُجنَا َدةَ َوأ َ ِبي‬
َّ ‫ع ْب ِد‬ ِ ‫ع ْن أ َ ِب ْي ذَ ٍر ُج ْن ُد‬
َ
‫اس بِخلق‬ َ َّ‫ق الن‬ِ ‫ َو َخا ِل‬،‫ت َ ْمحهَا‬ َ‫سنَة‬ َ ‫سيِِّئ َةَ ا ْل َح‬
َّ ‫ َوأَتْبِ ِع ال‬، َ‫ق للاَ َحيْث َما ك ْنت‬ ِ َّ ‫ "ات‬: ‫هللاِ ﷺ قَا َل‬
َ ‫س ٌن‬
.‫ص ِح ْي ٌح‬ َ ‫ َح‬: ‫خ‬
ِ ‫س‬ ِ ‫ َوفِ ْي بَ ْع‬.‫س ٌن‬
َ ‫ض الن‬ ٌ ‫ َح ِد ْي‬:‫سن"ـ َر َواهُ التِ ْر ِم ِذي َوقَا َل‬
َ ‫ث َح‬ َ ‫َح‬

अनुवाद

अबज़
ू र जन
ु दब
ु बबन जन
ु ादा और अबू अब्दरु म हान मआ
ु ज़ बबन जबल
(रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम)

ने फ़रमाया : “जहााँ भी रहो, अल्लाह से डरो तथा गुनाह के बाद नेकी कर


ललया करो, जो उसे लमिा दे गी और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो।" इस
हदीस को इमाम नतरलमज़ी [सन
ु न-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या : 1987] ने
ररवायत ककया है और हसन कहा है , जबकक नतरलमज़ी की कुछ प्रनतयों
में हसन सहीह भी है।

संदेश

1. इस हदीस में तीन आदे श टदए गए हैं, पहला यह कक टदल में


अल्लाह का भय रखा जाए, ताकक गुनाह कम से कम हों, दस
ू रा
यह कक यटद इनसान होने के नाते गुनाह हो जाए, तो उसके बाद
कोई नेकी का काम कर ललया जाए, ताकक यह नेकी उस गन
ु ाह को

54
अरबईन नववी

लमिाने का सबब बन जाए और तीसरा यह कक जब पहली दोनों


बातों पर अमल करने के बाद बंदे का ररश्ता अल्लाह से मज़बूत हो
जाए, तो बंदों के साथ अच्छा व्यवहार ककया जाए, ताकक अल्लाह
और उसके बंदे, दोनों के हक़ अदा होते रहें ।
2. गुनाह के बाद नेकी करने से गुनाह की माफ़ी हो जाती है ।

55
‫‪अरबईन नववी‬‬

‫‪उन्नीसवीं हदीस‬‬

‫‪तक़दीर पर ईमान‬‬

‫ف النَّبِي ِ ﷺ يَو َما ً فَقَا َل‬ ‫ع ْن ُه َما قَا َل ‪ :‬كُ ْنتُ خ َْل َ‬ ‫ي هللاُ َ‬ ‫ض َ‬ ‫َّاس َر ِ‬ ‫عب ٍ‬ ‫ع ْب ِد هللاِ ْب ِن َ‬ ‫َّاس َ‬ ‫ع ْن أَبِي العَب ِ‬ ‫َ‬
‫سأ َ ْلتَ فَا ْسأ َ ِل َ‬
‫هللا‪،‬‬ ‫هللا ت َِج ْدهُ ت ُ َجاهَكَ ‪ ،‬إِذَا َ‬ ‫َظكَ ‪ ،‬ا ْحف َِظ َ‬ ‫هللا يَحف ْ‬ ‫ت ‪ :‬ا ْحف َِظ َ‬ ‫ِل ْي ‪" :‬يَا غُلَ ُم إِنِ ْي أ ُ َ‬
‫ع ِل ُمكَ َك ِل َما ٍ‬
‫ش ْيءٍ لَ ْم َي ْنفَ ُع ْوكَ ِإ َّل ِب َ‬
‫ش ْيءٍ‬ ‫أن َي ْنفَ ُع ْوكَ ِب َ‬‫علَى ْ‬ ‫َو ِإذَا َ ا ْست َ َع ْنتَ فَا ْست َ ِعن ِباهللِ‪َ ،‬وا ْعلَ ْم أ َ َّن ْال ُ َّمةَ لَ ِو ا ْجت َ َم َع ْ‬
‫ت َ‬
‫علَيْكَ ‪،‬‬‫ش ْيءٍ قَ ْد َكتَبَهُ هللاُ َ‬ ‫ضر ْوكَ إِ َّل بِ َ‬ ‫ش ْيءٍ لَ ْم يَ ُ‬ ‫علَى أ َ ْن يَضُر ْوكَ بِ َ‬ ‫قَ ْد َكتَبَهُ هللاُ لَكَ ‪َ ،‬وإِ ِن ا ْجت َ َمعُ ْوا َ‬
‫ص ِح ْي ٌح‬‫س ٌن َ‬ ‫ث َح َ‬ ‫ف"ـ َر َواهُ التِ ْر ِم ِذي َوقَا َل ‪َ :‬ح ِد ْي ٌ‬ ‫ت الص ُح ُ‬ ‫ت ْال َ ْق َل ُم‪َ ،‬و َجف ِ‬‫ُرف َع ِ‬

‫الر َخاءِ يَ ْع ِر ْفكَ فِ ْي ال ِ ِّ‬


‫ش َّد ِة‪،‬‬ ‫ف إِلَى ِ‬
‫للا فِ ْي َّ‬ ‫غ ْي ِر التِ ْر ِم ِذي ِ ‪" :‬اِح ِف ِظ للاَ تَجدْه أ َ َما َمكَ ‪ ،‬تَعَ َّر ْ‬
‫َوفِ ْي ِر َوايَ ٍة َ‬
‫صب ِْر‪،‬‬ ‫طأ َكَ لَ ْم َيك ْن ِلي ِص ْي َبكَ ‪َ ،‬و َما أَصَا َبكَ لَ ْم َيك ْن ِلي ْخ ِطئ َكَ ‪َ ،‬وا ْعلَ ْم أ َّن النَّص َْر َم َع ال َّ‬
‫َوا ْعلَ ْم أ َ َّن َما أ َ ْخ َ‬
‫سرا"ـ‬ ‫ب‪َ ،‬وأ َ َّن َم َع الع ْ‬
‫س ِر ي ْ‬ ‫َوأ َ َّن الفَ َر َ‬
‫ج َم َع ا ْلك َْر ِ‬

‫‪अनुवाद‬‬

‫्‪अब्दल‬‬
‫‪ु लाह बबन अब्बास (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते है : मैं एक टदन अल्लाह‬‬
‫‪के रसल‬‬
‫े‪ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पीछे सवार था कक इसी बीच आपन‬‬
‫‪कहा : “ऐ बच्चे, मैं तुम्हें कुछ बातें लसखाना चाहता हूाँ। अल्लाह (के आदे शों और‬‬
‫‪ननषेिों) की रिा करो, अल्लाह तुम्हारी रिा करे गा। अल्लाह (के आदे शों और‬‬
‫‪ननषेिों) की रिा करो, तम‬‬
‫‪ु उसे अपने सामने पाओगे। जब मााँगो, तो अल्लाह‬‬
‫‪से मााँगो और जब मदद चाहो, तो अल्लाह से मदद चाहो। तथा जान लो, यटद‬‬
‫्‪पूरी उम्मत तम‬‬
‫े‪ु हें कुछ लाभ प्रदान करने के ललए एकत्र हो जाए, तो तुम्हें उसस‬‬
‫‪अधिक लाभ नहीं पहुाँचा सकती, ष्जतना अल्लाह ने तुम्हारे ललए ललख टदया है।‬‬
‫्‪तथा यटद सब लोग तम‬‬
‫्‪ु हारी कुछ हानन करने के ललए एकत्र हो जाएाँ, तो तम‬‬
‫‪ु हारी‬‬

‫‪56‬‬
अरबईन नववी

उससे अधिक हानन नहीं कर सकते, ष्जतनी अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में ललख
दी है । क़लम उठा ली गई है और पुस्तकें सख
ू चुकी हैं।" इस हदीस को इमाम
नतरलमज़ी [सन
ु न-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या : 2516] ने ररवायत ककया है
और हसन सहीह कहा है ।

तथा नतरलमज़ी के अलावा अन्य ककताबों (दे खखए अब्द बबन हुमैद की
पुस्तक अल-मुनतखब हदीस संख्या : 635) की एक ररवायत में है :
"अल्लाह (के आदे शों और ननषेिों) की रिा करो, अल्लाह को अपने सामने
पाओगे। खुशहाली के समय अल्लाह को पहचानो, परे शानी के समय वह तुम्हें
पहचानेगा। जान लो, जो तम्
ु हें प्राप्त नहीं हुआ, वह तम्
ु हें लमलने वाला नहीं था
और जो लमल गया वह तुम्हारे हाथ से जाने वाला नहीं था। जान लो, मदद सब्र
के साथ है , कुशादगी तकलीफ़ के साथ है और तंगी के साथ आसानी है ।"

संदेश

1. यह हदीस अल्लाह पर पूणम ववश्वास तथा उसके आदे शों एवं ननषेिों
के अनुपालन के महत्व को दशामती है ।
2. बच्चों की बरबबयत का खास खयाल रखना चाटहए और सदा इस
बात का प्रयास करना चाटहए कक उनके टदल में इस्लाम की मल

बातें अच्छी तरह बैठ जाएाँ।
3. जो अल्लाह के आदे शों का पालन करे गा, अल्लाह दनु नया तथा
आखखरत में उसकी रिा करे गा।

57
अरबईन नववी

4. कुछ भी मााँगना हो, केवल अल्लाह से मााँगना चाटहए।


5. जो अल्लाह के आदे शों का पालन करे गा, उसे अल्लाह मुसीबतों से
बचाएगा।
6. तक़दीर तथा उसके फ़ैसलों पर ईमान रखना और उनसे संतुटि
रहना ज़रूरी है।
7. हर दःु ख के बाद सुख और हर मुष्श्कल के बाद आसानी है ।
8. इनसान को वही कुछ लमलता है , जो अल्लाह ने उसके ललए ललख
टदया है।

58
अरबईन नववी

बीसवीं हदीस
हया का महत्व

‫ قَا َل َرسُ ْو ُل‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ ِ ‫اري ِ ْالبَد ِْري ِ َر‬ ِ ‫ص‬ َ ‫ع ْن أَبِ ْي َم ْسعُ ْو ٍد عُقبَةَ ْب ِن‬
َ ‫ع ْم ٍرو ْال َ ْن‬ َ
ُ‫شئتَ "ـ َر َواه‬ ْ ‫دركَ النَّاس ِم ْن َكالَ ِم النُّب َّو ِة ْاألولَى ِإذَا لَ ْم تَست َ ْحي ِ فا‬
ِ ‫ص َن ْع َما‬ َ َ ‫ " ِإ َّن ِم َّما أ‬: ‫هللاِ ﷺ‬
ِ ‫ْالبُ َخ‬
.‫اري‬

अनुवाद

अबू मसऊद अंसारी बदरी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक नबी (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "लोगों को पहले नबबयों की जो बातें प्राप्त हुई
हैं, उनमें से एक यह है : “जब तम्
ु हें हया न आए, तो जो जी में आए, करो।”
इस हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 3483 तथा
3484] ने ररवायत ककया है।

संदेश

1. इस हदीस से पता चलता है कक हया हर शरीफ़ और सभ्य व्यष्क्त


का एक ऐसा अलंकार है , ष्जसके महत्व को वपछली तमाम शरीयतों
में रे खांककत ककया गया है ; क्योंकक हया इनसान को ऐसे कायों से
रोकती है, जो उसके लायक़ नहीं हैं और इनसान होने के नाते उसे
उनसे बचना चाटहए और ऐसे कायों की ओर प्रेररत करती है , जो

59
अरबईन नववी

मानव समाज को एक सभ्य एवं आदशम समाज के रूप में


पररवनतमत करने का काम करते हैं।

60
अरबईन नववी

इक्कीसवीं हदीस

इस्लाम पर दृढ़ता से जमे रहने का आदे श

‫ قُ ْلتُ يَا َرسُ ْو َل هللاِ قُ ْل ِل ْي‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬


َ ُ‫ي هللا‬
َ ‫ض‬ َ ‫ع ْم َرةَ سُ ْفيَانَ ْب ِن‬
ِ ‫ع ْب ِد هللاِ َر‬ َ ‫بي‬ ْ َ ‫أ‬،َ‫ َوقِ ْيل‬،‫ع ْم ٍرو‬ ْ َ ‫ع ْن أ‬
َ ‫بي‬ َ
.‫لل ث َّم است َ ِق ْم"ـ رواه مسلم‬ ِ ‫ "ق ْل آ َم ْنت با‬: ‫غي َْركَ ؟ قَا َل‬ َ ً ‫ع ْنهُ أ َ َح َدا‬
َ ‫ْلم قَ ْولً َل أ َ ْسأ َ ُل‬
ِ ‫الس‬ ِ ْ ‫ِف ْي‬

अनुवाद

अबू अम्र तथा कुछ लोगों के अनस


ु ार अबू अमरा सुफ़यान बबन
अब्दल्
ु लाह (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने कहा : ऐ अल्लाह के
रसूल, मुझे इस्लाम से संबंधित कोई ऐसी बात बताइए कक उसके बारे में
आपके लसवा ककसी से न पूछूाँ! आपने कहा : “कहो कक मैं अल्लाह पर
ईमान लाया और कफर उसी पर जम जाओ।” इस हदीस को इमाम
मष्ु स्लम [सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 38] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में ईमान लाने के बाद उसपर मज़बत


ू ी से जमे रहने
और उसके तक़ाज़ों को पूरा करने का आदे श टदया गया है ।
2. सहाबा इस्लाम को जानने तथा समझने के ललए प्रयासरत रहा
करते थे। यही कारण है कक वह आपसे कुछ न कुछ पूछते रहते
थे।

61
अरबईन नववी

3. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पास जब कोई


कुछ पूछने आता, तो आप उसके व्यष्क्तत्व और स्वभाव को ध्यान
में रखकर जवाब दे ते थे।

62
अरबईन नववी

बाईसवीं हदीस

जन्नत का रास्ता

: ‫ي ﷺ فَقَا َل‬ َّ ‫سأ َ َل النَّ ِب‬


َ ً‫ع ْنهُ أ َ َّن َر ُجل‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬
ِ ‫اري ِ َر‬
ِ ‫ص‬َ ‫ع ْب ِد هللاِ ْال َ ْن‬
َ ‫ع ْب ِد هللاِ َجا ِب ِر ْب ِن‬ ْ َ ‫ع ْن أ‬
َ ‫بي‬ َ
‫علَى‬َ ‫ َولَ ْم أ َ ِز ْد‬،‫ َوح ََّر ْمت ا ْلح ََرا َم‬،َ‫ َوأَحلَ ْلت ا ْل َحالَل‬، َ‫ضان‬ َ ‫ َوص ْمت َر َم‬،ِ‫صلَّيْت ا ْل َمكْتوبَات‬ َ ‫أ َ َرأ َ ْيتَ إِذَا‬
‫ "نَ َع ْم" َر َوا ُه ُم ْس ِل ٌم‬: ‫ش ْيئا أ َ ْدخل ا ْل َجنَّةَ ؟ قَا َل‬
َ َ‫ذَ ِلك‬

अनुवाद

अबू अब्दल्
ु लाह जाबबर बबन अब्दल्
ु लाह अंसारी (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) से
ररवायत है , वह कहते हैं कक एक व्यष्क्त ने अल्लाह के रसल ू
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) से पछ
ू ा : आपका क्या खयाल है कक
अगर मैं फ़ज़म नमाज़ें पढ़ाँू , रमज़ान के रोज़े रखूाँ और हलाल को हलाल
जानूाँ तथा हराम से बचाँू और इससे अधिक कुछ न करूाँ, तो क्या मैं
जन्नत में प्रवेश कर सकाँू गा? आपने कहा : “हााँ!” इस हदीस को इमाम
मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 15] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में कुछ ऐसे कायों का उल्लेख है , जो जन्नत में दाखखल


होने का सबब हैं।
2. इस हदीस में ज़कात और हज का उल्लेख नहीं है । इसका एक
कारण तो यह हो सकता है कक पछ
ू ने वाले ने ष्जस समय पछ
ू ा

63
अरबईन नववी

था, उस समय इस्लाम के यह दो स्तंभ फ़ज़म नहीं हुए थे और


दस
ू रा कारण यह हो सकता है कक चाँूकक पूछने वाला एक ननिमन
व्यष्क्त था, इसललए आपने इन दो स्तंभों को जोडने की ज़रूरत
महसूस नहीं की।
3. इस हदीस से भी यह अंदाज़ा होता है कक सहाबा यह जानने के
ललए आतुर रहते थे कक वह कौन-से कायम हैं, जो उनके ललए
दनु नया तथा आखखरत में लाभदायक हैं, ताकक उनपर अमल करके
अपनी दनु नया व आखखरत को साँवार सकें।

64
अरबईन नववी

तेईसवीं हदीस

नेकी के कुछ महत्वपूणम कायम

: ‫هللاِ ﷺ‬ ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ‫هللا‬


ُ ‫ي‬ ِ ‫اص ٍم ْال َ ْش َع ِري ِ َر‬
َ ‫ض‬ ِ ‫ع‬ َ ‫ث ْب ِن‬ ِ ‫ار‬ ِ ‫ع ْن أ َ ِب ْي َمالِكٍ ْال َح‬
َ
‫ َما‬- ُ ‫ أ َ ْو ت َ ْم َل‬- ‫ِل ت َ ْم َل ِن‬
ِ ِ ‫ َوسُ ْب َحانَ هللاِ َو ْال َح ْم ُد‬، َ‫ِل ت َ ْم َل ُ ْال ِم ْيزَ ان‬ ْ ،‫ان‬
ِ ِ ‫وال َح ْم ُد‬ ْ ‫ور ش‬
ِ ْ ‫َط ُر‬
ِ ‫ال ْي َم‬ ُ ‫"الط ُه‬
‫ َو ْالقُ ْرآ ُن ُح َّجةٌ لَكَ أَو‬،‫ضيَا ٌء‬ ِ ‫صب ُْر‬ َّ ‫ َوال‬،‫ص َدقَةُ ب ُْرهَا ٌن‬ َّ ‫ وال‬،‫صلةُ نُ ْو ٌر‬ َّ ‫ َوال‬،‫ض‬ ِ ‫وال َ ْر‬
ْ ِ‫س َماء‬ َّ ‫بَيْنَ ال‬
.‫سهُ فَ ُم ْع ِتقُ َها أ َ ْو ُم ْو ِبقُ َها"ـ َر َوا ُه ُم ْس ِل ٌم‬
َ ‫اس َي ْغد ُْو فَ َبا ِئ ٌع نَ ْف‬
ِ َّ‫ كُل الن‬، َ‫علَيْك‬
َ

अनुवाद

अबू माललक हाररस बबन आलमर अशअरी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं
कक अल्लाह के रसलू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया :
“तहारत आिा ईमान है। ‘अल-हमद ु ललल्लाह’ तराज़ू को भर दे गा।
‘सुबहान अल्लाह’ और ‘अल-हमद ु ललल्लाह’ आकाश और िरती के बीच
के खाली स्थानों को भर दें गे। नमाज़ प्रकाश है । सदक़ा प्रमाण है ।
क़ुरआन तेरे हक़ में अथवा तेरे ववरुद्वि हुज्जत है । प्रत्येक व्यष्क्त जब
सुबह को ननकलता है , तो अपने नफ़्स का सौदा करता है। चुनांचे या तो
उसे आज़ाद करता है या उसे हलाक करता है ।” इस हदीस को इमाम
मष्ु स्लम [सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 223] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

65
अरबईन नववी

1. इस हदीस में कुछ नेकी के कामों की खास ववशेषताएाँ बयान की


गई हैं।
2. तहारत (स्वच्छता एवं पाक-साफ़ रहने) को आिा ईमान बताकर
उसके महत्व को स्पटि ककया गया है ।
3. अल-हमद ु ललल्लाह और सुबहान अल्लाह, इन दोनों अज़कार के
महत्व को बयान ककया गया है ।
4. नमाज़ को प्रकाश बताया गया है कक वह इनसान को भलाई तथा
बुराई और सही एवं गलत की पहलचान प्रदान करती है ।
5. सदक़ा इस बात का प्रमाण है कक आदमी का ईमान खााँिी है , वरना
वह अपना कमाया हुआ िन ककसी को न दे ता।
6. सब्र अथामत अल्लाह के आज्ञापालन पर जमे रहने, उसकी अवज्ञा से
दरू रहने और मुसीबत के समय िैयम से काम लेने को रोशनी कहा
गया है, क्योंकक सब्र इनसान का सही मागमदशमन करता है ।
7. कुरआन पर यटद अमल ककया जाए, तो वह आदमी के हक़ में
प्रमाण है और यटद उससे बेरुखी बरती जाए, तो उसके ववरुद्वि
हुज्जत है ।
8. इनसान जब सब
ु ह को ननकलता है और अच्छे कायम करता है , तो
अपने नफ़्स को अल्लाह के क्रोि और उसकी यातना से मुक्त कर
लेता है और जब बुरे कायम करता है , तो खुद को हलाकत में डाल
लेता है।

66
‫‪अरबईन नववी‬‬

‫‪चौबीसवीं हदीस‬‬

‫‪लोगों पर अल्लाह के कुछ उपाकर‬‬

‫ع َّز َو َج َّل أَنَّهُ قَا َل ‪ :‬يَا‬ ‫ع ِن النَّبِي ِ ﷺ فِ ْي َما يَ ْر ِو ْي ِه َ‬


‫ع ْن َربِ ِه َ‬ ‫ع ْنهُ َ‬
‫ي هللاُ َ‬
‫ض َ‬ ‫ع ْن أَبِ ْي ذَ ٍر ْال ِغف ِ‬
‫َاري ِ َر ِ‬ ‫َ‬
‫ِي كلُّك ْم ضَا ٌّل ِإّلَّ‬
‫ظالَم ْوا‪ ،‬يَا ِعبَاد ْ‬ ‫س ْي َو َجعَ ْلته بَ ْينَك ْم مح ََّر َما فَال ت َ َ‬
‫علَى نَ ْف ِ‬ ‫ِي ِإنِِّ ْي ح ََّر ْمت ال ُّ‬
‫ظ ْل َم َ‬ ‫ِعبَاد ْ‬
‫ِي كلُّك ْم جَائِ ٌع إِّلَّ َم ْن أ َ ْطعَ ْمته فا َ ْ‬
‫ست َ ْط ِعمونِي أ ْط ِع ْمك ْم‪ ،‬يَا‬ ‫ستَهْد ْونِي أ َ ْهدِك ْم‪ ،‬يَا ِعبَاد ْ‬
‫َم ْن َه َديْته فَا ْ‬
‫َار َوأَنَا‬ ‫ستَكْس ْونِ ْي أَكْسك ْم‪ ،‬يَا ِعبَاد ْ‬
‫ِي إِنَّك ْم ت ْخ ِطئ ْونَ بِاللَّ ْي ِل َوالنَّه ِ‬ ‫س ْوته فَا ْ‬ ‫ِي كلُّك ْم عَار إِّلَّ َم ْن َك َ‬ ‫ِعبَاد ْ‬
‫ست َ ْغ ِفر ْونِ ْي أ َ ْغ ِف ْر لَك ْم‪ ،‬يَا ِعبَا ِد ْي إِنَّك ْم لَ ْن تَبْلغ ْوا ض ِ ِّر ْي فَتَض ُّر ْونِ ْي َولَ ْن‬ ‫أ َ ْغ ِفر الذُّن ْو َ‬
‫ب َج ِم ْيعَا فَا ْ‬
‫ب َرجل‬‫علَى أَتْقَى قَ ْل ِ‬ ‫سك ْم َو ِجنَّك ْم كَان ْوا َ‬‫آخ َرك ْم َوإِ ْن َ‬ ‫ِي لَ ْو أ َ َّن أ َ َّولَك ْم َو ِ‬
‫تَبْلغ ْوا نَ ْف ِع ْي فَت َ ْنفَع ْونِ ْي‪ ،‬يَا ِعبَاد ْ‬
‫علَى‬
‫سك ْم َو ِجنَّك ْم كَان ْوا َ‬ ‫ِي لَ ْو أ َ َّن أ َ َّولَك ْم َو ِ‬
‫آخ َرك ْم َوإِ ْن َ‬ ‫شيْئا‪ .‬يَا ِعبَاد ْ‬ ‫احد ِم ْنك ْم َما َزا َد ذَ ِلكَ فَ ْي م ْل ِك ْي َ‬ ‫َو ِ‬
‫سك ْم‬ ‫ِي لَ ْو أ َّن أ َ َّو َلك ْم َو ِ‬
‫آخ َرك ْم َوإ ْن َ‬ ‫احد ِم ْنك ْم َما نَ َقصَ َذ ِلكَ ِم ْن م ْل ِك ْي َ‬
‫شيْئا‪َ ،‬يا ِع َباد ْ‬ ‫ب َرجل َو ِ‬ ‫أ َ ْفج َِر َق ْل ِ‬
‫سأَلَتَه َما نَ َقصَ َذ ِلكَ ِم َّما ِع ْند ْ‬
‫ِي ِإّلَّ َك َما‬ ‫احد َم ْ‬
‫طيْت ك َّل َو ِ‬ ‫سأَل ْو ِن ْي فَأ َ ْع َ‬
‫احد فَ َ‬ ‫َو ِجنَّك ْم قَام ْوا ِف ْي َ‬
‫ص ِعيْد َو ِ‬
‫ي أ َ ْع َمالك ْم أح ِ‬
‫ْص ْيهَا لَك ْم ث َّم أ َوفِِّيْك ْم ِإيَّا َها فَ َم ْن َو َج َد‬ ‫يَ ْنقص ا ْل ِم ْخيَط إَذَا أد ِْخ َل ا ْلبَح َْر‪ ،‬يَا ِعبَاد ْ‬
‫ِي ِإنَّ َما ِه َ‬
‫غي َْر ذَ ِلكَ فَالَ يَل ْو َم َّن ِإّلَّ نَ ْف َ‬
‫سه"ـ َر َوا ُه ُم ْس ِل ٌم‪.‬‬ ‫َخي َْرا فَ ْليَ ْح َم ِد َ‬
‫للا َو َم ْن َو َج َد َ‬
‫‪अनव‬‬
‫‪ु ाद‬‬

‫‪अबूज़र धगफ़ारी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणम है कक नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व‬‬


‫े‪सल्लम) अपने रब से ररवायत करते हैं कक उसने कहा : “ऐ मेरे बंदो, मैंन‬‬
‫‪अत्याचार को अपने ऊपर हराम कर ललया है , अतः तम‬‬
‫‪ु एक-दस‬‬
‫‪ू रे पर अत्याचार‬‬
‫‪न करो। ऐ मेरे बंदो, तम‬‬
‫‪ु सब लोग पथभ्रटि हो, लसवाय उसके ष्जसे में मागम‬‬
‫‪टदखा दाँ ,ू अतः मुझसे मागमदशमन तलब करो, मैं तुम्हें राह टदखाऊाँगा। ऐ मेरे बंदो,‬‬

‫‪67‬‬
अरबईन नववी

तुम सब लोग भूखे हो, लसवाय उसके ष्जसे मैं खाना खखलाऊाँ, अतः मुझसे
भोजन मााँगो, मैं तुम्हें खाने को दाँ ग
ू ा। ऐ मेरे बंदो, तुम सब लोग नंगे हो, लसवाय
उसके ष्जसे मैं कपडा पहनाऊाँ, अतः मझ
ु से पहनने को कपडे मााँगो, मैं तम्
ु हें
पहनाऊाँगा। ऐ मेरे बंदो, तम
ु रात-टदन त्रुटियााँ करते हो और मैं तमाम गुनाहों को
माफ़ करता हूाँ, अतः मुझसे िमा मााँगो, मैं तुम्हें िमा करूाँगा। ऐ मेरे बंदो, तुम
मुझे नुक़सान पहुाँचाने के पात्र नहीं हो सकते कक मुझे नुक़सान पहुाँचाओ और
मझ
ु े नफ़ा पहुाँचाने के पात्र भी नहीं हो सकते कक मझ
ु े नफ़ा पहुाँचाओ। ऐ मेरे
बंदो, अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और ष्जन्न तुम्हारे
अंदर मौजूद सबसे आज्ञाकारी इनसान के टदल में जमा हो जाएाँ, तो इससे मेरी
बादशाहत में तननक भी वद्व
ृ धि नहीं होगी। ऐ मेरे बंदो, अगर तुम्हारे पहले और
बाद के लोग तथा तम्
ु हारे इनसान और ष्जन्न तम्
ु हारे अंदर मौजद
ू सबसे पापी
इनसान के टदल में जमा हो जाएाँ, तो इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं
आएगी। ऐ मेरे बंदो, अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और
ष्जन्न एक ही मैदान में खडे होकर मझ
ु से मााँगें और मैं हर एक को उसकी
मााँगी हुई वस्तु दे दाँ ,ू तो इससे मेरे खज़ाने में उससे अधिक कमी नहीं होगी,
ष्जतना समुद्र में सूई डालकर ननकालने से होती है। ऐ मेरे बंदो, यह तुम्हारे कमम
ही हैं, ष्जन्हें मैं धगनकर रखता हूाँ और कफर तुम्हें उनका बदला दे ता हूाँ। अतः, जो
अच्छा पाए, वह अल्लाह की प्रशंसा करे और जो कुछ और पाए, वह केवल अपने
आपको कोसे।” इस हदीस को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या
: 2577] ने ररवायत ककया है ।

68
अरबईन नववी

संदेश

1. इस हदीस को नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने अल्लाह


तआला से ररवायत ककया है। इस तरह की हदीस को हदीस-ए-
क़ुदसी कहते हैं।
2. इस हदीस में अत्याचार के हराम होने को स्पटि ककया गया है ,
एकेश्वरवाद को बहुत ही प्यारे अंदाज़ में समझाया गया है और
अल्लाह तआला के न्याय पर आिाररत प्रनतफल को बयान ककया
गया है।
3. अल्लाह के संपण
ू म न्याय का तक़ाज़ा यह है कक उसने अपने ऊपर
अत्याचार को हराम कर रखा है और बंदों के ललए भी उसे हराम
घोवषत ककया है।
4. इनसान की सारी ज़रूरतें अल्लाह ही परू ी करता है ।
5. टहदायत (मागमदशमन) अल्लाह ही से मााँगनी चाटहए।
6. इबादत कोई भी हो, केवल अल्लाह के ललए होनी चाटहए।
7. नफ़ा-नुक़सान केवल अल्लाह के हाथ में है । सारी मखलूक़ लमलकर
भी न उसका कुछ बना सकती है और न बबगाड सकती है ।
8. बंदों की इबादत से अल्लाह के राज्य तथा प्रभुत्व में कोई इज़ाफ़ा
नहीं होता। इसी तरह उनकी अवज्ञा से अल्लाह की शान में कोई
कमी नहीं आती।

69
अरबईन नववी

9. हर अच्छे कायम का सामर्थयम अल्लाह ही प्रदान करता है तथा वह


अपने अनुग्रह से उसका प्रनतफल भी प्रदान करता है , इसललए सारी
प्रशंसा अल्लाह की है।

70
अरबईन नववी

पच्चीसवीं हदीस

सदक़ा का व्यापक अथम

: ‫ب َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ قَالُ ْوا ِللنَّبِي ِ ﷺ‬ ِ ‫ص َحا‬ ْ َ ‫ أ َ َّن أُنَاسا ً ِم ْن أ‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
َ ُ‫ي هللا‬
َ ‫ض‬ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ذَ ٍر َر‬َ
َ‫ص َّدقُ ْون‬ ُ َ‫ص ْو ُم ْونَ َك َما ن‬
َ َ ‫ َو َيت‬،‫ص ْو ُم‬ َ ُ‫صل ْونَ َك َما ن‬
ُ ‫ َو َي‬،‫ص ِل ْي‬ َ ُ‫ ي‬،‫َب أَه ُل الدث ُ ْو ِر ِب ْال ُ ُج ْو ِر‬
َ ‫ارسُو َل هللاِ! ذَه‬ َ ‫َي‬
‫ َوك ِ ِّل‬،‫ص َدقَة‬
َ ‫س ِب ْيحَة‬ ْ َ ‫صدَّق ْونَ ؟ ِإ َّن ِبك ِ ِّل ت‬ َّ َ ‫ْس قَ ْد َجعَ َل للا لَك ْم َما ت‬ َ ‫ "أ َ َو لَي‬: ‫ قَا َل‬،‫بفُض ُْو ِل أ َ ْم َوا ِل ِه ْم‬
‫ي ع َْن م ْنكَر‬ ٌ ‫ َونَ ْه‬،ٌ‫ص َدقَة‬
َ ‫ف‬ ِ ‫ َوأ َ ْم ٌر بِا ْل َمعْر ْو‬،‫ص َدقَة‬
َ ‫ َوك ِ ِّل ت َ ْه ِل ْيلَة‬،‫ص َدقَة‬
َ ‫ َوك ِ ِّل ت َ ْح َم ْيدَة‬،‫ص َدقَة‬
َ ‫ت َ ْكبِي َْرة‬
‫شه َْوتَه َويَك ْون لَه فِ ْيهَا أ َ ْج ٌر؟‬ ِ ‫ يَا َرس ْو َل‬: ‫ قَال ْوا‬."ٌ‫ص َدقَة‬
َ ‫للا أَيَأْتِ ْي أَحَدنَا‬ ْ ‫ َوفِ ْي ب‬،ٌ‫ص َدقَة‬
َ ‫ض ِع أ َ َحدِك ْم‬ َ
‫ضعَهَا فَي ا ْلحَال ِل كَانَ لَه‬ َ َ‫ضعَهَا فَ ْي َح َرام أ َ كَان‬
َ ‫علَ ْي ِه ِو ْز ٌر؟ فَ َكذَ ِلكَ إِذَا َو‬ َ ‫ "أ َ َرأَيْت ْم لَ ْو َو‬: ‫قَا َل‬
‫أ َ ْج ٌر"ـ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬

अनव
ु ाद

अबूज़र (रष्ज़यल्लाहु अनहु) ही से वखणमत है , वह कहते हैं कक अल्लाह के


रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के कुछ साधथयों ने नबी (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) से कहा : ऐ अल्लाह के रसल
ू , िन-दौलत वाले सब नेककयााँ
ले गए; वे हमारी तरह नमाज़ भी पढ़ते हैं, हमारी तरह रोज़ा भी रखते हैं तथा
अपने अनतररक्त िन को दान भी करते हैं। आपने फ़रमाया : "क्या अल्लाह ने
तुम्हें सदक़ा करने को कुछ नहीं टदया है ? प्रत्येक बार 'सुबहान अल्लाह' कहना
सदक़ा है , प्रत्येक बार 'अल्लाहु अकबर' कहना सदक़ा है , प्रत्येक बार 'अल-
हमदलु लल्लाह' कहना सदक़ा है , प्रत्येक बार 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहना
सदक़ा है , भली बात का आदेश दे ना सदक़ा है , बुरी बात से रोकना सदक़ा है तथा

71
अरबईन नववी

तुममें से ककसी का अपनी पत्नी से लमलना भी सदक़ा है ।” सहाबा ने कहा : ऐ


अल्लाह के रसूल, क्या हममें से कोई अपनी मानवीय आवश्यकता को पूरा करे ,
तो भी उसे नेकी लमलेगी? फ़रमाया : “ज़रा यह बताओ कक यटद वह उसे हराम
तरीके से पूरा करे , तो क्या उसे गुनाह होगा? ऐसे ही, अगर हलाल तरीके से पूरा
करता है , तो नेकी लमलेगी।” इस हदीस को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम
हदीस संख्या : 720 तथा 1006] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में सदक़ा का एक व्यापक अथम बताया गया है तथा यह


स्पटि ककया गया है कक नेकी के काम लसफ़म वही नहीं हैं, ष्जन्हें
हम इबादत कहते हैं, बष्ल्क इसके अंतगमत सारे भलाई के कायम आ
जाते हैं।
2. इस हदीस से भी मालम
ू होता है कक सहाबा नेकी के कामों में एक-
दस
ू रे से आगे बढ़ने के प्रयास में रहते थे।
3. सदक़ा केवल िन ही का नहीं होता, बष्ल्क इसकी और भी सरू तें
हैं।
4. सुबहान अल्लाह, अल्लाहु अकबर, अल-हमद ु ललल्लाह और ला
इलाहा इल्लल्लाह कहने तथा रास्ते से ककसी कटिदायक वस्तु को
हिाने का महत्व।

72
अरबईन नववी

5. जायज़ कामों को करते समय अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने की


नीयत करने का महत्व तथा यह कक इससे यह सारे कायम नेकी के
काम बन जाते हैं।

73
अरबईन नववी

छब्बीसवीं हदीस
इनसान के हर जोड की ओर से सदक़ा

‫علَ ْي ِه‬ ِ َّ‫ "ك ُّل سال َمى ِمنَ الن‬:


َ ‫اس‬ ‫ قَا َل َرسُو ُل هللاِ ﷺ‬: ‫هللا َع ْنهُ قَا َل‬
ُ ‫ي‬ ِ ‫ع ْن أ َ ِب ْي ه َُري َْرةَ َر‬
َ ‫ض‬ َ
‫الرج َل في دَابَّتِ ِه فَت َ ْح ِمل لَه‬ َّ ‫ َوت ِعيْن‬،ٌ‫ص َدقَة‬ َ ‫ ت َ ْعدِل بَ ْينَ اثْنَي ِْن‬: ‫ش ْمس‬ َّ ‫ص َدقَةٌ ك َّل يَوم ت َ ْطلع فِ ْي ِه ال‬
َ
‫ش ْيهَا إِلَى الصَّال ِة‬ ِ ‫ َوبِك ِ ِّل خ ْط َوة ت َ ْم‬،ٌ‫ص َدقَة‬ َّ ‫ َوا ْل َك ِل َمة ال‬،ٌ‫ص َدقَة‬
َ ‫طيِِّبَة‬ َ ‫علَ ْيهَا َمتَاعَه‬ َ ‫علَ ْيهَا أَو ت َ ْرفَع لَه‬ َ
ِ ‫ص َدقَ ٌة"ـ َر َوا ُه ْال ُب َخ‬
.‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ َ ‫ق‬ َّ ‫ َوت ِميْط ْاأل َذى ع َِن ال‬،ٌ‫ص َدقَة‬
ِ ‫ط ِر ْي‬ َ

अनुवाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक अल्लाह के रसल


ू (सल्लल्लाहु
अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "आदमी के हर जोड पर, हर रोज़ ष्जसमें
सूरज ननकलता है , सदक़ा है ; तुम दो व्यष्क्तयों के बीच न्याय करो सदक़ा है ,
ककसी को उसके जानवर पर सवार होने में मदद करो या उसपर उसका सामान
लाद दो सदक़ा है , अच्छी बात सदक़ा है , नमाज़ के ललए जाते समय उठने
वाला हर क़दम सदक़ा है और रास्ते से कटिदायक वस्तु को हिाना सदक़ा है।"
इस हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 2707 तथा
2891] तथा इमाम मुष्स्लम [सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 1009] ने
ररवायत ककया है।

संदेश

74
अरबईन नववी

1. इस हदीस से पता चलता है कक हर वह काम, जो ककसी की


सहायता के ललए ककया जाए, नेकी का काम है ।
2. सैकडों हड्डडयों को जोडकर एक संतलु लत आदमी बनाना अल्लाह
की बहुत बडी नेमत है , इसललए इनसान को चाटहए कक इस नेमत
के शुक्र के तौर पर प्रत्येक टदन हड्डडयों के हर जोड के बदले में
एक-एक सदक़ा करे ।
3. सदक़ा केवल िन ही का नहीं होता, बष्ल्क इसके और भी बहुत-से
रूप हैं, ष्जनका उल्लेख इस हदीस में है।
4. लोगों के बीच न्यायपूणम तरीक़े से ननणमय करने, ककसी को उसकी
सावरी में चढ़ने या सामान लादने में सहायता करने, अच्छी बात
करने, मष्स्जद जाकर जमात से नमाज़ पढ़ने और रास्ते से
कटिदायक वस्तु को हिाने का महत्व।
5. ष्जस तरह माल की ज़कात दे नी होती है , उसी तरह शरीर का भी
सदक़ा ननकालना अननवायम है ।

75
अरबईन नववी

सत्ताईसवीं हदीस

नेकी और गुनाह

‫الثْم َما‬ ْ ‫ "ا ْلبِ ُّر ح‬: ‫ع ِن النَّبِي ِ ﷺ قَا َل‬


ِ ‫سن ا ْلخ ْل‬
ِ ْ ‫ َو‬، ‫ق‬ َ ، ‫ع ْن ُه َما‬
َ ُ‫ي هللا‬
َ ‫ض‬
ِ ‫س ْمعَانَ َر‬ ِ ‫ع ِن النَّ َّو‬
َ ‫اس ْب ِن‬ َ
.‫ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬."‫علَ ْي ِه النَّاس‬ َّ َ‫سكَ َو َك ِر ْهتَ أ َ ْن ي‬
َ ‫ط ِل َع‬ ِ ‫َحاكَ فِ ْي نَ ْف‬
‫ع ِن‬ ْ َ ‫ " ِجئْتَ ت‬: ‫ فَقَا َل‬، ‫س ْو َل هللاِ ﷺ‬
َ ‫سأ َل‬ ُ ‫ أ َت َ ْيتُ َر‬: ‫ قَا َل‬، ُ‫ع ْنه‬َ ‫هللا‬
ُ ‫ى‬ َ ‫ض‬ ِ ‫صةَ ْب ِن َم ْع َب ٍد َر‬َ ‫ع ْن َوا ِب‬ َ ‫َو‬
‫ت قَ ْلبَكَ ؛ ا ْلبِ ُّر َما ا ْط َمأ َنَّتْ إِلَ ْي ِه النَّ ْفس َوا ْط َمأ َ َّن إِلَ ْي ِه ا ْلقَ ْلب‬ ْ ِ‫ "ا‬: ‫ نَ َع ْم ؛ قَا َل‬: ُ‫الثْ ِم؟" قُ ْلت‬
ِ ‫ست َ ْف‬ ِ ْ ‫ا ْلبِ ِ ِّر َو‬
‫ َوإِ ْن أ َ ْفت َاكَ النَّاس َوأ َ ْفت َ ْوكَ "ـ حديث حسن رويناه‬، ‫ص ْد ِر‬ َّ ‫الثْم َما َحاكَ فِ ْي النَّ ْف ِس َوت َ َر َّد َد فِ ْي ال‬ِ ْ ‫ َو‬،
.‫في مسندي المامين أحمد بن حنبل و الدارمي بإسناد حسن‬

अनव
ु ाद

नव्वास बबन समआन (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी (सल्लल्लाहु


अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "नेकी, उत्तम व्यवहार है और गुनाह वह है , जो
तेरे टदल में खिके और तझ
ु े यह अच्छा न लगे कक लोग उसे जान लें।" इस
हदीस को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 2553] ने
ररवायत ककया है।

तथा वाबबसा बबन माबद (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैं अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पास आया, तो आपने पूछा : "क्या तुम

नेकी के बारे में पूछने आए हो?" मैंने कहा : जी हााँ! तो फ़रमाया : "खुद अपने
टदल से फ़तवा मााँगो। नेकी वह है , ष्जससे आत्मा संतटु ि और टदल मत
ु मइन हो
तथा गुनाह वह है , जो टदल में खिके और सीने में असमंजस की ष्स्थनत पैदा
76
अरबईन नववी

करे । यद्वयवप लोग तुझे फ़तवा दें , यद्वयवप लोग तुझे फ़तवा दें ।" इस हदीस को
इमाम अहमद [मुसनद-ए-अहमद : 4/228] और दाररमी [हदीस संख्या :
2533] ने अपनी-अपनी मस
ु नदों में हसन सनद से ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस 'नेकी' और 'गुनाह' की एक व्यापक व्याख्या प्रस्तुत


करती है।
2. अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने 'नेकी' की
व्याख्या सदाचार से की है , ष्जससे सदाचार का महत्व स्पटि है।
3. मोलमन के टदल का दपमण जब स्वच्छ और साफ़-सुथरा हो, तो
उसमें नेकी और गन
ु ाह का अंतर साफ़ झलकने लगता है ; वह नेकी
से संतुटि हो जाता है और गुनाह के मामले में आगे-पीछे करने
लगता है।
4. मोलमन इस बात को पसंद नहीं करता कक कोई उसकी कलमयों को
जाने।
5. यटद फ़तवा मााँगने वाले का टदल स्वच्छ हो, तो मुफ़ती का फ़तवा
उसके संदेह का ननवारण नहीं कर सकता। लेककन यह उस समय
है , जब मुफ़ती ने बबना ककसी शरई दलील के फ़तवा टदया हो।
परन्त,ु यटद ककसी शरई दलील के आिार पर फ़तवा टदया हो, तो
उसे मानना ज़रूरी होगा, यद्वयवप टदल संतुटि न हो।

77
अरबईन नववी

अट्ठाईसवीं हदीस

शासकों का आज्ञापालन और सन्


ु नत का अनस
ु रण

ْ َ‫ظةً َو ِجل‬
‫ت ِم ْن َها‬ َ ‫ظنَا َرسُو ُل هللاِ َم ْو ِع‬ َ ‫ع‬َ ‫ َو‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫اريَةَ َر‬ ِ ‫س‬ ِ َ‫يح ْال ِع ْرب‬
َ ‫اض ْب ِن‬ ٍ ‫ع ْن أَبِ ْي ن َِج‬َ
‫ "أ ْو ِصيْك ْم‬: ‫ قَا َل‬،‫صنَا‬ ِ ‫ِع فَأ َ ْو‬ َ َ‫ ي‬:‫ َفقُ ْلنَا‬.‫ت ِم ْن َها ْالعُيو ُن‬
َ ‫ارسُ ْو َل هللاِ َكأَنَّ َها َم ْو ِع‬
ٍ ‫ظةُ ُم َود‬ ُ ‫ْالقُلُ ْو‬
ْ َ‫ب َوذَ َرف‬
‫سيَ َرى ا ْختِالفَا‬
َ َ‫ش ِم ْنك ْم ف‬ ْ ‫ فَ ِإنَّه َم ْن يَ ِع‬،ٌ‫ع ْبد‬
َ ‫علَيْك ْم‬ َ ‫ع ِة َوإِ ْن تَأ َ َّم َر‬ َّ ‫س ْم ِع َوال‬
َ ‫طا‬ َّ ‫ع َّز َو َج َّل َوال‬ ِ ‫بِت َ ْق َوى‬
َ ‫للا‬
ِ ‫اج ِذ َوإِيَّاك ْم َوم ْح َدثَا‬
‫ت‬ ِ ‫علَ ْيهَا بِالنَّ َو‬
َ ‫عض ُّْوا‬ َ َ‫ش ِدينَ ا ْل َم ْه ِديِِّ ْين‬ َّ ِ‫يرا؛ فَعَلَيك ْم بِسنَّتِ ْي َوسنَّ ِة ا ْلخلَفَاء‬
ِ ‫الرا‬ َ ِ‫َكث‬
‫س ٌن‬ ٌ ‫ َح ِد ْي‬: ‫ َوك َّل بِ ْدعَة ض ََاللَةٌ"ـ َر َواهُ أ َبُ ْو َد ُاو ُد َوالتِ ْر ِم ِذي َوقَا َل‬،ٌ‫عة‬
َ ‫ث َح‬ َ ‫ْاألم ْو ِر فَ ِإ َّن َك َّل م ْح َدث َة بِ ْد‬
.‫ص ِح ْي ٌح‬
َ

अनुवाद

अबू नजीह इरबाज़ बबन साररया (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक अल्लाह
के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने हमें ऐसा टदल में उतरने
वाला उपदे श टदया कक लोगों के टदल घबरा उठे और आाँखें बह पडीं।
हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसल
ू , ऐसा प्रतीत होता है कक यह अंनतम
उपदे श है। अतः, हमें वसीयत फ़रमाएाँ! आपने कहा : "मैं तुम्हें
सवमशष्क्तमान अल्लाह से डरने तथा अपने शासक की बात सन
ु ने और
मानने की वसीयत करता हूाँ, चाहे तुम्हारा शासक एक दास ही क्यों न
हो। क्योंकक तम
ु में से जो जीववत रहेगा, वह बहुत सारा मतभेद और
िकराव दे खेगा। उस समय तम
ु मेरी सन्
ु नत और सत्य के मागम पर
चलने वाले खलीफ़ों की सुन्नत को सीने से लगाए रहना और मज़बूती से

78
अरबईन नववी

थामे रहना। तथा िमम के नाम पर प्रचलन में आने वाली नई-नई चीज़ों
(बबदअतों) से बचते रहना, क्योंकक हर बबदअत गुमराही है ।" इस हदीस
को इमाम अबू दाऊद [सन
ु न-ए-अबू दाऊद हदीस संख्या : 4607] तथा
इमाम नतरलमज़ी [सुनन-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या : 2676] ने ररवायत
ककया है तथा नतरलमज़ी ने हसन सहीह कहा है ।

संदेश

1. अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम) का उपदे श ऐसा
टदल को छू लेने वाला होता कक टदल पसीज जाते और आाँखें बह
पडती थीं।
2. नबी (सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम) की सन्
ु नत को सीने से लगाए
रखने की आवश्यकता, ववशेष रूप से उस समय, जब मतभेद
सामने आ जाए अथवा िकराव की ष्स्थनत पैदा होने लगे।
3. एक मुसलमान को चाटहए कक वह इस्लाम के नाम पर प्रचलन में
आने वाली नई-नई चीज़ों से दामन बचाए रखे।
4. हर वह नई चीज़, जो इस्लाम के नाम पर प्रचलन में आए, वह
बबदअत है और हर बबदअत गुमराही है।
5. इस हदीस में अल्लाह के रसल
ू (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के
सच्चे नबी होने की एक ननशानी भी मौजद
ू है , क्योंक आपने ष्जस
मतभेद और िकराव की बात कही थी, बहुत-से सहाबा ने उसे
अपनी आाँखों से दे ख भी ललया।

79
‫‪अरबईन नववी‬‬

‫‪उनतीसवीं हदीस‬‬

‫‪भलाई के द्ववार‬‬

‫ُدخلُنِي ْال َجنَّةَ َويُبَا ِع ُدنِ ْي‬


‫ع ْنهُ قَا َل ‪ :‬قُلتُ يَا َرسُ ْو َل هللاِ أ َ ْخبِ ْرنِ ْي بِ َع َم ٍل ي ِ‬ ‫هللا َ‬
‫ي ُ‬ ‫ع ْن ُم َعا ِذ ْب ِن َجبَ ٍل َر ِ‬
‫ض َ‬ ‫َ‬
‫ع َل ْي ِه ‪ :‬تَعْبد َ‬
‫للا‬ ‫س َره للا تَعَا َلى َ‬ ‫ع َلى َم ْن يَ َّ‬ ‫س ْي ٌر َ‬‫سأ َ ْلتَ ع َْن ع َِظيْم َوإِ َّنه َليَ ِ‬
‫ارـ قَا َل ‪" :‬لَقَ ْد َ‬ ‫ِمنَ النَّ ِ‬
‫الزكَاةَ‪َ ،‬وتَص ْوم َر َمضَانَ ‪َ ،‬وتَح ُّج ا ْلبَيْتَ ‪ ".‬ث َّم قَا َل ‪" :‬أَّلَ‬ ‫شيْئا‪َ ،‬وت ِقيْم الص ََّالةَ‪َ ،‬وت ْؤتِي َّ‬
‫ّلَتش ِْرك بِ ِه َ‬
‫ار‪َ ،‬وصَالة‬ ‫ص َدقَة ت ْط ِفئ ا ْل َخ ِط ْيئ َةَ َك َما ي ْط ِفئ ا ْل َماء النَّ َ‬
‫ب ا ْل َخي ِْر‪ :‬الص َّْوم جنَّةٌ‪َ ،‬وال َّ‬
‫علَى أَب َْوا ِ‬
‫أَدلُّكَ َ‬
‫َاج ِع { َحتَّى بَلَ َغ ‪} :‬يَ ْعلَم ْونَ { ث ُ َّم قَا َل ‪:‬‬
‫ف اللَّ ْي ِل"ـ ث َّم ت َ َال ‪} :‬تَتَجَافَى جن ْوبه ْم ع َِن ا ْل َمض ِ‬ ‫الرج ِل فِي ج َْو ِ‬ ‫َّ‬
‫س ْال َ ْم ِر‬ ‫ارسُ ْو َل هللاِ‪ ،‬قَا َل ‪َ " :‬رأْ ُ‬ ‫سنَا ِم ِه؟" قُ ْلتُ ‪ :‬بَلَى يَ َ‬ ‫"أ َ َل أ ُ ْخبِ ُركَ بِ َرأْ ِس ْال َ ْم ِر َو َ‬
‫ع ُم ْو ِد ِه َوذ ِْر َو ِة َ‬
‫سنَا ِم ِه ْال ِج َها ُد"ـ ث ُ َّم قَا َل ‪" :‬أ َ َل أ ُ ْخ ِب ُركَ ِب َم َل ِك ذَلِكَ كُ ِل ِه ؟" قُ ْلتُ ‪َ :‬بلَى‬
‫ص َلةُ َو ِذ ْر َوةُ َ‬
‫ع ُم ْو ُد ُه ال َّ‬‫السْل ُم َو َ‬ ‫ِْ‬
‫علَيْكَ َهذَا"‪ .‬قُ ْلتُ َيا نَ ِب َّ‬
‫ي هللاِ َو ِإنَّا لَ ُم َؤا َخذُونَ ِب َما نَت َ َك َّل ُم ِب ِه ؟‬ ‫ف َ‬‫سانِ ِه َوقَا َل ‪" :‬كُ َّ‬ ‫ارسُ ْو َل هللاِ‪ .‬فَأ َ َخذَ ِب ِل َ‬
‫َي َ‬
‫َاخ ِر ِه ْم‪ِ -‬إلَّ‬ ‫علَى ُو ُجو ِه ِه ْم ‪-‬أ َ ْو قَا َل ‪َ :‬‬
‫علَى َمن ِ‬ ‫فَقَا َل ‪" :‬ث َ ِكلَتْكَ أُمكَ َيا ُم َعاذُ‪َ .‬وه َْل َيكُب النَّ َ‬
‫اس فِي النَّ ِ‬
‫ار َ‬
‫س ٌن َ‬
‫ص ِح ْي ٌح‪.‬‬ ‫ث َح َ‬‫صائِ ُد أَل ِسنَتِ ِه ْم"ـ َر َواهُ التِ ْر ِم ِذي َوقَا َل ‪َ :‬ح ِد ْي ٌ‬
‫َح َ‬

‫‪अनुवाद‬‬

‫‪मआ‬‬
‫े‪ु ज़ बबन जबल (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने कहा : ऐ अल्लाह क‬‬
‫‪रसूल, मुझे कोई ऐसा कायम बताइए, जो मुझे जन्नत में दाखखल कर दे और‬‬
‫ंे‪जहन्नम से दरू कर दे । तो आपने कहा : "तुमने एक बहुत बडी चीज़ के बारे म‬‬
‫‪पूछा है , परन्तु ष्जसके ललए अल्लाह तआला आसान कर दे , उसके ललए यह‬‬
‫‪ननश्चय ही आसान है : तम‬‬
‫‪ु अल्लाह की इबादत करो, ककसी को उसका साझी न‬‬
‫े‪बनाओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, रमज़ान के रोज़े रखो और अल्लाह क‬‬

‫‪80‬‬
अरबईन नववी

घर काबा का हज करो।" कफर फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें भलाई के द्ववार न बता
हूाँ? रोज़ा ढाल है , सदक़ा गुनाह की आग को बुझा दे ता है , जैसे पानी आग को
बझ
ु ा दे ता है तथा आदमी का रात के अंिेरे में नमाज़ पढ़ना।" कफर यह आयत
पढ़ी : ‫ط َم ًعا َو ِم َّما َرزَ ْقنَاهُ ْم يُ ْن ِفقُونَ فَ َل‬ َ ‫اج ِع يَ ْدعُونَ َربَّ ُه ْم خ َْوفًا َو‬ ِ ‫ض‬ َ ‫ع ِن ْال َم‬
َ ‫"تَت َ َجافَى ُجنُوبُ ُه ْم‬
ٌ ‫( ت َ ْعلَ ُم نَ ْف‬अथामत, उनके पहलू
َ ‫س َما أ ُ ْخ ِف‬
" َ‫ي لَ ُه ْم ِم ْن قُ َّرةِ أ َ ْعي ٍُن َجزَ ا ًء بِ َما كَانُوا يَ ْع َملُون‬
बबस्तरों से अलग रहते हैं। वह अपने रब को भय एवं लालच के साथ पुकारते हैं
और हमारी दी हुई चीज़ों में से खचम करते रहते हैं। कोई प्राणी नहीं जानता कक
हमने उनके ललए क्या कुछ आाँखों की ठं डक नछपा रखी है , उनके उन कमों के
प्रनतफल के तौर पर, जो वे ककया करते थे।) कफर फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें इस
मामले का लसरा, उसका स्तंभ और उसकी सबसे ऊाँिी चोिी न बता दाँ ?ू " मैंने
कहा : अवश्य, ऐ अल्लाह के रसल
ू ! तो फ़रमाया : "इस मामले का लसरा
इसलाम है , उसका स्तंभ नमाज़ है और उसकी सबसे ऊाँची चोिी ष्जहाद है ।"
कफर फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें इन तमाम वस्तुओं का सार न बता दाँ ?ू " मैंने
कहा : अवश्य, ऐ अल्लाह के रसल
ू ! तो आपने अपनी ज़बान को पकडकर कहाः
"इसे संभालकर रखो।" मैंने कहा : ऐ अल्लाह के नबी, क्या हम जो कुछ बोलते
हैं, उसपर भी हमारी पकड होगी? तो फ़रमाया : "तुम्हारी मााँ तुम्हें गुम पाए,
भला लोगों को जहन्नम की आग में उनके चेहरों के बल (या कहा कक उनके
नथनों के बल) ज़बान की तेज़ी के लसवा और कौन-सी चीज़ डालेगी?” इस
हदीस को इमाम नतरलमज़ी [सुनन-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या : 2616] ने
ररवायत ककया है और हसन सहीह कहा है ।

81
अरबईन नववी

संदेश

1. यह हदीस भी इस बात का प्रमाण है कक सहाबा ऐसी बातों को


जानने के ललए आतुर रहते थे, जो उनकी दनु नया एवं आखखरत को
साँवार दें और वे जन्नत के हक़दार बन जाएाँ।
2. इस हदीस से पता चलता है कक जन्नत और जहन्नम सत्य हैं।
वैसे भी इनपर ईमान लाना ईमान के छह मूल तत्वों में से एक है ।
3. इनसान का अमल उसे जन्नत या जहन्नम का हक़दार बनाता है ।
4. इनसान को तौफ़ीक़ अल्लाह ही दे ता है। वह ष्जसके ललए सत्य के
मागम पर चलना आसाना करता है , वह सत्य के मागम पर चलता है
और ष्जसके ललए सत्य के मागम पर चलना आसान नहीं करता, वह
भिकता कफरता है ।
5. जन्नत में दाखखल होने के ललए इसलाम के पााँच स्तंभों को क़ायम
रखना ज़रूरी है।

82
अरबईन नववी

तीसवीं हदीस

अल्लाह की सीमाओं का आदर

َ‫ " ِإ َّن للا‬: ‫ع ْن َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ قَا َل‬ َ ُ‫ع ْنه‬


َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ َ ‫ع ْن أَبِ ْي ث َ ْعلَبَةَ ْال ُخ‬
ِ ‫شنِي ِ ُج ْرث ُ ْو ِم ْب ِن نَا ِش ٍر َر‬ َ
‫سكَتَ ع َْن‬ ْ َ ‫ َو َح َّد حد ْودا فَال ت َ ْعتَد ْو َها َوح ََّر َم أ‬،‫ض ِيِّع ْو َها‬
َ ‫ َو‬،‫شيَا َء فَال ت َ ْنت َ ِهك ْو َها‬ َ ‫فَ َرضَ فَ َرائِضَ فَ َال ت‬
.ُ‫غ ْي ُره‬ ْ ُ‫ارق‬
َ ‫طنِ ْي َو‬ َ ‫س ٌن َر َواهُ ال َّد‬
َ ‫ث َح‬ َ ‫سيَان فَ َال ت َ ْبحَث ْوا‬
ٌ ‫ع ْنهَا"ـ َح ِد ْي‬ ْ ِ‫غي َْر ن‬ ْ َ‫أ‬
َ ‫شيَا َء َر ْح َمة لَك ْم‬

अनव
ु ाद

अबू सालबा जुरसूम बबन नालशर खुशनी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक


अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "अल्लाह
तआला ने कुछ चीज़ें फ़ज़म की हैं; उन्हें नटि न करो, कुछ सीमाएाँ ननिामररत की
हैं; उन्हें पार न करो, कुछ चीज़ें हराम की हैं; उनके ननकि न जाओ और कुछ
चीज़ों से जान-बूझकर, तुम्हारे ऊपर दयास्वरूप खामोशी बरती है ; उनके पीछे न
पडो।" यह हदीस हसन दजे की है । इमाम दारक़ुतनी [सुनन-ए-दारक़ुतनी :
4/184] आटद ने इसे ररवायत ककया है ।

संदेश

1. एक मुसलमान को चाटहए कक अल्लाह ने ष्जन कामों को फ़ज़म


ककया है , उन्हें पूरी मुस्तैदी से करे , उसने जो सीमाएाँ ननिामररत की
हैं, उनसे बाहर न जाए और उसने जो चीज़ें हराम की हैं, उनके
ननकि न जाए।

83
अरबईन नववी

2. अल्लाह और उसके रसूल ने ष्जन चीज़ों के बारे में कुछ नहीं कहा
है , उनके बारे में छानबीन न करने का आदे श उस ज़माने में था,
जब आकाश से वनय उतरने का लसललसला जारी था, जहााँ तक
आज उनका हुक्म जानने के ललए उनके बारे में छानबीन करने की
बात है, तो इसमें कोई हजम नहीं है ।

84
अरबईन नववी

इकतीसवीं हदीस

दनु नया के मायाजाल से मष्ु क्त

: ‫ َجا َء َر ُج ٌل إِلَى النَّبِي ِ ﷺ فَقَا َل‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬


َ ُ‫ي هللا‬
َ ‫ض‬
ِ ‫س ْع ٍد السَّا ِعدي ِ َر‬
َ ‫س ْه ِل ْب ِن‬ ْ َّ‫ع ْن أَبِ ْي ْالعَب‬
َ ‫اس‬ َ
َ‫ "اِ ْز َه ْد فِ ْي ال ُّد ْنيَا ي ِحبَّك‬: ‫اس ؟ فَقَا َل‬ ُ ‫ع ِم ْلتُهُ أ َ َحبَّنِي‬
ُ َّ‫ َوأ َ َحبَّنِي الن‬،‫هللا‬ َ ‫ ُدلَّنِ ْي‬: ِ‫َيا َرسُ ْو َل هللا‬
َ ‫علَى‬
َ ‫ع َم ٍل ِإذَا‬
.‫سنَ ٍة‬ َ َ ‫غ ْي ُرهُ ِبأ‬
َ ‫سانِ ْي ُد َح‬ َ ‫س ٌن َر َواهُ ا ْب ُن َما َجة َو‬ ٌ ‫اس ي ِحبَّكَ النَّاس"ـ َح ِد ْي‬
َ ‫ث َح‬ ِ َّ‫از َه ْد فِ ْي َما ِع ْن َد الن‬
ْ ‫ َو‬، ‫للا‬

अनुवाद

अबल
ु अब्बास सनल बबन साद साइदी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक
एक व्यष्क्त अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पास आया
और बोला : ऐ अल्लाह के रसूल, मुझे कोई ऐसा कायम बताइए कक मैं उसे करूाँ
तो मैं अल्लाह का प्यारा हो जाऊाँ और लोगों का भी प्यारा हो जाऊाँ। तो
फ़रमाया : “दनु नया के मोह से आज़ाद रहो, अल्लाह का प्यारा बन जाओगे और
लोगों के पास जो कुछ है , उसका लोभ न करो, लोग भी तुम्हें प्यार दें गे।" यह
हदीस हसन दजे की है। इमाम इब्ने माजा [सुनन-ए-इब्ने माजा हदीस
संख्या : 4102] आटद ने इसे हसन सनदों से ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस का संदेश यह है कक अगर इनसान अल्लाह का प्यारा


बनना चाहता है तो दनु नया के मोह से मुष्क्त प्राप्त करे और अगर

85
अरबईन नववी

बंदों का प्यारा बनना चाहता है तो ककसी की ककसी वस्तु का लोभ


न करे ।
2. इस हदीस से भी पता चलता है कक सहाबा दनु नया तथा आखखरत
की सारी भलाइयााँ अपने दामन में समेि लेना चाहते थे, यही
कारण है कक वे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) से
इस तरह की बातों के बारे में पूछते रहते थे।
3. लोग सामान्यतः उस व्यष्क्त को बरु ा जानते हैं, जो उनसे कुछ
मााँगे।

86
अरबईन नववी

बत्तीसवीं हदीस

हानन स्वीकायम नहीं

‫ " َّل‬: ‫قَا َل‬ ‫َع ْن أَبِ ْي َس ِع ْي ٍد َس ْع ِد ْب ِن َما ِل ِك ْب ِن ِسنَ ٍان ْال ُخ ْد ِري ِ َر ِض َي هللاُ َع ْنهُ أَ َّن َرسُ ْو َل هللاِ ﷺ‬
‫ ورواه مالك في‬،ً‫ حديث حسن رواه ابن ماجه و الدارقطني و غيرهما مسندا‬."‫ار‬
َ ‫ض َر َر َو َّل ِض َر‬
َ
‫الموطأ مرسالً عن عمرو بن يحيى عن أبيه عن النبي (صلى للا عليه وسلم) فأسقط‬
.ً‫ وله طرق يقوي بعضها بعضا‬،‫أباسعيد‬

अनव
ु ाद

अबू सईद साद बबन माललक बबन लसनान खुदरी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का
वणमन है कक अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने
फ़रमायाः “न हानन स्वीकायम है , न ककसी की हानन करना उधचत है ।” यह
हदीस हसन दजे की है। इसे इमाम इब्ने माजा [इब्ने माजा ने इसे
अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास तथा उबादा बबन सालमत रष्ज़यल्लाहु अनहुम से
ररवायत ककया है। दे खखए सुनन-ए-इब्ने माजा हदीस संख्या : 2341 तथा
2340] और इमाम दारक़ुतनी [सन
ु न-ए-दारक़ुतनी : 4/288] आटद ने
मुत्तलसल सनद से ररवायत ककया है , जबकक इमाम माललक ने अपनी
ककताब मुवत्ता में इसे मुरसल सनद से ररवायत ककया है । उनकी सनद
इस तरह है : “अम्र बबन यहया अपने वपता यहया से और वह नबी
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) से ररवायत करते हैं।” इस तरह, अबू
सईद खुदरी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) को छोड टदया है । अलबत्ता, इस हदीस
की कई सनदें हैं, जो एक-दस
ू रे को मज़बूती प्रदान करती हैं।

87
अरबईन नववी

संदेश

1. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कम से कम


शब्दों में बडी से बडी और व्यापक अथम वाली बात कहने की िमता
प्रदान की गई थी, ष्जसका एक जीता जागता उदाहरण यह हदीस
है ।
2. यह हदीस एक महत्वपूणम लसद्विांत प्रस्तुत करती है कक इस्लाम
ककसी भी तरह की छोिी या बडी हानन को स्वीकार नहीं करता।
3. हर वह चीज़ जो हाननकारक हो, इस्लाम की नज़र में हराम है ।
4. ककसी की हानन करना हराम है ।
5. अल्लाह ने अपने बंदों को ककसी ऐसी बात का आदे श नहीं टदया है ,
जो उनके ललए हाननकारक हो।
6. इस्लाम शांनत एवं सरु िा का िमम है ।

88
अरबईन नववी

तें तीसवीं हदीस

ननणमय के ननयम

‫طى النَّاس بِ َد ْع َواه ْم َّل َّدعَى‬ َ ‫ "لَ ْو ي ْع‬: ‫ع ْن ُه َما أ َ َّن َرسُ ْو َل هللاِ ﷺ قَا َل‬ َ ُ‫ي هللا‬َ ‫ض‬ ِ ‫َّاس َر‬
ٍ ‫عب‬ َ ‫ع ِن اب ِْن‬ َ
ُ‫س ٌن َر َواه‬
َ ‫ث َح‬ ٌ ‫علَى َم ْن أَنك ََر"ـ َح ِد ْي‬ َ َ‫ َولَ ِك َّن البَ ِيِّنَة‬،‫ِرجَا ٌل أ َ ْم َوا َل قَوم َو ِد َما َءه ْم‬
َ َ‫ َوا ْليَم ْين‬،‫علَى الم َّد ِعي‬
.‫ص ِح ْي َح ْي ِن‬ ُ ‫ْالبَ ْي َه ِق ْي َه َكذَا َو بَ ْع‬
َّ ‫ضهُ فِ ْي ال‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक अल्लाह
के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “अगर लोगों को
उनके दावों के आिार पर दे टदया जाए, तो कुछ लोग लोगों की जान और माल
का दावा कर बैठें। लेककन, दावा करने वाले को प्रमाण प्रस्तुत करना है और
इनकार करने वाले को क़सम खानी है ।” यह हदीस हसन दजे की है । इमाम
बैहक़ी [10/252] आटद ने इसे इसी तरह ररवायत ककया है , जबकक इसका कुछ
अंश सहीह बख
ु ारी तथा सहीह मष्ु स्लम में मौजद
ू है ।

संदेश

1. यह हदीस लोगों के बीच ननणमय करने का एक महत्वपूणम ननयम


बयान करती है कक दलील दावा पेश करने वाले को पेश करनी है ।
यटद उसने उधचत प्रमाण प्रस्तुत कर टदया, तो उसके हक़ में
ननणमय होगा, वरना प्रनतवादी को क़सम खानी होगी और इस तरह
ननणमय उसके हक़ में चला जाएगा।

89
अरबईन नववी

2. केवल दावे तथा अफ़वाहों के आिार पर ककसी के हक़ में ननणमय


नहीं ककया जा सकता।
3. इस्लाम ने लोगों के जान-माल की सरु िा के सारे उपाय ककए हैं।

90
अरबईन नववी

चौंतीसवीं हदीस

बुराई से रोकना एक महत्वपण


ू म कतमव्य

‫ " َم ْن َرأى ِمنك ْم‬: ‫س ِم ْعتُ َرسُو َل هللاِ ﷺ يَقُ ْو ُل‬ َ : ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ُ‫ي هللا‬َ ‫ض‬ِ ‫دري ِ َر‬ِ ‫سع ْي ٍد ْال ُخ‬ َ ‫ع ْن أَبِ ْي‬َ
‫ضعَف‬ ْ َ ‫ست َ ِط ْع فَبِقَ ْلبِ ِه َوذَ ِلكَ أ‬
ْ َ‫ فَ ِإ ْن لَ ْم ي‬،‫سا ِن ِه‬َ ‫ست َ ِط ْع فَبِ ِل‬
ْ َ‫ فَ ِإ ْن لَ ْم ي‬،ِ‫م ْنكَرا فَ ْليغَيِِّ ْره بِيَ ِده‬
ِ ‫ْالي َم‬
.‫ان"ـ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬

अबू सईद खुदरी (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते हुए सन ु ा है : “तुममें से जो
व्यष्क्त कोई बुराई होती हुई दे खे, वह उसे अपने हाथ से रोके; अगर हाथ
से रोकने की शष्क्त न हो, तो ज़बान से मना करे और अगर ज़बान से
मना करने की शष्क्त न हो, तो टदल से बुरा जाने तथा यह ईमान की
सबसे कमज़ोर श्रेणी है।” इस हदीस को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम
हदीस संख्या : 49] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस इस्लाम के एक बहुत बडे लसद्विांत की व्याख्या करती है


कक हर मुसलमान को अपनी शष्क्त और सामर्थयम के अनुसार
भलाई का आदे श दे ना है और बरु ाई से रोकना है ।
2. शरीयत इनसान को कटठनाई में डालना नहीं चाहती, यही कारण है
कक उसने भलाई का आदे श दे ने और बुराई से रोकने की कई
श्रेखणयााँ बनाई हैं।

91
अरबईन नववी

3. ईमान घिता और बढ़ता भी है । कभी कमज़ोर होता है , तो कभी


मज़बूत। यही अनले सुन्नत वल-जमात का अक़ीदा है ।

92
अरबईन नववी

पैंतीसवीं हदीस

इस्लामी बंिुत्व को कमज़ोर करने वाली कुछ चीज़ें

،‫غض ْوا‬ َ ‫ " َّل تَحَا‬: ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللاِ ﷺ‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬
َ ‫ َو َّل تَبَا‬،‫ َو َّل تَنَاجَش ْوا‬،‫سد ْوا‬ َ ُ‫ي هللا‬ ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ه َُر ْي َرةَ َر‬
َ ‫ض‬ َ

‫ َو َّل‬،‫ َّل يَ ْظلِمه‬،‫س ِل ِم‬ ْ ‫سلِم أَخ ْو ا ْلم‬


ْ ‫ ا ْلم‬،‫للا إِ ْخ َوانَا‬
ِ ‫ َوك ْون ْوا ِعبَا َد‬،‫علَى بَ ْي ِع بَ ْعض‬َ ‫ َوّلَ يَبِعْ بَ ْعضك ْم‬،‫َو َّل تَدَابَر ْوا‬
‫ب ا ْم ِرىء ِ ِّمنَ الش ِ َِّّرأَ ْن‬
ِ ‫س‬ ْ ‫ بِ َح‬- ‫ث َم َّرات‬َ َ‫ص ْد ِر ِه ثَال‬ ِ ‫ َوي‬- ‫ الت َّ ْق َوى َهاهنَا‬،‫ َو َّليَحْ قِره‬،‫ َو َّل ي ْكذِبه‬،‫ي َْخذله‬
َ ‫ش ْير إِلَى‬
ْ ‫علَى ا ْلم‬
‫سل ِِم ح ََرا ٌم دَمه َو َماله َوع ِْرضه"ـ َر َواهُ ُم ْس ِل ٌم‬ َ ‫س ِل ِم‬ ْ ‫يَحْ ق َِر أَ َخاه ا ْلم‬
ْ ‫ ك ُّل الم‬،‫س ِل َم‬

अनव
ु ाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) से ररवायत है , वह कहते हैं कक अल्लाह के


रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “एक-दस ू रे से हसद
न करो, क्रय-ववक्रय के समय बोली बढ़ाकर एक-दस
ू रे को िोखा न दो,
एक-दस
ू रे से द्ववेष न रखो, एक-दस
ू रे से पीठ न फेरो और तुममें से कोई
ककसी के सौदे पर सौदा न करे तथा अल्लाह के बंदो, भाई-भाई हो
जाओ। एक मुसलमान दस
ू रे मुसलमान का भाई है ; वह उसपर अत्याचार
नहीं करता, उसे बेसहारा नहीं छोडता, उससे झठ
ू नहीं बोलता और उसे
तुच्छ नहीं जानता। परहेज़गारी यहााँ है। (यह कहते समय आपने अपने
सीने की ओर इशारा ककया और तीन बार यह बात कही।) ककसी आदमी
के बरु ा होने के ललए इतना ही काफ़ी है कक वह अपने मस
ु लमान भाई
को तुच्छ जाने। एक मुसलमान का सब कुछ दस
ू रे मुसलमान पर हराम
है ; उसका रक्त भी, उसका िन भी और उसकी प्रनतटठा भी।” इस हदीस

93
अरबईन नववी

को इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्याः 2564] ने ररवायत


ककया है ।

संदेश

1. यह इस्लामी बंिुता और भाई-चारा का माहौल बनाने की ताकीद


करने वाली एक महत्वपूणम हदीस है ।
2. इनसान को इस बात की कामना नहीं करनी चाटहए कक उसके भाई
की नेमत नछन जाए।
3. खरीद-बबक्री के समय केवल खरीदने वाले को नुक़सान तथा बेचने
वाले को लाभ पहुाँचाने के ललए सामान का दाम बढ़ाना जायज़ नहीं
है ।
4. इस्लामी समाज में द्ववेष तथा ईटयाम जैसी चीज़ों का कोई स्थान
नहीं है।
5. एक-दस
ू रे को दे खकर मुाँह मोडना और पीठ फेरकर ननकल जाना
जैसी चीज़ें भी इस्लामी बंित्ु व के ववपरीत होने के कारण मना हैं।
6. कोई ककसी से कुछ खरीद रहा हो, तो खुद खरीदने का प्रयास
करना और कोई ककसी से कुछ बेच रहा हो, तो खुद बेचने का
प्रयास करना जायज़ नहीं है ।
7. मष्ु स्लम समाज के सारे लोग अल्लाह के बंदे हैं और उन्हें भाई-भाई
बनकर रहना चाटहए।

94
अरबईन नववी

8. इस्लामी बंिुत्व का तक़ाज़ा यह है कक मुष्स्लम समाज में न ककसी


पर अत्याचार हो, न ककसी को बेसहारा छोडा जाए, न झूठ बोला
जाए और न तच्
ु छ जाना जाए।
9. एक मुसलमान की असल पूाँजी तक़वा है , जो टदल में रहने की
चीज़ है।

95
अरबईन नववी

छत्तीसवीं हदीस

मस
ु लमानों की ज़रूरतें परू ी करने का महत्व

ِ ‫ع ْن ُمؤْ ِم ٍن كُ ْربَةً ِم ْن كُ َر‬


‫ب‬ َ ‫س‬ َ َّ‫ " َم ْن نَف‬: ‫ع ِن النَّبِي ِ ﷺ قَا َل‬ َ ُ‫ع ْنه‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ِ ‫ع ْن أَبِ ْي ه َُر ْي َرة َ َر‬ َ
‫علَ ْي ِه فِ ْي الد ْنيَا‬ ُ ‫علَى ُم ْع ِس ٍر يَس ََّر‬
َ ‫هللا‬ َ ‫ َو َم ْن يَس ََّر‬،‫ب يَ ْو ِم ْال ِقيَا َم ِة‬
ِ ‫ع ْنهُ كُ ْربَةً ِم ْن كُ َر‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫س‬ َ َّ‫الد ْنيَا نَف‬
‫ع ْو ِن ْال َع ْب ِد َما َكانَ ْال َع ْب ُد فِ ْي‬ ُ ‫ َو‬،ِ‫هللا فِ ْي الد ْنيَا َو ْال ِخ َرة‬
َ ‫هللا فِ ْي‬ ُ ُ‫ست ََره‬ َ ‫ َو َم ْن‬،ِ‫َو ْال ِخ َرة‬
َ ً ‫ست ََر ُم ْس ِل َما‬
‫ َو َما اجْ ت َ َم َع قَ ْو ٌم‬،‫ط ِر ْيقَا ً إِلَى ْال َجنَّ ِة‬
َ ‫س َّه َل هللاُ لَهُ بِ ِه‬ َ ً ‫س فِ ْي ِه ِع ْل َما‬ُ ‫ط ِر ْيقَا ً يَ ْلت َِم‬ َ ‫ َو َم ْن‬،‫ع ْو ِن أ َ ِخ ْي ِه‬
َ َ‫سلَك‬ َ
َ ‫س ِك ْينَةُ َو‬
‫غ ِشيَتْ ُه ُم‬ َّ ‫علَ ْي ُه ُم ال‬
َ ‫ت‬ْ َ‫ارسُ ْونَهُ بَ ْينَ ُه ْم إِ َّل نَزَ ل‬
َ ‫اب هللاِ َويَت َ َد‬ َ َ ‫ت هللاِ يَتْلُ ْونَ ِكت‬ ِ ‫ت ِم ْن بُيُ ْو‬ ٍ ‫فِ ْي بَ ْي‬
ُ‫سبُهُ"ـ َر َواه‬ َ َ‫ع ب ِه ن‬ ْ ‫ع َملُهُ لَ ْم يُس ِْر‬ َّ َ‫ َو َم ْن ب‬،ُ‫الرحْ َمةُ َو َحفَّتْ ُه ُم ْال َم َلئِ َكةُ َوذَك ََرهُ ُم هللاُ فِ ْي َم ْن ِع ْن َده‬
َ ‫طأ َ بِ ِه‬ َّ
‫ُم ْس ِل ٌم ِب َهذَا اللَّ ْف ِظ‬

अनुवाद

अबू हुरैरा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी (सल्लल्लाहु अलैटह


व सल्लम) ने फ़रमाया : “ष्जसने ककसी मोलमन की दनु नया की कोई
परे शानी दरू की, अल्लाह क़यामत के टदन उसकी कोई परे शानी दरू
करे गा। ष्जसने ककसी अभावग्रस्त व्यष्क्त के साथ आसानी की, अल्लाह
दनु नया एवं आखखरत में उसके साथ आसानी करे गा। ष्जसने ककसी
मस
ु लमान की कमी को नछपाया, अल्लाह दनु नया एवं आखखरत में उसकी
कमी को नछपाएगा। अल्लाह अपने बंदे की मदद में उस समय तक
रहता है , जब तक बंदा अपने भाई की मदद में रहता है । जो व्यष्क्त
ज्ञान अजमन करने के ललए ककसी मागम में चलता है , अल्लाह इसके बदले
में उसके ललए जन्नत का मागम आसान कर दे ता है। जब कुछ लोग

96
अरबईन नववी

अल्लाह के ककसी घर में एकत्र होकर अल्लाह की ककताब की नतलावत


करते हैं और उसे आपस में समझने और समझाने का कायम करते हैं, तो
उनपर शांनत अवतररत होती है , उन्हें अल्लाह की कृपा ढााँप लेती है , उन्हें
फ़ररश्ते घेर लेते हैं और उनकी चचाम अल्लाह उन लोगों के बीच करता है ,
जो उसके पास हैं। ष्जसका कमम उसे पीछे छोड दे , उसका कुल उसे आगे
नहीं ले जा सकता।” इस हदीस को इन शब्दों के साथ इमाम मुष्स्लम
[सहीह मष्ु स्लम हदीस संख्या : 2699] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस ऐसे लोगों को शभ


ु सूचना दे ती है , जो लोगों की सेवा और
सहायता करते हैं तथा अल्लाह की ककताब को पढ़ने, सीखने और
समझने के प्रयास में रहते हैं। साथ ही इस बात की ओर प्रेररत
करती है कक इनसान अपने कुल पर भरोसा करने की बजाय अमल
के िेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करे ।
2. मोलमनों की परे शानी दरू करने और अभावग्रस्त लोगों के ललए
आसानी करने का महत्व।
3. मुसलमान की कलमयों को छुपा लेना चाटहए, जब वह टढिाई के
साथ बरु ाई न करता हो और लोगों के बीच बबगाड पैदा करने का
काम न करता हो।
4. ज्ञान प्राप्त करने के ललए ननकलने का महत्व।

97
अरबईन नववी

5. अल्लाह की ककताब से लगाव इनसान को अल्लाह की रहमत का


हक़दार बना दे ता है।
6. अल्लाह के घर में उसकी ककताब का ज्ञान प्राप्त करने के ललए
बैठने का महत्व।
7. अल्लाह के यहााँ इनसान को प्रनतफल उसके कुल के आिार पर
नहीं, बष्ल्क कमम के आिार पर लमलना है ।

98
अरबईन नववी

सैंतीसवीं हदीस

नेककयों की प्रेरणा

ُ‫اركَ َوتَعَالَى أَنَّه‬َ َ‫ع ْن َربِ ِه تَب‬ َ ‫ع ْن َرسُ ْو ِل هللاِ ﷺ فِ ْي َما يَ ْر ِو ْي ِه‬ َ ‫ع ْن ُه َما‬
َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ ِ ‫َّاس َر‬ ٍ ‫عب‬
َ ‫ع ِن اب ِْن‬
َ
‫سنَة فَلَ ْم يَ ْع َم ْلهَا َكتَبَهَا للا ِع ْندَه‬
َ ‫ت ث َّم بَيَّنَ ذَ ِلكَ ؛ فَ َم ْن َه َّم بِ َح‬
ِ ‫سيِِّئ َا‬
َّ ‫ت َوال‬ َ ‫ب ا ْل َح‬
ِ ‫سنَا‬ َ َّ‫ "إِن‬: ‫قَا َل‬
َ َ ‫للا َكت‬
َ ِ‫س ْب ِع ِمائ َ ِة ِض ْعف إ‬
‫لى‬ َ ‫سنَات إِلَى‬َ ‫عش َْر َح‬ َ ‫ َوإِ ْن َه َّم بِهَا فَعَ ِملَهَا َكتَبَهَا للا ِع ْندَه‬،‫َاملَة‬ ِ ‫سنَة ك‬
َ ‫َح‬
‫ َو ِإ ْن َه َّم بِهَا فَعَ ِملَهَا‬،‫َاملَة‬
ِ ‫سنَة ك‬َ ‫سيِِّئ َة فَلَ ْم يَ ْع َم ْلهَا َكتَبَهَا للا ِع ْندَه َح‬
َ ِ‫ َوإِ ْن َه َّم ب‬.‫ضعَاف َكثِي َْرة‬ْ َ‫أ‬
.‫ف‬
ِ ‫ص ِح ْي َحي ِه َما بِ َه ِذ ِه ال ُح ُر ْو‬
َ ‫َاري َو ُم ْس ِل ٌم في‬
ِ ‫احدَة"ـ َر َواهُ البُخ‬ َ ‫َكتَبَهَا للا‬
ِ ‫سيِِّئ َة َو‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने अपने बरकत वाले और महान प्रभु से
ररवायत करते हुए फ़रमाया : "बेशक अल्लाह ने नेककयों और गन
ु ाहों को ललख
ललया है । कफर उसका ववस्तार करते हुए फ़रमाया : ष्जसने ककसी सत्कमम का
इरादा ककया और उसे कर नहीं सका, अल्लाह उसे अपने यहााँ एक पूरी नेकी
ललख लेता है और अगर इरादे के अनस
ु ार उसे कर ललया, तो उसके बदले में
अपने पास दस से सात सौ, बष्ल्क उससे भी अधिक नेककयााँ ललख दे ता है । और
अगर ककसी बुरे काम का इरादा ककया, लेककन उसे नहीं ककया, तो अल्लाह उसे
अपने यहााँ एक पूरी नेकी ललख दे ता है और अगर इरादे के अनुसार उसे कर
ललया, तो उसे केवल एक गन
ु ाह ललखता है ।" इस हदीस को इन शब्दों के

99
अरबईन नववी

साथ इमाम बुखारी ने सहीह बुखारी [हदीस संख्या : 6491] और इमाम


मुष्स्लम ने सहीह मुष्स्लम [हदीस संख्या : 131] में ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस को नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने अपने रब से


ररवायत ककया है और इस तरह की हदीस हदीस-ए-क़ुदसी कहलाती
है ।
2. यह हदीस इस बात का प्रमाण है कक अल्लाह अपने बंदों पर बडा
अनुग्रहशील है । अगर ऐसा न होता, तो शायद ही कोई जन्नत का
मुाँह दे ख पाता, क्योंकक इनसान से पुण्य से कहीं अधिक पाप ही
होते हैं।
3. यह अल्लाह की कृपा है कक वह नेकी का बदला दस गुना से सात
सौ गुना, बष्ल्क अनधगनत गुना अधिक दे ता है , जबकक गुनाह का
बदला केवल एक गुना दे ता है ।
4. नेकी ललखने पर ननयक्
ु त फ़ररश्ते बंदों के शरीर के अंगों से होने
वाले कायों के साथ-साथ टदल के कायों को भी ललखते हैं।
5. सभी कामों में नीयत का बडा महत्व और प्रभाव है ।

100
अरबईन नववी

अडतीसवीं हदीस

अल्लाह के औललया

‫ َم ْن عَادَى‬: ‫للا تَعَالَى قَا َل‬ َ َّ‫ "إِن‬: ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللاِ ﷺ‬: ‫ع ْنهُ قَا َل‬ َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْن أَبِي ه َُري َْرة َ َر‬ َ
َ .‫علَ ْي ِه‬
‫وّل‬ َ ‫ضته‬ ْ ‫ي ِم َّما‬
ْ ‫افت َ َر‬ َّ ‫ِي بِشَيء أَح‬
َّ ‫َب إِ ِل‬ ْ ‫ع ْبد‬َ ‫ي‬ َ ‫ َو َما تَقَ َّر‬.‫ب‬
َّ ‫ب إِ ِل‬ ِ ‫ِل ْي َو ِليَّا فَقَ ْد آذَ ْنته بِا ْلح َْر‬
‫ َوبَص ََره‬،‫س َمع بِ ِه‬
ْ َ‫ِي ي‬ ْ ‫س ْمعَه الَّذ‬ َ ‫ فَ ِإذَا أَحْ بَبته ك ْنت‬،‫ي بِالنَّ َوافِ ِل َحتَّى أ ِحبَّه‬ َّ َ‫ِي يَتَقَ َّرب إِل‬ َ ‫يَ َزال‬
ْ ‫ع ْبد‬
ِ ‫سأَلَنِ ْي أل‬
‫ َولَئِ ْن‬،‫عطيَنَّه‬ َ ‫ َولَ ِئ ْن‬.‫ش ْي بِهَا‬
ِ ‫ َو ِرجْ لَه الَّتِي يَ ْم‬،‫ َويَدَه الَّتِي يَب ِْطش بِهَا‬،‫ِي يب ِْصر بِ ِه‬ ْ ‫الَّذ‬
ِ ‫ستَعَاذَنِ ْي أل ِع ْيذَنَّه"ـ َر َواهُ ْالبُ َخ‬
‫اري‬ ْ ‫ا‬

अनव
ु ाद

अबू हुरैरा (रष्ज़य्ललाहु अनहु) का वणमन है , वह कहते हैं कक अल्लाह के


रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमायाः “उच्च एवं महान
अल्लाह का फ़रमान है : ष्जसने मेरे ककसी ‘वली’ (लमत्र) से दश्ु मनी की,
उससे मेरी ओर से युद्वि का एलान है। मेरा बंदा ष्जन चीज़ों के द्ववारा
मेरी ननकिता प्राप्त करता है , उनमें मझ
ु े सबसे अधिक वप्रय वह चीज़ें हैं,
जो मैंने उसपर फ़ज़म की हैं। बंदा नफ़ल इबादतों के ज़ररए मेरी ननकिता
प्राप्त करता जाता है , यहााँ तक कक मैं उससे प्रेम करने लगता हूाँ। कफर,
जब मैं उससे प्रेम करता हूाँ, तो उसका कान बन जाता हूाँ, ष्जससे वह
सुनता है ; उसकी आाँख बन जाता हूाँ, ष्जससे वह दे खता है ; उसका हाथ
बन जाता हूाँ, ष्जससे वह पकडता है और उसका पााँव बन जाता हूाँ,
ष्जससे वह चलता है। ऐसे में अगर वह मुझसे मााँगे, तो मैं उसे ज़रूर
दाँ ग
ू ा और अगर मुझसे शरण मााँगे, तो मैं से ज़रूर शरण दाँ ग
ू ा।” इस

101
अरबईन नववी

हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 6502] ने ररवायत


ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस में यह बताया गया है कक वह कौन लोग हैं, जो अल्लाह


के ‘वली’ (वप्रय) होते हैं।
2. अल्लाह के ‘वली’ फ़ज़म इबादतों के साथ-साथ नफ़ल इबादतों की भी
ववशेष रूप से पाबंदी करते हैं।
3. अल्लाह की ननकिता प्राप्त करने का सबसे महत्वपूणम ज़ररया फ़ज़म
इबादतें हैं।
4. सन्
ु नतों की पाबंदी बंदे को अल्लाह की मह
ु ब्बत का हक़दार बना
दे ती है।
5. जब अल्लाह ककसी बंदे से मुहब्बत करने लगता है , तो उसे बुरे
कामों से बचाता है और उसकी दआ
ु एाँ सुनता है ।
6. अल्लाह के ककसी वली से दश्ु मनी बहुत बडा पाप है ।

102
अरबईन नववी

उनतालीसवीं हदीस

गलती से तथा भल
ू वश ककए हुए काम की पकड न होना

َ ‫طأ‬
َ ‫َاو َز ِل ْي ع َْن أ َّمتِ ْي ا ْل َخ‬ َ َّ‫ "إِن‬: ‫ع ْن ُه َما أ َ َّن َرسُ ْو َل هللاِ ﷺ قَا َل‬
َ ‫للا تَج‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬
ِ ‫َّاس َر‬
ٍ ‫عب‬َ ‫ع ِن اب ِْن‬
َ
َ ‫س ٌن َر َواهُ ا ْب ُن َما َجه َو ْالبَ ْي َه ِقي َو‬
.‫غ ْي ُرهُ َما‬ ٌ ‫علَ ْي ِه"ـ َح ِد ْي‬
َ ‫ث َح‬ ْ ِِّ‫َوالن‬
ْ ‫سيَانَ َو َما ا‬
َ ‫ستك ِْرهوا‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "अल्लाह ने मेरे ललए, मेरी
उम्मत के गलती से ककए हुए, भल
ू वश ककए हुए और ज़बरदस्ती कराए गए
कायों को िमा कर टदया है ।" यह हदीस हसन दजे की है । इसे इमाम इब्ने
माजा [सुनन-ए-इब्ने माजा हदीस संख्या : 2045] और इमाम बैहक़ी
[7/356-357] आटद ने ररवायत ककया है।

संदेश

1. इस महत्वपूणम हदीस में यह बताया गया है कक इनसानी जीवन में


कुछ ऐसी पररष्स्थनतयााँ भी आती हैं, ष्जनमें ककए गए कामों की
अल्लाह के यहााँ पकड नहीं होती।
2. इनसान से जो काम गलती से या भूलवश हो जाए या उससे
ज़बरदस्ती करा ललया जाए, उसपर उसे कोई गुनाह नहीं होता।

103
अरबईन नववी

लेककन, यह ववशेषता केवल अल्लाह के अंनतम नबी मुहम्मद


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) की उम्मत को ही प्राप्त है ।
3. इस्लाम यह नहीं चाहता कक कोई ककसी कटठनाई और परे शानी में
पडे।

104
अरबईन नववी

चालीसवीं हदीस

दनु नया के माया मोह से दामन बचाए रखने की ताकीद

َ‫ "ك ْن فِي ال ُّد ْنيَا َكأَنَّك‬: ‫ي فَقَا َل‬ َّ َ‫ أ َ َخذَ َرسُو ُل هللاِ ﷺ بِم ْن ِكب‬: ‫ع ْن ُه َما قَا َل‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬َ ‫ض‬ ِ ‫ع ِن اب ِْن عُ َم َر َر‬ َ
،‫صبَا َح‬ َ ‫ ِإ َذا أ َ ْم‬: ‫ع ْن ُه َما يَ ُق ْو ُل‬
َّ ‫سيْتَ َفل ت َ ْنت َِظ ِر ال‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ َ ‫ْب أ َ ْو عَا ِبر‬
ِ ‫س ِبيْل"ـ َو َكانَ ا ْب ُن عُ َم َر َر‬ َ
ٌ ‫غ ِري‬
ُ‫ َر َواه‬." َ‫ َو ِم ْن َحيَاتِكَ ل َم ْوتِك‬، َ‫ضك‬ ِ ‫ َو ُخ ْذ ِم ْن‬.‫سا َء‬
ِ ‫ص َّحتِكَ ِل َم َر‬ َ ‫صبَحْ تَ فَل ت َ ْنت َِظ ِر ال َم‬ْ َ ‫َو ِإذَا أ‬
.‫اري‬ ِ ‫ْالبُ َخ‬

अनव
ु ाद

अब्दल्
ु लाह बबन उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते हैं कक अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने मेरे कंिे को पकडा और फ़रमाया : "दनु नया

में ऐसे रहो, जैसे एक परदे सी हो अथवा राह चलते मुसाकफ़र हो।" तथा
अब्दल्
ु लाह बबन उमर (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहा करते थे : जब शाम करो,
तो सुबह की प्रतीिा न करो और जब सुबह करो, तो शाम की प्रतीिा न करो
तथा अपनी सेहत में बीमारी के ललए और जीवन में मौत के ललए कुछ प्राप्त कर
लो। इस हदीस को इमाम बख
ु ारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 6414]
ने ररवायत ककया है।

संदेश

105
अरबईन नववी

1. यह हदीस आशाओं की दनु नया कम आबाद करने तथा दनु नया के


माया मोह में फाँसने की बजाय आखखरत से टदल लगाने और मौत
की तैयारी करने की प्रेरणा दे ती है।
2. इनसान को चाटहए कक दनु नया को रहने का स्थान न समझे और
जो भी समय लमल रहा है , उसे गनीमत जानकर अधिक से अधिक
अच्छे कमम करता रहे।

106
अरबईन नववी

इकतालीसवीं हदीस

नबी सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम का अनस


ु रण

ُ ‫صلَّى‬
‫هللا‬ َ ِ‫ َقا َل َرسُو ُل هللا‬: ‫ع ْن ُه َما قَا َل‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬
ِ ‫اص َر‬ َ ‫ع ْن أ َ ِب ْي ُم َح َّم ٍد‬
ِ ‫ع ْب ِد هللاِ ِب ِن ع ْم ِرو ب ِْن ال َع‬ َ
ََ‫َرَويَنَاه‬،
َ َ‫ حَدَيَثََحَسَنََصَحَيَح‬."‫ "ّلَي ْؤ ِمن أَحَدك ْم َحتَّى يَكونَ َه َواه تَبَعَا ِل َما ِجئْت بِ ِه‬: ‫سلَّ َم‬ َ ‫علَ ْي ِه َو‬ َ
.َ‫فَيََكَتَابََالَحَجَةََبَإَسَنَادََصَحَيَح‬

अनव
ु ाद

अबू मुहम्मद अब्दल्


ु लाह बबन अम्र बबन आस (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा)
कहते हैं कक अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया
: “तुममें से कोई उस समय तक मोलमन नहीं हो सकता, जब तक
उसकी इच्छाएाँ मेरी लाई हुई शरीयत के अिीन न हो जाएाँ।” यह हदीस
हसन सहीह है। इसे ‘अल-हुज्जा अला ताररक अल-महज्जा’ नामी ककताब
में सहीह सनद से नक़ल ककया गया है ।

संदेश

1. यह एक छोिी-सी मगर महत्वपूणम हदीस है , जो यह बताती है कक


कोई व्यष्क्त उस समय तक पूरा मोलमन नहीं हो सकता, जब तक
उसकी सारी आकांिाएाँ और इच्छाएाँ नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व
सल्लम) की लाई हुई शरीयत के अिीन न हों।

2. ईमान घिता और बढ़ता है और यही अनले सन्


ु नत वल-जमात का
अक़ीदा है।
107
अरबईन नववी

3. सच्चा मोलमन बनने के ललए ज़रूरी है कक आदमी अपनी अक़्ल


और ररती-ररवाज को शरीयत से आगे न रखे।
4. ककसी व्यष्क्त को ककसी ऐसे मामले में कोई अष्ततयार नहीं है ,
ष्जसके बारे में अल्लाह और उसके रसल
ू का ननणमय मौजूद हो।

108
अरबईन नववी

बयालीसवीं हदीस

अल्लाह की असीम िमा

‫ "يَا ا ْبنَ آ َ َد َم‬: ‫هللا ت َ َعالَى‬


ُ ‫ قَا َل‬: ‫س ِم ْعتُ َرسُ ْو َل هللاِ يَقُ ْو ُل‬ َ : ‫ع ْنهُ قَا َل‬َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْن أَن َِس ب ِْن َمالِكٍ َر‬ َ
َ‫ يَا ا ْبنَ آ َ َد َم لَو بَلَغَتْ ذن ْوبك‬،‫علَى َما كَانَ ِم ْنكَ َو َّل أبَا ِل ْي‬ َ َ‫غفَ ْرت لَك‬ َ ‫ِإنَّكَ َما َدعَوتَنِ ْي َو َرجَوتَنِ ْي‬
‫طايَا ث َّم‬َ ‫ض َخ‬ ِ ‫ب ْاأل َ ْر‬ِ ‫ يَا ا ْبنَ آ َ َد َم إِنَّكَ لَ ْو أَت َ ْيتَنِ ْي بِق َرا‬، َ‫غفَ ْرت لَك‬ َ ‫س َماءِ ث َّم است َ ْغفَ ْرتَنِ ْي‬
َّ ‫عنَانَ ال‬
َ
َ ‫س ٌن‬
.‫ص َح ْي ٌح‬ ٌ ‫ َح ِدي‬: ‫شيْئا َأل َتَيْتكَ بِق َرابِهَا َم ْغ ِف َرة"ـ َر َواهُ التِ ْر ِمذِي َوقَا َل‬
َ ‫ْث َح‬ َ ‫ل ِق ْيتَنِ ْي ّلَ تش ِْرك بِ ْي‬

अनव
ु ाद

अनस (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने अल्लाह के रसूल


(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते हुए सुना है : “उच्च एवं महान
अल्लाह फ़रमाता है : ऐ आदम की संतान, जब तक तू मझ ु े पक
ु ारता
रहे गा और मुझसे अच्छी उम्मीद रखेगा, मैं तुझे माफ़ करता रहूाँगा, चाहे
तेरे कमम कैसे ही हों और मुझे इससे कोई फ़क़म नहीं पडता। ऐ आदम की
संतना, अगर तेरे गुनाह आकाश की ऊाँचाइयों तक पहुाँच जाएाँ, कफर तू
मझु से िमायाचना करे , तो मैं तझ
ु े िमा कर दाँ ग
ू ा। ऐ आदम के बेिे,
अगर तू मेरे पास ज़मीन भर गुनाहों के साथ आए और तू मुझे इस हाल
में लमले कक ककसी को मेरे साझी न ठहराता हो, तो मैं तेरे पास ज़मीन
भर िमा लेकर आऊाँगा।” इस हदीस को इमाम नतरलमज़ी [सन
ु न-ए-
लमरलमज़ी हदीस संख्या : 3540] ने ररवायत ककया है और हसन सहीह
कहा है ।

संदेश
109
अरबईन नववी

1. यह एक मनतवपूणम हदीस है , जो बंदों को अल्लाह के प्रनत


आशाष्न्वत रखती है।
2. गन
ु ाह चाहे ष्जतने बडे हों और ष्जतनी संख्या में हों, यटद बंदा
सच्चे टदल से अल्लाह से िमायाचना करे , तो अल्लाह िमा कर
दे ता है।
3. गुनाह माफ़ करवाने के ललए ज़रूरी है कक बंदा अल्लाह को पुकारता
रहे और उससे अच्छी उम्मीद रखे।
4. इस हदीस से तौहीद (एकेश्वरवाद) के महत्व का अंदाज़ा होता है
कक उसके नतीजे में इनसान के गुनाह माफ़ हो जाते हैं।
5. यह हदीस एक तरफ़ यह स्पटि करती है इनसान कमज़ोर है तथा
गन
ु ाह के कामों में अत्यधिक संललप्त रहता है , तो दस
ू री तरफ़ इस
बात का भी बखान करती है कक अल्लाह अत्यंत करुणामय और
दयावान ् है ।

इन बयालीस हदीसों को दजम करने के बाद इमाम नववी ललखते हैं :

“मैंने इस्लाम के लसद्विांतों पर आिाररत तथा अनधगनत छोिे -बडे


ननयमों, सफल जीवन व्यतीत करने के तौर-तरीक़ों और नाना प्रकार के
आदे श तथा ननषेिों से संबंधित हदीसें जमा करने का जो इरादा ककया
था, वह अब संपन्न हुआ।

110
अरबईन नववी

अब मैं इन हदीसों के कटठन शब्दों के संबंि में एक बहुत ही संक्षिप्त


अध्याय जोडकर सबसे पहले क्रमवार इन शब्दों का सही रूप स्पटि
करूाँगा और उन्हें पढ़ने का सही तरीक़ा बताऊाँगा, ताकक उन्हें पढ़ने में
कोई त्रुटि न हो और उन्हें याद कर लेने के बाद आदमी पूरे तौर पर
ननष्श्चंत हो जाए। कफर यटद अल्लाह ने चाहा, तो इन हदीसों की
व्याख्या के ललए अलग से एक ककताब भी ललखूाँगा। आशा है कक
अल्लाह, जो कृपालु और दयावान है , मझ
ु े इन हदीसों में छुपी महत्वपण
ू म
बातों, फ़ायदों और ज्ञान-ववज्ञान को सामने लाने का सामर्थयम प्रदान
करे गा, जो हर मुसलमान की ज़रूरत हैं और ष्जन्हें पढ़ने के बाद पाठक
की नज़र में इन हदीसों का महत्व और बढ़ जाएगा तथा उसे इस बात
का अंदाज़ा हो जाएगा कक मैंने इन्हीं हदीसों का चयन क्यों ककया है ।

मैंने अलग से शरह ललखने का इरादा इसललए ककया, ताकक जो इस


संक्षिप्त पस्
ु तक को कंठस्थ करना चाहे , उसे ऐसा करने में ककसी
कटठनाई का सामना न करना पडे। अलबत्ता, यटद कोई इसके साथ शरह
को लमलाना चाहे , तो उसे इसकी अनुमनत है और वह अल्लाह के ववशेष
अनग्र
ु ह का भी हक़दार हो जाएगा। क्योंकक वह उस पववत्र हस्ती की
वाणी के रहस्यों को जान सकेगा, ष्जसके बारे में खुद अल्लाह तआला
का फ़रमान हैः ٌ ْ‫ إِ ْن ه َُو ِإ َّل َوح‬،‫ع ِن ْال َه َوى‬
‫ي يُو َحى‬ َ ‫نط ُق‬
ِ َ‫َو َما ي‬ (अथामत आप
अपनी ओर से कुछ नहीं बोलते, यह तो बस वनय (प्रकाशना) है , जो

111
अरबईन नववी

आपकी ओर उतारी जाती है।) सारी प्रशंसा अल्लाह की है , प्रारं भ में भी


और अंत में भी तथा दृश्य रूप से भी और अदृश्य रूप से भी।”

112
अरबईन नववी

हाकफ़ज़ इब्ने रजब का पररलशटि


तें तालीसवीं हदीस

मीरास की तक़सीम
َ‫ "أ َ ْل ِحق ْوا ا ْلفَ َرائِض‬: ‫سلَّ َم‬
َ ‫علَ ْي ِه َو‬ ُ ‫صلَّى‬
َ ‫هللا‬ َ ِ‫ قَا َل َرسُ ْو ُل هللا‬: ‫ع ْن ُه َما قَا َل‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫اس َر‬ ٍ َّ‫عب‬ َ ‫ع ِن ا ْب ِن‬ َ
َ َ‫ َخ َّر َجهُ الَبَخَ َاريَوََمَسَلَم‬."‫ت ا ْل َف َرا ِئض َف ِل َ ْو َلى َرجل َذكَر‬
ِ ‫ َف َما أ َ ْب َق‬،‫ِبأ َ ْه ِل َها‬

अनुवाद

अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते हैं कक अल्लाह के
रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “ननिामररत टहस्से
उनके हक़दारों तक पहुाँचा दो और ननिामररत टहस्सों के बाद जो शेष बच
जाए, वह मरने वाले के ननकितम पुरुष संबंिी के ललए है ।” इस हदीस
को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 6732] और इमाम
मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 1615] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. यह मीरास के ववतरण के संबंि में एक महत्वपूणम हदीस है ।


2. इस हदीस से मालम
ू हुआ कक मीरास तक़सीम करते समय पहले
उन लोगों को टदया जाएगा, जो ननष्श्चत टहस्सों के हक़दार हैं।

113
अरबईन नववी

3. ननष्श्चत भाग वालों को उनका भाग दे दे ने के बाद जो बच जाए,


वह मरने वाले के ननकितम पुरुष संबंिी अथवा संबंधियों के ललए
है , ष्जन्हें ‘असबा’ कहा जाता है ।
4. ननकिमत ‘असबा’ के होते हुए दरू के ‘असबा’ मीरास के हक़दार
नहीं बनेंगे।

114
अरबईन नववी

चवालीसवीं हदीस

दि
ू के ररश्ते
‫عةُ ت ُ َح ِر ُم َما ت ُ َح ِر ُم‬
َ ‫ضا‬ َّ " : ‫سلَّ َم) قَا َل‬
َ ‫الر‬ َ ‫علَ ْي ِه َو‬ ُ ‫صلَّى‬
َ ‫هللا‬ َ ( ِ ‫ع ِن النَّ ِبي‬
َ )‫ع ْن َها‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫شةَ ( َر‬ َ ‫ع ْن‬
َ ِ‫عائ‬ َ
َ ‫ْال ِو َل َدة ُ"ـ َخ َّر َجهُ الَبَخَ َاريَوََمَسَلََم‬

अनुवाद

आइशा (रष्ज़यल्लाहु अनहा) का वणमन है कक नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व


सल्लम) ने फ़रमायाः "अपनी मााँ के लसवा ककसी अन्य स्त्री का दि
ू पीने
से वह ररश्ते हराम हो जाते हैं, जो जन्म से हराम होते हैं।" इस हदीस को
इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2646] तथा इमाम मुष्स्लम
[सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 3105] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस हदीस से मालम
ू हुआ कक ष्जन खानदानी ररश्ते की ष्स्त्रयों,
जैसे मााँ, खाला, फूफी और बहन आटद से ननकाह करना हराम है ,
उन दि
ू के ररश्ते की ष्स्त्रयों, जैसे रज़ाई मााँ, रज़ाई खाला, रज़ाई
फूफी और रज़ाई बहन आटद से भी ननकाह करना हराम है ।
2. ष्जन ष्स्त्रयों से ननकाह करना हराम है , उनकी तफ़सील सूरा अन-
ननसा की आयत संख्या 22-23 में मौजूद है ।

115
अरबईन नववी

3. दि
ू वपलाने के कारण जो ररश्ता बनता है , उसके कारण ननकाह
हराम हो जाता है और एक-दस
ू रे को दे खना, एकांत में रहना तथा
यात्रा करना जायज़ होता है । परन्तु उससे जायदाद में उत्तराधिकार
लसद्वि नहीं होता।
4. अन्य हदीसों से पता चलता है कक दि
ू पीने के कारण ननकाह
हराम होने का हुक्म उस समय लसद्वि होता है , जब शैशवकाल में ,
दि
ू पीने के टदनों में , कम से कम पााँच बार भर पेि दि
ू वपया
जाए।

116
अरबईन नववी

पैंतालीसवीं हदीस

हराम वस्तु को हलाल बनाने की तदबीर करना

ِ ْ‫ام ْالفَت‬
‫ح‬ َ ‫ع‬ َ (‫سلَّ َم‬ َ ُ‫صلَّى هللا‬
َ ‫علَ ْي ِه َو‬ َ ) ِ‫س ِم َع َرسُ ْو َل هللا‬ َ ُ‫ع ْن ُه َما( أ َنَّه‬َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْب ِد هللاِ ) َر‬
َ ‫ع ْن َجابِ ِر ْب ِن‬ َ
‫ َيا‬: ‫صنَ ِام"ـ فَ ِق ْي َل‬ ْ َ ‫هللا َو َرسُ ْولَهُ َح َّر َم َب ْي َع ْال َخ ْم ِر َو ْال َم ْيت َ ِة َو ْال ِخ ْن ِز ْي ِر َو ْال‬ َ ‫ " ِإ َّن‬: ‫َوهُ َو ِب َم َّكةَ َيقُ ْو ُل‬
‫اس؟‬ ُ َّ‫صبِ ُح بِ َها الن‬ ْ َ ‫ َويَ ْست‬،‫ ُويُد َه ُن بِ َها ْال ُجلُ ْو ُد‬،‫ُطلَى بِ َها السفُ ُن‬ ْ ‫ فَإِنَّهُ ي‬،‫َرسُ ْو َل هللاِ أ َ َرأ َ ْيتَ شُ ُح ْو َم ْال َم ْيت َ ِة‬

ُ ‫ "قَات َ َل‬: َ‫سلَّ َم( ِع ْن َد ذ ِلك‬


‫ ِإ َّن‬،‫هللا ْاليَ ُه ْو َد‬ َ ‫علَ ْي ِه َو‬َ ‫هللا‬ ُ ‫صلَّى‬ َ ( ِ‫ هُ َو َح َرا ٌم"ـ ث ُ َّم قَا َل َرسُ ْو ُل هللا‬،‫ " َل‬: ‫قَا َل‬
َ َ‫يَومَسَلَم‬
َ ‫ فَأ َ َكلُ ْوا ث َ َمنَهُ"ـ َخ َّر َجهُ الَبَخَ َار‬،ُ‫ ث ُ َّم بَاعُ ْوه‬،ُ‫ فَأَجْ َملُ ْوه‬،‫وم‬
َ ‫علَ ْي ِه ُم الش ُح‬
َ ‫هللاَ َح َّر َم‬

अनव
ु ाद

जाबबर बबन अब्दल्


ु लाह (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) कहते हैं कक उन्होंने
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को मक्का ववजय के
साल, जब आप मक्का में थे, कहते हुए सुना है : "अल्लाह और उसके
रसल
ू ने शराब, मरे हुए जानवर, सअ
ु र और मनू तमयों को बेचने से मना
ककया है ।" ककसी ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मरे हुए जानवरों की
चरबी के बारे में आपका क्या खयाल है , ष्जसे कष्श्तयों में मला जाता है ,
चमडों में लगाया जाता है और लोग उससे धचराग भी जलाते हैं? आपने
फ़रमाया : “उसका उपयोग जायज़ नहीं है , वह हराम है ।” कफर इसके बाद
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “अल्लाह
यहूटदयों का सवमनाश करे ! जब अल्लाह ने उनपर चरबी हराम कर दी, तो
उसे वपघलाकर बेचा और उसका पैसा खाया।” इस हदीस को इमाम

117
अरबईन नववी

बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2236 तथा 4633] तथा इमाम
मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 2581] ने ररवायत ककया है ।

संदेश

1. इस्लाम ने हर उस चीज़ को हलाल ककया है , जो मानव समाज के


ललए लाभदायक है और हर उस चीज़ को हराम ककया है , जो
मानव समाज के ललए हाननकारक है ।
2. शराब, मरे हुए जानवर, सुअर और मनू तमयों को बेचना हराम है ।
3. वह वस्तु, ष्जससे ककसी भी प्रकार का लाभ उठाना उधचत न हो,
उसका बेचना और उसकी क़ीमत खाना हराम है ।
4. ककसी हराम वस्तु को हलाल करने के ललए अपनाई गई कोई भी
तदबीर अमान्य है।

118
अरबईन नववी

नछयालीसवीं हदीस

नशीली चीज़ों की मनाही

‫سلَّ َم ( َب َعث َهُ ِإلَى‬ َ ‫علَ ْي ِه َو‬ ُ ‫ص َّلى‬


َ ‫هللا‬ َ ) ‫ي‬ َّ ‫ع ْنهُ( أ َ َّن ال َّن ِب‬
َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ ِ ‫سى ) َر‬ َ ‫ع ْن أ َ ِب ْي ِه أ َ ِب ْى ُم ْو‬
َ َ ‫ع ْن أ َ ِب ْى بُ ْر َدة‬
َ
‫ َو َما‬: َ ‫ ْالبِتْ ُع َو ْال ِم ْز ُرـ فَ ِق ْي َل ِل َبِ ْى بُ ْر َدة‬: ‫ي؟" قَا َل‬ َ ‫ " َو َما ِه‬: ‫ فَقَا َل‬،‫ع ْن أ َ ْش ِربَ ٍة فِ ْي َها‬ َ ُ‫سأ َلَه‬َ َ‫ ف‬،‫ْاليَ َم ِن‬
.‫ارى‬ ِ ‫ "كُل ُم ْس ِك ٍر َح َرا ٌم"ـ َخ َّر َجهُ ْال ُب َخ‬: ‫ فَقَا َل‬،‫ش ِع ْي ِر‬ َ ‫ َو ْال ِم ْز ُر نَ ِب ْيذُ ال‬،‫س ِل‬ َ ‫ نَ ِب ْيذُ ْال َع‬: ‫ْال ِبتْ ُع؟ قَا َل‬

अनुवाद

अबू बुरदा अपने वपता अबू मूसा (रष्ज़यल्लाहु अनहु) से ररवायत करते हैं
कक नबी (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने उनको यमन की ओर भेजा
और उन्होंने आपसे वहााँ पाई जाने वाली कुछ पीने की चीज़ों के बारे में
पूछा, तो आपने फ़रमाया : “वह क्या हैं?” उन्होंने कहा : मिु तथा जौ
की नबीज़। (बाद में ) अबू बुरदा से इन दोनों पेय-पदाथों के ललए हदीस
में प्रयुक्त अरबी शब्दों का अथम पूछा गया, तो उन्होंने उनका अथम
बताया। ऐसे में आपने फ़रमाया : “हर नशे वाली वस्तु हराम है।” इस
हदीस को इमाम बुखारी [सहीह बुखारी हदीस संख्या : 6214] ने ररवायत
ककया है ।

संदेश

1. यह हदीस मादक पदाथों के बारे में एक लसद्विांत प्रस्तत


ु करती है
कक हर वह वस्तु ष्जसमें नशा हो तथा वह इनसान के सोचने-

119
अरबईन नववी

समझने की शष्क्त को प्रभाववत करे , वह हराम है , चाहे वह कैसी


भी हो और ककसी भी चीज़ से बनी हो।
2. इस हदीस से भी मालम
ू हुआ कक सहाबा हमेशा शरई अहकाम को
जानने के प्रयास में रहते थे।
3. इस्लाम एक संपूणम जीवन-दशमन का नाम है और जीवन के हर
भाग के ललए उसने राह टदखाई है और व्यापक लसद्विांत प्रदान
ककए हैं।

120
अरबईन नववी

सैंतालीसवीं हदीस

खान-पान में संतुलन


(‫سلَّ َم‬
َ ‫علَ ْي ِه َو‬ َ ) ِ‫س ِم ْعتُ َرسُ ْو َل هللا‬
َ ُ‫صلَّى هللا‬ َ : ‫ع ْنهُ( قَا َل‬
َ ُ‫ي هللا‬ ِ ‫ب ) َر‬
َ ‫ض‬ َ ‫ع ِن ْال ِم ْق َد ِام ْب ِن َم ْعدِي ك َِر‬
َ
‫ فَإِ ْن َكانَ َل‬،ُ‫ص ْلبَه‬
ُ َ‫ت يُ ِق ْمن‬ ٍ ‫ب ا ْب ِن آ َد َم أُكُ َل‬ ِ ‫ ِب َح ْس‬،‫ط ٍن‬ ْ َ‫عا ًء ش ًَّرا ِم ْن ب‬ َ ‫ي ِو‬ ٌّ ‫ " َما َم َل َ آ َد ِم‬: ‫يَقُ ْو ُل‬
ِ ‫ال َما ُم أ َحْ َم ُد َو‬
َ َّ‫الت ْر ِم ِذي َوالن‬
‫سائي َوا ْب ُن‬ ٌ ُ‫ َوث ُل‬،‫ش َرا ِب ِه‬
ِ ْ ُ‫ َر َواه‬.»‫ث ِلنَفَ ِس ِه‬ َ ‫ث ِل‬ٌ ُ‫ َوث ُل‬،‫ام ِه‬ ِ ‫ط َع‬َ ‫ث ِل‬ٌ ُ‫ فَثُل‬،َ‫َم َحالة‬
‫س ٌن ـ‬ َ ‫ث َح‬ ٌ ‫ َح ِد ْي‬: ‫َما َجه َو قَا َل التِ ْر ِم ِذي‬

अनव
ु ाद

लमक़दाम बबन मादीकररब (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक मैंने अल्लाह के


रसूल (सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) को कहते हुए सुना है : "ककसी आदमी
ने कोई बरतन अपने पेि से अधिक बुरा नहीं भरा। आदम की संतान के ललए
खाने के चंद लक़
ु मे काफ़ी हैं, जो उसकी पीठ सीिी रखें। अगर अधिक खाना
ज़रूरी हो, तो पेि का एक नतहाई भाग खाने के ललए, एक नतहाई भाई पीने के
ललए और एक नतहाई भाग सांस लेने के ललए हो।" इस हदीस को इमाम
अहमद [मुसनद-ए-अहमद : 3/132], इमाम नतरलमज़ी [सुनन-ए-नतरलमज़ी
हदीस संख्या : 2380], इमाम नसई [अलकुबरा हदीस संख्या : 6769]
और इमाम इब्ने माजा [सुनन इब्ने माजा हदीस संख्या : 3345] ने
ररवायत ककया है तथा इमाम नतरलमज़ी ने इसे हसन दजे की हदीस कहा
है ।

संदेश
121
अरबईन नववी

1. एक मुसलमान का पूरा जीवन संतुललत होना चाटहए और इसकी


झलक उसके खान-पान में भी टदखनी चाटहए।
2. चाँकू क भरपेि खाने से कई तरह की बीमाररयााँ जन्म लेती हैं,
इसललए इनसान को उससे बचना चाटहए।
3. खाना-पीना ष्ज़ंदा रहने का आिार है , जीवन का उद्वदे श्य नहीं;
इसललए उसे अधिक महत्व दे ना दरअसल उद्वदे श्य से भिकाव है ।
4. इब्ने रजब कहते हैं कक यह हदीस धचककत्सा ववज्ञान का एक
व्यापक लसद्विांत प्रस्तुत करती है ।

122
अरबईन नववी

अडतालीसवीं हदीस

मुनाकफ़क़ की ननशाननयााँ
‫ "أ َ ْربَ ٌع َم ْن كُ َّن‬: ‫سلَّ َم قَا َل‬ َ ‫علَ ْي ِه َو‬
َ ‫هللا‬ُ ‫صلَّى‬ َ ِ ‫ع ِن النَّبي‬ َ ،‫ع ْن ُه َما‬ َ ‫هللا‬
ُ ‫ي‬ َ ‫ض‬ِ ‫ع ْمر ٍو َر‬ َ ‫ع ْب ِد هللاِ ْب ِن‬َ ‫ع ْن‬َ
‫َّث‬َ ‫ع َها؛ ِإذَا َحد‬ َ ‫ق َحت َّى َي َد‬ ِ َ‫صلَةٌ ِمن‬
ِ ‫النفَا‬ ْ ‫ت ِف ْي ِه َخ‬ ْ َ‫صلَةٌ ِم ْن ُه َّن ِف ْي ِه َكان‬
ْ ‫ت َخ‬ ْ َ‫ َو ِإ ْن َكان‬،ً‫ِف ْي ِه َكانَ ُمنَا ِفقا‬
‫اري َو ُم ْس ِل ٌم‬ِ ‫غ َد َر"ـ َخ َّر َجهُ ْالبُ َخ‬ َ ‫ َوإِذَا‬،‫ص َم فَ َج َر‬
َ ‫عا َه َد‬ َ ‫ َوإِذَا َخا‬،‫ف‬ َ َ‫ع َد أ َ ْخل‬
َ ‫ َوإِذَا َو‬،‫ب‬َ َ‫َكذ‬

अनुवाद

अब्दल्
ु लाह बबन अम्र (रष्ज़यल्लाहु अनहुमा) का वणमन है कक नबी
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : “चार बातें ऐसी हैं कक ष्जस
व्यष्क्त के अंदर होंगी, वह मन
ु ाकफ़क़ होगा तथा यटद उसके अंदर उनमें
से कोई एक बात होगी, तो उसके अंदर ननफ़ाक़ का एक गुण होगा, यहााँ
तक कक उसे छोड दे ; जब बात करे तो झूठ बोले, जब वादा करे तो तोड
दे , जब ककसी से झगडा करे तो गाली बके और जब वचन दे तो िोखा
दे ।” इस हदीस को इमाम बख
ु ारी [सहीह बख
ु ारी हदीस संख्या : 34 तथा
2469] तथा इमाम मुष्स्लम [सहीह मुष्स्लम हदीस संख्या : 58] ने
ररवायत ककया है।

संदेश

1. यह हदीस इनसानी समाज को कुछ ऐसी बातों से दरू रखना चाहती


है , जो उसके ताने-बाने को नटि कर दे ने वाली हैं।

123
अरबईन नववी

2. दरअसल ननफ़ाक़ यह है कक इनसान टदखाए कुछ और मन में कुछ


और रखे।
3. इस हदीस में झठ
ू बोलने, वादा तोडने, झगडते समय बदज़बानी
करने और वचन भंग करने को ननफ़ाक़ के कायम बताते हुए इनसे
साविान ककया गया है।

124
अरबईन नववी

उनचासवीं हदीस

अल्लाह पर पूणम ववश्वास


َ‫ن‬َ َ‫ َ"لَ َو َأَنكَمَ ََتوَكلَو‬:َ َ‫بيَصَلَىَللاَ َعَلَيَهَ َوَسَلَمَ َقَال‬
ِّ ‫َعَنَ َالن‬،‫عَنَ َعَمَرَ َبنَ َالَخَطَابَ َرَضَيَ َللاَ َعَنَ َه‬
َ‫َوَتَرَوَحَبَطَانا" َرَوَاهَ َالَمَامَ َأَحَمَ َد‬،َ‫َتَغَ َدوَ َخَمَاصا‬،َ‫عَلَىَللاَ َحَقَتَوَكَلَهَ َلَرَ َزقَكَمَ َكَمَاَيَرَزَقَ َالطَيَر‬
ََ‫َ "حَسَن‬:َََ‫َ وَقَالَََالَت ِّرَمَذَي‬،َ‫حبانَََفَيَََصَحَيَحَهَََوَالَحَاكَم‬ َ َََ‫وَالَت ِّرَمَذَيَََوَالنَسَائَيَََوَابَنَََمَاجَهَ وَابَن‬
َ .َ"َ‫صَحَيَح‬

अनव
ु ाद

उमर बबन खत्ताब (रष्ज़यल्लाहु अनहु) का वणमन है कक नबी (सल्लल्लाहु


अलैटह व सल्लम) ने फ़रमाया : "अगर तुम अल्लाह पर वैसा ही भरोसा करने
लगो, जैसा भरोसा होना चाटहए, तो वह तम्
ु हें उसी तरह रोज़ी दे , जैसे धचडडयों
को रोज़ी देता है ; वह सब
ु ह को खाली पेि ननकलती हैं और शाम को पेि भरकर
लौिती हैं।" इस हदीस को इमाम अहमद [मुसनद-ए-अहमद : 1/30 तथा
52], इमाम नतरलमज़ी [सुनन-ए-नतरलमज़ी हदीस संख्या : 3344], इमाम
नसई [अल-कुबरा : 8/79], इमाम इब्ने माजा [सुनन-ए-इब्ने माजा हदीस
संख्या : 4164] तथा इमाम इब्ने टहब्बान ने अपनी सहीह [730] में और
हाककम [4/318] ने ररवायत ककया है और नतरलमज़ी ने इसे हसन सहीह
कहा है ।

संदेश

1. इनसान को हर मामले में अल्लाह पर पूणम ववश्वास रखना चाटहए।

125
अरबईन नववी

2. अल्लाह पर ववश्वास की शष्क्त वह हधथयार है , ष्जससे हर भलाई


प्राप्त की जा सकती है।
3. इनसान को अल्लाह पर ववश्वास के साथ-साथ सांसाररक सािनों
का भी उपयोग करना है । यह ववश्वास के ववपरीत नहीं है ।

126
अरबईन नववी

पचासवीं हदीस

अल्लाह के ष्ज़क्र का महत्व


‫ يَا‬: ‫ فَقَا َل‬،‫سلَّ َم( َر ُج ٌل‬ َ ُ‫صلَّى هللا‬
َ ‫علَ ْي ِه َو‬ َ ) ‫ي‬ َّ ِ‫ أ َت َى النَّب‬: ‫ع ْنهُ( قَا َل‬ َ ُ‫ي هللا‬ َ ‫ض‬ ِ ‫ع ْب ِد هللاِ ْب ِن بُ ْس ٍر ) َر‬
َ ‫ع ْن‬
َ
َ ‫ " َل يَزَ ا ُل ِل‬: ‫ام ٌع؟ قَا َل‬
َ‫سا ُنك‬ ِ ‫سكُ ِب ِه َج‬ َّ ‫ فَبَابٌ نَت َ َم‬،‫علَ ْينَا‬ َ ‫ت‬ ْ ‫ال ْس َل ِم قَ ْد َكث ُ َر‬
ِ ْ ‫ش َرائِ َع‬
َ ‫َرسُ ْو َل هللاِ ِإ َّن‬
‫ال َما ُم أ َحْ َم ُد ِبهذَا اللَّ ْف ِظ‬
ِ ْ ُ‫ع َّز َو َج َّل"ـ َخ َّر َجه‬ ْ ‫َر‬
َ - ِ‫طبًا ِم ْن ِذ ْك ِر هللا‬

अनुवाद

अब्दल्
ु लाह बबन बुस्र (रष्ज़यल्लाहु अनहु) कहते हैं कक अल्लाह के रसूल
(सल्लल्लाहु अलैटह व सल्लम) के पास एक व्यष्क्त आया और कहने लगा कक

ऐ अल्लाह के रसूल, इस्लाम ने बहुत-से कामों के आदे श टदए हैं। अतः, आप


हमें कोई ऐसा व्यापक कायम बताएाँ, ष्जसे हम मज़बूती से पकड लें। आपने
फ़रमाया : "तेरी ज़बान हमेशा (सवमशष्क्तमान एवं महान) अल्लाह के ष्ज़क्र से
तर रहे ।" इस हदीस को इन शब्दों के साथ इमाम अहमद [4/188 तथा
190] ने ररवायत ककया है।

संदेश

1. यह हदीस अल्लाह के ष्ज़क्र के महत्व को स्पटि करती है ।


2. इनसान को कभी अल्लाह के ष्ज़क्र से गाकफ़ल नहीं होना चाटहए।
3. अल्लाह के ष्ज़क्र से शरीयत का पालन करना आसान हो जाता है ।

127
अरबईन नववी

4. सहाबा हमेशा शरीयत को जानने, समझने और उसपर अमल करने


के ललए तत्पर रहते थे।

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