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छ: सीफात

1) ईमान
मकसद: चार ऱाइन का यकीन हमारे जीॊदगी में आ जाये हमारे दीऱ का यककन सही हो जाये.
ऱा इऱाहा इल्ऱल्ऱाह मुहम्मदरू रसुऱुल्ऱाह:
ऱा इऱाहा इल्ऱल्ऱाह: हर चीज अल्ऱाह की मोहताज है अल्ऱाह कीसी के मोहताज नहीॊ, मखऱूक सारी की सारी
अल्ऱाह के हुकूम की मोहताज अल्ऱाह ताऱा बगैर चीजो के भी हमारे काम बना सकते है और चीजे होते हुए भी
काम कबघाड़ सकते हैं.
मुहम्मदरू रसुऱुल्ऱाह: आप सल्ऱऱऱाहु अऱैही वसल्ऱम के नुरानी तरीके में सौ फीसद कामीयाबी है गैरो के
तरीके में सौ कफसद नाकामीयाबी है, दन
ु ीया के ऱाइन से हमारे पास सबकुछ है मगर, नबी का तरीका नही है,
अल्ऱाह हमे दोनो जहाॉ मे नाकाम करेगे दनु नया के ऱाइन से हमारे पास कुछ भी नही, नबी का तरीका होगा तो
अल्ऱाह ताऱा हमे दोनो जहाॉने कानमयाब करेंगे.
फजीऱत:

1) हज़रत अबू उमामा रजी. से रीवायत है के एक शख्स ने रसुऱ स. से सवाऱ कीया इमान क्या है? आप स. ने
इरशाद फरमाया: जब तुम को अपने अच्छे अमऱ से खुशी हो और बुर े काम पर रॊज होतो तुम मोमीन हो.
(उद ू मुन्तखब अहादीस नॊबर 19 सफा नॊबर 113)(मुस्तदरक हाककम)
2) हजरत उमर रजी से रीवायत है के रसूऱ स.ने इशाूद फरमाया खत्ताब के बेटे जाओ ऱोगो मे ये ऐऱान करदो
के जन्नत में नसफू इमान वाऱे ही दाखीऱ होगे.
(उद ू मुन्तखब अहादीस नॊबर 15 सफा नॊबर 11)(मुनस्ऱम)
3) हज़रत अब्दल्ु ऱाह बीन उम्रू रजी. से रीवायत हे ककी नबी करीम स. ने इशाूद फरमाया कोई शख्स उस वक्त
तक (कामीऱ) इमान वाऱा नहीॊ हो सकता जब तक के उसकी नफसानी चाहते उस दीन के ताबे ना हो जाए,
जीस को मै ऱेकर आया हु.
(उद ू मुन्तखब अहादीस नॊबर 98 सफा नॊबर 59)(शरहूस्सून्न:)
हासीऱ करने का तरीका

1) इमान की फजीऱत को पढे गे सुनग


ें े और सुनाएॊगे .
2) इज्तेमा और ताऱीम की पाबॊदी करेंगे.
3) ईमान दीऱ तक पहुच
ॊ ाने के चार रास्ते है, आॉ ख, कान, जुबान दीमाग. आॉ खोसे अल्ऱाह की कुदरत को देखेगे,
कानो से अल्ऱाह की बड़ाई सुनग
ें े, जुबान से अल्ऱाह की बढ़ाई बोऱेंगे और दीमाग से सोचेंगे कयाॊ सुना और
क्या बोऱा इस तरह इमान दीऱ में उतरेगा.
4) मौत के बाद की जीॊदगी के खुब तनज्करे करेंगे कब्र के,, कयामत के, मीजान के, पुऱ सीरात के, जन्नत और
जहन्नम के.
5) सहाबा और अॊबीया की नजॊदगी बोऱे इस से इमान में जमाव पैदा होगा.

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6) आखीर में अल्ऱाह ताऱा से दआ
ु करेंगे कऱमे वाऱी जीॊदगी और कऱमे वाऱी मौत खातेमा बीऱ खैर नसीब
फरमा.
2) नमाज

मकसद: नमाज का मकसद यह है के, चौबीस घॊटे की जीॊदगी हमारी सीफते सऱात पर आ जाये. जैसे हमारे
आजा (आॉख, कान, पैर, हाथ) नमाजके अॊदर अल्ऱाह के हुकुम पर चऱते और नबी के हुकुम पर चऱते है उसी
तरह नमाज के बाहर भी अल्ऱाह के हुक्म पर और नबी के तरीके पर चऱने वाऱे बन जाये.
फजीऱत:
1) हजरत हॊजऱा उसैदी रजी. से रीवायत है के रसुऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया: जो शख्स पाॊचो नमाजो की
इस तरह पाबॊदी करे के वुजू और औकात का एहतेमाम कर, रुकु और सजदा अच्छी तरह करे, इस तरह
नमाज पढ़ने को अल्ऱाह की तरफ से अपने जीम्मे जरूरी समझे तो उस आदमी को जहन्नम की आग पर
हराम कर दीया जाएगा. (उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 11 सफा नॊबर 138)(मुस्नद अहमद)
2) हजरत उस्मान बीन अफ्फान रजी. से रीवायत है के रसुऱ स ० ने इरशाद फरमाया जो शख्स नमाज पढ़ने
को जरूरी समझे वो जन्नत में दाखीऱ होगा.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 13 सफा नॊबर 139)(मुस्नद अहमद,अबू याऱा,बज्जार,मज्मउज्जवाईद)
3) हजरत इब्ने अब्बास रजी. से रीवायत है के रसुऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया नजस शख्स ने नमाज़ छोड़ दी
वो अल्ऱाह ताऱा से ऐसी हाऱत में मीऱेगा के अल्ऱाह ताऱा उस से सख्त नाराज़ होंगे.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 45 सफा नॊ 154)(बज्जार,तबरानी,मज्मउज्जवाईद)
हासीऱ करने का तरीका
1)नमाज की फजीऱत को पढें गे, सुनेंगे और सुनाएॊगे.
2) इज़्तेमा और ताऱीम की पाबॊदी करेंगे.
3)मसाईऱ वाऱा इल्म हासीऱ करेगे, कमाई 'से ऱेकर सऱाम तक.
4) तीन तस्बीहात की पाबॊदी करेगे, सुबाह फज्र बाद, असरबाद, तीसरा कऱमा दरू
ु द शरीफ अस्तगफार.
5)अव्वऱ वक्त नमाज की मश्क करेंगे.
6)नमाज में नीगाहों को जमाएॊगे.
7) आखीर में अल्ऱाह से दवु ा करेगे नबी जैसी नमाज की तौफीक अता फरमाए उसका बातीन और जाहीर दोनो
सही करदे.
3) इल्म और र्वजक्र

इल्म

मकसद:
इल्म का मकसद यह है के तहकीक का जज़्बा हमारे अॊदर आ जाये. जाहीनऱयत वाऱी नजदॊगी हमसे छु ट जाये,
हराम और हऱाऱ की पहचान हो जायें हर अमऱ के वक्त यह ध्यान रहे मेर े अल्ऱाह का क्या हुक्म और आप स.
का क्या तरीका.

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फजीऱत:

1) हजरत अब्दल्ु ऱाह बीन मसउद रजी. फरमाते है के रसुऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया: जब अल्ऱाह ताआऱा
कीसी बन्दे के साथ भऱाई का इरादा फरमाते है तो उसे दीन की समझ अता फरमाते है और सही बात उसके
दीऱ मे डाऱते है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 20, सफा नॊबर 272)(बज्जार,तबरानी,मज्मउज्जवाईद)

2) हजरत इब्ने अब्बास रजी. फरमाते है के रसूऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया एक आऱीमे दीन शैतान पर एक
हजार आबीदो से ज्यादा सख्त है. (उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 29 सफा नॊबर 276)(नतरनमजी)

3)हजरत अबू हुररै ा रजी. से रीवायत है के रसूऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया उस शख्स की मीसाऱ जो इल्म
सीखता, फीर ऱोगो को नही सीखाता उस शख्स की तरह है, जो खज़ाना जमा करता है फीर उसमे से खचू नहीॊ
करता
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 45 सफा नॊबर 283)(तबरानी,तरनगब)
हार्वसऱ करने का तरीका

1)इल्म की फजीऱत को पढें गे, सुनेंगे और सुनाएॊगे.


2)इज़्तेमा और तानऱम की पाबॊदी करेगे.
3)मोतबर कीताबो से इल्म हासीऱ करेगे.
4) हक वाऱों की सोहबत इनख्तयार करेंगे.
5)जो हऱाऱ है उसे करेगे और जो हराम है उसे छोड देगे और जीस में शक है उसको उऱमा से पूछ पूछ कर
करेगे.
6) दन
ु ीया से बेरगबती इनख्तयार करेगे.
7)तवाज़ो इनख्तयार करेगे.
8)ककताबों का और उस्ताज का अदब करेगे.
9) अल्ऱाह से दवु ा करेगे नाफे इल्म अता फरमा अमऱवाऱा आजीजीवाऱा और इख्ऱासवाऱा.
जीक्र
मकसद:
गैरुल्ऱाह का ताअस्सुर हमारे दीऱो से नीकऱ जाए एक अल्ऱाह की अजमत और बढाई हमारे दीऱोमे आजाए
और हर वक्त ये खयाऱ रहे के में अल्ऱाह के सामने खडी हु और अल्ऱाह मुझे देख रहे है.
फजीऱत:
1) हजरत इब्ने अब्बास रजी. से रीवायत है के नबी करीम स. ने इरशाद फरमाया् चार चीजे ऐसी है जीस को
वो मीऱ गई उसको दन
ु ीया व आखीरत की हर खैर मीऱ गयी शुक्र करने वाऱा कदऱ, नजक्र करने वाऱी जुबान,
मुसीबतो पे सब्र करने वाऱा बदन और ऐसी बीवी जो ना अपने नफ़्स मे खीयानत करे यानी पाकदामन रहे
और ना शौहर के माऱ मे खीयानत करे.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 135 सफा नॊबर 333)(बज्जार,मज्मउज्जवाईद)

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2) हजरत इब्ने अब्बास रजी. फरमाते है के रसूऱुल्ऱाह स. से अजू कीया गया हमारे ऱीए कीस शख्स के पास
बैठना बेहतर है? आप स. ने इशाूद फरमाया नजसको देखने से तुम्हें अल्ऱाह तआऱा याद आए, नजसकी बात से
तुम्हारे अमऱ मे तरक्की हो और नजसके अमऱ से तुम्हें आनखरत याद आ जाए. (अबू याऱा,मज्मउज्जवाईद)

3) हजरत अनस रजी. से करवायत है के नबी करीम स. ने इरशाद फरमाया हर आदमी खता करने वाऱा है और
बेहतरीन खता करने वाऱा वो है जो तौबा करने वाऱे है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 238 सफा नॊबर 380)(नतनमूजी)
हासीऱ करने का तरीका

1)जीक्र के फज़ाईऱ को पढें गे, सुनेंगे और सुनाएॊगे.


2)इज्तेमा और ताऱीम की पाबॊदी करेगे.
3) तीन तस्बीहात की पाबॊदी करेंगे.
4) कुरान करीम की तीऱावत और उसको नतऱावत का मशगऱा बनाएॉगे.
5)मसनुन तरीके का एहतेमाम.
6)मसनुन दआ
ु वो का एहतेमाम.
7)कऱीमाते खैर े हमेशा अपनी जुबान पर हो, जैसे इॊशाअल्ऱाह, माशाअल्ऱाह, सुबहानल्ऱाह वगैरा.
8)मौत को कसरत से याद रखना.
9)ऱायानी से बचना.
10)अल्ऱाह से दआ
ु करना मुदाू दीऱ को नजॊदा करदे हर वक्त वाऱा ध्यान नसीब फरमा.
4)इकरामे मुस्ऱीम
मकसद:
उम्मत में जोड़ पैदा हो जाए और हर एक के ऱीए दीन पर चऱना आसान हो जाए.
फजीऱत:
1)हजरत आईशा रजी. फरमाती है के हमे रसूऱुल्ऱाह ने इस बात का हुक्म फरमाया के हम ऱोगो के साथ उनके
मरतबों का नऱहाज़ करके बरताव कीया करे.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 1 सफा नॊबर 428)(मुकदमा सही मुनस्ऱम)

2) हजरत सईद बीन अबू सईद रह. फरमाते है के हजरत अबू 'सईद खुदरी रजी. ने रसूऱल्ु ऱाह स० से अपनी
तॊगस्ती और जरूरत का इजहार कीया, रसूऱुल्ऱाह स० ने इरशाद फरमाया अबू सईद सब्र करो तुम मेसे जो
मुझसे मुहब्बत करता है. फक्र उस पर ऐसी तेजी से आता है जीस तेजी से सैऱाब का पानी वादी की ऊॉचाई
और पहाड़ो की बुऱद
ॊ ी से नीचे की तरफ आता है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 9 सफा नॊबर 432)( मुस्नद अहमद ,मज्मउज्जवाईद)

3) हजरत अबू हुरर


े ा रजी. रीवायत करते है के रसुऱुल्ऱाह ने इरशाद फरमाया जो शख्स कीसी औरत को उसके
शौहर के खीऱाफ या कीसी गुऱाम को उसके आका के खीऱाफ भडकाए वो हम में से नहीॊ.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर ३65 सफा नॊबर 569)(अबू दाऊद)

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हार्वसऱ करनेका तरीका

1)इकराम के फजाईऱ को पढ़ना, सुनना और सुनाना.


2)इज़्तेमा और तानऱम की पाबॊदी करना.
3) बेहतरीन अखऱाक इख्तीयार करना 1) जाऱीम को माफ करना 2) बुर े के सात अच्छा सुऱुक करना 3)तोडने
वाऱो से जोडना 4) जो अता से महरूम रखे उसको अता करना.
4)अपने हक को माफ करते हुए दस
ू रो के हक की अदाईगी.
5) जो अपने ऱीये पसॊद करे वो दस
ू रे मुसऱमान भाई के ऱीये पसॊद करना.
6) अपने गुनाह देखना और दस
ू रो की अच्छाईया देखना.
7)सऱाम को फै ऱाना, हदीया का रीवाज डाऱना.
8)बड़ो की इज्ज़त छोटो पर शफ़्फ़कत.
9)अल्ऱाह से दआ
ु करना हमे मुआशरा के बीगाड का सबब मत बना.
5)इख्ऱासे र्वनय्यत
मकसद:
हर अमऱ अल्ऱाह के ऱीये करना और उसके अज्र व सवाब की उम्मीद भी अल्ऱाह ही से रखना.
फजीऱत:
1)हजरत अबु हुरर
े ा रजी. से रीवायत है के नबी करीम स. ने इरशाद फरमाया (कीयामत के दीन), ऱोगो को
उनकी नीय्यतो के मुताकबक उठाया जाएगा यानी हर एक के साथ उसकी ननय्यत की मुताकबक मआमऱा होगा.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 3 सफा नॊबर 582)(इब्ने माजा)
(2) हजरत अबूज़र रजी. से रीवायत है के रसूऱुल्ऱाह स. से दरयाफ्त ककया गया ऐसे शक्स के बारे मे फरमाईए
के जो नेक अमऱ करता है और उसकी वजह से ऱोग उसकी तारीफ करते है (क्या उसे नेक अमऱ करने का
सवाब नमऱेगा, ऱोगो का उसकी तारीफ करना करयाकारी मे तो दानखऱ नहीॊ होगा?) आप स. ने इरशाद फरमाया
यह तो मोनमन को जल्द नमऱने वाऱी बशारत है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 19 सफा नॊबर 591)(मुनस्ऱम)
3) हजरत अबू सईद खुदरी रजी. फरमाते है के रसूऱल्ु ऱाह स. ने इरशाद फरमाया अगर कोई शख्स ऐसी चट्टान
के अॊदर बैठकर नजसमे न कोई दरवाजा हो, ना कोई सुराख हो, कोई भी अमऱ करे तो वो ऱोगो पर जाहीर
होकर रहेगा, चाहे वो अमऱ अच्छा हो या बुरा.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस् नॊबर 22 सफा नॊबर 592)(बैहकी)
हासीऱ करने का तरीका

1)ईख्ऱास की फजीऱत को पढे गे, सुनेंगे और सुनाएॊगे.


2) इज़्तेमा और ताऱीम की पाबॊदी करेंगे.
3)हर अमऱ से पहऱे ननय्यत करेगे.
4) दरमीयान मे ननय्यत को टटोऱेगे.
5) आखीर में अस्तगफार करेगे.

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6)रोजाना एक नेकी ऐसी करेंगे जीसका तज़कीरा मौत तक कीसी से नही करेगे.
7)अल्ऱाह से दआ
ु करेंगे ए अल्ऱाह हर अमऱ तेर े ऱीये करने वाऱा बना दे.
6)दावऱे ईऱल्ऱाह

मकसद:
हमारा जान, माऱ, वक्त अल्ऱाह के रास्ते मे खचू करना है ताके हमारी इस्ऱाह हो जाए और अल्ऱाह का दीन
ऱोगो तक पहुच
ॊ जाए.
फजीऱत:

1) हजरत अबु मसउद बदरी रजी. फरमाते है के रसूऱुल्ऱाह स. ने इरशाद फरमाया जीस शख्स ने भऱाई की
तरफ रहनुमाई की, उसे भऱाई करने वाऱे के बराबर सवाब मीऱता है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 39 सफा नॊबर 644)(अबूदाउद)
(2) हजरत सहऱ बीन साद रजी. रीवायत करते हैं के स्सूऱुल्ऱाह स० ने इरशाद फरमाया् अगर दन
ु ीया की कद्र व
कीमत अल्ऱाह ताआऱा के नज़दीक एक मच्छर के पर के बराबर भी होती तो अल्ऱाह ताऱा कीसी काफीर को
उसमे से एक घूट
ॊ पानी ना पीऱाते (क्योंकक दन
ु ीया की कीमत अल्ऱाह ताआऱा के नजदीक इतनी भी नहीॊ है,
इसनऱए काफीर फाजीर को भी दन
ु ीया बेहीसाब दी हुवी है.
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 51 सफा नॊबर 653)(नतनमूजी)
3)हजरत अबु हूरर
े ा रजी. फरमाते है के रसूऱुल्ऱाह स. ने एक जमात को अल्ऱाह ताआऱा के रास्ते मे जाने का
हुक्म दीया उन्होंने अजू कीया या रसूऱुल्ऱाह क्या हम अभी रात को चऱे जाए या ठहर कर सुबह चऱे जाए?
आप स. ने इरशाद फरमाया क्या तुम यह नहीॊ चाहते हो के तुम जन्नत के बागो मे से एक बाग मे ये रात गुजारो
यानी अल्ऱाह तआऱा के रास्ते मे रात गुजारना जन्नत के बाग मे रात गुजारना है।
(उद ू मुन्तखब अहादीस हदीस नॊबर 69 सफा नॊबर 660)(सुननेकुब्रा)

हासीऱ करने का तरीका

1)अल्ऱाह के रास्ते की फजीऱत को पढें गे,सुनग


ें े और सुनाएॊगे.
2) इज्तेमा और ताऱीम की पाबॊदी करेंगे.
3)फजाईऱे आमाऱ और मुन्तखब अहादीस की ताऱीम रोज़ाना अपने घर मे करेगे.
4)महरमो को अल्ऱाह के रास्ते मे तरनगब देकर भेजेगे.
5) उनकी मुआवीन और मददगार बनेंगे.
6)अल्ऱाह से दआ
ु करना या अल्ऱाह हमारी जान माऱ और वक्त और हर नेअमत को तेर े रास्ते के ऱीये कुबुऱ
फरमादे.

मुरत्तब: हाफफज मुहम्मद आरीफ इशाअती औरं पुरबाडी


उस्ताज़े मदरसा हज़रत फातेमा ऱीऱबनात, सेंदरू वादा, ताऱुका गॊगापुर, नजऱा औरॊगाबाद

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