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मुखपृ आलेख कहा नयाँ क वताएँ पु तक अंश उप यास अंश सं मरण समी ा

मुखपृ writeup राग दरबारी - आलोचना क फांस: रेखा अव थी

राग दरबारी - आलोचना क फांस: रेखा अव थी


Bharat 12/02/2014 02:30:00 Pm

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राग दरबारी - आलोचना क फांस
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रेखा अव थी Posted by श दांकन Shabdankan


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राग दरबारी पर एक संकलन तैयार करने क इ छा संभवत: 2005 म मेरे मन म आई थी । अपनी इस योजना पर
जब मने ीलाल जी से बात करनी चाही तो अपने वीतराग वभाव के कारण उ ह ने कोई खास उ साह नह दखाया
पर यदाकदा योजना पर छटपुट ढं ग से बात करते रहे ।

रचनाकार

अं कता जैन अंजना वमा अंजु अनु चौधरी अंजुम शमा

अंजू शमा अकु ीवा तव अ खलेश अ खले र पांडेय

अचला बंसल अचले र अजय नाव रया अ जत राय

अजीत अंजुम अज़ीम ेमजी अटल तवारी

अतुल चौर सया अदम ग डवी अनंत वजय

अन त काश नारायण अन या वाजपेयी अनवर मक़सूद

अनवर सुहैल अना मका अना मका अनु

अना मका च वत अन उमट अ नल जन वजय

अ नल भा कुमार अ नल यादव अ नल भा कुमार

अनीता यादव अनु सह चौधरी अनुकृ त अनुज

अनुज शमा अनुपमा तवाड़ी अनु या अनुराग

अनुलता अपणा वीन कुमार अपूव जोशी अपूवानंद

अबू अ ाहम अभय कुमार बे अ भषेक अव थी

अ भषेक कुमार अ बर अ भसार शमा अमर कशोर

जब मने यह ज कया क मेरी योजना महज संकलन तैयार करना नह है ब क राग दरबारी को क म रखकर अ मत कशोर अ मत बृज अ मत म अ मत म ा

समकालीन हद आलोचना क सै ां तक पड़ताल करना है, तभी उ ह थोड़ी आ त ई क अब फर शायद कोई अ मताभ राय अ मय ब अमीर खुसरो अमीश पाठ

एक रगड़ा राग दरबारी के साथ घ टत नह होगा । ऐसी ही बातचीत के दौरान उ ह ने मुझे लखनऊ आने का नमं ण अमृता ीतम अमृता बेरा अर वद कुमार
दया और यह क राग दरबारी क समालोचना से संबं धत जो भी साम ी उनके पास होगी वे मुझे ज र उपल ध अर व द कुमार 'सा ' अर व द जैन अ णआदय

करा दगे । जब म लखनऊ गई तो थोड़ी–ब त साम ी उ ह ने मुझे द अव य, साथ–ही–साथ कुछ जानका रयां भी अ णच रॉय अ ण माहे री अचना वमा

द । इस या म म आसानी से यह समझ गई क ीलाल जी उन लेखक म से नह ह जो अपने ऊपर लखी गई अपण कुमार अपणा कौर अलका सरावगी अ पना म

एक–एक पं सहेज कर रखते ह । अ धकांश चीज वे शोध–छा को बांट चुके थे । पर समाजशा ी ट –एन– अवध नारायण मु ल अवधेश नगम अ वनाश दास

मदान का अं ेजी म ल खत लेख सुर त था और वह मुझे मल गया । अशोक गु ता अशोक च धर अशोक म

अशोक वाजपेयी अशोक सेकस रया असग़र वजाहत

मुझे इस बात का गहरा :ख है क यह संकलन उनके जीवनकाल म पूरा नह हो सका । साम ी खोजने और जुटाने आँचल उ न त आकां ा पारे आचाय चतुरसेन
म काफ व लग गया । कुछ मेरा आल य और ढ लापन, साथ ही नया पथ से संबं धत काम एवं अ य तता आचाय व नाथ पाठक आदे श ीवा तव आनंद कुरेशी
के कारण ही यह वलंब आ । राग दरबारी के काशन के 40 वष पूरे होने पर सन् 2007 म का शत बारहव
आमोद महे री आर साद आर. पी. शमा आर. यो त
सं करण क तावना म ीलाल जी ने इस उप यास क बढ़ती अ तन ासं गकता क चचा के साथ ही समी ा
आरके स हा आरजे रौनक आराधना धान
के मतांतर को बड़े ही सकारा मक ढं ग से तुत करते ए यह कहा क ‘एक ही कृ त पर कतने पर पर– वरोधी
आ रफा ए वस आच म ा पचौरी आलोक जैन
वचार एक साथ फल–फूल सकते ह ।’
आलोक ध वा आलोक पराड़कर आलोक ीवा तव

आशा आपराद आ शमा आशीष कंधवे आशीष नंद


इस संकलन के पाठक को राग दरबारी से संबं धत समी ा के ऐ तहा सक प र े य क जानकारी दे ने के मम
आशुतोष कुमार इं दरा दाँगी इकबाल रज़वी
म यह उ लेख करना ज री समझती ं क इस उप यास को कसी ने अधूरा सा ा कार बतलाया, कसी ने ऊबाऊ
इज़ाबेल अलदे इ म त सरकार इरा टाक इ मत चुगताई
बताया, कसी ने इसम अंत का अभाव दे खा, कसी ने उप यास और कथाकार के कोण को पूणत:
इ माइल चुनारा ईशमधु तलवार उदय काश उ दत राज
नकारवाद बतलाया । इसके अलावा कृ त पर यह आरोप लगाया क इसम अ तशय कथन, अ तयथाथ, ं य–
उपासना सयाग उमर ख़ा लद उमाशंकर चौधरी
लीला और च ब लापन भरा पड़ा है ।
उमाशंकर सह परमार उमेश सह उमेश चौहान

कैसी व च सदाशयता है, जसका प रचय दे ते ए ीलाल जी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोप को भूलकर हद उमेश माथुर उ मला गु ता उ मला शरीष उ मला शु ल

समालोचना के वभाव को जनतां क माना । य प एक अलग संदभ म वे यह बतला चुके ह क ‘हमारी ब त–सी उषा उथुप उषा राजे स सेना उषा करण खान

समी ाएं कठोर नह ू र होती ह ।’ आलोचक को अपनी एक ट पणी म वे ‘अ य च ड़या’ क सं ा दे चुके ह, ऋचा अ न ऋचा पांडे म ा ऋतु भनोट

जसक ‘चहक’ रा ते से भटकाने म मा हर होती है । ऋ षकेश सुलभ एस आर हरनोट एस० आर० शमा

ओ.पी. नै यर ओम थानवी ओम न चल ओम पुरी


चौतरफा हार और नकारा मक आलोचना के बावजूद राग दरबारी क लोक यता बढ़ती रही । इस बात क ओम काश वालमी क क हैया क पल म ा क़ बानी
पु राग दरबारी के अब तक ए तीस से अ धक सं करण से होती है । चौतरफा भ सना, आलोचना और नदा क़मर वहीद नक़वी क़मर स क कमल कशोर गोयनका
अ भयान के बावजूद इस कार क अ तीय लोक यता अपने आप म एक पहेली तीत होती है । इसी लए इस कमल पांडेय क पेश या नक क याणी कबीर
संकलन के मा यम से उ ल खत पहेली को खोलने और राग दरबारी क जन– वीकृ त के मूल कारण क खोज
क वता (ले खका) कालबुग करण सह कुँवर नारायण
करने का मने यास कया है ।
कुबेर द कुमार अनुपम कुमार मुकुल कुमार व ास

कृ च दर कृ ण कुमार सह कृ ण बहारी
इस पु तक म समी ा , ट प णय और लेख का संचयन काल– मानुसार कया गया है । इस म के मा यम से
कृ णा अ नहो ी कृ णा सोबती के ब म सह
आलोचना क अराजकता क एक मुक मल त वीर दखाई पड़ती है । वैसे तो य भी कहानी या उप यास
के स चदानंदन केदारनाथ सह कै टन नूर
समालोचना क कोई सुसंगत वै ा नक प त का वकास–प र कार अभी तक हद म नह हो पाया है । ले कन
कैफ़ आज़मी कैलाश नारायण तवारी कैलाश वाजपेयी
तमान और ववेचना व धय क पूणत: अवहेलना करके चाहे तो कुलीनतावाद सं कार क छाया म समी ाएं
क़ैस जौनपुरी कौशलनाथ उपा याय लॉड इथरली
लखी जा रही ह या गत राग– े ष एवं गत च–अ च के पैमाने से औप या सक कृ तय का
खुशवंत सह गंगा सहाय मीणा गगन गल ग़ज़ाल जै़ग़म
आलोचना मक व ेषण कया जा रहा है । राग दरबारी के संदभ म ये वृ यां खास तौर पर झलकती ह । कुछ
ग रमा ीवा तव ग रराज कशोर गरीश पंकज
समालोचक तो अर तू ारा तुत े जेडी–कॉमेडी के का या ना स ांत को मनमाने तरीके से लागू कर
गीत चतुवद गीतम गीता चं न गीता बे
आलोचना क अराजकता बढ़ाने म योगदान करते ह । अगर कसी कृ त को े जेडी बताएंगे तो यह भी न कष
नकालगे क इस कृ त म गहरी अनुभू तय से रस स संवेदना है और अगर कॉमेडी के खाने म डालगे तो यह गीता पं डत गीता ी गी तका 'वे दका' गुलज़ार

न कष नकालगे क उ कृ त म अनुभू तय का उथलापन है । ऐसे अनेक ववेचन म राग दरबारी को ‘कॉमेडी गोपालदास नीरज गोपीनाथ महां त गो वदाचाय

उप यास’ स कया गया है । इससे हम हद म मू यांकन के तर को समझ सकते ह । गौरव पाठ गौरव स सेना "अद ब" गौरीलंकेश

चंचल चौहान चं धर शमा गुलेरी च डीद शु ल

राग दरबारी उप यास के मूल म व मान ोभ, :ख और क णा क भावानुभू त को पहचानने म कुछ आलोचक च पा शमा च ा मु ल ज़ कया जबैरी जगजीत सह

चूक गए ह । चूं क आलोचक का खुद ही रा ीय वकासनी त और नेह के छ समाजवाद से मोहभंग नह आ जगद बा साद द त जय काश नारायण जय काश मानस

था, अत: राग दरबारी क कथाव तु के अ भ ाय को वे लगातार नकारवाद बताते रहे । आलोचक जब वयं ही जयशंकर जय ी रॉय जया जादवानी जवाहरलाल नेह
समाज व था के व तुपरक यथाथ के त मोहास होगा तो उस व था के अंतगत पल रही म कारी, ज टस काटजू जां नशार जा कर नाइक जा ज़ब ख़ान

जन वरोधी वृ और व भ न पा के उ पीड़क सामा जक आचरण को च त करने वाली कथाकृ त को, जा हर जावेद अ तर जते ीवा तव जैने कुमार ानरंजन

है असंतोष का खटराग बताएगा, महाऊब का महा ंथ बताएगा और व तु न व ेषण का रा ता छोड़कर यो त चावला यो तष जोशी ट .एन. लालानी

आलोचना क अराजकता को फलीभूत करेगा । ड पल सह चौधरी डॅा. (सु ी) शरद सह डे नस मुकवेगे

डॉ .ब चन पाठक स लल डॉ अजय जनमेजय ड़ॉ ीत अरोड़ा

राग दरबारी पर पहली समी ा ने मचं जैन ने लखी थी । उप यास क च णशैली म अंतभूत अंत और यथाथ डॉ सर वती माथुर डॉ. अ नता कपूर डॉ. एल.जे भा गया

के तुतीकरण म अंतभूत सामा जक ं ा मकता के बजाय ने म जी राग दरबारी म आ ंत यथाथवाद सपाटता डॉ. क वता वाच नवी डॉ. बभा कुमारी डॉ. रमा

दे खते ह । 1968 म लखी गई इस समी ा को त कालीन ववाद से अलग हटकर पढ़ना उ चत नह होगा य क डॉ. रमेश यादव डॉ. र म डॉ. राजे नाथ पाठ
उस समय के कथालेखन म ाय: म यवग य कोण से ी–पु ष संबंध का अंत तुत करने वाली कृ तय डॉ. वागीश सार वत डॉ. व यम ण डॉ. शव कुमार म
को ही े माना जा रहा था । ब त बाद म ीलाल जी ने अपना प रखा और यह बताया क राग दरबारी क
डॉ. सुनीता त ण भटनागर त ण वजय
रचना का ेरणा ोत भारतीय ामजीवन के अंत वरोध क पहचान म ही न हत ह । जन लेख और ट प णय म
तसलीमा नसरीन तहसीन मुन वर ता रक छतारी
ीलाल शु ल अपना प तुत करते ह, उ ह भी मने इस संकलन के खंड–3 म शा मल कर लया है । इस संग म
तुलसी राम तेज सह ते ज दर गगन तेजे शमा
खास तौर पर म दो अ य लेख का उ लेख करना आव यक समझती ं जो इस सं ह म शा मल नह कए जा सके ।
दयानंद पांडेय दा मनी यादव दनेश कुमार
पहला लेख है–‘तलाश जारी है आम आदमी क ’ तथा सरा लेख है–‘मुझे अपने से र मत करो, वसुंधरा!’ ने म जी
दनेश कुमार शु ल दलीप तेतरवे द वक रमेश
क समी ा के बाद दो युवा रचनाकार –कमलेश तथा नीलाभ ने राग दरबारी के क य के मूल अ भ ाय क ववेचना
द ा वजय द ा शु ला द पक धमीजा
तुत क । आजाद के बाद के ह तान म अपनाई गई गलत नी तय क ‘सड़ांध’ के त ोभ, ोध और घृणा
द पक भा कर द त गु ता द त बे द त ी ‘पाठक’
का जैसा कथा मक व तु वधान राग दरबारी म तुत कया गया है, उसे ‘तीखे रंग के यथाथ’ क उ ारा
यंत धनाथ सह दे वद प नायक दे व काश चौधरी
उपयु दोन रचनाकार ने अ भ हत कया । उपे नाथ अ क ारा लखी गई व तृत समी ा म यह बताया गया क
दे वराज वरद दे वाशीष सून दे वी नागरानी
इस कृ त म यथाथवा दता के साथ कला मकता और व तु– न पण का अ त स मलन मलता है । अ क जी ने
दे वेश पथ सा रया दोपद सघार धमवीर भारती
कोई अगर–मगर नह लगाया । यह समी ा थोड़े सं त प म ‘ काशन समाचार’ और ‘मु धारा’ म का शत
ई थी । यहां यह उ लेखनीय है क कमलेश जी ने पहली बार राग दरबारी के आलोचक क सवण मान सकता पर धीरज म ा नबा ण भ ाचाया न मता गोखले

हार करते ए यह बताया क कुछ आलोचक के सुस य और श मन को झटका–सा लगा य क ‘म यवग य नरेश स सेना न लन चौहान नवनीत पा डे नवीन कुमार

पाबंद को राग दरबारी के ब तेरे अंश फूहड़ और अ ील लगगे ।’ शासक वग ने गांव म मल वसजन क ना ज़म हकमत नामवर सह ना सरा शमा

सु वधाजनक व था का नमाण नह कया है, अत: राग दरबारी म मल वसजन के जतने भी वणन आए ह, उन न यानंद तुषार नदा फ़ाज़ली नधीश यागी नमल वमा

पर अनेक समी क ने नाक–भ ह सकोड़ी है । कुंवर नारायण जी ने इसी तरह के वणन के बारे म लखा है क नमला जैन नमला भुरा ड़या नशात खान

‘ऐसे कई थल ह जहां इ छा होती है क लेखक य द इतना अ धक यथाथ के पीछे नह पड़ता तो अ छा होता, ंय नहाल पराशर नीता गु ता नीरजा चौधरी नीरजा पांडेय

के हत म ब त अ छा होता ।’ कमलेश जी ने नव बर 1968 के ‘ दनमान’ म का शत अपनी समी ा म आंच लक नीर नागर नीलम मलका नया नीलम मैद र ा 'गुँचा'

उप यासकार क मानी क सीमा क आलोचना क है और आंच लक उप यास म राग दरबारी जैसी गैर– नीलाभ अ क नी लमा चौहान नीलो पल ने मच जैन

मानी स दय– तथा च ण व ध के अभाव को रेखां कत कया है । पंकज चतुवद पंकज सून पंकज राग पंकज शमा

पंकज शु ल पंकज सह पंकज सुबीर पंखुरी स हा

परमानंद ीवा तव क समी ा ‘धमयुग’ म का शत ई थी । उ समी ा म वे यह बताते ह क राग दरबारी ारा पं डत याम कृ ण वमा प ा म ा परंजॉय गुहा ठाकुरता

तुत अस लयत का सामना हमारा बु जीवी समाज नह कर पा रहा है । वै ा नक व ेषण क से परेश रावल पवन करण पशुप त शमा पा ल पुखराज
ह तानी दमाग के भीतर मौजूद अवरोध तभी समा त हो सकता है जब वह मू यहीनता के च ण के मम
पा थव शाह पी साइनाथ पी. चदं बरम पुखराज जाँ गड़
ं या मक हार क न संगता के त हणशील होगा । राग दरबारी म त कालीन भारतीय गांव के जीवन यथाथ
पु य सून बाजपेयी पु षो म अ वाल पु पक ब ी
के ं के च ण क ासं गकता और साथकता उप यास क श प व ध म प रवतन पर नभर करती है ।
पु पलता पूनम अरोड़ा पूनम स हा काश के रे
कथा व यास और श प व ध का यह प रवतन परमानंद ीवा तव के व ेषण का आधार है । इसी ब पर खड़े
ा ा पा डेय ताप भानु मेहता ताप सोमवंशी
होकर वे तमाम आरोप का खंडन करते ह और संकेत के ारा व भ न समी ा म उठाए गए के उ र ब त
तभा तभा गोट वाले तभा चौहान
ही सधे तरीके से दे ते ह । इसके बावजूद राग दरबारी को लेकर ववाद का सल सला बंद नह आ, चूं क व भ न
तमा अ खलेश तमा स हा य ा दपपत
आलोचक के अलग–अलग क म के तमान के भीतर जो मतांतर थे, वे मूलत: वैचा रक थे, यहां तक क यह
द प ीवा तव द प सौरभ भाकर ो य
बहस नाक क लड़ाई और गुटबाजी तक म त द ल हो गई ।
भात पाठ भात पटनायक भात रंजन

भाती नौ टयाल भु जोशी याग शु ल


कमलेश, नीलाभ, उप नाथ अ क और परमानंद ीवा तव को दर कनार कर ीपतराय क जो समी ा ‘कथा’
स न कुमार चौधरी ांजल धर ाण शमा ाणेश नागरी
प का म का शत ई उसम यह बाजा ता एलान कया गया क राग दरबारी ‘बड़ी ऊब का महा ंथ है’ है और
तपाल कौर यंवद यदशन यम अं कत
अप ठत रह जाना ही इसक ‘ नय त’ है । उनके श द म ‘अ तयथाथ उप यास के आंत रक व प को न करता है
।’ न कष यह क यथाथ क े ण व ध पर आकर आलोचना अटक गई या, व तुत: फंस गई । यथाथ के मानी ी तश न द ेम जनमेजय ेम भार ाज
और गैर– मानी च ण क बहस भी लंबे समय तक चलती रही । 1975 म न यानंद तवारी ने अपनी एक ेम शंकर शु ल ेम शमा ेमचंद ेमचंद गाँधी

आलोचना मक ट पणी म राग दरबारी के यथाथ च ण क कथनभंगी को ‘ ं य लीला’ क सं ा द , जब क ेमा झा ो० चेतन फक र जय काश फ़राक़ गोरखपुरी

1969 म परमानंद ीवा तव ने इस वै श को मू यहीनता के च ण के लए ज री बताया था । कमले र 1970 क जूर बरखा द बलदे व वंशी बलराम अ वाल

म अपनी ट पणी म दो टू क श द म लख चुके थे : ‘सचाई यह है क कथाकार जानबूझकर आघात नह प ंचाता । बलव त कौर बासु चटज जेश पांडे जेश राजपूत

वह संपूण संदभ म कुछ इस तरह े ण कर अंत: वेश करता है क उससे ं य और उपहास उ प न होता है ।’ भगवानदास मोरवाल भरत तवारी भाई परमानंद

भारत भार ाज भारत यायावर भालचं जोशी

भालचं नेमाडे भावना मासीवाल भी म साहनी

भूपेश भंडारी भू मका वेद मंगलेश डबराल


चं कांत बां दवडेकर के अकाद मक ढं ग के ववेचना मक आलेख म तब तक के सभी मत का समाहार करने का
मंजरी ीवा तव मंजू म ा मक़बूल फ़दा सैन
यास दे खा जा सकता है । ‘क य को तुत करने क ’ से राग दरबारी को वे मह वपूण उप यास मानते ह । पर
मज़कूर आलम मज ह सु तानपुरी म णका मो हनी
ने मचं जैन क तरह वे यह भी कहते ह क इसम ‘नए क तलाश नह है, वा त वकता के अनपहचाने, अप र चत
मदन क यप मदन मोहन समर मधु कांक रया
पहलू को अ वे षत करने का यास नह है ।’ राग दरबारी पर इस तरह के आरोप ारंभ से ही लगते रहे ह । य प
मनजीत बावा मनद प पू नया मनमोहन कसाना
ने मचं जैन ‘सवसामा य अनुभव– तर का दो टू क तुतीकरण’ इस उप यास क उपल ध मानते ए भी कहते ह
मनमोहन सह मनीषा कुल े मनीषा जैन
क ‘द खने वाली जदगी पर दबाव डालती नीचे कोई और जदगी’ नह है । इसके साथ–साथ वे यह भी कहते ह क
मनीषा पांडेय मनोज कचंगल मनोज कुमार पांडेय
‘उसम न तो कोई ं है, न ग त’ । ऐसी ट प णय के प र े य म हम आलोचना और स दयबोध क अ भजात,
मनोहर याम जोशी म नू भंडारी ममता का लया
भ समाज क सं कारवाद अ भ च क जांच–पड़ताल करनी चा हए ता क यह प हो सके क वरोध का मूल
मयंक स सेना मलय जैन म आ माजी महे जाप त
कारण इस त य म है क राग दरबारी म यवग य भाव और वचारबोध पर सीधे–सीधे और ब त ही ढ़ता से चोट
महे भी म महेश चं गु महेश च पाठ
करता है ।
महेश भार ाज महेश शमा मायामृग माल न जे स

लगभग 12 वष तक आलोचना म जो वतंडावाद छाया रहा, उससे भ न क म क नई समी ाएं 1980 के बाद माल वका माल वका जोशी मा लनी अव थी

का शत होने लग । आलोचना के इस नए दौर म अब राग दरबारी को लेकर नदापरक लेख का शत होने बंद हो मा टर मदन म हर शमा मीना कुमारी मीना चोपड़ा

गए । नए आयाम को उ ा टत करने का सल सला शु आ । 1990 के आसपास भूमंडलीकरण और मुंशी ेमच द मुईन अहसान 'ज बी' मुकेश कुमार स हा

उदारतावाद को लेकर जो भी नई बहस ◌इं, वे सफ राजनी त या अथ व था तक सी मत न होकर सा ह य– मुकेश केजरीवाल मुकेश पोपली मुकेश भार ाज

सं कृ त के े म होने लग । इस सल सले म एक नई पहलकदमी समाजशा ी व ान क ओर से शु ई । इन मु ारा स मुरली म सह मूसा खान मृणाल पा डे

लोग ने हद उप यास म च त समाज का व ेषण ानमीमांसा के नए औजार से करना ारंभ कया । नतीजा मृ ला गग मेहरीन जाफरी मै ेयी पु पा मैनेजर पा डेय

यह क 1980 के पहले क बहस को दर कनार कर असं द ध प म राग दरबारी को ला सक कृ त का दजा मल मोगुबाई कुरद कर यती म यशपाल

गया । यश वनी पांडेय याकूब मेमन यू आर अनंतमू त

यूनुस ख़ान ये ग़शे छार स यो गता यादव रंजन गरी

रंजीता सह रघुवंश म ण रघुवीर सहाय रचना आभा

रचना यादव रजनी रजनी गु त रण वजय सह स यकेतु

रम णका गु ता रमा भारती रमेश यादव र वश ‘र व’

रवी का लया रवी पाठ रवीश कुमार

र म चतुवद र म ना बयार र म भा र म बड़ वाल

र म सह राकेश कुमार सह राकेश पाठक

राकेश बहारी राकेश मढोतरा राखी सुरे कनकने

राजद प सरदे साई राजपाल रा ज दर अरोड़ा

राजे दानी राजे साद राजे म राजे यादव

राजे राव राजेश झरपुरे राजेश म ल राजेश म ल


Rag Darbari Alochana Ki Phans
Author : Rekha Awasthi राजेश शमा राजे र व श राम कुमार सह रामकुमार

Pages : 340 रामच गुहा रावू र भर ाज रा ल दे व

Year : 2014 रा ल सांकृ यायन रया शमा रीता राम च भ ला

ISBN 10 : 8126726334 प सह च दे ल पा सह रेखा अव थी रेणु सैन

Binding : Hardbound रेव त दान बारहठ रोहन स सेना रो हणी अ वाल

ISBN 13 : 9788126726332 रो हत वेमुला ल मी अजय लता मंगेशकर लव तोमर


Language : Hindi ला ल य ल लत लीना म हो ा रॉव लीलाधर मंडलोई

Publisher : Rajkamal Prakashan वंदना गु ता वंदना ोवर वंदना राग वंदना सह

व सला पा डेय व ण व णका व तका न दा

वाज़दा खान वजय कुमार स प वजय मोहन सह

स समाजशा ी यामाचरण बे क न न ल खत मा यता उ लेखनीय मानी जाती है, चूं क राग दरबारी के वजय राय वजय व ोही वजया का डपाल व ा शाह

सामा जक अ भ ाय तथा ामीण जीवन के अंत वरोधी सारत व को उ ह ने हद समालोचक क तुलना म भ न वनीत कुमार वनीता शु ला वनोद कुमार दवे

से रेखां कत कया था : वनोद ख ना वनोद तवारी वनोद पाराशर

वनोद भारदवाज वनोद भार ाज वनोद व कमा


शवपालगंज क कहानी परंपरा और ग त के मुखौट क कहानी है, जन पर लेखक ने नमम हार कए ह, अपने
वभा रानी वभू त नारायण राय वमल कुमार
सश पर नयं त ं य से । गांव के बदलते प रवेश का इतना रोचक ववरण अ य लभ है । शैली म न कह
वमलेश पाठ ववेक म व जीत राय चौधरी
उलझाव है, न बो झलता । वराट समाजशा ीय क पना वाले बीस व ान ामीण यथाथ के बारे म जो नह कह
व द पक व नाथ पाठ व नाथ साद तवारी
सकते, वह इस एक उप यास म ीलाल शु ने कह दया है । (परंपरा, इ तहासबोध और सं कृ त, पृ– 140–41)
व णु खरे वीणा शमा वीना करमचंदाणी वी सोनकर

वीरेन डंगवाल वीरे यादव शक ल हसन श सी

शबनम हा मी शमशाद इलाही श स शमशाद सेन


बे जी क तरह ही स समाजशा ी ट –एन– मदान भी राग दरबारी को अपने अ ययन क ोत साम ी का
शरद आलोक शरद जोशी शरद यादव
आधार बनाते ह । 1938 म का शत राजा राव के अं ेजी उप यास ‘कांथापुरा’ और हद के राग दरबारी (1968)
श मला बोहरा जालान शशांक म शशथ र
को ट –एन– मदान ने सामा जक तरोध आंदोलन का त न ध व करने वाली कृ तय के प म अपने ववेचन का
श श दे शपांडे श शभूषण वेद शा लनी माथुर
वषय बनाया । मुझे इस बात क स नता है क ट –एन– मदान का पूरा लेख अं ेजी से हद म अनुवाद कराकर
इस संकलन म शा मल कया जा रहा है । अभी तक यह लेख हद पाठक समुदाय के लए अनुपल ध था । शालू 'अनंत' शखा वा णय श पा शमा श पी मारवाह

समाजशा ीय समालोचना के सल सले क एक मह वपूण कड़ी के प म द लत रचनाकार जय काश कदम का शव साद सह शवमू त शवरतन थानवी शवानी

भी लेख इस संकलन म शा मल कया जा रहा है । शवानी कोहली 'अना मका' शवानी वमा शव कुमार सह

शीन काफ़ नज़ाम शीबा असलम फ़हमी शुऐब शा हद

राग दरबारी पर चचा के म म अं ेजी के जन व ान का नामो लेख कया जाता है, उनम पट नेल मुख ह । शुभम ी शेखर गु ता शेखर सेन शैफाली 'ना यका'

पगुइन से राग दरबारी के अं ेजी अनुवाद के काशन के पहले ही 1990 म पट नेल ने उ कृ त पर एक लंबा शैले कुमार सह शैले शैल शोभा र तोगी

ववेचना मक लेख लखा था । ‘त व’ के संपादक अ खलेश ने 1999 म जब अपनी प का का ीलाल शु ल पर याम बेनेगल याम सखा ' याम' यामा साद मुखज

क त वशेषांक नकाला तो पट नेल के अं ेजी लेख का हद अनुवाद भी का शत कया था । इस लेख से ही ी ी ीमंत जैन ीलाल शु ल ेता यादव
यह पता चला क राग दरबारी पर जमन तथा अ य यूरोपीय भाषा म भी चचा चल रही है । पट नेल ने खुद भी संगीता गु ता संजना तवारी संजय कुंदन संजय पाल

अपने लेख म ेमचंद और रेणु के गांव से राग दरबारी के गांव क भ नता रेखां कत क है । उप यास के भाषा श प संजय वमा ' ' संजय शेफड संजय सहाय संजीव
पर उनका यान यादा क त है । उनक मा यता है क संजीव कुमार संतोष वेद संतोष भारतीय संतोष सह

संद प कुमार सआदत हसन मंटो सईदा हा मद


यहां यथाथवाद च र – च ण का नह ं य के श ागार का एक ह थयार है । यह व छं दतावाद के नीचे से नमदा
स म वेद स चन स चन गग स चन राय
ख च लेने और हर उस चीज, जसम कृ म कला मकता क गंध आती है, को उघाड़ दे ने के ीलाल शु ल के इरादे
स चदानंद जोशी सतीश जमाली स य जत राय
का अंग है ।
स यनारायण पटे ल सय ताप सह स ये पीएस

सदानंद मेनन सदानंद शाही स त समीर सपना सह

समीर शेखर समृ शमा स यदै न जैद सरला माहे री


‘त व’ के इसी वशेषांक म वीर यादव का एक मह वपूण ल बा लेख है जो एकदम बेलाग तरीके से ही नह ब क
सव या सांगवान सवश कुमार सवश पाठ
नए ढं ग से राग दरबारी के पाठ क मीमांसा तुत करता है, कतु इसम कुछ मु पर ने मचं जैन और ीपत राय
सलमान द सलीम कौसर सलीमा हाशमी
क कटू य क ही त यव नयां सुनाई पड़ती ह । इसके अ त र वीर यादव यह मानते ह क ीलाल शु ल
स वता सह साग रका घोष सा वी खोसला
‘अं ेजी मुहावरे’ के कथाकार ह :
सारा शगु ता सधुवा सनी सनीवाली शमा

अ भजातवग य ख अपनाते ए अं ेजी मुहावरे म नदा मक नकार के जस धरातल पर खड़े होकर वे भारतीय स मी ह षता सीमा शमा सुकृता पॉल कुमार

यथाथ को दे खते ह, वह डयाड कप लग, ई–एम–फा टर, नीरद सी– चौधरी और वी–एस– नायपॉल के काफ कुछ सुजाता म ा सुदशन ‘ यद शनी’ सुदेश भार ाज

स नकट है । सुधा अरोड़ा सुधा ओम ढ गरा सुधा राजे सुधा सह

सुधांशु फ़रदौस सुधाकर अद ब सुधीश पचौरी सुधेश

सुनीता गु ता सुनील द ा सुनील म सुनील यादव


इसके अलावा वीर यादव ीलाल शु ल और ेमचंद के बीच पाथ य क प लक र ख चते ए इस न कष पर
प ंचते ह क ‘राग दरबारी ा य जीवन क अधूरी त वीर है ।’ उनका यह भी मानना है क समूचे उप यास म लंगड़ सुबोध गु ता सुभाष नीरव सुभा षणी अली सुमन कुमारी

ही एकमा ऐसा च र है ‘जो संघषशील होने का आभास दे ता है ।’ उपयु ट प णय से यह प हो जाता है क सुमन केशरी सुमन सार वत सुर राजपूत

ग तशील आलोचना– के लए राग दरबारी अब भी एक कर करी या फांस क तरह है । सुरे मोहन पाठक सुरे राजन सुरेश शमा

सुरेशच शु ल सुशांत स हा सुशांत सु य

सन् 2000 म ‘वतमान सा ह य’ के शता द कथा–सा ह य वशेषांक म राग दरबारी पर मु ारा स का लेख छपा । सुशील उपा याय सुशील कुमार भार ाज सुशील जायसवाल

यह अजीब बात है क बीसव सद के मील के प थर उप यास क चचा के म म राग दरबारी को तो उ ह ने चुना सुशील स ाथ सुशीला शवराण ‘शील’ सूजा

है, पर इसके साथ ही इस कृ त के वजूद को ही उ ह ने कठघरे म यह उठाकर खड़ा कर दया क सोनम कपूर सोन पा वशाल सोनाली म सोभा सह

सौरभ पा डेय सौरभ राय सौरभ शेखर नोवा बान

या कारण है क दे श म मयादा ंश पर लखे गए इस ‘महाभारत’ म अपंग, गरीब, लाचार अथवा व ा को हंसी का मता स हा मृ त ईरानी व ल ीवा तव
पा बनाया गया ? सामंत, सेठ, कोतवाल, लाट साहब या नेता इस हार क सीमा से पूरी तरह बाहर ह ।
वरांगी साने वरा य वा त तवारी वा त मालीवाल

वा त ेता वामी सदानंद सर वती वामीनाथन

ह र शंकर ास ह रओम ह र साद चौर सया


राग दरबारी को यथा थ तवाद कृ त बतलाते ए मु ा जी ने यह ट पणी क क ‘ व था के कुकम को अपने
ह रशंकर परसाई हरीश च बणवाल हरे काश उपा याय
आप म नरापद करने का यह एक बड़ा रचना मक यास बन गया ।’ हद आलोचना म कुपाठ क जो प रपाट है,
हषबाला शमा हसन जमाल हसरत जयपुरी
उसी क एक मसाल के प म मु ारा स का लेख पठनीय बन गया है, चूं क ऐसे लेख सामा जक संरचना के
हा शम अंसारी हीर झा षीकेश सुलभ हेन रक इ सन
व भ न पहलु के उ ाटन क आव यकता पर जोर दे ते ह और यथाथ के अंत वरोधी पहलु क पहचान कराते
हेमा द त
ह । इसके ठ क वपरीत 2002 के अंत म कसौट प का का एक वशेषांक ‘बीसवी शती : कालजयी कृ तयां’ के
नाम से का शत आ जसम सुवास कुमार का लेख सु च तत–संतु लत समी ा–प त क मसाल के प म
पठनीय है । इस लेख म कमलेश, नीलाभ, अ क, परमानंद ीवा तव आ द क तक– व ेषण परंपरा क अटू ट
कड़ी के प म सारे ववाद का मानो समाहार कया गया है । इस लेख का न कष उ लेखनीय है : ‘राग दरबारी म
अनेक थल पर असंय मत–सी तीत होने वाली ंजक भाषा दरअसल वणन क और व य व तु क मांग है ।’

सुवास कुमार यह मानते ह क सही स चे ंयक खरता को ‘अ भजात प’ और ‘पा ा य मू य’ से जोड़ा नह


जाना चा हए । उनक यह उ ब त मह वपूण है क ‘स चे ं य क मूल कृ त दे शज होने के बावजूद
अ नवायत: वै क और मानवीय होती है ।’

2005 म ीलाल शु ल के अ सी वष पूरे होने पर उनक कृ तय के स दय पाठक , म तथा े मय ने अमृत


महो सव मनाया और इस अवसर पर ‘ ीलाल शु ल : जीवन ही जीवन’ नाम क पु तक का शत क गई तो उसम
अनेकानेक मह वपूण लेखक के आलोचना मक नबंध शा मल कए गए । उ पु तक के कुछ आलेख इस संकलन
म दए गए ह । इस पु तक के संपादक के नाते अपनी भू मका म नामवर सह ने ीलाल जी के संपूण लेखन को, च चत
समाज और सा ह य–दोन म हर तरह के ह बग के खलाफ एक सजना मक ‘अ भयान’ बताया ।
ेमचंद के फटे जूते — ह रशंकर परसाई
Premchand ke phate joote hindi
इस अ भयान क ता कक और कला मक प रण त के लए ‘सबसे कारगर ह थयार यह व और बांक भाषा’ है । premchand ki kahani

वक प म या तो आ ोश क भाषा है या फर गाली–गलौज । ले कन इस वक प के साथ द कत यह है क इससे 3/14/2016 07:00:00 Am

ु लेखक कुछ दे र के लए अपने आपको भले ह का कर ले, सामा य पाठक खाली–खाली ही रहता है । इस
मेरा अ ात तु ह बुलाता है — नोवा बान क
थतम न त प से ीलाल क व ता कह अ धक ा है, जसे पढ़ने म मजा आता है ब क जसे बार–बार अ त ेम कहानी
पढ़ने को जी चाहता है । और कहना न होगा क कसी सा ह यक कृ त के अ त व क यह पहली शत है, जो दन– 3/14/2017 08:30:00 Am

पर– दन लभ होती जा रही है ।


कहानी "आवारा कु "
े - सुमन सार वत

3/04/2013 01:22:00 Pm

नामवर सह अपने व ेषण के ारा इस न कष पर प ंचे क ं य क अ तशयता और ग शैली क व भं गमा


अट नह रही है — सूयकांत पाठ नराला
व तुत: ‘झूठ क खोज’ के लए ज री है ।
Happy Holi

3/12/2017 04:57:00 Pm
अमृत महो सव के समय का शत उ पु तक म कृ ण बलदे व वैद का भी एक लेख है । इस लेख म यह बताया
गया है क ख़ त, व ोभ और हा य ( ं य) का अभाव भारतीय उप यास क एक ब त बड़ी कमी रही है कतु अना मका क क वताय Poems of
Anamika
‘ ीलाल शु ल का शुमार हद उप यास म ं य के उन ब त ही कम बड़े साधक म कया जा सकता है जनके
काम म नै तक और बौ क हंसी को नरंतर सुना जा सकता है ।’ इस मंत का ता कक आधार भी कृ ण बलदे व 8/26/2014 12:47:00 Pm

वैद तुत करते ह :

रेणुरंग — कहानी: क बे क लड़क —


बु नयाद तौर पर उनके ख़ त क जड़ उस क चड़ म है जसे हमारे अ धकतर यथाथवाद उप यासकार अधमुंद
फणी रनाथ रेणु — एक अनगढ़ मासूम
आंख से ही दे खते ह, नीमजान ा से ही आंकते ह और उसम से अपने का प नक कमल खलाते रहते ह । सौ दय — रीता राम दास

ीलाल शु ल उस क चड़ को खुली आंख से दे खते ह, उसका नमम भावुकता–मु कला मक च ण सूनी घाट 8/09/2020 01:37:00 Pm

का सूरज से शु कर कमोबेश अपने हर उप यास म करते ह, वशेष तौर पर अपने सवमा य शाहकार राग दरबारी
डरावनी कहानी — खौफ़नाक ाइव — इरा
म, और उस क चड़ म से, कसी वचारधारा के दबाव म कोई आशावाद कमल नह उगाते ।
टाक

3/09/2017 08:42:00 Am

चतुभुज थान क सबसे सुंदर और महंगी बाई


राग दरबारी के मू यांकन से संबं धत हद समालोचना म दो तरह क धारा के पीछे कौन–से कारण याशील ह
आई है
? खासकर कमलेश, परमानंद ीवा तव, अ क, कमले र, नीलाभ, शवकुमार म , सुवास कुमार, अ ण कमल,
5/19/2017 11:35:00 Am
पंकज सह, शंभुनाथ, लीलाधर जगूड़ी, पंकज चतुवद , वैभव सह आलोचना क जस कसौट पर इस कृ त को
परखते ह, उसका मूल उ स कहां है ? आपातकाल से लेकर अंतरा ीय व ीय पूंजी के आ ामक दौर के आते– गुलज़ार क 10 शानदार क वताएं!
#Gulzar's 10 Marvellous Poems
आते, यथाथ के तीखे अंत वरोध के व फोट होने के बाद जो समालोचक जीवन को खुली आंख से दे खते ह, वे इस
6/26/2014 10:19:00 Pm
कृ त क ासं गकता और साथकता को लेकर पूरी तरह आ त ह । इन सभी समालोचक क समी ाप तम
पुनपाठ का ववेचन तकातीत नह है । पंकज सह क यह ट पणी ब त मह वपूण है क ‘राग दरबारी के आंत रक द लत सा ह य का व प नखारती, अजय
नाव रया क रोचक मानी कहानी "आवरण"
एकालाप म गहरा वडंबना–बोध है और यथाथ के टु कड़ क प चीकारी के साथ जो तयक ंजना रस– रस कर
9/11/2019 10:31:00 Am
आती है, उसम गहरा वषाद है और उस वषाद का प र े य सघन सामा जक मानवीयता से न मत है ।’ इसी तरह
पंकज चतुवद को यह उप यास ‘एक नए दे श क तलाश का ताव तीत होता है ।’ दरअसल इस कृ त मं◌े
अंत न हत अवसाद और क णा का सांगोपांग ववेचन अनेक कोण से अनेक लेख म ब त ही सट क ढं ग से कया
गया है । इस कृ त क अं ेजी म अनुवा दका ग ल यन राइट ने भी ब त सारे आरोप का खंडन कया है । ग ल यन
राइट के लेख म ी पा क अनुप थ त के बारे म पूछे जाने पर रचनाकार का जवाब भी यान दे ने यो य है । इस
पर सबसे सट क ववेचन हमांशु पां ा ने कया है । यही नह हमांशु ने लगभग सभी कार क आलोचना
का तकसंगत जवाब ‘अ कट क णा के प म’ म दया है । द लत और अ पसं यक च ण के संदभ म उठे
भी हद आलोचना के लए ब त मह वपूण ह । आलोचना क इस अराजकता म राग दरबारी के ववेचन– व ेषण
क दो धाराएं अभी तक प त: दखाई पड़ती ह । वणन क कला म अंत न हत ‘ वट वन द लाइ स’ यानी अनकहे
को पकड़ने क को शश ाय: नई पीढ़ के समालोचक म ही पूरी प ता से गट होती है । राजेश जोशी के लेख म
अनकहे को पकड़ने का सुझाव भी ता ककता के साथ आया है ।

सा ह यक आलोचना से भ न ढं ग, शैली और रखने वाले कुछ सं मरणा मक लेख भी ‘लोक यता और


ा त’ के अंतगत खंड–2 म शा मल कए गए ह । इन लेखक म अ भुजा शु ल, रव पाठ और सूयबाला क
रचनाएं रागदरबारी पर एकदम नए ढं ग से काश डालती ह । व तुत: आलोचना के नेप य म उप थत इन सं मरण Follow by Email
क जबद त साथकता है । इस उप यास पर आधा रत गरीश र तोगी के नाटक ‘रंगनाथ क वापसी’ तथा कृ ण Get all latest content delivered straight
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राघव ारा न मत टे ली वजन सी रयल म अनकहे को खोलने क को शश य क गई, इसका प ीकरण दोन
य ने अपने लेख म कया है । अत: सा ह यक समालोचना के साथ–साथ अनुवादक, रंगकम और फ मकार ईमेल पता

के सं मरण भी पठनीय ह । इसी लए मने तीन के लेख इस संकलन म स म लत कए ह । खंड–3 ‘बकलमखुद’ म


सद यता ल
राग दरबारी से संबं धत ीलाल शु ल के लेख को इस प रक पना के साथ सं हीत कर रही ँ ता क राग दरबारी
पर संपूण साम ी एक साथ उपल ध हो सके ।

ममता का लया
इस पु तक का चौथा और अं तम खंड ‘शख़्ि◌सयत’ है । इसम एक लेख और चार सं मरण को पढ़कर कोई
अप र चत–अजनबी पाठक भी ीलाल शु ल के व से आ मीयता महसूस करेगा यानी दो ती कर लेगा, ऐसा Video: ममता का लया: पता क बात

मेरा व ास है । April 15, 2020

इस संकलन म स म लत लेख के रचनाकार के त म आभार गट करती ं । साम ी एक करने म वयं ीलाल ममता का लया क कहानी पीठ | बेवजह शक बेवजह कुंठा त
करता है
जी ने मदद क थी । आज हमारे बीच वे नह ह पर उनक रचनाएं हरदम हमारे साथ रहगी । यह संकलन ीलाल
शु ल क मृ त को सम पत कर रही ं । उनक पु वधू ीमती साधना शु ल को भी साम ी एवं सहयोग के लए March 16, 2020

ध यवाद । ी नारायण कुमार, ी मुरली मनोहर साद सह और ी वैभव सह क आभारी ं क इन लोग ने ब त


कम समय म अनुवाद करके इस संकलन को समृ बनाने म मदद क है । ी जवरीम ल पारख और ी संजीव
इलाहबाद वाया ममता का लया : छोड़ आये
कुमार को भी ध यवाद य क कुछ साम ी जुटाने म इन दोन से भी मदद मली है । क व नीलाभ को वशेष
हम वो ग लयाँ — पाट 2
ध यवाद दे ना चाहती ँ य क मेरे अनुरोध पर उ ह ने 40 वष के बाद राग दरबारी पर फर से जोरदार समी ा
August 25, 2018
लखी । सबसे अंत म पु तक काशन के लए राजकमल काशन के बंधक ी अशोक माहे री का भी ब त–
ब त ध यवाद ।

रेखा अव थी

Tags: आलेख आलोचना राग दरबारी रेखा अव थी ीलाल शु ल समी ा Raag Darbari Rajkamal Publications

Rekha Awasthi Review Shrilal Shukla writeup

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6 दस॰ 2014, 3:54:00 pm

राग दरबारी हद के उन उप यास म जो अ भजन भाषा का नषेध करता है.वह लोक के उन इलाको म दा खल होता है जहां टु ची और
भदे श राजनी त का खेल होता है. ीलाल जी ने उस यथाथ को पकड़ने क को शश क है. कसी कृ त के मू यांकन म आलोचक क

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