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राग दरबारी - आलोचना की फांस - रेखा अवस्थी
राग दरबारी - आलोचना की फांस - रेखा अवस्थी
मुखपृ आलेख कहा नयाँ क वताएँ पु तक अंश उप यास अंश सं मरण समी ा
रचनाकार
जब मने यह ज कया क मेरी योजना महज संकलन तैयार करना नह है ब क राग दरबारी को क म रखकर अ मत कशोर अ मत बृज अ मत म अ मत म ा
समकालीन हद आलोचना क सै ां तक पड़ताल करना है, तभी उ ह थोड़ी आ त ई क अब फर शायद कोई अ मताभ राय अ मय ब अमीर खुसरो अमीश पाठ
एक रगड़ा राग दरबारी के साथ घ टत नह होगा । ऐसी ही बातचीत के दौरान उ ह ने मुझे लखनऊ आने का नमं ण अमृता ीतम अमृता बेरा अर वद कुमार
दया और यह क राग दरबारी क समालोचना से संबं धत जो भी साम ी उनके पास होगी वे मुझे ज र उपल ध अर व द कुमार 'सा ' अर व द जैन अ णआदय
करा दगे । जब म लखनऊ गई तो थोड़ी–ब त साम ी उ ह ने मुझे द अव य, साथ–ही–साथ कुछ जानका रयां भी अ णच रॉय अ ण माहे री अचना वमा
द । इस या म म आसानी से यह समझ गई क ीलाल जी उन लेखक म से नह ह जो अपने ऊपर लखी गई अपण कुमार अपणा कौर अलका सरावगी अ पना म
एक–एक पं सहेज कर रखते ह । अ धकांश चीज वे शोध–छा को बांट चुके थे । पर समाजशा ी ट –एन– अवध नारायण मु ल अवधेश नगम अ वनाश दास
मुझे इस बात का गहरा :ख है क यह संकलन उनके जीवनकाल म पूरा नह हो सका । साम ी खोजने और जुटाने आँचल उ न त आकां ा पारे आचाय चतुरसेन
म काफ व लग गया । कुछ मेरा आल य और ढ लापन, साथ ही नया पथ से संबं धत काम एवं अ य तता आचाय व नाथ पाठक आदे श ीवा तव आनंद कुरेशी
के कारण ही यह वलंब आ । राग दरबारी के काशन के 40 वष पूरे होने पर सन् 2007 म का शत बारहव
आमोद महे री आर साद आर. पी. शमा आर. यो त
सं करण क तावना म ीलाल जी ने इस उप यास क बढ़ती अ तन ासं गकता क चचा के साथ ही समी ा
आरके स हा आरजे रौनक आराधना धान
के मतांतर को बड़े ही सकारा मक ढं ग से तुत करते ए यह कहा क ‘एक ही कृ त पर कतने पर पर– वरोधी
आ रफा ए वस आच म ा पचौरी आलोक जैन
वचार एक साथ फल–फूल सकते ह ।’
आलोक ध वा आलोक पराड़कर आलोक ीवा तव
कैसी व च सदाशयता है, जसका प रचय दे ते ए ीलाल जी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोप को भूलकर हद उमेश माथुर उ मला गु ता उ मला शरीष उ मला शु ल
समालोचना के वभाव को जनतां क माना । य प एक अलग संदभ म वे यह बतला चुके ह क ‘हमारी ब त–सी उषा उथुप उषा राजे स सेना उषा करण खान
समी ाएं कठोर नह ू र होती ह ।’ आलोचक को अपनी एक ट पणी म वे ‘अ य च ड़या’ क सं ा दे चुके ह, ऋचा अ न ऋचा पांडे म ा ऋतु भनोट
जसक ‘चहक’ रा ते से भटकाने म मा हर होती है । ऋ षकेश सुलभ एस आर हरनोट एस० आर० शमा
कृ च दर कृ ण कुमार सह कृ ण बहारी
इस पु तक म समी ा , ट प णय और लेख का संचयन काल– मानुसार कया गया है । इस म के मा यम से
कृ णा अ नहो ी कृ णा सोबती के ब म सह
आलोचना क अराजकता क एक मुक मल त वीर दखाई पड़ती है । वैसे तो य भी कहानी या उप यास
के स चदानंदन केदारनाथ सह कै टन नूर
समालोचना क कोई सुसंगत वै ा नक प त का वकास–प र कार अभी तक हद म नह हो पाया है । ले कन
कैफ़ आज़मी कैलाश नारायण तवारी कैलाश वाजपेयी
तमान और ववेचना व धय क पूणत: अवहेलना करके चाहे तो कुलीनतावाद सं कार क छाया म समी ाएं
क़ैस जौनपुरी कौशलनाथ उपा याय लॉड इथरली
लखी जा रही ह या गत राग– े ष एवं गत च–अ च के पैमाने से औप या सक कृ तय का
खुशवंत सह गंगा सहाय मीणा गगन गल ग़ज़ाल जै़ग़म
आलोचना मक व ेषण कया जा रहा है । राग दरबारी के संदभ म ये वृ यां खास तौर पर झलकती ह । कुछ
ग रमा ीवा तव ग रराज कशोर गरीश पंकज
समालोचक तो अर तू ारा तुत े जेडी–कॉमेडी के का या ना स ांत को मनमाने तरीके से लागू कर
गीत चतुवद गीतम गीता चं न गीता बे
आलोचना क अराजकता बढ़ाने म योगदान करते ह । अगर कसी कृ त को े जेडी बताएंगे तो यह भी न कष
नकालगे क इस कृ त म गहरी अनुभू तय से रस स संवेदना है और अगर कॉमेडी के खाने म डालगे तो यह गीता पं डत गीता ी गी तका 'वे दका' गुलज़ार
न कष नकालगे क उ कृ त म अनुभू तय का उथलापन है । ऐसे अनेक ववेचन म राग दरबारी को ‘कॉमेडी गोपालदास नीरज गोपीनाथ महां त गो वदाचाय
उप यास’ स कया गया है । इससे हम हद म मू यांकन के तर को समझ सकते ह । गौरव पाठ गौरव स सेना "अद ब" गौरीलंकेश
राग दरबारी उप यास के मूल म व मान ोभ, :ख और क णा क भावानुभू त को पहचानने म कुछ आलोचक च पा शमा च ा मु ल ज़ कया जबैरी जगजीत सह
चूक गए ह । चूं क आलोचक का खुद ही रा ीय वकासनी त और नेह के छ समाजवाद से मोहभंग नह आ जगद बा साद द त जय काश नारायण जय काश मानस
था, अत: राग दरबारी क कथाव तु के अ भ ाय को वे लगातार नकारवाद बताते रहे । आलोचक जब वयं ही जयशंकर जय ी रॉय जया जादवानी जवाहरलाल नेह
समाज व था के व तुपरक यथाथ के त मोहास होगा तो उस व था के अंतगत पल रही म कारी, ज टस काटजू जां नशार जा कर नाइक जा ज़ब ख़ान
जन वरोधी वृ और व भ न पा के उ पीड़क सामा जक आचरण को च त करने वाली कथाकृ त को, जा हर जावेद अ तर जते ीवा तव जैने कुमार ानरंजन
है असंतोष का खटराग बताएगा, महाऊब का महा ंथ बताएगा और व तु न व ेषण का रा ता छोड़कर यो त चावला यो तष जोशी ट .एन. लालानी
राग दरबारी पर पहली समी ा ने मचं जैन ने लखी थी । उप यास क च णशैली म अंतभूत अंत और यथाथ डॉ सर वती माथुर डॉ. अ नता कपूर डॉ. एल.जे भा गया
के तुतीकरण म अंतभूत सामा जक ं ा मकता के बजाय ने म जी राग दरबारी म आ ंत यथाथवाद सपाटता डॉ. क वता वाच नवी डॉ. बभा कुमारी डॉ. रमा
दे खते ह । 1968 म लखी गई इस समी ा को त कालीन ववाद से अलग हटकर पढ़ना उ चत नह होगा य क डॉ. रमेश यादव डॉ. र म डॉ. राजे नाथ पाठ
उस समय के कथालेखन म ाय: म यवग य कोण से ी–पु ष संबंध का अंत तुत करने वाली कृ तय डॉ. वागीश सार वत डॉ. व यम ण डॉ. शव कुमार म
को ही े माना जा रहा था । ब त बाद म ीलाल जी ने अपना प रखा और यह बताया क राग दरबारी क
डॉ. सुनीता त ण भटनागर त ण वजय
रचना का ेरणा ोत भारतीय ामजीवन के अंत वरोध क पहचान म ही न हत ह । जन लेख और ट प णय म
तसलीमा नसरीन तहसीन मुन वर ता रक छतारी
ीलाल शु ल अपना प तुत करते ह, उ ह भी मने इस संकलन के खंड–3 म शा मल कर लया है । इस संग म
तुलसी राम तेज सह ते ज दर गगन तेजे शमा
खास तौर पर म दो अ य लेख का उ लेख करना आव यक समझती ं जो इस सं ह म शा मल नह कए जा सके ।
दयानंद पांडेय दा मनी यादव दनेश कुमार
पहला लेख है–‘तलाश जारी है आम आदमी क ’ तथा सरा लेख है–‘मुझे अपने से र मत करो, वसुंधरा!’ ने म जी
दनेश कुमार शु ल दलीप तेतरवे द वक रमेश
क समी ा के बाद दो युवा रचनाकार –कमलेश तथा नीलाभ ने राग दरबारी के क य के मूल अ भ ाय क ववेचना
द ा वजय द ा शु ला द पक धमीजा
तुत क । आजाद के बाद के ह तान म अपनाई गई गलत नी तय क ‘सड़ांध’ के त ोभ, ोध और घृणा
द पक भा कर द त गु ता द त बे द त ी ‘पाठक’
का जैसा कथा मक व तु वधान राग दरबारी म तुत कया गया है, उसे ‘तीखे रंग के यथाथ’ क उ ारा
यंत धनाथ सह दे वद प नायक दे व काश चौधरी
उपयु दोन रचनाकार ने अ भ हत कया । उपे नाथ अ क ारा लखी गई व तृत समी ा म यह बताया गया क
दे वराज वरद दे वाशीष सून दे वी नागरानी
इस कृ त म यथाथवा दता के साथ कला मकता और व तु– न पण का अ त स मलन मलता है । अ क जी ने
दे वेश पथ सा रया दोपद सघार धमवीर भारती
कोई अगर–मगर नह लगाया । यह समी ा थोड़े सं त प म ‘ काशन समाचार’ और ‘मु धारा’ म का शत
ई थी । यहां यह उ लेखनीय है क कमलेश जी ने पहली बार राग दरबारी के आलोचक क सवण मान सकता पर धीरज म ा नबा ण भ ाचाया न मता गोखले
हार करते ए यह बताया क कुछ आलोचक के सुस य और श मन को झटका–सा लगा य क ‘म यवग य नरेश स सेना न लन चौहान नवनीत पा डे नवीन कुमार
पाबंद को राग दरबारी के ब तेरे अंश फूहड़ और अ ील लगगे ।’ शासक वग ने गांव म मल वसजन क ना ज़म हकमत नामवर सह ना सरा शमा
सु वधाजनक व था का नमाण नह कया है, अत: राग दरबारी म मल वसजन के जतने भी वणन आए ह, उन न यानंद तुषार नदा फ़ाज़ली नधीश यागी नमल वमा
पर अनेक समी क ने नाक–भ ह सकोड़ी है । कुंवर नारायण जी ने इसी तरह के वणन के बारे म लखा है क नमला जैन नमला भुरा ड़या नशात खान
‘ऐसे कई थल ह जहां इ छा होती है क लेखक य द इतना अ धक यथाथ के पीछे नह पड़ता तो अ छा होता, ंय नहाल पराशर नीता गु ता नीरजा चौधरी नीरजा पांडेय
के हत म ब त अ छा होता ।’ कमलेश जी ने नव बर 1968 के ‘ दनमान’ म का शत अपनी समी ा म आंच लक नीर नागर नीलम मलका नया नीलम मैद र ा 'गुँचा'
उप यासकार क मानी क सीमा क आलोचना क है और आंच लक उप यास म राग दरबारी जैसी गैर– नीलाभ अ क नी लमा चौहान नीलो पल ने मच जैन
मानी स दय– तथा च ण व ध के अभाव को रेखां कत कया है । पंकज चतुवद पंकज सून पंकज राग पंकज शमा
परमानंद ीवा तव क समी ा ‘धमयुग’ म का शत ई थी । उ समी ा म वे यह बताते ह क राग दरबारी ारा पं डत याम कृ ण वमा प ा म ा परंजॉय गुहा ठाकुरता
तुत अस लयत का सामना हमारा बु जीवी समाज नह कर पा रहा है । वै ा नक व ेषण क से परेश रावल पवन करण पशुप त शमा पा ल पुखराज
ह तानी दमाग के भीतर मौजूद अवरोध तभी समा त हो सकता है जब वह मू यहीनता के च ण के मम
पा थव शाह पी साइनाथ पी. चदं बरम पुखराज जाँ गड़
ं या मक हार क न संगता के त हणशील होगा । राग दरबारी म त कालीन भारतीय गांव के जीवन यथाथ
पु य सून बाजपेयी पु षो म अ वाल पु पक ब ी
के ं के च ण क ासं गकता और साथकता उप यास क श प व ध म प रवतन पर नभर करती है ।
पु पलता पूनम अरोड़ा पूनम स हा काश के रे
कथा व यास और श प व ध का यह प रवतन परमानंद ीवा तव के व ेषण का आधार है । इसी ब पर खड़े
ा ा पा डेय ताप भानु मेहता ताप सोमवंशी
होकर वे तमाम आरोप का खंडन करते ह और संकेत के ारा व भ न समी ा म उठाए गए के उ र ब त
तभा तभा गोट वाले तभा चौहान
ही सधे तरीके से दे ते ह । इसके बावजूद राग दरबारी को लेकर ववाद का सल सला बंद नह आ, चूं क व भ न
तमा अ खलेश तमा स हा य ा दपपत
आलोचक के अलग–अलग क म के तमान के भीतर जो मतांतर थे, वे मूलत: वैचा रक थे, यहां तक क यह
द प ीवा तव द प सौरभ भाकर ो य
बहस नाक क लड़ाई और गुटबाजी तक म त द ल हो गई ।
भात पाठ भात पटनायक भात रंजन
आलोचना मक ट पणी म राग दरबारी के यथाथ च ण क कथनभंगी को ‘ ं य लीला’ क सं ा द , जब क ेमा झा ो० चेतन फक र जय काश फ़राक़ गोरखपुरी
1969 म परमानंद ीवा तव ने इस वै श को मू यहीनता के च ण के लए ज री बताया था । कमले र 1970 क जूर बरखा द बलदे व वंशी बलराम अ वाल
म अपनी ट पणी म दो टू क श द म लख चुके थे : ‘सचाई यह है क कथाकार जानबूझकर आघात नह प ंचाता । बलव त कौर बासु चटज जेश पांडे जेश राजपूत
वह संपूण संदभ म कुछ इस तरह े ण कर अंत: वेश करता है क उससे ं य और उपहास उ प न होता है ।’ भगवानदास मोरवाल भरत तवारी भाई परमानंद
लगभग 12 वष तक आलोचना म जो वतंडावाद छाया रहा, उससे भ न क म क नई समी ाएं 1980 के बाद माल वका माल वका जोशी मा लनी अव थी
का शत होने लग । आलोचना के इस नए दौर म अब राग दरबारी को लेकर नदापरक लेख का शत होने बंद हो मा टर मदन म हर शमा मीना कुमारी मीना चोपड़ा
गए । नए आयाम को उ ा टत करने का सल सला शु आ । 1990 के आसपास भूमंडलीकरण और मुंशी ेमच द मुईन अहसान 'ज बी' मुकेश कुमार स हा
उदारतावाद को लेकर जो भी नई बहस ◌इं, वे सफ राजनी त या अथ व था तक सी मत न होकर सा ह य– मुकेश केजरीवाल मुकेश पोपली मुकेश भार ाज
लोग ने हद उप यास म च त समाज का व ेषण ानमीमांसा के नए औजार से करना ारंभ कया । नतीजा मृ ला गग मेहरीन जाफरी मै ेयी पु पा मैनेजर पा डेय
यह क 1980 के पहले क बहस को दर कनार कर असं द ध प म राग दरबारी को ला सक कृ त का दजा मल मोगुबाई कुरद कर यती म यशपाल
स समाजशा ी यामाचरण बे क न न ल खत मा यता उ लेखनीय मानी जाती है, चूं क राग दरबारी के वजय राय वजय व ोही वजया का डपाल व ा शाह
सामा जक अ भ ाय तथा ामीण जीवन के अंत वरोधी सारत व को उ ह ने हद समालोचक क तुलना म भ न वनीत कुमार वनीता शु ला वनोद कुमार दवे
समाजशा ीय समालोचना के सल सले क एक मह वपूण कड़ी के प म द लत रचनाकार जय काश कदम का शव साद सह शवमू त शवरतन थानवी शवानी
भी लेख इस संकलन म शा मल कया जा रहा है । शवानी कोहली 'अना मका' शवानी वमा शव कुमार सह
राग दरबारी पर चचा के म म अं ेजी के जन व ान का नामो लेख कया जाता है, उनम पट नेल मुख ह । शुभम ी शेखर गु ता शेखर सेन शैफाली 'ना यका'
पगुइन से राग दरबारी के अं ेजी अनुवाद के काशन के पहले ही 1990 म पट नेल ने उ कृ त पर एक लंबा शैले कुमार सह शैले शैल शोभा र तोगी
ववेचना मक लेख लखा था । ‘त व’ के संपादक अ खलेश ने 1999 म जब अपनी प का का ीलाल शु ल पर याम बेनेगल याम सखा ' याम' यामा साद मुखज
क त वशेषांक नकाला तो पट नेल के अं ेजी लेख का हद अनुवाद भी का शत कया था । इस लेख से ही ी ी ीमंत जैन ीलाल शु ल ेता यादव
यह पता चला क राग दरबारी पर जमन तथा अ य यूरोपीय भाषा म भी चचा चल रही है । पट नेल ने खुद भी संगीता गु ता संजना तवारी संजय कुंदन संजय पाल
अपने लेख म ेमचंद और रेणु के गांव से राग दरबारी के गांव क भ नता रेखां कत क है । उप यास के भाषा श प संजय वमा ' ' संजय शेफड संजय सहाय संजीव
पर उनका यान यादा क त है । उनक मा यता है क संजीव कुमार संतोष वेद संतोष भारतीय संतोष सह
अ भजातवग य ख अपनाते ए अं ेजी मुहावरे म नदा मक नकार के जस धरातल पर खड़े होकर वे भारतीय स मी ह षता सीमा शमा सुकृता पॉल कुमार
यथाथ को दे खते ह, वह डयाड कप लग, ई–एम–फा टर, नीरद सी– चौधरी और वी–एस– नायपॉल के काफ कुछ सुजाता म ा सुदशन ‘ यद शनी’ सुदेश भार ाज
ही एकमा ऐसा च र है ‘जो संघषशील होने का आभास दे ता है ।’ उपयु ट प णय से यह प हो जाता है क सुमन केशरी सुमन सार वत सुर राजपूत
ग तशील आलोचना– के लए राग दरबारी अब भी एक कर करी या फांस क तरह है । सुरे मोहन पाठक सुरे राजन सुरेश शमा
सन् 2000 म ‘वतमान सा ह य’ के शता द कथा–सा ह य वशेषांक म राग दरबारी पर मु ारा स का लेख छपा । सुशील उपा याय सुशील कुमार भार ाज सुशील जायसवाल
यह अजीब बात है क बीसव सद के मील के प थर उप यास क चचा के म म राग दरबारी को तो उ ह ने चुना सुशील स ाथ सुशीला शवराण ‘शील’ सूजा
है, पर इसके साथ ही इस कृ त के वजूद को ही उ ह ने कठघरे म यह उठाकर खड़ा कर दया क सोनम कपूर सोन पा वशाल सोनाली म सोभा सह
या कारण है क दे श म मयादा ंश पर लखे गए इस ‘महाभारत’ म अपंग, गरीब, लाचार अथवा व ा को हंसी का मता स हा मृ त ईरानी व ल ीवा तव
पा बनाया गया ? सामंत, सेठ, कोतवाल, लाट साहब या नेता इस हार क सीमा से पूरी तरह बाहर ह ।
वरांगी साने वरा य वा त तवारी वा त मालीवाल
ु लेखक कुछ दे र के लए अपने आपको भले ह का कर ले, सामा य पाठक खाली–खाली ही रहता है । इस
मेरा अ ात तु ह बुलाता है — नोवा बान क
थतम न त प से ीलाल क व ता कह अ धक ा है, जसे पढ़ने म मजा आता है ब क जसे बार–बार अ त ेम कहानी
पढ़ने को जी चाहता है । और कहना न होगा क कसी सा ह यक कृ त के अ त व क यह पहली शत है, जो दन– 3/14/2017 08:30:00 Am
3/04/2013 01:22:00 Pm
3/12/2017 04:57:00 Pm
अमृत महो सव के समय का शत उ पु तक म कृ ण बलदे व वैद का भी एक लेख है । इस लेख म यह बताया
गया है क ख़ त, व ोभ और हा य ( ं य) का अभाव भारतीय उप यास क एक ब त बड़ी कमी रही है कतु अना मका क क वताय Poems of
Anamika
‘ ीलाल शु ल का शुमार हद उप यास म ं य के उन ब त ही कम बड़े साधक म कया जा सकता है जनके
काम म नै तक और बौ क हंसी को नरंतर सुना जा सकता है ।’ इस मंत का ता कक आधार भी कृ ण बलदे व 8/26/2014 12:47:00 Pm
ीलाल शु ल उस क चड़ को खुली आंख से दे खते ह, उसका नमम भावुकता–मु कला मक च ण सूनी घाट 8/09/2020 01:37:00 Pm
का सूरज से शु कर कमोबेश अपने हर उप यास म करते ह, वशेष तौर पर अपने सवमा य शाहकार राग दरबारी
डरावनी कहानी — खौफ़नाक ाइव — इरा
म, और उस क चड़ म से, कसी वचारधारा के दबाव म कोई आशावाद कमल नह उगाते ।
टाक
3/09/2017 08:42:00 Am
ममता का लया
इस पु तक का चौथा और अं तम खंड ‘शख़्ि◌सयत’ है । इसम एक लेख और चार सं मरण को पढ़कर कोई
अप र चत–अजनबी पाठक भी ीलाल शु ल के व से आ मीयता महसूस करेगा यानी दो ती कर लेगा, ऐसा Video: ममता का लया: पता क बात
इस संकलन म स म लत लेख के रचनाकार के त म आभार गट करती ं । साम ी एक करने म वयं ीलाल ममता का लया क कहानी पीठ | बेवजह शक बेवजह कुंठा त
करता है
जी ने मदद क थी । आज हमारे बीच वे नह ह पर उनक रचनाएं हरदम हमारे साथ रहगी । यह संकलन ीलाल
शु ल क मृ त को सम पत कर रही ं । उनक पु वधू ीमती साधना शु ल को भी साम ी एवं सहयोग के लए March 16, 2020
रेखा अव थी
Tags: आलेख आलोचना राग दरबारी रेखा अव थी ीलाल शु ल समी ा Raag Darbari Rajkamal Publications
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चीन से कैसे जीत — लड़ना होगा इस इरफ़ान ख़ान, गहरी आंख और समंदर- आम नयाई क व ये ग़शे छार स का प
पार के ैगन से — अ न सांघी सी तभा वाला कलाकार — यूनुस प नी आफ नक के नाम — सुमन केशरी
@AshwinSanghi ख़ान #ArmenianGenocide
ट पणी पो ट कर
1 ट प णयां
SWAPNIL SRIVASTAVA
राग दरबारी हद के उन उप यास म जो अ भजन भाषा का नषेध करता है.वह लोक के उन इलाको म दा खल होता है जहां टु ची और
भदे श राजनी त का खेल होता है. ीलाल जी ने उस यथाथ को पकड़ने क को शश क है. कसी कृ त के मू यांकन म आलोचक क