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मुखपृ� वै�ा�नक �ेरणादायक अ�भनेता

कलाकार लेखक संगीतकार क�व राजा

रानी संत ��स� अ�ययन क� ऑनलाइन परी�ा

संपक�

Biography :
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�न�बाका�चाय� जीवनी - Biography of Nimbarka in  क�व ( 80 )


Hindi Jivani  म�हला ( 36 )
Published By : Jivani.org
 कलाकार ( 117
)

�न�बाका�चाय� भारत के ��स� दाश��नक थे �ज�होने �ै ता�ै त का दश�न  वै�ा�नक ( 76 )


��तपा�दत �कया। उनका समय १३व� शता�द� माना जाता है। �क�तु �न�बाक�
 लेखक ( 219 )
स��दाय का मानना है �क �न�बाक� का �ा�भा�व ३०९६ ईसापूव� (आज से लगभग
पाँच हजार वष� पूव�) �आ था। �न�बाक� का ज�मसथान वत�मान आं� �दे श म� है।  �ेरणादायक (
सनातन सं�कृ�त क� आ�मा �ीकृ�ण को उपा�य के �प म� �था�पत 48 )
करने वाले �न�बाका�चाय� वै�णवाचाय� म� �ाचीनतम माने जाते ह�। राधा-कृ�ण क�
 राजा ( 37 )
युगलोपासना को ��त�ा�पत करने वाले �न�बाका�चाय� का �ा�भा�व का�त�क पू�ण�मा
को �आ था। भ�� क� मा�यतानुसार आचाय� �न�बाक� का आ�वभा�व-काल �ापरांत  राजनेता ( 150
म� कृ�ण के �पौ� ब�नाभ और परी��त पु� जनमेजय के समकालीन बताया )
जाता है।
 �वसायी ( 49
इनके �पता अ�ण ऋ�ष क�, �ीमद्भागवत म� परी��त क� भागवतकथा )
�वण के �संग स�हत अनेक �थान� पर उप��थ�त को �वशेष �प से बतलाया गया
है। हालां�क आधु�नक शोधकता� �न�बाक� के काल को �व�म क� 5व� सद� से 12व�  रानी ( 18 )
सद� के बीच �स� करते ह�। सं�दाय क� मा�यतानुसार इ�ह� भगवान के �मुख
 खेल ( 84 )
आयुध ‘सुदश�न’ का अवतार माना जाता है।

इनका ज�म वै�य�प�न (द��ण काशी) के अ�णा�ण म� �आ था। इनके  मानवतावा�द (


�पता अ�ण मु�न और इनक� माता का नाम जयंती था। ज�म के समय इनका नाम 10 )
�नयमानंद रखा गया और बा�यकाल म� ही ये �ज म� आकर बस गए। मा�यतानुसार
 ��स� ( 63 )
अपने गु� नारद क� आ�ा से �नयमानंद ने गोवध�न क� तलहट� को अपनी साधना-
�थली बनाया।  अ�भनेता ( 84 )

बचपन से ही यह बालक बड़ा चम�कारी था। एक बार गोवध�न ��थत


इनके आ�म म� एक �दवाभोजी य�त (केवल �दन म� भोजन करने वाला सं�यासी)  संत ( 28 )
आया। �वाभा�वक �प से शा��-चचा� �ई पर इसम� काफ� समय �तीत हो गया
और सूया��त हो गया। य�त �बना भोजन �कए जाने लगा।  राज-वं�य ( 6 )

�ै ता�ै त' या '�नम्बाक� सम्�दाय' के �वत�क  अ�य ( 53 )


वैष्णव� के �मुख चार सम्�दाय� म� से एक सम्�दाय है- '�ै ता�ै त' या  धा�म�क नेता (
'�नम्बाक� सम्�दाय'। �न��त �प से यह मत ब�त �ाचीन काल से चला आ रहा 18 )
है। �ी�नम्बाका�चाय� जी ने परम्परा �ाप्त इस मत को अपनी ��तभा से उज्ज्वल
करके लोक �च�लत �कया, इसी से इस �ै ता�ै त मत क� '�नम्बाक� सम्�दाय' के  संगीतकार ( 13
नाम से ��स�� �ई। �� सव�श��मान ह� और उनका सगुणभाव ही मुख्य है। इस )
जगत के �प म� प�रणत होने पर भी वे �न�व�कार ह�। जगत से अतीत �प म� वे
�नगु�ण ह�। जगत क� सृ��, ��थ�त एवं लय उनसे ही होते ह�। वे जगत के �न�मत्त एवं
उपादान कारण ह�। जगत उनका प�रणाम है और वे अ�वकृत प�रणामी ह�। जीव
अणु है और �� का अंश है। �� जीव तथा जड़ से अत्यन्त पृथक अपृथक भी
ह�। जीव भी �� का प�रणाम तथा �नत्य है। इस सृ��च� का �योजन ही यह है
�क जीव भगवान क� �सन्नता एवं उनका दश�न �ाप्त करे। जीव के समस्त
क्लेश� क� �नवृ�� एवं परमानन्द क� �ा��त भगवान क� �ा��त से ही होगी। �� के
साथ अपने तथा जगत के अ�भन्नत्व का अनुभव ही जीव क� मुक्तावस्था है। यह
भगवत्�ा��त से ही सम्पन्न होती है। उपासना �ारा ही �� क� �ा��त होती है।
�� का सगुण एवं �नगु�ण दोन� �प� म� �वचार �कया जा सकता है, �क�तु जीव क�
मु�� का साधन भ�� ही है। भ�� से ही भगवान क� �ा��त होती है। सत्कम� एवं
सदाचार के �ारा शु��चत्त म� जब भगवत्कथा एवं भगवान के गुणगण-�वण से
भगवान क� �सन्नता �ाप्त करने क� इच्छा जा�त होती है, तब मुमु�ु पु�ष स���
क� शरण �हण करता है। गु� �ारा उप�दष्ट उपासना �ारा शु��चत्त म� भ�� का
�ाक� होता है। यही भ�� जीव को भगवत्�ा��त कराकर मुक्त करती है।

गोपालमं� क� द��ा

थोड़े म� �ै ता�ै त मत का सार यही है। भगवान नारायण ने हंसस्व�प से


��ा जी के पु� सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनत्कुमार को इसका उपदे श �कया।
सनका�द कुमार� से इसे दे व�ष� नारद ने पाया और दे व�ष� ने इसका उपदे श
�नम्बाका�चाय� जी को �कया। यह इस सम्�दाय क� परम्परा है। �नम्बाका�चाय� ने
अपने ��सू�� के भाष्य म� "अस्मद् गुरवे नारदाय" कहा है। सनका�द कुमार� का
भी उन्ह�ने स्मरण �कया है, उसी �न्थ म� गु� परम्परा� म�। दे व�ष� नारद ने
�नम्बाका�चाय� को "गोपालमं�" क� द��ा द�, ऐसी मान्यता है।

�न�बाका�चाय� का भ��परक मत

मह�ष� पतंज�ल ने अ�ांग योग और ई�र ��णधान- ये दो माग�


आ�मो�ार के �लए �न�द�� �कये थे। �न�बाक� ने इन तीन� माग� को दो माग� न कह
करके इनके सहभाव से स�प� भ�� योग का �वत�न �कया, �जसम� �चदान�द
स�ब�लत �ेमभाव का �ाधा�य है। इस �ेमभाव से �ै त और अ�ै त दोन� अव�था�
का सामंज�य होता है। �ेमी, �ेमपा� और �ेम तीन� का ऐ�य हो जाना ही अ�ै त
अव�था है। जो लोग केवल �चदं श पर ही बल दे ते ह�, वे �ानमाग� कहलाते ह�। �चद्
अंश ही �ान का भाव है। आन�द अंश पर बल दे ने वाले लोग भ� कहलाते ह�। �ान
और आन�द दोन� भाव� का जो सामंज�य होता है, उसम� �चत् और आन�द का तथा
�ान और भ�� का सामंज�ू हो जाता है। पातंजल योग दश�न क� साधना �ान माग�
क� है, उसम� समा�ध के मा�यम से �चदं श सा�ा�कार क� �व�ध बतलाई गई है।
पतंज�ल ने ई�र ��णधान के मा�यम से जो साधना बताई है, उसम� आ�म समप�ण
के �ारा आन�द अंश क� उपल��ध रहती है। महामोपा�याय गोपीनाथ क�वराज ने
(Gleeanings from the Tantras) क� भू�मका म� यह �लखा है �क भ� दो
�कार के �ए ह�- एक वे जो भ�� को केवल भाव�प से जानते ह� और �सरे वे जो
रस �प से उसक� अनुभू�त करते ह�। �जसका उ�े �य भगवद धाम म� ��व� होकर
भागवत सेवा का आन�द लेना है, उनके �लए राम माग� ही �ेय�कर है। ता�पय� यह है
�क सांसा�रक राग जब भगवत �च�तन का मा�यम बन जाता है तो वह राग ही �ेम
रस के �प म� प�रणत हो जाता है। �न�बाक� स��दाय के भ� क�व जयदे व के गीत
गो�व�द का भी इसी प�र�े�य म� समझना चा�हए।

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