You are on page 1of 160

http://www.exbii.com/showthread.php?

t=1138647

चत
ू के कारनामे
लेख़क - ashokafun30 अशोक

दोस्तों, ये कहानी किसी एक नायक या नायिका पर केन्द्रित नहीं है । इस कहानी को लड़की की भावनाओ को व्यक्त करते
हुए लिखा गया है , और लड़कियां इसमें कहानी की मांग के अनस
ु ार बदलती जायेंगी। पर उन सबमे सिर्फ एक ही चीज
कोमन है और वो है उनकी चूत। जिनके कारनामे दिखा कर वो खुद भी मजे लुटती हैं और दस ु रो को भी मजे दे ती हैं।

अब कहानी शुरू करते हैं। मेरे सभी दोस्त, जिन्होंने कहानी में अपना नाम दे ने के लिए कहा था, धीरे -२ आते रहें गे।
**********

कोमल
******
कोमल का नाम कोमल के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता था। उसका चेहरा दे खकर ही कोई भी उसका नाम बता सकता
था। बड़ी-२ काली आँखे, गोरा चिट्टा बदन, होंठ पिंक कलर के और गालो पर एक मोटा सा तिल। जब वो हं सती थी तो उसके
दांये गाल में एक डिम्पल सा बन जाता था, जो सामने वालों का मन मोह लेता था। उसकी कमर नाममात्र की थी। और
पीछे से उसके कुल्हे भी ज्यादा उन्नत नहीं थे। पर उसकी ब्रेस्ट जो थी, वो सबसे कमाल की थी। जैसे आयशा टाकिया की है
न, वैसे ही। इतनी बड़ी-२ ब्रेस्ट लेकर वो जब चलती थी तो उसके चेहरे और छाती में से किसे दे खे, लोग कन्फेयस
ु हो जाते
थे।

आज कोमल का कॉलेज में पहला दिन था। कोमल के पापा ने उसे स्कूटी ले दे ने का वादा किया था, पर कुछ दिनों तक तो
उसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ही निर्भर रहना था। वो बाहर निकली और यूनीवर्सिटी जाने वाली बस में जाकर बैठ गयी। बस में
जाना उसे कभी पसंद नहीं था, सभी लोग बस उसके गोरे जिस्म को दे खते ही उससे चिपकने की कोशिश में लगे रहते थे।
पर आज उसे आसानी से बस में जगह मिल गयी। उसने गौर से दे खा तो उसे कॉलेज टाइप के कई लड़के और लड़कियां
दिखाई दी। पर आज वो काफी नर्वस थी, क्योंकि उसने सुन रखा था की कॉलेज में रे गिग
ं भी होती है । वो बस चाह रही थी
की उसे कोई नोट न करे और वो रे गिग
ं से बच जाए।

कॉलेज पहुँचते ही उसने बचते बचाते हुए ऊपर की तरफ जाना शरू
ु कर दिया। रास्ते में कई बार उसे लगा की कोई उसे पीछे
से बुला रहा है , पर वो तेज कदमो से ऊपर की सीडियां चढ़ती चली गयी और अंत में उसे अपनी क्लास जब दिखी तो उसने
राहत की सांस ली, और वो भाग कर अन्दर चली गयी। पर अन्दर का नजारा दे ख कर तो उसके होश ही उड़ गए, अन्दर
पांच लडकों का ग्रुप था जो तीन फ्रेशर्स को सामने खड़ा करके उनकी रे गिग
ं कर रहे थे। 

फ्रेशर्स में दो लड़के थे और एक लड़की।

उनमे से एक गुंडा टाइप का लड़का, जो शायद उनका लीडर था वो उनसे कह रहा था।

लीडर: "अरे करो भी। मैं करके दिखाऊँ क्या। तब करोगे… हे हे …"

उसके दस
ु रे दोस्त भी ओछी तरह से हं सने लगे। कोमल वापिस जाने की सोच ही रही थी की तभी पीछे से दो और लड़के
आये और उसे पकड़कर अन्दर की तरफ ले चले।

उनमे से एक लड़का बोला: "लगता है तेरे कान खराब हैं। इतनी दे र से आवाज दे रहे थे तुझे पर रुकी ही नहीं तू। अच्छा हुआ
तू सीधा ऊपर ही आ गयी। ये जगह अब तेरे लिए सही है ।"

कोमल उसकी बात का मतलब नहीं समझी। कोमल भी जाकर उन तीनो फ्रेशर के साथ खड़ी हो गयी। लीडर ने और दस
ु रे
सभी ने मुझे ऊपर से नीचे तक दे खा और होंठो को गोल करके सीटी बजाने लगे।

1
लीडर: "वह भाई, इसे कहते है फ्रेशर। एक दम फ्रेश माल।"

कोमल: "ये क्या हो रहा है । और तुम ऐसे कैसे बात कर रहे हो।"

लीडर: "ओले… ओले। बच्ची को जैसे कुछ मालुम ही नहीं की यहाँ क्या हो रहा है । स्कूल से निकल कर पहली बार आई है न
बाहर। कोई बात नहीं जी, हम बता दे ते हैं। मेरा नाम है राहुल… राहुल गोयल, और ये है मेरे दोस्त। मैं यहाँ पर पिछले दो
सालो से हूँ। यानी ये मेरा लास्ट इयर है , इस साल इलेक्शन में भी खड़ा होने वाला हूँ। हम तो बस आप फ्रेशर्स से मिल
जुलकर बस उनका हाल चाल पूछ रहे हैं और जैसा की कस्टम है थोडा सा मनोरं जन भी कर रहे हैं। तुम घबराओ मत,
तुम्हारा भी नंबर आएगा। पहले मैं इनसे निपट लू।"

ये कहते हुए राहुल वापिस उन तीनो की तरफ घुमा और उनसे कहा: "यार। घबराओ मत… वी आल आर फ्रेंड्स। जल्दी करो,
फिर क्लास भी शरू
ु होने वाली है ।”

उन तीनो में जो लड़की थी वो काफी सुंदर थी, उसने टी शर्ट और जींस पहना हुआ था। और लड़का भी थोडा शर्मा सा रहा था।
कोमल को पता नहीं था की उनसे राहुल क्या करवाने वाला है ।

राहुल: "घबराओ मत। ये तो एक गेम है । चलो फिर से बताता हूँ। ये सामने जो पेपर पड़े हैं, उन्हें तम
ु , पायल, अपने होंठो से
उठाओगी। अपनी सांस अन्दर की तरफ खींचते हुए, ताकि पेपर नीचे न गिर जाए। और इसे तुम इस आदित्य को पास
करोगी। और आदित्य भी अपने होंठो को गोल करके, अन्दर की तरफ हवा खींचते हुए, तुमसे वो पेपर ले लेगा। और जाकर
वो दस
ु रे टे बल पर रख दे गा। बस… अब दे खना ये है की तुम दोनों मिलकर इन दस पेपर में से वहां तक कितने पहुंचाते हो… हे
हे … बट। एक ट्विस्ट है यहाँ। अगर पेपर गिर भी जाता है तो तुम्हे उसके होंठो तक अपने होंठ ले ही जाने है । समझ गए
न… हे हे …”

कोमल तो उनका ये खेल सुनकर ही घबरा गयी। वो अच्छी तरह से जानती थी की पेपर की मोटाई तो नाम मात्र की होती है ,
उसके दोनों तरफ तो उन दोनों के होंठ ही होंगे। या फिर अगर पेपर गिर गया तो नंगे होंठ टकरायेंगे एक दस
ु रे से। उसने
आज तक अपनी स्कूल लाइफ में किसी को किस भी नहीं किया था। ऐसा उसके साथ भी होगा, ये सोचते ही उसकी टांगो के
बीच वाले हिस्से में सनसनाहट सी होने लगी। उसके निपल्स तन कर बड़े हो गए। उसने अपने दप्ु पट्टे को आगे कर लिया
ताकि कोई उन्हें सूट के ऊपर चमकते हुए ना दे ख पाए।

पायल ने एक लम्बी सांस ली और कागज़ के टुकड़े को अपने होंठो से उठा लिया और अन्दर की तरफ हवा खींचनी चालू रखी
और आदित्य के पास जाकर उसके होंठो के ऊपर अपने होंठ रख दिए। बीच में अगर वो कागज़ का टुकड़ा न होता तो उनके
होंठ आपस में मिलकर एक मजेदार फ्रेंच किस में बदल जाते शायद।

कोमल की साँसे तेजी से चलने लगी।

आदित्य ने भी बड़ी कुशलता से कागज़ को लिया और अपने अन्दर हवा खींचते हुए, होंठो से चिपका कर उसे दस
ु रे डेस्क पर
जाकर गिरा दिया। सबने ताली बजा कर उनका होंसला बढाया। इसी तरह दस
ू रा और फिर तीसरा कागज़ भी पायल ने
जल्दी से आदित्य को दिया और उसे दस
ु रे डेस्क तक पहुंचा दिया।

अब तक पायल को भी शायद मजा आने लगा था। उसने जब चौथा कागज़ उठाया तो आदित्य के होंठो तक जाने से एक
सेकंड पहले ही कागज़ नीचे गिर गया। और जैसा की रूल था, उन दोनों के होंठ आपस में जा टकराए। दोनों ही अपने होंठो
से अन्दर की तरफ हवा खींच रहे थे। कागज़ बीच में न होने की वजह से वो बस एक दस
ु रे के होंठो को चस
ू रहे थे। दोनों को
ही ये बात मालुम थी की कागज़ गिर चूका है । पर फिर भी उन्होंने एक दस
ु रे के होंठो से अपने होंठ हटाने में काफी समय
लगा दिया।

कोमल मन ही मन सोच रही थी की एकदम अनजान इंसान के साथ कोई कैसे लिप किस कर सकता है । पर उसकी भी
उत्तेजना बढती जा रही थी।

2
सबके मुंह से हो… हो… के हूटर्स निकलने लगे।

अगला पेपर ठीक रहा लेकिन उसके बाद वाला फिर से गिर गया। और वो इस बार उठाने के एकदम बाद ही गिर गया था।
पर फिर भी पायल बेशर्मो की तरह आदित्य के पास तक आई। और अपने होंठ उसके होंठो पर रख कर चूसने लगी। मानो
अभी भी पेपर दे रही हो। जब 30 सेकंड के बाद दोनों अलग हुए तो दोनों की आँखे लाल सी होने लगी थी।

राहुल: "दे खा… मैंने कहा था न की इस खेल में मजा आएगा। लगे रहो… हे हे … काश मैंने आदित्य की जगह खद
ु को खड़ा
किया होता। मजा आ जाता फिर तो… हे हे …”

उसके सभी दोस्त भी उसके साथ भद्दी हं सी हं सने लगे। अगला पेपर उठा कर पायल आदित्य के बदले सीधा राहुल की तरफ
घूमी और उसके पास पहुंचकर, उसकी आँखों में दे खते हुए, पेपर नीचे गिरा दिया। और अगले ही पल पायल ने राहुल के
होंठो पर अपने होंठ रख दिए।

वहां खड़े सभी लोग अवाक से दे खते रहे । कोमल भी सोच रही थी की पायल को क्या सूझी की राहुल के कहने मात्र से ही
उसने उसे जाकर चूम लिया। राहुल भी आँखे फाड़े पायल के कोमल से होंठो को अपने ऊपर महसूस कर रहा था। और पायल
अपनी आँखे बंद किये उसके दोनों होंठो को चूसने में लगी हुई थी। और जब उसने चूमना बंद किया तो पीछे हुई और दोबारा
जाकर कागज़ उठाने लगी।

पर तभी राहुल ने उसे टोक दिया: "बस… बस… रहनो दो पायल। तुम्हारे लिए अब इतना ही काफी है । आई एम ् इम्प्रेस,
वेल्कम टू माय गें ग।”

पायल ख़श
ु ी-२ राहुल के पीछे जाकर खड़ी हो गयी। वहां पहले से एक लड़की थी जिसने हाथ मिला कर उसे अन्दर आने की
बधाई दी।

उसके बाद राहुल कोमल की तरफ घुमा: "तुम्हारा नाम क्या है …”

कोमल: "जी… जी कोमल।”

राहुल: "जी… जी कोमल। थोडा लम्बा नहीं है ये… हा हा…” और वो फिर से अपने दोस्तों के साथ हं सने लगा।

राहुल: "तम
ु ने ये खेल दे ख ही लिया है । अब इस नए फच्चु के साथ, ओये क्या नाम है तेरा।”

दस
ू रा लड़का: "जी… जॉन। जॉन नाम है मेरा।”

राहुल: "जॉन अब्राहम क्या… हा हा।”

राहुल: "सुनो तुम दोनों, जॉन एंड कोमल। जल्दी शुरू करो। सर भी आने वाले होंगे।”

कोमल ने मन ही मन जैसे कुछ डिसाईड कर लिया था। उसने जाकर पेपर अपने होंठो से उठाया। सामने खड़ा हुआ जॉन
अपने होंठो के ऊपर जीभ फेर रहा था, उसे भी शायद मालुम था की एक दो बार तो कोमल से भी पेपर गिरे गा ही। और उसके
बाद कोमल के गुलाबी होंठ चूसने को मिलेंगे।

कोमल ने पेपर उठाया और सीधा जॉन के पास गयी। और फिर एक झटके से वो राहुल की तरफ घम
ू ी। और उसके सामने
जाकर उसने पेपर गिरा दिया। कोई कुछ समझ पाटा इससे पहले ही कोमल के नाजुक, अनछुए, ठन्डे और गीले होंठ, राहुल
के होंठो से जा टकराए। राहुल को भी जैसे करं ट सा लगा। एक के बाद एक किस उसे मिल रही थी। और ये दस
ु री वाली तो
पहले से भी ज्यादा नर्म और गर्म थी। उसने कोमल की कमर पर हाथ रखा, उसे अपनी तरफ खींचा और उसके होंठो को बुरी
तरह से अपने कठोर होंठो से कुचलने लगा। सब लोग दम साधे कमरे में खड़े हुए, मुंह खोले उनका ये खेल दे ख रहे थे।

तभी बाहर से लड़के भागते हुए अन्दर आये: "सर आ गए… सर आ गए।”

3
जिसे सुनकर कोमल और राहुल ने अपने होंठ एक दस
ु रे के ऊपर से हटाये। दोनों ने एक दस
ु रे की आँखों में दे खा। और
मुस्कुरा दिए।

राहुल ने कोमल से हाथ मिलाया: "यु आर स्मार्ट, वेल्कम हे यर।”

और उसने इशारा किया और उसका परू ा गें ग उठकर क्लास से बाहर निकल गया। पीछे रह गए सिर्फ वो चारो फ्रेशर।
आदित्य, पायल, कोमल और वो बेचारा जॉन। जिसने शायद सोचा था की उसे भी किस करने को मिलेगी। पर मिल गयी
राहुल को। कोई बात नहीं, उसने भी मन में सोच लिया की एक ना एक दिन इस कोमल के गुलाबी होंठो का रस वो भी पीकर
रहे गा। उसके बाद सभी अपनी-२ जगह पर जाकर बैठ गए। पायल और कोमल एक ही सीट पर आकर बैठे और क्लास शुरू
हो गयी। सभी ने अपने इंट्रो दिए। एक-२ करके सर आते गए और अपना परिचय दे ते रहे । आज का तो परू ा दिन ही इंट्रो में
निकल गया।

कोमल (फुसफुसा कर): "यार तुमने तो कमाल कर दिया। राहुल के कहने भर से ही तुमने उसे जाकर चूम लिया।”

पायल: "कमाल तो तुमने किया मेरी जान। राहुल के बिना कहे ही तुम उससे जा चिपटी। दे खने में तो बड़ी भोली लगती हो।
पर हो परू ी चालू। तुम्हे मालुम है की तुम अपने हुस्न के बल पर क्या क़यामत ढा सकती हो। उसी का use करके तुमने
अपना खेल जल्दी ख़तम करवा लिया। है न…”

कोमल भी अपनी तारीफ सुनकर खुश हो रही थी। आज पहली बार उसे एहसास हुआ था की एक लड़की अगर चाहे तो अपने
हुस्न के बल पर क्या क्या कर सकती है । फिर ये तो एक रे गिग
ं वाला खेल था। उसके अन्दर एक अलग तरह का
आत्मविश्वास सा आने लगा था। उसे क्या मालुम था की यही आत्मविश्वास उसे कहाँ लेजाकर छोड़ेगा। क्रमशः

क्लास ख़त्म होने के बाद सभी बाहर आ गए, कोमल और पायल थोड़ी ही दे र में अच्छी दोस्त बन चक
ु ी थी, दोनों सीधा
केन्टीन गए और चाय और समोसा आर्डर करके एक कोने में बैठ कर बाते करने लगे। दोनों ने एक दस
ु रे के साथ अपने नंबर
एक्सचें ज करे ।

मैं: अरे , तुमने ये तो बताया ही नहीं की तुम रहती कहाँ हो…

पायल: मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ, और यहाँ दिल्ली में हॉस्टल में रहूंगी। अभी दिखाती हुँ तुम्हे , पास ही है ।

मैं: नहीं यार, दे र हो जायेगी, मम्मी कहे गी की पहले ही दिन इतनी दे र से आई हो।

पायल: क्या यार, अब तू कॉलेज में है , ये सब तो लगा रहे गा, मुझे मालुम है कितनी एक्सायटमें ट हो रही है जब से मैं दिल्ली
आई हूँ, इतना खुलापन जिन्दगी में दोबारा नहीं मिलेगा मेरी जान। ये तीन साल हमें पूरी मौज मस्ती में बिताने है , और ये
मम्मी-पापा तो बोलते ही रहें गे। पहले दिन ही वापिस घर टाईम से जाकर तू उन्हें ये बताना चाहती है की तेरा क्या टाईम है ।
तू एक घंटा लेट जा आज, उन्हें तब मालुम चल जाएगा की यही तेरा रोज का टाईम रहे गा, और कभी अगर जल्दी चली गयी
तो बोल दे ना की क्लास नहीं थी आज। समझी…

पायल मुझे पहले दिन से ही बिगड़ने में लगी हुई थी। तभी दस
ू री तरफ से मुझे राहुल एंड गें ग आते दिखाई दिए

राहुल: हे गर्ल्स… क्या चल रहा है ।

पायल: हाय राहुल… बस चाय पीने आये थे।

राहुल: क्या यार, अभी भी चाय-वाय। अब तुम बड़े हो चुके हो। थोडा बीयर शीयर पिया करो। हे हे … मजा आएगा।

मैं: नहीं राहुल, हमने आज तक बीयर नहीं पी और ना ही पीना चाहते हैं।

राहुल: ओहो… क्या बात है । फिर ये भी बता दो मेरी जान की बीयर के अलावा क्या पीना पसंद है तम्
ु हे । और वो गंड
ु े की तरह
अपने होंठो पर जीभ फिरने लगा।
4
उसकी हरकत इतनी ओच्छी थी की कोई भी लड़की उसे वहीँ के वहीँ थप्पड़ मार दे ती। पर मुझे ना जाने क्या हो गया था
आज। उसकी गन्दी हरकत भी मेरे शरीर के अन्दर एक लहर सी दौड़ा रही थी। मैंने आँखे नीचे कर ली और मेरे होंठो पर एक
हलकी सी हं सी आ गयी। जिसे राहुल ने शायद दे ख लिया था, क्योंकि वो मेरे चेहरे को बड़े गौर से दे ख कर ये जानना चाहता
था की उसके कहने का क्या रीयेक्शन होता है मुझपर।

राहुल ने फ़ौरन कुछ डिसाईड सा किया और अपने दोस्तों से बोला: सुनो… मैं कोमल को कुछ दिखा कर लाता हूँ। तुम यही
मेरा वेट करो।

मुझे कुछ समझ नहीं आया की एकदम से राहुल को हुआ क्या है । उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उठा कर अपने साथ ले
जाने लगा। मैंने घबरा कर पायल की तरफ दे खा।

पायल: राहुल रुको। ये कहाँ ले जा रहे हो। ये मेरे साथ अभी होस्टल जा रही है ।

राहुल: तुम फिकर मत करो। तुम होस्टल जाओ, मैं इसे थोड़ी दे र में वहीँ लेकर आता हूँ। बस दस मिनट में । और वो मुझे
खींचता हुआ बाहर ले गया।

बाहर आते ही मैंने उससे अपना हाथ छुड़ा लिया: ये क्या बदतमीजी है राहुल… कहाँ ले जा रहे हो तम
ु मझ
ु े।

राहुल: अरे कोमल, तम


ु नाराज क्यों होती हो। चलो तो सही, तम्
ु हे एक बड़ी ही मस्त सी जगह दिखानी है । चलो आओ।

मैं मना भी करना चाहती थी और उसके साथ भी जाना चाहती थी। वो मुझे कॉलेज के ऊपर की तरफ ले जाने लगा, कॉलेज
का टाईम ख़त्म हो चूका था इसलिए पूरी बिल्डिंग में कोई भी नहीं था।

मैं: पर तम
ु मझ
ु े ले कहा जा रहे हो…

राहुल: सब ु ह तमु से सही तरह से बात नहीं हो पायी थी। चलो ऊपर छत पर। वहां एक जगह है , जहाँ से परू ा शहर दिखाई दे ता
है , मेरी फेवरे ट है । वहां बैठकर बाते करें गे।

हम ऊपर छत पर आ गए। और राहुल मुझे लेकर कोने में बने एक शेड के नीचे ले गया, छत की दिवार मेरी छाती तक आ
रही थी। मैंने दिवार के ऊपर अपने उभार रख दिए और दस
ू री तरफ का नजारा दे खने लगी। सचमुच परू ा शहर दिखाई दे रहा
था वहां से। तभी राहुल मेरे बिलकुल पीछे आकर खड़ा हो गया। और मेरे दोनों तरफ हाथ टिका कर खड़ा हो गया। मैं घबरा
गयी।

मैं: राहुल ये क्या…

राहुल: डोंट वरी, डरो मत। मैं तो बस सब


ु ह से वो कहना चाहता हूँ जो मैंने उस समय तम
ु से नहीं कहा।

मैं: क्या…

राहुल: की तुम बहुत स्वीट हो। वो जो तुमने मुझे किस्स किया था। इट वास रे यल्ली स्वीट। मुझे बहुत मजा आया।

मैं मन ही मन खुश हो रही थी की कॉलेज में लीडर बनके घुमने वाला लड़का पहले ही दिन मुझसे इतना इम्प्रेस हो गया है ।
पर इसकी वजह से ये मझ
ु े चालु तो नहीं समझ रहा न।

मैं: वो… वो तो मैंने जल्दी गेम ख़त्म करने के लिए किया था राहुल, तम
ु समझ सकते हो। वैसे भी उस जॉन को किस्स करने
से अच्छा मुझे लगा की तुम्हे किस्स कर दे ना चाहिए।

राहुल: अच्छा जी… ऐसा क्या दे खा तुमने मुझमे। ये कहते हुए उसने मेरी कमर पर हाथ रख दिए और मेरे नितम्बो के अन्दर
अपने "लंड" को घिसने लगा।

5
मेरी तो हालत ही खराब हो गयी उसकी इस हरकत से। आज तक किसी ने मुझे छुआ भी नहीं था, और आज कॉलेज के
पहले ही दिन मैंने किस्स भी करी और किसी के लंड को अपने पिछवाड़े पर महसूस भी किया। मेरे चेहरे पर पसीने से आने
लगे।

मैं: दे खो राहुल। मैं एक शरीफ लड़की हूँ। तम


ु अपनी इन हरकतों से पहले ही दिन मझ
ु पर नेगेटिव इम्प्रेशन डाल रहे हो। ऐसा
ना हो की पहले दिन की हमारी ये मुलाकात आखिरी मुलाकात बन जाए। इसलिए अपने पर कण्ट्रोल करो। उसे शायद मेरी
बात समझ आ गयी थी। इसलिए उसने अपनी कमर मटकानी बंद कर दी। और मेरे हिप्स में से उठती हुई तरं ग वही ख़त्म
हो गयी।

मझ
ु े उसके इतनी जल्दी मान जाने की उम्मीद नहीं थी। मैं उसकी तरफ घम
ू गयी। उसने जल्दी से अपने लंड के ऊपर हाथ
रखकर उसे नीचे बिठाने की कोशिश की, जिसे दे खकर मेरी हं सी निकल गयी। मुझे हँसता हुआ दे खकर वो थोडा नोर्मल
हुआ।

राहुल: अच्छा ये बताओ, तुम रहती कहा हो।

मैं: कालकाजी… और तुम…

राहुल: अरे वाह… कालकाजी रहती हो तुम। मैं गोविन्द परू ी में रहता हूँ। पास ही है । तुम कैसे आती हो कॉलेज…

मैं: पापा ने बोला है की मुझे स्कूटी लेकर दें गे, तब तक बस में आती रहूंगी।

राहुल: अरे मेरे होते हुए तुम बस में क्यों आओगी, तुम मुझे कालकाजी बस स्टें ड पर मिल जाना, मेरे साथ बाईक पर आना
कल से।

यही तो मैंने सोचा था कॉलेज आने से पहले। कॉलेज, कैंटीन, लड़के, बाईक। आज सब कुछ हो रहा था मेरे साथ। मैंने उसे हाँ
कर दी। उसकी नजर मेरे उभारों पर थी। मुझे फिर से सनसनी सी होने लगी। मेरी साँसे तेजी से चलने लगी और मेरी छाती
ऊपर नीचे होने लगी। मेरे होंठ सूखने लगे, मैंने उनपर जीभ फिराई, जिसे दे खकर राहुल ने ना जाने क्या समझा की आगे
बढकर मुझे चूम लिया। मैंने अपनी आँखे बंद कर ली। वो पीछे हुआ और मेरी आँखे बंद पाकर उसने फिर से आगे आकर
मझ
ु े चम
ू लिया और इस बार सही वाला चम् ु मा दिया उसने, जीभ अन्दर तक डालकर मेरे होंठो को आम की तरह से चस
ू ने
लगा और उनका रस पीने लगा। उसका एक हाथ ऊपर आकर मेरे उभारो पर टिक गया पर मैंने उसे वापिस नीचे कर दिया।
और हाँफते हुए उसे पीछे की तरफ धक्का दिया।

मैं: राहुल… मैंने कहा न। मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ। चलो नीचे अब।

राहुल कुछ न बोला और अपनी पें ट में लंड को अडजस्ट करता हुआ नीचे आने लगा। नीचे जाकर मैं सीधा केन्टीन में गयी
पर वहां पायल नहीं थी और न ही राहुल के बाकी दोस्त। सिर्फ दो चार ही लोग बचे थे वहां पर अब। तभी मेरे सेल पर पायल
का फोन आया।

पायल: अगर तेरे मजे खत्म हो चक


ु े हो तो मेरे होस्टल में आ जा।

मैं: चप
ु कर… अभी आई।

मैंने राहुल की तरफ दे खा: मुझे तुम पायल के होस्टल छोड़ दोगे क्या…

राहुल: ठीक है , आओ।

वो मुझे अपनी बाईक तक ले गया, राहुल की बाईक बड़ी ही शानदार थी। होंडा करिज्मा, ब्लेक कलर की। मैं उसके पीछे बैठी
और एक मिनट में ही उसने मझ
ु े होस्टल के बाहर उतार दिया।

राहुल: कितनी दे र लगेगी तुम्हे ।

6
मैं: यही कोई आधा घंटा। क्यों…

राहुल: नहीं, ऐसे ही। और उसने बाईक स्टार्ट की और चला गया।

मैंने फोन करके पायल के रूम का नंबर पूछा और वहां पहुँच गयी। उसके साथ एक और लड़की थी कमरे में , उससे भी
सुन्दर।

पायल: आओ कोमल। इससे मिलो, ये है मेरी रूममेट पूजा, पूजा शाह।

मैं: है पूजा… हाव आर यु।

पूजा: मैं ठीक हूँ। आओ न। बैठो। तुम दोनों बाते करो। मैं अभी आई। और ये कहते हुए पूजा हमें अकेला छोड़कर बाहर
निकल गयी।

उसके जाते ही पायल ने मुझे धर दबोचा: नाव टे ल मी, क्या हुआ। क्या करा राहुल ने तेरे साथ।

मैं: अरे बाबा कुछ नहीं। वो तो मुझे छत पर ले गया था जहाँ से पूरा शहर दीखता है । बस…

पायल: पागल किसी और को बनाना। जाने से पहले तेरे लिप्स पर लिपिस्टिक थी। अब नहीं है ।

धत्त तेरे की… इसका तो मैंने सोचा भी नहीं था। सब


ु ह जब उसे मैंने किस्स किया था तो मैंने बाद में लिपस्टिक लगा ली थी।
पर अब शाम को लगाना भूल गयी। मैं अपना सर नीचे झुका लिया। और मंद मंद मुस्कुराने लगी।

पायल: वाव यार। तू तो लगता है की सोच कर आई है की तुझे क्या मजे लेने है कॉलेज में । और बता न… क्या क्या किया
उसने तेरे साथ।

मैं: पागल है क्या। तू भी न… सिर्फ किस्स किया और कुछ नहीं। मैंने कुछ और करने ही नहीं दिया उसे।

पायल: क्या यार… वैसे वो और क्या करने वाला था तेरे साथ।

मैं: मुझे क्या पता यार। मेरे पीछे चिपका हुआ था। और… और मेरे हिप्स के ऊपर अपना… अपना…

पायल: हाँ हाँ बोल न। अपना लंड घिस रहा था… है न।

मैं एक लड़की के मंह


ु से लंड शब्द सन
ु कर है रान रह गयी। वैसे मझ
ु े भी ये शब्दावली मालम
ु थी। पर दस
ू री लडकियों को भी
मालुम है , इसका मुझे आश्चर्य हुआ। तभी मेरी नजर सामने दिवार पर लगी घडी पर गयी। चार बजने वाले थे।

मैं: यार मर गयी… मैं अब चलती हूँ। घर पहुँचने में भी एक घंटा लगेगा अभी तो। मम्मी को बोला था की चार बजे तक आ
जाउं गी।

पायल: तझ
ु े मैंने केंटिन में क्या बोला था। कह दे ना की चार बजे तक कॉलेज था, बस… और हम दोनों रोज यहाँ बैठ कर
गप्पे मारें गे। ठीक है । चल जा अब। घर जाकर मझ
ु े कॉल कर दे ना। बाय…

और उसके होस्टल से निकल कर मैं जल्दी से बाहर निकली। सामने राहुल अपनी बाईक पर खड़ा हुआ मेरा इन्तजार कर
रहा था। क्रमशः 6

मुझे उम्मीद नहीं थी की राहुल मुझे अभी भी बाहर खड़ा हुआ मिलेगा, पर ना जाने क्यों, उसे दे खकर मुझे अन्दर-ही-अन्दर
आफी ख़श
ु ी हुई।

मैं: अरे तम
ु , गए नहीं अभी तक…

राहुल: बस तुम्हारा ही इन्तजार था।

मैं: मैंने कहा था की तुम्हारे साथ आउं गी, ये नहीं कहा था की रोज जाउं गी भी तुम्हारे साथ।
7
राहुल: अच्छा, मेरे साथ नहीं तो किसके साथ जाने का इरादा है , मैं भी तो सुनूं कौन है जो तुम जैसी हसीना को लिफ्ट दे ने के
लिए तैयार है , ये जानते हुए भी की मैंने पहले से बुकिंग करवा ली है ।

मैं: वाह जी वाह… बुकिंग तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं कोई चीज हूँ।

राहुल: अरे वो तो ऐसे ही निकल गया। वैसे जल्दी बैठो, पहले ही दिन लेट होना है क्या घर पर।

मैंने ज्यादा बहस नहीं की और उसकी बाईक पर बैठ गयी। घर तक का रास्ता एक घंटे का था, पर शायद बाईक से जल्दी
पहुँच जाऊ।

मैं: राहुल, कितना टाईम लगेगा कालकाजी तक जाने में यहाँ से तुम्हारी बाईक में ।

राहुल ने पीछे सर किया और मेरे चेहरे से अपना चेहरा मिलते हुए धीरे से कहा: वो तो तुमपर निर्भर है , तुम चाहोगी तो
जल्दी पहुंचा दं ग
ू ा और अगर तम
ु चाहोगी तो लेट।

मैं: मजाक मत करो, लेट नहीं होना मुझे। तुम जल्दी पहुँचाओ मुझ।े

राहुल: फिर तुम मुझे कस कर पकड़ लो, जितना कस कर पकड़ोगी, उतना ही तेज दौड़ेगी मेरी बाईक।

मैंने हँसते हुए अपने दोनों हाथ आगे किये और घुमाकर उसके कंधे पर अपनी हथेलिया जमा दी, मुझे मालुम था की ऐसा
करने से मेरी छातियाँ उसकी पीठ में चभ
ु रही होगी, जिसकी चाह में हर लड़का चाहता है की उसे लड़की कस कर पकड़कर
बैठे। और जैसा राहुल ने कहा था, वैसा ही हुआ, मेरे कस कर पकड़ते ही उसने बाईक को 80 -90 की स्पीड से भगाना शुरू
कर दिया, मुझे डर सा लगने लगा, मैंने आँखे बंद की और अपना चहरा उसकी गर्दन में छुपा सा लिया और सफ़र के जल्दी
ही ख़तम होने का इन्तजार करने लगी।

मेरा हाथ खिसक कर उसके लंड वाले हिस्से तक आ गया, मझ


ु े इसका एहसास तब हुआ जब उसके लंड ने हरकत की, मझ
ु े
अपने हाथ के नीचे वाले हिस्से में गुदगुदी सी महसूस हुई, तब मुझे पता चला की मेरा हाथ कहा है । मैंने सोचा चलो आज
इसके साथ भी मजा लिया जाए, उसकी बाईक रिंग रोड पर चल रही थी, इसलिए आस पास ज्यादा ट्रे फिक भी नहीं था, मैंने
अपने हाथ की उं गलिया खोली और उसे नीचे की तरफ कर दिया, और जैसे ही उसके खड़े हुए लंड के चारो तरफ मेरा हाथ
पूरा घिर सा गया, मैंने अपना पंजा उसके लंड समेत पेट के ऊपर चिपका सा दिया। मुझे लगा की मेरे हाथ के नीचे कोई
मोटा सा चूहा मचल कर बाहर निकलने को छतपटा रहा है । पर मेरे हाथ का दबाव इतना ज्यादा था की मैंने उस चूहे का
गला दबोच कर उसे वहीँ रहने को मजबूर कर दिया। मेरी साँसे तेजी से चलने लगी थी, और शायद यही हाल राहुल का भी
था।

उसने मेरी तरफ अपनी गर्दन घुमाई और धीरे से कहा: ओह्ह्ह… जान… अगर तुम ऐसे ही करती रही तो मेरी पें ट जल्दी ही
गीली हो जाएगी। मेरे मुंह से हं सी निकल गयी

मैं: गीली होती है तो हो जाए, मुझे क्या…

राहुल: यार कुछ तो रहम करो मुझ गरीब पर। जो भी दे खेगा, क्या कहे गा।

मैं: मुझे क्या लेना। तुम्ही ने कहा था न की जितना जोर से पकड़ोगे उतना ही जल्दी पहुँचाओगे, अब जल्दी करो, मुझे दे र हो
रही है ।

राहुल (सिसकारी मारते हुए): अब जितनी दे र होनी थी हो गयी, दस - पंद्रह मिनट से कुछ फरक नहीं पड़ेगा अब।

मैं: मतलब…

राहुल कुछ न बोला और बाईक चलाता रहा। मैं भी उसके मोटे चूहे के साथ खेलती रही, सच कहूँ तो आज मैंने पहली बार
किसी का लंड इस तरह से पकड़ा था, सुबह जब उसने पीछे से रगडा था तब सिर्फ महसूस किया था, पर हाथ में लेकर ज्यादा

8
मजा आ रहा था अब। तभी राहुल ने बाईक की स्पीड धीरे कर दी, रिंग रोड के किनारे पर एक DTC बस खड़ी हुई थी, शायद
खराब हो गयी थी, राहुल ने अपनी बाईक उसकी ओट में खड़ी की और मेरा हाथ पकड़कर उतारा।

मैं: ये क्या… यहाँ क्यों रोक दी बाईक।

राहुल: चलो तो सही। उसने मेरा हाथ पकड़ा और बस के ऊपर चढ़ गया। वो यहाँ मेरे साथ कुछ कर तो सकता नहीं है , हाईवे
है ये तो फिर क्यों मझ
ु े ऊपर लेकर आया है ।

वो बस के बीचो बीच गया। और अपनी पें ट खोलकर बीच बस में नीचे लेट गया। मेरा तो हलक सूख गया उसकी इस हरकत
से। और उसके लंड को दे खकर तो मुझे और भी डर लगने लगा, सच में बड़ा चूहा था। वो होता है न घीस। वैसा ही था, काला
और मोटा, भद्दा सा पर उसे दे खकर मेरे शारीर में एक अजीब सी हलचल सी होने लगी थी।

राहुल: दे ख क्या रही है , अब जल्दी आओ और जो काम शुरू किया था उसे कम्पलीट करो। जल्दी…

मेरे सामने उसका लंड घोड़े की तरह हिनक रहा था। मैं मना करना चाहती थी पर मेरे पैर अपने आप उसकी तरफ बड़ते चले
गए। और मैं उसकी टांगो के बीच जाकर बैठ गयी। वो थोडा ऊपर उठा और मेरा सर पकड़कर मुझे अपने लंड पर झुका
लिया। उसके लंड के चारो तरफ पसीने की अजीब सी महक आ रही थी, गन्दी सी। पर मझ
ु े बड़ी ही मादक सी लग रही थी।
खुली आँखों से मुझे उसका भयानक सा लंड बड़ा डरावना लग रहा था। इसलिए मैंने अपनी आँखे बंद की और उसके लंड पर
अपना मुंह झुका दिया और उसे मुंह में भर लिया।

राहुल: आआआह्ह येस बेबी, सक मी…

मुझे सकिं ग के बारे में मालुम था, नेट पर काफी मूवी दे खी थी मैंने। उसके लंड को मुंह में भरा और उसे चाटना शुरू कर
दिया। और जल्दी ही मझ
ु े मजा आने लगा। मेरे शरीर में भी चत
ू के आस पास का एरिया सन्
ु न सा होने लगा और वहां
चींटिया सी रें गने लगी। मुझे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं फील हुई थी, मेन रोड के ऊपर खड़ी हुई बस में मैं किसी लड़के
का लंड चूस रही थी, और वो भी उसका जिसे मैं आज ही मिली थी, कॉलेज में । ये सोचते हुए मैंने अपना एक हाथ अपनी चूत
वाले हिस्से पर रखा और उसे मसलने लगी।

मसलने के साथ ही ना जाने मझ


ु े क्या हुआ, मेरे अन्दर की गन्दी लड़की जैसे जाग सी उठी। मैंने अपनी लम्बी जीभ निकाल
कर उसके लंड और बाल्स को लम्बाई में चाटना शुरू कर दिया। उसके बालो वाले हिस्से को चूसना, बाल्स को चाटना, लंड
को मसलकर चूसना। ना जाने क्या क्या करने लगी मैं पागलो की तरह, मेरे ऊपर जैसे कामाग्नि का भूत सवार हो गया था।

राहुल भी मेरे व्यवहार को दे खकर दंग रह गया, उसने शायद इतनी गरम लड़की आज तक नहीं दे खी थी। जो उसे खा
जाने वाली नजरो से दे खते हुए, उसका लंड खा रही थी।

और जल्दी ही उसके लंड से गरमा गरम दध


ू निकलने लगा, मुझे मालुम था की उसका क्या करना है , मैंने अपना मुंह
लगाकर सारा दध
ू पी लिया। राहुल ने मुझे अपने ऊपर खींचा और मेरे होंठो को बरु ी तरह से चूमने चाटने लगा। मैंने भी
अपने चत
ू वाले हिस्से को उसके अभी भी खड़े हुए लंड से घिसना शरू
ु किया और जल्दी ही मैंने भी अपना तेल निकालना
शुरू किया। और गहरी सांस लेते हुए उसके ऊपर गिर सी गयी।

थोड़ी दे र बाद मैंने ऊपर सर किया और कहा: अब चले… दे र हो रही है मुझे। क्रमशः 9

मेरी चूत से आज लगातार दस


ू री बार पानी निकला था, और राहुल के लंड से निकले पानी की वजह से मेरी जींस के आगे
वाला हिस्सा थोडा सा गीला दिखाई दे ने लगा, मैंने अपना रुमाल निकाला और वहां से साफ़ किया, पर निशान फिर भी
दिखाई दे रहा था, मैंने अपना टॉप जींस से बाहर निकाल लिया जिसकी वजह से गीली जगह छुप गयी। मैं अपने कपडे सही
करके बस की सीट पर ही बैठ गयी।

9
राहुल धीरे से उठा, अपना मरा हुआ चूहा उसने अन्दर ठूसा और चलने के लिए तैयार हो गया, हम नीचे उतरे , मैं उसके पीछे
बाईक पर बैठी और वो मेरे घर की तरफ चल दिया। रास्ते भर मैंने उससे कोई बात नहीं की, घर पहुंचकर मैंने उसे लिफ्ट के
लिए थेंक्स कहा और चल दी, उसने पीछे से आवाज लगा कर मुझे सुबह 9 बजे आने को कहा और वो भी चला गया। घर
पहुँचते ही मम्मी ने मुझे पानी पिलाया और मेरे पास आकर बैठ गयी।

मम्मी: कैसा रहा मेरी रानी का पहला दिन कॉलेज में । किसी ने तंग तो नहीं किया न। कैसा है तेरा कॉलेज, अच्छा तो है न।
दे र कैसे हो गयी, तुने तो चार बजे बोला था। बोल न…

मैं: ओहो… मम्मी सांस तो लेने दो न प्लीस। आप तो सवाल पूछती ही जा रही है । ठीक था सब। मुझे भूख लगी है । कुछ दे
दो। मैं चें ज करके आती हूँ। मैंने उनके इतने सारे सवालो का अनमना सा और छोटा सा जवाब दिया और अपने कमरे की
तरफ चल दी।

कमरे में मेरा छोटा भाई आशुतोष जो की अभी 12th में है , बैठा हुआ था, दरअसल हमारे रूम तो अलग-२ है पर बाथरूम
कॉमन है , जिसका एक दरवाजा उसके रूम में और दस
ू रा मेरे रूम में खुलता है , पर टी वी सिर्फ मेरे कमरे में है , इसलिए वो
बैठ कर स्टार मव
ू ी पर कोई एक्शन मव
ू ी दे ख रहा था।

मेरे आते ही उसने भी लगभग वोही सारे सवाल किये जो मम्मी ने पछ


ू े थे।

मैं: आशु, बाद में बताती हूँ अभी तू बाहर निकल, मुझे चें ज करना है ।

आशुतोष: क्या दीदी, इतनी अच्छी मूवी आ रही है । आप बाथरूम में जाकर चें ज कर लो न।

मैं पैर पटकती हुई अलमारी तक गयी और अपने कपडे निकाल कर बाथरूम में चली गयी। अन्दर जाकर मैंने अपनी जींस
उतारी, और टॉप भी, मेरी पें टी की हालत इतनी बरु ी थी की मझ
ु े अपने पर शर्म भी आ रही थी और रोमांच भी हो रहा था।
मैंने जब पें टी उतारी और उसे हाथ में लेकर वाशबेसिन में निचोड़ा तो उसमे से रसीला पानी निकल कर उसमे गिरने लगा,
मानो पानी में भिगो कर निकाला हो उसे। वाशबेसिन मेरे जूस से पूरा नहा गया था, मैंने अपनी ब्रा भी उतारी और शीशे के
सामने खड़ी होकर अपने आप को निहारने लगी, मेरा फिगर तो इतना बढ़िया था की मझ
ु े हर कोई घम
ू -२ कर दे खता रहता
था, मैंने कॉलेज जाने से पहले मम्मी को बोला था की मुझे बाल छोटे करवाने है , बिलकुल प्रीती जिंटा जैसे, मम्मी ने कहा
था की दे खेंगे।

पर अभी तो मेरे बाल मेरी बेक से भी नीचे तक आते थे, जिन्हें मैंने इतने सालो से पाल पोस कर बड़ा किया था, बाल छोटे
करने के बाद मेरी खब
ू सरू ती में चार चाँद लग जायेंगे। बालो के बारे में सोचते-२ मझ
ु े अपनी चत
ू के ऊपर वाले बालो का भी
ध्यान आया, जो काफी बड़े हो चुके थे, मैंने जल्दी से अपना रे जर निकाला, और अशुरोश का शेविग
ं फोम निकाल कर अपनी
चूत के ऊपर लगा लिया, और उसे साफ़ करने में लग गयी, दस मिनट में ही मेरी चूत हीरे की तरह से चमकने लगी, चिकनी
चूत के ऊपर पानी का प्रेशर डालने की वजह से मुझे अन्दर ही अन्दर गुदगुदी सी होने लगी, और मैं वहीँ टॉयलेट सीट को
बंद करके उसके ऊपर बैठ गयी। सामने की दिवार पर अपने दोनों पेरो के पंजे टिकाये और अपनी उँ गलियों से अन्दर के
हिस्से को रगड़ने लगी।

मैंने आँखे बंद की और परू े दिन की बाते याद करते हुए अपने हाथ की स्पीड बढाती चली गयी की कैसे मैंने राहुल को किस
किया, उसने मुझे पकड़ा और चूमा, और फिर ऊपर छत पर लेजाकर मेरे पीछे खड़े लंड से घिसाई करी और अंत में बस के
अन्दर जब मैंने उसके मोटे लंड को चूसा और अपनी चूत को रगडा वाआव्व्व, कितना कुछ हुआ था आज मेरे साथ। तभी
मेरी नजर सामने दिवार पर टं गे आशु के अंडरवीयर के ऊपर गयी जिसे दे खकर मझ
ु े राहुल के अंडरवीयर के बारे में याद आ
गया की कैसे उसका मोटा लंड छोटे से अंडरवीयर में समाया हुआ था। मुझे ना जाने क्या हुआ, मैंने उठकर उसके अंडरवीयर
को उठाया और वापिस आकर वहीँ बैठ गयी, एक हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी और दस ु रे से उसके अंडरवीयर को
अपनी ब्रेस्ट के ऊपर फिराने लगी।

10
वो लंड वाले हिस्से से थोडा सा गीला था, मानो अभी थोड़ी दे र पहले ही उसने उतारा हो, मैंने गीले वाले हिस्से को सुंघा तो
मुझे उसमे से वैसी हो खुशबू आई जैसी राहुल के रस से आ रही थी। उसके बारे में सोचते हुए ही मैंने उस गीले हिस्से को
अपनी नाक के ऊपर रगडा, होंठो से छुआ और अगले ही पल पागलो की तरह चूत के ऊपर हाथ चलाते हुए, उसके परू े
अंडरवीयर को अपने होंठ, जीभ, गाल और आँखों के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया। आआअह्ह्ह्ह… और ये सब करते हुए मैंने
अपनी चत
ू से फिर एक बार रसीला जस
ू निकाल कर नीचे गिराना शरू
ु कर दिया।

और ये करते हुए मेरे मुंह से एक जोरदार सिसकारी निकल गयी। मैं गहरी सांस लेकर अपने होश संभाल ही रही थी की
दरवाजे पर आशु की आवाज आई: दीदी क्या हुआ… ठीक तो है तू।

शायद उसने मेरी आवाज सन


ु ली थी।

मैं: हाँ… हाँ ठीक हूँ मैं।

पता नहीं आज मुझे हुआ क्या था, मैंने मास्टरबेट करते हुए आज तक मुंह से कोई आवाज नहीं निकाली थी, और ना ही
अपने भाई के अंडरवीयर या उसके बारे में कोई गलत बात सोची थी। पर आज पहली बार मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी
थी, और उसके अंडरवीयर के साथ भी मैं खेली थी। ये जानते हुए भी की मेरा भाई बाहर बैठा हुआ है । मैंने जल्दी से शावर
लिया और और चें ज करके बाहर आ गयी। वो अभी भी बैठ कर टीवी दे ख रहा था। मैं नीचे गयी, मम्मी ने मेरे लिए सेंडविच
बना दिए थे, मैं उन्हें खाते हुए मम्मी को कॉलेज के बारे में बताने लगी। और उन्हें ये भी बताया की शाम को चार बजे नहीं
बल्कि पांच बजे छुट्टी होगी। वगेरह… वगेरह…

तभी बेल बजी और मम्मी ने दरवाजा खोला, बाहर हमारे पडोसी राज अंकल थे। उनकी उम्र कोई 40 के आस पास थी, वो
बैंक में मेनेजर थे, और उनकी पत्नी भी गवर्मेंट जॉब में ही है । उनकी दो बेटिया है , एक तो डोली जिसकी उम्र 19 साल है ,
अपने मामा के पास पन
ू ा में रहती है और वहीँ से BBA कर रही है और दस
ू री है दीपा जो की डोली से दो साल छोटी है और
मेरे साथ ही मेरी क्लास में रहकर उसने भी 12th पास करी है । पर थोड़े कम नंबर की वजह से उसका एडमिशन मेरे कॉलेज
में नहीं हो पाया था। जिसकी वजह से वो और उसके पापा काफी परे शान थे, वो चाहते थे की स्कूल की ही तरह कॉलेज में भी
हम दोनों साथ ही रहे ।

मम्मी: अरे राज भाई साब, आइये बैठिये।

राज अंकल: नमस्ते भाभी। अरे कोमल बेटा, तुम भी हो, चलो अच्छा हुआ, मैं तुम्हे गुड न्यूज़ दे ने आया था, दीपा का
एडमिशन मैंने तुम्हारे कॉलेज में करवा ही दिया।

मैं तो ये सुनकर ख़ुशी से उछल ही पड़ी। और भागकर राज अंकल के गले जा लगी। मम्मी ने मुझे घूर कर दे खा तो मैं उनसे
दरू हुई और बोली: वाव… अंकल मजा आ गया। पर ये हुआ कैसे…

राज अंकल: वो दरअसल, कॉलेज के एडमिन हे ड का अकाउं ट हमारे ही बैंक में है । आज सुबह ही वो हमारे बैंक आये थे,
हाऊसिंग लोन लेने के लिए, और जब उन्होंने बताया की वो उसी कॉलेज में ही एडमिन हे ड है तो मैंने दीपा के बारे में उन्हें
बताया, उन्होंने एक फोन घुमाया और उसका एडमिशन करवा दिया, कल से वो अब तुम्हारे साथ ही जायेगी। ठीक है न…
अच्छा भाभी जी, मैं चलता हूँ।

ये कहकर वो चले गए। मैंने भाग कर फ़ोन उठाया और दीपा को मिलाया 

दीपा: हाय… मैं तुझे ही फोन करने वाली थी।

मैं: साली एडमिशन हो भी गया और तुने बताया भी नहीं। तू रूक, मैं एक घंटे में आती हूँ तेरे पास, तब बताउं गी तझ
ु े। पर
सच कहू दीपू, आई एम ् सो हे प्पी। मुझे तो अभी भी विशवास नहीं हो रहा है की तू और मैं कॉलेज में भी एक साथ रहें गे। सच
में , बड़ा मजा आएगा। हम दोनों आधे घंटे तक बाते करते रहे , मैं चाय के साथ सेंडविच खाती रही और उससे बात करती

11
रही। फिर जल्दी ही उसके घर मिलने का वादा करके मैंने फोन रखा और अपने कमरे में आ गयी। आशु जा चूका था। मैंने
टीवी ओन किया और लेट कर दे खने लगी।

तभी मुझे याद आया की मैंने बाथरूम में अपनी पें टी तो वाशबेसिन के ऊपर ही छोड़ दी है । मैं झट से अन्दर की तरफ भागी।
पर बाथरूम तो अन्दर से बंद था। यानी आशत
ु ोष अन्दर जा चक
ू ा था। मेरी तो हालत ही खराब हो गयी।

मैं: आश…
ु दरवाजा खोल…

आशुतोष: क्या है दीदी… मैं नहा रहा हूँ।

मैं: ये क्या टाइम है नहाने का। खोल जल्दी से, मुझे कुछ काम है अन्दर।

आशुतोष: क्या है दीदी… मुझे बोल दो।

मैं: बोला न खोल, जल्दी से।

मैंने तेज आवाज में उससे कहा, वो मेरे रोबीली आवाज से बड़ा ही डरता था, उसने अगले ही मिनट में दरवाजा खोल दिया,
उसने टावल लपेट रखा था, मेरी नजर सीधा वाशबेसिन पर गयी। पर वहां मेरी पें टी नहीं थी।

मैं: यहाँ… यहाँ मेरा कुछ सामान रखा हुआ था।

आशु: क्या दीदी… मुझे नहीं मालुम।

मैं भी सोचने लग गयी की कहीं मैंने उसे धोने के लिए तो नहीं ड़ाल दिया। मैं भाग कर वाशिंग मशीन के पास गयी और
अन्दर झाँका, वो अन्दर ही थी। पर मुझे याद नहीं आ रहा था की मैंने उसे कब अन्दर डाला था। मैंने घूर कर आशु को दे खा
और बाहर निकल आई। बाहर आकर मैं दीपा के घर की तरफ चल दी, जो हमारे घर से कुछ ही दरु ी पर था। क्रमशः 12

मैं दीपा के घर पहुंची और दरवाजा खडकाया, राज अंकल ने दरवाजा खोला और मुझे दे खकर बोले: मुझे मालुम था की तुम
जरुर आओगी, अपनी सहे ली को बधाई दे ने। आओ आओ… दीपा ऊपर है , अपने कमरे में । ये कहते हुए उन्होंने मझ
ु े कंधे से
पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया और दस
ु रे हाथ से दरवाजा बंद करके, मुझे पकडे-२ ही अन्दर की तरफ चल दिए।

ये मेरे लिए नया अनुभव नहीं था, राज अंकल मुझे हर बार इसी तरह से ही "प्यार" से पकड़कर अपनापन सा दिखाते थे, जो
शुरू में मुझे अजीब भी लगा था और जिसके बारे में मैंने दीपा को भी बताया था, पर दीपा ने ये कहकर की वो मुझे भी ऐसे ही
"प्यार" से पकड़कर अपना प्यार दिखाते है और तझ
ु े भी शायद अपनी बेटी की तरह ही मानते है , इसीलिए ऐसा करते है । पर
आज जब उनकी अनुभवी उं गलियों की चुभन मेरे कंधे के नीचे वाले हिस्से को दबाकर, वहां के गुदाजपन की गहराईयों को
नापने की कोशिश कर रही थी तो उसमे पहले वाली पकड़ से कहीं ज्यादा अंतर था, शायद आज मैं मर्द की पकड़ का मतलब
समझकर आई थी कॉलेज से इसलिए मझ
ु े ये अंतर दिखाई दे रहा था।

सीडियो के पास जाकर उन्होंने मेरे कंधे को छोड़ दिया और मेरे हिप पे हाथ रखकर मझ
ु े ऊपर की तरफ धकेलते हुए कहा:
जाओ बेटा, दीपा ऊपर ही है । मैं तुम दोनों के लिए कुछ पीने को लाता हूँ। मेरी बेक वाला हिस्सा सुन्न सा हो गया, इनके
बड़े-२ हाथो का स्पर्श पाकर।

मैं सीधा ऊपर गयी और दीपा को पुकारा: दीपा… ओ दीपा कहाँ है तू…

बाथरूम में से दीपा की आवाज आई: मैं अन्दर हूँ, अभी आई।

मैं और दीपा शुरू से ही एक दस


ु रे से काफी घुली - मिली थी, और एकदस
ू रे के साथ कई बार नहा भी चुकी थी और दो साल
पहले एक बार तो जब उसके मम्मी-पापा घर पर नहीं थे तो हम नंगे भी सोये थे। पर कुछ ज्यादा न पता होने की वजह से
बिना कुछ किये, एक दस
ु रे से लिपट कर ही सो गए थे।

12
मैं सीधा दरवाजा खोलकर अन्दर घुस गयी। वो स्टूल पर बैठकर रे जर से अपनी टांगो के बाल साफ़ कर रही थी। चूत के बाल
वो पहले से ही साफ़ कर चुकी थी।

मैं: वाह जी वाह… तू तो ऐसे तय्यारी कर रही है मानो कॉलेज नहीं, अपने हनीमून पर जा रही है ।

दीपा: चुप कर तू… तुने भी तो अपनी वेक्सिंग करवाई थी लास्ट संड।े अब मेरा एडमिशन भी हो गया है तो मुझे भी तो परू ा
तैयार होकर जाना है कॉलेज में । और तन
ु े ही तो कहा था की ये सब अब कॉलेज में ही काम आएगा। है न…

मैं: ठीक कहा तुने। वैसे मैंने गलत नहीं कहा था। ये सब बहुत काम आया।

दीपा: कमीनी, मतलब पहले ही दिन तुने… तुने मैदान मार लिया।

मैं: नहीं रे , मैदान तो नहीं मारा, पर मजे लिए काफी। और फिर मैंने उसे पूरे दिन की दास्ताँ सुना दी। वो अपना मुंह फाड़े
मेरी बात सन
ु ती जा रही थी,

अंत में बोली: मुझे तो विशवास ही नहीं हो रहा है की तुने… तुने पहले ही दिन, एक अंजान लड़के की सकिं ग कर ली। सही जा
रही है बॉस।

मैंने इतरा कर अपनी कमर मटकाई, जैसे उसकी तारीफ से मेरी सन्
ु दरता में चार चाँद लग गए हो। मैं उससे कोई भी बात
छुपा नहीं सकती थी। मैंने दस
ू री तरफ मुंह किया और कहा: और… और एक बात बतानी थी तझ
ु े।

दीपा: अब और क्या रह गया है बताने को…

उसने रे जर को एक तरफ रखा और गीले कपडे से अपनी टांगो को साफ़ करने लगी। वो परू ी नंगी थी, उसकी ब्रेस्ट मुझसे
थोड़ी सी बड़ी थी पर रं ग सांवला था, नीचे वाला हिस्सा भी भरा हुआ सा था, और कुल मिलकर बड़ी ही अट्रे क्टिव लगती थी
वो भी।

मैं: वो दरअसल आज मैंने बाथरूम में मास्टरबेट किया।

दीपा: तो इसमें कौन सी नयी बात है ।

मैं: नहीं… वो दरअसल आशुतोष के अंडरवीयर को हाथ में लेकर, उसे सूंघकर, ना जाने मुझे क्या हुआ। मैं करती गयी और
मझ
ु े मजा भी बहुत आया।

दीपा: यांनी तुने अपने भाई के बारे में सोचकर मुठ मारी। हे भगवान ्… सुबह कॉलेज के लड़के के साथ और फिर अपने भाई
के बारे में सोचकर भी… तझ
ु े हो क्या गया है ।

मैं: दे ख दीपा, मझ
ु े गलत मत समझ… पर ना जाने मझ
ु े हुआ क्या था, मैं तो उस कॉलेज वाले लड़के राहुल के बारे में
सोचकर फिं गरिंग कर रही थी। पर सामने जब आशुतोष का अंडरवीयर दिखाई दिया तो… तो मैं अपने आपको रोक न सकी,
और आज पहली बार मेरी पुस्सी में से इतना जूस निकला की मैं बता नहीं सकती। और अभी भी ये सब बताते हुएफिर से
निकल रहा है ।

दीपा अपना मंह


ु खोले मझ
ु े गोल आँखों से घरू ती जा रही थी। मैंने नजर झक
ु ा ली। और नजरे झक
ु ाते हुए जैसे ही मेरी नजर
उसकी चूत के ऊपर गयी, मैं है रान रह गयी, वहां से एक रस की धार निकल कर उसकी जांघो से होती हुई नीचे की तरफ जा
रही थी। यानी मेरी बात सुनकर उसकी चूत में से भी रस टपकने लग गया था। मैंने आगे जाकर उसकी धार के प्रवाह को
तोडा और अपनी ऊँगली से रस को समेट कर उसकी आँखों के सामने लहराने लगी: ये सब तझ
ु े मेरी बाते सुनकर ही हुआ है
न… बोल…

दीपा: हम्म… हाँ सही कहा तुने कोमल। तेरे साथ जो आज परू ा दिन हुआ, काश मेरे साथ भी ऐसे ही हो कॉलेज में ।

13
मैं: हाय मेरी जान… ये ही सोचकर तेरी चूत में से ये तेल निकल रहा है । और ये कहते हुए मैंने उस रस वाली ऊँगली को चाट
लिया, ये काम मैंने जिन्दगी में पहली बार किया था, किसी और लड़की के रस को चाटने का, जिसे दे खकर दीपा और भी
है रान रह गयी।

दीपा: नहीं… वो सब सोचकर नहीं निकला ये। वो तो जब तुने आशुतोष वाली बात बताई। तब… तभी कुछ हुआ मेरी चूत में ।

मैं उसकी बात सुनकर है रान रह गयी, अभी थोड़ी दे र पहले ही आशुतोष वाली बात सुनकर मुझे ऐसे बोल रही थी मानो
मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया हो और उसी इन्सेस्ट के बारे में सोचकर उसकी चूत में से पानी निकल आया। यानी… यानी वो
भी इन्सेस्ट सेक्स के फेवर में है । पर उसका तो कोई भाई है ही नहीं, सिर्फ एक छोटी बहन है । और घर में सिर्फ उसके मम्मी
और पापा… ओहो पापा, यानी वो… वो अपने पापा के बारे में सोच रही थी, और तभी उसकी चूत में से ये अविरल धारा बह
निकली।

मैं सब समझ गयी। और हो भी क्यों न, उसके पापा थे ही इतने हैंडसम। मुझे भी वो शुरू से बड़े अच्छे लगते थे, और ये दीपा
तो उनकी सगी बेटी है और एक ही घर में रहती है । उसका अपने हैंडसम पापा के ऊपर क्रश आना तो स्वाभाविक ही है ।

मैं: दीपा मैं समझ गयी की तेरा ये हाल किसके बारे में सोचकर हुआ है ।

दीपा: किस… किसके बारे में ।

मैं: बता द ू क्या… बोल… हूँ…

वो भी शायद मेरी बात को समझ चुकी थी, और जानती थी की मैं क्या बोलने वाली हूँ इसलिए उसने अपनी नजरे झुका ली।
शायद मेरे सामने वो अपने पापा के प्रति प्यार दिखाकर शर्मिंदा नहीं होना चाहती थी। पर मैं इस चेप्टर को यहीं ख़तम नहीं
करना चाहती थी।

मैं: तू अपने पापा के बारे में सोच रही थी न। बोल ठीक कहा न मैंने।

दीपा कुछ न बोली और अपने कपडे पहनने लगी। और फिर बाहर निकल आई। उसकी चप्ु पी का मतलब साफ़ था, यानी जो
मैं कह रही थी वो सच था। वाव… मजा आएगा। मैंने मन में सोचा की क्यों न दीपा की हे ल्प करू ताकि वो अपने मन में छुपे
प्यार को अपने पापा से बाँट कर खुश रहे और शायद ये सब करवाकर मुझे भी कुछ मज़ा मिल जाए। राज अंकल जैसे
हैंडसम इंसान से मजे लेना कौन नहीं चाहे गा। और वैसे भी मैंने उनके छुने के अंदाज में जो कसक महसूस की थी, मुझे
मालुम था की उन्हें पटाना काफी आसान होगा।

मैं भी उसके पीछे -२ बाहर आई, बोल न… तू अपने पापा के बारे में ही सोच रही थी न…

तभी दरवाजे से आवाज आई: अरे भाई, हमें भी तो बताओ, कौन हमारे बारे में सोच रहा है । दरवाजे पर राज अंकल खड़े थे,
उनके हाथ में दो गीलास थे और उनमे कोल्ड्रिंक थी।

राज अंकल: बोलो भी, कौन सोच रहा था हमारे बारे में ।

दीपा डरे हुए चेहरे से कभी मुझे और कभी अपने पापा को दे ख रही थी। मैंने स्थिथि संभाली, वो क्या है न अंकल। आपने
दीपा का एडमिशन मेरे कॉलेज में करवा दिया है । तो इसलिए वो आज हम सभी को ट्रीट दे रही है । और ये सब वो आपको
थेंक्स कहने के लिए कर रही है ।

अंकल दीपा के पास आये और उसके चेहरे को पकड़ कर बोले: अरे मेरी प्यारी बेटी… इसमें थेंक्स वाली क्या बात है । दनि
ु या
का हर पापा चाहता है की उसकी बेटी जो चाहे , वो उसे मिल जाए। मैंने भी वोही किया जो तुमने चाहा था। इसमें थेंक्स कैसा,
और रही बात ट्रीट की तो वो मेरी तरफ से। मम्मी को आने दो, फिर हम सब मिलकर बाहर जायेंगे, और कोमल बेटा, तुम
भी कह दो फोन करके अपने घर पर की तुम भी हमारे साथ डिनर करने जा रही हो, मैं वापिसी में तुम्हे घर पर छोड़ दं ग
ू ा।
ओके…
14
और ये कहते हुए राज अंकल ने दीपा को अपने गले से लगा लिया। दीपा का चेहरा अंकल के कंधे के ऊपर था और उसने
हाथ पीछे करके उनके कंधे पकड़ लिए और अपनी मोटी-२ ब्रेस्ट अंकल की चेस्ट में घुसा डाली। जहाँ मैं खड़ी थी, वहां से
मुझे दीपा का चेहरा दिखाई दे रहा था, वो मुझे दे खकर मुस्कुरायी और आंखे झुका कर मुझे इशारे से बता डाला की हाँ… हाँ…
मैं अपने पापा के बारे में ही सोच रही थी।

अंकल के हाथ अपनी बेटी के जवान जिस्म के ऊपर नीचे फिसलने लगे। पर तभी उन्हें मेरे खड़े होने का आभास हुआ। और
वो जल्दी से, मुझे दे खे बिना ही बाहर निकल गए और कहते हुए गए: मैं नीचे ही हूँ, कुछ चाहिए तो बता दे ना।

उनके जाते ही मेरी और दीपा की हं सी निकल गयी और हम दोनों बेड के ऊपर गिरकर बरु ी तरह से हं सने लगे। दीपा को
आज इस तरह से पकड़कर अंकल की क्या हालत हुई होगी, उसके बारे में सोच सोचकर। और जब हमारा हँसना बंद हुआ तो
गहरी सांस लेते हुए मैंने उससे कहा: इसमें कोई बुराई नहीं है दीपू। अंकल है ही इतने हैंडसम की कोई भी फिसल जाए। तू
जो सोचती है और जो चाहती है , उसके लिए मैं तेरी हे ल्प करुँ गी। ठीक है …

दीपा ने मुझे गले से लगा लिया और बोली: और तू जो चाहती है , उसके लिए मैं भी तेरी हे ल्प करुँ गी।

मैं: मेरी हे ल्प… किस बारे में …

दीपा: आशुतोष के बारे में , भूल गयी क्या…

मैं: पर दीपू… मेरे मन में उसके लिए कुछ नहीं है । वो तो बस… उस वक़्त मास्टर बेट करते हुए नाजाने मुझे क्या हुआ।
तभी… वर्ना मैंने उसे सिर्फ अपने भाई की तरह ही दे खा है ।

दीपा: और मैं कौन सा अपने पापा के बारे में सोच सोचकर जवान हुई हूँ। ये तो जब तुने आशुतोष वाली बात बताई तब मुझे
एहसास हुआ की मेरे मन में भी पापा के लिए कुछ है , जिसे मैं कई दिनों से महसस
ू तो कर रही हूँ पर इकरार करने से डरती
थी, पर अब नहीं। अब तू है न मेरे साथ। है न…

बात तो वो सही कह रही थी। ठीक है , जब बाहर वाले मुझसे इतने मजे ले रहे है तो आशुतोष तो मेरा सगा भाई है । उसका भी
हक़ बनता है मेरे ऊपर। और मैंने दीपा से हाथ मिलाकर अपनी सहमति जताई। और उसके बाद एक घंटे तक मैं और दीपा
तरह-२ की बाते करते हुए, कॉलेज के प्लान बनाते हुए, गप्पे मारते रहे । शाम को उसकी बहन भी स्कूल से वापिस आ गयी
और मम्मी भी।

राज अंकल ने उन्हें ट्रीट के बारे में बताया और हम सभी तैयार होकर शहर के अच्छे से रे स्टोरें ट में आ बैठे। रे स्टोरें ट में बैठते
ही मेरी नजर दरू बैठे हुए राहुल पर पड़ी। जो एक लड़की और एक आंटी के साथ बैठ हुआ था। कौन थे ये लोग… कहीं उसकी
गर्ल फ्रेंड और उसकी मम्मी तो नहीं… कहीं शादी की बात करने के लिए तो नहीं आये वो लोग… मेरे मन में ना जाने कितने
ख़याल आने लगे और राहुल पर गुस्सा भी। मेरे मन में उसके लिए प्यार जैसी कोई भावना नहीं थी, पर फिर भी न जाने
मुझे उसपर इतना गुस्सा क्यों आ रहा था।

मैं उठी और सीधा उसके पास पहुँच गयी। मुझे अपने सामने दे खकर राहुल एकदम से सकपका गया। उसके साथ बैठी हुई
लड़की बड़ी ही सन्
ु दर थी, उसने जींस और टी शर्ट पहना हुआ था।

राहुल: अरे कोमल तुम… यहाँ…

राहुल को हकलाता हुआ दे खकर वो औरत बोली: कौन है ये…

मैं गुस्से से भरी हुई कभी राहुल को और कभी उस लड़की को दे ख रही थी।

राहुल: वो… ये मेरे कॉलेज में ही है । न्यू एडमिशन, आज ही मिली थी मुझे

औरत: आज ही मिली थी। पर इसके तेवर दे खकर तो लगता है की ये तुझे अच्छी तरह से जानती है । बोल… बात क्या है …
चल जाने दे , तझ
ु े तो मैं घर जाकर दे खती हूँ।
15
और फिर मेरी तरफ दे खकर बोली: तुम ही बोलो… कब से जानती हो मेरे बेटे को।

मेरे बेटे को… यानी ये उसकी माँ है । मेरे चेहरे के एक्सप्रेशन एकदम से बदल गए।

मैं: वो आंटी, राहुल सही कह रहा है । मैं आज ही इसके कॉलेज में आई हूँ। और मैं उधर अपनी फ्रेंड की फेमिली के साथ यहाँ
डिनर करने आई थी। मैंने दस ू री टे बल की तरफ इशारा किया। वो सब लोग भी मुझे ही दे ख रहे थे की मैं एकदम से उठकर
कहाँ चली गयी।

राहुल की मम्मी ने जब वहां दे खा तो वो थोडा नोर्मल हुई: अच्छा… अच्छा वो क्या है न, इसके कॉलेज में हर दस
ु रे दिन कोई
न कोई पंगा चलता रहता है । और मुझे लगा की तुम भी शायद… चलो कोई बात नहीं तुमसे मिलकर अच्छा लगा। मेरा नाम
प्रिया है , मेरा इंटीरियर का अपना बिज़नस है और ये है मेरी बेटी जेसमीन। इसका एडमिशन भी राहुल के ही कॉलेज में हुआ
है और हम यहाँ सेलेब्रेट करने आये है ।

मैं: वाव… हम भी इसलिए ही आये है , मेरी फ्रेंड है दीपा, वो बैठी है , उसका एडमिशन भी मेरे साथ ही हो गया आज। तभी
उसके पापा, वो बैठे है न, राज अंकल, वो हम सभी को ट्रीट दे ने के लिए लाये है ।

अंकल का नाम सन
ु कर प्रिया आंटी हं सने लगी: अच्छा… अच्छा मेरे पति का नाम भी राज है । पर आजकल वो टूर पर है ,
इसलिए मैं ही बच्चो को लेकर आ गयी। आओ न… बैठो हमारे साथ।

मैं: नहीं आंटी आप कंटीन्यू करो। मैं जाती हूँ उनके पास। बाय आंटी… बाय जेसमीन… कल मिलते है कॉलेज में । और फिर
राहुल की तरफ दे खकर मैंने कहा: बाय राहुल।

और जाते-२ उसे एक आँख मार दी, जिसे शायद जेसमीन ने दे ख लिया था। जाते हुए मैं सोच रही थी की कितनी फटती है
राहुल की अपनी मम्मी से… कैसे उनके सामने हकला रहा था मानो कोई लड़की माँ बनने की बात सन ु ाने के लिए आई है
उसकी माँ के सामने। वापिस जाकर मैंने सभी को बताया की मेरे कॉलेज के फ्रेंड की फॅमिली है वो और फिर हम सब खाना
खाने में बीजी हो गए।

वापसी में राज अंकल ने मुझे घर पर उतार दिया और मैं अपने कमरे में आकर चें ज करके लेट गयी और अपने लेपटोप पर
फेसबक
ु स्टे टस अपडेट करने लगी। ज्वाइनड कॉलेज टुडे… यप्पी… आधे घंटे बाद मझ
ु े दीपा का फोन आया।

दीपा: यार हमने कल जाने का तो सोचा ही नहीं। मैं तेरे घर आऊ या तू आएगी यहाँ। एक साथ चलेंगे न हम दोनों।

पर मैंने तो राहुल को बोला था मुझे साथ ले जाने के लिए।

मैं: यार दीपू… तझ


ु े बताया था न राहुल के बारे में । वो मैंने… दरअसल उसने ही मुझे कहा था की वो रोज मुझे कॉलेज लेकर
चलेगा अपनी बाईक से।

दीपा: अच्छा… तो तुने अपनी जाने की सेटिग


ं पहले से ही कर ली है । कोई बात नहीं… मुझे कल कॉलेज आने दे , मैं भी किसी
बाईक वाले को पटा लुंगी। और वो भी मुझे घर से कॉलेज और कॉलेज से घर छोड़ कर जाएगा। दे ख लेना…

मैं: यार तू बरु ा क्यों मान रही है । एक काम करते है , दोनों साथ चलते है , तू मेरे पीछे बैठ जाना बाईक पर। ठीक है …

दीपा: वाह जी वाह… यहाँ भी अपना ही फायेदा सोचना त…


ू तू उसके साथ चिपक कर बैठेगी और मझ
ु े बाईक पर आधा बाहर
लटका कर बिठाएगी।

मैं: ठीक है बाबा, तू बैठ जाना बीच में , मैं तेरे पीछे बैठ जाउं गी।

दीपा: हे हे … मैं तो मजाक कर रही थी पागल। चल ठीक है फिर, चलंग


ू ी तम
ु दोनों के पीछे बैठकर, पर पक्का न, तझ
ु े बरु ा तो
नहीं लगेगा न… कहीं मैं कबाब में हड्डी न बन जाऊ…

16
मैं: अरे तू तो खुद ही कबाब है , हड्डी तो राहुल के पास है , जिससे लिपट कर हम दोनों कबाब कल उसकी बाईक पर बैठेंगे।
हा हा…

मेरी बात का मतलब सुनकर वो भी हं सने लगी और फिर मैंने उसे बस स्टें ड पर सुबह आठ बजे मिलने को कहकर फोन रख
दिया।

अब सोने का टाईम हो चक
ू ा था। मैंने लेपटोप बंद किया और सोने की तय्यारी करने लगी। सोने से पहले मैं बाथरूम में
गयी, सुसु करने। जैसा की मैंने कहा था की ये बाथरूम मैं और आशुतोष शेयर करते है , जब मैं अन्दर जाती हूँ तो उसकी
तरफ का दरवाजा मैं बंद कर दे ती हूँ और जब वो अन्दर जाता है तो मेरी तरफ का दरवाजा वो बंद कर लेता है ।

और वापसी में जाते हुए खोल दे ते है । मैं अंदर गयी और मेरे दिमाग में आशुतोष को ललचाने का एक प्लान आया। उसके
कमरे की लाईट अभी भी जल रही थी। पर सोने का टाईम उसका भी हो चक
ू ा था और सोने से पहले वो भी बाथरूम जरुर
आएगा। इसलिए मैंने उसकी तरफ का दरवाजा बंद ही नहीं किया। और अपनी केप्री घुटनों तक मोड़कर कमोड पर बैठ गयी
और आशु के आने का इन्तजार करने लगी। लगभग पंद्रह मिनट के बाद उसके आने की आहात हुई। मैं दम साध कर बैठ
गयी और जैसे ही उसने दरवाजा खोला, मझ
ु े टॉयलेट सीट पर बैठा दे खकर वो वहीँ का वहीँ रुक सा गया।

मैंने चिल्ला कर कहा: आश…


ु पागल बंद कर दरवाजा। जल्दी स्टुपिड…

आशु: दीदी… तुम कैसे… दरवाजा बंद क्यों नहीं किया। सॉरी… और उसने जल्दी से कांपते हुए हाथो से दरवाजा बंद किया
और अपने कमरे में वापिस चला गया।

उसके जाते ही मेरी हं सी निकल गयी। क्या सीन था… कैसे मझ


ु े अंदर दे खकर वो सकपका सा गया और अपनी आँखे सेकने
के लिए कैसे वो इतनी दे र तक खड़ा रहा दरवाजे पर। वैसे उसे कुछ ज्यादा दिखाई नहीं दिया था। मेरे घुटनों वाला हिस्सा ही
नंगा था जिसे वो दे ख पा रहा होगा, जहाँ वो खड़ा था, पर किसी को ऐसी अवस्था में दे खना ही काफी है । बेचारा… शकल
दे खने वाली थी उसकी।

मैं जल्दी से उठी और हाथ धोकर मैंने धीरे से उसकी तरफ का दरवाजा खोला: आशु सो गए क्या…

वो अपने बेड के ऊपर लेटा हुआ था। मेरी आवाज सन


ु ते ही वो उठ कर बैठ गया।

मैं: आशु सोरी यार… वो मैं दरवाजा बंद करना भूल गयी थी और ऊपर से तुझे ही डांट दिया मैंने, आई एम ् सोरी।

आशु: अरे कोई बात नहीं दीदी। मेरी भी गलती है । आगे से मैं नोक करके ही आऊंगा अंदर।

मैं: उसकी कोई जरुरत नहीं है । मैं भी ध्यान रखूंगी आगे से। चल बाय… गुड नाईट…

आशुतोष: गुड नाईट दीदी।

और मैं फिर से अपने कमरे में जाकर सो गयी। आशुतोष के साथ जो मैंने छोटा सा मजाक किया था, उसे सोच सोचकर मुझे
मजा आ रहा था। और ये सोचते हुए कब मेरी आँख लग गयी, मुझे पता भी नहीं चला। क्रमशः 15

सुबह सात बजे अलार्म बजा, मैं भागकर तैयार हुई, नाश्ता किया और मम्मी को बाय बोलकर मैं स्टें ड की तरफ भागी। दीपा
मुझसे पहले ही खड़ी थी वहां।

दीपा: हाय गुड मोर्निंग। कहाँ है वो तेरा आशिक, राहुल… आठ तो बज गए।

मैंने राहुल को फ़ोन किया, बेल बजने लगी, तभी दरू से वो बाईक पर आता हुआ दिखाई दिया। मैंने फ़ोन बंद कर दिया।

राहुल मेरे पास आकर रुका: हाय गुड मोर्निंग। क्या बात है … आज तो बड़ी ही कातिल लग रही हो। तभी राहुल ने मेरे से सट
कर खड़ी हुई दीपा को दे खा और मेरी तरफ दे खकर बोला: ये कौन है …

17
मैं: ये दीपा है , मेरी बेस्ट फ्रेंड, इसका भी एडमिशन लास्ट मोमें ट पर हुआ है , कल ही। और आज से ये भी चलेगी मेरे साथ।

राहुल: हाय दीपा… हाउ आर यु… और उसकी नजर फिसल कर उसकी मोटी-२ छातियो पर जा जमी।

दीपा के साथ हमेशा ऐसा ही होता था, लोग बात तो उससे करते थे पर उसकी आँखों में दे खकर नहीं, उसकी ब्रेस्ट की तरफ
दे खकर। और उसे भी इस बात की आदत सी हो चुकी थी अब।

दीपा: आई एम ् फाईन राहुल। कल कोमल ने मुझे काफी कुछ बताया है तुम्हारे बारे में । और ये कहते हुए उसने होंठ गोल कर
लिए। राहुल के लिए काफी था ये जानना की कोमल की तरह उसकी फ्रेंड भी चालू है ।

राहुल: अच्छा जी, मेरे से पहले मेरी तारीफ पहुँच चुकी है आपके पास, चलो अच्छा है , इंट्रो वगेरह में ज्यादा टाईम वेस्ट नहीं
होगा अब। और ये कहकर वो हं सने लगा, और उसके साथ-२ मैं और दीपा भी।

मैं: चलो अब जल्दी चलो, पहले से ही दे र हो चक


ु ी है । और ये कहते हुए मैं उसकी बाईक पर दोनों तरफ पैर करके बैठ गयी।
और दीपा को इशारा किया और वो भी उछल कर बैठ गयी मेरे पीछे । दीपा के मोटे खरबूजे मेरी पीठ पर अपना मुलायम
दबाव डाल रहे थे और मेरे दोनों आम राहुल की पीठ पर अपने निशान छाप रहे थे। राहुल ने शायद सोचा नहीं था की दीपा
भी हमारे साथ ही चढ़ जायेगी बाईक पर।

पर वो कुछ बोला नहीं और बाईक स्टार्ट करके चल दिया। दीपा ने अपने दोनों हाथ मेरी कमर में लपेट कर मेरा सपाट पेट
पकड़ लिया। मैंने भी राहुल को वैसे ही पकड़ा, पर उसका पेट थोडा बाहर निकला हुआ था, इसलिए मेरे हाथ उसके पेट और
लंड वाले हिस्से के बीच में फंस कर रह गए। राहुल ने बाईक थोडा धीरे कर दी।

मैं: बाईक धीरे क्यों कर दी तुमने…

राहुल: तुमने ब्रेक जो लगा दिए है ।

मैं: मैंने… ओह… अच्छा…

राहुल का इशारा अपने लंड की तरफ था, जिसपर मेरा हाथ बड़ी ही बेफिक्री से पड़ा हुआ था, और उसका एहसास ही काफी
था उसके अन्दर के मोटे चूहे को जगाने के लिए।

मैं: अगर ये बात है तो मैं हाथ ब्रेक से हटा लेती हूँ। तब तो तुम तेज चलोगे न। और मैंने हाथ पीछे करना चाहा, पर उसने
बीच में ही उसे पकड़ा और सही तरह से अपने लंड पर रख कर उसे दबा दिया।

राहुल: अरे नहीं… ऐसे ही रहने दो प्लीस। मजा आ रहा है । ठीक है , मैं तेज चलता हूँ।

अब आया न लाईन पर… और अगले बीस मिनट तक मैं उसके पीछे बैठी हुई उसके खड़े हुए लंड की मसाज करती रही।
बाईक को उसने कॉलेज के बाहर रोका और हम दोनों उतर गए। दीपा आगे चल दी,

राहुल ने मुझे कहा: ये जो तुमने मेरा हाल किया है न आज सुबह-२, इसे तुम ही सुधारोगी। समझी… और एक आँख मारकर
वो पार्किं ग की तरफ चल दिया। और मैं दीपा के साथ अन्दर की तरफ।

दीपा को उसके पापा ने वाईस प्रिंसिपल से मिलने को कहा था। हम सीधा उनके कमरे के बाहर पहुंचे। बाहर पीउन बैठा हुआ
था, दीपा ने उससे कहा की वाईस प्रिंसिपल से मिलना है , न्यू एडमिशन के बारे में बात करने के लिए। पीउन ने हमें वहीँ
खड़ा रहने को कहा और अन्दर चला गया। बाहर उनके नाम की नेम प्लेट लगी हुई थी।

मीनाक्षी बेदी - वाईस प्रिंसिपल

कुछ ही दे र में वो बाहर निकला और हमें अन्दर जाने को कहा। उनका कमरा बड़ा ही शानदार था, और वो अपने नाम की ही
तरह काफी खब
ु सरू त थी। थोड़ी मोटी थी, उम्र होगी लगभग 43 के आस पास, बाल कंधो तक, बड़ी-२ ब्रेस्ट, गोरा रं ग। हमें
दे खकर वो मुस्कुरायी और बैठने को कहा।

18
मीनाक्षी मेडम: यस… हाउ आई केन हे ल्प यु… बड़ी ही मीठी आवाज थी उनकी।

दीपा ने उन्हें सब बताया और एडमिन हे ड का नाम भी लिया।

मेडम: हाँ… याद है , कल उन्होंने फोन किया था। अच्छा… तो वो तुम्हारे लिए था। एक मिनट… और फिर वो एक रजिस्टर
उठा कर दे खने लगी। और फिर दीपा से बोली: तम
ु ऐसा करो, E-7 बेच में ज्वाइन कर लो।

दीपा ने मेरी तरफ दे खा और बोली: वो मेम एक रे कुएस्ट थी। अगर आप मुझे E-5 में एडमिशन दे दे तो अच्छा होगा। ये
मेरी बेस्ट फ्रेंड कोमल है , जो उसी बेच में है । प्लीस…

मेडम ने दीपा को मस्


ु कुरा कर दे खा और कहा: ओके… ठीक है । और फिर उसके नाम के आगे उन्होंने मेरा बेच नंबर लिख
दिया।

हम दोनों ने उन्हें थेंक्स कहा और बाहर निकल आये। मैं सीधा उसे लेकर अपनी क्लास में गयी। पहला पीरिअड स्टार्ट हो
चूका था। हमने लगातार तीन पीरिअड अटें ड किये। और फिर आधे घंटे के ब्रेक में हम केंटिन की तरफ चल दिए। केंटिन में
घस
ु ते ही हमें अन्दर से बाहर भागते हुए स्टुडेंट दिखाई दिए। मैंने एक को रोककर पछ
ू ा तो उसने कहा अन्दर लडाई हो रही
है । मैंने आज तक किसी की लडाई नहीं दे खी थी।

दीपा के मना करने के बावजूद मैं उसे लेकर अन्दर की तरफ चल दी। अन्दर जाकर दे खा तो दो लड़के बरु ी तरह से लडाई
करने में लगे हुए थे, और गौर से दे खा तो उनमे से एक राहुल था। मैंने दीपा की तरफ घबरा कर दे खा। पर उसने मुझे चुप
रहकर दे खने को कहा। दस
ू रा लड़का काफी तगड़ा था, कोई जाट था शायद, लम्बा, ऊँचा, तगड़ा, क्लीन शेव और राहुल से
ज्यादा वो राहुल को मार रहा था, राहुल एक मारता तो वो लड़का उसे दो बार मारता।

तभी बाहर से किसी ने तेज आवाज में कहा: ओये राजपूत… भाग, प्रिंसिपल मेम आ रही है ।

उसकी बात सुनते ही वो लड़का, राजपूत, रुक गया और राहुल की तरफ दे खकर कहा: तझ
ु े तो मैं फिर कभी दे ख लँ ग
ू ा।
और ये कहते हुए वो पीछे की तरफ से भाग गया।

राहुल भी भाग कर केंटिन से बाहर निकल गया, मैं और दीपा उसके पीछे भागी, वो सीधा पार्किं ग में गया और वहां लगी हुई
टूटी के नीचे जाकर अपना सर और मुंह हाथ धोने लगा, उसके मुंह से शायद खन
ू भी निकल रहा था।

मैं उसके पास पहुंची और बोली: राहुल ये क्या है … कौन था वो लड़का और क्यों लडाई कर रहे थे तुम दोनों।

राहुल ने मुझे दे खा और रुमाल निकल कर अपना चेहरा साफ़ किया और बोला: वो संजय है , संजय राजपूत, और मेरी ही
तरह वो भी प्रेसिडेंट का इलेक्शन लड़ रहा है । मैंने कल अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसके एक प्यादे को काफी मारा था,
उसी का बदला लेने आया था आज वो, मेरे दोस्त नहीं थे आज मेरे साथ, और उसके हुलिए को दे खकर तुम उसकी ताकत का
अंदाजा तो लगा ही सकती हो। पर मैं फिर भी नहीं घबराया। मार खायी पर दो चार तो मैंने भी मार ही दिए उसके मुंह पर।
उसकी बात सन
ु कर मैं हं सने लगी।

मैं: क्यों करते हो ये सब, आराम से इलेक्शन नहीं लड़ सकते क्या… जरुरी है क्या किसी को मारना या लडाई झगडा करना।

राहुल: ये सब तो चलता है । तुम फिकर मत करो। तुम चलो अभी मेरे साथ।

मैं: मैं… पर कहाँ…

राहुल (मुस्कुराते हुए): ऊपर छत पर… उसने कॉलेज की छत की तरफ इशारा किया।

मैं शर्मा गयी, मैंने दीपा की तरफ दे खा।

दीपा: तू जा, मैं चली जाउं गी क्लास में ।

19
राहुल: अरे दीपा जी हमसे ऐसी क्या नाराजगी है । आप भी चलो न ऊपर, मजा आएगा। राहुल शायद उसके मन को भांप
चूका था।

दीपा ने मेरी तरफ फिर से दे खा, मैं बोली: हाँ चल तू भी… अभी तो क्लास शुरू होने में टाईम है न। और मैं उसका हाथ
पकड़कर आगे चल दी।

राहुल पीछे चलता हुआ हम दोनों की मटकती हुई गांड दे ख रहा था। हम कल की तरह, लिफ्ट से टॉप फ्लोर पर पहुंचे और
वहां से सीडियो से ऊपर छत पर चल दिए। राहुल सीधा अपनी फेवरे ट जगह पर जाकर खड़ा हो गया, और मैं भी उसके साथ
जाकर खड़ी हो गयी। दीपा घूम-घूमकर परू ी छत से नीचे का नजारा दे खकर खुश हो रही थी। राहुल ने मुझे अपनी तरफ
खींचा, मेरी पीठ उसकी छाती से जा टकराई और उसने आगे हाथ करके मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए 

राहुल: सब
ु ह तम
ु ने बहुत तंग किया मझ
ु ।े

मैं: तो क्या चाहते हो अब…

राहुल:चाहता तो बहुत कुछ हुँ, पर अभी तो कल वाला वो ट्रीटमें ट ही दे दो, जो बस में दिया था। सच में यार, परू ी रात उसे
सोचकर जागता रहा था मैं।

मैं: वो तो ठीक है , पर तम
ु ने दीपा को क्यों आने को कहा अभी।

राहुल ने मुस्कुरा कर मुझे दे खा और कहा: तुम उसके सामने क्या कुछ नहीं कर सकती। जैसी दोस्ती है तुम दोनों में उसे
दे खकर तो लगता है की कुछ भी नहीं छुपाती तुम दोनों एक दस ु रे से, और जब बाद में उसे बताना ही है ये सब तो उसे दे खने
दो, तुम्हारा बताना बच जाएगा और मुझे भी डबल मजा आएगा।

मैं: अच्छा… तो तुम हम दोनों के साथ मजे लेने के चक्कर में हो। सुनो मिस्टर राहुल, जितने चालाक तुम बनने की कोशिश
कर रहे हो उतने हो नहीं। राहुल मेरी बात सुनकर सकपका गया।

राहुल: अरे कोमल… मैं तो सिर्फ उसे दे खने को कह रहा हुँ, मैं कौन सा उसके साथ कुछ करना चाहता हूँ।

उसकी डरी हुई शक्ल दे खकर मेरी हं सी निकल गयी। और मुझे हँसता हुआ दे खकर वो भी समझ गया की मैं उसके साथ
मजाक ही कर रही थी। उसने मझ
ु े घम
ु ा कर अपनी तरफ मंह
ु कर लिया और मझ
ु े चम
ू ने लगा। मेरे होंठ उसके मंह
ु में जाकर
ज्यादा ही सोफ्ट हो गए थे। और पानी भी ज्यादा निकल रहा था मेरे मुंह से अब। राहुल ने अपनी जींस की चेन खोली और
एक झटके से मेरा हाथ पकड़ कर अपने दनदनाते हुए लंड के ऊपर रख दिया। मैंने उसे आगे पीछे करना शुरू किया और
उसके होंठ चस
ू ने में लगी रही।

हम दोनों एक दस
ु रे को चम
ू ने चाटने में इतने मशगल
ू हो चक
ु े थे की हमें याद ही नहीं रहा की दीपा भी वहीँ है । राहुल ने मेरे
मुम्मे पकड़ कर उन्हें दबा दिया, और वो मेरी टी शर्ट ऊपर करके उसे उतारने लगा, पर मैंने मना कर दिया, मैं इतनी जल्दी
उसे पूरे मजे दे ने के मूड में नहीं थी। उसने अपना मुंह नीचे किया और टी शर्ट के ऊपर से ही मेरे निप्पल को मुंह में डालकर
उसे चस
ू ने लगा।

मैं: आआआह्ह्ह्ह… उम्म्म्मम्म…

मैंने उसका सर अपनी ब्रेस्ट के ऊपर जोर से दबा डाला। मेरा हाथ उसके लंड के ऊपर तेजी से चलता जा रहा था। उसने मुझे
नीचे की तरफ जाने का इशारा किया, मैं समझ गयी और अपने पंजो के बल बैठकर मैंने उसके खड़े हुए लंड को अपने मुंह में
भर लिया, उसका लंड तप रहा था, मानो उसे उसी हिस्से पर बख
ु ार चढ़ गया हो। मैं अपनी लार से उसके गर्म लंड को ठं डक
पहुँचाने लगी। और लंड को चस
ू चस
ू कर उसका रस पीने लगी।

जल्दी ही उसके मुंह से एक तेज आवाज निकलनी शुरू हो गयी। और तब तक निकलती रही जब तक उसके लंड का रस
ख़तम नहीं हो गया, मैंने सारा रस पी डाला। पीने के बाद मैं खड़ी हुई और तब जाकर मुझे दीपा का ख़याल आया। मैंने पीछे

20
मुड़ कर दे खा, दीपा आँखे फाड़ कर हमारा परू ा शो दे ख रही थी। उसकी साँसे इतनी तेज चल रही थी की मुझे साफ़ सुनाई दे
रही थी।

मैंने रुमाल निकाल कर अपना चेहरा साफ़ किया और दीपा के पास जाकर बोली: जा… करले तू भी।

मेरी बात सुनकर वो बड़ी खुश हो गयी। पर एकदम से तो कोई भी लड़की किसी भी लड़के का लंड चूसने को तैयार नहीं हो
जाती न।

उसने धीरे से मुझसे कहा: तू उसे बोल न की मुझे कहे । नहीं तो मुझे शर्म आएगी।

मैं समझ गयी की वो अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी। मैं राहुल की तरफ मुड़ी उसे कहने के लिए। पर तब तक
वो अपनी जींस ऊपर कर चक
ू ा था, और वापिस चलने के लिए वो नीचे की तरफ जाने लगा।

मैंने दीपा की तरफ दे खा और अपने कंधे उचका दिए। वो समझ गयी की राहुल के बस की बात नहीं है लगातार दस
ू री बार
अपने लंड से रस निकालना। वर्ना ऐसा चांस कोई नहीं छोड़ना चाहे गा। हम भी नीचे की तरफ चल दिए।

दीपा: ये लड़के कितने मीन होते हैं। अपना मतलब निकलने के बाद ये भी नहीं दे खते की पीछे कोई है या नहीं।

वो सड़-भन
ु रही थी, वो प्यासी जो रह गयी थी। वो भी शायद पहले ही दिन, मेरी तरह हर तरह के मजे लेना चाहती थी। पर
सामने वाला ही राजी न हो तो क्या कर सकते हैं।

मैं: तू एक काम कर, अपने लिए भी कोई लड़का पटा ले।

ु े अब और फिर हम दोनों अपनी क्लास में आकर बैठ गयी। क्रमशः 19


दीपा: यही करना पड़ेगा मझ

मैं और दीपा फिर से क्लास में जाकर बैठ गए और अगले दो घंटे तक लगातार पीरिअड अटें ड करते रहे । दीपा मेरे पास बैठी
हुई थी पर मझ ु े साफ़ दिखाई दे रहा था की उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है । अब इस लड़की को कौन समझाए। तभी
मुझे पीछे से आवाज आई, मैंने मुड कर दे खा तो पायल थी वहां, मैंने दीपा को बोला की मैं अभी आई और मैं पायल के पास
जाकर बैठ गयी।

***दोस्तों, जैसा की मैंने आपको बताया था की ये कहानी किसी एक नायिका पर केन्द्रित नहीं है , इसलिए अब दस
ू री
नायिका यानी दीपा के मन में क्या चल रहा है , उसे जानने का वक़्त आ गया है । और आगे भी इसी तरह से दस
ु रे पात्रों के
नामे यहाँ आते रहें गे***

21
*****

दीपा
*****
क्या यार, आज मैं क्या-२ सोच कर आई थी, जब से कोमल की बच्ची ने मुझे कल के बारे में बताया था, मैंने भी सोच लिया
था की पहले ही दिन मैं भी किसी लंड के दर्शन जरुर करुँ गी। यहाँ दर्शन तो हुए उस राहुल के लंड के पर मेरे मुंह में कुछ गया
ही नहीं। लगता है मेरा पहला दिन ऐसे ही निकल जाएगा लेकिन मैं इसे ऐसे ही निकालना नहीं चाहती थी, जैसे साल के
पहले दिन जो काम करो, वोही पूरा साल होता रहता है , उसी तरह मैं अपने कॉलेज लाईफ के पहले दिन को ऐसे ही बेकार में
नहीं जाने दे ना चाहती थी, क्योंकि मुझे पूरा साल मजे लेने है । और ये कोमल भी ना जाने किसके पास जाकर बैठ गयी है
अब।

मैंने परू ी क्लास का जाएजा लिया, कोई भी ढं ग का लड़का नहीं दिखाई दे रहा था। मुझे तो बचपन से ही सलमान खान जैसी
बोडी वाला लड़का चाहिए था। यहाँ तो सारे बच्चे थे। तभी अगले पीरिअड की बेल बजी, ये आखिरी पीरिअड था, पर मेरा
सब्जेक्ट नहीं था वो। इसलिए मैं बाहर निकल आई क्लास से। कोमल अन्दर ही थी अभी तक। मैं सीधा केंटिन में गयी और
एक चाय लेकर पीने लगी, तभी मझ
ु े कोने में वोही लड़का बैठा हुआ दिखाई दिया। संजय राजपत
ू … मैं उसे चाय पीते हुए
दे खती रही, वो अकेला ही बैठा था और किसी से फोन पर बात कर रहा था।

क्या स्टाईल था उसका, उसने जब अपना फोन पकड़ा हुआ था तो उसके डोले साफ़ दिखाई दे रहे थे। बिलकुल सलमान खान
जैसे थे वो। और अगले ही पल मेरी आँखे चमकने लगी। मैंने सोच लिया की इसी को पटाया जाए। पर ये होगा कैसे… मैं
सोच ही रही थी की तभी उसके पास एक लड़की आकर बैठ गयी।

सत्यानाश…

मैं सोचती रह गयी और कोई और लड़की ने मैदान मार लिया। पर जिस तरह से वो दोनों बाते कर रहे थे, उससे लगता था
की वो दोनों एक दस
ु रे को पहले से जानते है । वो लड़की काफी गोरी थी और उसके होंठ लिपिस्टिक लगाने की वजह से
चमक रहे थे, पर थी वो बिलकुल फ्लेट। यानी ब्रेस्ट के नाम पर कुछ नहीं था बेचारी के पास। यहीं वो मेरे से पीछे रह गयी।
क्योंकि मैं जानती थी की मेरे पास ब्रेस्ट नहीं एटम बम्ब है , जो लडको की नींद उदा सकते हैं। तभी राजपूत और वो लड़की
उठ गए और बाहर की तरफ जाने लगे।

मैं भी दौड़कर उनके पीछे भागी। राजपूत उस लड़की के साथ सीधा पार्किं ग में गया और एक टाटा सफारी कार में जाकर बैठ
गया। मैं पेड़ के पीछे छुप कर उन्हें दे खने लगी। राजपूत ने अन्दर जाते ही लड़की की गर्दन पकड़ी और उसे अपनी तरफ
खींच लिया और फिर वो दोनों एक दस
ु रे को बुरी तरह से चूमने लगे। फिर थोड़ी दे र बाद लड़की उसकी गोद की तरफ मुंह
करके नीचे झुक गयी।

22
शायद उसके लंड को चूस रही थी वो। एक ही दिन में दस
ू री बार किसी को लंड चूसते हुए दे ख रही थी मैं। पर दोनों ही बार
लंड चूसने वाली मैं नहीं थी। बड़ा ही गुस्सा आ रहा था मुझे अपने आप पर। और लगभग पांच मिनट के बाद वो लड़की ऊपर
आई, अपना चेहरा रुमाल से साफ़ किया और एकदम से कार से उतर कर बाहर चली गयी और वापिस कॉलेज के अन्दर
जाने लगी।

राजपूत अपना सर पीछे किये हुए आराम से ऐ सी की हवा खाने लगा। मैंने निश्चय कर लिया की अभी मौका है और मैं कार
की तरफ चल दी। मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाकर उसी सीट पर जा बैठी जहाँ वो लड़की बैठी हुई थी। मुझे दे खकर
राजपूत एकदम से हडबडा गया। उसका लंड अभी भी जींस से बाहर निकला हुआ था।

उसने जल्दी से उसे अन्दर किया और मझ


ु से बोला: कोन… कौन हो तम्
ु म और मेरी गाडी में इस तरह से घस
ु ने का क्या
मतलब है …

मैंने भी डरने की एक्टिं ग करी और उससे कहा: जी… जी मेरा नाम दीपा है , न्यू एडमिशन।

आपके पोस्टर लगे दे खे मैंने इलेक्शन के। तभी से मिलना चाहती थी, और अभी मैं घर जा ही रही थी की आपको कार में
बैठा हुआ दे खा। इसलिए अन्दर आ गयी। सोरी… अगर आपको मेरा इस तरह से अन्दर आना बरु ा लगा तो। वो मुझे घूर कर
दे खता रहा। पर कुछ न बोला।
मैंने आगे बोलना शुरू किया: वो दरअसल। मेरी एक फ्रेंड थी यहाँ, एक साल पहले ही उसने कॉलेज क्लीयर किया है और अब
वो MBA करने पन
ू ा चली गयी है । उसी ने आपके बारे में बताया था मुझे।

राजपूत: तुम्हारी फ्रेंड… क्या नाम था उसका और क्या बताया था उसने मेरे बारे में ।

मैं: जी वो… उसका नाम पूजा था।

नाम सुनते ही वो उछल गया। मेरा तुक्का सही बैठा था, मैंने तो ऐसे ही पूजा नाम ले लिया, क्योंकि मुझे मालुम है की ये
काफी कॉमन नाम है , और पिछले साल कोई न कोई पूजा नाम की लड़की तो रही होगी न यहाँ। जिसे ये लास्ट इयर वाला
राजपत
ू तो जानता ही होगा।

राजपत
ू : क्या… क्या बताया उसने मेरे बारे में तम्
ु हे । बोलो… बोलो न।

उसने मेरी बाजू पकड़ी और मुझे झंझोड़ने लगा। उसकी कठोर पकड़ को महसूस करके मेरा रोम रोम सुलगने लगा।

मैं: जी… कुछ ख़ास नहीं, बस येही की आप बहुत अच्छे हैं और कोई मदद चाहिए तो आपसे ले लू।

ये सुनकर उसने मेरे हाथ छोड़ दिए। उसकी उँ गलियों के निशान मेरे हाथों पर छप चुके थे। मैं उन्हें अपनी उँ गलियों से
मसलने लगी। ऐसा करते हुए मैंने अपने हाथ अपने मम्
ु मो के नीचे लगाये और उन्हें ऊपर की तरफ धक्का दे कर अपने टॉप
से बाहर खिसकाने लगी। मेरे मोटे मुम्मो के साथ कब क्या काम लेना है , मैं अच्छी तरह से जानती थी।

राजपूत: सोरी… मैंने आपके हाथ ज्यादा ही तेज पकडे। बताइए मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए…

मैं: जी… वो मुझे लाईब्रेरी का कार्ड इशू करवाना है । कुछ बुक्स चाहिए वहां से।

राजपूत मेरी बात सुनकर हं सने लगा: ये क्या काम है … इसके लिए तुम मेरे पास ही क्यों आई हो। तुम अपने आप ऑफिस
में जाओ और वहां से एप्लीकेशन भर कर दे दो। दो दिनों में ही कार्ड मिल जाएगा। मैंने अपने मुम्मो को और जोर लगा कर
बाहर किया। अब ऊपर की गोलाई साफ़ दिखने लगी थी। जिसपर राजपत
ू की नजर जम कर रह गयी थी।

मैं: जी वो तो मैंने भर ही दिया है । मैं किसी और को नहीं जानती यहाँ। मैं बस आपसे ये कह रही थी की अगर आप अपना
कार्ड मुझे दे दो तो मैं उसके बेस पर बुक्स इशू करवा लेती हूँ। अगर आपको बरु ा न लगे तो। मेरी बात सुनकर वो फिर से
हं सने लगा।

23
राजपूत: मुझे बुक्स इशू करवाने के लिए किसी कार्ड की जरुरत नहीं है । मैं तुम्हे ऐसे ही बुक दिलवा दं ग
ू ा।

ये बोलते हुए उसकी नजरे मेरे उभारों के ऊपर जाकर चिपक सी गयी। वो अपनी जीभ अपने होंठो पर फिराने लगा। मैंने
उसकी नजरो से अनजान बनते हुए, अपनी बाँहों के ऊपर अपना हाथ रगड़ना चालु रखा।

उसकी नजर जब मेरी बाजु के ऊपर बने निशान पर गयी तो वो बोला: आई एम ् सोरी… मैंने काफी तेज पकड़ा आपका हाथ।
दर्द हो रहा है क्या… और ये कहते हुए उसने आगे हाथ किया और उसी जगह पर अपनी कठोर उँ गलियाँ फिराने लगा। मैं
समझ गयी की अब इसे फंसाना काफी आसान होगा। मैं उसकी तरफ खिसक आई।

मैं: हाँ… दर्द तो है । पर कोई बात नहीं। मेरी स्किन काफी सेंसेटिव है । इसलिए ये निशान बन गए हैं। उसकी एक ऊँगली मेरे
मुम्मे से टकराने लगी थी। मैंने कुछ नहीं कहा उसे।

मैं: वो लड़की कौन थी। जो अभी आपकी कार में बैठी थी।

ये सुनते ही वो सकपका गया।

राजपूत: तुमने… तुमने दे खा क्या…

मैं: हाँ दे खा था, और ये भी की वो क्या कर रही थी।

मेरी बात सन
ु ते ही वो मझ
ु े फिर से अपनी गोल आँखों से घरू ने लगा। पर मझ
ु े मस्
ु कुराता हुआ दे खकर वो समझ गया की मैं
क्या चाहती हूँ।

राजपूत: क्या कर रहा था मैं। बताओ तो जरा…

मैं (शर्माते हुए): आपने तो कुछ किया ही नहीं। जो भी किया वो तो उस लड़की ने ही किया। और ये कहते हुए मैंने अपना एक
हाथ उसकी जांघ के ऊपर रख दिया।

वो समझ गया की लड़की चालु है और खायी - पीई हुई है । पर असल में मेरा ये पहली बार था। मैंने और कोमल ने आज तक
किसी लड़के के साथ कोई भी बरु ा काम नहीं किया था। वो तो हमने कॉलेज लाईफ के बारे में इतना सुना की हमने डिसाईड
कर लिया था की जितने साल हमने स्कूल में बिना बोय्फ्रेंड के वेस्ट किये है , उन्हें अब सध
ु ारने का टाईम आ गया है । और
जब मैंने उसकी जांघो पर हाथ रखा तो मेरा दिल जोरो से धक् धक् कर रहा था। आज पहली बार मैं किसी बाजारू लड़की की
तरह से पेश आ रही थी।

राजपूत ने चारों तरफ दे खा और फिर मुझे एकदम से अपनी तरफ खींच लिया। गाडी की सीटे इतनी बड़ी थी की मैं उछल
कर उसकी तरफ झक
ु गयी। मेरे दोनों मम्
ु मे उसकी बाँहों में दबकर पिसने लगे। राजपत
ू ने मेरे मंह
ु को ऊपर किया और मेरी
आँखों में दे खकर कहा: सुन लड़की। तू कहीं मुझे फंसाने के चक्कर में तो नहीं आई है न। तझ
ु े राहुल ने तो नहीं भेजा है न। मैं
उसकी बात सुनकर हं सने लगी।

मैं: क्या यार… इतनी खूबसूरत लड़की तुम्हारी कार में आकर बैठी हुई है और तुम ये बेकार की बाते सोच रहे हो। हूँ… और ये
कहते हुए, मैंने ही पहल की, और उसके होंठो को चम
ू ने लगी। वाह… क्या एहसास था पहले चम्
ु बन का। उसके मोटे होंठ
इतने सोफ्ट थे की उन्हें चबाने में काफी मजा आ रहा था।

फिर उसकी तरफ से भी कार्यवाही होनी शुरू हो गयी, और उसका एक हाथ मेरे मुम्मे को मसलने लगा और वो मुझे जोरो से
किस करने लगा। पांच मिनट तक हम एक दस
ु रे को चूसते रहे और तब तक चूसते रहे जब तक एक दस
ु रे के मुंह से पानी
ख़तम नहीं हो गया। जब मैं अलग हुई तो मेरी आँखे लाल थी और मेरी साँसे फूल रही थी।

मैं: मैं जानती हूँ की तम


ु क्या सोच रहे हो की कोई लड़की ऐसे कैसे किसी के भी साथ आकर… पर मैं तम
ु से सच बोलंग
ू ी
अभी। मैंने जब से तुम्हे दे खा है । तब से तुम मुझे… मुझे काफी एट्रे क्टिव लगे। और मैंने जब तुम्हे उस लड़की के साथ केंटिन

24
से यहाँ आते दे खा तो मैं भी तुम्हारा पीछा करते हुए यहाँ आ गयी। और फिर जब वो सब करके चली गयी तो मैंने… मैंने
सोचा की तुमसे जाकर दोस्ती की जाए। ताकि… ताकि…

राजपूत: हाँ बोलो, ताकि क्या…

मैं शर्मा कर उसके सीने में जा छिपी और बोली: ताकि मैं भी तुम्हारे साथ… यु नो… वो सब कर सकू। मैं जानती हूँ की तुम्हे ये
सन
ु कर काफी अजीब लग रहा होगा की कोई लड़की कैसे इस तरह से खद
ु आकर, अपने आप ये सब तम
ु से कह रही है । पर
मेरा विशवास करो। ये सब सच है और मैं अपने कॉलेज के समय को स्कूल जैसे बर्बाद नहीं करना चाहती। इसलिए तुमसे
दोस्ती करना चाहती हूँ।

मैंने ये कहते हुए उसका एक हाथ पकड़कर अपने टॉप के अन्दर घुसा दिया और उस बदमाश ने हाथ पीछे लेजाकर मेरी ब्रा
खोल दी। और फिर अगले ही पल मेरा टॉप ब्रा समेत ऊपर कर दिया और मेरी मोटी छातियाँ उसकी आँखों के सामने झल
ू ने
लगी। जिसे दे खकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। आज पहली बार कोई लड़का मेरी छातियाँ बिना कपड़ो के दे ख रहा
था। उसने अपनी और मेरी सीट की रिकलाईन किया और मैं एक तरह से अब लेटी हुई थी। कार का ऐसी फूल स्पीड पर चल
रहा था।

वो बोला: मैं समझ गया मेरी जान। तम्


ु हारी चत
ू में कुलबल
ु ी मची हुई है । आज तक तम
ु ने ये जवानी संभल कर रखी है । पर
अब फिकर मत करो। इसके मजे लेने का सही टाईम आ गया है और तुम सही बन्दे के पास आई हो। तुम्हे ऐसे मजे दं ग
ू ा की
तुम भी याद रखोगी। और ये कहते-२ वो झुका और मेरे खड़े हुए निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा। मेरे मुंह से आआ
ओह्ह्हह्ह की आवाजे निकलने लगी। उनपर काफी गद
ु गद
ु ी सी हो रही थी। और मेरी चत
ू में से अजीब तरह की तरं गे निकल
रही थी।

मेरा हाथ फिसलकर उसके लंड तक गया और मैंने उसे जींस से बाहर निकाल लिया। मोटा और गरमा गरम लंड आज पहली
बार मेरे हाथ में था। तभी मेरा सेल बजने लगा, वो कोमल का फोन था।

मैंने फ़ोन उठाया: हे ल्लो… हाँ कोमल…

कोमल: अरे कहाँ है तू। मेरी तो क्लास ख़तम हो चुकी है । पायल के साथ उसके होस्टल चलना है । जल्दी आ।

मैं (हँसते हुए): थोडा बीसी हूँ अभी… समझा कर यार।

कोमल: ओ तेरी… यानी तुने लड़का ढून्ढ लिया। वाव… वैरी फास्ट। कहाँ है अभी…

मैं: बस मजे ले रही हूँ। उसके लंड को हाथ में लेकर और वो मेरी ब्रेस्ट चस
ू रहा है ।

राजपतू ने एकदम से मेरी तरफ दे खा, और घरू ने लगा। जैसे पछ


ू रहा हो की मैं किसे ये सारी रिपोर्ट दे रही हूँ। मैंने फ़ोन को
पीछे करके, उसपर हाथ रखकर धीरे से उसके कान में कहा: मेरी फ्रेंड है , हम कुछ नहीं छुपाते एक दसु रे से। उसे ही बता रही
थी। आई होप यु डोंट माईंड…

वो मुस्कुराने लगा और फिर से मेरे मुम्मो को चूसते हुए उसने एक हाथ नीचे लेजाकर मेरी चूत के ऊपर रख दिया। मैं
सिसक पड़ी

मैं: अह्ह्ह… ओ क…कोमल… मैं अभी तुझे फ़ोन करती हूँ, फ्री होने के बाद।

कोमल: क्या यार… तुने भी तो मुझे दे खा था न। मुझे प्लीस बता तू कहाँ है । मैं भी तुझे ये सब करते हुए दे खना चाहती हूँ।
बता न…

पर मैंने उसकी बातो को अनसन


ु ा करते हुए फोन काट दिया। मझ
ु े भी पहले दिन वो सारे मजे लेने थे जो कोमल ने लिए थे।
ना उससे कम, ना उससे ज्यादा। क्रमशः 23

25
मैं राजपूत के साथ कार में लगभग नंगी थी अब, ऊपर से तो वो मुझे नंगा कर ही चुका था, जींस के बटन खोलकर उसे भी
मेरे कुलहो की कैद से आजाद कर दिया और नीचे खिसका दिया, मेरी लैस वाली पैंटी को मोटी जांघो में फंसा दे खकर उसकी
बेचैनी दे खते ही बनती थी। वो अपनी कठोर उँ गलियों को मेरी सोफ्ट स्किन के अन्दर धंसा-२ कर ना जाने क्या चेक कर रहा
था, फिर उसने मेरे हाथ को पकड़ा और उसे अपने लंड के ऊपर रख दिया, मैं समझ गयी की वो मुझसे अपनी जींस का
उद्घाटन करवाना चाहता है ।

मैं सीधी हुई और उसके आगे झुककर जींस खोलने लगी, नीचे किसी बड़े से जीव की उपस्थिति का एहसास मुझे शुरू से ही
हो रहा था। जब मैं कार के अन्दर आई थी तो मैंने एक झलक दे खी थी उसके लंड की। जब से मुझे कोमल की बच्ची ने लंड
चूसने के बारे में बताया था, मेरे मुंह में पानी भरा हुआ था, उसके अनुसार लंड से मीठी चीज आजतक उसने नहीं चखी थी,
और वो ये बात जानबझ
ू कर मझ
ु े इसलिए बता रही थी क्योंकि उसे मालम
ु था की मैं मीठी चीजो की कितनी बड़ी दीवानी हूँ,
घर पर कोई भी मिठाई आये तो मैं उसे चट करने में ज्यादा टाइम नहीं लगाती। और यहाँ तो मेरे सामने पूरी मिठाई की
दक
ू ान खुलने वाली थी। मैंने उसकी जींस की चेन खोली और उसे नीचे किया, और उसके बाद उसका अंडरवीयर भी। मेरे
सामने मेरी जिन्दगी का पहला लंड था, लंड क्या था क्रीमरोल था वो मेरे लिए। और उसके नीचे थे दो गल
ु ाब जामन
ु , जिन्हें
मैं अपनी नाजुक उं गलियों से दबा-२ कर उसकी सोफ्टनेस का अंदाजा लगा रही थी।

और जैसा की मुझे मालुम था की इस क्रीमरोल को चूसने से इसमें से खीर निकलती है , जो की मेरी फेवरे ट डिश है , इसलिए
मैं अब ज्यादा इन्तजार नहीं करना चाहती थी, मैंने आगे बढकर उसके लम्बे लंड को चूमा और फिर एक ही बार में उसे पूरा
निगल गयी।

उसके मंह
ु से एक लम्बी आह निकल गयी। आआआआअह्ह्ह्ह ओफ्फ्फ्फ़…

मैंने उसके मुंह के अन्दर अपनी दो उँ गलियाँ डाल दी और वो उन्हें किसी कुत्ते की तरह से चूसने लगा। और मैं तो चूस ही
रही थी उसके लंड की कुतिया की तरह। वो जानता था की कार में सही तरह से चुदाई होना संभव नहीं है । और खासकर तब
जब लड़की पहली बार चुदने वाली हो। इसलिए उसने मुझे चोदने का कोई प्रयास नहीं किया। पर पीछे से हाथ डालकर मेरी
नर्म और मल
ु ायम गांड को सहलाने लगा। मेरी चत
ू से निकल रही गर्मी की थपेड़े उसे अपने हाथो तक महसस
ू हो रहे थे,
जबकि उसके हाथ मेरी चूत से काफी दरू थे।

राजपूत ने अपनी सीट को पूरी तरह से पीछे तक बिछा सा दिया था, और फिर उसने मेरी पैंटी को उतार फेंका। मेरी टाँगे
पीछे वाली सीट तक जा रही थी, जिन्हें उसने अपने मुह की तरफ खींचना शुरू कर दिया, मेरा मुंह तो उसके लंड के चुंगुल में
फंसा हुआ था, उसे सिर्फ मेरे नीचे वाले हिस्से को घम
ु ाने की जरुरत थी, जो उसने अपनी मजबत
ू बाजओ
ु ं के भरोसे बड़ी ही
आसानी से कर दिया।

मेरी चूत उसके मुंह के ऊपर जाकर चिपक सी गयी। और फिर जब उसने अपनी जीभ से मेरी चूत के अन्दर की जानकारी
लेनी शुरू की तो मैंने भी गरमा गर्म रस के जरिये उसे अपनी चूत-ए-हाल बताना शुरू कर दिया। और ऐसा हाल-चाल बताया
की उसका चेहरा मेरे रस में नहाकर परू ी तरह से भीग सा गया। परू ी कार में मेरी चत
ू के रस की खश
ु बू फेल गयी थी, मेरा
हाल तो ऐसा था की जैसे मैं किसी झूले से नीचे की तरफ नंगी फिसल रही हूँ, बस उसके लंड के हूक की वजह से नीचे नहीं
गिर पा रही।

मेरी लंड चूसने की स्पीड तेज होती जा रही थी, और वो भी मेरी चूत के रस को जल्दी-२ पीने में लगा हुआ था। और फिर वो
चीज निकल ही आई उसके क्रीमरोल से जिसका मैं बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रही थी। खीर… और मेरे अनम
ु ान के अनस
ु ार
वो थी भी बड़ी ही मीठी, इतनी स्वादिष्ट चीज तो मैंने कभी नहीं खायी थी, मन कर रहा था की उसका लंड ये मीठी खीर
उगलता रहे और मैं उसे खाती जाऊ, खाती जाऊ, खाती जाऊ… पर जल्दी ही उसके लंड के अन्दर से मिठाई निकालनी बंद हो
गयी। मेरी चत
ू के अन्दर का पानी भी ख़तम हो चक
ु ा था। उसने मेरी टांगो को पकड़ा और घम
ु ा कर मझ
ु े आगे वाली सीट पर
बिठा दिया।

26
मेरे चेहरे की ख़ुशी दे खकर वो समझ चुका था की मुझे आज कितना मजा आया था। उसने अपना रुमाल निकला और साफ़
सफाई करने के बाद अपने कपडे सही करे । मैंने भी अपनी जींस और टॉप पहन लिए थे, पानी की बोतल लेकर मैं नीचे उतरी
और अपना चेहरा साफ़ किया और कोम्ब करने के बाद मैं फिर से अन्दर आ बैठी।

मैं: संजय आज मैं बहुत खश


ु हूँ। थेंक्स…

राजपत
ू : डोंट बी सो फोर्मल… आज तो कुछ ज्यादा हो नहीं पाया। पर मेरा वादा है , जल्दी ही तम्
ु हे इससे भी ज्यादा वाली
ख़ुशी दं ग
ू ा। बस एक बार इस इलेक्शन से फ्री हो जाऊ बस…

मैं: ठीक है । मैं उस पल का इन्तजार करुँ गी (चुदने का)। और फिर हमने अपने नंबर एक्सचें ज किये और मैं कोमल के कहे
अनुसार होस्टल की तरफ चल दी।

पायल के रूम का नंबर पता करने के बाद मैं सीधा उसके रूम में गयी। कोमल उसके साथ बैठी हुई गप्पे मार रही थी। मुझे
दे खते ही वो मेरे पास आई और सवालों की झड़ी सी लगा दी। कहाँ थी तू… कौन था तेरे साथ… किसे पटाया… कैसे किया…
क्या हुआ आज… वगेरह-२…

मैंने उसे कहा: सांस तो लेने दे , सब बताती हूँ। घर तो चल।

कोमल: नहीं… मझ
ु े अभी बता बस। तू पायल की फिकर मत कर। ये तो हमसे भी बड़ी चालु है । तझ
ु े इसका किस्सा नहीं पता
अभी। चल अब शर्मा मत, शुरू हो जा।

मैंने उसकी तरफ दे खा और फिर धीरे -२ उसे सब बताना शुरू किया। जैसे ही मैंने उसे बताया की वो लड़का संजय राजपूत है ,
तो वो उछल ही पड़ी।

पायल: क्या… संजय राजपूत। तुझे और कोई नहीं मिला परू े कॉलेज में … क्या यार… तुझे मालुम है न की राहुल और राजपूत
में छत्तीस का आंकड़ा है और आज उनकी लडाई भी हुई है । फिर भी तुने…

मैं: मालुम है । सब मालुम है पर मैं भी क्या करती कोमल। वो है ही इतना हैंडसम। ये तो तू भी मानती है न, और उसके पास
जो चीज है । वो मजे दे ने के लिए काफी है । जानती है , उसका लंड राहुल से भी बड़ा है । मैंने तो टे स्ट भी किया। उसकी गाडी
में । बड़ा ही टे स्टी था, सच में । अभी तक उसका स्वाद है मेरे मुंह में । ये कहते हुए मैंने एक तेज चटखारा लिया।

कोमल भी मेरी बात सुनकर शायद उसके बार में सोचने लगी थी। वो थोड़ी दे र तक बिना पलके झपकाए मेरी बाते सुनती
रही और फिर बोली: वो तो ठीक है । पर तुने ये किया कैसे और क्या-२ कर लिया तुने।

मैंने उसे शुरू से लेकर आखिरी तक सारी कहानी सुना डाली। जिसे सुनकर कोमल के साथ-२ पायल भी मेरा मुंह ताकती रह
गयी।

कोमल: यार… तुने एकदम से जाकर कैसे इस तरह… इतनी खुले विचारों की तो नहीं है तू, फिर कैसे किया तुने ये सब…

मैं: जब आग लगी हो चूत में तो आ जाता है आयेडिया, हा हा… मैं खुद भी है रान हूँ अपने ऊपर की मैंने ये सब कैसे कर
दिया। और इस तरह की हरकते तो मैंने कभी की भी नहीं थी। पर सच कहू… जब से तन
ु े मझ
ु े कल अपने बारे में बताया था,
मुझे भी पहले ही दिन कुछ न कुछ करने की धुन सवार हो गयी थी। और ऊपर छत पर तो मैं तेरे बॉय फ्रेंड राहुल के लंड को
भी चूसने को तैयार थी। पर वो ही फिस्सड्डी निकला। और फिर जब मैंने राजपुत को दे खा तो मुझमे न जाने कहाँ से वो
सारी हिम्मत आ गयी की मैंने सब कर डाला। और सच कहूँ, आज अगर वो मेरी चूत में अपना लंड भी डाल दे ता तो मैं
डलवा लेती। पर गाडी में ये सब मुमकिन नहीं था न। इसलिए आज ज्यादा कुछ नहीं किया। पर जितना भी किया, बड़ा
मजेदार था।

कोमल: ज्यादा कुछ नहीं किया। पागल, पूरी नंगी होकर तुने 69 वाली पोसिशन में उसका लंड चूसा, उसने तेरी चूत चाट
डाली और कहती है ज्यादा कुछ नहीं किया। पता नहीं आगे जाकर तू और क्या गुल खिलाएगी।

27
मैं: जो भी गुल खिलाऊगी। तुझे बता कर ही खिलाऊगी। पर अभी तो जल्दी से घर चल। मुझे काफी तेज भूख लगी है ।

कोमल: अच्छा जी। अभी तो कह रही थी की उसकी खीर खाकर मेरा पेट भर गया है । उसकी बात सुनकर हम तीनो जोर-२
से हं सने लगे।

पायल: यार मुझे भी जल्दी ही कोई लड़का ढूँढना पड़ेगा। वर्ना तुम दोनों की बाते सुनकर तो मुझे रोज फिं गरिंग करनी
पड़ेगी। हम सब फिर से हं सने लगे।

तभी कमरे में एक और लड़की आई, वो पूजा थी, पायल को रूम मेट। और उसके पीछे -२ एक दस
ू री लड़की भी आई, जिसे
शायद कोमल ने पहले नहीं दे खा था और शायद पायल ने भी नहीं। पर उसके हाव भाव दे खकर मुझे उसपर कुछ शक सा
हुआ।

पूजा: हे पायल, ये है हमारी तीसरी रूममेट रूबी… रूबी मित्तल… और रूबी। ये है हमारी रूममेट पायल, और ये दोनों इसकी
क्लास फ्रेंड है ।

मैं और कोमल ने उसे हाय बोला।

रूबी: हाय गर्ल्स… हाव आर यु…

उसने जैसे ही इतरा कर अपने मुंह से ये वोर्ड्स निकाले, हम सब समझ गए की वो किस फितरत की लड़की है । पता नहीं वो
लड़का था या सही में लड़की थी, क्योंकि उसकी छाती के उभार और चेहरे की बनावट दे खकर तो वो लड़की ही लग रही थी,
पर बातचीत में और आवाज के कारण वो लड़का लग रहा था। जो भी था, वो गर्ल्स होस्टल में थी। यानी वो लड़की ही थी।
मैंने और कोमल ने सभी को बाय कहा और हम सीधा घर की तरफ चल दिए।

साड़े चार बज चुके थे। हमने आटो लिया और अगले आधे घंटे में ही हम घर आ गए। आज राहुल का झगडा हुआ था राजपूत
से इसलिए वो पहले ही घर जा चुका था। घर पहुंचकर मैंने अपने कपडे उतारे और बेड के ऊपर फेंक दिए। और खुद शीशे के
सामने खड़ी होकर अपने परू े शरीर को निहारने लगी। तभी बाहर पापा की आवाज आई, वो मम्मी से मेरे बारे में पूछ रहे थे।
मम्मी ने कहा की अभी आई है और अन्दर कमरे में है । पापा मेरे कमरे के बाहर आकर मुझे बुलाने लगे। मैंने तो सोचा था
की सिर्फ मम्मी है घर में इसलिए दरवाजा भी बंद नहीं किया था। मैं भागकर बाथरूम में घस
ु गयी। और दरवाजा खोलकर
मैं बाहर की तरफ दे खने लगी।

पापा अन्दर आये: दीपू… बेटा कहाँ है तू…

मैंने अन्दर से आवाज लगायी: पापा मैं अन्दर हूँ, नहा रही थी।

पापा ने मेरे फेले हुए कपडे दे खे और वहीँ रूककर उन्होंने एक नजर बाथरूम के दरवाजे की तरफ डाली और फिर आगे
बढकर उन्होंने मेरे सारे कपडे उठाये और अपने चेहरे के पास लाकर उन्हें सूंघने लगे। मुझे बड़ा ही अजीब सा लगा, शायद वो
दे ख रहे थे की इनमे से पसीने की बदबू तो नहीं आ रही। पर फिर उन्होंने जो किया वो दे खकर मैं है रान रह गयी। उन्होंने
मेरी पैंटी को अलग किया। और उसे अपने चेहरे पर रगड़ने लगे। और बीच-२ में उसे चाटने भी लगे। यानी पापा भी मेरे बारे
में गन्दा सोचते है । मैंने कुछ डिसाईड किया। और फिर टावल लपेट कर बाहर निकल आई।

मैं: हाय पापा…

पापा ने मुझे कई बार पहले भी टावल में लिपटे , बाथरूम से निकलते और जाते हुए दे खा था, पर तब मुझे उनके दिल के
अन्दर की बात पता नहीं थी और ना ही मेरे अन्दर किसी तरह की बाते थी। पर आज बात कुछ और थी। मैं मासूम सी बनी
अपनी अलमारी तक गयी और अपने कपडे निकालने लगी। पापा ने मेरी पैंटी को अपनी जेब में डाल लिया था, पर मैंने वो
करते हुए उन्हें दे ख लिया था।

28
मैं: पापा आज बहुत मजा आया कॉलेज में । ये कहते हुए मैंने उन्हें कॉलेज की बाते (सिर्फ क्लास वाली, कार वाली नहीं)
बतानी शुरू कर दी। उनकी नजरे मेरे परू े शरीर को घूरने में लगी हुई थी। मैंने अपनी ब्रा, पैंटी और टॉप केप्री निकाल कर बेड
पर रख दिए। और फिर शर्माते हुए पापा से बोली: पापा मुझे चें ज करना है ।

पापा तो जैसे नींद से जागे: ओह हाँ… हाँ ठीक है , मैं जाता हूँ। और वो अपने लंड को छुपाते हुए, बाहर निकल गए।

उनके जाते ही मैंने दरवाजा बंद किया और अपना टावल निकाल कर ऊपर उछाल दिया और बेड पर नंगी लेट कर सारा दिन
की बाते याद करते हुए और साथ ही पापा के बारे में सोचते हुए, अपनी चूत के अन्दर अपनी उँ गलियों की मालिश करने
लगी। क्रमशः 25

चूत की मालिश करते-२ जब मैं ओर्गास्म तक पहुंची तो मेरा पूरा शरीर पसीने से लथ-पथ हो चुका था, और चूत से निकले
पानी की वजह से वहां का एरिया भी पूरी तरह से गीला हो गया। मैंने अपना टोवल उठाया और फिर बाथरूम में जाकर
आराम से नहाई। बाहर आकर कपडे चें ज किये और नीचे चल दी चाय पीने के लिए। पापा सोफे पर बैठकर एक फाईल में
कुछ दे ख रहे थे, मम्मी किचन में थी, तभी डोली भी स्कूल से आ गयी, वो स्कूल के बाद टयूशन लेने भी जाती है इसलिए
शाम के 6 बज जाते हैं उसे आते-२, वो मुझे मिली, और फिर बेग रखकर मम्मी के गले मिली, और फिर पापा के पास गयी,
पापा ने जैसे ही डोली को खड़े दे खा उसे अपनी तरफ खींचा और उसे अपनी गोद में बिठा कर गले से लगा लिया।

पापा: तो मेरा बेटा कैसा है , क्या किया आज सारा दिन…

डोली: पापा, आज केमिस्ट्री की क्लास में मुझे टीचर ने शाबाशी दी। मैंने जो प्रोजेक्ट बनाया था वो क्लास में सबसे अच्छा
था। वो बोलती जा रही थी और पापा को अपने स्कूल की बाते बताती जा रही थी, पर पापा की नजरे उसके होंठो पर तो कभी
छाती पर और कभी लम्बी गर्दन पर फिसलती जा रही थी। यानी पापा उसके बारे में भी गन्दा सोचते हैं, जैसा मेरे बारे में
सोचते है ।

पर वो इस वक़्त जितने प्यार से उसे गोद में बिठा कर, अपने हाथ उसकी कमर में लपेट कर उसकी बाते आराम से सुन रहे
थे, मुझे बड़ी जलन हो रही थी डोली से। काश मैं बैठी होती वहां पापा की गोद में । पर मम्मी ने मुझे कितनी बार मना किया
है की अब मैं बड़ी हो गयी हूँ, घर में कैसे बैठना है , क्या पहनना है वो सब मुझे बताती रहती है । पर डोली तो अभी सिर्फ 11th
में है , इसलिए उसपर मेरे जैसी पाबंदिया नहीं है ।

मैंने डोली से कहा: डोली, ये अपना बेग उठा कर रूम में रख और चें ज कर ले जल्दी से, फिर चाय पीते हैं।

डोली अनमने मन से उठी और बेग उठा कर ऊपर की तरफ चल दी। मेरी नजरे पापा के ऊपर ही थी, उन्होंने अपना लंड
वाला हिस्सा फाईल से छुपा रखा था, फिर उन्होंने धीरे से अन्दर हाथ डालकर उसे अडजस्ट किया और फिर से काम करने
लगे। चाय पीने के बाद मैं ऊपर गयी और फिर पूरा दिन कुछ ख़ास नहीं हुआ।

अगले दिन सुबह स्टें ड पर मैं कोमल से मिली

कोमल: तो मेरी जान, आज के क्या प्लान है ।

मैं:प्लान… कैसे प्लान।

कोमल: जो काम तन
ु े कल अधरू े छोड़ दिए थे, उन्हें परू ा भी तो करना है ।

मैं समझ गयी की वो राजपूत की बात कर रही है ।

मैं: अरे नहीं यार, वो तो बस पहले दिन कुछ कर गुजरने का नशा था, अब ऐसा कुछ नहीं है । अब तो उसे तड़पाकर, नचाकर
अपनी बाते मनवानी है , इतनी आसानी से नहीं मिलेगी उसे ये दीपा। हा हा…

29
कोमल: वो तो तू जाने, पर यार मेरा तो बुरा हाल हो चुका है , घर पर आशुतोष मुझे भूखी नजरो से हरदम दे खता रहता है
और कॉलेज में राहुल का भी यही हाल है । मुझे नहीं लगता की मैं अपने आप पर ज्यादा दिनों तक काबू रख पाऊँगी

मैं: यानी तू खुद येही चाहती है की कोई तेरी चूत का बैंड बजा दे । है न…

कोमल: यार… आई एम ् कन्फयूस, पता नहीं। एक मन करता है की सब कुछ कर डालू। फिर मन करता है की ये सब गलत
है । बात फेल गयी तो बदनामी होगी। पता नहीं यार…

मैं: एक काम कर सकते हैं।

कोमल: क्या…

मैं: जैसा चल रहा है , वैसा चलने दे । मतलब सिर्फ ऊपर से ही मजे लेकर काम चला ले। कोई जरुरत नहीं है अभी किसी का
भी अपने अन्दर लेने की। समझी न…

कोमल (मायूसी से): इसी बात का तो रोना है यार… ये सबर ही तो नहीं हो पा रहा अभी।

तभी दरू से राहुल अपनी बाईक पर आता हुआ दिखाई दिया।

मैं: ले तेरा आशिक तो आ गया। चल बाद में बात करते हैं फिर।

वो पास आया और फिर कोमल और मैं उसके पीछे बैठ गए। परू ा रास्ते कोई बात नहीं हुई।

पार्किं ग में पहूँच कर राहुल ने बाईक रोकी और मेरी तरफ दे खकर बोला: तो तुमने संजय राजपूत को पटा लिया है । हूँ…

मैं उसकी बात सुनकर है रान रह गयी। उसे कैसे पता चला हमारे बारे में । मैंने तो सिर्फ कोमल को… ओह माय गोड… यानी
कोमल ने ही बताया है राहुल को। मैंने कोमल की तरफ दे खा। उसने अपना चेहरा झुका लिया।

राहुल: है रान होने की जरुरत नहीं है । कोमल ने ही कल रात मुझे बताया था। पर मुझे इस बात से कोई परे शानी नहीं है ।
बल्कि मुझे ख़ुशी है ।

मैं: ख़ुशी… किस बात की…

राहुल: तुम शायद जानती नहीं हो, मैं और संजय बचपन के दोस्त है , और हम दोनों शुरू से ही एक साथ पड़े-लिखे हैं। जैसे
तमु दोनों सहे लिया शरू
ु से एक साथ हो, ठीक वैसे ही। पर जब से मैंने कॉलेज इलेक्शन में खड़े होने का फेसला किया है ,
उसके दोस्तों और चमचो ने हम दोनों की दोस्ती को दश्ु मनी में बदल दिया है , हमारे बीच काफी मतभेद आ चुके हैं, जो
शायद ही अब जाए, और कल की लडाई के बाद तो अब हमारी दश्ु मनी एक नया रूप ले चुकी है । इससे पहले सिर्फ हमारे ग्रुप
के लड़के लड़ते थे आपस में , कल हम भी लड़ पड़े। पर मैं उसके लिए खश
ु इसलिए हूँ की उसे तम्
ु हारी जैसी लड़की मिली, जो
शायद उसे अपने खुदगर्ज दोस्तों और चमचो के चुंगल से निकाल सकती है ।

मैं: मैं… क्या मतलब है तुम्हारा…

राहुल: दे खो दीपा, कल रात मैंने तुम्हारे बारे में कोमल से काफी बात की और मुझे मालुम है की तुमपर किस तरह का भूत
सवार है । पर मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ की तुम अगर मेरे अनुसार काम करती जाओ तो मेरा दोस्त भी सही राह पर आ
जाएगा और तम्
ु हे भी मजे मिलेंगे, जैसा तम
ु चाहती हो।

मेरा चेहरा उसकी बात सुनकर शर्म से लाल हो गया। ये साली कोमल की बच्ची ने सब कुछ बक दिया इस राहुल के सामने।

कोमल: दे खो दीपा, तुम बुरा मत मानो, पर जब राहुल ने मुझे अपनी और राजपूत की दोस्ती की बात बताई तो मुझे उसकी
कहानी में हम दोनों की दोस्ती का अक्स दिखाई दिया। अगर हमारे बीच भी ऐसी ही ग़लतफ़हमियो की दिवार बन जाए और
कोई उसे तोड़ने की जिम्मेदारी ले तो हमें तो उसका एहसानमंद होना चाहिए। इसलिए मैंने राहुल को तुम्हारे बारे में सब

30
कुछ बताया। और तुम्हारे बारे में क्या, मैंने तो इसे अपने बारे में भी सब बता दिया है । यहाँ तक की आशुतोष वाली बात भी।
और इसने भी कई मजेदार बाते बताई है , अपने, राजपूत और अपनी बहन जेसमीन के बारे में ।

मैंने मन में सोचा: हे भगवान ्… ये कोमल को हुआ क्या है । दो दिन पहले ही मिली है इस लड़के से वो… और अपनी और मेरी
जिन्दगी की सारी रामायण सन
ु ा डाली इसे। मेरा तो सर ही चकराने लगा सब कुछ सोचकर।

राहुल फिर से बोला: दे खो दीपा, अगर तम


ु ये सब नहीं करना चाहती तो मैं तम
ु पर कोई दबाव नहीं डालँ ग
ू ा। पर अगर तम

करोगी तो मुझे अच्छा लगेगा।

मैं कुछ दे र तक सोचती रही और फिर जब मुझे लगा की इसमें मेरा तो कोई नुक्सान है ही नहीं, तो मैंने राहुल से कहा: ठीक
है राहुल, जैसा तुम कहोगे, मैं वैसा ही करुँ गी। पर बीच-२ में तुम्हे भी मेरी बाते माननी होगी।

राहुल: कैसी बाते…

मैंने शरारती लहजे में उसकी तरफ दे खकर कहा: वो तुम्हे पता चल जाएगा, कैसी बाते… और फिर मैंने कोमल को दे खकर
आँख मार दी उसे। वो भी हं सने लगी, वो समझ चुकी थी शायद। उसके बाद हम सभी क्लास की तरफ चल दिए। क्लास में
पहुंचकर हम पढ़ने बैठ गए, २-3 पीरिअड ऐसे ही निकल गए, तभी क्लास में पिओन ने सर से आकर कहा की दीपा मेडम
को प्रिंसिपल मेम बुला रही है । मैं है रान रह गयी की प्रिंसिपल मेम को मुझसे क्या काम हो सकता है , मैंने कोमल की तरफ
दे खा, उसने कहा की शायद एडमिशन से रिलेटिड कुछ होगा, मैं पिओन के साथ मेम के रूम की तरफ चल दी। मीनाक्षी मेम
ने आज भी बड़ी ही अच्छी साडी पहनी हुई थी, पिंक कलर की। मैंने उन्हें मोर्निंग विश किया और बैठ गयी। क्रमशः 28

मीनाक्षी मेम: तो दीपा, कैसा चल रहा है ।

मैं: ठीक है मेम, अभी तो एक-दो दिन ही हुए हैं, पर ठीक है ।

मेम: पर मुझे लगता है की तुम अपनी पढाई से ज्यादा किसी और चीज पर ज्यादा ध्यान दे रही हो। मैं घबरा गयी की मेडम
किस चीज के बारे में बात कर रही है ।

मैं: जी… जी मैं कुछ समझी नहीं।

मेम: मैं समझती हूँ… इधर आओ जरा।

वो उठकर अपने कमरे की खिड़की के पास आ गयी, जिसपर वर्टिकल ब्लायिन्ड्स लगी हुई थी। उन्होंने उसे खोला और
बाहर दे खने लगी, मैं उनके पास पहुंची और बाहर दे खा। वो खिड़की पार्किं ग में खुलती थी और सामने राजपूत की टाटा
सफारी खड़ी थी। यानी… यानी…

मेम: मैंने तम्


ु हे कल दे खा था यहाँ से, टाटा सफारी में , राजपत
ू के साथ।

हे भगवान ्… ये क्या हो गया, पहले ही दिन मजे लेने के चक्कर में पकड़ी गयी मैं और वो भी प्रिंसिपल मेम के हाथो। मैं
अपना सर शर्म से नीचे किये खड़ी रही, मेरे हाथ पैर थर-थर कांपने लगे। मेरी आँखों से आंसू निकलने को हो गए। मुझे
समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करू।

मेम ने आगे कहा: राजपूत को कब से जानती हो तुम।

मैंने धीरे से कहा: जी… जी कल ही मिले थे हम, पहली बार।

मेम: वाव… इंटरस्टिं ग और पहले ही दिन तुम उसका लंड चूसने को तैयार हो गयी।

प्रिंसिपल मेम के मुंह से लंड जैसा शब्द सुनकर मैं है रान रह गयी। मैंने उनकी तरफ दे खा। वो कुटिल मुस्कान के साथ मुझे
दे ख रही थी। मैं चेयर पर बैठ गयी, और वो मेरे सामने टे बल पर टे क लगाकर खड़ी हो गयी।

31
मेम: तुम्हे अचम्भा हो रहा होगा शायद, की मैंने ये सब इतनी दरू से कैसे दे खा।

मैंने उनकी तरफ फिर से दे खा, अपना जवाब जानने के लिए। उन्होंने ड्रोर में से एक दरू बीन निकाल कर दिखाई। मैंने फिर
से मुंह नीचे कर लिया। मैं सोचने लगी की आखिर चाहती क्या है ये मुझसे, और क्यों ऐसा करती है ये, मैंने तो इस बात का
ध्यान ही नहीं किया था की पार्किं ग के बिलकुल सामने ऊपर की तरफ, मेम का कमरा है , जहाँ से वो सारा खेल दे ख सकती
है , पर कल मुझे आग ही इतनी लगी हुई थी की मैंने इन सब बातो के बारे में सोचा भी नहीं। और पार्किं ग में ही शुरू हो गयी
थी मैं।

मेम: दे खो दीपा, तुम एक अच्छे घर की लड़की हो और तुम्हारी सिफारिश हुई है यहाँ के एडमिशन के लिए, इसलिए मैंने
तम्
ु हे बल
ु ाया है यहाँ। तम
ु अच्छी तरह जानती हो की तम्
ु हारे मार्क्स की वजह से तम्
ु हे कही और एडमिशन तो मिलने से
रहा। और अगर, मैंने तुम्हे यहाँ से निकाल दिया तो तुम कहीं की नहीं रहोगी।

मेरी आँखों में आंसू आ गए, मैंने ऊपर चेहरा करके उनसे कहा: नहीं मेम… ऐसा मत करना। आज के बाद ऐसा नहीं होगा।
मुझे माफ़ कर दीजिये।

मेम: अरे … मैंने कब कहा की तुम आज के बाद ऐसा मत करो।

मैं उनकी बात सुनकर असमंजस में आ गयी।

उन्होंने आगे कहा: दे खो दीपा… मेरी पोसिशन इस कॉलेज में ऐसी है की मैं कुछ ज्यादा नहीं कर सकती। मतलब… जैसा मैं
पहले कर सकती थी जब मैं टीचर थी। मेरा पप्रोमोशन हुआ था लास्ट मंथ में और ट्रान्सफर भी, और जब से मैं इस कॉलेज
में आई हूँ, मझ
ु े वो सब बहुत याद आता है , पर मैंने अपने आपको काफी रोककर रखा हुआ है ।

वर्ना तम्
ु हे अगर मेरे बारे में पता चले तो तम
ु भी सोचने लगोगी की ऐसा भी कोई होता है । मझ
ु े अब भी कुछ समझ में नहीं
आ रहा था की आखिर मेम मुझसे चाहती क्या है । पर एक बात तो साफ़ थी की वो मुहसे नाराज नहीं है , पर मेरी हरकत की
वजह से मुझे ब्लेकमेल करके कुछ करवाना जरुर चाहती है ।

वो आगे बोली: मुझे मालुम है की अगर मैं किसी को भी बोलूंगी तो वो आकर मुझे मेरी इच्छानुसार मजे दे कर ही जाएगा, पर
अभी तक ऐसा मौका नहीं मिला है मझ ु े, और जब से मैंने तम् ु हे कल उस कार में जाते हुए दे खा, जब मैं यहाँ खड़ी होकर चाय
पी रही थी तो मेरे दिल में कुछ आ रहा है , जिसे मैंने सोचा की तुमसे शेयर करना चाहिए।

मैंने उनकी तरफ दे खना जारी रखा

मेम: दे खो दीपा, अगर हम दोनों एक दस


ु रे की मदद करे तो दोनों की ही भलाई है इसमें , तम
ु भी मजे कर सकती हो और मैं
भी। क्योंकि तुम्हारी बाते सुनकर मुझे पता चल गया है की सेक्स के लिए तुम भी मरी जा रही हो और यही वजह थी की
तुमने पहली ही बार में हद से ज्यादा कर डाला राजपूत के साथ कल कार में , मैंने सब दे खा इस दरू बीन से।

मैं: पर अगर आपको मजे ही चाहिए तो ये बात बताकर तो आप सीधा राजपूत को भी बुला सकती थी अपने पास, और फिर
वो भी वही करता जो आप चाहती हैं।

मेम (मझ
ु े घरू ते हुए): मझ
ु े क्या करना है , मझ
ु े अच्छी तरह पता है । तम
ु तो जानती ही हो की वो इलेक्शन में खड़ा हुआ है ।
उसे सीधा अपने जाल में फंसाना मतलब अपने पैर में कुल्हाड़ी मारना।

मैं: मैं समझी नहीं।

मेम: दे खो, अभी जो मैं तम


ु े कह रही हूँ, वो तम
ु करो। वक़्त आने पर सब साफ़ हो जाएगा। ओके…

मैं: ओके… तो बताइए क्या करना है मझ


ु े…

32
मेम (हँसते हुए): गुड गर्ल। पर कभी ये मत समझना की मैं तुम्हे ब्लेक मेल कर रही हूँ। तुम्हे अगर मेरी बात नहीं माननी तो
तुम मना भी कर सकती हो। कोई जोर जबरदस्ती नहीं है ।

साली, ब्लेक मेल कर भी रही है और बोल भी रही है ।

मेम: अभी तो तुम्हे मेरा सिर्फ एक छोटा सा काम करना है ।

मैं: वो क्या…

मेम: यहाँ आओ जरा मेरे पास।

मुझे डर लगने लगा था। एक अनजाना सा डर, मैं डरते हुए उनके पास गयी और उन्होंने अपना हाथ मेरी ब्रेस्ट के ऊपर रख
दिया। मैं दम साधे दे खती रही। उन्होंने मेरे कुरते के अन्दर हाथ डालकर मेरी ब्रा को खोल दिया। और अपने हाथ मेरे मुम्मो
पर रखकर उन्हें दबाने लगी।

मुझे पता चल गया की ये लडको के साथ-२ लडकियों के भी मजे लेने में माहिर है , क्योंकि जिस तरह से वो मेरे निप्पलस को
होले-२ दबा रही थी मुझपर नशा सा सवार होने लगा था, उनके अनुभवी हाथो को मालुम था की वो क्या कर रहे हैं, मेरे मुंह
से एक हलकी सी सिसकारी निकल गयी अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह…

मेम: मजा आ रहा है न…

मैंने हाँ में सर हिलाया। आज तक सिर्फ कोमल ने ही मेरे मुम्मो को दे खा या दबाया था, या फिर कल राजपूत ने। उन्होंने
मुझे अपनी तरफ खींचते हुए मुझे अपनी चेयर के सामने बिठा लिया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी। उन्होंने नीचे
पिंक कलर की मेचिग
ं ब्रा पहनी हुई थी, जिनमे मोटे -२ मम्
ु मे समां नहीं पा रहे थे, उन्होंने मेरे मंह
ु को अपन तरफ खींचा और
मुझे अपनी ब्रेस्ट के ऊपर रगड़ने लगी।

वहां की मुलायम त्वचा मेरे गालो से रगड़ खाकर फिसल रही थी, मीनाक्षी मेम का एक हाथ मेरे मुम्मे को मसलने में लगा
हुआ था।

मैं: मेम… मेम कोई आ जाएगा।

मेम: उम्म्म… कोई नहीं आएगा। मैंने पिओन को बोला हुआ है , किसी को भी अन्दर नहीं भेजना और वो मुझे अच्छी तरह
जानता है ।

मैं: मतलब…

मेम: मतलंब ये की, वो मेरे पिछले कॉलेज का ही पिओन है । मैंने ही उसका ट्रान्सफर करवाया है अपने साथ यहाँ।

मैं (हे रानी से): यानी, आप इस पिओन के साथ।

मेम: हाँ… इसके साथ भी, और भी बहुत हैं पर इस कॉलेज में नहीं। पर वो सब बाद में । अभी तो तुम इसे चुसो जरा। और ये
कहते हुए उन्होंने अपनी ब्रेस्ट को निकाल कर मेरे सामने परोस दिया। इतनी बड़ी ब्रेस्ट मैंने आज तक नहीं दे खी थी, उनकी
उम्र के हिसाब से अभी भी काफी कसाव था उनकी छाती में । और उनके निप्पल भी काफी बड़े थे, चौंकलेट कलर के। मेरे तो
मुंह में पानी आ गया उन्हें दे खते ही और मेरा चेहरा अपने आप उनके निप्पल की तरफ खिसकने लगा। जैसे ही मैंने उसे
अपने मुंह में भरा, मुझे लगा की कोई मिश्री की डली आ गयी है मेरे मुंह में । इतना मीठापन था उसमे।

मैंने उसे चूसा और फिर उनसे बोली: इट्स वैरी स्वीट।

मेम: या आई नो… वैसे तुम्हे एक सीक्रेट बताऊ… मैंने इसपर एक सिरप का स्प्रे किया है । जो खासकर मैंने USA से लिया
था एक बार, और मैं इसे रोज लगाती हूँ, अपने निप्पलस पर, और जो भी इन्हें चस
ू ता है , उसे बड़ा मजा आता है ।

मैं: वाव… मेम यु आर जीनियस। क्या मुझे भी ला दोगी वो स्प्रे…


33
मेम (हँसते हुए): हाँ… हाँ क्यों नहीं… वैसे भी अब हम पार्टनर जो बन गए हैं।

मैंने उनकी बात सुनकर दग


ु नी तेजी से उनके निप्पल का मीठापन चूसना शुरू कर दिया। अह्ह्हह्ह्ह्ह… ओह्ह्हह्ह या…
म्मम्म…

मेम (हाँफते हुए): यहाँ ज्यादा कुछ पोसिबल नहीं है । कोई अगर बाहर आकर खड़ा हो गया तो पिओन ज्यादा दे र तक उन्हें
रोक कर नहीं रख पायेगा। एक काम करो, तम
ु शाम को आना, कॉलेज टाईम के बाद। ओके…

मैं: ओके मेम… पर वो मेरी फ्रेंड है न… कोमल, वो और मैं एक साथ ही जाते हैं। अगर आप कहे तो उसे भी…

मेम: दे खो, अगर तुम्हे उसपर भरोसा है तो तुम उसे भी ला सकती हो।

मैं: उसपर तो मुझे अपने आप से ज्यादा भरोसा है । आप चिंता न करे । उन्हें ये बताते हुए मुझे कल की बात याद आ गयी,
कोमल ने कैसे बड़ी आसानी से मेरी और राजपत
ू की बात राहुल को बता दी थी। जो भी है , उसे बताना तो पड़ेगा ही। मैंने
अपने कपडे ठीक किये और बाहर की और निकल गयी। बाहर पिओन बैठा हुआ था, मुझे दे खकर वो अजीब तरीके से मुझे
घरू ते हुए अपने गुटके वाले गंदे दांत दिखा कर हं सने लगा। मैंने उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया और क्लास की तरफ
चल दी।

क्लास में जाकर कोमल ने मझ


ु से पछ
ु ा: क्या हुआ था… क्यों बल
ु ाया था…

मैंने धीरे से कहा: बाद में बताती हूँ कोमल। और वो मेरे चेहरे को दे खकर पड़ने की कोशिश करने लगी। पर उसे मालुम तो
चल ही चुका था की कुछ न कुछ तो जरुर हुआ है । जो काफी मजेदार है । जैसे ही वो पीरियड ख़त्म हुआ, कोमल मुझे लेकर
कोने में चल दी

और फिर बोली: जल्दी बता न, क्या हुआ था…

मैं: दे ख कोमल… जो भी मैं कहूँ, उसे प्लीस किसी और को मत बताना। अपने राहुल को भी नहीं।

कोमल: ठीक है यार, प्रोमिस। अब बोल जल्दी से, क्या बात हुई…

मैंने उसे जल्दी-२ सारी बात सन


ु ा डाली। जिसे सन
ु ते-२ उसका मंह
ु खल
ु ा का खल
ु ा रह गया।

कोमल: ओह माय गोड… ये हमारे कॉलेज की वाईस प्रिंसिपल ऐसी निकलेगी। मझ


ु े तो पता भी नहीं था। पर जो भी है , मजा
जरुर आने वाला है । एक से भले दो और दो से भले तीन। कुछ सीखने को ही मिलेगा हमें इनसे।

मैं: इसमें सीखने वाली क्या बात है ।

कोमल: यार तेरा भी ऊपर वाला माला खाली है । दे ख, उनकी बातो से तो ये साफ़ है की उन्होंने काफी मजे लिए हैं अपनी
जिन्दगी के। और पिछले कॉलेज में भी। और अब यहाँ भी वो यही करना चाहती है , पर खुलकर नहीं, अपनी चालाकी से।
और याद है , कल हम भी यही डिस्कस कर रहे थे की हम ज्यादा से ज्यादा मजे कैसे ले, बिना बदनाम हुए। तो ये सब अब
हमें मीनाक्षी मेम से सीखने को मिलेगा। समझी, हम तो फिर भी स्टुडेंट है , और स्टुडेंट्स में ये अफेयर्स और सेक्स वगेरह
तो चलता ही है । पर कॉलेज की वाईस प्रिंसिपल होकर, वो कैसे मजे लेती है , ये हमें सीखना है । समझी…

मैं उसकी बात समझ गयी थी। बात तो सही कह रही थी कोमल।

मैं: तो इसका मतलब, हमें मेडम की बात माननी चाहिए।

कोमल: और नहीं तो क्या… सोच, अगर कॉलेज की वाईस प्रिंसिपल हमारे साथ हो तो ये सब करना कितना आसान होगा।
और दस
ु रे फायदे मिलेंगे, सो अलग।

मैं उसकी बात सुनकर फिर से सोचने लगी।

34
कोमल: दे ख, अब ज्यादा न सोच, जो होगा दे खा जाएगा, और वैसे भी, जो भी होगा, मजेदार ही होगा। अभी तो तू चल, भूख
लगी है मुझे और फिर बाद में मेम के कमरे में जाकर दे खते हैं, की क्या करवाना चाहती है वो हमसे। हम दोनों फिर केंटिन
की तरफ चल दिए। क्रमशः 32

***दोस्तों, जैसा की मैंने आपको बताया था की ये कहानी किसी एक नायिका पर केन्द्रित नहीं है , इसलिए अब दस
ू री
नायिका यानी दीपा के मन में क्या चल रहा है , उसे जानने का वक़्त आ गया है । और आगे भी इसी तरह से दस
ु रे पात्रों के
नामे यहाँ आते रहें गे***

******

मीनाक्षी बेदी - वाईस प्रिंसिपल 


=======================

मीनाक्षी की शेप और स्टाईल दे खकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल होगा की उनकी उम्र क्या है या उनके कितने बच्चे है ,
असल में वो शुरू से ही अपने हुस्न के चाहने वालो से घिरी रहती थी, मतलब, आस पास के लोगो ने उनके हुस्न की तारीफ
करके उसे भी मजे दिए और बदले में खुद भी लिए। असल में उनकी उम्र 43 थी और उनकी शादी के बाद २ बेटियां थी, एक
टें थ में और दस
ू री ट्वेल्थ में थी, उनके पति एक सरकारी जॉब में थे और अपने रोजाना के नियम के अनुसार आते और जाते
थे, और पिछले कुछ सालो से उनका सेक्स के प्रति रुझान कम हो गया था इसलिए घर पर सिर्फ हफ्ते में एक बार ही चुद
पाती थी।

पर अपनी जॉब और रुतबे को इस्तेमाल करके वो बाकी के 6 दिनों की कमी बाहर से ही दरू कर लेती थी। और कई बार तो
उसने अपने रिश्तेदारों के साथ भी मजे लिए थे। पर वो बाते फिर कभी… उसके घर और चाहने वाले उसे प्यार से मीनू कहते
हैं। पिछले कॉलेज में भी उसके कई टीचर और स्टुडेंट्स के साथ सम्बन्ध थे, पर वो बड़ी चालाकी से उन्हें मेनेज करती थी
ताकि उसकी बदनामी न हो, और इन सब कामो में उसका विश्वासपात्र सेवक यानी उसके स्कूल का पिओन जिसका नाम
डोंद ू राघवन था पर उसे सभी जानने वाले प्यार से डान कहते थे। एक तो उसके स्टाईल की वजह से और दस
ु रे उसके लंड के
साईज की वजह से। क्योंकि उसका लंड चुदाई की दनि
ु या का बेताज बादशाह था जो अपने सामने वाली चूतों के परखच्चे
उड़ा दे ता था।

और इसी वजह से मीनाक्षी के ट्रान्सफर होने के बाद भी वो उसे अपने साथ इस नए कॉलेज में भी ले आई थी, जहाँ जब भी
मौका मिलता, वो अपने "डान" के साथ नए-निराले खेल खेलती। और आज मीनाक्षी को इस नए कॉलेज में आये एक हफ्ते
35
से ज्यादा हो चुका था पर डान के अलावा किसी और के लंड को चखने का कोई रास्ता ही नहीं मिला था। पर कल जब उसने
खिड़की से दीपा और राजपूत की रासलीला दे खी तो उसके दिमाग में आगे की प्लानिंग बननी शुरू हो गयी। वो जानती थी
की दीपा जैसी लड़की को आसानी से अपनी बातो में फंसाकर उसके द्वारा दस
ु रे लडको का शिकार किया जा सकता है ।
जबकि ये सीधा लडको के साथ करना मुश्किल होगा। खासकर 3rd ईयर वाले लडको के साथ, जो इन सब चीजो में मास्टर
होते हैं, पर अभी-२ 12th पास करके निकली दीपा जैसी लडकिया उतनी चंट नहीं होती।

*****

मीनू
===

दीपा के बाहर निकलते ही मैंने बेल बजाकर डोंद ु को अन्दर बुलाया, वो हर बार की तरह मेरे पालतू कुत्ते की तरह भागकर
अन्दर आया।

मैं: दे खो डान… ये लड़की अपनी सहे ली को लेकर आएगी शाम को, और तम


ु जानते ही हो की तम्
ु हे क्या करना है ।

डान: जी मेडम जी जानता हूँ। आपकी सेवा करते-२ इतना ज्ञान तो मुझे हो ही चुका है । ही ही… और वो अपने पान वाले दांत
निकालकर हं सने लगा। वो तकरीबन 28 साल के आसपास था, दिल्ली में अकेला ही रहता था, बाकी के लोग उसके गाँव में
ही थे। शाम की बात सुनकर उसकी खाकी पें ट के अन्दर का पहलवान खड़ा होने लगा, और वो हँसते-२ ही उसे बड़ी ही बेशर्मी
से, मझ
ु े दिखाते-२ मसलने लगा।

मैं जानती थी की अभी अगले एक घंटे तक सभी टीचर्स बीसी होंगे, अपनी-२ क्लास में । और ऊपर से डान के लंड की लम्बाई
पें ट से उजागर होते दे खकर मेरी चूत में वही जानी-पहचानी खुजली होने लगी। जिसे शायद डान ने बड़ी ही आसानी से भांप
लिया था।

वो भागकर गया और दरवाजा बंद करके वापिस आ गया, दरवाजा बंद करके मैंने उसके लंड के कई बार मजे लिए थे, पर
जब से इस कॉलेज में आई थी तब से कॉलेज टाईम में , दरवाजा बंद करके नहीं चुदी थी उसके लम्बे लंड से। पर कभी न
कभी तो ये करना ही था। इसलिए जैसे ही वो दरवाजा बंद करने गया, मैंने झट से हाथ डालकर अपनी पैंटी को पेटीकोट से
निकाल कर ड्रोर में डाल दिया।

वो जैसे ही वापिस आया, उछल कर मेरे कांच लगे सेंटर टे बल के ऊपर चढ़ गया। और अपनी जिप खोलकर अपने "डान" को
बाहर निकाल कर मेरे सामने परोस दिया। पर्पल कलर के टॉप के ऊपर प्री काम की बँद
ू चमक रही थी, मैं अपनी सीट से उठी
और मैंने उसके तने हुए लंड को अपने मुंह में भरकर चूसना शुरू कर दिया। अपने सामने टे बल पर खड़े करवाकर मुझे लंड
चूसना अच्छा लगता था।

वो अपनी टांगो को थोडा सा मोड़ कर खड़ा हुआ था। और उसने मेरे बालों को अपने खरु दरु े हाथो से पकड़कर मेरे मुंह के
अन्दर घस्से दे ने शुरू कर दिए। अह्ह्हह्ह्ह्ह मेडम जी… क्या चुस्ती हो। साला आपका पति तो कुत्ता है , जो आप जैसी लंड
चूसने वाली गरम कुतिया को चोदे बिना ही सो जाता है । म्मम्मम… क्या मुम्मे है आपके मेडम जी। अह्ह्हह्ह… जी करता है
की इनके ऊपर शराब डालकर चाटता रहू, आपके हुस्न के जाम को पीता रहू। मेडम जी अह्ह्ह्ह…

वो बोलता जा रहा था। वैसे वो जानता था की मुझे चुदते वक़्त इस तरह की गन्दी गालिया और बाते अच्छी लगती है , और
मैं और गर्मजोशी से उसका साथ दे ती हूँ, इसलिए वो साला मुझे उकसाने के लिए ही ये सब बोलता जा रहा था। ना जाने
क्यों, पर अपने पति और अपने बारे में बुरी और गन्दी बाते सुनकर मुझे बड़ा मजा आता था। उम्म्मम्म… डान साले तेरा
लंड है या तोप। इतनी मोटी और जब चले तो परखच्चे उड़ा दे ती है । अह्ह्ह्ह… सच में , म्मम्मम… सच में तू डान है मेरी चूत
के ऊपर राज करने का तझ
ु े परू ा हक है । अह्ह्ह्ह…

36
मेरी गन्दी बाते सुनकर उसकी हालत और भी खराब हो गयी। पर तभी बाहर पीरियड ख़तम होने की बेल बजी। यानी अब
किसी भी वक़्त कोई भी अन्दर आ सकता था। इसलिए मैंने जल्दी से डान के लंड को चूसना शुरू कर दिया, उसे अपनी चूत
में लेने का टाईम नहीं था, और मेरे गर्म मुंह के झटको से उसकी तोप की नाली पिघल गयी और उसके अन्दर से गोले चूने
लगे।

अह्ह्हह्ह्ह्ह मेडम जी क्या कर दिया। अह्ह्हह्ह… मुझे तो आपकीचूत में डालना था ये माल मम्म… पर इन सब के लिए
अब टाईम नहीं था, मैंने जल्दी से उसकी नली खाली करके वापिस उसकी पें ट में ठूंस दी, वो नीचे उतरा और भागकर वापिस
दरवाजे तक गया, चिटखनी खोली और बाहर निकलकर दे खने लगा।

थोड़ी ही दे र में वो अन्दर आया और बोला: "मेडम जी… मझ


ु े नहीं लगता कोई आएगा और आपको ऐसी हालत में छोड़ना
मुझे अच्छा नहीं लगता। क्यों न हम टे बल के नीचे वाला करे , जैसा एक बार किया था, पिछले कॉलेज में ।”

उसे मेरी चूत के गीलेपन का अंदाजा था। और उसने पिछले कॉलेज में भी एक बार मेरे टे बल के नीचे घुसकर मेरी चूत को
चाटकर मुझे मजे दिए थे, तब कोई आया भी नहीं था, पर मेरे कमरे में कभी भी कोई भी आ सकता था, इसलिए उसे अन्दर
से बंद करने पर ज्यादा मश्कि
ु ल आ सकती थी। मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया, वो वापिस आया और मेरी टे बल के नीचे
घुसकर मेरे पेटीकोट को ऊपर उठाकर मेरी चूत के ऊपर अपना मुंह लगा कर उसे चाटने लगा। मैंने अपनी कोहनिया सामने
की टे बल के ऊपर रखकर अपना सर उसके ऊपर रख दिया।

मेरे गालो पर टे बल का ठं डा शीशा मेरे शरीर की सिहरन को बड़ा रहा था। उसने जैसे ही अपनी जीभ मेरी चूत के अन्दर
डाली, मेरी एक तेज सिसकारी निकल गयी। आआह्ह्ह्ह… डान म्मम्मम… चाटो मेरी रसीली चत
ू को, डान तेरी ही है ये। जोर
से चाट। अह्ह्ह…

उत्तेजना के मारे मैंने अपनी जीभ निकाल कर शीशे वाली टे बल को ही चाटना शुरू कर दिया। मानो वो उसका ही लंड हो।
डोंद ु ने अपना मुंह मेरी चूत के ऊपर परू ी तरह से दबा रखा था। मानो उसके द्वारा ही उसे सांस मिल रही हो। तभी एकदम से
बाहर का दरवाजा खल
ु ा और हमारे स्कूल की एक टीचर, जिनका नाम संध्या था, वो अन्दर आ गयी।

मेरा सर टे बल पर रखा हुआ दे खकर वो वहीँ खड़ी होकर बोली: मेडम… मेडम आर यु ओके…

टीचर की आवाज सुनकर डोंद ु ने मेरी चूत चाटना बंद कर दिया, मैंने हडबडा कर अपना सर ऊपर उठाया। हूँ… हां बोलो…

संध्या: सॉरी मेम… पर लगता है आपकी तबीयत खराब है ।

मैं: हाँ… सर में दर्द हो रहा था। मैंने पिओन को भेजा है गोली लाने के लिए। सोचा थोड़ी दे र आँखे बंद करके आराम कर लू।
तम
ु बोलो संध्या। क्या काम था…

संध्या: कुछ ख़ास नहीं मेम। आज घर पर कुछ लोग आ रहे है । इसलिए थोडा जल्दी जाना था। बस आपसे परमिशन लेनी
थी। ये कहते हुए उसने एक एप्लीकेशन मेरे सामने रख दी।

मैं: कोई बात नहीं। चली जाओ और अपने पीरियड की रिस्पोंसिबिलिति किसी और को दे ती जाना।

संध्या: जी मेम थैंक्स… और वो बाहर निकल गयी।

डोन्द ू घुस गया टे बल में , मेडम की खेंची टांग,


सरपट-सरपट जीभ चली, पकड़ के उसकी जांघ,
पकड़ के उसकी जांघ, चूत में मचा धमाल,
मज़ा सटासट आय, डान ने किया कमाल,
कहे ‘आशु’ कथाकार, डरे जब संध्या आई,
बच गए वरना फिर, हो जाती जग-हं साई।

37
उसके जाते ही डोंद ु फिर से शुरू हो गया।

मैं: अह्ह्ह्हह्ह डान… आज तो तुने मरवा ही दिया था। अब जल्दी कर, बस होने ही वाला है । और मेरे कहने से पहले ही मेरी
चूत के फव्वारे ने उसके मुंह के ऊपर धावा बोल दिया। और उसने बिना एक बँद
ू वेस्ट किये, मेरी चूत का अमत
ृ पी लिया।
और जल्दी से बाहर निकल कर, वापिस बाहर निकल गया। अब तो मझ
ु े और उसे भी शाम का इन्तजार था। जब दीपा और
उसकी वो गर्म सहे ली कोमल आएँगी मेरे कमरे में । क्रमशः 36

शाम को ठीक साढ़े पांच बजे डोन अन्दर आया और मस्


ु कुरा कर बोला: वो आ गयी दोनों।

मैंने भी अपनी फाइल साईड में रख दी और उन्हें अन्दर आने को कहा। थोड़ी ही दे र में दीपा अन्दर आई और उसके पीछे -२
कोमल भी। कोमल को आज मैंने दस
ू री बार दे खा था, पर आज जितने गौर से और ख़ास अंदाज में दे खा था वो पहली बार में
नहीं। सच में कमाल की थी वो। कोई भी कॉलेज का लड़का उसके पीछे चल दे , ऐसा हुस्न दिया था उसे ऊपर वाले ने।

दीपा: मेम… हम आ गए।

मैं: हम्म… तुमने अपनी सहे ली को तो बता ही दिया होगा वो सब। जो हमारे बीच हुआ था सुबह।

दीपा के बोलने से पहले ही कोमल बोल पड़ी: जी मेडम बता दिया और मैंने जब से वो सब सुना है । मुझे तो कुछ-२ हो रहा है ।

मैंने शरारत भरी मस्


ु कान से उसकी तरफ दे खा और पछ
ू ा: कहाँ… और क्या हो रहा है ।

कोमल ने भी बड़ी ही बेशर्मी से अपनी चत


ू वाली जगह पर हाथ रख दिया और धीरे से बोली: यहाँ मेडम, यहाँ…

मैं: कम… कम हे यर।

मैंने अपनी एक बाहँ उसकी तरफ की और उसे अपने पास बुलाया। वो मेरे पास आई और मैंने उसे अपनी टे बल के सामने
खड़ा कर दिया। और उसके चेहरे पर हाथ रखकर उसकी आँखे बंद कर दी। और अपनी हथेली उसके चेहरे से नीचे लाते हुए,
उसके होंठो से छुते हुए, उसकी सुराहीदार गर्दन को मसलते हुए, उसके उभारों के ऊपर लाकर रोक दी।

वो अपनी आँखे बंद किये, दम साधे, मेरे अगले मूव का इन्तजार कर रही थी। मैंने धीरे से उसके कान में कहा: अब थोड़ी दे र
तक अपनी आँखे मत खोलना। जब तक मैं न बोलू। ओके…

कोमल: ओके मेडम… नहीं खोलूंगी।

दीपा सामने खड़ी होकर दे ख रही थी की आगे क्या होने वाला है । मैंने आज तक कई टीचर्स के साथ और फीमेल स्टुडेंट्स के
साथ भी मजे लिए थे। पर इतनी सुंदर और गर्म लड़की मैंने आज तक नहीं दे खी थी। उसके गोरे रं ग के ऊपर लाल सुर्ख होंठ
बड़े ही टे म्पटिंग से लग रहे थे। इसलिए मैंने अपने होंठो पर गीली जीभ फेरी और उसके चेहरे के पास जाकर मैंने अपने होंठ
उसके होंठो पर रख दिए। और उन्हें चूसने लगी।

एक औरत होने के नाते मुझे मालुम था की होंठो और दांतों की कोन सी हरकत से उसे ज्यादा मजा मिलेगा। और अपने
इसी एक्स्पेरियस का लाभ मैं अब उठा रही थी। वो भी बिना हिले डुले मेरी किस का मजा ले रही थी। मैंने उसकी दमदार
ब्रेस्ट को अपनी हथेलियों में भींचा और उसके सोफ्ट्पन का मजा लेने लगी। थोड़ी दे र तक उसके लबो को चूसने के बाद मैं
अपनी चेयर पर बैठ गयी।

मैं: दे खो कोमल, तुम्हे दीपा ने सब बता ही दिया है और तुम्हे दे खकर लगता है की सेक्स के प्रति तुम्हारे अन्दर भी वही
जज्बा है जो दीपा में है और मुझमे भी। मैं जानती हूँ की ये सब मजे ज्यादा से ज्यादा और बिना किसी रिस्क के कैसे लिए
जाते हैं और इसमें मुझे तुम दोनों की जरुरत है । अगर तुम दोनों मेरा साथ दोगी तो तुम्हे भी मजे मिलेंगे और मुझे भी। और
ये कहते-२ मैंने अपना ब्लाउस खोलना शुरू कर दिया। अपनी ब्रा को मैंने ऊपर किया और मेरे दोनों शहजादे बाहर निकल
कर उन दोनों कन्याओ को दे खने लगे।

38
मैंने दीपा को इशारा किया और वो अपना सुबह का अधुरा काम परू ा करने के लिए सीधा मेरे सामने आकर बैठ गयी और मेरे
दांये मुम्मे को चूसने लगी। मैंने कोमल से बात करना चालु रखा: दे खो… तुम दोनों ये मत समझो की तुम्हे हमेशा मेरी ही
सेवा करनी पड़ेगी। मैं जैसा कहू वैसा करो और रिसल्ट में मिलने वाले लंड हम आपस में बाँट कर खायेंगे। ठीक है न…

कोमल ने हाँ में सर हिलाया।

मैंने अपना पेटीकोट साडी समेत ऊपर उठाया और अपनी पैंटी को नीचे खिसका कर अपनी सफाचट चत
ू उसके सामने परोस
दी। वो मुझे थोड़ी दे र तक दे खती रही और फिर धीरे से अपना सर नीचे करके मेरे नीचे वाले लिप्स को अपने ऊपर वाले
लिप्स से चूसने लगी। मैंने आनंद के मारे आँखे बंद कर ली।

अह्ह्हह्ह्ह्ह… दीपा।

मैंने दे खा की कोमल भी अपनी चूत वाले हिस्से को अपने हाथो से पकड़कर मसल रही है । मैंने उसकी तरफ दे खा और कहा:
अपने कपडे उतारो कोमल।

वो मेरी तरफ फटी आँखों से दे खने लगी।

मैं: डरो मत, मेरी इजाजत के बिना कोई अन्दर नहीं आ सकता। उतारो जल्दी।

कोमल ने हिचकते हुए अपनी टी शर्ट और फिर जींस को नीचे उतार दिया। क्या शेप थी उसकी। उसकी भरपरू जवानी को ब्रा
और पैंटी में दे खकर मुझे अपनी जवानी का टाईम याद आ गया। बिलकुल ऐसी ही थी मैं भी। सही जगह से भरी पूरी, बाकी
सब सपाट। मैंने उसे इशारे से अपनी पैंटी और ब्रा भी उतारने को कहा। और मैंने दीपा का सर पकड़कर अपनी चूत में और
अन्दर तक घस
ु ा दिया।

कोमल ने धीरे -२ अपने बचे हुए दोनों कपडे भी उतार डाले और अब उसका हुस्न बेपर्दा होकर मेरे सामने नंगा था। मैं अगर
लड़का होती तो आज इसे चोदने से मुझे कोई नहीं रोक सकता था। कोमल की चूत पर हल्का गीलापन मुझे साफ़ दिख रहा
था। मन तो कर रहा था की उसकी चूत से निकल रहा अमत
ृ पी जाऊ। पर मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था।

मैंने रिमोट बेल बजायी और दरवाजा खोलकर एकदम से दोंडू यानी अपना डोन अन्दर आ गया और आते ही उसने दरवाजा
अन्दर से बंद कर दिया। जैसे ही कोमल को डोन के आने का एहसास हुआ। वो झट से अपने कपडे उठा कर मेरी चेयर के
पीछे आकर छुप गयी। दीपा ने भी मेरी चूत को चाटना छोड़ दिया और उठकर वो भी दस
ू री तरफ आकर कोमल की ही तरह,
डरे हुए भाव से मुझे दे खने लगी।

मैंने हँसते हुए कहा: अरे डरो मत दीपा… मैंने तम


ु से कहा था न दोंडू के बारे में । ये सब जानता है और वक़्त पड़ने पर हर तरह
का काम करता है ये मेरा। और मजे भी खूब दे ता है अपने लम्बे लंड से। इसके लंड के साईज की वजह से मैं इसे प्यार से
डोन कहती हूँ। और फिर मैंने डोन की तरफ दे खा और कहा: डोन जरा दिखाओ इन लडकियों को की मैं तुम्हारी तारीफ क्यों
कर रही हूँ…

मेरे कहने की दे र थी, डोन ने अपनी पें ट को नीचे खिसकाया और अपना तना हुआ लंड निकाल कर हम तीनो की भख
ू ी
नजरो के सामने डाल दिया। उसके लंड को दे खकर दोनों लडकिय मानो अपनी सुध बुध खो बैठी। मैंने डोन को इशारा किया
और वो मेरे पीछे छुपी हुई कोमल के पास आया और उसके चेहरे के सामने अपना लंड लहराने लगा। और फिर मैंने दीपा को
फिर से अपनी तरफ इशारे से बुलाया और उसे फिर से अपनी चूत को चूसने में लगा दिया। वो चूस तो मेरी चूत रही थी पर
उसकी नजरे डोन के लंड के ऊपर ही थी।

डोन भी कोमल जैसी सुन्दर लड़की को नंगा पाकर फुला नहीं समां रहा था। उसने ज्यादातर मेरे पुराने कॉलेज की टीचर्स को
ही चोदा था। आज एकदम कोरा माल उसकी नजरो के सामने था, इसलिए उसके लंड की नसे आज कुछ ज्यादा ही चमक

39
रही थी। कोमल को अपने लंड की तरफ घरू ते पाकर डोन ने ही पहल की और आगे होकर अपने लम्बे लंड को पकड़कर
कोमल के गुलाबी होंठो से छुआ दिया।

जैसे ही डोन के लंड ने कोमल के कोमल होंठो को छुआ, कोमल मानो नींद से जागी, और उसने झट से अपने हाथ दोंडू के
लंड पर जमा दिए और उन्हें किसी प्रोफेशनल की तरह से चस
ू ने लगी। उसकी तेजी दे खकर मैं भी दं ग रह गयी। मानो बरसो
की प्यासी हो वो।

मेरा और दीपा का ध्यान उनकी तरफ ही था। डोन का लंड जैसे ही कोमल के मुंह में गया, उसकी आँखे बंद हो गयी और वो
जोरो से चीखने लगा।

अह्ह्ह्ह…साली क्या चुस्ती है मादरचोद… क्या होंठ है तेरे कुतिया… सच में तेरी चूत के अन्दर लंड को रगड़ने का मजा
आएगा साली।

कोमल की आँखे गोल होती चली गयी। ऐसी गालियों की उसे कतई उम्मीद नहीं थी और वो भी एक पीउन के हाथो। पर मैं
हँसे जा रही थी। क्योंकि मैं जानती थी की मुझे चोदते-२ डोन को गाली दे ने की आदत सी हो चुकी थी। वो अक्सर दस
ू री
टीचर्स को भी गाली दे कर चोदता था और ज्यादातर औरते गन्दी गालियाँ सुनकर खुश ही होती है । ये तो मैंने नोट किया ही
था हर बार।

और यही हाल कोमल का भी था। पहले तो वो हे रानी से लंड को चूसते-२ उसकी गालियों को सुनकर बुरा सा मुंह बना रही
थी। पर फिर उसके चेहरे के एक्सप्रेशन बदलने लगे और उसके चेहरे पर एक अजीब सा इरोटिकपन आने लगा। उसने अपने
मुंह से उसके लंड को बाहर निकाला और फिर उसके लंड को किसी डंडे की तरह से अपने चेहरे पर मारने लगी। फिर अपनी
जीभ को लम्बा किया और अपनी हथेली से जीभ पर लगी हुई थक
ू को इकठ्ठा किया और डोन के लंड के ऊपर मलने लगी।
उसकी तो हालत ही खराब हो गयी। इतनी सुन्दर लड़की से अपने लंड की मालिश इस तरह से करवाकर। डोन ने उसके मुंह
को जबरदस्ती पकड़ा और अपना लंड वापिस उसके मुंह के अन्दर डाल दिया। दीपा की जीभ भी मेरी चूत के अन्दर जाकर
धमाल मचा रही थी। मेरा ओर्गास्म बनने लगा था। मैंने उसके चेहरे को किसी गाजर की तरह से अपने हाथो में पकड़ा और
उसे अपनी चूत पर जोरो से घिसने लगी। और जोरो से चीखने भी लगी।

हाय… मर्रर्र गयी म्मम्म… दीपा चूस कमिनी, साली, हरामखोर।

दीपा भी मेरी सेक्स स्लेव बनकर खुश थी। और उसकी ख़ुशी उसके चूसने द्वारा पता चल रही थी। मेरे अन्दर का लावा
एकदम से फूटा और दीपा के चेहरे को पूरी तरह से भिगो दिया। वो शायद इसके लिए तैयार नहीं थी। पर फिर भी वो संभली
और मेरे परू े रसीले पानी को पीकर अपनी प्यास बझ
ु ाने लगी। और दस
ू री तरफ डोन की गालिया और चीखे भी अपने परवान
पर थी।

ओह्ह्ह… भेन की चूत तेरी, साली रं डी की तरह चुस्ती है तू तो। अह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… कुतिया तझ
ु े तो बीच केम्पस में चोदं ग
ु ा
एक दिन। अह्ह्ह्ह… साली रं डी। और ये कहते-२ उसके सफ़ेद जल का फव्वारा निकलकर कोमल के मुंह में गिरने लगा। और
वो भी किसी रं डी की तरह सारा माल खाकर अपना पेट भरने लगी। और फिर जब डोन का लंड सिकुड़कर छोटा होकर लटक
गया,

वो धीरे से उसके लंड को चुस्ती हुई कोमल से बोला: अब छोड़ दो मेडम… मैं कर लँ ग
ू ा बाकी का साफ़।

उसकी बदली हुई जबान को दे खकर, कोमल फिर से हे रानी से उसकी तरफ दे खने लगी। मैंने ही डोन को आज किसी को भी
चोदने से मना किया था। मैं अपने रूम में किसी कंु वारी लड़की को चुदवा कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

मैंने कोमल से कहा: ये ऐसा ही है कोमल। जब तक ये नंगा होकर हमारे सामने है , ये एक मर्द है और हम सब इसकी
गुलाम। नहीं तो ये वोही है एक नौकर, हमारा गुलाम। बाहर भी अगर ये तुम्हे दे ख लेगा तो नजरे नीचे करके निकल जाएगा,

40
समझी न। इसलिए इससे डरने की कोई जरुरत नहीं है । और इसके परू े मजे तुम दोनों को जल्दी ही मिलेंगे। अगर तुम दोनों
मेरे कहे अनुसार चलती रही तो।

वो दोनों उठकर सामने आ गयी। डोन कपडे ठीक करके बाहर निकल गया।

मैंने भी अपने कपडे ठीक किये और उनसे कहा: दे खो… मैं जानती हूँ की इस वक़्त तुम्हारा क्या हाल है अन्दर से। तुम दोनों
ने हम दोनों को तो सेटिसफाय कर दिया। पर तम
ु दोनों अधरू ी रह गयी। पर इसका जल्दी ही मैं इलाज कर दं ग
ू ी। अब सन
ु ो
मेरी प्लानिंग। और फिर मैंने उन्हें अगले दिन क्या करना है और कैसे करना है , ये सब बताया। जिसे सुनकर वो दोनों
भोचक्की सी होकर मुझे दे खने लगी। पर मेरे आश्वासन दे ने के बाद वो दोनों शांत हुई और फिर दोनों अपने-२ घर की तरफ
चल दी।

मैंने भी अपना डेस्क समेटा और मैं भी चल दी अपने घर की तरफ।

अब आगे की कहानी दीपा के नजरिये से। क्रमशः 38

दीपा
*****

आज मेडम के कमरे में जो मजा मिला था। या ये कहलो की नहीं मिला था, उसे पाकर एक बात तो साफ़ थी की मझ
ु े और
कोमल को आगे काफी मजा आने वाला था। पर जो प्लान मेडम ने हमें आगे के लिए बताया था, मुझे वो सुनकर काफी
आश्चर्य हुआ था, क्योंकि उसमे थोडा बहुत रिस्क तो था ही। पर जब कॉलेज की वाईस प्रिंसिपल हमारे साथ है तो डर काहे
का।

मैंने कोमल को घर छोड़ा और फिर अपने घर की तरफ चल दी। घर पर आते ही मैंने अपना बैग एक तरफ फेंका और सीधा
अपने कमरे में चली गयी। मैंने अपनी टी शर्ट उतर दी और सिर्फ ब्रा में ही अपने बेड पर लेट कर अपने बदन का पसीना
सुखाने लगी। तभी दरवाजा खुला और मम्मी अन्दर आई।

मम्मी: आरी दीप।ू ये क्या बेशर्मो की तरह कपडे उतार कर लेटी है । अब तू बच्ची नहीं रही।

मैंने मजाक भरे लहजे में कहा: क्या मम्मी। आपके लिए तो मैं बच्ची ही हूँ न।

मम्मी: दे ख बेटा, अब तू जवान हो गयी है , कॉलेज जाने लगी है । कैसे कपडे पहनने है , कैसे घर पर रहना है , सब दे खकर
किया कर।

मैं: पर मम्मी, घर पर तो सिर्फ डोल्ली, आप और पापा ही है , घर वालो से क्या शर्म।

मम्मी (गुस्से में ): तो ये भी उतार दे न। इसे क्यों पहना हुआ है ।

मैंने उन्हें डराने के लिए अपनी ब्रा को खोलने के लिए अपने हाथ पीछे किये तो उन्होंने झट से मेरे हाथ पकड़ लिए।

मम्मी: हे राम… कितनी बेशरम हो गयी है तू। जरा भी लाज नहीं आती तुझे क्या…

तभी बाहर से पापा अन्दर आये और बोले: क्या बाते हो रही है माँ-बेटी में … बाहर का दरवाजा भी खोल कर रखा था।

पापा को कमरे में आता दे खकर मैं झट से मम्मी के पीछे छुप गयी।

मम्मी: ओहो… आप ऊपर क्यों आये। चलो नीचे, मैं आती हूँ।

और वो पापा को अपनी नजरो से नीचे जाने को कहने लगी। पापा को भी शायद मालुम चल गया था की मैंने अपना टॉप
नहीं पहना हुआ है , मेरे नंगे कंधे जिनपर सिर्फ ब्रा के स्ट्रे प दिख रहे थे, वो उन्हें साफ़ दिख रहे थे। पापा ने आखिरी बार मेरी
तरफ प्यासी नजरो से दे खा और बाहर निकल गए।

41
पापा के जाते ही मम्मी मुझपर चिल्लाई: दे खा… इसीलिए मैं तझ
ु से कह रही थी। चल अब जल्दी से कपडे पहन ले।

मम्मी की डांट का मुझपर कोई ख़ास असर नहीं हुआ, उनके जाते ही मैंने अपने बचे - खुचे पकडे भी उतार कर फेंक दिए।
और नंगी होकर अपनी आँखे बंद की और अपनी एक ऊँगली अपनी पानी छोड़ रही चूत में डालकर हिलाने लगी। तभी
दरवाजा खल
ु ा और पापा अन्दर आ गए। पापा को अपने कमरे में दोबारा दे खकर मैं है रान रह गयी 

मैं: अरे पापा आप… अभी तो आप नीचे गए थे मम्मी के साथ।

पापा: मैंने तेरी मम्मी को बाहर भेज दिया है , सामने वाले माल में सेल लगी है , मैंने उसे दस हजार रुपए दिए हैं। वो अब एक
घंटे से पहले नहीं आएगी।

पापा अपनी भख
ू ी नजरो से मझ
ु े घरू े जा रहे थे। तब मझ
ु े एहसास हुआ की मैं नंगी हूँ। मैंने अपना पिल्लो उठाया और अपने
सीने से लगा लिया।

पापा: अरे बेटा, मुझसे क्या शर्म। मैंने तो तुझे बचपन में काफी बार नंगा दे खा है । नहलाया है । बस अब तू थोड़ी बड़ी हो गयी
है । पर है तो मेरी बेटी ही न। चल इधर आ… आज पापा-बेटी मिलकर दोबारा नहायेंगे।

मैं उनकी खुली बात सुनकर हे रानी से उन्हें दे खे जा रही थी। और मेरे दे खते-२ ही उन्होंने अपने कपडे उतार फेंके और नंगे
होकर मेरे सामने खड़े हो गए। उनके खड़े हुए लंड को दे खकर मेरे सामने डोन का लंड घम
ु ने लगा, ठीक वैसा ही था, मैं उसे
दे खकर सम्मोहित सी हो गयी और मेरे हाथ से पिल्लो छूतकर अलग हो गया। पापा के सामने मैं नंगी बैठी थी। पापा धीरे से
आये और मुझे अपनी बाहों में उठा लिया। और बाथरूम में ले गए। मेरे कुल्हों पर उनके तने हुए लंड का स्पर्श मुझे साफ़
महसस
ू हो रहा था। पापा ने मझ
ु े बाथरूम में लेजाकर कमोड को बंद करके उसपर बिठा दिया। और खद
ु मेरे सामने पंजो के
बल बैठ गए।

पापा: वाह… मेरी बिटिया। कितनी सुन्दर हो गयी है । जवान हो गयी है तू तो परू ी तरह। और वो मेरी ब्रेस्ट को अपने हाथो में
लेकर धीरे -२ दबाने लगे। और फिर उन्होंने मेरी जांघो को चोडा किया और मेरी सफाचट चूत पर अपनी खुरदरु ी जीभ
लगाकर वहां की मलाई चाटने लगे।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह पापा म्मम्मम… ओह्ह्ह्हह्ह पापा… इतने दिनों से आपके बारे मे सोचकर मैंने अपनी चत
ू में न जाने कितनी
बार घिसाई की। अह्ह्ह्ह… आपको अपनी बेटी के दिल की बात समझने में इतना टाईम लगा। अह्ह्ह्ह… पता नहीं था की
आपकी बेटी कितनी तड़प रही है । क्यों नहीं पहले आकर किया ये सब। अह्ह्ह्ह… आज तो मुझे अपने इस मोटे लंड के झूले
झल
ु ा दो पापा। प्लीस पापा, प्लीस…

और फिर मैंने पापा के मंह


ु को बड़ी मश्कि
ु ल से अपनी चत
ू से परे किया और उन्हें अपनी वाली जगह पर बिठाया। और मैंने
उठकर शोवर ओन किया और उसका मुंह कमोड की तरफ कर दिया। और फिर जल्दी से पापा के पास गयी और उनकी
टांगो के दोनों तरफ अपनी टाँगे की और उनके लंड के ऊपर बैठती चली गयी।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… पापा ओफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़…

मेरी चूत से गर्म खन


ू का फव्वारा निकल कर उनके लंड का अभिषेक करने लगा और ऊपर से आ रही शावर की बोछार हमें
भिगो रही थी। मैंने पापा के लंड को पूरी तरह से अपनी चूत में जगह दे डाली और जल्दी ही दर्द ख़त्म होने के बाद मैं उसपर
उछलने लगी।

अह्ह्ह पापा… ओह्ह्ह्ह पापा… म्मम्मम मजा आया गया पापा… क्यों नहीं चोदा अपनी बेटी को पहले। अह्ह्हह्ह… पापा
मेरी चूत से रस की बोछार निकल पड़ी और उनके लंड को भिगोने लगी और तभी दरवाजे पर मम्मी के थपथपाने की
आवाज आई। दीपू… दीपू चल जल्दी से नीचे आ। पापा बुला रहे हैं, आकर चाय पी ले।

42
ओह्ह्ह शिट्ट sss… मैं सपना दे ख रही थी। मैंने आँखे खोली तो मैं नंगी पड़ी थी अपने बिस्तर पर और मेरी चूत से निकला
हुआ ढे र सारा रस नीचे था।

मम्मी-पापा के जाने के बाद अच्छा हुआ मैंने दरवाजा बंद कर दिया। वर्ना मम्मी अन्दर आ जाती और मुझे नंगा लेटे हुए
मठ
ु मारते दे ख लेती और शायद पापा के बारे में निकल रहे शब्द भी सन
ु लेती। मैं जल्दी से उठी और बाथरूम में जाकर फ्रेश
हो गयी। और कपडे पहन कर नीचे आ गयी।

पापा सोफे पर बैठे थे। मैं उनके सामने जाकर बैठ गयी। मम्मी ने हमें चाय दी और खुद चाय लेकर किचन में जाकर पीने
लगी और दस
ु रे काम भी करने लगी।

पापा मुझे ही घूरते जा रहे थे।

मैं भी चाय पीते हुए सोच रही थी की जैसा हमारी कॉलेज की मेडम का प्लान है , उसके अनुसार मेरी वर्जिनिटी तो वैसे भी
जाने वाली है । क्यों न ये गिफ्ट पापा को दिया जाए। ताकि वो भी परू ी उम्र ये सब याद रखे और मुझे भी एक्स्पेरियस इंसान
के हाथो चुदने में तकलीफ न हो।

पर जो भी करना है जल्दी ही करना है । मैंने सोच लिया। आज रात को ही करना है । क्रमशः41

मैंने मन में ही एक प्लान बनाया और फिर मैंने किचन में काम कर रही मम्मी से कहा: मम्मी… आज से हमारी इकोनोमिक
की क्लास शरू
ु हो गयी है , बड़ा ही मश्कि
ु ल सब्जेक्ट है । मैं सोच रही थी की उसके लिए अलग से टयश
ू न ले ल।ू

मम्मी ने मुझे घूम कर दे खा और पूछा: तुझे कब से टयूशन की जरुरत पड़ने लगी। और वैसे भी तेरा कॉलेज तो अभी शुरू ही
हुआ है , एग्जाम आने में तो काफी टाईम है , पहले भी तो तेरे पापा तुझे पढ़ा दिया करते थे, अभी भी पढ़ा दें गे, तू अपने पापा
से समझ ले जो परे शानी है , अगर जरुरी हुआ तो एग्जाम के आस-पास टयूशन लगवा लेना। पापा भी मम्मी की बात सुनकर
खश
ु हो गए थे। मैंने फिर पापा से अपने सब्जेक्ट के बारे में मश्कि
ु ल-२ सवाल पछ
ू ने शरू
ु कर दिए।

पापा: बेटा, ऐसे बताना मुश्किल है , तू अपनी बुक लेकर आजा, मैं उसमे से दे खकर तझ
ु े समझाता हूँ। पापा तो शुरू से ही
एकाउं ट्स डिपार्टमें ट में रहे हैं, उनके लिए ये सब्जेक्ट काफी आसान था, इसलिए मैंने जान बझ
ु कर इकोनोमिक्स सब्जेक्ट
के बारे में ही बात की थी।

मैं: पापा, आप मेरे रूम में ही चलो न, वहीँ बैठते हैं।

पापा: ठीक है , तुम चलो, मैं चें ज करके आता हूँ।

मैं भागकर अपने कमरे में चली गयी, और मैंने भी जल्दी से अपनी अलमारी खोली और उसमे से एक शोर्ट निक्कर निकाल
कर अपनी टी शर्ट के नीचे पहन ली। उस शोर्ट निक्कर में मेरी जांघे बड़ी ही मुश्किल से फंस कर आ रही थी, और मेरी चूत
की शेप दरू से ताज महल जैसी दिखाई दे ती थी। ये टाईट निक्कर मैं अक्सर सोते हुए ही पहनती थी।

थोड़ी ही दे र में पापा ने दरवाजा खटकाया और वो अन्दर आ गए, पापा ने मुझे इस निक्कर में पहली बार दे खा था, इसलिए
थोड़ी दे र तक तो उनकी नजरे मेरी मांसल जांघो पर जम कर ही रह गयी। वो दरवाजे पर खड़े रहे और मैं भी कमरे में इधर
उधर घूम कर, और झुक कर उन्हें अपनी टांगो और निक्कर में फंसी गांड के दर्शन करवाती रही और अंत में उन्हें बेड के
ऊपर बैठने को कहा और मैं खद
ु ऊपर चड़कर अपनी बक्
ु स खोलकर बैठ गयी। पापा ने भी अपना नाईट पायजामा और टी
शर्ट पहन लिया था।

मैं थोड़ी दे र तक तो उन्हें अपनी बुक्स से रिलेटिड प्रश्न पूछती रही और फिर अपनी योजना के अनुसार मैं एकदम से चिल्ला
पड़ी और अपनी जांघ को मलने लगी। अपने प्लान के अनुसार मैंने अपने लम्बे नेल्स का इस्तेमाल करके अपनी जांघो पर
हलकी सी चट
ु की काटी, जिसकी वजह से वहां का मांस लाल होकर चमकने लगा।

43
पापा: अरे दीपा, क्या हुआ…

मैंने अपनी जांघ के उस हिस्से को मलते हुए रुआंसी आवाज में कहा: पापा लगता है बेड पर चींटिया है । दे खो मुझे यहाँ काटा
है । और मैंने अपनी जांघ का लाल हिस्सा पापा को दिखाया। पापा थोडा आगे झुके और मेरी जांघ के ऊपर बने निशान को
करीब से दे खने लगे।

उनकी नजरे मेरी नग्न टांगो पर घम


ू रही थी, जिनपर एक भी बाल नहीं था, और उसके बिलकुल ऊपर की तरफ, निक्कर में
फंसी हुई मेरी चूत की शेप उन्हें साफ़ नजर आ रही थी, क्योंकि मैंने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी। वो जब तक मेरी जांघ
को घूरने में लगे थे, मैंने एक और चुटकी काटी अपनी दस
ू री जांघ पर, और इस बार और भी ऊपर, बिलकुल चूत के पास।
और फिर से धीरे से चीखी।

मैं: पापा, दे खो न… यहाँ भी काटा है ।

पापा ने जब दस
ू री टांग के बिलकुल उपरी हिस्से पर वैसा ही लाल निशान दे खा तो मुझे जल्दी से खड़ा किया और बेड की
चादर को झाड़ने लगे।

पापा: लगता है , तम्


ु हारे बेड पर लाल चींटिया चढ़ गयी हैं। और फिर दोबारा चादर को बिछाने के बाद उन्होंने फिर से मेरी
जांघ वाले हिस्से को करीब से दे खा। फिर उन्होंने अपनी खरु दरु ी उँ गलियाँ वहां पर फिरना शुरू कर दिया। और मुझसे पूछा:
दर्द हो रहा है क्या…

मैं उनकी उँ गलियों की थिरकन पाकर मचल सी उठी। और धीरे से बोली: दर्द तो नहीं, पर जलन हो रही है ।

पापा: ओहो… एक मिनट रुको। और वो दोड़कर गए और बाथरूम से नारियल के तेल की शीशी निकाल कर ले आये।

पापा: मैं इसकी मालिश कर दे ता हूँ, जलन चली जायेगी, तुम्हारी सारी।

वो इस तरह से कह रहे थे मानो मेरी चूत की जलन को मिटने के लिए अपने लंड पर वो तेल लगाकर मालिश करें गे। मैं बेड
पर आधी लेट गयी और उन्होंने अपनी हथेली पर तेल निकाल कर मेरी जांघ के उसी हिस्से पर लगाना शुरू कर दिया।
नारियल का ठं डा तेल मेरे शरीर में झरु झरु ी पैदा करने लगा। मैं अपने एक पैर को दस
ु रे पैर के ऊपर रखकर उसे मसलने
लगी। मेरी आँखे बंद सी होने लगी। और मेरे मुंह से एक सिसकारी सी निकल गयी। पापा ने मेरे चेहरे को दे खा और फिर
दस
ू री जांघ पर भी तेल लगाने लगे।

पापा को शायद विशवास होने लगा था की आज कुछ ज्यादा होने के चांस है , पर मम्मी के आने का भी डर था। उन्होंने उठ
कर दरवाजे की कुण्डी लगा दी। मैं आँखे बंद किये हुए लेटी रही। पापा फिर से मेरे करीब आये, और जांघ वाले हिस्से को
मलने लगे, इस बार वो थोडा बेढंगेपन से मल रहे थे, और उनकी उँ गलियाँ मेरी चूत वाले हिस्से को टच भी कर रही थी। मैंने
कुछ नहीं कहा। मालिश करते-२ उनकी एक ऊँगली मेरी निक्कर के अन्दर भी चली गयी। मेरा कलेजा धक् से रह गया। और
फिर उन्होंने अपनी ऊँगली बाहर निकाल ली।

मैंने सोच लिया की ऐसे करते-२ तो पता नहीं कितना टाईम निकल जायेगा, मम्मी के आने का भी डर था। मझ
ु े ही कुछ
करना होगा। मैंने एकदम से अपने चुत के ऊपर हाथ फिराया और पापा से बोली: पापा… पापा एक और चींटी, मेरी निक्कर
में है । ये दे खो…

मैंने अपनी चूत के साईड वाला हिस्सा अपनी हाथ में पकड़ा और पापा से बोली। पापा थोड़ी दे र तक मुझे दे खते रहे और फिर
धीरे से बोले: रुको… मैं निकालता हूँ इसे। मैंने अपना हाथ हटा लिया। और पापा ने एकदम से मेरी निक्कर को नीचे खींच
दिया, जिसकी मुझे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी। मेरी सफाचट चूत उनके सामने थी। मैं डरे हुए भाव से उन्हें दे ख रही थी।
पापा ने मेरी आँखों में दे खकर धीरे से कहा: तुम्हे चींटी यहाँ नहीं, यहाँ काट रही है । है न…

44
उन्होंने अपना हाथ मेरी जांघ से हटा कर धीरे से मेरी गीली चूत के ऊपर रख दिया। मेरा दिल जोर-२ से धड़कने लगा। इतना
रोमांच मैंने आज तक महसूस नहीं किया था। जब राजपूत के साथ कार में थी तब भी नहीं और मेडम के रूम में डोन के लंड
को चूसा था, तब भी नहीं।

पापा की मोटी ऊँगली मेरी चत


ू के अन्दर तक घस
ु ती चली गयी। मेरा मंह
ु खल
ु गया और मेरे होंठ अकड़ कर सख
ु गए। पापा
को मैं अपने जाल में फंसा कर सब कुछ करवाना चाहती थी, पर पापा ने तो मुझे ही अपने हाथो का कमाल दिखा कर अपने
बस में कर लिया था। लेकिन पापा को नीचे काम कर रही मम्मी की चिंता हो रही थी।

वो मुझसे धीरे से बोले: सुनो दीपा… मैं मम्मी को दे ख कर आता हूँ, और फिर तुम्हारी जलन का कुछ उपाय करता हूँ आकर।
ठीक है ।

मैंने हाँ में सर हिलाया।

पापा जल्दी से उठे और बाहर निकल गए। मैं भी उठ कर दरवाजे तक आई और नीचे मम्मी-पापा की बाते सुनने लगी। मेरी
निक्कर अभी भी मेरी चूत को बेपर्दा करके नीचे फंसी हुई थी।

पापा: अरे ये डोली अभी तक नहीं आई।

मम्मी: वो अपनी फ्रेंड के घर गयी है , उसका बर्थडे है । मैंने शाम को तो बताया था आपको।

पापा: अरे हाँ… ठीक है ।

मम्मी: पड़ा दिया उसे…

पापा: अरे कहाँ… हर थोड़ी दे र में मेरा मोबाईल बजने लगता है । बस बात करता हुआ नीचे आ गया। अभी जा रहा हूँ वापिस।
सच में उसकी पढाई काफी मश्कि
ु ल है । पर थोडा टाईम मझ
ु े निकलना पड़ेगा। तो टयश
ू न के बिना भी काम चल जाएगा।

मम्मी: सही कहा आपने, आप ही पड़ा दिया करो फिर तो। जवान लड़की है , बाहर जाकर कैसे लोग मिले, क्या पता। आप ही
पड़ा दिया करो इसे। अब ऊपर जाओ और अपना फोन यही रख दो। एक घंटे तक मन लगा कर पड़ा दो उसे। ठीक है ।

पापा: ओके… मैं जाता हूँ फिर ऊपर। एक घंटे बाद आयेंगे हम नीचे, तब तक तम
ु डिनर भी तैयार कर लो। ये कहते हुए पापा
ऊपर आ गए। मम्मी को पूरी तरह से सेट करने के बाद। मैं भागकर वापिस अपनी जगह पर लेट गयी। मेरी निक्कर अभी
भी नीचे ही थी। पापा अन्दर आये आर उन्होंने दरवाजा फिर से बंद कर दिया। मेरी तरफ आते हुए उनके लंड का तम्बू मुझे
साफ़ दिख रहा था।

पापा फिर से मेरे पास आकर बैठ गए। कुछ दे र तक न वो कुछ बोले और न ही मैं। वो मेरी जांघो पर हाथ फेरते रहे । और
उन्होंने मेरी निक्कर को धीरे से निकाल कर मुझे नीचे से नंगा कर दिया।

पापा: आज मैं तुम्हारी जलन को शांत कर ही दं ग


ू ा।

फिर उन्होंने मेरी दोनों जांघो को अपने हाथो से फेलाया, और अपना मुंह नीचे करके मेरी जांघ के उस हिस्से के ऊपर अपनी
जीभ लगा दी जहाँ उस "चींटी" ने काटा था। वो अपनी जीभ के गीलेपन से मेरी "जलन" को बुझाने लगे। ये जलन तो जीभ
के गीलेपन से ठीक हो जायेगी। पर चत
ू के अन्दर जो जलन है , उसके लिए उन्हें कुछ और तरीका निकालना पड़ेगा। वो मेरी
जांघो को चाटते हुए ऊपर तक आये और गहरी सांस लेती हुई चूत के ऊपर अपना मुंह लगा दिया। मेरा शरीर हवा में उठ
गया। अपनी एड़ियो और कंधो के बल पर मेरा शरीर किसी कमान की तरह से बन गया। पापा ने मेरी गांड के ऊपर अपने
हाथ रखे और जोर से अपना मंह
ु मेरी चत
ू के अन्दर डालकर मेरी रसीली चत
ू का रस चस
ू ने लगे। ओह्ह्ह पापा… मम्मम…
यहाँ तो और भी ज्यादा जलन हो रही है । अह्ह्हह्ह…

पापा: बस बेटा, पापा है न… अपनी बेटी की सारी जलन मिटा कर रहें गे। और फिर पापा ने अपनी जीभ से मेरी चूत के अन्दर
जाकर इतना गीलापन फैला दिया की अब उनकी जीभ के अलावा कुछ और लेने का मन करने लगा।
45
मैं: ओह्ह्ह पापा और अन्दर डालो न। अन्दर और भी जलन है ।

पापा: मेरी जीभ और अन्दर नहीं जा रही बेटा। क्या करूँ…

मैंने पैर उनके लंड के ऊपर रख दिए और बोली: ये जो है न, इसे युस करो पापा। ये काफी अन्दर तक जा सकता है ।

पापा: आर यु श्योर…

मैंने पापा के लंड के ऊपर अपने पैर के पंजे का दबाव डाला और बोली: येस पापा… आई एम ् श्योर।

पापा का पायजामा लास्टिक वाला था, मैंने पैरो में फंसा कर उसे नीचे कर दिया। पापा का काले रं ग का लंड स्प्रिंग की तरह
उछल कर बाहर निकल आया। मैंने अपनी टी शर्ट को अपने सर से घुमा कर उतार दिया। मेरी मोटी ब्रेस्ट उनकी आँखों के
सामने झूल गयी।

मैं: पापा जल्दी करो। हमारे पास सिर्फ एक घंटे का टाईम है और अब सिर्फ चालीस मिनट ही बचे हैं।

पापा मुझे हे रानी से दे खने लगे। वो समझ गए की मैं छुपकर उनकी बाते सुन रही थी। मैंने पापा की बेक पर अपने पैरो का
दबाव बनाया और उन्हें अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। और जैसे ही उनका लंड मेरी चूत से टकराया, मेरे मुंह से आह
सी निकल गयी।

पापा ने मेरी चत
ू के ऊपर लंड को फिक्स किया और धीरे -२ अपना दबाव मेरे ऊपर डालने लगे। जैसे-२ उनका लंड अन्दर जा
रहा था, मेरी आँखे चोडी होती जा रही थी। और जैसे ही उनके लंड ने मेरी चूत की झिल्ली को टच किया, मैंने पापा के चेहरे
को पकड़ा और उनके होंठो को चूसने लगी। क्योंकि मुझे मालुम था की मैं अब चीख पडूँगी। और हुआ भी ऐसा ही। पर मेरी
चीख पापा के मंह
ु में घट
ु कर रह गयी। पापा के लंड ने मेरी चत
ू की बौन्डरी क्रोस कर ली थी। और मेरी चत
ू से खन
ू निकलकर
बाहर की तरफ आने लगा।

मैंने पापा की कमर के ऊपर अपने पैरो से केंची बनाकर उन्हें परू ी तरह से बाँध लिया था। जब पापा के लंड ने एक डुबकी परू ी
तरह से मेरी चूत के अन्दर तक लगा ली तो मेरा दर्द कुछ कम हुआ, मैंने पापा के होंठो को चूसना छोड़ा और उन्हें खुलकर
चत
ू मारने का स्पेस दिया। पापा ने अपने दोनों हाथो से मेरी ब्रेस्ट को पकड़ा और दे दना-दन धक्के मारने शरू
ु कर दिए।
उनके हर धक्के से मुझे बड़ा ही मजा आ रहा था। अब मुझे मालुम चला की लोग चुदाई इतने मजे से क्यों करवाते हैं।
थोड़ी दे र बाद पापा नीचे आ गए और मुझे अपने ऊपर बिठा लिया। मैंने अपने बाल बाँधने के लिए हाथ पीछे किये तो मेरी
ब्रेस्ट तन कर परू ी तरह से आगे निकल आई,

पापा ने अपने लम्बे हाथो से मेरी ब्रेस्ट पकड़ी और लम्बे लंड से मेरी चत
ू के अन्दर धक्के मारने शरू
ु कर दिए। मेरा स्टे यरिंग
पकड़ कर उन्होंने जो रे स शुरू की थी, मैंने अपनी चूत का स्क्स्सलेटर उनके लंड के ऊपर दबा कर अपनी कार को और तेजी
से दोड़ाना शुरू कर दिया। और जब मुझे लगा की मेरी चूत से कुछ निकलने वाला है तो मैंने पापा को उठाया और उनके चेहरे
को अपनी गर्दन पर दबा कर अपने हाथो और पैरो को उनके शरीर के चारो तरफ लपेट दिया। और धीरे से चीखने लगी।
आह्ह्ह्हह्ह पापा यु आर ग्रेट। अह्ह्ह्हह्ह पापा फास्ट, फास्ट, फास्ट अह्ह्हह्ह…

पापा ने मुझे गोद में बिठा कर अपने लंड से धक्के मारने शुरू किये तो मेरे शरीर का अस्थि पंजर हिल गया। और फिर उनके
लंड से रस की पिचकारियाँ निकल-२ कर मेरी चूत के अन्दर जाने लगी। और मेरी चूत का रस उनके लंड के ऊपर गिरने
लगा। मेरी सारी "जलन" पापा के लंड से निकले "रस" ने मिटा दी थी। पापा ने मुझे बेड पर लिटाया और पास पड़े हुए एक
कपडे से अपना लंड और मेरी चूत साफ़ की और अपने कपडे पहनने लगे।

मैंने पापा को दे खा और एक अंगडाई लेते हुए कहा: पापा अभी एक घंटा पूरा होने में बीस मिनट है ।

पापा ने हँसते हुए मुझे दे खा और अपने कपडे नीचे फेंक कर फिर से मेरे बेड पर कूद गए। और इस बार जो घमासान उन्होंने
मचाया, उसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी। एक घंटा पूरा होते-२ हम दोनों दस
ू री बार भी झड चुके थे। पापा ने अपने कपडे पहने

46
और नीचे चले गए, मैं नंगी ही उठी और बाथरूम में जाकर नहाने लगी और अपनी चूत से निकल रहे पापा के रस को अपनी
उँ गलियों में इकठ्ठा कर करके अपने शरीर के ऊपर उसका लेप करती रही।

बाहर आकर मैंने सब से पहले कोमल को ये बात फोन पर बताई। उसे तो विशवास ही नहीं हुआ। पर फिर वो भी बड़ी खुश
हुई। मैंने लगभग आधे घंटे तक उसे परू ी कहानी नमक मिर्च लगा कर सन
ु ाई। जिसे सन
ु ते-२ उसने भी अपने भाई से चद
ु ने
का निश्चय कर लिया। क्रमशः 44

======

कोमल 
======

कोमल ने थरथराते हुए हाथो से फ़ोन टे बल पर वापिस रखा, उसे तो विशवास ही नहीं हुआ की उसकी सहे ली दीपा ने अपने
ही पापा से पहली बार चद
ु वा कर अपने कंु वारे पन से छुटकारा पा लिया है । उसने अपनी चत
ू के ऊपर हाथ रखा, और मन ही
मन बुदबुदाई "मुझे भी इस कंु वारे पन के बोझ से जल्द ही छुटकारा पाना होगा।”

उसकी आँखों के सामने दीपा की चुदाई की तस्वीरे किसी मूवी की तरह से घुमने लगी, ऐसा लग रहा था मानो सारा कुछ
उसकी आँखों के सामने ही हो रहा है , वो शुन्य में दे खे जा रही थी और अपनी चूत के ऊपर अपनी नाजुक उं गलियों को बड़ी
ही बेरहमी से घिस रही थी। उसके मन में भी कई बार दीपा के पापा राज को दे खकर गंदे ख्याल आये थे, आये भी क्यों न, वो
इस उम्र में भी इतने हैंडसम जो लगते थे, राज अंकल के लंड के बारे में सोचते ही उसकी चूत की दीवारों में सीलन सी आने
लगी। उसने अपनी उं गलियो की थिरकन रोकी क्योंकि वो अपने पायजामे को गीला नहीं करना चाहती थी। राज अंकल से
चुदना अभी तो मुमकिन नहीं है , इसलिए उसे अपने भाई आशुतोष के साथ ही कुछ करना होगा, पर कैसे…

क्योंकि पिछली बार जब उसने अपनी भाई की तरफ का दरवाजा खोल दिया था तो उसके बाद उसने अपनी तरफ से कोई भी
हरकत ऐसी नहीं की थी जिससे पता चल सके की उसके मन में भी अपनी बहन के लिए कुछ है । पर जैसा उसका शर्मीला
स्वभाव है , उसके अनुसार तो वो कभी भी पहल नहीं करे गा, इसलिए जो भी करना है , उसे ही करना होगा। मैंने टाईम दे खा,
अभी सात बजे थे, यानी उसका भाई जिम से आने ही वाला होगा, आते ही वो नहाने जाता है , और उसके बाद घंटो तक अपने
कम्प्यूटर के सामने बैठ कर न जाने क्या-२ करता रहता है ।

मेरे उसके दिमाग में एक प्लान आया, मैं भाग कर अपने भाई के रूम में गयी और उसका कम्प्यूटर ओन किया, आज
पहली बार मैं अपने भाई के पी सी को इस्तेमाल कर रही थी।

स्क्रीन खुलते के साथ ही मैंने सबसे पहले हिस्टरी को चेक किया, और जैसा मैंने सोचा था, उसके अन्दर लगभग हर दस
ू री
साईट पोर्न थी, और कुछ जिम और एक्स्सर्सयिज से रिलेटिड। मैंने एक साथ दो साईट खोल दी, एक में मैंने पोर्न और दस
ू री
में व्यायाम करने के तरीके वाली साईट खोली। मैंने पोर्न दे खनी शुरू की, उनमे दिखाई दे रहे मोटे ताजे लंड दे खकर तो मेरी
चूत के अन्दर गडगडाहट सी होने लगी, मन किया की काश इसमें से कोई हब्शी बाहर निकल आये और मेरी चूत का
ओम्लेट बना कर खा जाए।

दिल तेजी से धड़क रहा था, तभी मझ


ु े आशु के आने का एहसास हुआ, उसके स्पोर्ट्स शस
ू की आवाज जो ऊपर की तरफ
आती जा रही थी, मैंने जल्दी से वो पोर्न साईट बंद की और दस
ू री खुली हुई साईट जिसमे लडकियों को व्यायाम करने के
तरीके सिखाये जा रहे थे, उसे खोलकर दे खने लगी। तभी दरवाजा खुला और आशु अन्दर आया। मुझे अपने कम्प्यूटर पर
बैठ दे खकर वो एकदम से घबरा गया।

आशु: अरे दीदी, आप यहाँ। क्या…

47
मैं: भाई मेरा लेपटोप चार्ज नहीं है , दे ख न मैं दिन ब दिन मोटी होती जा रही हूँ, मैंने सोचा की एक्स्सर्सयीज करके अपने
शरीर का भारीपन कुछ कम किया जाए इसलिए मैं यहाँ आकर बैठ गयी। कोई प्रोब्लम है क्या… मैंने आखिरी शब्द थोड़े
रोबीले स्वर में कहा, तो वो थोडा डर सा गया।

आशु: अरे नहीं दीदी। पर ये क्या कर रही हो, ऐसे दे खकर भी कोई सीख सकता है क्या। आप कोई जिम क्यों नहीं ज्वाइन
कर लेती। वैसे दे खा जाए तो आप इतनी मोटी नहीं है । उसने एक सरसरी सी नजर मेरे बूब्स और फिर सारे शरीर पर डाली
और शरमा कर नीचे दे खने लगा।

मैं: क्या मोटी नहीं है । ये दे ख और ये भी दे ख…

मैंने अपनी कमर पर बने मांस के हलके से टुकड़े को हाथ में जबरदस्ती समेटा और उसे दिखाया। और फिर अपनी ब्रेस्ट के
चारों तरफ हाथ रखकर उन्हें भी हिलाया। मैंने ये सब इतनी जल्दी किया की उसे तो क्या मझ
ु े भी इसका एहसास नहीं हुआ।
मेरे खुलेपन को दे खकर उसका मुंह भी खुला का खुला रह गया।

मैं: यार एक काम कर, तू ही मुझे सिखा दे न, घर पर ही करके अपना वजन कण्ट्रोल करने की कोशिश करती हू, अगर होना
शुरू हो गया तो जिम भी जाने लगूंगी। ठीक है न।

आशु: जी… जी जैसा आपको ठीक लगे दीदी।

उसे शायद विशवास ही नहीं हो रहा था की उसे अपनी सेक्सी बहन को एक्स्सर्सयिज सिखाने को मिलेगी। मैंने पायजामे के
ऊपर एक ढीली सी टी शर्ट पहनी हुई थी। जिसे दे खकर वो धीरे से बोला: दीदी… आप थोड़े टाईट कपडे पहनो। ये कपडे हाथो
में अड़ेंगे।

मैं उसकी बात समझ गयी। मझ


ु े पता था की अब मझ
ु े क्या करना है । मैं भागकर अपने कमरे में गयी और एक परु ानी सी
स्पोर्ट्स वेस्ट निकाल कर ले आई, ये मैं अक्सर स्कूल में स्पोर्ट्स वाले दिन पहन कर जाती थी ताकि शर्ट के नीचे मेरे मोटे
मुम्मे हिलते हुए ज्यादा न दिखाई दे । मैंने पहना तो वो काफी टाईट थी, यानी पिछले साल के मुकाबले अब मेरे बब्ू स और
भी बड़े हो गए हैं।

मैंने अपनी ब्रा उतार दी, और फिर वो वेस्ट पहनी, इस बार थोड़ी फंस कर ही सही पर आ ही गयी, मेरे दोनों फल ऐसे लग रहे
थे मानो उन्हें गुब्बारे में लपेट कर किसी के सामने पेश कर रहे हो, और एक्स्सयीमें ट से मेरे दोनों दाने भी साफ़ चमक रहे
थे, पर जब मुझे आशु का लंड लेना है तो इतना बेशरम तो बनना ही पड़ेगा। मैं वापिस उसके कमरे में आ गयी, एक बार तो
वो भी मझ
ु े ऐसी ड्रेस में दे खकर है रान रह गया, और फिर मेरे मम्
ु मो के ऊपर चमकते हुए हीरे जैसे निप्पलस को दे खकर तो
वो पलके भी झपकाना भूल गया, पर मैं उसके सामने ऐसे पेश आ रही थी मानो सब नोर्मल है ।

मैं: चल बता फिर, क्या करू पहले…

आशु: वो… पहले थोडा वार्म अप कर लो दीदी।

मैं जानती थी की कमीना मेरी छातियों को ऊपर नीचे होते हुए दे खना चाहता है , वैसे मैं भी तो येही दिखाना चाहती थी उसे।
मैंने ऊपर नीचे उछलना शुरू कर दिया, अपने हाथो को भी मैं ऊपर तक ले जाती और एक हलकी सी ताली मारकर वापिस
ले आती।

मेरी स्ट्रे चेबल वेस्ट के अन्दर मेरे दोनों मुम्मे लगातार फिसल कर ऊपर की तरफ आते जा रहे थे, और जल्दी ही मुझे ये
एहसास हो गया की अब अगर मैं एक दो बार और कूदी तो मेरे निप्पलस बाहर की तरफ दिखाई दे ने लगें गे। मैं वहीँ रुक
गयी और अपने घुटनों पर हाथ रखकर हांफने लगी, मेरी बाहर निकल रही छातियाँ अपने सामने परोसे पाकर आशु की
हालत भी खराब सी होने लगी।

48
मेरी नजर सीधा उसके शोर्ट्स के अन्दर उधम मचा रहे लंड के ऊपर थी, जो अन्दर होने के बावजूद अपना एहसास साफ़
करा रहा था। उसे दे खकर मुझमे थोडा जोश आ गया, मुझे पता चल गया की आज कुछ होकर ही रहे गा। क्रमशः 46

मेरे माथे से पसीने की बूंदे निकल कर नीचे गिरने लगी।

आशु: अरे क्या हुआ। रुक क्यों गयी…

मैं: रुक यार… पहले ही दिन मैं इतनी दे र तक नहीं कर सकती। दे ख न मेरी हालत… मैंने अपनी उं गलियों को अपने शरीर की
तरफ किया।

मेरी मोटी ब्रेस्ट बाहर की तरफ निकल रही थी। जिनपर पसीने की बूंदे चमक रही थी। और वही पसीना बह कर मेरी टी शर्ट
को भी गीला कर रहा था। और मेरे चालबाज निप्पल भी खड़े होकर मेरी योजना के अनुसार भाई को फंसाने के लिए अपना
जलवा बिखेरते हुए, अपने वजद
ू का एहसास करवा रहे थे। आशु की हालत खराब होने लगी। मैं वहीँ नीचे लेट कर अपनी
साँसों पर काबू करने लगी।

मैं: आशु… तू मुझे पेट की एक्स्सरसाईज बता न। दे ख मेरे टायरस बनने लगे हैं अभी से। मैंने अपनी कमर के दोनों तरफ का
मांस अपने हाथ में पकड़ कर उसे दिखाया।

आशु भी मेरे साथ नीचे बैठ गया (शायद अपने खड़े हुए लंड को छुपाने के लिए भी) और मेरे हाथो को सर के नीचे रखकर,
मेरे पैरो को मोड़कर, मझ
ु े ऊपर नीचे होने को कहा। वो थोडा मश्कि
ु ल था, आशु मेरे सामने आकर बैठ गया और मेरे मड़
ु े हुए
घुटनों के दोनों तरफ अपनी टाँगे फैला दी, और मेरे घुटनों पर हाथ रखकर बैठ गया, अब उसका उफनता हुआ लंड मेरे पैरो
के ऊपर वाले हिस्से को टच करने लगा। और फिर उसने मुझे ऊपर होने के लिए कहा, मैंने अपने सर के पीछे हाथ रखे और
अपना शरीर ऊपर की तरफ किया।

मझ
ु े थोडा मश्कि
ु ल लगा तो आशु ने मेरे हाथ पकड़कर मझ
ु े अपनी तरफ खींचा। मैं फिर नीचे गयी और फिर उसने ऊपर
किया। ऐसा चार-पांच बार करने के बाद जब मैंने पाया की उसका चेहरा काफी आगे आ चुका है तो मैं एकदम से काफी आगे
तक किया और उसके चेहरे से मेरा सर टकरा गया। जो सीधा उसकी आँख पर लगा। मैंने ज्यादा तेज नहीं मारा था, पर
जितना लगा, वो दर्द पहूँचाने के लिए बहुत था। वो अपनी आँख पकड़ कर वहीँ बैठ गया।

मैं: ओहो… सॉरी भाई। मैंने जान बझ


ु कर नहीं किया। सोरी दिखा जरा, ज्यादा तेज लगा क्या…

आशु: नहीं दीदी… ज्यादा नहीं। पर आँख पर लगने की वजह से उसकी आँखों से पानी निकलने लगा था। मैंने उसे अपनी
गोद में लिटाया, और अपनी टी शर्ट के नीचे वाले हिस्से को ऊपर करके अपने मुंह तक लायी, उसपर अपने मुंह से गर्म हवा
की और आशु की आँख के ऊपर लगा दी, ऐसा मम्मी भी करती है , जब भी मुझे या आशु की आँख पर कुछ लगता है । मैंने
एक दो बार किया तो उसकी आँख खल
ु ने लगी, ज्यादा लगी तो नहीं थी, पर फिर भी वो नाटकबाज मेरी गोद में पड़े रहने के
लालच में बोले जा रहा था की अभी भी दर्द हो रहा है ।

मेरी टी शर्ट के नीचे से मेरा गोरा पेट उसके चेहरे के सामने था, जिसमे से मेरे पसीने की गंध सीधा उसके चेहरे पर पड़ रही
थी। और मैंने सुना था की लडकियों के पसीने की गंध से कई लड़के उत्तेजित महसूस करते हैं। और शायद यही असर आशु
के ऊपर भी हो रहा था। उसके लंड वाले हिस्से पर जब मेरी नजर गयी तो वहां का क़ुतब
ु मीनार दे खकर मेरे मंह
ु में तो पानी
ही आ गया।

मैंने अपनी टी शर्ट को थोडा और ऊपर किया।, जिसकी वजह से अब उसे नीचे लेटे होने पर मेरे मुम्मो की गोलाइया भी
दिखाई दे ने लगी थी। मैंने जान बझ
ु कर अपनी टी शर्ट को अपने होंठो पर ज्यादा दे र तक लगाया और हवा भरती रही, ताकि
उसे मेरे अन्दर का नजारा ज्यादा दे र तक दिखाई दे ।

मैं: अब कैसा लग रहा है तुझे…

49
आशु: ठीक है दीदी अब। बस आँख खुल नहीं रही अब तक।

मैं: अच्छा जी… तो फिर मेरी टी शर्ट के अन्दर क्या तांक-झाँक कर रहा है तू। मैंने सीधा हमला किया उसपर।

वो घबरा गया।

आशु: नहीं दीदी… मैं क्यों दे खग


ंू ा आपकी टी शर्ट के अन्दर। आप तो… आप तो मेरी बहन हो।

मैं: बहन हूँ तो फिर मझ


ु े दे खकर तेरा ये हाल क्यों हो रहा है । बोल… मैंने उसके खड़े हुए लंड की तरफ इशारा किया।

आशु: वो… वो दीदी आप बुरा मत मानो। पर आपके इतने करीब आने के बाद, ये अपने आप हो जाता है और आपके शरीर
की महक…

मैं: क्या… मेरे शरीर की महक… मझ


ु मे से तो पसीना निकल रहा है बद्ध
ु ू। इस समय तो मझ
ु े खद
ु ही इतनी बदबू आ रही है
अपने पसीने की।

आशु: नहीं दीदी। आप नहीं जानती, आपके पसीने की खुशबु ही है ये। जिसकी वजह से मेरा ये हाल हुआ है ।

मैं: अच्छा ऐसा है तो ये ले सूंघ ले। हे हे …

मैंने उसकी बात का मजाक बनाते हुए, उसके सर को पकड़ कर अपनी बगल में दबा दिया। मेरे मम्
ु मे का बाहरी हिस्सा
उसके चेहरे पर दब रहा था, और मेरी बगल का गीला हिस्सा सीधा उसकी नाक के ऊपर था। जो आशु अभी थोड़ी दे र पहले
अपनी आँख के घायल होने का नाटक कर रहा था, वो मेरे ऐसा करने के बाद, मचल-२ कर मेरी कांख वाले हिस्से को चूमने
लगा और जोरों से सूंघने लगा। ये लड़के भी कितने गंदे होते हैं। मैंने मन में सोचा, किस-२ तरह से ये एक्स्सायटे ड होते हैं।
मैंने धीरे -२ अपनी टी शर्ट वाले हिस्से को ऊपर करना शुरू कर दिया और एक झटके से मैंने अपनी टी शर्ट उसके चेहरे से
घम
ु ा कर पीछे की और किया और उसके चेहरे को अपनी टी शर्ट के अन्दर धकेल दिया। वो भी भोचक्का रह गया। क्योंकि
टी शर्ट के अन्दर थोड़ी दे र तक तो उसने हिलना एकदम से बंद कर दिया। लेकिन फिर उसने सीधा अपनी जीभ निकाली
और मेरी ब्रेस्ट के ऊपर फिराने लगा।

मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी। अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह… म्मम्मम… मेरी टी शर्ट तो काफी टाईट थी, पर स्ट्रे च होने की वजह से
उसका सर आसानी से अन्दर आ गया। और फिर आशु ने अपना सर थोडा और ऊपर किया और मेरे निप्पल को मंह
ु में भर
लिया।

मेरी तो सांस ही अटक गयी वही के वहीँ। मैंने अपनी टी शर्ट को वापिस ऊपर किया, और उसके चेहरे और अपनी ब्रेस्ट वाले
हिस्से को अपने सामने उजागर किया। उसकी आँखे बंद थी, और वो बड़ी ही तन्मन्यता से मेरी निप्पल को चूस रहा था।
इतना मासम
ू था मेरा भाई, मैंने इतने करीब से उसका चेहरा आज पहली बार दे खा। मझ
ु े बड़ा पर आया उसपर। और अपने
प्यार का इजहार करते हुए मैंने अपनी टी शर्ट को अपने सर से घुमा कर पूरा उतार दिया। और उसके सर के नीचे हाथ लगा
कर अपनी ब्रेस्ट के ऊपर जोरों से दबा दिया।

अह्ह्ह्हह्ह… आशु चूस… और जोर से चूस, बड़ी दर्द होती है इनमे। आज सारी दर्द दरू कर दे अपनी बहन की। अह्ह्ह्ह…
अपनी बहन की करुण गह
ु ार सन
ु कर उसमे जैसे जोश आ गया, आशु ने जल्दी-२ मेरे बब्ू स को चस
ू ना शरू
ु कर दिया। और
दस
ु रे हाथ से वो मेरी दस
ू री ब्रेस्ट को दबाने लगा। मैंने वापिस पीछे की तरफ होते हुए नीचे लेट गयी, और वो लेटे-२ ही मेरी
ब्रेस्ट को चूसता रहा।

मैंने हाथ नीचे करके उसके लंड को पकड़ना चाहा। पर हाथ नहीं गया वहां तक। वो समझ गया और एकदम से उठा और
अपना पायजामा उतार दिया, और ऊपर से अपनी टी शर्ट भी और एकदम से मेरे पेट के ऊपर बैठ गया, अपने पंजो के बल,
ताकि उसका परू ा भार मेरे ऊपर न पड़े, और अपने लंड को मेरे मुम्मो के बीच रख दिया। और तब मैंने पहली बार उसका लंड
दे खा। इतना बड़ा था यार। मुझे तो पता ही नहीं चला की मेरा छोटा भाई इतना बड़ा हो गया है । ये सब कुछ हुआ बिना कोई

50
वर्ड बोले। न मैंने कुछ कहा और न उसने कुछ, बस होता चला गया सब। शायद वो भी यही चाहता था जो मैं चाहती थी।
उसने मेरी दोनों ब्रेस्ट को पकड़ा और अपना लंड उनके बीच डाल कर धक्के लगाने लगा। यानी टिट फकिं ग करने लगा।

मैं: लगता है काफी ब्लू फिल्मे दे खी है तुन।े

वो मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिया।

आशु: हाँ… और जब भी ऐसा होते दे खा है तो सिर्फ आपके बारे में ही सोचा है की काश मैं दीदी के टिट्स को भी ऐसे चो…चोद
पाता।

मैं: शर्मा मत… अब जो बोलना है बोल डाल, जो करना है कर ले, मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है । और एक बात बोलू, मैं भी तो
यही चाहती हूँ। कब से… मैंने ये कहा और अपने मम्
ु मो की गली से आते हुए लंड को पकड़कर अपने मंह
ु में डाल लिया और
चूसने लगी।

फिर उसने बाहर खींचा और फिर धक्का मारा। वो अपने अंगूठे से मेरे निप्पलस को भी दबा रहा था। मुझे सच में बड़ा मजा
आ रहा था। और फिर उसके धक्को की स्पीड तेज हो गयी। और अगले ही पल उसके लंड से सफ़ेद रं ग के गोले निकल कर
मेरे मंह
ु के ऊपर हमला करने लगे।

अह्ह्हह्ह्ह्ह अअह्ह्हह्ह्ह्हह्ह दीदी… आप इतनी अच्छी हो। अह्ह्ह्ह आई जस्ट लव य।ु मेरा परू ा चेहरा उसके सफ़ेद रस से
भीग गया था और कुछ अन्दर भी गया था, काफी टे स्टी था, मैंने अपने चेहरे वाले रस को भी समेट कर चाटना शुरू कर
दिया। और जल्दी ही मेरा चेहरा साफ़ होकर चमकने लगा। अब उसका ध्यान मेरी चूत की तरफ गया, जो शोर्ट्स पहने होने
के बावजद
ू रिस कर गीली हो चक
ु ी थी। उसने पीछे होकर मेरी शोर्ट्स एक ही बार में निकाल दी और मझ
ु े भी अपनी तरह परू ी
तरह से नंगा कर दिया।

मैंने अपनी दोनों टाँगे हवा में उठाई जैसे उसके मुंह को अपनी चूत पर आने का निमंत्रण दे रही हूँ और उसने निमंत्रण
स्वीकार भी लिया और सीधा आकर अपनी लम्बी जीभ मेरी गरमा गरम चूत के ऊपर लगा दी। मैं सिस्कार उठी।
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह आश…
ु म्मम्मम… चस
ू जा सारा रस अपनी दीदी का। अह्ह्ह्ह… जोर से, और जोर से।

वो अपने एक हाथ से अपने मरु झाये हुए लंड को भी मसल रहा था ताकि वो उठ जाए और अपने मंह
ु का कमाल दिखा कर
मेरा अनमोल रस पीये जा रहा था। और जल्दी ही उसका लंड फिर से खड़ा हो गया। मैं समझ गयी की अब वो सुहानी बेला
आ चुकी है जिसका मैंने पिछले बीस साल से इन्तजार किया है । वो ऊपर आया, अपने लंड के ऊपर थूक मली, और मेरी चूत
के दोनों लिप्स को फेलाया और वहां अपना लंड लगा दिया।

मझ
ु े लगा की किसी ने मेरी कोमल सी चत
ू के ऊपर लोहे का मोटा डंडा रख दिया है । मैं बस दम साधे अपनी चत
ू के फटने
का इन्तजार करने लगी। और फिर उसने अपने हिप्स को आगे किया और एक जोरदार शोट मारकर अपने लंड को मेरी चूत
के समुन्दर में उतार दिया।

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह… अयीईईई मर्र्र्र गयी। अह्ह्ह्हह्ह…

इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुआ था। पर पता भी था की ये एक न एक दिन तो होना ही है । वो थोडा रुका और फिर धक्के
मारने लगा। जब दर्द होता तो मैं उसे रोक दे ती, वो नीचे झुककर मेरे मुम्मे चूसने लगता, और फिर मैं जब इशारा करती तो
धक्के मारता। वो बड़े प्यार से अपनी बहन की पहली चुदाई कर रहा था। ताकि मुझे ज्यादा तकलीफ न हो। और फिर मेरे
अन्दर एक तूफ़ान सा उमड़ने लगा। और शायद उसके अन्दर भी। हम दोनों ने एक दस
ु रे की आँखों में दे खकर जोरो से
अपनी तरफ से धक्के मारने शरू
ु किये।

अह्ह्ह्ह… अह्ह्ह्ह… येस्स्स्स… येस्स्स्स… आशु अह्ह्ह… तेज कर, और तेज कर। अह्ह्ह्हह्ह… आई एम ् कमईनग।
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अयीईईइ।

51
मेरी चूत से रस निकलकर बाहर जाने लगा, पर रास्ते में उसके लंड से निकले रस ने उसे फिर से अन्दर धकेल दिया। आशु
मेरे ऊपर गिरकर काफी दे र तक हांफता रहा और फिर मेरे लिप्स को किस्स करके वो हट गया। मैं नीचे जमीन पर पड़ी हुई
अपनी चत
ू में से उठ रही सनसनी के एहसास को महसस ु कुराये जा रही थी। क्रमशः 50
ू करके मस्

आज वो सब हो ही गया जिसके लिए मैंने अपनी जिन्दगी के २१ सालो तक इन्तजार किया। मैंने अपनी दो उं गलिया अपनी
ताजा चद
ु ी हुई चत
ू के अन्दर दाल दी और वहां की टूट फूट का जाएजा लेने लगी। बड़ी ही सेंसेटिव स्किन हो रही थी अन्दर
की, ऐसा लग रहा था की कोई ड्रिल मशीन अन्दर जाकर निकली है , इतनी तपिश थी अभी भी वहां की दीवारों में । अपनी
उं गलियों को बाहर निकाला और उसमे लिपटा हुआ भाई के लैंड से निकला रस भी आ गया, मैंने उसे सुंघा और फिर धीरे से
चाटा। वाह… इतना स्वाद था उसके रस में । मैंने जल्दी-२ एक-दो और डूबकियां लगायी और सारा रस निकाल कर चाट कर
गयी।

थोड़ी ही दे र में आशु बाथरूम से बाहर निकला और मुझे अपनी उं गलियों को चाटते हुए दे खकर वो मुस्कुराने लगा। उसके
धुले हुए लंड की चमक मुझे अपनी तरफ खींच रही थी, इतना मोटा और लम्बा था अभी भी वो। मैंने एक ऊँगली अपने होंठो
में डाली दस
ू री से अपनी चूत को मसलते हुए अपनी आँखों से अपनी तरफ बुलाया। वो किसी रोबोट की तरह से चलता हुआ
मेरे पास आया और हमारे बीच के पांच कदम की दरु ी को परू ा करते-२ उसके लंड ने अपना रं ग दिखाना शुरू कर दिया था, मैं
उठकर सोफे पर बैठ गयी और उसकी कमर को पकड़कर अपने पास खींचा। इतने पास से आज पहली बार दे ख रही थी मैं
किसी लंड को, उसके ऊपर की नसें चमक रही थी, मैंने उनपर ऊँगली फेरकर, दबाकर, स्किन को आगे पीछे करके, हर तरह
से उसे जांचा परखा।

फिर एक अनोखे से मोहपाश में बंधकर मैंने उसे अपने मुंह के अन्दर डाला और उसको सक करना शुरू कर दिया। जो रस
मैंने अपनी चत
ू के जरिये इकठ्ठा करके लिया था उसे सीधा पीने की लालसा में मैंने उसके लंड को तेजी से चस
ू कर अपने मंह

के अन्दर तक धकेल दिया। आज मुझे अपने भाई के चेहरे को दे खकर एहसास हो रहा था की लड़के अपने लंड को चुस्वाने
के लिए इतने उतावले क्यों रहते हैं। अपने मुंह में धीरे -२ आ रहे स्वाद को पाकर मैं भी समझने लगी थी की लंड चूसने का
असली मजा क्या होता है ये लड़कियां ही जान सकती है , क्योंकि उसमे से धीरे -२ निकल रही रस की बंद
ू े और गंध मझ
ु े
मदहोश सा किये जा रही थी, ऐसा लग रहा था की मैं कोई नशा कर रही हूँ जो मेरे सर चढ़कर बोल रहा है की और जोर से
चूस इस लंड को। और जो से चूस…

जल्दी ही मेरी मेहनत का फल सीधा मेरे मुंह के अन्दर आकर बरसने लगा। इतनी मिठास मैंने किसी भी चीज के अन्दर
महसस
ू नहीं की थी आज तक। मझ
ु े जल्दी ही लत पड़ने वाली है इस तरह के रस की।

आशु: वाव… दीदी। आज तो मेरे कई सपने सच हो गए हैं। पहले तो आपको चो…चोदने का और अब आपसे ब्लो जॉब करवाने
का। आज का दिन मेरी जिन्दगी का सबसे अच्छा दिन है ।

मैं: ठीक है … ठीक है अब ज्यादा उछल मत और ये जो भी तेरे और मेरे बीच हुआ है , इसकी खबर किसी को भी नहीं होनी
चाहिए। वर्ना…

आशु: अरे दीदी… आप भी न। कैसी बाते करती हो… ये भी कोई बताने वाली बाते हैं। मुझे मालुम है की अगर ये बात इसी
और को पता चली तो नुक्सान मेरा ही है ।

मैं उसकी बात का मतलब सुनकर हं स पड़ी।

मैं: अच्छा जी… तो तुम्हे लगता है की मैं ये सब दोबारा भी करुँ गी तुम्हारे साथ। हूँ…

वो कुछ न बोला बस मुझे दे खता रहा। मैंने उठ कर उसे गले से लगा लिया। मेरे कोमल से स्तन उसकी कड़क छाती से पिस
कर मचल से उठे । उसने भी मुझे अपनी बाजुओ का जोर दिखाया और मुझे ऊपर तक उठा लिया और अपने होंठो से लगा

52
कर मुझे पेप्सी की तरह पीने लगा। मैं अब थक चुकी थी। इसलिए मैंने किस तोड़ी और उसे अगली बार जल्दी ही मिलने का
कह कर अपने कमरे की तरफ भागी और वो भी नंगी।

अन्दर जाकर मैंने कपडे पहने और फोन लेकर मैंने सबसे पहले ये सब दीपा को बताया। वो तो झटका खा गयी मेरी बात
सन
ु कर। पर फिर खश
ु भी हुई की हम दोनों ने अब अपनी जवानी की वो सरहद पार कर ली है जिसके बाद हमें न जाने
कितने दे शो की सैर के लिए निकलना था।

अगले दिन जल्दी मिलने का वादा करके मैंने फ़ोन रख दिया। क्योंकि अब शुरू होना था मेडम का जाल फेलाना, जिसके
लिए मैंने और दीपा ने कुछ और ही सोच रखा था। क्रमशः 55

दीपा को सुबह मैंने बस स्टें ड पर मिलने को कहा था और वो सही टाइम पर आ भी गयी। वो आते ही मुझसे गले से लिपट
गयी।

दीपा: यार कोमल जबसे तुने मुझे अपने भाई के लंड के बारे में बताया है । मुझसे तो सब्र ही नहीं हो रहा है । यार प्लीस… मुझे
भी दिखा न।

मैं हे रानी से उसकी तरफ दे खने लगी: क्या… क्या दिखाऊ तझ


ु े…

दीपा: अपने भाई का लंड और क्या…

मैं: पागल है क्या… ऐसे कैसे मुमकिन है ।

दीपा: दे ख कोमल आज तक तेरे और मेरे बीच कुछ भी छुपा नहीं है । हम लोग शोपिंग भी एक जैसी करते है । और अब जब
लंड की बारी आई तो तझ
ु े ये सब सूझ रहा है । दे ख अगर तू मुझे आशु के लंड को दिखने का इंतजाम कर सकती है तो मैं भी
तझ
ु े अपने पापा का मोटा लंड दिखा सकती हूँ।

राज अंकल के मोटे लंड को दे खने की बात सन


ु ते ही मेरी चत
ू में से पानी की एक धार निकल कर बाहर की और खिसक
चली। मेरी आँखों में लाल डोरे से तेरने लगे। दीपा समझ गयी की उसका फेंका हुआ दाना मुझपर असर कर रहा है ।

दीपा: दे ख कोमल अब तो हम दोनों की चूत का उद्घाटन हो चुका है । अब क्या शर्माना। अब तो हमें ये दे खना है की कितने
तरह के लंड हम अपनी चूत की किताब में लिख सकते है । वैसे भी मेडम के हिसाब से चलेंगे तो हमारी चूत में लंड की कमी
कभी नहीं रहे गी। पर वो हमारी मर्जी के लंड नहीं होंगे। पर यहाँ तू भी मेरे पापा का लंड दे खना और लेना चाहती है और मैं तो
तुझे मालुम ही है की आशु की कब से दीवानी हूँ और जब से तुने उसके लम्बे लंड के चर्चे सुनाये है , मेरी चूत में तो काफी
हलचल सी मची हुई है । और ये तभी शांत होगी जब तू मेरा साथ दे गी।

मैं सोचने लगी की ऐसा किस तरह से संभव होगा।

तभी दीपा फिर से बोली: सुन, अभी तेरा भाई कहाँ पर होगा।

मैं: वो तो स्कूल में है और उसके बाद जिम जाएगा। फिर शाम को घर पर मिलेगा।

दीपा: गुड… एक काम कर तू, उसे बोल की तू मेरे घर पर है , जिम से जाते हुए वो तुझे मेरे घर से लेता हुआ जाए। मेरे पापा
तो शाम तक आयेंगे। और मम्मी तो दो दिनों के लिए मायके गयी हुई है । मेरी नानी की तबीयत ठीक नहीं है । और आज
सब
ु ह जब से वो गयी है , मैंने सब सोचकर प्लानिंग भी कर ली है और अगर तू मेरा साथ दे गी तो हम दोनों को मजा आएगा।
मैं उसकी बात सुनकर सोचने लगी।

दीपा: अरे क्या सोच रही है ।

मैं: वो… वो कॉलेज का क्या होगा फिर। और फिर आज से हमें मेडम के लिए भी तो काम शरू
ु करना है न।

53
दीपा: अरे एक-दो दिन की छुट्टी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अभी तो कॉलेज शुरू ही हुए हैं और वैसे भी, मेडम के रहते हमें
अटें डेंस की चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है । हमें पहले अपने घर वालो को अपनी जवानी के मजे दे ने चाहिए। ना की
बाहर वालो को।

उसकी बात तो सही थी। मैंने एक ठं डी सांस ली और उसकी तरफ दे खकर मस्
ु कुरा दी। वो मेरी स्वीकृति मानकर मझ
ु से गले
लग गयी और जल्दी से एक किस मेरे लिप्स पर दे डाली। हम लोग बस स्टें ड पर खड़े थे। और एक बूड़े से अंकल भी थे। जो
ये सब दे खकर भोचक्के से रह गए। शुक्र है उन्हें हार्ट अटे क नहीं हुआ। मैंने टाईम दे खा। अभी तो आशु को स्कूल से आने में
भी एक घंटा था। हम कॉलेज जा नहीं सकते थे, क्योंकि वहां से वापिस जल्दी निकलना मुश्किल था। इसलिए मैं दीपा के
कहने पर उसके घर ही चल पड़ी।

दीपा के पास घर की चाबी थी, उसने दरवाजा खोला और मैं उसके साथ अन्दर आ गयी। उसने मुझे केम्पा डालकर दी और
खुद चें ज करने अन्दर चली गयी। मेरे दिल की धड़कने काफी तेज चल रही थी। राज अंकल के लंड के बारे में सोचकर। तभी
दीपा बाहर आ गयी। उसकी ड्रेस दे खकर तो मेरी आँखे फटी रह गयी। एक नन्ही सी जींस की निक्कर थी। और इतनी छोटी
की उसकी चूत से नीचे आते ही ख़त्म हो गयी। और उसके ऊपर उसने वाईट कलर की टी शर्ट पहनी थी और वो भी बिना ब्रा
के। क्योंकि उसके निप्पल मैं साफ़ दे ख पा रही थी। और उसके ऊपर लिखा था। टे स्ट द थंडर।

मैं: ये ड्रेस कब ली तुने…

दीपा लचक कर मुझे अपनी ड्रेस दिखाने लगी। घूम कर उसने अपनी गांड को पीछे निकाला तो उसकी शेप दे खकर मुझे भी
जलन सी होने लगी। एक दम चिकनी थी उसकी टाँगे। और कमर का वो हिस्सा बड़ा ही कटाव वाला था। वैसे तो मेरा शरीर
उसके मुकाबले काफी गोरा और भरा हुआ था। पर कमर और गांड के मामले में वो मुझसे आगे थी।

दीपा: क्या सोच रही है डार्लिंग। तझ


ु े भी लेनी है ऐसी ड्रेस। मैं ला दं ग
ू ी, यही पास वाली मार्के ट से ली थी मैंने। अच्छी है न…

मैं: हाँ… कुछ ज्यादा ही अच्छी है ।

मेरा इशारा उसके तने हुए निप्पलस की तरफ था। उसने अपने निप्पलस के ऊपर हाथ रखा और उन्हें उमेठकर बाहर की
तरफ खींचने लगी। अह्ह्हह्ह… और बोली: ये ही तो दिखाने की चीज है । जो लडको को अपने जाल में खींचती है । है न हा
हा… वो अपनी बात पर खुद ही हं सने लगी। अपने निप्पलस को दबाते हुए वो खुद ही उत्तेजित हो रही थी। मैंने फ़ोन निकला
और आशु को मेसेज किया की वो मुझे घर जाते हुए दीपा के घर से ले जाए। वो अभी स्कूल में होगा और उसका मोबाइल
सायलेंट मोड पर बेग में ।

मैं: पर इस तरह की ड्रेस पता नहीं मुझे सूट करे गी या नहीं।

दीपा: तो पहन कर दे ख ले न। रुक…

और ये कहते ही दीपा ने बड़ी ही बेशर्मी से अपनी टी शर्ट मेरे सामने ही उतार डाली। और मेरे कुछ कहने से पहले ही निक्कर
भी। वाव… दीपा को मैंने आज पहली बार नंगा दे खा था। उसकी ब्रेस्ट मुझसे थोड़ी छोटी जरुर थी पर ऊपर की तरफ तनी हुई
थी। मेरे मंह
ु में पानी सा आ गया, एक मन तो किया की उन्हें चस
ू कर दे ख ल।ू पर दीपा क्या सोचेगी। क्या मैं लेस्बियन हूँ।

दीपा की चूत पर एक भी बाल नहीं था। मैंने भी तो अभी थोड़े दिन पहले अपनी चूत को परू ी तरह से साफ़ किया था। लगता
था, उसने भी राज अंकल से चुदवाने के लिए अपनी बिल्लो रानी को चमकाया था।

दीपा: अरे दे ख क्या रही है । चल जल्दी से पहन कर दे ख ले।

मैं: यहाँ…

दीपा: और नहीं तो क्या अन्दर जायेगी। यहाँ और है ही कोन, तेरे और मेरे अलावा। और दे ख। मेरे पास भी सब कुछ तेरे
जैसा ही है । हे हे …

54
मुझे उसके सामने कपडे उतारने में पता नहीं क्यों शर्म सी आ रही थी। पर मन को संभाल कर मैंने वो करना उचित ही
समझा। दीपा मेरे सामने सोफे पर ही बैठ गयी, नंगी। मैंने अपनी टी शर्ट को उतारा और फिर ब्रा भी।

दीपा: वाव… तेरी ब्रेस्ट को दे खकर मुझे हमेशा लगता था की मेरी तेरे जैसी क्यों नहीं है । सच में दे आर सकेबल उम्म्म्म… वो
अपनी एक ऊँगली को अपने ही निप्पलस के ऊपर फिराने लगी। और दस
ू री को मंह
ु में डालकर चस
ू ने लगी। मैंने अपनी
जींस को भी उतारा और दस
ू री तरफ मुंह करके अपनी पैंटी को भी उतार दिया। और जल्दी से निक्कर उठा कर डाल ली,

दीपा: ये तो चीटिंग है । तुने मेरी पुस्सी दे खी ना। अपनी भी दिखा चल।

मैंने झक्क मारकर अपना चेहरा उसकी तरफ किया और निक्कर को वापिस नीचे गिरा दिया।

दीपा: अच्छा जी… तन


ु े भी शेविग
ं की है । आशु ने तझ
ु े चाटा था क्या… यहाँ…

मैं उसकी बात सन


ु कर फिर से शर्मा गयी।

दीपा: बोल न। चाटा था या नहीं…

मैं: हूँ…

दीपा: वाव यार। आई एम ् जेलस… काश वो मेरी पुस्सी भी चाटे उम्म्म्म… और ये कहते हुए उसने अपनी दो उँ गलियाँ एक
साथ अपनी चत
ू में डाल दी। और रगड़ने लगी।

मैंने निक्कर को फिर से ऊपर किया और उसके बटन बंद करने लगी। वो मुझे काफी टाईट थी। दीपा और मेरी कमर में
काफी फर्क था। पर निक्कर स्ट्रे चेबल थी। इसलिए थोड़ी मेहनत के बाद बंद हो ही गयी। पर काफी टाईट होने की वजह से
उसके बीच वाला हिस्सा मेरी चूत के अन्दर तक चला गया था। मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी, क्योंकि दीपा ने कहा था की ये
निक्कर बिना पैंटी के पहननी पड़ेगी। वर्ना पैंटी का स्ट्रे प बाहर दिखाई दे गा। मैंने टी शर्ट को भी उठाया और उसे पहन लिया।
काफी ठं डा कपडा था उसकी टी शर्ट का। मेरी मोटी ब्रेस्ट को काफी अच्छी तरह से कवर किया था। पर दीपा की ही तरह मेरे
भी निप्पलस साफ़ दिखाई दे रहे थे।

मेरी ब्रेस्ट मोटी होने की वजह से टी शर्ट भी थोड़ी छोटी लग रही थी मुझ।े मेरे पेट और निक्कर के बीच में थोडा गेप आ गया
था और मेरी नाभि साफ़ दिखाई दे रही थी। दीपा का तो बरु ा हाल था मझ
ु े ऐसे दे खकर। जैसे कोई ठरकी लड़का दे ख रहा हो
किसी पटाखा लड़की को ऐसी हालत में ।

दीपा: यार मैं अगर लड़का होता न… तो तझ


ु े आज बरु ी तरह से चोद डालती, सच में ।

उसमे मंह
ु से चोदने वाला वर्ड सन
ु कर मेरी फंसी हुई चत
ू के अन्दर का पानी जींस के ऊपर अपना असर छोड़ने लगा। और
मेरे निप्पलस और भी ज्यादा बड़े होकर मेरे अन्दर की उत्तेजना को प्रकट करने लगे। तभी मेरी नजर दीपा की रसीली चूत
पर गयी। उसके ग्लोसी लिप्स पर चूत का रस लगा हुआ था और वो हीरे की तरह चमक रही थी। मेरे मन में ना जाने क्या
आया की मैं उसकी तरफ खींचती चली गयी। और उसके सामने सोफे के सामने बैठकर मैंने अपने हाथ उसकी जांघो पर रख
दिए।

दीपा: अह्ह्ह्हह्ह… कोमल म्मम्म…

वो शायद समझ चुकी थी की उसकी चूत के मोहपाश ने ही मुझे उसके सामने ला बिठाया है । उसकी जांघे थरथरा रही थी।
मैंने उसकी आँखों में दे खा। और उसकी मोटी जांघ को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। और फिर दस
ू री जांघ को भी
उठाया और दस
ु रे कंधे के ऊपर। और बाकी का बचा हुआ काम दीपा ने किया। उसने अपनी गांड को सोफे पर खिसकाया,
और मेरे मुंह की तरफ धकेला। और फच से अपनी गीली चूत को मेरे मुंह के ऊपर दे मारा। अह्ह्हह्ह्ह्ह… कोमल म्मम्मम…
ओय अह्ह्हह्ह्ह्ह हन्न्न…

55
मेरे बालो को जोर से पकड़ कर उसने मेरी जीभको अपनी गीली चूत के अन्दर तक उतार दिया। मैंने सोचा भी नहीं था की
चूत को चूसने में इतना मजा आता है । ऐसा लग रहा था की मेरा मुंह रुई के अन्दर है और अन्दर ढे र सारा आम का रस है ।
मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत को कुरे दा और अपने होंठो से उसके आमरस को पीना शुरू कर दिया। अह्ह्हह्ह… येस्स्स्स…
कोमल ओह माय डार्लिंग म्मम्म…

मेरा एक हाथ नीचे जाकर अपनी चूत के ऊपर ही रगड़ दे ने लगा। दीपा की कमर हवा में थी। और वो अपनी चूत के बल पर
मेरे मुंह से लिपटी हुई थी। मुझे सच में मजा आ रहा था। तभी मेरे मुंह में दीपा की क्लिट आ गयी। इतना मोटा दाना था
उसका। मेरी चूत के अन्दर जो था। उससे भी बड़ा। मैंने अपनी जीभ से उसके दाने को बुरी तरह से चाटा और खरोंचा। उसकी
तो हालत ही खराब हो गयी थी।

तभी बाहर की बेल बजी। मैंने एकदम से दीपा को छोड़ दिया। हम दोनों घबरा गए। क्योंकि अभी सिर्फ बारह ही बजे थे।
दीपा के पापा शाम को ही आते। और आशु तो जिम जाने के बाद ही आएगा। तो फिर कौन आया है इस वक़्त।

दीपा: यार तू प्लीस जाकर दे ख न। कौन है … मैंने तो कपडे भी नहीं पहने हुए। और ये कहते हुए उसने मेरे कपडे उठाये और
बाथरूम की तरफ भाग गयी।

अब मझ
ु े ही दे खना था की बाहर कौन है । पर बाहर जाते हुए मैंने ये भी नहीं सोचा की मैंने किस तरह के कपडे पहने हुए हैं।
एक छोटी सी निक्कर जो आगे से गीली हो चुकी थी। और ऊपर से टाईट सी टी शर्ट जिसमे से मेरे निप्पलस साफ़ दिखाई दे
रहे थे। मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया। क्रमशः 56

दरवाजा खोला तो सामने आशु खड़ा था। मैं है रान थी, क्योंकि अभी तो आशु के स्कूल से घर जाने का टाईम था।

मैं: आशु त…
ू पर तन
ु े तो कहा था की तीन बजे तक आएगा।

आशु जो मझ
ु े ऐसे कपड़ो में पहली बार दे ख रहा था, वो अपना मंह
ु फाड़े खड़ा था। उसकी हालत तो ये थी की मेरी बात शायद
उसने सुनी ही नहीं थी। बस मुझे अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से घूरे जा रहा था।

आशु: वाव… दीदी तुम तो… तुम तो सच में पटाखा लग रही हो।

मैंने जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर अन्दर खींचा और दरवाजा फिर से बंद कर दिया। अन्दर आकर जैसे ही मैं उसकी तरफ
मुड़ी, उसने मुझे पकड़ा और मेरे होंठो पर अपने होंठ रखकर उनका रसपान करने लगा। और उसके हाथ मेरी गांड को
मसलने लगे। मानो आटा गूंध रहा हो वो मेरा।

मैं कुनमुनाते हुए उसकी गिरफ्त से छूटने लगी। पर वो मुझसे कद में लम्बा और बाजुओं से ताकतवर था। हम अभी भी
दरवाजे और ड्राईंग रूम के बीच वाली गेलरी में खड़े थे। उसने मेरे हाथ गेलरी की दिवार के ऊपर चिपकाये और अपने होंठो
को मेरी गर्दन के ऊपर चिपका कर मेरे गर्म जिस्म का स्वाद लेने लगा।

अह्ह्ह्ह आशु… म्मम्म…

उसके होंठ नीचे खिसके और टी शर्ट के ऊपर से ही मेरे निप्पलस उसके मुंह की गिरफ्त में आ गए।

मैं चिल्ला उठी… अयीईईईइ… स्स्स्सस्स्स्स… धीरे काट, लगता है ।

मेरी बात सन
ु कर उसकी उत्तेजना थोड़ी कम हुई पर सिर्फ मेरे निप्पलस पर। और वो उन्हें छोड़कर नीचे की तरफ खिसक
गया। और मेरी नाभि वाले हिस्से को चूमने और चाटने लगा। तभी मुझे दीपा का ध्यान आया।

मैं: उम्म्मम्म… आशु एक मिनट, अन्दर दीपा भी है । यहाँ ठीक नहीं है ये सब।

56
वो समझ गया। वर्ना अपने लंड का कहना मानकर वो मुझे वहीँ चोद डालता। मैंने अपनी टी शर्ट ठीक की, जिसपर उसकी
थूक की वजह से गीलापन आ गया था और मेरे निप्पलस का भूरापन साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने भी अपने लंड को जींस
में एडजस्ट किया और हम अन्दर आ गए।

मैंने दीपा को आवाज लगायी। थोड़ी ही दे र में दीपा बाथरूम से बाहर निकली। वो गयी तो नंगी थी। और आई भी लगभग
नंगी ही। उसने अपने कलेक्शन से एक और फ्रोक स्टाईल वाला नाईट सूट पहन कर बाहर आई, जो उसकी जांघो से थोडा
नीचे ही आ पा रहा था। और फ्रोक के स्ट्रे प्स पतले थे और नीचे तक आ रहे थे, जिसकी वजह से उसकी ब्रेस्ट जो काफी बड़ी
थी, उसकी क्लीवेज साफ़ दिखाई दे रही थी। और बिना ब्रा के साफ़ दिखाई दे रहे थे उसके निप्पलस।

दीपा: हाय… आशु तम


ु तो बड़ी जल्दी आ गए।

वो ऐसे बिहे व कर रही थी की उसके पहने हुए कपडे नोर्मल है । जबकि उसे दे खकर आशु के साथ-२ मेरा भी मंह
ु खल
ु ा का
खुला रह गया।

आशु: हाँ… वो मैं जिम नहीं गया। इसलिए सोचा…

दीपा: अच्छा… ठीक किया। वैसे भी हम दोनों अकेले बोर हो रहे थे और मेरे लाये हुए नए कपडे पहन-२ कर दे ख रहे थे। तम

आ ही गए हो तो बताना हम दोनों को की कैसे है ये सब कपडे। लडको का टे स्ट भी तो पता चलना चाहिए न। हा हा…

आशु तो शर्म से पानी-२ हुआ जा रहा था। उसे क्या मालुम था की दीपा को मैंने सब बता रखा है , वो तो यही समझ रहा था
की मेरे और आशु के बीच की बात दीपा को नहीं मालुम है । और वो मुझे जल्दी से घर लेजाकर शायद दोबारा से चोदने की
फिराक में था, इसलिए जल्दी लेने आया था। दीपा ने मझ
ु े आँख मारी और मेरा साथ दे ने के लिए इशारा किया। मैंने भी
अपनी सहमती जता दी। दीपा ने आशु का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बिठा दिया। और मुझे लेकर अन्दर वाले कमरे में आ
गयी।

उसने अपनी अलमारी खोली और कुछ नए और कुछ परु ाने कपडे, जो ज्यादातर नाईट ड्रेस वाले थे या फिर ऐसे जो शायद ही
वो बाहर पहन सके। उसने अपनी फ्रोक को उतारा और उसे एक कोने में फेंक दिया। नीचे उसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था।
मादरजात नंगी थी वो।

वो जल्दी से बेड के ऊपर झुकी और एक मखमल जैसे कपडे की नाईटी को उठाया और पहन लिया। वो ब्लेक कलर की थी।
और वो तो जैसे उसके गुदाज जिस्म से चिपक सी गयी। ऐसा लग रहा था मानो उसने कुछ पहना ही नहीं है । उसके शरीर का
एक एक उतार चड़ाव साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। और उसके निप्पलस तो ऐसे लग रहे थे जैसे कपडे के ऊपर से चिपकाये
गए हैं। इतने मोटे थे मानो कपडे को फाड़कर बाहर निकल आयेंगे।

मैं: ये क्या है … कुछ पहन तो ले नीचे, दे ख सब नजर आ रहा है तेरा।

दीपा: तभी तो पहना है ये मैंने मेरी जान। और हँसते हुए वो बाहर निकल गयी। आशु को अपना जलवा दिखने के लिए। मैं
भी बाहर गयी, आशु का रिएक्शन दे खने के लिए। जो मेरी आशा के अनुरूप ही था। मुंह खुला, आँखे फटी और हाथ अपने
लंड को छुपाता हुआ।

दीपा: कैसा है ये…

आशु तो क्या, दनि


ु या का कोई भी लड़का, जवान या बुड्ढा उसे दे खकर पागल हो जाता। और यही हाल आशु का भी था। पर
शायद वो समझ चक
ु ा था की दीपा उसे अपना जलवा दिखाकर क्या करवाना चाहती है , इतना चति
ु या तो वो भी नहीं था।
आशु उठ खड़ा हुआ। और बीच में खड़ी हुई दीपा के चारो तरफ घूमकर उसे दे खने लगा, जैसे उसकी ड्रेस का जाएजा ले रहा
हो। पर असल में तो वो उसके जिस्म को अपनी आँखों से चोद रहा था।

आशु: दीपा दी… अच्छी तो है , पर मॉडर्न नहीं है ।

57
दीपा उसकी तरफ घूमी: मॉडर्न नहीं है । क्या कमी है इसमें …

आशु: बस थोड़ी सी लम्बी है । ये तो बस थाई तक होनी चाहिए। जबकि ये तो काफी नीचे तक है ।

दीपा भी समझ गयी की आशु मजे लेने के लिए कह रहा है , वो भी उसके साथ खेल में कूद पड़ी। और कूदे भी क्यों न, वो भी
तो यही चाहती थी।

दीपा: तो तू ही कर दे न ऊपर, जितनी होनी चाहिए।

आशु उसके सामने बैठ गया और मखमली कपडे को पकड़ कर ऊपर की तरफ खिसकाने लगा। जैसे-२ वो ऊपर करता गया,
उसकी नंगी और सफ़ेद टाँगे जो मोटी होती जा रही थी, जितना ऊपर वो जाता जा रहा था। दीपा की चत
ू वाला हिस्सा आशु
के चेहरे के सामने था, पर शायद साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था उसको की अन्दर से कैसी है उसकी चूत। दीपा की जांघो के
थोडा ऊपर जाकर आशु ने अपना हाथ रोक दिया।

आशु: अब दे खो जरा शीशे में …

शीशा अन्दर वाले कमरे में था। जहाँ दस


ू री ड्रेसेस रखी थी। दीपा अन्दर गयी। और आशु को भी इशारे से अन्दर चलने को
कहा। मैं तो अपने आप ही चल दी, अन्दर की ओर। क्रमशः 57

शीशे के सामने पहूँच कर दीपा ने जब अपने अर्धनग्न बदन को दे खा तो एक बार तो शायद उसके शरीर में भी झुरझुरी सी
दौड़ गयी। अपने शरीर का ऐसा प्रदर्शन तो उसने आज तक किसी के सामने नहीं किया था। और आज वो सब हम दोनों भाई
बहन को दिखने में लगी थी। वैसे भी जिन्दगी में हर काम कभी न कभी तो करना पड़ता है पहली बार। तभी तो उसका फल
मिलता है । और शायद यही फल वो लेना चाहती थी। या फिर ये कह लो, दे ना चाहती थी। आशु ने मेरी तरफ दे खा और
मुस्कुराने लगा। और आँखों ही आँखों में जैसे मुझसे आगे बड़ने की परमिशन मांग रहा था। क्योंकि आखिर दीपा थी तो मेरी
सहे ली न। मैंने तो पहले से ही आशु को परमिशन दे डाली थी। वैसे अब उन दोनों की हरकते मेरी चूत में भी भावनाओ का
टोरनेंड़ो बना रहे थे।

मेरे निप्पलस फिर से हार्ड होने लगे। और अपने होने का एहसास करवाने लगे। दीपा ने मेरी तरफ दे खा और बोली: अरे
कोमल। तू भी ये ड्रेस पहन कर दे ख न। तू मेरे से पतली है , तुझपर काफी जंचेगी ये। और तब तक मैं… उम्म्म्म… हाँ ये वाली
पहन कर बताती हूँ। ओके… मेरे कहने से पहले ही उसने बेड पर रखी हुई एक दस
ू री ड्रेस उठाई और मुझे घसीट कर बाथरूम
में ले गयी और अन्दर से दरवाजा बंद कर दिया। बाहर खड़ा हुआ आशु हक्का-बक्का सा खड़ा रहा, अपनी बहन को दीपा के
साथ एक ही बाथरूम में जाता दे खकर। और शायद ये सोचकर की अन्दर हम दोनों एक दस
ु रे के सामने नंगी होकर कपडे
चें ज करें गी।

दीपा ने अन्दर आते ही अपनी ड्रेस उतार दी और पूरी नंगी होकर खड़ी हो गयी। और मुझे भी अपने कपडे उतारने को कहा।
मैंने शोर्ट निक्कर और टी शर्ट को उतार फेंका एक कोने में । तभी दीपा ने मुझे पीछे से दबोच लिया। और अपने होंठ मेरे
कानो के पास लाकर फुसफुसाई: यार कोमल। आज अगर तेरे भाई का लंड मझ
ु े न मिला तो मैं पागल हो जाउं गी। सच में …
उसके दोनों हाथो ने मेरे मुम्मो को पकड़ कर जोर से दबा दिया।

मैं: अह्ह्ह्ह… धीरे , वो बाहर ही है ।

दीपा: तुने भी तो लिया है न अपने भाई का लंड। यहाँ अपनी चूत में । ओह्ह्ह… क्या गीली हुई पड़ी है ये तो। वो अपनी
उं गलिया मेरी बारिश बरसाती हुई चूत के अन्दर घुसा कर मुझे आनंद विभोर करने लगी। फिर मैंने उसकी ड्रेस उठाई और
पहन ली। ऐसा लगा की मैंने चुन्नी से बनी हुई कोई ड्रेस पहनी है , इतनी हलकी और उसका एहसास तो ना के बराबर था मेरे
जिस्म पर।

58
दीपा ने ओरें ज कलर की फेंसी शोर्ट टी शर्ट और शोर्ट स्कर्ट पहनी। जो उसके चुतड की गोलाइया भी सही ढं ग से ढक नहीं पा
रही थी। और बीच से उसकी नाभि भी। फिर एकदम से दरवाजा खोलकर वो बाहर निकल आई। बाहर खड़ा हुआ आशु अभी
भी हे रत से दरवाजा खुलने का इन्तजार कर रहा था। दीपा को दे खकर तो उसका मुंह और भी खुल गया और मुझे दे खकर तो
वो गिरते-२ बचा। मैंने भी उस ड्रेस को ऊपर तक कर दिया था ताकि मेरी जांघे उसे साफ़ दिखाई दे । और मेरे निप्पलस तो
ड्रेस में ड्रिल कर रहे थे।

दीपा: अब बोलो… कौन ज्यादा सेक्सी लग रहा है …

वो कुछ न बोला। बस हम दोनों को आँखों ही आँखों में चोदने में लगा रहा। उसके लंड वाला हिस्सा आगे की तरफ निकला
हुआ था। मझ ु े तो मालम
ु था की उसका लंड कैसा है । पर दीपा तो ये सब पहली बार दे खना चाहती थी। आखिर उसने आगे
बढ़ने का फेसला कर ही लिया। इस तरह से तो ड्रेसेस दिखा-२ कर वो परू ा टाईम निकाल दे गी।

दीपा: आशु लगता है तुम हम दोनों को दे खकर कुछ एक्स्सायीटिड हो रहे हो। है न…

आशु: नहीं… नहीं तो।

वो अपने लंड को छुपाने की असफल कोशिश करने लगा। दीपा आगे आई और उसके हाथो को हटा दिया।

दीपा: तम
ु से अच्छा तो तम्
ु हारा ये दोस्त है । जो मेरी तारीफ कर रहा है बिना कुछ बोले और एक तम
ु हो, कुछ बोल ही नहीं
रहे हमारे बारे में ।

वो शर्मा रहा था।

दीपा: अच्छा… अपने दोस्त से मिलवाओगे नहीं क्या। इसको बंद क्यों कर रखा है । खल
ु कर ये शायद ज्यादा तारीफ कर
पाए।

दीपा की खुली बाते सुनकर आशु की शर्म और रहा सहा डर भी चला गया। उसने अपने हाथ पीछे कर लिए। दीपा ने उसकी
आँखों में दे खा और। दे खते-२ उसके सामने बैठ गयी। घुटनों के बल। और उसकी जींस के बटन खोलने लगी। और अपने
होंठो पर जीभ फेरते हुए आने वाले लंड का इन्तजार करने लगी। आशु ने नीचे सफ़ेद रं ग का रे ड लास्टिक वाला जोक्की
पहना हुआ था।

दीपा ने उसे भी नीचे किया। और जैसे ही उसका लंड सामने आया, दीपा ने बिना कोई दे र किये उसे अपने मुंह में डाला और
जोर से चूसते हुए अपने हाथो को उसकी गांड के ऊपर दबाने लगी। मेरी भी हालत खराब होने लगी थी। मैंने ड्रेस को थोडा
और ऊपर किया और अपनी सफाचट चत
ू को आशु की आँखों के सामने ही बेपर्दा करते हुए, उसपर अपनी उं गलिया फेराने
लगी।

अब तक वो समझ गया था की आज उसे डबल मजा आने वाला है । मैं सोफे पर अपनी टाँगे चोडी करके बैठ गयी। और
अपनी ड्रेस के स्ट्रे प को नीचे गिरा कर अपनी एक ब्रेस्ट बाहर निकाल ली और अपने दस
ु रे हाथ से निप्पल को मसलते हुए,
चत
ू की रगड़ाई करने लगी। दीपा ने अपनी टी शर्ट को उतार दिया। और ऊपर खड़े हुए आशु ने भी अपनी टी शर्ट और
बनियान को उतार दिया और नंगा होकर अपने लंड को चुस्वाने लगा। आशु का पूरा लंड दीपा की थूक से भीग चुका था।
अब दीपा से भी और सहन नहीं हुआ। वो खड़ी हुई और अपनी एक टांग उठा कर आशु के हाथ पर रख दी। छोटी से स्कर्ट को
उसने खींच कर अपने पेट वाले हिस्से पर कर लिया और अपनी चूत को उसने आशु के मोटे लंड के ऊपर लगा कर दबा
दिया।

अह्ह्हह्ह्ह्ह… ओफ्फ्फ़… साला क्या लंड है तेरे भाई का कोमल… म्मम्मम…

मेरे मुंह से एकदम से "थेंक्स।” निकल गया। जिसे सुनकर हम तीनो हं स पड़े। और जब हं सी रुकी तो चुदाई की गाडी ने
अपनी स्पीड पकड़ ली। आशु ने उसकी दस
ू री टांग को भी उठा लिया और अपनी गोद में उठा कर अपना पूरा का पूरा लोडा

59
दीपा की चूत के अन्दर पेल दिया। और दोनों पागलो की तरह से एक दस
ु रे के होंठो को काटने लगे। पुरे कमरे में वासना का
तूफ़ान आ गया था।

मैंने अपने कपडे को बुरी तरह से खींचा और अपने शरीर से निकाल फेंका। और खड़ी होकर मैं आशु की पीठ से जा लगी।
और अपने हाथो से उसके कंधे पकड़ कर अपना परू ा शरीर उसकी कमर से रगड़ने लगी। और अचानक ना जाने मझ
ु े क्या
हुआ। मैं बन्दर की तरह उसकी पीठ पर उछल कर चढ़ गयी। और अपनी बाहे मैंने उसकी गर्दन में फंसा दी, और टाँगे दीपा
की टांगो के ऊपर।

वो तो आशु गठीले जिस्म का था, वर्ना और कोई होता तो हम दोनों को लेकर नीचे गिर जाता। पर वो बड़ी दिलेरी से दीपा को
सामने से चोदते हुए, अपने मंह
ु को पीछे करके मेरे होंठो को चस
ू ने और चाटने लगा। पर ऐसा करने में उसे थोड़ी तकलीफ
भी हो रही थी। जो शायद दीपा ने भांप ली।

दीपा: अन्दर चलो बेड पर। अह्ह्ह… जल्दी।

आशु हम दोनों को अपने ऊपर उठा कर अन्दर की तरफ चल दिया। जहाँ बेड पर अभी भी कई ड्रेसेस पड़ी हुई थी। उसने दीपा
को पीठ के बल पटक दिया। और अपने लंड को बाहर निकाले बिना उसे चोदने में लगा रहा। मैं तो बेताल की तरह आशु की
पीठ से चिपकी हुई अपने स्तनों से उसकी मालिश करने में लगी हुई थी। मेरी चत
ू से निकल रहा पानी, उसकी पीठ पर
अपना गीलापन छोड़ रहा था।

मैं जिस अवस्था में थी, सामने चुद रही दीपा के चेहरे के भाव को साफ़ दे ख पा रही थी। उसकी आँखे बंद थी और हाथ सर के
ऊपर। और उसकी मोटी ब्रेस्ट हर झटके से ऊपर की तरफ जाती और फिर नीचे आती। और मंह
ु परू ा खल
ु ा हुआ था। जिसमे
बंद जीभ की हर हरकत को मैं साफ़ दे ख पा रही थी। और उसकी सिस्कारिया और हलकी चीखे। मेरे चेहरे से टकरा कर
अपनी कामुकता बिखेर रही थी।

मैंने आशु के कान को अपने मुंह में भरा और उसे चूसना शुरू कर दिया। वो भी मचल कर और तेजी से दीपा की चूत को
मारने में लग गया। अह्ह्हह्ह… अह्ह्हह्ह दीपा म्मम्म… तम्
ु हारी ब्रेस्ट कितनी मस्त है यार… कितने सालो से इन्हें दे खकर
अह्ह्ह… मैंने ना जाने कितनी बार मुठ मारी है । अह्ह्ह्ह… आज मौका मिला है इन्हें दे खने और चूसने का। ये कहते हुए
आशु नीचे झुका और दीपा की लेफ्ट ब्रेस्ट को मुंह में भरकर उसका स्तनपान करने लगा। आशु का चेहरा नीचे था। और
उसके कंधे पर रखा हुआ मेरा सर अब बिलकुल दीपा के मंह
ु के ऊपर था। मैंने दीपा के लरजते हुए होंठो को अपने मंह
ु में
दबाया। और उन्हें जोर-जोर से चूसते हुए उनमे बंद रस अपने पेट में उतारने लगी। दोतरफा हमला उसके लिए सहन करना
मुश्किल हो गया

एक तेज चीख के साथ वो अपने रस को मेरे भाई के लंड के नाम कुर्बान करके झड़ने लगी। अयीईईईइ… म्मम्म… तुम दोनों
भाई बहन मेरी जान लोगे आज। अह्ह्हह्ह… आई एम ् कमीईईन्ग। और उसकी चत
ू से निकलने वाला रस का बहाव इतना
तेज था की आशु का लंड भी एक झटके में बाहर की तरफ फिसल गया। और मैं भी उस झटके की वजह से फिसलन भरी
पीठ को छोड़कर नीचे की तरफ गिर पड़ी। दीपा की बगल में । नीचे आते ही मैंने अपने होंठ फिर से उसके मुंह से लगा दिए।
ताकि वो और न चीख पाए।

आशु ने अपने लंड को फिर से तैयार किया और चत


ू में दाल दिया। पर इस बार चत
ू दीपा की नहीं मेरी थी।

आशु के लंड के गर्म एहसास से मेरी चत


ू पल
ु कित हो उठी। और मैंने अपनी दस
ू री टांग को परू ी तरह से फैला कर उसके मोटे
लंड का अन्दर स्वागत किया।

और फिर उस बेरहम ने एक ही झटके में अपना पूरा मूसल डाल दिया मेरी एक दिन पहले चुदी चूत के अन्दर। अह्ह्ह्ह…
धीरे आशु… अभी इतनी आदत नहीं हुई है ।

आशु: ओह्ह… सॉरी दीदी अभी धीरे करूँगा।


60
मैं: अब क्या धीरे करे गा। अब तो पूरा गया अन्दर। अब तेज मार, जितना तेज कर सकता है , उतना। समझा… और फिर
आशु ने मुझे अपने लंड से रोंदना शुरू कर दिया। मेरी टाईट चूत ने अपना कमाल जल्दी ही दिखाया और उसके लंड की नसे
टाईट होने लगी और मेरी चूत ने उसके विकराल रूप को दे खकर आत्मसमर्पण कर दिया। और मैं खल खल करके अपनी
चूत के पानी को बाहर की तरफ धकेलने लगी।

जैसे ही आशु के लंड का रस निकलने लगा, उसने अपने लंड को बाहर खींचा और मेरे और दीपा के ऊपर स्प्रे करने लगा।
और हम दोनों के तपते हुए जिस्मो को अपने लंड के गर्म रस से बुझाने लगा। दीपा तो मुझे चुदता हुआ दे खकर पूरी तरह से
दोबारा गरम हो चुकी थी। पर शायद आशु को थोडा और टाईम लगना था, दोबारा तैयार होने में । इसलिए दीपा अपने शरीर
से उसे दोबारा रगड़ने लगी और फिर नीचे झुककर आशु के लंड को मुंह में भरकर फिर से चूसने लगी।

तभी बाहर, दरवाजे की बेल बजी।

दीपा ने टाईम दे खा और मुस्कुरा कर मेरी तरफ दे खकर बोली: जा जाकर दरवाजा खोल तू, मेरे पापा आये है । मैं उसकी बात
का मतलब सुनकर शर्म से लाल हो गयी। आशु ने भी जब ये सुना तो जल्दी से उठने लगा। पर दीपा ने उसे रोका और
समझाया, डरने की कोई जरुरत नहीं है आश।ु जैसा तम
ु भाई बहन के बीच है , वैसा ही रिश्ता मेरे और पापा के बीच है । और
अब तुम उन पापा की बेटी से मजे लो और अपनी इस बहन को उन पापा से मजे लेने दो। समझे…

वो भी क्या करता। अपनी बहन को बूढ़े अंकल से चुदते दे खने के अलावा और कोई चारा अभी तो नहीं था उसके पास। पर वो
कितने बढ़
ू े थे, ये वो नहीं जानता था, उनकी जवानी का राज तो सिर्फ दीपा जानती थी। या फिर मैं आज जानग
ंू ी। मैंने जल्दी
से वही शोर्ट निक्कर और टी शर्ट पहनी और भागकर बाहर निकल आई और जाते हुए मैंने उनके रूम का दरवाजा भी बंद
कर दिया।

मैंने मेजिक आई से बाहर झाँका, बाहर राज अंकल ही थे। मैंने एक गहरी सांस ली और दरवाजा खोल दिया। क्रमशः 60

अब आगे की कहानी, दीपा की जुबानी।

*****दीपा ******
****************
कोमल के जाते ही मैंने आशु की तरफ दे खा जो अभी भी अपनी बहन के बारे में सोच रहा था की कैसे वो राज अंकल के साथ
चुदाई करे गी।

मैं: क्या सोच रहे हो। तुम कोमल की चिंता मत करो। मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ। बचपन से उसका मेरे पापा के ऊपर
क्रश है । जैसा मेरा तुम्हारे ऊपर था। हा हा…

वो मेरी बात सुनकर हे रानी से मुझे दे खने लगा।

मैं: इसमें है रान होने वाली क्या बात है । तुम लड़के भी तो यही सब करते हो। अपने आस पड़ोस में रहने वाली आंटी या फिर
टीचर्स, या फिर बहन की सहे ली या फिर अपनी माँ या बहन के बारे में सोचकर ही कितनी बार मठ
ु मारते हो। है न। और
यही काम हम करे तो तुम है रान हो रहे हो। पता है , मैंने तुम्हारे बारे में सोचकर कितनी बार मास्टरबेट किया है । और यही
हाल कोमल का भी है । उसने मुझे खुद ही बताया था की मेरे पापा को दे खकर ही उसकी चूत के अन्दर अजीब सी खलबली हो
जाती है । और पिछले कई दिनों से हमने एक साथ कई बार तम
ु दोनों के बारे में सोचकर आपस में और यहाँ तक की कॉलेज
में भी मजे लिए है । पर आज जाकर हम दोनों की असली प्यास बुझी है ।

मुझे पता है की तुमने ही कोमल की वर्जिनिटी ली है और पापा ने मेरी। काश इसका उल्टा होता, पापा कोमल की लेते और
तुम मेरी। सच में , मजा आ जाता। मेरी बाते सुनकर उसके हे रानी भरे चेहरे के भाव बदलने लगे। और उसके लंड का साईज
भी।

61
मैंने अपनी बात जारी राखी: दे खो आशु, तुम्हे अपनी बहन की तो अब रोज ही मिला करे गी और साथ ही साथ मेरी भी। अब
तुम ये सब सोचना छोड़ दो की कोमल और किसके साथ अपनी जवानी के मजे लेती है । तुम सिर्फ अपने आम गिनो और
मजे लो। उसके गिनने बैठोगे तो तुम्हे अपने आमों से भी हाथ धोना पड़ेगा। समझे।

उसने हाँ में गर्दन हिलाई।

मैं: शाबाश… अब इधर आओ। मेरी चत


ू की गर्मी अभी शांत नहीं हुई है । तम्
ु हारे गर्म लंड की ठं डक ही इसका इलाज है । मैंने
उसके पाईप को पकड़ा और अपनी तरफ खींचा। उसकी साँसे इतनी तेज चल रही थी की मेरी त्वचा को भी झुलसा रही थी।
शायद मेरी बाते सुनकर। या फिर बाहर अपनी बहन की चुदाई के बारे में सोचकर।

आशु: सुनो दीपा… क्या… क्या हम बाहर दे खे की क्या हो रहा है …

मैं उसकी बात सुनकर अब है रान होने की बारी मेरी थी। यानी वो अपनी बहन को चुदते हुए दे खना चाहता था। मैंने भी सोचा
की इसमें ज्यादा रोमांच है । अगर पापा को पता चल भी गया तो भी वो मुझे कुछ नहीं कहें गे। मैंने झट से हाँ कर दी
और हम भागकर दरवाजे के पास आये। मैंने हलके से दरवाजा खोल दिया और बाहर का नजारा हम दे खने लगे। बाहर तब
तक कोमल अपने कपडे पहन कर दरवाजे तक पहूँच चुकी थी। उसने दरवाजा खोला और पापा अन्दर आ गए।

"हे ल्लो बेटा… आज आने में थोड़ी दे र…”

वो इतना ही बोल पाए थे की कोमल को दे खकर वो चौंक गए। उन्होंने समझा था की मैं हूँ, क्योंकि मम्मी तो उन्हें बताकर
ही बाहर गयी थी और शायद अपनी बेटी को चोदने का प्लान बनाकर ही वो आये थे ऑफिस से। पर कोमल को ऐसे कपड़ो
में दे खकर तो उनका मंह
ु खल
ु ा का खल
ु ा ही रह गया।

पापा: अरे कोमल बेटा तम्


ु म…

उनकी नजरे उसकी टाईट टी शर्ट और उसमे से झाँक रहे निप्पलस के ऊपर से फसलती हुई उसकी चिकनी जांघो तक गयी।
और छोटी सी निक्कर में फंसी हुई उसकी मोटी जांघ को दे खकर ही उनके मुंह में पानी आ गया। कोमल ने ही पहल करी।
और पापा का हाथ पकड़ कर अन्दर खींचा। ताकि सामने वाली आंटी एकदम से बाहर निकल कर उसे न दे ख ले। अन्दर
आते ही कोमल ने पापा के हाथ से उनका बेग ले लिया।

कोमल: वो क्या है न अंकल… आज मैं और दीपा कॉलेज नहीं गए। इसलिए घर पर ही चिल्ल मार रहे थे।

पापा: अच्छा… अच्छा कोई बात नहीं। वैसे दीपा कहाँ है … उनकी नजरे मुझे ढूँढने लगी।

कोमल: वो… वो तो सो रही है । मुझे नींद नहीं आई थी तो मैं टीवी दे ख रही थी। आप बैठिये, मैं आपके लिए पानी लाती हूँ।
और इतना कहकर मैं अपनी गांड मटकाती हुई किचन की तरफ चल दी।

पापा बड़े ही गौर से उसे जाते हुए दे ख रहे थे। उनके चेहरे पर पसीना आ रहा था। शायद कोमल के बारे में सोचकर। मुझे भी
अपनी गांड पर आशु के लंड का एहसास होने लगा था। उसके लंड का सुपाडा मेरी गांड के छे द के ऊपर सुरसुराहट फैला रहा
था। मेरा परू ा शरीर उसके लंड का एहसास पाकर सुन्न सा होने लगा था। कोमल पापा के लिए पानी लायी और पापा ने परू ा
गीलास एक ही घँट
ू में पी लिया। वो अभी तक कोमल की निक्कर को घरू े जा रहे थे। कोमल और मैं पापा की ऐसी हालत
दे खकर मुस्कुरा दिए।

कोमल पापा के पास ही सोफे पर बैठ गयी।

कोमल: पता है राज अंकल, आज मैंने दीपा के कपडे पहने है । कैसे लगे आपको…

पापा को तो मालम
ु था की ये मेरे ही कपडे हैं। कल ही उनके सामने पहन कर गयी थी और उन्होंने मझ
ु े बरु ी तरह से चोदा था
फिर।

62
पापा: हम्म… पता है । तुम काफी सेक्सी लग रही हो इसमें । पापा ने तो एकदम से ही कोमल को सेक्सी बोल डाला। वाव…
अब आएगा मजा।

कोमल: ओह… थेंक्स अंकल, एकचुली मुझे पता नहीं था की आप आने वाले है । वर्ना मैं अभी तक अपने ही कपडे पहन लेती।

पापा: अरे कोई नहीं कोमल। तुम तो इसमें इतनी सुन्दर लग रही हो। तुम्हारी स्किन इतनी सोफ्ट है , सच में । और ये कहते
हुए पापा ने अपना एक हाथ कोमल की जांघ के ऊपर फेराया। कोमल के साथ-२ मेरे शरीर में भी झरु झरु ी सी दौड़ गयी। मझ
ु े
अंदाजा नहीं था की पापा एकदम से खुल कर उसके साथ ऐसा करना शुरू कर दें गे। पर शायद पापा को एहसास हो गया था
की मैंने कोमल को अपने और पापा के बारे में सब बता दिया है । और शायद येही सोचकर पापा भी अपने चांस ले रहे थे की
शायद कोमल भी उनमे कोई इंटरस्ट दिखाएगी।

कोमल: आप…आपको मेरी स्किन सोफ्ट लगी…

पापा: हम्म… बिलकुल छोटे बच्चे जैसी सोफ्ट एंड क्लीयर।

पापा का हाथ फिर से कोमल की टांग के ऊपर पियानो बजाने लगा। कोमल की नाभि वाला हिस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था।
पापा ने अपना एक हाथ उसकी कमर में डाला और उसे अपनी तरफ खींचा।

पापा: अच्छा कोमल, मझ


ु े एक बात तो बताओ। मैं तम्
ु हे कैसा लगता हूँ…

कोमल: आप अच्छे है अंकल। इन्फेक्ट आप हम सभी फ्रेंड्स के पापा लोगो में सबसे स्मार्ट हो और मुझे तो आप शुरू से ही
इतने अच्छे लगते हो की मन करता था की आपको पकड़ कर… पकड़ कर। और इतना कहते-२ ही कोमल रुक गयी।

पापा: हाँ… हाँ बोलो। मझ


ु े पकड़ कर क्या… बोलो न…

कोमल शर्मा रही थी। शायद उत्तेजना में वो कुछ ज्यादा ही बोल गयी थी। अब कोमल के पाले में बोल थी। अगर वो बोल
दे गी तो सब आसानी से हो जाएगा। वर्ना पापा भी सकुचा कर बात करें गे आगे की। कोमल ने मुंह नीचे किये हुए ही बोलना
शुरू किया: पता है अंकल… मैं जब भी आपको दे खती हूँ तो मुझे पता नहीं क्या हो जाता है । बस मन करता है की आपकी
बाहों में … आप मझ
ु े जोर से दबा डाले। बस…

कोमल के कहने की दे र थी की पापा ने अपनी बलिष्ट बाजए


ु उसके चारो तरफ लपेट दी। उसके चेहरे को अपनी तरफ किया
और उसे जोर से भींच डाला अपने सीने से लगा कर। उसके कमल कलश पापा की चोडी छाती से चिपक कर बरु ी तरह से
पिस गए। कोमल का चेहरा दरवाजे की तरफ था और उसके चेहरे पर आये हुए संतुष्टि के भाव दे खकर मैं भी रोमांच से भर
गयी। मझ
ु े एहसास हो गया था की कोमल को कितना सक
ु ू न मिल रहा होगा। तभी पापा ने उसके चेहरे को अपनी तरफ
किया।

दोनों ने कुछ दे र तक एक दस
ु रे को दे खा और फिर दोनों की आँखे बंद और होंठ एक दस
ु रे की तरफ खींचते चले गए। और
अगले ही पल मैंने और आशु ने किस ऑफ़ द सेंचुरी दे खि। इतनी इरोटिक थी उनकी किस। पापा ने तो उसके दोनों गुलाबी
होंठो को परू ा मंह
ु में ले लिया, और उसे दसहरी आम की तरह से चस
ू ने लगे। उसके होंठो के सईद से आमरस निकल कर
गर्दन की तरफ जाने लगा। पापा ने किस्स तोड़कर अपनी जीभ से नीचे फिसल रहे आमरस को भी अपने मुंह में समेत
लिया।

कोमल का मुंह खुला का खुला रह गया। अह्ह्ह्हह्ह अंकल सच में । ऐसा ही सोचती थी मैं की काश आप अपने सेक्सी होंठो
से मझ
ु े चस
ू चस
ू कर पी जाओ, परू ा का परू ा। अह्ह्हह्ह… पापा तो पागल से हो गए। उनके सामने बीस साल की जवान
लड़की थी। जो उन्हें बचपन से चाहती थी।

और आज अपनी चाहत की वजह से ही वो अपना सब कुछ उन्हें सोम्पने के लिए तैयार थी। आशु भी अपनी बहन का ये रूप
दे खकर पागल सा हो गया। उसे तो मालुम ही था की उसके होंठो को चूसने से कितना मीठा रस निकलता है । अचानक आशु

63
ने मुझे अपनी तरफ हींचा और मेरे सूखे हुए होंठो को अपने मुंह में भींचकर पीने लगा। ठीक उसी तरह जैसे बाहर पापा
कोमल का रसपान करने में लगे हुए थे।

आज तो दो-दो तूफ़ान आयेंगे। एक अन्दर और एक बाहर। क्रमशः 62

अब मेरा परू ा ध्यान आशु की तरफ था। उसकी अधीरता दे खते ही बनती थी। मेरी ब्रेस्ट को तो वो खिलोने की तरह दबा रहा
था। और निप्पलस को अपनी उं गलियों के बीच भींचकर उसमे से दध
ू निकालने की असफल कोशिश कर रहा था। आज मुझे
अपनी जवानी का एहसास हुआ था। मतलब हर चद
ु ाई के बाद या दोरान मझ
ु े इसी तरह का एहसास हुआ करे गा। ये सोचकर
मेरे तन बदन में रोमांच सा भर गया।

मैं वहीँ दरवाजे पर बैठ गयी। और आशु के तड़पते हुए लंड को अपनी हथेली में भरकर चूसने लगी। मेरा मुंह ऊपर की तरफ
था, उसके चेहरे के भाव दे खकर मेरी चूसने की स्पीड और तेज होने लगी। पर अभी मैं उसके रस को सिर्फ अपने मुंह में
निकाल कर अपनी चत
ू को प्यासा नहीं छोड़ सकती थी। मैं उठी और अपने गीले होंठ से उसके होंठो को पकड़ कर उतनी ही
तेजी से चूसने लगी जितनी तेजी से उसका लंड चूसा था। तभी बाहर से मुझे पापा की लम्बी सिसकारी की आवाज आई। हम
दोनों का ध्यान बाहर की तरफ चला गया।

बाहर तो कोमल ने अत्त मचा रखी थी। वो तो मेरे पापा के साथ ऐसे प्यार का खेल खेलने में लगी थी मानो कई बार कर
चक
ु ी है उनके साथ। उनके लंड को पें ट से निकाल कर चस
ू ने में लगी हुई थी कुतिया। पापा ने अपनी आँखे बंद कर ली थी।
और अपने सर को पीछे करके सोफे के ऊपर रख लिया था और लंड चुस्वाने के मजे लेने में लग गए। और फिर कोमल
अपनी जगह से उठी और जल्दी-२ अपने कपडे उतारने लगी।

उसकी टी शर्ट और निक्कर को उतरने में सिर्फ एक मिनट लगा। और वो जब नंगी होकर पापा के सामने खड़ी हुई तो पापा
की हालत दे खने वाली थी। उन्होंने तो सोचा भी नहीं होगा की आज घर आकर उन्हें उस कोमल को नंगा दे खने का मौका
मिलेगा जिसे दे खकर ना जाने उनके लंड ने कितनी बार कलाबाजिया खायी थी। पापा ने भी आनन फानन में अपने कपडे
उतार फेंके और नंगे होकर उसी अवस्था में सोफे पर जा बैठे। कोमल के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, जब उसने पापा को परू ा
नंगा दे खा और उनके लंड का साईज अपने सामने दे खकर वो मचल सी उठी। और अपनी कमर को थिरकाते हुए धीरे -२
नाचने लगी।

वो उनके सामने बड़े ही इरोटिक वे में डांस कर रही थी। नंगी होकर, केबरे डांस।

वो पलटी और पापा की तरफ अपनी गांड करके अपनी गीली चूत के दर्शन करवाने लगी। और थोडा पीछे होकर, झुककर
अपनी गांड को पापा के मुंह से लगा कर उनसे चुस्वाने लगी। पापा तो उसकी गांड को चुस्की की तरह से चूसने लगे। मैं और
आशु बस अपने शरीर को एक दस
ु रे के साथ चिपका कर बाहर का नजारा बिना पलक झपकाए दे ख रहे थे। कोमल डांस
करती हुई पापा के पीछे की तरफ गयी और अपने हाथो से उनके कंधे दबाने लगी। पापा की आँखे बंद हो गयी इस तरह का
एहसास पाकर। फिर कोमल ने नीचे झुककर पापा के कानो को अपने मुंह में भरा और उन्हें चूसने लगी। पापा के मुंह से तो
एक ठं डी सी चीख निकल गयी।

अह्ह्ह्ह ह्ह्हह्ह्ह्ह कोमल…

कोमल के मोटे नारं गी पापा के कंधो को छु रहे थे और उसके कठोर निप्पलस उन्हें चुभ रहे थे। पापा ने अपने हाथ ऊपर
किये और उसके दोनों थनों को पकड़ कर उन्हें दबाने लगे, मानो भें स का दध
ू निकाल रहे हो। कोमल का शरीर नीचे आता
जा रहा था और अंत में उसकी गांड सोफे के पीछे की तरफ उभरी हुई दिखाई दे ने लगी। क्योंकि उसका मुंह पापा के खड़े हुए
रोकेट तक पहूँच चक
ु ा था और उसने झट से उसे मंह
ु में भरकर चस
ू ना शरू
ु कर दिया।

64
पापा ने भी कोमल को थोडा और नीचे खींचा और उसकी एक टांग को घुमा कर अपने सर के दस
ू री तरफ कर लिया। और
इस तरह से उसकी रसीली चूत अब उनके चेहरे के बिलकुल सामने थी। पापा ने बिना दे र किये अपना प्यासा मुंह उसकी
चिकनी चूत के ऊपर रख दिया।

कोमल के दोनों पैर ऊपर छत की तरफ थे और बरु ी तरह से अपनी चत


ू को चस्
ु वाने की वजह से वो डांस से कर रहे थे। पापा
तो आदमखोरो की तरह उसकी चूत को कच्चा खाए जा रहे थे। उनकी जीभ ही इस वक़्त एक छोटे -मोटे लंड का काम कर
रही थी। और नीचे पापा का लंड उसके गले को भी टच कर रहा था। ये आसन था ही ऐसा। पापा का परू ा लंड कोमल के गले
के पिछले भाग को ठोकर मार रहा था।

फिर अचानक पापा ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए, उसकी गांड से पकड़ कर सीधा किया और सीधा अपने लंड के
ऊपर लेंड करवा दिया। पापा का लंड आशु से मोटा था। इसलिए वो चूत के गेट पर अटक सा गया। कोमल अपने पंजो के
बल बैठी थी और पापा के कंधो पर हाथ रखकर उनके लंड को बीच रास्ते में अटका दे खकर मचल सी रही थी। पापा ने उसका
काम आसान कर दिया। एक ही झटके में उसके हाथो को झटके से ऊपर किया। और फिर पंजो को पकड़ कर हवा में उठा
दिया। और बेचारी कोमल। सररर… सररर करती हुई, अपने परू े भार के साथ, पापा के हरामी लंड के ऊपर गिर पड़ी और वो
उसकी चत
ू को ककड़ी की तरह से भेदता हुआ, अन्दर तक जा घस
ु ा।

अयीईईई… मर्र्र्र र गयी अह्ह्ह्हह्ह…

कोमल ने पापा की गर्दन के चारो तरफ अपनी बाहे लपेट दी। और अपने मुम्मे उनके चेहरे पर दबा कर उनकी साँसों को रोक
सा दिया। पापा ने बड़ी मश्कि
ु ल से उसे पीछे किया। उसकी आँखों में आंसू थे। पापा ने उसकी पीठ को सहलाया। ब्रेस्ट को
चूसा। होंठो को भी चाटा। और जब उसका दर्द थोडा कम हुआ तो उन्होंने नीचे से धक्के दे ने शुरू किये। कोमल के मुंह से अब
मीठी सिस्कारिया निकलने लगी थी। और वो आनंद विभोर होकर पापा के लंड को अपनी चूत के मैदान में धकेल कर उनके
साथ कुश्ती खेलने लगी।

फिर तो कोमल का उग्र रूप सामने आया। उसने पापा के हाथो को सोफे के पीछे की तरफ मोड़कर बाँध सा दिया। और उनके
ऊपर उछल उछल कर उनके लंड को अपनी चूत में लेकर चुदवाने लगी। और नीचे झुककर उनके चेहरे को पकड़कर होंठो को
चबा सा लिया। और अपनी ब्रेस्ट को उनके चेहरे पर रगड़-२ कर जोरो से सिस्कारिया लेकर। झड़ने लगी। अह्ह्ह्हह्ह…
अंकल आई एम ् कमिंग।

कोमल की आवाज सन
ु कर पापा के लंड ने भी उसका साथ दिया और उसने भी अपने अन्दर का ज्वालामख
ु ी कोमल की चत

के अन्दर खाली कर दिया। उन दोनों की चुदाई दे खकर आशु और मेरे मुंह से बस एक ही शब्द निकला।

वाव…

अब बारी हमारी थी। अपनी बहन की जंगली चुदाई दे खकर मेरा टार्जन भी जंगलीपने पर उतर आया था। उसकी आँखों में
दे खकर मुझे अपनी होने वाली चुदाई से डर सा लगने लगा था। क्रमशः 65

मैं तो आशु के चेहरे के भाव दे खकर कुछ डर सी गयी, उसकी आँखे अजीब तरीके से लाल हो चक
ु ी थी। शायद वो अपनी बहन
को मेरे पापा से चुदते दे खकर ज्यादा ही उत्तेजित हो गया था। या फिर उसका बदला वो उनकी बेटी, यानी मुझे चोदकर
लेना चाहता था।

मैं: क्या इरादे है टाईगर…

आशु: इरादे तो बिलकुल साफ़ है मेरी जान। तेरी चीखे निकालनी है अब तो बस…

मैं: पागल हो क्या… बाहर पापा है , उन्होंने सुन ली तो…

65
आशु: तो क्या हुआ। वो भी कौन सा दध
ू के धुले है । पहले तुम्हे चोद चुके है , और अब तुम्हारी सहे ली यानी मेरी बहन को भी
चोदने में लगे हुए है । साला एक नंबर का चोद ु है ।

मैं: (बनावटी गुस्से से, उसकी तरफ ऊँगली करके बोली) ओये… मेरे पापा को गाली मत दे ना, कहे दे ती हूँ।

आशु ने मेरी ऊँगली को पकड़ा और मेरे उस हाथ को पीछे कमर की तरफ मोड़ कर मुझे अपनी छाती से लगा लिया। मेरी
साँसे उसके होंठो से टकरा रही थी। और फिर हमने अपनी चेहरे एक दस
ु रे के अन्दर घस
ु ा दिए और बेतहाशा चम
ू ने और
चूसने लगे एक दस
ु रे को। और सच में , आशु का बर्ताव अब काफी चें ज हो चुका था, उसकी चूसने की ललक ही बता रही थी
मेरी आने वाली चुदाई का अफसाना।

आज तो मेरी चूत की खेर नहीं। उसने मेरे बालो को पकड़ा और मुझे बड़ी ही बेदर्दी से बेड के किनारे पर बिठा कर अपने लंड
को चस
ू ने को कहा। मैंने उसके विशाल लंड को पकड़ा और चस
ू ने लगी। मेरे मंह
ु के अन्दर भी उसके लंड की कलाबाजिया
जारी रही, मुझे बड़ी ही मुश्किल हो रही थी उसके लंड को अपने मुंह में पकड़ कर रखने में । मेरे मुंह से निकल रही थूक मेरी
ब्रेस्ट के ऊपर गिरकर उन्हें गीला कर रही थी।

आज सच में मुझे मजा आ रहा था उसकी आँखे बंद होती चली गयी। वो ऊपर की तरफ मुंह करके जैसे कुछ सोचने लगा। या
फिर ये कहलो किसी के बारे में सोचने लगा। मैं है रान थी की मेरी जैसी हसीं लड़की उसका लंड चस
ू रही है , और वो आँखे बंद
करके किसके बारे में सोच रहा है । शायद कोमल के बारे में या फिर कोई और है ।

मैंने उसका लंड बाहर निकाला और बोली: क्या सोच रहे हो आशु…

उसने अपनी आँखे खोली और सिसकारी मारकर धीरे से मस्


ु कुराने लगा, जैसे मैंने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो।

मैं: लंड में चस


ू रही हूँ, और तम
ु सोच किसी और के बारे में रहे हो। है न…

उसने हाँ में सर हिलाया। और अपने लंड को हाथ में लेकर डंडे की तरह मेरे चेहरे पर मारने लगा।

मैं: कौन है वो… कोमल… 

आशु ने ना में सर हिलाया।

अब है रान होने की बारी मेरी थी।

मैं: फिर कोन… तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड…

उसने ना में सर हिलाया।

मैं झल्ला गयी: कौन है फिर, बोलो तो…

आशु: वो हमारे साथ वाले घर में रहती है । आज तक कभी बात नहीं हुई। पर शी इस हॉट लाईक फायर… उसका नाम है
हिनल।

मैं उसकी बात सुनकर लंड चूसना भूलकर उसकी तरफ टकटकी लगाकर दे खने लगी।

आशु: मैं जब भी उसे दे खता हूँ तो पता नहीं क्या हो जाता है , उसकी ब्रेस्ट दे खकर तो मैं पागल हो जाता हूँ, वो कभी भी सट

के साथ चुन्नी नहीं पहनती, हमेशा छत पर भी अकेली घूमती है , और बाजार भी अकेली जाती है , पर मेरी कभी हिम्मत नहीं
हुई, और घर में कोमल को दे खकर तो मेरा दिमाग और भी खराब हो जाता है , और अब जब कोमल और तुम्हारे साथ मैंने
सब कुछ कर लिया है तो मेरा मन उसकी तरफ ही जा रहा है , सोच रहा था आँखे बंद करके की वो मेरा लंड चूस रही है इस
समय। सच में मजा आ जाता।

मैं: तो इसमें क्या प्रोब्लम है । तुम मुझे आज के लिए हिनल समझो। और मजे लो, उसके साथ बाद में क्या करना है , हम
मिलकर सोच लेंगे।
66
आशु का चेहरा खिल उठा। उसने अपने लंड को मेरे मुंह में वापिस धकेला और धीरे से बोला: हिनल क्या तुम मेरा लंड
चुसोगी…

मैं: आशु, आज तेरी हिनल तेरा लंड भी चूसेगी और उसे अपनी चूत के अन्दर भी लेगी। पता है , मैं घर या बाहर निकलते हुए
अपनी छाती पर चन्
ु नी इसलिए नहीं पहनती ताकि तू उन्हें साफ़ तरीके से दे ख सके। मेरे सट
ू के नीचे से झांकते हुए कठोर
निप्पलस तुझे दिखाई दे । पर तू तो कुछ समझता ही नहीं रे । अनाड़ी कही का। हे हे …

मुझे भी ये रोल प्ले करने में मजा आ रहा था।

मैं: और पता है , छत पर भी मैं बस येही सोचकर घूमती हूँ की काश तू आये और मुहे पकड़कर बस मसल डाले, नीले
आसमान के नीचे मुझे नंगा करके मेरी चूत को फाड़ डाले। और मेरे मुम्मे पकड़कर उन्हें पीस डाले और मेरे निप्पलस को
अपने मंह
ु में डालकर मेरा सारा रस पी जाए। मेरी चत
ू भी गीली होकर टपकने लगी थी, और आशु की क्या हालत हो रही
होगी ये आप खुद ही समझ सकते है । लगता है सच में काफी गरम माल होगी ये हिनल। अगर मौका मिला तो उसकी चूत
को चूसने में काफी मजा आएगा।

मैंने अपनी एक ऊँगली चूत में घुसा डाली। और ढे र सारा रस इकठ्ठा करके मैं ऊपर उठी और अपनी रस में भीगी हुई सी
उं गलिया आशु के मंह
ु में डाल दी।

मैं: ले आशु, चूस अपनी हिनल की चूत का रस। दे खो न, कितनी बुरी तरह से मचल रही है मेरी चूत। जल्दी से आओ और
अपनी हिनल की चूत के अन्दर अपने लंड को पेलकर अपनी और मेरी प्यास बुझाओ। जल्दी अह्ह्ह…

मझ
ु े उसने बड़ी ही बेरहमी से धक्का दिया और मैं बेड पर जाकर गिर गयी।

आशु: साली हिनल… आज तझ


ु े बताता हूँ की मझ
ु े तरसाने का क्या अंजाम होता है । भेन की लोड़ी, सरे बाजार अपनी छाती
की नुमाईश करती फिरती है । आज तेरी छातियो को चूस चूसकर इनमे से दध
ू न निकाल दिया तो मेरा नाम आशु नहीं। और
फिर आशु ने झुककर मेरी ब्रेस्ट को पकड़ा और उन्हें जोर जोर से चूसने लगा। मेरी तो आँखों में आंसू आ गए, उसका
वेह्शिपन दे खकर, वो अपने दांतों से मेरी छातियो पर गहरे निशान बना रहा था, मेरे निप्पलस को काट रहा था, और अपने
हलके शेव वाले चेहरे से रगड़कर उनपर स्क्रेच भी डाल रहा था।

कुल मिलकर मुझे मजे से ज्यादा दर्द हो रहा था। मैं तो बेचारी हिनल के बारे में सोच रही थी, की जब असली में इस जानवर
के सामने वो बकरी आएगी तो क्या हाल करे गा ये उसका। मैंने उसके लंड को अपनी गीली चूत के मुहाने पर लगाया और
उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा। घच sssss से उसका लंड मेरी चत
ू की दीवारों को भेदता हुआ अन्दर दाखिल
हो गया।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… आशु, तेरी हिनल इस पल का कब से इन्तजार कर रही थी। अह्ह्ह्ह… चोद डाल आज अपनी हिनल की चूत
को अपने लंड से भेद कर परू ा अपना बना ले। अह्ह्ह्हह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… गोड… सच में , उसके वेह्शिपन की वजह से चुदाई
का मजा दग
ु ना हो गया था। थेंक्स टू हिनल।

मझ
ु े भी हिनल बनकर चद
ु वाने में मजा आ रहा था, वैसे भी, मझ
ु े तो चद
ु ाई से मतलब था, फिर चाहे वो मेरी हो या मेरी चत

को हिनल की समझ कर। अह्ह्ह्हह्ह… आशु, साले इतना मोटा लंड कहा छुपाया हुआ था तुन।े पहले पता होता तो कब का
निगल जाती तझ
ु े। म्मम्म…

आशु: ले साली रं डी। आज तू मेरे लंड का कमाल दे ख। जितना तरसाया है तुने, आज उतनी चीखे नहीं निकलवाई तेरी तो
मेरा नाम भी आशु नहीं। अह्ह्ह्ह… ओह्ह्हह्ह… मर्र्र्र र गयी रे अह्ह्हह्ह… आशु मार डालेगा क्या… साले, चति
ु या साले
अह्ह्ह्ह… अफ्फफ्फ्फ़… म्मम्मम… मजा आ गया रे … मम्म…

और फिर उसके लंड ने पिस्टन की तेजी से मेरी चूत के अन्दर जाना और बाहर निकलना शुरू कर दिया। मेरी चीखे कब
लम्बी सिस्करोयो में बदल गयी, मुझे भी पता नहीं चला।
67
अंत में जब आशु के लंड से निकल पिचकारियो से मेरी चूत की दीवारे भीगनी शुरू हुई तो मैंने भी लगातार तीसरी बार
अपनी चूत का पानी कुर्बान किया और एक लम्बी फ्रेंच किस करके हम दोनों वही बेड पर लुढ़क गए। क्रमशः 67

मेरा तो सर चकरा रहा था, आज जैसी चुदाई अगर रोज मिल जाए तो मेरी चूत के तो मजे हो जायेंगे। पापा ने बेशक मेरी
सील तोड़ी थी और मुझे जवानी का पहला नशा चखाया था, पर आशु से चुदकर पता चला की असली चुदाई क्या होती है ।
आखिर उम्र का भी तो तकाजा है । आशु के जवान चीते और पापा के बढ़
ू े शेर में कुछ तो फर्क होगा ही। तभी मझ
ु े एहसास
हुआ की दरवाजे के पास कोई है । मैंने जैसे ही अपनी आँख खोली, तो पाया कोमल और पापा अन्दर आकर खड़े थे और
हमारी चुदाई का मजा उठा रहे थे। आशु की पीठ उनकी तरफ थी, और उसका लंड अभी भी मेरी चूत के अन्दर ही फंसा हुआ
था।

पापा के चेहरे को मैंने दे खा तो पाया की उन्हें गस्


ु सा नहीं आ रहा था, तो मझ
ु े काफी रिलीफ महसस
ू हुआ। बल्कि उनके
मुरझाये हुए लंड ने अंगडाई लेनी शुरू कर दी थी। अपने सामने ही, अपने ही घर में , अपनी बेटी को किसी और से चुदते हुए
दे खकर शायद उनके अन्दर एक अजीब तरह की कशमकश चल रही थी। और साथ ही खड़ी हुई कोमल तो नोर्मल थी, उसे
तो मालुम ही था की उसके बाहर जाने के बाद मैं और आशु क्या करने वाले है , और वैसे भी वो अपने भाई के लंड से अनजान
नहीं थी। उसने एक आँख मारकर और फिर मुस्कुरा कर पापा के लंड की तारीफ की। और फिर अपनी चूत में ऊँगली डालकर
वहां से रिस रहा अमत
ृ चाटने लगी।

मेरे हाथ आशु की पीठ पर और जोर से कस गए, वो अभी तक उन दोनों के बाहर खड़े होने से अनजान था, जैसे ही मैंने
अपनी पकड़ उसपर बढ़ाई, मेरी छाती उसके सीने से और जोर से दब गयी और मेरे शूल जैसे निप्पल उसकी चोडी छाती पर
चुभने लगे। मेरी चूत की दीवारे भी सिसक सिसककर उसके लंड को अपने अन्दर निचोड़ने लगी। और तब उसे एहसास हुआ
की मैं फिर से उत्तेजित हो रही हूँ। आशु का लंड मेरी चत
ू में था और सामने मेरे पापा का लंड हमें ऐसी अवस्था में दे खकर
खूंखार होता जा रहा था।

अचानक मेरे जहन में एक ख़याल आया। क्यों न मैं आशु और पापा का लंड एक साथ अपने अन्दर लू। अह्ह्ह्ह… ये सोचते
ही मेरी चूत से शहद निकल निकलकर बाहर की और रिसने लगा। आशु भी है रान था की अभी दो मिनट पहले ही चुदने के
बावजद
ू मैं फिर से कैसे उत्तेजित हो रही हूँ। पर उसे नहीं मालम
ु की हम लडकियों में सेक्स की कितनी भख
ू होती है । लडको
को शायद टाइम लगे फिर से चुदाई के लिए तैयार होने में । पर एक लड़की लगातार कई बार झड़ने के बाद फिर से चुदने को
झट से तैयार हो सकती है और ये खासियत हर किसी में होती है , बस पहचानने की दे र है । मैंने अपने गीले होते हुए होंठो का
पानी आशु को पिलाने के लिए उसे चम
ू ना शरू
ु कर दिया। वो हे रानी भरी आँखों से मझ
ु े दे खता रहा और मझ
ु े चस
ू ता रहा। मेरे
मुंह से अजीब तरह की आवाजे निकलने लगी।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… आशु म्मम्मम… चुसूऊ अह्ह्हह्ह…

आशु: क्या बात है दीपा… अभी भी तेरी प्यास नहीं बुझी लगता है । हूँ… आखिर चाहती क्या है …

मैं: बस मझ
ु े आज तप्ृ त कर दो, परू ी तरह से। मैं बहुत प्यासी हूँ। मन तो कर रहा है की तम्
ु हारे साथ-साथ एक और लंड भी
ले लू।

आशु (मुस्कुराते हुए): मतलब डबल पेनेट्रेशन। साली रं डी…

मुझे उसके मुंह से रं डी सुनकर ना जाने क्यों अच्छा लगा और वो भी अपने पापा के सामने। पापा तो अपनी बेटी और आशु
की गन्दी बाते सुनकर अपने खड़े हुए सांप को हाथ में लेकर जोरो से हिला रहे थे।

आशु: कहे तो बाहर से तेरे पापा को बुला लाऊ… दोनों मिलकर तेरी प्यास को बुझा दें गे। बोल…

मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी उसकी बात सुनकर।

68
मैं: चाहती तो मैं भी यही हूँ। पापा ने ही मेरी चूत का उद्घाटन किया था पर अपनी गांड को मैं तेरे लंड के नाम कुर्बान करना
चाहती हूँ। समझा…

मेरे मुंह से गांड मरवाने की बात सुनकर तो आशु के लंड ने एक जोरदार जम्प ली, मेरी चूत के अन्दर और मुझे नीचे पटक
कर वो मेरे ऊपर सवार हो गया।

आशु: साली रं डी जम्


ु मा-जम्
ु मा चार दिन हुए है तझ
ु े चत
ू की सील तड
ु वाये और अब अपनी गांड भी मरवाना चाहती है । और
वो भी मुझसे। जिसके लंड ने अभी तेरी चूत के परखच्चे उड़ा दिए।

मैं: हां… हाँ और तेरे लंड के कारनामे दे खकर ही तो तुझे ये इनाम दे ने की सोची है मैंने। साले चल दिखा अपना कमाल और
फाड़ दे मेरी गांड को आज। उसने अपना लंड बाहर निकाला, और लंड के निकलते ही मेरी चूत से ढे र सारा रस निकल कर
नीचे की तरफ गिरने लगा।

आशु ने अपने लंड को मेरी गांड के छे द पर टिकाया ही था की मैं बोल पड़ी: अरे रुको तो सही। मैंने क्या कहा था अभी की
पापा और तुम्हारा लंड एक साथ अन्दर लेना है । आशु वही रुक गया। वो समझ रहा था की मैं डबल पेनेट्रेशन वाली बात
मजाक में कह रही हूँ।

मैं पापा की तरफ मुंह किया और कहा: पापा आपको अलग से इनविटे शन दे ना होगा क्या… जल्दी यहाँ आओ।

जैसे ही आशु ने मुझे पापा से बात करते हुए दे खा, वो पलटा और पापा और कोमल को वहां खड़े पाकर वो भोचक्का रह गया।
उसकी हालत दे खकर मेरी और कोमल की हं सी निकल गयी।

आशु: ये…ये ओह्ह्ह… अंकल सॉरी…

वो कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। वो ऐसे बिहे व कर रहा था की मेरे पापा ने जैसे उसे चोदते हुए पकड़ लिया है । पर वो ये भूल
गया था की पापा भी तो उसकी बहन की बाहर चुदाई कर रहे थे। पापा आगे आये, उनका लंड पूरे शबाब पर था। वो कुछ न
बोले, बोलते भी कैसे, लड़की के पिता जो थे। मैंने पापा के लंड को पकड़ा और उन्हें बेड पर बिठाया और फिर उन्हें नीचे लिटा
दिया। उनका लंड ऊपर की तरफ मुंह किये मेरी चूत के आने का इन्तजार कर रहा था। और मैंने भी उन्हें ज्यादा इन्तजार
नहीं करवाया।

मेरी रिसती हुई चूत को मैंने उनके लंड के सिरे पर रखा ही था की पापा ने बड़ी ही अधीरता से मेरी कमर को पकड़ा और मुझे
अपनी तरफ खींच लिया और अपने मोटे होंठ मेरी ब्रेस्ट के ऊपर लगा दिए और उन्हें चूसने लगे। अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह पापा…
आयीsss जानवर ही मिल रहे है मुझे तो आज। अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह…

और फिर मैंने पीछे मुंह किया और आशु से बोली: अब तुम्हे फिर से इनविटे शन दे ना होगा की आओ और मेरे पीछे के
दरवाजे से एंट्री करो। जल्दी आओ अब।

आशु संभला, उसने एक नजर कोमल की तरफ दे खा, जो बड़े ही शोंक से मुझे और पापा को चुदाई करते हुए दे ख रही थी।
और शायद वो भी अपनी गांड मरवाने के लिए तैयार हो रही थी। पर वो पहले मझ
ु े गांड मरवाते हुए दे खकर एक्सपेरिएंस
लेना चाहती थी।

आशु भी बेड के ऊपर चढ़ा और उसने मेरी फेली हुई गांड को जमकर दबाना शुरू कर दिया। नीचे से पापा ने अपने लंड को
मेरी रसीली चूत के अन्दर जोरो से पेलना शुरू कर दिया था। अह्ह्हह्ह्ह्ह बेटी… सच में तू तो अपनी माँ से भी बड़ी चुद्दक्कड़
निकली। अह्ह्हह्ह… उसे तो परू े दो साल लगे थे मझ
ु े समझाने में की गांड मरवा ले। पर तू तो दो दिनों में ही अपने आप ही
तैयार हो गयी।

अह्ह्ह्हह्ह… फछ्ह्ह फच। फच। फच।

मुझे तो अपनी चूत के अन्दर से निकलता हुआ ये संगीत बड़ा ही आनंददायक लग रहा था आज।

69
मेरी चूत के दाने से घिसाई करके जब पापा का तना हुआ लंड बाहर निकलता तो उसकी नसें मेरे दाने से लिपटकर वहां पर
लगा हुआ रस समेट कर बाहर तक ले आती, जो पापा की बाल्स को परू ी तरह से भिगो रहा था। तभी आशु ने भी अपने खड़े
हुए लंड को मेरी गांड के छे द से लगाया। मेरी तो सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गयी। और फिर उसने थूक से
भीघा हुआ लंड एक जोरदार झटके से मेरी गांड के छे द की तरफ धकेला।

अह्ह्हह्ह…

धक्का इतना जबरदस्त था की मैं पापा के ऊपर परू ी तरह से गिर पड़ी। आशु ने मेरी गांड को स्टे रिग
ं की तरह से पकड़ा और
अपने ट्रक को मेरी गांड के हाईवे पर और तेजी से दौड़ा दिया। इस बार उसकी मेहनत सफल रही। उसके लंड का अगला भाग
मेरी गांड के रिंग में जाकर फंस गया। मझ
ु े तो ऐसा लगा जैसे किसी ने एक मोटा सा डंडा मेरे पीछे डाल दिया हो। ये तो शक्र

है की चूत से मिल रहे मजे की वजह से गांड के दर्द का ज्यादा पता नहीं चल पा रहा था, वर्ना मैं तो आज चीख चीखकर पूरा
मोहल्ला इकठ्ठा कर लेती।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह धीरे डाल रे म्मम्मम…

तभी मेरे प्यारे पापा ने मुझे नीचे झुकाया और मेरे होंठो को अपने मुंह में लेकर अपनी प्यारी बेटी के दर्द को थोडा कम करने
लगे। और नीचे से लेटे हुए उन्होंने मेरी चत
ू को भी धक्के दे ने चालु रखे। आशु ने जब दे खा की मैं फिर से सिस्कारिया लेने
लगी हूँ तो उसने अपनी पूरी हिम्मत समेटी और एक और तेज धक्का मारा।

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह… उफ्फ्फ्फ… पापा म्मम्मम…

मेरी तो हालत खराब होने लगी। अब मझ


ु े लग रहा था की मैंने ये कैसा पंगा ले लिया है । पर फिर तो आशु नहीं रुका, उसने
तो अपने लंड को मेरी गांड के अन्दर पूरा घुसाने की जैसे कसम उठा ली थी। दे धक्के पे धक्के। और अगले पांच मिनट तक
तो मेरी गांड सुन्न सी हो गयी। मुझे पता नहीं था की मेरी चूत में क्या हो रहा है और गांड का क्या हाल है । पर इतना जरुर
मालुम था की मेरी चीखे जल्दी ही लम्बी सिस्कारियो में बदलती चली गयी। और ये एहसास होते ही मेरी गांड से अजीब
तरह की वाईब्रेशन आने लगी। जो मेरे परू े शरीर को एक अजीबोगरीब नशा प्रदान कर रही थी। और फिर तो मैंने अपने हाथ
को पीछे किया, आशु के चेहरे को अपने कंधे पर रखा और उसके होंठो को बरु ी तरह से पीने लगी। उसका लंड परू ा का परू ा
मेरी गांड को भेद कर अन्दर समां चुका था। और पापा का लंड तो पहले से ही मेरी चूत के मैदान में फूटबाल खेल रहा था। ये
सारा खेल दे खकर कोमल भी बेड के करीब आकर खड़ी हो गयी। और एक पैर ऊपर रखकर अपनी चूत को जोरो से मसलने
लगी।

पापा के चेहरे के बिलकुल ऊपर थी कोमल की चत


ू । उन्होंने भी अपना हाथ ऊपर करके अपनी खरु दरु ी ऊँगली उसकी चिकनी
सी चूत में घुसा दी। और मसलने लगे। मेरी चूत ने तो कब का पानी छोड़ दिया था, पापा के लंड के ऊपर। और फिर से
अपनी गांड से मिल रहे सेंसेशन की वजह से मैं उत्तेजित होने लगी। और जोर जोर से चीख कर अपनी अगली झडाई की
घोषणा करने लगी।

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह… पापा मज़ा आया रहा है । आआजा स्सस्सस्स… ओह्ह्ह्ह… आशु सच में , गांड और चत
ू को एक साथ
मरवाने का मजा आज जाना मैंने। स्सस्सस्स… ओह्ह्हह्ह गोड… आशु के लंड की नसें भी तनकर मेरी गांड को आने वाली
बाड़ का सिग्नल दे ने लगी। और पापा भी अपने गले से अजीब तरह की आवाजे निकाल कर अपने झड़ने का एलान करने
लगे। अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह… ओह्ह्हह्ह… म्मम्मम…

और सामने खड़ी हुई कोमल की तो बात ही क्या। मझ


ु े अपने भाई और मेरे पापा से चद
ु ते हुए दे खकर उसकी चत
ू ने आज
होली मनाने की सोच ली थी जैसे। उसकी चूत से हलकी फुलकी बारिश सी होने लगी थी रस की। जो सिर्फ आने वाली तेज
बारिश का आगाज थी। और फिर तो कमरे में एक साथ कई बाँध टूट गए। मेरी गांड के अन्दर आशु के लंड का। मेरी चूत के
अन्दर पापा के भस
ु ंड का।

70
उन दो के लंड की हरकत महसूस करके मेरी चूत का। और सामने खड़ी हुई कोमल की कमसिन सी चूत का। अह्ह्हह्ह…
ओह्ह्हह्ह गोड फक्क्क्क… आई एम ् कमिन्ग अह्ह्हह्ह… स्सस्सस्स… ओह्ह्हह्ह्ह्ह…

अपने आगे और पीछे वाली बाड़ को तो मैंने अपने अन्दर समां कर रोक लिया। पर कोमल की चूत से जब फुव्वारे निकलने
लगे तो मैं, पापा और आशु सब को भिगोती चली गयी वो। ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपनी चत
ू में कोई पिचकारी फिक्स
कर ली है । और अपने अन्दर का गीला और चिपचिपा रस वो हम सब पर डालकर हमें भिगो रही है ।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… दीपा… आशु… म्मम्मम… ओफ्फ्फ्फ अंकल मैं तो गयी। और वो ऐसे बेड के ऊपर गिरी जैसे बेहोश हो गयी
हो। और सच में गिरते ही उसकी आँखे बंद हो गयी थी। वो खो गयी थी अपनी अलग सी दनि
ु या में । जब तूफ़ान शांत हुआ
तो आशु ने अपना लंड बाहर खींचा और मैं ऊपर से उठ कर नीचे उतरी। मेरी चत
ू और गांड से लगातार दोनों का रस बहकर
नीचे गिर रहा था।

मैं भागकर बाथरूम में गयी और शावर चला कर नहाने लगी। पीछे -२ आशु भी आ गया और फिर पापा भी। हमारे अन्दर
अभी और हिम्मत नहीं थी की वहां और चुदाई कर सके। इसलिए सिर्फ एक दस
ु रे को सहला कर, नहला कर ही बाहर निकल
आये।

बाहर कोमल अभी भी रस में भीगी हुई चादर के ऊपर बेहोश पड़ी थी। असली मजे तो उसने लिए थे। बिना लंड लिए ही झड
गयी और बेहोश हो गयी। जब उसकी गांड और चूत में एक साथ लंड जायेंगे तो बेचारी का क्या हाल होगा, ये सोचकर ही मैं
मुस्कुराने लगी।

उसके बाद हम सबने कपडे पहने और बाहर आकर बैठ गए, मैंने सबके लिए कुछ खाने को बनाया, इतने में कोमल भी
उठकर, नहा धोकर बाहर आ गयी थी। फिर जब मम्मी आई तो आशु और कोमल अपने घर चले गए। आज का दिन तो मैं
कभी नहीं भूलने वाली थी।

अब कल कॉलेज में जाकर मेडम से मिलना था। और उन्हें बताना भी था। अपनी इस नयी "एचीवमें ट" के बारे में ।
क्रमशः 69

अब आगे
********

कोमल
********
सुबह कॉलेज जाने के लिए कोमल घर से जल्दी निकली, कल जो उसने छुट्टी ली थी, उसकी वजह से कॉलेज में कोई और
बोले न बोले, वाईस प्रिंसिपल मेडम जरुर बोलेंगी। स्टें ड पर पहुंचकर मैंने दे खा की दीपा पहले से मेरा इन्तजार कर रही है ।
मैं उसके पास गयी और उसे गले से लगाकर विश किया।

मैं: क्या बात है दीपा, आज मेरे से पहले तू आ गयी, जल्दी उठ गयी थी क्या…

दीपा: यार, पापा ने सारी रात सोने ही नहीं दिया। तेरे जाने के बाद से लेकर आज सुबह तक, तीन बार मार चुके है मेरी। ठीक
से चला भी नहीं जा रहा अब तो। और कल तेरे भाई ने भी मेरी गांड मारकर उन्हें एक और रास्ता दिखा दिया है मेरे अन्दर
जाने का, पहले पापा चूत में डालते है और गांड में डालकर झाड़ते है । बस यही लगा हुआ है कल से। मैं राज अंकल का
स्टे मिना दे खकर रोमांच से भर उठी। उनकी पेर्सनेलती के साथ-२ मैं अब उनकी चुदाई की भी फेन हो गयी थी। हम बाते कर
ही रहे थे की तभी एक कार हमारे पास आकर रुकी, उसमे से राहुल की आवाज आई।

राहुल: हे कोमल, दीपा आ जाओ अन्दर। राहुल शायद आज अपने पापा की कार लेकर आया था। मैं और दीपा झट से अन्दर
आ गयी, मैं आगे बैठी। जाहिर था। राहुल ने कार चलानी शुरू की।

71
राहुल: क्या यार… कल तुम दोनों ही नहीं आई कॉलेज में । तुम्हारा नंबर भी बंद था कोमल।

मैं: हाँ… दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। और मेरी वजह से दीपा का भी मन नहीं किया कॉलेज जाने का।

राहुल ने पीछे मुड़कर दीपा को दे खा: क्या बात है , दोस्ती हो तो ऐसी। वैसे हमारा ख़याल रखकर ही आ जाती तुम। अपनी
सहे ली की कमी भी परू ी कर दे ती फिर। हा हा…

उसकी डबल मीनिंग वाली बात सुनकर मेरे साथ-२ दीपा की चूत में भी चींटिया रें गने लगी। मैंने अपने एक हाथ को अपनी
चूत वाले हिस्से पर रखा और अपने बेग के नीचे छुपा कर अपनी जांघे भींच ली। और ये सब शायद राहुल ने दे ख लिया था।
और जान गया था की आज सुबह-२ मेरी चूत गीली हो गयी है । राहुल का दिमाग शेतान की तरह से चलने लगा। थोड़ी ही दे र
में हम तीनो कॉलेज पहूँच गए।

पार्किं ग में राजपूत की सफारी भी खड़ी थी, जिसे दे खकर दीपा के चेहरे पर भी एक स्माईल आ गयी। मैं और दीपा सबसे
पहले मेडम के रूम में गए। उन्हें विश किया और उनकी एक-दो बाते सुनकर हम बाहर आ गए। हम सभी अपनी क्लास में
पहुंचे, राहुल मेरे पास आकर बैठा था।

राहुल (फुसफुसाकर): सन
ु ो कोमल… इस पीरियड के बाद तम
ु मझ
ु े ऊपर छत पर मिलना। ओके…

मैं: नहीं राहुल… आज पोसिबल नहीं है । कल भी मैं छुट्टी पर थी।

राहुल: अरे कुछ नहीं होता, मैं तुम्हारे लिए सब नोट्स अरें ज करवा दं ग
ू ा। प्लीस। ये दे खो, तुम्हारे बारे में सोचकर इसका क्या
हाल है ।

उसने पीछे होकर अपने खड़े हुए लंड को पें ट के अन्दर से ही दिखाया। जिसे दे खकर तो मेरी चत
ू में से झर-२ पानी निकलने
लगा। मैं निरुत्तर हो गयी। जो वो कमीना भांप गया। मुझे लगा मेरी चूत में से ढे र सारा पानी निकल कर बाहर आ जाएगा।
मैं जल्दी से उठी और सर से परमिशन लेकर बाथरूम की तरफ दौड़ी। और सीधा लेडिस टॉयलेट में जाकर मैंने अन्दर से बंद
किया और कमोड पर बैठ गयी। पेपर लेकर मैंने अपनी चूत से निकल रहा घी साफ़ किया। इतनी चिपचिपाहट हो रही थी
मुझे अन्दर से।

मैंने अपनी एक ऊँगली अन्दर डाल दी। अन्दर से एक अजीब से सुरसुराहट का एहसास होने लगा था। पांच दस मिनट अगर
ऊँगली से मलूंगी तो सब शांत हो जाएगा। तभी बाहर से किसी ने दरवाजा खटकाया।

मैं: कौन… कौन है ।

बाहर से राहुल की आवाज आई: मैं हूँ राहुल… जल्दी खोलो।

हे भगवान ्, ये राहुल को क्या हुआ है । इतनी बेशर्मी से लेडिस टॉयलेट के अन्दर आ गया है , किसी ने दे ख लिया तो।

मैं: पागल हो गए हो क्या, यहाँ क्या कर रहे हो। जाओ बाहर जल्दी से।

राहुल: मैं नहीं जाऊंगा। तुम खोलो नहीं तो मैं यही खड़ा रहूँगा।

मेरी चत
ू अभी ठं डी नहीं हुई थी, इसलिए मेरे बाहर निकलने का तो सवाल ही नहीं उठता था, मैंने जल्दी से दरवाजा खोला
और उसे अन्दर खींच लिया। अन्दर आते ही राहुल ने दरवाजा बंद कर लिया।

मैं फुसफुसाई: ये क्या है राहुल… कोई दे ख लेगा तो…

राहुल: कोई नहीं दे खेगा। तुम फ़िक्र मत करो, अभी पीरियड ख़त्म होने में आधा घंटा है । तुम बस ये दे खो। उसने एक झटके
से अपनी जिप खोली और अपना लंड बाहर निकाल कर मेरे सामने लहरा दिया। कल से तरह-२ के लंड दे खकर तो मेरी आँखे
अभी तक भरी नहीं थी। आशु के बाद राज अंकल का और अब फिर से राहुल का। और उसे दे खते ही मैं फिर से मदहोश सी
हो गयी। मेरी आँखे बोझिल सी होने लगी। आज साला इसी टॉयलेट में कुछ होकर रहे गा।

72
मैंने अपनी नागिन जैसी जीभ बाहर निकाली और उसके लंड के ऊपर डस लिया। वो सिस्कार उठा।

राहुल: स्सस्सस्सस ओह्ह्ह… कोमल स्टॉप किलिंग मी। सक मी…

मैंने उसके लंड को पकड़ा और अपना पूरा मुंह खोलकर उसे अन्दर धकेल दिया। अह्ह्हह्ह्ह्ह क्या एहसास होता है , नर्म
और गर्म लंड को चूसने का। सच में । लडकियों की मनपसंद चीज है ये चूसने में । लंड के चारो तरफ की गंध और उसमे से
रिसता हुआ रस, और साथ में उसका नरमपन और कड़कपन। मैं तो दीवानी होती जा रही थी इस लंड नाम के अंग की।
राहुल की प्यासी नजरे मेरी ब्रेस्ट को छलनी कर रही थी। मैंने अपनी स्ट्रे चेबल टी शर्ट को कंधे से सरकाया और अपनी एक
ब्रेस्ट नंगी करके उसकी आँखों के सामने परोस दी।

वो तो पागल ही हो गया। और फिर मैंने दस


ू री तरफ के कंधे से भी टी शर्ट खिसकाई और अपनी ब्रा के स्ट्रे प्स को साईड में
करके अपनी दोनों चचि
ू यां नंगी करके उसके सामने कर दी। वो नीचे झक
ु ा और मेरी ब्रेस्ट को मंह
ु में लेकर चस
ू ने लगा। मैंने
सीट को नीचे किया और उसे उसके ऊपर बिठाया। अपनी लॉन्ग स्कर्ट को ऊपर समेटा, अपनी पैंटी को साईड में किया और
उसके खड़े हुए खम्बे के ऊपर अपनी चूत को टिकाया। उसकी तो हालत ही खराब हो गयी। उसने शायद सोचा भी नहीं था की
मैं अपने आप उसे चत
ू दे ने को तैयार हो जाउं गी, वो तो हमेशा की तरह सिर्फ अपने लंड को चस्
ु वाने और मझ
ु े चस
ू कर ही
खुश था।

मैंने उसकी आँखों में दे खा,

मैं: पहले कभी डाला है अन्दर।

उसने ना में सर हिलाया।

मैं: यानी वर्जिन हो अभी तक।

उसने हां में सर हिलाया। मैं एक झटके में उसके खड़े हुए लंड के ऊपर बैठ गयी।

मैं: अब नहीं हो। मुबारक हो…

उसके चेहरे के भाव दे खने लायक थे। उसने शायद सोचा था की मैं भी वर्जिन हूँ। थी तो सही, अभी कुछ दिनों पहले तक। पर
इस एक हफ्ते में क्या से क्या हो चक
ु ा है । और अपने सामने आज जब राहुल के लंड को दे खा तो मेरी चत
ू की प्यास ने मझ
ु े
इतना बेशरम बना दिया की मैं उस बेचारे वर्जिन के लंड को अन्दर लेने के लिए तड़प सी उठी।

अह्ह्हह्ह्ह्ह… कोमल सच में । मैंने सोचा भी नहीं था की मैं पहली बार टॉयलेट में मारूंगा किसी की।

उसकी बात सन
ु कर मैं मस्
ु कुरा उठी। मैंने अपने पंजो के बल पर अपने वजन को ऊपर उठाया और फिर नीचे। और ये सब
करते हुए मैंने उसके मुंह को अपनी ब्रेस्ट के अन्दर तक घुसा लिया। परू ी तरह से चूसने में लगा हुआ था वो मुझे आज। मैं
मन ही मन सोच रही थी की मुझे अपनी जवानी के पूरे मजे लेने है , और इस तरह से अलग-२ जगह और तरीके से करने में
जो रोमांच मिल रहा है , वो मेरी जवानी के मजो को और ज्यादा बढ़ा दें गे। मैंने राहुल के चेहरे को ऊपर उठाया और उसके
होंठो को बरु ी तरह से चूसने लगी।

आज मैं लडको की तरह बिहे व कर रही थी। उसे चूमकर, उसे चोदकर, उसकी वर्जिनिटी जो ली थी मैंने इसलिए मैं अपनी
ऑथोरिटी दिखा रही थी।

तभी बाहर से किसी ने दरवाजा खडकाया।

मैं और राहुल एक दम से रुक गए।

मैंने अपनी साँसे संभाली और पुछा: कौन है …

बाहर से वाईस प्रिंसिपल मेडल की आवाज आई: मैं हूँ मीनाक्षी… तुम्हारी प्रिंसिपल। कौन है अन्दर और क्या चल रहा है ।

73
राहुल के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ने लगी। ओह्ह्ह… फक्क्क… ये यहाँ कैसे आ गयी। वो जल्दी से उठा, अपने लंड को अन्दर
डाला, मैंने भी अपने कपडे ठीक किये, और डरते-२ मैंने दरवाजा खोला। क्रमशः 72

मेरे दिल में तो ज्यादा डर नहीं था, क्योंकि मेडम से डरने वाली मुझे कोई बात नहीं थी, पर राहुल का क्या हाल हो रहा होगा
मैं जानती थी। एक तो उसे मेरी चूत पूरी तरह से मारने को नहीं मिली और ऊपर से मेडम ने भी पकड़ लिया था उसको।
बाहर निकलते ही मेडम ने जब मझ
ु े दे खा और मेरे साथ राहुल को दे खा तो उनका चेहरा गस्
ु से से तमतमा गया। मझ
ु े समझ
नहीं आया की इतनी ओवर रिएक्ट क्यों कर रही है ये।

मेडम: ये क्या चल रहा था अन्दर। तुम्हे मालुम नहीं है की ये लेडिस टॉयलेट है । एक तो तुम अन्दर आये और ऊपर से इस
लड़की के साथ। छी: छि… पता नहीं क्या होगा तुम लोगो का। चलो मेरे रूम में तुम दोनों। राहुल का चेहरा पसीने से भीग
गया। पर मेरे शांत चेहरे को दे खकर तो है रान हो रहा था।

राहुल (धीरे से): तझ


ु े डर नहीं लग रहा क्या कोमल।

मैं: मुझे क्यों डर लगेगा। लेडिस टॉयलेट में तुम आये हो। तुम्हे डरना चाहिए। मेरी बात सुनकर तो उसकी रही-सही हिम्मत
भी जवाब दे गयी।

वो मेडम के आगे गिडगिडाने लगा: प्लीस मेडम… मझ


ु े माफ़ कर दीजिये। आगे से ऐसा नहीं होगा। आप प्लीस मझ
ु े जाने
दीजिये।

मेडम: तुम दोनों चुपचाप मेरे साथ मेरे कमरे में चलो। कोई ड्रामा नहीं चाहिए मुझे यहाँ।

हम दोनों उनके पीछे चल दिए। दिवार के पीछे खड़ा हुआ ज़ोन बाहर निकला और एक रहस्यमयी हं सी हं सने लगा। आखिर
वो ही तो था जिसने कोमल और राहुल को अन्दर जाते हुए दे खा था और मेडम को जाकर कहा था की लेडिस टॉयलेट में कोई
गड़बड़ चल रही है ।

खेर… उसकी इस हरकत से अनजान कोमल और राहुल मेडम के कमरे तक पहुंचे। उनके कमरे के बाहर वो पीउन डोंद ु खड़ा
था। मैं उसे दे खकर मुस्कुरा दी। पर वो बिना एक्सप्रेशन के खड़ा रहा। हलकट… हम दोनों मेडम के पीछे -२ अन्दर आ गए।
मेडम चेयर पर बैठी और मेरी तरफ दे खकर बोली: मुझे तुमसे ऐसी आशा नहीं थी कोमल। मैंने एक्टिं ग करते हुए अपना सर
झक
ु ा लिया।

और फिर मेडम ने राहुल की तरफ दे खा: और तुम राहुल… तुम तो एक अच्छे घर से ताल्लुक रखते हो। पर इस तरह की
हरकत करते हुए तुमने कुछ भी नहीं सोचा। अगर मैं तुम्हारे घर वालो को इस हरकत के बारे में बता द ू तो। बोलो…

राहुल: नहीं मेडम। ऐसा मत करो प्लीस। ये अब कभी नहीं होगा। आप जो कहें गी, जैसा कहें गी मैं करूँगा। बस आप घर पर
मत बोलना ये सब।

उसकी आँखों में आंसू से आ गए थे ये सब बोलते हुए। जब उसने ये बात बोली तो मीनाक्षी की आँखों में एक अजीब सी
चमक आ गयी। उन्होंने मेरी तरफ दे खा।

फिर राहुल की तरफ दे खकर बोली: ठीक है । पर तुम्हे एक काम करना होगा मेरा।

राहुल: क्या मेडम… आप जो भी कहें गी मैं करूँगा। आप बस बोलो।

मेडम: वो सामने पड़ी हुई बुक्स दे ख रहे हो। वो तुम्हे मेरे घर पर लेजाकर छोडनी होगी।

मेडम की बात सुनकर मेरे साथ-२ राहुल भी हे रत में पड़ गया। उसने शायद सोचा था की मेडम शायद कोई जुर्माना लगाएंगी
या फिर कुछ और बोलेंगी।

मेडम: ये सारी बुक्स मेरे घर पर आज शाम तक पहुंचा दे ना।


74
राहुल: जी… जी मेडम, पहुंचा दं ग
ू ा। वैसे भी आज मैं पापा की कार लेकर आया हूँ। और फिर मेडम को थेंक्स पर थेंक्स
बोलता हुआ वो बाहर निकल गया। क्रमशः 73

उसके बाहर जाते ही मेडम उठ खड़ी हुई और मेरे पास आकर अपना सीधा हाथ मेरी चूत के ऊपर लगा दिया।

मेडम: क्यों कोमल… बड़ी आग लगी हुई है तेरी चूत में । तझ


ु े बोला था न की सब कुछ प्लान के हिसाब से करें गे। तो सब को
मजा आएगा। बोल… बोला था के नहीं…

उनकी आवाज में थोडा गुस्सा भी था। पर उनके हाथ की उं गलिया मेरी चूत पर जिस तरह से थिरक रही थी, उससे तो लग
रहा था की वो मजे लेने और दे ने के मूड में है ।

मैं: सॉरी मेडम। आज सब इस तरह से हुआ की कुछ पता ही नहीं चला। बस होता चला गया।

मेडम: आगे से इन बातो का ध्यान रखना।

मैं: पर मेडम। एक बात तो बताओ। आपको कैसे पता चला की मैं और राहुल। मतलब हम दोनों अन्दर है और…

मेडम: है कोई जिसकी तुम दोनों पर नजर थी। और उसने ही आकर मुझे बताया था। उसका भी बाद में शुक्रिया अदा करना
है । पर पहले आज शाम को राहुल की खबर लेनी है ।

मैं: अरे हाँ मेडम। ये राहुल को आपने इस तरह का काम दिया। ये तो डोंद ु भी कर सकता था।

मेडम: मेरे हसबेंड आज घर नहीं है । टूर पर गए है । बच्चे भी नानी के घर है । इसलिए राहुल को घर बुलाया है । काफी दिन हो
गए, खुलकर कुछ किया ही नहीं। आज मौका है इसलिए उसे बुलाया। और जिस तरह की हरकत करते हुए वो पकड़ा गया है ,
उसे दे खकर तो लगता है की काफी गर्म होगा वो। बोल है न… तुने तो दे खा ही होगा उसका लंड… मेडम के हाथ थोडा तेज हो
गए थे मेरी चूत के ऊपर। और उनके हाथ झुलसने से लगे थे। तभी बाहर से धोंडू अन्दर आया और मेरे पीछे आकर मेरी गांड
को दबाने लगा।

मैं एकदम से घबरा गयी। पर जैसे ही घूमकर दे खा, तो उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा सामने आ गया। दरवाजा बंद कर दिया
था उसने, अभी पीरियड ख़त्म होने में बीस मिनट थे। और शायद इन बीस मिनटों में मेडम और धोंडू ने मेरे बारे में कुछ
सोच कर रखा हुआ था।

आगे से मेडम मेरी चूत की सिकाई कर रही थी और पीछे से धोंडू मेरी गांड की। वैसे भी आधी चुदाई करवाकर मेरे अन्दर
एक अजीब सी खुजली मचल रही थी। मैंने अपना सारा भार पीछे खड़े हुए धोंडू पर डाल दिया। और उसने भी अपने दोनों
हाथो को आगे करके मेरे मुम्मे पकड़ लिए और उन्हें मसलने लगा। आज तो मन कर रहा था की ये इन्हें उखाड़ कर खा जाए
बस।

इतनी प्यास बढती जा रही थी मेरी। पता नहीं ये मुझे आगे कहाँ तक लेकर जायेगी। मैंने अपने आप अपनी टी शर्ट को
उतार दिया। और ब्रा को खिसका कर उसके नंगे हाथो को अपनी कठोर ब्रेस्ट पर जमा दिया। अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह धोंडू चूस इन्हें
पागल। अपने मुंह में डालकर चूस इन्हें ।

मेरी करुण पक
ु ार सन
ु कर वो मेरे सामने आया और मेरे लेफ्ट मम्
ु मे को मंह
ु में लेकर जोरों से चस
ू ने लगा। मेडम ने मेरे पीछे
आकर मेरी जींस के बटन खोले और उसे नीचे उतार दिया। मेरी चिकनी गांड के ऊपर अपना मुंह लगाकर उसे सूंघने लगी।
और अपनी जीभ से मेरी चूत के रस को चाटने लगी। धोंडू ने अपनी जिप खोली और अपने हथियार को बाहर निकाला।
मुझसे अब और सब्र नहीं हुआ। मैंने उसे एक धक्का दिया और ब्लू कलर के कारपेट पर गिरा कर उसके पसीने से भीगे लम्बे
लंड को बरु ी तरह से चूसने लगी।

मेरे पीछे मेडम भी कुतिया की तरह से मेरी चूत का रस पान करने में लगी हुई थी।

75
आय्य्यीईईईई। साली, कुतिया जैसी है तेरी जीभ।

मेरे मुंह से मेडम के लिए इस तरह से गालिया निकलने लगी जैसे वो मुझसे छोटी हो। पर ये मैंने इसलिए कहा था की मुझे
मालुम था की ऐसी गन्दी गालिया और बाते सुनकर उनकी हवस कैसे भड़क जाती है । और हुआ भी ऐसा ही। मेरी बात
सन
ु कर उनकी उनकी हिंसक प्रवति
ृ बेपर्दा होकर सामने आ गयी। वो सड़प-२ करके मेरी चत
ू का आमरस पीने लगी। अब तो
मेरी चूत काफी गीली हो चुकी थी। मैंने बिजली जैसी फुर्ती दिखाई और घूमकर नीचे लेते हुए धोंडू के लंड को पकड़ा और
उसके ऊपर अपनी चूत को टिकाया। और एक ही बार में पूरा लंड अन्दर ले लिया।

स्स्स्सस्स्स्स… अह्ह्हह्ह्ह्ह…

उसने मुझे अपनी तरफ खींचा। और मेरे गुलाबी और नर्म होंठो को अपने मोटे और भद्दे होंठो से बुरी तरह से चूसने लगा। पर
ऐसी अवस्था में मझ
ु े उसके मंह
ु से आती हुई बदबू की भी चिंता नहीं हुई। और मैंने भी उसके दांतों और जीभ को अपने मंह

से चूमना और चूसना शुरू कर दिया। एक अजीब सा कसेलापन था उसके मुंह में । पर आज मुझे इसमें भी नशा सा मिल रहा
था।

अह्ह्ह्हह्ह… म्मम्म… चूओस मेरे होंठो को धोंधू अह्ह्ह्ह… आज चोद डाल मुझे, बुरी तरह से। अह्ह्हह्ह… जैसे इस कुतिया
को चोदता है त।ू अह्ह्हह्ह… ओफ्फफ्फ्फ़… धीरे साले मर गयी रे ।

साले धोंडू ने मेरी बात मानकर मुझे ऐसे चोदना शुरू किया जैसे मुझे इन सबकी आदत है । अगले पांच मिनट तक मैं करीब
३ बार झड गयी। मेडम की जीभ मेरी चूत और धोंडू के लंड से घिसाई करते-२ अपनी चिकनाई हमें प्रदान कर रही थी। और
हमारी चक्की से निकला हुआ रस खुद पी रही थी।

और फिर जब उनसे भी सहन नहीं हुआ तो वो उठकर धोंडू के सर के पास गयी और अपनी साडी ऊपर उठा कर अपनी चूत
को उसके मुंह के ऊपर रखकर उसके चेहरे को बरु ी तरह से दबा दिया। पर वो बेचारा कुछ न बोला। अपने मुंह से मेडम की
और अपने लंड से मेरी चूत की सेवा करने में लगा रहा। परू ा कमरा मेरी और मेडम की आँहो से गँज
ू रहा था। और मेडम ने
एकदम से मुझे अपने होंठो से लगाकर उन आँहो को भी बंद कर दिया। और तभी आखिरी बार मैं फिर से झड गयी। धोंडू की
जीभ से मेडम भी और हम दोनों की चत
ू की गर्मी से धोंडू भी। सभी दबी-२ सी सिस्कारिया निकल रही थी बस। अह्ह्ह्ह sss
म्मम्म sss

और फिर जब सब कुछ शांत हुआ तो मैंने होश संभाला। जल्दी से अपने कपडे पहने, साफ़ किया और बाहर निकल गयी। वो
दोनों भी जल्दी से सज संवर कर अपनी-२ जगह पर आ गए। जैसे कुछ हुआ ही न हो। थोड़ी ही दे र में पीरियड ख़त्म हो
गया।

दीपा मुझे ढूँढती हुई मेरे पास आई। मेरे चेहरे पर अजीब स्माईल पाकर वो समझ गयी की मेरे पास आज उसे बताने के लिए
काफी कुछ है । क्रमशः 75

मैं जल्दी से दीपा को एक कोने में लेकर गयी और चहकते हुए, हँसते हुए अपनी चुदाई का किस्सा नमक मिर्च लगा कर
बताया। और ये भी की धोंडू के लंड ने कैसी खलबली मचाई मेरी चत
ू में । साथ ही साथ मैं सोच रही थी की सच में ये निचले
तबके के लोगो के लंड में पता नहीं कैसी पावर होती है की ये हम मिडिल और अपर लेवल में रहने वाली चूतों की चीखे
निकलवा दे ते है । पता नहीं साले क्या खाते है जो इनके लंड में इतनी ताकत होती है । खेर… मेरी बात सुनते-२ दीपा के चेहरे
के भाव बदलने लगे थे। उसने सरे आम अपनी चूत के ऊपर से ही उसको मसलना शुरू कर दिया। मैंने बड़ी मुश्किल से उसे
रोका और याद दिलाया की ये कॉलेज है , किसी ने दे ख लिया तो मुश्किल हो जायेगी। और फिर मैंने उसको राहुल वाला
किस्सा भी बताया। जिसे सन
ु कर वो और भी मस्ती में आ गयी।

दीपा: यार तब तो मेडम आज राहुल का बलात्कार करे गी और वो भी अपने तरीके से। हा हा… उसकी बात सुनकर मेरे दिमाग
में एक विचार आया।
76
मैं: क्यों न हम भी दे खे की मेडम क्या करती है राहुल के साथ। बोल क्या कहती है ।

दीपा: वाव… यार पर घर पर लेट हो जाएगा।

मैं: कोई ना जी, घर पर बोल दें गे की एक्स्ट्रा क्लास थी, ठीक है ।

उसने मझ
ु े सहमति जताई। मैं और दीपा फिर से मेडम के कमरे में गए।

अब आगे की कहानी, मीनाक्षी मेडम की जब


ु ानी।
********************

मीनाक्षी मेडम
*******************

मैं अपनी चेयर पर बैठकर शाम को मिलने वाले मजे के बारे में सोच रही थी। राहुल के लण्ड की कल्पना करके ही मेरी चूत
में फिर से रिसाव होना शुरू हो गया था। अपने पति और धोंडू के लण्ड के अलावा काफी दिनों के बाद कोई नया लण्ड मिलने
वाला था, इसकी ख़श
ु ी तो मझ
ु से संभाले नहीं संभल रही थी।

तभी बाहर से धोंडू अन्दर आया और बोला की कोमल और दीपा मिलना चाहती है । मैं सोचने लगी की कोमल को क्या काम
है इतनी जल्दी, अभी तो निकली थी वो मेरे कमरे से चुदाई करवाकर। मैंने उन्हें अन्दर भेजने को कहा। कोमल मुस्कुराती
हुई अन्दर आ गयी।

कोमल: मेडम, वो दरअसल मैंने दीपा को आज वाली सारी बाते बता दी है ।

मैं: तो क्या हुआ, हम तीनो में ऐसा कुछ नहीं है जो एक दस


ु रे से छुपा सके।

कोमल: जी मेडम, दरअसल हम दोनों चाह रहे थे की आज शाम जब वो राहुल आपके घर आये तो… तो…

मैं: हाँ…हाँ बोलो, शरमाओ मत।

कोमल (धीरे से): तो क्या हम दोनों भी वहां आकर और छुपकर आप दोनों को वो सब करते हुए दे ख सकते है क्या…

मैं: क्या… ये क्या कह रही हो तम


ु । वैसे तम
ु दोनों ये सब क्यों करना चाहती हो।

कोमल: वो क्या है न मेडम। हमें तो इस खेल में आये हुए अभी थोडा सा ही टाईम हुआ है । पर आप तो माहिर हो इन सब में ।
तो बस आपको दे खकर ही कुछ और सीख लेंगे। जो हमें आगे काम आएगा। अपनी चुदाई में ।

मैं कोमल की बात सन


ु कर है रान रह गयी। साली कितनी आग लगी हुई है इसकी चत
ू में । अभी थोड़ी दे र पहले ही तो चद
ु कर
बाहर निकली है , और अब मेरे और राहुल के बीचे होने वाली चुदाई को लाईव दे खना चाहती है । और ये दीपा भी… मैं सोचने
लगी। वैसे इसमें कोई हर्ज भी नहीं है । इन्फेक्ट मुझे ये सोचकर ज्यादा रोमांच महसूस होने लगा की मेरी परफोर्मेंस दे खने
वाला भी कोई होगा।

मैं: ठीक है , तम
ु दोनों आ सकती हो मेरे घर। पर बिलकुल छुप कर रहना। मैं जब अपने मड
ू में होती हूँ तो अपने लण्ड को
किसी के साथ भी शेयर नहीं करती। समझी। कोमल और दीपा ने एक साथ सर हिलाया और मैंने उन्हें अपने घर का पता
दिया। और एक डुप्लीकेट चाभी भी। ताकि वो दोनों अन्दर जाकर छुप जाए। वो दोनों खुश होती हुई चली गयी। मैंने टाईम
दे खा, अभी एक घंटा था राहुल को मेरे पास आने में । मैंने अपने इधर-उधर के काम निपटाए और फिर जब कॉलेज का
आखिरी पीरियड ख़त्म हुआ तो थोड़ी ही दे र में राहुल मेरे पास आया। मैंने उसे बुक्स को उठाकर अपनी कार में रखने को
कहा। वो बक्
ु स को उठा-२ कर अपनी कार में रखने लगा।

और जब सारी बुक्स रख दी तो वो मेरे पास आया और बोला: मेडम, रख ली सारी बुक्स।

मैं: ठीक है , मैं अपनी कार निकाल रही हूँ। तुम अपनी कार से मेरे पीछे -२ आ जाना। ओके।

77
और फिर मैं ऑफिस बंद करके निकल पड़ी। राहुल की कार मेरे पीछे ही थी। थोड़ी ही दे र में मैं घर पहूँच गयी। राहुल ने भी
कार बाहर रोक दी और बुक्स उठा-२ कर बाहर वाले स्टडी रूम में रखने लगा। मैं इतनी दे र में अन्दर गयी और बेडरूम के
साथ वाले स्टोर रूम का दरवाजा धीरे से खटकाया। अन्दर से कोमल ने दरवाजा खोला… 

कोमल: यस मेडम, आ गया क्या राहुल…

मैं: हाँ आ गया, सुनो तुम दोनों एकदम छुप रहना। कोई आवाज नहीं, और सुनो, ये हें डीकेम लो, जो भी मेरे और राहुल के
बीच होगा तम
ु इसे रिकॉर्ड कर लेना। ओके।

कोमल (हे रानी से): ये क्या मेडम, ये सब किसलिए।

मैं: तुम नहीं समझोगी, ये सब बाद में बड़ा काम आएगा हमें ।

और मैंने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया। स्टोर रूम के ऊपर का जाल काफी खुला था, कोमल और दीपा को मैंने टे बल के
ऊपर खड़े होकर बाहर का नजारा दे खने और रिकॉर्ड करने को कहा था। और जब राहुल ने बाहर की सारी बक्
ु स अन्दर रख दी
तो वो मेरे पास आया: हो गया मेडम, मैं चलू क्या।

मैं (थोडा गुस्से में ): ज्यादा जल्दी है घर जाने की, अपनी हरकत की इतनी छोटी सजा सोचकर बैठे हो क्या।

वो सकपका गया, और बोला: जी…जी आप और क्या चाहती है । बोलो, मैं करने को तैयार हूँ।

मैं: चलो अन्दर, मेरे रूम में । मैं अपनी कमर मटकाती हुई अन्दर आ गयी।

राहुल बेचारा है रान-परे शान सा होकर मेरे पीछे आने लगा। अन्दर जाकर मैं बेड के ऊपर बैठ गयी।

मैं: अब मैं जो भी बोलती जाऊ, बिना चू-चपड़ किये करते जाओ, समझे। वर्ना कल तुम्हारे घर पर मैं सीधा फ़ोन करके सब
बोल दं ग
ू ी की आपका लाडला क्या करता है कॉलेज की टॉयलेट में , लडकियों के साथ।

वो अपनी नजरे झक
ु ाए खड़ा रहा और हाँ में अपना सर हिला दिया। मेरी पारखी नजरे उसकी जींस के ऊपर से ही उसके लण्ड
का साईज पता करने की कोशिश कर रही थी।

मैं: वैसे, क्या कर रहे थे तुम, लेडिस टॉयलेट में , कोमल के साथ।

वो कुछ न बोला 

मैं (गस्
ु से में , जोर से): बोलो, क्या कर रहे थे। चद
ु ाई कर रहे थे न, बोलो।

राहुल: जी…जी नहीं वो, मैंने उसकी… उसकी चूत में लण्ड डाला ही था की आप आ गयी थी, तो इसलिए कुछ नहीं कर पाया।

मैं: हम्म… कितनी अन्दर डाला था उसकी चूत में ।

राहुल: जी…जी सिर्फ आगे वाला हिस्सा ही डाल पाया था।

उसके साथ चुदाई की डिटे ल मैं ऐसे ले रही थी मानो सी आई डी ब्यूरो में बैठकर मैं उसके साथ पूछताछ कर रही हूँ। प्रदम
ु न
बनकर। और ये सब पूछते हुए मेरी चूत के अन्दर चींटिया सी रें ग रही थी।

मैं: आगे वाला हिस्सा, कोंन सा दिखाओ मुझ।े

वो मेरी तरफ हे रानी से दे खने लगा। पर शायद वो अब तक समझ चुका था की मैं उसके साथ ऐसी बाते क्यों कर रही हूँ।
उसने एक गहरी सांस ली और अपनी जींस के बटन खोलने लगा। और फिर उसने उसे नीचे खिसका दिया और अपने
उफनते हुए लण्ड के दर्शन मुझे करवाए। इतना मोटा और लम्बा म्मम्मम्मम। मेरे तो मुंह में पानी आया गया।

78
राहुल ने अपने लण्ड का सुपाड़ा अपने हाथ में पकड़ा और मुझे दिखाया: ये वाला मेडम, सिर्फ इतना ही गया था अन्दर।

मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया और उसके लण्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया, वो ऊपर से नीचे तक कांप गया।

मैं: हम्म… मुझे विशवास नहीं होता की कोई थोडा सा ही अन्दर डाले और परू ा काम न करे , तुमने जरुर उसकी चूत में परू ा
लण्ड डाला होगा, बेचारी का क्या हाल हुआ होगा। तुम्हारे ऊपर तो केस करना चाहिए।

वो रुआंसा सा हो गया: नहीं मेडम, सच में , उसकी चूत इतनी टाईट थी की मेरा लण्ड ज्यादा अन्दर जा ही नहीं पा रहा था।
और जब तक मैं और कोशिश करता, आप आ गयी।

मैं: झूठ मत बोलो, कोई ऐसा कर ही नहीं सकता की एक इंच डाल कर बैठा रहे , इतना सबर कोई नहीं करता। आज कल तो
सब एक ही झटके में हो जाता है । तम
ु ने जरुर अपना परू ा लण्ड डाला है उसकी चत
ू में ।

राहुल: नहीं मेडम, मेरा यकीन करो।

मैं: ठीक है , एक शर्त पर यकीन करुँ गी, तुम एक इंच, यानी अपने सुपाडे वाले हिस्से को मेरी चूत में डालकर पांच मिनट तक
सब्र से बैठे रहना, अगर तुम ये कर पाए तो मैं तुम्हारी बात का यकीन कर लुंगी, और तुम्हारे घर पर कुछ नहीं बोलूंगी। वर्ना
मैं उन्हें सब बता दं ग
ू ी, और कोमल को भी अपने साथ लेकर तुम्हारे ऊपर केस कर दं ग
ू ी।

वो मेरी बात सुनकर अवाक सा होकर मुझे घरू ता रहा। मैं एक तरीके से उसको ब्लेकमेल कर रही थी। पर उसे अपने ऊपर
भरोसा था। इसलिए उसने हाँ कर दी। वैसे भी उसके पास कोई और चारा नहीं था। मैंने जल्दी से अपनी साडी और पेटीकोट।
और फिर ब्लाउस और ब्रा निकाल दी। मुझे अपने सामने नंगी पाकर वो बेचारा बावला हुआ जा रहा था। उसने भी आनन ्-
फानन में अपने सारे कपडे निकाल फेंके।

मैंने अपनी दोनों टाँगे ऊपर उठाई, और उसे अपनी चूत का निमंत्रद दिया। राहुल ने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और धीरे
से आकर मेरी चूत के ऊपर अपने लण्ड को टिका दिया, और धीरे से अपने लण्ड का दबाव अन्दर डालकर अपने लण्ड के
आगे वाला हिस्सा मेरी चूत के अन्दर फंसा दिया। कोमल की कच्ची चूत और मेरी पकी हुई फुददी में काफी अंतर था।
उसका लण्ड बेशक उसकी चूत में फंस कर जा रहा होगा। पर मेरी चूत के अन्दर वो फिसलने को तैयार था। एक तो इसके
खल
ु ेपन की वजह से और दस
ू रा मेरी चत
ू के रस की वजह से, जो इतनी मात्रा में निकलता था की आधा कप भर जाए मेरे
रस से। पर वो अपने लण्ड को मेरी चूत के ऊपर लगाये हुए खड़ा रहा। बिना अन्दर जाने के लालच के।

मुझे पता था की वो बड़ी मुश्किल से मुझे चोदने को रोक रहा था। मुझे उसपर तरस भी आ रहा था, और मजा भी। मैंने
उसकी गाण्ड के चारो तरफ अपनी टाँगे लपेट दी। और अपनी तरफ खींचा। उसने अपने हाथ मेरे कंधे के ऊपर रख कर बड़ी
मश्कि
ु ल से अपने लण्ड को अन्दर घस
ु ने से रोका।

राहुल: ये… ये क्या कर रही हो आप। आपने ही तो कहा था की सिर्फ एक इंच डालकर सब्र से खड़े होकर दिखाओ। आप ऐसा
करोगी तो ये अन्दर जाएगा ही।

मैं: तम
ु अपने सब्र के हिसाब से डटे रहो। मैं तम्
ु हे अपने हिसाब से हें डल करती हूँ। दे खते है , कोंन जीतेगा। वो मेरी बात
सुनकर मुस्कुरा दिया। जान तो वो पहले ही चुका था की आज वो मेरी चुदाई करके रहे गा। पर इस तरह की गेम खेलकर मैं
अपनी चुदाई के खेल को और भी रोचक बना रही थी। मैं फिर से अपनी टांगो का जोर लगाया। उसने अपने हाथ सीधा मेरी
फूट्बाल्स जैसी छातियो पर जमा दी। और उन्हें जोर से उमेठ दिया। मेरी तो चीख ही निकल गयी उसकी इस हरकत से।
और मेरी पकड़ उसकी गाण्ड से कम हो गयी। अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह साले, ये क्या कर रहा है ।

राहुल: आप अपनी कोशिश करो मेरे लण्ड को लेने की। मैं अपनी कर रहा हूँ, ना दे ने की।

ह्म्म्म… तो ये भी खेल खेलने को तैयार है । मैंने एक नजर स्टोर रूम की तरफ दे खा। और अँधेरे में चमकती हुई लाल बिंद ु
दे खकर मैं समझ गयी की सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा है ।

79
अब आएगा मजा। …P076…

Pehle nahi jaati thi keel choot mein,


Ab chali jaati hai cheel choot mein,
cheel chali gayi milo-meel choot mein,
cheel ne bana di jheel choot mein,
jheel ke kinare baitha vakeel choot mein,
vakeel ne kar di appeal choot mein,
court ne laga di seal choot mein,
Isliye ab phir nahi jaati keel choot mein

मैंने राहुल के हाथ को अपने हाथ में पकड़ा और उसे अपने मुंह के पास ले गयी। मेरी लाल जीभ बाहर निकल कर उसकी
उं गलियों को छु रही थी। उसकी तो कंपकंपी सी निकल गयी। मैंने उसकी उं गलियों को अपने मंह
ु में डाला और उन्हें
लोलीपोप की तरह से चूसना शुरू कर दिया।

उम्म्मम्म्म्म आई लव योर स्मेल अह्ह्ह्हह्ह।

मैंने एक साथ उसकी सारी उं गलिया मंह


ु में डाली और उन्हें एक मोटे लण्ड की तरह से चस
ू ने लगी। उसने अभी भी अपने
लण्ड को मेरी चूत में जाने से रोका हुआ था। साले की विल पावर कितनी अच्छी है । पर उसके चेहरे पर आ रहे भाव को
दे खकर मुझे एहसास होने लगा था की ये ज्यादा दे र तक अपने आप को रोक नहीं पायेगा। रोकेगा भी कैसे, मेरा
एक्सपीरियंस किस दिन काम आएगा। मैंने अपनी गीली चूत को झटके से ऊपर की तरफ उछाला। पर वो भी शाना था।
उसने मेरी कमर की लचक भांप ली और अपने को पीछे खींच लिया। साला बच गया मेरी चूत के अन्दर आने से। मैंने अपनी
छाती को ऊपर की तरफ ताना। और उसके दोनों हाथो को अपनी छातियो के ऊपर रखकर उनके नरमपन का एहसास
दिलाया।

उसके चेहरे को अपनी तरफ खींचा। और उसके होंठो पर अपने होंठ जमा दिए। और उन्हें जोर से चूसने लगी। अम्म्म्मम्म
उम्म्मम्म्म्म मुछ्ह्ह्हह्ह्ह पर उसने अभी भी बड़ी ही चालाकी से अपने लण्ड और मेरी चूत के बीच का फासला बरकरार
रखा हुआ था। अह्ह्हह्ह राहुल डाल दे मेरी चत
ू बड़ी प्यासी है ।

वो समझ रहा था की मै उसको उत्तेजित करने की परू ी कोशिश कर रही हूँ। पर वो ये भी जानता था की अभी पांच मिनट परू े
होने में पूरे चार मिनट है । वो नादान अभी भी इस खेल को परू ी इमानदारी से निभाने की कोशिश कर रहा था। पर मुझमे सब्र
ख़त्म सा होता जा रहा था। मेरा शरीर उसके मुकाबले काफी भारी था। मैंने खेल को अपने हाथ में लेने की सोची। अगर ये
ऐसे ही करता रहा तो मैं तड़प-२ कर मर जाउं गी। मैंने एक ही झटके से उसकी कमर को पकड़ा और उसे बेड के ऊपर पटक
दिया। और मैं घूमकर उसके ऊपर आ गयी। और इस दोरान उसका लण्ड मेरी चूत के मुहाने पर ही टिका रहा। और जब मैं
उसके ऊपर आई तो मैंने उसके दोनों हाथों को बेड के ऊपर लगा दिया। वो बेबस सा होकर मचलने लगा मेरे नीचे।

राहुल: मेडम, ये गलत है , आप ऐसा नहीं कर सकती।

मैं: अच्छी बच्चू, तू मुझे बताएगा की मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं। साले, इतनी दे र से मेरी चूत के ऊपर अपने लण्ड
को लगा कर बैठा है । और मेरी सुलग रही है । अब सब्र नहीं होता मुझसे। अब तू दे ख, मै तेरा क्या हश्र करती हूँ। मैंने इतना
कहा और अपनी गाण्ड वाले हिस्से को आगे किया और उसके लण्ड को निगलना शुरू कर दिया। मानो वो लड़की हो और मैं
लण्ड वाला लड़का।

जैसे -२ उसका लण्ड अन्दर जा रहा था, मुझे एहसास होने लगा था की आज चुदाई में मजा आने वाला है । दरअसल उसका
लण्ड आगे से टे ड़ा था। और इस तरह का लण्ड सीधी गुफा नुमा चूत में जाते हुए अटकता है । और जब चूत की दीवारों पर
लण्ड के सुपाडे की रगड़ लगती है तो अजीब सा एहसास होता है । जो अब मुझे होना शुरू हो गया था। ऐसा लग रहा था की
मेरी चूत में एक साथ दो लण्ड जा रहे है । अह्ह्ह्हह्ह साले, तेरा लण्ड तो कमाल का है । म्मम्मम्म

80
राहुल: साली कुतिया, तेरी चूत का बैंड बजाऊंगा मै आज।

उसके मुंह से गाली सुनते ही मेरे अन्दर की कुतिया जाग उठी। मैंने उसे दबोचा और अपना परू ा भार एक ही बार में उसके
लण्ड पर डालकर पूरा लण्ड निगल लिया। अह्ह्हह्ह्ह्ह ओफ्फ्फ्फ म्मम्मम्म कुछ दे र तक तो मेरी आँखों के आगे अँधेरा चा
गया। शायद मेरी चत
ू के अन्दर कुछ छिल सा गया था। पर ये मजा दर्द से कराहने का नहीं बल्कि मजे से चिल्लाने का था।
अह्ह्हह्ह्ह्ह श्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म क्या कर डाला। अह्ह्हह्ह्ह्ह 

उसने मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और मुझे पागलो की तरह से चूमना शुरू कर दिया। मेरी जीभ जो बाहर निकली हुई थी, उसे
जोर से काट लिया। मै करहा उठी। उसके जंगलीपन को दे खकर।

हो भी क्यों न, पहली बार उसका लण्ड गया था किसी की "परू ी" चूत में । …P079…

उसने मेरी गाण्ड के पतीले पर अपने हाथ रखे और अपने लण्ड को बरु ी तरहे से पेलने लगा मेरी चूत के अन्दर। अह्ह्ह ओग
ओफ्फ्फ ओफ्फ्फ ओफ्फ्फ ओफ्फ्फ फक्क्क्क। मैंने इतने झटके आज तक नहीं खाए थे एक साथ। मेरी चूत से झर झरा
झर पानी निकलने लगा, और उसके लण्ड और टट्टे को भिगो कर बारिश की सुन्घध जैसा एहसास दे ने लगा। अब मेरी चूत
के पानी ने उसके लण्ड को पूरी तरह से चिकना बना दिया था। मै पूरी तरह से उसके लण्ड को ले पा रही थी। और फिर उसने
एक ऐसा काम किया जो मैंने सोचा भी नहीं था। जैसे मैंने उसको झटके से नीचे पटका था, उसने भी मझ
ु े वापिस नीचे पटक
दिया।

उसकी शक्ति दे खकर मैं है रान रह गयी। पर जब खड़े होकर उसने मेरी चूत के अन्दर अपने लण्ड की ठोकरे मारनी शुरू की
तो मैं अपने होशो हवास खोकर वही पस्त सी हो गयी। और अपने हिलते हुए मुम्मो की परवाह किये बिना अपनी चुदाई का
मजा लेने लगी। अह्ह्ह्हह्ह राहुल, सच में तेरा लण्ड कमाल का है , चोद मझ
ु े, साले, भेन चोद, मार जोर से मेरी चत
ू को।
अह्ह्ह्हह्ह।

राहुल तो पहले से ही मुझे बुरी तरह से चोद रहा था। मेरी बात सुनकर वो और तेजी से धक्के मारने लगा। ले साली,
हरामजादी, भेन की चूत तेरी, तेरी चूत भी कमाल की है , साली, कुतिया, अह्ह्हह्ह ये ले, ये ले। और तभी मेरे अन्दर से
आने वाली बाढ़ का एहसास हुआ और अगले ही पल मैंने अपने पैर राहुल की कमर से बाँध लिए। मेरी चत
ू से निकलने वाले
रस ने उसके लण्ड को बाहर धकेल दिया और उसने उसे फिर से मेरे अन्दर डाल दिया।

अब बारी राहुल के झड़ने की थी।

वो भी अपने लण्ड को परू ी तरह से मेरे अन्दर पेलने में लगा रहा। और जल्दी ही उसने अपनी मेहनत का फल मेरी चत
ू के
कटोरे में डाल दिया। और मै तप्ृ त सी होकर अपनी आँखे बंद करके जोरो से साँसे लेने लगी। वो भी गहरी साँसे लेता हुआ मेरे
साथ ही साथ लेटकर मुझे सहलाने लगा। मैंने रोशनदान की तरफ दे खा। केमरे की लाईट अब नहीं दिख रही थी। इतना
गरम खेल दे खकर शायद उनका अपना खेल शुरू हो चुका था अन्दर।

मैं उनके बारे में सोचकर मस्


ु कुराने लगी। …080-082…

***** कोमल *****


******************
मैंने और दीपा ने जब खिड़की से दे खा की मेडम ने कितनी इरोटिक स्टाईल से राहुल का लण्ड अपनी चूत के डाला तो हम
उनका हुनर यानी चद
ु वाने की कला दे ख- दे खकर आनंदित सी हो उठी।

मैंने दीपा से कहा: दे खा तूने, मेडम की चूत इतनी टाईट नहीं है जितनी हमारी है । फिर भी उन्होंने कितने मजे ले-लेकर
राहुल का लण्ड अन्दर लिया है । जैसे उनकी पहली चुदाई हो ये। याद रख ले, जब चूत में लण्ड जाए तो मजे लेने चाहिए।

81
ताकि सामने वाले के मन में जोर से चुदाई करने का होसला आ जाए, और वो और जोश के साथ चुदाई करे । मै उसे ऐसे
समझा रही थी मानो मैंने अपने गुरु के द्वारा दिया हुआ ज्ञान प्राप्त कर लिया है ।

और अपनी सहे ली को अपने स्टाईल में समझा रही हूँ। दीपा के होंठ कांप रहे थे। उसकी चूत के होंठ भी कांप रहे होंगे। मैं
आगे बड़ी और उसके कांपते हुए होंठो को अपने मंह
ु में लेकर चस
ू ने लगी। बर्फ जैसे ठन्डे थे उसके होंठ। मैंने अपने गर्म होंठो
के ताप से उन्हें गर्म करना शुरू किया। उनपर दांतों से काटा, उन्हें चबाया, चूसा, तब जाकर उनकी ठिठुरन बंद हुई।

दीपा के मुंह से हलकी-२ सिस्कारिया भी निकलने लगी थी। उम्म्मम्म्म्म अह्ह्हह्ह्ह्ह कोमल।

मेरे हाथो में उसके अमरुद आ गए और मैं उन्हें जोरो से दबाने लगी। उसके निप्पल अपनी ब्रेस्ट से बिलकुल चिपके हुए है ।
जबकि मेरे अलग ही दाने की तरह से चमकते है । मैंने उसकी शर्ट को खींच कर नीचे कर दिया और ब्रा के स्ट्रे प्स को भी हटा
दिया। उसकी दिल की धड़कन और साँसों की आवाज लगातार तेज होती जा रही थी। मैंने सर नीचे किया और उसके दांये
निप्पल को मुंह में डालकर चूसना शुरू कर दिया।

जैसा की मैंने कहा की उसका निप्पल अपनी ब्रेस्ट से बिलकुल जुड़ा हुआ है , और इसलिए वो एक नुकीली पहाड़ी जैसे लगते
है । मैंने उसकी ब्रेस्ट को पूरा मुंह में डाला और जोर से चुप्पा लेकर उन्हें निगलने लगी। वो तो पागल होती जा रही थी मेरी
इन हरकतों से। एक तो राहुल और मेडम की चद
ु ाई का खम
ु ार और ऊपर से मेरी हरकतों का नशा। सब मिला कर उसे
मदहोशी के आलम में ले जा रही थी। पर वो अपनी आवाज को मुंह में दबा कर रखे हुए थी। जो काफी मुश्किल काम था।
वर्ना इतने में तो वो परू ा मोहल्ला अपने सर पर उठा लेती और सभी को बता दे ती की उसके रे शम जैसे शरीर का सेवन किया
जा रहा है ।

उसने मेरे सर को दबा कर नीचे की तरफ खिसकाना शरू


ु कर दिया। मै समझ गयी की हरामजादी की चत
ू में खज
ु ली हो रही
है । मैंने भी मजे लेने के लिए जान बझ
ु कर इधर उधर चाटना और सहलाना जारी रखा। मेरे होंठ उसके गुदाज पेट के ऊपर
घूम रहे थे। उसकी नाभि के अन्दर मैंने अपनी जीभ डाली और आगे पीछे करके उसकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने
लगी। मेरी इस हरकत ने तो आग में घी का काम किया। वो बदहवास सी होकर अपनी नीचे के कपड़ो को उतारने लगी। और
पूरी नंगी होकर उसने मेरे सर को अपनी धधकती हुई चूत के ऊपर धम्म से मारा।

और बोली, "ले चाट कुतिया। इतनी दे र से तडपा रही है । समझती नहीं है साली, नाटक करने में लगी है , ऊपर चूस रही है ।
जबकि आग नीचे लगी है ।”

मुझे उसकी इस हरकत और बात पर हं सी आ गयी। सच में उसकी चूत में आग सी ही लगी हुई थी। ऊपर उसके होंठ कितने
ठन्डे थे। और नीचे उसकी चत
ू उतनी ही गरम। ऊपर के होंठ बर्फीले थे। और नीचे के आग के गोले। ऊपर के होंठो का रस
ठण्ड से जमा हुआ था। और नीचे का झरने की तरह बह रहा था। मैंने उसके झरने पर अपना मुंह लगा दिया और गरमा
गरम रस अपने गले से नीचे उतारने लगी।

मेरी जीभ की नोक उसकी चूत के ऊपर बनी हुई तितली के पंखो के ऊपर अपना असर दिखा रही थी। उन्हें सहला रही थी।
और फिर मैंने उन परों को अपने मंह
ु में लेकर चभ
ु लाना शरू
ु कर दिया। वो मेरे सर को पकड़ कर कोने में पड़े एक परु ाने बेड
तक ले गयी और मुझे नीचे पटक दिया। और मेरे मुंह की सवारी करने लगी। अपनी चूत को मेरी जीभ पर दीपा बुरी तरह से
घिस रही थी। उसकी चूत का रस मेरे मुंह के अन्दर मेरे दांतों से फ़िल्टर होते हुए जा रहा था। मेरी नाक में उसकी चूत के रस
की खश
ु बू अन्दर तक समां गयी थी। तभी मैंने अपनी एक फिं गर उसकी गाण्ड के अन्दर डाल दी। उसका मंह
ु ओ की शेप में
खुल गया। पर कुछ बोल न पायी वो।

पर उसके चेहरे को दे खकर साफ़ पता चल रहा था की उसे मजा बहुत आ रहा है । मैंने ऊँगली बाहर निकाली और उसे उसकी
चूत के घी में डुबो कर वापिस गाण्ड में धकेल दिया। इस बार चिकनाई की वजह से वो अन्दर फिसलने लगी। दीपा की चूत
का दबाव मेरे मंह
ु से हट कर मेरी नाक के ऊपर आ गया। मैंने अपनी नाक उसकी चत
ू के अन्दर फंसा दी। और मेरी ऊँगली
को मैंने तेज झटके के साथ उसकी गाण्ड में पूरा अन्दर तक घुसा दिया। वो ऊपर तक उछल गयी। और नीचे आते ही उसकी
82
चूत मेरे नाक के ऊपर पड़ी और मेरी परू ी नाक एक ही बार में उसकी चूत के अन्दर तक समां गयी। उसके रस की खुशबु
इतने पास से मैंने आज तक नहीं ली थी।

मैंने अपना मुंह खोला और उसके जरिये सांस लेने लगी। और अपने नाक से बाहर की तरफ छोडने लगी। और मेरी नाक तो
दीपा की चत
ू में थी, उसकी चत
ू के दाने को मै अपनी नाक के सिरे पर साफ़ महसस
ू कर पा रही थी, और वो भी उस दाने को
मेरी नाक से रगड़कर मजे लेने में लगी हुई थी। मेरी नाक से निकलने वाली गर्म हवा सीधी उसकी चूत के अन्दर पड़ रही
थी। जो उसके लिए भी बिलकुल नया अनुभव था। मैंने एक और तेज सांस अपने मुंह में भरी और नाक से छोड़ी। उसकी गर्म
चूत भट्टी की तरह से सुलग उठी। दीपा को ऐसा लगा किसी ने उसकी चूत में आग लगा दी है , सच में । और अगले ही पल
उसका बाँध टूट गया। रसीले पानी का, गाड़े रस का, मीठे शरबत का बाँध। और मैंने गट-गट करके अपनी सहे ली का दिया
हुआ प्यार अपने मंहु में समेट लिया और पी गयी। मैं फिर भी उसकी थकी हुई चत
ू को चस
ु े जा रही थी। उसकी चत
ू का
एरिया सेंसेटिव हो चुका था।

दीपा: अब जान निकालेगी क्या…

उसने झटके से अपनी चत


ू को मेरे मंह
ु से हटा दिया। और मेरे सामने खड़ी हो गयी। परू ी नंगी थी वो इस समय। उसकी
छाती ऊपर नीचे हो रही थी। आँखे गुलाबी हो चली थी। साँसे तेज चल रही थी। वो मेरे ऊपर टूट सी पड़ी। और अगले एक
मिनट में मैं भी नंगी थी उसकी ही तरह। मुझे ऊपर खिसका कर उसने मुझे पूरी तरह से बेड पर लिटा दिया। अब सेवा करने
की बारी उसकी थी। मैंने अपनी दोनों टाँगे हवा में उठा दी। वो आगे आई और मेरे दोनों पंजो को अपनी छाती पर लगाकर
मलने लगी।

फिर दीपा ने मेरे एक पैर को पकड़ा और मेरे पैर के अंगूठे को अपने मुंह में लेकर लण्ड की तरह से चूसने लगी। ऐसा कोई
पहली बार कर रहा था मेरे साथ। और मुझे ऐसा लग रहा था की वो मेरे अंगठ
ू े के जरिये मेरी जिन्दगी चूस रही है । मै बेजान
सी होती जा रही थी। मुझे नहीं मालुम था की मेरे पैर भी मेरी चूत और बूब्स की तरह वीक पॉइंट है । मेरे मचलने को मस्ती
का पैमाना मानकर उसमे भी और हिम्मत आ गयी। और दीपा ने अंगठ
ू े के साथ-२ मेरी उं गलिया भी चूसनी शुरू कर दी।
और वो ऐसे चस
ू रही थी मानो उनपर चौंकलेट लगी हुई है । पर उसकी चस
ू ने की लगन इतनी थी की उसे कुछ भी एहसास
नहीं हो पा रहा था। वैसे अक्सर ये होना भी चाहिए। जिस तरह का सुख और एहसास मैंने उसे दिया। वो मुझे उससे ज्यादा
दे ना चाहती थी। इसलिए शायद ये सब कर रही थी। अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह दीपु, साली, कुतिया, कहा से सीखा ये सब, बोल न, भेन
की लोड़ी।

पर वो बिना कुछ बोले बस मेरे पैरो की उं गलियों को चस्


ु ती रही। और तब मैंने नोट किया की चस
ू तो वो मेरे पैर रही थी पर
झरना मेरी चूत का छूट रहा था। और शायद येही वो चाहती थी।

मेरी चूत के दरवाजो से पानी बाहर निकलते दे खकर उसने मेरे पैरो को छोड़ दिया और मेरे दोनों नंगे पैरो की पिंडलियों और
जांघो को चुमते हुए वो नीचे आने लगी। चूम क्या रही थी वो हर जगह को चूस रही थी। हर दो इंच के बाद मेरी टांगो को चूस
चस
ू कर वहां लाल रं ग का मार्क छोडती जा रही थी। मेरी चत
ू तक पहूँचते-२ उसने मेरी टांगो को लाल निशानों से भर सा
दिया। पर मुझे बड़ा मजा भी आ रहा था।

और जब उसका काफिला मेरी चूत तक पहुंचा तो मेरे पेट में अजीब तरह की गुदगुदी सी होने लगी। ये पहली बार नहीं था
की वो मेरी चूत चूसने जा रही थी। पर जिस अंदाज में आज उसने मुझे मजे दिए थे उसके बाद वो मेरी चूत को कैसे मजे
दे गी, बस येही सोचकर मेरे पेट में गद
ु गद
ु ी सी हो रही थी। उसने अपने मंह
ु को मेरी चत
ू के ऊपर लेजाकर अपने ड्रेकुला जैसे
दांतों से मुझे डराया। और अपनी चुड़ल
ै जैसी जीभ से मुझे सहमने को मजबूर कर दिया। और जैसे ही उसकी पेनी जीभ ने
मेरी चूत के धरातल को छुआ।

मेरे पेट की गुडगुड पेशाब के रूप में बाहर की तरफ उछल पड़ी। ओह्ह्हह्ह शिट sss मैंने सोचा भी नहीं था की ऐसा हो
जाएगा। मेरी मर्जी के बिना मेरा गोल्डन वाटर बाहर निकल आएगा। और वो भी इस समय जब दीपा मेरी चत
ू को चाटने के

83
लिए तैयार थी। ऐसा तो आज तक नहीं हुआ। लगता है ज्यादा उत्तेजना के कारण ही हुआ है ये सब। पर अब क्या हो सकता
था। जो होना था वो हो गया। मेरी चूत से निकले गर्म पानी के फुव्वारे उसके मुंह को भिगो रहे थे।

पर ये क्या। वो पीछे हटने के बजाये आँखे बंद करके उन बोछारो का मजा ले रही थी। और मदहोश हुए जा रही थी। मेरी तो
कुछ भी समझ में नहीं आया। पर अगले ही पल गर्म पानी से निकलती हुई भीनी खश
ु बु के एहसास ने मझ
ु े भी मदहोश सा
कर दिया। बेशक ये एहसास सोचने और सुनने में गन्दा था पर महसूस करने में उतना नहीं। और शायद येही सब महसूस
करके दीपा भी मदहोशी के आलम में उतर गयी थी। और जब मेरी चूत के फव्वारे ख़त्म हुए तो उसने अपनी भीगी पलके
खोली। उनका नशा अब और भी ज्यादा हो चुका था। उसने अपने होंठो पर जीभ फेरी। और एक तेज सांस लेकर मेरी गीली
चूत के ऊपर टूट पड़ी। ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दीपू, यु आर किलिंग मी… स्स्स्सस्स्स म्मम्मम्म एस बेबी सक मी, सक्क्क मी,
सक्क्क मी हार्ड।

अब मेरी बारी थी। मजे लेने की। मै उसके मुंह को किसी लण्ड की तरह अपनी चूत पर जोरो से मरवा रही थी। उसने सिर्फ
अपनी जीभ बाहर निकाल कर लण्ड की तरह से खड़ी कर रखी थी। बाकी का काम मै करवा रही थी, कभी घिसाई। कभी
अन्दर तक घुसवायी। सब कुछ। मेरी चूत ने कब अपना रस निकला, कब उसने उसका सेवन किया। मुझे कुछ पता नहीं
चला। मेरा परू ा शरीर नम सा था।

आज जैसा लेस्बियन सेक्स हमने कभी भी नहीं किया था। और जब से हमने अपनी चूत में लण्ड लिए है तब से तो हमने
एक दस
ु रे के साथ मजे लेना भी कम कर दिया है । और आज बाहर की चुदाई ने जो माहोल बनाया था, उसका ये फल पाकर
हमारी चुते गदगद हो उठी। …P083-085…

आज काफी कुछ सीखने को मिला था हमें मेडम से। थोड़ी ही दे र में मेडम अन्दर आई। हमारे नंगे जिस्मो को दे खकर वो
अन्दर की सारी कहानी समझ गयी। राहुल जा चुका था। हमने भी मेडम को थेंक्स कहा और अपने-२ कपडे पहन कर घर
की तरफ चल दिए।

रास्ते में दीपा ने मझ


ु से पछ
ू ा की मेडम ने आखिर हमसे राहुल की मव
ू ी क्यों बनवाई है ।

तो मैंने कहा की ये तो मेडम ही जाने।

इसी तरह परू े दिन की बाते करते-२ हम अपने-२ घर चले गए। घर पहूँचते ही मै सीधा आशु के रूम में गयी। मम्मी मार्कि ट
गयी हुई थी। वो बेड पर उल्टा लेट कर आई पोड पर गाने सुन रहा था। मै भी उसके साथ जाकर बैठ गयी। आशु ने मुझे दे खा
और अनमने मन से मुझे विश किया।

मै: क्या बात है , आज थोडा उदास सा लग रहा है । सब ठीक तो है न।

आशु: जी दीदी, सब ठीक है , दरअसल मै आपसे कुछ बोलना चाह रहा था।

मैं: हाँ…हाँ बोल न, क्या बात है ।

आशु (झिझकते हुए): दीदी वो… वो हमारे पड़ोस में वो एक लड़की रहती है न, हिनल, मझ
ु े वो काफी पसंद है ।

मै उसकी तरफ हे रानी से दे खने लगी। हिनल और उसकी फेमिली को हमारे पड़ोस में आये हुए सिर्फ चार महीने ही हुए थे।
और मेरा भाई उसके पीछे दीवाना हो गया है । वैसे दे खने में वो बुरी नहीं थी। डार्क कॉम्प्लेक्शन, मोटी ब्रेस्ट, दब
ु ला शारीर,
हं समुख स्वभाव, और सबसे बड़ी बात उसकी शराबी आँखे। मेरी भी सिर्फ उसके साथ एक या दो बार ही बात हुई थी। उसका
भाई भी था जो किसी सरकारी दफ्तर में जॉब करता था, और मम्मी पापा जो अब घर पर ही रहते थे।

मैं: क्या बात है भाई, मतलब इशक विश्क हो गया है तझ


ु े। ह्म्म्म।

आशु: अरे नहीं दीदी, वो तो बस ऐसे ही, मुझे अच्छी लगती है ।

84
मै: अच्छा, मतलब प्यार नहीं है , बस उसके साथ मजे लेना चाहता है , है न।

आशु: आप भी न, अच्छा सुनो, आप मेरी हे ल्प करो न, प्लीज, मेरी हिम्मत ही नहीं हो पाती है उससे बात करने की, आप ही
कुछ करो न।

मै कुछ सोचने लगी, और तभी मै मुस्कुराने लगी। वो समझ गया की मेरे दिमाग में कुछ प्लान आया है ।

मै: अगर तुम चाहो तो मै तुम्हारी हे ल्प कर सकती हूँ। और कहो तो अगले पांच मिनट में तुम हिनल को चोद भी सकते हो।

आशु फटी-२ आँखों से मुझे दे खने लगा। जैसे पूछ रहा हो। कैसे…

मैं: मै तुम्हारे लिए हिनल से बात करुँ गी और तुम उसके साथ सब मजे लेते रहना बाद में । पर अभी तुम मुझे ही हिनल
समझ कर और कह कर चुदाई करो। बड़ा मन कर रहा है तुम्हारा मोटा लण्ड अपनी चूत में लेने का। मेरी बात सुनते ही
उसके चेहरे की मस्
ु कराहट और भी बढ गयी।

मुझे अपनी तरफ खींचकर उसने अपने प्यासे होंठ मुझपर चिपका मारे । उम्म्मम्म्म्हह्ह। उम्म्म्मम्म हिनल, मच मूउच।
वो अपनी आँखे बंद करके मुझे हिनल समझ कर चूसने में लगा हुआ था। और मुझे भी हिनल का रोल प्ले करने में एक
अजीब सा रोमांच मिल रहा था। मुझे एक ही झटके में अपनी गोद में उठा कर उसने हवा में उठा लिया और मेरी गुदाज
गाण्ड के अन्दर हाथ धंसा कर वो मझ
ु े ऊपर मंह
ु करके चस
ू ने लगा। मैंने अपनी टी शर्ट को अपने कंधे से खिसका कर एक
तरफ की बाजू नंगी कर दी। और फिर दस
ू री भी। और ब्रा के स्ट्रे प्स भी गिरा दिए दोनों तरफ। मेरे दोनों कबूतर हवा में उड़ने
लगे और आशु उन्हें अपने मुंह से पकड़ने की नाकाम सी कोशिश करने लगा। मेरे दोनों निप्पलस इतने कड़क हो चुके थे की
उनको मैंने आशु के चेहरे पर दबा कर उसे सिसकने पर मजबरू कर दिया। अपने निप्पल को मैंने उसकी आँख पर दबाया
और उसके चेहरे को अपनी तरफ खींच कर उसकी आँखों को भेदने लगी अपने शूल से। उसकी जीभ बाहर निकल कर मेरी
ब्रेस्ट की घाटियों में पैदा हो रही ओस की बूंदों को चाटने में लगी हुई थी। उसकी एक ऊँगली को अपनी गाण्ड के छे द पर मै
साफ़ महसूस कर पा रही थी।

अभी कुछ दे र पहले तक दीपा इसी छे द को बरु ी तरह से चाट रही थी। और अब आशु के लण्ड के नाम की खज
ु ली मझ
ु े बरु ी
तरह से तडपा रही थी। वो फिर से मेरे होंठो को चूसने लगा। मैंने उसके मुंह से अपने होंठ छुडवाये

और बोली: तेरी हिनल की चूत गीली हुई पड़ी है आशु। चल चोद मुझ।े अपनी हिनल को चोद न।

उसे किसी और इनविटे शन की जरुरत नहीं थी। मुझे गुडिया की तरह से बेड पर पटका, मेरी जींस को खींच कर कच्छी समेत
उतारा। अपने लण्ड को आजाद करवाकर मेरी चूत के द्वार पर लगाया। और फिर "हिनल" के नाम की हुंकार भरकर उसे
मेरी चत
ू के तहखाने में उतार दिया। अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह। धीरे , मेरे राजा। म्मम्मम। …P086…

उसके टट्टे मेरी गाण्ड से चिपक कर गले मिल रहे थे। और फिर जब उसने पिस्टन की तरह अपने लण्ड से मुझे चोदना शुरू
किया तो वो थपेड़े दे -दे कर अजीब सा संगीत बजाने लगे। और उस संगीत में हिनल के नाम का गाना आशु मुझे सुनाने में
लगा हुआ था। ले हिनल, मेरी प्यार हिनल, अपनी चूत में मेरा लण्ड अह्ह्ह्ह। उसका लण्ड आज सच में एक नए उत्साह के
साथ मेरी चत
ू का बेंड बजा रहा था। हिनल के नाम का बेंड।

पर मुझे तो मजे लेने से मतलब था। सो मै ले रही थी। और जल्दी ही उसके लण्ड की पुकार मेरी चूत के अन्दर तक जाकर
आने वाले तूफ़ान की घोषणा करने लगी। और तूफान जल्दी आ भी गया। मेरी चूत के अन्दर उसके लण्ड से निकला ज्वार
भाटा इकठ्ठा होकर बाहर की तरफ बहने लगा। इतना रफ सेक्स करके मुझे आज सच में मजा आया था। हमने अपने-२
कपडे पहने और मै और आशु छत पर आ गए। आशु ने मझ
ु े बताया की हिनल इसी टाईम घर की छत पर टहल रही होती है ।
और उसकी बात सच भी थी। वो कान में ईयर फोन लगा कर गाने सुन रही थी। मैंने इशारा करके उसे बुलाया। उसने ईयर
फोन निकाले और मेरी और आशु की तरफ मुस्कुरा कर दे खा और हाथ हिला कर हाय बोला। उसके और हमारे घर में दो घर

85
और भी थे। इसलिए हमारी बात होना तो संभव नहीं था इतनी दरू से। मैंने उसे इशारे से अपने घर पर आने को कहा। वो
पहले तो है रान हुई।

पर फिर चीख कर बोली की आधे घंटे में आएगी वो। अभी मम्मी बाहर गयी है । उनके आते ही आएगी वो मुझसे मिलने।
उसकी बात सन
ु कर मेरे से ज्यादा आशु खश
ु हो गया। और हम दोनों नीचे जाकर उसके आने का इन्तजार करने लगे। मम्मी
भी तब तक मार्कि ट से आ चुकी थी। आशु ने नीचे आते ही अपनी टी शर्ट चें ज कर ली। और साफ़-सुथरा सा बनकर मेरे साथ
आकर हिनल का इन्तजार करने लगा।

अब आगे की कहानी। हिनल की जुबानी।

******
हिनल
******
मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था। जब से हमने यहाँ पर शिफ्ट किया था किसी ने पहली बार मझ
ु े घर पर बल
ु ाया था। मेरी भी
दिली तमन्ना थी की मेरे भी दोस्त बने। पर इस मोहल्ले में सभी का नेचर काफी रिजर्व टाईप का था। कोई घर से निकलकर
राजी ही नहीं था। और आज जब कोमल और उसके भाई ने मुझे अपने घर पर बुलाया तो मुझे काफी ख़ुशी हुई। वैसे उनके
साथ पहले भी हाय हे ल्लो हो चक
ु ी थी। और इन्फेक्ट उसका भाई आशत
ु ोष तो मझ
ु े छत पर घरू -२ कर ऐसे दे खता है जैसे
कच्चा ही खा जाएगा। पर इसी तरह की अटें शन तो मै मिस कर रही थी इतने दिनों से। खेर मैंने जल्दी से अपनी टी शर्ट
शेनज की और एक टाईट सी जींस निकाल कर पहन ली। और उनके घर की तरफ चल दी। मैंने बेल बजायी। और आशुतोष
ने दरवाजा खोला। मुझे दे खते ही उसके चेहरे की की मुस्कराहट दस गुना बढ गयी। मैंने उसकी तरफ हाथ बढाया और हम
दोनों ने हें ड शेक किया।

तभी पीछे से कोमल की आवाज आई।

कोमल: आओ आओ हिनल, कैसी हो।

मैं: मै ठीक हूँ कोमल। और मैंने उसके साथ भी हें ड शेक किया और हम तीनो सोफे पर आकर बैठ गए। तभी उसकी मम्मी
भी बाहर आई और मैंने उन्हें नमस्ते किया।

आंटी: अरे हिनल बेटा तुम, मम्मी पापा कैसे है । तुम्हारी मम्मी से तो बात होती रहती है । अच्छा हुआ तुम यहाँ आई।
कोमल और आशु के साथ आकर गप्पे मार लिया करो। …P087…

हिनल: जी आंटी, सोचती तो रहती हूँ पर वो क्या है न की थोड़ी शर्म आती है ।

मम्मी: अरे बेटा, ऐसा नहीं सोचते। तुम सब बैठो, मैं तुहारे लिए शेक बना कर लाती हूँ। और मम्मी अन्दर चली गयी।
उनके जाते ही मैंने आशु को इशारा किया और वो जाकर हिनल के साथ बैठ गया। मैं उन दोनों के सामने बैठी हुई थी।

मैं: तुम छत पर क्या करती रहती हो अकेले।

हिनल: बस गाने वगेरह या फ़ोन पर बाते या फिर पढाई।

आशु बीच में ही बोल पड़ा: अगर तुम चाहो तो कल से तुम हमारी छत पर आ जाया करो। जो भी करना है मिलकर करा
करें गे। उसकी बात सन
ु कर हिनल शर्मा कर रह गयी। मम्मी शेक लेकर आई और हम सभी ने पिया। उसके बाद मैंने हिनल
को ऊपर चलने को कहा 

हम तीनो छत पर आ गए। ऊपर आकर दे खा की हिनल की मम्मी भी आ चुकी थी और वो छत पर सूख रहे कपडे उतार रही
थी। हिनल ने आवाज दे कर उन्हें बताया की वो हमारे घर पर है । और जब उसकी मम्मी ने दे खा की मैं भी साथ हूँ तो वो

86
बेफिक्र होकर नीचे चली गयी। फिर मैंने आशु को इशारा किया की वो हमें थोड़ी दे र तक छोड़कर नीचे जाए ताकि मैं हिनल
के साथ खुलकर बात कर सकू।

उसके जाते ही मैंने हिनल से सीधा पूछा: कोई बॉयफ्रेंड है क्या…

वो मेरी बात सुनकर मुझे हे रानी से ताकने लगी।

मैं: अरे हिनल, शरमाओ मत, बोलो न।

पर वो कुछ न बोली। मुझे शक सा होने लगा की इसका बॉयफ्रेंड है । और अगर ऐसा हुआ तो आशु का पत्ता तो कट हो
जाएगा 

मेरे एक दो बार पूछने पर वो बोली: नहीं कोमल, अब नहीं है । जब से हमने यहाँ शिफ्ट किया है , तब से नहीं है । पहले था,
हमारे ही पड़ोस में रहता था। पर उसके साथ भी ज्यादा कुछ नहीं। बस थोडा बहुत, यु नो।

मैं: या…या आई अंडरस्टें ड, मतलब आजकल कोई नहीं है । ह्म्म्म।

हिनल: नहीं, और तुम्हारा।

मैं: मेरा तो है , और वो रोज रात को मुझसे मिलने भी आता है । यहीं छत पर। मेरे दिमाग में आईडिया आ चुका था।

हिनल हे रानी से मेरी तरफ दे खने लगी: रोज रात को, वाव… और वो भी तुम्हारी छत पर, तुम्हे डर नहीं लगता।

मैं: डरने वाली क्या बात है । सब सो रहे होते है । वो दस


ू री तरफ से आता है । हम मजे लेते है । और फिर वो वापिस चला जाता
है ।

हिनल (हे रानी से): मजे, कैसे मजे…

मैंने अपनी आँखे मटकाई। उसके चेहरे के पास अपने होंठ लेजाकर धीरे से कहा: चुदाई के मजे…

उसका दिल धक् से रह गया। मेरे मुंह से चुदाई शब्द सुनकर, और शायद उसके बारे में सोचकर। उसके दिल की धड़कन की
आवाज मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी। शाम का अँधेरा हो चुका था। हम दोनों जहा खड़े थे वो जगह भी अँधेरे में थी। कोई दरू
से हमें नहीं दे ख सकता था। मैं उसकी मनोदशा समझ कर उसके पीछे गयी। और उसकी कमर पर हाथ रखकर मैंने अपना
सर पीछे से लेजाकर उसके कंधे पर रख दिया। अब मेरे होंठ उसके कानो के बिलकुल पास थे।

मैं: पता है , चुदाई क्या होती है , कैसे की जाती है , कभी करी है ।

हिनल (हकलाते हुए): न्नन्न, नहीं, कभी नहीं। मैंने तो बस सिर्फ किस वगेरह, और कुछ नहीं।

मैं: दे खना चाहोगी। मेरे होंठ उसके कानो को छु रहे थे।

हिनल ने झटके से अपना सर घुमा कर मुझे दे खा: किसकी…

मैं: मेरी… और मैंने एक ही झटके से उसके गुलाबी होंठो पर जोरदार चुम्मा ले लिया। ठन्डे होंठ थे उसके, पर साँसे उतनी ही
गरम। वो भोचक्की सी रह गयी। शायद उसकी पहली किस्स थी वो। किसी लड़की के साथ। उसके मुंह और नाक से निकल
रही तेज साँसों ने मझ
ु े भी पिघला कर रख दिया। मेरे परू े शरीर में , खासकर मेरी चत
ू में अजीब सी हलचल होने लगी। मैंने
पीछे से किस्स करते हुए उसकी गाण्ड को अपनी चूत से घिस्से लगाने शुरू कर दिए। मानो उसकी गाण्ड मार रही हूँ मै।
अद्रश्य लण्ड से।

और मैंने अपने हाथ ऊपर करके उसके दोनों ग्लोब अपने हाथो में पकड़ लिए। वाह। क्या चीज थे वो, इतने बड़े, मुलायम
और लम्बे निप्पल। जिन्हें मै उसकी टी शर्ट और ब्रा के बावजद
ू महसस
ू कर पा रही थी। उसने टूटे फूटे शब्दों में विरोध

87
किया, ओह्ह्ह्ह कोमल, ये क्या कर रही हो तुम, छोड़ो मुझे, मैंने पहले कभी नहीं किया ये सब, किसी लड़की के साथ,
अह्ह्ह्ह। पर…पर, मैं तुम्हे मना क्यों नहीं कर पा रही हूँ। अह्ह्ह्ह।

उसकी साँसे तेज होती जा रही थी। उसने भी अपना मस्तानी गाण्ड को पीछे करके मेरी लय के साथ लय मिलायी। मेरे चेहरे
पर डेविल वाली हं सी आ गयी। कोमल किसी को सिडिउस करे और वो हुए न। ऐसा तो हो ही नहीं सकता। मैंने अपने हाथ
को सीधा लेजाकर उसकी चूत के ऊपर दबा दिया।

उसके तो होंठ खुले के खुले रह गए। जिसकी वजह से मैं और अन्दर तक जाकर उन्हें चूसने लगी। वो मेरी तरफ पलटी और
एकदम से मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर मुझे अपनी तरफ किया और मुझे जोरो से चूसने लगी। म्म्म्मम्म अह्ह्ह्हह्ह
म्मम्मम्म मछ्
ु ह्हह्ह।

हम दोनों के मंह
ु से लार निकल निकलकर नीचे गिर रही थी। मैंने चारो तरफ दे खा। घप्ु प अँधेरा था चारो तरफ। चारो तरफ
कोई भी अपनी छत पर नजर नहीं आ रहा था। हमारे घर की छत पर एक परु ाना सा स्टोर है , मैं हिनल को उसकी आड़ में ले
गयी और छत पर सूख रही एक चादर को नीचे बिछाया और खुद नीचे बैठ गयी। वो मेरे सामने खड़ी थी। मैंने उसे अपनी
तरफ खींचा और उसकी जींस के बटन खोलकर उसे उतार दिया। नीचे उसने ब्लेक कलर की पैंटी पहनी हुई थी। वो अब
घबरा रही थी।

हिनल: अहह कोमल, कोई… कोई आ गया तो…

उसे शायद नीचे से आशु के आने का दर था। पर मैंने आशु को पहले ही बोल दिया था की जब तक मैं न बुलाऊ वो ऊपर न
आये।

मैं: तुम चिंता मत करो। वो अभी ऊपर नहीं आएगा। तुम बस मजे लो। और ये कहते हुए मैंने खुली छत पर उसकी कच्छी
को खींचकर उसकी चूत को बेपर्दा कर दिया। और वो भी उसके घर की छत से कुछ ही दरु ी पर। उसने शायद ऐसा सोचा भी
नहीं होगा।

मेरे सामने उसकी चत


ू थी अब, घने बाल थे उसपर, जो उसकी चत
ू से निकल रहे रस की वजह से भीग कर गीले हो चक
ु े थे।
मैंने आज तक किसी बाल वाली चूत को नहीं चूसा था। सोचती थी की चूत के बाल मुंह में आयेंगे तो कितना गन्दा एहसास
होगा। पर आज उसकी चूत को दे खकर मेरे दिल में एक बार भी ये बात नहीं आई। मैंने उसकी एक टांग को उठा कर अपने
कंधे के दस
ू री तरफ किया और अपने मुंह को ऊपर किया जिसकी वजह से उसकी चूत मेरे मुंह के बिलकुल ऊपर आ गयी।
उसकी चूत से निकल रहा रस, बँद
ू -2 करके बालों से होता हुआ नीचे गिर रहा था।

और मैंने आव दे खा न ताव। अपने मुंह को उसके बालों वाले छत्ते पर लेजाकर चिपका दिया। और वहां का रस पीने लगी।
वाह… कितना मीठा एहसास था, और उसके बालो में लिपटा हुआ शहद चूसने में अलग ही मजा आ रहा था। मेरे होंठो ने
उसकी चूत पर परू ा कब्ज़ा जमा लिया था। उसकी चूत के दोनों होंठ, सारे के सारे बाल, मेरे मुंह के कब्जे में थे, अन्दर से मैंने
अपनी जीभ को उसकी चूत के छे द पर लेजाकर, आस पास के बालो को धकेलते हुए, अन्दर तक घुसा दिया। अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह
ओफ्फ्फफ्फ्फ़ कोमल।

उसने अपने दोनों हाथो से मेरे बालों को पकड़ लिया, और अपनी चूत को मेरे मुंह पर घिसने लगी। मेरी जीभ को उसकी चूत
के अन्दर जाने में काफी दिक्कत हो रही थी। मैंने सोचा, जब लण्ड जाएगा तो क्या हाल होगा इसका। ओह्ह्हह्ह फक्क्क्क
फक्क्क्कक्क्क्क कोमल।

वो अपनी पतली कमर मटका-2 कर मेरे मुंह से चुद रही थी। बिलकुल कामसूत्र वाला पोस था वो, और जल्दी ही उसकी
स्पीड बढ गयी। मुझे भी आने वाली मुसलाधार बारिश का एहसास होने लगा था। और जल्द ही बारिश हुई। बारिश क्या…
तूफ़ान आया मेरे मुंह के अन्दर। उसकी चूत से निकलकर इतना सारा रस मेरे मुंह में गया की मेरे चेहरे को भीगोता हुआ,
मेरे कपडे पर गिरता हुआ, मुझे नहला कर चला गया। अहहह मममम।

88
उसकी ठं डी और सम्पूर्ण सिसकारी निकल कर गँजू रही थी, परू े मोहल्ले में । वो पीछे हुई, मुझे प्यार से दे खा, और नीचे
झुककर, मेरे चेहरे को पकड़कर बुरी तरह से चाटने लगी, मानो मेरा कर्जा उतार रही हो। मैंने भी मना नहीं किया। मुझे क्या
प्रोब्लम थी। उसने एक ही झटके से मुझे पीछे धकेला। मेरी स्कर्ट को ऊपर किया, मेरी पैंटी को नीचे किया, और मेरी आँखे
में दे खते -2 अपने होंठो को मेरी चूत के ऊपर लेजाकर रख दिया। उसका पहला मौका था किसी की चूत चाटने का। पर मेरे
से मजे लेने के बाद हिनल के लिए अब मेरी चत
ू को चाटना आसान हो चक
ु ा था। मेरी बिना बालो की चत
ू दे खकर वो खश
ु हो
गयी।

और जैसे मैंने उसकी चूत को चूसा और चाटा था, बिलकुल वैसे ही वो भी मेरी चूत को चूसने और चाटने लगी। पूरे मन से
सेवा करने लगी वो मेरी चूत की। मेरी तो आँखे बंद सी होने लगी। उसके गुलाबी होंठ, मेरी लाल चूत को अन्दर तक चाट रहे
थे। और मेरे रस को पी भी रहे थे। मैंने भी उसके सर के पीछे अपने हाथ को रखा और मल
ू ी की तरह से उसकी जीभ को
अपनी चूत के ऊपर घिसने लगी। अह्ह्हह्ह येस्स्स्स हिनल चूस, चूस अह्ह्ह्हह्ह म्मम्मम और मेरी चूत से रस का
फव्वारा निकल कर जब उछ्ला तो उसके चेहरे और मुंह के ऊपर बोछार सी पड़ी। मेरे मीठे और गाड़े रस की। जिसे उसने
उतनी ही आसानी और मजे से पिया जैसे मैंने पिया था। और फिर मस्
ु कुराती हुई मैं भी उठ बैठी और हमने एक दस
ु रे के मंह

से मुंह लगाकर बचा ख़ुचा चूत-ए-रस शेयर किया। कपडे पहनने के बाद मैं और हिनल वापिस दिवार के पास आकर खड़े हो
गए और बाते करने लगे।

हिनल: वाव कोमल, सच में मजा आ गया आज तो। मैंने तो सोचा भी नहीं था की किसी लड़की के साथ ऐसा करने में इतना
मजा आता है । आई एम ् थेंक फुल टू य।ु

मैं: अरे इसमें थेंक्स कहने वाली क्या बात है । मैंने भी जब पहली बार किया था तो मझ
ु े भी अच्छा लगा था। पर एक बात तो
है । ये सब मजे लण्ड के मजे के सामने बेकार है । उसकी आँखों में लण्ड के लिए प्यास बड़ने लगी थी।

हिनल: कोमल, तू…तू कह रही थी की तुम्हारा बॉय फ्रेंड रोज तुम्हे यही छत पर आकर, फक्क करता है ।

मैं: हाँ, रोज करता है , यहीं पर। मैंने नीचे चादर की तरफ इशारा किया।

हिनल (शर्माते हुए): तो क्या, मैं… मैं आज रात को आकर तम्


ु हे चद
ु ते हुए दे ख सकती हूँ क्या… मझ
ु े मालम
ु था की वो यही
कहे गी।

मैं: ठीक है , मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है । तुम ठीक 10 बजे तक आ जाना, और ये साथ वाली छत पर छुप जाना। यहाँ से साफ़
दिखाई दे गा।

वो मेरी बात सुनकर खुश हो गयी। और थोड़ी दे र और बाते करने के बाद हम दोनों नीचे आ गए। नीचे आशु बेसब्री से बैठा
हुआ हमारा इन्तजार कर रहा था। थोड़ी दे र बैठकर हिनल वापिस चली गयी। उसके जाते ही मैंने आशु को नमक मिर्च
लगाकर सारी बाते बताई। जिसे सुनते-2 वो पागल सा होता चला गया।

अंत में जब मैंने रात का प्रोग्राम बताया तो वो है रान परे शां सा होकर पछ
ू ने लगा: कौन है , तम्
ु हारा बॉय फ्रेंड, किसके बारे में
बोला है तुमने जो रात को छत टापकर आएगा, बोलो न।

मैं (रहस्यमयी हं सी हँसते हुए): सर्प्रायीस है , वेट करो बस। हा हा…

और फिर मैं अपने कमरे में चल दी। फोन करने। …P088-089…

मैंने अपने कमरे में जाते ही अपनी डायरी निकली और नंबर डायल किया।

दस
ू री तरफ से आवाज आई: हे ल्लो…

मैं: हाय जॉन, मैं बोल रही हूँ, कोमल…

89
जॉन: को… कोमल, वाव… क्या बात है , मेरी याद कैसे आ गयी आज।

मैं: बस आ ही गयी। अब तुम मेरी इतनी जासूसी करने लगे हो तो मुझे भी तो पता करना पड़ेगा न की तुम ऐसा क्यों कर रहे
हो।

वो मेरी बात सुनकर घबरा गया: जासूसी, कैसी जासूसी…

मैं: भोले मत बनो तुम, मुझे सब पता है , तुमने ही मेडम को बताया था की मैं और राहुल कॉलेज की टॉयलेट में जाकर, मजे
ले रहे है ।

वो कुछ न बोला।

मैंने आगे कहा: और मैं ये भी जानती हूँ की तुमने ऐसा क्यों किया।

वो धीरे से बोला: कक्क… क्यों…

मैं: क्योंकि तुम भी वही चाहते हो जिसके लिए राहुल मेरे साथ टॉयलेट में गया था। मेरी चूत…

वो हकलाने लगा था: चूत…

मैं: हाँ मेरी चत


ू , क्यों तम्
ु हे नहीं चाहिए क्या…

मेरे मंह
ु से चत
ू शब्द सन
ु कर वो भी खल
ु कर बोलने लगा था अब: हाँ… हाँ चाहिए न, और हाँ, मैंने ही बताया था मेडम को उस
दिन, दरअसल पहले ही दिन से, वो जब से मैंने रे गिग
ं वाले दिन तुम्हे किस्स किया था मुझे बस तुम्हारा ही ख्याल रहता
था। और सच मानो तो तुम पहली लड़की हो जिसे मैंने किस्स किया था, और किसी को मैंने आज तक कुछ किया भी नहीं।

मैंने मन ही मन में सोचा: वाव… कंु वारा लण्ड…

वो आगे बोला: और कॉलेज में तुमने उस दिन के बाद मुझपर कभी ध्यान दिया ही नहीं। हमेशा तुम बस राहुल के साथ ही
घुमती रहती थी, और उस दिन जब मैंने दे खा की तुम और राहुल ऊपर की तरफ जा रहे हो तो मैंने तुम दोनों का पीछा
किया। और जब मुझे यकीं हो गया की तुम राहुल के साथ टॉयलेट में चुद… चुदने जा रही हो तो मैंने मेडम को बता दिया।

मैं: यानी तम
ु चाहते थे की मैं किसी और के साथ मजे न लू, है न, तम
ु भी मझ
ु े चाहते थे।

वो फिर से चप
ु हो गया।

मैं: मैं समझ सकती हूँ जॉन, और आज इसीलिए मैंने तुम्हे फ़ोन किया है । वैसे तुम्हे ये बात मैं पहले से बता दे ना चाहती हूँ
की मैं और राहुल वो सब कर चुके है जिसके लिए तुम हमें रोक रहे थे, और तुम मुझे इतना चाहते हो तो मैं भी तुम्हे वो सब
दे ना चाहती हूँ जो तुम चाहते हो। बोलो तैयार हो…

वो हडबडा कर बोला: क्या… क्या दे ना चाहती हो।

मैं: अबे भोंद,ू चूत चाहिए क्या मेरी। बोल…

वो अपने हाथ से ऐसा मौका नहीं जाने दे ना चाहता था: हाँ… हाँ क्यों नहीं कोमल, तुम्हारी चूत पाने के लिए तो मैं कुछ भी
करने को तैयार हूँ।

और फिर मैंने उसको प्लान समझाया, उसको सब कुछ बता दिया, हिनल के बारे में की वो हमें चुदता हुआ दे खकर कुछ
सीखना चाहती है । बस आशु के बारे में नहीं बताया, जान बझ
ु कर। वो झट से तैयार हो गया। मैंने उसको टाईम बता दिया
और कैसे साथ वाले कारखाने की छत से हमारी छत तक आना है , वो भी बता दिया।

फिर मैंने हिनल को फ़ोन किया 

90
हिनल: हाय कोमल, मुझे तो बड़ी एक्सयेमेंट हो रही है । तुम्हारी वजह से आज पहली बार मैं किसी को चुदते हुए दे ख
पाऊँगी।

मैं: वो तो ठीक है । पर मेरे मन में एक विचार आ रहा था। तुम अगर इन सबके लिए इतनी ही बेकरार हो तो अपने लिए कोई
बॉयफ्रेंड क्यों नहीं ढूंढ लेती, मेरी तरह। जो तम्
ु हारी हर तरह की प्यास बझ
ु ा दिया करे गा।

हिनल: यार, मैंने बताया था न की पहले तो मेरा बॉयफ्रेंड था। पर यहाँ आने के बाद मझ
ु े ज्यादा टाईम नहीं मिल पाया है ।
और सच कहू तो मेरी शादी पक्की हो चुकी है , और अगले महीने मेरी शादी भी हो जायेगी। पर शादी से पहले मैं सभी तरह
की जानकारी लेना चाहती हूँ, ताकि मैं अपने पति को हर तरह से खुश रख सकू। और जहाँ इतने सालो तक अपना
कंु वारापन मैंने संभल कर रखा है । थोडा टाईम और सही। इसलिए बॉयफ्रेंड को भी मैं ज्यादा छूट नहीं दे ती थी। सिर्फ ऊपर के
ही मजे दे ती थी, या फिर ओरल के। पर असली चुदाई कभी नहीं की, तुम जैसा करोगी। मैं भी वैसा करके उन्हें खुश कर
दिया करुँ गी, बस…

मैंने मन ही मन सोचा की दे खते है की तुम शादी तक कंु वारी रह भी पाती हो या नहीं। इसी तरह की बाते करते-2 मैंने फ़ोन
रख दिया। खाना खाते हुए आशु मझ
ु े धीरे -2 सवाल पछ
ू े जा रहा था, पर मैंने उसको तरसाने के लिए कुछ नहीं बताया। पर
उसको कुछ तो बताना ही था न। इसलिए मैंने उसको धीरे से कहा की मम्मी पापा के सोने के बाद वो मेरे रूम में आ जाए
थोड़ी दे र के लिए।

वो बाथरूम वाले रास्ते से मेरे कमरे में आया और आते ही सवालो की झड़ी लगा दी। कौन सा बॉयफ्रेंड है तुम्हारा, किसे
बल
ु ाया है , कब से कर रही हो उसके साथ, वगेरह-वगेरह…

मैंने उसको शान्ति से सब समझाया।

मैं: सुनो आशु, जैसे तुम मजे लेना चाहते हो वैसे ही मैं भी लेना चाहती हूँ। आज अगर मैं चाहती तो तुम्हारे साथ चुदाई करके
हम हिनल को कुछ ज्ञान दे दे ते। पर तुम्हारा मकसद शायद वहां पूरा न होता। तुम्हे तो हिनल चाहिए न, इसके लिए ही मैंने
प्लान बनाया है । मेरा एक चाहने वाला है , जो मेरे पीछे काफी दिनों से है । मैंने उसको आज छत पर बुलाया है । मैं अपने मजे
लंग
ु ी और हम दोनों को चद
ु ता हुआ दे खकर हिनल भी छुपकर मजे लेगी। अब ये तम्
ु हारे ऊपर है की तम
ु हिनल को कैसे
अपने जाल में फंसाते हो। वैसे एक बात बताऊ, उसकी अगले महीने शादी है , और वो ये सब सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ाने के
लिए दे खना चाहती है , तुम अपने लण्ड का कमाल दिखाकर अगर उसकी मारने में सफल हो गए तो आज हमारी छत पर
घमाल मचेगा। समझे…

और मैंने एक आँख मार दी उसको।

मैंने नोट किया की मेरी बात सुनते हुए उसका लण्ड पूरी तरह से खड़ा हो चुका है । उसके दिमाग ने शायद अपनी बहन को
चुदते हुए दे खकर किसी और को चोदने के खयालो की तस्वीरे बनानी शुरू कर दी थी। मेरी चूत ने भी पानी छोडना शुरू कर
दिया था। वैसे तो दो घंटे बाद मुझे लण्ड मिलने ही वाला था, पर पता नहीं क्यों, आजकल किसी के भी लण्ड को दे खते ही
उसी समय चद
ु ने की इच्छा होने लगती है । मैंने सोचा, पता नहीं ये मेरे साथ ही होता है या सभी लडकियों के साथ। मैंने झट
से उसके लण्ड को हाथ में पकड़ा और उसके गले में दस
ू रा हाथ डाल कर उसको अपनी तरफ खींचा और अपने प्यासे अधर
उसके होंठो पर रख दिए।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह क्या एहसास था उसके स्टील जैसे लण्ड का। मैंने उसको मसलना शुरू कर दिया, और उसके होंठो को चूसना
और चबाना। मममममम कोमल अह्ह्हह्ह। उसके दोनों हाथ मेरे मम्
ु मो पर आकर जैम गए और उन्हें जोरो से दबाने लगे।
मैंने आनन फानन में अपनी टी शर्ट, ब्रा, पायजामा, पैंटी उतारी और नंगी होकर उसके सामने खड़ी हो गयी। और उसने भी
ज्यादा समय नहीं लगाया, मेरी तरह नंगा होने में ।

91
मुझसे ज्यादा सब्र नहीं हो रहा था, मैंने उसके लण्ड को पकड़ा और छोटे बच्चे की तरह उसे घसीटते हुए बेड तक ले आई।
और अपनी दोनों टाँगे हवा में उठा कर आशु को अपनी चूत में आमंत्रित किया। और उसने भी बिना दे री किये, अपने लण्ड
को डंडे की तरह पकड़ा और मेरी चूत के ऊपर टूट पड़ा। ओफ्फफ्फ्फ़ कमीने, साल, धीरे दाल। पर वो तेज डाल रहा था। और
मजा भी उसी में आ रहा था।

अगले पांच मिनट तक वो कुत्ते की तरह चोदने में लगा रहा मुझ।े और फिर मेरी चूत और उसके लण्ड से एक साथ अमत

वर्षा होने लगी। जिसमे भीगकर हम दोनों आनंद के सागर में गोते लगाने लगे। और आने वाली चुदाई के बारे में सोचने
लगे।

मैं जॉन के साथ, और वो हिनल के साथ। …P090-092…

रात को खाने के बाद जब सब सो गए तो मैं चुपके से अपने कमरे से निकल कर छत की तरफ चल दी, और जाकर मैंने दे खा
की हिनल पहले से अपनी छत पर टहल रही थी और मेरा ही इन्तजार कर रही थी। मुझे दे खते ही उसने हाथ हिला कर हाय
कहा और मेरे पास आ गयी।

हिनल: यार कोमल, मझ


ु े इतनी एक्सयीमें ट हो रही है न की तझ
ु े क्या बताऊ… उसकी टी शर्ट के ऊपर से चमक रहे निप्पल
मुझे साफ़ दिखाई दे रहे थे।

मैं: हाँ, दिख रहा है , कितनी एक्सयीमें ट है ।

वो भी मेरी नजरो का पीछा करते हुए समझ गयी की मैं क्या कहना चाह रही हूँ। अभी दस बजने में दस मिनट थे।
तभी आशु भी ऊपर आ गया।

आशु को दे खते ही हिनल चौंक गयी: ये… ये क्या कर रहा है यहाँ…

मैं: उम्म्म जैसे तुम्हे सीखना है , वैसे ही ये भी सीखना चाहता है । इसलिए मैंने इसे भी बोल दिया था।

हिनल: पर… पर ये तो तम्


ु हारा भाई है , इसके सामने कैसे तम
ु …

मैं (हँसते हुए): ऐसा कुछ नहीं है , हम दोनों काफी फ्रेंडली है एक दस


ु रे के साथ, और सभी तरह की बाते कर लेते है । और
इसने पहले भी कई बार मुझे नंगा दे खा है , इट्स नोट अ बिग डील।

वो बेचारी हमारी एडवांस लाईफ के बारे में सोच कर है रान होती जा रही थी।

मैं: तम
ु घबराओ मत, तम
ु अपने हिसाब से बस मेरी चद
ु ाई दे खो, और वो अपने हिसाब से, जो सीखना है वो सीखो। कोई
प्रॉब्लम तो नहीं है न तुम्हे ।

वो बेचारी क्या कहती, मान गयी। मैंने उन दोनों को पानी की टं की के पीछे छुप जाने को कहा। थोड़ी ही दे र में जॉन दस
ू री
तरफ से मेरी छत पर टापकर आ गया।

जॉन: हाय… बड़ी हॉट लग रही हो। मुझे आने में दे र तो नहीं हुई न। मैंने उसके गले में अपनी बाहें ड़ाल दी और उसके होंठो
को चम
ू लिया, जिसकी उसे कोई आशा भी नहीं थी शायद।

मैं: बस थोड़ी दे र और न आते तो मेरा जिस्म जलकर राख हो जाता।

एक लड़की के मुंह से ऐसी बात सुनकर तो कोई भी लण्ड पें ट फाड़कर बाहर निकल आये। और यही हाल जॉन का भी हो रहा
था इस समय। एक तो मैंने उसको एकदम से बल
ु ा लिया मिलने को और वो भी चद
ु ाई के लिए, उसको शायद अपनी किस्मत
पर यकीं नहीं हो पा रहा था।

92
उसके दोनों हाथ मेरे हॉर्न बजाने लगे। और मैं छत पर खड़ी हुई, जल बिन मछली की तरह से तड़पने लगी। उसके लण्ड के
ऊपर हाथ लगाकर मैंने ये तो पता लगा ही लिया था की आज मुझे मजा बहुत आने वाला है । मैंने टं की के पीछे छिपे हुए
आशु और हिनल की तरफ दे खा, जो बड़ी उतसुकता से मेरा खेल दे ख रहे थे। वैसे दोस्तों, जब ये बात मालुम हो की अपनी
चुदाई को कोई और भी दे ख रहा है तो परफॉर्म करने में ज्यादा मजा आता है । और यहाँ तो मुझे ऐसा परफॉर्म करना था
ताकि हिनल अपनी शादी के लिए कुछ सीख सके और अगर मैं उन्हें ज्यादा उत्तेजित कर पायी तो शायद आशु ही उसकी
चुदाई करके बता सके की शादी के बाद क्या होने वाला है उसके साथ।

मैंने जॉन की टी शर्ट उतार दी, उसने भी मेरी टी शर्ट उतारी और अपना मुंह सीधा लेजाकर मेरी ब्रेस्ट के ऊपर रख दिया।
और ब्रा के ऊपर से ही मेरे निप्पलस में से दध
ू निकालने की कोशिश करने लगा। गीला मुंह होने के कारण मेरी ब्रा के आगे
वाला हिस्सा परू ा गीला हो चक
ु ा था। और एक ठं डक का एहसास मेरे निप्पलस के ऊपर हो रहा था और साथ ही ठं डी हवा की
चुभन मेरे शरीर को सहला रही थी, मेरी कमर तीरकमान जैसे टे डी हो गयी और मैंने उसके सर को अपनी छाती पर पूरी
तरह से दबा डाला।

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ जॉन, तुम तो मुझे मार डालोगे, ये लो, ये लो, अब चुसो।

मैंने अपनी ब्रा को नोच खसोट कर उतार फेंका। और अपनी नंगी छाती उसके भूखे मुंह के सामने परोस दी। और जैसे ही
उसके ड्रेकुला जैसे दांत मेरी छाती से टकराए, मेरे मुंह से फिर एक बार मादक सिस्कारियां निकलने लगी। ओफ्फ्फफ्फ्फ़
जॉन ऐसे ही, अह्ह्हह्ह्ह्ह काटो कम, चुसो, बस चुसो।

पर वो कुत्ते की तरह अपने पैने दांतों से मझ


ु े काटने में लगा रहा। और सच कहूँ तो उसके काटने से जो मीठा दर्द हो रहा था
वो सीधा मेरी चूत तक पहुंचकर मुझे और भी उत्तेजित कर रहा था। एक तरह से वो मेरी चूत रुपी आग में , दांत काट रूपी
घी का काम कर रहा था। मैं उछल कर उसकी गोद में चढ़ गयी। वो मुझे लेकर ऊपर बने कमरे की दिवार की ओट में ले गया
और मेरी पीठ को दीवार से टिका कर, मेरे हांथो को मेरे सर के ऊपर दिवार से चिपका कर, मुझे बेतहाशा चूमने और चाटने
लगा।

उसके गीले होंठ कभी मेरे होंठो को, गर्दन को और ज्यादातर मेरे मुम्मो को चूसने और काटने में लगे हुए थे। मैंने हवा में
लटके-2 अपनी चूत वाले हिस्से को उसके लण्ड वाले हिस्से पर घिसना शुरू कर दिया। ऐसा घर्षण करने से मेरी चूत के
बादल अन्दर ही अन्दर घुमड़कर बरसने की तय्यारी करने लगे। एक बात तो पक्की थी, एक भयंकर तूफ़ान आने वाला था
आज।

मेरी पीठ पर दर्द होने लगा था। इसलिए मैं नीचे उतर गयी। और नीचे उतरते ही मैंने पंजो के बल बैठकर उसकी जींस के
बटन खोले और उसके लण्ड को आजाद किया। वाव… कितना सुन्दर लण्ड था उसका, नार्मल साईज था, पर था एकदम गोरा
चिट्टा, कोई बाल भी नहीं था, लगता था आज ही साफ़ करके आया था। इतने सुन्दर, साफ़ सुथरे लण्ड को दे खते ही मेरे मुंह
में पानी आ गया और मैंने अपना मुंह खोलकर उसे अन्दर ग्रहण कर लिया।

अह्ह्ह्हह्ह कोमल चूस जोर से जरा। अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह।

मैंने उसका पांच इंच का लण्ड परू ा मुंह में ले लिया और आईसक्रीम की तरह से चूसने लगी। मेरी चूत मे भी खुजली हो रही
थी। मैं जल्दी से उठी और अपना पायजामा उतार कर मैं भी नंगी हो गयी, नीचे मैंने पैंटी नहीं पहनी थी आज। और फिर से
नीचे बैठ कर उसका लण्ड चस
ू ने लगी। और अपनी चत
ू को अपनी ही हाथों से मसलने लगी। जॉन के दोनों हाथ मेरे सर को
कण्ट्रोल कर रहे थे, या ये कहलो मेरे मुंह को चोद रहा था वो खड़े-2,

मेरा ध्यान हिनल और आशु की तरफ गया। वो अभी तक मुझे घूर-2 कर दे ख रहे थे। ये आशु इतना टाईम को लगा रहा है
पहल करने में । और खासकर हिनल, जो सीखने के परपस से बड़े ध्यान से मुझे ब्लो जॉब दे ते हुए दे ख रही थी। आज तो वो
कुछ सीखकर ही जायेगी यहाँ से। मैंने अपना ध्यान फिर से जॉन के लवली लण्ड की तरफ लगा दिया, और उसके लण्ड के
छे द पर अपनी जीभ की नोक लगा कर वहां से कुरे दने लगी। इतना बहुत था उसके लिए। जॉन के लण्ड से भरभराकर सफ़ेद
93
रं ग का पानी मेरे मुंह में गिरने लगा, और मेरे गले से होता हुआ नीचे जाकर मेरे सीने की आग को बुझाने लगा। ओह्ह्ह्ह
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह म्मम्मम्मम्म वो खड़ा हुआ सिस्कारियां के रहा था। और अपना वीर्य मेरे मुंह में खाली करता हुआ सियार
की तरह ऊपर मुंह किये हुंकार भर रहा था।

मैंने हिनल और आशु की तरफ दे खा। हिनल का एक हाथ अपनी चत


ू के ऊपर था। और वो बदहवास सी होकर मझ
ु े जॉन के
लण्ड का पानी पीते हुए दे ख रही थी। अब वो भी उत्तेजित होने लगी थी। पर अभी तक भी आशु ने अपनी तरफ से कोई
पहल नहीं की थी।

मैंने छत पर पड़ी हुई दरी उठा ली और उसे बीचो बीच बीछा दिया। अब शुरू होना था मेरी चुदाई का अगला भाग। पर पहले
मझ
ु े चट्वानी थी अपनी प्यास्सी चत
ू , ताकि इसी बीच जॉन के लण्ड को खड़ा होने का टाईम मिल जाए। और मेरा ये परू ा
कार्यकर्म आशु और हिनल बड़े मजे से दे ख पायें। …P093-095…

जान चूसे दध्


ु द ू मारो, मैं वाको गोरो लण्ड,
टुकुर टुकुर हीनल निहारे , बैठ आशु के संग,
बैठ आशु के संग, मस्ती अब सर पे चढ़ती,
बात बढ़ गई इतनी फिर भी वो आगे न बढ़ती,
कह 'फर्जी' कविराय, जान ने झटका खाया,
निर्मल श्वेत धार का जायका मन मारे भाया।

बीसात बीछ चुकी थी, मोहरे लग चुके थे। बस खेल के शुरू होने का इन्तजार था। मैंने अपनी नंगी जवानी नीचे बीछा दी।
अपनी टाँगे आसमान की तरफ खोल कर परू े अन्तरिक्ष को अपनी चूत के दर्शन करवा दिए। और वो जॉन अपनी लम्बी
जीभ से लार टपकाता हुआ जैसे ही मेरी चूत के ऊपर झुका और अपनी जीभ को मेरी चूत से छुआ, ऐसा लगा की पानी से
भीगी हुई कड्ची गर्म तेल की कडाई में डाल दी हो किसी ने। इतनी सरसराहट निकली वहां से। और अव्वाजें निकलने लगी
मेरे मंह
ु से। अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह जोन्न, ओह मेरे प्यारे जॉन, साले क्या चस
ू ता है त,ू चाट ले आज, अपनी कोमल की चत
ू का
सारा पानी चाट ले आज जॉन।

मेरी बात सुनकर तो वो चने के झाड़ पर चढ़ गया और दग


ु नी तेजी से मेरी चूत को चाटने लगा। अगर लड़की अपने अन्दर
मिल रहे मजे को अपने पार्टनर को बोल कर सुनाती रहे तो पार्टनर भी दग
ु ने जोश के साथ "सेवा" करना शुरू कर दे ता है ।
मेरी चीखे शायद हिनल को पिघला रही थी। उसकी चत
ू से निकल रही खश
ु बू फिजा में फ़ैल रही थी। अब आशु ने पहल की।
उसने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और मसलने लगा। उसका लम्बा, मूसल जैसा लण्ड दरू से ही चमक रहा था। पर
हिनल की नजरे तो मेरी तरफ ही थी।

वो आशु के लण्ड को दे ख ही नहीं पा रही थी। और फिर आशु ने उसका ध्यान अपनी तरफ करने के लिए एक सिसकारी भरी,
जिसे सिर्फ हिनल ही सन
ु पाए। और हुआ भी वही। हिनल की नजर जैसे ही आशु की तरफ गयी। वो दं ग रह गयी। उसका
लण्ड लार टपका रहा था। ठीक वैसे ही जैसे हिनल की चूत से नमी का एहसास उसकी जींस तक को भिगो रहा था। मैंने जॉन
के सर के बालो को पकड़ा और दस
ु रे हाथ की कोहनी के बल बैठ कर अपनी चूत के ऊपर चल रही उसकी हल जैसी जीभ को
दे खने लगी।

मेरी चत
ू के लिप्स को वो ऐसे चस
ू रहा था मानो मेरे ऊपर वाले होंठ हो। और अन्दर से निकल रहे रस को मेरे मंह
ु से निकली
लार की ही तरह सड़प -2 करके पीता जा रहता। और दस
ू री तरफ आशु के लण्ड को दे खकर हिनल समझ नहीं पा रही थी की
वो करे तो करे क्या। उसकी शादी होने वाली थी। और वो चाहती थी की अपनी सील बंद चूत अपने पति को वो पहली रात में
दे , पर चत
ू दे ने से पहले वो जो एक्स्पेरियस लेने आई थी, उसके दोरान शायद उसने ये नहीं सोचा था की जिस कंु वारे पन को

94
उसने 25 साल तक संभाल कर रखा, वो आज लुटने के कगार पर पहूँच जाएगा। शादी से पहले ही। ये सब सोचते-2 उसने
अपनी चूत को और तेजी से अपनी जींस के ऊपर से ही मलना शुरू कर दिया।

आशु ने फिर से एक और पहल की। वो आगे आया और हिनल के कांपते हुए हाथ को अपने हाथो में लेकर अपना लण्ड उसे
पकड़ा दिया। वो कांप उठी, उसने शायद इतना मोटा पहली बार हाथ में लिया था। मैंने हिनल की आँखों में उसके अन्दर चल
रहा अंतर्द्वंद दे ख लिया था। और मुझे पता था की ऐसे में जीत सिर्फ वासना की होगी। ना की उसके 25 साल से चल रहे
आदर्शो की।

आशु ने हिनल के सर के पीछे हाथ रखा और उसके प्यासे होंठो को अपनी तरफ खींच लिया। वो सूखे पत्ते की तरह कांपती
हुई उसके सीने से जा लगी और भरभराकर आशु के होंठो को चस ू ने लगी। और उसका हाथ नीचे उसके लण्ड की सेवा भी
कर रहा था। और इधर मेरा बुरा हाल था। जॉन के मुंह में तो जैसे कोई सकिं ग मशीन लगी थी। मेरी चूत के अन्दर का सारा
रस वो अपने होंठो के जरिये खींच कर पीता चला जा रहा था। और अंत में मेरी चूत के अन्दर फंसा हुआ ओर्गास्म भी उसकी
सकिं ग मशीन के बुलावे पर बाहर की तरफ खींचा चला आया और सीधा आकर उसके मुंह पर अटै क किया। वो संभल भी
नहीं पाया और मैंने उसके चेहरे पर अपनी चूत की पिचकारी से होली खेलनी शुरू कर दी।

आज जैसा ओर्गास्म कभी नहीं आया था मुझे। मैं हांफती जा रही थी। पर मेरी चूत की प्यास अब बढ़ चुकी थी। उसको अब
सॉलिड माल चाहिए था। सॉलिड बोले तो लण्ड, जॉन का लण्ड। मैंने उसकी गर्दन को पकड़कर अपनी तरफ ऊपर खींचा।
और उसके रस से भीगे चेहरे को चाटने लगी। किसी कुतिया की तरह। और चूसने लगी उसके होंठो को। और ऐसा करके
मांग करने लगी उससे अपने द्वारा दिए गए मजे के बदले उससे दग
ु ने मजे की। और वो भी समझदार निकला। अपने लण्ड
को मेरी चत
ू के ऊपर टिका कर, बिना अपने हाथ लगाये उसने एक पश
ु किया।

अह्ह्हह्ह्ह्ह ओफ्फ्फफ्फ्फ़ मर्र्र्रर गयी रे । बस इतना ही बोल पायी थी। और उस जालिम ने अपना परू ा लण्ड पेल दिया।
मेरी रसीली चूत में । आज तो मुझे खुली छत पर चुदते हुए रात के समय के तारे दिख रहे थे। पर अगर ये दिन का टाईम भी
होता तो मुझे दिन में भी दिखाई दे जाते ये तारे । इतना जबरदस्त था उसका झटका। और फिर तो वो शुरू हो गया। ऐसा लग
रहा था की मानो जिम में पश
ु अप्स मार रहा हो। मेरे दोनों तरफ हाथ थे उसके। पंजो के बल लेटा था वो मेरे ऊपर। और लण्ड
को किसी पिस्टन की तरह अन्दर बाहर किये जा रहा था। मेरे मुम्मे बरु ी तरह से हिल रहा थे। मैंने उन्हें पकड़ना चाह तो
उसने मेरे हाथो को झटक दिया।

हिलने दे इन्हें , अह्ह्ह्हह्ह ऐसे ही हिलने दे कोमल।

मैंने अपने हाथ अपने सर के ऊपर कर लिए। और अपने हिलते हुए मुम्मो को उसकी भूखी नजरो के सामने छोड़ दिया। और
चुदने लगी। अह्ह्ह्ह ओफ्फ्फफ्फ्फ़ हम्मम्मम्म जोर से चोद, जॉन मजा आ रहा है , साले अह्ह्ह म्मम्म। मेरे ऊपर मुझे
कोई कंट्रोल नहीं रहा था। जो मुंह में आता गया। बोलती गयी।

और मेरे पेट के अन्दर एक अजीब सा तफ़


ू ान जन्म ले रहा था। जो मेरी चत
ू के रास्ते कभी भी बाहर निकल सकता था। मैंने
जॉन के गले में अपनी बाहे डाल दी और उसे अपने ऊपर पूरी तरह से बीछा लिया। अपनी टांगो से उसकी कमर को जकड
लिया और उसके जिस्म से लिपट कर ऊपर लटक गयी। और अपनी चूत वाले हिस्से से उसके लण्ड के ऊपर तेजी से झटके
मारने लगी। अब मैं नीचे होने के बावजूद उसको चोद रही थी। अह्ह्ह्हह्ह उम्म्मम्म जॉन, माय डार्लिंग, मैं अअयी
अह्ह्हह्ह 

और वो टॉरनेंड़ो आखिर निकल ही पड़ा मेरी चूत के रास्ते, बाहर की तरफ। पर बीच में ही जॉन के लण्ड से निकली बाड़ से
उसका सामना हो गया, और अन्दर ही अन्दर एक भीषण गर्जना के साथ भयंकर टकराव हुआ। हम दोनों के दिल की गति
रुक सी गयी थी। एक दस
ु रे के मुंह में होंठ थे मगर चूसने की ताकत भी ख़त्म हो चुकी थी। और फिर धीरे -2 सब शांत हो
गया। मेरी पकड़ ढीली हुई और मैं नीचे उतर गयी। वो भी मेरे साईड में लुढ़क गया, और हम दोनों अपनी-2 साँसों को
संभालने की कोशिश करने लगे।

95
मेरी चूत से धीरे -2 सारा रस बाहर की तरफ रिस रहा था। और मैं अपनी चूत में ऊँगली डाल कर अपनी दो उं गलियों से वहां
से निकल रहे चिपचिपे रस को मसल कर मजे ले रही थी। और तभी दस
ू री तरफ से हिनल के सिसकने की आवाज तेज होने
लगी। जिसे सुनकर मेरे साथ-2 जॉन का ध्यान भी उस तरफ गया। और उन दोनों को दे खकर वो चौंक सा गया।

पर मैं शांत थी। …P096-100…

मेरे उरोजों पे रें गते तेरे होंठ, मझ


ु े मदहोश किये जाते हैं
कुछ करो ना हम तेरे आगोश में बिन पिए बहक जाते हैं

जॉन ने जब दे खा की छत पर कोई और भी है तो उसने अपने कपडे उठाकर अपने लण्ड वाले हिस्से पर डाल लिए और
घबराकर मेरी तरफ दे खने लगा और बोला: अरे कोमल ये… ये कौन है ।

मैंने आराम से जवाब दिया: वो मेरा छोटा भाई आशु है । और दस


ू री है हमारे पड़ोस में रहने वाली लड़की हिनल। जिसकी कुछ
ही दिनों में शादी होने वाली है । बस वो हमारी चुदाई दे खना चाहती थी ताकि आगे वो अपनी चुदाई के टाइम अनाड़ी न
कहलाये।

जॉन (हे रानी से): इसका मतलब तम


ु ने, तम्
ु हे सब मालम
ु था, और इसलिए तम
ु ने मझ
ु े अपने पास बल
ु ाया ताकि वो दे ख
सके।

मैं: हाँ क्यों… कोई प्रोब्लम है क्या… जब मुझे कोई प्रोब्लम या शर्म नहीं है तो तुम क्यों नखरे कर रहे हो।

जॉन झेंप सा गया और बोला: अरे नहीं, मुझे क्या… पर तुम अपने, अपने भाई के सामने ही, कैसे… कैसे चुद गयी।

मैं: दे खो जॉन, हमारे बीच ऐसा कोई पर्दा नहीं रहता इसलिए हम दोनों एक दस
ु रे के सामने ये सब कर लेते है ।

जॉन (कुछ सोचते हुए): कोई पर्दा नहीं रहता, इसका मतलब तम
ु आपस में भी कुछ न कुछ…

मैं: तुम अपने आम खाओ, और मेरे पेड़ो को न ही गिनो तो अच्छा है । तुम्हे मजे मिल गए न, बस… अब वहां दे खो। जैसी
चुदाई उन्होंने दे खी है , वैसी ही अब हम उनकी दे खेंगे।

वो समझ तो चक
ु ा था की आशु और मेरे बीच भी कुछ है , पर जब मझ
ु े कोई फर्क नहीं पड़ता तो उसे किस बात का फर्क
पड़ना था। वो भी आराम से उन्हें मजे लेते हुए दे खने लगा। आशु ने हिनल को किसी गुडिया की तरह से पकड़ रखा था और
उसके होंठो को चौंकलेट की तरह से चूस रहा था, अचानक आशु ने उसकी टी शर्ट को पकड़ा और ऊपर की तरफ से घुमाकर
उतार दिया। हिनल की ब्रा भी उसने एक झटके से उतार फेंकी। अब वो खुली छत पर टॉपलेस खड़ी थी। और आशु उसके
दोनों पपीते जैसी छातियों को चूसने में लगा हुआ था। और हिनल उसके सर को अपनी छातियों में समां कर सिसक रही थी।
आशु ने उसको चस
ू ते हुए ही अपने कपडे उतारने शरू
ु कर दिए। और कुछ ही दे र में वो नंगा ही खड़ा होकर उसके मम्
ु मे चस

रहा था।

और जैसे ही हिनल को एहसास हुआ की आशु पूरा नंगा हो चुका है । तो वो जैसे होश में आई। और उसने पीछे होकर एकदम
से आशु को धक्का दिया और हांफने लगी। जैसे उसको एहसास हुआ हो की वो जो भी कर रही थी वो गलत था। …P101…

मैं उठी और नंगी ही उनकी तरफ चल दी।

उनके पास पहूँच कर मैंने हिनल से कहा: क्या हुआ हिनल, मजे लेने है तो परू े लो न। सिर्फ दे खकर कुछ नहीं सीखा जा
सकता। इस खेल का मजा तो तभी है जब इसके मजे खुद लिए जाए।

हिनल: पर कोमल, तुम तो जानती हो की मैंने कितने सालो तक अपना कोमार्य संभाल कर रखा है । और सिर्फ 10 दिन ही
तो रह गए है शादी में , 10 दिनों के बाद तो मझ
ु े ये सब मजे लेने ही है न। फिर क्यों मैं भावनाओ में बहकर सिर्फ कुछ दे र की
ख़ुशी के लिए ये अधर्म करू।
96
मैं: दे खो हिनल, आजकल ये सब आम बात है , शादी से पहले किसने क्या किया कोई नहीं पूछता और दे खा जाए तो
आजकल ये सब आम बात है , तुम मुझे बताओ जिस लड़के से तुम्हारी शादी हो रही है , क्या गारं टी है की वो भी कंु वारा ही है ।

हिनल: पर… पर अगर उसको पता चल गया तो… या फिर कुछ हो गया तो।

मैं: दे खो हिनल, आज तक कोई मशीन नहीं बनी इस दनि


ु या में जो लड़की की चूत के अन्दर जाकर ये बता सके की उसकी
चत
ू लण्ड के जाने से फटी है या फिर मोमबत्ती लेने से या कोई खेल खेलने से। तम
ु बस मजे लो, किसी को कुछ पता नहीं
चल सकता, और रही बात प्रेग्नेंट होने की तो वैसे भी 10 दिन ही तो रह गए है शादी में , अगर प्रेग्नेंट हो भी गयी तो कोई
बात नहीं। या अगर नहीं होना चाहती मुझसे आई पील की गोली ले लेना अभी। अब ज्यादा मत सोचो और वहां दे खो।

मैंने आशु के खड़े हुए लण्ड की तरफ इशारा किया। जिसे दे खकर और मेरी बाते सुनकर उसका ईमान फिर से डौल गया।
और वो उसकी तरफ खींचती चली गयी। आशु ने जब दे खा की मेरे समझाने से हिनल समझ गयी है तो उसने आँखों ही
आँखों में मुझे थेंक्स कहा। और बिना कोई दे री किये हिनल का हाथ लकड़ा और अपने उफनते हुए लण्ड के ऊपर रख कर
दबा दिया। हिनल उसको मसलने में लग गयी। इतने में जॉन भी खड़ा होकर मेरे साथ आकर खड़ा हो गया। उसका मुरझाया
हुआ लण्ड थोडा अकड़ने लगा था, शायद हिनल के मोटे मम्
ु मे दे खकर।

उसने मझ
ु े पीछे से पकड़ लिया, अपने हाथों को मेरे मम्
ु मो के ऊपर लगाकर, मेरे कंधे पर सर रखकर उनका प्रोग्राम दे खने
लगा। आशु ने हिनल के बचे हुए कपडे भी नोच फेंके। अब वो परू ी नंगी थी। उसकी चूत पर हलके फुल्के बाल थे। बड़ी ही
सेक्सी लग रही थी वो।

आशु नीचे बैठ गया और उसके एक पैर को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। और ऊपर मुंह करके उसकी नंगी और गर्म
चत
ू पर मंह
ु लगा दिया, जैसे कोई प्यासा पानी की टूटी खोलकर मंह
ु ऊपर करके पानी पीता है , ठीक वैसे ही वो हिनल की
चूत से उसका रस पीने लगा। हिनल ने आँखे बंद की और उसके बालों को पकड़ कर अपनी चूत एक्सप्रेस चला दी उसके
होंठो की पटरी पर। और दे धक्के पे धक्के।

अह्ह्हह्ह्ह्ह आशु, चूस, ओह्ह्ह्ह माय गाद उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ अह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह।

उसके इंजन से धुना निकलने लगा था। और जल्दी ही उसका होंसला पस्त हो गया और उसने ढे र सारा गाड़ा रस उड़ेल दिया
आशु के मुंह में । अब आशु की बारी थी। वो उठ कर खड़ा हो गया। और इधर उधर दे खने लगा। और भागकर वो वही दरी उठा
लाया जिसपर मैंने अभी अपनी चुदाई करवाई थी जॉन से। और नीचे बिछा कर उसने हिनल को लेटने को कहा, हिनल ने
डरते हुए मेरी तरफ दे खा, मैंने आँखों में ही उसे आश्वासन दिया की सब ठीक होगा, घबराओ मत, और फिर वो नीचे लेट
गयी।

अपने पैर फैला कर आशु की तरफ दे खने लगी। आशु नीचे झुका, और उसकी रसीली चूत के ऊपर अपने लम्बे और मोटे लैंड
को रगड़कर उसके रस से नहला दिया। और फिर उसकी चूत के होंठो में अपने लण्ड को फंसा कर एक हल्का सा झटका मारा
जिससे उसका सुपाड़ा अन्दर फंस गया। हिनल को थोडा सा दर्द हुआ पर वो कुछ न बोली। और फिर आशु ने एक दम से
अपना परू ा भार उसकी चत
ू के ऊपर डाल दिया। और उसका लण्ड सर्रर्रर सर्रर्र करता हुआ, उसकी नर्म नाजक
ु चत
ू को ककड़ी
की तरह से चीरता हुआ अन्दर तक घुसता चला गया।

अह्ह्हह्ह्ह्ह मर्रर्रर्र गयी।

उसने थोड़ी दे र तक उसके निप्पलस को चस


ू ा और होंठो पर किस्स करी। और जब हिनल की चीखे कम हुई तो उसने झटके
दे ने शुरू किये। और फिर तो आशु रुका ही नहीं। ऊपर नीचे होकर उसने हिनल की रन बिरं गी चूत का परू ा मजा लिया। इसी
बीच जॉन का लण्ड भी खड़ा हो चुका था। उसने पीछे से मेरी गाण्ड के छे द को टटोला और ऊँगली गीली करके उसके छे द पर
अपने लैंड को टिका दिया, और मुझे टं की के ऊपर झुका कर पीछे से एक तेज शॉट मारा, और उसका लण्ड मेरी गाण्ड के छे द
के अन्दर जा पहुंचा।

97
अब मैं गाण्ड मरवा रही थी और आगे से अपने भाई को हिनल की चुदाई करते हुए दे ख रही थी। और फिर एकदम से हिनल
फिर से चीखने लगी।

अह्ह्हह्ह्ह्ह चूओद साले, मुझे चोद, अह्ह्ह्ह ओग्ग्ग्ग मैं तो गयी, अह्ह्ह अब पता चला, असली चुदाई में ही मजा है । ऊपर
के मजे तो सब बेकार है , अह्ह्ह्ह। चोद साले, चोद दे मझ
ु े आज अह्ह्ह्ह। और इतना कहकर उसका ओर्गास्म हो गया। और
उसके साथ ही आशु ने भी अपने लण्ड की पिचकारिया हिनल की चूत के अन्दर मारनी शुरू कर दी।

पीछे से मेरी गाण्ड के छे द की सुरसुराहट मेरी चूत तक भी पहूँच रही थी। और जल्दी ही हम दोनों भी अपने-2 ओर्गास्म का
मजा लेने लगे। सब शांत होने के बाद जॉन ने अपने कपडे पहने और उसी रास्ते से वापिस चला गया जहाँ से वो आया था।
हिनल ने भी अपने आप को समेटा और मझ
ु े थेंक्स कहकर अगले दिन दोबारा मिलने का वादा करके लड़खड़ाते हुए कदमो
से वो अपने घर चली गयी।

रात का 1 बजने वाला था। नीचे सब सो ही चुके थे। इसलिए मैं और आशु नंगे ही नीचे चल दिए। अभी मेरा मन भरा नहीं
था। और भी चुदना था मुझे अभी। क्या करू, एक-दो चुदाइयों से आजकल मेरा कुछ होता ही नहीं था। …P102-107…

मैं जान बूझकर अपनी कमर मटकाकर चल रही थी ताकि पीछे से आ रहा आशु मेरी गाण्ड की लचक को दे खकर पागल हो
जाए और मझ ु े मस्तानी कुतिया की तरह से चोद डाले। और हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही मैं अपने कमरे में दाखिल हुई, उसने
अपने हाथो से मेरी कमर को दबोच लिया और मुझे दिवार से चिपका दिया, अपना उफनता हुआ लण्ड उसने मेरी गाण्ड से
सटा कर मुझे बेबस सा कर दिया। मेरे दोनों हाथो को ऊपर उठा कर दिवार से लगा दिया। मेरी टांग को भी ऊपर खिसका
कर अपने लण्ड को पीछे से मेरी जांघो के बीच फंसा कर उसमे से निकल रही गर्मी से अपने लण्ड की सिंकाई करने लगा।
उम्म्म्म्म ्म। अब तो खुश है न मेरा राजा भैय्या। हिनल की चूत मार कर मजा आया के नहीं।

आशु: तुम सच में कमाल की हो कोमल। तुमने खुद भी मजे लिए और मुझे भी दिलवाए। सच में , तुम कमाल हो। और ये
कह्ते उसने मेरे कानो को अपने मुंह में भर लिया और उन्हें आइसक्रीम की तरह से चूसने लगा। उसके मुंह की लार मेरे
कानो के पर्दों पर पिघले हुए शीशे का काम कर रही थी। और मैं दिवार से चिपकी छिपकली की तरह तड़प-2 कर उसके लण्ड
के एहसास को अपनी चूत के ऊपर रगड़ने में लगी हुई थी।

मैं अपने पंजो के बलखड़ी होकर उसके लम्बे लण्ड को अपनी सुरंग के अन्दर निगलने की असफल कोशिश कर रही थी।
आशु भी शायद समझ चुका था की मैं उसके लण्ड को पाने के लिए उतावली हो रही हूँ, इसलिए वो भी मुझे तद्पाने में लगा
हुआ था। मेरे मोटे मम्
ु मे दिवार के ऊपर चिपक कर बरु ी तरह से पिस चकु े थे और मेरे निप्पल भी जैसे दीवारों के अन्दर छे द
करने के लिए उतावले से हुए जा रहे थे। आशु ने अपना मुंह नीचे किया और मेरी गर्दन को पीछे की तरफ से चूमता - चाटता
हुआ मेरी पीठ के ऊपर अपनी जीभ के गीलेपन का एहसास करवाने लगा। मेरे मुंह से एक लम्बी और ठं डी सिसकारी निकल
गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह स्स्स्स्स।

मेरे हाथो को ऊपर दिवार से चिपका छोड़कर वो नीचे झक


ु और चम
ू ता हुआ मेरे नितंभ तक आया। मेरे परू े शारीर में झरु झरु ी
सी दौड़ गयी जब उसने अपनी जीभ का पेन भाग मेरी गाण्ड के छे द से लगाया। उसी छे द से जहाँ थोड़ी दे र पहले जॉन का
लण्ड उलटी कर चुका था और शायद उसके रस की सुगंध अभी भी वहां से निकल रही थी। फिर आशु ने अपने दोनों हाथो से
मेरी गाण्ड के पाट खोले और अपने मोटे होंठो से मेरी गाण्ड के छल्ले को दबा कर जोरों से चूसने लगा। मेरे मुंह से तो
सिस्कारियों की झड़ी सी लग गयी। अह्ह्ह्ह्ह म्म्म्म्म स्स्स्स। ऒऒओग्ग्ग्ग।

पर उसने मुझे नहीं छोड़ा। और बेदर्दी से मेरी गाण्ड को चूसने में लगा रहा। शायद आज वो अपने लण्ड को मेरी गाण्ड में
डालेगा। उसकी जीभ मेरी गाण्ड के अन्दर थी। और उसके लण्ड के अन्दर जाने के एहसास से मेरी गाण्ड पुलका रही थी।
और अपने आप बंद और खुल रही थी। जिसकी वजह से उसकी जीभ के चरों तरफ मेरी गाण्ड का फंदा कभी कास जाता और
कभी ढीला पड़ जाता। फिर उसने मेरी कमर को पकड़कर मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया। और अब मेरी रसीली चूत

98
उसके मुंह के सामने थी। उसने मेरी आँखों में दे खा और अपनी जीभ को लम्बा करके मेरी चूत के ऊपर नीचे से ऊपर तक
फेरा दिया। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।

मेरी चूत से निकल रही ओस उसकी जीभ पर ठं डी बर्फ की चादर की तरह से बिछ गयी। और वो उसे अपने गले से नीचे
निगल गया। और फिर मैंने अपने दोनों पैरों को उसके कंधे के दस
ू री तरफ करके अपनी चत
ू को उसके मंह
ु से बरु ी तरह से
चिपका दिया और अपने दोनों हाथ हवा में उठाकर, हवा में लटक कर जोरों से झटके दे - दे कर अपनी चूत को उसके मुंह से
चुदवाने लगी। ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ मर्र्र्र्र गयी म्मम्मम्म। और जल्दी ही मेरी चूत से गरमा गरम हलवा निकल कर उसके मुंह के
अन्दर जाने लगा।

मेरी आँखे भारी होती चली गयी और मैंने अपनी चत


ू वाला हिस्सा उसके मंह
ु के अन्दर तक ठूस दिया। पर खेल अभी ख़त्म
नहीं हुआ था। उसने अपने हाथो से मेरे कुलहो को थाम और मुझे ऊपर हवा में उठाता चला गया। और अपने लण्ड को मेरी
गाण्ड के छे द पर टिका कर, हवा ही हवा में उसे मेरी गाण्ड के छे द के अन्दर डाल दिया। ये पहला मौका था की आशु ने मेरी
गाण्ड में अपना मुसल घुसाया था। पर सच में जितना मोटा लण्ड उतना ही ज्यादा मजा। मैंने अपनी गाण्ड को उसके लण्ड
पर पूरी तरह से एडजस्ट किया। और फिर उसके गले में बाहे डालकर ऊपर उछल-2 कर अपनी गाण्ड मरवाने लगी। अह्ह्ह्ह
अह्ह्ह्ह्ह म्मम्म ऒऒओह्ह्ह ओह्ह्ह 

मेरी चूत अभी तक रिस रही थी। और गाण्ड के अन्दर जो तार बजने लगे थे उनकी झनझनाहट वापिस मुझे अपनी चूत के
अन्दर महसूस होने लगी थी। और फिर आशु ने एक ही झटके से मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए। और हम दोनों अपनी
आँखे बंद किये झटके दे ते-2 एक अलग ही दनि
ु या में खो गए। और कब उसके लण्ड से गर्म पानी निकल कर मेरी गाण्ड से
होता हुआ, मेरी चत
ू को भिगोता चला गया, मझ
ु े भी इसका एहसास नहीं हुआ। और सब शांत होने के बाद हम दोनों बाथरूम
में जाकर साफ़ हुए और वापिस जाकर सो गए, बरु ी तरह से थक चुके थे हम दोनों। अगले दिन अब कॉलेज जाकर मुझे सब
कुछ बताना भी तो था दीपा को। …P108-111…

अगली सुबह मेरी नींद मोबाइल की घंटी से खुली, मैंने टाइम दे खा, 7 बज चुके थे। ओ माय गोड, इतनी दे र तक सोयी मई
आज, मैंने फ़ोन उठाया और धीरे से हे लो कहा।

दस
ू री तरफ दीपा थी 

दीपा: अरे कोमल, तू अभी तक सो रही है । कॉलेज नहीं जाना क्या…

मैं: अरे यार, वो रात को दे र से सोयी न, इसलिए। बस अभी तैयार होकर मिलती हूँ तुझे स्टें ड पर।

दीपा: अच्छा सुन, मेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं है , इसलिए वो मुझे स्टें ड तक छोड़ने नहीं आ सकेंगे। मैं ऑटो करके तुझे
लेते हुए कॉलेज निकल लेती हूँ। वैसे भी इतनी दे र हो चुकी है , तू जल्दी से तैयार हो जा, मैं बस आधे घंटे में आती हूँ। मैं
जल्दी से उठी और भागती हुई बाथरूम की तरफ गयी, पर वो अन्दर से बंद था। आशु था अन्दर, मुझे सुबह-2 उसपर इतना
गुस्सा आया।

मैं: अरे आशु, जल्दी से खोल न, मुझे दे र हो रही है ।

उसने दरवाजा खोल दिया, वो नहा रहा था, और पूरी तरह से नंगा था। मेरा गुस्सा उसके खड़े हुए लण्ड को दे खकर
रफूचक्कर हो गया। मैं धीरे से अन्दर चली गयी। और उसने दरवाजा फिर से बंद कर दिया। मैंने ब्रश उठाया और करने
लगी, वो भी मेरी तरफ मस्
ु कुराता हुआ दे खकर शावर के नीचे खड़ा हुआ नहा रहा था। मझ
ु े दे र हो रही थी, पर थोडा बहुत
मजा लेने का तो टाईम था ही मेरे पास। मैंने भी जल्दी से कपडे उतारे और खूंटी पर टांग दिए। और मैं भी नंगी होकर उसके
साथ ही शोवर के नीचे खड़ी होकर नहाने लगी। वो मुझे चूमने लगा और थोडा सा टे ढ़ा करके अपना लण्ड मेरी चूत में पीछे
से घुसाने लगा।

99
मैं: अरे नहीं, अभी इतना टाईम नहीं है मेरे पास। पहले ही दे र हो रही है , रात को। ओके…

वो मेरी बात समझ गया, और हलकी-फुलकी किस्सेस और मुम्मे प्रेस करने के बाद मुझे जाने दिया। मैं तैयार होकर बैठ
गयी और दीपा के आने का वेट करने लगी, वो ऑटो में आई और हम दोनॊ कॉलेज की तरफ चल पड़े। रास्ते में मैंने धीरे -2
उसे कल रात वाला सार किस्सा सन
ु ाया जिसे सन
ु कर उसका मंह
ु खल
ु ा का खल
ु ा रह गया, वो मेरी सेक्स के प्रति भख
ू और
मेरी बढती हिम्मत के बारे में सोचकर है रान हुए जा रही थी। पर मेरी ऐसी हरकतों को दे खकर और सुनकर ही वो इतना कुछ
सीख पायी थी आजतक। और शायद मेरे कल रात वाले एपिसोड से भी वो कुछ सीखने की कोशिश कर रही थी मन ही मन।
हम कॉलेज में पहुंचे तो सबसे पहले मुझे जॉन मिला, जो शायद मेरा ही इन्तजार कर रहा था कॉलेज के गेट पर।

जॉन: हाय कोमल, कैसी हो…

उसके चेहरे की मस्


ु कराहट कल रात का अफसाना बयां कर रही थी। मैं उसके पास गयी और धीरे से उसके हाथ को दबाया
और उसके कान में कहा: एकदम मस्त, कल रात जैसी।

उसका लण्ड मेरी बात सुनते ही खड़ा हो गया। और मैं उस खड़े लण्ड को छोड़कर अन्दर की तरफ चल दी। अन्दर जाकर
जैसे ही हम क्लास में बैठे, धोंडू यानी डॉन ने आकर टीचर से कहा की प्रोंसिपल मेडम दीपा और कोमल को अपने रूम में
बल
ु ा रही है । हम दोनों उठकर चप
ु चाप उसके पीछे -2 चल दिए।

और हमेशा की तरह, हमें दे खकर उसने अपना सर झुक लिया और बिना किसी एक्सप्रेशन के हमारे साथ-2 मेडम के रूम
की तरफ चलने लगा। दीपा उसे दे खकर छे ड़ने लगी: अरे डॉन, बड़ा सीरियस हो जाता है तू हमें दे खकर, जैसे जानता ही नहीं
हमें । ओये बोल न।

डॉन ने धीरे से कहा: मैं अगर बाहर बोलने लगा तो तुम दोनों की बदनामी ही होगी। इसलिए हमेशा वहीं बात करता हूँ जहाँ
कोई और न हो, समझे।

उसकी बात सुनकर दीपा अपना सा मुंह लेकर रह गयी, बात तो सही थी वैसे, एक पीयून अगर हमारे साथ खुले में हं सी
मजाक या कोई भी बात करे गा तो कॉलेज में बात तो फेलेगी ही। ये साले बड़े लण्ड वाले इतने समझदार कैसे होते है । कहीं
ऐसा तो नहीं, जितना बड़ा लण्ड उतना ही शातिर दिमाग। खेर हम मेडम के रूम में पहुंचे। उन्होंने पीले रं ग की साडी पहनी
हुई थी। हम दोनों उनके सामने बैठ गए। ढोलू ने दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया।

मेडम: कोमल, दीपा, मैं तुम दोनों को एक जिम्मेदारी दे रही हूँ। हर साल की तरह हम पिकनिक के लिए बाहर जा रहे है ,
और इस परू े टूर की जिम्मेदारी मैं तम
ु दोनों को दे रही हूँ।

हमने हाँ में सर हिलाया।

वो आगे बोली: तुम्हे टूर बुकिंग के लिए और दस


ू री चीजो के लिए फंड कल तक मिल जाएगा। तुम दोनों अपने साथ किसी
और को भी टीम में शामिल करना चाहो तो कर सकती हो।

हम दोनों के दिमाग में लड़के घम


ू ने लगे, किस - किसको अपने साथ मिलाये। सब घम
ू ने लगा दिमाग में । हमें अपने आप
पर गर्व सा हो रहा था की इतनी बड़ी जिम्मेदारी मेडम हमें दे रही है ।

मेडम: पर ये जिम्मेदारी मैं तुम दोनों को इसलिए दे रही हूँ, ताकि तुम अपने हिसाब से मेरे लिए सब अरें जमें ट कर सको।
समझे न।

उसका इशारा नए-2 लंडो की तरफ था। साली, बुडिया, अपनी चूत के बारे में ही सोचती रहती है हमेशा। वैसे दे खा जाए तो ये
ट्रिप काफी रोचक बनने वाला था, मेडम के साथ-2 हम दोनों भी नए लंडो को कैसे-2 लेंगे, ये सोचने लगे। और लण्ड के बारे
में सोचते ही मुझे डॉन का ध्यान आ गया, जो हमारे पीछे खड़ा हुआ सब बाते ध्यान से सुन रहा था। दीपा मेडम से कुछ और

100
समझने में लग गयी पर तब तक मेरा ध्यान डॉन की तरफ जा चुका था क्योंकि मेरी चूत के अन्दर से हलकी गर्मी बाहर की
तरफ निकलने लगी थी।

मैं उठी और डॉन की तरफ चल दी। वो दोनों बाते करते रहे । डॉन ने मुझे अपनी तरफ आते हुए दे खा तो उसके चेहरे पर
मस्
ु कराहट फेल गयी। मैं उसके पास गयी और सामने खड़े होते ही मैंने अपनी टी शर्ट को उतार कर नीचे फेंक दिया। उसके
साथ-2 मेडम भी ये दे ख कर चौंक गयी। उन्हें शायद अंदाजा नहीं था की मैं एकदम से अपने कपडे उतारने शुरू कर दं ग
ू ी। पर
वो शांत खड़ा रहा। उसकी आँखे मेडम की तरफ थी। जैसे वो उनसे परमिशन मांग रहा हो। पर मेडम भी बड़ी चालू थी।
उन्होंने अपना चेहरा वापिस दीपा की तरफ कर लिया और उसे समझाने में व्यस्त हो गयी। डॉन के लण्ड वाला हिस्सा तम्बू
बनता जा रहा था।

पर उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की और पीछे की तरफ हाथ बांधे खड़ा रहा वो। मुझे उसकी हालत पर तरस आ रहा
था। यानी जब तक मेडम का हुक्म न हो, वो कुछ नहीं कर सकता, दे खती हूँ आज मैं भी। सुबह से जब से मैंने आशु का खड़ा
हुआ लण्ड दे खा है , तब से मेरी चूत हलकी-2 रिस रही है । अभी पीरियड ख़त्म होने में आधा घंटा है , डॉन को दे खते ही मेरे
मन में उससे चुदने का ख़याल आने लग गया था। पर ये साला कुछ कर ही नहीं रहा। मैंने अपनी जींस का बटन खोला और
उसे भी नीचे उतार दिया। मेचिग
ं कलर की ब्रा पैंटी में अब मैं उसके सामने अपने जिस्म की नम
ु ाईश कर रही थी।

फिर भी वो खड़ा रहा। मैंने अपने हाथ पीछे किये और ब्रा खोल दी। ये पहली बार नहीं था जब वो मेरी ब्रेस्ट दे ख रहा था। पर
आज वो सिर्फ दे ख ही पा रहा था। कुछ कर नहीं पा रहा था। उसकी इस हालत को दे खकर मैं मंद-2 मुस्कुराये जा रही थी।

फिर मैं नीचे बैठी और उसके लण्ड के ऊपर हाथ फिराने लगी। उसके परू े शरीर में करं ट सा दौड़ गया। मैंने धीरे से उसकी
जिप खोली, और उसका नाग फुफकारता हुआ बाहर आ गया। मैंने भी अपनी सांप जैसी जीभ बाहर निकाली और उसके
नाग को डस लिया। वो सिस्कार उठा। और उसके सिस्कारने की आवाज सुनकर दीपा ने अपना चेहरा पीछे किया। और मुझे
डॉन का लण्ड चूसते दे खकर वो हक्की-बक्की रह गयी। और कभी मुझे और कभी मेडम की तरफ दे खने लगी।

मेडम ने मस्
ु कुराते हुए कहा: दे खा, कोमल कितनी जल्दी सीख गयी है । और कैसे उसके अन्दर की आग हमेशा जलती रहती
है । ठीक मेरी तरह।

दीपा को जैसे मेडम कह रही थी। सीखो कुछ कोमल से। वर्ना भोंद ू बनकर रह जाओगी। मुझे उनकी बाते साफ़ सुनाई दे रही
थी पर मेरा परू ा ध्यान डॉन की तरफ था, उसके लण्ड के आस पास से जो पसीने की महक आती थी, वो हमेशा से मुझे
मदहोश कर जाती है , और मैंने अपनी लम्बी जीभ से उसके पसीने वाले लण्ड को चाटना और चस
ू ना शरू
ु कर दिया। मेडम
भी तब तक अपनी सीट से उठी और हमारे पास आकर खड़ी हो गयी। मैंने याचना भरी निगाहों से मेडम को दे खा, जैसे कह
रही हूँ की अब तो डॉन को आज्ञा दे दो, ताकि वो खुलकर मुझे मजे दे पाए और खुद भी ले पाए।

मेडम समझ गयी और उन्होंने डॉन की तरफ दे खा और धीरे से कहा, "अब मत सताओ बेचारी को, वर्ना इसकी चूत से इतना
पानी निकलेगा की मेरा परू ा कमरा गीला हो जाएगा और फिर तम्
ु हे ही पोचा लगाना पड़ेगा यहाँ।”

मैं उनकी बात सन


ु कर हं स पड़ी। वैसे बात तो सही थी। मेरी चत
ू पर अभी भी पैंटी थी पर उसमे से मेरे रस की बंद
ू े निकल कर
नीचे गिर रही थी। मैंने अपनी चूत पर हाथ फेरा और बहुत सारा रस इकठ्ठा करके मैंने अपना हाथ ऊपर कर दिया जिसे डॉन
ने पालतू कुत्ते की तरह से चाट लिया। मेरे रस को चाटते ही उसमे जैसे उर्जा का संचार हो गया और उसने मेरे बालों को
पकड़ा और मझ
ु े ऊपर की तरफ खींच लिया। इसका यही मर्दाना और रफ सा अंदाज मझ
ु े बहुत अच्छा लगता था। मैंने अपने
आप को उसके हवाले कर दिया। और उसने अपने खुन्कार दांतों को मेरी ब्रेस्ट पर गाड़ दिया और उनपर अपने दांतों से टाटू
बनाने लगा। अह्ह्ह्ह्ह्ह धीरे म्म्म्म्म ्म्म्म्म 

वो गर्रा
ु या: साली, रं डी की औलाद, मुझे तरसाती है , भेन चोद, अब तझ
ु े बताता हूँ की कैसे तरसाया जाता है । उसने अपना
एक हाथ मेरी कमर पर रखा और दस
ु रे को नीचे करके मेरी पैंटी को फाड़ फेंका। उसके व्यवहार को दे खकर साफ़ लग रहा था
की आज वो मेरी कस कर चुदाई करे गा। और वही तो मैं भी चाहती थी। इसी बीच मेडम का आँचल उनकी छाती से सरक कर
101
नीचे गिर गया और उनके पपीते जैसी छातियाँ पीले रं ग के ब्लाउस में सबके सामने उफन कर सामने आ गयी। और वो
इतनी सेक्सी लग रही थी की मैंने अपना सर उनकी तरफ किया और क्लीवेज के ऊपर अपना म्मुंह रखकर वहां का एरिया
चाटने लगी।

मेडम के मंह
ु से मादकता से भरी हुई सिसकारी निकल गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ और फिर दीपा जैसे नींद से जागी,
उसे भी लगा की कुछ करना चाहिए। उसने अपनी टी शर्ट उतारी और ब्रा भी और अपनी छातियों को लेजाकर मेडम के
सामने परोस दिया।

अब डॉन मेरी ब्रेस्ट काट रहा था, मैं मेडम का दध


ू पी रही थी और मेडम दीपा का निप्पल चूस रही थी। बड़ा ही कामुक दृश्य
था कमरे का। तभी डॉन ने अपनी दो मोटी उं गलिया मेरी चत
ू में डाली और मझ
ु े ऊपर की तरफ उठा दिया। मैं अपने पंजो पर
खड़ी हो गयी। और उसकी मोटी-2 उँ गलियों से चुदने लगी। मेडम की साडी के अन्दर शायद कोई लीकेज थी, उन्होंने दीपा
के बाल पकडे और उसे नीचे लेटने को कहा, और खुद साडी ऊपर समेट कर नीचे से नंगी हो गयी। उन्होंने उसे पूरा नहीं
उतारा, क्योंकि पीरियड ख़त्म होने वाला था और फिर साडी बाँधने में टाइम भी तो लगता है , उन्होंने नीचे पैंटी नहीं पहनी
थी, दीपा के सर के दोनों तरफ पैर रखकर वो उसके मुंह पर बैठ गयी जैसे मूत कर रही हो और फिर उन्होंने अपनी चूत को
उसके भीगे हुए होंठों पर सटा दिया और एक तेज सिसकारी मारकर जोरों से चिल्लाई। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म ्म चाट इसे,
साली, कुतिया, चात्त्त्त अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।

उन्होंने दीपा के माथे के ऊपर हाथ रखे और उसके मुंह के ऊपर अपनी चूत को बुरी तरह से रगड़ने लगी।

मेडम की चत
ू कभी उसके होंठो से, कभी नाक से और कभी ठोडी से टकरा जाती और इस तरह दीपा का परू ा चेहरा मेडम के
गाड़े रस से भीग कर चमकने लगा था। वैसे मैंने सुना है की मर्द के वीर्य की ही तरह औरत के रस में भी ऐसे विटामिन होते
हैं जो चेहरे की रं गत और चमक बड़ा दे ते हैं। दीपा का तो फ्री में फेशियल हो गया आज।

उधर डॉन ने भी अपना लण्ड बिना किसी वार्निंग के मेरी चूत से लगाया और एक जोरदार झटके से उसे अन्दर धकेल दिया।
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मर्र्र्र्र्र्र गयी रे अह्ह्ह्ह्ह्ह। मैं उचक कर उसकी गोद में चढ़ गयी और उसने भी मेरी गाण्ड के नीचे अपने हाथ
लगा कर मुझे सहारा दिया। और फिर मैंने उसका परू ा लण्ड अपनी चूत में निगल लिया। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या फीलिंग थी,
एकदम मस्त।

जब भी लण्ड एकदम से अन्दर जाता है , पहली बार, वो फीलिंग बयां करना काफी मुश्किल है । मेरी आँखे बोझिल सी हो गयी
और मैं डॉन की बाँहों में झल
ू सी गयी। उसने अपना मंह
ु फिर से मेरे मम्
ु मे पर रखा और उसे चस
ू ने लगा। और नीचे से अपने
लण्ड के धक्के मुझे दे दे कर मुझे चाँद सितारों की सैर करवाने लगा। पुरे कमरे में मेरे मुंह से निकली सिस्कारियां और डॉन
के लण्ड से निकली आवाजें गँज
ू रही थी।

फचक फचक अह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म ्म येस्स्स्स अय्य्यीई और तेज, हान्न, आइसे ही, ओह माय गॉड, आई एम कमीईग
स्स्स्स्स ्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। मेरा तो हो गया।

मैं उसकी बाँहों में झल


ू गयी। और वो उसके बाद मेरे निर्जीव से शरीर में कितनी दे र तक धक्के लगाता रहा मझ
ु े भी पता
नहीं चला। और जब पता चला तो उसके लण्ड से निकला गर्म लावा मेरी चूत को जला रहा था जिसकी गर्मी से मुझे होश
आया। और मैंने उस भद्दे से दिखने वाले पीयून के चेहरे को पकड़ा और बेतहाशा चूमने लगी। चुमू भी क्यों न, इतना मजा
जो दे ता है ये ढोधू का बच्चा।

दस
ू री तरफ मेडम ने तो दीपा का बरु ा हाल किया हुआ था। ऐसा लग रहा था की वो अपनी चत
ू और गाण्ड से उसके सांस लेने
के सारे जरिये बंद करने पर उतारू है , दीपा भी अपने दस
ु रे हाथ से अपनी आधी उतरी हुई जींस के अन्दर हाथ डालकर
अपनी चूत को मसलने में लगी हुई थी। मैंने सोचा की उसकी मदद करनी चाहिए और मैं डॉन के लण्ड से उतर कर दीपा की
चत
ू के सामने डूगी स्टाईल में लेट गयी। और उसकी चत
ू को चाटने लगी। मेरी उभरी हुई गाण्ड को दे खकर डॉन भी मेरे पीछे
आया और अपना मुंह मेरी चूत से लगाकर अपना और मेरा मिला जुला रस मेरी चूत में से चाटने लगा। और जल्दी ही मेडम
102
ने अपने झड़ने का संकेत दिया और जोरों से चिल्ला-2 कर दीपा के मुंह का और जोर से मर्दन करने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
आआअह दीपा, मैं आई, मैं आई।

और उनके मीठे पानी का झरना दीपा के मुंह पर फूट पड़ा। और दीपा ने जितना हो सकता था उतना रस अपने मुंह में
लेजाकर पी लिया। मेडम के झड़ने से उसकी चत
ू से भी रिसाव होने लगा और मेरे मंह
ु के ऊपर उसने भी पिचकारी मारकर
अपना सारा रस बाहर की तरफ फेंक दिया, जिसे मैंने बड़े प्यार से अपने होंठो और जीभ से इकठ्ठा कर करके पी लिया।
उसके बाद हमने मेडम के निजी बाथरूम में जाकर अपने चेहरे और हुलिया को ठीक किया और फिर क्लास में आ गए।
वापिस जाते ही सभी हमसे पूछने लगे की क्या हुआ था, मेडम ने किसलिए बुलाया था। मैंने जैसे ही उन्हें पिकनिक वाली
बात बताई वो सभी ख़ुशी से उछल पड़े।

अब टाईम था अपनी टीम बनाने का। मैंने सभी को कॉलेज के बाद केंटिन में मिलने को कहा ताकि बाकी का प्लान और
टीम वहीं पर बना सके। …P112-115…

सभी मिलकर एक बड़े से टे बल पर जाकर बैठ गए। राहुल जो काफी दे र से मुझे घरू े जा रहा था, इशारे से मुझे कोने में आने
का इशारा करता है , मैं चप
ु चाप उठकर उसकी तरफ चल दी। और एक कार फुट की दीवार के पीछे जाकर हम बाते करने
लगे।

राहुल: क्या बात है कोमल, मेडम आजकल तुम दोनों पर ही ज्यादा मेहरबान हो रही है ।

मैं: ऐसा नहीं है राहुल, मेडम ने तो अपनी मेहरबानी तुमपर भी बरसाई थी, मुझे सब पता है ।

वो मेरी बात सन
ु कर सकपका गया, उसने शायद सोचा भी नहीं था की मेडम के घर पर चद
ु ने वाली बात मझ
ु े भी पता हो
सकती है ।

मैं: पर फ़िक्र मत करो राहुल, मैं किसी को कुछ नहीं बताने वाली, क्योंकि इसमें नुक्सान मेरा ही है ।

मैंने ये कहते हुए उसके लण्ड वाले हिस्से को अपने हाथो से भींच दिया। हम ऐसी जगह पर खड़े थे की कोई हमें दे ख भी लेता
तो सिर्फ हमारी गर्दन ही नजर आती, कुछ और नहीं मेरे हाथ लगाते ही उसका लण्ड फुफकारने लगा, पर केन्टीन में काफी
भीड़ थी, इसलिए कुछ सोचा नहीं जा सकता था। पर मेरे दिमाग में एक शेतानी आई और मैंने अपना हाथ अन्दर डालकर
उसका लण्ड बाहर खींच लिया। वो है रान परे शान सा होकर कभी मुझे और कभी दस
ू री तरफ बैठे हुए अपने दोस्तों को दे खने
लगा। उसने शायद सोचा भी नहीं था की मैं इतनी हिम्मत दिखाकर सबके रहते हुए भी उसका लण्ड बाहर निकाल सकती
हूँ। मैं उसके लण्ड को मसलने लगी और उससे बातें करना चालु रखा।

मैं: तम
ु ने क्या सोचा, मेडम की चत
ू मारकर तम
ु मजे ले लोगे और मझ
ु े पता भी नहीं चलेगा।

उसकी साँसे तेज होने लगी थी, लण्ड खड़ा होकर हुंकारने लगा था, तो…तो इसका मतलब। मेडम ने ही तुम्हे सब कुछ बताया
है ।

मैं: मेडम ने बताया ही नहीं, सब दिखाया भी है । उस दिन मैं और दीपा उनके ही घर पर थी। और तम
ु ने जो भी किया वो सब
दे खा हम दोनों ने। उसकी आँखे फेलती चली गयी और उसकी समझ में सब आ गया की ये सब मेडम और हमारी मिली
जुली कारस्तानी थी।

वो बोला: पर… पर ये सब करके तुम्हे , और मेडम को क्या मिला।

मैंने उसके लण्ड को ऐंठ दिया और धीरे से कहा: ये तुम्हारा लण्ड, जो अब मेरा और मेडम का गुलाम है ।

राहुल सकपका गया: गुलाम, मैं कुछ समझा नहीं।

103
मैं (कुटिल मुस्कान के साथ): गुलाम इसलिए क्योंकि उस दिन की चुदाई की सारी रिकार्डिंग है मेरे पास। और तुम्हे अब
हमेशा वही करना होगा जो मैं और मेडम चाहें गी, समझे।

वो बेचारा समझ ही नहीं पा रहा था की क्या कहे और क्या ना कहे । वैसे दे खा जाए तो हमें उसको ब्लेकमेल करके सिर्फ
उसके लण्ड की सेवाएं ही तो चाहिए थी, कुछ और नहीं। और ऐसा हसीन ब्लेकमेल होना तो हर कोई चाहे गा। फर्क सिर्फ
इतना है की इस केस में उसे चूतों का गुलाम बनकर रहना होगा और अपनी इगो को ताक पर रखकर चुदाई की आज्ञा का
पालन करना होगा। और जब उसकी समझ में सब आ ही चुका था तो सिवाए हमारी सेवा करने के उसके सामने कोई और
चारा दिखाई नहीं दिया।

इसी बीच उसका लण्ड जो सारी बात सन


ु कर बैठता जा रहा था, फिर से अंगडाई लेने लगा। हम दोनों दिवार के पीछे खड़े
होकर बाते किये जा रहे थे और बाकी सभी लोग हमारा इन्तजार करते हुए चाय और ब्रेड पकोड़ा खाने में व्यस्त थे। मैंने
अपने हाथ की स्पीड बड़ा दी।

मैं: तुम सिर्फ हमारी सेवा करते रहो। तुम्हे फल अपने आप मिलता चला जाएगा। जितना भी, कहीं भी।

फर्स्ट ईयर की लड़की के हाथो ब्लेकमेल होने पर उसका सारा गरूर चूर-2 हो चुका था। पर उसे ये भी पता था की वो अभी
किसी भी तरह से विरोध करने की पोसिशन में नहीं है ।

वो झड़ने के करीब था, और वो धीरे से चिल्लाया: आई एम्म्म कमिंग कोमल। मैंने सभी दोस्तों की तरफ दे खा। सिर्फ दीपा
ही हमारी तरफ दे ख रही थी, बाकी सभी खाने में व्यस्त थे।

और दीपा की तरफ मैंने मस्


ु कुरा कर दे खा और एकदम से मैं नीचे बैठ गयी और राहुल के लण्ड को अपने मंह
ु में भर लिया।
और जैसे ही मैंने उसके अकडू लण्ड को मुंह में भरा, उसने ढे र सार रस निकाल कर मेरा मुंह भर दिया, और मैं चटोरी सारा
का सारा रस चटखारे लेती हुई पी गयी और उसके लण्ड की सारी अकड़ मेरे मुंह में दम तोडती नजर आई और 1 मिनट के
अन्दर ही अन्दर मैं वापिस ऊपर खड़ी हो गयी। ऊपर उठते ही मेरी नजर वापिस टे बल की तरफ गयी, सब ठीक था, किसी ने
कुछ नोट नहीं किया था, सिर्फ दीपा ही थी, जो अपना मुंह फाड़े मुझे दे खे जा रही थी। पर उसकी मुझे कोई परवाह नहीं थी।
वो तो अपनी ही बंदी थी न। मैं जल्दी से वापिस टे बल पर आकर बैठ गयी, और पीछे -2 राहुल भी अपना लण्ड अन्दर समेट
कर वापिस आकर बैठ गया।

दीपा: यार कोमल, तेरी हिम्मत दिन ब दिन बड़ी ही चली जा रही है । तुझे डर नहीं लगता क्या…

मैंने मस्
ु कुराते हुए अपनी जीभ निकाली, जिसपर अभी भी ढे र सार रस था, और फिर उसे भी गटक गयी और धीरे से दीपा से
कहा: क्या करू, मेरी प्यास बझ
ु ती ही नहीं है आजकल। ये लण्ड से निकलने वाला पानी होता ही इतना मस्त है ।

वो बेचारी शरमा कर रह गयी। पर शायद इस बात से भी उसने कुछ न कुछ सीखा तो होगा ही। फिर सभी एक साथ बैठ कर
डिस्कस करने लगे। सबसे पहले तो हमें ये सोचना था की पिकनिक कहा जाया जाए। सभी ने अपने-2 सुझाव दिए, फारे स्ट,
माउं टे न्स, समन्
ु दर।

पर तभी हमारी क्लास का एक लड़का रोहित कुमार, जो हमेशा चप


ु चाप रहा करता था वो बोला: अगर आप सभी को
दिक्कत ना हो तो मैं एक जगह जानता हूँ जहाँ जाकर सभी को मजा भी आएगा और एडवेंचर भी मिलेगा।

सभी उसकी तरफ दे खने लगे। …P116-117…

सभी को अपनी तरफ घरू ते पाकर रोहित थोडा घबरा सा गया, वैसे वो था भी ऐसा ही, उसने भी हमारी तरह इसी साल
कॉलेज ज्वाइन किया था पर हमेशा अलग थलग सा रहता था, कद काफी लम्बा था उसका, कॉलेज में शायद वो ही सबसे
लम्बा लड़का था, शरीर दब
ु ला सा था, किसी से ज्यादा बोलता भी नहीं था, शायद इसलिए की वो किसी दरू के गाँव से आया

104
था शहर में और सबसे घुल मिल नहीं पा रहा था, पर आज पता नहीं कैसे उसने हिम्मत करके ये बात बोल डाली और सभी
का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।

वो धीरे से बोला: दरअसल हमारे गाँव की सरहद के पास एक आदिवासी कबीला है , वहां जरावा जनजाति के लोग रहते हैं,
हम भी अक्सर वहां जाया करते थे, मजा लेने के लिए, वो आदिवासी कबीला वैसे तो अभी तक काफी पिछड़ा हुआ है और
बाहर की दनि
ु या से उन्हें कोई लेना दे ना नहीं है , पर आस पास के कुछ गाँव या फिर अमेरिकन टूरिस्ट के आने से उन्हें कुछ
आमदनी हो जाती है इसलिए वो भी बाहर से आने वालो का तहे दिल से स्वागत करते हैं।

मैंने उससे पुछा: पर तूने कहा की तुम लोग वहां जाया करते थे मजा लेने के लिए। वहां मजा लेने वाली क्या बात है ।

वो ये सुनकर शर्मा सा गया और बोला: दरअसल वो वहां… वहां के लोग आज भी कोई कपडा नहीं पहनते, और नंगे ही रहते
हैं। मेरा और वहां बैठे हुए सभी लोगो का मंह
ु खल
ु ा का खल
ु ा रह गया।

दीपा: क्या नंगे… मतलब औरते और मर्द सभी परू े नंगे,। बाहर के लोगो के सामने भी वो… वो कुछ नहीं पेहेनते।

रोहित ने ना के लहजे में सर हिलाया।

सभी के दिमाग में नंगे आदिवासियों की तस्वीरे घुमने लगी। मोठे मुम्मो वाली नंगी औरते, लम्बे-2 लण्ड वाले आदिवासी
मर्द। वाव…

सच में , ये तो काफी मजेदार और यादगार टूर बन सकता है । मैंने बाकी की सारी जानकारी लेनी शुरू की, उसके अनुसार वो
आदिवासी कबीला हमारे कॉलेज से 400 किलो मीटर की दरु ी पर था यानी रात को बस में बैठे तो 9-10 घंटे में पहूँच सकते
हैं।

मैंने बस ओपरे टर से बात की और सारी जानकारी लेकर और बाकी सभी की सहमति लेकर प्रिंसिपल मेडम के रूम की तरफ
भागी। मैंने उन्हें सारी बात एक ही सांस में बोल डाली।

वो मेरा मुंह दे खती रह गयी, और फिर थोड़ी दे र बाद कुछ सोचकर बोली: पर कोमल इतने लम्बे टूर पर जाने के लिए कोई
भी पेरेंट परमिशन कैसे दे गा और वो भी जब उन्हें पता चेलेगा की बच्चे किसी आदिवासी काबिले में जा रहे हैं। जो की नंगे
रहते हैं आज भी।

मैं: अरे मेडम, आप उसकी चिंता मत करो, हम बोल दें गे की किसी हिल स्टे शन पर जा रहे हैं, उन्हें असली बात बताने की
कोई जरुरत नहीं है , वैसे भी हम सभी कॉलेज में पड़ते हैं, ना की स्कूल में जो की कोई इतनी पूछताछ करे गा।

मेरी बात मेडम की समझ में आ गयी, वैसे सच कहूँ, मेरी बात सुनकर वो भी उतनी ही एक्स्सयतिद थी जितनी की मैं और
बाकी के सभी लोग।

उन्होंने सारा दामोदार मुझपर छोड़ दिया: ठीक है कोमल, तुम सब संभाल लो, और सभी जाने वाले स्टूडेंट्स को अच्छी तरह
से समझा दे ना की क्या बोलकर जाना है घर पर। बाकी कोई पेरेंट्स मुझसे पूछेगा तो मैं भी वही कहूँगी जो तुम चाहती हो।

मैंने कहा: आप तो वो कहें गी ही मेडम, आखिर आदिवासी लंडो की बात सन


ु कर आपकी चत
ू भी तो पानी निकाल रही है इस
वक़्त।

वो मेरी बात सुनकर हं स पड़ी, और मुहे अपनी तरफ खींचकर मेरे होंठो को अपने मुंह में भरकर चूसने लगी। हमने आधे घंटे
पहले ही सेक्स किया था, पर इस मेडम की चूत है या प्यासा रे गिस्तान, इसकी प्यास बुझती ही नहीं। वो मुझे लेकर पीछे
होती चली गयी और अपनी टे बल के ऊपर बैठ गयी, अपनी साड़ी को ऊपर खींचा और अपनी बिना कच्छी वाली चत
ू को मेरे
सामने लहरा दिया, सच में , मेरी बात सुनकर उनकी चूत से झरने की तरह पानी निकल कर नीचे बह रहा था। मैंने अपनी
गुलाबी जीभ बाहर निकाली और बहती हुई लकीर को अपने मुंह में समेत और गटक गयी।

स्स्स्स्स ्स्स्स्स्स। म्म्म्म्म ्म्म्म।


105
उनका शरीर कांप सा गया, मेरी ठं डी जीभ को अपनी गर्म चूत के ऊपर फिसलता पाकर। मैंने एक ऊँगली उनकी चूत में
घुसेड दी और खोद खोदकर उनका रस बाहर की तरफ निकालने लगा। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म ्म्म्म कोमल सक मॆऎ
हार्द। मैंने अपने होंठ उनकी चूत के होंठो से जोड़ दिए और उन्हें फ्रेंच किस्स करने लगी। उनकी चूत के तरसते हुए होंठ, मेरे
फड़कते हुए होंठो से भिड़कर अपना रस मेरे अन्दर छोड़ने लगे और वो भर-भराकर, जोरों से हुंकारती हुई, मेरे सर को अपनी
चत
ू से चिपका कर, झड़ने लगी।

मैंने एक बात नोट की थी, वो जब भी झड़ने लगती थी तो उसके चेहरे पर हं सी आ जाती थी। पता नहीं क्यों… खेर, मैंने
अपना काम किया, अपना चेहरा साफ़ किया और उनसे विदा लेकर बाहर की तरफ चल दी। मेरे भी मन में नंगे आदिवासियों
को दे खने का चाव जोर पकड़ने लगा। मैंने लाईब्रेरी में जाकर कंप्यूटर पर सर्कु लर निकाल और उसे नोटिस बोर्ड पर चिपका
दिया, जिसमे लिखा था की कॉलेज की एनअ
ु ल पिकनिक हिल स्टे शन पर जा रही है , 4 दिनों के लिए, जो भी जाने के लिए
इच्छुक हो वो अपना नाम मुझे, यानी कोमल को लिखवा दे , नीचे मैंने अपना नाम और नंबर लिख दिया और साथ ही मेडम
के साईन भी करवा लिए उसपर।

अगले दिन से ही मेरे सेल पर फ़ोन आने शुरू हो गए, हमारी क्लास के ज्यादातर लोग तो पहले से ही तैयार थे, उनके अलावा
जिसने भी मझ
ु े कॉल किया, मैंने उसे शाम को केंटिन में आने को कहा ताकि उन्हें भी एक ही बार में सारी बात संमझा सकू,
शाम को केन्टीन में मैंने सभी को आदिवासी एडवेंचर केम्प के बारे में बताया, कुछ ने साफ़ मना कर दिया, कुछ ने दरु ी और
कुछ ने 4 दिनों की वजह से, लेकिन ज्यादातर स्टूडेंट्स तैयार हो ही गए। वैसे भी हमारे पास 25 लोग पहले हो ही चुके थे
हमें अभी भी 35 लोग और चाहिए थे, जिनमे से 30 ने अब हामी भर दी थी। मैंने सभी को डिटे ल में समझा दिया था की
कैसी सिचुएशन होगी वहां पर, और उन्हें क्या बोलना है घर पर। सभी ख़ुशी-2 मान गए।

हमने बुधवार की रात को जाने का प्रोग्राम फाइनल कर लिया, ताकि रात-2 में ट्रे वल करके वहां पहुंचा जा सके और सन्डे की
रात को वापिस चलकर सोमवार वापिस पहुंचा जा सके।

रोहित ने अपने गाँव में अपने एक दोस्त को फ़ोन करके कबिले के सरदार को कहलवा दिया की शहर से कॉलेज के 60 लोग
आ रहे हैं, पिकनिक पर, और उन्हें काफी आमदनी होने के असार है , ये बात सन
ु कर वो भी खश
ु हो गए और हमारे रहने और
खाने पीने के लिए उन्होंने इंतजाम करने शुरू कर दिए।

अब तो बस इन्तजार था वहां जाने का। …P118-120…

बध
ु वार की रात को सभी लोग कॉलेज पहूँच गए, ज्यादातर स्टूडेंट्स के पापा या भाई लोग आये थे छोड़ने और साथ ही साथ
अपनी तसल्ली करने भी की सब कुछ ठीक ठाक है या नहीं। मेडम सभी की क्वेरी सुन रही थी और उन्हें तसल्ली दे ती जा
रही थी की घबराने की कोई बात नहीं है , वगेरह-2, हमारे ग्रुप के सभी लोग जाने को तैयार हो गए थे। मैं, दीपा, राजपूत,
राहुल, रोहित, जॉन, पायल, आदित्य, निखिल, पूजा शाह, और वो हलवा रूबी भी था साथ में । रात को 10 बजे बस स्टार्ट हुई
और चल पड़ी अपने गंतव्य की ओर।

मैंने दे खा की राजपूत और दीपा एक साथ बैठे थे। और ज्यादातर लड़के लडकियां अपने-2 जोड़े बना कर बैठ गए थे। मुझे
इस बात से ही अंदाजा हो गया की आगे चलकर क्या होने वाला है , ये तो इस टूर को अपनी मस्ती के लिए एक यादगार और
ना भूलने वाला टूर बनाने में लगे थे। मेडम आज हमारे हिस्ट्री वाले टीचर गुरदीप सिंह सर के साथ बैठी थी। उनकी उम्र
होगी कोई 45 साल की, लम्बे ऊँचे कद वाले सरदार हैं वो। काफी जॉली नेचर है उनका। क्लास में भी सभी को हं साते रहते
हैं।

पर मेडम आज उनके साथ क्यों बैठी हुई है । मैं सोचने लगी।

कॉलेज की तरफ से 4 लोग आये थे, मेडम, गुरदीप सर, डॉन और अंजू मेडम जो की कॉलेज का एडमिन डिपार्टमें ट भी हें डल
करती हैं और हमें इकोनॉमिक्स भी पढाती हैं, अंजू मेडम जॉन के साथ बैठी हुई थी। मैंने जॉन की तरफ़ दे खा और उसको

106
आँख मार दी जैसे कह रही हूँ की बेटा। लगे रहो। मेरी सीट लास्ट में थी, वहां पहले से ही राहुल बैठा हुआ था, मैं अन्दर की
तरफ जाकर बैठ गयी। और बस चल पड़ी।

राहुल: कोमल, ये टूर हम सबकी जिन्दगी का एक यादगार टूर बनने वाला है । तुम दे खना कितना मजा आएगा वहां। उसने
कह्ते अपना एक हाथ आगे बढाकर मेरी जांघ पर रख दिया और उसको सहलाने लगा। मैं मंद ही मंद मस् ु कुराने लगी।
दरअसल जब से पिकनिक का प्रोग्राम बना था तभी से मैंने मन में टूर पर होने वाली चुदाई के प्रोग्राम बनाने शुरू कर दिए
थे, राहुल के साथ बैठकर मेरी चूत के अन्दर का पानी बूंदे बनकर बाहर की तरफ बहने लगा, मैंने अपनी एक टांग को दस
ू री
टांग पर चड़ा दिया और उन्हें आपस में घिसने लगी। राहुल ने ये सब दे ख लिया था। उसने अपना हाथ खिसकाते हुए मेरी
दोनों टांगो के बीच डाल दिया, मैंने भी अपनी दांयी टांग थोड़ी सी उठाई और उसके हाथ को बीच में फंसा कर वापिस नीचे
रख ली।

अब उसकी सारी उँ गलियाँ मेरी भट्टी के बीच फंसकर उसकी गर्मी और नमी को महसूस कर रही थी। मेरी साँसे तेज होने
लगी थी। बस में सिर्फ आगे वाली लाइट जल रही थी। पीछे की तरफ पूरा अँधेरा था। मेरे आगे वाली सीट पर जो जोड़ा बैठा
था उनके सर आपस में मिल चुके थे और वो दोनों स्मूच कर रहे थे, जिसकी आवाजे मुझे और राहुल को पीछे तक सुनाई दे
रही थी, लड़की की सिस्कारियां धीमी थी पर मझ
ु े साफ़ सन
ु ाई दे रही थी। जिन्हें सन
ु कर मेरे अन्दर से भी तरं गे निकलने
लगी और मैंने राहुल के फंसे हुए हाथ के ऊपर अपना हाथ रखकर उसको मसलना शुरू कर दिया। वो समझ गया की मैं भी
गरम हो चुकी हूँ। उसकी उँ गलियाँ भी हरकतें करने लगी।

मेरी जींस का अगला हिस्सा पूरी तरह से गीला हो चुका था। और शायद वो गीलापन राहुल की उँ गलियों ने भी महसूस कर
लिया था।

मैंने अपना सर उठा कर इधर उधर दे खा की कोई दे ख तो नहीं रहा है न। सभी अपनी सीटो पर बैठे हुए या तो गप्पे मार रहे
थे, या फिर अपने साथ के साथी के साथ चिपक कर लगे हुए थे, कुछ एक लोग ईयर फोन पर गाने सुन रहे थे और कुछ सोने
की कोशिश। किसी को भी दस
ू री सीट पर क्या हो रहा है इस बात से मतलब नहीं था। मुझे मालुम था की चलती बस में
चद
ु ाई होना तो असंभव है पर बाकी के मजे तो लिए ही जा सकते हैं। मैंने राहुल की आँखों में दे खा, उसके होंठ परू ी तरह से
गीले थे, जैसे मुझे ही बुला रहे हो। मैंने अपना चेहरा आगे किया और अपने शराबी होंठ उसके मर्दाना होंठो के ऊपर रख कर
उसे अपना शबाब पिलाने लगी।

उसकी अधीरता इतनी ज्यादा थी की मेरे होंठ चूमते-2 उसका दस


ू रा हाथ मेरी ब्रेस्ट पर आकर उन्हें मसलने लगा और और
मेरी चत
ू के ऊपर वाला हाथ और तेजी से हिलने लगा। मेरे मंह
ु से एक जोरदार सिसकारी निकल गयी। और वो इतनी
जोरदार थी की बस की आवाज के बावजूद आस पास की सीटों पर बैठे हुए लोगो को साफ़ सुनाई दी। पर वो भी ये सब कर
रहे थे इसलिए कोई कुछ न बोला। बस दबी हुई हं सी की आवाजे आई। मैंने अपने आप को संभाला। राहुल ने भी अपने हाथ
पीछे कर लिए थे और बोबा बच्चा बनकर बैठ गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर थोड़ी दे र बाद ही उसका हाथ फिर से मेरी
तरफ खिसक आया और फिर से वही हरकतें करने लगा।

मैंने धीरे से कहा: आराम से करो जो करना है । और हद में रहकर करना। कुछ ज्यादा नहीं हो पायेगा यहाँ।

उसने हाँ में सर हिलाया। अब उसके हाथ मेरी ब्रेस्ट को मसल रहे थे। मैंने जिपर वाला जेकेट पहना हुआ था और उसके नीचे
सिर्फ ब्रा। उसने जिपर को नीचे कर दिया और मेरी ब्रेस्ट के ऊपर से उन्हें मसलने लगा। एक कप को नीचे करके उसने मेरे
निप्पल को बाहर खींच लिया और उसे भी बेदर्दी से मसलने लगा। वो जानता था की मेरे निप्पल को जोर से मसलने पर मैं
कितना उत्तेजित हो जाती हूँ। और हुआ भी बिलकुल ऐसा ही। मैंने उसके हाथ को पकड़कर अपनी छाती पर जोर से दबा
दिया। और अपनी दस
ू री ब्रेस्ट भी बाहर निकाल कर उसके हाथो में थमा दी। अब तो वो बदहवास सा हो गया। ब्रा के हुक
पीछे की तरफ थे और आगे की तरफ से एक मोटे स्ट्रे प से दोनों कप बंधे हुए थे। उसने उसे खींच कर फाड़ दिया। मेरे मम्
ु मे
आजाद हो गए।

107
और मेरी ब्रा के कप दोनों तरफ लटक गए। पर मुझे उसकी बदहवासी, जंगलीपन, उतावलापन। सब अच्छे लग रहे थे इस
समय। मैंने अपने होंठ आगे किये और उसके होंठो से लगा कर उसे फिर से दे सी शराब पिलाने लगी। ब्रा फटने की वजह से
मेरी ब्रेस्ट साफ़ दिखाई दे रही थी। अगर कोई हमारे पास आकर खड़ा हो जाए तो उसे साफ़ दिखाई दे गा की मैं ऊपर से
लगभग नंगी हूँ।

उसने कुछ सोचा और फिर वो एकदम से खड़ा हुआ और बस सीट के ऊपर वाले हिस्से में रखे हुए अपने बेग से एक शाल
निकाल ली। और अपने साथ-2 मेरे ऊपर भी ओढ़ कर हमारे जिस्मों को ढक लिया। अब ठीक था, कोई भी आये, उसको कुछ
नहीं दिखने वाला था। मैंने परू ी जिप खोल दी अपनी जेकेट की। और अपनी मोटी-2 छातियों को परू ा नंगा करके उसके भूखे
हाथो के आगे परोस दिया। बस तेजी से चली जा रही थी। रह रहकर कहीं से कोई सिसकारी या किस करने की आवाजे आ ही
जाती थी।

फिर अचानक राहुल को ना जाने क्या सुझा उसने अपना सर शाल के अन्दर घुसा दिया और अपना मुंह सीधा मेरी ब्रेस्ट के
ऊपर लाकर मेरे दांये मुम्मे को अपने मुंह में दबाकर उसे चूसने लगा। अह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म। मेरे मुंह से ठं डी, लम्बी और
धीमी सी आह निकल गयी। मेरी गर्दन ही थी बस शाल के बाहर, राहुल अन्दर था। और उसका पूरा शरीर भी शाल के अन्दर
ही था।

मेरी आँखे बंद होती चली गयी। पिकनिक पर जाते हुए, पहले ही घंटे में मुझे मजे मिलने शुरू हो जायेंगे। शायद यही सोचा
हुआ था मैंने। मैंने अपना हाथ उसके सर के पीछे लगाकर अपनी और चिपका लिया और उसे बड़े ही प्यार से सहलाते हुए
अपना दधू पिलाने लगी। उम्म्म राहुल अह्ह्ह्ह्ह्ह। म्मम्मम। मुझसे रुक नहीं गया। मैंने भी अपना सर शाल के अन्दर
घस
ु ाना और उसके चेहरे को ऊपर उठा कर अपने रसीले होंठो से उसके होंठ चस
ू लिए। अह्ह्ह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् ।

उसे शायद मेरे होंठो के रस से ज्यादा, मेरे निप्पलस से निकलता हुआ शहद पसंद आया था। वो फिर से नीचे की तरफ
खिसका और उस शहद को चाटने और चूसने लगा। उसका एक हाथ खिसक कर मेरी जींस तक पहुंचा और धीरे से उसने
उसका बटन खोल दिया।

मेरा दिल धक् से रह गया।

मैंने धीरे से कहा- प्लीस राहुल, वो मत खोलो, यहाँ पोसिबल नहीं होगा। पर वो नहीं माना, शायद मेरी मना करने में ज्यादा
जोर नहीं था। उसने जिप को भी खोल दिया, और अपना एक हाथ अन्दर डाल दिया। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह स्स्स्स्स ्स्स उसकी
ठं डी उँ गलियाँ सीधा मेरी पैंटी के अन्दर जाकर गर्म और रसीली चत
ू से जा टकराई। मेरे परू े शरीर में सिहरन सी दौड़ गयी।
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। और उसको और जोर से अपनी चूत के ऊपर दबा कर अपने नितम्ब उठा दिए। ओह्ह्ह्ह्ह्
राहुल, यु आर किलिंग मी स्स्स्स्स ्स्स्स।

मेरी उठी हुई गाण्ड का फायेदा उसने उठाया और मेरी जींस को नीचे से पकड़ के खींच दिया। वो मेरे घुटनों तक आ गयी।
उसके चेरे पर मेरी चत
ू से निकलती हुई गंध आ टकराई। जो धीरे -2 मेरे नथन
ु ों तक भी पहुंची। और फिर परू ी बस में फ़ैल
गयी।

आगे बैठे हुए एक मनचले की आवाज आई, "लगता है किसी के गोडाउन का दरवाजा खुल गया है । हा हा…” दो दोस्त आपस
में हं सने लगे, साले कमीने, ये लड़के कितने गंदे होते हैं, सब जानते हैं, चूत की स्मेल उन्हें दरू बैठे ही आ गयी, और अब
उसका मजाक भी उड़ा रहे हैं, साले कुत्ते। मैंने मन ही मन उन्हें गाली दी। पर तभी मेरे मंह
ु से एक और चीख निकलते-2
बची। राहुल ने अपना मुंह मेरी चूतके ऊपर लगा दिया था। मैंने अपने हाथ की उँ गलियाँ अपने मुंह में ठूस ली और चीख को
निकलने से बचाया।

अब उसकी जीभ मेरी चूत पर अपना कमाल दिखा रही थी। शाल खिसक कर मेरी ब्रेस्ट को नंगा कर रही थी। पर अँधेरा
इतना था की मैंने शाल को वापिस ऊपर करने की जहमत नहीं उठाई। मेरा एक हाथ मेरी ब्रेस्ट को मसल रहा था और दस
ू रा
उसके सर के बालो को सहला रहा था। मेरे होंठो से एक लार निकल कर मेरी ब्रेस्ट पर जा गिरी और मैंने उस लार को समेट
108
कर अपने निप्पल के ऊपर लगा दिया और उसकी मसाज करने लगी। मेरे अन्दर एक तूफ़ान जन्म ले रहा था। जिसे राहुल
की जीभ खोद खोदकर बाहर आने पर मजबूर कर रही थी। मैंने अपने पैर सामने वाली सीट के बीच में फंसा दिए और मेरी
चूत थोडा और ऊपर हो गयी।

अब वो आराम से उसका सेवन कर पा रहा था। मैंने उसके मंह


ु को अपनी चत
ू पर जोरों से घिसना शरू
ु कर दिया। और जल्दी
ही अन्दर का लावा एक जोरदार झटके के साथ बाहर की तरफ उछला। और मैंने उसके खुले हुए मुंह को अपनी चूत के आगे
लगा कर वो पिचकारी बाहर फेलने से बचायी। और उसने भी आज्ञाकारी लवर की तरह मेरी चूत का सारा नारियल पानी पी
लिया। अह्ह्ह्ह्ह ऒफ़्फ़ राहुल…

मेरे मंह
ु की दबी हुई सिस्कारियां उसे मजबरू कर रही थी और जोर से चस
ू ने और चाटने के लिए। जो की उसने किया भी।
और अंत तक किया। जब तक की वहां रस की एक बँद
ू न बची। मैंने जबरदस्ती उसको ऊपर खींचा और धीरे से कहा। बस…
बस मेरी जान, और सहन नहीं होता अब। और फिर मैंने उसके गीले मुंह को अपने मुंह को गिरफ्त में ले लिया और अपने
रस का पान उसके थ्रू करने लगी।

मेरा हाथ उसके खड़े हुए लण्ड को सहला रहा था। मझ


ु े मालम
ु था की अब क्या करना है मझ
ु ।े …P121-124…

मेरी आँखों में दे खते हुए उसके फेस के एक्सप्रेशन ऐसे थे मानो मझ
ु े वहीं चोद दे गा। पर राहुल भी जानता था की उसके लिए
ऐसा करना मुश्किल होगा वहां। ये लण्ड -चूत का खेल ही ऐसा है । अकेले में ही खेलने में मजा आता है , ताकि दोनों तरफ से
खुलकर मजा लिया जा सके। मैंने अपनी चूत के रस को इकठ्ठा किया और राहुल के खड़े हुए लण्ड के ऊपर मलने लगी, मानो
तेल की मालिश कर रही हूँ मैं।

मैंने एक नजर चारों तरफ दौडाई। कोई नहीं दे ख रहा था हमारी तरफ। मैंने अपना सर शाल के अन्दर डाला और उसके क़ुतब

मीनार को अपने मुंह की सुरंग के अन्दर समेट लिया। म्म्म्म्म ्म्म्म्म उसके मुंह से निकलती ठं डी और तीखी सिसकारी
मुझे और तेजी से चूसने को मजबूर कर रही थी। मुझे अपने अन्दर ये शक्ति हमेशा महसूस हुई है की मेरे मुंह के अन्दर
जाने से कैसे मैं लडको की सीटियाँ बजवा दे ती हूँ।

राहुल के हाथ मेरे बालों को पकडे हुए मझ


ु े ऊपर नीचे कर रहे थे। मैंने उसके लम्बे लण्ड को परू ा निगल लिया और वो अब
मेरे गले के सामने की दिवार पर टक्करें मार रहा था। मुझे एक दफा तो ऐसा लगा की मुझे उलटी हो जायेगी। पर फिर मैंने
लम्बी सांस लेकर उसको थोडा एडजस्ट किया। अब मैं उसको अन्दर तक चूस भी पा रही थी और ढं ग से सांस भी ले पा रही
थी। मैं हर बार कुछ न कुछ नया सीख ही लेती हूँ।

तभी राहुल धीरे से फुसफुसाया- कोमल, कोमल वो… वो दीपा आ रही है उठकर।

मैंने झल्ला कर सोचा- अब इसकी चूत में क्या खुजली मची है । पर मैंने लण्ड चूसना नहीं छोड़ा।

तभी दीपा की आवाज आई: अरे राहुल, कोमल कहाँ है ।

राहुल मुश्किल से बोल पाया: वो… वो यही है , इसको नींद आ रही थी। और ठण्ड भी लग रही थी। इसलिए मैंने शाल डालकर
अपनी गोद में लिटा लिया। अगर कोई और जगह होती तो उसके बोलने के लहजे से साफ़ पता चल जाता की कुछ गड़बड़ है ।
पर बस के शोर में सब नार्मल ही लगा उसको।

दीपा: बड़ी जल्दी थी इसको सोने की। ह्म्म्म। और वो भी गोद में तुम्हारी, मजे है तुम्हारे तो, आराम से बैठ पा रहे हो तुम,
हूँ… उसके पूछने के लहजे में एक शरारत पन था और हलकी हं सी की झलक भी।

राहुल: तभी तो, मैं सो नहीं पा रहा हूँ। कोमल जैसी लड़की के इतनी पास आकर कौन भला सो सकता है । वो बड़ी मुश्किल से
बोल पा रहा था। उसका लण्ड जो था मेरे मुंह में ।

109
पर वो साली दीपा भी छोड़ने के मूड में नहीं थी। वो बोली: अच्छा जी, ऐसा क्या है कोमल में जो आप हमेशा उसके दीवाने
हुए रहते हो।

साली, मेरे सामने, मेरे बॉय फ्रेंड पर लाईन मार रही है । अपने राजपूत के पास क्यों नहीं जाती। पर हम दोनों सहे लियों ने
ऐसा कभी सोचा भी नहीं था। हमने कौनसा इनके साथ शादी करनी है , जो हमें जलन होगी। इसलिए उसकी बाते सन
ु कर
मुझे मजा भी आ रहा था। और वो भी मजे ले रही थी, क्योंकि राहुल पहले भी उसके ऊपर ट्राई कर चुका था और दीपा भी
उसको मेडम के घर पर चुदाई करते हुए दे ख ही चुकी थी।

दीपा की बात सुनकर राहुल बोल: ऐसा नहीं है , तुम ही दस


ू री पार्टी में जाकर बैठी हो। वर्ना बात तो तुममे भी कुछ ख़ास है ।
दस
ू री पार्टी यानी राजपत
ू , और परू ा कॉलेज जानता था की दोनों में छत्तीस का आंकड़ा था।

दीपा: लेकिन जब से तम्


ु हे दे खा है न, मेडम के घर पर उनकी सेवा करते हुए, तब से हम तो आपके फेन हो गए है जी। बस
इसलिए कोमल से कभी कभार जलन होती है ।

मैंने दीपा को दो दिन पहले हुए केंटिन के खुलासे के बारे में बता ही दिया था। और राहुल भी जानता था की उस दिन मेरे
साथ दीपा भी थी, मेडम के घर पर, इसलिए उसको कोई शॉक नहीं लगा।

राहुल: ठीक है , अगर ऐसा है तो ये पिकनिक पर कोई उपाय जरुर निकालँ ग


ू ा आपकी सेवा करने का।

दीपा: दे खते है । वो धीरे से हं सी और चली गयी।

उसके जाते ही मैंने अपना सर हिलाकर फिर से उसका लण्ड चूसना शुरू कर दिया। और तूफ़ान तो बन ही चुका था अन्दर,
इसलिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। और जल्दी ही उसके लण्ड का सारा रस निकल कर मेरे मुंह में जाने लगा, और मैं
सफ़ेद रस की प्यासी, सारा का सारा पी गयी, और फिर मैंने अपना चेहरा बाहर निकाला।

राहुल की आँखे बंद थी और वो गहरी साँसे ले रहा था। अपने ओर्गास्म से उभरने की कोशिश कर रहा था वो।

मैंने धीरे से कहा: मजा आया…

राहुल: हूँ…

मैंने उसको छे ड़ने के अंदाज में कहा: अभी तो दीपा का भी ऑफर है तुम्हारे पास।

राहुल: अब तुम दोनों सहे लियां हो ही ऐसी।

मैंने कुछ नहीं कहा और अपने कपडे सही करने लगी। उसने भी लण्ड को अन्दर किया और सामने लटकी बोतल से पानी
पीने लगा। मैंने माँगा तो उसने अपना पानी से भरा हुआ मुंह आगे कर दिया। मैंने भी उसके मुंह से मुंह लगाया और उसने
पानी मेरी तरफ छोड़ दिया। और मैंने पी लिया।

मैं उठने लगी, तो राहुल ने पुछा: क्या हुआ, कहाँ जा रही हो।

मैं: बस अभी आई, दीपा से पूछकर आती हूँ, क्या काम था।

मैं चलती हुई बस में हिलती डुलती उसके पास पहुंची। वो राजपूत के साथ बैठी हुई थी। और दोनों बाते कर रहे थे। दीपा
खिड़की वाली सीट पर थी।

मैं: क्या हुआ, कुछ काम था क्या।

दीपा ने मुझे दे खा और बोली: अरे कोमल, अभी तो तू गहरी नींद में थी।

मैं: हाँ, बस अभी नींद खुली तो राहुल ने बताया की तू आई थी। बोल।

दीपा: कुछ नहीं, वो तेरा ईयर फ़ोन चाहिए था। पर तू सो रही थी न इसलिए वापिस आ गयी।

110
बाते करते-2 मैंने अपनी चूत वाला हिस्सा जो की अभी तक काफी गर्मी फेंक रहा था, राजपूत के कंधे से लगा दिया और
चलती हुई बस के धक्को की लय में अपनी कमर हिलाने लगी। और उसके कसे हुए कंधो की रगड़ से अपनी चूत को गर्मी
दे ने लगी। दरअसल, मैं तो सिर्फ बदला लेने आई थी, वो मेरे बी ऍफ़ पर लाईन मारकर गयी थी। इसलिए मैं भी आई थी।
और मुझे घस्से लगाते हुए दे खकर वो साफ़ समझ गयी की मैं क्या कर रही हूँ, पर कुछ बोली नहीं, बल्कि होले से मुस्कुरा
दी।

दस
ू री तरफ राजपूत का चेहरा भी अपने एक्सप्रेशन बदलने लगा, उसने शायद सोचा नहीं था की मैं ऐसा करुँ गी, और वो भी
उसकी बेस्ट फ्रेंड के सामने। पर मेरे ज्यादा हिलने से उसको अंदाजा हो ही गया की मैं ये सब जान बुझकर कर रही हूँ। मैंने
दीपा के साथ बाते करना चालू रखा। और अपनी चूत की घिसाई भी। मेरे अन्दर एक और ओर्गास्म जन्म लेने लगा था।
दीपा भी ये बात जानती थी। इसलिए उसने भी इधर उधर की बाते, पिकनिक के इंतजाम की बाते वगेरह-2 पछ
ू नी जारी
रखी।

मेरी आँखे बोजिल होने लगी। और मेरी आवाज भी लडखडाने लगी। राजपूत की मांसल बाजुओं का तनाव महसूस करके
मुझे उसकी ताकत और मर्दानगी का एहसास हो रहा था। मैं सोच रही थी की इसकी बाजू पर घिसाई से इतना मजा आ रहा
है तो इससे चद
ु ने में कितना आएगा।

मेरी जींस के आगे वाला हिस्सा इतना गर्म और गीलेपन की वजह से नम हो चुका था की कोई भी दे खे तो साफ़ बता सकता
था की मेरे अन्दर का लावा बाहर रिस रहा है । और सबसे मजेदार बात ये थी की मैं जिससे मजे ले रही थी, उसके साथ मैंने
अभी आकर बात तक नहीं की थी। वो भी जानता था की मैं उसके दश्ु मन की जी ऍफ़ हूँ। वो राहुल से थोडा कठोर था। राहुल
को तो दीपा ने तैयार कर लिया था। पर इसको अपने लिए तैयार करना थोडा टे डा काम था। पर मजे परू े दे रहा था लौंडा।
और फिर उसके कंधे का कड़ापन और मेरे घिस्से रं ग लाये और मेरी चूत ने हलकी पिच की आवाज के साथ अपना रस छोड़
दिया। ये भी एक अलग ही अनुभव था मेरे लिए।

मैं एक दो और बाते करके वापिस अपनी सीट तक आई और अपने हें ड बेग से ईयर फोन निकाल कर वापिस ले गयी और
दीपा को दे दिया। तब तक राजपत
ू काफी गर्म हो चक
ु ा था। शायद मेरी वजह से और उसने दीपा का हाथ पकड़ कर चम
ू ना
शुरू कर दिया था।

मैंने उसको ईयर प्लग दिया और वापिस आ गयी। ये सोचते हुए की अब तो दीपा की खेर नहीं। …P125-127…

आगे की कहानी, दीपा की जब


ु ानी 

**** दीपा ***


************
जब से मैं बस में आकर बैठी थी, मेरी चूत में अजीब तरह की खुजली हो रही थी। मैं चाह रही थी की राजपूत कुछ करे मेरे
साथ पर वो बेकार की बाते करने में लगा हुआ था। मैंने एक दो बार अपनी ब्रेस्ट उसकी बाजू से रगड़ी और उसका हाथ
पकड़ना चाहा तो उसने मुझे ये कहते हुए चुप करा दिया की कोई दे ख लेगा। उसको शायद सामने वाली सीट पर बैठी
प्रिंसिपल मेडम की चिंता थी।

पर वो शायद नहीं जानता था की उनसे डरने की कोई जरुरत नहीं है । इसलिए मैंने उसको और भड़काने के लिए अपनी सीट
से उठ कर कोमल के पास जाने का बहाना बनाया ताकि बाहर निकलते हुए मैं अपनी चूत से निकल रहे रस की खुशबु उसके
चेहरे के सामने से लेजाकर बाहर निकलू ताकि वो भी महसूस कर सके की मेरे अन्दर क्या चल रहा है । मेरे अन्दर जाने और
वापिस आने के बाद भी उसके अन्दर कोई परिवर्तन नहीं आया। मुझे लगा की शायद ये रात ऐसे ही निकल जायेगी। वहां
कोमल कैसे मजे से राहुल के लण्ड के पास मुंह लगा कर सो रही थी। हो न हो, वो जरुर शाल के अन्दर उसका लण्ड चूस रही
होगी।

111
मैं ये सब सोच ही रही थी की कोमल आकर खड़ी हो गयी, उसके चेहरे की लाली बता रही थी की जो भी मैं उसके और राहुल
के बारे में सोच रही थी, वो सच था। इन्फेक्ट, उसके होंठो के पास सफ़ेद रं ग का एक कतरा (जो शायद राहुल के लण्ड से
निकले रस का था) चिपका हुआ था, और आने के बाद वो राजपूत के कंधे से अपनी चूत को रगड़कर जिस तरह से मचल
रही थी, मुझे साफ़ महसूस हो रहा था की वो अपनी चूत से पानी निकालने की फिराक में है , साली में कितनी हिम्मत है ,
पहले तो वो राहुल के लण्ड को चस
ू कर आई और अब मेरे वाले के साथ भी मजे ले रही है । वैसे ये अच्छा ही है , शायद इसी
बहाने राजपूत गर्म हो जाए और मुझे कुछ मजे करने को मिल जाए। इसलिए मैंने कोमल के साथ हं स कर बाते करना शुरू
कर दिया।

और जल्दी ही उसके चेहरे पर आती हुई संतुष्टि दे खकर मुझे अंदाजा लगना शुरू हो गया की उसका काम तो हो गया है ।
और उसके बाद मैंने राजपत
ू के लण्ड की तरफ दे खा जो अपना तम्बू फाड़कर बाहर आने को तैयार था। मेरा काम कितना
आसान कर दिया इस कोमल ने। मैं ऐसे ही इसको बरु ा भला कह रही थी। और उसके जाते ही राजपूत ने मेरे हाथ को पकड़ा
और उसे चूमना शुरू कर दिया। इतनी दे र में कोमल ईयर फोन वापिस लेकर आई और मुझे दिया, उसके आने के बाद भी
राजपत
ू ने मेरे हाथ को नहीं छोड़ा और उसे चम
ू ना चाटना जारी रखा। कोमल हं सती हुई वापिस चली गयी और जाते-2 मझ
ु े
आँख भी मार गयी।

उसके वापिस जाते ही मैंने अपने हाथ की उँ गलियाँ आगे करी और राजपूत उन्हें बेसब्री से चूसने लगा। मेरे हाथ की लम्बी
और पतली उँ गलियाँ जिसके नाख़ून भी काफी लम्बे थे, उसके गर्म मुंह में थी। मैंने अपना सर उसके कंधे पर रखकर अपने
हाथ को आगे पीछे करके उसके मंह
ु को अपनी उँ गलियों से चोदना शरू
ु कर दिया। स्स्स्स्स ्स्स्स ओह्ह्ह्ह्ह। उसके मंह
ु से
खींचने के बाद मेरी उँ गलियों पर उसकी लार की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी। परू ी बस में अँधेरा था। और मैंने इस बात का
फायेदा उठाया। और अपनी एक टांग उठा कर उसकी जांघ के ऊपर रख दी। और मैंने अपना चेहरा उसकी तरफ कर दिया।
मेरी दोनों छातियाँ उसके कंधे से चिपक कर बुरी तरह से पिस्स रही थी। और मैंने भी अपनी छाती को हिला-हिलाकर अपने
निप्पलस के चारों तरफ हो रही खुजली को उसकी बलिष्ट बाजुओं से मिटाने का काम शुरू कर दिया।

उसने इधर उधर दे खा और फिर एकदम से मेरी तरफ चेहरा घुमाकर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
म्मम्मम। काश समय यहीं ठहर जाए। इतनी रोमांटिक किस्स मैंने आज तक नहीं की थी। कितनी मिठास थी इसमें ,
कितनी कसक थी, कितनी ललक थी और ना जाने क्या क्या।

मैं तो बस खो सी गयी उसमे।

उसके मर्दाना होंठो ने मझ


ु े चभ
ु लाना शरू
ु किया। और मेरे रे शमी होंठो को किसी चिकन के पीस की तरह खाने का मजा लेने
लगा। मेरे होंठो से निकलता रस सीधा उसके गले से उतर कर अन्दर जा रहा था। मैंने हाथ आगे किया और उसके उफनते
हुए लण्ड के ऊपर रखकर उसे जोर से दबा दिया। उसका असर सीधा मेरे होंठ पर हो रहे हमले पर हुआ, वो और तेजी से उन्हें
काटने और कसोटने लगा। मझ ु े तो ऐसा लग रहा था की आज वो मेरे होंठो को खा ही जाएगा।

मेरी चत
ू का बरु ा हाल था। मैंने अपनी चत
ू के घिस्से उसकी टांगो पर लगाने शरू
ु कर दिए। उसके हाथ सीधा मेरी जींस की
बेल्ट पर आये और उन्हें खोलने लगे। …P128…

मैंने भी उसकी हे ल्प की और जल्दी ही मेरी जींस मेरे पैरों के पास गिरी पड़ी थी। मैंने अपनी पैंटी भी उतार फेंकी। कोई दे ख
ले तो साफ़ पता चल जाएगा की मैं नीचे से नंगी होकर बैठी हूँ। पर इतनी रात और अँधेरे का फायेदा उठा कर ही मैंने इतना
बड़ा रिस्क लिया था। राजपत
ू ने फिर से उठ कर इधर उधर दे खा। सब सो रहे थे। और मैंने मेडम की तरफ दे खा, वो भी
गहरी नींद में थी और उनके साथ बैठे हुए सिंह सर भी अपनी आँखों पर आई कवर लगा कर खर्राटे मार रहे थे। कोई खतरा
नहीं था। उसने अपने चुतड उठाये और अपनी जींस भी खोलकर नीचे कर दी। और अपने खड़े हुए लण्ड को अपने हाथो से
मसलने लगा।

112
वाव… कितना रोमांच था इस सब मे। चलती हुई बस में , मैं नीचे से नंगी होकर अपने यार के साथ मजे ले रही थी। उसने
मेरे सर को पकड़ा और अपने लण्ड के ऊपर टिका कर अपना लण्ड मेरे मुंह में धकेल दिया। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह दीपा।
उसके मुंह से हलकी सी सिसकारी और मेरा नाम निकल गया। मैंने भी उसके लण्ड को बुरी तरह से चूसना और चाटना शुरू
कर दिया।

उसकी कसी हुई नसे और सिस्कारियों से मुझे अंदाजा लगना शुरू हो गया की वो जल्दी ही झड़ने वाला है । मैंने अपनी चूत
के ऊपर अपनी उँ गलियाँ तेजी से फिरानी शुरू कर दी। पर तभी मेरी चूत से निकल रही कसमसाहट और मेरे अन्दर से
निकले एक अजीब से साहस ने मुझे उसके लण्ड को चूसने से रोक दिया। वो बेचारा है रान परे शान सा होकर मुझे दे खने
लगा। वो झड़ने ही वाला था। पर मैंने अपना मुंह वापिस ऊपर खींच कर उसे लास्ट मिनट में रोक दिया। मैंने उसकी आँखों
में दे खते-2 ही अपनी चत
ू को रगड़ना चालु रखा। और फिर मैंने उसके होंठो को चम
ू लिया। वो भी मेरी किस्स के नशे में खो
सा गया और मेरी मोटी छातियों को मसलने लगा।

और फिर अचानक।

मैंने अपनी एक टांग उसकी गोद में रखी और उसकी तरफ मंह
ु करके उसकी गोद में आ चडी। वो मेरी हिम्मत दे खकर दं ग
रह गया। मेरे हाथ उसकी सीट के ऊपर वाले हिस्से में थे और उसकी गोद में चड़ने की वजह से मैं थोडा ऊँची भी उठ गयी
थी। और पीछे बैठे हुए सभी लोगो को साफ़-2 दे ख भी पा रही थी। सभी सो रहे थे। उसका खड़ा हुआ लण्ड मेरी गाण्ड पर
ठोकरें मार रहा था।

वो धीरे से बोला: पागल हो गयी हो क्या… कोई दे ख लेगा।

मैंने उसके लण्ड को पकड़ा और अपनी चत


ू के मंह
ु ाने पर रखा। और उसके कान में धीरे से कहा। मझ
ु े कोई फर्क नहीं पड़ता।
आई वांट यूर कोक नाव। और इतना कहते ही मैं उसके खड़े हुए लण्ड के ऊपर बैठ गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह स्स्स्स म्मम्मम्म
उम्म्म्म्म ्म्म। येस्सस्सस्स। अह्ह्ह्ह्ह्ह। माय गॉड। अह्ह्ह्ह्ह्ह। मैंने उसके कड़े लण्ड को पूरा अपनी चूत में उतार लिया।
उसे अन्दर तक महसस
ू किया।

अब तो कोई दे ख भी ले तो मझ
ु े कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरी चत
ू में आग सी लगी हुई थी। जिसे सिर्फ और सिर्फ राजपत
ू का
लण्ड ही बुझा सकता था। मेरे गीले होंठ उसके कानो के पास आकर सिसक रहे थे। उन्हें चाट रहे थे। गीला कर रहे थे। उसने
भी सोचा, की अब जो होगा दे खा जाएगा, और अपने हाथ नीचे से मेरी टी शर्ट के अन्दर डाल दिए। और मेरी ब्रा को ऊपर
करके मेरे मम्
ु मे अपने हाथो से दबा दबाकर उनका मर्दन करने लगा। अह्ह्ह्ह्ह्ह रज्पॊत सक दे म। सक इट। मैंने उसके
बाल पकडे और उसका चेहरा अपनी छाती के ऊपर दबा दिया। उसका चेहरा मेरी छाती से नीचे था। उसने अपना चेहरा मेरी
टीशर्ट के अन्दर डाल दिया।

टी शर्ट स्ट्रे चएबल थी, उसका बड़ा सा सर आसानी से अन्दर समां गया। और उसके प्यासे होंठ सीधा जाकर मेरे जामुन जैसे
निप्पलस को अपने मंह
ु में लेकर चस
ू ने लगे। म्म्म्म्म ्म्म ओह्ह्ह्ह्ह माय बेबी। मैंने धीरे -2 उसके लण्ड के ऊपर उठना
बैठना शुरू कर दिया। आज मैं बिना आवाज के, आराम से उसके लण्ड पर बैठकर चुद रही थी। और इसमें मुझे काफी मजा
आ रहा था।

उसने अपनी एक ऊँगली मेरी गाण्ड के छे द पर लगा दी। मेरी चूत के अन्दर ओर्गास्म का निर्माण होने लगा। वो कुत्तो की
तरह से मेरी छातियों को अपनी लार से गीला कर रहा था, उन्हें चाट रहा था, उन्हें काट रहा था, लाल निशाँ बना रहा था,
मेरा पूरा शरीर कांपने सा लगा। और जैसे ही उसकी ऊँगली मेरी गाण्ड के छे द के पूरा अन्दर घुसी, और उसके दांतों ने मेरे
दांये निप्पल को पकड़ कर जोर से चुभलाया। मेरे अन्दर का ज्वालामुखी, मेरी चूत के मुंहाने से निकलकर उसके पर्वत जैसे
लण्ड के ऊपर फुट पड़ा। और मेरी चूत से निकले लावे में इतनी गर्मी थी की उसका लण्ड भी पिघल गया और उसने भी
अपना रस बाहर फेंकना शुरू कर दिया।

113
दोनों के रस का संगम हो गया मेरी चूत के अन्दर ही। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़्फ़ म्म्म्म्म ्म्म। उसने मेरे मुम्मे पर अपने
दांत गड़ाकर अपनी चीख बाहर निकलने से बचायी। और मैंने अपने हाथ को अपने मुंह में डालकर। इतना मजा आज तक
नहीं आया था मुझे अपनी चुदाई में ।

काफी दे र तक मैं ऐसे ही बैठी रही। फिर मैंने अपने बेग से हें ड टावल निकाल कर दिया उसको। उसने मेरी चत
ू और अपने
लण्ड को साफ़ किया। और मैं वापिस अपनी सीट पर आकर बैठ गयी। शुक्र है , किसी ने नहीं दे खा मुझ।े चुदाई करते हुए।
और मुझे कब नींद आ गयी, मुझे पता ही नहीं चला। पर मेरा सोचना कितना गलत था। की किसी ने नहीं दे खा मुझे। शायद
दे ख लिया था। …P129-132…

और ये दे खने वाली कोई और नहीं अंजू मेडम थी। जैसा की मैंने पहले ही बता दिया था की अंजू मेडम जॉन के साथ बैठी थी,
जो की दीपा की सीट के दस
ू री तरफ थी। यानी, प्रिंसिपल मेडम के बिलकुल आगे वाली सीट पर। और अंजू मेडम बाहर की
तरफ बैठी हुई थी, जब उन्होंने अपना सर पीछे किया तो उन्होंने चोरी आँखों से दे खा की राजपूत का सर अन्दर बैठी हुई
दीपा की तरफ झुक हुआ है और वो उसे चूमने और चाटने में लगा हुआ है । काफी अँधेरा था बस में । पर गौर से दे खने में सब
समझ में आ रहा था की कौन किसके साथ क्या कर रहा है ।

राजपूत ने और दीपा ने सिर्फ प्रिन्सिपल मेडम की तरफ ही दे खकर तसल्ली कर ली थी की वो तो नहीं दे ख रही उन्हें । पर
उन्हें क्या मालुम था की अंजू मेडम की नजरें उनकी हर हरकत पर है । और अब आप सोच रहे होंगे की जब अंजू मेडम ने
उन्हें आपत्तिजनक अवस्था में दे ख ही लिया था तो उन्होंने एक टीचर का फर्ज अदा करते हुए उन्हें गलत काम करने से
रोक क्यों नहीं।

दरअसल, अंजू, जिनकी उम्र लगभग 30 के आस पास है , वो अपने लिव इन पार्टनर अरुण के साथ रहती है । और पिछले
एक हफ्ते से अरुण अपने ऑफिस के काम से बाहर गया हुआ था। और इसलिए उसकी चुदाई काफी दिनों से नहीं हुई थी।
और वैसे भी अपनी टीचर वाले लिबास के अन्दर उसने एक गर्म और बिंदास औरत छिपा रखी थी, जिसका पता सिर्फ उसके
चाहने वालो को ही था। वो बेड पर अपने हुस्न के जलवे दिखाकर अच्छे अच्छो का पसीना निकलवा दे ती थी। और राजपूत
और दीपा को दे खकर उसके अन्दर की गर्म औरत और भी भड़क उठी और वो उनकी तरफ ही मंह
ु करके बैठ गयी।

अपनी चोडी गाण्ड को उसने जॉन की तरफ कर दिया। और उन्होंने राजपूत और दीपा की पूरी चुदाई का मजा लिया। और
उनकी चुदाई को दे खते-2 ही अंजू मेडम ने अपनी पय्जामी का नाडा खोलकर अपना एक हाथ उसके अन्दर डाल दिया।

अब आगे की कहानी, अंजू मेडम की जब


ु ानी।

**** अंजू मेडम ***


**************
ओह्ह्ह्ह ये साले आजकल के स्टूडेंट्स कितने एडवांस हो गए है , कितनी बेशर्मी से राजपूत के लण्ड के ऊपर बैठ कर चुद
रही है ये दीपा। और किसी का डर भी नहीं है इन दोनों को। काश अरुण होता मेरे साथ आज यहाँ बस में । तो शायद, शायद
मैं भी चलती बस में उससे, उससे अह्ह्ह्ह्ह। सोच कर ही कितना रोमांचक लग रहा है । मैंने अपनी उँ गलियों की घिसाई
अपनी चूत के ऊपर और तेज कर दी।

तभी मुझे अपने साथ बैठे हुए जॉन का ख्याल आया। दे खने में तो अच्छा ख़ासा है ये लड़का। और जब से मेरे साथ बैठा है ,
थोड़ी दे र बाते करने के बाद सो भी गया। मेरे मन में एक प्लान आया। क्यों न जॉन को पटाया जाए। चार दिन का टूर है ।
और अगर टूर में ये सब ही चलता रहा तो मैं अपने आप पर कैसे कंट्रोल कर पाऊँगी। मेरा दिमाग इतना गर्म हो चुका था की
मुझे अपने ओहदे और बदनामी का भी डर नहीं लग रहा था।

114
उनका कार्यकर्म ख़त्म होने के बाद मैंने वापिस जॉन की तरफ करवट कर ली। अब मेरा परू ा ध्यान उसके लण्ड वाले हिस्से
पर था। मैंने कुछ दे र तक सोचा और फिर अपनी आँखे बंद करके मैंने अपने जिस्म को जॉन की तरफ झुकाया। और अपनी
38 साईज की ब्रेस्ट को उसकी बाजुओं से क्रश करते हुए उसके कंधे पर सर टिका कर सोने का नाटक करने लगी। वो अब भी
सो रहा था।

मैंने अपने सूट की चुन्नी भी गिरा डाली और अपने सूट को नीचे खींच कर क्लीवेज दिखाते हुए अपनी मोटी ब्रेस्ट को चारे
की तरह इस्तेमाल किया। और अपना आखिरी वार करते हुए मैंने अपना एक हाथ उसकी जांघ पर रख कर दबा दिया। वो
एकदम से उठ गया अपनी गहरी नींद से। और मुझे अपने ऊपर गिरा हुआ पाकर वो है रान परे शान सा हो गया। मेरा चेहरा
नीचे की तरफ झुका हुआ था। और अपनी अधखुली आँखों से मैं उसकी हर हरकत दे ख पा रही थी। जॉन ने गर्दन घुमा कर
चारों तरफ दे खा।

शायद वो चेक कर रहा था की कोई मुझे ऐसी हालत में उसके ऊपर गिरे हुए दे ख तो नहीं रहा है । पर सब सो रहे थे, इसलिए
वो निश्चिन्त हो गया और अपने हाथ को सीधा अपने लण्ड के ऊपर ले गया और उसे धीर दबाने लगा। और मेरे दे खते ही
दे खते कमाल होने लगा, उसके लण्ड वाले हिस्से का उभार उजागर होने लगा और उसके एडिडास के पायजामे के अन्दर
तम्बू सा बन गया। जिसे दे खकर मेरी पारखी नजरों ने उसके लण्ड की लम्बाई का अंदाजा लगा लिया। सच में , काफी बड़ा
लण्ड था उसका, शायद अरुण से भी बड़ा और मोटा।

मेरा मन तो कर रहा था की अपने पंजों से नोच डालू उसके लण्ड को, खा जाऊ, पी जाऊ उसके रस को। और… और डाल लू
अपनी रस बरसाती हुई चूत के अन्दर। मैं ये सोच ही रही थी की उसने अपनी तरफ से पहल कर डाली। मेरा फेंका हुआ चारा,
यानी मेरी उफनती ब्रेस्ट को दे खकर उसका हाथ थोडा सा ऊपर आया और उसने हलके से उन्हें सहलाया। और मेरी तरफ से
कोई प्रतिक्रिया न होती दे खकर उसने उनपर अपने पंजो का जोर लगाया और मुझे जझोरकर उठाने का प्रयास किया और
धीरे से मेरे कान में कहा "मेडम, अंजू मेडम।”

वो शायद दे खना चाह रहा था की मैं कितनी गहरी नींद में हूँ। और शायद उसके हिसाब से ही वो अपना अगला मूव करे गा।
पर वो शायद नहीं जानता था की एक लड़की चाहे जितनी भी गहरी नींद में हो, उसके शरीर पर अगर कोई हाथ फेरता है तो
वो चाहे कितनी भी गहरी नींद में हो, उसकी नींद खुल ही जाती है , और फिर चाहे वो शर्म से, या फिर मजे लेने की चाह में
शायद चुप रहे , वो उसके ऊपर है ।

खैर, मुझे बेसुध सोता हुआ पाकर उसका होंसला बढ गया, और जो पंजा उसने मेरी छाती पर लगाया हुआ था, उसकी पकड़
और तेज होने लगी। मेरे निप्पलस, जिनका साईज काफी बड़ा है , उसके इस स्पर्श से उठ कर अपने परू े शबाब पर आ गए।
और शायद उसकी हथेलियों ने उन्हें महसूस भी कर लिया। जिसकी वजह से उसने अपनी दो उँ गलियों से मेरे निप्पलस को
टटोला और उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।

मेरे अन्दर से एक ठं डी सी सिसकारी निकल गयी। पर मैंने उसे बाहर ना आने दिया। उसने अपनी उँ गलियों से मेरे निप्पल
की मालिश करनी शरू
ु कर दी। मेरा हाथ जो उसकी जांघ पर था, उसने उसे धीरे से उठाया और अपने कड़क लण्ड के ऊपर
रख कर धीरे से दबा दिया। मेरी उं गलियों ने उसके लण्ड को चारों तरफ से लपेट लिया। और उसके मुंह से हलकी सी
सिसकारी निकल गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह म्मम्मम्म। ओह्ह्ह्ह्ह अंजू मेडम। और उसने और तेजी से मेरी ब्रेस्ट को दबाना शुरू
कर दिया। और फिर उसने थोड़ी और डेयरिंग की। मेरे सट
ू के अन्दर की तरफ हाथ लेजाकर उसने नीचे से मेरी ब्रेस्ट को
अपने हाथो में परू ा थाम लिया। उसका बाँया हाथ मेरी राईट वाली ब्रेस्ट के पूरा ऊपर था। और वो उसे धीरे -2 दबा रहा था।
फिर उसने मेरी ब्रेस्ट के कप को ऊपर किया और मेरी दोनों चूचियां अन्दर से नंगी होकर उसके हाथो में पानी से भरे गुब्बारों
की तरह उछलने लगी 

मेरी पकड़ अपने आप उसके लण्ड के ऊपर तेज हो गयी। तभी उसके दिमाग में कुछ और आया। और उसने मेरे हाथ को
अपने लण्ड से परे किया, और अपनी गाण्ड उठा कर अपने पायजामे को नीचे खिसका दिया। और अब उसका फनफनाता

115
हुआ लण्ड मेरी आँखों के सामने था। जिसे मैं अपनी अधखुली आँखों से साफ दे ख पा रही थी। वो सच में काफी लम्बा था।
तकरीबन 7 इंच का। और मोटा भी, काले रं ग का। और उसका सुपाड़ा अपने ही रस में नहाकर हीरे की तरह चमक रहा था।
मेरे तो मुंह में पानी आ गया, इतना शानदार और जानदार लण्ड दे खकर। मैं अरुण के प्रति काफी वफादार थी, पर ऐसी
सिचुएशन में मुझे पता नहीं क्या होने लगा था।

अब तो मैंने सोच लिया था, चाहे जो भी हो, मुझे अपने इस टूर में पूरे मजे लेने है , कोई चाहे कुछ भी सोचे मुझे कोई फर्क
नहीं पड़ता। और अपने लण्ड को पूरा नंगा करने के बाद उसने मेरे हाथ को वापिस उठा कर अपने लण्ड पर रख दिया।
ऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ कितना गर्म लण्ड था उसका। मेरा तो हाथ ही जल उठा। और उसके साथ-2 मेरा जिस्म भी। उसने अपने लण्ड
पर मेरे हाथ की उँ गलियाँ लपेट डाली और उसके ऊपर अपना हाथ लगा कर धीरे -2 ऊपर नीचे करने लगा। मन तो कर रहा
था की उसके लण्ड को चस
ू डाल।ू बता द ू की मैं सो नहीं रही। पर अपनी टीचर वाली मर्यादा को इतनी जल्दी लांघना नहीं
चाहती थी मैं। सब कुछ आराम से और प्लानिंग से करना चाहती थी। उसकी आँखे बंद थी, सर ऊपर की तरफ था। और मेरे
हाथ के ऊपर उसका हाथ और उसका दस
ू रा हाथ मेरी ब्रेस्ट के ऊपर। थोड़ी मुश्किल हो रही थी। पर वो मेनेज करने की
कोशिश कर रहा था।

पर तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। मेरे हाथ को अपनी तरफ थोडा और खींचने के लिए उसने
थोडा जोर लगाया और मैं सूखे पत्ते की तरह उसकी गोद में जा गिरी। मेरा चेहरा अब उसके काले नाग से टकरा रहा था।
मेरे गालों के नीचे उसके लण्ड के बाल थे, जिनकी वजह से मुझे थोड़ी चुभन भी हो रही थी। पर उसके लण्ड से निकलते हुए
मादक रस की खश
ु बु के आगे वो चभ
ु न मझ
ु े अपना एहसास नहीं होने दे रही थी। मैं मदहोश सी होती जा रही थी। अगर वो
थोड़ी दे र कुछ और न कर पाया तो मैंने अपनी मर्यादा का बंधन तोड़कर उसके लण्ड को अपने मुंह में डाल लेना है । पर मेरा
काम उसने आसान कर दिया।

उसने अपने हाथ से मेरे चेहरे को टटोला, मेरे होंठो के पास आकर उसकी उँ गलियों ने अन्दर जाने का रास्ता बनाया, और
जैसे ही मेरा मंह
ु ओ की शेप में खल
ु ा, उसने अपने लण्ड को सीधा करके, मेरे मंह
ु के अन्दर धकेल दिया। मेरा मंह
ु उसके
लण्ड से परू ा भर गया। और फिर उसका दांया हाथ घूमकर मेरी पीठ पर आया, और वहां से होता हुआ मेरी गाण्ड तक। और
टटोलता हुआ मेरी पय्जामी के अन्दर घुस गया। उसे घुसने में कोई तकलीफ नहीं हुई, क्योंकि मेरा नाड़ा तो पहले से ही
खुला हुआ था। और उसके हाथ की लम्बी उँ गलियों ने जल्दी से मेरी गाण्ड को पार करते हुए, मेरी चूत के ऊपर आकर अपना
धावा बोल दिया। और एक ही बार में उसके हाथ की बीच वाली ऊँगली मेरी गीली चूत के अन्दर तक घुसती चली गयी।

उम्म्म्म्म ्म्म्म्म अह्ह्ह्ह्ह्ह। अब मेरे मुंह से एक लम्बी सिसकारी निकल गयी। जिसे सुनकर उसका हाथ जहाँ का तहां रह
गया। और उसके लण्ड ने भी हरकतें करनी बंद कर दी। शायद वो डर गया था। की मेरी नींद खुल चुकी है और अब उसकी
खेर नहीं।

अब मझ
ु े ही कुछ करना था।

मैंने अपनी शर्म की चादर को फेंकते हुए, अपने मंह


ु की पकड़ उसके लण्ड पर बड़ा दी और अपनी चत
ू को दबा कर उसकी
ऊँगली को अपने अन्दर जोरों से दबा डाला। अब उसे ये समझने में दे र नहीं लगी की मैं जाग गयी हूँ और मुझे भी ये सब
करने में और करवाने में मजा आ रहा है । उसने मेरे सर के ऊपर अपना हाथ और अपने लण्ड पर मुझे जोर से दबा दिया और
मेरे में धीरे से कहा "ओह्ह्ह अंजू मेडम आप समझ नहीं सकती की आपने आज क्या कर डाला है ।” वो पता नहीं क्या क्या
बोलता रहा, पर मेरी मदहोशी की वजह से मैं बस उसके लण्ड को चूसने में और अपनी चूत में उसकी उं गलियों को महसूस
करके मस्ती के हिचकोले लेती रही।

फिर अचानक उसके होंठ मेरे कानो के ऊपर आकर धीरे से चिल्लाये। अह्ह्ह्ह्ह्ह अंजू मेम, आई एम ् कमिंग। म्मम्मम। मैं
भी तैयार थी। मैंने और तेजी से उसके लण्ड को चस
ू ना शरू
ु कर दिया। और उसने उतनी ही तेजी से मेरी चत
ू के अन्दर

116
अपनी चरों उँ गलियाँ पेल कर उसे चोदना शुरू कर दिया। मेरी चूत से रस की बोछारे सी निकलने लगी। और उसके लण्ड से
भी। गाड़े मीठे रस की फुहार निकल कर मेरे मुंह में जाने लगी। उम्म्म्म्म ्म। मजा आ गया।

ये टूर मेरी जिन्दगी का एक यादगार टूर होने वाला है । …P133-134…

बस पूरी रात चलती रही, और चलती रही उसके अन्दर की मस्ती। कोमल की राहुल के साथ। दीपा की राजपूत के साथ।
और जॉन की अंजू मेडम के साथ। और भी कई लोग मस्ती के आलम में डुबे हुए थे पर हर किसी का किस्सा बयान करने
बैठे तो ये बस कबिले में पहुंचेगी ही नहीं।

खेर… सुबह 7 बजे के करीब बस कबिले के पास पहूँच गयी।

रोहित के गाँव का फ्रेंड राज जिसे उसने कबिले में सारे इंतजाम करने को कहा था, वो पहले से ही वहां खड़ा हुआ था। जैसे-2
बस से सारे स्टूडेंट्स उतरते चले गए, उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी इतनी खब
ु सूरत लडकियाँ उसने अपनी जिन्दगी में
नहीं दे खी थी, अब उसे विशवास हो गया की रोहित ने जो भी बाते अपने कॉलेज के बारे में बताई थी वो सब सच थी।

आगे की कहानी, कोमल की जुबानी

*****कोमल ****
****************
रोहित ने मुझ से कहा- "कोमल, अब यहाँ से हम सबको पैदल ही आगे जाना है , बस वहां तक नहीं जा सकती…"

मैंने प्रिंसिपल मेम की तरफ दे खा और उन्होंने सहमती में सर हिलाया। हम सभी ने अपना-2 सामान कंधो पर लादा और
कबीले की तरफ चल दिए। काबिले का रास्ता घने जंगल और दो पहाड़ियों के बीच से होकर जाता था जो तकरीबन आधे घंटे
का था। सबसे आगे रोहित और उसका दोस्त चल रहे थे।

बड़ा ही शांत वातावरण था, चारो तरफ घने पेड थे, और मदमस्त खुशबु आ रही थी पेड पोधो की। मैंने नोट किया की रोहित
बार-2 मुझे मुड़कर दे ख रहा है । और उसका दोस्त भी उससे बात करने के बाद मुझे ही दे ख रहा है , मुझे ये तो अंदाजा हो
गया की वो दोनों मेरी ही बाते करके मझ
ु े दे ख रहे है , पर क्या बाते कर रहे है , वो मझ
ु े जानना था। थोडा आगे चलकर सभी
लोग थक गए, किसी को भी इतना चलने की आदत नहीं थी, इसलिए सभी बैठ कर सुस्ताने लगे। रोहित और उसका दोस्त
राज एक पेड के नीचे बैठ गए। मैं चुपके से घूमकर उस पेड के पीछे चली गयी और उनकी बाते सुनने लगी।

राज: "यार सच में , इतनी खब


ू सूरत लड़कियां तो मैंने अपनी लाईफ में भी नहीं दे खि। और वो जो तूने दिखाई थी, कोमल, वो
तो कमाल की है । कितनी बड़ी-2 छातियाँ है उसकी। मन तो कर रहा है की इसके कपडे फाड़ कर उसका दध
ू पी जाऊ।”

रोहित: "अबे साले, चुप कर, अपना मुंह बंद रख। ये सब शहर की लड़कियां है । तरीके से मांगोगे तो खुश होकर दें गी। और
अपना ओच्छापन दिखाओगे तो गालिया मिलेंगी। वैसे उसका बॉय फ्रेंड है । पर लड़की काफी चालु है । अगर ट्राई करें गे तो
शायद मेरा काम बन जाए। और अगर मेरा बन गया तो तू भी मजे ले लेना। हा हा…”

मैंने मन ही मन सोचा ये साले लड़के हमेशा एक ही चीज के पीछे क्यों पागल होते है । वैसे दे खा जाए तो ये बात हम
लड़कियों पर भी तो लागू होती है । अब मुझे पता तो चल ही गया था की उन दोनों के मन में मेरे लिए क्या चल रहा है ।
इसलिए मैंने कुछ मजा लेने की सोची। मैं घूमकर वापिस पीछे गयी और दरू से उनकी तरफ वापिस आई। वो मुझे अपनी
तरफ आता हुआ दे खकर संभल कर बैठ गए। मैंने सिर्फ टी शर्ट पहनी हुई थी, उसके नीचे की ब्रा को राहुल ने बस में ही उतार
कर अपनी जेब में रख लिया था। और गौर से दे खने पर कोई भी बता सकता था की मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई, मैं उनके सामने
जाकर बैठ गयी।

"अच्छा रोहित, वहां नहाने के क्या इंतजाम है । मेरा मतलब…” मैंने बात बीच में ही छोड़ दी।

117
रोहित: "वो… वहां ऐसा कुछ नहीं है । कबीले के पीछे ही एक झरना है । सभी लोग वही नहाते है । हम सभी को भी वहीं जाकर
नहाना होगा। और बाकी सारी चीजे भी जंगल में ही करनी होगी।”

मैं उसकी बात का मतलब समझकर मंद-2 मुस्कुराने लगी।

मुझे मुस्कुराता हुआ दे खकर राज बोल: "कोमल जी, आप चिंता मत करिए। ये जगह एकदम सेफ है । और मैंने सरदार को
बोलकर अच्छे इंतजाम भी करवाए है । और जो थोड़ी बहुत कमी होगी, वो आप समझ ही सकती है की जंगल में हर सवि
ु धा
मिल नहीं सकती।”

राज की नजरे मेरी बिन ब्रा की छातियों में से निप्पल तलाश रही थी। मैंने भी उसको मजा दे ने के लिए अपने दोनों हाथ
ऊपर किये और अपने बाल बाँधने के बहाने अपनी छातियाँ उनकी तरफ उभार दी। और उन्हें मेरे खड़े हुए निप्पलस के
साक्षात दर्शन हो गए, भले ही टी शर्ट के अन्दर से ही, पर उनकी आँखों की चमक दे खकर मझ
ु े अपनी जवानी पर बड़ा गम
ु ान
सा हुआ।

थोड़ी दे र आराम करने के बाद हम सभी कबीले की तरफ चल दिए। अब रोहित और राज मेरे साथ ही गप्पे मारते हुए चल
रहे थे। मेरा भी मन आ गया था उन दोनों पर। अब किसी भी तरह इनके लण्ड मुझे चाहिए ही थे। करीब बीस मिनट के बाद
हम लोग कबीले के अन्दर पहूँच गए।

करीब 100 के आस पास घर थे वहां। पक्की मिटटी से बनी दीवारे और ऊपर से घांस डाल कर ढके हुए, जैसे हमने किताबो
में या फिल्मो में दे खा था ठीक वैसे ही। और वहां घूम रहे लोगों ने सिर्फ अपने गुप्तांग कपडे और घांस से ढके हुए थे, बांधे
नहीं हुए थे। औरतों ने अपनी ब्रेस्ट और आदमियों ने अपने लण्ड। और कुछ औरतों ने तो अपनी छातियाँ ढकी भी नहीं हुई
थी। उनकी तनी हुई छातियाँ काफी इरोटिक लग रही थी जिन्हें दे खकर हमारे ग्रप
ु के लड़के मंह
ु फाड़े उन्हें ही दे खते रहे । वहां
सभी का रं ग काला था।

कुछ एक थे जो थोड़े गौर थे पर ज्यादातर लोग सांवले या काले रं ग के औत गठीले शरीर के थे, आदमियों ने अपनी छाती
पर रं गबिरं गी लाईन खींच कर चित्रकारी करी हुई थी। और औरतों ने अपने सर पर मोती और लकड़ी से बनी हुई चीजो को
सजा कर ऊंचा सा जड
ू ा बनाया हुआ था। बाजओ
ु ं पर भी सभी ने कुछ न कुछ बाँधा हुआ था। और उनके बच्चे ज्यादातर नंगे
ही घूम रहे थे।

वहां का वातावरण ही ऐसा था की कोई एक दस


ु रे के शरीर की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा था। पर हम शहर से आये हुए लोगो
को उनका पहनावा और नंगापन दे खकर आश्चर्य हो रहा था।

तभी कबीले का सरदार वहां आ पहुंचा। वो एक ऊँचा लम्बा और भारी शरीर का इंसान था। उम्र होगी कोई 40 के आस पास।
और उसने अपने गले में काफी सारी मालाएं पहनी हुई थी और उसका मुकुट भी काफी बड़ा था, हाथ में एक लम्बा सा भाल
था। वो सभी से अलग ही लग रहा था। और उसके लण्ड वाला हिस्सा काफी फुला हुआ था। पता नहीं मेरी नजरे हमेशा
आदमी के लण्ड वाले हिस्से पर ही क्यों जाती है … सरदार के साथ उसके काबिले के कुछ लोग भी थे। और 4 लड़कियां भी।
सभी एक से एक बढकर सन्
ु दर थी।

सरदार ने हमारा वेलकम किया, उसका नाम शास्वनाली था वो अपने कबीले के बारे में बताने लगा। उसके अनुसार वो
कबीला लगभग 100 साल परु ाना था और वहां के लोग खेती बाड़ी, पशु पालन करके अपना पालन पोषण करते थे। और
आजकल की जरुरत के अनुसार उन्हें शहर जाकर भी कुछ जरुरी चीजे लानी पड़ती थी जिसके लिए उन्हें बाहर से आये हुए
सेलानियो से हुई आमदनी की जरुरत पड़ती थी। अपने काबिले के बारे में बताकर सरदार ने अपने साथ खड़ी हुई 3
लड़कियों की तरफ इशारा किया और कहा- “ये हमारी रानियाँ है ।”

वाव… इस राजा के तो मजे है , 3-3 रानियाँ है उसके पास।

118
"और ये हमारी बेटी है , मिशालिक।” उसने 4 थी लड़की की तरफ इशारा किया, जो उन सबमे सबसे सुन्दर थी। उसे दे खकर
मुझे भी उसपर प्यार आ गया। लड़के तो उसे दे खकर पागल ही हो गए।

उसने अपनी कमसिन जवानी को एक पतले से कपडे से ढका हुआ था। जिसमें से उसके गुलाबी निप्पल साफ़ नजर आ रहे
थे। और नीचे उसने मोतियों वाली झालर से अपनी चत
ू वाले हिस्से को ढका हुआ था। पता नहीं उसने नीचे कुछ पहना हुआ
है या नहीं। पर उसकी मांसल जांघे और पतला पेट और उभरी हुई छाती और सुन्दर चेहरा दे खकर सभी लड़के उसपर लट्टू हो
गए थे। और शायद मैं भी।

वैसे उसकी रानियाँ भी काफी सुन्दर थी। पर कोई भी उस लड़की की माँ नहीं लग रही थी। बाद में सरदार ने बताया की मिशा
की माँ बीमार है और अन्दर आराम कर रही है । उसके बाद अंजू मेडम ने इकठ्ठा किये हुए पैसे सरदार को दिए, जिसे दे खकर
वो काफी खुश हो गया। और फिर उसने अपने एक साथी को बुलाकर हम सभी को हमारे रहने की जगह दिखाने को कहा।
जो काबिले के आखिर में जाकर थी। उन्होंने करीब 10 झोपड़ियाँ खाली करवा के वहां घांस के गद्दे लगवाकर उनपर चादर
बिछवा दी थी। हर झोपड़े में करीब 8 लोग आ सकते थे। हम 60 लोग थे, इसलिए हमने डिसाईड किया की 6 लोगों का ग्रुप
हर झोपड़े में रहे गा।

सभी ने अपना सामान रखा और चें ज करके बाहर आ गए, एक बड़ी सी जगह पर सरदार ने सभी के खाने पीने का इंतजाम
किया हुआ था। खान काफी स्वादिष्ट था, सभी ने भर पेट खाया। उसके बाद सभी अपने-2 झोपड़े में जाकर सुस्ताने लगे।
आधे घंटे बाद सभी उठ खड़े हुए, क्योंकि मैंने पहले ही सबको बोल दिया था की हम झरने पर जाकर नहायेंगे। सभी अपने-2
स्विमिंग सूट लेकर झरने की तरफ चल दिए। …P135-141…

झरने के पास पहूँचकर सभी ने अपने कपड़े बदलने शुरू कर दिए, मैने दीपा को अपने पास बुलाया और रोहित और राज के
बारे मे उसको बताया, उसकी आँखे भी नये लंडो के बारे मे सोचकर चमक उठी। मैने उसको बताया की कैसे हम दोनो उन
दोनो को अपने जाल मे फँसाएँगी और मज़े लेंगी।

सभी ने अपने स्वीमिंग सट


ू पहन लिए और झरने के नीचे आ गये, सभी लड़के अपने कट्स और एब्स दिखा कर लड़कियो
को इंप्रेस कर रहे थे और लड़किया भी अपने आगे और पीछे के उभार दिखा-दिखा कर लड़को के अंडरवेयर मे तंबू खड़ा कर
रही थी। कुल मिला कर माहोल मे एक दस
ू रे को उत्तेजित करने की कला का प्रदर्शन हो रहा था। मैने 2 पीस बिकनी पहनी
थी जिसकी डोरियो से मेरी मर्यादा को ढके हुए छोटे -2 कपड़ो के टुकड़े थे। और दीपा ने वन पीस बिकनी पहनी थी जिसमे से
उसकी चूत के बॉल बाहर निकल कर एक अलग ही एहसास पैदा कर रहे थे और वो बेपरवाह की तरह उनको अंदर भी नही
कर रही थी। ठं डे पानी के अंदर आते ही लड़को का रोम रोम और लड़कियो के निप्पल निप्पल खड़े हो गये।

पानी हमारी कमर तक आ रहा था, हमने धीरे -2 चलते हुए झरने के नीचे जाना शुरू किया। वो झरना काफ़ी उपर से गिर रहा
था, लगभग 50 फीट उपर से, और नीचे आकर दध
ू जैसा गुबार इकट्ठा हो रहा था, मैने दीपा का हाथ पकड़ा हुआ था और हम
दोनो एक दस
ू रे को थामे हुए ही झरने के नीचे जाकर नहाने लगे। पानी की तेज बोचारों से मेरी ब्रा का कुछ हिस्सा नीचे
खिसक गया। जिसकी वजह से मेरा एक निप्पल निकल कर बाहर की दनि
ु या को दे खने लगा। मैने भी मज़े लेने की गर्ज से
उसको अंदर नही डाला।

मैने रोहित और राज को दे खना शुरू किया, वो दस


ू री तरफ एक साथ खड़े हुए नहा रहे थे और मुझे ही घूरे जा रहे थे। मैने
अपने चेहरे को अपने हाथो से सॉफ किया और अपनी योजना के हिसाब से मैं एकदम से लड़खड़ा कर पानी मे गिर पड़ी।
मझ
ु े गिरता हुआ दे खकर रोहित भागकर मेरे पास आया। और उसके पीछे -2 राज भी।

रोहित: "अर्रे कोमल, उठो, तुम्हे चोट तो नही लगी ना।”

रोहित ने आते ही मुझे उपर खींचा और पानी के बीच मे खड़ा कर दिया। उसकी बलिशट बाजुओं की ताक़त दे खकर मेरी चूत
से रसीले पानी का झरना फुट पड़ा। उसने मझ
ु े खड़ा किया और मैने खाँसते हुए मँह
ु मे गये पानी को बाहर फेंका। दीपा और

119
राज भी तब तक मेरे पास आकर खड़े हो गये। रोहित और राज ने मेरे बाहर निकले हुए निप्पल की तरफ दे खा। और मैने
शरमाते हुए उसको वापिस अंदर कर लिया। और उसकी तरफ दे खकर मुस्कुरा दी। मैने अपनी कमर पर हाथ रखा और धीरे
से कराह दी।

रोहित: "लगता है तम्


ु हारी कमर मे दर्द हो रहा है ।”

मैने हा मे सिर हिलाया।

रोहित: कोमल, तुम एक काम करो, झरने के पीछे की तरफ जाकर घांस पर लेट जाओ। और आराम करो। मैं अभी तुम्हारी
कमर दर्द को दरू करने का इंतज़ाम करता हू। और ये कहकर वो राज को लेकर दस
ू री तरफ चल दिया। मैने दीपा की तरफ
प्रश्न भारी नज़रो से दे खा और उनकी बात मानकर हम दोनो झरने के पीछे की तरफ चल दिए। वहाँ का एरिया बिल्कुल शांत
था। उपर तक घने पेड़ थे। और घांस की मखमली चादर बिछी हुई थी। हम दोनो वहाँ जाकर बैठ गये। मन मे अजीब सा
उत्साह था। नया लण्ड जो मिलने वाला था आज। तभी राज और रोहित दौड़ते हुए आए और अपने हाथ मे लाए हुए पत्तों
को एक पत्थर पर रखकर पीसने लगे।

फिर उसका लेप इकट्ठा करके रोहित मेरे पास आया और मुझे लेटने को कहा। मैं लेट गयी। मेरे दिल की धड़कने तेज़ी से
चलने लगी। मेरे होंठ काँपने लगे। ऐसा अक्सर होता था जब मैं काफ़ी उत्तेजित हो जाती थी। या फिर चद
ु ने वाली होती थी।
मेरी हालत दे खकर वो दोनो लड़के सोचने लगे की मुझे ठं ड लग गयी है । पर इन सालो को कौन समझाए की ठं ड मुझे उनके
लण्ड की लगी है ।

रोहित ने भी काँपते हुए हाथों से मेरी कमर पर लेप लगाना शुरू किया। मेरी कच्छी की डोरियाँ उसकी उं गलियों मे उलझ रही
थी। मैने एक सिरा पकड़कर डोरी को खोल दिया, और मेरी टांगे उपर से नीचे तक परू ी तरह से नंगी हो गयी। वो बेचारा मेरे
नर्म मुलायम हिस्से पर हाथ लगाकर अपने आप को खुशकिस्मत समझ रहा था। उसकी लंबी उं गलियों ने जब मेरे मांसल
हिस्से को मसलना शुरू किया तो मेरा रोम रोम (निप्पल-निप्पल) फिर से खड़ा हो गया। और मेरी आँखे बंद सी होने लगी।
मेरी मदहोश होती आँखो को दे खकर वो समझ गया की यही सही मौका है कुछ करने का। और उसने एक उं गली मेरी चत

की तरफ खिसका दी।

अपने एरिया मे आती हुई मिसाईल दे खकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। अब मेरे बस से बाहर की बात थी। इतनी दे र
तक मुझे अपने आप को तड़पाना पसंद नही था। मैने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे और अंदर खिसका दिया।
और उसकी उं गली को अपनी चत
ू के छे द मे लगा कर एक ज़ोर से सिसकारी मारते हुए। उसको परू ा अंदर समेट लिया।
आययीई। म्म्मममममम अब तक रोहित भी खुल चुका था। उसने अपने कोस्टूम को किनारे किया और अपना लंबा खंबे
जैसा लण्ड बाहर निकाल लिया, अयईई ये… ये क्या है , इत्ता लंबा।

और सच मे उसका लण्ड काफ़ी लंबा था। उसका कद जितना लंबा था लण्ड भी उसी के हिसाब से ही था। उम्म्म्म आज मज़ा
आएगा। मेरी चत
ू के अंदर का पानी और तेज़ी से बाहर की और निकलने लगा। मैने उसके लण्ड को पकड़ कर अपने मँह
ु की
तरफ खींचा और वो अपने लण्ड को मेरे मँह
ु मे डाल कर अपनी आँखे बंद करके मज़े लेने लगा। अहह… ओगग कोमल, सक
मी, सक मी हार्ड। अहह

उसका लण्ड मेरे मँह


ु के अंदर तक था पर उसके बावजूद आधा बाहर ही था अभी तक। इतना लंबा था उसका लण्ड। अब
मझ
ु से सब्र नही हो पा रहा था। मैने उसको नीचे चित्त किया और उसके खड़े हुए लण्ड का सिरा अपनी चत
ू पर लगाकर
आराम से उसे निगलती चली गयी। और उसका साँप जैसा लण्ड मेरी चूत के बिल मे सरकता हुआ मुझे नया एहसास
करवाता चला गया। अहह उम्म्म्ममम उफफफफफ्फ़। आज मेरी चूत के अंदर तक का वो हिस्सा भी खुल गया था जहाँ
आज तक कोई और नही घुस पाया था।

मैने तेज़ी से उसके लण्ड को निगलना और उगलना शरू


ु कर दिया। मेरे हर धक्के से मेरी ब्रेस्ट उछल कर नीचे आती और वो
अपने हाथों को उपर करके उन्हें थामने की कोशिश करता। और अंत मे जैसे ही मेरे अंदर का ऑर्गॅज़म फूटा मैने उसके सिर
120
को पकड़ कर अपनी छाती से चिपका लिया। और उसने भी अपने होंठो के बीच मे मेरे निप्पल को लेकर मुझे अपने मँह
ु की
गर्मी से पिघालना शुरू कर दिया।

और तब तक उसके लण्ड की पिचकारियाँ भी चल चुकी थी मेरी चूत के अंदर। एक साथ दो-2 तूफान निकले एक मिनट के
अंदर ही अंदर और हम दोनो के जिस्मो को पिघला कर चले गये। और जब तफ
ू ान शांत हुआ तो हमारा ध्यान दीपा और राज
की तरफ गया। जो अपना मँह
ु फाड़े हुए हमारी चुदाई का तमाशा मज़े से दे ख रहे थे। …P142-146…

रोहित ने अपना लण्ड बाहर खींच लिया। और उसके पीछे -2 निकला अन्दर फंसा हुआ जलजला। जिसमे मैंने अपनी दो
उँ गलियाँ डाल कर अपनी चूत के होंठो पर मलना शुरू कर दिया। मुझे अपनी चूत से निकलते हुए रस के चिपचिपे एहसास
को महसूस करने में काफी मजा आ रहा था। मैंने अपनी उँ गलियों को ऊपर किया और अपने मुंह में डाल कर रस के एहसास
को अपने गले के नीचे उतारने लगी।

सच में , लण्ड से निकले पानी को पीने में मुझे इतना मजा आने लगा था जितना की गोलगप्पे के पानी को पीने में भी नहीं
आता। उम्म्म्म्म ्म। मैंने जल्दी-2 अपनी उँ गलियाँ चलाई और गोडाउन में बचा हुआ रस इकठ्ठा करके अपने मुंह के रास्ते
वापिस अन्दर पहुंचा दिया।

दीपा के निप्पल की हालत दे खकर साफ़ पता चल रहा था की वो कितनी उत्तेजित है , उसकी नजर कभी मेरी नंगी चूत पर
और कभी रोहित के लम्बे लण्ड पर जाती जो मेरी चूत से निकलने के बाद अब नार्मल हो चुका था। अब उसे मालुम था की
रोहित उसकी चुदाई नहीं कर पायेगा इसलिए उसने राज की तरफ दे खा, जो शायद इसी पल का इन्तजार कर रहा था की
कब दीपा उसकी तरफ दे खे और कब वो अपना खेल शुरू करे । खेल यानी की लण्ड की मुंह दिखाई। जैसे ही दीपा ने राज की
तरफ दे खा, राज ने अपने अंडरवीयर को नीचे कर दिया और अपना काला और मोटा लण्ड बाहर निकाल कर उसे अपने हाथों
से मसलने लगा।

दीपा की नजरें कभी उसके चेहरे और कभी लण्ड की तरफ जाती। उसने भी कसमसाते हुए, अपना एक हाथ अपनी लेफ्ट
ब्रेस्ट पर और दस
ू रा हाथ अपनी चूत के ऊपर लगा कर मसलने लगी। और उसके मुंह से एक अजीब से और लम्बी सी
सिसकारी निकल गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म्म्म्म्म ्म्म्म्म। रोहित भी नीचे घांस पर लेटा हुआ दीपा के जिस्म को बड़े गौर से
दे ख रहा था। उसका नशीला बदन, गहरा रं ग, उभरे हुए उभार और पीछे की तरफ निकली हुई गाण्ड काफी दिलकश लग रही
थी। सही मायने में दे खा जाए तो उसको ब्लेक ब्यूटी कहना गलत नहीं होगा। राज और दीपा दोनों एक दस
ु रे को दे खकर
अपने-2 अंगों को मसल रहे थे। पर कोई भी पहल नहीं कर रहा था। तभी दीपा ने अपनी ब्रा को साईड में करके अपनी चच
ू ी
बाहर निकाल दी।

जिसे दे खकर राज के साथ-2 रोहित के सोये हुए लण्ड में भी तरावट आने लगी। उसने अपनी लम्बी जीभ निकाल कर अपनी
चूची को अपने हाथ से ऊपर किया और बड़ी मुश्किल से अपने निप्पल को अपने मुंह में लेकर जोरदार चुप्पा मारा पुच्ह्ह्ह।
ऐसे चस
ू रही थी वो अपने निप्पल को जैसे उसे जड़ से ही उखाड़ कर खा जायेगी। उसने बदहवासी में अपनी दस
ू री ब्रेस्ट का
कवर भी उखाड़ फेंका।

अब मुझे मालुम था की दीपा को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । उसने अपने कोस्टुम को नीचे किया और उसके नंगे
पेट से होता हुआ वो महीन सा कपडा उसकी कमर पर आकर अटक गया, ऊपर उसकी मदमस्त छातियाँ लहरा रही थी और
नीचे उसकी चत
ू जो कभी भी बाहर आकर कहर ढा सकती थी। आज काफी दिनों के बाद मझ
ु े दीपा की चत
ू को फिर से खाने
की लालसा हुई।

काफी दिन हो चुके थे लण्ड लेते हुए और चूसते हुए, आज तो इसकी चूत का रस पीना है मुझे। मैं घांस पर लेटी हुई थी। पर
घमासान चुदाई के बाद उठने की हिम्मत नहीं थी अभी। इसलिए मैं घिसट कर उसकी तरफ गयी। और जाकर मैंने उसकी
मोटी जाँघों को पकड़ लिया और अपनी जीभ लगा कर उसके घट
ु ने वाले हिस्से को चाटने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म

121
उफ्फ्फ्फ़ कोमल। म्मम्मम उसकी आँखे बंद सी होने लगी, पैर कांपने से लगे, आवाज लडखडाने लगी। मैंने हाथ ऊपर करके
उसके कोस्टयूम को पकड़ा और नीचे खींच लिया। उसकी चूत बेपर्दा होती हुई सबके सामने आ गयी। उसने काफी टाईम से
बाल नहीं काटे थे।

इसलिए लम्बी-2 झांटे और उसके पीछे छुपी हुई गल


ु ाबी रं ग की चत
ू सभी के सामने उजागर हो गयी। अब राज से भी सब्र
नहीं हुआ। वो आगे आया। और अपने लण्ड को लाकर उसने दीपा की थाई से टच किया। बस इतना ही बहुत था दीपा को
उसपर हमला करने के लिए। उसने अपने हाथ का पंजा जो अब तक उसकी चूत को घिसाई कर रहा था। उसके लण्ड के ऊपर
जमा दिया और अपनी चूत के पास लाकर उसपर घिसाई करने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह येस्सस्सस्स। ऐसा लग रहा था की वो
खडे-2 उसका लण्ड अपनी चूत में ले जायेगी।

उसने राज की गर्दन के चारों तरफ लपेट दी और अपने थरथराते हुए होंठ उसके होंठो पर रखकर एक जोरदार स्मूच किया।
पुच्च्च्छ्ह्ह्ह। उम्म्म्म्माअह्ह्ह्ह। उसने अपने होंठो से ज्यादा अपने दांतों का इस्तेमाल किया। और राज के होंठों को गुलाब
जामुन की तरह से चबाने लगी। उन दोनों के बीच में बैठी हुई मैं अपना मुंह ऊपर किये हुए कभी दीपा की रसीली चूत को
दे खती और कभी राज के मोटे लण्ड को। मैंने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये और एक हाथ से उसकी चूत और दस
ु रे में राज का
लण्ड लेकर उन्हें मसलने लगी। अय्य्यीईइ उम्म्म्म कोमल उम्म्म्म्म येस्स्स्स। मैंने एक ऊँगली और फिर दस
ू री भी दीपा
की चूत के अन्दर उतार दी।

अह्ह्ह्ह्ह्ह। येस्स्स्स। ऐसे ही अह्ह्ह्ह्ह। वो तड़प उठी।

मैंने अपने मंह


ु को राज के लण्ड की तरफ किया और उसकी गोटियाँ अपने होंठो के बीच ले कर जोरों से चस
ू ने लगी।
उम्म्म्म्म ्म उह्ह्ह्ह्ह्हाअ उसके मुंह से भी घुटी-2 सी सिस्कारियां निकलने लगी। और फिर मैंने थोडा ऊपर जाकर राज के
मोटे लण्ड को अपने मुंह में भरा और जोरों से चूसने लगी। दीपा अपने चूत को मेरे सर के पीछे वाले हिस्से पर घिस रही थी।
उसकी चूत में काफी खुजली हो रही थी। मैंने राज के गीले लण्ड को बाहर निकाल और उसे दीपा की चूत की तरफ बड़ा
दिया।

और उसके लण्ड के सिरे को चूत में फंसा कर दोनों का मिलन करवा दिया। पर ऐसे एंगल में वो अन्दर नहीं जा पा रहा था।
इसलिए दीपा ने अपनी एक टांग उठा कर ऊपर कर दी जिसे राज ने अपने हाथों से पकड़ कर अपनी छाती से चिपका लिया।
अब रास्ता साफ़ था। उसने एक जोरदार शॉट मारा और राज का परू ा लण्ड एक ही बार में दीपा की चूत की गहराइयाँ नापने
लगा। अह्ह्ह्ह्ह। उम्म्म्म्म ्म्म्म। ओह्ह्ह्ह येस्स्स्स। फक्क्क्क मी अह्ह्ह्ह्ह्ह येस्स्स्स राआज। अह्ह्ह्ह्ह्ह फक्क्क मी
हार्ड। उम्म्म्म्म राज ने तेजी से धक्के मारने शरू
ु कर दिए। इतनी नजदीकी से मैंने चत
ू में घस
ु ता हुआ लण्ड पहली बार दे खा
था।

मेरी आँखे ऊपर थी और राज के लण्ड को अन्दर-बाहर जाते हुए साफ़ दे ख रही थी। दीपा की चूत में जब लण्ड जाता तो
उसकी सिसकारी निकल जाती और जब बाहर निकलता तो चीख। और चीख के साथ-2 उसकी चूत से रस की बोछारें निकल
कर मेरे मंह
ु पर गिर जाती। जिन्हें मैं अपनी उँ गलियों से अपने चेहरे पर मलकर अपना फेशियल करने में और अपनी दो
उँ गलियों से अपनी चूत के अन्दर का पानी निकालने में लगी हुई थी। तभी मुझे अपनी चूत पर गीलेपन का एहसास हुआ,
मैंने दे खा तो रोहित खिसक कर मेरी तरफ आ चुका था और लेटे-2 ही मेरी चूत को चाटने में लग गया था। अब मैंने अपनी
उँ गलियाँ निकाल ली और ऊपर की तरफ करके मैंने वो दोनों उँ गलियाँ राज की गाण्ड में घस
ु ा दी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। ये शायद
मैंने पहली बार किया था, किसी लड़के की गाण्ड में ऊँगली। पर राज के एक्सप्रेशन दे खकर मुझे साफ़ पता चल गया की
मजा उसको भी आ रहा है ।

दीपा की चूत के दोनों तरफ उसकी झालर ऐसे लग रही थी मानो कोई तितली ने अपने पर फैला रखे हो। राज के लण्ड के
साथ-2 वो झालर भी अन्दर घस
ु जाती और फिर बाहर निकल आती। जिसकी वजह से दीपा को चद
ु ाई में काफी मजा आ

122
रहा था। मैंने अपना मुंह ऊपर किया और दीपा की चूत के दोनों तरफ लटक रही झालर को अपने मुंह में फंसा लिया।
उम्म्म्म्म ्म अह्ह्ह्ह्ह्ह।

दीपा कसमसा कर रह गयी। मैंने उन्हें चूसना और चुभलाना शुरू कर दिया। अब राज का मोटा लण्ड मेरे होंठो को टच करता
हुआ दीपा की सरु ं ग में आ जा रहा था। दीपा ने अपनी दस
ू री टांग उठा कर राज की कमर में लपेट दी और अब वो दीपा को
हवा में उठा कर उसको पेल रहा था। उफ्फ्फ उम्म्म अह्ह्ह अह्ह्ह उम्म्म्म अह्ह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ हर धक्के पर उसकी चीखें
फिजा में गँज
ू रही थी।

मेरी चूत के ऊपर भी रोहित के हमले तेज होने लगे। अब तो बस मन कर रहा था की बस कोई मेरी चूत के अन्दर लण्ड पेल
ही दे । अह्ह्ह्ह्ह। और तेज चाटो। अह्ह्ह्ह्ह। हाँ येस्स ऐसे ही। अचानक राज का संतल
ु न बिगड़ गया और उसका लण्ड दीपा
की चूत से बाहर निकल आया। उसके ऊपर लगा हुआ रस दे खकर मैं तो पागल सी हो गयी। और मैंने उसको नीचे लिटाया
और खुद दीपा की जगह लेकर उसके मोटे लण्ड को अपनी चूत के अन्दर ले कर उछलने लगी। अह्ह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़
उम्म्म्म्म ्म उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ 

तभी पीछे से रोहित आया और उसने मझ


ु े आगे की तरफ लिटा कर अपने लण्ड को मेरी गाण्ड के छे द पर लगा दिया और
एक करार धक्का मारकर उसे अन्दर डाल दिया। अय्य्यीईई।

उन दोनों के बीच में मैं सेंडविच जैसे पिस गयी और राज नीचे से और रोहित पीछे से मेरी चूत और गाण्ड के छे दों को अपने
धक्कों से भरने लगे। बेचारी दीपा एक कोने में खड़ी हुई सब दे खे जा रही थी। मैंने उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया और
उसको अपने सामने खड़ा करके नीचे लेटे हुए राज के मंह
ु के ऊपर बिठा दिया, अपनी तरफ मंह
ु करके। और मैंने अपने चेहरे
को उसकी चूत के ऊपर रखकर राज के होंठो और उसकी चूत के होंठो को एक साथ चूसना शुरू कर दिया। वो बेचारी तड़प
कर रह गयी।

मेरी तो हालत पतली हो गयी थी। दोनों लण्ड मेरे अन्दर के अस्थि पिंजर बुरी तरह से हिला रहे थे। अह्ह्ह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़
येस्स्स्स और तेज अह्ह्ह्ह्ह रोहित। मारो और तेज मारो मेरी गाण्ड येस्स अह्ह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ उम्म्म्म्म अब मझ
ु से और
रोक नहीं गया और मेरी चूत से जोरदार प्रेशर के साथ रस का प्रवाह बाहर की तरफ निकलने लगा। रोहित ने भी मेरी टाईट
गाण्ड के छे द में अपने लण्ड के रस का आदान और राज ने मेरी चूत में अपने जूस का प्रदान करना शुरू कर दिया। और मेरे
और राज के चाटने से दीपा की चूत से भी रस की रं ग बिरं गी पिचकारियाँ निकल कर मेरे और राज के चेहरे को भिगोती हुई
बाहर गिरने लगी।

सब कुछ शांत होने के बाद हमने अपने कपडे पहने और वापिस झरने में आकर खूब जम कर नहाए। और फिर हम सभी
वापिस कबीले की तरफ चल दिए। …P147…

हम जब कबीले में वापिस पहुंचे तो शाम का अँधेरा होने लगा था। रोहित और राज से चुदाई करवाने में काफी मजा आया था
पर मन अभी भी भरा नहीं था। इसलिए उन्हें हमने अपने साथ ही बातों में लगाये रखा और वापिस चल दिए, उनसे अभी
और भी काम जो लेना था हमें ।

कबीले में पहूँचते ही मेरी नजर मिशालिका पर पड़ी। वो कबिले की राजकुमारी थी, इसलिए सबसे सुन्दर और सबसे अलग
वही दिख रही थी। वो शायद इस बात का जाएजा लेने आई थी की सब कुछ ठीक है या नहीं, हम सभी के रहने और खाने-
पीने के बंदोबस्त वो खद
ु दे ख कर तसल्ली कर रही थी। जैसे ही वो हमारे पास आई, मैंने उसको रोक लिया और उससे बातें
करने लगी।

मैं: हाय, मेरा नाम कोमल है , और ये मेरे दोस्त है ।

मिशा मुस्कुरा कर सभी से मिली और हमसे बातें करने लगी। उसकी आवाज बड़ी ही मीठी थी। मानो, मिश्री घोल कर पीती
हो रोज। और उसके कपड़ो के बारे में तो मैंने पहले ही बताया था की उसका सुन्दर शरीर अन्दर से साफ़ नजर आ रहा था,
123
खासकर महीन कपड़ों और मालाओं के बीच से उसके गुलाबी निप्पलस। जिन्हें इतने पास से दे खकर मेरे होंठों में एक
अजीब सी प्यास उभर आई और मैंने अपने होंठों पर अजीब तरीके से जीभ फिराई। जिसे शायद मिशा ने नोट कर लिया।
मैंने उसको टटोलने के लिए की उसके मन में सेक्स के प्रति क्या विचार है , अपने हिसाब से प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।

मैं: तम
ु सभी यहाँ कबीले में ही रहते हो, स्कूल या कॉलेज भी नहीं जाते, तो उन सब चीजों के बारे में कैसे पता चलता है ।

मिशा: किन चीजों के बारे में ।…

वो शायद समझ तो रही थी पर मेरे मुंह से सुनना चाहती थी।

मैं: सेक्स के बारे में ।

वो सेक्स शब्द का नाम सुनकर शरमा गयी। उसके चेहरे की लाली और बड़ गयी। और उसके निप्पल और कड़े होकर मेरी
आँखों के सामने नजर आने लगे।

मिशा: धीरे बोलो, कोई सुन लेगा तो क्या कहे गा।

मैं मिशा को लेकर एक कोने में जाकर खड़ी हो गयी, जहाँ कोई और नहीं था। दीपा को अपने साथ रहने को कहकर मैंने
रोहित और राज को जाने को कह दिया। ताकि उसकी शर्म ख़त्म हो जाए। उसके शर्माने के अंदाज से मझ
ु े ये तो पता चल ही
गया था की उसे मेरी बाते मजेदार लग रही है । मैंने सोचा की अगर उसको सेक्स के बारे में कुछ चटपटा और मसालेदार
बताया जाए तो शायद वो खुल कर हमारे साथ बाते करने लगे। इसलिए मैंने उसको अपने और दीपा के बारे में बताया की
कैसे हम दोनों कॉलेज में मजे लेती है ।

और अभी भी झरने में नहाते हुए हमने रोहित और राज के साथ चद ु ाई करवाई है । वो अपना मंह
ु फाड़े हमारी बाते सन
ु रही
थी। जैसे उसे हमारे ऊपर विशवास ही नहीं था। मैंने इधर उधर दे खा और अपनी स्कर्ट उठा कर उसके सामने अपनी नंगी
चूत कर दी, जिसमे से अभी भी रोहित और राज के लण्ड का पानी रिसकर मेरी जांघो को भिगो रहा था। वो मेरी चूत को
अपने सामने दे खकर है रान रह गयी। वो बिलकुल सफाचट जो थी। और ताजा चुदने के बाद गुलाब की तरह खिली हुई अपने
जलवे बिखेर रही थी। अपने कबीले में काफी नंगी चूते दे खी होंगी पर शहर की सफाचट चूत दे खने का पहला मौका था
उसका।

मैं: दे खा, अब बताओ, कभी तुमने मजे लिए हैं क्या… किसी से।

वो और भी शर्माने लगी।

मैं: दे खो, शरमाओ मत, अगर तुम मुझे बताओगी तो मैं तुम्हे और भी मजेदार बातें बतौंगी और हो सकता है की तुम्हे अपने
साथ मजे भी दिलवा द।ू

वो धीरे से बोली: यहाँ हमारे कबीले में ऐसी बातों के लिए कोई जगह नहीं है , हम लोगों की सीधा शादी ही होती है , आपस में
शादी से पहले किसी भी तरह का सम्भन्ध रखने की हमें आज्ञा नहीं है , और पकडे जाने पर सीधा मौत की सजा होती है ।
और मैं तो वैसे भी कबीले के राजा की बेटी हूँ। मुझे तो इन सब बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना पड़ता है । वैसे मैंने एक-
दो बार अपने ही काबिले के एक नोजवान से किस्स वगेरह की है , पर उसके अलावा और कुछ नहीं।

मैं: कोई बात नहीं। अब हम तुम्हे वो सब मजे दिलवाएंगी और वो भी किसी को पता लगे बिना। मेरी आखिरी बात सुनकर
उसके दिल की धड़कने इतनी तेज हो गयी की मुझे उनकी आवाज अपने कानो तक साफ़ सुनाई दे ने लगी। शायद मैंने
उसकी कमजोरी को पकड़ लिया था। मैंने उसकी बांह पकड़ी और हम कोने में बनी हुई एक झोपडी में चले गए। और अन्दर
जाते ही मैंने उसका हाथ सीधे अपनी नंगी चत
ू के ऊपर रख दिया। वो उत्तेजना के मारे थर थर कांपने लगी। उसका हाथ
मेरी चूत से निकल रहे सफ़ेद रस में भीगकर चिपचिपा सा हो गया। मैंने उसके हाथ को ऊपर किया और उसकी लम्बी और

124
पतली उँ गलियों को अपने मुंह में लेकर जोर से सक करने लगी। वो बेचारी अपने साथ हो रहे नए तरह के खेल को दे खकर
सिर्फ सिस्कारियां लेने के और कुछ नहीं कर पा रही थी। …P150-151…

मैंने अपनी थूक से भीगी हुई उसकी उँ गलियाँ फिर से अपनी दही से भरी कटोरे में डुबाई और अब उसके मुंह के आगे फैला
कर धीरे से कहा: "चाटो इसको, चस
ु ो जोर से।”

वो जैसे मेरे सम्मोहन में बंध गयी थी।

उसने धीरे से अपने कमल की पंखुड़ी जैसे होंठ खोले। और अपनी उँ गलियों को मुंह में भरकर उनपर लगा हुआ शहद चाटने
और चूसने लगी। उसके सक करने की ऐसी आवाज आ रही थी मानो वो अपनी उँ गलियों की खाल को ही उखाड़ फेंकेंगी।
उसको मेरी चूत और लण्ड के पानी का मिला जुला रस काफी पसंद आया था शायद। और जब सब कुछ ख़त्म हो गया तो
उसने अपनी आँखे खोलकर मेरी तरफ दे खा मानो कह रही हो। और चाहिए। और मैं उसको मना कैसे कर सकती थी। मैंने
मुस्कुराते हुए उसको अपनी तरफ किया और सीधा उसके होंठो को अपने मुंह में भरकर चूसने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
मुच्च्च्छ्ह्ह्ह पुच्च्छ्ह्ह्ह। उम्म्म्म्म ्म 

कितने मुलायम होंठ थे उसके। जैसे मीठे संतरे की फांके। मुंह में भरते ही उसके होंठो से जैसे रस की फुहार निकल कर मेरे
मंह
ु में आने लगी। वाव… मन कर रहा था की इन्हें चस्
ु ती ही जाऊ। पर अभी मझ
ु े अपने मजे पर काबू रखना था और मिशा
को ज्यादा मजे दिलाने थे ताकि वो आगे सब कुछ करने को तैयार हो सके। मैंने पीछे हुई और घांस के एक बण्डल के ऊपर
बैठ गयी और अपनी चूत को उसकी आँखों के सामने नंगा कर दिया। और मैंने दीपा की तरफ दे खा। और उसे इशारे से मिशा
को मेरे पास लाने को कहा।

दीपा ने मिशा का हाथ पकड़ा और मेरे सामने दोनों घट


ु नों के बल बैठ गयी। दीपा ने मस्
ु कुराते हुए मिशा से कहा: दे खो, अब
जैसा मैं करती रहू, तुम भी वैसा ही करते रहना।

मिशालिका ने हाँ में सर हिलाया।

दीपा ने अपना मंह


ु आगे किया और सीधा मेरी चत
ू के ऊपर लाकर अपनी जीभ निकाली और मेरी पंखड़ि
ु यों को जीभ की
टिप से फेलाकर इधर उधर किया और फिर ऊपर नीचे करके वो मेरी चूत को अपनी अनुभवी जीभ से चाटने लगी।
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म्म्म्म्म ्म्म्म। येस्स्स्स। अह्ह्ह्ह्ह मैं तिरछी होकर आधी लेट गयी। और अपनी कोहनियों के बल पर लेटकर
उसकी जीभ का कमाल महसूस करने लगी।

उसको चत
ू चाटता हुआ दे खकर मिशालिका ने भी अपना चेहरा आगे किया, मैंने उसको जगह दे ने के लिए अपनी टाँगे दोनों
तरफ मोरनी के पंखों की तरह फ़ेल दी और जैसे ही मिशा का चेहरा आगे आया, दीपा ने अपना चेहरा पीछे कर लिया और
मिशा ने अपनी जीभ निकाल कर ठीक वैसे ही मेरी चूत को चाटना और चूसना शुरू कर दिया जैसे दीपा कर रही थी।
उम्म्म्म्म ्म्म्म। याआह्ह्ह्ह्ह। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़्फ़।

मेरी तो हालत ही खराब हो रही थी। मिशा काफी जंगली तरीके से मेरी चत
ू को चाट रही थी, उसे शायद चत
ू की नाजक
ु ता का
एहसास नहीं था। वो तो मेरी चूत के होंठों को ठीक वैसे ही चूस रही थी जैसे मेरे ऊपर वाले होंठों को चूस था उसने अभी। पर
जो भी था, उसके जंगलीपन में मुझे काफी मजा आ रहा था। ऐसा लग रहा था की किसी भूखी लोमड़ी के आगे मांस का
लोथड़ा रखा हुआ है और वो उसे नोच, खसोट कर बुरी तरह से खा रही है और अपना पेट भर रही है । मैंने अपनी कमर सीधी
कर ली थी, क्योंकि उसके मुंह के झटके थे ही इतने शक्तिशाली की मुझसे लेटा ही नहीं जा रहा था। मेरा मुंह खुला हुआ था,
दोनों हाथ उसके सर के पीछे थे और पहली बार था की मैं किसी के सर को पीछे धकेल रही थी, जबकि मैं हमेशा सर को
अपनी चूत के ऊपर दबा कर उसे और जोर से चूसने को उकसाती रहती हूँ। पर मिशा की सकिं ग ऐसी थी की ना तो निगलते
बनती थी और ना ही उगलते।

125
मैं उत्तेजना के मारे कुछ बोल तक नहीं पा रही थी। अपना परू ा जोर लगाकर मैंने उसके मुंह को अपनी चूत से परे किया। पर
मौका दे खकर दीपा ने अपना मुंह फिर से मेरी चूत पर लगा दिया। और ठीक उसी तरह से सक करने लगी, जैसे मिशा कर
रही थी। अय्य्यीईईइ। नही दॆ ऎएप्प्प्पाआअ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह नॊऒ धीरे अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। पर अब वो कहाँ मानने वाली थी,
उसने शायद दे ख लिया था की मिशा ने जिस तेजी और पावर के साथ मेरी चूत चाटी है उससे कितना मजा आया था। और
अब वो भी वैसे करके मझ
ु े और ज्यादा मजा दे ना चाहती थी। मझ
ु े तो लग रहा था की वो दोनों मिलकर आज मेरी चत
ू के
परखच्चे उड़ा दें गे।

मैंने दीपा के सर के ऊपर अपना हाथ रखा और तभी मैंने दे खा की मिशा ने भी अपना चेहरा आगे कर दिया है । वो भी शायद
मेरी चूत को दीपा के साथ ही चाटना चाहती थी। मैंने और दीपा ने उसको जगह दी और अब आलम ये था की चूत एक थी
और चस
ू ने वाले दो। उन दोनों की जीभे मेरी चत
ू के होंठों की पंखड़ि
ु यों को फेलाकर, दबाकर, मसलकर, चभ
ु लाकर मझ
ु े
दनि
ु या का सबसे सुखद एहसास दे ने में लग गए। मैं ऊपर नीचे होकर अपनी चूत को उनकी जीभ और दांतों पर घिस रही
थी। अह्ह्ह्ह्ह्ह। उम्म्म्म्म ्म। सक्क्क्क मीई एह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। येस्स्स्स। येस्स्स्स।येस्स्स्स। आई एम ् कमिंग।
आई एम ् कमिंग, दीपा।

मिशा तो नहीं समझी पर दीपा ने अपना मंह


ु खोलकर मेरे मंह
ु से आने वाले फुव्वारे का वेट करना शरू
ु कर दिया। मिशा ने
चाटना चालु रखा। और जैसे ही मेरी चूत से रस की पहली फुहार निकली, मिशा का चेहरा और आँखे बुरी तरह से भीग गया।
इतना तेज प्रवाह तो आज तक नहीं निकला था मेरी चूत के रस का। जैसे पेशाब की बोचार निकलती है , ठीक वैसे ही था ये
प्रवाह भी। पर सग
ु न्धित, गाड़ा और सेहतमंद। मिशा बेचारी भोचक्की होकर पहले तो दे खती रही पर दीपा ने जब उस रस
को पीना शुरू किया तो उसने भी अपना मुंह चूत के ऊपर जोर जोर से मारकर वहां से निकल रहे अमत
ृ का पान करना शुरू
कर दिया।

और जल्दी ही उन्होंने मेरी चूत को चमका दमका कर परू ी तरह से ड्राई कर दिया, जैसे वहां से बरसों से पानी की एक बँद
ू भी
न निकली हो। मेरा शरीर अभी तक कांप रहा था, अपनी चत
ू पर हुए 'अत्याचार' को महसस
ू करके। मिशा के चेहरे पर मेरी
चूत से निकला रस लगा हुआ था, मैंने उसको अपनी तरफ खींचा और उसके चेहरे को कुतिया की तरह से चाटने लगी। और
अपना रस और उसके होंठों का रस पूरा पी गयी। अब तक वो परू ी तरह से खुल चुकी थी। मेरे हाथ उसके उभारों पर थे।
उसने काफी मालाएं पहनी हुई थी। मैंने उन्हें पीछे किया और उसके पीछे छुपे हुए उसके दधि
ु या स्तनों को पकड़ कर उन्हें
दबाने लगी। उसके निप्पल काफी बड़े थे, इतने बड़े निप्पल मैंने आज तक नहीं दे खे थे। मैंने अपने होंठ उनपर लगाये और
उसका दध
ू पीना शरू
ु कर दिया।

अब सिसकारी मारने की बारी मिशा की थी। उम्म्म्म्म ्म्म्म्म्म उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़्फ़्फ़ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह कोमल। उम्म्म्म्म ्म्म्म्म
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह स्स्स्स्स ्स्स्स्स क्या कर्र्र्र रही हो। अह्ह्ह्ह्ह।

मैंने मन ही मन सोचा अभी तू दे खती जा, मैं क्या क्या करती हूँ। मैंने उसकी मालाएं निकाल कर नीचे रख दी, अब वो ऊपर
से पूरी नंगी थी। और उसकी कमर से बंधा हुआ छोटा सा घांस फूंस वाला हिस्सा भी निकाल कर मैंने नीचे कर दिया, अब
उसका संगमरमरी बदन हमारी आँखों के सामने पूरा नंगा था।

मैंने भी अपने कपडे उतारे और उसकी तरह सी मादरजात नंगी हो गयी, दीपा ने भी बिना दे री किये बिना अपने कपडे उतारे
और उस छोटी सी झोपडी में हम तीनो नंगे होकर एक दस
ु रे के जोस्मो को बरु ी तरह से नोचने खसोटने लगे। मिशा की चत

पर काफी घने बाल थे, मैंने अपना चेहरा मिशा की चूत पर लगाया और उसे चाटने लगी। उसके बाल मेरे मुंह में आ रहे थे,
जोंहे चूसकर मैंने गीला कर दिया और उसकी चूत के होंठों के साथ-2 उसके बालों को भी अपने मुंह में भरकर चूसने लगी।
एक अजीब सा और नया एहसास था ये भी। पर मजा काफी आ रहा था। मुहे भी और मिशा को भी। जो मेरे सर को अपनी
चूत से चिपका कर अपना रस मेरे अन्दर खाली करने पर उतारू थी। दीपा दस
ू री तरफ से गयी और मिशा की गाण्ड के छे द
पर अपना मंह
ु लगाकर उसको चाटने लगी।

126
मिशा के लिए दोहरा हमला संभालना मुश्किल हो गया। उसने अपने शरीर को हवा में ही हमारे ऊपर छोड़कर अपनी आँखे
बंद कर ली। मेरी जीभ मिशा की चूत के दो इंच अन्दर थी। और दीपा की जीभ उसकी गाण्ड में एक इंच अन्दर। दोनों तरफ
से मिल रहे मजे को महसूस करके वो तो स्वर्ग में उड़ रही थी। अपने पैरों की उँ गलियों के बल पर खड़ी हुई वो हमारे हर
हमले से थोडा और ऊपर उचल जाती और फिर नीचे आती। अह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म स्स्स्स्स ्स म्मम्मम्म। अह्ह्ह्ह्ह हाँ ऐसे
ही। अह्ह्ह्ह्ह। मैं मर गयी। अह्ह्ह्ह्ह।

और जल्दी ही उसकी चूत से रस की बारिश होने लगी नीचे, जिसके नीचे मैं और दीपा ने भीगकर और उसको अपने मुंह में
भरकर अपनी प्यास बुझाई। और सब शांत होने के बाद हमने दीपा की तरफ दे खा, जो अपनी चूत को अपनी उँ गलियों से
मसलकर हमारी जीभों का इन्तजार कर रही थी। मैंने दीपा और मिशा को नीचे लिटाया, मेरा मुंह अभी तक मिशा की चूत
पर था और उसका रस चाट रहा था, मैंने मिशा का चेहरा दीपा की चत
ू की तरफ किया और वो अब दीपा की चत
ू चाटने
लगी। और दीपा की आँखों के सामने मेरी टाँगे थी, वो थोडा मेरी तरफ खिसकी और अपने होंठों से मेरी चूत को फेलाकर वहां
से दोबारा निकल रहा रस पीने लगी।

हम तीनो के बीच एक तिकोन बन गया था, मैं मिशा की चूत को पी रही थी। मिशा ने दीपा की चूत के होंठों को दबोच रखा
था और दीपा ने मेरी गल
ु ाब की पंखड़ि
ु यों को अपने मंह
ु में समेटा हुआ था। परू ी झोपडी में सड़प-2 की आवाजें आ रही थी।
और मेरे अन्दर फिर से एक और ओर्गास्म बिल्ड होने लगा। और शायद मिशा की चूत के अन्दर भी। दीपा का तो पहली ही
बार था।

और अगले 5 मिनट के अथक प्रयास के बाद तीनो तरफ से रसीले पानी की बोचारे निकल-2 कर हवा में उछलने लगी।
जिसमे भीगकर हमारे जिस्म परू ी तरह से नशीले और शराबी हो गए।

अब तो मन कर रहा था की कोई लण्ड वाले आयें और हम तीनो की ऐसी ठुकाई करे की ये सारा रस उनके लण्ड से निकले
पानी से मिलकर और भी नशीला हो जाए। और फिर वो सब मिलकर हमारे जिस्म को कुत्तों की तरह से चाटकर साफ़ कर
दे । बस इतनी सी तमन्ना है मेरे दिल की। …P152-154…

मैंने दीपा की तरफ दे खा और दीपा ने मेरी तरफ। हमने आपस में सलाह करी और सोचा की चुदाई के लिए ये जगह तो सही
है ही इसलिए जल्दी से किसी लण्ड का इंतजाम करना होगा। मैंने मिशा को वहीं रुकने को कहा और मैं और दीपा बाहर
निकल कर रोहित और राज को ढूँढने निकल पड़े। तभी मैंने दे खा की राहुल अपने एक दोस्त के साथ वापिस अपने झोपड़े
की तरफ जा रहा है । मैंने वक़्त गंवाना उचित नहीं समझा और राहुल को पुकारते हुए उसकी तरफ चल दी। दीपा इसी बीच
आगे निकल गयी रोहित और राज की तलाश में ।

मैंने राहुल को रोका और उसने मुझे अपने पास आते दे खकर अपने दोस्त को आगे जाने को कह दिया और वो मुझसे बाते
करने लगा।

राहुल: यार कोमल, कहाँ हो तम


ु । जब से यहाँ पर आये है तम
ु तो दिखाई ही नहीं दे रही। झरने में भी तम
ु और दीपा उन
नए लडको के साथ मस्ती कर रही थी।

मैंने भी राहुल को कॉलेज की दस


ू री लड़की के साथ नहाते वक़्त मस्ती करते हुए दे खा था।

मैं: अच्छा जी, तुम खुद भी तो अपने काम में इतने खोये हुए थे की तुम्हे मुझे याद करने की फुर्सत ही नहीं थी, मैंने दे खा था
तुम्हे और रीना को एक साथ नहाते हुए।

वो बेचारा शरमा कर रह गया, और बोल: पर कोमल, जो बात तुममे है न, वो किसी और में नहीं।

127
मैंने उससे कहा: चलो फिर, आज तुम्हे एक नया एहसास दिलाती हु। वो बिना कुछ पूछे मेरे पीछे चल दिया। उसको मालुम
था की मेरे साथ मजे के अलावा कुछ और मिल ही नहीं सकता। झोपड़े के अन्दर पहुंचकर उसने जब मिशा को दे खा तो वो
दं ग रह गया। वो अभी तक नंगी ही थी।

राहुल: ओह माय गॉड। ये…ये तो कबीले के सरदार की बेटी है । वाव… शी इस ब्यट


ू ीफुल। साला, अभी मेरी तारीफ कर रहा
था और नया माल दे खते ही इसकी लार टपकने लगी। ये सारे लड़के एक जैसे ही होते है । खेर, मझ
ु े भी तो सिर्फ उसके लण्ड
से मतलब था।

मैं: दे खो राहुल, इसने आज तक कुछ नहीं किया है । आज तुम्हे इसे भी मजे दे ने है और मुझे भी।

तभी पीछे से आवाज आई, "और मुझे भी।" दीपा ने अन्दर आते हुए कहा।

राहुल के तो मजे हो गए। एक साथ 3-3 चुते मारने को जो मिलने वाली थी उसको। पर तभी उसके चेहरे की रं गत बदल
गयी। दीपा के पीछे -2 राजपूत भी अन्दर आ गया। दोनों में 36 का आँकडा जो था। दीपा को रोहित और राज तो मिले नहीं
पर राजपूत मिल गया। वो दोनों एक दस
ु रे को घूर-2 कर दे खने लगे। पर कोई भी वहां से जाने को तैयार नहीं था। इतना
सारा मजा और कहीं मिल भी तो नहीं सकता था न। मैंने ये सुन्हे रा मौका हाथ से नहीं जाने दिया। हम तो कब से यही
चाहते थे की दोनों में सल
ु ह हो जाए, आज अच्छा मौका था।

मैं: दे खो राहुल,राजपूत, तुम दोनों को आपस में लड़कर कुछ नहीं मिलेगा। अगर तुम दोनों को आज यहाँ मजे लेने है तो
आपस में दोस्ती कर लो। मैं तुमसे वादा करती हु की ऐसे मजे और भी मिलते रहें गे।

वो दोनों गहरी सोच में डूब गए। बात तो सच ही थी, वो जानते थे की मेरी और दीपा की और भी काफी सहे लियां है , कॉलेज
में , होस्टल में । और सबसे बड़ी बात हमारी प्रिंसिपल मेडम के साथ जिस तरह की घनिष्टता है उसका फायेदा भी तो वो
दोनों उठा ही सकते थे। और वैसे भी वो दोनों परु ाने दोस्त थे, बस समय के साथ-2 दोनों के रिश्तों में फर्क आ चूका था।

राहुल ने पहले कहा: ठीक है , मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है । मैं राजपूत से दोबारा दोस्ती करने को तैयार हु।

राजपूत ने कहा: साले। तू क्या अकेला तैयार है । मैं भी तैयार हु। आ जा गले लग जा यारा।

दोनों भाव विभोर होकर एक दस


ु रे के गले लग गए। मेरी आँखों से भी ख़ुशी के आंसू निकल पड़े। भले ही मेरा उनसे कोई
इमोशनल कांटेक्ट नहीं था, पर उनकी दोस्ती को वापिस जुड़ते दे खकर मेरी आँखे भर आई। मैंने भी अपनी बाहें फेलाई और
उन दोनों के बीच में जाकर लिपट गयी। दस
ू री तरफ से दीपा भी बीच में आकर चिपक गयी और हम दोनों ने अपने-2
गुदाज मुम्मो से उनकी बलिष्ट बाजुओं के ऊपर फिजियोथेरेपी करनी शुरू कर दी।

राजपूत: चल राहुल, आज दिखा दे इन लड़कियों को की असली चुदाई क्या होती है ।

राहुल: हाँ, ठीक वैसे ही, जैसे हम दोनों मिलकर पहले किया करते थे और लड़कियों की चीखें निकलवा दे ते थे। और दोनों ने
हाई फाईव किया और हं सने लगे।

मैंने और दीपा ने जल्दी से अपने-2 कपडे उतार दिए। और मिशा की ही तरह नंगी होकर उनके सामने बैठ गए। उन दोनों
ने भी अपने-2 कपडे उतार फेंके और अपने-2 खब
ू सरू त लण्ड लहराते हुए हमारे सामने खड़े हो गए। मिशा का मंह
ु दे खने
लायक था, वो कबीले में रहती थी, इसलिए उसके लिए लण्ड दे खना कोई नयी बात नहीं थी, क्योंकि अभी भी ज्यादातर
आदमी और लड़के बिना कपड़ो के घुमते थे।

पर शहर से आये हुए गोरे लण्ड दे खकर उसके मुंह में पानी आ गया। वो उसके कबीले के लोगों के मुकाबले छोटे ही थे पर
उसके लिए ये छोटे भी बहुत थे, क्योंकि वो अभी तक कंु वारी जो थी।

मैंने मिशा को अपने पास बुलाया और हम तीनो उन दोनों के सामने जमीन पर घुटनों के बल बैठ गये। मैंने राजपूत का
लण्ड पकड़ा और दीपा न राहुल का। आखिर हमें भी तो थोडा चें ज चाहिए था। और उनके लण्ड को अपनी जीभ से छुआ कर

128
गीला किया और अपना मुंह खोलकर पूरा का पूरा हड़प कर गए। आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।स्स्स्स्स ्स्स। उन दोनों की सिस्कारियां
निकल गयी। हमारे ठन्डे मुंह में अपने गर्म लण्ड डालकर।

मैंने राजपूत का लण्ड बाहर निकाल और मिशा की तरफ घुमाया। दीपा ने भी ऐसा ही किया और अब मिशा के होंठो के पास
हमारी थक
ू से चमकते हुए दो-दो लण्ड थे।उसने उन दोनों को छल्ली की तरह से पकड़ा और अपने मंह
ु में ठूस लिया। एक
साथ। उन दोनों को एक दस
ु रे के लंडो से टकराने का एहसास हुआ और फिर से दोनों सिसक पड़े। म्म्म्म्म ्म्म्म।अह्ह्ह्ह्ह।

और मिशा ने बड़ी ही तेजी से दोनों की छाल्लियों को चूसना और निगलना शुरू कर दिया। आज तो इस झोपड़े में तूफ़ान
आकर रहे गा।

मिशा दोनों का लण्ड चूसने में बीजी थी इसलिए मैं उठ खड़ी हुई और राजपूत के चेहरे के पास अपना चेहरा ले गयी, उसने
किसी भख
ू े भेडिये की तरह से मझ
ु े लपका और मेरे होंठों को दबोच कर चस
ू ने लगा। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह पच्
ु च्च्छ्ह्ह्ह मच्
ु च्च्छ्ह्ह
उम्म्म्म 

कितनी ताकत थी उसकी पकड़ में । राजपूत ने अपने हाथ मेरे मोटे और गदराये हुए मुम्मो पर लगा दिए और उन्हें मसलने
लगा। मेरे निप्पलस को अपनी ऊँगली और अंगठ ू े के बीच दबा कर वो उन्हें ऊपर की तरफ खींचने लगा। अय्य्यीईईइ
अह्ह्ह्ह्ह्ह धॆएरे दर्द होता है । पर वो जल्
ु मी कहाँ मानने वाला था। मिशा उसका और राहुल का लण्ड अब एक-एक करके
चूस रही थी। दीपा भी उठी और राहुल के गले से लिपट कर उसको फ्रेंच किस्स करने लगी। राहुल और राजपूत ने अपने
चेहरे एक दस
ु रे की तरफ कर लिए, और अब मेरी और दीपा की मोटी गाण्ड आपस में टकरा रही थी। और हमारे बीच में
फंसकर मिशा बड़ी ही मश्कि
ु ल से कभी राहुल और कभी राजपत
ू के लण्ड को अपने मंह
ु में भरने की और चस
ू ने की कोशिश
करने लगी।

मैं पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी। मैं दीपा की तरफ पलटी और मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया। और अपने गीले होंठ
सीधा उसके मुंह पर लगाकर उसे बेतहाशा चूमने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह कोमल उम्म्म्म्म ्म्म।येस्स्स्स उम्म्म्म्मा आह्ह्ह।
दीपा का बरु ा हाल हो गया। वो भी मेरे होंठों को रबड़ की तरह से चस
ू ने में लग गयी। उन दोनों के लण्ड अब हमारी गाण्ड से
टकरा रहे थे। और हमारी रस बरसाती हुई चूतें मिशा के चेहरे के पास थी। जिनमे ऊँगली डुबोकर वो कभी मेरा शहद
निकालकर चाटती और कभी दीपा का जूस पीती…

उसको ऐसा मजा आज तक नहीं मिला था। …P155-158…

अचानक मिशा ने अपनी जीभ निकाल कर मेरी रसीली चूत के अंदर घुसा दी। उम्म्म्ममम… अहह… उफफफफफ्फ़…

मेरी चूत के चारों तरफ फेली परत को उसने अपने दांतो से दबा - दबाकर लाल सुर्ख कर दिया। इतना अछा ट्रीटमें ट तो आज
तक किसी ने भी मेरी बन्नो को नहीं दिया था। वो गुलाब की पंखुड़ी की तरह से आराम से मेरी चूत के फेले हुए होंठो को
अपनी जीभ से सहला रही थी और अन्दर से आ रहे जूस को, जो की मेरी पंखुड़ियों पर ओस की बूंदों जैसा गिर रहा था
उसको बड़े चाव से पी रही थी। अय्य्य्य्यीईइ…

तभी राजपूत ने मुझे मिशा के मुंह के ऊपर झुकाया अपना कड़ा लंड मेरी चूत में पीछे से घुसा दिया… उसका लंड मिशा के
होंठो से रगड़ खाता हुआ अन्दर गया… उसका धक्का इतना तेज था की मेरी चूत के अन्दर फंसी हुई मिशा की जीभ को भी
बाहर निकलने का मौका नहीं मिला और वो भी राजपूत के लंड के साथ-2 मेरी चूत के अन्दर आ गयी। उम्म्म्म्म ्म
अह्ह्ह्ह्ह्ह… 

मिशा की जीभ और राजपूत के लंड का एक साथ एहसास मुझे अन्दर तक तप्ृ त कर गया। ये पहला मौका था जब दो चीजें
एक साथ मेरी चूत के अन्दर विराजमान थी, और ये एहसास मुझे बड़ा उत्तेजित कर रहा था।

ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माय गोड… येस्स्स्स…येस्स्स्स…

129
मैं पिछले एक घंटे से अपनी चूत की मालिश करवा रही थी इसलिए मैंने 2 मिनट में ही झड़ना शुरू कर दिया…

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़्फ़्फ़…

मेरी हांडी से दही निकल कर राजपूत के लंड का राज्याभिषेक करती हुई मिशा के मुंह में जाने लगी, और वो कुतिया की
तरह से मेरा सारा रस प्यासी छिनाल की तरह से पी गयी। दीपा ने भी राहुल का लंड चूसना छोड कर उसकी तरफ रुख
किया और उसे धक्का दे कर नीचे लिटा दिया। और खद
ु उसके ऊपर घड़
ु सवारी करने के अंदाज में बैठी और किसी कुशल
जोक्की की तरह से अपनी गांड ऊपर हवा में उठाकर धांय से राहुल के खड़े हुए लंड के ऊपर दे मारी और उसकी चूत सीधी
खड़े हुए लंड को निगलती हुई उसे अपने अन्दर समाती चली गयी।

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…

ये आवाज राहुल की थी… उसको अपने लंड पर हुए इस गजनवी हमले की आशा नहीं थी। इसलिए अन्दर जाते हुए उसके
लंड की चमड़ी थोडा ज्यादा ही छिल गयी, और इसका बदला लेते हुए उसने नीचे से दीपा की गांड के छल्लो को दबोचा और
ऊपर की तरफ जोरों से धक्के मारने लगा…

अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म उह्ह्ह्ह्ह येस्स्स्स। उम्म्म्म्म ्म…और तेज… और तेज…हां ऐसे ही अअह्ह्ह्ह्ह येस्स्स्स।
रआहुल… अह्ह्ह्ह्ह… …P0159…

राहुल ने धक्के मार मारकर उसकी चूत के इंजन को इतना गर्म कर दिया की उसके अन्दर का काम रस उबलने लगा, और
बाहर आने के लिए तैयार हो गया… इसी बीच राजपूत ने मेरी चूत से अपना हथियार बाहर निकाला और उसपर लगे हुए
मेरी चत
ू के रस से सराबोर लंड को अपने हाथों में लेकर मिशा के मंह
ु की तरफ घम
ु ा दिया। वो तो कितनी दे र से इसी
इन्तजार में थी। उसने राजपूत के लंड को अपने मुंह में लेकर चूमना और चूसना शुरू कर दिया… कितनी जल्दी ये सारा
कुछ सीख गयी थी…

मैं भी खड़े-2 चुदवाकर थक गयी थी इसलिए मुझे बैठने के लिए कोई जगह चाहिए थी पर उस झोपड़े में सिवाए घांस फूंस के
कुछ ना था। इसलिए मैंने राहुल की तरफ रुख किया जो दीपा की चत
ू के पें च ढीले करने में लगा हुआ था और उसके सर के
ऊपर जाकर खड़ी हो गयी और उसके मुंह का निशाना लगा कर धम्म से उसके मुंह पर बैठ गयी। मेरा चेहरा दीपा की तरफ
था…

और दीपा ने भी बिना मौका गँवाए मेरे होंठों को अपने मुंह में दबोचा और उन्हें चूसना शुरू कर दिया, और नीचे से राहुल ने
मेरी चत
ू की चाशनी को सरु कना शरू
ु कर दिया। राजपत
ू को मैंने इशारा किया की ये ही मौका है , मिशा की चत
ू को फाड़ने
का। उसने भी अपना सर हिलाया और मिशा को राहुल की बगल में ही नीचे लिटा दिया। बड़ी ही सेक्सी लग रही थी वो
अपनी पहली चुदाई से पहले…

राजपूत भी खाया खेला लौंडा था, उसने प्यार से उसकी चूत को सहलाया और अपने लंड का सुपाडा उसकी चूत के मुहाने पर
लगाकर धीरे से अपना भार उसके ऊपर डाला… अह्ह्ह्ह्ह्ह…

मिशा ने अपने होंठों को दांतों के बीच दबा लिया पर एक हलकी सी चीख निकल ही गयी उसके मंह
ु से… इसी बीच राहुल का
लंड दीपा की चूत के अन्दर छप-2 की आवाजें करने लगा। इस बात से अंदाजा हो गया था की दीपा की चूत ने अन्दर से
पानी छोड दिया है । उसके नम होते हुए होंठ भी इस बात का प्रमाण थे की उसका ओर्गास्म हो चूका है । पर मेरे मुंह में फंसे
होने की वजह से वो खल
ु कर अपने ओर्गास्म के आने का इजहार नहीं कर पायी।

और दस
ू री तरफ राजपत
ू ने एकदम से अपने लंड को एक तेज झटका दिया और अपना आधे से ज्यादा लंड मिशा की चत
ू के
अन्दर प्रवाहित कर दिया… मिशा का मुंह खुला का खुला रह गया… बेचारी चीख भी नहीं पायी और राजपूत ने एक और
करारा झटका दिया और अपना रामपरु ी परू ा का परू ा उसकी चूत के अन्दर घुसा दिया।

130
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़्फ़… अय्यीईई… मर गयी… अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…

बेचारी को काफी दर्द हो रहा था… पहली चुदाई थी ना उसकी… मुझे भी अपनी पहली चुदाई याद आ गयी। मैंने उसको
तस्सल्ली दी। "हो गया… बस हो गया… अब मजे ही मजे हैं…"

उसने धीरे से मुस्कुरा कर मुझे दे खा, और अपना सर हिलाया…

राजपूत ने धीरे -2 धाके मारकर उसकी चूत को अपने लंड का अभ्यस्त कर लिया और फिर जब उसको लगा की नीचे से
मिशा भी अपनी गांड उचका-2 कर उसका साथ दे रही है तो उसने भी उसके हांथो को अपने हाथों में दबोच कर, अपना मुंह
उसकी ब्रेस्ट पर लगा कर, जोर-2 से धक्के मारने शुरू कर दिए। अब मिशा फिर से चीखने लगी…पर अब वाली चीख में
मजे की सिस्कारियां थी।

अह्ह्ह्ह्ह…उम्म्म्म्म ्म…उम्म्म्म्म ्म अह्ह्ह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़…उम्म्म्म…

मेरी चूत को राहुल रसगुल्ले की तरह चूसकर उसकी चाशनी पी रहा था और नीचे से दीपा की चूत में धक्के उसके दस
ु रे
ओर्गास्म को भी बुला रहा था। वैसे एक और ओर्गास्म तो मेरे अन्दर भी बनने लग गया था। जिसे राहुल ने अपनी जादई

जीभ से बल
ु ाया था, और फिर एक-2 करके सभी ने झड़ना शरू
ु कर दिया।

सबसे पहले दीपा ने… उसको जैसे ही राहुल के लंड से निकली पिचकारी का एहसास हुआ, उसने भी अपनी चत
ू से जादई

पानी उसके लंड के ऊपर कुर्बान कर दिया। फिर बारी थी मिशा और राजपूत की, जो एक साथ ही झडे। राजपूत के लंड की
पिचकारियाँ जितनी दे र तक मिशा की चूत के अन्दर चलती रही उतनी दे र तक उसके शरीर के झटके राजपूत को अपने लंड
के ऊपर महसस
ू होते रहे ।

और सबसे बाद में मेरी बारी थी… मेरी चत


ू के होंठों को अपने होंठों में दबाये हुए राहुल ने सारा माल अपने अन्दर ट्रांसफर
कर लिया। एक भी बँूद बाहर गिराए हुए। सभी तप्ृ त हो चुके थे, और सबसे ज्यादा तप्ृ त तो मिशा थी। जो अपनी चूत के
अन्दर उँ गलियाँ डालकर अपनी चुदाई के एहसास में खोयी हुई थी।

आज वो चुदकर कलि से एक फूल जो बन चुकी थी। …P160-163…

मैंने मिशा से पुछा: अब तो खुश हो ना तुम, मजा आया के नहीं।

मिशा मुस्कुरायी और बोली: "ये एहसास जो तुमने मुझे दिलवाया है , मैं कभी नहीं भूल सकंु गी। मेरी सारी सहे लियां हमारे
कबिले के दस
ु रे लडको के साथ ये सब कर चुकी हैं, पर सरदार की बेटी होने की वजह से कोई भी मुझे पूरा प्यार करने से
कतराता था. इसलिए मैं इस अनोखे एहसास से वंचित थी, आज तक। पर तम
ु सबने मिलकर आज मझ
ु े तप्ृ त कर दिया है
जिसका एहसान मैं कभी नहीं चुका सकंु गी।"

थोड़ी दे र रुक कर वो बोली: "पर कुछ ऐसा है जिसे करके मैं तुम सभी को ऐसा मजा दिलवा सकती हूँ जिसके बाद तुम मुझे
भी याद रखोगे।"

उसकी बात सुनकर हम सभी एक दस


ु रे को दे खने लगे और फिर आतुर नजरों से उसकी तरफ दे खकर बोले: बोलो न… क्या
और कैसा मजा दिलवा सकती हो तम
ु …

वो मुस्कुरा कर रह गयी, और बोली: तुम सभी शाम को अन्धेरा होने के बाद मेरा इन्तजार करना। मैं तुम्हे एक ऐसी जगह
लेकर चलूंगी जहाँ तुम्हे जन्नत का मजा मिलेगा। हम सभी के मन में तरह-2 के विचार उठने लगे। पर मिशा ने आगे कुछ
और भी बताने से मना कर दिया।

इसलिए हमारे पास अब शाम को अन्धेरा होने के इन्तजार करने के अलावा कोई और चारा नहीं था। मन तो और भी चुदने
का कर रहा था पर भूख भी काफी लगी हुई थी। इसलिए हम सभी अपने-2 झोपड़ो में आये और कपडे बदल कर खाना

131
खाया। और फिर थोड़ी दे र के लिए सो गए ताकि शाम के लिए हमारे अन्दर थोड़ी ताजगी आ जाए। क्योंकि इतना तो हमें
पता चल ही गया था की जो भी हो "मजे" का मतलब चुदाई ही होगा।

शाम को करीब 7 बजे के आसपास दीपा ने मुझे उठाया। मुझे बड़ी ही मीठी नींद आ रही थी. चुदाई की भूख एक बार फिर से
जाग उठी थी। पर मिशा के आने का टाइम भी हो चक
ू ा था, इसलिए मैं उठ गयी। मैंने सोते समय अपने सारे कपडे उतार
दिए थे और चादर के अन्दर नंगी ही सोयी हुई थी। मैं जब उठ कर खड़ी हुई तो दीपा की नजरें मेरे जिस्म को भेदने लगी।

मैंने उसकी तरफ दे खा और पुछा: "ऐसे क्या दे ख रही है , पहले कभी नहीं दे खा क्या मुझे…"

दीपा: "मैं दे ख रही हूँ हर रोज तेरी जवानी पर एक नया निखार आता जा रहा है ।"

उसकी बाते सन
ु कर मेरा रोम रोम पल
ु कित होने लगा। मझ
ु े अपनि तारीफ सन
ु ना अच्छा लगता था। (वैसे किसे नहीं
लगता।) मैं: "क्या… बता ना, क्या निखार आया है ।"

मैंने अपना नंगा शरीर उसके सामने उभार कर रख दिया, और अपना एक हाथ अपनी कमर पर रख दिया। एक तो चुदाई
की खुमारी और ऊपर से उसकी बाते सुनने का लालच। मैंने भी थोडा मजा लेने की सोची।

दीपा ने बोलना शुरू किया: "अपनी ब्रेस्ट तो दे ख… कितनी बड़ी और कड़क हो गयी है पहले से। मुझे याद है , मैंने जब पहली
बार इन्हें सक किया था तो ये इतनी बड़ी नहीं थी, और ना ही तेरे निप्पल इतने रसीले लगते थे।"

उसकी बात मेरे निप्पलों ने सुन ली शायद, और फुल कर कुप्पा हो गए, और चमकने लगे उसकी आँखों के सामने हीरे की
तरह। मैं: "और… और क्या…"

दीपा: "और अपनी कमर तो दे ख, कितनी कटाव वाली हो गयी है । ऊपर से आकर पतली होती जा रही है और नीचे की तरफ
फिर से फेली हुई। बिलकुल हावर ग्लास की तरह फिगर हो चूका है तेरा। और… और ये तेरी फेली हुई गांड… तेरा तो परू ा
बदन गदरा चूका है ।" वो कह्ते आगे आ गयी और उसने मेरे कूल्हों पर अपने हाथ टिका दिए, और उन्हें धीरे से दबा दिया।
अह्ह्ह्ह्ह्ह… 

मेरे तेज धड़कते हुए सीने की आवाज ज्यादा तेज थी मेरी सिसकारी से। उसके हाथ मेरी जेली फिश जैसी चत
ू के ऊपर रें गने
लगे… मेरे होंठ फड़कने लगे, सूखने लगे। मैंने जीभ गीली करी और उनपर फेराई।

दीपा: "और ये जो है ना, तेरी चूत… हाँ… येही है इन सबकी जड़। पता है , कितने लंड निगल चुकी है आज तक। कभी
गिनती की है तून।े कितनी बार इसे चूसकर मैंने अपनी प्यास बझ
ु ाई है । पर इसका शहद हर बार एक अनोखा स्वाद दे ता
है …"

वो जो भी मेरे बारे में बोल रही थी, मझ


ु े नशे की तरह मदहोश कर रहा था। हर अंग की तारीफ सन
ु ना और वो भी अपनी
बेस्ट फ्रेंड से और वो भी नंगे खड़े होकर, एक अजीब सी ख़ुशी मिल रही थी मुझे। उसकी उँ गलियाँ मेरी चूत के ऊपर
थिरकने लगी थी। चाशनी में डूबकर उसकी उँ गलियाँ चिपचिपी सी हो गयी थी। और उसी चिप्चिपाहट का लाभ उठा कर
उसने अपनी बीच वाली ऊँगली को मेरी चत
ू के अन्दर पश
ु किया और मैंने किसी सांप की भाँती उसकी ऊँगली को चहि
ु या की
तरह से निगल लिया। स्स्स्स्स ्स्स्स, उम्म्म्म्म ्म…

मेरी आँखे बंद होती चली गयी। मेरे होंठ गोल होकर उसके चेहरे की तरफ चल पड़े। दीपा की साँसे भी तेज होकर धोंकनी
की तरह से चल रही थी। वो सिसकारी लेते हुए बोली: "और… और तेरे ये होंठ, कितनी तपिश है इनमे। मेरा लड़की होकर
इन्हें चस
ू ने का इतना मन करता है तो जो भी तझ
ु े दे खता होगा, या चस
ू ता होगा उनका क्या हाल होता होगा… जल जाते
होंगे वो तो…"

उसकी ऊँगली मेरी चूत में और उसकी रसीली बातें । और सब्र नहीं हुआ मुझसे, मैंने सिसक कर उसको अपनी तरफ खींचा
और बोली: "बस… बस कर आ जा तुझे बताती हूँ की कितनी तपिश है इनमे।" और इससे पहले की वो तेज सांस लेकर

132
लम्बी समुच के लिए तैयार हो पाती मैंने उसके पतले और नाजुक होंठों को अपने मोटे और मुलायम होंठों के बीच में फंसा
कर जोरों से चूसना शुरू कर दिया…

पुच्च्छ्ह… अह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्माअ… उम्म्म्म…

उसकी ऊँगली मेरी चूत के अन्दर कोहराम मचा रही थी। उसने अपनी दस
ू री ऊँगली भी अन्दर डाल दी और अपनी दो-2
उँ गलियों से मेरी चत
ू की चद
ु ाई करने लगी।

मेरा तो बरु ा हाल हो चूका था।

पूरा शरीर पसीने में भीग गया था। होंठ नम हो चुके थे। उनमें से मीठा रस बहकर दीपा के होंठों में और उसका मीठा रस
मेरे मंह
ु में आ रहा था। अचानक उसने अपनी दोनों उँ गलियों से मेरी क्लिट को चट
ु की भरकर पकड़ लिया… मैं तो तड़प
उठी… अपने पंजों पर खड़ी होकर, मैंने उसके होंठों को चूसना छोड़ दिया और उसकी उँ गलियों का कमाल दे खने लगी।
अय्य्यीईइ अह्ह्ह्ह्ह… स्स्स्स… दीपा… म्मम्मम।

मेरे होंठ फिर से गोल होकर उसे कामुक नजरों से दे खने लगे। मेरी गोल मटोल छातियाँ कड़क होकर सामने की तरफ तन
गयी और मेरे निप्पल तो जैसे फटने की हालत में हो गए… उसने मेरी ब्रेस्ट को अपने चेहरे के आगे दे खा और अपने गर्म
मुंह के अन्दर मेरी दांयी चूची को भरा और उसे चूसने लगी।

अह्ह्ह्ह्ह्ह…

मेरा ओर्गास्म अपनी चरम सीमा पर था। उसकी दोनों उँ गलियों ने जब आखिरी बार मेरी क्लिट को पकड़कर बरु ी तरह से
मसला तो जैसे मेरे अन्दर जैसे कोई पानी का गुब्बारा फट गया। मेरी चूत से रस की धार धड़ल्ले से बहकर बाहर की और
निकल पड़ी। ऐसी निकली की मझ
ु े तो एक बार लगा की मेरा पेशाब निकल गया है । अपने पंजों पर खड़ी हुई मैं ओर्गास्म के
धक्के झेलने में लगी हुई थी। मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। आज मेरे जिस्म की तारीफ करने के साथ-2 दीपा ने मुझे एक
नए तरह के मजे दिए थे जो आजतक नहीं मिल पाए थे। उसने जो पतला सफ़ेद रं ग का टॉप पहना हुआ था मैंने उसे एक ही
झटके में उतार फेंका।

और मेरे कहने से पहले उसने अपनी स्कर्ट को नीचे खिसका दिया, और अब वो भी नंगी खड़ी थी मेरे सामने… परू ी नंगी…
और जैसे उसने मेरे जिस्म को आज गोर से दे खकर मुझे सुनाया था ठीक वैसे ही मैंने भी उसे उसके विकसित शरीर से
अवगत कराया।

मैं: "वाव… दीपा सच में , आज तूने मुझे जो मजा दिया है वो आजतक कभी भी नहीं मिला, और ऐसा नहीं है की सिर्फ मेरा
जिस्म ही चद
ु ाई के बाद इतना नशीला हो गया है । अपने आप को दे खा जरा…"

उसकी छातियाँ मेरी बातें सुनने के लिए ऊपर नीचे होकर अपनी बेकरारी प्रकट कर रही थी।

मैं: "कितनी छोटी हुआ करती थी ये ब्रेस्ट, 32 का साईज था जब पहली बार मैंने इन्हें चूसा था, और अब न जाने किन-2 से
चस
ु वा कर तन
ू े इन्हें 38 का बना दिया है …" उम्म्म्म्म… इतना कहकर मैंने अपना मंह
ु झक
ु ाया और उसकी छाती को अपने
मुंह में पूरा ठूस कर उसे चबाने लगी…

"अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… धीरे कोमल…धीरे खा इन्हें , दर्द होता है … उम्म्म्म।"

मेरे गले के पीछे की दिवार पर उसका निप्पल अपनी रगड़ छोड़ रहा था। मैंने जब सक करना शुरू किया तो उसका अंगरू का
दाना अपना रस मेरे अन्दर छोड़ने लगा।

उम्म्म्म्म ्म… येस्स्स्स… ऐसे ही कोमल…यू आर सकिं ग ईट ग्रेट… अह्ह्ह्ह।

133
मैं नीचे बैठ गयी और उसे अपनी जांघ पर बिठा लिया। उसकी चूत ने मेरी मोटी टांग को दोनों तरफ से लपेट कर बरु ी तरह
से दबोच लिया और अपनी चूत से बाहर निकल रहे दाने से मेरी टांगों पर घिसाई करने लगी। उसकी हर घिसाई अपने पीछे
मीठे रस की लकीर छोडती जा रही थी।

उम्म्म्म्म… अह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ्फ़…

मैं: "और ये तेरी चत


ू भी अब कम हरामी नहीं रह गयी है । जिस किसी के लंड को दे खती है , निगल जाती है , कितनी गर्मी
भरी हुई है तेरे अन्दर। साली… हरामजादी, आज तेरी सारी गर्मी निकाल दँ ग
ू ी।" मेरी बात सुनकर वो भी वैसे ही उत्तेजित
हो रही थी जैसे उसने मुझे किया था।

फिर अचानक जैसे उसके अन्दर भूतनी घुस आई हो। उसने मुझे पीछे की तरफ धक्का दिया और मुझे लिटा दिया, और
मेरी टांग को अपनी तरफ खींच कर मेरी चत
ू वाले हिस्से को अपनी चत
ू से टच करवाया। अब हम दोनों केंची की तरह
अपनी-2 टाँगे एक दस
ु रे में फंसा चुके थे और हमारी चूतें एक दस
ु रे के ऊपर थी। मुझे तो अभी-2 ओर्गास्म हुआ था इसलिए
मैं तो सिर्फ अपनी कोहनियों के बल पर पड़ी हुई उसकी हरकतें दे खती रही और वो अपनी पूरी शक्ति के साथ अपनी चूत को
मेरी चत
ू पर रगड़-2 कर अपने झडाव के नजदीक पहुँचने लगी, और अंट -शंट बकने लगी।

अह्ह्ह्ह… ले ले… और जोर से घिस… अह्ह्ह…खा जा, निगल जा मझ


ु े… मेरी चत
ू को… अह्ह्ह उम्म्म इफ़्फ़्फ़्फ़्फ़…
ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ मैं आयी, कोमल, मैं आयीई… और एक जोरदार झटका दे कर उसकी चूत की दवात में से ढे र सारी स्याही
निकल कर मुझे रं ग गयी। और वो गहरी साँसे लेती हुई मेरे पैरों की उँ गलियों को आवेश में आकर चूसती हुई, वहीँ निढाल
होकर गिर पड़ी।

तभी झोपड़े के अन्दर मिशा आई… और उसने जब हमें इस हालत में दे खा तो वो भी सिसक कर रह गयी। शायद सोच रही
होगी की थोड़ी दे र पहले आ जाती तो उसे भी हमारे साथ का मजा मिल जाता।

मिशा: "लगता है काफी मजा लिया है तुम दोनों ने आपस में । चलो कोई बात नहीं, आज की रात तो मजे लेने की ही रात
है । अब जल्दी से कपडे पहनो और चलो।"

हमने अपने-2 कपडे पहने और उसके साथ बाहर निकल आये। बाहर एक और लड़की खड़ी थी, जो शायद उसकी सहे ली ही
थी।

मिशा: "ये मेरी सहे ली है , टिम्मी…"

उसने अपने चेहरे पर कपडा बांधकर ढका हुआ था इसलिए हम उसका चेहरा नहीं दे ख पाए। मिशा ने भी अपने चेहरे पर
कपडा बांधकर ढँ क लिया।

मैं: "ये क्या कर रही हो…"

मिशा: "हम जिस जगह जा रहे हैं, वहां अगर किसी ने मुझे दे ख लिया तो मुश्किल हो जायेगी। इसलिए अपना चेहरा ढक
कर ही वहां जाना होगा हमें … तम
ु तो ऐसे ही चलो।"

मैंने गोर किया की आज मिशा ने अपनी ब्रेस्ट को ढकने के लिए कोई कपडा नहीं बाँधा हुआ था, और ना ही ज्यादा मालाएं
थी उसके गले में । उसकी उभरी हुई गोलियां साफ़ दे खि जा सकती थी। खेर… वो आगे-2 चल पड़ी और हम दोनों उसके
पीछे -2, मजा लेने के लिए। …P164-167…

अब आगे की कहानी, मिशा की जुबानी।

****मिशा****
*************
134
अँधेरा काफी हो चूका था, कबीले में सभी लोग आपने घरों में जा चुके थे इसलिए किसी ने भी हमें बाहर निकलते हुए नहीं
दे खा। मैं उन्हें लेकर उसी झरने की तरफ जा रही थी जहाँ वो आज सुबह नहाए थे और मजे लिए थे, झरने के पास से होकर
गुजरते हुए हम थोड़ी ही दरू बने हुए एक बड़े से मैदान में पहुंचे और वहां का नजारा दे खकर कोमल और दीपा है रान रह गए।
दरअसल ये एक खुला सा मैदान है जहाँ हमारे कबीले के और पड़ोस के एक-दो और कबीले के लोग मिल जुलकर मजा करने
के लिए आते हैं।

यहाँ आने का मकसद नशा और काम वासना शांत करना होता था। ज्यादातर सभी यहाँ आकर पुरे नंगे हो जाते थे ताकि
एक दस
ु रे के अंगो को दे खकर अपने हिसाब से अपना साथी चुन ले। वहां बीच में आग जल रही थी, और उसके चारों तरफ
लोग झुंडों में बैठे हुए थे। मेरे पिताजी को अगर पता चल जाए की मैं भी ऐसी जगह पर आती हूँ तो वो मुझे मौत के घात
उतार दें गे। वैसे आज से पहले सिर्फ एक ही बार मैं यहाँ आई थी और अपनी सहे ली टिम्मी के साथ मिलकर हमने दस
ु रे
काबिले के 2 नौजवानों के साथ खब
ू मजे लिए थे। मैंने तो सिर्फ चूमा चाटी ही की थी पर टिम्मी की चूत और गांड उन दोनों
ने मिलकर मेरे ही सामने मारी थी। वो थी भी काफी ठरकी और पहले भी काफी लोगो से अपनी चूत मरवा चुकी थी। पर
मैंने अपनी मर्यादा को नहीं लांघा।

हालांकि मन मेरा भी काफी किया था, पर अगर किसी कबीले वाले ने दे ख लिया और मेरे पिताजी को पता चल गया, बस
उसी का डर था। पर कोमल की वजह से मुझे लंड को महसूस करने का सुख मिल चूका था और अब मेरी हालत खन
ू चख
चुकी शेरनी जैसी थी, जिसे हर रोज लंड चाहिए अपने अन्दर। मैं इन दोनों को यहाँ इसलिए लायी थी की उन्हें अलग तरीके
का मजा दिला सकू ताकि उनका उपकार भी उतर जाए और मैं भी आज परु े मजे लेने के मड
ू में थी। आज मझ
ु े अपने
पिताजी का भी डर नहीं था।

कोमल: "अरे … ये क्या है … ऐसा लग रहा है की तुम कबीले वालों का डिस्को है ये। सभी नाच गा रहे हैं, और वो दे खो, वो
लड़की कैसे उस काले हब्शी के साथ खुल्ले आम चुम्मा चाटी कर रही है । और वो भी सबके सामने उसकी ब्रेस्ट दबा रहा
है … ओह्ह माय गोड, मझ
ु े तो विशवास ही नहीं हो रहा है की यहाँ इतना खल
ु ापन है ।"

वहां ज्यादातर आदमी और औरतें नंगे ही रहे थे। क्योंकि उन्हें मालम
ु था की अपने मोटे मम्
ु मों और लम्बे लंड की नम
ु ाईश
करके ही उन्हें मजा मिल सकता है । और जो लड़की सबसे सुन्दर होती थी वो अपने हिसाब से कोई प्रतियोगिता रखकर
अपना साथी चुनती थी। यानी जीतने वाला उसके साथ पूरी रात ऐश कर सकता है । वहां कई लोग नशे का प्रयोग भी कर
रहे थे। दे सी शराब और चरस यहाँ आम बात थी, और उनका सेवन करके सभी अपनी सध
ु बध
ु खोकर खल
ु कर मजे किया
करते थे।

टिम्मी ने तो वहां पहुँचते ही अपने बचे -खुचे कपडे उतार कर एक कोने में रख दिए। उसके जैसे मुम्मे हमारे परु े काबिले में
किसी के नहीं थे। उन्हें दे खते ही उसके चारों तरफ खड़े हुए लंडो की भीड़ सी लगने लगी। उसने एक लम्बे से लड़के को
इशारा करके अपनी तरफ बल
ु ाया, उसका वजन होगा करीब 80 के आस पास और 7 फीट ऊँचा था वो, और 10 इंच का लंड
था उसका।

वो आगे आया और टिम्मी को लेकर एक कोने में चल दिया।

दीपा: "ये क्या… कोई भी किसी के साथ मजे कर सकता है … वाह… आज तो मजा आएगा।"

हम सभी टिम्मी के पीछे चल दिए। एक कोने में घांस फूस का ढे र पड़ा हुआ था। काले आदमी ने वहां पहुँचते ही टिम्मी को
घांस पर धक्का दे कर गिर दिया। उसका मोटा शरीर गद्दे की तरह से बिछ गया घांस के ऊपर। उसकी लश्कारे मार रही चूत
की नमी साफ़ दिखाई दे रही थी। नीचे गिरते ही उसने 10 इंच के लंड को अपने हाथ में पकड़ा और उसे मुंह में लेकर चूसने
लगी। मैं सोच रही थी की कबीले में रहने वालों को आखिर ये अंग्रेजो वाले स्टाईल पता कैसे चलते है … पर शायद सेक्स की
भूख सब कुछ सिखा दे ती है । मुझे भी तो कोमल और दीपा से कितनी नयी बातें सीखने को मिली थी। टिम्मी की हालत
बरु ी हो रही थी। वो लंड को अपनी चत
ू में लेने के लिए तड़पने लगी।

135
पर वो लड़का भी उसे तडपाने में लगा हुआ था और उसके ऊपर लेट नहीं रहा था। आखिर टिम्मी को गुस्सा आ गया और
उसने लड़के को नीचे गिरा दिया, और उसके ऊपर सवार हो गयी… वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही टिम्मी की चूत के
छे द ने उसके लंड को अपना गुलाम बना कर जकड लिया, और वो लम्बा लंड उसकी चूत में जाकर कहाँ गायब हो गया, पता
ही नहीं चला। और फिर शुरू हुआ वासना का नंगा नाच… उस लड़के ने टिम्मी के उछल रहे मुम्मों को दबा दबाकर लाल
टमाटर जैसा कर दिया। टिम्मी के मम्
ु मे उसके हाथ में आ भी नहीं रहे थे, और वो चीखें मार-मारकर अपनी चत
ू के
परखच्चे उड़वा रही थी।

अह्ह्ह्ह्ह… अह्ह्ह्ह्ह्ह… म्मम्मम्म।

उसकी आवाजें सन
ु कर आस पास के कुछ लोग वहां आ गए और उसे चद
ु ते हुए दे खने लगे।

तभी किसी का हाथ मझ


ु े अपनी कमर पर महसस
ू हुआ। मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए। वैसे तो मैंने अपने शरीर पर ऐसा कुछ
नहीं पहना हुआ था जिसकी वजह से मैं कुछ छुपा सकँू , और वैसे भी मैं यही दिखाने के लिए ही तो यहाँ आई थी। मैंने पीछे
मुड कर दे खा और सच कहूँ तो मैंने चेहरे से पहले उसके लंड की तरफ दे खा। जो करीब उतना ही लम्बा था जितने लम्बे लंड
से टिम्मी चद
ु रही थी, और बिलकुल खड़ा हुआ था। मैंने धीरे -2 अपनी नजरें ऊपर की और उसके कसे हुए शरीर से होते
हुए उसके चेहरे तक आई, और उसका चेहरा दे खते ही मैं चौंक गयी। दरअसल वो हमारे कबीले के सेनापति का बेटा तें जी
था।

मैं: "तें जी… तुम यहाँ…"

तें जी: "आप भी तो हैं यहाँ राजकुमारी जी।"

उसके हाथ मेरी नर्म कमर पर फिसल रहे थे। अगर कबिले में इसने ऐसी हिम्मत की होती तो मैं उसके हाथ कलम करवा
दे ती। पर यहाँ मुझे ऐसी अवस्था में पाकर वो सब समझ चूका था की मैं भी यहाँ मजे लेने के लिए आई हूँ। और वैसे भी,
टिम्मी की चुदाई दे खते हुए मेरी चूत से आग निकल रही थी। अब चाहे तें जी से ही चुदवाना पड़े मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने
वाला था।

तें जी का दस
ू रा हाथ ऊपर उठा और उसने मेरी गले में पड़ी हुई मालाओं के पीछे छिपे हुए मेरे मुम्मे को पकड़ कर मसल
दिया। मेरी आँखे बंद होने लगी, और मैंने अपना सर पीछे करके उसके कंधे पर रख दिया। वो मेरी स्वीकृति समझ गया
और मुस्कुराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड के ऊपर रख दिया। ऐसा लगा जैसे मैंने किसी गर्म डंडे को पकड़ लिया हो।
वो शहरी लड़कों से काफी बड़ा और मोटा था उसका लंड, और वैसे भी हमारे कबिले में ज्यादातर लोगों का लंड शहर वालों के
मक
ु ाबले लम्बा ही था।

रोहित और राजपूत के लंड अपनी चूत में लेकर मैंने अन्दर जाने का रास्ता तो सुगम बना ही दिया था अब दे खना ये था की
तें जी के लंड को अन्दर ले जाने में कितनी तकलीफ होती है । तें जी ने मुझे अपनी तरफ घुमा लिया, और मेरे होंठों को चूमने
लगा। उसके मोटे और बाहर निकले हुए होंठों ने मेरे नाजुक और गुलाबी होंठों को अपने अन्दर फंसा लिया और उन्हें बरु ी
तरह से चस
ू ने लगा, जैसे कोई आम चस
ू रहा हो।

उम्म्म्म्म ्म… अह्ह्ह्ह्ह… मूउछ्ह्ह…

उसके दोनों हाथ मेरी छातियों को मसल रहे थे। मैंने भी अपनी एक टांग उठा कर उसकी जांघ को रगड़ना शुरू कर दिया।
उधर कोमल और दीपा दम साधे टिम्मी की चद
ु ाई दे ख रही थी। मानो सोचने की कोशिश कर रही हो की इतना लम्बा लंड
आखिर टिम्मी ने ले कैसे लिया अपने अन्दर।

टिम्मी झड़ने के काफी करीब थी। और जब वो झड़ी तो सभी को मालुम चल गया। उसकी चीखे ही इतनी तेज थी की एक
बार तो सभी का ध्यान उसकी तरफ चला गया। य्य्य्यीईइ… अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… अह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ माआ… अह्ह्ह्ह्ह्ह…
मैं तो गयी… अह्ह्ह्ह्ह…

136
पर वो लड़का अभी हारा नहीं था। उसने टिम्मी को नीचे उतारा और उसे घोड़ी बना दिया, और पीछे से अपना गीला और
कड़क लंड उसकी चूत में पेल दिया। उसके बालों को पकड़ कर उसके सर को पीछे की तरफ खींचा जैसे घोड़े की लगाम खींच
कर उसे चला रहा हो। फिर उसने पीछे से धपा - धप्प धक्के मार-मारकर एक बार और टिम्मी को झड़ने पर मजबूर कर
दिया। और फिर अपने लंड से ढे र सार सफ़ेद और गाड़ा रस निकाल कर उसकी पीठ के ऊपर निढाल होकर गिर गया। इसी
बीच कोमल और दीपा का ध्यान मेरी तरफ हो गया क्योंकि तें जी ने मझ
ु े अपने सीने से लगाकर मझ
ु े चस
ू ना और चाटना जो
शुरू कर दिया था।

तें जी ने मेरी गले की मालाओं और कमर में बंधा हुआ छोटा सा कपडा भी निकाल दिया और मैं अब उसके और सभी दस
ु रे
कबिले वालों के सामने नंगी होकर चिपक कर खड़ी हुई थी। हालांकि जहाँ हम खड़े हुए थे वहां काफी अँधेरा था पर कोई
अगर पास आकर दे खे तो मझ
ु े पहचान सकता था पर आज मझ
ु े किसी का भी डर नहीं था। मैं खल
ु कर अपने जवान जिस्म
की नुमाईश कर रही थी।

मुझे जब तें जी ने अपनी टाँगे उसके ऊपर रगड़ते दे खा तो वो समझ गया की मैं पूरी तरह से गरम हो चुकी हूँ। पर वो भी
मुझे सीधे तरीके से मजा दे ने के मूड में नहीं था। उसने मेरे होंठों को चूसना छोड़ दिया और मुझे नीचे लिटा कर मेरी चूत के
होंठों को अपने मंह
ु में ले लिया, और उन्हें चस
ू ने लगा। मेरी चत
ू के अन्दर फंसा हुआ ढे र सार रस निकल कर उसके पेट में
चला गया। मेरी जाँघों को अपने कंधे पर फंसा कर उसने अपने मुंह को मेरी टांगों के बीच में पूरा घुसा दिया, और पीने लगा
मेरा रस गटक - गटक कर…

मेरे हाथ उसके घुंघराले बालों को पकड़ कर उसके मुंह को और भी अन्दर खींच रहे थे… तें जी ने अपनी मोटी और सख्त
जीभ को बाहर निकाला और मेरी चत
ू के अन्दर पेल दिया। मझ
ु े तो ऐसे लगा की जैसे लंड ही डाल दिया गया है मेरे अन्दर।
इतनी मोटी और गर्म थी उसकी जीभ की मेरी आँखे बंद सी होने लगी। उसने अपनी मोटे होंठों से मेरी चूत के पतले और
अन्दर की तरफ घुसे हुए होंठों को पकड़ा और उन्हें चूसने लगा।

अह्ह्ह्ह्ह्ह… तेनजी… अह्ह्ह्ह्ह्ह… और तेज चूस… अह्ह्ह्ह सालॆ… अह्ह्ह्ह… 

मेरे मुंह से कुछ न कुछ निकले जा रहा था। मेरी अधखुली आँखे अपने पीछे खड़ी हुई कोमल, दीपा और टिम्मी को दे ख रही
थी। टिम्मी तो अभी चुद कर हटी थी। पर कोमल और दीपा अपनी चूत वाले हिस्से को रगड़ कर मेरी चूत चुस्वायी का
मजा ले रही थी। तें जी ने जल्दी-2 चूस कर मुझे झड़ने के करीब ला दिया… मैं उसे धक्का दे कर पीछे कर रही थी पर उसने
मुझे जोरों से जकड़े रखा और आखिर मेरी चूत के झरने को अपने मुंह में लेकर उसने मुझे पूरा खाली कर दिया। अह्ह्ह्ह…
अह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्म्म्म… अह्ह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ्फ़…

मेरी हालत तो ऐसी हो रही थी की जैसे किसी ने मेरी सारी जान ही निकाल ली हो। अब मुझमे उसके लंड को अपनी चूत में
लेने की हिम्मत नहीं बची थी। पर मेरा अनुमान गलत था। वो उठा और मेरी टांगों के बीच बैठकर उसने मेरी चूत को
फेलाया और अपने लंड का अगला हिस्सा वहां लगाकर एक जोर का झटका मारा। मैं उछल कर उसकी जाँघों पर चढ़ गयी।
और उसने मेरी कमर पर हाथ लगाकर मझ
ु े अपनी तरफ भींच लिया और उसका लम्बा लंड काले सांप की तरह सरकता
हुआ मेरी चूत के बिल में घुसता चला गया।

अह्ह्ह्ह्ह्ह…

मेरे मंह
ु से एक तप्ृ त सी सिसकारी निकल गयी… मैंने तें जी को अपनी बाहों में भींच लिया, और उसके गठीले कन्धों पर
अपने दांत गड़ा दिए। वो नीचे जमीन पर अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था और मैं उसकी गोद में बैठी हुई थी और मेरे पैरों
ने उसकी पीठ को अपनी गिरफ्त में ले रखा था। मेरे पसीने से भीगे हुए मुम्मे उसकी छाती से पिस रहे थे, और वो नीचे से
धक्के मार-मारकर मुझे स्वर्ग के मजे यहीं धरती पर दे रहा था।

अह्ह्ह्ह्ह्ह… उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़… उम्म्म्म्म ्म… अह्ह्ह्ह्ह…आआअह्ह्ह्… ओह्ह्ह्ह्ह तें जी, और तेज करो ना… अह्ह्ह…
कितना लम्बा है तेरा लंड… अह्ह्ह्ह…उम्म्म अब तो रोज तुझसे चुदवाउं गी अह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म…
137
मेरी बातों का उसपर काफी असर हुआ और वो और भी वेह्शी तरीके से मुझे रोंदने लगा… और जल्दी ही मेरे अन्दर एक
और तूफ़ान जन्म लेने लगा… और जल्दी ही उसके लंड से निकल रही पिचकारियों ने मुझे अन्दर से भिगोना शुरू कर
दिया… और उसकी गर्मी को अपने अन्दर महसूस करके मैंने भी फिर से अपना रस बाहर की तरफ फेंकना शुरू कर दिया…
हम दोनों ने एक दस
ु रे को कस कर पकड़ा हुआ था और हम दोनों के शरीर अभी तक कांप रहे थे… ये चुदाई का खेल तो हर
बार और भी मजेदार होता जा रहा था। …P168-172…

तें जी का लंड मेरे अन्दर अभी तक फंसा हुआ था। उसने धीरे से उसे बाहर निकाला और मैंने अपना हाथ नीचे करके अपनी
चूत के अन्दर का मिला जुला पानी बाहर निकलने से बचाया। ऐसा लग रहा था की मेरे अन्दर कोई गुब्बार फंसा हुआ है ।
पर मुझे मालुम था की मैंने क्या करना है । मैंने कोमल की तरफ दे खा और उसे इशारे से अपने पास बुलाया। वो भी मेरी
आँखों की भाषा और मंशा समझ गयी और गहरी साँसे लेती हुई मेरे करीब आई। मैं उठ खड़ी हुई और उसे कंधे से पकड़ कर
नीचे की तरफ बिठा दिया, और अपनी एक टांग उठा कर उसके सर के दस
ू री तरफ रख दी और उसका ऊपर की तरफ उठा
हुआ मुंह मेरी चूत के आगे लगा कर मैंने अपनी उँ गलियों को अपनी चूत से हटा दिया।

अह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्म…

उसके खुले हुए मुंह में मेरे चूत से निकल रहा झरना गिरने लगा। झरने में था मेरी चूत का और तें जी के लंड से निकला
गाडा और नशीला रस। उसकी तो आत्मा तक तप्ृ त हो गयी होगी वो जूस पीकर। उसके चेहरे को दे खा तो पता चला की
उत्तेजना के मारे उसकी आँखे और भी ज्यादा गुलाबी हो चुकी हैं। अब उसे कोई लंड नहीं मिला तो पता नहीं क्या करे गी वो।
पर जब तक वो अपने जिस्म की नुमाईश नहीं करे गी तब तक कोई उसके पास नहीं आएगा। मैंने उसके चेहरे को अपने
हाथों से पकड़कर ऊपर उठाया और अपने हाथों से उसके कपडे उतारने लगी। उसने मझ
ु े मना नहीं किया क्योंकि वो जानती
थी की नंगा तो उसे वैसे भी होना ही है ।

उसकी भूखी नजरें तो बस आस पास खड़े हुए आदिवासी लंडो को घूरे जा रही थी। जैसे उनमें से किसी को लेने की तय्यारी
कर रही हो कोमल। मैंने उसकी टी शर्ट उतार दी और फिर जींस और बाद में ब्रा और पें टी भी। जैसे-2 उसका दधि
ू या शरीर
निकल कर सबके सामने आता जा रहा था वैसे-2 आस पास खड़े हुए नशेडी आदिवासियों की नजरें उसके जिस्म को भख
ू ी
नजरों से दे खकर पागल हुए जा रही थी। उन्होंने आज तक किसी शहरी लड़की को नंगा नहीं दे खा था इसलिए उसके दधि
ू ये
शरीर को दे खकर उत्तेजना आना स्वभाविक ही था।

खासकर उसके मोटे मुम्मे दे खकर वो पागल हुए जा रहे थे, वो जिस अदा के साथ तन कर खड़े हुए थे उसे अपने हाथों में लेने
का लालच हर किसी के मन में था पर हमारे कबीलों में एक शिष्टाचार ये भी होता है की औरत की इच्छा और स्वीकृति के
बिना कोई भी आदमी उसे हाथ नहीं लगा सकता इसलिए अभी तक उसे किसी ने छुआ नहीं था। वो तो बस कोमल के हाथों
चुने जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

मैंने कोमल के कान में सारी बात समझाई और ये भी बताया की वो अपने हिसाब से जिसे चाहे चुन सकती है और अगर
चाहे तो कोई प्रतियोगता रखकर जीतने वाले के साथ मजे ले सकती है ।

कोमल: पर किस तरह की प्रतियोगिता… और जीतने वाले के साथ चुदाई करने से क्या हासिल होगा।

मैं: दे खो, जीतने वाला हमेशा दस


ु रे से ताकतवर ही होता है और अगर वो ताकतवर हुआ तो उसका लंड भी तो जोशीला और
ताकत से भरपरू होगा ना, समझी… …P173…

वो मेरी बात समझकर मस्


ु कुरा दी। मेरे दिमाग में एक आईडिया आया। मैंने कोमल से कहा की वो सभी की सहनशक्ति
की परीक्षा ले, और इसके लिए मेरे पास एक धांसू अडिया भी था। हमारे काबिले के आस पास के जंगलों के पेड़ो के नीचे
जंगली चींटियाँ पायी जाती है जिसके काटने से असहनीय दर्द होता है ।

138
हमारे यहाँ प्रथा है की शादी के वक़्त हर कबिले वाले को उन चींटियों के झुंड के बीच हाथ डालकर अपनी सहनशीलता को
दर्शाना होता है जो इस बात का प्रतीक होता है की वो आने वाली परिस्थितियों में कभी डरे गा नहीं और ऐसा करके उसके
जवान और मर्द होने की भी पष्ु ठी हो जाती है । पर हर कोई इसमें सफल नहीं हो पाता है , कोई डर कर या दर्द से घबरा कर
पीछे भी हो जाता है पर तब तक उसकी शादी नहीं हो पाती जब तक वो चींटियों से भरे बर्तन में 1 मिनट तक हाथ डाल कर
ना खड़ा रहे ।

मैंने तें जी को सब समझाया और उसने बीच में खड़े होकर अपनी भाषा में सभी को जोर से चिल्ला-2 कर वो प्रतियोगिता के
बारे में बता डाला। ये सब सुनकर और दे खकर कोमल के साथ-2 दीपा भी तैयार हो गयी और पलक झपकते ही उसके भी
कपडे मैंने उतार कर नंगा कर दिया और इस तरह से इनाम में अब एक नहीं दो-दो लड़कियां थी, और दोनों ही अपने "एक
रात के दल्
ु हे " को चन
ु ने के लिए उत्साहित भी थी।

तें जी ने जल्दी से एक बैंत से बनी बाल्टी के अन्दर एक पेड के नीचे से ढे र सारी लाल चींटियाँ इकट्ठी कर ली और ऊपर से
एक कपडा बाँध दिया। उस कपडे के बीच में छोटा सा छे द करके उसने अन्दर जाने के लिए रास्ता भी बना दिया। अब एक-
2 करके प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक आदिवासी आने लगे। उनमें से ज्यादातर लोग तो पहली बार ही ये सब ट्राई
कर रहे थे सिर्फ कोमल के नंगे शरीर को दे खकर वो इतने उत्तेजित हो चक
ु े थे की उन्हें किसी भी कीमत पर उसके शरीर से
मजे लेने ही थे।

पहला आदिवासी, जो हमारे ही कबीले का नहीं था वो आगे आया और उसने बीच में हाथ डाला। अन्दर हाथ डालते हुए वो
कांप रहा था, शायद उसे मालुम था की कितना दर्द होने वाला है , 10 सेकंड के अन्दर ही उसके चेहरे पर दर्द की पहली रे खा
आ गयी, और फिर तो उसकी चीखे निकलने लगी। अह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ्फ़… मर्र्र गया… अह्ह्ह्ह्ह… उससे सहन नहीं हुआ
और उसने अपना हाथ खींचकर बाहर निकाल लिया। चींटियाँ उसके हाथ से चिपकी पड़ी थी। उसने पास ही पड़े हुए पानी के
टब में अपना हाथ डाला और रगड़-2 कर उसे साफ़ किया। वो हार चुका था।

उसका हाथ लाल सुर्ख हो चुका था, चींटियों ने जहाँ-2 काटा था वो जगह सूज कर फूल गयी थी। वो बेचारा अपना हाथ लेकर
कोने में चला गया और उसपर पत्तों से बनी ओषधि का लेप लगाकर बैठ गया। कोमल और दीपा इस क्रूर खेल को दे खकर
थोडा घबरा गयी पर जब मैंने उन्हें बताया की ये तो आम बात है हमारे कबिले में और यहाँ तो और भी ऐसे खेल होते हैं
जिसमे जान जाने का भी खतरा रहता है , पर फिर भी लोग घबराते नहीं हैं। ये सुनकर वो थोडा शांत हुई और फिर से खेल
का मजा लेने लगी।

अगले 2-3 लोग भी एक मिनट तक अपना हाथ अन्दर नहीं रख पाए।

अब अगला नंबर हमारे ही कबीले के एक नौजवान का था। उसका नाम जोशान था। वैसे तो उसकी शादी हो चुकी थी पर
शादी के एक ही महीने के बाद उसकी पत्नी मर गयी थी। तब से उसने दोबारा शादी भी नहीं की थी। उसकी नजरें पहले तो
मेरे नंगे शरीर को घूरती रही पर मेरे ओहदे को सोचकर उसने अपनी नजरें कोमल और दीपा की तरफ घुमा दी और अपना
हाथ उस बाल्टी के अन्दर डाल कर खड़ा हो गया।

वो अपनी शादी के समय ये कर चुका था। इसलिए उसे पता था की क्या होने वाला है , जैसे ही उसके हाथों पर चींटियों के
डंक पड़ने लगे,उसके चेहरे पर दर्द के भाव उजागर होने लगे। पर उसने हार नहीं मानी और धीरे -2 एक मिनट बीत गया
और उसने जीत की ख़ुशी में चीखते हुए अपना हाथ बाहर खींच लिया। जोशान ने जब पानी में अपना हाथ धोकर बाहर
किया तो उसके लाल और सज
ू े हुए हाथ को दे खकर कोमल पहले तो घबरा गयी पर जैसे ही उसकी नजरें उसके झटके मार
रहे लंड के ऊपर गयीं वो सब कुछ भूल गयी।

जोशान का लंड था ही ऐसा। पुरे दस इंच का, मोटा, काला, और पूरी तरह से खड़ा होकर सख्त हुआ पड़ा था वो। कोमल के
मुंह से तो लार नीचे गिरते-2 बची। वहीँ दीपा भी फटी हुई आँखों से उसके लंड को दे खकर शायद यही सोच रही थी की इतना
मोटा लंड उसकी छोटी सी चत
ू में जाएगा कैसे…

139
जोशान आगे आया और कोमल और दीपा को अपने दोनों कन्धों पर उठा कर उसी घांस के ढे र की तरफ चल दिया, जहाँ
टिम्मी की चुदाई हुई थी अभी। उन्हें नीचे उतार कर वो खड़ा हो गया… चारों तरफ उनकी चुदाई को दे खने वालों की भीड़
लग गयी।

कोमल ने पहल की और आगे बढकर जोशान के लंड को अपने हाथ में ले लिया। वो इतना मोटा था की कोमल के एक हाथ
की उँ गलियाँ उसे लपेट नहीं पा रही थी। उसने अपने दस
ु रे हाथ को भी लगाया और उसे मसल कर ऊपर नीचे करने लगी।
आस -2 खड़े हुए सभी लोग भी अपने-2 लंड को मसल कर जोशान की किस्मत की सराहना करने लगे। कोमल ने अपने
कोमल से होंठ आगे किये और उनमें उसके लंड को पकड़ कर चूसने लगी। वो परू ा तो जा ही नहीं पा रहा था उसके मुंह में ।
पता नहीं जब उसकी चूत में जाएगा तो क्या होगा।

दीपा भी आगे आई और उसने जोशान के लंड के नीचे लटक रहे टट्टे अपने हाथ में लिए और फिर अपना मुंह वहां लगा कर
उनकी सिंचाई करने लगी। दोहरा मजा मिलता दे ख और वो भी शहर वाली लड़कियों से, ये दे खकर जोशान की आँखें बंद
होती चली गयी और उसने अपने लंड से झटके मार-मारकर कोमल के मुंह की चुदाई शुरू कर दी। …P174-176…

अब आगे की कहानी, कोमल की जब


ु ानी।

*****कोमल***** 
****************
उफ्फ्फ क्या लंड है इसका… ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी गधे का लंड चूस रहि हूँ। इतना मोटा और लम्बा, पता नहीं ये
मेरी चत
ू में कैसे जाएगा। मेरी तो हालत ही खराब होती जा रही थी पर इतने मोटे लंड को अपने अन्दर लेने का लालच भी
बढता चला जा रहा था। मैंने आज तक किसी से भी हार नहीं मानी थी, फिर आज कैसे इस लंड के आगे मैं झुक जाऊ… मैंने
अपने पैने दांतों से उसके मोटे डंडे को खुरचना शुरू कर दिया, वो चिल्लाने लगा और मेरे बालों से पकड़ कर मुझे ऊपर
उठाया और मेरे होंठों को पागल कुत्ते की तरह से नोचने लगा।

मैं तड़प उठी अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…

आज असल में जंगलीपन दे खने को मिल रहा था मुझे। उसके सख्त हाथों में मेरे बाल बरु ी तरह से फंसे हुए थे… दस
ु रे हाथों
से वो मेरी ब्रेस्ट को नोच रहा था जैसे वो मेरे शरीर का हिस्सा ही ना हो। पर मुझे उसका रफ सा अंदाज पसंद आ रहा था।
मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और उसके इशारों पर नाचने लगी। दीपा ने अब उसके लंड को मुंह में ले लिया था और
अपनी जीभ से उसकी मालिश कर रही थी।

मुझे जोशान ने अपनी ताकतवर बाजुओं में उठा लिया और मैंने भी अपनी टाँगे उसकी कमर के चारों तरफ लपेट कर अपने
मुम्मे उसकी छाती से चिपका डाले। मैं कोशिश कर रही थी की अपने निप्पलस को उसकी छाती के निप्पलस के ठीक ऊपर
लगाऊ पर उसकी छाती काफी चोडी थी, मैंने अपनी ब्रेस्ट पकड़ी और उन्हें फेला दिया। अब मेरे निप्पलस उनपर पहुँच पा
रहे थे।

मैंने अपनी उँ गलियों में अपने दाने पकडे हुए थे, जिन्हें मैंने लेजाकर उसके दानो के ऊपर रगड़ दिया और फिर उन्ही
उँ गलियों में उसके दानो को लेकर मैंने दोनों के निप्पलस को जोरों से मसल डाला। मेरे लम्बे नाख़ून दोनों के दानों के ऊपर
चुभ से गए और हम दोनों के मुंह से जोर से आवाज निकल गयी। ऐसा लगा की मैंने उसके अन्दर एक नयी उत्तेजना का
संचार कर दिया है , और और भी खन्
ु कार हो उठा। उसने उत्तेजना में आकर मेरे बालों को पीछे से पकड़कर खींचा और
अपना मुंह सीधा मेरी ब्रेस्ट के ऊपर दे मारा और एक ही बार में अपने बड़े से दे त्यकार मुंह के अन्दर मेरी ब्रेस्ट का आधे से
ज्यादा हिस्सा ले लिया और जोरों से सक्क करने लगा…

मैं तो आवेश में आकर जोरों से चीखने लगी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… म्मम्मम्म उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़… म्मम्मम्म…

140
मेरे हाथ उसके घुंघराले बालों में घूम रहे थे। मन तो कर रहा था की वो मेरी ब्रेस्ट को कच्चा ही खा जाए। आज मैं वहशीपन
के हर बंधन को तोड़ने को अमादा थी। मुझे आज दे खना था की मेरा शरीर ऐसे जंगलीपन को कितना झेल पाता है । उसके
तीखे दांत मेरी सफ़ेद ब्रेस्ट पर लाल निशान बना रहे थे। मुझे पता था की ये निशान एक हफ्ते से पहले नहीं जायेंगे। पर
फिर भी मन चाह रहा था की वो मेरे पुरे शरीर को चूस चूसकर लाल कर दे । मेरी चूत के नीचे उसका लम्बा लंड था जो दीपा
चस
ू रही थी।

अब तो बस मन कर रहा था की किसी तरह से वो मुझे नीचे चादर की तरह से बिछाए और मुझे चोद डाले। मैंने अपना एक
हाथ नीचे किया और उसके लम्बे लंड को सहलाने लगी। वो समझ गया की अब मैं तैयार हु, उसने अपने लंड को दीपा के
मुंह से बाहर निकाला और मेरी चूत के दरवाजे पर रखा।

मेरी चूत से इतना पानी निकल रहा था मानो कोई त्यौहार हो जैसे, और इस त्यौहार का मजा दीपा ले रही थी, क्योंकि सारा
पानी निकल कर सीधा उसके मुंह पर गिर रहा था। और वो कुतिया चटखारे ले लेकर सारा रस पिए जा रही थी। जोशान ने
अपने लंड को मेरी चूत पर लगाकर एक झटका दिया, और उसका लंड मेरी चूत के अन्दर 4 इंच तक एक ही बार मी
खिसकता चला गया… अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… म्म्म्म्म ्म्म्म…

मेरी तो सिट्टी पिट्टी गम हो गयी। मुझे समझ नहीं आया की मैं इस लंड को और अन्दर लू या यही से धक्का दे कर बाहर
निकाल द।ू मैंने आज तक जितनी बार भी चुदाई करवाई थी, यहाँ तक की अपनी पहली चुदाई भी, किसी में भी इतनी
तकलीफ नहीं हुई थी जितनी आज हो रही थी। ऐसा लग रहा था की मेरी चूत के दोनों पाट खोलकर कोई अन्दर डंडा डाल
रहा है । मुझे असहनीय दर्द हो रहा था। मैंने चीखना चाहती थी की तभी उसने अपने मोटे और जंगली होंठ मेरे मुंह के ऊपर
रख कर मझ
ु े चप
ु करा दिया, और एक और करारा झटका मारा।

उम्म्म्म्म ्म्म्म… मेरी चीख उसके मुंह में घुटकर रह गयी।

नीचे से दीपा अपनी आँखे ऊपर करके परू ी चुदाई का सीधा प्रसारण दे ख रही थी, और आस पास खड़े हुए दस
ु रे जंगली
आदिवासी अपने लंड अपने हाथों में लेकर जोरों से मसल रहे थे। शायद सोच रहे होंगे की उनका लंड क्यों नहीं है मेरी टाईट
चूत में । अब तक वो मेरे अन्दर 7 इंच तक जा चुका था। इतना लम्बा तो मैंने पहले भी लिया था। पर मेन बात जो थी वो
थी उसकी मोटाई और सख्तपन, जो किसी भी दस
ु रे लंड से कही ज्यादा था। उसने अपने लंड को बाहर खींचा और फिर से
अन्दर पेला। फिर खींचा और फिर से पेला, और ये काम उसने 8-10 बार किया। मेरे रस में नहाकर अब वो आसानी से
अन्दर आ-जा पा रहा था, और हर बार उसके मोटे लंड की नसें मेरी क्लिट को रगड़ कर चली जाती जिसकी वजह से मुझे
भी अन्दर से मजा आना शरू
ु हो गया…

मेरे मुंह से सिस्कारियां निकालनी शुरू हो गयी। अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्म्म… येस्स्स्स… अह्ह्ह्ह्ह… और तेज…
उम्म्म्म्म ्मह्ह्ह्ह… ऐसे ही… अह्ह्ह्ह्ह…उम्म्म्म्म।

मैं उसके लंड के मजे ले ही रही थी की तभी उसने जोर लगाकर अपना बचा हुआ लंड भी मेरे अन्दर पेल दिया। अब वो परू ा
का परू ा 10 इंच मेरे अन्दर था। मेरी तो आँखे ही उबल कर बाहर आ गयी। आज तक इतना अन्दर कोई नहीं गया था।
ऐसा लग रहा था की मेरे अन्दर का कोई हिस्सा चीर कर उसने अपने लंड को अन्दर धकेल है । पर मजे इतने मिल रहे थे
की अब मुझे वो दर्द महसूस ही नहीं हुआ।

अब तो बस मन कर रहा था की वो मझ
ु े जोर से चोदता चला जाए…

मजे की बात तो ये थी की अभी तक उसने मझ


ु े हवा में उठा कर ही रखा हुआ था। मेरी टाँगे अब थकने लगी थी। मैंने
अपनी पकड़ ढीली कर दी और मैं नीचे लटक गयी। वो समझ गया और अपना लंड बाहर निकाल लिया, मैं अब नीचे घांस
पर जाकर लेट गयी और अपनी दोनों टाँगे फेला कर अपने हाथों से पकड़ ली और उसके लंड का वेट करने लगी। जोशान
मेरी टांगो के बीच बैठा और मेरे अन्दर फिर से अपना लंड फंसाया, और इस बार एक ही झटके में अपना परू ा 10 नम्बरी
मेरे अन्दर डाल दिया।
141
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… हाआआअ… म्मम्मम…

मुझे तो वो आज किसी बॉलीवुड के हीरो से कम नहीं लग रहा था। फर्क सिर्फ इतना था कि मैं उसकी परफोर्मेंस को उसके
लण्ड से जज कर रही थी। उसने झुक कर मेरे दोनों हाथों को दबा दिया और अपने लण्ड से लम्बे-2 झटके दे ने लगा। उसके
हर झटके से मेरे मोटे मम्
ु मे उछल कर मेरे चेहरे से आ टकराते और फिर नीचे जाते… मेरे मंह
ु से काम वासना से भरपरू
संगीत निकलने लगा।

अह्ह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ म्म्म्म्म ्म… उयीईइ… अन्न्न्न… अह्ह्ह्ह्ह… ओग्ग्ग्ग्ग ्ग… येस्स येस्स्स्स्स ्स्स्स… येस्स्स्स…
अह्ह्ह्ह्ह्ह… आई एम कमिंग… अह्ह्ह्ह।

वो क्या मेरी अंग्रेजी समझता… वो तो मेरी चूत के परखच्चे उड़ाने में लगा रहा। जिसमें से मेरा रस निकल कर बाहर की
तरफ जाने लगा पर उसके लण्ड के धक्के उसे वापिस अन्दर ही धकेल रहे थे। झड़ने के कारण मेरी आँखों के सामने अँधेरा
सा छा गया था। मैं बेसुध सी होकर अपनी आँखे बंद किये हुए वहीं पड़ी रही। और वो मुझे क्रूरता के साथ चोदता रहा। मैंने
अपनी आँखे खोली तो पाया की आस पास के सभी लोग अपने-2 लण्ड को मसलते हुए हमारे चारों तरफ घेरा बना कर खड़े हैं
और मेरे हिलते हुए मम्
ु मे दे खकर अपने होंठों पर जीभ फेराकर मेरी चद
ु ाई का मजा ले रहे हैं। मझ
ु े उनके चेहरे दे खकर बहुत
अच्छा लग रहा था।

आखिर मेरी वजह से उनके लण्ड को अपनी गर्मी से निजात जो मिल रही थी। मैं एक-2 करके सभी के चेहरे को दे खकर
अपनी जीभ अपने होंठों पर फेराने लगी। वो भी मेरी तरफ से रिस्पोंस आता दे खकर और तेजी से अपने लण्ड मसलने लगे।
तभी जोशान ने मेरी चत
ू से अपना लण्ड बाहर खींच लिया और वो भी खडा हो गया। शायद वो भी झड़ने वाला था। खड़ा
होकर वो भी अपने लण्ड को मसलने लगा, और अगले ही पल उसके लण्ड से सफ़ेद रं ग की पिचकारी निकल कर मेरे ऊपर
आ गिरी।

मैं कुछ समझ पाती, मेरे दांयी और से एक और पिचकारी मेरे ऊपर आई, और फिर तो झड़ी सी लग गयी। कभी इधर से,
कभी उधर से, कभी मेरे सर के पीछे से, कभी आगे से। मेरा परू ा शरीर सफ़ेद चादर से ढक सा गया। मेरी आत्मा आज अन्दर
तक तप्ृ त हो गयी थी। मैंने अपनी उँ गलियों से सारा रस समेट-2 कर अपने मुंह में ले जाना शुरू किया और सच में वो
जंगली खाना मुझे बहुत ही स्वादिष्ट लगा।

जोशान का लण्ड पूरा खाली हो चुका था। पर अभी तक उसकी अकड़ नहीं गयी थी। मेरी नजरें उसके लण्ड के ऊपर ही जमी
हुई थी। जैसे आँखों ही आँखों में उसे थेंक्स बोल रही थी मैं। तभी मझ
ु े उसके लण्ड में फिर से हरकत होती दिखाई दी, उसकी
नसें चमकने लगी। मैं सोच ही रही थी की ये क्या है तभी उसके पाईप में से सोने के रं ग की गर्म धार निकल कर मेरे पेट पर
आ गिरी। वो झड़ने के बाद मेरे ऊपर पेशाब कर रहा था। वो काफी गंदा लगा मुझे पर अगले ही पल एक सही मायने की
स्लट होने का एहसास हुआ।

मैंने अपनी आँखे बंद कर ली और उस पानी की बोछार का मजा लेने लगी। पर बात यहीं आकर नहीं रुकी। आस पास खड़े
हुए दस
ु रे आदिवासी भी अपने-2 लण्ड की टं कियां खोलकर मेरे ऊपर खड़े हो गए, और मुझे अपने गरमा गरम मूत से
नहलाने लगी। मेरा शरीर जो थोड़ी ही दे र पहले सफ़ेद रं ग के चिपचिपे रस में डूबा हुआ था अब गर्म और पीले रं ग के पानी में
नहाकर चमक रहा था। मेरा चेहरा, होंठ, आँखे, मुम्मे, पेट, चूत, टाँगे सब कुछ नहला डाला उन्होंने, और सब अपने-2 लण्ड
की आखिरी बँद
ू को भी मेरे ऊपर टपका कर इधर उधर हो गए। मैं वहां पड़ी थी, गीली हो चुकी घास पर। अपनी चुदी हुई चूत
और अपने चिपचिपे शरीर को सहलाती हुई।
… Page 177-180…

आज पहली बार मुझे महसूस हुआ था की चुदाई होती क्या है , मेरा एक बार की चुदाई से कभी मन नहीं भरा पर आज जो
चुदी थी उसको महसूस करके लग रहा था की मुझे अगले 2 दिनों तक चुदाई की जरुरत महसूस नहीं होगी। पर ये तो वक़्त
ही बतायेगा की होगी या नहीं।

142
तभी जोशान ने मुझे उठाया और अपने कंधे पर उठाकर झरने की तरफ चल दिया। मिशा और टिम्मी के साथ-2 दीपा और
तेजी भी हमारे पीछे आ गए, बाकी के आदिवासी वहीं अपनी मस्ती में लगे रहे । मेरी तो हालत नहीं थी कुछ और करने की
पर झरने की तरफ जाता हुआ दे खकर यही सोचा शायद मुझे नहलाने के लिए ही ले जा रहा होगा। झरने पर पहुंचकर वो
मुझे उठाये हुए ही अन्दर उतर गया और ठन्डे पानी से रगड़-2 कर मेरे जिस्म से वीर्य और पेशाब के अंश मिटाने लगा।

उसके सख्त हाथों को अपने कोमल से शरीर से खिलवाड़ करता दे खकर मुझे बहुत आनंद आ रहा था। वो मेरे स्तनों को बड़ी
बेरहमी से मसल रहा था। उसकी उँ गलियों की छाप मेरी छातियों पर चिपक कर रह गयी। पर जिस अंदाज से उसने चुदाई
के वक़्त मेरी ब्रेस्ट को चूसा था उसके मुकाबले ये मसलना मुझे काफी कम लगा। मेरी नजर दीपा पर गयी, जिसे तेजी ने
एक बड़ी सी चट्टान पर बिठा रखा था और वो उसकी चूत को चाट रहा था। मिशा भी टिम्मी के साथ नहाते हुए उसकी चूत
को चस
ू कर उसमें से जंगली रस को निकाल-2 कर पी रही थी। जोशान मेरे पीछे था और उसके खड़े हुए लण्ड को मैं अपने
कूल्हों पर साफ़ महसूस कर पा रही थी। मन तो कर रहा था की इसे एक बार और ले लू अपनी चूत में , क्योंकि गाण्ड में लेने
का तो सवाल ही नहीं था, इतने मोटे लण्ड से अपनी गाण्ड थोड़े ही फटवानी थी मुझे।

पर चूत में लेने की भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी, मन तो तैयार था पर तन नहीं। पर तभी उसने मुझे नीचे झुकाया और
अपने लण्ड का अगला सिरा मेरी गाण्ड के छे द पर लगाया, मेरे तो परु े शरीर के रोंगटे ही खड़े हो गए। मैं बिदक कर उस से
अलग होकर खड़ी हो गयी।

जोशान: "क्या हुआ… आओ तुम्हें असली मजा दे ता हूँ।"

मैं: "अरे नहीं… पागल हो क्या… अपने लण्ड का साईज दे खा है , नहीं बाबा… मझ
ु से नहीं होगा।"

दीपा और मिशा भी हमारी बातें सन


ु कर हमारी तरफ ही दे खने लगी। दीपा तो हे रानी से मेरी तरफ दे ख रही थी, शायद उसे
विशवास नहीं हो पा रहा था की मैं किसी का लण्ड लेने में ना नुकुर कर रही हूँ। उसने तो मुझे हमेशा से ही एक रोल मॉडल के
रूप में दे खा था। जिससे प्रेरणा लेकर ही वो कितनी बार चुद चुकी थी। पर जोशान का लण्ड था ही ऐसा की अच्छे -अच्छो का
पसीना निकल जाए।

दीपा भी मेरी बात समझ गयी। पर जोशान को कौन समझाए, उसपर तो कोई भत
ू सवार था, वो किसी भी कीमत पर मेरी
गाण्ड मारने पर उतारू था।

तभी दीपा को एक आईडिया आया। वो जोशान से बोली- "सुनो, अगर तुम गाण्ड ही मारना चाहते हो तो मैं तुम्हें एक ऐसी
गाण्ड दिलवा सकती हूँ जिसे मारकर तुम्हें काफी ख़ुशी होगी और उसे भी।”

मैंने हे रानी से दीपा की तरफ दे खा पर वो मुस्कुरा कर रह गयी, और दस


ू री तरफ जोशान को भी एक नए माल की गाण्ड
मारने का मौका मिल गया। उसने फ़ौरन हाँ कर दी।

दीपा: "पर तब तक तुम कोमल की चूत को चाटकर उसे मजा दो, उसकी सूजी हुई चूत को अपनी गरम जीभ की सिकाई
दे कर उसे थोडा आराम पहुँचाओ।”

वो मान गया और आगे आकर मेरी चत


ू के ऊपर अपनी गर्म जीभ को रखकर उसे चाटने लगा।

अह्ह्ह्ह्ह्ह… म्मम्मम…

ऐसा लगा मेरी चूत के ऊपर किसी ने गीला और गर्म कपडा रख दिया हो।

और वो अपने कपडे को वहां रगड़ने लगा जिससे मुझे बड़ा आराम मिला। और जल्दी ही उसकी जीभ की गर्मी से मेरी चूत
की परतें पिघलने लगी, उसमें से सरोज रज रिसकर मेरे नीचे के होंठों पर ओस की बंद
ू ों की तरह तेरने लगा, और वो जंगली
कुत्ता अपनी कठोर और गर्म जीभ से मेरी सारी चिकनाई को चाटता चला गया। और अगले ही पल उस चिकनाई का मेन
स्रोत्र अन्दर से ज्वार की तरह आया और उसके चेहरे को भीगोता चला गया। वो भी शायद जल्दी से मुझे फारिग करके गाण्ड

143
मारने के चक्कर में था। इसी बीच तेजी अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि दीपा की चूत में बजा रहा था। जिसे सुनकर दीपा
मस्त हुए जा रही थी।

अह्ह्ह्ह्ह्ह… उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़… मा… क्याचोदते हो। तुम जंगल वाले… अह्ह्ह्ह… उन्न्न्नग्ग…

उसकी तो सीटियाँ बजवा दी तेजी ने… अपने लण्ड का कमाल दिखाकर उसने शहर की लड़की की चीखे निकलवा डाली।
मिशा और टिम्मी ने एक दस
ु रे को चस
ू -चस
ू कर निढाल कर दिया। अब हम सभी मिलकर वापिस अपने केम्प यानी उनके
काबिले कि तरफ वापिस चल दिए। मिशा ने तेजी और जोशान को अलग से आने को कहा ताकि कोई भी कबीले का व्यक्ति
उन्हें उनके साथ ना दे ख पाए।

हम तीनों अपने-2 कपडे पहनकर वापिस अपने टें ट में पहुँच गए।

मैंने जाते ही दीपा से पुछा- "ये किसकी गाण्ड फड़वाने के चक्कर में है तू। तूने दे खा नहीं। कितना लम्बा और मोटा है उसका
लण्ड। मेरी चूत का तो बाजा बजा दिया उसने। गाण्ड का तो पता नहीं क्या हाल करे गा।”

वो मुस्कुरा कर मेरी सारी बातें सुनती रही। और बोली- "तू फिकर मत कर। मैं जिसकी गाण्ड मरवाने की बात कर रही हूँ वो
सिर्फ गाण्ड ही मरवा सकती है । चत
ू नहीं। और अपनी गाण्ड ऐसे लण्ड से मरवाकर उसे भी काफी ख़श
ु ी होगी।”

मैं उसकी बात सन


ु कर सोच में पड़ गयी और अगले ही पल मैं समझ गयी की वो किसकी बात कर रही है । वो रोज़ मित्तल
की बात कर रही थी। वही जो गर्ल्स हॉस्टल में उनके साथ ही रहता है । उनके जैसा बनकर। मैं उसकी दरू दर्शिता दे खकर
उसकी तारीफ करे बिना नहीं रह सकी।

मैं और दीपा भागकर रोज़ के टें ट में गए और उसे बाहर बुलाया।

रोज़: "आज मेरी कैसे याद आ गयी तुम दोनों को। पता है यहाँ आकर मैं कितनी बेचैन हूँ। कितने लम्बे-2 लण्ड वाले आदमी
घूम रहे हैं यहाँ। उन्हें दे खकर तो मेरी पैंटी पूरी गीली ही रहती है । और तुम दोनों तो अपने मजे लेने में ही लगे हुए हो। मेरी
तो फ़िक्र ही नहीं है तुम दोनों को…” वो नाराज होते हुए बोली।

दीपा: "नाराज मत हो रोज़ डार्लिंग। आज तू ये समझ ले की ऊपर वाले ने तेरी दआ


ु सन
ु ली। एक कबीले का ही आदमी है ,
जो सिर्फ गाण्ड ही मारना चाहता है । इसलिए तझ
ु े बुलाने आये हैं।”

दीपा की बात सुनकर रोज़ का चेहरा खिल सा गया… वो बोली: "वाव… जंगली लण्ड और वो भी मेरी गाण्ड के लिए… तुम
दोनों सच में मेरी बेस्ट फ्रेंड्स हो… लेट्स गो…" और वो हमारे साथ ही हमारे टें ट की तरफ चल दी। टें ट में पहुंचे तो दे खा की
वहां तेजी और जोशान पहले से पहुँच चक ु े हैं। जोशान तो नंगा होकर बस आने वाली गाण्ड का वेट ही कर रहा था।

रोज़ ने फ्लोरल वाली एक शोर्ट फ्राक पहनी हुई थी… नीचे उसकी चिकनी टाँगे चमक रही थी।

दीपा: "जोशान। ये है हमारी सहे ली रोज़, पर एक बात का ध्यान रखना, ये सिर्फ तुमसे अपनी गाण्ड ही मरवाएगी। और कुछ
करने की कोशिश मत करना…"

उसने हाँ में सर हिला दिया… उसकी मोटी और उभरी हुई गाण्ड दे खकर वो वैसे ही पागल हुए जा रहा था। और उसका लण्ड
दे खकर रोज़ के तो होश ही उड़ गए।

वो घबराकर मुझसे बोली- "कोमल… ये…ये जंगली तो मेरी गाण्ड के परखच्चे उड़ा दे गा…" वो डर रही थी।

मैंने उसे समझाया…" दे ख रोज़, तूने ही कहा था न की तझ


ु े अपनी गाण्ड मरवानी है । मैंने अभी इससे अपनी चूत मरवाई है ,
सच में , काफी मजा आया। तू भी अपनी गाण्ड मरवा और मजा ले।” वो बेचारी फंस चुकी थी। अब उसके पास कोई भी चारा
नहीं था।

144
वो नीचे घोड़ी बन कर बैठ गयी। जोशान उसके पीछे आकर अपने घुटनों के बल खड़ा हो गया। और उसकी फ्रोक को ऊपर
उठाया। उसके चोड़े और चिकने कुल्हे सबके सामने आ गए… उनकी चिकनाहट दे खकर तो मुझे भी ईर्ष्या सी होने लगी…
उसने पिंक कलर की पैंटी पहनी हुई थी, जिसपर छोटे -2 हर्ट्स बने हुए थे। और उसकी गाण्ड के छे द वाली जगह वाला कपडा
एक बड़े से हार्ट शेप में फटा हुआ था… और उसके आर पार उसका गुलाबी रं ग का गाण्ड का छे द साफ़ नजर आ रहा था।

उसकी कारीगरी दे खकर मैं मुस्कुरा उठी।

मैंने जोशान से कहा: "तुम अपना लण्ड इसकी गाण्ड में इसी छे द से डाल दो। मजा आयेगा…"

उसने अपने लण्ड पर ढे र सारा थूक मला और उसके फटे हुए छे द में घुसेड दिया…

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… मर्र्र्र्र … गयी… अह्ह्ह्ह्ह…

जोशान ने पीछे खींचा और फिर से एक धक्का मारा… फिर खींचा और फिर से धक्का मारा… ऐसे करते-2 उसने अपना
आधे से ज्यादा लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दिया… और रोज़ की हालत दे खने लायक थी, वो अपनी जीभ बाहर निकाले उसके
हर धक्के को सहे जा रही थी। और करते-2 आखिरकार जोशान ने अपना पूरा लण्ड उसकी चौडी गाण्ड में परू ा उतार दिया…

उसके हाथ रोज़ की चिकनी गाण्ड के ऊपर फिसल रहे थे… उसने जोश में आकर उसकी पैंटी के चीथड़े उड़ा दिए… और अब
हमारे सामने थी रोज़, जो अपनी गाण्ड मरवा रही थी। और उसके आगे… आगे उसका 5 इंच का लण्ड खड़ा होकर पीछे से
आ रहे हर झटके की वजह से टनटना कर हिचकोले खा रहा था। पर ये सब सिर्फ मैं, मिशा, तेजी और दीपा ही दे ख पा रहे
थे। जोशान तो बस उसकी गाण्ड मारने में लगा हुआ था…

उसकी गाण्ड मारते-2 जब वो थक सा गया तो जोशान ने रोज़ को अपने ऊपर खींच लिया और नीचे लेट गया। अब रोज़ का
चेहरा जोशान के पैरों की तरफ था। और वो पीठ के बल लेटा हुआ उसकी गाण्ड मारने में लगा हुआ था। और रोज़ भी ऊपर
से उछल-2 कर उसके पुरे लण्ड को निगलने में लगी हुई थी। और दसु रे हाथ से अपने लण्ड को मसल कर अपने ओर्गास्म के
काफी करीब पहुँच चुकी थी…

जोशान समझ रहा था की वो अपनी चूत मसल रही है । उसे क्या मालुम था की वो किसकी गाण्ड मार रहा है । उसने भी
अपना हाथ आगे किया और उसकी चत
ू को मसलना चाहा पर जैसे ही उसके हाथ में रोज़ का 5 इंच लम्बा लण्ड आया तो
उसे समझते हुए दे र नहीं लगी की असली माजरा क्या है … पर गुस्सा होने के बजाये उसमें दग
ु नी उत्तेजना आ गयी और
उसने अपने धक्कों की स्पीड और तेज कर दी। और रोज़ के लण्ड को मसलते हुए अपने लण्ड के धक्के उसकी गाण्ड में
मारने लगा।

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्म्म…

ऐसा उत्तेजना से भरा दृश्य दे खकर मेरी चूत से भी पसीने निकलने शुरू हो गए।

आखिरकार एक तेज हुंकार के साथ जोशान के लण्ड ने रोज़ की गाण्ड में अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। और जैसे ही रोज़
को अपनि गाण्ड में गर्म वीर्य का एहसास हुआ, उसके लण्ड ने भी पिचकारियाँ मारकर अपना सफ़ेद रस बाहर की तरफ
फेंकना शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था की जोशान का रस उसकी गाण्ड में से होता हुआ, लण्ड के रास्ते बाहर निकल रहा
है । दोनों मजे लेते हुए, झटके खाते हुए, एक दस
ु रे के ऊपर लुडक गए… रोज़ के सामने उसकी फटी हुई पैंटी पड़ी थी… और
उसके पीछे थी उसकी फटी हुई गाण्ड।
…Page 018-0184…

बेचारा रोज़ किसी तरह से लडखडाते हुए उठा और अपने टें ट की तरफ चल दिया। तेजी और जोशान भी बाहर निकल गए।
उनके जाते ही मैंने और दीपा ने चैन की सांस ली आज की रात उन्होंने जितने मजे लिए थे, उतने तो आज तक कभी नहीं
आये थे।

145
हम दोनों सुबह तक सोते रहे , सुबह हो चुकी थी और मेरी नींद भी खुल चुकी थी पर उठने का मन नहीं कर रहा था, तभी मुझे
ऐसा लगा की दीपा मेरी चूत को चाट रही है । हम दोनों वैसे भी नंगे ही सोये हुए थे और परू ी रात एक दस
ु रे के नंगे शरीर को
सहलाते रहे थे, और सुबह उठकर उसका मेरी चूत चाटना इस बात का संकेत था की वो काफी उत्तेजित हो चुकी थी। मैं भी
नींद की खुमारी में सिसकारी मारते हुए, अपनी अधखुली आँखों को भींचे चूत चटाई का मजा लेने लगी।

उसने एक ऊँगली मेरी गाण्ड के अन्दर डाल दी और जीभ मेरी चूत के अन्दर। ऐसा लग रहा था की एक साथ दो- दो
मिनिएचर लण्ड मेरे अन्दर घुस गए हैं। तभी मेरी ब्रेस्ट पर मुझे किसी के गीले होंठों का एहसास हुआ। मैं चौंक गयी और
दे खा की वो दीपा है , जो मेरे सिसकारी मारने से उठ गयी है और मेरी ब्रेस्ट चूस रही है । अगर दीपा ऊपर है तो नीचे कौन है
जो मुझे स्वर्ग के मजे दे रहा है । मैंने एक झटके से चादर अपने नंगे जिस्म से उतार फेंकी और दे खा की मेरी टांगो के बीच में
प्रिंसिपल मेडम थी और वो भी परू ी नंगी… मैं उन्हें ऐसी अवस्था में अपने टें ट में सब
ु ह-2 दे ख कर है रान रह गयी।

मैं: "अरे मेम… आप… इतनी सुबह-2 यहाँ…"

उन्होंने मेरी चाशनी से भरी कटोरी से मुंह बाहर निकाला और बोली: "तुम तो आजकल इतनी बिजी हो की मेरे पास आने का
समय ही नहीं मिलता। मैं रात को भी आई थी पर तम
ु शायद कहीं और मजे ले रही थी। बस इसलिए चली आई और तम्
ु हें
नंगे सोते हुए दे खकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भी अपने कपडे उतार फेंके और तुम्हारी चूत में से रात को किये हुए
गुनाहों के सबूत ढूँढने में लग गयी।

और सबूत मिल भी रहे हैं मुझे… ये दे खो…”

उन्होंने अपनी जीभ निकाल कर दिखाई, जिसमें जोशान के लण्ड से निकले माल को उसने मेरी चूत से खोद निकाला था
और उसे चस
ू कर मजे ले रही थी।

मुझे क्या प्रॉब्लम थी, मैं भी आँखे बंद किये लेट गयी और वो फिर से मेरे आनंद सागर में गोते लगा लगाकर उसमें से
खजाना निकालने लगी।

दीपा भी परू ी उत्तेजित हो चक


ु ी थी। मेरी ब्रेस्ट चस्
ू ते-2 वो मेरे ऊपर ही चढ़ गयी और मेरे हाथों को नीचे दबा कर, अपनी
चुचियों को मेरी चुचियों से दबा कर, मुझे जोरों से स्मूच करने लगी। उसकी गाण्ड सीधा मिनाक्षी मेडम के मुंह से टकरा रही
थी, जो मेरी चूत का तीया पांचा करने में लगी हुई थी। दीपा थोड़ी नीचे हुई और उसकी चूत की फांको के बीच मेडम की नाक
को फंसा लिया और ऊपर नीचे होकर उसकी घिसाई करने लगी… वो मेडम की तराशी हुई नाक की मालिश करके उसे अपने
रस से और भी चमक दे ने में लगी हुई थी।

अचानक मेडम ने अपना चेहरा ऊपर किया और अपने दोनों हाथों से उन्होंने दीपा की जांघो को पकड़ कर ऊपर उठा लिया।
मेडम के हाथों की ताकत दे खकर दीपा के साथ-2 मैं भी है रान रह गयी। उन्होंने दीपा को किसी फूल की तरह से उठाया और
उसकी टांगो को अपने दोनों कंधे के ऊपर रखकर उसकी मचलती हुई रस बिखेरती चूत को अपने होंठों से लगा कर उसका
रसपान करने लगी। अब मेडम उठ कर बैठ गयी थी और उनकी चूत सीधा मेरी चूत के ऊपर थी, दीपा का चेहरा अभी भी मेरे
मंह
ु के पास ही था और वो मझ ु े चम
ू ने में लगी हुई थी। एक तरह से दे खा जाए तो हम तीनो के बीच एक त्रिकोण बना हुआ
था, मैं लेटी हुई थी, मेडम मेरी चूत के ऊपर बैठी हुई थी। और दीपा की चूत को अपने मुंह में फंसा कर उसके मुंह की ढलान
मेरे चेहरे के ऊपर थी।

कुल मिलाकर हम तीनो को मजा आ रहा था। अचानक दीपा जोरों से चिल्लाने लगी, अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म ्म…
ओह्ह्ह्ह्ह्ह… मेम… येस्स्स्स… ऐसे ही… चस
ु ो नाआअ… मेरी क्लिट को पकड़ो… हां… वही… है … येस्सस्सस्स…
उम्म्म्म्म अह्ह्ह्ह्ह… आई एम ् कमिंग… मेम…

उसके बाँध के टूटने का समय हो गया था। उसका चेहरा बिलकुल मेरे ऊपर था, और ओर्गास्म से होने वाले उत्तेजना के
इफ़ेक्ट मैं उसके चेहरे पर साफ़ दे ख पा रही थी। बड़ी ही सेक्सी लग रही थी वो मुझे उस वक़्त… मैंने उसके चेहरे को पकड़ा

146
और अपने होंठों से उसे जोर जोर से चूसने लगी। और अपनी चूत से धक्के मारकर मेडम की चूत को भी गरम करने लगी।
और जैसे ही बाड़ आई, मेडम बड़ी कुशलता के साथ उसका सारा रस पी गयी, एक-दो बूंदे मेरे पेट के ऊपर गिरी। जिन्हें मैंने
अपनी उँ गलियों से समेट कर अपने और दीपा के होंठों के बीच घुसेड दिया और दोनों ने चटकारे मार-मारकर उसका ताजा
निकला रस पी लिया।

उसकी चूत को बुरी तरह से चूसकर मेडम ने उसे छोड़ दिया। और वो मेरे ऊपर से उतर कर नीचे लुडक गयी। अब मुझे भी
प्यास लगने लगी थी। मुझे भी कुछ पीना था जल्द से जल्द… मैंने मेडम की टाँगे पकड़ कर अपनी तरफ खींची और अगले
ही पल वो 69 की पोसिशन में मेरे ऊपर थी। हम दोनों ने एक दस
ु रे की चूत की खुदाई करके उसमें से मीठे जल को निकालने
की मुहीम शुरू कर दी और अगले 5 मिनट के अथक प्रयास के बाद हमारी मेहनत सफल भी हो गयी और हम दोनों ने एक
दस
ु रे का अमत
ृ पान करके अपनी-2 प्यास बझ
ु ाई।

थोड़ी दे र तक ऐसे ही लेटने के बाद वो बोली: "चलो अब उठ जाओ और बाहर चलो, नाश्ते का समय हो गया है । आज हमें
ट्रे किंग के लिए जाना है । अपने-2 कपडे एक बेग में ले लेना, रात को दे र हो गयी तो शायद ऊपर ही रुकना पड़ेगा।”

हमने अपने-2 कपडे पहने और बाहर निकल गए। नाश्ता किया और इधर-उधर की बाते करते हुए मस्ती करने लगे। रोज़
का चेहरा उतरा हुआ था, उसकी गाण्ड फटने का गम वो अभी तक मना रहा था। राहुल, रोहित और राजपूत हमारे साथ ही
बैठकर नाश्ता कर रहे थे। और ट्रे किंग में होने वाले एडवेंचर के बारे में और रास्ते में मिलने वाले मजे के बारे में बात कर रहे
थे।

तभी मिशालिका वहां आई।

मैं: "अरे मिशा… कैसी हो… तम


ु भी चल रही हो न ऊपर…”

मिशा: "हाँ बिलकुल… और मेरे पिताजी भी साथ में चल रहे हैं। दरअसल रास्ते में एक दस
ू रा कबीला आता है । उनका हमारे
साथ रहना जरुरी है । वर्ना वहां के लोग हमें कोई नुक्सान भी पहुंचा सकते हैं। उन्हें आस पास के कबिले के सभी लोग
पहचानते हैं, वो साथ रहें गे तो कोई परे शानी नहीं होगी।”

उसकी बात सुनकर हमें भी ख़ुशी हुई।

हम सभी निकलने की तेय्यारी करने लगे।


…Page 185-187…

मुझे तो मिशा ने जब से बताया था की उसके पापा भी चल रहे हैं, मेरी आँखों के सामने तो बस उनका विशालकाय शरीर ही
घम
ू रहा था। मझ
ु े याद आने लगा की कैसे उनके लण्ड वाली जगह फूल कर अन्दर के माल की लम्बाई और मोटाई बयान
कर रही थी। वो सब याद करते-२ मैं मुस्कुराने लगी।

मुझे मुस्कुराते हुए दे खकर मिशा ने पूछा: "क्या हुआ कोमल… लगता है मेरी बात सुनकर तुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी हुई है ।”

मैं: "अब तूने बात ही ऐसी बताई है की मेरी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही।” मेरी बात का मतलब शायद वो समझ गयी थी।
उसने मुझे इशारा किया और एक कोने में आने को कहा, मैं उसके पास जाकर खड़ी हो गयी।

मिशा: "अब बताओ। क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग में …"

मैं: "तुम खुद समझदार हो यार… और मुझे पता है की तुम समझ ही गयी होगी।”

मिशा: "हाँ… समझ तो गयी हूँ पर फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूँ।”

मैं: "यार… सच कहूँ। पहले दिन से ही। जब से मैंने तेरे पिताजी का। घास-फूस की पीछे छुपा हुआ जंगली सांप दे खा है , मेरा
मन उसे अन्दर लेने का कर रहा है ।”
147
मिशा: "अन्दर लेना तो दरू की बात है । तू उसे अपने मुंह में भी नहीं ले सकती। इतना मोटा लण्ड है मेरे पिताजी का।”

मैं आश्चर्य से उसे दे खने लगी: "मतलब… तूने अपने पिताजी का लण्ड दे खा है ।”

उसने हाँ में सर हिलाया।

मैं: "बता ना यार… कब, कैसे…”

मिशा: "दे ख तू ये बात किसी से मत कहना जो मैं तझ


ु े बताने जा रही हूँ। दरअसल मेरे पिताजी का लण्ड परु े कबिले में सबसे
मोटा और लम्बा लण्ड है । और कबीले का सरदार बनने की सबसे बड़ी विशेषता भी यही होती है । की किसका सबसे मोटा
और लम्बा है । क्योंकि परु ाने ग्रंथों के अनुसार नारी को आनंद पहुचाने में मोटे और लम्बे लण्ड सबसे आगे रहते हैं। और
हमारे कबीले की प्रथा है की गाँव की हर कंु वारी लड़की को सबसे पहले कबीले के सरदार के साथ एक रात गज
ु ारनी होती है ।
और मैंने अपने पिताजी को अपनी हर सहे ली और दस
ू री कंु वारी लड़कियों की चूत के परखच्चे उड़ाते हुए दे खा है ।”

मैं: "दे खा है … पर कैसे…”

मिशा: "छुप कर। क्योंकि पिताजी हर रात किसी ना किसी कंु वारी लड़की या फिर जो उन्हें पसंद आ जाए, उसके साथ मजा
करते हैं। और ये सब मैं उनके झोपड़े में झांककर चुपचाप दे खती हूँ।”

मेरे अन्दर उत्सुक्तता बढती जा रही थी।

मैं: "पर ये सब दे खकर तुम्हें क्या मिलता है । तुम तो उनकी बेटी हो।”

मिशा कुछ दे र तक चुप रही और फिर बोली: "मेरी सहे लियां जिस तरह से उनके बारे में बताती हैं। और उन्हें वो सब करते
हुए दे खकर मेरा मन भी करता है … की… वो… मेरे साथ भी वो सब करे … पर मैं उनकी बेटी हूँ। इसलिए अभी तक कंु वारी
हूँ। मतलब अभी तक तो थी। काश… मैं उनकी बेटी ना होती तो वो मेरे साथ भी वो सब करके मझ ु े जन्नत के मजे दे ते। जो
कबीले की दस
ू री लड़कियों को वो दे ते हैं।”

मैं: "ह्म्म्म… पर ये सब करके उन्हें क्या मिलता है । मतलब कबिले के लोग ये सब किसी दबाव में आकर करते हैं या
अपनी मर्जी से।”

मिशा: "दरअसल हमारे कबीले वालों का मानना है की जरावा जनजाति के कुल दे वता के बाद कबीले का सरदार ही सबसे
शक्तिशाली होता है और उसकी सेवा करना सबका परम कर्त्तव्य होता है । इसलिए उनके पास अपनी बेटियां भेजने में उन्हें
कोई संकोच नहीं होता, वो मानते हैं की कंु वारी लड़कियों का भोग लगाकर उनकी शक्ति बढती है । और वो दस
ु रे कबीले के
लोगो से हमारी रक्षा करते हैं।”

उसके तर्क वितर्क सुनकर मुझे बड़ा अजीब सा लगा। पर जो भी हो, कबीले के भोले भाले लोगों और परु ानी प्रथा की वजह से
सरदार के काफी मजे हैं…

मैं: "मतलब… तुम भी चाहती हो की तुम्हारे पिताजी तुम्हारे साथ भी वो सब करे … मतलब तुम्हारी चुदाई। है ना…"

उसने मायूसी से सर झुक लिया और बोली: "हां… पर मुझे पता है की ये सब नहीं हो पायेगा…"

मैं: "अरे … मेरे रहते हुए तुम ऐसी बातें मत करो… मैं करवाउं गी ये सब… बस तुम दे खती जाओ। कोमल के कारनामे।”

मेरी बात सुनकर वो भी आश्वस्त हो गयी क्योंकि अब तक वो इतना तो जान ही गयी थी की जो मैं ठान लेती हूँ वो करके ही
रहती हूँ।

अब तो बस इन्तजार था ट्रे किंग पर चलने का।


…Page 188-189…

अब मैंने मन में ठान ही लिया था की मैंने तो सरदार का लण्ड लेना ही है … मिशा को भी दिलवाना है ।
148
थोड़ी दे र में ही सरदार भी वहां आ गए, और हम सभी लोग मिलकर ट्रे किंग पर चल दिए। सरदार यानी मिशा की पिताजी
का व्यक्तित्व काफी रोबीला था। उनकी छाती काफी चोडी और बाजुएँ काफी बलिष्ट थी, जैसे कोई WWF का रे सलर हो।
उनके हाथ में एक अजीब सा भाला था, जो किसी जानवर की हड्डियों से बना हुआ था, और उनका मुकुट तो था ही विशाल
और अद्भत
ु । कुल मिला कर वो दरू से ही कबीले के सरदार लगते थे। वो सबसे आगे चल रहे थे। बाकी सब पीछे । मैं भागकर
उनके साथ जाकर चलने लगी। उन्होंने मेरी तरफ मस्
ु कुरा कर दे खा और चलते रहे । मैंने ही बातचीत करनी शरू
ु की।

मैं: "आपके कबिले में आकर काफी मजा आ रहा है । यहाँ के लोग, खाना पीना और सुन्दर नज़ारे काफी अच्छे हैं।”

सरदार (मुस्कुराते हुए): "जी धन्यवाद… हमारे कबीले में पहली बार इतने सारे मेहमान आये हैं, मुझे तो चिंता हो रही थी की
आप शहरी लोगों को हमारा रहन सहन, सभ्यता पसंद आएगी या नहीं।”

मैं: "अरे नहीं। ऐसा कुछ नहीं है । सभी को काफी पसंद आ रहा है यहाँ का वातावरण और लोग भी… जिस तरह से आप लोग
बिना किसी चिंता के अपना जीवन बिताते हैं, वो काबिले तारीफ है । और खुल कर हर चीज का मजा भी लेते हैं। कल रात को
दे खा था मैंने।”

मैंने अपना पांसा फेंका।

सरदार एकदम से रुक सा गया और बोला: "कल रात… क्या… कहाँ दे खा तुमने।”

मैं: "वो… झरने के पीछे की तरफ। रात के समय आपके और दस


ु रे कबीले के लोग वहां जाकर काफी मस्ती कर रहे थे। मैं
भी गयी थी वहां।”

सरदार (चिंतित होते हुए): "तुम… तुम क्या करने गयी थी वहां। तुम्हें वहां नहीं जाना चाहिए था। वो जगह तुम्हारे लिए
सही नहीं है ।”

मैं: "अगर नहीं जाती तो पता कैसे चलता की आप लोग मजा कैसे लेते हैं। सच कहु, मुझे वहां जाकर सबसे ज्यादा मजा
आया। और जिस तरह के मजे लोग वहां ले रहे थे, उन्हें दे खकर लग रहा था की काश ऐसा हर जगह होता, बिना रोक टोक
के सब लोग कुछ भी करते जा रहे थे, कोई मना करने वाला नहीं था। कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर रहा था, सब अपनी मर्जी
से मजे लेने में लगे हुए थे।”

सरदार: "तो… क्या तुमने भी… मेरा मतलब…"

सरदार सीधा-२ कुछ ना पूछ पाया।

मैंने बात संभाली: "जी… मैंने भी लिए वो सब मजे। और मुझे मजा भी बहुत आया।”

मेरी बात सुनकर वो मुझे हे रानी से दे खने लगा। अब उनकी नजरें मुझे ऊपर से नीचे तक भेदने में लगी हुई थी। मानो ये
निश्चित करना चाहता हो की मेरा छोटा सा अल्हड जिस्म जंगली लण्ड को झेलने में सक्षम है या नहीं। मैंने शॉर्ट्स पहनी
हुई थी, मेरी मोटी जांघे चमक कर अपना कमाल दिखा रही थी।

और ऊपर मैंने टी शर्ट पहनी थी जिसके नीचे की ब्रा मैंने जान बझ


ू कर निकाल दी थी, इसलिए मेरी मोटी-२ ब्रेस्ट चलने से
ऊपर नीचे हो रही थी। सरदार ने इतनी गोरी और चिकनी लड़की शायद ही चोदी होगी अपनी परू ी जिन्दगी में ।

मैंने धीरे से कहा: "वहां तेजी भी था। उसके साथ कोई तकलीफ नहीं हुई मुझे…"

ये बात सुनते ही उसकी आँखे खुली की खुली रह गयी… उसने सोचा भी नहीं था की मैं इतना खुलकर अपनी चुदाई की बातें
उसके सामने बोल दँ ग
ू ी। और तेजी से चुदने की बात सुनकर उसके मन में जैसे इर्ष्या के भाव आ गए की उसके सेनापति ने
मेरे साथ मजे ले लिए, उसने क्यों नहीं लिये।

सरदार: "तुम्हें दे खकर लगता तो नहीं है की तुम जंगली आदमी को संभालने की काबलियत रखती हो।”

149
वो अभी भी सीधा-२ चुदने चुदाने की बाते नहीं कर रहा था। मैंने उसके अन्दर के जंगली को जगाने के उद्देश्य से अपनी बातों
का तरीका बदला।

मैं: "मैंने सुना है की कबीले की हर लड़की को आपके पास रात गुजारनी होती है । क्या ये सच है …”

सरदार: "२ दिनों में काफी कुछ पता लगा लिया है तुमने हमारे और कबिले के बारे में ।” उनकी आवाज में एक व्यंग था।

मैं: "वो तो मेरा नेचर है । मैं अगर किसी बात का पता चलाना चाहू तो कोई भी मुझे नहीं रोक सकता, उसके लिए मैं कुछ भी
करने को तैयार रहती हु… वैसे अंदाजन आज तक कितनी कंु वारी लड़कियों को आपने चोदा है ।” मैंने लड़की होते हुए भी
पहली बार उनके सामने चुदाई शब्द का इस्तेमाल किया।

मेरी बात सन
ु कर वो थोडा सोचने लगे और फिर बोले: "मझ
ु े कबीले का सरदार बने हुए तकरीबन सात साल हो चक
ु े हैं। और
शायद ही कोई रात ऐसी गयी होगी जब मैंने किसी फूल का रस न चखा हो।” उन्होंने अपनी छाती चोडी करते हुए अपना
बहदरि
ु नामा बयान किया।

मैं मन ही मन हिसाब लगाने लगी की कितनी चूतें चुदी होंगी आज तक। और सात साल से पहले भी कितनी होंगी। हे
भगवान ये इंसान है या चत
ू मारने की मशीन।

वो सब सोचते-२ मेरी चत
ू भी गीली होने लगी थी। मैंने अपना हाथ अपनी चत
ू वाली जगह पर लेजाकर थोड़ी एडजेस्टमें ट
की। क्योंकि मेरी चूत जब गीली हो जाती है तो कपडा खाने वाली मशीन की तरह पैंटी को अपने अन्दर निगल लेती है । और
ये इस बात का इशारा होता है की अब इसे कपडे के अलावा कुछ और चाहिए यानी लण्ड। और मेरी ये हरकत सरदार ने साफ़
दे खि।

वैसे मैंने ये हरकत करी ही उसको दिखाने के लिए थी। सरदार भी समझदार था। वो धीरे से मेरी तरफ झक
ु ा और बोला,
“अगर ज्यादा मजे लेने का मन है तो तुम दस
ु रे दोस्तों के साथ ऊपर पहाड़ी पर मत चड़ना। तुम्हें आज दस
ु रे पहाड़ पर
चड़ाउं गा।” सरदार ने अपने दिल की बात साफ़-२ बोल डाली।

मैंने भी अपनी नजरें झुका कर उनके प्रपोजल को कबूल लिया और अब मेरी मुस्कान छुपाये नहीं छुप रही थी। पर मिशा को
भी तो बीच में मजे दिलाने है । ये सब सोचते हुए मैं आगे चल पड़ी। थोड़ी दे र बाद ही वो कबीला भी आ गया जिसके बारे में
मिशा बात कर रही थी। सबसे आगे सरदार को चलते दे खकर वहां के लोगों ने आदर के साथ उनका सामान किया और सभी
को आगे जाने दिया।

लगभग आधे घंटे के बाद हम सभी ट्रे किंग वाली जगह पर पहुँच गए। और अपनी योजना के अनुसार ठीक पांच मिनट पहले
ही मैं लडखडा कर नीचे गिर पड़ी। और अपना पैर पकड़ कर वहीं बैठ गयी। मेरे आस पास परु े कॉलेज के लोग इकट्ठे हो गए।
मैंने कहा की मुझे मोच आ गयी है । मुझसे अब ऊपर ट्रे किंग नहीं की जायेगी। मैं नीचे ही रुक कर आराम करुँ गी। सभी ने
और प्रिंसिपल मेडम ने मेरी बात मान ली और मुझे एक कोने में लेजाकर बिठा दिया।

दीपा मेरी तरफ दे खकर मुस्कुराए जा रही थी, उसे मेरे प्लान की भनक लग चुकी थी। मैंने मिशा को उसके कान में कुछ
समझाया और वो भी ट्रे किंग के लिए सबके साथ चली गयी। एक-एक करके सभी लोग ट्रे किंग के लिए ऊपर चड़ने लगे।
सरदार मेरे साथ ही बैठे हुए थे। और जैसे ही सब लोग आँखों से ओझल हुए सरदार ने अपना चेहरा मेरी तरफ किया। मैं
अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और एक मादक सी अंगडाई लेकर उनकी तरफ चल दी। वो एक बड़ी सी चट्टान पर किसी राजा
की तरह बैठे हुए थे। परू ा वातावरण शांत था, चिड़ियों की आवाजें आ रही थी बस। हवा में एक मदहोश सी करने वाली ठं डक
थी।

मेरे पेट का हिस्सा नग्न होकर मेरी सेक्सी नेवल को उजागर कर रहा था। मेरे सपाट से सफ़ेद पेट को दे खकर वो अपनी
जाँघों के बीच हाथ फेरने लगा। उसके हाव भाव से मुझे अंदाजा होने लग गया था की आज वो मेरी बुरी तरह से चोदे गा। मैंने

150
अपनी कमर को एक हल्का सा झटका दिया। और इधर उधर घुमा कर सरदार के सामने धीरे -२ थिरकने लगी। वो अपने
आप को किसी राजा की तरह समझ रहा था, जिसके दरबार में कोई नर्तकी नाच कर उसका मनोरं जन कर रही है ।

मैंने अपने मन में एक सेक्सी से गाने को गुनगुनाना शुरू कर दिया। मेरी हर थरकन के साथ उसकी हालत बिगड़ रही थी।
मैंने धीरे -२ अपनी शॉर्ट्स के बटन खोलने शरू
ु कर दिए। नीचे से मेरी ब्लेक कलर की पैंटी की झलक दीखते ही उसके लण्ड
वाले हिस्से में भी उभार आना शुरू हो गया। मैंने धीरे -२ अपनी कमर से शॉर्ट्स को नीचे खिसकाना शुरू किया। और कमर के
कटाव से निकलते ही शॉर्ट्स नीचे मेरे पैरों में गिर गयी। मैंने अपने एक पैर में फंसा कर वो शोर्ट सरदार की तरफ उछाल दी।
जो सीधा उसके मुंह के ऊपर जाकर लगी। मदहोशी से उसकी आँखे बंद सी हो गयी। उत्तेजना में आकर उसने मेरी शॉर्ट्स के
बीच वाले हिस्से को जो चूत के रस में डूबकर गीला हो गया था, अपने मुंह में डालकर चूसने लगा।

मैं अपने ऊपर गर्व महसूस कर रही थी की कैसे एक बड़े कबीले का सरदार जो हर रात नयी-२ चूतों का भोग लगाता है , मेरी
हर हरकत पर कुत्ते की तरह बिहे व कर रहा है । मैंने इरोटिक तरीके से नाचते हुए अपने हाथ को पैंटी के अन्दर डाल दिया।
और अपनी चूत नुमा दवात के अन्दर ऊँगली को कलम की तरह डुबोकर उसे बाहर निकाला, और धीरे -२ ऊपर लाकर अपने
होंठों तक ले गयी। और एक जोरदार चुप्पे के साथ उसे बाहर निकाला और सारा रस अपने गले से नीचे निगल गयी…

'अह्ह्ह्ह… वाह… क्या बात है …' सरदार अपने लण्ड को कपडे के ऊपर से रगड़ते हुए जोर से बोला…

मैंने एक बार और अपनी ऊँगली अन्दर डुबोयी और फिर सरदार के पास लेजाकर उसके होंठों के बीच घुसा दी। वो किसी
भूखे भेडिये की तरह से मेरी ऊँगली को अपने मुंह में लेजाकर चूसने लगा। उसकी कठोर जीभ और पैने दांतों से मुझे उसके
जंगलीपन का अंदाजा हो गया।

उसने अपना पंजा सीधा मेरे शहद के छत्ते पर जमाया और ढे र सारा शहद इकठ्ठा करके सीधा अपने मंह
ु में डालकर पीने
लगा। उसने जिस क्रूर तरीके से मेरी पैंटी से ढकी हुई चूत पर हाथ मारा था, मेरा पूरा बदन ऐंठ सा गया… मैं अपनी चूत
वाले हिस्से को उसके हाथों पर जोर जोर से रगड़ने लगी।

'अह्ह्ह्ह्ह्ह… येस्स्स्स… जोर से… दबाओ… अह्ह्ह्ह्ह… खींच लो, निचोड़ लो सारा जूस… अन्दर का… अह्ह्ह्ह…'

अचानक सरदार ने अपने पंजे को समेटा और मेरी कच्छी को पकड़ कर खींच दिया। और वो तार तार होकर मेरे जिस्म से
अलग हो गयी। अपने सामने सफ़ेद चूत को दे खकर, और वो भी बिना बालों वाली, वो पागल सा हो गया… और अपनी
जगह से उठ खड़ा हुआ।

और मझ
ु े उस चट्टान पर बिठा कर खद
ु मेरे सामने आकर बैठ गया और मेरी दोनों टांगों को पकड़कर हवा में लहराया और
एक जोरदार गर्जन के साथ वो मेरी चूत पर भूखे भेडिये की तरह से टूट पडा।

'अय्यीईई… मररर गयी… उम्म्म्म्म… अह्ह्ह्ह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ़ माय गोड… उम्म्म्मम…'

मैंने अपनी टाँगे उसके कंधे पर रख दी और उसके बालों को पकड़कर अपनी चूत पर भींच सा दिया। उसकी जीभ ही किसी
लण्ड से कम नहीं थी। इतनी मोटी और लम्बी जीभ मैंने आज तक महसूस नहीं की थी, इस सरदार का तो सब कुछ बड़ा है ।
उसने जैसे ही मेरी चत
ू के अन्दर की क्लिट को अपने जीभ से उमेठा। मेरी आँखों के आगे जैसे अँधेरा सा छा गया। मेरी
कमर तीर कमान की तरह मुडती चली गयी। और मेरा सिर्फ सर चट्टान के ऊपर रह गया, बाकी का जिस्म हवा में उठता
चला गया। मैं अपनी चूत के झटके उसके मुंह पर मारने लगी। वो मेरी चूत को नहीं चूस रहा था, मैं उसके मुंह को चोद रही
थी।

फिर उसने मेरी चत


ू को चस
ु ना छोड़ दिया और उठ खड़ा हुआ, मझ
ु े भी उसने अपने सामने खड़ा कर लिया। और मेरे जस
ू से
भीगे अपने होंठ मेरी तरफ कर दिए। मैं प्यासी बिल्ली की तरह से उचक कर उसकी गोद में चढ़ गयी और उसके होंठों पर
लगे हुए जूस को पीकर अपने जूस का क्वालिटी चेक करने लगी। उसने अपने हाथ नीचे किये और मेरी टी शर्ट को पकड़कर
ऊपर खींच दिया। मेरे मोटे -२ चच
ु े उछल कर उसकी आँखों के सामने आ गए। उसकी आँखों में चमक सी आ गयी। उसने

151
अपने दोनों हाथों से मेरे हॉर्न पकडे और उन्हें दबाकर मेरे मुंह से आवाजें निकलवाने लगा। 'अह्ह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ… धीरे …
अह्ह्ह्ह… उम्म्म्म… ओह्ह्ह्ह।'

उसकी मोटी और कठोर उँ गलियाँ मेरे कोमल से निप्पलस को ऐसे मसल रही थी मानो उन्हें उखाड़ कर फेंक दे ना चाहती हो।
उसकी उँ गलियों से मेरी सफ़ेद ब्रेस्ट पर लाल निशान उभरने लगे। ऐसे जंगली तरीके से किसी ने भी मझ
ु े इस्तेमाल नहीं
किया था आज तक। और फिर उसने नीचे झुक कर मेरे निप्पल से दध
ू पीना शुरू किया तो ऐसा लगा की अन्दर से सच में
कुछ निकल कर उसके मुंह में जा रहा है , उसकी सकिं ग पवार थी ही इतनी तेज। अचानक मेरा हाथ सरदार के लण्ड वाले
हिस्से पर चला गया।

“हैं… ये…ये क्या है …”

मेरी तरफ मस्


ु कुराकर दे खते हुए उसने अपना कमर का कपडा खोल कर नीचे गिरा दिया। और अब मेरी आँखों के सामने था
सरदार का दे त्यकार लण्ड…

'हे भगवान ्… ऐसा भी होता है लण्ड… इतना लम्बा, इतना मोटा… ये कैसे जाएगा मेरे अन्दर…'

मेरी तो हालत ही पतली हो गयी उसे दे खकर…


…Page 191…

सरदार के सामने बैठ कर मैंने उसके लम्बे और मोटे लण्ड को पकड़ा और उसे नापने लगी।

मेरे हाथ की हथेली से लेकर मेरी कोहनी तक था सरदार का लण्ड। इतना लम्बा और दरु
ु स्त लण्ड दे खकर तो मेरी चूत के
पसीने निकल गए पर मैंने मन ही मन सोच लिया था की चाहे कुछ भी हो जाए मैं आज इस लण्ड को लेकर ही रहूंगी। चाहे
बाद में चत
ू को टाईट करने के लिए मझ
ु े केगल एक्सरसाईज करनी पड़े पर लंग
ु ी। पर अभी तो मैं इसके मोटे लण्ड से चद
ु े
बिना नहीं रहने वाली…

उसका सुपाडा ही इतना बड़ा था जैसे कोई टमाटर हो, मैंने अपना मुंह आगे किया और उसे मुंह में लेकर चूसा, एक अजीब
सी गंध आई मेरे मुंह में । पर मैंने उसकी परवाह किये बिना ही उसके चौंकलेट कोर्न को चूसना जारी रखा। सरदार की आँखे
अपने आप बंद होने लगी और वो पीछे होकर लेट सा गया। सरदार का एक हाथ मेरे सर के ऊपर था और मझ
ु े और ज्यादा
अन्दर लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। मैंने उसके लण्ड को बाहर निकाला और अपनी जीभ से उसे चाटते हुए बोली:
"उम्म्म्म्म… इतना मोटा और लम्बा है आपका… ये लण्ड… मेरी हमेशा से एक फेंटे सी यानी कल्पना रही है की मैं अपने
पापा का लण्ड भी ऐसे ही चस
ु ू…" मझ
ु े ऐसी बातें करते दे खकर वो चौंक सा गया पर कुछ बोला नहीं… मैं ये सब सोच समझ
कर एक योजना के अनुसार कर रही थी।

मैं: "मैंने अपने पापा को कई बार छुपकर दे खा है । उनका भी काफी लम्बा है । पर आप जितना नहीं। पर आपके लण्ड को
दे खकर एकदम से मुझे उनके लण्ड का ख्याल आ गया। उम्म्म्म्म… वो भी इतना ही टे स्टी होगा… पुच्च्च्छ्ह्ह…
उम्म्म्म… अह्ह्ह।”

मैंने सरदार के लण्ड को और सेक्सी तरीके से चस


ू ना और चाटना शरू
ु कर दिया। सरदार ने भी सोचा की जब मैं अपने पापा
के लण्ड के बारे में सोचकर इतना उत्तेजित फील कर ही रही हूँ तो वो कौन होता है रोकने वाला। उसे तो मजे ही आ रहे थे।
और जब मुझे विशवास हो गया की वो मेरी बातों में आ गया है तो मैंने एक जोरदार सांस ली और उसके लण्ड को ज्यादा से
ज्यादा अपने मंह
ु में निगल गयी… और निगलने से पहले एक ठं डी सांस लेकर जोर से बोली- “ओह्ह्ह्ह्ह पापा…
उम्म्म्म्म ्म…”

मैं अपने मुम्मे उसके घुटनों पर मसल रही थी। मेरे निप्पल उसे चुभ रहे थे। और उसके हाथ मेरे मुम्मों को साईड से मसल
रहे थे। मैंने वो पाईप मुंह से निकाला और धीरे से फुसफुसाई- “ओह्ह्ह पापा… कितना लम्बा है आपका… उम्म्म्म… मेरी
चत
ू में जाकर तो ये उसे फाड़ ही दे गा… है न पापा… उम्म्म्म… बोलो न… पापा…”

152
मेरी जीभ की टिप उनके लण्ड के छे द को रगड़ रही थी और अन्दर से निकल रहे प्रीकम को निकलने से पहले ही चट करती
जा रही थी। मेरे कहे अनुसार मिशा भी वापिस आकर वहीं छुप गयी थी। वो सरदार के पीछे की तरफ थी। जहाँ से मैं उसे
साफ़ दे ख पा रही थी। और वो भी बड़ी उत्सुक्तता से हमारा खेल दे ख रही थी। मेरे उकसाने पर आखिर सरदार के मुंह से भी
दबी हुई सी सिस्कारियां निकलने लगी। वो भी मेरे रोल प्ले वाले खेल में शामिल हो गया।

“अह्ह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म… हांsss न… बेटी… चूस, और जोर से चूस अपने बाप का लम्बा लण्ड… अह्ह्ह… क्या खूबसूरती
पायी है मेरी बेटी ने… अह्ह्ह… इतने मोटे मुम्मे हैं तेरे… अह्ह्ह… जब भी दे खता हूँ तो मन करता है की मसल डालू इन्हें ।
अह्ह्ह… ओह्ह्ह… बेटी, म्मम्मम्म मेरी मिशा… ह्ह्ह्ह्ह…”

उसके मंह
ु से आखिर निकल ही गया, मिशा का नाम और उसे सन
ु कर छुपी हुई मिशा का मंह
ु खल
ु ा का खल
ु ा रह गया…
यानी उसका बाप भी उसके बारे में वैसे ही सोचता है जैसा वो उनके बारे में सोचती है । मिशा का नाम अपने मुंह से निकल
जाने से सरदार अपराध बोध होकर मुझे दे खने लगा पर मैंने ऐसे बिहे व किया की कुछ हुआ ना हो। उल्टा मैंने उसे खेल में
और ज्यादा अन्दर घसीटने के लिए मिशा बनकर बोलना शुरू कर दिया…

“अह्ह्ह्ह… पिताजी… उम्म्म… ये मिशा आपकी बेटी है , आपके लण्ड से पैदा हुई है , आपका पहला हक है मझ
ु पर। चोद
डालो मुझे भी जैसे कबीले की दस
ू री लड़कियों को और मेरी सहे लियों को चोदते हो। अह्ह्ह्ह… आपको मुझपर तरस नहीं
आता कभी… कभी ये नहीं सोचते की मैं कितना तडपती हु। उम्म्म्म… आज सब हिसाब बराबर कर दो, चोद डालो अपनी
बेटी को, चोदो मुझे पिताजी…”

मझ
ु से सब्र करना अब मश्कि
ु ल होता जा रहा था। और मिशा का भी यही हाल था। उसने भी एक एक करके अपने गले की
मालाएं और बदन को ढकने के छोटे कपडे निकाल फेंके। और अपना एक पैर पत्थर पर रखकर अपनी चूत की मालिश करने
लगी। पर मेरा ध्यान उससे ज्यादा सरदार के लण्ड पर था। जिसे मैंने अपने अन्दर लेना था। मैंने सरदार को नीचे जमीन
पर लेने को कहा। वो अपने लण्ड को मसलता हुआ नीचे लेट गया। और मैं उसके पेट के दोनों तरफ पैर करके उसके ठीक
ऊपर खड़ी हो गयी। मन तो कर रहा था की उसके मुंह की कार पर बैठकर चाँद की सेर कर आऊ पर उसके लिए मुझे राकेट
की जरुरत थी। इसलिए मैं लण्ड के ऊपर आई और धीरे -२ नीचे आना शरू
ु किया… सरदार ने अपना राकेट अपने हाथ में
पकड़ा हुआ था। और जैसे ही मेरी कॉकपिट उनके कॉक से टच हुई। मेरे परु े शरीर में झरु झरु ी सी दौड़ गयी। मेरी नजरें मिशा
की तरफ गयी जो दम साधे मुझे वो कारनामा करते हुए साफ़ दे ख रही थी। सरदार का मोटा सुपाडा मेरी चूत के ऊपर आकर
जाम हो गया। अन्दर जाने का नाम ही नहीं ले रहा था वो। मैंने अपना परू ा जोर लगा दिया। और ऐसा करते हुए मझ
ु े इतना
दर्द हुआ जितना पहली चुदाई में भी नहीं हुआ था। पर फिर भी वो लण्ड अन्दर नहीं जा पा रहा था।

आखिर सरदार ने मेरी परे शानी समझी। उन्हें तो एक्स्पेरियस था ऐसी दशा का। उन्होंने मेरी कमर पर दोनों तरफ हाथ रखा
और मुझे नीचे की तरफ घसीट दिया। “अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ़्फ़् … नही… करो ऐसे… अह्ह्ह्ह्ह… मरररर गयी…”

उन्होंने मेरी चूत में अपना लण्ड किसी तलवार की तरह उतार दिया। इतना दर्द होगा मुझे अंदाजा भी नहीं था, और अंत में
जाकर वो लम्बा खम्बा मेरी बच्चेदानी से जा टकराया। सच में इतना अन्दर तो आज तक कोई भी नहीं गया था। मैंने नीचे
दे खा… सरदार का लण्ड अभी भी तीन इंच बाहर था। सरदार ने मेरे कूल्हों पर हाथ रखे और मुझे ऊपर किया। मेरी टाईट
चूत लम्बे लण्ड से रगड़ खाती हुई ऊपर तक आई और फिर उन्होंने मुझे नीचे कर दिया। ३-४ बार ऐसा करने के बाद मैंने
उसी लय में अपने शरीर को ऊपर नीचे करना शरू
ु कर दिया। अब मेरा दर्द भी कम हो गया था। चत
ू जितनी फटनी थी, फट
चुकी थी, अब तो मजे लेने का टाईम था।

अपने अन्दर मोटे और जानदार लण्ड को लेकर मैं फूली नहीं समा रही थी। मैं नीचे झुकी और अपने स्तन सरदार की छाती
पर रखकर उनके ऊपर लेट गयी, और ऊपर मुंह करके उनके होंठों को बुरी तरह से चूसने लगी और जोर जोर से बुदबुदाने
लगी- “अह्ह्ह… पिताजी… उम्म्म्म… चोदो मझ
ु े, और तेजी से… अह्ह्ह… कितना लम्बा है आपका, आपकी बेटी तरस

153
रही थी इतने दिनों से, आपसे चुदवाने के लिए… आप ही नहीं समझे। आज इतना चोदो मुझे की सारी कसर निकल जाए,
अह्ह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़ उम्म्म अह्ह्ह अह्ह्ह्ह… उम्म्म्म…"

मुझे तो होश ही नहीं रहा की मैं क्या बक रही हूँ और क्या कहना चाहती हु। चुदाई का इतना मजा आज तक नहीं मिला था
मझ
ु े… और फिर वो घडी आ ही गयी, जब मेरी चत
ू के सारे धागे खल
ु गए और उसमें से भीनी-२ खश
ु बु के साथ मेरा अंगरू ी
रस बाहर निकलने लगा। “अह्ह्ह्ह्ह… पापा… ओह्ह्ह्ह्ह्ह… मैं तो गयी… उम्म्म्म्म…” और मैं उनके ऊपर निढाल सी
होकर गिर गयी…

और उसके बाद सरदार ने मेरी गाण्ड को अपने पंजों में दबा कर नीचे से लगातार 40-50 धक्के मारे जिसने मेरे परु े शरीर को
झिंझोड़ कर रख दिया। और इसी बीच मैं लगातार दस
ू री बार भी झड गयी… और फिर एक जोरदार प्रेशर के साथ उनके
लण्ड के पाईप से ढे र सारा गाड़ा एलोवेरा जूस मेरी चूत के अन्दर निकाल दिया। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत के
अन्दर पाईप डालकर पानी चला दिया हो, और मैं जब ऊपर उठी तो मेरे अन्दर से दोनों का मिला जुला इतना पानी बाहर
निकला की मुझसे तो संभाले नहीं संभला… पर जितना मैं समेट कर पी सकती थी, मैंने पीया, बाकी वेस्ट हो गया।

सरदार के चेहरे पर संतष्टि


ु के भाव थे।

मैं: "उम्म्म… मजा आ गया… इतना संतष्ु ट तो मैं अपनी परू ी जिन्दगी में नहीं हुई… थेंक्स पापा…" मैंने मस्
ु कुराते हुए
उन्हें कहा… वो भी पापा सुनकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके…

मैं: "अब तो मैंने सोच ही लिया है । घर जाकर चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपने पापा से चुदवाकर ही रहूंगी और अगर हो सके
तो आप भी अपने दिल की सुनो और मिशा को वो सुख दो जिसे पाने के लिए शायद वो भी तड़प रही है । और आप भी…”

मेरी बात सुनकर वो थोडा संजीदा हो गए। और बोले: "हाँ ये सच है की मैं भी कई बार मिशा के बारे में सोचता हु पर ऐसा हो
नहीं सकता। वो इसके लिए कभी नहीं मानेगी।”

"मैं तो कब से मान चुकी हु पिताजी…” पीछे से मिशा की आवाज आई। जिसे सुनकर सरदार ने चौंककर पीछे दे खा तो पाया
की उनकी बेटी मिशा पर्ण
ू तया नंगी होकर उनकी तरफ ही आ रही है ।
…Page 192-193…

चलने से होने वाली थिरकन से मिशा के दोनो स्तन अपने पूरे आकार में आकर फूले नही समा रहे थे।

उसकी मोटी जांघे और हिलते चूतड़ एक अलग ही समां पैदा कर रहे थे। और मदहोशी में चलती हुई मिशा जब सरदार के
सामने आकर खड़ी हुई तो सरदार को जैसे होश आया।

वो बोला: "मिशा… ये क्या है … कपड़े कहाँ है तुम्हारे ।”

मिशा: "वो तो तभी उतार कर फेंक दिए थे जब आप कोमल को मेरा नाम बोलकर चोद रहे थे। आप चोद तो इसे रहे थे पर
आपकी बंद आँखो के पीछे मेरा ही चेहरा था। है ना पिताजी…”

सरदार: "ये…ये तुम क्या बक रही हो… तुम मेरी बेटी हो… मैं तुम्हारे बारे में कैसे ये सब सोच सकता हू…"

मिशा: "आप नही सोच सकते… पर ये तो सोच सकता है …"

मिशा ने सरदार के लण्ड की तरफ इशारा किया। जो अपनी नंगी बेटी को सामने खड़ा दे खकर हाथी की सूंड की तरह उपर
उठने लगा था, और जैसे ही सरदार ने अपने लण्ड को हाथ से छिपाने की कोशिश की मिशा ने झट से आगे बड़कर उसे अपने
हाथों में थाम लिया और वो कुछ बोल पाता, इससे पहले ही वो उसके सामने बैठ गयी और अपने पापा के लण्ड को एक
जोरदार चुम्मे के साथ अपने मँह
ु में डाल लिया।

“अहह… बेटी… उम्म्म्म… ये ग़लत… है … उम्म्म्मम… ना ओह… सस्स्स्सस्स… म्म्म्ममम… आह… हाआन्न… ऐसे
ही… ओफफ्फ़… म्म्म्ममम… चूस, और ज़ोर से चूस… उम्म्म्म…”
154
सरदार की तो हालत पतली होती चली गयी। पहले मना और फिर रजा… अब तो वो अपनी बेटी के मँह
ु में ऐसे लण्ड डाल
रहा था जैसे थोड़ी दे र पहले मेरे मँह
ु में डाल रहा था।

'ये बदन का नशा सारे रिश्ते नातों की दीवार को तोड़ दे ता है …' मैंने मन ही मन सोचा।

मिशा की उं गलियाँ सरदार के पाईप जैसे लण्ड के उपर चल रही थी और बरु ी तरह से गीली हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था की
आज सरदार के परू े लण्ड में से पानी निकल कर अपनी बेटी के मँह
ु में जा रहा है और मिशा भी ऐसे अपने बाप के लण्ड को
चूस रही थी मानो बरसों की भूखी हो।

सरदार ने मिशा को नीचे लिटाया और खुद उसके उपर लेट गया और मिशा के गुलाबी होंठों को अपने मँह
ु में लेजाकर चूसने
लगा… “अहह… पुचह… उम्म्म्मम…”

मिशा सरदार के भार से दबी जा रही थी, इसलिए सरदार ने अपने दोनो हाथों और पंजो के बल पर अपने परू े शरीर को उसके
उपर झूला सा दिया। अब सरदार का लण्ड अपनी बेटी की रसीली चूत के उपर झूल रहा था। मिशा ने अपना एक हाथ नीचे
लेजाकर उसे अपने छे द के उपर लगाया और अपने पिताजी के भारी भरकम चूतड़ों पर हाथ लगाकर उन्हें अपने अंदर आने
का निमंत्रण दिया। सरदार ने धीरे -2 नीचे आना शुरू किया और जैसे-2 सरदार का लण्ड अपनी बेटी की चूत के अंदर जाता
जा रहा था। उसके चेहरे की रूप रे खाएँ बदलती जा रही थी, और जब उसकी संकरी सी चत
ू के अंदर और जाने की जगह नही
बची तो वो चिल्लाने लगी- “अहह… पिताजी… ओफफफ्फ़… दर्द हो रहा है … अहह मररर गईई…”

पर सरदार ने ना जाने कितनी चूतें ये सुनते हुए फाड़ दी थी, इसलिए उसने थोड़ा रुक कर उसके उपर निकल रहे उरोजों को
अपने मँह
ु में पकड़ा और उन्हें चूसने लगा और जैसे ही उसकी दर्द भारी सिसकारियाँ मज़े की किलकरियों में बदली उसने
एक जोरदार शॉट के साथ अपना आधे से ज़्यादा लण्ड मिशा के अंदर धकेल दिया।

“अयईईई… बाहर निकालो, मुझे नही करवाना… अहह…”

पर अब उसकी चीखें कौन सुनने वाला था। मुझे उसपर तरस आ गया और मैं उठकर उसके पास गयी और सीधा उसके मँह

के उपर बैठ गयी। मेरी चत
ू के अंदर से अभी तक उसके पापा के लण्ड से निकला रस निकल रहा था, इसलिए थोड़ी दे र के
लिए वो अपने दर्द को भूलकर वो रस चाटने लगी।

मेरा चेहरा सरदार की तरफ था। मैंने उनके सिर को पकड़ कर अपनी ब्रेस्ट के उपर लगाया और उन्हें चूसने को कहा। सरदार
अब मिशा की चूत में धक्के मारते हुए मेरी ब्रेस्ट को चूस रहा था। मिशा भी अब चुप हो चुकी थी, उसके मँह
ु के अंदर अब
मैंने मिठाई की दक
ु ान जो दे दी थी। मेरे अंदर से भी एक और नये ऑर्गॅज़म का जन्म होने लगा, जिसे मिशा ने अपनी पेनी
जीभ से पैदा किया था।

सरदार अब बैठ कर अपनी बेटी की दोनो टाँगो को पकड़े हुए उसे चोद रहा था। अचानक मिशा ने अपने दाँतों के बीच में मेरी
पूरी चूत को पकड़ा और अपने मँह
ु में डाल लिया। चूत के आस पास का पूरा माँस भी उसके मँह
ु के अंदर चला गया और वो
उसे नींबू की तरह जोरों से चस
ू ने लगी। मेरे लिए ये सब सहन करना मश्कि
ु ल हो गया और मैं आगे की तरफ गिर पड़ी और
मेरा चेहरा सीधा उसकी चूत के उपर आ गया जिसमें से सरदार का लंबा लण्ड कभी बाहर जाता और कभी अंदर।

मैंने एक दो बार अपनी जीभ बीच में डालने की कोशिश की पर डर लगा की कहीं लण्ड के साथ जीभ भी अन्दर जाकर ना
फंस जाए पर सामने का सीन इतना मजेदार था की मैं अपने आपको रोक नही सकी और मैंने अपनी जीभ मिशा की चूत के
बिल्कुल उपर की तरफ लगा दी। अब सरदार के लण्ड की सरु सरु ाहट से मझ
ु े भी वायबरे टिग
ं मिल रही थी। मैं कभी अपनी
जीभ को मिशा की चूत में डालती और कभी सरदार के लण्ड के उपर से मिशा की चूत का रस समेट लेती। सरदार भी मेरे
सिर को अपने लण्ड वाले हिस्से पर ज़ोर से दबाकर मज़े लेने में लगा हुआ था और मिशा अपनी जीभ से मुझे मज़े दे ने के
साथ-2 सरदार और मेरी जीभ से मज़े ले रही थी। और फिर अचानक मेरे अंदर का ऑर्गॅज़म फट सा पड़ा।

155
और मैंने मिशा के चेहरे को बुरी तरहा से अपने रस से भिगो दिया। और इस बात का बदला उसके पिताजी ने मुझसे कुछ
इस तरह से लिया की जैसे ही उनके लण्ड से पानी की बोछारें निकल कर अपनी बेटी के अंदर जाने लगी, उन्होने मेरे चेहरे
को और तेज़ी से नीचे की तरफ दबा दिया।

मिशा की चत
ू के अंदर एक गब
ु ार सा बनता जा रहा था और जैसे ही सरदार ने एक तेज झटके से अपने गधे जैसे लण्ड को
बाहर खींचा उसके पीछे -2 ढे र सारा सफेद रस एक जोरदार प्रेशर के साथ बाहर आया और मेरे चेहरे को बरु ी तरह पोत कर
चला गया। मेरा परू ा चेहरा सफेद रं ग के रस से ढक सा गया। मेरे होंठ, आँखे, नाक सभी पर गाड़ा और जंगली रस चिपक सा
गया पर मुझे भी पता था की उसे कैसे सॉफ करना है ।

मैं अपनी जगह से उठी और अपना रं गीन चेहरा लेजाकर मैंने मिशा के सामने रख दिया और वो भख
ू े भिखारी की तरह मेरे
चेहरे पर टूट पड़ी और जी भरकर अपने ही बाप के लण्ड से निकली मलाई खाने लगी और थोड़ी ही दे र में उसने मेरे चेहरे को
ऐसे चमका दिया मानो कुछ हुआ ही ना हो। चुदाई करते हुए एक घंटा हो चुका था। ट्रे किंग पर गये हुए लोगो के आने में अभी
भी आधा घंटा और था।

मिशा: "कोमल… आज तम्


ु हारी वजह से ही मझ
ु े अपनी जिंदगी की वो खश
ु ी मिल पाई है जिसके लिए मैं ना जाने कितने
सालों से तड़प रही थी…”

सरदार को सब समझ आ गया की ये सब हम दोनो की मिली भगत थी पर जो भी था, सरदार के मन की बात भी तो परू ी हो
गयी थी मेरी वजह से। इसलिए वो बस मुस्कुरा कर रह गया, और आधे घंटे का इस्तेमाल करते हुए हम दोनो ने एक साथ
सरदार के लण्ड को चस
ू चस्
ू कर बेहाल कर दिया और तब तक चस
ू ते रहे जब तक उन्होने हमारे चेहरों पर अपने गर्म रस की
फुहार निकाल कर नही फेंक दी। और हम दोनो जब परू ी तरह से तप्ृ त हो गये तो अपने कपड़े वगेरह पहन कर बाकी के
लोगों के आने की प्रतीक्षा करने लगे। और जब सब वापिस आ गये तो हम नॉर्मल सा बिहे व करने लगे।

वैसे भी रात होने को थी, इसलिए हमें वहीं रुकना था, सबने अपने-2 टें ट वहीं लगा लिए और सोने की तय्यारी करने लगे।
…Page194-196…

वो चद
ु ाई करने के बाद मिशा और सरदार के बीच जो एक बाप बेटी वाले शर्म की दिवार थी, वो गिर चक
ु ी थी। मिशा अब
अपने पिताजी के साथ ऐसे बिहे व कर रही थी मानो उनकी बेटी नहीं बीबी हो वो। सरदार के हाथ को पकड़ कर अपनी चूची
से चिपका रखा था उसने।

टें ट के बाहर जब खाना बन रहा था तो मेरी नजरें उन बाप बेटी को ही ढूंढ रही थी। पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे।

दीपा मेरे साथ ही थी। उसे मैंने पहले ही सब बता दिया था की मेरे और मिशा के साथ सरदार ने क्या-२ किया। उसे तो
विश्वास ही नहीं हुआ था की मैंने सरदार का लण्ड अपनी चूत के दरवाजे के आर पार कर लिया है , और हमेशा की तरह
उसकी चूत में भी जलन के मारे खुजली होने लगी…

कहते है , जब चत
ू में नया-२ लण्ड गया हो तो उसको मरवाने की आदत सी पड़ जाती है … और यही हाल अभी मिशा का भी
था। जब से हमारा ग्रुप उनके कबीले में आया था, तभी से उसकी चूत में पहली बार लण्ड जाने के बाद, और फिर अपनी
पिताजी से चुदने के बाद वो बेलगाम सी हो गयी थी। मैंने दीपा को कहा की हो ना हो, वो जरुर कहीं छिपकर अपने सरदार
बाप से चुदवा रही होगी। हम दोनों उसे ढूँढने के लिए चल दिए।

हम जा ही रहे थे की पीछे से प्रिंसिपल मेडम ने पक


ु ारा: "अरे कोमल… रुको… कहाँ जा रही हो तम
ु …"

और हमारे साथ आकर वो खड़ी हो गयी। उनसे कोई भी बात छुपाने का कोई ओचित्य नहीं था, इसलिए मैंने अपनी और
मिशा की चुदाई के बारे में उन्हें सब बता दिया। वो हे रानी से मेरी बातें सुनती रही। उन्हें दे खकर साफ़ पता चल रहा था की
उनकी चूत की परतों में से भी गरम हवा के झोंके निकल रहे हैं। मेरी बात सुनकर वो भी हमारे साथ ही चल दी। जहाँ हमारे

156
टें ट लगे हुए थे उनके ठीक पीछे काफी बड़ी सी चट्टान थी। जैसे ही हम दोनों वहां पहुंचे उसके पीछे से मिशा की सिस्कारियों
की आवाजें सुनाई दे ने लगी…

हम तीनो मुस्कुराते हुए उसी दिशा में चल दिए।

वहां के नज़ारे को दे खकर हम तीनो के हाथ अपनी-२ ओखलियों को अपनी उँ गलियों से सहलाने लगे…

वहां पर मिशा को उसके पिताजी ने एक उं ची सी चट्टान पर बिठा रखा था जिसकी वजह से उसकी चूत ठीक सरदार के मुंह
के सामने थी। दोनों पुरे नंगे थे, और मिशा ने अपनी दोनों टाँगे सरदार के मुंह के दोनों तरफ फेला कर उन्हें अपनी चूत पर
भींच रखा था। और उनके सर के पीछे हाथ लगाकर वो उन्हें कंट्रोल कर रही थी। आगे पीछे … आगे पीछे …

और सरदार भी अपनी आँखे बंद किये हुए अपनी फूल सी बेटी की गल


ु ाब सी चत
ू को ऐसे चाट रहा था जैसे उसमे से शहद की
बरसात हो रही हो। सरदार का लम्बा और मोटा लण्ड सामने की चट्टान से टकरा रहा था जिसकी वजह से उन्हें काफी
मुश्किल सी हो रही थी…

मैंने प्रिंसिपल मेम और दीपा की तरफ दे खा और आँखों ही आँखों में हमने कुछ डिसाइड किया और अगले ही पल हमारे
जिस्मों से एक एक कपडा उतर कर जमीन की धल
ु चाट रहा था। पहले तो हवा में सिर्फ एक ही चत
ू की महक तैर रही थी पर
अब चार चूतें थी जो माहोल में मदहोशी फेला रही थी।

मैं धीरे से आगे गयी और सरदार की टांगो के बीच से होती हुई उनके आगे की तरफ आ गयी। वहां बैठने की ज्यादा जगह
नहीं थी पर फिर भी मैंने मेनेज कर ही लिया और उनके हाथी की सूंड जैसे लण्ड को पकड़ कर अपने गालों से लगा लिया…

“अह्ह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह… कोमल… तुम…तुम कब आई…”

सरदार काफी बीजी थे अपनी बेटी की चूत का बोर्नवीटा पीने में । पर फिर भी उन्होंने अपना मुंह बाहर खींचा और मेरी
उपस्थिती से मिशा को अवगत करवाया…

मिशा ने अपनी आँखे खोली और मुझे नीचे बैठ कर अपने पिताजी का लण्ड चूसते हुए दे खा और साथ ही उसकी नजर पीछे
ख़ड़ी हुई मेडम और दीपा के ऊपर भी गयी। उसने मस्
ु कुरा कर उनका भी स्वागत किया और उन्हें आगे आकर खेल में
शामिल होने के लिए कहा…

सबसे पहले भागकर मेडम आई और सरदार को पीछे से आकर अपनी बाहों में लपेट लिया। उनके मोटे मुम्मो के ऊपर लगे
हुए निप्पल सरदार के बदन में किसी शूल की तरह से चुभ गए। तब उन्हें एहसास हुआ की मेरे साथ और भी लोग आये हैं।
उन्हें भला क्या परे शानी हो सकती थी। उन्होंने मेडम के हाथों के अपने हाथों में पकड़ा और उन्हें अपनी पीठ से और जोर से
दबा दिया। मेडम को लगा की उनके मुम्मे सरदार के फोलादी जिस्म से पीसकर चूर-चूर हो जायेंगे। वो दर्द से कराह उठी।

“अह्ह्ह्ह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़… सरदार…धीरे खींचो… दर्द होता है …”

इसी बीच दीपा भी आगे आई और सरदार के दांयी तरफ आकर उनसे चिपक गयी…

सरदार के तो मजे हो गए, चारों तरफ से उन्हें चत


ू ों ने घेर सा लिया था।

उन्होंने मेरे चेहरे को पकड़ा और अपना आधे से ज्यादा लण्ड मेरे मंह
ु में धकेल कर धक्के मारने लगे। और मेडम का हाथ
पकड़ कर उन्होंने उसे अपने सामने किया और उनके मुंह पर अपना चूत से भीगा चेहरा लाकर उसे चूसने लगे। इतनी मोटे
मुम्मों वाली और मेच्योर औरत को दे खकर उनके मुंह और लण्ड में पानी आ गया। अब इनके एक तरफ मेडम थी और
दस
ू री तरफ दीपा। सामने उनकी अपनी बेटी और नीचे मैं…

मिशा ने अपनी पिता के चेहरे को पकड़ कर वापिस अपनी चत


ू पर दबा दिया। और उन्हें जोर से चस
ू ने को कहा। क्योंकि वो
झड़ने के काफी करीब थी।

157
मेडम और दीपा ने अपनी छाती पर लगे मुम्मों की मदद से सरदार के शरीर की मालिश करनी शुरू कर दी। वो ऊपर नीचे
होकर अपने मुम्मों को सरदार के शरीर से रगड़ रही थी। और सरदार के जिस्म से निकल रहे पसीने की वजह से वो सब
आसानी से कर पा रहे थे।

अचानक मिशा की चत
ू में से आनद का बाँध टूट सा गया, और उसने जोर से चीखते हुए अपने बाप के होंठ और नाक अपनी
चूत के अन्दर घुसा दिये।

“अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… पिताजी… उम्म्म्म्म ्म अह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… म्मम्मम… मजा आ गया… अह्ह्ह्ह…”

उसकी चूत से निकला अमत


ृ बरसात बनकर सरदार के चेहरे को भिगोता हुआ मेरे ऊपर भी आ गिरा… मिशा हांफी हुई सी
अपने पिता के चेहरे पर गिर पड़ी। उन्होंने मिशा को ऊँची चट्टान से नीचे उतारा। मिशा अपने साथ एक चादर पहले से लायी
थी। जो नीचे बिछा रखी थी उसने। वो सीधा आकर उसके ऊपर लेट गयी। मझ
ु े भी सरदार ने मिशा की बगल मे लिटा दिया।
और दीपा और मेडम को भी साथ ही लेटने को कहा।

जब हम चारों उनके सामने जाकर लेट गए तो सरदार ने हमें अपनी टाँगे खोलने को कहा। सबने वैसा ही किया, और सबसे
पहले वो मिशा के ऊपर आये और अपने डंडे जैसे लण्ड को पकड़ कर उन्होंने मिशा की चूत के ऊपर रख दिया। वो अभी थोड़ी
दे र पहले ही झड़ी थी इसलिए उसकी चत
ू काफी गीली थी। लण्ड आसानी से अन्दर चला गया… उसके बाद सरदार के
झटकों ने उसकी चीखे निकलवा दी…

“अह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ओह्ह्ह पिताजी… अह्ह्ह्ह…”

पांच मिनट के धक्कों के बाद मेरा नंबर आया। उन्होंने जैसे ही मेरी चत
ू के ऊपर अपना बम्बू टिकाया, मैंने अपनी टाँगे
उनकी कमर से बाँध दी और उन्हें अपनी तरफ खींचकर जोर से उन्हें स्मूच कर लिया और साथ ही उनका लम्बा लण्ड अपने
अन्दर घसीट लिया।

“अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… उम्म्म्म्म… येस्स्स्स… परू ा डाल दो अब तो… परू ा धकेलो नाअन्दर… प्लीस…”

और जैसे ही उन्होंने मेरी बात मानते हुए अपना भार थोडा और मेरे ऊपर डाला मेरी तो जैसे चूत एक बार और फट गयी…
उन्होंने मेरे साथ भी वही किया। पांच मिनट तक धक्के मारने के बाद वो हटे और अगला नंबर उन्होंने मेडम का लगाया। वो
काफी खेली खायी हुई थी इसलिए इतने लंबे लण्ड को लेने में उन्हें ज्यादा तकलीफ नहीं हुई। सरदार की नजरें शुरू से ही
उनके मोटे मुम्मों पर थी इसलिए लण्ड के अन्दर जाते ही उन्होंने अपना मुंह नीचे किया और उनका दांया मुम्मा पकड़ कर
खा गए… मेडम ने भी शायद पहली बार इतना मोटा लण्ड लिया था इसलिए उनकी आँखे बंद सी होती चली गयी और वो
सुख सागर में गोते लगाते हुए अपनी चुदाई करवाने लगी…

“अह्ह्ह्ह्ह्ह… उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़… मजा अ गया… अह्ह्ह्ह… सरदार… कितना लम्बा है आपका… उफ्फ्फ… आज तक इतना
शानदार लण्ड नहीं गया मेरे अन्दर… अह्ह्ह्ह…”

और थोड़ी दे र तक उन्हें मजे दे ने के बाद सरदार ने दीपा की तरफ दे खा। वो हम सबमे सबसे छोटी थी इसलिए उसकी अल्हड
सी जवानी को चोदने के लिए वो काफी बेकरार था। इसलिए उन्होंने प्यार से उसकी टांगो को फेलाया और अपने कंधे पर
रखा और अपना लण्ड जैसे ही उसकी चूत पर लगाया वो चीख पड़ी… इतना मोटा लेने की उसकी औकात नहीं थी… मतलब
उसकी चूत का मुंह काफी छोटा था।

पर उसने हार नहीं मानी और सरदार को धक्का दे ने को कहा, और जैसे ही सरदार ने धक्का दिया, उनका लण्ड उसकी छोटी
सी चत
ू को फाड़ता हुआ अन्दर जा घस
ु ा और वो दर्द से दोहरी होकर उनसे लिपट गयी… सरदार पहले भी कई बार ऐसी
परिस्थिति से गुजर चुका था इसलिए उन्होंने उसके चेहरे और होंठों को चूमा, उसके स्तनों का पान किया और जब दर्द थोडा
कम हुआ तो उन्होंने धक्के मारने शुरू किये…

अब दीपा को भी मजा आने लगा था…


158
"अह्ह्ह्ह… ऒऒऒ… सरदार… उम्म्म्म्म ्म… क्या चीज होती है ये लण्ड भी… जितना मोटा, उतना ही मजा…
अह्ह्ह्ह… और तेज करो, अब रहा नहीं जा रहा… जोर से चोदो मुझे… अह्ह्ह्ह… अह्ह्ह्ह… हाँ… ऐसे ही… ओह्ह्ह्ह…"

और इसी के साथ ही उसने अपना सारा ओर्गास्म से निकला रस सरदार के लण्ड के नाम कुर्बान कर दिया। अब अगली बारी
मिशा की थी। उन्होंने उसकी चत
ू में लण्ड डालकर अपनी गोद में उठा लिया और अपने सीने से उसके छोटे और सख्त
मुम्मों की मालिश करते हुए उसे चाँद की सेर पर ले गए।

और जब वो झड़ी, वो भी निढाल सी होकर अपनी पिताजी के लण्ड का गुणगान करती हुई नीचे आ गयी।

अब मैं और मेडम बचे थे। हम दोनों डौगी स्टाईल में झुक कर लेट से गए और सरदार ने हम दोनों की फेली हुई गाण्ड को
अपने हाथों से मसल कर हमें चुदाई के लिए तेयार किया… पहले मेरी चूत में लण्ड पेला, और मुझे तब तक चोदते रहे जब
तक मेरी चत
ू की फेक्ट्री की हर दीवार उनके झटकों से ढीली ना हो गयी।

और वही हाल फिर उन्होंने मेडम का भी किया… उनका भी जब ओर्गास्म हुआ तो जंगली सियार की तरह उन्होंने जोर से
चीख मारी और वहीँ जमीन पर ढे र हो गयी।

सरदार का बलशाली लण्ड अभी भी खड़ा हुआ था।

उन्होंने उसे अपने हाथों से मसलना शरू


ु किया, और हम चारों उनके सामने अपने मम्
ु मे मसलते हुए अपना मंह
ु खोलकर
बैठ गयी… और जैसे ही उनके लण्ड के आसमान से सफ़ेद पानी की बूंदे निकल कर बाहर की तरफ आयीं सबने अपनी जीभें
बाहर निकाल कर उन्हें हवा में ही लपकना शुरू कर दिया… और सरदार भी अपने लण्ड को आग बुझाने वाले पाईप की तरह
हम चारों के चेहरे के ऊपर घम
ु ा-२ कर अपना पानी हमारे आग लगे जिस्मों पर फेंक रहा था और हमारी आग बझ
ु ा रहा था।

सब कुछ ख़त्म होने के बाद हम चारों ने एक दस


ु रे के शरीर पर गिरे रस को चाटा और चस
ू ा और फिर सरदार के लण्ड को भी
चूसकर अच्छी तरह से साफ़ कर दिया।

वापिस आकर सभी अपने-२ टें टों में आकर सो गए।

सब
ु ह उठकर हम सभी वापिस कबीले की तरफ चल दिए…

आज हमारा टूर भी परू ा हो चक


ू ा था…शाम को निकलना भी था।

सरदार ने हम सभी को कुछ न कुछ उपहार भी दिया, और मेडम ने अगली बार जल्दी ही वापिस आने का वादा भी किया।
और साथ ही सरदार और मिशा को भी शहर आने का निमंत्रण दिया।

शाम को हम सब वापिस निकल पड़े। और रात भर का सफ़र तय करके हम सभी सभ


ु आठ बजे अपने शहर में वापिस पहुँच
गए। सभी बहुत खुश थे।

हो भी क्यों न… सबने अपने-२ हिस्से के मजे जो लिए थे…

खासकर मैंने… जितना सेक्स मैंने यहाँ अपने घर और कॉलेज में किया था उससे भी ज्यादा मैंने कबीले में जाकर किया,
और वो एक्सपेरिएंस मुझे हमेशा के लिए याद रहे गा।
*********************
****** समाप्त ********
*********************

दोस्तों हर कहानी का अंत आता ही है , मेरी कहानी का अंत भी येही है । आशा करता हु की आपको ये कहानी पसंद आई
होगी। आगे भी मैं आपका ऐसा ही मनोरं जन दस
ू री कहानियों के जरिये करता रहूँगा…

आपका…
…Page 197-198…
159
No of Posts = 1972

160

You might also like