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में जहां लग्न राशि का बहुत महत्व है जबकि लाल किताब के अनुसार लग्न राशि का
कोई महत्व नहीं। लाल किताब के अनुसार लग्न हमेशा मेष ही होता है । मेष राशि ही
लग्न है और वही खाना नंबर एक या पहला भाव है ।
लाल किताब का गणित भी अलग है । वैदिक ज्योतिष में जहां वर्ग कंु डली अर्थात नवांश,
दशंमाश आदि के आधार पर फलादे श निकालने का नियम है वहीं लाल किताब में अंधी
कंु डली, अंधराती कंु डली, नाबालिग कंु डली आदि तरह की कंु डली बनाकर ही भविष्य
बताया जाता है ।
वैदिक ज्योतिष के उपाय सिद्धांत, गणित और ज्ञान पर आधारित है , जबकि लाल किताब
का ज्ञान लोक प्रचलित अनुभवों पर आधारित सिद्धांत, सावधानी और उपायों का संग्रह है ।
वैदिक ज्योतिष में कंु डली के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर ही फलकथन का प्रचलन है
जबकि लाल किताब में सामुद्रिक शास्त्र और वास्तु शास्त्र का भी समावेश किया गया है ।
लाल किताब मल
ू त: हस्तरे खा पर आधारित किताब है ।
लाल किताब में प्रत्येक खाने को अलग ही तरह से परिभाषित किया गया है ।
वैदिक ज्योतिष के सिद्धान्त में प्रत्येक ग्रह की सप्तम दृष्टि होती है । मान लो सुर्य तत
ृ ीय
भाव में स्थित होकर नवम भाव में स्थित चंद्रमा को दे ख रहा है तो नवम भाव का
चंद्रमा भी तत
ृ ीयस्थ सर्य
ु को सप्तम दृष्टि से दे खेगा अर्थात सर्य
ु व चन्द्र दोनों ग्रहों की
एक दस
ू रे पर दृष्टि होगी। परन्तु लाल किताब में एसा नहीं है । लाल किताब अनस
ु ार सर्य
ू
तो दे ख रहा है लेकिन चंद्रमा नहीं दे खेगे। लाल किताब में परस्पर दृष्टि संबंध नहीं होता
तथा ना ही भाव की विपरीत दृष्टि होती है ।
टकराव की दृष्टि:
ग्रहों की मित्रता :
लाल किताब में नैसर्गिक ग्रहों की मित्रता एवं शत्रत
ु ा अस्थाई होती है , जबकि वैदिक
ज्योतिष में ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए सर्य
ु एवं शनि में नैसर्गिक शत्रत
ु ा है । लाल
किताब की कुण्डली में सुर्य प्रथम भाव तथा शनि नवम भाव में स्थित है । चूंकि शनि,
सुर्य से नवम भाव में स्थित है तो शनि सुर्य की बनि
ु याद है अतः यहां पर शनि, सुर्य से
मित्रता का भाव रखते हुए उसकी भरपूर मदद करे गा।
दस
ू री ओर सुर्य एवं मंगल आपस में नैसर्गिक मित्र हैं। सुर्य पंचम भाव तथा मंगल दशम
भाव में स्थित है तो इस स्थिति में मंगल अपनी आंठवीं टकराव की दृष्टि से सर्य
ु को
हानि पहुंचाएगा। इससे यह सिद्ध होता है कि लाल किताब में ग्रहों की मित्रता और शत्रत
ु ा
का संबंध कंु डली पर आधारित है ।
आपसी मदद
आपसी मदद की कुण्डली में किसी भी भाव में स्थित ग्रह अपने से पाचवें भाव में स्थित
ग्रह को अपनी दृष्टि द्वारा मदद प्रदान करे गा चाहे वो ग्रह पहले ग्रह का नैसर्गिक मित्र
हो या शत्र।ु मान लो प्रथम भाव में सूर्य और पंचम भाव में बह
ृ स्पति तथा नवम भाव में
शनि स्थित है ।
जबकि वैदिक ज्योतिष का नैसर्गिक शत्र/ु मित्र वाला सिद्धान्त यहां रद्द हो जाता है । यहां
एक बात विशेष ध्यान दे ने योग्य है कि यदि दृष्टि डालने वाला ग्रह अपनी स्वराशी, उच्च
राशी या पक्के भाव में स्थित हो तो ग्रह की शभ
ु प्रभाव दे ने की शक्ति अधिक होती है
तथा नीच राशी या अशुभ भाव में होने पर ग्रह शुभ प्रभाव तो करता है परन्तु उसमें
शक्ति थोड़ी कम होती है ।
भाव या खाने :
हथेली पर बारह भाव या खाने अलग-अलग प्रकार से होते हैं।
1. पहला खाना सर्य
ू पर्वत के पास।
2. दस
ू रा खाना गुरु पर्वत के पास।
3. तीसरा खाना अंगूठे और तर्जनी अंगुली की बीच वाली संधि में ।
4. चौथा खाना सबसे छोटी अंगुली के सामने हथेली के आखिर में ।
5. पांचवां खाना बध
ु और चंद्र पर्वत के बीच में ।
6. छठवां खाना हथेली के मध्य में ।
7. सातवां खाना बुध पर्वत के नीचे।
8. आठवां खाना चंद्र पर्वत के नीचे।
9. नवां खाना शक्र
ु और चंद्र पर्वत की बीच में ।
10. दसवां खाना शनि पर्वत के नीचे।
11. ग्यारहवां खाना खराब मंगल और हथेली के बीच में ।
12. बारहवां खाना शक्र
ु पर्वत और हथेली के बीच में जीवन रे खा के नीचे होता है ।
निशान :
1.हथेली में सूर्य का निशान सूर्य के समान दिखाई दे ता है ।
2.चंद्र का निशान चंद्र तारे की तरह नजर आता है ।
3.शभ
ु मंगल का निशान चौकोर चतर्भु
ु ज के समान होता है ।
4.अशभ
ु मंगल का निशान त्रिकोण या त्रिभज
ु के रूप में होता है ।
5.बध
ु का निशान गोलाकार समान होता है ।
6.गुरु का निशान किसी ध्वज की तरह होता है ।
7.शुक्र का निशान समान्तर में बनी दो लहराती हुई रे खाओं सा होता है ।
8.शनि का निशान धनु के आकार का होता है ।
9.राहु का निशान आड़ी-तिरछी रे खाओं से बना जाल सा होता है ।
10.केतु का निशान लम्बी रे खा के नीचे एक अर्धवत
ृ सा होता है ।
लाल किताब में दो प्रकार से कंु डली बनाई जाती है । पहले प्रकार में हाथ की रे खा, पर्वत, भाव,
राशि का निरीक्षण और निशानों को जांच परखकर कंु डली बनाते हैं दस
ू रे प्रकार में प्रचलित
ज्योतिष शास्त्र की पद्धति द्वारा बनी कंु डली को परिवर्तित करके नई कंु डली बनाई जाती है ।
आओ जानते हैं कि कैसे बनाई जाती है कंु डली।
हॉरोस्कोप का परिवर्तन करना : ज्योतिषी पद्धति से बनी हॉरोस्कोप को लाल किताब के अनुसार
बनाया जाता है । जैसे 12 ही खानों में कोई सी भी राशि हो सभी को हटाकर पहले खाने में मेष
राशि को रखा जाता है और ग्रहों की स्थिति याथावत रहती है । मतलब यह कि राशियां हटा दी
जाती है । पहले खाने या लग्न में यदि तुला राशि में कोई भी ग्रह है तो उसे तुला राशि में नहीं
मानकर पहले भाव या लग्न में ही माना जाएगा। अर्थात मेष लग्न या राशि में ही माना
जाएगा।
लाल किताब में कंु डली में स्थित राशियों को नहीं माना जाता है । केवल भावों को ही माना
जाता है । प्रत्येक व्यक्ति की हॉरोस्कोप मेष लग्न की ही होती है । बस फर्क होता है तो सिर्फ
ग्रहों का। फिर कारकों को और स्वामी ग्रहों को अपने अनुसार बनाकर लिख लेते हैं।
1.पहले भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह सर्य
ू है ।
2.दस
ू रे भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है ।
3.तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह मंगल है ।
4.चौथे भाव का स्वामी ग्रह चंद्र होता है जिसका कारक ग्रह भी चंद्र ही है ।
5.पाचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है ।
6.छठे भाव का स्वामी ग्रह बध
ु होता है जिसका कारक ग्रह केतु है ।
7.सातवें का स्वामी शक्र
ु होता है जिसका कारक ग्रह शक्र
ु और बध
ु दोनों हैं।
8.आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्र हैं।
9.नवें भाव का स्वामी ग्रह गरु
ु होता है जिसका कारक ग्रह भी गरु
ु होता है ।
10.दसवें भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक भी शनि है ।
11.ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है , लेकिन कारक गुरु है ।
12.बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है , लेकिन कारक राहु है ।
लाल किताब अनुसार पक्के घर में स्थित ग्रह होते हैं तारने वाले
जिस प्रकार वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का कारक के रूप में प्रयोग भावानुसार होता है परं तु लाल
किताब में प्रत्येक भाव का कारक होता है । लाल किताब के अनुसार भाव के कारक, ग्रहों के
पक्के घर कहलाते हैं।
प्रथम भाव में सूर्य, दस
ू रे भाव में बह
ृ स्पति, तीसरे भाव में मंगल, चौथे भाव में चंद्रमा, पांचवें
भाव में बह
ृ स्पति, छठे भाव में बुध और केतु, सातवें भाव में बध
ु और शुक्र, आठवें भाव में
मंगल और शनि, नौवें भाव में बह
ृ स्पति, दसवें भाव में शनि, ग्यारहवें भाव में बह
ृ स्पति और
बारहवें भाव में बहृ स्पति एवं राहु अपने अपने पक्के घर में होते हैं।
लाल किताब का एक अन्य सिद्धान्त है कि जिस भाव में कोई ग्रह न हो या भाव पर किसी ग्रह
की दृष्टि न हो तो वह भाव सोया हुआ माना जाएगा परं तु अगर ग्रह अपने पक्के घर में स्थित
हो जैसे सर्य
ू प्रथम भाव में , गरु
ु द्वितीय भाव में इत्यादि तो उस ग्रह को हम परू ी तरह जागता
हुआ मानेंगे अर्थात यह कि वह ग्रह अपने प्रभाव से दस
ू रे भाव या ग्रह को प्रभावित करने में
पर्ण
ू समर्थ होगा। इस दृष्टिकोण से लाल किताब में पक्के घर का ग्रह बहुत उपयोगी माना गया
है ।
लालकिताब में ग्रहों के बारे में साफ़ तरीके से स्पष्ट किया गया है ,कि पाप और पापी का अन्तर
क्या होता है ,जो पाप ग्रह तो हमेशा के लिये ही पाप करने वाला होता है , लेकिन कुछ ग्रह अपने
को पाप ग्रह के साथ रखकर या किसी पाप भाव में आकर पाप करने वाले यानी पापी बन जाते
है , राहु और केतु हमेशा के लिये पाप ग्रह कहे गये है ,जबकि शनि-राहु-केतु सामहि
ू क रूप से
पापी होते है .
जब ग्रह अपने अन्दर इतनी शक्ति लेकर विद्यमान होता है ,कि वह जो भी अच्छा या बुरा
परिणाम दे ता है ,अपने द्वारा दे ता है ,और किसी प्रकार से अन्य ग्रहों की सिफ़्त को अपने द्वारा
हजम नही करता है ,और न ही उसपर किसी अन्य ग्रह का असर पडता है ,वही कायम ग्रह
कहलाता है ,यह तभी सम्भव होता है ,कि जिस ग्रह के बारे में जानना होता है ,उस ग्रह के साथ
कोई ग्रह नही हो,उस ग्रह से कोई ग्रह यति
ु नही कर रहा हो,उस ग्रह से उच्च या नीच का भेद
नही हो,वह ग्रह किसी ग्रह की आज्ञा का पालन नही कर रहा हो.शनि मंगल और गुरु का अन्य
भावों मे स्थिति ग्रहों पर असर तो जा सकता है ,लेकिन सामने वाला ग्रह इन ग्रहों पर कोई
असर नही दे पाता है ,शनि गुरु की पूरी नजर अपने से तीसरे भाव में स्थिति ग्रह पर तो पडती
है ,लेकिन तीसरे भाव में स्थिति ग्रह शनि गुरु पर असर नही दे पाता है ,इस प्रकार से शनि और
गरु
ु अपने से तीसरे भाव में विराजमान ग्रहो पर अपना आधिपत्य अच्छा या बरु ा तो डाल सकते
है ,लेकिन तीसरे भाव वाला ग्रह केवल आज्ञा को मान सकता है ,अपनी आज्ञा को दे नही सकता
है .वह अपने सामने सातवें भाव को इनका असर जरूर प्रसारित कर सकता है ,अगर इन तीनो के
अलावा है तो.शनि राहु केतु का समान असर होता है ,लेकिन शनि अपने स्थान से दसवें भाव
को भी कब्जे में रखता है ,इसलिये राहु केतु शनि के शिष्य ही कहे जायेंगे.
चन्द्रमा के साथ राहु केतु शनि आदि सभी ग्रह किसी भी भाव में धर्मी बन जाते है ,राहु और
केतु चौथे भाव में जाकर धर्मी बन जाते है ,शनि ग्यारहवें भाव में और गरु
ु के साथ मिलकर
धर्मी बन जाता है ,धर्मी ग्रह किसी भी प्रकार से भाव या किसी ग्रहो को परे शान नही करते,उनको
अच्छे या बुरे से कोई लेना दे ना नही होता है ,कोई भी ग्रह क्या कर रहा है ,धर्मी ग्रह को कोई
सरोकार नही होता है ,वे अपने में ही मस्त रहते है ,ग्यारहवें भाव में शनि के होने पर पुत्र को
पिता वाले कामों के प्रति कोई लेना दे ना नही होता है ,साथ ही ग्यारहवें भाव का शनि किये जाने
वाले काम का मल्
ू य मांगना नही जानता है ,शनि कर्म का दाता है ,और ग्यारहवां भाव बडे भाई
और दोस्तों के साथ पिता के कुटुम्ब से भी वास्ता रखता है ,अगर जातक बडे भाई के प्रति या
दोस्तों के प्रति या अपने पिता के कुटुम्ब के प्रति काम करता है ,तो वह उनसे मल्
ू य नही मांग
पाता है ,अगर किसी प्रकार से किये गये काम का मूल्य लेने के लिये उनके पास जाता है ,और वे
किसी प्रकार से दख
ु ी दिखाई दे ते है ,तो वह बजाय वसूली के उनको कुछ दे कर और आता है ,इसी
प्रकार से शनि और गुरु के साथ रहने पर दे खा जाता है ,चालाक लोग इस प्रकार के इन्सान को
आराम से लूट लेते है ,और वह किसी प्रकार कुछ कह भी नही पाता है ,उसके परिवार या पत्नी
पर कोई कुछ भी असर दे ता रहे ,उसे कोई लेना दे ना नही होता है .अधिकतर ऐसा जातक गुरू
धर्म और शनि कर्म के बीच में फ़ंस कर रह जाता है .
अगर कोई दो मित्र ग्रहों में से एक दस ू रे के पक्के घर में पहुंच जाता है ,और और एक नही
पहुंच पाता है ,तो दोनो के अन्दर प्रतिस्पर्धा छिड जाती है ,और दोनो ही मुकाबला करने वाले ग्रह
बन जाते है ,फ़िर उनका स्वभाव मित्रों जैसा नही रहता है ,और जो ग्रह अपने मित्र के पक्के घर
में चला जाता है ,उसका आचरण मित्र जैसा न होकर शक के दायरे में आजाता है ,जैसे अष्टम
भाव का केतु पत्नी की कुन्डली में दस
ू रे भाव का बखान करे गा,और पत्नी के लिये मुंह बोले
भाई का नाम दे गा,लेकिन अगर पत्नी की छोटी बहिन की पत्र
ु ी जो कि जातक की कुन्डली के
तीसरे भाव की कर्ता धरता है ,(जातक का सातवां भाव उसकी पत्नी का है ,पत्नी की छोटी बहिन
जातक के नवें भाव से वास्ता रखती है ,और उस छोटी बहिन की पुत्री उससे सातवें यानी जातक
के तीसरे भाव से वास्ता रखेगी ) तीसरे भाव से जातक का आठवां भाव छठा पडता है ,और इस
भाव के जागत
ृ होते ही जातक की उस पत्नी के मुंह बोले भाई की अनबन चालू हो
जायेगी,जबकि उसका लगाव पहले जातक के धन या धर्म या कुटुम्ब से रहा होगा,और किसी
प्रकार की परे शानी के लिये वह जातक को कर्जा दश्ु मनी और बीमारी में ही जिम्मेदार माना
जायेगा,इस प्रकार से जातक और उस केतु के काम जातक और उस केतु के प्रति संदेहास्पद हो
जायेंगे,वे एक दस
ू रे के प्रति कब और क्या कर सकते है ,किसी को पता नही चल पायेगा.इसी
तरह से एक अन्य बखान में सूर्य और मंगल एक दस
ू रे के मित्र है ,और मंगल तो सूर्य के पक्के
घर यानी पहले भाव में पहुंच जाता है ,लेकिन सूर्य न तो तीसरे और न ही आठवें घर में पहुंच
पाता है ,तो मंगल की आदत का अन्दाज लगाना मश्कि ु ल होगा,वह किसी प्रकार से जातक के
मंगल या सूर्य के फ़ल को बिगाड सकते है .
जब दो मित्र ग्रह किसी भाव में एक साथ या आगे पीछे के घरों में पहुंच जाते है ,तो वे साथी
बन जाते है ,और एक दस ू रे की सहायता करने लगते है ,इसके अलावा शत्रु ग्रह किसी प्रकार से
भी सहायता नही करते है ,चाहे वे एक दस
ू रे के साथ बिलकुल ही सट कर क्यों न बैठें,इस बात
का लालकिताब कार ने बडी ही मार्मिक द्रिष्टि से विवेचन किया है ,और ग्रहों को प्राकृतिक-न्याय
सिद्धान्त के अन्तर्गत रख कर ही प्रत्येक ग्रह की व्याख्या की है .उसने समझा है ,कि शत्रु शत्रु ही
रहे गा,और मित्र मित्र रहे गा,शत्रु से कभी भी सहायता की उम्मीद नही की जा सकती है ,किन्ही
कारणों से और समय तथा गोचर से शत्रु ग्रह अगर मित्र का वर्ताव करने लगता है ,तो वह जैसे
ही अपने क्षेत्र में पहुंचेगा,वह अपनी भडास निकालने से नही चक
ू े गा.
वैदिक ज्योतिष की मान्यता के अनुसार प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सातवें स्थान के ग्रह को
पूर्ण द्रिष्टि से दे खता है ,शनि गुरु राहु केतु अपने स्थान से तीसरे और सातवें स्थान को पूर्ण
द्रिष्टि से दे खते है ,गुरु और राहु केतु अपने स्थान से पांचवें और नवें स्थान को भी दे खते
है ,शनि अपने स्थान से दसवें स्थान को भी दे खता है ,मंगल अपने स्थान से चौथे,सातवें और
आठवें स्थान को दे खता है ,और बाकी के ग्रह सातवें स्थान को ही दे खते है .लेकिन लालकिताब
का नियम ही सबसे अलग है ,उसके द्वारा प्रत्येक ग्रह अपने से आगे के भावों को ही दे ख पाता
है ,पीछे के भावों से उसका कोई सरोकार नही होता है ,लेकिन आठवां भाव इसका अपवाद माना
जाता है ,वहां पर विराजमान ग्रह अपने से आगे और पीछे दोनो तरफ़ दे ख सकता है ,लालकिताब
के द्वारा जो ग्रहों की द्रिष्टि होती है ,वह इस प्रकार से होती है - पहले भाव में विराजमान ग्रह
सातवें भाव को दे खता है ,दस
ू रे मे बैठा ग्रह छठे भाव को दे खता है ,तीसरे में बैठा ग्रह नौ और
ग्यारह को ही दे खता है ,चौथे भाव में विराजमान ग्रह दसवें भाव को दे खता है ,पांचवें भाव में
विराजमान ग्रह नौ और ग्यारह को दे खता है ,छठे भाव में विराजमान ग्रह बारहवें भाव को दे खता
है ,आठवें भाव में विराजमान ग्रह दस
ू रे भाव को दे खता है .अगर कोई ग्रह छठे भाव में विराजमान
है ,तो वह बारहवें भाव को ही दे खेगा,उसे पांचवें और चौथे तीसरे दस
ू रे और पहले भाव से कोई
लेना दे ना नही रहता है ,इस व्यवस्था के द्वारा सातवां,नौवां,दसवां,ग्यारहवां,और बारहवां भाव
कोई द्रिष्टि नही रखते है ,और जो ग्रह किसी भाव में विराजमान है ,और उसके द्वारा दे खे जाने
वाले भाव के अन्दर कोई ग्रह नही हो तो वह ग्रह भी अन्धा हो जाता है ,और बेकार ही माना
जाता है .
जो भाव या ग्रह सोये हुये होते है , उनको पूजा और उपचार के बाद लालकिताब के अनुसार
जगाया जा सकता है , ग्रह जो सोया हुआ हो,उसके लिये ग्रह की द्रिष्टि को दे खकर जगाया जाता
है ,कौन से भाव को किस ग्रह के द्वारा जगाया जाता इसके लिये जानने से पहले यह जानना
जरूरी होता है कि उसे दे खे जाने वाले भाव के अन्दर कौन सा ग्रह है , सभी भावों को एक साथ
जगाने पर अनर्थ भी हो सकता है ,इस लिये हमेशा भाव को सही रूप से समझ कर ही जगाना
चाहिये,ग्रह का नाम और भाव का प्रभाव आगे बताया जायेगा,अभी तो आपके लिये भाव और
उसके मालिक ग्रह के बारे में बताया जा रहा है ,पहले भाव के लिये मंगल,दस
ू रे भाव के लिये
चन्द्रमा,तीसरे भाव के लिये बध
ु ,चौथे भाव के लिये चन्द्रमा,पांचवे भाव के लिये सर्य
ू , छठे भाव
के लिये राहु,सातवें भाव के लिये शुक्र,आठवें भाव के लिये चन्द्रमा,नवें भाव के लिये गुरु,दसवें
भाव के लिये शनि,ग्यारहवें भाव के लिये गुरु और बारहवें भाव के लिये केतु की पज ू ा पाठ और
उपचार आदि करने चाहिये.
वैसे लाल किताब मे एक ही सिद्धान्त होता है कि राशि को महत्व नही दिया गया है लाल किताब मे केवल भावो का अर्थ ही आजीवन के लिये प्रस्तत
ु
किया गया है । ग्रहो क भावो के अनस
ु ार मान्यता दी जाती है और कौन सा ग्रह किस घर यानी भाव मे है उसका रूप लाल किताब मे बताया जाता है ।
वैसे साधारण ज्योतिष मे राशियों को महत्व दिया गया है धनु मीन गरु
ु की राशिया है इसलिये इन्हे ब्राह्मण वर्ण की संज्ञा दी गयी है मेष वश्चि
ृ क
मंगल की राशि है इसलिये इन्हे क्षत्रिय वर्ण की उपाधि दी गयी है वष
ृ और तल
ु ा शक्र
ु की राशिया है इसलिये इन्हे वणिक वर्ण की उपाधि दी गयी है
कन्या और मिथन
ु बध
ु की राशिया है इसलिये इन्हे शद्र
ू यानी सेवा वाले वर्णो की उपाधि दी गयी है कर्क और सिंह यह सामाजिक और राजनीतिक
राशिया है इसलिये इनके अन्दर सभी वर्ण अपने अपने अनस
ु ार समद
ु ाय समाज आदि बनाकर चलने के लिये बताये गये है .यह भी जरूरी नही है कि
ब्राह्मण के घर मे ब्राह्मण ही पैदा हो अगर उसके घर मेष या वश्चि
ृ क लगन का जातक पैदा हो गया तो मान लेना चाहिये कि बाप तो वैश्य था
लेकिन लडका क्षत्रिय हो गया है और जो भी गण
ु दोष आदि होंगे वह एक क्षत्रिय के ही होंगे आदि बाते जानकारी के लिये काफ़ी है .
ग्रहो को समझने के लिये जो नियम है वह इस प्रकार से है सूर्य उजाला दे ता है गर्मी दे ता है चन्द्रमा धरती और धरती पर पानी की मात्रा को बताता है
मंगल हिम्मत और पराक्रम का मालिक है बुध जातक के जीवन मे अपने कार्य और व्यवहार से फ़ैलने की बात करता है गुरु हवा के रूप मे है रिस्ते
जोडता है और रिस्तो की दह
ु ाई भी दे ता है शुक्र जमीन के नीचे की शक्ति है धातु के रूप मे सोना है तो पत्थर के रूप मे जवाहरात है शनि अन्धेरा भी
है और ठं डा भी है राहु मित्र के साथ मित्र है और शत्रु के साथ शत्रु है कभी कभी खुद की जड भी उखाडने का काम करता है केतु शुक्र का सहायक ग्रह
माना जाता है जैसे धरती को खोदने के लिये केतु की जरूरत पडती है फ़सल को पैदा करने के लिये हल की जरूरत पडती है सन्तान क पैदा करने के
लिये पुरुष के जननांग की जरूरत पडती है .
सूर्य के मित्र गुरु और मंगल है चन्द्रमा सम है चन्द्रमा के लिये सभी मित्र शत्रु भी है मित्र भी है और सभी सम भी है मंगल के लिये बुध और शुक्र
दश्ु मन है बुध के लिये मंगल ही शत्रु है बाकी के सभी सम है गुरु के लिये शुक्र और चन्दमा शत्रु है शुक्र के लिये मंगल और गुरु शत्रु है शनि के लिये
मंगल और सूर्य शत्रु है आदि बाते समझनी चाहिये.
लालकिताब का प्रसिद्ध होना केवल इसी बात पर निर्भर है कि लालकिताब के अन्दर सभी ग्रहो का इलाज दिया गया है ,आस्तिक है उनके लिये भी
और नास्तिक है उनके लिये भी,लालकिताब का वास्तविकता को भारतीय व्यक्ति ही समझ सकता है इसके अलावा एक बात और भी मेरे दे खने मे
आयी है कि जिसका शनि और गुरु या बुध वक्री है वह किसी प्रकार के सामाजिक कानून को धर्म को मर्यादा को जाति को व्यवहार को समझना तो
दरू एक सिरे से ही साफ़ करता हुआ दे खा जा सकता है इसी प्रकार से राहु से ग्रसित व्यक्ति भी अगर कोई उसका सहायक नही है तो वह किसी के भी
कहने मे नही आने वाला अगर जबरदस्ती उसके साथ लालकिताब या ग्रह के इलाज करवा दिये जाये तो वह ठीक हो तो दस
ू री बात है नही तो इलाज
बता भी दिया जायेगा तो वह अपने कनफ़्यज
ू न के कारण इलाज नही कर पायेगा.
स ू र्य का इलाज
लालकिताब मे सर्य
ू के खराब होने के जो कारण बताये गये है वह इस प्रकार से है अगर व्यक्ति का सर्य
ू खराब होता है तो सबसे पहले वह ह्रदय पर
असर डालता है और दिल की चलने वाली धडकन को बाधित करता है या तो अधिक चिन्ता के कारण यह होता है या अधिक खश
ु ी गमी मे ह्रदय की
चाल का बिगडना माना जाता है वैसे दे खा जाये तो एक आदमी औसतन एक मिनट के अन्दर पन्द्रह सांस गिनती से लेता है इन सांसो की चाल धीरे
धीरे चिन्ता या शोक या खस
ु ी गमी मे बदलने लगती है जैसे ही सांसो क चाल अपनी गति को बदलती है धीरे धीरे शरीर के रक्त प्रवाह मे कमी बेसी
आने लगती है और सीधा सा प्रभाव ह्रदय की रक्तवाहिनी नशो पर पडता है वास्तविकता मे ह्रदय के रोग शरु
ु हो जाते है खन
ू जाम होने लगता है या
खन
ू का प्रेसर अधिक बन जाता है तो हाई ब्लड प्रेसर बन जाता है और धीरे चलने पर लो ब्लड प्रेसर की बीमारी शरु
ु हो जाती है ,इसके बाद पेट की
खराबिया भी शरु
ु हो जाती है भोजन पचता नही है पचता भी है तो वह भोजन के शरीर को लगने वाले तत्व नही प्रदान कर पाता है या तो भोजन का
समय ही बदल जाता है या शरीर की मेहनत करने और मेहनत के बाद भख ू का ख्याल नही रखा जाता है आराम या तो बहुत शरीर को मिल जाता है
या शरीर को बिलकुल ही आराम नही मिलता है किसी प्रकार की चिन्ता के कारण लोगो के मान अपमान की चिन्ता बच्चो के शादी विवाह की चिन्ता
घर मे बरक्कत की चिन्ता राज दरबार से मिलने वाली चिन्ता या किसी प्रकार के गलत काम हो जाने से सजा या बदनामी की चिन्ता चोरी डकैती
फ़सल वाहन आदि के समाप्त होने की चिन्ता मे व्यक्ति दिक्कत मे आजाता है जैसे ही चिन्ता लगती है अक्समात ही आंखो पर भी असर जाता है
जैसे पत्र
ु की मौत हो जाना पिता के द्वारा बडी बीमारी का झेलना या रोजाना के कामो मे सरकारी रुकावट का आजाना सामाजिक रूप से किसी बडे
कष्ट का बन जाना मान अपमान हो जाना,आदि बातो से आंखो की रोशनी जाने लगती है इसके अलावा भी यह दे खा जाता है कि किसी प्रकार से
अनैतिक रिस्तो के बनते ही ताकत और शरीर का सूर्य जो वीर्य और रज के रूप मे होता है बेकार मे बहा दिया जाना आदि भी बात मानी जा सक्ती
है ,अच्छा खासा धन कमाया जा रहा था अचानक सरकारी कानून बना और धन कमाने का रास्ता साफ़ हो गया जो प्लान कल के लिये बनाये गये थे
सभी उस रुकावट के कारण समाप्त हो गये आदि बाते धन की चिन्ता के लिये माने जाते है इसी प्रकार से अपयश होना जो प्रसिद्धि बनी थी वह
बिगडने पर भी सूर्य का खराब होना माना जाता है वैसे दांतो की तकलीफ़ होना मुंह से लार का अधिक आना घर मे लकडी आदि का लगा सामान जल
जाना खराब हो जाना दीमक के द्वारा खराब कर दिया जाना आदि बाते भी सूर्य के खराब होने के लिये मानी जाती है इसके लिये सबसे पहला उपाय
होता है शराब कबाब मांस आदि के भोजन बन्द कर दे ना,अधिक मनोरं जन और अनैतिक लोगो का साथ छोड दे ना फ़िर सूर्य की पूजा के लिये रोजाना
सुबह सूर्योदय पर सूर्य को अर्घ दे ना हरिवंश पुराण का पाठ करना पिता की सेवा करना पूर्वजो के प्रति श्रद्धा रखना उनके लिये तर्पण आदि काम
करना लकडी और उसके काटने छांटने के काम बन्द कर दे ना जंगल आदि से प्राप्त सामग्री को व्यापार मे नही लाना पुत्र की संगति को अच्छा बनाने
के लिये स्थान का बदलाव कर दे ना नौकरी मे अडचन आ रही है तो कोयले बहते पानी मे बहाना कोयले नही मिले तो गें हू की चापड को बहते पानी मे
बहाना भूसा और खली मिलाकर जानवरो को चारा डालना लोगो के ठहरने के लिये छाया वाले कारण पैदा करना यह सब कार्य राहु को सुधारने के
लिये किये जाते है सूर्य तभी खराब होगा जब राहु अपना ग्रहण दे रहा होगा शनि सूर्य की युति मे केवल बाप बेटे की नही बनेगी लेकिन शरीर का
अहित नही होगा,आदि बाते ध्यान मे रखकर करनी चाहिये.