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pitra-dosha मत्ृ यु के पश्चात संतान अपने पिता का श्राद्ध नहीं करते हैं एवं उनका जीवित अवस्था में अनादर करते हैं तो पन
ु र्जन्म
में उनकी कुण्डली में पितद
ृ ोष ( Pitra dosha) लगता है . सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या से भी यह दोष लगता है .पित ृ दोष
को अशुभ प्रभाव दे ने वाला माना जाता है . इस दोष की स्थिति एवं उपचार क्या है आइये दे खते हैं.
सर्य
ू को पिता माना जाता है . राहु छाया ग्रह है (Rahu is a shadow planet). जब यह सर्य
ू के साथ यति
ु (combination of Rahu
and Sun) करता है तो सूर्य को ग्रहण लगता है इसी प्रकार जब कुण्डली में सूर्य चन्द्र और राहु मिलकर किसी भाव में युति बनाते हैं
( conjunction of Rahu, Sun and Moon) तब पित ृ दोष लगता है . पित ृ दोष होने पर संतान के सम्बन्ध में व्यक्ति को कष्ट
भोगना पड़ता है . इस दोष में विवाह में बाधा, नौकरी एवं व्यापार में बाधा एवं महत्वपूर्ण कार्यों में बार बार असफलता मिलती है .
कुण्डली में पित ृ दोष के कई लक्षण बताए जाते हैं जैसे चन्द्र लग्नेश (Moon’s lord of the ascendant) और सूर्य लग्नेश (Sun’s
lord of the ascendant) जब नीच राशि (Debilitated sign) में हों और लग्न में या लग्नेश के साथ युति (combination) या दृष्टि
(aspect) सम्बन्ध बनाते हों और उन पर पापी ग्रहों (malefic planet) का प्रभाव होता है तब पित ृ दोष लगता है . लग्न व लग्नेश
कमज़ोर (combusted ascendant or lord of the ascendant) हो और नीच लग्नेश के साथ राहु और शनि का यति ु और दृष्टि
सम्बन्ध होने पर भी यह स्थिति बनती है . अशुभ भावेश (inauspicious lord of a house) शनि चन्द्र से युति या दृष्टि सम्बन्ध
बनाता है अथवा चन्द्र शनि के नक्षत्र या उसकी राशि में हो तब व्यक्ति की कुण्डली पित ृ दोष से पीड़ित होती है .
लग्न में गुरू नीच (combusted Jupiter) का हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव पड़ता हो अथवा त्रिक भाव (trine house) के
स्वामियो से बह
ृ स्पति दृष्ट या युति बनाता हो तब पितर व्यक्ति को पीड़ा दे ते हैं. नवम भाव में बह
ृ स्पति और शुक्र की युति बनती
हो एवं दशम भाव में चन्द्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो तो पित ृ दोष वाली स्थिति बनती है . शक्र
ु अगर राहु अथवा शनि और मंगल
द्वारा पीड़ित होता है तब पित ृ दोष का संकेत समझना चाहिए. अष्टम भाव में सूर्य व पंचम में शनि हो तथा पंचमेश राहु से युति
कर रहा हो और लग्न पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब पित ृ दोष समझना चाहिए.
पंचम अथवा नवम भाव में पापी ग्रह हो या फिर पंचम भाव में सिंह राशि हो और सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तब पित ृ दोष
की पीड़ा होती है . कुण्डली में द्वितीय भाव, नवम भाव, द्वादश भाव और भावेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है या फिर भावेश
अस्त या कमज़ोर होता है और उनपर केतु का प्रभाव होता है तब यह दोष बनता है . जिनकी कुण्डली में दशम भाव का स्वामी त्रिक
भाव (trikha house)में होता है और बह
ृ स्पति पापी ग्रहों के साथ स्थित होता है एवं लग्न और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव
होता है उन्हें भी पित ृ दोष के कारण कष्ट भोगना होता है .
जिनकी कुण्डली में पित ृ दोष है उन्हें इसकी शांति और उपचार कराने से लाभ मिलता है . पित ृ दोष शमन के लिए नियमित पित ृ
कर्म करना चाहिए अगर यह संभव नहीं हो तो पित ृ पक्ष में श्राद्ध करना चाहिए. नियमित कौओं और कुत्तों का खाना दे ना चाहिए.
पीपल में जल दे ना चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. गौ सेवा और गोदान करना चाहिए. विष्णु भगवान की पूजा
लाभकारी है .