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ह रशंकर परसाई (1922-1995) आधुिनक िह दी सािह य के शीष थ ं यकार ह।

उनसे पहले िह दी का हा य– ं य सािह य महज़ हंसने-हंसाने क चीज़ समझा जाता


था, परसाई जी ने अपनी पैनी दृि और चुटीली भाषा से उसम धार पैदा क और
दृि संप बनाया।

परसाई जी का ज म होशंगाबाद (म. .) िजले के जमानी गांव म आ और नागपुर


िव िव ालय से उ ह ने िह दी सािह य म एम. ए. क उपािध अ जत क । आजीिवका
के े म उ ह ने अ यापक का पेशा चुना। 1957 म अ यापन क से मुि लेकर वे पूरी
तरह सािह य-सेवा को सम पत हो गये। उ ह ने प पि का म िनयिमत ं य
कालम िलखे, जो ब त लोकि य ए। मुि बोध आ द सािह यकार िम के सहयोग से
उ ह ने ‘वसुधा’ नाम क सािहि यक पि का िनकाली, जो ैमािसक प म आज भी
िनकल रही है। उप यास, कहानी और ं य िवधा म उनक एक दजन से ऊपर
पु तक कािशत । छह खंड म उनक स पूण रचनाएं भी आ चुक है।

‘िवकलांग ा का दौर’ पर उ ह सािह य अकादमी पुर कार दान कया गया।


‘अपनी अपनी बीमारी’ म सं हीत परसाई जी क ं य कहािनयां एक ऐसे समय,
समाज और स ातं के ब पाठक को ले जाकर खड़ा करती ह जो जाना-पहचाना
होते ए भी, लगता है पहली बार कु छ-कु छ समझ म आ रहा है। इनका सम भाव
वैसा ही है क ‘वो चोट भी करते ह और रोने भी नह देते’।
अपनी – अपनी
बीमारी

ह रशंकर परसाई
ISBN : 978-93-5064-141-5
सं करण : 2013
© ह रशंकर परसाई
APNI APNI BIMARI (Satire)
by Harishankar Parsai

राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोन: 011-23869812, 23865483, फै स: 011-23867791
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अपनी-अपनी बीमारी
पुराना िखलाड़ी
समय काटनेवाले
रामकथा ेपक
बुि वादी
ेम क िबरादरी
धम े े-कु े े
िजसक छोड़ भागी है
कताब क दुकान और दवा क
घुटन के प ह िमनट
आचायजी, ए सटशन और बागीचा
िसलिसला फोन का
बरात क वापसी
इं पे टर मातादीन चांद पर
असुिवधाभोगी
बैरंग शुभकामना और जातं
इितहास का सबसे बड़ा जुआ
आना न आना रामकु मार का
दशा बताइए
चुनाव के ये अनंत आशावान
साधना का फौजदारी अ त
अपनी-अपनी बीमारी

हम उनके पास चंदा मांगने गए थे। चंदे के पुराने अ यासी का चेहरा बोलता है। वे
हम भांप गए। हम भी उ ह भांप गए। चंदा मांगनेवाले और देने वाले एक-दूसरे के शरीर
क गंध बखूबी पहचानते ह। लेने वाला गंध से जान लेता है क यह देगा या नह ।
देनेवाला भी मांगनेवाले के शरीर क गंध से समझ लेता है क यह िबना िलए टल
जाएगा या नह । हम बैठते ही समझ म आ गया क ये नह दगे। वे भी शायद समझ गए
क ये टल जाएंग।े फर भी हम दोन प को अपना क तो िनभाना ही था। हमने
ाथना क तो वे बोले–आपको चंदे क पड़ी है, हम तो टै स के मारे मर रहे ह।
सोचा,यह टै स क बीमारी कै सी होती है। बीमा रयां ब त देखी ह–िनमोिनया,
कॉलरा, कसर; िजनसे लोग मरते ह। मगर यह टै स क कै सी बीमारी है िजससे वे मर
रहे थे! वे पूरी तरह से व थ और स थे। तो या इस बीमारी म मज़ा आता है? यह
अ छी लगती है िजससे बीमार तगड़ा हो जाता है। इस बीमारी से मरने म कै सा लगता
होगा? अजीब रोग है यह। िच क सा-िव ान म इसका कोई इलाज नह है। बड़े से बड़े
डॉ टर को दखाइए और किहए–यह आदमी टै स से मर रहा है। इसके ाण बचा
लीिजए। वह कहेगा–इसका हमारे पास कोई इलाज नह है। ले कन इसके भी इलाज
करने वाले होते, मगर वे एलोपैथी या होिमयोपैथी पढ़े नह होते। इसक िच क सा-
प ित अलग है। इस देश म कु छ लोग टै स क बीमारी से मरते ह और काफ लोग
भुखमरी से।
टै स क बीमारी क िवशेषता यह है क िजसे लग जाए वह कहता है–हाय, हम
टै स से मर रहे ह, और िजसे न लगे वह कहता है–हाय, हम टै स क बीमारी ही नह
लगती। कतने लोग ह िजनक मह वाकां ा होती है क टै स क बीमारी से मर, पर
मर जाते ह, िनमोिनया से। हम उन पर दया आई। सोचा, कह क ॉपट समेत यह
बीमारी हम दे दीिजए। पर वे नह देत।े यह कमब त बीमारी ही ऐसी है क िजसे लग
जाए, उसे यारी हो जाती है।
मुझे उनसे ई या ई। म उन जैसा ही बीमार होना चाहता ।ं उनक तरह ही
मरना चाहता ।ं कतना अ छा होता अगर शोक-समाचार य छपता–बड़ी स ता
क बात है क िह दी के ं य लेखक ह रशंकर परसाई टै स क बीमारी से मर गए। वे
िह दी के थम लेखक ह जो इस बीमारी से मरे । इस घटना से सम त िह दी संसार
गौरवाि वत है। आशा है, आगे भी लेखक इसी बीमारी से मरगे!
मगर अपने भा य म यह कहां? अपने भा य म तो टु ी बीमा रय से मरना िलखा
है।
उनका दुख देखकर म सोचता ,ं दुख भी कै से-कै से होते ह। अपना-अपना दुख
अलग होता है। उनका दुख था क टै स मारे डाल रहे ह। अपना दुख है क ॉपट ही
नह है िजससे अपने को भी टै स से मरने का सौभा य ा हो। हम कु ल 50 पये चंदा
न िमलने के दुख म मरे जा रहे थे।
मेरे पास एक आदमी आता था, जो दूसर क बेईमानी क बीमारी से मरा जाता
था। अपनी बेईमानी ाणघातक नह होती, बि क संयम से साधी जाए तो
वा यव क होती है। कई पित ताएं, दूसरी औरत के कु लटापन क बीमारी से
परे शान रहती ह। वह आदश ेमी आदमी था। गांधीजी के नाम से चलने वाले कसी
ित ान म काम करता था। मेरे पास घंट बैठता और बताता क वहां कै सी बेईमानी
चल रही है। कहता–युवाव था म मने अपने को सम पत कर दया था। कस आशा से
इस सं था म गया और या देख रहा ।ं मने कहा–भैया, युवाव था म िजस-िजसने
सम पत कर दया वे सब रो रहे ह। फर तुम आदश लेकर गए ही य ? गांधीजी दुकान
खोलने का आदेश तो मरते-मरते दे नह गए थे। म समझ गया, उसके क को। गांधीजी
का नाम ित ान म जुड़ा होने के कारण वह बेईमानी नह कर पाता था और दूसर क
बेईमानी से बीमार था। अगर ित ान का नाम कु छ और हो जाता तो वह भी और
जैसा करता और व थ रहता। मगर गांधीजी ने उसक ज़ंदगी बरबाद क थी।
गांधीजी िवनोबा जैस क िज़ दगी बरबाद कर गए।
बड़े-बड़े दुख ह! म बैठा ।ं मेरे साथ 2-3 बंधु बैठे ह। म दुखी ।ं मेरा दुख यह है क
मुझे िबजली का 40 पये का िबल जमा करना है और मेरे पास इतने पये नह ह।
तभी एक ब धु अपना दुख बताने लगता है। उसने 8 कमर का मकान बनाने क
योजना बनाई थी। 6 कमरे बन चुके ह। 2 के िलए पैसे क तंगी आ गई है। वह ब त-
ब त दुखी है। वह अपने दुख का वणन करता है। म भािवत नह होता। मगर उसका
दुख कतना िवकट है क मकान को 6 कमर का नह रख सकता। मुझे उसके दुख से
दुखी होना चािहए, पर नह हो पाता। मेरे मन म िबजली के िबल के 40 पये का
खटका लगा है।
दूसरे ब धु पु तक-िव े ता ह। िपछले साल 50 हज़ार क कताब पु तकालय को
बेची थ । इस साल 40 हज़ार क िबक । कहते ह–बड़ी मुि कल है। िसफ 40 हज़ार क
कताब इस साल िबक । ऐसे म कै से चलेगा? वे चाहते ह, म दुखी हो जाऊं, पर म नह
होता। इनके पास मने अपनी 100 कताब रख दी थ । वे िबक ग । मगर जब म पैसे
मांगता ,ं तो वे ऐसे हँसने लगते ह जैसे म हा यरस पैदा कर रहा ।ं बड़ी मुि कल है
ं यकार क । वह अपने पैसे मांगे, तो उसे भी ं य-िवनोद म शािमल कर िलया जाता
है। म उनके दुख से दुखी नह होता। मेरे मन म िबजली कटने का खटका लगा आ है।
तीसरे ब धु क रोटरी मशीन आ गई। अब मोनो मशीन आने म क ठनाई आ गई
है। वे दुखी ह। म फर दुखी नह होता।
अ ततः मुझे लगता है क अपने िबजली के िबल को भूलकर मुझे इन सबके दुख से
दुखी हो जाना चािहए। म दुखी हो जाता ।ं कहता –ं या ेजडी है मनु य-जीवन क
क मकान कु ल 6 कमर का रह जाता है। और कै सी िनदय यह दुिनया है क िसफ 40
हज़ार क कताब खरीदती है। कै सा बुरा व आ गया है क मोनो मशीन ही नह आ
रही है।
वे तीन स ह क म उनके दुख से आिखर दुखी हो ही गया।
तरह-तरह के संघष म तरह-तरह के दुख ह। एक जीिवत रहने का संघष है और
एक स प ता का संघष है। एक यूनतम जीवन- तर न कर पाने का दुख है, एक पया
स प ता न होने का दुख है। ऐसे म कोई अपने टु े दुख को लेकर कै से बैठे?
मेरे मन म फर वही लालसा उठती है क वे स न ॉपट समेत अपनी टै स क
बीमारी मुझे दे द और उससे म मर जाऊं। मगर वे मुझे यह चांस नह दगे। न वे ॉपट
छोड़गे, न बीमारी, और अ ततः कसी ओछी बीमारी से ही मरना होगा।
पुराना िखलाड़ी

सरदारजी ज़बान से तंदरू को गम करते ह। ज़बान से बतन म गो त चलाते ह। पास


बैठे आदमी से भी इतने जोर से बोलते ह, जैसे कसी सभा म िबना माइक बोल रहे ह ।
होटल के बोड पर िलखा है–‘यहां चाय हर व तैयार िमलती है।’ नासमझ आदमी
चाय मांग बैठता है और सरदार जी यही कहते ह–चाय ही बेचना होता, तो उसे बोड
पर यूं िलखता बा शाओ! इधर नेक ब के िलए कोई चाय नह है। समझदार ‘चाय’
का मतलब समझते ह और बैठते ही कहते ह–एक चव ी!
सरदारजी मुह ले के रखवाले ह। इधर के हर आदमी का च र वे जानते ह।
अजनबी को ताड़ लेते ह। तंदरू म सलाख मारते ए िच लाते ह–
–वो दो बार ससुराल म रह आया है जी। ज़रा बच के ।
–उसके घर म दो ह जी। कसी के गले म डालना चाहता है। ज़रा बच के बा शाओ!
–दो जचक उसके हो चुक ह। तीसरी के िलए बाप के नाम क तलाश जारी है।
ज़रा बच के ।
– उसक खादी पर मत जाणाजी। गांधी को फु टकर बेचता ह। ज़रा बच के ।
उस आदमी को मेरे साथ दो-तीन बार देखकर सरदारजी ने आगाह कया था–वह
पुराना िखलाड़ी है। ज़रा बच के ।
िजसे पुराना िखलाड़ी कहा था, वह 35-40 के बीच का सीधा आदमी लगता था।
हमेशा परे शान। हमेशा तनाव म। कई आधुिनक किव उससे तनाव उधार मांगने आते
ह गे। उसम बचने लायक कोई बात मुझे नह लगती थी।
एक दन वह अचानक आ गया था। पहले से िबना बताए, िबना घंटी बजाए, िबना
पुकारे , वह दरवाज़ा खोलकर घुसा और कु स पर बैठ गया। बदतमीज़ी पर मुझे गु सा
आया था। बाद म समझ गया क इसने बदतमीज़ी का अिधकार इसिलए हािसल कर
िलया है क वह अपने काम से मेरे पास नह आता। देश के काम से आता है। जो देश का
काम करता है, उसे थोड़ी बदतमीज़ी का हक है। देश-सेवा थोड़ी बदतमीजी के िबना
शोभा ही नह देती। थोड़ी बेवकू फ भी िमली हो, तो और चमक जाती है।
वह उ ेिजत था। उसने अपना ब ता टेिबल पर पटका और सीधे मेरी तरफ घूरकर
बोला–तुम कहते हो क िबना िवदेशी मदद के योजना चला लोगे। मगर पैसा कहां से
लाओगे? है तु हारे पास देश म ही साधन जुटाने क कोई योजना?
वह जवाब के िलए मुझे घूर रहा था और म इस हमले से उखड़ गया था। योजना
क बात मने नह , अथ मं ी ने कही थी। वह अथ मं ी से नाराज़ था। डांट मुझे पड़ रही
थी।
उ ेजना म उसने तीन कु सयां बदल । ब ते से पुिल दा िनकाला। बोला–जीभ
उठाकर तालू से लगा देते हो। लो, आंत रक साधन जुटाने क यह क म।
घंटा-भर अपनी योजना समझाता रहा। कु छ ह का आ। पु लंदा ब ते म रखा और
चला गया।
ह ते-भर बाद वह फर आया। वैसे ही तनाव म। भड़ से दरवाज़ा खोला। ब ते को
टेिबल पर पटका और अपने को कु स पर। बोला–तुम कहते हो, रोड ा सपोट के कारण
रे लवे क आमदनी कम हो रही है। मगर कभी सोचा है, मोटर- क वाले माल
भेजनेवाल को कतने सुभीते देते ह? लो यह क म। इसके मुतािबक काम करो।
उसने रे लवे क आमदनी बढ़ाने के तरीके मुझे समझाए।
वह जब-तब आता। मुझे कसी िवभाग का मं ी समझकर डांटता और फर अपनी
योजना समझाता। उसने मुझे िश ा मं ी, कृ िष मं ी, िवदेश मं ी सब बनाया। उसे
लगता था, वह सब ठीक कर सकता है, ले कन िववश है। स ा उसके हाथ म है ही नह ।
उससे जो बनता है, करता है। योजना और सुझाव भेजता रहता है।
देश के िलए इतना दुखी आदमी मने दूसरा नह देखा। सड़क पर चलता, तो दूर से
ही दुखी दखता। पास प च ं ते ही कहता– रज़व बक के गवनर का बयान पढ़ा? सारी
इकॉनमी को न कर रहे ह ये लोग। आिखर यह या हो रहा है? ज़रा धानमं ी से
कहो न!
सरदारजी ने फर आगाह कया–ब त िचपकने लगा है। पुराना िखलाड़ी है। ज़रा
बच के ।
मने कहा–मालूम होता है, उसका दगाम खराब है।
सरदारजी हँस।े बोले–दमाग? अजी दमाग तो हमारा-आपका खराब है जो दन-
भर काम करते ह, तब खाते ह। वह 10 साल से िबना कु छ कए मज़े म द ली म रह
रहा है। दमाग तो उसका आला दज का है।
मने कहा–मगर वह दुखी है। रात- दन उसे देश क िच ता सताती रहती है।
सरदारजी ने कहा–अजब मु क है ये। भगवान ने इसे स ा खेलते-खेलते बनाया
होगा। इधर मु क क फ म से भी रोटी िनकलती है। फर म आपसे पूछता ,ं िप ी
का कतना शोरबा बनता है? बताइए, कु छ अंदाज़ा दीिजए। मु क क फ करते-करते
गांधी और नेह जैसे चले गये। अब यह िप ी या सुधार लेगा? इस मु क को भगवान
ने खास तौर से बनाया है। भगवान क बनाई चीज़ म इं सान सुधार य करे ? मु क
सुधरे गा तो भगवान के हाथ से ही सुधरे गा। मगर इं सान से ज़रा बच के । पुराना
िखलाड़ी है।
मने कहा–पुराना िखलाड़ी होता तो ऐसी हालत म रहता?
सरदारजी ने कहा–उसका सबब है। वह छोटे खेल खेलता है। छोटे दांव लगाता है।
मने उसे समझाया क एक-दो बड़े दांव लगा और माल समेटकर चैन क बंसी बजा।
मगर उसक िह मत ही नह पड़ती।
सरदारजी मुझे उससे बचने के िलए बार-बार आगाह करते, पर खुद उसे ना ता
करा देते, कभी रो टयां दे देते, कभी पये दे देते। मने पूछा, तो सरदारजी ने कहा–
आिखर इं सान है। फर उसके साथ बीवी भी है। उसने वह कमाल कर दखाया है, जो
दुिनया म कसी से नह आ–उसने बीवी को यह मनवा िलया है क वह देश क
क मत पलटने के िलए पैदा आ है। वह कोई मामूली काम करके ज़ंदगी बदबाद नह
कर सकता। उसका एक िमशन है। बीवी खुद भी भगवान से ाथना करती है क उसके
घरवाले का िमशन पूरा हो जाए।
वह दन-पर- दन यादा परे शान होता गया। जब-तब मुझे िमल जाता और कसी
मं ालय क िशकायत करता।
अचानक वह गायब हो गया। 8-10 दन नह दखा, तो मने सरदारजी से पूछा।
उ ह ने कहा–िड टब मत करो। बड़े काम म लगा है।
मने पूछा–कौन सा काम?
सरदारजी ने कहा–उसक तफसील म मत जाओ। बम बना रहा है। इि कलाबी
काम कर रहा है। एक दन वह सरकार के िसर पर बम पटकने वाला है।
मने कहा–सच, वह बम बना रहा है?
सरदारजी ने कहा–हां जी, वह नया कां टी ूशन बना रहा है। उसे सरकार के
िसर पर दे मारे गा। दुिनया पलट देगा, बा शाओ।
एक दन वह संिवधान लेकर आ गया। और दुबला हो गया था। मगर चेहरा शांत
था। फ र ते ही तरह बोला–न थंग िवल चज अंडर दस का टीट् यूशन। संिवधान
बदलना ही पड़ेगा। इस देश को बुिनयादी ांित चािहए और बुिनयादी ांित के िलए
ांितकारी संिवधान चािहए। मने नया संिवधान बना िलया है।
ब ते से उसने पु लंदा िनकाला और मुझे संिवधान समझाने लगा–यह ीए बल है–
यह फ डामटल राइ स का ख ड है। इस संिवधान म एक बुिनयादी ांित क बात है।
देखो, मनु य ने अपने को रा य के हाथ य स पा था? इसिलए क रा य उसका
पालन करे । रा य का यह क है। मगर रा य आदमी से काम करवाना चाहता है।
यह गलत है। िबना काम कए आदमी का पालन होना चािहए। म जो िपछले 10 साल
से कु छ नह कर रहा ,ँ सो मेरा ोटे ट है। म रा य पर नैितक दबाब डालकर उसका
क कराना चाहता ।ं म जानता ,ं लोग मेरे बारे म या कहते ह। आई डो ट
माइं ड। छोटे लोग ह। मेरे िमशन को नह समझ सकते।
मने कहा–कोई काम नह करे गा, तो उ पादन नह होगा। तब रा य पालन कै से
कर सके गा?
उसने समझाया–आप आदमी को नह जानते। वह मना करने पर ही काम करता
है। यह उसक मजबूरी है। मैन इज़ डू ड टु वक। अगर रा य कह भी दे क कोई काम
मत करो, तु हारा पालन हम करगे, तब भी लोग काम मांगगे। साधारण आदमी ऐसा
ही होता है। इने-िगने मुझ-आप जैसे लोग ह गे, जो काम नह करगे। हमारा पालन उन
घ टया ब सं यक के उ पादन से होगा।
वह अपने संिवधान से ब त संतु था। एक दन वह एक फोटो ाफ लेकर आया।
फोटो म वह संिवधान धानमं ी को दे रहा है। बोला–मने संिवधान धानमं ी को दे
दया। उ ह ने आ ासन दया है क ज दी ही इसे लागू कया जाएगा।
सरदारजी ने कहा–आजकल फोटो पर िज़ दा है। धानमं ी से िमल आया है।
उसक बीवी घर भाग रही थी, सो थम गई है। इस फोटो को अ छे धंधे म लगाएं तो
कमाई अ छी कर सकता है। मगर वह िज़ दगी भर ‘ रटेल’ करता रहेगा।
2-3 महीने उसने इं तज़ार कया। संिवधान लागू नह आ। वह अब फर परे शान
हो गया। कहता–यह सरकार झूठ पर िज़ दा है। मुझे धानमं ी ने आ ासन दया था
क ज दी ही वे मेरा संिवधान लागू करगे, पर अभी तक संसद को सूचना नह दी। अंधेर
है। मगर म छोडू ग
ं ा नह ।
एक दन सरदारजी ने बताया–पुराना िखलाड़ी संसद के सामने अनशन पर बैठ
गया है। राम-धुन लग रही है। बीवी गा रही है–सबको स मित दे भगवान। इसे सबक
या पड़ी है? यही य नह कहती क मेरे घरवाले को स मित दे भगवान!
तीसरे दन उसे देखने गया। वह दरी पर बैठा था। उसका चेहरा सौ य हो गया था।
भूख से आदमी सौ य हो जाता है। तमाशाइय को वह बड़ी ग भीरता से समझा रहा
था–देखो, इं सान आज़ाद पैदा होता है, मगर वह हर जगह ज़ंजीर से जकड़ा रहता है।
मनु य ने अपने को रा य को य स पा? इसिलए न, क रा य उसका पालन करे गा।
मगर रा य क गैरिज़ मेदारी देिखए क मुझ जैसे लोग को रा य ने लावा रस क तरह
छोड़ रखा है। ‘न थंग िवल चज अंडर दस का टीट् यूशन’ मेरा संिवधान लागू करना
ही होगा। ले कन इसके पहले रा य को फौरन मेरे पालन क व था करनी होगी। यही
मेरी मांग ह।
सरदारजी ने उस दन कहा था–िबजली मंडरा रही है बा शाओ! देखो कसके िसर
पर िगरती है। ज़रा बच के ।
सरदार क तरफ से उसे धमक दी जा रही थी। घर जाने के िलए कराये का लोभ
भी दया जा रहा था। मगर वह अपना संिवधान लागू करवाने पर तुला था।
सातव दन सुबह जब म बैठा अखबार पढ़ रहा था, वह अचानक अपनी बीवी के
सहारे मेरे घर म घुस आया। पीछे कु ली उसका सामान िलये थे। उसने मुझे मना करने
का मौका ही नह दया। वह अपने घर क तरह इ मीनान से घुसा आया था।
मेरे सामने वह बैठ गया। आंख धंस गई थ । शरीर म हि यां रह गई थ । म भ चक
उसे देख रहा था। वह इस तरह मेरे घर म घुस आया था क मुझसे कु छ कहते नह बन
रहा था। मगर उसके चेहरे पर सहज भाव था।
धीरे -धीरे बोला– धानमं ी ने आ ासन दे दया है।
म कु छ नह बोल सका।
वह बोला–कमज़ोरी ब त आ गई है।
कु छ ऐसा भाव था उसका जैसे मेरे िलए ाण दे रहा हो। कमज़ोरी भी उसे मेरे
िलए आई हो।
उसने बीवी से कहा–उस कमरे म कु छ दन रहने का जमा लो।
मेरी बोलती बंद थी। उसने अचानक हमला कर दया था। मुझे लगा, जैसे कसी ने
पीछे से मेरी कनपटी पर ऐसा चांटा जड़ दया है क मेरी आंख म िततिलयां उड़ने
लगी ह। उसने मना करने क हालत भी मेरी नह रहने दी। म मूढ़ क तरह बैठा था और
वह बगल के कमरे म जम गया था।
थोड़ी देर बाद वह आया। बोला–ज़रा एक-दो सेर अ छी मुस मी मंगा दो।
कहकर वह चला गया। म सोचता रहा–इसने मुझे कस कदर अपािहज बना दया
है। इस तरह मुस मी मंगाने के िलए कहता है, जैसे म इसका नौकर ं और इसने मुझे
पैसे दे रखे ह।
मने मुस मी मंगा दी।
वह मेरे नौकर को जब-तब पुकारता और म दे देता–श र ले आओ! चाय ले
आओ! उसने मुझे अपने ही घर म अजनबी बना दया था।
वह दन म दो बार मुझे दशन देने िनकलता। कहता–वीकनेस अभी काफ है। 10-
15 दन म िनकलेगी। ज़रा दो-तीन पये देना।
म पये दे देता। बाद म मुझे अपने पर खीझ आती। म कस कदर स वहीन हो गया
।ं म मना य नह कर देता?
चौथे दन सरदारजी ने कहा–घुस गया घर म बा शाओ। मने पहले कहा था–
पुराना िखलाड़ी है, ज़रा बच के । 6 महीने से पहले नह िनकलेगा। यही उसक तरक ब
है। जब वह कसी मकान से िनकाला जाता है, तो कोई ‘इशू’ लेकर अनशन पर बैठ
जाता है और उसी िगरी हालत म कसी के घर म घुस जाता है।
मने कहा–उसक हालत ज़रा ठीक हो जाए तो उसे िनकाल बाहर क ं गा।
सरदारजी ने कहा–नह िनकाल सकते। वह पूरा व लेगा।
जब चलने फरने लायक हो गया, तो सुबह-शाम खुले म वायु-सेवन के िलए जाने
लगा। लौटकर वह मेरे पास दो घड़ी बैठ जाता। कहता– ाइम िमिन टर अब ज़रा
सी रयस ए ह। एक कमेटी ज दी ही बैठने वाली है।
एक दन मने कहा–अब आप दूसरी जगह चले जाइए। मुझे ब त तकलीफ है।
उसने कहा–हां, हां, धानमं ी का पी. ए. मकान का इं तज़ाम कर रहा है। होते ही
चला जाऊंगा। मुझे खुद यहां ब त तकलीफ है।
उसम न जाने कहां का नैितक बल आ गया था क मेरे घर म रहकर, मेरा सामान
खाकर, वह यह बताता था क मुझ पर एहसान कर रहा है। कहता है–मुझे खुद यहां
ब त तकलीफ है।
सरदारजी पूछते ह–िनकला?
म कहता –ं अभी नह ।
सरदारजी कहते ह–नह िनकलेगा। पुराना िखलाड़ी है।
मने कहा–सरदारजी, आपके यहां इतनी जगह है। उसे यह कु छ दन रख लीिजए।
सरदारजी ने कहा उसके साथ औरत है। अके ला होता, तो कहता, पड़ा रह। मगर
औरत! औरत के डर से तो पंजाब से भागकर आया और तुम इधर औरत ही यहां डालना
चाहते हो।
उसके रवैये म कोई फक नह पड़ा। सुबह ान-पूजा के बाद वह ना ता करता।
फर पोटफोिलयो लेकर िनकल जाता। जाते-जाते मुझसे कहता–ज़रा संसदीय मामल
के मं ी से िमल आऊं।
आिखर मने स ती करना शु कया। सुबह-शाम उसे डांटता। उसका अपमान
करता। उसके चेहरे पर िशकन नह आती। कभी वह कह देता–म अपमान का बुरा नह
मानता। मुझे इसक आदत पड़ चुक है। फर िजस महान् ‘िमशन’ म म लगा आ ,ं
उसे देखते छोटे-छोटे अपमान क अवहेलना ही करनी चािहए।
कभी जब वह देखता क मेरा ‘मूड’ ब त खराब है, तो वह बात करना टाल जाता।
कागज़ पर िलख देता–आज मेरा मौन त है।
आिखर मने पुिलस क मदद लेने का तय कया। उसने कागज़ पर िलख दया आज
मेरा मौन त है।
मने कहा–तुम मौन त रखे रहो। कल पुिलस तु हारा सामान बाहर फक देगी।
उसने मौन त फौरन याग दया और मुझे मनाता रहा। कहा–3-4 दन म कह
रहने का इं तज़ाम कर लूंगा।
सुबह वह तैयार होकर िनकला। मुझसे कहा–एक जगह रहने का इं तज़ाम कर रहा
।ं ज़रा पांच पये दीिजए।
मने कहा–पांच पये कसिलए?
उसने कहा–जगह तय करने जाना है न। कू टर से जाऊंगा।
मने कहा–बस म य नह जाते? म पया नह दूग
ं ा।
उसने कहा–तो म नह जाता। यह रह आऊंगा।
मने प त होकर उसे पांच पये दे दए।
शाम को वह लौटा और बोला–म दूसरी जगह जा रहा ।ं आपको एक महीने म ही
छोड़ दया। कसी का घर मने 6 महीने से पहले नह छोड़ा। इस तरह से आपके ऊपर
मेरा अहसान ही है। ज़रा 25 पये दीिजए।
मने कहा–प ीस पये कसिलए।
वह बोला–कु ली को पैसे देने पड़गे। फर नई जगह जा रहा ।ं 2-4 दन का खाने
का इं तज़ाम तो होना चािहए।
मने कहा–यह मेरी िज़ मेदारी नह है। मेरे पास पये नह ह।
उसने शांित से कहा–तो फर आज नह जाता। िजस दन आपके पास प ीस पये
हो जाएंगे, उस दन चला जाऊंगा।
मने प ीस पये उसे फौरन दे दए। उसने सामान बाहर िनकलवाया। बीवी को
बाहर िनकाला। फर मुझसे हाथ िमलाते ए बोला–कु छ याल मत क िजए। नो इल
िवल! म िजस िमशन म लगा ं उसम ऐसी प रि थितयां आती ही रहती ह। म िब कु ल
फ ल नह करता।
म बाहर िनकला, तो सरदारजी िच लाए–चला गया?
मने कहा–हां, चला गया।
वे बोले– कतने म गया?
मने कहा–प ीस पये म।
सरदारजी ने कहा–स ते म चला गया। सौ पये से कम म नह जाता वह।
पुराना िखलाड़ी अब भी कभी-कभी कह िमल जाता है। वैसा ही परे शान, वैसा ही
तनाव। वह भूल गया है क कभी मने उसे ज़बरद ती घर से िनकाला था।
कहता है– धानमं ी क अ ल पर या पाला पड़ गया? कहते ह क हम कसी भी
ि थित म पये को ‘िडवै यू’ नह करगे। म कहता ,ं िडवै यू नह करोगे, तो दुिनया के
बाज़ार से िनकाल नह दए जाओगे। ज़रा धानमं ी को समझाइए न!
वह िच ता करता आ आगे बढ़ जाता है।
समय काटनेवाले

म वह प थर ,ं िजसपर कोई भी अपने न कटने वाले समय को पटक-पटककर मार


डालता है। कु छ लोग मेरा यह प थरी उपयोग िनयिमत प से करते ह और म होने देता
।ं म जानता ,ं वे घर म पूरी ईमानदारी के साथ समय काटने क कोिशश करते ह पर
समय फर भी बच जाता है तो उसे झोले म डालकर मुझ जैसे के पास चले आते ह और
उसे ज़ोर-ज़ोर से मेरे ऊपर पछाड़ने लगते ह। समय जब तार-तार होकर मर जाता है,
तो वे ह के होकर चले जाते ह, और म अपने चुटीले िसर को देर तक सहलाता रहता ं
और सोचता –ं सर लस समय के कपड़े को पछाड़ने के िलए म धोबी के प थर से यादा
कु छ नह ।ं
पर समय रोज़ पैदा हो जाता है और उसे रोज़ मारना पड़ता है। समय को न मारो
तो वह अपने को मार डालता है। ऐसी या कोई तरक ब नह है क सारे समय को एक
बार ही ऐसा मार डाला जाए क वह फर पैदा न हो? एक स या ही ने मुझे बताया है।
कहने लगे–जेल म म जासूसी कताब पढ़ रहा था। िवनोबा ने देखा तो पूछा– या
अ ययन कर रहे हो? मने कहा–जासूसी कताब पढ़ रहा ।ं बाबा ने पूछा–इसे य
पढ़ते हो? मने जवाब दया–समय काटने के िलए। िवनोबा ने कहा– ,ं समय तु हारी
सम या है। ऐसा करो न, इस खंभे पर िसर को दे मारो। सारा समय एकबारगी कट
जाएगा।
सलाह नेक है। मगर ऐसी थोक काट िबरले ही करते ह। अ सर लोग फु टकर समय
काटते ह।
ऐसे एक ताज़ा समय काटनहार मेरे पास जब-तब आ जाते ह। रटायड आदमी ह।
िजसे ए सटशन न िमले, उसे रटायड आदमी कहते ह। ए सटशन क अविध से ही यह
टू टने लगता है। मातहत आपस म कहते ह–बुड्ढा ए सटशन पर चल रहा है। िमिन ी
बदली क गए। ए सटशन वाला आठ पहर अनुभव करता है क वह रे त के ढेर पर बैठा
है।
वे स न कह से रटायर होकर यह बेट के पास आकर रहने लगे ह। पढ़े-िलखे
आदमी ह। सािह य- ेमी ह। सािह य- ेमी के िलए म बकरा ।ं चाहे जब हलाल कया
जा सकता ।ं वे अ छी बात करते रहे। अ छी बात ऊब देती ह। मने ‘ हंट’ देना शु
कया। टालने के िलए मेरे पास कई तरक ब ह। तमाखू खाकर पीक मुंह म भर लेता ।ं
बोलता ही नह । तमाखू मेरी र क है। अगर तमाखू खाने क आदत न होती तो मुंह बंद
रखने के िलए ब क ‘फ डंग बॉटल’ मुंह म रखनी पड़ती। तमाखू से सामने वाला न
उठे तो एकाएक उदास और गुमसुम हो जाता ,ं जैसे संसार का नाश साफ देख रहा ।ं
या दाशिनक मु ा म बैठ जाता –ं असार संसार म दो घड़ी बोल भी िलए तो या होता
है! जाइए। उ ह ने कोई ‘ हंट’ वीकार नह कया। तब मने पूछा–कहां जाने का इरादा
है? यह तु प का इ ा है। इसका मतलब है क आप जा कह और रहे ह, यहां तो य
ही टपक पड़े। इस अथ को समझकर आदमी उठ जाता है। मगर आपको यह ाणघातक
जवाब भी िमल सकता है–कह नह । आपके पास तक ही आया था। वे स न यह
कहकर क, ज़रा बाज़ार जाना है, उठ गए। एकाध िमनट बाद म भी पान खाने चौराहे
क तरफ चला। मने देखा, वे चौराहे पर खड़े ए तय नह कर पा रहे ह क कहां जाएं।
वे कभी बा तरफ क सड़क पर मुड़ते। कभी लौटकर चौराहे पर आकर दाय मुड़ जाते।
पर फर लौट पड़ते। 2-3 िमनट उ ह यह तय करने म लगे, क कस तरफ कसके पास
जाएं। बाक व कहां गुजार द। उ ह कसी का याल आता और वे एक सड़क पर चल
देते। 2-4 कदम चलने पर सोचते–वह शायद घर पर न हो। वे लौट पड़ते और दूसरे
आदमी के घर क तरफ बढ़ते। फर कु छ सोचकर लौट पड़ते।
मुझे ब त दया आई। सोचा, इ ह लौटा लूं और क ,ं क जब तक बैठना हो बैठ। पर
तभी आ मर ा क भावना ती ई। मुझे काम भी करना था। दया क भी शत होती ह।
एक दन एक गाय तार म फं स गई थी। उसक तड़प से म िवत हो गया। सोचा, इसे
िनकाल दू।ं पर तभी डरा, क िनकलते ही यह खीझ म मुझे स ग मार दे तो! म दया
समेत उसे देखता रहा। वृ स न मुझे ठीक उस गाय क तरह लगे जो ासदायी खाली
समय के कं टीले तार म फं से थे। म उ ह िनकाल सकता था, पर िनकाल नह रहा था।
दया क भी शत होती ह। ‘सोसाइटी फॉर दी ि वशन आफ ु ए टी टु एिनम स’ याने
जानवर पर होने वाली ू रता पर रोक लगाने वाले संगठन के एक सद य ने बफ तोड़ने
के क ले से क च-क चकर अपनी बीवी को मार डाला था। दया क शत होती ह। हर
ाणी दया का पा है, बशत वह अपनी बीवी न हो।
वे जब-तब मेरे पास आने लगे। यह अजब बात है क िजस पर दया आए, उससे डर
भी लगे। एक शाम वे मुझे बस टेशन पर खोमचे के पास खड़े चाट खाते दख गए। मेरी
दया और बढ़ गई। उ ह घर म इ छानुकूल खाने को न िमलता होगा। बूढ़ा आदमी
चटोरा हो जाता है। मेरे एक र तेदार अंितम सांस ले रहे थे। बेट ने कहा–बाबूजी, राम
नाम लो। दान-पु य करना हो तो कर दो। कु छ इ छा हो तो बताओ। उ ह ने न राम का
नाम िलया, न दान कया। बोले–भैया, मुझे आलूबंडा िखला दो।
एक दन वे मेरे पास बैठे थे क िव िव ालय के दो छा नेता आ गए। वे युवा
असंतोष पर मुझसे बात करने लगे। रटायड स न बीच म ही बोलने लगे। वे लड़क
को उपदेश देने लगे। लड़क ने कहा–ज़रा आप हम बात कर लेने दीिजए। वे चुप हो गए।
लड़के चले गए, तो वे बोले–हमारा ज़ंदगी भर का अनुभव है। उस अनुभव के आधार
पर हम कु छ कहते ह, तो ये लड़के सुनते य नह ? मने कहा–शायद इसिलए क
अनुभव के अथ बदल गए ह।
वे समझ गए। उदास हो गए। कहने लगे–हमारी तो पूरी ज़ंदगी दबते गुज़र गई।
जब हम जवान थे, तब यह मा यता थी क बड़ से दबो। हम तब बुजुग से दबे। अब यह
हो गया है क लड़क से दबो। तो अब हम बुढ़ापे म लड़क से दब रहे ह। हमारी ज़ंदगी
तो दबते ए गुज़र गई।
रटायड आदमी क बड़ी ेजडी होती है। त आदमी को अपना काम करने म
िजतनी अ ल क ज़ रत पड़ती है, उससे यादा अ ल बेकार आदमी को समय काटने
म लगती है। रटायड वृ को समय काटना होता है। वह देखता है क ज़ंदगी भर मेरे
कारण ब त कु छ होता रहा है। पर अब मेरे कारण कु छ नह होता। वह जीिवत स दभ
से अपने को जोड़ना चाहता है, पर जोड़ नह पाता। वह देखता है क म कोई हलचल
पैदा नही कर पा रहा ।ं छोटी सी तरं ग भी मेरे कारण जीवन के इस समु म नह उठ
रही है। हमारे चाचा जब तब इस न कु छपन से त होते, प रवार म लड़ाई करवा देते।
खाना खाते-खाते िच लाते–दाल म या डाल दया? कड़वी लगती है। मुझे मार डालोगे
या? हम कहते–दाल तो िब कु ल ठीक है। वे कहते –तो या म झूठ बोलता !ं भगवान
क कसम! प रवार म आपस म लड़ाई मच जाती। हम देखते क हम लड़ रहे ह, पर
चाचा आराम से सो रहे ह। तूफान खड़ा कर देने म सफलता से उ ह अपने अि त व और
अथ का बोध होता और मन को चैन िमलता।
हाल ही म रटायड एक स न िमले। मने पूछा–व कै से कटता है? वे बताने
लगे–भगवान ने फु रसत दी है, तो 4 घंटे तो उनक पूजा करते ह। मुझे भगवान पर दया
आई। सवशि मान क भी मेरी जैसी गत 4 घंटे रोज़ होती है। य वे ठीक ही कहते ह,
क भगवद्भजन या और कोई अ छा काम फु रसत म ही कया जाता है। फु रसत ही नह
है, तो आदमी अ छे काम कै से करे ?
भगवान से लेकर बेटे, नाती-पोते तक व काटने के काम आते ह। मेरे पड़ोस का
लड़का बेकार था। व उसका कटता नह था। उसके िपता के दो त रटायर ए।
उनक भी सम या समय थी। दोन एक-दूसरे का व काटने लगे। उ का फक िमट
गया। वे बराबरी के हो गए। बुढ़ऊ दोपहर को आ जाते और शाम तक बात करते। बात
के िवषय खेती-बाड़ी से लेकर बारात के अनुभव तक होते। एक दन मने सुना, वे दोन
खूब ज़ोर से लड़ रहे ह। बुढ़ऊ कह रहे ह–हम मत िसखाओ। हम ज़ंदगी भर तमाखू
खाते हो गया। लड़का बोला–तु ह ज़ंदगी हो गई तो हम भी 10 साल से तमाखू खा रहे
ह। हम भी कु छ जानते ह।
मु ा या था झगड़े का? कु ल यह क चूने म म खन डालना चािहए या नह , और
डालना चािहए तो कतना और कस तरह। उस दन जब शाम को दोन अलग ए तो
और दन से यादा खुश थे, य क लड़ िलए थे।
मेरे पास ही एक भले आदमी रहते थे। उनके ससुर रटायर ए तो कु छ महीन के
िलए लड़क -दामाद के पास रहने को आ गए। वे गिणत के अ यापक थे। मेरे र तेदार
होते थे। वे मेरे पास आकर बैठ जाते। घंट प रवार और र तेदार और महंगाई क बात
करते। मुझे अखरने लगा। एक दन जब वे आए तो मने उनके बोलने के पहले ही
अंतरा ीय बात शु कर दी। कहा–देिखए, इसराइल ने अरब गणरा य पर हमला कर
दया। िज़यानवादी रा य क थापना का वायदा 1917 म ि टश िवदेश सिचव लॉड
बेलपुर ने कर दया था।...5-7 िमनट तक जब म अरब-इसराइल स ब ध और शीतयु
क बात करता रहा तो वे ऊब उठे । इन सबसे उनका वा ता ही नह था। वे उठे । बोले–
ज़रा नहा लूं। मने अंतरा ीय राजनीित से उ ह नहलवा दया। दो-तीन दन यह नु खा
आज़माने के बाद वे या तो आते नह , आते भी तो 5-10 िमनट ही बैठते। वे डरते क
यादा बैठा तो यह दु अंतरा ीय राजनीित क बात शु कर देगा।
मगर अब उनके बेटी-दामाद परे शान रहने लगे। मने उ ह सलाह दी क उ ह कसी
काम म लगा दो। कहो क बाबूजी, मु ा गिणत म कमज़ोर है, इसे पढ़ा दया क रए।
गिणत के अ यापक क यह कमज़ोरी है। वह दुिनया म कसी को गिणत म कमज़ोर नह
देख सकता। मने देखा, वे नाती को गिणत पढ़ाने लगे ह और खुश ह। पर एक दन
लड़का रोकर बोला–ये नानाजी तो हम गिणत पढ़ा-पढ़ा कर मारे डाल रहे ह। वे लड़के
के पीछे पड़ गये थे।
अब म बुजुग से डरने लगा ।ं पर वे नाराज़ न ह । म उनका मजाक़ नह उड़ा
रहा ।ं उनक तकलीफ समझने क कोिशश कर रहा ।ं रटायड आदमी क यह
सम या मानवीय और सामािजक है। समाज का एक िह सा हमेशा िगरे मन का,
नकु छपन के बोध से भरा िसफ समय का बोझ ढोता रहे, यह अ छा नह । समाज का
भिव य इस बात पर िनभर है क वह अपने रटायड लोग का या करता है। अगर
कु छ नह करता तो रटायड वृ काम करते युवा के काम म दखल देगा और समाज क
कम-शि घटेगी।
युवा इं जीिनयर काम कर रहा है। तभी रटायड इं जीिनयर आ जाएंगे और कहगे–
या हो रहा है? !ं हमारे ज़माने म ऐसी मशीन नह होती थ । वे अपने ज़माने क
मशीन को मार डालगे। पुरानी मशीन से नई मशीन क र ा करनी पड़ेगी। पुरानी
मशीन को कसी काम म लगाना पड़ेगा। काम न िमले तो कम से कम यह तो हो ही
सकता है क पुरानी मशीन एक-दूसरी का जंग साफ करते, व गुज़ार द।
रामकथा ेपक

एक पुरानी पोथी म मुझे ये दो संग िमले ह। भ के िहताथ दे रहा ।ं इ ह पढ़कर


राम और हनुमान भ के दय ग द हो जाएंगे। पोथी का नाम नह बताऊंगा य क
चुपचाप पोथी पर रसच करके मुझे पी-एच.डी. लेनी है। पुराने ज़माने म िलखे दस प े
भी कसी को िमल जाएं तो उसे मज़े म उनक ा या से डॉ टरे ट िमल जाती है। इस
पोथी म 40 प े ह–याने चार डॉ टरे ट क साम ी है। इस पोथी से रामकथा के
अ ययन म एक नया अ याय जुड़ता है। डॉ. कािमल बु के भी इससे फायदा उठा सकते
ह।

(1) थम सा यवादी
पोथी म िलखा है–
िजस दन राम रावण को परा त करके अयो या आए, सारा नगर दीप से
जगमगा उठा। यह दीपावली पव अन त काल तक मनाया जाएगा। पर इसी पव पर
ापारी खाता-बही बदलते ह और खाता-बही लाल कपड़े म बांधी जाती है।
है–राम के अयो या आगमन से खाता-बही बदलने का या स ब ध? और
खाता-बही लाल कपड़े म ही य बांधी जाती है?
बात यह ई क जब राम के आने का समाचार आया तो ापारी वग म खलबली
मच गई। वे कहने लगे–सेठजी, अब बड़ी आफत है। श ु के राज म तो पोल चल गई।
पर राम मयादा-पु षो म ह। वे से स टै स और इनकम टै स क चोरी बरदा त नह
करगे। वे अपने खाता-बही क जांच कराएंगे और अपने को सज़ा होगी।
एक ापारी ने कहा–भैया, तब तो अपना न बर दो का मामला भी पकड़ िलया
जाएगा।
अयो या के नर-नारी तो राम के वागत क तैयारी कर रहे थे, मगर ापारी वग
घबड़ा रहा था।
अयो या प च ं ने के पहले ही राम को मालूम हो गया था क उधर बड़ी पोल है।
उ ह ने हनुमान को बुलाकर कहा–सुनो पवनसुत, यु तो हम जीत गए लंका म, पर
अयो या म हम रावण से बड़े श ु का सामना करना पड़ेगा–वह है, ापारी वग का
ाचार। बड़े-बड़े वीर ापारी के सामने परा त हो जाते ह। तुम अतुिलत बल-बुि -
िनधान हो। म तु ह ‘एनफोसमट ांच’ का डाइरे टर िनयु करता ।ं तुम अयो या
प च
ं कर ापा रय क खाता-बिहय क जांच करो और झूठे िहसाब पकड़ो। स त से
स त सजा दो।
इधर ापा रय म हड़कं प मच गया। कहने लगे–अरे भैया, अब तो मरे ।
हनुमानजी एनफोस ांच के डाइरे टर िनयु हो गए। बड़े कठोर आदमी ह। शादी-
याह नह कया। न बाल, न ब ।े घूस भी नह चलेगी।
ापा रय के कानूनी सलाहकार बैठकर िवचार करने लगे। उ ह ने तय कया क
खाता-बही बदल देना चािहए। सारे रा य म ‘चे बर आफ कॉमस’ क तरफ से आदेश
चला गया क ऐन दीपो सव पर खाता-बही बदल दये जाएं।
फर भी ापारी वग िन ंत नह आ। हनुमान को धोखा देना आसान बात नह
थी। वे आलौ कक बुि स प थे। उ ह खुश कै से कया जाए? चचा चल पड़ी–
–कु छ मुट्ठी गम करने से काम नह चलेगा?
–वे एक पैसा नह लेते।
–वे न ल, पर मेम साब?
–उनक मेम साब ही नह है। साहब ने ‘मै रज’ नह क । जवानी लड़ाई म काट
दी।
–कु छ और शौक तो ह गे? दा और बाक सब कु छ?
–वे बाल चारी ह। कॉल गल को मारकर भगा दगे। कोई नशा नह करते।
संयमी आदमी ह।
–तो या कर?
–तु ह बताओ, या कर?
कसी सयाने वक ल ने सलाह दी–देखो, जो िजतना बड़ा होता है, वह उतना, ही
चापलूसी-पस द होता है। हनुमान क कोई माया नह है। वे संदरू शरीर पर लपेटते ह
और लाल लंगोट पहनते ह। वे सवहारा ह और सवहारा के नेता। उ ह खुश करना
आसान है। ापारी खाता-बही लाल कपड़े म बांधकर रख।
रातो-रात खाते बदले गए और खाता-बिहय को लाल कपड़े म बांधा गया।
अयो या जगमगा उठी। राम-सीता-ल मण क आरती उतारी गई। ापारी वग ने
भी खुलकर वागत कया। वे हनुमान को घेरे ए उनक जय भी बोलते रहे।
दूसरे दन हनुमान कु छ दरोगा को लेकर अयो या के बाज़ार म िनकल पड़े।
पहले ापारी के पास गए। बोले–खाता-बही िनकालो। जांच होगी।
ापारी ने लाल ब ता िनकालकर आगे रख दया। हनुमान ने देखा–लंगोट का
और ब ते का कपड़ा एक है। खुश ए।
बोले–मेरे लंगोट के कपड़े म खाता-बही बांधते हो?
ापारी ने कहा–हाँ, बल-बुि िनधान, हम आपके भ ह। आपक पूजा करते ह।
आपके िनशान को अपना िनशान मानते ह।
हनुमान ग द हो गए।
ापारी ने कहा–ब ता खोलूं? िहसाब क जांच कर लीिजए।
हनुमान ने कहा–रहने दो। मेरा भ बेईमान नह हो सकता।
हनुमान जहां भी जाते, लाल लंगोट के कपड़े म बंधे खाता-बही देखते। वे ब त
खुश ए। उ ह ने कसी िहसाब क जांच नह क ।
रामचं को रपोट दी क अयो या के ापारी बड़े ईमानदार ह। उनके िहसाब
िब कु ल ठीक ह।
हनुमान िव के थम सा यवादी थे। वे सवहारा के नेता थे। उ ह का लाल रं ग
आज के सा यवा दय ने िलया है।
पर सवहारा के नेता को सावधान रहना चािहए क उसके लंगोट से बूजुआ अपने
खाता-बही न बांध ल।

(2) थम मगलर
ल मण मेघनाद क शि से घायल पड़े थे। हनुमान उनक ाण-र ा के िलए
िहमाचल देश से ‘संजीवनी’ नाम क दवा लेकर लौट रहे थे क अयो या म नाके पर
पकड़ िलए गए। पकड़ने वाले नाके दार को पीटकर हनुमान ने िलटा दया। राजधानी म
ह ला हो गया क बड़ा बलशाली ‘ मगलर’ आया आ है। पूरा फोस भी उसका
मुकाबला नह कर पा रहा।
आिखर भरत और श ु आए। अपने आरा य रामच के भाइय को देखकर
हनुमान दब गए। श ु ने कहा–इन मगलर के मारे हमारी नाक म दम है, भैया! आप
तो सं यास लेकर बैठ गए ह। मुझे भुगतना पड़ता है।
भरत ने हनुमान से पूछा–कहां से आ रहे हो?
हनुमान–िहमाचल देश से।
– या है तु हारे पास? सोने के िबि कट, गांजा, अफ म?
–दवा है।
श ु ने कहा–अ छा, दवाइय क मग लंग चल रही है। िनकालो, कहां है?
हनुमान ने संजीवनी िनकालकर रख दी। कहा–मुझे आपके बड़े भाई रामच ने
इस दवा को लेने के िलए भेजा था।
श ु ने भरत क तरफ देखा। बोले–बड़े भैया यह या करने लगे ह? मग लंग म
लग गए ह। पैसे क तंगी थी तो हमसे मंगा लेते। मगल के धंधे म य फं सते ह? बड़ी
बदनामी होती है।
भरत ने हनुमान से पूछा–यह दवा कहां ले जा रहे थे? कहां बेचोगे इसे?
हनुमान ने कहा–लंका ले जा रहा था।
भरत ने कहा–अ छा, उधर उ र भारत से मगल कया आ माल िबकता है।
कौन खरीदते ह? रावण के लोग?
हनुमान ने कहा–यह दवा तो म राम के िलए ही ले जा रहा था। बात यह है क
आपके बड़े भाई ल मण घायल पड़े ह। वे मरणास ह। इस दवा के िबना वे बच नह
सकते।
भरत और श ु ने एक-दूसरे क तरफ देखा। तब तक रिज टर म मग लंग का
मामला दज हो चुका था।
श ु ने कहा–भरत भैया, आप ानी ह। इस मामले म नीित या कहती है?
शासन का या कत है?
भरत ने कहा– मग लंग य अनैितक है। पर मगल कए ए सामान से अपना या
अपने भाई-भतीज का फायदा होता हो, तो यह काम नैितक हो जाता है। जाओ
हनुमान, जे जाओ दवा!
मुंशी से कहा–रिज टर का यह प ा फाड़ दो।
बुि वादी

आशीवाद से बनी ज़ंदगी है।


बचपन म एक बूढ़े अंधे िभखारी को उ ह ने हाथ पकड़कर सड़क पार करा दी थी।
अंधे िभखारी ने आशीवाद दया–बेटा, मेरे जैसा हो जाना। अंधे िभखारी का मतलब
ल बी उ से रहा होगा, पर उ ह ने दूसरा मतलब िनकाला और अ यापक हो गए।
अ यापक थे, तब एक टटहरी क ाण र ा क थी। टटहरी ने आशीवाद दया–
भैया, मेरे जैसा होना। टटहरी का चाहे जो मतलब रहा हो, पर वे ‘इं टले चुअल’
बुि वादी हो गए। हवा म उड़ते ह, पर जब ज़मीन पर सोते ह, तो टांग ऊपर करके –इस
िव ास और दंभ के साथ, क आसमान िगरे गा तो पांव पर थाम लूंगा।
आशीवाद से बनी ज़ंदगी का अब यह हाल है क बंधी आमदनी दो-ढाई हज़ार
क है। बंगला है, कार है। दोन लड़के अ छी नौकरी पर गए ह। लड़क रसच कर रही
है। ऐसे म शरीफ से शरीफ आदमी इं टे चुअल हो जाएगा–वे कोई खास शरीफ भी नह
ह। वे होने म ऐसे ही लेट हो गए।
दो साल िवदेश म रहकर वे लौटे तो प रिचत म ह ला हो गया क वे बुि वादी
हो गए ह। तमाशा- ेमी लोग उ ह देखने जाते और बताते क वे सचमुच बुि वादी हो
गए। एक ने उ ह िखड़क से झांककर देखा और हम बताया–वह तो सचमुच बुि वादी
हो गया। कमरे म बैठा छत को ऐसे देख रहा था जैसे यह िहसाब लगा रहा हो क छत
कतने साल म िगर जाएगी। एक ने उ ह बगीचे म घूमते देख िलया। कहने लगा–जब
वह फू ल क तरफ देखता, तो फू ल कांपने लगता। वह भयंकर बुि वादी हो गया है।
एक दन हम उनसे िमलने प च ं –े म और मेरा एक िम । फोन पर उ ह ने आधा
घंटे के बाद आने को कहा था। हम उन दन पूव पा क तान के तूफान-पीिड़त के िलए
च दा इक ा कर रहे थे। सोचा, बुि वादी को देख भी लगे और कु छ च दा भी ले लगे।
उनके कमरे म हम घुस।े सचमुच वे बदल गए थे। काले े म का च मा िनकल गया
था। उसक जगह पतले सुनहरे े म का च मा वे लगाए थे। आंख क चमक ओर े म
क चमक एक-दूसरी को ितिबि बत करके चकाच ध पैदा कर रही थ । मु ा म थायी
िख ता। िख ता दु:खदायी होती है। मगर उनके चेहरे पर सुखदायी िख ता थी।
िख ता दुिनया क दुदशा पर थी। उसम सुख का भाव इस गव से िमला दया था क
मने इस दुदशा को देख िलया। बा तरफ का नीचे का ह ठ कान क तरफ थोड़ा खंच
गया था िजससे दोन ह ठ के बीच थोड़ी जगह हो गई थी। थायी िख ता व लगातार
चंतन से ऐसा हो गया था। पूरे मुंह म वही एक छोटी सी सध थी िजसम से उनक
वाणी िनकलती थी। बाक मुंह ब द रहता था। हम पूरे मूंह से बोलते ह, मगर बुि वादी
मुंह के बाएँ कोने को ज़रा-सा खोलकर िगनकर श द बाहर िनकालता है। हम पूरा मुंह
खोलकर हँसते ह, बुि वादी बा तरफ के होठ को थोड़ा ख चकर नाक क तरफ ले
जाता है। ह ठ के पास नथुने म थोड़ी हलचल पैदा होती है और हम पर कृ पा के साथ यह
संकेत िमलता है क–आई एम ए यू ड! तुम हँस रहे हो, मगर म िसफ थोड़ा मनोरं जन
अनुभव कर रहा था। गंवार हँसता है, बुि वादी िसफ रं िजत हो जाता है।
टेिबल पर 5-6 कताब खुली ई उलटी इस तरह पड़ी ह जैसे पढ़ते-पढ़ते
लापरवाही से डाल दी ह । पर वे लापरवाही से ऐसे छोड़ी गई ह क कताब का नाम
साफ दख रहा है। कताब क समझदारी पर म यौछावर हो गया। लापरवाही से
एक-दूसरी पर िगरगी तो भी इस सावधानी से क हर कताब का नाम न दबे। म समझ
गया क वे कताब को पढ़ नह रहे थे। हम आधा घंटा बाद उ ह ने बुलाया था। इस
आधा घंटे म उ ह ने बड़ी मेहनत से इन कताब क बेतरतीबी साधी होगी। बुि जीवी
बार-बार कताब क तरफ हमारा यान ख चने क कोिशश करता है। वह चाहता है,
हम च कत ह और कह– कतनी तरह क पु तक पढ़ते ह आप! इनके तो हमने नाम भी
नह सुने। हम च कत होने म देर कर रहे ह। बुि वादी थोड़ा बेचैन होता है।
उ ह ने हम इस तरह िबठाया है क हमारी तरफ देखने म उ ह िसर को 35 िड ी
घुमाना पड़े। 35 िड ी िसर घुमाकर, सोफे पर कु हनी टकाकर, हथेली पर ठु ी को
साधकर वे जब भर नज़र हम देखते ह तो हम उनके बौि क आतंक से दब जाते ह। हम
अपने को ब त छोटा महसूस करते ह। उनक मु ा और दृि म जादू पैदा हो जाता है।
जब इस कोण से हम देखकर वे पेट म से िनकलती-सी धीमी ग भीर आवाज़ म कहते
ह–टु माइ माइं ड–तो हम लगता है, यह आवाज़ ऊपर बादल से आ रही है। पर
आसमान तो साफ है। बड़ी कोिशश से हम यह जान पाते ह क यह आवाज़ बुि वादी के
होठ के बाएँ बाजू क पतली सध से िनकली है। जब वे ‘टु माइ माइं ड’ कहते ह तब मुझे
लगता है, मेरे पास दमाग नह है। दुिनया म िसफ एक दमाग है और वह इनके पास
है। जब वे 35 िड ी िसर को नह घुमाए होते और हथेली पर ठु ी नह होती, तब वे
ब त मामूली आदमी लगते ह। कोण से बुि वाद साधने क कला सीखने म कतना
अ यास लगा होगा उनको।
बुि वादी म लय है। िसर घुमाने म लय है, हथेली जमाने म लय है, उठने म लय
है, कदम उठाने म लय है, अलमारी खोलने म लय है, कताब िनकालने म लय है,
कताब के प े पलटने म लय है। हर हलचल धीमी है। ह का ि व हड़बड़ाता है।
इनका ि व बुि के बोध से इतना भारी हो गया है क िवशेष हरकत नह कर
सकता। उनका बुि वाद मुझे एक थुलथुल मोटे आदमी क तरह लगा जो भारी कदम से
धीरे -धीरे चलता है।
वे बोले–मुझे यूरोप जाकर समझ म आया क हम लोग ब त पितत ह।
मने कहा–अपने पतन को जानने के िलए आपको इतनी दूर जाना पड़ा।
बुि वादी ने जवाब दया–जो िगरने वाला है वह नह देख सकता क वह िगर
रहा है। दूर से देखने वाला ही उसके िगरने को देख सकता है।
उस व हम लगा क हम एक ग े म िगरे ए ह और यह ग े के ऊपर से हम बता
रहा है क हम िगर गए ह। उसने हमारा िगरना देख िलया है इसिलए वह िगरने वाल
म नह है।
मेरे िम ने पूछा–हमारे पतन का कारण या है?
बुि जीवी ने आंख बंद करके सोचा। फर हमारी तरफ देखकर कहा–टु माइ
माइं ड, हम म करे टर नह है।
अपने पतन क बात उ ह ने इस ढंग से कही क लगा, उ ह हमारे पतन से संतोष
है। अगर हम पितत न होते तो उ ह यह जानने और कहने का सुयोग कै से िमलता क
हम िगरे ए ह और हमारा िगरना वे साफ देख रहे ह।
साथी ने अब मु े क बात कहना ज़ री समझा। बोला–पूव पा क तान म तूफान
से बड़ी तबाही हो गई है।
उसने मृ यु, बीमारी, भुखमरी क क ण गाथा सुना डाली।
बुि वादी सुनता रहा। हम दोन असर का इं तज़ार कर रहे ह। असर आ।
बुि वादी ने मुंह के कोने से श द िनकाले–हां, मने अखबार म पढ़ा है।
उस व हम लगा क पूव बंगाल के लोग कृ ताथ हो गए क उनक दुदशा के बारे
म इ ह ने पढ़ िलया। तूफान साथक हो गया। बीमारी और भुखमरी पर उ ह ने बड़ा
अहसान कर डाला।
मने कहा–हम लोग उन पीिड़त के िलए धन सं ह करने िनकले ह।
हम चंदा लेने आए थे। वे समझे, हम ान लेने आए ह।
उ ह ने हथेली पर ठु ी रखी और उसी मेघ-गंभीर आवाज़ म बोले–टु माइ माइं ड–
कृ ित संतुलन करती चलती है। पूव पा क तान क आबादी ब त बढ़ गई थी। उसे
संतुिलत करने के िलए कृ ित ने तूफान भेजा था।
इसी बीच पूव बंगाल म उनक सहायता के अभाव म एक आदमी और मर गया
होगा।
अगर कोई आदमी डू ब रहा हो तो, उसे बचाएंगे नह , बि क सापेि क घन व के
बारे म सोचगे।
कोई भूखा मर रहा हो, तो बुि वादी उसे रोटी नह देगा। वह िविभ देश के
अ -उ पादन के आंकड़े बताने लगेगा।
बीमार आदमी को देखकर वह दवा का इं तज़ाम नह करे गा। वह िव वा य
संगठन क रपोट उसे पढ़कर सुनाएगा।
कोई उसे अभी आकर खबर दे क तु हारे िपताजी क मृ यु हो गई, तो बुि वादी
दुखी नह होगा। वह वंश-िव ान के बारे म बताने लगेगा।
हमने चंदे क उ मीद छोड़ दी। अगर हमने बुि वादी से चंदा मांगा, तो वह
दुिनया क अथ- व था बताने लगेगा।
अब हमने अपने-आपको बुि वादी को स प दया।
वह सोच रहा था, सोच रहा था। सोचकर बड़ी गहराई से वह खोजकर लाया, वह
स य िजसे आज तक कोई नह पा सका था। बोला–टु माइ माइं ड, अवर ेटे ट एिनमी
इज़ पॉवट । (मेरे िवचार म, हमारा सबसे बड़ा श ु गरीबी है।)
एक वा य सू प म कहकर बुि वादी ने हम सोचने के िलए व दे दया। हमने
सोचा, खूब सोचा। मगर गरीबी क सम या के हल के िलए फर बुि वादी क तरफ
लौटना पड़ा। मने पूछा–गरीबी दुिनया से कै से िमट सकती है?
बुि वादी ने कहा–मने सोचा है। पूंजीवाद और सा यवाद–दोन मनु य िवरोधी
ह। ये दोन गरीबी नह िमटा सकते। हम आधुिनक तकनीक साधन का योग करके
खूब उ पादन बढ़ाना चािहए।
मने पूछा–मगर िवतरण के िलए या व था होगी?
बुि वादी ने कहा–वही म आजकल सोच रहा ।ं एक योरी बनाने म लगा ।ं
मनु य जाित क तरफ आशा क एक करण बढ़ाकर बुि वादी चुप हो गया।
मेरे साथी ने कहा–हम समाज का नव-िनमाण करना पड़ेगा।
बुि वादी ने फर हम बौन को घूरकर देखा। बोला–समाज का पहला फज़ यह है
क वह अपने को न कर ले। सोसाइटी म ट डे ॉय इटसै फ! यह जाित, वण और रं ग
और ऊंच-नीच के भेद से जजर समाज पहले िमटे, तब नया बने।
सोचा पूछूं–सारा समाज न हो जाएगा तो कृ ित को मनु य बनाने म कतने
लाख साल लग जाएंगे? मने पूछा नह । यह सोचकर संतोष कर िलया क िसफ म
समझता ,ं यह अहसास आदमी को नासमझ बना देता है।
बुि वादी मा सवाद क बात कर लेता है। ायड और आइ सटीन क बात कर
लेता है। िववेकान द और क फू िशयस क बात कर लेता है। हर बात कहकर हम उसे
समझने और पचाने का मौका देता है। वह जानता है, ये बात हम पहली बार सुन रहे ह।
हम पूछते ह– फर दुिनया क बीमारी के बारे म आपने या सोचा है? कस तरह
यह बीमारी िमटेगी?
वह आंख बंद कर लेता है। सोचता है! हम बड़ी बात सुनने के िलए तैयार हो जाते
ह। बुि वादी कहता है–अ टीमेटली आई हेव टु रटन टू गे डी। (आिखर मुझे गांधी क
तरफ लौटना पड़ता है।) ‘ल ह’ ेम।
बुि वादी अब ांितका रता पर आ गया है। कहता है– टु डे ट पॉवर! यूथ पॉवर!
हम अपने समाज के युवा वग को आज़ादी देनी चािहए। वही पलटगे इस दुिनया को।
वही बदलगे। जो कौम अपने युवा वग को दबाती है, वह कभी ऊपर नह उठ सकती।
यह कताब देिखए ोफे सर मा यूज़ क । यह कोहेन बडी क कताब!
बुि वादी ग भीर हो गया। उसने अंितम स य कह दया।
हम उठने क तैयारी करने लगे। इसी व नौकर ने एक िलफाफा लाकर उ ह
दया।
बुि वादी िच ी पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते उसम प रवतन होने लगे। 35 िड ी का
िसर का कोण धीरे -धीरे कम होने लगा। बुि वादी सीधा बैठ गया। ह ठ क मरोड़ िमट
गई। आंख म बैठी बुि गायब हो गई। उसक जगह परे शानी आ गई। चेहरा सपाट हो
गया। सांस ज़ोर से चलने लगी। बुि वादी िनहायत बौड़म लगने लगा।
बुि वादी ने िच ी को मु ी म कस िलया। च मा उतार िलया। हम नंगी आंख देख
रहे थे। वे बुझ गई थ । चमक च मे के साथ ही चली गई थी। दंभ शायद मुट्ठी म
िचट् ठी के साथ दब गया था।
मने कहा–आप परे शान हो गए। सब खैर तो है?
बुि वादी हत भ था। वह हमारे सामने अब उस असहाय ब े क तरह हो गया
िजसका िखलौना बा टी म िगर गया हो।
गहरी सांस लेकर बुि वादी ने कहा–यह ज़माना आ गया! मने पूछा– या हो
गया? बुि वादी ने कहा–लड़क अपनी मौसी के घर लखनऊ गई थी। वह उसने शादी
कर ली। हम पता तक नह ।
मने पूछा–लड़का या करता है?
बोले–इं जीिनयर है।
मने कहा– फर तो अ छा है।
बुि वादी उखड़ पड़ा– या अ छा है? म उसे जेल िभजवाकर र ग
ं ा।
हमारे सामने एक महान ण उपि थत था। मनु य जाित के आंत रक स ब ध के
बारे म कोई महान स य िनकलने वाला है उनके मुख से। अब उनका मुंह पूरा खुलने
लगा है। च मा लगाए वे तब होठ क स पुट के कोने से गु -गंभीर आवाज़ िनकालते
थे। अब पूरा मुंह खोलकर बोलते ह।
बुि वादी इस ि थित का या िव ेषण देता है! यूथ पॉवर? ी-पु ष स ब ध क
बुिनयाद? िववाह क वतं ता?
हम उनके मुंह क तरफ देखते ह। उनक परे शानी बढ़ती जाती है। िच ी को वे
लगातार भ च रहे ह। वे शायद प ी को यह खबर बताने को आतुर ह। पर हम यह
जानने को आतुर ह क इतनी अ छी शादी को लेकर ये परे शान य ह? ज़ र इसम
कोई महान दाशिनक त य िनिहत है जो िसफ बुि वादी समझता है।
मने कहा–लड़का-लड़क बड़े ह। शादी मौसी के यहां ई। वर अ छा है। फर आप
दुखी और परे शान य ह? हम िज ासु को वह रह य बताइए ता क हम भी जीवन
के ित बुि वादी दृि कोण अपना सक।
उ ह ने नंगी, बुझी आंख से हमारी तरफ देखा। फर अ य त भरी आवाज़ म कहा–
यह लड़का काय थ है न!
ेम क िबरादरी

उनका सब कु छ पिव है। जाित म बाजे बजाकर शादी ई थी। प ी ने 7 ज म म


कसी दूसरे पु ष को नह देखा। उ ह ने अपने लड़के -लड़क क शादी सदा मंडप म क ।
लड़क के िलए दहेज दया और लड़के के िलए िलया। एक लड़का खुद पस द कया और
उसे लड़क का पित बना दया। एक लड़क खुद पस द क और उसे लड़के क प ी बना
दया।
सब कु छ उनका पिव है। ॉपट है। फु रसत म रहते ह। दूसर क कलंत-चचा म
समय काटते ह। जो समय फर भी बच जाता है, उसम मूंछ के सफे द बाल उखाड़ते ह
और बतन बेचनेवाली क राह देखते ह।
पिव ता का मुंह दूसर क अपिव ता के गंदे पानी से धुलने पर ही उजला होता
है। वे हमेशा दूसर क अपिव ता का पानी लोटे म ही िलए रहते ह। िमलते ही
अपिव ता का मुंह धोकर उसे उजला कर लेते ह। वे िपछले दन 2 लड़ कय के भागने,
3 ि य के गभपात, 4 क गैर िबरादरी म शादी और 2 पित ता के णय- संग बता
चुके ह।
अभी उस दन दांत खोदते आए। भोजन के बाद कलंत-चचा का चूण फांकना
ज़ री होता है। हा मा अ छा होता है। उ ह ने चूण फांकना शु कर दया–आपने
सुना, अमुक साहब क लड़क अमुक लड़के के साथ भाग गई और दोन ने इलाहाबाद म
शादी कर ली। कै सा बुरा ज़माना आ गया! म जानता ं क वे बुरा ज़माना आने से दुखी
नह , सुखी ह। िजतना बुरा ज़माना आएगा वे उतने ही सुखी ह गे–तब वे यह महसूस
करके और कहकर गव अनुभव करगे क इतने बुरे ज़माने म भी हम अ छे के अ छे ह।
कु छ लोग बड़े चतुर होते ह। वे सामूिहक पतन म से िनजी गौरव का मु ा िनकाल लेते ह
और अपने पतन को समूह का पतन कहकर बरी हो जाते ह।
मने अपनी दु आदत के मुतािबक कहा–इसम परे शान होने क या बात है? अपने
देश म अ छी शा दयां लड़क भगाकर ही ई ह। कृ ण ने ि मणी का हरण कया था
और अजुन ने कृ ण क बहन सुभ ा का। इसम कृ ण क रज़ामंदी थी। भाई अगर को-
अॉपरे ट करे तो लड़क भगाने म आसानी होती है।
वे नह जानते थे क म पुराण उनके मुंह पर मा ं गा। संभलकर बोले–भगवान
कृ ण क बात अलग है। मने कहा–हां, अलग तो है। भगवान अगर औरत भगाए तो वह
बात भजन म आ जाती है। साधारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैितक हो जाता
है। िजस लड़क क आप चचा कर रहे ह, वह अपनी मज़ से घर से िनकल गई और
मज़ से शादी कर ली, इसम या हो गया?
वे कहने लगे–आप हमेशा उलटी बात करते ह–रीित, नीित, पर परा, िव ास–
या कु छ नह है? आप जानते ह, लड़का-लड़क अलग जाित के ह?
मने पूछा–मनु य जाित के तो ह न?
वे बोले–हां, मनु य होने म या शक है?
मने कहा–तो कम-से-कम मनु य जाित म तो शादी ई। अपने यहां तो मनु य
जाित के बाहर भी महान पु ष ने शादी क है–जैसे भीम ने िहिड बा से।
ये घटनाएं बढ़ती जा रही ह। या कारण है क लड़के -लड़क को घर से भागकर
शादी करनी पड़ती है? 24-25 साल के लड़के -लड़क को भारत क सरकार बनाने का
अिधकार तो िमल चुका है पर अपने जीवन-साथी बनाने का अिधकार नह िमला।
घटनाएं म रोज़ सुनता ।ं दो तरह क िच यां पेटे ट हो गई ह। उनके मज़मून ये
ह। िज ह भागकर शादी करनी है वे, और िज ह नह करनी वे भी इनका उपयोग कर
सकते ह।

िच ी नं. 1

पू य िपताजी,
मने यहां रमेश से वै दक रीित के अनुसार शादी कर ली है। हम अ छे ह। आप
िच ता मत क रए। आशा है, आप और अ मां मुझे माफ कर दगे।
आपक बेटी
सुनीता।

िच ी नं. 2
ि य रमेश,
म अपने माता-िपता क इ छा के िव नह जा सकती। तुम मुझे माफ कर देना।
तुम ज़ र शादी कर लेना और सुखी रहना। तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन म सुख नह
िमलेगा। दय से तो म तु हारी ।ं (4-5 साल बाद आओगे तो प पू से क ग ं ी–बेटा,
मामाजी को नम ते करो)
तु हारी
िवनीता।

इसके बाद एक मज़ेदार म चालू होता है। मां-बाप कहते ह–यह हमारे िलए मर चुक
है। अब हम उसका मुंह नह देखगे। फर कु छ महीने बाद म उनके यहां जाता ं तो वही
लड़क चाय लेकर आती है।
म उनसे पूछता –ं यह तो आपके िलए मर चुक थी। वे जवाब देते ह–आिखर
लड़क ही है। और म सोचता रह जाता ं क जो आिखर म लड़क है वह शु म लड़क
य नह थी?
माता-िपता क भावना को म जानता ।ं िव ास और पर परा के टू टने म बड़ा
दद होता है। जब शेरपा तेन संह गौरीशंकर क चोटी पर होकर आया था तब उससे
कसी ने पूछा क या वहां शंकर भगवान ह? तो उसने कहा था क नह ह। एक स न
बड़े दद से मुझसे बोले–तेन संह को ऐसा नह कहना चािहए था। मने कहा–वहाँ शंकर
भगवान उसे नह दखे तो उसने कह दया क नह ह। वे बोले– फर भी उसे ऐसा नह
कहना चािहए था। मने कहा–जब ह ही नह तो..
वे बोले– फर भी उसे नह कहना था। मने उनसे पूछा– या आप मानते ह क वहां
शंकरजी ह? उ ह ने कहा–यह हम भी जानते ह क वहां शंकरजी नह ह। पर एक
िव ास दय म िलए ह क शंकरजी ह, वे औढरदानी ह। कभी कोई संकट हम पर
आएगा तो वे आकर हम उबार लगे।
झूठे िव ास का भी बड़ा बल होता है। उसके टू टने का भी सुख नह , दुख होता है।
एक स न क लड़क दूसरी जाित के लड़के से शादी करना चाहती थी। यहां मां-
बाप का जाित- था क शा तता म िव ास आड़े आ गया। लड़का अ छी ऊंची नौकरी
पर था, पर तु लड़क के माता-िपता ने उसक शादी अपनी ही जाित के एक लड़के से
कर दी जो कम तो कमाता ही था, अपनी प ी को पीटता भी था। एक दन मने उन
स न से कहा क सुना है, लड़क बड़ी तकलीफ म है। वह उसे पीटता है। उ ह ने कोई
जवाब नह दया। जवाब देते भी तो या देत,े िसवा इसके क–इतना तो संतोष है क
जाित वाले से िपट रही है।
आिखर ये हमारे लोग कस पर परा को, कस आदश को मान रहे ह? राम मयादा
पु षो म ह। सीता महासती ह। इनसे े ी-पु ष क क पना और ऐसे अ छे िववाह
क क पना इस समाज म नह है। मयादा पु षो म का िनमाण करने वाले तुलसीदास
कहते ह क पु प-वा टका म ‘कं कण कं किण नूपुर’ क विन सुनकर ल मण के सामने
राम ‘क फे स’ करते ह क ऐसा लगता है जैसे मदन ने दु दुभी दे दी है यािन राम के मन
का धनुष वह टू ट गया। िववाह-पूव ेम भी हो गया और फर िववाह भी हो गया।
आज िजन मू य को उस मामले म माना जा रहा है उनको देखकर मुझे लगता है क
तुलसीदास ने जो िलखा है, वैसा न आ होगा। आ ऐसा होगा–राम ने ल मण से पूछा
होगा क यह कं कण कं किण नूपुर क विन कसक है? ल मण ने कहा होगा–यह
जनक क लड़क सीता क है। तब राम ने पूछा होगा क या जनक अपनी ही िबरादरी
के ह? ल मण ने कहा होगा–हां, राजा जे. के . संह अपनी ही िबरादरी के ह। राम ने
कहा होगा–तभी तो मेरा मन डोल उठा। दूसरी िबरादरी के होते तो मेरे मन पर कोई
असर नह होता।
इन लड़के -लड़ कय से या कहा जाए! यही न क ेम क जाित होती है। एक
िह दू ेम है, एक मुसलमान ेम, एक ा ण ेम, एक ठाकु र ेम, एक अ वाल ेम।
एक कोई जावेद आलम कसी जय ती गुहा से शादी कर लेता है, तो सारे देश म लोग
ह ला कर देते ह और दंगा भी करवा सकते ह।
इस सबको देखते ए आगे चलकर त ण-त णी के ेम का दृ य ऐसा होगा। त ण-
त णी िमलते ह और यह वातालाप होता है–
त ण– या आप ा ण ह, और ा ण ह तो कस कार क ा ण ह?
त णी– य , या बात है?
त ण–कु छ नह ! ज़रा आपसे ेम करने का इरादा है।
त णी–म तो ख ी ।ं
त ण–तो फर मेरा आपसे ेम नह हो सकता, य क म ा ण ।ं
लोग कहते ह क आिखर थायी मू य और शा त पर परा भी तो कोई चीज़ है।
सही है, पर मूखता के िसवाय कोई भी मा यता शा त नह है। मूखता अमर है। वह
बार-बार मरकर फर जीिवत हो जाती है।
इधर म लड़के -लड़क से पूछता ं क वेद तो यहां भी ह और यहां भी वै दक रीित
है, फर तुम लोग ने यह य नह शादी कर ली? भागकर दूसरी जगह य गए?
वे कहते है–यहां माता-िपता बाधा डालते।
म समझ गया। ांित ये त ण ज़ र करगे पर यथाि थित क नज़र बनाकर।
वे स न जो मुझे खबर दे गए थे, कह रहे थे क आिखर हम बुजुग के जीवन-भर
के अनुभव का भी तो कोई मह व है। मने कहा–अनुभव का मह व है। पर अनुभव से
यादा इसका मह व है क कसी ने अनुभव से या सीखा। अगर कसी ने 50-60 साल
के अनुभव से िसफ यह सीखा क सबसे दबना चािहए तो अनुभव के इस िन कष क
क मत म शक हो सकता है। कसी दूसरे ने इतने ही साल के अनुभव से शायद यह
सीखा हो क कसी से नह डरना चािहए।
आप तो 50-60 साल क बात करते ह। कचुए ने अपने लाख साल के अनुभव से
कु ल यह सीखा है क रीढ़ क ह ी नह होनी चािहए।
धम े े-कु े े

चुनाव हो गए। नतीजे आ रहे ह। ‘कायकता’ अब कह नह दखता। चुनाव के दन


म यह एक नई न ल पैदा होती है–कायकता। स ा कायकता वह है जो पाटी को
‘पालटी’ बोलता है, िवरोधी को ‘चुनैटी’ देता है और िजनक सारी कोिशश यह होती है
क उ मीदवार से यादा से यादा पैसे चाय-ना ते के िलए झटक ले। वषा और शीत क
संिध वेला म पतंगे ब ब के आसपास मंडराते ह। वे मुझे कायकता लगते ह और ब ब
उ मीदवार। फर पतंगे लोप हो जाते ह, ब ब बराबर जलता रहता है। कायक ा अब
िसफ तब दखेगा, जब कसी क ज़मानत दलानी होगी, पुिलस के स दबाना होगा या
तबादला कराना होगा।
बड़ा शोर था इस चुनाव का।
घोषणाएं क जाती थ क यह चुनाव धमयु है; कौरव-पांडव सं ाम है। धृतरा
च ककर संजय से कहते ह–ये लोग अभी भी हमारी लड़ाई लड़ रहे ह। ये अपनी लड़ाई
कब लड़गे? संजय कहते ह–इ ह दूसर क लड़ाई म उलझे रहना ही िसखाया गया है। ये
दूसरे क लड़ाई लड़ते-लड़ते ही मर जाते ह।
धमयु है, तो बड़े भाई युिधि र को ज़ र जुआ खेलने क लत पड़ गई होगी।
कौन कौरव और कौन पांडव– यह मेरी समझ म नह आ रहा था। देख रहा था क जो
अपने को पांडव कहते ह वही ौपदी को चौराहे पर नंगा कर रहे थे। और अब देख रहा
ं क कु छ पांडव कौरव से भीतर ही भीतर िमले ह कु छ कौरव पांडव से।
कस हेतु है यह धमयु ? सूई क नोक के बराबर ज़मीन के िलए? या इसिलए क
ौपदी बाल िबखराकर िबफरती ई पितय को िध ार रही थी?
राजनीित का ानी कहता है–इस चुनाव के ‘इ यूज़’ समझो। यह चुनाव संिवधान
और यायपािलका का भा य-िनमाण करे गा। संिवधान पिव है। वह बदला नह जा
सकता। यायपािलका सव है। वह संिवधान क र ा करती है।
वह संिवधान क पोथी पर ह दी-अ त चढ़ाकर उसक पूजा करता है। मने पूछा–
इसक पूजा य करते हो? वह जवाब देता है– य क यह 20-22 साल पहले िलखा
गया था।
म पूछता –ं इसे कसने िलखा? य िलखा? कन प रि थितय म िलखा?
िलखनेवाल के िवचार-मा यताएं या थे? उनक या क पना थी? कन ज़ रत से वे
े रत थे? देशवािसय के भिव य के बारे म उनक या योजना थी?– या वे सवाल इस
पोथी के बारे म पूछना जायज़ नह है।
वह कहता है–कतई नह । जो पहले िलखा गया है उसके बारे म कोई सवाल नह
उठाना चािहए। वह तक से परे है। पहले िलखे क पूजा और र ा होनी चािहए। वह
पिव है। भोजप पर जो िलखा है वह आट पेपर पर छपे से यादा पिव होता है।
दूसरा ानी कहता है–देखो जी, संिवधान एक औज़ार है, िजससे कु छ बनाना है।
संिवधान को आदमी बनाता है, आदमी को संिवधान नह बनाता। इस औज़ार से मनु य
का भा य बनाना है।
म पूछता –ं पर बनाने म औज़ार िघस जाए या टू ट जाए तो?
जवाब देता है–तो मर मत कर लगे या दूसरा औज़ार ले आएंग।े
म देखता ,ं एक ानी इस औज़ार को रोज़ िनकालता है, उसे साफ करता है, उस
पर पािलश करता है और ड बे म रखकर उसे ताले म बंद कर देता है।
वह औज़ार से बनाता कु छ नह ।
पूछता –ं इस औज़ार से कु छ बनाओगे नह ?
वह कहता है–नह । बनाने से औज़ार िबगड़ जाएगा। हमारा क है, औज़ार क
र ा करना। यह जो मज़बूत ितजोरी है, वह यायपािलका है। इसम हमने पॉिलश करके
संिवधान को रख दया है। अब वह सुरि त है।
म पूछता –ं और तुम या हम जैसे लोग का या होगा? हमारा कह अि त व है?
हम या िसफ पहरे दार ह।
उस ानी के जवाब से ऐसा लगता है, जैसे यायपािलका को संिवधान का गभ रह
गया था, िजससे हम करोड़ आदमी पैदा हो गए। हम संिवधान और यायपािलका के
िभचार क अवैध संतान ह। तभी तो हम कोई नह पूछता।
याय देवता का म आदर करता ।ं पर एक याय देवता सेशनकोट म बैठता है,
दूसरा हाईकोट म और तीसरा सु ीमकोट म। सेशन वाला याय देवता मुझे मौत क
सज़ा दे देता है। म जानता ,ं म बेकसूर ।ं उधर हाई कोट म बैठा याय देवता बड़ी
बेताबी से मेरा इं तज़ार कर रहा है क यह मेरे सामने आए तो म इस िनद ष को बरी
कर दू।ं पर म सामने नह जा सकता य क मेरे पास 5-6 हज़ार पये नह ह। याय
देवता मेरी तरफ क णा से देखता है और म उसक तरफ याचना से–पर हम आमने-
सामने नह हो सकते। अगर म 5-6 हज़ार खच कर सकूं तो फांसी से बच सकता ।ं
कौन-सा याय देवता स ा है–सेशन वाला, जो फांसी देता है या हाईकोट वाला,
जो बरी करता है? छोटे आदमी के िलए छोटे देवता और बड़े आदमी क बड़े देवता तक
प च
ं ! छोटे आदमी का भा य-िनमाता गांव के बाहर के बेर-वृ के नीचे रखा लाल
प थर और बड़े आदमी के िलए रामे र का देवता।
दन-भर इन चीज़ म दमाग उलझा रहा। संिवधान, यायपािलका, संसद,
मूलभूत अिधकार! श द! संिवधान का श द! उस श द का अथ, अथ-भेद! िलखा श द

शाम को र शे म बैठा लौट रहा था। र शावाला बात करने लगा। म र शे म
अ सर बैठता ं और ज दी न हो तो र शेवाले से बात करता चलता ।ं
म उससे पूछता –ं तुमने वोट दया था?
उसने कहा–नह साहब, फालतू हाथ पर काला ध बा लगवाने से या फायदा?
मतदान का ‘पिव ’ अिधकार िजसे कहते ह, उसे यह र शावाला हाथ पर काला
ध बा लगाना कहता है।
वह कहता है–2-3 घंटे लगते ह, वोट डालने म, इतने म 2-3 पये कमा लेते ह,
िजससे ब का पेट रात को भरता है। वोट दे द तो, ब े भूखे रह। बाप के वोट देने के
शौक के िलए ब े भूखे य रह? बताइए साहब!
मने कहा–तुम या वोट क क मत नह जानते?
उसने कहा–जानता ।ं एक वोट से हार या जीत हो सकती है। मेरे एक वोट से
कोई जीत सकता है। पर उससे मेरा या फायदा? हम लोग का कोई भी तो भला नह
करता। सब मज़ा-मौज करने लगते ह। जब-जब हमने वोट दया है, उसके बाद हमारी
मुसीबत और बढ़ गई है। यह वोट ही पाप क जड़ है। तो हमने वोट देना ही बंद कर
दया।
संसदीय लोकतं पर आ था रखने वाले को परे शानी होगी क ब त लोग वोट को
पाप क जड़ मानने लगे ह।
ािनय क ब त बात म सुन चुका था। अब इस अ ानी क बात सुन रहा ।ं
वह कहता है–साहब, इन सबम होड़ लगी है क कौन हम भूखा मार ले। हमारा
या है? क मत म िजतना है, उतना िमल जाता है।
वह ोध से क मत पर आ जाता है। इस देश के ानी या अ ानी–सबक यह
िवडंबना है क वह ोध से फौरन क मत पर आ जाता है।
रात को ब त देर तक न द नह आती। ािनय क और अ ानी र शेवाले क
बात मन म गूंजती ह।
न द आती है, तो म एक सपना देखता –ं
म ऊबकर एक अजनबी देश म प च
ं गया ।ं
वहां लोग जुलूस िनकाल रहे ह, दशन कर रहे ह। वे मांग कर रहे ह–सरकार हम
भूखा रहने दे। हम भूखा मरने का अिधकार है। यह सरकार हमारे इस अिधकार को
छीन रही है। हम ऐसी सरकार नह चािहए।
सरकार क तरफ से जवाब दया जाता है–सरकार अपनी तरफ से पूरी कोिशश
करती है क जनता भूखी रहे। पर कु छ पैदावार हो जाती है, तो हम या कर? उसे
कसी को तो खाना ही पड़ेगा। आप लोग को थोड़ा-थोड़ा अ देना सरकार क मजबूरी
है।
जनता कहती है–नह , हम यह सरकार नह चािहए। हम सरकार बदलगे। हम वह
सरकार चािहए, जो हम भूखा रखे। सरकार क बहानेबाज़ी नह चलेगी। फर से चुनाव
हो।
म सपना देख रहा ।ं िनवाचन का िन य हो जाता है।
िजस मु े पर चुनाव हो रहा है, वह है–‘जनता को कै से भूखा मारना।’
राजनीितक पा टयां चार काय म लगी ह।
पाट नं. 1 कहती है–हम जनता को वचन देते ह क हम स ा म आते ही खेती बंद
करा दगे। अ ही पैदा नह होगा तो जनता भूखी रहेगी ही।
जनता कहती है–नह , अ तो खूब पैदा होना ही चािहए। फर भी हम भूखा रहने
देना चािहए। अ पैदा नह होगा, तो हमारा रा ीय गौरव न हो जाएगा।
पाट नं. 2 वादा करती है–हम अ तो पैदा होने दगे, पर उसे महंगा इतना कर दगे
क लोग खा नह सकगे।
जनता कहती है–यह खेल हम ब त देख चुके। इससे हम संतोष नह । हम नये ढंग
से भूखा मरना चाहते ह।
तब पाट नं. 3 मंच पर आती है। वह कहती है–हम अ क पैदावार खूब बढ़ाएंग,े
पर साथ ही चूह का भी सघन उ पादन होगा। जनता को अ उ पादन का गौरव भी
िमलेगा, और चूह के अ खा जाने के कारण भूखा मरने का सुख भी।
जनता कहती है–यह पाट हम पसंद है। इसी क सरकार बनेगी। हम बा य म
भूखा मरना चाहते ह।
सरकार बन जाती है। सघन खेती का काय म लागू होता है। साथ ही, चूह का
सघन उ पादन भी चलता है। अ छी-अ छी न ल के चूह–े आदमी से बड़े कद वाले,
आदमी से दुगने पेटवाले।
अ पैदा होता है और चूहे उसे खा जाते ह।
जनता खुश होती है और सरकार क जय बोलती है।
साल पर साल िनकल जाते ह। फसल चूहे खा जाते ह। आदमी क पी ढ़यां खुशी-
खुशी भूखी मर रही ह।
एक साल अकाल पड़ जाता है।
चूह के खाने के िलए अ नह है।
चूहे सरकार को घेरते ह। कहते ह–हमने अपने को आदमी से बड़ा बनाने के िलए
लगातार ‘ओवरई टंग’ क है। हमारी खाने क आदत पड़ गई है। हम खाने को दो।
सरकार कहती है–ज़रा धीरज रखो। अगली फसल तक क जाओ।
चूहे कहते ह–धीरज हम नह है। हम भूखे ह। तु ह ने हम खाने क लत लगाई है।
अब हमारा पेट भरो।
सरकार कहती है–पर हम तु हारा पेट कस चीज़ से भर?
चूहे बेताब ह। वे भूख से ितलिमला रहे ह। वे कहते ह–तुम नह जानते, पर हम
जानते ह क हम अब या खाना चािहए।
और म देखता ,ं चूहे दांत कट कटाकर िभड़ जाते ह।
पहले चूहे संिवधान को कु तरकर खा जाते ह।
फर चूहे सरकार को खा जाते ह, संसद को खा जाते ह, यायपािलका को खा जाते
ह।
मेरी न द खुल जाती है।
संवैधािनक बहस करने वाले ानी मुझे याद आते ह। फर याद आता है, वह
र शावाला।
या अथ है, इस सपने का? पता नह ।
पर ि जटा सीता से कहती है–
यह सपना म कह िबचारी
ई है स य गए दन चारी।
िजसक छोड़ भागी है

यह जो आदमी मेरे सामने बैठा है, जवान है और दुखी है। जवान आदमी को दुखी
देखने से पाप लगता है। मगर मजबूरी म पाप भी हो जाता है। बेकारी से दुखी जवान
को सारा देश देख रहा है और सबको पाप लग रहा है। सबसे यादा पाप उन
भा यिवधाता को लग रहा है, िजनके कम, अकम और कु कम के कारण वह बेकार है।
इतना पाप और फर ये ऐसे भले-चंगे! या पाप क ािलटी िगर गई है? उसम भी
िमलावट होने लगी है।
नह , आप गलत समझे। यह जवान बेकारी के कारण दुखी नह है। नौकरी उसक
है। नौकरी बीवी क मांग करती है– तो शादी उसने कर ली थी। हाल म उसक बीवी
उसे छोड़कर एक पैसेवाले के घर म बैठ गई है। वह दुखी है। म उसके दुख को महसूस
करने क कोिशश करता ।ं पर कै से कर सकता ?ं िजसक न कभी ई, न भागी, वह
उसके दुख को महसूस नह कर सकता। वह गलत आदमी के पास सलाह लेने आ गया
है। उसे ऐसे आदमी के पास जाना चािहए था िजसक भाग चुक है और उससे पूछना
था क भैया, ऐसे मौके पर या कया जाता है। बहरहाल, म सुन रहा ं और समझने
क कोिशश कर रहा ।ं इसक तन वाह कम है। इतने म प ी के पद पर बने रहना उस
औरत को शोभा नह दया। उसे यादा पय क बीवी बनना था। यह आदमी
आमदनी नह बढ़ा सका। घूस लेना इससे बनता नह है। घूस से पा रवा रक जीवन
सुखी होता है। मेरे एक पुराने पड़ोसी िब कर िवभाग म थे और भरपेट घूस खाते थे।
उनक बीवी उ ह इतना यार करती थी क मर जाते तो उनक िचता पर सती हो
जाती। उसे यह कतई बरदा त न होता क पित तो वग म घूस खाए और वह यहां
उसके लाभ से वंिचत रह जाए। कतने सुखी लोग थे। शाम को सारा प रवार भगवान
क आरती गाता था–जय जगदीश हरे ! भगवान के सहयोग के िबना शुभ काय नह
होते। आरती म आगे आता–सुख-स पि घर आवे! शाम को यह बात कही जाती और
सुबह बिनय के लाल व म बंधी सुख-स पि चली आती। िजस दन घूसखोर क
आ था भगवान पर से उठ जाएगी, उस दन भगवान को पूछनेवाला कोई नह रहेगा।
आरती म आता–तुम अंतयामी। भगवान, तुम जानते हो, मेरे अंतर म घूस लेने क इ छा
है और तुम दलाते भी हो। आरती क एक पंि से मुझे भी आशा बंधती– ा-भि
बढ़ाओ संतन क सेवा! मुझे लगता, िजस दन इसे संत क सेवा करनी होगी, वह संत
ढू ंढने दूर कहां जाएगा। म तो पड़ोस म ही रहता ,ं पर उसने कभी मुझे संत के प म
मा यता नह दी।
यह आदमी भी अगर मेरे पड़ोसी जैसा भगव होता, तो इसक बीवी नह
भागती। उसक तो बीवी छोड़ गई है, मगर मेरे मन म दूसरी ही बात उठने लगी ह। म
कहना चाहता –ँ पगले, ज़माने को समझ। यह ज़माना ही कसी समथ के घर म बैठ
जाने का है। वह तो औरत है। तू राजनीित के मद को तो देख। वे उसी के घर म बैठ
जाते ह, जो मंि म डल बनाने म समथ हो। शादी इस पाट से ई थी तगर मंि म डल
दूसरी पाट वाला बनाने लगा, तो उसी क ब बन गए। राजनीित के मद ने वे या
को मात कर दया। कसी- कसी ने तो घंटे-भर म तीन-तीन खसम बदल डाले। आदमी
ही य , समूचे रा कसी समथ के घर म बैठ जाते ह। इसी देश के कु छ लोग कहते ह,
क वतं िवदेश नीित बदल डालो–याने औरत बनाकर देश को कसी बड़े के घर म
िबठा दो।
इन बात से न उसे शांित िमलेगी न रा ता िमलेगा। िजसक बीवी छोड़ भागी है,
उसका मन राजनीित म नह रम सकता।
वह कहता है–वह बूढ़ा है, उसके बाप क उ का।
वह जवान के घर बैठती, तो उसे शायद कम दुख होता। इस जवान को बूढ़े से हार
जाने का िवशेष दु:ख है। या अभी भी उस ी के सुख का इसे यान है।
इस अभागे को नह मालूम क पैसे म बड़ी मदानगी होती है। आदमी मद नह
होता, पैसा मद होता है। अमरीका के अ छे-अ छे जवान टापते रह गए और जेकिलन
को ले गया बूढ़ा अरबपित ओनािसस।
एक 60 साल के बूढ़े क तीन बीिवयां मर चुक थ । बूढ़ा जायदाद वाला। संतान
कोई नह । उसे चौथी बीवी क ज़ रत महसूस ई। उसे बीवी तो चािहए ही थी,
जायदाद का वा रस भी चािहए था। वा रस न हो तो जायदाद हाय-हाय करती रहती
है क मेरा या होगा? आदमी को आदमी नह चािहए। जायदाद को आदमी चािहए।
बूढ़े क नज़र गांव क एक क या पर थी। पर उसके मां-बाप राज़ी कै से ह ? बूढ़ा चतुर
था। उसने लड़क के र तेदार से कहा–चलो भैया, तीरथ कर आएं। तीथ म उसने कु छ
पये देकर साधु को िमला िलया। फर लड़क के र तेदार के साथ उसके पास गया
और हाथ दखाया। साधु पहले से सधा आ था। उसने हाथ देखकर कहा–तु हारी एक
और शादी होगी। िलखी है। बूढ़े ने बनकर कहा–अरे नह महा मा, इस उ म माया-
जाल म मत फं साओ। साधु ने कहा–तुम चाहो या नह , वह तो होगी। िलखी है। िलखी
को कोई नह िमटा सकता। लड़का भी होगा। र तेदार ने गांव प च ं कर लड़क को
मां-बाप से कहा–उसके तो िलखी है। लड़का भी िलखा है। ब त जायदाद है। लड़क को
दे दो। िलखी थी, तो बूढ़े क शादी हो गई। स दय से यह समाज िलखी पर चल रहा है।
िलखाकर लाए ह तो पी ढ़यां मैला ढो रही ह और िलखाकर लाए ह तो पी ढ़यां ऐशो-
आराम भोग रही ह। िलखी को िमटाने क कभी कोिशश ही नह ई! दुिनया के कई
समाज ने िलखी को िमटा दया। िलखी िमटती है! आसानी से नह िमटती तो लात
मारकर िमटा दी जाती है। इधर कु छ िलखी िमट रही है। भूतपूव राजा-रानी क िलखी
िमट गई। अछू त के लड़के पढ़-िलखकर अफसर भी होने लगे ह और िजन िव प रवार
म उनका बाप सफाई करता है, उनके लड़के उसे झुककर सलाम करते ह। जो िलखाकर
लाए थे क इनके हमेशा चरण छु ए जाएंगे, उनक भी िलखी िमट रही है।
यह जवान आदमी अगर यही मान ले क वह औरत इसके नह िलखी थी उस
पैसेवाले को िलखी थी, तो यह शांत हो सकता है।
ऐसी घटनाएं होना ज़ री है। इनसे फ म क बेवफाई के गाने बनते ह। पर
फ म म जो बेवफाई करती है वह प ी नह , ेिमका होती है और बावफा ेमी का
काम आसान हो जाता है। वह ‘हाय बेवफा’ कहकर रोता है और दय-प रवतन क
राह देखता है।
िे मका क बात अलग है, प ी क अलग। पि म म कम-से-कम इतना कर िलया
है क पित-प ी क न पटे तो तलाक ले िलया। मगर इस देश म चोरी छु पे का मामला
है। यहां तलाक नह होता, औरत क नाक काट ली जाती है या उसक ह या कर दी
जाती है। गांववाला कु हाड़ी से मारता है, शहरवाला ज़हर देता है।
यह आदमी या इरादा रखता है? म कहता –ं तुम उस बूढ़े क औरत को भगा
लाओ।
वह कहता है–उसक तो मर गई और होती भी तो उस बु ढ़या को लाता!
म कहता –ं तो तुम दूसरी से शादी कर लो।
उसने कहा–मेरा तो जी होता है क जाकर उस हरामजादी के कलेजे म छु रा घुसेड़
दू।ं
आिखर यह भी स ा भारतीय मद िनकला। तलाक नह देगा, छु रा घुसेड़ग े ा। यह
समझता है कोई उसके घड़े को उठाकर ले गया है। यह उसे प थर से फोड़ना चाहता है–
म इसम पानी नह पीऊंगा, तो तू भी नह िपएगा।
म कहता –ं औरत ापट नह है।
वह भर-आँख मुझे देखता है। कहता है–औरत ॉपट नह है?
म कहता –ं नह ।
वह नीचा िसर करके अपने-आप बार-बार कहता है–अ छा, औरत ॉपट नह है।
,ं औरत ॉपट नह है!
8-10 बार ऐसा कहकर वह उठकर चला जाता है।
सोचता ,ं या यह उसे छु रे से मार डालेगा नह , वह कहता है–ऐसा जी होता है
क छु रा घुसेड़ दू।ं िजसका जी होता है वह छु रा नह घुसेड़ता। मारने वाला पहले छु रा
घुसेड़ता है, बाद म जी से पूछता है।
म उसे भूल जाता ।ं कसे फु रसत है क पित को छोड़कर भागी औरत का िहसाब
रखे?
एक दन वह मुझे बस टेशन पर िमल जाता है। उसके पीछे एक औरत है। वह मुझे
‘नम ते’ करता है। उसी ण औरत थोड़ा-सा घूंघट कर लेती है।
वह कहता है–यह मेरी बीवी है।
म पूछता –ं तुमने दूसरी शादी कर ली, यह अ छा कया।
उसने कहा–नह , वही है।
अरे , औरत को राजनीित क बीमारी लग गई। दो महीने म दो बार दल-बदल कर
डाला।
वह मेरी तरफ अजब ढंग से देखता है। लगता है, कह रहा है–तुम तो कहते थे औरत
ॉपट नह है! अब देखो।
म औरत को देखता ।ं वह सचमुच ापट क तरह ही खड़ी थी।
कताब क दुकान और दवा क

बाज़ार बढ़ रहा है। इस सड़क पर कताब क एक नई दुकान खुली है और दवा क


दो। ान और बीमारी का यही अनुपात है अपने शहर म। ान क चाह िजतनी बढ़ी है
उससे दुगनी दवा क चाह बढ़ी है। य ान खुद एक बीमारी है। ‘सबस भले िवमूढ़,
िजन हं न ापै जगत गित।’ अगर यह कताब क दुकान न खुलती तो दो दुकान
दवाइय क न खोलनी पड़त । एक कताब क दुकान ान से जो बीमा रयां फै लाएगी,
उनक काट ये दो दवा क दुकान करगी।
पु तक िव े ता अ सर म खी मारते बैठा रहता है। बेकार आदमी हैज़ा रोकते ह
य क वे शहर क मि खयां मार डालते ह। ठीक सामने दवा क दुकान पर हमेशा
ाहक रहते ह। म इस पु तक-िव े ता से कहता –ं तूने गलत धंधा चुना। इस देश को
समझ। यह बीमारी- ेमी देश है। तू अगर खुजली का मलहम ही बेचता तो यादा कमा
लेता। इस देश को खुजली ब त होती है। जब खुजली का दौर आता है, तो दंगा कर
बैठता है या ह रजन को जला देता है। तब कु छ सयान को खुजली उठती है और वे
ताव का मलहम लगाकर सो जाते ह। खुजली सबको उठती है–कोई खुजाकर खुजास
िमटाता है, कोई श द का मलहम लगाकर।
मुझे इस सड़क के भा य पर तरस आता है। साल से देख रहा ,ं सामने के िह से म
जहां प रवार रहते थे वहां दुकान खुलती जा रही ह। प रवार इमारत म पीछे चले गए
ह। दुकान लगातार आदमी को पीछे ढके लती जा रही है। दुकान आदमी को ढांकती जा
रही है। यह पहले िस जनसेवी वतं ता-सं ाम सेनानी दुगा बाबू क बैठक थी। वहां
अब चूिड़य क दुकान खुल गई है। दुगा बाबू आम सड़क से गायब हो गए। य मने
ब त-से ांितवीर को बाद म ांितवीर होते देखा है। अ छे-अ छे वातं य शूर को
दुकान के पीछे िछपते देखा है। मगर दुगा बाबू जैसे आदमी से ऐसी उ मीद नह थी क
वे चूिड़य क दुकान के पीछे िछप जाएंगे।
दवा-िव े ता मेरा प रिचत ह। नम ते करता है। कभी पान भी िखलाता है। म पान
खाकर फौरन कताब क दुकान पर आ बैठता ।ं उसे हैरानी है क म न चलनेवाली
दुकान पर य बैठता ।ं उसक चलनेवाली दुकान पर य नह बैठता? चतुर आदमी
हमेशा चलने वाली दुकान पर बैठता है। ले कन अपना यही रवैया रहा है क न चलने
वाली दुकान पर बैठे ह। या िजस दुकान पर बैठे ह उसका चलना ब द हो गया है। साथ
के ब त-से लोग चलने वाली दुकान पर बैठते-बैठते उनके मैनेजर हो गए ह। मगर
अपनी उजाड़ कृ ित होने के कारण अभी से समैन तक बनने का जुगाड़ नह आ।
दवा-िव े ता हर राहगीर के बीमार होने क आशा लगाए रहता है। मेरे बारे म भी
वह सोचता होगा क कभी यह बीमार पड़ेगा और दवा खरीदने आएगा। म उसक
खाितर 6 महीने बीमार पड़ने क कोिशश करता रहा मगर बीमारी आती ही नह थी।
म बीमा रय से कहता–तुम इतनी हो। कोई आ जाओ न! बीमा रयां कहत –दवा के
बढ़े दाम से हम डर लगता है। जो लोग दवा म मुनाफाखोरी क िन दा करते ह, वे
समझ क महंगी दवा से बीमा रयां डरने लगी ह। वे आत ही नह । मगर दवाएं
स ती हो जाएं तो हर कसी क िह मत बीमार पड़ने क हो जाएगी। जो दवा म
मुनाफाखोरी करते ह वे देशवािसय को व थ रहना िसखा रहे ह। मगर यह कृ त
समाज उनक िन दा करता है।
आिखर म बीमार भी पड़ा, ले कन तब, जब बीमा रय को िव ास हो गया क
मेरे डॉ टर िम मुझे ‘से पल’ क मु त दवा से अ छा कर लगे।
बीमार पड़ा तो एक ानी समझाने लगे–बीमार पड़े, इसका मतलब है, वा य
अ छा है। व थ आदमी ही बीमार पड़ता है। बीमार या बीमार होगा। जो कभी
बीमार नह पड़ते, वे अ व थ ह। यह बात बड़ी राहत देने वाली है।
बीमारी के दन म मुझे बराबर लगता रहा क वा तव म व थ म अभी आ ।ं
अभी तक बीमार नह पड़ा था तो बीमार था। बीमारी को वा य मान लेनेवाला म
अके ला ही नह ।ं पूरे समाज बीमारी को वा य मान लेते ह। जाित-भेद एक बीमारी
ही है। मगर हमारे यहां कतने लोग ह जो इसे समाज के वा य क िनशानी समझते
ह? गोर का रं ग-दंभ एक बीमारी है। मगर अ का के गोरे इसे वा य का ल ण
मानते ह और बीमारी को गव से ढो रहे ह। ऐसे म बीमारी से यार हो जाता है। बीमारी
गौरव के साथ भोगी जाती है। मुझे भी बचपन म प रवार ने ा णपन क बीमारी
लगा दी थी, पर मने ज दी ही इसका इलाज कर िलया।
मने देखा है, लोग बीमारी बड़ी हँसी-खुशी से झेलते ह। उ ह बीमारी ित ा देती
है। सबसे यादा ित ा ‘डायिबटीज़’ से िमलती है। इसका रोगी जब िबना श र क
चाय मांगता है और फर शीशी म से एक गोली िनकालकर उसम डाल लेता है तब
समझता है, जैसे वह श र के कारखाने का मािलक है। एक दन म एक बंधु के साथ
अ पताल गया। वे अपनी जांच इस उ साह और उ लास के साथ कराते रहे, जैसे लड़के
के िलए लड़क देख रहे ह । बोले–चिलए, ज़रा लड शुगर दखा ल। लड शुगर देख ली
गई तो बोले–ज़रा पेशाब क जांच और करवा ल। पेशाब क जांच कराने के बाद बोले–
लगे हाथ का डयो ाम और करा ल। एक-से-एक नामी बीमारी अपने भीतर पाले थे,
मगर ज़रा भी लेश नह । वे बीमा रय को उपलि धय क तरह संभाले ए थे।
बीमारी बरदा त करना अलग बात है, उसे उपलि ध मानना दूसरी बात। जो बीमारी
को उपलि ध मानने लगते ह, उनक बीमारी उ ह कभी नह छोड़ती। स दय से अपना
यह समाज बीमा रय को उपलि ध मानता आया है और नतीजा यह आ है क भीतर
से जजर हो गया है मगर बाहर से व थ होने का अहंकार बताता है।
मुझे बीमारी बुरी लगती है। बरदा त कर लेता ,ं मगर उससे नफरत करता ।ं
इसीिलए बीमारी का कोई फायदा नह उठा पाता। लोग तो बीमारी से लोकि य होते
ह, ित ा बढ़ाते ह। एक साहब 15 दन अ पताल म भरती रहे, जो सावजिनक जीवन
म मर चुके थे, तो िज़ दा हो गए। बीमारी कभी-कभी ाणदान कर जाती है। उनक
बीमारी क खबर अखबार म छपी, लोग देखने आने लगे और वे चचा का िवषय बन
गए। अब चुनाव लड़ने का इरादा रखते ह। वे तब तक अ पताल से नह गए जब तक
एक मं ी ने उ ह नह देख िलया। डॉ टर कहते–अब आप पूण व थ ह। घर जाइए। वे
कहते–डॉ टर साहब, दो-चार दन और रे ट ले लूं। फर मुझसे पूछते– य , भैयाजी कब
आने वाले ह? म देखता, उनके चेहरे पर व थ हो जाने क बड़ी पीड़ा थी। ऐसी
धोखेबाज़ बीमारी, क िमिन टर के देखने के पहले ही चली गई। िनदय, कु छ दन और
रहती तो तेरा या िबगड़ता?
बीमारी से चतुर आदमी कई काम साधता है। एक साहब मामूली-सी बीमारी म
ही अ पताल म भरती हो गए। उ ह कु छ लोग से उधारी वसूल करनी थी और कु छ
लोग से काम कराने थे। अ पताल से वे िच ी िलखने लगे–ि य भाई, अ पताल से िलख
रहा ।ं ब त बीमार ।ं बड़े संकट क घड़ी है। चलाचली क बेला है। आप पये भेज द
तो बड़ी कृ पा हो। आधे-से स दय ने उ ह पये भेज दए। बाक ने सोचा–जब
चलाचली क बेला है तो कु छ दन देख ही िलया जाए। िसधार जाएं तो पैसे बच
जाएंगे। एक मामूली बीमारी से उ ह ने दया जगाकर कई काम करा िलए।
चाहता ,ं पर मुझसे यह नह बनता। मेरे वही शुभिच तक कह रहे थे–तुम 15
दन से बीमार पड़े हो और अभी तक अखबार म खबर नह छपाई! छपा दो और फर
देखो, कतने लोग आते ह। मेरी िह मत नह होती। अगर लोग नह आए तो आघात से
मर ही जाऊंगा। ऐसा एक ‘के स’ म देख चुका ।ं उन भाई को मामूली बुखार ही आया
था। उ ह ने सुबह के अखबार म समाचार छपा दया और त तरी म 50-60 पान
रखवाकर बैठ गए। मगर दोपहर तक कोई नह आया और पान सूखने लगे। संयोग से
दोपहर को हम दो लोग प च ं े तो देखा वे ‘नवस ेकडाउन’ क ि थित तक प च
ं गए ह।
कहने लगे–यह साली दुिनया है। दो त ह हरामज़ादे। अखबार म छप गया तब भी कोई
नह आया। कोई कसी का नह है। सब र ते झूठे ह। वे रोने लगे। तब हमने बीस-
पचीस लोग को उनके घर िभजवाया और ाण बचाए।
म ऐसा र क नह लेना चाहता। िबना लोग के देखे ही अ छा हो जाऊंगा।
डॉ टर कहता है–ज़रा दमाग को शांत रिखए। म सोचता –ं इस ज़माने म दमाग तो
िसफ सूअर का शांत रहता है। यहां-वहां का मैला खा िलया और दमाग शांत रखा। जो
ऐसा नह करता और जो सचेत ाणी है। उसका दमाग िबना मुदा ए कै से शा त
रहेगा?
घुटन के प ह िमनट

एक सरकारी द तर म हम लोग एक काम से गए थे–संसद सद य ितवारी जी और


म। द तर म फै लते-फै लते यह खबर बड़े साहब के कान तक प चं गई होगी क कोई
संसद सद य अहाते म आए ह। साहब ने साहबी का िहदायतनामा खोलकर देखा होगा
क अगर संसद सद य द तर म आए तो या करना? जवाब िमला होगा–उसे चाय
िपलाना। फर देखा होगा, अगर उसके साथ कोई आदमी हो तो उसके साथ या
करना? जवाब िमला होगा–उसे भी चाय िपला देना। साहब ने िहदायतनामा बंद करके
बड़े बाबू से कहा होगा–ितवारीजी का काम ख म हो जाए तो उन लोग को चाय पीने
को यहां ले आना।
काम ख म होने पर बड़े बाबू ने कहा–साहब के साथ चाय पी लीिजए। साहब के
साथ औपचा रक चाय पीने के अनुभव मुझे ह। उ ह याद करके म कु छ घबड़ाया। मगर
सोचा, यह अनुभव सुखदायक भी हो सकता है। हम दोन साहब के कमरे म घुस।े एक
िनहायत बनावटी मु कान फै ली साहब के चेहरे पर। यह मु कान सरकार खास तौर से
अपने कू टनीित और अफसर के िलए बनवाती है। पि लक से टर म इसका
कारखाना है। ाइवेट से टर के कारखाने म बनी मु कान ापारी के चेहरे पर होती है।
इसे नकली मूंछ क तरह फौरन पहन िलया जाता है। जब ज़ि फकार अली भुट्टो के
साथ मु कु राते सरदार वण संह क त वीर देखता तो च कत रह जाता। भारत-पाक
यु , भयंकर दु मनी–मगर मु कान यह ऊंची ािलटी क बनी ई है।
साहब मु कु रा चुके तो तीन के मन म सम या पैदा ई क अब या कया जाए?
चाय तो टेिबल पर है नह । चपरासी लेने गया होगा।
हमने सोचा, इ ह ने बुलाया है तो िनभाने क सारी िज़ मेदारी इनक । वे समझे थे
क िनभाने क िज़ मेदारी हम ले लगे।
कु छ सेकंड इस दुिवधा म कटे। इतने म साहब समझ गए क उ ह को िनभाना है।
बोले–सुनाइए ितवारी जी, द ली के या हाल ह?
यह इतना ापक सवाल था क इसका जवाब िसवा इसके या हो सकता था क
सब ठीक है। ितवारी जी जानते थे क द ली पर बम बरस जाएं तो भी इ ह मतलब
नह ।
थका-सा जवाब दे दया–सब ठीक है।
साहब को जवाब माकू ल लगा।
फर मुझसे पूछा–सुनाइए परसाईजी, सािह य म कै सा चल रहा है?
मने भी कहा–सब ठीक चल रहा है।
बात ख म हो चुक । सरकारी अफसर ह–राजनीित क बात कर नह सकते।
सािह य से कोई सरोकार नह ।
हम तीन क नज़र दरवाज़े पर है। हम तीन चपरासी क राह देख रहे ह।
मगर चपरासी हम तीन का दु मन है। वह आ नह रहा। पता नह कतनी दूर
चाय लेने गया है।
साहब अपनी कु स पर ह। जब उ ह लगता है वे बड़े आदमी ह, वे सीधे तनकर बैठ
जाते ह। मगर जब ितवारीजी अपनी छड़ी क मूठ पर हाथ रखते ह, तो साहब को
एहसास होता है क सामने संसद सद य बैठा है। वे टेिबल पर झुक जाते ह। म यह
कवायद बड़ी दलच पी से देख रहा ।ं साहब तने, इसी व ितवारीजी ने छड़ी क मूठ
पर हाथ फे रा, साहब ढीले ए। साहब का यान छड़ी पर है। वे अब छड़ी को ही संसद
सद य समझने लगे ह।
मने अब पेपरवेट उठा िलया है और उससे जी बहला रहा ।ं ितवारीजी ने छड़ी
क मूठ पर लगातार हाथ फे रना शु कर दया है क साहब को तनने का मौका ही नह
िमल रहा है। साहब ने एक िपन उठा ली है और उससे नाखून के मैल को साफ करने लगे
ह। मेरी बड़ी इ छा हो रही है क िपन से दांत खोदू।ं इससे दूसरा काम नह होता। म
पेपरवट रख देता ं और एक िपन उठा लेता ।ं िपन से म दांत का मैल साफ करने
लगता ।ं
हम तीन दरवाज़े क तरफ देखते ह। फर एक-दूसरे क तरफ बड़े दीन नयन से
देखते ह। हम तीन को चपरासी मार रहा है और हम कु छ कर नह सकते। अ य त दीन
भाव से साहब ितवारी जी से पूछते ह–और सुनाइए ितवारी जी, द ली के या हाल
ह?
ितवारी जी कहते ह–सब ठीक ही है।
मुझसे पूछते ह–सुनाइए परसाई जी, सािह य म कै सा चल रहा है?
म कहता –ं ठीक ही चल रहा है।
कह कु छ नह जुड़ रहा। वे और हम दो पहािड़य पर इतनी दूर ह क कोई पुल
हम जोड़ नह सकता। हम तीन कगार पर खड़े ह। नीचे गहरी खाई है। मगर एक-दूसरे
क आवाज़ भी नह सुनाई देती।
साहब को घंटी क याद आती है। घंटी हर साहब क नस के तनाव को दूर करने के
िलए होती है। उ ह ने घंटी बजाई और एक चपरासी हािज़र हो गया।
साहब ने कहा–चाय अभी तक नह आई।
चपरासी ने कहा–गया है साब लेने। इधर के होटल म दूध खलास हो गया।
मारा होटलवाले ने। दूध खलास कए बैठा है। पता नह चपरासी कतनी दूर गया
है।
अब या कर?
साहब ने अब पिसल उठा ली है। वे उसे गाल पर रगड़ते ह। मेरे दांत अब साफ हो
चुके ह। िपन उठा नह सकता। म टेिबल पर तबला बजाने लगता ।ं
साहब ब त संकट म ह। वे यह जानते क पास के होटल का दूध ख म हो गया है
तो चाय पीने को बुलाते ही नह । हम भी घोर संकट म ह। इ ह ने पहले चाय बुलाकर
फर हम य नह बुलाया?
साहब पिसल गाल पर काफ रगड़ चुके। दरवाज़े क तरफ देखते ह।
फर वही–और सुनाइए ितवारीजी, द ली के या हाल ह?
इस बार ितवारी जी ने तय कया क कु छ करना ही पड़ेगा। द ली के हालात पर
बात चले, तो कु छ ह कापन महसूस हो।
वे बोले–कां ेस के दो िह से हो गए। संिडके ट िनकल गई बाहर।
मेरा याल था, अब बात चलेगी।
पर साहब बोले–अ छा जी!
म खुद ितवारी जी से दो घंटे द ली क राजनीित पर बात कर चुका था। मेरे पास
बढ़ाने को कु छ था नह ।
ितवारी जी एक कोिशश फर करते ह–इं दरा सरकार िबलकु ल पु ता है।
साहब ने कहा–अ छा जी!
ितवारी जी िनराश होकर छड़ी क मूठ पर हाथ फे रने लगे।
मने टेिबल पर तबला बजाना शु कर दया।
कोई उपाय कारगर नह हो रहा।
साहब ने फर कहा–और सुनाइए ितवारी जी, द ली के या हाल ह?
इस बार ितवारी जी कु छ नह बोलते। वे लगातार छड़ी क मूठ पर हाथ फे र रहे
ह।
हम तीन क हालत खराब है। मेरा तबला बजाने का जी भी नह हो रहा।
इसी व चपरासी े लेकर आ गया। हम सब मुद जैसे जाग पड़े। साहब के चेहरे
पर पहले ऐसा भाव आता है क उसे चांटा मार द। फर दूसरा भाव आता है जैसे उसके
चरण छू ल। म खुद गु से से भरा बैठा था। मगर उसके आते ही मेरा मन उसके ित
कृ त ता से भर गया।
हमने ब त फु त से चाय सुड़क । उठे । बोले–अ छा अब इजाज़त दीिजए।
उ ह ने फौरन इजाज़त दी। बोले–अ छा जी। थक यू वेरी मच।
हम उ ह ध यवाद देने का भी होश-हवास नह था।
बाहर आकर हम दोन ने पहले खूब ज़ोर से चार-छह सांस ल , फर गाड़ी म बैठे।
रा ते-भर हम एक-दूसरे से नह बोले।
उतरते व अलब ा मने कहा–और सुनाइए ितवारी जी, द ली के या हाल ह?
ितवारी जी भ ाकर बोले–यार, अब भूलने भी नह दोगे?
आचायजी, ए सटशन और बागीचा

लीन शेव के बाद भी आचायजी को ए सटशन नह िमला।


आचायजी के िपता झराटेदार मूंछ रखते थे। वे अं ेज़ सरकार के नौकर थे। उनक
मूंछ क िसफत यह थी क आदमी और मौका देखकर बताव करती थ । वे कसी के
सामने ‘आई ड ट के अर’ के ठाठ क हो जात । फर कसी और के सामने वे मूंछ पर इस
तरह हाथ फे रते क वे ‘आई एम सॉरी सर’ हो जात । मूंछ के इस दुहरे वभाव के
कारण वे सफल और सुखी आदमी रहे। आचायजी जब जवान थे, और आचाय नह िसफ
ले चरर थे, तब उ ह ने िपताजी क तरह मूंछ रख ली थ । वे इन मूंछ से रीडरी क
तलाश करते थे, जैसे कोई-कोई क ड़े मूंछ के दो लंबे बाल से राह खोजते ह। पर मूंछ के
ही कारण रीडरी दूर हटती जाती थी। तब आचायजी ने िपता और पौ ष–दोन से मा
मांगकर मूंछ आधी करवा ल । उनका डंक चला गया और वे मा श रह ग । वे रीडर
हो गए। आगे आधी मूंछ भी ोफे सर बनने म बाधा डालने लग तो उ ह ने उ ह
कतरवाकर नाक के दोन तरफ म खी िबठा ली और ोफे सर हो गए। आगे रटायर
होने का व आया और वे ए सटशन क कोिशश म लग गए। अब उ ह ने म खी भी
साफ करा ली और लीन शेव हो गए। उ ह एक ए सटशन िमल गया।
आचायजी मेरे बड़े भाई के िम थे। बड़े भाई क मृ यु हो चुक थी। आचायजी इस
नाते मुझे शु से ही ेह देने लगे। वे मुझे भुजा म जकड़ लेते और मुझे लगता, मेरे
गाल पर सािह य झाड़ू लगा रहा है। आगे मुझे लगता है, मेरे गाल पर आलोचना श
कर रही है। फर मुझे लगने लगा, मेरी रचना पर समी ा क मि खयां िभनिभना
रही ह। लीन शेव के बाद भी वे उसी तरह मुझे गले लगाकर गाल पर गाल रख देते
और मुझे लगता, हज़ार कचुए मेरे शरीर से िलपटे ह। मुझे अपने-आप से िघन होने
लगती।
गोल चेहरा। चेहरे पर ब े जैसी पिव ता। आंख म अपार ेह। नाक क मु ा म
िन छलता। पूरे मुख पर यह भाव क म तो इतना ेही, भला और परोपकारी ,ं पर
सारी दुिनया मुझ पर अ याय कर रही है। वे जब भी मुझे िमलते, मुझे यही बोध होता
क भले आदमी दुिनया म कतने दुखी रहते ह। कई साल तक म उ ह सामने से देखता
रहा और उनका यही पावन प मुझे दखता। एक दन मने कोण से उनक नाक को
अनायास देख िलया और मेरे भीतर एक झटका-सा लगा। नाक सामने से कु छ और
बताती थी और साइड से कु छ और। मुझे आज तक उनक नाक का वह बाजू से देखना
याद है। तब उनक नाक ब त कु टल और ू र लगी थी। आदमी को समझने के िलए
सामने से नह , कोण से देखना चािहए। आदमी कोण से ही समझ म आता है। उनका वह
सहज, ेिहल मुखड़ा मुझे भयानक लगा। मने उनक आंख को फर देखा। उनम ेह के
पीछे न जाने या- या िछपा था।
उस दन से म आचायजी से डरने लगा। वे मुझे गले लगाते, तो मेरा दम घुटता। म
दय से चाहता क वे मुझसे नफरत कर, पर वे ेह छोड़ते ही नह थे और मुझे देखते
ही भुजा म भर लेत।े उनके ेह के अनुपात से म उनके वाथ का अनुपात समझने
लगा। तीस सेकंड गले लगाकर वे मेरी 4-6 कताब ले गए। एक िमनट आ लंगन करके
उ ह ने अपने ित ी के िखलाफ मुझसे अखबार म िलखवा िलया। डेढ़ िमनट के
आ लंगन म उ ह ने मुझसे अपने बारे म लेख िलखवा िलया। दो िमनट मुझे दय से
लगाया और मुझसे 3-4 सौ कािपयां जंचवा ल । लगातार एक स ाह तक मुझे तीन फ
दन के िहसाब से गले लगाकर उ ह ने अपने आवारा बेटे क शादी मेरी मारफत मेरे
प रवार क एक लड़क से करा ली–और लड़क के मां-बाप मुझे अभी तक गाली देते ह।
दय से लगाने पर उ ह लगता क ज़ोर कम पड़ेगा, तो वे मेरे बड़े भाई क याद करके
आंख म आंसू ले आते और म समझ जाता क आज कोई बड़ा काम मुझसे करवाएंग।े
म सोचता क या मेरे ित ही इनका इतना ेह है? या िसफ मुझे ही गले लगाते
ह। नह , वे ब त सुलझे ए िवचार के आदमी थे। उनके िवचार म कोई दुिवधा नह
थी। कससे कतना लाभ उठाना है, इसका िहसाब उनके मन म होता था और वे इसी
िहसाब से अपने दय का ेह उ िे लत कर देते थे।
म उ ह समझ गया था। एक बार वे एक शहर प ह दन के िलए गए। उ ह मु त
म ठहरने और खाने क सुिवधा चािहए थी। वे जानते थे, उस शहर म मेरा एक घिन
और स प िम रहता है। जाने के 15 दन पहले से उ ह ने मेरे ऊपर ेह उं डेलना शु
कर दया। मेरे तमाम कपड़े भीग गए। म इं तज़ार कर रहा था– ेह क प रणित का।
आिखर जाते व वे उस िम के िलए मेरी िचट् ठी ले गए। िम ने उनका ब ढ़या
इं तज़ाम कर दया। महीना-भर बाद वह िम मुझे िमला तो उसने कहा क आचायजी
का मने अ छा इं तज़ाम कर दया था। उ ह कोई तकलीफ नह ई। मने पूछा–पर
उ ह ने तुमसे मेरी नंदा क होगी न? सच बताओ। उसने िझझककर कहा–हां, क थी!
पर तुमने कै से जाना? मने कहा–म जानता ,ं वे ब त सुलझे ए िवचार के आदमी ह।
िजससे फायदा उठा रहे ह, उसक शंसा और बाक सबक नंदा–ऐसी लीअर थं कं ग
है उनक ।
बड़े सुलझे िवचार! िजसे न करने क कोिशश म लगे ह, वह अगर मर जाए तो रो
पड़गे। किवता सुनकर भाव-िव वल हो जाएंग,े आंख छलछला आएंगी, पर आंसू
प छकर जूिनयर को स पड कराने क कारवाई कराने लगगे। खुद किवता सुनाएंगे और
मानवी क णा से हम सबको पावन कर दगे, पर किवता सुनाने के बाद कसी छा के
न बर घटाकर उसे फे ल कर दगे। ेिमका को गले लगाएंगे तो िहसाब भी करते जाएंगे
क इसका नेकलेस चुराकर कै से बेचा जा सकता है। ब े को चूमगे तो वा स य के साथ
यह िहसाब भी करते जाएंगे क बड़ा होकर यह कतना कमाएगा और मुझे उसम से
कतना देगा।
बड़े सुलझे िवचार! म 3-4 साल के िलए दूसरे शहर चला गया। सोचा, अब उनके
े से मुझे छु टकारा िमलेगा। पर उनक जब-तब िच याँ आ जात । नीचे िलखा

होता–‘तु हारा ही’ या ‘के वल तु हारा’। हर ऐसी िच ी के बाद म इं तज़ार करता क
अगली िचट् ठी म ये या काम बताते ह। नए वष क मंगलकामना वे भेजते, तो म समझ
जाता क मेरे मारफत इस साल अपने मंगल का िहसाब उनके पास तैयार होगा।
‘के वल तु हारा’ क दो-तीन िच य के बाद उ ह ने पाठ् य पु तक म मेरी एक
कहानी ले ली। काशक से उ ह ने कह दया होगा क इस लेखक से मेरे घिन स ब ध
ह। इसे कु छ देने क ज़ रत नह है। सं ह के हर लेख के बारे म उ ह ने यही कह दया
होगा और काशक से पये लेकर पु तक को कोस म लगवा दया। सािह य म बंधु व से
अ छा धंधा हो जाता है।
म अपने-आपको अब िध ारने लगा था। सोचता–म कतना स वहीन ।ं हर बार
परा त हो जाता ।ं इस बार मने उनका सामना करने का तय कया। मने उ ह िलखा
क आपने मुझे काशक से पये नह दलवाए और कहानी ले ली। इनका जबाव
आया–इतने वष के ेह के बाद मुझे इतना अिधकार भी नह है क म तु हारी एक
कहानी ले लूं–के वल तु हारा। मने अब इन ‘के वल मेरे’ से िनपटने क ठान ली। मने उ ह
िलखा–मेरे ित आपका ेह है इसिलए म नुकसान उठाऊं। और काशक के ित
आपका ेह नह है, इसिलए वह फायदा उठाए। ऐसा ेह मानव जाित के इितहास म
पहली बार आपके ारा आिव कृ त आ है।
िचट् ठी का उ ह ने जबाव नह दया। 15 दन बाद मने वक ल से काशक को
नो टस दलवा दया। अब मानवी संबंध का एक नया दौर शु आ। काशक को वे
िलखकर दे चुके थे क मेरी िलिखत अनुमित उनके पास है। काशक ने उ ह मेरा नो टस
बताया होगा और तब उ ह ने मुझे िलखा क म संकट म पड़ गया ं और तुम मुझे
अनुमित भेज कर उबार लो–तु हारा अपना। पर म ‘मेरे अपने’ से िनपटने क ठान चुका
था। मने एक नो टस काशक को और दलवाया क मुझे 15 दन के भीतर हज़ार
पया दो, वरना कॉपीराइट ए ट के मुतािबक दीवानी और फौजदारी–दोन मुकदम
चलाए जाएंगे।
मुझे मालूम आ क यह नो टस पाकर काशक ने आचायजी पर धोखाधड़ी का
मुकदमा दायर कर दया। मेरा मन फर क ा आ, मने मन को एक थ पड़ लगाया और
स त होकर बैठ गया। अब मुझे जो िचट् ठी िमली उसम नीचे िलखा था–‘आपका
दासानुदास’। आ ह वही था क म अनुमित िलखकर भेज दू।ं
मने अनुमित फर भी नह भेजी। तब उनक िच ी आई क म अमुक तारीख को
तुमसे िमलने ही आ रहा ।ं एक अरसे से तु ह देखा नह है। तु ह देखने क ललक
एकाएक मन म उठ आई है।
म ललक को समझ गया। मन फर फसला तो मने उसे इस बार दो चांटे लगाए।
िनयत तारीख को वे आ गए। म उ ह घर के बाहर ही िमल गया। वे एकदम
िव वल हो गए। आंख बंद कर ल । उ ह च र आने लगे। बोले–इतने दन बाद इस घर
आया ,ं तो तु हारे भाई क याद से तड़प उठा ।ं ओह, कतना नोबल था वह! मुझे
लगा, ये बेहोश होकर िगर पड़गे। मने कहा–चिलए, भीतर चिलए। उ ह ने मेरा कं धा
पकड़ िलया। बोले–ठहरो। ज़रा मुझे संभल जाने दो। मुझे संभल जाने दो भैया।
म समझ गया, ये बड़े संकट म पड़ गए, वरना मेरे भाई क याद का इतना ल बा
उपयोग न करते। म उ ह सहारा देकर भीतर ले गया। वे बैठे। पानी मांगा। कहने लगे–
भावुक ं न। एकदम िवचिलत हो जाता ं कसी ि य क मृित से।
अब उ ह ने संकट का वणन कया। मेरे मन ने फर क ापन दखाया, पर मने उसे
फर चांटा मारा। मने तय कया क आज म इ ह नफरत करने के िलए मजबूर कर दूग ं ा।
मने उनसे साफ कह दया–म ेह और संकोच म आपके और दूसर के हाथ काफ िपट
चुका। अब म यह काम बंद कर रहा ।ं ेह क दुकान मने बढ़ा दी। अब अनुमित तभी
िलखकर दूग ं ा, जब मुझे पये िमलगे। मेरा याल था अब इनके चेहरे पर ोध और
नफरत आएगी। पर म िनराश आ। वहां पहले जैसा ही ेह था। म इस आदमी के साथ
कै सा क ं ? यह अभी भी ेह के हिथयार को नह छोड़ रहा है। ज़रा देर के िलए यह
हिथयार डाल दे तो म इसे दबोच लूं और पये वसूल कर लूं। पर वह तो हिथयार पर
धार कर रहा था। मुझे इस हिथयार का सामना करना ही पड़ेगा। मने कहा– कसी तरह
म समझौता नह क ं गा। मुझे पये चािहए ही। भाई के िलए हम लोग बाद म रो लगे।
उ ह ने बटु आ िनकाला। मने चेहरा देखा। नफरत अब भी नह थी। लेश था।
बटु आ खोलकर उ ह ने सौ का नोट िनकाला। नफरत अब भी नह थी मुख पर। बस,
लेश गाढ़ा हो गया था, जैसे नोट नह ाण िनकालकर दे रहे ह । मने नोट ले िलया
और अनुमित िलख दी। सोचा, अब ेह स ब ध ख म हो गए। म ह का हो जाऊंगा। पर
जाते व उ ह ने मुझे फर दय से लगा िलया। सोचा, इनके ेिहल चेहरे को ज़रा
कोण से देख लूं, पर िह मत नह ई।
म लौटकर आचायजी के शहर आ गया। वे िवभागा य थे। बड़े बंगले म रहते थे।
मेरे आने क खबर पाते ही उ ह ने मुझे बुलवा िलया और फर गले से लगा िलया। ेह
क डोर म बार-बार काटता और वे जोड़ लेते। मेरा अंदाज़ा है, पहले वे लोभ के िलए
ेह करते थे, अब शायद थोड़े डर के कारण।
िवभाग म काम करने का उनका अपना तरीका था। वे शोध करवाते थे। शोध-छा
लेने म वे एक िस ा त का पालन करते थे। एक ग ला ापारी का लड़का लेते, एक
कपड़ा ापारी का, एक होज़री के दुकानदार का। फर कोई जगह खाली बचती तो
स ज़ी के ापारी के लड़के को ले लेते। कभी घी और कराना ापारी के लड़के को भी
चांस िमल जाता। हर साल िव िव ालय म लड़के शोर मचाते–आव यकता है–एक
कराना ापारी के लड़के क , िजसे डॉ टरे ट चािहए। शोध का िनदश कराने क मा ा
और ािलटी पर िनभर करे गा। कराने के ‘से पल’ सिहत दर वा त दो।
इस ह ले-गु ले से अिवचिलत आचायजी िव ा क साधना कराते जाते थे। वे
सुलझे िवचार के आदमी थे!
रटायर होते ए वे कु छ दाशिनक हो गए। वीतराग लगने लगे। वे ए सटशन क
कोिशश म थे। ए सटशन उ ह िमल भी गया।
चपरािसय से काम लेकर उ ह ने बंगले के सामने ब त अ छा बगीचा लगवा
िलया था। रं ग-िबरं गे खूबसूरत फू ल। ए सटशन क अविध म उनका कृ ित- ेम ब त
बढ़ गया था। म उनके यहां कभी-कभी जाता। वे बागीचे म बैठे िमलते। कहते– कृ ित के
स दय म से ई र झांकता है।
वे कसी भी कली के पास बैठ जाते। कहते– तुम इस कली का पंदन सुन रहे हो?
नह न? म सुन रहा ।ं और ज़रा इस फू ल के जीवन का उ स देखो। इस प े को देखो।
कस उ लास से लहरा रहा है।
वे फू ल को ब े क तरह सहलाते। कहते–ये भी मनु य ह। कृ ित म ाण ह। ये
फू ल, प े, पौधे–मेरी संतान ह। ‘म’ अपने ब क तरह इ ह यार करता ।ं एक फू ल
कु हलाता है तो मुझे लगता है, मेरा जीवन कु हला रहा है। एक प ी सूखकर िगरती है,
तो लगता है, मेरी एक भुजा टू ट गई। कोई कली झड़ जाती है, तो मुझे ऐसा लेश होता
है जैसे मेरे ाण का एक अंश िवस जत हो रहा हो।
वे मु ध हो जाते। आन द िवभोर हो जाते। फू ल-प के िलए अपार ममता उनके
नयन म होती। तब वे मुझे भ तर मनु य लगते और िपछला सब कु छ भुलाकर म उन
पर ा करने लगता। कै सा दयालु, भावुक आदमी है, जो फू ल और प े के िलए रोता
है।
बागीचा संवरता जाता था। साथ ही, दूसरे ए सटशन क कोिशश चलती जाती।
किव मन सुबह फू ल-प को संवारता और बाक दन ए सटशन क कोिशश म लगा
रहता।
एक दन आचायजी को अंितम बार बता दया क दूसरा ए सटशन नह िमलेगा
और दो महीने बाद यािन 31 जनवरी को उ ह चले जाना है।
सुबह का व था। म उनके घर प च ं ा। वे इस व हमेशा बागीचे म िमलते थे।
आज बरामदे म बैठे िमले। बोले–कल खबर िमल गई। ए सटशन नह िमलेगा।
उ ह ने आंख बंद कर ल ।
खोल तो म उनक आंख देखकर कांप गया। बूढ़ी आंख म से आग िनकल रही थी।
उ ह ने बागीचे को देखा। मुझे लगा, फू ल-प े झुलस गए ह गे।
सांस ख चकर बोले–आिखर ए सटशन नह िमला। यहां अब दो महीने बाद डॉ.
दीनानाथ आ जाएगा। डॉ. दीनानाथ!
उ ह ने उसी दन नौकर को म दया क बागीचे म पानी नह दया जाएगा।
पानी के िबना पौध ने, धरती से िजतना ाण-रस ख च सकते थे, ख चा। फर
सूखने लगे।
म उनके घर कभी-कभी जाता। वे बरामदे म बैठे होते और सूखते पौध को देख रहे
होते।
कहते–उस गुलाब क हालत देख रहे हो? सूख रहे ह बेटे!
–ए सटशन नह िमला।
–उस मौलिसरी क हालत भी पतली है।
–ए सटशन नह िमला।
–ये गमले तो अभी से सूख गए।
–ए सटशन नह िमला।
–यहां डॉ. दीनानाथ आएगा!
अपने बढ़ाए, पाले-पोसे पौध को आचायजी सुखा रहे थे। बरामदे म बैठकर उनका
सूखना देखते थे और बीच-बीच म उसांस लेकर कहते—ए सटशन नह िमला। अब
यहां डॉ टर दीनानाथ आएगा!
दो महीने म पूरा बागीचा सूख गया। वे फू ल नह थे, िजनका पंदन वे सुनते थे।
वह कली नह थी, िजसके जीवन का उ स वे अनुभव करते थे। वे प े झड़ गए थे
िजनका उ लास देखकर वे मु ध होते थे। बागीचे म अब सूखे नंगे पौधे खड़े थे य क
ज़मीन उ ह जकड़े थी।
30 तारीख को आचायजी ने सामान बंधवाया। दूसरे दन उ ह जाना था। दन-भर
वह त रहे। शाम ढली। इसी समय गांधीजी क ह या ई थी।
दस बर क रात। कड़ाके क ठं ड थी। आचायजी ने नौकर से वे सूखे डंठल
कटवाकर बागीचे म इकट◌्ठे करवाए। एक ढेर लग गया। उसम उ ह ने आग लगा दी
और बड़ी रात तक अलाव तापते रहे।
दूसरे दन आचायजी चले गए। इस संतोष से गए क उ ह ने डॉ. दीनानाथ क
आग ताप ली थी।
म उ ह िवदा करने गया। वे घर से िनकले। जले ए बागीचे क तरफ देखा।
आिखरी बार बोले–ए सटशन नह िमला।
और मुंह फे रकर टेशन चल दए।
िसलिसला फोन का

यह जो फोन लग गया है, उसके िलए 350 पये खरे जी ने जमा कए थे। िलहाज़ा,
उ ह अमर करना ज़ री है। इस अमर कृ ित के पहले ही वा य म उनका नाम आ गया
है। अब वह अपने कृ ित व से अपनी उ बढ़ाने क झंझट म न पड़। उनका काम मने कर
दया है। तीसव शता दी के लगभग कोई शोध छा पैदा होगा, जो िवभाग के अ य
को अपने गांव का शु घी िखलाकर और उनक प ी को ब े के गु छे समेत दशन म
झूला झुलाकर ान क साधना करे गा। वह यह पता ज़ र लगा लेगा क बीसव सदी
म यह कौन भला मानस हो गया है, जो लेखक के घर भी फोन लगवा देता था।
जो नह है, उसे खोज लेना शोधकता का काम है। काम िजस तरह होना चािहए,
उस तरह न होने देना िवशेष का काम है। िजस बीमारी से आदमी मर रहा है, उससे
उसे न मरने देकर दूसरी बीमारी से मार डालना डॉ टर का काम है। अगर जनता सही
रा ते पर जा रही है, तो उसे गलत रा ते पर ले जाना नेता का काम है। ऐसा पढ़ाना क
छा बाज़ार म सबसे अ छे नो स क खोज म समथ हो जाए, ोफे सर का काम है।
खैर, िजसका जो काम है, वह जाने। मेरे काम ह–अमर करना और ‘अॉल इं िडया’
करना। अॉल इि डया कर देने का रे ट सौ पये है। सौ पये लेकर म ऐसा लेख िलखता
,ं जो छपते ही मर जाए। मेरे दाता का नाम सारे देश म फै ल जाता है, पर अमर नह
होता। लेख क ािलटी ही ऐसी होती है क वह छपते ही मर जाता है।
एक साहब से मने सौ पये ले िलए थे। इतनी उ हो गई पर कसी का पैसा वापस
करने का गंदा िवचार मेरे मन म कभी नह आया। पर सभी का मन तो मेरे जैसा िनमल
नह होता है। उन स न के मन म पैसे स ब धी गंदा िवचार था। म ं सािह यकार और
सािह यकार का धम है–मनु य के मन को िनमल करना। म धम से िगर जाता अगर यह
बदा त करता क एक भले मानस के मन म सौ पये पड़े-पड़े सड़ा कर। मने एक लेख म
उनके नाम का उ लेख कर दया। उनके पास ब बई और द ली से दो त क िच ट् ठयां
आ ग क तु हारा नाम पढ़ िलया। इससे उनका मन मेरी तरह िनमल हो गया। सड़े
पये िनकल गए। मेरा धम िनभ गया। सािह य का ठीक ढंग से उपयोग कया जाए तो
समाज को बड़े फायदे होते ह।
छोटे शहर के अखबार म शादी, संतान और फोन के समाचार छपते ह। इधर एक
अखबार म शादी के समाचार ‘िचर जीव जोरी जुरै’ शीषक के नीचे छपते ह। िबहारी
का वह दोहा यह है–
िचर जीव जोरी जुरै य न ेह ग भीर

को घ ट ये वृषभानुजा वे हलधर के बीर


मेरे इस फोन का समाचार छपा था। ऊपर क ह िम जी के घर ‘पु -र ’ क
ाि का समाचार था और उसके ठीक नीचे मेरे इस ‘फोन-र ’ का। जब िमसेज़ िम
को पु क सव पीड़ा हो रही थी, तब म फोन क सव-पीड़ा भोग रहा था। साढ़े तीन
सौ पय का एकाएक ब ध करना िवकट सव-पीड़ा है। इसे िमसेज़ िम नह
जानत , िम जी जानते ह। ज़चक के खच के िलए पय का इं तज़ाम करने म िम जी
को िजतनी पीड़ा ई होगी, उतनी पीड़ा म दस ब े पैदा हो जाते। अगर कृ ित नर को
भी सव करने क सुिवधा दे दे, तो िम जी िमसराइन से कहगे–तू पय का इं तज़ाम
कर। ब ा म दए देता ,ं और िम जी झंझट से बरी होकर ‘मेट नटी होम’ म दािखल
हो जाएंगे।
छपा था–अमुक िम जी को पु -र क ाि ई। बधाई! मुझे यह समझ म नह
आता क पैदा होते ही कै से जान िलया क बेटाजी र ह, वह कं कड़ नह ह। ऐसा नह
हो सकता क अभी पु कह और अगर वैसा िनकले तो र कहने लग? वैसे भी िबगड़े
लड़क को ‘रतन’ कहते ही ह। अ छा ‘सुपु ’ या होता है? और ‘धमप ी’ या चीज़
है। धमप ी होती है, तो अधमप ी या नह होती कोई? या धमादा म कसी प ी को
‘धमप ी’ कहते ह? िवकट ककशाएं तक ‘धमप ी’ कहलाती ह। इधर एक ककशा है,
जो पित को पीट तक देती है, पर पित जब उसका प रचय देते ह, तब कहते ह–यह मेरी
धमप ी है। और धमप ी भी अपने को पित ता समझती है–पित को चाहे पीट लूं, पर
पराये आदमी से नज़र नह िमलाती।
धमप ी होती है, धमिपता होता है। कसी दूसरे आदमी को जो वा तिवक िपता
नह है, िपता मान िलया जाए, तो वह धमिपता कहलाता है। भाषा के बड़े छल ह। और
फर धम के मामले म म शु से ही ‘क यू ड’ रहा ।ं
मेरा एक गितशील दो त कहता है–ये सु, र , मंगल, शुभ, धम आ द भाषा के
साम ती सं कार ह। कसी भी गितशील को सुपु होने से इं कार कर देना चािहए। म
बचपन से ही इ कार कर चुका ।ं म आ द गितशील ।ं मगर िववािहत गितशील
अपनी बीवी को अधमप ी कहे तो ठीक रहेगा।
पु र कहो, चाहे सुपु कहो—कु ल वा तिवकता यह है क प रवार-िनयोजन के
तमाम चार के बावजूद िम जी के घर एक लड़का हो गया। ऐसे समाचार के काशन
पर रोक लगनी चािहए। इनसे ो साहन िमलता है। िम जी के समाचार से दुबेजी को
ो साहन िमलता है। खरबूजे को देखकर खरबूजा रं ग बदलता है। एक ब े के पैदा होने
का समाचार पढ़कर दूसरा ब ा पैदा होने को उ सुक हो जाता है। इस ज़माने म ब ा
होना शम और संकट क बात है। अगर समाचार छपना ही है, तो प रवार-िनयोजन क
भावना के अनुकूल ऐसा समाचार छपना चािहए–‘अमुक आदमी के यहां कल लड़का
आ। िध ार है। सारा रा उसपर थूक रहा है।’
यह जो ‘दो या तीन ब े–बस’ वाला पो टर है, यह गलतफहमी फै लाने लगा है।
इसम दो छोटे-छोटे ब के साथ ी बैठी है। एक ी ने दीवार पर लगे इस पो टर को
देखकर पो टर वाली से कहा–ऐ भेण जी, हमको मत बनाओ, तु हारे कु ल दो ही नह ह।
उनको भी तो जोड़ो जो पढ़ने गए ह। चतुर ी समझ गई क पो टर वाली ने दो बड़े
ब को तो पढ़ने भेज दया और ये दो छोटे हम दखाकर बु धू बना रही है। प रवार-
िनयोजन वाले इस पो टर म िसफ एक ब ा मां क गोद म रख और दूसरे को कू ल
जाता बताएं। नीचे यह िलख–बाई, हमारे दो ही ह। एक गोद म है, और दूसरा पढ़ने
गया है।
छोटे शहर क मानिसकता अलग होती है। यहां फोन िमलने पर बधाई दी जाती
है। म जो फोन क बात कर रहा ,ं तो मुझे अपने एक िम क याद आ रही है, जो मुझे
‘ वंिशयल’ (कसबाई) कहता है। द ली म कु छ साल पहले हम एक साल ठहरे थे। मने
सुबह समय जानने के िलए 174 न बर डायल कया। बड़ा सुरीला संगीतमय नारी-कं ठ
बोला–टाइम इज़ टेन आवस फाइव िमिन स। म उ िे लत हो गया। इतनी मीठी आवाज़
म आजकल कौन समय बताता है? मने कह दया–थक यू। वह मेरा दो त िखलिखलाया।
बोला–अरे वंिशयल, कसे ध यवाद दे रहे हो! वहां कोई थोड़े ही बैठी है? मुझे कतई
िव ास नह आ क यह सुरीली आवाज़ कसी य क करामात हो सकती है। हो भी
तो कोई बात नह , इतनी मीठी आवाज़ म कोई समय बताए तो कोई अपने को ध यवाद
देने से कै से रोके ?
वह चाहे कु छ कहे, वह गवाह है क म इस फोन के कारण सट् टे के अंक बताने
वाला योितषी हो सकता था। आ नह , यह मेरी दूसरे योितिषय पर मेहरबानी है।
म एक दन सड़क पर खड़ा आ एक िम को फोन का न बर बता रहा था। पास ही
खड़े एक और आदमी ने न बर नोट कर िलया। म समझा क खु फया िवभाग का होगा।
दूसरे दन वह मकान का पता लगाते ए आ गया। बोला–साहब, कल के फगर तो
ठीक आ गए। आज के और बता दीिजए। मने कहा कौन-से फगर? उसने कहा–सट् टे के ,
जो आप कल मोटर- टड पर बता रहे थे। म अभी भी पछताता ,ं क म खुद स ा य
नह खेल गया।
बरात क वापसी

बरात म जाना कई कारण से टालता ।ं मंगल काय म हम जैसे चढ़ी उ के कुं वार
का जाना अपशकु न है। महेश बाबू का कहना है, हम मंगल काय से िवधवा क तरह
ही दूर रहना चािहए। कसी का अमंगल अपने कारण य हो! उ ह पछतावा है क
तीन साल पहले िजनक शादी म वह गए थे, उनक तलाक क ि थित पैदा हो गई है।
उनक यह शोध है क महाभारत यु न होता, अगर भी म क शादी हो गई होती और
अगर कृ णमेनन क शादी हो गई होती, तो चीन हमला न करता।
सारे यु ौढ़ कुं वार के अहं क तुि के िलए होते ह। 1948 म तेलांगना म
कसान का सश िव ोह देश के व र कुं वारे िवनोबा भावे के अहं क तुि के िलए
आ था। उनका अहं भूदान के प म तु आ।
अपने पु क सफल बरात से स मायाराम के मन म उस दन नागपुर म बड़ा
मौिलक िवचार जागा था। कहने लगे–बस, अब तुम लोगा क बरात म जाने क इ छा
है। हम लोग ने कहा–अब कशोर जैसी बचकानी बरात तो होगी नह । अब तो बरात
ऐसी होगी क कसी को भगाकर लाने के कारण हथकड़ी पहने हम ह गे और पीछे
चलोगे तुम लोग, ज़मानत देने वाले। ऐसी बरात होगी। चाहो तो बड भी बजवा सकते
हो।
िववाह का दृ य बड़ा दा ण होता है। िवदा के व औरत के साथ िमलकर रोने
को जी करता है। लड़क के िबछु ड़ने के कारण नह , उसके बाप क हालत देखकर लगता
है, इस कौम क आधी ताकत लड़ कय क शादी करने म जा रही है। पाव ताकत
िछपाने म जा रही है–शराब पीकर िछपाने म, ेम करके िछपाने म, घूस लेकर िछपाने
म–बची ई पाव ताकत से देश का िनमाण हो रहा है–तो िजतना हो रहा है, ब त हो
रहा है। आिखर एक चौथाई ताकत से कतना होगा?
यह बात मने उस दन एक िव िव ालय के छा -संघ के वा षको सव म कही
थी। कहा था–तुम लोग ांितकारी त ण-त िणयां बनते हो। तुम इस देश क आधी
ताकत को बचा सकते हो। ऐसा करो, िजतनी लड़ कयां िव िव ालय म ह, उनसे
िववाह कर डालो। अपने बाप को मत बताना। वह दहेज मांगने लगेगा। इसके बाद
िजतने लड़के बच, वे एक-दूसरे क बहन से शादी कर ल। ऐसा बुिनयादी ांितकारी
काम कर डालो और फर िजस िसगड़ी को ज़मीन पर रखकर तु हारी मां रोटी बनाती
है, उसे टेिबल पर रख दो, िजससे तु हारी प ी सीधी खड़ी होकर रोटी बना सके । 20-
22 साल म िसगड़ी ऊपर नह रखी जा सक और न झाडू म चार फु ट का ड डा बांधा
जा सका। अब तक तुम लोग ने या खाक ांित क है?
छा थोड़ा च के । कु छ ‘ही-ही’ करते भी पाए गए। मगर आ कु छ नह ।
एक त ण के साथ साल मेहनत करके उसके यालात मने संवारे थे। वह शादी के
मंडप म बैठा तो ससुर के ब े क तरह मचलकर बोला–बाबूजी, हम तो वे पा लगे।
वे पा के िबना कौर नह उठाएंगे। लड़क के बाप का चेहरा फक! जी आ, जूता
उतारकर पांच इस लड़के को मा ं और फर 25 खुद अपने को। सम या य सुलझी क
लड़क के बाप ने साल-भर म वे पा देने का वादा कया, नेग के िलए बाज़ार से वे पा
का िखलौना मंगाकर थाली म रखा, फर सवा पया रखा और दामाद को भट कया।
सवा पया तो मरते व गोदान के िनिम दया जाता है न! हां, मेरे उस त ण दो त
क गितशीलता का गोदान हो रहा था।
बरात क या ा से म ब त घबराता ,ं खासकर लौटते व जब बराती बेकार
बोझ हो जाता है। अगर जी भरकर दहेज न िमले, तो वर का बाप बाराितय को दु मन
समझता है। म सावधानी बरतता ं क बरात क िवदा के पहले ही कु छ बहाना करके
कराया लेकर लौट पड़ता ।ं
एक बरात से वापसी मुझे याद है।
हम पांच िम ने तय कया क शाम 4 बजे क बस से चल। प ा से इसी क पनी
क बस सतना के िलए घ टे-भर बाद िमलती है, जो जबलपुर क ेन िमला देती है।
सुबह घर प चं जाएंग।े हमम से दो को सुबह काम पर हािज़र होना था, इसिलए
वापसी का यही रा ता अपनाना ज़ री था। लोग ने सलाह दी क समझदार आदमी
इस शाम वाली बस से सफर नह करते। या रा ते म डाकू िमलते ह? नह , बस डा कन
है।
बस को देखा तो ा उभर पड़ी। खूब वयोवृ थी। स दय के अनुभव के िनशान
िलए ए थी। लोग इसिलए इससे सफर नह करना चाहते थे क वृ ाव था म इसे क
होगा। यह बस पूजा के यो य थी। उस पर सवार कै से आ जा सकता है!
बस-क पनी के एक िह सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा–यह
बस चलती भी है? वह बोले–चलती य नह है जी! अभी चलेगी। हमने कहा–वही तो
हम देखना चाहते ह। अपने-आप चलती है यह?–हां जी और कै से चलेगी?
गज़ब हो गया। ऐसी बस, अपने-आप चलती है!
हम आगा-पीछा करने लगे। पर डॉ टर िम ने कहा–डरो मत, चलो! बस अनुभवी
है। नई-नवेली बस से यादा िव सनीय है। हम बेट क तरह यार से गोद म लेकर
चलेगी।
हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे, जैसे अंितम िवदा दे रहे ह।
उनक आंख कह रही थ –आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है सो जाएगा–राजा,
रं क, फक र। आदमी को कू च करने के िलए एक िनिम चािहए।
इं जन सचमुच टाट हो गया। ऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इं जन है और हम इं जन
के भीतर बैठे ह। कांच ब त कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हम बचना था। हम फौरन
िखड़क से दूर सरक गए। इं जन चल रहा था। हम लग रहा था क हमारी सीट के नीचे
इं जन है।
बस सचमुच चल पड़ी और हम लगा क यह गांधीजी के असहयोग और सिवनय
अव ा आंदोलन के व अव य जवान रही होगी। उसे े नंग िमल चुक थी। हर
िह सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सिवनय अव ा आंदोलन के दौर से
गुज़र रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता, सीट बॉडी को
छोड़कर आगे िनकल गई है। कभी लगता क सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही
है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव िमट गए। यह समझ म नह आता था क
सीट पर हम बैठै ह या सीट हम पर बैठी है।
एकाएक बस क गई। मालूम आ क पे ोल क टंक म छेद हो गया है। ाइवर ने
बा टी म पे ोल िनकाल कर उसे बगल म रखा और नली म डालकर इं जन म भेजने
लगा। अब म उ मीद कर रहा था क थोड़ी देर बाद बस-क पनी के िह सेदार इं जन को
िनकालकर गोद म रख लगे और उसे नली से पे ोल िपलाएंगे, जैसे मां ब े के मुंह म दूध
क शीशी लगाती है।
बस क र तार अब प ह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके कसी िह से पर
भरोसा नह था। ेक फे ल हो सकता है, टीय रं ग टू ट सकता है। कृ ित के दृ य ब त
लुभावने थे। दोन तरफ हरे -भरे पेड़ थे, िजन पर प ी बैठे थे। म हर पेड़ को अपना
दु मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता क इससे बस टकराएगी। वह
िनकल जाता तो दूसरे पेड़ का इं तज़ार करता। झील दखती तो सोचता क इसम बस
गोता लगा जाएगी।
एकाएक फर बस क । ाइवर ने तरह-तरह क तरक ब क , पर वह चली नह ।
सिवनय अव ा आंदोलन शु हो गया था। क पनी के िह सेदार कह रहे थे–बस तो
फ ट लास है जी! ये तो इ फाक क बात है।
ीण चांदनी म वृ क छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता,
जैसे कोई वृ ा थककर बैठ गई हो। हम लािन हो रही थी क इस बेचारी पर लदकर
हम चले जा रहे ह। अगर इसका ाणांत हो गया तो इस िबयावान म हम इसक
अ येि करनी पड़ेगी।
िह सेदार साहब ने इं जन खोला और कु छ सुधारा। बस आगे चली। उसक चाल
कम हो गई थी।
धीरे -धीरे वृ ा क आंख क योित जाने लगी। चांदनी म रा ता टटोलकर वह
रग रही थी। आगे या पीछे से कोई गाड़ी आती दखती तो वह एकदम कनारे खड़ी हो
जाती और कहती–िनकल जाओ बेटी! अपनी तो वह उ ही नह रही।
एक पुिलया के ऊपर प च
ं े ही थे क एक टायर फ स करके बैठ गया। बस ब त
ज़ोर से िहलकर थम गई। अगर पीड म होती तो उछलकर नाले म िगर जाती। मने उस
क पनी के िह सेदार क तरफ पहली बार ा भाव से देखा। वह टायर क हालत
जानते ह, फर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे ह। उ सग क ऐसी
भावना दुलभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बिलदान-भावना का सही उपयोग
नह हो रहा है। इसे तो कसी ांितकारी आंदोलन का नेता होना चािहए। अगर बस
नाले म िगर पड़ती और हम सब मर जाते, तो देवता बांह पसारे उसका इं तज़ार करते।
कहते–वह महान आदमी आ रहा है िजसने एक टायर के िलए ाण दे दए। मर गया,
पर टायर नह बदला।
दूसरा िघसा टायर लगाकर बस फर चली। अब हमने व पर प ा प च ं ने क
उ मीद छोड़ दी थी। प ा कभी भी प च ं ने क उ मीद छोड़ दी थी–प ा, या, कह
भी, कभी भी प च ं ने क उ मीद छोड़ दी थी। लगता था िज़ दगी इसी बस म गुज़रनी है
और सीधे उस लोक क ओर याण कर जाना है। इस पृ वी पर उसक कोई मंिज़ल नह
है। हमारी बेताबी, तनाव ख म हो गए। हम बड़े इ मीनान से घर क तरह बैठ गए।
िच ता जाती रही। हंसी-मज़ाक चालू हो गया।
ठं ड बढ़ रही थी। िखड़ कयां खुली थ ही। डॉ टर ने कहा– गलती हो गई। ‘कु छ’
पीने को ले आते तो ठीक रहता।
ठं ड बढ़ रही थी। एक गांव पर बस क तो डॉ टर फौरन उतरा। ाइवर से
बोला– ज़रा रोकना! ना रयल ले आऊं। आगे म ढ़या पर फोड़ना है।
डॉ टर झ पिड़य के पीछे गया और देशी शराब क बोतल ले आया। छागल म
भरकर हम लोग ने पीना शु कया।
इसके बाद कसी क का अनुभव नह आ। प ा से पहले ही सब मुसा फर उतर
चुके थे। बस-क पनी के िह सेदार शहर के बाहर ही अपने घर पर उतर गए। बस शहर
म अपने ठकाने पर क । क पनी के दो मािलक रज़ाइय म दुबके बैठे थे। रात का एक
बजा था। हम पांच उतरे । म सड़क के कनारे खड़ा रहा। डॉ टर भी मेरे पास खड़ा
होकर बोतल से अि तम घूंट लेने लगा। बाक तीन िम बस-मािलक पर झपटे। उनक
गम डांट हम सुन रहे थे। पर वे िनराश लौटे। बस-मािलक ने कह दया था–सतना क
बस तो चार-पांच घ टे पहले जा चुक । अब लौटती होगी। अब तो बस सवेरे ही
िमलेगी।
आसपास देखा, सारी दुकान-होटल ब द। ठ ड कड़ाके क । भूख भी खूब लग रही
थी। तभी डॉ टर बस-मािलक के पास गया। पांचेक िमनट म उनके साथ लौटा तो
बदला आ था। बड़े अदब से मुझसे कहने लगा–सर, नाराज़ मत होइए। सरदारजी कु छ
इं तज़ाम करगे। सर, ...सर! उ ह अफसोस है क आपको तकलीफ ई।
अभी डॉ टर बेतक लुफ से बात कर रहा था और मुझे ‘सर’ कह रहा है। या बात
है? कह ठरा यादा असर तो नह कर गया! मने कहा–यह तुमने या ‘सर-सर’ लगा
रखी है?
उसने फर वैसे ही झुककर कहा–सर, नाराज़ मत होइए। सर, कु छ इं तज़ाम। आ
जाता है।
मुझे तब भी कु छ समझ म नह आया। डॉ टर भी परे शान था क म समझ य
नह पा रहा ।ं वह मुझे अलग ले गया और समझाया–मने इन लोग से कहा है क तुम
संसद सद य हो। इधर जांच करने आए हो। म एक लक ,ं िजसे साहब ने एम. पी. को
सतना प च ं ाने के िलए भेजा है। मने कहा क सरदारजी, मुझ गरीब क तो गदन कटेगी
ही, आपक भी लेवा-देई हो जायेगी। वह पेशल बस से सतना भेजने का इं तज़ाम कर
देगा। ज़रा थोड़ा एम. पी. पन तो दखाओ। उ लू क तरह य पेश आ रहे हो?
म समझ गया क मेरी काली शेरवानी काम आ गई। यह काली शेरवानी और ये
बड़े बाल मुझे कोई प देते ह। नेता भी दखता ,ं शायर भी और अगर सूखे-िबखरे
बाल ह तो जु मन शहनाई वाले का भी धोखा हो जाता है।
मने िम याचार का आ मबल बटोरा और लौटा, तो ठीक संसद-सद य क तरह।
आते ही सरदारजी से रोब से पूछा–सरदारजी, आर. टी. ओ. से कब तक इस बस को
चलाने का सौदा हो गया है?
सरदारजी घबरा उठे । डॉ टर खुश क मने फ ट- लास रोल कया है।
रोबदार संसद-सद य का एक वा य काफ है, यह सोचकर म दूर खड़े होकर
िसगरे ट पीने लगा। सरदारजी ने वह मेरे िलए कु स बुलवा दी। वह डरा आ था और
डरा आ म भी था। मेरा डर यह था क कह पूछताछ होने लगी क म कौन संसद-
सद य ं तो या क ग ं ा! याद आया क अपने िम महेशद िम का नाम धारण कर
लूंगा। गांधीवादी होने के नाते वह थोड़ा झूठ बोलकर मुझे बचा ही लगे।
अब मेरा आ मिव ास ब त बढ़ गया। झूठ अगर जम जाए तो स य से यादा
अभय देता है।
म वह बैठे-बैठे डॉ टर से चीखकर बोला–बाबू, यहां या कयामत तक बैठे रहना
पड़ेगा? इधर कह फोन हो तो ज़रा कले टर को इ ला कर दो। वह गाड़ी का इं तज़ाम
कर दगे।
डॉ टर वह से बोला–सर, बस एक िमनट! ज ट ऐ िमनट, सर!
थोड़ी देर बाद सरदारजी ने एक नई बस िनकलवाई। मुझे सादर बैठाया। बस चल
पड़ी।
मुझे एम. पी. पन काफ भारी पड़ रहा था। म दो त के बीच अजनबी क तरह
अकड़ा बैठा था। डॉ टर बार बार ‘सर’ कहता रहा और बस का मािलक ‘ जूर’।
सतना म जब रे लवे के मुसा फरखाने म प च ं े तब डॉ टर ने कहा–अब तीन घ टे
लगातार तुम मुझे ‘सर’ कहो। मेरी ब त तौहीन हो चुक है।
इं पे टर मातादीन चांद पर

वै ािनक कहते ह, चांद पर जीवन नह है।


सीिनयर पुिलस इं पे टर मातादीन (िडपाटमट म एम. डी. साहब) कहते ह–
वै ािनक झूठ बोलते ह, वहां हमारे जैसे ही मनु य क आबादी है।
िव ान ने हमेशा इं पे टर मातादीन से मात खाई है। फं गर ंट-िवशेष कहता
रहता है–छु रे पर पाए गए िनशान मुलिज़म क अंगुिलय के नह ह। पर मातादीन उसे
सज़ा दला ही देते ह।
मातादीन कहते ह, ये वै ािनक के स का पूरा इनवेि टगेशन नह करते। उ ह ने
चांद का उजला िह सा देखा और कह दया, वहाँ जीवन नह है। म चांद का अंधेरा
िह सा देखकर आया ।ं वहां मनु य जाित है।
यह बात सही है य क अंधेरे-प के मातादीन मािहर माने जाते ह।
पूछा जाएगा, इं पे टर मातादीन चांद पर य गए थे? टू र ट क हैिसयत से या
कसी फरार अपराधी को पकड़ने? नह , वे भारत क तरफ से सां कृ ितक आदान- दान
के अंतगत गए थे। चांद सरकार ने भारत सरकार को िलखा था–य हमारी स यता
ब त आगे बढ़ी है पर हमारी पुिलस म पया स मता नह है। वह अपराधी का पता
लगाने और उसे सज़ा दलाने म अ सर सफल नह होती। सुना है, आपके यहां रामराज
है। मेहरबानी करके कसी पुिलस अफसर को भेज जो हमारी पुिलस को िशि त कर दे।
गृहमं ी ने सिचव से कहा– कसी आई. जी. को भेज दो।
सिचव ने कहा–नह सर, आई. जी. नह भेजा जा सकता। ोटोकॉल का सवाल है।
चांद हमारा एक ु उप ह है। आई. जी. के रक के आदमी नह भेजगे। कसी सीिनयर
इं सपे टर को भेज देता ।ं
तय कया गया क हज़ार मामल के इ वेि टगे टंग अॉ फसर सीिनयर इं पे टर
मातादीन को भेज दया जाए।
चांद क सरकार को िलख दया गया क आप मातादीन को लेने के िलए पृ वी-
यान भेज दीिजए।
पुिलस मं ी ने मातादीन को बुलाकर कहा–तुम भारतीय पुिलस क उ वल
पर परा के दूत क हैिसयत से जा रहे हो। ऐसा काम करना क सारे अंत र म
िडपाटमट क ऐसी जय-जयकार हो क पी. एम. ( धानमं ी) को भी सुनाई पड़ जाए।
मातादीन क या ा का दन आ गया। एक यान अंत र अ े पर उतरा। मातादीन
सबसे िवदा लेकर यान क तरफ बढ़े। वे धीरे -धीरे कहते जा रहे थे, ‘ िबिस नगर क जै
सब काजा, दय रािख कौसलपुर राजा।’
यान के पास प च
ं कर मातादीन ने मुंशी अ दुल गफू र को पुकारा–‘मुंशी’!
गफू र ने एड़ी िमलाकर से यूट फटकारा। बोला–जी, पे टसा!
एफ. आई. आर. रख दी है?
जी पे टसा।
और रोज़नामचे का नमूना?
जी पे टसा!
वे यान म बैठने लगे। हवलदार बलभद्दर को बुलाकर कहा–हमारे घर म जचक
के बखत अपने खटला (प ी) को मदद के िलए भेज देना।
बलभ र ने कहा–जी पे टसा!
गफू र ने कहा–आप बे फ रह पे टसा! म अपने मकान (प ी) को भी भेज दूग
ं ा
िखदमत के िलए।
मातादीन ने यान के चालक से पूछा– ाइ वंग लाइसस है?
जी है साहब!
और गाड़ी म ब ी ठीक है?
जी ठीक है।
मातादीन ने कहा, सब ठीक-ठाक होना चािहए, वरना हरामज़ादे का बीच
अंत र म चालान कर दूग
ं ा।
चं मा से आए चालक ने कहा–हमारे यहां आदमी से इस तरह नह बोलते।
मातादीन ने कहा–जानता ं बे! तु हारी पुिलस कमज़ोर है। अभी म उसे ठीक
करता ।ं
मातादीन यान म कदम रख ही रहे थे क हवलदार रामसजीवन भागता आ
आया। बोला–पे टसा, एस. पी. साहब के घर म से कहे ह क चांद से एड़ी चमकाने का
प थर लेते आना।
मातादीन खुश ए। बोले– कह देना बाई साब से, ज़ र लेता जाऊंगा।
वे यान म बैठे और यान उड़ चला। पृ वी के वायुमंडल से यान बाहर िनकला ही
था क मातादीन ने चालक से कहा–अबे, हॉन य नह बजाता?
चालक ने जवाब दया–आसपास लाख मील म कु छ नह है।
मातादीन ने डांटा–मगर ल इज़ ल। हॉन बजाता चल।
चालक अंत र म हान बजाता आ यान को चांद पर उतार लाया। अंत र अ े
पर पुिलस अिधकारी मातादीन के वागत के िलए खड़े थे। मातादीन रोब से उतरे और
उन अफसर के कं ध पर नज़र डाली। वहां कसी के टार नह थे। फ ते भी कसी के
नह लगे थे। िलहाज़ा मातादीन ने एड़ी िमलाना और हाथ उठाना ज़ री नह समझा।
फर उ ह ने सोचा, म यहाँ इं पे टर क हैिसयत से नह सलाहकार क हैिसयत से
आया ।ं
मातादीन को वे लोग लाइन म ले गए और एक अ छे बंगले म उ ह टका दया।
एक दन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शु कर दया। पहले उ ह ने
पुिलस लाइन का मुलाहज़ा कया।
शाम को उ ह ने आई. जी. से कहा–आपके यहां पुिलस लाइन म हनुमानजी का
मं दर नह है। हमारे रामराज म पुिलस लाइन म हनुमानजी ह।
आई. जी. ने कहा–हनुमान कौन थे–हम नह जानते।
मातादीन ने कहा–हनुमान का दशन हर क परायण पुिलस वाले के िलए
ज़ री है। हनुमान सु ीव के यहां पेशल ांच म थे। उ ह ने सीता माता का पता
लगाया था। ‘ए ड शन’ का मामला था–दफा 362। हनुमानजी ने रावण को सज़ा वह
दे दी। उसक ॉपट म आग लगा दी। पुिलस को यह अिधकार होना चािहए क
अपराधी को पकड़ा और वह सज़ा दे दी। अदालत म जाने का झंझट नह । मगर यह
िस टम अभी हमारे रामराज म भी चालू नह आ। हनुमानजी के काम से भगवान
रामचं ब त खुश ए। वे उ ह अयो या ले आए और ‘टौन ड् यूटी’ म तैनात कर दया।
वही हनुमान हमारे आरा य देव ह। म उनक फोटो लेता आया ।ं उस पर से मू तयां
बनवाइए और हर पुिलस लाइन म थािपत करवाइए।
थोड़े ही दन म चांद क हर पुिलस लाइन म हनुमानजी थािपत हो गए।
मातादीन उन कारण का अ ययन कर रहे थे िजनसे पुिलस लापरवाह और
अलाल हो गई है। वह अपराध पर यान नह देती। कोई कारण नह िमल रहा था।
एकाएक उनक बुि म एक चमक आई। उ ह ने मुंशी से कहा–ज़रा तनखा का रिज टर
बताओ।
तनखा का रिज टर देखा, तो सब समझ गए। कारण पकड़ म आ गया।
शाम को उ ह ने पुिलस मं ी से कहा–म समझ गया क आपक पुिलस मु तैद य
नह है। आप इतनी बड़ी तन वाह देते ह, इसीिलए। िसपाही को पांच सौ, हवलदार को
सात सौ, थानेदार को हज़ार–ये या मज़ाक है। आिखर पुिलस अपराधी को य पकड़े?
हमारे यहां तो िसपाही को सौ अौर इं पे टर को दो सौ देते ह तो चौबीस घंटे जुम क
तलाश करते ह। आप तन वाह फौरन घटाइए।
पुिलस मं ी ने कहा–मगर यह तो अ याय होगा। अ छा वेतन नह िमलेगा तो वे
काम ही य करगे?
मातादीन ने कहा–इसम कोई अ याय नह है। आप देखगे क पहले घटी ई तनखा
िमलते ही आपक पुिलस क मनोवृि म ांितकारी प रवतन हो जाएगा।
पुिलस मं ी ने तन वाह घटा द और 2-3 महीन म सचमुच ब त फक आ गया।
पुिलस एकदम मु तैद हो गई। सोते से एकदम जाग गई। चार तरफ नज़र रखने लगी।
अपरािधय क दुिनया म घबड़ाहट छा गई। पुिलस मं ी ने तमाम थान के रकाड
बुलवाकर देख।े पहले से कई गुने अिधक के स रिज टर ए थे। उ ह न मातादीन से
कहा–म आपक सूझ क तारीफ करता ।ं आपने ांित कर दी। पर यह आ कस
तरह?
मातादीन ने समझाया–बात ब त मामूली है। कम तनखा दोगे, तो मुलािज़म क
गुज़र नह होगी। सौ पय म िसपाही ब को नह पाल सकता। दो सौ म इं पे टर
ठाट-बाट नह मेनटेन कर सकता। उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। और ऊपरी
आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़ेगा। गरज़ क वह अपराध पर नज़र
रखेगा। सचेत, क परायण और मु तैद हो जाएगा। हमारे रामराज के व छ और
स म शासन का यही रह य है।
चं लोक म इस चम कार क खबर फै ल गई। लोग मातादीन को देखने आने लगे
क वह आदमी कै सा है जो तनखा कम करके स मता ला देता है। पुिलस के लोग भी
खुश थे। वे कहते–गु , आप इधर न पधारते तो हम सभी कोरी तनखा से ही गुज़र करते
रहते। सरकार भी खुश थी क मुनाफे का बजट बनने वाला था।
आधी सम या हल हो गई। पुिलस अपराधी पकड़ने लगी थी। अब मामले क
जांच-िविध म सुधार करना रह गया था–अपराधी को पकड़ने के बाद उसे सज़ा
दलाना। मातादीन इं तज़ार कर रहे थे क कोई बड़ा के स हो जाए तो नमूने के तौर पर
उसका इ वेि टगेशन कर बताएं।
एक दन आपसी मारपीट म एक आदमी मारा गया। मातादीन कोतवाली म
आकर बैठ गए और बोले–नमूने के िलए इस के स का ‘इ वेि टगेशन’ म करता ।ं आप
लोग सीिखए। यह क ल का के स है। क ल के के स म ‘एिवडस’ ब त प ा होना चािहए।
कोतवाल ने कहा–पहले काितल का पता लगाया जाएगा, तभी तो एिवडस इक ा
कया जाएगा।
मातादीन ने कहा–नह , उलटे मत चलो। पहले एिवडस देखो। या कह खून
िमला? कसी के कपड़ पर या और कह ?
एक इं पे टर ने कहा–हाँ, मारनेवाले तो भाग गए थे। मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा
था। एक भला आदमी वहाँ रहता है। उसने उठाकर अ पताल भेजा। उस भले आदमी के
कपड़ पर खून के दाग लग गए ह।
मातादीन ने कहा– उसे फौरन िगर तार करो।
कोतवाल ने कहा–मगर उसने तो मरते ए आदमी क मदद क थी।
मातादीन ने कहा–वह सब ठीक है। पर तुम खून के दाग ढू ंढ़ने और कहां जाओगे?
जो एिवडस िमल रहा है, उसे तो क ज़े म करो।
वह भला आदमी पकड़कर बुलवा िलया गया। उसने कहा–मने तो मरते आदमी को
अ पताल िभजवाया था। मेरा या कसूर है?
चांद क पुिलस उसक बात से एकदम भािवत ई। मातादीन भािवत नह
ए। सारा पुिलस महकमा उ सुक था क अब मातादीन या तक िनकालते ह।
मातादीन ने उससे कहा–पर तुम झगड़े क जगह गए य ?
उसने जवाब दया–म झगड़े क जगह नह गया। मेरा वहां मकान है। झगड़ा मेरे
मकान के सामने आ।
अब फर मातादीन क ितभा क परी ा थी। सारा महकमा उ सुक देख रहा था।
मातादीन ने कहा–मकान है तो ठीक है। पर म पूछता ,ं झगड़े क जगह जाना ही
य?
इस तक का कोई जवाब नह था। वह बार-बार कहता–म झगड़े क जगह नह
गया, मेरा वह मकान है।
मातादीन उसे जवाब देते–सो ठीक है, पर झगड़े क जगह जाना ही य ? इस तक
णाली से पुिलस के लोग ब त भािवत ए।
अब मातादीनजी ने इ वेि टगेशन का िस ांत समझाया–देखो, आदमी मारा गया
है, तो यह प ा ह क कसी ने उसे ज़ र मारा। कोई काितल है। कसी को सजा होनी
है। सवाल है– कसको सजा होनी है? पुिलस के िलए यह सवाल इतना मह व नह
रखता िजतना यह सवाल, क जुम कस पर सािबत हो सकता है या कस पर सािबत
होना चािहए। क ल आ है। तो कसी मनु य को सज़ा होगी ही। मारने वाले को होती
है, या बेकसूर को–यह अपने सोचने क बात नह है। मनु य-मनु य सब बराबर ह। सब
म उसी परमा मा का अंश है। हम भेदभाव नह करते। यह पुिलस का मानवतावाद है।
दूसरा सवाल है, कस पर जुम सािबत होना चािहए। इसका िनणय इन बात से
होगा–(1) या वह आदमी पुिलस के रा ते म आता है? (2) या उसको सज़ा दलाने से
ऊपर के लोग खुश ह गे?
मातादीन को बताया गया क वह आदमी भला है, पर पुिलस अ याय करे तो
िवरोध करता है। जहां तक ऊपर के लोग का सवाल है–वह वतमान सरकार क
िवरोधी राजनीित वाला है।
मातादीन ने टेिबल ठ ककर कहा–फ ट लास के स! प ा एिवडस और ऊपर का
सपोट।
एक इं पे टर ने कहा–पर हमारे गले यह बात नह उतरती क एक िनरपराध-भले
आदमी को सज़ा दलाई जाए।
मातादीन ने समझाया–देखो, म समझा चुका ं क सब म उसी ई र का अंश है।
सज़ा इसे हो या काितल को, फांसी पर तो ई र ही चढ़ेगा न! फर तु ह कपड़ पर खून
िमल रहा है। इसे छोड़कर तुम कहां खून ढू ंढ़ते फरोगे? तुम तो भरो एफ. आई. आर.।
मातादीन ने एफ. आई. आर. भरवा दी। ‘बखत ज़ रत के िलए’ जगह खाली
छु ड़वा दी।
दूसरे दन पुिलस कोतवाल ने कहा–गु देव, हमारी तो बड़ी आफत है। तमाम भले
आदमी आते ह और कहते ह, उस बेचारे बेकसूर को य फं सा रहे हो? ऐसा तो चं लोक
म कभी नह आ! बताइए, हम या जवाब द? हम तो ब त श मदा ह।
मातादीन ने कोतवाल से कहा–घबड़ाओ मत। शु -शु म इस काम म आदमी को
शम आती है। आगे तु ह बेकसूर को छोड़ने म शम आएगी। हर चीज़ का जवाब है। अब
आपके पास जो आए उससे कह दो, हम जानते ह वह िनद ष है, पर हम या कर? यह
सब ऊपर से हो रहा है।
कोतवाल ने कहा–तब वे एस. पी. के पास जाएंगे।
मातादीन बोले–एस. पी. भी कह द क ऊपर से हो रहा है।
तब वे आई.जी. के पास िशकायत करगे।
आई. जी. भी कह क सब ऊपर से हो रहा है।
तब वे लोग पुिलस मं ी के पास प च
ँ गे।
पुिलस मं ी भी कहगे–भैया, म या क ँ । यह ऊपर से हो रहा है। तो वे धानमं ी
के पास जाएंगे।
धानमं ी भी कह क म जानता ,ँ वह िनद ष है, पर यह ऊपर से हो रहा है।
कोतवाल ने कहा–तब वे...
मातादीन ने कहा–तब या? तब वे कसके पास जाएँगे? भगवान के पास न? मगर
भगवान से पूछकर कौन लौट सका है?
कोतवाल चुप रह गया। वह इस महान ितभा से चम कृ त था।
मातादीन ने कहा–एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश म प ीस साल से
सरकार को बचा रहा है। तुम इसे सीख लो।
के स क तैयारी होने लगी। मातादीन ने कहा–अब 4-6 च मदीद गवाह लाओ।
कोतवाल–च मदीद गवाह कै से िमलगे? जब कसी ने उसे मारते देखा ही नह , तो
च मदीद गवाह कोई कै से होगा?
मातादीन ने िसर ठ क िलया, कन बेवकू फ के बीच फं सा दया गवनमट ने। इ ह
तो ए.बी.सी.डी. भी नह आती।
झ लाकर कहा–च मदीद गवाह कसे कहते ह, जानते हो? च मदीद गवाह वह
नह है जो देख–े बि क वह है जो कहे क मने देखा।
कोतवाल ने कहा–ऐसा कोई य कहेगा?
मातादीन ने कहा–कहेगा। समझ म नह आता, कै से िडपाटमट चलाते हो! अरे ,
च मदीद गवाह क िल ट पुिलस के पास पहले से रहती है। जहां ज़ रत ई, उ ह
च मदीद बना दया। हमारे यहां ऐसे आदमी ह, जो साल म 3-4 सौ वारदात के
च मदीद गवाह होते ह। हमारी अदालत भी मान लेती ह क इस आदमी म कोई दैवी
शि है िजससे जान लेता है क अमुक जगह वारदात होने वाली है और वहां पहले से
प च
ं जाता है। म तु ह च मदीद गवाह बनाकर देता ।ं 8-10 उठाईगीर को बुलाओ
जो चोरी, मारपीट, गुंडागद करते ह । जुआ िखलाते ह या शराब उतारते ह ।
दूसरे दन शहर के 8-10 नवर कोतवाली म हािज़र थे। उ ह देखकर मातादीन
ग द हो गए। ब त दन हो गए थे ऐसे लोग को देख।े बड़ा सूना-सूना लग रहा था।
मातादीन का ेम उमड़ पड़ा। उनसे कहा–तुम लोग ने उस आदमी को लाठी से
मारते देखा था न?
वे बोले–नह देखा साब! हम वहां थे ही नह ।
मातादीन जानते थे, यह पहला मौका है। फर उ ह ने कहा–वहां नह थे, यह मने
माना। पर लाठी मारते देखा तो था?
उन लोग को यह लगा क यह पागल आदमी है। तभी ऐसी ऊटपटांग बात कहता
है। वे हँसने लगे।
मातादीन ने कहा–हँसो मत, जवाब दो।
वे बोले–जब थे ही नह , तो कै से देखा?
मातादीन ने गुराकर देखा। कहा–कै से देखा, सो बताता ।ं तुम लोग जो काम करते
हो–इधर दज है। हर एक को कम-से-कम दस साल जेल म डाला जा सकता है। तुम ये
काम आगे भी करना चाहते हो या जेल जाना चाहते हो?
वे घबड़ाकर बोले–साब, हम जेल नह जाना चाहते।
मातादीन ने कहा–ठीक। तो तुमने उस आदमी को लाठी मारते देखा। देखा न?
वे बोले–देखा साब। वह आदमी घर से िनकला और जो लाठी मारना शु कया,
तो वह बेचारा बेहोश होकर सड़क पर िगर पड़ा।
मातादीन ने कहा–ठीक है। आगे भी ऐसी वारदात देखोगे?
वे बोले–साब, जो आप कहगे, सो देखगे।
कोतवाल इस चम कार से थोड़ी देर तो बेहोश हो गया। होश आया तो मातादीन
के चरण पर िगर पड़ा।
मातादीन ने कहा–हटो। काम करने दो।
कोतवाल पांव से िलपट गया। कहने लगा–म जीवन-भर इन ी चरण म पड़ा
रहना चाहता ।ं
मातादीन ने आगे क सारी काय- णाली तय कर दी।एफ.आई.आर. बदलना, बीच
म प े डालना, रोज़नामचा बदलना, गवाह को तोड़ना–सब िसखा दया।
उस आदमी को 20 साल क सज़ा हो गई।
चांद क पुिलस िशि त हो चुक थी। धड़ाधड़ के स बनने लगे और सज़ा होने लगी।
चांद क सरकार ब त खुश थी। पुिलस क ऐसी मु तैदी भारत सरकार के सहयोग का
नतीजा थी। चांद क संसद ने एक ध यवाद का ताव पास कया।
एक दन मातादीन जी का सावजिनक अिभनंदन कया गया। वे फू ल से लदे खुली
जीप पर बैठे थे। आस-पास जय-जयकार करते हज़ार लोग। वे हाथ जोड़कर अपने
गृहमं ी क टाइल म जवाब दे रहे थे।
िज़ दगी म पहली बार ऐसा कर रहे थे, इसिलए थोड़ा अटपटा लग रहा था। 26
साल पहले पुिलस म भरती होते व कसने सोचा था क एक दन दूसरे लोक म
उनका ऐसा अिभन दन होगा। वे पछताए–अ छा होता क इस मौके के िलए कु रता,
टोपी और धोती ले आते।
भारत के पुिलस मं ी टेलीिवज़न पर बैठे यह दृ य देख रहे थे और सोच रहे थे–
मेरी स ावना-या ा के िलए वातावरण बन गया।
कु छ महीने िनकल गए।
एक दन चांद क संसद का िवशेष अिधवेशन बुलाया गया। ब त तूफान खड़ा
आ। गु अिधवेशन था, इसिलए रपोट कािशत नह ई, पर संसद क दीवार से
टकराकर कु छ श द बाहर आए।
सद य गु से से िच ला रहे थे–
कोई बीमार बाप का इलाज नह करता।
डू बते ब को कोई नह बचाता।
जलते मकान क आग कोई नह बुझाता।
आदमी जानवर से बदतर हो गया। सरकार फौरन इ तीफा दे।
दूसरे दन चांद के धानमं ी ने मातादीन को बुलाया। मातादीन ने देखा–वे
एकदम बूढ़े हो गए थे। लगा, ये कई रात सोए नह ह।
आंसे होकर धानमं ी ने कहा–मातादीन, हम आपके और भारत सरकार के
ब त आभारी ह। अब आप कल देश वापस लौट जाइए।
मातादीन ने कहा–म तो ‘टम’ ख म करके ही जाऊंगा।
धानमं ी ने कहा–आप बाक ‘टम’ का वेतन ले जाइए–डबल ले जाइए, ितबल ले
जाइए।
मातादीन ने कहा–हमारा िस ांत है : हम पैसा नह काम यारा है।
आिखर चांद के धानमं ी ने भारत के धानमं ी को एक गु प िलखा।
चौथे दन मातादीन को वापस लौटने के िलए अपने आई. जी. का अॉडर िमल
गया।
उ ह ने एस. पी. साहब के घर के िलए एड़ी चमकाने का प थर यान म रखा और
चांद से िवदा हो गए।
उ ह जाते देख पुिलस वाले रो पड़े।
ब त अरसे तक यह रह य बना रहा क आिखर चांद म ऐसा या हो गया क
मातादीन को इस तरह एकदम लौटना पड़ा! चांद के धानमं ी ने भारत के धानमं ी
को या िलखा था?
एक दन वह प खुल ही गया। उसम िलखा था–
इं पे टर मातादीन क सेवाएं हम दान करने के िलए अनेक ध यवाद। पर अब
आप उ ह फौरन बुला ल। हम भारत को िम देश समझते थे, पर आपने हमारे साथ
श ुवत वहार कया है। हम भोले लोग से आपने िव ासघात कया है।
आपके मातादीन ने हमारी पुिलस को जैसा कर दया है, उसके नतीजे ये ए ह:
कोई आदमी कसी मरते ए आदमी के पास नह जाता, इस डर से क वह क ल के
मामले म फं सा दया जाएगा। बेटा बीमार बाप क सेवा नह करता। वह डरता है, बाप
मर गया तो उस पर कह ह या का आरोप नह लगा दया जाए। घर जलते रहते ह और
कोई बुझाने नह जाता–डरता है क कह उसपर आग लगाने का जुम कायम न कर
दया जाए। ब े नदी म डू बते रहते ह और कोई उ ह नह बचाता, इस डर से क उस
पर ब को डु बाने का आरोप न लग जाए। सारे मानवीय संबंध समा हो रहे ह।
मातादीनजी ने हमारी आधी-सी सं कृ ित न कर दी है। अगर वे यहां रहे तो पूरी
सं कृ ित न कर दगे। उ ह फौरन रामराज म बुला िलया जाए।
असुिवधाभोगी

सािह यजीवी क आमदनी जब 1500 . महीना ई तो उसने पहली बार एक लेख


म िलखा–इस देश के लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह। वे अपने समाज क सम या से
कटे रहते ह।
सािह यजीवी जब परी ाजीवी, पेपरजीवी और कमेटीजीवी भी हो गया और
आमदनी 2500 . पर प च ं गई, तब वह साल म चार बार कहने लगा–इस देश के
लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह।
जब वह पाठ् य-पु तकजीवी, पुर कारजीवी और स पादकजीवी भी हो गया और
आमदनी 4 हज़ार पर प च ँ गई, तब हर महीने कहने लगा–इस देश के लेखक
सुिवधाभोगी हो गए ह। वे समाज क सम या से कटे ए ह।
मुझ जैसे छोटे लेखक को लगता है क वे बार-बार मुझे िध ार रहे ह। म अपने को
भी िध ारने लगा। िध ारते-िध ारते जब परे शान हो गया, तो सोचा, उ ह के पास
जाऊं और अपने पाप वीकार लूं।
गम क एक दोपहर म उनके बंगले पर प च
ं ा। फाटक पर उनके कु े ने मुझे
िध ारा। उससे मा मांगकर भीतर प च
ं ा।
वे सोफे पर फै ले ए थे। पान चबा रहे थे। म बैठ गया।
मेरी तरफ गदन घुमाने के िलए उ ह पांच िमनट कोिशश करनी पड़ी। गदन घूम
गई, तब उ ह ने कहा–इतनी गम म चले आ रहे हो। काहे से आए? मने कहा–साइ कल
से।
उ ह ने उसांस ली। बोले–बड़े भा यवान हो। आज का लेखक बड़ा सुिवधाभोगी हो
गया है।
थोड़ी देर बाद उ ह ने कहा–ज़रा मेरा पीकदान उठाओ।
मने पीकदान उठाया। वे पीक थूकने ही वाले थे क मने कहा– कए। आपको
थूकने म मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसा क रए–अपना पीक मेरे मुंह म डाल दीिजए। म
अपनी तरफ से थूक दूग
ं ा।
उ ह ने पीक मेरे मुंह म भर दया और मने उसे पीकदान म थूक दया।
वे बोले– कु छ याल मत करना। मुझे पड़े रहने क तन वाह िमलती है। अगर
उठूँ गा तो रपोट हो जाएगी और पैसा कट जाएगा।
दोपहर जब चढ़ी, तो वे बोले–तुम यह बैठो। गम बढ़ गई है। म दो घंटे जम
लेटूंगा।
उ ह ने बड़ा-सा ज खोला। उसम उनका िब तर लगा आ था। वे िब तर पर
लेट गए। म बैठा रहा।
दो घंटे बाद वे ज से िनकले। बोले–हां, अब हाल-चाल सुनाओ।
मने कहा–कु छ सुनाऊंगा तो आपके कान को तकलीफ होगी।
उ ह ने कहा–हम थोड़ी तकलीफ उठाने क भी इ छा रखते ह। दन-भर म अगर
ज़रा-सी भी तकलीफ नह ई, तो जीवन नीरस मालूम होता है। म िसफ एक कान को
तकलीफ दूग
ं ा।
उ ह ने एक कान बंद कर िलया।
मने कहा–हाल तो खराब ह। अभी म बिलया क तरफ गया था। भयंकर अकाल
पड़ा है। लोग सड़क के कनारे मरे पड़े ह। िखलानेवाला तो कोई था नह , लाश को
उठानेवाला भी कोई नह है। आप जैसे बड़े आदमी एक स त व दे द तो सरकार
कु छ चेत।े
उ ह ने कहा–मुझे तुम इस मामले म मत डालो। मगर जो तुमने अकाल के बारे म
कहा है, वह फर से कहो। वह ब त भावशाली है।
ऐसा कहकर उ ह ने टेप रकॉडर चालू कर दया। मने अकाल क दुदशा का वणन
ख म कया ही था क वे िखलिखला कर हँस पड़े। बोले–इस रकॉड को दर वा त के
साथ भेज दूग
ं ा, तो चेक आ जाएगा। तुम ब त अ छी बात करते हो। कु छ तो सुनाओ।
उ ह ने रकॉड चालू कर दया। मने कहा–आं म भुखमरी से त एक मां ने
अपने चार ब को अपने हाथ से मार डाला और फर खुद मर गई। कै से ास म जी
रहा है इस देश का आदमी!
वे फर ज़ोर से हँस पड़े। बोले–इस रकॉड को भी भेज दूग
ं ा और पैसे आ जाएंगे।
कै सी है मेरी हँसी?
मने कहा–ब त ब ढ़या। अंतरा मा के अितशय से उ लास िनकली ई हँसी है।
वे बोले–ब त अ यास करना पड़ा है। जब मेरी तन वाह 1500 . ई तभी से
इसका अ यास कर रहा ।ं िपछली बार वाराणसी म छा पर गोली दागने के
समाचार पर मने जो हँसी क ट पणी दी थी, वह सव े मानी गई थी और मुझे ब त
पये िमले थे।
मने पूछा–इस तरह क हँसी से आपको पये य िमल जाते ह? इससे कसका
लाभ होता है? कौन पये देता है?
उ ह ने कहा–ऐसी हँसी से स ाएं रि त होती ह। समझे? स ाएं रि त होती ह।
तुम हँस सकते हो?
मने कहा–मुझसे नह बनेगा।
उ ह ने कहा–सुिवधाभोगी हो न! हँसने तक क ‘ र क’ नह लेना चाहते।
मने कहा–अमुक प का स पादक ऐसी साम ी छाप रहा है िजससे सा दाियक
दंगा भड़क सकता है। आप उसे रो कए न!
उ ह ने कहा–मुझे तुम इस मामले म मत डालो। उस प म मेरे ज म- दवस पर
मेरा पूरे पृ का रं गीन िच आनेवाला है।
उ ह ने अंगड़ाई ली।
बोले–एक काम करो मेरा। पड़ौस के मकान म मेरी रखैल रहती है। ज़रा उसे बुला
लाओ।
म उसक रखैल को बुला लाया।
उ ह ने मुझसे कहा–तुम बैठो। कु छ चंतन करो। म ज़रा बेड म जा रहा ।ं
म चंतन करता रहा।
वे बेड म से लौटकर फर सोफे पर फै ल गए।
मने कहा–आप कहते ह, लेखक सुिवधाभोगी हो गया है। वे कौन लेखक ह?
वे बोले–तुम और तु हारे जैसे लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह। तु ह िध ार है।
मने पूछा–और आप?
उ ह ने जवाब दया–हम तो सारी सुिवधा से वंिचत ह। हम पैदल चलने क
सुिवधा नह है। क उठाने क सुिवधा नह है। दुखी होने क सुिवधा नह है। ईमान क
बात कहने क सुिवधा नह है। सच बोलने क सुिवधा नह है। कसी को नाराज़ करने
क सुिवधा नह है। संघष करने क सुिवधा नह है। खतरा उठाने क सुिवधा नह है। ये
सारी सुिवधाएं तुम जैस ने हिथया ली ह।
म सचमुच अपने को अपराधी महसूस करने लगा।
मने कहा–आप कहते ह, लेखक समाज क सम या से कटे ए ह। वे लेखक कौन
ह?
जवाब िमला–तुम और तु हारे जैसे।
मने पूछा–और जुड़े ए कौन ह?
वे बोले–हम। म सम या से जुड़ा आ ।ं
मने पूछा–आप कै से जुड़े ए ह?
उ ह ने कहा–यह तो तुमने अभी देख िलया। तुमने अकाल क दुदशा क बात क ,
तो म फौरन हँसा। कोई देर क मने? कतनी िनकटता से जुड़ा आ ं म। तुमने उस मां
क बात क , तो म एकदम हँसा। एक सेकंड क भी देर क ? तु ह रोने म कम-से-कम
एक िमनट लग जाता और तुम सम या से कट जाते। मुझे हँसने म एक सेकंड भी नह
लगा। सम या से तुम जुड़े हो क म?
मने वीकारा–आप जुड़े ह।
बैरंग शुभकामना और जातं

नया साल राजनीित वाल के िलए मतपे टका और मेरे िलए शुभकामना का बैरंग
िलफाफा लेकर आया है। दोन ही बैरंग शुभकामनाएं ह िज ह मुझे वीकार करने म 10
पैसे लग गए और राजनीित को ब त बैरंग चाज चुकाना पड़ेगा।
मेरे आसपास ‘ जातं बचाओ’ के नारे लग रहे ह। इतने यादा बचानेवाले खड़े
हो गए ह क अब जातं का बचना मुि कल दखता है। जनतं बचाने के पहले सवाल
उठता है– कसके िलए बचाएं? जनतं बच गया और फालतू पड़ा रहा तो कस काम
का? बाग क स ज़ी को उजाड़ू ढोर से बचाते ह, तो या इसिलए क वह खड़ी-खड़ी
सूख जाए? नह , बचाने वाला स ज़ी पकाकर खाता है। जनतं अगर बचेगा तो उसक
स ज़ी पकाकर खाई जाएगी। मगर खानेवाले इतने यादा ह क जनतं के बंटवारे म
आगे चलकर झगड़ा होगा।
पर जनतं बचेगा कै से? कौन-सा इं जे शन कारगर होगा? मने एक चुनावमुखी
नेता से कहा–भैयाजी, आप तो राजनीित म मां के पेट से ही ह। ज़रा बताइए, जनतं
कै से बचेगा? कोई कहते ह, समाजवाद से जनतं बचेगा। कोई कहता है, समाजवाद से
मर जाएगा। कोई कहता है, गरीबी िमटाए िबना जनतं नह बच सकता। तब कोई
कहता है, गरीबी िमटाने का मतलब–तानाशाही लाना। कोई कहता है, इं दरा गाँधाी के
स ा म रहने से जनतं बचेगा। पर कोई कहता–इं दरा ही तो जनतं का नाश कर रही
है। आप बताइए, जनतं कै से बचेगा।
भैयाजी ने कहा–भैया, हम तो सौ बात क एक बात जानते ह क अपने को बचाने
से जनतं बचेगा। अपने को बचाने से दुिनया बचती है। ज़रा चलू।ं ट कट क कोिशश
करनी है।
सोचता ,ं म भी चुनाव लड़कर जनतं बचा लूं। जब जनतं क स ज़ी पके गी तब
एक लेट अपने िह से म भी आ जाएगी। जो कई साल से जनतं क स ज़ी खा रहे ह,
कहते ह बड़ी वा द होती है। ‘जनतं ’ क स ज़ी म जो ‘जन’ का िछलका िचपका
रहता है उसे छील दो और खािलस ‘तं ’ को पका लो। आदश का मसाला और कागज़ी
काय म का नमक डालो और नौकरशाही क च मच से खाओ! बड़ा मज़ा आता है–
कहते ह खानेवाले।
सोचता ,ं जब पहलवान चंदगीराम और फ मी िसतारे -िसता रन जनतं को
बचाने को आमादा ह, तो म भी य न जनतं को बचा लू।ं मा टर को तो बादाम
पीसने से फु रसत नह िमलेगी और िसतार को कसी-न- कसी के बैक ाउ ड यूिजक
पर ह ठ िहलाना पड़ेगा। मेरे िबना जनतं कै से बचेगा?
पर तभी यह बैरंग िलफाफा दख जाता है और दल बैठ जाता है। मने ी टंग
काड को िबछाकर देखा है–लगभग 5 वगमीटर शुभकामनाएं मुझे नए वष क िमली ह।
अगर इतने काड मुझे कोरे िमल जाते, तो म इ ह बेच लेता। पर इन पर मेरा नाम िलखा
है इसिलए कोई नह खरीदेगा। दूसरे के नाम क शुभकामना कस काम क ?
इनम एक बैरंग िलफाफा भी है। काड पर मेरी सुख-समृि क कामना है। सही है।
पर इस शुभकामना को लेने के िलए मुझे 10 पैसे देने पड़े। जो शुभकामना हाथ म आने
के दस पैसे ले ले, वह मेरा या मंगल करे गी? शुभ चंतक मुझे समृ तो देखना चाहता
है, पर यह मुझे बतलाने के ही 10 पैसे ले लेता है।

शुभ का आर भ अकसर मेरे साथ अशुभ हो जाता है। समृ होने के िलए लॉटरी
क दो टकट खरीद –ह रयाणा और राज थान क । खुल तो अपना न बर नह था। दो
पये गांठ के चले गए। सोचा, बंसीलाल और सुखािड़या का एक-एक पया कसी ज म
का कज़ होगा! चुक गया। अपने को ऐसे समृि नह िमलेगी। वह पगडंडी से आती-
जाती है। लजीली कु लवती है। पदा भी करती है। मेरे एक छा ने वह पगडंडी ढू ंढ़ ली
है। एक दन िमला, तो मने पूछा–तु हारे ऐसे ठाठ कै से हो गए? बड़ा पैसा कमा रहे हो।
उसने कहा–सर, अब म िबजनेस लाइन म आ गया ।ं मने पूछा–कौन-सा िबज़नेस करते
हो? उसने कहा–सट् टा िखलाता ।ं इस देश म स ा िबज़नेस लाइन म शािमल हो गया
है। मंथन करके ल मी को िनकालने के िलए दानव को देव का सहयोग अब नह
चािहए। पहले समु -मंथन के व तो उ ह टेकनीक नह आती थी, इसिलए देवता
का सहयोग िलया। अब वे टेकनीक सीख गए ह।
हर अ छी चीज़ बेरंग हो जाती है। िपछले साल सफाई स ाह का उ ाटन मेरे घर
के पास ही आ था। अ छी ‘साइट’ थी। वहां कचरे का एक बड़ा ढेर लगाया गया।
फोटो ाफर कोण और काश देख गया और तय कर गया क मं ीजी को कस जगह
खड़े होकर फावड़ा चलाना है। अफसर कचरे क सजावट करवाने म लग गए। एक दन
मं ीजी आए और दो-चार फावड़े चलाकर सफाई स ाह का उ ाटन कर गए। इसके
बाद कोई उस कचरे के ढेर को साफ करने नह आया। उ मीद थी क हर साल यह
सफाई स ाह का उ ाटन होगा और हर साल 4 फावड़े मारने से लगभग एक शता दी
म यह कचरा साफ हो जाएगा। म इं तज़ार कर सकता ं पर इस साल दूसरी जगह चुन
ली गई।
सफाई स ाह कचरे का ढेर दे जाता है और नया साल बैरंग शुभकामना लेकर
आता है। फर भी संसद म जाने को लालाियत ।ं एक साहब से अपनी इ छा कट
करता ं तो वह कहता है–चुनाव लड़ने से भी या होगा? मने कहा–संसद सद य हो
जाऊंगा।
वह–संसद सद य होने से भी या होगा?
म–मं ी हो जाऊंगा।
वह–मं ी होने से भी या होगा?
म–म धानमं ी हो जाऊंगा।
वह– धानमं ी होने से भी या होगा?
म–म गरीबी िमटा दूग
ं ा।
वह–गरीबी िमटाने से भी या होगा?
म–लोग खुशहाल हो जाएंग।े
वह कहता है–पर भैया, खुशहाल होने से भी या होगा?
मेरे पास इसका जवाब नह । यह भारतीय जन कै सा हो गया है? कै सा हो गया है
इसका मन? लगता है, मुझे ही नह , सारे देशवािसय को बैरंग शुभकामनाएं आती रही
ह और आज उसका यह हाल हो गया है क कहता है–खुशहाल होने से भी या होगा?
िम कहते ह–तुम तो जनता के उ मीदवार हो जाओ। जनसम थत उ मीदवार!
पर म इसी भारतीय जन क तलाश म ं वष से। वह िमलता नह है। कहते ह, वह
चुनाव के व िमलता है–भारतीय जन। पर अभी के एक चुनाव म उसे म तलाशता
रहा। लगभग हर पाट ने मुसलमान के मत पाने के िलए मौलाना को बुलाया। मौलाना
ने फतवा दया–मुसलमानो, जब तुम ईद के चांद के बारे म मेरी बात मानते हो तो वोट
के बारे म भी मेरी बात मानो। अमुक को वोट दो। जैिनय के मत पाने के िलए कोई
अॉल इि डया जैन नेता बुला िलया। दग बर के िलए दग बर और ेता बर के िलए
ेता बर। थानकवासी और तेरापंथी और िमल जाते तो ठीक रहता। तेिलय के िलए
अिखल भारतीय तेली और नाइय के िलए अॉल इि डया नाई। े के ा ण से कहा
गया– यहां से हमेशा ा ण चुनाव जीता है। देख लो, 20 साल का रकाड। िध ार है
हम ा ण को अगर कोई गैर- ा ण इस बार जीत गया तो।
कहां है भारतीय जन? कौन-सा है? या वह जो कहता है–खुशहाल होने से भी
या होगा? या यह जो भारतीय होने के िलए चलता है, क रा ते म कोई उसे रोककर
कहता है–चल वापस। तू भारतीय नह , ा ण है।
बैरंग मंगल काड मेरी आंख म घूरकर देखता है और कहता है–व के इशारे को
समझ और बाज़ आ। तुझसे जातं नह बचेगा। अगर तुझे ही चुनाव जीतकर जातं
बचाने का काम नए साल ने स पा होता, तो मेरे ऊपर पूरी टकट न िचपकत ?
इितहास का सबसे बड़ा जुआ

(इधर पंचम गु का मश र जुए का अ ा चलता है। पुिलस, ऊंचे अफसरान और


धनी-मानी लोग के नैितक सहयोग से यह अ ा फल-फू ल रहा है–याने फू लने क झंझट
म न पड़कर एकदम फल जाता है। हर जुए के अ े म ‘छोकरे ’ होते ह, जो पान, बीड़ी,
दा का इं तज़ाम करते ह, जुआ रय क सेवा करते ह। पंचम गु के अ े म एक तेज़
छोकरा है। उसे पूव- मृित है। वह कहता है, ापर म भी वह ‘छोकरा’ ही था और ल छू
उ ताद के जुए के अ े म काम करता था। जब दुय धन ने युिधि र के साथ जुआ खेला
था, तब उ ह ने ल छू उ ताद से एक अ छा ‘छोकरा’ देने के िलए कहा था। ल छू
उ ताद ने इसी छोकरे को भेज दया था। वह कहता है, उसने इितहास का वह सबसे
बड़ा जुआ देखा था। उसी के श द म–लेखक)
साब, बड़े-बड़े जुए के फड़ देखे, बड़े-बड़े जुआरी देख,े पर वैसा जुआ नह देखा।
ल छू उ ताद ने कहा था–छोकरे , राजा लोग का जुआ है। बड़े-बड़े वीर वहां ह गे।
अ छी चाकरी करे गा तो ऊंचा ‘ टप’ िमलेगा। गलती करे गा तो िसर खो देगा। ज़रा
संभल के ।
तो साब, म तो डरते-डरते वहां गया।
मने पूछा–छोकरे , यह जुआ आ ही य ? तू तो वहां था। तू जानता होगा।
छोकरा बोला–िजसको ‘पॉवर पॉिल ट स’ बोलते ह न साब, वही था ये। सब जुआ
खेलते ह पॉिल ट स म। नेपोिलयन ने खेला था, िहटलर ने खेला था। यािहया खां ने भी
खेलकर देख िलया। िह दचीन म अमे रका इतने साल से जुआ खेल रहा है। 1962 म
यूबा म स और अमे रका जुआ खेलनेवाले ही थे क संभल गए, वरना न पांडव रहते
न कौरव।
मने कहा–पर ये कौरव-पांडव तो एक ही कु ल के थे। भाई ही थे। फर ऐसा पॉवर
पॉिल ट स य चला?
छोकरे ने कहा– स और चीन या एक ही कु ल के नह ह साब? फर भी पॉवर
पॉिल ट स का जुआ चल रहा है। अमे रका और पि मी जमनी भी तो एक ही कु ल के
ह, पर उनम भी डॉलर और माक का जुआ चल रहा है। भाई-भाई म जुआ होता है साब।
एक मज़े क बात बताऊं? शकु िन और दुय धन के िसवा सब जुए के िखलाफ थे। धृतरा
जुए को बुरा समझते थे, भी म जुए को नाश का कारण मानते थे, िवदुर ने तो सबसे
यादा िवरोध कया। पर जानते ह साब, युिधि र को जुआ खेलने के िलए बुलाने कौन
गया? वही महा मा िवदुर। और युिधि र ने भी कहा क जुआ ब त खराब चीज़ है। पर
फर खेलने भी चले आए। कहने लगे–जब बुलावा आया है तो ज़ र चलकर खेलूंगा।
साब, सब जुए के िखलाफ, पर सब जुआ खेल रहे ह।
मने पूछा–छोकरे , तू तो बड़ा होिशयार मालूम होता है। यह तो बताओ क ऐसा
आ य?
छोकरे ने कहा–साब, जब कु ल का सयाना अंधा होता है, तब थोड़े-थोड़े अंधे सब
हो जाते ह। फर िजसे बुरी बात समझते ह उसी को करते ह। अभी देख लो न। दुिनया म
सब लड़ाई को बुरा बोलते ह। सब शांित क इ छा रखते ह, पर सब हिथयार बनाते जा
रहे ह।
ये युिधि र जो थे न, धमराज थे। बड़े भले आदमी थे। अ छा, बुरा, पाप, पु य–सब
समझते थे। दूसर को िसखाते थे। पर उ ह जुआ खेलने का शौक था। बड़े आदमी म एक-
न-एक खराबी होती ही है, साब। हमारे ल छू उ ताद ने उनसे कहा था–महाराज, जुआ
खेलने का ही शौक है, तो हमारे अ े पर आ जाया करो। अरे हारोगे भी तो कतना
हारोगे? हज़ार, पांच हज़ार, दस हज़ार िस े । वेश बदलकर आ जाया करो। कोई
जानेगा नह । और महाराज, पांसा नह तीन प ी खेलो। आपको पांसा फकना ही नह
आता। कसी दन पांसे के जुए म आप भाइय क कमाई ॉपट उड़ा दोगे। पर वे माने
ही नह । आिखर वही आ जो हमारे ल छू उ ताद ने कहा था।
कौरव बैठे ह। पा डव का इं तज़ार कर रहे ह। धृतरा भी उ सुक ह। दखता नह
है तो पूछते ह–आ गए? कोने म िवदुर िख बैठे ह। भी म बेचैन ह। दुय धन और शकु िन
उ ेिजत ह और कण शा त और संतु बैठे ह।
उधर का हाल यह है क पा डव जानते ह क हारगे, फर भी खेलने को चले आ
रहे ह। आगे युिधि र ह, पीछे भीम। उसके पीछे अजुन, नकु ल और सहदेव। भीम
उ ेिजत ह। बाक भाई इस तरह तट थ भाव से चल रहे ह क बड़े भैया जो भी कर,
ठीक है।
आमने-सामने बैठ गए। म पानी िपलाने के बहाने युिधि र के पास गया और कान
म कहा–धमराज, तीन प ी खेलो। पांसा मत खेलना। तु ह पांसा फकना नह आता।
इसी व शकु िन ने मुझे देख िलया और पुकारा–ऐ छोकरे , उधर या कर रहा है? वह
बीड़ी का कट् टा उठाकर ला।
दुय धन बोलता है–दांव म लगाऊंगा, पर पांसे मेरी तरफ से मामा शकु िन फकगे।
भला बताइए, ऐसा भी होता है क दांव एक लगाए और पांसा दूसरा फके !
मने कहा–होता है रे । पॉिल ट स म होता है। देखा नह क दांव यािहया खां ने
लगाया और पांसे िन सन तथा माओ ने फके –दो शकु िन मामा। और हम अगर युिधि र
जैसे बने रहते तो हमारा भी कबाड़ा हो जाता। पर हमने कह दया क तेरा शकु िन तो
हमारा भी ‘रसुिन’। फक पांसा।
छोकरा बोला–िब कु ल ठीक बात बोले साब आप। युिधि र भी कह देते क
तु हारी तरफ से अगर शकु िन पांसा फकगे तो हमारी तरफ से ल छू उ ताद फकगे।
शकु िन कसी का लोहा मानता था तो हमारे ल छू उ ताद का। पर युिधि र के हाथ तो
पांसा फकने को कु लबुला रहे थे न। वे इस शत को भी मान गए।
और चालू हो गया साब, जुआ।
युिधि र ने लगा दए दांव पर सोना और र । फके पांसे।
फर शकु िन ने पांसे फके और िच लाया–जीत िलया।
एक बात माननी पड़ेगी साब–शकु िन था उ ताद। जैसे चाहता वैसे पांसे फक लेता
था। यह बात तो उड़ाई ई है क वह कपटी था। असल म वह अ छा िखलाड़ी था।
फर लगा दांव–और लाख अशफ , मन सोना।
धमराज ने पांसे फके ।
फर शकु िन ने फके और िच लाया–जीत िलया!
धमराज तो जुए के नशे म धु हो गए थे। उ ह ने सब ॉपट हाथी, घोड़े, गाय,
दांव पर लगा दए और हार गए।
मने कहा– अब बंद करो महाराज!
पर वे बोले–अगला दांव म ही जीतूंगा।
पर अब दांव पर लगाने को बचा ही या था? िसफ आदमी बचे थे। और वे
सेनापितय और नौकर को दांव पर लगाने और हारने लगे। मने पूछा– य रे छोकरे ,
जब आदमी दांव पर लगने लगे तो कसी ने रोका नह ?
उसने कहा–रोका, साब। पर धमराज तो होश म नह थे। उधर बेचारे िवदुर ज़ र
बार-बार धृतरा से कहते थे क लड़के को रोको, वरना अिन होगा। पर अंधे राजा बेटे
के मोह म और अंधे हो गए थे।
उधर दुःशासन, दुय धन और शकु िन वगैरह पांडव क िख ली उड़ाते थे, उनका
अपमान करते थे। इधर भीम ोध से कसमसा जाते थे। बाक पांडव बड़े भाई के
िलहाज़ म मुंह लटकाए बैठे थे।
आदमी दांव पर लगने लगे साब और हारे जाने लगे। दास-दासी–सब धमराज हार
गए।
पसीना आ रहा था युिधि र को। मुझे पुकारा–छोकरे , पानी िपला।
मने उ ह पानी िपलाते ए कहा–महाराज, अब भाइय को लेकर भाग जाओ।
पर वे कहां माननेवाले!
उ ह ने नकु ल और सहदेव को दांव पर लगा दया और हार गए।
शकु िन िच लाया–छोकरे , थोड़ी दा ला।
अब साब, युिधि र ने भीम और अजुन को दांव पर लगया और हार गए।
कोई भाई नह बोला साब क हमारा जुआ य खेलते हो?
अब बचे धमराज।
बोले–इस बार मने अपने को दांव पर लगाया।
पांसे फके ।
शकु िन ने फके और जीत गया।
खलास हो गया। सब भाई दुय धन क ॉपट हो गए साब।
अब?
शकु िन को खूब चढ़ गई थी साब। नह तो वह वैसी बात नह कहता। कहता है–
धमराज, अभी ौपदी बच गई है। उसे भी दांव पर लगाओ।
सारी सभा म हाहाकार मच गया। िवदुर ने फर समझाया।
बताइए साब, ौपदी तो वाइं ट ॉपट थी। अके ले युिधि र क बीवी तो थी नह ।
पांच भाइय क थी। फर एक भाई उसे दांव पर कै से लगा सकता है?
पर लगा दया। भाई लोग कु छ नह बोले। वह ज़माना ही ऐसा था साब। भी म के
िपता शांतनु का दल एक के वट क या पर आ गया था, तो बूढ़े बाप के शौक के िलए
भी म ने राजपाट छोड़ा और ांरे रहे। बोले ही नह क फादर, ब त भोग कर िलया,
बूढ़े हो गए। अब हमारी ज़ंदगी य खराब करते हो?
तो साब, युिधि र ौपदी को भी हार गए।
भीम अब आपे से बाहर हो गया। बोला–अभी तक म कु छ नह बोला। तुम ॉपट
हार गए। हम भी हार गए। पर तुमने ौपदी को भी दांव पर लगा दया। तुम प े
जुआरी हो। म तु हारे इन पांसे फकने वाले हाथ को जला दूग
ं ा।
एक बात बताऊं? भीम ौपदी को ब त ‘लव’ करता था। पर ौपदी ज़रा अजुन
क तरफ यादा थी। कृ ण अजुन का बड़ा दो त था। और ौपदी भी कृ ण से अपना दुख
कहती थी। पता नह , या गोलमाल था साब। ये कृ ण था ब त दंदी-फं दी आदमी। वह
होता तो शकु िन क नह चलती। वह साफ झूठ बोल जाता था और कहता था क यही
सच है। वह कपट कर लेता था और कहता था क इस व कपट करना धम है।
अब साब, ौपदी सभा म लाई गई। दु:शासन लाया। और उसका अपमान होने
लगा।
बड़ी ज़ोरदार औरत थी यह ौपदी। उसने वह िध ारा सबको क सबके माथे झुक
गए। बोली–ये मेरे पित कायर ह। ये इतने बूढ़े और ानी सभा म बैठे ह, ये सब पापी ह।
मुझे बताओ क खुद अपने को हारे ए युिधि र या मुझे दांव पर लगा सकते ह? या
बोलता है तु हारा धम? तु हारी नीित? तु हारा याय?
सब सु हो गए, साब! कोई नह बोला।
मने कहा–छोकरे , कौरव क तरफ बड़े-बड़े लोग थे। बड़े-बूढ़े थे। वे सही बात य
नह बोले?
छोकरा हँसा। बोला–साब, वे सब ‘ संिडके टी’ हो गए थे। अनुशासन म बंध गए थे।
िनज लंग पाजी िजसको ‘िडिसि लन’ बोले थे न, वही हो गया था। अंतरा मा क
आवाज़ और अनुशासन का झगड़ा था। ौपदी कहती थी–तु हारी अंतरा मा या
बोलती है? पर वे सब बूढ़े और ानी जैसे जवाब म कह रहे ह –अंतरा मा क आवाज़
नह । हम तो अनुशासन वाले ह। इसिलए चुप ह। और साब, आप जानते ही ह, क जैसी
संिडके टी अनुशासन वाल क गत ई वैसी ही इन ापर के संिडके टय क
महाभारत म ई।
मने पूछा–छोकरे , फर पा डव ने या कया?
वह बोला– फर पा डव ने कु छ नह , ौपदी ने ही कया। उसने धृतरा को खुश
करके अपने पितय और ॉपट को वापस ले िलया। यह दूसरा जुआ था साब! ौपदी ने
वह पांसे फके , ोध, िध ार और िवलाप के , क वह जीत गई।
अब पा डव वापस घर को चले।
इधर दुय धन घबड़ाया क अब ये बदला लगे। उसने शकु िन से सलाह क ।
वह दौड़कर युिधि र के पास गया और कहा–एक बार और खेल लो।
बड़े बौड़म थे ये धमराज।
और साब, धमराज जानते ए भी क फर हारगे, खेलने के िलए लौट आए।
आगे का हाल तो आप जानते ही ह। एक ही दांव म पा डव को 12 वष का
बनवास और एक वष का अ ातवास हो गया।
दुय धन का पॉिल ट स चल गया साब। 13 साल तक राजनैितक िवरोधी को
िबयाबान म रखकर उसने अपनी ‘पोज़ीशन’ मज़बूत करने क ठान ली थी।
लड़का चुप हो गया। उदास हो गया।
कहने लगा–ऐसा जुआ कभी नह देखा, साब! मुझे तो रोना आ गया साब, जब
पा डव वनवािसय का वेश धारण करके चल दए। भीम लाल-पीले हो रहे थे, पर
िववश थे। और बेचारी ौपदी िबलखती ई पीछे चल रही थी।
रा ते म ल छू उ ताद युिधि र को िमले। बोले–धमराज, 13 साल का चांस िमला
है। इसम कम-से-कम एक भाई को तो अ छा जुआरी बनाओ। तीर-कमान िसखाने से ही
कु छ नह होता। तीर-कमान को तो पांस ने मार दया। पांच पा डव म कम-से-कम
एक को तो जुआ खेलने म ए सपट होना चािहए। बोलो, अपने अ े के घसीटे को साथ
कर दू?ं वह िसखा देगा।
पर धमराज ने यह बात भी नह मानी और वन को चले गए।
आना न आना रामकु मार का

बदनामी अपनी कई तरह क है। एक यही है क भाषण देने के , उ ाटन करने के और


मु य अितिथ होने के भी पैसे ले लेता ।ं
मगर बदनामी इससे भी आगे बढ़ गई है, यह मुझे उस दन मालूम आ। म एक
शहर ि गत काम से गया था। दूसरे दन शाम को थानीय कॉलेज के 2-3 लड़के
अपने अ यापक के साथ आए। म खुद परे शान था क इस शहर म कोई कॉलेज-वॉलेज
या कोई सं था है या नह ? है तो कोई आता य नह ? 36 घंटे कसी छोटे शहर म
लेखक को पड़े हो जाएं और कोई न आए, तो भी मन न जाने कै सा-कै सा करता है। खैर,
वे आए तो तिबयत हरी हो गई। उ ह ने कहा–कल हम लोग कॉलेज म आपका स मान
करना चाहते ह।
म झूठे संकोच नह पालता। मने कहा– कर डालो। शुभ काम है। कतने बजे आ
जाऊं?
वे बोले–4 बजे ो ाम रखा है। हम आपको लेने आ जाएंग।े
मने कहा–ठीक है। म तैयार र ग
ं ा।
बात ख म होनी चािहए थी। अब आगे कॉलेज के बारे म या मौसम के बारे म या
सािह य के बारे म बात ही हो सकती थ । पर वे गुमसुम बैठे थे।
आिखर एक लड़के ने िनहायत भोलेपन से कहा– कतना पया लगे?
म काफ बेहया ।ं मगर इस बात ने मेरी भी चमड़ी उधेड़ दी। बदनामी इतनी
आगे बढ़ गई है क स मान करनेवाला जानता है क यह नीच स मान करवाने के भी
पये लेगा। कै सा बेशम है!
यह सही है क कसी समारोह म जाना वीकार करते व ही ‘प ं पु पं’
कहलानेवाली रकम का अंदाज़ दोन पा टय को रहता है।
मप च ं ते ही आयोजक के चेहर , वहार और आवभगत से िहसाब लगाना शु
कर देता ं क ये अ छे पैसे दगे या नह ? कभी ऐसा भी आ है क यादा आवभगत
करने वाल ने पये मुझे कम दए ह। लेखक का शंकालु मन है। शंका न हो तो लेखक
कै सा? मगर वे भी लेखक ह िजनके मन म न शंका उठती है न सवाल। यादा आवभगत
होने लगे तो आशंका होती है क ये पैसे कम ह गे। म मन-ही-मन कहता –ं भैया, यादा
कर रहे हो। नॉमल हो जाओ तो म भी हो जाऊं। तु हारी आवभगत के िहसाब से मेरी
घबड़ाहट भी बढ़ रही है।
समारोह के बाद एक िलफाफा दया जाता है। इस िलफाफे से मुझे स त िचढ़ है।
हर िलफाफे से मुझे िचढ़ है। िलफाफा हमेशा अपने और दूसरे को धोखा देने के काम
आता है। िलफाफा देखकर म बेचैन हो उठता ।ं पता नह कतने ह? ह भी या नह ?
चार तरफ अंधकार। कोई रोशनी देनेवाला नह । म िवरागी क तरह िलफाफा लेकर
जेब म रख लेता ँ जैसे तु छ माया है। पर मन बेचैन रहता है। म बात करते-करते हाथ
जेब म डालकर, नोट को टटोलकर रकम का अंदाज़ा लगा लेता ।ं यह अ यास मुझे हो
गया है। अगर इसम नाकामयाब आ तो बाथ म तो कह गया नह है। म बाथ म म
जाकर िगन लेता ।ं
रकम क अिनि तता क बेचैनी सबको होती है। िज ह नह होती वे आदमी नह
ह। और ह भी, तो झूठे ह। ब त म बाथ म म घुसकर िगनने का नैितक साहस नह
होता और वे अशांत मन लेकर औपचा रक स ावना और संतोष िनभाते रहते ह।
म ऐसा नह करता। िगनकर िनकलता ।ं और रकम संतोष द होती है तो उन
लोग से कहता –ं आपका यह इलाका ब त गितशील है। म ब त जगह घूमा ,ं पर
ऐसा आगे बढ़ा आ े मुझे कम ही िमला है।
पर अगर पये कम ए तो कहता –ं यह इलाका िपछड़ा आ है। इसे अभी ब त
गित करनी है।
10-15 पये के हेर-फे र म पूरे इलाके को गितशील या िपछड़ा आ घोिषत कर
देता ।ं
समारोह ख म हो गया था। मुझे पहली गाड़ी से ही लौटना था। सामान बंध चुका
था। होटल के कमरे म थानीय बु जन और बंधु बैठे थे और मेरे भाषण क तारीफ
कर रहे थे। मुझे तारीफ िब कु ल अ छी नह लग रही थी। म बार-बार दरवाज़े क तरफ
देखता था–रामकु मार अभी तक नह आए।
रामकु मार वे स न थे िजनके पास मेरे पैसे थे।
मने उन लोग से कहा–रामकु मार अभी तक नह आए।
वे बोले–आते ही ह गे।
एक अ यापक कहते ह–सोचने क नई दशा देते ह आप।
दशा? दशा तो सही वह है िजससे रामकु मार को आना है। नह बताना मुझे
दशा, और सोचने क भी कोई खास ज़ रत नह है। मुझे तो यह बताओ क रामकु मार
अब तक य नह आए?
वे बंधु कहते ह–एक कप चाय हो जाए।
चाय आती है। मुझे अ छी नह लगती। रामकु मार ने मेरा वाद छीन िलया। एक-
दो घूंट लेता ं और फर कहता –ं रामकु मार नह आए।
–वे नह जानते क म बार-बार रामकु मार को य पूछता ।ं
अब म अपने को िध ारता –ं लोभी! तू भी कोई लेखक है? लेखक या ऐसा होता
है? िध ार है!
थोड़ी देर इस िध ार से मन को संभालता ,ं पर फर पूछ उठता –ं रामकु मार
नह आए?
अब उन लोग को अ छा नह लग रहा है। वे शायद सोचते ह क कु छ घंट म ही
इ ह रामकु मार इतने पसंद आ गए और हम कु छ नह ?
एक सुंदरी आती है। कहती है–बड़ा सुंदर भाषण था आपका। मुझे ऊ मा का
अनुभव नह होता। इस व िव -सुंदरी भी रामकु मार से घ टया है। सुंदरी मेरी ‘ -ं
हां’ से िन सािहत होती है। पर देवी, म या क ँ ? रामकु मार तो नह आए! अगर वे
आ गए होते तो म तुमसे बड़े रस से बात करता।
म मन को फर संभालने क कोिशश करता –ं बेवकू फ, परे शान य होता है?
पैसा ही तो सब कु छ नह है। दो हज़ार लड़क ने तु हारा भाषण सुना। इनम से अगर
50 भी िबगड़ गए तो जीवन साथक हो गया। जब तुम बोल रहे थे तब तुम उन लड़क से
चाहे तो तुड़वा सकते थे–पर परा से लेकर भा य-िवधाता के हाथ-पांव तक।
मेरा मन थोड़ा ऊंचा उठता है। मगर एक िमनट म ही फर िगरता है और म कहता
–ं रामकु मार अभी तक नह आए।
उनम एक बुजुग अ यापक मेरी बेचैनी समझ गए। उ ह ने अलग ले जाकर कान म
कहा–रामकु मार शायद सीधे टेशन पैसे लेकर प च
ं । चंता मत क रए। अगर न भी
आए तो हम िभजवा दगे।
इ ह ने ऐसा य कहा? ज़ र पहले से मुझे चरका देने क योजना बन चुक है।
मुझे याद आया लखनऊ का वह वाकया। तीन ोफे सर लोग मुझे आगरा क गाड़ी म
िबठाने आए। म समझा, ये पया लाए ह गे। पर वे कहने लगे क हम समझे, ंिसपल
साहब ने आपको दे दए ह गे। आगरा क गाड़ी सामने खड़ी थी और मेरे पास कराये के
पैसे भी नह थे। तब उन अ यापक ने चंदा करके मेरे िलए टकट खरीदा। पैसे मेरे आज
तक नह आए।
म यादा बेचैन हो गया।
गाड़ी का व हो गया। उन लोग ने िड बे म मेरा सामान रखवाया। बैठते-बैठते
मने फर दोन सड़क पर नज़र दौड़ाई और कहा–रामकु मार अभी तक नह आए।
टेशन पर दूर-दूर तक रामकु मार कह नह ह।
मेरी घबराहट बढ़ती है।
म कहता –ं रामकु मार तो नह आए।
वे अब जवाब नह देत।े परे शान हो गए ह।
हम लेटफॉम पर चहलकदमी करते ह। वे लोग सािह य और राजनीित क बात
करते ह। मेरा मन नह लगता। मेरे मन म रामकु मार क छिव समाई है।
दूसरे लेटफॉम पर एक गाड़ी रवाना होने को तैयार खड़ी है। तभी एक औरत िसर
पर पोटली रखे भागती है और उसका पीछा एक साधु कर रहा है। औरत उस िड बे म
घुस जाती है। साधु उसे बाहर घसीटकर लेटफॉम पर डाल देता है। औरत चीखती है–म
तेरे साथ नह र ग ं ी। साधु उसे एक लात मारकर कहता है–रहेगी कै से नह ? हंगामा
मच जाता है। पुिलस वाला आता है। साधु को डराता है तो साधु कहता है–यह मेरी
घरवाली है। म इसे ले जाऊंगा।
मेरे पास के िड बे म बैठी एक ी दूसरी से कहती है–बाई, जब इं ी पै बस नह है
तो साधु य होते ह?
ब ढ़या लॉट है कहानी का। पकड़ लूं इसे। डायलॉग दमाग म जमा लूं।
पर मेरा दमाग लॉट म भी नह लगता।
थोड़ी देर बाद फर कह उठता –ं रामकु मार नह आए।
गाड़ी आधा घंटा लेट है।
अब मेरे मन को थोड़ी राहत िमलती है। रामकु मार के आने क उ मीद म छोड़ता
नह ।ं उ ह आधा घंटे का समय और िमल गया है।
म लेटफॉम पर दोन तरफ देखता आ उन लोग के साथ घूम रहा ।ं वे ान
चचा करते ह। हँसी-मज़ाक करते ह। मेरा कसी म मन नह लगता।
इतने म रामकु मार आते दखाई देते ह। वे लोग एक साथ कहते ह–लीिजए, आ गए
आपके रामकु मार।
रामकु मार पसीने से लथपथ ह। कहते ह, साइ कल पंचर हो गई थी। उसे सुधरने
देकर लाइन-लाइन भागता आ आया ।ं
मेरी बेचैनी कम होती है। मगर ये रामकु मार जेब म हाथ य नह डालते?
िलफाफा य नह िनकालते? गपशप म य उलझे ह?
म इं तज़ार कर रहा ,ं यह कब जेब म हाथ डालते ह?
वे जेब म हाथ नह डालते।
तरक ब मुझे ब त आती ह। म अपनी जेब म हाथ डालते ए कहता –ं
रामकु मारजी, टकट ले लीिजए।
रामकु मार मुझे रोकते ह–नह -नह म ट कट ले आता ।ं
रामकु मार मुझे अलग ले जाकर िलफाफा देते ह। कहते ह–इतने पये ठीक ह। ठीक
ह न।
अब बाथ म म जाने क ज़ रत नह । रामकु मार ने वयं रािश बता दी है।
ट कट आ जाता है। म कहता –ं भई, चाय पी जाएगी।
चाय मुझे ब त अ छी लगती है।
कहता –ं यहां के लोग काफ बु ह। म देख रहा था, वे लोग बड़े यान से मेरी
बात सुन रहे थे और समझ रहे थे। कई जगह तो मने अनुभव कया है क म बोल रहा ं
और कोई समझ नह रहा है। इस मामले म आपका यह े काफ आगे बढ़ा आ है।
रामकु मार आ गए थे न!
दशा बताइए

समारोह के मु य अितिथ नह आए थे। वादा करके जो मु य अितिथ ऐन मौके पर न


आए वह आम आ जाने वाले मु य अितिथ से बड़ा होता है, जैसे वह किव बड़ा होता है
जो पेशगी खा जाए और किव स मेलन म न जाए। म एक किव को जानता ं जो हर
शहर क पेशगी खा गए और अब उ ह कोई नह बुलाता। वे किव-कम से ही छु ी पा
गए ह।
संयोजक घबड़ाए ए हॉल म चार तरफ नज़र डाल रहे थे। उनक तलाश दुहरी
थी–अपने मु य अितिथ को वे खोज रहे थे और साथ ही, उसक एवज म मु य अितिथ
बन सकने वाले को भी ढू ंढ रहे थे। मु य अितिथ क एक बनावट होती है। गांधीजी ने
खादी का धोती-कु रता पहनाकर और नेह ने जा कट पहनाकर कई पी ढ़य के िलए
मु य अितिथ क बनावट तय कर दी थी। आज़ादी के पहले ये सब दुबले थे, इसिलए
मु य अितिथ नह होते थे। आज़ादी के बाद ये मोटे हो गए, कु छ क त द िनकल आई
और आदश मु य अितिथ बन गए। म इधर कु छ साल से देख रहा ,ं म फु त से मु य
अितिथ के प म ढल रहा ।ं कु रता-पायजामा, जा कट म पहले से ही पहनता ।ं इधर
कपड़ा यादा लगने लगा है। य - य कपड़ा यादा लगने लगा है, य - य म मु य
अितिथ क ग ी क तरफ सरक रहा ।ं
कोने म रखी फू ल-माला क आंख िनकल आई ह। वे अपने मु य अितिथ क
तलाश कर रही ह। म फू ल-माला से आंख िमला रहा ।ँ बड़ा ‘फ ेशन’ है उनक
आंख म, बड़ी िनराशा। वादा करके भी ेमी कॉफ हाउस म न िमले तो उस मन:ि थित
म सुंदरी को पटा लेना सहज होता है। म देख रहा ,ं मालाएं मुझसे आंख िमला रही ह।
इधर संयोजक क नज़र मुझपर बार-बार पड़ती है और वे आपस म कानाफू सी करते
ह। वे एवज़ के मु य अितिथ के प म मुझे तौल रहे ह। एवज़ म छोट का भा य चमक
जाता है। राम क एवज़ म खड़ाऊं राज संहासन पर बैठ गई थ ।
तीन संयोजक दरवाज़े के पास खड़े सलाह कर रहे ह। वे मेरी तरफ बार-बार देखते
ह। मु य अितिथ उनके िलए ज़ री है। उ ह मालाएं पहनानी ह। माला पहनाना कु छ
लोग क त दु ती के िलए ज़ री है। वे अगर महीने म एक बार कसी को माला न
पहनाएं तो वा य खराब होने लगता है। हर समाज म माला पहनानेवाले ज़ री ह।
अगर ये न ह तो माला पहनने वाल क गदन िपचक जाएं। मंि मंडल से िनकलने के
बाद एक साहब को माला पहनाने वाले नह िमलते थे। उनका वा य िगरने लगा।
डॉ टर ने उ ह सलाह दी क आप फू लमाला का सेवन कर। उ ह ने दस पये महीने पर
एक माली को रोज़ माला पहनाने के िलए लगा िलया। शाम को वे सजकर कु स पर बैठ
जाते। माली आता और माला पहनाता। वे कहते–भाइयो और बहनो! उनक सेहत
अ छी हो गई। मगर माली का वा य िगरने लगा। हर एक को माला पहनाना
अनुकूल नह पड़ता। अपनी-अपनी कृ ित है। भगवान भूतल पर कोई बड़ा काम करते
थे, तो िनठ ले देवता आकाश से फू ल बरसाते थे। दोन का वा य ठीक रहता था।
कम के िलए फू ल तोड़ने म िनठ ले का व अ छा कट जाता है।
संयोजक अब िनणय पर प च ं रहे ह। दूर ह, पर हाव-भाव से पूरा वातालाप म
सुन रहा ।ं एक कहता है–परसाईजी ठीक रहगे। दूसरे का चेहरा िख होता है। कहता
है–नह यार, वह नह जमगे। तब तीसरा मेरे समथन म कहता है–कोई और यहां है ही
नह और टाइम ब त हो गया। ब मत मेरे प म हो गया है। म जा कट के बटन लगा
लेता ।ं बाल पर हाथ फे रता ।ं दु त ह। माल चेहरे पर फे रता ,ं िजससे
उच ापन साफ हो जाए और नीचे दबी ग भीरता ऊपर आ जाए। अब वे आते ही ह।
मालाएं एकटक नजर मेरी तरफ देख रही ह। उ ह गदन िमल गई।
म मंच पर प चं गया। एवज़ म मु य अितिथ म पहले भी एक बार बन चुका था।
तब सं था के मं ी ने ोता से कहा था–हम बड़ा दुख है क अमुकजी नह आए,
इसिलए परसाईजी को मु य अितिथ बनाना पड़ रहा है। आशा है, आप लोग हम मा
करगे। यह सुनकर भी म बेशम लादकर बैठा रहा।
मालाएं मुझे पहनाई जाने लग । मुझे इसका अ यास कम है। गदन भी अभी
माला के अनुकूल नह है। कई गदन मने ऐसी देखी ह जैसे वे माला पहनने के िलए ही
बनी ह । गदन और माला िब कु ल ‘मेड फॉर ईच अदर’ रहती ह। माला लपककर गले
म फट हो जाती है। फू ल क मार िवकट होती है। कई गदन जो संघष म कटने के िलए
पु कर दी गई थ , माला पहनकर लचीली हो गई ह। एक ांितकारी इधर रहते ह
िजनक कभी तनी ई गदन थी। मगर उ ह माला पहनने क लत लग गई। अब उनक
गदन छू ने से लगता है, भीतर पानी भरा है। पहले जन-आ दोलन म मु य अितिथ होते
थे, अब मीना बाजार म मु य अितिथ होते ह।
मने 10-12 मालाएं पहन और मेरी सारी उ तता चली गई। फू ल क मार बुरी
होती है। शेर को अगर कसी तरह एक फू लमाला पहना दो तो गोली चलाने क ज़ रत
नह है। वह फौरन हाथ जोड़कर कहेगा–मेरे यो य कोई और सेवा!
मं ी माइक पर कहता है–अब परसाईजी हम दशा-िनदश करगे। यह त ण क
सं था है। म इ ह या दशा बताऊं? हर दशा म यहां दशा-शूल ह। कभी सोचा था क
तकनीक िश ा क दशा म जाना चािहए मगर हज़ार बेकार इं जीिनयर ह। उस दशा
म भी दशा-शूल िनकला।
या दशा बताऊं? ये त ण मुझ जैसे के गले म यहां माला पहना रहे ह और इ ह
क उ के बंगाल के त ण मुझ जैसे क गदन काट रहे ह। कौन-सी सही दशा है? माला
पहनाने क , या गला काटने क ?
कसी को दशा नह मालूम। दशा पाने के िलए यहां क राजनैितक पा टयां एक
अिधवेशन उ र म ीनगर म करती ह, दूसरा दि ण म ि वे म म, तीसरा पूव म
पटना म और चौथा पि म म जोधपुर म–मगर चार तरफ घूमकर भी जहां क तहां
रहती ह। बाएं जाते-जाते लौटकर दाएं चलने लगती ह।
दशा मुझे मालूम ही नह है। कई साल पहले म नए लेखक के प म दशा खोज
रहा था। तभी दूसर ने कहा–बेवकू फ, जो दशा पा लेता है वह घ टया लेखक होता है।
सही लेखक दशाहीन होता है। ऊंचा लेखक वह जो नह जानता क कहां जाना है, पर
चला जा रहा है।
दशा मने छोड़ दी। देख रहा ,ं लेखक चौराहे से चार सड़क पर जाते ह। मगर
दूर नह जाते। लौट-लौटकर चौराहे पर आ जाते ह और इं तज़ार करते ह क उ ह उठा
ले जाने वाली कार कब आती है और वे बैठकर बाक लेखक को ‘टा-टा’ बोलकर चले
जाते ह। सुना है, ब बई, कलक ा, द ली म तो हवाई जहाज़ से उड़ा ले जाते ह। म
दशा क खोज म जूते िघसता रहा और चौराहे का यान नह रखा। देर से चौराहे पर
लौटता ,ं देखता ,ं साथ के लोग को उठा िलया गया है।
नह , दशा म नह बता सकता। फू ल-माला से लाद दो तब भी नह । दशा आज
िसफ अंधा बता सकता है। अंधे दशा बता भी रहे ह। सवेरे युवक को दशा बताएंग,े
शाम को वृ को। कल डॉ टर को दशा बताएंग,े तो परस पा कटमार को। अंधा
दशा भेद नह कर सकता, इसिलए सही दशा दखा सकता है।
मने ोता से कहा–म दशा नह जानता। फर म ब त दयालु और शरीफ मु य
अितिथ ।ं आपको िब कु ल तकलीफ नह दूग
ं ा। म भाषण नह दूग
ं ा।
ोता ने ल बा भाषण सुनने के िलए सारी शि बटोर ली थी। सांप दखे तो
आदमी उससे बचने के िलए ायु को ती कर लेता है, मांसपेिशयां मज़बूत हो जाती
ह। मगर फर यह समझ म आया क र सी है, तो राहत तो िमलती है, पर साथ ही एक
तरह क िशिथलता और िगरावट भी आती है। मेरे ोता का यही हाल था। िजसे
सांप समझे थे वह र सी िनकला।
बाद म संयोजक ने कहा–आपने भाषण य नह दया? मने कहा–वे ोता मेरे
नह थे। तु हारे उन मु य अितिथ के थे। म दूसरे का मारा आ िशकार नह खाता।
चुनाव के ये अनंत आशावान

चुनाव के नतीजे घोिषत हो गए। अब मातमपुस का काम ही रह गया है। इतने बड़े-
बड़े हारे ह क मुझ जैसे क िह मत मातमपुस क भी नह होती। मने एक बड़े क हार
पर दु:ख कट करते ए िच ी िलखी थी। जवाब म उनके सिचव ने िलखा–तु हारी
इतनी जुरत क साहब क हार पर दुखी होओ? साहब का कहना है क उनक हार पर
दुःख मनाना उनका अपमान है। वे या इसिलए हारे ह क तुम जैसे टु े आदमी दुखी
ह ? बड़े क हार पर छोटे आदमी को दुखी होने का कोई हक नह । साहब आगे भी
हारगे। पर तु ह चेतावनी दी जाती है क अगर तुम दुखी ए, तो तुम पर मानहािन का
मुकदमा दायर कया जाएगा।
बड़ी अजब ि थित है। दुखी होना चाहता ,ं पर दुखी होने का मुझे अिधकार ही
नह है। मुझे लगता है, समाजवाद इसी को कहते ह, क बड़े क हार पर बड़ा दुखी हो
और छोटे क हार पर छोटा। हार के मामले म वग संघष ख म हो गया।
म अब कसी क हार पर दु:ख क िच ी नह िलखूंगा। पर जो आस-पास ही बैठे ह,
उनके ित तो क िनभाना ही पड़ेगा। िच ी म मातमपुस करना आसान है। म
हँसते-हँसते भी दु:ख कट कर सकता ।ं पर य मातमपुस क ठन काम है। मुझे
उनक हार पर हँसी आ रही है, पर जब वे सामने पड़ जाएं तो मुझे चेहरा ऐसा बना
लेना चािहए जैसे उनक हार नह ई, मेरे िपता क सुबह ही मृ यु ई है। इतना अपने
से नह सधता। य मातमपुस म म हमेशा फे ल आ ।ं मगर देखता ,ं कु छ लोग
मातममुखी होते ह। लगता है, भगवान ने इ ह मातमपुस क ड् यूटी करने के िलए ही
संसार म भेजा है। कसी क मौत क खबर सुनते ही वे खुश हो जाते ह। दु:ख का मेक-
अप करके फौरन उस प रवार म प च ं जाते ह। कहते ह–िजसक आ गई, वह तो
जाएगा ही। उनक इतनी ही उ थी। बड़े पु या मा थे। कसी का दल नह दुखाया।
(हालां क उ ह ने कई लोग क ज़मीन बेदखल कराई थी।) उ ह कसी के कु े ने काट
िलया हो और वह कु ा आगे मर जाए तो भी वे उसी शान से मातमपुस करगे–बड़ा
सुशील कु ा था। बड़ी साि वक वृि का। कभी कसी को तंग नह कया। उसके र
थान क पू त ान-जगत् म नह हो सकती।
म कभी चुनाव नह लड़ा। एक बार सवस मित से अ यापक संघ का अ य हो
गया था। एक साल म मने तीन सं था म हड़ताल और दो अ यापक से भूख हड़ताल
करवाई। नतीजा यह आ क सवस मित से िनकाल दया गया। अपनी इतनी ही
संसदीय सेवा है। सोचता ,ं एक बार चुनाव लड़कर हार लूं तो अपनी पीढ़ी का नारा
‘भोगा आ यथाथ’ साथक हो जाए। तब शायद म मातमपुस के यो य मूड बना सकूं ।
अपनी असमथता के कारण म चुनाव के बाद हारे क गली से नह िनकलता।
पर ये अन त आशावान लोग कह िमल ही जाते ह। एक साहब िपछले पं ह साल से
हर चुनाव लड़ रहे ह और हर बार ज़मानत ज़ त करवाने का गौरव ा कर रहे ह। वे
नगर िनगम का चुनाव हारते ह तो समझते ह, जनता मुझे नगर के छोटे काम क अपे ा
देश का काम स पना चाहती है। और वे िवधान सभा का चुनाव लड़ जाते ह। यहां भी
ज़मानत ज़ त होती है तो वे सोचते ह, जनता मुझे देश क िज़ मेदारी स पना चाहती
है–और वे लोकसभा का चुनाव लड़ जाते ह।
हार के बाद वे मुझे िमल जाते ह। बाल िबखरे ए, बदहवास। मेरा हाथ पकड़ लेते
ह। झकझोर करते ह–टेल मी परसाई, इज़ दस डेमो े सी? या यह जनतं है? म कु छ
‘हां- ’ं करके छू टना चाहता ं तो वे मेरे पांव पर पांव रख देते ह और मेरे मुंह से
लगभग मुंह लगाकर कहते ह–नह , नह , तु ह बताओ। यह या जनतं है?
मुझे कहना पड़ता है–यह जनतं नह है। िपछले 15-20 साल म जब-जब वे
चुनाव हारे ह, तब-तब मुझे यह िनणय लेना पड़ा है क यह जनतं झूठा है। जनतं
झूठा है या स ा–यह इस बात से तय होता है क हम हारे या जीते? ि य का ही
नह , पा टय का भी यही सोचना है क जनतं उनक हार-जीत पर िनभर है। जो भी
पाट हारती है, िच लाती है–अब जनतं खतरे म पड़ गया। अगर वह जीत जाती तो
जनतं सुरि त था।
एक और अनंत आशावान ह। कोई शाम को उ ह दो घंटे के िलए लाउड पीकर
दला दे तो वे चौराहे पर नेता हो जाते ह और जनता क सम या के िलए लड़ने लगते
ह। लाउड पीकर का नेता–जाित क वृि म या थान है, यह शोध का िवषय है।
नेतािगरी आवाज़ के फै लाव का नाम है।
ये नेता मुझे कभी शाम को चौराहे पर गम भाषण करते िमल जाते ह। ोध से
माइक पर िच लाते ह–राइट टाउन म आवारा सूअर घूमते रहते ह। कॉप रे शन के
अिधकारी या सो रहे ह? म नगर िनगम अिधकारी के इ तीफे क मांग करता ।ं यह
जनतं का मज़ाक है क राइट टाउन म आवारा सूअर घूमते रहते ह और साहब चैन क
न द सोते ह। इस पर देश सरकार को इ तीफा देना चािहए। म भारत सरकार से
इ तीफे क मांग करता ।ं
राइट टाउन के आवारा सूअर को लेकर वे भारत सरकार से िपछले 10 साल से
इ तीफा मांग रहे ह, पर सूअर भी जहां के तहां ह और सरकार भी। मगर ये लाउड
पीकरी नेता अपनी लोकि यता के बारे म इतने आ त ह क हर चुनाव म खड़े हो
जाते ह। उनक ज़मानत ज़ त होती है। पर मने उनके चेहरे पर िशकन नह देखी।
िमलते ही कहते ह–पैसा चल गया। शराब चल गई। उ ह ने अपनी हार का एक कारण
ढू ंढ़ िनकाला है क चुनाव म पैसा और शराब चल जाते ह और वे हरा दए जाते ह। वे
खुश रहते ह। उ ह िव ास है क जनता तो उनके साथ है, मगर वह पैसे और शराब के
कारण दूसरे को वोट दे देती है। वे जनता से िब कु ल नाराज़ नह ह। वे इस बात को
जायज़ मानते ह क मतदाता उसी को वोट दे जो पैसा और शराब दे। अभी वे लोकसभा
के चुनाव म ज़मानत ज़ त कराने के बाद िमले तो खुश थे। बड़े उ साह से बोले–वही
आ। पैसा चल गया। शराब चल गई।
हमारे मनीषीजी छोटा चुनाव कभी नह लड़ते। हर बार िसफ लोकसभा का
चुनाव लड़ते ह। उनक भी एक पाट है। अिखल भारतीय पाट है। लोग ने उसका नाम
न सुना होगा। उसका नाम है ‘व वादी पाट ’। वाद है, ‘व वाद’ और सं थापक ह–डॉ.
व हार! इस पाट क थापना म य देश के एक क बे टमरनी म डॉ. व हार ने
क थी और वे जब देश म अनुयायी ढू ंढ़ने िनकले तो हमारे शहर म उ ह मनीषीजी िमल
गए। पाट म कु ल ये दो सद य ह और ांित के बारे म ब त गंभीरता से सोचते ह।
मनीषी फ ड़ फक र ह। पर हर लोकसभा चुनाव के व ज़मानत के िलए 500 . और
पचा छपाने का खच कह से जुटा लेते ह। हर बार उ ह चुनाव लड़वाने के िलए डॉ.
व हार आ जाते ह। सभाएं होती ह, भाषण होते ह। म देखता ,ं दोन धीरे -धीरे
सड़क पर बड़ी गंभीरता से बात करते चलते ह। डॉ. व हार कहते ह–मनीषी,
रवॉ यूशन इज़ राउ ड दी कॉनर! ांित आने म देर नह है। तब मनीषी कहते ह–पर
डॉ टर साहब, ांित का प या होगा और उसके िलए हम कै सा ‘ऐलान’ कर लेना
चािहए, यह अभी तय हो जाना चािहए। डॉ टर साहब कहते ह–वो तुम मेरे ऊपर छोड़
दो। आई शेल िगव यू गाइड लाइं स। म तु हारा िनदश क ं गा। पर तुम जनता को ांित
के िलए तैयार कर डालो।
ये दोन स े ांितकारी कई साल से गंभीरतापूवक ांित क योजना बना रहे ह,
पर पाट म तीसरा आदमी अभी तक नह आया। इस बार मने पूछा–मनीषीजी, डॉ.
व हार नह आए? मनीषी ने कहा–मेरा उनसे सै ांितक मतभेद हो गया। भारतीय
राजनीित क कतनी बड़ी ेजडी है क िजस पाट म दो आदमी ह , उ ह म सै ाि तक
मतभेद हो जाए। मनीषी ने कहा–उनक िच ी आई है। इस पच म छपी है। उ ह ने
अपना पचा बढ़ा दया–‘इं टरनेशनल यूज़।’ डॉ टर साहब का बड़ा गंभीर प है–आई
एम र लाइं ग टु द पॉिल टकल पाट अॉफ योर लेटर।
मनीषी क ज़मानत ज़ त हो गई है, पर ांित क तैयारी दोन नेता बराबर करते
जा रहे ह।
एक दन मने पो टर िचपके देख–े ‘जनता के उ मीदवार सरदार के सर संह को वोट
दो।’ कोई नह जानता, ये कौन ह? िजस जनता के उ मीदवार ह वह भी नह जानती।
कसी ने मुझे बताया क वे खड़े ह सरदार के सर संह। मने पूछा–आप कस मकसद से
चुनाव लड़ रहे ह? उ ह ने सादा जवाब दया–मकसद? अजी मकसद यह या कम है
क आप जैसा आदमी पूछे क सरदार के सर संह कौन ह?
एक साहब अभी जनता क आवाज़ पर दो चुनाव लड़ चुके और ज़मानत खो चुके
ह। जनता भी अजीब है। वह आवाज़ देती है, पर वोट नह देती। वे तीसरे चुनाव क
योजना अभी से बना रहे ह।
लोग जनता क आवाज़ कै से सुन लेते ह? कस ‘वेव ल थ’ पर आती है यह? म भी
जनता म रहता ,ं बहरा भी नह ,ं पर जनता क आवाज़ मुझे कभी सुनाई नह
पड़ती। ये लोग आशा के कस झरने से पानी पीते ह क अनंत आशावान रहते ह? इनक
अंतरा मा म कौन-सी वह शि है, जो इ ह हर हार के बाद नया उ साह देती है? मुझे
यह शि और अनंत आशा िमल जाए तो कमाल कर दू।ं जनतं के इन शा त
आशावान र को िसफ णाम करना ही अपने िह से म आया है।
साधना का फौजदारी अ त

पहले वह ठीक था। वह अपर िडिवज़न लक है। बीवी है, दो ब े ह। किवता वगैरह
का शौक है। तीसरा ब ा होने तक यू. डी. सी. का का - ेम बराबर रहता है। इसके
बाद वह भजन पर आ जाता है–दया करो हे दयालु भगवन! और दयालु भगवन दया
करके उसे प रवार-िनयोजन के को भेज देते ह, जहां लाल ितकोन म उसे ई र क
छिव दखती है।
वह मेरे पास कभी-कभी आता। किवता सुनाता। कोई पु तक पढ़ने को ले जाता,
िजसे नह लौटाता।
2-3 महीने वह लगातार नह आया। फर एक दन टपक पड़ा। पहले िज ासु क
तरह आता था। अब कु छ इस ठाठ से आया जैसे िज ासा शांत करने आया हो। उसका
कु स पर बैठना, देखना, बोलना–सब बदल गया था। उसने किवता क बात नह क ।
सुबह के अखबार क खबर क बात भी नह क थी।
बड़ी देर तो चुप ही बैठा रहा। फर ग भीर वर म बोला–म जीवन के स य क
खोज कर रहा ।ं
म च का। स य क खोज करने वाल से म छड़कता ।ं वे अकसर स य क ही तरफ
पीठ करके उसे खोजते रहते ह।
मुझे उस पर सचमुच दया आई। इन गरीब लक को स य क खोज करने के िलए
कौन बहकाता है? स य क खोज कई लोग के िलए ऐयाशी है। यह गरीब आदमी क
हैिसयत के बाहर है।
म कु छ नह बोला। यही बोला–जीवन-भर म जीवन के स य क खोज क ं गा।
यही मेरा त है।
मने कहा–रात-भर खटमल मारते रहोगे, तो सोओगे कब!
वह समझा नह । पूछा– या मतलब?
मने कहा–मतलब यह है क जीवन-भर जीवन के स य क खोज करते रहोगे,
जीओगे या मरने के बाद?
उसने कहा–जीना? जीना कै सा? पहले जीवन के उ े य को तो मनु य जाने।
उसे रटाया गया था। मने फर उसे पटरी पर लाने क कोिशश क । कहा–देख भाई,
ब त से बेवकू फ जीवन का उ े य खोजते ए िन े य जीवन जीते रहते ह। तू या
उ ह म शािमल होना चाहता है?
उसे कु छ बुरा लगा। कहने लगा–आप हमेशा इसी तरह क बात करते ह। फर भी
म आपके पास आता ।ं य क म जानता ं क आप भी स य क खोज करते ह। आप
जो िलखते ह, उससे यही मालूम होता है।
मने कहा–यह तु हारा याल गलत है। म तो हमेशा झूठ क तलाश म रहता ।ं
कोने-कोने म झूठ को ढू ंढ़ता फरता ।ं झूठ िमल जाता है, तो ब त खुश होता ।ं
न वह समझा, न उसे िव ास आ। वह मुझे अपनी तरह ही स या वेषी, समझता
रहा।
मने पूछा–तुम एकदम से स या वेषी कै से हो गए? या द तर म पैस का कोई
गोलमाल कया है?
उसने कहा–नह , मुझे गु िमल गए ह। उ ह ने मुझे स य क खोज म लगाया है।
मने पूछा–कौन गु ह वे?
उसने नाम बयाया। म उ ह जानता था।
यू. डी. सी. बोला–गु देव क वाणी म अमृत है। दय तक उनक बात प च
ँ जाती
है।
मने पूछा– दमाग तक बात प च
ं ती है या नह ?
उसने कहा– दमाग? दमाग को तो पलट देती है।
इसका नमूना तो वह खुद था।
वह मेरे पास कभी-कभी आता। उसक साधना लगातार बढ़ रही थी।
एक दन आते ही पूछने लगा–बताइए, म कौन ?ं
मने कहा–तुम िबहारीलाल हो, यू. डी. सी.।
उसने कहा–नह , यह म है। िबहारीलाल तो इस कू ल-चोले का नाम है। म शु
बु आ मा ।ँ
मने कहा–यार, महीने-भर पहले ही तेरे यहां ब ा आ है। या आ मा ब ा पैदा
कर सकती है?
उसने कहा–आपका यह तक गलत है। गु देव ने कहा है, ऐसे का उ र मत
दया करो। कोई भी मेरे इस का ठीक जवाब नह देता। प ी से मने पूछा–म कौन
?ं तो वह कहती है तुम मेरे पित हो। बड़े लड़के से मने पूछा–म कौन ?ं तो वह कहता
है–तुम हमारे पापा हो। द तर के साहब से पूछा–सर, म कौन ?ं तो उ ह ने जवाब
दया–तुम पागल हो। पर म िनराश नह होता। गु देव ने कहा है, लगातार इस का
उ ारण कया करो–‘म कौन ?ं म कौन ?ं एक दन तुम इसका उ र पा जाओगे और
अपने को जान जाओगे।
वह दो-तीन महीने नह आया। उसके सािथय ने बताया क वह पाक म शाम को
‘म कौन ?ं म कौन ?ं ’ कहता आ नाचता रहता है। द तर म भी दन भर कहता
रहता है–म कौन ?ं फाइल पर िलख देता है। म कौन ?ं जहां उसे द तख़त करने होते
ह वहां िलख देता है–म कौन ?ं
एक दन वह फर आया। वही जीवन के स य क बात करता रहा। गु देव के
गुणगान जब कर चुका तब मने उससे पूछा–तु हारे गु ने स य को पा िलया?
उसने कहा–ब त पहले।
मने पूछा–वे कहां रहते ह?
उसने कहा–उनका आलीशान आ म है। एयरकं डीशंड है पूरा।
मने पूछा– या गु क आ मा को गम लगती है?
उसने कहा–गु देव ने ऐसे का जवाब देने से मना कया है।
मने पूछा–तु हारे गु देव के पास ब ढ़या कार है न?
उसने कहा–हां, है।
फर पूछा–वे ब ढ़या भोजन भी करते ह गे।
उसने कहा–हां, करते ह।
मने पूछा– या आ मा को पकवान क इतनी भूख लगती है?
उसने कहा–गु देव ने ऐसे का जवाब देने से मना कया है।
तब मने उससे कहा–तु हारे गु ने जीवन के स य को पा िलया है। इधर
एअरकं डीशंड मकान और कार वगैरह भी पा िलए ह। उनके पास पैसा भी है। उ ह ने
पैसा भी पा िलया है। याने गु क दृि म स य वह है, जो अपने को बंगला, कार और
पैसे के प म गट करता है। अ छा, यह तो बताओ क तु हारे गु को इतना पैसा कहां
से िमलता है?
उसने कहा–गु देव के बारे म यह उठता ही नह है। वे आलौ कक पु ष ह। वे
तो भगवान क को ट म आनेवाले ह।
मने उससे पूछा–तुम यूिनयन म हो?
उसने कहा–नह , गु देव का आदेश है, क भौितक लाभ के इन संघष म साधक
को नह पड़ना चािहए।
मने कहा–तो फर गु का स य अलग है और तु हारा स य अलग है। दोन के स य
एक नह ह। गु का स य वह है िजससे बंगला, कार और पया जैसी भौितक ाि
होती है। और तु हारे िलए वे कहते ह क भौितक लाभ के संघष म मत पड़ो। यह
तु हारा स य है? इनम कौन-सा स य अ छा है? तु हारा या गु का?
वह मुि कल म पड़ गया। जवाब उसे सूझा नह तो िचढ़ गया। कहने लगा–आप
अ ालु ह। ऊटपटांग बात करते ह। म आपके पास नह आऊंगा।
वह नह आया मगर मुझे समाचार िमलते रहते थे क साधना उसक लगातार बढ़
रही है। वह द तर के काम म गफलत करता है। फाइल पर नोट क जगह िलख देता
है–म िबहारीलाल नह ।ं म नह जानता, म कौन ?ं म अपने को खोज रहा ।ं
और एक दन मुझे खबर िमली क वह स पड कर दया गया है।
एक दन उसका एक साथी मुझे िमला। मने उसके बारे म पूछा तो उसने बताया
क वह गुमसुम रहता है और कु छ सोचता रहता है।
मने पूछा–‘म कौन ?ं करता है या नह ?
उसने बताया–अब ‘म कौन ?ं ’ नह करता। शायद उसे उ र िमल गया है।
साधना का मामला है।
काफ दन बीत गए।
एक दन वह अचानक आया। वह बदल गया था। दुखी था पर उसम एक खास
क म क दृढ़ता भी आ गई थी। उसने स पड होने और ि गत मुसीबत क बात
बता । स य-चचा उसने िब कु ल नह क ।
उसने कहा–म आपके पास इसिलए आया था क कोई अ छा फौजदारी वक ल
करा दीिजए। आप तो ब त वक ल को जानते ह।
मने कहा–मामला या है?
उसने कहा–मने फौजदारी क है। के स चलेगा।
मने पूछा–कै सी फौजदारी?
उसने तब मुझे बताया–आप तो मुझे साल-भर से देख ही रहे ह। म स य क खोज
म लगा था। ‘म कौन ?ं ’ के िसवा और कोई धुन मुझे नह थी। म इसम बरबाद हो
गया। िजन गु देव ने मुझे इस रा ते पर लगाया था, उनके पास म परस गया। वे बोले-
आओ साधक, बैठो! उस समय दो ि यां उनके शरीर क मािलश कर रही थ । मािलश
िनबटने के बाद उ ह ने मुझे अपनी पिव आंख से देखा। पूछने लगे–साधना कै सी चल
रही है? मने कहा–गु देव, साधना तो सफल हो गई।
वे च के । पूछा–‘म कौन ?ं ’ इस का उ र िमल गया?
मने कहा–नह , पर इस का ठीक उ र िमल गया क तुम कौन हो?
और साहब, म गु पर टू ट पड़ा। खूब िपटाई क । अब मुझे एक अ छा वक ल दला
दीिजए।

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