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अपनी-अपनी बीमारी

पुराना िखलाड़ी

समय काटनेवाले रामकथा ेपक

बुि वादी प्रेम की िबरादरी

घम ेतर् े-कु ेतर् े

िजसकी छोड़ भागी है िकताबों की दुकान और दवाओं की घुटन के प द्रह िमनट

आचायजी, ए सटशन और बागीचा िसलिसला फोन का

बरात की वापसी

इं पे टर मातादीन चांद पर असुिवधाभोगी

बैरंग शुभकामना और प्रजातंतर्

इितहास का सबसे बड़ा जुआ आना न आना रामकु मार का िदशा बताइए

चुनाव के ये अनंत आशावान साधना का फौजदारी अ त

जे

अपनी-अपनी बीमारी

हम उनके पास चंदा मांगने गए थे। चंदे के पुराने अ यासी का चेहरा बोलता है। वे हम भांप
गए। हम भी उ ह भांप गए। चंदा मांगनेवाले और देने वाले एक-दूसरे के शरीर की गंध
बखूबी पहचानते ह। लेने वाला गंध से जान लेता है िक यह देगा या नही। ं देनवे ाला भी
मांगनेवाले के शरीर की गंध से समझ लेता है िक यह िबना िलए टल जाएगा या नही। ं हम
बैठते ही समझ म आ गया िक ये नही ं दगे। वे भी शायद समझ गए िक ये टल जाएंग। े िफर
भी हम दोनों प ों को अपना क य तो िनभाना ही था। हमने प्राथना की तो वे बोले-
आपको चंदे की पड़ी है, हम तो टै सों के मारे मर रहे ह।
सोचा,यह टै स की बीमारी कैसी होती है। बीमािरयां बहुत देखी ह-िनमोिनया, कॉलरा,
कसर; िजनसे लोग मरते ह। मगर यह टै स की कैसी बीमारी है िजससे वे मर रहे थे! वे
परू ी तरह से व थ और प्रस न थे। तो या इस बीमारी म मज़ा आता है? यह अ छी
लगती है िजससे बीमार तगड़ा हो जाता है। इस बीमारी से मरने म कैसा लगता होगा?
अजीब रोग है यह। िचिक सा- िव ान म इसका कोई इलाज नही ं है। बड़े से बड़े डॉ टर
को िदखाइए और किहए-यह आदमी

टै स से मर रहा है। इसके प्राण बचा लीिजए। वह कहेगा-इसका हमारे पास कोई इलाज
नही ं है। लेिकन इसके भी इलाज करने वाले होते, मगर वे एलोपै थी या होिमयोपै थी पढ़े नही ं
होते। इसकी िचिक सा-प ित अलग है। इस देश म कु छ लोग टै स की बीमारी से मरते ह
और काफी लोग भुखमरी से।

टै स की बीमारी की िवशेषता यह है िक िजसे लग जाए वह कहता है-हाय, हम टै स से मर


रहे ह, और िजसे न लगे वह कहता है-हाय, हम टै स की बीमारी ही नही ं लगती। िकतने
लोग ह िजनकी मह वाकां ा होती है िक टै स की बीमारी से मर, पर मर जाते ह, िनमोिनया
से। हम उन पर दया आई। सोचा, कह िक प्रॉपट समेत यह बीमारी हम दे दीिजए। पर वे
नही ं देत।
े यह कमब त बीमारी ही ऐसी है िक िजसे लग जाए, उसे यारी हो जाती है।

मुझे उनसे ई या हुई। म उन जैसा ही बीमार होना चाहता हूं। उनकी तरह ही मरना चाहता
हूं। िकतना अ छा होता अगर शोक-समाचार यों छपता-बड़ी प्रस नता की बात है िक
िह दी के यं य लेखक हिरशंकर परसाई टै स की बीमारी से मर गए। वे िह दी के प्रथम
लेखक ह जो इस बीमारी से मरे। इस घटना से सम त िह दी संसार गौरवाि वत है। आशा
है, आगे भी लेखक इसी बीमारी से मरगे!

मगर अपने भा य म यह कहां? अपने भा य म तो टु ची बीमािरयों से मरना िलखा है।

उनका दुख देखकर म सोचता हूं, दुख भी कैसे-कैसे होते ह। अपना-अपना दुख अलग
होता है। उनका दुख था िक टै स मारे डाल रहे ह। अपना दुख है िक प्रॉपट ही नही ं है
िजससे अपने को भी टै स से मरने का सौभा य प्रा त हो। हम कु ल 50 पये चंदा न
िमलने के दुख म मरे जा रहे थे।

मेरे पास एक आदमी आता था, जो दूसरों की बेईमानी की बीमारी से मरा जाता था। अपनी
बेईमानी प्राणघातक नही ं होती, बि क संयम से साधी जाए तो वा यव क होती है। कई
पितव्रताएं, दूसरी औरतों के कु लटापन की बीमारी से परेशान रहती ह। वह आदश प्रेमी
आदमी था। गांधीजी के नाम से चलने वाले िकसी प्रित ठान म काम करता था। मेरे पास
घंटों बैठता और बताता िक वहां कैसी बेईमानी चल रही है। कहता-युवाव था म मने अपने
को समिपत कर िदया था। िकस आशा से इस सं था म गया और या देख रहा हूं। मने
कहा-भैया, युवाव था म िजस- िजसने समिपत कर िदया वे सब रो रहे ह। िफर तुम आदश
लेकर गए ही यों? गांधीजी दुकान खोलने का आदेश तो मरते-मरते दे नही ं गए थे। म
समझ गया, उसके क ट को। गांधीजी का नाम प्रित ठान म जुड़ा होने के कारण वह
बेईमानी नही ं कर पाता था और दूसरों की बेईमानी से बीमार था। अगर प्रित ठान का नाम
कु छ और हो जाता तो वह भी औरों जैसा करता और व थ रहता। मगर गांधीजी ने
उसकी िज़ंदगी बरबाद की थी। गांधीजी िवनोबा जैसों की िज़ दगी बरबाद कर गए।

बड़े-बड़े दुख ह! म बैठा हूं। मेरे साथ 2-3 बंध ु बैठे ह। म दुखी हूं। मेरा दुख यह है िक
मुझे िबजली का 40 पये का िबल जमा करना है और मेरे पास इतने पये नही ं ह।

तभी एक ब धु अपना दुख बताने लगता है। उसने 8 कमरों का मकान बनाने की योजना
बनाई थी। 6 कमरे बन चुके ह। 2 के िलए पै से की तंगी आ गई है। वह बहुत-बहुत दुखी
है। वह अपने दुख का वणन करता है। म प्रभािवत नही ं होता। मगर उसका दुख िकतना
िवकट है िक मकान को 6 कमरों का नही ं रख सकता। मुझे उसके दुख से दुखी होना
चािहए, पर नही ं हो पाता। मेरे मन म िबजली के िबल के 40 पये का खटका लगा है।

दूसरे ब धु पु तक-िवक्रेता ह। िपछले साल 50 हज़ार की िकताब पु तकालयों को बेची


थी।ं इस साल 40 हज़ार की िबकी। ं कहते ह-बड़ी मुि कल है। िसफ 40 हज़ार की
िकताब इस साल िबकी। ं ऐसे म कैसे चलेगा? वे चाहते ह, म दुखी हो जाऊं, पर म नही ं
होता। इनके पास मने अपनी

100 िकताब रख दी थी। ं वे िबक गई।ं मगर जब म पै से मांगता हूं, तो वे ऐसे हँसने लगते
ह जैसे म हा यरस पै दा कर रहा हूं। बड़ी मुि कल है यं यकार की। वह अपने पै से मांग,े
तो उसे भी यं य- िवनोद म शािमल कर िलया जाता है। म उनके दुख से दुखी नही ं होता।
मेरे मन म िबजली कटने का खटका लगा हुआ है।

तीसरे ब धु की रोटरी मशीन आ गई। अब मोनो मशीन आने म किठनाई आ गई है। वे दुखी
ह। म िफर दुखी नही ं होता।

अ ततः मुझ लगता है िक अपने िबजली के िबल को भल ू कर मुझे इन सबके दुख से दुखी हो
जाना चािहए। म दुखी हो जाता हूं। कहता हूं- या ट् रेजडी है मनु य-जीवन की िक मकान
कु ल 6 कमरों का रह जाता है। और कैसी िनदय यह दुिनया है िक िसफ 40 हज़ार की
िकताब खरीदती है। कैसा बुरा व त आ गया है िक मोनो मशीन ही नही ं आ रही है।

वे तीनों प्रस न ह िक म उनके दुखों से आिखर दुखी हो ही गया।

तरह-तरह के संघष म तरह-तरह के दुख ह। एक जीिवत रहने का संघष है और एक


स पननता का संघष है। एक यन ू तम जीवन- तर न कर पाने का दुख है, एक पया त
स पननता न होने का दुख है। ऐसे म कोई अपने टु चे दुखों को लेकर कैसे बैठे?

मेरे मन म िफर वही लालसा उठती है िक वे स जन प्रॉपट समेत अपनी टै सों की बीमारी
मुझे दे द और उससे म मर जाऊं। मगर वे मुझे यह चांस नही ं दगे। न वे प्रॉपट छोड़गे, न
बीमारी, और अ ततः िकसी ओछी बीमारी से ही मरना होगा।

गौः | थौ +

पुराना िखलाड़ी

सरदारजी ज़बान से तंदरू को गम करते ह। ज़बान से बतन म गो त चलाते ह। पास बैठे


आदमी से भी इतने जोर से बोलते ह, जैसे िकसी सभा म िबना माइक बोल रहे हों। होटल
के बोड पर िलखा है-“यहां चाय हर व त तैयार िमलती है।” नासमझ आदमी चाय मांग
बैठता है और सरदार जी यही कहते ह-चाय ही बेचना होता, तो उसे बोड पर यंू िलखता
बा शाओ! इधर नेक ब चों के िलए कोई चाय नही ं है। समझदार “चाय” का मतलब
समझते ह और बैठते ही कहते ह-एक चवननी!

सरदारजी मुह ले के रखवाले ह। इधर के हर आदमी का चिरत्र वे जानते ह। अजनबी को


ताड़ लेते ह। तंदरू म सलाख मारते हुए िच लाते ह-

-वो दो बार ससुराल म रह आया है जी। ज़रा बच के। -उसके घर म दो ह जी। िकसी के
गले म डालना चाहता है। ज़रा बच के बा शाओ!

-दो जचकी उसके हो चुकी ह। तीसरी के िलए बाप के नाम की तलाश जारी है। ज़रा बच
के।

- उसकी खादी पर मत जाणाजी। गांधी को फु टकर बेचता ह। ज़रा बच के।

उस आदमी को मेरे साथ दो-तीन बार देखकर सरदारजी ने आगाह िकया था-वह पुराना
िखलाड़ी है। ज़रा बच के।
िजसे पुराना िखलाड़ी कहा था, वह 35-40 के बीच का सीधा आदमी लगता था। हमेशा
परेशान। हमेशा तनाव म। कई आधुिनक किव उससे तनाव उघार मांगने आते होंग।
े उसम
बचने

लायक कोई बात मुझे नही ं लगती थी।

| घंटी एक िदन वह अचानक आ गया था। पहले से िबना बताए, िबना घंटी बजाए, िबना
पुकारे,

वह दरवाज़ा खोलकर घुसा और कु स पर बैठ गया। बदतमीज़ी पर मुझे गु सा आया था।


बाद म समझ गया िक इसने बदतमीज़ी का अिधकार इसिलए हािसल कर िलया है िक वह
अपने काम से मेरे पास नही ं आता। देश के काम से आता है। जो देश का काम करता है,
उसे थोड़ी बदतमीज़ी का हक है। देश-सेवा थोड़ी बदतमीजी के िबना शोभा ही नही ं देती।
थोड़ी बेवकूफी भी िमली हो, तो और चमक जाती है।

वह उ ेिजत था। उसने अपना ब ता टे िबल् पर पटका और सीधे मेरी तरफ घरू कर बोला-
तुम कहते हो िक िबना िवदेशी मदद के योजना चला लोगे। मगर पै सा कहां से लाओगे? है
तु हारे पास देश म ही साधन जुटाने की कोई योजना?

वह जवाब के िलए मुझे घरू रहा था और म इस हमले से उखड़ गया था। योजना की बात
मने नही,ं अथ मंतर् ी ने कही थी। वह अथ मंतर् ी से नाराज़ था। डांट मुझे पड़ रही थी।

उ ेजना म उसने तीन कु िसयां बदली। ं ब ते से पुिल दा िनकाला। बोला-जीभ उठाकर


ताल ू से लगा देते हो। लो, आंतिरक साधन जुटाने की यह कीम।

घंटा-भर अपनी योजना समझाता रहा। कु छ ह का हुआ। पुिलंदा ब ते म रखा और चला


गया।

ह ते-भर बाद वह िफर आया। वै से ही तनाव म। भड़ से दरवाज़ा खोला। ब ते को टे िबल


पर पटका और अपने को कु स पर। बोला-तुम कहते हो, रोड ट् रा सपोट के कारण रेलवे
की आमदनी कम हो रही है। मगर कभी सोचा है, मोटर-ट् रक वाले माल भेजनेवालों को
िकतने सुभीते देते ह? लो यह कीम। इसके मुतािबक काम करो।

उसने रेलवे की आमदनी बढ़ाने के तरीके मुझे समझाए।

वह जब-तब आता। मुझे िकसी िवभाग का मंतर् ी समझकर डांटता और िफर अपनी योजना
समझाता। उसने मुझे िश ा मंतर् ी, कृिष मंतर् ी, िवदेश मंतर् ी सब बनाया। उसे लगता था,
वह सब ठीक कर सकता है, लेिकन िववश है। स ा उसके हाथ म है ही नही।
ं उससे जो
बनता है, करता है। योजना और सुझाव भेजता रहता है।

देश के िलए इतना दुखी आदमी मने दूसरा नही ं देखा। सड़क पर चलता, तो दूर से ही दुखी
िदखता। पास पहुंचते ही कहता-िरज़व बक के गवनर का बयान पढ़ा? सारी इकॉनमी को
न ट कर रहे ह ये लोग। आिखर यह या हो रहा है? ज़रा प्रधानमंतर् ी से कहो न!

सरदारजी ने िफर आगाह िकया-बहुत िचपकने लगा है। पुराना िखलाड़ी है। ज़रा बच के।
मने कहा-मालमू होता है, उसका िदगाम खराब है।

े बोले-दमाग? अजी दमाग तो हमारा-आपका खराब है जो िदन-भर काम


सरदारजी हँस।
करते ह, तब खाते ह। वह 10 सालों से िबना कु छ िकए मज़े म िद ली म रह रहा है। दमाग
तो उसका आला दज का है।

मने कहा-मगर वह दुखी है। रात-िदन उसे देश की िच ता सताती रहती है।

सरदारजी ने कहा-अजब मु क है ये। भगवान ने इसे स टा खेलते-खेलते बनाया होगा।


इधर मु क की िफक्र म से भी रोटी िनकलती है। िफर म आपसे पछ ू ता हूं, िप ी का
िकतना शोरबा बनता है? बताइए, कु छ अंदाज़ा दीिजए। मु क की िफक्र करते-करते गांधी
और नेह जैसे चले गये। अब यह िप ी या सुधार लेगा? इस मु क को भगवान ने खास
तौर से बनाया है। भगवान की बनाई चीज़ म इंसान सुधार यों करे? मु क सुधरेगा तो
भगवान के हाथ से ही सुधरेगा। मगर इंसान से ज़रा ब तु के। पुराना िखलाड़ी है।

मने कहा-पुराना िखलाड़ी होता तो ऐसी हालत म रहता?

सरदारजी ने कहा-उसका सबब है। वह छोटे खेल खेलता है। छोटे दांव लगाता है। मने
उसे समझाया िक एक-दो बड़े दांव लगा और माल समेटकर चैन की बंसी बजा। मगर
उसकी िह मत ही नही ं पड़ती।

सरदारजी मुझे उससे बचने के िलए बार-बार आगाह करते, पर खुद उसे ना ता करा देत,े
कभी रोिटयां दे देत,े कभी पये दे देत।
े मने पछू ा, तो सरदारजी ने कहा-आिखर इंसान है।
िफर उसके साथ बीवी भी है। उसने वह कमाल कर िदखाया है, जो दुिनया म िकसी से
नही ं हुआ-उसने बीवी को यह मनवा िलया है िक वह देश की िक मत पलटने के िलए पै दा
हुआ है। वह कोई मामल ू ी काम करके िज़ंदगी बदबाद नही ं कर सकता। उसका एक िमशन
है। बीवी खुद भी भगवान से प्राथना करती है िक उसके घरवाले का िमशन परू ा हो जाए।
वह िदन-पर-िदन यादा परेशान होता गया। जब-तब मुझे िमल जाता और िकसी मंतर् ालय
की िशकायत करता।
ू ा। उ होंने
अचानक वह गायब हो गया। 8-10 िदन नही ं िदखा, तो मने सरदारजी से पछ
कहा- िड टब मत करो। बड़े काम म लगा है।

ू ा-कौन सा काम?
मने पछ

सरदारजी ने कहा-उसकी तफसील म मत जाओ। बम बना रहा है। इि कलाबी काम कर


रहा है। एक िदन वह सरकार के िसर पर बम पटकने वाला है।

मने कहा-सच, वह बम बना रहा है?

ू न बना रहा है। उसे सरकार के िसर पर दे


सरदारजी ने कहा-हां जी, वह नया कां टी यश
मारेगा। दुिनया पलट देगा, बा शाओ।

एक िदन वह संिवधान लेकर आ गया। और दुबला हो गया था। मगर चेहरा शांत था।
ू न। संिवधान बदलना ही
फिर ते ही तरह बोला-निथंग िवल चज अंडर िदस कान टी यश
पड़ेगा। इस देश

को बुिनयादी क्रांित चािहए और बुिनयादी क्रांित के िलए क्रांितकारी संिवधान चािहए।


मने नया संिवधान बना िलया है।

ब ते से उसने पुिलंदा िनकाला और मुझे संिवधान समझाने लगा-यह प्रीए बल है- यह


फ डामटल राइ स का ख ड है। इस संिवधान म एक बुिनयादी क्रांित की बात है। देखो,
मनु य ने अपने को रा य के हाथों यों सौंपा था? इसिलए िक रा य उसका पालन करे।
रा य का यह क य है। मगर रा य आदमी से काम करवाना चाहता है। यह गलत है।
िबना काम िकए आदमी का पालन होना चािहए। म जो िपछले 10 सालों से कु छ नही ं कर
रहा हूँ, सो मेरा प्रोटे ट है। म रा य पर नैितक दबाब डालकर उसका क य कराना
चाहता हूं। म जानता हूं, लोग मेरे बारे म या कहते ह। आई डो ट माइंड। छोटे लोग ह।
मेरे िमशन को नही ं समझ सकते।

मने कहा-कोई काम नही ं करेगा, तो उ पादन नही ं होगा। तब रा य पालन कैसे कर
सकेगा?

उसने समझाया-आप आदमी को नही ं जानते। वह मना करने पर ही काम करता है। यह
उसकी मजबरू ी है। मैन इज़ डू ड टु वक। अगर रा य कह भी दे िक कोई काम मत करो,
तु हारा पालन हम करगे, तब भी लोग काम मांगगे। साधारण आदमी ऐसा ही होता है। इने-
िगने मुझ-आप जैसे लोग होंग,े जो काम नही ं करगे। हमारा पालन उन घिटया बहुसं यकों
के उ पादन से होगा।

वह अपने संिवधान से बहुत संत ु ट था। एक िदन वह एक फोटोग्राफ लेकर आया। फोटो
म वह संिवधान प्रधानमंतर् ी को दे रहा है। बोला-मने संिवधान प्रधानमंतर् ी को दे िदया।
उ होंने आ वासन िदया है िक ज दी ही इसे लाग ू िकया जाएगा।

सरदारजी ने कहा-आजकल फोटो पर िज़ दा है। प्रधानमंतर् ी से िमल आया है। उसकी


बीवी घर भाग रही थी, सो थम गई है। इस फोटो को अ छे घंघे म लगाएं तो कमाई अ छी
कर सकता है। मगर वह िज़ दगी भर “िरटे ल” करता रहेगा।

2-3 महीने उसने इंतज़ार िकया। संिवधान लाग ू नही ं हुआ। वह अब िफर परेशान हो
गया। कहता-यह सरकार झठ ू पर िज़ दा है। मुझे प्रधानमंतर् ी ने आ वासन िदया था िक
ज दी ही वे मेरा संिवधान लाग ू करगे, पर अभी तक संसद को सच ू ना नही ं दी। अंधेर है।
मगर म छोड़ूगं ा नही।ं

एक िदन सरदारजी ने बताया-पुराना िखलाड़ी संसद के सामने अनशन पर बैठ गया है।
राम- घुन लग रही है। बीवी गा रही है-सबको स मित दे भगवान। इसे सबकी या पड़ी है?
यही यों नही ं कहती िक मेरे घरवाले को स ◌्मित दे भगवान!

तीसरे िदन उसे देखने गया। वह दरी पर बैठा था। उसका चेहरा सौ य हो गया था। भख ू
से आदमी सौ य हो जाता है। तमाशाइयों को वह बड़ी ग भीरता से समझा रहा था-देखो,
इंसान आज़ाद पै दा होता है, मगर वह हर जगह ज़ंजीरों से जकड़ा रहता है। मनु य ने अपने
को रा य

को यों सौंपा? इसिलए न, िक रा य उसका पालन करेगा। मगर रा य की गैरिज़ मेदारी


देिखए िक मुझ जैसे लोगों को रा य ने लावािरस की तरह छोड़ रखा है। “निथंग िवल चज
अंडर िदस का टी यश ू न' मेरा संिवधान लाग ू करना ही होगा। लेिकन इसके पहले रा य
को फौरन मेरे पालन की यव था करनी होगी। यही मेरी मांग ह।

सरदारजी ने उस िदन कहा था-िबजली मंडरा रही है बा शाओ! देखो िकसके िसर पर
िगरती है। ज़रा बच के।

सरदार की तरफ से उसे घमकी दी जा रही थी। घर जाने के िलए िकराये का लोभ भी
िदया जा रहा था। मगर वह अपना संिवघान लाग ू करवाने पर तुला था।
सातव िदन सुबह जब म बैठा अखबार पढ़ रहा था, वह अचानक अपनी बीवी के सहारे मेरे
घर म घुस आया। पीछे कु ली उसका सामान िलये थे। उसने मुझे मना करने का मौका ही
नही ं िदया। वह अपने घर की तरह इ मीनान से घुसा आया था।

ं शरीर म हि डयां रह गई थी।


मेरे सामने वह बैठ गया। आंख घंस गई थी। ं म भौंचक उसे
देख रहा था। वह इस तरह मेरे घर म घुस आया था िक मुझसे कु छ कहते नही ं बन रहा
था। मगर उसके चेहरे पर सहज भाव था।

घीरे-धीरे बोला-प्रधानमंतर् ी ने आ वासन दे िदया है।

म कु छ नही ं बोल सका।

वह बोला-कमज़ोरी बहुत आ गई है।

कु छ ऐसा भाव था उसका जैसे मेरे िलए प्राण दे रहा हो। कमज़ोरी भी उसे मेरे िलए आई
हो। उसने बीवी से कहा-उस कमरे म कु छ िदन रहने का जमा लो।

मेरी बोलती बंद थी। उसने अचानक हमला कर िदया था। मुझे लगा, जैसे िकसी ने पीछे से
मेरी कनपटी पर ऐसा चांटा जड़ िदया है िक मेरी आंखों म िततिलयां उड़ने लगी ह। उसने
मना करने की हालत भी मेरी नही ं रहने दी। म मढ़ू की तरह बैठा था और वह बगल के
कमरे म जम गया था।

थोड़ी देर बाद वह आया। बोला-ज़रा एक-दो सेर अ छी मुस मी मंगा दो।

कहकर वह चला गया। म सोचता रहा-इसने मुझे िकस कदर अपािहज बना िदया है। इस
तरह मुस मी मंगाने के िलए कहता है, जैसे म इसका नौकर हूं और इसने मुझे पै से दे रखे
ह।

३ मने मुस मी मंगा दी।

वह मेरे नौकर को जब-तब पुकारता और हु म दे देता-श कर ले आओ! चाय ले आओ!


उसने मुझे अपने ही घर म अजनबी बना िदया था।

वह िदन म दो बार मुझे दशन देने िनकलता। कहता-वीकनेस अभी काफी है। 10-15
िदन म िनकलेगी। ज़रा दो-तीन पये देना।

म पये दे देता। बाद म मुझे अपने पर खीझ आती। म िकस कदर स वहीन हो गया हूं। म
मना यों नही ं कर देता?
चौथे िदन सरदारजी ने कहा-घुस गया घर म बा शाओ। मने पहले कहा था-पुराना िखलाड़ी
है, ज़रा बच के। 6 महीने से पहले नही ं िनकलेगा। यही उसकी तरकीब है। जब वह िकसी
मकान से िनकाला जाता है, तो कोई “इश”ू लेकर अनशन पर बैठ जाता है और उसी िगरी
हालत म िकसी के घर म घुस जाता है।

मने कहा-उसकी हालत ज़रा ठीक हो जाए तो उसे िनकाल बाहर क ं गा।

सरदारजी ने कहा-नही ं िनकाल सकते। वह परू ा व त लेगा।

जब चलने िफरने लायक हो गया, तो सुबह-शाम खुले म वायु-सेवन के िलए जाने लगा।
'लौटकर वह मेरे पास दो घड़ी बैठ जाता। कहता-प्राइम िमिन टर अब ज़रा सीिरयस हुए
ह। एक कमेटी ज दी ही बैठने वाली है।

एक िदन मने कहा-अब आप दूसरी जगह चले जाइए। मुझे बहुत तकलीफ है।

उसने कहा-हां, हां, प्रधानमंतर् ी का पी. ए. मकान का इंतज़ाम कर रहा है। होते ही चला
जाऊंगा। मुझे खुद यहां बहुत तकलीफ है।

उसम न जाने कहां का नैितक बल आ गया था िक मेरे घर म रहकर, मेरा सामान खाकर,
वह यह बताता था िक मुझ पर एहसान कर रहा है। कहता है-मुझे खुद यहां बहुत तकलीफ
है।

ू ते ह-िनकला?
सरदारजी पछ

म कहता हूं-अभी नही।


सरदारजी कहते ह-नही ं िनकलेगा। पुराना िखलाड़ी है।

मने कहा-सरदारजी, आपके यहां इतनी जगह है। उसे यही ं कु छ िदन रख लीिजए।

सरदारजी ने कहा उसके साथ औरत है। अकेला होता, तो कहता, पड़ा रह। मगर औरत!
औरत के डर से तो पंजाब से भागकर आया और तुम इधर औरत ही यहां डालना चाहते
हो।

ू ा के बाद वह ना ता करता। िफर


उसके रवै ये म कोई फक नही ं पड़ा। सुबह नान-पज
पोटफोिलयो लेकर िनकल जाता। जाते-जाते मुझसे कहता-ज़रा संसदीय मामलों के मंतर् ी
से िमल आऊं।
आिखर मने स ती करना शु िकया। सुबह-शाम उसे डांटता। उसका अपमान करता।
उसके

चेहरे पर िशकन नही ं आती। कभी वह कह देता-म अपमान का बुरा नही ं मानता। मुझे
इसकी आदत पड़ चुकी है। िफर िजस महान् “िमशन' म म लगा हुआ हूं, उसे देखते छोटे -
छोटे अपमानों की अवहेलना ही करनी चािहए।

कभी जब वह देखता िक मेरा “मडू ” बहुत खराब है, तो वह बात करना टाल जाता। कागज़
पर िलख देता-आज मेरा मौन व्रत है।

आिखर मने पुिलस की मदद लेने का तय िकया। उसने कागज़ पर िलख िदया आज मेरा
मौन व्रत है। िह

मने कहा-तुम मौन व्रत रखे रहो। कल पुिलस तु हारा सामान बाहर फक देगी।

उसने मौन व्रत फौरन याग िदया और मुझे मनाता रहा। कहा-3-4 िदनों म कही ं रहने का
इंतज़ाम कर लगंू ा।

सुबह वह तैयार होकर िनकला। मुझसे कहा-एक जगह रहने का इंतज़ाम कर रहा हूं। ज़रा
पांच पये दीिजए।

मने कहा-पांच पये िकसिलए?

उसने कहा-जगह तय करने जाना है न। कूटर से जाऊंगा। मने कहा-बस म यों नही ं
जाते? म पया नही ं दूग
ं ा। उसने कहा-तो म नही ं जाता। यही ं रह आऊंगा।

मने प त होकर उसे पांच पये दे िदए।


शाम को वह लौटा और बोला-म दूसरी जगह जा रहा हूं। आपको एक महीने म ही छोड़
िदया। िकसी का घर मने 6 महीने से पहले नही ं छोड़ा। इस तरह से आपके ऊपर मेरा
अहसान ही है। ज़रा 25 पये दीिजए।

मने कहा-प चीस पये िकसिलए।

वह बोला-कु ली को पै से देने पड़गे। िफर नई जगह जा रहा हूं। 2-4 िदनों का खाने का
इंतज़ाम तो होना चािहए।

मने कहा-यह मेरी िज़ मेदारी नही ं है। मेरे पास पये नही ं ह।

उसने शांित से कहा-तो िफर आज नही ं जाता। िजस िदन आपके पास प चीस पये हो
जाएंग,े उस िदन चला जाऊंगा।

मने प चीस पये उसे फौरन दे िदए। उसने सामान बाहर िनकलवाया। बीवी को बाहर
िनकाला। िफर मुझसे हाथ िमलाते हुए बोला-कु छ याल मत कीिजए। नो इल िवल! म
िजस िमशन म लगा हूं उसम ऐसी पिरि थितयां आती ही रहती ह। म िब कु ल फील नही ं
करता।

म बाहर िनकला, तो सरदारजी िच लाए-चला गया?

मने कहा-हां, चला गया।

वे बोले-िकतने म गया?

मने कहा-प चीस पये म।

सरदारजी ने कहा-स ते म चला गया। सौ पये से कम म नही ं जाता वह।

पुराना िखलीड़ी अब भी कभी-कमी कही ं िमल जाता है। वै सा ही परेशान, वै सा ही तनाव।


वह भल ू गया है िक कभी मने उसे ज़बरद ती घर से िनकाला था।

कहता है-प्रधानमंतर् ी की अ ल पर या पाला पड़ गया? कहते ह िक हम िकसी भी ि थित


म पये को 'िडवै य'ू नही ं करगे। म कहता हूं, िडवै य ू नही ं करोगे, तो दुिनया के बाज़ार से
िनकाल नही ं िदए जाओगे। ज़रा प्रधानमंतर् ी को समझाइए न!

वह िच ता करता हुआ आगे बढ़ जाता है।


समय काटनेवाले

म वह प थर हूं, िजसपर कोई भी अपने न कटने वाले समय को पटक-पटककर मार डालता
है। कु छ लोग मेरा यह प थरी उपयोग िनयिमत प से करते ह और म होने देता हूं। म
जानता हूं, वे घर म परू ी ईमानदारी के साथ समय काटने की कोिशश करते ह पर समय
िफर भी बच जाता है तो उसे झोले म डालकर मुझ जैसे के पास चले आते ह और उसे ज़ोर-
ज़ोर से मेरे ऊपर पछाड़ने लगते ह। समय जब तार-तार होकर मर जाता है, तो वे ह के
होकर चले जाते ह, और म अपने चुटीले िसर को देर तक सहलाता रहता हूं और सोचता हूं-
सर लस समय के कपड़े को पछाड़ने के िलए म घोबी के प थर से यादा कु छ नही ं हूं।

पर समय रोज़ पै दा हो जाता है और उसे रोज़ मारना पड़ता है। समय को न मारो तो वह
अपने को मार डालता है। ऐसी या कोई तरकीब नही ं है िक सारे समय को एक बार ही
ऐसा मार डाला जाए िक वह िफर पै दा न हो? एक स याग्रही ने मुझे बताया है। कहने लगे-
जेल म म जासस ू ी िकताब पढ़ रहा था। िवनोबा ने देखा तो पछ ू ा- या अ ययन कर रहे हो?
मने कहा-जाससू ी िकताब पढ़ रहा हूं। बाबा ने पछ
ू ा-इसे यों पढ़ते हो? मने जवाब िदया-
समय काटने के िलए। िवनोबा ने कहा-हूं, समय तु हारी सम या है। ऐसा करो न, इस खंभे
पर िसर को दे मारो। सारा समय

एकबारगी कट जाएगा। सलाह नेक है। मगर ऐसी थोक काट िबरले ही करते ह। अ सर
लोग फु टकर समय कातते ह।

ऐसे एक ताज़ा समय काटनहार मेरे पास जब-तब आ जाते ह। िरटायड आदमी ह। िजसे
ए सटशन न िमले, उसे िरटायड आदमी कहते ह। ए सटशन की अविध से ही यह टू टने
लगता है। मातहत आपस म कहते ह-बु ढा ए सटशन पर चल रहा है। िमिन ट् री बदली
िक गए। ए सटशन वाला आठों पहर अनुभव करता है िक वह रेत के ढे र पर बैठा है।

वे स जन कही ं से िरटायर होकर यही ं बेटों के पास आकर रहने लगे ह। पढ़े -िलखे आदमी
ह। सािह य-प्रेमी ह। सािह य-प्रेमी के िलए म बकरा हूं। चाहे जब हलाल िकया जा
सकता हूं। वे अ छी बात करते रहे। अ छी बात ऊब देती ह। मने 'िहंट' देना शु िकया।
टालने के िलए मेरे पास कई तरकीब ह। तमाखू खाकर पीक मुहं म भर लेता हूं। बोलता ही
नही।ं तमाखू मेरी र क है। अगर तमाखू खाने की आदत न होती तो मुहं बंद रखने के िलए
ब चों की “फीिडग बॉटल' मुहं म रखनी पड़ती। तमाखू से सामने वाला न उठे तो एकाएक
उदास और गुमसुम हो जाता हूं, जैसे संसार का नाश साफ देख रहा हूं। या दाशिनक मुदर् ा
म बैठ जाता हूं-असार संसार म दो घड़ी बोल भी िलए तो या होता है! जाइए। उ होंने कोई
“िहंट' वीकार नही ं िकया। तब मने पछ ू ा-कहां जाने का इरादा है? यह प्र न तु प का
इ का है। इसका मतलब है िक आप जा कही ं और रहे ह, यहां तो यों ही टपक पड़े। इस
अथ को समझकर आदमी उठ जाता है। मगर आपको यह प्राणघातक जवाब भी िमल
सकता है-कही ं नही। ं आपके पास तक ही आया था। वे स जन यह कहकर िक, ज़रा
बाज़ार जाना है, उठ गए। एकाघ िमनट बाद म भी पान खाने चौराहे की तरफ चला। मने
देखा, वे चौराहे पर खड़े हुए तय नही ं कर पा रहे ह िक कहां जाएं। वे कभी बाई ं तरफ की
सड़क पर मुड़ते। कभी लौटकर चौराहे पर आकर दाय मुड़ जाते। पर िफर लौट पड़ते।
2-3 िमनट उ ह यह तय करने म लगे, िक िकस तरफ िकसके पास जाएं। बाकी व त
कहां गुजार द। उ ह िकसी का याल आता
और वे एक सड़क पर चल देत। े 2-4 कदम चलने पर सोचते-वह शायद घर पर न हो। वे
लौट पड़ते और दूसरे आदमी के घर की तरफ बढ़ते। िफर कु छ सोचकर लौट पड़ते।

ं सोचा, इ ह लौटा लंू और कहूं, िक जब तक बैठना हो बैठ। पर तभी


मुझे बहुत दया आई।

आ मर ा की भावना तीव्र हुई। ं मुझे काम भी करना था। दया की भी शत होती ह। एक


िदन एक गाय तार म फंस गई थी। उसकी तड़प से म द्रिवत हो गया। सोचा, इसे िनकाल
ं पर तभी डरा, िक िनकलते ही यह खीझ म मुझे सीगं मार दे तो! म दया समेत उसे
दू।
देखता रहा। वृ स जन मुझे ठीक उस गाय की तरह लगे जो त्रासदायी खाली समय के
कंटीले तारों म फंसे थे। म उ ह िनकाल सकता था, पर िनकाल नही ं रहा था। दया की भी
शत होती ह। “सोसाइटी फॉर दी िप्रवशन आफ क् ए टी टु एिनम स' याने जानवरों पर
होने वाली क् रता पर रोक लगाने वाले संगठन के एक सद य ने बफ तोड़ने के कीले से
कोंच-कोंचकर अपनी बीवी को मार डाला था। दया की शत होती ह। हर प्राणी दया का
पात्र है, बशत वह अपनी बीवी न हो।

वे जब-तब मेरे पास आने लगे। यह अजब बात है िक िजस पर दया आए, उससे डर भी
लगे। एक शाम वे मुझे बस टे शन पर खोमचे के पास खड़े चाट खाते िदख गए। मेरी दया
और बढ़ गई। उ ह घर म इ छानुकूल खाने को न िमलता होगा। बढ़ ू ा आदमी चटोरा हो
जाता है। मेरे एक िर तेदार अंितम सांस ले रहे थे। बेटों ने कहा-बाबज ू ी, राम नाम लो।
दान-पु य करना हो तो कर दो। कु छ इ छा हो तो बताओ। उ होंने न राम का नाम िलया,
न दान िकया। बोले-भैया, मुझे आलबू डं ा िखला दो।

एक िदन वे मेरे पास बैठे थे िक िव विव ालय के दो छात्र नेता आ गए। वे युवा असंतोष
पर मुझसे बात करने लगे। िरटायड स जन बीच म ही बोलने लगे। वे लड़कों को उपदेश
देने लगे। लड़कों ने कहा-ज़रा आप हम बात कर लेने दीिजए। वे चुप हो गए। लड़के चले
गए, तो वे बोले- हमारा िज़ंदगी भर का अनुभव है। उस अनुभव के आधार पर हम कु छ
कहते ह, तो ये लड़के सुनते

यों नही?ं मने कहा-शायद इसिलए िक अनुभवों के अथ बदल गए ह।

वे समझ गए। उदास हो गए। कहने लगे-हमारी तो परू ी िज़ंदगी दबते गुज़र गई। जब हम
जवान थे, तब यह मा यता थी िक बड़ों से दबो। हम तब बुजगु से दबे। अब यह हो गया है
िक लड़कों से दबो। तो अब हम बुढ़ापे म लड़कों से दब रहे ह। हमारी िज़ंदगी तो दबते हुए
गुज़र गई।
िरटायड आदमी की बड़ी ट् रेजडी होती है। य त आदमी को अपना काम करने म िजतनी
अ ल की ज़ रत पड़ती है, उससे यादा अ ल बेकार आदमी को समय कालने म लगती
है। िरटायड वृ को समय काटनािहता है। वह देखता है िक िज़ंदगी भर मेरे कारण बहुत
कु छ होता रहा है। पर अब मेरे कारण कु छ नही ं होता। वह जीिवत स दभ से अपने को
जोड़ना चाहता है, पर जोड़ नही ं पाता। वह देखता है िक म कोई हलचल पै दा नही कर पा
रहा हूं। छोटी सी तरंग भी मेरे कारण जीवन के इस समुदर् म नही ं उठ रही है। हमारे चाचा
जब तब इस न कु छपन से त होते, पिरवार म लड़ाई करवा देत। े खाना खाते-खाते
िच लाते-दाल म या डाल िदया? कड़वी लगती है। मुझे मार डालोगे या? हम कहते-दाल
तो िब कु ल ठीक है। वे कहते -तो या म झठ ू बोलता हूं! भगवान की कसम! पिरवार म
आपस म लड़ाई मच जाती। हम देखते िक हम लड़ रहे ह, पर चाचा आराम से सो रहे ह।
तफू ान खड़ा कर देने म सफलता से उ ह अपने अि त व और अथ का बोध होता और मन
को चैन िमलता।

हाल ही म िरटायड एक स जन िमले। मने पछ ू ा-व त कैसे कटता है? वे बताने लगे-भगवान
ू ा करते ह। मुझे भगवान पर दया आई।
ने फु रसत दी है, तो 4 घंटे तो उनकी पज
सवशि तमान की भी मेरी जैसी गत 4 घंटे रोज़ होती है। यों वे ठीक ही कहते ह, िक
भगव जन या और कोई अ छा काम फु रसत म ही िकया जाता है। फु रसत ही नही ं है, तो
आदमी अ छे काम कैसे करे?

भगवान से लेकर बेटे, नाती-पोते तक व त काटने के काम आते ह। मेरे पड़ोस का लड़का
बेकार था। व त उसका कटता नही ं था। उसके िपता के दो त िरटायर हुए। उनकी भी
सम या

समय थी। दोनों एक-दूसरे का व त काटने लगे। उम्र का फक िमट गया। वे बराबरी के
हो गए। बुढ़ऊ दोपहर को आ जाते और शाम तक बात करते। बातों के िवषय खेती-बाड़ी
से लेकर बारातों के अनुभव तक होते। एक िदन मने सुना, वे दोनों खूब ज़ोर से लड़ रहे
ह। बुढ़क कह रहे ह-हम मत िसखाओ। हम िज़ंदगी भर तमाखू खाते हो गया। लड़का
बोला-तु ह िज़ंदगी हो गई तो हम भी 10 साल से तमाखू खा रहे ह। हम भी कु छ जानते ह।

ू े म म खन डालना चािहए या नही,ं और डालना


मु ा या था झगड़े का? कु ल यह िक चन
चािहए तो िकतना और िकस तरह। उस िदन जब शाम को दोनों अलग हुए तो और िदनों से
यादा खुश थे, योंिक लड़ िलए थे।

मेरे पास ही एक भले आदमी रहते थे। उनके ससुर िरटायर हुए तो कु छ महीनों के िलए
लड़की-दामाद के पास रहने को आ गए। वे गिणत के अ यापक थे। मेरे िर तेदार होते थे।
वे मेरे पास आकर बैठ जाते। घंटों पिरवार और िर तेदार और महंगाई की बात करते। मुझे
अखरने लगा। एक िदन जब वे आए तो मने उनके बोलने के पहले ही अंतरा ट् रीय बात शु
कर दी। कहा-देिखए, इसराइल ने अरब गणरा य पर हमला कर िदया। िज़यानवादी रा य
की थापना का वायदा 197 म िब्रिटश िवदेश सिचव लॉड बेलपुर ने कर िदया था।
...5-7 िमनट तक जब म अरब-इसराइल स ब ध और शीतयु की बात करता रहा तो वे
ंू मने
ऊब उठे । इन सबसे उनका वा ता ही नही ं था। वे उठे । बोले-ज़रा नहा ल।
अंतरा ट् रीय राजनीित से उ ह नहलवा िदया। दो-तीन िदन यह नु खा आज़माने के बाद वे
या तो आते नही,ं आते भी तो 5-10 िमनट ही बैठते। वे डरते िक यादा बैठा तो यह दु ट
अंतरा ट् रीय राजनीित की बात शु कर देगा।

मगर अब उनके बेटी-दामाद परेशान रहने लगे। मने उ ह सलाह दी िक उ ह िकसी काम म
लगा दो। कहो िक बाबज ू ी, मु ना गिणत म कमज़ोर है, इसे पढ़ा िदया किरए। गिणत के
अ यापक की यह कमज़ोरी है। वह दुिनया म िकसी को गिणत म कमज़ोर नही ं देख
सकता। मने देखा, वे नाती को गिणत पढ़ाने लगे ह और खुश ह। पर एक िदन लड़का
रोकर बोला-ये नानाजी तो हम गिणत पढ़ा-पढ़ा कर मारे डाल रहे ह। वे लड़के के पीछे पड़
गये थे।

अबम बुजगु से डरने लगा हूं। पर वे नाराज़ न हों। म उनका मजाक़ नही ं उड़ा रहा हूं।
उनकी तकलीफ पम ृ झने की कोिशश कर रहा हूं। िरटायड आदमी की यह सम या मानवीय
और सामािजक है। समाज का एक िह सा हमेशा िगरे मन का, नकु छपन के बोध से भरा
िसफ समय का बोझ ढोता रहे, यह अ छा नही। ं समाज का भिव य इस बात पर िनभर है
िक वह अपने िरटायड लोगों का या करता है। अगर कु छ नही ं करता तो िरटायड वृ
काम करते युवा के काम म दखल देगा और समाज की कम-शि त घटे गी।

युवा इंजीिनयर काम कर रहा है। तभी िरटायड इंजीिनयर आ जाएंगे और कहगे- या हो रहा
है? हूं! हमारे ज़माने म ऐसी मशीन नही ं होती थी।
ं वे अपने ज़माने की मशीन को मार
डालगे। पुरानी मशीन से नई मशीन की र ा करनी पड़ेगी। पुरानी मशीन को िकसी काम म
लगाना पड़ेगा। काम न िमले तो कम से कम यह तो हो ही सकता है िक पुरानी मशीन एक-
दूसरी का जंग साफ करते, व त गुज़ार द।

शै श 42

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रामकथा ेपक

एक पुरानी पोथी म मुझे ये दो प्रसंग िमले ह। भ तों के िहताथ दे रहा हूं। इ ह पढ़कर राम
और हनुमान भ तों के दय गदूद हो जाएंग। े पोथी का नाम नही ं बताऊंगा योंिक चुपचाप
पोथी पर िरसच करके मुझे पी-एच.डी. लेनी है। पुराने ज़माने म िलखे दस प ने भी िकसी
को िमल जाएं तो उसे मज़े म उनकी या या से डॉ टरेट िमल जाती है। इस पोथी म 40
प ने ह-याने चार डॉ टरेटों की सामग्री है। इस पोथी से रामकथा के अ ययन म एक नया
अ याय जुड़ता है। डॉ. कािमल बु के भी इससे फायदा उठा सकते ह।

(0) प्रथम सा यवादी पोथी म िलखा है-

िजस िदन राम रावण को परा त करके अयो या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा।
यह दीपावली पव अन त काल तक मनाया जाएगा। पर इसी पव पर यापारी खाता-बही
बदलते ह

और खाता-बही लाल कपड़े म बांघी जाती है।

प्र न है-राम के अयो या आगमन से खाता-बही बदलने का या स ब ध? और खाता-बही


लाल कपड़े म ही यों बांधी जाती है?

बात यह हुई िक जब राम के आने का समाचार आया तो यापारी वग म खलबली मच गई।


वे कहने लगे-सेठजी, अब बड़ी आफत है। शत् न के राज म तो पोल चल गई। पर राम
मयादा- पु षो म ह। वे से स टै स और इनकम टै स की चोरी बरदा त नही ं करगे। वे
अपने खाता-बही की जांच कराएंग'े और अपने को सज़ा होगी।

एक यापारी ने कहा-भैया, तब तो अपना न बर दो का मामला भी पकड़ िलया जाएगा।

अयो या के नर-नारी तो राम के वागत की तैयारी कर रहे थे, मगर यापारी वग घबड़ा रहा
था।

अयो या पहुंचने के पहले ही राम को मालमू हो गया था िक उधर बड़ी पोल है। उ होंने
हनुमान को बुलाकर कहा-सुनो पवनसुत, यु तो हम जीत गए लंका म, पर अयो या म हम
रावण से बड़े शत् का सामना करना पड़ेगा-वह है, यापारी वग का श्र टाचार। बड़े-बड़े
वीर यापारी के सामने परा त हो जाते ह। तुम अतुिलत बल-बुि -िनघान हो। म तु ह
'एनफोसमट ब्रांच' का डाइरे टर िनयु त करता हूं। तुम अयो या पहुंचकर यापािरयों की
खाता-बिहयों की जांच करो और झठ ू े िहसाब पकड़ो। स त से स त सजा दो।

इधर यापािरयों म हड़कंप मच गया। कहने लगे-अरे मैया, अब तो मरे। हनुमानजी एनफोस
ब्रांच के डाइरे टर िनयु त हो गए। बड़े कठोर आदमी ह। शादी- याह नही ं िकया। न
बाल, न ब चे। घस ू भी नही ं चलेगी।
ू ी सलाहकार बैठकर िवचार करने लगे। उ होंने तय िकया िक खाता-
यापािरयों के कानन
बही बदल देना चािहए। सर रा य म 'चे बर आफ कॉमस” की तरफ से आदेश चला गया
िक ऐन दीपो सव पर खाता-बही बदल िदये जाएं।

िफर भी यापारी वग िनि चत नही ं हुआ। हनुमान को घोखा देना आसान बात नही ं थी। वे
आलौिकक बुि स प न थे। उ ह खुश कैसे िकया जाए? चचा चल पड़ी-

-कु छ मु ठी गम करने से काम नही ं चलेगा?

-वे एक पै सा नही ं लेत।


-वे न ल, पर मेम साब?

-उनकी मेम साब ही नही ं है। साहब ने “मैिरज” नही ं की। जवानी लड़ाई म काट दी।

-कु छ और शौक तो होंग?


े दा और बाकी सब कु छ?

-वे बाल ब्र चारी ह। कॉल गल को मारकर भगा दगे। कोई नशा नही ं करते। संयमी
आदमी ह।

-तो या कर?

-तु ही ं बताओ, या कर?

िकसी सयाने वकील ने सलाह दी-देखो, जो िजतना बड़ा होता है, वह उतना, ही चापलस ू ी-
पस द होता है। हनुमान की कोई माया नही ं है। वे िसंदरू शरीर पर लपे टते ह और लाल
लंगोट पहनते ह। वे सवहारा ह और सवहारा के नेता। उ ह खुश करना आसान है।
यापारी खाता-बही लाल कपड़े म बांधकर रख।

रातो-रात खाते बदले गए और खाता-बिहयों को लाल कपड़े म बांधा गया।

अयो या जगमगा उठी। राम-सीता-ल मण की आरती उतारी गई। यापारी वग ने भी


खुलकर वागत िकया। वे हनुमान को घेरे हुए उनकी जय भी बोलते रहे।

दूसरे िदन हनुमान कु छ दरोगाओं को लेकर अयो या के बाज़ार म िनकल पड़े। पहले
यापारी के पास गए। बोले-खाता-बही िनकालो। जांच होगी।
यापारी ने ाल ब ता िनकालकर आगे रख िदया। हनुमान ने देखा-लंगोट का और ब ते
का कपड़ा एक है। खुश हुए।

बोले-मेरे लंगोट के कपड़े म खाता-बही बांघते हो?

ू ा करते ह। आपके
यापारी ने कहा-हाँ, बल-बुि िनधान, हम आपके भ त ह। आपकी पज
िनशान को अपना िनशान मानते ह।

हनुमान गढ़ूद हो गए। यापारी ने कहा-ब ता खोल? ंू िहसाब की जांच कर लीिजए। हनुमान
ने कहा-रहने दो। मेरा भ त बेईमान नही ं हो सकता।

हनुमान जहां भी जाते, लाल लंगोट के कपड़े म बंधे खाता-बही देखते। वे बहुत खुश हुए।
उ होंने िकसी िहसाब की जांच नही ं की।

रामचंदर् को िरपोट दी िक अयो या के यापारी बड़े ईमानदार ह। उनके िहसाब िब कु ल


ठीक ह।

हनुमान िव व के प्रथम सा यवादी थे। वे सवहारा के नेता थे। उ ही ं का लाल रंग आज के


सा यवािदयों ने िलया है।

ू आ
पर सवहारा के नेता को सावधान रहना चािहए िक उसके लंगोट से बज ु अपने खाता-बही
नबांघ ल।

(2) प्रथम मगलर

ल मण मेघनाद की शि त से घायल पड़े थे। हनुमान उनकी प्राण-र ा के िलए िहमाचल


प्रदेश से 'संजीवनी” नाम की दवा लेकर लौट रहे थे िक अयो या म नाके पर पकड़ िलए
गए। पकड़ने वाले नाकेदार को पीटकर हनुमान ने िलया िदया। राजघानी म ह ला हो गया
िक बड़ा बलशाली ' मगलर' आया हुआ है। परू ा फोस भी उसका मुकाबला नही ं कर पा
रहा।

आिखर भरत और शत् न आए। अपने आरा य रामच द्र के भाइयों को देखकर हनुमान
दब गए। शत् न ने कहा-इन मगलरों के मारे हमारी नाक म दम है, मैया! आप तो सं यास
लेकर बैठ गए ह। मुझे भुगतना पड़ता है।

ू ा-कहां से आ रहे हो? हनुमान-िहमाचल प्रदेश से।


भरत ने हनुमान से पछ

- या है तु हारे पास? सोने के िबि कट, गांजा, अफीम? -दवा है।


शत् न ने कहा-अ छा, दवाइयों की मगिलंग चल रही है। िनकालो, कहां है?

हनुमान ने संजीवनी िनकालकर रख दी। कहा-मुझे आपके बड़े भाई रामच द्र ने इस दवा
को लेने के िलए भेजा था।

शत् न ने भरत की तरफ देखा। बोले-बड़े मैया यह या करने लगे ह? मगिलंग म लग


े मगल के घंधे म यों फंसते ह? बड़ी बदनामी
गए ह। पै से की तंगी थी तो हमसे मंगा लेत।
होती है।

ू ा-यह दवा कहां ले जा रहे थे? कहां बेचोगे इसे ? हनुमान ने कूहा-
भरत ने हनुमान से पछ
लंका ले जा रहा था।

भरत ने कहा-अ छा, उधर उ र भारत से मगल िकया हुआ माल िबकता है। कौन
खरीदते ह? रावण के लोग?

हनुमान ने कहा-यह दवा तो म राम के िलए ही ले जा रहा था। बात यह है िक आपके बड़े
भाई ल मण घायल पड़े ह। वे मरणासन ह। इस दवा के िबना वे बच नही ं सकते।

भरत और शत् न ने एक-दूसरे की तरफ देखा। तब तक रिज ट म मगिलंग का मामला


दज हो चुका था।

शत् न ने कहा-भरत भैया, आप ानी ह। इस मामले म नीित या कहती है? शासन का


या कत य है?

भरत ने कहा- मगिलंग यों अनैितक है। पर मगल िकए हुए सामान से अपना या अपने
भाई- भतीजों का फायदा होता हो, तो यह काम नैितक हो जाता है। जाओ हनुमान, जे
जाओ दवा!

ं ी से कहा-रिज टर का यह प ना फाड़ दो।


मुश
गौः | थौ +

बुि वादी

आशीवादों से बनी िज़ंदगी है।

बचपन म एक बढ़ ू े अंधे िभखारी को उ होंने हाथ पकड़कर सड़क पार करा दी थी। अंधे
िभखारी ने आशीवाद िदया-बेटा, मेरे जैसा हो जाना। अंधे िभखारी का मतलब ल बी उम्र
से रहा होगा, पर उ होंने दूसरा मतलब िनकाला और अ यापक हो गए।

अ यापक थे, तब एक िटट॒हरी की प्राण र ा की थी। िटट॒हरी ने आशीवाद िदया-भैया, मेरे


जैसा होना। िटटहरी का चाहे जो मतलब रहा हो, पर वे 'इंटले चुअल' बुि वादी हो गए।
हवा म उड़ते ह, पर जब ज़मीन पर सोते ह, तो टांग छपर करके-इस िव वास और दंभ के
साथ, िक आसमान िगरेगा तो पांवों पर थाम लगंू ा।

आशीवादों से बनी िज़ंदगी का अब यह हाल है िक बंधी आमदनी दो-ढाई हज़ार की है।


बंगला है, कार है। दोनों लड़के अ छी नौकरी पर गए ह। लड़की िरसच कर रही है। ऐसे
म शरीफ से शरीफ आदमी इंटे चुअल हो जाएगा-वे कोई खास शरीफ भी नही ं ह। वे होने म
ऐसे ही लेट हो गए।

दो साल िवदेशों म रहकर वे लौटे तो पिरिचतों म ह ला हो गया िक वे बुि वादी हो गए ह।


तमाशा-प्रेमी लोग उ ह देखने जाते और बताते िक वे सचमुच बुि वादी हो गए। एक ने उ ह
िखड़की से झांककर देखा और हम बताया-वह तो सचमुच बुि वादी हो गया। कमरे म बैठा
छत को ऐसे देख रहा था जैसे यह िहसाब लगा रहा हो िक छत िकतने सालों म िगर
जाएगी। एक ने उ ह बगीचे म घमू ते देख िलया। कहने लगा-जब वह फूल की तरफ देखता,
तो फूल कांपने लगता। वह भयंकर बुि वादी हो गया है।

एक िदन ह त ू उनसे िमलने पहुंच-े म और मेरा एक िमत्र। फोन पर उ होंने आधा घंटे के
बाद आने को कहा था। हम उन िदनों पवू पािक तान के तफ ृ ान-पीिड़तों के िलए च दा
इक ठा कर रहे थे। सोचा, बुि वादी को देख भी लगे और कु छ च दा भी ले लगे।

उनके कमरे म हम घुस। े सचमुच वे बदल गए थे। काले फ्रेम का च मा िनकल गया था।
उसकी जगह पतले सुनहरे फ्रेम का च मा वे लगाए थे। आंखों की चमक ओर फ्रेम की
चमक एक-दूसरी को प्रितिबि बत करके चकाचौंध पै दा कर रही थी।ं मुदर् ा म थायी
िख नता। िख नता दुःखदायी होती है। मगर उनके चेहरे पर सुखदायी िखननता थी।
िख नता दुिनया की दुदशा पर थी। उसम सुख का भाव इस गव से िमला िदया था िक मने
इस दुदशा को देख िलया। बाई ं तरफ का नीचे का होंठ कान की तरफ थोड़ा िखंच गया था
िजससे दोनों होंठों के बीच थोड़ी जगह हो गई थी। थायी िखननता व लगातार िचंतन से
ऐसा हो गया था। परू े मुहं म वही एक छोटी सी सघ थी िजसम से उनकी वाणी िनकलती
थी। बाकी मुहं ब द रहता था। हम परू े महंू से बोलते ह, मगर बुि वादी मुहं के बाएँ कोने को
ज़रा-सा खोलकर िगनकर श द बाहर िनकालता है। हम परू ा मुहं खोलकर हँसते ह,
बुि वादी बाई तरफ के होठों को थोड़ा खीच ं कर नाक की तरफ ले जाता है। होंठ के पास
नथुने म थोड़ी हलचल पै दा होती है और हम पर कृपा के साथ यह संकेत िमलता है िक-

आई एम ए य ू ड! तुम हँस रहे हो, मगर म िसफ थोड़ा मनोरंजन अनुभव कर रहा था। गंवार
हँसता है, बुि वादी िसफ रंिजत हो जाता है।

टे िबल पर 5-6 िकताब खुली हुई उलटी इस तरह पड़ी ह जैसे पढ़ते-पढ़ते लापरवाही से
डाल दी हों। पर वे लापरवाही से ऐसे छोड़ी गई ह िक िकताब का नाम साफ िदख रहा है।
िकताबों की समझदारी पर म ◌्यौछावर हो गया। लापरवाही से एक-दूसरी पर िगिरंगी तो
भी इस सावधानी से िक हर िकताब का नाम न दबे। म समझ गया िक वे िकताबों को पढ़
नही ं रहे थे। हम आधा घंटा बाद उ होंने बुलाया था। इस आधा घंटे म उ होंने बड़ी मेहनत
से इन िकताबों की बेतरतीबी साधी होगी। बुि जीवी बार-बार िकताबों की तरफ हमारा
यान खीच ं ने की कोिशश करता है। वह चाहता है, हम चिकत हों और कह-िकतनी तरह
की पु तक पढ़ते ह आप! इनके तो हमने नाम भी नही ं सुन। े हम चिकत होने म देर कर रहे
ह। बुि वादी थोड़ा बेचन ै होता है।

उ होंने हम इस तरह िबठाया है िक हमारी तरफ देखने म उ ह िसर को 35 िडग्री घुमाना


पढ़े । 35 िडग्री िसर घुमाकर, सोफे पर कु हनी िटकाकर, हथेली पर ठु ट्◌ी को साधकर
वे जब भर नज़र हम देखते ह तो हम उनके बौि क आतंक से दब जाते ह। हम अपने को
बहुत छोटा महसस ू करते ह। उनकी मुदर् ा और दृि ट म जादू पै दा हो जाता है। जब इस
कोण से हम देखकर वे पे ट म से िनकलती- सी घीमी ग भीर आवाज़ म कहते ह-टु माइ
माइंड-तो हम लगता है, यह आवाज़ ऊपर बादलों से आ रही है। पर आसमान तो साफ है।
बड़ी कोिशश से हम यह जान पाते ह िक यह आवाज़ बुि वादी के होठों के बाएँ बाज ू की
पतली सघ से िनकली है। जब वे “टु माइ माइंड' कहते ह तब मुझे लगता है, मेरे पास
िदमाग नही ं है। दुिनया म िसफ एक िदमाग है और वह इनके पास है। जब वे 35 िडग्री
ू ी आदमी लगते
िसर को नही ं घुमाए होते और हथेली पर ठु ठी नही ं होती, तब वे बहुत मामल
ह। कोण से बुि वाद साधने की कला सीखने म िकतना अ यास लगा होगा उनको।

बुि वादी म लय है। िसर घुमाने म लय है, हथेली जमाने म लय है, उठने म लय है, कदम
उठाने म लय है, अलमारी खोलने म लय है, िकताब िनकालने म लय है, िकताब के प ने
पलटने म लय है। हर हलचल घीमी है। ह का यि त व हड़बड़ाता है। इनका यि त व
बुि के बोध से इतना भारी हो गया है िक िवशेष हरकत नही ं कर सकता। उनका बुि वाद
मुझे एक थुलथुल मोटे आदमी की तरह लगा जो भारी कदम से घीरे-घीरे चलता है।

वे बोले-मुझे यरू ोप जाकर समझ म आया िक हम लोग बहुत पितत ह। मने कहा-अपने पतन
को जानने के िलए आपको इतनी दूर जाना पड़ा।

३ बुि वादी ने जवाब िदया-जो िगरने वाला है वह नही ं देख सकता िक वह िगर रहा है। दूर
से देखने वाला ही उसके िगरने को देख सकता है।

उस व त हम लगा िक हम एक ग ढे म िगरे हुए ह और यह ग ढे के ऊपर से हम बता रहा


है िक हम िगर गए ह। उसने हमारा िगरना देख िलया है इसिलए वह िगरने वालों म नही ं है।

ू ा-हमारे पतन का कारण कया है?


मेरे िमत्र ने पछ

बुि जीवी ने आंख बंद करके सोचा। िफर हमारी तरफ देखकर कहा-टु माइ माइंड, हम म
करे ◌्टर नही ं है।

अपने पतन की बात उ होंने इस ढं ग से कही िक लगा, उ ह हमारे पतन से संतोष है। अगर
हम पितत न होते तो उ ह यह जानने और कहने का सुयोग कैसे िमलता िक हम िगरे हुए ह
और हमारा िगरा वे साफ देख रहे ह।

साथी ने अब मु े की बात कहना ज़ री समझा। बोला-पवू पािक तान म तफ


ू ान से बड़ी
तबाही हो गई है।

उसने म ृ यु, बीमारी, भुखमरी की क ण गाथा सुना डाली।

बुि वादी सुनता रहा। हम दोनों असर का इंतज़ार कर रहे ह। असर हुआ। बुि वादी ने
मुहं के कोने से श द िनकाले-हां, मने अखबार म पढ़ा है।

उस व त हम लगा िक पवू बंगाल के लोग कृताथ हो गए िक उनकी दुदशा के बारे म इ होंने


ू ान साथक हो गया। बीमारी और भुखमरी पर उ होंने बड़ा अहसान कर
पढ़ िलया। तफ
डाला।

मने कहा-हम लोग उन पीिड़तों के िलए घन संगर् ह करने िनकले ह।

हम चंदा लेने आए थे। वे समझे, हम ान लेने आए ह।


उ होंने हथेली पर ठु ठी रखी और उसी मेघ-गंभीर आवाज़ म बोले-टु माइ माइंड-प्रकृित
ु न करती चलती है। पवू पािक तान की आबादी बहुत बढ़ गई थी। उसे संतिु लत
संतल
करने के िलए प्रकृित ने तफ
ू ान भेजा था।

इसी बीच पवू बंगाल म उनकी सहायता के अभाव म एक आदमी और मर गया होगा।

अगर कोई आदमी डू ब रहा हो तो, उसे बचाएंगे नही,ं बि क सापे ि क घन व के बारे म
सोचगे।

ू ा मर रहा हो, तो बुि वादी उसे रोटी नही ं देगा। वह िविभ न देशों के अ न-
कोई भख
उ पादन के आंकड़े बताने लगेगा।

बीमार आदमी को देखकर वह दवा का इंतज़ाम नही ं करेगा। वह िव व वा य संगठन की


िरपोट उसे पढ़कर सुनाएगा।

कोई उसे अभी आकर खबर दे िक तु हारे िपताजी की म ृ यु हो गई, तो बुि वादी दुखी नही ं
होगा। वह वंश-िव ान के बारे म बताने लगेगा।

हमने चंदे की उ मीद छोड़ दी। अगर हमने बुि वादी से चंदा मांगा, तो वह दुिनया की अथ-
यव था बताने लगेगा।

अब हमने अपने-आपको बुि वादी को सौंप िदया।

वह सोच रहा था, सोच रहा था। सोचकर बड़ी गहराई से वह खोजकर लाया, वह स य
िजसे आज तक कोई नही ं पा सका था। बोला-टु माइ माइंड, अवर ग्रेटे ट एिनमी इज़
पॉवट । (मेरे िवचार म, हमारा सबसे बड़ा शत् गरीबी है।)

िह एक वा य सत ू र् प म कहकर बुि वादी ने हम सोचने के िलए व त दे िदया। हमने


सोचा, खूब सोचा। मगर गरीबी की सम या के हल के िलए िफर बुि वादी की तरफ लौटना
ू ा-गरीबी दुिनया से कैसे िमट सकती है?
पड़ा। मने पछ

ू ीवाद और सा यवाद-दोनों मनु य िवरोधी ह। ये दोनों


बुि वादी ने कहा-मने सोचा है। पंज
गरीबी नही ं िमटा सकते। हम आधुिनक तकनीकी साधनों का प्रयोग करके खूब उ पादन
बढ़ाना चािहए।

ू ा-मगर िवतरण के िलए या यव था होगी?


मने पछ
बुि वादी ने कहा-वही म आजकल सोच रहा हूं। एक योरी बनाने म लगा हूं। मनु य जाित
की तरफ आशा की एक िकरण बढ़ाकर बुि वादी चुप हो गया। मेरे साथी ने कहा-हम
समाज का नव-िनमाण करना पड़ेगा।

बुि वादी ने िफर हम बौनों को घरू कर देखा। बोला-समाज का पहला फज़ यह है िक वह


अपने को न ट कर ले। सोसाइटी म ट डे ट् रॉय इटसै फ! यह जाित, वण और रंग और
ऊंच-नीच के भेदों से जजर समाज पहले िमटे , तब नया बने।
ू ू ं -सारा समाज न ट हो जाएगा तो प्रकृित को मनु य बनाने म िकतने लाख साल
सोचा पछ
लग जाएंग? ू ा नही।
े मने पछ ं यह सोचकर संतोष कर िलया िक िसफ म समझता हूं, यह
अहसास आदमी को नासमझ बना देता है।

बुि वादी मा सवाद की बात कर लेता है। फ्रायड और आइ सटीन की बात कर लेता है।
िववे कान द और क फूिशयस की बात कर लेता है। हर बात कहकर हम उसे समझने और
पचाने का मौका देता है। वह जानता है, ये बात हम पहली बार सुन रहे ह।

हम पछ ू ते ह-िफर दुिनया की बीमारी के बारे म आपने या सोचा है? िकस तरह यह बीमारी
िमटे गी?

वह आंख बंद कर लेता है। सोचता है! हम बड़ी बात सुनने के िलए तैयार हो जाते ह।
बुि वादी कहता है-अ टीमेटली आई हेव टु िरटन टू गेण"◌्छी। (आिखर मुझे गांधी की
तरफ लौटना पड़ता है।) 'ल ह' प्रेम।

ू पॉवर! हम
बुि वादी अब क्रांितकािरता पर आ गया है। कहता है- टु डे ट पॉवर! यथ
अपने समाज के युवा वग को आज़ादी देनी चािहए। वही पलटगे इस दुिनया को। वही
बदलगे। जो कौम अपने युवा वग को दबाती है, वह कभी ऊपर नही ं उठ सकती। यह
िकताब देिखए प्रोफेसर मा यज़ ू की। यह कोहेन बडी की िकताब!

बुि वादी ग भीर हो गया। उसने अंितम स य कह िदया। हम उठने की तैयारी करने लगे।
इसी व त नौकर ने एक िलफाफा लाकर उ ह िदया।

बुि वादी िच ठी पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते उसम पिरवतन होने लगे। 35 िडग्री का िसर
का कोण घीरे-घीरे कम होने लगा। बुि वादी सीधा बैठ गया। होंठ की मरोड़ िमट गई।
आंखों म बैठी बुि

गायब हो गई। उसकी जगह परेशानी आ गई। चेहरा सपाट हो गया। सांस ज़ोर से चलने
लगी। बुि वादी िनहायत बौड़म लगने लगा।

बुि वादी ने िच ठी को मु ठी म कस िलया। च मा उतार िलया। हम नंगी आंख देख रहे


थे। वे बुझ गई थी।ं चमक च मे के साथ ही चली गई थी। दंभ शायद मु ठी म िच ठी के
साथ दब गया था।

मने कहा-आप परेशान हो गए। सब खैर तो है?


| बुि वादी हतप्रभ था। वह हमारे सामने अब उस असहाय ब चे की तरह हो गया िजसका
िखलौना बा टी म िगर गया हो।

ू ा- या हो गया? बुि वादी


गहरी सांस लेकर बुि वादी ने कहा-यह ज़माना आ गया! मने पछ
ने कहा-लड़की अपनी मौसी के घर लखनऊ गई थी। वही ं उसने शादी कर ली। हम पता
तक नही। ं

ू ा-लड़का या करता है?


मने पछ

बोले-इंजीिनयर है।

मने कहा-िफर तो अ छा है।

बुि वादी उखड़ पड़ा- या अ छा है? म उसे जेल िभजवाकर रहूंगा।

हमारे सामने एक महान ण उपि थत था। मनु य जाित के आंतिरक स ब धों के बारे म
कोई महान स य िनकलने वाला है उनके मुख से। अब उनका मुहं परू ा खुलने लगा है।
च मा लगाए वे तब होठों की स पुट के कोने से गु -गंभीर आवाज़ िनकालते थे। अब परू ा
मुहं खोलकर बोलते ह।

ू पॉवर? त्री-पु ष स ब धों की मने


बुि वादी इस ि थित का या िव लेषण देता है! यथ
कहा-लड़का-लड़की बड़े ह। शादी मौसी के यहां हुई। वर अ छा है। िफर आप दुखी

बुिनयाद? िववाह की वतंतर् ता? और परेशान यों ह? हम िज ासुओ ं को वह रह य


बताइए तािक हम भी जीवन के प्रित बुि वादी हम उनके मुहं की तरफ देखते ह। उनकी
ं दृि टकोण अपना सक।
परेशानी बढ़ती जाती है। िच ठी को वे लगातार भीच

रहे ह। वे शायद प नी को यह खबर बताने को आतुर ह। पर हम यह जानने को आतुर ह


िक इतनी उ होंने नंगी, बुझी आंखों से हमारी तरफ देखा। िफर अ य त भरी आवाज़ म
कहा-यह लड़का

अ छी शादी को लेकर ये परेशान यों ह? ज़ र इसम कोई महान दाशिनक त य िनिहत है


जो काय थ है न!

िसफ बुि वादी समझता है।


प्रेम की िबरादरी

उनका सब कु छ पिवत्र है। जाित म बाजे बजाकर शादी हुई थी। प नी ने 7 ज मों म
िकसी दूसरे पु ष को नही ं देखा। उ होंने अपने लड़के-लड़की की शादी सदा मंडप म की।
लड़की के िलए दहेज िदया और लड़के के िलए िलया। एक लड़का खुद पस द िकया और
उसे लड़की का पित बना िदया। एक लड़की खुद पस द की और उसे लड़के की प नी बना
िदया।

सब कु छ उनका पिवत्र है। प्रॉपट है। फु रसत म रहते ह। दूसरों की कलंत-चचा म


समय काटते ह। जो समय िफर भी बच जाता है, उसम मछ ंू के सफेद बाल उखाड़ते ह और
बतन बेचनेवाली की राह देखते ह।

पिवत्रता का मुहं दूसरों की अपिवज्रता के गंदे पानी से घुलने पर ही उजला होता है। वे
हमेशा दूसरों की अपिवत्रता का पानी लोटे म ही िलए रहते ह। िमलते ही अपिवत्रता का
मुहं घोकर उसे उजला कर लेते ह। वे िपछले िदनों 2 लड़िकयों के भागने, 3 ि त्रयों के
गभपात, 4 की गैर िबरादरी म शादी और 2 पितव्रताओं के प्रणय-प्रसंग बता चुके ह।

ू फांकना ज़ री होता
अभी उस िदन दांत खोदते आए। भोजन के बाद कलंत-चचा का चण
है।

हा मा अ छा होता है। उ होंने चणू फांकना शु कर िदया-आपने सुना, अमुक साहब की


लड़की अमुक लड़के के साथ भाग गई और दोनों ने इलाहाबाद म शादी कर ली। कैसा बुरा
ज़माना आ गया! म जानता हूं िक वे बुरा ज़माना आने से दुखी नही,ं सुखी ह। िजतना बुरा
ू करके और कहकर गव अनुभव
ज़माना आएगा वे उतने ही सुखी होंग-े तब वे यह महसस
करगे िक इतने बुरे ज़माने म भी हम अ छे के अ छे ह। कु छ लोग बड़े चतुर होते ह। वे
सामिू हक पतन म से िनजी गौरव का मु ा िनकाल लेते ह और अपने पतन को समहू का पतन
कहकर बरी हो जाते ह।

मने अपनी हु ट आदत के मुतािबक कहा-इसम परेशान होने की या बात है? अपने देश म
अ छी शािदयां लड़की भगाकर ही हुई ह। कृ ण ने ि मणी का हरण िकया था और अजुन
ने कृ ण की बहन सुभद्रा का। इसम कृ ण की रज़ामंदी थी। भाई अगर को-ऑपरेट करे तो
लड़की भगाने म आसानी होती है।

वे नही ं जानते थे िक म पुराण उनके मुहं पर मा ं गा। संभलकर बोले-भगवान कृ ण की बात


अलग है। मने कहा-हां, अलग तो है। भगवान अगर औरत भगाए तो वह बात भजन म आ
जाती है। साघारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैितक हो जाता है। िजस लड़की की
आप चचा कर रहे ह, वह अपनी मज़ से घर से िनकल गई और मज़ से शादी कर ली,
इसम या हो गया?

वे कहने लगे-आप हमेशा उलटी बात करते ह-रीित, नीित, पर परा, िव वास- या कु छ नही ं
है? आप जानते ह, लड़का-लड़की अलग जाित के ह?

ू ा-मनु य जाित के तो ह न? वे बोले-हां, मनु य होने म या शक है?


मने पछ

मने कहा-तो कम-से-कम मनु य जाित म तो शादी हुई। अपने यहां तो मनु य जाित के बाहर
भी महान पु षों ने शादी की है-जैसे भीम ने िहिड बा से।

ये घटनाएं बढ़ती जा रही ह। या कारण है िक लड़के-लड़की को घर से भागकर शादी


करनी पड़ती है? 24-25 साल के लड़के-लड़की को भारत की सरकार बनाने का
अिधकार तो िमल चुका है पर अपने जीवन-साथी बनाने का अिधकार नही ं िमला।

ू ये ह।
घेनाएं म रोज़ सुनता हूं। दो तरह की िचि ठयां पे टे ट हो गई ह। उनके मज़मन
िज ह भागकर शादी करनी है वे , और िज ह नही ं करनी वे भी इनका उपयोग कर सकते ह।

िच टी नं. 1

प ू य िपताजी,

मने यहां रमेश से वै िदक रीित के अनुसार शादी कर ली है। हम अ छे ह। आप िच ता मत


किरए। आशा है, आप और अमं मुझे माफ कर दगे।

आपकी बेटी

सुनीता।

िच ठी नं. 2 िप्रय रमेश,

म अपने माता-िपता की इ छा के िव नही ं जा सकती। तुम मुझे माफ कर देना। तुम


ज़ र शादी कर लेना और सुखी रहना। तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन म सुख नही ं
िमलेगा। दय से तो म

तु हारी हूं। (4-5 साल बाद आओगे तो प प ू से कहूंगी-बेटा, मामाजी को नम ते करो)


तु हारी िवनीता।
इसके बाद एक मज़ेदार क्रम चाल ू होता है। मां-बाप कहते ह-यह हमारे िलए मर चुकी है।
अब हम उसका मुहं नही ं देखगे। िफर कु छ महीने बाद म उनके यहां जाता हूं तो वही लड़की
चाय लेकर आती है। िक

ू ता हूं-यह तो आपके िलए मर चुकी थी। वे जवाब देते ह-आिखर लड़की ही है।
म उनसे पछ
और म सोचता रह जाता हूं िक जो आिखर म लड़की है वह शु म लड़की यों नही ं थी?

माता-िपता की भावनाओं को म जानता हूं। िव वास और पर परा के टू टने म बड़ा दद होता


है। जब शेरपा तेनिसंह गौरीशंकर की चोटी पर होकर आया था तब उससे िकसी ने पछ ू ा
िक या वहां शंकर भगवान ह? तो उसने कहा था िक नही ं ह। एक स जन बढ़े दद से
मुझसे बोले-तेनिसंह को ऐसा नही ं कहना चािहए था। मने कहा-वहाँ शंकर भगवान उसे नही ं
िदखे तो उसने कह िदया िक नही ं ह। वे बोले-िफर भी उसे ऐसा नही ं कहना चािहए था।
मने कहा-जब ह ही नही ं तो..

ू ा- या आप मानते ह िक वहां शंकरजी


वे बोले-िफर भी उसे नही ं कहना था। मने उनसे पछ
ह? उ होंने कहा-यह हम भी जानते ह िक वहां शंकरजी नही ं ह। पर एक िव वास दय म
िलए ह िक शंकरजी ह, वे औढरदानी ह। कभी कोई संकट हम पर आएगा तो वे आकर हम
उबार लगे।

ू े िव वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टू टने का भी सुख नही,ं दुख होता है।
झठ

एक स जन की लड़की दूसरी जाित के लड़के से शादी करना चाहती थी। यहां मां-बाप का
जाित-प्रथा की शा वतता म िव वास आड़े आ गया। लड़का अ छी ऊंची नौकरी पर था,
पर तु

लड़की के माता-िपता ने उसकी शादी अपनी ही जाित के एक लड़के से कर दी जो कम तो


कमाता ही था, अपनी प नी को पीटता भी था। एक िदन मने उन स जन से कहा िक सुना
है, लड़की बड़ी तकलीफ म है। वह उसे पीटता है। उ होंने कोई जवाब नही ं िदया। जवाब
देते भी तो कया देत,े िसवा इसके िक-इतना तो संतोष है िक जाित वाले से िपट रही है।

आिखर ये हमारे लोग िकस पर परा को, िकस आदश को मान रहे ह? राम मयादा पु षो म

ह। सीता महासती ह। इनसे श्रे ठ त्री-पु ष की क पना और ऐसे अ छे िववाह की


क पना इस समाज म नही ं है। मयादा पु षो म का िनमाण करने वाले तुलसीदास कहते ह
िक पु प-वािटका म “कंकण िकंिकिण नपू रु ” की विन सुनकर ल मण के सामने राम
'क फेस' करते ह िक ऐसा लगता है जैसे मदन ने दु दुभी दे दी है यािन राम के मन का घनुष
वही ं टू ट गया। िववाह-पवू प्रेम भी हो गया और िफर िववाह भी हो गया। आज िजन म ू यों
को उस मामले म माना जा रहा है उनको देखकर मुझे लगता है िक तुलसीदास ने जो िलखा
है, वै सा न हुआ होगा। हुआ ऐसा होगा-राम ने ल मण से पछ ू ा होगा िक यह कंकण िकंिकिण
नपू रु की विन िकसकी है? ल मण ने कहा होगा-यह जनक की लड़की सीता की है। तब
राम ने पछ ू ा होगा िक या जनक अपनी ही िबरादरी के ह? ल मण ने कहा होगा-हां, राजा
जे. के. िसंह अपनी ही िबरादरी के ह। राम ने कहा होगा-तभी तो मेरा मन डोल उठा।
दूसरी िबरादरी के होते तो मेरे मन पर कोई असर नही ं होता।

इन लड़के-लड़िकयों से या कहा जाए! यही न िक प्रेम की जाित होती है। एक िह दू प्रेम


है, एक मुसलमान प्रेम, एक ब्रा ण प्रेम, एक ठाकु र प्रेम, एक अग्रवाल प्रेम। एक कोई
जावे द आलम िकसी जय ती गुहा से शादी कर लेता है, तो सारे देश म लोग ह ला कर देते ह
और दंगा भी करवा सकते ह।

इस सबको देखते हुए आगे चलकर त ण-त णी के प्रेम का दृ य ऐसा होगा। त ण-त णी
िमलते ह और यह वातालाप होता है-

त ण- या आप ब्रा ण ह, और ब्रा ण ह तो िकस प्रकार की ब्रा ण ह? त णी- यों,


या बात है?

त ण-कु छ नही!ं ज़रा आपसे प्रेम करने का इरादा है।

त णी-म तो खबत्री हूं।

त ण-तो िफर मेरा आपसे प्रेम नही ं हो सकता, योंिक म ब्रा ण हूं।

लोग कहते ह िक आिखर थायी म ू य और शा वत पर परा भी तो कोई चीज़ है। सही है,
ू ता के िसवाय कोई भी मा यता शा वत नही ं है। मख
पर मख ू ता अमर है। वह बार-बार
मरकर िफर जीिवत हो जाती है।

इधर म लड़के-लड़की से पछ ू ता हूं िक वे द तो यहां भी ह और यहां भी वै िदक रीित है, िफर


तुम लोगों ने यही ं यों नही ं शादी कर ली? भागकर दूसरी जगह यों गए?

वे कहते है-यहां माता-िपता बाघा डालते। म समझ गया। क्रांित ये त ण ज़ र करगे पर


यथाि थित की नज़र बनाकर।

वे स जन जो मुझे खबर दे गए थे, कह रहे थे िक आिखर हम बुजगु के जीवन-भर के


अनुभव का भी तो कोई मह व है। मने कहा-अनुभव का मह व है। पर अनुभव से यादा
इसका मह व है िक िकसी ने अनुभव से या सीखा। अगर िकसी ने 50-60 साल के
अनुभव से िसफ यह सीखा िक सबसे दबना चािहए तो अनुभव के इस िन कष की कीमत म
शक हो सकता है। िकसी दूसरे ने इतने ही सालों के अनुभव से शायद यह सीखा हो िक
िकसी से नही ं डरना चािहए।
आप तो 50-60 साल की बात करते ह। कचुए ने अपने लाखों सालों के अनुभव से कु ल
यह सीखा है िक रीढ़ की ह डी नही ं होनी चािहए।

जे

| धम ेतर् े-कु ेतर् े

चुनाव हो गए। नतीजे आ रहे ह। 'कायकता' अब कही ं नही ं िदखता। चुनाव के िदनों म
यह एक नई न ल पै दा होती है-कायकता। स चा कायकता वह है जो पाटी को 'पालटी'
बोलता है, िवरोधी को “चुनटै ी” देता है और िजनकी सारी कोिशश यह होती है िक
उ मीदवार से यादा से यादा पै से चाय-ना ते के िलए झटक ले। वषा और शीत की संिध
वे ला म पतंगे ब ब के आसपास मंडराते ह। वे मुझे कायकता लगते ह और ब ब उ मीदवार।
िफर पतंगे लोप हो जाते ह, ब ब बराबर जलता रहता है। कायक ा अब िसफ तब िदखेगा,
जब िकसी की ज़मानत िदलानी होगी, पुिलस केस दबाना होगा या तबादला कराना होगा।

बड़ा शोर था इस चुनाव का।

ृ रा ट् र
घोषणाएं की जाती थी ं िक यह चुनाव घमयु है; कौरव-पांडव संगर् ाम है। घत
चौंककर संजय से कहते ह-ये लोग अभी भी हमारी लड़ाई लड़ रहे ह। ये अपनी लड़ाई कब
लड़गे? संजय कहते ह-इ ह दूसरों की लड़ाई म उलझे रहना ही िसखाया गया है। ये दूसरे
की लड़ाई लड़ते-लड़ते ही मर जाते ह।

घमयु है, तो बड़े भाई युिधि ठर को ज़ र जुआ खेलने की लत पड़ गई होगी। कौन कौरव
और कौन पांडव- यह मेरी समझ म नही ं आ रहा था। देख रहा था िक जो अपने को पांडव
कहते ह वही द्रौपदी को चौराहे पर नंगा कर रहे थे। और अब देख रहा हूं िक कु छ पांडव
कौरवों से भीतर ही भीतर िमले ह कु छ कौरव पांडवों से।

िकस हेत ु है यह घ॒मयु ? सईू की नोक के बराबर ज़मीन के िलए? या इसिलए िक द्रौपदी
बाल िबखराकर िबफरती हुई पितयों को िघ कार रही थी?

राजनीित की ानी कहता है-इस चुनाव के “इ यज़ू ' समझो। यह चुनाव संिवधान और
यायपािलका का भा य-िनमाण करेगा। संिवधान पिवत्र है। वह बदला नही ं जा सकता।
यायपािलका सवो च है। वह संिवधान की र ा करती है।
वह संिवधान की पोथी पर ह दी-अ त चढ़ाकर उसकी पज ू ा करता है। मने पछ
ू ा-इसकी
ू ा यों करते हो? वह जवाब देता है- योंिक यह 20-22 साल पहले िलखा गया था।
पज

म पछू ता हूं-इसे िकसने िलखा? यों िलखा? िकन पिरि थितयों म िलखा? िलखनेवालों के
िवचार-मा यताएं या थे? उनकी कया क पना थी? िकन ज़ रतों से वे प्रेिरत थे ?
देशवािसयों के भिव य के बारे म उनकी या योजना थी?- या वे सवाल इस पोधी के बारे म
पछू ना जायज़ नही ं

है।

वह कहता है-कतई नही।ं जो पहले िलखा गया है उसके बारे म कोई सवाल नही ं उठाना
ू ा और र ा होनी चािहए। वह पिवत्र है।
चािहए। वह तक से परे है। पहले िलखे की पज
भोजपत्र पर जो िलखा है वह आट पे पर पर छपे से यादा पिवत्र होता है।

दूसरा ानी कहता है-देखो जी, संिवधान एक औज़ार है, िजससे कु छ बनाना है। संिवधान
को आदमी बनाता है, आदमी को संिवधान नही ं बनाता। इस औज़ार से मनु य का भा य
बनाना है।

ू ता हूं-पर बनाने म औज़ार िघस जाए या टू ट जाए तो? जवाब देता है-तो मर मत कर
म पछ
लगे या दूसरा औज़ार ले आएंग।े

म देखता हूं, एक ानी इस औज़ार को रोज़ िनकालता है, उसे साफ करता है, उस पर
पािलश करता है और ड बे म रखकर उसे ताले म बंद कर देता है।

ू ता हूं-इस औज़ार से कु छ बनाओगे नही?ं


ं पछ
वह औज़ार से बनाता कु छ नही।

वह कहता है-नही।
ं बनाने से औज़ार िबगड़ जाएगा। हमारा कत य है, औज़ार की र ा
करना। यह जो मज़बत ू ितजोरी है, वह यायपािलका है। इसम हमने पॉिलश करके
संिवधान को रख िदया है। अब वह सुरि त है।

ू ता हूं-और तुम या हम जैसे लोगों का या होगा? हमारा कही ं अि त व है? हम या


म पछ
िसफ पहरेदार ह।

उस ानी के जवाब से ऐसा लगता है, जैसे यायपािलका को संिवधान का गभ रह गया था,
िजससे हम करोड़ों आदमी पै दा हो गए। हम संिवधान और यायपािलका के यिभचार की
ू ता।
अवै ध संतान ह। तभी तो हम कोई नही ं पछ
याय देवता का म आदर करता हूं। पर एक याय देवता सेशनकोट म बैठता है, दूसरा
हाईकोट म और तीसरा सुपर् ीमकोट म। सेशन वाला याय देवता मुझे मौत की सज़ा दे देता
है। म जानता हूं, म बेकसरू हूं। उधर हाई कोट म बैठा याय देवता बड़ी बेताबी से मेरा
इंतज़ार कर रहा है िक यह मेरे सामने आए तो म इस िनदोष को बरी कर दू। ं पर म सामने
नही ं जा सकता योंिक मेरे पास 5-6 हज़ार पये नही ं ह। याय देवता मेरी तरफ क णा
से देखता है और म उसकी तरफ याचना से-

पर हम आमने-सामने नही ं हो सकते। अगर म 5-6 हज़ार खच कर सकंू तो फांसी से बच


सकता हूं।

कौन-सा याय देवता स चा है-सेशन वाला, जो फांसी देता है या हाईकोट वाला, जो बरी
करता है? छोटे आदमी के िलए छोटे देवता और बड़े आदमी की बड़े देवता तक पहुंच! छोटे
आदमी का भा य-िनमाता गांव के बाहर के बेर-वृ के नीचे रखा लाल प थर और बड़े
आदमी के िलए रामे वर का देवता।

ू भत
िदन-भर इन चीज़ों म िदमाग उलझा रहा। संिवधान, यायपािलका, संसद, मल ू
अिधकार! श द! संिवधान का श द! उस श द का अथ, अथ-भेद! िलखा श द ब्र ।

शाम को िर शे म बैठा लौट रहा था। िर शावाला बात करने लगा। म िर शे म अ सर


बैठता हूं और ज दी न हो तो िर शेवाले से बात करता चलता हूं।

म उससे पछू ता हूं-तुमने वोट िदया था? उसने कहा-नही ं साहब, फालत ू हाथ पर काला घ बा
लगवाने से या फायदा?

मतदान का “पिवत्र” अिधकार िजसे कहते ह, उसे यह िर शावाला हाथ पर काला घ बा


लगाना कहता है।

वह कहता है-2-3 घंटे लगते ह, वोट डालने म, इतने म 2-3 पये कमा लेते ह, िजससे
ू े रह। बाप के वोट देने के शौक के
ब चों का पे ट रात को भरता है। वोट दे द तो, ब चे भख
िलए ब चे भख ू े यों रह? बताइए साहब!

मने कहा-तुम या वोट की कीमत नही ं जानते?

उसने कहा-जानता हूं। एक वोट से हार या जीत हो सकती है। मेरे एक वोट से कोई जीत
सकता है। पर उससे मेरा या फायदा? हम लोगों का कोई भी तो भला नही ं करता। सब
मज़ा-
मौज करने लगते ह। जब-जब हमने वोट िदया है, उसके बाद हमारी मुसीबत और बढ़ गई
है। यह वोट ही पाप की जड़ है। तो हमने वोट देना ही बंद कर िदया।

संसदीय लोकतंतर् पर आ था रखने वाले को परेशानी होगी िक बहुत लोग वोट को पाप की
जड़ मानने लगे ह।

ािनयों की बहुत बात म सुन चुका था। अब इस अ ानी की बात सुन रहा हूं।

ू ा मार ले। हमारा या है?


वह कहता है-साहब, इन सबम होड़ लगी है िक कौन हम भख
िक मत म िजतना है, उतना िमल जाता है।

वह क्रोध से िक मत पर आ जाता है। इस देश के ानी या अ ानी-सबकी यह िवडंबना है


िक वह क्रोघ से फौरन िक मत पर आ जाता है।

रात को बहुत देर तक नीदं नही ं आती। ािनयों की और अ ानी िर शेवाले की बात मन म
ंू ती ह।
गज

नीदं आती है, तो म एक सपना देखता हूं-

म ऊबकर एक अजनबी प्रदेश म पहुंच गया हूं।

ू िनकाल रहे ह, प्रदशन कर रहे ह। वे मांग कर रहे ह-सरकार हम भख


वहां लोग जुलस ू ा
रहने दे। हम भखू ा मरने का अिधकार है। यह सरकार हमारे इस अिधकार को छीन रही
है। हम ऐसी सरकार नही ं चािहए।

सरकार की तरफ से जवाब िदया जाता है-सरकार अपनी तरफ से परू ी कोिशश करती है
िक जनता भखू ी रहे। पर कु छ पै दावार हो जाती है, तो हम कया कर? उसे िकसी को तो
खाना ही पड़ेगा। आप लोगों को थोड़ा-थोड़ा अ न देना सरकार की मजबरू ी है।

जनता कहती है-नही,ं हम यह सरकार नही ं चािहए। हम सरकार बदलगे। हम वह सरकार


ू ा रखे। सरकार की बहानेबाज़ी नही ं चलेगी। िफर से चुनाव हो।
चािहए, जो हम भख

म सपना देख रहा हूं। िनवाचन का िन चय हो जाता है। िजस मु े पर चुनाव हो रहा है, वह
है-“जनता को कैसे भखू ा मारना। ! राजनीितक पािटयां प्रचार काय म लगी ह।

पाट नं. 1 कहती है-हम जनता को वचन देते ह िक हम स ा म आते ही खेती बंद करा
ू ी रहेगी ही।
दगे। अन ही पै दा नही ं होगा तो जनता भख
जनता कहती है-नही,ं अ न तो खूब पै दा होना ही चािहए। िफर भी हम भख ू ा रहने देना
चािहए। अन पै दा नही ं होगा, तो हमारा रा ट् रीय गौरव न ट हो जाएगा।

पाट नं. 2 वादा करती है-हम अन तो पै दा होने दगे, पर उसे महंगा इतना कर दगे िक लोग
खा नही ं सकगे।

जनता कहती है-यह खेल हम बहुत देख चुके। इससे हम संतोष नही। ू ा
ं हम नये ढं ग से भख
मरना चाहते ह।

तब पाट नं. 3 मंच पर आती है। वह कहती है-हम अ न की पै दावार खूब बढ़ाएंग,े पर साथ
ही चहू ों का भी सघन उ पादन होगा। जनता को अन उ पादन का गौरव भी िमलेगा, और
चहू ों के अन खा जाने के कारण भख
ू ा मरने का सुख भी।

ू ा मरना
जनता कहती है-यह पाट हम पसंद है। इसी की सरकार बनेगी। हम बाहु य म भख
चाहते ह।

सरकार बन जाती है। सघन खेती का कायक्रम लाग ू होता है। साथ ही, चहू ों का सघन
उ पादन भी चलता है। अ छी-अ छी न ल के चहू े-आदमी से बड़े कद वाले, आदमी से दुगने
पे टवाले।

अन पै दा होता है और चहू े उसे खा जाते ह। जनता खुश होती है और सरकार की जय


बोलती है।

साल पर साल िनकल जाते ह। फसल चहू े खा जाते ह। आदमी की पीिढ़यां खुशी-खुशी
ू ी मर रही ह।
भख

एक साल अकाल पड़ जाता है। चहू ों के खाने के िलए अन नही ं है।

चहू े सरकार को घेरते ह। कहते ह-हमने अपने को आदमी से बड़ा बनाने के िलए लगातार
“ओवरईिटंग” की है। हमारी खाने की आदत पड़ गई है। हम खाने को दो।

सरकार कहती है-ज़रा घीरज रखो। अगली फसल तक क जाओ।

चहू े कहते ह-धीरज हम नही ं है। हम भख


ू े ह। तु ही ं ने हम खाने की लत लगाई है। अब
हमारा पे ट भरो।

सरकार कहती है-पर हम तु हारा पे ट िकस चीज़ से भर?


चहू े बेताब ह। वे भख
ू से ितलिमला रहे ह। वे कहते ह-तुम नही ं जानते, पर हम जानते ह
िक हम अब या खाना चािहए।

और म देखता हूं, चहू े दांत िकटिकटाकर िभड़ जाते ह।

पहले चहू े संिवधान को कु तरकर खा जाते ह।

िफर चहू े सा कार को खा जाते ह, संसद को खा जाते ह, यायपािलका को खा जाते ह।


मेरी नीदं खुल जाती है।

संवैधािनक बहस करने वाले ानी मुझे याद आते ह। िफर याद आता है, वह िर शावाला।
या अथ है, इस सपने का? पता नही।ं

पर ित्रजटा सीता से कहती है-

यह सपना म कहौं िबचारी

हुई है स य गए िदन चारी।

गौः | थौ +

िजसकी छोड़ भागी है

यह जो आदमी मेरे सामने बैठा है, जवान है और दुखी है। जवान आदमी को दुखी देखने से
पाप लगता है। मगर मजबरू ी म पाप भी हो जाता है। बेकारी से दुखी जवानों को सारा देश
देख रहा है और सबको पाप लग रहा है। सबसे यादा पाप उन भा यिवधाताओं को लग
रहा है, िजनके कम,

अकम और कु कम के कारण वह बेकार है। इतना पाप और िफर ये ऐसे भ ले-चंग!े या


पाप की वािलटी िगर गई है? उसम भी िमलावट होने लगी है।

नही,ं आप गलत समझे। यह जवान बेकारी के कारण दुखी नही ं है। नौकरी उसकी है।

नौकरी बीवी की मांग करती है- तो शादी उसने कर ली थी। हाल म उसकी बीवी उसे
छोड़कर एक पै सवे ाले के घर म बैठ गई है। वह दुखी है। म उसके दुख को महसस ू करने
की कोिशश करता हूं। पर कैसे कर सकता हूं? िजसकी न कभी हुई, न भागी, वह उसके
दुख को महससू नही ं कर सकता। वह गलत आदमी के पास सलाह लेने आ गया है। उसे
ऐसे आदमी के पास जाना चािहए था िजसकी भाग चुकी है और उससे पछ ू ना था िक भैया,
ऐसे मौके पर या िकया जाता है। बहरहाल, म सुन रहा हूं और समझने की कोिशश कर
रहा हूं। इसकी तन वाह कम है। इतने म प नी के पद पर बने रहना उस औरत को शोभा
नही ं िदया। उसे यादा पयों की बीवी बनना था। यह आदमी

ू लेना इससे बनता नही ं है। घस


आमदनी नही ं बढ़ा सका। घस ू से पािरवािरक जीवन सुखी
होता

है। मेरे एक पुराने पड़ोसी िबक्रीकर िवभाग म थे और भरपे ट घस ू खाते थे। उनकी बीवी
उ ह इतना यार करती थी िक मर जाते तो उनकी िचता पर सती हो जाती। उसे यह कतई
बरदा त न होता िक पित तो वग म घस ू खाए और वह यहां उसके लाभ से वंिचत रह
जाए। िकतने सुखी लोग थे। शाम को सारा पिरवार भगवान की आरती गाता था-जय
जगदीश हरे! भगवान के सहयोग के िबना शुभ काय नही ं होते। आरती म आगे आता-सुख-
स पि घर आवे ! शाम को यह बात कही जाती और सुबह बिनयों के लाल व त्रों म बंधी
सुख-स पि चली आती। िजस िदन घस ू खोरों की आ था भगवान पर से उठ जाएगी, उस
िदन भगवान को पछ ू नेवाला कोई नही ं रहेगा। आरती म आता-

ू लेने की इ छा है और तुम िदलाते


तुम अंतयामी। भगवान, तुम जानते हो, मेरे अंतर म घस
भी हो। आरती की एक पंि त से मुझे भी आशा बंधती-श्र ा-भि त बढ़ाओ संतन की सेवा!
मुझे लगता, िजस िदन इसे संत की सेवा करनी होगी, वह संत ढू ं ढने दूर कहां जाएगा। म तो
पड़ोस म ही रहता हूं, पर उसने कभी मुझे संत के प म मा यता नही ं दी।

यह आदमी भी अगर मेरे पड़ोसी जैसा भगव त होता, तो इसकी बीवी नही ं भागती।
उसकी तो बीवी छोड़ गई है, मगर मेरे मन म दूसरी ही बात उठने लगी ह। म कहना चाहता
हूँ-पगले, ज़माने को समझ। यह ज़माना ही िकसी समथ के घर म बैठ जाने का है। वह तो
औरत है। त ू राजनीित के मद को तो देख। वे उसी के घर म बैठ जाते ह, जो मंित्रम डल
बनाने म समथ हो। शादी इस पाट से हुई थी तगर मंित्रम डल दूसरी पाट वाला बनाने
लगा, तो उसी की बहू बन गए। राजनीित के मद ने वे याओं को मात कर िदया। िकसी-
िकसी ने तो घंटे-भर म तीन-तीन खसम बदल डाले। आदमी ही यों, समच ू े रा ट् र िकसी
समथ के घर म बैठ जाते ह। इसी देश के कु छ लोग कहते ह, िक वतंतर् िवदेश नीित
बदल डालो-याने औरत बनाकर देश को िकसी बड़े के घर म िबठा दो।
इन बातों से न उसे शांित िमलेगी न रा ता िमलेगा। िजसकी बीवी छोड़ भागी है, उसका मन
राजनीित म नही ं रम सकता।

ू ा है, उसके बाप की उम्र का।


वह कहता है-वह बढ़

ू े से हार जाने
वह जवान के घर बैठती, तो उसे शायद कम दुख होता। इस जवान को बढ़
का िवशेष दु:ख है। या अभी भी उस त्री के सुख का इसे यान है।

इस अभागे को नही ं मालमू िक पै से म बड़ी मदानगी होती है। आदमी मद नही ं होता, पै सा मद
होता है। अमरीका के अ छे -अ छे जवान टापते रह गए और जेकिलन को ले गया बढ़ ू ा
अरबपित ओनािसस।

एक 60 साल के बढ़ ू े की तीन बीिवयां मर चुकी थी।


ं बढ़ू ा जायदाद वाला। संतान कोई
नही।ं उसे चौथी बीवी की ज़ रत महसस ू हुई।
ं उसे बीवी तो चािहए ही थी, जायदाद का
वािरस भी चािहए था। वािरस न हो तो जायदाद हाय-हाय करती रहती है िक मेरा या
होगा? आदमी को आदमी नही ं चािहए। जायदाद को आदमी चािहए। बढ़ ू े की नज़र गांव की
एक क या पर थी। पर उसके मां-बाप राज़ी कैसे हों? बढ़ ू ा चतुर था। उसने लड़की के
िर तेदारों से कहा-चलो भैया, तीरथ कर आएं। तीथ म उसने कु छ पये देकर साधु को
िमला िलया। िफर लड़की के िर तेदारों के साथ उसके पास गया और हाथ िदखाया। साधु
पहले से सघा हुआ था। उसने हाथ देखकर कहा- तु हारी एक और शादी होगी। िलखी
है। बढ़ू े ने बनकर कहा-ओरे नही ं महा मा, इस उम्र म माया- जाल म मत फंसाओ। साधु ने
कहा-तुम चाहो या नही,ं वह तो होगी। िलखी है। िलखी को कोई नही ं िमटा सकता।
लड़का भी होगा। िर तेदारों ने गांव पहुंचकर लड़की को मां-बाप से कहा-उसके तो िलखी
है। लड़का भी िलखा है। बहुत जायदाद है। लड़की को दे दो। िलखी थी, तो बढ़ ू े की
शादी हो गई। सिदयों से यह समाज िलखी पर चल रहा है। िलखाकर लाए ह तो पीिढ़यां
मैला ढो रही ह और िलखाकर लाए ह तो पीिढ़यां ऐशो-आराम भोग रही ह। िलखी को
िमटाने की कभी

कोिशश ही नही ं हुई! दुिनया के कई समाजों ने िलखी को िमटा िदया। िलखी िमटती है!
आसानी से नही ं िमटती तो लात मारकर िमटा दी जाती है। इधर कु छ िलखी िमट रही है।
भतू पवू राजा-रानी की िलखी िमट गई। अछू तों के लड़के पढ़-िलखकर अफसर भी होने लगे
ह और िजन िवप्र पिरवारों म उनका बाप सफाई करता है, उनके लड़के उसे झुककर
सलाम करते ह। जो िलखाकर लाए थे िक इनके हमेशा चरण छु ए जाएंग,े उनकी भी िलखी
िमट रही है।
यह जवान आदमी अगर यही मान ले िक वह औरत इसके नही ं िलखी थी उस पै सवे ाले को
िलखी थी, तो यहू शांत हो सकता है।

ऐसी घटनाएं होना ज़ री है। इनसे िफ मों की बेवफाई के गाने बनते ह। पर िफ म म जो


बेवफाई करती है वह प नी नही,ं प्रेिमका होती है और बावफा प्रेमी का काम आसान हो
जाता है। वह “हाय बेवफा” कहकर रोता है और दय-पिरवतन की राह देखता है।

प्रेिमका की बात अलग है, प नी की अलग। पि चम म कम-से-कम इतना कर िलया है िक


पित-प नी की न पटे तो तलाक ले िलया। मगर इस देश म चोरी छु पे का मामला है। यहां
तलाक नही ं होता, औरत की नाक काट ली जाती है या उसकी ह या कर दी जाती है।
गांववाला कु ाड़ी से मारता है, शहरवाला ज़हर देता है।

ू े की औरत को भगा लाओ। वह


यह आदमी या इरादा रखता है? म कहता हूं-तुम उस बढ़
कहता है-उसकी तो मर गई और होती भी तो उस बुिढ़या को लाता!

म कहता हूं-तो तुम दूसरी से शादी कर लो।

उसने कहा-मेरा तो जी होता है िक जाकर उस हरामजादी के कलेजे म छु रा घुसड़ ं


े दू।

आिखर यह भी स चा भारतीय मद िनकला। तलाक नही ं देगा, छु रा घुसड़


े ेगा। यह समझता
ू जाता हूं। िकसे फु रसत है िक पित को छोड़कर भागी औरतों का िहसाब रखे ?
म उसे भल

है कोई उसके घड़े को उठाकर ले गया है। यह उसे प थर से फोड़ना चाहता है-म इसम
पानी नही ं एक िदन वह मुझे बस टे शन पर िमल जाता है। उसके पीछे एक औरत है। वह
मुझे 'नम ते' पीऊंगा, तो त ू भी नही ं िपएगा। करता है। उसी ण औरत थोड़ा-सा घंघ
ू ट
कर लेती है।

म कहता हूं-औरत प्रापट नही ं है। वह कहता है-यह मेरी बीवी है।

ू ता हूँ-तुमने दूसरी
वह भर-आँख मुझे देखता है। कहता है-औरत प्रॉपट नही ं है? म पछ
शादी कर ली, यह अ छा िकया।

म कहता हूँ-नही।
ं उसने कहा- नही,ं वही है।

जॉ्ती तह 3 आल अरे, औरत को राजनीित की बीमारी लग गई। दो महीने म दो बार दल-


बदल कर डाला। प्रॉपट नही ं है! बार ऐसा कहकर वह उठकर चला जाता वह मेरी तरफ
अजब ढं ग से देखता है। लगता है, कह रहा है-तुम तो कहते थे औरत प्रॉपट 8-0 बार
ऐसा कहकर वह उठकर चला जाता है। नही ं है! अब देखो। सोचता हूं, या यह उसे छु रे
से मार डालेगा नही,ं वह कहता है-ऐसा जी होता है िक छु रा घुसड़
े म और का दखता ह।
वह सनम॒न प्रा टी की तरह ही खड़ी थी।

ं िजसका जी होता है वह छु रा नही ं घुसड़


दू। े ता है, बाद म
े ता। मारने वाला पहले छू रा घुसड़
ू ता है।
जी से पछ
िकताबों की दुकान और दवाओं की

बाज़ार बढ़ रहा है। इस सड़क पर िकताबों की एक नई दुकान खुली है और दवाओं की


दो। ान और बीमारी का यही अनुपात है अपने शहर म। ान की चाह िजतनी बढ़ी है
उससे दुगनी दवा की चाह बढ़ी है। यों ान खुद एक बीमारी है। 'सबसों भले िवमढ़ू ,
िजनिहं न यापै जगत गित।! अगर यह िकताब की दुकान न खुलती तो दो दुकान दवाइयों
की न खोलनी पड़ती। ं एक िकताब की दुकान ान से जो बीमािरयां फैलाएगी, उनकी काट
ये दो दवाओं की दुकान करगी।

पु तक िवक्रेता अ सर म खी मारते बैठा रहता है। बेकार आदमी हैज़ा रोकते ह योंिक वे
शहर की मि खयां मार डालते ह। ठीक सामने दवा की दुकान पर हमेशा ग्राहक रहते ह।
म इस पु तक-िवक्रेता से कहता हूं-तनू े गलत घंधा चुना। इस देश को समझ। यह बीमारी-
प्रेमी देश है। त ू अगर खुजली का मलहम ही बेचता तो यादा कमा लेता। इस देश को
खुजली बहुत होती है। जब खुजली का दौर आता है, तो दंगा कर बैठता है या हिरजनों को
जला देता है। तब कु छ सयानों को खुजली उठती है और वे प्र ताव का मलहम लगाकर
सो जाते ह। खुजली सबको उठती है-कोई खुजाकर खुजास िमटाता है, कोई श दों का
मलहम लगाकर।

मुझे इस सड़क के भा य पर तरस आता है। सालों से देख रहा हूं, सामने के िह से म जहां

पिरवार रहते थे वहां दुकान खुलती जा रही ह। पिरवार इमारत म पीछे चले गए ह। दुकान
लगातार आदमी को पीछे ढकेलती जा रही है। दुकान आदमी को ढांकती जा रही है। यह
पहले प्रिस जनसेवी वतंतर् ता-संगर् ाम सेनानी दुगा बाब ू की बैठक थी। वहां अब चिू ड़यों
की दुकान खुल गई है। दुगा बाब ू आम सड़क से गायब हो गए। यों मने बहुत-से क्रांितवीरों
को बाद म भ्रांितवीर होते देखा है। अ छे -अ छे वातंतर् य शरू ों को दुकानों के पीछे िछपते
देखा है। मगर दुगा बाब ू जैसे आदमी से ऐसी उ मीद नही ं थी िक वे चिू ड़यों की दुकान के
पीछे िछप जाएंग।े

दवा-िवक्रेता मेरा पिरिचत ह। नम ते करता है। कभी पान भी िखलाता है। म पान खाकर
फौरन िकताब की दुकान पर आ बैठता हूं। उसे हैरानी है िक म न चलनेवाली दुकान पर
यों बैठता हूं। उसकी चलनेवाली दुकान पर यों नही ं बैठता? चतुर आदमी हमेशा चलने
वाली दुकान पर बैठता है। लेिकन अपना यही रवै या रहा है िक न चलने वाली दुकान पर
बैठे ह। या िजस दुकान पर बैठे ह उसका चलना ब द हो गया है। साथ के बहुत-से लोग
े र हो गए ह। मगर अपनी उजाड़ प्रकृित
चलने वाली दुकानों पर बैठते- बैठते उनके मैनज
होने के कारण अभी से समैन तक बनने का जुगाड़ नही ं हुआ।
दवा-िवक्रेता हर राहगीर के बीमार होने की आशा लगाए रहता है। मेरे बारे म भी वह
सोचता होगा िक कभी यह बीमार पड़ेगा और दवा खरीदने आएगा। म उसकी खाितर 6
महीने बीमार पड़ने की कोिशश करता रहा मगर बीमारी आती ही नही ं थी। म बीमािरयों से
कहता-तुम इतनी हो। कोई आ जाओ न! बीमािरयां कहती-ं दवाओं के बढ़े दामों से हम डर
लगता है। जो लोग दवाओं म मुनाफाखोरी की िन दा करते ह, वे समझ िक महंगी दवाओं से
बीमािरयां डरने लगी ह। वे आती ं ही नही।
ं मगर दवाएं स ती हो जाएं तो हर िकसी की
िह मत बीमार पड़ने की हो जाएगी। जो दवा म मुनाफाखोरी करते ह वे देशवािसयों को
व थ रहना िसखा रहे ह। मगर यह कृत न समाज उनकी िन ◌्दा करता है।

आिखर म बीमार भी पड़ा, लेिकन तब, जब बीमािरयों को िव वास हो गया िक मेरे डॉ टर


िमत्र मुझे 'से पल” की मु त दवाओं से अ छा कर लगे।

बीमार पड़ा तो एक ानी समझाने लगे-बीमार पड़े, इसका मतलब है, वा य अ छा है।
व थ आदमी ही बीमार पड़ता है। बीमार कया बीमार होगा। जो कभी बीमार नही ं पड़ते, वे
अ व थ ह। यह बात बड़ी राहत देने वाली है।

बीमारी के िदनों म मुझे बराबर लगता रहा िक वा तव म व थ म अभी हुआ हूं। अभी तक
बीमार नही ं पड़ा था तो बीमार था। बीमारी को वा य मान लेनवे ाला म अकेला ही नही ं
हूं। परू े समाज बीमारी को वा य मान लेते ह। जाित-भेद एक बीमारी ही है। मगर हमारे
यहां िकतने लोग ह जो इसे समाज के वा य की िनशानी समझते ह? गोरों का रंग-दंभ
एक बीमारी है। मगर अफ्रीका के गोरे इसे वा य का ल ण मानते ह और बीमारी को गव
से ढो रहे ह। ऐसे म बीमारी से यार हो जाता है। बीमारी गौरव के साथ भोगी जाती है।
मुझे भी बचपन म पिरवार ने ब्रा णपन की बीमारी लगा दी थी, पर मने ज दी ही इसका
इलाज कर िलया।

मने देखा है, लोग बीमारी बड़ी हँसी-खुशी से झेलते ह। उ ह बीमारी प्रित ठा देती है।
सबसे यादा प्रित ठा 'डायिबटीज़” से िमलती है। इसका रोगी जब िबना श कर की चाय
मांगता है और िफर शीशी म से एक गोली िनकालकर उसम डाल लेता है तब समझता है,
जैसे वह श कर के कारखाने का मािलक है। एक िदन म एक बंध ु के साथ अ पताल
गया। वे अपनी जांच इस उ साह और उ लास के साथ कराते रहे, जैसे लड़के के िलए
लड़की देख रहे हों। बोले-चिलए, ज़रा लड शुगर िदखा ल। लड शुगर देख ली गई तो
बोले-ज़रा पे शाब की जांच और करवा ल। पे शाब की जांच कराने के बाद बोले-लगे हाथ
कािडयोग्राम और करा ल। एक-से-एक नामी बीमारी अपने भीतर पाले थे, मगर ज़रा भी
लेश नही। ं वे बीमािरयों को उपलि धयों की तरह संभाले हुए थे। बीमारी बरदा त करना
अलग बात है, उसे उपलि ध मानना दूसरी बात। जो बीमारी को उपलि ध
मानने लगते ह, उनकी बीमारी उ ह कभी नही ं छोड़ती। सिदयों से अपना यह समाज
बीमािरयों को उपलि ध मानता आया है और नतीजा यह हुआ है िक भीतर से जजर हो गया
है मगर बाहर से व थ होने का अहंकार बताता है।

मुझे बीमारी बुरी लगती है। बरदा त कर लेता हूं, मगर उससे नफरत करता हूं। इसीिलए
बीमारी का कोई फायदा नही ं उठा पाता। लोग तो बीमारी से लोकिप्रय होते ह, प्रित ठा
बढ़ाते ह। एक साहब 15 िदन अ पताल म भरती रहे, जो सावजिनक जीवन म मर चुके
थे, तो िज़ दा हो गए। बीमारी कभी-कभी प्राणदान कर जाती है। उनकी बीमारी की खबर
अखबार म छपी, लोग देखने आने लगे और वे चचा का िवषय बन गए। अब चुनाव लड़ने का
इरादा रखते ह। वे तब तक अ पताल से नही ं गए जब तक एक मंतर् ी ने उ ह नही ं देख
िलया। डॉ टर कहते-अब आप पण ू व थ ह। घर जाइए। वे कहते-डॉ टर साहब, दो-
चार िदन और रे ट ले ल। ंू िफर मुझसे पछ
ू ते- यों, मैयाजी कब आने वाले ह? म देखता,
उनके चेहरे पर व थ हो जाने की बड़ी पीड़ा थी। ऐसी घोखेबाज़ बीमारी, िक िमिन टर
के देखने के पहले ही चली गई। िनदय, कु छ िदन और रहती तो तेरा या िबगड़ता?

बीमारी से चतुर आदमी कई काम साघता है। एक साहब मामल ू ी-सी बीमारी म ही अ पताल
म भरती हो गए। उ ह कु छ लोगों से उधारी वसल ू करनी थी और कु छ लोगों से काम कराने
थे। अ पताल से वे िच ठी िलखने लगे-िप्रय भाई, अ पताल से िलख रहा हूं। बहुत बीमार
हूं। बड़े संकट की घड़ी है। चलाचली की बेला है। आप पये भेज द तो बड़ी कृपा हो।
आधे-से स दयों ने उ ह पये भेज िदए। बाकी ने सोचा-जब चलाचली की बेला है तो कु छ
िदन देख ही िलया जाए। िसधार जाएं तो पै से बच जाएंग।
े एक मामल ू ी बीमारी से उ होंने
दया जगाकर कई काम करा िलए।

चाहता हूं, पर मुझसे यह नही ं बनता। मेरे वही शुभिच तक कह रहे थे-तुम 15 िदनों से
बीमार पड़े हो और अभी तक अखबार म खबर नही ं छपाई! छपा दो और िफर देखो, िकतने
लोग आते ह।

मेरी िह मत नही ं होती। अगर लोग नही ं आए तो आघात से मर ही जाऊंगा। ऐसा एक


“केस' म देख चुका हूं। उन भाई को मामल ू ी बुखार ही आया था। उ होंने सुबह के अखबार
म समाचार छपा िदया और त तरी म 50-60 पान रखवाकर बैठ गए। मगर दोपहर तक
कोई नही ं आया और पान सख ू ने लगे। संयोग से दोपहर को हम दो लोग पहुंचे तो देखा वे
“नवस ब्रेकडाउन” की ि थित तक पहुंच गए ह। कहने लगे-यह साली दुिनया है। दो त ह
हरामज़ादे। अखबार म छप गया तब भी कोई नही ं आया। कोई िकसी का नही ं है। सब
िर ते झठू े ह। वे रोने लगे। तब हमने बीस-पचीस लोगों को

उनके घर िभजवाया और प्राण बचाए।


म ऐसा िर क नही ं लेना चाहता। िबना लोगों के देखे ही अ छा हो जाऊंगा। डॉ टर कहता
है- ज़रा िदमाग को शांत रिखए। म सोचता हूं-इस ज़माने म िदमाग तो िसफ सअ ू र का शांत
रहता है। यहां-वहां का मैला खा िलया और िदमाग शांत रखा। जो ऐसा नही ं करता और
जो सचेत प्राणी है। उसका िदमाग िबना मुदा हुए कैसे शा त रहेगा?
घुटन के प द्रह िमनट

एक सरकारी द तर म हम लोग एक काम से गए थे-संसद सद य ितवारी जी और म।


द तर म फैलते-फैलते यह खबर बड़े साहब के कानों तक पहुंच गई होगी िक कोई संसद
सद य अहाते म आए ह। साहब ने साहबी का िहदायतनामा खोलकर देखा होगा िक अगर
संसद सद य द तर म आए तो या करना? जवाब िमला होगा-उसे चाय िपलाना। िफर
देखा होगा, अगर उसके साथ कोई आदमी हो तो उसके साथ या करना? जवाब िमला
होगा-उसे भी चाय िपला देना। साहब ने िहदायतनामा बंद करके बड़े बाब ू से कहा होगा-
ितवारीजी का काम ख म हो जाए तो उन लोगों को चाय पीने को यहां ले आना।

काम ख म होने पर बड़े बाब ू ने कहा-साहब के साथ चाय पी लीिजए। साहबों के साथ
औपचािरक चाय पीने के अनुभव मुझे ह। उ ह याद करके म कु छ घबड़ाया। मगर सोचा,
यह अनुभव सुखदायक भी हो सकता है। हम दोनों साहब के कमरे म घुस। े एक िनहायत
बनावटी मु कान फैली साहब के चेहरे पर। यह मु कान सरकार खास तौर से अपने
कूटनीित ों और अफसरों के िलए बनवाती है। पि लक से टर म इसका कारखाना है।
ंू
प्राइवे ट से टर के कारखाने म बनी मु कान यापारी के चेहरे पर होती है। इसे नकली मछ
की तरह फौरन पहन िलया जाता है। जब

जुि फकार अली भु टो के साथ मु कु राते सरदार वणिसंह की त वीर देखता तो चिकत
रह जाता। भारत-पाक यु , भयंकर दु मनी-मगर मु कान यह ऊंची वािलटी की बनी हुई
है।

साहब मु कु रा चुके तो तीनों के मन म सम या पै दा हुई िक अब या िकया जाए? चाय तो


ं चपरासी लेने गया होगा।
टे िबल पर है नही।

हमने सोचा, इ होंने बुलाया है तो िनभाने की सारी िज़ मेदारी इनकी। वे समझे थे िक िनभाने
की िज़ मेदारी हम ले लगे।

िह कु छ सेकंड इस दुिवधा म कटे । इतने म साहब समझ गए िक उ ही ं को िनभाना है।


बोले-सुनाइए ितवारी जी, िद ली के या हाल ह?

यह इतना यापक सवाल था िक इसका जवाब िसवा इसके या हो सकता था िक सब ठीक



है। ितवारी जी जानते थे िक िद ली पर बम बरस जाएं तो भी इ ह मतलब नही।

थका-सा जवाब दे िदया-सब ठीक है।


साहब को जवाब माकूल लगा।

ू ा-सुनाइए परसाईजी, सािह य म कैसा चल रहा है? मने भी कहा-सब ठीक


िफर मुझसे पछ
चल रहा है।

बात ख म हो चुकी। सरकारी अफसर ह-राजनीित की बात कर नही ं सकते। सािह य से


कोई सरोकार नही।ं

हम तीनों की नज़र दरवाज़े पर है। हम तीनों चपरासी की राह देख रहे ह।

मगर चपरासी हम तीनों का दु मन है। वह आ नही ं रहा। पता नही ं िकतनी दूर चाय लेने
गया है।

साहब अपनी कु स पर ह। जब उ ह लगता है वे बड़े आदमी ह, वे सीधे तनकर बैठ जाते


ह। मगर जब ितवारीजी अपनी छड़ी की मठू पर हाथ रखते ह, तो साहब को एहसास होता
है िक सामने संसद सद य बैठा है। वे टे िबल पर झुक जाते ह। म यह कवायद बड़ी
िदलच पी से देख रहा हूं। साहब तने, इसी व त ितवारीजी ने छड़ी की मठू पर हाथ फेरा,
साहब ढीले हुए। साहब का यान छड़ी पर है। वे अब छड़ी को ही संसद सद य समझने
लगे ह।

मने अब पे परवे ट उठा िलया है और उससे जी बहला रहा हूं। ितवारीजी ने छड़ी की मठू पर
लगातार हाथ फेरना शु कर िदया है िक साहब को तनने का मौका ही नही ं िमल रहा है।
साहब ने एक िपन उठा ली है और उससे नाखून के मैल को साफ करने लगे ह। मेरी बड़ी
ं इससे दूसरा काम नही ं होता। म पे परवट रख देता
इ छा हो रही है िक िपन से दांत खोदू।
हूं और एक िपन उठा लेता हूं। िपन से म दांतों का मैल साफ करने लगता हूं।

हम तीनों दरवाज़े की तरफ देखते ह। िफर एक-दूसरे की तरफ बड़े दीन नयनों से देखते
ह। हम तीनों को चपरासी मार रहा है और हम कु छ कर नही ं सकते। अ य त दीन भाव से
ू ते ह-और सुनाइए ितवारी जी, िद ली के या हाल ह?
साहब ितवारी जी से पछ

ितवारी जी कहते ह-सब ठीक ही है।

ू ते ह-सुनाइए परसाई जी, सािह य म कैसा चल रहा है?


मुझसे पछ

म कहता हूं-ठीक ही चल रहा है।


कही ं कु छ नही ं जुड़ रहा। वे और हम दो पहािड़यों पर इतनी दूर ह िक कोई पुल हम जोड़
नही ं

सकता। हम तीनों कगार पर खड़े ह। नीचे गहरी खाई है। मगर एक-दूसरे की आवाज़ भी
नही ं सुनाई देती।

साहब को घंटी की याद आती है। घंटी हर साहब की नसों के तनाव को दूर करने के िलए
होती है। उ होंने घंटी बजाई और एक चपरासी हािज़र हो गया।

साहब ने कहा-चाय अभी तक नही ं आई।

चपरासी ने कहा-गया है साब लेन।


े इधर के होटल म दूध खलास हो गया।

मारा होटलवाले ने। दूध खलास िकए बैठा है। पता नही ं चपरासी िकतनी दूर गया है।

अब या कर?

साहब ने अब पिसल उठा ली है। वे उसे गाल पर रगढ़ते ह। मेरे दांत अब साफ हो चुके ह।
िपन उठा नही ं सकता। म टे िबल पर तबला बजाने लगता हूं।

साहब बहुत संकट म ह। वे यह जानते िक पास के होटल का दूध ख म हो गया है तो चाय


ं हम भी घोर संकट म ह। इ होंने पहले चाय बुलाकर िफर हम यों
पीने को बुलाते ही नही।
नही ं बुलाया?

साहब पिसल गाल पर काफी रगड़ चुके। दरवाज़े की तरफ देखते ह। िफर वही-और
सुनाइए ितवारीजी, िद ली के या हाल ह?

इस बार ितवारी जी ने तय िकया िक कु छ करना ही पड़ेगा। िद ली के हालात पर बात चले,


तो कु छ ह कापन महसस ू हो।

वे बोले-कांगर् ेस के दो िह से हो गए। िसंिडकेट िनकल गई बाहर।


मेरा याल था, अब बात चलेगी। पर साहब बोले-अ छा जी!

म खुद ितवारी जी से दो घंटे िद ली की राजनीित पर बात कर चुका था। मेरे पास बढ़ाने

को कु छ था नही।

ितवारी जी एक कोिशश िफर करते ह-इंिदरा सरकार िबलकु ल पु ता है।

साहब ने कहा-अ छा जी!

ितवारी जी िनराश होकर छड़ी की मठू पर हाथ फेरने लगे।

मने टे िबल पर तबला बजाना शु कर िदया।

कोई उपाय कारगर नही ं हो रहा।

साहब ने िफर कहा-और सुनाइए ितवारी जी, िद ली के या हाल ह?

इस बार ितवारी जी कु छ नही ं बोलते। वे लगातार छड़ी की मठू पर हाथ फेर रहे ह।

हम तीनों की हालत खराब है। मेरा तबला बजाने का जी भी नही ं हो रहा।

इसी व त चपरासी ट् रे लेकर आ गया। हम सब मुद जैसे जाग पड़े। साहब के चेहरे पर
पहले ऐसा भाव आता है िक उसे चांटा मार द। िफर दूसरा भाव आता है जैसे उसके चरण
छू ल। म खुद गु से से भरा बैठा था। मगर उसके आते ही मेरा मन उसके प्रित कृत ता
से भर गया।

हमने बहुत फु त से चाय सुड़की। उठे । बोले-अ छा अब इजाज़त दीिजए। उ होंने फौसन ू
इजाज़त दी। बोले-अ छा जी। थक य ू वे री मच। हम उ ह घ यवाद देने का भी होश-हवास
नही ं था।

बाहर आकर हम दोनों ने पहले खूब ज़ोर से चार-छह सांस ली,ं िफर गाड़ी म बैठे। रा ते-
भर हम एक-दूसरे से नही ं बोले।

उतरते व त अलब ा मने कहा-और सुनाइए ितवारी जी, िद ली के या हाल ह? ितवारी जी


ू ने भी नही ं दोगे?
भ नाकर बोले-यार, अब भल

गौः | थौ +
आचायजी, ए सटशन और बागीचा

लीन शेव के बाद भी आचायजी को ए सटशन नही ं िमला।

आचायजी के िपता झिरदार मछ ंू रखते थे। वे अंगर् ेज़ सरकार के नौकर थे। उनकी मछ ंू ों
की िसफत यह थी िक आदमी और मौका देखकर बताव करती थी। ं वे िकसी के सामने
"आई डोंट केअर' के ठाठ की हो जाती। ं िफर िकसी और के सामने वे मछ ंू ों पर इस तरह
हाथ फेरते िक वे “आई एम सॉरी सर' हो जाती। ं मछंू ों के इस दुहरे वभाव के कारण वे
सफल और सुखी आदमी रहे। आचायजी जब जवान थे, और आचाय नही ं िसफ ले चरर
थे, तब उ होंने िपताजी की तरह मछ ंू रख ली थी। ं वे इन मछ ंू ों से रीडरी की तलाश करते
थे, जैसे कोई-कोई कीड़े मछंू के दो लंबे बालों से राह खोजते ह। पर मछ ंू ों के ही कारण
रीडरी दूर हटती जाती थी। तब आचायजी ने िपता और पौ ष-दोनों से मा मांगकर मछ ंू
आधी करवा ली। ं उनका डंक चला गया और वे मात्र ब्रश रह गई। ं वे रीडर हो गए। आगे
आधी मछ ंू भी प्रोफेसर बनने म बाधा डालने लगी ं तो उ होंने उ ह कतरवाकर नाक के दोनों
तरफ म खी िबठा ली और प्रोफेसर हो गए। आगे िरटायर होने का व त आया और वे
ए सटशन की कोिशश म लग गए। अब उ होंने मकखी भी साफ करा ली और लीन शेव
हो गए। उ ह एक ए सटशन िमल गया।

आचायजी मेरे बड़े भाई के िमत्र थे। बड़े भाई की म ृ यु हो चुकी थी। आचायजी इस नाते
मुझे शु से ही नेह देने लगे। वे मुझे भुजाओं म जकड़ लेते और मुझे लगता, मेरे गाल पर
सािह य झाड़ू लगा रहा है। आगे मुझे लगता है, मेरे गाल पर आलोचना ब्रश कर रही है।
िफर मुझे लगने लगा, मेरी रचनाओं पर समी ा की मि खयां िभनिभना रही ह। लीन शेव
के बाद भी वे उसी तरह मुझे गले लगाकर गाल पर गाल रख देते और मुझे लगता, हज़ारों
कचुए मेरे शरीर से िलपटे ह। मुझे अपने-आप से िघन होने लगती।

गोल चेहरा| चेहरे पर ब चे जैसी पिवत्रता। आंखों म अपार नेह। नाक की मुदर् ा म

िन छलता। परू े मुख पर यह भाव िक म तो इतना नेही, भला और परोपकारी हूं, पर सारी
दुिनया मुझ पर अ याय कर रही है। वे जब भी मुझे िमलते, मुझे यही बोध होता िक भले
आदमी दुिनया म िकतने दुखी रहते ह। कई सालों तक म उ ह सामने से देखता रहा और
उनका यही पावन प मुझे िदखता। एक िदन मने कोण से उनकी नाक को अनायास देख
िलया और मेरे भीतर एक झटका-सा लगा। नाक सामने से कु छ और बताती थी और साइड
से कु छ और। मुझे आज तक उनकी नाक का वह बाज ू से देखना याद है। तब उनकी नाक
बहुत कु िटल और क् र लगी थी। आदमी को समझने के िलए सामने से नही,ं कोण से
देखना चािहए। आदमी कोण से ही समझ म आता है। उनका वह सहज, नेिहल मुखड़ा
मुझे भयानक लगा। मने उनकी आंखों को िफर देखा। उनम नेह के पीछे न जाने या-
या िछपा था।

उस िदन से म आचायजी से डरने लगा। वे मुझे गले लगाते, तो मेरा दम घुटता। म दय से


चाहता िक वे मुझसे नफरत कर, पर वे नेह छोड़ते ही नही ं थे और मुझे देखते ही भुजाओं
म भर लेत।
े उनके नेह के अनुपात से म उनके वाथ का अनुपात समझने लगा। तीस
सेकंड गले लगाकर वे मेरी 4-6 िकताब ले गए। एक िमनट आिलंगन करके उ होंने अपने
प्रित ी के िखलाफ मुझसे अखबार म िलखवा िलया। डेढ़ िमनट के आिलंगन म उ होंने
मुझसे अपने बारे म लेख िलखवा

िलया। दो िमनट मुझे दय से लगाया और मुझसे 3-4 सौ कािपयां जंचवा ली।ं लगातार
एक स ताह तक मुझे तीन फी िदन के िहसाब से गले लगाकर उ होंने अपने आवारा बेटे की
शादी मेरी मारफत मेरे पिरवार की एक लड़की से करा ली-और लड़की के मां-बाप मुझे अभी
तक गाली देते ह। दय से लगाने पर उ ह लगता िक ज़ोर कम पड़ेगा, तो वे मेरे बड़े भाई
की याद करके आंखों म आंस ू ले आते और म समझ जाता िक आज कोई बड़ा काम मुझसे
करवाएंग।े

म सोचता िक या मेरे प्रित ही इनका इतना नेह है? या िसफ मुझे ही गले लगाते ह।
नही,ं वे बहुत सुलझे हुए िवचार के आदमी थे। उनके िवचारों म कोई दुिवधा नही ं थी।
िकससे िकतना

लाभ उठाना है, इसका िहसाब उनके मन म होता था और वे इसी िहसाब से अपने दय का
नेह उ ेिलत कर देते थे।

म उ ह समझ गया था। एक बार वे एक शहर प द्रह िदन के िलए गए। उ ह मु त म ठहरने
और खाने की सुिवधा चािहए थी। वे जानते थे, उस शहर म मेरा एक घिन ठ और स प न
िमत्र रहता है। जाने के 15 िदन पहले से उ होंने मेरे ऊपर नेह उं डेलना शु कर िदया।
मेरे तमाम कपड़े भीग गए। म इंतज़ार कर रहा था- नेह की पिरणित का। आिखर जाते
व त वे उस िमत्र के िलए मेरी िच ठी ले गए। िमत्र ने उनका बिढ़या इंतज़ाम कर िदया।
महीना-भर बाद वह िमत्र मुझे िमला तो उसने कहा िक आचायजी का मने अ छा इंतज़ाम
कर िदया था। उ ह कोई तकलीफ नही ं हुई। मने पछ ू ा-पर उ होंने तुमसे मेरी िनंदा की होगी
न? सच बताओ। उसने िझझककर कहा-हां, की थी! पर तुमने कैसे जाना? मने कहा-म
जानता हूं, वे बहुत सुलझे हुए िवचारों के आदमी ह। िजससे फायदा उठा रहे ह, उसकी
प्रशंसा और बाकी सबकी िनंदा-ऐसी लीअर िथंिकंग है उनकी।

बड़े सुलझे िवचार! िजसे न ट करने की कोिशश म लगे ह, वह अगर मर जाए तो रो पड़गे।
किवता सुनकर भाव-िवहल हो जाएंग,े आंख छलछला आएंगी, पर आंस ू पोंछकर जिू नयर को
स पड कराने की कारवाई कराने लगगे। खुद किवता सुनाएंगे और मानवी क णा से हम
सबको

पावन कर दगे, पर किवता सुनाने के बाद िकसी छात्र के न बर घटाकर उसे फेल कर
दगे। प्रेिमका को गले लगाएंगे तो िहसाब भी करते जाएंगे िक इसका नेकलेस चुराकर कैसे
बेचा जा सकता

है। ब चे को चमू गे तो वा स य के साथ यह िहसाब भी करते जाएंगे िक बड़ा होकर यह


िकतना कमाएगा और मुझे उसम से िकतना देगा।

बड़े सुलझे िवचार! म 3-4 सालों के िलए दूसरे शहर चला गया। सोचा, अब उनके नेह से
मुझे छु टकारा िमलेगा। पर उनकी जब-तब िचि ठयाँ आ जाती। ं नीचे िलखा होता-'तु हारा
ही' या “केवल तु हारा'। हर ऐसी िच ठी के बाद म इंतज़ार करता िक अगली िचट् ठी म ये
या काम बताते ह। नए वष की मंगलकामना वे भेजते, तो म समझ जाता िक मेरे मारफत
इस साल अपने मंगल का िहसाब उनके पास तैयार होगा।

“केवल तु हारा” की दो-तीन िचि ठयों के बाद उ होंने पा य पु तक म मेरी एक कहानी ले


ली। प्रकाशक से उ होंने कह िदया होगा िक इस लेखक से मेरे घिन ठ स ब ध ह। इसे
कु छ देने की ज़ रत नही ं है। संगर् ह के हर लेख के बारे म उ होंने यही कह िदया होगा
और प्रकाशक से पये लेकर पु तक को कोस म लगवा िदया। सािह य म बंध ु व से
अ छा घंघा हो जाता है।

म अपने-आपको अब िघ कारने लगा था। सोचता-म िकतना स वहीन हूं। हर बार परा त
हो जाता हूं। इस बार मने उनका सामना करने का तय िकया। मने उ ह िलखा िक आपने
मुझे प्रकाशक से पये नही ं िदलवाए और कहानी ले ली। इनका जबाव आया-इतने वष के
नेह के बाद मुझे इतना अिधकार भी नही ं है िक म तु हारी एक कहानी ले ल-ंू केवल
तु हारा। मने अब इन 'केवल मेरे! से िनपटने की ठान ली। मने उ ह िलखा-मेरे प्रित
आपका नेह है इसिलए म नुकसान उठाऊं। और प्रकाशक के प्रित आपका नेह नही ं है,
इसिलए वह फायदा उठाए। ऐसा नेह मानव जाित के इितहास म पहली बार आपके ारा
आिव कृत हुआ है।
िचट् ठी का उ होंने जबाव नही ं िदया। 15 िदन बाद मने वकील से प्रकाशक को नोिटस
िदलवा िदया। अब मानवी संबध ं ों का एक नया दौर शु हुआ। प्रकाशक को वे िलखकर
दे चुके थे िक मेरी िलिखत अनुमित उनके पास है। प्रकाशक ने उ ह मेरा नोिटस बताया
होगा और तब उ होंने मुझे िलखा िक म संकट म पड़ गया हूं और तुम मुझे अनुमित भेज कर
उबार लो-तु हारा अपना। पर म “मेरे अपने” से िनपटने की ठान चुका था। मने एक
नोिटस प्रकाशक को और िदलवाया िक मुझे 15 िदन के भीतर हज़ार पया दो, वरना
कॉपीराइट ए ट के मुतािबक दीवानी और फौजदारी-दोनों मुकदम चलाए जाएंग। े

मुझे मालमू हुआ िक यह नोिटस पाकर प्रकाशक ने आचायजी पर घोखाघड़ी का मुकदमा


दायर कर िदया। मेरा मन िफर क चा हुआ, मने मन को एक थ पड़ लगाया और स त
होकर बैठ गया। अब मुझे जो िच ठी िमली उसम नीचे िलखा था-“आपका दासानुदास”।
आग्रह वही था िक म अनुमित िलखकर भेज दू।ं

मने अनुमित िफर भी नही ं भेजी। तब उनकी िच ठी आई ं िक म अमुक तारीख को तुमसे


िमलने ही आ रहा हूं। एक अससे से तु ह देखा नही ं है। तु ह देखने की ललक एकाएक मन
म उठ आई है।

म ललक को समझ गया। मन िफर िफसला तो मने उसे इस बार दो चांटे लगाए।

िनयत तारीख को वे आ गए। म उ ह घर के बाहर ही िमल गया। वे एकदम िवहल हो गए।


आंख बंद कर ली। ं उ ह च कर आने लगे। बोले-इतने िदनों बाद इस घर आया हूं, तो
तु हारे भाई की याद से तड़प उठा हूं। ओह, िकतना नोबल था वह! मुझे लगा, ये बेहोश
होकर िगर पड़गे। मने कहा-चिलए, भीतर चिलए। उ होंने मेरा कंधा पकड़ िलया। बोले-
ठहरो। ज़रा मुझे संभल जाने दो। मुझे संभल जाने दो भैया।

म समझ गया, ये बड़े संकट म पड़ गए, वरना मेरे भाई की याद का इतना ल बा उपयोग न

करते। म उ ह सहारा देकर भीतर ले गया। वे बैठे। पानी मांगा। कहने लगे-भावुक हूं न।
एकदम िवचिलत हो जाता हूं िकसी िप्रय की मिृ त से।

अब उ होंने संकटों का वणन िकया। मेरे मन ने िफर क चापन िदखाया, पर मने उसे िफर
चांटा मारा। मने तय िकया िक आज म इ ह नफरत करने के िलए मजबरू कर दूग ं ा। मने
उनसे साफ कह िदया-म नेह और संकोच म आपके और दूसरों के हाथों काफी िपट
चुका। अब म यह काम बंद कर रहा हूं। नेह की दुकान मने बढ़ा दी। अब अनुमित तभी
िलखकर दूग ं ा, जब मुझे पये िमलगे। मेरा याल था अब इनके चेहरे पर क्रोध और
नफरत आएगी। पर म िनराश हुआ। वहां पहले जैसा ही नेह था। म इस आदमी के साथ
कैसा क ं ? यह अभी भी नेह के हिथयार को नही ं छोड़ रहा है। ज़रा देर के िलए यह
हिथयार डाल दे तो म इसे दबोच लंू और पये वसल ू कर ल। ंू पर वह तो हिथयार पर घार
कर रहा था। मुझे इस हिथयार का सामना करना ही पड़ेगा। मने कहा-िकसी तरह म
समझौता नही ं क ं गा। मुझे पये चािहए ही। भाई के िलए हम लोग बाद म रो लगे।

उ होंने बटु आ िनकाला। मने चेहरा देखा। नफरत अब भी नही ं थी। लेश था। बुआ
खोलकर उ होंने सौ का नोट िनकाला। नफरत अब भी नही ं थी मुख पर। बस, लेश गाढ़ा
हो गया था, जैसे नोट नही ं प्राण िनकालकर दे रहे हों। मने नोट ले िलया और अनुमित
िलख दी। सोचा, अब नेह स ब ध ख म हो गए। म ह का हो जाऊंगा। पर जाते व त
उ होंने मुझे िफर दय से लगा िलया। सोचा, इनके नेिहल चेहरे को ज़रा कोण से देख ल,ंू
पर िह मत नही ं हुई।

म लौटकर आचायजी के शहर आ गया। वे िवभागा य थे। बड़े बंगले म रहते थे। मेरे आने
की खबर पाते ही उ होंने मुझे बुलवा िलया और िफर गले से लगा िलया। नेह की डोर म
बार-बार काटता और वे जोड़ लेत। े मेरा अंदाज़ा है, पहले वे लोभ के िलए नेह करते थे,
अब शायद थोड़े डर के कारण।

िवभाग म काम करने का उनका अपना तरीका था। वे शोध करवाते थे। शोध-खछात्र
लेने म वे एक िस ा त का पालन करते थे। एक ग ला यापारी का लड़का लेत,े एक कपड़ा
यापारी का, एक होज़री के दुकानदार का। िफर कोई जगह खाली बचती तो स ज़ी के
यापारी के लड़के को ले लेत।
े कभी घी और िकराना यापारी के लड़के को भी चांस िमल
जाता। हर साल िव विव ालय म लड़के शोर मचाते-आव यकता है-एक िकराना यापारी के
लड़के की, िजसे डॉ टरेट चािहए। शोध का िनदश िकराने की मात्रा और वािलटी पर
िनभर करेगा। िकराने के 'से पल” सिहत दर वा त दो।

इस ह ले-गु ले से अिवचिलत आचायजी िव ा की साधना कराते जाते थे। वे सुलझे िवचारों


के आदमी थे!

िरटायर होते हुए वे कु छ दाशिनक हो गए। वीतराग लगने लगे। वे ए सटशन की कोिशश म
थे। ए सटशन उ ह िमल भी गया।

चपरािसयों से काम लेकर उ होंने बंगले के सामने बहुत अ छा बगीचा लगवा िलया था। रंग-
िबरंगे खूबसरू त फूल। ए सटशन की अविध म उनका प्रकृित-प्रेम बहुत बढ़ गया था। म
उनके यहां कभी-कभी जाता। वे बागीचे म बैठे िमलते। कहते-प्रकृित के सौंदय म से ई वर
झांकता है।
वे िकसी भी कली के पास बैठ जाते। कहते- तुम इस कली का पंदन सुन रहे हो? नही ं न?
म सुन रहा हूं। और ज़रा इस फूल के जीवन का उ स देखो। इस प े को देखो। िकस
उ लास से लहरा रहा है।

वे फूल को ब चे की तरह सहलाते। कहते-ये भी मनु य ह। प्रकृित म प्राण ह। ये फूल,


प े, पौधे-मेरी संतान ह। “म” अपने ब चों की तरह इ ह यार करता हूं। एक फूल
ू कर िगरती है, तो
कु हलाता है तो मुझे लगता है, मेरा जीवन कु हला रहा है। एक प ी सख
लगता है, मेरी एक भुजा टू ट

गई। कोई कली झड़ जाती है, तो मुझे ऐसा लेश होता है जैसे मेरे प्राण का एक अंश
िवसिजत हो रहा हो।

वे मु ध हो जाते। आन द िवभोर हो जाते। फूल-प ों के िलए अपार ममता उनके नयनों म


होती। तब वे मुझे भ यतर मनु य लगते और िपछला सब कु छ भुलाकर म उन पर श्र ा
करने लगता। कैसा दयालु, भावुक आदमी है, जो फूल और प े के िलए रोता है।

बागीचा संवरता जाता था। साथ ही, दूसरे ए सटशन की कोिशश चलती जाती। किव मन
सुबह फूल-प ों फो संवारता और बाकी िदन ए सटशन की कोिशश म लगा रहता।

एक िदन आचायजी को अंितम बार बता िदया िक दूसरा ए सटशन नही ं िमलेगा और दो
महीने बाद यािन 3 जनवरी को उ ह चले जाना है।

सुबह का व त था। म उनके घर पहुंचा। वे इस व त हमेशा बागीचे म िमलते थे। आज


बरामदे म बैठे िमले। बोले-कल खबर िमल गई। ए सटशन नही ं िमलेगा।

ं खोली ं तो म उनकी आंख देखकर कांप गया। बढ़


उ होंने आंख बंद कर ली। ू ी आंखों म से
आग िनकल रही थी। उ होंने बागीचे को देखा। मुझे लगा, फूल-प े झुलस गए होंग।

ं कर बोले-आिखर ए सटशन नही ं िमला। यहां अब दो महीने बाद डॉ. दीनानाथ


सांस खीच
आ जाएगा। डॉ. दीनानाथ!

उ होंने उसी िदन नौकरों को हु म िदया िक बागीचे म पानी नही ं िदया जाएगा। पानी के
िबना पौधों ने, घरती से िजतना प्राण-रस खीच
ं सकते थे, खीच ं ा। िफर सख ू ने लगे।
ू ते पौधों को देख रहे होते।
म उनके घर कभी-कभी जाता। वे बरामदे म बैठे होते और सख
ू रहे ह बेटे!
कहते-उस गुलाब की हालत देख रहे हो? सख

-ए सटशन नही ं िमला।

-उस मौलिसरी की हालत भी पतली है।

-ए सटशन नही ं िमला।

ू गए।
-ये गमले तो अभी से सख

-ए सटशन नही ं िमला।

यहां डॉ. दीनानाथ आएगा!

ू ना
अपने बढ़ाए, पाले-पोसे पौधों को आचायजी सुखा रहे थे। बरामदे म बैठकर उनका सख
देखते थे और बीच-बीच म उसांस लेकर कहते-ए सटशन नही ं िमला। अब यहां डॉ टर
दीनानाथ आएगा!

दो महीने म परू ा बागीचा सख


ू गया। वे फूल नही ं थे, िजनका पंदन वे सुनते थे। वह कली

नही ं थी, िजसके जीवन का उ स वे अनुभव करते थे। वे प े झड़ गए थे िजनका उ लास


ू े नंगे पौधे खड़े थे योंिक ज़मीन उ ह जकड़े
देखकर वे मु ध होते थे। बागीचे म अब सख
थी।

30 तारीख को आचायजी ने सामान बंधवाया। दूसरे िदन उ ह जाना था। िदन-भर वह


य त रहे। शाम ढली। इसी समय गांधीजी की ह या हुई थी।

ू े डंठल कटवाकर
िदस बर की रात। कड़ाके की ठं ड थी। आचायजी ने नौकरों से वे सख
बागीचे म इक ठे करवाए। एक ढे र लग गया। उसम उ होंने आग लगा दी और बड़ी रात
तक अलाव तापते रहे। िक

दूसरे िदन आचायजी चले गए। इस संतोष से गए िक उ होंने डॉ. दीनानाथ की आग ताप ली
थी।

म उ ह िवदा करने गया। वे घर से िनकले। जले हुए बागीचे की तरफ देखा। आिखरी बार
बोले-ए सटशन नही ं िमला। और मुहं फेरकर टे शन चल िदए।
िसलिसला फोन का

यह जो फोन लग गया है, उसके िलए 350 पये खरेजी ने जमा िकए थे। िलहाज़ा, उ ह
अमर करना ज़ री है। इस अमर कृित के पहले ही वा य म उनका नाम आ गया है। अब
वह अपने कृित व से अपनी उम्र बढ़ाने की झंझट म न पड़। उनका काम मने कर िदया
है। तीसवी ं शता दी के लगभग कोई शोध छात्र पै दा होगा, जो िवभाग के अ य को अपने
गांव का शु घी िखलाकर और उनकी प नी को ब चे के गु छे समेत प्रदशनों म झल ू ा
झुलाकर ान की साधना करेगा। वह यह पता ज़ र लगा लेगा िक बीसवी ं सदी म यह
कौन भला मानस हो गया है, जो लेखक के घर भी फोन लगवा देता था।

जो नही ं है, उसे खोज लेना शोधकता का काम है। काम िजस तरह होना चािहए, उस तरह
न होने देना िवशेष का काम है। िजस बीमारी से आदमी मर रहा है, उससे उसे न मरने
देकर दूसरी बीमारी से मार डालना डॉ टर का काम है। अगर जनता सही रा ते पर जा
रही है, तो उसे गलत रा ते पर ले जाना नेता का काम है। ऐसा पढ़ाना िक छात्र बाज़ार म
सबसे अ छे नो स की खोज म समथ हो जाए, प्रोफेसर का काम है।

खैर, िजसका जो काम है, वह जाने। मेरे काम ह-अमर करना और “ऑल इंिडया” करना।

ऑल इि डया कर देने का रेट सौ पये है। सौ पये लेकर म ऐसा लेख िलखता हूं, जो
छपते ही मर जाए। मेरे दाता का नाम सारे देश म फैल जाता है, पर अमर नही ं होता। लेख
की वािलटी ही ऐसी होती है िक वह छपते ही मर जाता है।

एक साहब से मने सौ पये ले िलए थे। इतनी उम्र हो गई पर िकसी का पै सा वापस करने
का गंदा िवचार मेरे मन म कभी नही ं आया। पर सभी का मन तो मेरे जैसा िनमल नही ं होता
है। उन स जन के मन म पै से स ब धी गंदा िवचार था। म हूं सािह यकार और सािह यकार
का घम है- मनु य के मन को,िनमल करना। म घ॒म से िगर जाता अगर यह बदा त करता
िक एक भले मानस के मन म सौ पये पड़े-पड़े सड़ा कर। मने एक लेख म उनके नाम का
उ लेख कर िदया। उनके पास ब बई और िद ली से दो तों की िचि ठयां आ गई ं िक
तु हारा नाम पढ़ िलया। इससे उनका मन मेरी तरह िनमल हो गया। सड़े पये िनकल गए।
मेरा घ॒म िनभ गया। सािह य का ठीक ढं ग से उपयोग िकया जाए तो समाज को बड़े फायदे
होते ह।

छोटे शहरों के अखबारों म शादी, संतान और फोन के समाचार छपते ह। इधर एक


अखबार म शादी के समाचार “िचर जीवहु जोरी जुरै! शीषक के नीचे छपते ह। िबहारी का
वह दोहा यह है- िचर जीवह जोरी जुरै यों न नेह ग भीर

को घिट ये वषृ भानुजा वे हलघर के बीर


मेरे इस फोन का समाचार छपा था। ऊपर िक ही ं िमश्रजी के घर 'पुतर् -रत्र” की प्राि त
का समाचार था और उसके ठीक नीचे मेरे इस “फोन-र न” का। जब िमसेज़ िमश्र को
पुतर् की प्रसव पीड़ा हो रही थी, तब म फोन की प्रसव-पीड़ा भोग रहा था। साढ़े तीन सौ
पयों का एकाएक प्रब ध करना िवकट प्रसव-पीड़ा है। इसे िमसेज़ िमश्र नही ं जानती,ं
िमश्रजी जानते ह। ज़चकी के खच के

िलए पयों का इंतज़ाम करने म िमश्रजी को िजतनी पीड़ा हुई होगी, उतनी पीड़ा म दस
ब चे पै दा हो जाते। अगर प्रकृित नर को भी प्रसव करने की सुिवधा दे दे, तो िमश्रजी
िमसराइन से कहगे-त ू पयों का इंतज़ाम कर। ब चा म िदए देता हूं, और िमश्रजी झंझट से
बरी होकर “मेटिनटी होम! म दािखल हो जाएंग। े

छपा था-अमुक िमश्रजी को पुतर् -रत्र की प्राि त हुई। बधाई! मुझे यह समझ म नही ं
आता िक पै दा होते ही कैसे जान िलया िक बेटाजी रत्र ह, वह कंकड़ नही ं ह। ऐसा नही ं हो
सकता िक अभी पुतर् कह और अगर वै सा िनकले तो र न कहने लग? वै से भी िबगड़े
लड़कों को “रतन” कहते ही ह। अ छा 'सुपत ु र् ” या होता है? और “धमप नी” या चीज़
है। घमप नी होती है, तो अधमप नी या नही ं होती कोई? या घमादा म िकसी प नी को
'घमप नी' कहते ह? िवकट ककशाएं तक “घमप नी” कहलाती ह। इधर एक ककशा है,
जो पित को पीट तक देती है, पर पित जब उसका पिरचय देते ह, तब कहते ह-यह मेरी
घमप नी है। और घ॒मप नी भी अपने को पितव्रता समझती है- पित को चाहे पीट ल,ंू पर
पराये आदमी से नज़र नही ं िमलाती।

घमप नी होती है, घमिपता होता है। िकसी दूसरे आदमी को जो वा तिवक िपता नही ं है,
िपता मान िलया जाए, तो वह घमिपता कहलाता है। भाषा के बड़े छल ह। और िफर घम के
मामले म म शु से ही 'क य ू ड' रहा हूं।

मेरा एक प्रगितशील दो त कहता है-ये सु, रत्र, मंगल, शुभ, घ॒म आिद भाषा के साम ती
सं कार ह। िकसी भी प्रगितशील को सुपत ु र् होने से इंकार कर देना चािहए। म बचपन से
ही इ कार कर चुका हूं। म आिद प्रगितशील हूं। मगर िववािहत प्रगितशील अपनी बीवी
को अधमप नी कहे तो ठीक रहेगा।

ु र् कहो-कु ल वा तिवकता यह है िक पिरवार-िनयोजन के तमाम


पुतर् र न कहो, चाहे सुपत
प्रचार के बावजदू िमश्रजी के घर एक लड़का हो गया। ऐसे समाचारों के प्रकाशन पर
रोक लगनी चािहए।

इनसे प्रो साहन िमलता है। िमश्रजी के समाचार से दुबेजी को प्रो साहन िमलता है।
खरबज ू े को देखकर खरबज ू ा रंग बदलता है। एक ब चे के पै दा होने का समाचार पढ़कर
दूसरा ब चा पै दा होने को उ सुक हो जाता है। इस ज़माने म ब चा होना शम और संकट

की बात है। अगर समाचार छपना ही है, तो पिरवार-िनयोजन की भावना के अनुकूल ऐसा
समाचार छपना चािहए-“अमुक आदमी के यहां कल लड़का हुआ। िघ कार है। सारा रा ट् र
उसपर थक ू रहा है।”

यह जो दो या तीन ब चे-बस' वाला पो टर है, यह गलतफहमी फैलाने लगा है। इसम दो


छोटे -छोटे ब चों के साथ त्री बैठी है। एक त्री ने दीवार पर लगे इस पो टर को
देखकर पो टर वाली से कहा-ऐ भेण जी, हमको मत बनाओ, तु हारे कु ल दो ही नही ं ह।
उनको भी तो जोड़ो जो पढ़ने गए ह। चतुर त्री समझ गई िक पो टर वाली ने दो बड़े
ब चों को तो पढ़ने भेज िदया और ये दो छोटे हम िदखाकर बु ू बना रही है। पिरवार-
िनयोजन वाले इस पो ट म िसफ एक ब चा मां की गोद म रख और दूसरे को कूल जाता
बताएं। नीचे यह िलख-बाई, हमारे दो ही ह। एक गोद म है, और दूसरा पढ़ने गया है।

छोटे शहर की मानिसकता अलग होती है। यहां फोन िमलने पर बधाई दी जाती है। म जो
फोन की बात कर रहा हूं, तो मुझे अपने एक िमत्र की याद आ रही है, जो मुझे
“प्रिवंिशयल” (कसबाई) कहता है। िद ली म कु छ साल पहले हम एक साल ठहरे थे। मने
सुबह समय जानने के िलए 174 न बर डायल िकया। बड़ा सुरीला संगीतमय नारी-कंठ
बोला-टाइम इज़ टे न आवस फाइव िमिन स। म उद्◌ेिलत हो गया। इतनी मीठी आवाज़ म
आजकल कौन समय बताता है? मने कह िदया-थक य। ू वह मेरा दो त िखलिखलाया।
बोला-ओरे प्रिवंिशयल, िकसे घ यवाद दे रहे हो! वहां कोई थोड़े ही बैठी है? मुझे कतई
िव वास नही ं हुआ िक यह सुरीली आवाज़ िकसी य त्र की करामात हो सकती है। हो भी
तो कोई बात नही,ं इतनी मीठी आवाज़ म कोई समय बताए तो कोई अपने को घ यवाद देने
से कैसे रोके ?
वह चाहे कु छ कहे, वह गवाह है िक म इस फोन के कारण स टे के अंक बताने वाला
योितषी हो सकता था। हुआ नही,ं यह मेरी दूसरे योितिषयों पर मेहरबानी है। म एक िदन
सड़क पर खड़ा हुआ एक िमत्र को फोन का न बर बता रहा था। पास ही खड़े एक और
आदमी ने न बर नोट कर िलया। म समझा िक खुिफया िवभाग का होगा।

दूसरे िदन वह मकान का पता लगाते हुए आ गया। बोला-साहब, कल के िफगर तो ठीक आ
गए। आज के और बता दीिजए। मने कहा कौन-से िफगर? उसने कहा-स टे के, जो आप
कल मोटर- टड पर बता रहे थे। म अभी भी पछताता हूं, िक म खुद स टा यों नही ं खेल
गया।

जे

| बरात की वापसी

बरात म जाना कई कारणों से टालता हूं। मंगल काय म हम जैसे चढ़ी उम्र के कुं वारों का
जाना अपशकु न है। महेश बाब ू का कहना है, हम मंगल काय से िवधवाओं की तरह ही दूर
रहना चािहए। िकसी का अमंगल अपने कारण यों हो! उ ह पछतावा है िक तीन साल
पहले िजनकी शादी म वह गए थे, उनकी तलाक की ि थित पै दा हो गई है। उनकी यह
शोघ है िक महाभारत यु न होता, अगर भी म की शादी हो गई होती और अगर कृ णमेनन
की शादी हो गई होती, तो चीन हमला न करता।

सरे यु प्रौढ़ कुं वारों के अहं की तुि ट के िलए होते ह। 1948 म तेलांगना म िकसानों का
सश त्र िवद्रोह देश के विर ठ कुं वारे िवनोबा भावे के अहं की तुि ट के िलए हुआ था।
उनका अहं भदू ान के प म तु ट हुआ।

अपने पुतर् की सफल बरात से प्रस न मायाराम के मन म उस िदन नागपुर म बड़ा मौिलक
िवचार जागा था। कहने लगे-बस, अब तुम लोगों की बरात म जाने की इ छा है। हम लोगों
ं अब तो बरात ऐसी होगी िक
ने कहा-अब िकशोरों जैसी बचकानी बरात तो होगी नही।
िकसी को

भगाकर लाने के कारण हथकड़ी पहने हम होंगे और पीछे चलोगे तुम लोग, ज़मानत देने
वाले। ऐसी बरात होगी। चाहो तो बड भी बजवा सकते हो।
िववाह का दृ य बड़ा दा ण होता है। िवदा के व त औरतों के साथ िमलकर रोने को जी
करता है। लड़की के िबछु ड़ने के कारण नही,ं उसके बाप की हालत देखकर लगता है, इस
कौम की आधघी ताकत लड़िकयों की शादी करने म जा रही है। पाव ताकत िछपाने म जा
ू लेकर िछपाने म-बची हुई पाव
रही है-शराब पीकर िछपाने म, प्रेम करके िछपाने म, घस
ताकत से देश का िनमाण हो रहा है-तो िजतना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आिखर एक
चौथाई ताकत से िकतना होगा?

यह बात मने उस िदन एक िव विव ालय के छात्र-संघ के वािषको सव म कही थी। कहा
था-तुम लोग क्रांितकारी त ण-त िणयां बनते हो। तुम इस देश की आधी ताकत को बचा
सकते हो। ऐसा करो, िजतनी लड़िकयां िव विव ालय म ह, उनसे िववाह कर डालो।
अपने बाप को मत बताना। वह दहेज मांगने लगेगा। इसके बाद िजतने लड़के बच, वे एक-
दूसरे की बहन से शादी कर ल। ऐसा बुिनयादी क्रांितकारी काम कर डालो और िफर िजस
िसगड़ी को ज़मीन पर रखकर तु हारी मां रोटी बनाती है, उसे टे िबल पर रख दो, िजससे
तु हारी प नी सीधी खड़ी होकर रोटी बना सके। 20-22 सालों म िसगड़ी ऊपर नही ं रखी
जा सकी और न झाड़ू म चार फु ट का ड डा बांधा जा सका। अब तक तुम लोगों ने या
खाक क्रांित की है?

छात्र थोड़ा चौंके। कु छ “'ही-ही” करते भी पाए गए। मगर हुआ कु छ नही।

एक त ण के साथ सालों मेहनत करके उसके यालात मने संवारे थे। वह शादी के मंडप म
बैठा तो ससुर के ब चे की तरह मचलकर बोला-बाबज ू ी, हम तो वे पा लगे। वे पा के िबना
े लड़की के बाप का चेहरा फक! जी हुआ, जत
कौर नही ं उठाएंग। ू ा उतारकर पांच इस
लड़के को मा ं और िफर 25 खुद अपने को। सम या यों सुलझी िक लड़की के बाप ने
साल-भर म वे पा देने का वादा िकया, नेग के िलए बाज़ार से वे पा का िखलौना मंगाकर
थाली म रखा, िफर सवा पया रखा

और दामाद को भट िकया। सवा पया तो मरते व त गोदान के िनिम िदया जाता है न!


हां, मेरे उस त ण दो त की प्रगितशीलता का गोदान हो रहा था।

बरात की यात्रा से म बहुत घबराता हूं, खासकर लौटते व त जब बराती बेकार बोझ हो
जाता है। अगर जी भरकर दहेज न िमले, तो वर का बाप बाराितयों को दु मन समझता है।
म सावधानी बरतता हूं िक बरात की िवदा के पहले ही कु छ बहाना करके िकराया लेकर
लौट पढ़ता हूं।

एक बरात से वापसी मुझे याद है।


हम पांच िमत्रों ने तय िकया िक शाम 4 बजे की बस से चल। प ना से इसी क पनी की
बस सतना के िलए घ टे -भर बाद िमलती है, जो जबलपुर की ट् रेन िमला देती है। सुबह घर
पहुंच जाएंग।
े हमम से दो को सुबह काम पर हािज़र होना था, इसिलए वापसी का यही
रा ता अपनाना ज़ री था। लोगों ने सलाह दी िक समझदार आदमी इस शाम वाली बस से
सफर नही ं करते। या रा ते म डाकू िमलते ह? नही,ं बस डािकन है।

बस को देखा तो श्र ा उभर पड़ी। खूब वयोवृ थी। सिदयों के अनुभव के िनशान िलए
हुए थी। लोग इसिलए इससे सफर नही ं करना चाहते थे िक वृ ाव था म इसे क ट होगा।
यह बस पजू ा के यो य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है!

बस-क पनी के एक िह सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पछ ू ा-यह बस चलती
भी है? वह बोले-चलती यों नही ं है जी! अभी चलेगी। हमने कहा-वही तो हम देखना चाहते
ह। अपने-आप चलती है यह?-हां जी और कैसे चलेगी?

गज़ब हो गया। ऐसी बस, अपने-आप चलती है!

हम आगा-पीछा करने लगे। पर डॉ टर िमत्र ने कहा-डरो मत, चलो! बस अनुभवी है।


नई-

नवे ली बसों से यादा िव वसनीय है। हम बेटों की तरह यार से गोद म लेकर चलेगी।

हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे, जैसे अंितम िवदा दे रहे ह।
उनकी आंख कह रही थी-ं आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है सो जाएगा-राजा, रंक,
फकीर। आदमी को कूच करने के िलए एक िनिम चािहए।

इंजन सचमुच टाट हो गया। ऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर
बैठे ह। कांच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हम बचना था। हम फौरन िखड़की से
दूर सरक गए। इंजन चल ईहा था। हम लग रहा था िक हमारी सीट के नीचे इंजन है।

बस सचमुच चल पड़ी और हम लगा िक यह गांधीजी के असहयोग और सिवनय अव ा


आंदोलनों के व त अव य जवान रही होगी। उसे ट् रेिनंग िमल चुकी थी। हर िह सा दूसरे
से असहयोग कर रहा था। परू ी बस सिवनय अव ा आंदोलन के दौर से गुज़र रही थी।
सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता, सीट बॉडी को छोड़कर आगे
िनकल गई है। कभी लगता िक सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस
मील चलने पर सारे भेदभाव िमट गए। यह समझ म नही ं आता था िक सीट पर हम बैठ ह
या सीट हम पर बैठी है।
एकाएक बस क गई। मालमू हुआ िक पे ट्रोल की टंकी म छे द हो गया है। ड् राइवर ने
बा टी म पे ट्रोल िनकाल कर उसे बगल म रखा और नली म डालकर इंजन म भेजने लगा।
अब म उ मीद कर रहा था िक थोड़ी देर बाद बस-क पनी के िह सेदार इंजन को
िनकालकर गोद म रख लगे और उसे नली से पे ट्रोल िपलाएंग,े जैसे मां ब चे के मुहं म दूध
की शीशी लगाती है।

बस की र तार अब प द्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके िकसी िह से पर भरोसा नही ं


था। ब्रेक फेल हो सकता है, टीयिरंग टू ट सकता है। प्रकृित के दृ य बहुत लुभावने थे।
दोनों तरफ हरे-भरे पे ड़ थे, िजन पर प ी बैठे थे। म हर पे ड़ को अपना दु मन समझ रहा
था। जो भी पे ड़ आता,
डर लगता िक इससे बस टकराएगी। वह िनकल जाता तो दूसरे पे ड़ का इंतज़ार करता।
झील िदखती तो सोचता िक इसम बस गोता लगा जाएगी।

एकाएक िफर बस की। ड् राइवर ने तरह-तरह की तरकीब की,ं पर वह चली नही।ं


सिवनय अव ा आंदोलन शु हो गया था। क पनी के िह सेदार कह रहे थे-बस तो फ ट
लास है जी! ये तो इ फाक की बात है।

ीण चांदनी म वृ ों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता, जैसे कोई
वृ ा थककर बैठ गई हो। हम लािन हो रही थी िक इस बेचारी पर लद॒कर हम चले जा रहे
ह। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस िबयावान म हम इसकी अ येि ट करनी पड़ेगी।

िह सेदार साहब ने इंजन खोला और कु छ सुधारा। बस आगे चली। उसकी चाल कम हो


गई थी।

घीरे-धीरे वृ ा की आंखों की योित जाने लगी। चांदनी म रा ता टोलकर वह रग रही


थी। आगे या पीछे से कोई गाड़ी आती िदखती तो वह एकदम िकनारे खड़ी हो जाती और
कहती-िनकल जाओ बेटी! अपनी तो वह उम्र ही नही ं रही।

एक पुिलया के ऊपर पहुंचे ही थे िक एक टायर िफ स करके बैठ गया। बस बहुत ज़ोर से


िहलकर थम गई। अगर पीड म होती तो उछलकर नाले म िगर जाती। मने उस क पनी
के िह सेदार की तरफ पहली बार श्र ा भाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते ह,
िफर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे ह। उ सग की ऐसी भावना दुलभ
है। सोचा, इस आदमी के साहस और बिलदान-भावना का सही उपयोग नही ं हो रहा है।
इसे तो िकसी क्रांितकारी आंदोलन का नेता होना चािहए। अगर बस नाले म िगर पड़ती
और हम सब मर जाते, तो देवता बांह पसारे उसका इंतज़ार करते। कहते-वह महान आदमी
आ रहा है िजसने एक टायर के िलए प्राण दे िदए। मर

गया, पर टायर नही ं बदला।

दूसरा िघसा टायर लगाकर बस िफर चली। अब हमने व त पर प ना पहुंचने की उ मीद


छोड़ दी थी। प ना कभी भी पहुंचने की उ मीद छोड़ दी थी-पनना, या, कही ं भी, कभी भी
पहुंचने की उ मीद छोड़ दी थी। लगता था िज़ दगी इसी बस म गुज़रनी है और सीधे उस
लोक की ओर प्रयाण कर जाना है। इस प ृ वी पर उसकी कोई मंिज़ल नही ं है। हमारी
बेताबी, तनाव ख म हो गए। हम बड़े इ मीनान से घर की तरह बैठ गए। िच ता जाती रही।
हंसी-मज़ाक चाल ू हो गया।
ं ी। िखड़िकयां खुली थी ं ही। डॉ टर ने कहा- गलती हो गई। “कु छ” पीने
ठं ड बढ़ रहीथ
को ले आते तो ठीक रहता।

ठं ड बढ़ रही थी। एक गांव पर बस की तो डॉ टर फौरन उतरा। ड् राइवर से बोला- ज़रा


रोकना! नािरयल ले आऊं। आगे मिढ़या पर फोड़ना है।

डॉ टर झोंपिड़यों के पीछे गया और देशी शराब की बोतल ले आया। छागलों म भरकर हम


लोगों ने पीना शु िकया।

इसके बाद िकसी क ट का अनुभव नही ं हुआ। प ना से पहले ही सब मुसािफर उतर चुके
थे। बस-क पनी के िह सेदार शहर के बाहर ही अपने घर पर उतर गए। बस शहर म
अपने िठकाने पर की। क पनी के दो मािलक रज़ाइयों म दुबके बैठे थे। रात का एक बजा
था। हम पांचों उतरे। म सड़क के िकनारे खड़ा रहा। डॉ टर भी मेरे पास खड़ा होकर
बोतल से अि तम घंटू लेने लगा। बाकी तीन िमत्र बस-मािलकों पर झपटे । उनकी गम डांट
हम सुन रहे थे। पर वे िनराश लौटे । बस- मािलकों ने कह िदया था-सतना की बस तो
चार-पांच घ टे पहले जा चुकी। अब लौटती होगी। अब तो बस सवे रे ही िमलेगी।

आसपास देखा, सारी दुकान-होटल ब द। ठ ड कड़ाके की। भख ू भी खूब लग रही थी।


तभी डॉ टर बस-मािलकों के पास गया। पांचक
े िमनट म उनके साथ लौटा तो बदला हुआ
था। बड़े अदब से मुझसे कहने लगा-सर, नाराज़ मत होइए। सरदारजी कु छ इंतज़ाम
करगे। सर, ...सर! उ ह अफसोस है िक आपको तकलीफ हुई।

अभी डॉ टर बेतक लुफी से बात कर रहा था और मुझे 'सर” कह रहा है। या बात है?
कही ं ठरा यादा असर तो नही ं कर गया! मने कहा-यह तुमने या 'सर-सर” लगा रखी है?

उसने िफर वै से ही झुककर कहा-सर, नाराज़ मत होइए। सर, कु छ इंतज़ाम। हुआ जाता
है।

मुझे तब भी कु छ समझ म नही ं आया। डॉ टर भी परेशान था िक म समझ यों नही ं पा रहा


हूं। वह मुझे अलग ले गया और समझाया-मने इन लोगों से कहा है िक तुम संसद सद य
हो। इधर जांच करने आए हो। म एक लक हूं, िजसे साहब ने एम. पी. को सतना पहुंचाने
के िलए भेजा है। मने कहा िक सरदारजी, मुझ गरीब की तो गदन कटे गी ही, आपकी भी
लेवा-देई हो जायेगी। वह पे शल बस से सतना भेजने का इंतज़ाम कर देगा। ज़रा थोड़ा
एम. पी. पन तो िदखाओ। उ ल ू की तरह यों पे श आ रहे हो?

म समझ गया िक मेरी काली शेरवानी काम आ गई। यह काली शेरवानी और ये बड़े बाल
ू े-िबखरे बाल हों तो
मुझे कोई प देते ह। नेता भी िदखता हूं, शायर भी और अगर सख
जु मन शहनाई वाले का भी घोखा हो जाता है।

मने िम याचार का आ मबल बटोरा और लौटा, तो ठीक संसद-सद य की तरह। आते ही


ू ा-सरदारजी, आर. टी. ओ. से कब तक इस बस को चलाने का
सरदारजी से रोब से पछ
सौदा हो

गया है? सरदारजी घबरा उठे । डॉ टर खुश िक मने फ ट- लास रोल िकया है।

रोबदार संसद-सद य का एक वा य काफी है, यह सोचकर म दूर खड़े होकर िसगरेट पीने
लगा। सरदारजी ने वही ं मेरे िलए कु स बुलवा दी। वह डरा हुआ था और डरा हुआ म भी
था। मेरा डर यह था िक कही ं पछ ू ताछ होने लगी िक म कौन संसद-सद य हूं तो या
कहूंगा! याद आया िक अपने िमत्र महेशद िमश्र का नाम घारण कर लगंू ा। गांधीवादी
ू बोलकर मुझे बचा ही लगे)
होने के नाते वह थोड़ा झठ

ू अगर जम जाए तो स य से यादा अभय देता


अब मेरा आ मिव वास बहुत बढ़ गया। झठ
है।

म वही ं बैठे-बैठे डॉ टर से चीखकर बोला-बाब,ू यहां या कयामत तक बैठे रहना पड़ेगा?


इधर कही ं फोन हो तो ज़रा कले टर को इ ला कर दो। वह गाड़ी का इंतज़ाम कर दगे।

डॉ टर वही ं से बोला-सर, बस एक िमनट! ज ट ऐ िमनट, सर! थोड़ी देर बाद सरदारजी ने


एक नई बस िनकलवाई। मुझे सादर बैठाया। बस चल पड़ी।

मुझे एम. पी. पन काफी भारी पड़ रहा था। म दो तों के बीच अजनबी की तरह अकड़ा बैठा
था। डॉ टर बार बार 'सर' कहता रहा और बस का मािलक “हुजरू '।

सतना म जब रेलवे के मुसािफरखाने म पहुंचे तब डॉ टर ने कहा-अब तीन घ टे लगातार


तुम मुझे “सर” कहो। मेरी बहुत तौहीन हो चुकी है।

गै के औ इं पे टर मातादीन चांद पर वै ािनक कहते ह, चांद पर जीवन नही ं है।


सीिनयर पुिलस इं पे टर मातादीन (िडपाटमट म एम. डी. साहब) कहते ह-वै ािनक झठ
बोलते ह, वहां हमारे जैसे ही मनु यों की आबादी है।

िव ान ने हमेशा इं पे टर मातादीन से मात खाई है। िफंगर िप्रंट-िवशेष कहता रहता है-
छु रे पर पाए गए िनशान मुलिज़म की अंग ुिलयों के नही ं ह। पर मातादीन उसे सज़ा िदला ही
देते ह।
मातादीन कहते ह, ये वै ािनक केस का परू ा इनवे ि टगेशन नही ं करते। उ होंने चांद का
उजला िह सा देखा और कह िदया, वहाँ जीवन नही ं है। म चांद का अंधेरा िह सा देखकर
आया हूं। वहां मनु य जाित है।

यह बात सही है योंिक अंधेरे-प के मातादीन मािहर माने जाते ह।

ू ा जाएगा, इं पे टर मातादीन चांद पर यों गए थे? टू िर ट की हैिसयत से या िकसी


पछ
फरार अपराधी को पकड़ने? नही,ं वे भारत की तरफ से सां कृितक आदान-प्रदान के
अंतगत गए थे। चांद

सरकार ने भारत सरकार को िलखा था-यों हमारी स यता बहुत आगे बढ़ी है पर हमारी
पुिलस म पया त स मता नही ं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सज़ा िदलाने म
अ सर सफल नही ं होती। सुना है, आपके यहां रामराज है। मेहरबानी करके िकसी पुिलस
अफसर को भेज जो हमारी पुिलस को िशि त कर दे।

गहृ मंतर् ी ने सिचव से कहा-िकसी आई. जी. को भेज दो।

सिचव ने कहा-नही ं सर, आई. जी. नही ं भेजा जा सकता। प्रोटोकॉल का सवाल है। चांद
हमारा एक ुदर् उै धग्रह है। आई. जी. के रक के आदमी नही ं भेजगे। िकसी सीिनयर
इंसपे टर को भेज देता हूं।

तय िकया गया िक हज़ारों मामलों के इ वे ि टगेिटंग ऑिफसर सीिनयर इं पे टर मातादीन


को भेज िदया जाए।

चांद की सरकार को िलख िदया गया िक आप मातादीन को लेने के िलए प ृ वी-यान भेज
दीिजए।

पुिलस मंतर् ी ने मातादीन को बुलाकर कहा-तुम भारतीय पुिलस की उ वल पर परा के दूत


की हैिसयत से जा रहे हो। ऐसा काम करना िक सरे अंतिर म िडपाटमट की ऐसी जय-
जयकार हो िक पी. एम. (प्रधानमंतर् ी) को भी सुनाई पड़ जाए।

मातादीन की यात्रा का िदन आ गया। एक यान अंतिर अ डे पर उतरा। मातादीन सबसे


िवदा लेकर यान की तरफ बढ़े । वे घीरे-धीरे कहते जा रहे थे, 'प्रिबिस नगर कीजै सब
काजा, दय रािख कौसलपुर राजा।!

ं ी अ दुल गफूर को पुकारा-'मुश


यान के पास पहुंचकर मातादीन ने मुश ं ी”!
ू फटकारा। बोला-जी, पे टसा! एफ. आई. आर. रख दी है?
गफूर ने एड़ी िमलाकर से यट

जी पे टसा।

ू ा?
और रोज़नामचे का नमन

जी पे टसा!

वे यान म बैठने लगे। हवलदार बलभदूदर को बुलाकर कहा-हमारे घर म जचकी के बखत


अपने खटला (प नी) को मदद के िलए भेज देना।

बलभदर ने कहा-जी पे टसा!

गफूर ने कहा-आप बेिफक्र रह पे टसा! म अपने मकान (प नी) को भी भेज दूग


ं ा िखदमत
के िलए।

ू ा-ड् राइिवंग लाइसस है? जी है साहब!


मातादीन ने यान के चालक से पछ

और गाड़ी म ब ी ठीक है?

जी ठीक है।

मातादीन ने कहा, सब ठीक-ठाक होना चािहए, वरना हरामज़ादे का बीच अंतिर म चालान
ं ा।
कर दूग

चंदर् मा से आए चालक ने कहा-हमारे यहां आदमी से इस तरह नही ं बोलते।

मातादीन ने कहा-जानता हूं बे! तु हारी पुिलस कमज़ोर है। अभी म उसे ठीक करता हूं।

मातादीन यान म कदम रख ही रहे थे िक हवलदार रामसजीवन भागता हुआ आया। बोला-
पे टसा, एस. पी. साहब के घर म से कहे ह िक चांद से एड़ी चमकाने का प थर लेते
आना।

मातादीन खुश हुए। बोले- कह देना बाई साब से, ज़ र लेता जाऊंगा।

वे यान म बैठे और यान उड़ चला। प ृ वी के वायुमड


ं ल से यान बाहर िनकला ही था िक
मातादीन ने चालक से कहा-अबे, हॉन यों नही ं बजाता?
चालक ने जवाब िदया-आसपास लाखों मील म कु छ नही ं है।

मातादीन ने डांटा-मगर ल इज़ ल। हॉन बजाता चल।

चालक अंतिर म हान बजाता हुआ यान को चांद पर उतार लाया। अंतिर अ डे पर
पुिलस अिधकारी मातादीन के वागत के िलए खड़े थे। मातादीन रोब से उतरे और उन
अफररों के कंघों पर नज़र डाली। वहां िकसी के टार नही ं थे। फीते भी िकसी के नही ं
लगे थे। िलहाज़ा मातादीन ने

एड़ी िमलाना और हाथ उठाना ज़ री नही ं समझा। िफर उ होंने सोचा, म यहाँ इं पे टर
की हैिसयत से नही ं सलाहकार की हैिसयत से आया हूं।

मातादीन को वे लोग लाइन म ले गए और एक अ छे बंगले म उ ह िटका िदया।

एक िदन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शु कर िदया। पहले उ होंने पुिलस लाइन
का मुलाहज़ा िकया।

शाम को उ होंने आई. जी. से कहा-आपके यहां पुिलस लाइन म हनुमानजी का मंिदर नही ं
है। हमारे रामराज म पुिलस लाइन म हनुमानजी ह।

आई. जी. ने कहा-हनुमान कौन थे-हम नही ं जानते।

मातादीन ने कहा-हनुमान का दशन हर क यपरायण पुिलस वाले के िलए ज़ री है।


हनुमान सुगर् ीव के यहां पे शल ब्रांच म थे। उ होंने सीता माता का पता लगाया था।
'ए ड शन'” का मामला था-दफा 362। हनुमानजी ने रावण को सज़ा वही ं दे दी। उसकी
प्रॉपट म आग लगा दी। पुिलस को यह अिधकार होना चािहए िक अपराधी को पकड़ा
और वही ं सज़ा दे दी। अदालत म जाने का झंझट नही। ं मगर यह िस टम अभी हमारे
रामराज म भी चाल ू नही ं हुआ। हनुमानजी के काम से भगवान रामचंदर् बहुत खुश हुए। वे
उ ह अयो या ले आए और “टौन यट ू ी” म तैनात कर िदया। वही हनुमान हमारे आरा य
देव ह। म उनकी फोटो लेता आया हूं। उस पर से मिू तयां बनवाइए और हर पुिलस लाइन म
थािपत करवाइए।

थोड़े ही िदनों म चांद की हर पुिलस लाइन म हनुमानजी थािपत हो गए।

मातादीन उन कारणों का अ ययन कर रहे थे िजनसे पुिलस लापरवाह और अलाल हो गई


है। वह अपराधों पर यान नही ं देती। कोई कारण नही ं िमल रहा था। एकाएक उनकी बुि
ं ी से कहा-ज़रा तनखा का रिज टर बताओ।
म एक चमक आई । उ होंने मुश
तनखा का रिज टर देखा, तो सब समझ गए। कारण पकड़ म आ गया।

शाम को उ होंने पुिलस मंतर् ी से कहा-म समझ गया िक आपकी पुिलस मु तैद यों नही ं है।
आप इतनी बड़ी तन वाह देते ह, इसीिलए। िसपाही को पांच सौ, हवलदार को सात सौ,
थानेदार को हज़ार-ये या मज़ाक है। आिखर पुिलस अपराधी को यों पकड़े? हमारे यहां
तो िसपाही को सौ और इं पे टर को दो सौ देते ह तो चौबीस घंटे जुम की तलाश करते ह।
आप तन वाह फौरन घटाइए।

पुिलस मंतर् ी ने कहा-मगर यह तो अ याय होगा। अ छा वे तन नही ं िमलेगा तो वे काम ही


यों

करगे?

मातादीन ने कहा-इसम कोई अ याय नही ं है। आप देखगे िक पहले घटी हुई तनखा िमलते
ही आपकी पुिलस की मनोविृ म क्रांितकारी पिरवतन हो जाएगा।

पुिलस मंतर् ी ने तन वाह घटा दी ं और 2-3 महीनों म सचमुच बहुत फक आ गया। पुिलस
एकदम मु तैद हो गई। सोते से एकदम जाग गई। चारों तरफ नज़र रखने लगी।
अपरािधयों की दुिनया म घबड़ाहट छा गई। पुिलस मंतर् ी ने तमाम थानों के िरकाड
बुलवाकर देखे। पहले से कई गुने अिधक केस #िज टर हुए थे। उ होंन मातादीन से
कहा-म आपकी सझ ू की तारीफ करता हूं। आपने क्रांित कर दी। पर यह हुआ िकस
तरह?

ू ी है। कम तनखा दोगे, तो मुलािज़म की गुज़र नही ं


मातादीन ने समझाया-बात बहुत मामल
होगी। सौ पयों म िसपाही ब चों को नही ं पाल सकता। दो सौ म इं पे टर ठाट-बाट नही ं
मेनटे न कर सकता। उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। और ऊपरी आमदनी तभी होगी
जब वह अपराधी को पकड़ेगा। गरज़ िक वह अपराधों पर नज़र रखेगा। सचेत,
क यपरायण और मु तैद हो जाएगा। हमारे रामराज के व छ और स म प्रशासन का
यही रह य है।

चंदर् लोक म इस चम कार की खबर फैल गई। लोग मातादीन को देखने आने लगे िक वह
आदमी कैसा है जो तनखा कम करके स मता ला देता है। पुिलस के लोग भी खुश थे। वे
कहते- गु , आप इधर न पघारते तो हम सभी कोरी तनखा से ही गुज़र करते रहते।
सरकार भी खुश थी िक मुनाफे का बजट बनने वाला था।

आधघी सम या हल हो गई। पुिलस अपराधी पकड़ने लगी थी। अब मामले की जांच-िविध


म सुधार करना रह गया था-अपराघी को पकड़ने के बाद उसे सज़ा िदलाना। मातादीन
ू े के तौर पर उसका इ वे ि टगेशन
इंतज़ार कर रहे थे िक कोई बड़ा केस हो जाए तो नमन
कर बताएं।
एक िदन आपसी मारपीट म एक आदमी मारा गया। मातादीन कोतवाली म आकर बैठ गए
ू े के िलए इस केस का “इ वे ि टगेशन' म करता हूं। आप लोग सीिखए। यह
और बोले-नमन
क ल का केस है। क ल के केस म “एिवडस” बहुत प का होना चािहए।

कोतवाल ने कहा-पहले काितल का पता लगाया जाएगा, तभी तो एिवडस इक ठा िकया


जाएगा।

मातादीन ने कहा-नही,ं उलटे मत चलो। पहले एिवडस देखो। या कही ं खून िमला? िकसी
के कपड़ों पर या और कही?ं

ृ क सड़क पर बेहोश पड़ा था। एक


एक इं पे टर ने कहा-हाँ, मारनेवाले तो भाग गए थे। मत
भला आदमी वहाँ रहता है। उसने उठाकर अ पताल भेजा। उस भले आदमी के कपड़ों पर
खून के दाग लग गए ह।

मातादीन ने कहा- उसे फौरन िगर तार करो। कोतवाल ने कहा-मगर उसने तो मरते हुए
आदमी की मदद की थी।

मातादीन ने कहा-वह सब ठीक है। पर तुम खून के दाग ढू ं ढ़ने और कहां जाओगे? जो
एिवडस िमल रहा है, उसे तो क ज़े म करो।

वह भला आदमी पकड़कर बुलवा िलया गया। उसने कहा-मने तो मरते आदमी को अ पताल
िभजवाया था। मेरा या कसरू है?

ं मातादीन प्रभािवत नही ं हुए। सारा


चांद की पुिलस उसकी बात से एकदम प्रभािवत हुई।
पुिलस महकमा उ सुक था िक अब मातादीन या तक िनकालते ह।

मातादीन ने उससे कहा-पर तुम झगड़े की जगह गए यों?

उसने जवाब िदया-म झगड़े की जगह नही ं गया। मेरा वहां मकान है। झगड़ा मेरे मकान के
सामने हुआ।

अब िफर मातादीन की प्रितभा की परी ा थी। सारा महकमा उ सुक देख रहा था।
ू ता हूं, झगड़े की जगह जाना ही यों?
मातादीन ने कहा-मकान है तो ठीक है। पर म पछ

इस तक का कोई जवाब नही ं था। वह बार-बार कहता-म झगड़े की जगह नही ं गया, मेरा
वही ं
मकान है। ये

मातादीन उसे जवाब देत-े सो ठीक है, पर झगड़े की जगह जाना ही यों? इस तक प्रणाली
से पुिलस के लोग बहुत प्रभािवत हुए।

अब मातादीनजी ने इ वे ि टगेशन का िस ांत समझाया-देखो, आदमी मारा गया है, तो यह


प का ह िक िकसी ने उसे ज़ र मारा। कोई काितल है। िकसी को सजा होनी है। सवाल
है- िकसको सजा होनी है? पुिलस के िलए यह सवाल इतना मह व नही ं रखता िजतना यह
सवाल, िक जुम िकस पर सािबत हो सकता है या िकस पर सािबत होना चािहए। क ल
हुआ है। तो िकसी मनु य को सज़ा होगी ही। मारने वाले को होती है, या बेकसरू को-यह
अपने सोचने की बात नही ं है। मनु य-मनु य सब बराबर ह। सब म उसी परमा मा का अंश
है। हम भेदभाव नही ं करते। यह पुिलस का मानवतावाद है।

दूसरा सवाल है, िकस पर जुम सािबत होना चािहए। इसका िनणय इन बातों से होगा-(1)
या वह आदमी पुिलस के रा ते म आता है? (2) या उसको सज़ा िदलाने से ऊपर के लोग
खुश होंग?

मातादीन को बताया गया िक वह आदमी भला है, पर पुिलस अ याय करे तो िवरोध करता
है। जहां तक ऊपर के लोगों का सवाल है-वह वतमान सरकार की िवरोधी राजनीित वाला
है।

मातादीन ने टे िबल ठोंककर कहा-फ ट लास केस! प का एिवडस और ऊपर का सपोट।

एक इं पे टर ने कहा-पर हमारे गले यह बात नही ं उतरती िक एक िनरपराघ-भले आदमी


को सज़ा िदलाई जाए।

मातादीन ने समझाया-देखो, म समझा चुका हूं िक सब म उसी ई वर का अंश है। सज़ा इसे
हो या काितल को, फांसी पर तो ई वर ही चढ़े गा न! िफर तु ह कपड़ों पर खून िमल रहा
है। इसे छोड़कर तुम कहां खून ढू ं ढ़ते िफरोगे? तुम तो भरो एफ. आई.ं आर.।

मातादीन ने एफ. आई. आर. भरवा दी। “बखत ज़ रत के िलए” जगह खाली छु ड़वा दी।

दूसरे िदन पुिलस कोतवाल ने कहा-गु देव, हमारी तो बड़ी आफत है। तमाम भ ले आदमी
आते ह और कहते ह, उस बेचारे बेकसरू को यों फंसा रहे हो? ऐसा तो चंदर् तोक म कभी
नही ं हुआ! बताइए, हम या जवाब द? हम तो बहुत शिमदा ह।
मातादीन ने कोतवाल से कहा-घबड़ाओ मत। शु -शु म इस काम म आदमी को शम आती
है। आगे तु ह बेकसरू को छोड़ने म शम आएगी। हर चीज़ का जवाब है। अब आपके पास
जो आए उससे कह दो, हम जानते ह वह िनदोष है, पर हम या कर? यह सब ऊपर से हो
रहा है।

े मातादीन बोले-एस. पी. भी कह द िक


कोतवाल ने कहा-तब वे एस. पी. के पास जाएंग।
ऊपर से हो रहा है। तब वे आई.जी. के पास िशकायत करगे।

आई. जी. भी कह िक सब ऊपर से हो रहा है। तब वे लोग पुिलस मंतर् ी के पास पहुँचगे।

पुिलस मंतर् ी भी कहगे-मैया, म या क ँ । यह ऊपर से हो रहा है। तो वे प्रधानमंतर् ी के


पास जाएंग। े

प्रधानमंतर् ी भी कह िक म जानता हूँ, वह िनदोष है, पर यह ऊपर से हो रहा है। कोतवाल


ने कहा-तब वे ...

मातादीन ने कहा-तब या? तब वे िकसके पास जाएँग?


े भगवान के पास न? मगर भगवान
ू कर कौन लौट सका है?
से पछ

कोतवाल चुप रह गया। वह इस महान प्रितभा से चम कृत था।

मातादीन ने कहा-एक मुहावरा ऊपर से हो रहा है” हमारे देश म प चीस सालों से सरकारों
को बचा रहा है। तुम इसे सीख लो।

केस की तैयारी होने लगी। मातादीन ने कहा-अब 4-6 च मदीद गवाह लाओ।

कोतवाल-च मदीद गवाह कैसे िमलगे? जब िकसी ने उसे मारते देखा ही नही,ं तो च मदीद
गवाह कोई कैसे होगा?

मातादीन ने िसर ठोंक िलया, िकन बेवकूफों के बीच फंसा िदया गवनमट ने। इ ह तो
ए.बी.सी.डी. भी नही ं आती।

झ लाकर कहा-च मदीद गवाह िकसे कहते ह, जानते हो? च मदीद गवाह वह नही ं है जो
देखे-बि क वह है जो कहे िक मने देखा।

कोतवाल ने कहा-ऐसा कोई यों कहेगा?


मातादीन ने कहा-कहेगा। समझ म नही ं आता, कैसे िडपाटमट चलाते हो! अरे, च मदीद
गवाहों की िल ट पुिलस के पास पहले से रहती है। जहां ज़ रत हुई, उ ह च मदीद बना
िदया। हमारे यहां ऐसे आदमी ह, जो साल म 3-4 सौ वारदातों के च मदीद गवाह होते ह।
हमारी अदालत भी मान लेती ह िक इस आदमी म कोई दैवी शि त है िजससे जान लेता है
िक अमुक जगह वारदात होने वाली है और वहां पहले से पहुंच जाता है। म तु ह च मदीद
गवाह बनाकर देता हूं। 8-10 उठाईगं ीरों को बुलाओ जो चोरी, मारपीट, गुड
ं ागद करते
हों। जुआ िखलाते हों या शराब उतारते हों।

दूसरे िदन शहर के 8-10 नवरत्र कोतवाली म हािज़र थे। उ ह देखकर मातादीन ग द हो
ू ा-सन
गए। बहुत िदन हो गए थे ऐसे लोगों को देखे। बड़ा सन ू ा लग रहा था।

मातादीन का प्रेम उमड़ पड़ा। उनसे कहा-तुम लोगों ने उस आदमी को लाठी से मारते देखा
थान?

वे बोले-नही ं देखा साब! हम वहां थे ही नही।


मातादीन जानते थे, यह पहला मौका है। िफर उ होंने कहा-वहां नही ं थे, यह मने माना। पर
लाठी मारते देखा तो था?

उन लोगों को यह लगा िक यह पागल आदमी है। तभी ऐसी ऊटपटांग बात कहता है। वे
हँसने लगे।

मातादीन ने कहा-हँसो मत, जवाब दो। वे बोले-जब थे ही नही,ं तो कैसे देखा?

मातादीन ने गुराकर देखा। कहा-कैसे देखा, सो बताता हूं। तुम लोग जो काम करते हो-
इधर दज है। हर एक को कम-से-कम दस साल जेल म डाला जा सकता है। तुम ये काम
आगे भी करना चाहते हो या जेल जाना चाहते हो?

वे घबड़ाकर बोले-साब, हम जेल नही ं जाना चाहते। मातादीन ने कहा-ठीक। तो तुमने उस


आदमी को लाठी मारते देखा। देखा न?

वे बोले-देखा साब। वह आदमी घर से िनकला और जो लाठी मारना शु िकया, तो वह


बेचारा बेहोश होकर सड़क पर िगर पड़ा।

मातादीन ने कहा-ठीक है। आगे भी ऐसी वारदात देखोगे? वे बोले-साब, जो आप कहगे, सो


देखगे।
कोतवाल इस चम कार से थोड़ी देर तो बेहोश हो गया। होश आया तो मातादीन के चरणों
पर िगर पड़ा।

मातादीन ने कहा-हटो। काम करने दो।

कोतवाल पांवों से िलपट गया। कहने लगा-म जीवन-भर इन श्री चरणों म पड़ा रहना
चाहता हूं।

मातादीन ने आगे की सारी काय-प्रणाली तय कर दी। एफ.आई.आर. बदलना, बीच म प ने


डालना, रोज़नामचा बदलना, गवाहों को तोड़ना-सब िसखा िदया।

उस आदमी को 20 साल की सज़ा हो गई।

चांद की पुिलस िशि त हो चुकी थी। घड़ाघड़ केस बनने लगे और सज़ा होने लगी। चांद
की सरकार बहुत खुश थी। पुिलस की ऐसी मु तैदी भारत सरकार के सहयोग का नतीजा
थी। चांद की संसद ने एक ध यवाद का प्र ताव पास िकया।

एक िदन मातादीन जी का सावजिनक अिभनंदन िकया गया। वे फूलों से लदे खुली जीप पर
बैठे थे। आस-पास जय-जयकार करते हज़ारों लोग। वे हाथ जोड़कर अपने गहृ मंतर् ी की
टाइल म जवाब दे रहे थे।

िज़ दगी म पहली बार ऐसा कर रहे थे, इसिलए थोड़ा अटपटा लग रहा था। 26 साल पहले
पुिलस म भरती होते व त िकसने सोचा था िक एक िदन दूसरे लोक म उनका ऐसा
अिभन दन होगा। वे पछताए-अ छा होता िक इस मौके के िलए कु रता, टोपी और घोती ले
आते।

भारत के पुिलस मंतर् ी टे लीिवज़न पर बैठे यह दृ य देख रहे थे और सोच रहे थे-मेरी
स ावना- यात्रा के िलए वातावरण बन गया।

कु छ महीने िनकल गए।

एक िदन चांद की संसद का िवशेष अिधवे शन बुलाया गया। बहुत तफ ू ान खड़ा हुआ। गु त
अिधवे शन था, इसिलए िरपोट प्रकािशत नही ं हुई, पर संसद की दीवारों से टकराकर कु छ
श द बाहर आए।

सद य गु से से िच ला रहे थे- कोई बीमार बाप का इलाज नही ं करता। डू बते ब चों को
कोई नही ं बचाता।
जलते मकान की आग कोई नही ं बुझाता।

आदमी जानवर से बदतर हो गया। सरकार फौरन इ तीफा दे।

ू े हो
दूसरे िदन चांद के प्रधानमंतर् ी ने मातादीन को बुलाया। मातादीन ने देखा-वे एकदम बढ़
गए थे। लगा, ये कई रात सोए नही ं ह।

आंसे होकर प्रधानमंतर् ी ने कहा-मातादीन, हम आपके और भारत सरकार के बहुत


आभारी ह। अब आप कल देश वापस लौट जाइए।

मातादीन नेकहा-म तो “टम” ख म करके ही जाऊंगा।

प्रधानमंतर् ी ने कहा-आप बाकी '“टम” का वे तन ले जाइए-डबल ले जाइए, ितबल ले


जाइए। मातादीन ने कहा-हमारा िस ांत है : हम पै सा नही ं काम यारा है।

आिखर चांद के प्रधानमंतर् ी ने भारत के प्रधानमंतर् ी को एक गु त पत्र िलखा।

चौथे िदन मातादीन को वापस लौटने के िलए अपने आई. जी. का ऑडर िमल गया।

उ होंने एस. पी. साहब के घर के िलए एड़ी चमकाने का प थर यान म रखा और चांद से
िवदा हो गए।

उ ह जाते देख पुिलस वाले रो पड़े।

बहुत अरसे तक यह रह य बना रहा िक आिखर चांद म ऐसा या हो गया िक मातादीन को


इस तरह एकदम लौटना पड़ा! चांद के प्रधानमंतर् ी ने भारत के प्रधानमंतर् ी को या
िलखा था?

एक िदन वह पत्र खुल ही गया। उसम िलखा था-

इं पे टर मातादीन की सेवाएं हम प्रदान करने के िलए अनेक घ यवाद। पर अब आप उ ह


फौरन बुला ल। हम भारत को िमत्रदेश समझते थे, पर आपने हमारे साथ शत् वत यवहार
िकया है। हम भोले लोगों से आपने िव वासघात िकया है।

आपके मातादीन ने हमारी पुिलस को जैसा कर िदया है, उसके नतीजे ये हुए ह:

कोई आदमी िकसी मरते हुए आदमी के पास नही ं जाता, इस डर से िक वह क ल के मामले
म फंसा िदया जाएगा। बेटा बीमार बाप की सेवा नही ं करता। वह डरता है, बाप मर गया तो
उस पर

कही ं ह या का आरोप नही ं लगा िदया जाए। घर जलते रहते ह और कोई बुझाने नही ं जाता-
डरता है िक कही ं उसपर आग लगाने का जुम कायम न कर िदया जाए। ब चे नदी म डू बते
रहते ह और कोई उ ह नही ं बचाता, इस डर से िक उस पर ब चों को डु बाने का आरोप न
लग जाए। सारे मानवीय संबध ं समा त हो रहे ह। मातादीनजी ने हमारी आघी-सी सं कृित
न ट कर दी है। अगर वे यहां रहे तो परू ी सं कृित न ट कर दगे। उ ह फौरन रामराज म
बुला िलया जाए।
असुिवधाभोगी

सािह यजीवी की आमदनी जब 1500 . महीना हुई तो उसने पहली बार एक लेख म
िलखा- इस देश के लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह। वे अपने समाज की सम याओं से कटे
रहते ह।

सािह यजीवी जब परी ाजीवी, पे परजीवी और कमेटीजीवी भी हो गया और आमदनी


2500 . पर पहुंच गई, तब वह साल म चार बार कहने लगा-इस देश के लेखक
सुिवधाभोगी हो गए ह।

जब वह पा य-पु तकजीवी, पुर कारजीवी और स पादकजीवी भी हो गया और आमदनी 4


हज़ार पर पहुँच गई, तब हर महीने कहने लगा-इस देश के लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह। वे
समाज की सम याओं से कटे हुए ह।

मुझ जैसे छोटे लेखक को लगता है िक वे बार-बार मुझे िघ कार रहे ह। म अपने को भी
िघ ◌्कारने लगा। िघ कारते-िघ कारते जब परेशान हो गया, तो सोचा, उ ही ं के पास
जाऊं और अपने पाप वीकार ल। ंू

गम की एक दोपहर म उनके बंगले पर पहुंचा। फाटक पर उनके कु े ने मुझे िघ कारा।


उससे मा मांगकर भीतर पहुंचा।

वे सोफे पर फैले हुए थे। पान चबा रहे थे। म बैठ गया।

मेरी तरफ गदन घुमाने के िलए उ ह पांच िमनट कोिशश करनी पड़ी। गदन घमू गई, तब
उ होंने कहा-इतनी गम म चले आ रहे हो। काहे से आए? मने कहा-साइिकल से।

उ होंने उसांस ली। बोले-बड़े भा यवान हो। आज का लेखक बड़ा सुिवधाभोगी हो गया है।
थोड़ी देर बाद उ होंने कहा-ज़रा मेरा पीकदान उठाओ।

ू ने ही वाले थे िक मने कहा- िकए। आपको थक


मने पीकदा(३ उठाया। वे पीक थक ू ने म
मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसा किरए-अपना पीक मेरे मुहं म डाल दीिजए। म अपनी तरफ से
थकू

ू िदया।
ं ा। उ होंने पीक मेरे मुहं म भर िदया और मने उसे पीकदान म थक
दूग

वे बोले- कु छ याल मत करना। मुझे पड़े रहने की तन वाह िमलती है। अगर उदूग
ँ ा तो
िरपोट हो जाएगी और पै सा कट जाएगा।
दोपहर जब चढ़ी, तो वे बोले-तुम यही ं बैठो। गम बढ़ गई है। म दो घंटे िफ्रज म लेटूंगा।

उ होंने बड़ा-सा िफ्रज खोला। उसम उनका िब तर लगा हुआ था। वे िब तर पर लेट
गए। म बैठा रहा।

दो घंटे बाद वे िफ्रज से िनकले। बोले-हां, अब हाल-चाल सुनाओ। मने कहा-कु छ


सुनाऊंगा तो आपके कानों को तकलीफ होगी।

उ होंने कहा-हम थोड़ी तकलीफ उठाने की भी इ छा रखते ह। िदन-भर म अगर ज़रा-सी


भी तकलीफ नही ं हुई, तो जीवन नीरस मालमू होता है। म िसफ एक कान को तकलीफ
ं ा।
दूग

उ होंने एक कान बंद कर िलया।

मने कहा-हाल तो खराब ह। अभी म बिलया की तरफ गया था। भयंकर अकाल पड़ा है।
लोग सड़कों के िकनारे मरे पड़े ह। िखंलानेवाला तो कोई था नही,ं लाश को उठानेवाला भी
कोई नही ं है। आप जैसे बड़े आदमी एक स त व त य दे द तो सरकार कु छ चेत। े

उ होंने कहा-मुझे तुम इस मामले म मत डालो। मगर जो तुमने अकाल के बारे म कहा है, वह
िफर से कहो। वह बहुत प्रभावशाली है।

ऐसा कहकर उ होंने टे प िरकॉडर चाल ू कर िदया। मने अकाल की दुदशा का वणन ख म
िकया ही था िक वे िखंलिखला कर हँस पड़े। बोले-इस िरकॉड को दर वा त के साथ भेज
ं ा, तो चेक आ जाएगा। तुम बहुत अ छी बात करते हो। कु छ तो सुनाओ।
दूग

उ होंने िरकॉड चाल ू कर िदया। मने कहा-आंधर् म भुखमरी से त्र त एक मां ने अपने चार
ब चों को अपने हाथ से मार डाला और िफर खुद मर गई। कैसे त्रास म जी रहा है इस
देश का आदमी!

वे िफर ज़ोर से हँस पड़े। बोले-इस िरकॉड को भी भेज दूग


ं ा और पै से आ जाएंग।
े कैसी है
मेरी हँसी?

मने कहा-बहुत बिढ़या। अंतरा मा के अितशय से उ लास िनकली हुई हँसी है।

वे बोले-बहुत अ यास करना पड़ा है। जब मेरी तन वाह 1500 . हुई तभी से इसका
अ यास
कर रहा हूं। िपछली बार वाराणसी म छात्रों पर गोली दागने के समाचार पर मने जो हँसी
की िट पणी दी थी, वह सवश्रे ठ मानी गई थी और मुझे बहुत पये िमले थे।

ू ा-इस तरह की हँसी से आपको पये यों िमल जाते ह? इससे िकसका लाभ होता
मने पछ
है? कौन पये देता है?

उ होंने कहा-ऐसी हँसी से स ाएं रि त होती ह। समझे? स ाएं रि त होती ह। तुम हँस
सकते हो?

मने कहा-मुझसे नही ं बनेगा। उ होंने कहा-सुिवधाभोगी हो न! हँसने तक की “िर क' नही ं
लेना चाहते।

मने कहा-अमुक पत्र का स पादक ऐसी सामग्री छाप रहा है िजससे सा प्रदाियक दंगा
भड़क सकता है। आप से रोिकए न!

उ होंने कहा-मुझे तुम इस मामले म मत डालो। उस पत्र म मेरे ज म-िदवस पर मेरा परू े प ृ ठ
का रंगीन िचत्र आनेवाला है।

उ होंने अंगड़ाई ली।

बोले-एक काम करो मेरा। पड़ौस के मकान म मेरी रखैल रहती है। ज़रा उसे बुला लाओ।
म उसकी रखैल को बुला लाया।

उ होंने मुझसे कहा-तुम बैठो। कु छ िचंतन करो। म ज़रा बेड म जा रहा हूं।

म िचंतन करता रहा।

वे बेड म से लौटकर िफर सोफे पर फैल गए।

मने कहा-आप कहते ह, लेखक सुिवधाभोगी हो गया है। वे कौन लेखक ह?

वे बोले-तुम और तु हारे जैसे लेखक सुिवधाभोगी हो गए ह। तु ह िघ कार है।

ू ा-और आप?
मने पछ

उ होंने जवाब िदया-हम तो सारी सुिवधाओं से वंिचत ह। हम पै दल चलने की सुिवधा नही ं वे


बोले-हम। म सम याओं से जुड़ा हुआ हूं। है। क ट उठाने की सुिवधा नही ं है। दुखी होने
की सुिवधा नही ं है। ईमान की बात कहने की सुिवधा नही ं है। सच बोलने की सुिवधा नही ं
है। िकसी को नाराज़ करने की सुिवधा नही ं है। संघष करने की सुिवधा नही ं है। खतरा
उठाने की सुिवधा नही ं है। ये सारी सुिवधाएं तुम जैसों ने हिथया ली ह। उ होंने कहा-यह
तो तुमने अभी देख िलया। तुमने अकाल की दुदशा की बात की, तो म फौरन

हँसा। कोई देर की मने? िकतनी िनकटता से जुड़ा हुआ हूं म। तुमने उस मां की बात की,
तो म एकदम हँसा। एक सेकंड की भी देर की? तु ह रोने म कम-से-कम एक िमनट लग
जाता और तुम मने कहा-आप कहते ह, लेखक समाज की सम याओं से कटे हुए ह। वे
लेखक कौन ह? सम या से कट जाते। मुझे हँसने म एक सेकंड भी नही ं लगा। सम या से
तुम जुड़े हो िक म?

िह जवाब िमला-तुम और तु हारे जैस।


े मने वीकारा-आप जुड़े ह।

ू ा-और जुड़े हुए कौन ह?


मने पछ

ू ा-आप कैसे जुड़े हुए ह?


मने पछ

ू करने लगा।
म सचमुच अपने को अपराधी महसस

बैरंग शुभकामना और प्रजातंतर्

नया साल राजनीित वालों के िलए मतपे िटका और मेरे िलए शुभकामना का बैरंग िलफाफा
लेकर आया है। दोनों ही बैरंग शुभकामनाएं ह िज ह मुझे वीकार करने म 10 पै से लग गए
और राजनीित ों को बहुत बैरंग चाज चुकाना पड़ेगा।

मेरे आसपास 'प्रजातंतर् बचाओ' के नारे लग रहे ह। इतने यादा बचानेवाले खड़े हो गए ह
िक अब प्रजातंतर् का बचना मुि कल िदखता है। जनतंतर् बचाने के पहले सवाल उठता
है-िकसके िलए बचाएं? जनतंतर् बच गया और फालत ू पड़ा रहा तो िकस काम का? बाग की
स ज़ी को उजाडू ढोरों से बचाते ह, तो या इसिलए िक वह खड़ी-खड़ी सख ू जाए? नही,ं
बचाने वाला स ज़ी पकाकर खाता है। जनतंतर् अगर बचेगा तो उसकी स ज़ी पकाकर खाई
जाएगी। मगर खानेवाले इतने यादा ह िक जनतंतर् के बंटवारे म आगे चलकर झगड़ा
होगा।

पर जनतंतर् बचेगा कैसे ? कौन-सा इंजे शन कारगर होगा? मने एक चुनावमुखी नेता से
कहा- भैयाजी, आप तो राजनीित म मां के पे ट से ही ह। ज़रा बताइए, जनतंतर् कैसे
बचेगा? कोई कहते ह, समाजवाद से जनतंतर् बचेगा। कोई कहता है, समाजवाद से मर
जाएगा। कोई कहता है, गरीबी
िमटाए िबना जनतंतर् नही ं बच सकता। तब कोई कहता है, गरीबी िमटाने का मतलब-
तानाशाही लाना। कोई कहता है, इंिदरा गाँधी के स ा म रहने से जनतंतर् बचेगा। पर
कोई कहता-इंिदरा ही तो जनतंतर् का नाश कर रही है। आप बताइए, जनतंतर् कैसे
बचेगा।

भैयाजी ने कहा-भैया, हम तो सौ बात की एक बात जानते ह िक अपने को बचाने से


ंू िटिकट की कोिशश
जनतंतर् बचेगा। अपने को बचाने से दुिनया बचती है। ज़रा चल।
करनी है।

सोचता हूं, म भी चुनाव लड़कर जनतंतर् बचा ल।ंू जब जनतंतर् की स ज़ी पकेगी तब एक


लेट अपने िह से म भीओआ जाएगी। जो कई सालों से जनतंतर् की स ज़ी खा रहे ह,
कहते ह बड़ी वािद ट होती है। “जनतंतर् ' की स ज़ी म जो 'जन” का िछलका िचपका
रहता है उसे छील दो और खािलस

“तंतर् ” को पका लो। आदश का मसाला और कागज़ी कायक्रमों का नमक डालो और


नौकरशाही की च मच से खाओ! बड़ा मज़ा आता है-कहते ह खानेवाले।

सोचता हूं, जब पहलवान चंदगीराम और िफ मी िसतारे-िसतािरन जनतंतर् को बचाने को


आमादा ह, तो म भी यों न जनतंतर् को बचा ल। ंू मा टर को तो बादाम पीसने से फु रसत
नही ं िमलेगी और िसतारों को िकसी-न-िकसी के बैकग्राउ ड यिू जक पर होंठ िहलाना
पड़ेगा। मेरे िबना जनतंतर् कैसे बचेगा?

पर तभी यह बैरंग िलफाफा िदख जाता है और िदल बैठ जाता है। मने ग्रीिटंग काड को
िबछाकर देखा है-लगभग 5 वगमीटर शुभकामनाएं मुझे नए वष की िमली ह। अगर इतने
काड मुझे कोरे िमल जाते, तो म इ ह बेच लेता। पर इन पर मेरा नाम िलखा है इसिलए कोई
नही ं खरीदेगा। दूसरे के नाम की शुभकामना िकस काम की?

इनम एक बैरंग िलफाफा भी है। काड पर मेरी सुख-समिृ की कामना है। सही है। पर इस
शुभकामना को लेने के िलए मुझे 10 पै से देने पड़े। जो शुभकामना हाथ म आने के दस पै से
ले ले,

वह मेरा या मंगल करेगी? शुभिचंतक मुझे सम ृ तो देखना चाहता है, पर यह मुझे बतलाने
के ही 10 पै से ले लेता है।

शुभ का आर भ अकसर मेरे साथ अशुभ हो जाता है। सम ृ होने के िलए लॉटरी की दो
िटकट खरीदी-ं हिरयाणा और राज थान की। खुली ं तो अपना न बर नही ं था। दो पये
गांठ के चले गए। सोचा, बंसीलाल और सुखािड़या का एक-एक पया िकसी ज म का कज़
होगा! चुक गया। अपने को ऐसे समिृ नही ं िमलेगी। वह पगडंडी से आती-जाती है।
लजीली कु लवती है। पदा भी करती है। मेरे एक छात्र ने वह पगडंडी ढू ं ढ़ ली है। एक िदन
ू ा-तु हारे ऐसे ठाठ कैसे हो गए? बड़ा पै सा कमा रहे हो। उसने कहा-सर,
िमला, तो मने पछ
अब म िबजनेस लाइन म आ गया हूं। मने पछ ू ा- कौन-सा िबज़नेस करते हो? उसने कहा-
स टा िखलाता हूं। इस देश म स टा िबज़नेस लाइन म शािमल हो गया है। मंथन करके
ल मी को िनकालने के िलए दानवों को देवों का सहयोग अब नही ं चािहए। पहले समुदर् -
मंथन के व त तो उ ह टे कनीक नही ं आती थी, इसिलए देवताओं का सहयोग िलया। अब वे
टे कनीक सीख गए ह।

हर अ छी चीज़ बेरंग हो जाती है। िपछले साल सफाई स ताह का उ ाटन मेरे घर के पास
ही हुआ था। अ छी 'साइट” थी। वहां कचरे का एक बड़ा ढे र लगाया गया। फोटोग्राफर
कोण और प्रकाश देख गया और तय कर गया िक मंतर् ीजी को िकस जगह खड़े होकर
फावड़ा चलाना है। अफसर कचरे की सजावट करवाने म लग गए। एक िदन मंतर् ीजी आए
और दो-चार फावड़े चलाकर सफाई स ताह का उ ाटन कर गए। इसके बाद कोई उस
कचरे के ढे र को साफ करने नही ं आया। उ मीद थी िक हर साल यही ं सफाई स ताह का
उ ाटन होगा और हर साल 4 फावड़े मारने से लगभग एक शता दी म यह कचरा साफ हो
जाएगा। म इंतज़ार कर सकता हूं पर इस साल दूसरी जगह चुन ली गई।

सफाई स ताह कचरे का ढे र दे जाता है और नया साल बैरंग शुभकामना लेकर आता है।
िफर

भी संसद म जाने को लालाियत हूं। एक साहब से अपनी इ छा प्रकट करता हूं तो वह


कहता है- चुनाव लड़ने से भी या होगा? मने कहा-संसद सद य हो जाऊंगा।

वह-संसद सद य होने से भी या होगा?

म-मंतर् ी हो जाऊंगा।

वह-मंतर् ी होने से भी या होगा?

म-म प्रधान नंतर् ी हो जाऊंगा।

वह-प्रधानमंतर् ी होने से भी या होगा?

ं ा।
म-म गरीबी िमटा दूग

वह-गरीबी िमटाने से भी या होगा?


म-लोग खुशहाल हो जाएंग।

वह कहता है-पर मैया, खुशहाल होने से भी या होगा?

मेरे पास इसका जवाब नही। ं यह भारतीय जन कैसा हो गया है? कैसा हो गया है इसका
मन? लगता है, मुझे ही नही,ं सारे देशवािसयों को बैरंग शुभकामनाएं आती रही ह और आज
उसका यह हाल हो गया है िक कहता है-खुशहाल होने से भी या होगा?

िमत्र कहते ह-तुम तो जनता के उ मीदवार हो जाओ। जनसमिथत उ मीदवार! पर म इसी


भारतीय जन की तलाश म हूं वष से। वह िमलता नही ं है। कहते ह, वह चुनाव के व त
िमलता है- भारतीय जन। पर अभी के एक चुनाव म उसे म तलाशता रहा। लगभग हर पाट
ने मुसलमानों के मत पाने के िलए मौलाना को बुलाया। मौलाना ने फतवा िदया-मुसलमानो,
जब तुम ईद के चांद
के बारे म मेरी बात मानते हो तो वोट के बारे म भी मेरी बात मानो। अमुक को वोट दो।
जैिनयों के मत पाने के िलए कोई ऑल इि डया जैन नेता बुला िलया। िदग बरों के िलए
िदग बर और वे ता बरों के िलए वे ता बर। थानकवासी और तेरापंथी और िमल जाते तो
ठीक रहता। तेिलयों के िलए अिखल भारतीय तेली और नाइयों के िलए ऑल इि डया नाई।
ेतर् के ब्रा णों से कहा गया- यहां से हमेशा ब्रा ण चुनाव जीता है। देख लो, 20
सालों का िरकाड। िघ कार है हम ब्रा ण को अगर कोई गैर-ब्रा ण इस बार जीत गया
तो।

कहां है भारतीय जन? कौन-सा है? या वह जो कहता है-खुशहाल होने से भी या होगा?


या यह जो भारतीय होने के िलए चलता है, िक रा ते म कोई उसे रोककर कहता है-चल
वापस। त ू भारतीय नही,ं ब्रा ण है।

बैरंग मंगल काड मेरी आंखों म घरू कर देखता है और कहता है-व त के इशारे को समझ
और बाज़ आ। तुझसे प्रजातंतर् नही ं बचेगा। अगर तुझे ही चुनाव जीतकर प्रजातंतर्
बचाने का काम नए साल ने सौंपा होता, तो मेरे ऊपर परू ी िटकट न िचपकती?ं

िक

ग्र + यी -+ इितहास का सबसे बड़ा जुआ

(इधर पंचम गु का मशहूर जुए का अ डा चलता है। पुिलस, ऊंचे अफसरान और घनी-
मानी लोगों के नैितक सहयोग से यह अ डा फल-फूल रहा है-याने फूलने की झंझट म न
पड़कर एकदम फल जाता है। हर जुए के अ डे म 'छोकरे' होते ह, जो पान, बीड़ी, दा
का इंतज़ाम करते ह, जुआिरयों की सेवा करते ह। पंचम गु के अ डे म एक तेज़ छोकरा
है। उसे पवू - मिृ त है। वह कहता है, ापर म भी वह 'छोकरा” ही था और ल छू उ ताद
के जुए के अ डे म काम करता था। जब दुयोधन ने युिधि ठर के साथ जुआ खेला था, तब
उ होंने ल छू उ ताद से एक अ छा 'छोकरा' देने के िलए कहा था। ल छू उ ताद ने इसी
छोकरे को भेज िदया था। वह कहता है, उसने इितहास का वह सबसे बड़ा जुआ देखा था।
उसी के श दों म-लेखक)

साब, बड़े-बड़े जुए के फड़ देखे, बड़े-बड़े जुआरी देखे, पर वै सा जुआ नही ं देखा। ल छू
उ ताद ने कहा था-छोकरे, राजा लोगों का जुआ है। बड़े-बड़े वीर वहां होंग। े अ छी
चाकरी करेगा तो ऊंचा “िटप” िमलेगा। गलती करेगा तो िसर खो देगा। ज़रा संभल के।

तो साब, म तो डरते-डरते वहां गया।


ू ा-छोकरे, यह जुआ हुआ ही यों? त ू तो वहां था। त ू जानता होगा।
मने पछ

छोकरा बोला-िजसको “पॉवर पॉिलिट स' बोलते ह न साब, वही था ये। सब जुआ खेलते
ह पॉिलिट स म। नेपोिलयन ने खेला था, िहटलर ने खेला था। यािहया खां ने भी खेलकर
देख िलया। िह दचीन म अमेिरका इतने सालों से जुआ खेल रहा है। 1962 म यबू ा म
स और अमेिरका जुआ खेलनेवाले ही थे िक संभल गए, वरना न पांडव रहते न कौरव।

मने कहा-पर ये कौरव-पांडव तो एक ही कु ल के थे। भाई ही थे। िफर ऐसा पॉवर


पॉिलिट स योंचला? #

छोकरे ने कहा- स और चीन या एक ही कु ल के नही ं ह साब? िफर भी पॉवर पॉिलिट स


का जुआ चल रहा है। अमेिरका और पि चमी जमनी भी तो एक ही कु ल के ह, पर उनम भी
डॉलर और माक का जुआ चल रहा है। भाई-भाई म जुआ होता है साब। एक मज़े की बात
बताऊं? शकु िन और दुयोधन के िसवा सब जुए के िखलाफ थे। धत ृ रा ट् र जुए को बुरा
समझते थे, भी म जुए को नाश का कारण मानते थे, िवदुर ने तो सबसे यादा िवरोध
िकया। पर जानते ह साब, युिधि ठर को जुआ खेलने के िलए बुलाने कौन गया? वही
महा मा िवदुर। और युिधि ठर ने भी कहा िक जुआ बहुत खराब चीज़ है। पर िफर खेलने
भी चले आए। कहने लगे-जब बुलावा आया है तो ज़ र चलकर खेलगंू ा। साब, सब जुए के
िखलाफ, पर सब जुआ खेल रहे ह।

ू ा-छोकरे, त ू तो बड़ा होिशयार मालमू होता है। यह तो बताओ िक ऐसा हुआ यों?
मने पछ

छोकरे ने कहा-साब, जब कु ल का सयाना अंधा होता है, तब थोड़े-थोड़े अंधे सब हो जाते


ह। िफर िजसे बुरी बात समझते ह उसी को करते ह। अभी देख लो न। दुिनया म सब
लड़ाई को बुरा बोलते ह। सब शांित की इ छा रखते ह, पर सब हिथयार बनाते जा रहे ह।

ये युिधि ठर जो थे न, घमराज थे। बड़े भ ले आदमी थे। अ छा, बुरा, पाप, पु य-सब
समझते थे। दूसरों को िसखाते थे। पर उ ह जुआ खेलने का शौक था। बड़े आदमी म
एक-न-एक खराबी होती ही है, साब। हमारे ल छू उ ताद ने उनसे कहा था-महाराज, जुआ
खेलने का ही शौक है, तो हमारे अ डे पर आ जाया करो। अरे हारोगे भी तो िकतना
हारोगे? हज़ार, पांच हज़ार, दस हज़ार िस के। वे श बदलकर आ जाया करो। कोई जानेगा
नही।ं और महाराज, पांसा नही ं तीन प ी खेलो। आपको पांसा फकना ही नही ं आता।

िकसी िदन पांसे के जुए म आप भाइयों की कमाई प्रॉपट उड़ा दोगे। पर वे माने ही नही।
आिखर वही हुआ जो हमारे ल छू उ ताद ने कहा था।

ृ रा ट् र भी उ सुक ह। िदखता नही ं है तो


कौरव बैठे ह। पा डवों का इंतज़ार कर रहे ह। घत
ू ते ह-आ गए? कोने म िवदुर िखनन बैठे ह। भी म बेचन
पछ ै ह। दुयोधन और शकु िन
उ ेिजत ह और कण शा त और संत ु ट बैठे ह।

उधर का हाल यह है िक पा डव जानते ह िक हारगे, िफर भी खेलने को चले आ रहे ह।


आगे युिधि टर ह, पीछे भीम। उसके पीछे अजुन, नकु ल और सहदेव। भीम उ ेिजत ह।
बाकी भाई इस तरह तट थ भाव से चल रहे ह िक बड़े भैया जो भी कर, ठीक है।

आमने-सामने बैठ गए। म पानी िपलाने के बहाने युिधि ठर के पास गया और कान म कहा-
घमराज, तीन प ी खेलो। पांसा मत खेलना। तु ह पांसा फकना नही ं आता। इसी व त
शकु िन ने मुझे देख िलया और पुकारा-ऐ छोकरे, उधर या कर रहा है? वह बीड़ी का
क टा उठाकर ला।

दुयोधन बोलता है-दांव म लगाऊंगा, पर पांसे मेरी तरफ से मामा शकु िन फकगे। भला
बताइए, ऐसा भी होता है िक दांव एक लगाए और पांसा दूसरा फके!

मने कहा-होता है रे। पॉिलिट स म होता है। देखा नही ं िक दांव यािहया खां ने लगाया और
पांसे िन ◌्सन तथा माओ ने फके-दो शकु िन मामा। और हम अगर युिधि ठर जैसे बने रहते
तो हमारा

भी कबाड़ा हो जाता। पर हमने कह िदया िक तेरा शकु िन तो हमारा भी 'रसुिन"। फक


पांसा।

छोकरा बोला-िब कु ल ठीक बात बोले साब आप। युिधि ठर भी कह देते िक तु हारी तरफ
से अगर शकु िन पांसा फकगे तो हमारी तरफ से ल छू उ ताद फकगे। शकु िन िकसी का
लोहा मानता था तो हमारे ल छू उ ताद का। पर युिधि ठर के हाथ तो पांसा फकने को
कु लबुला रहे थे न। वे इस शत को भी मान गए।

और चाल ू हो गया साब, जुआ।

िह युिधि ठर ने लगा िदए दांव पर सोना और रत्र। फके पांस।


े िफर शकु िन ने पांसे फके
और िच लाया-जीत िलया।

एक बात माननी पड़ेगी साब-शकु िन था उ ताद। जैसे चाहता वै से पांसे फक लेता था। यह
बात तो उड़ाई हुई है िक वह कपटी था। असल म वह अ छा िखलाड़ी था।

िफर लगा दांव-और लाखों अशफ , मनों सोना। घमराज ने पांसे फके। िफर शकु िन ने
फके और िच लाया-जीत िलया!
घमराज तो जुए के नशे म घु हो गए थे। उ होंने सब प्रॉपट हाथी, घोड़े, गाय, दांव पर
लगा िदए और हार गए।

मने कहा- अब बंद करो महाराज! पर वे बोले-अगला दांव म ही जीतगंू ा।


पर अब दांव पर लगाने को बचा ही कया था? िसफ आदमी बचे थे। और वे सेनापितयों और
ू ा- यों रे छोकरे, जब आदमी दांव पर
नौकरों को दांव पर लगाने और हारने लगे। मने पछ
लगने लगे तो िकसी ने रोका नही?ं

उसने कहा-रोका, साब। पर घ॒मराज तो होश म नही ं थे। उधर बेचारे िवदुर ज़ र बार-बार
ृ रा ट् र से कहते थे िक लड़के को रोको, वरना अिन ट होगा। पर अंधे राजा बेटे के मोह
घत
म और अंधे हो गए थे।

उधर दुःशासन, दुयोधन और शकु िन वगैरह पांडवों की िख ली उड़ाते थे, उनका अपमान
करते थे। इधर भीम क्रोध से कसमसा जाते थे। बाकी पांडव बड़े भाई के िलहाज़ म मुहं
लटकाए बैठे थे।

आदमी दांव पर लगने लगे साब और हारे जाने लगे। दास-दासी-सब धमराज हार गए।
पसीना आ रहा था युिधि ठर को। मुझे पुकारा-छोकरे, पानी िपला।

मने उ ह पानी िपलाते हुए कहा-महाराज, अब भाइयों को लेकर भाग जाओ।

पर वे कहां माननेवाले!

उ होंने नकु ल और सहदेव को दांव पर लगा िदया और हार गए।

शकु िन िच लाया-छोकरे, थोड़ी दा ला।

अब साब, युिधि ठर ने भीम और अजुन को दांव पर लगया और हार गए।

कोई भाई नही ं बोला साब िक हमारा जुआ यों खेलते हो?

अब बचे घमराज।

बोले-इस बार मने अपने को दांव पर लगाया।

पांसे फके।

शकु िन ने फके और जीत गया।

खलास हो गया। सब भाई दुयोधन की प्रॉपट हो गए साब। अब?


शकु िन को खूब चढ़ गई थी साब। नही ं तो वह वै सी बात नही ं कहता। कहता है-धमराज,
अभी द्रौपदी बच गई है। उसे भी दांव पर लगाओ।

सारी सभा म हाहाकार मच गया। िवदुर ने िफर समझाया।

ं पांचों
बताइए साब, द्रौपदी तो वाइंट प्रॉपट थी। अकेले युिधि ठर की बीवी तो थी नही।
भाइयों की थी। िफर एक भाई उसे दांव पर कैसे लगा सकता है?

पर लगा िदया। भाई लोग कु छ नही ं बोले। वह ज़माना ही ऐसा था साब। भी म के िपता
शांतनु का िदल एक केवट क या पर आ गया था, तो बढ़ ू े बाप के शौक के िलए भी म ने
राजपाट छोड़ा और कवर रहे। बोले ही नही ं िक फादर, बहुत भोग कर िलया, बढ़ ू े हो गए।
अब हमारी िज़ंदगी यों खराब करते हो?

तो साब, युिधि ठर द्रौपदी को भी हार गए।

भीम अब आपे से बाहर हो गया। बोला-अभी तक म कु छ नही ं बोला। तुम प्रॉपट हार गए।
हम भी हार गए। पर तुमने द्रौपदी को भी दांव पर लगा िदया। तुम प के जुआरी हो। म
ं ा।
तु हारे इन पांसे फकने वाले हाथों को जला दूग

एक बात बताऊं? भीम द्रौपदी को बहुत “लव” करता था। पर द्रौपदी ज़रा अजुन की
तरफ यादा थी। कृ ण अजुन का बड़ा दो त था। और द्रौपदी भी कृ ण से अपना दुख
कहती थी। पता नही,ं या गोलमाल था साब। ये कृ ण था बहुत दंदी-फंदी आदमी। वह
ू बोल जाता था और कहता था िक यही सच
होता तो शकु िन की नही ं चलती। वह साफ झठ
है। वह कपट कर लेता था और कहता था िक इस व त कपट करना घम है।

अब साब, द्रौपदी सभा म लाई गई। दुःशासन लाया। और उसका अपमान होने लगा।

बड़ी ज़ोरदार औरत थी यह द्रौपदी। उसने वह िघ कारा सबको िक सबके माथे झुक गए।
ू े और ानी सभा म बैठे ह, ये सब पापी ह। मुझे
बोली-ये मेरे पित कायर ह। ये इतने बढ़
बताओ िक खुद अपने को हारे हुए युिधि ठर या मुझे दांव पर लगा सकते ह? या बोलता है
तु हारा घम? तु हारी नीित? तु हारा याय?

सब सुन हो गए, साब! कोई नही ं बोला।

ू े थे। वे सही बात यों नही ं


मने कहा-छोकरे, कौरवों की तरफ बड़े-बड़े लोग थे। बड़े-बढ़
बोले?
छोकरा हँसा। बोला-साब, वे सब “िसंिडकेटी' हो गए थे। अनुशासन म बंध गए थे।
िनजिलंग पाजी िजसको “िडिसि लन' बोले थे न, वही हो गया था। अंतरा मा की आवाज़
और अनुशासन का झगड़ा था। द्रौपदी कहती थी-तु हारी अंतरा मा या बोलती है? पर वे
सब बढ़ ू े और ानी जैसे जवाब म कह रहे हों-अंतरा मा की आवाज़ नही। ं हम तो अनुशासन
वाले ह। इसिलए चुप ह। और साब, आप जानते ही ह, िक जैसी िसंिडकेटी अनुशासन
वालों की गत हुई वै सी ही इन ापर के िसंिडकेिटयों की महाभारत म हुई।

ू ा-छोकरे, िफर पा डवों ने या िकया?


मने पछ

ृ रा ट् र को खुश करके
वह बोला-िफर पा डवों ने कु छ नही,ं द्रौपदी ने ही िकया। उसने घत
अपने पितयों और प्रॉपट को वापस ले िलया। यह दूसरा जुआ था साब! द्रौपदी ने वह
पांसे फके, क्रोध, िघ ◌्कार और िवलाप के, िक वह जीत गई।

अब पा डव वापस घर को चले।

इधर दुयोधन घबड़ाया िक अब ये बदला लगे। उसने शकु िन से सलाह की। वह दौड़कर
◌ुिधि ठर के पास गया और कहा-एक बार और खेल लो।

बढ़े बौड़म थे ये घमराज।

और साब, घमराज जानते हुए भी िक िफर हरगे, खेलने के िलए लौट आए।

आगे का हाल तो आप जानते ही ह। एक ही दांव म पा डवों को 12 वष का बनवास और


एक वष का अ ातवास हो गया।

दुयोधन का पॉिलिट स चल गया साब। 13 साल तक राजनैितक िवरोधी को िबयाबान म


रखकर उसने अपनी “पोज़ीशन' मज़बत ू करने की ठान ली थी।

लड़का चुप हो गया। उदास हो गया।

कहने लगा-ऐसा जुआ कभी नही ं देखा, साब! मुझे तो रोना आ गया साब, जब पा डव
वनवािसयों का वे श घारण करके चल िदए। भीम लाल-पीले हो रहे थे, पर िववश थे। और
बेचारी द्रौपदी िबलखती हुई पीछे चल रही थी।

रा ते म ल छू उ ताद युिधि ठर को िमले। बोले-धमराज, 13 साल का चांस िमला है।


इसम कम-से-कम एक भाई को तो अ छा जुआरी बनाओ। तीर-कमान िसखाने से ही कु छ
नही ं होता।
तीर-कमान को तो पांसों ने मार िदया। पांचों पा डवों म कम-से-कम एक को तो जुआ
खेलने म ए सपट होना चािहए। बोलो, अपने अ डे के घसीटे को साथ कर दू? ं वह िसखा
देगा।

पर घ॒मराज ने यह बात भी नही ं मानी और वन को चले गए।

आना न आना रामकु मार का

बदनामी अपनी कई तरह की है। एक यही है िक भाषण देने के, उ ाटन करने के और
मु य अितिथ होने के भी पै से ले लेता हूं।

मगर बदनामी इससे भी आगे बढ़ गई है, यह मुझे उस िदन मालमू हुआ। म एक शहर
यि तगत काम से गया था। दूसरे िदन शाम को थानीय कॉलेज के 2-3 लड़के अपने
अ यापक के साथ आए। म खुद परेशान था िक इस शहर म कोई कॉलेज-वॉलेज या कोई
सं था है या नही?ं है तो कोई आता यों नही?ं 36 घंटे िकसी छोटे शहर म लेखक को पड़े
हो जाएं और कोई न आए, तो भी मन न जाने कैसा-कैसा करता है। खैर, वे आए तो
तिबयत हरी हो गई। उ होंने कहा-कल हम लोग कॉलेज म आपका स मान करना चाहते
ह।

ू े संकोच नही ं पालता। मने कहा- कर डालो। शुभ काम है। िकतने बजे आ जाऊं?
म झठ

वे बोले-4 बजे प्रोग्राम रखा है। हम आपको लेने आ जाएंग।


मने कहा-ठीक है। म तैयार रहूंगा।

बात ख म होनी चािहए थी। अब आगे कॉलेज के बारे म या मौसम के बारे म या सािह य के

ं पर वे गुमसुम बैठे थे। आिखर एक लड़के ने िनहायत भोलेपन


बरे म बात ही हो सकती थी।
से कहा-िकतना पया लगे?

म काफी बेहया हूं। मगर इस बात ने मेरी भी चमड़ी उघेड़ दी। बदनामी इतनी आगे बढ़ गई
है िक स मान करनेवाला जानता है िक यह नीच स मान करवाने के भी पये लेगा। कैसा
बेशम है!

यह सही है िक िकसी समारोह म जाना वीकार करते व त ही “पत्र पु पं” कहलानेवाली


रकम का अंदाज़ दोनों पािटयों को रहता है।
म पहुंचते ही आयोजकों के चेहरों, यवहार और आवभगत से िहसाब लगाना शु कर देता हूं
िक ये अ छे पै से दगे या नही?ं कभी ऐसा भी हुआ है िक यादा आवभगत करने वालों ने
पये मुझे कम िदए ह। लेखक का शंकालु मन है। शंका न हो तो लेखक कैसा? मगर वे भी
लेखक ह िजनके मन म न शंका उठती है न सवाल। यादा आवभगत होने लगे तो आशंका
े म मन-ही-मन कहता हूं-मैया, यादा कर रहे हो। नॉमल हो
होती है िक ये पै से कम होंग।
जाओ तो म भी हो जाऊं। तु हारी आवभगत के िहसाब से मेरी घबड़ाहट भी बढ़ रही है।

समारोह के बाद एक िलफाफा िदया जाता है। इस िलफाफे से मुझे स त िचढ़ है। हर
िलफाफे से मुझे िचढ़ है। िलफाफा हमेशा अपने और दूसरे को घोखा देने के काम आता है।
िलफाफा देखकर म बेचन ै हो उठता हूं। पता नही ं िकतने ह? ह भी या नही?ं चारों तरफ
अंधकार। कोई रोशनी देनवे ाला नही। ं म िवराणी की तरह िलफाफा लेकर जेब म रख लेता
ै रहता है। म बात करते-करते हाथ जेब म डालकर,
हूँ जैसे तु छ माया है। पर मन बेचन
नोटों को टटोलकर रकम का अंदाज़ा लगा लेता हूं। यह अ यास मुझे हो गया है। अगर
इसम नाकामयाब हुआ तो बाथ म तो कही ं गया नही ं है। म बाथ म म जाकर िगन लेता
हूं।

रकम की अिनि चतता की बेचन ै ी सबको होती है। िज ह नही ं होती वे आदमी नही ं ह। और
ू े ह। बहुतों म बाथ म म घुसकर िगनने का नैितक साहस नही ं होता और वे
ह भी, तो झठ
अशांत मन लेकर औपचािरक स ावना और संतोष िनभाते रहते ह।

म ऐसा नही ं करता। िगनकर िनकलता हूं। और रकम संतोषप्रद होती है तो उन लोगों से
कहता हूं-आपका यह इलाका बहुत प्रगितशील है। म बहुत जगह घमू ा हूं, पर ऐसा आगे
बढ़ा हुआ ेतर् मुझे कम ही िमला है।

पर अगर पये कम हुए तो कहता हूं-यह इलाका िपछड़ा हुआ है। इसे अभी बहुत प्रगित
करनी है।

10-5 पये के हेर-फेर म परू े इलाके को प्रगितशील या िपछड़ा हुआ घोिषत कर देता हूं।

समारोह ख म हो गया था। मुझे पहली गाड़ी से ही लौटना था। सामान बंध चुका था।
होटल के करे म थानीय प्रबु जन और बंघ ु बैठे थे और मेरे भाषण की तारीफ कर रहे
थे। मुझे तारीफ िब कु ल अ छी नही ं लग रही थी। म बार-बार दरवाज़े की तरफ देखता
था-रामकु मार अभी तक नही ं आए।

रामकु मार वे स जन थे िजनके पास मेरे पै से थे।

मने उन लोगों से कहा-रामकु मार अभी तक नही ं आए।


वे बोले-आते ही होंग।

एक अ यापक कहते ह-सोचने की नई िदशा देते ह आप।

िदशा? िदशा तो सही वह है िजससे रामकु मार को आना है। नही ं बताना मुझे िदशा, और
सोचने की भी कोई खास ज़ रत नही ं है। मुझे तो यह बताओ िक रामकु मार अब तक यों
नही ं

आए?

वे बंध ु कहते ह-एक कप चाय हो जाए।


चाय आती है। मुझे अ छी नही ं लगती। रामकु मार ने मेरा वाद छीन िलया। एक-दो घंट
लेता हूं और िफर कहता हूं-रामकु मार नही ं आए।

ू ता हूं।
-वे नही ं जानते िक म बार-बार रामकु मार को यों पछ

अब म अपडे. को िध ◌्कारता हूं-लोभी! त ू भी कोई लेखक है? लेखक या ऐसा होता है?
िध कार है!

ू उठता हूं-रामकु मार नही ं आए?


थोड़ी देर इस िध कार से मन को संभालता हूं, पर िफर पछ

अब उन लोगों को अ छा नही ं लग रहा है। वे शायद सोचते ह िक कु छ घंटों म ही इ ह


रामकु मार इतने पसंद आ गए और हम कु छ नही?ं

एक सुदं री आती है। कहती है-बड़ा सुदं र भाषण था आपका। मुझे ऊ मा का अनुभव नही ं
होता। इस व त िव व-सुदं री भी रामकु मार से घिटया है। सुदं री मेरी हूं-हां! से िन सािहत
होती है। पर देवी, म या क ँ ? रामकु मार तो नही ं आए! अगर वे आ गए होते तो म तुमसे
बड़े रस से बात करता।

म मन को िफर संभालने की कोिशश करता हूं-बेवकूफ, परेशान यों होता है? पै सा ही तो


सब कु छ नही ं है। दो हज़ार लड़कों ने तु हारा भाषण सुना। इनम से अगर 50 भी िबगड़
गए तो जीवन साथक हो गया। जब तुम बोल रहे थे तब तुम उन लड़कों से चाहे तो तुड़वा
सकते थे-पर परा से लेकर भा य-िवघाताओं के हाथ-पांव तक।

मेरा मन थोड़ा ऊंचा उठता है। मगर एक िमनट म ही िफर िगरता है और म कहता हूं-
रामकु मार अभी तक नही ं आए।
उनम एक बुजगु अ यापक मेरी बेचन ै ी समझ गए। उ होंने अलग ले जाकर कान म कहा-
रामकु मार शायद सीधे टे शन पै से लेकर पहुंच। िचंता मत किरए। अगर न भी आए तो हम
िभजवा दगे।

इ होंने ऐसा यों कहा? ज़ र पहले से मुझे चरका देने की योजना बन चुकी है। मुझे याद
आया लखनऊ का वह वाकया। तीन प्रोफेसर लोग मुझे आगरा की गाड़ी म िबठाने आए।
म समझा, ये पया लाए होंग।े पर वे कहने लगे िक हम समझे, िप्रंिसपल साहब ने आपको
े आगरा की गाड़ी सामने खड़ी थी और मेरे पास िकराये के पै से भी नही ं थे।
दे िदए होंग।
तब उन अ यापकों ने चंदा करके मेरे िलए िटकट खरीदा। पै से मेरे आज तक नही ं आए।

म यादा बेचन
ै हो गया।

गाड़ी का व त हो गया। उन लोगों ने िड बे म मेरा सामान रखवाया। बैठते-बैठते मने िफर


दोनों सड़कों पर नज़र दौड़ाई और कहा-रामकु मार अभी तक नही ं आए।

टे शन पर दूर-दूर तक रामकु मार कही ं नही ं ह। मेरी घबराहट बढ़ती है।

म कहता हूं-रामकु मार तो नही ं आए।

वे अब जवाब नही ं देत।


े परेशान हो गए ह।

हम लेटफॉम पर चहलकदमी करते ह। वे लोग सािह य और राजनीित की बात करते ह।


मेरा मन नही ं लगता। मेरे मन म रामकु मार की छिव समाई है।

दूसरे लेटफॉम पर एक गाड़ी रवाना होने को तैयार खड़ी है। तमी एक औरत िसर पर
पोटली रखे भागती है और उसका पीछा एक साधु कर रहा है। औरत उस िड बे म घुस
जाती है। साधु उसे बाहर घसीटकर लेटफॉम पर डाल देता है। औरत चीखती है-म तेरे
साथ नही ं रहूंगी। साधु उसे एक लात मारकर कहता है-रहेगी कैसे नही?ं हंगामा मच जाता
है। पुिलस वाला आता है। साधु को डराता है तो साधु कहता है-यह मेरी घरवाली है। म
इसे ले जाऊंगा।

मेरे पास के िड बे म बैठी एक त्री दूसरी से कहती है-बाई, जब इंदर् ी पै बस नही ं है तो


साधु यों होतेह? |

बिढ़या लॉट है कहानी का। पकड़ लंू इसे। डायलॉग िदमाग म जमा ल।
ंू पर मेरा िदमाग
लॉट म भी नही ं लगता।
थोड़ी देर बाद िफर कह उठता हूं-रामकु मार नही ं आए।

गाड़ी आधा घंटा लेट है।

अब मेरे मन को थोड़ी राहत िमलती है। रामकु मार के आने की उ मीद म छोड़ता नही ं हूं।
उ ह आधा घंटे का समय और िमल गया है।

म लेटफॉम पर दोनों तरफ देखता हुआ उन लोगों के साथ घमू रहा हूं। वे ान चचा करते
ह। हँसी-मज़ाक करते ह। मेरा िकसी म मन नही ं लगता।

इतने म रामकु मार आते िदखाई देते ह। वे लोग एक साथ कहते ह-लीिजए, आ गए आपके
रामकु मार।

रामकु मार पसीने से लथपथ ह। कहते ह, साइिकल पंचर हो गई थी। उसे सुधरने देकर
लाइन-लाइन भागता हुआ आया हूं।

ै ी कम होती है। मगर ये रामकु मार जेब म हाथ यों नही ं डालते? िलफाफा यों
मेरी बेचन
नही ं अब बाथ म म जाने की ज़ रत नही। ं रामकु मार ने वयं रािश बता दी है।

िनकालते? गपशप म यों उलझे ह? िटिकट आ जाता है। म कहता हूं-भई, चाय पी
जाएगी।

म इंतज़ार कर रहा हूं, यह कब जेब म हाथ डालते ह? वे जेब म हाथ नही ं डालते।

चाय मुझे बहुत अ छी लगती है।

कहता हूं-यहां के लोग काफी प्रबु ह। म देख रहा था, वे लोग बड़े यान से मेरी बात सुन
रहे तरकीब मुझे बहुत आती ह। म अपनी जेब म हाथ डालते हुए कहता हूं-रामकु मारजी,
िटकट थे और समझ रहे थे। कई जगह तो मने अनुभव िकया है िक म बोल रहा हूं और
कोई समझ नही ं

ले लीिजए। रहा है। इस मामले म आपका यह ेतर् काफी आगे बढ़ा हुआ है। रामकु मार
मुझे रोकते ह-नही-ं नही ं म िटिकट ले आता हूं। रामकु मार आ गए थे न!

रामकु मार मुझे अलग ले जाकर िलफाफा देते ह। कहते ह-इतने पये ठीक ह। ठीक ह न।
जे

) या न

जे िदशा बताइए

समारोह के मु य अितिथ नही ं आए थे। वादा करके जो मु य अितिथ ऐन मौके पर न आए


वह आम आ जाने वाले मु य अितिथ से बड़ा होता है, जैसे वह किव बड़ा होता है जो पे शगी
खा जाए और किव स मेलन म न जाए। म एक किव को जानता हूं जो हर शहर की पे शगी
खा गए और अब उ ह कोई नही ं बुलाता। वे किव-कम से ही छु टी पा गए ह।

संयोजक घबड़ाए हुए हॉल म चारों तरफ नज़र डाल रहे थे। उनकी तलाश दुहरी थी-अपने
मु य अितिथ को वे खोज रहे थे और साथ ही, उसकी एवज म मु य अितिथ बन सकने
वाले को भी ढू ं ढ रहे थे। मु य अितिथ की एक बनावट होती है। गांधीजी ने खादी का
घोती-कु रता पहनाकर और नेह ने जािकट पहनाकर कई पीिढ़यों के िलए मु य अितिथ
की बनावट तय कर दी थी। आज़ादी के पहले ये सब दुबले थे, इसिलए मु य अितिथ नही ं
होते थे। आज़ादी के बाद ये मोटे हो गए, कु छ की तोंद िनकल आई और आदश मु य
अितिथ बन गए। म इधर कु छ सालों से देख रहा हूं, म फु त से मु य अितिथ के प म ढल
रहा हूं। कु रता-पायजामा, जािकट म पहले से ही पहनता हूं। इधर कपड़ा यादा लगने लगा
है। यों- यों कपड़ा यादा लगने लगा है, यों- यों म मु य

अितिथ की ग ी की तरफ सरक रहा हूं।

कोने म रखी फूल-मालाओं की आंख िनकल आई ह। वे अपने मु य अितिथ की तलाश कर


रही ह। म फूल-मालाओं से आंख िमला रहा हूँ। बड़ा 'फ ट् रेशन' है उनकी आंखों म, बड़ी
िनराशा। वादा करके भी प्रेमी कॉफी हाउस म न िमले तो उस मनःि थित म सुदं गी को
पटा लेना सहज होता है। म देख रहा हूं, मालाएं मुझसे आंख िमला रही ह। इधर संयोजकों
की नज़र मुझपर बार-बार पड़ती है और वे आपस म कानाफूसी करते ह। वे एवज़ के मु य
अितिथ के प म मुझे तौल रहे ह। एवज़ म छोटों का भा य चमक जाता है। राम की एवज़
म खड़ाऊं राजिसंहासन पर बैठ गई थी। ं

तीन संयोजक दरवाज़े के पास खड़े सलाह कर रहे ह। वे मेरी तरफ बार-बार देखते ह।
मु य अितिथ उनके िलए ज़ री है। उ ह मालाएं पहनानी ह। माला पहनाना कु छ लोगों की
त दु ती के िलए ज़ री है। वे अगर महीने म एक बार िकसी को माला न पहनाएं तो
वा य खराब होने लगता है। हर समाज म माला पहनानेवाले ज़ री ह। अगर ये न हों तो
माला पहनने वालों की गदन िपचक जाएं। मंित्रमंडल से िनकलने के बाद एक साहब को
माला पहनाने वाले नही ं िमलते थे। उनका वा य िगरने लगा। डॉ टरों ने उ ह सलाह दी
िक आप फूलमाला का सेवन कर। उ होंने दस पये महीने पर एक माली को रोज़ माला
पहनाने के िलए लगा िलया। शाम को वे सजकर कु स पर बैठ जाते। माली आता और
माला पहनाता। वे कहते-भाइयो और बहनो! उनकी सेहत अ छी हो गई। मगर माली का
वा य िगरने लगा। हर एक को माला पहनाना अनुकूल नही ं पड़ता। अपनी-अपनी
प्रकृित है। भगवान भतू ल पर कोई बड़ा काम करते थे, तो िनठ ले देवता आकाश से फूल
बरसाते थे। दोनों का वा य ठीक रहता था। कम के िलए फूल तोड़ने म िनठ ले का
व त अ छा कट जाता है।

संयोजक अब िनणय पर पहुंच रहे ह। दूर ह, पर हाव-भाव से परू ा वातालाप म सुन रहा हूं।
एक कहता है-परसाईजी ठीक रहगे। दूसरे का चेहरा िखनन होता है। कहता है-नही ं यार,
वह नही ं

जमगे। तब तीसरा मेरे समथन म कहता है-कोई और यहां है ही नही ं और टाइम बहुत हो
गया। बहुमत मेरे प म हो गया है। म जािकट के बटन लगा लेता हूं। बालों पर हाथ फेरता
हूं। दु त ह। माल चेहरे पर फेरता हूं, िजससे उच कापन साफ हो जाए और नीचे दबी
ग भीरता ऊपर आ जाए। अब वे आते ही ह। मालाएं एकटक नजर मेरी तरफ देख रही ह।
उ ह गदन िमल गई।

म मंच पर पहुंच गया। एवज़ म मु य अितिथ म पहले भी एक बार बन चुका था। तब सं था


के मंतर् ी ने श्रोताओं से कहा था-हम बड़ा दुख है िक अमुकजी नही ं आए, इसिलए
परसाईजी को मु य अितिथ बनाना पड़ रहा है। आशा है, आप लोग हम मा करगे। यह
सुनकर भी म बेशम लादकर बैठा रहा।

ं मुझे इसका अ यास कम है। गदन भी अभी मालाओं के


मालाएं मुझे पहनाई जाने लगी।
अनुकूल नही ं है। कई गदन मने ऐसी देखी ह जैसे वे माला पहनने के िलए ही बनी हों। गदन
और माला िब कु ल 'मेड फॉर ईच अदर” रहती ह। माला लपककर गले म िफट हो जाती
है। फूल की मार िवकट होती है। कई गदन जो संघष म कटने के िलए पु ट कर दी गई थी,ं
माला पहनकर लचीली हो गई ह। एक क्रांितकारी इधर रहते ह िजनकी कभी तनी हुई
गदन थी। मगर उ ह माला पहनने की लत लग गई। ं अब उनकी गदन छू ने से लगता है,
भीतर पानी भरा है। पहले जन- आ दोलन म मु य अितिथ होते थे, अब मीना बाजार म
मु य अितिथ होते ह।

मने 10-12 मालाएं पहनी ं और मेरी सारी उ तता चली गई। फूल की मार बुरी होती है।
शेर को अगर िकसी तरह एक फूलमाला पहना दो तो गोली चलाने की ज़ रत नही ं है। वह
फौरन हाथ जोड़कर कहेगा-मेरे यो य कोई और सेवा!
मंतर् ी माइक पर कहता है-अब परसाईजी हम िदशा-िनदश करगे। यह त णों की सं था है।
म इ ह या िदशा बताऊं? हर िदशा म यहां िदशा-शलू ह। कभी सोचा था िक तकनीकी
िश ा की िदशा म जाना चािहए मगर हज़ारों बेकार इंजीिनयर ह। उस िदशा म भी िदशा-
शलू िनकला।

या िदशा बताऊं? ये त ण मुझ जैसे के गले म यहां माला पहना रहे ह और इ ही ं की उम्र
के बंगाल के त ण मुझ जैसे की गदन काट रहे ह। कौन-सी सही िदशा है? माला पहनाने
की, या गला काटने की?

िकसी को िदशा नही ं मालमू । िदशा पाने के िलए यहां की राजनैितक पािटयां एक अिधवे शन
उ र म श्रीनगर म करती ह, दूसरा दि ण म ित्रवे द्रम म, तीसरा पवू म पटना म और
चौथा पि चम म जोधपुर म-मगर चारों तरफ घमू कर भी जहां की तहां रहती ह। बाएं जाते-
जाते लौटकर दाएं चलने लगती ह। (६

िदशा मुझे मालमू ही नही ं है। कई साल पहले म नए लेखक के प म िदशा खोज रहा था।
तभी दूसरों ने कहा-बेवकूफ, जो िदशा पा लेता है वह घिटया लेखक होता है। सही लेखक
िदशाहीन होता है। ऊंचा लेखक वह जो नही ं जानता िक कहां जाना है, पर चला जा रहा
है।

िदशा मने छोड़ दी। देख रहा हूं, लेखक चौराहे से चारों सड़कों पर जाते ह। मगर दूर नही ं
जाते। लौट-लौटकर चौराहे पर आ जाते ह और इंतज़ार करते ह िक उ ह उठा ले जाने
वाली कार कब आती है और वे बैठकर बाकी लेखकों को “टा-टा” बोलकर चले जाते ह।
सुना है, ब बई, कलक ा, िद ली म तो हवाई जहाज़ से उड़ा ले जाते ह। म िदशा की खोज
म जतू े िघसता रहा और चौराहे का यान नही ं रखा। देर से चौराहे पर लौटता हूं, देखता हूं,
साथ के लोगों को उठा िलया गया है।

नही,ं िदशा म नही ं बता सकता। फूल-मालाओं से लाद दो तब भी नही। ं िदशा आज िसफ
अंधा बता सकता है। अंधे िदशा बता भी रहे ह। सवे रे युवकों को िदशा बताएंग,े शाम को
वृ ों को। कल डॉ टरों को िदशा बताएंग,े तो परसों पािकटमारों को। अंधा िदशा भेद नही ं
कर सकता, इसिलए सही िदशा िदखा सकता है।

मने श्रोताओं से कहा-म िदशा नही ं जानता। िफर म बहुत दयालु और शरीफ मु य अितिथ
हूं। आपको िब कु ल तकलीफ नही ं दूग ं ा। म भाषण नही ं दूग
ं ा।

श्रोताओं ने ल बा भाषण सुनने के िलए सारी शि त बटोर ली थी। सांप िदखे तो आदमी
ू हो जाती ह। मगर
उससे बचने के िलए नायुओ ं को तीव्र कर लेता है, मांसपे िशयां मज़बत
िफर यह समझ म आया िक र सी है, तो राहत तो िमलती है, पर साथ ही एक तरह की
िशिथलता और िगरावट भी आती है। मेरे श्रोताओं का यही हाल था। िजसे सांप समझे थे
वह र सी िनकला।

बाद म संयोजकों ने कहा-आपने भाषण यों नही ं िदया? मने कहा-वे श्रोता मेरे नही ं थे।
तु हारे उन मु य अितिथ के थे। म दूसरे का मारा हुआ िशकार नही ं खाता।
गै । चुनाव के ये अनंत आशावान

चुनाव के नतीजे घोिषत हो गए। अब मातमपुस का काम ही रह गया है। इतने बड़े-बड़े हरे
ह िक मुझ जैसे की िह मत मातमपुस की भी नही ं होती। मने एक बड़े की हार पर दु:ख
प्रकट करते हुए िच ठी िलखी थी। जवाब म उनके सिचव ने िलखा-तु हारी इतनी जुरत
िक साहब की हार

पर दुखी होओ? साहब का कहना है िक उनकी हार पर दुःख मनाना उनका अपमान है। वे
या इसिलए हरे ह िक तुम जैसे टु चे आदमी दुखी हों? बड़े की हार पर छोटे आदमी को
दुखी होने का कोई हक नही। ं साहब आगे भी हररगे। पर तु ह चेतावनी दी जाती है िक
अगर तुम दुखी हुए, तो तुम पर मानहािन का मुकदमा दायर िकया जाएगा।

बड़ी अजब ि थित है। दुखी होना चाहता हूं, पर दुखी होने का मुझे अिधकार ही नही ं है।
मुझे लगता है, समाजवाद इसी को कहते ह, िक बड़े की हार पर बड़ा दुखी हो और छोटे की
हार पर छोटा। हार के मामले म वग संघष ख म हो गया।

म अब िकसी की हार पर दुःख की िच ठी नही ं िलखूंगा। पर जो आस-पास ही बैठे ह,


उनके प्रित तो क य िनभाना ही पड़ेगा। िच ठी म मातमपुस करना आसान है। म हँसते-
हँसते भी दु:ख

प्रकट कर सकता हूं। पर प्र य मातमपुस किठन काम है। मुझे उनकी हार पर हँसी आ
रही है, पर जब वे सामने पड़ जाएं तो मुझे चेहरा ऐसा बना लेना चािहए जैसे उनकी हार नही ं
हुई, मेरे िपता की सुबह ही म ृ यु हुई है। इतना अपने से नही ं सघता। प्र य मातमपुस म
म हमेशा फेल हुआ हूं। मगर देखता हूं, कु छ लोग मातममुखी होते ह। लगता है, भगवान ने
इ ह मातमपुस की यट ू ी करने के िलए ही संसार म भेजा है। िकसी की मौत की खबर
सुनते ही वे खुश हो जाते ह। दु:ख का मेक-अप करके फौरन उस पिरवार म पहुंच जाते
ह। कहते ह-िजसकी आ गई, वह तो जाएगा ही। उनकी इतनी ही उम्र थी। बड़े पु या मा
थे। िकसी का िदल नही ं दुखाया। (हालांिक उ होंने कई लोगों की ज़मीन बदबल कराई
थी।) उ ह िकसी के कु े ने काट िलया हो और वह कु ा आगे मर जाए तो भी वे उसी शान
से मातमपुस करगे-बड़ा सुशील कु ा था। बड़ी साि वक विृ का। कभी िकसी को तंग
नही ं िकया। उसके िर त थान की पिू त वान-जगत् म नही ं हो सकती।

म कभी चुनाव नही ं लड़ा। एक बार सवस मित से अ यापक संघ का अ य हो गया था।
एक साल म मने तीन सं थाओं म हड़ताल और दो अ यापकों से भखू हड़ताल करवाई।
नतीजा यह हुआ िक सवस मित से िनकाल िदया गया। अपनी इतनी ही संसदीय सेवा है।
सोचता हूं, एक बार चुनाव लड़कर हार लंू तो अपनी पीढ़ी का नारा भोगा हुआ यथाथ”
साथक हो जाए। तब शायद म मातमपुस के यो य मड ू बना सकंू ।

अपनी असमथता के कारण म चुनाव के बाद हारे हुओ ं की गली से नही ं िनकलता। पर ये
अन त आशावान लोग कही ं िमल ही जाते ह। एक साहब िपछले पंदर् ह सालों से हर चुनाव
लड़ रहे ह और हर बार ज़मानत ज़ त करवाने का गौरव प्रा त कर रहे ह। वे नगर िनगम
का चुनाव हारते ह तो समझते ह, जनता मुझे नगर के छोटे काम की अपे ा प्रदेश का काम
सौंपना चाहती है। और वे िवघान सभा का चुनाव लड़ जाते ह। यहां भी ज़मानत ज़ त होती
है तो वे सोचते ह, जनता मुझे देश की िज़ मेदारी सौंपना चाहती है-और वे लोकसभा का
चुनाव लड़ जाते ह।

हार के बाद वे मुझे िमल जाते ह। बाल िबखरे हुए, बदहवास। मेरा हाथ पकड़ लेते ह।
झकझोर करते ह-टे ल मी परसाई, इज़ िदस डेमोक्रेसी ? या यह जनतंतर् है? म कु छ
“हां-हूं! करके छू टना चाहता हूं तो वे मेरे पांव पर पांव रख देते ह और मेरे मुहं से लगभग मुहं
लगाकर कहते ह- नही,ं नही,ं तु ही ं बताओ। यह या जनतंतर् है?

मुझे कहना पड़ता है-यह जनतंतर् नही ं है। िपछले 15-20 सालों म जब-जब वे चुनाव हरे
ह, तब-तब मुझे यह िनणय लेना पड़ा है िक यह जनतंतर् झठू ा है। जनतंतर् झठ
ू ा है या
स चा-यह इस बात से तय होता है िक हम हारे या जीते? यि तयों का ही नही,ं पािटयों का
भी यही सोचना है िक जनतंतर् उनकी हार-जीत पर िनभर है। जो भी पाट हारती है,
िच लाती है-अब जनतंतर् खतरे म पड़ गया। अगर वह जीत जाती तो जनतंतर् सुरि त
था।

एक और अनंत आशावान ह। कोई शाम को उ ह दो घंटे के िलए लाउड पीकर िदला दे तो


वे चौराहे पर नेता हो जाते ह और जनता की सम या के िलए लड़ने लगते ह। लाउड
पीकर का नेता- जाित की विृ म या थान है, यह शोध का िवषय है। नेतािगरी आवाज़
के फैलाव का नाम है।

ये नेता मुझे कभी शाम को चौराहे पर गम भाषण करते िमल जाते ह। क्रोध से माइक पर
िच लाते ह-राइट टाउन म आवारा सअ ू र घमू ते रहते ह। कॉपोरेशन के अिधकारी या सो
रहे ह? म नगर िनगम अिधकारी के इ तीफे की मांग करता हूं। यह जनतंतर् का मज़ाक है
िक राइट टाउन म आवारा सअ ू र घमू ते रहते ह और साहब चैन की नीदं सोते ह। इस प्र न
पर प्रदेश सरकार को इ तीफा देना चािहए। म भारत सरकार से इ तीफे की मांग करता
हूं।

राइट टाउन के आवारा सअ ू रों को लेकर वे भारत सरकार से िपछले 10 सालों से इ तीफा
ू र भी जहां के तहां ह और सरकार भी। मगर ये लाउड पीकरी नेता
मांग रहे ह, पर सअ
अपनी लोकिप्रयता के बारे म इतने आ व त ह िक हर चुनाव म खड़े हो जाते ह। उनकी
ज़मानत ज़ त होती है। पर मने उनके चेहरे पर िशकन नही ं देखी। िमलते ही कहते ह-पै सा
चल गया। शराब चल गई। उ होंने

अपनी हार का एक कारण ढू ं ढ़ िनकाला है िक चुनाव म पै सा और शराब चल जाते ह और वे


हरा िदए जाते ह। वे खुश रहते ह। उ ह िवधास है िक जनता तो उनके साथ है, मगर वह
पै से और शराब के कारण दूसरे को वोट दे देती है। वे जनता से िब कु ल नाराज़ नही ं ह। वे
इस बात को जायज़ मानते ह िक मतदाता उसी को वोट दे जो पै सा और शराब दे। अभी वे
लोकसभा के चुनाव म ज़मानत ज़ त कराने के बाद िमले तो खुश थे। बड़े उ साह से बोले-
वही हुआ। पै सा चल गया। शराब चल गई।

हमारे मनीषीजी छोटा चुनाव कभी नही ं लड़ते। हर बार िसफ लोकसभा का चुनाव लड़ते
ह। उनकी भी एक पाट है। अिखल भारतीय पाट है। लोगों ने उसका नाम न सुना होगा।
उसका नाम है “वज्रवादी पाट '। वाद है, “वज्रवाद” और सं थापक ह-डॉ. वज्रप्रहार!
इस पाट की थापना म य प्रदेश के एक क बे िटमरनी म डॉ. वज्रप्रहार ने की थी और
वे जब देश म अनुयायी ढू ं ढ़ने िनकले तो हमारे शहर म उ ह मनीषीजी िमल गए। पाट म
कु ल ये दो सद य ह और क्रांित के बारे म बहुत गंभीरता से सोचते ह। मनगीषी फ कड़
फकीर ह। पर हर लोकसभा चुनाव के व त ज़मानत के िलए 500 . और पचा छपाने
का खच कही ं से जुटा लेते ह। हर बार उ ह चुनाव लड़वाने के िलए डॉ. वज्रप्रहार आ
जाते ह। सभाएं होती ह, भाषण होते ह। म देखता हूं, दोनों धीरे-धीरे सड़क पर बड़ी
गंभीरता से बात करते चलते ह। डॉ. वज्रप्रहार कहते ह-मनीषी, िरवॉ यश ू न इज़ राउ ड
दी कॉनर! क्रांित आने म देर नही ं है। तब मनीषी कहते ह-पर डॉ टर साहब, क्रांित का
प या होगा और उसके िलए हम कैसा 'ऐलान' कर लेना चािहए, यह अभी तय हो जाना
चािहए। डॉ टर साहब कहते ह-वो तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। आई ं शेल िगव य ू गाइड लाइंस।
म तु हारा िनदश क ं गा। पर तुम जनता को क्रांित के िलए तैयार कर डालो।

ये दोनों स चे क्रांितकारी कई सालों से गंभीरतापवू क क्रांित की योजना बना रहे ह, पर


पाट म तीसरा आदमी अभी तक नही ं आया। इस बार मने पछ ू ा-मनीषीजी, डॉ. वज्रप्रहार
नही ं आए?
मनीषी ने कहा-मेरा उनसे सै ांितक मतभेद हो गया। भारतीय राजनीित की िकतनी बड़ी
ट् रेजडी है िक िजस पाट म दो आदमी हों, उ ही ं म सै ाि तक मतभेद हो जाए। मनीषी ने
कहा-उनकी िच ठी आई है। इस प च म छपी है। उ होंने अपना पचा बढ़ा िदया-
'इंटरनेशनल यज़ ू । ' डॉ टर साहब का बड़ा गंभीर पत्र है-आई एम िर लाइंग टु द
पॉिलिटकल पाट ऑफ योर लेटर।

मनीषी की ज़मानत ज़ त हो गई है, पर क्रांित की तैयारी दोनों नेता बराबर करते जा रहे
ह।

एक िदन मने पो टर िचपके देखे-“जनता के उ मीदवार सरदार केसरिसंह को वोट दो।”


कोई नही ं जानता, ये कौन ह? िजस जनता के उ मीदवार ह वह भी नही ं जानती। िकसी ने
ू ा-आप िकस मकसद से चुनाव लड़ रहे
मुझे बताया िक वे खड़े ह सरदार केसरिसंह। मने पछ
ह? उ होंने सादा जवाब िदया-मकसद? अजी मकसद यह या कम है िक आप जैसा आदमी
ू े िक सरदार केसरिसंह कौन ह?
पछ

एक साहब अभी जनता की आवाज़ पर दो चुनाव लड़ चुके और ज़मानत खो चुके ह।


जनता भी अजीब है। वह आवाज़ देती है, पर वोट नही ं देती। वे तीसरे चुनाव की योजना
अभी से बना रहे ह।

लोग जनता की आवाज़ कैसे सुन लेते ह? िकस “वे व ल थ' पर आती है यह? म भी जनता
म रहता हूं, बहरा भी नही ं हूं, पर जनता की आवाज़ मुझे कभी सुनाई नही ं पड़ती। ये लोग
आशा के िकस झरने से पानी पीते ह िक अनंत आशावान रहते ह? इनकी अंतरा मा म
कौन-सी वह शि त है, जो इ ह हर हाए के बाद नया उ साह देती है? मुझे यह शि त और
अनंत आशा िमल जाए तो कमाल कर दू। ं जनतंतर् के इन शा वत आशावान रत्रों को
िसफ प्रणाम करना ही अपने िह से म आया है।

साधना का फौजदारी अ त

पहले वह ठीक था। वह अपर िडिवज़न लक है। बीवी है, दो ब चे ह। किवता वगैरह का
शौक है। तीसरा ब चा होने तक य.ू डी. सी. का का य-प्रेम बराबर रहता है। इसके बाद
वह भजन पर आ जाता है-दया करो हे दयालु भगवन! और दयालु भगवन दया करके उसे
पिरवार-िनयोजन के द्र को भेज देते ह, जहां लाल ितकोन म उसे ई वर की छिव िदखती
है।

वह मेरे पास कभी-कभी आता। किवता सुनाता। कोई पु तक पढ़ने को ले जाता, िजसे
नही ं लौटाता।
2-3 महीने वह लगातार नही ं आया। िफर एक िदन टपक पड़ा। पहले िज ासु की तरह
आता था। अब कु छ इस ठाठ से आया जैसे िज ासा शांत करने आया हो। उसका कु स
पर बैठना, देखना, बोलना-सब बदल गया था। उसने किवता की बात नही ं की। सुबह के
अखबार की खबरों की बात भी नही ं की थी।

बड़ी देर तो चुप ही बैठा रहा। िफर ग भीर वर म बोला-म जीवन के स य की खोज कर
रहा हूं।

म चौंका। स य की खोज करने वालों से म छड़कता हूं। वे अकसर स य की ही तरफ पीठ


करके उसे खोजते रहते ह।

मुझे उस पर सचमुच दया आई। इन गरीब लकों को स य की खोज करने के िलए कौन
बहकाता है? स य की खोज कई लोगों के िलए ऐयाशी है। यह गरीब आदमी की हैिसयत के
बाहर है। िक

म कु छ नही ं बोला। यही बोला-जीवन-भर म जीवन के स य की खोज क ं गा। यही मेरा


व्रत है।

मने कहा-रात-भर खटमल मारते रहोगे, तो सोओगे कब! वह समझा नही। ू ा- या


ं पछ
मतलब?

मने कहा-मतलब यह है िक जीवन-भर जीवन के स य की खोज करते रहोगे, जीओगे या


मरने के बाद?

उसने कहा-जीना? जीना कैसा? पहले जीवन के उ े य को तो मनु य जाने।

उसे रटाया गया था। मने िफर उसे पटरी पर लाने की कोिशश की। कहा-देख भाई, बहुत
से बेवकूफ जीवन का उ े य खोजते हुए िन े य जीवन जीते रहते ह। त ू या उ ही ं म
शािमल होना चाहता है?

उसे कु छ बुरा लगा। कहने लगा-आप हमेशा इसी तरह की बात करते ह। िफर भी म
आपके पास आता हूं। योंिक म जानता हूं िक आप भी स य की खोज करते ह। आप जो
िलखते ह, उससे यही मालमू होता है।

मने कहा-यह तु हारा याल गलत है। म तो हमेशा झठ ू की तलाश म रहता हूं। कोने-कोने
म झठू को ढू ं ढ़ता िफरता हूं। झठ
ू िमल जाता है, तो बहुत खुश होता हूं।
न वह समझा, न उसे िव वास हुआ। वह मुझे अपनी तरह ही स या वे षी, समझता रहा।

ू ा-तुम एकदम से स या वे षी कैसे हो गए? या द तर म पै सों का कोई गोलमाल िकया


मने पछ
है?

उसने कहा-नही,ं मुझे गु िमल गए ह। उ ही ं ने मुझे स य की खोज म लगाया है।

ू ा-कौन गु ह वे ?
मने पछ

उसने नाम बयाया। म उ ह जानता था।

य.ू डी. सी. बोला-गु देव की वाणी म अमत ृ है। दय तक उनकी बात पहुँच जाती है। मने
ू ा-िदमाग तक बात पहुंचती है या नही?ं
पछ

उसने कहा-िदमाग? िदमाग को तो प नट देती है।

ू ा तो वह खुद था।
इसका नमन

वह मेरे पास कभी-कभी आता। उसकी साधना लगातार बढ़ रही थी।

ू ने लगा-बताइए, म कौन हूं?


एक िदन आते ही पछ

मने कहा-तुम िबहारीलाल हो, य.ू डी. सी.।

उसने कहा-नही,ं यह श्रम है। िबहारीलाल तो इस कूल-चोले का नाम है। म शु बु


आ मा हूँ।

मने कहा-यार, महीने-भर पहले ही तेरे यहां ब चा हुआ है। या आ मा ब चा पै दा कर


सकती है?

उसने कहा-आपका यह तक गलत है। गु देव ने कहा है, ऐसे प्र नों का उ र मत िदया
करो। कोई भी मेरे इस प्र न का ठीक जवाब नही ं देता। प नी से मने पछ ू ा-म कौन हूं? तो
वह कहती है तुम मेरे पित हो। बड़े लड़के से मने पछू ा-म कौन हूं? तो वह कहता है-तुम
हमारे पापा हो। द तर के साहब से पछू ा-सर, म कौन हूं? तो उ होंने जवाब िदया-तुम पागल
हो। पर म िनराश नही ं होता। गु देव ने कहा है, लगातार इस प्र न का उ चारण िकया
करो-'म कौन हूं? म कौन हूं? एक िदन तुम इसका उ र पा जाओगे और अपने को जान
जाओगे।
वह दो-तीन महीने नही ं आया। उसके सािथयों ने बताया िक वह पाक म शाम को "म कौन
हूं? म कौन हूं?” कहता हुआ नाचता रहता है। द तर म भी िदन भर कहता रहता है-म
कौन हूं? फाइलों पर िलख देता है। म कौन हूं? जहां उसे द तख़त करने होते ह वहां िलख
देता है-म कौन हूं?

एक िदन वह िफर आया। वही जीवन के स य की बात करता रहा। गु देव के गुणणान जब
ू ा-तु हारे गु ने स य को पा िलया?
कर चुका तब मने उससे पछ

ू ा-वे कहां रहते ह?


उसने कहा-बहुत पहले। मने पछ

उसने कहा-उनका आलीशान आश्रम है। एयरकंडीशंड है परू ा।

ू ा- या गु की आ मा को गम लगती है?
मने पछ

ू ा-तु हारे गु देव


उसने कहा-गु देव ने ऐसे प्र नों का जवाब देने से मना िकया है। मने पछ
के पास बिढ़या कार है न?

उसने कहा-हां, है।

ू ा-वे बिढ़या भोजन भी करते होंग।


िफर पछ े

उसने कहा-हां, करते ह।

ू ा- या आ मा को पकवानों की इतनी भख
मने पछ ू लगती है? उसने कहा-गु देव ने ऐसे
प्र नों का जवाब देने से मना िकया है।

तब मने उससे कहा-तु हारे गु ने जीवन के स य को पा िलया है। इधर एअरकंडीशंड


मकान और कार वगैरह भी पा िलए ह। उनके पास पै सा भी है। उ होंने पै सा भी पा िलया
है। याने गु की दृि ट म स य वह है, जो अपने को बंगला, कार और पै से के प म प्रगट
करता है। अ छा, यह तो बताओ िक तु हारे गु को इतना पै सा कहां से िमलता है?

उसने कहा-गु देव के बारे म यह प्र न उठता ही नही ं है। वे आलौिकक पु ष ह। वे तो


भगवान की कोिट म आनेवाले ह।

ू ा-तुम यिू नयन म हो?


मने उससे पछ

उसने कहा-नही,ं गु देव का आदेश है, िक भौितक लाभ के इन संघष म साधक को नही ं
पड़ना चािहए।
मने कहा-तो िफर गु का स य अलग है और तु हारा स य अलग है। दोनों के स य एक
नही ं ह। गु का स य वह है िजससे बंगला, कार और पया जैसी भौितक प्राि त होती है।
और तु हारे िलए वे कहते ह िक भौितक लाभ के संघष म मत पड़ो। यह तु हारा स य है?
इनम कौन-सा स य अ छा है? तु हारा या गु का?

ू ा नही ं तो िचढ़ गया। कहने लगा-आप अश्र ालु


वह मुि कल म पड़ गया। जवाब उसे सझ
ह। ऊटपयांग बात करते ह। म आपके पास नही ं आऊंगा।

वह नही ं आंबा मगर मुझे समाचार िमलते रहते थे िक साधना उसकी लगातार बढ़ रही है।
वह द तर के काम म गफलत करता है। फाइलों पर नोट की जगह िलख देता है-म
िबहारीलाल नही ं हूं। म नही ं जानता, म कौन हूं? म अपने को खोज रहा हूं।

और एक िदन मुझे खबर िमली िक वह स पड कर िदया गया है।

ू ा तो उसने बताया िक वह
एक िदन उसका एक साथी मुझे िमला। मने उसके बारे म पछ
गुमसुम रहता है और कु छ सोचता रहता है।

ू ा-“म कौन हूं? प्र न करता है या नही?ं


मने पछ

उसने बताया-अब "म कौन हूं?” प्र न नही ं करता। शायद उसे उ र िमल गया है।
साधना का मामला है।

काफी िदन बीत गए।

एक िदन वह अचानक आया। वह बदल गया था। दुखी था पर उसम एक खास िक म की


दृढ़ता भी आ गई थी। उसने स पड होने और यि तगत मुसीबतों की बात बताई।
ं स य-
चचा उसने िब कु ल नही ं की।

उसने कहा-म आपके पास इसिलए आया था िक कोई अ छा फौजदारी वकील करा
दीिजए। आप तो बहुत वकीलों को जानते ह।

ू ा-कैसी
मने कहा-मामला या है? उसने कहा-मने फौजदारी की है। केस चलेगा। मने पछ
फौजदारी?

उसने तब मुझे बताया-आप तो मुझे साल-भर से देख ही रहे ह। म स य की खोज म लगा


था। “म कौन हूं?” के िसवा और कोई घुन मुझे नही ं थी। म इसम बरबाद हो गया। िजन
गु देव ने मुझे इस रा ते पर लगाया था, उनके पास म परसों गया। वे बोले-आओ साधक,
बैठो! उस समय

ं मािलश िनबटने के बाद उ होंने मुझे


दो ि त्रयां उनके शरीर की मािलश कर रही थी।
अपनी पिवत्र

ू ने लगे-साधना कैसी चल रही है? मने कहा-गु देव, साधना तो सफल


आंखों से देखा। पछ
हो गई।

ू ा-'म कौन हूं?” इस प्र न का उ र िमल गया? मने कहा-नही,ं पर इस प्र न


वे चौंके। पछ
का ठीक उ र िमल गया िक तुम कौन हो?

और साहब, म गु पर टू ट पड़ा। खूब िपटाई की। अब मुझे एक अ छा वकील िदला


दीिजए।

छणएण

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