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Hindi Two Pages
Hindi Two Pages
लेखक प रचय :
ी बाल शौरी रे ङ्ङी जी का ज 1जु लाई 1928 को आं दे श के कडपा िजले के गूडूर नामक गां व म
आ।उनकी िश ा आं ने ूर , कडपा, इलाहाबाद और वाराणसी म ई । वे दि ण के े अिह ी भाषी िहंदी
सािह कारों म बाल शोरी रे ङ्ङी जी एक है । दि ण म रा भाषा िहंदी को समृ एवं लोकि य बनाने म शौरी जी का
योगदान अिव रणीय है । उनकी मातृ भाषा तेलुगुहै ,िफर भी रा भाषा िहं दी के ित उनके ा और ेम की भावना
कूट - कूट कर भरी ई है । अपनी रचनाओं के मा म से उ ोंने दि ण के जनजीवन एवं सं ृ ित से िहंदी पाठकों का
प रचय कराया है ।
सारांश :
भू ख हड़ताल की कहानी मै ािभमान जीवन िबताने वाले एक लकड़हारे की मनो भावना की कहानी है ।
इसम लकड़हारे का कथन है , मे हरबानी से एक िदन की भूख िमटती है लेिकन भूख की सम ा हमेशा की है । उसे
िमटाने का काम सरकार का है ।
लकड़हारा कहता है जब तक हाथ पैर म ताकत है तब तक िजंदगी की गाड़ी चले ती है । उसके बाद हम क े
की मौत मरते ह । म मे हनत करना चाहता ं । म ईमानदारी से जीना चाहता हॅ । रोज़ काम नही ं िमलता । आ खर हम
मजदू र कैसे िजए । लकड़हारा ले खक से पूछता है आ खर यह प रवहन वाले हड़ताल ों करते ह । लेखक कहता है
वेतन बढ़ाने के िलए , भते बढ़ाने के िलए हड़ताल कर रहे ह । सरकारी नौकरी करने वाले हड़ताल करते ह । हमको भी
सरकार काम ों नही ं दे ती । लेखक समझाते ह िक पढ़े - िलखे लोगों के िलए सरकार रोजगार दे ती है । वह कहता है
हम भी वोट दे ते ह लेखक कहते ह िक सरकार काम के अनुसार लोगों को चुनती । वह कहता है जो हमारे बाप-दादे ने
परदादो ने िकया वही हम करते ह हमको काम दे तो हम भी सीख सकते ह ।लकडहारे की बातों म स ाई है। इसिलए
उनके ो के समाधान ले खक के पास नही ं है।
िवशेषताएँ :
K.A.R (HINDI)
SEMISTER - 2
2 आधेड आदमी 'नारायण ' का
च र िच ण कीिजए?
ज) भू ख हड़ताल कहानी म नारायणराव एक लकड़हारा था। ािभमान जीवन िबताने वाला था। यहा◌ॅ उनकी बाधा
का िच ण है । लकड़हारा हर िदन जलावन बेच कर जीिवका चला लेता है। एक िदन प रवहन िवभाग वालों म हड़ताल
िकया है । उस िदन बस े शन सूना रह गया। कहानीकार मीिटं ग म जाने के िलए बस - े शन आता है. प र थित
दे खकर परे शान होता है िक मीिटं ग म कैसे पा ंचे। इतने म लकडहारा आकर कहानीकार से अनुरोध करता है िक
जलावन बेचकर खरीद। लकड़हारा स े म दे ना चाहता है िफर भी कहानीकार लेना नही ं चाहता ोंिक इस समय
मीिटं ग म जाना है ।
भू खा लकडहारे की िववशता को जानकर कहानीकार उसे दो पये दे ता है। लेिकन ािभमान नारायण
कहता है- "बाबू जी मु झ पर आपको मे हरबानी िदखाने की ज रत नही,ं हम कोई िभखमंगे नही ं है।मे हरबानी से एक
िदन की भू ख तो िमटती है । लेिकन वह भूख की सम ा हमेशा की है, उसे िमटाने का काम सरकार का है।
K.A.R (HINDI)