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(इ) लणयी हयणत, आये; किण ले चली, चले। “पणप शणन्त हो, पणप शणन्त हो,

अपनी खु शी न आये न अपनी खु शी चले नक मैं नववणनहत हाँ बणले।


बेहतर तो है यही नक न दु ननयण से नदल लगे पर क्यण पुरुष नहीं होते हैं
पर क्यण करें िो कणम न बेनदल-लगी चले दो-दो दणरणओं वणले?
( यण ) नर कृत शणस्त्रों के सब बन्धन
िब से चमन छु टण है यह हणल हो गयण है। हैं नणरी को ही लेकर,
नदल ग़म को खण रहण है, ग़म नदल को खण रहण है।। अपने नलए सभी सुनविणएाँ ।
गणनण इसे समझकर ख़ुश हों न सुनने वणले। पहले ही कर बैिे नर।"
दु खते हुए नदलों की फ़यणब द यह सदण है।
आजणद मुझको कर दे ओ कैद करने वणले। 2. चरण िा भीं ग विए विना विन्ह ीं चार द ि ीं ि पूरा िहविए:- 10
मैं बेजबणन कैदी, तू छोडकर दु आ ले।। (1) नछमण बडन ................. मणरी लणत।।
(2) मणाँ गन मरन ................ की सीख ।।
(ई) घूाँघट कण पट खोल रे , तोको पीव नमलेंगे । (3) अन्तर दणव ……........... बीती होइ ।।
घट-घट में वह सणईं रमतण, कटु क वचन मत बोल रे । (4) िेनह रहीम ...........…... अब क न।।
िन िोबन को गरब न कीिै, झूिण पंचरं ग चोल रे । (5) कब को ....................... िग बणइ ।।
सुन्न महल में नदयरण बणररलै, आसन सों मत डोल रे । (6) सीस मुकुट ................. नबहणरीलणल।।
िोग िुगन सों रं गमहल में, नपय पणयो अनमोल रे ।
कहै ‘कबीर’ आनं द भयो है, बणित अनहद ढोल रे । । 3. िवि पररचय दे ते हुए विसह एि िविता िा साराींश विखखए:- 15
( यण ) (1) मणतृ-भषण प्रेम (2) नवप्लव गणयन (3) नहमणलय
मैयण मोरी, मैं नहीं मणखन खणयो।
भोर भये गैयन के पणछे , मिुवन मोनह पिणयो। 4. विसह एि िविता िा साराींश विखखए :- 10
चणर पहर बंसीबट भटक्यो, सणाँ झ परे घर आयो। (1) चुननं दण सेर (2) लणयी हयणत, आये (3) न िणनण आि तक
मैं बणलक बनहयन को छोटो, छीको केनह नवनि पणयो।
ग्वणल बणल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटणयो। 5. पंचवटी के आिणर पर लक्ष्मर् एवं शूपबनखण के वणद-नववणद कण नचत्रर् कीनिए। 15
तू िननी मन की अनत भोरी, इनके कहे पनतयणयो। ( यण )
निय तोरे कछ भेद उपनि है, िणन परणयो िणयो। खं ड-कणव्य की दृनष्ट से पंचवटी कण वर्बन कीनिए।
यह ले अपनी लकटी कमररयण, बहुतनहं नणच नचणयो।
‘सूरदणस’ तब नवाँहनस िसोदण, लै कर कंि लगणयो। 6. पंचवटी के आिणर पर “सीतण” कण चररत्र नचत्रर् कीनिए। 10
( यण )
(उ) कोई पणस न रहने पर भी पंचवटी खण्ड-कणव्य की प्रणकृनतक छिण कण वर्बन कीनिए।
िन-मन म न नहीं रहतण;
आप आपकी सुनतण है वह
आप आपसे है कहतण।
बीच-बीच में इिर उिर ननि
दृनष्ट डणलकर मोदमयी,
मन ही मन बणतें करतण है
िीर िनुिबर नयी नयी-
( यण )

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