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78 IMPORTANT GITA SHLOKAS WITH ENGLISH MEANINGS AND ANVAY TRANSLATION

No. Shloka with Anvay translation English Meaning

2.07 काप दोषोपहत भावः पृ ा म ां धमसंमूढचेताः । With my mental vision severely


य े यः ान् न तं ू ह तन् मे श स् तेऽहं शा ध मां ां प म् affected by narrowness and with my
॥७॥ sense of duty totally confused, I
beseech you to instruct me on what
काप - कायरता प, दोषोपहत भावः - दोषसे उपहत ए भाव वाला is good for me. Please guide me,
(तथा), धमसंमूढचेताः - धमके वषयम मो हत चत आ (म), ाम - आपसे, considering me to have totally
पृ ा म - पूछता ँ ( क), यत - जो (साधन), न तं - न त, ेयः - surrendered to you.
क ाणकारक, ात - हो, तत - वह, मे - मेर लए, ू ह - क हये ( क),
अहम् - म, ते - आपका, श ः - श ँ (इस लए), ाम - आपके,
प म - शरण ए, माम - मुझको, शा ध - श ा दी जये।

3.09 य ाथात् कमणोऽ लोकोऽयं कमब नः । In this world a person gets bound to
तदथ कम कौ ेय मु संड्ग: समाचर ॥९ ॥ the (outcome of) actions than those
done in pursuance of ‘yajna’ (य ).
य ाथात् - य के न म कये जानेवाले, कमण: - कम से अ त र , अ So, O Kaunteya! Do perform your
- ू सर कम म (लगा आ ही), अयम् - यह, लोक: - मनु - समुदाय, duties assiduously, unaffected by
कमब नः - म से बँधता ह।(इस लये), तदथम् - उस य के न म (ही the outcome.
भलीभाँ त), कम -कत कम, कौ ेय - ह अजुन, मु संड्ग: - आस से
र हत होकर समाचर - कर।

3.10 सहय ाः जाः सृ ा पुरोवाच जाप तः । In the days of yore, along with
अनेन स व म् एष वोऽ ् इ कामधुक् ॥१० ॥ creation, Prajapati( जाप त) (the
creative power of the Almighty)
जाप त: - जाप त ाने, पूरा - क के आ दम, सहय ा: - य स हत, prescribed the Yajnas (assigned
जा: - जाओंको, सृ वा - रचकर(उनसे), उवाच - कहा(क ) (यूयम्) duties). He gave forth the system of
-तुमलोग, अनेन - इस य के ारा, स व म् - वृ को ा होओ(और), Yajnas with the mandate: “Carry out
ऐष: - यह य , व: - तुमलोग को, इ कामधुक् -इ त भोग दान your development with this; for this
करनेवाले, अ ु - हो। only shall be the provider of the
objects of your desire.”

3.11 दवान् भावयतानेन ते दवा भावय ु वः । By performance of your duties,


पर रं भावय ः ेयः परम् अवा थ ।।११ ॥ devoutly in the form of “Yajna”,
strengthen the divine powers; then
अनेन - इस य के ारा, दवान् - दवताओंको, भावयत - उ त करो(और), ते those divine powers would
- वे, दवा: - दवता, व: - तमलोग को, भावय ु - उ त कर। , (एवम्) - इस, strengthen you. Thus, by mutual
कार ( न: ाथभावसे), पर रम् - एक- ू सरको , भावय : - उ त करते strengthening, you would achieve
ए, (यूयम्) - तमलोग, ा , परम् - परम, ेय: - क ाणको , अवा यथ the Supreme purpose of life.
- हो जाओगे।

3.19 त ाद् अस ः सततं काय कम समाचर । Therefore, caring not for accrual of
अस ो ाचरन् कम परम् आ ो त पू षः ॥१९ ॥ any gains or losses engage
yourself in the assiduous
त ात् - इस लये (तू ), सततम् - नर र, अस : - आस से र हत performance of your duties. For,
होकर(सदा), कायम्, कम - कत कमको, समाचर - भलीभाँ त करता रह।, such an unattached person reaches
ह- क, अस : - आस से र हत होकर, कम - कम, आचरन् - the state of supreme
करता आ, पु ष: - मनु , परम् - परमा ाको, आ ो त - ा हो जाता Self-Perfection.
ह।

4.31 य श ामृतभुजो या सनातनम् । Those who partake of the nectar of


नायं लोकोऽ ् अय कुतोऽ ः कु स म ।।३१ ।। the resultant product of yajna attain
to the Eternal Supreme Self; for
कु स म - ह क े अजुन!, य श ामृतभुज: - य से बचे ए अमृतका those, who do not perform yajna,
अनुभव करनेवाला (योगीजन), सनातनम् - सनातन, - पर even when this world does not give
परमा ाको, या - ा होते ह( और), अय - य न करनेवाले any happiness, what to say of the
पु षके लये(तो), अयम् - यह, लोक: - मनु लोक भी ( सुखदायक), न - hereafter.
नह , अ - ह, ( फर), अ : - परलोक, कुत: - कैसे ( सुखदायक हो
सकता ह)?

4.38 न ह ानेन स शं प व म् इह व ते । Certainly in this world there is no


तत् यं योगसं स ः कालेना न व त ॥३८ ॥ purifier like Perception; one who
achieves perfection in yoga,
इह - इस संसारम, ानेन - ानके, स शम्- समान, प व म् - प व experiences it in due course in
करनेवाला, ह - न:स ेह ( कुछ भी), न - नह , व ते - ह, तत् - उस one’s own self.
ानको, कालेन - कतने ही कालसे, योगसं स ः - कमयोगके ारा शु ा :
करण आ मनु , यम् - अपने - आप (ही), आ न - आ ाम, व त -
पा लेता ह।

4.39 ावॉल् लभते ानं त रः संयते यः । One achieves Self-Perception by


ानं ल ा परां शा म् अ चरणा धग त ॥३९ ॥ intense conviction, constancy, and
self-control; Self-Perception leads
संयते यः - जते य, त रः - साधनपरायण (और), ावान् - ावान् one speedily to Supreme Peace.
मनु , ानम् - ानको, लभते - ा होता ह (तथा), ानम् - ानको,
ल ा - ा होकर ( वह ), अ चरण - बना वल के त ाल ही
(भगव ा प), पराम् - परम, शा म्- शा को, अ धग त - ा हो
जाता ह।

5.11 कायेन मनसा बु ा केवलैर् इ यैर् अ प । The yogis, maintaining a detached


यो गनः कम कुव सङ्गं ा शु ये ॥११ ॥ outlook, perform actions through
the body, mind, intellect and even
यो गनः - कमयोगी ( मम बु र हत), केवलै: - केवल, इ यै: - इ य, the senses merely for
मनसा - मन, बु ा - बु (और), कायेन - शरीर ारा, अ प - भी, सङ्गम् - self-purification.
आस को, ा - ागकर, आ शु ये - अ : करणक शु के लये,
कम - कम, कुव - करते ह।

6.05 उ रद् आ ना ानं ना ानम् अवसादयेत् । One must elevate oneself by one’s
आ ैव ा नो ब ुः आ ैव रपुर् आ नः ।।५ ।। own efforts and thus prevent
mortification of oneself. One is
आ ना - अपने ारा, आ ानम् - अपना (संसार - समु से), उ रत् - उ ार one’s own friend and one is one’s
कर ( और), आ ानम् - अपना ( संसार-समु से), न - न, अवसादयेत् - own enemy.
डाले;, ह - क(यह मनु ), आ ा - आप, एव - ही तो, आ न: -
अपना, ब :ु - म ह (और), आ ा - आप, एव - ही, आ न: - अपना,
रपु: - श ु ह।

6.06 ब ुर आ ा नस् त येना ैवा ना जतः । One is one’s own friend if one has
अना नस् तु श ु े वतता ैव श ुवत् ।।६ ।। conquered oneself (the mind,
senses, and body) by the self
येन - जस, आ ना - जीवा ा ारा, आ ा - मन और इ य -स हत शरीर (Intellect); but if one does not
जीत: - जीता आ ह, त - उस, आ न: - जीवा ाका (तो वह), आ ा - conquer oneself one is as good as
आप, एव - ही, ब :ु - म ह; तु - और, अना न: - जसके ारा मन तथा an enemy to oneself as an external
इ य -स हत शरीर नह जीता गया ह, उसके लये ( वह), आ ा - आप, एव foe.
- ही, श ुवत् - श ुके स श, श ु े - श ुताम, वतत - बरतता ह।

6.17 यु ाहार वहार यु चे कमसु । This yoga puts an end to all


यु ावबोध योगो भव त ु खहा ॥ sufferings of one who is moderate
in eating and recreation, moderate
ु :खहा - ु:ख का नाश करनेवाला, यु ाहार वहार - यथायो in exertion for his work, moderate in
आहार- वहार करनेवालेका, कमसु - कम म, यु चे - यथायो चे ा sleep and keeping awake.
करनेवालेका, योग: - योग (तो) , यु ाव बोध - यथायो सोने तथा
जागने-वालेका (ही स ), भव त - होता ह ।

6.30 यो मां प त सव सव च म य प त। One who sees me in everything,


त ाहं न ण ा म स च मे न ण त ।। and sees everything in me - for
such a one I am not lost to view
यः - जो पु ष, सव - स ूण भूत म, माम् - सबके आ प मुझ and that one is not lost to my view
वासुदवको ही ( ापक), प ती - दखता ह, च - और, सवम् - स ूण ever.
भूत को, म य - मुझ वासुदवके अ गत, प ती - दखता ह, त - उसके
लये, अहम् - म, न, ण ा म - अ नह होता, च - और, सः - वह, मे -
मेर लये, न, ण त - अ नह होता ।

7.14 दवी ेषा गुणमयी मम माया ु र या । (The cause of) this delusion is My
माम् एव ये पध े मायाम् एतां तर ते ॥१४ ॥ divine power, Maya, which is
manifested by the three Gunas and
ह- क, एषा - यह, दवी - अलौ कक अथात् अ त अ त, गुणमयी- is difficult to cross over; but those
गुणमयी, मम - मेरी, माया - माया, ु र या - बड़ी ु र ह ; (परंतु), ये - who take refuge in Me cross it over
जो पु ष (केवल), माम् - मुझको, एव - ही ( नर र), प े - भजते ह, (easily).
ते - वे, एताम् - इस, मायाम् - मायाको, तर - उ ंघन कर जाते ह अथात्
संसारसे तर जाते ह

8.07 त ात् सवषु कालेषु माम् अनु र यु च । Therefore, at all times, remember
म पत मनोबु ः माम् एवै ् असंशयम् ॥७ ॥ Me and also do battle; with your
mind and intellect absorbed in Me,
त ात् -इस लये(ह अजुन तू), सवशु - सब, कालेशु - समय म( नर र), you will doubtless attain Me.
माम- मेरा, अनुसमर- रण कर, च - और, यु - यु भी कर ( इस
कार), म य - मुझम, अ प नोबु ्ही- अ पत कए ए मन बु यू हो कर
(तू), असंशयम - न : संदह, माम- मुझको, एव - ही, ए स - ा होगा

8.14 अन चेताः सततं यो मां र त न शः । To a yogi who is ever absorbed in


त ाहं सुलभः पाथ न यु यो गनः ॥१४ ॥ Me, and who always, and
constantly, thinks of Me with
पाथ - ह अजुन, य: - जो पु ष , म य - मुझ म, अन ाचेत: - अन च single-minded attention, I am
होकर, न श: - सदा ही, स म- नर र, माम - मुझ पु षो म को, ृत - attainable very easily.
रण करता ह, त - उस, न यु सय- न ा नर र मुझ म यू ए,
यो गन: - योगी के लए, अहम - म, सुलभ: - सुलभ ँ अथात् उसे सहज ही
ा हो जाता ँ ।

9.10 मया ेण कृ तः सूयते सचराचरम् । Kaunteya! Under My


हतुनानेनकौ ेय जगद् वप रवतते ॥१० ॥ superintendence, My Prakriti
creates the entire movable and
मया: - मुझ, कौनतय - ह अजुन, अ ेण - अ ध ा ता के सकाशसे immovable world. It is under that
कृ तः - कृ त, सचराचरम - चराचरस हत, सूयते - रचती ह (और), अनेन power that the world keeps on
- इस, हतुना - हतु से ही, जगत - यह संसार- च , वप रवतते - घूम रहा ह revolving.

9.18 ग तर भता भुः सा ी नवासः शरणं सु त् । I am the Ultimate Attainment, the


भवः लयः ानं नधानं बीजम् अ यम् ॥१८ ॥ Supreme Provider, Prabhu, Eternal
Witness, Abode, Refuge, Friend,
ग त: - ा होनेयो । परमधाम, भता - भरण-पोषण करनेवाला, भुः - Originating Source, State of
सब का ामी, सा ी - शुभाशुभका दखने वाला, नवास : - न सबका Ultimate Dissolution, Eternal
वास ान, शरणम: - शरण लेनेयो , सु त् - ुपकारन चाहकर हत Positioning, Ultimate Repose, and
करनेवाला, भवः - लयः सबक उ लयका हतु, ानम्: - त का the Imperishable Seed.
आधार, नधानम्: - नधान* (और), अ यम: - अ वनाशी, बीजम्: - कारण
(भी) , (अहम्) - म , (एव ) - ही ँ

9.22 अन ा य ो मां ये जनाः पयुपासते। Those who worship Me in every


तेषां न ा भयु ानां योग ेमं वहा हम ॥२२ ॥ way, meditating with a singleness of
mind, thinking of none other; for
ये - जो, अन - अन ेमी, जना - भ जन, माम् - मुझ परमे र को, such persons, who are ever
च य - नरंतर चतन करते ए, पयुपा े - न ाम भाव से भजते ह, absorbed in Me, I carry to them
तेषाम - उन, न ा भ - न नरंतर, यु ानाम - मेरा चतन करने वाला what they require and preserve
पु ष का, योग ेमम - योग ेम, अहम् - म यं, वह म - ा कर दता ँ । what they have.

9.34 म ना भव म ो म ाजी मां नम ु । Keep the mind filled with My


माम् एवै स यु वै म् आ ानं म रायणः ॥३४ ॥ thoughts; be devoted to Me;
dedicate all your yajnas to Me; bow
म ना - मुझमे मनवाला, भव - हो , म - मेरा भ , भव - बन , म ाजी down in salutations to Me; thus
- मेरा पूजन करने वाला, भव - हो , माम् - मुझको, नम ु - णाम कर । unifying yourself with Me; and
एवम - इस कार, आ ानम - आ ा को (मुझमे), यु ा - नयु करके, taking Me as the Supreme Goal,
म रायण - मेर परायण हो कर(तू), माम् - मुझको, एव - ही, ए स- you shall attain Me.
ा होगा ।

10.09 म ा म त ाणा बोधय ः पर रम् । With their minds fixed in Me, with
कथय मां न ं तु च रम च ॥९ ॥ their life-force dedicated to Me, they
enlighten each other, ever speaking
म ा - नरंतर मुझम मन लगाने वाला (और), म त ाणा - मुझम ही of Me alone, and feel contented,
ाणो को अपण करने वाले भ जन * ( मेरी भ क चचा के ारा), delighting in the absorption of their
पर रम - आपसम (मेर भाव को), बोधय - जानते ए, च - तथा ( गुण minds in Me.
और भाव स हत मेरा ), कथय - कथन करते ए, च - ही, न म -
नरंतर, तु त - संतु होते ह, च - और, माम् - मुझ वासुदवम (ही
नरंतर), रम - रमण करते ह।

10.10 तेषां सततयु ानां भजतां ी तपूवकम् । To such ones, who are ever
ददा म बु योगं तं येन माम् उपया ते ॥१० ॥ devoted to Me and who worship Me
with utmost love, I grant the Yoga of
तेषाम् - उन , सततयु नाम् - नर र मेर ान आ धमे लगे ये, Wisdom, with which they attain Me.
तपुवकम् - ेमपूवक, भजताम् - भजनेवले भ ोको , तम् - वह,
बु योगम् - त ान प योग , ददा म - दता ँ , येन - जससे , ते - वे,
माम् - मुजको , उपया - ा होते ह

10.11 तेषाम् एवानुक ाथम् अहम् अ ानजं तमः । Only out of compassion for them, I
नाशया ् आ भाव ो ानदीपेन भा ता ॥११ ।। destroy the darkness born of
ignorance, by the well-lighted lamp
तेषाम् - उनके (ऊपर ), अनुक ाथम् - अनु ह करनेके लये , आ भाव ः of perception, thus unifying Myself
- उनके अ ः :- करणमे तः आ , अहम् - म यं , एव - ही (उनके ), with their beings.
अ ानजम् - अ ानज नत, तमः - अ ःकारको ,भा ता - काशमय ,
ानदीपेन - त ान प दीपकके ारा , नाशया म - न कर दता ँ

10.41 यद् यद् वभू तमत् स ं ीमद् ऊ जतम् एव वा । Whatever is endowed with
तत् तद् एवावग ं मम तेजोऽशसंभवम् ॥४१ ॥ sublimity, brilliance, or power, know
that to owe its origination to a part
यद् - जो , यद् - जो, एव - भी, वभू तमत् - वभू तयु अथात् ऐ ययु , of My splendour.
ीमद् - का यु , वा - और , ऊ जतम् - श यु ,स म् - व ु ह,
तत् - उस, तत् - उसको , म् - तू , मम - मेर, तेजोऽश - संभवम् एव -
तेजके अशक ही अ भ , अवग - जान

10.42 अथवा ब नैतेन क ातेन तवाजुन । O Arjuna! Of what avail to you


व ाहम् इदं कृ म् एकांशेन तो जगत् ॥४२ ॥ would be a greater detail of this
knowledge; I support all these
अथवा - अथवा, अजुन - ह अजुन !, एतेन - इस , ब ना - ब त , ातेन - worldly phenomena in only a small
जननेसे , तव - तेरा , कम् - ा ( योजन ह), अहम् - म, एदम् - इस , part of Myself.
कृ म् - स ूण , जगत् - जगत् को (अपनी योगश के), एकांशेन - एक
अनशमा से, व - धारण करके, तहः - त ँ
11.32 कालोऽ लोक यकृत् वृ ो लोकान् समाहतुम् इह वृ ः । The Lord says…….
ऋतेऽ प ां न भ व सव येऽव ताः नीकेषु योधाः ॥३२ ॥ I am the Time-element, which is the
destroyer of all, and am now
लोक यकृत् - लोकोका नाश करनेवाला , वृ - बढ़ा आ , कालः - engaged in destroying the world.
महाकाल, अ - ँ , लोकान् - इन लोक को, सामाहतुम - न करनेके Even without any effort on your part
लये, वृ ः - वृ आ ँ (इ स लये), ये - जो, नीकेषु - all the warriors arrayed in this war
तप य क सेनामे, अव ताः - त, योधाः - यो ा लोग ह, (ते ) - will cease to exist.
वे, सव - सब, ाम - तेर, अ प - भी, न - नह , भ व - रहगे अथात
तेर यु न करनेसे भी इन सबका नाश हो जायगा

11.33 त ात् म् उ यशो लभ ज ाश न ू ् भु रा ं समृ म् । Therefore arise, win glory, conquer


मयैवैते नहताः पूवम् एव न म मा ं भव स सा चन् ।॥३३ ॥ enemies and enjoy royal affluence.
They have already been slain by
त ात् - अतएव, म् - तू , उ - उठ !, यशः - यश, लभ - ा Me, be you merely an instrument, O
कर (और), श ून् - श ुओको , ज ा - जीतकर, समृ म् - धन - धा से Savyasachin.
स , रा ंम - रा को, भु - भोग, एते - ये सब (शूरवीर), पूवम्,
एव - पहलेहीसे, मया - मेर ही ारा, नहताः - मार ए ह, स सा चन् - ह
स सा चन, न म मा ,ं एव - तू तो केवल न म मा , भव - बन जा

11.44 त ात् ण णधाय कायं सादये ाम् अहम् ईशम् ईडयम् । Therefore, bowing down and
पतेव पु सखेव स ुः यः यायाह स दव सो ु म् ॥४४ ॥ prostrating my body, I beseech Your
pleasure, O Adorable Lord! Do
त ात् - अतएव ( भो), अहम् - मै , कायम् - शरीरको, णधाय - show forbearance to me as a father
भलीभाँ त चरण म नवे दत कर, ण - णाम करके, ईडयम् - ुत does to a son, a friend to a friend
करने यो , ाम् - आप, ईशम् - ई रको, सादये - स होनेके लये and a lover to a beloved, O Deva!
ाथना करता ँ , दव - ह दव!, पता - पता , इव - जैस,े पु - पु के,
सखा - सखा, इव - जैस,े स ुः - सखाके (और), यः - प त, (इव) -
जैस,े यायाः - यतमा प ीके (अपराध सहन करते ह , वैसे ही आप भी
मेर अपराधको), सो ु म् - सहन करने, अह स - यो ह I

11.54 भ ा ् अन या श अहम् एवं वधोऽजुन । It is only by single-minded devotion


ातुं ुं च त ेन वे ुं च परंतप ॥५४ ॥ that I, in this Form, am capable of
being “Known”, “Perceived”, and
तु - परंतु, पर प - ह पर प, अजुन - अजुन, अन या, भ ा - अन “Attained” in reality, O Parantapa!
भ के ारा, एवं वधः - इस कार चतुभुज पवाला, अहम् - म, ुंम् -
स दखनेके लए , त ेन - त से, ातुंम् - जानेके लये, च - तथा,
वे ुंम् - वेश करनेके लये अथात एक भावसे ा होनेके लये, च - तथा,
श ः-श ँI

11.55 म मकृन् म रमो म ः सङ्गव जतः । O Pandava! A person who does all
नवरः सवभूतेषु यः स माम् ए त पा व ।।५५ ।। his actions for Me, who is totally
dependent on Me, who is devoted
पा व - ह अजुन, यः - जो पु ष केवल, म मकृन् - मेर ही लए स ूण to Me, who does not covet anything
कत -कम को करनेवाला ह, म रमः - मेर परायण ह , म ः - मेरा भ from anyone, who does not
ह, सङ्गव जतः - आस र हत ह, सवभूतेषु - संपूण भूत ा णय मे, नवरः entertain malice towards any being,
- वैरभावसे र हत ह, सः - वह (अन भ यु पु ष), माम् - मुझको (ही), such a person attains Me.
ए त - ा होता ह I

12.08 म ेव मन आध म य बु नवेशय । Fix your mind on Me, let your


नव स स म ेव अत ऊ न संशयः ॥८ ॥ intellect rest in Me; thereafter you
shall abide in Me alone, there is no
म य - मुझमे, मनः - मनको , आध - लगा (और ), म य - मुझमे, एव - doubt about this.
ही , बु म् - बु को , नवेशय - लगा ; ऊ म् - उपरा (तू ), म य -
मुझमे, एव - ही , नव स स - नवास करगा , (इसमे कुछ भी ), संशयः -
संशय, न - नाही ह I

12.13 अ ा सवभूतानां मै ः क ण एव च । He who harbors no grudges


नममो नरहंकारः सम ु ःखसुखः मी ।।१३ ।। towards any being, is always
friendly and compassionate, is free
यः - जो पु ष, सवभूतनाम - सब भूत म, अ ा - ष-भाव से र हत, मै ः - of possessiveness and ego, is
ाथर हत सबका ेमी, च - और, क णः - हतुर हत दयालु ह, एव - तथा, equipoised in pleasure and
नममः - ममतासे र हत, नरहंकार - अहंकारसे र हत, सम ु ःखसुखः - suffering, is forgiving….
सुख- ुख क ा म सम (और), मी - मावान ह अथात अपराध
करनेवालेको भी अभय दनेवाला ह;

12.14 संतु ः सततं योगी यता ा ढ न यः । …..ever contented, always intent on


म य अ पतमनोबु ः यो म ः स मे यः ॥१४ ॥ yoga, is in full control of his mind, is
of firm conviction, with his mind and
(तथा जो) योगी - योगी, सततं - नरंतर, संतु ः - संतु ह, यता ा - intellect dedicated to Me - such a
मन-इ य स हत शरीरको वशम कये ए ह (और), ढ़ न यः - मुझम ढ़ devotee is dear to Me.
न यवाला ह, सः - वह, म य - मुझम, अ पतमनोबु ः - अपण कये ए
मन-बु वाला, म ः - मेरा भ , मे - मुझको, यः - य ह।

12.15 य ान् नो जते लोका लोकान् नो जते च यः । One who causes no vexation to
हषामषभयो गैःर मु ो यः स च मे यः ॥१५ ।। others and who does not get vexed
by others, is free of elation,
य ात - जससे, लोकः - कोई भी जीव, न उ जते - उ गको ा नह intolerance, fear and anxiety, is
होता, च - और, यः - जो ( यं भी), लोकात - कसी जीवसे, न उ जते - dear to Me.
उ ग को ा नह होता, च - तथा, यः - जो, हषामषभयो गैः - हष, अमष१
भय उ गादीसे, मु ः - र हत ह, सः - वह भ , मे - मुझको, यः - य
ह।

१ - ू सरक उ तको दखकर संताप होनेका नाम “अमष” ह।

12.16 अनपे ः शु चर् द उदासीनो गत थः । Free of expectations, pure in heart,


सवार प र ागी यो म ः स मे यः ॥१६ ॥ adroit in his work, impartial in
dealings, undistracted in mind,
(और) यः - जो पु ष, अनपे ः - आकां ा र हत, शु चः - बाहर-भीतरसे शु , giving up all uncontrolled ambitions
द ः - चतुर, उदासीनः - प पातसे र हत (और), गत थः - ुख से छटा आ - such a devotee is dear to Me.
ह, सः - वह, सवार ः - सब आर का ागी*, म ः - मेरा भ , मे -
मुझको, यः - य ह।

*अथात मन, वाणी और शरीर ारा ार से होनेवाले संपूण ाभा वक कम म


कतापनके अ भमानका ागी।

12.17 यो न तन न शोच त न काङ् त । One who is never elated, never


शुभाशुभप र ागी भ मान् यः स मे यः ॥१७ ॥ hateful, never grieved, never
covetous, never biased by likes and
(और) यः - जो, न - न (कभी), त - ह षत होता ह, न - न, - ष dislikes, ever full of devotion, is
करता ह, न - न, शोच त - शोक करता ह, न - न, काङ् त - कामना करता dear to Me.
ह, (तथा) यः - जो, शुभाशुभप र ागी - शुभ और अशुभ स ूण कम का
ागी ह, सः - वह, भ मान - भ यु पु ष, मे - मुझको, यः - य
ह।

12.18 समः श ौ च म े च तथा मानापमानयोः । The evenness of mind extending


शीतो सुख ु ःखेषु समः सङ्ग वव जतः ॥१८ ॥ alike to friend and foe, to honor and
dishonor, to cold and warmth,
श ौ, म े - श ु- म मे, च - और, तथा - तथा, मानापमानयोः - मान pleasure and pain, and being
अपमनमे, शीतो सुख ु ःखेषु - सरदी, गम और सुख ुःखआ द ं ददोम, devoid of affinities…..
समः - सम ह, सङ्ग वव जतः - आस से रा हत ह

12.19 तु न ा ु तर् मौनी संतु ो येन केन चत् । Indifferent to condemnation or


अ नकेतः रम तःर भ मान् मे यो नरः ॥१ ९ ॥ commendation, keen on
contemplation, content with
तु न ा ु त - नदा- ु तको समान समझनेवाला, मौनी - मननशील, whatever he gets, unattached to his
संतु ो - सदा ही संतु ह, येन केन चत् - जस कसी कारसे भी शरीर का home, and with a steady mind -
नवाह होनेम,े अ नकेतः - रहनेके ानमे ममता और आस से र हत ह, such a devoted man is dear to Me.
रम तः - रबु ी, भ मान् - भ मान्, मे - मुझको, यो - य
ह, नरः - पु ष

12.20 ये तु ध ामृतम् इदं यथो ं पयुपासते । They who, endowed with faith, and
धाना म रमा भ ास् तेऽतीव मे याः ॥२० ॥ solely relying in Me, follow this
“Immortal Law of Moral life”, as
ये - जो, तु - पर ु, ध ामृतम् - धममय अमृत को, इदं - इस, यथो ं - described above - such devotees
ऊपर कह ए, पयुपासते - न ाम ेमभावसे सेवन करते ह, धाना - ा are extremely dear to Me.
यु पु ष, म रमा - मेर परायण होकर, भ ा - भ , अतीव - अ तशय,
मे - मुझको, याः - य ह

13.07 अमा न म् अद म् अ हसा ा र् आजवम् । Humility, unpretentiousness,


आचाय पासनं शौचं य ै म् आ व न हः ॥७ ॥ non-injury, forgiveness, rectitude,
worshipping the preceptor, purity,
अमा न म् - े ता के अ भमान का अभाव, अद म् - दंभाचरण का streadiness, self-control...
अभाव, अ हसा - कसी भी ाणी को कसी कार भी न सताना, ा र् -
माभाव, आजवम् - मन - वाणी आ दक सरलता, आचाय पासनं - ा
भ स हत गु क सेवा, शौचं - बाहर भतरक शु , ैयम् - अ ःकरण
क रता, आ व न हः - मन इं योस हत शरीर का न ह

13.08 इ याथषु वैरा म् अनहंकार एव च । …..Indifference to sense-objects,


ज मृ ुजरा ा ध ु खदोषानुदशनम् ॥८ ॥ absence of egoism, looking on
birth, death, old age, diseases and
इ याथषु - इस लोक और परलोक के स ूण भोग म, वैरा म् - आस sufferings as the blemishes of
अभाव, अनहंकार एव - अहंकार का भी अभाव, च - और, life….
ज मृ ुजरा ा ध ु खदोषानुदशनम् - ज , मृ ,ु जरा और रोग आ दमे
ुःख और दोष का बार - बार वचार करना

13.09 अस र् अन भ ङ्गः पु दारगृहा दषु । …..Absences of expectation of


न ं च सम च म् इ ा न ोपप षु ।।१ ॥ pleasure from son, wife, house and
the like which are regarded as
पु दारगृहा दषु - पु ी घर और धन आ दम, अस - आस का being one’s possessions, and
अभाव, अन भ ङ्ग - ममताका न होना, च - तथा, इ ा न ोपप षु - constant equanimity of mind in
य और अ यक ा म, न ं - सदा ही, सम च म् - च का सम experiencing the pleasurable or the
रहना unpleasurable…

13.10 म य चान योगेन भ र् अ भचा रणी । …..And unadulterated devotion to


व व दशसे व म् अर तर् जनसंस द ॥१० ॥ Me with the yoga of single-minded
concentration, a predisposition to
म य - मुझ परमे रम, च - तथा, अन योगेन - अन योगके ारा, भ ः live in a solitary and holy place, and
- भ , अ भचा रणी - अ भचा रणी, व व दश से व म् - an aversion for the company of
एका और शु दशम रहनेका भाव, अर तः - ेमका न होना worldly people…..

13.11 अ ा ान न ंत ानाथदशनम् । Constancy in the knowledge of the


एत ानम् इ त ो म अ ानं यद् अतोऽ था ॥११ ॥ Self, contemplation on the goal of
Realisation of Truth - this is spoken
अ ा ान- न ं-अ ा ानम न त (और), त ानाथ of as True Perception; all else is
दशनम् - त ानके अथ प परमा ाको ही दखना, एतत - यह सब, Non-Perception or Ignorance.
ानम् - ान ह (और), यत - जो, अतः - इससे, अ था - वपरीत ह,
अ ानम - वह अ ान ह, इ त - ऐसा, ो म - कहा ह

14.09 स ं सुखे स य त रजः कम ण भारत । O Bharata! Sattwa makes one cater


ानम् आवृ तु तमः माद स य ् उत ॥९ ॥ to happiness, Rajas makes one
engage in actions; and Tamas,
भारत - ह अजुन, स ं - स गुण, सुखे - सुखम, स य त - लगाता ह shrouding the correct perception,
(और), रजः - रजोगुण, कम ण - कम म (तथा), तमः - तमोगुण, ानम् - induces useless indulgences.
ानको, आवृ - ढककर, तु - तो, तमः - तमोगुण, माद - मादम,
स य त - लगाता ह, उत - भी

14.10 रजस् तमश् चा भभूय स ं भव त भारत । O Bharata! Sattwa prevails by


रजः स ं तम ैव तमः स ं रजस् तथा ॥१० ॥ subduing Rajas and Tamas; and
Rajas (prevails) by subduing
भारत - ह अजुन, रजः स् - रजो गुण, च - और, तमः - तमोगुण को श् , Sattwa and Tamas; in the same
अ भभूय - दबाकर, स ं - स गुण, तमः - तमोगुणको (दबाकर), रजः - manner, Tamas prevails by
रजोगुण, स ं - स गुण, तमः - तमोगुण, एव - ही, स ं - स गुण subduing Sattwa and Rajas.
(और), रजः - रजोगुणको (दबाकर), भव त - होता ह अथात बढ़ता ह

14.11 सव ारषु दहऽ न् काश उपजायते । When light and discernment shine
ानं यदा तदा व ाद् ववृ ं स म् इ ् उत ॥११ ॥ through every “door” in the body,
then conclude that Sattwa is on the
यदा - जस समय, अ न् - इस, दह - दहम (तथा), सव ारषु - अ ः Ascendent.
करण और इ य म, काशः - चेतनता, च - और, उपजायते - उ होती
ह, ानं - ववेकश , तदा - उस समय, व ात - जानना चा हए, उत -
क, स म् - स गुण, ववृ ं - बढ़ा ह

14.12 लोभः वृ र् आर ः कमणाम् अशमः ृहा । Avarice, activity, undertaking of


रज ् एता न जाय े ववृ े भरतषभ ॥१२ ॥ (motivated) actions, restlessness,
craving - these rise uppermost
भरतषभ - ह अजुन, रज स - रजोगुणके, ववृ े - बढ़ने पर, लोभः - लोभ, when Rajas prevails, O Best of
वृ ः - वृ त ( ाथबु से), कमणाम् - कम का (सकाम भाव से), आर ः Bharatas.
- आर , अशमः - अशां त (और), ृहा - वषय-भोग क लालसा, एता न
- ये सब, जाय े - उ होते ह

14.13 अ काशोऽ वृ मादो मोह एव च । Lack of enlightenment, inertness,


तम ् एता न जाय े ववृ े कु न न ॥१३ ॥ useless activity and also delusion -
these rise uppermost when Tamas
कु न न - ह अजुन, तमसी - तमोगुणके, ववृ े - बढ़ने पर (अ ः करण is on the ascendent, O
और इ य म), अ काशः - अ काश, अ वृ ः - कत - कम म Kurunandana!
अ वृ , च - और, मादः - माद अथात थ चे ा, च - और, मोहः -
न ा द अ ः करणक मो हनी वृ याँ, एता न - यह सब, एव - ही,
जाय े - उ होते ह

14.16 कमणः सुकृत ा ः सा कं नमलं फलम् । Righteous acts lead to pure and
रजसस् तु फलं ु ःखम् अ ानं तमसः फलम् ॥१६ ॥ Sattwic results; the result of Rajasic
acts is sorrow; and Tamasic acts
सु त - े , कमणः - कमका (तो), सा कम् - सा क अथात सुख, results in ignorance.
ान, और वैरा ा द, नमलम् - नमल, फलम् - फल, आ : - कहा ह ; तु -
कतु, राजस: - राजस कमका, फलम् - फल, ु ःखम - ुःख (एवम्), तमसः
- तामस कमका, फलम् - फल, अ ानम् - अ ान (कहा ह) I

14.17 स ात् संजायते ानं रजसो लोभ एव च । Sattwa leads to knowledge, Rajas
मादमोहौ तमसो भवतोऽ ानम् एव च ॥१७ ॥ to greed, and Tams leads into
useless activity, delusion and also
स ात - स गुणसे, ानम् - ान, संजायते - उ होता ह, च - और, ignorance.
रजस: - रजोगुणसे, एव - न:संदह, लोभ: - लोभ, च - तथा, तमस: -
तमोगुणसे, मादमोहौ - माद और मोह, भवत: - उ होते ह (और),
अ ानम् - अ ान, एव - भी (होता ह) I

15.07 ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । It is indeed an eternal portion of My


मनः ष ानी या ण कृ त ा न कष त ॥७ ।। Self which becomes a living soul in
the realm of living beings and,
जीवलोके - इस दह म, सनातनः - यह सनातन, जीवभूतः - जीवा ा, मम - abiding in Nature, draws to itself the
मेरा, एव - ही, अंश: - अंश ह (और वही), कृ त ा न - इन कृ तम त, six senses including the mind.
मनः ष ा न - मन और पाँच , इ या ण - इ य को, कष त - आकषण
करता ह I

16.01 अभयं स संशु ः ानयोग व तः । The Lord said…..


दानं दम य ा ायस् तप आजवम् ॥१ ॥ Fearlessness, purity of mind,
steadfast pursuance of yoga for
अभयम् - भयका सवथा अभाव,स संशु ः - अंतःकरणक पूण नमलता, Self-realisation, charity, restraint of
ानयोग व तः - त ानके लए ानयोगम नरंतर ढ़ त, च - senses, performance of yajnas,
और, दानम् - सा कदान, दम: -इ य का दमन, य : - भगवान्, दवता, scriptural study, austerity, rectitude -
और गु जन क पूजा तथा अ हो ा द उ म कम का आचरण (एवं),
ा ाय: - वेद-शा का पठन-पाठन (तथा) भगवा े नाम और गुण का
क तन, तप: - धमपालनके लए क सहना, च - और, आजवम् - शरीर
तथा इ य के स हत अ ःकरणक सरलता

16.02 अ हसा स म् अ ोधस् ागः शा र् अपैशुनम् । Non-injury, truthfulness, absence of


दया भूते ् अलोलु ं मादवं ही : अचापलम् ॥२ ॥ anger, renunciation, peacefulness,
absence of vilification, compassion
अ हसा - मन, वाणी और शरीरसे कसी कार भी कसीको क न दना, for all beings, non-covetousness,
स म् - यथाथ और य भाषण, अ ोध: - अपना अपकार करनेवालेपर भी gentleness, modesty, freedom from
ोधका न होना, ागः - कम म कतापनके अ भमानका ाग, शा : - restlessness -
अ :करणक उपर त अथात् च क चंचलताका अभाव, अपैशुनम् -
कसीक भी न ा द न करना, भूतेषु - सब भूत ा णय म, दया - हतुर हत
दया, अलोलु म् - इ य का वषय के साथ संयोग होनेपर भी उनम
आस का न होना, मादवम् - कोमलता, ही: - लोक और शा से व
आचरण म ल ा (और), अचापलम् - थ चे ाओंका अभाव --

16.03 तेजः मा धृ तः शौचम् अ ोहो ना तमा नता । Grandeur, forgiveness, fortitude,


भव संपदं दवीम् अ भजात भारत ॥३ ॥ cleanliness, absence of malice,
absence of pride - these belong to
तेज: - तेज, मा - मा, धृ तः - धैय, शौचम् - बाहरक शु (एवं), the one born with Divine Properties,
अ ोह: - कसीम भी श भावका न होना (और), ना तमा नता - अपनेम O Bharata!
पू ताके अ भमानका अभाव --- (ये सब तो), भारत - ह अजुन!, दवीम,
स दम - दवी स दाको, अ भजात - लेकर उ ए पु षके (ल ण)
भव - ह I

16.21 वधं नरक ेदं ारं नाशनम् आ नः । There are three gates to hell - lust,
कामः ोधस् तथा लोभ : त ाद् एतत् यं जेत् ॥२१ ॥ anger and avarice - leading to the
ruination of the self; therefore,
काम: - काम, ोध: - ोध, तथा - तथा, लोभ: - लोभ, इदम् - ये, वधम् these three must be abandoned.
- तीन कारके, नरक - नरकके, ारम् - ार, आ न: - आ ाका,
नाशनम् - नाश करनेवाले अथात् उसको अधोग तम ले जानेवाले ह I, त ात्
- अतएव, एतत् - इन, यम् -तीन को, जेत् - ाग दना चा हये I

16.23 यः शा व धम् उ ृ वतते कामकारतः । One who, casting aside the


न स स म् अवा ो त न सुखं न परां ग तम् ।२३ ॥ precepts of the scriptures, acts
under the impulse of desires,
य: - जो पु ष, शा व धम् - शा व धको, उ ृ - ागकर, attains neither perfection, nor
कामकारत: - अपनी इ ा से मनमाना, वतते - आचरण करता ह, स: - वह, happiness, nor the Supreme Goal.
न - न, स म् - स को, अवा ो त - ा होता ह, न - न, पराम् -
परम, ग तम् - ग तको (और), न - न, सुखम् - सुखको ही I

16.24 त ा ा ं माणं ते कायाकाय व तौ । Therefore, scriptural sanction


ा ा शा वधानो ं कम कतुम् इहाह स ॥२४ ॥ should guide you in determining
what is, and what is not to be done.
त ात् - इससे, ते - तेर लए, इह - इस, कायाकाय व तौ - क Knowing this, you should perform
और अकत क व ाम, शा - शा (ही), माणम् - माण ह I only such actions in the world, as
(एवम्) - ऐसा, ा ा - जानकर (तू), शा वधानो म् - शा व धसे are ordained by the Scriptures.
नयत, कम - कम (ही), कतुम् - करने, अह स - यो ह I

17.03 स ानु पा सव ा भव त भारत । O Bharata! The faith of all beings is


ामयोऽयं पु षो यो य : स एव सः ॥३ ।। in accordance with their respective
innate nature; one’s being
भारत - ह भारत !, सव - सभी मनु क , ा- ा, स ानु पा - comprises one’s faith, for one is
उनके अ ःकरणके अनु प, भव त - होती ह I, अयम - यह, पु षः - पु ष, what one’s faith is.
ामय: - ामय ह, (अतः) - इस लये, य: - जो पु ष, य : - जैसी
ावाला ह, स: - वह यं, एव - भी, स: - वही ह I

17.13 व धहीनम् असृ ा ं म हीनम् अद णम् । A Yajna is spoken of as Tamasic if it


ा वर हतं य तामसं प रच ते ॥१३ ॥ is contrary to scriptural
prescriptions, is accompanied by
व धहीनम् - शा व धसे हीन, असृ ा म् - अ दानसे र हत, म हीनम् - offering of food or chanting of
बना म के, अद णम् - बना द णाके (और), ा वर हतम् - बना “Mantras”, and offerings to priests,
ाके कये जानेवाले, य म् - य को, तामसम् - तामस य , प रच ते - and also without faith.
कहते ह

17.15 अनु गकरं वा ं स ं य हतं च यत् । Speaking words which cause no


ा ाया सनं चैव वाङ्मयं तप उ ते ॥१५ ॥ annoyance, and which are truthful,
pleasant and beneficial, and are
यत् - जो, अनु गकरम् - उ ग न करनेवाला, य हतम् - य और also for scriptural study and
हतकारक, च - एवं, स म् - यथाथ, वा म् - भाषण ह, च - तथा (जो), recitation of the Lord’s glories,
ा ाय-अ सनम् - वेद-शा के पठनका एवं परमे रके नामजपका constitute austerity of speech.
अ ास ह, (तत्) एव - वही, वाङ्मयम् - वाणीस ी, तप: - तप, उ ते
- कहा जाता ह

17.16 मनः सादः सौ ं मौनम् आ व न हः । Buoyancy and serenity of mind,


भावसंशु र् इ ् एतत् तपो मानसम् उ ते ॥१६ ॥ reticence, mental restraint and
purity of heart - these comprise
मनः सादः - मनक स ता, सौ म् - शा भाव, मौनम् - भगव न austerity of the mind.
करनेका भाव, आ व न हः - मनका न ह (और), भावसंशु : -
अ ःकरणके भाव क भलीभां त प व ता, इ त - इस कार, एतत् - यह,
मानसम् - मनस ी, तप: - तप, उ ते - कहा जाता ह

17.20 दात म् इ त यद् दानं दीयतेऽनुपका रणे । Charity that is given only as a duty,
दशे काले च पा े च तद् दानं सा कं ृतम् ॥२० ॥ at a proper place and time, to a
proper person, without expectation
दात म् - दान दना ही क ह, इ त - ऐसे भावसे, यत् - जो, दानम् - of any return, is said to be Sattwic.
दान, दशे - दश, च - तथा, काले - काल, च - और, पा े - पा के ा
होनेपर, अनुपका रणे - उपकार न करनेवालेके त, दीयते - दया जाता ह,
तत् - वह, दानम् - दान, सा कम् - सा क, ृतम् - कहा गया ह

17.28 अ या तं द ं तपस् त ं कृतं च यत् । O Partha! Any Yajnas performed,


असद् इ ् उ ते पाथ न च तत् े नो इह ॥२८ ॥ austerities undergone and charities
given without faith are said to be
पाथ - ह अजुन ! अ या - बना ाके कया आ, तम् - हवन, द म् - “A-Sat” (असत्). They are of no avail
दया आ दान (एवं), त म् - तपा आ, तप: - तप, च - और, यत् - जो in this world or in the hereafter.
(कुछ भी), कृतम् - कया आ शुभ कम ह, (तत्) - वह सम , असत् -
‘असत्’, इ त - इस कार, उ ते - कहा जाता ह (इस लए), तत् - वह,
नो - न (तो), इह - इस लोकम (लाभदायक ह), च - और, न - न, े -
मरने के बाद ही

18.05 य दानतपःकम न ा ं कायम् एव तत् । Acts pertaining to yajnas, charities


य ो दानं तप व
ै पावना न मनी षणाम् ॥५ ॥ and austerities should never be
abandoned as they constitute
य दानतपःकम - य , दान और तप प कम, न, ा म् - ाग करनेके bounden duties. Yajnas, charities
यो नह ह (ब ), तत् - वह (तो), एव - अव , कायम् - क ह and austerities render the wise
क, य : - य , दानम् - दान, च - और, तप: - तप (ये तीन ), एव - ही ones pure.
(कम), मनी षणाम् - बु मान पु ष को, पावना न - प व करनेवाले ह

18.10 न ् अकुशलं कम कुशले नानुष ते । One who neither hates wrong


ागी स समा व ो मेधावी छ संशयः ॥१० ॥ actions, and also has no fondness
for right actions, is said to be
अकुशलम् - अकुशल, कम - कमसे (तो), न, - ष नह करता (और), rouncer absorbed in purity, firm of
कुशले - कुशल कमम, न, अनुष ते - आस नह होता (वह), understanding and one who has
स समा व : - शु स गुणसे यु पु ष, छ संशयः - संशयर हत, resolved all doubts.
मेधावी - बु मान (और), ागी - स ा ागी ह

18.14 अ ध ानं तथा कता करणं च पृथ धम् । The Base, the Does, the different
व वधा पृथ े ा दवं चैवा प मम् ॥१४ ॥ Equipments, different types of
Efforts, and also Destiny -
अ - इस वषयम अथात कम क स म, अ ध ानम् - अ ध ान, च -
और, कता - कता, च - तथा, पृथ धम् - भ - भ कारके, करणम् -
करण, च - एवं, व वधा: - नाना कारक , पृथक् - अलग-अलग, चे ा: -
चे ाएँ (और), तथा - वैस,े एव - ही, प मम् - पाँचवाँ हतु, दवम् - दव ह

18.26 मु सङ्गोऽनहंवादी धृ ु ाहसम तः । Free of liking or disliking an action,


स स ोर न वकारः कता सा क उ ते ॥२६ ॥ devoid of egoism, endowed with
fortitude and diligence, unaffected
कता - कता, मु सङ्ग: - संगर हत, अनहंवादी - अहंकार वचन न by success or failure, such a
बोलनेवाला, धृ ु ाह-सम तः - धैय और उ ाहसे यु (तथा), performer is said to be Sattwic.
स स ो: - कायके स होने और न होनेम, न वकारः - हष-शोका द
वकार से र हत ह (वह), सा क: - सा क, उ ते - कहा जाता ह

18.30 वृ च नवृ च कायाकाय भयाभये । The intellect which comprehends


ब ं मो ं च या वे बु ः सा पाथ सा क ॥३० ॥ clearly the paths of Pravritti and
Nivritti, duty and what is not duty,
पाथ - ह पाथ ! या - जो बु , वृ म् - वृ माग, च - और, नवृ म् - fear and fearlessness, bondage
नवृ तमागको, कायाकाय - क और अकत को, भयाभये - भय और and liberation, is said to be Sattwic,
अभयको, च - तथ, ब म् - ब न, च - और, मो म् - मो को, वे - O Partha!
यथाथ जानती ह, सा - वह, बु ः - बु , सा क - सा क ह

18.45 े े कम ् अ भरतः सं स लभते नरः । A person attains perfection by


कम नरतः स यथा व त तच् णु ॥४५ ।। assiduously engaging in work
according to natural traits; hear
े े - अपने अपने ( ाभा वक), कम ण - कम म, अ भरतः - त रता से from Me how this perfection is
लगा आ, नरः - मनु , सं स म - भगवत ा प परम स को, attained by assiduous performance
लभते - ा हो जाता ह, कम नरतः - अपने ाभा वक कम म लगा of one’s natural actions.
आ मनु , यथा - जस कार से कम कर के, स म - परम स को,
व त - ा होता ह, तत - उस व ध को (तू), णु - सुन

18.46 यतः वृ र् भूतानां येन सवम् इदं ततम् । A person attains to perfection when
कमणा तम् अ स व त मानवः ॥४६ ॥ all natural actions are dedicated
with a sense of worship to the
यतः - जस परमे र से, भूतानाम - स ूण ा णय क , वृ तः - उ Supreme Self, Who has created all
ई ह (और), येन - जससे, इदम - यह, सवम - सम , ततम - ा ह, beings and Who pervades this
तम - उस परमे र क , कमणा - अपने ाभा वक कम ारा, अभयचय entire Universe.
- पूजा कर के, मानवः - मनु , स म - परम स को, व त - ा
हो जाता ह

18.58 म ः सव ु गा ण म सादात् त र स। With your mind fixed on Me, you


अथ चेत् म् अहंकारान् न ो स वनं स ।।१८ ॥ shall overcome all obstacles by My
grace. But if you do not listen due
म ः - मुझम च वाला हो कर, म् - तू, म सादात - मेरी कृपा से, to your egoism, you shall be
सव ु गा ण - सम संकट को (अनायास ही), त र स - पार कर जायेगा, doomed.
अथ - और, चेत - य द, अहंकारात - अहंकार के कारन (मेर वचन को), न -
न, ो स - सुनेगा (तो), व स - न हो जायेगा अथात परमाथ से
हो जायेगा

18.65 म ना भव म ो म ाजी मां नम ु । Fix your mind on Me, be devoted to


माम् एवै स स ं ते तजाने योऽ स मे ॥६५ ॥ Me, perform all yajnas for Me, bow
down to Me, then you will attain to
मनमनाः - मुझम मन वाला, भव - हो, म ः - मेरा भ , भव - बन, Me alone. Know it for certain, for
म ाजी - मेरा पूजन करने वाला, भव - हो (और), माम - मुझको, नम ु - truly you are very dear to Me.
णाम कर, एवम - ऐसा करने से (तू), माम - मुझ,े एव - ही, ए स -
ा होगा (यह म), ते - तुझसे, स म - स , तजाने - त ा करता ँ ,
यतः - क तू, मे - मेरा, यः - अ ंत य, अ स - ह

18.66 सवधमान् प र मामेकं शरणं ज । Abandoning all reliance on your


अहं ा सवपापे ो मो य ा म मा शुचः ॥६६ ॥ duties, make unequivocal surrender
to Me alone; I shall absolve you of
सवधमान - स ूण धम को अथात स ूण कत कम को (मुझम), all sins, have no worry at all.
पर - ागकर (तू केवल), एकम - एक, माम - मुझ सवश मान
सवाधार परमे र क ही, शरणम् - शरण म, ज - आ जा, अहम् - म, ा
- तुझे, सवपापे ः - स ूण पाप से, मो य ा म - मु कर ू ंगा (तू),
मा, शुचः - शोक मत कर

18.68 य इमं परमं गु ं म े ् अ भधा त । One who, with supreme devotion to


भ म य परां कृ ा माम् एवै ् असंशयः ॥६८ ॥ Me, teaches this profound
knowledge to My devotees, would
यः - जो पु ष, म य - मुझम, पराम - परम, भ म - ेम, कृ ा - करके, doubtless attain to Me.
इमम - इस, परमम - परम, गु हयाम - रह यु गीता शा को,
म ेषु - मेर भ म, अ भधा त - कहगा, सः -वह, माम - मुझको,
एव - ही, ए त - ा होगा, असंशयः - इसम कोई संदह नह ह

18.69 न च त ान् मनु षे ु क न् मे यकृ मः । Among all men, there is no one


भ वता न च मे त ाद् अ ः यतरो भु व ॥१ ९ ॥ dearer to Me than the one who
renders this loving service to Me;
त ात् - उससे बढ़ कर, मे - मेरा, यकृ मः - य काय करने वाला, nor would there be anyone else in
मनु ेषु - मनु म, क त् - कोई, च - भी, न - नह ह, च - तथा, the entire world dearer to Me than
भु व - पृ ी भर म, त ात् - उससे बढ़ कर, मे - मेरा, यतरः - य, he.
अ ः - ू सरा कोई, भ वता - भ व म होगा भी, न - नह

18.78 य योगे रः कृ ो य पाथ धनुधरः । Wherever is Krishna, the Lord of


त ीर् वजयो भू त : ुवा नी तर् म तमम ॥७८ ॥ Yogas; and wherever is Partha, the
Bowman, there resides perfection,
य - जहाँ, योगे रः - योगे र, कृ ः - भगवान ी कृ ह (और), supremacy, fortune and unfailing
य - जहाँ, धनुधरः - गांडीव धनुषधारी, पाथः - अजुन ह, त - वह पर, prudence - this is my conviction.
ीः - ी, वजयः - वजय, भू तः - वभू त (और), ुवा - अचल, नी तः -
न त ह, इ त - ऐसा, मम - मेरा, म तः - मत ह

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