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78 Important Gita Shlokas With English Meanings and Anvay
78 Important Gita Shlokas With English Meanings and Anvay
3.09 य ाथात् कमणोऽ लोकोऽयं कमब नः । In this world a person gets bound to
तदथ कम कौ ेय मु संड्ग: समाचर ॥९ ॥ the (outcome of) actions than those
done in pursuance of ‘yajna’ (य ).
य ाथात् - य के न म कये जानेवाले, कमण: - कम से अ त र , अ So, O Kaunteya! Do perform your
- ू सर कम म (लगा आ ही), अयम् - यह, लोक: - मनु - समुदाय, duties assiduously, unaffected by
कमब नः - म से बँधता ह।(इस लये), तदथम् - उस य के न म (ही the outcome.
भलीभाँ त), कम -कत कम, कौ ेय - ह अजुन, मु संड्ग: - आस से
र हत होकर समाचर - कर।
3.10 सहय ाः जाः सृ ा पुरोवाच जाप तः । In the days of yore, along with
अनेन स व म् एष वोऽ ् इ कामधुक् ॥१० ॥ creation, Prajapati( जाप त) (the
creative power of the Almighty)
जाप त: - जाप त ाने, पूरा - क के आ दम, सहय ा: - य स हत, prescribed the Yajnas (assigned
जा: - जाओंको, सृ वा - रचकर(उनसे), उवाच - कहा(क ) (यूयम्) duties). He gave forth the system of
-तुमलोग, अनेन - इस य के ारा, स व म् - वृ को ा होओ(और), Yajnas with the mandate: “Carry out
ऐष: - यह य , व: - तुमलोग को, इ कामधुक् -इ त भोग दान your development with this; for this
करनेवाले, अ ु - हो। only shall be the provider of the
objects of your desire.”
3.19 त ाद् अस ः सततं काय कम समाचर । Therefore, caring not for accrual of
अस ो ाचरन् कम परम् आ ो त पू षः ॥१९ ॥ any gains or losses engage
yourself in the assiduous
त ात् - इस लये (तू ), सततम् - नर र, अस : - आस से र हत performance of your duties. For,
होकर(सदा), कायम्, कम - कत कमको, समाचर - भलीभाँ त करता रह।, such an unattached person reaches
ह- क, अस : - आस से र हत होकर, कम - कम, आचरन् - the state of supreme
करता आ, पु ष: - मनु , परम् - परमा ाको, आ ो त - ा हो जाता Self-Perfection.
ह।
6.05 उ रद् आ ना ानं ना ानम् अवसादयेत् । One must elevate oneself by one’s
आ ैव ा नो ब ुः आ ैव रपुर् आ नः ।।५ ।। own efforts and thus prevent
mortification of oneself. One is
आ ना - अपने ारा, आ ानम् - अपना (संसार - समु से), उ रत् - उ ार one’s own friend and one is one’s
कर ( और), आ ानम् - अपना ( संसार-समु से), न - न, अवसादयेत् - own enemy.
डाले;, ह - क(यह मनु ), आ ा - आप, एव - ही तो, आ न: -
अपना, ब :ु - म ह (और), आ ा - आप, एव - ही, आ न: - अपना,
रपु: - श ु ह।
6.06 ब ुर आ ा नस् त येना ैवा ना जतः । One is one’s own friend if one has
अना नस् तु श ु े वतता ैव श ुवत् ।।६ ।। conquered oneself (the mind,
senses, and body) by the self
येन - जस, आ ना - जीवा ा ारा, आ ा - मन और इ य -स हत शरीर (Intellect); but if one does not
जीत: - जीता आ ह, त - उस, आ न: - जीवा ाका (तो वह), आ ा - conquer oneself one is as good as
आप, एव - ही, ब :ु - म ह; तु - और, अना न: - जसके ारा मन तथा an enemy to oneself as an external
इ य -स हत शरीर नह जीता गया ह, उसके लये ( वह), आ ा - आप, एव foe.
- ही, श ुवत् - श ुके स श, श ु े - श ुताम, वतत - बरतता ह।
7.14 दवी ेषा गुणमयी मम माया ु र या । (The cause of) this delusion is My
माम् एव ये पध े मायाम् एतां तर ते ॥१४ ॥ divine power, Maya, which is
manifested by the three Gunas and
ह- क, एषा - यह, दवी - अलौ कक अथात् अ त अ त, गुणमयी- is difficult to cross over; but those
गुणमयी, मम - मेरी, माया - माया, ु र या - बड़ी ु र ह ; (परंतु), ये - who take refuge in Me cross it over
जो पु ष (केवल), माम् - मुझको, एव - ही ( नर र), प े - भजते ह, (easily).
ते - वे, एताम् - इस, मायाम् - मायाको, तर - उ ंघन कर जाते ह अथात्
संसारसे तर जाते ह
8.07 त ात् सवषु कालेषु माम् अनु र यु च । Therefore, at all times, remember
म पत मनोबु ः माम् एवै ् असंशयम् ॥७ ॥ Me and also do battle; with your
mind and intellect absorbed in Me,
त ात् -इस लये(ह अजुन तू), सवशु - सब, कालेशु - समय म( नर र), you will doubtless attain Me.
माम- मेरा, अनुसमर- रण कर, च - और, यु - यु भी कर ( इस
कार), म य - मुझम, अ प नोबु ्ही- अ पत कए ए मन बु यू हो कर
(तू), असंशयम - न : संदह, माम- मुझको, एव - ही, ए स - ा होगा
10.09 म ा म त ाणा बोधय ः पर रम् । With their minds fixed in Me, with
कथय मां न ं तु च रम च ॥९ ॥ their life-force dedicated to Me, they
enlighten each other, ever speaking
म ा - नरंतर मुझम मन लगाने वाला (और), म त ाणा - मुझम ही of Me alone, and feel contented,
ाणो को अपण करने वाले भ जन * ( मेरी भ क चचा के ारा), delighting in the absorption of their
पर रम - आपसम (मेर भाव को), बोधय - जानते ए, च - तथा ( गुण minds in Me.
और भाव स हत मेरा ), कथय - कथन करते ए, च - ही, न म -
नरंतर, तु त - संतु होते ह, च - और, माम् - मुझ वासुदवम (ही
नरंतर), रम - रमण करते ह।
10.10 तेषां सततयु ानां भजतां ी तपूवकम् । To such ones, who are ever
ददा म बु योगं तं येन माम् उपया ते ॥१० ॥ devoted to Me and who worship Me
with utmost love, I grant the Yoga of
तेषाम् - उन , सततयु नाम् - नर र मेर ान आ धमे लगे ये, Wisdom, with which they attain Me.
तपुवकम् - ेमपूवक, भजताम् - भजनेवले भ ोको , तम् - वह,
बु योगम् - त ान प योग , ददा म - दता ँ , येन - जससे , ते - वे,
माम् - मुजको , उपया - ा होते ह
10.11 तेषाम् एवानुक ाथम् अहम् अ ानजं तमः । Only out of compassion for them, I
नाशया ् आ भाव ो ानदीपेन भा ता ॥११ ।। destroy the darkness born of
ignorance, by the well-lighted lamp
तेषाम् - उनके (ऊपर ), अनुक ाथम् - अनु ह करनेके लये , आ भाव ः of perception, thus unifying Myself
- उनके अ ः :- करणमे तः आ , अहम् - म यं , एव - ही (उनके ), with their beings.
अ ानजम् - अ ानज नत, तमः - अ ःकारको ,भा ता - काशमय ,
ानदीपेन - त ान प दीपकके ारा , नाशया म - न कर दता ँ
10.41 यद् यद् वभू तमत् स ं ीमद् ऊ जतम् एव वा । Whatever is endowed with
तत् तद् एवावग ं मम तेजोऽशसंभवम् ॥४१ ॥ sublimity, brilliance, or power, know
that to owe its origination to a part
यद् - जो , यद् - जो, एव - भी, वभू तमत् - वभू तयु अथात् ऐ ययु , of My splendour.
ीमद् - का यु , वा - और , ऊ जतम् - श यु ,स म् - व ु ह,
तत् - उस, तत् - उसको , म् - तू , मम - मेर, तेजोऽश - संभवम् एव -
तेजके अशक ही अ भ , अवग - जान
11.44 त ात् ण णधाय कायं सादये ाम् अहम् ईशम् ईडयम् । Therefore, bowing down and
पतेव पु सखेव स ुः यः यायाह स दव सो ु म् ॥४४ ॥ prostrating my body, I beseech Your
pleasure, O Adorable Lord! Do
त ात् - अतएव ( भो), अहम् - मै , कायम् - शरीरको, णधाय - show forbearance to me as a father
भलीभाँ त चरण म नवे दत कर, ण - णाम करके, ईडयम् - ुत does to a son, a friend to a friend
करने यो , ाम् - आप, ईशम् - ई रको, सादये - स होनेके लये and a lover to a beloved, O Deva!
ाथना करता ँ , दव - ह दव!, पता - पता , इव - जैस,े पु - पु के,
सखा - सखा, इव - जैस,े स ुः - सखाके (और), यः - प त, (इव) -
जैस,े यायाः - यतमा प ीके (अपराध सहन करते ह , वैसे ही आप भी
मेर अपराधको), सो ु म् - सहन करने, अह स - यो ह I
11.55 म मकृन् म रमो म ः सङ्गव जतः । O Pandava! A person who does all
नवरः सवभूतेषु यः स माम् ए त पा व ।।५५ ।। his actions for Me, who is totally
dependent on Me, who is devoted
पा व - ह अजुन, यः - जो पु ष केवल, म मकृन् - मेर ही लए स ूण to Me, who does not covet anything
कत -कम को करनेवाला ह, म रमः - मेर परायण ह , म ः - मेरा भ from anyone, who does not
ह, सङ्गव जतः - आस र हत ह, सवभूतेषु - संपूण भूत ा णय मे, नवरः entertain malice towards any being,
- वैरभावसे र हत ह, सः - वह (अन भ यु पु ष), माम् - मुझको (ही), such a person attains Me.
ए त - ा होता ह I
12.15 य ान् नो जते लोका लोकान् नो जते च यः । One who causes no vexation to
हषामषभयो गैःर मु ो यः स च मे यः ॥१५ ।। others and who does not get vexed
by others, is free of elation,
य ात - जससे, लोकः - कोई भी जीव, न उ जते - उ गको ा नह intolerance, fear and anxiety, is
होता, च - और, यः - जो ( यं भी), लोकात - कसी जीवसे, न उ जते - dear to Me.
उ ग को ा नह होता, च - तथा, यः - जो, हषामषभयो गैः - हष, अमष१
भय उ गादीसे, मु ः - र हत ह, सः - वह भ , मे - मुझको, यः - य
ह।
12.20 ये तु ध ामृतम् इदं यथो ं पयुपासते । They who, endowed with faith, and
धाना म रमा भ ास् तेऽतीव मे याः ॥२० ॥ solely relying in Me, follow this
“Immortal Law of Moral life”, as
ये - जो, तु - पर ु, ध ामृतम् - धममय अमृत को, इदं - इस, यथो ं - described above - such devotees
ऊपर कह ए, पयुपासते - न ाम ेमभावसे सेवन करते ह, धाना - ा are extremely dear to Me.
यु पु ष, म रमा - मेर परायण होकर, भ ा - भ , अतीव - अ तशय,
मे - मुझको, याः - य ह
14.11 सव ारषु दहऽ न् काश उपजायते । When light and discernment shine
ानं यदा तदा व ाद् ववृ ं स म् इ ् उत ॥११ ॥ through every “door” in the body,
then conclude that Sattwa is on the
यदा - जस समय, अ न् - इस, दह - दहम (तथा), सव ारषु - अ ः Ascendent.
करण और इ य म, काशः - चेतनता, च - और, उपजायते - उ होती
ह, ानं - ववेकश , तदा - उस समय, व ात - जानना चा हए, उत -
क, स म् - स गुण, ववृ ं - बढ़ा ह
14.16 कमणः सुकृत ा ः सा कं नमलं फलम् । Righteous acts lead to pure and
रजसस् तु फलं ु ःखम् अ ानं तमसः फलम् ॥१६ ॥ Sattwic results; the result of Rajasic
acts is sorrow; and Tamasic acts
सु त - े , कमणः - कमका (तो), सा कम् - सा क अथात सुख, results in ignorance.
ान, और वैरा ा द, नमलम् - नमल, फलम् - फल, आ : - कहा ह ; तु -
कतु, राजस: - राजस कमका, फलम् - फल, ु ःखम - ुःख (एवम्), तमसः
- तामस कमका, फलम् - फल, अ ानम् - अ ान (कहा ह) I
14.17 स ात् संजायते ानं रजसो लोभ एव च । Sattwa leads to knowledge, Rajas
मादमोहौ तमसो भवतोऽ ानम् एव च ॥१७ ॥ to greed, and Tams leads into
useless activity, delusion and also
स ात - स गुणसे, ानम् - ान, संजायते - उ होता ह, च - और, ignorance.
रजस: - रजोगुणसे, एव - न:संदह, लोभ: - लोभ, च - तथा, तमस: -
तमोगुणसे, मादमोहौ - माद और मोह, भवत: - उ होते ह (और),
अ ानम् - अ ान, एव - भी (होता ह) I
16.21 वधं नरक ेदं ारं नाशनम् आ नः । There are three gates to hell - lust,
कामः ोधस् तथा लोभ : त ाद् एतत् यं जेत् ॥२१ ॥ anger and avarice - leading to the
ruination of the self; therefore,
काम: - काम, ोध: - ोध, तथा - तथा, लोभ: - लोभ, इदम् - ये, वधम् these three must be abandoned.
- तीन कारके, नरक - नरकके, ारम् - ार, आ न: - आ ाका,
नाशनम् - नाश करनेवाले अथात् उसको अधोग तम ले जानेवाले ह I, त ात्
- अतएव, एतत् - इन, यम् -तीन को, जेत् - ाग दना चा हये I
17.20 दात म् इ त यद् दानं दीयतेऽनुपका रणे । Charity that is given only as a duty,
दशे काले च पा े च तद् दानं सा कं ृतम् ॥२० ॥ at a proper place and time, to a
proper person, without expectation
दात म् - दान दना ही क ह, इ त - ऐसे भावसे, यत् - जो, दानम् - of any return, is said to be Sattwic.
दान, दशे - दश, च - तथा, काले - काल, च - और, पा े - पा के ा
होनेपर, अनुपका रणे - उपकार न करनेवालेके त, दीयते - दया जाता ह,
तत् - वह, दानम् - दान, सा कम् - सा क, ृतम् - कहा गया ह
18.14 अ ध ानं तथा कता करणं च पृथ धम् । The Base, the Does, the different
व वधा पृथ े ा दवं चैवा प मम् ॥१४ ॥ Equipments, different types of
Efforts, and also Destiny -
अ - इस वषयम अथात कम क स म, अ ध ानम् - अ ध ान, च -
और, कता - कता, च - तथा, पृथ धम् - भ - भ कारके, करणम् -
करण, च - एवं, व वधा: - नाना कारक , पृथक् - अलग-अलग, चे ा: -
चे ाएँ (और), तथा - वैस,े एव - ही, प मम् - पाँचवाँ हतु, दवम् - दव ह
18.46 यतः वृ र् भूतानां येन सवम् इदं ततम् । A person attains to perfection when
कमणा तम् अ स व त मानवः ॥४६ ॥ all natural actions are dedicated
with a sense of worship to the
यतः - जस परमे र से, भूतानाम - स ूण ा णय क , वृ तः - उ Supreme Self, Who has created all
ई ह (और), येन - जससे, इदम - यह, सवम - सम , ततम - ा ह, beings and Who pervades this
तम - उस परमे र क , कमणा - अपने ाभा वक कम ारा, अभयचय entire Universe.
- पूजा कर के, मानवः - मनु , स म - परम स को, व त - ा
हो जाता ह