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॥ॐ॥

।।ॐ श्री परमात्मने नम:।।


॥श्री गणेशाय नमः॥

बृहत्साम

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विषय-सूची

बृहत्साम ..................................................................................................... 3

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बृहत्साम
सामवेद । अध्याय ३

सामिेद में अनेक मनोहारी गीत हैं , वजन्हें ‘साम' कहा जाता है । इनका गायन एक
विवशष्ट परम्परागत िैवदक पिवत से वकया जाता है , जो अत्यन्त मनोहारी होता है ।
गीता में भगिान् श्री कृष्ण ने ्वरयां को सामोां में बृहत्साम कहा है -'बृहत्साम तथा
साम्नाम्' (गीता १०/३५)। सामिेद में सबसे श्रे ् होने के कारण इस ‘बृहत्साम’ को
अपनी विभूवत बताया है । यह सामिेद के उत्तरावचवतक में अध्याय तीन के अन्तगवतत
है । इस सामके दे िता इन्द्र, िष्टा-ऋवष शयु बाहवत स्पत्य तथा छन्द बाहवत त-प्रगाथ
(विषमा बृहती, समा सतोबृहती) है ।

त्ववमद्धि हिामहे सातौ िाजस्य कारिः ।


त्वाां िृत्रेद्धिन्द्र सत्पवतां नर्ाां का्ा्वरिवततः १

हे इन्द्ररूप परमेश्वर ! हम स्तोता अन्निृद्धि के विये आपका ही आह्वान करते हैं ।


वििेकशीि मनुष्य भी शत्रुओां की शत्रुता से आक्रान्त होने पर समस्त प्रयत्न करके भी
हारने िगते हैं , तब आपको ही पुकारते हैं १

स त्वां नवित्र िज्रहस्त धृष्णुया महस्तिानो अवििः।


गामश्वां रथ्यवमन्द्र सां वकर सत्रा िाजां न वजग्युषे २

हे अतुि पराक्रमी, हाथ में विवचत्र िज्र धारण करने िािे , ्वरयां के तेज से प्रकावशत
इन्द्ररूप परमेश्वर! आप हमें गोधन, रथ के योग्य कुशि अश्व, अन्न तथा ऐश्वयवत प्रदान
करें २

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संकलनकर्ाा:

श्री मनीष त्यागी

संस्थापक एवं अध्यक्ष

श्री हहं दू धमा वै हदक एजुकेशन फाउं डेशन

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।।ॐ नमो भगवर्े वासुदेवाय:।।

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