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कब करना चाहिए संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदुक्कडं ?

आगि शास्त्र पाठ के साथ पूरा लेख पढ़िए

संवत्सरी के एक ढिन पिेले भी अगर आप संवत्सरी संबंधी


मिच्छामिदुक्कडं करते िो वो मिथ्यात्व िी िै, ‘सांवत्सररक
संबंमध मिच्छामिदुक्कडं’ जिसे आप ‘क्षिापना’ के नाि से
पुकारते िै वो संवत्सरी के ढिन िी करना चाहिए, ईस का
शास्त्रीय कारण ये िै ---

१..संवत्सरी-पवव आराधना भगवंतने इसससलए बताई िै की एक


साल से ज्यािा ििारे क्रोध, िान,िाया,लोभ िोते िै तो उसे
अनंतानुबंमध कषाय किेते िै, ईस के उिय से सम्यक्त्व की
प्राप्तत नहि िोती, सम्यक्त्व के अभावसे िे शहवरहत से लेकर िोक्ष
तक कुछ भी प्रातत निी िोता, अगर आप इतना सििते तो
कभी इतने ढिन पिेले संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदुक्कडं कर के
मिथ्यात्व आचरण नहि करते

२.. बृित् कल्पसूर नािक आगि के उद्दे शक ५ िें भाष्य गाथा


५७७० से ५७७२ की वृसि एवं चूणीिें बताया िै हक भािरवा सुिी
पंचिी (िालिे चतुथी) के ढिन सूयव उिय के पिेले या पूवि व े
हकसी भी ढिन से संवत्सरी के ढिन तक अथावत् पंचिी (िाल
चतुथी) ढिन पूणव िोने तक को संवत्सर किा िाता िै, जिस तरि
आप अपना नाणाकीय हिसाब पिेली एहप्रल से सलखो, हबचिे
हकसी भी ढिन सलखो या ३१ िाचव सुबििें सलखो; िगर
इन्किटे क्ष हवभागिे तो ३१ िाचव रात बारि बिे तक एक साल
िी हगना िाता िै ठीक उसी तरि यिााँ ‘कषाय उपशाप्न्तरूप’
संवत्सर हगना िाता िै

संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदक्


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उस के बाििे भािरवा सूि छट्ठ (िालिें पंचिी) के ढिन से नया
संवत्सर आरम्भ िोता िै. बृित्कल्प की भाष्य गाथा ५७७१ िें
बताते िै हक संवत्सरी के ढिन स्त्वाध्याय स्त्थापना सिये, अथवा
चैत्यवन्िन अवसरे अथवा आखखरिें (प्रहतक्रिण वेलायां
सारयप्न्त) ितलब- प्रहतक्रिण वेला कषायो को उपशान्त कर
के खिाए अथावत िन वचन काया से 'मिच्छामि दुक्कड़ि' करे

३. हनशीथसूर नािक आगिशास्त्रिे भी यिी बात स्त्पष्टत:


बताइ िै,

४.िशाश्रुतस्त्कन्ध सूर की हनयुवसि १०२ से १०५ की चूर्णििें तो


स्त्पष्ट पाठ िै की 'पमड़ककिण वेलाए उवसिइं' अथावत
'प्रहतक्रिण करने के वि कसाय उपशान्त करने के सलए खिाए'
ऐसा अभभप्रेत िोता िै ।

५..पूज्य आगिोद्धारक आचायव श्री आनन्िसागर सूरीश्वरिीने


भी अष्टासिकापवव के व्याख्यानिे किा िै हक ‘क्षिापना याने
िोली बुझाने का ढिन’ वो ढिन िुकरर हि िै, और वो ढिन िै
संवत्सरी .
जिस तरि व्यविारिे 31 िाचव को सब वहिखाते बंध कर के उसी
ढिन की क्लोझींग एन्री इन्कि टे क्ष खातेिे ढिखानी पडती िै,
उसी तरि संवत्सरी के ढिन िी ये वार्षिक कृत्य िोता िै. अगर
आप एक, िो या ज्यािा ढिन पिेले करेंगे तो अगले साल
संवत्सरी के ढिन एक साल से ज्यािा िो िाने के कारण आप
अनंतानुबंमध कषायिें चले िाओगे और अगर आप अपनी
इच्छानुसार करोगे तो िुकरर हकये हुए ढिन का भंग करने से
हतथंकर हक आज्ञा के उल्लंघनकताव बनोगे.

संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदक्


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६..पूज्यपाि आगिोद्धारक आचायवश्री को हिरसे पंचिी की
संवत्सरी आरंभ करने के बारेिे पूछा गया तब भी उन्िोने किा
था की कभी आवश्यकता पडे तो चोथ के बिले हरि हक
संवत्सरी िो शकती िै, िगर पंचिीकी कभी नहि िो शकती
क्योंकी अनंतानुबंमध कषाय की िुद्दत 1 वषव हक िोती िै, इसी
कारणसे भी इतने ढिन पिेले संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदुक्कडं
कर नहि शकते.

७. ििारे पूवावचायव आढि श्रिण भगवंतोने ‘पयुवषण’ के हवषयिे


िो थोय के िोड़े, स्त्तवन, सज्झाय आढि रचना की िै, उसिे भी
संवत्सरी के ढिन ‘खिाने’ के शब्ि िी अपनी कृहतओिे उतारे िै,
किी हकसी ििापुरुषने संवत्सरी के पूवव ‘खािाने’ का हवधान
निीं सलखा. िैसे की...
८.१.. थोय िोड़ो-‘વરસ દિવસમાાં અષાઢ ચોમાસ’ાં ,
કર્ાા-જિણાંિસાગરજી, ગાથા-૪
‘આડાંબરશાં િેહરે િઈએ, સાંવત્સરી પડીક્કમણાં કરીએ,
સાંઘ સવાને ખમીએ’

८.२.. थोय िोड़ो- ‘સત્તરભેિી જિન પૂજા રચીિે’,


કર્ાા- શ્રીમાનજવિયજી, ગાથા-૪
બારસે સૂત્રને સામાચારી, સાંવત્સરી પજડક્કમીએજી, ...,
સવા જીવને ખામીિેજી

८.३.. थोय नो िोड़ो- ‘પવા પયષ


ા ણ પણ્યે કીિે’,
કર્ાા- જ્ઞાનજવમલસૂદરજી, ગાથા-૪ સાંવત્સરી દિન સહ
નરનારી, ......., સાહમ્મી સાહમણી ખામણા કીિે

संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदक्


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८.४.. स्त्तवन- ‘આવ્યા રૂડા પયષ
ા ણ સાંગ, કર્ાા-
સસજિજવિયજી. રચના ૧૯૫૨, સાંવત્સરી દિન ખામણા
એ, ખામીિે સહ જીવ ર્ો, કમાથી છૂટીએ

८.५.. स्त्तवन- ‘સાંવત્સરીનાં સ્ર્વન’ કર્ાા-શ્રી


હીરજવિયજી, પાંજતર્-૫
સાંવત્સરીના દિવસે .....ખમાવે સૌ જીવોને, ખમાવાં સૌ જીવોને

८.६.. चैत्यवन्िन- ‘પ્રથમ ચરમ જિનપતર્ના’ કર્ાા-


શ્રી ધમારત્નજી, પાંજતર્- સાંવત્સરી દિન સાર ગણીએ .....
તમચ્છામી િક્કડમ મહામાંત્રાં ધમારત્ન વશકરાં
આવા બીજા પણ ઘણા પાઠો મળે જ છે .

તદુપરાાંત વર્ષો સધ
ુ ી આપણે વડીલોના પત્રમાાં વાાંચેલ જ છે
કે- ‘સાંવત્સરી પ્રતતક્રમણ કરતી વેળાએ સવેને ખમાવતા
આપને પણ ખમાવેલ છે ’.

सारांश ये की.....
सांवत्सररक मिच्छामिदुक्कडं संवत्सरी के ढिन िी करना
चाहिए ; एक भी ढिन पिेले िो निी शकता.

आगि ढिवाकर डॉ. िुहन िीपरत्नसागर 09825967397

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