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के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन,

गुिाहाटी सभ
ं ाग
अध्ययन सामग्री-कक्षा बारहिीं
(वहदं ी-आधार) कोड-302
छात्रोपयोगी अध्ययन सामग्री
कक्षा – XII
हिन्दी (302)
मुख्य संरक्षक

श्री वरूण मित्र, उपायक्त



के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन
क्षेत्रीय कायाालय, गिु ाहाटी
मागगदर्गक

श्री वेंकटेश्वर प्रसाद बी, सहायक आयुक्त


के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन
क्षेत्रीय कायाालय, गिु ाहाटी
सिन्वयक

श्री प्रफुल्ल कुिार शुक्ला, उप प्राचायय


के न्द्रीय विद्यालय क्रमांक -2 तेजपरु

1
संपादक मंडल

1 श्री च त
ं ामणि ससंह पी जी टी हहन्दी – केन्रीय विद्यालय नौगांि –मुख्य संपादक
2 श्री जगडीश नारायि मीिा पी जी टी हहन्दी –केन्रीय विद्यालय डडगारु
3 श्रीमती सुषमा पी जी टी हहन्दी केन्रीय विद्यालय अमेरीगोग
कायय विभाजन

क्रम ांक स्नातकोत्तर सशक्षक /सशक्षक्षका केन्रीय विद्यालय विषय


1 श्रीमती ऋच प ण्डेय बोरझ र अपठित गदय ांश ,पठित गदय ांश
2 कु प्रीतत चौह न दम
ु दम
ु उपयुक्त
3 श्री सख
ु ेन कुम र प िक गेरुक मख
ु विभिन्न म ध्यमों के भिए िेखन
4 श्री आर एस ज ांगगड़ गोि घ ट विशेष िेखन स्िरूप और प्रक र
5 श्री मनीष कुम र गोिप र पत्रक रीय िेखन के विभिन्न रूप और
िेखन प्रक्रक्रय
6 श्री िूपेन्र ओझ आई आई टी कैसे करें कह नी क न ट्य रूप ांतरण
7 श्री अभिषेक य दि ज गी रोड कैसे बनत है रे डडयो न टक
8 श्री ब ि मुकांु द चौरभसय जोरह ट(आर आर एि ) नए और अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन
9 डॉ र जू प्रस द र िौर खनपर भसल्िर िेडडांग
10 डॉ र जेश शुक्ि खटखटी जूझ
11 श्री सुनीि न थ कोकर झ र अतीत मे दबे प ाँि
12 श्री जी पी मीण िमडडांग आत्म पररचय ,श्रम विि जन और ज तत
प्रथ
13 डॉ पदम र नी मांगिदे ई पतांग ,भशरीष के फूि
14 श्री र मजी र ि न रां गी कवित के बह ने ,मेरी कल्पन क आदशु
सम ज
15 श्री दे शबांधु कुम र झ न्यू बोग इगॉि कैमरे मे बांद अप ठहज ,ब त सीधी थी पर
16 श्री सांजय कुम र िम ु नूनम टी ऊष ,पहिि न की ढोिक
17 डॉ परम नन्द भमश्र नॉथु िखीमपुर ब दि र ग ,एक गीत
18 श्री शैिेन्र कुम र प नब री तुिसीद स
19 श्री र जेश कुम र भसबस गर ओएनजीसी रुब इय ाँ ,क िे मेघ प नी दे
20 श्री प्रतीक र ज भसबस गर न जजर छोट मेर खेत ,बगुिों के पांख
21 श्री भशि न र यण शम ु तेजपुर क्र 1 िजक्तन
22 श्री मनोज कुम र िम ु तेजपुर क्र 2 ब ज र दशुन

2
हहंदी (आधार कोड संख्या 302) कक्षा-12 सत्र-2022-23 परीक्षा हेतु पष्ृ ठ संख्या
पाठ्यक्रम विननदे शन 5-6

प्रश्न) खंड अ (िस्तुपरक पष्ृ ठ संख्या


1. अपहठत 7-23
(i) अपठित गदय ांश 7-17
(ii) अपठित क वय ांश 17-23
2. असभव्यक्तत और माध्यम आधाररत बहुविकल्पात्मक प्रश्न 23-30
(i) विभिन्न म ध्यमों के भिए िेखन 23-25
(ii) पत्रक रीय िेखन के विभिन्न रूप और िेखन प्रक्रक्रय 25-28
(iii) विशेष िेखन स्िरुप और प्रक र 28-30
3. पाठ्यपस्
ु तक आरोह भाग-2 से बहुविकल्पात्मक प्रश्न 30-39
(i) पठित क वय ांश 30-35
(ii) पठित गदय ांश 35-39
4. पूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 से बहुविकल्पात्मक प्रश्न 40-49
(i) भसल्िर िैडडांग 40-44
(ii) जझ
ू 44-47
(iii) अतीत में दबे प ाँि 47-49

प्रश्न खंड ब (िियनात्मक)


5. असभव्यक्तत और माध्यम से जनसं ार और सज
ृ नात्मक लेखन 50-75
(i) विभिन्न म ध्यमों के भिए िेखन 50-53
(ii) पत्रक रीय िेखन के विभिन्न रूप और िेखन प्रक्रक्रय 53-56
(iii) विशेष िेखन स्िरुप और प्रक र 56-60
(iv) कैसे करें कह नी क न ट्य रूप ांतरण 60-63
(v) कैसे बनत है रे डडयो न टक 63-71
(vi) नए और अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन 71-75
6. पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 आधाररत िियनात्मक प्रश्न 75-129

(क) काव्य खंड 75-107


(i) आत्मपररचय, एक गीत 75-80
(ii) पतांग 80-82
(iii) कवित के बह ने, ब त सीधी थी पर 82-86

3
(iv) कैमरे में बांद अप ठहज 86-89
(v) उष 89-91
(vi) ब दि र ग 91-94
(vii) कवित ििी (उत्तरक ण्ड से), िक्ष्मण मूर्चछ ु और र म क विि प 94-100
(viii) रुब इय ाँ 101-103
(ix) छोट मेर खेत, बगुिों के पांख 103-107

(ख) गद्य खंड 108-129


(i) िजक्तन 108-110
(ii) ब ज़ र दशुन 110-113
(iii) क िे मेघ प नी दे 113-117
(iv) पहिि न की ढोिक 117-122
(v) भशरीष के फूि 122-124
(vi) श्रम विि जन और ज तत प्रथ , मेरी कल्पन क आदशु सम ज 124-129

प्रततदशु प्रश्नपत्र 130-141

अांक योजन 143-148

4
5
6
प्रश्न संख्या 1: अपहठत
(अ)अपहठत गद्यांश
अपठित गदय ांश क अथु अ+पठित अथ ुत बबन पढ हुआ गदय ांश I जो पहिे किी न पढ
गय हो उसे अपठित गदय ांश कहते हैं इस प्रक र के गदय ांश प्रश्न पत्र में दे ने क उददे श्य छ त्रों
की बौदगधक क्षमत ि ष की पकड़ क पत िग न है I इन प्रश्नों को हि करते समय
तनम्नभिखखत ब तों को ध्य न रखन च ठहए :-
*सिुप्रथम गदय ांश को दो-तीन ब र ध्य न पूिक
ु पढ ज ए ऐस करने से गदय ांश क मूि ि ि
समझ में आ ज त है I
*क्रफर पछ
ू े गए प्रश्नों के उत्तर गदय ांश में रे ख ांक्रकत करें I
*प्रश्नों के उत्तर केिि गदय ांश पर आध ररत हो सिी विकल्पों को ध्य नपूिक
ु पढकर ही उगचत
विकल्प क चयन करें I
* गदय ांश क शीषुक अत्यांत स थुक एिां मि
ू ित
ू होन च ठहए I
* जजन प्रश्नों के उत्तर नहीां भमि प ए हो उन पर ध्य न केंठरत कर क्रफर से पढें ि उनके उत्तर
दे ने क प्रयत्न करें I उद हरण थु-
ननम्नसलणखत अपहठत गद्यांश को ध्यानपूिक
य पढ़कर सही विकल्प का ुनाि कीक्जए -
अपहठत गद्यांश-1
विज्ञ न आज के म नि-जीिन क अविि ज्य एिां घतनष्ि अांग बन गय है I म नि-जीिन क कोई
िी क्षेत्र विज्ञ न के अिूतपूिु अविष्क रों से अछूत नहीां रह I इसी क रण से आधुतनक युग विज्ञ न
क यग
ु कहि त है Iआज विज्ञ न ने परु
ु ष और न री,स ठहत्यक र और र जनीततज्ञ,उदयोगपतत और
कृषक,गचक्रकत्सक और सैतनक,पाँज
ू ीपतत और श्रभमक,अभियांत , भशक्षक और धमुज्ञ सिी को और
सिी क्षेत्रों में क्रकसी-न-क्रकसी रूप में अपने अप्रततम प्रदे य से अनुग्रहीत क्रकय है I आज समूच
पररिेश विज्ञ नमय हो गय है I विज्ञ न के प्रि ि क्रकसी गह
ृ णी के रसोईघर से िेकर बड़ी-बड़ी
प्र चीरों ि िे ििनों और अट्ट भिक ओां में ही दृजष्टगत नहीां होते ,अवपतु िे जि-थि की सीम ओां
को ि ांघकर अांतररक्ष में िी विदयम न हैं I िस्तुतः विज्ञ न अदयतन म नि की सबसे बड़ी शजक्त
बन गय है I इसके बि से मनुष्य प्रकृतत और प्र खणजगत क भशरोमखण बन सक है I विज्ञ न के
अनग्र
ु ह से िह सिी प्रक र की सवु िध ओां एिां सांपद ओां क स्ि भमत्ि प्र प्त कर चुक है I अब िह
मौसम और ऋतओ
ु ां के प्रकोप से िय क्र ांत एिां सांत्रस्त नहीां है I विदयुत ् ने उसे आिोक्रकत क्रकय
है,उष्णत एिां शीतित दी है ,बटन दब कर क्रकसी िी क यु को सांपन्न करने की त कत िी दी है I
मनोरां जन के विविध स धन उसे सुिि हैं I य त य त एिां सांच र के स धनों के विकभसत एिां उन्नत
होने से समय और दरू रय ां बहुत कम हो गयी हैं और समूच विश्ि एक कुटुांब स िगने िग है I

7
कृवष एिां उदयोग के क्षेत्र में उत्प दकत बढने के क रण आज दतु नय पहिे से अगधक धन-ध न्य
से सांपन्न है I भशक्ष एिां गचक्रकत्स के क्षेत्र में विज्ञ न की दे न अभिनांदनीय है I विज्ञ न के सहयोग
से मनुष्य धरती और समुर के अनेक रहस्य हस्त मिक करके अब अन्तररक्ष िोक में प्रिेश कर
चुक है I सिोपरर,विज्ञ न ने मनुष्य को बौदगधक विक स प्रद न क्रकय है और िैज्ञ तनक गचांतन
पदधतत दी है I िैज्ञ तनक गचांतन पदधतत से मनुष्य अांधविश्ि सों और रूठढि दी परम्पर ओां से मुक्त
होकर स्िस्थ एिां सांतभु ित ढां ग सोच-विच र कर सकत है और यथ थु एिां सम्यक जीिन जी सकत
है I इससे मनुष्य के मन को युगों के अांधविश्ि सों, भ्रमपूणु और दक्रकय नूसी विच रों, िय और
अज्ञ नत से मजु क्त भमिी है I विज्ञ न की यह दे न स्तत्ु य है I म नि को च ठहए की िह विज्ञ न
की इस समग्र दे न को रचन त्मक क यों में सुतनयोजजत करें I
ननम्नसलणखत में से ननदे शानुसार विकल्प का यन कररए-
(1) आज विज्ञान को मनुष्य के जीिन का असभन्न अंग तयों माना जाता है?
(i) विज्ञ न के आविष्क र अिूतपूिु हैंI (ii)विज्ञ न ने सिी क्षेत्रों में म नि को प्रि वित क्रकय है
(iii) विज्ञ न ने आगथुक उन्नतत प्रद न की है (iv)आधतु नक यग
ु विज्ञ न क यग
ु है
उत्तर- (i) विज्ञान ने सभी क्षेत्रों में मानि को प्रभावित ककया है
(2) ककसके बल पर मनष्ु य प्रकृनत और प्राणिजगत का सशरोमणि बन सका है ?
(i)स्ियां के (ii) स धनों के (iii) विज्ञ न के (iv)सत्त के
उत्तर - (iii) विज्ञान के
(3) िैज्ञाननक च त
ं न पद्धनत ने मनष्ु य को सबसे पहले ककससे मक्ु तत हदलाई?
(i)सांतुभित अनुगचांतन (ii) प्र चीन स ांस्कृततक परम्पर ओां
(iii) औपच ररकत ओां (iv) भ्रमपूणु रूठढि दी विच र
उत्तर - (iv) भ्रमपूिय रूहढ़िादी वि ार
(4) विज्ञान के रि गनतशील तयों कहे जा सकते हैं?
(i) विज्ञ न की तीव्र गतत के क रण (ii) य त य त के स धन अविष्कृत करने के क रण
(iii) विज्ञ न के उत्तरोत्तर विभिन्न ठदश ओां में उन्मुख होने के क रण
(iv) प्रगततशीि विच रध र के क रण
उत्तर- (iii) विज्ञान के उत्तरोत्तर विसभन्न हदशाओं में उन्मुख होने के कारि
(5) समू ा विश्ि एक पररिार के सामान लगने का तया कारि है ?
(i) विज्ञ न की गततशीि शजक्त (ii) विज्ञ न और जीिन में घतनष्ित
(iii) य त य त और सांच र के स धनों क विक स (iv) विश्िबांधुत्ि की ि िन क विक स
उत्तर- (iii) यातायात और सं ार के साधनों का विकास
(6) विज्ञान के सहयोग से मनुष्य ने कहााँ प्रिेश कर सलया है ?

8
(i) मनुष्य के ह्रदय में (ii) अांतररक्ष में (iii) विदे शों में (iv) समुर में
उत्तर-(ii) अंतररक्ष में
(7) िैज्ञाननक च त
ं न पद्धनत के प्रभाि से मनष्ु य कैसा जीिन जी सकता है ?
(i) यथ थु (ii) सम्यक (iii) (i) और (ii) दोनों (iv) बन िटी
उत्तर- (iii)- (i) और (ii) दोनों
(8) मानि से विज्ञान की दे न को ककन कायों में ननयोक्जत करने की अपेक्षा है ?
(i) ि िप्रद (ii) सहयोगप्रद (iii) रचन त्मक (iv) विध्िांस त्मक
उत्तर-(iii) र नात्मक
(9) लेखक की दृक्ष्ट में विज्ञान की सबसे बड़ी दें तया है ?
(i) सांच र सुविध एाँ (ii) विदयुत ् क अविष्क र
(iii) िैज्ञ तनक गचांतन पदधतत (iv) गचक्रकत्स और भशक्ष की सुविध एाँ
उत्तर- (iv) च ककत्सा और सशक्षा की सुविधाएाँ
(10) प्रस्तुत गद्यांश ककस विषयिस्तु पर आधाररत है ?
(i) विज्ञ न क म नि जीिन पर प्रि ि (ii) िैज्ञ तनक गचांतन और म नि
(iii) विज्ञ न के गततशीि चरण (iv) विज्ञ न के आविष्क र
उत्तर-(ii) िैज्ञाननक च त
ं न और मानि

अपहठत गद्यांश-2
ि रतीय सांस्कृतत की सबसे बड़ी विशेषत रही है -‘अनेकत में एकत ’I यदयवप ऊपरी तौर पर ि रत
के विभिन्न प्रदे शों में पय ुप्त भिन्नत ठदख ई दे ती है ,तथ वप अपने आच र-विच र की एकत के
क रण यह ाँ स म भसक सांस्कृतत क रूप दे खने को भमित है I यही क रण है क्रक विभिन्नत ओां के
होते हुए िी ि रत सठदयों से एक िौगोभिक,र जनीततक एिां स ांस्कृततक इक ई के रूप में विश्ि में
अपन स्थ न बन ये हुए है I इसभिए ि रत में अनेकत में एकत के सदै ि दशुन होते हैं I ि रतीय
सांस्कृतत में आध्य जत्मकत और िौततकत दोनो क ही भमश्रण रह है I
अत: इसकी प्र चीनत ,इसकी गततशीित ,इसक िचीि पन,इसकी ग्रहणशीित ,इसक स म जजक
स्िरुप और अनेकत में तनठहत एकत ही इसकी प्रमुख विशेषत है I इस विशेषत के क रण ही
ि रतीय सांस्कृतत विश्ि में अपन एक विभशष्ट स्थ न रखती है I ि रतीय सांस्कृतत क इततह स
बहुत ही प्र चीन है I ि स्ति में ,सांस्कृतत क तनम ुण एक िम्बी परम्पर के ब द होत है I सांस्कृतत
िस्तुत:विच र और आचरण के तनयम और मूल्य हैं,जजन्हें कोई सम ज अपने अतीत से प्र प्त करत
है I इसभिए कह ज सकत है क्रक इसे हम अपने अतीत से विर सत के रूप में प्र प्त करते हैं I
दस
ू रे शब्दों में कहें तो सांस्कृतत एक विभशष्ट जीिन-शैिी क न म है I यह एक स म जजक विर सत,

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है जो परम्पर से चिी आती रही है I प्र य: सभ्यत और सांस्कृतत को एक ही म न भिय ज त
है, परन्तु इसमें िेद है I सभ्यत में मनुष्य के जीिन क िौततक पक्ष प्रध न होत है अथ ुत ्
सभ्यत क अनुम न सुख से िग य ज सकत है I इसके विपरीत सांस्कृतत में आच र और विच र
पक्ष की प्रध नत होती है I इस प्रक र,’सभ्यत ’ को शरीर म न ज सकत है और ‘सांस्कृतत’ को
आत्म , इसभिए इन दोनो को अिग-अिग नहीां दे ख ज सकत Iि स्ति में , दोनों एक दस
ु रे के
परू क हैं I
ननम्नसलणखत में से ननदे शानुसार विकल्प का यन कररए-
(1) भारतीय संस्कृनत की सबसे बड़ी विशेषता ककसे माना गया है ?
(i) प्र चीन इततह स को (ii) अनेकत में एकत को
(iii) स म जजक इततह स को (iv) सभ्यत एिां सांस्कृतत को
उत्तर-(ii) अनेकता में एकता को
(2) गद्यांश में सामाक्जक विरासत ककसे कहा गया है ?
(i) सांस्कृतत को (ii) िौततक पक्ष को (iii) विच र को (iv) आचरण को
उत्तर- (i) संस्कृनत को
(3) भारत में सामाससक संस्कृनत का रूप हदखाई पड़ने का तया कारि है ?
(i) विविधत (ii) विभिन्नत (iii) एकत (iv) र जनीततक सांगिन
उत्तर-(iii) एकता
(4) भारतीय संस्कृनत ककसका समश्रि है ?
(i) आध्य जत्मकत क (ii) िौततकत क (iii) (i) ि ् (ii) दोनों क (iv) अतीत क
उत्तर-(iii) (i) ि ् (ii) दोनों का
(5) गद्यांश के अनुसार भारतीय संस्कृनत की विसशष्टता नहीं है -
(i) िचीि पन (ii) गततशीित (iii) जस्थरत (iv) ग्रहणशीित
उत्तर- (iii) क्स्िरता
(6) सभ्यता का अनम
ु ान ककससे लगाया जा सकता है ?
(i) िीतरी उन्नतत से (ii) सुख सुविध ओां से (iii) परोपक ररत से (iv) वय िह ररकत से
उत्तर -(ii) सुख सुविधाओं से
(7) आ ार और वि ार पक्ष की प्रधानता ककसमें होती है ?
(i) सभ्यत में (ii) सांस्कृतत में (iii) इततह स में (iii) िौततकत में
उत्तर-(ii) संस्कृनत में

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(8) प्रस्तुत गद्यांश में एक दस
ू रे का पूरक ककसे बताया गया है?
(i) शरीर और आत्म को (ii) प्र चीनत और आधुतनकत को
(iii) अनेकत और एकत को (iv) सभ्यत और सांस्कृतत को
उत्तर-(iv) सभ्यता और संस्कृनत को
(9) ककस विशेषता के कारि भारतीय संस्कृनत विश्ि में अपना विशेष स्िान रखती है ?
(i) अनेकत में एकत (ii) स म जजकत (iii) िौततकत (iv) आधतु नकत
उत्तर- (i) अनेकता में एकता
(10) अतीत से विरासत के रूप में हम ककसे प्राप्त करते है ?
(i) जीिन को (ii) सांस्कृतत को (iii) अनेकत को (iv) विच र को
उत्तर- (ii) संस्कृनत को
अपहठत गद्यांश-3
एक ांत ढूांढने के कई सक र त्मक क रण है I एक ांत की च ह क्रकसी घ यि मन की आह िर नहीां,
जो जीिन के क ाँटों से बबांध कर घ यि हो चक
ु है , एक ांत भसफु उसके भिए शरण म त्र नहीां I यह
उस इांस न की ख्ि इश िर नहीां, जजसे इस सांस र में फेंक ठदय गय हो और िह फेंक ठदए ज ने
की जस्थतत से ियिीत होकर एक ांत ढूांढ रह हो I हम जो एक ांत में होते हैं, िही ि स्ति में होते
हैं I एक ांत हम री चेतन की अांतिुस्तु को पूरी तरह उघ ड़ कर रख दे त है I
अांग्रेजी क एक शब्द – `आइसोिोक्रफभिय ` इसक अथु है अकेिेपन, एक ांत से गहर प्रेम I पर इस
शब्द को गौर से समझें तो इसमें अिग ि की एक परछ ई िी ठदखती है I एक ांत प्रेमी हमेश ही
अिग ि क्रक अिेद दीि रों के पीछे तछपन च ह रह हो, यह जरूरी नहीां I एक ांत की अपनी एक
विशेष सुरभि है और जो िीड़ के अभशष्ट प्रपांचों में फांस चुक हो, ऐस मन किी इसक सौंदयु
नहीां दे ख सकत I एक त
ां और अकेिेपन में थोड़ फकु समझन जरुरी है I एक ांतजीिी में कोई
दोष य मनोम भिन्य नहीां होत । िह क्रकसी वयजक्त य पररजस्थतत से तांग आकर एक ांत की शरण
में नहीां ज त । न ही आत त यी तनयतत के विषैिे ब णों से घ यि होकर िह एक ांत की खोज
करत है । अांग्रेजी कवि िॉडु ब यरन ऐसे एक ांत की ब त करते हैं । िे कहते हैं क्रक ऐस नहीां क्रक
िे इांस न से कम प्रेम करते हैं, बस प्रकृतत से ज्य द प्रेम करते हैं । बुदध अपने भशष्यों से कहते
हैं क्रक िे जांगि में विचरण करते हुए गैंडे की सीांग की तरह अकेिे रहें । िे कहते हैं- ' प्रत्येक
जीि जन्तु के प्रतत ठहांस क त्य ग करते हुए क्रकसी की िी ह तन की क मन न करते हुए, अकेिे
चिो - क्रफरो, िैसे ही जैसे क्रकसी गैंडे क सीांग । हक्सिे ' एक ांत के धमु' य ‘ररिीजन ऑफ
सोिीट्यड
ू ' की ब त करते हैं । िे कहते हैं जो मन जजतन ही अगधक शजक्तश िी और मौभिक

11
होग , एक ांत के धमु की तरफ उसक उतन ही अगधक झुक ि होग I धमु के क्षेत्र में एक ांत,
अांधविश्ि सों, मतों और धम ांधत के शोर से दरू िे ज ने ि ि होत है । इसके अि ि एक ांत धमु
और विज्ञ न के क्षेत्र में नई अांतदृुजष्टयों को िी जन्म दे त है । ज्य ां पॉि स त्रु इस ब रे में बड़ी ही
खूबसूरत ब त कहते हैं । उनक कहन है - ' ईश्िर एक अनुपजस्थतत है । ईश्िर है इांस न क एक ांत
। क्य एक ांत िोग इसभिए पसांद करते हैं क्रक िे क्रकसी को भमत्र बन ने में असमथु हैं ? क्य िे
स म जजक होने की अपनी असमथुत को तछप ने के भिए एक ांत को मठहम मांडडत करते हैं ? ि स्ति
में एक त एक दध
ु री तिि र की तरह है । िोग क्य कहें गे इसक डर िी हमें अक्सर एक ांत में
रहने से रोकत है यह बड़ी अजीब ब त है , क्योंक्रक जब आप ि स्ति में अपने स थ य अकेिे
होते हैं , तिी इस दतु नय और कुदरत के स थ अपने गहरे सांबांध क अहस स होत है इस सांस र
को और अगधक गहर ई और अगधक सम नुिूतत के स थ प्रेम करके ही हम अपने दख
ु द ई अकेिेपन
से ब हर हो सकते हैं ।
ननम्नसलणखत में से ननदे शानुसार विकल्प का यन कररए-
उपयत
ुय त गद्यांश ककस विषय िस्तु पर आधाररत है ?
1.(क.) अकेिेपन पर (ख) एक ांत पर (ग) जीिन पर (घ) अध्य त्म पर
उत्तर - (ख) एकांत पर
2-एकांत हमारे जीिन के सलए तयों आिश्यक है ?
(क) परे श नी से ि गने के भिए (ख) आध्य जत्मक गचांतन के भिए
(ग) स्ियां को ज नने के भिए (घ) अश ांत मन को श ांत करने के भिए
उत्तर - ( ग) स्ियं को जानने के सलए
3- बायरन मनुष्य से अचधक प्रकृनत से प्रेम तयों करते िे?
(क) प्रकृतत की सुांदरत के क रण (ख) मनुष्य से घण
ृ के क रण
(ग) एक ांत प्रेम के क रण (घ) अकेिेपन के क रण
उत्तर - (ग) एक ांत प्रेम के क रण
4- दख
ु द अकेलेपन से कैसे बाहर आया जा सकता है ?
(क) सांस र से प्रेम करके (ख) सर्चचे दोस्त बन कर
(ग) सांस र की ि स्तविकत को समझ कर (घ) सांस र से मुक्त होकर
उत्तर - (क) संसार से प्रेम करके
5-एकांत की खुशबू को कैसे महसूस ककया जा सकता है ?
(क) सांस र से अिग होकर (ख) िीड़ में नहीां रहकर

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(ग) एक ांत से प्रेम करके (घ) अकेिे रहकर
उत्तर - (ग) एकांत से प्रेम करके
6-गैंडे के सींग की तया विशेषता होती है?
(क) िह क्रकसी को ह तन नहीां पहुांच त (ख) िह सीांग नहीां िरन सीांग क अपररूप होत है ।
(ग) गैंडे अकेिे रहते हैं इसभिए सीांग िी अकेि रहत है । (घ) अपनी दतु नय में मस्त रहन
उत्तर - (क) िह ककसी को हानन नहीं पहुं ाता
7-धमय के क्षेत्र में एकांत का तया योगदान है ?
(क) समपुण की ि िन (ख) पूज और स धन
(ग) धम ांधत से मुजक्त (घ) धमु के ि स्तविक स्िरूप की पहच न
उत्तर - (घ) धमय के िास्तविक स्िरूप की पह ान
8-नई अंतदृयक्ष्ट से आप तया समझते है ?
(क) नई खोज (ख) नय अनुसांध न
(ग) नई सांकल्पन (घ) नय भसदध ांत ।
उत्तर- (ग) नई संकल्पना
9-ईश्िर एक अनप
ु क्स्िनत है - कैसे?
(क) ईश्िर किी ठदख ई नहीां दे ते (ख)ईश्िर किी उपजस्थत नहीां होत
(ग) एक ांत में ही ईश्िर महसूस होते हैं (घ) ईश्िर होते ही नहीां हैं
उत्तर - (ग) एकांत में ही ईश्िर महसूस होते हैं
10-एकांत में रहने का अिय है ?
(क) दोस्त नहीां बन सकन (ख) सांस र को ज नने क अिसर भमिन
(ग) अपने वप्रय िोगों को ज नने क अिसर भमिन (घ) सांस र और प्रकृतत की सुांदरत को दे खन
उत्तर-(घ) संसार और प्रकृनत की संद
ु रता को दे खना

अपहठत गद्यांश-4
आधुतनक ि रतीय ि ष एां सुनकर आप इस भ्रम में न पड़े क्रक यह सिी आज की दे न है I यह
सिी ि ष एां अतत प्र चीन है I अनेक तो सीधे सांस्कृत य िैठदक ि ष से जुड़ती हैं I िे इस अथु
में आधुतनक है क्रक समय के स थ चिकर अतीत से ितुम न तक पहुांची है और जीिांत और
विक सशीि बनी हुई है I उनके आधुतनक होने क एक क रण यह िी है क्रक आधतु नक विच रों को
िहन करने में िह किी पीछे नहीां रही I इनक स ठहत्य समय की कसौटी पर खर उतर है और
यह सिी आधुतनक ि रत की प्र णि यु है I क्रकसी िी ि ष क पहि क म होत है दो वयजक्तयों

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य दो समूहों के बीच सांपकु स्थ वपत करने क म ध्यम बनन I यह म नि समूहों के बीच सेतु
क क म करती हैं Iइसे च हे प्रकृतत की दे न म तनये च हे ईश्िर की ि ष से बड़ी कोई दे न नहीां
हैI विभिन्न क्षेत्रों में म नि की समस्त उपिजब्धय ां मि
ू तः ि ष की दे न है I अब जह ां तक ठहांदी
क प्रश्न है उसमें उपयक्
ु त विशेषत एां तो है ही सबसे तनर िी विशेषत है उसकी नमनीयत I इसमें
स्ि भिम न है अहांक र नहीां I ठहांदी हर पररजस्थतत में अपने आप को उपयोगी बन ए रखन ज नती
हैI यह ज्ञ न और श स्त्र की ि ष िी है और िोक की िी I उत्प दक की िी और उपिोक्त की
िी इसीभिए यह स्िीक यु िी है I
हदए गए प्रश्नों को पढ़कर उच त विकल्प का यन कीक्जये –
1.आधुननक भारतीय भाषाएाँ सुनकर अतसर लोगों को तया भ्रम हो जाता है ?
(क)प श्च त्य सांस्कृतत की दे न है (ख)आज की दे न है
(ग)अतीत से ितुम न में आई है (घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर- विकल्प ख सही है
2-लेखक ने आधुननक भारतीय भाषाओं को आधुननक भारत की --------- कहा है
(क) इज्जत (ख) धरोहर (ग) प्र णि यु (घ) सभ्यत
उत्तर -विकल्प ग सही है
3-हहंदी भाषा की विशेषता है -
(क) स्ि भिम न है पर अहांक र नहीां (ख)तम म दे सी विदे शी शब्द में सम ठहत हैं
(ग)प्रत्येक पररजस्थतत में स्ियां को उपयोगी बन ए रखन ज नती है (घ)उपयक्
ु त सिी
उत्तर- विकल्प घ सही है
4- हहंदी की नमनीयता से आशय है
(क)सिी उसे नमन करते हैं (ख) यह दे िि णी है
(ग) उसमें स्ि भिम न है परां तु अहां क र नहीां (घ)उपयक्
ु त सिी
उत्तर- विकल्प घ सही है I
5- उपयत
ुय त गद्यांश के सलए उच त शीषयक है -
(क) ि ष की विशेषत (ख) ठहांदी ि ष (ग) ि ष और हम (घ) ि ष क महत्ि
उत्तर- विकल्प क सही है
6-कोई भाषा ककन के मध्य पुल बनाने का काम करती ?
(क)दे शों के मध्य (ख)सांस्कृततयों के मध्य (ग) म नि समह
ू ों के मध्य (घ)इनमें से कोई नहीां
उत्तर-विकल्प ग सही है
7-अनत उपसगय के प्रयोग से बना शब्द नहीं है -

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(क) अत्यांत (ख)अततरे क (ग)अततस र (घ)आतप
उत्तर-विकल्प घ सही है
8-हहंदी की स्िीकाययता का कारि है -
(क)उत्प दक और उपिोक्त दोनों की ि ष (ख)आधुतनक ि ष (ग)प्र चीन ि ष (घ)िैज्ञ तनक ि ष
उत्तर-विकल्प क सही है
9-हहंदी की सबसे ननराली विशेषता है -
(क)श स्त्रों की ि ष (ख) नमनीयत (ग) सिुस्िीक युत (घ) र ष्रि ष
उत्तर -विकल्प ख सही है
10-विसभन्न क्षेत्रों में मानि की समस्त उपलक्ब्धयां ककसकी दे न है ?
(क) कमु (ख)प्रकृतत (ग)ि ष (घ)ईश्िर
उत्तर - विकल्प ग सही है

अपहठत गद्यांश-5
पररश्रम को सफित की कांु जी म न गय है । जीिन में सफित पुरुष थु सेही प्र प्त होती है । कह
िी गय है - उदयोगी को सब कुछ भमित है और ि ग्यि दी कोकुछ िी नहीां भमित , अिसर
उनके ह थ से तनकि ज त है । कठिन पररश्रमक ही दस
ू र न म ि ग्य है । प्रकृतत को ही दे खखए;
स रे जड़ चेतन अपने क म में िगे रहते हैं, चीांटी को पििर चैन नहीां, मधुमक्खी ज ने क्रकतनी
िांबी य त्र कर बूाँद- बूाँद मधु जुट ती है । मुगेको सुबह ब ांग िग नी होती है,क्रफर मनुष्य को बुदगध
और वििेक भमि है िहभसफु सफित की क मन करत क्यों बैि रहे ? विश्ि में जो दे श आगे
बढे हैं उनकी सफित क रहस्य कठिन पररश्रम ही है ।ज प न को दस
ू रे विश्ियुदध में भमट्टी में
भमि ठदय गय थ । उसकी अथुवयिस्थ तछन्न-भिन्नहो गई थी िेक्रकन ठदन-र त पररश्रम करके
आज िह विश्ि क प्रमख
ु औदयोगगक और विकभसत दे शबन गय है । चीन िी अपने पररश्रम के
बि पर आगे बढ है । जमुनी ने िी युदध की वििीवषक झेिी पर पररश्रम के बि पर ही सांिि
गय । पररश्रम क महत्ि िे ज नते हैं जो स्ियां अपने बि पर आगे बढे हैं । सांस र के इततह स में
अनेक चमकते भसत रे केिि पररश्रम के ही प्रम ण हैं । हम रे पूिु र ष्रपतत श्री अब्दि
ु कि म
पररश्रम औरमनोबि से ही दे श के सिोर्चच पद पर आसीन हुए उनक कहन थ - “ि ग्य के िरोसे
बैिने ि िे को उतन ही भमित है जजतन मेहनत करने ि िे छोड़दे ते हैं”। हम रे बड़े-बड़े धनकुबेर
वय प री ट ट , बबरि , अांब नी यह सब पररश्रम के ही उद हरण है तनरां तर पररश्रम और दृढ सांकल्प
हम रे िक्ष्य को हम रे करीब ि त है । गरीब पररश्रम करके अमीरहो ज त है और अमीर भशगथि

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बनकर असफि हो ज त है । ि रतीय कृषक के पररश्रम क ही फि है क्रक दे श में हररत क्र ांतत हुई।
अमेररक के सड़े गेहूाँ से पेट िरने ि ि ि रत आज मजबूरीनहीां, बजल्क मजबूती से खड़ है तो
इसके पीछे इसकेपीछे किोर पररश्रम और धैयु ही है । हम रे क रख ने ठदन र त उत्प दन कर रहे
हैं, विक सशीि दे शों में वपछड़े म ने ज ने ि िे हम ि रति सी आज विकभसत दे शोंसे प्रततस्पध ु कर
रहे हैं । अगर हम कहीां वपछड़े हैं तो उसक क रण पररश्रम क अि िही होग । पररश्रम के बबन
जीिन में कुछ नहीां भमित I क्रकसी ने सही कह है - सकि पद रथ है जग म हीां, कमुहीन नर
प ित न हीांI यठद विदय थी जीिन से ही पररश्रम की आदत पड़ ज एगी तो हम जीिन में किी
असफि नहीां हो सकते । विदय थी जीिन तो पररश्रम की पहिी प िश ि है तो न भसफु हम री
भशक्ष बजल्क हम र िविष्य िी सुरक्षक्षत और मजबूत हो ज त है ।
हदए गए गद्यांश को पढ़कर सही विकल्प ुनकर सलणखए:
1-उपयत
ुय त गद्यांश का उच त शीषयक होगा –
(क) ि ग्य बिि न होत है (ख) आिसी जीिन
(ग) पररश्रम क महत्ि (घ) इनमेंसे कोई नहीां
उत्तर-(ग) पररश्रम का महत्ि
2- जीिन में सफलता पाने का सबसे बड़ा माध्यम तयाहै ?
(क) पैस (ख) विदित्त (ग)च ि की (घ) पुरुष थु
उत्तर-(घ) पुरुषािय
3- जापान,जमयनी, ीन जैसे दे श विपरीत पररक्स्िनतयों से बाहर कैसे ननकले?
(क) युदध से (ख) वय प र से (ग) विदे शनीतत से (घ) पररश्रम से
उत्तर-(घ) पररश्रम से
4- हमारे लक्ष्य को हमारे करीब कौन लाता है ?
(क) पररश्रम और दृढसांकल्प (ख) पैस और भशक्ष (ग) भसफु पैस (घ) र जनीतत
उत्तर -(क) पररश्रम और दृढसंकल्प
5- आज हमारा दे श बड़े-बड़े दे शों के सामने ककस रूपमें खड़ा है ?
(क) य चक के रूप में (ख) प्रततस्पधी के रूप में (ग) शत्रु के रूप में (घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर-(ख) प्रनतस्पधी के रूप में
6- पररश्रम की पहली पाठशाला कहााँ समलती है ?
(क) जन्म से (ख) घर में (ग) विदय थी जीिन में (घ) नौकरी करने पर
उत्तर-(ग) विद्यािी जीिन में

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7- हमारे ककसानों के पररश्रम से दे श में कौन सी क्रांनत आयी?
(क) हररत क्र ांतत (ख) श्िेत क्र ांतत (ग)ि ि क्र ांतत (घ) सिी सही हैं
उत्तर-(क) हररत क्रांनत
8- ननम्नसलणखत में से कौन सी पंक्तत पुरुषाियया पररश्रम के महत्त्ि पर सटीक बैठती है ?
(क) करमगतत ट रे न हीां टरे (ख) पुरुष बिी नहीां होत है समय होत बिि न
(ग) सबके द त र म (घ) सकि पद रथ है जग म हीां, कमुहीन नर प ित न हीां
उत्तर-(घ) सकल पदारि है जग माहीं, कमयहीन नर पाित नाहीं
9- इनमें से कौन सा शब्द ‘विभीवषका’ का समानािी होगा-
(क) दष्ु प्रि ि (ख) त्र सदी (ग) ह तन (घ)कोई नहीां
उत्तर-(ख) त्रासदी
10- ‘पररश्रम’ शब्द में उपसगय है -
(क) पर (ख) पर (ग) परर (घ)परी
उत्तर -(ग) परर

ननम्नसलणखत अपहठत काव्यांश को ध्यानपि


ू क
य पढ़कर सही विकल्प का न
ु ाि कीक्जए -

(ब)अपहठत काव्यांश
अपठित क वय ांश से अभिप्र य उस क वय ांश से है , जो पहिे पढ हुआ न हो। कवित क ऐस
अांश जो पहिे किी पढ न हो उसे अपठित क वय ांश कहते हैं। इसके दि र विदय थी की कवित
को समझने की क्षमत क विक स होत है। अपठित गदय ांश की ि ाँतत अपठित क वय ांश को िी
पहिे दो-तीन ब र पढन च ठहए, त क्रक उसक अथु एिां ि ि अर्चछी तरह से समझ में आ ज ए।
तत्पश्च त ् प्रश्नों के उत्तर भिखने च ठहए। उत्तर भिखते समय ध्य न रखन च ठहए क्रक िे सरि ि
स्पष्ट हों। कवित की पांजक्तयों क प्रयोग उत्तर के भिए नहीां करन च ठहए िरन ् उन्हें अपनी
ि ष में भिखन च ठहए। इसके कुछ उद हरण प्रस्तुत हैं :

अपहठत काव्यांश-1

स क र ठदवय गौरि विर ट, पौरुष के पुांजीिूत ज्ि ि!


कर तनज विर ट स्िर में तनन द
मेरी जननी के ठहमक्रकरीट, मेरे ि रत के ठदवय ि ि!

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तू शैिर ट् हुांक र िरे , मेरे नगपतत मेरे विश ि!
फट ज ए कुह ि गे प्रम द, यग ु यग
ु अजेय तनबांध यक्
ु त
तू मौन त्य ग, कर भसांहन द, यग
ु यग
ु गिोन्नत तनत मह न
रे तपी, आज न तप क क ि,
तनस्सीम वयोम में त न रह , नियग
ु शांखध्ितन जग रही
यग
ु से क्रकस मठहम क , तू ज ग ज ग मेरे विश ि!
प्रश्न1 किन: “मेरी जननी” से कवि का तात्पयय मेरी जन्मभसू म से है ll
ननष्कषय (1) हााँ, तयोंकक जननी जन्मभूसम ने कवि को जन्म हदया है l
(2) नहीं, तयोंकक जन्मभसू म सबका पालन पोषि करती हैं, जबकक जननी
जन्म दे ती है l
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
प्रश्न 2. कवि ने हहमालय को ककसकी उपमा दी है?
(क) ठहमसम गध (ख) ठहमपतत (ग) शैिर ट (घ) ठहमश्रांग

प्रश्न 3. ‘ककरीट’ का शाक्ब्दक अिय तया है?
(क) मस्तक (ख) मुकुट (ग) ठहम िय (घ) बफु
प्रश्न 4. प्रस्तत
ु काव्यांश में ककस रस की अनुभूनत प्रयुतत है ?
(क) ओज रस (ख) ह स्य रस (ग) िीर रस (घ) रौर रस
प्रश्न 5. कवि मौन त्यागकर ससंहनाद करने का संदेश दे ता है -
(क) क्योंक्रक, कुह स दरू करन है
(ख) मनुष्य के िीतर क क्रोध श ांत करन है
(ग) सिी प्रक र क आिस्य, ि अकमुण्यत खत्म करने के भिए
(घ) जांगि में शेर की ि ांतत दह ड़ने के भिए
(ङ) उत्तर: 1. ख 2. ग 3. ख 4. ग 5. ग

अपहठत काव्यांश-2

प्रिु ने तुमको कर द न क्रकए, सब ि ांतछत िस्तु विध न ठदए


तुम प्र प्त करो उनको न अहो! क्रफर है यह क्रकसक दोष कहो?
समझो न अिभ्य क्रकसी धन को, नर हो न तनर श करो मन कोl

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क्रकस गौरि के तुम योग्य नहीां, कब कौन तुम्हें सख
ु िोग्य नहीां?
जन हो तुम िी जगदीश्िर के, सब हैं जजसके अपने घर के,
क्रफर दि
ु ि
ु क्य उसके मन को? नर हो न तनर श करो मन कोl
करके विगध ि द न खेद करो, तनज िक्ष्य तनरां तर िेद करो,
बनत बस उदयम ही विगध है , भमिती जजससे सुख की तनगध है ,
समझो गधक तनजष्क्रय जीिन को, नर हो न तनर श करो मन कोl

प्रश्न1 किन: ‘नर’ को कभी ननराश नहीं होना ाहहएl


ननष्कषय (1) हां, अपनी कमयठता से नर असंभि को भी संभि कर सकता है l
(2) हां, उसे भाग्य पर विश्िास करना ाहहएl
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
प्रश्न 2. िांनित िस्तुओं को प्राप्त न करने में ककसका दोष है ?
(क) अकमुण्य मनष्ु यों क (ख) सम ज में वय प्त असम नत क
(ग)तनर श नर न ररयों क (घ) तनर श जनक पररजस्थयों क
प्रश्न 3. विचध िाद पर खेद कौन व्यतत करता है ?
(क) ि ग्यश िी िोग (ख) विगधिेत्त िोग
(ग) पररश्रमी िोग (घ) ि ग्यि दी िोग
प्रश्न 4. प्रस्तत
ु काव्यांश से तया प्रेरिा समलती है?
(क) आश के स थ जगदीश्िर पर विश्ि स रखें (ख) िक्ष्य है , अतः प ने क प्रय स करें
(ग) तनयतत तनजश्चत है अतः प्रतीक्ष करें (घ) नर हो बस इसीभिए तनर श मत हो
प्रश्न 5. कवि के आक्स्तक होने का प्रमाि ककन पंक्ततयों में समलता है?
(क) समझो न अिभ्य क्रकसी धन को,
नर हो न तनर श करो मन को l
(ख) करके विगध ि द रखेि करो
तनज िक्ष्य तनरां तर िेद करो l
(ग) जन हो तुम जगदीश्िर के
सब हैं जजसके अपने घर के l
(घ) बनत बस उदयम ही विगध है
भमिती जजससे सुख की तनगध है l

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उत्तर: 1. क 2. क 3. घ 4. ख 5. ग

अपहठत काव्यांश-3

पैद करती किम, विच रों के जिते अांग रे ,


और प्रज्िभित प्र ण, दे श क्य किी मरे ग म रे ?
िहू गमु करने को रखो, मन में ज्िभित विच र,
ठहांसक जीि से बचने को, च ठहए क्रकां तु तिि र l
एक िेद है और जह ां तनिुय होते नर-न री,
किम उगिती आग, जह ां अक्षर बनते गचांग री l
जह ां मनुष्यों के िीतर, हरदम जिते हैं शोिे,
ब तों में बबजिी होती, होते ठदम ग में गोिेl
जह ां िोग प िते िहू में अपने, हि हि की ध र,
क्य गचांत यठद िह ां ह थ में हुई नहीां तिि रl
प्रश्न1 कविता के अनस
ु ार क्रांनत ककसमें होनी ाहहए?
(क) किम में (ख) मनष्ु य के विच रों में (ग) िहू में (घ) तिि र में
प्रश्न2 किन: तलिार अपररहायय है l
ननष्कषय (1) क्रांनत की ेतना लाने के सलए
(2) हहंसक पशु का सामना करने के सलए
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
प्रश्न3 लहू को गमय करने से कवि का तया आशय है ?
(क) मन में क्र ांततक री विच र उत्पन्न करने से (ख) क्रोध के क रण ि ि होने से
(ग) उपरोक्त ‘क’ तथ ‘ख’ दोनों से (घ) तीव्र ज्िर आने से
प्रश्न4. काव्यांश के अनस
ु ार ‘कलम’ ककसका प्रतीक है ?
(क) मनोरां जन (ख) क्र ांतत ि ने ि िी शजक्त क
(ग) िेखन स मग्री क (घ) उपरोक्त में से कोई नहीां
प्रश्न5. काव्यांश में ककस रस की असभव्यक्तत हुई है ?
(क) करुण रस (ख) रौर रस (ग) िीर रस (घ) िीित्स रस

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उत्तर: 1. ख 2. क 3. क 4. ख 5. ग

अपहठत काव्यांश-4

यह जीिन क्य है? तनझुर है, मस्ती ही इसक प नी है,


बढत चट्ट नों पर चढत , चित यौिन स मनम त है l
सख
ु – दःु ख के दोनों तीरों से चि रह र ह मनम नी है
िहरें उिती हैं, गगरती हैं, न विक तट पर पछत त है,
कब फूट गगरर के अांतर से, क्रकस अांचि से उतर नीचे?
तब यौिन बढत है आगे, तनझुर बढत ही ज त है,
क्रकस घ टी से बह कर आय , समति में अपने को खीांचेl
तनझुर कहत है बढे चिो, दे खो मत पीछे मुड़कर,
तनझुर में गतत है , जीिन है, िह आगे बढत ज त है l
यौिन कहत है बढे चिो, सोचो मत क्य होग चिकर,
धुन एक भसफु है चिने की, अपनी मस्ती में ग त है l
चिन है केिि चिन है! जीिन चित ही रहत है,
ब ध के रोड़ों से िड़त , िन के पेड़ों से टकर त है l
रुक ज न तो मर ज न है, तनझुर यह चढकर कहत II
प्रश्न1 किन: ‘सुख-दुःु ख’ जीिन रूपी झरने के दो तट हैंl
अनुमान: (1) तयोंकक, जीिन एक नदी के समान है, जो ननरं तर प्रिाहमान है l
(2) जीिन में इन दो पहलुओं से मनुष्य हमेशा जुड़ा रहता है l
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
प्रश्न2 प्रस्तुत काव्यांश में कौन सा अलंकार नहीं है ?
(क) अनप्र
ु स (ख) रूपक (ग) उत्प्रेक्ष (घ) म निीकरण
प्रश्न3. अिक पररश्रम द्िारा कहठनाइयों को परास्त करते हुए आगे बढ़ने का भाि ककन पंक्ततयों
में ननहहत है?
(क) अपनी मस्ती में ग त है (ख) धुन एक भसफु है चिने की
(ग) न विक तट पर पछत त है (घ) दे खो मत पीछे मुड़कर

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प्रश्न4. प्रस्तत
ु काव्यांश में तया संदेश हदया गया है ?
(क) िग्न में मगन रहने क (ख) ब ध ओां से िड़ने क
(ग) गततशीि रहने क (घ) उपरोक्त सिी
प्रश्न 5. किन: “ननझयर में गनत है , जीिन है, िह आगे बढ़ता जाता है l
सशक्षा:- (1) हमें कहठनाइयों से डरकर बैठ जाना ाहहएl
(2) मक्ु श्कल समय में भी जीिन गनत को सतत बनाए रखना ाहहएl
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
उत्तर: 1. ग 2. ग 3. ख 4. घ 5. ख

अपहठत काव्यांश-5
रवि जग में शोि सरस त , सोम सुध बरस त
सब है िगे कमु में, कोई तनजष्क्रय दृजष्ट न आत l
है उददे श्य तनत ांत तुर्चछ तण
ृ के िी िघु जीिन क ,
उसी पतू तु में िह करत है, अांत कमुमय तन क l
तुम मनुष्य हो अभमत बुदगध-बि-वििभसत जन्म तुम्ह र ,
क्य उददे श्य रठहत हो जग में , तुमने किी विच र l
बुर न म नो एक ब र तुम, सोचो तुम अपने मन में ,
क्य कतुवय सम प्त कर भिय , तुमने तनजी जीिन में l
जजस पर गगरकर उदर दरी से तुमने जन्म भिय है ,
जजसक ख कर अन्न सुध सम नीर, समीर वपय है l
िही स्नेह की मतू तु दय मतय म त तल्
ु य मही है ,
उसके प्रतत कतुवय तुम्ह र क्य कुछ शेष नहीां ?
प्रश्न 1. कवि काव्यांश के द्िारा पाठकों को तया संदेश दे ना ाहता है?
(क) तनस्ि थु ि ि से कमु करो (ख) कतुवयतनष्ि बनो
(ग) म ति
ृ ूभम से प्रेम करो (घ) अपने उददे श्य को पूर करो
प्रश्न 2. रवि और ंर में तया समानता है?
(क) दोनों कमु में िगे हैं (ख) दोनों गततम न है
(ग) दोनों कल्य णक री है (घ) दोनों प्रक शि न है

22
प्रश्न 3. मानि जन्म की तया विसशष्टता है?
(क) तनजष्क्रय है (ख) आनांद विि स से युक्त है
(ग) बुदगध बि से सक्षम है (घ) शजक्तश िी है
प्रश्न 4. ननतांत का तया अिय है?
(क) थोड़ (ख) पूरी तरह (ग) बहुत (घ) बबल्कुि
प्रश्न 5. मनष्ु य ने भसू म के अन्न जल का ऋि ककस प्रकार क
ु ा सकता है ?
समाधान:- (1) मातभ
ृ ूसम के प्रनत कतयव्यननष्ठ होकर
(2) मातभ
ृ सू म पर कृवष कायय करके
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
उत्तर: 1. ख 2. क 3. ग 4. ख 5. क

प्रश्न2. असभव्यक्तत और माध्यम आधाररत बहुविकल्पात्मक प्रश्न


(i) विसभन्न माध्यमों के सलए लेखन
विभिन्न जनसांच र म ध्यमों के भिए िेखन के अिग-अिग तरीके हैं। अखब र और पत्र-
पबत्रक ओां में भिखने की अिग शैिी है, जबक्रक रे डडयो और टे िीविजन के भिए भिखन एक अिग
कि है। चाँ क्रू क म ध्यम अिग-अिग हैं, इसभिए उनकी जरूरतें िी अिग-अिग हैं। इन म ध्यमों
के िेखन के भिए बोिने, भिखने के अततररक्त प िकों- श्रोत ओां और दशुकों की जरूरत को िी
ध्य न में रख ज त है।
जनसं ार के प्रमुख माध्यम हैं-
1-वप्रांट(मुठरत)म ध्यम
2-रे डडयो
3-टी.िी.
4-इांटरनेट

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न-1 वप्रंट माध्यम के बारे में कौन सा किन असत्य है -
(¡) वप्रांट मीडडय के शब्दों में स्थ तयत्ि होत है।
(ii) तनरक्षरों के भिए मुठरत म ध्यम क्रकसी क म के नहीां हैं।
(iii) रे डडयो टी.िी. य इांटरनेट की तरह तरु ां त घटी घटन ओां को सांच भित कर सकते हैं।

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(iv) प िकों की रूगच यों और जरूरतों क िी पूर ध्य न रखन पड़त है।
प्रश्न-2 रे डडयो समा ार लेखन ककस शैली में होता है?
(¡) सीध वपर भमड शैिी में (ii) कह नी िेखन शैिी में (iii) उल्ट वपर भमड शैिी में
(iv) कोई तनध ुररत शैिी नहीां है
प्रश्न-3 मुरि की शुरुआत ककस दे श से मानी जाती है ?
(¡) जमुनी (ii) ि रत (iii) चीन (iv) इटिी
प्रश्न-4 आधुननक िापेखाने का अविष्कार का श्रेय ककसे जाता है ?
(¡) गट
ु े नबगु को (ii) वपट्सबगु को (iii) ररचडुसन को (iv) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-5 भारत में पहला िापाखाना कब ि कहााँ खोला गया िा ?
(¡) 1560 ई., कोिक त (ii) 1556 ई., गोि (iii) 1564 ई., मुांबई (iv) 1566 ई., चेन्नई
प्रश्न-6 रे डडयो का आविष्कार ककसने ि कब ककया ?
(¡) जी म कोनी ने 1895 ई. में (ii) जे एि बेयडु ने 1959 ई. में
(iii) ग्र हम बेि ने 1927 ई. में (iv) अल्बटु आइांस्ट इन ने 1856 ई. में
प्रश्न-7 टे लीविजन आविष्कार ककसने ककया ?
(¡) अल्बटु आइांस्ट इन ने (ii) ग्र हम बेि ने (iii) जे एि बेयडु ने (iv) जी म कोनी ने
प्रश्न-8 इंटरनेट पत्रकाररता से तात्पयय है -
(¡) इांटरनेट पर अखब रों क प्रक शन य खबरों क आद न-प्रद न
(ii) मनोरां जन हे तु इांटरनेट पर अपिोड क्रकए गए िीडडयो
(iii) एक क य ुिय से दस
ू रे क य ुिय को िेजी ज ने ि िी सूचन
(iv) उपयक्
ु त सिी
प्रश्न-9 हहंदी में नेट पत्रकाररता की शुरुआत की-
(¡) प्रि स क्षी ने (ii) िेब दतु नय ने (iii) अमर उज ि ने (iv) ि स्कर ने
प्रश्न-10 हहंदी का पहला साप्ताहहक पत्र-
(i) उदां त म तुण्ड 1836 ई. में पां.जुगि क्रकशोर शुक्ि दि र प्रक भशत क्रकय गय ।
(ii) उदां त म तुण्ड 1826 ई. में पां.जुगि क्रकशोर शुक्ि दि र प्रक भशत क्रकय गय ।
(iii) बांग ि गजट 1758 ई. में पां.जुगि क्रकशोर शुक्ि दि र प्रक भशत क्रकय गय ।
(iv) इनमें से कोई नहीां।
प्रश्न-11 कोई भी बड़ी खबर कम-से-कम शब्दों में दशयकों तक तत्काल पहुाँ ाना, कहलाता है -
(i) ि इि (ii) फ़ोन-इन (iii) फ़्िैश य ब्रेक्रकां ग न्यूज (iv) एांकर-ब इट
प्रश्न-12 टे लीविजन के सलए खबर सलखने की बुननयादी शतय तया है ?

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(¡)स ठहजत्यक ि ष में िेखन (ii)दृश्य के स थ िेखन (iii)सनसनीखेज िेखन (iv) स म न्य िेखन
प्रश्न-13 ककसी खबर का घटनास्िल से सीधा प्रसारि तया कहलाता है ?
(¡) फोन इन (ii) एांकर ब इट (iii) ि इि (iv) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-14 रे डडयो मुख्यतुः…………………..माध्यम है -
(¡) बहुकोणीय (ii) कोणीय (iii) एक रे खीय (iv) बहु रे खीय
प्रश्न-15 एंकर बाइट का तया तात्पयय है-
(¡) तत्क ि घठटत घटन को सबसे पहिे दशुकों तक पहुाँच न
(ii) घटन स्थि से दृश्य प्र प्त होने से पहिे सांि दद त से प्र प्त ज नक री को दशुकों तक
पहुाँच न
(iii) घटन स्थि से सीध प्रस रण करन
(iv) क्रकसी घटन के ब रे में प्रत्यक्षदभशुयों य सांबांगधत वयजक्तयों क कथन ठदख और सुन कर
खबर को प्र म खणकत प्रद न करन
उत्तर-
1. (iii) 2. (iii) 3. (iii) 4. (i) 5. (ii) 6. (i) 7. (iii) 8.(i) 9. (ii) 10. (ii)
11.(iii) 12. (ii) 13. (iii) 14. (iii) 15. (iv)

(ii)पत्रकारीय लेखन के विसभन्न रूप एिं लेखन प्रकक्रया


अखब र य अन्य सम च र म ध्यमों में क म करने ि िे पत्रक र तथ सांि दद त सम च रपत्रों,
रे डडयो, टी०िी० आठद म ध्यमों के दि र अपने प िकों, दशुकों तथ श्रोत ओां को जो सूचन एाँ
पहुाँच ते हैं, उन्हें भिखने के भिए िे अिग-अिग प्रक र के तरीके अपन ते हैं। इसे ही हम
पत्रक रीय िेखन कहते हैं। जनसांच र म ध्यमों में भिखने की शैभिय ाँ अिग-अिग होती हैं। उन्हें
ज नन आिश्यक है। इनमें सम च र, फीचर, विशेष ररपोटु , ठटप्पखणय ाँ आठद प्रक भशत होती रहती
हैं। इन सिी क सांबांध पत्रक रीय िेखन से है। पत्रक रीय िेखन के कई रूप होते हैं। पत्रक रीय
िेखन क सांबांध दे श तथ सम ज में घटने ि िी समस्य ओां से होत है। पत्रक र तत्क िीन
घटन ओां क िणुन भिखकर सम च र सांगिन को िेजत है। उसे प िकों की रुगचयों क िी ध्य न
रखन होत है । िह हमेश इस ब त क ध्य न रखत है क्रक उसक िेखन विश ि जनसमूह के
भिए है न क्रक क्रकसी िगु-विशेष के भिए। उससे यह आश की ज ती है क्रक िह सहज, सरि और
स म न्य बोिच ि की ि ष क प्रयोग करे , उसे िांबे-िांबे ि क्यों क प्रयोग नहीां करन च ठहए
और न ही अन िश्यक विशेषणों और उपम ओां क प्रयोग करन च ठहए।

1. उल्टा वपरासमड शैली में ननम्न में से कौनसा क्रम होता है ?

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1. इंट्रो/मुखड़ा 2. समापन 3. बॉडी
(1) 1,2,3, (2) 1,3,2 (3) 3,2,1 (4) 2,3,1
उत्तर- 2. 1,3,2 (इांरो, बॉडी, सम पन)
2. उल्टा वपरासमड शैली के विषय में कौनसा किन सत्य है ?
1. फीचर िेखन के भिए यह सबसे उपयक्
ु त है I
2. इसमें सबसे महत्त्िपूणु सूचन सबसे तनचिे ठहस्से में होती है I
3. यह शैिी िोकवप्रय नहीां है
4. इसक विक स अमेररक में गह
ृ युदध के दौर न हुआ I
उत्तर- इसका विकास अमेररका में गह
ृ युद्ध के दौरान हुआ I
3. समा ार लेखन के िह ककारों का सिायचधक उपयत
ु त क्रम कौनसा हो सकता है ?
(1) क्य ,कौन,कब,कह ाँ,कैसे,क्यों (2) कौन,कह ाँ,कब,क्यों,कैसे,क्य
(3) क्य ,कह ,ाँ कब,क्यों,कैसे,कौन (4) कैसे क्य ,कौन, कह ाँ, कब, क्यों
उत्तर- तया,कौन,कब,कहााँ,कैसे,तयों
4. ननम्न में से कौनसा विशेष ररपोटय का प्रकार नहीं है ?
1. खोजी ररपोटु 2. विश्िेषण त्मक ररपोटु 3. इन-डेप्थ ररपोटु 4. ऑप एड ररपोटु
उत्तर- ऑप एड ररपोटय
5.असत्य किन का यन करें –
1.स क्ष त्क र की ि ष कठिन एिां जक्िष्ट होनी च ठहए तथ सि िों क अि ि होन च ठहए I
2. जजस विषय पर और जजस वयजक्त के स थ स क्ष त्क र करने आप ज रहे हैं, उसके ब रे
में आपके प स पय ुप्त ज नक री होनी च ठहए।
3. आप स क्ष त्क र से क्य तनष्कषु तनक िन च हते हैं, इसके ब रे में स्पष्ट रहन बहुत
जरूरी है।
4. आपको िे सि ि पूछने च ठहए जो क्रकसी अखब र के एक आम प िक के मन में हो
सकते हैं।
उत्तर- 1.
6. “साियजननक तौर पर उपलब्ध तथ्यों,सू नाओं और आंकड़ों की गहरी िानबीन I” कहलाता
है I
1. खोजी ररपोटु 2. विश्िेषण त्मक ररपोटु 3. इन-डेप्थ ररपोटु 4. वििरण त्मक ररपोटु
उत्तर- इन-डेप्ि ररपोटय

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7. मौसलक शोध एिं िानबीन के जररए सू नाओं तिा तथ्यों का संकलन करना कहलाता है –
1. इनडेप्थ ररपोटु 2. वििरण त्मक ररपोटु 3. विश्िेषण त्मक ररपोटु 4. खोजी ररपोटु
उत्तर- 4. खोजी ररपोटय
8. ननम्न में से कौनसा फ़ी र का प्रकार नहीं है –

1. सम च र फीचर 2. घटन परक फीचर 3. वयजक्तपरक फीचर 4. इन-डेप्थ फीचर


उत्तर- 4. इन-डेप्ि फी र
9. समा ार के पहले पैराग्राफ़ में शरु
ु आती दो-तीन पंक्ततयााँ ककसके अंतगयत आती है ?
1. बॉडी 2. मुखड़ (इांरो) 3. सम पन 4. क्ि इमैक्स
उत्तर- 2. मुखड़ा (इंट्रो)
10. समा ार की बॉडी में और समापन के पहले कौन से दो ककारों का जिाब हदया जाता है
?
1. कैसे और क्यों 2. कब और कह ाँ 3. क्यों और कब 4. कैसे और क्रकसको
उत्तर-1. कैसे और तयों
11. ननम्न में से कौनसा अखबार का काम नहीं है ?
1. सूचन एां दे न 2. मनोरां जन करन 3. सरक री नीततयों क केिि विरोध करन
4. जनत को ज गरूक करन
उत्तर- 3. सरकारी नीनतयों का केिल विरोध करना
12. उल्टा वपरासमड शैली में इंट्रो में ककस प्रकार की सू नाएं सक्म्मसलत है –
1. सूचन त्मक और तथ्य त्मक सूचन एां 2.मनोरां जन त्मक 3.विश्िेषण त्मक 4. वय ख्य त्मक
उत्तर-1. सू नात्मक और तथ्यात्मक सू नाएं
13. उल्टा वपरासमड शैली का प्रयोग कब शुरू हुआ ?
1. 19 िीां सदी के मध्य से 2. 20 िीां सदी 3. 21 िीां सदी 4. 18 िीां सदी
उत्तर- 1. 19 िीं सदी के मध्य से
14. िे पत्रकार जो ककसी समा ार संगठन में ननयसमत िेतन भोगी कमय ारी होते हैं। कौनसे
पत्रकार कहलाते है ?
1. फ्रीि ांसर 2. अांशक भिक 3. पूणक
ु भिक 4. सांविद पत्रक र
उत्तर- पूिक
य ासलक
15. क्जन पत्रकारों का संबंध ककसी विशेष समा ार-पत्र से नहीं होता, बक्ल्क िे भुगतान के
आधार पर अलग-अलग समा ार-पत्रों के सलए सलखते हैं। कौनसे पत्रकार कहलाते हैं ?
1. पूणक
ु भिक पत्रक र 2. अांशक भिक पत्रक र 3. फ्रीि ांसर पत्रक र 4. िेतनिोगी पत्रक र

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उत्तर- फ्रीलांसर

(iii)विशेष लेखन स्िरुप और प्रकार


आपने ध्य न ठदय होग क्रक ज्य द तर अखब रों में खेि,भसनेम ,मनोरां जन के अिग अिग पष्ृ ि
होते हैं Iइनमे छपने ि िी खबरें अिग प्रक र से भिखी ज ती हैं I एक सम च र पत्र य पबत्रक
तिी सम्पूणु िगती है जब उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के ब रे मे घटने ि िी घटन ओां ,
समस्य ओां के ब रे मे तनयभमत रूप से ज नक री दी ज ए । अत: विशेष िेखन य नी क्रकसी ख स
विषय पर स म न्य िेखन से हटकर क्रकय गय िेखन ही विशेष िेखन कहि त है
।सम च रपत्रों,पबत्रक ओां ,टी.िी.और रे डडयो चैनिों मे विशेष िेखन के भिए अिग डेस्क होत है और
उस विशेष डेस्क पर क म करने ि िे पत्रक रों क समूह िी अिग होत है अत;सम च र म ध्यमों
में डेस्क क आशय सांप दन से होत है ।सम च र म ध्यमों में सप दकीय कक्ष डेस्क और ररपोठटां ग
में वििक्त होत है ।डेस्क पर सम च रों को सांप ठदत क्रकय ज त है और उसे छपने योग्य बन य
ज त है । सांि दद त ओां के बीच में क म क विि जन उनकी रुगच और ज्ञ न के आध र पर क्रकय
ज त है मीडडय की ि ष में इसे बीट कहते हैं।बीट ररपोठटां ग और विशेषीकृत ररपोठटां ग में सबसे
महत्िपण
ू ु अांतर यह है क्रक अपनी बीट की ररपोठटां ग के भिए सांि दद त में उस क्षेत्र के ब रे में
ज नक री होन पय ुप्त है िेक्रकन विशेषीकृत ररपोठटां ग के भिए उस विशेष क्षेत्र य विषय से जड़
ु ी
घटन ओां , मद
ु दों और समस्य ओां क ब रीकी से विश्िेषण करके तथ्य त्मक ररपोटु प्रस्तत
ु करत
है और उसे ही विशेष सांि दद त कह ज त है । विशेष िेखन के तहत ररपोठटां ग के अि ि उस
विषय य क्षेत्र विशेष पर फीचर,ठटप्पणी ,स क्ष त्क र,िेख,समीक्ष और स्तम्ि िेखन िी आत है ।
1. विशेष लेखन के अंतगयत आने िाले क्षेत्र हैं-
(क) पय ुिरण (ख) खेि (ग) गचक्रकत्स (घ) उक्त सिी
उत्तर- घ) उतत सभी
2.इनमें से कौन-सा विशेष लेखन का क्षेत्र है ?
(क) भसनेम (ख) मनोरां जन (ग) स्ि स्थ्य (घ) उपयक्
ु त सिी
उत्तर- (घ) उपयत
ुय त सभी
3.विशेष लेखन के सलए ककस प्रकार की भाषा - शैली अपेक्षक्षत है ?
(क)स ठहजत्यक (ख)सहज,सरि एिां बोधगम्य ि ष (ग)ब ज़ रू ि ष (घ)ठहन्दी-उदु ू भमगश्रत ि ष
उत्तर- (ख)सहज,सरल एिं बोधगम्य भाषा
4.कारोबार और व्यापार से संबक्न्धत खबर का संबंध ककससे है ?
(क) खेि क्षेत्र से (ख)कृवष क्षेत्र से (ग)आगथुक क्षेत्र से (घ)र जनीततक क्षेत्र से

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उत्तर- (ग)आचियक क्षेत्र से
5.इनमें से कौन-सा शब्द आचियक क्षेत्र से संबक्न्धत नहीं है ?
(क) स्फीतत (ख) वय प र घ ट (ग) तनिेशक (घ) पररि र
उत्तर- (घ) पररिार
6.इनमें से कौन-सा शब्द आचियक क्षेत्र से संबक्न्धत है ?
(क) सांसद (ख) गग
ु िी (ग) रन आउट (घ) मांदडड़य
उत्तर- (घ) मंदडड़या
7.‘डेस्क’ से तया असभप्राय है ?
(क) यह ाँ ररपोटु रों को उनके क्षेत्र ब ाँटे ज ते हैं । (ख)यह एक मशीन है ।
(ग) यह ाँ सम च रों को छ पने योग्य बन य ज त है । (घ)यह ाँ िेखन क यु क्रकय ज त है ।
उत्तर- (ग)यहााँ समा ारों को िापने योग्य बनाया जाता है ।
8.संिाददाताओं की रुच और ज्ञान को ध्यान में रखकर उनके काम के विभाजन को कहते हैं-
(क) ररपोटु (ख) नीट (ग) बीट (घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर- (ग) बीट
9.फ्री-लांस पत्रकार ककसे कहते हैं ?
(क)तनजश्चत म नदे य पर क यु करने ि िे पत्रक रों को
(ख)िुगत न िेकर अिग-अिग सम च र पत्र और पबत्रक ओां के भिए िेखन करने ि िे पत्रक र को
(ग)क्रकसी के भिए क म न करने ि िे पत्रक रों को
(घ)केिि एक ही चैनि में क म करने ि िे पत्रक रों को
उत्तर- (ख)भुगतान लेकर अलग-अलग समा ार पत्र और पत्रत्रकाओं के सलए लेखन करने िाले
पत्रकारों को
10. विशेष लेखन तया है ?
(क) क्रकसी िी क्षेत्र मे विशेष रूप से िेखन करन (ख) स म न्य िेखन करन
(ग) विशेष फॉन्ट में भिखन (घ)विशेष िेखन करन
उत्तर- (क)ककसी भी क्षेत्र मे विशेष रूप से लेखन करना
11.विशेष संिाददाता ककसे कहते हैं?
(क)मनपसांद क्षेत्र ि िे सांि दद त को(ख)जजन सांि दद त ओां दि र विशेषीकृत ररपोठटां ग की ज ती है
(ग) विशेष म नदे य िेने ि ि (घ)उपयक्
ु त में से कोई िी नहीां
उत्तर- (ख)क्जन संिाददाताओं द्िारा विशेषीकृत ररपोहटिं ग की जाती है
12.अखबारों मे विशेष लेख सलखने िाले कौन होते हैं ?
(क) प्रख्य त वयजक्त जजनक हर क्षेत्र मे अनि
ु ि होत है ।
(ख) उस क्षेत्र के प्रख्य त वयजक्त जजनक उस क्षेत्र में िषों क अनि
ु ि होत है ।

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(ग) प्रख्य त वयजक्त जजनक र जनैततक क्षेत्र में अनुिि होत है ।
(घ) स म न्य िोग I
उत्तर- उस क्षेत्र के प्रख्यात व्यक्तत क्जनका उस क्षेत्र में िषों का अनभ
ु ि होता है ।
13.विशेष लेखन की भाषा –शैली हे तु तया आिश्यक है ?
(क) िेखन करते समय विभिन्न ि ष की शब्द िभियों क प्रयोग करन ।
(ख) उस विशेष क्षेत्र की शब्द िभियों से पररगचत होन ।
(ग) विशेष विषय पर िेखन करन ।
(घ) आिांक ररक शब्द ििी होन
उत्तर- (ख)उस विशेष क्षेत्र की शब्दािसलयों से पररच त होना ।
14. विशेष िेखन के क्रकतने क्षेत्र हैं?
(क) एक (ख) दो (ग) च र (घ) अनेक
उत्तर- (घ) अनेक
15 इनमें से विशेष िेखन क कौन-स क्षेत्र नहीां है ?
(क) भसनेम (ख) मनोरां जन (ग) स्ि स्थ्य (घ) सम च र
उत्तर- समा ार

प्रश्न 3: पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 से बहुविकल्पात्मक प्रश्न


(अ)पहठत काव्यांश पर आधाररत प्रश्न
• तनम्नभिखखत प्रश्न पठित क वय ांश पर आध ररत हैं l प्रत्येक पठित क वय ांश 5 अांक क
हैl
• प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प क चुन ि करते हुए दीजजएl
• सिी प्रश्नों के अांक सम न हैंl सिी 1-1 अांक के प्रश्न हैंl
• कुछ प्रश्न बौदगधक-त क्रकुक क्षमत पर आध ररत हैंl
पहठत काव्यांश-1
हम दरू दशुन पर बोिेंगे
हम समथु शजक्ति न
हम एक दब
ु ि
ु को ि एांगे
एक बांद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्य अप ठहज हैं?
तो आप क्य अप ठहज हैं?
आपक अप ठहजपन तो दःु ख दे त होग

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दे त है?
(कैमर ठदख ओां इसे बड़ -बड़ )
ह ाँ तो बत इए आपक दःु ख क्य है
जल्दी बत इए िह दःु ख बत इए
बत नहीां प एग l

प्रश्न 1 “हम दरू दशयन पर बोलेंगे...” में आए ‘हम’ शब्द से तया तात्पयय है ?
(क) समथु शजक्ति न के भिए (ख) दरू दशुन आयोजन कत ु के भिए
(ग) अप ठहज वयजक्त के भिए (घ) दशुकों के भिए
प्रश्न 2 आयोजक ने स्ियं को समिय शक्ततिान तयों कहा है ?
(क) पूांजीि द क समथुक होने के क रण (ख) आयोजन कत ु होने के क रण
(ग) क तथ ख दोनों। (घ) उपरोक्त दोनों में से कोई नहीां
प्रश्न 3 प्रश्नकताय कैमरे िाले को ननदे श तया दे ता है?
(क) कैमर बांद करने क (ख) बड़ -बड़ ठदख ने क
(ग) स्ियां क सुांदर गचत्र बनि ने क (घ) उपरोक्त सिी
प्रश्न4 कविता की सशल्पगत विशेषता तया है?
(क) क वय ांश की ि ष तत्समतनष्ि है (ख) क वय ांश पत्रक रीय शैिी में है
(ग) कोष्िकीय प्रयोग ि बबांब त्मक प्रि ि (घ) ख तथ ग सत्य हैं
प्रश्न5 प्रस्तत
ु काव्यांश से दरू दशयन-आयोजक की ककस मनोदशा का बोध होता है?
(क) तनत ांत वयिस तयक (ख) पांज
ू ीि दी (ग) सिी (घ) तनदुयी ि किोर

उत्तर: 1. ख 2. क 3. ग 4. ख 5. क

पहठत काव्यांश-2

ततरती है समीर स गर पर
अजस्थर सुख पर दख
ु की छ य
जग के दग्ध हृदय पर
तनदुय विप्िि की प्ि वित म य
यह तेरी रण-तरी
िरी आक ांक्ष ओां से
घन, िेरी-गजुन से सजग सप्ु त अांकुर

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उर में पथ्
ृ िी के, आश ओां से
निजीिन की, ऊांच कर भसर,
त क रहे हैं, ऐ विप्िि के ब दि!
क्रफर-क्रफर
ब र-ब र गजुन
िषुण है मस
ू िध र,
हृदय थ म िेत सांस र,
सन
ु -सन
ु घोर िज्र हुांक र
अशतन प त से श वपत उन्नत शत-शत िीर,
क्षत-विक्षत हत अचि शरीर,
गगन स्पशु स्पध ु धीर l

प्रश्न1. कवि बादलों को ककसका प्रतीक मानता है?


(क) कृषक के सम न (ख) कवियों के सम न (ग) क्र ांततदत
ू के सम न (घ) आम जनत क
प्रश्न2. कवि और कविता के नाम का सही यन कीक्जए?

(क) ब दि र ग, जयशांकर प्रस द (ख) ब दि र ग, तनर ि


(ग) र ग ब दि, आिोक धन्ि (घ) र ग ब दि, क्रफर ख गोरखपुर
प्रश्न3. कवि ने बादल को क्रांनत का प्रतीक तयों माना है?
(क) यह िष ु करत है (ख) इसमें विप्िि विध्िांश की क्षमत है
(ग) यह घोर गजुन करत है (घ) यह कवि क वप्रय विषय है
प्रश्न4. क्रांनत से या विनाश से कौन सबसे अचधक प्रभावित होते हैं?
(क) सुप्त अांकुर (ख) कविजन (ग) आमजन (घ) पूांजीपतत मनुष्य
प्रश्न5. काव्यांश में कौन सा त्रबंब नहीं है?
(क) दृश्य बबांब (ख) श्रवय बबांब (ग) स्ि द बबांब (घ) स्पशु बबांब
उत्तर: 1. ग 2. ख 3. ख 4. ग 5. ग

पहठत काव्यांश-3
खेती, न क्रकस न को, भिख री, न िीख बभि,
बतनक को, बतनज, न च कर को, च करी,
जीविक विहीन िोग, भसदयम न सोच बस,

32
कहैं एक-एकन सौं कह ां ज ई क करी
िेदहूां पुर ण कही िोकहूां बबिोक्रकयत
े़
स ांकरे सबै पै, र म! र िरे कृप करीl
द ररद दश नन दब ई दन
ु ी, दीनबांधु !
दरु रत दहन दे खख तुिसी हह करर l

प्रश्न1. प्रकृनत और शासन की विषमता का तया कारि है ?


(क) दीनत ि आजीविक क अि ि (ख) दश नन र िण
(ग) केिि बेरोजग री (घ) सत्त की अनदे खी
प्रश्न2. इस काव्यांश की भाषा शैली काव्यगत विशेषता तया है?
(क) ब्रज ि ष प्रयोग, सिैय छां द (ख) ब्रज ि ष प्रयोग, कवित्त छां द
(ग) अिधी ि ष , चौप ई छां द (घ) अिगध ि ष , चौप ई छां द
प्रश्न3. कवि को इस दव्ु ययिस्िा में ककसका भरोसा है ?
(क) सरक र पर (ख) श्री र ांि पर (ग) श्री र म र ांिरे पर (घ) र िण पर
प्रश्न4. कवि ने िेद पुराि आहद ग्रंिों का उल्लेख ककस अिय में ककया है ?
(क) दवु युिस्थ क क रण गरीबी है (ख) र िण अत्य च र करत है
(ग) सांकट के समय म त्र श्री र म ही सह र दे ते हैं (घ) गरीबी रूपी र िण ने सबको दब ठदय है
प्रश्न5. उपयत
ुय त काव्यांश ककस पुस्तक से उद्धत
ृ है ?
(क) कवित ििी (ख) दोह ििी (ग) र म यण (घ) र मचररत म नस
उत्तर: 1. क 2. ख 3. ग 4. ग 5. क

पहठत काव्यांश- 4

दीप ििी की श म घर पुते और ससजे


चीनी के खखिौने जगमग ते ि िे
िह रूपिती मुखड़े पे इक नमु दमक
बर्चचे के घरोंदे में जि ती है ठदए
आांगन में िुनक रह है जजदय य है
ब िक तो हई च ांद पै ििच य है
दपुण उसे दे कर कह रही है म ां
दे ख आईने में च ांद उतर आय है

33
प्रश्न1. दीपािली की शाम घर सजे पुते हदखाई दे रहे हैं! तयोंकक-
(क) बर्चच जजदय य है (ख) म ां को घर सज ने क अिक श नहीां है
(ग) बर्चचे की प्रफुल्ित म ां को घर सज ने की उमांग िरती है (घ) उपरोक्त सिी सही हैं
प्रश्न2. काव्यांश का काव्य िैसशष््य तया है?
(क) क वय में ि त्सल्य रस की प्रध नत (ख) क वय की ि ष शैिी दे शज शब्द प्रध न है
(ग) क वय में रूब ई छां द क प्रयोग क्रकय गय है (घ) उपयक्
ु त सिी
प्रश्न3. प्रस्तत
ु काव्यांश में ‘लािे’ शब्द का आशय -
(क) जगमग ते भसत रों से है (ख) जगम ते ठदयों से है
(ग) जगम ती झ िर से है (घ) जगमग ते खखिौनों से है
प्रश्न4. प्रस्तत
ु काव्यांश में ककसके सौंदयय का िियन है ?
(क) म ां के (ख) ठदए क (ग) घर क (घ) खखिौने क
प्रश्न5. मां बच् े की क्जद को ककस प्रकार पूरा करती है ?
(क) बर्चचे को हि में िोक दे कर (ख) च ांद रूपी खखिौन दे कर
(ग) च ांद क प्रततबबांब ठदख कर (घ) नय खखिौन दे कर

उत्तर: 1. ग 2. घ 3. ख 4. क 5. ग

पहठत काव्यांश -5

छोट मेर खेत चौकोन


क गज क एक पन्न ,
कोई अांधड़ कहीां से आय
क्षण क बीज िह ां बोय गय l
कल्पन के रस यनों को पी
बीज गि गय तन:शेष
शब्द के अांकुर फूटे ,
पल्िि पुष्पों से नभमत हुआ विशेषl

प्रश्न1. किन:- कवि कागज़ को खेत मानता है l


कारि:- (1) कागज़ खेत की तरह ौकोना है
(2) कविता भी फसल के समान कागज़ पर पल्लवित होती है l

34
(क) केिि तनष्कषु (1) सही है (ख) केिि तनष्कषु (२) सही है l
(ग) दोनों तनष्कषु सही हैं (घ) दोनों तनष्कषु सही नहीां हैं
प्रश्न2. वि ारों के अंधड़ से काव्यांश में तया असभप्राय है ?
(क) कवि के मजस्तष्क में विच रों क तीव्र आगमन (ख) मजस्तष्क में शब्दों की उधेड़-बुन
(ग) कल्पन -जगत में उथि पुथि (घ) उपयक्
ु त सिी
प्रश्न3. शब्द के अंकुर फूटे में ननहहत भाि तया है ?
(क) कवित रचन (ख) रचन के प्र रां भिक शब्दों की उत्पवत्त (ग) क तथ ख (घ) केिि ख
प्रश्न4. संपूिय काव्यांश में ककस अलंकार का आभास हो रहा है है ?
(क) रूपक (ख) म निीकरण (ग) अततशयोजक्त (घ) उत्प्रेक्ष
उत्तर: 1. ग 2. घ 3. ख 4. क

(ब)पहठत गद्यांश
छ त्र प ठ्य पुस्तक आरोह ि ग -2 के प िों से ठदए गए गदय ांशों को ध्य नपूिक
ु पढें गे I इसके
पश्च त पूछे गए प्रश्नों में सही विकल्प क चयन करें गे I
पहठत गद्यांश-1
सेिक धमु में हनुम न जी से स्पध ु करने ि िी िजक्तन अांजन की पुत्री न होकर एक अन म
धन्य गोप भिक की कन्य है न म है िछभमन अथ ुत िक्ष्मी। पर जैसे मेरे न म की विश ित मेरे
भिए दि
ु ह
ु है , िैसे ही िक्ष्मी क्रकस समद
ृ गध िजक्तन के कप ि की कांु गचत रे ख ओां में नहीां बांध
सकी थी । िैसे तो जीिन में प्र य: सिी को अपने अपने न म क विरोध ि स िेकर जीन पड़त
है पर िजक्तन बहुत समझद र है क्योंक्रक िह अपन समद
ृ गध सूचक न म क्रकसी को बत ती नहीां
थी ।
प्रश्न 1- भक्ततन के सेिा धमय की तुलना ककससे की गई है ?
(क) हनुम न (ख) तुिसीद स (ग) मीर ब ई (घ) िक्ष्मण
उत्तर-(क) हनुमान
प्रश्न 2-भक्ततन का िास्तविक नाम तया िा ?
(क)मह दे िी (ख)कमि (ग)िक्ष्मी (घ)र ध
उत्तर-(ग) लक्ष्मी
प्रश्न 3- भक्ततन अपना असली नाम तयों िुपा कर रखती िी ?
(क)उसे न म पसांद नहीां थ (ख)जीिन न म के अनुरूप नहीां थ
(ग)वपत की य द ठदि त थ (घ)इनमें से कोई नहीां

35
उत्तर-(ख) जीिन नाम के अनुरूप नहीं िा
प्रश्न 4- भक्ततन के वपता िे-
(क) कुम्ह र (ख) िोह र (ग)गोप िक (घ)वय प री
उत्तर – (ग)गोपालक
प्रश्न5-"परर य से मेरे नाम की विशालता मेरे सलए दि
ु ह
य है " में ’मेरे’ ककसके सलए प्रयत
ु त हुआ है
(क)िजक्तन के भिए (ख)िक्ष्मी के भिए (ग)िजक्तन की विम त के भिए (घ)िेखखक के भिए
उत्तर- (घ) लेणखका के सलए

पहठत गद्यांश 2
जेब िरी हो और मन ख िी हो ऐसी ह ि त में ब ज र की चमक दमक के ज द ू क असर खूब
होत है I जेब ख िी, पर मन िर न हो , तो िी ज द ू चि ज येग I मन ख िी है तो ब ज र की
अनेक नेक चीजों क तनमांत्रण उस तक पहुांच ही ज एग I कहीां हुई उस िक्त जब िरी , तब तो
क्रफर िह मन क्रकसकी म नने ि ि है I म िूम होत है क्रक यह िी िांू िह िी िूां I सिी स म न
जरूरी और आर म को बढ ने ि ि म िूम होत है I पर यह सब ज द ू क असर है I ज द ू की
सि री उतरी क्रक पत चित है क्रक फैंसी चीजों की बहुत यत आर म में मदद नहीां दे ती बजल्क
खिि ही ड िती है I थोड़ी दे र को स्ि भिम न को जरूर सेंक भमि ज त है पर इससे अभिम न
की गगल्टी को और खुर क भमिती ही भमिती है I
प्रश्न 1- गद्यांश में ककसके जाद ू की ाय हो रही है ?
(क) पैसे की (ख)ब ज र के (ग)खरीद री के (घ)ग्र हकों के
उत्तर- बाजार के
प्रश्न 2-यह जाद ू ककस तरह काम करता है ?
(क)आाँख की र ह (ख)तनमांत्रण दि र (ग)दक
ु नद रों के दि र (घ)इनमें से कोई नहीां
उत्तर- आंख की राह
प्रश्न 3- बाजार के जाद ू को रूप का जाद ू तयों कहा है ?
(क)नई-नई िस्तुओां क सुांदर रूप ठदख क िगत है
(ख) सुांदर रुप से ग्र हक के मन में तष्ृ ण जग त है
(ग) सुांदर चीजें दे ख उन्हें खरीदने को ि ि तयत हो ज ते हैं
(घ) उपयक्
ु त सिी
उत्तर - विकल्प (घ )सही है
प्रश्न 4- बाजार के जाद ू की तल
ु ना ककससे की गई है ?
(क)िोहे से (ख)अभिम न से (ग)चांब
ु क से (घ) सोने से
उत्तर - ंब
ु क से

36
प्रश्न 5- बाजार के जाद ू का असर कब लता है ?
(क) जेब ख िी हो और मन िर हो (ख)जेब िरी हो और मन ख िी हो
(ग) जेब ख िी हो और मन ख िी हो (घ) (ख) और (ग) दोनों सही है
उत्तर- जेब भरा और मन खाली हो
पहठत गद्यांश-3
क्रफर जीजी बोिी,”दे ख तू तो अिी से पढ भिख गय है I मैंने तो ग ांि के मदरसे क िी मांह
ु नहीां
दे ख I पर एक ब त दे खी है क्रक अगर तीस च िीस मन गेहूां उग न है तो क्रकस न प ांच छह सेर
अर्चछ गेहूां अपने प स से िेकर जमीन में क्य ररय ां बन कर फेंक दे त है I उसे बुि ई कहते हैं
Iयह जो सख
ू े में हम अपने घर क प नी इन पर फेंकते हैं ; िह िी बुि ई है Iयह प नी गिी में
बोयेंगे तो स रे शहर, कस्ब ,ग ांि पर प नी ि िे ब दिों की फसि आ ज एगी Iहम बीज बन कर
प नी दे ते हैं , क्रफर क िे मेघों से प नी म ांगते हैं Iसब ऋवष मुतन कह गए हैं क्रक पहिे खुद दो तब
दे ित तुम्हें चौगुन आि गुण करके िौट एांगेI िैय यह तो हर आदमी क आचरण है ,जजससे
सबक आचरण बनत है Iयथ र ज तथ प्रज भसफु यही सच नहीां है Iसच यह िी है - क्रक यथ
प्रज तथ र ज I यही तो ग ांधी जी मह र ज कहते हैं I
प्रश्न 1- बुिाई के सलए ककसान ककस प्रकार से श्रम करता है ?
(क)जमीन की तनर ई गुड़ ई करन (ख) हि चि न ि क्य ररय ां बन न
(ग)बीज बोन (घ) उपयक्
ु त सिी
उत्तर -विकल्प (घ) सही है
प्रश्न 2- त्याग की महत्ता को ककसने बताया िा ?
(क) ऋवष -मुतनयों ने (ख) इन्दर सेन ने (ग)िेखक ने (घ)र ज ने
उत्तर- विकल्प (क) सही है
प्रश्न -3 जीजी ने अपने आ रि सम्बन्धी बात के समियन में ककसका नाम सलया ?
(क) सीत जी क (ख) हनुम न जी क (ग) ग ाँधी जी क (घ)अांग्रेजों क
उत्तर- विकल्प (ग) सही है
प्रश्न -4 जीजी ककसान के उदाहरि द्िारा तया ससद्ध करना ाहती हैं ?
(क) िष ु के भिए इन्दर सेन पर जि समवपुत करन होग (ख) खेती के भिए हि चि न आिश्यक है
(ग) हमे क्रकस न के सम न पररश्रमी बनन च ठहए (घ) खेती क क यु िष ु पर तनिुर होत है
उत्तर – विकल्प (क) सही है
प्रश्न -5 इन्दर सेना पर पानी फेकना जीजी के अनस
ु ार तया है ?
(क) प नी की बब ुदी (ख) प नी की बि
ु ई (ग )अन्धविश्ि स (घ) प नी क विसजुन
उत्तर – विकल्प (ख) सही है
पहठत गद्यांश-4

37
मै सोचत हूां क्रक पुर ने की यह अगधक र भिप्स क्यों नहीां समय रहते स िध न हो ज ती हैं? जर
और मत्ृ यु यह दोनों ही जगत के अतत पररगचत और अततप्रम खणक सत्य है I ति ु सीद स ने अफसोस
के स थ इसकी सर्चच ई पर मह
ु र िग ई थी-“ धर को प्रम न यही ति
ु सी जो फर सो झर , सो
बर सो बतु न !” मैं भशरीष के फूिों को दे ख कर कहत हूां क्रक क्यों नहीां फिते ही समझ िेते हैं
क्रक झड़न तनजश्चत है Iसुनत कौन है ?मह क ि दे ित सप सप कोड़े चि रहे हैं, जीणु और दब ु ि

झड़ रहे हैं, जजनमें प्र ण कण थोड़ िी उध्िु मख
ु ी है िे ठटक ज ते है I दरु ां त प्र णध र और
सिुवय पक क ि जग्न क सांघषु तनरां तर चि रह है I मख
ू ु समझते हैं क्रक जह ां बने हैं िही दे र तक
बने रहे तो क िदे ित की आांख से बच ज एांगेI िि
ू े हैं िे I हीिते डुिते रहो, स्थ न बदिते रहो
आगे की ओर मुांह क्रकये रहो तो कोड़े की म र से बच िी सकते हो Iजमे क्रक मरे !
प्रश्न 1- लेखक ककसकी अचधकार सलप्सा की बात कर रहा है ?
(क)पुर ने नेत ओां की (ख)पुर ने मजबत
ू फिों की (ग)परु ने बूढे िोगों की (घ)उपयक्
ु त में से कोई नहीां
उत्तर-विकल्प (क) सही है
प्रश्न 2- सशरीष की ककस विशेषता के कारि लेखक को यह सब सलखना पड़ा ?
(क) भशरीष के पेड़ों को दे खकर (ख)भशरीष के पुर ने मजबूत फिों को दे खकर
(ग) भशरीष के फूिों को दे खकर (घ)भशरीष के नए फिों को दे खकर
उत्तर- विकल्प ख सही है
प्रश्न 3-मूखय अपना स्िान तयों नहीं िोड़ते?
(क)क ि दे ित की आांख से बचने के भिए (ख) मूखो के आिसी होने के क रण
(ग)अन्य स्थ न सुविध जनक न होने के क रण(घ) क्यूांक्रक उन्हें कोई अन्य स्थ न नहीां भमि प त
उत्तर – विकल्प क सही है
प्रश्न 4- जगत का अनत प्रमाणिक और अनत पररच त शब्द तया है ?गद्यांश के आधार पर बताईये
(क) सुख और स्ि थु भसदगध (ख) सूयु और चांरम
(ग) जर और मत्ृ यु (घ) धरती और आक श
उत्तर- विकल्प ग सही है
प्रश्न 5- सशरीष के पुराने मजबूत फल के उदाहरि द्िारा कवि तया सीख दे ना ाहता है ?
(क)पुर ने फिों को तोड़ दे न च ठहए (ख़)पुर नी चीजें बेक र हो ज ती हैं
(ग) पुर ने फिों में कीड़े पड़ ज ते हैं (घ)पुर नी पीढी को नयी पीढी के स्ि गत में अपन स्थ न
छोड़ दे न च ठहए
उत्तर- विकल्प घ सही है

पहठत गद्यांश-5

38
यह विडांबन की ही ब त है क्रक इस युग में िी ज तति द के पोषकों की कमी नहीां है I इसके पोषक
कई आध रों पर इसक समथुन करते हैं Iसमथुन क एक आध र यह कह ज त है क्रक आधतु नक
सभ्य सम ज क यु कुशित के भिए श्रम विि जन को आिश्यक म नत है और चाँ क्रू क ज तत प्रथ
िी श्रम विि जन क ही दस
ू र रूप है इसभिए इसमें कोई बरु ई नहीां है I इस तकु के सांबांध में
पहिी ब त तो यही आपवत्तजनक है क्रक ज तत प्रथ श्रम विि जन के स थ-स थ श्रभमक विि जन
क िी रूप भिए हुए हैं Iश्रम विि जन तनजश्चत ही सभ्य सम ज की आिश्यकत है पर क्रकसी िी
सभ्य सम ज में श्रम विि जन की वयिस्थ श्रभमकों क विभिन्न िगों में अस्ि ि विक विि जन
नहीां करतीI ि रत की ज तत प्रथ की एक और विशेषत यह है क्रक यह श्रभमकों क अस्ि ि विक
विि जन ही नहीां करती बजल्क विि जजत विभिन्न िगों को एक दस
ू रे की अपेक्ष ऊांच-नीच िी
कर र दे ती है जो क्रक विश्ि के क्रकसी िी सम ज में नहीां प य ज त है I
प्रश्न 1- उपयत
ुय त गद्यांश में लेखक में समाज में व्याप्त ककस समस्या को विडंबना माना है ?
(क)स ांप्रद तयकत (ख) ज तति द (ग)क्षेत्रीयि द (घ)आतांकि द
उत्तर- (ख) जानतिाद
प्रश्न 2- भारतीय जानत प्रिा विश्ि से अलग है तयोंकक यहााँ-
(क)श्रम क अस्ि ि विक विि जन है (ख) विि जजत िगु में ऊांच-नीच की ि िन है
(ग)श्रभमकों को िी ज तति द में ब ांट गय है (घ)उपयक्
ु त सिी
उत्तर- विकल्प घ सही है
प्रश्न 3-जानतिाद के समियन के तकय में तया आपवत्तजनक है ?
(क)श्रभमकों क विभिन्न श्रेखणयों में अस्ि ि विक विि जन
(ख)क युकुशित के भिए श्रम विि जन
(ग)ज तत प्रथ को श्रम विि जन क दस
ू र रूप म नन
(घ)श्रभमकों के भिए क युकुशित को अतनि यु म नन
उत्तर -विकल्प क सही है
प्रश्न 4- श्रसमक विभाजन से असभप्राय है -
(क)कुशित के आध र पर श्रभमकों क स्तर तनजश्चत करन
(ख)जन्म के आध र पर श्रभमकों क स्तर तनजश्चत करन
(ग)क्षेत्र के आध र पर श्रभमकों क स्तर तनजश्चत करन
(घ)धमु के आध र पर श्रभमकों क तनजश्चत करन
उत्तर- विकल्प ख सही है
प्रश्न 5- उपयत
ुय त गद्यांश के लेखक हैं
(क)रजजय सज्ज द (ख)मोहन र ि अांबेडकर (ग)ब ब स हब िीमर ि आम्बेडकर (घ)सतीश र ि अांबेडकर
उत्तर- विकल्प ग सही है

39
प्रश्न4. परू क पाठ्यपस्
ु तक वितान भाग-2 से बहुविकल्पात्मक प्रश्न-

(i) ससल्िर िैडडंग

ससल्िर िैडडंग –मनोहर श्याम जोशी

पीहढ़यों के बी अंतराल को दशायती कहानी ‘ससल्िर िैडडंग’ कहानी – मनोहर श्याम जोशी

सारांश- कह नी के न यक यशोधर पांत (यशोधर ब बू य ि य॰डी पांत) एक सांस्क री वयजक्त हैं


िेक्रकन आधतु नक विच रध र ि िे िोग उनसे सहमत नहीां रहते । िे समय पर ऑक्रफस आते-ज ते
हैं । ऑक्रफस में नए िड़के चड्ढ दि र बदतमीजी क्रकए ज ने को िे अनदे ख करते हैं । िे
क्रकशनद से बहुत प्रि वित हैं ि उन्हें अपन गरु
ु म नते हैं । क्रकशनद ने ही उन्हें दफ्तर में
नौकरी ठदिि ई । क्रकशनद अविि ठहत थे। यशोधर ब बू सदै ि उनके भसदध ांतों पर चिते रहे ।
यशोधर ब बू के तीन बेटे ि एक बेटी हैं। सबसे बड़ बेट िूषण विज्ञ पन एजेंसी में 1500 रुपए
प्रतत म ह कम त है । उनके च रों बर्चचे और पत्नी आधुतनक विच रों के हैं । जजसके क रण यशोधर
ब बू से उनक मतिेद चित रहत है । िेक्रकन क्रफर िी यशोधर ब बू को बर्चचों की तरक्की पसांद
है। बर्चचे यशोधर ब बू की श दी की पर्चचीसिीां स िगगरह पर प टी दे ते हैं । यशोधर ब बू न च हते
हुए िी पत्नी के स थ केक क टते हैं । बड़ बेट िूषण उन्हें ऊनी ग ऊन उपह र में दे ते हुए कहत
है क्रक इसे पहनकर ही सिेरे दध
ू िेने ज य करें । यशोधर ब बू की आाँखों में आाँसू आ गए । ग उन
पहनकर उन्हें िग क्रक उनके अांगों में क्रकशनद उत र आए हैं। प्रस्तत
ु कह नी में मनोहर श्य म
जी ने स्पष्ट क्रकय है क्रक आधतु नकत की ओर बढत हुआ हम र सम ज एक ओर कई नई
उपिजब्धयों को समेटे हुए हैं,तो दस
ू री ओर मनुष्य को मनुष्य बन ए रखने ि िे मूल्य कहीां तघसते
चिे गए हैं। इस कह नी में एक सांस्क री वयजक्त क आधुतनक युग के िोगों को बदिते दे खकर
परे श न होन दश ुय गय है । कह नी में नई पीढी और पुर नी पीढी के िोगों के विच रों में वय प्त
विषमत को स्पष्ट क्रकय गय है । इसमें (कह नी में ) यशोधर ब बू की दवु िध क िणुन है। ‘जो
हुआ होग ’में यथ जस्थतति द क ि ि है तो ‘समह ऊ इांप्र पर’ में एक अतनणुय की जस्थतत है। ये
दोनों ही ि ि इस कह नी के मुख्य चररत्र यशोधर ब बू के िीतर के दिांदि हैं।
प्रस्तत
ु कह नी नई पीढी और परु नी पीढी के िोगों के विच रों एिां वयिह रों में आए पररितुन को
दश ुती है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर हे तु ननदे शानुसार सहीं विकल्प का यन कीक्जए-
1) ‘ससल्िर िैडडंग’ कहानी की मूल संिेदना आप ककसे मानेंगे?

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क) प श्च त्य सांस्कृतत क प्रि ि ख) ह भशये पर धकेिे ज ते म निीय मूल्य
ग) पीढी अांतर ि घ)भसल्िर िेडडांग के पररण म
उत्तर- ग) पीढ़ी अंतराल
2) ‘ससल्िर िैडडंग’ पाठ में ‘जो हुआ होगा’ िातय का अिय है -
क) प श्च त्य विच रध र के सांदिु में (ख) पररि र की सांरचन के सांदिु में
(ग)क्रकशनद की मत्ृ यु के सांदिु में (घ) यशोधर ब बू की तनयजु क्त के सांदिु में
उत्तर- ग) ककशनदा की मत्ृ यु के संदभय में
3) ककशन दा के ररटायर होने पर यशोधर बाबू उनकी सहायता नहीं कर पाए िे तयोंकक -
क) यशोधर ब बू की पत्नी क्रकशनद से न र ज़ थीां।
ख) क्योंक्रक यशोधर ब बू के घर में क्रकशन द के भिए स्थ न क अि ि थ ।
ग) यशोधर ब बू क अपन पररि र थ जजसे िे न र ज़ नहीां करन च हते थे
घ) क्रकशन द को यशोधर ब बू ने अपने घर में स्थ न दे न च ह थ जजसे क्रकशन द ने
स्िीक र नहीां क्रकय ।
उत्तर- ग) यशोधर बाबू का अपना पररिार िा क्जसे िे नाराज़ नहीं करना ाहते िेI
4) कहानी ‘ससल्िर िेडडंग’ के अनस
ु ार –“ यशोधर बाबू की पत्नी समय के साि ढल सकने में
सफल होती है लेककन यशोधर बाबू असफल रहते हैं।“ यशोधर बाबू की असफलता का तया
कारि िा? सही विकल्प का यन कीक्जए –
क) क्रकशनद उन्हें िड़क ते थे ख)पत्नी बर्चचों से अगधक प्रेम करती थी
ख) पीढी के अांतर ि के क रण घ)िे पररितुन को सहजत से स्िीक र नहीां कर प ते थे
उत्तर- घ) िे पररितयन को सहजता से स्िीकार नहीं कर पाते िे
5) ऑकफस से ननकलकर यशोधर बाबू कहााँ ले जाते िे?
क) क्ि टु र में ख) बबरि मांठदर ग) गोि म क्रकुट घ) पह ड़ी पर
उत्तर- ख) त्रबरला मंहदर
6) यशोधर बाबू गोल माककयट में ही तयों रहना ाहते िे ?
क) क्योंक्रक िह ाँ से उनकी य दें जुड़ी हुई थीां
ख) क्योंक्रक िे बर्चचों को स म जजक बन न च हते थे ।
ग) क्योंक्रक उन्हें पैस बच न थ ।
घ) क्योंक्रक उनक घर सुांदर थ ।
उत्तर- क) तयोंकक िहााँ से उनकी यादें जड़
ु ी हुई िीं

41
7) यशोधर बाबू अपने जीिन में ककससे प्रभावित िे ?
क) कृष्ण नांद प ांडे ख)कृष्ण नांद िम ु ग)कृष्ण नांद शम ु घ)कृष्ण न द गुप्त
उत्तर- क) कृष्िानंद पांडे
8) यशोधर बाबू ककसकी पुस्तकें पढ़ते हैं?
क) गीत प्रेस गोरखपुर की ख)गीत प्रेस हररदि र की
ग)र ज कमि प्रक शन,नई ठदल्िी की घ)र मकृष्ण परमहांस प्रक शन, कोिक त की
उत्तर- क) गीता प्रेस गोरखपुर की
9) मााँ की मत्ृ यु के बाद यशोधर बाबू ककसके पास रहे ?
क) विधि बुआ के प स ख)विधि च ची के प स
ग) विधि म मी के प स घ)विधि मौसी के प स
उत्तर- क) विधिा बुआ के पास
10) यशोधर बाबू को ऐसा कब लगा कक ककशनदा उनके अंगों में उतर आए हैं?
क) जब उनकी पत्नी ने उन्हें उपह र में ऊनी ग उन ठदय ।
ख) जब उनकी पुत्री ने उन्हें उपह र में रे शमी ग उन ठदय
ग) जब उनके पत्र
ु ने उन्हें उपह र में ऊनी ग उन ठदय ।
घ) जब उनके अधीनस्थ (मेनन और चड्ढ ) ने उपह र में उन्हें ऊनी श ि ठदय
उत्तर- ग) जब उनके पुत्र ने उन्हें उपहार में ऊनी गाउन हदया।
11) ससल्िर िैडडंग का आयोजन तयों हुआ िा?
क) यशोधर ब बू की श दी के पच स स ि पूरे होने के उपिक्ष्य में
ख) यशोधर ब बू की श दी के पर्चचीस स ि पूरे होने के उपिक्ष्य में
ग) यशोधर ब बू की श दी के तीस स ि पूरे होने के उपिक्ष्य में
घ) यशोधर ब बू की श दी के पचहत्तर स ि परू े होने के उपिक्ष्य में
उत्तर- ख) यशोधर बाबू की शादी के पच् ीस साल पूरे होने के उपलक्ष्य में
12) त्रबखरे पररिार के प्रनत यशोधर बाबू के लगाि को बच् े ककस दृक्ष्ट से मूखत
य ापि
ू य मानते हैं?
क) स म जजक दृजष्ट से ख)स ांस्कृततक दृजष्ट से
ग)र जनैततक दृजष्ट से घ)आगथुक दृजष्ट से
उत्तर-घ) आचियक दृक्ष्ट से
13) अपने बच् ों की तरतकी से खुश होने के बाद भी यशोधर बाबू को कौन-सी बात खटकती है ?
क) अर्चछ ख न ख न ख)पैदि दफ्तर ज न

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ग)गरीब ररश्तेद रों की उपेक्ष घ)बबरि मांठदर ज न
उत्तर- ग) गरीब ररश्तेदारों की उपेक्षा
14) सन ् 1984 में भारतीय दरू दशयन के प्रिम धारािाहहक ‘हम लोग’ का लेखन ककसने ककया
िा?
क) मनोहर श्य म जोशी ख)ओम थ निी
ग) यशोधर पांत घ)क्रकशनद /कृष्ण नांद प ांडे
उत्तर- क) मनोहर श्याम जोशी
15) ककशनदा यशोधर बाबू को तया मानते िे ?
क) अपन ि ई ख)अपन भमत्र ग)अपन सख घ)म नस पुत्र
उत्तर- क) मानस पत्र

16) यशोधर पंत को अपने बड़े बेटे की प्रनतभा ककस स्टार की लगती है ?
क) तनम्न स्तर की ख)स ध रण स्तर की ग)उर्चच स्तर की घ)मध्यम स्तर की
उत्तर- ख) साधारि स्तर की
17) ऑकफस में यशोधर बाबू की शादी की बात कैसे हुई ?
क) ऑक्रफस से जल्दी ज ने पर ख) ऑक्रफस में िेट आने पर
ग) घड़ी के ब रे में चच ु करने पर घ) समय पर क म खत्म करने पर
उत्तर- ग) घड़ी के बारे में ाय करने पर
18) ** ननम्न सलणखत किन और कारि को ध्यान पूिक
य पहढए और उसके बाद हदए गए विकल्पों
में से एक सही विकल्प न
ु कर सलणखए-
किन (A) : यशोधर बाबू अपनी पत्नी के विरोह का मज़ाक ‘’बूढ़ी मुाँह मुहााँसे,लोग करे ,लोग
करें तमाशे, टाई का लहाँगा,शानयल बुहढ़या,आहद’’ कहकर उड़ते िे ।
कारि :उनके यह सब कहने के बाद भी िह आधुननक जीिन मूल्यों को अपना ुकी िी I
क) कथन (A) तथ क रण (R)दोनों सही हैं तथ क रण,कथन की सही वय ख्य करत है।
ख) कथन(A) गित है ,िेक्रकन क रण ( R)सही है।
ग) कथन (A) तथ क रण ® दोनों गित हैं।
घ) कथन (A) सही है ,िेक्रकन क रण (R) उसकी गित वय ख्य करत है ।
उत्तर- क) किन (A) तिा कारि (R) दोनों सही हैं तिा कारि, किन की सही व्याख्या करता
है।
**नोट- सिी विदय थी कृपय इस तरह के प्रश्नों पर विच र अिश्य करें ,विश्िेषण करें ,गचांतन
करें ,प ि के केंरीय ि ि को अिश्य पढें ,कुछ समय तनक ि कर सिी प िों के ब रे में ,

43
कवि/िेखक के उददे श्य को समझने क प्रय स करें ,क्रकसी पूि ुग्रह /पूिि
ु ध रण पर न ज एाँ,आपके
सक र त्मक सोच ही सही उत्तर तक िे ज एग ।

(ii)जूझ-आनंद यादि

सारांश- यह पाठ लेखक के बहुचर्चित आत्मकथात्मक उपन्यास का अंश है । जझ


ू कहानी के लेखक
ने इस कहानी के माध्यस से अपने उस संघर्ि को व्यक्त करने का प्रयास ककया है,जजसमे वह
पढ़ना तो चाहता है परन्तु अपने पपता के दबाव के कारण पढ़ नह ं पा रहा था। इस पररजथथतत में
जहााँ अर्िकतर बच्चे हार मान जाते हैँ और पढ़ना छोड़ दे ते है, परन्तु लेखक ने हार नह ं मानी
और अपनी सूझ-बूझ से पढ़ाई जार रखी। उसने पवद्यालय जाने के ललए पपता से जो शते मानी
थी उनका पालन ककया। वह पवद्यालय जाने से पहले बथता लेकर खेतों में पानी दे ता। पवद्यालय
से लौटकर वह ढोर चराने भी जाता। मराठी अध्यापक सौंदलगेकर का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव
पड़ा, क्योंकक वे कपवता के अच्छे रलसक और ममिज्ञ थे। वे कक्षाओं में बच्चों को सथवर कपवता
पाठ कराते थे तथा लय, छं द, गतत, आरोह-अवरोह आदद का ज्ञान कराते थे। उनसे प्रभापवत होकर
लेखक कुछ तक
ु बंद करने लगा। उसे यह ज्ञात हो गया कक वह भी अपने आस-पास के दृश्यों पर
कपवता बना सकता है। िीरे -िीरे उनमें कपवता रचने का आत्मपवश्वास बढ़ने लगा। उसके जीवन
को प्रगतत दे ने में सबसे ज्यादा योगदान उसका थवयं का रहा,परन्तु अन्य लोगों ने भी मुख्य
भूलमका तनभाई जैसेेः
लेखक की माता- जजन्होंने अपने पतत से डरते हुए भी युजक्त के द्वारा उसके पढने के ललए राथता
बनाया।
दत्ता जी राव- जजन्होंने उसके पपता को समझाया कक लेखक को पढने भेजे।
अध्यापक सौंदलगेकर- जजन्होंने उसे कपवता और सादहत्य का ज्ञान कराया।
जूझ का अर्थ है- संघर्थ। यह कथानायक के जीवन भर के संघर्ि को दशािती है। बचपन में अभावों
में पला बालक, पवपर त पररजथथततयों पर पवजय प्राप्त कर सका। लगन, लक्ष्य प्राजप्त की इच्छा
और मानलसक दृढ़ता से ककसी भी पररजथथतत से जूझा जा सकता है।
(बहुववकल्पीय प्रश्न)

ननम्नललखखत प्रश्नों के उत्तर हे तु ननदे शानुसार सही ववकल्प का चयन कीजजए-

1- ‘जूझ’ पाठ में लेखक पढाई क्यों करना चाहता र्ा?

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(क) वह व्यापार कर सके ।
(ख) पढ़ ललख कर उसे नौकर लमल जाए और चार पैसे हाथ में रहें I
(ग) वह वैज्ञातनक बन सके।
(घ) उसे राजनेता बनने का शौक था।

2- लेखक जब अपनी कववता ददखाने ‘सौंदलगेकर मास्टर’ के पास जाता तो, वह उसे क्या
समझाते ?
(1) माथटर उसे अपनी कपवता सन
ु ाकर कहते कक ऐसे कपवता ललखो।
(2) माथटर उसे अगले ददन आने के ललए कह दे ते।
(3) माथटर उसे भार्ा, छं द, अलंकार, लय, शुद्ि लेखन के बारे में लेखक को समझाते।
(4) अगल ददन कक्षा में बताने का अश्वासन दे ते।
3- ‘जूझ’ पाठ के अनुसार कववता के प्रनत लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रनत
लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
(1) अकेलापन उपयोगी है। (2) अकेलापन डरावना है।
(3) अकेलापन कष्ट दे ता है। (4) अकेलापन सामान्य प्रकिया है।
4- गााँव के अन्य ककसान ‘ईख’ को ज्यादा ददन खेतों में क्यों रखते र्े ?
(1) गुड़ का दाम बढ जाता है। (2)गुड़ ज्यादा तनकलता है।
(3)मजदरू आसानी से लमल जाते है। (4) कटाई करना आसान हो जाता है।
5- आनंदा और उसकी मााँ ने दत्ताजी राव के पास जाने की योजना क्यों बनाई ?
(1) ताकक दत्ताजी राव उसका लगान माफ कर दे ।
(2) ताकक दत्ताजी राव उसकी कुछ आर्थिक सहायता कर दे ।
(3) ताकक दत्ताजी राव लेखक को पाठशाला भेजने के ललए दादा को समझाकर राजी कर
सके।
(4) उपरोक्त सभी I
6- लेखक का ववश्वास ववद्यालय में पुनः क्यों बढने लगा ?
(1) पवद्यालय में पुरथकार लमलने के कारण ।
(2) मंत्री अध्यापक से वाह-वाह लमलने के कारण ।
(3) अध्यापकों के अपनेपन और वसंत पादटल से दोथती के कारण।
(4) कक्षा का मातनटर बनाए जाने के कारण।

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7- ‘जूझ’ कहानी के माध्यम से ककसके संघर्थ को अलिव्यजक्त प्रदान की गई है?
(1) खेततहर मजदरू ों के संघर्ि।
(2) आनंदा के जीवन का संघर्ि I
(3) गर ब मााँ का संघर्ि I
(4) अध्यापक के जीवन का संघर्ि I
8- ‘जझ
ू ’ कहानी में आनंदा के उच्च स्तरीय कवव बनने तक का सफर ककस बात का प्रमाण
है?
(1) उसके पररश्रम एवं लगन का।
(2) केवल अपने मन की बात करने का।
(3) अध्यापक के सहायता की।
(4) पढ़ाई के साथ-साथ खेती करने की।
9- आनंदा और उसकी मााँ ने दत्ताजी राव को ककस बात के ललए सचेत कर ददया र्ा?
(1) दादा को खेती के काम करने का ललए पववश करे ।
(2) दादा का बाहर घूमना बंद कर ददया जाए।
(3) आनंदा को खेती में काम ना करने ददया जाए।
(4) उन दोनों के उनके पास आने की बात दादा को न बताएं।
10- “आने दे अब उसे, मैं उसे सुनाता हूाँ कक नहीं अच्छी तरह दे ख।“ यह कर्न ककसने व
ककससे कहा?
(1) दत्ताजी राव ने लेखक के पपता से ।
(2) दत्ताजी राव ने लेखक की माता से ।
(3) लेखक के पपता ने लेखक से।
(4) मंत्री माथटर ने वसंत पादटल से ।
11- दादा ने दत्ता जी राव के सामने आनंद को ववद्यालय से ननकालने का क्या कारण बताया?
(1) आंनद चौथी कक्षा में अनत्त
ु ीणि हो गया था।
(2) आनंद को पढ़ाने के ललए पैसे नह ं है।
(3) आनंद को चोर करने, लसनेमा दे खने और खेती के
काम से जी चुराने की आदत पड़ गई थी।
(4) घर और खेती के काम-काज के कारण।
12- ‘जझ
ू ’ कहानी में लेखक के वपता ने उसे ववद्यालय िेजने के ललए क्या शतथ रखी?

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(1) पाठशाला जाने से पहले ग्यारह बजे तक खेत में काम करना होगा।
(2) अगर ककसी ददन खेत में ज्यादा काम होगा तो उसे पाछशाला नह ं जाना होगा।
(3) छुट्ट के बाद घर में बथता रखकर सीिे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना होगा।
(4) उपरोक्त सभी।

13- जझ
ू कहानी में लेखक ककसकी प्रेरणा से कवव बना
(1) गणणत के अध्यापक मंत्री की प्रेरणा से I
(2) मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर की प्रेरणा से।
(3) वसंत पादटल की प्रेरणा से।
(4) दत्ताजी राव की प्रेरणा से।
14- खेत में काम करते हुए अगर लेखक के पास ‘कागज और पेंलसल’ न होता तो वह क्या
करता?
(1) वह कपवता अपने हथेल पर ललखता ।
(2) वह उस ददन उदास हो जाता और कुछ नह ं ललखता ।
(3) वह लकड़ी के छोटे टुकड़े से भैस की पीठ पर रे खा खींच कर ललखता
या ककसी लशला पर कंकड़ से।
(4) उपरोक्त में से कोई नह ।ं
15- जूझ कहानी से क्या लशक्षा लमलती है ?
(1) खेती-बाड़ी में कोई भपवष्य नह ं होता।
(2) अच्छे कायि के ललए झूठ बोलना गलत नह ं है।
(3) सहपाठी तो हाँसी-मजाक करते है। उनसे दोथती बनाकर रखनी चादहए।
(4) जीवन में ककतनी तकल फें क्यों न आयें, हमें हमेंशा जझ
ु ारू रहना चादहए।

उत्तरमाला- 1-ख 2-ग, 3-क, 4-ख, 5-ग, 6-ग, 7-ख, 8-क, 9-घ 10-ख, 11-ग, 12-घ, 13-ख,
14-ग, 15- घ

(iii)अतीत में दबे पााँि-ओम र्ानवी

पाठ का सारांश-अतीत में दबे पााँव’ सादहत्यकार ओम थानवी’ द्वारा रर्चत एक यात्रा-वत
ृ ांत और
ररपोटि का लमला जल
ु ा रूप है। वे पाककथतान जथथत लसंिु घाट सभ्यता के दो महानगरों

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,मोहनजोदड़ो (मुअनजो-दड़ो) और हड़प्पा के अवशेर्ों को दे खकर अतीत की सभ्यता और संथकृतत
की कल्पना करते हैं। अभी तक जजतने भी परु ाताजत्वक प्रमाण लमले उनको दे खकर सादहत्यकार
आज भी उस यग
ु के पररवेश,वातावरण, और आददम गन्ि को महसस
ू करने की चेष्टा करतें है।
लेखक ने मअु नजो-दड़ो के नगर तनयोजन और वहााँ की हर पवशेर्ता को बहुत ह बार की और
रौचक तर के से प्रथतत
ु ककया है।
प्रश्न -1 मअ
ु नजो-दड़ो ककस काल का शहर है ?
(क) लौह काल (ख) मध्यकाल (ग) ताम्र काल (घ) आदद काल
प्रश्न -2 मुअनजो-दड़ो शहर का ववस्तार ककतने हैक्टर में है ?
(क) पांच सौ (ख) छह सौ (ग) चार सौ (घ) दो सौ
प्रश्न -3 मुअनजो-दड़ो शहर के बारे में पहली बार कब और ककसने पता ककया ?
(क) 1922 , राखालदास बनजी (ख) 1950 ,ला काबजूि जए
(ग) 1925 , जान माशिल (घ) 1980 काशीप्रसाद
प्रश्न-4 लेखक लसंध के वातावरण को ककसके समान पाते है ?
(क) उत्तर प्रदे श (ख) पंजाब (ग) राजथथान (घ) बबहार
प्रश्न -5 "उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुिव ककया जा सकता है कक आप दनु नयां की
छत पर है वहााँ से आप ------------को नहीं उसके पार झााँक रहें है।"ररक्त स्र्ान में कौनसा शब्द
आएगा?
(क) अतीत (ख) वतिमान (ग) भग
ू ोल (घ) इततहास
प्रश्न -6 चंडीगढ शहर का ननमाथण ककसने ककया ?
(क) ला काबजूि जए (ख) नेहरूजी (ग) लुटपपनस (घ) जॉन माशिल
प्रश्न -7 मुअनजो-दड़ो में लगिग ककतने कुएाँ र्े ?
(क) आठ सौ (ख) सात सौ (ग) पांच सौ (घ) चार सौ
प्रश्न-8 िारतीय पुरातत्व सवेक्षण के माहाननदे शक कौन र्े जजनके नेतत्ृ व में खुदाई का व्यापक
अलभयान शुरू हुआ? अतीत में दबे पााँव पाठ के आिार पर बताइए।
(क) राखालदास बनजी (ख)काशीनाथ द क्षक्षत (ग) जॉन माशिल (घ) दयाराम साहनी
प्रश्न -9 अजायबघर में प्रदलशथत चीजों में क्या नहीं लमलता ?
(क) तांबे का बतिन (ख) चक्की (ग) हर्थयार (घ) औजार
प्रश्न –10 काशीनार् दीक्षक्षत को सोने की ककतनी सइ
ु यााँ लमली र्ी ?
(क) एक सई
ु (ख) तीन सई
ु (ग) चार सई
ु (घ) एक भी नह
प्रश्न-11 लसंधघ
ु ाटी सभ्यता के अद्ववतीय वास्तक
ु ौशल को स्र्ावपत करने के ललए अकेला ही
काफ़ी माना जाता है ?
(क) थनानागार (ख)सड़के (ग)अजायबघर (घ)आनष्ु ठातनक महाकुण्ड

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प्रश्न-12 इनतहासकार इऱफान हबीब के अनुसार लसंधुघाटी सभ्यता के लोग कौनसी फसल लेते
र्े?
(क) खर फ (ख) रबी (ग) जायद (घ) इनमें से कोई नह
प्रश्न-13 मेसोपोटालमया के लशलालेखों में मअु नजो-दड़ो के ललए ककस शब्द का प्रयोग हुआ है ?
(क) हड़प्पा (ख) लसंि (ग)मेलह ु ा (घ) मत ृ कों का ट ला
प्रश्न-14 परू ब की बस्ती है?
(क) लशल्पकारों की बथती (ख) मजदरू ों की बथती (ग) रईसों की बथती (घ) ककसानों की बथती
प्रश्न-15 मुअनजो-दड़ो में खुदाई क्यों बंद कर दी गयी?
(क) सूखे के कारण (ख) अकाल के कारण (ग) सदी के कारण (घ) दलदल के कारण
उत्तरमाला –
1 ग ,2 घ , 3 क , 4 ग , 5 घ , 6 क , 7 ख, 8 ग , 9 ग , 10ख , 11 घ , 12 ख ,
13 ग , 14 ग, 15 घ

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खंड ब (िियनात्मक)

प्रश्न5. असभव्यक्तत और माध्यम से जनसं ार और सज


ृ नात्मक लेखन

(i) विसभन्न माध्यमों के सलए लेखन

लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न-1 वप्रंट मीडडया (मुरि माध्यम) से तया आशय है ? वप्रंट (मुहरत)माध्यम की विशेषताओं का
उल्लेख कीक्जए।
उत्तर - छप ई ि िे सांच र म ध्यम को वप्रांट मीडडय कहते हैं। इसे मुरण-म ध्यम िी कह ज त
है। सम च र-पत्र पबत्रक एाँ, पुस्तकें आठद इसके प्रमुख रूप हैं।
वप्रंट (मुहरत) माध्यम की विशेषताएं ननम्न हैं-

1. वप्रांट म ध्यमों के छपे शब्दों में स्थ तयत्ि होत है।


2. हम उन्हें अपनी रुगच और इर्चछ के अनुस र धीरे -धीरे पढ सकते हैं।
3. पढते-पढते कहीां िी रुककर सोच-विच र कर सकते हैं।
4. इन्हें ब र-ब र पढ ज सकत है।
5. इसे पढने की शुरुआत क्रकसी िी पष्ृ ि से की ज सकती है ।
6. इन्हें िांबे समय तक सुरक्षक्षत रखकर सांदिु की ि ाँतत प्रयुक्त क्रकय ज सकत है ।
7. यह भिखखत ि ष क विस्त र है, जजसमें भिखखत ि ष की सिी विशेषत एाँ तनठहत हैं।
प्रश्न-2 मुरि (वप्रंट) माध्यम की सीमाएं या कसमयााँ तया हैं ?
उत्तर- मठु रत म ध्यमों की कभमय ाँ तनम्नभिखखत हैं-

1. तनरक्षरों के भिए मुठरत म ध्यम क्रकसी क म के नहीां हैं।


2. मुठरत म ध्यमों के भिए िेखन करने ि िों को अपने प िकों के ि ष -ज्ञ न के स थ-स थ
उनके शैक्षक्षक ज्ञ न और योग्यत क विशेष ध्य न रखन पड़त है।
3. प िकों की रुगचयों और जरूरतों क िी पूर ध्य न रखन पड़त है ।
4. ये रे डडयो, टी०िी० य इांटरनेट की तरह तुरांत घटी घटन ओां को सांच भित नहीां कर सकते।
ये एक तनजश्चत अिगध पर प्रक भशत होते हैं। जैसे अखब र 24 घांटे में एक ब र य स प्त ठहक
पबत्रक सप्त ह में एक ब र प्रक भशत होती है।
5. अखब र य पबत्रक में सम च रों य ररपोटु को प्रक शन के भिए स्िीक र करने की एक
तनजश्चत समय-सीम होती है इसभिए मठु रत म ध्यमों के िेखकों और पत्रक रों को प्रक शन
की समय-सीम क परू ध्य न रखन पड़त है।

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प्रश्न-3 वप्रंट (मुहरत) माध्यम में लेखन के सलए ककन बातों का ध्यान रखना ाहहए?
उत्तर- वप्रंट (महु रत) माध्यम में लेखन के सलए ननम्न बातों का ध्यान रखना ाहहए-
1. मठु रत म ध्यमों में िेखक को जगह (स्पेस) क िी परू ध्य न रखन च ठहए। जैसे क्रकसी
अखब र य पबत्रक के सांप दक ने अगर 250 शब्दों में ररपोटु य फ़ीचर भिखने को कह है
तो उस शब्द-सीम क ध्य न रखन पड़ेग । इसकी िजह यह है क्रक अखब र य पबत्रक में
असीभमत जगह नहीां होती।
2. मठु रत म ध्यम के िेखक य पत्रक र को इस ब त क िी ध्य न रखन पड़त है क्रक छपने
से पहिे आिेख में मौजूद सिी गिततयों और अशद
ु धयों को दरू कर ठदय ज ए क्योंक्रक एक
ब र प्रक शन के ब द िह गिती य अशुदध िहीां गचपक ज एगी। उसे सुध रने के भिए अखब र
य पबत्रक के अगिे अांक क इांतज र करन पड़ेग ।
3. ि ष सरि, सहज तथ बोधगम्य होनी च ठहए।
4. शैिी रोचक होनी च ठहए।
5. विच रों में प्रि हमयत एिां त रतम्यत होनी च ठहए।

प्रश्न- 4 जनसं ार के प्रमुख माध्यम रे डडयो पर प्रकाश डासलए।


उत्तर- रे डडयो श्रवय म ध्यम है । इसमें सब कुछ ध्ितन, स्िर और शब्दों क खेि है । इन सब िजहों
से रे डडयो को श्रोत ओां से सांच भित म ध्यम म न ज त है। रे डडयो पत्रक रों को अपने श्रोत ओां क
परू ध्य न रखन च ठहए।
इस तरह स्पष्ट है क्रक-
1. रे डडयो में अखब र की तरह पीछे िौटकर सन
ु ने की सवु िध नहीां है ।
2. अगर रे डडयो बि
ु ेठटन में कुछ िी भ्र मक य अरुगचकर है , तो सांिि है क्रक श्रोत तरु ां त
स्टे शन बांद कर दे ।
3. दरअसि, रे डडयो मूित: एकरे खीय (िीतनयर) म ध्यम है और रे डडयो सम च र बुिेठटन क
स्िरूप, ढ ाँच और शैिी इस आध र पर ही तय होती है।
4. रे डडयो की तरह टे िीविजन िी एकरे खीय म ध्यम है, िेक्रकन िह ाँ शब्दों और ध्ितनयों की
तुिन में दृश्यों/तस्िीरों क महत्ि सि ुगधक होत है । टी०िी० में शब्द दृश्यों के अनुस र
और उनके सहयोगी के रूप में चिते हैं। िेक्रकन रे डडयो में शब्द और आि ज ही सब कुछ
हैं।
प्रश्न- 5 समा ार लेखन की उल्टा वपरासमड शैली से आप तया समझते हैं?
उत्तर- उिट वपर भमड शैिी में सम च र के सबसे महत्िपूणु तथ्य को सबसे पहिे भिख ज त है
और उसके ब द घटते हुए महत्त्िक्रम में अन्य तथ्यों य सूचन ओां को भिख य बत य ज त है ।

51
इस शैिी में क्रकसी घटन /विच र/समस्य क ब्यौर क ि नुक्रम की बज य सबसे महत्िपूणु तथ्य
य सच
ू न से शरू
ु होत है । इस शैिी में सम च र को तीन ि गों में ब ाँट ठदय ज त है -

1. इंट्रो- सम च र के इांरो य िीड को ठहांदी में ‘मुखड़ ’ िी कहते हैं। इसमें खबर के मूि तत्ि
को शुरू की दो-तीन पांजक्तयों में बत य ज त है। यह खबर क सबसे अहम ठहस्स होत है।
2. बॉडी- इस ि ग में सम च र के विस्तत
ृ ब्यौरे को घटते हुए महत्त्िक्रम में भिख ज त है ।
3. समापन- इस शैिी में अिग से सम पन जैसी कोई चीज नहीां होती। इसमें प्र सांगगक तथ्य
और सच
ू न एाँ दी ज सकती हैं।

प्रश्न-6 रे डडयो समा ार-लेखन के सलए ककन-ककन बुननयादी बातों पर ध्यान हदया जाना ाहहए ?
उत्तर- रे डडयो सं ार लेखन के सलए ननम्न बनु नयादी बातों का ध्यान रखना ाहहए-
1. सम च र ि चन के भिए तैय र की गई क पी स फ़-सुथरी और ट इप्ड कॉपी हो।
2. कॉपी को ठरपि स्पेस में ट इप क्रकय ज न च ठहए।
3. पय ुप्त ह भशय छोड़ ज न च ठहए।
4. अांकों को भिखने में स िध नी रखनी च ठहए।
5. सांक्षक्षप्त क्षरों के प्रयोग से बच ज न च ठहए।
6. सम च र-कॉपी में ऐसे जठटि और उर्चच रण में कठिन शब्द, सांक्षक्षप्त क्षर (एब्रीवियेशन्स),
अांक आठद नहीां भिखने च ठहए, जजन्हें पढने में जब न िड़खड़ ने िगे।
प्रश्न- 7 टे लीविजन समा ार सलखते समय ककन खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है?
उत्तर- टे िीविजन में दृश्यों की महत्त सबसे ज्य द है। यह कहने की जरूरत नहीां क्रक टे िीविजन
दे खने और सन
ु ने क म ध्यम है और इसके भिए सम च र य आिेख (जस्क्रप्ट) भिखते समय इस
ब त पर ख स ध्य न रखने की जरूरत पड़ती है -

1. हम रे शब्द परदे पर ठदखने ि िे दृश्य के अनुकूि हों।


2. टे िीविजन िेखन वप्रांट और रे डडयो दोनों ही म ध्यमों से क फ़ी अिग है। इसमें कम-से-कम
शब्दों में ज्य द -से-ज्य द खबर बत ने की कि क इस्तेम ि होत है।
3. टी०िी० के भिए खबर भिखने की बुतनय दी शतु दृश्य के स थ िेखन है । दृश्य य नी कैमरे
से भिए गए शॉट्स, जजनके आध र पर खबर बुनी ज ती है । अगर शॉट्स आसम न के हैं तो
हम आसम न की ही ब त भिखेंगे, समांदर की नहीां। अगर कहीां आग िगी हुई है तो हम
उसी क जजक्र करें गे, प नी क नहीां।

प्रश्न- 8 टी. िी. खबरों के विसभन्न रि कौन-कौन से है? उल्लेख कीक्जए।

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1. उत्तर- दरू दशुन मे कोई िी सूचन तनम्न चरणों य सोप नों को प र कर दशुकों तक पहुाँचती
है।
(1) फ़्लैश या ब्रेककं ग न्यज
ू -(सम च र को कम-से-कम शब्दों में दशुकों तक तत्क ि पहुाँच न )
(2) ड्राई एंकर- (एांकर दि र शब्दों में खबर के विषय में बत य ज त है)
(3) फ़ोन इन - (एांकर ररपोटु र से फ़ोन पर ब त कर दशुकों तक सच ू न एाँ पहुाँच त है )
(4) एंकर-विजअ
ु ल - (सम च र के स थ-स थ सांबांगधत दृश्यों को ठदख य ज न )
(5) एंकर-बाइट - (एांकर क प्रत्यक्षदशी य सांबांगधत वयजक्त के कथन य ब तचीत दि र
प्र म खणक खबर प्रस्तुत करन )
(6) लाइि - (घटन स्थि से खबर क सीध प्रस रण)
(7) एंकर-पैकेज - (इसमें एांकर दि र प्रस्तुत सूचन एाँ; सांबांगधत घटन के दृश्य, ब इट,
ग्र क्रफ़क्स आठद दि र वयिजस्थत ढां ग से ठदख ई ज ती हैं)
प्रश्न- 9 इंटरनेट तया है ? इसके गुि-दोषों पर प्रकाश डासलए।
उत्तर- इांटरनेट विश्िवय पी अांतज ुि है , यह जनसांच र क सबसे निीन ि िोकवप्रय म ध्यम है।
इसमें जनसांच र के सिी म ध्यमों के गुण सम ठहत हैं। यह जह ाँ सूचन , मनोरां जन, ज्ञ न और
वयजक्तगत एिां स िुजतनक सांि दों के आद न-प्रद न के भिए श्रेष्ि म ध्यम है , िहीां अश्िीित ,
दष्ु प्रच रि गांदगी फ़ैि ने क िी जररय है ।
प्रश्न- 10 इंटरनेट पत्रकाररता तया है?
उत्तर- इांटरनेट (विश्वय पी अांतज ुि) पर सम च रों क प्रक शन य आद न-प्रद न इांटरनेट पत्रक ररत
कहि त है। इसे ऑनि इन पत्रक ररत , स इबर पत्रक ररत , िेब पत्रक ररत आठद न मों िी ज न
ज त है। इांटरनेट पत्रक ररत दो रूपों में होती है। प्रथम- सम च र सांप्रेषण के भिए नेट क प्रयोग
करन । दस
ू र - ररपोटु र अपने सम च र को ई-मेि दि र अन्यत्र िेजने ि सम च र को सांकभित
करने तथ उसकी सत्यत , विश्िसनीयत भसदध करने के भिए करत है।

(ii) पत्रकारीय लेखन के विसभन्न रूप और लेखन प्रकक्रया

प्रश्न 1:पत्रक ररत के विभिन्न पहिू कौन-कौन-से हैं?


उत्तर –पत्रक ररत के विभिन्न पहिू हैं-

1. सम च रों क सांकिन,
2. उनक सांप दन कर छपने योग्य बन न ,
3. उन्हें पत्र-पबत्रक ओां में छ पकर प िकों तक पहुाँच न आठद।

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प्रश्न 2:पत्रक र क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –सम च र-पत्रों, पत्र-पबत्रक ओां में छपने के भिए भिखखत रूप में स मग्री दे ने, सच
ू न एाँ और
सम च र एकत्र करने ि िे वयजक्त को पत्रक र कहते हैं।
प्रश्न 3:सांि दद त के प्रमख
ु क यों क उल्िेख कीजजए।
उत्तर –सांि दद त क प्रमुख क यु विभिन्न स्थ नों से खबरें ि न है।
प्रश्न 4:सांप दक के क यु भिखखए।
उत्तर –सांप दक सांि दद त ओां तथ ररपोटु रों से प्र प्त सम च र-स मग्री की अशद
ु धय ाँ दरू करते हैं
तथ उसे त्रुठटहीन बन कर प्रस्तुतत के योग्य बन ते हैं। िे ररपोटु की महत्िपूणु ब तों को पहिे
तथ कम महत्ि की ब तों को अांत में छ पते हैं तथ सम च र-पत्र की नीतत, आच र-सांठहत और
जन-कल्य ण क विशेष ध्य न रखते हैं।
प्रश्न 5:क्रकन गुणों के होने से कोई घटन सम च र बन ज ती है ?
उत्तर –निीनत , िोगों की रुगच, प्रि विकत , तनकटत आठद तत्िों के होने से घटन सम च र बन
ज ती है।
प्रश्न 6:पत्रक ररत क्रकस भसदध ांत पर क यु करती है ?
उत्तर –पत्रक ररत मनुष्य की सहज जजज्ञ स श ांत करने के भसदध ांत पर क यु करती है ।
प्रश्न 7:पत्रक ररत के प्रमुख प्रक र कौन-से हैं?
उत्तर –पत्रक ररत के कई प्रमुख प्रक र हैं। उनमें से खोजपरक पत्रक ररत , िॉचडॉग पत्रक ररत और
एडिोकेसी पत्रक ररत प्रमुख हैं।
प्रश्न 8:सम च र क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –सम च र क्रकसी िी ऐसी घटन , विच र य समस्य की ररपोटु होत है , जजसमें अगधक-से-
अगधक िोगों की रुगच हो और जजसक अगधक गधक िोगों पर प्रि ि पड़ रह हो।
प्रश्न 9:सांप दन क अथु बत इए।
उत्तर –सांप दन क अथु है -क्रकसी स मग्री से उसकी ि ष -शैिी, वय करण, ितुनी एिां तथ्य त्मक
अशुदधयों को दरू करते हुए पिनीय बन न ।
प्रश्न 10:पत्रक ररत की स ख बन ए रखने के भिए कौन-कौन-से भसदि ांत अपन ए ज ते हैं?
उत्तर –पत्रक ररत की स ख बन ए रखने के भिए तनम्नभिखखत भसदध ांत अपन ए ज ते हैं

1. तथ्यों की शुदधत ,
2. िस्तु परखत ,
3. तनष्पक्षत ,
4. सांतुिन, और
5. स्रोत।

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प्रश्न 11:क्रकन्हीां दो र ष्रीय सम च र-पत्रों के न म भिखखए।
उत्तर – 1.निि रत ट इम्स (ठहांदी) 2.ठहांदस्
ु त न (ठहांदी)
प्रश्न 12: सम च र-पत्र सांपण
ू ु कब बनत है ?
उत्तर – जब सम च र-पत्र में सम च रों के अि ि विच र, सांप दकीय, ठटप्पणी, फोटो और क टूुन
होते हैं तब सम च र-पत्र पण
ू ु बनत है ।
प्रश्न 13:खोजपरक पत्रक ररत क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –स िुज तनक महत्ि के भ्रष्ट च र और अतनयभमतत को िोगों के स मने ि ने के भिए
खोजपरक पत्रक ररत की मदद िी ज ती है । इसके अांतगुत तछप ई गई सूचन ओां की गहर ई से
ज ाँच की ज ती है। इसके प्रम ण एकत्र करके इसे प्रक भशत िी क्रकय ज त है।
प्रश्न 14:िॉचडॉग पत्रक ररत क्य है?
उत्तर –जो पत्रक ररत सरक र के क मक ज पर तनग ह रखती है और कोई गड़बड़ी होते ही उसक
परद फ़ श करती है , उसे िॉचडॉग पत्रक ररत कहते हैं।
प्रश्न 15:एडिोकेसी पत्रक ररत क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –जो पत्रक ररत क्रकसी विच रध र य विशेष उददे श्य य मुददे को उि कर उसके पक्ष में
जनमत बन ने के भिए िग त र और जोर-शोर से अभिय न चि ती है , उसे एडिोकेसी पत्रक ररत
कहते हैं।
प्रश्न 16:िैकजल्पक पत्रक ररत क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –जो मीडडय स्थ वपत वयिस्थ के विकल्प को स मने ि ने और उसके अनुकूि सोच को
अभिवयक्त करते हैं, उसे िैकजल्पक पत्रक ररत कहते हैं।
प्रश्न 17:पेज थ्री पत्रक ररत क्य है?
उत्तर –पेज श्री पत्रक ररत क आशय उस पत्रक ररत से है , जजसमें फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी
प ठटु यों, महक्रफ़िों तथ िोकवप्रय िोगों के तनजी जीिन के ब रे में बत य ज त है। ऐसे सम च र
स म न्यत: सम च र-पत्र के पष्ृ ि तीन पर प्रक भशत होते हैं।
प्रश्न 18:पत्रक रीय िेखन क्रकसे कहते हैं?
उत्तर –पत्रक र अखब र य अन्य सम च र म ध्यमों के भिए िेखन के विभिन्न रूपों क इस्तेम ि
करते हैं, इसे पत्रक रीय िेखन कहते हैं।
प्रश्न 19:स्ितांत्र य फ्री-ि ांसर पत्रक र क्रकसे कह ज त है ?
उत्तर –फ्री-ि ांसर पत्रक र को स्ितांत्र पत्रक र िी कह ज त है। ये क्रकसी विशेष सम च र-पत्र से
सांबदध नहीां होते। ये क्रकसी िी सम च र-पत्र के भिए िेखन करके प ररश्रभमक प्र प्त करते हैं।
प्रश्न 20:पत्रक रीय िेखन सांबांधी ि ष की विशेषत एाँ भिखखए।
उत्तर –पत्रक रीय ि ष सीधी, सरि, स फ़-सथ
ु री परां तु प्रि िपण
ू ु होनी च ठहए। ि क्य छोटे , सरि

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और सहज होने च ठहए। ि ष में कठिन और दरू
ु ह शब्द ििी से बचन च ठहए, त क्रक ि ष
बोखझि न हो।
प्रश्न 21:सम च र-िेखन की क्रकतनी शैभिय ाँ होती हैं?
उत्तर –सम च र-िेखन की दो प्रमख
ु शैभिय ाँ होती हैं-

1. सीध वपर भमड शैिी,


2. उिट वपर भमड शैिी।
प्रश्न 22:सीध वपर भमड शैिी की विशेषत एाँ बत इए।
उत्तर –सीध वपर भमड शैिी में सबसे महत्िपूणु सम च र (घटन , समस्य , विच र के सबसे
महत्िपूणु अांश) को पहिे पैर ग्र फ में भिख ज त है । इसके ब द कम महत्िपूणु सम च र की
ज नक री दी ज ती है।
प्रश्न 23:उिट वपर भमड शैिी (इांिटें ड वपर भमड शैिी) से आप क्य समझते हैं?
उत्तर –यह सम च र-िेखन की सबसे िोकवप्रय, उपयोगी और बुतनय दी शैिी है । यह कह नी य
कथ िेखन शैिी की िीक उिटी होती है । इसमें आध र ऊपर और शीषु नीचे होत है । इसमें शुरू
में सम पन, मध्य में बॉडी और अांत में मुखड़ होत है ।
प्रश्न 24:सम च र-िेखन के छह कक रों के न म भिखखए।
उत्तर –क्य , कौन, कह ाँ, कब, क्यों और कैसे-ये सम च र-िेखन के छह कक र हैं।
प्रश्न 25:सम च र-िेखन में छह कक रों क महत्ि क्य है ?
उत्तर –क्रकसी सम च र को भिखते समय मख्
ु यत: छह सि िों के जि ब दे ने की कोभशश की ज ती
है। सम च र भिखते समय क्य हुआ, क्रकसके स थ हुआ, कह ाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों
हुआ क उत्तर ठदय ज त है ।
प्रश्न 26:सम च रों के मख
ु ड़े (इांरो) में क्रकन कक रों क प्रयोग क्रकय ज त है ?
उत्तर –सम च रों के मुखड़े (इांरो) में तीन य च र कक रों-क्य , कौन, कब और कह -ाँ क प्रयोग
क्रकय ज त है , क्योंक्रक ये सूचन त्मक और तथ्यों पर आध ररत होते हैं।

(iii) विशेष लेखन स्िरुप और प्रकार

प्रश्न-1 विशेष लेखन के बारे में आप तया जानते हैं ?


उत्तर- विशेष िेखन क अथु है -क्रकसी ख स विषय पर स म न्य िेखन से हटकर क्रकय गय िेखन।
अगधक ांश सम च र-पत्रों और पबत्रक ओां के अि ि टी०िी० और रे डडयो चैनिों में विशेष िेखन के
भिए अिग डेस्क होत है और उस विशेष डेस्क पर क म करने ि िे पत्रक रों क समह
ू िी अिग
होत है । जैसे सम च र-पत्रों और अन्य म ध्यमों में बबजनेस य नी क रोब र और वय प र क अिग

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डेस्क होत है , इसी तरह खेि की खबरों और फ़ीचर के भिए खेि डेस्क अिग होत है। इन डेस्कों
पर क म करने ि िे उप-सांप दकों और सांि दद त ओां से अपेक्ष की ज ती है क्रक सांबांगधत विषय य
क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञत होगी। खबरें िी कई तरह की होती हैं-र जनीततक, आगथुक, अपर ध, खेि,
क्रफ़ल्म, कृवष, क नन
ू , विज्ञ न य क्रकसी िी और विषय से जड़
ु ी हुई। सांि दद त ओां के बीच क म
क विि जन आमतौर पर उनकी ठदिचस्पी और ज्ञ न को ध्य न में रखते हुए क्रकय ज त है।
मीडडय की ि ष में इसे बीट कहते हैं। एक सांि दद त की बीट अगर अपर ध है तो इसक अथु
यह है क्रक उसक क युक्षेत्र अपने शहर य क्षेत्र में घटने ि िी आपर गधक घटन ओां की ररपोठटां ग
करन है। अखब र की ओर से िह इनकी ररपोठटां ग के भिए जज़म्मेद र और ज़ि बदे ह िी होत है।

प्रश्न-2 बीट ररपोहटिं ग और विशेषीकृत ररपोहटिं ग में अंतर स्पष्ट कीक्जए ।


उत्तर-बीट ररपोठटां ग और विशेषीकृत ररपोठटां ग के बीच सबसे महत्त्िपूणु अांतर यह है क्रक अपनी बीट
की ररपोठटां ग के भिए सांि दद त में उस क्षेत्र के ब रे में ज नक री और ठदिचस्पी क होन पय ुप्त
है। इसके अि ि एक बीट ररपोटु र को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी स म न्य खबरें ही भिखनी
होती हैं। िेक्रकन विशेषीकृत ररपोठटां ग क त त्पयु यह है क्रक आप स म न्य खबरों से आगे बढकर
उस विशेष क्षेत्र य विषय से जुड़ी घटन ओां मुददों और समस्य ओां क ब रीकी से विश्िेषण करें
और प िकों के भिए उसक अथु स्पष्ट करने की कोभशश करें ।
विशेष िेखन के अांतगुत ररपोठटां ग के अि ि उस विषय य क्षेत्र विशेष पर फ़ीचर, ठटप्पणी,
स क्ष त्क र, िेख, समीक्ष और स्तांि-िेखन िी आत है। इस तरह क विशेष िेखन सम च र-पत्र
य पबत्रक में क म करने ि िे पत्रक र से िेकर फ्री-ि ांस (स्ितांत्र ) पत्रक र य िेखक तक सिी
कर सकते हैं। शतु यह है क्रक विशेष िेखन के इर्चछुक पत्रक र य स्ितांत्र िेखक को उस विषय में
तनपुण होन च ठहए। मतिब यह क्रक क्रकसी िी क्षेत्र पर विशेष िेखन करने के भिए ज़रूरी
है क्रक उस क्षेत्र के ब रे में आपको ज्य द -से-ज्य द पत हो, उसकी त ज़ी-से-त ज़ी सूचन आपके
प स हो, आप उसके ब रे में िग त र पढते हों, ज नक ररय ाँ और तथ्य इकट्िे करते हों और उस
क्षेत्र से जुड़े िोगों से िग त र भमिते रहते हों।
प्रश्न-3 विशेष लेखन की भाषा और शैली पर हटप्पिी कीक्जए ।
उत्तर- विशेष िेखन क सांबांध जजन विषयों और क्षेत्रों से है , उनमें से अगधक ांश क्षेत्र तकनीकी रूप
से जठटि हैं और उनसे जुड़ी घटन ओां तथ मुददों को समझन आम प िकों के भिए कठिन होत
है। इसभिए इन क्षेत्रों में विशेष िेखन की ज़रूरत पड़ती है , जजससे प िकों को समझने में मजु श्कि
न हो । विशेष िेखन की ि ष और शैिी कई म मिों में स म न्य िेखन से अिग होती है। उनके
बीच सबसे बतु नय दी फ़कु यह होत है क्रक हर क्षेत्र विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्द ििी
होती है जो उस विषय पर भिखते हुए आपके िेखन में आती है । जैसे क रोब र पर विशेष िेखन
करते हुए आपको उसमें इस्तेम ि होने ि िी शब्द ििी से पररगचत होन च ठहए। दस
ू रे , अगर आप

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उस शब्द ििी से पररगचत हैं तो आपके स मने चुनौती यह होती है क्रक आप अपने प िक को िी
उस शब्द ििी से इस तरह पररगचत कर न च ठहए त क्रक उसे आपकी ररपोटु को समझने में कोई
ठदक्कत न हो।
प्रश्न-4 विशेष लेखन के प्रमख
ु क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर- विशेष िेखन के अनेक क्षेत्र हैं, जैस-े
• क रोब र और वय प र • विदे श • स्ि स्थ्य • खेि
• रक्ष • क्रफ़ल्म-मनोरां जन • विज्ञ न-प्रौदयोगगकी • पय ुिरण
•अपर ध • कृवष • भशक्ष • स म जजक मुददे
• क नून, आठद।
सम च र-पत्रों और दस
ू रे म ध्यमों में खेि, क रोब र, भसनेम , मनोरां जन, फैशन , स्ि स्थ्य, विज्ञ न,
पय ुिरण, भशक्ष , जीिन-शैिी और रहन-सहन जैसे विषयों को आजकि विशेष िेखन के भिह ज़
से ज्य द महत्त्ि भमि रह है। इसके अि ि रक्ष , विदे श-नीतत, र ष्रीय सुरक्ष और विगध जैसे
क्षेत्रों में विशेषीकृत ररपोठटां ग को प्र थभमकत दी ज रही है ।
प्रश्न-5 विशेष लेखन के सलए विशेषज्ञता कैसे हाससल की जा सकती है ?
उत्तर-विशेष िेखन के क्रकसी िी विषय में विशेषज्ञत ह भसि करने के भिए-
1. जजस िी विषय में विशेषज्ञत ह भसि करन च हते हैं, उसमें आपकी ि स्तविक रुगच होनी
च ठहए।
2. उर्चच म ध्यभमक (+2) और स्न तक स्तर पर उसी य उससे जुड़े विषय में पढ ई करें ।
3. अपनी रुगच के विषय में पत्रक रीय विशेषज्ञत ह भसि करने के भिए उन विषयों से सांबांगधत
पुस्तकें खूब पढनी च ठहए।
4. विशेष िेखन के क्षेत्र में सक्रक्रय िोगों के भिए खुद को अपडेट रखन बेहद ज़रूरी होत है ।
इसके भिए उस विषय से जुड़ी खबरों और ररपोट्ुस की कठटांग करके फ़ इि बन नी च ठहए।
5. उस विषय के प्रोफ़ेशनि विशेषज्ञों के िेख और विश्िेषणों की कठटांग िी सहे जकर रखनी च ठहए।
6. एक तरह से उस विषय में जजतनी सांिि हो, सांदिु स मग्री जुट कर रखनी च ठहए।
7. उस विषय क शब्दकोश और इनस इक्िोपीडडय िी आपके प स होनी च ठहए।
8. विषय विशेष से जुड़े सरक री और गैरसरक री सांगिनों और सांस्थ ओां की सूची, उनकी िेबस इट
क पत , टे िीफ़ोन नांबर और उसमें क म करने ि िे विशेषज्ञों के न म और फ़ोन नांबर अपनी
ड यरी में रखन च ठहए।
6. व्यापार की भाषा की विशेष शब्दािली सलणखए।
उत्तर: वय प र में बैंक, शेयर ब ज र, जजांस, ध तु आठद के िेनदे न तथ उत र-चढ ि से सांबांगधत
सम च र होते हैं इसभिए इसमें तेजडड़ए, मांदडड़ए, बबकि िी, ब्य ज दर , मुर स्फीतत, वय प र
घ ट , र जकोषीय घ ट , र जस्ि घ ट , ि वषुक योजन , एफडीआई, आिक, तनिेश, आय त,

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तनय ुत, सोने में ि री उछ ि, च ांदी िुढकी, ररकॉडु तोड़े, आसम न पर आठद शब्दों क प्रचुर
प्रयोग दे खने को भमित है।
उद हरण के भिए जैसे:
1 सोने के ि ि आसम न पर पहुांचे।
2 जीर औांधे मांह
ु गगर ।
7. बीट ररपोटय र ककसे कहते हैं? इसका कायय सामान्य ररपोटय र से ककस प्रकार सभन्न है ?
उत्तर: क्रकसी विशेष क्षेत्र जैसे खेि, क्रफल्म आठद के भिए भिखने ि ि पत्रक र बीट ररपोटु र
कहि त है । जैसे जो पत्रक र र जनीतत में ठदिचस्पी रखते हैं य क्रकसी ख स र जनीततक प टी
को किर करते हैं उन्हें पत होन च ठहए क्रक इस प टी क इततह स क्य है , उसमें समय-समय
पर क्य हुआ है। आज क्य चि रह है , प टी के भसदध ांत य नीततय ां क्य है , उसके
पद गधक री कौन-कौन हैं, और उनकी पष्ृ ििूभम क्य -क्य है ब की प ठटु यों से उस प टी के ररश्ते
कैसे हैं और उनमें आपस में क्य फकु है। उसके अगधिेशन में क्य -क्य होत रह है , उस प टी
की कभमय ां और खूबबय ां क्य हैं इत्य ठद।
8 . डेस्क से तया तात्पयय है ?
उत्तर: सम च र पत्रों और पबत्रक ओां, टीिी और रे डडयो चैनि तथ अन्य सिी सांच र म ध्यमों के
भिए क्रकए ज ने ि िे विशेष िेखन के भिए एक अिग स्थ न होत है उसे डेस्क कहते हैं। यह ां
क्रकसी ख स विषय जैसे बबजनेस, खेि, वय प र, र जनीतत आठद के विशेषज्ञ उप सांप दक और
सांि दद त भमि बैिकर विशेष विषय क िेखन करते हैं।
9. 'बीट' से तया आशय है ?
अििा
पत्रकाररता की भाषा में 'बीट' ककसे कहते हैं?
उत्तर : सांि दद त ओां के बीच क म क विि जन आम तौर पर उनकी ठदिचस्पी और ज्ञ न को
ध्य न में रखते हुए क्रकय ज त है , मीडडय की ि ष में इसे बीट कहते हैं । एक सांि दद त की
बीट अगर अपर ध है तो इसक अथु यह है क्रक उसक क यु क्षेत्र अपने शहर के क्षेत्र में घटने
ि िी आपर गधक घटन ओां की ररपोठटां ग करन है ।
उद हरणतय अपर ध, खेि, आगथुक य क रोब र जगत आठद अिग-अिग बीट कहि ते हैं।
9. पत्रकार की विशेषज्ञता से तया आशय है ?
उत्तर: पत्रक र विशेषज्ञत क अथु है क्रक वय िस तयक रूप से प्रभशक्षक्षत न होने के ब िजद
ू उस
विषय में ज नक री और अनि
ु ि के आध र पर अपनी समझ को इस हद तक विकभसत करन
क्रक उस विषय य क्षेत्र में घटने ि िी घटन ओां और मद
ु दों की आप सहजत से वय ख्य कर सकें
और प िकों के भिए उनके म यने स्पष्ट कर सकें।

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10. संिाददाता और विशेष संिाददाता में तया अंतर होता है ?
उत्तर: बीट किर करने ि िे ररपोटु र को सांि दद त और विशेषीकृत ररपोठटां ग करने ि िे ररपोटु र
को विशेष सांि दद त कह ज त है। दस
ू रे शब्दों में क्रकसी िी बीट के भिए तथ्य त्मक सांकिन
और िेखन करने ि िे पत्रक र को सांि दद त कहते हैं जबक्रक क्रकसी विशेष विषय के विशेषज्ञ
और विश्िेषक को विशेष सांि दद त कह ज त है।

(iv) कैसे करें कहानी का ना्य रूपांतरि

प्रश्न सं 1) कहानी का ना्य रूपांतरि करने से पि


ू य तया-तया शतय अननिायय है ?
उत्तर- कह नी क न ट्य रूप ांतरण करने से पूिु ितुम न रां गमांच की सांि िन ओां के सांबांध में
ज नक री होन आिश्यक है और इसके भिए उत्कृष्ट एिां स्तरीय न टक दे खन उपयक्
ु त होग ।
इसके अततररक्त कह नी के न ट्य रूप ांतरण हे तु उसकी विषयिस्तु अथि कथ िस्तु को समय एिां
स्थ न के आध र पर दृश्यों में विि जजत क्रकय ज त है , अथ ुत यठद कोई घटन एक स्थ न और
एक समय में ही घट रही है तो िह एक दृश्य होग , तत्पश्च त प्रत्येक दृश्य क कथ के अनुस र
त क्रकुक विक स क्रकय ज त है। प्रत्येक दृश्य क अांत ऐस होन च ठहए जो अगिे दृश्य से सांबांगधत
हो। इस हेतु सिी दृश्यों को क्रमबदधत में वयिजस्थत करते हुए उनक पण
ू ु वििरण तैय र कर
भिय ज न च ठहए।
प्रश्न सं. 2) दृश्य के कायय एिं महत्ि को स्पष्ट कीक्जए ।
उत्तर-कह नी अथि न टक में प्रत्येक दृश्य एक बबांद ु से प्र रां ि होत है जो कथ नक के अनुस र
दश ुय ज त है और उसक अांत इस प्रक र क्रकय ज त है जो उसे अगिे दृश्य से जोड़त हो। दृश्य
एक समय में कई क यु करत है ,एक ओर उसके म ध्यम से कथ नक आगे बढत है िहीां दस
ू री
ओर िह प त्रों एिां पररिेश को सांि द के म ध्यम से स्पष्ट करत है इसके अततररक्त आग मी
दृश्य हे तु िूभमक िी तैय र करत है ।अतः दृश्य क सांपूणु वििरण तैय र क्रकय ज न च ठहए। इस
प्रक र कह नी अथि न टक में यह अत्यांत महत्िपण
ू ु है ।
प्रश्न सं. 3) कहानी और नाटक की समानताएं बताइए।
उत्तर- कह नी और न टक में बहुत सी सम नत एां हैं। इन दोनों में एक कह नी होती है। जजस प्रक र
कथ नक कह नी क केंरीय विांद ु होत है जजसमें प्र रां ि से अांत तक कह नी की सिी घटन ओां और
प त्रों क उल्िेख होत है उसी प्रक र कथ्य य कथ नक न टक के भिए उसक जरूरी तत्ि होत
है। न टक में क्रकसी कह नी के रूप को भशल्प य सांरचन के िीतर उसे वपरोन होत है । इसके

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अततररक्त दोनों में प त्र होते हैं, पररिेश होत है जजससे कह नी क क्रभमक विक स होत है। स थ
ही सांि द होते हैं, दिांदि होत है , चरम उत्कषु होत है। इस प्रक र कह नी और न टक की आत्म
के कुछ मूि तत्ि एक ही है तथ यह दोनों विध एां मनुष्य क मनोरां जन करती हैं।
प्रश्न सं. 4) कहानी और नाटक में तया-तया असमानताएं हैं ?
उत्तर- कह नी और न टक दोनों गदय विध एां हैं। इनमें जह ां कुछ सम नत एां हैं, िह ां कुछ असम नत एां
य अांतर िी हैं जो इस प्रक र हैं-
कह नी एक ऐसी गदय विध है जजसमें जीिन के क्रकसी अांक विशेष क मनोरां जनपूणु गचत्रण क्रकय
ज त है जबक्रक न टक गदय की ऐसी विध है जजसक मांच पर अभिनय क्रकय ज त है। कह नी
क सांबांध जह ां िेखक और प िकों से होत है िहीां न टक क सांबांध िेखक, तनदे शक, दशुक तथ
श्रोत ओां से है। कह नी कही अथि पढी ज ती है िहीां न टक क मांच पर अभिनय क्रकय ज त है।
कह नी को आरां ि,मध्य और अांत के आध र पर ब ांट ज त है जबक्रक न टक को दृश्यों में विि जजत
क्रकय ज त है। जह ाँ कह नी में मांच सज्ज , सांगीत तथ प्रक श क महत्ि नहीां है िहीां न टक में
इन तत्िों क विशेष महत्ि होत है।
प्रश्न सं. 5) कहानी को नाटक में ककस प्रकार रूपांतररत ककया जा सकता है ?
उत्तर- कह नी को न टक में रूप ांतररत करने हे तु सिुप्रथम कह नी की कथ िस्तु को समय और
स्थ न के आध र पर विि जजत क्रकय ज त है और तब कह नी में घठटत विभिन्न घटन ओां के
आध र पर दृश्यों क तनम ुण क्रकय ज त है जजसमें कथ िस्तु से सांबांगधत ि त िरण की वयिस्थ
की ज ती है। इसमें ध्ितन ि प्रक श वयिस्थ क ध्य न रख ज त है और स थ ही स थ कथ िस्तु
के अनुरूप मांच सज्ज एिां सांगीत क तनम ुण िी क्रकय ज त है ।
कथ नक को अभिनय के अनुस र स्िरूप प्रद न करते हुए सांि दों के म ध्यम से उसे स्िर ठदय
ज त है जो प त्रों के दिांद को उि रते हुए कह नी को चमोत्कषु की ओर अग्रसर करत है ।
प्रश्न सं.6)कहानी का ना्य रूपांतरि करते समय कौन-कौन सी समस्याएं आती हैं?
उत्तर- कह नी क न ट्य रूप ांतरण करते समय अनेक समस्य एां आती हैं जजनक सम ध न करन
आिश्यक होत है । सिुप्रमख
ु रूप से यह अनि
ु ि होत है क्रक जब कह नी के प त्रों के मनोि िों
की, कह नीक र दि र प्रस्तुत प्रसांगो अथि म नभसक दिांदि की, न टकीय प्रस्तुतत की ज ती है
तब समस्य उत्पन्न होती है।
इसके अि ि जब प त्रों के दिांदि को अभिनय के अनुरूप बन य ज त है और सांि दों को
न टकीय रूप प्रद न क्रकय ज त है तब िी समस्य क स मन करन पड़त है।

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समग्रतः कथ नक को अभिनय के अनुरूप बन न िी चुनौतीपूणु होत है जजसमें यथ स्थ न सांगीत,
ध्ितन और प्रक श वयिस्थ क सांयोजन करन होत है जजससे न टक दशुकों दि र आत्मस त
क्रकय ज सके। उपयक्
ु त सिी चरणों में स िध नीपूिक
ु अग्रसर होन ही इन समस्य ओां के सम ध न
की कसौटी है।
प्रश्न सं. 7) कहानी का ना्य रूपांतरि करने की आिश्यकता तयों पड़ती है ?
उत्तर- कह नी एक िोकवप्रय स ठहजत्यक विध है जो प िकों क मनोरां जन करने के स थ-स थ
उजल्िखखत दे शक ि और पररजस्थतत क बोध कर ते हुए उददे श्यपूणु ढां ग से क्रकन्हीां नैततक मूल्यों
की स्थ पन िी करती है ।
जैस क्रक विठदत है , कह नी को केिि पढ अथि कह ज सकत है , परां तु जब हम इसे न टक
क रूप दे कर मांचन करते हैं तब यह दृश्य एिां श्रवय रूप में िी उपजस्थत हो ज ती है।
न टक में िी एक कह नी तनठहत होती है क्रकां तु कुछ स िध तनय ां बरतते हुए इसे न ट्य रूप में
पररिततुत क्रकय ज त है जजससे यह न टक क रूप िेकर पुस्तकों से ब हर आ सके एिां स ठहत्य
िेखन के मह न उददे श्यों को पण
ू ु करने में अत्यगधक सह यक हो सके ।
प्रश्न सं. 8) कहानी का ना्य रूपांतरि करते समय दृश्य विभाजन कैसे करते हैं?
उत्तर- कह नी क न ट्य रूप ांतरण करते हुए दृश्यों क विि जन सिुप्रमुख क यु है जजस पर न टक
की सफित तनिुर करती है । इस प्रक्रक्रय में सिुप्रथम कह नी की कथ िस्तु को स्थ न और समय
के आध र पर विि जजत करके दृश्य तनम ुण क्रकय ज त है जह ाँ प्रत्येक दृश्य कथ नक के अनुरूप
होन च ठहए। इस सांबांध में यह ध्य न रख ज न च ठहए क्रक एक स्थ न और समय पर घट रही
घटन को एक दृश्य में भिय ज ए तथ अन्य स्थ न एिां समय पर घट रही घटन ओां को भिन्न
दृश्यों में ब ांट ज ए। दश ुए गए प त्रों, पररजस्थततयों ि ि त िरण में िी कथ नक के अनुरूप त िमेि
एिां तनरां तरत होन अपेक्षक्षत है।
अतः दृश्यों क विि जन इस प्रक र हो जो कथ क्रम और विक स को सांतभु ित बन ते हुए उन्हें गतत
प्रद न करे ।
प्रश्न सं. 9) कहानी के पात्र ना्य रूपांतरि में ककस प्रकार पररिनतयत ककए जा सकते हैं?
उत्तर- कह नी के प त्र न ट्य रूप ांतरण में इस प्रक र पररिततुत क्रकए ज ने च ठहए क्रक उनमें
स्ि ि विकत बनी रहे । इस प्रक्रक्रय में कह नी के प त्रों की दृश्य त्मकत क न टक के प त्रों से मेि
होन च ठहए।
इस सांबांध में प त्रों की ि ि- िांगगम ओां तथ उनके वयिह र क िी उगचत ध्य न रखन च ठहए।
प त्र अभिनय के अनरू
ु प होने च ठहए जो घट रही घटन ओां के अनस
ु र अपने मनोि िों को प्रस्तत

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कर सकें। समग्रतः कह ज सकत है क्रक प त्रों क मांच के स थ मेि होन च ठहए तिी िह दशुकों
को प्रि वित करने में सक्षम एिां सफि होंगे।
प्रश्न सं.10) 'कहानी का ना्य रूपांतरि साहहत्य लेखन के उद्दे श्यों को पूिय करते हुए समाज
का हहत साधन करता है।' कैसे?
उत्तर- सम ज में स ठहत्य की विभिन्न विध ओां क अध्ययन क्रकय ज त है । इनमें से एक सिुप्रमुख
एिां प्र चीन विध है कह नी जजसने मौखखक से भिखखत तक की अपनी य त्र पण
ू ु की है एिां ितुम न
समय में िी यह अपने तनरां तरत को बन ए हुए चि रही है ।यह उल्िेखनीय है क्रक न टकों की
रचन मांच को ध्य न में रखकर की ज ती है परां तु कह नी िेखन के स थ यह ब ध्यत नहीां होती।
कह नी िेखन में इसके आिश्यक तत्िों को आध र बन कर उददे श्यपूणु अभिवयजक्त की ज ती है।
ऐसे में इस विध को यठद अत्यगधक विस्तत
ृ कर जन-जन तक पहुांच न हो तब हमें न टक जैसे
दृश्य- श्रवय विध ओां की सह यत िेनी पड़ती है त क्रक यह मांचन के म ध्यम से सम ज के एक
बड़े िगु तक पहुांचे एिां उसक मनोरां जन ि म गुदशुन कर सके।

(v) कैसे बनता है रे डडयो नाटक

आज से कुछ दशक पहिे एक जम न ऐस िी थ ,जब दतु नय में न टे िीविजन थ ,न कांप्यूटर


Iभसनेम और गथयेटर थे तो ,िेक्रकन उनकी सांख्य आज के मुक बिे क फ़ी कम थी और एक
आदमी के भिए िे आस नी से उपिब्ध िी नही थे Iऐसे समय में घर में बैिे मनोरां जन क जो
सबसे सस्त और सहजत से प्र प्त स धन थ ,िो थ –रे डडयो न टक Iटी.िी.,ध र ि ठहकों और
टे िीक्रफल्मों की कमी को परू करते थे ,रे डडयों पर आने ि िे न टक I ठहांदी स ठहत्य के तम म बड़े
न म ,स ठहत्य रचन के स थ –स थ रे डडयों स्टे शनों के भिए न टक िी भिखते थे Iउस समय ये
बड़े सम्म न की ब त म नी ज ती थी Iभसनेम और रां गमांच की तरह रे डडयों न टक में िी चररत्र
होते है उन चररत्रों के आपसी सांि द होते है और इन्ही सांि दों के जररये आगे बढती है कह नी Iबस
भसनेम और रां गमांच की तरह रे डडयों न टक में विजुअल्स अथ ुत दृश्य नही होते है I रे डडयो पूरी
तरह से श्रवय म ध्यम है इसीभिए रे डडयो न टक क िेखन भसनेम ि रां गमांच के िेखन से थोड़
भिन्न िी है और मुजश्कि िी I आपको सब कुछ सांि दों और ध्ितन प्रि िों के म ध्यम से सांप्रेवषत
करन होत है I
रे डडयो नाटक
न ट्य आन्दोिन के विक स में रे डडयो न टक की अहम िूभमक रही है I

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भसनेम और रां गमांच की तरह रे डडयो के दृश्य म ध्यम नही बजल्क श्रवय म ध्यम है I
रे डडयो पूरी तरह से श्रवय म ध्यम है इसीभिए रे डडयो न टक य रां गमांच के िेखन से थोड़ भिन्न
िी है और थोड़ मुजश्कि िी I
रे डडयो की प्रस्तुतत सांि दों और ध्िनी प्रि िों के म ध्यम से होती है I
क्रफ़ल्म की तरह रे डडयो न टक में एक्शन की गांज
ु ईश नही होती है I
रे डडयो न टक की समय िगध सीभमत होती है I
प त्र सांबांधी विविध ज नक री सांि द एिां ध्ितन सांकेत से उज गर होते है I
ससनेमा ,रं गमं और रे डडयो नाटक में समानता
भसनेम ,रां गमांच और रे डडयो न टक में एक कह नी होती है I
तीनों में ही कह नी क आरां ि, मध्य,और अांत होत हैं I
तीनों म ध्यमों में प त्रों क चररत्र –गचत्रण तथ आपसी सांि द होते है I
तीनों म ध्यमों में कह नी क दिांदि तथ सांि दों के म ध्यम से कह नी क विक स होत है I
ससनेमा ,रं गमं और रे डडयो नाटक में अंतर
भसनेम और रां गमांच एक दृश्य म ध्यम है जबक्रक रे डडयो एक श्रवय म ध्यम है I
भसनेम और रां गमांच में मांच सज्ज और िस्त्र सज्ज क बहुत ध्य न रख ज त है परन्तु रे डडयो
न टक में इनक कोई महत्त्ि नही होत है I
भसनेम और रां गमांच में प त्रों की ि ि िांगगम एाँ विशेष महत्त्ि रखती है तथ रे डडयो न टक में
इनकी कोई आिश्यकत नही होती है I
भसनेम और रां गमांच की कह नी को प त्रों की ि िन ओां के दि र प्रस्तुत क्रकय ज त है तथ रे डडयो
न टक की कह नी को ध्ितन प्रि ओ और सांि दों के म ध्यम से सांप्रेवषत क्रकय ज त है I
रे डडयो नाटक में ध्िनन प्रभािों और संिादों का महत्त्ि
रे डडयो न टक में प त्रों से सम्बन्धी सिी ज नक ररय ाँ सांि दों के म ध्यम से ही भमिती है I
प त्रों की च ररबत्रक विशेषत एाँ सांि दों के दि र ही उजग र होती है I
न टक क पूर कथ नक सांि दों पर आध ररत होत है I
इसमें ध्ितन प्रि िों और सांि दों के म ध्यम से ही कथ श्रोत ओां तक पहुाँच य ज त है I
सांि दों के म ध्यम से ही रे डडयो न टक क उददे श्य स्पष्ट होत है I
सांि दों के दि र ही श्रोत ओां को सन्दे श ठदय ज त है I
रे डडयो नाटक के तत्त्ि-

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रे डडयो न टक में ये तीन तत्त्ि महत्त्िपूणु है I
1.ि ष 2.ध्ितन 3.सांगीत
इन तीनों क कि त्मक सांयोजन से विशेष प्रि ि उत्पन्न क्रकय ज त है Iि ष केंर में है और यह
ध्य तवय है क्रक ि वषत शब्द की शजक्त भिखखत सिसे अगधक होती है और शब्द प्रयोग ऐसे हो
जजनक उर्चच रण अभिनय सांपन्न हो सके Iयह ाँ ि गचक अभिनय की ओर सांकेत है I
रे डडयो नाटक ककसे कहते है और आज के समय में इसका तया महत्त्ि है?
रे डडयो से प्रस ररत क्रकए ज ने ि िे न टक को रे डडयो न टक कह ज त है Iितुम न वयस्तत पूणु
जीिन में जह ाँ वयजक्त के प स समय क अि ि है ,िह ां िह घर बैिे –बैिे रे डडयो न टक क
आस्ि दन कर सकत है Iदृजष्टहीन िोगो के भिए यह आस्ि दन क नय धर ति प्रद न करत है
I
दृश्य-श्रव्य माध्यमों की तुलना में रे डडयो नाटक की तया-तया सीमाए है ? इन सीमओं को ककस
प्रकार पूरा ककया जा सकता है ?
रे डडयो न टक श्रवय म ध्यम होने के क रण सांि दों और ध्ितन प्रि िों के म ध्यम से ही श्रोत
कह नी की विषयिस्तु को समझ सकते है Iप त्रों की सांख्य कम करके ,प त्रों क न म िेकर
,उगचत ध्ितन प्रि िों से और प त्र नक
ु ू ि ि ष चन
ु कर ,इन कभमयों को परू क्रकय ज सकत है
रे डडयो नाटक के किानक में ककन बातों का ध्यान रखना होता है ?स्पष्ट कीक्जए
रे डडयो न टक क कथ नक सांि द और ध्ितन प्रि िों पर तनिुर करत है Iइसभिए कथ नक क
चुन ि करते समय तनम्नभिखखत ब तों क ध्य न रखन आिश्यक होत है I
1-रे डडयो न टक क कथ नक केिि एक ही घटन पर आधररत नही होन च ठहए Iरे डडयो न टक के
कथ नक में सांि द अगधक होन च ठहए
2-स म न्य तौर पर रे डडयो न टक की अिगध 15 -30 भमनट की होनी च ठहए I इससे अगधक अिगध
के न टक को श्रोत सुनन पसांद नही करे ग , क रण यह है क्रक श्रोत की एक ग्रत 15-30 भमनट
तक ही बनी रहती है यठद रे डडयो न टक की अिगध िम्बी होगी तो श्रोत ओां की एक ग्रत िांग हो
ज एगी और न टक से िी ध्य न िटक ज येग I
3-रे डडयो न टक में प त्रों की सांख्य कम होनी च ठहए Iयठद प त्रों की सांख्य अगधक होगी तो श्रोत ओां
को उनक न म य द करन कठिन होग क्योक्रक श्रोत केिि आि ज के म ध्यम से प त्रों को
पहच न सकत है I
रे डडयो नाटक में पात्रों का नाम लेना जरुरी तयों होता है ?

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रे डडयो न टक में कौन क्रकससे ब त कर रह है, हम दे ख नही सकते है इसभिए सांि द जजस चररत्र
से सम्बांगधत है उसक न म िेन जरुरी होत है, इसके आि ि कोई प त्र विशेष कोई हरकत य
एक्शन करत है तो उसे िी सांि द क ठहस्स बन न पड़त है I
रे डडयो नाटक की भाषा-शैली ककतनी अहसमयत रखती है ?
रे डडयो न टक में प त्रों सम्बन्धी सिी ज नक री हमें सांि द से ही भमिती है Iप त्रों के आपसी
सम्बन्ध िी सांि द से ही ज्ञ त होते है इसभिए ि ष –शैिी िी प त्रों के सांि द के अनुस र होनी
च ठहएI
प्रश्न 1. ससनेमा, रं गमं और रे डडयो नाटक में तया-तया समानताएाँ होती हैं ?
उत्तर-भसनेम , रां गमांच और रे डडयो न टक में अनेक सम नत एाँ हैं जो इस प्रक र है -

ससनेमा और रं गमं रे डडयो नाटक


1. भसनेम और रां गमांच में एक कह नी होती 1. रे डडयो न टक में िी एक ही कह नी होती
है। है।
2. इनमें कह नी क आरां ि, मध्य और अांत 2. इसमें िी कह नी क आरां ि, मध्य और
होत अांत हो त है।
3. इनमें चररत्र होते हैं। 3. इसमें िी चररत्र होते हैं।
4. इनमें प त्रों के आपसी सांि द होते हैं। 4. इसमें िी प त्रों के आपसी सांि द होते हैं।
5. इनमें प त्रों क परस्पर दिांदि होत है और 5.इसमें िी प त्रों क परस्पर दिांदि होत है
अांत में सम ध न। और प्रस्तुत क्रकय ज त है। सम ध न प्रस्तुत
क्रकय ज त है।
6. इनमें प त्रों के सांि दों के म ध्यम से 6. इनमें िी प त्रों के सांि दों के म ध्यम से
कह नी क विक स होत है। कह नी क विक स होत है।

प्रश्न 2. ससनेमा, रं गमं और रे डडयो नाटक में तया-तया असमानताएाँ हैं ?


उत्तर-भसनेम रां गमांच और रे डडयो न टक में अनेक सम नत एाँ होते हुए िी कुछ असम नत एाँ
अिश्य होती हैं जो इस प्रक र है -

ससनेमा और रं गमं रे डडयो नाटक


1. भसनेम और रां गमांच दृश्य म ध्यम है। 1. रे डडयो न टक एक श्रवय म ध्यम है।
2. इनमें दृश्य होते हैं। 2. इसमें दृश्य नहीां होते।

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3. इनमें मांच सज्ज और िस्त्र सज्ज क 3. इसमें इनक कोई महत्त्ि नहीां होत ।
बहुत महत्त्ि होत है।
4. इनमें प त्रों की ि ििांगगम एाँ विशेष महत्त्ि 4. इसमें ि ििांगगम ओां की कोई आिश्यकत
रखती हैं। नहीां होती।
5. इनमें कह नी को प त्रों की ि िन ओां के 5. इसमें कह नी को ध्ितन प्रि िों और सांि दों
दि र प्रस्तुत क्रकय ज त है । के म ध्यम से सांप्रेवषत क्रकय ज त है।

प्रश्न 3. रे डडयो नाटक की कहानी में ककन-ककन बातों का ध्यान रखना आिश्यक है ?
उत्तर-रे डडयो न टक में कह नी सांि दों तथ ध्ितन प्रि िों पर ही आध ररत होती है। इसमें कह नी
क चयन करते समय अनेक ब तों क ध्य न रखन आिश्यक है जो इस प्रक र हैं-
1. कह नी एक घटन प्रध न न हो-रे डडयो न टक की कह नी केिि एक ही घटन पर आध ररत नहीां
होनी च ठहए क्योंक्रक ऐसी कह नी श्रोत ओां को थोड़ी दे र में ही ऊब ऊ बन दे ती है जजसे श्रोत कुछ
दे र पश्च त ् सुनन पसांद नहीां करते इसभिए रे डडयो न टक की कह नी में अनेक घटन एाँ होनी
च ठहए।
2. अिगध सीम -स म न्य रूप से रे डडयो न टक की अिगध पांरह से तीस भमनट तक हो सकती है।
रे डडयो न टक की अिगध इससे अगधक नहीां होनी च ठहए क्योंक्रकक्यों रे डडयो न टक को सुनने के
भिए मनष्ु य की एक ग्रत की अिगध 15 से 30 भमनट तक की होती है , इससे ज्य द नहीां।हीां दस
ू रे
रे डडयो एक ऐस म ध्यम है जजसे मनुष्य अपने घर में अपनी इर्चछ अनस
ु र सुनत है । इसभिए
रे डडयो न टक की अिगध सीभमत होनी च ठहए।
3. प त्रों की सीभमत सांख्य -रे डडयो न टक में प त्रों की सांख्य सीभमत होनी च ठहए। इसमें प त्रों की
सांख्य 5- 6 से अगधक नहीां होनी च ठहए क्योंक्रकक्योंक्रक इसमें श्रोत केिि ध्ितन के सह रे ही प त्रों
को य द रख प त है। यठद रे डडयो न टक में अगधक प त्र होंगेहों गेतो श्रोत उन्हें य द नहीां रख
सकेंगे। इसभिए रे डडयो न टक में प त्रों की सांख्य सीभमत होनी च ठहए।
प्रश्न 4. रे डडयो नाटक में ध्िनन प्रभािों और संिादों का तया महत्त्ि है ?
अििा
रे डडयो नाटक की विशेषताओं को स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर-रे डडयो न टक में ध्ितन प्रि िों और सांि दों क विशेष महत्त्ि है जो इस प्रक र हैं-
1. रे डडयो न टक में प त्रों से सांबांगधत सिी ज नक ररय ाँ सांि दों के म ध्यम से भमिती हैं।
2. प त्रों की च ररबत्रक विशेषत एाँ सांि दों के दि र ही उज गर होती हैं।

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3. न टक क पूर कथ नक सांि दों पर ही आध ररत होत है।
4. इसमें ध्ितन प्रि िों और सांि दों के म ध्यम से ही कथ को श्रोत ओां तक पहुाँच य ज त है ।
5. सांि दों के म ध्यम से ही रे डडयो न टक क उददे श्य स्पष्ट होत है।
6. सांि दों के दि र ही श्रोत ओां को सांदेश ठदय ज त है।
प्रश्न 5. रे डडयो पर रे डडयो नाटक का आरं भ ककस प्रकार हुआ ?
उत्तर-आज से कुछ दशक पहिे रे डडयो ही मनोरां जन क प्रमख
ु स धन थ । उस समय टे िीविज़न,
भसनेम , कम्प्यूटर आठद मनोरां जन के स धन उपिब्ध नहीां थे। ऐसे समय में घर बैिे ही रे डडयो ही
मनोरां जन क सबसे सस्त और सि
ु ि स धन थ । रे डडयो पर खबरें आती थीां इसके स थ-स थ
अनेक ज्ञ निधुक क युक्रम िी प्रस ररत क्रकये ज ते थे। रे डडयो पर सांगीत और खेिों क आाँखों दे ख
ह ि प्रस ररत क्रकय ज त थ । एफ० एम० चैनिों की तरह गीत-सांगीत की अगधकत होती थी।
धीरे -धीरे रे डडयो पर न टक िी प्रस्तुत क्रकये ज ने िगे तब रे डडयो न टक टी० िी० ध र ि ठहकों तथ
टे िी क्रफल्मों की कमी को पूर करने के भिए शुरू हुए थे। ये न टक िघु िी होते थे और ध र ि ठहक
के रूप िी प्रस्तत
ु क्रकए ज ते थे। ठहन्दी स ठहत्य के सिी बड़े-बड़े िेखक स ठहत्य रचन के स थ-
स थ रे डडयो स्टे शनों के भिए न टक िी भिखते थे। उस समय रे डडयो के भिए न टक भिखन एक
सम्म नजनक ब त म नी ज ती थी। इस प्रक र रे डडयो न टक क प्रचिन बढने िग । रे डडयो न टकों
ने ठहांदी और अन्य ि रतीय ि ष ओां के न ट्य आांदोिन के विक स में महत्त्िपूणु िूभमक अद की।
ठहांदी के अनेक न टक जो ब द में मांच पर बहुत प्रभसदध रहे िे मूितः रे डडयो के भिए ही भिखे
गए थे। धमुिीर ि रतीय दि र रगचत 'अांध युग' और मोहन र केश दि र रगचत 'आष ढ क एक
ठदन' इसक एक श्रेष्ि उद हरण है।
प्रश्न 6. रे डडयो न टक के तत्िों क सांक्षक्षप्त वििेचन कीजजए।
उत्तर-रे डडयो न टक क मूि आध र ध्ितन म नी ज ती है । यह म निीय ि िों को सरित -सहजत
से वयक्त कर दे ने की क्षमत रखती है। रे डडयो तत्िों के तीन तत्ि म ने ज ते हैं। उनके तत्ि हैं-
(1) ि ष (2) ध्ितन प्रि ि (3) सांगीत।
1. भाषा -ि ष ही रे डडयो न टक की मि
ू आध र होती है । यही सन
ु ने और बोिने क क यु करती
है। इसी से कठिन एिां जठटि रे डडयो न टक और सांि द जठटि हो ज ते हैं। इसे जजन तीन ि गों
में स्िीक र क्रकय ज त है , िे हैं- (क) कथोपकथन (ख) नरे शन (िक्त क कथन) (ग) कथन।
(2) ध्िनन प्रभाि-ध्ितन तरह-तरह की ि त िरणों को बन ने में सह यक बन ती है । तूफ न, ब दि,
ब ज़ र आठद इन्हीां से प्रस रण केम ध्यम से इधर-उधर प्रस ररत करती है। इनकी सह यत से रे डडयो
न टकों की ि त िरण की सजृ ष्ट होती है ।

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(3) संगीत-यह रे डडयो-न टक को सांजीित प्रद न करने क क यु करत है जजससे प्रि वित की
सजृ ष्ट होती है। सांगीत से प्रि वित की क्षमत बढती है ।
प्रश्न 7. दृश्य-श्रव्य माध्यमों की तुलना में श्रव्य माध्यम की तया सीमाएाँ हैं? इन सीमाओं को
ककस तरह पूरा ककया जा सकता है ?
उत्तर: दृश्य-श्रवय म ध्यम में हम न टक को अपनी आाँखों से दे ख िी सकते हैं और प त्रों दि र
बोिे गए विभिन्न सांि दों को सन
ु िी सकते हैं। न टक तनदे शक सांपण
ू ु न टक को रां गमांच पर
प्रस्तुत करत है। न टक में अनेक दृश्य होते हैं, जजन्हें मांच पर सज य ज त है। जब प्रत्येक दृश्य
को अभिनय दि र प्रस्तत
ु क्रकय ज त है तब हम अभिनेत ओां के ह ि-ि ि को दे खते हैं, उनके
ि त ुि प को सुनते हैं इस प्रक र से हम सांपूणु न टक क आनांद िेते हैं। भसनेम और टी०िी०
सीररयि में िी यही जस्थतत होती है । परां तु श्रवय म ध्यम की कुछ सीम एाँ हैं। इसमें हम कुछ िी
दे ख नहीां सकते, केिि सुन सकते हैं। रे डडयो न टक में तनदे शक न टक को इस प्रक र प्रस्तुत करत
है क्रक ध्ितनयों के म ध्यम से ही सब-कुछ समझन पड़त है । उद हरण के रूप में , यठद नदी के
क्रकन रे पर दो प त्र ि त ि
ु प कर रहे हैं, तो नदी के बहने की ध्ितन उत्पन्न की ज एगी और क्रफर
िह ाँ प त्र ब त करते सुन ई दें गे।
इससे श्रोत अनम
ु न िग िेग क्रक प त्र नदी के क्रकन रे आपस में ब तें कर रहे हैं। इसी प्रक र
यठद जांगि क दृश्य प्रस्तुत करन हो, तो जांगि दे ने ि ि सांगीत उत्पन्न क्रकय ज त है। किी-
किी प त्र ि त िरण की सजृ ष्ट करने के भिए स्ियां ि त ुि प दि र इसे प्रस्तुत करते हैं; जैस-े
“ओह! बड़ी सदी पड़ रही है। िां ड के म रे ह थ क ाँप रहे हैं।” यठद िष ु क ि त िरण उत्पन्न करन
हो, तो बरस त होने की ध्ितन प्रस्तुत की ज एगी तथ जल्दी-जल्दी चिने की आि ज़ों को उनके
ि त ुि प के स थ जोड़ ज एग । इस प्रक र हम दे खते हैं क्रक दृश्य-श्रवय म ध्यम की तुिन में
श्रवय म ध्यम में स धन बहुत सीभमत होते हैं। इसमें केिि ध्ितन दि र ही ि त िरण क तनम ुण
क्रकय ज सकत है। इसके विपरीत, न टक अथि भसनेम में दृश्य-श्रवय दोनों म ध्यमों क प्रयोग
क्रकय ज त है।
प्रश्न 8. नी े कुि दृश्य हदए गए हैं। रे डडयो नाटक में इन दृश्यों को आप ककस-ककस तरह से
प्रस्तुत करें ग,े वििरि दीक्जए।
(क) घनी अाँधेरी रात
(ख) सुबह का समय
(ग) बच् ों की खुशी
(घ) नदी का ककनारा

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(ङ) िषाय का हदन
उत्तर: (क) घनी अाँधेरी र त-स ाँय-स ाँय की आि ज़, क्रकसी प त्र दि र यह कहन क्रक घन क ि
अाँधेर है , ह थ-को-ह थ नहीां सूझ रह , चौकीद र की सीटी और ज गते रहो क स्िर आठद दि र
घनी अाँधेरी र त के दृश्य को प्रस्तुत क्रकय ज सकत है ।
(ख) सुबह क समय-गचडड़यों के चहचह ने क स्िर, मुगे दि र ब ाँग दे न , क्रकसी प त्र दि र
प्र तःक िीन िजन क स्िर आठद स धनों से सब
ु ह के समय को प्रस्तत
ु क्रकय ज सकत है ।
(ग) बर्चचों की खुशी-बर्चचों के कोि हि क स्िर, उनकी क्रकिक ररय ाँ, उनकी हाँसी तथ उनके
खखिौनों की ध्ितनयों दि र बर्चचों की खश
ु ी क दृश्य प्रस्तत
ु क्रकय ज सकत है ।
(घ) नदी क क्रकन र -नदी के बहते प नी की आि ज़, हि क स्िर, पक्षक्षयों क किरि, क्रकसी प त्र
दि र यह कहन क्रक नदी क प नी बहुत िां ड है आठद स्िरों दि र नदी के क्रकन रे क दृश्य प्रस्तत

क्रकय ज सकत है।
(ङ) िष ु क ठदन-तनरां तर िष ु होने की ध्ितन, क्रकसी प त्र क यह कहन क्रक ‘आज तो िष ु रुकने
क न म नहीां िे रही’, छ त खोि िो, प नी बहने क स्िर, परन िे से प नी गगरने क स्िर आठद
के म ध्यम से िष ु के ठदन क दृश्य प्रस्तुत क्रकय ज सकत है ।
प्रश्न 9. रे डडयो नाटक लेखन का प्रारूप बनाइए और अपनी पस्
ु तक की ककसी कहानी के एक अंश
को रे डडयो नाटक में रूपांतररत कीक्जए।
उत्तर: ‘ईदग ह’ कह नी के आरां ि में एक ऐस दृश्य है , जजसमें ग ाँि के कछ िड़के भमिकर ईदग ह
ज ने िगते हैं। िे ह भमद को बुि ने के भिए उसके घर ज ते हैं। ह भमद िी ईदग ह के मेिे में
ज न च हत है। ह भमद की द दी उसे मेिे में ज ने से थोड़ स िध न करती है। िह ह भमद को
मेिे के भिए तीन पैसे दे ती है। रे डडयो न टक के भिए यह दृश्य इस प्रक र हो सकत है
(कुछ बर्चचों की भमिी-जुिी आि जें आ रही हैं। उनके पैरों की आि ज़ ह भमद के घर के समीप
आती ज रही हैं। िे ह भमद के घर क दरि ज़ खटखट ते हैं।)
एक स्िर-अरे ओ ह भमद! हम सब मेिे में ज रहे हैं। क्य तुम आ रहे हो?
ह भमद-रुको! ‘मैं िी चि रह हूाँ।
(चिने की आि ज़)
द दी-बेटे ह भमद! थोड़ रुको।
ह भमद-(ऊाँचे स्िर में ) द दी ज न क्य है ?
द दी-मेिे में स िध न होकर चिन कहीां……….
ह भमद-(बीच में टोककर) ह ाँ! द दी मझ
ु े स र पत है । गचांत मत करो।

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द दी-बेटे! मेिे में कोई गांदी चीज़ न ख न ।
ह भमद ह ाँ, द दी िीक है। ऐस ही करूाँग ।
(ब हर बर्चचों की आि जें तीव्र हो ज ती हैं।)
ह भमद-(दरि ज खोिते हुए) चिो! मैं िी स थ चि रह हूाँ।
(धीरे -धीरे बर्चचों की आि जें मांद पड़ ज ती हैं और पैरों की आि जें िी िुप्त हो ज ती हैं।

(vi) नए और अप्रत्यासशत विषयों पर लेखन

प्रश्न-1 नए अििा अप्रत्यासशत विषयों पर लेखन से तया तात्पयय है एिं नए अििा अप्रत्यासशत
विषयों पर लेखन में तया तया बाधाएं आती हैं ?
उत्तर-1 क्रकसी नए अथि अप्रत्य भशत विषय पर कम समय में अपने विच रों को सांकभित कर
उन्हें सुन्दर ढां ग से प्रस्तुत करन ही अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन कहि त है I नए अथि
अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन में अनेक ब ध एां आती हैं जजसको हम इस प्रक र कह सकते हैं I
1.स म न्य रूप से विदय थी आत्मतनिुर होकर अपने विच रों को भिखने क अभ्य स नहीां करत
हैI
2. विदय थी मौभिक भिखने क अभ्य स और प्रय स नहीां करत है I
3. विदय थी के प स स्ितांत्र होकर भिखने के भिए समय क अि ि िी होत है उस पर म ाँ
ब प के दि र हर समय अर्चछे नांबर ि ने क दब ि ड ि ज त रहत है I
4. विदय थी के प स स्ितांत्र होकर भिखने िे भिए सांबांगधत स मग्री और तथ्य क िी अि ि
होत है I
5. विदय थी के बौदगधक विक स के अि ि में विच रों की कमी हो ज ती है I
6. अप्रत्य भशत विषयों पर भिखते समय शब्दकोश की कमी हो ज ती है I
प्रश्न-2 नए अििा अप्रत्यासशत विषयों पर लेखन में कौन कौन सी बातों का ध्यान रखना ाहहए
?
उत्तर-क्रकसी नए अथि अप्रत्य भशत विषय पर िेखन में तनम्नभिखखत ब तों क ध्य न रखन
च ठहए-
1.अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन में मैं शैिी क प्रयोग करन च ठहए
2.अप्रत्य भशत विषयों पर भिखते समय िेखक को विषय से हटकर अपनी विदित को प्रकट
नहीां करन च ठहए

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3.जजस विषय पर भिखन है विदय थी को उसकी सम्पूणु ज नक री होनी च ठहए I
4.विषय पर भिखने से पूिु विध थी को अपने मजस्तष्क में उसकी एक उगचत रुपरे ख बन िेनी
च ठहए
5.विषय से जुड़े तथ्यों से उगचत त िमेि होन च ठहए I
6.विच र विषय से सुसांबदध तथ सांगत होने च ठहए I
प्रश्न-3 नए अििा अप्रत्यासशत विषयों पर लेखन को ककस प्रकार सरल बनाया जा सकता है I
उत्तर- नए अथि अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन को सरि बन ने के भिए तनजम्िखखत ब तों क
ध्य न रखन च ठहए :
1.क्रकसी िी विषय पर भिखने से पूिु अपने मन में उस विषय से सांबांगधत उिने ि िे विच रों को
कुछ दे र रुककर एक रुपरे ख प्रद न करें Iउसके पश्र्चय त ही श नद र ढां ग से अपने विषय की
शुरुआत करें I
2.विषय को प्र रां ि करने के स थ ही उस विषय को क्रकस प्रक र बढ य ज ए ,यह िी मजस्तष्क
में पहिे से होन च ठहए
3.जजस विषय पर भिख ज रह है ,उस विषय से जुड़े अन्य तथ्यों की ज नक री होन िी बहुत
आिश्यक है I सस
ु ांबदधत क्रकसी िी िेखन की बतु नय दी तत्ि होत है I
4. सुसांबदधत के स थ स थ विषय से जुड़ी ब तों क िी सुसांगत होन िी जरुरी होत है Iअतः
क्रकसी िी विषय पर भिखते समय दो ब तों क आपस में जुड़े होने के स थ स थ उनमें त िमेि
होन िी आिश्यक होत है I
5. नए अथि अप्रत्य भशत विषयों पर िेखन में आत्मपरक ‘मैं’ शैिी क प्रयोग क्रकय ज
सकत है Iयदयवप तनबांधों और अन्य आिेखों में मैं शैिी क प्रयोग िजजुत होत है Iक्रकन्तु नए
विषयों पर िेखन में मैं शैिी के प्रयोग से िेखक के विच रों और उसके वयजक्तत्ि की झिक
प्र प्त होती है I
प्रश्न-4 “संिेदनाओं की मौत” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर- जीिन बहुत ही बहुमल्
ू य है च हे िह क्रकसी इांस न क हो य ज निर क I मेरे प स एक
प्य र स वपल्ि थ Iघर के सिी बर्चचे उसे बहुत प्य र करते थे Iसब ने भमिकर उसक न म
मोती रख थ Iउसक रां ग क ि थ क ि रां ग होने के क रण िह हम सब को बहुत ही पसांद थ
Iहम सब बर्चचों में कौन अपने थ िी से क्रकतन अगधक रोटी उसको खखि रह है बर बर इस पर
प्रततस्पध ु क ि ि रहत थ Iधीरे धीरे िह वपल्ि बड़ हो गय अब िह हम सब के स थ खेंतो
में िी स थ स थ ज ने िग थ Iहमसब उसे अपने पररि र क सदस्य मन ने िगे थे और िह

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िी हम सब के स थ अपन पन क ि ि रखने िग थ Iएक ठदनगमी के दोपहर में जब
हमसब पररि र के िोग सो रहे थे तो मोती घर के ब हर टहिते टहिते थोड़ी दरू चि गय Iतो
ग ाँि के कुछ कुत्तों क समूह उसे घेर कर क टने िगे क टते क टते उसे एक कीचड़ के पोखरे में
िे कर चिे गए Iदोपहर ब द जब हम िोंगो की नीद खुिी तो मोती को खोजते खोजते उस
फोखर के प स पहुांचे Iजह ाँ हम र मोती म र हुआ पड़ थ Iहम सब बहुत ही दख
ु ी हुए I हम
सब गमगीन होकर िौट रहे थे तो एक बर्चचे ने बत य की फोखर के प स ि िे च च ने कुत्तों
को क टते हुए दे ख थ िेक्रकन उन्होंने बच य नहीां Iहम सब को उस च च पर बहुत गुस्स आय
Iहम सब सोचने िगे क्रक कोई इांस न इतन सांिेदनहीन कैसे हो सकत है I
प्रश्न-5 “सािन की पहली फुहार ” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर - पथ्
ृ िी की तपन को दरू करने के क्रकए स िन की पहिी झड़ी जीिन में नई उमांग ि ती है
Iवपछिे कई से हि में घुटन सी बढ गई थी Iब हर तपत सूयु और हि में भसकुड़ने की
अगधकत जीिन को दि
ू र बन रही थी अच नक ब दिों में तेज बबजिी कौंधी जोर से ब दि
गरजे और मोटी –मोटी कुछ बांद
ू े टपकी कुछ िोग सांदेश –सन
ु कर ि गे त क्रक अपने घरों में पड़
स म न अन्दर कर िे Iपििर में ही तेज ब ररश शुरू हो गई Iपेड़ पौधे नह भिए Iउनक धुि
धस
ू ररत चेहर धि
ु गय और हरी ि री दमक क्रफर से िौट आई Iछोटे -छोटे बर्चचे ब ररश में नह
रहे थे खेि रहे थे,एक दस
ु रे पर प नी फेक रहे थे Iकि र त तक दहकने ि ि ठदन आज
खुशनुम हो गय I
प्रश्न-6 “परीक्षा का भय” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर परीक्ष से हर क्रकसी को गुजरन पड़त है Iऔर हर कोई क्रकतन िी अपने आप को
बुदगधम न क्यों न समझत हो परीक्ष से हर क्रकसी को डर िगत है Iपरीक्ष नजदीक आते ही
हम रे जीिन की समय स ररणी बदि ज ती है I वपचिे िषु जब मै दसिीां की बोडु की परीक्ष की
तैय री कर रह थ तो भशक्षकों दि र हमें परू े िषु परीक्ष के न म से डर य गय Iऔर घर में िी
इसी न म से डर य -धमक य गय Iमै िी मन ही मन परीक्ष के न म से डरत थ पत नहीां इस
बर परीक्ष में क्य होग Iपरू े िषु परीक्ष की अर्चछी तरह तैय रीIपर परीक्ष क डर सद बन
रह Iजजस ठदन परीक्ष क दी थ उस ठदन मुझे पूरी र त िीक से नीद नहीां आई Iपहि पेपर मेर
ठहांदी क थ और ठहांदी विषय में मेरी अर्चछी पकड़ थी पर परीक्ष क िय ख़त्म ही नहीां हो रह
थ िेक्रकन जब प्रश्न पत्र भमि तो बहुत खुशी हुई और सिी प्रश्न समय से हि हो गय Iब हर
तनकिने पर हम सिी के चेहरों पर ख़ुशी थी Iपरीक्ष क िय सम प्त हो गय Iमै प्रथम श्रेणी में
प स हुआ I

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प्रश्न-7 “आत्मविश्िास का महत्ि ” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर आत्मविश्ि स जीिन के भिए अत्यांत आिश्यक होत है Iदतु नय में जजतने िी बड़े बड़े
क म हुए हैं सब आत्मविश्ि स से ही हुए है Iमेरे जीिन में आत्मविश्ि स िरने में मेरे ठहांदी
भशक्षक ब ि मुकुन्द चौरभसय क सबसे बड़ योगद न है Iगुरु जी जब तनर ि की कवित क
अथु बत रहे थे तो उन्होंने बत य की तनर ि क जीिन अत्यांत गरीबी में बीत थ Iउसी
सन्दिु में सर ने बत य क्रक क िु म क्सु क एक कथन है “जजसके प स खोने के भिए कुछ नहीां
होत है उसके भिए प ने के भिए बहुत कुछ होत है ”I उस ठदन मैंने सोच की मेरे प स खोने के
भिए तो कुछ है नहीां Iन मेरे प स पैस है न मेरे प स अर्चछे अांक है और न मझ
ु से मेरे पररि र
को ज्य द उम्मीदे है Iउस ठदन से मैंकुछ प ने के भिए मन िग कर पढने िग और कक्ष
दसिीां की बोडु की परीक्ष में प्रथम आय Iउस ठदन से मेरे मन में आत्म विश्ि स आय की मैं
िी जीिन में कुछ कर सकत हूाँ I
प्रश्न-8 “मेरा वप्रय टाइम पास” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर- आज के मशीनीकरण के यग
ु में हर कोई परे श न है Iजजस मशीन क अविष्क र मनष्ु य
की सुविध के भिए क्रकय गुआ थ Iआज िही मशीन मनुष्य की परे श नी क क रण िी बन
गय है Iकिी किी हम तनध ुररत क म के अततररक्त कुछ अन्य क म िी करन च हते है भसससे
हम रे मन और अजस्तष्क को सुकून की प्र जप्त होती है Iऔर िग त र कम करने की बोररयत से
र हत भमि ती है I हर क्रकसी की पसांद अिग अिग होती है इसभिए उनक समय बबत ने क
तरीक िी अिग अिग होत है Iक्रकसी की सोन अर्चछ िगत है क्रकसी को क्रफल्म दे खन अर्चछ
िगत है क्रकसी को उपन्य स पढन अर्चछ िगत है Iक्रकसी की घूमन अर्चछ िगत है क्रकसी को
ब गि नी करन अर्चछ िगत है मेर वप्रय क म है उपन्य स पढन Iमुझे उपन्य स पढकर सुकून
महसूस होत है I
प्रश्न-9 “घरे लू नौकरानी की शाम” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर- हम रे दे श में मध्यिगीय पररि रों के भिए यह अतत आिश्यक हो गय है क्रक घर पररि र
को िीक ढां ग से चि ने के भिए पतत पत्नी दोनों पैस कम एां Iइस भिए घरे िू नौकर तनयों की
सांख्य तनरां तर बढती ज रही है I घरे िू नौकर तनयों की जजांदगी पुरुषों की जजांदगी की अपेक्ष
ज्य द कठिन होती है क्योंक्रक उन्हें घर और ब हर एक स थ सांि िन पड़त है Iउनकी श म तिी
प्र रां ि हो ज ती है जब ओ सुबह घर से क म के भिए ब हर तनकिती हैं Iक्योंक्रक श म को ब ज र
से स ग सब्जी आट च िि आठद क प्रबांध करके ही घर िौटती है Iऔर िौटते िौटते श म हो
ज ती है Iतब तक पतत और उनके बर्चचे िी घर पहुाँच चक
ु ें होए हैं Iठदन िर की थकी ह री न री

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आर म करन च हती है पर आर म नहीां कर प ती क्योंक्रक पतत और बर्चचों के भिए च य न श्त
िी तैय र करन पड़त है Iक्रफर र त को ख ने के भिए ख न बन न होत है और क्रफर ख न
ख कर थक ह रकर सो ज ती है सुबह क्रफर से िही जजांदगी Iउसे किी आर म नहीां भमित है I
प्रश्न-10“झरोखे से बाहर” विषय पर एक लेख सलणखए I
उत्तर- झरोखे से ब हर झरोख है -िीतर से ब हर की ओर एक प्रक र के म ध्यम और ब हर से
अांदर दे खने क र स्त Iहम री र तें िी झरोख ही हैं-मन मजस्तष्क को सांस र से और सांस र को
मन मजस्तष्क को सांस र से जोड़ने क Iमन रूपी झरोखे से क्रकसी क्रकसी िी िक्त को सांस र कण-
कण में बसने ईश्िर के दशुन होतें हैं तो मनरूपी झरोखे से ही क्रकसी ड कू िट
ु े रे को िी क्रकसी
धनी-की धन –सांपवत्त प्रकट होती है जो िूटने के उप य में िह हत्य के सम न है Iर जस्थ नी
महिों के झरोखों से दरू -दरू की रे त के टीिे कर्चछ अिग ही रां ग ठदख ते हैंIग ाँिों में घरों के
झरोखों के ब हर यठद हरे -िरे खेत िहिह ते ठदख ई दे ते है Iजब सांस र में च रों तरफ तनर श
ठदख ई पड़ रही होती है तो मै आतांररक मन रूपी झरोखे से दे खत हूाँ जह ाँ मुझे आश की एक
क्रकरण ठदख ई पड़ती है I

प्रश्न6. पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 आधाररत िियनात्मक प्रश्न


(क) काव्य खंड
(i) (क)आत्म परर य- हररिंश राय बच् न
सारांश: कवित में कवि क म नन है क्रक दतु नय को ज नन तो क्रफर िी आस न है पर स्ियां क
ज्ञ न होन अत्यांत कठिन। सम ज वयांग करत है , त ने कसत है क्रफर िी मनुष्य सम ज से अिग
रह नहीां प त । कवि कहत है क्रक दतु नय क और मेर सांबांध प्रीतत किह क है । दतु नय द री को
छोड़ कर अपन जीिनय पन कर प न सांिि नहीां है । कवि के भिए उसके दख
ु ों क खांडहर सुखों
के महिों से कहीां ज्य द सांद
ु र है । िह हर आश तनर श में प्रसन्न रहत है । कवि अपनी वयथ ,
क्रोध, ि िन एाँ सबकुछ अपने शब्दों के दि र वयक्त करत है।
काव्य खंड पर आधाररत ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में सलणखए -
प्रश्न 1. आत्म-परर य कविता में कवि संसार को तया संदेश दे ना ाहता है ?
उत्तर-आत्म-पररचय कवित श्री हररिांश र य बर्चचन दि र रगचत है। इसमें कवि सांस र को मस्ती
क सांदेश दे न च हत है। ऐसी मस्ती जजसमें सांपूणु सांस र मदमस्त होकर आनांद वििोर हो उिे ।
िह आनांठदत होकर नत्ृ य करने िगे और इसी मस्ती में सदै ि िहर त रहे ।
प्रश्न 2. कवि के जीिन और संसार में तया सभन्नता है ?

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उत्तर-कवि प्रेम एिां मस्ती में मदमस्त रहत है। िह प्रेम रूपी मठदर पीकर उसी के आनांद में डूब
हुआ है। िह च रों तरफ प्रेम, मस्ती, आनांद एिां सौंदयु क ि त िरण फैि न च हत है जबक्रक यह
सांस र परस्पर ईष्य ु, दिेष, अहां की ि िन ओां में डूब है । इसे क्रकसी के प्रेम ि आनांद से कोई
मतिब नहीां है। यह तो प्रेम की मस्ती को िी वयथु समझत है। यह सदै ि दस
ू रों की कोमि
ि िन ओां से खखिि ड़ करत है और उनक मज़ क उड़ त है।
प्रश्न 3. कवि ने संसार को तया माना है और उसे ककस ीज़ की आिश्यकता नहीं है ?
उत्तर-कवि सुख-दख
ु दोनों अिस्थ ओां में सम न रहत है । उसने सांस र को एक स गर के सम न
म न है। उसके अनस
ु र सांस र के िोग इस सांस र रूपी स गर को प र करने हे तु न ि बन सकते
हैं, क्रकां तु उसे इस न ि की कोई आिश्यकत नहीां है । िह स ांस ररक खुभशयों में डूबकर यूां ही बहन
च हत है।
प्रश्न 4. कवि संसार में ककस ीज़ से प्रभावित नहीं होता ?
उत्तर-कवि पथ्
ृ िी पर वय प्त धन-ऐश्ियु तथ श न-ओ-शौकत से ततनक िी प्रि वित नहीां होत ।
ऐसी श न-ओ-शौकत को िह पग-पग र पर िुकर त चित है । िह कहत है क्रक जजस पथ्
ृ िी पर
यह सांस र झूिे धन-ऐश्ियु तथ श न और शौकत खड़ करत है , िह ऐसी ऐश्ियु पररपूणु पथ्
ृ िी
को पग-पग पर िुकर दे त है । यह धन-िैिि कवि को ततनक िी विचभित नहीां कर सकत ।
प्रश्न 5. ‘म नि-जीिन क्षणिांगुर है ’ पांजक्त क आशय स्पष्ट कीजजए।
कवि के कहने क अभिप्र य यह है क्रक म नि-जीिन क्षणिांगुर है । अथ ुत समय बहुत कम है जो
अत्यांत तेज़ी से गुज़रत है । मनुष्य रूपी य त्री को यह गचांत रहती है क्रक उसके िक्ष्य को प्र प्त
करने से पहिे ही उसके र स्ते में र त न हो ज ए। कवि कहत है क्रक ठदन अत्यांत शीघ्रत से
वयतीत होत है।
काव्य खंड पर आधाररत ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में सलणखए –
प्रश्न - 1 कविता एक ओर जगजीिन का भार सलए घम
ू ने की बात करती है और दस
ू री ओर 'मैं
कभी न जग का ध्यान ककया करता हूं'- एक दस
ू रे से विपरीत इन किनों का तया आशय है ?
उत्तर - जग - जीिन क ि र िेने से कवि क अभिप्र य यह है क्रक िह स ांस ररक द तयत्िों क
तनि ुह कर रह है । आम वयजक्त से िह अिग नहीां है तथ सुख- दख
ु , ह तन - ि ि आठद को
झेिते हुए अपनी य त्र परू ी कर रह है । दस
ू री तरफ कवि कहत है क्रक िह किी सांस र की तरफ
ध्य न नहीां दे त । यह ां कवि स ांस ररक द तयत्ि की अनदे खी की ब त नहीां करत । िह सांस र की
तनरथुक ब तों पर ध्य न न दे कर केिि प्रेम पर केंठरत रहत है। आम वयजक्त स म जजक ब ध ओां

76
से डर कर कुछ नहीां कर प त । कवि स ांस ररक ब ध ओां की परि ह नहीां करत । अतः इन दोनों
पांजक्तयों के अपने तनठहत थु हैं। यह एक- दस
ू रे के विरोधी न होकर पूरक हैं।
प्रश्न-2 जहां पर ज्ञानी रहते हैं, िहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा तयों कहा होगा ?
उत्तर- न द न य नी मूखु वयजक्त स ांस ररक म य ज ि में उिझ ज त है । मनुष्य इस म य ज ि को
तनरथुक म नते हुए िी इसी के चक्कर में फांस रहत है । सांस र असत्य है । मनुष्य इसे सत्य
म नने की न द नी कर बैित है , और मोक्ष के िक्ष्य को िि
ू कर सांग्रहिवृ त्त में पड़ ज त है ।
इसके विपरीत, कुछ ज्ञ नी िोग िी सम ज में रहते हैं जो मोक्ष के िक्ष्य को नहीां िूिते अथ ुत
सांस र में हर तरह के िोग रहते हैं।
प्रश्न-3. मैं और, और जग और कहां का नाता - पंक्तत में 'और' शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर- यह ां 'और' शब्द क तीन ब र प्रयोग हुआ है। अतः यह ां यमक अिांक र है । पहिे 'और' में
कवि स्ियां को आम वयजक्त से अिग बत त है । िह आम आदमी की तरह िौततक चीजों के
सांग्रह के चक्कर में नहीां पड़त । दस
ू रे 'और' के प्रयोग में सांस र की विभशष्टत को बत य गय है।
सांस र में आम वयजक्त स ांस ररक सख
ु - सुविध ओां को अांततम िक्ष्य म नत है । यह प्रिवृ त्त कवि
की विच रध र से अिग है । तीसरे 'और' क प्रयोग 'सांस र और कवि में क्रकसी तरह क सांबांध
नहीां' दश ुने के भिए क्रकय गय है।
प्रश्न-4. 'शीतल िािी में आग' के होने का तया असभप्राय है ?
उत्तर - कवि ने यह ां विरोध ि स अिांक र क प्रयोग क्रकय है। कवि की ि णी यदयवप शीति है
परां तु उसके मन में विरोह, असांतोष क ि ि प्रबि है । िह सम ज की वयिस्थ से सांतुष्ट नहीां है
। िह प्रेम - रठहत सांस र को अस्िीक र करत है । अतः अपनी ि णी के म ध्यम से अपनी
असांतुजष्ट को वयक्त करत है । िह अपने कवित्ि धमु को ईम नद री से तनि ते हुए िोगों को
ज गत
ृ कर रह है ।
प्रश्न-5. कवि को संसार अपि
ू य तयों लगता है ?
उत्तर- कवि ि िन ओां को प्रमुखत दे त है । िह स ांस ररक बांधनों को नहीां म नत । िह ितुम न
सांस र को उसकी शष्ु कत एिां नीरसत के क रण न पसांद करत है । स ांस ररक िोग म य -मोह और
अपने स्ि थु की पूततु के पीछे दौड़ते हैं जजसे कवि वयथु म नत है। स ांस ररक िोग प्रेम को महत्ि
नहीां दे ते हैं । इसभिए कवि को सांस र अपूणु िगत है ।

(i)(ख)-एक गीत-हररिंशराय बच् न


कवित क स र :-

77
ठदन जल्दी-जल्दी ढित है :-‘एक गीत’ शीषुक कवित में कवि हररिांश र य बर्चचन कहते हैं क्रक
समय हमेश चित रहत है और उसके बीतने क अहस स हमें िक्ष्य-प्र जप्त के भिए और अगधक
प्रय स करने की प्रेरण दे त है। र स्ते में चिने ि ि र हगीर यही सोचकर अपनी मांजजि की ओर
तेज गतत से कदम बढ त है क्रक कही र स्ते में ही र त न हो ज ए। पक्षक्षयों को िी ठदन बीतने
के स थ यह अहस स होत है क्रक उनके बर्चचे िोजन प ने की आश में नीड़ों से झ ाँक रहे होंगे।
यह सोचकर गचडड़यों के पांखों में तेजी आ ज ती है। इन पांजक्तयों में आश ि दी स्िर है। आश की
क्रकरण जीिन की जड़त को सम प्त कर दे ती है और प िकों को सक र त्मक सोच तक िे ज ने
क प्रय स करती हैं। िेक्रकन कवि क जीिन तो एक की है और घर पर उसकी प्रतीक्ष करने ि ि
कोई िी नहीां है। घर पर ऐस कोई िी नहीां है जो क्रक उसके भिए वय कुि होग और इसी तनर श
के क रण कवि क मन कांु ि से िर ज त है , उसकी गतत मांद पड़ ज ती है । इन पांजक्तयों के दि र
कवि ने अपने जीिन के अकेिेपन की पीड़ को ि णी दी है।
काव्य खंड पर आधाररत ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में सलणखए –
प्रश्न 1.हदन जल्दी-जल्दी ढलता है –कविता का प्रनतपाद्य तया है ?
उत्तर : प्रस्तुत कवित प्रेम की महत्त पर प्रक श ड िती है । प्रेम की तरां ग ही मनुष्य के जीिन में
उमांग की ठहिोरें पैद करती है । प्रेम के क रण ही मनष्ु य को िगत है क्रक ठदन जल्दी जल्दी
बीत ज रह है। इससे अपने वप्रयजनों से भमिने हे तु कदम में तेजी आ ज ती है I
प्रश्न 2. यहद मंक्जल दरू हो तो लोगों की िहााँ पहुाँ ाने की मानससकता कैसी होती है ?
उत्तर: मांजजि दरू होने पर िोगों में उद सीनत क ि ि आ ज त है । किी-किी उनके मन में
तनर श िी आ ज ती है। मांजजि की दरू ी के क रण कुछ िोग घबर कर प्रय स करन िी छोड़ दे ते
हैं। मनुष्य आश ि तनर श के बीच झूित रहत है I
प्रश्न 3.घर लौटते हुए कवि के कदम सशचिल तयों हो जाते हैं?
उत्तर : घर िौटते समय कवि को स्मरण हो ज त है क्रक जजस वप्रय से भमिने की आक ांक्ष है
उसक अजस्तत्ि अब सांस र में नहीां है। अतः कवि में तनर श के ि ि आने से िह सोच में पड़
ज त है और उसके कदम भशगथि हो ज ते हैं।
प्रश्न 4.च डड़या ककसके बारे में सो कर ं ल हो रही है ?
उत्तर :गचडड़य अपने बर्चचों के ब रे में सोचकर चांचि हो रही है। श म ढिते ही अन्धेर हो ज ने
पर गचडड़य के बर्चचे डर ज येंगे। िे अपनी म ाँ की प्रतीक्ष में घोंसिे से झ ाँक रहे होंगे I म ाँ अपने
बर्चचों की गचांत में बेचैन हो रही है I
प्रश्न 5.जीिन रूपी पि में अाँधेरा िाने के भय से कौन और तयों भयभीत है ?

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उत्तर : र हगीर र त होने से पहिे अथ ुत ् पररजस्थततय ाँ प्रततकूि होने से पहिे अपनी मांजजि को
प िेन च हत है I उसे िगत है क्रक समय बहुत तीव्र गतत से बीत रह है । अतः िह समय
रहते हुए अपन क यु पूर कर िेन च हत है I
काव्य खंड पर आधाररत ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में सलणखए –
प्रश्न1. ‘हदन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का उद्दे श्य बताइए ।
उत्तर- यह गीत कवि हररिांश र य बर्चचन दि र तनश तनमांत्रण से उदधत
ृ है । इस गीत में कवि
प्रकृतत की दै तनक पररितुनशीित के सन्दिु में प्र णी िगु के धड़कते हृदय को सुन ने की
क वय त्मक कोभशश करत है। क्रकसी वप्रय से भमिने क आश्ि सन हम रे पगों में तेजी िर दे त
है। इससे हम भशगथित और जड़त से बच ज ते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के स थ समय के
गुजरते ज ने के एहस स में िक्ष्य प्र जप्त के भिए कुछ कर गुजरने क जज्ब भिए हुए है ।
प्रश्न 2. कविता ‘हदन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में पक्षी तो घर लौटने को विकल है ,पर कवि में
उत्साह नहीं है। ऐसा तयों?
उत्तर- प्रस्तत
ु कवित ‘ठदन जल्दी-जल्दी ढित है ’ में श म को घर िौटते हुए पक्षक्षयों को वय कुि
और आतुर बर्चचों की य द आने िगती है और उनसे भमिने के भिए िे िी बेचैन हो ज ते हैं,
जजसकी िजह से उनके पांखों में तेजी ि चांचित आ ज ती है और िे शीघ्र ही घर पहुाँचने क
प्रय स करने िगते हैं। इस कवित में आगे बत य गय है क्रक कवि के घर में उसकी प्रतीक्ष
करने ि ि कोई िी नहीां है । घर में उसके आने के इांतज र में कोई वय कुि नहीां होग और िह
सोचने िगत है क्रक िह घर ज ने की शीघ्रत क्यों करे । अतः पक्षी तो घर िौटने को वय कुि हैं
परां तु कवि में कोई उत्स ह नहीां है ।
प्रश्न3.बच् े ककस बात की आशा में नीड़ों से झााँक रहे होंगे?
उत्तर –पक्षी ठदन िर िोजन की ति श में िटकते क्रफरते हैं। उनके बर्चचे घोंसिों में म त -वपत
की र ह दे खते रहते हैं क्रक म त -वपत उनके भिए द न ि एाँगे और उनक पेट िरें गे। स थ-स थ
िे म -ाँ ब प के स्नेठहि स्पशु प ने के भिए प्रतीक्ष करते हैं। छोटे बर्चचों को म त -वपत क स्पशु
ि उनकी गोद में बैिन , उनक प्रेम-प्रदशुन िी असीम आनांद दे त है । इन सबकी पतू तु के भिए
िे नीड़ों से झ ाँकते हैं।
प्रश्न 4.हदन जल्दी-जल्दी ढलता है - की आिवृ त्त से कविता की ककस विशेषता का पता लता हैं?
उत्तर ‘ठदन जल्दी-जल्दी ढित है’-की आिवृ त्त से यह प्रकट होत है क्रक िक्ष्य की तरफ बढते
मनुष्य को समय बीतने क पत नहीां चित । पगथक िक्ष्य तक पहुाँचने के भिए आतुर होत है ।
इस पांजक्त की आिवृ त्त समय के तनरां तर चि यम न प्रिवृ त्त को िी बत ती है । समय क्रकसी की

79
प्रतीक्ष नहीां करत । अत: समय के स थ स्ियां को सम योजजत करन प्र खणयों के भिए आिश्यक
है।
प्रश्न 5.कौन सा वि ार हदन ढलने के बाद लौट रहे पंिी के कदमों को धीमा कर दे ता है ?
बच् न के गीत के आधार पर उत्तर दीक्जए।
उत्तर :- कवि एक की जीिन वयतीत कर रह है Iश म के समय उसके मन में विच र उित है
क्रक उसके आने के इांतज र में वय कुि होने ि ि कोई नहीां है I अतः िह क्रकसके भिए तेजी से
घर ज ने की कोभशश करे । श म होते ही र त हो ज एगी और कवि की विरह िेदन बढ ज एगी ।
इस विच र के आते ही ठदन ढिने के ब द िौट रहे पांथी के कदम धीमे हो ज ते हैं।

(ii)पतंग-आलोक धन्िा
श्री आिोक धन्ि दि र रगचत ‘पतांग’ कवित उनके क वय सांग्रह ‘दतु नय रोज बनती है ’ में सांकभित
है इस कवित में कवि ने ब ि सुिि इर्चछ ओ. एिां उमांगों क सुांदर एिां मनोह री गचत्रण क्रकय है
Iकवि ने ब ि क्रक्रय कि पों तथ प्रकृतत में आए पररितुन को अभिवयक्त करने के भिए अनेक सांद
ु र
बबांबो क प्रयोग क्रकय है Iपतांग बर्चचों की उमांगों क रां ग -बबरां ग सपन है ,जजसमें में खो ज न
च हते हैं Iआक श में उड़ती हुई पतांग ऊांच इयों की िे हदें हैं जजन्हें ब िमन छून च हत है और
उसके प र ज न च हत है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जये -
प्रश्न-1-कवि ने कपास का बच् ों के साि तया संबंध स्िावपत ककया है ?
उत्तर- जजस प्रक र कप स कोमि एिां मुि यम होती है उसी प्रक र ब िमन िी कोमि एिां तनश्छि
होत है I कप स की तरह बर्चचों के स फ स्िर्चछ मन में कोई मैि नहीां होती I जजस प्रक र कप स
को विभिन्न रूपों में ढ ि ज सकत है ,िैसे ही बर्चचों को विभिन्न वयजक्तत्ि में रूप ांतररत क्रकय
ज सकत है I
प्रश्न-2- कवि ने शरद ऋतु का िियन ककस प्रकार ककया है ?
उत्तर-ि दों के ब द आक श तनमुि एिां स्िर्चछ होत है , सूयु की क्रकरणें चमकद र होती है I इस
ऋतु पररितुन को कवि ने शरद ऋतु क म निीकरण करते हुए प्रस्तुत क्रकय है I कवि ने शरद
ऋतु की कल्पन पुिों को प र करते हुए नई चमकीिी स इक्रकि चि ते हुए मनुष्य से की है जो
जोर-जोर से घांटी बज कर पतांग उड़ ने ि िे बर्चचों को इश रे से बुि रह है I
प्रश्न-3-’पथ्
ृ िी और भी तेज घूमती हुई आती है उनके पैरों के पास ‘ से कवि का तया आशय है ?

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उत्तर --कवि कथन है क्रकअगर बर्चचे पतांग उड़ ते हुए गगर ज ते हैं और यठद िे बच ज ते हैं तो
उनमें और अगधक स हस और तनडरत आ ज ती है I िे और अगधक तनिीकत के स थ पतांग
उड़ ते हैं I उनकी तनिुरत और स हस को दे खकर पथ्
ृ िी िी उनके बेचैन पैरों के प स तेजी से
घूमती आती हुई प्रतीत होती है I
प्रश्न-4 हदशाओं को मद
ृ ं ग की तरह बजाने से तया आशय है ?
उत्तर - बर्चचे जब पतांग उड़ ते हुए चहकते हैं और क्रकिक ररय ां म रते हुए सिी ठदश ओां में दौड़ते
-क्रफरते हैं तो ऐस िगत है तो उनकी मधुर और उत्स ह िरी आि ज सिी ठदश ओां में मद
ृ ां ग के
सम न गांज
ू रही हो I ‘ठदश ओां को मद
ृ ां ग की तरह बज ने’ से कवि क यही त त्पयु है I
प्रश्न-5 कविता का काव्य सौन्दयय स्पष्ट कीक्जये I
उत्तर- सांपूणु कवित में ब ि सुिि चेष्ट ओां ,क सजीि गचत्रण हुआ है I कवित की ि ष सहज
,सरि एिां सरस है जजसमें तत्सम- तदिि और विदे शी शब्द ििी क प्रयोग िी क्रकय गय है
म निी करण अनुप्र स पन
ु रुजक्त प्रक श अिांक र ओां की छट दशुनीय है I प्रस द गुण एिां अभिन श
शब्द शजक्त है मक्
ु तक छां द क प्रयोग क्रकय गय है I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जये -


प्रश्न-1 पतंग कविता में प्रकृनत का मानिीकरि ककस प्रकार ककया गया है ?
उत्तर - कवि ने शरद ऋतु क म निीकरण करते हुए कह है क्रक शरद अपनी नई चमकद र स इक्रकि
को तेज गतत से चि ते हुए तथ जोर-जोर से उसकी घांटी बज कर पतांग उड़ ने ि िे बर्चचों के
समूह को सुांदर सांकेतों के म ध्यम से बुि रह है I उसने अपने चमकद र सांकेतों और मधुर
ध्ितनयों से आक श को िी इतन कोमि बन ठदय है क्रक पतांग इस असीम आक श में ऊपर उि
सके I
प्रश्न-2 कविता में पतंग के सलए ककन ककन विशेषिों का प्रयोग ककया गया है और तयों ?
उत्तर - पतांग के भिए सबसे हल्की और रां गीन चीज’ सबसे पति क गज,सबसे पतिी कम नी
जैसे विशेषण क प्रयोग क्रकय गय है क्योंक्रक पतांग में हल्के रां गीन क गज और पतिी ब ांस की
कम नी क प्रयोग क्रकय ज त है जजससे िह उड़ सके I यह कवित ब ि सुिि क्रक्रय कि पों क
गचत्र ांकन करती है I बर्चचे क मन अत्यांत कोमि और हल्क होत है ;िह शरीर से िी दब
ु ि -
पति , कोमि ,चांचि और तनश्चि होत है I अतः एक कोमि बर्चचे की उम्र ,ि िन ओां, कोमि
शरीर, तनश्चि मन आठद की अभिवयजक्त के भिए ही इन विशेषणों क प्रयोग क्रकय गय है I
प्रश्न-3 पतांग उड़ ते हुए बर्चचों को एक पतांग क्रकस प्रक र थ म िेती है ?

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उत्तर- पतांगों के स थ बर्चचे इतने खो ज ते हैं क्रक िें अपने -आप को ही िूि ज ते हैं I पतांग के
ठहिोरे के स थ बर्चचों क मन िी ठहिोरे िेत है इसभिए पतांग आक श में जजतनी ऊांच ई को
छूती है ,ब िमन िी उतनी ही ऊांच ई को छून च हत है I उड़ती पतांग ही बर्चचे के मन में स हस
और तनडरत प्रद न करती है और उन्हें पग -पग पर जोश प्रद न करती है I यही क रण है क्रक
महज एक ध गे के सह रे पतांगों की धड़कती ऊाँच इय ां बर्चचों को थ म िेती है I
प्रश्न-4-ितों के खतरनाक ककनारों से ब ने के बाद बच् ों के स्िभाि में तया अंतर होता है ?
उत्तर - बर्चचे यठद छतों के खतरन क क्रकन रों से बच ज ते हैं तो िें और िी अगधक तनडर एिां
बेखौफ बन ज ते हैंI उनमें नई स्फूततु एिां स हस क ि ि िर ज त है I िें अगधक तनडरत के
स थ सुनहरे सूयु के स मने आकर खड़े हो ज ते हैं और पतांग को पहिे की अपेक्ष अगधक मस्ती
एिां आनांद के स थ उड़ ते हैं I
प्रश्न-5 -कवि ने पतंग उड़ाते हुए बच् ों का च त्रि ककस प्रकार ककया है ?
उत्तर- बर्चचे पतांग उड़ ते हुए छतों के एक कोने से दस
ू रे कोने तक बेसुध होकर दौड़ िग ते हैं I
उन्हें दे खकर ऐस िगत है म नो उनके पैरों तिे की धरती िी कोमि हो गई हो I िे अपनी
क्रकिक ररयों से सिी ठदश ओां को नग ड़ों की तरह बज ते प्रतीत होते हैं I िह प्र य: पेड़ की श ख
की ि ांतत कोमि िचीिे िेग के स थ इधर-उधर झि
ू ते हुए अपनी ही मस्ती में डूब कर दौड़
िग ते हुए पतांग उड़ ते हैं I

(iii)क-कविता के बहाने- काँु िर नारायि


कविता का सार- ‘कवित के बह ने’ कवित कवि के कवित -सांग्रह ‘इन ठदनों’ से िी गई है। आज
के समय में कवित के अजस्तत्ि के ब रे में सांशय हो रह है। यह आशांक जत ई ज रही है क्रक
य ांबत्रकत के दब ि से कवित क अजस्तत्ि नहीां रहे ग । ऐसे में यह कवित -कवित की अप र
सांि िन ओां को टटोिने क एक अिसर दे ती है।
यह कवित एक य त्र है जो गचडड़य , फूि से िेकर बर्चचे तक की है । एक ओर प्रकृतत है दस
ू री
ओर िविष्य की ओर कदम बढ त बर्चच । कवि कहत है क्रक गचडड़य की उड़ न की सीम है , फूि
के खखिने के स थ उसकी पररणतत तनजश्चत है , िेक्रकन बर्चचे के सपने असीम हैं। बर्चचों के खेि
में क्रकसी प्रक र की सीम क कोई स्थ न नहीां होत । कवित िी शब्दों क खेि है और शब्दों के
इस खेि में जड़, चेतन, अतीत, ितुम न और िविष्य-सिी उपकरण म त्र हैं। इसीभिए जह ाँ कहीां
रचन त्मक ऊज ु होगी, िह ाँ सीम ओां के बांधन खुद-ब-खुद टूट ज ते हैं। िह सीम च हे घर की हो,
ि ष की हो य समय की ही क्यों न हो।

82
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जये -
प्रश्न:-1 कविता को तया संज्ञा दी गई हैं? तयों?
उत्तर:- कवित को खेि की सांज्ञ दी गई है। जजस प्रक र खेि क उददे श्य मनोरां जन ि आत्मसांतुजष्ट
होत है , उसी प्रक र कवित िी शब्दों के म ध्यम से मनोरां जन करती है तथ रचन क र को सांतुजष्ट
प्रद न करती है।
प्रश्न-2 ‘कविता एक णखलना है , फूलों के बहाने’ ऐसा तयों?
उत्तर:-कवित फूिों के बह ने खखिन है क्योंक्रक फूिों को दे खकर कवि क मन प्रसन्न हो ज त है।
उसके मन में कवित फूिों की ि ाँतत विकभसत होती ज ती है ।
प्रश्न:-3 कविता की उडान ि च डडया की उडान में तया अंतर है ?
उत्तर:- गचडड़य की उड़ न एक सीम तक होती है , परां तु कवित की उड़ न वय पक होती है । गचडड़य
कवित की उड़ न को नहीां ज न सकती।

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जये -


प्रश्न-1.इस कविता ‘कविता के बहाने’ बताएाँ कक ‘सब घर एक कर दे ने के माने तया है ?
उत्तर: इसक अथु है -िेदि ि, अांतर ि अिग िि द को सम प्त करके सिी को एक जैस समझन ।
जजस प्रक र बर्चचे खेिते समय धमु, ज तत, सांप्रद य, छोट -बड़ , अमीर-गरीब आठद क िेद नहीां
करते, उसी प्रक र कवित को िी क्रकसी एक ि द य भसदध ांत य िगु विशेष की अभिवयजक्त नहीां
करनी च ठहए। कवित शब्दों क खेि है। कवित क क यु सम ज में एकत ि न है।
प्रश्न 2.‘कविता के बहाने उसकी उड़ान और उसके णखलने का आशय स्पष्ट कीक्जए ।
उत्तर: कवि ने बत य क्रक गचडड़य एक जगह से दस
ू री जगह उड़ती है। इसी प्रक र कवित िी हर
जगह पहुाँचती है । उसमें कल्पन की उड़ न होती है । कवि फूि खखिने की ब त करत है। दस
ू रे
शब्दों में, कवित क आध र प्र कृततक िस्तुएाँ हैं। िह िोगों को अपनी रचन ओां से मुग्ध करती है।
प्रश्न 3.कविता और बच् े को समानांतर रखने के तया कारि हो सकते हैं?
उत्तर: कवित और बर्चचों के क्रीड़ -क्षेत्र क स्थ न वय पक होत है। बर्चचे खेिते-कूदते समय क ि,
ज तत, धमु, सांप्रद य आठद क ध्य न नहीां रखते। िे हर जगह, हर समय ि हर तरीके से खेि
सकते हैं। उन पर कोई सीम क बांधन नहीां होत । कवित िी शब्दों क खेि है। शब्दों के इस
खेि में जड़, चेतन, अतीत, ितुम न और िविष्य आठद उपकरण म त्र हैं। इनमें तन:स्ि थुत होती
है। बर्चचों के सपने असीम होते हैं, इसी तरह कवि की कल्पन की िी कोई सीम नहीां होती।

83
प्रश्न 4. कविता के संदभय में ‘त्रबना मुरझाए महकने के माने तया होते हैं।
उत्तर: कवि कहत है क्रक फूि एक तनजश्चत समय पर खखिते हैं। उनक जीिन िी तनजश्चत होत
है, परां तु कवित के खखिने क कोई तनजश्चत समय नहीां होत है । उसकी जीिन अिगध असीभमत
है। िे किी नहीां मुरझ ती। उनकी कवित ओां की महक सदै ि फैिती रहती है।
प्रश्न 5.‘कविता के बहाने’ कविता का प्रनतपाद्य बताइए?
उत्तर: कवित ‘कवित के बह ने’ काँु िर न र यण के ‘इन ठदनों’ सांग्रह से िी गई है । आज क समय
कवित के िजूद को िेकर आशांक्रकत है। शक है क्रक य ांबत्रकत के दब ि से कवित क अजस्तत्ि
नहीां रहे ग । ऐसे में यह कवित -कवित की अप र सांि िन ओां को टटोिने क एक अिसर दे ती है।
कवित के बह ने यह एक य त्र है , जो गचडड़य , फूि से िेकर बर्चचे तक की है । एक ओर प्रकृतत
है दस
ू री ओर िविष्य की ओर कदम बढ त बर्चच । कहने की आिश्यकत नहीां क्रक गचडड़य की
उड़ न की सीम है। फूि के खखिने के स थ उसकी पररणतत तनजश्चत है , िेक्रकन बर्चचे के सपने
असीम हैं। बर्चचों के खेि में क्रकसी प्रक र की सीम क कोई स्थ न नहीां होत । कवित िी शब्दों
क खेि है और शब्दों के इस खेि में जड़, चेतन, अतीत, ितुम न और िविष्य सिी उपकरण
म त्र हैं। इसीभिए जह ाँ कहीां रचन त्मक ऊज ु होगी िह ाँ सीम ओां के बांधन खुद-ब-खुद टूट ज ते हैं।
िे च हे घर की सीम हो, ि ष की सीम हो य क्रफर समय की ही क्यों न हो।

(iii)ख-बात सीधी िी पर- काँु िर नारायि


कविता का प्रनतपाद्य:-
‘ब त सीधी थी पर’ में ि ष की सरित और सहजत को रे ख ांक्रकत क्रकय गय है I कवि क कहन
है क्रक हमें सीधी-सरि ब त को सीधे-सरि शब्दों में कहने क प्रय स करन च ठहएI ि ष के प्रदशुन
के फेर में पड़ते ही ब त उिझने िगती है I जैस-े जैसे कवि उिझ ि से तनक िने क प्रय स करत
है, जठटित और अगधक बढने िगती है I कुछ िोग इस उिझ ि क समथुन करते हैंI पररण मस्िरूप
ब त क मूि प्रि ि नष्ट हो ज त है I कहने ि ि ि ष की जठटित से तांग आकर ज़ोर-जबरदस्ती
करने िगत है I इस प्रक र िह च हे -अनच हे अन ड़ी बन ज त है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में सलणखए:-
प्रश्न-1. ‘भाषा को सहूसलयत’ से बरतने से तया असभप्राय है ?

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उत्तर- ि ष को सहूभियत से बरतने क आशय है - उसक सरित , स दगी और सहजत से प्रयोग
करन I उपयुक्त ि ि के भिए उपयुक्त शब्द क प्रयोग करन I बन िटी शब्दों के आडांबर से बचन I
सरि-सी ब त को सरितम ि ष -शैिी में कह दे न I
प्रश्न- 2. ‘भाषा को सहूसलयत’ से न बरतने का तया पररिाम होता है ?
उत्तर- ि ष को सहूभियत से न बरतने क पररण म यह होत है क्रक जब हम ि ष को प्रि िी
बन ने के चक्कर में चमत्क री बन ते हैं तो मि
ू ि ि और सांदेश ही मर ज त है और जजस अथु
के स थ िह ब त श्रोत तक पहुाँचनी च ठहए िह नहीां पहुाँच प ती है I
प्रश्न- 3. कवि ककसे पाने का प्रयास कर रहा िा और तयों?
उत्तर- कवि सरि एिां स्पष्ट ब त को कठिन एिां पेचीदी ि ष के चांगुि से ब हर तनक िकर उसे
पुर ने रूप में प ने क प्रय स कर रह थ I िह ब त सरि एिां सीधी होने पर िी कठिन ि ष के
चक्कर टे ढी होकर फाँस गई थीI
प्रश्न- 4. ‘बात सीधी िी पर’ कविता में कवि ने मुख्य रूप से तया कहा है ?
उत्तर- ‘ब त सीधी थी पर’ कवित में कवि ने कथ्य और म ध्यम के दिांदि को प्रस्तत
ु करते हुए
कथ्य को स्पष्ट करने के भिए आडांबरपूणु शब्द ििी के स्थ न पर ि ष के सहज प्रयोग पर बि
ठदय है जो क्रक िक्त और श्रोत दोनों के भिए स्ि ि विक होत है I
प्रश्न- 5. कवि ककसकी िाहिाही में डूब गया िा?
उत्तर- कवि तम शबीनों की ि हि ही में डूब गय थ I उनके अांधे समथुक उसे इस ब त क आि स
ही नहीां होने दे ते क्रक िह कठिन एिां पेचीदी ि ष के चांगुि में फाँसत ज रह है और िह शब्दों
के सहज प्रयोग से िटकत चि गय I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में सलणखए:-
प्रश्न-1. बात पे ीदा होने पर भी कवि पें को और अचधक तयों कसता है ?
उत्तर- ि ष क ज द ू ठदख ने के चक्कर में अभिवयजक्त पेचीद होती गईI क्रफर िी कवि ि ष के
पेंच को कसत चि गय I क रण थ -जनत क समथुनI उसे तम शबीनों की ि हि ही भमिने िगीI
जबक्रक िह अस्पष्ट थ , गित थ I िह गित ब त पर अड़ गय थ I ब त उिझ गई थीI क्रफर िी
उसके अांधसमथुकों ने उसे समथुन दे न ज री रख I पररण म यह हुआ क्रक िह ब त को सुिझ ने
की बज य उिझी हुई ब त को और अगधक उिझ त चि गय I
प्रश्न- 2. ‘बात सीधी िी पर’ कविता का उद्दे श्य स्पष्ट कीक्जएI
उत्तर- ‘ब त सीधी थी पर’ कवित क मूि सांदेश यह है क्रक हर ब त को सहजत से कहन च ठहएI
यठद िक्त अपनी ब त को बबन क्रकसी बन िट, बन
ु िट, जठटित , िक्रत य चमत्क र-प्रदशुन कह

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दे , तो ब त बन ज ती हैI ि ि पूरी तरह श्रोत तक पहुाँच ज त है I परां तु यठद िक्त अपनी ब त
को चमत्क री बन ने के फेर में शब्दों को ज नबूझकर तोड़त -मरोड़त है य कठिन बन त है तो
ब त बीच में ही रह ज ती है I ब त क प्र ि ि और सौन्दयु नष्ट हो ज त है I ब त अपने मि

उददे श्य से िटक ज ती है I
प्रश्न- 3. कवि को पसीना तयों आ गया?
उत्तर- कवि अपनी ब त को सरित से नहीां कह प य I उसने ब त को प्रि िश िी ि ष में कहने
के चक्कर में स्ियां को उिझ भिय I इससे ब त अपने िक्ष्य से िटक गईI कवि ने ि ष के जांगि
में उिझी अपनी ब त को सरित से कहने क िरपरू प्रय स क्रकय I उसने च ह क्रक उसकी ब त
जठटि ि ष के पेंचों से ब हर तनकि आएI परां तु इस कोभशश में उसके ह थ कुछ िी न िग सक I
उसकी स री मेहनत बेक र हो गई और परे श न होने पर उसे पसीन िी आने िग I
प्रश्न- 4. ि हि ही और समथुन से क्य दष्ु पररण म हो सकत है ?
उत्तर- ि हि ही अांधी होती है I समथुकों क एक ही धमु होत है -अपने न यक की अांधी प्रशांस
करन , उसे बि प्रद न करन I िह जो िी कहे , उसके समथुन में न रे िग न I उसे उसी के गित-
सित र स्ते पर आगे बढ न I इसक दष्ु पररण म यह होत है क्रक प्र यः अांधे समथुन को प कर िह
िटके हुए म गु पर बढते-बढते प्र यः अांधे कुएाँ में गगर ज त है I िह अपने िक्ष्य से भ्रभमत हो
ज त है और उसे अपने सही म गु क ज्ञ न िी नहीां रहत है I
प्रश्न- 5. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, ककन्तु कभी-कभी भाषा के तकर में ‘सीधी बात
भी टे ढ़ी हो जाती है’ कैसे?
उत्तर- यह ब त सच है क्रक ब त और ि ष क सांबांध अिेद होत है I मनुष्य के मन में उिी हुई
ि िन एाँ शब्दों में भिपटकर ब हर आती हैंI हम जैस अनुिि करते हैं, यठद उसे िैस ही कह दें
तो कोई चक्कर नहीां पड़त I परां तु यठद कवि अपनी ब त को कहने के भिए उसे सज ने-साँि रने य
प्रि िी बन ने के फेर में पड़ ज त है तो बहुत कठिन ई हो ज ती है I यठद िह ि ष के मोह में
पड़त है तो मूि ब त पीछे छूट ज ती है I िह कहन कुछ च हत है क्रकन्तु कह कुछ ज त है I
किी-किी ऐस होत है क्रक शब्द-ही-शब्द रह ज ते हैं, उनके अथु तक श्रोत पहुाँच ही नहीां प त
क्योंक्रक सीधी ब त बहुत टे ढी हो ज ती है I

(iv)कैमरे में बंद अपाहहज-रघि


ु ीर सहाय
कविता का प्रनतपाद्य:- ‘कैमरे में बांद अप ठहज’ कवित में दरू दशुन-कभमुयों की सांिेदनहीनत और
क्र् रत पर प्रक श ड ि गय है I प्र यः मीडडय में क युक्रम को आकषुक और बबक ऊ बन ने के भिए

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म निीय दख
ु -ददु को खोिकर ठदख य ज त है I अप ठहजों को कैमरे के स मने ि कर उनसे बड़े
क्रूर प्रश्न पूछे ज ते हैंI उनके सोए हुए ददु को ज नबूझकर त ज क्रकय ज त है I मीडडय की
कोभशश होती है क्रक अप ठहज वयजक्त अपने ददु से और दशुक करुण से रो पड़ेंI इस प्रक र उनक
क युक्रम रोचक बन ज त है I कवि ने मीडडय की इस वय िस तयक क्रूरत पर गहर कट क्ष क्रकय
हैI
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में सलणखए:-
प्रश्न- 1. ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ कविता को आप ककस प्रकार क्रूरता की कविता मानते है ? स्पष्ट
कीक्जएI
उत्तर- यह कवित मीडडय कभमुयों की क्रूरत क प्रदशुन करती है I उनके भिए अप ठहजों के प्रतत
करुण ठदख न िी एक खेि है I िे करुण को बड़े क्रूर ढां ग से ठदख कर धन अजजुत करते हैंI यह
करुण के मुखौटे में तछपी क्रूरत की कवित है इसभिए कवि कवित की इस क्रूरत पर कट क्ष
करत है I
प्रश्न- 2. सामाक्जक उद्दे श्य से यत
ु त ऐसे काययक्रम को दे खकर आपको कैसा लगेगा? अपने वि ार
सलणखएI
उत्तर- स म जजक उददे श्य से यक्
ु त क युक्रम क बह न बन कर क्रकसी अप ठहज के स थ इस प्रक र
की क्रूरत को दे खकर हमें प्रश्नकत ु की बुदगध पर तरस आएग और अप ठहज के प्रतत करुण
ज गेगीI हम अपन ररमोट दब कर दस
ू रे चैनि को दे खन ही पसांद करें गे I
प्रश्न- 3. ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ कविता में शारीररक ुनौती झेलते अन्यिा सक्षम लोगों के प्रनत
कवि के रिैये पर हटप्पिी कीक्जएI
उत्तर- ‘कैमरे में बांद अप ठहज’ कवित में कवि श रीररक पीड़ से ग्रस्त क्रकन्तु िैसे सक्षम िोगों के
प्रतत सम्म न क ि ि रखत है I कवि ठदख न च हत है क्रक मीडडय ि िे ऐसे अपांग िोगों की
अपांगत क मज़ क उड़ ते हैंI यह अनगु चत है I
प्रश्न- 4. ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ कविता में ननहहत व्यंग्य को स्पष्ट कीक्जएI
उत्तर- ‘कैमरे में बांद अप ठहज’ कवित अपनी वयांजन में ऐसे वयजक्तयों की ओर इश र करती है ,
जो अपने दख
ु -ददु, य तन -िेदन को बेचन च हते हैंI उनकी जस्थतत म ह म री की क मन करने
ि िे गचक्रकत्सक के सम न होती है I
प्रश्न- 5. अपाहहज कैमरे के सामने तयों रो पड़ता है ?

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उत्तर- सांच र म ध्यम ि िे िोग अप ठहज की ि िन ओां एिां सांिेदन ओां के स थ खखिि ड़ करते हैं I
क रोब री दब ि के क रण उनक रिैय सांिेदनहीन बन ज त है , जजससे उनक क युक्रम रोचक
और प्रि िश िी बन सकेI इस उददे श्य के भिए िे म नित को िी त र-त र कर दे ते हैंI
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में सलणखए:-
प्रश्न-1. यहद शारीररक रूप से ुनौती का सामना कर रहे व्यक्तत और दशयक, दोनों एक साि रोने
लगें गे, तो उससे प्रश्नकताय का कौन-सा उद्दे श्य पूरा होगा?
उत्तर- यठद कोई अपांग और दशुक, दोनों एक-स थ रोने िगें तो प्रश्नकत ु को िगेग क्रक उसने
क युक्रम को बहुत ि िन पण
ू ु और करुण पण
ू ु बन भिय है I िह उस क युक्रम के म ध्यम से अपांगों
के जजस दख
ु -ददु को छिक न च हत थ , िह पूरी तरह से छिक गय है I यह ाँ तक क्रक िह ददु
दशुक की आाँखों से उमड़ िी पड़ है I इस सफि क युक्रम क ि स्तविक उददे श्य है - जनत क
ध्य न खीांच प ने में समथु होन , त क्रक उसे दे खने के भिए अगधक गधक दशुक स मने आएाँ और
क युक्रम-तनम ुत की िरपूर कम ई होI
प्रश्न- 2. ‘परदे पर ितत की कीमत है ’ कहकर कवि ने परू े साक्षात्कार के प्रनत अपना नज़ररया
ककस रूप में रखा है ?
उत्तर- ‘परदे पर िक्त की कीमत है ’ से स क्ष त्क रकत ु की मि
ू ि िन क पररचय भमित है I
स क्ष त्क रकत ु के भिए दरू दशुन के परदे पर क युक्रम ठदख ने के बदिे जो पैस िगत है , उसकी
कीमत अगधक है , अपांग क ददु ज नने की कमI ि स्ति में िह पैस प ने के भिए अपांगत ठदख
रह है I कवि क वयांग्य यह है क्रक आज वय िस तयकत बहुत ह िी हो गई है I दरू दशुन पर ठदख ई
ज ने ि िी करुण हो य िेदन , सब नगण्य हैंI स थुक है धनI
प्रश्न- 3. दरू दशयन िाले कैमरे के सामने ककसी दब
ु ल
य को तयों लाते हैं?
उत्तर- दरू दशुन ि िे ज नते हैं क्रक मनुष्य करुण ि न प्र णी है I िोग क्रकसी को दख
ु में दे खकर उसके
ब रे में ज नन च हते हैंI दस
ू रों क दख
ु मनष्ु य को इतन ब ाँधत है क्रक िह अपन ध्य न हट ही
नहीां प त I मनुष्य की इसी ि िन क दोहन करने के भिए, उससे पैसे कम ने के भिए दरू दशुन
ि िे ज नबझ
ू कर क्रकसी दब
ु ि
ु को परदे पर िे आते हैंI िे च हते हैं क्रक िोग उनकी दयनीय दश
पर रवित होकर आाँसू बह एाँ और उनक क युक्रम चि तनकिे, उनकी खूब कम ई होI
प्रश्न- 4. ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ शीषयक की साियकता ससद्ध कीक्जएI
उत्तर- ‘कैमरे में बांद अप ठहज’ शीषुक यह ध्ितन दे त है जैसे कैमर उनके भिए कोई कैद हो, य तन
हो य पीड़ होI कवि क िक्ष्य टी. िी. सांच िकों की हृदयहीनत को ठदख न है I िे पीडड़तों-
अप ठहजों की पीड़ को कैमरों में कैद करके दशुकों को उनक तम श ठदख ते हैं और बदिे में

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मनम न धन िसूि करते हैंI अप ठहजों की यही पीड़ ठदख न कवित क उददे श्य है I इस प्रक र
यह शीषुक एकदम सही, सटीक और स थुक है I
प्रश्न- 5. ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ सामाक्जक संिेदनशून्यता का जीता-जागता उदाहरि है I कैसे?
स्पष्ट कीक्जएI
उत्तर- ‘कैमरे में बांद अप ठहज’ कवित करुण के वय प ररयों पर तीख वयांग्य है I मीडडय कमी अपने
चैनि को िोकवप्रय बन ने के भिए ज नबझ
ू कर िोगों के जख्म कुरे दते हैंI िे अप ठहजों की मज़बरू ी
को, उनकी दीनत और दख
ु को ज नबूझकर उि रते हैं त क्रक िोग उन्हें दे खने के भिए चैनि से
गचपके रहें I ि स्ति में क्रकसी अप ठहज के िि
ू े हुए ददु से अपन धांध चि न अत्यांत तघनौन और
क्रूर कमु हैI

(v)उषा- शमशेर बहादरु ससंह


प्रस्तुत कवित ‘उष ’ में कवि शमशेर बह दरु भसांह ने सूयोदय से िीक पहिे के पि-पि पररिततुत
होने ि िी प्रकृतत क शब्द-गचत्र उकेर है । कवि ने प्रकृतत की गतत को शब्दों में ब ाँधने क अदित

प्रय स क्रकय है। कवि िोर की आसम नी गतत की धरती के हिचि िरे जीिन से तुिन कर रह
है। इसभिए िह सय
ू ोदय के स थ एक जीिांत पररिेश की कल्पन करत है जो ग ाँि की सब
ु ह से
जुड़त है-िह ाँ भसि है , र ख से िीप हुआ चौक है और स्िेट की क भिम पर च क से रां ग मिते
अदृश्य बर्चचों के नन्हे ह थ हैं। कवि ने नए बबांब, नए उपम न, नए प्रतीकों क प्रयोग क्रकय है।
कवि कहत है क्रक सूयोदय से पहिे आक श क रां ग गहरे नीिे रां ग क होत है तथ िह सफेद
शांख-स ठदख ई दे त है। आक श क रां ग ऐस िगत है म नो क्रकसी गठृ हणी ने र ख से चौक िीप
ठदय हो। सय
ू ु के ऊपर उिने पर ि िी फैिती है तो ऐस िगत है जैसे क िी भसि को क्रकसी ने
धो ठदय हो य उस पर ि ि खडड़य भमट्टी मि ठदय हो। नीिे आक श में सूयु ऐस िगत है
म नो नीिे जि में गोरी यि
ु ती क शरीर खझिभमि रह है । सय
ू ोदय होते ही उष क यह ज दई

प्रि ि सम प्त हो ज त है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए-
प्रश्न 1. नील जल में हहलती णझलसमलाती दे ह के माध्यम से कवि तया कहना ाहता है ?
उत्तर – कवि नीि जि के म ध्यम से नीिे आक श क गचत्रण करन च हत है I सूरज क पि-
पि बढ ते ज न क्रकसी रूपसी न री की गोरी दे ह क खखिते ज न है I इस प्रक र कवि नीिे
आक श में विकीणु होती सूरज की धिि क्रकरणों के प्रक श क गचत्रण करन च हत है I
प्रश्न 2. स्लेट पट लाल खडड़या ाक मलने के सौन्दयय की वििे ना कीक्जए I

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उत्तर – क िीन स्िेट पर ि ि खडड़य कज क भमट्टी को िीप ठदय ज ए और िह गीिी हो तो
उसक रां ग िोरक िीन गहरे आक श पर सूरज की ि िी पड़ने जैस होत है I यह िणुन रूप रां ग
और ि त िरण की सम नत के क रण बहुत सुन्दर प्रतीत होत है I
प्रश्न 3. ”जाद ू टूटता है इस उषा का अब” – उषा का जाद ू तया है ? िह कैसे टूटता है ?
उत्तर – सूयोदय होने से पहिे आक श में नए-नए रां ग उिरते हैं I ि ि- क िे रां गों के अदिुत मेि
से आक श में ज द ू जैस ि त िरण बन ज त है Iइसी रां ग-बबरां गे ि त िरण को उष क ज द ू कह
गय है I
प्रश्न 4. कवि ने प्रातुः कालीन िातािरि की समानता नीले शंख से की है तिा भोर के नभ को
राख से लीपा हुआ ौका कहा है I तयों ?
उत्तर – िोर के समय ि त िरण न तो गहर क ि होत है और न उज ि I उसक रां ग नीिे शांख
जैस बुझ -बुझ होत है I इसभिए नीिे शांख की उपम सुन्दर बन पड़ी है Iर ख से िीपे ज ने क
रां ग गहर सुरमयी होत है I िोक ुिीन ि त िरण िी ऐस सुरमयी होत है I इस क रण यह
सम नत सन्
ु दर बन पड़ी है I
प्रश्न 5. उषा का जाद ू टूटने का तया आशय है ?
उत्तर – उष के ज द ू क त त्पयु है – प्र तःक िीन ि त िरण क अप र सौन्दयु I उनके प्रतत प्रततपि
बदिते रूप क सौन्दयु I जैसे ही सूरज आक श में चढत है प्र तःक िीन सौन्दयु की झ ाँक्रकय ाँ
ग यब हो ज ती हैं I स र आक श सूरज के तेज प्रक श से एक स म न उज्जिि हो ज त है I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में सलणखए-


प्रश्न 1. उषा कविता गााँि की सुबह का गनतशील च त्र कैसे है ?
उत्तर – कवित में नीिे नि को र ख से िीप हुआ चौके के स म न बत य गय है I दस
ू रे बबम्ब
में उसकी ति
ु न क िी भसि से की गई है I तीसरे में स्िेट पर ि ि खडडय च क क उपम न
बन य है I िीप हुआ आाँगन,क िी भसि य स्िेट ग ाँि के पररिेश से भिए गए हैं Iअतः भसदध
होत है क्रक ये शब्दगचत्र ग ाँि के हैं I जह ाँ तक ब त गततशीित की है तो पहिे चौके को िीप
ज त है ,तिी भसि क प्रयोग होत है और उसके ब द ही ब िक के ह थ में स्िेट ठदए ज ने की
ब री आती है इसभिए इसे ग्र मीण जीिन की गततशीि झ ाँकी िी कह ज सकत है I
प्रश्न 2. सूयोदय से उषा का कौन-सा जाद ू टूट रहा है ?
उत्तर – सूयोदय से उष क अिौक्रकक रां ग-रूप टूट रह है Iसय
ू ु की उठदत ठहने से पहिे आक श में
प्रततक्षण पररितुन होत रहत है I उस ि ि-क िी छवि को पकड़ने के भिए कवि ने अनेक उपम न

90
जुट ए हैं,क्रफर िी उष क ि के ज द ू क पूणु स्िरूप उिर कर नहीां आ प य है I यही अिणुनीय
सौन्दयु सूयोदय के पश्च त नष्ट हो ज त है I
प्रश्न 3. भोर के रं ग को राख से लीपा गीला ौका तयों कहा गया है ?
उत्तर – िोर क आक श गीिे र ख के रां ग के स म न गहर स्िेटी होत है I तब ि त िरण में नमी
और पवित्रत होती है I इन तीनों विशेषत ओां – रां ग,नमी और पवित्रत के क रण िोर के नि को
र ख से िीप गीि चौक कह गय है I कवि िोर क िीन ि त िरण को रसोईघर की पवित्रत के
स म न पवित्र कहन च हत है I
प्रश्न 4. “काली ससल’ ि ‘स्लेट’ तिा ‘लाल केसर’ ि ‘लाल खडड़या ाक’ ककस दृश्य को च त्रत्रत
करते हैं ?
उत्तर – िोर क ि में आक श में सुरमयी अन्धेर होत है I यह अन्धेर क िी-भसि य स्िेट के रां ग
जैस होत है I इस प्रक र कवि क िी भसि य स्िेट के म ध्यम से िोरक िीन अाँधेरे क गचत्रण
करन च हत है I ि ि-केसर ि ि ि खडड़य च क सूरज की क्रकरणों की ि भिम को गचबत्रत करते
हैं I
प्रश्न 5. भाि-सौन्दयय स्पष्ट कीक्जए –
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ ौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली ससल ज़रा से लाल केसर से से
कक जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खडड़या ाक
मॉल दी हो ककसी ने
उत्तर – इस क वय ांश क मख्
ु य ि ि है – िजोर क िीन ि त िरण क सक्ष्
ू म गचत्रण करन I कवि
ने उस समय के रां ग को र ख से िुईपे हुए चौके से गचबत्रत क्रकय है I इससे ि त िरण की गहरी
क भिम और मख
ु ररत हो उिी है I ब द के दोनों उपम नों में स्िेटी रां ग के स थ फूटते सरू ज की
ि भिम िी प्रिेश प गई है I इस प्रक र यह िणुन बहुत सूक्ष्म और सुन्दर है I

(vi)बादल राग-सय
ू क
य ांत त्रत्रपाठी ‘ननराला’
सार- कवि ब दिों को दे खकर कल्पन करत है क्रक ब दि हि रूप में समुर में तैरते हुए क्षखणक
सख
ु ों पर दख
ु की छ य हैं जो सांस र य धरती की जिती हुई छ ती पर म नी छ य करके उसे

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श ांतत प्रद न करने के भिए आए हैं। ब ढ की विन श-िीि रूपी युदध-िूभम में िे नौक के सम न
िगते हैं। ब दि की गजुन को सुनकर धरती के अांदर सोए हुए बीज य अांकुर नए जीिन की
आश से अपन भसर ऊाँच उि कर दे खने िगते हैं। उनमें िी धरती से ब हर आने की आश ज गती
है। ब दिों की ियांकर गजुन से सांस र हृदय थ म िेत है। आक श में तैरते ब दि ऐसे िगते हैं
म नो िज्रप त से सैकड़ों िीर धर श यी हो गए हों और उनके शरीर क्षत-विक्षत हैं। कवि कहत है
क्रक छोटे ि हिके पौधे ठहि-डुिकर ह थ ठहि ते हुए ब दिों को बि
ु ते प्रतीत होते हैं। कवि ब दिों
को क्र ांतत-दत
ू की सांज्ञ दे त है। ब दिों क गजुन क्रकस नों ि मजदरू ों को नितनम ुण की प्रेरण
दे त है। क्र ांतत से सद आम आदमी को ही फ़ यद होत है। ब दि आतांक के ििन जैसे हैं जो
कीचड़ पर कहर बरस ते हैं। बुर ईरूपी कीचड़ के सफ़ ए के भिए ब दि प्रियक री होते हैं। छोटे -से
त ि ब में उगने ि िे कमि सदै ि उसके प नी को स्िर्चछ ि तनमुि बन ते हैं। आम वयजक्त हर
जस्थतत में प्रसन्न ि सुखी रहते हैं। अमीर अत्यगधक सांपवत्त इकट्िी करके िी असांतुष्ट रहते हैं
और क्र ांतत की आशांक से क ाँपते हैं। कवि कहत है क्रक कमजोर शरीर ि िे कृषक ब दिों को अधीर
होकर बि
ु ते हैं क्योंक्रक पाँूजीपतत िगु ने उनक अत्यगधक शोषण क्रकय है । िे भसफ़ु जज़ांद हैं। ब दि
ही क्र ांतत करके शोषण को सम प्त कर सकत है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए -
प्रश्न1.‘अक्स्िर सुख पर दुःु ख की िाया’ पंक्तत में ‘दुःु ख की िाया’ ककसे कहा गया है और तयों?
उत्तर- कवि ने ‘दःु ख की छ य ’ म नि-जीिन में आने ि िे दःु खों, कष्टों को कह है। कवि क
म नन है क्रक सांस र में सुख किी स्थ यी नहीां होत । उसके स थ-स थ दःु ख क प्रि ि रहत है ।
धनी शोषण करके अकूत सांपवत्त जम करत है , परां तु उसे सदै ि क्र ांतत की आशांक रहती है। िह
सब कुछ तछनने के डर से ियिीत रहत है।
प्रश्न 2.’बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों के बहाने क्रांनत का आहिान ककया है। इस किन
की समीक्षा कीक्जए।
उत्तर- ब दि र ग कवित में क्र ांतत के स्िर मुखररत हैं। क्र ांतत क सि ुगधक ि ि शोवषत िगु को
ही भमित है , क्योंक्रक उसी के अगधक र छीने गए होते हैं। क्र ांतत से शोषक िगु के विशेष गधक र
खत्म होते हैं। आम वयजक्त को जीने के अगधक र भमिते हैं। उनकी दरररत दरू होती है । अत:
ब दि की गजुन से उत्पन्न क्र ांतत से शोवषत िगु प्रसन्न होत है।
प्रश्न 3. ‘अशानन-पात से शावपत उन्नत शत-शत िीर ‘पंक्तत में ककसकी ओर संकेत ककया है ?

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उत्तर-इस पांजक्त में कवि ने पाँज
ू ीपतत य शोषक य धतनक िगु की ओर सांकेत क्रकय है । ‘बबजिी
गगरन ’ क त त्पयु क्र ांतत से है। क्र ांतत से जो विशेष गधक र-प्र प्त िगु है , उसकी प्रिुसत्त सम प्त
हो ज ती है और िह उन्नतत के भशखर से गगर ज त हैं। उसक गिु चूर-चूर हो ज त है ।
प्रश्न 4. क्रांनत की गजयना का शोषक िगय पर तया प्रभाि पड़ता है ? उनका मुख ढाँ कना ककस
मानससकता का द्योतक है ? ‘बादल राग ‘कविता के आधार पर उत्तर दीक्जए।
उत्तर-शोषक िगु ने आगथुक स धनों पर एक गधक र जम भिय है , परां तु क्र ांतत की गजुन सन
ु कर
िह अपनी सत्त को खत्म होते दे खत है । िह बुरी तरह ियिीत हो ज त है। उसकी श ांतत सम प्त
हो ज ती है। शोषक िगु क मख
ु ढ ाँकन उसकी कमजोर जस्थतत को दश ुत है । क्र ांतत के पररण मों
से शोषक िगु ियिीत है।
प्रश्न 5. ‘बादल-राग‘ कविता में ‘ऐ विप्लि के िीर’ ककसे कहा गया हैं और तयों?
उत्तर- ‘ब दि र ग’ कवित में ‘ऐ विप्िि के िीर!’ ब दि को कह गय है। ब दि घनघोर िष ु
करत है तथ बबजभिय ाँ गगर त है। इससे स र जनजीिन अस्त-वयस्त हो ज त है। ब दि क्र ांतत
क प्रतीक है । क्र ांतत आने से बरु ई रूपी कीचड़ सम प्त हो ज त है तथ आम वयजक्त को जीने
योग्य जस्थतत भमिती है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में सलणखए -
प्रश्न 1.‘बादल राग’ शीवषयक की साियकता ससद्ध कीक्जए।
उत्तर - ‘ब दि र ग’ क्र ांतत की आि ज क पररच यक है। यह कवित जनक्र ांतत की प्रेरण दे ती है।
कवित में ब दिों के आने से नए पौधे हवषुत होते हैं, उसी प्रक र क्र ांतत होने से आम आदमी को
विक स के नए अिसर भमिते हैं। कवि ब दिों क आह्ि न ब ररश करने य क्र ांतत करने के भिए
करत है। यह शीषुक उददे श्य के अनुरूप है । अत: यह शीषुक सिुथ उगचत है ।
प्रश्न 2.‘बादल राग’ जीिन-ननमायि के नए राग का सू क है । स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर-ब दि र ग’ कवित में कवि ने िघु-म नि की खश
ु ह िी क र ग ग य है । िह आम वयजक्त
के भिए ब दि क आह्ि न क्र ांतत के रूप में करत है । क्रकस नों तथ मजदरू ों की आक ांक्ष एाँ ब दि
को नितनम ुण के र ग के रूप में पक
ु र रही हैं। क्र ांतत हमेश िांगचतों क प्रतततनगधत्ि करती है।
ब दिों के अांग-अांग में बबजभिय ाँ सोई हैं, िज्रप त से शरीर आहत होने पर िी िे ठहम्मत नहीां
ह रते। गरमी से हर तरफ सब कुछ रूख -सूख और मुरझ य -स है । धरती के िीतर सोए अांकुर
निजीिन की आश में भसर ऊाँच करके ब दि की ओर दे ख रहे हैं। क्र ांतत जो हररय िी ि एगी,
उससे सबसे अगधक उत्फुल्ि नए पौधे, छोटे बर्चचे ही होंगे।
प्रश्न3.‘बादल राग‘ कविता में कवि ननराला की ककस क्रांनतकारी वि ारधारा का पता लता हैं?

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उत्तर-ब दि र ग’ कवित में कवि की क्र ांततक री विच रध र क ज्ञ न होत है। िह सम ज में वय प्त
पाँज
ू ीि द क घोर विरोध करत हुआ, दभित-शोवषत िगु के कल्य ण की क मन करत हुआ, उन्हें
सम ज में उगचत स्थ न ठदि न च हत है। कवि ने ब दिों की गजुन , बबजिी की कड़क को
जनक्र ांतत क रूप बत य है। इस जनक्र ांतत में धनी िगु क पतन होत है और छोटे िगु-मजदरू ,
गरीब, शोवषत आठद-उन्नतत करते हैं।
प्रश्न 4.विप्लि-रि से िोटे ही हैं शोभा पाते पंक्तत में ‘विप्लि-रि ‘ से तया तात्पयय है ? ‘िोटे ही
हैं शोभा पाते ‘ऐसा तयों कहा गया है ?
उत्तर-विप्िि-रि से त त्पयु है -क्र ांतत-गजुन। जब-जब क्र ांतत होती है , तब-तब शोषक िगु य सत्त ध री
िगु के भसांह सन डोि ज ते हैं। उनकी सांपवत्त, प्रिस
ु त्त आठद सम प्त हो ज ती हैं। कवि ने कह है
क्रक क्र ांतत से छोटे ही शोि प ते हैं। यह ाँ ‘छोटे ’ से त त्पयु है -आम आदमी। आम आदमी ही शोषण
क भशक र होत है । उसक तछनत कुछ नहीां है अवपतु उसे कुछ अगधक र भमिते हैं। उसक शोषण
सम प्त हो ज त है।
प्रश्न 5. बादलों के आगमन से प्रकृनत में होने िाले ककन-ककन पररितयनों को कविता रे खांककत
करती है ?’
उत्तर-ब दिों के आगमन से प्रकृतत में तनम्नभिखखत पररितुन होते हैं
(i) ब दि गजुन करते हुए मूसि ध र िष ु करते हैं।
(ii) पथ्
ृ िी से पौधों क अांकुरण होने िगत है ।
(iii) मूसि ध र िष ु होती है ।
(iv) बबजिी चमकती है तथ उसके गगरने से पिुत-भशखर टूटते हैं I
(v) हि चिने से छोटे -छोटे पौधे ह थ ठहि ते से प्रतीत होते हैं तथ पौधों में सक्रक्रयत दृजष्टगत
होती है I

(vii)क- कवितािली (उत्तरकाण्ड से)-तुलसीदास


पाठ का सार :- यह ाँ कवित ििी से कुछ अांश उदधत
ृ है I तुिसी क विविध विषमत ओां से ग्रस्त
कभिक ि तुिसी क युगीन यथ थु है , जजसमे िे कृप िु प्रिु श्रीर म ि र म र ज्य क स्िप्न रचते
हैं I युग और उसमें अपने जीिन क न भसफु उन्हें गहर बोध है बजल्क उसकी अभिवयजक्त में िी
िे अपने समक िीन कवियों से आगे हैं I यह ाँ प ि में प्रस्तुत कवित ििी के छां द इसके प्रम ण हैं
I पहिे छां द ‘क्रकसिी क्रकस न ...........’ में उन्होंने ठदखि य है क्रक सांस र के अर्चछे बुरे समस्त
िीि प्रपांचों क आध र ‘पेट की आग’ है I यह ाँ पेट की आग क गहन यथ थु है , जजसक सम ध न

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िे र म की िजक्त में दे खते हैं I दरररत रूपी र िण अथ ुत दरररजन की वयथ दरू करने के भिए
र म रूपी घनश्य म क आहि न क्रकय गय है I पेट की आग बुझ ने के भिए र म रूपी िष ु क
जि अतनि यु है I इसके भिए अनैततक क यु करने की आिश्यकत नहीां है I इस प्रक र उनकी
िजक्त पेट की आग बुझ ने ि िी य तन जीिन के यथ थु सांकटों क सम ध न करने ि िी है , न क्रक
केिि आध्य जत्मक मुजक्त दे ने ि िी I गरीबी की पीड़ र िण के सम न दख
ु द यी हो गयी है I
तीसरे छां द “धत
ु कहौ अिधत
ू कहौ .....” में िजक्त की गहनत और सघनत में उपजे िक्त के
आत्मविश्ि सी ह्रदय क सजीि गचत्रण है I जजससे सम ज में वय प्त ज ती ततरस्क र क स हस
पैद होत है I इस प्रक र िजक्त की रचन त्मक िभू मक क क सांकेत यह ाँ है , जो आज के िेद
ि ि मूिक युग में अगधक प्र सांगगक है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों को पढ़कर उनका उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जए I
प्रश्न 1 – कवि तुलसीदास ने समाज के ककन-ककन िगों का िियन ककया है ?
उत्तर – कवि तुिसीद स ने मेहनतकश मजदरू ,क्रकस न पररि र, वय प री, भिख री, ि ट, नौकर-
च कर, कुशि अभिनेत , चोर, दत
ू , ब जीगर आठद िगों क िणुन क्रकय है I ति
ु सीद स के
समक िीन सम ज में सिी प्रक र के िगु अपने क यों में िगे हुए थे, जो अपने पेट की आग के
श ांत करने के प्रय स में म रे -म रे क्रफर रहे थे I
प्रश्न-2 – तुलसी के अनुसार ‘पेट की आग’ का शमन कौन करता है ?
उत्तर – तुिसी के अनुस र पेट की आग क शमन केिि र म िजक्त रूपी मेघ ही कर सकत है I
मनुष्य क जन्म, कमु, कमु-फि सब र म के अधीन है I तनष्ि और पुरुष थु से पेट की आग क
शमन तिी हो सकत है, जब र म की कृप हो अथ ुत फि प्र जप्त के भिए दोनों में सांतुिन
आिश्यक है I पेट की आग को श ांत करने के भिए मेहनत के स थ-स थ र म की कृप होन बेहद
जरुरी है I
प्रश्न 3- कवि ने रािि की तल
ु ना ककससे की है और तयों ?
उत्तर- कवि ने दरररत की तुिन र िण से की है I क्योंक्रक जैसे र िण ने सीत क हरण करके
और सांतो पर अत्य च र करके सब ओर त्र ठह-त्र ठह मच दी थी, उसी प्रक र गरीबी के क रण िोग
त्र ठह-त्र ठह कर रहें हैं I बेरोजग री और िुखमरी के क रण च रों तरफ ह ह क र मच हुआ है I
प्रश्न 4 – मानि की सभी जरूरतों की पूनतय का साधन ककसे बताया गया है ?
उत्तर – म नि की सिी जरूरतों की पूततु क स धन र म रूपी घनश्य म को बत य गय है I तुिसी
जी कहते हैं क्रक पेट की आग बुझ ने के भिए र म रूपी िष ु क जि अतनि यु है I इसके भिए

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अनैततक क यु करने की आिश्यकत नहीां है , क्योक्रक र मिजक्त पेट की आग बुझ ने ि ि य तन
जीिन यथ थु सांकटों क सम ध न करने ि िी है I
प्रश्न 5 – तुलसी फतकड़ संत िे – कवितािली के पंक्ततयों के आधार पर ससद्ध कीक्जये I
उत्तर – तुिसी घर- गह
ृ स्थी ि िे नहीां थे I न ठह उन्हें स ांस ररक म न-मय ुद ओां से कुछ िेन दे न
थ I न उन्हें ज तत की परि ह थी और न उन्हें क्रकसी से बेट -बेटी की श दी करनी थी I िे क्रकसी
के अपम न करने से ियिीत िी नहीां थे I इसभिए िे खि
ु ेआम कहते हैं – ‘ज को रुचे सो कहै
कछु ओऊ ‘I जजसे मेरे ब रे में जो िी रुचत हो, खुिकर कहे I मैं क्रकसी की परि ह नहीां करत I

ननक्म्लणखत प्रश्नों को पढ़कर उनका उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जए I


प्रश्न 1- तुलसीदास जी को अपने युग की आचियक विषमताओं की अच्िी समझ िी ? स्पष्ट
कीक्जए I
उत्तर – तुिसीद स जी िक्त ह्रदय होने के स थ-स थ अपने युग के सजग पहरे द र थे I उन्होंने
समक िीन सम ज क सजीि एिां यथ थुपरक गचत्रण क्रकय है , जो आज िी सत्य प्रतीत होत है I
उन्होंने भिख है क्रक उनके समय में िोग बेरोजग री एिां िुखमरी की समस्य से परे श न थे I
मजदरू , क्रकस न, नौकर, भिख री आठद सिी दख
ु ी थे I गरीबी के क रण िोग अपनी सांत न तक
को बेचने के भिए तैय र थे I दरररत रूपी दश नन ने च रो ओर ह ह क र मच रख थ I
प्रश्न 2 –कवितािली में उद्धत
ृ िं दों के आधार पर स्पष्ट कीक्जए कक तुलसीदास एक स्िासभमानी
भतत ह्रदय िे ?
उत्तर- तुिसीद स स्ि भिम नी िक्त ह्रदय हैं क्योक्रक ‘धूत कहौ .....’ ि िे छां द में िजक्त की गहनत
और सघनत में उपजे िक्त ह्रदय क सजीि गचत्रण है , जजससे सम ज में वय प्त ज तत -प ांतत
और दरु ग्रहों के ततरस्क र क स हस पैद होत है I िे कहते हैं उन्हें सांस र के िोगों की गचांत नहीां
है क्रक िे उनके ब रे में क्य सोचते हैं I ति
ु सीद स र म में एकतनष्ि एिां समपुण ि ि रखकर
सम ज में वय प्त दवू षत रीतत-ररि जों क विरोध करते है तथ अपने स्ि भिम न को सिोपरर रखते
हैं I
प्रश्न 3 – कवितािली पाठ में ‘पेट की आग’ से तया तात्पयय है ? उसकी तल
ु ना ककससे की
गई है ?
उत्तर – पेट की आग क त त्पयु है – िूख I इसकी तुिन बडि जग्न से की गई है I तुिसीद स जी
के अनुस र सम ज में जो िी ऊाँचे-नीचे कमु हो रहे हैं उसके पीछे िूख ही जजम्मेद र है I सचमुच
पेट की आग तो समर
ु की आग से िी प्रबि है क्योक्रक िख
ू सहन बहुत कठिन है I िख
ू वयजक्त

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धमु-अधमु, नीतत-अनीतत, सही-गित कुछ िी करने से कोई परहे ज नहीां करत है I उनक म नन
है क्रक इस िूख की आग को केिि र म रूपी घनश्य म ही अपने सुध रूपी िष ु से श ांत कर सकते
हैं I
प्रश्न 4 – तुलसीदास ने अपने अपने युग की क्जस दद
ु य शा का च त्रि ककया है , उसका िियन अपने
शब्दों में कीक्जये I
उत्तर- ति
ु सीद स अपने समय की ियांकर दद
ु ु श क गचत्रण करते हुए कहते हैं क्रक उनके यग
ु में
जनस म न्य के प स आजीविक के स धन नहीां थे I क्रकस न की खेती चौपट रहती थी I भिख री
को िीख नही भमिती थी I द न क यु िी बांद थ I वय प री क वय पर िप्प थ I िोगों को नौकरी
िी नहीां भमिती थी I चरों तरफ बेरोजग री थीI िोगों के समझ नहीां आत थ क्रक िे कह ाँ ज एाँ,
क्य करें I क म-धांधे से िांगचत िोग मजबूर होकर अपने बेट -बेटी को िी बेचने को तैय र हैं I
प्रश्न 5 – तया तुलसी यग
ु की समस्याएं ितयमान में भी समाज में विद्यमान हैं ? अपने शब्दों में
सलणखए I
उत्तर – ति
ु सी ने िगिग 500 िषों पहिे जो कुछ िी कह थ , िह आज िी प्र सांगगक है I उन्होंने
अपने समय की मूल्यहीनत , न री की जस्थतत, आगथुक दरु िस्थ क गचत्रण क्रकय है I इनमें
अगधकतर समस्य एां आज िी विदयम न हैं I आज िी िोग जीिन तनि ुह के भिए गित-सही क यु
करते हैं I न री के प्रतत नक र त्मक सोच आज िी विदयम न है I आज िी ज तत ि धमु के न म
पर िेद-ि ि होत है I इसके विपरीत कृवष, ि खणज्य, रोजग र की जस्थतत में बहुत बदि ि आय
है I इसके ब द िी तुिसी युग की अनेक समस्य एां आज िी हम रे सम ज में विदयम न हैं I

(vii)ख- लक्ष्मि मूच्िाय और राम का विलाप- तुलसीदास

पाठ का सार- श्रीर म जी को समवपुत ग्रन्थ श्रीर मचररतम नस तुिसीद स जी दि र रगचत है I


यह ग्रन्थ समच
ू े ि रत में विशेषकर उत्तर ि रत में बड़े िजक्त-ि ि से पढ ज त है I यह अांश
र मचररत म नस के ‘िांक क ण्ड’ से भिय गय है I इस कवित में िक्ष्मण को शजक्तब ण िगने
क प्रसांग कवि के म भमुक स्थिों की पहच न क एक श्रेष्ि नमून है I यह प्रसांग ईश्िर र म में
म नि सुिि गुणों क समन्िय कर दे त है Iमेघन थ के शजक्त ब ण से िक्ष्मण मूतछु त हो ज ते
है I सुषेण िैदय के पर मशु के अनुस र हनुम न सांजीिनी बूटी ि ने ठहम िय पिुत ज ते है I िह ां
से िौटते समय उनकी क्षखणक मुि क त िरत से होती है I हनुम न पूर ित्त
ृ ांत िरत से बत ते हैं
और उनके सरि स्िि ि, गुण एिां िीरत क िणुन करते हुए िांक की तरफ प्रस्थ न करते हैं I
उधर श्रीर म मतू छु त ि ई िक्ष्मण को दे खकर वय कुि हो ज ते हैं I आधी र त बीत ज ने पर जब

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हनुम न नहीां आए तब श्रीर म ने अपने ि ई को उि कर ह्रदय से िग भिय और स ध रण मनुष्य
की ि ांतत विि प करने िगे I िे िक्ष्मण के त्य ग और िीरत क िणुन करते हुए कहते हैं क्रक –
हे ! ि ई तुम मुझे दख
ु ी नहीां दे ख सकते थे I तुम्ह र स्िि ि सद ही कोमि थ I तुमने मेरे स थ
िन में सदी, गमी और विभिन्न प्रक र की विपरीत पररजस्थततयों को िी सह I तुम्ह रे बबन यठद
मुझे जीवित रहन पड़ तो मेरी दश िैसी हो ज एगी जैसे पांख बबन पक्षी, मखण बबन सपु और
सड
ू बबन ह थी की हो ज ती है I मैं अपनी पत्नी के भिए अपने वप्रय ि ई को खोकर कौन स मांह

िेकर अयोध्य ज ऊांग ? पत्नी खोकर मैं भसफु क यर कहि त िेक्रकन ि ई खोन मेरे जीिन की
अपरू णीय क्षतत है I र म के इस दीन दश को दे खकर परू ी सि शोक कुि एिां तनर श हो ज ती है
I तबी हनुम न सांजीिनी बूटी िेकर आ गए I ि नर सेन में उत्स ह आ गय I िह ां पर उपजस्थत
सि क म हौि कुछ इस तरह होत है जैसे करूाँण रस में िीर रस क सांच र हो गय हो I िक्ष्मण
मूछ ु टूटने क ित्त
ृ ांत सुनते ही र िण वय कुि होकर अपने ि ई कुम्िकणु को जग त है I र िण
ने सीत हरण की पूरी घटन सांक्षेप में ि ई कुम्िकणु को बत ई I र िण की ब त सुन कुम्िकणु
वििख उि और उसने ि ई को समझ य क्रक उसने म त सीत क हरण करके बड़ी िि
ू की है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों को पढ़कर उनका उत्तर 50-60 शब्दों में दीक्जए I

प्रश्न 1 तल
ु सी यग
ु में क्स्त्रयों की दशा कैसी िी ? ‘लक्ष्मि मि
ू ाय और राम का विलाप’ के आधार
पर उत्तर दीक्जए I

उत्तर – तुिसी क युग ि रतीय पररि र–वयिस्थ को सम्म तनत करने ि ि युग थ I उस युग में
हर ररश्ते क अपन महत्ि थ I यह ाँ पर ि ई के महत्त्ि को पत्नी से अगधक ठदख य गय है I
उसक एक क रण यह िी हो सकत है क्रक जह ाँ ि ई क सांबांध जन्मज त है , पुर न है, दीघु है ,
प्र कृततक है, िहीीँ पत्नी के स थ सांबांध तनयोजजत है I इसभिए यह ाँ पत्नी की तुिन में ि ई को
अगधक महत्त्ि ठदय गय है I िेक्रकन ‘न रर ह तन विशेष छ ती न हीां’ पांजक्त से यह अनुम न िी
िग य ज सकत है क्रक ति
ु सी के समक िीन सम ज में जस्त्रयों की दश अर्चछी नही थी I

प्रश्न 2 – भ्रातश
ृ ोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच् ी मानिीय
अनभ
ु नू त के रूप में र ा है I तया आप इससे सहमत हैं ?

उत्तर – यह ब त स्पष्ट है क्रक िक्ष्मण की मूछ ु पर शोक करने ि िे र म िगि न ् नहीां हैं I िे
िगि न ् के रूप में नर िीि नहीां कर रहे हैं I यठद ऐस होत तो उनक एक-एक िचन अतत
मय ुठदत होत I िे वपत की आज्ञ के उल्िांघन की ब त न कहते I न ही पत्नी की तुिन ि ई

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से करते I ये ब ते उनकी असहनीय दःु ख और प्रि प को वयक्त करतीां हैं I ये ब तें म निीय दःु ख
की अतत के क रण उपजीां हैं I

प्रश्न 3- लक्ष्मि के त्रबना जीिन की सम्भािना मात्र से ही राम ने अपने जीिन की तुलना ककस-
ककस से की है ? तुलना का सौन्दयय स्पष्ट कीक्जए I

उत्तर – ि ई के बबन जीिन जीने की सांि िन म त्र से ही र म अत्यगधक दख


ु ी हो गए I िह कहते
हैं क्रक जजस प्रक र पक्षी पांखों के बबन दीन-हीन हो ज त है , जैसे मखण के बबन स ांप और सांड
ू के
बबन ह थी की दद
ु ु श होती है , िैसे ही यठद दि
ु ुग्य ने मुझे तुम्ह रे बबन जीवित रख तो मेरे
जीिन की दश िी ऐसी ही होगी I यह ाँ ति
ु न के भिए प्रयक्
ु त उपम एां अत्यांत सांद
ु र हैं I ि ई
अपने ि ई के भिए परम सहयोगी होते हैं I इसभिए ि ई विहीन-मनुष्य ि च र हो ज त है I

प्रश्न 4 - करूाँि रस में िीर रस की अनुभूनत से तया तात्पयय है ?

उत्तर- सुषण
े बैदय ने पर मशु ठदय थ क्रक िोर होने से पूिु सांजीिनी बूटी के सेिन से िक्ष्मण क
जीिन सांिि है , िरन उनकी मत्ृ यु हो सकती है I आधी र त बीत चुकी थी िेक्रकन हनुम न अिी
तक नहीां िौटे थे I इस क रण ि ई के शोक में डूबे र म क विि प धीरे -धीरे प्रि प में बदि ज त
है I इसी बीच हनुम न सांजीिनी बूटी िेकर आ गए I उन्हें दे खकर र म क शोक एकदम श ांत हो
गय I रुदन में आश और उत्स ह क सांच र हो गय I स र ि त िरण शोक की बज ए िीर रस
से पररपूणु हो गय I

प्रश्न 5- ‘लक्ष्मि मूिाय और राम का विलाप’ कविता के आधार पर हनुमान की विशेषताएं बताइए
I

उत्तर – हनुम न सर्चचे र म िक्त थे I उन्होंने र म के ठहत में अपन पूर जीिन खप ठदय I
क्रफर िी िे अत्यांत विनम्र थे I उनमें क्रकसी प्रक र क अहांक र नहीां थ I िक्षमण के मूतछु त होने
पर उन्होंने बैदय जी को अत्यांत श्रदध पूिक
ु र म की सि में ि ते है और क्रफर उन्हें उनके तनि स
तक पहुांच ते िी हैं I इससे उनकी सज्जनत और श िीनत क पररचय भमित है I हनम
ु न ने
िक्ष्मण क जीिन बच ने के भिए अपन सिुस्ि िग ठदय I यह उनकी सर्चची िजक्त क पररच यक
है I

ननम्नसलणखत प्रश्नों को पढ़कर उनका उत्तर 30-40 शब्दों में दीक्जए I


प्रश्न 1 – ‘लक्ष्मि मूिाय और राम का विलाप’ कविता के आधार पर लक्ष्मि के प्रनत राम के स्नेह
संबंधों पर प्रकाश डासलए I

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उत्तर – मेघन थ के शजक्त ब ण से िक्ष्मण मूतछु त हो गए थे I उनकी यह दश दे ख र म अत्य गधक
ि िुक हो उिे I िे स ध रण मनुष्य की तरह विि प करने िगे I िे िक्ष्मण को िन में ि ने के
भिए स्ियां को दोषी म नते हैं I िे न ररह नी को भ्र तह
ृ तन के समक्ष कुछ नहीां म नते Iिे शोक ि
ग्ि नी से पीडड़त थे तथ उनकी स री सांिेदन एां आम आदमी की तरह प्रकट हो उिे I
प्रश्न 2 - रािि की व्याकुल होकर कुम्भकिय के पास तयों गया ? कुम्भकिय ने रािि से तया
कहा ?
उत्तर – िक्ष्मण मूछ ु टूटने क ित्त
ृ त ां सुनकर र िण वय कुि हो उि I िह तुरांत ही अपने ि ई
कुम्िकणु के प स ज त है और उसे सीत हरण की घटन विस्त र से बत त है I र िण की ब त
सुन कुम्िकणु क्रोगधत हो उि I उसने र िण को फटक र क्रक जगत जननी सीत क हरण करके
तुमने बड़ी िूि की है I अब तुम्ह र कल्य ण सांिि नहीां I

प्रश्न 3 उमा को संबोचधत करते हुए ककसने तया कहा ?


उत्तर- प्रस्तत
ु पांजक्तयों में जो कथ कही गई है उसके ि चक िगि न ् भशि हैं I यह कथ िह अपनी
पत्नी उम अथ ुत प िुती को सुन रहे हैं I श्रीर म की नर-िीि को दे खकर भशि जी अत्यांत
प्रफुजल्ित होते हैं और उम जी से कहते हैं क्रक दे खो कृप िु िगि न ् र म कैसी सांद
ु र नर िीि कर
रहे हैं I
प्रश्न 4– हनुमान की मुलाकात भरत से कैसे हुई और िे भारत के ककस बात से प्रभावित हुए ?
उत्तर – हनुम न सांजीिनी बूटी को न पहच नने के क रण पूर पिुत ही िेकर ज रहे थे I क्रकसी
अनथु की आशांक से िरत ने उनको नीचे उत र भिय I िेक्रकन हनुम न से पूर ित
ृ ांत सुनने के
ब द िरत ने बड़े सहृदयत से हनुम न क स्ि गत क्रकय और उनसे शीघ्र ज ने क तनिेदन क्रकय
I ि रत के इस सरि स्िि ि, ब हुबि तथ र म के चरणों में अप र प्रेम दे खकर हनुम न अत्यगधक
प्रि वित हुए I
प्रश्न 5 – राम ने लक्ष्मि की ककन विशेषताओं का उल्लेख ककया है ?
उत्तर- र म ने िक्ष्मण की तनम्नभिखखत विशेषत ओां क उल्िेख क्रकय है –
क) िक्ष्मण र म से अत्यगधक प्रेम करते हैं I
ख) उन्होंने ि ई के भिए अपने म त -वपत क िी त्य ग कर ठदय I
ग) िे ि ई के भिए िन में िष ु, ठहम, धूप आठद कष्टों क श न कर रहें हैं I
घ) उनक स्िि ि बहुत मद
ृ ि
ु है I िह अपने ि ई को दख
ु ी नहीां दे ख सकते I

100
(viii) रुबाइयााँ-कफ़राक गोरखपुरी

प्रततप दय-क्रफ़र क की रुब इय ाँ उनकी रचन ‘गुिे-नग्म ’ से उदधत


ृ हैं। रुब ई उदु ू और फ़ रसी क
एक छां द य िेखन शैिी है। इसकी पहिी, दस
ू री और चौथी पांजक्त में तुक भमि य ज त है और
तीसरी पांजक्त स्ितांत्र होती है । इन रुब इयों में ठहांदी क एक घरे िू रूप ठदखत है । इन्हें पढने से
सूरद स के ि त्सल्य िणुन की य द आती है । स र-इस रचन में कवि ने ि त्सल्य िणुन क्रकय है।
म ाँ अपने बर्चचे को आाँगन में खड़ी होकर अपने ह थों में प्य र से झि
ु रही है । िह उसे ब र-ब र
हि में उछ ि दे ती है जजसके क रण बर्चच खखिखखि कर हाँस उित है। िह उसे स फ़ प नी से
नहि ती है तथ उसके उिझे हुए ब िों में कांघी करती है । बर्चच िी उसे प्य र से दे खत है जब
िह उसे कपड़े पहन ती है। दीि िी के अिसर पर श म होते ही पुते ि सजे हुए घर सुांदर िगते हैं।
चीनी-भमट्टी के खखिौने बर्चचों को खुश कर दे ते हैं। िह बर्चचों के छोटे घर में दीपक जि ती है
जजससे बर्चचों के सुांदर चेहरों पर दमक आ ज ती है । आसम न में च ाँद दे खकर बर्चच उसे िेने की
जजद पकड़ िेत है। म ाँ उसे दपुण में च ाँद क प्रततबबांब ठदख ती है और उसे कहती है क्रक दपुण में
च ाँद उतर आय है। रक्ष बांधन एक मीि बांधन है। रक्ष बांधन के कर्चचे ध गों पर बबजिी के िर्चछे
हैं। स िन में रक्ष बांधन आत है। स िन क जो सांबांध झीनी घट से है , घट क जो सांबांध बबजिी
से है िहीां सांबांध ि ई क बहन से है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए-
प्रश्न 1. काव्य में प्रयुतत दृश्य, श्रव्य, स्पशय त्रबंबों का अंकन कीक्जए?
उत्तर :- * दृश्य बबांब :- बर्चचे को गोद में िेन , हि में उछ िन ,स्न न कर न ,घुटनों में िेकर
कपड़े पहन न I
• श्रवय बबांब :- बर्चचे क खखिखखि कर हाँस पड़न ।
• स्पशु बबांब :- बर्चचे को स्न न कर ते हुए स्पशु करन I
प्रश्न 2. “आाँगन में ठुनक रहा है क्ज़दयाया है ,बालक तो हई ााँद पै लल ाया है’- में बालक की
कौन सी विशेषता असभव्यतत हुई है ?
उत्तर :- इन पांजक्तयों में ब िक की हि करने की विशेषत अभिवयक्त हुई है । बर्चचे जब जजद पर
आ ज ते हैं तो अपनी इर्चछ पूरी करि ने के भिए न न प्रक र की हरकतें क्रकय करते हैंI जज़दय य
शब्द िोक ि ष क वििक्षण प्रयोग है इसमें बर्चचे क िुनकन , तुनकन ,प ाँि पटकन , रोन
आठद सिी क्रक्रय एाँ श भमि हैं I
प्रश्न 3. लच्िे ककसे कहा गया है इनका संबंध ककस त्योहार से है ?

101
उत्तर :- र खी के चमकीिे त रों को िर्चछे कह गय है। रक्ष बांधन के कर्चचे ध गों पर बबजिी के
िर्चछे हैं। स िन में रक्ष बांधन आत है। स िन क जो सांबांध झीनी घट से है , घट क जो सांबांध
बबजिी से है िही सांबांध ि ई क बहन से होत है I स िन में बबजिी की चमक की तरह र खी के
चमकीिे ध गों की सुांदरत दे खते ही बनती है I
प्रश्न 4:- रुबाइयों के भाि सौंदयय को स्पष्ट कीक्जए I
उत्तर :- म ाँ ने अपने बर्चचे को तनमुि जि से नहि य उसके उिझे ब िों में कांघी की Iम ाँ के
स्पशु एिां नह ने के आनांद से बर्चच प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से म ाँ को तनह रत है I प्रततठदन की
एक स्ि ि विक क्रक्रय से कैसे म ाँ-बर्चचे क प्रेम विकभसत होत है और प्रग ढ होत चि ज त है
इस ि ि को इस रुब ई में बड़ी सूक्ष्मत के स थ प्रस्तुत क्रकय गय है I
प्रश्न 5:- गोद-िरी शब्द प्रयोग की विशेषत को स्पष्ट कीजजए I
उत्तर :- गोद-िरी शब्द-प्रयोग म ाँ के ि त्सल्यपूण,ु आनांठदत उत्स ह को प्रकट करत है Iयह अत्यांत
सुांदर दृश्य बबांब है I सूनी गोद के विपरीत गोद क िरन म ाँ के भिए असीम सौि ग्य क सूचक
है Iइसी सौि ग्य क सक्ष्
ू म अहस स म ाँ को तजृ प्त दे रह है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में सलणखए-
प्रश्न 1:- रुबाइयों में आए त्रबंबों को स्पष्ट कीक्जए I
उत्तर :-“नहि के छिके-छिके तनमुि जि से”- इस प्रयोग दि र कवि ने ब िक की तनमुित एिां
पवित्रत को जि की तनमुित के म ध्यम से अांक्रकत क्रकय है I छिकन शब्द जि की त ज बूांदों
क ब िक के शरीर पर छिछि ने क सुांदर दृश्य बबांब प्रस्तुत करत है I
‘घुटतनयों में िेके है वपन्ह ती कपड़े’- इस प्रयोग में म ाँ की बर्चचे के प्रतत स िध नी ,चांचि बर्चचे
को चोट पहुाँच ए बबन उसे कपड़े पहन ने से म ाँ के म तत्ृ ि की कुशित बबांबबतहोती है I
“क्रकस प्य र से दे खत है बर्चच मुाँह को”- पांजक्त में म ाँ –बर्चचे क ि त्सल्य बबांबबत हुआ है I म ाँ से
प्य र –दि
ु र ,स्पशु –सख
ु , नहि ए ज ने के आनांद को अनि
ु ि करते हुए बर्चच म ाँ को प्य र िरी
नजरों से दे ख कर उस सख
ु की अभिवयजक्त कर रह है Iयह सूक्ष्म ि ि अत्यांत मनोरम बन पड़
है Iसांपण
ू ु रुब ई में दृश्य बबांब है I
प्रश्न 2:- रुबाइयों में शब्द-प्रयोग पर हटप्पिी सलणखए I
उत्तर :- गेसु –उदु ू शब्दों क प्रयोग I
घुटतनयों ,वपन्ह ती – दे शज शब्दों के म ध्यम से कोमित की अभिवयजक्त I
छिके –छिके –शब्द की पुनर िवृ त्त से अिी –अिी नहि ए गए बर्चचे के गीिे शरीर क
बबांब Iआठद वििक्षण प्रयोग रुब इयों को विभशष्ट बन दे ते हैं I ठहांदी, उदु ू और िोकि ष के अनि
ू े

102
गिबांधन की झिक, जजसे ग ांधीजी ठहांदस्
ु त नी के रूप में पल्िवित करन च हते थे, दे खने को
भमिती है I
प्रश्न 3:- कफ़राक गोरखपुरी की रुबाइयों के कला पक्ष के बारे में बताएाँ।
उत्तर: गोरखपुरी की रूब इय ाँ कि पक्ष की दृजष्ट से बेहतरीन बन पड़ी हैं। ि ष सहज, सरि और
प्रि िी हैं। ि ि नुकूि शैिी क प्रयोग हुआ है । उदु ू शब्द ििी के स थ-स थ श यर ने दे शज सांस्कृत
के शब्दों क प्रयोग िी स्ि ि विक ढां ग से क्रकय है। िोक , वपन्ह ती, पुते, ि िे आठद शब्दों के
प्रयोग से उनकी रुब इय ाँ अगधक प्रि िी बन पड़ी हैं।
प्रश्न 4 :- शायर राखी के लच्िे को त्रबजली की मक की तरह कहकर तया भाि व्यंक्जत करना
ाहता है ?
उत्तर: श यर र खी के िर्चछे को बबजिी की चमक की तरह कहकर यह ि ि वयांजजत करन च हत
है क्रक रक्ष बांधन स िन के महीने में आत है। इस समय आक श में घट एाँ छ ई होती हैं तथ उनमें
बबजिी िी चमकती है। र खी के िर्चछे बबजिी कौधने की तरह चमकते हैं। बबजिी की चमक
सत्य को उदघ ठटत करती है तथ र खी के िर्चछे ररश्तों की पवित्रत को वयक्त करते हैं। घट क
जो सांबांध बबजिी से है , िही सांबांध ि ई क बहन से है।

प्रश्न 5 :-कफराक’ की रुबाइयों में उभरे घरे लू जीिन के त्रबबों का सौंदयय स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर – ‘क्रफर क’ की रुब इयों में घरे िू जीिन क गचत्रण हुआ है । इन्होंने कई बबांब उकेरे हैं। एक
बबांब में म ाँ छोटे बर्चचे को अपने ह थ में झुि रही है । बर्चचे की तुिन च द
ाँ से की गई है । दस
ू रे
बबांब में म ाँ बर्चचे को नहि कर कपड़े पहन ती है तथ बर्चच उसे प्य र से दे खत है। तीसरे बबांब में
बर्चचे दि र च ाँद िेने की जजद करन तथ म ाँ दि र दपुण में दे ख कर बर्चचे को ही च ाँद बत
दे न सोंदयु एिां बबम्ब की सजृ ष्ट है ।

(ix)क- िोटा मेरा खेत-उमाशंकर जोशी

इस कवित में कवि ने खेती के रूप में कवि-कमु के हर चरण को ब ाँधने की कोभशश की है। कवि
को क गज क पन्न एक चौकोर खेत की तरह िगत है। इस खेत में क्रकसी अांधड़ अथ ुत
ि िन त्मक आाँधी के प्रि ि से क्रकसी क्षण एक बीज बोय ज त है। यह बीज रचन , विच र और
अभिवयजक्त क हो सकत है। यह कल्पन क सह र िेकर विकभसत होत है और इस प्रक्रक्रय में
स्ियां गि ज त है । उससे शब्दों के अांकुर तनकिते हैं और अांतत: कृतत एक पूणु स्िरूप ग्रहण
करती है जो कृवष-कमु के भिह ज से पजु ष्पतपल्िवित होने की जस्थतत है । स ठहजत्यक कृतत से जो

103
अिौक्रकक रस-ध र फूटती है , िह क्षण में होने ि िी रोप ई क ही पररण म है। पर यह रस-ध र
अनांत क ि तक चिने ि िी कट ई से कम नहीां होती। खेत में पैद होने ि ि अन्न कुछ समय
के ब द सम प्त हो ज त है , क्रकां तु स ठहत्य क रस किी सम प्त नहीां होत ।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए –
(1) कवि ने कवि-कमय की तुलना ककससे की है और तयों ?
उत्तर- कवि ने कवि-कमु की ति
ु न खेत से की है । खेत में बीज ख द आठद के प्रयोग से विकभसत
होकर पौध बन ज त है। इस तरह कवि िी ि िन त्मक क्षण को कल्पन से विकभसत करके
रचन -कमु करत है।
(2) कविता की र ना-प्रकक्रया समझाइए।
उत्तर- कवित की रचन -प्रक्रक्रय फसि उग ने की तरह होती है। सबसे पहिे कवि के मन में
ि िन त्मक आिेग उमड़त है। क्रफर िह ि ि क्षण-विशेष में रूप ग्रहण कर िेत है। िह ि ि
कल्पन के सह रे विकभसत होकर रचन बन ज त है तथ अनांत क ि तक प िकों को रस दे त
है।
(3) खेत अगर कागज हैं तो बीज क्षय का वि ार, कफर पल्लि-पुष्प तया हैं?
उत्तर- खेत अगर क गज है तो बीज क्षण क विच र, क्रफर पल्िि-पुष्प कवित हैं। यह ि िरूपी
कवित पत्तों ि पुष्पों से िदकर झुक ज ती है ।
(4) मूल वि ार को ‘क्षि का बीज’ तयों का गया है ? उसका रूप-पररितयन ककन रसायनों से होता
है?
उत्तर- मूि विच र को ‘क्षण क बीज’ कह गय है क्योंक्रक ि िन त्मक आिेग के क रण अनेक
विच र मन में चिते रहते हैं। उनमें कोई ि ि समय के अनुकूि विच र बन ज त है तथ कल्पन
के सह रे िह विकभसत होत है। कल्पन ि गचांतन के रस यनों से उसक रूप-पररितुन होत है।
(5) ‘रस का अक्षय पात्र’ ककसे कहा गया है और तयों?
उत्तर- ‘रस क अक्षय प त्र’ स ठहत्य को कह गय है , क्योंक्रक स ठहत्य क आनांद किी सम प्त नहीां
होत । प िक जब िी उसे पढत है , आनांद की अनि
ु ूतत अिश्य करत है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में दीक्जए-
(1) िोटे ौकोने खेत की कागज़ का पना कहने में तया अधय ननहहत है ? [CBSE (Delhi), 2010]
अििा
कागज़ के पन्ने की तुलना िोटे ौंकाने खेत से करने का आधार स्पष्ट कीक्जए। [CBSE
(Delhi), 2014]

104
उत्तर- छोटे चौकोने खेत को क गज़ क पन्न कहने में यही अथु तनठहत है क्रक कवि ने कवि कमु
को खेत में बीज रोपने की तरह म न है। इसके म ध्यम से कवि बत न च हत है क्रक कवित
रचन सरि क यु नहीां है। जजस प्रक र खेत में बीज बोने से िेकर फ़सि क टने तक क फ़ी मेहनत
करनी पड़ती है , उसी प्रक र कवित रचने के भिए अनेक प्रक र के कमु करने पड़ते हैं।
2. र ना के संदभय में ‘अंधड़’ और ‘बीज’ तया है ?
उत्तर- रचन के सांदिु में ‘अांधड़’ क अथु है -ि िन क आिेग और ‘बीज’ क अथु है -विच र ि
अभिवयजक्त। ि िन के आिेग से कवि के मन में विच र क उदय होत है तथ रचन प्रकट होती
है।
3. ‘रस का अक्षय पात्र’ से कवि ने र ना कमय की ककन विशेषताओं की ओर इंचगत ककया है ?
उत्तर- अक्षय क अथु है -नष्ट न होने ि ि । कवित क रस इसी तरह क होत है। रस क अक्षय
प त्र किी िी ख िी नहीां होत । िह जजतन ब ाँट ज त है , उतन ही िरत ज त है। यह रस
गचरक ि तक आनांद दे त है। खेत क अन ज तो खत्म हो सकत है , िेक्रकन क वय क रस किी
खत्म नहीां होत । कवित रूपी रस अनांतक ि तक बहत है। कवित रूपी अक्षय प त्र हमेश िर
रहत है।
4. व्याख्या करें -
शब्द के अंकुर फूटे
पल्लि-पुष्पों से नसमत हुआ विशेष।
उत्तर-कवि कहन च हत है क्रक जब िह छोटे खेतरूपी क गज के पन्ने पर विच र और अभिवयजक्त
क बीज बोत है तो िह कल्पन के सह रे उगत है । उसमें शब्दरूपी अांकुर फूटते हैं। क्रफर उनमें
विशेष ि िरूपी पुष्प िगते हैं। इस प्रक र ि िों ि कल्पन से िह विच र विकभसत होत है।
5. व्याख्या करें -
रोपाई क्षि की,
कटाई अनंतता की
लट
ु ते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
उत्तर- कवि कहत है क्रक कवि-कमु में रोप ई क्षण िर की होती है अथ ुत ि ि तो क्षण-विशेष में
बोय ज त है। उस ि ि से जो रचन स मने आती है , िह अनांतक ि तक िोगों को आनांद दे ती
है। इस फसि की कट ई अनांतक ि तक चिती है । इसके रस को क्रकतन िी िूट ज ए, िह कम
नहीां होत । इस प्रक र कवित क िजयी होती है।

105
(ix)ख- बगल
ु ों के पंख

यह कवित सुांदर दृश्य बबांबयुक्त कवित है जो प्रकृतत के सुांदर दृश्यों को हम री आाँखों के स मने
सजीि रूप में प्रस्तत
ु करती है । सौंदयु क अपेक्षक्षत प्रि ि उत्पन्न करने के भिए कवियों ने कई
युजक्तय ाँ अपन ई हैं जजनमें से सि ुगधक प्रचभित युजक्त है -सौंदयु के ब्यौरों के गचत्र त्मक िणुन के
स थ अपने मन पर पड़ने ि िे उसके प्रि ि क िणुन।
कवि क िे ब दिों से िरे आक श में पांजक्त बन कर उड़ते सफेद बगुिों को दे खत है । िे कजर रे
ब दिों के ऊपर तैरती स ाँझ की श्िेत क य के सम न प्रतीत होते हैं। इस नयन भिर म दृश्य में
कवि सब कुछ िूिकर उसमें खो ज त है । िह इस म य से अपने को बच ने की गुह र िग त है,
िेक्रकन िह स्ियां को इससे बच नहीां प त ।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए –
(1) कवि ककस दृश्य पर मुग्ध हैं और तयों?
उत्तर- कवि उस समय के दृश्य पर मग्ु ध है जब आक श में छ ए क िे ब दिों के बीच सफेद बगि
ु े
पांजक्त बन कर उड़ रहे हैं। कवि इसभिए मुग्ध है क्योंक्रक श्िेत बगुिों की कत रें ब दिों के ऊपर
तैरती स ाँझ की श्िेत क य की तरह प्रतीत हो रहे हैं।
(2) ‘उसे कोई तननक रोक रतखो’ -इस पक्तत में कवि तया कहना ाहता हैं?
उत्तर- इस पांजक्त में कवि दोहरी ब त कहत है । एक तरफ िह उस सुांदर दृश्य को रोके रखन
च हत है त क्रक उसे और दे ख सके और दस
ू री तरफ िह उस दृश्य से स्ियां को बच न च हत है ।
(3) कवि के मन-प्राि को ककसने अपनी आकषयक माया में बााँध सलया हैं और कैसे?
उत्तर- कवि के मन-प्र णों को आक श में क िे-क िे ब दिों की छ य में उड़ते सफेद बगि
ु ों की
पांजक्त ने ब ाँध भिय है । पांजक्तबदध उड़ते श्िेत बगुिों के पांखों में उसकी आाँखें अटककर रह गई
हैं और िह च हकर िी आाँखें नहीां हट प रह है।
(4) कवि उस सौंदयय को िोड़ी दे र के सलए अपने से दरू तयों रोके रखना ाहता हैं? उसे तया भय
हैं?
उत्तर- कवि उस सौंदयु को थोड़ी दे र के भिए अपने से दरू रोके रखन च हत है क्योंक्रक िह उस
दृश्य पर मुग्ध हो चुक है । उसे इस रमणीय दृश्य के िुप्त होने क िय है ।
(5) ‘हौले-हौले जाती मुझे बााँध -पंक्तत का भाि स्पष्ट कीक्जए।

106
उत्तर- ‘हौिे-हौिे ज ती मुझे ब ाँध’ पांजक्त क ि ि यह है क्रक स यांक िीन आक श में उड़ते बगुिों
की कत रें अदिुत दृश्य उपजस्थत कर रही हैं, जो कवि को िुि रही हैं।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में दीक्जए-
(1)‘बगुलों के पंख ‘ कविता का प्रनतपाद्य बताइए।
उत्तर- यह सुांदर दृश्य कवित है। कवि आक श में उड़ते हुए बगुिों की पांजक्त को दे खकर तरह-तरह
की कल्पन एाँ करत है । ये बगि
ु े कजर रे ब दिों के ऊपर तैरती स ाँझ की सफेद क य के सम न
िगते हैं। कवि को यह दृश्य अत्यांत सुांदर िगत है । िह इस दृश्य में अटककर रह ज त है । एक
तरफ िह इस सौंदयु से बचन च हत है तथ दस
ू री तरफ िह इसमें बाँधकर रहन च हत है।
(2) ‘पााँती-बाँधी’ से कवि का आिश्य स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर-इसक अथु है -एकत । जजस प्रक र ऊाँचे आक श में बगुिे पांजक्त ब ाँधकर एक स थ चिते हैं।
उसी प्रक र मनुष्यों को एकत के स थ रहन च ठहए। एक होकर चिने से मनुष्य अदिुत विक स
करे ग तथ उसे क्रकसी क िय िी नहीां रहे ग ।
(3) हदए गए काव्यांश का भाि-सौंदयय स्पष्ट कीक्जए-
“नि में प ाँती-ब ाँधे बगुिों के पांख,
चरु ए भिए ज तीां िे मेर आाँखे।
कजर रे ब दिों की छ ई नि छ य ,
तैरती स ाँझ की सतेज श्िेत कय”
उत्तर- कवि ने इस कवित में प्र कृततक सौंदयु के म नि-मन पर पड़ने ि िे प्रि ि क गचत्रण क्रकय
है। स यांक ि के समय आक श में सफेद बगुिों की पांजक्त अदिुत दृश्य उत्पन्न कर रही है । दृश्य
बबांब स क र हो रह है।
(4) ‘बगुलों के पंख’ कविता का काव्य-सौंदयय बताइए।
उत्तर- (i) कवि ने प्रकृतत को म निीय क्रक्रय एाँ करते ठदख य है , अत: म निीकरण अिांक र है ‘तैरती
स ाँझ की सतेज श्िेत क य ।’
(ii) ‘कजर रे ब दिों की छ ई नि छ य ’ में उत्प्रेक्ष अिांक र है।
(iii) ‘हौिे-हौिे’ में पुनरुजक्त प्रक श अिांक र है ।
(iv) ‘आाँखें चुर न ’ मुह िरे क सुांदर प्रयोग है ।
(v) स ठहजत्यक खड़ी बोिी है।
(vi) बबांब-योजन क सुांदर प्रयोग है।
(vii) कोमिक ांत पद ििी क प्रयोग है -प ाँती बाँधे, हौिे-हौिे, बगि
ु ों की प ाँखें।

107
(ख) गद्य खंड

(i) भक्ततन- महादे िी िमाय

प ि क स र – मह दे िी िम ु दि र रगचत सांस्मरण त्मक रे ख गचत्र “िजक्तन” में उनकी सेविक के


वयजक्तत्ि क पररचय दे ते हुए उसके अतीत के सांघषु और ितुम न क सुांदर गचत्र प्रस्तुत क्रकय है
I सांघषुशीि और स्ि भिम नी िजक्तन धोखे और कपट से िरी स म जजक म न्यत ओां क डट कर
स मन करती है परन्तु जीिन के अांततम पररर्चछे द में उनसे ह रकर अपने जीिन को मह दे िी की
सेि में समवपुत कर दे ती है I अपने आप को मह दे िी की अनन्य सेविक के रूप में समवपुत
करके उसके जीिन को िी दे ह ती बन कर अपने रां ग में रां ग दे ती है I मह दे िी िी िजक्तन को
अपने वयजक्तत्ि क आिश्यक अांश म नकर उसे खोन नही च हती है I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए-

1 विमाता ने भक्ततन के वपता की मत्ृ यु का समा ार दे र से तयों भेजा ?


. उत्तर- िजक्तन की विम त स्िि ि से ईष्य ुिु और ि िची थी इसभिए ज नबूझ कर उसने
िजक्तन के वपत की गांिीर बीम री और रोग क सम च र उसकी ससुर ि में तब िेज जब
उनकी मत्ृ यु हो चुकी थी क्योक्रकां विम त नही च हती थी क्रक िजक्तन अपने वपत की सम्पवत्त
में ठहस्स म ांगे य उसके वपत उसे अपने सांपवत्त दे दें I
2 भक्ततन और लेणखका के पारस्पररक संबंधों को सेिक-स्िामी सम्बन्ध तयों नही कहा जा
. सकता ?
उत्तर- िजक्तन और मह दे िी क सम्बन्ध स्ि ि विक सेविक और स्ि भमनी क नही है I
िजक्तन ने स्ियां को मह दे िी की सांरक्षक्षक म न भिय थ I इसभिए िह उसे छोड़ने की सोच
िी नही प ती I अतः दोनों के मध्य एक अगधक रपूणु आत्मीयत क सम्बन्ध विकभसत हो
चुक थ जजसे स्ि ि विक अथों में सेिक-स्ि मी सम्बन्ध नही कह ज सकत है I
3 महादे िी ने भक्ततन के सन्दभय में हनुमान जी का उल्लेख तयों ककया है ?
. उत्तर- मह दे िी ने िजक्तन के सन्दिु में हनुम न जी क उल्िेख इसभिए क्रकय है क्रक हनुम न
जी को सेिकधमु को सि ुगधक तनष्ि से तनि ने ि ि र मिक्त म न गय है I मह दे िी जी
िजक्तन के सेि ि ि से इतनी प्रि वित थी क्रक उन्होंने िजक्तन के अपने प्रतत समपुण ि ि
के सदगण ु के क रण िजक्तन की ति
ु न हनम
ु न जी से करते हुए उसे हनम
ु न जी क
प्रततस्पधी म न I

108
4 भक्ततन के नाम और उसके जीिन में तया विरोधाभास िा ?
. उत्तर- िजक्तन क असिी न म िक्षभमन थ जो उसके म त -वपत ने उसको ठदय थ I िह
इस न म को सबसे तछप ती थी , क्योक्रक यह न म समद
ृ गध सच
ू क थ और उसक जीिन
अि िों और सांघषों से िर थ I इस विरोध ि स के क रण ही िह अपन ि स्तविक न म
क्रकसी को नही बत ती थी I
5 लेणखका ककस प्रकार भक्ततन के रं ग-ढं ग में ढल गई ?
. उत्तर- मकई, दभिय , मट्ि , ज्ि र के िन
ु े सफ़ेद द नों की खखचड़ी जैसे दे ह ती ख न बन न
िजक्तन ज नती थी I ख ने की रूगच न होते हुए िी िेखखक को िजक्तन के बन ये ख ने को
ख न पड़त थ I िजक्तन ने कुछ ही ठदनों में िेखखक को अपनी बोिच ि, ख नप न के
अनुरूप ढ ि भिय िेक्रकन िजक्तन स्ियां को िेखखक के अनुस र नही ढ ि प ई I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में सलणखए-

2. “भक्ततन संघषयशील – स्िासभमानी और कमयठ है I” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीक्जए I


उत्तर-“िजक्तन सांघषुशीि, स्ि भिम नी और कमुि है I” िह पररजस्थततयों से डरती नहीां
बजल्क उनक मुक बि करती है I पतत की मत्ृ यु के पश्च त िह खेत में कड़ पररश्रम
करके अपनी बेठटयों क प िन-पोषण करती है I िह श स्त्रों के मनगढां त तकों दि र दस
ू रों
को िी अपने अनुकूि बन िेने में तनपुण थी I इस प्रक र कह ज सकत है क्रक िजक्तन
कतुवयपर यण, सांघषुशीि, स्ि भिम नी और कमुित जैसे गुणों से युक्त थी I िह विपरीत
पररजस्थततयों में िी ह र नही म नती थी I
3. भक्ततन महादे िी जी की समवपयत सेविका िी, कफर भी लेणखका ने तयों कहा है कक भक्ततन
अच्िी है , यह कहना कहठन होगा ?
उत्तर- िजक्तन मह दे िी से उम्र में 25 िषु बड़ी थी I मह दे िी के प्रतत सेि ि ि में एक
अभिि िक जैस अगधक र और म ाँ जैसी ममत है I िह सदै ि छ य के सम न मह दे िी
के स थ रहती है I िजक्तन िैसे तो डरपोक और कांजूस है , परन्तु िह स्ि भमनी के भिए
डर और कांजूसी को िी दरक्रकन र कर दे ती है Iिेक्रकन उसमे वििन्न प्रक र के दग
ु ण
ु िी
विदयम न थे I िह पैसों को छुप कर मटकी में रख दे ती थी I िह झूि िी बोिती थी I
इसीभिए िेखखक ने कह क्रक िजक्तन अर्चछी है , यह कहन कठिन होग I
4. भक्ततन जीिन के दस
ु रे पररच्िे द में भी सुख तयों नही प्राप्त कर सकी ? कारि सहहत
वि ार कीक्जए I
उत्तर- िजक्तन के जीिन के दस
ु रे पररर्चछे द क त त्पयु है – ससरु ि में बर्चचो को जन्म
दे न I उसकी पहिी सांत न एक कन्य थी, ब द में जब उसने दो और कन्य ओां को जन्म

109
ठदय तब स स और जजि तनयों ने उसक ततरस्क र करन शुरू कर ठदय , क्योक्रक िह
पत्र
ु को जन्म नही दे सकी थी I पररि र क ि ररश पत्र
ु को जन्म न दे प ने के क रण
स स और जेि तनयों ने उसे और उसके छोटी िड़क्रकयों को गोबर उि ने-कांडे थ पने जैसे
क मों में िग ठदय I पत्र
ु को जन्म न दे प ने के दां डस्िरूप िजक्तन को बहुत कष्ट
झेिने पड़े I
5. भक्ततन की बेटी पर पं ायत द्िारा जबरन पनत िोपा जाना स्त्री मानिाचधकार के हनन
की सामाक्जक परम्परा का प्रतीक कैसे है ? पाठ के आधार पर समझाइए I
उत्तर- िजक्तन की बेटी उस तीतरब ज िड़के से श दी नही करन च हती थी I िड़के और
पररि र के अन्य सदस्यों ने षड्यांत्र करके िड़की को अकेि दे खकर उसके कमरे में घुस
गय I हल्ि होने पर पांच यत बैिी और पांच यत ने बेकसूर िड़की को एक तनकम्मे िड़के
के स थ श दी करने क फैसि सुन य जो उसके कमरे में घुस बैि थ I इस प्रक र
िजक्तन की बेटी पर पांच यत दि र जबरन पतत थोप ज न स्त्री म नि गधक र के हनन
की स म जजक परम्पर को दश ुत है I
5. लेणखका के साहहक्त्यक पररच तों के साि भक्ततन का व्यिहार कैसा िा ?
उत्तर- िेखखक के प स स ठहत्य जगत से जुड़े अनेक वयजक्त आते रहते थे , परन्तु
िजक्तन के मन में उनके प्रतत कोई विशेष सम्म न नही थ I िह उनके स थ िैस ही वयिह र
करती थी जैस िेखखक करती थी I िजक्तन दि र मह दे िी के पररगचत भमत्रों के प्रतत सम्म न
की म त्र िेखखक के प्रतत उनके सम्म न की म त्र पर तनिुर करत थ और सदि ि उनके
प्रतत िेखखक के सदि ि से तनजश्चत होत थ I िजक्तन उन्हें आकर-प्रक र ि िेश-िूष से
स्मरण रखती थी य क्रकसी के न म के अपभ्रांश दि र I

(ii)बाज़ार दशयन- जैनन्


े र कुमार

स र- प्रभसदध मनोिैज्ञ तनक उपन्य सक र एिां तनबांधक र जैनेंर कुम र के ‘ब ज र दशुन' तनबांध
में गहरी िैच ररकत और स ठहत्य सुिि ि भित्य क दि
ु ि
ु सांयोग दे ख ज सकत है । ठहांदी
में उपिोक्त ि द एिां ब ज रि द पर वय पक चच ु वपछिे 10-15 िषु से ही शुरू हुई है , पर
कई दशक पहिे जैनेंर जी ने यह तनबांध भिखकर इस समस्य की मूि अांतिुस्तु को स्पष्ट
करने के म मिे में अदवितीय क यु क्रकय है। िह अपने पररगचतों,भमत्रों के वयजक्तगत अनुििों
को बत ते हुए यह स फ कर दे ते हैं क्रक ब ज र की ज दई
ु त कत कैसे हमें अपन गुि म बन
िेती है।

110
अगर हम अपनी आिश्यकत को समझकर ब ज र क उपयोग करें तो उसक ि ि उि सकते
हैं। िेक्रकन अगर हम जरूरत को तय क्रकय बबन ब ज र में ज ते हैं और उसकी चमक-दमक
में फांस गए तो िह है असांतोष, तष्ृ ण (जिन) और ईष्य ु से घ यि कर हमें हमेश के भिए
पांगु बन सकती है। इस मि
ू ि ि को जैनेंर जी ने विभिन्न तरीकों से स्पष्ट करने की
कोभशश की है , कहीां द शुतनक अांद ज में तो कहीां क्रकस्स गो शैिी में तो कहीां कथ त्मक रूप
में। उन्होंने ब ज र के ब ज रुपन को बढ ने ि िे अथुश स्त्र को अनीतत श स्त्र(शोषण तांत्र)
बत य है ।िेखक के अनस
ु र ब ज र को स थुकत िी िही मनष्ु य दे त है जो ज नत है क्रक
िह क्य च हत है। और जो नहीां ज नते क्रक िह क्य च हते हैं, अपनी ‘परचेजजांग प िर' के
गिु में अपने पैसे से केिि एक विन शक शजक्त-- शैत नी शजक्त, वयांग्य की शजक्त ही ब ज र
को दे ते हैं। न तो िह ब ज र से ि ि उि सकते हैं, न उस ब ज र को सर्चच ि ि दे सकते
हैं। ऐसे िोग ब ज र क ब ज रुपन बढ ते हैं। जजसक मतिब है क्रक कपट बढ ते हैं। कपट की
बढती क अथु है परस्पर सदि ि की घटी। इस सदि ि के ह्र स पर आदमी आपस में ि ई-
ि ई और सुह्रद पड़ोसी क्रफर नहीां रह ज ते हैं और आपस में कोरे ग्र हक और बेचक की तरह
वयिह र करते हैं। म नो दोनों एक दस
ू रे को िगने की घ त में हों। एक की ह तन में दस
ू रे को
अपन ि ि ठदखत है और यह ब ज र क ही नहीां, बजल्क इततह स क सत्य म न ज त है।
ऐसे ब ज र को बीच में िेकर िोगों में आिश्यकत ओां क आद न-प्रद न नहीां होत , बजल्क
शोषण होने िगत है। तब कपट सफि होत है , तनष्कपट भशक र होत है। ऐसे ब ज र
म नित के भिए विडांबन है और जो ऐसे ब ज र क पोषण करत है , जो उसक श स्त्र बन
हुआ है, िह अथुश स्त्र सर सर औांध है। िह म य िी श स्त्र है , िह अथुश स्त्र अनीततश स्त्र है।

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 30-40 शब्दों में दीक्जए।


प्रश्न 1 बाजार का जाद ू ककन लोगों पर लता है और तयों?
उत्तर- ब ज र क ज द ू ऐसे िोगों पर चित है जजनक मन ख िी होत है तथ जेब िरी होती
है। ऐसे िोगों को अपनी जरूरत क पत नहीां होत । िे परचेजजांग प िर को ठदख ने के
अन िश्यक िस्तुएां खरीदते हैं त क्रक िोग उन्हें बड़ समझे। ऐसे वयजक्त ब ज र को स थुकत
प्रद न नहीां करते हैं।
प्रश्न 2 “पैसा पािर है”- लेखक ने ऐसा तयों कहा?
उत्तर- िेखक ने पैसे को प िर कह है क्योंक्रक यह क्रय शजक्त को बढ ि दे त है। पैस होने
पर ही वयजक्त नई-नई चीजें खरीदन है । दस
ू रे , यठद वयजक्त भसफु धन ही जोड़त रहे तो िह
इस बैंक बैिेंस को दे खकर गिु से फूि रहत है । पैसे से सम ज में वयजक्त क स्थ न तनध ुररत
होत है। इसी क रण िेखक ने पैसे को प िर कह है।
प्रश्न 3 ब ज र क ज द ू ‘आांख की र ह’ क्रकस प्रक र क म करत है ?

111
उत्तर- ब ज र क ज द ू हमेश ‘आांख की र ह' से इस तरह क म करत है क्रक ब ज र में सजी
सांद
ु र िस्तओ
ु ां को हम आांखों से दे खते हैं और उनकी सांद
ु रत की तरफ आकवषुत होकर
आिश्यकत न होने पर िी उन्हें खरीदने के भिए ि ि तयत हो उिते हैं।
प्रश्न 4 बाजार का जाद ू अपना असर ककन क्स्िनतयों में अचधक प्रभावित करता है और तयों?
उत्तर- ब ज र के ज द ू की मय ुद यह है क्रक िह तब ज्य द असर करत है जब जेब िरी हो
और मन ख िी हो। जेब के ख िी रहने और मन िर रहने पर यह असर नहीां कर प त ।
प्रश्न 5 परमात्मा ि मनष्ु य की प्रकृनत में तया अंतर है ?
उत्तर- परम त्म सांपूणु है। िह शून्य होने क अगधक र रखत है , परां तु मनुष्य अपूणु है । उसमें
इर्चछ बनी रहती है।

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दीक्जए।


प्रश्न 1 ‘बाजार दशयन' ननबंध उपभोततािाद एिं बाजारिाद की अंतियस्तु को समझाने में बेजोड़
है।' - उदाहरि दे कर इस किन पर अपने वि ार प्रस्तुत कीक्जए।
उत्तर- यह तनबांध उपिोक्त ि द एिां ब ज रि द की अांतिुस्तु को समझ ने में बेजोड़ है । िेखक
बत ते हैं क्रक ब ज र क आकषुण म नि मन को िटक दे त है। िह उसे ऐशोआर म की
िस्तुएां खरीदने की तरफ आकवषुत करत है। िेखक ने िगत जी के म ध्यम से तनयांबत्रत
खरीदद री क महत्ि िी प्रततप ठदत क्रकय है। ब ज र मनुष्य की जरूरतों को पूर करे , इसी
में उसकी स थुकत है। अन्यथ यह सम ज में ईष्य ु, तष्ृ ण , असांतोष, िूटखसोट को बढ ि
दे त है।
प्रश्न 2 बाजार जाते समय आपको ककन-ककन बातों का ध्यान रखना ाहहए। ‘बाजार दशयन’
पाठ के आधार पर उत्तर दीक्जए।
उत्तर- ब ज र ज ते समय हमें तनम्नभिखखत ब तों क ध्य न रखन च ठहए-
1. हमें जरूरत के स म न की सूची बन नी च ठहए।
2. हमें ब ज र के आकषुण से बचन च ठहए।
3. हम र मन तनजश्चत खरीदद री के भिए होन च ठहए।
4. ब ज र में क्रय क्षमत क प्रदशुन न करके जरूरत क स म न खरीदन च ठहए।
5. ब ज र में असांतोष िहीां ि िन से दरू रहन च ठहए।
प्रश्न 3 ‘बाजार दशयन' पाठ में आए भगत जी के व्यक्ततत्ि के सशतत पहलओ
ु ं का उल्लेख
कीक्जए।
उत्तर- िगत जी के वयजक्तत्ि के सशक्त पहिू तनम्नभिखखत हैं-
1. पांस री की दक
ु न से केिि अपनी जरूरत क स म न (जीर और नमक) खरीदन ।
2. तनजश्चत समय पर चरू न बेचने के भिए तनकिन ।

112
3. छह आने की कम ई होते ही चूणु बेचन बांद कर दे न ।
4. बचे हुए चरू न को बर्चचों को मफ्
ु त में ब ांट दे न ।
5. ब ज र की चमक-दमक में नहीां फांसन ।
6. सम ज को सांतोषी जीिन जीने की भशक्ष दे न ।
7. सिी क जय-जयर म कहकर स्ि गत करन ।
प्रश्न 4. बाजार का जाद ू ढ़ने और उतरने पर मनष्ु य पर तया-तया असर पड़ता है ?
उत्तर- ब ज र क ज द ू चढने और उतरने पर मनष्ु य पर तनम्नभिखखत प्रि ि पड़ते हैं-
1. ब ज र में आकषुक िस्तुएां दे खकर मनुष्य उनके ज द ू में बांध ज त है ।
2. उसे ब ज र में ठदखने ि िी सिी िस्तुओां की कमी खिने िगती है ।
3. िह उन िस्तुओां को जरूरत न होने पर िी खरीदने के भिए वििश होत है ।
4. िस्तुएां खरीदने पर उसक अहां सांतुष्ट हो ज त है ।
5. खरीदने के ब द उसे पत चित है क्रक जो चीजें आर म के भिए खरीदी थीां िे ही
आर म में खिि ड िती हैं।
6. उसे खरीदी हुई सिी िस्तुएां अन िश्यक िगने िगती हैं।
प्रश्न 5. ‘बाजारुपन’ से तात्पयय है ? ककस प्रकार के व्यक्तत बाजार को साियकता प्रदान करते
हैं अििा बाजार की साियकता ककसमें है ?
उत्तर- ब ज रुपन से त त्पयु है क्रक ब ज र की चक चौंध में खो ज न । केिि ब ज र पर ही
तनिुर रहन । िे वयजक्त ऐसे ब ज र को बढ ि दे ते हैं जो हर िह स म न खरीद िेते हैं जजनकी
उन्हें जरूरत िी नहीां होती। बेक्रफजूि में स म न खरीदते रहते हैं अथ ुत िे अपन धन और
समय नष्ट करते हैं। िेखक कहत है क्रक ब ज र की स थुकत तो केिि जरूरत क स म न
खरीदने में ही है तिी हमें ि ि होग ।

(iii)काले मेघा पानी-डॉ धमयिीर भारती

सारांश -िेखक बत त है क्रक जब िष ु की प्रतीक्ष करते-करते िोगों की ह ित खर ब हो ज ती है


तब ग ाँिों में नांग-धडांग क्रकशोर शोर करते हुए कीचड़ में िोटते हुए गभियों में घम
ू ते हैं। ये दस-
ब रह िषु की आयु के होते हैं तथ भसफ़ु ज ाँतघय य िैंगोटी पहनकर ‘गांग मैय की जय’ बोिकर
गभियों में चि पड़ते हैं। जयक र सुनते ही जस्त्रय ाँ ि िड़क्रकय ाँ छज्जे ि ब रजों से झ ाँकने िगती
हैं। इस मांडिी को इांदर सेन य मेढक-मांडिी कहते हैं। ये पुक र िग ते हैं –
“क िे मेघ प नी दे
प नी दे , गड़
ु ध नी दे

113
गगरी फूटी बैि वपय स
क िे मेघ प नी दे ।“
जब यह मांडिी क्रकसी घर के स मने रुककर ‘प नी’ की पुक र िग ती थी तो घरों में सहे जकर रखे
प नी से इन बर्चचों को सर से पैर तक तर कर ठदय ज त थ । ये िीगे बदन भमट्टी में िोट
िग ते तथ कीचड़ में िथपथ हो ज ते। यह िह समय होत थ जब हर जगह िोग गरमी में
िन
ु कर त्र ठह-त्र ठह करने िगते थे; कुएाँ सूखने िगते थे; निों में बहुत कम प नी आत थ , खेतों
की भमट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने िगती थी। िू के क रण वयजक्त बेहोश होने िगते थे।
पशु प नी की कमी से मरने िगते थे, िेक्रकन ब ररश क कहीां न मोतनश न नहीां होत थ । जब
पूज -प ि आठद विफि हो ज ती थी तो इांदर सेन अांततम उप य के तौर पर तनकिती थी और इांर
दे ित से प नी की म ाँग करती थी। िेखक को यह समझ में नहीां आत थ क्रक प नी की कमी के
ब िजूद िोग घरों में कठिन ई से इकट्ि क्रकए प नी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रक र के
अांधविश्ि सों से दे श को बहुत नुकस न होत है। अगर यह सेन इांर की है तो िह खुद अपने भिए
प नी क्यों नहीां म ाँग िेती? ऐसे प खांडों के क रण हम अांग्रेजों से वपछड़ गए तथ उनके गि
ु म
बन गए। िेखक स्ियां मेढक-मांडिी ि िों की उमर क थ । िह आयुसम जी थ तथ कुम र-सुध र
सि क उपमांत्री थ । उसमें सम जसध
ु र क जोश ज्य द थ । उसे सबसे ज्य द मजु श्कि अपनी
जीजी से थी जो उम्र में उसकी म ाँ से बड़ी थीां। िे सिी रीतत-ररि जों, तीज-त्योह रों, पूज -अनुष्ि नों
को िेखक के ह थों पूर करि ती थीां। जजन अांधविश्ि सों को िेखक सम प्त करन च हत थ । िे
ये सब क यु िेखक को पुण्य भमिने के भिए करि ती थीां। जीजी िेखक से इांदर सेन पर प नी
फेंकि ने क क म करि न च हती थीां। उसने स फ़ मन कर ठदय । जीजी ने क ाँपते ह थों ि
डगमग ते प ाँिों से इांदर सेन पर प नी फेंक । िेखक जीजी से मुाँह फुि ए रह । श म को उसने
जीजी की दी हुई िड्डू-मिरी िी नहीां ख ई। पहिे उन्होंने गुस्स ठदख य , क्रफर उसे गोद में िेकर
समझ य । उन्होंने कह क्रक यह अांधविश्ि स नहीां है। यठद हम प नी नहीां दें गे तो इांर िगि न हमें
प नी कैसे दें गे। यह प नी की बरब दी नहीां है। यह प नी क अध्र्य है। द न में दे ने पर ही इजर्चछत
िस्तु भमिती है । ऋवषयों ने द न को मह न बत य है। बबन त्य ग के द न नहीां होत । करोड़पतत
दो-च र रुपये द न में दे दे तो िह त्य ग नहीां होत । त्य ग िह है जो अपनी जरूरत की चीज को
जनकल्य ण के भिए दे । ऐसे ही द न क फि भमित है। िेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो
गय । क्रफर िी िह अपनी जजद पर अड़ रह । जीजी ने क्रफर समझ य क्रक तू बहुत पढ गय है।
िह अिी िी अनपढ है। क्रकस न िी तीस-च िीस मन गेहूाँ उग ने के भिए प ाँच-छह सेर अर्चछ गेहूाँ
बोत है । इसी तरह हम अपने घर क प नी इन पर फेंककर बि
ु ई करते हैं। इसी से शहर, कस्ब ,

114
ग ाँि पर प नी ि िे ब दिों की फसि आ ज एगी। हम बीज बन कर प नी दे ते हैं, क्रफर क िे मेघ
से प नी म ाँगते हैं।

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में दीक्जए।

प्रश्न 1- िषाय कराने के अंनतम उपाय के रूप में तया ककया जाता िा?
उत्तर –जब पज
ू -प ि कथ -विध न सब करके िोग ह र ज ते थे तब अांततम उप य के रूप में इन्दर
सेन आती थी I नांग-धडांग, कीचड़ में िथपथ, ‘क िे मेघ प नी दे प नी दे गुड़ध नी दे ’ की टे र
िग कर प्य स से सूखते गिों और सख
ू ते खेतों के भिए मेघों को पुक रती हुई टोिी बन कर
तनकि पड़ती थीI
प्रश्न 2 इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय तयों बोलती है ?
उत्तर : ि रत में गांग नदी को विशेष सम्म न प्र प्त है। उसे म ाँ और दे िी क दज ु ठदय ज त
है। हर शुि क यु में गांग जि क प्रयोग क्रकय ज त है ।इसभिए इांदरसेन गांग मैय की जय
बोिती है । ि रतीय सांस्कृतत में नठदयों क बहुत महत्त्ि है । इन्हीां के क्रकन रे कई सभ्यत ओां क
जन्म हुआ।
प्रश्न 3 काले मेघा पानी दे पाठ में लेखक ने दे शिाससयों की ककस मानससकता की ओर संकेत
ककया है?
अििा
काले मेघा दल के दल उमडते है पर गगरी फूटी रह जाती है -आशय स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर : िेखक कहत है क्रक दे श में िोग हर समय म ांग करते हैं ,परां तु दे श के भिए त्य ग ि
समपुण क ि ि नहीां है। उन्हें भसफु अपने ठहत सिोपरर िगते हैं। एक दस
ू रे के भ्रष्ट च र की
आिोचन करते है।विक स के न म पर अरबों रुपयों की योजन एाँ बनती हैं , बहुत पैस खचु होत
है परां तु भ्रष्ट च र के क रण िह आम आदमी तक नहीां पहुाँचत ।उसकी ह ित िैसी ही बनी रहती
है।
प्रश्न 4 इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को जीजी ने ककस प्रकार सही ठहराया?
उत्तर : i.प नी क अर्घयु- कुछ प ने के भिए कुछ चढ ि दे न पडत है। इांर को प नी क अर्घयु
चढ ने से िे िष ु करें गे।
ii. त्य ग की ि िन से द न-जजस िस्तु की अगधक जरूरत है उसके द न से फि भमित है ।
iii. प नी की बि
ु ई- प नी को गभियों में बीज की तरह बोएाँगे तब ज कर ही प नी की फसि(िष ु)
िहिह एगी।

115
प्रश्न 5 लोगों ने लड़कों की टोली को इंर सेना अििा मेंढक मंडली तयों कहा ?
उत्तर:- यह नियुिक अपने आप को इांर की सेन कहि ते थे अगर उन पर प नी गगर य ज एग
तो इांर िगि न प्रसन्न होगें और बदिे में प नी की बरस त करें गे I इनके मेंढक की तरह गिी
गिी कीचड़ में िथपथ होकर कूदने के क रण कुछ िोग इनको में ढक मांडिी िी कहते हैं I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में दीक्जए।


प्रश्न 1-इन्दर सेना घर-घर जाकर पानी तयों मााँगती िी?
उत्तर- ग ाँि के िोग ब ररश के भिए िगि न इांर से प्र थुन क्रकय करते थे। जब पज
ू -प ि,व्रत
आठद उप य असफ़ि हो ज ते थे तो िगि न इांर को प्रसन्न करने के भिए ग ाँि के क्रकशोर, बर्चचे
कीचड़ में िथपथ होकर गिी-गिी घूमकर िोगों से प नी म ाँगते थे।
प्रश्न 2- जीजी के बार–बार कहने पर भी लेखक इन्दरसेना पर पानी फेंकने को राजी तयों नहीं
होता ?
उत्तर- इन्दरसेन क क यु आयुसम जी विच रध र ि िे िेखक को अांधविश्ि स िगत है , उसक
म नन है क्रक यठद इांदरसेन दे ित से प नी ठदिि सकती है तो स्ियां अपने भिए प नी क्यों नहीां
म ाँग िेती? प नी की कमी होने पर िी िोग घर में एकत्र क्रकये हुए प नी को इांदरसेन पर फ़ेंकते
हैं। िेखक इसे प नी की तनमुम बरब दी म नत है।
प्रश्न 3- रूठे हुए लेखक को जीजी ने ककस प्रकार समझाया?
उत्तर- जीजी ने िेखक को प्य र से िड्डू-मिरी खखि ते हुए तनम्न तकु ठदए-
1-त्य ग क महत्त्ि- कुछ प ने के भिए कुछ दे न पड़त है ।
2-द न की महत्त - ॠवष-मुतनयों ने द न को सबसे ऊाँच स्थ न ठदय है । जो चीज अपने प स िी
कम हो और अपनी आिश्यकत को िूिकर िह चीज दस
ू रों को द न कर दे न ही त्य ग है I
3-इांरदे ि को जि क अध्यु चढ न - इांदरसेन पर प नी फ़ेंकन प नी की बरब दी नहीां बजल्क इांरदे ि
को जि क अध्यु चढ न है।
4-प नी की बि
ु ई करन - जजस प्रक र क्रकस न फ़सि उग ने के भिए जमीन पर बीज ड िकर बि
ु ई
करत है िैसे ही प नी ि िे ब दिों की फ़सि प ने के भिए इन्दर सेन पर प नी ड ि कर प नी
की बुि ई की ज ती है ।
प्रश्न4-नहदयों का भारतीय सामाक्जक और सांस्कृनतक पररिेश में तया महत्ि है ?
उत्तर- गांग ि रतीय सम ज में सबसे पूज्य सद नीर नदी है । जजसक ि रतीय इततह स में ध भमुक,
पौर खणक और स ांस्कृततक महत्ि है I िह ि रतीयों के भिए केिि एक नदी नहीां अवपतु म ाँ है ,

116
स्िगु की सीढी है , मोक्षद तयनी है । उसमें प नी नहीां अवपतु अमत
ृ तुल्य जि बहत है । ि रतीय
सांस्कृतत में नठदयों के क्रकन रे म नि सभ्यत एाँ फिी-फूिी हैंI बड़े-बड़े नगर, तीथुस्थ न नठदयों के
क्रकन रे ही जस्थत हैं ऐसे पररिेश मेंि रति सी सबसे पहिे गांग मैय की जय ही बोिेंगे। नठदय ाँ
हम रे जीिन क आध र हैं, हम र दे श कृवष प्रध न है । नठदयों के जि से ही ि रत िूभम हरी-िरी
है । नठदयों के बबन जीिन की कल्पन नहीां कर सकते, यही क रण है क्रक हम ि रतीय नठदयों
की पज
ू करते हैं I
प्रश्न 5-आजादी के प ास िषों के बाद भी लेखक तयों दख
ु ी है , उसके मन में कौन से प्रश्न उठ
रहे हैं?
उत्तर- आज दी के पच स िषों ब द िी ि रतीयों की सोच में सक र त्मक बदि ि न दे खकर िेखक
दख
ु ी है । उसके मन में कई प्रश्न उि रहे हैं-
1.क्य हम सर्चचे अथों में स्ितन्त्र हैं?
2.क्य हम अपने दे श की सांस्कृतत और सभ्यत को समझ प ए हैं?
3.र ष्र तनम ुण में हम पीछे क्यों हैं, हम दे श के भिए क्य कर रहे हैं?
4.हम स्ि थु और भ्रष्ट च र में भिप्त रहते हैं, त्य ग में विश्ि स क्यों नहीां करते ?
5.सरक र दि र चि ई ज रही सध
ु रि दी योजन एाँ गरीबों तक क्यों नहीां पहुाँचती है ?

(iv)पहलिान की ढोलक– फिीश्िर नाि रे िु

सारांश-सदी क मौसम थ । ग ाँि में मिेररय ि हैजे क प्रकोप थ । अम िस्य की िां डी र त में
तनस्तब्धत थी। आक श के त रे ही प्रक श के स्रोत थे। भसय रों ि उल्िुओां की डर िनी आि ज से
ि त िरण की तनस्तब्धत किी-किी िांग हो ज ती थी। किी क्रकसी झोपड़ी से कर हने ि कै करने
की आि ज तथ किी-किी बर्चचों के रोने की आि ज आती थी। कुत्ते ज ड़े के क रण र ख के ढे र
पर पड़े रहते थे। स यां य र बत्र को सब भमिकर रोते थे। इस स रे म हौि में पहिि न की ढोिक
सांध्य से प्र त:क ि तक एक ही गतत से बजती रहती थी। यह आि ज मत
ृ -ग ाँि में सांजीिनी शजक्त
िरती थी। ग ाँि में िुट्टन पहिि न प्रभसदध थ । नौ िषु की आयु में िह अन थ हो गय थ ।
उसकी श दी हो चुकी थी। उसकी विधि स स ने उसे प ि । िह ग य चर त , त ज दध
ू पीत तथ
कसरत करत थ । ग ाँि के िोग उसकी स स को तांग क्रकय करते थे। िुट्टन इनसे बदि िेन
च हत थ । कसरत के क रण िह क्रकशोर िस्थ में ही पहिि न बन गय । एक ब र िट्
ु टन

117
श्य मनगर मेि में ‘दां गि’ दे खने गय । पहिि नों की कुश्ती ि द ाँि-पें च दे खकर उसने ‘शेर के
बर्चचे’ को चुनौती दे ड िी। ‘शेर के बर्चचे’ क असिी न म थ -च ाँद भसांह। िह पहिि न ब दि भसांह
क भशष्य थ । तीन ठदन में उसने पांज बी ि पि न पहिि नों को हर ठदय थ । िह अपनी श्रेष्ित
भसदध करने के भिए बीच-बीच में दह ड़त क्रफरत थ । श्य मनगर के दां गि ि भशक र-वप्रय िद
ृ ध
र ज स हब उसे दरब र में रखने की सोच रहे थे क्रक िुट्टन ने शेर के बर्चचे को चुनौती दे दी।
दशुक उसे प गि समझते थे। च ाँद भसांह ब ज की तरह िट्
ु टन पर टूट पड़ , परां तु िह सफ़ ई से
आक्रमण को साँि िकर उि खड़ हुआ। र ज ने िट्
ु टन को समझ य और कुश्ती से हटने को कह ,
क्रकां तु िट्
ु टन ने िड़ने की इज जत म ाँगी। मैनेजर से िेकर भसप ठहयों तक ने उसे समझ य , परां तु
िुट्टन ने कह क्रक इज जत न भमिी तो पत्थर पर म थ पटककर मर ज एग । िीड़ में अधीरत
थी। पांज बी पहिि न िुट्टन पर ग भियों की बौछ र कर रहे थे। दशुक उसे िड़ने की अनुमतत
दे न च हते थे। वििश होकर र ज स हब ने इज जत दे दी। ब जे बजने िगे। िुट्टन क ढोि िी
बजने िग थ । च ाँद ने उसे कसकर दब भिय थ । िह उसे गचत्त करने की कोभशश में थ । िुट्टन
के समथुन में भसफ़ु ढोि की आि ज थी, जबक्रक च ाँद के पक्ष में र जमत ि बहुमत थ ।
िुट्टन की आाँखें ब हर तनकि रही थीां, तिी ढोि की पतिी आि ज सुन ई दी’ध क-गधन , ततरकट-
ततन , ध क-गधन , ततरकट-ततन ।’ इसक अथु थ -द ाँि क टो, ब हर हो ज ओ। िट्
ु टन ने द ाँि क टी
तथ िपक कर च ाँद की गदुन पकड़ िी। ढोि ने आि ज दी-चट क् -चट्-ध अथ ुत उि कर पटक
दे । िुट्टन ने द ाँि ि जोर िग कर च ाँद को जमीन पर दे म र । ढोिक ने ‘गधन -गधन , गधक-
गधन ।’ कह और िुट्टन ने च ाँद भसांह को च रों ख ने गचत्त कर ठदय । ढोिक ने ‘ि ह बह दरु !” की
ध्ितन की तथ जनत ने म ाँ दग
ु ु की, मह िीर जी की, र ज की जय-जयक र की। िुट्टन ने सबसे
पहिे ढोिों को प्रण म क्रकय और क्रफर दौड़कर र ज स हब को गोद में उि भिय । र ज स हब ने
उसे दरब र में रख भिय । पांज बी पहिि नों की जम यत च ाँद भसांह की आाँखें पोंछ रही थी। र ज
स हब ने िट्
ु टन को परु स्कृत न करके अपने दरब र में सद के भिए रख भिय । र जपांडडत ि
मैनेजर ने िुट्टन क विरोध क्रकय क्रक िह क्षबत्रग्र नहीां है । र ज स हब ने उनकी एक न सुनी।
कुछ ही ठदन में िट्
ु टन भसांह की कीततु दरू -दरू तक फैि गई। उसने सिी न मी पहिि नों को
हर य । उसने ‘क ि ख ाँ’ जैसे प्रभसदध पहिि न को िी हर ठदय । उसके ब द िह दरब र क
दशुनीय जीि बन अथ ु। िुट्टन भसांह मेिों में घुटने तक िांब चोंग पहने, अस्त-वयस्त पगड़ी
ब ाँधकर मति िे ह थी की तरह झूमत चित । हिि ई के आग्रह पर दो सेर रसगुल्ि ख त तथ
मुाँह में आि-दस प न एक स थ दाँ स
ू िेत । िह बर्चचों जैसे शौक रखत थ । दां गि में उससे कोई
िड़ने की ठहम्मत नहीां करत । कोई करत तो उसे र ज स हब इज जत नहीां दे ते थे। इस तरह

118
पांरह िषु बीत गए। उसके दो पुत्र हुए। उसकी स स पहिे ही मर चुकी थी और पत्नी िी दो
पहिि न पैद करके स्िगु भसध र गई। दोनों िड़के पहिि न थे। दोनों क िरण-पोषण दरब र से
हो रह थ । पहिि न हर रोज सुबह उनसे कसरत करि त । ठदन में उन्हें स ांस ररक ज्ञ न िी दे त ।
िह बत त क्रक उसक गुरु ढोि है , और कोई नहीां। अच नक र ज स हब स्िगु भसध र गए। नए
र जकुम र ने विि यत से आकर र जक ज अपने ह थ में िे भिय । उसने पहिि नों की छुट्टी कर
दी। िट्
ु टन ढोिक कांधे से िटक कर अपने पत्र
ु ों के स थ ग ाँि िौट आय । ग ाँि ि िों ने उसकी
झोपड़ी बन दी तथ िह ग ाँि के नौजि नों ि चरि हों को कुश्ती भसख ने िग । ख ने-पीने क खचु
ग ाँि ि िों की तरफ से बाँध हुआ थ । गरीबी के क रण धीरे -धीरे क्रकस नों ि मजदरू ों के बर्चचे स्कूि
में आने बांद हो गए। अब िह अपने िड़कों को ही ढोि बज कर कुश्ती भसख त ।
िड़के ठदनिर मजदरू ी करके कम कर ि ते थे। ग ाँि पर अच नक सांकट आ गय । सूखे के क रण
अन्न की कमी हो गई तथ क्रफर मिेररय ि हैज फैि गय । घर के घर ख िी हो गए। प्रततठदन
दो-तीन ि शें उिने िगीां। िोग एक-दस
ू रे को ढ ाँढस दे ते तथ श म होते ही घरों में घुस ज ते। िोग
चप
ु रहने िगे। ऐसे समय में केिि पहिि न की ढोिक ही बजती थी जो ग ाँि के अद्र्धमत
ृ ,
औषगध-उपच र-पथ्य-विहीन प्र खणयों में सांजीिनी शजक्त िरती थी। एक ठदन पहिि न के दोनों बेटे
िी चि बसे। पहिि न स री र त ढोि पीटत रह । दोनों पेट के बि पड़े हुए थे। उसने िांबी स ाँस
िेकर कह -दोनों बह दरु गगर पड़े। उस ठदन उसने र ज श्य म नांद की दी हुई रे शमी ज ाँतघय पहनी
और स रे शरीर पर भमट्टी मिकर थोड़ी कसरत की क्रफर दोनों पुत्रों को कांधों पर ि दकर नदी में
बह आय । इस घटन के ब द ग ाँि ि िों की ठहम्मत टूट गई।
र त में क्रफर पहिि न की ढोिक बजने िगी तो िोगों की ठहम्मत दग
ु ुनी बढ गई। च र-प ाँच ठदनों
के ब द एक र त ढोिक की आि ज नहीां सुन ई पड़ी। सुबह उसके भशष्यों ने दे ख क्रक पहिि न की
ि श ‘गचत’ पड़ी है । भशष्यों ने बत य क्रक उसके गुरु ने कह थ क्रक उसके शरीर को गचत पर पेट
के बि भिट य ज ए क्योंक्रक िह किी ‘गचत’ नहीां हुआ और गचत सि
ु ग ने के समय ढोि जरूर
बज दे न ।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 40 शब्दों में सलणखए -
प्रश्न 1. रात के भयानक सन्नाटे में पहलिान की ढोलक तया कररश्मा करती िी ?
उत्तर – र त के िय नक सन्न टे में पहिि न की ढोिक ही कुछ आश और जीिन्तत िरती थी I
िह म नों र त की ियांकरत को ििक रती थी I िह मत्ृ यु से जूझते हुए िोगों के तनर श हृदयों
में सांजीिनी शजक्त िरती थी I
प्रश्न 2. ल्
ु टन ससंह और ााँद ससंह की कुश्ती में ककसे समियन समल रहा िा और तयों ?

119
उत्तर – िुट्टन भसांह और च ाँद भसांह की कुश्ती आरम्ि हुई और र ज कमुच री और एनी िोग च ाँद
भसांह क समथुन कर रहे थे I क रण स्पष्ट थ , िुट्टन भसांह को कोई नहीां ज नत थ I िह
अच नक दां गि में उतर आय थ I च न भसांह पहिे से ही मशहूर पहिि न थ I
प्रश्न 3. पहलिान के बेटों की मत्ृ यु पर गााँििालों की हहम्मत तयों टूट गई ?
उत्तर – पहिि न के दोनों बेटे मह म री की चपेट में आने से अल्प यु में ही चि बसे I यह दे खकर
ग ाँिि िों की ठहम्मत टूट गई क्योंक्रक ग ाँिि िे पहिि न को अपन सह र म नते थे I जब पहिि न
ही अपने पुत्रों के बबन बेसह र हो गय तो उनकी ठहम्मत जब ब दे गई I
प्रश्न 4. पहलिान की अंनतम इच्िा तया िी और तयों ?
उत्तर – पहिि न की अांततम इर्चछ थी क्रक उसे गचत पर पेट के बि भिट य ज ए क्योंक्रक आज
तक िह किी िी दां गि य जीिन सांघषु में गचत नही हुआ थ I उसकी दस
ू री इर्चछ यह थी क्रक
उसे आग दे ते समय ठदि अिश्य बज य ज ए I
प्रश्न 5. “ ‘पहलिान की ढोलक’ कहानी प्रारम्भ में च त्रत्रत प्रकृनत का स्िरूप कहानी की भयािहता
की ओर संकेत करता है” I इस किन पर हटप्पड़ी कीक्जए I
उत्तर – “ पहिि न की ढोिक”कह नी क आरम्ि मह म री के ठदनों से होत है I िेखक ने मह म री
की ियांकरत ठदख ने के भिए पक
ृ ृ तत क अत्यांत िय नक गचत्रण क्रकय है I र त में गीदड़ों की
चीत्क र,उल्िुओां की आि जें, कुत्तों क रोन ,ि शों क उिन ,िोगों की करुण चीत्क र श्मश न जैस
दृश्य उपजस्थत करते हैं I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में सलणखए -
प्रश्न 1. महामारी से पीडड़त गााँि की दद
ु य शा का च त्रि कीक्जए -
उत्तर – िेखक क पूर ग ाँि मह म री की चपेट से बेह ि थ I मिेररय और हैजे ने सबको अपनी
िपेट में िे भिय थ I ठदन-िर क ाँखते-कांू खते और कर हते िोग कब दतु नय ाँ छोड़ दे ते थे पत ही
नहीां चित थ I िोगो के शरीर में इतनी िी शजक्त नहीां बची थी क्रक िो रो- गचि सकें I यह ाँ
तक क्रक म त एाँ अपने मरते हुए बचों को “बेट ” कहने की शजक्त िी न प ती थीां I बर्चचे िी दब
ु ि

कांि से म ाँ-म ाँ पक
ु रकर रो पड़ते थे I ह ित इतनी बरु ी थी की र त होते ही ि त िरण में िय नक
सन्न ट छ ज त थ और अांधेरी र त आाँसू बह ती प्रतीत होती थी I
प्रश्न 2. गााँि में महामारी फ़ैलने और अपने बेटों के दे हांत के बािज़ूद लु्टन पहलिान ढोल तयों
बजाता रहा ?
अििा

120
गााँि में महामारी फ़ैलने और अपने बेटों के दे हांत के बािज़ूद लु्टन पहलिान ढोल बजाते रहने
का ममय स्पष्ट कीक्जए I
अििा
अपने बेटों की मरिासन्न अिस्िा में और उनके मर जाने के बाद भी लु्टन पहलिान ढोलक
तयों बजाता रहा ?
अििा
पहलिान की ढोलक की उठती चगरती आिाज बीमारी से दम तोड़ रहे ग्रामिाससयों में संजीिनी का
सं ार कैसे करती है ?
उत्तर – िुट्टन पहिि न क ढोि की आि ज के स थ गहर ररश्त थ I यह आि ज उसकी नसों
में सनसनी फैि ती थी,उसे उत्तेजजत करती थी I उसमे जीिन्तत िरती थी I इस प्रक र जीवित
रहने के भिए उसे ढोि की आिश्यकत थी I िह िी समझत थ क्रक यह ढोि न केिि उसे,
बजल्क औरों को िी उत्स ह दे त है I यह सन्न टे में जजन्दगी के होने क अहस स िरत है I इस
क रण िह मह म री फ़ैिने के दौर न िी ढोि बज त रह Iअपने बेटों की मत्ृ यु के ब िजद
ू िी उसने
सन्न टे को तोड़ने के भिए,जीिन के उत्स ह बन ए रखने के भिए ढोि बज न ज री रख I
प्रश्न 3. कहानी के ककस-ककस मोड़ पर ल्
ु टन के जीिन में तया-तया पररितयन आए ?
उत्तर – कह नी के विविध मोड़ पर िुट्टन के जीिन में तनम्नभिखखत पररितुन आए –
1.म त -वपत क्रक मत्ृ यु के ब द िह अन थ हो गय और उसक प िन-पोषण विधि स स ने क्रकय
I
2.श्य मनगर दां गि में च द
ाँ भसांह को कुश्ती में पछ ड़कर िह र ज-दरब र क स्थ ई पहिि न बन
गय I
3.पांरह िषु ब द र ज स हब की मत्ृ यु के ब द र जकुम र ने उसे दरब र से हट ठदय और िह
अपने ग ाँि िौट आय I
4.ग ाँि ि िों ने कुछ ठदन उसके िरण-पोषण क द तयत्ि भिय क्रकन्तु ब द में अख ड़ बांद हो गय
I
5.पुत्रों की मत्ृ यु के ब द च र-प ाँच ठदन िह अकेि रह और क्रफर स्ियां िी मत्ृ यु को प्र प्त हो गय
I
प्रश्न 4. “पहलिान की ढोलक” पाठ का एक सन्दे श यह भी है कक लोककलाओं को संरक्षि हदया
जाना ाहहए I अपने वि ार सलणखए I

121
उत्तर – “पहिि न की ढोिक” प ि से हमें यह सन्दे श भमित है क्रक िोककि एाँ स्ियां के बि पर
नहीां जी प तीां I उनक विक स करने के भिए स म जजक य सरक री सह यत आिश्यक होती है I
यठद पहिि न,खखि ड़ी,गीतक र,ग यक और नतुक पेट िरने की उधेड़-बन में िगे रहे तो िे अपनी
कि क विक स नहीां कर प ते I इन कि ओां को दे खकर आनांद सिी को भमित है क्रकन्तु सिी
िोग इसके भिए मूल्य नहीां चुक ते I अतः िोककि ओां कोम आगथुक सांरक्षण भमिन च ठहए जजससे
िे अपन परू ध्य न अपनी कि को तनख रने में िग सकें I
प्रश्न 5. “पहलिान की ढोलक” कहानी के आधार पर ग्रामीिों की गरीबी और असहायता पर
हटपण्िी कीक्जए I
उत्तर – ग ाँि मे तनधुनत और स धनहीनत इतन अगधक थी िह ां कोई अर्चछ हस्पत ि िी नहीां
थ I न ही योग्य गचक्रकत्स क प्रबांध थ और न ही िोगों के प स इतन पैसे थे क्रक योग्य डॉक्टर
से अपन इि ज कर सकें I अतः जब मह म री आई तो िोग मरने के दर से दब
ु के हुए थे I उन्हें
दि -द रू क सह र तो थ नहीां, केिि पहिि न की ढोिक ही उन्हें कुछ ठहम्मत दे ती थी I

(v)सशरीष के फूल- हजारी प्रसाद द्वििेदी

भशरीष के फूि आच यु हज री प्रस ददि र भिखखत एक िभित तनबांध है I इसमें िेखक ने आांधी
,िू और गमी की प्रचांडत में िी अिधूत की तरह अविचि हो कर कोमि फूिों क सौंदयु बबखेर
रहे भशरीष के म ध्यम से मनुष्य की जजजीविष को प्रकट क्रकय है I सांस र के सांघषुपूणु ि त िरण
के बीच धैयु पूिक
ु रहकर िोक गचांत में मगन कतुवय शीि बने रहने क मह न सांदेश इस प ि
के म ध्यम से ने ठदय िेखक ने ठदय है I

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जये -


प्रश्न-1 - सशरीष के फूल की कोमलता को लेखक ने ककस प्रकार स्पष्ट ककया है ?
उत्तर--भशरीष के फूि बसांत म स में आने शुरू हो ज ते हैं और आष ढ तक खखिे रहते हैं Iभशरीष
के फूि कोमि तांतु से बने होते हैंI इनकी कोमित के विषय में कह गय है क्रक यह केिि िाँिरों
के पैरों क कोमि दब ि ही झेि सकते हैं, पक्षक्षयों क बबल्कुि नहीां I
प्रश्न-2 - लेखक ने सशरीष की तुलना ककन कवियों से की है और तयों ?
उत्तर- िेखक ने भशरीष की तुिन कबीरद स और क भिद स से की है क्योंक्रक सांत कबीर बहुत
कुछ भशरीष के फूि के सम न ही थेI िे मस्त और बेपरि ह थे िेक्रकन इसके स थ स थ में सरस

122
और म दक िी थे िेखक के अनुस र क भिद स िी अन सक्त योगी रहे होंगे क्योंक्रक फक्क ड़ न
मस्ती से उपजे भशरीष के फूि के सम न ही मेघदत
ू िी अन सक्त ,उन्मुक्त हृदय से ही तनकि
सकत है I
प्रश्न-3 -सशरीष का फूल अपने जीिन की अजेयता के मंत्र का प्र ार कैसे करता है ?
उत्तर- गमी की ियांकर िू और उमस से जब प्र ण उबिने िगते हैं, हृदय सूख ज त है तब
भशरीष क फूि ियांकर िू से सांघषु करत हुआ तनरां तर महकत रहत है I इस प्रक र भशरीष क
फूि अपने जीिन की अजेयत के मांत्र क प्रच र करत है I
प्रश्न-4 -परु ाने की अचधकार -सलप्सा के माध्यम से लेखक ने ककन पर व्यंग ककया है ?
उत्तर- पुर ने की अगधक र भिप्स के म ध्यम से िेखक ने उन पुर ने नेत ओां पर वयांग्य क्रकय है
जो जम ने क रुख नहीां पहच नते Iिे सदै ि अपनी सत्त क यम रखन च हते हैं और जब तक
नए नेत उन्हें धक्क म रकर र जनीतत से तनक ि नहीां दे ते तब तक में जमे रहन च हते हैं I
प्रश्न-5 लेखक के अनुसार सच् ा कवि कौन है ?
उत्तर—िेखक के अनस
ु र सर्चच कवि िही है जो सांस र से अन सक्त रहे और फक्क ड़ पन में
जीिन वयतीत करें Iजो सांस र में रहकर क्रकए -कर ए क िेख -जोख भमि ने में उिझ रहत है
िह कवि नहीां बन सकत I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जये -
प्रश्न-1 अन्य िक्ष
ृ ों की अपेक्षा सशरीष के िक्ष
ृ ों में कौन -सी विशेषतायें विद्यमान होती है ?
उत्तर-1- अन्य िक्ष
ृ बसांत और स िन के महीनों में िहिह ते हैं ,िही मई-जून की झुिस दे ने ि िी
गमी में भशरीष क पेड़ सूयु की प्रचांड गमी क स मन करते हुए झुिसती हुई िू में िी िहर त
रहत है और सब को शीतित एिां छ य प्रद न करत है Iयह विपरीत पररजस्थततयों को िी सरित
से झेिने की क्षमत रखत है I
प्रश्न-2- ‘ऐसे दम
ु दारों से तो लंडूरे भले’ पंक्तत लेखक ने ककसके सलए कही है और तयों?
उत्तर 2-यह पांजक्त िेखक ने पि श के पेड़ के भिए कही है जो कुछ समय के भिए ही पल्िवित
और पजु ष्पत होत हैI िेखक के मत नस
ु र जजसके प स जो गण
ु है िह दे र तक रहने च ठहए य िे
होने ही नहीां च ठहए Iकोई दम
ु द र सुांदर पक्षी पांख प्र प्त कर कुछ ठदन अपनी शोि ठदखत है और
ब द में यठद उसके पांख झड़ ज ते है ,तो उसक क्य ि ि ?यठद कोई पांखहीन है तो िह ऐस ही
है I कम से कम उसे ब द ि िी कुरूपत तो नहीां झेिनी पड़तीI

प्रश्न-3- ‘सशरीष के फूल’ ननबंध की भाषागत विशेषतायें बताएं I

123
उत्तर-3-’भशरीष के फूि’ हज री प्रस द दवििेदी क प्रभसदध िभित तनबांध है I यह तनबांध ि ष शैिी
की दृजष्ट से िी अत्यांत श्रेष्ि है Iिेखक ने इस तनबांध में खड़ी बोिी क सुांदर प्रयोग क्रकय है I
इसमें तत्सम शब्द ििी के स थ-स थ तदिि ,अरबी, फ रसी, उदु ू एिां स ध रण बोिच ि की ि ष
के शब्दों क प्रयोग हुआ है I कहीां-कहीां गांिीर विषय को स्पष्ट करने के भिए जठटि ि क्यों क
िी प्रयोग हुआ है Iतनबांध में ठहम्मत करन ,दहक उिन ,आाँख बच न ,न उधो क िेन न म धो
क दे न आठद मह
ु िरे और िोकोजक्तय ां क िी स थुक एिां सटीक प्रयोग हुआ है Iइन्होंने मख्
ु यत:
वििरण त्मक, विच र त्मक एिां वयांग्य त्मक शैिी क सम योजन क्रकय है
प्रश्न-4- लेखक ने गााँधी और सशरीष की तल
ु ना आपस में तयों की है ?
उत्तर-4- भशरीष क पेड़ विपरीत जस्थततयों में िी पल्िवित और पुजष्पत होत है और सिी को छ य
और सुगांध प्रद न करत है Iगमी की प्रचांड िू िी उसक कुछ नहीां बबग ड़ प तीI मह त्म ग ांधी
िी बब्रठटश स म्र ज्य क ि की अन्य य पूणु र जनीतत में अपने प्रेम पूणु वयिह र से अठहांस और
उद रत क प ि दे शि भसयों को पढ ते रहे जजसके पररण म स्िरूप दे श ने स्ितांत्रत प्र प्त की Iइसी
क रण िेखक ने दोनों की ति
ु न की है I
प्रश्न-5 लेखक ने सशरीष के पुराने फलों पर तया हटप्पिी की है ?
उत्तर-5-भशरीष के परु ने फि िांबी-िांबी फभियों में बांद होकर महीनों तक िक्ष
ृ की श ख ओां से
िटकी रहते है Iउसकी फूि सूख ज ते हैं ,पत्ते झड़ ज ते हैं ,पर िह दे श के ढीि नेत ओां की तरह
अपनी जगह छोड़ने को तैय र ही नहीां होते Iजब नए पत्ते ,फि- फूि आते हैं तो िह उन्हें धक्क
म रकर नीचे फेंकते हैं तिी िो पेड़ क पीछ छोड़ते हैं I उन फिों की यह आदत दे श के बड़े
नेत ओां की तरह कुसी पर जम रहने की बुरी आदत के सम न है I

(vi)श्रम विभाजन और जानत प्रिा,मेरी कल्पना का आदशय समाज-डॉ. भीमराि अंबेडकर


(क) श्रम विभाजन और जानत प्रिा
पाठ का सारांश
ज तत-प्रथ श्रम-विि जन क ही एक रूप है। ऐसे िोग िूि ज ते हैं क्रक श्रम-विि जन श्रभमक-
विि जन नहीां है। श्रम-विि जन तनस्सांदेह आधुतनक युग की आिश्यकत है , श्रभमक-विि जन नहीां।
ज तत-प्रथ श्रभमकों क अस्ि ि विक विि जन और इनमें ऊाँच-नीच क िेद करती है ।िस्तुत: ज तत-
प्रथ को श्रम-विि जन नहीां म न ज सकत क्योंक्रक श्रम-विि जन मनष्ु य की रूगच पर होत है ,
जबक्रक ज तत-प्रथ मनुष्य पर जन्मन पेश थोप दे ती है । मनुष्य की रूगच-अरूगच इसमें कोई म यने
नहीां रखती। ऐसी ह ित में वयजक्त अपन क म ट िू ढां ग से करत है , न कुशित आती है न

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श्रेष्ि उत्प दन होत है। चाँ ूक्रक वयिस य में , ऊाँच-नीच होत रहत है , अतः जरूरी है पेश बदिने क
विकल्प। चाँूक्रक ज तत-प्रथ में पेश बदिने की गुांज इश नहीां है I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जये -
प्रश्न-1.जानत भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्िाभाविक रूप तयों नहीं कही जा सकती है ?
उतर:- ि रतीय सम ज में ज तति द के आध र पर श्रम विि जन अस्ि ि विक है क्योंक्रक ज ततगत
श्रम विि जन श्रभमकों की रुगच अथि क युकुशित के आध र पर नहीां होत , बजल्क म त के गिु
में ही श्रम विि जन कर ठदय ज त है जो वििशत , अरुगचपूणु होने के क रण गरीबी और
अकमुण्यत को बढ ने ि ि है ।
प्रश्न-2. आदशय समाज की स्िापना का आधार तया है ?
उत्तर - तनम्न ांक्रकत तीन बबांदओ
ु ां के आध र पर आदशु सम ज की स्थ पन की ज सकती है -
1. समत – सम ज के सिी िगु से सांबांगधत वयजक्तयों को सम नत क अगधक र होन च ठहएI
2. स्ितांत्रत - प्रत्येक वयजक्त को स्ितांत्रत पूिक
ु जीिनय पन क अगधक र प्र प्त हो I
3. ि ईच र - सम ज में प्रत्येक वयजक्त के स थ ि ईच रे क वयिह र क्रकय ज न च ठहए I
प्रश्न-3. लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या ककसे मानते है , और
तयों?
उतर:- िेखक िीमर ि अांबेडकर आज के उदयोगों में गरीबी और उत्पीड़न से िी बड़ी समस्य िोगों
क तनध रु रत क यु को म नते हैं ,क्योंक्रक अरुगच और वििशत िस मनुष्य क म को ट िने िगत
है, और कम क म करने के भिए प्रेररत हो ज त है। ऐसी जस्थतत में जह ां क म करने में न ठदि
िगे न ठदम ग, तो कोई कुशित कैसे प्र प्त कर सकत है ।
प्रश्न- 4. लेखक ने पाठ के ककन पहलुओं में जानत प्रिा को एक हाननकारक प्रिा के रूप में
हदखाया है ?
उतर:- िेखक ने प ि के विभिन्न पहिओ
ु ां में ज तत प्रथ को एक ह तनक रक प्रथ के रूप में
ठदख य है जो इस प्रक र है अस्ि ि विक श्रम विि जन, बढती बेरोजग री, अरुगच और वििशत में
श्रम क चन
ु ि ,गततशीि एिां आदशु सम ज,तथ ि स्तविक िोकतांत्र क स्िरूप, आठद ।
प्रश्न- 5. समत क औगचत्य कह ां तक है ?
उत्तर- समत क औगचत्य बहुत आगे तक ज त है जो ज तत, धमु, सांप्रद य से ऊपर उिकर म नित
अथ ुत म नि म त्र के प्रतत सम न वयिह र है। सम ज में सिी िगों के सिी िोगों के स थ सम नत
क वयिह र क्रकय ज न च ठहए I
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जये -

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प्रश्न-1. जानत प्रिा भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का कारि कैसे बनती रही है ?
उत्तर- ज तत प्रथ ि रतीय सम ज में बेरोजग री एिां िुखमरी क एक क रण हमेश बनती रही है।
इसके मुख्य क रण तनम्नभिखखत हैं-
1. मनुष्य के पेशे क पूिु तनध ुरण ।
2. प्रततकूि पररजस्थततयों में िी पेश बदिने की अनुमतत न दे न ।
3. अपने पि
ू ु तनध ुररत पेशे के प्रतत वयजक्त की अरुगच ।
4. ज तत प्रथ क्रकसी िी वयजक्त को ऐस पेश चुनने की अनुमतत नहीां दे ती है जो उसक पैतक

पेश न हो, ििे ही िह उसमें प रां गत हो।
प्रश्न-2. जानत प्रिा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारि कैसे बनी हुई है ?
उत्तर- ज तत प्रथ ि रत में बेरोजग री क एक प्रमुख और प्रत्यक्ष क रण है क्योंक्रक ि रतीय सम ज
में श्रम विि जन क आध र ज तत है च हे श्रभमक क यु कुशि हो य नहीां उस क यु में रुगच रखत
हो य नहीां इस प्रक र हम कह सकते हैं क्रक जब श्रभमकों क यु करने में न ठदि िगे न ठदम ग
तो कोई क यु कुशित पि
ू क
ु कैसे प्र प्त कर सकत है यही क रण है क्रक ि रत में जततप्रथ
बेरोजग री क प्रत्यक्ष और प्रमुख क रण बन हुआ है ।
प्रश्न-3. शारीररक िंश परं परा और सामाक्जक उत्तराचधकार की दृक्ष्ट से मनष्ु यों की असमानता
संभावित रहने के बािजूद 'समता' को एक व्यिहायय ससद्धांत मानने का आग्रह तयों है ?
उत्तर- डॉ. अांबेडकर यह ज नते हुए िी क्रक श रीररक िांश परां पर की दृजष्ट से मनुष्य की असम नत
क होन सांिि है , समत के वयिह यु भसध्द न्त को म नने क आग्रह करते हैं- इसके पीछे िेखक
क तकु यह है क्रक सम ज को यठद अपने सदस्यों से अगधकतम उपयोगगत प्र प्त करनी है तो
सम ज के सिी सदस्यों को आरम्ि से ही सम न अिसर एिां सम न वयिह र उपिब्ध कर ए ज एां।
र जनीततज्ञों को िी सब मनुष्यों के स थ सम न वयिह र करन च ठहए । प्रत्येक वयजक्त को अपनी
क्षमत क विक स करने के भिए अिसर दे ने च ठहए । उनक तकु है क्रक िांश में जन्म िेन य
स म जजक परां पर वयजक्त के िश में नहीां है । अतः इस आध र पर तनणुय िेन उगचत नहीां है।
प्रश्न- 4. लेखक के मत से 'दासता' की व्यापक पररभाषा तया है ?
उत्तर- िेखक के अनुस र द सत केिि क नूनी पर धीनत को ही नहीां कह ज सकत । द सत में
कुछ वयजक्तयों को दस
ू रे िोगों के दि र तनध ुररत वयिह र एिां कतुवयों क प िन करने के भिए
वििश होन पड़त है। इसमें कुछ िोगों को अपनी इर्चछ के विरुदध पेश अपन न पड़त है तथ
वयिस य-चयन की स्ितन्त्रत नहीां रहती है।
प्रश्न -5. राजनीनतज्ञ समान व्यिहार तयों नहीं करते ?

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उत्तर - सिी िोगों के सम न होते हुए िी सम ज में उनक िगीकरण और श्रेणीकरण करन
आिश्यक होत है । र जनीततज्ञ िोगों को ब ांटकर अगधक से अगधक वयजक्तयों को अपनी ओर
आकवषुत करने के भिए सम न वयिह र नहीां करते हैं।

(vi)ख-मेरी कल्पना का आदशय समाज

स र ांश-िेखक क आदशु सम ज स्ितांत्रत , समत ि भ्र तत्त


ृ पर आध ररत होग । सम ज में इतनी
गततशीित होनी च ठहए क्रक कोई िी पररितुन सम ज में तुरांत प्रस ररत हो ज ए। ऐसे सम ज में
सबक सब क यों में ि ग होन च ठहए तथ सबको सबकी रक्ष के प्रतत सजग रहन च ठहए। सबको
सांपकु के स धन ि अिसर भमिने च ठहए। यही िोकतांत्र है । िोकतांत्र मूित: स म जजक जीिनचय ु
की एक रीतत ि सम ज के सजम्मभित अनुििों के आद न-प्रद न क न म है। आि गमन, जीिन ि
श रीररक सुरक्ष की स्ि धीनत , सांपवत्त, जीविकोप जुन के भिए जरूरी औज र ि स मग्री रखने के
अगधक र की स्ितांत्रत पर क्रकसी को कोई आपवत्त नहीां होती, परां तु मनष्ु य के सक्षम ि प्रि िश िी
प्रयोग की स्ितांत्रत दे ने के भिए िोग तैय र नहीां हैं। इसके भिए वयिस य चुनने की स्ितांत्रत दे नी
होती है। इस स्ितांत्रत के अि ि में वयजक्त ‘द सत ’ में जकड़ रहे ग । ‘द सत ’ केिि क नन
ू ी नहीां
होती। यह िह ाँ िी है जह ाँ कुछ िोगों को दस
ू रों दि र तनध ुररत वयिह र ि कतुवयों क प िन
करने के भिए वििश होन पड़त है। फ्र ांसीसी क्र ांतत के न रे में ‘समत ’ शब्द सदै ि विि ठदत रह
है। समत के आिोचक कहते हैं क्रक सिी मनुष्य बर बर नहीां होते। यह सत्य होते हुए िी महत्ि
नहीां रखत क्योंक्रक समत असांिि होते हुए िी तनय मक भसदध ांत है । मनुष्य की क्षमत तीन ब तों
पर तनिुर है –श रीररक िांश परां पर , स म जजक उत्तर गधक र, मनष्ु य के अपने प्रयत्न।
इन तीनों दृजष्टयों से मनुष्य सम न नहीां होते, परां तु क्य इन तीनों क रणों से वयजक्त से असम न
वयिह र करन च ठहए। असम न प्रयत्न के क रण असम न वयिह र अनगु चत नहीां है , परां तु हर
वयजक्त को विक स करने के अिसर भमिने च ठहए। िेखक क म नन है क्रक उर्चच िगु के िोग
उत्तम वयिह र के मुक बिे में तनश्चय ही जीतें गे क्योंक्रक उत्तम वयिह र क तनणुय िी सांपन्नों को
ही करन होग । प्रय स मनुष्य के िश में है , परां तु िांश ि स म जजक प्रततष्ि उसके िश में नहीां
है। अत: िांश और स म जजकत के न म पर असम नत अनुगचत है । एक र जनेत को अनेक िोगों
से भमिन होत है। उसके प स हर वयजक्त के भिए अिग वयिह र करने क समय नहीां होत ।
ऐसे में िह वयिह यु भसदध ांत क प िन करत है क्रक सब मनुष्यों के स थ सम न वयिह र क्रकय

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ज ए। िह सबसे वयिह र इसभिए करत है क्योंक्रक िगीकरण ि श्रेणीकरण सांिि नहीां है। समत
एक क ल्पतनक िस्तु है , क्रफर िी र जनीततज्ञों के भिए यही एकम त्र उप य ि म गु है।

ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीक्जये -


प्रश्न-1 लेखक ने ककन विशेषताओं को आदशय समाज की धुरी माना है और तयों?
उत्तर:-िेखक उस सम ज को आदशु म नत है जजसमें स्ितांत्रत , सम नत ि ि ईच र हो। उसमें
इतनी गततशीित हो क्रक सिी िोग एक स थ सिी पररितुनों को ग्रहण कर सकें। ऐसे सम ज में
सिी के स मठू हक ठहत होने च ठहए तथ सबको सबकी रक्ष के प्रतत सजग रहन च ठहए।
प्रश्न-2 भ्रातत
ृ ा के स्िरूप को स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर:-‘भ्र तत
ृ ’ क अथु है -ि ईच र । िेखक ऐस ि ईच र च हत है जजसमें ब ध न हो। सिी
स मूठहक रूप से एक-दस
ू रे के ठहतों को समझे तथ एक-दस
ू रे की रक्ष करें ।
प्रश्न-3 लेखक के अनुसार जानत-प्रिा के समियक ककन अचधकारों को दे ने के सलए राजी हो सकते
हैं और ककन्हें नहीं?
उत्तर:-िेखक के अनुस र, ज तत-प्रथ के समथुक जीिन, श रीररक सुरक्ष ि सांपवत्त के अगधक र को
दे ने के भिए र जी हो सकते हैं, क्रकां तु मनष्ु य के सक्षम ि प्रि िश िी प्रयोग की स्ितांत्रत दे ने के
भिए तैय र नहीां हैं।
प्रश्न-4 लेखक ककस बात को ननष्पक्ष ननियय नहीं मानता?
उत्तर-िेखक कहत है क्रक उत्तम वयिह र प्रततयोगगत में उर्चच िगु ब जी म र ज त है क्योंक्रक उसे
भशक्ष , प ररि ररक ख्य तत, पैतक
ृ सांपद ि वय िस तयक प्रततष्ि क ि ि प्र प्त है । ऐसे में उर्चच
िगु को उत्तम वयिह र क हकद र म न ज न तनष्पक्ष तनणुय नहीां है।
ननम्नसलणखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीक्जये -
प्रश्न-1. लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक पररभाषा तया है ? समझाइए।
उत्तर –िेखक के अनुस र, द सत केिि क नूनी पर धीनत को ही नहीां कह ज सकत । ‘द सत ’
में िह जस्थतत िी सजम्मभित है । जजससे कुछ वयजक्तयों को दस
ू रे िोगों के दि र तनध ुररत वयिह र
एिां कतुवयों क प िन करने के भिए वििश होन पड़त है। यह जस्थतत क नूनी पर धीनत न होने
पर िी प ई ज सकती है।
प्रश्न-2. शारीररक िंश – परं परा और सामाक्जक उत्तराचधकार की दृक्ष्ट से मनुष्यों में असमानता
संभावित रहने के बािजूद ‘समता’ को एक व्यिहायय ससद्धांत मानने का आग्रह तयों करते हैं?
इसके पीिे उनके तया तकय हैं?

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उत्तर –श रीररक िांश-परां पर और स म जजक उत्तर गधक र की दृजष्ट से मनुष्यों में असम नत सांि वित
रहने के ब िजूद आांबेडकर ‘समत ’ को एक वयिह यु भसदध ांत म नने क आग्रह करते हैं क्योंक्रक
सम ज को अपने सिी सदस्यों से अगधकतम उपयोगगत तिी प्र प्त हो सकती है जब उन्हें आरां ि
से ही सम न अिसर एिां सम न वयिह र उपिब्ध कर ए ज एाँ। वयजक्त को अपनी क्षमत के विक स
के भिए सम न अिसर दे ने च ठहए। उनक तकु है क्रक उत्तम वयिह र के हक में उर्चच िगु ब जी
म र िे ज एग । अत: सिी वयजक्तयों के स थ सम न वयिह र करन च ठहए।
प्रश्न-3. सही में अबेडकर ने भािनात्मक समत्ि की मानिीय दक्ू ष्ट के तहत जानतिाद का उन्मूलन
ाहा है, क्जसकी प्रनतष्ठा के सलए भौनतक क्स्िनतयों और जीिन-सवु िधाओं का तकय हदया है । तया
इससे आप सहमत हैं?
उत्तर –आांबेडकर ने ि िन त्मक समत्ि की म निीय दृजष्ट के तहत ज तति द क उन्मूिन च ह ,
जजसकी प्रततष्ि के भिए िौततक जस्थततयों और जीिन सुविध ओां क तकु ठदय है । हम उनकी इस
ब त से सहमत हैं। आदमी की िौततक जस्थततय ाँ उसके स्तर को तनध ुररत करती है। जीिन जीने
की सवु िध एाँ मनष्ु य को सही म यनों में मनष्ु य भसदध करती हैं। वयजक्त क रहन-सहन और च ि-
चिन क फी हद तक उसकी ज तीय ि िन को खत्म कर दे त है।
प्रश्न-4. आदशय समाज के तीन तत्िों में से एक ‘भ्रातत
ृ ा’ को रखकर लेखक ने अपने आदशय समाज
में क्स्त्रयों को भी सक्म्मसलत ककया है अििा नहीं? आप इस ‘भ्रातत
ृ ा’ शब्द से कहााँ तक सहमत
हैं? यहद नहीं, तो आप तया शब्द उच त समझेंगे/ समझेगी?
उत्तर –आदशु सम ज के तीन तत्िों में से एक ‘भ्र तत
ृ ’ को रखकर िेखक ने अपने आदशु सम ज
में जस्त्रयों को िी सजम्मभित क्रकय है। िेखक सम ज की ब त कर रह है और सम ज स्त्री-पुरुष
दोनों से भमिकर बन है। उसने आदशु सम ज में हर आयुिगु को श भमि क्रकय है । ‘भ्र तत
ृ ’ शब्द
सांस्कृत क शब्द है जजसक अथु है -ि ईच र । यह सिुथ उपयुक्त है । सम ज में ि ईच रे के सह रे
ही सांबांध बनते हैं। कोई वयजक्त एक-दस
ू रे से अिग नहीां रह सकत । सम ज में ि ईच रे के क रण
ही कोई पररितुन सम ज के एक छोर से दस
ू रे छोर तक पहुाँचत है ।
प्रश्न-5. डॉ० अबेडकर ‘समता’ को कैसी िस्तु मानते हैं तिा तयों?
उत्तर –डॉ० आांबेडकर ‘समत ’ को कल्पन की िस्तु म नते हैं। उनक म नन है क्रक हर वयजक्त
सम न नहीां होत । िह जन्म से ही स म जजक स्तर के ठहस ब से तथ अपने प्रयत्नों के क रण
भिन्न और असम न होत है । पूणु समत एक क ल्पतनक जस्थतत है , परां तु हर वयजक्त को अपनी
क्षमत को विकभसत करने के भिए सम न अिसर भमिने च ठहए।

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