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3class X Study Material Hindi 2022-1 PDF
3class X Study Material Hindi 2022-1 PDF
चेन्नई सम्भाग
अध्ययन सामग्री
कक्षा X
व ं दी पाठ्यक्रम-ए 2022-23
संरक्षक
1
सदस्य और आिांमिि मिषय ां क मििरण/MEMBERS & DETAILS OF TOPICS ALLOTTED
MRS. ARUNDHATI CHENNAI AFS AVADI क्षिक्षिज पाठ-1,2,4,5,6 & 7 + कृक्षिका पाठ-1,3
MRS. MEENA RAJU CHENNAI ANNANAGAR क्षिक्षिज 9,10,11,12,14,16 & 17 + कृक्षिका 5
MR. A.P. ANTONY JOSEPH PONDICHERRY NO.1 (S-1 ) व्याकरण
2
INDEX
S CONTENT
NO PAGE NO.
1 पाठ 1:सूरदास (Class X) क्षिक्षिज 4
2 पाठ 2: िुलसीदास (Class X) 9
3 पाठ 4: जयशंकर प्रसाद (Class X) 37
4 पाठ 5: सूययकांि क्षिपाठी ‘क्षिराला’ (Class X) 46
5 पाठ 6: िागाजुयि (Class X) 55
6 पाठ 9: मंगलेश डबराल (Class X) 61
7 पाठ 10: स्वयं प्रकाश (Class X) 69
8 पाठ 11: रामवृि बेिीपुरी (Class X) 74
9 पाठ 12: यशपाल (Class X) 81
10 पाठ 14: मन्नू भंडारी (Class X) 92
11 पाठ 16: यिीन्द्र क्षमश्रा (Class X) 98
12 पाठ 17: भदं ि आिंद कौसल्यायि (Class X) 109
13 पाठ 1: मािा का अँचल (Class X) कृक्षिका 119
14 पाठ 3: सािा – सािा हाथ जोक्ष़ि (Class X) 136
15 पाठ 5: मैं क्ों क्षलखिा हँ? (Class X) 141
16 व्याकरण (वाच्य भेद) 146
17 व्याकरण (वाक् भेद) 150
18 व्याकरण (समास) 163
19 व्याकरण (पद पररचय भेद) 166
20 संिेप में क्षवक्षभन्न प्रकार के बधाई संदेश 172
21 संिेप में क्षवक्षभन्न प्रकार के क्षवज्ञापि 180
22 सारगक्षभयि अिुच्छेद लेखि 196
23 क्षवक्षभन्न प्रकार के क्षशकायि पि (ईमेल से) 230
24 क्षवक्षभन्न प्रकार के बायोडाटा (स्ववृि) 235
26 औपचाररक और अिौपचाररक पि लेखि 245
27 व्याकरण (अलंकार) 258
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कक्षा दसव ीं: क्षक्षक्षिज भाग-2: पद्य भाग
पाठ-1 – ‘पद’ – कवि सरू दास
कवि-पररचय – हिन्दी साहित्य के ‘स्िर्णिम युग’ भक्तिकाल की सगण
ु काव्यधारा के अंिगिि कृष्णाश्रयी
शाखा के प्रतितिधध भति कवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीिी िामक ग्राम में िुआ था, लेककि कुछ
विद्िािों का माििा िै कक सूरदास का जन्म मथुरा-आगरा मागि पर क्स्थि रुिकिा िामक ग्राम में िुआ
था।
इिकी भक्ति का एक पद सि
ु कर पक्ु ष्िमागि के संस्थापक मिाप्रभु बल्लभाचायि िे इन्िें अपिा
शशष्य बिा शलया। बल्लभाचायि के पत्र
ु बबट्ठलिाथ िे ‘अष्िछाप’ िाम से कृष्णभति कवियों के शलए समूि
िैयार ककया क्जसमे यि सबसे श्रेष्ठ कवि थे। इिकी मत्ृ यु 1583 ई. में पारसौली िामक ग्राम में िुई
थी।
रचिाएँ: सूरदास की प्रमख
ु रचिाएँ िैं-- “सरू सागर, सरू -सारािली, साहित्य लिरी”। इिमें ‘सूरसागर’ िी
सिािधधक प्रशसद्ध और लोकवप्रय िुआ। हिन्दी साहित्य में इन्िें ‘सूय’ि की उपाधध दी गयी िै । उिके इस
उपाधध पर एक दोिा प्रशसद्ध िै --
“सरू सूर िुलसी ससी, उडुगि केशिदास।
अब के कवि खद्योि सम, जिँ-ििँ करि प्रकाश॥“
किा जािा िै - श्रीमद्-भागिि के आधार पर ‘सूरसागर‘ में सिा लाख पद िैं। इसमें श्री कृष्ण की
बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, उद्धि-गोपी संिाद और गोपी-विरि का बड़ा सरस िणिि िै । सूरसागर के दो प्रसंग
“कृष्ण की बाल-लीला’ और” भ्रमर-गीि-सार’ अत्यधधक मित्त्िपूणि िैं।
काव्यगि विशेषिाएँ—
• सरू दास मल
ू ि: कृष्ण-भति कवि िैं, इसशलए उिकी भक्ति में किीं िात्सल्य की झलक शमलिी िै
िो किीं श्रंग
ृ ार की।
• उन्िोंिे कृष्ण के शशशु, बाल, ककशोर और िरुण रूप की अत्यंि मिोिर झाँककयाँ प्रस्िुि की िै ।
• श्रंग
ृ ार में भी उन्िोंिे संयोग और वियोग – दोिों पक्ष का बड़ा िी मिोिारी िणिि ककया िैं।
• उन्िें ‘िात्सल्य’ और ‘श्रंग
ृ ार’ रस का सििश्रेष्ठ कवि किा जािा िै ।
• कृष्ण और गोवपयों का प्रेम सिज माििीय प्रेम की प्रतिष्ठा करिा िै ।
भाषा-शैली--
• उिके काव्य में ब्रजभाषा के कारण अद्भुि शमठास, माधुयि और कोमलिा िै ।
• उिके पदों में अिप्र
ु ास, उपमा, उत्प्रेक्षा, उदािरण, दृष्िांि, रूपक, िक्रोक्ति आहद अलंकारों का संद
ु र
प्रयोग बि पड़ा िै ।
‘पद’
प्रतिपाद्य – यिाँ ‘सरू सागर’ के भ्रमरगीि से चार पद संकशलि िैं। इि पदों में श्रीकृष्ण के प्रति गिरे
अिुराग की अशभव्यक्ति िुई िै । श्रीकृष्ण गोकुल छोडकर मथुरा चले गए। मथुरा जािे के बाद श्रीकृष्ण िे
गोवपयाँ श्रीकृष्ण के वियोग में व्याकुल िो गईं। िब श्रीकृष्ण िे अपिे परम शमत्र उद्धि के माध्यम से
गोवपयों को अपिे शीघ्र लौि आिे संदेश दे कर भेजा। गोकुल पिुँचकर उद्धि िे गोवपयों को तिगण
ुि ब्रह्म
4
और योग का उपदे श दे कर उिकी विरि-िेदिा को शांि करिे का प्रयास ककया। पर गोवपयों को उिका
शुष्क और िीरस ज्ञाि रास ििीं आया और उन्िोंिे िीरस ज्ञाि मागि की बजाय प्रेम मागि को अपिािा
उधचि समझा। उसी समय एक भौंरा ििाँ उड़िा-उड़िा आ पिुँचा क्जसे लक्ष्य करके गोवपयों िे उद्धि और
उिके ज्ञाि पर िीक्ष्ण व्यंग्य बाण छोड़े। इसी जगि ‘भ्रमरगीि’ का आरं भ िोिा िै ।
सार--
पिले पद में , गोवपयों िे उद्धि पर व्यंग्य करिे िुए किा कक आप बड़े भाग्यशाली िैं जो श्रीकृष्ण
के साथ रिकर भी उिके प्रेमरूपी धागे से ििीं बंधे िैं, अन्यथा िमारी िी िरि आपको भी विरि िेदिा की
अिुभूति िोिी। जिाँ आप कृष्ण के प्रेम से बबलकुल अछूिे रिे , ििीं िम सभी उिके प्रेम में ऐसे शलपि
गईं जैसे गुड़ से चींिी शलपि जािी िैं।
दसू रे पद में , श्रीकृष्ण के प्रति गोवपयों के अिन्य प्रेम की गिराई व्यति िुई िै । गोवपयाँ स्िीकार
करिी िैं कक उिके मि की अशभलाषाएँ मि में िी रि गईं।
िीसरे पद में , िे उद्धि की योग साधिा को कड़िी ककड़ी की िरि बिाकर उसे स्िीकार करिे से
मिा कर दे िी िैं और अपिे एकतिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्िास प्रकि करिी िै ।
चौथे पद में , गोवपयाँ उद्धि को िािा मारिी िैं और बिािी िैं कक श्रीकृष्ण िे अब राजिीति पढ़
ली िै । िे कििी िैं कक राजा का धमि यिी िै कक प्रजा को सिाया ििीं जािा चाहिए।
विशेष:
• श्रीकृष्ण के प्रति गोवपयों के प्रति एकतिष्ठ प्रेम की अशभव्यक्ति िुई िै ।
• गोवपयाँ ज्ञाि और योग के बजाए प्रेम मागि को अपिािा चाििी िैं।
• ‘प्रीति-िदी’ में रूपक िथा ‘गुर चाँिी ज्यों पागी’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग िुआ िै ।
• पिले पद में ‘िक्रोक्ति’ अलंकार का प्रयोग िै ।
• सभी पदों में संगीि ित्ि विद्यमाि िोिे के कारण ये गेय िैं।
• कवििा में बबंबों का सिज और स्िाभाविक प्रयोग िुआ िै ।
• गोवपयों और श्रीकृष्ण के प्रेम के विरि के कारण वियोग श्रंग
ृ ार रस िै ।
बिुविकल्पी प्रश्ि – पद एक
प्रश्ि- i गोवपयों िे उद्धि को भाग्यशाली तयों किा िै?
(क) उद्धि श्रीकृष्ण के प्रेम में डूब गए िैं
(ख) उद्धि श्रीकृष्ण के साथ रिकर भी उिके प्रेम में ििीं डूबे
(ग) श्रीकृष्ण उद्धि के प्रेम में डूब गए िैं
(घ) गोवपयाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में डूब गई िैं
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(क) िे पररणाम जािे बबिा कृष्ण के प्रेम में मग्ि िो गईं (ख) िे कृष्ण के छल को ििीं समझ पाईं
(ग) िे श्रीकृष्ण की बािों में आ गईं (घ) िे उद्धि की बािों में आ गईं
बिुविकल्पी प्रश्ि – पद दो
प्रश्ि- i 'मि की मि िी माँझ रिी' का अथि िै?
(क) मि की दृढ़िा (ख) मि की बाि मि में िी रििा
(ग) मि का भेद (घ) मि का पाप
प्रश्ि- iii गोवपयाँ सोिे जागिे राि-हदि ककसका ध्याि करिी िैं?
(क) श्रीकृष्ण का (ख) उद्धि का (ग) कंस का (घ) बलराम का
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प्रश्ि-iv गोवपयाँ 'कड़िी ककड़ी' ककसे कििी िैं?
(क) ककड़ी को (ख) श्रीकृष्ण को (ग) यशोदा को (घ) उद्धि द्िारा हदए गए योग संदेश को
िणििात्मक प्रश्िोत्तर
प्रश्ि 1 - सूरदास के पद के अिुसार गोवपयों के जीिे का आधार तया था?
उत्तर -गोवपयों का कृष्ण के प्रति अिन्य प्रेम था । उिके विरि से गोवपयां अत्यंि व्याकुल
थीं।कृष्ण के िंद
ृ ािि आिे की आशा िी उिके जीिे का आधार था।
प्रश्ि-3 गोवपयों िे अपिे शलए कृष्ण को िाररल की लकड़ी कििे के समाि तयों बिाया िै ?
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उत्तर-: गोवपयों िे अपिे शलए कृष्ण को िाररल की लकड़ी के सामाि इसशलए बिाया िै तयोंकक
क्जस प्रकार िारील पक्षी अपिे पंजे में दबी लकड़ी को आधार मािकर उड़िा िै उसी प्रकार
गोवपयों िे अपिे जीिि का आधार कृष्ण को माि रखा िै ।
प्रश्ि- 4 ऐसी कौि सी बाि थी क्जसे गोवपयों को अपिे मि में दबाए रखिे के शलए वििश िोिा
पड़ा ?
उत्तर-: गोवपयां चाििी थी कक श्री कृष्ण के दशिि करें और अपिे प्रेम की अशभव्यक्ति उिसे करें ।
िि इि बािों को उद्धि से ििीं कर सकिी थी । यिी बाि उिके मि में दबी रि गई ।
प्रश्ि- 6 गोवपयों िे स्ियं को अबला और भोली किा िै। आपकी दृक्ष्ि से उिका ऐसा कििा
ककििा उपयुति िै ?
उत्तर-: गोवपयों िे स्ियं को अबला और भोली किा िै पर मेरी दृक्ष्ि में ऐसा ििीं िै। गोवपयां
कृष्ण से दरू रिकर भी उिके तयार में अिुरति िैं। िे स्ियं को कृष्ण के प्रेम बंधि में बंधी
पािी िैं, क्जसे कृष्ण से इस िरि का प्रेम शमल रिा िो िि अबला और भली ििीं िो सकिी िैं ।
प्रश्ि 7 'प्रीति िदी में पाँि ि बोरयो' का आशय स्पष्ि कीक्जए। ऐसा ककसके शलए किा गया िै ?
उत्तर-: ‘प्रीति िदी में पाँि ि बोरयों' का आशय िै कक प्रेम रूपी िदी में पैर ि डूबािा अथािि
ककसी से प्रेम िा करिा और प्रेम का मित्ि िा समझिा ऐसा उद्धि के शलए किा गया िै जो
कृष्ण के पास रिकर भी उिके प्रेम से अछूिे बिे रिें ।
प्रश्ि- 9 गोवपयों को मदद शमलिे की आशा किां लगी थी? उिकी यि आशा तिराशा में कैसे
बदल गई ?
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उत्तर- गोवपयां जो विरि व्यथा जी लेिे को वििश थी, को श्री कृष्ण की ओर से दशिि और प्रेम
संदेश के रूप में मदद शमलिे की आशा लगी थी पर जब कृष्ण िे िी उद्धि के िाथों योग
संदेश शभजिाया िो उिकी यि आशा तिराशा में बदल गई।
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कवि पररचय–
गोस्िामी िुलसीदास हिन्दी साहित्य के मिाि सन्ि कवि थे। इिका जन्म 1532 ई० में उत्तर प्रदे श
में िुआ मािा जािा िै । रामचररिमािस, वििय पबत्रका, दोिािली, कवििािली, िैराग्य संदीपिी,
जािकी मंगल, पािििी मंगल, इत्याहद इिकी रचिाएं िैं। िुलसीदास जी िे अिधी िथा ब्रज दोिों
भाषाओं में अपिी काव्यगि रचिाएँ शलखीं। दोिा, चौपाई, कवित्त, सिैया, पद आहद काव्य शैशलयों
में कवि िे काव्य रचिा की िै । सभी अलंकारों का प्रयोग करके िुलसीदास जी िे अपिी रचिाओं
को अत्यन्ि प्रभािशाली बिा हदया िै। 1623 ई० में काशी, उत्तर प्रदे श में इिका तिधि िो गया।
रामभक्ति परम्परा में िल
ु सीदास का स्थाि प्रमख
ु िैं।
राम-लक्ष्मण–परशरु ाम–संिाद –
यि भाग रामचररिमािस के बाल कांड से शलया गया िै। रामचररिमािस अिधी भाषा में िै िथा
दोिा, चौपाई छं दों का प्रयोग ककया गया िै । सीिा स्ियंिर में राम द्िारा शशि धिुष िूि जािा िै।
जब परशुराम को धिुष के िूििे की ध्िति सुिाई दे िी िै िब िे क्रोधधि िोकर सभा में आ जािे
िैं। क्रोध में िी िे धिष
ु को िोड़िे िाले से सभा से बािर आिे को कििे िैं। लेककि परशरु ाम का
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यि िरीका लक्ष्मण को पसंद ििीं आिा िै । कफर परशुराम और लक्ष्मण के बीच जो संिाद िोिा
िैं उसी का यिाँ पर उल्लेख ककया जा रिा िै।
पद संख्या-1
पिले पद में राम परशुराम से कििे िैं कक शशि धिुष को िोड़िे िाला आपका िी कोई एक दास
िोगा। मेरे शलए तया आदे श िै ? आप मुझे बिाइए। राम की ये बाि सुिकर परशुराम क्रोध में
बोलिे िैं- सेिक िो िो िोिा िै जो सेिा का काम करिा िै । उसिे िो धिुष को िोड़कर शत्रुिा का
कायि ककया िै। िे राम सुिो! क्जसिे भी शशि धिुष िोडा िै िि मेरे शलए सिस्रबािु के समाि शत्रु
िै। क्जसिे भी इस धिुष को िोडा िै , यि सभा से बािर आ जाए अन्यथा सभी राजा मारे जाएँगे।
मुति के क्रोध पूणि िचि सुिकर लक्ष्मण मुस्कािे िैं और परशुराम का अपमाि करिे िुए कििे िैं
कक मैंिे बचपि में अिेकों धिुहियाँ िोड़ डाली। िब आपिे क्रोध ििीं ककया। आपका इििा लगाि
इसी धिुष पर तयों िै? लक्ष्मण के िचि सुिकर परशुराम क्रोधधि िोकर कििे िैं- िे राजपुत्र! िू
संभलकर ििीं बोल रिा िै। परू ा संसार में प्रशसद्ध यि शशि धिष
ु तया धिि
ु ी के समाि लगिा
िै।
पद संख्या-2
10
बोले धचिइ परसु की ओरा। रे सठ सुिेहि सुभाउ ि मोरा॥
बालकु बोशल बधउँ िहिं िोिी। केिल मतु ि जड़ जािहि मोिी॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोिी। बबस्ि बबहदि छबत्रयकुल द्रोिी॥
भज
ु बल भशू म भप
ू बबिु कीन्िी। बबपल
ु बार महिदे िन्ि दीन्िी॥
सिसबािु भजु छे दतििारा। परसु बबलोकु मिीपकुमारा॥
मािु वपिहि जति सोचबस करशस मिीसककसोर।
गभिन्ि के अभिक दलि परसु मोर अति घोर॥
दस
ू रे पद में लक्ष्मण िँसकर कििे िैं-िमारी िजर में सभी धिुष एक जैसे िैं। इस पुरािे धिुष के
िूििे से ि ककसी की िाति िुई और ि िी ककसी का लाभ िुआ। भैया राम िे धिष
ु को दे खा और
छुआ, इििे में िी यि िूि गया, इसमें उिका कोई दोष ििीं िै । आप िो व्यथि में िाराज रिे िो
इििा सुििे िी परशुराम अपिे फरसे को दे खकर लक्ष्मण पर क्रोधधि िोिे िैं और कििे िैं। िे
मूख!ि लगिा िै िूिे मेरे बारे में ििीं सुिा िै? मैं बालक समझकर िेरा िध ििीं कर रिा िूँ। िू
मुझे सामान्य मुति समझ रिा िै । मैं बचपि से बाल ब्रह्मचारी, बिुि क्रोधी और क्षबत्रय कुल का
शत्रु िूँ। अपिी भज
ु ाओं के बल पर मैंिे कई बार इस भशू म को राजाओं से वििीि कर हदया। मैंिे
कई बार पथ्
ृ िी को जीिकर ब्राह्मणों को दाि की िै। राजकुमार इस फरसे को दे ख लो, इससे मैंिे
सिस्रबािु के शरीर को काि डाला था। िू अपिे मािा-वपिा को धचंिा में ि डाल। मेरा फरसा इििा
भयंकर िै कक इसके प्रभाि मात्र से िी गभि में पलिा शशशु भी िष्ि िो जािा िै।
पद संख्या-3
11
िीसरे पद में लक्ष्मण िँसकर मीठ िाणी में कििे िैं िै मुति आप िो बिुि बड़े योद्धा तिकले।
आप बार-बार मुझे फरसा हदखाकर डरा रिे िैं जैसे आप एक फँू क में पिाड़ उड़ािा चाििे िो। यिाँ
पर भी कोई कुम्िड़ बतिया ( कुम्िड़े के फूल जैसा अथािि ् बिुि कमजोर) ििीं िै जो िजििी उँ गली
दे खकर मर जाएगा। मैंिे आपका फरसा, धिुष-बाण दे खकर अशभमाि में कुछ कि हदया। आपको
ब्राह्मण समझकर मैंिे क्रोध को सिि कर शलया। िमारे कुल की परम्परा िे दे ििा, ब्राह्मण, भति
और गाय पर िीरिा ििीं हदखािे। आप िो ब्राह्मण िैं और मैं आपका िध करूँ, िो मुझे पाप
लगेगा। आप अगर मेरा िध भी कर दे िे िैं, िो मुझे आपके चरणों में झुकिा पड़ेगा। यिी िमारे
कुल की मयािदा िै । कफर आगे लक्ष्मण कििे िैं कक आपके िचि िी ककसी िज्र की भाँति कठोर
िैं, िो कफर आप को इस कुल्िाड़े और धिुष की तया जरूरि िै ।
प्रस्िुि पंक्तियों में यि सुिकर ऋवष विश्िाशमत्र जी िे परशुराम जी से किा कक िे मुतििर! यहद
इस बालक िे आपका अपमाि ककया िै , आपको कुछ अिाप-शिाप बोला िै , िो कृपया इसे क्षमा
कर दें । विश्िाशमत्र की बाि सि
ु कर परशरु ाम गंभीर स्िर में कििे िैं,
पद संख्या-4
कौशसक सुििु मंद येिु बालकु। कुहिलु कालबस तिज कुल घालकु॥
भािुबंस राकेस कलंकू। तिपि तिरं कुसु अबध
ु ु असंकू॥
कालकिलु िोइहि छि मािीं। किौं पुकारर खोरर मोहि िािीं॥
िुम्ि ििकिु जौ चििु उबारा। कहि प्रिापु बलु रोषु िमारा॥
लखि किे उ मतु ि सुजसु िुम्िारा। िुम्िहि अछि को बरिै पारा॥
अपिे मिु ु िम्
ु ि आपति करिी। बार अिेक भाँति बिु बरिी॥
िहि संिोषु ि पतु ि कछु कििू। जति ररस रोकक दस
ु ि दख
ु सििू॥
बीरब्रिी िम्
ु ि धीर अछोभा। गारी दे ि ि पाििु सोभा॥
सरू समर करिी करहिं कहि ि जिािहिं आप।ु
विद्यमाि रि पाइ ररपु कायर कथहिं प्रिाप॥
ु
चौथे पद में परशुराम कििे िैं- िै विश्िाशमत्र! यि बालक तिडर, मूखि और अपिे कुल को िाति
पिुंचािे िाला िै। सय
ू ि
ि ंशी िोकर भी यि चंद्रमा के कलंक जैसा िै। यि बबल्कुल तिरं कुश, अबोध
िै। मैं इसे अभी क्षण भर में मार डालँ ग
ू ा कफर कोई दोष ि दे िा। अगर आप इसे बचािा चाििे िो
िो इसे मेरी प्रशसद्धध, बल और क्रोध बिाकर बचा लो। लक्ष्मण जी कििे िै, आपसे अच्छा आपका
12
सुयश (प्रशसद्धध के बारे में) और कौि बिा सकिा िै ? अपिे मुंि से आपिे कई बार अिेक प्रकार
से अपिे बारे में बिाया िै। यहद अब भी संिुष्ि ििीं िुए िो और कुछ कहिए। अपिे क्रोध को
सिि करके दख
ु मि सहिए। आप िीर और धैयि
ि ाि िैं। आपके द्िारा गाली दे िा शोभा ििीं दे िा
िै। शूरिीर शत्रु को सामिे दे खकर अपिी प्रसंशा ििीं करिा बक्ल्क युद्ध करिा िै । युद्ध भूशम में
शत्रु को उपक्स्थि पाकर कायर िी अपिे बारे में बड़ी-बड़ी बािें करिे िैं।
पद संख्या-5
िुम्ि िौ कालु िाँक जिु लािा। बार बार मोहि लाधग बोलािा॥
सुिि लखि के बचि कठोरा। परसु सुधारर धरे उ कर घोरा॥
अब जति दे इ दोसु मोहि लोगू। किुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बबलोकक बिुि मैं बाँचा। अब येिु मरतििार भा साँचा॥
कौशसक किा छशमअ अपराधू। बाल दोष गुि गिहिं ि साध॥ ू
खर कुठार मैं अकरुि कोिी। आगे अपराधी गुरुद्रोिी॥
उिर दे ि छोड़ौं बबिु मारे । केिल कौशसक सील िुम्िारे ॥
ि ि येहि काहि कुठार कठोरे । गुरहि उररि िोिेउँ श्रम थोरे ॥
गाधधसूिु कि हृदय िशस मुतिहि िररयरे सूझ।
अयमय खाँड़ ि ऊखमय अजिुँ ि बूझ अबूझ॥
पाँचिे पद में लक्ष्मण जी परशुराम से कििे िैं आप िो मत्ृ यु को मेरे शलए जबरदस्िी बुला रिे िो।
इििा सुििे िी मुति फरसा को सँभालिे िुए कििे िैं मुझे कोई दोष ि दे िा, अब यि बालक कड़िे
िचिों के कारण िध के योग्य िो गया िै। अभी िक बच्चा समझकर मैं इसे बचािा रिा िूँ लेककि
अब सच में यि मरिे योग्य िो गया िै। िब विश्िाशमत्र कििे िैं, िे ! मुति साधु लोग बच्चों की
गलतियों को माफ़ कर दे िे िैं। कफर परशरु ाम बोलिे िैं, मैं बिुि िी क्रोधी िूँ, मेरा फरसा भी बिुि
िी िेज िै। यि बालक मेरे गुरु के सामिे जिाब दे रिा िै, आपके स्िाभाि के कारण मैं इसे छोड़
रिा िूँ। ििीं िो थोड़े से श्रम में इसे फरसे से मारकर गुरु ऋण से मुति िो जाऊँगा । विश्िाशमत्र
मि िी मि िँसकर कि रिे िैं कक मुति को सब कुछ िरा िी िरा हदखाई दे रिा िै। अथािि ् िे
शसफि स्ियं को िी विजेिा माि रिे िैं। क्जसे िे गन्िे की खांड समझ रिे िैं िे लोिे की िलिार
िैं। अथािि ् राम–लक्ष्मण साधारण ििीं िैं।
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पद संख्या-6
छठिें पद में लक्ष्मण परशुराम से कििे िैं िे मुति आपके स्िाभाि से कौि पररधचि ििीं िै । आप
अपिे मािा-वपिा के ऋण से मुति िो चुके िो। लेककि गुरु का ऋण अभी शेष िै । यि ऋण लगिा
िै आप मुझसे िी चुकािा चाििे िो? ब्याज भी बिुि िो गया िोगा। आप ऐसा कररए ककसी हिसाब-
ककिाब करिे िाले को बुला लो, मैं िरु ं ि िी थैली खोल दँ ग
ू ा। लक्ष्मण के कड़िे िचि सि
ु िे िी
परशुराम अपिा फरसा संभाल लेिे िैं। िो परू ी सभा िाय! िाय! बोल उठिी िै। लक्ष्मण कििे िैं,
िे ! मुति आप बार-बार मुझे फरसा हदखा रिे िो और मैं आपको ब्रािमण समझकर बचा रिा िूँ। िे
ब्राह्मण दे ििा! लगिा िै आपका कभी ककसी िीर योद्धा से सामिा ििीं िुआ िै । आप अपिे घर
के िी योद्धा िैं। परू ी सभा कि उठिी िै – यि अिुधचि िै। राम लक्ष्मण को आँखों से इशारा करके
मिा करिे िैं। लक्ष्मण के िचि परशरु ाम के क्रोध रूपी आग में घी का काम कर रिे थे। लक्ष्मण
और परशुराम के बीच बाि बढ़िी दे खकर राम अंि में जल के सामाि शीिल िचि बोलिे िैं।
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सुति मुति बचि लखि मुसुकािे। बोले परसुधरहि अपमािे॥
बिु धिुिीं िोरीं लररकाईं। कबिुँ ि अशस ररस कीक्न्ि गोसाईं॥
एहि धिु पर ममिा केहि िे िू। सुति ररसाइ कि भग
ृ ुकुलकेिू॥
रे िप
ृ बालक काल बस बोलि िोहि ि सँभार।
धिि
ु ी सम बत्रपरु ारर धिु बबहदि सकल संसार॥
प्रश्ि 1. राम िे परशरु ाम से तया किा ?
(i). धिष
ु िोड़िे िाला आपका कोई दास िोगा (ii). धिष
ु िोड़िे िाला आपका कोई शत्रु िोगा
(iii). धिुष िोड़िे िाला आपका कोई शमत्र िोगा (iv). धिुष िोड़िे िाला आपका कोई भाई िोगा
(i). शांि (ii). क्रोध (iii). चापलूस (iv). इिमें से कोई ििीं
(iii). अजुि
ि का धिुष िूििे के कारण (iv). शशि धिुष िूििे के कारण
(i). सेिक सेिा करिे का कायि करिा िै (ii). सेिक िे शत्रु जैसा कायि ककया िै
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(iii). सेिक िे लड़ाई करिे का कायि ककया िै (iv). सभी उत्तर सिी िैं
(i). धिुष िोड़िे िाला सभा से बािर आए (ii). धिुष िोड़िे िाला घर जाए
(iii). धिष
ु िोड़िे िाला क्षमा माँग ले (iv). धिष
ु िोड़िे िाला कोई बच्चा िै
(iii). परशुराम के िचि सुि लक्ष्मण िँसे (iv). इसी धिुष पर इििी ममिा तयों
प्रश्ि-10. राम लक्ष्मण परशुराम संिाद िुलसीदास िे ककस भाषा में शलखा िै ?
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उत्तर- (iv) अिधी भाषा
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उत्तर- (iv) मैं शांि स्िभाि का िूँ
प्रश्ि-5. सिस्रबािु की भुजाओं को ककसिे काि डाला था ?
(i). लक्ष्मण िे (ii). कृष्ण िे (iii). परशुराम िे (iv). रािण िे
उत्तर- (iii) परशुराम िे
प्रश्ि-6. ‘भज
ु बल भशू म भप
ू बबिु ककन्िी’ ककसका कथि िै?
(i). जिक (ii). भरि (iii). परशुराम (iv). लक्ष्मण
उत्तर- (III) परशुराम
प्रश्ि-7. कौि बबिा कारण के क्रोध कर रिा िै?
(i). रािण (ii). परशुराम (iii). लक्ष्मण (iv). शशि
उत्तर- (ii) परशरु ाम
प्रश्ि-8. ककसके प्रभाि से गभि में पलिा शशशु िष्ि िो जािा िै ?
(i). लक्ष्मण के िीर से (ii). रािण की गजििा से
(iii). भरि की िलिार से (iv). परशुराम के फरसा से
उत्तर- (iv) परशुराम के फरसा से
प्रश्ि-9. परशरु ाम ककस जगि विख्याि धिष
ु की बाि करिे िैं ?
(i). ब्रह्म धिुष की (ii). शशि धिुष की (iii). विष्णु धिुष की (iv). अजि
ुि धिुष की
उत्तर- (II) शशि धिुष की
प्रश्ि-10. धरिी के सारे राजाओं का िध करके पथ्
ृ िी को जीिकर ककसिे ब्राह्मणों
में दाि कर हदया
(i). कणि िे (ii). राम िे (iii). परशरु ाम िे (iv). यधु धष्ठर िे
उत्तर- (iii) परशुराम िे
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भग
ृ ुसुि समुर्झ जिेउ बबलोकी। जो कछु कििु सिौं ररस रोकी॥
सुति सरोष भग
ृ ुबंसमति बोले धगरा गंभीर।।
प्रश्ि-2. दे ििा, ब्राह्मण, भति और गाय पर िीरिा हदखािा ककसके कुल की परं परा ििीं िै ?
(i). िैश्य समझकर (ii). शूद्र समझकर (iii). क्षबत्रय समझकर (iv). ब्राह्मण समझकर
प्रश्ि-4. ‘अिो मि
ु ीसु मिाभि मािी’ यि ककसके शलए और ककसिे किा िै?
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प्रश्ि-5. कौि सा कथि लक्ष्मण का ििीं िै ?
(iii). रे सठ सुिेहि सुभाउ ि मोरा (iv). पुति पुति मोहि दे खाि कुठारू
उत्तर- (iii) रे सठ सि
ु ेहि सुभाउ ि मोरा
प्रश्ि-6. लक्ष्मण िे कोमल िाणी में परशरु ाम पर तया किकर व्यंग्य ककया ?
(iii). आप िो बिुि बड़े दािी तिकले (iv). आप िो बड़े शांति स्िभाि के तिकले
(i). तिबिल व्यक्ति का (ii). कठोर व्यक्ति का (iii). िीर व्यक्ति का (iv). दािी व्यक्ति का
प्रश्ि-9. ‘व्यथि धरिु धिु बाि कुठारा’ ककसके शलए किा गया िै ?
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उत्तर- (ii) परशुराम के
4. कौशसक सुििु मंद येिु बालकु। कुहिलु कालबस तिज कुल घालकु॥
भािुबंस राकेस कलंकू। तिपि तिरं कुसु अबुधु असंकू॥
कालकिलु िोइहि छि मािीं। किौं पुकारर खोरर मोहि िािीं॥
िुम्ि ििकिु जौ चािु उबारा। कहि प्रिापु बलु रोषु िमारा॥
लखि मतु ि सज
ु सु िम्
ु िारा। िम्
ु िहि अछि को बरिै पारा॥
अपिे मु किे उ िु िुम्ि आपति करिी। बार अिेक भाँति बिु बरिी॥
िहि संिोषु ि पुति कछु कििू। जति ररस रोकक दस
ु ि दख
ु सििू॥
बीरब्रिी िुम्ि धीर अछोभा। गारी दे ि ि पाििु सोभा॥
सूर समर करिी करहिं कहि ि जिािहिं आपु।
विद्यमाि रि पाइ ररपु कायर कथहिं प्रिाप॥
ु
प्रश्ि 1. राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद िुलसीदास कवििा किाँ से ली गई िै ?
(i). िि िीरिा का प्रदशिि करिा िै (ii). िि शत्रु के सामिे अपिी डींगे िाँकिा
(iii). िि शत्रु को धोखे से मार दे िा िै (iv). िि युद्ध के मैदाि में बािें ििीं बिािा
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प्रश्ि 4. ‘कौशसक’ ककसके शलए संबोधधि ककया गया िै ?
(i). जिक के शलए (ii). दशरथ के शलए (iii). विश्िाशमत्र के शलए (iv). परशुराम के शलए
(iii). उन्िें सभा में चुिौिी दे िे के कारण (iv). सभी उत्तर सिी िैं
(i). लक्ष्मण मख
ू ि िै (ii). लक्ष्मण बिुि िी सरल स्िभाि का िै
(iii). लक्ष्मण अपिे कुल का कलंक िै (iv). लक्ष्मण अज्ञािी, तिरं कुश और उद्दं ड िै
प्रश्ि 9. ‘ररपु’ का अथि िै : (i). शमत्र (ii). शत्रु (iii). पड़ोसी (iv). संबध
ं ी
22
प्रश्ि-10. यहद िुम इसे बचािा चाििे िो, िो िमारा प्रिाप, बल और क्रोध बिाकर मरिे से रोक
लो? ककसिे ककससे किा
पद संख्या-5
िुम्ि िौ कालु िाँक जिु लािा। बार बार मोहि लाधग बोलािा॥
सुिि लखि के बचि कठोरा। परसु सुधारर धरे उ कर घोरा॥
अब जति दे इ दोसु मोहि लोगू। किुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बबलोकक बिुि मैं बाँचा। अब येिु मरतििार भा साँचा॥
कौशसक किा छशमअ अपराधू। बाल दोष गुि गिहिं ि साधू॥
खर कुठार मैं अकरुि कोिी। आगे अपराधी गुरुद्रोिी॥
उिर दे ि छोड़ौं बबिु मारे । केिल कौशसक सील िुम्िारे ॥
ि ि येहि काहि कुठार कठोरे । गुरहि उररि िोिेउँ श्रम थोरे ॥
गाधधसि
ू ु कि हृदय िशस मतु िहि िररयरे सझ
ू ।
अयमय खाँड़ ि ऊखमय अजिुँ ि बूझ अबूझ।
(i). उत्तर कांड (ii). लंका कांड (iii). बाल कांड (iv). सुंदर कांड
(i). बाल बबलोकक बिुि मैं बाँचा (ii). गुरहि उररि िोिेउँ श्रम थोरे
(iii). िुम्ि िो कालु िाँक जिु लािा (iv). बाल दोष गुि गिहिं ि साधू
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प्रश्ि-3. परशुराम को सब िरा िी िरा सूझ रिा िै ऐसा मि में िँसकर कौि कि रिा िै ?
प्रश्ि- 4. मैं इसे बालक समझकर बिुि बार बचािा रिा िूँ- यि कथि ककसका िै ?
पद संख्या-6
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प्रश्ि-2. लक्ष्मण के अिुसार परशुराम अपिे मािा-वपिा के ऋण से कैसे
प्रश्ि-4. ‘भग
ृ ु के िंशज’ से ककसका संबंध िै ?
प्रश्ि-5. िल
ु सीदास का जन्म और दे िािसाि (मत्ृ य)ु कब िुआ था?
(i). जन्म सि ् 1532, मत्ृ यु सि ् 1623 (ii). जन्म सि ् 1333, मत्ृ यु सि ् 1443
(iii). जन्म सि ् 1732, मत्ृ यु सि ् 1823 (iv). जन्म सि ् 1430, मत्ृ यु सि ् 1518
(i) िाथ से इशारा ककया (ii) जोर दे कर (iii) आँखों के संकेि से (iv) बोलकर
प्रश्ि-7. परशुराम और लक्ष्मण को शांि करिे के शलए राम िे कैसे िचि बोले?
25
(i). बफि के समाि (ii). आग के समाि भड़काऊ
उत्तरः िल
ु सीदास
उत्तर- अिधी
उत्तर- रामचररिमािस से
4. शशि धिष
ु कैसे िूि गया?
(क) जोर लगािे से (ख) केिल छूिे मात्र से (ग) धगरिे से (घ)उपरोति में से कोई ििीं
उत्तर- परशुराम
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6. राम और लक्ष्मण सीिा स्ियंिर में ककस मुति के साथ गए?
(क) िशशष्ठ मुति (ख) िारद मुति (ग) विश्िाशमत्र (घ) परशुराम
उत्तर- विश्िाशमत्र
उत्तर- परशुराम
उत्तर- अिुप्रास
उत्तर- विश्िाशमत्र को
उत्तर- राम
उत्तर- चीपाई
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(i). अरण्यकांड (ii). लंका कांड (iii). बाल कांड (iv). घ. उत्तर कांड
उत्तर. परशरु ाम जी
14.. परशुराम जी के क्रोध भरे िातयों का उत्तर व्यंग्य िचिों से ककसिे हदया?
उत्तर- सिस्त्रबािु
उत्तर- घ उपमा
उत्तर- विश्िाशमत्र जी
18. परशुराम जी ककस शस्त्र को धारण करिे थे क्जसके कारण उिका िाम परशुराम पड़ा
उत्तर- परशु
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19.परशुराम िे ककसके प्रेम के कारण लक्ष्मण का िध ििीं ककया
(क) घर में (ख) युद्ध में (ग) बािों में (घ) इिमें से कोई िििी
लघत्त
ु रात्मक प्रश्ि
प्रश्ि 1. परशरु ाम िे अपिी ककि विशेषिाओं के उल्लेख के द्िारा लक्ष्मण को डरािे का प्रयास
ककया?
उत्तर – परशुराम िे लक्ष्मण को डरािे िुए सभा में बिाया कक मैं बाल ब्रह्मचारी िूँ और अत्यंि
क्रोधी स्िभाि का िूँ। मैं क्षबत्रयों के कुल का संिारक िूँ। यि बाि इस विश्ि में सभी जाििे थे कक
29
मैंिे अिेक बार सम्पूणि पथ्
ृ िी को राजाओं से वििीि कर हदया िै िथा पथ्
ृ िी ब्राह्मणों को दाि में
दे दी िै। मेरा फरसा बिुि भयािक िै। इसी से मैंिे सिस्रबािु की भुजाओं को कािकर शरीर से
अलग कर हदया था। इस फरसे की भयंकरिा को दे खकर गभिििी क्स्त्रयों के बच्चे गभि में िी मर
जािे िैं।
उत्तर – लक्ष्मण िे धिुष िूििे के कई कारण बिािे िुए राम को तिदोष बिाया। (1) धिुष अत्यंि
जीणि था जो राम के िाथ लगािे िी िूि गया। (2) िमारे शलए िो सभी धिुष एक समाि िैं इस
धिुष के िूििे से िमारा तया लाभ या िाति िोगी। (3) राम िे िो इसे िया समझकर छुआ िी
था, छूिे भर से िी ये िूि गया।
प्रश्ि 3. धिुष को िोड़िे िाला कोई िुम्िारा दास िोगा के आधार पर राम के स्िभाि पर हितपणी
कीक्जए।
उत्तर – धिुष को िोड़िे िाला कोई िुम्िारा दास िोगा’ के आधार पर राम की स्िभािगि विशेषिाएँ
तिम्िशलर्खि िैं। राम अत्यन्ि िी वििम्र स्िभाि के व्यक्ति िैं, िे तिडर, सािसी, धैयि
ि ाि िथा
मद
ृ भ
ु ाषी थे, िे बड़ों की आज्ञा का पालि करिे िाले थे। उन्िें लक्ष्मण की भाँति क्रोध ििीं आया
करिा था।
उत्तर –लक्ष्मण िे उति कथि किा-िमिे बचपि में ऐसी अिेक धिुहियाँ िोड़ी थी, िब आपिे कभी
गुस्सा ििीं ककया। इस धिुष के िूि जािे पर इििा गुस्सा तयों? ककस कारण धिुष के प्रति इििा
स्िेि िै?
(i) िीर योद्धा रण क्षेत्र में शत्रु के समक्ष पराक्रम हदखािे िैं।
(ii) िे शत्रु के समक्ष अपिी िीरिा का बखाि ििीं करिे
30
(iii) िे ब्राह्मण, दे ििा, गाय और प्रभु भतिों पर पराक्रम ििीं हदखािे िैं।
(iv) िीर क्षोभरहिि िोिे िैं िथा अपशब्दों का प्रयोग ििीं करिे िैं।
प्रश्ि 6. राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद में परशुराम िे अपिे विषय में तया किा?
उत्तर: परशरु ाम िे अपिे विषय में ये किा कक िे बाल ब्रह्मचारी िैं और क्रोधी स्िभाि के िैं।
समस्ि विश्ि में क्षबत्रय पररिारों के विद्रोिी के रुप में विख्याि िैं। उन्िोंिे अिेक बार पथ्
ृ िी को
क्षबत्रयों से वििीि कर इस पथ्
ृ िी को ब्राह्मणों को दाि में हदया िै और अपिे िाथ में धारण इस
फरसे से सिस्रबािु के बाँिों को काि डाला िै। इसशलए िे राज पुत्र! मेरे इस फरसे को भली भाँति
दे ख ले। राजकुमार िू तयों अपिे मािा-वपिा को सोचिे पर वििश कर रिा िै। मेरे इस फरसे की
भयािकिा गभि में पल रिे शशशओ
ु ं को भी िष्ि कर दे िी िै ।
प्रश्ि 7. ‘गाधधसुि’ ककसे किा गया िै ? िे मुति की ककस बाि पर मि िी मि मुस्करा रिे थे?
उत्तर: गाधधसुि मुति विश्िाशमत्र को किा गया िै । परशुराम आत्मप्रशंसा में विश्िाशमत्र जी की ओर
दे खकर कि रिे थे कक िे उस उद्दं ड बालक यािी लक्ष्मण को केिल उिके कारण छोड़ रिे िैं ,
िरिा अपिे फरसे से उसका िध करके गुरु के ऋण से उऋण िो जािे यि कथि द्िारा राम-
लक्ष्मण के शौयि से परशरु ाम की अिशभज्ञिा प्रकि िोिे दे खकर िी विश्िाशमत्र मि-िी-मि मस्
ु करा
रिे थे।
उत्तर: ‘स्ियंिर’ स्थल पर शशि धिुष िोड़िे िाले को परशुराम िे धमकािे िुए किा कक क्जसिे इस
धिुष िोड़ा िै िि अब मेरा शत्रु िै । सिस्रबािु के समाि अब उसका वििाश तिक्श्चि िै । राम के
यि कििे पर कक आपके िी ककसी दास िे इसे िोड़ा िोगा, परशरु ाम अत्यंि क्रोधधि िो कििे लगे
कक दास िो िि िोिा िै, जो सेिा करे यि िो शत्रु का काम िै । इसशलए अन्य सभी राजा स्ििः
िी अलग िो जाएं तयोंकक धिुष िोड़िे िाले को उिसे अब कोई ििीं बचा सकिा।
31
(i) िे अत्यंि क्रोधी थे। उन्िें िर छोिी-सी बाि पर गुस्सा आ जािा था और ये सबके
समक्ष अपिे गुस्से पर तियंत्रण ििीं रख पािे थे।
(ii) ये दृढ़ तिश्चयी थे। उन्िोंिे इस पथ्
ृ िी को अपिे दृढ प्रण के कारण अिेक बार क्षबत्रय
विहिि कर हदया था।
(iii) िे अत्यंि िीर ि शक्तिशाली थे। सभी राजाओं का वििाश करिा कोई छोिा कायि ििीं
िो सकिा।
(iv) ये बाल ब्रह्मचारी ि बड़बोले थे। िे अपिी शक्ति का प्रदशिि करिे थे और बढ़-चढ़ कर
उसका बखाि करिे थे।
(v) उिमें वििेक का अभाि था। िे राम-लक्ष्मण को पिचाि ि सके। अच्छाई और बुराई में
अंिर ि कर पाए।
प्रश्ि 10.. ‘सािस और शक्ति के साथ वििम्रिा िो िो बेििर िै - इस कथि पर अपिे विचार
‘राम-लक्ष्मण परशरु ाम संिाद’ पाठ के आलोक में शलर्खए।
उत्तर: सािस और शक्ति दोिों िी मािि के अच्छे गुण िैं वििम्रिा भी अपिे आप में एक मित्त्िपूणि
गण
ु िै । यहद व्यक्ति में सािस ि शक्ति के साथ वििम्रिा भी िो, िो सोिे पर सि
ु ागा िो जािा
िै। राम में ये िीिों िी गण
ु थे, जबकक परशरु ाम में सािस ि शक्ति िो कूि-कूि कर भरी थी पर
वििम्रिा ििीं थी। कोई भी सािसी व्यक्ति वििम्रिा को अपिाकर प्रशंसिीय ि सबका वप्रय बि
सकिा िै । लेककि वििम्रिा के अभाि में सािस, दस्
ु सािस में पररितििि िो जािा िै । वििम्रिा,
सािस ि शक्ति पर अकंु श लगाकर उसे उद्दं ड िोिे से रोकिी िै।
प्रश्ि 11.. लक्ष्मण और परशुराम की चाररबत्रक विशेषिाओं में आप तया अंिर पािे िैं? पाठ के
आधार पर शलर्खए।
उत्तर: िुलसीदास जी द्िारा रधचि रामचररि मािस से शलए गए ‘राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद’ में
परशुराम मिाक्रोधी, उग्र एिं अति आत्मप्रशंसक यािी अपिे मुँि शमयाँ शमट्ठू बििे िाले मुति िैं।
िे स्ियं को प्रचंड क्रोधी, मिापराक्रमी, बाल ब्रह्मचारी एिं क्षबत्रय कुल का घािक बिािे िैं। इस
बड़बोलेपि के कारण उन्िें अपिे बड़तपि का भी ध्याि ििीं रििा, िभी िे लक्ष्मण से िाद-वििाद
कर बैठिे िैं, जबकक बड़तपि की तिशािी यिी िै कक छोिों के प्रति वििम्र रिा जाए। इसके विपरीि
लक्ष्मण के चररत्र में िातचािुयि एिं िकिशीलिा जैसे गुण िो िैं, ककं िु इिके साथ-साथ उिमें जिाि
से बड़ों की बराबरी करिे का दोष भी िै। िे ऐसे-ऐसे व्यंग्य-बाण छोड़िे िैं, क्जिसे परशुराम जी
32
क्रोध में उफि पड़िे िैं। इस प्रसंग के आधार पर यि कििा गलि ि िोगा कक अगर श्री राम जैसे
वििम्र ि संयमशील व्यक्ति बीच में ि िोिे और वििम्रिा के साथ परशुराम जी से क्षमा-याचिा
ि करिे, िो जिक दरबार ककसी अवप्रय घििा का साक्षी बि जािा।
प्रश्ि 12 ‘अयमय खाँड़ ि ऊखमय’ से तया अशभप्राय िै और यि कथि ककसके शलए प्रयुति िुआ
िै?
उत्तर: ‘अयमय खाँड़ ि ऊखमय ’ यि कथि मि-िी-मि मुति विश्िाशमत्र उस समय सोचिे िैं, जब
परशुराम बड़बोलेपि में कििे िैं कक िे पलभर में लक्ष्मण को मार डालेंगे। परशुराम की यि कििे
दे ख िे सोचिे िैं कक क्रोध में परशुराम जी िे ककििी सरलिा से यि कि हदया कक िे अपिे फरसे
से लक्ष्मण को मार डालेंगे, ककं िु उन्िोंिे यि विचार ििीं ककया कक क्जस बालक को िे गन्िे के
रस की खाँड़ समझ रिे िैं, िि लोिे से बिा खाँडा यािी िलिार के समाि अस्त्र िै, क्जसे काि
पािा इििा सरल ििीं िै।
प्रश्ि 13. लक्ष्मण कुम्िड़बतिया’ और ‘िरजिी’ के उदािरण से अपिी ककस बाि को शसद्ध करिा
चाििे िैं?
उत्तर: लक्ष्मण कुम्िड़ितिया और ‘िजििी’ के उदािरण से ये स्पष्ि करिा चाििे िैं कक िे कद्द ू के
फूल से बिे कोमल फल के समाि ििीं िैं जो िजििी उँ गली के हदखािे से िी मरु झा जाएंगे। ये
एक शूरिीर और क्षबत्रय िंशी िैं अिः िे परशुराम के फँू क मारिे से उड़ ििीं जाएँगे। िे पििि के
समाि कठोर अडडग और शक्तिशाली िैं। अिः परशुराम व्यथि की डींग मारकर उन्िें डरािे-धमकािे
का प्रयास ि करें ।
(i) राम बिुि वििम्र स्िभाि के िैं । िे ऋवष परशरु ाम के समक्ष स्ियं को उिका दास
कििे िैं।
(ii) िे अत्यंि धैयश
ि ील और मद
ृ भ
ु ाषी स्िभाि के िैं। ये शांि रिकर परशरु ाम के क्रोध का
सामिा करिे िैं और उसे सििे िैं, िे लक्ष्मण को भी शांि रििे की आज्ञा दे िे िैं।
33
प्रश्ि 15. परशुराम के साथ संिाद के संदभि में राम और लक्ष्मण में से ककसका व्यििार आपकी
दृक्ष्ि में अधधक प्रशंसिीय िै और तयों?
उत्तर: परशरु ाम के साथ संिाद के संदभि में राम और लक्ष्मण में से राम का व्यििार प्रशंसिीय
लगिा िै तयोंकक राम वििम्र और शांि रिकर ऋवष परशुराम की बािें सुििे िैं, जबकक लक्ष्मण
उिकी बािें सुिकर भड़क जािे िैं। लक्ष्मण की बािें परशुराम की क्रोध रूपी अक्ग्ि में घी डालिे
का काम करिी िैं, जबकक राम के शांि िचि और स्ियं को उिका दास बिािा अक्ग्ि में पािी
डालकर शांि रििे का काम करिे िैं। क्रोध ककसी भी समस्या का समाधाि ििीं िोिा िै। क्रोधधि
व्यक्ति अपिी समझ ि वििेक खो दे िा िै और आिेश में आकर गलि कदम उठा सकिा िै जबकक
राम के समाि धैयि
ि ाि, मद
ृ भ
ु ाषी, शांि मयािदा का पालि करिा समस्या को समाधाि की िरफ
ले जािा िै। अिः राम का व्यििार िी प्रशंसिीय ि स्िीकायि िै।
प्रश्ि 16. लक्ष्मण के अिुसार िीर योद्धा की तया तया विशेषिाएँ परशुराम में ििीं िैं।
(i) िीरों के समाि परशुराम िीरिा का प्रदशिि ििीं कर रिे िैं, केिल उसका बखाि कर
रिे िैं।
(ii) िीर युद्धभूशम में संग्राम कर अपिा जौिर हदखािे िैं, ि कक शसफि डींग िाँकिे िैं।
(iii) िीर अपिी प्रशंसा स्ियं ििीं करिे िैं। उिकी कथिी और करिी में अंिर ििीं िोिा
िै।
(iii) िीरों के समाि धैयि ि विियशीलिा के गुणों का अभाि भी लक्ष्मण परशुराम में बिािे
िैं।
प्रश्ि 17. परशुराम के क्रोध का मूल कारण तया था? स्पष्ि कीक्जए।
उत्तर : परशुराम के क्रोध का मूल कारण शशि धिुष का िूि जािा था िि धिुष स्ियं परशुराम िे
राजा जिक को हदया था। सीिा स्ियंिर में जब राम िे शशि धिुष िोड़ा िो चारों िरफ उिकी
प्रशंसा िोिे लगी थी, परं िु परशुराम इससे क्रोधधि िो गए थे। जब उन्िोंिे धिुष िोड़िे िाले के
विषय में पूछा, िो लक्ष्मण िे उिके क्रोध की आग में घी डालिे का काम ककया। िे कििे िैं कक
उिके शलए िो सभी धिुष एक समाि िैं। ऐसा इस धिष
ु में तया िै? जो आप इििा क्रोधधि िो
रिे िैं। िमिे िो बचपि में अिेक धिुष िोड़े िैं मेरे भाई राम िे िो धिष
ु पर केिल प्रत्यंचा िी
34
चढ़ाई थी और िाथ लगिे िी यि िूि गया। इसमें विशेष तया िै शशि धिष
ु के विषय में यि सब
सुिकर परशुराम के क्रोध की सीमा ििीं रििी।
उत्तर:: लक्ष्मण परशरु ाम संिाद में यद्यवप दोिों िी कुछ स्थलों पर धैयि
ि ाि प्रिीि ििीं िोिे, ककं िु
िुलिात्मक दृक्ष्ि से इि दोिों में से िमें लक्ष्मण का स्िभाि िी अच्छा लगिा िै , तयोंकक व्यंग्य
भी करिे िैं, िो िभी करिे िैं, जब परशरु ाम अपिे बड़बोलेपि में अपिी िीरिा का बखाि कर
उिका िध करिे िक की धमकी दे िे लगिे िैं या कफर फरसा हदखाकर डरािे लगिे िैं। लक्ष्मण
इस प्रसंग में धीरिा, उत्साि, िकिशीलिा, सािस आहद गुणों से युति हदखाई दे िे िैं िे परशुराम
द्िारा दी जािे िाली धमककयों अथिा िीरिा के बखाि से घबरािे ििीं, बक्ल्क िकि सहिि उिकी
बाि का खंडि करिे िैं। उिका यि ऐसा ओजपूणि व्यििार िम भी ककसी के अिुधचि व्यििार को
ि सििे की प्रेरणा दे िा िै।
प्रश्ि 19. परशरु ाम के स्िभाि एिं व्यक्तित्ि की विशेषिाओं का उल्लेख करिे िुए बिाइए कक उिमें
कौि-सी विशेषिाएँ आपको अच्छ लगिी िैं?
उत्तर: परशरु ाम के स्िभाि एिं व्यक्तित्ि में अिेक विशेषिाएँ दृक्ष्िगोचर िोिी िै
प्रश्ि 20. राम– लक्ष्मण एिं परशुराम में से ककसका व्यििार आपको अधधक अच्छा लगिा िै ?
तयों? िकिसहिि उत्तर दीक्जए।
35
उत्तर: राम– लक्ष्मण एिं परशुराम में से िमें राम का व्यििार सबसे अच्छा लगिा िै तयोंकक उिमें
तिम्िशलर्खि अिुकरणीय गुण िैं
प्रश्ि 21. ‘राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद’ के आधार पर शलर्खए कक वििम्रिा को सािस और शक्ति
कैसे किा जा सकिा िै।
उत्तर: ‘राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद’ कवििा के अिुसार वििम्रिा के साथ िी सािस और शक्ति का
मित्त्ि िोिा िै । बबिा वििम्रिा के सािस दस्
ु सािस बि जािा िै और शक्ति तिरं कुशिा में पररितििि
िो जािी िै। कवििा में राम को सािस और शक्ति के साथ वििम्र हदखाया गया िै इसशलए िे
पूजिीय ि श्रेष्ठ िैं, िे अपिी शक्ति का प्रदशिि बड़तपि के शलए ििीं करिे। जबकक दस
ू री िरफ
परशरु ाम में भी सािस और शक्ति िै पर िे वििम्र ि िोकर क्रोधी िैं, क्जस कारण िे अपिी शक्ति
का प्रदशिि करिे िुए सभा में भय उत्पन्ि करिे िैं और लक्ष्मण द्िारा व्यंग्य का पात्र बििे िैं।
प्रश्ि 22. ‘राम-लक्ष्मण – परशरु ाम संिाद पाठ में राम और लक्ष्मण के स्िभाि में आपको तया
अंिर हदखाई हदया? एक-एक उदािरण दीक्जए।
उत्तर: ‘राम-लक्ष्मण परशुराम संिाद’ में राम और लक्ष्मण के स्िभाि में तिम्ि शभन्ििाएँ िजर
आिी िैं। राम स्िभाि से विियशील एिं कोमल िैं। अपिे गरु
ु जिों का आदर करिे िाले िैं। बड़ों
की आज्ञा का पालि करिा उिके स्िभाि की विशशक्ष्ििा िै । िि बिुि िी वििम्र एिं मद
ृ भ
ु ाषी िैं।
िीर, सािसी एिं तिडर िोिे िुए भी िि बिुि िी धैयि
ि ाि िैं। जैसे- राम वििम्रिा पूिक
ि कििे िैं
कक िे िाथ, इस धिुष को िोड़िे िाला आप िी का दास िै । लक्ष्मण राम से छोिे िैं, परं िु बिुि
िी िाचाल िैं। िातपिुिा उिमें कूि-कूि कर भरी िुई िै । िाककिकिा उिके व्यक्तित्ि का विशशष्ि
गण
ु िै। िि िर बाि में परशरु ाम से िकि करिे िैं। िे बिुि िी बद्
ु धधमाि एिं व्यंग्य में तिपण
ु िैं।
िर बाि का उत्तर दे िे के शलए उिकी बुद्धध ित्पर िै । िि िीर, तिडर एिं सािसी िैं परं िु क्रोध
भी उिके व्यक्तित्ि का एक अंश िै। जैसे- लक्ष्मण द्िारा किा गया िै कक िे कुम्िड़बतिया की
िरि कमजोर ििीं िै।
36
प्रश्ि 23.परशुराम के प्रति लक्ष्मण के व्यििार पर अपिे विचार शलर्खए।
उत्तर– परशुराम जी क्रोधी स्िभाि के थे। श्री राम उिके क्रोध को शांि करिे के शलए शीिल जल
के समाि शब्दों ि आचरण का आश्रय ले रिे थे। इसके विपरीि लक्ष्मण परशरु ाम की भाँति िी
क्रोधी स्िभाि के िैं। तिडरिा िो जैसे उिके स्िभाि में कूि-कूि कर भरी िै । इसशलए परशुराम का
फरसा ि क्रोध उिमें भय उत्पन्ि ििीं कर पािा। लक्ष्मण परशुराम जी के साथ व्यंग्यपूणि िचिों
का सिारा लेकर अपिी बाि को उिके समक्ष प्रस्िुि करिे िैं। ितिक भी इस बाि की परिाि
ककए बबिा कक परशरु ाम किीं और क्रोधधि ि िो जाएँ। िे परशरु ाम के क्रोध को न्यायपण
ू ि ििीं
माििे। इसशलए परशरु ाम के अन्याय के विरोध में खड़े िो जािे िैं।
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कवि पररचय
जयशंकर प्रसाद के वपिाजी का िाम बाबू दे िी प्रसाद था। जयशंकर प्रसाद की मािाजी का िाम
मुन्िी बाई था। काशी के प्रशसद्ध तिींस कॉलेज में िे पढ़िे गए परन्िु क्स्थतियाँ अिुकूल ि िोिे
के कारण आठिीं से आगे ििीं पढ़ पाए। बाद में घर पर िी संस्कृि, हिंदी, फारसी का अध्ययि
ककया। छायािादी काव्य प्रितृ ि के प्रमुख कवियों में ये एक थे। इिकी मत्ृ यु सि 1937 में िुई।
37
और धचत्रात्मक भाषा शैली का प्रयोग दे खिे को शमलिा िै । इिकी शैली अत्यंि मीठ और सरल
भाषा में थी क्जिको कोई भी आसािी से पढ़ और समझ सकिा था ।
आत्मकथ्य शीषिक कवििा छायािादी कवि जयशंकर प्रसाद द्िारा रधचि िै।
इसमें कवि अपिे मिोभािों की अशभव्यक्ति करिा िै। कभी संसार की असारिा और तिरसिा पर
विचार करिा िै। जीिि दख
ु ों से भरा िै । इस िािािरण में भला कौि अपिी कथा को कििे का
सािस करे गा। कवि का कििा िै कक उसके जीिि की गागर िो रीिी अथािि खाली िै।
िि भला दस
ू रों को तया दे सकिा िै । कभी अपिी भूलों और दस
ू रों की रचिाओं को उजागर ििीं
करिा चाििा इसका कोई लाभ भी ििीं िै । यि ठ क िै कक कवि िे भी कुछ सख
ु ी क्षण भोगे थे।
िब िि मधरु चांदिी में बैठकर वप्रयसी के साथ र्खलर्खलाकर िँसिा था। पर िे क्षण कुछ पल
िी हिक पाए। सख
ु उसके तिकि आिे – आिे भाग गया। िि उि क्षणों की प्रिीक्षा करिा रि
गया। कवि अपिे वप्रय के सौंदयि का भी स्मरण करिा िै।उसके गालों की लाली उषा के शलए
भी ईष्याि का विषय थी।पर अब इि सब बािों के कििे का कोई लाभ ििीं िै। उसकी कथा में
दस
ू रों को कुछ भी ििीं शमल पाएगा। यिी कारण िै कक िि अपिी कथा कििे से बचिा रिा िै।
प्रतिपाद्य
“आत्मपररचय” कवििा का प्रतिपाद्य संसार से प्रेम करिा, उसके हिि की धचन्िा करिा, स्ियं
कष्िों में रिकर भी संसार के प्रति अपिा कत्तिव्य पूरा करिा, ककसी भी तिन्दा-स्िुति से
अप्रभाविि रिकर सभी के साथ समाि रूप से प्रेम का व्यििार करिा िथा अपिे लक्ष्य के प्रति
समवपिि रिकर आगे बढ़िे की प्रेरणा दे िा िै ।
बिुविकल्पीय प्रश्ि
उत्तर (ग) दख
ु ी
38
उत्तर : (क ) दख
ु दायी
उत्तर (ग ) तिराशाओं का
उत्तर (ग ) प्रेशमका
उत्तर (घ ) सरल
उत्तर (ख ) खाली
उत्तर (क ) मौि
39
उत्तर (घ ) दस
ू रों की आत्मकथा सुििा चाििा िै |
उत्तर (ख ) शमत्रों िे
उत्तर (क )कवि
40
चाििा िै , कवि अपिे व्यक्तिगि अिुभिों को दतु िया के समक्ष व्यति ििीं करिा चाििा।
तयोंकक िि अपिे व्यक्तिगि जीिि को उपिास का कारण ििीं बिािा चाििा। इन्िीं कारणों से
कवि आत्मकथा शलखिे से बचिा चाििा िै।
2 आत्मकथा सुिािे के संदभि में 'अभी समय भी ििीं' कवि ऐसा तयों कििा िै?
उत्तर
कवि को लगिा िै कक आत्मकथा शलखिे का अभी उधचि समय ििीं िुआ िै । तयोंकक आत्मकथा
शलखकर कवि अपिे मि में दबे िुए कष्िों को याद करके द:ु खी ििीं िोिा चाििा िै , अपिी छोिी
से कथा को बड़ा आकार दे िे में िे असमथि िैं, िे अपिे अंिमिि को लोगों के समक्ष प्रस्िुि करिा
ििीं चाििे िैं। आत्मकथा प्राय: जीिि के उत्तराधि में शलखी जािी िै । परन्िु अभी जीिि में ऐसा
समय ििीं आया िै। कवि को ऐसा लगिा िै कक अभी ऐसी कोई उपलक्ब्ध ििीं शमली िै क्जसे
िि लोगों के सामिे प्रेरणा स्िरुप रख सके। इन्िीं कारणों से कवि ऐसा कििे िैं कक अभी
आत्मकथा शलखिे का समय ििीं िुआ िै ।
उत्तर: कवि अपिी प्रेयसी के सौंदयि का िणिि करिे िुए कििा िै कक िातयका के कपोल अथािि ्
गाल में इििी लाशलमा थी कक उषा भी उसमें अपिा सुिाग ढूँढिी थी। अि: िातयका का सौंदयि
अिुपम था।
41
5'उज्ज्िल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदिी रािों की' - कथि के माध्यम से कवि तया कििा चाििा िै ?
उत्तर
कवि यि कििा चाििा िै कक अपिी प्रेयसी के साथ बबिाए गए क्षणों को िि सबके सामिे कैसे
प्रकि करे । जीिि के कुछ अिुभिों को गोपिीय रखिा िी उधचि िोिा िै । ऐसी स्मतृ ियों को िि
सबके सामिे प्रस्िुि कर अपिी िँसी ििीं उड़ािा चाििा िै । अि: िि अपिे जीिि की मधुर
स्मतृ ियों को अपिे िक िी सीशमि रखिा चाििा िै।
6 कवि िे जो सुख का स्िति दे खा था उसे कवििा में ककस रूप में अशभव्यति ककया िै ?
उत्तर
कवि िे जो सुख का स्िति दे खा था उसे िि अपिी प्रेयसी िातयका के माध्यम से व्यति करिा
िै और कििा िै कक िातयका स्िति में उसके पास आिे-जािे मुस्कुरा कर भाग गई। अि: उसे
उसका सुख ििीं शमल सका क्जसे िि सुख समझिा था िि स्िति रुपी छलािा थी। जो अस्थाई
रुप से उसके जीिि में आई थी।
42
9 कवि मधुर चाँदिी रािों की उज्ज्िल गाथाएँ तयों ििीं गािा चाििा ?
उत्तर
कवि मधरु चाँदिी रािों में ककए गए प्रेम की मधुर किातियों को अपिी संपवत्त माििा िै । िि
उसके बारे में लोगों को कुछ ििीं बिािा चाििा । उि पर केिल और केिल उसी का अधधकार
िै । िि उन्िीं सम
ु धरु यादों के सिारे शेष जीिि जीिा चाििा िै ।
10 कवि मधरु चाँदिी रािों की उज्ज्िल गाथाएँ तयों ििीं गािा चाििा ?
उत्तर
कवि मधुर चाँदिी रािों में ककए गए प्रेम की मधुर किातियों को अपिी संपवत्त माििा िै । िि
उसके बारे में लोगों को कुछ ििीं बिािा चाििा । उि पर केिल और केिल उसी का अधधकार
िै । िि उन्िीं सुमधुर यादों के सिारे शेष जीिि जीिा चाििा िै ।
11 “ भोली आत्मकथा “ के माध्यम से कवि तया कििा चाििा िै ?
उत्तर
कवि “ भोली आत्मकथा “ के माध्यम से यि कििा चाििा िै कक उसिे पूरा जीिि सरलिा और
भोलेपि
में क्जया िै । उसके जीिि में छल-कपि,चिुराई और धूिि
ि ा ििीं िै । अिः उसके जीिि में
संिुक्ष्ि िो िै लेककि ककसी को कुछ सीख दे िे की शक्ति ििीं िै ।
दीघित्तरात्मक प्रश्ि
1 आत्मकथा सुिािे के संदभि में 'अभी समय भी ििीं' कवि ऐसा तयों कििा िै?
उत्तर
कवि को लगिा िै कक आत्मकथा शलखिे का अभी उधचि समय ििीं िुआ िै । तयोंकक आत्मकथा
शलखकर कवि अपिे मि में दबे िुए कष्िों को याद करके द:ु खी ििीं िोिा चाििा िै , अपिी छोिी
से कथा को बड़ा आकार दे िे में िे असमथि िैं, िे अपिे अंिमिि को लोगों के समक्ष प्रस्िि
ु करिा
ििीं चाििे िैं। आत्मकथा प्राय: जीिि के उत्तराधि में शलखी जािी िै । परन्िु अभी जीिि में ऐसा
समय ििीं आया िै। कवि को ऐसा लगिा िै कक अभी ऐसी कोई उपलक्ब्ध ििीं शमली िै क्जसे
43
िि लोगों के सामिे प्रेरणा स्िरुप रख सके। इन्िीं कारणों से कवि ऐसा कििे िैं कक अभी
आत्मकथा शलखिे का समय ििीं िुआ िै ।
उत्तर
प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्ि के इंसाि थे। उिके जीिि में हदखािा ििीं था। िे अपिे जीिि
के सख
ु -दख
ु को लोगों पर व्यति ििीं करिा चाििे थे, अपिी दब
ु ल
ि िाओं को अपिे िक िी सीशमि
रखिा चाििे थे। अपिी दब
ु ल
ि िाओं को समाज में प्रस्िुि कर िे स्ियं को िँसी का पात्र बिािा
ििीं चाििे थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उिके िेदिा पूणि जीिि को दशाििी िै । इस कवििा में एक
िरफ़ कवि की यथाथििादी प्रितृ ि भी िै िथा दस
ू री िरफ़ प्रसाद जी की वििम्रिा भी िै। क्जसके
कारण िे स्ियं को श्रेष्ठ कवि माििे से इिकार करिे िैं।
(1) मिात्मा गाँधी की आत्मकथा - िमें मिात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़िी चाहिए। इससे िमें
सत्य िथा अहिंसा के मित्ि की जािकारी शमलिी िै।
44
(2) भगि शसंि की आत्मकथा - दे शभति भगिशसंि की आत्मकथा को पढ़िे से िमें दे श भक्ति
की प्रेरणा शमलिी िै।
(3) मिािीर प्रसाद द्वििेदी की आत्मकथा - प्रशसद्ध साहित्यकार मिािीर प्रसाद द्वििेदी जी का
जीिि अत्यंि संघषिपूणि रिा िै । एक मिाि साहित्यकार के रुप से िमें उिकी आत्मकथा पढ़िी
चाहिए।
(1) प्रस्िि
ु कवििा में कवि िे खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग ककया िै -
(2) अपिे मिोभािों को व्यति कर उसमें सजीििा लािे के शलए कवि िे कवििा में बबम्बों का
प्रयोग ककया िै ; जैसे -
(3) प्रस्िुि कवििा में कवि िे लशलि, सुंदर एिं ििीि शब्दों का प्रयोग ककया िै
भल
ू े अपिी या प्रिंचिा औरों की हदखलाउँ मैं।"
यिाँ-विडंबिा, प्रिंचिा जैसे ििीि शब्दों का प्रयोग ककया गया िै क्जससे काव्य में सुंदरिा आई
िै।
45
मेरी मौि, अिुरागी उषा में अिुप्रास अलंकार िै।
*********************@@************************@@*******************
पाठ-5 सर्
ू कय त
ां त्रिप ठी ‘निर ल ’: उत्स ह
जीवि पररचर्
सूर्क
य ांत त्रिप ठी निर ल क जन्म बांग ल के महहष दल में सि 1889 में हुआ थ । वो मूलतः गढ़ कोल (जो
उत्तर प्रदे श के उन्ि व जजले में जथथत हैं।) के निव सी थे। निर ल जी की प्र रजभिक शशक्ष महहष दल में ही हुई।
उन्हें हहांदी के अल व सांथकृत, ब ांग्ल व अांग्रेजी ि ष क िी अच्छ ज्ञ ि थ । उिकी सांगीत और दशयिश थि
में िी गहरी रूचच थी।
निर ल जी र मकृष्ण परमहांस और वववेक िांद के ववच रों से प्रेररत थे। निर ल क प ररव ररक जीवि दख
ु ों
और सांघषों से िरपरू थ । पररजिों के आकजथमक निधि से उन्हें गहर आध त लग स हहत्र् की सेव करते
हुए सि 1961 में उिक दे ह त
ां हो गर् ।
उिकी रचि ओां में द शयनिक, ववद्रोह, क् ांनत, प्रेम की तरलत , प्रकृनत क ववर ट तथ उद र आहद ि व दे खिे
को शमलते है। छ र् व दी रचि क रों में सबसे पहले उन्होंिे ही मक्
ु त छां द क प्रर्ोग ककर् थ ।
प्रमुख रचि एँ
सूर्क
य ांत त्रिप ठी निर ल की प्रमुख रचि ओां में अि शमक , पररमल, गीनतक कुकुरमुत्त और िए पत्ते हैं। र म
की शजक्त पूज और सरोज थमनृ त से कवव को ववशेष प्रशसद्चध प्र प्त है। इसके अल व उपन्र् स, कह िी,
आलोचि और निबांध लेखि में िी उिकी प्रशसद्चध दरू -दरू तक फैली है।
कववत निर ल जी के सबसे पसांदीद ववषर् ब दल पर रचचत है। र्ह कववत ब दल के रूप में आर्े दो अलग
तरह के बदल वों को दश यती है। इस कववत के म ध्र्म से निर ल जी िे जीवि को एक अलग हदश दे िे एवां
अपि ववश्व स खो चुके लोगों को प्रेरण दे िे क प्रर् स ककर् है। कवव ब दलों के आिे के जिक् के जररर्े,
46
जीवि से निर श व हत श लोगों को र्ह उभमीद दे ि च हते हैं कक च हे जो कुछ हो, लेककि आपके जीवि में
िी खुशह ली िरूर लौटे गी और आपके अच्छे हदि िरूर आर्ेंगे।
उत्स ह
ब दल, गरजो!
वज्र नछप , ित
ू ि कववत
कफर िर दो –
ब दल गरजो !
47
कववत क ि व थय :- प्रथतत
ु पांजक्तर्ों में कवव िे ब ररश होिे से पहले आक श में हदखिे व ले क ले ब दलों के
गरििे और आक श में त्रबजली चमकिे क अद्िुत वणयि ककर् है। कवव कहते हैं कक ब दल धरती के सिी
प्र खणर्ों को िर् जीवि प्रद ि करते हैं और र्ह हम रे अांदर के सोर्े हुए स हस को िी जग ते हैं।
आगे कवव ब दल से कह रहे हैं कक “हे क ले रां ग के सुांदर-घुांघर ले ब दल! तुम पूरे आक श में फैलकर उसे घेर लो
और खूब गरजो। कवव िे र्ह ँ ब दल क म िवीर्करण करते हुए उसकी तुलि एक बच्चे से की है , जो गोल-
मटोल होत है और जजसके शसर पर घुांघर ले एवां क ले ब ल होते हैं, जो कवव को बहुत प्र् रे और सुन्दर लगते
हैं।
आगे कवव ब दल की गजयि में क् जन्त क सांदेश सुि ते हुए कहते हैं कक हे ब दल! तम
ु अपिी चमकती त्रबजली
के प्रक श से हम रे अांदर स हस िर दो और इस तरह हम रे िीतर एक िर्े जीवि क सांच र करो! ब दल में
वष य की सह र्त से धरती पर िर् जीवि उत्पन्ि करिे की शजक्त होती है , इसशलए, कवव ब दल को एक कवव
की सांज्ञ दे ते हुए उसे एक िई कववत की रचि करिे को कहते हैं।
तप्त धर , जल से कफर
शीतल कर दो –
ब दल, गरजो
कववत क ि व थय :- कवव ब दलों को क् ांनत क प्रतीक म िते हुए र्ह कल्पि कर रहे हैं कक वह हम रे सोर्े
हुए पुरुष थय को कफर से जग कर, हमें एक िर् जीवि प्रद ि करे ग , हमें जीिे की िई आश दे ग । कवव इि
पांजक्तर्ों में कहते हैं कक िीषण गमी के क रण दनु िर् में सिी लोग तड़प रहे थे और तपती गमी से र हत प िे
के शलए छ ँव व ठां डक की तल श कर रहे थे।
तिी ककसी अज्ञ त हदश से घिे क ले ब दल आकर परू े आक श को ढक लेते हैं, जजससे तपती धूप धरती तक
िहीां पहुँच प ती। कफर ब दल घिघोर वष य करके गमी से तड़पती धरती की प्र् स बुझ कर, उसे शीतल एवां
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श ांत कर दे ते हैं। धरती के शीतल हो ज िे पर स रे लोग िीषण गमी के प्रकोप से बच ज ते हैं और उिक मि
उत्स ह से िर ज त है।
इि पांजक्तर्ों में कवव र्े सांदेश दे ि च हते हैं कक जजस तरह धरती के सख
ू ज िे के ब द िी ब दलों के आिे पर
िर्े पौधे उगिे लगते हैं। ठीक उसी तरह अगर आप जीवि की कहठि इर्ों के आगे ह र ि म िें और अपिे
पुरुष थय पर िरोस रखकर कड़ी मेहित करते रहें , तो आपके जीवि क बगीच िी दोब र फल-फूल उठे ग ।
इसशलए हमें अपिे जीिे की इच्छ को किी मरिे िहीां दे ि च हहए और पूरे उत्स ह से जीवि जीिे की कोशशश
करिी च हहए।
अट िहीां रही है
अट िहीां रही है
आि फ गि
ु की ति
घर-घर िर दे ते हो,
पर-पर कर दे ते हो,
आँख हट त हूँ तो
कववत क ि व थय :- प्रथतुत पांजक्तर्ों में कवव िे फ गुि के महीिे की सुांदरत क बहुत ही सुन्दर वणयि ककर्
है। होली के वक्त जो मौसम होत है , उसे फ गि
ु कहते हैं। उस समर् प्रकृनत अपिे चरम सौंदर्य पर होती है
और मथती से इठल ती है। फ गि
ु के समर् पेड़ हररर् ली से िर ज ते हैं और उि पर रां ग-त्रबरां गे सग
ु जन्धत फूल
उग ज ते हैं। इसी क रण जब हव चलती है, तो फूलों की ख़ुशबू उसमें घुल ज ती है। इस हव में स रे लोगों पर
िी मथती छ ज ती है, वो आिांद में िरकर मथती में झूमिे लगते हैं।
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घर-घर में उगे हुए पेड़ों पर रां ग-त्रबरां गे फूल खखले हुए हैं। उि फूलों की ख़ुशबू हव में र्ूँ बह रही है, म िो फ गुि
ख़ुद स ांस ले रह हो। इस तरह फ गुि क महीि पूरे व त वरण को आिांद से िर दे त है। इसी आिांद में झूमते
हुए पक्षी आक श में अपिे पांख फैल कर उड़िे लगते हैं। र्ह मिोरम दृश्र् और मथती से िरी हव एां हम रे
अांदर िी हलचल पैद कर दे ती हैं। र्ह दृश्र् हमें इति अच्छ लगत है कक हम अपिी आँख इससे हट ही िहीां
प ते।
पत्तों से लदी ड ल
"उत्स ह" और "अट िहीां रही हैं", दोिों ही कववत ओां में म िवीकरण अलांक र क प्रर्ोग ककर् है।
"उत्स ह" कववत में कवव िे ब दल क म िवीकरण कर उससे "गरज गरज कर बरसिे " को कहते हैं। तो
दस
ू री कववत "अट िहीां रही हैं" में वह फ ल्गि
ु म ह क म िवीकरण कर उसकी सांद
ु रत क बख ि करते हैं।
>'उत्स ह' कववत में वीर रस तथ 'अट िहीां रही है' कववत में अद्िुत रस मुख्र् रुप से हदख ई दे त है।
> कववत में अिुप्र स, रूपक, र्मक, उपम आहद अलांक रों क श िद र तरीके से प्रर्ोग ककर् गर् है।
50
> कववत को लर्बद्ध कर गीत शैली में शलख गर् है।
> दोिों कववत ओां में खड़ी हहांदी क प्रर्ोग हुआ है।
> कववत में तत्सम शब्दों क प्रर्ोग िी बहुत खूबसूरती से ककर् गर् है।
> "उत्स ह" और "अट िहीां रही हैं", दोिों कववत ओां में कवव िे प्रकृनत क ही चचिण ककर् है । और प्रकृनत के
म ध्र्म से ही अपिे मिोि वों को प्रकट करिे की कोशशश की है।
(क) रूदि (ख) क् ांनत (ग) वेदि (घ) इिमें से कोई िहीां
उत्तर-(ग) आक श को
उत्तर-(ग) दख
ु ों से पीड़ड़त धरती
(क) घोड़े (ख) बगुले (ग) बच्चे से (घ) इिमें से कोई िहीां
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(क) फ गुि (ख) म घ (ग) वैश ख (घ) अष ढ़
उत्तर-(क) फ गुि
6.कववत ‘अट िहीां रही है’ में ककस ऋतु के प्र कृनतक सौदर्य क चचिण ककर् गर् है ?
(क)ग्रीष्म ऋतु (ख) वष य ऋतु (ग) शरद ऋतु (घ) वसांत ऋतु
6.कवव के अिस
ु र , उन्मि और ववकल कौि और क्र्ों है ?
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उत्तर– फ ल्गुि म स क ।
उत्तर– हरे िरे पेड़ पौधे , रां ग त्रबरां गी फूल – पत्तों व प्र कृनतक सुांदरत से।
उत्तर- निर ल क् ांनतक री कवव थे। वे सम ज में बदल व ल ि च हते थे इसशलए जित में चेति ज गत
ृ
करिे के शलए और जोश जग िे के शलए कवव ब दल से फुह र, ररमखझम र् बरसिे के शलए ि कह 'गरजिे के
शलए कह है। गरजि शब्द क् जन्त, बदल व, ववरोध को दश यत है।
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दे ते हैं। वे धरती को फ़सल उग िे र्ोग्र् बि कर लोगों में िवजीवि क सांच र करते हैं।
कवि उन्हें अज्ञात वदशा के घन इसललए कहा है क्योंवक बादल वकस वदशा से आकर आकाश में छा गए,
कविता में बादलों को क्रांततदूत मानकर सोए, अलसाए और कततव्यविमुख लोगों को क्रांतत लाने के
ललए प्रेररत वकया गया है। लोगों में उत्साह भरना ही ‘उत्साह’ कविता का उद्देश्य है।
7.अट िहीं रही है ’ कक्षविा के आधार पर फागुि में उम़िे प्राकृक्षिक सौंदयय का वणयि अपिे शब्ों में कीक्षजए।
उत्तर- फागुन का सौंदयत अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हररयाली छा
जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर वबछ जाती है।
लताए
ँ और डाललयाँ रंग-वबरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्रालणयों का मन उल्लासमय हुआ जाता है। ऐसा
8.'उ़ििे को िभ में िुम पर पर कर दे िे हो' के आलोक में बिाइए क्षक फागुि लोगों के मि को क्षकस िरह
प्रभाक्षवि करिा है ?
54
उत्तर- 'उड़ने को नभ में तुम पर पर कर देते हो' से ज्ञात होता है वक फागुन में चारों ओर इस तरह सौंदयत
फैल जाता है वक िातािरण मनोरम बन जाता है। रंग-वबरंगे फूलों के खुशबू से हिा में मादकता घुल
जाती है। ऐसे में लोगों का मन कल्पनाओं में खोकर उड़ान भरने लगता है।
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पाठ-6 िागाजुि
ि (1911-1998): यि दं िुररि मुसकाि/ फसल
कवि – पररचय
रचिाएँ-“युगधारा,सिरं गे पंखों िाली, िजार िजार बािों िाली, िुमिे किा था, पुरािी जूतियों का
कोरस, आर्खर ऐसा तया कि हदया मैंिे, मैं शमलिरी का बुढा घोडा” इत्यहद|
55
पाठ – पररचय: यि दं िुररि मुसकाि
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मौका शमलिा िैं। फसल को िैयार िोिे में ककि – ककि चीजों की आिश्यकिा िोिी िै , उिका
िणिि कर रिे िैं। कवि कििे िैं कक एक या दो ििीं बक्ल्क अिेक िहदयों का पािी अपिा जादई
ु
असर हदखािा िै , िब जाकर फसल पैदा िोिी िैं। एक ििीं दो ििीं बक्ल्क लाखों – करोड़ों िाथों
के अथक पररश्रम का पररणाम से एक अच्छ फसल िैयार िोिी िै। अथािि िजारों खेिों पर
दतु िया भर के लाखों – करोड़ों ककसाि हदि राि मेििि करिे िैं। एक या दो ििीं बक्ल्क िजारों
खेिों की उपजाऊ शमट्िी के पोषक ित्ि भी इि फसलों के अंदर छुपे िुए िैं। तयोंकक शमट्िी की
विशेषिाएं भी फसलों की गुणित्ता को प्रभाविि करिी िै। यािी शमट्िी से शमलिे िाले जरूरी
पोषक ित्ि फसलों के शलए जरूरी िोिे िैं और अलग – अलग िरि की फसलों को उगािे के
शलए अलग – अलग िरि की शमट्िी ि उसके गुण आिश्यक िोिे िैं। ककसाि की मेििि के
साथ – साथ पािी भी आिश्यक िै। साथ में शमट्िी का गण
ु ित्तापरू क भी जरूरी िै । तयोंकक
शमट्िी की विशेषिाओं के अिुसार िी फसल पैदा िोिी िै । अलग-अलग िरि की शमट्िी में अलग
– अलग िरि के पोषक ित्ि ि गुण पाए जािे िैं क्जससे अिुसार अलग-अलग िरि की फसलों
को पैदा ककया जा सकिा िै । पौधों को बढ़िे के शलए सूरज की ककरणें ि काबिि डाइऑतसाइड
गैस भी आिश्यक िै तयोंकक सूरज की रोशिी में िी ये पौधे शमट्िी से जरूरी पोषक ित्ि , पािी
ि ििा से काबिि डाइऑतसाइड गैस लेकर अपिा भोजि बिािे िैं। क्जसे प्रकाश संश्लेषण (
Photosynthesis) किा जािा िैं। कवि पिले िो प्रश्ि पूछिे िैं कक फसल तया िैं ? कफर उसी
प्रश्ि का उत्तर दे िे िुए कििे िैं कक िहदयों के पािी का जाद ू फसल के रूप हदखाई दे िा िैं
तयोंकक बबिा पािी के फसल का उगिा ि मुमककि िैं। करोड़ों ककसािों की हदि – राि की
मेििि का ििीजा फसल के रूप में शमलिा िैं। भूरी , काली ि खुशबूदार िल्की पीली शमट्िी
याति अलग – अलग प्रकार की शमट्िी के पोषक ित्ि और सरू ज की ककरणें भी अपिा रूप
बदल कर इि फसलों के अंदर समाहिि रििी िैं। तयोंकक सूरज की रोशिी और ििा में उपक्स्थि
काबिि डाइऑतसाइड गैस को अिशोवषि कर िी पौधे अपिी पवत्तयों के दिारा भोजि बिािे िैं।
अच्छ िरि से फसलों को फलिे फूलिे के शलए ककसाि की मेििि के साथ – साथ पािी ,
शमट्िी का गुणित्तापूरक , अलग – अलग िरि की शमट्िी में अलग- अलग िरि के पोषक ित्ि
, पौधों को बढ़िे के शलए सरू ज की ककरणें ि काबिि डाइऑतसाइड गैस आहद की आिश्यकिा
िोिी िै। करोड़ों ककसािों की हदि- राि की मेििि , िहदयों के पािी का जाद ू , भूरी , काली ि
खुशबूदार शमट्िी याति अलग – अलग प्रकार की शमट्िी के पोषक ित्ि और सूरज की ककरणें भी
अपिा रूप बदल कर इि फसलों के अंदर समाहिि रििी िैं।
57
प्रश्ि- तिम्िशलर्खि प्रश्िों के उत्तरों में से सिी विकल्प छाँिकर शलर्खए|
6. यि दं िरु रि मस
ु काि कवििा में कवििे धचर प्रिासी ककसे किा िै?
7. िागाजुि
ि िे "यि दं िुररि मुस्काि" कवििा में बच्चे के धूल शमट्िी से सिे शरीर के शलए
कौि से बबम्ब का प्रयोग ककया िै ?
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a. बबूल के पेड़ का b. कमल के फूल का c. शेफाशलका के फूल का d. बांसके पेड़ का
9. िागाजि
ुि िे ककसमेंजीिि का संदेश मािा िै ?
a. फसल में b. कमल के फूल में c. बच्चे में d. दं िुररि मुस्काि की सुंदरिा में
Solution
6. (a) स्ियं को
लघुत्तररर् प्रश्ि
1. फसल िहदयों के पािी का जाद,ू िाथों के स्पशि की गररमा और महिमा िथा शमट्िी का गुण
धमि ककस प्रकार िै ? स्पष्ि कीक्जए।
59
उिर-फसल के शलये पािी बेिद आिश्यक िै। िहदयाँ अपिे साथ जो खतिज बिा कर लािी िैं िे
उिके पािी को अमि
ृ बिा दे िे िैं जो ककसी जाद ू कीभाँति फसलों में आकार, रस, गंध, स्िाद
आहद की शभन्ििा पैदा करिे िैं। इसमें अिेक व्यक्तियों के पररश्रम िथा सेिा के साथ-साथ
बीज-खादि शमट्िी का भी योगदाि िोिा िै। विशभन्ि प्रकार की शमट्हटर्ों की विशेषिाओं के
अिस
ु ार फसलों का स्िरूप बििा िै। अिःफसल इिसबके सक्म्मशलि योगदाि की महिमा िै।
2. यि दं िरु रि मस
ु काि कवििा में 'बाँस और बबल
ू ' ककसके प्रिीक िैं?
उिर-कवििा में बाँस और बबल
ू के पेड़ कठोर हृदय या रसिीि व्यक्तियों के प्रिीक िैं। ऐसे
लोगों पर माििीय संिेदिाओं का कोई असर ििीं िोिा िै।इि प्रिीकों के माध्यम से कवि कििा
चाििा िैं कक मधुर मुस्काि को दे खकर कठोर से कठोर हृदय मािि भी सरस िो उठिे िैं।
3. बच्चे का पररचय संसार से करिा िे में मुख्य रूप से ककसकी भूशमका िोिी िै ?
उिर-. कवि िे छोिे बच्चे की मुस्काि का िणिि ककया िै। बच्चे के मुस्करा िे पर उसके छोिे -
छोिे दाँि हदखाई दे िे से उसकी मुस्काि बड़ी सरल एिंमोिक लगिी िै क्जसे दे ख कर िि अपिे
तिराशा के समस्ि क्षणों को भूल जािा िै ।
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पाठ-9 मंगलेश डबराल: संगिकार
कवि पररचय
जन्म- 16 मई 1948 में।
जन्म स्थाि- हििरी गढ़िाल (उत्तरांचल) के काफलपािी गाँि में।
शशक्षा- दीक्षा- दे िरादि
ू में।
व्यिसाय/ संपादि कायि - हदल्ली आकर हिन्दी पैहियि, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करिे
के बाद िे भोपाल में भारि भिि से प्रकाशशि पूिग्र
ि ि में सिायक संपादक
रिे । इलािाबाद और लखिऊ से प्रकाशशि अमि
ृ प्रभाि में भी कुछ हदि िौकरी की। सि ् 1983
में जिसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सिारा समय में संपादि
कायि करिे के बाद िि िेशिल बक
ु िस्ि से जड़
ु े रिे ।
मंगलेश डबराल के प्रकाशशि काव्य संग्रि - पिाड़ पर लालिे ि, घर का रास्िा, िम जो दे खिे
िैं, आिाज भी एक जगि िै और िये युग में शत्र।ु इसके अतिररति इिके दो गद्य संग्रि लेखक
की रोिी और कवि का अकेलापि के साथ िी एक यात्राित्त
ृ एक बार आयोिा भी प्रकाशशि िो
चुके िैं। कवििा के अतिररति इन्िोंिे साहित्य, शसिेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों
पर भी तियशमि लेखि ककया िै। मंगलेश की कवििाओं में सामंिी बोध एि पँज
ू ीिादी छल-छद्म
दोिों का प्रतिकार िै।
परु स्कार/सम्माि-हदल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्माि, कुमार विकल स्मतृ ि परु स्कार
और अपिी सििश्रेष्ठ रचिा ‘िम जो दे खिे िैं’ के शलए सि ् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
से सम्मातिि मंगलेश डबराल की ख्याति अिुिादक के रूप में भी िै । मंगलेश की कवििाओं के
भारिीय भाषाओं के अतिररति अंग्रेजी, रूसी, जमिि, डच, स्पेतिश, पुिग
ि ाली, इिालिी, फ़्ाँसीसी,
पोशलश और बुल्गाररयाई भाषाओं में भी अिुिाद प्रकाशशि िो चुके िैं।
भाषा-शैली इिकी भाषा पारदशी, सिज एिं सरल िै। इिके काव्य में व्यंग्यात्मक और
िणििात्मक शैली का प्रयोग िुआ िै ।
61
िथा उिके गायि में सिायक बििे िैं लेककि िे कभी भी अपिी उन्िति का प्रयास ििीं करिे।
इि सिायक गायक कलाकारों को संगिकार किा जािा िै।
इस कवििा में जो मख्
ु य गायक िै उसकी आिाज अत्यधधक मजबि
ू िोिी िै िि अपिी
चट्िाि जैसी अथािि ् मजबूि ि बिुि अच्छ आिाज में गा रिा िै मगर साथ में मुख्य गायक
का कोई साथ दे रिा था, उसकी आिाज थोड़ी कमजोर िै अथािि ् पीछे से एक आिाज आ रिी थी
जो थोड़ी सी कमजोर लेककि काँपिी िुई थी। आिाज गायि में धीरे -धीरे आत्मविश्िास बढ़िा
जािा िै अथािि ् जो गा रिा िै िि या िो मख्
ु य गायक का छोिा भाई िै या शशष्य क्जसिे अभी
संगीि को सीखिा शरू
ु ककया िै या कफर िि आिाज दरू से पैदल चलकर संगीि सीखिे के शलए
आिे िाले ककसी ररश्िेदार की िै तयोंकक आिाज मुख्य गायक जैसी िी िै लेककि थोड़ी धीमी िै
मुख्य गायक से शमली िुई िै । मुख्य गायक की ऊँची गंभीर आिाज में अपिे स्िर की मधुर गँज
ू
शमलािा िै अथािि ् उसके स्िर के भारी िोिे पर उसे सिायिा प्रदाि करिा िै । मुख्य गायक का
आत्मविश्िास डगमगािे पर संगिकार उसे धैयि बॅंधािा िै । िि मख्
ु य गायक के स्िर में स्िर
शमलाकर उसे जहिल िािों की उलझिों से उभारिा िै । स्िर से भिकिे पर िि अंिर की मख्
ु य
पंक्ति को पकड़कर मुख्य गायक को सॅंभालिा िै । मुख्य गायक अपिी इस िरि भूशमका तिभािा
िै कक मािो िि मुख्य गायक के बबखरे या छूिे िुए सामाि को समेि रिा िो। उस समय उस
मुख्य गायक को अपिा बचपि याद आ जािा िै जब िि िया – िया गािा सीखिा था या
िौशसर्खया था।
कवि िे बिाया िै कक जब कभी मुख्य गायक ऊँचे स्िर में गािा िै और उसका गला बैठिे
पर मुख्य गायक की आिाज जिाब दे जािी िै िथा िि तिराश िो जािा िै िब संगिकार उसे
तिराश ििीं िोिे दे िा बक्ल्क उसके सरु में अपिा सरु शमलाकर उसे कफर से गािे की प्रेरणा दे िा
िै। उस समय मुख्य गायक का िौसला बढ़ािा िै । उस सुंदर आिाज को सुिकर मुख्य गायक
कफर िए जोश से गािे लगिा िै। कभी–कभी संगिकार मुख्य गायक को यि बिािे के शलए भी
उसके स्िर में अपिा स्िर शमलािा िै कक िि अकेला ििीं िै , कोई िै जो उसका साथ िर समय
दे िा िै और यि भी बिािे के शलए कक जो राग या गािा एक बार गाया जा चुका िै , उसे कफर
से दोबारा गाया जा सकिा िै।
कवि कििे िैं कक जब भी संगिकार मुख्य गायक के स्िर में अपिा स्िर शमलािा िै यािी
उसके साथ गािा गािा िै िो उसकी आिाज में एक हिचक साफ सि
ु ाई दे िी िै और उसकी
62
िमेशा यिी कोशशश रििी िै कक उसकी आिाज मुख्य गायक की आिाज से धीमी रिे लेककि िमें
इसे संगिकार की कमजोरी या असफलिा ििीं माििी चाहिए तयोंकक िि मुख्य गायक के प्रति
अपिा सम्माि प्रकि करिे के शलए ऐसा करिा िै । यािी अपिा स्िर ऊँचा कर िि मुख्य
गायक के सम्माि को ठे स ििीं पिुँचािा चाििा अथािि ् िि स्ियं को मित्त्ि िा दे कर मुख्य
गायक को िी मित्त्ि हदलािा चाििा िै । यि उसका माििीय गण
ु िै । उसकी विफलिा िा िोकर
मिुष्यिा िै।
प्रश्ि-1 मख्
ु य गायक की आिाज कैसी िोिी िै ?
(अ) बिुि कमजोर (ब) काँपिी िुई (स) चट्िाि जैसी भारी (द) बिुि धीमी
सिी उत्तर: ( स) चट्िाि जैसी भारी।
प्रश्ि-2 प्रस्िि
ु काव्यांश में मुख्य गायक के भारी-स्िर का साथ कौि दे िा िै ?
(अ) संगीिकार (ब) संगिकार (स) गीिकार (द) िबला िादक
सिी उत्तर: (ब) संगिकार
63
प्रश्ि-3 मख्
ु य गायक के अििद में पिुँचिे पर संगिकार तया करिा िै ?
(अ) िि उसका साथ दे िा िै
(ब) संगिकार अपिी आिाज से गायकी की कड़ी जोड़कर मख्
ु य गायक के साथ आिाज शमलािा िै
(स) संगिकार धीमी आिाज में गािा शरू
ु कर दे िा िै
(द) संगिकार िी स्थायी को सँभालिा िै ||
सिी उत्तर : (द) संगिकार िी स्थायी को सँभालिा िै ।
64
और यि कक कफर से गाया जा सकिा िै
गाया जा चुका राग
और उसकी आिाज में जो एक हिचक साफ़ सुिाई दे िी िै
या अपिे स्िर को ऊँचा ि उठािे की जो कोशशश िै
उसे विफलिा ििीं
उसकी मिुष्यिा समझा जािा चाहिए।
प्रश्ि-1 मुख्य गायक को धीरज बँधािे का काम कौि करिा िै ?
(अ) उसकी माँ (ब) श्रोिा (स) संगिकार (द) भाई
सिी उत्तर: संगिकार
65
प्रश्ि-5 िारसतिक में गािे के कारण कवि को कैसा अिुभि िोिा िै ?
(अ) बिुि ख़ुशी िोिी िै | (ब) थक जािा िै|
(स) उत्साि से भर जािा िै| (द) गािे की इच्छा समाति िो जािी िै|
सिी उत्तर: (स) उत्साि से भर जािा िै|
प्रश्ि-3 कवि संगिकार द्िारा अपिे स्िर को मुख्य गायक के स्िर से कम रखिे को तया
माििा िै?
(अ) समझदारी (ब) ईमािदारी (स)चालाकी (द) मिष्ु यिा
सिी उत्तर: (द) मिुष्यिा
प्रश्ि-4 मख्
ु य गायक की गरजदार आिाज में अपिी गँज
ू शमलािे का काम ककसका िै ?
(अ) संगिकार (ब) कवि (स) गायक का छोिा भाई (द) शशष्य
सिी उत्तर: (अ) संगिकार
66
अति लघु उत्तरीय प्रश्ि –
प्रश्ि-4 ऊँचे स्िर में गाये गये सरगम को तया कििे िैं?
उत्तर- िारसतिक
प्रश्ि-1 मख्
ु य गायक िथा संगिकार की आिाजों के शलए ककि-ककि शब्दों का प्रयोग िुआ िै
और तयों?
उत्तर -मख्
ु य गायक की आिाज के शलए 'गरज' िथा संगिकार की आिाज के शलए 'गँज
ू ’ शब्दों
का प्रयोग ककया गया िै तयोंकक मुख्य गायक का स्िर भारी िथा संगिकार का स्िर कोमल
िोिा िै साथ िी संगिकार कभी अपिे सुर को मुख्य गायक के सुर से ऊँचा ििीं जािे दे िा।
उत्तर- संगिकार में त्याग की भाििा इस प्रकार तिहिि िै कक संगिकार मुख्य कलाकार का
सिारा बििे िैं, उसे भिकिे से बचािे िैं, स्ियं प्रतिभािाि िोिे पर भी उससे आगे बढ़िे का
प्रयास ििीं करिे।
67
प्रश्ि-3 संगिकार के माध्यम से कवि ककस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेि करिा चाि रिा
िै?
उत्तर -संगिकार के माध्यम से कवि उि व्यक्तियों की ओर संकेि करिा चाि रिा िै जो अन्य
व्यक्ति के साथ चलिे िैं और उिके सिायक िोिे िैं। ककसी भी व्यक्ति की सफलिा में
मित्त्िपूणि भूशमका तिभािे िैं जैसे संगीि में गायक के साथ संगिकार मित्त्िपूणि िोिे िैं उसी
प्रकार जीिि में साथ चलिे लोग भी मित्त्िपूणि िोिे िैं।
प्रश्ि-5 संगिकार ककि-ककि रूपों में मुख्य गायक-गातयकाओं की मदद करिे िैं?
1) िे मुख्य गायक की भारी आिाज में अपिी सुंदर और कमजोर आिाज की गँज
ू शमलाकर
गायि को प्रभािपूणि बिा दे िे िैं।
2) िारसतिक गािे समय संगिकार उसके स्िर में स्िर शमलाकर उसे अकेले िोिे का
अिसास ििीं िोिे दे िे िैं।
3) संगिकार मुख्य गायक के स्िर से अपिा स्िर ऊँचा ि करके उसकी सफलिा में बाधक
ििीं बििे िैं।
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पाठ-10 स्ियं प्रकाश िेिाजी का चश्मा
➢ लेखक पररचय
स्ियं प्रकाश जी का जन्म सि 1947 मैं इंदौर (मध्यप्रदे श) में िुआ। मैकेतिकल इंजीतियररंग
की पढ़ाई करके एक औद्योधगक प्रतिष्ठाि में िौकरी करिे िाले स्ियं प्रकाश का बचपि
और िौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थाि में बीिा। कफ़लिाल स्िैक्च्छक सेिातििवृ त्त के बाद िे
भोपाल में रििे िैं और िसध
ु ा पबत्रका के संपादि से जड़
ु े िैं।
➢ प्रमुख रचिाएं
इिके िेरि किािी संग्रि प्रकाशशि िो चुके िैं क्जिमें सूरज कब तिकलेगा, आएँगे अच्छे
हदि भी, आदमी जाि का आदमी और संधाि उल्लेखिीय िैं। उिके बीच में वििय और
ईंधि उपन्यास चधचिि रिे िैं। उन्िें पिल सम्माि, बिमाली पुरस्कार, राजस्थाि साहित्य
अकादमी पुरस्कार आहद पुरस्कारों से पुरस्कृि ककया जा चुका िै ।
र्ह कह िी एक छोटे से कथबे की है। इस कथबे की िगरप शलक के ककसी प्रश सनिक
अचधक री िे कथबे के मुख्र् ब ज र के मुख्र् चौर हे पर िेत जी सुि ष चांद्र बोस की एक
सांगमरमर की मूनतय बििाई दी। र्ह कह िी इसी मूनतय के इदय -चगदय घूमती है।
इस मूवत्तय को बि िे क क र्य कथबे के ह ई थकूल के ड्र इांग म थटर मोतील ल जी को सौंप गर्
होग जजन्होंिे एक महीिे में मूनतय बिव िे क ववश्व स हदल र् ।
69
िेत जी की मूनतय दो-ढाई फुट की थी और सुांदर थी। िेत जी सुांदर लग रहे थे और कुछ-कुछ
म सूम से मूनतय को दे खते ही हदल्ली चलो और तुम मुझे खि
ू दो मैं तुभहें आज दी दँ ग
ू र् द
आिे लगत थ । उस मूनतय में बस एक चीज की कमी थी। वह थी िेत जी की आांखों क चश्म ।
मूनतय की आँखों पर सांगमरमर क चश्म िहीां था |
70
ह लद र स हब दो स ल तक अपिे क म के शसलशसले में इसी कथबे से गुजरते रहे और िेत जी
की मूनतय पर बदलते हुए चश्मे को दे खते रहे । एक ब र ह लद र स हब िे दे ख कक मूनतय के चेहरे
पर कोई िी चश्म िहीां थ । प िव ले से पूछा तो पत चल कक कैप्टि मर गर् है। ह लद र
स हब बहुत दख
ु ी हो गए और सोचिे लगे उस पीढ़ी क क्र् होग जो अपिे दे श के शलए सब
कुछ न्र्ोछ वर करिे व लों पर िँसिी है और अपिे शलए त्रबकिे क मौक ढूांढती है।
एक पखिाड़ा के ब द िालदार स हब दोब र उसी कथबे से गुजरे । सोच कक मूनतय के प स िहीां
रुकेंगे और प ि िी आगे ही ख लेंगे पर आदत से मजबूर आँखें चौर हे पर आते ही मूनतय की
तरफ उठ गई। ग ड़ी से उतरकर तेज तेज कदमों से मूनतय की तरफ आगे बढ़े और उसके स मिे
ज कर सािधाि की क्स्थति में खड़े हो गए। उन्होंिे दे ख कक मनू तय पर सरकांडे से बि हुआ चश्म
लग हुआ थ । जजसे श र्द बच्चों िे बि कर मूनतय को पहि हदर् थ इतिी सी ब त पर उिकी
आँखें िर आिी िैं | …………………………………………..
प्रश्ि-उत्तर
(क) घण
ृ ा (ख) उत्साि (ग) उपेक्षा। (घ) इिमें से कोई ििीं
(क) िालदार को। (ख) तस्बेिालों को (ग) पाििाले को। (घ) चश्मे िाले को
(क). दे श भक्ति। (ख). सामाक्जक भाि (ग). राजिीतिक जागतृ ि। (घ). मूतिि कला की प्रशंसा
प्रश्ि 5. िो लँ गड़ा तया जाएगा फ़ौज में । पागल िै पागल!’-ये शब्द ककसिे किे िैं?
71
प्रश्ि 6.ड्राइंग मास्िर का तया िाम था?
प्रश्ि 7.सभ
ु ाषचंद्र बोस की प्रतिमा ककस िस्िु की बिी थी?
प्रश्ि 8.िम
ु मझ
ु े खि
ू दो’ िेिाजी का यि िारा िमें तया प्रेरणा दे िा िै ?
प्रश्ि 12.सेिािी ि िोिे िुए भी चश्मेिाले को लोग कैतिि तयों कििे थे?
उत्तर: चश्मेिाला एक दे शभति िागररक था। उसके मि में दे श के िीर जिािों के प्रति अत्यंि
सम्माि था। इसशलए लोग उसे कैतिि कििे थे।
72
उत्तर- िालदार सािब एक क्जज्ञासु प्रिवृ त्त के आदमी थे। िि यि जाििा चाििे थे कक िेिा जी
की मतू िि पर आज ककस प्रकार का चश्मा िोगा !
उत्तर- िालदार सािब िे किा था कक चौरािे पर गाड़ी मि रोकिा, आज बिुि काम िै । पाि आगे
खा लेंगे |
प्रश्ि 15. िेिाजी को दे खकर आपको कौि से िारे याद आिे िैं?
उत्तर - कैतिि द्िारा बार-बार मतू िि पर चश्मा लगािा यि प्रकि करिा िै कक िि दे श के शलए
प्राण त्याग करिे िाले लोगों के प्रति श्रद्धा और सम्माि रखिा था। भले िी िि फौजी ििीं था
पर फौजी जैसी मिोभाििा जरूर रखिा था। िेिाजी की चश्मा वििीि मतू िि को दे ख कर िि
सीशमि आय िोिे के बाद भी स्ियं से चश्मा लगा हदया करिा था िाकक उिका व्यक्तित्ि अधरू ा
िा रिे ।
उत्तर पाििाला एक खुशशमजाज स्िभाि िाला, काला िथा मोिा आदमी था| उसके मुँि में िमेशा
पाि रििा था, िालदार सािब द्िारा कैतिि चश्मे िाले के बारे में पूछिे पर उसका उपिास
करिा, परं िु उसकी मत्ृ यु पर िि उदास िो जािा िै |
प्रश्ि 19. दे श प्रेम की भाििा ककसी भी व्यक्ति में िो सकिी िै उसके शलए िधथयार उठािा
जरूरी ििीं िै | पाठ के आधार पर स्पष्ि कीक्जए|
73
उत्तर- कैतिि चश्मेिाला बूढ़ा, मररयल, अपाहिज, गरीब, कभी सेिािी िा िोिे िुए भी दे शभक्ति
की भाििा से भरा िुआ था| बबिा चश्मे की मतू िि को दे ख कर उस पर रोज िया चश्मा लगािा
उसकी दे शभक्ति को दशाििा िै| दे श प्रेम की भाििा दशाििे के शलए जरूरी ििीं कक िधथयार िी
उठाया जाय |दे शभतिों के प्रति िमारे मि में आदर ि सम्माि का भाि रखिा भी दे श भक्ति िै|
प्रश्ि 20. साििजतिक स्थािों पर लगी मूतिि के प्रति आपका तया उत्तरदातयत्ि िोिा चाहिए ?
उत्तर-िमारा प्रथम उत्तरदातयत्ि मतू िि के प्रति आदर िि सम्माि का िै | इसके अतिररति उसका
संरक्षण, उसकी दे खभाल और उसके आसपास साफ- सफाई बिाए रखिा |
उत्तर-पाठ के माध्यम से यि संदेश हदया गया िै कक िमें अपिी सांस्कृतिक धरोिरों से प्रेम करिा
चाहिए| दे श पर मर शमििा िी दे शभक्ति ििीं िोिी बक्ल्क अपिे कििव्यों का तिष्ठापूिक
ि पालि
करिा भी एक प्रकार की दे श भक्ति िै| िमें दे श के प्रति अपिे कििव्यों का पालि करिा चाहिए|
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74
4. उपन्यास - पतििों के दे श में।
5. यात्राित्त
ृ – (1) पैरों में पंख बांधकर (2) उड़िे चलें।
6. िािक - (1)अम्बपाली (2) सीिा की मां (3)रामराज्य
7. तिबंध - (1) गेिूँ और गुलाब (2) बंदे िाणी वििायकौ (3) मशाल।
उिकी रचिाओं में स्िाधीििा की चेििा, मिष्ु यिा की धचंिा और इतििास की यग
ु ािरू
ु प व्याख्या िै।
बेिीपुरी जी की भाषा सरल एिं व्याििाररक िै। उिके द्िारा प्रयुति खड़ी बोली में सरलिा, सुबोधिा,
सजीििा विद्यमाि िै। उिकी भाषा में भािािुकूल शब्द चयि ककया गया िै। विशशष्ि शैलीकार िोिे के
कारण उन्िें 'कलम का जादग
ू र' किा जािा िै।
बालगोबबि भगि पाठ का उद्दे श्य-
बालगोबबि भगि रे खाधचत्र के माध्यम से रामिक्ष
ृ बेिीपरु ी िे एक ऐसे विलक्षण चररत्र का उद्घािि ककया िै
जो मिुष्यिा, लोक संस्कृति और सामूहिक चेििा का प्रिीक िै। िेश भूषा या ब्रह्य आडम्बरों से कोई
संन्यासी ििीं िै, सन्यास का आधार जीिि के माििीय सरोकार िोिे िैं. बालगोबबि भगि इसी आधार पर
लेखक को सन्यासी लगिे िैं । इस पाठ के माध्यम से सामाक्जक रुहढयों पर भी प्रिार ककया गया िै , साथ िी
िमें ग्रामीण जीिि की झाँकी भी हदखाई गयी िै ।
बालगोबबि भगि पाठ का सारांश-
बालगोबबि भगि, कबीरपंथी एक गि
ृ स्थ संि थे. उिकी उम्र साठ से ऊपर रिी िोगी. बाल पके थे. कपडे के
िाम पर शसफि एक लँ गोिी पिििे थे। सदी के मौसम में एक काली कमली भी। रामिामी चन्दि और
गले में िुलसी की माला पिििे थे।िे एक खेतििर गि
ृ स्थ थें। उिके घर में एक बेिा और बिु थे। िे झूठ,
छल प्रपंच से दरू रििे थे। सबसे दो िूक बािे करिे, कबीर को अपिा आदशि माििे थे। उन्िी के गीिों को
गािे, अिाज पैदा िोिे पर कबीर पंथी मठ में ले जाकर दे आिे और ििाँ से जो शमलिा उसी से अपिा गज
ु र
बसर करिे। उिका गायि सुििे के शलए गाँि िाले इकट्ठे िो जािे थे।
धाि के रोपिी के समय में उिके गीि सुिकर बच्चे झम
ू िे लगिे, में ड पर खड़ी औरिें के िोंठ काँप उठिे थे.
रोपिी करिे िाले की अंगुशलयाँ एक अजीब क्रम से चलिे लगिी थी . कातििक, भादों, सदी, गमी िर मौसम
में बाल गोबबि सभी को अपिे गायि से शीिल करिे थे।
बालगोबबि भगि भति आदमी थे। उिकी भक्ति साधिा का चरम उत्कषि उस हदि दे खिे को शमला क्जस
हदि उिका एक मात्र पुत्र मरा। िे रुदि के बदले उत्सि मिािे को कििे थे। उिका , माििा था कक आत्मा
परमात्मा से शमल गयी िै। विरिणी अपिी प्रेमी से जा शमली। िे आगे एक समाज सध
ु ारक के रूप में सामिे
आिे िैं। अपिी पिोिू द्िारा अपिे बेिे को मुखाक्ग्ि हदलािे िैं। श्राद्ध कमि के बाद बिु के भाई को बुलाकर
75
उसकी दस
ू री शादी करिे को कििे िैं। बिु के बिुि शमन्ििें करिे पर भी िे अिल रििे िैं। इस प्रकार िे
विधिा वििाि के समथिक िैं।
बालगोबबि की मत्ृ यु उन्िी के व्यक्तित्ि के अिुरूप शांि रूप से िुई। अपिा तित्य कक्रया करिे िे गंगा
स्िाि करिे जािे बुखार लम्बे उपिास करके मस्ि रििे। लेककि िेम ब्रि ि छोड़िे। दो जूि गीि स्िाि
ध्याि खेिी बारी अंि समय बीमार पड़कर िे परं परा को प्राति िुए। भोर में उिका गीि ि सि
ु ाई पड़ा। लोगों
िे जाकर दे खा िो बालगोबबन्द स्िगि शसधार गए िैं।
बालगोबबि भगि के चररत्र की विशेषिाएँ
बालगोबबि भगि एक गि
ृ स्थ थे परन्िु उिमें साधु किलािे िाले गुण भी थे -
1. कबीर के आदशों पर चलिे थे, उन्िीं के गीि गािे थे।
2. कभी झठ
ू ििीं बोलिे थे, खरा व्यििार रखिे थे।
3. ककसी से भी दो िूक बाि करिे में संकोच ििीं करिे, ि ककसी से झगड़ा करिे थे।
4. ककसी की चीज ििीं छूिे थे ि िी बबिा पूछे व्यििार में लािे थे।
5. जो कुछ खेि में पैदा िोिा, शसर पर लादकर पिले उसे कबीरपंथी मठ जािे, ििाँ से जो कुछ भी भेंि स्िरुप
शमलिा था उसे प्रसाद स्िरुप घर ले आिे थे।
6. उिमें लालच बबल्कुल भी ििीं था।
7. बालगोबबि भगि के पुत्र की मत्ृ यु िो गई, िो उन्िोंिे सामाक्जक परम्पराओं के अिुरूप अपिे पुत्र का
कक्रयाकमि ििीं ककयाI
8. िमारे समाज में विधिा वििाि को मान्यिा ििीं दी गई िैं परन्िु भगि िे इसके विपरीि
अपिी पुत्रिधू के पुिविििाि का आदे श हदयाI
9. भगि अन्य साधओ
ु ं की िरि शभक्षा माँगकर खािे के विरोधी थेI
गद्यांश आधाररि बिुविकल्पीय प्रश्ि
1. आषाढ़ की ररमर्झम िै। समूचा गाँि खेिों में उिर पड़ा िै। किीं िल चल रिे िैं किीं रोपिी िो रिी िै। धाि
के पािी भरे खेिों में बच्चे उछल रिे िैं। औरिें कलेिा लेकर मेड़ पर बैठ िैं। आसमाि बादल से तघरा धूप का
िाम ििीं ठं डी पुरिाई चल रिी िै। ऐसे िी समय आपके कािों में एक स्िर िरं ग झंकार सी कर उठ । यि
तया िै यि कौि िैं यि पछ
ू िा ि पड़ेगा। बाल गोबबि भगि समच
ू ा शरीर कीचड़ में शलथडे अपिे खेि में
रोपिी कर रिे िैं। उिकी अंगुली एक-एक धाि के पौधे को पंक्तिबद्ध खेि में बबठा रिी िै। उिका कंठ एक-
एक शब्द को संगीि के जीिे पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर स्िगि की ओर भेज रिा िै और कुछ को इस पथ्
ृ िी की
76
शमट्िी पर खड़े लोगों के काि की ओर बच्चे खेलिे िुए झूम उठिे िैं मेड़ पर खड़ी औरिों के िोंठ काँप उठिे
िैं िे गि
ु गुिािे लगिी िैं। िलिािों के पैर िाल से उठिे लगिे िैं।
(I) समूचा गाँि खेिों में कब उमड़ पड़िा िै?
(क) ठं डी पुरिाई में (ख) कातििक की सुिाििी सुबि में
(ग) फागि
ु की बिार में (घ) आषाढ़ की ररमर्झम में
(II) 'औरिें कलेिा लेकर खेि की मेड़ पर बैठ िैं' िातय िै ...
(क) संयुति िातय (ख) सरल िातय(ग) शमश्र िातय (घ) प्रश्ििाचक िातय
उत्तर- (।) आषाढ़ की ररमर्झम में (।।) सरल िातय (III) रोपिी कर रिे िैं (IV) संगीि के जीिे पर चढ़कर
स्िगि की ओर (V) बाल गोबबि भगि के संगीि के कारण
2- बालगोबबि भगि की संगीि - साधिा का चरम उत्कषि उस हदि दे खा गया क्जस हदि उिका
बेिा मरा। इकलौिा बेिा था िि ! कुछ सस्
ु ि और बोदा-सा था, ककं िु इसी कारण बालगोबबि
भगि उसे और भी माििे। उिकी समझ में ऐसे आदशमयों पर िी ज़्यादा िजर रखिी चाहिए या
तयार करिा चाहिए, तयोंकक ये तिगरािी और मि
ु ब्बि के ज़्यादा िकदार िोिे िैं। बड़ी साध से
उसकी शादी कराई थी, पिोिू बड़ी िी सुभग और सुशील शमली थी। घर की पूरी प्रबंधधका बिकर
भगि को बिुि कुछ दतु ियादारी से तिित्त
ृ कर हदया था उसिे । उिका बेिा बीमार िै, इसकी
77
खबर रखिे की लोगों को किाँ फ़ुरसि ! ककं िु मौि िो अपिी ओर सबका ध्याि खींचकर िी
रििी िै। िमिे सि
ु ा, बालगोबबि भगि का बेिा मर गया। कुिि
ू लिश उिके घर गया। दे खकर
दं ग रि गया। बेिे को आँगि में एक चिाई पर शलिाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा िै। िि
कुछ फूल िो िमेशा िी रोपिे रििे, उि फूलों में से कुछ िोड़कर उस पर बबखरा हदए िैं; फूल
और िल
ु सीदल भी ।
(I)बालगोबबि भगि की संगीि - साधिा का चरम उत्कषि ककस हदि दे खा गया
(क) क्जस हदि िे बीमार थे (ख) क्जस हदि उिका बेिा मरा
(ग) क्जस हदि िे अकेले थे (घ) क्जस हदि उिकी बेिी मरी
उत्तर- (।)क्जस हदि उिका बेिा मरा (।।) सुस्ि और बोदा (III) सुभग और सुशील
(IV) फूल और िुलसीदल (V) दतु ियादारी से तिित्त
ृ कर हदया
78
व्यििार रखिे थे और ककसी से झगड़ा ििीं मोलिे थे। िि िमेशा कबीर के पद गुिगि
ु ािे और ककसी से झूठ
ििीं बोलिे थे।
प्रश्ि 2- भगि की पुत्रिधू उन्िें अकेले तयों ििीं छोड़िा चाििी थी?
उत्तर- भगि जी का उिके एकमात्र पुत्र के अलािा और कोई ििीं था जो कक अब मर चुका था और उिकी
पिोिू यि बाि जाििी थी िि जाििी थी कक उिके बढ़
ु ापे में अब उसके अलािा कोई ििीं था। िि चाििी थी
कक िि उिके साथ रिकर उिकी सेिा करे ।
प्रश्ि 3- भगि िे अपिे बेिे की मत्ृ यु पर अपिी भाििाएँ ककस िरि व्यति की?
उत्तर- भगि िे अपिे बेिे की मत्ृ यु पर दख
ु ी िोिे के बजाय उत्सि मिािे को किा। उन्िोंिे अपिे बेिे की
मत्ृ यु को ईश्िर की इच्छा बिाई। उन्िोंिे अपिे बेिे के शि को सफेद िस्त्र से ढँ का और उसे फूलों से सजाया
और दीपक जलाया। िे कफर खेजड़ी की िाल पर गािे चले गए।]
प्रश्ि 4- भगि के व्यक्तित्ि और उिकी िेशभूषा का अपिे शब्दों में धचत्र प्रस्िुि कीक्जए।
उत्तर- भगि जी गिृ स्थ िोिे िुए भी एक साधु की िरि रििे थे। िे िेली जाति के थे, िे एक गोरे -धचट्िे मँझले
कद के आदमी थे। उिकी उमर लगभग साठ िषि की िोगी। िे कमर में लंगोिी पििे रििे थे और सर पर एक
किफिी िोपी िथा गले में िल
ु सी की माला धारण ककए िुए रििे थे।
79
प्रश्ि 7- कुछ माशमिक प्रसंगों के आधार पर यि हदखाई दे िा िै कक बालगोबबि भगि प्रचशलि सामाक्जक
मान्यिाओं को ििीं माििे थे। पाठ के आधार पर उि प्रसंगों का उल्लेख कीक्जये।
उत्तर- कुछ माशमिक प्रसंग िैं, क्जिके आधार पर यि किा जा सकिा िै कक बालगोबबि भगि प्रचशलि
सामाक्जक मान्यिाओं को ििीं माििे थे, जैस:े - बालगोबबि भगि के पुत्र की मत्ृ यु िुई, िो उन्िोंिे
सामाक्जक परं परा के अिस
ु ार अपिे पत्र
ु का कक्रया-कमि ििीं ककया बक्ल्क अपिे पत्र
ु को मख
ु ाक्ग्ि अपिी
पुत्रिधू से िी हदलािाई। िमारे समाज में विधिा वििाि का तिषेध िै , परं िु बालगोबबि भगि िे अपिी
पुत्रिधू के भाई को बुलाया और पुत्रिधू को पुिविििाि करिे का आदे श दे दे कर भेज हदया।
प्रश्ि 8- धाि की रोपाई के समय समूचे मािौल को भगि की स्िर लिररयाँ ककस िरि चमत्कृि कर दे िी
थीं? उस मािौल का शब्द धचत्र प्रस्िुि कीक्जए ।
उत्तर- आषाढ़ की ररमर्झम में खेिों में धाि की रोपाई चल रिी िै ,भगि कीचड़ से लथपथ अपिे खेि में
रोपिी कर रिे िैं। उिके िाथ धाि की एक एक रोपिी कर रिे िै साथ िी उिकी स्िर लिरी समस्ि िािािरण
में गूंज रिी िै। बालगोबबि भगि के कंठ से तिकलिा मधुर संगीि लोगों के मि में झंकार उत्पन्ि कर रिा
िै। िलिािों के पैर और रोपाई करिे िाले लोगों की उँ गशलयाँ गीि की स्िरलिरी के अिुरूप चलिे लगी िैं
सुििेिाले भी गुिगुिािे लगे िैं। भगि जी के संगीि का जाद ू लोगों के शसर चढ़िे लगा िै।
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प्रश्ि 2- बालगोबबि भगि के संगीि को जाद ू तयों किा गया िै?
उत्तर- बालगोबबि भगि का संगीि िर आयुिगि के लोगों पर समाि रूप से असर करिा था। उिका स्िर
अचािक एक मधुर स्िर िरं ग झंकृि-सी िो उठिी िै। उिके मधुर गाि को सुिकर बच्चे झूम उठिे थे, मेंड़
पर खड़ी औरिों के िोंठ गुिगुिा उठिे थे, िलिािों के पैर िाल से उठिे से लगिे थे और रोपिी करिे िालों
की अँगशु लयाँ क्रम से चलिे लगिी थीं।
*****************@@*******************@@*************************
पाठ का सारांश
लखििी अंदाज पाठ में लेखक िे एक ऐसे ििाब सािब की किािी का िणिि ककया िै जो िे ि के
सेकंड तलास में यात्रा करिे िुए अपिी अमीरी का प्रदशिि करिे के शलए खीरे में िमक-शमचि
लगाकर उसे खािे ििीं िैं बक्ल्क सघ
ूँ िे िैं और िे ि की र्खड़की से बािर फेंक दे िे िैं| लेखक िे
बिाया िै कक इस िरि के लोग जीिि के यथाथि (सच्चाई) से दरू रिकर कल्पिा की दतु िया में
जीिे िैं और अपिी झूठ अमीरी का झूठा हदखािा करिे में अपिी शाि समझिे िैं|
लेखक िे भीड़ से बचकर एकांि में िई किािी के संबंध में सोचिे और र्खड़की से प्राकृतिक
दृश्य दे खिे का आिंद लेिे के शलए सेकंड तलास का हिकि शलया और गाड़ी में बैठे ििां पर उन्िोंिे
दे खा कक सामिे की बथि पर एक लखििी ििाब पालथी मारकर बैठे िुए िैं | जब लेखक िे ि में
ििाब सािब के सामिे की बथि पर बैठिा िै और ििाब सािब के द्िारा संगति के शलए कोई
उत्सक
ु िा ििीं हदखाई दे िी िै िब आत्मसम्माि में िि भी लेखक की ओर से अपिी आंखों को
चरु ा लेिे िैं| |इसके कुछ समय पश्चाि ििाब सािब के द्िारा उि खीरों को अच्छ िरि से पािी
81
से धो कर उन्िें िमक-शमचि तछड़क कर केिल मुँि िक ले जाकर सूँघिे के बाद उिको र्खड़की
से बािर फेंक हदया जािा िै |
प्रश्ि 1. ' लखििी अंदाज ' पाठ के आधार पर बिाइए कक लेखक िे खीरा खािे से मिा तयों
ककया?
उत्तर- लेखक कुछ समय पिले ििाब सािब द्िारा रखे गए खीरे खािे के आमंत्रण को ठुकरा चुके
थे,अिः अब आत्मसम्माि तिभािा आिश्यक समझिे के कारण उन्िोंिे खीरा खािे से इंकार कर
हदया । [ सी.बी.एस.ई. SQP अंक योजिा 2020-21 ]
प्रश्ि 2. ' लखििी अंदाज ' रचिा में ििाब सािब की सिक को आप किाँ िक उधचि ठिाराएँगे
?तयों ? [ सी.बी.एस.ई. Delhi Set - I 2020 ]
उत्तर- ' लखििी अंदाज ' पाठ में ििाब सािब की अपिी ििाबी शाि और रईसी का झूठा हदखािा
करिे की सिक किई उधचि ििीं िै , तयोंकक दस
ू रों को िीचा हदखािा माििोधचि आचरण ििीं
किा जा सकिा । पिले ििाब सािब िे अकेले डडब्बे में खीरे खािे के शलए खरीदे थे ककन्िु लेखक
को सामिे दे खकर अपिी ििाबी शाि का हदखािा करिे की कोशशश की। सिक में उन्िोंिे खीरे
बबिा खाए िी र्खड़की से बािर फेंक हदए|
प्रश्ि 3. ' लखििी अंदाज ' पाठ के आधार पर बिाइए कक लेखक िे यात्रा करिे के शलए सेकंड
तलास का हिकि तयों खरीदा ? [ सी.बी.एस.ई. Delhi O.D. Set II , 2019 ]
उत्तर- i)अधधक दरू ी की यात्रा ििीं िोिे के कारण
ii)भीड़ से बचिे के शलए ।
iii)एकांि में िई किािी के बारे में सोचिे के शलए ।
iv) र्खड़की से प्राकृतिक दृश्यों का आिंद लेिे के शलए ।
प्रश्ि 4. ' लखििी अंदाज ' के पात्र ििाब सािब के व्यििार पर अपिे विचार शलर्खए ।
उत्तर- ' लखििी अंदाज ' के पात्र ििाब सािब िे सफर में समय बबिािे के शलए खीरे खरीदे िथा
खीरे काफी दे र िक िौशलए पर यों िी रखे रििे हदए। कफर उिको सािधािी से छ लकर फाँकों को
सजाया और उि फाँकों पर जीरा शमला िमक - शमचि बरु क हदया और कफर सँघ
ू - सँघ
ू कर उिको
िे ि की र्खड़की से बािर फेंक हदया । िमारा विचार िै कक उिका यि व्यििार उिकी िजाकि और
लखििी संस्कृति के साथ िी उिकी जीिि - शैली की कृबत्रमिा और हदखािे को भी प्रदशशिि करिा
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िै । यि उिकी खािदािी रईसी हदखािे का भी िरीका था । ििाब सािब सामंिी िगि के प्रिीक
िैं जो आज भी अपिी झूठ शाि बिाए रखिा चाििा िै ।
प्रश्ि 5. खीरा काििे में ििाब सािब की विशेषज्ञिा का धचत्रण अपिे शब्दों में कीक्जए ।
उत्तर- खीरों को धोिा , पोंछिा , शसरे कािकर - गोदकर झाग तिकालिा , फाँकें काििा , िौशलए
पर सजािा , जीरा शमला िमक - शमचि बरु किा आहद । [
सी.बी.एस.ई. अंक योजिा , 2019 ]
प्रश्ि 6 . ििाब सािब िे खीरा खािे की पूरी िैयारी की और उसके बाद उसे बबिा खाए फेंक हदया
। इस ििाबी व्यििार पर हितपणी कीक्जए ।
उत्तर. ििाब सािब िे खीरा खािे की पूरी िैयारी की और उसके बाद उसे बबिा खाए फेंक हदया ।
इस घििा के माध्यम से पििशील सामंिी िगि ( ििाबी परं परा ) की बिाििी जीििशैली पर
व्यंग्य ककया गया िै । ििाब सािब के मि में अिंकार की भाििा थी । उिकी प्रतिकक्रया हदखािे
और आडम्बर से पररपूणि थी । इस घििा के माध्यम से ििाब सािब स्ियं को खािदािी ििजीब
, िफासि और िजाकि आहद आडम्बरपूणि सामंिी िगि के प्रतितिधध के रूप में प्रस्िुि करिे िैं ।
प्रश्ि.7 यद्यवप लेखक के मुँि में पािी भर आया कफर भी उसिे खीरा खािे से इंकार तयों ककया
?
उत्तर- खीरे को दे खकर लेखक के मुँि में पािी आ गया था । िि उसे खािे के शलए उत्सुक था
परन्िु िि ििाब सािब को मिा कर चुका था। अिः अपिे आत्मसम्माि को बचाए रखिे के शलए
उसिे खीरा खािे से इंकार ककया|
प्रश्ि 8. ' लखििी अंदाज ' किािी के शीषिक की साथिकिा पर संक्षेप में प्रकाश डाशलए ।
उत्तर- ' लखििी अंदाज ' किािी का शीषिक पूणि
ि ः साथिक िै तयोंकक पूरा कथािक लखिऊ के
रईस ििाब के खािदािी ििाबी अंदाज के प्रदशिि को व्यति करिा िै । आज भी िे लोग ििाबी
तछि जािे के बािजूद झूठ शाि ि िौर - िरीकों का िी हदखािा करिे िैं ।
83
शायद संकोच िो रिा था । इससे ििाब सािब की िजाकि एिं लखििी संस्कृति का अिुमाि
लगाया जा सकिा िै ।
प्रश्ि 10. बबिा विचार, घििा और पात्रों के भी तया किािी शलखी जा सकिी िै। यशपाल के इस
विचार से आप किाँ िक सिमि िैं?
उत्तर- लेखक का माििा िै कक बबिा विचार, घििा और पात्रों के भी तया किािी शलखी जा सकिी
िै अथािि विचार, घििा और पात्र के बबिा किािी ििीं शलखी जा सकिी िै। मैं लेखक के इि
विचारों से पूणि
ि या सिमि िूँ। िास्िि में किािी ककसी घििा विशेष का िणिि िी िो िै। इसका
कारण तया था, कब घिी, पररणाम तया रिा िथा इस घििा से कौि-कौि प्रभाविि िुए आहद का
िणिि िी किािी िै। अिः ककसी किािी के शलए विचार, घििा और पात्र बिुि िी आिश्यक िैं।
बिुविकल्पीय प्रश्ि
84
प्रश्ि4. ििाब सािब का कौि - सा अिम
ु ाि गलि शसद्ध िुआ ?
(क) दौड़कर गाड़ी पकड़ लेंगे । (ख) र्खड़की के पास बैठ सकेंगे।
(ग) बथि आरामदायक िोगी । (घ) डडब्बा तिजिि िोगा ।
उत्तर - विकल्प ( घ ) सिी िै ।
प्रश्ि6.पतियािी फाँकों को दे खकर मुँि में पािी जरूर आ रिा था । ' इस िातय से तया पिा
चलिा िै ?
(क) लेखक खीरा खािा चाििा था । (ख) लेखक दवु िधा में था खीरा खाएँ कक ि खाएँ ।
(ग) लेखक खीरा ििीं खािा चाििा था । (घ) लेखक को खीरा अच्छा ििीं लगिा था ।
उत्तर- विकल्प ( क ) सिी िै ।
प्रश्ि8- ििाब सािब िे र्खड़की से बािर दे खकर दीघि तिश्िास तयों शलया ?
(क) र्खड़की के बािर का प्राकृतिक सौन्दयि बिुि मिमोिक लगा ।
(ख) िे अभी र्खड़की के बािर खीरा फेंकिे िाले थे क्जसका उन्िें अफसोस िो रिा था ।
(ग) र्खड़की के कर दे । उड़िी धूल - शमट्िी खीरे को खराब ि कर दें |
(घ) उन्िें डर था कक लेखक उिकी खीरे की फाँकों को उठाकर बािर ि फेंक दे ।
उत्तर - विकल्प ( ख ) सिी िै ।
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(ग) खीरे को कािकर उस पर िमक - शमचि बुरकिे को
(घ) खीरा धोकर िौशलया से पोंछिे के िरीके को ।
उत्तर - विकल्प ( ख ) सिी िै ।
तिम्िशलर्खि गद्यांशों पर आधाररि प्रश्िों के उत्तर के शलए सिी विकल्प चुतिए ( 1x5 = 5)
I. मुफक्स्सल की पैसेंजर िे ि चल पड़िे की उिािली में फँू कार रिी थी । आराम से सेकंड तलास
में जािे के शलए दाम अधधक लगिे िैं । दरू िो जािा ििीं था । भीड़ से बचकर , एकांि में ियी
किािी के संबंध में सोच सकिे और र्खड़की से प्राकृतिक दृश्य दे ख सकिे के शलए हिकि सेकंड
तलास का िी ले शलया । गाड़ी छूि रिी थी । सेकंड तलास के एक छोिे डडब्बे को खाली समझकर
, जरा दौड़कर उसमें चढ़ गए । अिुमाि के प्रतिकूल डडब्बा तिजिि ििीं था । एक बथि पर लखिऊ
की ििाबी िस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जि बिुि सुविधा से पालथी मारे बैठे थे । सामिे दो िाजे
- धचकिे खीरे िौशलए पर रखे थे । डडब्बे में िमारे सिसा कूद जािे से सज्जि की आँखों में एकांि
धचंिि में विघ्ि का असंिोष हदखाई हदया । सोचा, िो सकिा िै , यि भी किािी के शलए सूझ
की धचंिा में िों या खीरे - जैसी अपदाथि िस्िु का शौक करिे दे खे जािे के संकोच में िों । [
सी.बी.एस.ई. Outside Delhi Set - I , II , III ,Term I ,2020 संशोधधि ]
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2. ििाब सािब की आँखों में लेखक को तया हदखाई हदया ?
(क) असंिोष (ख) उत्साि (ग) बेचैिी (घ) आँसू
उत्तर - विकल्प ( क ) सिी िै ।
व्याख्या - डडब्बे में ििाब सािब बैठे थे । लेखक को दे ख कर उन्िोंिे कोई उत्साि ििीं हदखाया
िरि ् एकांि में विघ्ि पड़िे का असंिोष उिकी आँखों में था ।
II. खाली बैठे ,कल्पिा करिे रििे की पुरािी आदि िै । ििाब सािब की असुविधा और संकोच
के कारण का अिुमाि करिे लगे । संभि िै , ििाब सािब िे बबल्कुल अकेले यात्रा कर सकिे के
अिुमाि में ककफ़ायि के विचार से सेकंड तलास का हिकि खरीद शलया िो और अब गिारा ि िो
कक शिर का कोई सफ़ेदपोश उन्िें मँझले दजे में सफ़र करिा दे खे ।....... अकेले सफ़र का िति
काििे के शलए िी खीरे खरीदे िोंगे और अब ककसी सफ़ेदपोश के सामिे खीरा कैसे खाएँ ?
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ििीं लगा । भाँप शलया आप शराफि का गुमाि बिाए रखिे के शलए िमें भी मामूली लोगों की
िरकि में लथेड़ लेिा चाििे िैं । जिाब हदया , ' शकु क्रया , ककबला शौक फरमाएँ ।
4.ििाब सािब द्िारा खीरा खािे के शलए पूछिे पर लेखक िे तया जिाब हदया ?
(क) धन्यिाद , आप खीरा खाइए । (ख) धन्यिाद , मैं खीरा ििीं खािा ।
(ग) िाँ जी मैं खीरा खाऊँगा । (घ) जी आप पिले खाइए ।
उत्तर - विकल्प ( क ) सिी िै ।
व्याख्या - ििाब सािब द्िारा पिले लेखक को अिदे खा करिे और कफर अपिी शराफ़ि हदखािे के
शलए लेखक से खीरा खािे को पछ
ू े जािे पर लेखक िे भी शराफि से जिाब हदया कक आप खाइए|
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5. ' लथेड़ लेिा ' एक मि
ु ािरा िै , क्जसका अथि िै
(क) गन्दा करिा (ख) सियोग करिा (ग) शाशमल करिा (घ) इिमें से कोई ििीं
उत्तर - विकल्प ( ग ) सिी िै ।
III . ििाब सािब िे कफर एक पल र्खड़की से बािर दे खकर गौर ककया और दृढ़ तिश्चय से खीरों
के िीचे रखा िौशलया झाड़कर सामिे बबछा शलया । सीि के िीचे से लोिा उठाकर दोिों खीरों को
र्खड़की से बािर धोया और िौशलये से पोंछ शलया । जेब से चाकू तिकाला । दोिों खीरों के शसर
कािे और उन्िें गोदकर झाग तिकाला । कफर खीरों को बिुि एितियाि से छोलकर फाँकों को करीिे
से िौशलये पर सजािे गये । लखिऊ स्िे शि पर खीरा बेचिे िाले खीरे के इस्िेमाल का िरीका
जाििे िैं । ग्रािक के शलए जीरा शमला िमक और वपसी िुई लाल शमचि की पुडड़या भी िाक्जर कर
दे िे िैं ।
1.ििाब सािब िे ककस प्रकार खीरे को खािे योग्य बिाया ?
(क) पिले खीरों को गंदे पािी से धोया ।
(ख) खीरों के शसरों को चाकू से कािकर उसका तिकाला ।
(ग) खीरों को छ ला और फाँक कािकर उसके ऊपर िमक, जीरा ि लाल शमचि बुरका ।
(घ) उपयत
ुि ि से कोई ििीं
उत्तर - विकल्प ( ग ) सिी िै ।
4.लेखक िे ऐसा तयों किा िै कक लखिऊ स्िे शि पर खीरा बेचिे िाले खीरे के इस्िेमाल का
िरीका जाििे िैं ?
(क) लखिऊ स्िे शि पर सभी खािे का सामाि शमलिा िै ।
(ख) लखिऊ स्िे शि पर सभी फल शमलिे िैं ।
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(ग) लखिऊ स्िे शि पर चाय शमलिी िै ।
(घ) लखिऊ स्िे शि पर खीरा बेचिे िाले ग्रािकों के शलए जीरा शमला िमक और वपसी शमचि दे िे
िैं ।
उत्तर - विकल्प ( घ ) सिी िै ।
व्याख्या - खीरा पर यहद िमक - शमचि ि जीरा बरु क कर खाएँ िो िि बिुि स्िाहदष्ि लगिा िै
इसशलए स्िे शि पर खीरा बेचिे िाले इि मसालों की पडु ड़या साथ दे िे िैं ।
IV . ििाब सािब िे खीरे की सब फाँकों को र्खड़की के बािर फेंककर िौशलए से िाथ और िोंठ
पोंछ शलए और गिि से गल
ु ाबी आँखों से िमारी ओर दे ख शलया, मािो कि रिे िों - यि िै खािदािी
रईसों का िरीका !
ििाब सािब खीरे की िैयारी और इस्िेमाल से थककर लेि गए ।िमें िसलीम में शसर खम कर
लेिा पड़ा- यि िै खािदािी ििजीब , िफासि और िजाकि! िम गौर कर रिे थे,खीरा इस्िेमाल
करिे के इस िरीके को खीरे की सुगंध और स्िाद की कल्पिा से संिुष्ि िोिे का सूक्ष्म , िफ़ीस
या एब्सिै ति िरीका जरूर किा जा सकिा िै परं िु तया ऐसे िरीके उदर की िक्ृ ति भी िो सकिी
िै? ििाब सािब की ओर से भरे पेि के ऊँचे डकार का शब्द सुिाई हदया और ििाब सािब िे
िमारी ओर दे खकर कि हदया, 'खीरा लजीज िोिा िै लेककि िोिा िै सकील, िामुराद मेदे पर बोझ
डाल दे िा िै।
1.'िसलीम ' का अथि िै -
(क) मजबूरी (ग) सिमति
(ख)सम्माि (घ) िैरािी ।
उत्तर - विकल्प ( ख ) सिी िै ।
2.ििाब सािब द्िारा खीरा इस्िेमाल करिे के िरीके के बारे में लेखक िे तया सोचा ?
(क) यि िरीका खािदािी ििजीब का प्रमाण िै ।
(ख) तया इस िरीके से खीरे के स्िाद की कल्पिा से संिष्ु ि िुआ जा सकिा िै ?
(ग) इस िरीके से खीरे की सग
ु ंध का आिंद शलया जा सकिा िै ।
(घ) खीरा खािे का िरीका केिल हदखािा िै ।
उत्तर विकल्प ( ख ) सिी िै ।
90
व्याख्या - ििाब सािब द्िारा खीरे सूचकर स्िाद की कल्पिा से आँखें मूंद लेिे पर लेखक सोचिे
िैं कक तया ऐसे संिष्ु ि िुआ जा सकिा िै ।
3.खीरा लजीज िोिा िै , लेककि िोिा िै सकील , िामरु ाद मेदे पर बोझ डाल दे िा िै । ' ििाब
सािब के इस कथि का आशय िै –
(क)खीरा स्िाहदष्ि िोिा िै , पर आसािी से ि पचिे िाला िोिा िै इसीशलए मैदे पर बोझ डाल दे िा
िै ।
(ख) खीरा कडुिा िोिा िै , आसािी से पचिे िाला िोिा िै , पर मैदे बोझ डालिे िाला िोिा िै |
(ग) खीरा सुगंधधि िोिा िै , पर जल्दी ििीं पचिा इसशलए मेदे पर बोझ डालिे िाला िोिा िै ।
(घ) खीरा मीठा िोिा िै इसीशलए आसािी से पच जािा िै और मैदे पर बोझ ििीं डालिा ।
उत्तर - विकल्प ( क ) सिी िै ।
व्याख्या - आशय िै कक यद्यवप खीरा खािे में स्िाहदष्ि िोिा िै । लेककि शीघ्रिा से पचिा ििीं
िै क्जससे कमजोर मैदे िालों को उसे ििीं खािा चाहिए ।
4.लेखक िे िई किािी के लेखकों पर तया व्यंग्य ककया िै ?
(क) िई किािी के लेखक ििाब सािब की िरि हदखािा करिे िैं ।
(ख) िई किािी के लेखक अिंकारी िैं ।
(ग) िई किािी के लेखक किातियों में जीिि की सच्चाई का िणिि ििीं करिे ।
(घ) िई किािी के लेखक भी बबिा ककसी पात्र िथा विचार के िई किािी शलखिे की बाि करिे
िैं ।
उत्तर विकल्प ( घ ) सिी िै ।
5.ििाब सािब का खीरा खािे का ढं ग ककस िरि अलग था ?
(क) ििाब सािब िे िमक - शमचि लगी खीरे की फाँकों को ििीं उठाया ।
(ख) ििाब सािब िे खीरों को खािे के बजाय सूँघकर रसास्िादि ककया ।
(ग) ििाब सािब िे ितृ ि ि िोिे का अशभिय ककया ।
(घ) उपयत
ुि ि सभी
उत्तर - विकल्प ( ख ) सिी िै ।
व्याख्या- साधारणिः लोग खीरा का आिंद लेिे के शलए उन्िें खािे िैं लेककि ििाब सािब का उन्िें
केिल सूचकर रसास्िादि करिे का िरीका सबसे अलग था ।
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पाठ-14 एक किािी यि भी - मन्िू भंडारी
लेखक पररचर्
•स हहजत्र्क ववशेषत एां - मन्िू िांड री िे िर्ी कह िी आांदोलि में सकक्र् िूशमक निि ई है। मन्िू िांड री िे
कह िी और उपन्र् स दोिों ववध ओां में कलम चल ई हैं।
•ि ष शैली - इिकी ि ष शैली सरल ,सहज तथ ि व अशिव्र्जक्त में सक्षम हैं। इिकी रचि ओां में बोलच ल
की हहांदी ि ष के स थ-स थ उदय,ू अांग्रेजी,दे शज और तत्सम शब्दों क खब
ू प्रर्ोग हुआ है।
सारांश
'एक कह िी र्ह िी' मन्िू िांड री द्व र शलख आत्मपरक शैली में 'आत्मकथ्र्' हैं, जजसमें जजसमें लेखखक
िे उि व्र्जक्तर्ों और घटि ओां के ब रे में शलख है , जजन्होंिे उसके लेखकीर् जीवि को प्रि ववत ककर् है। इस
अांश में लेखखक के ककशोर जीवि की घटि ओां के स थ उसके वपत जी और उसके कॉलेज की प्र ध्र् वपक
शील अग्रव ल क ि म ववशेष रूप से उिर कर स मिे आर् है। इस आत्मकथ्र् में लेखखक के उिके वपत जी
से वैच ररक मतिेद क िी चचिण हुआ है। लेखखक द्व र एक स ध रण लड़की के अस ध रण बििे के
आरां शिक पड़ वों को प्रकट ककर् गर् है। इसके अल व १९४६ से ४७ की आज दी की लड़ ई में उसकी ि गीद री,
ओज, उत्स ह ,सांगठि क्षमत और ववरोध करिे के तरीके क ि वपूणय प्रि वपूणय वणयि है।
गद्यांश १
1. निभिशलखखत गद्र् श
ां को पहढ़ए और िीचे हदए गए प्रश्िों के सही उत्तर दीजजए -
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जन्मी िो मध्य प्रदे श के भािपुरा गांि में थी, लेककि मेरी यादों का शसलशसला शुरू िोिा िै अजमेर
के ब्रह्मपुरी मोिल्ले के उस दो- मंक्जला मकाि से , क्जसकी ऊपरी मंक्जल में वपिा जी का साम्राज्य
था, जिां िे तििायि अव्यिक्स्थि ढं ग से फैली - बबखरी पुस्िकों - पबत्रकाओं और अखबारों के
बीच या िो कुछ पढ़िे रििे थे या कफर ' डडतिे शि' दे िे रििे थे ।िीचे िम सब भाई- बहििों के
साथ रििी थीं िमारी बेपढ़ी-शलखी व्यक्तित्िवििीि मां... सिेरे से शाम िक िम सबकी इच्छाओं
और वपिाजी की आज्ञाओं का पालि करिे के शलए सदै ि ित्पर। अजमेर से पिले वपिाजी इंदौर
में थे जिां उिकी बड़ी प्रतिष्ठा थी, सम्माि था, िाम था।कांग्रेस के साथ-साथ िे समाज - सुधार
के कामों से भी जुड़े िुए थे।शशक्षा के िे केिल उपदे श िी ििीं दे िे थे, बक्ल्क उि हदिों आठ-आठ,
दस-दस विद्याधथियों को अपिे घर रखकर पढ़ाया िै क्जिमें से कई िो बाद में ऊंचे-ऊंचे ओिदों पर
पिुंचे।
क) भारिीय जििा पािी ख)कांग्रेस ग)आजाद हिंद पािी घ) कम्यतु िस्ि पािी
93
गद्यांश २
2. निभिशलखखत गद्र् श
ां को पहढ़ए और िीचे हदए गए प्रश्िों के सही उत्तर दीजजए -
आज िो मुझे बड़ी शशद्दि के साथ यि मिसूस िोिा िै कक अपिी क्जंदगी खुद जीिे के इस
आधुतिक दबाि िे मिािगरों के फ़्लैि में रििे िालों को िमारे इस परं परागि ‘पड़ोस-कल्चर’ से
विक्च्छन्ि करके िमें ककििा संकुधचि,असिाय और असरु क्षक्षि बिा हदया िै । मेरी कम-से-कम एक
दजिि आरं शभक किातियों के पात्र इसी मोिल्ले के िैं जिां मैंिे अपिी ककशोरािस्था गुजार अपिी
युिािस्था का आरं भ ककया था। एक-दो को छोड़कर उिमें से कोई भी पात्र मेरे पररिार का ििीं
िै।बस इिको दे खिे-सुििे, इिके बीच िी मैं बड़ी िुई थी लेककि इिकी छाप मेरे मि पर इििी
गिरी थी, इस बाि का अिसास िो मुझे किातियां शलखिे समय िुआ। इििे िषों के अंिराल िे
भी उिकी भाि-भंधगमा, भाषा, ककसी को भी धंुधला ििीं ककया था और बबिा ककसी विशेष प्रयास
के बड़े सिज भाि से िे उिरिे चले गए थे।
क) िम एक-दस
ू रे से दरू िो गए ख) िम एक-दस
ू रे के पास आ गए
94
क) असु+ रक्ष+इि ख) अ+सु+रक्षा+इि ग) अ+सु+रक्षक्षि घ) अ+सुरक्ष+इि
उत्तरमाला -
गद्यांश १
१.(ग) मध्यप्रदे श के भािपुरा गांि में , २.(घ) व्यक्तित्िवििीि , ३.(ख)कांग्रेस ,४.(ग)द्िंद्ि समास ,
५.(ग) बे+पढ़+ई
गद्यांश २
१.(ग) पड़ोस-कल्चर , २.(ख)मिािगरों की फ़्लैि संस्कृति िे , ३.(घ)कथि 'क' और 'ग' सत्य िैं, ४.(ग)
उसके मोिल्ले के,
५.(ख) अ+सु+रक्षा+इि
प्रश्ि १. मन्िू भंडारी की हिंदी प्राध्यावपका का तया िाम था? उत्तर - शीला अग्रिाल।
प्रश्ि २. रसोईघर को ' भहियारखािा ' ककसिे किा था? उत्तर - मन्िू भंडारी के वपिा िे।
प्रश्ि ४.मन्िू भंडारी िे ककस से वििाि ककया ? उत्तर - राजेंद्र यादि से।
प्रश्ि ५. अजमेर आिे के बाद लेकर किां के वपिा िे तया कायि ककया?
95
प्रश्ि ८.' एक कह िी र्ह िी' के रचनर्त कौि है? उत्तर - मन्िू िांड री।
प्रश्ि १०. ' िग्ि वशेष' शब्द क क्र् अथय है ? उत्तर - टूट -फूट शेष।
प्रश्ि १. लेखखक की अपिे वपत से वैच ररक टकर हट को अपिे शब्दों में शलखखए।
अथव
ककां तु लेखखक िे वह सब ककर् जो वपत जी िहीां च हते थे । फलथवरूप वैच ररक टकर हटें बढ़ीां।
लेखखक को अब र्ह थवीक र िहीां थ कक वपत जी उिकी थवतांित की सीम ओां को इति सांकुचचत कर दें
जजसमें घट
ु ि हो।
प्रश्ि २.अपिों क ववश्व सघ त मिुष्र् पर क्र् प्रि व ड लत है ?' एक कह िी र्ह िी ' के आध र पर शलखखए।
उत्तर - अपिों क ववश्व सघ त मिुष्र् को तोड़कर रख दे त है। इससे मिुष्र् बहुत शक्की, अहांक री ,क्ोधी
और चचड़चचड़ हो ज त है। उसक व्र्जक्तत्व खांड़डत हो ज त है।
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•पररजथथनतर्ों के अिुकूल जीवि त्रबत िे की र्ोग्र्त ।
प्रश्ि ४. लेखखक की म ां त्र् ग और धैर्य की पर क ष्ठ थी - कफर िी लेखखक के शलए आदशय ि बि सकी। क्र्ों?
उत्तर - लेखखक की म ां क धैर्,य त्र् ग और सहहष्णुत लेखखक के थवि व के ववपरीत थ , क्र्ोंकक उिक त्र् ग,
धैर्,य सहहष्णुत वववशत से उत्पन्ि गुण थे र् बच्चों के प्रनत सह िुिूनत से उत्पन्ि गुण थे। उिके चररि में
जो कुछ थ निरीहत क पररण म थ जो लेखखक के शलए रुचचकर िहीां थ ।दस
ू र क रण र्ह िी थ - म ां
बेपढ़ी-शलखी इच्छ रहहत थी अतः निह र्त असह र् मजबूरी से शलप्त उिक त्र् ग लेखखक के शलए आदशय
िहीां बि सक ।
प्रश्ि ५. ' एक किािी यि भी' िामक पाठ की लेर्खका मन्िू भंडारी का साहित्य की अच्छ पस्
ु िकों
से पररचय कैसे िुआ? उत्तर - कॉलेज में लेर्खका मन्िू भंडारी हिंदी प्राध्यावपका शीला अग्रिाल के
संपकि में आिे के बाद साहित्य की चुिी िुई पुस्िकें पढ़िे लगी। दे खिे-िी-दे खिे लेर्खका का
साहिक्त्यक दायरा शरिचंद्र, प्रेमचंद जी से बढ़िे-बढ़िे जैिेंद्र, अज्ञेय ,यशपाल ,भगििीचरण िमाि
से भी आगे बढ़िा गया।
प्रश्ि ६. मन्िू िांड री की ऐसी कौि- सी खुशी थी जो 15 अगथत 1947 की खुशी में सम कर रह गई ?
उत्तर - मन्िू िांड री और उसकी दो सहे शलर्ों के लग त र आांदोलि और ववरोध के क रण कॉलेज प्रबांधि को
थडय ईर्र की कक्ष एां पि
ु ः शरू
ु करिी पड़ीां और इि लड़ककर्ों क निलांबि रद्द करि पड़ ।लेखखक के शलए र्ह
बहुत बड़ी खुशी थी ,पर वह दे श को आि दी शमलिे की खुशी में दबकर रह गई।
प्रश्ि ७. मन्िू भंडारी की मां धैयि और सििशक्ति में धरिी से कुछ ज्यादा िी थीं - ऐसा तयों
किा गया?
उत्तर - मन्िू िांड री की म ां को धैर्य और सहिशजक्त में धरती से ज्र् द इसशलए कह गर् है कक वे हदििर
पनत और बच्चों की हर उचचत-अिुचचत इच्छ पूनतय के शलए सांघषय करती रहती थीां। पनत की आज्ञ ओां को वे
अपि प्र प्र् म िकर सहषय थवीक र करती थीां। किी ववरोध और शशक र्त िहीां करती थीां।
प्रश्ि ८. इस आत्मकथ्र् के आध र पर थव धीित आांदोलि के पररदृश्र् क चचिण करते हुए उसमें मन्िू जी
की िूशमक को रे ख ांककत कीजजए ।
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उत्तर - थव धीित आांदोलि के समर् लोगों में इति उत्स ह थ कक ऐसे म हौल में घर में बैठि सांिव िहीां हो
रह थ । इसी समर् प्र ध्र् वपक शील अग्रव ल की जोशीली ब तों से लेखखक को प्रेरण शमली। दे श-प्रेम की
ि वि ओां िे जो वपत जी की ि गीद री से थथ ि बि शलर् थ वो ि वि एां फूट पड़ी और लेखखक उसी
आांदोलि की र ह पर चल पड़ी। सिी कॉलेजों, थकूलों, दक
ु िों के शलए हड़त ल क आह्व ि ककर् । जगह-जगह
ि षण दे ि ,ह थ उठ कर ि रे लगव ि , हड़त लें करव ि आहद में लेखखक अपिी सकक्र् िशू मक निि रही
थी।
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लेखक का संक्षक्षति पररचय : जन्म : 12/4/1977, अयोध्या, उत्तर प्रदे श। उन्िोंिे लखिऊ
विश्िविद्यालय से एम.ए. की उपाधध प्राति की। सि ् 1999 में साहित्य और कलाओं के सम्िद्िधि
और अिुशलीि के शलए एक सांस्कृतिक न्यास ‘विमला दे िी फाउं डेशि’ का संचालि भी कर रिे िैं।
भाषा : शमश्र जी हिंदी खड़ी बोली के लेखक िैं। उन्िोंिे अपिी रचिाओं में व्याििाररक और सरल
भाषा का प्रयोग ककया िै। िे विषय के अिुसार भाषा बदलिे रििे िैं। आपिे ित्सम, िद्भि, दे शी
और विदे शी शब्दों का चुिराई से प्रयोग ककया िै । सरलिा और सरसिा आपकी भाषा की विशेषिा
िै। आपकी भाषा बोर्झल ििीं िै । आपकी भाषा पाठक को पूरे समय िक बांधे रखिी िै ।
शैली : शमश्र जी की शैली के विविध रूप कुछ इस प्रकार िैं। िणाित्मक शिली का प्रयोग, भािात्मक
शैली का प्रयोग, संश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग, वििेचिात्मक शैली का प्रयोग।
मुख्य कृतियां : कवििा संग्रि, ड्योढी पर आलाप, यदाकदा, अयोध्या िथा अन्य कवििाएं।
सम्माि : ऋिरु ाज सम्माि, राजीि गांधी राष्िीय एकिा पुरस्कार, भारि भूषण अग्रिाल स्मतृ ि
पुरस्कार, िे मंद स्मतृ ि कवििा पुरस्कार, भारिीय भाषा पररषद युिा पुरस्कार, रजा पुरस्कार।
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पाठ का सारांश
प्रस्िि
ु लेख यिींद्र शमश्र द्िारा रधचि व्यक्ति–धचत्रलेखा िैं। ‘िौबिखािे में इबादि’ में लेखक िे
प्रशसद्ध िादक उस्िाद बबक्स्मल्लाि खां के व्यक्तिगि पररचय दे िे के शलए। साथ िी उिकी रुधचयां,
उिके अंिमिि की बिािि, संगीि साधिा एिं लग्ि का माशमिक एिं सजीि धचत्रण ककया िै। उन्िोंिे
स्पष्ि ककया िै कक संगीि एक साधिा िै। इसका अपिा विधध-विधाि और शास्त्र िै। इस शास्त्र
पररचय के साथ िी अभ्यास भी आिश्यक िै। यिां बबक्स्मल्लाि खां की लग्ि एिं धैयि के माध्यम
से बिाया गया िै कक संगीि के अभ्यास के शलए पण
ू ि िन्यमिा, धैयि एिं मंथि के अलािा गरु
ु
शशष्य परं परा का तििािि भी जरूरी िै। यिां दो संप्रदायों के एक िोिे की भी प्रेरणा दी गई िै।
अम्मीरुद्दीि उफ़ि बबक्स्मल्लाि खाँ का जन्म बबिार में डुमराँि के एक संगीि प्रेमी पररिार में िुआ।
इिके बड़े भाई का िाम शम्सद्
ु दीि था जो उम्र में उिसे िीि िषि बड़े थे। इिके परदादा उस्िाद
सलार िुसैि खाँ डुमराँि के तििासी थे। इिके वपिा का िाम पैग़म्बरबख़्श खाँ िथा माँ शमट्ठि
थीं। पांच-छि िषि िोिे पर िे डुमराँि छोड़कर अपिे ितििाल काशी आ गए। ििां उिके मामा
साहदक िुसैि और अलीबतश िथा िािा रििे थे जो की जािे मािे शििाईिादक थे। िे लोग बाला
जी के मंहदर की ड्योढ़ी पर शििाई बजाकर अपिी हदिचयाि का आरम्भ करिे थे। िे विशभन्ि
ररयासिों के दरबार में बजािे का काम करिे थे।
ितििाल में 14 साल की उम्र से िी बबक्स्मल्लाि खाँ िे बाला जी के मंहदर में ररयाज करिा शरू
ु
कर हदया। उन्िोंिे ििां जािे का ऐसा रास्िा चुिा जिाँ उन्िें रसल
ू ि और बिल
ू ि बाई की गीि
सुिाई दे िी क्जससे उन्िें ख़ुशी शमलिी। अपिे साक्षात्कारों में भी इन्िोिें स्िीकार ककया की बचपि
में इिलोगों िे इिका संगीि के प्रति प्रेम पैदा करिे में भूशमका तिभायी। भले िी िैहदक इतििास
में शििाई का क्जक्र िा शमलिा िो परन्िु मंगल कायों में इसका उपयोग प्रतिक्ष्ठि करिा िै अथािि
यि मंगल ध्िति का सम्पूरक िै । बबक्स्मल्लाि खाँ िे अस्सी िषि के िो जािे के िाबजूद िमेशा
पाँचो िति िाली िमाज में शििाई के सच्चे सरु को पािे की प्राथििा में बबिाया। मि
ु रि म के दसों
हदि बबक्स्मल्लाि खाँ अपिे पूरे खािदाि के साथ िा िो शििाई बजािे थे और िा िी ककसी
कायिक्रम में भाग लेिे। आठिीं िारीख को िे शििाई बजािे और दालमंडी से फािमाि की आठ
ककलोमीिर की दरु ी िक भींगी आँखों से िोिा बजाकर तिकलिे िुए सबकी आँखों को शभंगो दे िे।
99
शब्दाथि
ड्योढ़ी- दिलीज
िौबिखािा- प्रिेश द्िार के ऊपर मंगल ध्िति बजािे का स्थाि
राग – विशेष सरु – लय से यत
ु ि ध्िति – समि
ू
भीमपलासी , मुलिािी – रागों के िाम
िाक्जब – उधचि
शलिाज – ख़याल
गोया- मािो / जैसे
मामाद्िय – दोिों मामा
ररयासि – राज / शासि
रोजिामचे – िर हदि का ब्यौरा शलखिे िाली िोिबुक
विग्रि – मूतिि
पेशा- व्यिसाय
ितििाल – िािा का घर
रीड – िाद्ययंत्र की िाड़ी क्जससे आिाज तिकलिी िै
पोली – खोखली
िाद्य – साज / बाजा
सािबजादा- पुत्र
मसलि- उदािरणस्िरूप
ररयाज – अभ्यास
बोल – बिाि – शब्दों को विशभन्ि सुरों में गािा या बजािा
माफ़िि – द्िारा
आसक्ति – लगाि
अबोध – बोधरहिि / छोिी
उकेरिा- खींचिा
िैहदक- िेद से संबद्ध
शास्त्रांिगिि – शास्त्र के अंिगिि
100
सुवषर- िाद्य – फँू ककर बजाए जािे िाला िाद्ययंत्र
श्रग
ंृ ी – सींग से तिशमिि एक साज
मुरछं ग – एक लोक बाजा / प्रभामंडल
संपूरक – अच्छ िरि भर लेिे िाला
िेमि- ईश्िरीय दे ि / धि – दौलि
सजदा – ईश्िर के सामिे शसर झुकािा
इबादि – उपासिा
बख्शिा – दाि दे िा
िासीर – प्रभाि / गुण
अिगढ़ – बबिा गढ़ा िुआ / उजिड
मेिरबाि – कृपालु
मुराद – चाि / माँग
ऊिापोि – उलझि
शरण- आश्रय
तिशलस्म – जाद ू
गमक – सग
ु ंध
िमीज – अदब
सलीका – ढं ग / शऊर
शशरकि – भाग लेिा
िौिा- करबला के शिीदों पर केंहद्रि शोक गीि
शिादि – शिीदी
गमजदा – दःु खपूणि
सुकूि – चैि
जुिूि – उन्माद
बदस्िरू – यथािि / िरीके से
कायम – विद्यमाि
क्जक्र- उल्लेख
िैसधगिक – स्िाभाविक
101
खाररज – रद्द करिा
सम – जिाँ संगीि में लय का अंि िो
दाद – शाबाशी
िाशसल – प्राति
मेिििािा – पाररश्रशमक
आरोि – अिरोि – संगीि में सुरों का उिार – चढ़ाि
ररयाजी – अभ्यासी
स्िादी – खािे के वप्रय
अद्भुि – अिोखा
उत्कृष्ि- उम्दा
मजिब – धमि
इस्िेमाल – प्रयोग
अकसर – प्राय
पुश्ि – पीढ़ी
िालीम – शशक्षा
अदब – शशष्िाचार
जन्िि – स्िगि
आिंदकािि – सुख का िि
रशसक – प्रेमी
उपकृि – एिसािमंद
ििजीब – शशष्ििा
सेिरा – बन्िा – सेिरा के समय गाया जािे िाला गीि
शसर चढ़कर बोलिा – अत्यधधक प्रभाविि करिा
सरगम – सुरीली ध्ितियों का समूि
बेिाला – लयरहिि
परिरहदगार – ईश्िर
िसीिि- राय
सुबिाि अल्लाि – पाक िै ईश्िर
102
अलिमदशु लल्लाि- िमाम िारीफ़ ईश्िर के शलए
उपज – िई िाि
करिब – कौशल
अजाि – िमाज
सिक – सतिक / साि स्िरों की श्रंख
ृ ला
ििमद – लुंगी / एक िस्त्र
दआ
ु - प्राथििा
शशद्दि – प्रबलिा
खलिा – खिकिा
संगतिया – गािे – बजािे िालों की मंडली में शाशमल व्यक्ति
अफसोस – पछिािा
लुति- गायब
थाप – िबले आहद पर िथेली से तिकाला गया ‘ थतप ‘ का स्िर
मरण – मत्ृ यु
िायाब – दल
ु भ
ि
कौम – िंश / जाति
अलंकृि- सुशोशभि
अजेय – सदा विजयी
क्जजीविषा – जीिे की इच्छा
प्रश्िोत्तरी
प्र०1. शििाई की दतु िया में डुमरांि को तयों याद ककया जािा िै ?
उत्तर:– शििाई की दतु िया में डुमरांि को इसशलए याद ककया जािा िै , तयोंकक शििाई और डुमरांि
एक–दसू रे का बिुि िी गिरा संबंध िै । शििाई बजािे के शलए रीड या िरकि िामक घास से बिाई
जािी िै। यि रीड अंदर से गीली िोिी िै क्जसके सिारे शििाई को फँू का जािा िै । यि रीड या
िरकि घास डुमरांि में विशेष रूप से सोि िदी के ककिारों पर पाई जािी िै । विश्ि प्रशसद्ध शििाई
िादक उस्िाद बबक्स्मल्ला खा का जन्म स्थाि डुमरांि िी िै । इिके परदादा उस्िाद सलार िुसैि
खां भी डुमरांि के िी रििे िाले थे।
103
प्र०2. बबक्स्मल्ला खाँ को शििाई की मंगलध्िति का िायक तयों किा गया िै ?
उत्तर:– बबक्स्मल्ला ख़ाँ को शििाई की मंगलध्िति का िायक इसशलए किा जािा िै , तयोंकक िे
अपिी 80 िषि के अंतिम पड़ाि में भी सच्चे सूर के शलए खुदा से प्राथििा करिे िैं िथा प्रतिहदि
की अपिी प्रत्येक िमाज में इसी सुर को प्राति करिे की प्राथििा करिे। उिकी यिी िाहदि क इच्छा
रििी थी कक लोगों के मांगशलक कायिक्रमों में उिकी शििाई की धुि बजिी रिे । िे चाििे थे कक
चािे ककसी भी कायिक्रम का आयोजि िो उसमें उिकी िी शििाई की धुि प्रशसद्ध िो।
प्र०3. सवु षर – िाघो से तया अशभप्राय िै ? शििाई को ‘सुवषरिाघो में शाि ’ की उपाधध तयों दी गई
िोगी?
उत्तर:– ‘ सुवषर – िाद्य ’ उन्िें किा जािा िै क्जिको फूंक बजाया जािा िै । िैहदक इतििास में
शििाई का उल्लेख ििीं शमलिा। अरब दे श में फँू ककर बजाए जािे िाले िाद्य क्जसमें िाड़ी िोिी
िै, उसे ‘िय’ कििे िैं। सुवषर – िाद्य में शििाई, मुरली, िंशी, श्रंग
ृ ी, मूतछि ि आहद आिे िैं। इिमें
शििाई को मंगल का पररिेश प्रतिक्ष्ठि करिे िाला िाघ मािा गया िै। इसी आधार पर शििाई
को ‘सुवषर – िाघो में शाि ’ की उपाधध दी गई िै।
उत्तर:– प्रस्िुि पंक्तियों का आशय यि िै कक बबक्स्मल्ला खां ईश्िर से प्राथििा करिे िैं कक उिकी
लूंगी भले िी फि जाए परं िु शििाई का स्िर कभी ि फिे , िि सदै ि पूणि एिं सच्चा बिा रिे ।
लुंगी का तया िै िि फि जाए िो दोबारा सील जाएगी परं िु सुर फििे के बाद उसमें सुधार ििीं
ककया जा सकिा। सुर अच्छा िोगा िो लोगों के हदल में भी अच्छ जगि िोगी, लूंगी फिे गी िो
आज ििीं िो कल शमल िी जाएगी।
(ख) ‘मेरे माशलक सुर बख्श दे । सुर में िि िासीर पैदा कर कक आंखों से सच्चे मोिी की िरि
अिगढ़ आँसू तिकल आए।
उत्तर:– प्रस्िुि पंक्तियों में कििे का आशय यि िै कक बबक्स्मल्ला खाँ 80 िषि की अिस्था में भी
पांचों िति िमाज पढ़िे और खुदा से सच्चे सुर को प्राति करिे की प्राथििा करिे थे। िे अपिे सुर
104
में ऐसा प्रभाि पािा चाििे थे कक उसके प्रभाि से भाि – विभोर िोकर प्रत्येक आंख से सच्चे
मोतियों की िरि चमकिे आंसू बििे लगे।
प्र०5. काशी में िो रिे कौि से पररिििि बबक्स्मल्ला खाँ को व्यधथि करिे थे?
उत्तर:– काशी जो संगीि, साहित्य और आदर सम्माि की परं पराओं के शलए प्रशसद्ध थी। आज ििां
की परं पराओं में पररिििि आ गया िै। गायकों के मि में अपिे संगीिकारों की कोई धचंिा ििीं
रिी और ि आदर रिा, घंिो ककए जािे िाले ररयाज को कोई ििीं पछ
ू िा। संगीि, साहित्य आदर
की अधधकिम परं पराएं प्राय: लतु ि िो गई थी। ििां से मलाई – बफि बेचिे िाले भी जा चक
ु े िैं।
दे सी घी की बिी कचौड़ी अब ििां ििीं शमलिी। इि सब को दे ख कर बबक्स्मल्ला ख़ाँ व्यधथि िो
उठे थे।
उत्तर:– िे एक शशया मुसलमाि के बेिे थे। अपिे धमि के प्रति अत्यधधक समवपिि उस्िाद बबक्स्मल्लाि
खां की अपार श्रद्धा एिं अिूि विश्िास भगिाि विश्ििाथ जी, बालाजी एिं गंगा जी के प्रति भी
थी। िि अल्लाि की इबादि भैरिी में करिे थे। िाम अल्लाि का िै राग िो भैरि िै। िे इि दोिों
को एक माि ि जाि कर िी साधिे थे। उि प्रसंगों के आधार पर िम कि सकिे िैं कक बबक्स्मल्ला
खां शमली-जल
ु ी संस्कृति के प्रिीक थे।
उत्तर:–1. बबक्स्मल्ला खां िे अपिे िुिर को िमेशा भगिाि की दे ि मािा और अपिे शििाई बजािे
को उन्िोंिे बाजार में ििीं भि ु ाया।
2. ििाई जिाज से यात्रा करिा पसंद ििीं करिे थे।
3. पांच शसिारा िोिल में रि ििीं पािे थे।
4.शििाई बजािे की फीस उििी िी लेिे थे क्जििे कक उन्िें आिश्यकिा िोिी थी।
5.उन्िें काशी से बिुि लगाि था। िे कििे थे यिां िमारी कई पुश्िों िे शििाई बजाई िै । जैसी
तिष्ठा उिकी शििाई िादि के प्रति थी िैसी िी काशी के प्रति भी।
6. िे काशी से बढ़कर ककसी जन्िि को इस धरिी पर ििीं माििे थे। अिः िि हृदय के स्िामी
िास्िविक अथों में एक सच्चे इंसाि थे।
7.िि दे ख-रे ख के हदखािे में ििीं आिे थे।
105
प्र०7. बबक्स्मल्ला खां के जीिि से जुड़ी उि घििाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें क्जन्िोंिे
उिकी संगीि साधिा को समद्
ृ ध ककया?
उत्तर:– बबक्स्मल्ला खां के व्यक्तित्ि की अिेक विशेषिाएं िैं क्जन्िोंिे िमें प्रभाविि ककया िै:
1. सििप्रथम िमें उिके अपिे लक्ष्य के प्रति समपिण की भाििा िे प्रभाविि ककया िै।
2.उन्िोंिे अपिे जीिि में संगीि को िी िरीयिा दी िथा अन्य बािों को गौण रखा।
3.शििाई िादक के रूप में प्रशसद्धध पािे ि भारिरत्ि जैसे पुरस्कारों से पुरस्कृि िोिे के बाद भी
ककसी िरि की कोई बािरी हदखािा ि करके िे बिुि िी सादे कपड़ों में रििे।
4.उिका सिज प्रिवृ त्त िी हदखाई दे िा।
5.उिके हृदय में हिंद ू मुक्स्लम संप्रदाय में एकिा बिाए रखिे की भाििा भी प्रबल रूप से विद्यमाि थी।
6. उन्िोंिे िमेशा प्रेम ि भाईचारे की भाििा को मजबूि ककया।
7. िे ककसी से भी ककसी भी प्रकार का समझौिा ििीं करिे थे।
8. िि एकदम सादगी भरा जीिि जीिे थे, ककसी से ककसी भी प्रकार का मिमुिाि ििीं रखिे थे।
9. िमेशा खश
ु और संिुष्ि रििे थे िथा अपिे शििाई की धुि के प्रशसद्ध िोिे का ख्िाब दे खिे थे।
उत्तर:– ‘मुिरि म’ बबक्स्मल्ला खां िथा शििाई के साथ जुड़ा िुआ एक मुक्स्लम पिि िै । मुिरिम के
मिीिे में शशया मुसलमाि िजरि इमाम िुसैि िथा उिके िसंजो के प्रति मािम मिािे िैं। पूरे
10 हदिों िक चलिे िाले इस मािम के दौराि ककसी िरि का कोई संगीि कायिक्रम आयोक्जि
ििीं ककया जािा िै। आठिें हदि बबक्स्मल्ला खां खड़े िोकर शििाई बजािे थे िथा दालमंडी में
106
फािमाि के करीब 8 ककलोमीिर दरू पैदल रोिे िुए, शोक की धुि बजािे िुए जािे थे। िे इमाम
िुसैि और उिके पररिार के लोगों की कुबाििी में रोिे रििे। मि
ु रि म के इस गमगीि मािौल से
बबक्स्मल्ला खां का विशेष लगाि था।
प्र०10. बबक्स्मल्ला खां कला के अिन्य उपासक थे, िकि सहिि उत्तर दीक्जए।
उत्तर:– बबक्स्मल्ला खां 80 िषि की अिस्था में भी सच्चे सरु को पािे के शलए ईश्िर से प्राथििा
करिे रिे । िे कई घंिे िक शििाई बजािे का ररयाज करिे रििे थे। िे संगीि कला की उपासिा
में लगे रििे थे। उन्िें कुलसम
ु िलिाइि की दे सी घी की कचौड़ी संगीिमय लगिी थी। जब कचौड़ी
घी में डाली जािी थी, उस समय छन्न्ि से उठिे िाली आिाज में भी उन्िें सारे आरोि– अिरोि
हदख जािे थे।
प्र०11. बबक्स्मल्ला खां जीिि भर ईश्िर से तया मांगिे रिे और तयों ? इससे उिकी ककि विशेषिा
का पिा चलिा िै ?
उत्तर :- बबक्स्मल्ला खां जीिि भर सच्चे सुर की िेमि मांगिे रिे तयोंकक िे एक सच्चे कलाकार
थे। िमेशा शसखिे रििे थे एिं पूणि
ि : पािे की ललक या इच्छा रििी थी।
इससे उिकी वििम्रिा, ईश्िर पर आस्था, सच्चे संगीि के साधक िोिे का पिा चलिा िै।
प्र०12. बबक्स्मल्ला खां काशी तयों ििीं छोड़िा चाििे िैं? कोई दो कारण शलर्खए।
उत्तर :- बबक्स्मल्ला खां तिम्िशलर्खि अगाध श्रद्धा के कारण काशी को ििीं छोड़िा चाििे िैं-
अपिी खािदाि की कई पुस्िों द्िारा यिां शििाई बजािे के कारण
काशी से िी उन्िें अदब और िालीम प्राति िोिे के कारण
काशी के लोगों से अपार स्िेि प्राति िोिे के कारण
प्र०13. कैसे किा जा सकिा िै कक बबक्स्मल्ला खां सािब सच्चे अथों में भारि रत्ि थे?
उत्तर :- बबक्स्मल्ला खां सािब शास्त्रीय संगीि और शििाई को विश्ि भर में ियी पिचाि हदलाई।
उिका सभी धमों के प्रति आदर, व्यक्तित्ि सरलिा और सादगी भारिीय गंगा-जमुिा संस्कृति का
प्रमाण िै। इि सभी कारणों से िी बबक्स्मल्ला खां सािब सच्चे अथों में भारि रत्ि थे।
107
प्र०14. एक संगीिज्ञ के रूप में खां सािब का जीिि िमें विद्याथी जीिि के शलए ककि मूल्यों की
शशक्षा दे िा िै ?
उत्तर :- संगीिज्ञ खां सािब का जीिि विद्याधथियों के शलए आदशि िै। सच्ची लगि, बिाि-श्रंग
ृ ार
की अपेक्षा सादगी, समपिण, अिंकारिीििा, सांप्रदातयक सौिाद्रि , समन्ियिादी दृक्ष्ि आहद मूल्य
विद्याथी जीिि के शलए शशक्षा दे िा िै।
अमीरुद्दीि अभी शसफि छः साल का िै और बड़ा भाई शम्सुद्दीि िौ साल का। अमीरुद्दीि को
पिा ििीं िै कक राग ककस धचडड़या को कििे िैं। और ये लोग िैं मामूजाि िगैरि जो बाि-बाि
पर भीमपलासी और मुलिािी कििे रििे िैं। तया िाक्जब मिलब िो सकिा िै इि शब्दों का,
इस शलिाज से अभी उम्र ििीं िै अमीरुद्दीि की, जाि सके इि भारी शब्दों का िजि ककििा
िोगा।
गोया, इििा जरूर िै कक अमीरुद्दीि ि शम्सुद्दीि के मामाद्िय साहदक िुसैि िथा अलीबख्श
दे श के जािे-मािे शििाई िादक िैं। विशभन्ि ररयासिों के दरबार में बजािे जािे रििे िै।
रोजिामचे में बालाजी का मंहदर सबसे ऊपर आिा िै । िर हदि की शुरुआि ििीं ड्योढ़ी पर िोिी
िै।
मंहदर के विग्रिों को पिा ििीं ककििी समझ िै , जो रोज बदल-बदलकर मुलिािी, कल्याण
लशलि और कभी भैरि रागों को सुििे रििे िैं। ये खािदािी पेशा िै अलीबखा के घर का। उिके
अब्बाजाि भी यिीं ड्योढ़ी पर शििाई बजािे रििे िैं।
108
प्रश्ि 3. तिम्िशलर्खि शब्दों के विलोम शब्द शलर्खए ।
1. दे श
2. राग।
उत्तर : विलोम शब्द :
1. दे श × विदे श
2. राग × विराग
***********@@************************@@*************************
लेखक पररचय
बौद्ध शभक्षु भदं ि आिंद कौसल्यायि का जन्म 1905 में अंबाला क्जले के सोिािा गाँि में िुआ।
उन्िोंिे दे श-विदे श में काफ़ी यात्राएँ कीं। िे गांधी जी से विशेष प्रभाविि थे िथा लंबे असे िक
उिके साथ रिे । िे हिंदी के अन्यिम सेिक थे। हिंदी साहित्य सम्मेलि, प्रयाग िथा राष्ि भाषा
प्रचार सशमति, िधाि के माध्यम से उन्िोंिे हिंदी के शलए मित्त्िपण
ू ि कायि ककया। िषि 1988 में
उिका दे िांि िो गया। भदं ि आिंद कौसल्यायि की 20 से भी अधधक पुस्िकें िैं, क्जिमें से प्रमुख
- शभक्षु के पत्र, जो भूल ि सका, किाँ तया दे खा, यहद बाबा ि िोिे िथा आि! ऐसी दररद्रिा।
उन्िोंिे कई ग्रंथों का अिुिाद भी ककया िै। सिजिा और सरलिा उिकी भाषा का सबसे बड़ा गुण
िै। सरल, सिज और बोलचाल की भाषा में शलखे गए उिके तिबंध, संस्करण और यात्रा िि
ृ ांि बड़े
चधचिि रिे िैं।
109
पाठ का सार
• लेखक कििे िैं की सभ्यिा और संस्कृति दो ऐसे शब्द िैं क्जिका उपयोग अधधक िोिा िै परन्िु
समझ में कम आिा िै। इिके साथ विशेषण लगा दे िे से इन्िे समझिा और भी कहठि िो जािा
िै। कभी-कभी दोिों को एक समझ शलया जािा िै िो कभी अलग। आर्खर ये दोिों एक िैं या
अलग। लेखक समझािे का प्रयास करिे िुए आग और सुई-धागे के आविष्कार का उदािरण दे िे
िैं। िि उिके आविष्किाि की बाि किकर व्यक्ति विशेष की योग्यिा, प्रिवृ त्त और प्रेरणा को
व्यक्ति विशेष की संस्कृति कििा िै क्जसके बल पर आविष्कार ककया गया।
• अपिी बुद्धध के आधार पर िए तिक्श्चि िथ्य को खोजकर आिे िाली पीढ़ी को सौंपिे िाला
संस्कृि िोिा िै जबकक उसी िथ्य को आधार बिाकर आगे बढ़िे िाला सभ्यिा का विकास करिे
िाला िोिा िै । भौतिक विज्ञाि के सभी विद्याथी जाििे िैं कक न्यि
ू ि िे गरु
ु त्िाकषिण के शसद्धांि
का आविष्कार ककया इसशलए िि संस्कृि किलाया परन्िु िि और अिेक बािों को ििी जाि
पाया। आज के विद्याथी उि बािों को भी जाििे िै लेककि िम इन्िे अधधक सभ्य भले िी किे
परन्िु संस्कृि ििी कि सकिे।
• मािि हिि में काम ि करिे िाली संस्कृति का िाम असंस्कृति िै । इसे संस्कृति ििी किा जा
सकिा। यि तिक्श्चि िी असभ्यिा को जन्म दे िी िै। मािि हिि में तिरं िर पररििििशीलिा का
िी िाम संस्कृति िै ।
गद्यांश I. (पष्ृ ठ- 129) एक संस्कृि व्यक्ति ककसी ियी चीज की खोज करिा िै ; ककंिु उसकी
संिाि को िि अपिे पूिज
ि से अिायास िी प्राति िो जािी िै । क्जस व्यक्ति की बुद्धध िे अथिा
उसके वििेक िे ककसी भी िये िथ्य का दशिि ककया, िि व्यक्ति िी िास्िविक संस्कृि व्यक्ति िै
और उसकी संिाि क्जसे अपिे पि
ू ज
ि से िि िस्िु अिायास िी प्राति िो गई िै , िि अपिे पि
ू ज
ि
की भांति सभ्य भले िी बि जाए, संस्कृि ििीं किला सकिा। एक आधतु िक उदािरण लें । न्यूिि
िे गुरुत्िाकषिण के शसद्धांि का अविष्कार ककया। िि संस्कृि मािि था। आज के युग का भौतिक
विज्ञाि का विद्याथी न्यूिि के गुरुत्िाकषिण से िो पररधचि िै िी लेककि उसके साथ उसे और भी
अिेक बािों का ज्ञाि प्राति िै ; क्जिसे शायद न्यि
ू ि अपररधचि िी रिा। ऐसा िोिे पर भी िम
110
आज के भौतिक विज्ञाि के विद्याथी को न्यूिि की अपेक्षा अधधक सभ्य भले िी कि सकें; पर
न्यूिि क्जििा संस्कृि ििीं कि सकिे।
(क) क्जसिे िए िथ्य के दशिि ककए िों। (ख) क्जसको कोई चीज अिायास प्राति िो गई िो।
(क) बबिा प्रयास के (ख) प्रयास से (ग) क्जसकी अमंशा िो (घ) क्जसमें तिराशा िो
(क) आिंद (ख) भदं ि आिंद कौसल्यायि (ग) भदन्ि स्िामी (घ) िंशी घर
गद्यांश II. (पष्ृ ठ-130) िमारी समझ में मािि संस्कृति की जो योग्यिा आग ि सई
ु -धागे का
आविष्कार करािी िै ; िि भी संस्कृति िै जो योग्यिा िारों की जािकारी करािी िै , िि भी िै ; और
जो योग्यिा ककसी मिामािि से सििस्ि त्याग करािी िै , िि भी संस्कृति िै । और सभ्यिा ?
सभ्यिा िै संस्कृति का पररणाम। िमारे खािे-पीिे के िरीके, िमारे ओढ़िे पिििे के िरीके, िमारे
गमिागमि के साधि, िमारे परस्पर कि मरिे के िरीके; सब िमारी सभ्यिा िै । मािि की जो
योग्यिा उससे आत्म-वििाश के साधिों का अविष्कार करािी िै , िम उसे उसकी संस्कृति किें या
असंस्कृति ? और क्जि साधिों के बल पर िि हदि-राि आत्म-वििाश में जुिा िुआ िै , उन्िें िम
उसकी सभ्यिा समझें या असभ्यिा ? संस्कृति का यहद कल्याण की भाििा से िािा िूि जाएगा
111
िो िि असंस्कृति िोकर िी रिे गी और ऐसी संस्कृति का अिश्यंभािी पररणाम असभ्यिा के
अतिररति दस
ू रा तया िोगा ?
(घ) उपयत
ुि ि सभी
2. सभ्यिा तया िै ?
(ग) दस
ू रों को बिािा (घ) उपयत
ुि ि सभी
(ग) दस
ू रों का कल्याण करिा (घ) अन्य उपाय
112
पाठ्य पुस्िक के प्रश्िोत्तर
1. लेखक की दृक्ष्ि में 'सभ्यिा' और 'संस्कृति' की सिी समझ अब िक तयों ििीं बि पाई िै ?
उत्तर - लेखक की दृक्ष्ि में 'सभ्यिा' और 'संस्कृति' की सिी समझ ि बि पािे का कारण यिी िै
कक इि शब्दों का प्रयोग िो बिुि अधधक िोिा िै , लेककि इिके अथों को जाििे के शलए िम
गंभीरिापि
ू क
ि विचार ििीं करिे। इस पर भी कई प्रकार के विशेषण जैसे कक 'भौतिक सभ्यिा',
'आध्याक्त्मक सभ्यिा' या 'हिंद ू संस्कृति' अथिा 'मक्ु स्लम संस्कृति' आहद का प्रयोग करके इन्िें और
भी उलझा हदया जािा िै और बाि समझ से बबल्कुल बािर िो जािी िै ।
2. आग की खोज एक बिुि बड़ी खोज तयों मािी जािी िै ? इस खोज के पीछे रिी प्रेरणा के
मुख्य स्रोि तया रिे िोंगे ?
उत्तर- आग की खोज को एक बिुि बड़ी खोज मािे जािे का कारण यि िै कक इसिे मािि-सभ्यिा
का स्िरूप िी बदल हदया। आग की खोज से पूिि आहद मािि फल, अिाज या मांस को कच्चा िी
खािा रिा था। आग की खोज िे भोजि पकािे िी ििीं, धािुओं को ढालिे, बििि और िधथयार
बिािे जैसी विधधयों का विकास भी ककया, जो आधुतिक सभ्यिा के विकास का आधार बिा। इस
खोज के पीछे की मुख्य प्रेरणा िो िति-बेिति भोजि का प्रबंध कर पािे की क्षमिा प्राति करिा
िी रिा िोगा। लेककि इसिे मािि समाज की दशा और प्रगति की हदशा में एक क्रांतिकारी पररिििि
ला हदया।
उत्तर- जो व्यक्ति केिल अपिा पेि भरिे या िि ढँ किे िक िी अपिी योग्यिाओं को सीशमि ििीं
रखिा, ििी िास्िविक अथों में एक संस्कृि व्यक्ति िै । जो व्यक्ति अपिी बुद्धध और क्षमिाओं
का प्रयोग अज्ञाि को जाि लेिे की हदशा में करिे िाला िो िथा जािे िुए को मािि मात्र के
कल्याण के शलए लगा दे िे का प्रयास करिे िाला िो, सिी अथों में संस्कृि िै । संस्कृति का आधार
िी मािि कल्याण िै। जो व्यक्ति मािि मात्र के कल्याण से ििकर तिक्ज हििों का पोषण करिे
की भाििा से प्रेररि िै , उसे संस्कृि ििीं किा जा सकिा, भले िी िि ककििा िी बड़ा ज्ञािी या
सभ्य (सुविधासंपन्ि) तयों ि िो।
4.. न्यूिि को संस्कृि मािि कििे के पीछे कौि-से िकि हदए गए िैं? न्यि
ू ि द्िारा प्रतिपाहदि
113
शसद्धांिों एिं ज्ञाि की कई दस
ू री बारीककयों को जाििे िाले लोग भी न्यूिि की िरि संस्कृि ििीं
किला सकिे, तयों ?
उत्तर- सई
ु -धागे के अविष्कार के पीछे दो मख्
ु य प्रिवृ त्तयाँ रिी िोंगी सदी िथा गमी के प्रभाि से
बचिे के शलए िस्त्रों को शरीर पर भली भांति बाँध लेिे की आिश्यकिा। दस
ू रे इसमें किीं सजिे-
संिरिे की प्रिवृ त्त िे भी प्रेरक की भूशमका तिभाई िोगी।
उत्तर- लेखक भदं ि आिंद कौसल्यायि मािि संस्कृति को एक अविभाज्य िस्िु माििे िैं। लेककि
इतििास गिाि िै कक इस प्रकार की चेष्िाएँ िोिी रििी िैं, जब यि सांस्कृतिक एकिा पर विभाक्जि
िोिे लगिी िै। हििलर िे िस्लिादी श्रेष्ठिा को आधार बिाकर यरू ोप में िजारों तिरपराधों को
मौि के घाि उिार हदया। यि मािि संस्कृति को विभाक्जि करिे की एक चेष्िा थी। इसी प्रकार
'हिंद ू संस्कृति' िथा 'मुक्स्लम संस्कृति' के आधार पर अिेक प्रकार के विभाजि के प्रयास िमारे
दे श में िोिे िी रििे िैं।
114
उत्तर- मािि संस्कृति िे अपिे एक िोिे का प्रमाण अिेको बार हदया िै । लेखक िे दो मूल बािों
का उल्लेख ककया िै - एक िो अक्ग्ि का िथा दस
ू रे सुई-धागे का अविष्कार। ये दो ऐसी चीजें िैं जो
मािि मात्र के कल्याण से जुड़ी िैं, विश्ि के िर कोिे में इिका प्रयोग िोिा िै।
मािि की जो योग्यिा उससे आत्म वििाश के साधिों का आविष्कार करािी िै , िम उसे उसकी
संस्कृति किें या असंस्कृति ?
रचिा और अशभव्यक्ति :
उत्तर - दस
ू रे धमि, जाति एिं समाज के प्रति सम्माि का भाि िथा अपिी संस्कृति एिं सभ्यिा
के विकास के साथ-साथ माििीय सभ्यिा एिं संस्कृति का विकास करिा सच्ची सभ्यिा एिं
संस्कृति िै। समाििा का भाि एिं सभी का कल्याण करिा िमारी दृक्ष्ि से संस्कृति का सिोत्तम
रूप िोिा िै। िास्िि में उसी सभ्यिा का प्रसार सिािधधक िुआ िै क्जसका मूल उद्दे श्य सबकी
मंगलकामिा रिी िै।
उत्तर- सभ्यिा और संस्कृति जैसे शब्द िब और भी भ्रामक बि जािे िैं जब इि शब्दों के साथ
115
आध्याक्त्मक, भौतिक विशेषण आहद जुड़ जािे िैं। ऐसी क्स्थति इिका अथि गलि-सलि िो जािा
िै।
उत्तर- संस्कृति एक संस्कृि मिुष्य की िि योग्यिा प्रेरणा अथिा प्रिवृ त्त िै क्जसके बल पर िि
ककसी िए िथ्य का दशिि करिा िै । इस संस्कृति के द्िारा समाज के शलए कल्याणकारी आविष्कार
कर जािा िै जो मिष्ु य को सभ्य बििे में सिायिा करिा िै ििी सभ्यिा िै ।
उत्तर- एक संस्कृि मािि िि िै जो अपिे ज्ञाि एिं बुधध-वििेक से ककसी िए िथ्य का दशिि और
आविष्कार करिा िै। इसके विपरीि सभ्य माििे िि िै जो इि आविष्कारों का उपयोग करके
अपिा रििा-सुधारिा िै और सभ्य बििा िै ।
प्रश्ि 5. न्यूिि से भी अधधक ज्ञाि रखिे िाले और उन्िि जीिि शैली अपिािे िाले को संस्कृि
किें गे या सभ्य और तयों?
उत्तर- न्यूिि से भी अधधक ज्ञाि रखिे िाले और उन्िि जीिि शैली अपिािे िाले व्यक्ति को
सभ्य किा जाएगा तयोंकक ऐसा व्यक्ति न्यूिि द्िारा आविष्कृि गुरुत्िाकषिण के शसद्धांि के
अलािा भले िी बिुि कुछ जाििा िो पर उसिे ककसी िए िथ्य का आविष्कार ििीं ककया िै ,
बक्ल्क दस
ू रों के आविष्कारों का प्रयोग करिे-करिे सभ्य बि गया िै।
प्रश्ि 6. संस्कृि व्यक्तियों के शलए भौतिक प्रेरणा का तया मित्त्ि िै , उदािरण द्िारा स्पष्ि
कीक्जए?
116
उत्तर- संस्कृि व्यक्तियों का सदा यिी प्रयास रििा िै कक िे अपिी बुद्धध और वििेक से ककसी
िए िथ्य की खोज करें । इसमें भौतिक प्रेरणाओं का बिुि योगदाि िोिा िै । ऐसा व्यक्ति िि बँका
और पेि भरा िोिे पर भी खाली ििीं बैठिा िै और भौतिक प्रेरणाओं के प्रति क्जज्ञासु बिा रििा
िै और इस क्जज्ञासा को शांि करिे में प्रयासरि रििा िै ।
उत्तर- शसद्धाथि राजा शुद्धोदि के पुत्र थे, क्जिके पास सुख-सुविधाओं का विशाल भंडार था पर
शसद्धाथि को मािििा का दख
ु दख
ु ी कर रिा था। उन्िोंिे इस दख
ु ी मािििा के दख
ु के तििारणाथि
अपिे सुख को ठोकर मारकर ज्ञाि की प्राक्ति िे िु तिकल पड़े क्जसका लाभ उठाकर मिुष्य दख
ु ों
से छुिकारा पा सके।
प्रश्ि 8. संस्कृति के असंस्कृति बििे का िात्पयि स्पष्ि करिे िुए बिाइए इस असंस्कृति का
पररणाम तया िोगा?
उत्तर- संस्कृति मिुष्य का सदा कल्याण करिी िै । जब संस्कृति से कल्याण की भाििा समाति
िोिी िै िो िि असंस्कृति बि जािी िै । संस्कृति मिुष्य को सभ्य बिािी िै परं िु इस असंस्कृति
का पररणाम यि िोगा कक सिित्र असभ्यिा का बोलबाला िोगा क्जससे मिुष्यिा के शलए खिरा
पैदा िो जाएगा।
प्रश्ि 10. ‘संस्कृति’ पाठ का उद्दे श्य या उसमें तिहिि संदेश स्पष्ि कीक्जए।
117
कल्याण की भाििा में कमी ििीं आिे दे िा चाहिए। मिुष्य का सदा यिी प्रयास िोिा चाहिए कक
उसकी सभ्यिा असभ्यिा ि बििे पाए।
प्रश्ि 11. ऐसे कौि से दो शब्द िैं, जो सबसे अधधक उपयोग में आिे पर भी सबसे कम समझ
में आिे िैं? ऐसा तयों िै ?
उत्तर - सभ्यिा और संस्कृति िी िे दो शब्द िैं क्जिका उपयोग सबसे अधधक िोिा िै , लेककि ये
िी सबसे कम समझ में आिे िैं। इसका कारण यि िै कक िम इिके अथों पर गंभीरिापूिक
ि विचार
िी ििीं करिे। जब जैसा जी चािे इिका इच्छािुसार मि चािे अथों में प्रयोग कर लेिे िैं। क्जस
कारण से इिके बारे में जो कुछ थोड़ा-बिुि समझ पािे की संभाििा िोिी भी िै , िि भी समाति
िो जािी िै।
प्रश्ि 12. सभ्यिा और संस्कृति परस्पर संबद्ध िोिे पर भी शभन्ि िैं, कैसे ?
उत्तर - सभ्यिा और संस्कृति परस्पर संबंद्ध िोिे पर भी शभन्ि िैं। सभ्यिा संस्कृति का िी फल
िै, अिः ये परस्पर संबद्ध िैं, लेककि ये दोिों एक िी चीज ि िोकर अलग-अलग िैं। ठ क उसी
प्रकार जैसे पेड़ और उसका फल एक िी चीज ििीं िोिे। संस्कृति का अथि िै - कल्याण के उद्दे श्य
से कमि करिे की योग्यिा, जबकक सभ्यिा का अथि िै - समाज का - व्यििार, खािे-पीिे, ओढ़िे
बबछािे ि बोल-चाल के िौर-िरीके।
118
समाधाि ढूंढ़िे के शलए - प्रेररि करिी िै और कफर उस समाधाि को लोक कल्याण के शलए प्रयोग
में लािे के शलए प्रेररि करिी िै । िि क्षमिा या योग्यिा जो मिुष्य को वििाश के साधिों जैसे
बंब या िशीले पदाथों की खोज के शलए प्रेररि करिी िै , िि सांस्कृतिक चेििा ििीं िो सकिी।
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लेखक पररचय
क्षशव पूजि सहाय का जन्म स्थाि -- उिवास गांव, क्षजला भोजपुर, क्षबहार।
इन्ोंिे दसवीं की परीिा पास कर बिारस की अदालि में िकलिवीस की िौकरी कर ली। बाद में अध्यापक
बि गये। असहयोग आं दोलि से प्रभाक्षवि होकर उन्ोंिे िौकरी से त्यागपि दे क्षदया। क्षशव पूजि सहाय अपिे
इन्ोंिे जागरण, क्षहमालय, माधुरी, बालक आक्षद प्रक्षिक्षिि पि-पक्षिकाओं का संपादि भी क्षकया। प्रक्षिक्षिि पक्षिका
मिवाला के संपादक मंडल में भी क्षशव पूजि सहाय का स्थाि था। क्षशव पूजि सहाय मुख्यिया गद्य लेखक थे।
दे हािी दु क्षिया, ग्राम सुधार, वे क्षदि वे लोग, स्मृक्षि शेष जैसी रचिाएं उन्ोंिे क्षहन्दी साक्षहत्य को प्रदाि क्षकया है।
क्षशव पूजि रचिावली के िाम से चार खंडों में उिकी रचिाएं प्रकाक्षशि हुई हैं।
प ठक स र
‘मािा का अंचल’ एक वात्सल्य रस का पाठ है। इसमें लेखक िे अपिे बचपि के समय के खेल-िमाशों, रुक्षचयों-
अरुक्षचयों और शरारिों का सुन्दर वणयि क्षकया है। यह पाठ वात्सल्य प्रेम का एक अिूठा उदाहरण भी है। यह
कहािी हमें बिािी है क्षक एक छोटे बच्चे को दु क्षिया की सारी खुक्षशयां व सुरिा और शांक्षि उसे क्षसफय माँ के
अँचल में ही क्षमलिी है।
119
पाटय -1
पाठ का सार कुछ इस प्रकार है - लेखक क्षशवपूजि सहाय के बचपि का िाम ‘िारकेश्वरिाथ’ था। मगर घर में
उन्ें ‘भोलािाथ’ कहकर बुलाया जािा था। भोलािाथ अपिे क्षपिा को ‘बाबूजी’ व माँ को ‘मइयाँ ’ कहा करिे थे।
बचपि में भोलािाथ का अक्षधकिर समय अपिे क्षपिा के साथ ही गुजरिा था। वो अपिे क्षपिा के साथ ही सोिे,
सुबह जल्दी उठकर, िहा-धोकर पूजा करिे बैठ जाया करिे थे।
पाटय -2
लेखक अपिे बाबूजी से अपिे माथे पर क्षिलक लगाकर खूब खुश होिे थे। जब बाबूजी रामायण पाठ करिे थे
िो लेखक उिकी बगल में बैठकर शीशे में अपिा मुँह दे खा करिे थे। जब उिके क्षपिाजी उिको दे ख लेिे थे,
पूजा अचयिा करिे के बाद क्षपिाजी अपिी रामिामा बही पर हजार राम-िाम क्षलख दे िे थे। उसके बाद कागज
के टु क़िों पर 500 बार राम िाम क्षलखी कागज की पक्षचययों को आटे की छोटी गोक्षलयों में रखकर अपिे के कंधे
पर बैठकर गंगा जी के पास जािे थे। और वहाँ उि आटे की गोक्षलयां मछक्षलयों को क्तखला दे िे थे। कभी-कभी
लेखक अपिे बाबूजी के साथ कुश्ती भी ल़ििे थे। क्षपिाजी जािबूझकर हार जािे थे िो लेखक खूब खुश होिे
थे।
पाटय -3
जब वे अपिे क्षपिाजी के साथ घर में खािा खािे थे। िो भोलािाथ की माँ उन्ें अिेक पक्षियों के िाम से क्षिवाले
बिाकर ब़िे प्यार से क्तखलािी थी। भोलािाथ की माँ उिको बहुि लाड -प्यार करिी थी। वह कभी उन्ें अपिी
बाहों में भर लेिी, िो कभी-कभी उन्ें जबरदस्ती पक़ि कर उिके क्षसर पर क़िवे िेल (सरसों का िेल) से
माक्षलश कर दे िी थी। िो लेखक रोिा था। इस पर बाबूजी भोलािाथ की माँ से िाराज हो जािे थे। लेक्षकि उसकी
माँ उसके माथे पर क्षबंदी और चोटी बिाकर, फूलदार लट् टू बिाकर भोलािाथ को रं गीि कुिाय व टोपी पहिा
जब वह अपिे साक्षथयों के साथ क्षमल जािा था िब खूब मौजमस्ती करिा था। इि िमाशों में िरह-िरह के िाटक
शाक्षमल होिे थे। कभी चबूिरे का एक कोिा ही उिका िाटक घर बि जािा िो, कभी बाबूजी की िहािे वाली
चौकी को ही रं गमंच बिा लेिे थे। उस रं गमंच पर क्षमठाइयों की दु काि लगा लेिे क्षजसमें लड् डू, बिाशे, जलेक्षबयाँ
आक्षद सजा क्षदये जािे थे। और क्षफर जस्ते के छोटे -छोटे टु क़िों के बिे पैसों से बच्चे उि क्षमठाइयों को खरीदिे
का िाटक करिे थे। भोलािाथ के क्षपिाजी भी कभी-कभी वहाँ से खरीदारी कर क्षलया करिे थे।
120
पाटय -4
थो़िी दे र में ऐसे ही िाटक में कभी घरोंदा बिा क्षदया जािा था क्षजसमें घर की पूरी सामग्री रखी हुई िजर आिी
थी। िो कभी-कभी बच्चे बाराि का भी जुलूस क्षिकालिे थे। क्षजसमें िंबूरा और शहिाई भी बजाई जािी थी।
दु ल्हि को भी क्षवदा कर लाया जािा था। जैसे ही बाबूजी दु ल्हि का मुँह दे खिे पहुँचिे, सब बच्चे हँसकर भाग
जािे थे। लेखक के क्षपिाजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उिका आिंद उठािे थे। बस इसी हँसी खुशी में
एक क्षदि सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। िभी आँ धी के बाद जोर से बाररस हुई । जब बाररश बंद हुई िो
वहाँ बहुि सारे क्षबच्छू क्षिकल आए क्षजन्ें दे खकर सारे बच्चे डर के मारे भागिे लगे। संयोग से उन्ें रास्ते में बूढ़ा
मूसि क्षिवारी क्षमल गया। भोलािाथ और उसके दोस्त बैजू िे उन्ें क्षचढ़ाया। क्षफर क्ा था बैजू की दे खा दे खी
सारे बच्चे मूसि क्षिवारी को क्षचढ़ािे लगे। मूसि क्षिवारी िे बच्चों को दौ़िा क्षलया। और उिका पीछा करिे हुए
पाठशाला में पहुँच गए। मूसि क्षिवारी िे उिकी क्षशकायि गुरु जी से कर दी। गुरु जी िे बैजू और भोलािाथ को
पक़ि लािे के क्षलए कहा। दोिों को पक़िकर स्कूल लाया जािा है। बैजू भाग जािा है। और भोला िाथ की
पाटय -5
लेखक के क्षपिाजी को जब पिा चलिा है, िो वे स्कूल जािे हैं। जैसे ही भोलािाथ िे अपिे बाबूजी को दे खा िो
वो दौ़िकर बाबूजी की गोद में चढ़ गए। और रोिे-रोिे उिका कंधा अपिे आं सुओं से गीला कर दे िे हैं। वे उसे
खूब पुचकारिे हैं। बाबूजी गुरूजी से क्षमििी कर भोलािाथ को घर लेकर चल दे िे हैं । रास्ते में उसे अपिी क्षमि
मंडली क्षमल जािी है। उिको दे खिे ही रोिा भूलकर क्षमि मंडली में शाक्षमल हो जािा है। क्षमि मंडली उस समय
क्षचक्ष़ियों को पक़ििे की कोक्षशश कर रही थी। भोलािाथ भी क्षचक्ष़ियों को पक़ििे लगिा है। क्षचक्ष़ियाँ उिके हाथ
िहीं आिी हैं। अचािक सब एक टीले पर जाकर चूहों के क्षबल में पािी डालिा शुरू कर दे िे हैं। िभी वहाँ से
एक सांप क्षिकल आिा है। सब बच्चे डर के मारे भागिे हैं। कोई औंधा क्षगरिा, कोई क्षचत्त। क्षकसी का क्षसर फूटा,
क्षकसी के दाँि टू टे । सभी क्षगरिे-प़ििे जैसे-िैसे घर पहुँचिे हैं। भोलािाथ दौ़ििा हुआ आिा है और घर में घुस
जािा है। बाबूजी बरामदे में बैठकर हुक्का पी रहे थे। उन्ोंिे बुलाया लेक्षकि वह मािा की गोद जाकर क्षछप
जािा है। भोलािाथ अक्षधकिर समय अपिे बाबूजी के साथ क्षबिािा था, लेक्षकि उस समय बाबूजी के पास िहीं
गया।
121
पाटय -6
बच्चे को काँ पिा हुआ दे खकर माँ रोिे लगिी है और उसे चूमिे लगिी है। वह जल्दी हल्दी पीसकर घावों को
पोछकर लगािी है। माँ उसे गले से लगा लेिी है । बाबूजी उसे गोद लेिे की कोक्षशश करिे हैं परन्तु वह माँ का
आं चल िहीं छो़ििा है ।
धन्यवाद!
इस रचिा के माध्यम से लेखक िे हमें यह बिािे का प्रयास क्षकया है क्षक बच्चे का अपिे क्षपिा से अक्षधक जु़िाव
भी क्ों ि हो लेक्षकि छोटा बच्चा क्षवपदा के समय हमेशा माँ के ही पास जािा है ।
अपिे इस लेख से लेखक हमें एक बच्चे की ओर उसकी माँ के बीच के प्यार के बंधि को क्षदखािा चाहिे हैं।
लेखक के अिुसार बच्चे चाहे क्षपिा के साथ क्षकििा ही घुल-क्षमले क्ों ि हो। उिसे क्षकििा ही लगाव क्ों ि
रखिे हो। लेक्षकि जब क्षवपदा की घ़िी आिी है , िो बच्चे अपिी माँ की अँचल में खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षिि
● ि़िके-सबेरा
● भभूि- राख
● क्षललार- ललाट,माथा
● क्षवराजमाि-उपक्तस्थि होिा
● क्षशक्षथल-ढीला
● गोरस-दू ध
122
● भाि-चाँवल
● हठ-क्षजद
● ठौर-जगह
● महिारी-मािा
● मरदु ए-िर,आदमी
● कुक्तल्हए-क्षमट्टी का लोटा
● उघारिा -हटािा
● जुआठा-बैल को हल में जोििा
● बटोही-राही,पक्षथक
● रहरी-अरहर ( दाल )
● क्षबलाई-घुल गई
● ि़िके - सुबह
123
● क्षललार – ललाट, माथा
● क्षिपुंड -एक प्रकार का क्षिलक क्षजसमें माथे पर िीि आ़िी या अधयचंद्र के आकार की रे खाएँ बिाई जािी हैं
● जटाएँ - बाल
● भभूि - राख
● क्षवराजमाि - स्थाक्षपि,
● सामकर - क्षमलाकर
● बोथकर – सराबोर कर दे िा
● रहरी- अरहर
● क्षचरौरी – क्षवििी
● मइयाँ - माँ
● महिारी – माँ
● अमक्षिया – शुद्ध
बहुमिकल्पीय प्रश्न
1. भोलािाथ क्षकसको दे खकर क्षससकिा भूल जािे थे ?
(क) अपिी माँ को (ख) अपिे क्षपिा को (ग) अपिे भाई को (घ) खेल के साक्षथयों को
124
उत्तर: (घ) खेल के साक्षथयों को।
(क) मोट खींचिे थे (ख) हल खींचिे थे (ग) बैलगा़िी खींचिे थे (घ) आपस में ल़ििे थे
5.‘बुढ़वा बेईमाि माँगे करे ला का चोखा’ कहकर बच्चों िे क्षकसको क्षचढ़ाया था?
उत्तर: (ग ) बंदर।
8.जब भोलािाथ चूहे के क्षबल में पािी डालकर आया उस समय उसकी माँ क्ा कर रही थी ?
(क) दाल बिा रही थी (ख ) चावल साफ कर रही थी (ग ) सो रही थी (घ ) कढ़ाई का कायय कर रही थी
उत्तर: (घ ) साँ प
उत्तर: (ख ) िारकेश्वरिाथ।
18.लेखक (भोलािाथ) के क्षपिा रामिामी बही में क्षकििी बार राम-राम क्षलखिे थे ?
प्रश्न 1. प्रस्तुि पाठ के आधार पर यह कहा जा सकिा है क्षक बच्चे का अपिे क्षपिा से अक्षधक जु़िाव था, क्षफर भी
क्षवपदा के समय वह क्षपिा के पास ि जाकर माँ की शरण लेिा है। आपकी समझ से इसकी क्ा वजह हो सकिी
है?
उत्तर- यह बाि सच है क्षक बच्चे (लेखक) को अपिे क्षपिा से अक्षधक लगाव था। उसके क्षपिा उसका लालि-
पालि ही िहीं करिे थे, उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करिे थे। परं िु क्षवपदा के समय उसे ला़ि की
जरूरि थी, अत्यक्षधक ममिा और माँ की गोदी की जरूरि थी। उसे अपिी माँ से क्षजििी कोमलिा क्षमल सकिी
127
थी, उििी क्षपिा से िहीं। यही कारण है क्षक संकट में बच्चे को माँ या िािी याद आिी है , बाप या िािा िहीं। माँ
प्रश्न 2. आपके क्षवचार से भोलािाथ अपिे साक्षथयों को दे खकर क्षससकिा क्ों भूल जािा है ?
उत्तर- क्षशशु अपिी स्वाभाक्षवक आदि के अिुसार अपिी उम्र के बच्चों के साथ खेलिे में रुक्षच लेिा है। उिके
साथ खेलिा अच्छा लगिा है । अपिी उम्र के साथ क्षजस रुक्षच से खेलिा है वह रुक्षच ब़िों के साथ िहीं होिी है ।
दू सरा कारण मिोवैज्ञाक्षिक भी है -बच्चे को अपिे साक्षथयों के बीच क्षससकिे या रोिे में हीििा का अिुभव होिा
है। यही कारण है क्षक भोलािाथ अपिे साक्षथयों को दे खकर क्षससकिा भूल जािा है।
प्रश्न 3.भोलािाथ और उसके साक्षथयों के खेल और खेलिे की सामग्री आपके खेल और खेलिे की सामग्री से
उत्तर-भोलािाथ और उसके साक्षथयों के खेल और खेलिे की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामक्षग्रयों में
कल्पिा से अक्षधक अंिर आ गया है। भोलािाथ के समय में पररवार से लेकर दू र प़िोस िक आत्मीय संबंध थे,
क्षजससे खेलिे की स्वच्छं दिा थी। बाहरी घटिाओं-अपहरण आक्षद का भय िहीं था। खेल की सामक्षग्रयाँ बच्चों
द्वारा स्वयं क्षिक्षमयि थीं। घर की अिुपयोगी वस्तु ही उिके खेल की सामग्री बि जािी थी, क्षजससे क्षकसी प्रकार ही
हाक्षि की संभाविा िहीं थी। धूल- क्षमट्टी से खेलिे में पूणय आिंद की अिुभूक्षि होिी थी। ि कोई रोक, ि कोई डर,
ि क्षकसी का क्षिदे शि । जो था वह सब सामूक्षहक बुक्षध की उपज थी। आज भोलािाथ के समय से सवयथा क्षभन्न
खेल और खेल सामग्री और ऊपर से ब़िों का क्षिदे शि और सुरिा हर समय क्षसर पर हावी रहिा है । आज खेल
सामग्री स्वक्षिक्षमयि ि होकर बाज़ार से खरीदी हुई होिी है । खेलिे की समय-सीमा भी िय कर दी जािी है । अिः
स्वच्छं दिा िहीं होिी है । धूल-क्षमट्टी से बच्चों का पररचय ही िहीं होिा है।
प्रश्न 4.पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वणयि कीक्षजए जो आपके क्षदल को छू गए हों?
उत्तर-पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँ प सब बच्चों के पीछे प़ि जािा है। िब वे बच्चे क्षकस
प्रकार क्षगरिे-प़ििे भागिे हैं और माँ की गोद में क्षछपकर सहारा लेिे हैं -यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीिर
िक क्षहला दे िा है । | इस पाठ में गुदगुदािे वाले प्रसंग भी अिेक हैं। क्षवशेष रूप से बच्चे के क्षपिा का क्षमििापूवयक
बच्चों के खेल में शाक्षमल होिा मि को छू लेिा है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेिी का खेल खेलिे हैं , बच्चे का
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क्षपिा बच्चा बिकर उिमें शाक्षमल हो जािा है। क्षपिा का इस प्रकार बच्चा बि जािा बहुि सुखद अिुभव है जो
प्रश्न 5.इस उपन्यास के अंश में िीस के दशक की ग्राम्य संस्कृक्षि का क्षचिण है। आज की ग्रामीण संस्कृक्षि में
उत्तर-आज की ग्रामीण संस्कृक्षि को दे खकर और इस उपन्यास के अंश को पढ़कर ऐसा लगिा है क्षक कैसी
अच्छी रही होगी वह समूह-संस्कृक्षि, जो आत्मीय स्नेह और समूह में रहिे का बोध करािी थी। आज ऐसे दृश्य
क्षदखाई िहीं दे िे हैं। पुरुषों की सामूक्षहक-कायय प्रणाली भी समाप्त हो गई है। अिः ग्रामीण संस्कृक्षि में आए
पररवियि के कारण वे दृश्य िहीं क्षदखाई दे िे हैं जो िीस के दशक में रहे होंगे- आज घर क्षसमट गए हैं। घरों के
आगे चबूिरों का प्रचलि समाप्त हो गया है। आज पररवारों में एकल संस्कृक्षि िे जन्म ले क्षलया, क्षजससे समूह में
बच्चे अब क्षदखाई िहीं दे िे। आज बच्चों के खेलिे की सामग्री और खेल बदल चुके हैं । खेल खचीले हो गए हैं।
जो पररवार खचय िहीं कर पािे हैं वे बच्चों को हीि-भाविा से बचािे के क्षलए समूह में जािे से रोकिे हैं। आज की
िई संस्कृक्षि बच्चों को धूल-क्षमट्टी से बचिा चाहिी है । घरों के बाहर पयाय प्त मैदाि भी िहीं रहे , लोग स्वयं क्षडब्ों
प्रश्न 6. यहाँ मािा-क्षपिा का बच्चे के प्रक्षि जो वात्सल्य व्यि हुआ है उसे अपिे शब्ों में क्षलक्तखए।
उत्तर-क्षपिा का अपिे साथ क्षशशु को िहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेिा, माथे पर क्षिलक लगािा क्षफर कंधे पर
बैठाकर गंगा िक ले जािा और लौटिे समय पे़ि पर बैठाकर झूला झुलािा क्षकििा मिोहारी दृश्य उत्पन्न करिा
है।
क्षपिा के साथ कुश्ती ल़ििा, बच्चे के गालों का चुम्मा लेिा, बच्चे के द्वारा पूँछे पक़ििे पर बिावटी रोिा रोिे का
माँ के द्वारा गोरस-भाि, िोिा-मैिा आक्षद के िाम पर क्तखलािा, उबटिा, क्षशशु का शंगार करिा और क्षशशु का
क्षससकिा, बच्चों की टोली को दे ख क्षससकिा बंद कर क्षवक्षवध प्रकार के खेल खेलिा और मूसि क्षिवारी को
क्षचढ़ािा आक्षद अद् भुि दृश्य उकेरे गए हैं । ये सभी दृश्य अपिे शैशव की याद क्षदलािे हैं।
प्रश्न 7 . मािा का अँचल शीषयक की उपयुििा बिािे हुए कोई अन्य शीषयक सुझाइए।
129
उत्तर-इस पाठ के क्षलए मािा का अँचल’ शीषयक उपयुि िहीं है। इसमें लेखक के शैशव की िीि क्षवशेषिाओं
माँ का वात्सल्य
‘मािा का अँचल’ इि िीिों में से केवल अंक्षिम को ही व्यि करिा है। अि: यह एकां गी और अधूरा
मेरा शैशव
कोई लौटा दे मेरे रस-भरे क्षदि!
प्रश्न 8 .बच्चे मािा-क्षपिा के प्रक्षि अपिे प्रेम को कैसे अक्षभव्यि करिे हैं ?
उत्तर-क्षशशु की क्षजद में भी प्रेम का प्रकटीकरण है। क्षशशु और मािा-क्षपिा के साक्षिध्य में यह स्पष्ट करिा कक्षठि
होिा है क्षक मािा-क्षपिा का स्नेह क्षशशु के प्रक्षि है या क्षशशु का मािा-क्षपिा के प्रक्षि दोिों एक ही प्रेम के सम्पूरक
होिे हैं। क्षशशु की मुस्कराहट, क्षशशु को उिकी गोद में जािे की ललक उिके साथ क्षवक्षवध | क्ी़िाएँ करके
मािा-क्षपिा की गोद में जािे के क्षलए मचलिा उसका प्रेम ही होिा है। इस प्रकार मािा-क्षपिा के प्रक्षि क्षशशु के
प्रश्न 9.इस पाठ में बच्चों की जो दु क्षिया रची गई है वह आपके बचपि की दु क्षिया से क्षकस िरह क्षभन्न
है?
उत्तर-हमारा बचपि इस पाठ में वक्षणयि बचपि से पूरी िरह क्षभन्न है। हमें अपिे क्षपिा का ऐसा ला़ि िहीं क्षमला।
मेरे क्षपिा प्रायः अपिे काम में व्यस्त रहिे हैं। प्रायः वे राि को थककर ऑक्षफस से आिे हैं। वे आिे ही खा-पीकर
सो जािे हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बािें जरूर करिे हैं। मेरे क्षलए क्षमठाई, चाकलेट, क्तखलौिे भी ले आिे हैं।
कभी-कभी स्कूटर पर क्षबठाकर घुमा भी आिे हैं , क्षकंिु मेरे खेलों में इस िरह रुक्षच िहीं लेिे। वे हमें िंग-धडं ग
िो रहिे ही िहीं दे िे। उन्ें मािो मुझे कप़िे से ढकिे और सजािे का बेहद शौक है। मुझे बचपि में ए-एप्पल,
सी-कैट रटाई गई। हर क्षकसी को िमस्ते करिी क्षसखाई गई। दो ढाई साल की उम्र में मुझे स्कूल भेजिे का प्रबंध
130
क्षकया गया। िीि साल के बाद मेरे जीवि से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल-डर े स और स्कूल के
िब से लेकर आज िक मैं 90% अंक लेिे के चक्कर में अपिी मस्ती को अपिे ही पाँवों के िीचे रौंदिा चला आ
रहा हँ। मुझे हो-हुल्ल़ि करिे का िो कभी मौका ही िहीं क्षमला। शायद मेरा बचपि बुढ़ापे में आए? या शायद
अमिलघुत्तरी प्रश्न
1. भोलािाथ और उसके साथी मूसलाधार बाररश में पे़ि की ज़ि से क्षकस प्रकार क्षचपक गए थे ?
उत्तर : भोलािाथ और उसके साथी इस प्रकार पे़ि से क्षचपके क्षजस प्रकार कुत्ते के काि में अठई (क्षचच़िी)
क्षचपक जािी है |
उत्तर: लेखक बचपि में अपिे क्षपिा के साथ कुश्ती का खेल खेलिे थे ।
उत्तर: मािा का अँचल प्यार और शांक्षि दे िे वाला होिा है , इसक्षलए क्षवपदा के समय बालक मािा के पास शरण
लेिा है |
131
लघुत्तरी प्रश्न
प्रश्न 1-.बच्चे मािा-क्षपिा के प्रक्षि अपिे प्रेम को कैसे अक्षभव्यि करिे हैं ?
उत्तर: बच्चे मािा-क्षपिा के प्रक्षि अपिे प्रेम को उिके साथ रहकर, उिकी क्षसखाई हुई बािों में रुक्षच लेकर, उिके
साथ खेल करके, उन्ें चूमकर, उिकी गोद में या कंधे पर बैठकर प्रकट करिे हैं।
प्रश्न 2 - मां क्षकस प्रकार लेखक को अच्छा-खासा कन्ैया बिा क्षदया करिी थी?
उत्तर- लेखक की इच्छा के क्षवरुद्ध मां उसे पक़ि कर उसकी शारीररक स्वच्छिा और क्षवकास के उद्े श्य से
उसके क्षसर में सरसों का िेल लगािी, उसकी िाभी और माथे पर काजल की क्षबंदी लगािी |
प्रश्न 3 - सांप दे ख लेिे के पश्चाि् मां के अँचल में क्षछपे हुए लेखक की दशा कैसी थी?
उत्तर - सांप दे ख लेिे के पश्चाि् मां के अँचल में क्षछपा हुआ लेखक अत्यंि भयभीि था। वह धीमे स्वर में
"सा... .स. ..सां" कहिे हुए अपिी मां के अँचल में क्षछप जािा था।
प्रश्न 4 - मािा के अँचल पाठ के आधार पर भोलािाथ की क्षकन्ीं िीि क्षवशेषिाओं का उल्लेख कीक्षजए ।
(i) भोलािाथ अत्यंि चंचल बालक है । (ii) उसे अपिे मािा-क्षपिा से अत्यक्षधक प्रेम है।
(iii) उसे लोक संस्कृक्षि, लोक-खेल िथा अपिे क्षमिों से अत्यक्षधक लगाव है।
प्रश्न 5 - मरदु ए क्ा जािे क्षक बच्चों को कैसे क्तखलािा चाक्षहए। यह कथि क्षकसिे और कब कहा?
उत्तर- मरदु ए क्ा जािे क्षक बच्चों को कैसे क्तखलािा चाक्षहए-यह कथि लेखक की मािा िे लेखक के क्षपिा से
उस प्रसंग में कहा है जब वे अपिे पुि भोलािाथ को ठीक से खािा िहीं क्तखला पािे।
ब ध-प्रश्न
प्रश्न 1. प्रस्तुि पाठ के आधार पर कहा जा सकिा है क्षक बच्चे का अपिे क्षपिा से अक्षधक जु़िाव था, क्षफर भी
क्षवपदा के समय वह क्षपिा के पास ि जाकर माँ की शरण लेिा है। आपकी समझ से इसकी क्ा वजह हो सकिी
है?
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उत्तर: बच्चे का अपिे क्षपिा से अक्षधक जु़िाव हो, िो भी वह अपिी माँ के अँचल में खुद को ज्यादा अच्छा महसूस
करिा है। माँ का स्नेह उसके मि में बैठे डर को दू र कर दे िा है। भोलािाथ का अपिे क्षपिा जी से बहुि स्नेह था।
पर जब उस पर क्षवपदा आई, िो उसे जो शांक्षि और प्रेम माँ की गोद में जाकर महसूस हुआ, वह शायद क्षपिा
प्रश्न 2. आपके अिुसार भोलािाथ अपिे साक्षथयों को दे खकर क्षससकिा क्ों भूल जािा है ?
उत्तर: भोलािाथ अपिे साक्षथयों को दे खकर क्षससकिा इसक्षलए भूल जािा है क्ोंक्षक जब भोलािाथ अपिे क्षमिों
को मज़े से खेलिे हुए दे खिा है , िो खुद को िहीं रोक पािा और रोिा भूलकर अपिे साक्षथयों के साथ खेलिे
लगिा है।
प्रश्न 3. आपिे दे खा होगा क्षक भोलािाथ और उसके साथी जब-िब खेलिे-खािे समय क्षकसी ि क्षकसी प्रकार की
िुकबंदी करिे हैं। आपको यक्षद अपिे खेलों आक्षद से जु़िी िुकबंदी याद हो िो क्षलक्तखए।
उत्तर: मुझे अपिे बचपि के कुछ खेलों से जु़िी िुकबक्तन्दयाँ याद हैं -
1. अक्क़ि-बक्क़ि बम्बे बो, अस्सी िब्े पूरे सौ। 2. पोषम पा भई पोषम पा, डाक्षकये िे क्ा क्षकया।
प्रश्न 4. भोलािाथ और उसके साक्षथयों के खेल और खेलिे की सामग्री आपके खेल और खेलिे की सामग्री से
उत्तर : भोलािाथ और उसके साक्षथयों के खेल और खेलिे की सामग्री कुछ इस प्रकार से है , वे आँ गि या खेिों
में खेला करिे थे। उिके खेल की सामग्री क्षमट्टी के बियि, पत्थर, पे़िों के फल, गीली क्षमट्टी, घर पर प़िे छोटे -मोटे
सामाि आक्षद होिी थी।आज के समय में बच्चे घर पर ही खेलिे हैं। हमारे समय के बच्चे जो खेल खेलिे हैं, वे
इिसे अलग है । इिके खेलिे के क्षलए क्षक्केट, फुटबॉल, क्षकचि सेट, डॉक्टर सेट, वीक्षडयो गेम्स आक्षद बहुि सी
चीजें हैं। अब के बच्चे ज्यादा शारीररक श्रम वाले खेल िहीं खेलिे।
प्रश्न 5. यहाँ मािा-क्षपिा का बच्चे के प्रक्षि जो वात्सल्य व्यि हुआ है उसे अपिे शब्ों में क्षलक्तखए।
उत्तर: यहाँ मािा-क्षपिा का बच्चे के प्रक्षि जो वात्सल्य व्यि हुआ है , वह इस प्रकार है -
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क्षपिा का अपिे बच्चे को िहलािा-धुलािा, पूजा में साथ बैठािा, माथे पर क्षिलक लगािा और बच्चे को कंधे पर
बैठाकर गंगा घाट िक ले जािा इत्याक्षद प्रसंगों में क्षपिा द्वारा वात्सल्य व्यि हुआ है। माँ का अपिे बच्चे को
दु लार करिा, िोिा-मैिा आक्षद के बिावटी िाम से क्षिवाला बिाकर क्तखलािा, बच्चे को काला क्षटका लगािा,
उसकी चोटी बिािा, फूलदार लट् टू बाँधकर रं गीि कुिाय -टोपी पहिािा इत्त्याक्षद प्रसंगों में माँ का वात्सल्य व्यि
हुआ है।
प्रश्न 6. इस पाठ में बच्चों की जो दु क्षिया रची गई है वह आपके बचपि की दु क्षिया से क्षकस िरह क्षभन्न है ?
उत्तर: इस पाठ में बच्चों की दु क्षिया बेहद मजेदार लगिी है। उन्ें अपिे भक्षवष्य की कोई क्षचंिा िहीं है। आजकल
के बच्चों पर स्कूल, पररवार और समाज की ओर से दवाब बिाया जािा है। बच्चे सुबह स्कूल जािे हैं , उसके
बाद घर आकर टयूशि जािे हैं। क्षफर जो समय बचिा है , उसमें कुछ बच्चे मैदाि में खेलिे हैं और कुछ लैपटॉप
प्रश्न 1. आजकल बच्चे घरों में अकेले खेलिे हैं , पर भोलािाथ और उसके साथी क्षमल-जुलकर खेलिे थे। इिमें
उत्तर- यह सत्य है क्षक आजकल के बच्चे कंप्यूटर पर गेम, वीक्षडयो गेम, टे लीक्षवज़ि पर काटू य ि दे खिे हुए अकेले
समय क्षबिािे हैं, परं िु भोलािाथ का समय साक्षथयों के साथ खेलिे हुए बीििा था। खेि में क्षचक्ष़ियाँ उ़िािा हो या
चूहे के क्षबल में पािी डालिा या खेिी करिा, बाराि क्षिकालिा आक्षद खेल ऐसे थे क्षजिमें बच्चों का एक साथ
खेलिा आवश्यक था। मैं क्षमलजुलकर खेलिे को भावी जीवि के क्षलए उपयुि माििा हँ , क्ोंक्षक- इससे
सामूक्षहकिा की भाविा पिपिी है। इस प्रकार के खेलों से सहयोग की भाविा क्षवकक्षसि होिी है। क्षमल-जुलकर
खेलिे से सभी बच्चे अपिा-अपिा योगदाि दे िे हैं , क्षजससे सक्षक्य सहभाक्षगिा की भाविा का उदय होिा है ।
क्षमल-जुलकर खेलिे से बच्चों में हार-जीि को समाि रूप से अपिािे की प्रेरणा क्षमलिी है क्षजिका भावी जीवि
प्रश्न 2. भोलािाथ के क्षपिा भोलािाथ को पूजा-पाठ में शाक्षमल करिे, उसे गंगा िट पर ले जािे िथा लौटिे हुए
पे़ि की डाल पर झुलािे। उिका ऐसा करिा क्षकि-क्षकि मूल्यों को उभारिे में सहायक है ?
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उत्तर- भोलािाथ के क्षपिा उसको अपिे साथ पूजा पर बैठािे। पूजा के बाद आटे की गोक्षलयाँ क्षलए हुए गंगािट
जािे। मछक्षलयों को आटे की गोक्षलयाँ क्तखलािे, वहाँ से लौटिे हुए उसे पे़ि की झुकी डाल पर झुलािे। उिके इस
काययव्यवहार से भोलािाथ में कई मािवीय मूल्यों का उदय एवं क्षवकास होगा। ये मािवीय मूल्य हैं -भोलािाथ
द्वारा अपिे क्षपिा के साथ पूजा-पाठ में शाक्षमल होिे से उसमें धाक्षमयक भाविा का उदय होगा। प्रकृक्षि से लगाव
उत्पन्न होिे के क्षलए प्रकृक्षि का साक्षन्नध्य आवश्यक है। भोलािाथ को अपिे क्षपिा के साथ प्रकृक्षि के क्षिकट आिे
का अवसर क्षमलिा है। ऐसे में उसमें प्रकृक्षि से लगाव की भाविा उत्पन्न होगी। मछक्षलयों को क्षिकट से दे खिे
एवं उन्ें आटे की गोक्षलयाँ क्तखलािे से भोलािाथ में जीव-जन्तुओं के प्रक्षि लगाव एवं दया भाव उत्पन्न होगा।
िक्षदयों के क्षिकट जािे से भोलािाथ के मि में िक्षदयों को प्रदू षण मुि रखिे की भाविा का उदय एवं क्षवकास
होगा। वृिों से क्षिकटिा होिे िथा उिकी शाखाओं पर झूला झूलिे से भोलािाथ में पे़िों के संरिण की
प्रश्न 3. वियमाि समय में संिाि द्वारा माँ-बाप के प्रक्षि उपेिा का भाव दशायया जािे लगा है क्षजससे वृद्धों की
समस्याएँ बढ़ी हैं िथा समाज में वृद्धाश्रमों की जरूरि बढ़ गई है। मािा का अँचल’ पाठ उि मूल्यों को उभारिे
में क्षकििा सहायक है क्षजससे इस समस्या पर क्षियंिण करिे में मदद क्षमलिी हो।
उत्तर- वियमाि समय में भौक्षिकवाद का प्रभाव है। अक्षधकाक्षधकथि कमािे एवं सुख पािे की चाहि िे मिुष्य
को मशीि बिाकर रख क्षदया है। ऐसे में संिाि के पास बैठिे, उसके साथ खेलिे और घूमिे-क्षफरिे का मािा-
क्षपिा के पास समय िहीं हैं। इस कारण एक ओर मािा-क्षपिा बूढ़े होिे पर उपेिा का क्षशकार होिे हैं िो दू सरी
ओर वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। ‘मािा का अंचल’ पाठ में भोलािाथ का अक्षधकांश समय अपिे क्षपिा के
साथ बीििा था। वह अपिे क्षपिा के साथ पूजा में शाक्षमल होिा था िो क्षपिा जी भी मिोक्षविोद के क्षलए उसके
साथ खेलों में शाक्षमल होिे थे। इससे भोलािाथ में अपिे मािा-क्षपिा से अत्यक्षधक लगाव, सहािुभूक्षि, क्षमल-
जुलकर साथ रहिे की भाविा, मािा-क्षपिा के प्रक्षि दृक्षष्टकोण में व्यापकिा, मािा-क्षपिा के प्रक्षि उत्तरदाक्षयत्व,
सामाक्षजक सरोकारों में प्रगाढ़िा, आएगी क्षजससे वृद्धों की उपेिा एवं वृद्धाश्रम की बढ़िी आवश्यकिा पर
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पाठ-3 स न - स न ह थ ज डी:: मधु क ांकररय
जीिन पररचय
मधु कांकररया का जन्म सि 1957 में कोलकािा में हुआ | उन्ोंिे कोलकािा क्षवश्वक्षवद्यालय से अथयशास्त्र में
एम.ए क्षकया साथ में कंप्यूटर एप्लीकेशि में क्षडप्लोमा भी क्षकया |
प्रमुख रचिाएं
उपन्यास - पिाखोर
कहािी संग्रह - सलाम आक्तखरी , खुले गगि के लाल क्षसिारे , बीिे हुए , अंि में यीशु
उन्ोंिे कई सुंदर यािा वृिांि भी क्षलखे हैं मधु कांकररया की रचिाओं में क्षवचार और संवेदिा की िवीििा
क्षमलिी है |समाज में व्याप्त अिेक ज्वलंि समस्याएं जैसे - अब संस्कृक्षि , महािगर की घुटि और सुरिा के
बीच युवाओं में बढ़िी िशे की आदि , लालबत्ती इलाकों की पी़िा आक्षद उिकी रचिाओं के क्षवषय रहे हैं |
प ठ क स र ांि
सािा सािा हाथ जो़िी की लेक्तखका मधु कांकररया जी िे अपिे यािा वृिांि के बारे में इसमें बिाया है |यह यािा
क्षसक्तक्कम की राजधािी गंगिोक और यूथिांक के बीच थी| लेक्तखका इस शहर में उिरी िो वह हैराि हो गई
उिका हैराि होिे का कारण क्षसिारों की क्षझलक्षमलाहट में जगमगािा इक्षिहास और वियमाि के संक्षध स्थल पर
ख़िा मेहििकश बादशाओ का शहर गंिोक की सुंदरिा थी |इस सुंदरिा िे लेक्तखका के मि के भीिर बाहर
शून्य स्थाक्षपि कर क्षदया था |इस यािा के दौराि एक िेपाली युविी से प्राथयिा के बोल “सािा - सािा हाथ जो़िी
गदय हु प्राथयिा” क्षजसका अथय था छोटे -छोटे हाथ जो़िकर प्राथयिा कर रही हं क्षक मेरा सारा जीवि अच्छाइयों को
समक्षपयि हो | लेक्तखका िे अगले क्षदि यूथिांक जािे का क्षिश्चय क्षकया था | जैसे प्रािः काल में उिकी िींद खुली
वह बालकिी की ओर दौ़िी क्ोंक्षक वहां के लोगों िे बिाया था क्षक मौसम साफ होिे पर कंचिजंगा साफ
क्षदखाई दे िी है | कंचिजंगा िो िा दे खी परं िु इििे सारे फूल दे खे क्षक वह क्षलखिी है “मािो ऐसा लगा क्षक फूलों
के बाग में आ गई हं|” यूथिांक गंगटोक 149 क्षकलोमीटर की दू री पर था वहां जािे के क्षलए डर ाइवर कम गाइड
क्षजिेंद्र िागे के साथ क्षिकलिी है | लेक्तखका जब आ रही थी िब उन्ें गदराएं पाईि , िुकीले पे़ि , पहा़ि क्षदखे
इसके साथ ही क्षदखी सफेद बौद्ध पिाकाएं जोक्षक शांक्षि व अक्षहंसा के प्रिीक होिी है और बुध की मान्यिा के
अिुसार जब क्षकसी बुक्तद्धस्ट की मृत्यु होिी है िब एक सौ आठ श्वेि पिाकाएं लहराई जािी है क्षजि पर मंि क्षलखे
होिे हैं कई बार िए कायय के प्रारं भ में भी पिाकाएं फहरा दी जािी है परं िु वह रं गीि होिी है अब गाइड िागे
के साथ लेक्तखका की जीप उस जगह पहुंची जहां गाइ़ि क्षफल्म की शूक्षटंग हुई थी यह की जगह कभी लॉन्ग
स्टांक उन्ीं रास्तों के भीिर लेक्तखका मधु जी की कुक्षटया की िरफ िजर प़िी जहां उन्ोंिे धमय चक् को घूमिे
दे खा इस प्रेयर व्हील के बारे में िांवें बिाया क्षक इसको घूमािे से सारे पाप धुल जािे हैं ऐसा मािा जािा है क्षक
आप पवयिों , घाक्षटयों , िक्षदयों की सुंदरिा से आगे बढ़कर लेक्तखका िे फेि उगलिा झरिा दे खा क्षजसका िाम
सेवेि क्षसस्टसय वाटरफॉल था | लेक्तखका क्षलखिी है पहली बार एहसास हुआ जीवि का आिंद है यही चलायमाि
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सौंदयय | वहां उन्ोंिे पहा़ि िो़ििी िथा बच्चे को पीठ पर बांधकर पत्ते क्षवििी मक्षहलाओं को दे खा वापस लौटिे
समय भी जीप में िावे िे कई जािकाररयां दी उसिे गुरु िािक के फुटक्षप्रंट और खेदुम एक पक्षवि स्थल के
बारे में बिाया िभी लेक्तखका िे कहा गंगटोक बहुि सुंदर है िब िागे िे कहा मैडम गंिोक कक्षहए क्षजसका अथय
पहा़ि होिा है |
(i). महादे वी वमाय (ii). मधु कांकररया (iii). कमलेश्वर )iv). क्षशवपूजि सहाय
(i). क्षहमालय पवयि (ii). कंचि पवयि (iii). सुमेरु पवयि (iv). िीलमक्षण पवयि
उत्तर – क्षहमालय पवयि
6. बौद्ध धमय में क्षकसी बुक्तद्धस्ट की मृत्यु पर उसकी आत्मा की शांक्षि के क्षलए क्षकििी पिाकाएं फहराई
जािी है ?
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7. क्षसलीगु़िी के पास लेक्तखका को कौि सी िदी क्षदखाई दी थी ?
(i). सदा काम में लगा रहिा चाक्षहए (ii). सदा मुस्कुरािे रहिा चाक्षहए
(iii). क्षचंिा िहीं करिी चाक्षहए (iv). लक्ष्य प्राप्त करिा चाक्षहए
उत्तर – सदा मुस्कुरािे रहिा चाक्षहए
(i). 500 फीट (ii). 400 फीट (iii). 300 फीट (iv). 200 फीट
उत्तर – 500 फीट
1) ‘सािा - सािा हाथ जो़िी’ के आधार िाक्षकयक उत्तर दीक्षजए क्षक अपिे शहर को स्वच्छ और सुंदर बिािे में
आप क्षकस प्रकार योगदाि कर सकिे हैं ?
उत्तर - हम अपिे शहर को स्वच्छ और सुंदर बिािे के क्षलए स्वयं संकल्प ले सकिे हैं | जैसे खेदुम िामक एक
क्षकलोमीटर के िेि में ऐसा मािा जािा है क्षक जो भी यहां गंदगी मचाएगा वह मर जाएगा |इसक्षलए वहां के लोग
क्षकसी भी सूरि में गंदगी िहीं रहिे दे िे इसी प्रकार हम भी यक्षद अपिे िगर गांव के बारे में ऐसा संकल्प कर ले
क्षक यहां कोई गंदगी िहीं मचाएगा िो हमारे िगर गांव अपिे - आप स्वच्छ हो जाएं गे ।
2) भारि का क्तस्वट् जरलैंड क्षकसे कहिे हैं और क्ों ? वह स्थल हमें क्षकस िरह प्रेररि करिा है ? पक्षठि पाठ
सािा - सािा हाथ जो़िी के आधार पर क्षलक्तखए |
क्ों - यह हमारे समुद्र िल से 14500 फीट की ऊंचाई पर क्तस्थि है यहां बफय , धुंध और बाररश का साम्राज्य है
। यहां की खूबसूरिी अवणयिीय है । यह स्थल हमें प्रकृक्षि सौंदयय को पास से क्षिहारिे की प्रेरणा दे िा है ।
3) क्षझलक्षमलािे क्षसिारों की रोशिी में िहाया गंिोक लेक्तखका को क्षकस िरह सम्मोक्षहि कर रहा था ?
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उत्तर - क्षझलक्षमलािे क्षसिारों की रोशिी में िहाया गंिोक लेक्तखका के मि में सम्मोहि जगा रहा था इस सुंदरिा
िे उस पर ऐसा जादू सा कर क्षदया था क्षक उसे सब कुछ ठहरा हुआ सा और अथयहीि सा लग रहा था उसके
भीिर बाहर जैसे एक शून्य सा व्याप्त हो गया था
4) लोंग स्टॉक में घूमिे हुए क्षचि को दे खकर लेक्तखका को पूरे भारि की आत्मा एक -सी क्ों क्षदखाई दी ?
उत्तर - लोंग स्टाक में घूमिे हुए चक् को दे खकर लेक्तखका िे उसके बारे में पूछा िो पिा चला यह धमय चक्
है इसे घूमािे पर सारे पाप धुल जािे हैं क्षजिेि की यह बाि सुिकर लेक्तखका को ध्याि आया क्षक पूरे भारि की
आत्मा एक ही है मैदािी िेिों में गंगा के क्षवषय में भी ऐसी ही धारणा है उसे लगा पूरे भारि की आत्मा एक - सी
है सारी वैज्ञाक्षिक प्रगक्षि के बावजूद उिकी आस्थाएं अंधक्षवश्वास और पाप पुण्य की अवधारणाएं एक - सी है |
5) कभी श्वेि िो कभी रं गीि पिाकाओ का फहरािा क्षकि अलग-अलग अवसरों की ओर संकेि करिा है ?
उत्तर - श्वेि पिाकाएं क्षकसी बुक्तद्धस्ट की मृत्यु पर फहराई जािी है क्षकसी बुक्तद्धस्ट की मृत्यु हो जाए िो उसकी
आत्मा की शांक्षि के क्षलए िगर से बाहर क्षकसी भी वीराि स्थाि पर मंि क्षलखी एक सौ आठ पिाकाएं फहराई
जािी है क्षजन्ें उिारा िहीं जािा वह धीरे -धीरे अपिे आप िष्ट हो जािी हैं क्षकसी शुभ कायय को आरं भ करिे पर
रं गीि पिकाएं फहराई जािी है |
6) ‘मैं इं क्षडयि हं’ क्षसक्तक्कम की युविी द्वारा यह कहे जािे से स्पष्ट होिा है क्षक अपिी जाक्षि धमय िेि और
संप्रदाय से अक्षधक महत्वपूणय राष्टर है |आप क्षकस प्रकार राष्टर के प्रक्षि अपिे कियव्य क्षिभाकर दे श के प्रक्षि अपिा
प्रेम प्रकट कर सकिे हैं ?
उत्तर - क्षसक्तक्कम की युविी िे अपिे पररचय में स्वयं को क्षसक्तक्कम ि कहकर इं क्षडयि कहा इससे पिा चलिा
है क्षक उसमें राष्टरभक्ति प्रमुख थी हम भी अपिे हर कायय में राष्टर के माि सम्माि का ध्याि रखें िो राष्टरप्रेम प्रकट
कर सकिे हैं हम अपिा पररचय भारिीय के रूप में दे हर प्रांि को अपिा प्रांि मािे िभी राष्टरप्रेम सुदृढ़ हो
सकिा है |
उत्तर - आज की पीढ़ी पहा़िी स्थलों को अपिा क्षवहार स्थल बिा रही है वहां भोग के िए िए साधि पैदा क्षकए
जा रहे हैं इसक्षलए जहां एक ओर गंदगी बढ़ रही है वहीं दू सरी ओर िापमाि में वृक्तद्ध हो रही है पररणामस्वरूप
पवयि अपिी स्वाभाक्षवक सुंदरिा खो रहे हैं इसे इसे रोकिे में हमें सचेि होिा चाक्षहए हमें ऐसा कोई कायय िहीं
करिा चाक्षहए क्षजससे पहा़िों का प्राकृक्षिक सौंदयय िष्ट हो , गंदगी फैले और िापमाि में वृक्तद्ध हो |
8) क्षहमक्षशखरों का परोपकारी रूप हमें उिकी क्षकस व्यवस्था से ज्ञाि होिा है मािव को उिके इस रूप से
क्ा क्षशिा ग्रहण करिी चाक्षहए | ‘सािा सािा हाथ जो़िी’ पाठ के आधार पर क्षलक्तखए ?
उत्तर - क्षहमक्षशखर क्षहम के स्तंभ है ये सक्षदययों में अपिे भीिर जल के भंडार को संजोकर रखिे हैं गक्षमययों में
जब लोग जल के क्षलए िाक्षह-िाक्षह मचािे हैं िो ये क्षहमक्षशखर ही हैं सब की प्यास को िृप्त करिे हैं इस प्रकार
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क्षहमक्षशखर परोपकारी रूप धारण करिे हैं मािव को भी इिसे यही क्षशिा ग्रहण करिी चाक्षहए उन्ें अपिी धि
संपक्षत्त क्षकसी क्षवपदा के समय सबमें बांट दे िी चाक्षहए |
9) ‘सेवेि क्षसस्टसय वाटर फॉल’ को दे खकर लेक्तखका िे अपिी भाविाओं को कैसे अक्षभव्यि क्षकया है ?
उत्तर - सेवि क्षसस्टम वाटर फॉल को दे खकर लेक्तखका का मि सौंदयय में डूब गया हृदय काव्यमय हो गया
उसे सत्य और सौंदयय िे छू क्षलया उसे यो लगा जैसे वह दे श काल से दू र बहिी जलधारा बि गई हो और भीिर
की सारी वासिाएं मुि हो गई हो |
10) ‘सािा - सािा हाथ जो़िी’ पाठ के आलोक में पहा़िों की प्राकृक्षिक संपदा के रिण की आवश्यकिा पर
अपिे क्षवचार व्यि कीक्षजए |
उत्तर - क्षसक्तक्कम प्राकृक्षिक प्रदे श है जो पहा़ि पहले बफय से ढके रहिे थे अब पययटकों की आवाजाही के कारण
प्रदू क्षषि हो गए हैं इस कारण अब वहां क्षहमपाि िहीं होिा यह दे खकर हमें ज्ञाि होिा है क्षक हमें पहा़िों की
प्राकृक्षिक संपदा को सुरक्षिि रखिा चाक्षहए वह अत्यक्षधक पययटि को बढ़ावा िहीं दे िा चाक्षहए वरिा उसका
सौंदयय िष्ट हो जाएगा |
11) ‘ सािा - सािा हाथ जो़िी’ की लेक्तखका को पहा़ि के सौंदयय के क्षकि दृश्यों िे चौका क्षदया इि दृश्यों से उन्ें
और क्ा-क्ा याद आिे लगा ?
उत्तर - कहीं आसमाि छूिे पवयि पर कहीं दू ध की धार के समाि श्वेि झ़ििे कही चांदी की िरफ कौंध मारिी
क्षिस्ता िदी यह सौंदयय दे खकर लेक्तखका भौचक्की रह गई इस इि दृश्यों को दे खकर लेक्तखका को लगिे लगा
क्षक जैसे वह भी इस जलधारा और प्रकृक्षि की अक्षभन्न अंग है |
12) ‘ सािा - सािा हाथ जो़िी’ पाठ के आधार पर लायुंग की प्राकृक्षिक सुंदरिा का वणयि कीक्षजए और यह
भी बिाइए क्षक यह सुंदरिा कैसे बची हुई है ?
उत्तर - लायुंग के पहा़िों पर मिोरम शांक्षि थी अिेक झरिे ऊपर चोक्षटयों से बहिे हुए िीचे क्षिस्ता िदी में क्षमल
रहे थे मंद मंद हवा बह रही थी पे़ि पौधे झूम रहे थे आकाश में बादलों का जमघट था क्षजिके कारण चांद क्षछप
गया था चारों और बोक्षधसत्व सी शांक्षि थी यहां के क्षिवासी पहा़िों पर गंदगी मचािा पाप समझिे हैं वे िदी झरिों
और पहा़िों की पूजा करिे हैं इस प्रकार उन्ोंिे पहा़िी सुंदरिा को बचा कर रखा है |
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पाठ-5 : िैं क्यीं क्षिखिा हूँ? िेखक : अज्ञेय
िेखक पररचय :
सच्चिदानंद ीरानंद िात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 माचय, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) क कवि, शैलीकार, कथा-साव त्य
क एक म त्त्वपूणय म ड दे ने िाले कथाकार, लवलत-वनबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में
जाना जाता ै। इनका जन्म 7 माचय 1911 क उत्तर प्रदे श के कसया, पुरातत्व-खुदाई वशविर में हुआ।
अज्ञेय आधुवनकता की ध्ववन ै और अ ंिादी प्रिृवत्त ै। इसके अवतररक्त बौच्चद्धक चेतना अथिा
बौच्चद्धकता इनकी काव्य-िस्तु की विवशष्टता ै।” िे उन प्रय गिादी कविय ं में ैं ज मध्यिगय की
पीडा क अच्छी तर प चानते ैं। इनकी भाषा संस्कृतवनष्ठ खडी ब ली ै वजसमें छं द के साथ-साथ
छं द मुक्तकता भी ै उनकी भाषा में नए वबम् ं और नए प्रतीक ं का भी प्रय ग वमलता ै | अत्यंत
म त्त्वपूणय कथाकार अज्ञेय के प्रस्तुत संकलन में िररष्ठ आल चक डॉ० कृष्णदत्त पालीिाल ने वजन
दस क ावनय ं क प्रस्तुत वकया ै, िे ैं : 'मेजर चौधरी की िापसी', 'गैंग्रीन (र ज़)', 'नगा पियत की
एक घटना', ' ीली-ब न् की बत्तखें', 'पठार का धीरज', 'जयद ल', 'वििेक से बढ़कर', 'सााँ प' तथा
'शरणदाता' .
साराींश :
मैं क् ं वलखता हाँ पाठ में लेखक ने अपने वलखने के कारण ं के साथ-साथ एक लेखक
के प्रेरणा स्र त ं पर भी प्रकाश डाला ै | लेखक के अनुसार वलखे वबना वलखने के कारण ं क न ीं
जाना जा सकता ि अपनी आं तररक व्याकुलता से मुच्चक्त पाने तथा तटस्थ कर उसे दे खने और
प चानने के वलए वलखता ै| प्रायः प्रत्येक रचनाकार की आत्मानुभूवत वक उसे लेखन कायय के वलए
प्रेररत करती ै वकंतु कुछ बा री दबाि भी ते ैं | ये बा री दबाि कई बार रचनाकार क वलखने
के वलए बाध्य करते ैं | इन बा री दबाि में संपादक ं का आग्र प्रकाश का तकाजा तथा आवथयक
आिश्यकता आवद प्रमुख ैं लेखक का मत ै वक ि बा री दबाि ं से कम प्रभावित ता ै उसे
त इसकी भीतरी व्यिस्था ी वलखने की ओर प्रेररत करती ै | उसका मानना ै वक प्रत्यक्ष अनुभि
से अनुभूवत ग री चीज़ ै | एक रचनाकार क अनुभि, सामने घवटत घटना क दे खकर ता ै
वकंतु अनुभूवत संिेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य क भी ग्र ण कर लेती ै ज रचनाकार के
सामने घवटत न ीं हुआ विर ि सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता ै और रचनाकार ं
का िणयन करता ै|
लेखक बताता ै वक उसके द्वारा वलखी व र वशमा नामक कविता भी ऐसी ी ै एक
बार जब ि जापान गया त ि ााँ व र वशमा में उसने दे खा वक एक पत्थर बुरी तर झुलसा हुआ
ै और उस पर एक व्यच्चक्त की लंबी उजली छाया ै | विज्ञान का विद्याथी ने के कारण उसे
रे वडय धमी प्रभाि ं की जानकारी थी | उसे दे खकर उसने अनुमान लगाया वक जब व र वशमा पर
बम वगराया गया गा त उस समय ि व्यच्चक्त इस पत्थर के पास खडा गा | अणु-बम के प्रभाि
से ि भाप बनकर उड गया वकंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ी र गई | लेखक क उस झुलसे
हुए पत्थर ने झकझ र कर रख वदया | व र वशमा पर वगराए गए अणु-बम की भयानकता की कल्पना
करके बहुत दु खी हुआ | उस समय उसे ऐसे लगा, मान ि दु खद घटना के समय ि ााँ मौजूद
र ा | इस त्रासदी से उसके भीतर ज व्याकुलता पैदा हुई उसी का पररणाम उसके द्वारा व र वशमा
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पर वलखी कविता थी | लेखक क ता ै वक य कविता 'व र वशमा" जैसी भी ,ि उसकी अनुभूवत
से पैदा हुई थी| य ी उसके वलए म त्वपूणय था |
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास (3 अींक का प्रश्न)
प्रश्न 1. लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभि की अपेक्षा अनुभूवत उनके लेखन में क ीं अवधक मदद
करती ै, क् ?ं
उत्तर- लेखक की मान्यता ै वक सिा लेखन भीतरी वििशता से पैदा ता ै। य वििशता मन
के अंदर से उपजी अनुभूवत से जागती ै , बा र की घटनाओं क दे खकर न ीं जागती। जब तक
कवि का हृदय वकसी अनुभि के कारण पूरी तर संिेवदत न ीं ता और उसमें अवभव्यक्त ने
की पीडा बेचैन न ीं करती, तब तक ि कुछ वलख न ीं पाता।
प्रश्न 3. मैं क् ं वलखता हाँ? के आधार पर बताइए वक- लेखक क कौन-सी बातें वलखने के वलए प्रेररत
करती ैं? वकसी रचनाकार के प्रेरणा स्र त वकसी दू सरे क कुछ भी रचने के वलए वकस तर
उत्साव त कर सकते ैं?
उत्तर- लेखक क य जानने की प्रेरणा वलखने के वलए प्रेररत करती ै वक ि आच्चखर वलखता
क् ं ै। य उसकी प ली प्रेरणा ै। स्पष्ट रूप से समझना त लेखक द कारण ं से वलखता
ै- भीतरी वििशता से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसी अनुभूवत जाग उठती ै वक ि उसे
अवभव्यक्त करने के वलए व्याकुल उठता ै । कभी-कभी ि संपादक ं के आग्र से, प्रकाशक के
तकाज ं से तथा आवथयक लाभ के वलए भी वलखता ै। परं तु दू सरा कारण उसके वलए जरूरी न ीं
ै। प ला कारण अथायत् मन की व्याकुलता ी उसके लेखन का मूल कारण बनती ै।
प्रश्न 5. क्ा बाह्य दबाि केिल लेखन से जुडे रचनाकार ं क ी प्रभावित करते ैं या अन्य क्षेत्र ं से
जुडे कलाकार ं क भी प्रभावित करते ैं , कैसे?
उत्तर- बा री दबाि सभी प्रकार के कलाकार ं क प्रेररत करते ैं। उदा रणतया अवधकतर अवभनेता,
गायक, नतयक, कलाकार अपने दशयक ,ं आय जक ,ं श्र ताओं की मााँग पर कला-प्रदशयन करते ैं। अवमताभ
बिन क बडे -बडे वनमाय ता-वनदे शक अवभनय करने का आग्र न करें त शायद अब िे आराम
142
करना चा ें। इसी प्रकार लता मंगेशकर भी 50 साल से गाते-गाते थक चुकी ग
ं ी, अब विल्म-
वनमायता, संगीतकार और प्रशंसक ी उन्हें गाने के वलए बाध्य करते ग
ं े।
प्रश्न 7. व र वशमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दु रुपय ग ै । आपकी दृवष्ट में विज्ञान का दु रुपय ग
क ााँ-क ााँ वकस तर से र ा ै।
उत्तर- आजकल विज्ञान का दु रुपय ग अनेक जानलेिा काम ं के वलए वकया जा र ा ै। आज
आतंकिादी संसार-भर में मनचा े विस्फ ट कर र े ैं। क ीं अमरीकी टािर ं क वगराया जा र ा
ै। क ीं मुंबई बम-विस्फ ट वकए जा र े ैं। विज्ञान के दु रुपय ग से वकसान कीटनाशक और
ज रीले रसायन वछडककर अपनी िसल ं क बढ़ा र े ैं। इससे ल ग ं का स्वास्थ्य खराब र ा
ै। विज्ञान के उपकरण ं के कारण ी िातािरण में गमी बढ़ र ी ै , प्रदू षण बढ़ र ा ै , बिय वपघलने
का खतरा बढ़ र ा ै तथा र ज-र ज भयंकर दु घयटनाएाँ र ी ैं।
प्रश्न 8. एक संिेदनशील युिा नागररक की ैवसयत से विज्ञान का दु रुपय ग र कने में आपकी क्ा
भूवमका ै?
उत्तर- एक संिेदनशील युिा नागररक ने के कारण विज्ञान का दु रुपय ग र कने के वलए मारी
भूवमका अत्यंत म त्त्वपूणय ै। इसके वलए वनम्नवलच्चखत कायय करते हुए मैं अपनी सवक्रय भूवमका वनभा
सकती हाँ- प्रदू षण िैलाने तथा बढ़ाने िाले उत्तरदायी कारक ं प्लाच्चिक, कूडा-कचरा आवद के बारे में
ल ग ं क जागरूक बनाने के साथ-साथ ल ग ं से अनुर ध करू
ं गी वक पयायिरण के वलए ावनकारक
िस्तुओं का उपय ग न करें । विज्ञान के बनाए वथयार ं का प्रय ग यथासंभि मानिता की भलाई के
वलए ी करें , मनुष्य ं के विनाश के वलए न ीं। विज्ञान अच्छा सेिक वकंतु बुरा स्वामी ै। य बात
ल ग ं तक िैलाकर इसके दु रुपय ग के पररणाम ं क बताने का प्रयत्न करू ाँ गी ।
143
प्रश्न 2. लेखक की आभ्यंतर वििशता क्ा ती ै ? 'मैं क् ं वलखता हाँ ' पाठ के आल क में उत्तर
दीवजए।
उत्तर: लेखक की आभ्यंतर वििशता य ै वक ि स्वयं क प चानने के वलए वलखता ै। लेखक
वलखकर अपने मन के अंदर की वििशता क जानना चा ता ै। ज विचार उसके अंदर छटपटा ट
पैदा कर र े ैं , उन्हें जानने के वलए वलखता ै। लेखक मानता ै वक कई बार बा री तत्व ं जैसे-
आवथयक वििशता, संपादक का आग्र प्रवसच्चद्ध पाने या बनाए रखने के वलए भी वलखा जाता ै।
परं तु लेखक तटस्थ र कर, आं तररक विचार ं से मुच्चक्त पाने के वलए अपनी अनुभूवत के आधार पर
वलखता ै।
प्रश्न 3. 'मैं क् ं वलखता हाँ।' पाठ के आधार पर बताइए वक लेखक क वलखने की प्रेरणा क ााँ से
प्राप्त ती ै।
उत्तर: मैं क् ं वलखता हाँ ' पाठ में अज्ञेय जी क वलखने की प्रेरणा आं तररक वििशता से वमलती ै
वजसे प्रकट करने के वलए िे वलखते ैं। िे तटस्थ कर य दे खना चा ते ैं वक उनका मन क्ा
स चता ै। िे वलखकर मन की बेचैनी और उसकी छटपटा ट से मुच्चक्त पाने के वलए वलखते ैं। िे
स्वयं क जानने और समझने ि प चानने के वलए वलखते ैं। िे य भी मानते ैं वक कई बार
कुछ लेखक आवथयक कारण ं से भी वलखते ैं या कुछ संपादक के दिाि और प्रवसच्चद्ध की कामना
के वलए भी वलखते ैं।
िूल्यपरक प्रश्न :
प्रश्न 1. व र वशमा में विज्ञान का वजस तर दु रुपय ग हुआ ि मानिता के वलए खतरे का संकेत
था। ितयमान में य खतरा और भी बढ़ गया ै। भविष्य में ऐसी घटना की पुनरािृवत्त न इस
संबंध में अपने विचार स्पष्ट कीवजए।
उत्तर- व र वशमा में वजस तर विज्ञान का दु रुपय ग हुआ ि मानिता के इवत ास में काला वदन
ने के साथ-साथ मनुष्यता के वलए कलंक भी था। विज्ञान की उत्तर त्तर प्रगवत के कारण य खतरा
वदन -ं वदन बढ़ता जा र ा ै। यवद विज्ञान का दु रुपय ग न र का गया त य मानिता के अच्चस्तत्व
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के वलए खतरा बन सकता ै। ऐसी घटनाओं की पुनरािृवत्त र कने के वलए विश्व के विकवसत एिं
परमाणु शच्चक्त संपन्न दे श ं क आगे आना चाव ए और इसका दु रुपय ग र कने के वलए सशक्त
जनमत बनाना चाव ए। इन दे श ं द्वारा उन दे श ं पर तुरंत वनयंत्रण लगाया जाना चाव ए ज परमाणु
बम बनाने के वलए आतुर ैं , या ज अपनी परमाणु शच्चक्त का धौंस अन्य छ टे दे श ं क वदखाते ैं।
यवद ये दे श इसके वलए तैयार न ीं ते ैं त उनके साथ आवथयक और व्यापाररक संबंध समाप्त
कर दे ना चाव ए।
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व्य करण
ि च्य भेद
ि च्य की पररभ ष
वाच्य का अथय है – बोलिे का क्षवषय ।
क्षक्या के क्षजस रूप से पिा चले क्षक क्षक्या का मुख्य क्षवषय किाय है ,कमय है अथवा भाव है ,उसे वाच्य कहिे
है|
उदाहरण
िेिाजी सुंदर लग रहे थे ।( इस वाक् में िेिाजी किाय को दशायिे हैं । )
बालगोक्षबि भगि खेिीबा़िी कर रहे हैं ।(इस वाक् में खेिीबा़िीकमय को दशायिी है। )
उससे रोया िहीं जािा ।( इस वाक् में रोया भाव को दशायया है । )
ि च्य के भेद
वाच्य के मुख्यिया दो भेद होिे हैं –किृयवाच्य और अकिृयवाच्य । अकिृयवाच्य के भी दो भेद होिे हैं । क्षजन्ें
कमयवाच्य और भाववाच्य के िाम से जािा जािा हैं ।
किृृि च्य
क्षक्या के रूपांिर से जब वाक् में किाय की प्रधाििा का बोध होिा है ।
क्षक्या के क्षलंग,वचि िथा पुरूष भी किाय के अिुसार ही लगाए जािे हैं ।
जैसे –
बालक सोिा है ।
बच्चे खेलिे हैं ।
गीिा खािी है ।
अकिृृि च्य
क्षक्या के रूपांिर से जब वाक् में किाय की प्रधाििा िहीं होिी,िो इस प्रकार के वाच्य को अकिृयवाच्य कहिे
हैं । अकिृयवाच्यके दो भेद होिे हैं ।
कमृि च्य
क्षक्या के क्षजस रूपांिर से वाक् में कमय की प्रधाििाका बोध हो, उसे कमयवाच्य कहिे हैं ।
वाक् में कमय की प्रधाििा होिे पर क्षक्या के क्षलंग,वचि एवं पुरुष कमय के अिुसार ही होिे हैं अथायि जब
क्षक्या का संबंध कमय से हो, िो वह वाक् कमयवाच्य होिा है ।
जैसे –
रोगी को दवाई दे दी गई है ।
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छाि द्वारा पुस्तक पढ़ी जा रही है ।
पिंग उ़ि रही है ।
भ िि च्य
क्षक्या के क्षजस रूपांिर से वाक् में किाय या कमय के बदले क्षक्या या भाव की प्रधाििा होिी है , उसे भाववाच्य
कहिे हैं । ऐसे वाक्ों में पुक्तल्लंग , एकवचि िथा अन्य पुरुष का रूप सामिे आिा है। क्षक्या की क्षिभयरिा भाव
पर रहिी है ।
जैसे -
सोहि से चला िहीं जािा ।
अब मुझसे सहा िहीं जािा ।
बच्चों से क्षलखा िहीं जािा है ।
ि च्य पररििृन
किृृि च्य से कमृि च्य में पररििृन
कि ृ के स थ “ से ”,“ के द्व र ” अथि “ द्व र ” क्षवभक्ति लगाकर कमयवाच्य वाक् बिाया जा सकिा है ।
पररवियि करिे समय क्षक्या के काल में पररवियि िहीं होिा ।
किृयवाच्य की प्रधाि क्षक्या में “ जािा” क्षक्या के उक्षचि रूप को स्थाि क्षदया जािा है ।
किृृि च्य
सीिा खािा खािी है ।
जवािों िे आिंकवक्षदयों को मारा ।
िुम फूल िो़िोगे ।
कमृि च्य
सीिा के द्वारा खािा खाया जािा है ।
जवािों द्वारा आिंकवादी मारे गए ।
िुम्हारे द्वारा फूल िो़िा जाएगा ।
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मैं अब िहीं चल पािा । मुझसे अब िहीं चला जािा ।
पािवाला िया पाि खा रा था । पािवाले द्वारा िया पाि खाया जा कहा था ।
अभ्य स
मनदे ि नुस र ि च्य पररििृन कीमजए ।
148
उत्तर – हमारे द्वारा स्वामी जी को िहीं भुलायाजा सकिा ।
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ि क्य भेद
वाक् - साथयक शब्ों का ऐसा व्यवक्तस्थि समूह जो पूरा आशय प्रकट करिा है , उसे वाक् कहिे हैं।
हम मि के भाव-क्षवचार प्रकट करिे के क्षलए भाषा का सहारा लेिे हैं िो शब्ों का प्रयोग करिे हैं। उि शब्ों
को वाक्ों के रूप में बोलिे या क्षलखिे हैं। अिः अथय की पूणय अक्षभव्यक्ति के क्षलए इि शब्ों को एक
व्यवक्तस्थि क्म में रखा जािा है।
वाक् साथयक शब्ों (पदों) के मेल से वाक् बििे हैं।
वाक् पूणय और स्विंि होिे हैं।
वाक् विा की कही बािों का आशय स्पष्ट करिे हैं।
1. सरल ि क्य - सरल वाक् एक किाय िथा एक क्षक्या के मेल से बििा है। इसमें कोई उपवाक् िहीं जु़ििा
है। जैसे-
1. राम िे रावण को हरा क्षदया।
2. छाि िे समय पर गृहकायय पूरा कर क्षलया।
3. डर ाइवर समय से बस लेकर िहीं आया।
4. पिी शाम होिे ही घोंसले की ओर लौट आिे हैं।
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उद्े श्य कभी एक शब् का होिा है िो कभी इसकी क्षवशेषिा बिािे वाले शब् इसमेंजु़ि जािे हैं िब यह कई
शब्ों के मेल से बििा है , जैसे-
(क) छाि पढ़िे लगे हैं।
(ख) छोटे -ब़िे सभी बालक पढ़िे लगे हैं।
इि वाक्ों में छाि, छोटे -ब़िे और सभी बालक उद्े श्य हैं , क्ोंक्षक वाक् का शेष अंश
इिके ही बारे में कुछ बिा रहा है।
(ii) क्षवधेय- वाक् में क्षजस अंश द्वारा अपिे उद्े श्य के बारे में कुछ बिाया जािा है ,
उसे क्षवधेय कहिे हैं।
क्षवधेय एक शब् का हो सकिा है या पूरकों के साथ क्षमलकर कई शब्ों के मेल से
बि सकिा है , जैसे –
1. बालक गया।
2. बालक घर गया।
3. छाि कालांश समाप्त होिे ही श्यामपट्ट से क्षलखकर घर गया।
इि वाक्ों में घर गया और श्यामपट्ट से क्षलखकर घर गया। ये क्षवधेय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण
2. सांयुक्त ि क्य - जब दो या दो से अक्षधक स्विंि उपवाक् क्षकसी योजक (समुच्चयबोधक अव्यय) द्वारा जु़िे
होिे हैं िो वे संयुि वाक् कहलािे हैं।
संयुि वाक् की क्षवशेषिाएँ –
संयुि वाक् के उपवाक् आपस में योजकों- या, वा, अथवा, इसक्षलए, और, क्षकंिु, परं िु, लेक्षकि, िथा, एवं
आक्षद से जु़िे होिे हैं।
इिमें प्रयुि उपवाक् स्विंि अथय का बोध करािे हैं।
इिमें प्रयुि उपवाक् समाि स्तर के होिे हैं।
151
VIII. उसिे चाय एवं कॉफी का आिंद क्षलया।
IX. कैप्टि चश्मेवाले में िेिाजी के प्रक्षि अगाध लगाव एवं श्रद्धा भाव था।
X. मूक्षियवाला फ्रेम दे दे िा है और मूक्षिय पर दू सरा फ्रेम लगा दे िा है।
XI. वह मूक्षिय की कमी और िेिाजी के व्यक्तित्व की अपूणयिा को भरिे का प्रयास करिा था।
XII. बालगोक्षवि भगि अत्यंि सादगी, सरलिा और क्षि:स्वाथय भाव से जीवि जीिे थे।
3. ममश्रि क्य- क्षजस वाक् में एक से अक्षधक उपवाक् जु़िे हो, परं िु उिमें एक प्रधाि उपवाक् हो िथा
दू सरा आक्षश्रि उपवाक् हो, उसे क्षमश्रवाक् कहिे हैं।
क्षमश्रवाक् में आक्षश्रि या गौण उपवाक् प्रधाि उपवाक् पर क्षिभयर होिे हैं। क्षमश्रवाक् व्यक्षधकरण योजकों के
युग्म-जैसा-वैसा, जो-सो, क्षजसकी-उसकी, जहाँ -वहाँ , जब-िब, जैसी-वैसी, यक्षद-िो, – जब- िब, क्षजन्ें-उन्ें
आक्षद से जु़िे होिे हैं। स्विंि उपवाक् को प्रधाि उपवाक् भी कहा जािा है।
उदाहरण
i. माँ िे कहा क्षक शाम को जल्दी लौट आिा।
ii. जब मैं घर पहुँचा िब वषाय शुरू हो चुकी थी।
iii. जैसे ही बादल क्षघरे वैसे ही क्षबजली चमकिे लगी।
iv. जैसे ही मैं क्षवद्यालय पहुँचा वैसे ही घंटी बज चुकी थी।
v. जब-जब धरिी पर अधमय बढ़ा है , िब-िब ईश्वर धरिी पर अविररि हुए हैं।
vi. जहाँ-जहाँ क्षसंचाई की व्यवस्था है, वहाँ-वहाँ फसलें खूब पैदा होिी हैं।
vii. यक्षद िुम मेहिि करोंगे िो अच्छे अंक से उत्तीणय हो जाओंगे।
यद्यक्षप हम वहाँ िहीं गए, िथाक्षप उिका काम हो गया । क्षमश्र वाक् में आक्षश्रि उपवाक् वाक् के आरं भ,
मध्य या अंि में कहीं भी आ सकिे हैं, जैसे –
आरं भ में –
i. जो अपिे आस-पास सफ़ाई रखिे हैं , वे सदा स्वस्थ रहिे हैं।
ii. क्षजस ल़िके िे सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं उसे पुरस्कृि क्षकया जाएगा।
मध्य में –
i. वे, जो अपिे आस-पास सफ़ाई रखिे हैं, सदा स्वस्थ रहिे हैं।
ii. वह ल़िका, क्षजसिे सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं , पुरस्कृि क्षकया जाएगा।
अंि में –
i. वे सदा स्वस्थ रहिे हैं जो अपिे आस-पास सफ़ाई रखिे हैं।
ii. उस ल़िके को पुरस्कृि क्षकया जाएगा क्षजसिे सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं।
iii. जो कुछ प्रसाद रूप में क्षमलिा था उसी में पररवार का क्षिवायह करिे थे।
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आमश्रि उपि क्य के भेद –
संज्ञा उपवाक्
क्षवशेषण उपवाक्
क्षक्याक्षवशेषण उपवाक्
1. संज्ञा उपवाक् - क्षकसी उपवाक् में जो आक्षश्रि उपवाक् मुख्य उपवाक् की संज्ञा के स्थाि पर आिे हैं,
उन्ें संज्ञा उपवाक् कहिे हैं ; जैसे –
प्राचायय िे कहा क्षक कल क्षवद्यालय बन्द रहेगा।
अव्यय
i. केवट िे कहा क्षक क्षबिा पाँव धोए आपको िाव पर िहीं चढ़ाऊँगा।
ii. मैं जाििा था क्षक िुम अवश्य आओंगे।
इि वाक्ों में प्रयुि उपवाक् ‘क्षबिा पाँव धोए आपको िाव पर िहीं चढ़ाऊँगा’, ‘िुम अवश्य आओंगे ’, ‘अपिे
आस-पास सफ़ाई रखो’ संज्ञा उपवाक् हैं।
माली िे बच्चों को समझाया क्षक फूल िो़ििा मिा है।
फल वाले िे कहा क्षक मैं िाजे फल ही बेचिा हँ।
सांज्ञ उपि क्य ां की पहचाि इिके आरं भ में लगे ‘क्षक’ को दे खकर पहचाि की जा सकिी है। ये उपवाक्
‘क्षक’ के द्वारा मुख्य (प्रधाि) उपवाक् से जु़िे होिे हैं। ‘क्षक’ का प्रयोग उस दशा में िहीं होिा-जब संज्ञा
उपवाक् प्रधाि उपवाक् से पहले आ जाए या कभी-कभी ‘क्षक’ का लोप कर क्षदया जाए; जैसे –
िुम मेरी मदद करोगे, मुझे पिा था।
वह त्याग पि िहीं दे िा, उसिे घर वालों को बिा क्षदया था।
राजेश को पिा था, वेंकट आिे वालों में िहीं है।
मरीज को लगिे लगा, अब वह ठीक हो जाएगा।
इि वाक्ों में रे खांक्षकि अंश संज्ञा उपवाक् हैं क्षजिके पहले ‘क्षक’ का लोप है।
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2.मििेषण उपि क्य – क्षवशेषण उपवाक् मुख्य उपवाक् में प्रयुि संज्ञा या सवयिाम की क्षवशेषिा बिािे हैं ,
उन्ें क्षवशेषण उपवाक् कहिे हैं; जैसे
वे छाि सफल हो गए जो मेहिि कर रहे थे।
3. मिय मििेषण उपि क्य – प्रधाि उपवाक् की क्षक्या की क्षवशेषिा बिािे वाले आक्षश्रि उपवाक्ों को
क्षक्याक्षवशेषण उपवाक् कहिे हैं ; जैसे –
जहाँ पहले मैं पढ़ा था,यह वही क्षवद्यालय है।
जहाँ पहले मैं पढ़ा था, यह वही क्षवद्यालय है।
मिय मििेषण उपि क्य के भेद – क्षक्याक्षवशेषण उपवाक् मुख्य उपवाक् की क्षक्या का काल, रीक्षि, स्थाि,
पररमाण, कायय का कारण आक्षद का बोध करािे हैं। इस आधार पर क्षक्याक्षवशेषण उपवाक् के पाँच भेद होिे
हैं –
(i) क लि चक उपि क्य –
1. जब सूरज उगिा है िब अँधेरा दू र हो जािा है।
2. जैसे ही मैं क्षवद्यालय पहुँचा वैसे ही वषाय होिे लगी।
3. ज्यों ही वषाय शुरू हुई मोर िाचिे लगे।
(ii) रीमिि चक उपि क्य –
जैसा वह कहिा है, वैसा ही काम करो।
1. जैसा सक्षचि िेंदुलकर बल्लेबाजी करिे थे, वैसा दू सरा िहीं।
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2. क्षजस िरह गुरु िे समझाया था, क्षशष्य उसी िरह का आचरण क्षकया।
3. जैसे-जैसे आगे बढ़िे जाओंगे, मंक्षज़ल क्षिकट आिी जाएगी।
अध्यापकः बोले क्षक कल सभी को 9 बजे िक आिा है और परीिा क्षलखिा है। प्रधाि आक्षश्रि स्विंि
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अभ्य स प्रश्न
प्रश्न / उत्तर
1. क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों को रचिा के आधार पर वाक् पहचािकर क्षलक्तखए –
i. वह बाज़ार गई और स्वेटर लाई। संयुि वाक्
ii. घंटी बजिे ही छाि किाओं में चले गए। सरल वाक्
iii. यद्यक्षप वह ईमािदार है क्षफर भी काम से जी चुरािा है। क्षमश्र वाक्
iv. बुक्षढ़या रो रही थी इसक्षलए मैंिे उससे रोिे का कारण पूछा। संयुि वाक्
v. जब हेलीकॉप्टर से खािा क्षगराया गया िब लोगों को भोजि क्षमला। क्षमश्र वाक्
vi. क्षबजली आई परं िु टीवी ि चली। संयुि वाक्
vii. दोिों दे श के सैक्षिक घमासाि युद्ध कर रहे थे। सरल वाक्
viii. वषाय रुकी और खेल शुरू हो गया। संयुि वाक्
ii. जब थािे में क्षशकायि की गई िब लाउडस्पीकर का शोर बंद हुआ। (क्षमश्र वाक्)
थािे में क्षशकायि करिे पर लाउडस्पीकर का शोर बंद हुआ।
iii. पररश्रमी लोगों के क्षलए कोई काम असंभव िहीं होिा। (संयुि वाक्)
जो लोग पररश्रमी होिे हैं उिके क्षलए कोई काम असंभव िहीं होिा है।
iv. आकाश में बादल छािे ही शीिल हवा बहिे लगी। (क्षमश्र वाक्)
आकाश में बादल छाए और शीिल हवा बहिे लगी।
v. अध्यापक किा में आए और पढ़ािे लगे। (क्षमश्र वाक्)
जब अध्यापक किा में आए िब वे पढ़ािे लगे।
vi. अक्षभिेिा अक्षमिाभ बच्चि को सदी का महािायक कहा जािा है। (क्षमश्र वाक्)
अक्षमिाभ बच्चि वही अक्षभिेिा हैं क्षजन्ें सदी का महािायक कहा जािा है।
vii. पररश्रम करो और सफ़लिा प्राप्त करो। (सरल वाक्)
पररश्रम करके सफलिा प्राप्त करो।
प्रश्न 3. क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों के रे खांक्षकि अंशों को दे खकर आक्षश्रि उपवाक् भेद पहचाक्षिए –
i. अध्यापक िे उस छाि पर जुमायिा लगाया क्षजसिे प्रयोगशाला में उपकरण िो़िे थे। . मििेषण उपि क्य
ii. राम िे सुमंि से कहा क्षक अब अयोध्या वापस लौट जाओ। सांज्ञ उपि क्य
iii. जब बाररश हो रही थी िब बच्चे िहा रहे थे। मिय मििेषण उपि क्य
iv. कृष्ण िे दु योधि से कहा क्षक पांडवों को आधा राज्य दे दे । सांज्ञ उपि क्य
156
v. जो गरीबों की मदद करिे हैं वे दीिबंधु कहलािे हैं। मििेषण उपि क्य
vi. यक्षद मि लगाकर पढ़िे िो फेल ि होिे। मिय मििेषण उपि क्य
vii. अध्यापक िे छािों से कहा क्षक क्षबिा पटाखों के दीपावली मिाएँ । सांज्ञ उपि क्य
viii. जब-जब बाढ़ आई िब-िब फ़सलें िष्ट हुई हैं। मिय मििेषण उपि क्य
प्रश्न 6.क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों के रे खांक्षकि अंशों को दे खकर आक्षश्रि उपवाक् भेद पहचाक्षिए
i. वे छाि, जो कल िहीं आए थे ख़िे हो जाएँ । मििेषण उपि क्य
ii. क्षजन्ोंिे भारि को आजाद करवाया उिका िाम इक्षिहास में अमर रहेगा। मििेषण उपि क्य
iii. जैसा मोर िाचिा है वैसा कोई दू सरा पिी िहीं। मिय मििेषण उपि क्य
iv. मुझे क्षवश्वास है क्षक महँगाई अवश्य कम होगी। सांज्ञ उपि क्य
v. यह आपके क्षिदे शि का फल है क्षजसके कारण क्षफ़ल्म इििी सफल हुई। मििेषण उपि क्य
157
vi. जहाँ-जहाँ गांधी जी गए उिका भव्य स्वागि हुआ। मिय मििेषण उपि क्य
vii. हम दोिों चाहिे थे क्षक अब हम वैवाक्षहक बंधि में बंध जाए। सांज्ञ उपि क्य
(2) झूठ बोलिे वालों पर कोई क्षवश्वास िहीं करिा। (क्षमश्र वाक् में बदक्षलए)
(क) ज झूठ ब लिे हैं , उन पर क ई मिश्व स नही ां करि ।
(ख) झूठ बोलिे हैं ।
(ग) वे झूठ बोलिे हैं और वह कभी सत्य भी।
(घ) रमि झूठ बोलिा है।
(4) उस ल़िकी को बुलाओ जो अखबार पढ़ रही है। (सरल वाक् में बदक्षलए)
अखबार पढ़ रही ल़िकी को बुलाओ।
(5) जो मक्षहला अक्षधवेशि को संबोक्षधि करिे के क्षलए उठी वह बहुि सुंदर थी। (सरल वाक् में बदक्षलए)
अक्षधवेशि को संबोक्षधि करिे के क्षलए उठी मक्षहला बहुि सुंदर थी।
(क) मैंिे सुिा है क्षक िुम अपिी किा में प्रथम आए हो- वाक् का प्रकार बिाइए। ममश्र ि क्य
(ख) वह स्टे शि पहुंचा और हम वहाँ से चल क्षदए– यह क्षकस प्रकार का वाक् है। सांयुक्त ि क्य
(ग) उन्ोंिे जैसे ही शहिाई बजािी शुरू की, सब उसकी ध्वक्षि में मग्न हो गए-संयुि वाक् में बदक्षलए।
उन्ोंिे शहिाई बजािी शुरू की और सब उसकी ध्वक्षि में मग्न हो गए।
(घ) मेरे पास एक क्षकिाब है जो बहुि रुक्षचकर है - सरल वाक् में बदक्षलए।
मेरे पास एक बहुि रुक्षचकर क्षकिाब है।
(ङ) वह बहुि क्षविम्र है और सवयि सम्माि प्राप्त करिी है - क्षमश्र वाक् में रूपांिररि कीक्षजए।
वह सवयि सम्माि प्राप्त करिी है क्ोंक्षक वह बहुि क्षविम्र है।
158
प्रश्न 3.क्षिदे शािुसार उत्तर दीक्षजए।
(क) उन्ोंिे मूक्षिय को दे खा और रुक गए। (क्षमश्र वाक् में बदक्षलए)
जब उन्ोंिे मूक्षिय की ओर दे खा िब रुक गए।
(ख) जो छाि प्रश्न पूछिा है उसका ज्ञाि बढ़िा है। (सरल वाक् में रूपांिरण कीक्षजए)
प्रश्न पूछिे वाले छाि का ज्ञाि बढ़िा है।
(घ) उसिे आश्वासि क्षदया क्षक वह भक्षवष्य में यह गलिी िहीं दोहराएगा। (क्षकस प्रकार का वाक् है ?)
क्षमश्र वाक्
प्रश्न 4.क्षिदे शािुसार उत्तर दीक्षजए।
(क) उपदे शक मंच पर बैठकर उपदे श दे िे लगा। (संयुि वाक् में रूपांिरण कीक्षजए)
उपदे शक मंच पर बैठा और उपदे श दे िे लगा।
(ख) सूयय उक्षदि हुआ और चारों ओर प्रकाश फैल गया। (क्षमश्र वाक् में बदक्षलए)
जब सूयय उक्षदि हुआ िब चारों ओर प्रकाश फैल गया।
(ग) जैसे ही वह धि-संपन्न हुआ वैसे ही उसकी समस्याएँ बढ़िे लगीं। (वाक्-भेद बिाइए)
क्षमश्रवाक्
159
(घ) वह गा़िी चलािा है साथ-साथ मोबाइल पर बाि भी करिा है।
160
(ख) घायल सैक्षिक िे शस्त्र उठाया और वह शिुओं से ल़ििे लगा। (क्षमक्षश्रि वाक् में)
(ग) राम दशरथ के पुि थे और वे क्षपिा की आज्ञा से वि को गए (सरल वाक् में)
उत्तर:
(क) वह अध्यापक था और कल यहाँ आया था।
(ख) जब घायल सैक्षिक िे शस्त्र उठाया िब वह सैक्षिकों से ल़ििे लगा।
(ग) दशरथ के पुि राम क्षपिा की आज्ञा से वि को गए।
161
प्रश्न 14. क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों से आक्षश्रि उपवाक् छाँटकर उिका भेद क्षलक्तखए –
जो दू सरों की मदद करिा है , वह दीिबंधु होिा है।
जब-जब धमय की हाक्षि हुई है िब-िब ईश्वर िे अविार क्षलया है।
वे जो िीली कमीज़ पहिे हुए हैं, प्रयोगशाला में आ जाएँ ।
यह वह ‘बस है जो िीि घंटे में आगरा पहुँचािी है।
महात्मा जी का कहिा था क्षक दीपक अपिे आप बिो।
162
सम स
• दो या दो से अक्षधक शब्ों के क्षमलिे से बिे शब् को सामाक्षसक पद िथा इस क्षक्या को समास कहिे हैं।
• समाज के 6 भेद होिे हैं।
1) अव्ययीभाव समास
2) ित्पुरुष समास
3) कमयधारय समास
4) क्षद्वगु समास
5) द्वं द समास
6) बहुव्रीक्षह समास
1• अव्ययीभ ि सम स
क्षजस सामाक्षसक शब् मे प्रथम पद प्रधाि और दू सरा पद अव्यय होिा है उसे अव्ययीभाव समास कहिे हैं
अक्षधकिर इसके आरं भ में आ,बे, भर,यथा,क्षि आक्षद शब् आिे हैं उदाहरण:
आजीवि, बेकाम,यथाशक्ति, क्षिडर इत्याक्षद।
2• ित्पुरुष सम स
क्षजस सामाक्षसक शब् में दू सरे पद की प्रधाििा होिी है वह ित्पुरुष समास होिा है इस समास की मुख्य
पहचाि यह है क्षक समास का क्षवग्रह करिे पर मध्य में कारक क्षवभक्ति का प्रयोग होिा है।
उदाहरण:
दे शगि =दे श को गि
सत्याग्रह =सत्य के क्षलए आग्रह
गुणहीि = गुणों से हीि
सेिािायक =सेिा का िायक इत्याक्षद।
3• कमृध रय सम स
क्षजस सामाक्षसक शब् में क्षवशेषण और क्षवशेष्य साथ-साथ हो उसे कमयधारय समास कहिे हैं।
उदाहरण:
िीलगाय = िीली है जो गाय
महात्मा= महाि है जो आत्मा
घिश्याम = घि के समाि श्याम इत्याक्षद।
4• मदगु सम स
क्षजस सामाक्षसक शब् का प्रथम पद संख्यावाचक होिा है उसे ज क्षद्वगु समास कहिे हैं।
उदाहरण:
क्षिदे व= 3 दे विाओं का समूह
163
दोराहा = दो राहों का समाहार
क्षिकोण = िीि कोणों का समाहार इत्याक्षद।
5• द्वां द सम स
क्षजस समस्त पद के दोिों पद प्रधाि होिे हैं, क्षजिका क्षवग्रह करिे समय बीच में योजक शब् ‘और’ लगिा है
उसे द्वं द समास कहिे हैं।
उदाहरण:
दाल रोटी= दाल और रोटी
भला बुरा =भला और बुरा
पाप पुण्य = पाप और पुण्य इत्याक्षद।
6• बहुव्रीमह सम स
इस सामाक्षसक पद में कोई भी शब् प्रधाि िहीं होिा है बक्तल्क दोिों शब् क्षमलकर एक िया अथय प्रकट करिे
हैं | उदाहरण:
िीलकंठ= िीला है कंठ क्षजसका
दु रंगा = दो रं गों वाला इत्याक्षद।
164
6). वत्रिला शब्द का समास बताइए ?
द्वं द ख) वदगु समास ग) कमयधारय उत्तर :वद्वगु समास
7). वनधयन में कौन सा समास ै?
कमयधारय ख) तत्पुरुष ग) बहुव्रीव उत्तर : बहुव्रीव
8). म ात्मा में समास बताइए?
अव्ययीभाि समास ख) कमयधारय समास ग) तत्पुरुष समास उत्तर :कमयधारय समास
9). वकस समास में द न ं पद वमलकर एक नया अथय प्रकट करते ैं ?
तत्पुरुष समास ख) कमयधारय समास ग) बहुव्रीव समास उत्तर : बहुव्रीव समास
10). वकस समास में प ला पर संख्यािाचक ता ै?
क) वदगु समास ख) कमयधारय समास ग) बहुव्रीव समास उत्तर : वद्वगु समास
11) वत्रनेत्र में समास बताइए?
अव्ययीभाि ख) तत्पुरुष ग) वदगु समास उत्तर:वदगु समास
12). तत्पुरुष समास में प्रधान ता ै?
प ला पद ख) दू सरा पद ग) द न ं पद उत्तर:दू सरा पद
13). रात ं रात में कौन सा समास ै?
कमयधारय समास ख) तत्पुरुष समास ग)द्वं द उत्तर: द्वं द समास
14). वजस समास मे द न ं खंड प्रधान ना ि ै?
क) तत्पुरुष समास ख) कमयधारय ग) बहुव्रीव उत्तर : बहुव्रीव समास
15). नीलल व त में वकस प्रकार का समास ै ?
क)बहुव्रीव समास ख) कमयधारय समास ग)अव्ययीभाि समास उत्तर: कमयधारय समास
16). इनमें से वकस शब्द में कमयधारय समास न ीं ै ?
क)भारतिासी ख) परमेश्वर ग) म ाजन उत्तर :भारतिासी
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165
पद पररचय क भेद
पद
जब शब्ो का प्रयोग वाक् में क्षकया जािा हैं िो उन्ें पद कहिे हैं।
पद पररचय
पद पररचय का अथय है वाक् में प्रयुि पदों का व्याकरक्षणक पररचय दे िा। अथायि वाक् में प्रत्येक पद के
स्वरूप िथा अन्य पदों के साथ उसके संबंध को बिािे की क्षक्या को पद पररचय कहिे हैं ।
वाक् में प्रयुि शब्ों के व्याकरक्षणक पररचय को पद-पररचय, पद-व्याख्या या पदान्वय कहिे है।
व्याकरक्षणक पररचय यह है – वाक् में उस पद की क्तस्थक्षि बिािा, उसका क्षलंग, वचि, कारक िथा अन्य
पदों के साथ संबंध बिािा।
जैसे – राम िे सीिा को फल क्षदया।
इस वाक् में एक क्षक्या का प्रभाव दो कमों पर प़ि रहा है क्षजसमे से पहले कमय सीिा है और दू सरा कमय
फल है अिः यह क्षद्वकमयक क्षक्या का उदाहरण है।
(क्षद्वकमयक का अथय दो कमय का एक साथ प्रयोग करिा होिा है। जब क्षकसी वाक् में किाय के द्वारा क्षक्या का
उपयोग करिे पर उसका प्रभाव दो कमों पर प़ििा है क्षद्वकमयक क्षक्या कहलािी है । इसमे जो कमय पहले
आिा है वह प्राणीवाचक होिा है िथा जो कमय बाद में आिा है वह क्षिजीव होिा है ।)
राम - संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुक्तल्लंग, एकवचि, ‘िे’ के साथ किाय कारक, क्षद्वकमयक क्षक्या ‘क्षदया’ के साथ।
सीिा - व्यक्तिवाचक संज्ञा, स्त्रीक्षलंग , एकवचि, कमय कारक
फल - जाक्षिवाचक संज्ञा, पुक्तल्लंग, एकवचि, कमयकारक
पद पररचय - भेद
द भेद ह िे हैं -
(क) मिक री
(ख) अमिक री।
(क) क्षवकारी क्षलंग, वचि, कारक आक्षद के कारण इिका रूप बदल जािा है।
मिक री िब्द च र प्रक र के ह िे हैं-
1. सांज्ञ - (संज्ञा का भेद,क्षलंग, वचि, कारक, अन्य शब्ों से संबंध।)
क्षकसी प्राणी, व्यक्ति, वस्तु, स्थाि, भाव आक्षद के िाम को संज्ञा कहिे हैं।
संज्ञा शब् का क्षक्या के साथ संबंध ‘कारक‘ के अिुसार जािा जािा है।
(कारक- वाक् में संज्ञा आक्षद शब्ों का क्षक्या से संबंध बिािे वाला व्याकरक्षणक
कोक्षट कारक कहलािा है ।)
2. सिृन म - (सवयिाम के भेद, पुरुष, क्षलंग, वचि, कारक, क्षक्या से संबंध।)
संज्ञा के स्थाि पर प्रयुि होिे वाले शब्ों को सवयिाम कहिे हैं |
जैसे-मैं, हम, ये कुछ आक्षद।
166
3. मििेषण - (क्षवशेषण के भेद, क्षलंग, वचि, क्षवकार, संबंध और उसका क्षवशेष्य।)
संज्ञा और सवयिाम की क्षवशेषिा बिािे वाले शब्ों को क्षवशेषण कहिे हैं |
जैसे- मीठा, पररश्रमी, काला, मोटा आक्षद।
4. मिय । - (क्षक्या के भेद, क्षलंग, वचि, पुरुष, काल, वाच्य,धािु कमय और किाय का उल्लेख।)
क्षजस शब् से क्षकसी कायय के करिे या होिे का पिा चले, उसे क्षक्या कहिे हैं ;
जैसे- क्षलखिा, पढ़िा, बोलिा, स्नाि करिा आक्षद।
(ख) अक्षवकारी या अव्यय
ऐसे शब् क्षजिके रूप क्षलंग, वचि, कारक, काल, पुरुष आक्षद की दृक्षष्ट से िहीं बदलिे उन्ें अक्षवकारी या
अव्यय कहिे हैं |
जैसे-हाथोंहाथ, इधर, वाह, अथवा आक्षद।
4. मिस्मय मदब धक - (हषय, भाव, शोक, घृणा, क्षवस्मय आक्षद क्षकसी एक भाव का क्षिदे श।)
क्षजि अव्यय शब्ों से आश्चयय, हषय, घृणा, पी़िा आक्षद भाव प्रकट हों, उन्ें क्षवस्मयाक्षदबोधक अव्यय कहिे हैं|
जैसे – ओह, अरे , अहा, हाय आक्षद|
5. मनप ि
वे अव्यय शब् जो क्षकसी शब् के बाद लगकर उसके अथय पर बल लगा दे िे हैं , उन्ें क्षिपाि कहिे हैं । ही,
िो, भी, िक, माि, भर आक्षद मुख्य क्षिपाि हैं ।
167
SET – 1 PAPER 2012
168
4. वे घर पहुँच चुके हैं ।
उत्तर सवयिाम, अक्षिक्षश्चि संख्यावाचक क्षवशेषण, पुक्तल्लंग, बहुवचि
169
गाँव की- संज्ञा पद, संबंध कारक, जाक्षिवाचक संज्ञा, एकवचि
क्षमट्टी- संज्ञा पद, जाक्षिवाचक संज्ञा, एकवचि, कमयकारक
मैं- सवयिाम, पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, पुक्तल्लंग, एकवचि, विायकारक
िरस गया- क्षक्या पदबंध, अकमयकद्ध, भूिकाल, पुक्तल्लंग, एकवचि
2020 PAPER
क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों में से रे खांक्षकि पदों का पद पररचय क्षलक्तखए-
1. क्षकसी का िाज़ा क्षचि िही छपा था ।
उत्तर िहीं - क्षक्या क्षवशेषण (िकारात्मक)
2. िीसरी बार क्षफर से िया चश्मा था ।
उत्तर िया - गुणवाचक क्षवशेषण, एकवचि, पुक्तल्लंग
3. यह सब मैंिे केवल सुिा।
उत्तर सुिा- किाय की क्षक्या, भूिकाल
4. माि लीक्षजए क्षक पुरािे जमािे में एक भी स्त्री पढ़ी-क्षलखी ि होिी |
उत्तर स्त्री - जाक्षिवाचक संज्ञा, स्त्रीक्षलंग
170
3. शाबाश! िुमिे बहुि अच्छा काम क्षकया।
उत्तर सवयिाम, मध्यमपुरुष वाचक, एकवचि, पुक्तल्लंग, किायकारक।
4. वहाँ दस छाि बैठे हैं।
उत्तर क्षवशेषण, क्षिक्षश्चि संख्यावाचक, पुक्तल्लंग, बहुवचि।
5. पररश्रम के क्षबिा सफलिा िहीं क्षमलिी।
उत्तर संबंधबोधक अव्यय, पररश्रम के साथ संबंध।
अन्य उद हरण
1. अहा! उपवि में सुन्दर फूल क्तखले हैं।
उत्तरः
अहा! – क्षवस्मयवाचक अव्यय
2. क्षिम्नक्षलक्तखि वाक्ों में से रे खांक्षकि पदों का पद पररचय क्षलक्तखए-
(क) हम स्विंििा का स्वागि करिे हैं।
(ख) मैं चाहिा हँ िुम क्षवद्वाि बिो।
(ग) वहाँ चार छाि बैठे हैं।
(घ) िुम सदा सत्य बोलो।
उत्तरः
(क) भाववाचक संज्ञा, एकवचि, स्त्रीक्षलंग, संबंध कारक।
(ख) उत्तम पुरुषवाचक सवयिाम, एकवचि, पुक्तल्लंग किायकारक ‘चाहिा हँ ’ क्षक्या का किाय।
(ग) क्षिक्षश्चि संख्यावाचक क्षवशेषण क्षवशेष्य-छाि।
(घ) कालवाचक क्षक्याक्षवशेषण ‘बोलो’ क्षक्या के काल का द्योिक।
3. सज्जि मिुष्य बहुि बािें बिािे है।
सज्जि : क्षवशेषण, गुणवाचक, पुक्तल्लंग, बहुवचि, इसका क्षवशेष्य ‘मिुष्य’ है।
बहुि : क्षवशेषण, संख्यावाचक, अक्षिश्चयवाचक, स्त्रीक्षलंग, बहुवचि, ‘बािें’ इसका क्षवशेष्य
है।
4. वह पुस्तक क्ों िहीं पढिा ?
वह - सवयिाम, पुरुषवाचक, एकवचि, पुक्तल्लंग, किाय कारक 'पढ़िा' क्षक्या से संबंध
पुस्तक - संज्ञा, जाक्षिवाचक, स्त्रीक्षलंग, एकवचि, कमयकारक, 'पढिा' क्षक्या का कमय
क्ों - अव्यय, क्षक्या-क्षवशेषण, प्रश्नवाचक, 'पढिा' क्षक्या से सम्बन्ध
िहीं - अव्यय, क्षक्या-क्षवशेषण, 'पढिा' क्षक्या का क्षक्या-क्षवशेषण
पढिा - क्षक्या, किृयवाच्य, सामान्य वियमािकाल, पुंक्तल्लंग, एकवचि,
'वह' इस क्षक्या का करिा है , 'पुस्तक' इस क्षक्या का कमय है |
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171
सन्दे ि
172
संदेश - लेखि का प्रारूप
एक अच्छे संदेश-लेखि का प्रारूप इस प्रकार होिा चाक्षहए।
● संबोधि
● शुभकामिा संदेश
● संदेश-प्रेषक का िाम
एक उदाहरण
क्षप्रय क्षप्रशा !
िुम्हारे दसवीं किा में प्रवेश पर ढे र सारी शुभकामिाएँ !
मस्ती और आिंद में क्षजयो !
पढ़ाई में िए कीक्षियमाि स्थाक्षपि करो।
िुम्हारी बुआ
सुरक्षभ
उदाहरण
प्रश्न 1. दसवीं की परीिाओं के क्षलए शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय हेमेंन्द्र !
िुम्हारी दसवीं किा की परीिाएँ आ गई हैं। मेरी कामिा है क्षक िुम हर परीिा में ि केवल सफल हो, क्षपिु
िए
कीक्षियमाि स्थाक्षपि करो। मेरी ओर से सफलिा की ढे र सारी शुभकामिाएँ ! िुम्हारा िरें द्र
प्रश्न 2. गोआ -भ्रमण करिे जा रहे अपिे भाई को शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय भैया!
गोआ-यािा की अक्षग्रम शुभकािाएँ ! आप अपिे क्षमिों के साथ गोआ के समुद्र-िटों का और रोमांचक खेलों
का
भरपूर आिंद लें।
अिंि शुभकामिाएँ !
आपका आशीप
173
प्रश्न 3. बाल क्षदवस के सफल आयोजि के क्षलए छािों को प्राचायय की ओर से लगभग 40 शब्ों में एक
साधुबाद
बधाई संदेश क्षलक्तखए ।cbse 2021
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
आदरणीय उप-प्रधािाचायय, क्षशिक और क्षप्रय छािों आज के काययक्म में आप सबका स्वागि है।
मेरे िरफ से आप सभी को बाल क्षदवस की हाक्षदयक शुभकामिाएं , इस क्षवद्यालय का प्रधािाचायय होिे के िािे
इस शुभ अवसर पर यहां आिे के क्षलए मैं आप सबके प्रक्षि आभार व्यि करिा हुं। हमारे दे श में 14
िवंबर को बाल क्षदवस के रुप में मिाया जािा है , जोक्षक पंक्षडि जवाहर लाल िेहरु का जन्म क्षदवस है ।
हमारे ही िरह कई सारे क्षवद्यालय इस त्योहार को काफी उत्साह और जोश के साथ मिािे है। हमारे द्वारा
ऐसे कई सारे काययक्म आयोक्षजि क्षकये जािे है , जो आप सभी छािों के चेहरों पर मुस्काि लािे है। मुझे
याद है क्षक जब मैं एक बच्चा था िब हम इस क्षदि को अपिे क्षशिकों के साथ मिािे थे, क्षजससे की हमें
काफी संिुक्षष्ट प्राप्त होिी थी।
आज मैं आपके साथ कुछ क्षवशेष बािें साझा करिा चाहुंगा, क्षजसे आप एक सलाह भी समझ सकिे हैं।
जैसा क्षक हम जाििे हैं क्षक बचपि हमारे जीवि का एक क्षवशेष पल है , इसके साथ ही यह हमारे जीवि का
सबसे संवेदिशील समय भी होिा है । आज के समय में बच्चों के साथ कई िरह के दु वयव्यहार क्षकये जा रहे
हैं। इसक्षलए हम सबको अपिे जीवि में हर जगह सजग रहिा चाक्षहए क्षफर चाहे वह स्कूल हो या घर।
प्रश्न 4.अपिे क्षमि को लोह़िी पर लगभग 40 शब्ों में एक शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए। Cbse 2021
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय क्षमि कृष्ण,
मेरी िरफ से िुम्हे िव वषय 2022 की हाक्षदयक
शुभकामिाएं ।
मैं ईश्वर से प्राथयिा करिी हँ क्षक इस वषय िुम्हारी आकांिायें पूरी हों िुम्हारा पूरे पररवार में सुख-समृक्तद्ध का
आगमि हो। इस वषय िुम सफलिा के िये क्षशखर को छु ओ, ऐसी मेरी कामिा है।
एक बार िुम्हे और िुम्हारे पूरे पररवार को मेरी िरफ से िववषय की हाक्षदयक शुभकामिा।
िुम्हारी क्षमि,
मोक्षिका
174
प्रश्न 5.अपिी छोटी बहि जन्मक्षदवस पर उसे एक बधाई संदेश 30-40 शब्ों में क्षलक्तखए |cbse 2020
उत्तर
छोटी बहि के जन्म क्षदि पर बधाई संदेश
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय बहि िुम्हें जन्मक्षदि की हाक्षदयक शुभकामिाएं । िुम सदा स्वस्थ एवं प्रसन्न रहो , यही कामिा करिी हँ
और साथ में भगवाि से भी प्राथयिा करिी हँ क्षक इस वषय की इं जीक्षियररं ग की परीिा में सफलिा िुम्हारे
कदम चूमे और िुम्हारी सभी मिोकामिाएं पूणय हों । एक बार क्षफर जन्मक्षदि की हाक्षदयक शुभकामिाएं ।
क.ख.ग.
प्रश्न 6.‘क्षशिक क्षदवस’ के अवसर पर अपिे क्षहन्दी क्षशिक के क्षलए एक भावपूणय संदेश 30-40 शब्ों में
क्षलक्तखए
|cbse2020
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
आदरणीय गुरुजी , आपके अथक प्रयास और प्रोत्साहि की वजह से मैंिे अपिी दसवीं की परीिा में ि
क्षसफय आपके क्षवषय क्षहंदी बक्तल्क सभी क्षवषयों में शि प्रक्षिशि सफलिा हाक्षसल की। क्षजसके क्षलए मैं सदा
आपका ऋणी रहंगा। मैं भगवाि से प्राथयिा करू
ं गा क्षक वह आप जैसा क्षशिक हर बच्चे को दें िाक्षक उिका
जीवि सँवर सके।
क्षशिक क्षदवस के इस पावि अवसर पर आपको ढे र सारी शुभकामिाएं ।
क.ख.ग
175
प्रश्न 2.पहली बार हवाई यािा का आिंद लेिे वाले क्षमि को शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय हरें द्र
पहली हवाई यािा की ढे रों शुभकामिाएँ ।
िुम्हारी यह यािा रोमांचक, आिंददायक और कौिूहलपूणय हो । हवाई अड्ों की सुंदर व्यवस्थाएँ , सुरिा
व्यवस्था और हवा में उ़ििे का सुख िुम्हें आिंद से भर दे ।
िुम्हारी बहि
शीला
प्रश्न 3.िुम्हारे भाई के यहाँ ल़िकी िे जन्म क्षलया है। शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
प्यारे भैया-भाभी जी !
ढे र सारी शुभकामिाएँ !
घर में मेरी प्यारी भिीजी आई है। अब घर में खुक्षशयाँ ही खुक्षशयाँ होंगी। चहल-पहल ! रं गक्षबरं गे फ्राक, .
क्षकलकारी, हँसी ! वाह! शुभकामिाएँ ।। जल्दी आऊँगी। प्यारी क्षटंकी को प्यार!!
आपकी िेहा
प्रश्न 4.आपके क्षमि िे क्षक्केट मैच जीििे में 100 रि बिाए। शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय प्रवीण!
176
प्रश्न 5.दादा जी िे िई कार खरीदी है। शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
प्यारे दादा जी !
िई कार के क्षलए ढे र सारी शुभकामिाएँ !
अब आप खूब यािाएँ करें -आएँ जाएँ ! हमें भी खूब सैर कराएँ ! िई कार िई खुक्षशयों का खजािा बिे।
आपका क्षप्रय
क्षचंटू
क्षप्रय मािा जी !
िए मोबाइल की ढे रों शुभकामिाएँ !
अब आप क्षदि में क्षजििी बार चाहें हमसे बाि कर सकिी हैं। इसमें रामायण-महाभारि भी हैं , क्षफल्में भी
और संदेशों का भंडार भी। यह मोबाइल आपको खुशी दे , व्यस्त रखे और मस्त रखे।
आपका सुपुि
सुकाम
177
प्रश्न 8.िुम्हारी माँ बीमार हैं। शुभकामिा पि क्षलखो ।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
पूज्य मािा जी!
सादर चरण-स्पशय! आप शीघ्र स्वस्थ हो। क्षियक्षमि दवाई लेिे रहें . आराम करें । घर के कामों से बचें।
लापरवाही क्षबल्कुल ि करें । और सबसे ब़िी बाि! मुझे अपिे पास समझें। मैं भगवाि से क्षिि यही प्राथयिा
करू
ँ गा क्षक आप शीघ्र से शीघ्र स्वस्थ हों।
आपका क्षबंटू
प्रश्न 11.आपके क्षमि को आई.आई.टी. क्षदल्ली में प्रवेश क्षमला है । शुभकामिा - संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
178
क्षप्रय सुशील!
आई.आई.टी. क्षदल्ली में प्रवेश क्षमलिे पर मेरी ओर से ढे रों शुभकामिाएँ ! भगवाि करे , िुम खूब उन्नक्षि करो।
धि और यश कमाओ। आई.आई.टी. में भी अपिी प्रक्षिभा से िाम अक्षजयि करो। लाखों बधाइयाँ !
िुम्हारा क्षविय
प्रश्न 12.िुम्हारा क्षमि कोरोिा-संकट के क्षदिों में गरीबों की सेवाथय काम में लगा है। उसके क्षलए शुभकामिा
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
संदेश क्षलक्तखए।
क्षप्रय सवयक्षमि !
िुम कोरोिा-संकट से पीक्ष़िि लोगों की सेवा के क्षलए अपिे िगर-प्रशासि की सहायिा कर रहे हो। यह
बहुि महाि कायय है। मुझे िुम पर गवय है। िुम्हें इसका पुण्य प्राप्त होगा। मेरी ओर से अिंि शुभकामिाएँ ।
यशस्वी बिो।
िुम्हारा क्षमि लोकेश
प्रश्न 13.िुम्हारा क्षमि गरीब बच्चों की मुफ्त पढ़ाई में लगा है। उसे शुभकामिा संदेश क्षलक्तखए।
उत्तर
क्षदिांक – XXXX / XX / XX
समय – 0X : XX pm
क्षप्रय सौरभ !
िुम इं जीक्षियररं ग के साथ-साथ गरीब बस्ती के बच्चों को मुफ्त पढ़ािे के क्षलए भी जा रहे हो। यह सुिकर
मेरा हृदय गदगद हो उठा। सौरभ ! मुझे िुम पर गवय है। िुम महाि हो। मेरी ओर से हाक्षदयक शुभकामिाएँ !
िुम्हारा यह सेवा-भाव िुम्हें बहुि ऊँचाइयाँ प्रदाि करे ।
िुम्हारा हृदयेश ।
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179
क्षवज्ञापि शब् की रचिा ‘ज्ञापि’ शब् में ‘क्षव’ उपसगय लगािे से हुई है , क्षजसका शाक्तब्क अथय है -क्षवशेष जािकारी
दे िा। अथायि क्षकसी वस्तु की क्षबक्ी बढ़ािे के क्षलए उस वस्तु के गुणों का प्रचार-प्रसार करिा ही क्षवज्ञापि
कहलािा है। क्षवज्ञापि का उद्े श्य होिा है -उत्पादक द्वारा अपिी वस्तुएँ खरीदिे के क्षलए लोगों को आकक्षषयि
और लालाक्षयि करिा िथा उन्ें बेचकर मोटा मुिाफ़ा कमािा। आज क्षजधर भी दे खो, क्षवज्ञापि क्षकसी ि क्षकसी
वस्तु का गुणगाि करिे िज़र आिे हैं। टे लीक्षवजि के चैिेल, समाचार पि-पक्षिकाएँ , होक्षडिंग्स, साइि बोडय , बस
स्टैं ड, दीवारें मेटरो, बस िथा वाहिों की दीवारें आक्षद पर क्षवज्ञापि क्षदखाई दे िे हैं। अब क्षफ़ल्मों के बीचबीच में
इििे क्षवज्ञापि आिे लगे हैं क्षक पिा ही िहीं लगिा क्षक हम क्षवज्ञापि दे ख रहे हैं या क्षफ़ल्म। इिके अलावा कुछ
क्षवज्ञापि सरकारी एजेंक्षसयों द्वारा लोगों को जागरूक करिे के क्षलए प्रसाररि क्षकए जािे हैं। राष्टरीय एकिा,
जिसंख्या वृक्तद्ध रोकिे संबंधी, रोगों से बचाव, मद्यपाि ि करिे संबंधी िथा समय-समय पर मच्छर-मलेररया
रोकिे संबंधी क्षवज्ञापि इसी कोक्षट में आिे हैं।
180
मिज्ञ पन-लेखन के कुछ उद हरण-
1. क्षवराट मोबाइल फ़ोि बिािे वाली कंपिी के क्षलए एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
181
3. ‘मोक्षहि’ बैग बिािे वाली कंपिी के क्षलए एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
182
5. ‘रॉयल टे लीक्षवज़ि’ बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
183
7. ‘शीिल’ ए.सी. कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
8. ‘सुक्षवधा’ वाक्षशंग मशीि बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए। आधी आबादी को आराम
पहुँचािे सुक्षवधा वाक्षशंग मशीि आ गई है
184
9. ‘क्षचिा’ पेंक्षसल बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
10. ‘शक्ति प्राश’ िामक फूड सप्लीमेंट बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
185
11. टर ै क्टर बिािे वाली कंपिी ‘सूमो’ के क्षलए टर ै क्टर की क्षवशेषिाएँ बिािे हुए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
12. ‘क्षवद्याथीप्राश’ बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए। क्ा आपका बच्चा पढ़ाई में कमज़ोर
है ? क्ा वह पढ़ाई में क्षपछ़ि
186
13. ‘गक्षणि’ क्षवषय के क्षलए होमट्यूशि पढ़ािे वाली संस्था ‘मल्होिा ट्यूटोररयल्स’ के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार
कीक्षजए। समाधाि है
14. आप अपिा मकाि बेचिा चाहिे हैं। उसके मूल्य एवं अन्य खूक्षबयों का उल्लेख करिे हुए एक क्षवज्ञापि
िैयार कीक्षजए।
187
15. ‘सुमि’ साक्ष़ियों की क्षबक्ी बढ़ािे हेिु एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
16. ‘क्षवद्याथी पुस्तक भंडार’ में पुस्तकों की क्षबक्ी बढ़ािे हेिु एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए। । क्षवद्याथी पुस्तक
भंडार
188
17. आपकी गली में ििु ब्यूटी पालयर खुला है। इसके क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
18. आपके प़िोस में ‘गोपाल डे यरी’ खुल गई है। इसके क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
189
19. ‘उत्तर प्रदे श पययटि क्षवभाग’ पययटकों के क्षलए कई आकषयक योजिाएँ लाया है। उिके संबंध में एक
क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
190
21. ‘समीर’ पंखा बिािे वाली कंपिी की क्षबक्ी बढ़ािे के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
22. ‘हररयाली’ पौधशाला में क्षवक्षवध प्रजाक्षियों के पौधे छूट के साथ उपलब्ध हैं। उिकी क्षबक्ी बढ़ािे वाला
क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
191
23. ‘गंगाजल’ िामक बोिल बंद पािी उपलब्ध करािे वाली कंपिी की क्षबक्ी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
24. ‘सौम्या शैंपू’ बिािे वाली कंपिी की क्षबक्ी बढ़ािे के क्षलए एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
192
25. आपकी गली में ही ‘हॉली हाटय ’ प्ले स्कूल खुल गया है। इसके क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
26. ‘सेंचुरी क्षक्केट अकादमी’ में प्रवेश बढ़ािे के क्षलए एक क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
193
27. ‘रूप क्षिखार’ साबुि बिािे वाली कंपिी साबुिों की क्षबक्ी बढ़ािा चाहिी है। इसके क्षलए क्षवज्ञापि िैयार
कीक्षजए।
28. ‘रोशिी’ मोमबत्ती बिािे वाली कंपिी अपिी क्षबक्ी बढ़ािे के क्षलए क्षवज्ञापि बिवािा चाहिी है। इस कंपिी
के क्षलए आप क्षवज्ञापि लेखि कीक्षजए।
194
29. ‘आस्था’ अगरबक्षत्तयाँ बिािे वाली कंपिी के क्षलए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
30. ‘रफ़्तार’ टर े वेल्स एवं टर े वेल एजेंसी को डर ाइवसय की आवश्यकिा है। आवश्यक योग्यिाओं का उल्लेख करिे
हुए क्षवज्ञापि िैयार कीक्षजए।
195
अनुच्छेद लेखन
प्रश्न 1. क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि-क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में अिुच्छेद
क्षलक्तखए।
श्रम-आदिृ जीिन क मूल-मांत्र- ‘श्रम’ आदशय जीवि का मूल मंि है। हमारे ऋक्षष-मुक्षियों िे, वेद-शास्त्रों
िे-सभी िे एक स्वर से श्रम के महत्व को स्वीकार क्षकया है। सच बाि िो यह है क्षक श्रमशील व्यक्ति का अमृि-
स्पशय छोटे -से-छोटे कायय को ब़िा एवं महाि बिा दे िा है।
कक्षववर मैक्षथलीशरण गुप्त िे कहा है - पुरुष हो पुरुषाथय करो उठो, सफलिा वर-िुल्य वरो, उठो।
196
अपुरुषाथय भयंकर पाप है ि उसमें यश है, ि प्रिाप हैं।आज हमारे चारों ओर अकमयण्यिा का बोलबाला है।
कोई भी व्यक्ति काम करके खुश िहीं है। श्रम और श्रम के मूल्य को िाक पर रखकर हम िाश में, चौप़ि में,
सोिे में, गपशप में अपिा समय िष्ट कर रहे हैं । श्रम का गुरुमंि पढ़कर अन्य दे श ि जािे क्षकििे आगे क्षिकल
गए हैं और हम आज आजादी के इििे वषों बाद भी, गरीबी की सीमा-रे खा के िीचे प़िे क्षससक रहे हैं। हम
गाल ही बजािे रहे और दु क्षिया वैभव की मीिार चढ़ गई।दे श को आगे बढ़ािे में श्रम का महत्त्व- आज भी
इििा क्षिराश होिे की जरूरि िहीं है। जो बीि गया, उसे भूलकर यक्षद हम आज से ही पररश्रम करिे का व्रि
ले लें िो क्ा िहीं हो सकिा। धूल भरे वीराि रे क्षगस्तािों में लहलहािे खेि िजर आएँ गे, क्षचमक्षियों से उठिे
हुए धुएँ से और मेहििकश इं सािों के शोर से गरीबी साि समुंदर पार भाग जाएगी। हमें सदा याद रखिा
चाक्षहए क्षक श्रम ही जीवि है । उन्नक्षि और क्षवकास का रास्ता श्रम से होकर जािा है । दे श को आगे बढ़ािे में
एकमाि श्रम ही साथयक है ।
उपसांह र- आज श्रम का ही दू सरा िाम सफलिा मािा गया है। श्रम ही मिुष्य के जीवि का सबसे ब़िा
आधार स्तंभ होिा है। मिुष्य कक्षठि पररक्तस्थक्षि से क्षिकलकर ही सफलिा हाक्षसल करिा है । अगर हम अपिे
जीवि में सफल होिा चाहिे हैं, िो श्रम करिा आवश्यक है।
सांकेि मबन्दु : क्षमि की पहचाि- अ) क्षमि की आवश्यकिा ब) चुिाव स) सच्चा क्षमि औषक्षध के समाि द)
उपसंहार।
ममत्र की पहच न- कक्षववर गोस्वामी िुलसीदास द्वारा रक्षचि ये पंक्तियाँ क्षमि की महत्ता बिािे के क्षलए क्षकििी
सटीक हैं । मिुष्य को मुसीबि के समय चार की परख (जाँच-प़ििाल) अवश्य करिी चाक्षहए-धैयय, धमय, क्षमि
और पत्नी। अथायि् मुसीबि के समय जो हमारा साथ क्षिभाए, वही क्षमि है। क्षमि की आवश्यकिा- क्षमि की
आवश्यकिा प्रत्येक व्यक्ति को होिी है । उसके जीवि में सुख-दु ख आिे रहिे हैं। वह इिको क्षकसी के साथ
बाँटिा चाहिा है िथा अपिी इस आवश्यकिा को पूरी करिे के क्षलए अत्यंि करीबी व्यक्ति की कामिा करिा
है। वह अपिे दु ख-सुख प्रत्येक को बिा भी िहीं सकिा है , क्ोंक्षक- “रक्षहमि क्षिज मि की व्यथा, मि ही राखो
गोय। सुक्षि अक्षठलैहैं लोग सब, बाँक्षट ि लैहैं कोय।।” इस भौक्षिकवादी एवं मशीिी युग में मिुष्य आत्मकेक्तन्द्रि
और एक-दू सरे से दू र होिा जा रहा है। ऐसे में क्षमि की आवश्यकिा और भी बढ़ जािी है।
चुन ि- क्षमि बिािे समय हमें अत्यन्त सावधाि रहिे की जरूरि होिी है क्षकसी के दो-चार गुणों को दे खकर
क्षमि बिािे की भूल िहीं करिी चाक्षहए। ऐसे क्षमि प्रायः मुसीबि प़ििे ही साथ छो़ि जािे है। रहीम िे ऐसे
क्षमिों की िुलिा िालाब के जल से करिे हुए कहा है -
"जाल पर जल जाि बक्षह, िक्षज मीिि को छोह । रक्षहमि मछरी िीर को, िऊ ि छोडि छोह ।।"
अथायि क्षजस प्रकार जाल प़ििे पर पािी मछक्षलयों को छो़िकर िालाव में जा क्षमलिा है और मछक्षलयों को
मरिे के क्षलए छो़ि जािा है वैसा मछक्षलयों िहीं कर पािी हैं। वे जल से लगाव रखिी है , और साथ छूटिे ही
197
ि़िपकर जाि दे दे िी हैं। क्षमिों के पहचाि की सबसे अच्छी कसौंदी क्षवपक्षत्त काल है। सच्चा क्षमि औषक्षध के
समाि- क्षमि सच्चा है िो वह क्षवपक्षत्त में कभी भी साथ िहीं छो़ििा है। वह कुसंगक्षि में प़िे क्षमि को सन्मागय
की ओर ले जािा है ।
सच्च ममत्र औषमध के सम न ह ि है जो उसे हर मुसीबि से बचािा है । वह क्षमि के गुणों की प्रशंसा करिे
के साथ-साथ उसे बुराइयों से भी अवगि करािा है , क्षजससे व्यक्ति उिसे छु टकारा पा सके। वह सदै व अपिे
क्षमि की भलाई की बाि सोचिा है। सच्चा क्षमि भाई-बंधु की िरह होिा है , जो खुशी हो या गम-हर अवसर
पर हमारा साथ दे िा है ।
उपसांह र- आज के इस युग में क्षमि की आवश्यकिा और महत्ता और भी बढ़ गई है। हमें भी क्षमि के साथ
वैसा ही व्यवहार करिा चाक्षहए जैसा क्षक हम उससे अपेिा करिे हैं। क्षमििा के बीच कभी स्वाथय को आ़िे
िहीं आिे दे िा चाक्षहए। क्षजसे सच्चा क्षमि क्षमल जाए, उसका जीवि सफल हो जािा है।
अद् भुि िरद न- कहिे हैं आवश्यकिा ही आक्षवष्कार की जििी है। जब-जब मिुष्य को आवश्यकिा
महसूस हुई िब-िब आक्षवष्कार हुए हैं । जब मिुष्य आक्षदम था अथायि् अपिे क्षवकास के प्रथम चरण में था,
उसिे पत्थर को रग़िकर आग का आक्षवष्कार क्षकया। पत्थरों के औजार और िि सजािे िथा सदी-गमी से
बचिे के क्षलए उसमें रं ग-क्षबरं गे पररधािों का आक्षवष्कार क्षकया। इस प्रकार क्षिि िए आक्षवष्कार होिे रहे, युग
बदलिे रहे। वास्तव में मिुष्य को जब क्षजस वस्तु की आवश्यकिा प़िी उसिे उसे पािे के हर संभव प्रयास
क्षकए और आज भी यह प्रयास क्षिरं िर जारी हैं। कम्प्प्यूटर, टी.वी., रे क्षडयो, टे लीक्षवजि, मोबाइल फोि इत्याक्षद
भौक्षिक वस्तुएँ इसके पररचायक हैं। आज से कुछ वषय पहले क्ा हमिे कभी कल्पिा भी की थी क्षक हम फोि
हाथ में लेकर घूमेंगे? हमारी टे क्नोलॉजी इििी िेजी से आगे बढ़ रही है क्षक पलक झपकिे ही क्षवज्ञाि का एक
िया िथा अद् भुि वरदाि हमारे सामिे होिा है। मोबाइल फोि भी ऐसा ही एक वरदाि है , जो “बहुजि क्षहिाय,
बहुजि सुखाय” है। आज हर व्यक्ति के हाथ में इसे दे खा जा सकिा है। हो भी क्ों ि, यह है ही इििा
लाभदायक। आज मोबाइल एक क्षमि की भाँक्षि हमारे साथ रहिा है और कभी भी अकेलापि महसूस िहीं
होिे दे िा। हर व्यक्ति इससे जु़िा है।
सुमिध एँ - मोबाइल फोि के कई लाभ हैं, जैसे कभी गाडी खराब हो गई, कही पर दे र हो गई या कोई ऐसी
घटिा हो गई क्षजसकी आप क्षकसी को सूचिा दे िा चाहिे है या सहायिा लेिा चाहिे है , िो झट से यह मोबाइल
फोि आपकी समस्या को हल कर दे गा। केवल बाि करिे की ही िहीं, यह फोि अन्य सुक्षवधाएँ भी दे िा है ।
िरह-िरह के खेल कैलकुलेटर, फोिबुक की सुक्षवधा, समाचार, चुटकुले, चटपटी बािें, ये िो आम सुक्षवधाएँ
है। एस. एम. एस सबसे अक्षधक सस्ता साधि है , दे श-क्षवदे श कहीं भी अपिा संदेश पहुँचाइए। कई लोग
क्षमलकर बाि कर सकिे हैं और आप यक्षद कहीं काम में लगे है िो आपके क्षलए संदेश आपका मोबाइल स्वयं
ले लेगा। क्षजििा गुड डाक्षलए, उििा ही मीठा होगा।
198
एक िई और महत्वपूणय सुक्षवधा जो मोबाइल िे लोगों को दी है , वह है एस.एम.एस के माध्यम से क्षवक्षभन्न
प्रक्षियोक्षगिाओं में भाग लेिा और अब िो प्रक्षियोक्षगयों के भाग्य का फैसला भी जििा के हाथ में है। क्षजििा
गु़ि डाक्षलए, उििा ही मीठा होगा-चाक्षहए िो कैमरा लीक्षजए, ई-मेल की सुक्षवधा प्राप्त कीक्षजए और भी ि जािे
क्ा-क्ा।
ह मनय ँ- हाक्षियाँ - प्रश्न यह उठिा है क्षक अगर यह इििा लाभकारी है , िो क्षफर क्षवद्यालय में अध्यापक इसके
प्रयोग पर िाराज क्ों होिे है? इस पर रोक क्ों लगािे है ? यहाँ दोष मोबाइल का िहीं, इसका प्रयोग करिे
वाले क्षवद्याक्षथययों का है जो क्षबिा सोचे-समझे इसका दु रुपयोग करिे लगिे हैं और िब यह लाभ दे िे के स्थाि
पर हाक्षिकारक हो जािा है । मोबाइल फोि का सबसे ब़िा दोष िो यह है क्षक यह समय-असमय यहाँ वहाँ
बजिा ही रहिा है। लोग सुरिा और क्षशष्टाचार भूल जािे हैं। गा़िी चलािे समय फोि पर बाि करिा असुरक्षिि
ही िहीं, कािूिि अपराध भी है। उपसंहार- हर चीज एक सीमा में हो िो अच्छा है क्ोंक्षक हामी उसका लाभ
और महत्व समझ में आिा है। क्षकसी का भी दु रुपयोग क्षविाश के गिय में जािे का सरल मागय होिा है। अगर
मोबाइल फोि की सुक्षवधा क्षमली है हम उसका सदु पयोग करिा चाक्षहए। यक्षद हम इसका पोली-मोक्षि सबका
क्षहि को यह अन्य आक्षवष्कारों की िरह हमारे क्षलए उपयोगी क्षसद्ध होगा अन्यथा इस पाि को अक्षभशाप में
बद िही।
उपसांह र- हर चीज एक सीमा में हो िो अच्छा है क्ोंक्षक िभी उसका लाभ और महत्त्व समझ में आिा है।
क्षकसी का भी दु रुपयोग क्षविाश के गिय में जािे का सरल मागय होिा है। अगर मोबाइल फोि की सुक्षवधा क्षमली
है िो हमें उसका सदु पयोग करिा चाक्षहए। यक्षद हम इसका उपयोग भली-भाँक्षि सबके क्षहि में कर सकें िो
यह अन्य आक्षवष्कारों की िरह हमारे क्षलए उपयोगी क्षसद्ध होगा अन्यथा इस वरदाि को अक्षभशाप में बदलिे
दे र िहीं लगेगी।
क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में अिुच्छेद
क्षलक्तखए।
सांकेि-मबन्दु : अ) समय का सदु पयोग क्षवकास की कुंजी अमूल्य धि ब) समय गक्षिशील-क्षकसी की प्रिीिा
िहीं करिा स) हमारा कत्तयव्य द) उपसंहार
(2) भ रि की ऋिुएँ
सांकेि-मबन्दु : छः ऋिुएँ-भारि में क्षवशेष अ) ऋिुओं का क्म और प्रत्येक ऋिु में प्राकृक्षिक सौंदयय की छटा
ब) हमारे जीवि में महत्त्व स) उपसंहार
199
(3) हम रे सच्चे ममत्र पेड-पौधे
उत्तर:
संकेि-क्षबन्दु : समय का सदु पयोग क्षवकास की कुंजी अ) अमूल्य धि ब) समय गक्षिशील-क्षकसी की प्रिीिा
िहीं करिा स) हमारा कत्तयव्य द) उपसंहार
1. समय क सदु पय ग मिक स की कांु जी- जीवि िदी की धारा के समाि है। जैसे िदी की धारा
ऊँची-िीची भूक्षम को पार करिी क्षिरं िर आगे बढ़िी रहिी है उसी प्रकार जीवि की धारा भी सुख-दु ख िथा
सफलिा-असफलिा के अिेक संघषों को सहिे-भोगिे आगे बढ़िी रहिी है। बहिा जीवि है और ठहराव
मृत्यु। जीवि का उद्े श्य क्षिरं िर आगे बढ़िे रहिे में है -इसी में सुख है , आिंद है । लेक्षकि सुख-आिंद और
आगे बढ़िे में जो वस्तु काम करिी है, वह है समय। जो भागिे हुए समय को पक़िकर इसके साथ-साथ चल
सकिे हैं, वही िो जीवि में कामयाब होिे हैं। वस्तुिः समय का सदु पयोग ही क्षवकास की कुंजी है।
2. अमूल्य धन- अंग्रेजी में समय को ‘धि’ कहा है , पर समय ‘धि’ से कहीं ज्यादा कीमिी है , अमूल्य
है। धि आज है, कल िष्ट हो गया, परसों क्षफर आ सकिा है। लेक्षकि जो समय अिीि के गिय में समा गया,
लाख चेष्टा करिे पर भी वह लौटकर िहीं आ सकिा। इसीक्षलए क्षजििे भी संि-महात्मा हुए हैं , सभी िे समय
के मूल्य को पहचाििे का उपदे श क्षदया है । समय जीवि है और समय को िष्ट करिा जीवि को िष्ट करिा
है। एक आम कहावि है क्षक “जो समय को िष्ट कर दे िा है समय उसे िष्ट कर दे िा है।” ि जािे क्षकििे पुण्यों
के प्रिाप से हमें मिुष्य-जीवि क्षमला है; अगर हमिे इसे िहीं पहचािा िो बाद में पछिािा-ही-पछिािा बाकी
रह जािा है। इसक्षलए समय को पहचाि कर काम करिा चाक्षहए। कुछ लोग अपिा आलस्य और अकमयण्यिा
क्षछपािे के क्षलए प्रायः कहिे सुिे जािे हैं क्षक-“साहब! क्ा करें ? समय ही िहीं क्षमलिा।” और अगर ऐसे लोगों
की क्षदिचयाय दे खें िो पिा लगेगा क्षक जिाब 9-10 बजे िक सोिे ही रहिे हैं। जो इििा समय सोिे में िष्ट कर
दें गे, उिके पास अच्छे और अक्षधक काम के क्षलए समय ही कहाँ रहेगा? सोिा, सैर-सपाटा करिा आक्षद जीवि
के आवश्यक अंग हैं , पर इिकी सीमा होिी चाक्षहए। फ्रैंकक्षलि िे कहा था, “अगर िुम्हें अपिे जीवि से प्रेम
है, िो समय को व्यथय मि गँवाओ क्ोंक्षक जीवि इसी से बििा है।” गक्षिशील समय क्षकसी की प्रिीिा िहीं
करिा।
3. समय गमििील-क्षकसी की प्रक्षििा िहीं करिा- समय मािव के क्षलए वरदाि है जो इसका सदु पयोग
करिा है, उसके क्षलए खुक्षशयों के िथा सफलिा के ढे र लगा दे िा है और जो इसका दु रुपयोग करिा है, उसे
यह अविक्षि के ऐसे गहरे गिय में फेंक दे िा है जहाँ से उभरिा असंभव हो जािा है। संसार की ब़िी-से-ब़िी
ल़िाइयों का भाग्य-क्षिणयय समय कर दे िा है। आज संसार में क्षजि व्यक्तियों को महाि कहा जािा है , उिका
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जीवि-इक्षिहास इस बाि का सािी है क्षक उिका एक-एक पल क्षगिा हुआ था। उिके प्रत्येक कायय का समय
िय था, क्ोंक्षक वे जाििे थे क्षक समय का सदु पयोग ही सफलिा की कुंजी है। क्षहन्दी में एक कहावि है -
“बीिी िाक्षह क्षबसारर दे , आगे की सुध लेह” अथायि् जो समय बीि गया, उसे भूलकर वियमाि और भक्षवष्य का
ध्याि करो। सक्षदयों की गुलामी के बाद आजाद हुए अपिे दे श की उन्नक्षि और क्षवकास के चरम क्षशखर िक
ले जािा है। हमारे दे खिे-दे खिे संसार के अन्य दे श हमसे आगे और बहुि आगे क्षिकल गए हैं। उिके याि
चाँद-सूरज की दू ररयाँ िाप रहे हैं और हम भी उिसे बहुि पीछे हैं। क्ों? इस प्रश्न का एक ही उत्तर है क्षक
उन्ोंिे समय को पहचािा है , उसकी कीमि को समझा है और क्षदि-राि पररश्रम करके दे श का क्षिमायण
क्षकया है। उन्ीं की िरह यक्षद हम समय की कीमि को समझें िो प्राकृक्षिक संपदा से भरपूर अपिे दे श को
अक्षधक समुन्नि और क्षवकासशील बिा सकिे हैं।
5. उपसांह र- हम सभी भारि दे श के क्षिमाय िा हैं। हमें हमेशा अपिे दे श की उन्नक्षि के क्षलए अपिे जीवि
के प्रत्येक िण का सदु पयोग करिा चाक्षहए। अगर हम काम को क्षिक्षश्चि समय पर पूरा करिे हैं िो इससे
समय भी बच जािा है क्षजसका प्रयोग हम समाज के कल्याण के क्षलए भी कर सकिे हैं। हमें याद रखिा
चाक्षहए क्षक कभी भी समय व्यथय ि हो सके। समय का पूरा उपयोग करिा चाक्षहए और समय के महत्त्व को
समझािा चाक्षहए।
(2) भ रि की ऋिुएँ
सांकेि-मबन्दु :अ) छः ऋिुएँ-भारि में क्षवशेष ब) ऋिुओं का क्म और प्रत्येक ऋिु में प्राकृक्षिक सौंदयय की
छटा स) हमारे जीवि में महत्त्व द) उपसंहार
1. छः ऋिुएँ-भारि में क्षवशेष- भारि की धरा प्राकृक्षिक सौंदयय की दृक्षष्ट से क्षवश्व में अिूठा स्थाि रखिी
है। क्षवश्व के अन्य दे शों में प्रायः िीि ही ऋिुएँ होिी हैं , पर भारि में ग्रीष्म, वषाय , शरद् , हेमंि, क्षशक्षशर िथा
बसंि-इि छः ऋिुओं का चक् गक्षिशील रहिा है।
201
बूँदों से धरिी की प्यास बुझिी प्रारम्भ हो जािी है। पशु -पक्षियों को चैि की साँस क्षमलिी है। वषाय के जल से
धरिी की प्यास िो बुझिी ही है, खेिों में अन्न भी उगिा है। चारों ओर हररयाली-ही-हररयाली छा जािी है।
इस ऋिु में चारों ओर जल-ही-जल क्षदखाई दे िे लगिा है। मागय अवरुद्ध हो जािे हैं , प्रायः बाढ़ें आ जािी हैं
िथा मच्छर-मक्तियों का प्रकोप भी बढ़ जािा है। लेक्षकि इस ऋिु के अभाव में जीवि सम्भव िहीं, क्ोंक्षक
जल ही जीवि का आधार है । इस ऋिु में िीज, रिाबंधि िथा श्री कृष्ण जन्माष्टमी जैसे त्यौहार आिे हैं।
धीरे -धीरे वषाय समाप्त होिे लगिी है िथा आगमि होिा है - शरद ऋिु का गुलाबी जा़िे से। इस ऋिु में भी
अक्षधक सदी िहीं प़ििी। यह ऋिु वषाय के प्रकोप से राहि क्षदलािी है । आकाश में बादल क्षदखाई िहीं दे िे
िथा मौसम भी सुहाविा रहिा है। क्षवजयदशमी और दीपावली-ये दो ब़िे पवय भी इस ऋिु में ही मिाए जािे
हैं।
शरद के बाद सदी बढ़िे लगिी है िथा आगमि होिा है -हेमंि ऋिु का। सूयय दक्षिणायि की ओर अपिी यािा
आरम्भ कर दे िा है। वायु में ठं ड बढ़ जािी है , क्षजससे लोग क्षठठु रिे लगिे हैं। यह ऋिु स्वास्थ्य के क्षलए अच्छी
बहुि है। इस ऋिु में पाचि-शक्ति के बढ़िे से खाया-क्षपया हजम हो जािा है। इन्ीं क्षदिों में पवयिीय िेिों में
बफय क्षगरिी है। बफय क्षगरिे से ठं डी हवाएँ चलिी हैं िथा मैदािी
भागों में भी ठं ड बढ़ जािी है। हेमंि के बाद आिी है - क्षशक्षशर ऋिु। इस ऋिु को ‘पिझ़ि’ भी कहिे हैं। इस
ऋिु में वृिों से पत्ते क्षगरिे लगिे हैं। ऐसा लगिा है मािो ‘प्राचीि’ को त्यागकर ‘िवीि’ के क्षलए स्थाि क्षदया जा
रहा है। प्रािः िथा सायंकाल कोहरा भी छािे लगिा है । इस ऋिु में यक्षद पुरािे पत्ते ि झ़िें िो िए कैसे आ
पाएँ गे? अिः यह ऋिु भी अत्यन्त महत्त्वपूणय है ।
3. हम रे जीिन में महत्त्व- ऋिुओं का यह चक् प्रकृक्षि िटी द्वारा अक्षभिीि िृत्य िाक्षटका की भाँक्षि
लगिा है, क्षजसमें एक के बाद एक दृश्य आिे हैं। सभी ऋिुओं का अपिा-अपिा महत्त्व है िथा सभी अपिी-
अपिी क्षवशेषिाओं से इस दे श को अिुप्राक्षणि करिी हैं । भारि की इन्ीं क्षवशेषिाओं पर मुग्ध होकर इकबाल
िे ठीक ही कहा था-‘सारे जहाँ से अच्छा क्षहंदोस्ता हमारा।’
4. उपसांह र- हर क्षकसी के जीवि में ऋिुएँ बहुि महत्त्वपूणय होिी हैं। इि सभी ऋिुओं की वजह से
हमारे भारि दे श को ऋिुओं का दे श कहा जािा है। यह सभी ऋिुएँ एक िई उमंग और उत्साह लेकर आिी
हैं। भारि दे श की यह सब ऋिुएँ हमारे जीवि में कुछ िया पररवियि करिी हैं।
(3) हम रे सच्चे ममत्र पेड-पौधे संकेि-क्षबन्दु : भूक्षमका Û पे़ि-पौधों के क्षबिा जीवि असंभव Û उपयोक्षगिा Û
पे़ि-पौधों की क्षिरं िर की जा रही िक्षि का पररणाम Û पे़ि-पौधों को बचािे के क्षलए जरूरी उपाय Û उपसंहार
1. भूममक - मिुष्य और पे़ि-पौधों का साथ आक्षदकाल से रहा है। यक्षद कहा जाए क्षक पे़ि-पौधे मिुष्य
के पहले साथी हैं िो कोई अक्षिशयोक्ति ि होगी। भूखे मिुष्य को पे़िों िे फल-फूल क्षदया और िि ढकिे को
अपिी छाल एवं पक्षत्तयाँ। उसिे अपिी शीिल छाया में मािव को आश्रय क्षदया। शायद इसी बाि को वियमाि
और भावी पीढ़ी िक पहुँचािे के क्षलए वृिों की पूजा की जािी है।
202
2. पेड-पौध ां के मबन जीिन असांभि- पे़ि-पौधों के क्षबिा पृथ्वी पर जीवि की कल्पिा करिा भी व्यथय
है। वे हमें प्राणदायी ऑक्सीजि दे कर हमें जीवि दे िे हैं और क्षवषरूपी काबयि-डाई-ऑक्साइड एवं अन्य
क्षवषैली गैसों का पाि करिे हैं। इस प्रकार वे सािाि् क्षशव के समाि कल्याणकारी हैं । वृि हमारे पालि-पोषण
किाय भी हैं। वे फल-फूल, पक्षत्तयाँ , ििा, ज़ि आक्षद क्षवक्षवध रूपों में भोज्य उपलब्ध करािे हैं। वे दू ध और मांस
उपलब्ध करािे वाले जािवरों को चारा एवं भोजि उपलब्ध कराकर उिके जीवि का आधार बििे हैं।
3. उपय मगि - पे़ि-पौधे हमें क्ा-क्ा िहीं दे िे हैं । वे आजीवि प्रत्यि-अप्रत्यि रूप में कुछ-ि-कुछ
दे िे ही रहिे हैं। पे़ि हमें पहििे को वस्त्र (रे शे), मूल्यवाि लक़िी िथा दै क्षिकोपयोगी अिेक वस्तुएँ िथा उन्ें
बिािे के कच्चा माल उपलब्ध करवािे हैं । पे़िों से हमें िािा प्रकार की औषक्षधयाँ , ज़िी-बूक्षटयाँ आक्षद प्राप्त
होिी हैं। इिसे लाख, गोंद एवं शहद क्षमलिा है। वि और पे़ि-पौधे आज भी आक्षदवाक्षसयों के क्षलए वरदाि बिे
हुए हैं। पे़ि-पौधों से ही उिकी सारी आवश्यकिाएँ पूरी हो जािी हैं। ये पे़ि-पौधे ही उिकी आजीक्षवका का
साधि हैं। वि एक ओर जंगली जािवरों को आश्रय एवं भोजि प्रदाि करिे हैं , वहीं दू सरी ओर स्वच्छ पयायवरण
प्रदाि करिे हैं । हरे -भरे पे़ि धरिी का शंगार हैं। उिकी हररयाली मिोहर एवं िेिज्योक्षि बढ़ािे वाली होिी
है।
पे़ि-पौधे उपजाऊ मृदा को कटिे-बहिे से बचािे हैं , ये वषाय लािे में सहायक होिे हैं िथा बाढ़ रोकिे में
सहायक बििे हैं । पे़ि-पौधें ऋक्षषयों-मुक्षियों के समाि कल्याणकारी होिे हैं जो स्वयं आिप सहकर दू सरों
को शीिल छाया प्रदाि करिे हैं और मिुष्य का बहुक्षवक्षध कल्याण करिे हैं।
6. उपसांह र- हम सभी के जीवि में पे़िों का बहुि महत्त्व हैं। इसक्षलए पे़िों की कटाई िहीं करिी
चाक्षहए बक्तल्क उिकी रिा करिी चाक्षहए और पे़िों के महत्त्व को समझिा चाक्षहए। सरकार िे भी पे़िों को
बचािे के क्षलए बहुि सारे कदम उठाये हैं। पूरे दे श में श्वि महोत्सवश् 7 जुलाई को पे़िों की रिा के क्षलए
मिाया जािा है। इसके कारण पे़ि हमारे क्षमि हैं।
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क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200- शब्ों में क्षिबन्ध
क्षलक्तखए-
1- मिज्ञ न: िरद न य अमभि प सांकेि-मबन्दु : प्रकृक्षि पर क्षवजय (क) मिुष्य के क्षलए वरदाि (ख)जीवि के
क्षवक्षभन्न िेिों में उपलक्तब्धयाँ (ग) उत्पन्न समस्याएँ (घ) सदु पयोग या दु रुपयोग-हमारी क्षजम्मेदारी (ड) क्षिष्कषय।
2- दू रदिृन के ल भ-ह मन सांकेि-मबन्दु : दू रदशयि का अथय एवं पररचय (क) दू रदशयि की उपयोक्षगिा (ख)
दू रदशयि की लोकक्षप्रयिा के कारण (ग) दू रदशयि से होिे वाली हाक्षियाँ (घ) क्षिष्कषय।
सांकेि-मबन्दु : खेलों की उपयोक्षगिा (क) खेल और स्वास्थ्य का सम्बन्ध (ख) हमारा कत्तयव्य (ग) क्षिष्कषय। उत्तर:
(1) क्षवज्ञाि: वरदाि या अक्षभशाप संकेि-क्षबन्दु : प्रकृक्षि पर क्षवजय (क) मिुष्य के क्षलए वरदाि (ख) जीवि के
क्षवक्षभन्न िेिों में उपलक्तब्धयाँ (ग) उत्पन्न समस्याएँ (घ) सदु पयोग या दु रुपयोग-हमारी क्षजम्मेदारी (ड) क्षिष्कषय।
1. प्रकृक्षि पर क्षवजय- वैज्ञाक्षिक आक्षवष्कारों के कारण आज का युग क्षवज्ञाि का युग मािा जािा है।
क्षवज्ञाि िे प्रक्षिक्षदि िए आक्षवष्कार करके मािव जीवि को सरल और आरामदायक बिा क्षदया है। बटि दबािे
ही क्षवक्षभन्न वैज्ञाक्षिक उपकरण आज्ञाकारी सेवक की भाँक्षि हमारी सेवा में ित्पर रहिे हैं। क्षजिके कारण मािव
जीवि के प्रत्येक िेि में क्ांक्षि आ गई है । आज मािव िे क्षवज्ञाि के बल पर प्रकृक्षि को भी अपिी दासी बिा
क्षलया है।
2. मिुष्य के क्षलए वरदाि- क्षवद् युि आक्षवष्कार िे िो मािव जीवि को सुखों से भर क्षदया है। सुबह उठिे
से लेकर राि को सोिे िक मािव क्षजस प्रकार के उपकरणों-साधिों का प्रयोग करिा है वे सभी क्षवज्ञाि की
ही दे ि है। आज मािव को गमी से बचिे के क्षलए पंखे, एयरकंडीशिर, रे क्षडयो, चलक्षचि, टे लीक्षवजि, बल्ब,
रसोई के उपकरण आक्षद क्षवज्ञाि की ही दे ि है। कम्प्प्यूटर, फैक्स, मोबाइल फोि, सैटेलाइट संचार व्यवस्था
आज इििी सामान्य हो गई है क्षक हमें सारे क्षवश्व की सूचिाएँ एक ही िण में उपलब्ध हो जािी हैं। सारी मािव-
जाक्षि को एक-दू सरे के क्षिकट लािे में क्षवज्ञाि का अद् भुि योगदाि है। कृक्षष के िेि में िई-िई िकिीकों,
रसायिों की खोज िे उपज को चौगुिा कर क्षदया है । मिुष्य िे क्षवज्ञाि की सहायिा से िक्षदयों को बाँ धकर िहरें
क्षिकाल दी हैं, ब़िे -ब़िे पवयिों का सीिा चीरकर सुरंगें बिा दी हैं। समुद्र के सीिे से आज का सबसे आवश्यक
ित्व ‘पेटरोक्षलयम’ क्षिकाल लेिा मािव की एक ब़िी उपलक्तब्ध है। मािव की सुक्षवधा के क्षलए रे ल, मोटर, वायुयाि,
जलयाि, ब़िे -ब़िे भवि सभी सुक्षवधायें ब़िे -ब़िे इं जीक्षियसय की ही िो दे ि है क्षचक्षकत्सा के िेि में िई-िई
औषक्षधयों की खोज, िई-िई िरह की मशीिों का ऑपरे शिों में प्रयोग आज मािव जीवि के क्षलए वरदाि
बिकर सामिे आया है। लेजर-िकिीक से इलाज िे िो आज सचमुच चमत्कृि ही कर क्षदया है। क्षवज्ञाि की
आज की सबसे ब़िी दे ि िो कम्प्प्यूटर है। कम्प्प्यूटराइज्ड रोबोटों की मदद से आज ऐसे-ऐसे कायय होिे लगे
हैं, क्षजिको मािव शायद ही कभी कर पािा। आज मिुष्य िे चन्द्रमा ही िहीं सौरमण्डल के दू सरे ग्रहों की भी
खोज करिा आरम्भ कर क्षदया है।
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3. जीिन के मिमभन्न क्षेत्र ां में उपलखिय ँ- क्षवज्ञाि ि क्षचक्षकत्सा का िेि हो या इं जीक्षियररं ग का, भौक्षिक
क्षवज्ञाि की बाि हो या रसायाि क्षवज्ञाि की, सभी िेिों में अपिा प्रभुत्व स्थाक्षपि कर क्षदखाया है। क्षवज्ञाि िे
मिुष्य को क्ा-क्ा िहीं क्षदया? आज बटि दबािे ही सारे सुख-साधि उपलब्ध हो जािे हैं सारी मािव-जाक्षि
को एक-दू सरे के क्षिकट लािे में क्षवज्ञाि का अद् भुि योगदाि है । क्षशिा के िेि में िो कम्प्प्यूटर एक वरदाि
बिकर ही सामिे आया है। जल, थल, आकाश का कोई िेि ऐसा िहीं है जहाँ मिुष्य की पहुँच ि हुई हो।
कम्प्प्यूटर प्रत्येक िेि में मिुष्य का क्षहिैषी बिकर सामिे आया है।
4. उत्पन्न समस्य एँ - जहाँ क्षवज्ञाि िे मािव को इििे वरदाि क्षदये हैं , वहीं अिेक समस्याएँ भी ख़िी कर
दी है । क्षवज्ञाि िे मिुष्य को क्षविाश के साधि भी उपलब्ध करा क्षदए हैं। युद्ध के क्षविाशकारी उपकरण टैं क,
बमवषयक क्षवमाि, फाइटर-क्षवमाि, अणु-बम, क्षवषैली गैसों िथा प्रदू षण के कारण पयायवरण को खिरा भी
क्षवज्ञाि की ही दे ि है। ध्वक्षि, जल, वायु प्रदू षण का जन्मदािा क्षवज्ञाि ही है। मािविा पर क्षवश्वास रखिे वाले
व्यक्ति के मस्तक पर क्षचंिा की रे खाएँ उभर आिी है। वास्तव में क्षवज्ञाि अपिे में क्षिमायण और सृजि के साथ
क्षविाश एवं क्षवध्वंस की शक्तियाँ समेटे हुए हैं।
5. सदु पय ग य दु रुपय ग-हमारी क्षजम्मेदारी- यक्षद मिुष्य वैज्ञाक्षिक उपलक्तब्धयों का दु रुपयोग करिा
है िो क्षविाश होगा ही। सदु पयोग या दु रुपयोग का सम्बन्ध क्षवज्ञाि से िहीं उसके उपयोगकत्तायओं पर क्षिभयर
है। क्षवज्ञाि पर दोष लगािा िो सचमुच मूखयिा ही है । क्षवज्ञाि स्वयं मैं क्षविाशकारी िहीं है बक्तल्क वह िो आज
की मािव संस्कृक्षि के क्षलए वरदाि बिकर ही सामिे आया है। क्षवष्णु सरीखा पालक है , शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शुद्ध भाव से करो, आज से आराधक।।
6. मनष्कषृ- अंि में यही कहा है क्षक क्षवज्ञाि की शक्तियों का प्रयोग सोच-समझकर करिा होगा क्ोंक्षक
अंकुश के अभाव में यह क्षविाशकारी बि जािा है।
(2) दू रदिृन के ल भ-ह मन सांकेि-मबन्दु : दू रदशयि का अथय एवं पररचय (क) दू रदशयि की उपयोक्षगिा (ख)
दू रदशयि की लोकक्षप्रयिा के कारण (ग) दू रदशयि से होिे वाली हाक्षियाँ (घ) क्षिष्कषय।
1. दू रदशयि का अथय एवं पररचय- आज क्षवज्ञाि िे मािव को अिेक उपहारों से उपकृि क्षकया है । क्षवज्ञाि
िे मिोरं जि के िेि में भी ऐसे उपकरण िथा साधि प्रदाि क्षकए हैं क्षजन्ोंिे इस िेि में क्ांक्षिकारी पररवियि
कर क्षदया है। ऐसा ही उपकरण है-दू रदशयि। दू रदशयि का अथय है -दू र से दशयि करािे वाला। ़िेिा युग में
संजय िे अंधे धृिराष्ट को उिके पास बैठाकर महाभारि युद्ध का आँ खों दे खा वणयि सुिाया था। उस समय
ऐसा प्रिीि हुआ था क्षक संजय िे अपिी क्षदव्यदृक्षष्ट से महाभारि का युद्ध दे खा, वह कोई चमत्कारी पुरुष था।
आज वही कायय दू रदशयि के द्वारा संभव है। दू रदशयि एक ऐसा साधि है जो दे श-क्षवदे श की घटिाओं को
ज्यों-का-त्यों हमारी आँ खों के सामिे ला दे िा है।
2. दू रदिृन क उपय मगि - दू रदशयि की उपयोक्षगिा इििी िेजी से बढ़ रही है , क्षक आज यह मिुष्य,
पररवार और समाज की आवश्यकिा बि गया है। यह ज्ञाि एव मिोरं जि का अत्यन्त लोकक्षप्रय साधि बि
गया है। इससे क्षदिभर का थका िि-मि उत्साह से भर उठिा है िथा दे श-क्षवदे श की जािकाररयाँ प्राप्त
करिा है। साि समुंदर पार घट रही घटिाओं को हमें क्षदखािा-सुिािा है। यह बच्चों के क्षलए क्षजििा उपयोगी
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है उििा ही वृद्ध या अन्य आयुवगय के लोगों के क्षलए। हर प्रकार का कारोबार करिे वाला व्यक्ति इससे अपिी
मािक्षसक थकाि भगाकर ऊजायक्तन्वि हो उठिा है। इसके काययक्म प्रािः से दे र राि िक प्रसाररि होिे रहिे
हैं।
3. दू रदिृन की ल कमप्रयि के क रण- इस पर प्रसाररि होिे वाले क्षवक्षभन्न काययक्म- सबसे पहले
बच्चों के काययक्मों की बाि करिे हैं, इस पर एि. सी. आर. टी. द्वारा िैयार काययक्म प्रसाररि क्षकया जािा है
जो उिकी शैक्षिक आवश्यकिाओं को पूरा करिा है। छािों के क्षलए कहािी, गीि, िाटक, चुटकुलों का भी
समय-समय पर प्रसारण क्षकया जािा है। युवक-युवक्षियों के क्षलए क्षवक्षभन्न धारावाक्षहक एवं क्षफल्में प्रसाररि की
जािी हैं, वहीं प्रौढ़ों और वृद्धों के क्षलए अिेक काययक्म प्रसाररि क्षकये जािे हैं। इसके अलावा मौसम सम्बन्धी
जािकारी, राष्टरीय-अंिरायष्टरीय समाचार क्षवद्वं िजिों से समसामक्षयक क्षवषयों पर पररचयाय , खेलों का सजीव
प्रसारण, क्षकसािों का काययक्म कृक्षष-दशयि, क्षवक्षभन्न प्रक्षियोक्षगिा सम्बन्धी काययक्म इसकी लोकक्षप्रयिा में चार
चाँद लगािे हैं। दू रदशयि पर समाज में फैली बुराइयों और कुरीक्षियों को दू र करिे सम्बन्धी जि संदेश और
काययक्म भी प्रसाररि क्षकए जािे हैं। दू रदशयि पर समाज में फैली बुराइयों और कुरीक्षियों को दू र करिे
सम्बन्धी जि संदेश और काययक्म भी प्रसाररि क्षकए जािे हैं। क्षवश्वक्षवद्यालय अिुदाि आयोग द्वारा बिाए गए
काययक्मों के माध्यम से क्षवज्ञाि, गक्षणि, भाषा, कृक्षष, कम्प्प्यूटर जैसे अिेक क्षवषयों की क्षशिा क्षियक्षमि रूप से
दी जा रही है। दू रदशयि पर क्षवज्ञाि के प्रयोगों, अंिररि सम्बन्धी िई जािकारी, प्रकृक्षि के क्षछपे रहस्यों सम्बन्धी
सूचिाएँ , दे श-क्षवदे श की घटिाओं सम्बन्धी जािकारी, खेल-कूद िथा अन्य समारोहों का सीधा प्रसारण
क्षदखाया जािा है। हम घर बैठे क्षवश्व के क्षकसी भी कोिे में होिे वाले काययक्मों का सीधा प्रसारण दे ख सकिे
हैं। समुद्र की गहराइयों, पवयि शंखलाओं, वन्य-प्राक्षणयों िथा प्रकृक्षि के अन्य रहस्यों को सािाि दे ख सकिे
हैं। दू रदशयि िे पृथ्वी को एक पररवार बिा क्षदया। आज दू रदशयि व्यापार िथा क्षवज्ञापि का भी प्रभावशाली
माध्यम बि गया है। अच्छे -अन्छे धारावाक्षहक हमारी संस्कृक्षि से हमारा पररचय करा सकिे हैं ।
4. दू रदिृन से ह ने ि ली ह मनय ँ- दू रदशयि से जहाँ इििे लाभ हैं वहीं इससे कुछ हाक्षियाँ भी हैं,
क्षजसका सवायक्षधक असर युवा पीढ़ी पर प़ि रहा है। इस पर प्रसाररि काययक्मों से सांस्कृक्षिक प्रदू षण बढ़
रहा है। भारिीय संस्कृक्षि के मूल्यों का िरण हो रहा है , समाज में अश्लीलिा बढ़ रही है। इसके काययक्मों
को दे ख युवावगय क्षदग्भ्भ्रक्षमि हो रहा है। वह चोरी, हत्या, अपहरण, आत्महत्या, बलात्कार के दृश्यों को दे खकर
क्षवकृि मािक्षसकिा का क्षशकार हो रहा है । युवावगय की पढ़ाई चौपट करिे िथा उसे फैशिपरस्त बिािे में
इसकी भूक्षमका से इिकार िहीं क्षकया जा सकिा। आजकल दू रदशयि पर क्षजस प्रकार के काययक्मों की
भरमार है, उिके कारण छािों का िैक्षिक पिि हो रहा है। क्षवदे शी चैिलों के आ जािे से क्षजस प्रकार का
सांस्कृक्षिक प्रदू षण हो रहा है, वह अत्यक्षधक क्षचंिा का क्षवषय है। इि चैिलों पर क्षदखाए जािे वाले अक्षधकांश
काययक्मों में क्षजस प्रकार मद्यपाि, कामुक दृश्यों, कैबरे िृत्य, चुंबि पाश्चात्य संगीि, क्षहंसा िथा अधयिग्न दृश्यों
का प्रदशयि क्षकया जा रहा है , उिके कारण युवावगय का िैक्षिक पिि होिा स्वाभाक्षवक है। अिः खेद का क्षवषय
है क्षक जो दू रदशयि जिजागरण िथा क्षशिा का सशि माध्यम था, वही आज िैक्षिक पिि का कारण बि रहा
है। यक्षद समय रहिे ऐसे काययक्मों पर अंकुश िहीं लगाया गया, िो क्तस्थक्षि क्षियंिण से बाहर हो जाएगी।
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5. मनष्कषृ- अंि में यही कहा जा सकिा है क्षक दू रदशयि ज्ञाि एवं मिोरं जि का अद् भुि साधि है ।
क्षजसका सदु पयोग या दु रुपयोग करिा मिुष्य के अपिे हाथ में है। मिुष्य एक क्षववेकशील प्राणी है अिः उससे
यही उम्मीद की जा सकिी है क्षक अपिे क्षिक्षश्चि उद्े श्यों की पूक्षिय के क्षलए वह दू रदशयि का प्रयोग करे गा।
अपिे जीवि में सफलिा प्राप्त कर दे श की उन्नक्षि व समृक्तद्ध में अपिा योगदाि दे गा।
सांकेि-मबन्दु : खेलों की उपयोक्षगिा (क) खेल और स्वास्थ्य का सम्बन्ध (ख) हमारा कत्तयव्य (ग) क्षिष्कषय।
1. खेल ां की उपय मगि - खेल माि खाली समय का सदु पयोग िहीं है , अक्षपिु जीवि की क्षियक्षमि
आवश्यकिा है। क्षजसिे क्षदि में एक बार खेलों को स्थाि क्षदया है , वह जीवि में सदै व खुश रहिा है , स्वस्थ
रहिा है, मजबूि रहिा है , ब़िी से ब़िी मुसीबिों में क्षवचक्षलि िहीं होिा है। सूरजमुखी के फूल के भाँक्षि चेहरा
क्तखला-क्तखला रहिा है जो लोग खेलों को महत्त्व िहीं दे िे, वे सदै व गु़िहल की भाँक्षि मुरझाये हुए ही रहिे हैं ।
खेल से मिुष्य में आत्मक्षवश्वास िेिृत्व की िमिा पैदा होिी है , इच्छाशक्ति सदै व बलविी रहिी है , संगठि की
शक्ति का अहसास होिा है । क्षिराशाएँ कभी ऐसे व्यक्ति का पीछा िहीं कर पािी हैं। होठों पर मुस्कुराहट,
वािाय में आत्मक्षवश्वास, मि में उत्साह, स्वस्थ-क्षवचारों का क्षवकास का एक साथ झुण्ड बिाये रहिे हैं। इस िरह
स्वस्थ शरीर वरदाि बि जािा है। अिः खेल स्वास्थ्य का पयायय है।
2. खेल और स्व स्थ्य क सांबांध- धि के अभाव में मिुष्य सुख का अिुभव कर सकिा है , क्षकन्तु
अस्वस्थ रहिे पर सुखों का अिुभव िो दू र, सब कुछ सामिे होिे हुए भी सुखी िहीं रह पािा। इसक्षलए जीवंि
पुरुष यही कहा करिे हैं क्षक मािव को स्वास्थ्य के प्रक्षि सदै व सचेि रहिा चाक्षहए। रोग-व्याक्षध उससे दू र ही
भागिे हैं। भौक्षिक सुखों को िभी प्राप्त क्षकया जा सकिा है जब शरीर िीरोग हो। अिः क्षवद्वाि कहा करिे हैं
क्षक शरीर को स्वस्थ रखिे के क्षलए दवाओं के ढे र रखिे से अच्छा है खेलिा सीखो, सांसाररक सुखों की
अिुभूक्षि करिी है िो हँसिा सीखो। हँसिा भी खेल का एक क्षहस्सा है । स्वस्थ युवक खेल-सामग्री के अभाव
में भी खेल सकिा है। यह आवश्यक िहीं है क्षक खेल के क्षलए क्षवशेष साधि जुटाए जाएँ साधि के अभाव में
भी क्तखला़िी कोई-ि-कोई खेल ढू ँ ढ़ ही लेिे हैं। साथ ि क्षमलिे पर भी मस्ती में अकेले भी खेला जा सकिा है।
पहले बच्चे लक़िी की गा़िी बिाकर खेलिे थे और आज खेल के साधि बाजार में महँगे दामों पर क्षमलिे हैं।
यह सोचकर मि बैठें क्षक जब िक साधि िहीं होंगे, िब िक कैसे खेलें? बहुि से लोग आज अपिे स्तर को
बिाए रखिे के क्षलए बच्चों को घर में कैद रखिा चाहिे हैं , वे खेल के सभी साधि घर में ही जुटा दे िे हैं,
क्षजससे सामूक्षहक खेलों से बालक वंक्षचि रह जािा है। घर में खेले जािे वाले खेलों से मािक्षसक खेल िो हो
जािे हैं, क्षकन्तु शारीररक खेल िहीं हो पािे हैं। शारीररक खेल िो घर से बाहर सामूक्षहक रूप से ही सम्पन्न
होिे हैं। आज क्षक्केट, फुटबॉल, बास्केटबॉल िथा अन्य खेलों के प्रक्षि स्तरीय रुक्षच सम्पन्न घरों में पैदा हुई है।
ग्रामीण अंचल में खेले जािे वाले प्रायः सभी खेल क्षबिा क्षकसी क्षवशेष साधि के खेले जािे हैं। आयुवेद में कहा
गया है क्षक खूल भूख लगिे पर भोजि का आिंद क्षमलिा है और पररश्रम से पसीिा आिे में शीिल छाया का
आिन्द क्षमलिा हैं। थकाि के बाद शीिल छाया में और सामान्य भोजि में जो आिंद की अिुभूक्षि होिी है,
ऐसी आिंद की अिुभूक्षि रोगग्रस्त शरीर को क्षवक्षवध प्रकार के व्यंजिों से भी िहीं क्षमलिी है। उदाहरण स्वरूप
जो बालक रुक्षच से खेलिा है उसकी पाचि-शक्ति बढ़िी है। दू सरी ओर आलसी बच्चे होिे हैं जो टी.वी. पर
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आिे वाले पदाथों के क्षवज्ञापि की ओर आकषयक होिे हैं िथा उन्ें ही प्रयोग करिे हैं। क्षजन्ें वे सही से िहीं
खािे िथा अस्वस्थ हो जािे हैं।
3. हम र कत्तृव्य- खेलिे वाले बच्चों, युवकों के क्षलए कभी क्षचक्षकत्सकों की आवश्यकिा िहीं पडिी है।
शरीर स्वयं क्षिरोग हो जािा है। खेल हमारे जीवि का अक्षभन्न अंग है। हम स्वयं खेलिे हुए स्वस्थ रहिे हुए
दू सरों को भी प्रेररि करें । जब हम हरी सब्जी िथा िाजे फल खाएँ गे िो हम स्वस्थ रहेंगे। खेलिे व व्यायाम
करिे से हमारे शरीर का क्षवकास होिा है।
4. मनष्कषृ- खेल क्षकसी भी दे श के युवाओं के क्षलए प्रिीक है। इससे दे श के लोग स्वस्थ और युवा रहिे
हैं। एक आलस पूणय और क्षिक्तिय राष्टर कभी भी उन्नक्षि िहीं करिा है। इसीक्षलए दे श का क्षवकास शारीररक
व्यायाम और खेल कूद पर बहुि क्षिभयर करिा है।
क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्ों में
क्षिबन्ध क्षलक्तखए।
(1) ग्ल बल ि ममिंग सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) ग्लोबल वाक्षमिंग की पररभाषा एवं अथय (ख) ग्लोबल वाक्षमिंग
का प्राकृक्षिक कारण (ग) ग्लोबल वाक्षमिंग का मािवीय कारण (घ) रोकिे के उपाय (ड) उपसंहार।
(2) सम ज में मीमर्य की भूममक सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) मीक्षडया क्ा है (ख) मीक्षडया लोकिंि का
चौथा स्तम्भ (ग) सोशल मीक्षडया के दु ष्प्रभाव (घ) उपसंहार।
(3) आत्ममनभृर य स्व िलांबी सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) संसार में परावलंबी अथायि् परमम दु खम् (ख)
आत्म-क्षिभयर व्यक्ति (ग) स्वावलंबि से लाभ (घ) उपसंहार। उत्तर:
(1) ग्ल बल ि ममिंग सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) ग्लोबल वाक्षमिंग की पररभाषा एवं अथय (ख) ग्लोबल वाक्षमिंग
का प्राकृक्षिक कारण (ग) ग्लोबल वाक्षमिंग का मािवीय कारण (घ) रोकिे के उपाय (ड) उपसंहार।
1. प्रस्त िन - ग्लोबल वाक्षमिंग हमारे दे श की ही िहीं, अक्षपिु पूरे क्षवश्व की समस्या है । यह धरिी के
वािावरण पर लगािार बढ़ रही है। इस समस्या से क्षिपटिे के क्षलए प्रत्येक दे श कुछ ि कुछ उपाय लगािार
कर रहा है, परन्तु यह घटिे की जगह क्षिरं िर बढ़ रही है । ग्लोबल वाक्षमिंग के क्षलये सबसे ब़िा क्षजम्मेदार मािव
स्वयं है। मिुष्य की गक्षिक्षवक्षधयों से खिरिाक गैसे- काबयि-डाइऑक्साइड, मीथेि, िाइटर ोजि ऑक्साइड
इत्याक्षद का ग्रीि हाउस गैसों की मािा में वािावरण में बढ़ोत्तरी हो रही है।
2. ग्ल बल ि ममिंग की पररभ ष - धरिी के वािावरण में िापमाि के लगािार हो रही क्षवश्वव्यापी
बढ़ोत्तरी को ग्लोबल वाक्षमिंग कहिे हैं। ग्लोबल वाक्षमिंग का अथय- पृथ्वी के क्षिकट हवाई और महासागर की
औसि िापमाि में बीसवीं शिाब्ी से हो रही वृक्षद्व और उसकी अिुमाक्षिि क्षिरं िरिा है पृथ्वी की सिह के
क्षिकट क्षवश्व की वायु के औसि िापमाि में 2500 वषों के दौराि 0.74 प्लस माइिस 0.8 क्षडग्री सेक्तल्सयस
(1.33 प्लस माइिस 0.32 क्षडग्री एक)।
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3. ग्ल बल ि ममिंग क प्र कृमिक क रण- ग्लोबल वाक्षमिंग के कारण होिे वाले जलवायु पररवियि के
क्षलए सबसे अक्षधक क्षजम्मेदार ग्रीि हाउस गैसें हैं । ये वे गैसें होिी हैं जो बाहर से क्षमल रही गमी को अपिे अंदर
सोख लेिी है। ग्रीि हाउस गैसों में सबसे महत्त्वपूणय है काबयि डाइ ऑक्साइड, क्षजसे हम जीक्षवि प्राणी अपिे
साँस के साथ उत्सजयि करिे हैं। पृथ्वी के वािावरण में प्रवेश कर यहाँ का िापमाि बढ़ािे के कारक बििी
है काबयि डाइ-ऑक्साइड। वैज्ञाक्षिकों के अिुसार इि गैसों का उत्सजयि इसी िरह चलिा रहा िो 21वीं सदी
में हमारे पृथ्वी का िापमाि 3 क्षडग्री से 8 क्षडग्री सेक्तल्सयस िक बढ़ा सकिा है। यक्षद ऐसा हुआ िो इसके
पररणाम बहुि घािक होंगे दु क्षिया के कई क्षहस्सों में बफय की चादर क्षबछ जाएगी। समुद्र का जलस्तर बढ़
जाएगा और दु क्षिया के कई क्षहस्से जल में क्षवलीि हो जाएँ गे भारी िबाही मचेगी। यह क्षकसी क्षवश्वयुद्ध या क्षकसी
‘एस्टे रॉयड’ के पृथ्वी से टकरािे से होिे वाली िबाही से भी ज्यादा भयािक होगी।
4. ग्ल बल ि ममिंग क म निीय क रण- ग्लोबल वाक्षमिंग के क्षलए क्षजम्मेदार अक्षधकां श कारक मािव
द्वारा क्षकए गए क्षिक्षमयि कायय क्षजसका पररणाम क्षविाशकारी है। िक्षदयों की धारा को अवरुद्ध क्षकया जा रहा है
हमारी खुशी और संसाधिों को इकट्ठा करिे के क्षलए पे़ि और जंगलों को िष्ट क्षकया जा रहा है। औद्योक्षगक
क्ांक्षि की वजह से कोयले, िेल और करो़िों वाहिों के चलािे की वजह से प्रदू षण बहुि बढ़ रहा है क्षजससे
हमारी पृथ्वी असामान्य रूप से गमय होिी जा रही है।
6. ग्ल बल ि ममिंग र कने के उप य- ग्लोबल वाक्षमिंग रोकिे के क्षलए जागरूकिा फैलािी होगी। हमें
पृथ्वी को सही मायिे में ‘ग्रीि’ बिािा होगा। अपिे ‘काबयि फुटक्षप्रंटसय’ को कम करिा होगा। हम अपिे
आसपास के वािावरण को प्रदू षण से क्षजििा मुि रखेंगे, इस पृथ्वी को बचािे में उििी ब़िी भूक्षमका
क्षिभाएँ गे। वैज्ञाक्षिकों और पयायवरणक्षवदों का कहिा है क्षक ग्लोबल वाक्षमिंग में कमी के क्षलए मुख्य रूप से
सी.एफ.सी. गैसों का उत्सजयि रोकिा होगा। इसके क्षलए क्षफ्रज, एयरकंडीशिर और दू सरे कूक्षलंग मशीिों का
इस्तेमाल कम करिा होगा। औद्योक्षगक इकाइयों की क्षचमक्षियों से क्षिकलिे वाला धुआँ हाक्षिकारक है इस
प्रदू षण को रोकिे के क्षलये पयायवरण मािकों का सख्ती से पालि करिा होगा। पे़िों की कटाई रोकिी होगी
और जंगलों के संरिण पर बल दे िा होगा। पवि ऊजाय , सौर ऊजाय और पिक्षबजली पर ध्याि क्षदया जाए िो
वािावरण को गमय करिे वाली गैसों पर क्षियंिण पाया जा सकिा है। जंगलों की आग को रोकिा होगा। पे़ि
लगाएँ ।
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6. उपसांह र- मािव को क्षमलकर इस ग्लोबल वाक्षमिंग से पृथ्वी को बचािा जरूरी है। िहीं िो भयंकर
पररणाम दे खिे को क्षमलेगा क्षजसमें शायद पृथ्वी का अक्तस्तत्वहीि रहे। इसक्षलए मािव को सामंजस्य बुक्तद्ध और
एकिा के साथ क्षमलकर सभी दे शों को इसके बारे में उपाय ढू ँ ढ़िा अक्षिवायय है। हमारी साँसें चलिी रहें
इसक्षलए िकिीकी और आक्षथयक आराम से ज्यादा अच्छा प्राकृक्षिक सुधार जरूरी है ।
संकेि-क्षबन्दु : प्रस्ताविा (क) मीक्षडया क्ा है (ख) मीक्षडया लोकिंि का चौथा स्तम्भ (ग) सोशल मीक्षडया के
दु ष्प्रभाव (घ) उपसंहार।
1. . प्रस्त िन - मीक्षडया संचार का ऐसा माध्यम है क्षजसके द्वारा हम समाज में घक्षटि हो रही क्षकसी भी
घटिा, क्षकसी भी प्रकार की जािकारी क्षशिा एवं क्षकसी भी प्रकार के क्षवज्ञापि के प्रचार-प्रसार को बहुि ही
सहजिा से समाज के व्यक्ति के पास िक पहुँचा सकिे हैं।
2. मीमर्य क्य है - िकिीकी क्षवकास से पहले मीक्षडया शब् का प्रयोग केवल क्षकिाबों, समाचार पिों,
क्षजसे हम क्षप्रंट मीक्षडया के रूप में जाििे हैं, के क्षलए होिा था परन्तु अब टे लीफोि, क्षफल्में, रे क्षडयो िथा इं टरिेट
आक्षद भी मीक्षडया के प्रमुख अंग बि गए हैं। पहले मीक्षडया के ये सभी आधुक्षिक साधि िहीं थे िो केवल क्षप्रंट
मीक्षडया का ही प्रयोग होिा था। लोग साक्षहत्य लेखि के द्वारा ही अपिे क्षवचारों को प्रकट क्षकया करिे थे। जैसे
क्षक भारि की आजादी के क्षलए चलाए जा रहे आं दोलिों को सफल बिािे के क्षलए इससे लोगों को जो़ििे के
क्षलए अिेक प्रकार के क्षप्रंट मीक्षडया का सहारा लेकर कई समाचार पिों िथा पक्षिका का संपादि क्षकया जा
रहा था। आज का मीक्षडया हमारे समाज को िया आकार प्रदाि करिे िथा इसको मजबूि बिािे में अपिी
एक सशि एवं महत्त्वपूणय भूक्षमका क्षिभा रहा है। मीक्षडया लोगों के मिोरं जि का एक बेहिरीि साधि है।
आज मीक्षडया के द्वारा ही क्षकसी दे श के क्षकसी कोिे में बैठकर दु क्षिया के क्षकसी कोिे में घक्षटि हुई घटिा को
टे लीक्षवजि या रे क्षडयो के माध्यम से आसािी से दे ख व सुि सकिे हैं। इसके साथ ही सोशल मीक्षडया भी हमें
िरह-िरह की खबरों से अवगि करािा है। पहले लोग अपिे से दू र क्षमिों एवं ररश्तेदारों से बाि करिे के क्षलए
टे लीग्राम एवं पि लेखि का सहारा लेिे थे। आज फेसबुक, व्हाट् सएप, क्षिटर, इं स्टाग्राम, यू-ट्यूब आक्षद जैसे
सोशल मीक्षडया का प्रयोग कर ब़िी आसािी से एक-दू सरे से बािचीि कर सकिे हैं। वीक्षडयो कॉन्फ्रेंक्षसंग के
द्वारा अपिे क्षमिों ररश्तेदारों से बाि कर सकिे हैं। आज के समाज में मीक्षडया क्षकसी ि क्षकसी रूप में जगह
बिाए हुए हैं ।
3. मीमर्य ल किांत्र क चौथ स्तांभ- हमारी लोकिांक्षिक व्यवस्था के िीि स्तंभ काययपाक्षलका,
न्यायपाक्षलका और क्षवधाक्षयका के साथ ही साथ मीक्षडया को भी हमारे लोकिंि के चौथे स्तम्भ के रूप में मािा
जािा है। आज हमारी जििा को जागरूक करिे एवं उसके क्षलए लागू की गई क्षकसी भी िई योजिाओं की
जािकारी मीक्षडया के द्वारा ही आम जि मािस िक पहुँ चािी है।मीक्षडया के द्वारा आज समाज का हर व्यक्ति
भ्रष्टाचार एवं दे श में हो रहे घोटालों को उजागर करिे में अपिा महत्त्वपूणय योगदाि दे रहा है। आज कोई भी
व्यक्ति दे श में होिे वाली गलि घटिा को अपिे मोबाइल या कैमरे में ररकाडय कर उसे सोशल मीक्षडया के
माध्यम से उस घटिा के दोक्षषयों को सजा क्षदलािे में अपिी भागीदारी सुक्षिक्षश्चि कर सकिा है।
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आधुक्षिकीकरण के साथ ही औद्योक्षगक िेि में भी मीक्षडया िे क्ांक्षि ला दी है । आज मीक्षडया क्षवज्ञापि का ऐसा
सरल माध्यम है क्षजसके द्वारा कोई भी व्यापारी या कम्पिी अपिे उत्पादों को टे लीक्षवजि िथा सोशल मीक्षडया
का प्रयोग करके जिमािस को ब़िी सहजिा से बिा सकिी है। मीक्षडया के द्वारा संक्ामक बीमारी के द्वारा
आक्षद के बारे में बिा कर लोगों को सचेि क्षकया जा रहा है। आज मीक्षडया के द्वारा ऐसे अिेक काययक्म
प्रसाररि क्षकए जािे हैं क्षजसमें क्षकसािों को खेिी के िए-िए वैज्ञाक्षिक िरीकों से अवगि कराया जािा है ।
इसका सीधा असर क्षकसािों के फसल उत्पादि की िमिा पर प़ििा है। इस िरह मीक्षडया का हमारे आज
के समाज में बहुि ही ब़िा योगदाि है।
4. स िल मीमर्य के दु ष्प्रभ ि- परन्तु क्षकसी भी क्षसक्के के दो पहलू होिे हैं। क्षकसी चीज से क्षजििा
लाभ होिा है उििी ही हाक्षि भी होिी है। मीक्षडया के माध्यम से समाज में अिेकों प्रकार की भ्रांक्षियाँ उत्पन्न
की जा सकिी हैं। बच्चे अपिा समय पढ़ाई में ि लगाकर सोशल मीक्षडया में लगा रहे हैं। जब से लोग सोशल
मीक्षडया का प्रयोग ज्यादा करिे लगे हैं िब से लोगों में बीमाररयाँ भी काफी बढ़िे लगी हैं। सोशल मीक्षडया के
जररए कई लोग साइबर क्ाइम करिे हैं। जैसे क्षक लोग क्षकसी का पासवडय चुरा लेिे हैं , उससे उिकी पसयिल
जािकारी ले लेिे हैं या क्षफर उिके मोबाइल की फोटोस और वीक्षडयो को चुरा लेिे हैं । क्षजिको सोशल मीक्षडया
की ठीक से जािकारी िहीं होिी, वे दू सरे के झाँसे में आ जािे हैं , क्षजससे उिका सारा पैसा उिके खािे से
क्षिकाल क्षदया जािा है । इसमें लोगों की पसयिल चीजें है क करके उन्ें ब्लैकमेल भी क्षकया जािा है । इसमें कई
प्रकार की साइट ऐसी हैं क्षक सोशल मीक्षडया के जररए भेजी जािी हैं जो लोगों को काफी लालच दे िे वाली
होिी हैं। लोगों के झाँसे में आकर उसमें फँस जािे हैं ।
5. उपसांह र- मीक्षडया एक दोधारी अस्त्र है । जहाँ एक िरफ यह लोगों के क्षवचार को एक रूप दे िा है।
वहीं दू सरी िरफ पाठकों को आकक्षषयि करिे के क्षलए सिसिी खेज मुद्े बिािा इसका चररि है। अिः
आवश्यकिा इस बाि की है क्षक मीक्षडया का प्रयोग ब़िी सूझ-बूझ के साथ प्रयोग होिा चाक्षहए यह हमारे
जीवि का अक्षभन्न अंग बि गया है।
सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) संसार में परावलंबी अथायि् परमम दु खम् (क) आत्म-क्षिभयर व्यक्ति (क)
स्वावलंबि से लाभ (क) उपसंहार।
1. प्रस्त िन -खुदी को कर बुलंद इििा, क्षक हर िकदीर से पहले खुदा बंदे से ये पूछे-बिा िेरी रजा
क्ा है? शायर की उपयुयि पंक्तियाँ स्वावलंबी मिुष्य के बारे में है । क्षजिका आशय है स्वावलंबी या
आत्मक्षिभयर व्यक्तियों के सामिे ईश्वर को भी झुकिा प़ििा है। ऐसे व्यक्तियों का भाग्य क्षलखिे से पहले ईश्वर
को भी उिसे पूछिा प़ििा है -‘बिा िेरी रजा क्ा है।’ परमुखापेिी व्यक्ति ि िो स्वयं उन्नक्षि कर सकिा है
और ि ही अपिे समाज एवं राष्टर के क्षकसी काम आ सकिा है। स्वावलंबि का अथय है -अपिा सहारा आप
बििा, आत्मक्षिभयर बििा। परमुखापेिी व्यक्ति सदै व दू सरों का मुख दे खिा है।
2. सांस र में पर िलांबी अथ ृि् परमम दु खम्- परावलंबी को हमेशा आश्रय दे िे वाले के अधीि बिकर
रहिा प़ििा है। ऐसी क्तस्थक्षि में ि िो उसका आत्मसम्माि जीक्षवि रह पािा है और ि ही आत्मक्षवश्वास। वह
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दू सरों के हाथ की कठपुिली बिकर कुंठा, िाय, याििा, पी़िा, अपमाि और उपेिा का जीवि जीिे पर
क्षववश हो जािा है। इसक्षलए परावलंबि को घोर पाप मािा गया है। स्वावलंबी व्यक्ति ही सही अथों में जाि
पाया है क्षक दु ः ख-पी़िा क्ा होिे हैं और सुख-सुक्षवधा का क्ा मूल्य एवं महत्त्व, क्षकििा आिंद और आत्म-
संिोष हुआ करिा है। क्षवश्व और समाज क्षकसे कहिे हैं। अपमाि की पी़िा क्ा होिी है। अभाव क्षकसी िरह
से व्यक्ति को ममायहि कर सकिे हैं। परावलंबी को िो हमेशा माि-अपमाि की क्षचंिा त्याग कर, हीििा के
बोध से परे रहकर, इस िरह व्यक्ति होिे हुए भी व्यक्तित्वहीि बिकर जीवि गुजार दे िा प़ििा है । सहज,
सरल मािव बिकर रहिे, मािवीय सम्माि और गररमा पािे की भूख हर मिुष्य में जन्मजाि होिी है ।
3. आत्ममनभृर व्यखक्त- आत्मक्षिभयर होिे का यह अथय िहीं क्षक मिुष्य के पास ब़िे -ब़िे , ऊँचे-ऊँचे
राजमहल हो, अपार संपक्षत्त हो, ऐसा िहीं होिे पर यक्षद मिुष्य के पास ब़िी-ब़िी ऊँची-ऊँची गक्षिक्षवध् क्ष़़ायों
पर अपिा अक्षधकार िहीं िो उि सबका होिा ि होिा बेकार है। स्विंि िथा इच्छािुसार कायय करके ही
मिुष्य अपिे साथ-साथ, आस-प़िोस, गली-मुहल्ले, समाज और पूरे दे श का क्षहि साधि कर पािे में सफल
हो पाया है। आत्मक्षिभयर व्यक्ति द्वारा क्षकए गए पररश्रम से बहिे वाली पसीिे की प्रत्येक बूँद मोिी के समाि
बहुमूल्य हुआ करिी है। क्षजसे सच्चा सुख एवं आत्मसंिोष कहा जािा है , वह केवल आत्मक्षिभयर व्यक्ति को
ही प्राप्त हुआ है । स्वावलंबि की एक झलक पर कुबेर का खजािा न्योछावर क्षकया जा सकिा है।
4. स्व िलांबन से ल भ- स्वावलंबी व्यक्ति ही आत्मक्षचंिि करके अपिे लोक के साथ परलोक का सुधार
कर सकिा है। संि कबीर कप़िा बुिकर अपिे पररवार का पालि क्षकया करिे थे। गुरुिािक दे व अपिे पुिों
की िाराजगी मोल लेकर भी धमयशाला (गुरुद्वारे ) के चढ़ावे को हाथ िहीं लगािे थे। श्रीकृष्ण को गौएँ चरािा,
संि रै दास और दादू दयाल जूिे गाँठिा जैसे कायय संकेि करिे वाले हैं। क्षिश्चय ही स्वावलंबी बििे की प्रेरणा
दे िे वाले हैं। जो व्यक्ति स्वावलंबी िहीं होिे, वे ही अपिी प्रत्येक असफलिा के क्षलए भाग्य को दोष दे िे हैं।
िुलसीदा सिे ठीक ही कहा है-‘दे व-दे व आलसी पुकारा’। स्वावलंबी मिुष्य सफलिा या असफलिा की
परवाह क्षकए क्षबिा क्षिरन्तर प्रयासरि रहिे हैं और दृढ़िा से आगे बढ़िे जािे हैं। पथ के शूल (काँटे) उिके
कदमों को रोक िहीं पािे और सफलिा अंििः उन्ीं का वरण करिी है। आत्मक्षिभयरिा के बल पर भी
क्षशवाजी िे थो़िे से क्षसपाक्षहयों के साथ औरं गजेब की क्षवशाल सेिा को िाकों चिे चबवा क्षदए थे। एकलव्य िे
गुरु द्रोणाचायय द्वारा उपेक्षिि क्षकए जािे पर भी धिुक्षवयद्या में अद् भुि कौशल प्राप्त क्षकया था। िेपोक्षलयि जैसे
साधारण व्यक्ति एक महाि सेिािायक बि पाया था। एक क्षकसाि िथा बढ़ई का पुि अब्राहम क्षलंकि
अमेररका का राष्टरपक्षि बि पाया था। इक्षिहास ऐसे उदाहरणों से भरा प़िा है।
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क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में अिुच्छेद
क्षलक्तखए।
(1) सम ज और कुप्रथ एँ सांकेि-मबन्दु - प्रस्ताविा (क) समाज की संस्थापिा (ख) समाज क्षवरोधी ित्व एवं
कुप्रथाएँ (ग) कुप्रथाएँ सामाक्षजक जीवि की बेक्षडयाँ (घ) उपसंहार
(2) प्र िः क लीन भ्रमण सांकेि-मबन्दु - प्रस्ताविा (क) प्रािः कालीि भ्रमण के लाभ (ख) प्राणदाक्षयिी
आ़क्सीजि की प्राक्तप्त (ग) प्रािः काल प्राकृक्षिक सुन्दरिा (घ) उपसंहार
(3) आिांकि द सांकेि-मबन्दु - भूक्षमका (क) आिंकवाद का अथय (ख) भारि में आिंकवाद (ग) कश्मीर में
आिंकवाद (घ) आिंकवाद फैलिे के कारण (ड) समाधाि (च) उपसंहार उत्तर ़ः
(1) सम ज और कुप्रथ एँ
सांकेि-मबन्दु प्रस्ताविा (क) समाज की संस्थापिा (ख) समाज क्षवरोधी ित्व एवं कुप्रथाएँ (ग) कुप्रथाएँ
सामाक्षजक जीवि की बेक्षडयाँ (घ) उपसंहार
1. प्रस्त िन - हम जहाँ रहिे हैं, क्षजिके बीच रहिे हैं , वह समाज है। समाज मिुष्यों से क्षमल-जुलकर
रहिे का स्थाि है। व्यक्ति अकेला िहीं रह सकिा। आज व्यक्ति जो कुछ भी, वह समाज के कारण है। क्षबिा
समाज के व्यक्ति की कल्पिा भी िहीं की जा सकिी है। सभ्यिा, संस्कृक्षि भाषा आक्षद सब समाज की दे ि
है। समाज में फैली हुई कुरीक्षियाँ या कुप्रथाएँ भी समाज के क्षवकार के कारण है।
2. सम ज की सांस्थ पन - समाज की संस्थापिा मिुष्य के पारस्पररक क्षवकास के क्षलए हुई है। मिुष्य
इस कारण ही आपसी सहयोग कर सका है और ज्ञाि िथा क्षवकास की धारा को अिुण्ण बिाए रख सकिा
है। मिुष्य के समूचे क्षवकास का आधार समाज है। मिुष्य में सद् िथा असद् प्रवृक्षत्तयों में संघषय चलिा रहिा
है। वह असद् प्रवृक्षत्त वाले मिुष्य समाज के अगुआ बि जािे हैं और सद प्रवृक्षत्त वालों को वे िरह-िरह के
उपाय व क्षियम-उपक्षियम बिाकर परे शाि करिे लगिे हैं। वे अपिी क्तस्थक्षि को सुदृढ़ करिे के क्षलए क्षियमों
को िो़ििे लगे और मािव जाक्षि के सामिे िवीि सामाक्षजक व्यवस्था को पेश करिे लगे, जो समाज की
क्षवसंगक्षियों और अंिक्षवरोधों में संबंध रखिे के कारण समाज में व्यवधाि पैदा करिे वाली क्षसद्ध हुई। इसी से
कुरीक्षियों को ज़ि पक़ििे का अवसर क्षमला। कुरीक्षियों या कुप्रथाओं को हवा दे िे का काम धमय के पुरोधाओं
िे शुरु क्षकया। वे धमय के िाम पर अंधक्षवश्वास फैलािे लगे और परस्पर भेदभाव की दीवार ख़िी करके मािव
को क्षवरोधी बिािे में सफल हुए हैं।
3. सम ज मिर धी ित्व एिां कुप्रथ एँ - समाज क्षवरोधी ित्वों िे अपिी शक्ति को बढ़ावा क्षदया और
सत्यमागय से व्यक्तियों को हटािे में सफलिा प्राप्त की। इस िरह समाज कुरीक्षियों से क्षघरिे लगा। जाक्षि का
आधार जो कमय के अिुसार था, अब जन्म के अिुसार हो गया। कभी क्षववाह करिा अपराध था। क्षवधवा को
उपेक्षिि जीवि जीिा प़ििा था। वह शंगार िहीं कर सकिी थी, साधारण कप़िे पहििी थी, क्षकसी शुभ कायय
में सक्तम्मक्षलि भी िहीं हो सकिी थी। आज क्षवधवा क्षववाह होिे लगे हैं , परन्तु गाँवों में क्षवधवाओं को आज भी
उपेक्षिि जीवि जीिा प़ि रहा है। बाल क्षववाह कािूिि अपराध है।
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इसी िरह श्राद्ध कमय, मृत्यु-भोज, सिी-प्रथा, घूंघट प्रथा, क्तस्त्रयों को क्षशक्षिि ि होिे दे िा, जादू -टोिे, शकुि-
अपशकुि क्षवचार आक्षद अिेक ऐसी कुप्रथाएँ हैं जो समाज को क्षिरन्तर िो़ि रही है। यह सब हमारी भयिस्य
मिोवृक्षत्त का पररणाम है।
5. उपसांह र- कुप्रथाओं के क्षवरोध में जो संस्थाएँ काम कर रही हैं , वे भी प्रदशयि से ज्यादा कुछ िहीं
कर रही हैं । क्ोंक्षक वे स्वयं कुप्रथाओं का क्षशकार है। उिमें सत्य को जीिे का साहस िहीं है। इस क्षदशा में
सबको एकजुट होकर अपिे क्षलए प्रयास करिा चाक्षहए और कुप्रथाओं का डटकर क्षवरोध करिा चाक्षहए
क्षजससे इि कुप्रथाओं का अक्तस्तत्व िगण्य हो जाए। यह सब लोगों में जागरुकिा फैलाकर ही हो सकिा है।
यह अब चररि स्थापिा के क्षलए क्षकए गए प्रयत्नों से ही संभव होगा।
सांकेि-मबन्दु - प्रस्ताविा (क) प्रािः कालीि भ्रमण के लाभ (क) प्राणदाक्षयिी आक्सीजि की प्राक्तप्त (क)
प्रािः काल प्राकृक्षिक सुन्दरिा (क) उपसंहार
क्षकसी कक्षव िे ठीक कहा है क्षक प्रािः काल सैर करिे से स्वास्थ्य सुधरिा है। प्रािः काल उठिे के क्षलए
आवश्यक है राि को शीघ्र सो जाये। Early to bed and early to rise का क्षसद्धान्त अपिाएँ । प्रािः काल
भ्रमण शरीर में िवचेििा व स्फूक्षिय का संचार करिा है। शारीररक और मािक्षसक दोिों ही रूपों में यह
स्वास्थ्यवधयक है। क्षचक्षकत्सा शाक्तस्त्रयों की राय है क्षक बीमार, वृद्ध िथा अन्य लाचार व्यक्ति यक्षद व्यायाम के
अन्य रूपों को िहीं अपिा पािे वे प्रािः काल की सैर से अपिा काम चला सकिे हैं। इस सैर से क्षबग़िे हुए
आं िररक अवयवों को सही ढं ग से कायय करिे में बहुि मदद क्षमलिी है।
2. प्र िः क लीन भ्रमण के ल भ- शरीर की माँसपेक्षशयाँ प्रािः कालीि भ्रमण से काययरि हो जािी हैं िथा
रि-संचार सामान्य हो जािा है। इसके फलस्वरूप मिुष्य आं िररक रूप से अच्छे स्वास्थ्य एवं चैिन्यिा का
अिुभव करिा है। उच्च रि चाप, पेट की समस्याएँ , मधुमेह आक्षद रोक्षगयों को क्षचक्षकत्सक खूब सैर करिे की
सलाह दे िे हैं। मधुमेह को क्षियंक्षिि करिे की िो यह रामबाण औषक्षध है।
3. प्र णद मयनी आक्सीजन की प्र खि- शहरों में प्रािः कालीि भ्रमण के क्षलए जगह-जगह हरे -भरे पे़ि-
पौधों से युि पाकय बिाए गए हैं। जहाँ पाकय की सुक्षवधा िहीं होिी है वहाँ लोग स़िकों के क्षकिारे लगे वृिों
के समीप से होकर टहलिे हैं। गाँवों में इस प्रकार की समस्या िहीं होिी है। सभी जाििे हैं क्षक हमारे क्षलए
आक्सीजि बहुि महत्त्वपूणय है। क्षदि के समय िो यह मोटरगाक्षडयों आक्षद के धुएँ से प्रदू क्षषि हो जािी है। अिः
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प्रािः काल सवयथा उपयुि होिी है। प्रािः भ्रमण से मिुष्य अक्षधक मािा में आक्सीजि ग्रहण करिा है। इससे
शरीर में उत्पन्न क्षवकार स्विः ही दू र हो जािे हैं।
4. प्र िः क ल प्र कृमिक सुांदरि - सुबह के समय प्राकृक्षिक सुंदरिा दे खिे ही बििी है। उगिे सूरज
की लाक्षलका समस्त अंधकार को क्षमटा दे िी है। वृिों पर बैठी कोयल का मधुर गाि सभी के मि को मोह
लेिा है। आकाश में स्वच्छं द क्षवचरण करिे एवं चहचहािे पक्षियों का समूह िवीििा का संदेश दे िा है। सुबह
की मंद-मंद बहिी सुगंक्षधि हवा शरीर को िई िाजगी प्रदाि करिी है। सुबह के समय हरी-भरी घास पर
ओस की बूँदें ऐसी प्रिीि होिी है जैसे प्रकृक्षि िे उि बूँदों के रूप में मोिी क्षबखेर क्षदए हो। बूढ़े, बच्चे व युवा
सभी वगय के लोग यहाँ क्षदखाई दे िे हैं। लोग भ्रमण के साथ उिके क्षवषयों पर बािचीि करिे हैं क्षजससे िई
जािकाररयों के साथ परस्पर मेल भी बढ़िा है। बच्चे अिेक प्रकार के खेल का आिंद उठािे हैं। प्रािः कालीि
शुद्ध व सुगंक्षधि वायु िथा क्षवक्षभन्न प्रकार के खेल उिके शारीररक व मािक्षसक क्षवकास में सहायक होिे हैं ।
कुछ लोग प्रािः भ्रमण को समय की बरबादी मािकर उसे जीवि भर टाल दे िे हैं। ऐसे लोग प्रकृक्षि के कई
मूल्यवाि उपहारों से वंक्षचि हो जािे हैं।
5. उपसांह र- इस प्रकार हम दे खिे हैं क्षक प्रािः कालीि भ्रमण बच्चे, बूढ़े व युवा सभी के क्षलए अक्षिवायय
है। यह हमारे शरीर में िई स्फूक्षिय, िई चेििा व िया उल्लास प्रदाि करिा है। सुबह की शुद्ध व सुगंक्षधि वायु
शरीर के अिेक क्षवकारों को दू र करिी हैं। प्रािः कालीि मिोरम दृश्य अत्यंि सुखद प्रिीि होिा है। इस प्रकार
क्षदि की शुरुआि मिुष्य को अक्षधक स्वस्थ एवं प्रसन्न रखिी है । क्षजससे वह अपिी िमिाओं को पूणय रूप से
उपयोग कर सकिा है ।
(3) आिांकि द संकेि-क्षबन्दु - भूक्षमका (क) आिंकवाद का अथय (ख) भारि में आिंकवाद (ग) कश्मीर में
आिंकवाद (घ) आिंकवाद फैलिे के कारण (ड) समाधाि (क) उपसंहार
1. भूममक -‘जहाँ भी जािा हँ वीराि िजर आिा है , खूि में डूबा हर मैदाि िजर आिा है। कैसा है वि
क्षक क्षदि के उजले में भी, िहीं इं साि को इं साि िजर आिा है।’ कक्षव की उपयुयि पंक्तियाँ समाज में बढ़िे
आिंकवाद की ओर संकेि करिी हैं। आिंकवाद एक अत्यंि भयावह समस्या है क्षजससे पूरा क्षवश्व जूझ रहा
है।
2. आिांकि द क अथृ- भय या दहशि। ऐसी अमािवीय िथा भय उत्पन्न करिे वाली ऐसी गक्षिक्षवक्षध
क्षजसका उद्े श्य क्षिजी स्वाथयपूक्षिय या अपिा दबदबा बिाए रखिे के उद्े श्य से या बदला लेिे की भाविा से
क्षकया गया काम हो-आिंकवाद कहा जािा है । आज क्षवश्व में क्षजस प्रकार आिंकवाद फल-फूल रहा है , उसके
पीछे सांप्रदाक्षयकिा धमािंधिा एवं कट्टरिा एक प्रमुख कारण है। क्षवश्व में कुछ ऐसे संगठि हैं , जो युवाओं की
क्षदशा भ्रक्षमि करके, उन्ें धमय, राजिीक्षि या सांप्रदाक्षयकिा के िाम पर गुमराह करके उिके ह्नदय में क्ूरिा,
कट्टरिा िथा घृणा का जहर घोलकर बेगुिाहों का खूि बहािे के क्षलए प्रेररि करिे में सफल हो जािे हैं।
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3. भ रि में आिांकि द- भारि शांक्षिक्षप्रय दे श है। यहाँ बुद्ध, महावीर एवं गाँधी जैसे अक्षहंसावादी
महापुरुष पैदा हुए हैं । आिंक की प्रवृक्षत्त भारि की भूक्षम से मेल िहीं खािी परन्तु दु भायग्य क्षपछले दो दशकों
से भारि आिंकवाद की लपेट में रहा है।
4. कश्मीर में आिांकि द- कश्मीर का आिंकवाद आज िासूर बि गया। वहाँ के बच्चे स्कूल िहीं जा
सकिे। घर में बुजुगय एवं मक्षहलाएँ भी सुरक्षिि िहीं। आिंकवादी कभी मुम्बई में हमले करिे हैं िो कभी
कोलकािा में बम-क्षवस्फोट करिे हैं , कभी गुजराि के अिरधाम मंक्षदर में, िो कभी कश्मीर में मक्तिद में
खूि खराबा क्षकया करिे हैं। 11 जुलाई, 2006 को कश्मीर एवं मुम्बई में 13 धमाकों िे यह क्षसद्ध कर क्षदया
क्षक भारि में आिंकवाद अपिी ज़िें जमा चुका है।
ओसामा क्षबि लादे ि िे अफगाक्षिस्ताि की भूक्षम पर रहकर अमेररका के िीि टावरों को पलभर में भूक्षमसाि
कर क्षदया। अमेररका को भी उसे पक़ििे में दस साल से ज्यादा लगे। आज भी उस आिंकी का िेटवकय पूरे
क्षवश्व में फैला हुआ है।
5. आिांकि द फैलने के क रण- आिंकवाद फैलिे का मुख्य कारण है - धाक्षमयक कट्टरिा। ओसामा
क्षबि लादे ि, िाक्षलबाि, सीररया, पाक्षकस्ताि, क्षफलीस्तीि इि सबके पीछे साम्प्रदाक्षयक शक्तियाँ काम कर रही
हैं। ये आिंकवादी आधुक्षिक िकिीक से लैस क्षवध्वंस की ढे रों सामग्री रखिे हैं। भारि में आिंकवाद फैलिे
का एक अन्य कारण है -िेिवाद और राजिीक्षिक स्वाथय। वोट के भूखे राजिेिा जािबूझकर आिंकवाद को
आश्रय दे िे हैं।
6. सम ध न- आिंकवाद को क्षमटािे के क्षलए दृढ़ संकल्प िथा कठोर काययवाही आवश्यक है। भारि
को आिंकवाद क्षमटािे के क्षलए आिंकवादी प्रक्षशिण क्षशक्षवरों को समूल िष्ट करिा होगा। क्षजस क्षदि अमेररका
की िरह पूरा क्षवश्व दृढ़ संकल्प कर लेगा और आिंकवाद को करो या मरो का प्रश्न बिा लें और क्षवश्व के ब़िे -
ब़िे दे श भारि का सहयोग करें िो आिंकवाद को ज़ि से समाप्त क्षकया जा सकिा है।
7. उपसांह र- आिंकवाद क्षजस िरह से पूरे संसार में अपिी ज़िे फैला रहा है , यह गंभीर क्षचंिा का
क्षवषय है। अगर इस पर जल्द काबू िहीं क्षकया गया िो, आिे वाली पीढ़ी के क्षलए यह ब़िा खिरा पैदा कर
सकिा है। इसक्षलए आिंकवाद की समस्या को ज़ि से खत्म करिे के क्षलए हम सभी को एकजुट होकर प्रयास
करिे की जरूरि है ।
क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में क्षिबन्ध
क्षलक्तखए।
सांकेि-मबन्दु - सांस्कृक्षिक का अथय (क) भारिीय संस्कृक्षि में क्षवक्षवधिा (ख) अिेक जाक्षियाँ एवं बोक्षलयाँ (ग)
भारि में अिेक धाक्षमयक मि (घ) भारि में एकरूपिा (ड) उपसंहार।
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(2) ब ल श्रम सांकेि-मबन्दु - भूक्षमका- बालश्रम क्ा है (क) बालश्रम के कारण (ख) बालश्रम के पररणाम (ग)
बालश्रम रोकिे के उपाय (घ) उपसंहार।
(3) य ि य ि के मनयम सांकेि-मबन्दु - प्रस्ताविा (क) चैराहों पर बत्ती िथा अन्य व्यवस्था (ख) वाहिों को
क्षिधायररि गक्षि में चलािा िथा अन्य सावधाक्षियां (ग) उपसंहार। उत्तर
(1) अनेकि में एकि -अिेकिा में एकिाः हमारी सां स्कृक्षिक क्षवक्षशष्टिा संकेि- क्षबन्दु : सांस्कृक्षिक का अथय
(क) भारिीय संस्कृक्षि में क्षवक्षवधिा (ख) अिेक जाक्षियाँ एवं बोक्षलयाँ (ग) भारि में अिेक धाक्षमयक मि (घ) भारि
में एकरूपिा (ड) उपसंहार ।
1. स ांस्कृमिक क अथृ- यूिाि क्षमस्त्र रोमां सब क्षमट गए जहां से, अब िक मगर है बाकह िामो क्षिशां
हमारा। इस कथि में दे शभक्ति िहीं है बक्तल्क हमारी सां स्कृक्षिक परम्परा का यथाथय है , जो युगों-युगों से स्वच्छ
अक्षवरल धारा के समाि प्रवाहमाि रही है और आगे भी रहेगी। क्षवश्व में भारि ही ऐसा दे श है क्षजसकी संस्कृक्षि
समृद्ध कहलािी है। लेक्षकि आचार-क्षवचार िो उसका बाह्य रूप है भीिरी रूप से मािव का शेष प्रकृक्षि के
साथ िादात्म्य है। संस्कृक्षि का समािाथयक शब् ‘कल्चर’ भी है क्षजसकी उत्पक्षत्त लैक्षटि भाषा के कल्टस और
कल्टु रा शब्ों से हुई क्षजसका अथय है - कृक्षष करिा।
2. भ रिीय सांस्कृमि में मिमिधि - संस्कृक्षि को पररभाक्षषि करिे हुए डा़. राधाकृष्णि िे क्षलखा है-
संस्कृक्षि क्षववेक बुक्तद्ध का, जीवि को भली प्रकार जाि लेिे का िाम है। अपिे जीवि में हम जो संस्कार जमा
करिे हैं वह भी हमारी संस्कृक्षि का अंश बि जािा है और मरिे के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ-साथ
अपिी संस्कृक्षि की क्षवरासि भी अपिी भावी पीक्षढयों के क्षलए छो़ि जािे हैं। संस्कृक्षि हमारे सारे जीवि को
व्यापे हुए हैं िथा क्षजसकी रचिा और क्षवकास में अिेक सक्षदयों के अिुभव का हाथ है। संस्कृक्षि हमारा पीछा
जन्म-जन्मांिरों िक करिी है। संस्कृक्षि वैक्षवध्यपूणय है। भाषा, धाक्षमयक क्षवचार, जाक्षि, बहुजािीय समाज सभी
में क्षवक्षवधिा है , क्षकन्तु इिमें प्रारम्भ से ही समन्यात्मकिा भी है। भारि में प्राचीिकाल से ही क्षवदे शी-आयय,
यवि, यूिािी, शक, हण, कुषाण, अरबवासी, िुकय, मंगोल, अंग्रेज, फ्रांसीसी, डच आक्षद आए लेक्षकि सभी
आक्मणकारी अन्तिः भारिीय बि गए।
3. अनेक ज मिय ँ एिां ब मलय ँ- अिेक जाक्षियाँ एवं बोक्षलयाँ - भारि में अिेक जाक्षियों एव बोक्षलयाँ है।
भारि को प्राय भाषा का अजायबघर कहा जािा है। यहाँ लगभग 180 बोक्षलयों बोली जािी है । इि सबके
बावजूद भारिवासी एक है भारि की समन्वय की भाविा एकरूपिा की भाविा पर आधाररि है। अिेकिा
में एकिा का अिुसंधाि हमिे प्रारम्भ क्षकया है। भारि की एकिा वह सम्पूणयिा है जो माँ की िरह सिि
कामदु धा है । िदी की िरह सिि प्रवाहमाि और प्रगक्षिशील है। उससे जु़िकर ही हम छोटे -ब़िे की भाविा
को भूलकर अपिे को दे विा से भी अक्षधक भाग्यशाली माििे हैं।
4. भ रि में अनेक ध ममृक मि- भारिीय समाज में सदा से अिेक धाक्षमयक मि-मिान्तर साथ-साथ
क्षवकक्षसि होिे रहे हैं। भारि में क्षहन्दू , बौद्ध, जैि, शैव, वैष्णव आक्षद अिेक मि-मिान्तर रहे हैं। भारिीय
संस्कृक्षि की परम्परा में क्षवक्षवधिा के मध्य एकिा की स्थापिा करिे की िमिा है । वेदों में कहा गया है -‘वसुधैव
कुटम्बकम’। यह अिेकिा में एकिा क्षवक्षभन्न सांस्कृक्षिक ित्वों में पररलक्षिि होिी है।
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5. भ रि में एकरूपि - भारिीय समाज में एकरूपिा का पुट है। यद्यक्षप भारि में क्षहन्दू , मुक्तिम, क्षसख
ईसाई, यहदी, जैि और बौद्ध आक्षद सामाक्षजक इकाइयाँ हैं , क्षजिके अपिे-अपिे सामाक्षजक आचार-क्षवचार,
जीवि-दशयि, धाक्षमयक क्षवश्वास, परम्परा और रीक्षि-ररवाज हैं , क्षफर भी उिमें पारस्पररक संबंध उदार िथा
सक्षहष्णु हैं। सभी धमय के लोग अपिे-अपिे त्यौहार मिािे के क्षलए स्विंि हैं।
6. उपसांह र- भारिीय संस्कृक्षि अध्यात्मवादी है अिः उसका स्रोि कभी सूख िहीं सकिा। वह क्षिरं िर
अलख जगािी रहिी है और प्रक्षिकूल पररक्तस्थक्षियों में भी आिंद से जो़ििी रहिी है। उसकी चेष्टा मािव जीवि
को िव से िव ज्योक्षि, बल, संगीि, स्नेह उल्लास और उत्साह से भरिे की है। यही इस सस्कृक्षि की सबसे
सशि क्षवशेषिा है। वस्तुि पवय, उत्सव और त्यौहार ही इस संस्कृक्षि की अन्त अक्षभव्यक्ति है।
(2) ब ल श्रम
सांकेि मबन्दु : भूक्षमका - बालश्रम क्ा है (क) बालश्रम के कारण (ख) बालश्रम के पररणाम (ग) बालश्रम रोकिे
के उपाय (घ) उपसंहार ।
1. भूममक - बालश्रम क्ा है - बालश्रम बच्चों द्वारा अपिे बाल्यकाल में क्षकया गया श्रम या काम है
क्षजसके बदले उन्ें मजदू री दी जािी है । बालश्रम भारि के साथ सभी दे शों में गैर कािूिी है। बालश्रम एक
अक्षभशाप है क्षजसिे अपिा जाल पूरे दे श में क्षबछा क्षदया है क्षक प्रशासि की लाखों कोक्षशशों के बाद भी यह
अपिा प्रचंड रूप धारण करिे में सफल रहा है। यह हमारे समाज के क्षलए कलंक बि चुका है । क्षकसी भी
बच्चे के बाल्यकाल के दौराि पैसों या अन्य क्षकसी भी लोभ के बदले में करवाये गये काम को बालश्रम कहा
जािा है। इस प्रकार की मजदू री पर अक्षधकिर पैसों या जरूरिों के बदले काम क्षकया जािा है। बालश्रम
पूणयरूप से गैर कािूिी है। इस प्रकार की मजदू री को समाज में हर वगय द्वारा क्षिंक्षदि भी क्षकया जािा है।
लेक्षकि इस िरह का अभ्यास हम समाज वाले ही करिे हैं। जब बच्चों को उिके पररवार वालों से दू र रखकर
उन्ें गुलामों की िरह पेश क्षकया जािा है । अगर सामान्य शब्ों में समझे िो जो बच्चे 14 वषय से कम आयु के
होिे हैं उिसे उिका बचपि, खेलकूद क्षशिा का अक्षधकार छीिकर उन्ें काम में लगा कर शारीररक,
मािक्षसक और सामाक्षजक रूप से प्रिाक्षडि कर कम रुपयों में काम कराकर शोषण करके उिके बचपि को
श्रक्षमक रूप में बदल दे िा ही बालश्रम कहलािा है।
2. ब लश्रम के क रण- आज के समय में बालश्रम पूरे दे श में फैल चुका है। हमारे समाज में सरकार
द्वारा चलाए गए क्षियमों के बाद भी गंदी आदि समाज से छूटिी ही िहीं है। भारि की ज्यादािर आबादी
गरीबी से पीक्षडि है। कुछ पररवारों के क्षलए भरपेट खािा खािा भी एक सपिा-सा लगिा है। गरीबी के कारण
बहुि से लोग अपिे को भी खो चुके हैं। गरीबी की वजह से गरीब मािा-क्षपिा अपिे बच्चों को घरों और
दु कािों में काम करिे भेजिे हैं। लेक्षकि कभी-कभी ऐसे क्षिणयय बच्चों की शारीररक और मािक्षसक अवस्था
को झकझोरकर रख दे िे हैं। दु कािदार और छोटे व्यापारी बच्चों से काम िो ब़िों क्षजििा करवािे हैं लेक्षकि
उन्ें कीमि आधी दे िे हैं। क्ोंक्षक बच्चे चालाक िहीं होिे हैं इसक्षलए उन्ें ज्यादा चोरी और ठग का अवसर
िहीं क्षमलिा है। व्यापार में उत्पादि लागि कम लगिे की वजह से भी कुछ व्यापारी बच्चों की क्षजन्दगी बबायद
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कर दे िे हैं। हमारे दे श मं आजादी के बाद भी बहुि से इलाके ऐसे हैं जहाँ के बच्चे आज िक क्षशिा जैसे
मौक्षलक अक्षधकार से वंक्षचि हैं। हमारे दे श में हजारों गाँ व हैं , जहाँ पर पढ़ाई की कोई अच्छी व्यवस्था िहीं है ।
लेक्षकि है भी िो कोसों दू र है। इस िरह का प्रशासक्षिक ढीलापि भी बालश्रम के क्षलए क्षजम्मेदार है। बच्चों के
क्षलए क्षकफायिी अच्छे स्कूलों की कमी से बच्चों को अिपढ़ और बेबस रहिा प़ििा है। बहुि से पररवारों का
माििा है क्षक उिके जीवि में कभी अच्छी क्षजन्दगी क्षलखी ही िहीं है। वषों से चली आ रही मजदू री की परम्परा
ही उिके जीवि व्यिीि करिे का एकमाि स्रोि होिा है ।
4. ब लश्रम र कने के उप य- बालश्रम का अंि करिे के क्षलए हमें सबसे पहले अपिे घरों और दफ्तरों
में क्षकसी भी बच्चे को काम पर िहीं रखिा चाक्षहए। बालश्रम को खत्म करिे के क्षलए सबसे पहले हमें अपिी
सोच बदलिी चाक्षहए। बालश्रम को रोकिे के क्षलए क़िे -से-क़िे कािूि बिाए जाएँ और उि पर सख्ती से
काययवाही की जाए। कोई जुमायिा िहीं, सीधे सजा का प्रावधाि होिा चाक्षहए। आक्तखरकार लोगों को क्षकसी
बच्चे की क्षजन्दगी बरबाद करिे का कोई अक्षधकार िहीं है। सरकार िे गरीब बच्चों के क्षलए मुफ्त क्षशिा, खािा
और कुछ स्कूलों में दवाइयाँ जैसी सुक्षवधाएँ प्रदाि कर रही हैं। अगर हमें क्षकसी भी बालश्रम का पिा चले िो
उसके बारे में पहले बच्चे के माँ-बाप से बाि करें और उन्ें समझाए क्षक इससे बच्चे का भक्षवष्य खराब होगा।
और यह कािूिी अपराध है ।
(3) य ि य ि के मनयम संकेि-क्षबन्दु - प्रस्ताविा (क) चैराहों पर बत्ती िथा अन्य व्यवस्था (ख) वाहिों को
क्षिधायररि गक्षि में चलािा िथा अन्य सावधाक्षियाँ (ग) उपसंहार।
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1. प्रस्त िन - हर व्यक्ति अपिे जीवि में कहीं भी आिे-जािे के क्षलये स़िक का प्रयोग करिा है। हर
रोज स़िक हादसों के भी बहुि-से क्षकस्से सुििे को क्षमलिे हैं। ज्यादािर दु घयटिा लोगों की लापरवाही के
कारण होिी है , जल्दी पहुँचिे के चक्कर में और िशा करके वाहि चलािे वाले से उसका जीवि छीि सकिी
हैं। सरकार िे लोगों की सुरिा और स़िक दु घयटिा को कम करिे के क्षलए यािायाि के बहुि से क्षियम बिाए
हैं क्षजिका पालि करिा हमारा कत्र्िव्य है।
2. चौर ह ां पर बत्ती िथ अन्य व्यिस्थ - स़िक पर प़ििे वाले चैराहों पर अलग-अलग रं ग की बत्ती
लगाई गई हैं। सबसे ऊपर लाल बत्ती क्षजसका अथय है -रुकिा। पीली बत्ती का अथय है - चलिे के क्षलए िैयार
होिा और हरी बत्ती का अथय है-चलिा। साइक्षकल और पदयाक्षियों के क्षलए अलग से रास्ता बिाया गया है।
एक िरफ स़िकों पर हमें एक पंक्ति में चलिा चाक्षहए क्ोंक्षक अगर हम पंक्ति िो़िें गे िो आिे जािे में क्षदक्कि
होगी और ज्यादा दे र लगेगी। कभी दू सरों से आगे क्षिकलिे की हो़ि िहीं रखिी चाक्षहए क्ोंक्षक दु घयटिा से
दे र भली। यू टिय लेिे समय अपिे से पीछे चलिे वाले वाहि चालक को हाथ से इशारा कर दे िा चाक्षहए। कभी
भी क्षबिा पाक्षकिंग के गा़िी ि ख़िी करें चाहे दो क्षमिट के क्षलए क्ों ि ख़िा करिा हो।
3. ि हन ां क मनध ृररि गमि में चल न िथ अन्य स िध मनय ँ- वाहि को क्षिधायररि गक्षि सीमा के
अन्दर ही चलािा चाक्षहए। गा़िी में सीट बैल्ट का प्रयोग अन्य अक्षिवायय है। जगह-जगह पर क्षदशा दशायिे वाले
क्षचन् बिे हुए हैं हमें उिका ध्याि रखिा चाक्षहए। सही क्षदशा में वाहि चलािा चाक्षहए। स्कूल का़लेज आक्षद
के सामिे वाहि की गक्षि कम करिी चाक्षहए। लगािार लंबे समय िक हा़िय का प्रयोग िहीं करिा चाक्षहए
और अब िो सरकार िे हा़िय पर प्रक्षिबंध लगा क्षदया है। मु़ििे से पहले लाईट जलाकर इशारा कर दे िा
चाक्षहए। माँ -बाप को चाक्षहए क्षक वह अपिे बच्चों को बचपि से ही यािायाि के क्षियमों के बारे में बिाएँ । स्कूल
में भी इस क्षवषय पर पढ़ाया जािा चाक्षहए और परीिा भी होिी चाक्षहए। क्षबिा लाइसेंस के क्षकसी भी व्यक्ति
को वाहि िहीं चलािा चाक्षहए और बार-बार गलिी करिे वाले का लाइसेंस रद् करिा चाक्षहए। यह सभी
क्षियम सुरिा के क्षलए हैं और हमें इन्ें क्षजम्मेदारी से अपिािा चाक्षहए।
4. उपसांह र- मिुष्य को सुरक्षिि रहिे के क्षलए स़िक के क्षियम अपिािे चाक्षहए क्षजससे मिुष्य सुरक्षिि
रह सके। वह यािायाि के क्षियमों का पालि करें । स्वयं को सुरक्षिि रखकर दू सरों को भी सुरक्षिि रख सकें
क्ोंक्षक जीवि अिमोल हैं।
क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में अिुच्छेद
क्षलक्तखए।
सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) सािरिा का अथय (ख) सािरिा के अभाव में हाक्षि (ग) सािरिा के लाभ (घ)
उपसंहार।
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सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) भ्रष्टाचार का अथय (क) भ्रष्टाचार के मूल में शासि िंि (ख) भ्रष्टाचार की क्ा बाि
करें (ग) भ्रष्टाचार को दू र करिे के उपाय (घ) उपसंहार
सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) स्वच्छ भारि अक्षभयाि की शुरुआि (ख) स्वच्छ भारि अक्षभयाि के उद्े श्य (ग)
स्वच्छ भारि अक्षभयाि में शाक्षमल मंिालय (घ) उपसंहार उत्तर ़ः
सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) सािरिा का अथय (ख) सािरिा के अभाव में हाक्षि (ग) सािरिा के लाभ (घ)
उपसंहार।
1. प्रस्त िन - आज क्षशिा पर क्षवशेष बल क्षदया जा रहा है । पूणय क्षशिा ि भी सही, क्ोंक्षक महंगी, और
क्षवषम पररक्तस्थक्षियों वाले युग में वह सभी के क्षलए शायद संभव भी िहीं, पर कम से कम सािर िो सभी हो
ही सकिे हैं। अथायि् अिर-ज्ञाि पाकर अपिा काम िो सभी चला ही सकिे हैं । इििा पढ़िा-क्षलखिा िो हर
आदमी के क्षलए बहुि जरूरी हो गया है क्षक व्यक्ति अपिे पि आक्षद स्वयं पढ़-क्षलख सके। कहीं अंगूठा लगािे
से पहले यह जाि सके क्षक यह सब क्ों और क्षकसक्षलए कर रहा है और उसके भक्षवष्य
के क्षलए वह उक्षचि है या अिुक्षचि जैसी सामान्य जािकाररयों के क्षलए सािर होिा प्रत्येक व्यक्ति के क्षलए बहुि
आवश्यक है। सािर व्यक्ति अपिे आपको चुस्त-चालाक और धोखेबाज व्यक्तियों से बचा सकिा है। इन्ीं
बुक्षियादी िथ्यों के आलोक में आज सरकारी-गैर सरकारी अिेक स्तरों पर सािरिा का प्रचार-प्रसार क्षकया
जा रहा है। क्षशिा सबका अक्षधकार है।
2. स क्षरि क अथृ- ‘सािरिा’ शब् का सामान्य प्रचक्षलि अथय क्ा है , यह जािकर भी इसकी
आवश्यकिा पर क्षवचार क्षकया जा सकिा है । ‘सािरिा’ का सामान्य अथय है ‘अिर ज्ञाि’ अथायि् क्षवशेष ज्ञाि
प्राप्त ि होिे पर भी कम से कम इििा ज्ञाि िो हर व्यक्ति को रखिा ही चाक्षहए क्षक वह क्षकसी एक या अक्षधक
भाषाओं के अिरों का ज्ञाि अच्छी िरह रखिा हो। उि अिरों को जो़िकर अपिा िाम आक्षद पढ़-क्षलख
सकिा हो। ‘सािरिा’ शब् का अथय माि इििा ही है और इसी भाविा से उसका प्रचार-प्रसार भी हो रहा है।
क्षिरिर व्यक्ति क्षकसी महाजि से लेिा िो माि 500 रु. है पर अँगूठा 5000 हजार पर लगवा क्षलया जािा है।
जब इििी रकम चुका पािा संभव िहीं होिा िब पिा चलिा है क्षक वास्तक्षवकिा क्ा है ? उसके साथ क्षकििा
ब़िा धोखा हुआ है ।
3. स रक्षि के अभ ि में ह मन- कई बार ऐसा भी हुआ है क्षक जमींदारों महाजिों िे लगाि या कुछ
कजय के बदले में क्षकसी का खेि या घर िक क्षगरवी रखकर उस पर अंगूठा लगवा क्षलया। क्षफर धीरे -धीरे या
िो उसको पररवार समेि बंधुआ मजदू र बि जािा प़िा, या क्षफर सब छो़ि-छा़ि पर चुपचाप भाग जािा प़िा।
इस प्रकार सािर ि होिे से ि जािे क्षकििे प्रकार के पररणाम बेचारे क्षिरिर व्यक्ति भोग चुके हैं। सािरिा
उस प्रकार के दु ष्ररणामों से बचिे का एक माि अच्छा और उक्षचि उपाय है।
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4. स क्षरि के ल भ- सािर व्यक्ति अपिी क्षचट्ठी-पिी िो स्वयं क्षलख-पढ़ ही सकिा है , मिीआ़डय र
फामय भी खुद भर सकिा है। आजकल कई प्रकार के फामय भी भरिे रहिा प़ििा है। वे सब भी भर कर
अपिे पैसे बचा सकिा है। माि लो िकिीकी कारणों से कोई फा़मय खुद िहीं भर सकिा, िो कम-से-कम
यह िो जाि ही सकिा है क्षक क्षजससे भरवाया जा रहा है , वह सब-कुछ उसकी इच्छािुसार और ठीक ही भर
रहा है या िहीं। आजकल कई चीजें पैकेट में क्षबकिी हैं। उि पर कीमि, पैकेट बिािे और वस्तु के सुरक्षिि
रहिे की िारीख आक्षद उस पर क्षलखी होिी हैं। दवाइयों की पैक्षकंग पर भी यह अब क्षलखा रहिा
है। सािर व्यक्ति खरीदिे समय यह सब दे खकर खरीद सकिा है। क्षिरिर को कई बार िारीख के बाद की
वस्तु या दवा थमा दी जािी है। उसके खािे से अच्छे भले आदमी की जाि भी जा सकिी है। मरीज ऐसी दवा
या टीका लगवाकर मर सकिा है। सािर को ऐसा माल या दवा िहीं दी जा सकिी है। इस प्रकार से स्पष्ट है
क्षक सािर होिे के लाभ-ही-लाभ हैं। जब व्यक्ति इस प्रकार के लाभ पा लेिा है िो क्षफर वह अपिे बच्चों को
अिपढ़ या क्षिरिर िहीं रहिे दे िा। स्वयं कष्ट उठा कर चाहेगा क्षक उसके बच्चे पढ़-क्षलख जाएँ । क्षिरिर
व्यक्तियों के साथ कई बार ऐसा हुआ है क्षक दू सरे व्यक्ति िे बिाए गए पिे की बजाय अपिे घर या क्षकसी
पररक्षचि का पिा क्षलख क्षदया हो। इस प्रकार मिीआ़डय र भेजिे वाले व्यक्ति िे िो भेज क्षदया पर पािे वाले को
िहीं क्षमला, हो गई ि ग़िब़ि। ऐसी ग़िबक्षडयों पर िजर रखकर अपिे अन्य साक्षथयों को बचाकर एक
महत्वपूणय समाज-सेवा का कायय कर सकिा है।
5. उपसांह र- इस प्रकार आज के कम्प्प्यूटरीकृि युग में प्रत्येक व्यक्ति के क्षलए पहले अच्छी-से-अच्छी
क्षशिा पाकर चैकन्ना-चुस्त और जागरूक रहिे की आवश्यकिा है। यक्षद ऐसा संभव ि हो सके, िो कम-से-
कम अपिा और साक्षथयों का क्षहि साधिे के क्षलए सािर होिा परम आवश्यक है। इसके क्षलए उपलब्ध
व्यवस्थाओं का लाभ उठाकर हम क्षिरिर को यथासम्भव शीघ्र सािर बिकर स्विंि राष्टर का स्विंि-जागरूक
िागररक प्रमाक्षणक करिे का प्रयास करिा चाक्षहए।
सांकेि-मबन्दु : प्रस्ताविा (क) भ्रष्टाचार का अथय (ख) भ्रष्टाचार के मूल में शासि िंि (क) भ्रष्टाचार की क्ा
बाि करें (क) भ्रष्टाचार को दू र करिे के उपाय (क) उपसंहार
1. प्रस्त िन - आधुक्षिक युग को भ्रष्टाचार का युग कहा जाए, िो अत्युक्ति ि होगी। आज भ्रष्टाचार जीवि
के प्रत्येक िेि में फैल चुका है। इसकी ज़िें इििी गहरी हो चुकी हैं क्षक समाज का कोई भी िेि इससे अछूिा
िहीं रह पाया है।
2. भ्रष्ट च र क अथृ- भ्रष्टाचार दो शब्ों के मेल से बिा हुआ है। भ्रष्ट और आचार अथायि ऐसा आचार
जो भ्रष्ट हो, जो समाज के क्षलए हाक्षिप्रद हो। भ्रष्टाचार के मूल में मािव का स्वाथय िथा लोभ प्रवृक्षत्त है। आज
प्रत्येक व्यक्ति अक्षधकाक्षधक कमाकर सभी प्रकार के भौक्षिक सुखों का आिंद भोगिा चाहिा है । धि की
लालसा भ्रष्ट आचरण करिे को मजबूर कर दे िी है। वह उक्षचि अिुक्षचि की परवाह क्षकए क्षबिा मि की लालसा
उसके क्षववेक को कुंक्षठि कर दे िी है ।
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कबीर िे ठीक कहा है -
“मि सागर मिसा लहरर बू़िे बहे अिेक, कहे कबीर िे बाक्षच है , क्षजिके ह्नदय क्षववेक।”
मािव का मि अत्यंि चंचल होिा है जब वह उसे लोभ और लालच की जंजीरों में जकड लेिा है िो मिुष्य
का क्षववेक िष्ट हो जािा है िथा उसे प्रत्येक बुरा कायय भी अच्छा लगिे लगिा है । वह सामाक्षजक क्षियमों को
िो़िकर, कािूि का उल्लंघि करके केवल अपिे स्वाथय के क्षलए अिैक्षिक कमों की ओर प्रवृत्त हो जािा है ।
मािव-क्षिमायिा िीक्षियों क्षियमों का उल्लंघि करिा ही भ्रष्टाचार है।
3. भ्रष्ट च र के मूल में ि सन-िांत्र- भ्रष्टाचार के मूल में शासििंि बहुि हद िक उत्तरदायी है। ऊपर
से िीचे िक सभी भ्रष्टाचारी हों िो भला कोई ईमािदार कैसे हो सकिा है। आज भ्रष्टाचार की ज़िें इििी
गहरी हैं क्षक कोई भी अपराधी ररश्वि दे कर छूट जािा है िथा क्षिदोष को सजा भी हो सकिी है। लोगों में ि िो
कािूि का भय है और ि ही सामाक्षजक दाक्षयत्व की भाविा। दे श के ब़िे -से-ब़िे िेिा ही भ्रष्टाचार और घोटालों
में क्षलप्त हों िो अन्य लोगों की क्ा बाि करें । क्षवश्व के दू सरे दे शों में ऐसी क्तस्थक्षि िहीं है । वहाँ के लोग भ्रष्टाचारी
िेिा को सहि िहीं कर पािे। अमेररका के राष्टरपक्षि क्षिक्सि को एक घोटाले के कारण ही हार का सामिा
करिा प़िा था। भारि की इस क्तस्थक्षि को दे खकर हमें एक
शायर का शेर याद आिा है । “बरबाद चमि को करिे को, बस एक ही उल्लू काफी था। हर शाख पे उल्लू
बैठा था, अंजामें गुक्षलस्तां क्ा होगा?”
भारि के क्षकििे शीषय कोक्षट के िेिा भ्रष्टाचार में क्षलप्त पाए गए। उिके बैंक खािे क्षवदे शों में हैं। क्षवदे शों में
उन्ोंिे प्रोपटी बिा ली है िथा भारि में भी बेिामी संपक्षत्त बिा लीं। जब पक़िे गए िो क्षवदे श भाग गए। कहिे
हैं ि क्षक कभी िो कािूि की क्षगरफ्त में आएँ गे। जब उिके यहाँ सी.बी. आई के छापे प़ििे हैं िो उिके साथ
के भ्रष्टाचारी िेिा उिके बचाव में सफाई दे िे लगिे हैं । सरकार को सत्ता के मद में चूर बिािे हैं। अरे ! कोई
उिसे पूछे क्षक जब उन्ोंिे घोटाले क्षकए थे िब वे भी वो सत्ता में महत्वपूणय पदों
पर आसीि थे।
4. भ्रष्ट च र की क्य ब ि करें - बाजार में क्षसंथेक्षटक दू ध बेचा जा रहा है , िकली दवाओं की भरमार है,
फलों और सक्तब्जयों को भी रासायक्षिक पदाथों द्वारा आकषयण बिाकर बेचा जा रहा है , चाहे लोगों की जािें
क्ों ि चली जाएँ । िस्करी का सामाि खुले आम क्षबकिा है। अिेक बार उच्च अक्षधकाररयों के संरिण में ही
भ्रष्टाचार पिपिा है। उिकी जेबें भरिे के बाद क्षकसी प्रकार की काययवाही िहीं होिी। क्षकसी को सजा िहीं
होिी।
‘क्षजसकी लाठी उसकी भैंस’ िथा ‘बाप ब़िा ि भइया सबसे ब़िा रुपया’ वाली कहाविें चररिाथय हो रही हैं ।
5. भ्रष्ट च र क दू र करने के उप य- भ्रष्टाचार को क्षकस प्रकार दू र क्षकया जाए यह गंभीर प्रश्न है। इसके
क्षलए स्वच्छ प्रशासि िथा क्षियमों का क़िाई से पालि हो। यक्षद 100-200 भ्रष्टाचाररयों को क़िी सजा क्षमल
जाए, उिकी सारी संपक्षत्त चाहे वह चल हो अथवा अचल, उन्ें आजीवि कारावास हो जाए िभी शायद अन्य
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भ्रष्टाचाररयों में भय व्याप्त होगा। इस िासूर बीमारी िे िो दे श की ज़िें खोखली कर दी हैं। भ्रष्टाचार की
समाक्तप्त के क्षलए युवा पीढ़ी को आगे आिा होगा और एक भ्रष्टाचार मुि समाज का क्षिमायण करिे के क्षलए
कृि संकल्प होिा प़िे गा।
6. उपसांह र- भ्रष्टाचार हमारे िैक्षिक जीवि मूल्यों पर सबसे ब़िा प्रहार है। भ्रष्टाचार से जु़िे लोग अपिे
स्वाथय में अंधे होकर राष्टर का िाम बदिाम कर रहे हैं । अिः यह बेहद ही आवश्यक है क्षक हम भ्रष्टाचार के
इस जहरीले सां प को कुचल डालें। साथ ही सरकार को भी भ्रष्टाचार को दू र करिे के क्षलए प्रभावी कदम
उठािे होंगे। क्षजससे हम एक भ्रष्टाचार मुि भारि के सपिे को सच कर सकें।
(3) स्वच्छि
या
‘स्वच्छ भ रि अमभय न’ दे श की सफाई एकमाि सफाई कक्षमययों की क्षजम्मेदारी िहीं है , क्ा इसमें िागररकों
की कोई भूक्षमका िहीं है हमें इस मािक्षसकिा को बदलिा होगा-िरें न्द्र मोदी।
सांकेि-मबन्दु प्रस्ताविा (क) स्वच्छ भारि अक्षभयाि की शुरुआि (क) स्वच्छ भारि अक्षभयाि के उद्े श्य (क)
स्वच्छ भारि अक्षभयाि में शाक्षमल मंिालय (क) उपसंहार
1. प्रस्त िन - स्वच्छिा ि केवल हमारे घर, स़िक िक के क्षलए ही जरूरी िहीं होिी है। यह दे श और
राष्टर की आवश्यकिा होिी है। इससे ि केवल हमारा घर-आँ गि ही स्वच्छ रहेगा बक्तल्क पूरा दे श ही स्वच्छ
रहेगा। इसी बाि को ध्याि में रखिे हुए भारि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजिा स्वच्छ भारि अक्षभयाि जो
क्षक हमारे दे श के प्रत्येक गाँ व और शहर में प्रारम्भ की गई है , जो दे श के प्रत्येक गली गाँव की प्रत्येक स़िकों
से लेकर शौचालय का क्षिमाय ण करािा और दे श के बुक्षियादी ढाँचे को बदलिा ही इस अक्षभयाि का उद्े श्य
है।
2. स्वच्छ भ रि अक्षभयाि की शुरुआि- भारि के प्रधािमंिी श्री िरे न्द्र मोदी जी िे महात्मा गाँ धी की
जयंिी पर 2 अक्टू बर, 2014 को स्वच्छ भारि अक्षभयाि की शुरुआि की थी। माििीय मोदी जी िे महात्मा
गाँधी जी की 145 वीं जयंिी के अवसर पर इस अक्षभयाि की शुरुआि की, स्वच्छ भारि अक्षभयाि के िहि
2 अक्टू बर 2014 को उन्ोंिे राजपथ पर जिसमूहों को संबोक्षधि करिे हुए राष्टरवाक्षदयों से इस अक्षभयाि में
भाग लेिे और इसे सफल बिािे को कहा। स्वच्छिा को लेकर भारि की छक्षव बदलिे के क्षलए श्री िरे न्द्र मोदी
जी िे दे श को एक मुक्षहम से जो़ििे के क्षलए जि-आं दोलि बिाकर इसकी शुरुआि की।
I. खुले में शौच बंद करवािा क्षजसके कारण हर साल हजारों बच्चों की मौि हो जािी है।
II. लगभग 11 करो़ि 11 लाख व्यक्तिगि, सामूक्षहक शौचालयों का क्षिमायण करवािा क्षजसमें 1 लाख 34
हजार करो़ि रुपए खचय होंगे।
III. लोगों की मािक्षसकिा को बदलिा उक्षचि स्वच्छिा का उपयोग करके।
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IV. शौचालय के उपयोग को बढ़ावा दे िा और सावयजक्षिक जागरुकिा को शुरु करिा।
V. गाँवों को साफ रखिा।
VI. 2019 िक सभी घरों में पािी की पूक्षिय सुक्षिक्षश्चि करके गाँवों में पाइपलाइि लगवािा क्षजससे स्वच्छिा
बिी रहे।
VII. ग्राम पंचायि के माध्यम से ठोस और िरल अपक्षशष्ट की अच्छी प्रबन्धि व्यवस्था सुक्षिक्षश्चि करिा।
VIII. स़िके फुटपाथ और बक्तस्तयाँ साफ रखिा।
IX. साफ सफाई के जररए सभी में स्वच्छिा के प्रक्षि जागरुकिा पैदा करिा।
5. उपसांह र- जो पररवियि आप युग में दे खिा चाहिे हैं वह सबसे पहले अपिे आप पर लागू करें -
महात्मा गाँ धी। आज स्वच्छिा की जागरुकिा मशाल सभी में पैदा होिी चाक्षहए। इसके िहि स्कूलों में भी
स्वच्छ भारि अक्षभयाि के काययक्म होिे लगे हैं। स्वच्छिा से ि केवल हमारा िि साफ रहिा है । हमारा मि
भी साफ रहिा है।
क्षिम्नक्षलक्तखि में से क्षकसी एक क्षवषय पर क्षदए गए संकेि क्षबन्दु ओं के आधार पर लगभग 200 शब्ों में अिुच्छेद
क्षलक्तखए
संकेि-क्षबन्दु ः प्रदू षण के कारण (क) प्रदू षण की व्यापकिा (क) प्रदू षण वृक्तद्ध के कारण (ख) प्रदू षण के
दु ष्प्रभाव (ग) प्रदू षण से बचिे के उपाय (घ) क्षिष्कषय।
सांकेि-मबन्दु प्राकृक्षिक आपदाएँ (क) दोषी कौि (ख) सरकार की क्षजम्मेदारी (ग) िागररकों के कत्र्िव्य (घ)
क्षिष्कषय।
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(3) सांगमि क प्रभ ि
सांकेि-मबन्दु ः भूक्षमका (क) संगक्षि के प्रकार (क) संगक्षि का प्रभाव (ख) उदाहरण (घ) उपाय (ड) क्षिष्कषय।
उत्तर
सांकेि-मबन्दु ः प्रदू षण के कारण (क) प्रदू षण की व्यापकिा (ख) प्रदू षण वृक्तद्ध के कारण (ग) प्रदू षण के
दु ष्प्रभाव (घ) प्रदू षण से बचिे के उपाय (ड) क्षिष्कषय।
1. प्रदू षण के क रण- मिुष्य के जीवि में ज्यों-ज्यों क्षवज्ञाि का प्रभाव बढ़िा गया त्यों-त्यों वह क्षवकास
की ओर कदम बढ़ािा गया। झोपक्षडयों और कच्चे घरों में रहिे वाले मिुष्य िे आलीशाि मकाि बिाए। चै़िी-
चै़िी स़िके बिाईं। िीव्रगामी मोटर गाक्षडयाँ और घोर गजयि करिे वाले द्रु िगामी क्षवमाि बिाए। उसिे अिेक
कल-कारखािे स्थाक्षपि क्षकए। इससे पे़िों को अंधाधुंध काटा गया और प्राकृक्षिक संसाधिों का दोहि करिे
हुए प्रकृक्षि के साथ छे ़िछा़ि हुआ, क्षजसका पररणाम प्रदू षण के रूप में हमारे सामिे हैं।
2. प्रदू षण की व्य पकि - क्षकसी समय प्रदू षण स्थाि क्षवशेष या शहरों िक ही सीक्षमि था परं िु गाँवों
में क्षवकास एवं मशीिीकरण होिे से अब गाँव भी प्रदू षण से अछूिे िहीं हैं । हाँ , अभी प्रदू षण का स्तर वहाँ
शहरों क्षजििा िहीं है। शहरों के प्रदू क्षषि वािावरण में जीवि घुटि-भरा होिा जा रहा है। इस समस्या िे क्षवश्व
को क्षचंिा में डाल क्षदया है।
3. प्रदू षण िृखि के क रण- प्रदू षण बढ़िे के अिेक कारण हैं। इसके मूल में बढ़िी जिसंख्या है,
क्षजसकी आवश्यकिाओं की पूक्षिय के क्षलए प्राकृक्षिक वािावरण समाप्त कर सीमेंट और कंकरीट के जंगल
बिाए गए। क्षवकास के क्षलए औद्योक्षगक इकाइयों की स्थापिा की गई। हरे -भरे पे़िों को काटा गया। इि
कारखािों से क्षिकला धुआँ, बढ़िी दु गिंध, गंदा पािी, डीजल- पेटरोल की गंध, इिमें चलिे वाली मोटरों और
मशीिों का शोर जीवि के क्षलए घािक बि रहा है । इससे अिेक बीमाररयाँ पैदा हो रही हैं। इस उपभोगवादी
युग में चारों ओर उत्पादि बढ़ािे पर ही जोर क्षदया जा रहा है , क्षजसके क्षलए मशीिीकरण क्षकया गया। इिसे
क्षिकला कू़िा-करकट, जािलेवा रसायि क्षमला गंदा जल क्षबिा साफ क्षकए िालाबों में फेंका जा रहा है , जो
मिुष्यों के अलावा जलीय जीवों के क्षलए खिरा बििे जा रहे हैं।
4. प्रदू षण के दु ष्प्रभ ि- ध्वक्षि प्रदू षण के कारण श्रवण संबंधी बीमाररयों के अलावा उच्च रिचाप और
हृदयघाि जैसी बीमाररयाँ बढ़ रही हैं। बढ़िे वाहिों की आवाज और प्रत्येक घर में प्रयुि क्षवद् युि उपकरणों
से लगािार क्षिकलिे वाली आवाज हमारी सुििे की िमिा को प्रभाक्षवि कर रही है।
प्रदू षण की मार से प्राणी ही िहीं प्रकृक्षि भी बुरी िरह से प्रभाक्षवि हो रही है। प्रकृक्षि का संिुलि खोिा जा
रहा है। वैक्षश्वक िापमाि में वृक्तद्ध हो रही है। प्राकृक्षिक चक् पररवक्षियि हो रहा है क्षजससे असमय वषाय , अचािक
सदी, गमी का घटिा-बढ़िा जैसी अकक्तल्पि समस्याएँ सामिे आ रही हैं और इसका सीधा असर फसल
उत्पादि पर प़ि रहा है।
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5. प्रदू षण से बचने के उप य- प्रदू षण कम करिे के क्षलए हमें अक्षधकाक्षधक पे़ि-पौधे लगािे होंगे।
कल-कारखािों को शहरों से दू र स्थाक्षपि करिा होगा। जल और वायु प्रदू षण रोकिे हेिु आवश्यक कदम
उठािे होंगे। प्रदू षण कम क्षकए क्षबिा मिुष्य सुखमय जीवि िहीं जी सकेगा।
6. मनष्कषृ- क्षिष्कषय रूप में कहा जा सकिा है क्षक प्रदू षण को कम करिे का एकमाि उपाय सामाक्षजक
जागरूकिा है। प्रचार माध्यमों के द्वारा इस संबंध में लोगों िक संदेश पहुँचािे की आवश्यकिा है। सामूक्षहक
प्रयास से ही प्रदू षण की क्षवश्वव्यापी समस्या को क्षियंक्षिि क्षकया जा सकिा है।
सांकेि-मबन्दु ः प्राकृक्षिक आपदाएँ (क) दोषी कौि (ख) सरकार की क्षजम्मेदारी (ग) िागररकों के कत्र्िव्य (घ)
क्षिष्कषय।
1. प्र कृमिक आपद एँ - ‘कहर हुआ सुिामी का चक्वाि, भूस्खलि या क्षफर भूचाल का डर हुआ, कभी
बाढ़ का, कभी सूखे का कौि है उत्तरदायी इिका प्रकृक्षि या दोष है यह इं साि का।’
2. द षी कौन- जब हम हजारों- लाखों लोगों को बेघर होिे दे खिे हैं , घायल होिे और मरिे दे खिे हैं,
िो यह प्रश्न हमारे सामिे आ ख़िा होिा है क्षक इिके क्षलए आक्तखर कौि क्षजम्मेदार है ? प्राकृक्षिक कारणों के
साथ-साथ मिुष्य भी पयायवरणीय असंिुलि के क्षलए उत्तरदायी है। वास्तव में प्राकृक्षिक आपदा प्रकृक्षि का
मािव के प्रक्षि रोष है क्षजसकी अक्षभव्यक्ति धरिी से िणभर में जीवि का अक्तस्तत्व क्षमटािे की िमिा रखिी
है। प्रकृक्षि का यह रोष, यह िांडव दे ख मािव क्षसहर उठिा है , क्षकन्तु जि-जीवि में सामान्य होिे ही सब कुछ
भूल जािा है । वह अपिी भूल से िक्षिक भी सीख िहीं लेिा िथा लगािार वृिों की कटाई कर अपिे िक्षणक
भोग की वस्तुओं का क्षिमाय ण करिा जािा है और क्षफर सुिामी जैसी महाआपदा को क्षिमंिण दे िा है। आज
ऐसे उपायों की आवश्यकिा बहुि अक्षधक है क्षजिकी योजिा पहले से बिाई गई हो, सबको उिकी जािकारी
हो िथा यथाअवसर उिका उपयोग क्षकया जा सके।
3. सरक र की मजम्मेद री- सरकार द्वारा मौसम की चेिाविी दे कर, बचाव कायय िथा प्राथक्षमक उपचार
के बारे में क्षवशेष प्रक्षशिण दे कर लाखों लोगों की जाि बचाई जा सकिी है। अच्छे क्षिमायण कायों की समझ
हमारे क्षलए बहुि आवश्यक है िाक्षक घरों, क्षवद्यालयों िथा संस्थािों को सुरक्षिि रखा जा सके। आपदारोधी
इमारिों का क्षिमायण करिा िथा क्षवद्यमाि इमारिों की मरम्मि िथा उिका िवीिीकरण अत्यंि आवश्यक है।
केन्द्रीय स्तर पर जहाँ वस्तुओं और क्षवत्तीय संसाधिों की पूक्षिय की जािी है , वहाँ आपदाओं से क्षिबटिे का मुख्य
दाक्षयत्व राज्य सरकार का है। क्षजला प्रशासि सभी गक्षिक्षवक्षधयों का केन्द्र क्षबन्दु होिा है। इसके अक्षिररि
अिेक छोटे -छोटे संगठि भी क्षिरन्तर सहायिा एवं बचाव कायों में लगे रहिे हैं।
4. न गररक ां के किृव्य- हम सुसंस्कृि, सुसभ्य कहलािे वाले प्राणी आए क्षदि होिे वाली आपदाओं के क्षलए
सभी सरकार को कोसिे है िो कभी ईश्वर से क्षशकायि करिे है , लेक्षकि स्वयं हाथ पर हाथ धरे बैठे रहिे हैं।
जरा सोक्षचए क्षकसी भी प्रकार की प्राकृक्षिक आपदा का क्षशकार सबसे अक्षधक कौि होिा है ? आम आदमी ही
जब इसकी चपेट में आिा है िो क्ों ि हम सब क्षमलकर कुछ ऐसे उपाय करें क्षजससे इि आपदाओ का
227
सामिा क्षकया जा सके। अपिे मोहल्ले के लोगों के साथ क्षमलकर पहले से ही सुरिा योजिाएं बिा ली जािी
चाक्षहए और समय-समय पर उिका अभ्यास करिा चाक्षहए। लोगों को जागरूक करिे के क्षलए अिेक
अक्षभयाि चलाए जािे चाक्षहए। समाज में इि आपदाओं से संबक्षधि सावधािी बरििे िथा उक्षचि जािकारी
पहुंचािे के क्षलए सबसे अच्छा उपाय है- क्षवद्यालय में बच्चों को जागरूक करिा।
इस प्राकृक्षिक आपदाओं को रोक िो िहीं सकिे क्षकंिु उक्षचि जािकारी, समुक्षचि व्यवस्था और संगक्षठि
होकर इिके हाक्षिकारक प्रभाव को कम अवश्य कर सकिे है। उसके अक्षिररि संकट के समय हम साहस
व धैयय से इिका सामिा करिा चाक्षहए।
5. मनष्कषृ - प्राकृक्षिक आपदाओं के प्रभाव को कम करिे के क्षलए और इससे क्षिपटिे के क्षलए सरकार
और लोगों को इसके प्रक्षि सिकय रहिे की जरूरि है , इसके साथ ही हम सभी को अपिे सुख, सुक्षवधाओं के
क्षलए प्राकृक्षिक संसाधिों के दोहि करिे से बचिा चाक्षहए, ज्यादा से ज्यादा वृि लगािे चाक्षहए और
कीटिाशकों का इस्तेमाल िहीं करिा चाक्षहए िभी प्राकृक्षिक आपदा के प्रभाव को कम क्षकया जा सकिा है।
सांकेि-मबन्दु ः भूक्षमका (क) संगक्षि के प्रकार (ख) संगक्षि का प्रभाव (ग) उदाहरण (घ) उपाय (ड) क्षिष्कषय।
1. भूममक -‘कदली, सीप, भुजंग िे, एक स्वाक्षि, गुि िीि। जैसी संगक्षि कीक्षजए, िैसोई फल दीि।’ प्रक्षसद्ध
कक्षव रहीम की ये पंक्तियाँ संगक्षि की महत्ता बिािे के क्षलए पयाय प्त हैं क्षक क्षकस प्रकार स्वाक्षि ििि की बूँद
अलग-अलग संगक्षि में प़िकर अलग-अलग रूप-रं ग और गुण-धमय वाली क्षभन्न प्रकृक्षि वाली वस्तु बि जािी
है। यही बूँद बेले के पत्ते पर प़िकर कपूर, सीप में क्षगरकर मोिी और सपय के क्षसर पर क्षगरकर मक्षण का रूप
धारण कर लेिी है । इसी प्रकार मिुष्य की सफलिा और असफलिा उसकी संगक्षि पर क्षिभयर करिी है। चंदि
के संपकय में आिे से क्षवषधर अपिा क्षवष त्याग दे िा है और कपूर का संपकय पाकर वस्तुएँ सुगंक्षधि हो जािी
हैं। स्वणयपाि में शराब रखी होिे पर भी साधुजि उसकी क्षिंदा ही करिे हैं ।
2. सांगमि के प्रक र- संगक्षि को दो भागों में बाँटा जा सकिा है -सत्संगक्षि और कुसंगक्षि। सत्संगक्षि मिुष्य
के क्षलए सवयक्षवक्षध से कल्याणकारी होिी है। वह मिुष्य को अच्छी बािें क्षसखािी हुई उसके ज्ञाि में वृक्तद्ध करिी
है। इसके क्षवपरीि कुसंगक्षि उसे पिि के गिय में ले जािी है। ऐसा व्यक्ति समाज क्षवरोधी गक्षिक्षवक्षधयों में शाक्षमल
हो जािा है। वह अपिे पररवार, समाज और दे श की भलाई की बाि सोच भी िहीं सकिा है।
3. सांगमि क प्रभ ि- मिुष्य को क्षकस संगक्षि में रहिा है , इसका चुिाव उसे क्षववेकपूणय करिा चाक्षहए।
एक सामाक्षजक प्राणी होिे के कारण एक-दू सरे से हम क्षमलिे-जुलिे रहिे हैं। हमारी आवश्यकिाएँ हमें
परस्पर क्षिकट लािी हैं । ऐसे में हम क्षजस प्रकार के व्यक्ति के साथ संगक्षि करें गे उसी प्रकार का असर हमारे
मि और स्वभाव पर प़ििा है।
4. उद हरण- लोहे का गुण है - पािी में डूब जािा। एक कील या छ़ि पािी में िुरंि डूब जािी है , परं िु
लक़िी सुखद भक्षवष्य का क्षिमायण करिा चाहिे हो िुम्हें मि लगाकर परीिा की िैयारी करिी होगी। सफलिा
हमेशा पररश्रमी पुरुषों का ही वरण करिी है। में जु़िकर वही कील िैरिी है। इसी प्रकार यक्षद हम हींग बेचिे
228
वाले के पास ख़िे होिे हैं िो कुछ दें ले या ि दें ले परन्तु उसकी महक हमें क्षमल ही जािी है और यक्षद शराबी
और जुआरी के पास उठिे-बैठिे है या असामाक्षजक कायय करिे वालों की संगक्षि में रहिे का असर हमारे
व्यक्तित्व पर जरूर प़ििा है । यह शाक्मुक्षि गौिमबुद्ध की संगक्षि का असर था क्षक अंगुक्षलमाल जैसा कुख्याि
डाकू भी उिका भि बि गया और सिो की संगक्षि के प्रभाव से ही डाकू वाल्मीक्षक रामायण के रचक्षयिा
वाल्मीक्षक बि गए।
6. मनष्कषृ- क्षकसी भी जीवि की क्षवजय और पराजय उसकी संगक्षि पर क्षिभयर करिे हैं। जो व्यक्ति बुरा
होकर भी क्षवद्वाि होिा है उसका जीवि व्यथय होिा है। अगर हमें जीवि में सफलिा और उन्नक्षि प्राप्त करिी
है िो अपिे जीवि की संगक्षि पर क्षवशेष ध्याि दे िे की जरूरि है।
*********************@@***************************@@********************
229
ई-मेल लेखन (शिकायत पत्र)
*ई-मेल दो िब्ोों के मेल सेबना है 'ई + मेल', से अशिप्राय है-इलेक्ट्रॉशनक जबशक मेल का शहन्दी पयााय है-
डाक। इस प्रकार कहा जा सकता है शक शिद्यतु के िेग समान िेजी जानेिाली डाक, इलेक्ट्रॉशनक मेल अथिा ई-
मेल कहलात है।
आज कोंप्यूटर के दौर में ई-मेल के द्वारा ऑनलाइन-पत्र िेजे जाते हैं। ऑनलाइन िेजे जानेिाले पत्र पलक
झपकते ही अपने गन्तव्य तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार पत्र को इन्टरनेट की सहायता से ई-मेल के द्वारा
'प्रेशित'(प्राप्तकताा) तक पहुँचाना 'ऑनलाइन पत्र' या 'ई-पत्र' कहलाता है। ऑनलाइन पत्र िेजने के शलए प्रेिक
ि प्रेशिती दोनोों के पास अपना 'ई-मेल' आइडी होनी अशनिाया है। ई-मेल के जररए न शसर्ा सन्दे िोों का बल्कि
शडशजटल दस्तािेजोों, िीशडयो आशद को अटैच (सोंलग्न) करके शकसी दू सरे को ई-मेल पते पर िेजा एिों प्राप्त
शकया जाता है।
ितामान समय में िेबसाइट हैं जो ई-मेल आइडी बनाने उपलब्ध कराती हैं- जी-मेल, याहू, रे शडर् मेल, हॉट
मेल आशद।
ई-मेल का मुख्य िाग ई-मेल को शसलशसलेिार क्रम में प्रस्ततु शकया जाता है अथिा शलखा जाता है, िे ई-मेल के
िाग कहलाते हैं।
(1) आरम्भ- ई-मेल के प्रारम्भ में सन्दे ि प्राप्तकताा अथिा प्रेशिती का पता शलखा जाता है। 'To' के अन्तगातगा
शजस व्यल्कि को ई-मेल िेजा जा रहा है उसका ई-मेल पता शलखा जाता है; जसै To:anusharma@gmail.com
यशद एक से अशिक अथाात तीन व्यल्कियोों को ई-मेल िेजना है तो ‘To’ में जाकर ई-मेल आइडी का प्रयोग कर
तीनोों को ई-मेल िेज सकते हैं। 'To’ में जाकर ई-मेल आइडी का प्रयोग कर तीनोों को ई-मेल िेज सकते हैं
'To' करने से तीनोों में से शकसी को िी यह ज्ञात नही ों हो पाएगा शक अन्य दो व्यल्कि कौन हैं ? शजन्हें यह ई-मेल
िेजा गया है।
CC का अथा है काबान कॉपी (Carbon Copy)। इसके अन्तगात यशद एक व्यल्कि को ई-मेल िेजना है और यशद
आप शक अन्य दो लोगोों को यह पता रहे क्या िेजा है तब अन्य दो लोगोों का ई-मेल पता CC में डाल सकते हैं
।
शजस से सब का ई-मेल, एक दू सरे दे ख सकते है । BCC का अथा है, ब्लाइों ड काबान कॉपी (Blind Carbon
Copy)। BCC करने से ई-मेल शजस-शजस को शकया गया हैं ।
िह शकसी को िी ज्ञात नही ों होता है, गुप्त रहता है।
(2) शििय- ई-मेल के दू सर िाग शििय अथिा सब्जेक्ट् के अन्तगात शजस सन्दे ि को शलखा जा रहा है। उसे
सोंक्षेप में इसके अन्तगता बताया जाता है; जैसे होली की िुिकामनाए ।
230
(3) सन्दे ि- इसके अन्तगात मूल शििय का शिस्तारपिूाक िर्ान शकया जाता है। मूल शििय ध्यानपिूाक इसके
अन्तगात शलखा जाता है तथा अनुच्छेद के मध्य थोडी जगह िी छोडी जाती है।
(4) अटैचमेन्ट- सन्दे ि प्रेशित करते समय यशद शकसी दस्तािेज को सन्दे ि अथिा पत्र आशद के साथ सोंलशगत
करना होता हैतो अटैचमेन्ट के द्वारा उसे सन्दे ि अथिा पत्र के साथ िेजा जाता है। ध्यान रहे अटैचमेन्ट का
प्रयोग तिी शकया जा सकता है जब िह दस्तािेज कम्प्प्यूटर में सरुशक्षत (सेि) हो।
(5) अोंत ई-मेल में अन्त में जब सन्दे ि शलखा जा चुका हो तथा आिश्यकता पडने पर अटैचमेन्ट लगाई जा चुकी
हो तत्पश्चा सोंबोंशित व्यल्कि को सन्दे ि प्रेशित करने के शलए सेंड (Send) के शिकल्प का प्रयोग शकया जाता है।
सेंड के एक ल्किक करने से प्रस्तुत ई-मेल सम्बल्कित व्यल्कि/व्यल्कियोों तक पहुँच जाएगी शजसका ई-मेल शलखा
गया है।
ई-पत्र लेखन-
To<debitcard@bobcards.com >
सेिा में,
मेरा खाता नों. ....... हैं। मैंने एक माह पहले ए.टी.एम. काडा के शलए आिेदन शकया था, शकन्तु यह मुझे अिी तक
नही ों
आपसे शनिेदन है शक आप मेरा ए.टी.एम. काडा िीघ्र से िीघ्र मेरे पते पर िेजने का कष्ट करें ।
िन्यिाद।
ििदीय,
पीयिू कुमार
231
(2) गलती से दू सरे अकाउों ट में पैसे टर ाोंसक्शन होने के सम्बि में ई-पत्र शलल्कखए।
सेिा में,
आपसे सशिनय शनिेदन है की मैं राकेि आपकी िाखा का ग्राहक हूुँ । मेरा खाता नों. -12223456789 है । इस
खाते में से 5000 रुपए गलती से चले गए हैं । श्रीमान बैंक मैनेजर से शनिेदन है की मेरे द्वारा शकसी दू सरे व्यल्कि
को गलती से रुपए चले गए हैं ।
आप से गुजाररि है मेरे पैसे िापस कािाा दीशजये मैं आपका सदा आिारी रहूुँगा ।
िन्यिाद।
ििदीय,
राकेि कुमार
(3) सडक शनमाार् में घशटया सामग्री प्रयुि करने की शिकायत में ई-पत्र शलल्कखए ।
सेिा में,
अध्यक्ष
नगरपाशलका
मैनपुरी
शदल्ली-110096
232
महोदय,
िाडा सोंख्या १० में कचहरी रोड से खतराना मोहल्ले की सडक अिी शपछले सप्ताह नगरपाशलका ने
बनिाई है। इस सडक में प्रयुि शनमाार् सामग्री अत्यन्त घशटया स्तर की है तथा सीमेण्ट और रे त का अनुपात
एक-दस का है, इस कारर् सडक उखडने लगी है ।
मेरा आपसे शिनम्र अनुरोि है शक सक्षम अशिकाररयोों से इस शिकायत की जाोंच करिाएुँ तथा सडक को
पुनः शनशमात न कर दे । िीघ्र कायािाही की अपेक्षा है।
िन्यिाद।
ििदीय,
दीपक कुमार
(4) अपने क्षेत्र में कानून और व्यिस्था की शबगडती ल्कस्थशत पर दै शनक सोंपादक को ई-पत्र शलल्कखए।
To< tainikjagran@gmail.com >
सेिा में
मुख्य सोंपादक,
तैशनक जागरर् ,
नई शदल्ली -09
महोदय,
बडे खेद के साथ मुझे यह शिकायत करना पड रहा है।आिा है, इसकी उपयोशगता को समझते हए आप इसे
अपने पत्र में स्थान दें गे ।
आजकल गुडगाुँि अपराि, चोरी, बलात्कार, उठाई-शगरी जैसी समस्याओों का केंद्र बनता जा रहा है। जैसे-जैसे
नगर की प्रगशत हो रही है, लूटपाट, डकैती, चोरी और अपरािोों में िी िृल्कि हो रही है। अब तक पता नही ों चल
सका है।
नगर-प्रिासन से शनिेदन है शक ‘कुछ करें ताशक हम नगरिासी चैन से घर के बाहर शनकल सकें’।
िन्यिाद।
ििदीय,
233
सोंजय
(5) एक छात्र के अशिष्ट व्यिहार के शलए शिकायत करते हए अपने प्रिानाचाया को ई-पत्र शलल्कखए।
प्रिानाचाया,
मुोंबई।
श्रीमान,
पूरे सम्मान के साथ मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूुँ शक दसिी ों कक्षा के राम कुमार अिकाि के दौरान
िन्यिाद,
आपका आज्ञाकारी ,
सीमा
234
स्ििि
ृ /Biodata
िौकरी के शलए आिेदि पत्र
प्रश्ि 1. “इंडडयि केशमकल्स शलशमिे ड” 36, न्यूशलंक रोड, मुंबई मे ररति माकेहिंग एक्तसतयूहिि
के पद िे िु आिेदि पत्र शलर्खए।
उत्तर 1.
सेिा मे
मिाप्रबंधक (मािि संसाधि)
मािि संसाधि विभाग
इंडडयि केशमकल्स शलशमिे ड
36, न्यूशलंकरोड
अंधेरी, मुंबई – 400055
विषय: “माकेहिंग एक्तसतयूहिि के पद िे िु आिेदि”
मिोदय,
आज हदिांक 16 अप्रैल 2006 को हदल्ली मे प्रकाशशि ििभारि िाइम्स मे प्रकाशशि
विज्ञापि से ज्ञाि िुआ िै कक आपकी कंपिी को माकेहिंग एक्तसतयूहिि कक आिश्यकिा िै । मैं
इस पद के शलए आिेदि प्रस्िि ु कर रिा िूँ । मेरा स्िािि
ृ आिेदि के साथ सालंग्ि िै ।
स्ििि
ृ
िाम – िरें द्र कुमार
वपिा का िाम – राम प्रकाश ठाकुर
मािा का िाम – सि
ु ीिा ठाकुर
जन्मतिधथ – 30 जुलाई 1992
िििमाि पिा – 302 िाररमि पाइंि, मुंबइ 11000092
दरू भाष – 011 -2254565
मोबाइल संख्या – 0000546
ईमेल – sureshthakur@……
235
शैक्षर्णक योग्यिा
क्रम प्रतिशि/
कक्षा िषि विद्यालय/बोडि विषय
संख्या श्रेणी
86 %
2 बारििीं 2008 सी.बी.एस.ई हिंदी अंग्रेजी रसायि शास्त्र,
प्रथम
मध्यविशिविद्यालय, 69 %
3 स्िािक 2011 रसायि शास्त्र,
िशमलिाडु प्रथम
मध्यविशिविद्यालय, 93 %
4 एम.बी.ए 2012 रसायि शास्त्र
िशमलिाडु प्रथम
अन्य योग्यिाएं
• कंतयि
ू र का अच्छा ज्ञाि और अभ्यास( एम.एस।ऑकफस िथा इंिरिेि)।
• फ्रेंच भाषा का कायि योग्य ज्ञाि।
उपलक्ब्धयाँ
• अर्खल भारिीय िाद – वििाद प्रतियोधगिा (िषि2001) मे प्रथम परु स्कार
• राजीिगांधी स्मारक तिबंध प्रतियोधगिा (2002) मे प्रथम परु स्कार
• विद्यालय और मिाविद्यालय कक्रकेि िीमों का कैतिि
कायोिर गतिविधधयाँ और अशभरुधचयाँ
• उधयोग व्यापार संबंधी पबत्रकाओं और अख़बारों का तियशमि पाठि
• दे श भ्रमण का शौक
• इंिरिेि सकफिंग
• फुि बॉल और कक्रकेि मे अशभरुधच
धन्यिाद
तििेदक/आिेदक
क,ख़,ग
परीक्षा भिि, मुंबई-११०००१
236
प्रश्ि 2 – सिोदय बाल विद्यालय गोल माकेि हदल्ली में हिंदी विषय पीजीिी का पद ररति िै ।
विज्ञापि के अिसु ार अपिी योग्यिा का वििरण प्रस्िि
ु करिे िुए शशक्षा तिदे शक को आिेदि पत्र
प्रस्िि
ु करें ।
उत्तर 2.
सेिा में
शशक्षा तिदे शक
धन्यिाद
तििेदक
सुरेश ठाकुर
302 गोल माकेि
िई हदल्ली
5 फरिरी 2020
मेरा स्िित्त
ृ आिेदि पत्र के साथ संलग्ि िै ।
स्िित्त
ृ
िाम – सुरेश ठाकुर
वपिा का िाम – राम प्रकाश ठाकुर
मािा का िाम – सुिीिा ठाकुर
जन्मतिधथ – 30 जुलाई 1992
237
िििमाि पिा – 302 गोल माकेि िई हदल्ली 11001
दरू भाष – 011 -2254565
मोबाइल संख्या – 0000546
ईमेल – sureshthakur@……
शैक्षर्णक योग्यिा
क्रम प्रतिशि/
कक्षा िषि विद्यालय/बोडि विषय
संख्या श्रेणी
हदल्ली
3 स्िािक 2011 विश्िविद्यालय हिंदी 69 % प्रथम
हदल्ली
4 बी.एड 2012 विश्िविद्यालय हिंदी 93 % प्रथम
हदल्ली
5 परास्िािक 2014 हिंदी 79 % प्रथम
विश्िविद्यालय
अन्य योग्यिाएं
• कंतयूिर में 1 िषि का डडतलोमा
• मैकेतिकल इंजीतियररंग में 6 माि का डडतलोमा
• हिंदी अंग्रेजी जमििी स्पेतिश भाषा की जािकारी।
• योगा के क्षेत्र में 6 माि का प्रशशक्षण।
उपलक्ब्धयां –
• विद्यालय स्िर पर एिसीसी में उच्च प्रशशक्षण।
• भारि को जािो प्रतियोधगिा में राज्य स्िर पर द्वििीय पुरस्कार
238
• गणिंत्र हदिस परे ड में भाग लेिे का पुरस्कार
कायेत्तर गतिविधधयां और अभी रुधचयां –
• योगाभ्यास कक्रकेि शास्त्रीय संगीि गायि िादि में विशेष रूधच।
• सांस्कृतिक कायिक्रम को आयोजि करिे का अिुभि िथा रुधच
• आधुतिक िकिीकों का प्रयोग सीखिा िथा समाज के शलए उपयोगी बिािा।
धन्यिाद
क, ख, ग
िईहदल्ली-110001
------------------------------------------------------------------------------------------------
प्रश्ि 3. कमतयूिर अध्यापक पद िे िु आिेदि पत्र शलर्खए।
उत्तर 3.
प्रेषक
संपिकुमार
परीक्षा भिि
िईहदल्ली -24
19, अप्रैल, 2001
सेिा मे,
श्रीमाि। प्रधािाचायि जी
के.िी. स्कूल
िईहदल्ली
239
कमतयूिर िे तिंग मे दक्षिा प्राति की िुई िै । मेरी िाइवपंग स्पीड 100 शब्द पर शमिि िै । मेरे
पररिारका िािािणि पण ू ि
ि : पठि पठाि के अिक ु ू ल िै , ककन्िु अचािक मेरे वपिाजी की मत्ृ यु िो
जािे के कारण पररिार का भार मेरे कंधे आ गया िै । मे पण
ू ि ईमािदारी और तिष्ठापण
ू ि मि
लगाकर अपिा काम करूँगा िथा मैं आपको विश्िाशसि करिा िूँ कक मेरी ओर से आपको कभी
िकलीफ़ ििीं िोगी और ि िी मैं आपको ककसी भी प्रकार की शशकायि का मौका दं ग
ू ा।
स्िित्त
ृ
िाम – संपिकुमार
वपिा का िाम – राम प्रकाश ठाकुर
मािा का िाम – सुिीिा ठाकुर
जन्मतिधथ – 30 जुलाई 1992
िििमाि पिा – 302 परीक्षा भिि,
गोल माकेि िईहदल्ली -24
दरू भाष – 011 -2254565
मोबाइल संख्या – 0000546
ईमेल – sampathkumar@……
शैक्षर्णक योग्यिा
क्रम प्रतिशि/
कक्षा िषि विद्यालय/बोडि विषय
संख्या श्रेणी
240
सभी मित्िपूणि दस्िािेज, ररपोिि काडि, सहिि कफकेि की कापी आहद पत्र के साथ िी सलग्ि िै।
एक सकरिमक उत्तर की प्रिीक्षा िै
सधन्यिाद
संपािकुमार
िईहदल्ली
प्रश्ि 4. कल्पिा कीक्जए कक आपिे पत्रकाररिा के क्षेत्र में अपिा अध्ययि परू ा ककया िै और ककसी
प्रशसद्ध
अखबार में पत्रकार पद के शलए आिेदि भेजिा िै। इसके शलए एक आिेदि पत्र शलर्खए।
उत्तर-
सेिा में,
संपादक,
अमर उजाला,
पािीपि।
विषय: पत्रकार पद के शलए आिेदि िे िु।
मिोदय,
आज हदिांक 10 जल
ु ाई, 20 21 को प्रकाशशि अमर उजाला से प्रकाशशि विज्ञापि से पिा चला िै
कक आपके
कायािलय को पत्रकार की आिश्यकिा िै । मैं इस पद के शलए अपिा आिेदि पत्र प्रस्िि
ु कर
रिा/रिी िँ। मेरा
स्ििि
ृ इस आिेदि पत्र के साथ संलग्ि िै । इसका अिलोकि करिे पर आपको विश्िास िोगा कक
मैं इस पद
के शलए पूरी िरि से उपयुति उम्मीदिार िँ। मैं आपके विज्ञापि में िर्णिि सभी योग्यिाओं को
पूरा करिा
िँ/करूँगी। मैं आपके विज्ञापि में िर्णिि सभी योग्यिाओं को पूरा करिा िँ/करूंगी। मेरा संक्षक्षति
वििरण
इस प्रकार िै:
िाम: मिे श/ मिे श्िरी
वपिा का िाम: कखग
जन्मतिधथ: xx/xx/x00xx
िििमाि पिा: 65, विकास िगर, तिरुिरूर
स्थाई पिा: 65, विकास िगर, तिरुिरूर
241
दरू भाष: xxxx-4546840 छल ध्िति: 9478895845
ईमेल: cclchapter@gmail.com
शैक्षर्णक योग्यिाएं:
क्रम प्रतिशि/
कक्षा िषि विद्यालय/बोडि विषय
संख्या श्रेणी
िशमलिाडु
92 %
3 स्िािक 2011 विश्िविद्यालय गर्णि
प्रथम
िशमलिाडु
4. पत्रकाररिा 2002 विश्िविद्यालय अंग्रेजी, संस्कृि 96 प्रथम
अन्य योग्यिाएँ:
इस योग्यिा के साथ-साथ में कई िषों से स्ििंत्र लेखि से भी ज जड़
ु ािुआ/जोड़ी िूँ। मझ
ु े पत्रकाररिा
िे बेिद
रूधच िै। मैं आपको पण
ू ि विश्िास हदलािा /हदलािी िूँ कक मैं अपिा कायि परू ी तिष्ठा से करूंगा /
करूंगी ।
आपसे अिुरोध िै कक उपयत
ुि ि िथ्यों को ध्याि में रखिे िुए मेरे आिेदि पत्र पर सकारात्मक
विचार करिे िुए
मुझे पत्रकार पद पर तियुति करें ।
सा धन्यिाद,
भिदीय,
(िस्िाक्षर)
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
242
स्िित्त
ृ लेखि के मित्िपूणि प्रश्ि उत्तर
4 प्रश्ि – स्िित्त
ृ में अन्य योग्यिाओं के अतिररति कायेत्तर गतिविधधयों की चचाि करिा
तयों आिश्यक िै ?
उत्तर – कायेत्तर गतिविधधयों की चचाि िब अिम िो जािी िै जब आिेदि की भरमार िो।
इससे आिेदक को विशेष लाभ शमलिा िै , तयोंकक उसके पास अिभ
ु ि बिािे के शलए
विशेष िोिा िै ।
इसीशलए स्िित्त
ृ शलखिे समय अपिे कायिकुशलिा, कायेत्तर गतिविधधयों को अिश्य शलखें।
243
5 प्रश्ि – स्िित्त
ृ तिमािण की कला में तिपुण िोिा तयों आिश्यक िै ?
उत्तर – तयोंकक इससे व्यक्ति का मल्
ू यांकि िोिा िै ।
जो व्यक्ति अपिा मूल्यांकि ठ क प्रकार से करिािा चाििा िै , अपिी अिशमयि को
प्रकि करिा चाििा िै उसको स्िित्त
ृ तिमािण में कुशल िोिा अति आिश्यक िै ।
तिष्कषि
उपयत
ुि ि अध्ययि से स्पष्ि िोिा िै कक स्िित्त
ृ स्ियं को विस्िि
ृ रूप से कागज पर
प्रकि करिे का एक माध्यम िै ।
विस्िार पि
ू क
ि और तियम बद शैली में शलखी गई स्िित्त
ृ व्यक्ति के मित्ि को प्रदशशिि
करिा िै । यि उसे सैकड़ों की भीड़ में अलग कर दे िा िै ।
244
औपचारिक एवं अनौपचारिक पत्र लेखन
1. आपके क्षेत्र में सरकारी राशि की दक
ु ाि का संचालक गरीबों के शलए आए अिाज की कालाबाजारी
करिा िै और कुछ कििे पर उन्िें धमकािा िै । उसकी शशकायि करिे िे िु लगभग 120 शब्दों में
क्जलाधधकारी को पत्र शलर्खए।
सेिा में
क्जलाधधकारी
मेरठ
उत्तर प्रदे श
हदिांक………..
मेरा आपसे वििम्र अिुरोध िै कक कृपया इस विषय में शीघ्र संज्ञाि लेिे िुए उति सरकारी राशि की
दक
ु ाि के संचालक के विरुद्ध आिश्यक अिुशासिात्मक कायििािी करके स्थािीय तििाशसयों की इस
समस्या का समाधाि करिे की कृपा करें ।
सधन्यिाद
हदिेश कुमार
प्रीिमिगर, मिािा
क्जला मेरठ CBSE-2021
245
2. आपकी चचेरी दीदी कॉलेज में दार्खला लेिा चाििी िैं, ककन्िु आपके चाचाजी आगे की पढ़ाई ि
करिाकर उिकी शादी करिािा चाििे िैं। इस बारे में अपिे चाचाजी को समझािे िुए लगभग 120 शब्दों
में एक पत्र शलर्खए।
मुझे पण
ू ि विश्िास िै कक स्िेिा तिक्श्चि िी शशक्षक्षि िोकर अपिे पररिार को गौरिाक्न्िि करे गी। आशा िै
आप मेरा यि अिुरोध स्िीकार करके उसे शीघ्र कॉलेज में प्रिेश हदलिा दें गे। आदरणीय चाची जी को मेरा
सादर प्रणाम और स्िेिा को शभ
ु आशीिािद कहिएगा।
आपका भिीजा
अबस
CBSE-2020
246
3. गि कुछ हदिों से आपके क्षेत्र में अपराध बढ़िे लगे िैं। क्जससे आप धचंतिि िैं। इि अपराधों की
रोकथाम के शलए थािाध्यक्ष को पत्र शलर्खए।
सेिा में,
थािाध्यक्ष मिोदय,
तिलक िगर थािा,
िई हदल्ली-110018
हदिांक- 23 माचि 20XX
विषय–अपराधों की रोकथाम के संदभि में।
माििीय मिोदय,
मैं हदल्ली के तिलक िगर का रििे िाला िूँ। मुझे अत्यंि द:ु ख के साथ आपको सूधचि करिा पड़ रिा िै
कक िमारी कॉलोिी में हदि-प्रतिहदि अपराध बढ़ रिे िैं। पिले यि कॉलोिी शांतिवप्रय थी पर अब यिाँ िम
भय में जीिि जी रिे िैं। महिलाएँ िो घर से तिकलिे में किरािी िैं। कुछ सतिाि पिले दो महिलाओं का
ककसी राि चलिे लि
ू े रे िे पसि छ ि शलया और कल िो िद िी िो गई घर के सामिे ककसी काम से मेरी
मािा जी खड़ी थीं ििाँ राि चलिे ककसी िे उिकी चेि खींचकर िी भाग गया। घर के सदस्य उसके पीछे
भागे परं िु िि िेजी से िौ दो ग्यारि िो गया। पूरे क्षेत्र में चोरी ि छ ििे की घििाओं के कारण भय का
मािौल िैं। लोग घर से तिकलिे में भी किरािे िैं।
अि: आप से वििम्र तििेदि िै कक िमारी उधचि सुरक्षा का प्रबंध करे ि प्रतिहदि पुशलस की गश्ि लगािे
रिे । इससे िमें सुरक्षा का भाि शमले।
धन्यिाद,
भिदीय,
अ. ब. स
CBSE-2019
247
4. आपका एक शमत्र शशमला में रििा िै । आप उसके आमंत्रण पर ग्रीष्मािकाश में ििाँ गए थे और
प्राकृतिक सौंदयि को खूब आिंद उठाया था। घर िापस लौििे पर कृिज्ञिा व्यति करिे िुए शमत्र को पत्र
शलर्खए।
परीक्षा भिि,
िई हदल्ली।।
हदिांक 23 माचि 20XX
वप्रय शमत्र िीरज,
सस्िेि अशभिादि,
मैं कुशलिापूिक
ि हदल्ली पिुँच गया िूँ। आशा िै िुम भी ठ क िोंगे। बिुि बिुि धन्यिाद शमत्र। इस
ग्रीष्मकाल के अिकाश को िुमिे यादगार बिा हदया। मैंिे स्िपि में भी इस िरि का िजारा ििीं दे खा
जो िुमिे मुझे शशमला में हदखाया। िुम्िारे ि िुम्िारे पररिार के सियोग द्िारा िी िमारी यि मात्रा
यादगार बिी। सच में िुम िो प्रकृति की गोद में िी रििे िो। इििा सुंदर दृश्य िुमिे िमें पिाडड़यों से
हदखाया जैसे स्िगि िो। मैं अपिे शब्दों द्िारा भी उस प्राकृतिक दृश्यों का िणिि ििीं कर सकिा। यिाँ
आकर के मझ
ु े दोबारा िम्
ु िारे साथ बबिाए गए समय का स्मरण िो रिा िै । मेरे मािा-वपिा जी भी
िुम्िारे ि िुम्िारे पररिार िालों को याद कर रिे िैं। मेरी मािा िो िुम्िारी मािा जी की शमत्र िी बि गई
थी। सच में दो पररिारों के साथ शमलकर की गई यात्रा यादगार िी बि जािी िै । आशा िै िुम भी
पररिार सहिि हदल्ली आओ िो िम सभी साथ शमलकर मथरु ा-िद
ं ृ ािि घम
ू िे चलेंग।े चाचा जी ि चाची
जी को मेरा प्रणाम कििा एिं बिि को स्िेि दे िा। िम
ु से पुिः शमलिे की आशा में ।।
िुम्िारा शमत्र
ऋवष
CBSE-2019
248
5. आपके क्षेत्र के पाकि को कूड़ेदाि बिा हदया गया था। अब पुशलस की पिल और मदद से पुिः बच्चों के
शलए खेल का मैदाि बि गया िै। अिः आप पुशलस आयुति को धन्यिाद पत्र शलर्खए।
परीक्षा भिि
क. ख. ग.,
िई हदल्ली-1100XX
सेिा में,
पशु लस आयत
ु ि
पक्श्चमी हदल्ली
हदिांक-18 मई, 20XX
(3) विषय-आभार व्यति करिे िे िु।
मिोदय, िम मदिपुर तििासी इस क्षेत्र के पुशलस अधधकाररयों और आपको धन्यिाद दे िा चाििे िैं। िम
हदल से आभारी रिें गे। इस क्षेत्र के पाकि में वपछले कुछ िषों में कूड़ा फेंक–फेंक कर उसे कूड़ाघर में िब्दील
कर हदया था।
परन्िु पुशलस से मीहिंग के बाद, पाकि के पास एक बोडि लगिाया गया कक उस क्षेत्र में कूड़ा फेंकिा मिा िै।
पशु लस विभाग के एक सब-इंस्पेतिर की तियक्ु ति िे कूड़ा डालिे िालों को ििाँ आिे से मिा कर हदया।
कफर आसपास के ररिायशी इलाकों िाले लोगों के साथ पाकि में एक फुिपाथ का तिमािण कर पाकि को एक
िया रूप शमला। अब सुबि और शाम को लोग पाकि में घूमिे आिे लगे िैं और इसका श्रेय पुशलस विभाग
को शमलिा चाहिए।
CBSE-2018
249
6. पिाखों से िोिे िाले प्रदष
ू ण के प्रति ध्याि आकवषिि करिे िुए अपिे शमत्र को पत्र शलर्खए।
पंकज लेि
िसंि कंु ज,
िई हदल्ली।
हदिांक-25 अगस्ि, 20XX
वप्रय शमत्र,
िुम्िारा पत्र शमला। जािकर खुशी िुई कक िुम्िारे मािाजी–वपिाजी इि हदिों यूरोप घूमिे गए िुए िैं और
िे सभी प्रमुख जगिों पर जाएँगे। यूरोप घूमकर िापस आिे िाले लोग ििाँ के िािािरण जो पूणि
ि या
प्रदष
ू ण रहिि िै, का िणिि करिे िैं।
िमारे दे श में अब अगले मिीिे दीपािली का पिि आ रिा िै। जिाँ िक हदयों या बल्ब से शिर का रोशि
िोिा बिुि अच्छा । लगिा िै ििीं हदिाली और हदिाली से पि
ू ि पिाखे चलािे से। िोिे िाले प्रदष
ू ण से
िािािरण इििा खराब िो जािा िै कक पिाखों से तिकलिे िाले सल्फर के कणों के कारण सांस लेिा।
दभ
ू र िो जािा िै और यि कई बीमाररयों की जड़ िै। इसशलए मैं िो िुमसे यिी कििा चािूँगा कक खुद भी
पिाखे चलािे से परिे ज करो और अपिे आसपास के लोगों को भी पिाखों से। िोिे िाले प्रदष
ू ण के बारे में
बिाओ।
िम्
ु िारा शमत्र
क.ख.ग
CBSE-2018
250
7. पी.िी. शसंधु को पत्र शलखकर ररयो ओलंवपक में उसके शािदार खेल के शलए बधाई दीक्जए और उिके
खेल के बारे में अपिी राय शलर्खए।
58/19,
अलकापुरी,
हदल्ली।
हदिांक 20 शसिम्बर, 20XX
वप्रय पी.िी. शसंधु
सस्िेि िमस्कार,
कल आपका िी.िी. पर प्रदशिि दे खा। उसे दे खकर मुझे बिुि गिि िुआ। आपिे ओलक्म्पक में रजि पदक
प्राति करके भारि का िाम रोशि ककया िै। आपकी यि सफलिा प्रशंसा के योग्य िै। ओलक्म्पक में रजि
पदक पािा बड़े सम्माि की बाि िै।
यि दे ख कर मुझे बिुि गिि मिसूस िो रिा िै कक आपिे अपिे मािा-वपिा का िी ििीं अवपिु पूरे दे श का
िाम विश्ि में रोशि ककया िैं आप बिुि अच्छ र्खलाड़ी िैं।
आपके पररश्रम एिं प्रतिभा को दे खकर मुझे पूणि विश्िास िो गया िै कक आप एक ि एक हदि स्िणि पदक
भी प्राति करोगी। ईश्िर से प्राथििा िै कक आप भविष्य में इसी प्रकार की सफलिा प्राति कर जीिि के पथ
पर आगे बढ़िी जाए। अंि में मेरी ओर से एक बार पि
ु ः आपको इस सफलिा के शलए िाहदिक बधाई ।
आपकी प्रशंशसका
CBSE-2017
251
8. अपिे क्षेत्र में जल-भराि की समस्या की ओर ध्याि आकृष्ि करिे िुए स्िास्थ्य अधधकारी को एक पत्र
शलर्खए।
सेिा में,
स्िास्थ्य अधधकारी,
आगरा िगर तिगम,
आगरा।
हदिांक 20 जििरी, 20XX
विषय-जलभराि की समस्या िे ि।ु
मिोदय,
मैं लोिामंडी क्षेत्र की तििासी िैं िथा आपका ध्याि अपिे क्षेत्र में जलभराि से िो रिी समस्याओं की ओर
आकवषिि करिा चाििी िूँ। िषाि ऋिु के पश्चाि ् जगि-जगि सड़कों पर जलभराि िो गया क्जसके कारण
मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया िै साथ िी आिे-जािे िालों की गाडड़यों में पािी चले जािे के कारण खराब िो
जािी िैं िथा िे दघ
ु ि
ि िा के शशकार िो जािे िैं। जल भराि से संपण
ू ि क्षेत्र में दग
ु ध
िं फैल रिी िै। ऐसा ििीं िै
कक िमारे क्षेत्र में सफाई कमिचारी ििीं आिे अवपिु िे तियशमि रूप से अपिे कििव्यों का तििििि ििीं
करिे थे, परं िु िे उस जलभराि की समस्या का समाधाि ििीं करिे िैं। कई बार मौर्खक रूप से क्षेत्रीय
सफाई तिरीक्षक से भी किा िथा शलर्खि रूप में भी इसकी चचाि की, परं िु ककसी के काि पर जूं िक ििीं
रें गी। िषाि के पािी का भराि गंदी िाशलयों और सफाई ि िोिे के कारण परू े क्षेत्र में मलेररया के फैलिे की
भी संभाििा बढ़ गई िै। यि धचंिा का विषय िै।
मझ
ु े आशा िै कक आप िमारे क्षेत्र की सफाई करिािे के शलए िरु ं ि आिश्यक कायििािी करें गे।
भिदीया
अबस
CBSE-2017
252
9. अपिी योग्यिा िथा खेलों में रुधच का पररचय दे िे िुए अपिे विद्यालय के प्रधािाचायि मिोदय को
विद्यालय के िावषिकोत्सि के अिसर पर आयोक्जि खेलों में भाग लेिे की अिुमति के शलए प्राथििा-पत्र
शलर्खए।
उत्तर:
परीक्षा भिि,
गाक्जयाबाद।
सेिा में,
श्रीमिी प्रधािाचायाि जी,
दयािन्द बाल मक्न्दर,
गाक्जयाबाद,
हद. 27 माचि, 20 xx
विषय-िावषिकोत्सि में आयोक्जि खेलकूद में भाग लेिे के शलए पत्र।
मिोदया,
सवििय तििेदि यि िै कक मैं आपके विद्यालय की दसिीं की छात्रा िूँ। आज िी कक्षाध्यावपका से
िावषिकोत्सि में खेलकूद प्रतियोधगिा के आयोजि के विषय में सुिा। जैसा आपको विहदि िै कक इस बार
राष्िीय ि स्कूली स्िर पर आयोक्जि कई प्रतियोधगिाओं में मैंिे भाग शलया िै ि परु स्कार भी जीिे िैं।
मेरा आपसे यिी तििेदि िै कक मुझे आप विद्यालय की इि प्रतियोधगिाओं में खेलिे की अिुमति प्रदाि
करें । आपकी अति कृपा िोगी।
सधन्यिाद!
आपकी आज्ञाकारी शशष्या,
क, ख, ग,
कक्षा-दसिीं (अ)
CBSE – 2016
253
10. यात्रा करिे समय मेिो में छूि गए अपिे बैग और मोबाइल को मेिो कमिचारी द्िारा आपको िापस
भेज हदए जािे पर उसकी ईमािदारी की प्रशंसा करिे िुए प्रबंधक को एक पत्र शलर्खए। [5]
उत्तर:
सेिा में ,
प्रबंधक
हदल्ली मेिो, िई हदल्ली
हदिांक : 25 जििरी, 20XX
विषयः मेिो में छूिे सामाि का िापस शमलिा।
मिोदय,
कल हदिांक 24 जििरी, 20XX को मैंिे द्िारका सेतिर-9 से राजीि चौक िक की यात्रा मेिो से की थी।
जल्दबाजी में उिरिे समय मेरा बैग मेिो में िी छूि गया। मुझे अपिे आकफस पिुँचकर अपिी गलिी का
पिा चला।
मेरे सुखद आश्चयि की सीमा ि रिी जब मेिो के एक कमिचारी श्री दीपक शसन्िा िे मुझे फोि पर बुलाया
कक मेरा बैग राजीि चौक मेिो के आकफस में िै और मैं अपिा सामाि ले जा सकिा िूँ। उिको व्यििार
बिुि सख
ु द और प्रशंसिीय िै । मैं उिके प्रति कृिज्ञ िूँ तयोंकक मेरे बैग में मेरे आकफस के कई कागजाि
आहद रखे थे। मैं चाििा िूँ कक ऐसे ईमािदार श्री दीपक शसन्िा को प्रमाण पत्र सहिि सम्मातिि करिा
चाहिए क्जससे कक दस
ू रे कमिचारी भी ईमािदारी का पाठ सीख सकें।
सधन्यिाद
भिदीय
(िाम, पिा ि फोि िं.)
CBSE – 2016
254
11. बस में यात्रा करिे िुए आपका एक बैग छूि गया था क्जसमें जरूरी कागज और रुपये थे। उसे बस
कंडतिर िे आपके घर आकर लौिा हदया। उसकी प्रशंसा करिे िुए पररििि तिगम के अध्यक्ष को पत्र
शलर्खए।
उत्तर:
सेिा में,
अध्यक्ष,
पंजाब राज्य पररििि तिगम,
अम्बाला।
हदिांक : 25 फरिरी, 20XX
विषय-बस में छूिे बैग का िापस शमलिा। मिोदय, कल हदिांक 24 फरिरी 20XX को मैंिे हदल्ली में
कायि समाक्ति पर अम्बाला के शलए हदल्ली बस स्िै ण्ड से िािािक
ु ू शलि (एयर कंडीशतिंग) बस पकड़ी थी।
सफर पण
ू ि िोिे पर मैं बस से उिर कर अम्बाला चला गया। मेरे सख
ु द आश्चयि की िब सीमा ििीं रिी जब
दो घंिे पश्चाि बस के कंडतिर श्री रामिाथ चौधरी मेरे घर का पिा पूछिे िुए मेरे बैग के साथ मेरे घर
पिुँच गये। िब मुझे अिसास िुआ कक बस से उिरिे िुए मैं अपिा बैग बस में भूल गया था, क्जसमें कई
जरूरी कागज, कुछ रुपये और भारि सरकार द्िारा जारी आधार काडि था। उसी पर मेरे घर का पिा शलखा
िुआ था। मझ
ु े कंडतिर का व्यििार बिुि सराििीय और प्रशंसिीय लगा। मैं उसकी ईमािदारी के प्रति
कृिज्ञ िूँ। मैं चाििा िूँ कक इस िरि के ईमािदारे कमिचाररयों को पुरस्कृि ककया जािा चाहिए, क्जससे
दस
ू रे कमिचारी भी ईमािदारी का पाठ सीख सकें। सधन्यिाद और श्री रामिाथ चौधरी का पुिःआभार।
भिदीय
(िाम, पिा, फोि िम्बर)
(हदिांक 28 जििरी 20XX)
CBSE – 2015
255
12. अपिी कक्षा को आदशि कक्षा का रूप दे िे के शलए अपिे सुझाि दे िे िुए प्रधािाचायि मिोदय को एक
प्राथििा पत्र शलर्खए।
उत्तर:
सेिा में,
प्रधािाचायि मिोदय,
ििीि भारिी पक्ब्लक स्कूल,
सरोजिी िगर, िई हदल्ली।
विषय : आदशि कक्षा के सम्बन्ध में सुझाि िे िु।
मिोदय,
मैं आपके विद्यालय की दसिीं कक्षा का छात्र िूँ। मैं अपिी कक्षा को एक आदशि कक्षा के रूप में दे खिा
चाििा िूँ। इसके शलए मैं आपके सम्मख
ु कुछ सझ
ु ाि प्रस्िि
ु करिा चाििा िूँ। आदशि कक्षा आदशि
विद्याधथियों से बििी िै। अिः ज्ञाि को प्राति करके िी विद्याथी आदशि विद्याथी बि सकिा िै।
यि विद्या िी िै जो मिुष्य को िम्र, सििशील और गण
ु िाि बिािी िै। यहद अध्यापक प्रत्येक छात्र को
पढ़ाई िे िु प्रेररि करें िथा उिके शलए उधचि समय सारणी िैयार करें िो भविष्य में प्रत्येक छात्र उन्िति
कर सकेगा। पढ़ाई के साथ उन्िें िैतिक शशक्षा भी प्रदाि की जाए क्जससे िे अच्छाई और बुराई के बीच
अंिर कर सकें। जो छात्र पढ़ाई में अच्छा प्रदशिि करे एिं आदशि विद्याथी बिकर हदखाए, उसे परु स्कृि
ककया जािा चाहिए िाकक कक्षा के अन्य विद्याथी भी उससे प्रेरणा लेकर अपिे जीिि को सफलिा की
ओर अग्रसर कर पाएं। विद्याधथियों को अिुशाशसि ककया जाए, कक्षा में साफ-सफाई के शलए प्रेररि ककया
जाए और समय के मित्ि के विषय में जािकारी दी जाए। इस प्रकार की पिल और प्रयास द्िारा िमारी
कक्षा एक आदशि कक्षा बि जाएगी। अिः आपसे वििम्र तििेदि िै कक आप मेरे सुझािों पर अिश्य विचार
करें । सधन्यिाद !
आपका आज्ञाकारी शशष्य
क.ख.ग.
कक्षा दसिीं ‘ब’
हदिांक : 5 फरिरी, 20XX
CBSE - 2014
256
13. अपिे शमत्र को परीक्षा में प्रथम स्थाि प्राति करिे पर उसे बधाई दे िे िुए पत्र शलर्खए –
िुम्िारे वपिा से ज्ञाि िुआ कक िुमिे बोडि की परीक्षा में अपिे संभाग में प्रथम स्थाि प्राति ककया िै। यि
समाचार सुिकर मेरा मि खुशी से भर गया। मुझे िो पिले से िी विश्िास था कक िुम परीक्षा में प्रथम
श्रेणी से उत्तीणि िो जाओगे, लेककि यि जािकर कक िम
ु िे परीक्षा में प्रथम श्रेणी के साथ-साथ अपिे
संभाग में भी प्रथम स्थाि प्राति ककया िै, मेरी खुशी की सीमा ििीं रिी।
शेष शमलिे पर
िुम्िारा शमत्र
कखग
CBSE - 2013
257
अलंकार
१-शब्दालंकार
२-अथािलक
ं ार
१-शब्दालंकार -जिां शब्दों में चमत्कार उत्पन्ि िोिा िै उसे शब्दालंकार कििे िैं। इसके अंिगिि अिुप्रास
अलंकार, यमक अलंकार, श्लेष अलंकार आिे िैं
१ अिुप्रास अलंकार-जिां एक िणि की आिवृ त्त एक या एक से अधधक बार िोिी िै और काव्य में
चमत्कार उत्पन्ि िोिा िै ििां अिप्र
ु ास अलंकार िोिा िै ।
उदािरण-िरति ििज
ू ा िि िमाल िरुिर बिु छाये।
२-यमक अलंकार-जिां एक शब्द का एक से अधधक बार प्रयोग ककया गया िो और प्रत्येक बार उसके
शब्द के अथि अलग-अलग िो उसे यमक अलंकार कििे िैं। उदािरण-
इस पद में किक शब्द का प्रयोग दो बार िुआ िै प्रथम किक का अथि सोिा और दस
ू रे किक का अथि
धिूरा िै ।
३-श्लेष अलंकार-शशरीष का अथि िै धचपकिा। िि शब्द क्जसमें अिेक अथि जुड़े िो उसे श्लेष अलंकार
कििे िैं। उदािरण-रहिमि पािी रार्खए बबि पािी सब सि
ू पािी गए ि ऊबरे मोिी मािस
ु चि
ू । यिां
दस
ू री पंक्ति में पािी
258
२-अथािलक
ं ार-अथािलंकार में सौंदयि भाि से संबंधधि िोिा िै यिां अथि से चमत्कार उत्पन्ि िोिे िैं उसे
अथािलंकार कििे िैं। इसकी पांच भेद िोिे िैं-
१-उपमा
२-रूपक
३-उत्प्रेक्षा
४-अतिशयोक्ति
५-माििीकरण
१-उपमा अलंकार-जिां दो िस्िुओं में समाि धमि के आधार पर समाििा बिाई जािी िै ििां उपमा
अलंकार िोिा िै इिमें िल
ु िा एिं समाििा के शलए सां ,सी,से, सम,सिश,ि
सम , आहद योजक शब्द का प्रयोग िोिा िै । उदािरण-कर कमल सा कोमल िै । यिां पर िाथों की
कोमलिा की समाििा कमल से की गई िै ।
३-उत्प्रेक्षा अलंकार-उत्प्रेक्षा का अथि िै ककसी िस्िु के संभाविि रूप की उपेक्षा करिा जिां पर उपमेय में
उपमाि की संभाििा प्रकि की जािी िै ििां उत्प्रेक्षा अलंकार िोिा िै । इस अलंकार में मािो ,जािो, मिु
,जिु, इत्याहद शब्दों का प्रयोग िोिा िै । उदािरण-ििी शभ
ु सररिा के िि पर कुहिया का कंकाल पड़ा िै
,मािो िासो में धूल बिकर शि-शि िािाकार खड़ा िै ।
४-अतिशयोक्ति अलंकार-जब ककसी की अत्यंि प्रशंसा करिे िुए कोई बाि बिुि बढ़ा चढ़ा कर अथिा लोक
सीमा का उल्लंघि करके किीं जाए िब िि अतिशयोक्ति अलंकार िोिा िै । उदािरण-दे र्ख सद
ु ामा की
दीि दशा करुणा करके करुणातिधध रोए पािी पराि को िाथ छुऔ ििीं िैिि के जल सौ पग धोए।।
259
५-माििीकरण अलंकार-जिां जड़ िस्िुओं अथािि प्रकृति पर माििीय चेष्िा ओं का आरोप ककया जािा िै
ििां माििीकरण अलंकार िोिा िै । उदािरण-आ रिी रवि की सिारी ििककरण का रथ सजा िै कली
कुसुम से पथ सजा िै बादलों से अिु चोरों िे स्िणि की पोशाक धारी।
उत्तर-शब्दालंकार के अंिगिि कुल िीि प्रकार के अलंकार पाए जािे िैं १-अिुप्रास अलंकार
२-यमक अलंकार
३-श्लेष अलंकार।
४-अथािलक
ं ार के अंिगिि कुल ककििे अलंकार पाए जािे िैं?
उत्तर-अथािलक
ं ार के अंिगिि कुल 5 अलंकार पाए जािे िैं-१-उपमा
५-माििीकरण।
उत्तर-उपमा अलंकार।
उत्तर-रूपक अलंकार
260
७-िरति ििूजा िि िमाल िरुिर बिु छाए कौि सा अलंकार िै ।
उत्तर-अिुप्रास अलंकार
उत्तर-रूपक अलंकार
उत्तर-उपमा अलंकार में िुलिा एिं समाििा के शलए सा सी से सम सािस शीश आहद योजक शब्द का
प्रयोग िोिा िै ।
अलंकार पर आधाररि पछ
ू े गए प्रश्िों के उत्तर (वपछले 10 िषों के अिुसार)
(भाग 2)
१-िि बांसुरी की धुति काति परै , कुल काति हियो िक्जभाजति िै । इसमें कौि सा अलंकार िै ?
उत्तर-अिुप्रास अलंकार
२-िील जल में या ककसी की गौर र्झलशमल दें ि जैसे हिल रिी िो। इस पंक्ति में कौिसा अलंकार िै ?
उत्तर-उत्प्रेक्षा अलंकार।
३-प्रश्िधचन्ििो में उठ िै भाग्य सागर की हिलोरै । इस पंक्ति में कौिसा अलंकार िै बिाइए?
उत्तर-रूपक अलंकार
४-िि क्जंदगी तया क्जंदगी, जो शसफि पािी -सी सिी। इसमें कौि सा अलंकार िै ?
261
उत्तर-उपमा अलंकार
उत्तर-अिप्र
ु ास अलंकार का उदािरण िै-िरति ििज
ू ा िि िमाल िरुिर बिु छाये।
लाली मेरे लाल की जीि दे खौ तिि लाल। लाली दे खि मैं गई मैं भी िो गई लाल।
७-सुरति सद
ुं र सुखद सुमि िुझ पर खेलिे िैं। यि कौि सा अलंकार िै?
उत्तर-अिुप्रास अलंकार।
८-शसंधु सा विस्िि
ृ और अथाि में कौि सा अलंकार िै पिचातिए?
उत्तर-उपमा अलंकार
उत्तर-रूपक अलंकार।
१०-कल कािि कंु डल मोरपंखा उर पै बिा माल बबराजति िै । अलंकार पिचाि कर शलर्खए?
उत्तर-अिुप्रास अलंकार।
उत्तर-अिप्र
ु ास अलंकार
262
क-उत्प्रेक्षा अलंकार ख-उपमा अलंकार ग-यमक अलंकार घ-रूपक अलंकार
उत्तर-रूपक अलंकार।
उत्तर-उपमा अलंकार।
उत्तर -यमक।
उत्तर-यमक अलंकार।
उत्तर-रूपक अलंकार।
उत्तर-अिुप्रास अलंकार।
उत्तर-रूपक अलंकार।
263
९-ििुमाि की पूंछ में लग ि पाई आग। लंका िगरी जल गई, गए तिशाचर भाग। पंक्ति में तिहिि
अलंकार बिाइए?
उत्तर-अतिशयोक्ति।
क-उपमा ख-अिप्र
ु ास ग-यमक घ-उत्प्रेक्षा
उत्तर-उपमा।
१-माला फेरि जुग गया, कफरा ि मि का फेर। कर का मिका डारर दे , मि का मिका फेर। इस पंक्ति में
कौिसा अलंकार िै?
उत्तर-यमक अलंकार।
२-रहिमि पािी रार्खए, बबि पािी सब सूि। पािी गए िा उबरे , मोिी, मािुस, चूि।। पंक्ति में तिहिि
अलंकार बिाइए?
उत्तर-श्लेष अलंकार।
३-पािी पराि को िाथ छुऔ ििीं िैिि के जल सौ पग धोए। इसमें कौि सा अलंकार िै ?
उत्तर-अतिशयोक्ति अलंकार।
५-आ रिी रवि की सिारी, ििककरण का रथ सजा िै । कली कुसुम से पथ सजा िै बादलों से अिच
ु रो िे
स्िणि की पोशाक धारी। इसमें कौि सा अलंकार िै ?
264
उत्तर-माििीकरण अलंकार।
उत्तर-यमक अलंकार।
उत्तर-अिुप्रास अलंकार
उत्तर-उपमा अलंकार।
उत्तर-अिुप्रास अलंकार।
क-अिप्र
ु ास अलंकार ख-श्लेष अलंकार ग-उपमा अलंकार घ-अतिशयोक्ति अलंकार
उत्तर-उपमा अलंकार।
१-अंबर -पिघि में डुबो रिी, िारा घि ऊषा िागरी। मैं कौि सा अलंकार िै ?
उत्तर-रूपक अलंकार ।
२-विपवत्त कसौिी जे कसे िेई सांचे मीि। इस पंक्ति में कौिसा अलंकार िै ?
उत्तर-रूपक अलंकार
265
३-सोिि ओढ़े पीि पि, श्याम सलोिे गाि। मिु िील मर्ण सेल पर आप िो
परर्यो प्रभाि।।
उत्तर-उत्प्रेक्षा अलंकार।
उत्तर-रूपक अलंकार
५-जो रिीम गति दीप की, कुल कपूि गति सोय ।बारै उक्जयारे करै बढे अंधेरो िोय। इसमें कौि सा
अलंकार िै ?
उत्तर-श्लेष अलंकार
६-मखमल के झूल पड़े िाथी सा िीला। इस पंक्ति में कौिसा अलंकार िै?
उत्तर-उपमा अलंकार।
७-पायो जी मैंिे िाम रिि धि पायो। इस पंक्ति में कौिसा अलंकार तिहिि िै ?
उत्तर-रूपक अलंकार
८-आगे िहदयां पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उिरे पार। राणा िे सोचा इस पार, िब िक चेिक था उस पार। इस
पंक्ति में कौिसा अलंकार िै ?
उत्तर-अतिशयोक्ति अलंकार
उत्तर-रूपक अलंकार
१०-चारु चंद्र की चंचल ककरणें, खेल रिी िै जल थल में। इस पंक्ति में कौिसा अलंकार िै ?
उत्तर-अिुप्रास अलंकार।
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