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श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप

12 श्लोक
(अध्याय 1-6)

श्रील प्रभप
ु ाद के
अनव ु ाद के साथ
BHAGAVAD GITA 2.7
अर्न
ु उवाच
कार्ुण्यदोषोर्हतस्वभावः
र्च्
ृ छामि तवाां धिुसम्िढ ू चेताः ।
यच्रे यः स्यान्ननन्‍चतां ब्रहू ह तनिे
मिष्यस्तेऽहां िाधध िाां तवाां प्रर्ननि ्
arjuna uvāca
kārpaṇya-doṣopahata-svabhāvaḥ
pṛcchāmi tvāṁ dharma-sammūḍha-cetāḥ
yac chreyaḥ syān niścitaṁ brūhi tan me
śiṣyas te ’haṁ śādhi māṁ tvāṁ prapannam
अर्न ु ने कहा: अब िैं अर्नी कृर्ण-दब ु ल
ु ता के कारण अर्ना
कतुव्य भूल गया हूूँ और सारा धैयु खो चूका हूूँ | ऐसी अवस्था िें
िैं आर्से र्ूछ रहा हूूँ कक र्ो िेरे मलए श्रेयस्कर हो उसे ननन्‍चत
रूर् से बताएूँ | अब िैं आर्का मिष्य हूूँ और िरणागत हूूँ | कृप्या
िुझे उर्दे ि दें
BHAGAVAD GITA 2.13
श्री भगवानवु ाच
दे हहनोऽन्स्िनयथा दे हे कौिारां यौवनां र्रा ।
तथा दे हानतरप्रान्प्तधीरस्तत्र न िह्
ु यनत ॥
śrī-bhagavān uvāca
dehino ’smin yathā dehe
kaumāraṁ yauvanaṁ jarā
tathā dehāntara-prāptir
dhīras tatra na muhyati
श्री भगवान ् ने कहा: न्र्स प्रकार िरीरधारी आतिा इस (वतुिान)
िरीर िें बाल्यावस्था से तरुणावस्था िें और किर वद्
ृ धावस्था िें
ननरनतर अग्रसर होता रहता है , उसी प्रकार ितृ यु होने र्र आतिा
दस
ू रे िरीर िें चला र्ाता है | धीर व्यन्तत ऐसे र्ररवतुन से िोह
को प्राप्त नहीां होता |
BHAGAVAD GITA 2.20
श्री भगवानुवाच
न र्ायते मियते वा कदाधच-
ननायां भूतवा भववता वा न भूयः ।
अर्ो ननतयः िा‍वतोऽयां र्रु ाणो
न हनयते हनयिाने िरीरे ॥
śrī-bhagavān uvāca
na jāyate mriyate vā kadācin
nāyaṁ bhūtvā bhavitā vā na bhūyaḥ
ajo nityaḥ śāśvato ’yaṁ purāṇo
na hanyate hanyamāne śarīre
श्री भगवान ् ने कहा: आतिा के मलए ककसी भी काल िें न तो र्नि
है न ितृ यु | वह न तो कभी र्निा है, न र्नि लेता है और न
र्नि लेगा | वह अर्निा, ननतय, िाश्र्वत तथा र्रु ातन है | िरीर
के िारे र्ाने र्र वह िारा नहीां र्ाता |
BHAGAVAD GITA 2.44
श्री भगवानवु ाच
भोगै‍वयुप्रसततानाां तयार्हृतचेतसाि ् ।
व्यवसायान्तिका बद् ु धधः सिाधौ न ववधीयते ॥
śrī-bhagavān uvāca
bhogaiśvarya-prasaktānāṁ
tayāpahṛta-cetasām
vyavasāyātmikā buddhiḥ
samādhau na vidhīyate
श्री भगवान ् ने कहा: र्ो लोग इन्नियभोग तथा भौनतक ऐश्र्वयु के
प्रनत अतयधधक आसतत होने से ऐसी वस्तुओां से िोहग्रस्त हो र्ाते
हैं, उनके िनों िें भगवान ् के प्रनत भन्तत का दृढ़ नन‍चय नहीां
होता |
BHAGAVAD GITA 3.27
श्री भगवानुवाच
प्रकृतेः कियिाणानन गण ु ैः किाुणण सवुिः ।
अहङ्कारवविूढातिा कताुहमिनत िनयते ॥
śrī-bhagavān uvāca
prakṛteḥ kriyamāṇāni
guṇaiḥ karmāṇi sarvaśaḥ
ahaṅkāra-vimūḍhātmā
kartāham iti manyate
श्री भगवान ् ने कहा: र्ीवातिा अहां कार के प्रभाव से िोहग्रस्त होकर
अर्ने आर्को सिस्त किों का कताु िान बैठता है , र्ब कक
वास्तव िें वे प्रकृनत के तीनों गण
ु ों द्वारा सम्र्नन ककये र्ाते हैं |
BHAGAVAD GITA 4.2
श्री भगवानव ु ाच
एवां र्रम्र्राप्राप्तमििां रार्षुयो ववदःु ।
स कालेनेह िहता योगे नष्टः र्रनतर् ॥
śrī-bhagavān uvāca
evaṁ paramparā-prāptam
imaṁ rājarṣayo viduḥ
sa kāleneha mahatā
yogo naṣṭaḥ paran-tapa
श्री भगवान ् ने कहा: इस प्रकार यह र्रि ववज्ञान गरु
ु -र्रम्र्रा
द्वारा प्राप्त ककया गया और रार्वषुयों ने इसी ववधध से इसे
सिझा | ककनतु कालिि िें यह र्रम्र्रा नछनन हो गई, अतः यह
ववज्ञान यथारूर् िें लप्ु त हो गया लगता है |
BHAGAVAD GITA 4.8
श्री भगवानुवाच
र्ररत्राणाय साधन ु ाां ववनािाय च दष्ु कृताि ् ।
धिुसांस्थानाथाुय सम्भवामि युगे युगे ॥
śrī-bhagavān uvāca
paritrāṇāya sādhūnāṁ
vināśāya ca duṣkṛtām
dharma-saṁsthāpanārthāya
sambhavāmi yuge yuge
श्री भगवान ् ने कहा: भततों का उद्धार करने, दष्ु टों का ववनाि
करने तथा धिु की किर से स्थार्ना करने के मलए िैं हर युग िें
प्रकट होता हूूँ |
BHAGAVAD GITA 4.9
श्री भगवानव
ु ाच
र्नि किु च िे हदव्यिेवां यो वेवि तत्त्वतः ।
तयततवा दे हां र्न
ु र्ुनि नैनत िािेनत सोऽर्न
ु ॥
śrī-bhagavān uvāca
janma karma ca me divyam
evaṁ yo vetti tattvataḥ
tyaktvā dehaṁ punar janma
naiti mām eti so ’rjuna
श्री भगवान ् ने कहा: हे अर्न
ु ! र्ो िेरे अववभाुव तथा किों की
हदव्य प्रकृनत को र्ानता है , वह इस िरीर को छोड़ने र्र इस
भौनतक सांसार िें र्ुनः र्नि नहीां लेता, अवर्तु िेरे सनातन धाि
को प्राप्त होता है |
BHAGAVAD GITA 4.34
श्री भगवानुवाच
तद्ववद्धध प्रणणर्ातेन र्ररप्र‍नेन सेवया ।
उर्दे क्ष्यन्नत ते ज्ञानां ज्ञानननस्तत्त्वदमिुनः ॥
śrī-bhagavān uvāca
tad viddhi praṇipātena
paripraśnena sevayā
upadekṣyanti te jñānaṁ
jñāninas tattva-darśinaḥ
श्री भगवान ् ने कहा: तुि गरु
ु के र्ास र्ाकर सतय को र्ानने का
प्रयास करो | उनसे ववनीत होकर न्र्ज्ञासा करो और उनकी सेवा
करो | स्वरुर्मसद्ध व्यन्तत तम्
ु हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, तयोंकक
उनहोंने सतय का दिुन ककया है |
BHAGAVAD GITA 5.22
श्री भगवानुवाच
ये हह सांस्र्िुर्ा भोगा द:ु खयोनय एव ते ।
आद्यनतवनत: कौनतेय न तेषु रिते बुध: ॥
śrī-bhagavān uvāca
ye hi saṁsparśa-jā bhogā
duḥkha-yonaya eva te
ādy-antavantaḥ kaunteya
श्री भगवान ् ने कहा: बुद्धधिान ् िनुष्य दख
ु के कारणों िें भाग
नहीां लेता र्ो कक भौनतक इन्नियों के सांसगु से उतर्नन होते हैं | हे
कुनतीर्ुत्र! ऐसे भोगों का आहद तथा अनत होता है , अतः चतुर
व्यन्तत उनिें आननद नहीां लेता |
BHAGAVAD GITA 5.29
श्री भगवानुवाच
भोततारां यज्ञतर्साां सवुलोकिहे ‍वरि ् ।
सुहृदां सवुभूतानाां ज्ञातवा िाां िान्नतिच्
ृ छनत ॥
śrī-bhagavān uvāca
bhoktāraṁ yajña-tapasāṁ
sarva-loka-maheśvaram
suhṛdaṁ sarva-bhūtānāṁ
jñātvā māṁ śāntim ṛcchati
श्री भगवान ् ने कहा: िझ
ु े सिस्त यज्ञों तथा तर्स्याओां का र्रां
भोतता, सिस्त लोकों तथा दे वताओां का र्रिेश्र्वर एवां सिस्त
र्ीवों का उर्कारी एवां हहतैषी र्ानकर िेरे भावनाित
ृ से र्ण
ू ु र्रु
ु ष
भौनतक दख
ु ों से िान्नत लाभ-करता है |
BHAGAVAD GITA 6.47
श्री भगवानव
ु ाच
योधगनािवर् सवेषाां िद्गतेनानतरातिना ।
श्रद्धावानभर्ते यो िाां स िे यतु ततिो ित:
śrī-bhagavān uvāca
yoginām api sarveṣāṁ
mad-gatenāntar-ātmanā
śraddhāvān bhajate yo māṁ
sa me yukta-tamo mataḥ
श्री भगवान ् ने कहा: और सिस्त योधगयों िें से र्ो योगी अतयनत
श्रद्धार्व
ू क
ु िेरे र्रायण है , अर्ने अनतःकरण िें िेरे ववषय िें
सोचता है और िेरी हदव्य प्रेिाभन्तत करता है वह योग िें िझ
ु से
र्रि अनतरां ग रूर् िें युतत रहता है और सबों िें सवोच्च है |
यही िेरा ित है |
धनयवाद
medhavinisakhidd@gmail.com
Compiled for Bhakti Shastri BG verses recitation
BG Unit 1 (Chapters 1-6)
19th September 2022

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