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ह िंदी ( भाषा – 1 )

1. एक अपठित गद्ाांश में से निम्नलिखित व्याकरण सांबध


ां ी प्रश्न : -

• पर्ाार्वाची, वविोम, वाक्याशों के लिए एक शब्द, शब्दार्ा, शब्द

शुद्धि । उपसगा, प्रत्यर्, सांनध और समास । सांज्ञा, सवािाम, ववशेषण

अव्यर्

2. एक अपठित गद्ाांश में से निम्नलिखित बब िंदुओ ां पर प्रश्न :

• रे िाांठकत शब्दों का अर्ा स्पष्ट करिा, वचि, काि, लििंग ज्ञात

करिा। ठदए गए शब्दों का वचि काि और लििंग बदििा

3. वाक्य रचिा, वाक्य के अांग, वाक्य के प्रकार, पदबांध, मु ावरे

और िोकोद्धिर्ााँ, ववराम द्धचह्न

4. भाषा की लशक्षण ववनध, भाषा लशक्षण के उपागम, भाषा दक्षता का

ववकास

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5. भाषार्ी कौशिों का ववकास (सुििा, बोििा, पढ़िा, लिििा)

ह दिं ी भाषा लशक्षण में चुिौबतर्ााँ, लशक्षण अनधगम सामग्री, पािर्

पुस्तक, बहु- माध्यम एवां लशक्षण के अन्य सांसाधि

6. भाषा लशक्षण में मूल्ाांकि, उपिब्धि परीक्षण का निमााण समग्र

एवां सतत् मूल्ाांकि, उपचारात्मक लशक्षण

ह िंदी ( भाषा – II)

7. एक अपठित गद्ाांश आधाहरत निम्नलिखित व्याकरण सांबध


ां ी प्रश्न:

• र्ुग्म शब्द, वाक्याशों के लिए एक शब्द, उपसगा, प्रत्यर्, सांनध,

समास, सांज्ञा, सवािाम, ववशेषण, ठिर्ा, लििंग, वचि, काि, शब्द

शुद्धि

8. एक अपठित पद्ाांश पर आधाहरत निम्नलिखित बब िंदुओ ां पर प्रश्न :

भाव सौंदर्ा

िाद सौंदर्ा

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ववचार सौंदर्ा जीवि दृष्टष्ट

लशल्प सौंदर्ा

9. वाक्य रचिा, वाक्य के अांग, वाक्य के भेद, पदबांध, मु ावरे ,

िोकोद्धिर्ााँ। कारक द्धचह्न, अव्यर्, ववराम द्धचह्न

10. भाषा लशक्षण ववनध, भाषा लशक्षण के उपागम, भाषार्ी दक्षता

का ववकास

11. भाषार्ी कौशिों का ववकास (सुििा, बोििा, पढ़िा, लिििा)

लशक्षण अनधगम सामग्री - पाठ्य पुस्तक, बहु - माध्यम एवां

लशक्षण के अन्य सांसाधि

12. भाषा लशक्षण में मूल्ाांकि, (सुििा, बोििा, पढ़िा, लिििा)

उपिब्धि परीक्षण का निमााण समग्र एवां सतत् मूल्ाांकि ।

उपचारात्मक लशक्षण

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िोट -

बप्रर् छात्रों, Infusion Notes (इन्फ्यूजि िोट्स) के राजस्थाि लशक्षक पात्रता


परीक्षा (REET) LEVEL – 1 के sample notes आपको पीडीऍफ़ format में “फ़्री”
में ठदए जा र े ैं और complete Notes आपको Infusion Notes की website र्ा
(Amazon/Flipkart) से िरीदिे ोंगे जो ठक आपको hardcopy र्ानि बुक फॉमेट में
ी नमिेंग,ें र्ा िोट्स िरीदिे के लिए मारे िांबरों पर सीधे कॉि करें (8504091672,
8233195718, 9694804063) | ठकसी भी व्यद्धि को sample पीडीऍफ़ के लिए
भुगताि ि ीं करिा ै | अगर कोई ऐसा कर र ा ै तो उसकी लशकार्त मारे Phone
िांबर 8233195718, 0141-4045784 पर करें , उसके खििाफ क़ािूिी कार्ावाई की
जाएगी |

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अध्यार् – 1
अपठित गद्ाांश

गद्ाांश – 1

निम्न गद्ाांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए :

हम लोग जब हहन्दी की 'सेवा' करने की बात सोचते हैं , तो प्रायः भूल जाते हैं कक यह
लाक्षणिक प्रयोग है । हहन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव समाज की सेवा, जजसके कवचारों
के आदान-प्रदान का माध्यम हहन्दी है। मनुष्य ही बडी चीज है , भाषा उसी की सेवा के जलए
है । साहहत्य सृष्टि का भी यही अर्थ है । जो साहहत्य अपने आप के जलए जलखा जाता है
उसको क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहहत्य मनुष्य समाज को रोग-शोक,
दाररद्र्य, अज्ञान तर्ा परमुखापेक्षक्षता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है , वह
ननश्चय ही अक्षय-नननि है।

• ‘परमुिापेष्टक्षता’ का अर्ा ै

(1)दूसरों से आशा रखना


(2)पराया मुख अच्छा लगना
(3)पराये मुख की अपेक्षा करना
(4) ईश्वर का मख
ु उत्तर : - (1)

• कौिसा शब्द स्त्रीलिग नहीं है ?


(1)सेवा (2) भाषा

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(3)प्रयोग (4)हहदी
िं उत्तर : - (3)

• इस गद्ाांश में प्रर्ुि ‘अर्ा’ शब्द का अर्ा ि ीं ै


(1) आशय (2) मतलब
(3) िन (4) अणभप्राय उत्तर : - (3)

• कौिसा शब्द एकवचि ैं ?


(1) कवचारों (2) भाषाओ ं
(3) अक्षय (4) मनुष्यों उत्तर: - (3)

• ‘कीमत’ की बहुवचि ै 1
(1) कीमती (2) कीमतों
(3) ककमतों (4) ककम्मत उत्तर : - (2)

• ‘माध्यम’ का बहुवचि ै 1
(1)मध्यमा (2) माध्यनमक
(3) मध्यम (4) माध्यमों उत्तर : - (4)

• ‘अक्षर् – निनध’ का अर्ा ै 1


(1) बबना क्षय रोग
(2) ककसी का नाम
(3) कभी खत्म न होने वाली सम्पजत्त
(4) रोग रहहत नहीं उत्तर: - (3)

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गद्ाांश – 2

निम्नलिखित गद्ाांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीलजए:

भारत अब प्रौढ़ावस्था में आ पहं चा है। भीषि घात-प्रततघात से साक्षात्कार करते हए भी


उसने बहमुखी कवकास ककया है , इसमें संदेह नहीं । लेककन उसका एक प्रकोष्ठ अंिकार
में अभी भी डूबा हआ है- हृदय, जो कक मानवीय किया व्यापार का ननयन्ता है। इस समय
वह स्वार्थपरता और भोगवाद के ऐसे रोग से ग्रजसत हो गया है जजसके कारि मानवीय
आचरि भी बनैला हो गया है। क्षेत्रवाद, जाततवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद - प्रभृतत
कवणभकषकाएँ जो आजादी के सार् उपहार में नमली र्ीं, आए हदन कहीं-न-कहीं अपनी
लोमहषथक लोला सम्पन्न करती रहती हैं। पररिामस्वरूप जशतर्ल पडते अनुशासन के बन्धन,
कवखण्डित होती श्रद्धा और …………………………………

िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /

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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -

EXAM (परीक्षा) DATE मारे िोट्स में से कट ऑफ


आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 91 of 150


PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

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RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100
2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

1st जशफ्ट

दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
youtube चैिि पर दे िें –

RAS PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=p3_i-3qfDy8&t=136s

VDO PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=gXdAk856WI8&t=202s

Patwari - https://www.youtube.com/watch?v=X6mKGdtXyu4&t=103s

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अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /

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• पर्ाार्वाची शब्द

इसे प्रततशब्द भी कहते हैं । जजन शब्दों के अर्थ में समानता होती है , उन्हें हम पयाथयवाची
शब्द अर्वा प्रततशब्द कहते हैं । हहन्दी में तत्सम पयाथयवाची शब्द ही अनिक पाए जाते हैं
जो संस्कृत से हहन्दी में आए हैं । हहन्दी में तद्भव पयाथयवाची शब्दों का अभाव है। कुछ
प्रमुख पयाथयवाची शब्दों के उदाहरि नीचे हदये जा रहे हैं -

अ)

शब्द पर्ाार्

अमृत- पीयूष, सुिा, अमी

अंग- अवयव, भाग, हहस्सा, अंश, खंड ।

अणि- आग, पावक, अनल, वहहन,

हताशन, कृशानु, वैश्वानर ।

अनी- सेना, फौज, चमू, कटक, दल।

असुर- दनुज, दानव, दैत्य, राक्षस,

ननजशचर, ननशाचर, रजनीचर ।

अरण्य- जंगल, वन, कानन, कवकपन ।

अश्व- घोडा, वाजज, हय, घोटक, तुरग ।

अंकुर- अँखुआ, कोंपल,कल्ला,नवोजद्भद्/

अंचल- पल्ला, पल्लू, आँचल ।

अंत- समाण्डप्त, अवसान, इतत, उपसंहार

अंत- फल, अंजाम. पररिाम. नतीजा ।

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शब्द पर्ाार्

अचल- पवथत, पहाड, नगरर, शैल, स्थावर ।

अचला- पृथ्वी, िरती, िरा, भू, इला, अवनी

अतततर्- अभ्यागत, मेहमान, पाहना ।

अिर- ओंठ, ओष्ठ, लब, रद-पट, होंठ ।

अनंग- कामदेव, मदन, मनोज, मयन,

मन्मर् ।

अनल- 'अणि' ।

अनाज- अन्न, िान्य, शस्य ।

अननल- हवा, वायु, पवन, समीर, वात,

मरुत् ।

अनुकम्पा- कृपा, मेहरबानी, दया ।

अन्वेषि- अनुसन्धान, खोज, शोि, जाँच ।

अपना- ननज, ननजी, व्यनक्तगत ।

अपिाथ- पावथती, जशवा, उमा, भवानी, भैरवी

अपमान- ततरस्कार, अनादर, ननरादर ।

अप्सरा- देवांगना, सुरबाला, सुरनारी,

सुरकन्या, देवबाला, देवकन्या ।

अबला- नारी, गृहहिी, महहला, औरत, स्त्री

अभय- ननभथय, ननभीक, ननडर, साहसी ।

अणभप्राय- तात्पयथ, आशय, मंतव्य ।

अणभमान- गवथ, गौरव, नाज ।

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अणभलाषा- इच्छा, कामना, मनोरर्, आकांक्षा

अमर- अक्षय, अनश्वर, अकवनाशी, मृत्युंजय ।

अचथना- प्रार्थना, आरािना, स्तुतत, पूजा ।

अजुथन- पार्थ, िनञ्जय, भारत, कौन्तेय ।

अवनी- देष्टखए 'अचला' ।

अवस्था- उम्र, वय, आयु । …………..

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• वाक्याांशों के लिए एक शब्द

अच्छी रचना के जलए आवश्यक है कक कम से कम शब्दों में कवचार प्रकट ककए जाए। और
भाषा में यह सुकविा भी होनी चाहहए कक वक्ता या लेखक कम से कम शब्दों में अर्ाथत्
संक्षेप में बोलकर या जलखकर कवचार अणभव्यक्त कर सके। कम से कम शब्दों में
अनिकानिक अर्थ को प्रकट करने के जलए ‘वाक्यांश या शब्द–समूह के जलए एक शब्द’
का कवस्तृत ज्ञान होना आवश्यक है। ऐसे शब्दों के प्रयोग से वाक्य–रचना में संक्षक्षप्तता,
सुन्दरता तर्ा गंभीरता आ जाती है। भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर
हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकषथक बनाते हैं 1

कुछ वाक्याांशों के लिए एक शब्द –

'अ' से शुरू ोिे वािे एकि शब्द

▪ जो सबके आगे रहता हो - अग्रिी

▪ ककसी आदरिीय का स्वागत करने के जलए चलकर कुछ आगे पहँ चना - अगवानी

▪ जजसकी गहराई या र्ाह का पता न लग सके - अगाि

▪ जो गाये जाने योग्य न हो - अगेय

▪ जो छेदा न जा सके - अछेद्य

▪ जजसका कोई शत्रु पैदा ही न हआ हो - अजातशत्रु

▪ जजसे जीता न जा सके – अजेय

▪ जजसके खंड या टुकडे न ककये गये हों - अखंहडत

▪ जो खाने योग्य न हो - अखाद्य

▪ जो नगना ना जा सके - अगणित/अननगनत

▪ जजसके अंदर या पास न पहँ चा जा सके - अगम्य

▪ जजसके पास कुछ भी न हो - अककिं चन

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▪ जजसमें कुछ करने की क्षमता न हो - अक्षम

▪ जजसका खंडन न ककया जा सके - अखंडनीय

▪ जजसका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा न हो - अगोचर

▪ दूर तक फैलने वाला अत्यनिक नाशक आग - अणिकांड

▪ जजसका जन्म पहले हआ हो - अग्रज

▪ जो ककसी देन या पाररश्रनमक मद्धे पहले से ही सोचे - अणग्रम

▪ जो अंडे से जन्म लेता है - अंडज

▪ ककसी कर्ा के अन्तगथत आने वाली कोई दूसरी कर्ा - अंतःकर्ा

▪ राजभवन के अंदर महहलाओं का ननवास - अंतःपुर

▪ मन में आप से उत्पन्न होने वाली प्रेरिा - अंतःप्रेरिा

▪ अंक में सोने वाला - अंकशायी

▪ अंक में स्थान पाया हआ - अंकस्थ

'आ' से शुरू ोिे वािे एकि शब्द

▪ अणि से संबनित या आग का - आिेय

▪ पूरे जीवन में - आजीवन

▪ जजस पर ककसी का आतंक छाया हो – आतंककत

▪ जो बहत िूर स्वभाव वाला हो - आततायी

▪ जो मृत्यु के समीप हो - आसन्नमृत्यु/मरिासन्न

▪ बालक से लेकर वृद्ध तक - आबालवृद्ध

▪ जजसकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हो - आजानुबाह

▪ जो जन्म लेते ही मर जाए - आदिपात

▪ जजसे कवश्वास या हदलासा हदलाया गाया हो - आश्वस्त

▪ आशा से बहत अनिक - आशातीत

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▪ वह ककव जो तत्काल ककवता कर डालता है - आशुककव

▪ जो अपनी हत्या कर लेता है - आत्मघाती

▪ अपने आप को ककसी के हार् सौंपना या समकपित करना - आत्मसमपथि

▪ दूसरों के (सुख के) जलए अपने सुखों का त्याग - आत्मोत्सगथ

'इ' व 'ई' से शुरू ोिे वािे एकि शब्द

ककन्हीं घटनाओं का कालिम से ………………………

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• उपसगा
उपसगथ = उप (समीप ) + सगथ (श्रष्टि करना ) का अर्थ है –

( ककसी शब्द के समीप आकर नया शब्द बनाना )

• उपसगथ के कई नाम –आहद प्रत्यय , व्युत्पजत्तमूलक


प्रत्यय, रचनात्मक

उपसगा की पहरभाषा – वे शब्दांश , जो ककसी शब्द के आरम्भ में लगकर उनके अर्थ में
कवशेषता ला देते हैं |

जैसे – परा-परािम , पराजय , पराभव , परािीन , पराभूत


उपसगा शब्द
अतत अत्यन्त
जचर जचरायु
सु सुयोग
अप अपकीतति
प्र प्रख्यात
कव कवज्ञान
कव कवदेश
उत् उत्थान
उप उपकार
ननर् ननवाथह
प्रतत प्रत्युत्पन्नमतत
अ अस्पृश्य
आ आगमन
नन ननबंि

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प्रतत प्रततकूल
अतत अततचार
अ अव्यवस्था
परर पररजन

प्रर्ोग उपसगा शब्द


सदाचार = सत् + आचार
दुराचार = दुर् + आचार
अध्यक्ष = अनि + अक्ष
पराजय = परा + अजय
समादर = सम् + आदर
अत्युनक्त = अत + उनक्त

ननबंि = नन + बंि

पररजन = परर + जन

उनतीस = उन + तीस

प्रत्युपकार = प्रतत + उप+कार

अनुशासन = अनु + शासन

प्रख्यात = प्र + ख्यात

संरक्षि = सम् + रक्षि

अिष्टखला = अि् + ष्टखला

दुकाल = दु + काल

अत्यनिक = अतत + अनिक

अध्यक्ष = अनि + अक्ष

उल्लास = उत् + लास

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दुजथन = दु: (दुर्) + जन

दुष्चररत = दु: (दुष्) + चररत्र

ननभथय = नन: + भय

संतोष = सम् + तोष

संहार = सम् + हार

अभ्यास = अणभ + आस

उपसगा कुछ प्रमुि शब्द

अनु अनुकरि , अनुगमन, अनुशीलन , अनुसार

उप उपकार, उपवन, उपनाम , उपभेद , उपनेत्र

नन ननकेत , ननष्कपट, ननयुक्त , ननहत्था , ननकम्मा

………………….

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• समास
 समास का शाब्दब्दक अर्ा - जोडना या नमलाना। अर्ाथत समास प्रकिया में दो या दो
से अनिक शब्दों को आपस में नमलाकर एक शब्द बनाया जाता है!

 दो अर्वा दो से अनिक शब्दों से नमलकर बने हए नए सार्थक शब्द को समास कहते


है।

 समस्त पद (सामालसक पद)-समास के ननयमों का पालन करते हए जो शब्द बनता


है उसे समास पद या सामाजसक,पद कहते हैं।

 समस्त पद के सभी पदों को अलग अलग ककए जाने की प्रकिया को समास कवग्रह
कहलाती है।

 समास वह शब्द रचना है जजसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र सम्बन्ध रखने वाले
दो या दो से अनिक शब्द नमलकर ककसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते है।

सामाजसक शब्द में आए दो पदों में पहले पद को पूवथपद तर्ा दूसरे पद को उत्तरपद
कहते हैं। ।

जैसे:-

गंगाजल गंगाजल - गंगा का जल

(पूवथपद) (उत्तरपद) (समस्त पद) (समास कवग्रह)

कम से कम शब्दों में अनिक से अनिक अर्थ को प्रस्तुत कर देना ही समास का प्रमुख


उद्देश्य होता है।

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समास के प्रकार Types Of Compound

अव्ययीभाव कमथिारय समास

समास तत्पुरुष समास हिगु समास बहव्रीहहसमास

कमथ तत्पुरुष संप्रदान तत्पुरुष सम्बन्ध तत्पुरुष

(हद्वतीय तत्पुरुष) (चतुर्ी तत्पुरुष) (षष्ठी तत्पुरुष)

(को) (के जलए) (का, की, के)

करि तत्पुरुष अपादान तत्पुरुष अनिकरि तत्पुरुष

(तृतीय तत्पुरुष) (पंचमी तत्पुरुष) (सप्तमी तत्पुरुष)

(से, के द्वारा) से (अलग होने के अर्थ से) (मे, पर)

पद की प्रधािता के आधार पर समास का वगीकरण

(क) पूवथपद प्रिान –अव्ययीभाव

(ख) उत्तर पद प्रिान - तत्पुरुष, कमथिारय और हदगु

(ग) दोनों पद प्रिान-द्वन्द्व

(घ) दोनों पद अप्रिान - बहव्रीहह (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रिान होता है)

िोट:

भारतीय भाषा में कुछ ऐसे शब्द है जजनके रुप में जलिंग, वचन के अनुसार पररवतथन या
कवकार उत्पन्न नहीं होता है , उन्हें अव्यय शब्द या अकवकारी शब्द कहते हैं।

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अर्ाथत ऐसे शब्द जजनका व्यय ना हो, उन्हे अव्यय शब्द कहते है।

जैसे –यर्ा, तर्ा, यदा, कदा, आ, प्रतत , जब, तब, भर, यावत , हर आहद।

(1)अव्यर्ीभाव समास Adverbial Compound

जजस समास में पहला पद अर्ाथत पूवथपद प्रिान तर्ा अव्यय होता है , उसे अव्ययीभाव
समास कहते है1

पहचान- सामाजसक पद (समस्त पद) मे यर्ा, आ, अनु, प्रतत, भर, तर्ा, यदा, कदा, जब,
तब, यावत, हर आहद शब्द आते हैं।

समस्त पद - कवग्रह

आजन्म - जन्म से लेकर

आमरि - मरने तक

आसेतु - सेतु तक

आजीवन - जीवन भर

अनपढ़ - बबना पढ़ा

आसमुि - समुि तक

अनुरुप - रुपके योग्य

अपादमस्तक - पाद से मस्तक तक

यर्ासंभव - जैसा सम्भव

हो/जजतना सम्भव हो

सके

यर्ोजचत - उजचत रुप मे/जो

उजचत हो

यर्ा कवनि - कवनि के अनुसार

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यर्ामतत - मतत के अनुसार

यर्ाशनक्त - शनक्त के अनुसार

यर्ाननयम - ननयम के अनुसार

यर्ाशीघ्र - जजतना शीघ्र हो

यर्ासमय - समय के अनुसार

यर्ासामर्थ - सामर्थ के अनुसार

यर्ािम - िम के अनुसार

प्रततकूल - इच्छा के कवरुद्ध

प्रततमाह - माह -माह

प्रतत हदन - हदन - हदन

भरपेट - पेट भर के

हार्ों हार् - हार् ही हार् में/ (एक हार् से दूसरे

हार्)

परम्परागत - परम्परा के अनुसार

र्ल - र्ल - प्रत्येक स्थान पर

बोटी – बोटी - प्रत्येक बोटी

नभ –नभ - पूरे नभ में

रं ग - रं ग - प्रत्येक रं ग के

मीठा – मीठा - बहत मीठा

चुप्पे –चुप्पे - बबल्कुल चुपचाप

आगे- आगे - बबल्कुल आगे

गली – गली - प्रत्येक गली

दूर - दूर - बबल्कुल दूर

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सुबह - सुबह - बबल्कुल सुबह

एकाएक - एक के बाद एक

हदनभर - पूरे हदन

दो – दो - दोनों दो | प्रत्येक

दोनों

रोम– रोम - पूरे रोम मे

नए – नए - बबल्कुल नए

हरे - हरे - बबल्कुल हरे

बारी – बारी - एक एक करके

/ प्रत्येक करके

बे – मारे - बबना मारे

जगह – जगह - प्रत्येक जगह

मील – भर - पूरे मील

गरमागरम - बहत गरम

पतली-पतली - बहत पतली

हफ्ता भर - पूरे हफ्ते

प्रतत एक - प्रत्येक

एक - एक - हर एक / प्रत्येक

िीरे – िीरे - बहत िीरे

अलग-अलग - बबल्कुल अलग

मनचाहे - मन के अनुसार

छोटे – छोटे - बहत छोटे

भरे - पूरे - पूरा भरा हआ

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जानलेवा - जान लेने वाली

दूरबीन - दूर देखने वाली

सहपाठी - सार् पढ़ने वाला/वाली

खुला – खुला - बहत खुला

कोना-कोना - सारा कोना

मात्र - केवल एक

भरा-भरा - बहत भरा

िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /

सांपका करें – 8504091672, 8233195718, 9694804063,

बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -

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EXAM (परीक्षा) DATE मारे िोट्स में से कट ऑफ
आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 91 of 150


PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

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RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100
2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

1st जशफ्ट

दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
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RAS PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=p3_i-3qfDy8&t=136s

VDO PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=gXdAk856WI8&t=202s

Patwari - https://www.youtube.com/watch?v=X6mKGdtXyu4&t=103s

अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /

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▪ सवािाम

सवािामः सवा + िाम

सभी सांज्ञा

पहरभाषा - वे शब्द जो संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त ककए

जाते हैं सवथनाम कहलाते हैं, अर्ाथत् ककसी वाक्य में एक ही शब्द की बार-बार पुनरावृजत्त
न हो इसके जलए संज्ञा के स्थान पर जजन शब्दों का प्रयोग ककया जाता हैं, सवथनाम
कहलाता हैं ।

जैसे - नमतांश जोिपुर रहता हैं, वह वहॉं पढ़ता हैं ।

सवािाम के छ भेद ोते ैं -

1. पुरूषवाचक सवथनाम

2. ननश्चयवाचक सवथनाम

3. अननश्चयवाचक सवथनाम

4. सम्बन्ध वाचक सवथनाम

5. प्रश्नवाचक सवथनाम

6. ननजवाचक सवथनाम

1. पुरूषवाचक सवािाम:- जजन सवथनाम शब्दों का प्रयोग बोलने वाले वक्ता, सुनने वाले
श्रोता या ककसी अन्य के जलए प्रयोग ककया जाता हैं , पुरूषवाचक सवथनाम कहते हैं, जैसे

(1) मैं अपने घर पर रहता हं ।

(2) तुम भी अपने घर जाओ ।

(3) वह अपना कायथ कर रहा हैं ।

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(4) वे सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं ।

पुरूषवाचक सवथनाम के तीन भेद होते हैं -

1. उत्तम पुरूष

2. मध्यम पुरूष

3. अन्य पुरूष

1. उत्तम पुरूषवाचक सवािामः- वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला वक्ता/व्यनक्त
अपने जलए करता हैं, उत्तम पुरूष वाचक सवथनाम कहलाते हैं -

जैसे - मैं, मुझे, मेरा, मुझकों, - एकवचन

हम, हमें, हमारा, हमकों - बहवचन

1. मैं आज अपनी ककवता सुनाऊॅंगा ।

2. मुझे कल जयपुर जाना हैं ।

3. मेरा कोई दोस्त नहीं हैं ।

4. हमें सभी का सम्मान करना चाहहए ।

5. हम कभी झूठ नहीं बोलेंगें ।

6. हमारा पुराना मकान नगर गया ।

2. मध्यम पुरूष वाचक सवािाम - वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला
वक्ता/व्यनक्त सुनने वाले श्रोता/ व्यनक्त के जलए प्रयोग करता हैं , मध्यम पुरूषवाचक सवथनाम
कहलाते हैं, जैंसे -

जैसे - तू, तूझ,े तेरा, तुझकों, तुम, आप ।

1. तू यहॉं क्या कर रहा हैं ?

2. तुम कहॉं जा रहे हों ?

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3. तुझे कोई बुला रहा हैं ।

4. आप यहॉं क्या कर रहे हो ?

3. अन्य पुरूषवाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला वक्ता और
सुनने वाला श्रोता ककसी अन्य व्यनक्त के जलए प्रयोग करते हैं , अन्य पुरूषवाचक सवथनाम
कहलाते हैं|

जैसे - यह, वह, ये, वे, आप ।

1. यह मेरा भाई हैं ।

2. वह तुम्हारी बबल्ली हैं ।

3. ये मेरे पुराने नमत्र हैं ।

4. वे तुम्हारी गायें हैं ।

5. पटे ल जी लौह पुरूष कहलाते हैं ।

6. आप देश की एकता के सूत्रिार हैं ।

2. निश्चर्वाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जो ककसी ननण्डश्चत वस्तु का बोि कराते हैं ,
ननश्चय वाचक सवथनाम कहलाते हैं ।

जैसे - यह, वह, ये, वे

1. यह मेरी पुस्तक हैं ।

2. वह तुम्हारी कुसी हैं /

3. ये हमारी अलमाररयॉं हैं ।

4. वे तुम्हारी घहडयॉं हैं ।

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3. अनिश्चर्वाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जो ककसी अननण्डश्चत व्यनक्त या वस्तु के
जलए प्रयुक्त ककए जाते हैं ।

जैसे - कोई, कुछ, ककसी ।

1. बाहर कोई खडा है ।

2. अंदर कुछ पडा है ।

3. यहॉं कोई आ रहा है ।

4. चाय में कुछ नगरा है ।

5. ककसी ने उसे मारा है ।

6. यह ककसी का पेन है।

4. सम्बन्धवाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जो ककसी संज्ञा या सवथनाम उपवाक्यों के


बीच सम्बन्ध का बोि कराते हैं, सम्बन्ध वाचक सवथनाम कहलाते हैं ।

जैसे - जजसकी - उसकी, जैसी-वैसी, जो-सो/वह, जजतना-उतना ।

1. जजसकी लाठी उसकी भैंस ।

2. जैसी करनी वैसी …………………………….

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अध्यार् – 2

अपठित

गद्ाांश – 1

निम्न गद्ाांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए:

कोई भी समाज शून्य में जीकवत नहीं रह सकता। उसे अपने लोगों, अपने पशुओ,ं अपनी
जमीन, अपने पेड-पौिों, अपने कुएँ , अपने तालाबों, अपने खेतों के जलए कोई-न-कोई
ऐसी व्यवस्था बनानी पडती है , जो समयजसद्ध और स्वयंजसद्ध हो । काल के ककसी खि
कवशेष में समाज के सभी सदस्यों के सार् नमल 5-जुलकर, पाल-पोसकर बडा करते हैं
और मजबूत बनाते हैं। अपने ऊपर खुद लगाया हआ यह अनुशासन एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी को सौंपा जाता है।

• निम्न में तत्सम शब्द ै


(a) जमीन (b) शून्य
(c) खुद (d) मजबूत उत्तर:- (B)

• निम्न में ववदे शी शब्द ै –


(A) पेड (B) खि
(C) तालाब (D) खुद उत्तर: - (D)

• जमीि का पर्ाार्वाची ि ीं ै –
(A) पृथ्वी (B) िरती

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(C) कवरप (D) िरिी उत्तर : - (C)

गद्ाांश – 2

निम्नलिखित गद्ाांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीलजए:

कुसुम शाम को मंहदर में दशथन करते हए घर गई। वह देर तक गीत गाती रही। उसे समय
का पता ही न र्ा । आिी रात बीत गई। उसने जसतार बजाई । हफर भी उसका मन न
लगा। उसने टहलना शुरू ककया, रात ककसी तरह कटी । सुबह उसकी आँखें नींद से
बोष्टझल हो रही र्ीं। वह देर तक सोती रही। माँ ने आकर जगाया और कलेवा करने के
जलए कहा। जैसे तैसे वह उठी, नहाई और साइककल से कॉलेज के जलए चली। कॉलेज में
उसकी सखी ने घी के परोठे ष्टखलाये । कुसुम के संगीत प्रेम की कॉलेज में छात्र ही नहीं,
पररवार में मामा, चाचा, नाना और भाई-बहन भी प्रशंसा करते हैं।

• इिमें से कौि सा शब्द स्त्रीलििंग ि ीं ै ?


(A) शाम (B) रात
(C) कलेवा (D) आँखें उत्तर :- (C)

• 'कुसुम शाम को घर गई। इस वाक्य में कौि सा काि ै ?


(A) सामान्य भूत
(B) आसन्न भूत
(C) पूिथ भूत
(D) संहदग्ध भूत उत्तर:- (A)

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• कारक द्धचह्न के प्रर्ोग के बावजूद इिमें से ठकस शब्द का बहुवचि ि ीं बिता
?
(A) घी (B) गीत
(C) घर (D) सखी उत्तर:- (A)

• इिमें से ठकस शब्द का लििंग ि ीं बदिता ?


(A) चाचा (B) छात्र
(C) साइककल (D) मामा उत्तर: - (C)

• इिमें से कौि – सा शब्द सदै व बहुवचि में प्रर्ुि ोता ै ?


(A) दशथन (B) मन
(C) परांठा (D) जसतार उत्तर:- (A)

गद्ाांश – 3

निम्नलिखित गद्ाांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीलजए:-

"जशक्षा' बहत व्यापक शब्द है। उसमें सीखने योग्य अनेक कवषयों का समावेश हो सकता
है। पढ़ना-जलखना भी उसी के अंतगथत है। इस देश की वतथमान जशक्षा प्रिाली अच्छी नहीं।
इस कारि यहद कोई स्त्रस्त्रयों को पढ़ाना अनर्थकारी ……………………………

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राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

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RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150
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(Ist जशफ्ट)

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PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

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(2nd जशफ्ट)

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1st जशफ्ट

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• वचि
वचि की पहरभाषा :- शब्द का वह रूप जजसमे उसका एक अर्वा अनेक होने का बोि
होता है| वचन कहा जाता हैं | जजन शब्दों के माध्यम से संख्या की प्रतीतत होती है , वहां
वचन माना जाता है। वचन का अर्थ है बोली तर्ा कर्न।

जैसे- (1) राम के पास एक पुस्तक है |

(2) राम के पास बहत सी पुस्तकें हैं |

” शब्दों से सांख्या का बोध करािा ी वचि ै।”

वचि के दो भेद ैं –

1 एकवचन , 2 बहवचन ।

एकवचि – शब्द के जजस रूप से एक वस्तु या व्यनक्त

का बोि होता है , उसे वचन कहते हैं। जैसे – मेज , कुसी , राम , नदी , पवथत आहद।

बहुवचि – जजन शब्दों से बहत सी वस्तुओ ं का बोि होता है , उसे बहवचन कहा जाता
है – कुजसियां , पक्षक्षयों , जानवरों , लडकों आहद।

वचि की प चाि कैसे करें

1 वचि की प चाि सांज्ञा अर्वा सवािाम के द्वारा

एकवचि बहुवचि

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1. मैं कवद्यालय जाता 1. हम
हँ। कवद्यालय जाते हैं।

2. वह खेलता है। 2. वे खेलते हैं।

3. भैंस चारा खा रही 3. भैंसें चारा खा


हैं। रही है।

4. वह गाँव जा रहा 4. वे गाँव जा रहे हैं 1


है 1

5. वह दौड रहा है 1 5. वे दौड रहे हैं 1

2 ठिर्ा के द्वारा वचि की प चाि करिा।

एकवचि बहुवचि

बालक भाग रहा है1 बालक भाग रहे हैं1

शेर सो रहा है 1 शेर सो रहे हैं 1

लडका गाना गा लडके गाना गा रहे


रहा है1 हैं 1

कबूतर उड रहा है 1 कबूतर उड रहे हैं 1

हहरि भाग रहा है 1 हहरि भाग रहे हैं 1

3 एकवचि के बदिे बहुवचि का प्रर्ोग

(क) आदर के जलए भी बहवचन का प्रयोग होता है जैसे –

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• हनुमान जी राम के कप्रय भक्त र्े 1

• श्री कृष्णा दयालु र्े 1

• भीष्म कपतामह ब्रह्मचारी र्े 1

• महारािा प्रताप सच्चे वीर र्े 1

• राम मयाथदा पुरुषोत्तम र्े 1

(ख) बडप्पन के जलए भी कई बार वे , म आहद शब्दों का प्रयोग ककया जाता है जैसे –

• वे लोग कल मंत्री जी से नमलने जायेंगे 1


• वे लोग कल मेला देखने जायेंगे 1

• मंत्री जी ने कहा कल हम आपकी समस्या को सुनेंगे।

• वे लोग कल हदल्ली जाएं गे।

• कल दादा जी से मुलाकात हई वह अत्यनिक प्रसन्न हए।

कतााकारक – शब्द के जजस रुप से किया के करने का बोि हो उसे कताथ कारक कहते
हैं , इसका जचन्ह ‘िे’ है। ने जचन्ह कभी नहीं लगता है तो कभी लगता है।

कमाकारक – इससे किया के फल भोगने का बोि होता है इसकी कवभनक्त ‘को’ है।

करण कारक – जजसके द्वारा किया पूरी की जाती है उस संज्ञा को करि कारक कहते हैं।

सांप्रदाि कारक – जजसके जलए किया की जाती है उसे संप्रदान कारक कहते हैं इसकी
कवभनक्त को , के , लिए है।

अपादाि कारक – जहां से कोई वस्तु अलग हो उसे अपादान कारक कहते हैं।

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सांबांध कारक – संज्ञा या सवथनाम के जजस रुप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु के सार्
संबंि ज्ञात हो उसे संबंि कारक कहते हैं। इसका जचन्ह – का , की , के , ना , नी , ने ,
स , व , रे , है।

अनधकरण कारक – संज्ञा के जजस रूप से आिार प्रकट होता है उसे अनिकरि कारक
कहते हैं इसकी कवभनक्त ‘ मे ‘ पर है।

सांबोधि कारक – संज्ञा के जजस रुप से ककसी को संबोनित ककया जाता है वह संबोिन
कारक कहलाता है जजसका जचन्ह – ‘ े’ , ‘रे ’ है।

बहुवचि बिािे का सरि निर्म

अकारांत में पुल्ल्लिंग ‘ आ ‘ को ‘ ए ‘ कर हदया जाए

एकवचि बहुवचि

लडका लडके

रुपया रुपए

कौआ कौए

कुत्ता कुत्ते

गिा गिे

तरबूजा तरबूजे

इकारांत को ईकारांत करके ‘ याँ ‘ जोडने पर …………………….

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िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
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करें गे, िन्यवाद /

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• काि
‘‘काल का अर्थ हैं समय या मौत’’

पहरभाषा:- ‘‘किया के जजस रूप से उसके समय के होने की पूिथता या अपूिथता का


बोि हो तो उसे काल कहते हैं ।’’

काल के भेद - 03

➢ भूतकाल -06
➢ वतथमान काल - 05
➢ भकवष्य काल – 03

• भूतकाि
:- जजस किया से उसके बीते हये समय के होने की पूिथता या अपूिथता का बोि हो तो
वह भूतकाल कहलाता हैं

(1) सामान्य भूत व उसकी प चाि:- िातु में या/यी/ये/ई/आ अर्वा चुका/चुकी/चुके
आहद ।

उदाहरि -

➢ राम खाना खा चुका ।


➢ रीना लखनऊ से लौट आयी ।
➢ अमेररका ने हहरोजशमा पर बम नगराया ।
➢ वंजशका खाना खा चुकी ।

(2) आसन्न भूतकाि व उसकी प चाि:-

िातु में या है / यी है / ये है / चुका है / चुकी है/ चुके हैं / आहद ।

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उदाहरि -

➢ श्याम खाना खा चुका है ।


➢ हम सब 68500 से बाहर हो चुके है ।

(3) अपूणा भूतकाि व उसकी प चाि:-

िातु में रहा र्ा / रही र्ी / रहे र्े

उदाहरि:-

➢ मोहन स्कूल जा रहा र्ा ।


➢ मीरा ककताब पढ़ रही र्ी ।
➢ हम सब खेल रहे र्ें ।

पूणा भूतकाि व उसकी प चाि:-

िातु में या र्ा / यी र्ी / ये र्े / चुका र्ा / चुकी र्ी / चुके र्े आहद ।

उदाहरि:-

➢ राम ककताब पढ़ चुका र्ा ।


➢ मोहन नानगन डॉंस कर चुका र्ा ।

(5) संहदग्ध भूतकाल व उसकी पहचान:-

िातु में आ होगा / या होगा / यी होगी / ये होंगे / अर्वा चुका होगा / चुकी होगी /
चुके होंगे

उदा रण:-

➢ वह खाना खा चुका होगा ।


➢ वह आया होगा ।

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➢ उसने खाना खाया होगा ।

(6) ेतु मद भूतकाि व उसकी प चाि:- यहॉं पर एक काम दूसरे पर ननभथर करता
हैं ।

उदाहरि:-

➢ यहद कहठन पररश्रम करते तो पास हो जाते ।


➢ अगर वषाथ होती तो अच्छी फसल होती ।
➢ अगर तुम सार् होतीं तो मैं खुश होता ।

वतामाि काि

पररभाषा:- वह किया जजसका आरम्भ हो चुका है लेककन समाप्त नहीं हई है तो उसे


वतथमान काल कहते हैं ।

• वतथमान काल के भेद - 05


• मुख्य रूप से भेद - 03
• सामान्य वतथमान काल एवं उसकी पहचान

िातु में ता है/ ती है / ते है / ता हं

उदाहरि:-

➢ मै खाना खाता हं ।
➢ वह गाना गाता हैं ।
➢ तुम ककताब पढ़ते हो ।

• तात्कालिक र्ा अपूणा वतामाि काि:- िातु में रहा हैं / रही है / रहे हैं / रहा हं

उदाहरि:-

➢ सीता गाना गा रही हैं ।


➢ दुष्यन्त नहा रहा हैं । ……………

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िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
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• ववराम-द्धचह्न

कवराम शब्द का शाब्दब्दक अर्थ होता है ठहराव। एक व्यनक्त अपनी बात कहने के जलए उसे
समझाने के जलए, ककसी कर्न पर बल देने के जलए आश्चयथ आहद भावों की अणभव्यनक्त
के जलए, कहीं कम समय के जलए तो कहीं अनिक समय के जलए ठहरता है। भाषा के
जलष्टखत रूप में उक्त ठहरने के स्थान पर जो ननण्डश्चत संकेत जचह्न लगाए जाते हैं उन्हें
कवराम जचह्न कहते हैं।

कवराम जचह्न के प्रयोग से भाषा में स्पिता आती है और भाव समझने में सुकविा होती है।
यहद कवराम जचह्नों का भी उजचत प्रयोग न ककया जाये तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
उदाहरिार्थ

(i) रोको, मत जाने दो। (ii) रोको मत, जाने दो।

उक्त उदाहरि से स्पि है कक कवराम जचह्न के प्रयोग की णभन्नता से अर्थ पररवतथन हो जाता
है।

हहन्दी में ननम्न कवराम जचह्न प्रयुक्त होते हैं :

1. अल्प कवराम ,

2. अद्धथ कवराम ;

3. अपूिथ कवराम :

4. पूिथ कवराम ।

5. प्रश्न सूचक जचह्न ?

6. सम्बोिन जचह्न !

7. कवस्मय सूचक जचह्न !

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8. अवतरि जचह्न/उद्धरि जचह्न/ उपररकवराम –

(i) इकहरा ' (ii) दुहरा "

9. योजक जचह्न / समासजचह्न _

10. ननदेशक _________

11. कववरि जचह्न :________

12. हंसपद/कवस्मरि जचह्न ^

13. संक्षेपि/लाघव जचह्न 0

14. तुल्यता सूचक/समता सूचक =

15. कोष्ठक () {} []

16. लोप जचह्न ………

17. इततश्री/समाण्डप्त सूचक जचह्न -0- -- --

18. कवकल्प जचह्न /

19. पुनरुनक्त जचह “ ”

20. संकेत जचह *

1. अल्पववराम ( , )

(i) वाक्य के भीतर एक ही प्रकार के शब्दों को अलग करने में राम ने आम, अमरुद,
केले आहद खरीदे।

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(ii) वाक्य के उपवाक्यों को अलग करने में

हवा चली, पानी बरसा और ओले नगरे ।

(iii) दो उपवाक्यों के बीच संयोजक का प्रयोग न ककये जाने पर

अब्दुल ने सोचा, अच्छा हआ जो मैं नहीं गया।

(iv) वाक्य के मध्य किया कवशेषि या कवशेषि उपवाक्य आने पर।

यह बात, यहद सच पूछो तो, मैं भूल ही गया र्ा।

(v) उद्धरि जचह्न के पूवथ भी।

उसने कहा, “मैं तुम्हें नहीं जानता।"

(vi) समय सूचक शब्दों को अलग करने में -


कल गुरुवार, 20 माचथ से परीक्षाएँ …………………….

िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -

EXAM (परीक्षा) DATE मारे िोट्स में से कट ऑफ


आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 91 of 150


PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

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RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100
2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

1st जशफ्ट

दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
youtube चैिि पर दे िें –

RAS PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=p3_i-3qfDy8&t=136s

VDO PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=gXdAk856WI8&t=202s

Patwari - https://www.youtube.com/watch?v=X6mKGdtXyu4&t=103s

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अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /

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अध्यार् – 4

• भाषा लशक्षण, भाषा लशक्षण के


उपागम, भाषार्ी दक्षता का
ववकास

लशक्षण ववनधर्ााँ :-

जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसका कियान्वयन पूवथ में ननिाथररत उद्देश्यों को पाने के
जलए ककया जाता है। जशक्षक पूवथ में ननिाथररत ककए गए उद्देश्यों की अनिकतम प्राण्डप्त के
जलए व अपनी कवषय - वस्तु की प्रदशथन को अनिक से अनिक प्रभावी बनाने के जलए
जशक्षि कवनियों का प्रयोग करता है।
इस प्रकार जशक्षि कवनियाँ जशक्षि-अनिगम की प्रकिया को शनक्तशाली बनाने वाले सािन
है- जॉन डीवी के अनुसार “जशक्षि पद्धतत वह कवनि है जजसके द्वारा इस पठन सामग्री को
व्यवस्त्रस्थत करके पररिाम को प्राप्त करते है । '
वैस्ले ने कहा की “जशक्षि पद्धतत जशक्षक द्वारा संचाजलत वह किया है जजससे कवद्यातर्ियों
को बोि व ज्ञान की प्राण्डप्त होती है । "
जशक्षि के संदभथ में डेकवस के कर्न भी महत्वपूिथ है - “कवद्यातर्ियों के कक्ष में जाने से पहले
तैयारी कर लेनी चाहहए, क्योंकक जशक्षक की समृनद्ध हेतु कोई बात इतनी बािक नहीं है
जजतनी की जशक्षि की अपूिथ तैयारी । "
एलन जैक्सन – एक जशक्षक को अपने जजम्मेदारी को ननभाने हेतु कवणभन्न प्रकार की
जशक्षि गततकवनियों को अपने कवद्यातर्ियों के सार् नमलकर सम्पन्न करनी होती हैं इन
गततकवनियों को सम्पन्न करने के जलए कवनिवत ननयोजन तर्ा कायाथन्वयन सम्बन्धी उजचत

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प्रकियों से गुजरना होता है 1 यह सब करने के जलए जशक्षक को अपने जशक्षि कायथ को
कुछ ननण्डश्चत सोपानों या अवस्थाओं में व्यवस्त्रस्थत करके आगे बढ़ाना होता है 1
जशक्षि की एलन जैक्सन ने ननम्न तीन अवस्थाएँ बताई है
1. जशक्षि पूवथ अवस्था - तैयारी या ननयोजन की अवस्था
2. जशक्षिगत अवस्था- कियान्वयन या जशक्षि की अवस्था
3. जशक्षि उपरान्त अवस्था- पूनरावृजत्त या मूल्यांकन की अवस्था

भाषा लशक्षण की ववनधर्ााँ


भाषा जशक्षि एक अत्यन्त चुनौतीपूिथ किया है लेककन उसके सार् – सार् यह आनंददायी
किया भी है। भाषा सीखने के मनोवैज्ञाननक चरि इस प्रकार है -
1. जजज्ञासा
2. प्रयत्न या तत्परता
3. अनुकरि
4. अभ्यास
जशक्षि में 'कवनियाँ' शब्द का उपयोग पढ़ाने की उन प्रकियाओं के जलए ककया जाता है
जजनकी सफलतापूिथ समाण्डप्त के पररिामस्वरूप कवद्यार्ी कुछ सीखता है या जजनके कारि
जशक्षि प्रभावशाली होता है। 'कवनियाँ' जशक्षक की अनेकों प्रकियाओं का एक समूह है।
'कवनियाँ' किया नहीं एक प्रकिया है 1

श्रीमती एस. के. कोचर िे अपिी पुस्तक 'मेर्ड्स एण्ड टे किीक्स ऑफ टीद्धचग
िं ' में
लशक्षण- कवनियों के महत्व की अत्यन्त उत्तम व्याख्या की है । वे अपने लेखन में जलखती
हैं," जजस प्रकार एक सैननक को युद्ध के कवणभन्न हतर्यारों का ज्ञान होना आवश्यक है उसी
प्रकार एक जशक्षक को भी जशक्षि की कवणभन्न कवनियों का ज्ञान होना आवश्यक है । ककस
समय कौन सी कवनि का प्रयोग ककया जाए, यह उनकी ननिथय शनक्त पर ननभथर है। " इस
प्रकार जशक्षि में जशक्षि कवनियों का अत्यनिक महत्व है जशक्षि कवनियों का ज्ञान सभी

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जशक्षकों को होना आवश्यक है। जशक्षि कवनियों जशक्षा के उद्देश्यों तर्ा मूल्यों से घननष्ठ
रूप से सम्बन्धन्धत है और जशक्षा प्राप्त करने में सहायक होती है ।

उत्तम लशक्षण ववनध की ववशेषताएाँ -

लशक्षण - कला में उपयोग में लायी जाने वाली उत्तम कवनि में ननम्न कवशेषताएँ होती है -
• कवनियाँ ऐसी हों जो कवद्यार्ी को कवषय - वस्तु के प्रतत प्रेररत करे ।
• कवनियाँ ऐसी हों जो कवद्यातर्ियों को जशक्षा का सकिय सदस्य बनाए । कवनियों में
आवश्यक स्थानों पर कवद्यार्ी द्वारा सम्पादन करने के जलए पयाथप्त कियाओं का होना
आवश्यक है ।
• कवनियाँ सुननण्डश्चत एवं उपयोग करने योग्य हो ।
• उत्तम कवनियाँ कलात्मक व व्यनक्तगत होती हैं। वे जशक्षक को वांनछत एवं अवांनछत का
ज्ञान कराती हैं ।
• उत्तम कवनियाँ कवद्यातर्ियों में वांनछत बदलाव लाती हैं और उनमें अच्छी आदतों एवं बातों
का ननमाथि करती हैं ।
• उत्तम-जशक्षि कवनियाँ वे हैं जो पूवथ - ननिाथररत उद्देश्यों की प्राण्डप्त में सहायक हो ।
जशक्षि कवनि, जशक्षि उद्देश्यों की प्राण्डप्त में सहायक होनी चाहहए।
• जशक्षि कवनि छात्रों में वैज्ञाननक पररपेक्ष्य उत्पन्न करने वाली तर्ा वैज्ञाननक कवनि से
कायथ करने का प्रजशक्षि देने वाली हो ।
• जशक्षि कवनि मनोवैज्ञाननक जसद्धान्तों का पालन करने वाली हो अर्ाथत् छात्र की योग्यता,
स्तर, , रुजच तर्ा आवश्यकताओं की पूतति करने वाली हो ।
• सजीव वातावरि बनाने में सहायता करता हो जो कवद्यातर्ियों को अन्त : किया के
अनिकतम अवसर देने वाली व उत्साहविथन वाली हो ।
• करके सीखने के जसद्धान्त अर्ाथत् कियाशीलता पर आिाररत होनी चाहहए।
• कम से कम समय लेने वाली तर्ा प्रभावी हो ।

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• जशक्षि कवनि में व्यावहाररकता होनी चाहहए अर्ाथत् उसे सरलता से उपयोग में जलया
जा सके। जशक्षि कवनि को गततशीलपूिथ होना चाहहए न कक स्त्रस्थर 1
• वह कवद्यातर्ियों में मानजसक गुिों के सार् - सार् शारीररक, सामाजजक व संवेगात्मक
गुिों का कवकास करने वाली अर्ाथत् सवाांगीि कवकास के अवसर देनी वाली हो ।
• कवनि जशक्षि सहायक सामणग्रयों के माध्यम से सरल व स्पिता लाने वाली हो जजससे
जशक्षक व कवद्यार्ी दोनों ईमानदारी व आत्मकवश्वास से जशक्षि प्रकिया में भाग लें तर्ा
यह कवद्यातर्ियों को रटने से कवनियाँ ऐसी हों करने वाली हो ।
• उत्तम कवनियाँ कवद्यातर्ियों में मानजसक तकथ, ननिथय तर्ा कवश्लेषि-शनक्त का कवकास
करती हैं तर्ा व्यनक्तगत कवणभन्नताओं को पूिथ मान्यता प्रदान करती हैं।

अिुकरण ववनध
सामान्यतः अनुकरि कवनि का प्रयोग जलष्टखत अनुकरि, उच्चारि अनुकरि एवं रचना
अनुकरि के रूप में ककया जाता है 1
➢ जलष्टखत अनुकरि :- जब छात्र के द्वारा जशक्षक के द्वारा जलष्टखत कायों का अनुकरि
ककया जाता है, उसे जलष्टखत अनुकरि कहा जाता है , जजसके ननम्न प्रकार हैं :
1. रूप-रे खा अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक के द्वारा अक्षरों व विों को जलखा जाता
है, जजनका अनुकरि करते हए छात्र उन्हीं आकृततयों पर पेन, पेंजसल घुमाता है । इसके
जलए मुहित अभ्यास पुस्त्रस्तकाओं का प्रयोग भी ककया जा सकता है ।
2. स्वतंत्र अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक के द्वारा श्यामपट्ट या अभ्यास पुस्त्रस्तका पर
अक्षर जलखे जाते हैं जजनको वैसा ही अनुकरि या जलखने को छात्र से कहा जाता है ।
➢ उच्चारि अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक ध्वननपूिथ या मौष्टखक रूप से कुछ शब्दों
का उच्चारि करता है, जजनका अनुकरि करते हए छात्र भी वैसा ही उच्चारि करता है।
रचना अनुकरि :- इसके अन्तगथत रचना को जजस भाषा व शैली में प्रस्तुत (नाटक, पद्य
व गद्य) करते हैं, छात्र उस रचना पर ……………………………….

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िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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• वाचि लशक्षण ववनधर्ााँ

जशक्षा-जगत् में वाचन की जशक्षा के जलए अनेक कवनियाँ प्रचजलत हैं , कवनि ।
"जजनमें से ननम्नजलष्टखत मुख्य हैं :
1. देखो और कहो कवनि ।
2. अक्षर-बोि कवनि 1
3. ध्वनन साम्य कवनि।
4. अनुध्वनन कवनि।
5. भाषा जशक्षि की यन्त्र - कवनि ।
6. समवेत पाठ कवनि ।
7. संगतत कवनि।

1. दे िो और क ो ववनध : इस कवनि में एक पूरा शब्द श्यामपट्ट पर जलख हदया जाता है


और अक्षरों की पहचान के स्थान पर शब्द के स्वरूप की पहचान कराई जाती है। इस
प्रिाली का सबसे बडा दोष यह है कक अव्यवहृत शब्दों के रूप और प्रयोग में िोखा हो
जाता । एक तो शब्दों की संख्या अपररनमत होती है : कहाँ तक उसका पररचय कराया
जाए। दूसरी बात यह कक र्ोडी-सी साविानी से 'ममथ का िमथ' अर्वा 'िमथ का िमथ' पढ़ा
जा सकता । अतः यह कवनि त्याज्य है।

2. अक्षर-बोध ववनध : इसमें विथमाला के अक्षरों का िम उच्चारि के स्थानानुसार


सज्जित है। जब विथ पहचान जलया जाता है तो छात्र को शब्द दे हदया जाता है ; जैसे: क,
म, ल अक्षरों से नमलकर 'कमल' शब्द । इस कवनि में इस प्रकार ऐसा अभ्यास कराया
जाए कक छात्र की दृष्टि पररनि सि जाए। अक्षर का स्वरूप उसे स्त्रस्थर न करना पडे, वरन्
देखते ही शब्द का स्वरूप उसकी दृष्टि पकड ले।

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3. ध्वनि-साम्य ववनध : इसमें एक समान उच्चररत होने वाले शब्द एक सार् जसखाए
जाते हैं, जैसे: श्रम, िम, भ्रम आहद। इनमें जान-बूझकर बालकों को ऐसे शब्द सीखने
पडते हैं, जजनको वह अपने व्यवहार में नहीं पाते। जैसै चमथ, कमथ, गमथ, वमथ
…………………………..

िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -

EXAM (परीक्षा) DATE मारे िोट्स में से कट ऑफ


आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

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राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 91 of 150


PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

whatsapp- https://wa.link/7mh1o2 62 website- https://bit.ly/reet-level-1-notes


RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100
2021
(2nd जशफ्ट)

U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

1st जशफ्ट

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• ह िंदी भाषा लशक्षण में चुिौबतर्ा :-

जशक्षि में चुनौततयों या समस्याओं से अणभप्राय जशक्षि की उन मूलभूत समस्याओं से है ,


जो जशक्षि के लक्ष्यों की प्राण्डप्त को बानित करती है । हहन्दी जशक्षि की समस्याएँ
(चुनौततयाँ) ननम्न हैं

हहन्दी भाषा के योग्य एवं अनुभवी जशक्षकों का अभाव ।


भाषायी अध्यापकों को भाषा जशक्षिशास्त्र एवं बल कवकास सम्बन्धी जसद्धान्तों का ज्ञान
ना होना ।
भाषायी अध्यापकों में नवाचारों एवं कवषय के प्रतत सकारात्मक न होना ।
कवषय सम्बन्धी अद्यतन, नवाचाररक, उपयोगी पाठ्यिमों का अभाव।
कवषय के प्रतत अध्यापक एवं जशक्षातर्ियों का उदासीन होना।
भाषा जशक्षि हेतु परम्परागत कवनियों एवं सािनों का प्रयोग करना ।
हहन्दी भाषा एवं पाठ्यिम का व्यवसानयकरि न होना।

लशक्षण -
जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसमें पूवथ ननिाथररत उद्देश्यों की अनिकतम प्राण्डप्त के
जलए जशक्षक, जशक्षार्ी एवं पाठयिम के मध्य से अन्तःकिया होती है। इस प्रकार जशक्षि
एक बत्रमुखी प्रकिया है जजसके जशक्षक, जशक्षार्ी एवं पाठयिम तीन चर होते है , जजनका
कायथ ननदान, उपचार एवं मूल्यांकन होता है।
जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसमें जशक्षक एवं जशक्षार्ी के मध्य पाठ्यिम के संदभथ
में अन्तः किया होती है जजसे कवद्वानों ने इस प्रकार पररभाकषत ककया है 1
"जशक्षि वह प्रकिया है, जजसमें अनिक पररपक्व व्यनक्तत्व कम कवकजसत व्यनक्तत्व के संपकथ
में आता है और कम कवकजसत व्यनक्तत्व की अणग्रम जशक्षा हेतु पररपक्व व्यनक्तत्व व्यवस्था
करता है" - एच.सी.

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"जशक्षि प्रकियाओं में पारस्पररक प्रभावों को सस्त्रम्मजलत ककया जाता है , जजसमें दूसरों की
व्यवहाररक क्षमताओं के कवकास का लक्ष्य होता है" - एन.एल. गेज
जशक्षि कवनि के आिार के रूप में प्रजसद्ध दाशथननक कवद्वान जॉन डीवी ने अनुभवों को
महत्वपूिथ माना है,
"ककसी भाषा को पढ़ने और जलखने की अपेक्षा बोलना सीखना सबसे छोटी पगडंडी को
पार करना है " - ककटसन
जशक्षि की प्रकृतत
जशक्षि की प्रकृतत को कर्न स्पि करते है →
जशक्षि एक उद्देश्यप्रद तर्ा सतत् प्रकिया है ।
जशक्षि एक कवकासात्मक प्रकिया है।
जशक्षि एक बत्रध्रुवीय प्रकिया है।
जशक्षि औपचाररक एवं अनौपचाररक प्रकिया है।
जशक्षि एक ननदेशनात्मक प्रकिया है।
जशक्षि एक प्रत्यक्ष प्रकिया है।
जशक्षि एक अंतःप्रकिया है।
जशक्षि एक सामाजजक तर्ा व्यावसानयक प्रकिया है।
जशक्षि कला तर्ा कवज्ञान दोनों है।
जशक्षि एक उपचार कवनि है।
जशक्षि एक ताककि क किया है।

लशक्षण को प्रभाववत करिे वािे तत्व -

जशक्षि को प्रभाकवत करने वाले कारक ननम्न हैं


छात्रों का मानजसक एवं शारीररक स्तर।
छात्रों की व्यनक्तगत कवणभन्नताएँ ।

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अध्यापक का व्यनक्तत्व एवं संप्रेषि कौशल।
कवषयवस्तु की प्रकृतत ।
जशक्षि के सािन
जशक्षि प्रकिया का ननयोजनात्मक प्रारूप ।
कक्षा व कवद्यालय का भौततक वातावरि 1
जशक्षि की कवनियाँ एवं व्यूह रचनाएँ 1

लशक्षण के लसधदाांत : -

जशक्षक को जशक्षि करते समय ननम्नांककत जसद्धांतों को प्रमुख रूप से ध्यान में रखना
चाहहए
जीवन से संबंि स्थाकपत करने का जसद्धांत - इस जसद्धांत का अर्थ है कक कवषयवस्तु का
छात्रों के वास्तकवक जीवन से संबंि स्थाकपत ककया जाये। जब उनके पयाथवरिों से कवषयवस्तु
का संबंि स्थाकपत कर हदया ………………….

िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /

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अध्यार् – 6
• भाषा लशक्षण में मूल्ाांकि

बालक के व्यनक्तत्व के सभी पक्षों के कवकास – स्तर का सही – सही मूल्य आँकने के
जलए जशक्षाकवदों नए एक नवीन उपागम को अपनाया है, जजसे “मूल्यांकन” की संज्ञा दी
गई है 1

मूल्ाांकि –
मूल्यांकन एक सतत चलने वाली व् उद्देश्यप्रद प्रकिया है जजसकी प्रकृतत सुिारात्मक होती
है 1 मूल्यांकन के द्वारा कवद्यार्ी के सन्दभथ में शैक्षक्षक पररिामों एवं प्रगतत की जाँच की
जाती है 1 इसके द्वारा शैक्षक्षक पररस्त्रस्थततयों तर्ा इसमें प्रयोग की जाने कवनियों एवं सािनों
की उपादेयता की जाँच की जाती है 1

पहरभाषा –
ब्लूम की अिुसार – “मूल्यांकन योग्यता ननयंत्रि की व्यवस्था है जजसमें जशक्षि एवं
अनिगम प्रकिया की प्रभावशीलता की जाँच होती है 1
कोिारी आर्ोग के अिुसार – मूल्यांकन एक सतत प्रकिया है जो जशक्षा का अणभन्न अंग
है तर्ा जशक्षि उद्देश्यों के सार् घननष्ठ संबंि है 1

मूल्ाांकि के प्रकार –
जशक्षा व्यापार को व्यापक सन्दभथ में रखकर उसके तीन ननण्डश्चत चरि माने जाते जा
सकते है : पाठपूवथ, पाठप्रकिया और पाठपश्च और तदनुरूप भाषा जशक्षि के सन्दभथ में
ननयोजजत कवणभन्न प्रकार के मूल्यांकन को भी वगीकृत ककया जाता है 1

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पाठप्रकिया पाठपश्च
पाठपूवथ

प्रवेश अणभक्षमता वगथननिाथरि ननदानात्मक


उपलन्धि दक्षता
मूल्यांकन मूल्यांकन मूल्यांकन मूल्यांकन
मूल्यांकन मूल्यांकन

मूल्ाांकि की ववशेषताएाँ -

मूल्यांकन जशक्षा के ननिाथररत उद्देश्यों की प्राण्डप्त की दृष्टि से महत्वपूिथ होता है, इसके
माध्यम से यह ज्ञात ककया जाता है कक उद्देश्यों की प्राण्डप्त ककस मात्र में हई है 1 मूल्यांकन
की कवशेषताएँ ननम्न होती है 1

1. िमबिता
मूल्यांकन कायथिम में िनमकता या िमबद्धता का कवशेष महत्व है। मूल्यांकन में
िनमकता न होने पर जशक्षार्ी या कायथकताथ को अपनी प्रगतत के बारे में अन्त तक कोई
सूचना नहीं नमल पाती है। अत: इसके अभाव में जशक्षार्ी में कायथ के प्रतत त्रुकटपूिथ
अणभव्यनक्त कवकजसत हो सकती है , वह त्रुकटपूिथ कायथकवनि अपना सकता है तर्ा गलत
ननष्कषथ ननकाल सकता है।
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मूल्यांकन कायथ के िम में ननण्डश्चतता का होना भी आवश्यक है। जजस
प्रकार पाठ्यिम के उद्देश्यों में पूवथ संबंि होता है तर्ा जजस प्रकार उन्हें महत्त्व के िम में
व्यवस्त्रस्थत ककया जाता है, उसी प्रकार का िम उनकी जांच में भी रहना चाहहए।
उदाहरिार्थ, यहद संकल्प नाव को तथ्यों से अनिक महत्वपूिथ माना गया है , तो मूल्यांकन
कायथ में भी महत्त्व के उसी िम को बनाए रखना चाहहए।

वस्तुनिष्ठता
एक उत्तम परीक्षा का वस्तुननष्ठ होना अतत आवश्यक है। वस्तुननष्ठता का अर्थ यह है कक
मूल्यांकन में व्यनक्तगत पक्षों का प्रभाव नहीं होना चाहहए। स्पि है कक ज्ञानात्मक क्षेत्र में
मूल्यांकन में वस्तुननष्ठता भावात्मक क्षेत्र की तुलना में अनिक होगी। ज्ञानात्मक क्षेत्र में
यह उच्च स्तर की अपेक्षा ननम्न स्तर पर अनिक वस्तुननष्ठ होगा।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कक जकटल अनिगम प्रकिया के मापन के जलए जब
तक संतोषजनक पररभाषाएं कवकजसत नहीं हो पाती तब तक पयाथप्त सीमा तक हमें
कवशेषज्ञों द्वारा ककए गए मूल्यांकन पर ही ननभथर रहना होगा। यहां पर यह बात भी
महत्वपूिथ है कक आत्मननष्ठता और वस्तुननष्ठता में परस्पर उतना कवरोि नहीं है जजतना
प्राय: समझा जाता है।
यह दोनों वास्तव में एक ही सीढ़ी के दो पद हैं। अत: लक्ष्य यह होना चाहहए कक
मूल्यांकन के उपकरिों को यर्ासंभव अनिक से अनिक वस्तुननष्ठ बनाया जाए। इसके
सार् ही इस बात पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है कक ककसी मूल्यांकन कायथ
को उससे अनिक वस्तुननष्ठ न मान जलया जाए। जजतना कक वह वास्तव में है।

3. ववश्वसिीर्ता
एक अच्छा मूल्यांकन कवश्वसनीय भी होना चाहहए। इसका तात्पयथ यह है कक बार-बार
तर्ा अनेक लोगों द्वारा मूल्यांकन ककए जाने पर भी उसके ननष्कषों में कोई अंतर नहीं
आए। अतः स्पि है कक कवश्वसननयता के जलए वस्तुननष्ठता एक पूवथ आवश्यकता है।
इसजलए ननबंिात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुननष्ठ परीक्षा अनिक कवश्वसनीय होती है।
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वैधता
एक उत्तम परीक्षि का वैि होना भी आवश्यक है। वैिता से तात्पयथ परीक्षि की सार्थकता
से है अर्ाथत परीक्षि जजस मापन के जलए बनाया गया है , उसे ही उसका ……………………

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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -

EXAM (परीक्षा) DATE मारे िोट्स में से कट ऑफ


आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

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राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 91 of 150


PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

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U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

1st जशफ्ट

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ह िंदी ( भाषा – II )
अध्यार् – 7

• अपठित गद्ाांश

निम्नलिखित गद्ाांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीलजए :

गांिी जी अपने सहयोनगयों को श्रम को गररमा को सीख हदया करते र्े । दक्षक्षि अफ्रीका
में भारतीय लोगों के जलए संघ, करते हए उन्होंने सफाई करने जैसे कायथ को गररमामय
मानते हए ककया । बाबा आम्टे ने समाज द्वारा ततरस्कृत कुष्ठ रोनगयों की सेवा में अपना
समस्त जीवन समकपित कर हदया । इनमें से ककसी ने भी कोई सत्ता प्राप्त नहीं की, बल्कल्क
अपने जनकल्यािकारी कायों से लोगों के हदलों पर शासन ककया 1 गाँिीजी का स्वतंत्रता
के जलए संघषथ उनके जीवन का एक पहलू है ; ककन्तु उनका मानजसक क्षक्षततज वास्तव में
एक राष्ट्र की सीमाओं से बँिा हआ नहीं र्ा । उन्होंने सभी लोगों में ईश्वर के दशथन ककए
। वे सही अर्ों में नायक र्े ।

• ‘ज ााँ धरती और आकाश नमिते हुए ठदिाई दे ते ै’ वाक्याांश के लिए एक शब्द ै–

( 1 ) कवकपन ( 2 ) पारावार
(3 ) महानद (4 ) क्षक्षततज उत्तर : - ( 4)

• ‘उन्होंिे सभी िोगों में ईश्वर के दशाि ठकए’ वाक्य में रे िाांठकत शब्द ै 1
(1) सवथनाम (2) भाववाचक संज्ञा

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(3) जाततवाचक संज्ञा (4) व्यनक्तवाचक संज्ञा उत्तर: - (3)

• उन्होंिे अपिे जिकल्ाणकारी कार्ों सी िोगों के ठदिों पर शासि ठकर्ा 1’ ठदए


गए वाक्य में काि ै
(1) आसन्न भूतकाल
(2) संहदग्ध भूतकाल
(3) सामान्य भूतकाल
(4) पूिथकाल उत्तर:- (4)
• ‘बतरस्कृत’ शब्द का सांनध – ववच्छेद ोगा –
(1) ततरस् + कृत
(2) ततरस्कृ + त
(3) ततर + कृत
(4) ततर: + कृत उत्तर : - (4)

प्रश्न के उत्तर निम्र गद्ाांश के आधार पर दीलजए -

फ्रांस के प्रजसद्ध दाशथननक रोमा रोलां ने कहा र्ा कक पूवथ में एक भयंकर आग लगी है , जो
कक वहाँ के अंिकवश्वास एवं कुरीततयों ……………………….

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• र्ुग्म शब्द

कुछ शब्द ऐसे होते हैं जजनका उच्चारि एक समान होता है , लेककन उनके अर्थ में भेद
होता हैं । इन्हें श्रुततसम णभन्नार्थक शब्द अर्वा युग्म शब्द अर्वा सोच्चाररप्राय णभन्नार्थक
शब्द कहते हैं। इनके उदाहरि

शब्द अर्थ

1. अम्ब माता, आम अंबु, अंभ जल

2. अंत्य नीच, अंततम, अंत, समाण्डप्त

3. अंश हहस्सा अंस , कंिा

4. अँगना आँगन, अंगना, स्त्री

5. अंिकारी जशव अंिकारी भैरव राग के एक

स्त्री

6. अंबुज कमल अंबुनि , सागर

7. अकवराम लगातारअणभराम , सुन्दर

8. अनल आग अननल हवा

9. अिु कि अनु पीछे

10. अन्न अनाज

11. अशन भोजन आसन ,बैठने की वस्तु

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12. अवध्य जो वि के योग्य

न हो अवंि ननन्दनीय

13. अवदान ननमथल, सफेद

उदात्त ऊँचा

14. आवृजत्त बेकारी आवृजत्त , दुहराना

15. अपेक्षा इच्छा, तुलना में, उपेक्षा ननरादर

16. अपथ्य जो बीमार के

अनुकूल न हो

अपत्य संतान

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• ठिर्ा
पहरभाषा:- जजस शब्द से ककसी काम का होना, करना, पाया जाये वह किया कहलाती
हैं ।

नोट:- िातु को मूलतः किया के मूल रूप को कहा जाता है अर्ाथत् किया के मूलरूप
को िातु कहते हैं ।

किया का ननमाथि:- िातु में ‘‘ना’’ प्रत्यय जोडने से किया बनती हैं ।

िातु प्रत्यय किया

चल ना चलना

पढ़ ना पढ़ना

हंस ना हंसना

रो ना रोना

ठिर्ा के भेद र्ा प्रकार - (02)

किया दो प्रकार की होती है या रचना या बनावट के आिार पर किया दो प्रकार की


होती हैं ।

• सकमाक ठिर्ा
• अकमाक ठिर्ा
• सकमाक ठिर्ा:- जजस किया में कमथ हो या कमथ के होने की संभावना हो और
किया का प्रभाव या पाल सीिे कमथ पर पडे तो या कमथ की संभावना पर पडे तो
वह सकमथक किया कहलाती हैं ।

उदाहरि:- राम फल खाता है ।

राम गाना गाता है ।

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राम पत्र जलखता है ।

• अकमाक ठिर्ा:- जजस किया में कमथ न हो या किया का फल या प्रभाव सीिे


कताथ पर पडे तो उसे अकमथक किया कहते हैं ।

Trick:- अगर काम खुद पर हो तो अकमथक होगी

उदाहरि:- हंसना, जागना, रोना, सोना, नाचना, ओढ़ना, कपसना आहद ।

किया के अन्य भेद या प्रकार

• पूवथकाजलक किया
• हद्वकमथक किया
• संयुक्त किया
• प्रेरिार्थक किया
• सहायक किया

पूवाकालिक ठिर्ाः- जब कताथ एक किया को समाप्त करके दूसरी किया प्रारम्भ


……………………..

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अध्यार् – 8
• अपठित पद्ाांश

पद्ाांश – 1

कववता की पांद्धिर्ााँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए :-

"यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को ।”

चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी-स्वरको ।

सबने रानी की ओर अचानक देखा,

वैिव्य-तुषारावृत्त यर्ा कविु-लेखा ।

बैठी र्ी अचल तर्ाकप असंख्य तरं गा,

वह जसिंही अब र्ी हहा! गौमुखी गंगा ।

"हाँ, जनकर भी मैंने न भरत को जाना,

सब सुन लें, तुमने स्वयं अभी यह माना ।

यह सच है तो हफर लौट चलो घर भैया,

अपरानिन मैं हँ तात, तुम्हारी मैया ।

दुबथलता का ही जचह्न कवशेष शपर् है,

पर, अबलाजन के जलए कौन-सा पर् है ?

यहद मैं उकसाई गई, भरत से होऊँ,

तो पतत समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ ।

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• 'र्ठद मैं उकसाई गई, भरत से ोऊाँ, तो पबत समाि ी स्वर्ां पुत्र भी िोऊाँ ।'
र् ााँ कैकेर्ी ै -

(1) आश्रय कवभाव

(2) आलम्बन कवभाव

(3) उद्दीपन कवभाव

(4) उक्त कोई नहीं उत्तर : - (1)

व्याख्या- यहाँ करुि रस का कविान है। करुि रस का स्थायी भाव कवषाद होता है। जजस
व्यनक्त के मन में रस के स्थायी भाव- ननवेद, घृिा, भय, रतत, कवषाद आहद जाग्रत होते हैं,
उसे आश्रय कवभाव कहते हैं । प्रस्तुत पंनक्त में कैकेयी के मन में कवषाद का भाव जाग्रत
हआ है। इसजलए कैकेयी आश्रय कवभाव है।

• भाव-लशल्प की दृष्टष्ट से ठकस पांद्धि में भाव सांनध ै ?

(1) यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को ।

( 2 ) वह जसिंही अब र्ी, हहा! गौमुखी गंगा ।

(3) अपरानिन मैं हँ तात तुम्हारी मैया ।

(4) तो पतत समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ उत्तर : - (2)

व्याख्या- जहाँ समान चमत्कार वाले दो भावों का विथन एक सार् ककया जाता है , वहाँ
भाव संनि होती है। यहाँ 'वह जसिंही अब र्ी, हहा!' में करुि कविान होने के कारि 'कवषाद'
का भाव है तर्ा 'गौमुखी गंगा' में शांत रस का कविान होने के कारि 'ननवेद' का भाव है।
अतः 'कवषाद' एवं 'ननवेद' दो भावों के एक सार् आने के कारि ………

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िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /

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आर्े हुए प्रश्न

RAS PRE. 2021 27 अक्तूबर 74 (98 MARKS) 64 (84.9 M.)

राजस्थाि S.I. 2021 13 जसतम्बर 113 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 14 जसतम्बर 119 of 200 117

राजस्थाि S.I. 2021 15 जसतम्बर 126 of 200 117

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RAJASTHAN 23 अक्तूबर 79 of 150
PATWARI 2021
(Ist जशफ्ट)

RAJASTHAN 23 अक्तूबर 103 of 150


PATWARI 2021 (2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN 24 अक्तूबर 95 of 150


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(Ist जशफ्ट)

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PATWARI 2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 59 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 27 हदसंबर 61 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 56 of 100


2021
(1st जशफ्ट)

RAJASTHAN VDO 28 हदसंबर 57 of 100


2021
(2nd जशफ्ट)

U.P. SI 2021 14 नवम्बर 2021 91 of 160

1st जशफ्ट

U.P. SI 2021 21 नवम्बर 2021 89 of 160

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1st जशफ्ट

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VDO PRE. - https://www.youtube.com/watch?v=gXdAk856WI8&t=202s

Patwari - https://www.youtube.com/watch?v=X6mKGdtXyu4&t=103s

अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /

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• कारक

पहरभाषा:- ‘कारक’ शब्द का शाब्दब्दक अर्थ होता हैं ‘करनेवाला’ ककन्तु व्याकरि में यह
एक पाररभाकषक शब्द हैं । जब ककसी संज्ञा या सवथनाम पद का सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त
अन्य पदों, कवशेषकर किया के सार् जाना जाता हैं , उसे कारक कहते हैं ।

कवभनक्त:- कारक को प्रकट करने के जलए संज्ञा या सवथनाम के सार्, जो जचन्ह लगाया
जाता हैं, उसे कवभनक्त कहते हैं । प्रत्येक कारक का कवभनक्त जचन्ह होता है, ककन्तु हर कारक
के सार् कवभनक्त जचन्ह का प्रयोग, हो, यह आवश्यक नही है ।

प्रकार:- हहन्दी में कारक आठ प्रकार के होते हैं ।

र्र्ा -

1. कताथ 2. कमथ 3. करि 4. सम्प्रदान 5. अपादान 6. सम्बन्ध 7. अनिकरि 8. सम्बोिन।

1. कताा कारक: (िे)

संज्ञा या सवथनाम का वह रूप जो किया (कायथ) के करने वाले का बोि कराता हैं अर्ाथत्
किया के करने वाले को कताथ कारक कहते हैं । कताथ कारक का कवभनक्त जचन्ह ‘ने’ कवभनक्त
का प्रयोग कताथ कारक के सार् केवल भूतकाजलक किया होने पर होता हैं । अतः वतथमान
काल, भकवष्य काल तर्ा किया के अकमथक होने पर ‘ने’ कवभनक्त का प्रयोग नहीं होगा ।

जैसे अणभषेक पुस्तक पढ़ता हैं । गुंजन हॅंसती हैं । वषाथ गाना गाती हैं । आलोक ने पत्र
जलखा ।

2. कमा कारक: (को)

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वाक्य में जजस शब्द पर किया का फल पडता है, उसे कमथ कारक कहते हैं । कमथ कारक
का कवभनक्त जचन्ह हैं ‘को’ । कमथकारक शब्द सजीव हो तो उसके सार् ‘को’ कवभनक्त लगती
हैं, ननजीव कमथ कारक के सार् नहीं । जैसे - राम ने रावि को मारा । नन्दू दूि पीता है ।

3. करण कारक: (से)

वाक्य में कताथ जजस सािन या माध्यम से किया करता हैं अर्ाथत् किया के सािन को
करि कारक कहते हैं । करि कारक का कवभनक्त जचन्ह ‘से’ हैं ।

जैस-े ज्योत्स्ना चाकू, से सब्जी काटती हैं । मैं पेन से जलखता हं ।

4. सम्प्रदाि कारक (के लिए, को, के वास्ते)

सम्प्रदान शब्द का अर्थ है देना । वाक्य में कताथ जजसे कुछ देता हैं अर्वा जजसके जलए
किया करता है, उसे सम्प्रदान कारक …………………..

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