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भाग 1 हिंदी भाषा 1 2 min
भाग 1 हिंदी भाषा 1 2 min
ly/reet-level-1-notes
ह िंदी ( भाषा – 1 )
अव्यर्
ववकास
शुद्धि
भाव सौंदर्ा
िाद सौंदर्ा
लशल्प सौंदर्ा
का ववकास
उपचारात्मक लशक्षण
गद्ाांश – 1
निम्न गद्ाांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए :
हम लोग जब हहन्दी की 'सेवा' करने की बात सोचते हैं , तो प्रायः भूल जाते हैं कक यह
लाक्षणिक प्रयोग है । हहन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव समाज की सेवा, जजसके कवचारों
के आदान-प्रदान का माध्यम हहन्दी है। मनुष्य ही बडी चीज है , भाषा उसी की सेवा के जलए
है । साहहत्य सृष्टि का भी यही अर्थ है । जो साहहत्य अपने आप के जलए जलखा जाता है
उसको क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहहत्य मनुष्य समाज को रोग-शोक,
दाररद्र्य, अज्ञान तर्ा परमुखापेक्षक्षता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है , वह
ननश्चय ही अक्षय-नननि है।
• ‘परमुिापेष्टक्षता’ का अर्ा ै
• ‘कीमत’ की बहुवचि ै 1
(1) कीमती (2) कीमतों
(3) ककमतों (4) ककम्मत उत्तर : - (2)
• ‘माध्यम’ का बहुवचि ै 1
(1)मध्यमा (2) माध्यनमक
(3) मध्यम (4) माध्यमों उत्तर : - (4)
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /
1st जशफ्ट
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दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
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इसे प्रततशब्द भी कहते हैं । जजन शब्दों के अर्थ में समानता होती है , उन्हें हम पयाथयवाची
शब्द अर्वा प्रततशब्द कहते हैं । हहन्दी में तत्सम पयाथयवाची शब्द ही अनिक पाए जाते हैं
जो संस्कृत से हहन्दी में आए हैं । हहन्दी में तद्भव पयाथयवाची शब्दों का अभाव है। कुछ
प्रमुख पयाथयवाची शब्दों के उदाहरि नीचे हदये जा रहे हैं -
अ)
शब्द पर्ाार्
मन्मर् ।
अनल- 'अणि' ।
मरुत् ।
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /
अच्छी रचना के जलए आवश्यक है कक कम से कम शब्दों में कवचार प्रकट ककए जाए। और
भाषा में यह सुकविा भी होनी चाहहए कक वक्ता या लेखक कम से कम शब्दों में अर्ाथत्
संक्षेप में बोलकर या जलखकर कवचार अणभव्यक्त कर सके। कम से कम शब्दों में
अनिकानिक अर्थ को प्रकट करने के जलए ‘वाक्यांश या शब्द–समूह के जलए एक शब्द’
का कवस्तृत ज्ञान होना आवश्यक है। ऐसे शब्दों के प्रयोग से वाक्य–रचना में संक्षक्षप्तता,
सुन्दरता तर्ा गंभीरता आ जाती है। भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर
हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकषथक बनाते हैं 1
▪ ककसी आदरिीय का स्वागत करने के जलए चलकर कुछ आगे पहँ चना - अगवानी
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
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राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
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उपसगा की पहरभाषा – वे शब्दांश , जो ककसी शब्द के आरम्भ में लगकर उनके अर्थ में
कवशेषता ला देते हैं |
ननबंि = नन + बंि
पररजन = परर + जन
उनतीस = उन + तीस
दुकाल = दु + काल
ननभथय = नन: + भय
अभ्यास = अणभ + आस
………………….
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
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राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
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समस्त पद के सभी पदों को अलग अलग ककए जाने की प्रकिया को समास कवग्रह
कहलाती है।
समास वह शब्द रचना है जजसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र सम्बन्ध रखने वाले
दो या दो से अनिक शब्द नमलकर ककसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते है।
सामाजसक शब्द में आए दो पदों में पहले पद को पूवथपद तर्ा दूसरे पद को उत्तरपद
कहते हैं। ।
जैसे:-
(घ) दोनों पद अप्रिान - बहव्रीहह (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रिान होता है)
िोट:
भारतीय भाषा में कुछ ऐसे शब्द है जजनके रुप में जलिंग, वचन के अनुसार पररवतथन या
कवकार उत्पन्न नहीं होता है , उन्हें अव्यय शब्द या अकवकारी शब्द कहते हैं।
जैसे –यर्ा, तर्ा, यदा, कदा, आ, प्रतत , जब, तब, भर, यावत , हर आहद।
जजस समास में पहला पद अर्ाथत पूवथपद प्रिान तर्ा अव्यय होता है , उसे अव्ययीभाव
समास कहते है1
पहचान- सामाजसक पद (समस्त पद) मे यर्ा, आ, अनु, प्रतत, भर, तर्ा, यदा, कदा, जब,
तब, यावत, हर आहद शब्द आते हैं।
समस्त पद - कवग्रह
आमरि - मरने तक
आसेतु - सेतु तक
आजीवन - जीवन भर
आसमुि - समुि तक
हो/जजतना सम्भव हो
सके
उजचत हो
यर्ािम - िम के अनुसार
भरपेट - पेट भर के
हार्)
रं ग - रं ग - प्रत्येक रं ग के
एकाएक - एक के बाद एक
दो – दो - दोनों दो | प्रत्येक
दोनों
नए – नए - बबल्कुल नए
/ प्रत्येक करके
प्रतत एक - प्रत्येक
एक - एक - हर एक / प्रत्येक
मनचाहे - मन के अनुसार
मात्र - केवल एक
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राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -
1st जशफ्ट
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अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /
सभी सांज्ञा
जाते हैं सवथनाम कहलाते हैं, अर्ाथत् ककसी वाक्य में एक ही शब्द की बार-बार पुनरावृजत्त
न हो इसके जलए संज्ञा के स्थान पर जजन शब्दों का प्रयोग ककया जाता हैं, सवथनाम
कहलाता हैं ।
1. पुरूषवाचक सवथनाम
2. ननश्चयवाचक सवथनाम
3. अननश्चयवाचक सवथनाम
5. प्रश्नवाचक सवथनाम
6. ननजवाचक सवथनाम
1. पुरूषवाचक सवािाम:- जजन सवथनाम शब्दों का प्रयोग बोलने वाले वक्ता, सुनने वाले
श्रोता या ककसी अन्य के जलए प्रयोग ककया जाता हैं , पुरूषवाचक सवथनाम कहते हैं, जैसे
1. उत्तम पुरूष
2. मध्यम पुरूष
3. अन्य पुरूष
1. उत्तम पुरूषवाचक सवािामः- वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला वक्ता/व्यनक्त
अपने जलए करता हैं, उत्तम पुरूष वाचक सवथनाम कहलाते हैं -
2. मध्यम पुरूष वाचक सवािाम - वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला
वक्ता/व्यनक्त सुनने वाले श्रोता/ व्यनक्त के जलए प्रयोग करता हैं , मध्यम पुरूषवाचक सवथनाम
कहलाते हैं, जैंसे -
3. अन्य पुरूषवाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जजनका प्रयोग बोलने वाला वक्ता और
सुनने वाला श्रोता ककसी अन्य व्यनक्त के जलए प्रयोग करते हैं , अन्य पुरूषवाचक सवथनाम
कहलाते हैं|
2. निश्चर्वाचक सवािाम:- वे सवथनाम शब्द जो ककसी ननण्डश्चत वस्तु का बोि कराते हैं ,
ननश्चय वाचक सवथनाम कहलाते हैं ।
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अपठित
गद्ाांश – 1
निम्न गद्ाांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए:
कोई भी समाज शून्य में जीकवत नहीं रह सकता। उसे अपने लोगों, अपने पशुओ,ं अपनी
जमीन, अपने पेड-पौिों, अपने कुएँ , अपने तालाबों, अपने खेतों के जलए कोई-न-कोई
ऐसी व्यवस्था बनानी पडती है , जो समयजसद्ध और स्वयंजसद्ध हो । काल के ककसी खि
कवशेष में समाज के सभी सदस्यों के सार् नमल 5-जुलकर, पाल-पोसकर बडा करते हैं
और मजबूत बनाते हैं। अपने ऊपर खुद लगाया हआ यह अनुशासन एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी को सौंपा जाता है।
• जमीि का पर्ाार्वाची ि ीं ै –
(A) पृथ्वी (B) िरती
गद्ाांश – 2
कुसुम शाम को मंहदर में दशथन करते हए घर गई। वह देर तक गीत गाती रही। उसे समय
का पता ही न र्ा । आिी रात बीत गई। उसने जसतार बजाई । हफर भी उसका मन न
लगा। उसने टहलना शुरू ककया, रात ककसी तरह कटी । सुबह उसकी आँखें नींद से
बोष्टझल हो रही र्ीं। वह देर तक सोती रही। माँ ने आकर जगाया और कलेवा करने के
जलए कहा। जैसे तैसे वह उठी, नहाई और साइककल से कॉलेज के जलए चली। कॉलेज में
उसकी सखी ने घी के परोठे ष्टखलाये । कुसुम के संगीत प्रेम की कॉलेज में छात्र ही नहीं,
पररवार में मामा, चाचा, नाना और भाई-बहन भी प्रशंसा करते हैं।
गद्ाांश – 3
"जशक्षा' बहत व्यापक शब्द है। उसमें सीखने योग्य अनेक कवषयों का समावेश हो सकता
है। पढ़ना-जलखना भी उसी के अंतगथत है। इस देश की वतथमान जशक्षा प्रिाली अच्छी नहीं।
इस कारि यहद कोई स्त्रस्त्रयों को पढ़ाना अनर्थकारी ……………………………
बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -
1st जशफ्ट
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वचि के दो भेद ैं –
1 एकवचन , 2 बहवचन ।
का बोि होता है , उसे वचन कहते हैं। जैसे – मेज , कुसी , राम , नदी , पवथत आहद।
बहुवचि – जजन शब्दों से बहत सी वस्तुओ ं का बोि होता है , उसे बहवचन कहा जाता
है – कुजसियां , पक्षक्षयों , जानवरों , लडकों आहद।
एकवचि बहुवचि
एकवचि बहुवचि
(ख) बडप्पन के जलए भी कई बार वे , म आहद शब्दों का प्रयोग ककया जाता है जैसे –
कतााकारक – शब्द के जजस रुप से किया के करने का बोि हो उसे कताथ कारक कहते
हैं , इसका जचन्ह ‘िे’ है। ने जचन्ह कभी नहीं लगता है तो कभी लगता है।
कमाकारक – इससे किया के फल भोगने का बोि होता है इसकी कवभनक्त ‘को’ है।
करण कारक – जजसके द्वारा किया पूरी की जाती है उस संज्ञा को करि कारक कहते हैं।
सांप्रदाि कारक – जजसके जलए किया की जाती है उसे संप्रदान कारक कहते हैं इसकी
कवभनक्त को , के , लिए है।
अपादाि कारक – जहां से कोई वस्तु अलग हो उसे अपादान कारक कहते हैं।
अनधकरण कारक – संज्ञा के जजस रूप से आिार प्रकट होता है उसे अनिकरि कारक
कहते हैं इसकी कवभनक्त ‘ मे ‘ पर है।
सांबोधि कारक – संज्ञा के जजस रुप से ककसी को संबोनित ककया जाता है वह संबोिन
कारक कहलाता है जजसका जचन्ह – ‘ े’ , ‘रे ’ है।
एकवचि बहुवचि
लडका लडके
रुपया रुपए
कौआ कौए
कुत्ता कुत्ते
गिा गिे
तरबूजा तरबूजे
काल के भेद - 03
➢ भूतकाल -06
➢ वतथमान काल - 05
➢ भकवष्य काल – 03
• भूतकाि
:- जजस किया से उसके बीते हये समय के होने की पूिथता या अपूिथता का बोि हो तो
वह भूतकाल कहलाता हैं
(1) सामान्य भूत व उसकी प चाि:- िातु में या/यी/ये/ई/आ अर्वा चुका/चुकी/चुके
आहद ।
उदाहरि -
उदाहरि:-
िातु में या र्ा / यी र्ी / ये र्े / चुका र्ा / चुकी र्ी / चुके र्े आहद ।
उदाहरि:-
िातु में आ होगा / या होगा / यी होगी / ये होंगे / अर्वा चुका होगा / चुकी होगी /
चुके होंगे
उदा रण:-
(6) ेतु मद भूतकाि व उसकी प चाि:- यहॉं पर एक काम दूसरे पर ननभथर करता
हैं ।
उदाहरि:-
वतामाि काि
उदाहरि:-
➢ मै खाना खाता हं ।
➢ वह गाना गाता हैं ।
➢ तुम ककताब पढ़ते हो ।
• तात्कालिक र्ा अपूणा वतामाि काि:- िातु में रहा हैं / रही है / रहे हैं / रहा हं
उदाहरि:-
कवराम शब्द का शाब्दब्दक अर्थ होता है ठहराव। एक व्यनक्त अपनी बात कहने के जलए उसे
समझाने के जलए, ककसी कर्न पर बल देने के जलए आश्चयथ आहद भावों की अणभव्यनक्त
के जलए, कहीं कम समय के जलए तो कहीं अनिक समय के जलए ठहरता है। भाषा के
जलष्टखत रूप में उक्त ठहरने के स्थान पर जो ननण्डश्चत संकेत जचह्न लगाए जाते हैं उन्हें
कवराम जचह्न कहते हैं।
कवराम जचह्न के प्रयोग से भाषा में स्पिता आती है और भाव समझने में सुकविा होती है।
यहद कवराम जचह्नों का भी उजचत प्रयोग न ककया जाये तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
उदाहरिार्थ
उक्त उदाहरि से स्पि है कक कवराम जचह्न के प्रयोग की णभन्नता से अर्थ पररवतथन हो जाता
है।
1. अल्प कवराम ,
2. अद्धथ कवराम ;
3. अपूिथ कवराम :
4. पूिथ कवराम ।
6. सम्बोिन जचह्न !
15. कोष्ठक () {} []
1. अल्पववराम ( , )
(i) वाक्य के भीतर एक ही प्रकार के शब्दों को अलग करने में राम ने आम, अमरुद,
केले आहद खरीदे।
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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लशक्षण ववनधर्ााँ :-
जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसका कियान्वयन पूवथ में ननिाथररत उद्देश्यों को पाने के
जलए ककया जाता है। जशक्षक पूवथ में ननिाथररत ककए गए उद्देश्यों की अनिकतम प्राण्डप्त के
जलए व अपनी कवषय - वस्तु की प्रदशथन को अनिक से अनिक प्रभावी बनाने के जलए
जशक्षि कवनियों का प्रयोग करता है।
इस प्रकार जशक्षि कवनियाँ जशक्षि-अनिगम की प्रकिया को शनक्तशाली बनाने वाले सािन
है- जॉन डीवी के अनुसार “जशक्षि पद्धतत वह कवनि है जजसके द्वारा इस पठन सामग्री को
व्यवस्त्रस्थत करके पररिाम को प्राप्त करते है । '
वैस्ले ने कहा की “जशक्षि पद्धतत जशक्षक द्वारा संचाजलत वह किया है जजससे कवद्यातर्ियों
को बोि व ज्ञान की प्राण्डप्त होती है । "
जशक्षि के संदभथ में डेकवस के कर्न भी महत्वपूिथ है - “कवद्यातर्ियों के कक्ष में जाने से पहले
तैयारी कर लेनी चाहहए, क्योंकक जशक्षक की समृनद्ध हेतु कोई बात इतनी बािक नहीं है
जजतनी की जशक्षि की अपूिथ तैयारी । "
एलन जैक्सन – एक जशक्षक को अपने जजम्मेदारी को ननभाने हेतु कवणभन्न प्रकार की
जशक्षि गततकवनियों को अपने कवद्यातर्ियों के सार् नमलकर सम्पन्न करनी होती हैं इन
गततकवनियों को सम्पन्न करने के जलए कवनिवत ननयोजन तर्ा कायाथन्वयन सम्बन्धी उजचत
श्रीमती एस. के. कोचर िे अपिी पुस्तक 'मेर्ड्स एण्ड टे किीक्स ऑफ टीद्धचग
िं ' में
लशक्षण- कवनियों के महत्व की अत्यन्त उत्तम व्याख्या की है । वे अपने लेखन में जलखती
हैं," जजस प्रकार एक सैननक को युद्ध के कवणभन्न हतर्यारों का ज्ञान होना आवश्यक है उसी
प्रकार एक जशक्षक को भी जशक्षि की कवणभन्न कवनियों का ज्ञान होना आवश्यक है । ककस
समय कौन सी कवनि का प्रयोग ककया जाए, यह उनकी ननिथय शनक्त पर ननभथर है। " इस
प्रकार जशक्षि में जशक्षि कवनियों का अत्यनिक महत्व है जशक्षि कवनियों का ज्ञान सभी
लशक्षण - कला में उपयोग में लायी जाने वाली उत्तम कवनि में ननम्न कवशेषताएँ होती है -
• कवनियाँ ऐसी हों जो कवद्यार्ी को कवषय - वस्तु के प्रतत प्रेररत करे ।
• कवनियाँ ऐसी हों जो कवद्यातर्ियों को जशक्षा का सकिय सदस्य बनाए । कवनियों में
आवश्यक स्थानों पर कवद्यार्ी द्वारा सम्पादन करने के जलए पयाथप्त कियाओं का होना
आवश्यक है ।
• कवनियाँ सुननण्डश्चत एवं उपयोग करने योग्य हो ।
• उत्तम कवनियाँ कलात्मक व व्यनक्तगत होती हैं। वे जशक्षक को वांनछत एवं अवांनछत का
ज्ञान कराती हैं ।
• उत्तम कवनियाँ कवद्यातर्ियों में वांनछत बदलाव लाती हैं और उनमें अच्छी आदतों एवं बातों
का ननमाथि करती हैं ।
• उत्तम-जशक्षि कवनियाँ वे हैं जो पूवथ - ननिाथररत उद्देश्यों की प्राण्डप्त में सहायक हो ।
जशक्षि कवनि, जशक्षि उद्देश्यों की प्राण्डप्त में सहायक होनी चाहहए।
• जशक्षि कवनि छात्रों में वैज्ञाननक पररपेक्ष्य उत्पन्न करने वाली तर्ा वैज्ञाननक कवनि से
कायथ करने का प्रजशक्षि देने वाली हो ।
• जशक्षि कवनि मनोवैज्ञाननक जसद्धान्तों का पालन करने वाली हो अर्ाथत् छात्र की योग्यता,
स्तर, , रुजच तर्ा आवश्यकताओं की पूतति करने वाली हो ।
• सजीव वातावरि बनाने में सहायता करता हो जो कवद्यातर्ियों को अन्त : किया के
अनिकतम अवसर देने वाली व उत्साहविथन वाली हो ।
• करके सीखने के जसद्धान्त अर्ाथत् कियाशीलता पर आिाररत होनी चाहहए।
• कम से कम समय लेने वाली तर्ा प्रभावी हो ।
अिुकरण ववनध
सामान्यतः अनुकरि कवनि का प्रयोग जलष्टखत अनुकरि, उच्चारि अनुकरि एवं रचना
अनुकरि के रूप में ककया जाता है 1
➢ जलष्टखत अनुकरि :- जब छात्र के द्वारा जशक्षक के द्वारा जलष्टखत कायों का अनुकरि
ककया जाता है, उसे जलष्टखत अनुकरि कहा जाता है , जजसके ननम्न प्रकार हैं :
1. रूप-रे खा अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक के द्वारा अक्षरों व विों को जलखा जाता
है, जजनका अनुकरि करते हए छात्र उन्हीं आकृततयों पर पेन, पेंजसल घुमाता है । इसके
जलए मुहित अभ्यास पुस्त्रस्तकाओं का प्रयोग भी ककया जा सकता है ।
2. स्वतंत्र अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक के द्वारा श्यामपट्ट या अभ्यास पुस्त्रस्तका पर
अक्षर जलखे जाते हैं जजनको वैसा ही अनुकरि या जलखने को छात्र से कहा जाता है ।
➢ उच्चारि अनुकरि :- इसके अन्तगथत जशक्षक ध्वननपूिथ या मौष्टखक रूप से कुछ शब्दों
का उच्चारि करता है, जजनका अनुकरि करते हए छात्र भी वैसा ही उच्चारि करता है।
रचना अनुकरि :- इसके अन्तगथत रचना को जजस भाषा व शैली में प्रस्तुत (नाटक, पद्य
व गद्य) करते हैं, छात्र उस रचना पर ……………………………….
जशक्षा-जगत् में वाचन की जशक्षा के जलए अनेक कवनियाँ प्रचजलत हैं , कवनि ।
"जजनमें से ननम्नजलष्टखत मुख्य हैं :
1. देखो और कहो कवनि ।
2. अक्षर-बोि कवनि 1
3. ध्वनन साम्य कवनि।
4. अनुध्वनन कवनि।
5. भाषा जशक्षि की यन्त्र - कवनि ।
6. समवेत पाठ कवनि ।
7. संगतत कवनि।
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अन्य परीक्षाओ ां में भी इसी तर प्रश्न आर्े ैं Proof दे ििे के लिए मारे youtube
चैिि (Infusion Notes) पर इसकी वीठडर्ो दे िें र्ा मारे िांबरों पर कॉि करें /
लशक्षण -
जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसमें पूवथ ननिाथररत उद्देश्यों की अनिकतम प्राण्डप्त के
जलए जशक्षक, जशक्षार्ी एवं पाठयिम के मध्य से अन्तःकिया होती है। इस प्रकार जशक्षि
एक बत्रमुखी प्रकिया है जजसके जशक्षक, जशक्षार्ी एवं पाठयिम तीन चर होते है , जजनका
कायथ ननदान, उपचार एवं मूल्यांकन होता है।
जशक्षि एक उद्देश्यपूिथ प्रकिया है जजसमें जशक्षक एवं जशक्षार्ी के मध्य पाठ्यिम के संदभथ
में अन्तः किया होती है जजसे कवद्वानों ने इस प्रकार पररभाकषत ककया है 1
"जशक्षि वह प्रकिया है, जजसमें अनिक पररपक्व व्यनक्तत्व कम कवकजसत व्यनक्तत्व के संपकथ
में आता है और कम कवकजसत व्यनक्तत्व की अणग्रम जशक्षा हेतु पररपक्व व्यनक्तत्व व्यवस्था
करता है" - एच.सी.
लशक्षण के लसधदाांत : -
जशक्षक को जशक्षि करते समय ननम्नांककत जसद्धांतों को प्रमुख रूप से ध्यान में रखना
चाहहए
जीवन से संबंि स्थाकपत करने का जसद्धांत - इस जसद्धांत का अर्थ है कक कवषयवस्तु का
छात्रों के वास्तकवक जीवन से संबंि स्थाकपत ककया जाये। जब उनके पयाथवरिों से कवषयवस्तु
का संबंि स्थाकपत कर हदया ………………….
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
/ इसमें अभी और भी काफी कंटें ट पढ़ना बाकी है जो आपको राजस्थाि लशक्षक
पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 के इन कम्पलीट नोट्स में पढ़ने को नमलेगा / यहद
आपको हमारे नोट्स के सैंपल अच्छे लगे हों तो कम्पलीट नोट्स खरीदने के जलए नीचे
हदए गये मारे सांपका िांबर पर कॉि करें , हमें पूिथ कवश्वास है कक ये नोट्स आपकी
राजस्थाि लशक्षक पात्रता परीक्षा (REET) िेवि – 1 की परीक्षा में पूिथ संभव मदद
करें गे, िन्यवाद /
बालक के व्यनक्तत्व के सभी पक्षों के कवकास – स्तर का सही – सही मूल्य आँकने के
जलए जशक्षाकवदों नए एक नवीन उपागम को अपनाया है, जजसे “मूल्यांकन” की संज्ञा दी
गई है 1
मूल्ाांकि –
मूल्यांकन एक सतत चलने वाली व् उद्देश्यप्रद प्रकिया है जजसकी प्रकृतत सुिारात्मक होती
है 1 मूल्यांकन के द्वारा कवद्यार्ी के सन्दभथ में शैक्षक्षक पररिामों एवं प्रगतत की जाँच की
जाती है 1 इसके द्वारा शैक्षक्षक पररस्त्रस्थततयों तर्ा इसमें प्रयोग की जाने कवनियों एवं सािनों
की उपादेयता की जाँच की जाती है 1
पहरभाषा –
ब्लूम की अिुसार – “मूल्यांकन योग्यता ननयंत्रि की व्यवस्था है जजसमें जशक्षि एवं
अनिगम प्रकिया की प्रभावशीलता की जाँच होती है 1
कोिारी आर्ोग के अिुसार – मूल्यांकन एक सतत प्रकिया है जो जशक्षा का अणभन्न अंग
है तर्ा जशक्षि उद्देश्यों के सार् घननष्ठ संबंि है 1
मूल्ाांकि के प्रकार –
जशक्षा व्यापार को व्यापक सन्दभथ में रखकर उसके तीन ननण्डश्चत चरि माने जाते जा
सकते है : पाठपूवथ, पाठप्रकिया और पाठपश्च और तदनुरूप भाषा जशक्षि के सन्दभथ में
ननयोजजत कवणभन्न प्रकार के मूल्यांकन को भी वगीकृत ककया जाता है 1
मूल्ाांकि की ववशेषताएाँ -
मूल्यांकन जशक्षा के ननिाथररत उद्देश्यों की प्राण्डप्त की दृष्टि से महत्वपूिथ होता है, इसके
माध्यम से यह ज्ञात ककया जाता है कक उद्देश्यों की प्राण्डप्त ककस मात्र में हई है 1 मूल्यांकन
की कवशेषताएँ ननम्न होती है 1
1. िमबिता
मूल्यांकन कायथिम में िनमकता या िमबद्धता का कवशेष महत्व है। मूल्यांकन में
िनमकता न होने पर जशक्षार्ी या कायथकताथ को अपनी प्रगतत के बारे में अन्त तक कोई
सूचना नहीं नमल पाती है। अत: इसके अभाव में जशक्षार्ी में कायथ के प्रतत त्रुकटपूिथ
अणभव्यनक्त कवकजसत हो सकती है , वह त्रुकटपूिथ कायथकवनि अपना सकता है तर्ा गलत
ननष्कषथ ननकाल सकता है।
whatsapp- https://wa.link/7mh1o2 68 website- https://bit.ly/reet-level-1-notes
मूल्यांकन कायथ के िम में ननण्डश्चतता का होना भी आवश्यक है। जजस
प्रकार पाठ्यिम के उद्देश्यों में पूवथ संबंि होता है तर्ा जजस प्रकार उन्हें महत्त्व के िम में
व्यवस्त्रस्थत ककया जाता है, उसी प्रकार का िम उनकी जांच में भी रहना चाहहए।
उदाहरिार्थ, यहद संकल्प नाव को तथ्यों से अनिक महत्वपूिथ माना गया है , तो मूल्यांकन
कायथ में भी महत्त्व के उसी िम को बनाए रखना चाहहए।
वस्तुनिष्ठता
एक उत्तम परीक्षा का वस्तुननष्ठ होना अतत आवश्यक है। वस्तुननष्ठता का अर्थ यह है कक
मूल्यांकन में व्यनक्तगत पक्षों का प्रभाव नहीं होना चाहहए। स्पि है कक ज्ञानात्मक क्षेत्र में
मूल्यांकन में वस्तुननष्ठता भावात्मक क्षेत्र की तुलना में अनिक होगी। ज्ञानात्मक क्षेत्र में
यह उच्च स्तर की अपेक्षा ननम्न स्तर पर अनिक वस्तुननष्ठ होगा।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कक जकटल अनिगम प्रकिया के मापन के जलए जब
तक संतोषजनक पररभाषाएं कवकजसत नहीं हो पाती तब तक पयाथप्त सीमा तक हमें
कवशेषज्ञों द्वारा ककए गए मूल्यांकन पर ही ननभथर रहना होगा। यहां पर यह बात भी
महत्वपूिथ है कक आत्मननष्ठता और वस्तुननष्ठता में परस्पर उतना कवरोि नहीं है जजतना
प्राय: समझा जाता है।
यह दोनों वास्तव में एक ही सीढ़ी के दो पद हैं। अत: लक्ष्य यह होना चाहहए कक
मूल्यांकन के उपकरिों को यर्ासंभव अनिक से अनिक वस्तुननष्ठ बनाया जाए। इसके
सार् ही इस बात पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है कक ककसी मूल्यांकन कायथ
को उससे अनिक वस्तुननष्ठ न मान जलया जाए। जजतना कक वह वास्तव में है।
3. ववश्वसिीर्ता
एक अच्छा मूल्यांकन कवश्वसनीय भी होना चाहहए। इसका तात्पयथ यह है कक बार-बार
तर्ा अनेक लोगों द्वारा मूल्यांकन ककए जाने पर भी उसके ननष्कषों में कोई अंतर नहीं
आए। अतः स्पि है कक कवश्वसननयता के जलए वस्तुननष्ठता एक पूवथ आवश्यकता है।
इसजलए ननबंिात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुननष्ठ परीक्षा अनिक कवश्वसनीय होती है।
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वैधता
एक उत्तम परीक्षि का वैि होना भी आवश्यक है। वैिता से तात्पयथ परीक्षि की सार्थकता
से है अर्ाथत परीक्षि जजस मापन के जलए बनाया गया है , उसे ही उसका ……………………
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बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -
1st जशफ्ट
1st जशफ्ट
दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
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Patwari - https://www.youtube.com/watch?v=X6mKGdtXyu4&t=103s
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• अपठित गद्ाांश
गांिी जी अपने सहयोनगयों को श्रम को गररमा को सीख हदया करते र्े । दक्षक्षि अफ्रीका
में भारतीय लोगों के जलए संघ, करते हए उन्होंने सफाई करने जैसे कायथ को गररमामय
मानते हए ककया । बाबा आम्टे ने समाज द्वारा ततरस्कृत कुष्ठ रोनगयों की सेवा में अपना
समस्त जीवन समकपित कर हदया । इनमें से ककसी ने भी कोई सत्ता प्राप्त नहीं की, बल्कल्क
अपने जनकल्यािकारी कायों से लोगों के हदलों पर शासन ककया 1 गाँिीजी का स्वतंत्रता
के जलए संघषथ उनके जीवन का एक पहलू है ; ककन्तु उनका मानजसक क्षक्षततज वास्तव में
एक राष्ट्र की सीमाओं से बँिा हआ नहीं र्ा । उन्होंने सभी लोगों में ईश्वर के दशथन ककए
। वे सही अर्ों में नायक र्े ।
( 1 ) कवकपन ( 2 ) पारावार
(3 ) महानद (4 ) क्षक्षततज उत्तर : - ( 4)
• ‘उन्होंिे सभी िोगों में ईश्वर के दशाि ठकए’ वाक्य में रे िाांठकत शब्द ै 1
(1) सवथनाम (2) भाववाचक संज्ञा
फ्रांस के प्रजसद्ध दाशथननक रोमा रोलां ने कहा र्ा कक पूवथ में एक भयंकर आग लगी है , जो
कक वहाँ के अंिकवश्वास एवं कुरीततयों ……………………….
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जजनका उच्चारि एक समान होता है , लेककन उनके अर्थ में भेद
होता हैं । इन्हें श्रुततसम णभन्नार्थक शब्द अर्वा युग्म शब्द अर्वा सोच्चाररप्राय णभन्नार्थक
शब्द कहते हैं। इनके उदाहरि
शब्द अर्थ
स्त्री
न हो अवंि ननन्दनीय
उदात्त ऊँचा
अनुकूल न हो
अपत्य संतान
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करें गे, िन्यवाद /
नोट:- िातु को मूलतः किया के मूल रूप को कहा जाता है अर्ाथत् किया के मूलरूप
को िातु कहते हैं ।
किया का ननमाथि:- िातु में ‘‘ना’’ प्रत्यय जोडने से किया बनती हैं ।
चल ना चलना
पढ़ ना पढ़ना
हंस ना हंसना
रो ना रोना
• सकमाक ठिर्ा
• अकमाक ठिर्ा
• सकमाक ठिर्ा:- जजस किया में कमथ हो या कमथ के होने की संभावना हो और
किया का प्रभाव या पाल सीिे कमथ पर पडे तो या कमथ की संभावना पर पडे तो
वह सकमथक किया कहलाती हैं ।
• पूवथकाजलक किया
• हद्वकमथक किया
• संयुक्त किया
• प्रेरिार्थक किया
• सहायक किया
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पद्ाांश – 1
कववता की पांद्धिर्ााँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उद्धचत ववकल्प चुनिए :-
व्याख्या- यहाँ करुि रस का कविान है। करुि रस का स्थायी भाव कवषाद होता है। जजस
व्यनक्त के मन में रस के स्थायी भाव- ननवेद, घृिा, भय, रतत, कवषाद आहद जाग्रत होते हैं,
उसे आश्रय कवभाव कहते हैं । प्रस्तुत पंनक्त में कैकेयी के मन में कवषाद का भाव जाग्रत
हआ है। इसजलए कैकेयी आश्रय कवभाव है।
व्याख्या- जहाँ समान चमत्कार वाले दो भावों का विथन एक सार् ककया जाता है , वहाँ
भाव संनि होती है। यहाँ 'वह जसिंही अब र्ी, हहा!' में करुि कविान होने के कारि 'कवषाद'
का भाव है तर्ा 'गौमुखी गंगा' में शांत रस का कविान होने के कारि 'ननवेद' का भाव है।
अतः 'कवषाद' एवं 'ननवेद' दो भावों के एक सार् आने के कारि ………
बप्रर् दोस्तों, अब तक मारे िोट्स में से अन्य परीक्षाओ ां में आर्े हुए
प्रश्नों के पहरणाम -
1st जशफ्ट
दोस्तों, इिका proof दे ििे के लिए िीचे दी गर्ी लििंक पर क्लिक करें र्ा मारे
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पहरभाषा:- ‘कारक’ शब्द का शाब्दब्दक अर्थ होता हैं ‘करनेवाला’ ककन्तु व्याकरि में यह
एक पाररभाकषक शब्द हैं । जब ककसी संज्ञा या सवथनाम पद का सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त
अन्य पदों, कवशेषकर किया के सार् जाना जाता हैं , उसे कारक कहते हैं ।
कवभनक्त:- कारक को प्रकट करने के जलए संज्ञा या सवथनाम के सार्, जो जचन्ह लगाया
जाता हैं, उसे कवभनक्त कहते हैं । प्रत्येक कारक का कवभनक्त जचन्ह होता है, ककन्तु हर कारक
के सार् कवभनक्त जचन्ह का प्रयोग, हो, यह आवश्यक नही है ।
र्र्ा -
संज्ञा या सवथनाम का वह रूप जो किया (कायथ) के करने वाले का बोि कराता हैं अर्ाथत्
किया के करने वाले को कताथ कारक कहते हैं । कताथ कारक का कवभनक्त जचन्ह ‘ने’ कवभनक्त
का प्रयोग कताथ कारक के सार् केवल भूतकाजलक किया होने पर होता हैं । अतः वतथमान
काल, भकवष्य काल तर्ा किया के अकमथक होने पर ‘ने’ कवभनक्त का प्रयोग नहीं होगा ।
जैसे अणभषेक पुस्तक पढ़ता हैं । गुंजन हॅंसती हैं । वषाथ गाना गाती हैं । आलोक ने पत्र
जलखा ।
वाक्य में कताथ जजस सािन या माध्यम से किया करता हैं अर्ाथत् किया के सािन को
करि कारक कहते हैं । करि कारक का कवभनक्त जचन्ह ‘से’ हैं ।
सम्प्रदान शब्द का अर्थ है देना । वाक्य में कताथ जजसे कुछ देता हैं अर्वा जजसके जलए
किया करता है, उसे सम्प्रदान कारक …………………..
िोट – कप्रय पाठकों , यह अध्याय अभी यहीं समाप्त नही हआ है यह एक सैंपल मात्र है
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