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मानक ह िंदी वर्तनी (केंद्रीय ह िंदी ननदेशाऱय द्वारा जारी)

केंद्रीम हहॊदी ननदे शारम द्वाया वषष 2003 भें दे वनागयी नरहऩ तथा हहॊदी वतषनी के
भानकीकयण के नरए अनिर बायतीम सॊगोष्ठी का आमोजन हकमा था। इस
सॊगोष्ठी भें भानक हहॊदी वतषनी के नरए ननम्ननरनित ननमभ ननधाषहयत हकए गए
थे:
2. सिंयुक्र् व्त
2.1.1 खडी पाई वाऱे व्यिंजन
िडी ऩाई वारे व्मॊजनों के सॊमुक्त ूपऩ ऩयॊ ऩयागत तयीके से िडी ऩाई को
हटाकय ही फनाए जाएॉ । मथा:–
 ख्मानत, रग्न, हवघ्न
 कच्चा, छज्जा
 नगण्म
 कुत्ता, ऩथ्म, ध्वनन, न्मास
 प्मास, हिब्फा, सभ्म, यम्म
 शय्मा
 उल्रेि
 व्मास
 श्रोक
 याष्डीम
 स्वीकृनत
 मक्ष्भा
 त्र्मॊफक
2.1.2 अन्य व्यिंजन
2.1.2.1 क औय प/फ़ के सॊमुक्ताऺय

सॊमुक्त, ऩक्का, दफ़्तय आहद की तयह फनाए जाएॉ, न हक सॊमुक्त, पक्का की तयह।
2.1.2.2 ङ, छ, ट, ि, ढ, द औय ह के सॊमुक्ताऺय हरच नच‍न रगाकय ही फनाए
जाएॉ। मथा:–

 वाङ्भम, रट्टू, फुड्ढा, हवद्मा, नच‍न, ब्र‍भा आहद। वाङ्मय, लट्टू, बड्ढु ा, हवद्या,
नचह्न, ब्रह्मा नहीॊ)
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2.1.2.3 सॊमुक्त ‘य’ के प्रचनरत तीनों ूपऩ मथावतच यहेंगे। मथा:– प्रकाय, धभष,
याष्ड।
2.1.2.4 श्र का प्रचनरत ूपऩ ही भान्म होगा। इसे के ूपऩ भें नहीॊ नरिा
जाएगा। त+य के सॊमुक्त ूपऩ के नरए ऩहरे ्र औय दोनों ूपऩों भें से हकसी
एक के प्रमोग की छू ट दी गई थी। ऩयॊ तु अफ इसका ऩयॊ ऩयागत ूपऩ ्र ही
भानक भाना जाए। हकॊतु क्र को के ूपऩ भें नहीॊ नरिा जाएगा। श्र औय ्र
के अनतहयक्त अन्म व्मॊजन+य के सॊमुक्ताऺय 2.1.2.3 के ननमभानुसाय फनेंगे।
जैसे :– क्र, प्र, ब्र, स्र, ह्र आहद।
2.1.2.5 हरच नच‍न मुक्त वणष से फनने वारे सॊमुक्ताऺय के द्हवतीम व्मॊजन
के साथ इ की भा्र ा का प्रमोग सॊफॊनधत व्मॊजन के तत्कार ऩूवष ही हकमा
जाएगा, न हक ऩूये मुग्भ से ऩूवष। मथा:– कुटहटभ, नचटहिमाॉ, दहवतीम, फुदनधभान,
नचहननत आहद कुनट्टभ, नचनट्िमाॉ, हदवतीम, फुनद्धभान, नचन‍नत नहीॊ)।
हिप्प्ी : सॊस्कृत बाषा के भूर श्रोकों को उद्धृत कयते सभम सॊमुक्ताऺय
ऩुयानी शैरी से बी नरिे जा सकेंगे। जैसे:– सॊमुक्त, नचह्न, हवद्या, हवद्वान, वृद्ध,
हद्वतीम, फुहद्ध आहद। हकॊतु महद इन्हें बी उऩमुषकचत ननमभों के अनुसाय ही नरिा
जाए तो कोई आऩनत्त नहीॊ होगी।
2.2 कारक निह्न
2.2.1 हहॊदी के कायक नच‍न सबी प्रकाय के सॊऻा शब्दों भें प्रानतऩहदक से
ऩृथकच नरिे जाएॉ। जैसे :– याभ ने, याभ को, याभ से, स्त्री का, स्त्री से, सेवा भें
आहद। सवषनाभ शब्दों भें मे नच‍न प्रानतऩाहदक के साथ नभराकय नरिे जाएॉ।
जैसे :– तूने, आऩने, तुभसे, उसने, उसको, उससे, उसऩय आहद भेयेको, भेयेसे आहद
ूपऩ व्माकयण सम्भत नहीॊ हेऄ)।
2.2.2 सवषनाभ के साथ महद दो कायक नच‍न हों तो उनभें से ऩहरा नभराकय
औय दस
ू या ऩृथकच नरिा जाए। जैसे :– उसके नरए, इसभें से।
2.2.3 सवषनाभ औय कायक नच‍न के फीच 'ही', 'तक' आहद का ननऩात हो तो
कायक नच‍न को ऩृथकच नरिा जाए। जैसे :– आऩ ही के नरए, भुझ तक को।
2.3 हिया पद
सॊमुक्त हक्रमा ऩदों भें सबी अॊगीबूत हक्रमाएॉ ऩृथकच-ऩृथकच नरिी जाएॉ। जैसे :–
ऩढा कयता है, आ सकता है, जामा कयता है, िामा कयता है, जा सकता है, कय
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सकता है, हकमा कयता था, ऩढा कयता था, िेरा कये गा, घूभता यहेगा, फढते चरे
जा यहे हेऄ आहद।
2.4 ाइफ़न (योजक निह्न)
2.4.0 हाइफ़न का हवधान स्ऩष्टता के नरए हकमा गमा है।
2.4.1 द्वॊद्व सभास भें ऩदों के फीच हाइफ़न यिा जाए। जैसे :– याभ-रक्ष्भण,
नशव-ऩावषती सॊवाद, दे ि-ये ि, चार-चरन, हॉसी-भजाक, रेन-दे न, ऩढना-नरिना,
िाना-ऩीना, िेरना-कूदना आहद।
2.4.2 सा, जैसा आहद से ऩूवष हाइफ़न यिा जाए। जैसे :– तुभ-सा, याभ-जैसा,
चाकू-से तीिे।
2.4.3 तत्ऩुरुष सभास भें हाइफ़न का प्रमोग केवर वहीॊ हकमा जाए जहाॉ
उसके हफना भ्रभ होने की सॊबावना हो, अन्मथा नहीॊ। जैसे :– बू-तत्व। साभान्मत:
तत्ऩुरुष सभास भें हाइफ़न रगाने की आवश्मकता नहीॊ है। जैसे :– याभयाज्म,
याजकुभाय, गॊगाजर, ग्राभवासी, आत्भहत्मा आहद।
2.4.3.1 इसी तयह महद 'अ-नि' (हफना नि का) सभस्त ऩद भें हाइफ़न न
रगामा जाए तो उसे 'अनि' ऩढे जाने से 'क्रोध' का अथष बी ननकर सकता है।
अ-ननत नम्रता का अबाव) : अननत थोडा), अ-ऩयस नजसे हकसी ने न छु आ
हो) : अऩयस एक चभष योग), बू-तत्व ऩृथ्वी-तत्व) : बूतत्व बूत होने का
बाव) आहद सभस्त ऩदों की बी मही नस्थनत है। मे सबी मुग्भ वतषनी औय अथष
दोनों दृहष्टमों से नबन्न-नबन्न शब्द हेऄ।
2.4.4 कहिन सॊनधमों से फचने के नरए बी हाइफ़न का प्रमोग हकमा जा
सकता है। जैसे :– द्हव-अऺय द्व्मऺय), द्हव-अथषक द्व्मथषक) आहद।
2.5 अव्यय
2.5.1 'तक', 'साथ' आहद अव्मम सदा ऩृथकच नरिे जाएॉ। जैसे :– महाॉ तक,
आऩके साथ।
2.5.2 आह, ओह, अहा, ऐ, ही, तो, सो, बी, न, जफ, तफ, कफ, महाॉ, वहाॉ, कहाॉ, सदा,
क्मा, श्री, जी, तक, बय, भा्र , साथ, हक, हकॊतु, भगय, रेहकन, चाहे, मा, अथवा, तथा,
मथा, औय आहद अनेक प्रकाय के बावों का फोध कयाने वारे अव्मम हेऄ। कुछ
अव्ममों के आगे कायक नच‍न बी आते हेऄ। जैसे :– अफ से, तफ से, महाॉ से, वहाॉ
से, सदा से आहद। ननमभ के अनुसाय अव्मम सदा ऩृथकच नरिे जाने चाहहए।
जैसे :– आऩ ही के नरए, भुझ तक को, आऩके साथ, गज बय कऩडा, दे श बय,
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यात बय, हदन बय, वह इतना बय कय दे , भुझे जाने तो दो, काभ बी नहीॊ फना,
ऩचास रुऩए भा्र आहद।
2.5.3 सम्भानाथषक 'श्री' औय 'जी' अव्मम बी ऩृथकच नरिे जाएॉ। जैसे श्री श्रीयाभ,
कन्हैमारार जी, भहात्भा जी आहद महद श्री, जी आहद व्मनक्तवाची सॊऻा के ही
बाग हों तो नभराकय नरिे जाएॉ। जैसे :– श्रीयाभ, याभजी रार, सोभमाजी आहद)।
2.5.4 सभस्त ऩदों भें प्रनत, भा्र , मथा आहद अव्मम जोडकय नरिे जाएॉ मानी
ऩृथकच नहीॊ नरिे जाएॉ)। जैसे - प्रनतहदन, प्रनतशत, भानवभा्र , नननभत्तभा्र ,
मथासभम, मथोनचत आहद। मह सवषहवहदत ननमभ है हक सभास न होने ऩय
सभस्त ऩद एक भाना जाता है। अत उसे व्मस्त ूपऩ भें न नरिकय एक साथ
नरिना ही सॊगत है। 'दस रुऩए भा्र ', 'भा्र दो व्मनक्त' भें ऩदफॊध की यचना है।
महाॉ भा्र अरग से नरिा जाए मानी नभराकय नहीॊ नरिें)।

2.6 अनुस्वार (नशरोह िंद/ह


ु िंदी) र्था अनुनानसकर्ा निह्न (ििंद्रह िंद)ु
2.6.0 अनुस्वाय व्मॊजन है औय अनुनानसकता स्वय का नानसक्म हवकाय। हहॊदी
भें मे दोनों अथषबेदक बी हेऄ। अत हहॊदी भें अनुस्वाय ) औय अनुनानसकता
नच‍न ) दोनों ही प्रचनरत यहेंगे।
2.6.1 अनुस्वाय
2.6.1.1 सॊस्कृत शब्दों का अनुस्वाय अन्मवगीम वणों से ऩहरे मथावतच यहेगा।
जैसे - सॊमोग, सॊयऺण, सॊरग्न, सॊवाद, कॊस, हहॊस्र आहद।
2.6.1.2 सॊमुक्त व्मॊजन के ूपऩ भें जहाॉ ऩॊचभ वणष ऩॊचभाऺय) के फाद
सवगीम शेष चाय वणों भें से कोई वणष हो तो एकूपऩता औय भुद्रण/रेिन की
सु हवधा के नरए अनुस्वाय का ही प्रमोग कयना चाहहए। जैसे - ऩॊकज, गॊगा,
चॊचर, कॊजूस, कॊि, िॊ िा, सॊत, सॊध्मा, भॊहदय, सॊऩादक, सॊफॊध आहद ऩङ्कज, गङ्गा,
चञ्चर, कञ्जूस, कण्ि, िण्िा, सन्त, भनन्दय, सन्ध्मा, सम्ऩादक, सम्फन्ध वारे ूपऩ
नहीॊ)। फॊधनी भें यिे हुए ूपऩ सॊस्कृत के उद्धयणों भें ही भान्म होंगे। हहॊदी भें
हफॊदी अनुस्वाय) का प्रमोग कयना ही उनचत होगा।
2.6.1.3 महद ऩॊचभाऺय के फाद हकसी अन्म वगष का कोई वणष आए तो
ऩॊचभाऺय अनुस्वाय के ूपऩ भें ऩहयवनतषत नहीॊ होगा। जैसे :– वाङ्भम, अन्म,
नचन्भम, उन्भुि आहद वाॊभम, अॊम, नचॊभम, उॊ भुि आहद ूपऩ ग्रा‍म नहीॊ होंगे)।
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2.6.1.4 ऩॊचभ वणष महद द्हवत्व ूपऩ भें दफ


ु ाया) आए तो ऩॊचभ वणष अनुस्वाय
भें ऩहयवनतषत नहीॊ होगा। जैसे - अन्न, सम्भेरन, सम्भनत आहद अॊन, सॊभेरन,
सॊभनत ूपऩ ग्रा‍म नहीॊ होंगे)।
2.6.1.5 अॊग्रेजी, उदष ू से गृहीत शब्दों भें आधे वणष मा अनुस्वाय के भ्रभ को दयू
कयने के नरए नानसक्म व्मॊजन को ऩूया नरिना अच्छा यहेगा। जैसे :– नरभका,
तनिाह, नतनका, तभगा, कभनसन आहद।
2.6.1.6 सॊस्कृत के कुछ तत्सभ शब्दों के अॊत भें अनुस्वाय का प्रमोग भच का
सू चक है। जैसे - अहॊ अहभच), एवॊ एवभच), ऩयॊ ऩयभच), नशवॊ नशवभच)।
2.6.2 अनुनानसकता चॊद्रहफॊद)ु
2.6.2.1 हहॊदी के शब्दों भें उनचत ढॊग से चॊद्रहफॊद ु का प्रमोग अननवामष होगा।
2.6.2.2 अनुनानसकता व्मॊजन नहीॊ है, स्वयों का ध्वननगुण है। अनुनानसक स्वयों
के उच्चायण भें नाक से बी हवा ननकरती है। जैसे :– आॉ , ऊॉ, एॉ, भाॉ, हूॉ, आएॉ।
2.6.2.3 चॊद्रहफॊद ु के हफना प्राम: अथष भें भ्रभ की गुॊजाइश यहती है। जैसे :–
हॊस : हॉस, अॊगना : अॉगना, स्वाॊग स्व+अॊग): स्वाॉग आहद भें। अतएव ऐसे भ्रभ
को दयू कयने के नरए चॊद्रहफॊद ु का प्रमोग अवश्म हकमा जाना चाहहए। हकॊतु
जहाॉ हवशेषकय नशयोये िा के ऊऩय जुडने वारी भा्र ा के साथ) चॊद्रहफॊद ु के
प्रमोग से छऩाई आहद भें फहुत कहिनाई हो औय चॊद्रहफॊद ु के स्थान ऩय हफॊद ु का
अनुस्वाय नचहन का) प्रमोग हकसी प्रकाय का भ्रभ उत्ऩन्न न कये , वहाॉ चॊद्रहफॊद ु
के स्थान ऩय हफॊद ु के प्रमोग की छू ट यहेगी। जैसे :– नहीॊ, भें, भेऄ आहद। कहवता
आहद के प्रसॊग भें छॊ द की दृहष्ट से चॊद्रहफॊद ु का मथास्थान अवश्म प्रमोग हकमा
जाए। इसी प्रकाय छोटे फच्चों की प्रवेनशकाओॊ भें जहाॉ चॊद्रहफॊद ु का उच्चायण
अबीष्ट हो, वहाॉ भोटे अऺयों भें उसका मथास्थान सवष्र प्रमोग हकमा जाए।
जैसे :– कहाॉ, हॉसना, आॉ गन, सॉवायना, भेँ, भेः, नहीीँ आहद।
2.7 हवसगत (:)
2.7.1 सॊस्कृत के नजन शब्दों भें हवसगष का प्रमोग होता है, वे महद तत्सभ ूपऩ
भें प्रमुक्त हों तो हवसगष का प्रमोग अवश्म हकमा जाए। जैसे :– ‘द:ु िानुबूनत’ भें।
महद उस शब्द के तद्बव ूपऩ भें हवसगष का रोऩ हो चु का हो तो उस ूपऩ भें
हवसगष के हफना बी काभ चर जाएगा। जैसे :– ‘दि
ु -सु ि के साथी’।
2.7.2 तत्सभ शब्दों के अॊत भें प्रमुक्त हवसगष का प्रमोग अननवामष है। मथा :–
अत:, ऩुन:, स्वत:, प्राम:, ऩूणषत:, भूरत:, अॊतत:, वस्तुत:, क्रभश: आहद।
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2.7.3 'ह' का अघोष उच्चहयत ूपऩ हवसगष है, अत: उसके स्थान ऩय स)घोष
'ह' का रेिन हकसी हारत भें न हकमा जाए अत:, ऩुन: आहद के स्थान ऩय
अतह, ऩुनह आहद नरिना अशुद्ध वतषनी का उदाहयण भाना जाएगा)।
2.7.4 द:ु साहस/दस्ु साहस, नन:शब्द/ननश्शब्द के उबम ूपऩ भान्म होंगे। इनभें
द्हवत्व वारे ूपऩ को प्राथनभकता दी जाए।
2.7.4.1 ननस्तेज, ननवषचन, ननश्चर आहद शब्दों भें हवसगष वारा ूपऩ नन:तेज,
नन:वचन, नन:चर) न नरिा जाए।
2.7.4.2 अॊत:कयण, अॊत:ऩुय, प्रात:कार आहद शब्द हवसगष के साथ ही नरिे
जाएॉ।
2.7.5 तद्बव/दे शी शब्दों भें हवसगष का प्रमोग न हकमा जाए। इस आधाय ऩय
छ: नरिना गरत होगा। छह नरिना ही िीक होगा।
2.7.6 प्रामद्वीऩ, सभाप्तप्राम आहद शब्दों भें तत्सभ ूपऩ भें बी हवसगष नहीॊ है।
2.7.7 हवसगष को वणष के साथ नभराकय नरिा जाए, जफहक कोरन नच‍न
उऩहवयाभ :) शब्द से कुछ दयू ी ऩय हो। जैसे :– अत:, मों है :–
2.8 ऱ् निह्न ()्)
2.8.1 ्च) को हरच नच‍न कहा जाए न हक हरॊत। व्मॊजन के नीचे रगा हरच
नच‍न उस व्मॊजन के स्वय यहहत होने की सूचना दे ता है, मानी वह व्मॊजन
हवशुद्ध ूपऩ से व्मॊजन है। इस तयह से 'जगतच' हरॊत शब्द कहा जाएगा क्मोंहक
मह शब्द व्मॊजनाॊत है, स्वयाॊत नहीॊ।
2.8.2 सॊमुक्ताऺय फनाने के ननमभ 2.1.2.2 के अनुसाय छ ट ट ठ् छ ढ् द
ह भें हरच नच‍न का ही प्रमोग होगा। जैसे :– नच‍न, फुड्ढा, हवद्वान आहद भें।
2.8.3 तत्सभ शब्दों का प्रमोग वाॊछनीम हो तफ हरॊत ूपऩों का ही प्रमोग
हकमा जाए; हवशेष ूपऩ से तफ जफ उनसे सभस्त ऩद मा व्मुत्ऩन्न शब्द फनते
हों। मथा प्राकच :– प्रागैनतहानसक), वाकच- वाग्दे वी), सतच- सत्साहहत्म), बगवनच-
बगवद्बनक्त), साऺातच- साऺात्काय), जगतच- जगन्नाथ), तेजसच- तेजस्वी),
हवद्मुतच- हवद्मुल्रता) आहद। तत्सभ सॊफोधन भें हे याजनच, हे बगवनच ूपऩ ही
स्वीकृत होंगे। हहॊदी शैरी भें हे याजा, हे बगवान नरिे जाएॉ। नजन शब्दों भें हरच
नचहन रुप्त हो चु का हो, उनभें उसे हपय से रगाने का प्रमत्न न हकमा जाए।
जैसे - भहान, हवद्वान आहद; क्मोंहक हहॊदी भें अफ 'भहान' से 'भहानता' औय
'हवद्वानों' जैसे ूपऩ प्रचनरत हो चु के हेऄ।
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2.8.4 व्माकयण ग्रॊथों भें व्मॊजन सॊनध सभझाते हुए केवर उतने ही शब्द हदए
जाएॉ, जो शब्द यचना को सभझने के नरए आवश्मक हों उतच + नमन
उन्नमन, उतच + रास उल्रास) मा अथष की दृहष्ट से उऩमोगी हों जगदीश,
जगन्भाता, जगज्जननी)।
2.8.5 हहॊदी भें ह्रदमॊगभ ह्रदमभच + गभ), उद्धयण उतच/उद + हयण), सॊनचत
सभच + नचतच) आहद शब्दों का सॊनध-हवच्छे द सभझाने की आवश्मकता प्रतीत
नहीॊ होती। इसी तयह 'साऺात्काय', 'जगदीश', 'षट्कोश' जैसे शब्दों के अथष को
सभझाने की आवश्मकता हो तबी उनकी सॊनध का हवारा हदमा जाए। हहॊदी भें
इन्हें स्वतॊ्र शब्दों के ूपऩ भें ग्रहण कयना ही अच्छा होगा।
2.9 स्वन पहरवर्तन
2.9.1 सॊस्कृतभूरक तत्सभ शब्दों की वतषनी को ज्मों-का-त्मों ग्रहण हकमा
जाए। अत: 'ब्र‍भा' को 'ब्रम्हा', 'नच‍न' को 'नचन्ह', 'उऋण' को 'उहयण' भें फदरना
उनचत नहीॊ होगा। इसी प्रकाय ग्रहीत, दृष्टव्म, प्रदनशषनी, अत्मानधक, अनानधकाय
आहद अशु द्ध प्रमोग ग्रा‍म नहीॊ हेऄ। इनके स्थान ऩय क्रभश: गृहीत, द्रष्टव्म,
प्रदनशषनी, अत्मनधक, अननधकाय ही नरिना चाहहए।
2.9.2 नजन तत्सभ शब्दों भें तीन व्मॊजनों के सॊमोग की नस्थनत भें एक
द्हवत्वभूरक व्मॊजन रु प्त हो गमा है उसे न नरिने की छू ट है। जैसे :– अदषध
> अधष, तत्त्व > तत्व आहद।
2.10 'ऐ', 'औ' का प्रयोग
2.10.1 हहॊदी भें ऐ ्ै), औ ् ) का प्रमोग दो प्रकाय के उच्चायण को
व्मक्त कयने के नरए होता है। ऩहरे प्रकाय का उच्चायण 'है', 'औय' आहद भें भूर
स्वयों की तयह होने रगा है; जफहक दस
ू ये प्रकाय का उच्चायण 'गवैमा', 'क वा'
आहद शब्दों भें सॊध्मऺयों के ूपऩ भें आज बी सुयनऺत है। दोनों ही प्रकाय के
उच्चायणों को व्मक्त कयने के नरए इन्हीॊ नच‍नों ऐ, ्ै, औ, ् ) का प्रमोग
हकमा जाए। 'गवय्मा', 'कव्वा' आहद सॊशोधनों की आवश्मकता नहीॊ है। अन्म
उदाहयण हेऄ :– बैमा, सैमद, तैमाय, ह वा आहद।
2.10.2 दनऺण के अय्मय, नय्मय, याभय्मा आहद व्मनक्तनाभों को हहॊदी उच्चायण
के अनुसाय ऐमय, नैमय, याभैमा आहद न नरिा जाए, क्मोंहक भूरबाषा भें इसका
उच्चायण नबन्न है।
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2.10.3 अव्वर, कव्वार, कव्वारी जैसे शब्द प्रचनरत हेऄ। इन्हें रेिन भें
मथावतच यिा जाए।
2.10.4 सॊस्कृत के तत्सभ शब्द 'शय्मा' को 'शैमा' न नरिा जाए।
2.11 पूवतकानऱक कृदिंर् प्रत्यय 'कर'
2.11.1 ऩूवषकानरक कृदॊ त प्रत्मम 'कय' हक्रमा से नभराकय नरिा जाए। जैसे :–
नभराकय, िा-ऩीकय, यो-योकय आहद।
2.11.2 कय + कय से 'कयके' औय कया + कय से 'कयाके' फनेगा।
2.12 वाऱा
2.12.1 हक्रमा ूपऩों भें 'कयने वारा', 'आने वारा', 'फोरने वारा' आहद को अरग
नरिा जाए। जैसे :– भेऄ घय जाने वारा हूॉ, जाने वारे रोग।
2.12.2 मोजक प्रत्मम के ूपऩ भें 'घयवारा', 'टोऩीवारा' (टोऩी फेचने वारा),
हदरवारा, दध
ू वारा आहद एक शब्द के सभान ही नरिे जाएॉगे।
2.12.3 'वारा' जफ प्रत्मम के ूपऩ भें आएगा तफ तो 2.12.2 के अनुसाय
नभराकय नरिा जाएगा; अन्मथा अरग से। मह वारा, मह वारी, ऩहरे वारा,
अच्छा वारा, रार वारा, कर वारी फात आहद भें वारा ननदे शक शब्द है। अत
इसे अरग ही नरिा जाए। इसी तयह रॊफे फारों वारी रडकी, दाढी वारा
आदभी आहद शब्दों भें बी वारा अरग नरिा जाएगा। इससे हभ यचना के
स्तय ऩय अॊतय कय सकते हेऄ। जैसे :– गाॉववारा - villager गाॉव वारा भकान -
village house
2.13 श्रुनर्मूऱक 'य', 'व'
2.13.1 जहाॉ श्रुनतभूरक म, व का प्रमोग हवकल्ऩ से होता है वहाॉ न हकमा
जाए, अथाषतच हकए : हकमे, नई : नमी, हुआ : हुवा आहद भें से ऩहरे स्वयात्भक)
ूपऩों का प्रमोग हकमा जाए। मह ननमभ हक्रमा, हवशेषण, अव्मम आहद सबी ूपऩों
औय नस्थनतमों भें रागू भाना जाए। जैसे :– हदिाए गए, याभ के नरए, ऩुस्तक
नरए हुए, नई हदल्री आहद।
2.13.2 जहाॉ 'म' श्रुनतभूरक व्माकयनणक ऩहयवतषन न होकय शब्द का ही भूर
तत्व हो वहाॉ वैकनल्ऩक श्रुनतभूरक स्वयात्भक ऩहयवतषन कयने की आवश्मकता
नहीॊ है। जैसे :– स्थामी, अव्ममीबाव, दानमत्व आहद अथाषतच महाॉ स्थाई, अव्मईबाव,
दाइत्व नहीॊ नरिा जाएगा)।
2.14 हवदेशी ध्वननयााँ
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2.14.1 उदष ू शब्द


उदष ू से आए अयफी-फ़ायसी भूरक वे शब्द जो हहॊदी के अॊग फन चु के हेऄ औय
नजनकी हवदे शी ध्वननमों का हहॊदी ध्वननमों भें ूपऩाॊतय हो चु का है, हहॊदी ूपऩ भें
ही स्वीकाय हकए जा सकते हेऄ। जैसे :– करभ, हकरा, दाग आहद ़रभ, ह़रा,
दाा नहीॊ)। ऩय जहाॉ उनका शु द्ध हवदे शी ूपऩ भें प्रमोग अबीष्ट हो अथवा
उच्चायणगत बेद फताना आवश्मक हो, वहाॉ उनके हहॊदी भें प्रचनरत ूपऩों भें
मथास्थान नुक्ते रगाए जाएॉ। जैसे :– िाना : ऽाना, याज : याज, पन : हाइफ़न
आहद।
2.14.2 अॊग्रेजी शब्द
अॊग्रेजी के नजन शब्दों भें अधषहववृत 'ओ' ध्वनन का प्रमोग होता है, उनके शु द्ध
ूपऩ का हहॊदी भें प्रमोग अबीष्ट होने ऩय 'आ' की भा्र ा के ऊऩय अधषचॊद्र का
प्रमोग हकमा जाए ऑ, ् )। जहाॉ तक अॊग्रेजी औय अन्म हवदे शी बाषाओॊ से
नए शब्द ग्रहण कयने औय उनके दे वनागयी नरप्मॊतयण का सॊफॊध है, अगस्त-
नसतॊफय, 1962 भें वैऻाननक तथा तकनीकी शब्दावरी आमोग द्वाया वैऻाननक
शब्दावरी ऩय आमोनजत बाषाहवदों की सॊगोष्ठी भें अॊतययाष्डीम शब्दावरी के
दे वनागयी नरप्मॊतयण के सॊफॊध भें की गई नसफ़ाहयश उल्रेिनीम है। उसभें मह
कहा गमा है हक अॊग्रेजी शब्दों का दे वनागयी नरप्मॊतयण इतना नक्रष्ट नहीॊ
होना चाहहए हक उसके वतषभान दे वनागयी वणों भें अनेक नए सॊकेत-नच‍न
रगाने ऩडें । अॊग्रेजी शब्दों का दे वनागयी नरप्मॊतयण भानक अॊग्रेजी उच्चायण के
अनधक-से-अनधक ननकट होना चाहहए।
2.14.3 द्हवधा ूपऩ वतषनी
हहॊदी भें कुछ प्रचनरत शब्द ऐसे हेऄ नजनकी वतषनी के दो-दो ूपऩ फयाफय चर
यहे हेऄ। हवद्वत्सभाज भें दोनों ूपऩों की एक-सी भान्मता है। कुछ उदाहयण हेऄ :–
गयदन/गदष न, गयभी/गभी, फयफ़/फफ़ष, हफरकुर/हफल्कुर, सयदी/सदी,
कुयसी/कुसी, बयती/बती, फ़ुयसत/फ़ुसषत, फयदाश्त/फदाषश्त, वाऩस/वाहऩस,
आनियकाय/आिीयकाय, फयतन/फतषन, दफ
ु ाया/दोफाया, दक
ु ान/दक
ू ान,
फीभायी/हफभायी आहद।
2.15 अन्म ननमभ
2.15.1 नशयोये िा का प्रमोग प्रचनरत यहेगा।
मानक हिन्दी ्तनीन 10

2.15.2 फ़ुरस्ट ऩ ऩूणष हवयाभ) को छोडकय शेष हवयाभाहद नच‍न वही ग्रहण
कय नरए गए हेऄ जो अॊग्रेजी भें प्रचनरत हेऄ। मथा :– - (हाइफ़न/मोजक नच‍न), –
िैश/ननदे शक नच‍न), :– (कोरन एॊि िेश/हववयण नच‍न), ,
(कोभा/अल्ऩहवयाभ), ; सेभीकोरन/अधषहवयाभ), : (कोरन/उऩहवयाभ), ?
(क्वश्चनभाकष/प्रश्न नच‍न), ! साइन ऑफ़ इॊटेयोगेशन/हवस्भमसूचक नच‍न), '
(अऩोस्राफ़ी/ऊध्वष अल्ऩ हवयाभ), " " िफर इन्वटे ि कोभाज/उद्धयण नच‍न), ' '
(नसॊगर इन्वटे ि कोभा/शब्द नच‍न). ), { }, [ ] (तीनों कोष्ठक), ... (रोऩ
नच‍न), (सॊऺेऩसूचक नच‍न)/ हॊसऩद)। हवस्तृत ननमभों के नरए दे निए-
ऩहयनशष्ट - 5 ऩृष्ठ 36-47)
2.15.3 हवसगष के नच‍न को ही कोरन का नच‍न भान नरमा गमा है। ऩय
दोनों भें मह अॊतय यिा गमा है हक हवसगष वणष से सटाकय औय कोरन शब्द
से कुछ दयू ी ऩय यहे। ऩूवष सॊदबष 2.7.7 औय 2.7.7.1)
2.15.4 ऩूणष हवयाभ के नरए िडी ऩाई ।) का ही प्रमोग हकमा जाए। वाक्म
के अॊत भें हफॊद ु अॊग्रेजी फ़ुरस्ट ऩ .) का नहीॊ।

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