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उड़ान भारतीय राजव्यवस्था
उड़ान भारतीय राजव्यवस्था
ONE
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1 संविधान का ननर्ााण 1
2 संविधान की प्रर्ुख विशेषताएँ 4
3 संविधान की उद्दे शशका(भूशर्का/परिचय) 8
4 संघ ि इसके िाज्य क्षेत्र 13
5 नागरिकता 17
6 र्ूल अधधकाि 21
7 िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि 38
8 र्ूल कताव्य 42
9 संविधान संशोधन 44
10 संविधान की र्ूल संिचना शसद्धांत 47
11 संसदीय व्यिस्था 50
12 केंद्र-िाज्य संबंध 54
13 अंतिााज्यीय संबंध 63
14 आपातकालीन प्रािधान 67
15 िाष्ट्रपनत औि िाज्यपाल 76
16 उप-िाष्ट्रपनत 85
17 प्रधानर्ंत्री औि र्ुख्यर्ंत्री 89
18 केंद्रीय एिं िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद 91
19 संसद 94
20 संसदीय सशर्नतयां 115
21 उच्चतर् न्यायालय 118
22 उच्च न्यायालय 124
23 अधीनस्थ न्यायालय 130
24 अधधकिण 133
25 िाज्य विधानर्ंडल 136
26 स्थानीय सिकाि 147
27 अनुसूधचत एिं जनजातीय क्षेत्र 154
28 कुछ िाज्यों के शलए विशेष प्रािधान 157
29 संिैधाननक ननकाय 160
30 गैि-संिैधाननक ननकाय 165
31 सहकािी सशर्नतयाँ 170
32 दल-बदल कानून 172
1. संविधान का ननर्ााण
• 9 ददसंबि, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक आयोन्जत हुई (र्ुन्स्लर् लीग ने बैठक का बदहष्ट्काि क्रकया)
।
• िरिष्ट्ठतर् सदस्य डॉ. सधचदानंद शसन्हा को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया। अस्थाई अध्यक्ष की
ननयुन्क्त फ्रेंच पिम्पिा के अनुसाि की गई थी।
• बाद र्ें डॉ. िाजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया।
• उपाध्यक्ष (दो)→ एच.सी. र्ुखजी औि िी.र्टी. कृष्ट्णार्ाचािी।
र्ुख्य समर्नतयााँ
• संघ शन्क्त सशर्नत / संघ संविधान सशर्नत / िाज्य सशर्नत (िाज्यों से सर्झौते हेतु) →जिाहिलाल नेहरू
• प्रक्रिया ननयर् सशर्नत / संचालन सशर्नत → डॉ. िाजेंद्र प्रसाद
• प्रांतीय संविधान सशर्नत → सिदाि पर्टे ल
• प्रारूप सशर्नत → डॉ. बी.आि. अम्बेडकि
• संविधान के प्रारूप के प्रत्येक प्रािधान(clause by clause) पि चचाा के बाद इसे 26 निंबि, 1949 को अपनाया
गया। उस सर्य इसर्ें उद्दे शशका, 395 अनुच्छे द औि 8 अनुसूधचयां शाशर्ल थीं।
• संविधान के पूणा रूप से अधधननयशर्त होने के बाद उसके उद्दे शशका को लागू क्रकया गया था।
• संविधान के कुछ प्रािधान 26 निंबि, 1949 को स्ितः ही लागू हो गए थे। नागरिकता, चुनाि, तदथा संसद,
अस्थायी औि परिितानशील ननयर् औि छोर्टे शीषाकों से जुड़े कुछ प्रािधान (अनुच्छे द 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324,
366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 औि 393 )।
• संविधान के शेष प्रािधान 26 जनििी, 1950 को लागू हुए थे क्योंक्रक 26 जनििी, 1930 को पूणा स्ििाज ददिस
र्नाया गया था। इस ददन को संविधान के शुरुआत के ददन तथा गणतन्त्र ददिस के रूप र्ें दे खा जाता है।
• संविधान के लागू होने के बाद भाितीय स्ितंत्रता अधधननयर्, 1947 औि भाित सिकाि अधधननयर्, 1935ई.
ननिस्त हो गए। हालाँक्रक एबोशलशन आफ वप्रिी काउं शसल ज्यूरिडडक्सन एक्र्ट,1949 (Abolition of Privy Council
Jurisdiction Act ,1949) लागू िहा।
अन्य र्हत्िपूणा तथ्य
एकात्र्क प्रणाली की विशेषताएं र्जबूत केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, एकीकृत
न्यायपाशलका, अखखल भाितीय सेिाएं, आपातकालीन प्रािधान
आदद।
• शासन की संसदीय व्यिस्था- भाितीय संविधान ने अर्ेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली के बजाय त्रिदर्टश संसदीय
प्रणाली को प्राथशर्कता दी है। शासन की संसदीय व्यिस्था की विशेषताएं: िाष्ट्रपनत नार् र्ात्र की कायापाशलका है
तथा प्रधानर्ंत्री तथा उसका र्ंत्रत्रर्ंडल िास्तविक कायापाशलका है+ बहुर्त पार्टी का शासन +प्रधानर्ंत्री औि
र्ुख्यर्ंत्री के नेतृत्ि र्ें सिकाि + विधानयका र्ें र्ंत्रत्रयों की सदस्यता + ननचला सदन (लोकसभा) का विघर्टन।
• संसदीय संप्रभुता और न्यानयक सिोच्चता र्ें सर्न्िय- संसद की संप्रभुता का विचाि त्रिदर्टश संसद से आया है
जबक्रक न्यानयक सिोच्चता का विचाि अर्ेरिकी प्रणाली से जुड़ा है । भाितीय संविधान के ननर्ााताओं ने संसदीय
• र्ौमलक कताव्य– र्ौशलक कताव्यों को भाितीय संविधान र्ें स्िणा मसंह समर्नत की शसफारिशों के बाद ही जोड़ा गया
था। 86िें संिैधाननक संशोधन (2002) के द्िािा एक औि र्ौशलक कताव्य को जोड़ा गया। र्ौमलक कताव्यों को भी
न्यायपामलका द्िारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
• धर्ाननरपेि राज्य- 'धर्ाननिपे क्ष' शब्द को भाितीय संविधान की प्रस्तािना र्ें 42िें संिैधाननक संशोधन (1976)
द्िािा जोड़ा गया था। भाितीय संविधान धर्ाननिपेक्षता की सकािात्र्क अिधािणा का प्रतीक है , क्योंक्रक यह क्रकसी
धर्ा को भाित के धर्ा के तौि पि र्ान्यता नहीं दे ता है।
• सािाभौमर्क ियस्क र्ताधधकार - 61िें संिैधाननक संशोधन (1988) के द्िािा र्तदान किने की उम्र को 21 िषा
से घर्टाकि 18 िषा कि ददया गया था।
• एकल नागररकता- भाित का संविधान पूिे भाित के शलए एकल नागरिकता की व्यिस्था किता है।
• स्ितंत्र ननकाय- भाित र्ें लोकतांत्रत्रक प्रणाली को र्जबूत किने हेतु संविधान र्ें कुछ स्ितंत्र ननकायों की व्यिस्था
की गई है; ये हैं: चुनाि आयोग + ननयंत्रक औि लेखा पिीक्षक + संघ लोक सेिा आयोग + िाज्य लोक सेिा
आयोग।
3. प्रस्तािना
हर् भारत के लोग, भारत को एक सम्पूणा प्रभुत्ि सम्पन्न, सर्ाजिादी, पंथ-ननरपे ि, लोकतंत्रात्र्क गणराज्य बनाने
के मलए तथा उसके सर्स्त नागररकों को :
सार्ाजजक, आधथाक और राजनीनतक न्याय,
विचार, अमभव्यजक्त, विश्िास, धर्ा और उपासना की स्ितंत्रता,
प्रनतष्ठा और अिसर की सर्ता प्राप्त कराने के मलए,
तथा उन सब र्ें व्यजक्त की गररर्ा और
राष्र की एकता और अखण्डता सुननजश्चत करने िाली बंधुता बढाने के मलए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा र्ें आज तारीख 26 निंबर,19 49 ई. (मर्नत र्ागाशीषा शुक्ल सप्तर्ी,
संित दो हजार छह विक्रर्ी) को एतद द्िारा इस संविधान को अंगीकृत , अधधननयमर्त और आत्र्ावपात करते हैं।
प्रस्तािना के घटक
भाितीय लोकतांत्रत्रक गणिाज्य की कं ु डली + संविधान का दशान + भाितीय संविधान का सािांश + हर्ािे संविधान का
पहचान पत्र (एन. ए. पालकीिाला) + संविधान ननर्ााताओं के र्न्स्तष्ट्क की कं ु जी + यह कानूनों की संिैधाननकता की
व्याख्या के शलए न्यायपाशलका की र्ागादशाक है।
• एक पूणा स्ितंत्र राज्य + ककसी अन्य दे श का डोमर्ननयन नहीं + बाह्य और आंतररक दोनों रूप
संप्रभु र्ें संप्रभु + एक संप्रभु राज्य के रूप र्ें,भारत ककसी विदे शी भूमर् को अधधग्रदहत करता है अथिा
ककसी अन्य दे श को अपना दहस्सा दे सकता है।
सर्ाजिादी • 42िें संशोधन द्िािा जोड़ा गया (1976)+ सर्ाजिादी अिधािणा ननदे शक तत्िों (अनुच्छे द
36-51) र्ें पहले से विद्यर्ान थी लेक्रकन 42िें संशोधन के द्िािा इसका स्पष्ट्र्ट उल्लेख कि
ददया गया।
• भाित का सकािात्र्क पंथ-ननिपेक्ष: यहाँ सभी धर्ा सर्ान है औि उन्हे िाज्य का सर्ान सर्थान
प्राप्त है।
• लोकतान्न्त्रक → लोकवप्रय संप्रभुता का शसद्धान्त→सिोच्च शन्क्त जनता के हाथों र्ें
• इसर्ें सन्म्र्शलत हैं- िाजनीनतक + सार्ान्जक + आधथाक लोकतंत्र
• भाितीय लोकतंत्र: प्रनतननधधत्िात्र्क संसदीय लोकतंत्र। कायापाशलका अपने सभी कायों एिं
नीनतयों के शलए विधानयका के प्रनत न्जम्र्ेदाि है।
• भाितीय लोकतंत्र का घोषणापत्र: सािाभौशर्क ियस्क र्ताधधकाि, आिधधक चुनाि , कानून का
शासन, न्यायपाशलका की स्ितंत्रता औि कुछ आधािों पि भेदभाि की अनुपन्स्थनत।
1. जनर्त संग्रह जनर्त संग्रह एक प्रत्यक्ष र्तदान है, न्जसके र्ाध्यर् से क्रकसी प्रस्ताि पि
(Referendu लोगो से सीधे र्तदान के शलए कहा जाता है।
m)
2. पहल िह प्रक्रिया न्जसके तहत लोग विधानयका के सर्क्ष क्रकसी कानून के ननर्ााण का
(Initiative) प्रस्ताि िखते है।
3. िापस बुलाना र्तदाताओं द्िािा क्रकसी प्रनतननधध या अधधकािी को उसके कायाकाल पूिा होने से
•
• सभी नागरिकों के साथ जानत , िं ग, िंश, धर्ा औि शलंग के आधाि पि
न्याय सार्ान्जक भेदभाि के त्रबना सर्ान व्यिहाि |
• क्रकसी िगा विशेष के शलए विशेषाधधकािों की अनुपन्स्थनत |
•
• विधध के सर्क्ष सर्ता (अनु. 14)
• धर्ा, र्ूलिंश, जानत, शलंग या जन्र्स्थान के आधाि पि ननषेध (अनु.
नागरिक सर्ता 15)
• उपयुाक्त तीनों का संयोजन एक ऐसे त्रय का ननर्ााण किता है, न्जसर्ें से यदद क्रकसी एक की भी हानन होती
है तो यह लोकतंत्र के उद्दे श्य को ही नष्ट्र्ट कि दे ता है।
• सर्ता के त्रबना स्ितंत्रता, अन्य पि कु छ लोगों के िचास्ि का ननर्ााण किे गी। स्ितंत्रता के त्रबना सर्ता
व्यन्क्तगत पहल र्ें बाधक है।
• प्रस्तािना र्ें संशोधन क्रकया जा सकता है या नहीं इसका ननणाय पहली बाि केशिानंद भािती केस (1973) र्ें
हुआ।
• सिोच्च न्यायालय ने बेरुबािी संघ केस (1960) र्ें ददये गए अपने ननणाय को परििनतात किते हुए प्रस्तािना को
संविधान का अशभन्न दहस्सा र्ाना औि कहा क्रक इसे अनुच्छे द-368 के तहत संशोधधत क्रकया जा सकता है। साथ
ही न्यायालय ने यह भी कहा क्रक ऐसे संशोधन र्ें संविधान के “र्ूल ढांचे” र्ें संधोशन नहीं क्रकया जाना चादहए।
• अनुच्छे द 1 से 4, भाग 1 → संघ औि उसके संबन्न्धत क्षेत्रों का विििण → अनुच्छे द 1- भाित, अथाात
इंडडया, िाज्यों का संघ(Union of States) होगा; न क्रक ‘िाज्यों का परिसंघ’(Federation of States) होगा।
• अनुसूची 1 - िाज्यों के नार् औि उनके क्षेत्रीय अधधकाि क्षेत्र।
• भारत का िेत्र - तीन श्रेखणयां → िाज्य + संघ िाज्यक्षेत्र + अधधग्रदहत क्षेत्र
• राज्यों का िेत्र - 28 िाज्य (2020) + 8 संघ िाज्यक्षेत्र (2020) → अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह (1956)
+ लक्षद्िीप (1956) + चंडीगढ (1966) + िाष्ट्रीय िाजधानी क्षेत्र ददल्ली (1962) + पुदच
ु ेिी (1962) + लद्दाख
(2019) + जम्र्ू औि कश्र्ीि (2019) + दादिा औि नगि हिेली ि दर्न औि दीि (2020)
• संघ राज्यिेत्र - केंद्र सिकाि द्िािा ननयंत्रण औि प्रशासन = इन्हें केंद्र शाशसत प्रदे श भी कहा जाता है।
• राज्य - िाज्य संघीय प्रणाली के सदस्य हैं औि केंद्र के साथ शन्क्तयों का वितिण साझा किते हैं।
• केंद्र शामसत प्रदे श - सीधे केंद्र सिकाि द्िािा प्रशाशसत|
• अधधग्रदहत िेत्र - सीधे केंद्र सिकाि द्िािा प्रशाशसत|
• पूिा केंद्र शामसत प्रदे श (अब राज्य) - दहर्ाचल प्रदे श, र्खणपुि, त्रत्रपुिा, शर्जोिर्, अरुणाचल प्रदे श औि गोिा।
राज्यों का संघ
• भाितीय संघ(Indian Union), अर्ेरिकी परिसंघ(Federation) की भांनत िाज्यों के र्ध्य सर्झौते का परिणार्
नहीं है।
• िाज्यों को संघ से अलग होने का कोई अधधकाि नहीं है।
‘भारतीय संघ’ की तुलना र्ें ‘भारत का िेत्र’ की ज्यादा यह ‘भाित का क्षेत्र’ के शसद्धान्त की तुलना र्ें संकीणा
व्यापक अमभव्यजक्त है, क्योंकक इसर्ें न केिल राज्य अिधािणा है, क्योंक्रक इसर्ें केिल िाज्य शाशर्ल हैं।
शामर्ल हैं, बजल्क केंद्र शामसत प्रदे श और िो िेत्र भी
शामर्ल हैं जजन्हें भविष्य र्ें भारत सरकार द्िारा
अधधग्रहण ककया जा सकता है।
• सन 2019 तक, जम्र्ू औि कश्र्ीि िाज्य का अपना संविधान था औि भाितीय संविधान के अनुच्छे द -370 के
आधाि पि इसे विशे ष दजाा प्राप्त था।
• 2019 र्ें, िाष्ट्रपनत के आदे श द्िािा [संविधान आदे श (जम्र्ू औि कश्र्ीि र्ें लागू) संशोधन आदे श,2019] इस
िाज्य का विशेष दजाा को सर्ाप्त कि ददया गया।
• जम्र्ू औि कश्र्ीि पुनगाठन अधधननयर्, 2019 ने जम्र्ू औि कश्र्ीि िाज्य को दो केंद्र शाशसत िाज्यों र्ें
विभान्जत कि ददया-
ददल्ली िाज्य विधानयका, सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों (सािाजननक
व्यिस्था, पुशलस औि भूशर् को छोड़कि) पि कानून बना सकती है।
जम्र्ू और सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों (सािाजननक व्यिस्था औि पुशलस को
कश्र्ीर छोड़कि) पि कानून बना सकती है।
पुदच
ु ेरी सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों पि कानून बना सकती है।
नोट: संविधान र्ें अधधग्रदहत क्षेत्रों के प्रशासन के शलए कोई अलग प्रािधान नहीं है।
• केंद्रशाशसत प्रदे शों के शलए संसद तीनों सूधचयों (िाज्य सूची सदहत) के क्रकसी भी विषय पि कानून बना सकती है।
• िाष्ट्रपनत अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह, लक्षद्िीप, दादिा औि नगि हिेली ि दर्न औि दीि की शांनत ,
प्रगनत औि अच्छी सिकाि के शलए ननयर् बना सकते हैं।
• िाष्ट्रपनत द्िािा बनाए गए ननयर्, संसद के अधधननयर् के सर्ान प्रभािी होतें हैं।
• संसद, केंद्रशाशसत प्रदे श के शलए एक उच्च न्यायालय स्थावपत कि सकती है।
7िां संविधान संशोधन अधधननयर् (1956) : इसके तहत सार्ान्य दहत के र्ार्लों पि सलाह दे ने के शलए भाित र्ें
जोनल काउं शसल (Zonal Councils) का प्रािधान क्रकया गया।
• 69िां संविधान संशोधन अधधननयर् (1991) - ददल्ली को िाष्ट्रीय िाजधानी क्षेत्र के रूप र्ें परिभावषत क्रकया गया।
• ददल्ली के शलये 70 सदस्यीय विधानसभा (सीधे लोगों द्िािा चुना जाना) तथा 7 सदस्यीय र्ंत्रत्रपरिषद (10
प्रनतशत) की व्यिस्था भी की गई।
• भाित के चुनाि आयोग द्िािा चुनाि किाए जाने का प्रािधान।
• उपिाज्यपाल औि र्ुख्यर्ंत्री की िाय के अंति के र्ार्ले र्ें उपिाज्यपाल र्ार्ले को िाष्ट्रपनत के संज्ञान र्ें लाते
हें ।
• जब ऐसी न्स्थनत उत्पन्न होती है न्जसर्ें क्षेत्र का प्रशासन उपयुाक्त प्रािधानों के अनुसाि नहीं चलाया जा सकता
है, िाष्ट्रपनत उपयुाक्त प्रािधानों को ननलंत्रबत कि सकते हैं तथा क्षेत्र के प्रशासन के शलए आिश्यक या आकन्स्र्क
प्रािधान बना सकते हैं → अनुच्छे द 356
• उपिाज्यपाल को अध्यादे श ( ordinance) प्रख्यावपत (promulgate) की शन्क्त प्रदान की गयी है → अध्यादे श को
विधानसभा द्िािा छह सप्ताह के भीति अनुर्ोददत किना।
उपिाज्यपाल औि उनके र्ंत्रत्रयों के बीच र्तभेद के र्ार्ले र्ें , लेन्फ्टर्टनेंर्ट गिनाि र्ार्ले को िाष्ट्रपनत के संज्ञान र्ें
लाते हें तथा उनके फैसले के अनुसाि काया कितें हैं।
• भारत सरकार (कायािाही आिंटन ) ननयर्, 1961 → गृह र्ंत्रालय, केंद्र शाशसत प्रदे शों के कानून, वित्त औि बजर्ट
से संबंधधत सभी र्ार्लों के शलए नोडल र्ंत्रालय है।
• सभी पााँच केंद्र शामसत प्रदे श (विधानयका के ब्रबना) → अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह, चंडीगढ, दादिा औि
नगि हिेली ि दर्न औि दीि, लक्षद्िीप औि लद्दाख → इन केंद्र शाशसत प्रदे शों र्ें गृह र्ंत्री सलाहकाि सशर्नत
(HMAC) / प्रशासननक सलाहकाि सशर्नत ( AAC) का फोिर् है।
• ृ र्ंत्री सलाहकाि सशर्नत (HMAC) की अध्यक्षता केंद्रीय गह
गह ृ र्ंत्री द्िािा की जाती है।
• प्रशासननक सलाहकाि सशर्नत ( AAC) की अध्यक्षता केंद्र शाशसत प्रदे श के संबंधधत प्रशासक द्िािा की जाती है।
कायाकािी प्रर्ुख िाज्यपाल होतें हैं। कायाकािी प्रर्ुख को विशभन्न पदनार् से जाना जाता
है:
o प्रशासक
o उपिाज्यपाल
5. नागरिकता
संिैधाननक प्रािधान
● सींवििान के भाग-II में अनुच्छे द 5 से अनुच्छे द 11 तक नागररकता से सींबींधित प्राििान ददये गए हैं। सींवििान में
नागररकता के सींबींि में स्थायी और विस्तृत उपबींि नह ीं ददये गए हैं, इसमें मसफम सींव ििान लागू होने की ततधथ के
समय नागररकता प्राप्त लोगों की पहचान की गयी है। (26 िनिर )
● संविधान संसद को यह शक्तत प्रदान किता है कक िह नागररकता से िुड़े मामलों के मलए आिश्यक कानूनों का
तनमामण करे ।
1. अनुच्छे द 5: सींवििान लागू होने के समय प्राप्त नागररकता।
2. अनुच्छे द 6: पाककस्तान से भारत आने िालों को द गई नागररकता।
3. अनुच्छे द 7: पहले पाककस्तान गए और बाद में भारत में पुनप्रमिास करने िालों को द गयी नागररकता।
4. अनुच्छे द 8: भारत के मूल तनिामसयों की नागररकता।
5. अनुच्छे द 9: नागररकता की समाजप्त (ककसी अन्य दे श की नागररकता की स्िैजच्छक स्िीकृतत पर भारतीय
नागररकता का स्ित: समापन)
6. अनुच्छे द 10: नागररकता की तनरीं तरता (िब तक कक सींसद इस सींबींि में ऐसा कोई कानून न बनाए|)
7. अनुच्छे द 11: नागररकता के अधिकारों को वितनयमन सींसद विधि द्िारा करे गी। (सींसद के पास यह शजतत
होगी कक िह नागररकता के अिमन और समाजप्त तथा नागररकता से िुड़े अन्य सभी मामलों के मलए कानून
बना सकती है।
नागरिकता का अजजन:
नागरिकता की समाक्प्त
● पूणज आयु (ियस्क) औि क्षमता (स्िस्थ मानशसक क्स्थनत) िाला भाित का कोई भी नागरिक
स्िेच्छा से अपनी भाितीय नागरिकता त्यागने की घोषणा कि सकता है, ऐसी घोषणा के
परित्याग से पंजीकिण के उपिांत िह भाित का नागरिक नह ं िहेगा।
● ऐसे व्यक्तत के अियस्क बच्चों की नागरिकता भी इसके बाद समाप्त हो जाएगी। हालांकक
ियस्क होने के उपिांत िह बच्चा पुन: नागरिकता हाशसल कि सकता है।
● िब कोई भारतीय नागररक स्िेच्छा से (होशो-हिास में, िानबूझकर और बबना दबाि,
बर्ाजस्तगी से अनुधचत प्रभाि या मिबूर के) ककसी अन्य दे श की नागररकता स्िीकार करता है, तो उसकी
भारतीय नागररकता स्ितः समाप्त हो िाती है।
एकल नागरिकता
● यद्यवप भारत में सींघीय सींवििान और दोहर रािव्यिस्था (केंद्र और राज्य) को अपनाया गया है, पिं तु यहााँ केिल
एकल नागररकता की व्यिस्था लागू है- अथाात सींघीय तनष्ट्ठा को व्यतत करती भारतीय नागररकता।
● यहााँ अमेररका और जस्िट्िरलैंड की तरह राज्यों के मलए अलग नागररकता का कोई प्राििान नह ीं है।
● भारत में, सभी नागररकों को, चाहे िे ककसी भी राज्य में िन्में या तनिास करते हों, पूरे दे श में एक समान
नागररक अधिकार प्राप्त हैं और उनके साथ ककसी प्रकार का भेदभाि नह ीं होता है। हालाींकक, भेदभाि रदहत
नागररकता का यह सामान्य तनयम कुछ अपिादों के अिीन है।
● भारत के सींवििान में कनाडा के सींवििान की तरह भाई-चारे और लोगों के बीच एकता बनाए रिने तथा एक
एकीकृत भारतीय राष्ट्र का तनमामण करने के मलए एकल नागररकता के प्राििान के साथ एक समान अधिकार
(विशेर् मामलों के अततररतत) प्रदान ककए गए हैं।
6. र्ूल अधधकार
• भाितीय संविधान के भागIII र्ें अनुच्छे द 12-35तक र्ूल अधधकािों का प्रािधान है।
• र्ूल अधधकाि,अर्ेरिकी संविधान (अधधकाि का त्रबल–Bill of Rights) से प्रेरित हैं + व्यजक्त के सिाांगीण विकास
के मलए ‘र्ूल’ तत्ि:भौनतक,बौद्धधक, नैनतक औि आध्यान्त्र्क + भाित का र्ैग्ना कार्टाा + न्यायोधचत + हि
व्यन्क्त के शलए र्ूल अधधकािों की गािं र्टी लेक्रकन युन्क्तयुक्त प्रनतबंध के साथ + िाजनीनतक लोकतंत्र के आदशा +
कायापाशलका की ननिं कुशता औि विधानयका के कानूनों की र्नर्ानी पि सीर्ाएं + र्ूल अधधकािों औि डीपीएसपी
के बीच संतुलन संविधान की आधािभूत ढांचा का का दहस्सा है।
र्ूल अधधकार
सांविधाननक उपचािें • र्ूल अधधकािों के प्रितान किाने के शलए सिोच्च न्यायालय जाने का अधधकाि
अनुच्छे द व्याख्या
• अनुच्छे द 12 र्ें "िाज्य" शब्द को परिभावषत क्रकया है न्जसर्ें सिकाि औि संसद + सिकाि औि
िाज्यों की विधानयका + सभी स्थानीय प्राधधकिण अथाात नगिपाशलकाएं , पंचायत, न्जला बोडा, सु धाि
अनुच्छे द 12
संस्था आदद+ अन्य सभी प्राधधकिण , अथाात ् िैधाननक या गैि-िैधाननक प्राधधकिण जैसे एलआईसी
(LIC), ओएनजीसी (ONGC), सेल (SAIL) आदद।
• उच्चतर् न्यायालय के अनुसाि : एक ननजी ननकाय या िाज्य के एक उपकिण के रूप र्ें कार्
किने िाली संस्था भी अनुच्छे द 12 के तहत िाज्य की परिभाषा के अंतगात आती है।
• अनुच्छे द 13 - सभी "विधध" जो क्रकसी भी र्ूल अधधकाि के साथ असंगत या अपर्ानजनक हैं,
शून्य हो जाएंगे।
• शब्द "विधध" ननरूवपत किता है: संसद या िाज्य विधानसभाओं द्िािा बनाए गई स्थायी विधधयाँ +
िाष्ट्रपनत या िाज्य के िाज्यपालों द्िािा जािी क्रकए गए अध्यादे श जैसी अस्थायी विधधयाँ +
प्रत्यायोन्जत विधान की प्रकृनत र्ें सांविधाननक साधन जैसे - आदे श, ननयर्,उपविधध,विननयर्न या
अनुच्छे द 13
अधधसूचना + विधध के गैि विधायी स्रोत जैसे रूदढ या प्रथा जो विधध का प्रभाि िखती हो।
• इन्हें र्ूल अधधकािों के उल्लंघन के रूप र्ें अदालतों र्ें चुनौती दी जा सकती है औि इसशलए इसे
शून्य घोवषत क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 13 न्यानयक पुनिािलोकन प्रदान किता है।
• अनुच्छे द 13 घोवषत किता है क्रक संविधान संशोधन कोई विधध नहीं है इसशलए इसे चुनौती नहीं दी
जा सकती है। हालाँक्रक, सिोच्च न्यायालय ने केशिानंद भािती र्ार्ले ( 1973) र्ें कहा क्रक र्ूल
अधधकािों के हनन के आधाि पि चुनौती दी जा सकती है। यदद िह संविधान के र्ूल ढांचे के
खखलाफ हो तो उसे अिैध घोवषत क्रकया जा सकता है।
• विधध के सर्क्ष सर्ानता का अधधकाि (त्रिदर्टश धािणा + नकािात्र्क धािणा) + विधधयों का सर्ान
संिक्षण (अर्ेरिकी अिधािणा + सकािात्र्क धािणा)।
• अनुच्छे द 14: िाज्य क्रकसी भी व्यन्क्त को विधध के सर्क्ष सर्ानता या िाज्य क्षेत्र र्ें विधधयों के
सर्ान संिक्षण से इनकाि नहीं किे गा।
• विधध के सर्क्ष सर्ानता (त्रिदर्टश धािणा): क्रकसी भी व्यन्क्त के पक्ष र्ें क्रकसी विशेष विशेषाधधकािों
की अनुपन्स्थनत + साधािण विधध या साधािण विधध न्यायलय के तहत सभी व्यन्क्तयों के शलए
सर्ान व्यिहाि + कोई व्यन्क्त विधध से ऊपि नहीं है।
• विधधयों का सर्ान संिक्षण (अर्ेरिकी अिधािणा):विधधयों द्िािा प्रदत्त विशेषाधधकािों औि
अध्यािोवपत दानयत्िों दोनों र्ें सर्ान परिन्स्थयों क अंतगात व्यिहाि सर्ता + सर्ान विधध के
अंतगात सभी व्यन्क्तयों के शलए सर्ान ननयर् + त्रबना भेदभाि के सभी के साथ सर्ान व्यिहाि।
• अस्पश्ृ यता का अंत: क्रकसी भी रूप र्ें अस्पश्ृ यता की र्नाही→ अस्पश्ृ यता (अपिाध) अधधननयर्,
1955 = 1976 र्ें संशोधन क्रकया गया औि नया नार् नागरिक अधधकािों क्रकन िक्षा अधधननयर्
ददया गया।
• अस्पश्ृ यता - संविधान या अधधननयर् र्ें पररभावषत नहीं है।
अनुच्छे द 17 • र्ैसूि उच्च न्यायालय: "अनुच्छे द 17 की विषय िस्तु शान्ब्दक या व्याकिखणक अथों र्ें अस्पृश्यता
नहीं है, लेक्रकन दे श र्ें ऐनतहाशसक रूप से विकशसत हुई थी”→ सार्ान्जक ननयोगयता कुछ िगों पि
थोप दी गई।
• कुछ व्यजक्तयों के सार्ाजजक बदहष्कार या धामर्ाक सेिाओं आदद से उनके बदहष्कार को सजम्र्मलत
नहीं ककया गया है।
• ननजी व्यजक्त और राज्य के संिैधाननक दानयत्ि के णखलाफ उपलब्ध है ताकक यह सुननजश्चत ककया
जा सके कक इस अधधकार का उल्लंघन नहीं हुआ है।
• यह िाज्य को क्रकसी भी (चाहे िह एक नागरिक या विदे शी हो) क्रकसी भी उपाधध (एक सै न्य या
शैक्षखणक सम्र्ान को छोड़कि) प्रदान किने को ननषेध किता है।
• यह भाित के नागरिक को क्रकसी भी विदे शी िाज्य से क्रकसी भी उपाधध को स्िीकाि किने का ननषेध
स्ितंत्रता का अधधकार (अनुच्छे द 19): अनुच्छे द 19 स्ितंत्रता के संबंधधत छह अधधकारों का संरिण करता है। यह हैं:
• र्ूल रूप से अनुच्छे द19 र्ें 7 अधधकाि थे → 44िें संशोधन अधधननयर्,1978 के द्िािा संपवत्त के अधधकाि को
हर्टा ददया गया था। जो अब अनुच्छे द 300A के अंतगात आता है।
1. िाक औि अशभव्यन्क्त कीस्ितंत्रता का अधधकाि
2. शांनतपूिाक औि ननिायुध सम्र्ेलन का अधधकाि
3.सगर् या संघ या सहकािी संस्था बनाने काअधधकाि
4. भाित के िाज्यक्षेत्र र्ें सित्रि् अबाध संचिण का अधधकाि
5. भाित के िाज्यक्षेत्र के क्रकसी भी भाग र्ें ननिास किने औि बसने का अधधकाि
6. कोई िृवत्त, उपजीविका, व्यापाि या कािबाि किने का अधधकाि
• इन छह अधधकािों की िक्षा केिल राज्य के णखलाफ र्ार्ले र्ें कर सकते हैं न कक ननजी र्ार्ले र्ें । केिल
नागरिकों को [विदे शी औि कानूनी लोगों जैसे कंपनी या परिषदों के शलए]
• िाज्य इन 6 अधधकािों पि अनुच्छे द 19 र्ें िखणात आधािों पि ही उधचत प्रनतबंध लगा सकता है।
उच्चतर् न्यायालय ने िाक और अमभव्यजक्त की स्ितंत्रता र्ें ननम्नमलणखत को शामर्ल
ककया है:
1. अपने विचािों के साथ-साथ दूसिों के विचािों को प्रसारित किने का अधधकाि
2. प्रेस की स्ितंत्रता
3. व्यािसानयक विज्ञापनों की स्ितंत्रता
4. फोन र्टे वपंग के विरुद्ध अधधकाि
िाक और अमभव्यजक्त 5. प्रसारित किने का अधधकाि, यानी सिकाि का इलेक्रॉननक र्ीडडया पि कोई
की स्ितंत्रता का एकाधधकाि नहीं है।
अधधकार 6. क्रकसी िाजनीनतक दल या संगठन द्िािा आयोन्जत बंद के खखलाफ अधधकाि
अनुच्छे द 25 अनुच्छे द 26
अन्तःकरण की स्ितन्त्रता और धर्ा के अबाध अनुकरण एिं धाशर्ाक र्ार्लों के प्रबंधन की स्ितन्त्रता
प्रसार का अधधकार
अनुच्छे द 25 व्यजक्तगत अधधकारों की गारं टी दे ता है। अनुच्छे द 26 धाशर्ाक संप्रदायों एिं उसके अनुभागों को
अधधकाि प्रदान किता है।
अनुच्छे द 25 व्यजक्तिादी धामर्ाक स्ितन्त्रता की रिा करा अनुच्छे द 26 सर्ूदहक रूप से धाशर्ाक अधधकािों की िक्षा
है। किता है।
अनुच्छे द 25 के तहत प्राप्त अधधकार लोक अनुच्छे द 25 की तिह ही अनुच्छे द 26 भी लोक
व्यिस्था,नैनतकता,स्िास्थ्य, र्ूल अधधकारों से जुडे अन्य व्यिस्था, नैनतकता, स्िस््य र्ूल अधधकािों से जुड़े अन्य
प्रािधान के उल्लंघन और धर्ाांतरण के र्ार्ले र्े लागू नहीं प्रािधान के उल्लंघन औि धर्ांतिण के र्ार्ले र्े लागू
होगा। नहीं होगा।
4. िाज्य द्िािा वित्त सहायता प्राप्त किने िाले संस्थान शशक्षा की अनुर्नत
• अनुच्छे द 29 – भाित के क्रकसी भी भाग र्ें िहने िाले नागरिकों के क्रकसी भी अनुभाग
को अपनी बोली, भाषा, शलवप, संस्कृनत को सुिक्षक्षत किने का अधधकाि है ।
• क्रकसी भी नागरिक को िाज्य के अंतगात आने िाले शैक्षखणक संस्थान या िाज्य से
सहायता प्राप्त संस्थान र्ें धर्ा, जानत या भाषा के आधाि पि प्रिेश से िोका नहीं
अनुच्छे द 29 जाएगा।।
• अनुच्छे द 29 (1)–सर्ुदाय के अधधकािों की सुिक्षा किने िाले प्रािधान
• अनुच्छे द 29 (2) -नागरिक के व्यन्क्तगत अधधकािों की गािं र्टी के प्रािधान , चाहे िह
न्जस भी सर्ुदाय का हो।
• अनुच्छे द 29 धाशर्ाक औि भाषायी दोनों अल्पसंख्यकों को सुिक्षा प्रदान किता है।
• संविधान र्ें “अल्पसंख्यक” को परिभावषत नहीं क्रकया गया है।
• सिोच्च न्यायालय ने व्यिस्था दी है कक:
1. भाषा के संिक्षण र्ें भाषा के सं िक्षण के शलए आंदोलन किने का अधधकाि भी
शाशर्ल है।
2. इस अनुच्छे द र्ें दी गई व्यिस्था केिल अल्पसंख्यकों तक ही सीशर्त नहीं है।
क्योंक्रक “नागरिकों के अनुभाग” का अशभप्राय अल्पसंख्यक औि बहुसंख्यक दोनों
से है।
• अनुच्छे द 30–शैक्षखणक संस्थाओं की स्थापना औि प्रशासन किने का अल्पसंख्यक िगों
का अधधकाि। अनुच् छे द 30 अल्पसंख्यक िगों (धाशर्ाक औि भाषायी) को ननम्नशलखखत
अधधकाि प्रदान किता है:-
• अथा: "िोकना”
• उच्च न्यायालय द्िािा अधीनस्थ न्यायालयों + न्यायक्षेत्र से उच्च न्यानयक कायों को िोकने
प्रनतषेध के शलए + केिल न्यानयक औि अधा-न्यानयक प्राधधकािों के खखलाफ ही जािी की जा सकती
है।
• उपलब्ध नहीं है: प्रशासननक प्राधधकिण + विधायी ननकायों + ननजी व्यन्क्त औि ननकायों के
शलए।
अनुच्छे द 33: संसद को सशस्त्र बलों, अधा-सैन्य बलों, पुमलस बलों, खुकफया एजेंमसयों और अन्य
बलों के र्ूल अधधकारों पर युजक्तयुक्त प्रनतबंध लगाने का अधधकार दे ता है।
• अनुच्छे द 33 के तहत कानून बनाने की शजक्त केिल संसद को है न कक राज्य विधान र्ंडलों
अनुच्छे द 33
को
• इस तरह के संसद द्िारा बनाए गए कानून को ककसी न्यायलय र्ें ककसी र्ूल अधधकार के
उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
• अनुच्छे द 33 के तहत ननमर्ात संसदीय कानून, जहां तक र्ूल अधधकारों को लागू करने का
संबंध है, कोटा र्ाशाल (सैन्य कानून के तहत स्थावपत अधधकरण) को उच्चतर् न्यायलय या
उच्च न्यायलयों के ररट अधधकार िेत्र से बाहर करता है।
• अनुच्छे द 34 - जब भाित र्ें कहीं भी र्ाशाल लॉ लागू है, तब अनुच्छे द 34 र्ूल अधधकािों
पि प्रनतबंध के शलए प्रािधान किता है।
• यह संसद को यह अधधकाि दे ता है क्रक िह क्रकसी भी सिकािी कर्ा चािी या क्रकसी अन्य
व्यन्क्त द्िािा क्रकए गए काया की व्यिस्था को बिकिाि िखे या पुनननाशर्ात किे संसद क्रकसी
र्ाशाल लॉ क्षेत्र र्ें जािी आदे श को िेधता प्रदान किता है।
अनुच्छे द 34 • र्ाशाल लॉ का तात्पया है - सैन्य शासन – सेना द्िािा सार्ान्य कानून औि सिकाि के
ननलंबन से है।
• र्ाशाल लॉ की अिधािणा को अंग्रेजी कानून से शलया गया है।
• अशभव्यन्क्त "र्ाशाल लॉ" (सैन्य शासन) को संविधान र्ें कहीं भी परिभावषत नहीं क्रकया गया
है।
• अनुच्छे द 34 के तहत भाित के क्रकसी भी क्षेत्र र्ें र्ाशाल लॉ घोवषत क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 35 - कुछ विशेष र्ूल अधधकािों को प्रभािी किने के शलए केिल संसद को ही
कानून बनाने की शन्क्त दे ता है न क्रक िाज्य विधान र्ंडलों को।
• यह प्रािधान सुननन्श्चत किता है क्रक र्ूल अधधकािें औि दं ड ि उनकी प्रकृनत के संबंध र्ें
पूिे भाित र्ें एकरूपता है।
• संसद के पास (िाज्य विधानर्ंडलों के पास नहीं) कानून बनाने की शन्क्त होगी: कु छ
िोजगाि या ननयुन्क्तयों के शलए ननिास क्रक व्यिस्था (अनुच्छे द 16) + उच्चतर् न्यायलय
या उच्च न्यायलयों को छोड़कि अन्य न्यायलयों को र्ूल अधधकािों के ननदे श, आदे श, रिर्ट
अनुच्छे द 35 जािी किने के शलए सशक्त बनाना (अनुच्छे द 32) + सशस्त्र बलों, पुशलस बलों, आदद के
सदस्यों के र्ूल अधधकािों पि प्रनतबंध (अनुच्छे द 33) + क्रकसी भी सिकािी कर्ाचािी या
क्रकसी अन्य व्यन्क्त को क्रकसी भी क्षेत्र र्ें र्ाशाल लॉ के दौिान क्रकए गए क्रकसी भी काया के
यह केिल र्ौमलक अधधकारों को प्रभावित करता है। यह न केिल र्ौशलक अधधकािों बन्ल्क केंद्र-िाज्य संबंधों,
केंद्र औि िाज्यों के बीच िाजस्ि औि विधायी शन्क्तयों
के वितिण को प्रभावित किता है तथा संसद के
कायाकाल को बढा भी सकता है।
यह सरकार और अदालतों को ननलंब्रबत करता है। सेना यह सिकाि औि अदालतों को ननलंत्रबत नहीं किता है।
द्िारा मसविल प्रशासन का संचालन ककया जाता है।
ककसी भी िेत्र र्ें कानून व्यिस्था को सुधारने हेतु सेना इसे केिल तीन आधािों पि लागू क्रकया जा सकता है-
विधध को लागू ककया जाता है, जो ककसी कारण खराब हो युद्ध, बाहिी आिर्ण या सशस्त्र विद्रोह।
गयी होती है।
इसे दे श के ककसी भाग या िेत्र र्ें लगाया जाता है। इसे पूिे दे श र्ें या इसके क्रकसी भी दहस्से र्ें लगाया
जाता है।
संविधान र्ें इसका कोई विशेष प्रािधान नहीं है अथाात संविधान र्ें इसका विशशष्ट्र्ट औि विस्तत
ृ प्रािधान है।
भारतीय संविधान र्ें सेना विधध (र्ाशाल ला) को पररभावषत यह संविधान र्ें स्पष्ट्र्ट रूप से है।
नहीं ककया गया है। यह संविधान र्ें ननदहत रूप र्ें है।
र्ूल अधधकारों के अपिाद
• संपदाओं आदद के अजान हेतु प्रािधान किने िाली विधधयों की व्यािृवत्त(बचाि)
• कुछ विधधयों ि विननयर्ों का विधधर्ान्यीकिण: नौिीं अनुसूची
• कुछ ननदे शक तत्िों को प्रभािी किने िाली विधधयों की व्यािवृ त्त(बचाि)
• भाितीय संविधान र्ें िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्िों(डीपीएसपी) की संकल्पना को 1937 र्ें ननशर्ात आयिलैंड के
संविधान से शलया गया है।
• डॉ. बी.आर. अम्बेडकर: िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि = भाितीय संविधान की अनोखी विशेषताएँ
• ग्रेनविल ऑजस्टन: डीपीएसपी + एफआि = संविधान की र्ूल आत्र्ा
• डीपीएसपी + एफआर = संविधान की दशान औि आत्र्ा
• भाग IV; अनुच्छे द 36 से 51
• नीनत-ननदे शक तत्ि िाज्य पि नैनतक बाध्यता आिोवपत किते हैं।
• नीनत-ननदे शक तत्ि सार्ान्जक-आधथाक लोकतंत्र को स्थावपत किने र्ें र्हत्िपूणा भूशर्का ननभाते हैं। इनकी प्रकृनत
सकािात्र्क है, जबक्रक र्ूल अधधकािों की प्रकृनत नकािात्र्क है।
• िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि, र्ूल अधधकािों के पूिक हैं। उनका उद्दे श्य भाग-3 (र्ूल अधधकाि) र्ें अनुपन्स्थत
सार्ान्जक औि आधथाक अधधकािों की प्रनतपूनता किना है।
गोलकनाथ बनार् पंजाब नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु र्ूल अधधकािों र्ें संशोधन नहीं क्रकया जा
राज्य र्ार्ला (1967) सकता है।
मर्नेिाा मर्ल्स केस (1980) र्ूल अधधकार औि डीपीएसपी के बीच सार्ंजस्य औि संतुलन भारतीय संविधान की
आधारमशला(Bedrock) है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
• सर बी.एन. राि (संविधान सभा के संिैधाननक सलाहकाि) ने शसफारिश की थी क्रक िैयन्क्तक अधधकािों को दो
श्रेखणयों र्ें विभान्जत क्रकया जाना चादहए- न्यायोधचत औि गैि- न्यायोधचत, न्जसे प्रारूप सशर्नत द्िािा स्िीकाि
कि शलया गया था।
डीपीएसपी की विशेषताएाँ
• विधायी, कायाकािी औि प्रशासननक र्ार्लों र्ें िाज्य को संिैधाननक ननदे श या शसफारिशें।
• ननदे शक तत्ि भाित शासन अधधननयर्,1935 र्ें उन्ल्लखखत अनुदेशों के सर्ान हैं।
• डीपीएसपी एक आधुननक लोकतांत्रत्रक िाज्य र्ें आधथाक, सार्ान्जक औि िाजनीनतक विषयों हेतु र्हत्िपूणा हैं।
• डीपीएसपी ‘लोक कल्याणकािी िाज्य’ का ननर्ााण किाते हैं , ना क्रक पुशलस िाज्य का।
• डीपीएसपी का उद्दे श्य संविधान की प्रस्तािना र्ें उन्ल्लखखत न्याय, स्ितंत्रता, सर्ानता औि बंधुत्ि को साकाि
किना है।
• डीपीएसपी गैि- न्यायोधचत या िाद योग्य नहीं हैं, अथाात इन्हें लागू कििाने हेतु या इनके उल्लंघन पि अदालत
र्ें िाद दायि नहीं क्रकया जा सकता है।
• डीपीएसपी क्रकसी कानून की संिैधाननक िैधता की जांच औि ननधाािण किने र्ें अदालतों की र्दद किते हैं।
• उच्चतर् न्यायालय : यदद कोई कानून नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किता है तो उसे र्ूल अधधकािों के अनुच्छे द
14 औि 19 के साथ तका संगत होना चादहए।
डीपीएसपी का िगीकरण
1.सर्ाजिादी
• इस िगा के डीपीएसपी, सर्ाजिाद की विचािधािा से प्रेरित हैं तथा लोकतांत्रत्रक सर्ाजिादी िाज्य का खाका खींचते
हैं। इनका लक्ष्य सार्ान्जक औि आधथाक न्याय प्रदान किना है।
अनुच्छे द वििरण
• िाज्य, सार्ान्जक व्यिस्था र्ें लोक कल्याण की अशभिृद्ध हेतु सार्ान्जक, आधथाक औि
अनुच्छे द 38 िाजनीनतक न्याय सुननन्श्चत किे गा। इसके अलािा, आय की असर्ानताओं को कर् किने का
प्रयास किे गा औि प्रनतष्ट्ठा, सुविधाओं ि अिसिों की असर्ानता को भी कर् किे गा (44िें
संविधान संशोधन,1978 द्िािा जोड़ा गया)।
• िाज्य की नीनत को आजीविका के पयााप्त साधनों को सुिक्षक्षत किना चादहए।
• सभी के बीच संसाधनों का सर्ान वितिण।
• धन औि उत्पादन के साधनों के सकेंद्रण को िोकना।
• पुरुषों औि र्दहलाओं के शलए सर्ान कार् के शलए सर्ान िेतन।
अनुच्छे द 39
• श्रशर्कों की शन्क्त ि बच्चों की सुकुर्ाि अिस्था का दुरुपयोग ना हो।
• आधथाक वििशता के कािण नागरिकों को ऐसे िोजगाि र्ें न जाना पड़े जो उनकी आयु ि शन्क्त
के अनुरूप न हो।
• बच्चों के स्िस्थ विकास का अिसि (42 िाँ संशोधन)।
अनुच्छे द 39A सर्ान न्याय को बढािा दे ना औि गिीबों को र्ुफ्टत कानूनी सहायता प्रदान किना
(42 िां संशोधन)।
अनुच्छे द 41 बेिोजगािी, िृद्धािस्था, बीर्ािी की न्स्थनत र्ें काया, शशक्षा औि सािाजननक सहायता का अधधकाि।
अनुच्छे द 42 कार्(work) की न्यायसंगत औि र्ानिोधचत दशाओं का प्रािधान।
अनुच्छे द 43 कर्ाकािों के शलए ननिााह योग्य र्जदूिी, शशष्ट्र्ट जीिन स्ति, अिकाश का उपयोग सुननन्श्चत किने
िाली काया दशाएँ, सार्ान्जक औि सांस्कृनतक अिसि को सुननन्श्चत किना।
अनुच्छे द 43A उद्योगों के प्रबंधन र्ें कार्गािों का भाग लेना ( 42 िें संविधान संशोधन)
अनुच्छे द 47 पोषाहाि स्ति औि जीिन स्ति को ऊँचा किने तथा लोक स्िास््य का सुधाि किने का िाज्य का
कताव्य
2. गांधीिादी
डीपीएसपी का यह िगा गांधीिादी विचािधािा पि आधारित है। ये र्हात्र्ा गांधी द्िािा िाष्ट्रीय आंदोलन के दौिान
पुनननार्ााण के कायािर् का प्रनतननधधत्ि किते हैं।
अनुच्छे द वििरण
3. उदार-बौद्धधक मसद्धांत
अनुच्छे द वििरण
अनुच्छे द 350A भाग XVII प्राथशर्क स्ति पि र्ातृभाषा र्ें शशक्षा की सुविधाएं।
अनुच्छे द 351 भाग XVII दहंदी भाषा के विकास के शलए ननदे श।
• नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु बनाई गई विधध को न्यायपाशलका र्ें चुनौती
नहीं दी जा सकती है।
केसिानंद भारती र्ार्ला, • संसद द्िािा 24िें संविधान संशोधन के उस प्रािधान को शून्य ि असंिैधाननक घोवषत
1973 कि ददया, न्जसर्ें कहा गया था क्रक नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु बनाई
गई, विधध को न्यायपाशलका र्ें चुनौती नहीं दी जा सकती है। न्यानयक सर्ीक्षा
संविधान की र्ूल संिचना का दहस्सा है।
42िााँ संशोधन, 1976 • क्रकसी भी डीपीएसपी के कायाान्ियन के शलए कोई भी कानून शून्य नहीं होगा यदद यह
अनुच्छे द14 औि अनुच्छे द19 का उल्लंघन किता है। डीपीएसपी को अनुच्छे द 14 औि
अनुच्छे द 19 पि प्रधानता दी।
• यह संविधान संशोधन केशिानन्द भािती र्ार्ले के ननणाय को ननष्ट्प्रभािी किने हेतु
लाया गया था।
मर्निाा मर्ल्स र्ार्ला, • संविधान के 42िें संशोधन के उपिोक्त प्रािधान शून्य ि असंिैधाननक घोवषत क्रकए
1980 गए।
• उच्चतर् न्यायालय ने इस र्ार्ले र्ें कहा क्रक नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु
र्ूल अधधकािों को सर्ाप्त किने की आिश्यकता नहीं है। र्ूल अधधकाि औि
डीपीएसपी एक-दूसिे के पूिक हैं।
डीपीएसपी का र्हत्ि
घिे लू औि विदे शी नीनतयों र्ें न्स्थिता औि ननिं तिता की सुविधा + र्ौशलक अधधकािों का पूि क + र्ौशलक अधधकािों
के पूणा औि उधचत क्रियान्ियन हेतु अनुकूल िाताििण बनाना + विपक्ष को सिकाि के संचालन पि प्रभाि औि
ननयंत्रण किने र्ें सक्षर् बनाता है + सिकाि के प्रदशान की कड़ी पिीक्षा किना + आर् िाजनीनतक घोषणा-पत्र के रूप
र्ें हैं + सिकाि के पथ प्रदशाक, दाशाननक ि शर्त्र |
8. मल
ू कतजव्य
नोट:- 11िें र्ूल कताव्य को 86िें संविधान संशोधन अधधननयर्, 2002 द्िािा जोड़ा गया। न्जसर्ें 6 से 14 िषा तक की आयु के
सभी बच्चों के शलए अननिाया शशक्षा का प्रािधान है (जबक्रक डीपीएसपी र्ें यह छह साल तक की आयु का प्रािधान है)।
9. संविधान सं शोधन
• भाित के संविधान र्ें संशोधन किने का उद्दे श्य दे श के र्ौशलक कानून या सिोच्च कानून को बदलािों के
र्ाध्यर् से औि र्जबूत किना है। संविधान के भाग XX र्ें संशोधन की प्रक्रिया दी गई है। (अनुच्छे द 368)
• संविधान संशोधन की प्रक्रिया न तो त्रिर्टे न के सर्ान लचीली है औि न ही यूएसए के सर्ान कठोि। यह दोनों का
सन्म्र्शलत रूप है। संसद सविधान र्ें संशोधन तो कि सकती है लेक्रकन र्ूल ढांचे से जुड़े प्रािधानों को संशोधधत
नहीं कि सकती है। (केशिानन्द भािती िाद , 1973)
• संविधान संशोधन के प्रािधान दक्षक्षण अफ्रीका के संविधान से शलए गए हैं।
• अनुच्छे द 368 को 24िें औि 42िें सशोधन द्िािा िर्श: 1971 औि 1976 र्ें संशोधधत क्रकया गया है।
र्हत्िपूणा ननणाय: के शिानन्द भािती िाद, 1973 र्ें, सिोच्च न्यायालय ने यह ननणाय ददया क्रक संसद संविधान के “र्ूल ढांचे”
र्ें परिितान नहीं कि सकती है।
विधेयक की प्रस्तुनत संविधान संशोधन विधेयक को संसद के क्रकसी भी सदन र्ें प्रस्तुत क्रकया जा सकता
है।
कौन प्रस्तुत कर सकता है? इसे र्ंत्री या क्रकसी भी ननजी सदस्य द्िािा प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
राष्रपनत की भूमर्का ऐसे विधेयक को प्रस्तुत किने के शलए िाष्ट्रपनत की पूिा अनुर्नत की आिश्यकता
नहीं होती है।
विशेष बहुर्त→ सदन के कुल सदस्यों का बहुर्त + सदन र्ें उपन्स्थत औि र्तदान
पाररत करने के मलए आिश्यक किने िाले सदस्यों का 2/3 बहुर्त। (50%+ उपन्स्थत औि र्तदान किने िाले
बहुर्त सदस्यों का 2/3)
सदन द्िारा पाररत ककया दोनों सदनों द्िािा विधेयक को विशेष बहुर्त से पारित क्रकया जाना आिश्यक।
जाना
संयुक्त अधधिेशन (अनुच्छे द संविधान संशोधन विधेयक पि सदनों की संयुक्त बैठक का प्रािधान नहीं है।
108)
संघात्र्क प्रािधानों र्ें संशोधन विशेष बहुर्त + आधे िाज्यों की विधानर्ंडल के साधािण बहुर्त से संस्तुनत
24िां संविधान संशोधन— इसके द्िािा अनुच् छे द 368 र्ें संशोधन किके यह प्रािधान
विधेयक को स्िीकृनत दे ने र्ें क्रकया गया क्रक संसद , संविधान के क्रकसी भी प्रािधान को संशोधधत कि सकती है।
राष्रपनत की भूमर्का साथ यह भी प्रािधान क्रकया गया क्रक िाष्ट्रपनत दोनों सदनों से पारित संविधान
सशोधन विधेयक पि हस्ताक्षि किने के शलए बाध्य है।
संविधान संशोधन र्ें राज्य िाज्य विधानर्ंडल र्ें संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत नहीं क्रकया जा सकता है।
विधानर्ंडल की भूमर्का
बहुर्त के प्रकार:
• प्रत्येक सदन र्ें उपजस्थत एिं • सदन के कुल सदस्यों का बहुर्त • विशेष बहुर्त + आधे िाज्यों की
र्तदान करने िाले सदस्यों का (रिन्क्तयों औि अनुपन्स्थत विधानर्ंडल के साधािण बहुर्त
बहुर्त। सदहत) औि प्रत्येक सदन के से संस्तुनत।
• यह एक सार्ान्य कानून पाररत उपन्स्थत एिं र्तदान किने िाले • ज़्यादाति संघीय प्रािधानों इसी
करने के ही सर्ान है। सदस्यों का दो-नतहाई बहुर्त। प्रक्रिया द्िािा संशोधधत क्रकया
• ऐसे संशोधनों को अनुच्छे द 368 के • उदाहिण: 103िें संशोधन के जाता है।
तहत ककया गया संशोधन नहीं र्ाध्यर् से आधथाक रूप से • उदाहिण: जीएसर्टी से संबंधधत
र्ाना जाता है। वपछलड़े िगों के शलए 10% 101िां संशोधन।
• उदाहरण: हाल ही र्ें सिोच्च आिक्षण।
नयायालय के न्यायाधीशों की
संख्या 31 से बढ़ाकर 34 की गयी
है।
10. आधारभत
ू ढााँचा की अिधारणा
विकास
11. सं सद य प्रणाल
• सींसद य प्रणाल के मलए अनुच्छे द: केंद्र के मलए अनुच्छे द 74 और 75 + राज्य के मलए अनुच्छे द 163 और 164
• सींसद य सरकार = कैबबनेट सरकार = उिरदायी सरकार = सरकार का िेस्टममींस्टर मॉडल
संसद य सिकाि औि िाष्ट्रपनत नाशमत सिकाि की विशेषताएं:
• राष्ट्रपतत: नाममात्र के कायमकार प्रमुि (विधित ● राज्य ि सरकार दोनों का प्रमुि होता है।
कायमकार - de jure), राज्य के प्रमुि
प्रिानमींत्री का नेतृत्ि:
• मींबत्रपररर्द के नेता
• सिारूढ दल का नेता
गोपनीयता:
गुण दोष
• मींत्री अपने कृत्यों के मलए सींसद के प्रतत उिरदायी होते • सरकार में पररितमन से नीततयों में पररितमन होता है।
हैं।
• यह अतनरीं तरता, लींबी अिधि में नीतत तनमामण और
• सींसद द्िारा कायमपामलका पर तनयींत्रण: प्रश्नकाल, विचार- कायामन्ियन में अिरोि उत्पन्न करती है।
विमशम या चचाम, बहस, स्थगन प्रस्ताि, अविश्िास प्रस्ताि
आदद के द्िारा।
• कायमकार एक समूह में तनदहत न होकर मींबत्रपररर्द में • पूणम बहुमत िाल सिारूढ़ पाटी -> मींबत्रमींडल के पास
तनदहत होती है। असीममत शजततयााँ।
• यह व्यिस्था कायमपामलका की तनरीं कुशता को रोकती है। • सभी नीततयाीं मींबत्रमींडल द्िारा तय की िाती हैं।
• यदद सिारूढ़ दल बहुमत िो देता है तो राष्ट्रपतत विपक्षी • मींबत्रपररर्द और मींबत्रमींडल वििातयका का दहस्सा हैं।
दल को िैकजल्पक सरकार बनाने के मलए आमींबत्रत कर
• मींबत्रमींडल: वििातयका और कायमपामलका दोनों की नेता
सकते हैं।
होती है।
• मींबत्रपररर्द, सरकार के सभी िगों और क्षेत्रों का • मींत्री अपने क्षेत्रों में विशेर्ज्ञ नह ीं हैं-> कम प्रशासतनक
प्रतततनधित्ि करती है। दक्षता।
मींबत्रयों की कानूनी जिम्मेदार की कोई व्यिस्था नह ीं है। मींबत्रयों की कानूनी जिम्मेदार की व्यिस्था है। मींबत्रयों
मींबत्रयों को राज्य के मुखिया के रूप में कायामलयी कायम में को राज्य के मुखिया के रूप में कायामलयी कायम में प्रतत
प्रतत हस्ताक्षि करना िरूर नह ीं होता। करना हस्ताक्षि िरूर होता है।
कैबबनेट में छाया कैबबनेट (शेडो कैबबनेट) की व्यिस्था नह ीं विपक्ष द्िारा सिारूढ दल के साथ सींतुलन बनाने के
है। मलए कैबबनेट में छाया कैबबनेट (शेडो कैबबनेट) की
व्यिस्था की िाती है।
• सींसद/राज्य वििान मींडल अपने सम्पूणम क्षेत्राधिकार या उसके ककसी भाग के मलए कानून
बना सकते हैं।
• अततररतत क्षेत्रीय वििान (भारतीय नागररक और विश्ि के ककसी भी भाग में उनकी सींपवि
के सींबींि में) = केिल सीं सद के द्िारा
• चार केंद्र शामसत प्रदे शों- अींडमान तनकोबार द्िीपसमूह, लक्ष्यद्िीप, दादरा और नगर हिेल
तथा दमन द ि की शाींतत, उन्नतत और सुशासन के सींबींि में राष्ट्रपतत तनयम बना सकता
है। इस प्रकार बनाए गए तनयम सींसद के द्िारा बनाए गए ककसी अधितनयम के समान ह
प्रयोज्य माने िाएींगे। राष्ट्रपतत ऐसे तनयमों के माध्यम से इन केंद्र शामसत प्रदे शों के सींबींि
केंद्र और राज्य में सींसद द्िारा पाररत ककसी अधितनयम को सींशोधित या समाप्त भी कर सकता है।
का क्षेत्रीय
• राज्यपाल को यह शजतत है कक िह सींसद के ककसी अधितनयम िो अधिसूध चत क्षेत्रों में लागू
विस्तार:
ना करे या उन्हें कुछ सींशोिनों/अपिादों के साथ लागू करे ।
कनाडा केंद्र
यूएसए राज्यों
• समान्यतः,केंद्र य कानून राज्य कानूनों पर प्रभािी होता है। लेककन इसके कुछ अपिाद भी
है।
• इस तरह के प्रस्ताि को सदन में उपजस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों के दो-ततहाई
का समथमन ममलना चादहए।
• उस राज्य के सींबींि में राज्य सूची के ककसी भी विर्य पर कानून बनाने का अधिकार सींसद
के पास होगा।
• राज्य सूची के विर्यों में कानून बनाने की शजतत सींसद द्िारा अधिगृह त कर ल िाती है।
• राज्य वििानमींडल भी उस विर्य पर कानून बना सकता है, लेककन सींसद का कानून प्रभािी
होता है।
• ऐसे कानून को सींसद द्िारा ह सींशोधित या तनरमसत ककया िा सकता है राज्य वििानमींडल
द्िारा नह ीं; उदाहिण- िन्यिीि अधितनयम 1972; िल अधितनयम 1974|
• अींतरामष्ट्र य सींधि, समझौतों को लागू करने के मलए सींसद राज्य सूची के ककसी भी विर्य पर
कानून बना सकती है। उदाहिण िेनेिा समझौता अधितनयम 1960; दरप्स (TRIPS)
राज्य • राज्यपाल राज्य वििातयका द्िारा पाररत कुछ वििेयकों को राष्ट्रपतत की सींस्तुतत के मलए
वििानमींडल में आरक्षक्षत कर सकता है। राष्ट्रपतत को ऐसे वििेयकों पर विशेर् िीटो प्राप्त है।
केंद्र का तनयींत्रण:
• राज्य सूची के कुछ विर्यों पर वििेयक केिल राष्ट्रपतत की पूिम अनुमतत से प्रस्तुत ककया
िा सकता है। उदाहिण - व्यापार और िाखणज्य की स्ितींत्रता को प्रततबींधित करने से
सींबजन्ित वििेयक (अनु. 301)।
• वििीय आपातकाल के दौरान राज्य वििातयका द्िारा पाररत िन वििेयक या अन्य विि
वििेयकों को राष्ट्रपतत आरक्षक्षत कर सकता है।
कायमकार शजततयों
का वितरण
केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग
• अनु. 256- प्रत्येक राज्य की कायमकार शजतत में सींसद द्िारा बनाए गए कानूनों और
भारत सरकार के तनदे शों का अनुपालन सुतनजश्चत ककया िाना चादहये।
आपातकाल की 1. िाष्ट्र य आपातकाल (अनु. 352) – केंद्र ककसी भी मामले में राज्यों को तनदे मशत कर
अिधि में: सकती है। इस प्रकार राज्य पूणमतः केंद्र के तनयींत्रणािीन हो िाते हैं, यद्यवप उन्हें
तनलींबबत नह ीं ककया िाता है।
2. िाष्ट्रपनत शासन (अनु. 356) – राज्य सरकार की समस्त शजततयााँ राष्ट्रपतत में तनदहत हो
िाती है और राष्ट्रपतत, राज्यपाल या ककसी अन्य कायमकार अधिकार के माध्यम से
उनका सींचालन करता है।
3. वित्तीय आपातकाल (अनु. 360) – केंद्र वििीय पररसींपवियों के अधिग्रहण के मलए राज्यों
को तनदे मशत कर सकता है तथा राज्य में कायमरत कममचाररयों एिीं उच्च न्यायालय के
न्यायािीशों के िेतन में कटौती करने का आदे श दे सकता है।
• अनु. 355: बाह्य आिमण और आींतररक अशाींतत से प्रत्येक राज्य की रक्षा करना + यह
सुतनजश्चत करना कक राज्य सरकारें सींवििान की व्यसथा के अनु रूप कायम करें ।
अन्य प्राििान: • िाज्यपाल – राष्ट्रपतत द्िािा तनयुतत + केंद्र के एिेंट के रूप में कायम करना
• िाज्य ननिाजचन आयोग: राज्यपाल द्िारा तनयुतत + राष्ट्रपतत द्िारा हटाया िाना
आकजस्मक तनधि • इस तनधि को भारत की आकजस्मक तनधि कहा िाता है (विशेर् उद्दे श्य के मलए बनाई
(अनु. 267) गयी तनधि)| इसके मलए सीं सद ने भारत की आकजस्मक तनधि अधितनयम 1950 को
अधितनयममत ककया है।
• सींवििान में करािान की शजततयों का स्पष्ट्ट विभािन ककया गया है और केंद्र तथा राज्यों
के बीच करािान को लेक र कुछ प्रततबींि भी लगाए गए हैं।
• अिमशष्ट्ट शजतत सींसद के पास। इस प्राििान के तहत, सींसद ने उपहार कर, समृद्धि कर
और व्यय कर लगाया है।
करािान शजततयों
• समिती सूची में कोई कर प्रविजष्ट्ट नह ीं हैं। दूसरे शधदों में, कर कानून के सींबींि में कोई
का आिींटन:
समिती क्षेत्राधिकार उपलधि नह ीं है।
• 2016 के 101 िें सींशोिन अधितनयम के द्िारा िीएसट के सींबींि में लाए गए विशे र्
प्राििान इसका अपिाद है। इस सींशोिन ने िीएसट को तनयींबत्रत करने िाले कानूनों को
बनाने के सींदभम में सींसद और राज्य वििानसभाओीं को समिती शजतत प्रदान की है।
अनु. 275 तहत राज्यों को ददया िाने िाला ये अनुदान,राज्यों को योिनागत लक्ष्यों की
अनुदान विि आयोग की अनुसींशा के अनुरूप प्राजप्त में वििीय सहायता उपलधि कराने और
होता है। राज्यों में राष्ट्र य योिनाओीं को प्रभािी करने
राज्य की कारमिाई को प्रभावित करने और
समन्िय बनाए रिने में केंद्र की मदद करते
हैं।
• असम, बबहार, उड़ीसा और पजश्चम बींगाल राज्यों को िूट और िूट उत्पादों पर तनयामत
शुल्क के बदले अनुदान का प्राििान।
• यह प्राििान सींवििान प्रारम्भ होने से 10 िर्म की अिधि के मलए ककया गया था।
3. ऐसे वििेयक िो राज्यों में वितररत या वितरण की िाने िाल रामशयों में पररितमन करते
हों।
केंद्र िाज्य
सींघ की • केंद्र की सभी पररसींपवियों को राज्य या उसके विमभन्न तनकायों, िैस-े नगरपामलका, जिला
पररसींपवियों को बोडों, पींचायतों आदद को राज्य या राज्य के ककसी प्राधिकरण द्िारा अद्यारोवपत सभी
राज्य के कर से प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है। लेककन सींसद यह प्रततबींि हटा सकती है।
छूट (अनु. 285)
• सींपवि का उपयोग सींप्रभु (िैस-े सशस्त्र सेनाएाँ) या िाखणजज्यक प्रयोिनों के मलए ककया
िाता है।
• केंद्र सरकार द्िारा तनगममत तनगमों या कींपतनयों को राज्य करािान या स्थानीय करािान
से उन्मुजतत प्राप्त नह ीं होती है। (इनका प्रथक विधिक अजस्तत्ि होता है)
• राज्यों की पररसींपवियों एिीं आय को भी केंद्र य कर से छूट प्राप्त होती है। यह आय सीं प्रभु
कायों या िाखणजज्यक कायों से हो सकती है।
कि िाजस्ि का वितिण:
268 केंद्र राज्य राज्य शेयरों, चेकों, प्रोमममसयर नोट्स, बीमा आदद के अींतरण
पर लगने िाले स्टाींप शुल्क
270 केंद्र केंद्र केंद्र और राज्यों के केंद्र य सूची के विर्यों पर लगाए गए कर– आयकर
बीच वितररत (कृवर् आय के अततररतत), तनगम कर, आदद।
271 केंद्र केंद्र केंद्र अनु. 268, 269, 270 के तहत करों पर अधिभार
• अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल का प्रयोग,बँर्टिािे तथा ननयंत्रण से संबन्न्धत क्रकसी
वििाद पि संसद कानून बनाकि ननणाय कि सकती है।
अनुच्छे द
• संसद द्िािा यह भी व्यिस्था की जा सकती है क्रक अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल
262
प्रयोग,बँर्टिािे तथा ननयंत्रण से संबन्न्धत क्रकसी वििाद र्ें न ही उच्चतर् न्यायालय औि न ही कोई
अन्य न्यायालय अपने क्षेत्राधधकाि का प्रयोग किे ।
अनुच्छे द 262 (अंतरााज्यीय जल वििादों का न्यायननणायन) के अंतगात संसद ने दो कानून बनाए हैं -
नदी बोडा अधधननयर् 1956: इसके तहत अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के ननयंत्रण तथा विकास हेतु नदी
जल बोडों का गठन क्रकया जाता है + नदी बोडा का गठन संबन्न्धत िाज्यों के आग्रह
पि केंद्र सिकाि द्िािा उन्हें सलाह दे ने हेतु क्रकया जाता है।
अंतरााज्यीय जल वििाद संघ या केंद्र सिकाि को अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल प्रयोग ,बँर्टिािे
अधधननयर् 1956: तथा ननयंत्रण के संबंध र्ें दो या दो से अधधक िाज्यों के र्ध्य वििाद के
न्यायननणायन के शलए एक अस्थाई अधधकिण के गठन की शन्क्त प्रदान किता है+
अधधकिण के ननणाय बाध्यकािी हैं + कोई न्यायालय ऐसे वििादों पि अधधकाि क्षेत्र
नहीं िखता है|
अब तक स्थावपत दरब्यूनल:
उद्दे श्य • राज्यों और केंद्र के बीच तथा विमभन्न राज्यों के बीच सर्न्िय स्थावपत करनाI
• सिकारिया आयोग (अंतिााज्यीय संबंध पि) की शसफारिशों के अनुसाि, 1990 र्ें पहली बाि
िाष्ट्रपनत के आदे श के तहत गह
ृ र्ंत्रालय के अंतगात अंतिााज्यीय परिषद का गठन हुआ।
गठन
काया • अंतिााज्यीय वििादों की जांच किना औि इन पि सलाह देना (अनुच्छे द 131 के तहत उच्चतर्
न्यायालय के अधधकाि क्षेत्र का संपू िक) + उन विषयों की जांच किना औि उन पि चचाा किना
न्जसर्ें िाज्यों या केंद्र औि िाज्यों का एक सर्ान दहत है + नीनत औि इसके क्रियान्ियन के
बेहति सर्न्िय हेतु संस्तुनत किना।
• प्रधानर्ंत्री अध्यक्ष के रूप र्ें + सभी िाज्यों के र्ुख्यर्ंत्री + विधानसभा िाले केंद्र शाशसत प्रदे शों
के र्ुख्यर्ंत्री+ सभी केंद्र शाशसत प्रदे शों के प्रशासक ( जहाँ विधानसभाएं नहीं हैं) + िाष्ट्रपनत
शासन िाले िाज्यों के िाज्यपाल + प्रधानर्ंत्री द्िािा नाशर्त छह केंद्रीय कैत्रबनेर्ट र्ंत्री (गृह र्ंत्री
संरचना सदहत) + प्रधानर्ंत्री द्िािा नाशर्त पांच कैत्रबनेर्ट र्ंत्री / िाज्य र्ंत्री (स्ितंत्र प्रभाि) अंतिााज्यीय
परिषद के स्थायी आर्ंत्रत्रत सदस्य होते हैं।
र्ीदटंग परिषद एक िषा र्ें कर् से कर् तीन बाि शर्ल सकती है। सर्ाधान पि विचाि सिा सम्र्नत से तय
क्रकए जाते हैं।
िेत्रीय पररषदें
• सांविधधक (ना क्रक सांविधाननक) ननकाय + िाज्य पुनगाठन अधधननयर्, 1956 (7 िें सीएए 1956) के तहत
स्थावपत।
• क्षेत्रीय परिषदें केिल चचाात्र्क तथा पिार्शादात्री ननकाय हैं, इनकी; शसफारिशें बाध्यकािी नहीं हैं।
• क्षेत्रीय परिषद को िषा र्ें कर् से कर् दो बाि शर्लना चादहए।
• िेत्रीय पररषद के सदस्य: केंद्र सिकाि का गृहर्ंत्री+ र्ुख्यर्ंत्री + क्षेत्र के सभी िाज्यों के र्ुख्यर्ंत्री + क्षेत्र के
प्रत्येक िाज्य से दो अन्य र्ंत्री + क्षेत्र के सभी केंद्र शाशसत िाज्यों के प्रशासक।
पूिोत्तर पररषद
• संसदीय आददननयर् के तहत गदठत एक िेत्रीय पररषद : पूिोत्ति परिषद अधधननयर्, 1971
• संिैधाननक प्रािधान: भाग XVIII र्ें अनुच्छे द 352 से 360 तक िखणात है।
• आपातकाल त्रबना क्रकसी औपचारिक संविधान संशोधन के संघीय व्यिस्था को एकात्र्क व्यिस्था र्ें परििनतात
किता है।
• आपातकालीन प्रािधानों को भाित सिकाि अधधननयर्, 1935 से शलया गया है।
• ये प्रािधान क्यों क्रकये गए हैं: दे श की संप्र भुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रत्रक िाजनैनतक प्रणाली औि संविधान की
सुिक्षा सुननन्श्चत किने के शलए क्रकया गया है।
नोट: “आपातकाल की उद्घोषणा के दौिान र्ौशलक अधधकािों के ननलंबन ” का प्रािधान िाइर्ि संविधान (ितार्ान रूस)
से शलया गया है।
• राष्रीय आपातकाल के दौरान, लोकसभा का कायाकाल • केिल संसद विधानसभा के कायाकाल को विस्तारित
संसद द्िारा विधध बनाकर एक बार र्ें एक िषा के कि सकती है(प्रत्येक बाि र्ें एक िषा के शलए क्रकतने
मलए ककतने भी सर्य तक बढ़ाया जा सकता है।
अनुच्छे द 355 बाह्य आक्रर्ण और आंतररक अशांनत से राज्य की संरिा करने का संघ का कताव्य
1. अनुच्छे द 356: िाष्ट्रपनत को इस संबंध र्ें घोषणा जािी किने का अधधकाि दे ता है , यदद िह
उद्घोषणा का आश्िस्त है क्रक ऐसी न्स्थनत उत्पन्न हो गई है क्रक िाज्य सिकाि संविधान के प्रािधानों के
आधार अनुरूप नहीं चल सकती है तो िह आपातकाल लागू कि सकता है। (िाष्ट्रपनत िाज्यपाल की
रिपोर्टा या अन्य प्रकाि से भी आपातकाल पि प्रनतक्रिया कि सकता है) ।
2. अनुच्छे द 365: यदद कोई िाज्य केंद्र द्िािा ददए गए ननदे शों का पालन किने या उन्हें प्रभावित
किने र्ें असफल होता है तो यह िाष्ट्रपनत के शलए िाष्ट्रपनत शासन लगाने हेतु विधधसंगत
होगा।
संसदीय इस र्ुद्दे पि दोनों सदनों द्िािा दो र्ाह के भीति अनुर्ोदन आिश्यक है (अनुच्छे द 352 के
अनुर्ोदन र्ार्ले र्ें एक र्ाह) ।
सर्य अिधध 6 र्हीने का होता है। इसे प्रत्येक 6 र्हीने र्ें संसदीय अनुर्ोदन के साथ अधधकतर् 3 िषा के
शलए बढाया जा सकता है।
बहुर्त के प्रकार दोनों सदनों र्ें सार्ान्य बहुर्त के द्िािा पारित क्रकया जाता है।
सर्ाजप्त इसे पििती घोषणा द्िािा राष्रपनत ककसी भी सर्य िापस ले सकते हैं। इस प्रकाि की पििती
घोषणा के शलए संसदीय अनुर्ोदन की आिश्यकता नहीं है।
44िां संशोधन एक िषा बाद, िाष्ट्रपनत शासन को एक बाि र्ें 6 र्हीने के शलए बढाया जा सकता है , यदद
ननम्नशलखखत न्स्थनतयां पूिी हों-
1. यदद पूिे भाित र्ें अथिा पूिे िाज्य या उसके क्रकसी भाग र्ें िाष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की
गई हो।
2. यदद चुनाि आयोग यह प्रर्ाखणत किें क्रक कदठन परिन्स्थनतयों के कािण चुनाि संपन्न नहीं
किाया जा सकता।
न्यानयक सर्ीिा 38िां संशोधन: अनुच्छे द 356 के अंतगात िाष्ट्रपनत को संतष्ट्ु र्ट कि इसे न्यानयक सर्ीक्षा से
सुिक्षक्षत क्रकया जाएगा।
44िां संशोधन: इसके द्िािा उपिोक्त प्रािधान को सर्ाप्त कि ददया गया है।
लागू ककया गया • पहली बार िाष्ट्रपनत शासन िषा 1951 र्ें पंजाब र्ें लागू क्रकया गया था।
• सिााधधक बाि र्णणपुर (10 बार) र्ें, इसके बाद यूपी र्ें (9 बाि) लागू क्रकया जा चुका है।
िाष्ट्रपनत शासन के दौिान, िाष्ट्रपनत, र्ुख्यर्ंत्री के नेतत्ृ ि िाली र्ंत्री परिषद को भंग कि दे ता है औि िाज्य की
विधेयक औि बजर्ट प्रस्ताि को संसद पारित किती है। िाज्य प्रशासन का िाष्ट्रपनत के नार् पि सं चालन र्ुख्य सधचि
की सहायता से िाज्यपाल द्िािा क्रकया जाता है।
नोट: संसद या िाष्ट्रपनत या क्रकसी अन्य प्राधधकािी द्िािा बनाए गए कानून िाष्ट्रपनत शासन के बाद भी प्रभाि र्ें
िहें गे। िाज्य उच्च न्यायालय की संिैधाननक न्स्थनत , स्ति, शन्क्तयां औि काया िाष्ट्रपनत शासन के दौिान भी उसी
प्रकाि से प्रभािी िहें गे जैसा क्रक सार्ान्य न्स्थनतयों र्ें िहते हैं ।
राष्रपनत शासन को उपयुक्त तरीके से लागू करना राष्रपनत शासन को अनुपयुक्त तरीके से लागू करना
कब? जब भाित की वित्तीय न्स्थिता या शाख या इसकी सीर्ा का कोई भी भाग खतिे र्ें
हो।
38िां संशोधन: वित्तीय आपातकाल की घोषणा र्ें िाष्ट्रपनत की संतुन्ष्ट्र्ट को न्यानयक
न्यानयक सर्ीक्षा सर्ीक्षा से सुिक्षा प्रदान की गई है।
44िां संशोधन: 38िें संशोधन के अंतगात बनाए गए प्रािधानों को सर्ाप्त कि इसे
न्यानयक सर्ीक्षा का विषय बनाया।
संसदीय अनुर्ोदन औि इसके लागू होने की नतधथ से दो र्ाह के भीति दोनों सदनों से स्िीकृनत आिश्यक
सर्यािधध है(अनुच्छे द 352 के र्ार्ले र्ें एक र्हीने का सर्य होता है) । वित्तीय आपातकाल को
एक बाि की स्िीकृनत प्रदान किने के पश्चात इसे अननन्श्चत काल तक जािी िखा जा
सकता है जब तक क्रक इसे िापस न शलया जाए।
अनुर्ोदन के शलए बहुर्त के सार्ान्य बहुर्त
प्रकाि
सर्ान्प्त िाष्ट्रपनत द्िािा सर्ान्प्त , संसदीय स्िीकृनत की आिश्यकता नहीं होती है।
नोट: भाित र्ें अभी तक वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है, हालांक्रक 1991 र्ें वित्तीय संकर्ट उत्पन्न हुआ
था।
राष्रपनत राज्यपाल
ननिााचन
• िाष्ट्रपनत चुनाि से संबंधधत सभी वििादों की जांच ि फैसले उच्चतर् न्यायालय र्ें होते हैं
तथा उसका फैसला अंनतर् होता है।
• यदद उच्चतर् न्यायालय द्िािा क्रकसी व्यन्क्त की िाष्ट्रपनत के रूप र्ें ननयुन्क्त को अिैध
घोवषत क्रकया जाता है, तो उच्चतर् न्यायालय की घोषणा से पूिा उसके द्िािा क्रकए गए काया
अिैध नहीं र्ाने जाएंगे तथा प्रभािी बने िहें गे।
र्हत्िपूणा तथ्य: र्नोनीत सदस्य चुनाि र्ें भाग नहीं लेते हैं, बन्ल्क र्हाशभयोग प्रक्रिया र्ें भाग लेते हैं। िाष्ट्रपनत के
चुनाि को इस आधाि पि चुनौती नहीं दी जा सकती क्रक ननिााचक र्ंडल अपूणा है (ननिााचक र्ंडल के क्रकसी सदस्य
का पद रिक्त होने पि)।
• इन्हें अपने पदीय कताव्यों के संदभा र्ें क्रकए गए काया के शलए क्रकसी न्यायालय र्ें
उत्तिदायी नहीं ठहिाया जा सकता है।
• कायाकाल के दौिान इनके विरुद्ध कोई भी आपिाधधक कायािाही नहीं शुरू की जाएगी।
• इनके कायाकाल के दौिान इनके खखलाफ क्रकसी भी न्यायालय द्िािा इनकी धगिफ्टतािी या
कािािास का कोई आदे श जािी नहीं क्रकया जा सकता।
िाष्ट्रपनत या िाज्यपाल द्िािा इनके पद ग्रहण किने के पू िा या उसके बाद क्रकसी काया के
शलए इनकी पदािधध के दौिान क्रकसी न्यायालय र्ें कोई शसविल कायािाही तब तक नहीं शुरू
की जाएगी जब तक की ऐसे शसविल कायािाही शुरू किने की सूचना िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल
को 2 र्ाह की अधग्रर् सूचना दे कि ही ऐसी कायािाही की जा सकती है।
• िाष्ट्रपनत पि 'संविधान का उल्लंघन' किने • संविधान ने ऐसी कोई विधध नहीं बनाई है,
पि र्हाशभयोग चलाकि उसे पद से हर्टाया न्जसके तहत िाष्ट्रपनत िाज्यपाल को हर्टा
जा सकता है। हालांक्रक संविधान ने दें ।
'संविधान का उल्लंघन' िाक्य को
परिभावषत नहीं क्रकया है।
• र्हाशभयोग के आिोप संसद के क्रकसी भी
सदन र्ें प्रािं भ क्रकए जा सकते हैं।
• इन आिोपों पि संसद के एक चौथाई
सदस्यों (न्जस सदन ने आिोप लगाया हैं)
के हस्ताक्षि होने चादहए औि िाष्ट्रपनत को
14 ददन का नोदर्टस देना अननिाया है।
र्हाशभयोग • र्हाशभयोग का प्रस्ताि दो नतहाई बहुर्त
से पारित होने के पश्चात यह दूसिे सदन
र्ें भेजा जाता है, न्जसे इन आिोपों की
जांच किनी होती है।
• िाष्ट्रपनत को इसर्ें उपन्स्थत होने तथा
अपना प्रनतननधधत्ि किाने का अधधकाि
होगा। यदद दूसिा सदन इन आिोपों को
सही पाता है औि र्हाशभयोग प्रस्ताि को
दो नतहाई बहुर्त से पारित किता है तो
िाष्ट्रपनत को प्रस्ताि पारित होने की नतधथ
से उसके पद से हर्टना होगा।
• इस प्रकाि र्हाशभयोग संसद की एक अद्ाध
न्यानयक प्रक्रिया है।
o संसद के दोनों सदनों के नार्ांककत
सदस्य जजन्होंने राष्रपनत के चुनाि र्ें
भाग नहीं मलया था, इस र्हामभयोग र्ें
• िाष्ट्रपनत का पद ननम्न प्रकाि से रिक्त हो सकता है: 5 िषीय कायाकाल सर्ाप्त होने पि,
उसके त्यागपत्र देने पि, र्हाशभयोग प्रक्रिया द्िािा उसे पद से हर्टाने पि, उसकी र्त्ृ यु पि,
अन्यथा जैसे यदद िह पद ग्रहण किने के शलए अहाक ना हो अथिा ननिााचन अिैध घोवषत
हो।
• यदद पद रिक्त होने का कािण उसके कायाकाल का सर्ाप्त होना हो तो उस पद को भिने
हेतु उसके कायाकाल पूणा होने से पूिा नया चुनाि किाना चादहए, इस न्स्थनत र्ें
उपिाष्ट्रपनत को यह अिसि नहीं शर्लता है क्रक िह कायािाहक िाष्ट्रपनत की तिह काया किें
औि उसके कताव्यों का ननिाहन किें ।
िाष्ट्रपनत के पद की • यदद उसका पद, उसकी र्त्यु त्यागपत्र ननष्ट्कासन अथिा अन्यथा क्रकसी कािण से रिक्त
ृ
रिक्तता होता है तो नए िाष्ट्रपनत का चुनाि पद रिक्त होने की नतधथ से 6 र्हीने के भीति किाना
चादहए। उप-िाष्ट्रपनत,िाष्ट्रपनत के ननिााधचत होने तक कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया
किे गा।
• नया ननिााधचत िाष्ट्रपनत पद ग्रहण किने से 5 िषा तक अपने पद पि बना िहेगा।
• यदद ितार्ान िाष्ट्रपनत अनुपन्स्थत, बीर्ािी या अन्य कािणों से अपने पद पि काया किने
र्ें असर्था हो, तो उपिाष्ट्रपनत उसके पुनः पद ग्रहण किने तक कायािाहक िाष्ट्रपनत के
रूप र्ें काया किे गा। यदद उप-िाष्ट्रपनत का पद भी रिक्त हो तो भाित का र्ुख्य न्यायाधीश
(अथिा उसका भी पद रिक्त होने पि उच्चतर् न्यायालय का िरिष्ट्ठतर्
न्यायाधीश)कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया किे गा तथा उसके कताव्यों का ननिााह
किे गा।
अनुच्छे द 111 के तहत संसदीय कानून पर अनुच्छे द 200 के तहत राज्य के कानून पर
िीटो: िीटो:
िर्ा – पूणत
ा ः र्ाफ़ कर दे ना (इसका तकनीकी र्तलब यह है कक अपराध कभी हुआ ही
नहीं)।
लघुकरण - सज़ा की प्रकृनत को बदलना जैसे र्ृत्यु दं ड को कठोर कारािास र्ें बदलना।
पररहार – सज़ा की अिधध को बदलना जैसे 2 िषा के कठोर कारािास को 1 िषा के कठोर
कारािास र्ें बदलना।
• विरार् – विशेष पररजस्थनतयों की िजह से सज़ा को कर् करना जैसे शारीररक अपंगता या
र्दहलाओं कक गभाािस्था के कारण।
• प्रविलंबन(reprieve)-ककसी दं ड को कुछ सर्य के मलए टालने की प्रकक्रया जैसे फांसी को
कुछ सर्य के मलये टालना।
• यह न्यायपाशलका से स्ितंत्र कायापाशलका की शन्क्त है।
• राष्रपनत /राज्यपाल इस शजक्त का प्रयोग केंद्रीय र्ंब्रत्रर्ंडल के परार्शा पर करे गा।
• िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल अपने आदे श के कािण बताने के शलए बाध्य नहीं है।
• िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल की इस शन्क्त पि कोई भी न्यानयक सर्ीक्षा नहीं की जा सकती
शसिाय तब जब िाष्ट्रपनत/ िाज्यपाल का ननणाय स्िेच्छाचािी, वििेकिदहत, दुभाािनापूणा
• लोकसभा /िाज्य विधानसभा र्ें क्रकसी भी दल के पास स्पष्ट्र्ट बहुर्त न होने पि अथिा
जब प्रधानर्ंत्री /र्ुख्यर्ंत्री की अचानक र्ृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट्र्ट
उत्तिाधधकािी ना हो, िह प्रधानर्ंत्री /र्ुख्यर्ंत्री की ननयुन्क्त किता है।
• िह र्ंत्रत्रर्ंडल को विघदर्टत कि सकता है, यदद िह लोकसभा/ िाज्य विधान सभा र्ें
विश्िास र्त शसद्ध ना कि सके।
• िह लोकसभा/ िाज्य विधान सभा को विघदर्टत कि सकता है यदद र्ंत्रत्रर्ंडल ने अपना
बहुर्त खो ददया हो।
उपिाष्ट्रपनत के चुनाि हेतु योग्य होने के शलए एक व्यन्क्त र्ें ननम्नशलखखत योग्यताएं होनी
चादहए:
1. िह भाित का नागरिक होना चादहए।
उपिाष्ट्रपनत 2. उसे 35 िषा की आयु पूिी कि लेनी चादहए ।
ननिााधचत होने की 3. उसे िाज्यसभा सदस्य के ननिााचन हेतु योग्य होना चादहए ।
पात्रता 4. उसे केंद्र सिकाि अथिा क्रकसी िाज्य सिकाि अथिा क्रकसी अन्य स्थानीय औि सािाजननक
प्राधधकिण के तहत कोई भी लाभ का पद नहीं धािण किना चादहए ।
नोट: संघ का राष्रपनत अथिा उपराष्रपनत ,ककसी भी राज्य का राज्यपाल और केंद्र शामसत प्रदे श
अथिा राज्य का र्ुख्यर्ंत्री ककसी लाभ के पद पर नहीं र्ाने जाते हैं अतः िह उपराष्रपनत पद के
उम्र्ीदिार हेतु योग्य है ।
उपिाष्ट्रपनत पद • कर् से कर् 20 र्तदाता, प्रस्तािक के रूप र्ें औि 20 र्तदाता, अनुर्ोदक के रूप र्ें होने
के उम्र्ीदिाि को चादहए ।
चुनाि र्ें • भाितीय रिजिा बैंक र्ें ₹ 15,000 की जर्ानत िाशश।
उपिाष्ट्रपनत िाज्यसभा के • इस र्ार्ले र्ें उनकी शजक्तयां लोकसभा अध्यि के सर्ान हैं।
पदे न सभापनत के रूप र्ें • िह िाज्यसभा के पदे न सभापनत के रूप में कायज किता है। इस संदभज में उसकी
काया किते हैं (अनुच्छे द शक्ततयां एिं कायज लोकसभा अध्यक्ष के भांनत ह होते हैं। इस संबंध में िह
64): अमेरिका के उपिाष्ट्रपनत के समान ह कायज किता है, िह भी सीनेर्-अमेरिका में
उच्च सदन का सभापनत होता है ।
•
िाष्ट्रपनत के कायाालय र्ें o हर्ािे दे श के 2 िाष्ट्रपनत अथाात डॉक्र्टि जाक्रकि हुसैन औि फखरुद्दीन अली अहर्द
ननष्ट्कासन, र्ृत्यु अथिा का जब ननधन हुआ था तो उस सर्य के तत्कालीन उप िाष्ट्रपनतयों अथाात िी.िी.
अन्य कािणों से रिन्क्त धगिी औि बी. डी. जत्ती ने िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया क्रकया था ।
होने पि यह िाष्ट्रपनत के o जब िाष्ट्रपनत का पद उसके त्यागपत्र ,ननष्ट्कासन, र्ृत्यु तथा अन्य कािणों से रिक्त
रूप र्ें भी काया किता है होता है तो िह कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें भी काया किता है। िह कायािाहक
। (अनुच्छे द 65) िाष्ट्रपनत के रूप र्ें अधधकतर् 6 र्हीने की अिधध तक काया कि सकता है इस
अिधध र्ें नए िाष्ट्रपनत का चुनाि आिश्यक है इसके अनतरिक्त ितार्ान िाष्ट्रपनत की
अनुपन्स्थनत बीर्ािी या अन्य क्रकसी कािण से अपने कायों को किने र्ें असर्था हो
तो िह िाष्ट्रपनत के पुनः काया किने तक उसके कताव्यों का ननिाहन किता है।
o कायािाहक राष्ट्रपतत के रूप र्ें काया किते हुए या िाष्ट्रपनत के कायों का ननिाहन
किते हुए उपिाष्ट्रपनत िाज्यसभा के अध्यक्ष के कायाालय संबंधी कताव्यों का ननिाहन
नहीं किता है, इस अिधध के दौिान िाज्यसभा के उपाध्यक्ष उन कताव्यों का ननिाहन
किते हैं।
उप-िाष्ट्रपनत जब क्रकसी अिधध र्ें कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया किता है तो िह िाज्यसभा के सभापनत को
शर्लने िाले िेतन ि भत्ते आदद शर्लते हैं।
अनुच्छे द 75/164:
अनुच्छे द 88/177:
• प्रत्येक र्ंत्री को दोनों सदनों की कायािाही र्ें भाग लेने औि बोलने का अधधकाि है , लेक्रकन
िह केिल र्तदान उसी सदन र्ें कि सकता है न्जस सदन का िह सदस्य होता है ।
• एक र्ंत्री जो संसद / िाज्य विधानयका के क्रकसी एक सदन का सदस्य होता है, उसे
दूसिे सदन की कायािाही र्ें भाग लेने औि बोलने का अधधकाि होता है। लेक्रकन िह
र्तदान केिल उसी सदन र्ें कि सकता है न्जस सदन का िह सदस्य होता है ।
सार्ूदहक उत्तरदानयत्ि :
• केंद्रीय र्ंत्रत्रपरिषद /िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद एक दल के रूप र्ें काया किती है औि संयुक्त रूप
से लोकसभा / िाज्य विधानसभा के प्रनत उत्तिदाई होती है।
• यदद लोकसभा / िाज्य विधानसभा अविश्िास प्रस्ताि पारित किती है, तो सम्पूणा केंद्रीय
र्ंत्रत्रपरिषद / िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद को िाज्यसभा / िाज्य विधान परिषद के र्ंत्रत्रयों सदहत
त्यागपत्र दे ना पड़ता है।
• कैत्रबनेर्ट के फैसले सभी कैत्रबनेर्ट र्ंत्रत्रयों (औि अन्य र्ंत्रत्रयों) के शलए बाध्यकािी हैं। यदद
कोई र्ंत्री कैत्रबनेर्ट के फैसले से सहर्त नहीं है औि िह इसकी प्रनतिक्षा किने के शलए
तैयाि नहीं है, तो उसे त्यागपत्र दे दे ना चादहए। ( तत्कालीन उदाहिण: कृवष कानून र्ुद्दे
व्यजक्तगत उत्तरदानयत्ि :
• त्रिर्टे न के विपिीत, भाितीय संविधान र्ें र्ंत्री के विधधक उत्तिदानयत्ि का कोई प्रािधान
नहीं है।
• संिैधाननक ननकाय, संविधान के अनुच्छे द 74 औि 75 र्ें विस्ताि से िणान क्रकया गया है।
• अनुच्छे द 60 से 70 र्ंत्रत्रयों के ननकाय से संबन्न्धत है।
• तीनों श्रेखणयाँ - कैत्रबनेर्ट र्ंत्री, िाज्य- र्ंत्री औि उपर्ंत्री शाशर्ल हैं।
• सिकािी कार्काज के उद्दे श्य से एक ननकाय के रूप र्ें नहीं शर्लते हैं ।
• कैत्रबनेर्ट द्िािा शलए गए ननणायों को लागू किता है।
र्ंब्रत्रर्ंडल :
• 44िें संविधान संशोधन 1978 के द्िािा अनुच्छे द 352 र्ें सन्म्र्शलत क्रकया गया, जो
केिल कैत्रबनेर्ट को परिभावषत किता है, इसकी शन्क्तयों औि कायों का िणान नहीं किता है।
• लघु ननकाय - 15 से 20 र्ंत्री होते हैं।
• इसर्ें केिल कैत्रबनेर्ट र्ंत्री ही सन्म्र्शलत हैं।
• एक ननकाय के रूपर्ें प्रायः शर्लते हैं औि सिकािी कार्काज के संदभा र्ें ननणाय लेते
अन्य हैं।
• र्ंत्रत्रपरिषद द्िािा अपने ननणायों के क्रियान्ियन का पयािेक्षण किता है।
ककचन केब्रबनेट :
संसद(अनच्ु छे द
. 79 से 122 भाग V)
• िाष्ट्रपनत संसद के क्रकसी भी • 1954 र्ें िाज्य सभा एिं लोक सभा के रूप र्ें इनके दहंदी नार्ों को
सदन का सदस्य नहीं होता है अपनाया गया।
लेक्रकन िह संसद का एक • अधधकतर् सदस्य संख्या– 250 • अधधकतर् सदस्य संख्या- 552
अशभन्न अंग होता है। इस (238 िाज्य औि संघ शाशसत (530 सदस्य िाज्यों से औि 20
संदभा र्ें संविधान ननर्ााताओं ने प्रदे शों से अप्रत्यक्ष रूप से सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों से चुने
अर्ेरिकी व्यिस्था के विपिीत ननिााधचत एिं 12 सदस्य िाष्ट्रपनत जाते हैं औि 2 सदस्य िाष्ट्रपनत
त्रिदर्टश व्यिस्था र्ें विश्िास द्िािा नार्ांक्रकत होते हैं।) द्िािा आंग्ल भाितीय सर्ुदाय से
क्रकया। • ितार्ान सदस्य संख्या – कुल245 ननयुक्त क्रकए जाते हैं।)
• भाित एिं त्रिर्टे न के विपिीत सदस्यों र्ें से 229 सदस्य िाज्यों • ितार्ान सदस्य संख्या– कुल545
अर्ेरिका र्ें िाष्ट्रपनत, एिं 4 सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों सदस्यों र्ें से 530 सदस्य िाज्यों
विधानर्ंडल का अशभन्न अं ग औि 12 सदस्य िाष्ट्रपनत द्िािा से 13 सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों
ननयुक्त क्रकए जाने िाले (कला, से एिं 2 सदस्य िाष्ट्रपनत द्िािा
नहीं होता है।
सादहत्य, विज्ञान एिं सार्ान्जक ननयुक्त आंग्ल भाितीय सदस्य
• िाष्ट्रपनत दोनों सदनों का सत्र
सेिा से संबंधधत) सदस्यों का हैं।(अनुच्छे द331)
आहूत कि सकता है, लोकसभा
प्रनतननधधत्ि किते हैं। • ितार्ान र्ें 17िीं लोकसभा र्ें
का विघर्टन कि सकता है, दोनों
• USA की सीनेट र्ें सभी राज्यों आंग्ल भाितीय सर्ुदाय से क्रकसी
सदनों र्ें अशभभाषण कि
को सर्ान प्रनतननधधत्ि प्रदान भी सदस्य को ननयुक्त नहीं क्रकया
सकता है औि संसद के सत्र र्ें
गया है।
ना होने की न्स्थनत र्ें अध्यादे श ककया गया है और सीटों के
104िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 2019: इसके र्ाध्यर् से अनुसूध चत जानत एिं अनुसूध चत जनजानतयों (अनुच्छे द
330 औि 332) के शलए लोकसभा एिं िाज्य विधानसभाओं र्ें आिक्षण के प्रािधान को 25 जनििी 2030 तक के
शलए विस्तारित क्रकया गया औि लोकसभा र्ें दो एंग्लो इंडडयन (अनुच्छे द331) की ननयुन्क्त एिं विधाई ननकायों र्ें
एक एंग्लो इंडडयन की ननयुन्क्त के प्रािधान को सर्ाप्त क्रकया गया है।
राष्रपनत, उपराष्रपनत के साथ-साथ विधान पररषद एिं राज्यसभा के ननिााचन र्ें आनुपानतक प्रनतननधधत्ि प्रणाली का
उपयोग ककया जाता है।
संसद की सदस्यता
नोट: क्रकसी सदस्य र्ें उपयुाक्त ननिहाताओं संबंधी प्रश्न पि िाष्ट्रपनत का फैसला अंनतर् होगा
लेक्रकन िाष्ट्रपनत को ननिााचन आयोग से सलाह लेकि काया किना चादहए।
नोट: दसिीं अनुसूची के तहत ननिहाता के सिालों का ननपर्टािा िाज्यसभा र्ें सभापनत औि
लोकसभा र्ें अध्यक्ष किता है (ना क्रक भाित का िाष्ट्रपनत)।
दोहरी सदस्यता • कोई व्यन्क्त यदद दोनों सदनों र्ें चुन शलया जाता है तो उसे 10 ददनों
के अंदि स्पष्ट्र्ट किना होता है क्रक उसे क्रकस सदन र्ें िहना है अन्यथा
िाज्यसभा र्ें उसकी सीर्ट खाली हो जाएगी।
• यदद क्रकसी सदन का सदस्य दूसिे सदन का भी सदस्य बन जाता है
तो पहले िाले सदन र्ें उसका पद रिक्त हो जाएगा।
• एक ही सदन र्ें क्रकसी व्यन्क्त के 2 सीर्टों पि चुने जाने पि उसे अपनी
इच्छा से 1 सीर्ट को खाली किना होता है अन्यथा दोनों सीर्टें रिक्त हो
जाती हैं।
• कोई व्यन्क्त एक ही सर्य पि संसद या िाज्य के विधान र्ंडल के
सदन का सदस्य नहीं हो सकता है यदद 14 ददनों के अंदि ऐसा सदस्य
िाज्य के विधान र्ंडल की सीर्ट को खाली नहीं किता है तो संसद र्ें
स्थानों का रिक्त
उसकी सदस्यता सर्ाप्त हो जाती है।
होना:
पद त्याग/ र्ृत्यु • कोई सदस्य सदन के अध्यक्ष को संबोधधत त्यागपत्र द्िािा अपना स्थान
त्याग सकता है।
अन्य जस्थनतयां • यदद न्यायालय द्िािा उस चुनाि को अर्ान्य या शून्यकिाि दे ददया जाता
है।
video.onlyias.in /mains.onlyias.in info@onlyias.com /+91-7007931912
97
“UDAAN” - Quick and Comprehensive Revision Series POLITY
• यदद क्रकसी सदस्य को सदन द्िािा ननष्ट्काशसत कि ददया जाता है।
• यदद सदस्य िाष्ट्रपनत उपिाष्ट्रपनत के रूप र्ें चुन शलया जाता है।
• यदद सदस्य को क्रकसी िाज्य का िाज्यपाल बना ददया जाता है।
• िाष्ट्रपनत या उसके द्िािा ननयुक्त क्रकसी व्यन्क्त के सर्क्ष शपथ लेता है।
• जब तक कोई सदस्य शपथ नहीं लेता है तब तक िह सदन की क्रकसी बैठक र्ें दहस्सा नहीं
शपथ या प्रनतज्ञान
ले सकता है औि ना ही उसे र्त दे ने का अधधकाि होता है। इसके साथ-साथ िह संसद
: द्िािा प्रदान क्रकए जाने िाले विशेषाधधकािों का भी हकदाि नहीं होता है।
• संसद के सदस्यों को संसद द्िािा ननधाारित िेतन एिं भत्ते प्रदान क्रकए जाते हैं। संविधान र्ें
इनके शलए पेंशन का कोई प्रािधान नहीं है।
• लोकसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष औि िाज्यसभा के सभापनत तथा उपसभापनत के िेतन
िेतन औि भत्ते: एिं भत्तों का ननधाािण भी संसद द्िािा क्रकया जाता है लेक्रकन यह भाित की संधचत ननधध पि
भारित होते हैं।
नोट: अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष अपना पद धािण किने के बाद अलग से कोई शपथ या प्रनतज्ञान नहीं लेते हैं।
• इसकी स्थापना भाित सिकाि अधधननयर्, 1919 के • भारत का उप-राष्रपनत राज्यसभा का पदे न सभापनत
अंतगात की गई थी। होता है।
• जी.िी.र्ािलंकि लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। • यह अपने पद से तभी हर्ट सकता है जब िह उप-
• इसे लोकसभा के सदस्यों द्िािा अपने बीच से ही िाष्ट्रपनत के पद पि नहीं िहता है।
ननयुक्त क्रकया जाता है। • लोकसभा के अध्यक्ष के विपिीत िाज्यसभा का
• इसके ननिााचन की तािीख िाष्ट्रपनत द्िािा ननधाारित सभापनत सदन का सदस्य नहीं होता है।
की जाती है। • अध्यक्ष की तिह सभापनत भी पहली बाि र्त नहीं दे
• लोकसभा के कायाकाल तक अपने पद पि बना िहता सकता है। र्त बिाबि होने की न्स्थनत र्ें िह अपना
है। र्त दे सकता है।
• यह उपाध्यि को अपना त्यागपत्र दे सकता है। • जब सभापनत को पद से हर्टाने से संबंधधत संकल्प
• इसको हटाने से संबंधधत प्रस्ताि के बारे र्ें सदन को विचािाधीन होता है तब िह सदन की कायािाही र्ें
14 ददन पहले सूचना दे ना आिश्यक होता है। इस दहस्सा ले सकता है लेक्रकन उसे सार्ान्य सदस्य की
प्रकार के प्रस्ताि का सदन के पूणा बहुर्त द्िारा तिह र्त दे ने का अधधकाि नहीं होता है।
पाररत होना आिश्यक होता है। (अथाात सदन के सभी • सभापनत के िेतन एिं भत्तों का ननधाािण संसद द्िािा
सदस्यों के बहुर्त द्िारा)। इस प्रस्ताि पर विचार क्रकया जाता है तथा यह भाित की संधचत ननधध पि
करने या चचाा करने के मलए कर् से कर् 50 सदस्यों भारित होते हैं।
प्रोटे र् अध्यि(अनुच्छे द - 95): वपछली लोकसभा का अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक अपने
पद पि बना िहता है। प्रोर्टे र् अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता किता है। यह सदन को नए
अध्यक्ष का चुनाि किने र्ें सहायता प्रदान किता है। िाष्ट्रपनत, लोकसभा के क्रकसी सदस्य को प्रोर्टे र् अध्यक्ष के रूप
र्ें ननयुक्त किते हैं। सार्ान्य रूप से लोकसभा का िरिष्ट्ठ सदस्य ही इस पद हेतु चुना जाता है।
लोकसभा का अध्यि एिं अन्य(अनुच्छे द 93) राज्यसभा का उप-सभापनत एिं अन्य(अनुच्छे द 89)
• 11िीं लोकसभा से सदन र्ें ऐसी परं परा बन गई है • िाज्यसभा का उपसभापनत िाज्यसभा के सभापनत को
कक लोकसभा का अध्यि सत्ताधारी दल से संबंधधत अपना त्यागपत्र सौंपता है।
होता है और उपाध्यि विपिी दल से संबंधधत होता • िाज्यसभा का सभापनत भाित के िाष्ट्रपनत को अपना
है। त्याग पत्र सौंपता है।
• उपाध्यि का ननिााचन लोकसभा के अध्यि के बाद
होता है।
• इनका ननिााचन संबंधधत सदन के सदस्यों र्ें से क्रकया जाता है औि ननिााचन की नतधथ का ननधाािण अध्यक्ष या
सभापनत द्िािा क्रकया जाता है।
• यह अध्यक्ष या सभापनत के अधीनस्थ नहीं होते हैं बन्ल्क सदन के प्रनत प्रत्यक्ष रूप से उत्तिदाई होते हैं।
• इन्हें संसद द्िारा ननधााररत िेतन एिं भत्ते प्रदान ककए जाते हैं जो भारत की संधचत ननधध पर भाररत होते हैं।
• पद र्ुन्क्त की प्रक्रिया अध्यक्ष एिं सभापनत के ही सर्ान होती है।
सदन का नेता: सदन के ननयर्ों के अंतगात (अथाात लोकसभा या िाज्यसभा) (संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया
गया है), सदन के नेता का अशभप्राय प्रधानर्ंत्री (न्जसका िह सदस्य है)है,या प्रधानर्ंत्री द्िािा सदन के नेता के रूप
र्ें र्नोनीत कोई र्ंत्री जो सदन का सदस्य हो (अथाात लोकसभा औि िाज्यसभा) \।
विपि का नेता: संसदीय ननयर्ों के अनुसाि (संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया गया है) सदन की ऐसी सबसे
बड़ी विपक्षी पार्टी न्जसके सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या के कर् से कर् दसिें दहस्से के बिाबि
हो उसके नेता को विपक्ष के नेता के रूप र्ें र्ान्यता शर्लती है। उसे कैत्रबनेर्ट र्ंत्री के सर्ान सुविधाएं प्रदान की
जाती हैं। सबसे पहली बाि 1969 र्ें विपक्ष के नेता को र्ान्यता दी गई थी। 1977 र्ें इसे सांविधधक र्ान्यता प्राप्त
हुई। आईिि जेननंग ने इसे िै कन्ल्पक प्रधानर्ंत्री की संज्ञा दी है।
जव्हप : न्व्हप के पद का उल्लेख ना तो भाित के संविधान र्ें, ना ही सदन के ननयर्ों र्ें औि ना ही संसदीय विधध
र्ें क्रकया गया है। यह संसदीय सिकाि की पिं पिाओं पि आधारित है। प्रत्येक िाजनीनतक दल का संसद र्ें सहायक
नेता के रूप र्ें अपना न्व्हप होता है। इसका उद्दे श्य अपनी पार्टी के नेताओं को बड़ी संख्या र्ें सदन र्ें उपन्स्थत
िखने औि संबंधधत र्ुद्दे के पक्ष या खखलाफ र्ें पार्टी के अनुसाि उनके सहयोग को सुननन्श्चत किना होता है। यह
संसद र्ें सदस्यों के व्यिहाि पि नजि िखता है।
संसद के सत्र
• राष्रपनत संसद के प्रत्येक सदन को सर्य-सर्य पर आहूत करता है। संसद को 1 िषा र्ें
सत्र आहूत किना कर् से कर् 2 बार बैठक करना चादहए।
(अनुच्छे द 85): • संसद का सत्र इसकी प्रथर् बैठक से लेकर इसके सत्रािसान के र्ध्य की सर्यािधध है।
• एक सत्र के सत्रािसान एिं दूसरे सत्र के प्रारं भ होने के र्ध्य की अिधध को अिकाश कहा
जाता है।
• पीठासीन अधधकािी द्िािा स्थगन के र्ाध्यर् से संसद के सत्र को स्थधगत क्रकया जा
• िाष्ट्रपनत सदन की स्थगन एिं सत्र र्ें होने की न्स्थनत र्ें इसके सत्रािसान से संबंध धत
सत्रािसान: नोदर्टक्रफकेशन जािी किता है।
• इससे सदन की बैठक के साथ-साथ सदन का सत्र भी सर्ाप्त हो जाता है।
• केिल लोकसभा का ही विघटन होता है। सत्रािसान के विपरीत विघटन से ितार्ान सभा का
कायाकाल सर्ाप्त हो जाता है और इसका पुनगाठन नए चुनाि के बाद ही होता है।
• लोकसभा को दो कािणों से विघदर्टत क्रकया जा सकता है:
विघर्टन: 1. इसका कायाकाल पूिा हो जाने पि यह स्ियं ही विघदर्टत हो जाती है।
2. िाष्ट्रपनत द्िािा सदन के विघर्टन से संबंधधत ननणाय लेने पि। यह ननणाय लेने के शलए
िाष्ट्रपनत प्राधधकृत होता है।
जब लोकसभा का विघर्टन हो जाता है तो इसके सभी काया जैसे विधेयक, प्रस्ताि,
संकल्प, नोदर्टस, याधचका आदद सर्ाप्त हो जाते हैं।
• संविधान द्िािा दहंदी औि अंग्रेजी को संसद की कायािाही की भाषा के रूप र्ें घोवषत क्रकया
संसद र्ें भाषा: गया है।
• सदन के सदस्य पीठासीन अधधकािी से पूिा अनुर्नत लेने के पश्चात अपनी र्ातृभाषा र्ें
बोल सकते हैं।
र्ंत्रत्रयों एिं • प्रत्येक र्ंत्री एिं भाित के र्हान्यायिादी को सदन की कायािाही र्ें भाग लेने, दोनों सदनों
र्हान्यायिादी के की संयुक्त बैठक र्ें भाग लेने, सदन र्ें अपने विचाि व्यक्त किने औि ऐसी क्रकसी
अधधकाि सशर्नत, न्जसके िह सदस्य नहीं है, उसकी बैठक की कािािाई र्ें त्रबना र्तदान के भाग
लेने का अधधकाि होता है।
व्यपगत होने 1. लोकसभा र्ें विचािाधीन विधेयक (चाहे लोकसभा र्ें शुरू क्रकए गए हो या क्रफि िाज्यसभा द्िािा
िाले विधेयक हस्तांतरित क्रकए गए हो)
2. लोकसभा र्ें पारित क्रकं तु िाज्यसभा र्ें विचािाधीन विधेयक।
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व्यपगत ना 1. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों की असहर्नत के कािण पारित ना हुआ हो औि इसके संबंध र्ें
होने िाले िाष्ट्रपनत ने विघर्टन होने से पूिा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो।
विधेयक 2. ऐसा विधेयक जो िाज्यसभा र्ें विचािाधीन हो औि लोकसभा द्िािा पारित ना क्रकया गया हो।
3. दोनों सदनों द्िािा पारित औि िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए विचािाधीन विधेयक।
4. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्िािा पारित हो औि िाष्ट्रपनत द्िािा पुनविाचाि के शलए लौर्टाया
गया हो।
• संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल का ही होता है इस दौरान संसद के सदस्य प्रश्न पूछते हैं और
सार्ान्यता र्ंत्री उनका उत्तर देते हैं लेककन कभी-कभी ननजी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते
हैं।
प्रश्नकाल: • इसकी शुरुआत भारत पररषद अधधननयर् 1892 के द्िारा हुई थी।
• कारािाई के ननयर्ों र्ें इसका उल्लेख ककया गया है।
• तािांक्रकत प्रश्नों का उत्ति र्ौखखक रूप से ददया जाता है तथा इसके बाद पू िक प्रश्न भी पूछे जा
सकते हैं।
• अतािांक्रकत प्रश्नों र्ें शलखखत उत्ति दे ने की आिश्यकता होती है तथा इसके बाद पूिक प्रश्न नहीं
पूछा जा सकता है।
• अल्प सूचना के प्रश्नों का उत्ति र्ौखखक रूप से ददया जाता है औि इन्हें पूछने के शलए कर् से
कर् 10 ददन पहले नोदर्टस दे ना होता है।
• त्रबना पूिा सूचना के कोई र्ार्ला उठाने का यह एक अनौपचारिक साधन है । यह प्रश्नकाल के
शून्यकाल: तुिंत बाद शुरू होता है।
• 1962 से जारी यह एक भारतीय निाचार है तथा इसका प्रकक्रया के ननयर्ों र्ें उल्लेख नहीं
ककया गया है।
• इस प्रस्ताि को क्रकसी सदस्य द्िािा िाद वििाद को सर्ाप्त किने के शलए लाया जाता है यदद
इसे स्िीकाि कि शलया जाता है तो िाद वििाद को सर्ाप्त कि इसे र्तदान के शलए िखा जाता
है।
• कटौती प्रस्ताि चार प्रकार के होते हैं:
कर्टौती प्रस्ताि: साधारण कटौती: क्रकसी विषय पि पयााप्त चचाा हो जाने के बाद जब उसे र्तदान के शलए
िखा जाता है।
घटकों र्ें कटौती: इसके अंतगात क्रकसी प्रस्ताि का चचाा से पूिा विधेयकों या लंबे संकल्पों
का सर्ूह बना शलया जाता है औि चचाा के बाद इसे र्तदान के शलए िखा जाता है।
कंगारू कटौती: इसके अंतगात केिल र्हत्िपूणा भागों पि ही बहस औि र्तदान की प्रक्रिया
होती है औि शेष खंडों को छोड़ ददया जाता है औि उन्हें पारित र्ान शलया जाता है।
धगलोदटन कटौती: जब क्रकसी संकल्प के क्रकसी भाग पि चचाा नहीं हो पाती है तो उस पि
र्तदान से पूिा चचाा किाने के शलए इस प्रकाि का प्रस्ताि िखा जाता है।
विशेषाधधकि • जब क्रकसी सदस्य को यह र्हसूस होता है क्रक क्रकसी र्ंत्री ने सदन के विशेषाधधकािों का
प्रस्ताि: उल्लंघन क्रकया है तब िह इस प्रस्ताि को ला सकता है।
ध्यानाकषाण • इसके र्ाध्यर् से सदन का कोई सदस्य क्रकसी र्ंत्री का अविलंबनीय लोक र्हत्ि के क्रकसी
प्रस्ताि: र्ार्ले पि ध्यान आकवषात किता है।
• यह भारतीय निाचार है और प्रकक्रया ननयर्ों र्ें इसका उल्लेख ककया गया है।
• क्रकसी अविलंबनीय लोक र्हत्ि के र्ार्ले पि सदन का ध्यान आकषाण किने के शलए इस
प्रस्ताि को लाया जाता है। इसके र्ाध्यर् से ऐसे र्ार्लों को ही उठाया जा सकता है जोक्रक
स्थगन प्रस्ताि: ननन्श्चत, त्यात्र्क, अत्यंत जरूिी औि लोक र्हत्ि के होते हैं।
• यह एक प्रकाि का असाधािण उपकिण है न्जससे संसद की ननयशर्त कािािाई बाधधत होती है।
• िाज्यसभा को इसके उपयोग की अनुर्नत नहीं होती है क्योंक्रक इसर्ें सिकाि के खखलाफ कर्टौती
का तत्ि शाशर्ल होता है।
• इसर्ें एक से अधधक र्ुद्दों को शाशर्ल नहीं क्रकया जाता है औि ना ही इसके र्ाध्यर् से क्रकसी
ऐसे विषय पि चचाा की जाती है न्जस पि उसी सत्र र्ें चचाा हो चु की हो। इसको लाने के शलए
50 सदस्यों का सर्थान आिश्यक होता है।
विश्िास प्रस्ताि: • िाष्ट्रपनत द्िािा सत्ताधािी दल को सदन र्ें उसका बहुर्त शसद्ध किने के शलए कहा जा सकता
है।
• यदद विश्िास प्रस्ताि पारित नहीं होता है तो सिकाि का विघर्टन हो जाता है।
• अनुच्छे द 75- र्ंत्री परिषद, लोकसभा के प्रनत सार्ूदहक रूप से उत्तिदायी होगी। यह शसद्धांत
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संसदीय लोकतंत्र र्ें आधािभूत शसद्धांत होता है।
• संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया गया है यह केिल लोकसभा र्ें प्रक्रिया ननयर्ों के तहत
अविश्िास प्रस्ताि ननयर् 198 के अंतगात लाया जाता है।
(अनुच्छे द 75) • सत्ता र्ें बने िहने के शलए र्ंत्री परिषद को लोकसभा के सदस्यों का बहुर्त प्राप्त होना
आिश्यक होता है।
• इस प्रस्ताि को लाने के शलए 50 सदस्यों के सर्थान की आिश्यकता होती है औि इसको लाने
से संबंधधत कािण बताना आिश्यक नहीं होता है।
• इसे संपूणा र्ंत्री परिषद के खखलाफ लाया जाता है औि सदन र्ें यदद यह पास हो जाता है तो
र्ंत्री परिषद को अपना त्यागपत्र दे ना पड़ता है।
ननंदा प्रस्ताि: • इसे सिकाि की कुछ नीनतयों या कायों के खखलाफ ननंदा किने के उद्दे श्य से लाया जाता है।
• इसे स्िीकािने का कािण बताना आिश्यक होता है।
• इसे क्रकसी र्ंत्री या र्ंत्रत्रयों के सर्ूह या संपूणा र्ंत्री परिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है।
• यदद यह लोकसभा र्ें पारित हो जाता है तो र्ंत्रत्रपरिषद को त्यागपत्र दे ना आिश्यक नहीं होता
है। लेक्रकन सिकाि को तत्काल सदन का विश्िास हाशसल किने की आिश्यकता होती है।
• प्रत्येक आर् चुनाि के बाद पहले सत्र औि वित्तीय सत्र के पहले सत्र र्ें िाष्ट्रपनत सदन को
धन्यिाद प्रस्ताि संबोधधत किता है तथा दोनों सदनों र्ें इस पि चचाा होती है इसी को धन्यिाद प्रस्ताि कहा
जाता है।
• चचाा होने के बाद इस प्रस्ताि को र्त के शलए िखा जाता है यदद यह पारित नहीं होता है तो
इसका तात्पया सिकाि का पिान्जत होना होता है।
अननयत ददिस • इसे अध्यक्ष द्िािा लाया जाता है लेक्रकन इसकी चचाा के शलए क्रकसी नतधथ का ननधाािण नहीं
प्रस्ताि: क्रकया जाता है।
• इसे क्रकसी विधेयक या प्रस्ताि पि चचाा के स्थगन के शलए लाया जाता है।
विलंबकिी • प्रस्ताि आने के बाद इसे क्रकसी सदस्य द्िािा क्रकसी भी सर्य लाया जा सकता है।
प्रस्ताि: • इस प्रस्ताि र्ें शाशर्ल र्ार्लों पि बहस नहीं होती है।
• यह प्रस्ताि सदन की सार्ान्य कािािाई को विलंत्रबत किता है।
• सदन र्ें कािािाई के संचालन के सार्ान्य ननयर्ों का पालन ना होने पि सार्ान्यत: सदन के
औधचत्य प्रश्न: विपक्षी दल के सदस्य द्िािा औधचत्य प्रश्न को लाया जाता है इसका उद्दे श्य सिकाि पि दबाि
बनाना होता है।
• यह सदन की कायािाही को सर्ाप्त किने की असाधािण युन्क्त है इस पि क्रकसी तिह की बहस
की अनुर्नत नहीं होती है।
आधे घंर्टे की • इसके र्ाध्यर् से पयााप्त लोक र्हत्ि के र्ुद्दों पि चचाा की जाती है।
चचाा • इसके शलए सदन र्ें कोई औपचारिक प्रस्ताि या र्तदान नहीं होता है।
विशेष उल्लेख: • ऐसा र्ार्ला जो क्रकसी ननयर् के अंतगात नहीं आता है उसे विशेष उल्लेख के तहत िाज्य सभा
र्ें उठाया जाता है।
• साधािण लोक र्हत्ि के र्ार्लों पि सिकाि का ध्यान आकवषात किने के शलए कोई सदस्य
संकल्प ला सकता है। इसके अंतगात प्रासंधगक एिं प्रस्ताि से संबंधधत चचाा होती है।
• क्रकसी सदस्य द्िािा लाए गए संकल्प को िापस लेने एिं इसर्ें संशोधन के शलए सदन के
अध्यक्ष की अनुर्नत की आिश्यकता होती है।
• सभी संकल्प र्हत्िपूणा प्रस्तािों की ही श्रेणी र्ें आते हैं लेककन ऐसा आिश्यक नहीं है कक सभी
प्रस्ताि र्हत्िपूणा प्रस्ताि ही हों। इसीमलए सभी प्रस्ताि पर सदन र्ें र्तदान की आिश्यकता
नहीं होती है लेककन सभी संकल्पों पर र्तदान की आिश्यकता होती है।
• संकल्प तीन प्रकार के होते हैं:
1. गैर सरकारी सदस्यों का संकल्प: इस प्रकाि के संकल्प को गै ि सिकािी सदस्य द्िािा लाया
संकल्प: जा सकता है इस पि बहस केिल िैकन्ल्पक शुििाि एिं दोपहि के बाद बैठक र्ें की जा
सकती है।
2. सरकारी संकल्प: यह संकल्प र्ंत्री द्िािा लाया जाता है औि इस पि सोर्िाि से गुरुिाि
तक चचाा हो सकती है।
3. सांविधधक संकल्प: इसे गै ि सिकािी सदस्य द्िािा या र्ंत्री द्िािा लाया जा सकता है।
सिकािी विधेयक: संसद र्ें र्ंत्री द्िािा प्रस्तुत क्रकया जाता है + प्रस्तुत करने से पहले
प्रस्तुत किने के आधाि पि 7 ददनों का नोदटस ददया जाता है + इसका प्रारूप संबंधधत विभाग द्िारा तैयार ककया
: जाता है।
गैर सरकारी विधेयक : इसे र्ंत्री के अनतरिक्त क्रकसी अन्य सदस्य द्िािा प्रस्तुत क्रकया
जाता है + प्रस्तुत किने से पहले एक र्ाह का नोदर्टस आिश्यक होता है+ इसके
ननर्ााण की न्जम्र्ेदािी संबंधधत सदस्य की होती है।
साधारण विधेयक:
• इसर्ें वित्तीय र्ार्लों के अलािा अन्य विषयों को शाशर्ल क्रकया जाता है।
• प्रत्येक साधािण विधेयक संसद र्ें 5 चिणों से होकि गुजिता है न्जसे नीचे दी गई
धन विधेयक(अनुच्छे द 110):
विषय िस्तु के आधाि पि • इसे केिल िाष्ट्रपनत की सलाह पि ही लाया जाता है।
• िाज्यसभा द्िािा इसे अस्िीकृत या संशोधधत नहीं क्रकया जा सकता है बन्ल्क िह
इस पि केिल शसफारिश कि सकती है औि लोकसभा इन शसफारिशों को स्िीकाि
या अस्िीकाि कि सकती है।
• िाज्यसभा इसे अधधकतर् 14 ददनों के शलए अपने पास िख सकती है।
• इसे लोकसभा अध्यि द्िारा प्रर्ाणणत करने की आिश्यकता होती है।
• िाज्यसभा के पास इस विधेयक से संबंधधत शन्क्तयां काफी सीशर्त होती हैं।
• िाष्ट्रपनत इसे स्िीकाि या अस्िीकाि कि सकता है लेक्रकन संसद को पुनविाचाि के
शलए नहीं लौर्टा सकता है।
• इसर्ें अनुच्छे द 368 के अंतगात संविधान के प्रािधानों का संशोधन क्रकया जाता है।
प्रथर् पाठन • ककसी सदस्य द्िारा सदन र्ें विधेयक को प्रस्तुत करने से पहले इसकी अधग्रर्
सूचना दे नी पडती है।
• इस चरण र्ें विधेयक पर ककसी प्रकार की चचाा नहीं की जाती है।
• यह अनत र्हत्िपूणा चिण है।
• इसके अंतगात 3 उप-चिण शाशर्ल होते हैं:
1. सार्ान्य चचाा का चरण : इसके अंतगात विधेयक के शसद्धांतों एिं उपबं धों
द्वितीय पाठन पि चचाा होती है औि इसे सशर्नत के पास भेज ददया जाता है।
2. सशर्नत अिस्था
3. विचाि विर्शा की अिस्था: इसके अंतगात विधेयक के सर्स्त उपबंधों की
सर्ीक्षा होने के साथ-साथ इसके प्रत्येक उपबं ध पि खंड िाि चचाा एिं
र्तदान होता है।
• इस चिण र्ें केिल विधेयक को स्िीकाि या अस्िीकाि किने के बािे र्ें चचाा की
तत
ृ ीय पाठन जाती है औि इसर्ें क्रकसी प्रकाि का संशोधन नहीं क्रकया जा सकता है।
• यदद इसे स्िीकाि कि शलया जाता है तो इसे अगले सदन र्ें सहर्नत के शलए
भेजा जाता है।
• यदद दूसिे सदन द्िािा क्रकसी प्रकाि के संशोधन के त्रबना या संशोधन के साथ
दूसिे सदन र्ें विधेयक विधेयक को पारित क्रकया जाता है औि प्रथर् सदन द्िािा उन संशोधनों को
स्िीकाि कि शलया जाता है तब इस विधेय क को दोनों सदनों द्िािा पारित
सर्झा जाता है औि इसे िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए भेज ददया जाता है।
िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत • यदद िाष्ट्रपनत द्िािा इस विधेयक को स्िीकृनत प्रदान कि दी जाती है तो यह
अधधननयर् बन जाता है।
• ऐसा विधेयक जजसर्ें अनुच्छे द 110 से संबंधधत • इसर्ें भाित की संधचत ननधध पि भारित व्यय संबंधी
र्ार्लों के साथ अन्य सार्ान्य विधधक र्ार्ले शामर्ल उपबंध होते हैं लेक्रकन इसर्ें अनुच्छे द 110 से संबंधधत
होते हैं। विषय शाशर्ल नहीं होते हैं।
• यह दो रूपों र्ें धन विधेयक के सर्ान होता है: • इसे संसद के दोनों सदनों र्ें प्रस्तुत क्रकया जा सकता
1. इसे केिल लोकसभा र्ें प्रस्तुत ककया जा सकता है।
है। • इसे प्रस्तुत किने के शलए िाष्ट्रपनत की सहर्नत की
2. इसे राष्रपनत की पूिा सहर्नत से ही प्रस्तुत ककया आिश्यकता नहीं होती है।
जाता है।
• दोनों सदनों के बीच गनतरोध होने की जस्थनत र्ें राष्रपनत इस गनतरोध को सर्ाप्त करने के मलए संयुक्त बैठक
बुला सकता है।
• राष्रपनत या तो विधेयक को अपनी स्िीकृनत प्रदान कर सकता है या उसे रोक सकता है या कफर पुनविाचार के
मलए सदन को िापस भेज सकता है।
नीनत कर्टौती प्रस्ताि: इसके अंतगात र्ांग की नीनत के प्रनत असहर्नत व्यक्त की जाती है इसर्ें र्ांग की रामश
र्ें एक रुपए की कटौती की र्ांग की जाती है।
इसर्ें र्ांग की िाशश को एक ननन्श्चत सीर्ा तक कर् किने के शलए कहा जाता है( यह
आधथाक कर्टौती प्रस्ताि: या तो र्ांग र्ें एकर्ुश्त कर्टौती हो सकती है या क्रफि पूिा सर्ान्प्त या र्ांग की क्रकसी र्द
र्ें कर्टौती हो सकता है)।
सांकेनतक कर्टौती इसर्ें कुल र्ांग र्ें ₹100 की कर्ी किने के शलए कहा जाता है।
प्रस्ताि:
• एक वित्तीय िषा हेतु आय औि व्यय के सार्ान्य प्रािधान के अलािा संसद द्िािा असाधािण या विशेष
परिन्स्थनतयों र्ें अनेक अन्य अनुदान भी प्रदान क्रकए जाते हैं:
अनुपूिक अनुदान: इसकी स्िीकृनत तब प्रदान की जाती है जब ककसी विशेष सेिा हेतु विननयोग अधधननयर्
द्िारा प्राधधकृत रामश उस िषा हेतु अपयााप्त होती है।
अनतरिक्त अनुदान: जब चालू वित्तीय िषा के दौिान क्रकसी नई से िा को शाशर्ल किने से अनतरिक्त व्यय की
आिश्यकता उत्पन्न होती है तब इसके र्ाध्यर् से धन प्रदान क्रकया जाता है।
प्रत्ययानुदान: जब क्रकसी सेिा के शलए आकन्स्र्क रूप से धन की अत्यधधक एिं तुिंत सहायता की
आिश्यकता होती है तो इस प्रकाि की अनुदान की र्ांग िखी जाती है।
अपिादानुदान: इसे विशेष प्रयोजन के शलए प्रदान क्रकया जाता है तथा यह ितार्ान वित्तीय िषा या सेिा
से संबंधधत नहीं होता है।
विमभन्न ननधधयां:
भारत की संधचत ननधध भारत की लोक लेखा ननधध भारत की आकजस्र्कता ननधध
• यह एक ऐसी ननधध है जजसर्ें सभी • भाित की संधचत ननधध र्ें जर्ा होने • कानून के अंतगात संसद द्िािा
प्राजप्तयां जर्ा होती हैं और सभी िाले धन के अलािा अन्य सािाजननक ननधाारित िाशश सर्य-सर्य पि
भुगतान ककए जाते हैं। धन को इसी र्ें जर्ा क्रकया जाता है। इसर्ें जर्ा की जाती है।
• भारत सरकार की ओर से विधधक • इसर्ें भविष्ट्य ननधध जर्ा, न्यानयक • यह ननधध िाष्ट्रपनत के अधधकाि
रुप से प्राधधकृत सभी भुगतान इसी जर्ा, बचत बैंक जर्ा, विभागीय जर्ा र्ें होती है औि िह क्रकसी
ननधध से ककए जाते हैं। इत्यादद शाशर्ल हैं। अप्रत्याशशत व्यय के शलए इससे
अधग्रर् दे सकता है।
संसद की भूमर्का
भाित की िाजनीनतक - प्रशासननक व्यिस्था र्ें संसद की केंद्रीय भूशर्का होती है औि इसे विशभन्न शन्क्तयां प्राप्त
होती हैं। इसकी शन्क्तयों एिं कायों को ननम्नशलखखत शीषाकों के तहत िगीकृत क्रकया जा सकता है :विधायी शन्क्तयां
एिं काया + कायाकािी शन्क्तयां एिं काया + वित्तीय शन्क्तयां एिं काया + सांविधधक शन्क्तयां एिं काया + न्यानयक
शन्क्तयां एिं काया + ननिााचक शन्क्तयां एिं काया + अन्य शन्क्तयां एिं काया।
संसदीय विशेषाधधकार
• यह संसद के दोनों सदनों, संसदीय सशर्नतयों औि इनके सदस्यों को प्राप्त होता हैं।
• भाित के संविधान द्िािा भाित के र्हान्यायिादी को संसदीय विशेषाधधकाि प्रदान क्रकए गए हैं लेक्रकन यह भाित
के िाष्ट्रपनत को प्रदान नहीं क्रकए गए हैं जो क्रक संसद का एक अशभन्न अं ग है।
• इसे अपनी रिपोर्टा, िाद वििाद औि कायािाही को प्रकाशशत किने तथा क्रकसी को इसे
प्रकाशशत ना किने दे ने का अधधकाि है।
• यह र्हत्िपूणा विषयों पि विचाि किने के शलए गुप्त बैठक किने के साथ-साथ
अपनी कायािाही से बाहिी लोगों को हर्टा सकते हैं।
• यह अपनी कायािाही के संचालन, काया के प्रबंधन तथा इन र्ार्लों के ननणाय हेतु
स्ियं ननयर् बना सकते हैं।
सार्ूदहक विशेषाधधकार
• यह अपने सदस्यों के साथ-साथ बाहिी व्यन्क्तयों को सदन के विशेषाधधकािों के
:
हनन एिं सदन की अिर्ानना किने पि दं ड दे सकते हैं।
• इसे अपने क्रकसी सदस्य की बंदी, अििोध, अपिाध शसद्धध, कािािास या र्ुन्क्त
संबंधधत तत्काल सूचना प्राप्त किने का अधधकाि है।
• इसे जांच किने तथा गिाह की उपन्स्थनत औि संबंधधत पेप ि एिं रिकॉडा के शलए
आदे श दे ने की शन्क्त है।
• न्यायालय, सदन तथा इसकी सशर्नतयों की कायािाही की जांच के शलए ननषेधधत
है।
• सदन क्षेत्र र्ें पीठासीन अधधकािी की अनुर्नत के त्रबना क्रकसी व्यन्क्त (सदस्य या
बाहिी व्यन्क्त) को बंदी नहीं बनाया जा सकता है औि ना ही कोई कानूनी कािािाई
(शसविल या आपिाधधक) की जा सकती है।
• इन्हें संसद की कायािाही के दौिान, कायािाही चलने से 40 ददन पहले तथा बंद होने
के 40 ददन बाद तक बंदी नहीं बनाया जा सकता है। यह अधधकाि केिल नागरिक
व्यजक्तगत विशेषाधधकार
र्ार्लों तक विस्तारित है आपिाधधक औि प्रनतबंधात्र्क ननषेध र्ार्लों र्ें नहीं।
:
• इन्हें संसद र्ें भाषण दे ने की स्ितंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी सदस्य संसद या
इसकी सशर्नत र्ें ददए गए अपने भाषण या र्त के शलए क्रकसी भी न्यायालय की
क्रकसी भी कायािाही के शलए न्जम्र्ेदाि नहीं ठहिाया जाएगा।
• यह न्याय ननणायन सेिा से र्ुक्त होते हैं। यह संसद के सत्र र्ें िहने पि क्रकसी
न्यायालय र्ें लंत्रबत र्ुकदर्े र्ें प्रर्ाण प्रस्तुत किने या उपन्स्थत होने के शलए र्ना
कि सकते हैं।
विशेष अधधकारों का हनन • जब कोई व्यन्क्त या प्राधधकािी क्रकसी सं सद सदस्य की व्यन्क्तगत औि संयुक्त
एिं सदन की अिर्ानना: क्षर्ता र्ें इसके विशेषाधधकािों,अधधकािों औि उन्र्ुन्क्तयों का अपर्ान या उन पि
आिर्ण किता है तो इसे अपिाध विशेषाधधकाि हनन कहा जाता है औि यह सदन
द्िािा दं डनीय है।
र्ूल रूप से संविधान र्ें(अनुच्छे द105) संसद र्ें भाषण देने की स्ितंत्रता तथा इसकी
कायािाही के प्रकाशन के अधधकाि के रूप र्ें दो विशेष अधधकािों को शाशर्ल क्रकया गया
है। संसद ने अब तक विशेष अधधकािों को संदहताबद्ध किने के सं बंध र्ें कोई विशेष
विशेषाधधकारों के स्रोत विधध नहीं बनाई है। यह पांच स्रोतों पि आधारित है जैसे:
:
1. संिैधाननक प्रािधान
2. संसद द्िािा ननशर्ात अनेक कानून
3. दोनों सदनों के ननयर्
4. संसदीय पिं पिा औि
5. न्यानयक व्याख्या।
संसद की संप्रभुता
• संप्रभुता का तात्पया िाज्य की सिोच्च शन्क्त से है। इसके प्रभाि एिं न्याय क्षेत्र पि क्रकसी प्रकाि के प्रनतबं ध का
ना होना है। संसद की संप्रभुता का शसद्धांत त्रिदर्टश संसद से संबंधधत है जहां पि सिोच्च शन्क्त संसद र्ें ननदहत
है।
• भाितीय संसद को संप्रभु इकाई नहीं कहा जा सकता है क्योंक्रक इसके प्रभाि ि न्याय क्षेत्र पि विधधक प्रनतबं ध
आिोवपत हैं।
• भाितीय संसद की संप्रभुता को सीशर्त किने िाले कािक ननम्नशलखखत हैं:
1. संविधान की शलखखत प्रकृनत
2. सिकाि की संघीय व्यिस्था
• भाित के संविधान र्ें ऐसी सशर्नतयों का अलग-अलग स्थानों एिं संदभों र्ें उल्लेख आता है , लेक्रकन इन
सशर्नतयों के गठन, कायाकाल तथा कायों आदद के संबंध र्ें कोई प्रािधान नहीं शर्लता| इन सभी र्ार्लों के बािे
र्ें संसद के दोनों सदनों के ननयर्न ही प्रभािी होते हैं ।
• संसदीय समर्नत िह समर्नत है जो सदन द्िािा ननयुक्त अथिा ननिााधचत होती है अथिा न्जसे लोकसभा अध्यक्ष
/सभापनत नाशर्त किते हैं, लोकसभा अध्यक्ष/सभापनत के ननदे शानुसाि काया किती है, अपनी रिपोर्टा (अपना
प्रनतिेदन) सदन को अथिा लोकसभा अध्यक्ष/सभापनत को सौंपती है, न्जसका एक सधचिालय होता है तथा
न्जसकी व्यिस्था लोकसभा/िाज्यसभा किता है ।
र्ानदं ड प्राक्कलन समर्नत लोक लेखा समर्नत सािाजननक उपक्रर्ों पर विभागीय स्थायी समर्नत
समर्नत (24 समर्नतयााँ)
व्युत्पवत्त 1950- जॉन र्थाई इस सशर्नत का गठन कृष्ट्ण र्ेनन सशर्नत लोकसभा के ननयर्
की शसफारिश पि भाित सिकाि की शसफारिश पि 1964 सशर्नत की अनुशंसाओं पि
अधधननयर्, 1919 के र्ें गदठत क्रकया गया| 1993 र्ें गदठत क्रकया
अंतगात प्रथर् बाि गया|
1921 र्ें हुआ औि
तब से यह अन्स्तत्ि
र्ें है|
सभी 30 सदस्य ितार्ान र्ें 22 -लोक लेखा सशर्नत के प्रत्येक सशर्नत र्ें 31
लोक सभा से सदस्य (15 सर्ान सदस्य (लोक सभा से 21
(सबसे बड़ी सशर्नत) लोकसभा + 7 िाज्य सभा से 10) होते हैं|
िाज्यसभा)
र्ंत्रत्रयों को सदस्य संबंधधत पीठासीन
-र्ंत्री सदस्य नहीं हो
के रूप र्ें ननयुक्त -सदस्यों का कायाकाल अधधकारियों द्िािा नाशर्त।
सकते
नहीं क्रकया जा एक िषा का होता है
गठन
सकता |
–सर्ानुपानतक
गठन के सर्य से लेकि
प्रनतननधधत्ि के
सशर्नत का कायाकाल एक
शसद्धांत के अनुसाि
िषा का होता है|
एकल हस्तांतिणीय
र्त के र्ाध्यर् से
चुनाि
अध्यक्ष - विपक्षी दल
से
कैब्रबनेट समर्नतयां:
• ये सशर्नतयां गैि -संिैधाननक अथिा संविधानेत्ति है ।
• भाित र्ेंकायापाशलका भाित सिकाि(रांजैक्शन ऑफ त्रबजनेस ) ननयर्ािली 1961 के तहत काया किती है।
• ये ननयर् संविधान के अनुच्छे द 77 (3) से व्यूतपन्न होते हैं , न्जसर्ें कहा गया है: "िाष्ट्रपनत भाित सिकाि के
कार्काज को अधधक सुविधाजनक बनाने के शलए औि उक्त कार्काज को र्ंत्रत्रयों के बीच आिंर्टन से सं बंधधत
ननयर् बनाएंगे।
• दो प्रकाि की सशर्नतयां हैं : स्थायी औि तदथा सशर्नतयां।
1. स्थायी→स्थायी सशर्नतयां
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116
“UDAAN” - Quick and Comprehensive Revision Series POLITY
2. तदभा सशर्नतयां →विशेषप्रयोजनों के शलए अस्थायी रूप से गदठत की जाती हैं।
• प्रधानर्ंत्री द्िािा गदठत + सदस्य संख्या 3 से 8 तक हो सकती है + प्रभािी र्ंत्री भी सन्म्र्शलत + िरिष्ट्ठ
र्ंत्री शाशर्ल होते हैं + र्ंत्रत्रर्ंडल के विचाि के शलए प्रस्ताि का ननर्ााण + कैत्रबनेर्ट के कायाभािर्ें कर्ी किना।
• िाजनीनतक र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत (न्जसे सुपि कैत्रबनेर्ट कहा जाता है): विदे शी औि घिे लू र्ार्लों से
संबंधधत सभी नीनतगत र्ार्लों की ननगिानी किती है → प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें |
• आधथाक र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत: आधथा क क्षेत्र की सिकािी गनतविधधयों को ननदे शशत किती हैं तथा उनर्ें
सर्न्िय भी स्थावपत किती है → प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• र्ंत्रत्रर्ंडलीय ननयुन्क्त सशर्नत: केंद्रीय सधचिालय, लोक उद्यर्ों, बैंकों औि वित्तीय संस्थानों र्ें सभी उच्च पदों
पि ननयुन्क्तयों के संबंध र्ें ननणाय लेती हैं →प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• सुिक्षा के शलए र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत →प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• संसदीय र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत: संसद र्ें सिकािी कार्काज की प्रगनत को दे खती है → गह
ृ र्ंत्री की
अध्यक्षता र्ें |
• आिास ( accommodation )के शलए र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत |
• ननिेश औि विकास पि कैत्रबनेर्ट सशर्नत→प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें|
• िोजगाि औि कौशल विकास पि कैत्रबनेर्ट सशर्नत→ प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें|
भाित के मुख्य िररष्ठतर् न्यायाधीश को बतौर र्ुख्य न्यायाधीश ननयुक्त ककया जाता था।(1950-
न्यायाधीश की ननयुक्तत 1973) → बाद र्ें इस व्यिस्था को खत्र् कि ददया गया → दूसिे न्यायािीश मामले
(1993): इसर्ें उच्चतर् न्यायालय ने यह व्यिस्था दी कक उच्चतर् न्यायालय के
िररष्ठत्तर् न्यायाधीश को ही भारत का र्ुख्य न्यायाधीश ननयुक्त ककया जाना चादहए।
• जब क्रकसी सत्र को पूिा किने के शलए कोिर् पूिा किने र्ें स्थाई न्यायाधीशों की
तदथज न्यायाधीश : संख्या कर् हो िही हो, → भाित का र्ुख्य न्यायाधीश क्रकसी उच्च न्यायालय के
क्रकसी न्यायाधीश को अस्थाई काल के शलए उच्चतर् न्यायालय र्ें तदथा न्यायाधीश
ननयुक्त कि सकता है (ऐसा िह सीं बींधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायािीश के
परामशम एिीं राष्ट्रपतत की पूिम मींिूर के बाद ह कर सकता है।)
• तदथा न्यायाधीश = उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश के न्यायक्षेत्र शन्क्तयां औि
विशेषाधधकाि।
सेिाननिृत्त न्यायाधीश: • क्रकसी भी सर्य भाित का र्ुख्य न्यायाधीश उच्चतर् न्यायालय या उच्च न्यायालय
के सेिाननित्त
ृ न्यायाधीश से अल्पकाल के शलए उच्चतर् न्यायालय र्ें काया किने
का अनुिोध कि सकता है।
संिैधाननक र्ार्ले : उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ, अगि र्ार्ले र्ें विधध का
पूिक प्रश्न ननदहत है न्जसर्ें संविधान की व्याख्या की जरूित हो।
• उसे भारत का नागररक होना चादहए + उसे भारत के न्यानयक काया र्ें 10 िषा का अनुभि
उच्च न्यायालय • राष्रपनत के द्िािा ननम्न परिन्स्थनतयों र्ें योग्य व्यन्क्तयों को उच्च न्यायालय के
के अनतरितत औि अनतरिक्त न्यायाधीशों के रूप र्ें अस्थाई रूप से ननयुक्त क्रकया जा सकता है, न्जसकी
कायजकाि अिधध दो िषज से अधधक की नहीं होगी : अस्थाई रूप से उच्च न्यायालय के कार्काज बढ
न्यायाधीश जाने पि + उच्च न्यायालय र्ें बकाया काया अधधक हो जाने पि|
(अनुच्छे द 224):
प्रािं शभक क्षेत्राधिकार : अधधकाररकता का र्ार्ला तथा न्यायालय की अिर्ानना + संसद सदस्यों औि िाज्य
(उच्चतर् न्यायालय विधान मंडल सदस्यों के ननिाजचन सं बंधी – वििाद + राजस्ि र्ार्ले + नागररकों के र्ूल
से कम) अधधकारों का प्रितान + संविधान की व्याख्या के संबं ध र्ें अधीनस्थ न्यायालय से
स्थानांतररत र्ार्लों र्ें।
• “न्यानयक सर्ीक्षा” पदांश का प्रयोग संविधान र्ें कहीं भी नहीं क्रकया गया है।
संिैधाननक प्रािधान → अनुच्छे द 13, 32, 131-136, 143, 226, 246, 256 आदद।
• संिैधाननक िैधता के र्ार्ले र्ें विधायी अधधननयर्नों अथिा कायापाशलका के आदे शों को
न्यानयक चुनौती दी जा सकती है।
सर्ीक्षा : • िाज्य विधानर्ंडल ि केंद्र सिकाि दोनों के अधधननयर्नों औि कायाकािी आदे शों की
संिैधाननकता के पिीक्षण के शलए ननम्न आिारों पर चुनौती द िा सकती है :
• र्ौशलक अधधकािों का हनन
• न्जस प्राधधकिण द्िािा यह तैयाि क्रकया गया है, यह उसके काया क्षेत्र से बाहि है
• संिैधाननक उपबंधों के विरुद्ध हो
दो या अधधक राज्यों और/या केंद्र शामसत प्रदे शों र्ें न्यायिेत्र िाले उच्च न्यायालय :
STUDENT NOTES:
जजला न्यायाधीश की िाज्यपाल द्िािा िाज्य के उच्च न्यायालय के पिार्शा से ननयुक्त क्रकया जाता है।
ननयुजक्त
योग्यताएं:
अन्य ननयुजक्तयां (जजला राज्य लोक सेिा आयोग और उच्च न्यायालय के परार्शा के बाद राज्यपाल द्िारा
न्यायाधीश के अनतररक्त) ननयुक्त ककया जाता है।
जजला न्यायाधीश न्जला न्यायाधीश के अंतगात: नगि दीिानी न्यायाधीश + अपि न्जला न्यायाधीश +
संयक्
ु त न्जला न्यायाधीश + सहायक न्जला न्यायाधीश + लघु न्यायालय का र्ुख्य
न्यायाधीश + र्ुख्य प्रेशसडेंसी र्न्जस्रे र्ट + अनतरिक्त र्ुख्य प्रेशसडेंसी र्न्जस्रे र्ट + सत्र
न्यायाधीश + अनतरिक्त सत्र न्यायाधीश + सहायक सत्र न्यायाधीश आते हैं।
न्यानयक सेिाएं न्यानयक सेिा र्ें िे अधधकािी आते हैं जो न्जला न्यायाधीश एिं उससे नीचे के
न्यानयक पदों से संबन्न्धत होते हैं।
लोक अदालत:
• पूिा र्ुकदर्ेबाजी के चिण + गांधीिादी शसद्धांतों पि आधारित + ए.डी.आि. (िैकन्ल्पक वििाद ननिािण) के घर्टक
र्ें से एक + अनौपचारिक, सस्ता, शीघ्र + प्रथर् लोक अदालत - 1982 र्ें गुजिात र्ें स्थावपत क्रकया गया।
िैधाननक सेिाएं प्राधधकरण अधधननयर्, 1987 के अनुसार : िाज्य िै धाननक सेिा प्राधधकिण या न्जला िैधाननक सेिा
प्राधधकिण या सिोच्च न्यायालय िैधाननक सेिा सशर्नत या उच्च न्यायालय िैधाननक सेिा सशर्नत या तालुक कानूनी
सेिाएं लोक अदालत का आयोजन कि सकती हैं।
• प्रत्येक अदालत र्ें ऐसी कई सेिाित या से िाननिृत्त न्यानयक अधधकािी औि क्षेत्र के अन्य व्यन्क्त होते हैं जो
ननकाय द्िािा ननददाष्ट्र्ट क्रकए जा सकते हैं।
• लोक अदालत के पास यह अधधकाि होगा की िह ननम्नशलखखत वििादों र्ें दोनों पक्षों के बीच सर्झौता किाने का
ननश्चय किें :
• कोई भी र्ार्ला जो क्रकसी न्यायालय र्ें लंत्रबत हो , या
• कोई भी र्ार्ला जो क्रकसी भी न्यायालय के अधधकाि क्षेत्र र्ें आता हो लोक अदालत के सर्क्ष नहीं लाया
जाएगा।
• गैि-सर्ाधेय अपिाधों के शलए कोई अधधकाि क्षेत्र नहीं प्राप्त है।
• सर्ान शन्क्त,जैसा क्रक शसविल कोर्टा औि आपिाधधक अदालत र्ें शसविल प्रक्रिया औि आपिाधधक प्रक्रिया के तहत
ननदहत होती है।
• लोक अदालत का फैसला = दीिानी न्यायालय का फिर्ान/क्रकसी न्यायालय का आदे श
• इसका ननणाय गैि-अपीलीय होता है।
पररिार न्यायालय
• परििाि न्यायालय अधधननयर् 1984 → वििाह औि पारििारिक र्ुद्दों से संबंधधत िादों र्ें र्ध्यस्थता एिं त्िरित
सर्ाधान सुननन्श्चत किने के शलए स्थावपत क्रकया गया।
• विशेषतायें:
o यह िाज्य सिकािों द्िािा उच्च न्यायालय की सहर्नत से परििाि न्यायालय की स्थापना का प्रािधान किता
है।
o यह राज्य सरकारों के मलए एक लाख से अधधक जनसंख्या िाले प्रत्येक नगर र्ें एक पररिार न्यायालय की
स्थापना को बाध्यकारी बनाता है।
o यह िाज्य सिकािों को अन्य क्षेत्रों र्ें भी परििाि न्यायालय स्थावपत किने र्ें सर्था बनाता है।
o विशशष्ट्र्ट अधधकाि क्षेत्र: वििाह सं बंधी िाहत + पनत / पत्नी की सं पवत्त + एक व्यन्क्त की िै धता की घोषणा +
क्रकसी व्यन्क्त का अशभभािक या क्रकसी भी नाबाशलग का संिक्षक + पत्नी, बच्चों औि र्ाता-वपता का गुजािा-
भत्ता।
o पारििारिक न्यायालय के शलए यह अननिाया है क्रक िह प्रथर् तक क्रकसी पारििारिक वििाद र्ें संबंधधत पक्षों के
बीच र्ेल-शर्लाप या सर्झौते का प्रयास किें ।
o विधध विशेषज्ञ द्िािा प्रनतननधधत्ि किने का कोई अधधकाि नहीं होगा।
o यह केिल एक अपील का अधधकाि दे ता है जो उच्च न्यायालय र्ें ही की जा सकती है।
• लोक सेिा र्ार्लों के मलए न्यायाधधकरणों की स्थापना। • कुछ अन्य र्ार्लों के शलए न्यायाधधकिणों की स्थापना
• केिल संसद द्िारा ही स्थावपत ककया जा सकता है और जैसे किाधान, भूशर् सु धाि, आदद क्रकया जाता है।
राज्य विधानसभाओं द्िारा नहीं। • संसद औि िाज्य विधानसभाओं द्िािा उनकी विधायी
• केंद्र के मलए केिल एक अधधकरण और प्रत्येक राज्य या क्षर्ता के भीति आने िाले र्ार्लों के संबंध र्ें दोनों को
दो या दो से अधधक राज्यों के मलए एक अधधकरण की स्थावपत क्रकया जा सकता है।
स्थापना की जा सकती है। • अधधकरणों का पदानुक्रर् बनाया जा सकता है।
• अधधकरणों के पदानुक्रर् का कोई प्रश्न नहीं उठता है।
अनुच्छे द 323A के अनुसाि, संसद ने प्रशासननक न्यायाधधकिण अधधननयर्, 1985 पारित क्रकया है, जो केंद्र सिकाि
को एक कैर्ट(CAT) औि सैर्ट(SAT) स्थावपत किने के शलए अधधकृत किता है।
• अनुच्छे द323A- शसविल न्यायालयों औि उच्च न्यायालय से से िा र्ार्लों से सं बंधधत वििादों को सुल झाने के शलए
संसद को शन्क्त प्रदान किता है औि इसे प्रशासननक अधधकिणों के सर्क्ष िखता है।
• चंद्र कुर्ार र्ार्ले र्ें उच्चतर् न्यायालय ने उन 2 अनुच्छे दों के उपबंधो को जजन्हें असंिैधाननक करार ददया गया
उन्हें उच्च न्यायालय और उच्चतर् न्यायालय के न्यायिेत्र से बाहर कर ददया गया है| हालांकक अब इन अधधकारों
के आदे शों के णखलाफ न्यानयक उपचार की व्यिस्था उपलब्ध है ।
• इसर्ें यह भी ननधाारित क्रकया गया है क्रक CAT के आदे शों के विरुद्ध संबंधधत उच्च न्यायालय की खंड पीठ र्ें
भी याधचका दायि की जाएगी।
विधानसभा का गठन
• विधानसभा के प्रनतननधधयों को प्रत्यक्ष र्तदान से ियस्क र्ताधधकाि के द्िािा ननिााधचत
क्रकया जाता है।
• इसकी अधधकतर् संख्या 500 औि ननम्नतर् संख्या 60 तय की गई है।
• अरुणाचल प्रदे श, शसन्क्कर् एिं गोिा के र्ार्ले र्ें यह संख्या 30 तय की गई है।
• शर्जोिर्- 40 ि नागालैंड-46
संख्या
• शसन्क्कर् औि नागालैंड के कुछ सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से भी चुने जाते हैं।
• Note: सभी िाज्यों के विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, शसन्क्कर् औि
नागालैंड को छोड़ कि।
नाशर्त सदस्य • संविधान के अनुच्छे द 334 के तहत िाज्यपाल आंग्ल भाितीय सर्ुदाय र्ें से एक सदस्य को
नाशर्त कि सकता है। 104िें संविधान संशोधन (2019) ने एंग्लो-इंडडयंस को ददए गए इस
आिक्षण को सर्ाप्त कि ददया।
प्रत्येक • प्रत्येक िाज्य के विधानसभा क्षेत्रों के दहसाब से सीर्टों का ननधाािण औि हि िाज्य का ननिााचन
जनगणना के क्षेत्रों के दहसाब से विभाजन होता है।
बाद पुनननाधाािण • संसद को अधधकाि है क्रक िह संबंध धत र्ार्ले का ननधाािण किें ।
• सार्ान्य कायाकाल 5 िषा का है क्रकं तु संविधान के अनुच्छे द 352 के तहत संसद द्िािा
आपातकालीन न्स्थनत र्ें इसका कायाकाल बढाया जा सकता है।
कायाकाल
• िाज्य के िाज्यपाल इसे क्रकसी भी सर्य भंग कि सकते हैं।
कायाकाल • विधानपरिषद एक सतत ् सदन है अथाात स्थाई अंग जो विघदर्टत नहीं होता है।
• लेक्रकन इसके एक नतहाई सदस्य प्रत्येक दूसिे िषा र्ें सेिाननिृत्त होते िहते हैं।
• सेिाननिृत्त सदस्य भी पुनचुानाि औि िाज्यपाल द्िािा दोबािा नार्ांकन हेतु योग्य होते हैं।
विधानर्ंडल का सदस्य चुने जाने के शलए संविधान र्ें उन्ल्लखखत क्रकसी व्यन्क्त की अहाताएं
ननम्नशलखखत हैं:
• विधान परिषद र्ें ननिााधचत होने िाला व्यन्क्त विधानसभा का ननिााचन होने की अहाता
िखता हो औि उसर्ें िाज्यपाल द्िािा नाशर्त होने के शलए संबंधधत िाज्य का ननिासी होना
चादहए।
• विधानसभा सदस्य बनने िाला व्यन्क्त संबंधधत िाज्य के ननिााचन क्षेत्र र्ें र्तदाता भी होना
चादहए।
• अनुसूधचत जानत /जनजानत का सदस्य होना चादहए यदद िह अनुसूधचत जानत /जनजानत की
सीर्ट के शलए चुनाि लड़ता है। यद्यवप अनुसूधचत जानत या जनजानत का सदस्य उस सीर्ट के
शलए भी चुनाि लड़ सकता है जो उसके शलए आिक्षक्षत न हो।
संविधान के अनुसार:
Note:उपिोक्त ननिहाताओं के संबं ध र्ें क्रकसी सदस्य के प्रनत यदद प्रश्न उठे तो िाज्यपाल का
ननणाय अंनतर् होगा। हालांक्रक इस र्ार्ले र्ें िह चुनाि आयोग की सलाह लेकि कार् किता है।
शपथ या प्रनतज्ञान 3. विधानर्ंडल के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य सदन र्ें सीर्ट ग्रहण किने से पहले
िाज्यपाल या उसके द्िािा इस काया के शलए ननयुक्त व्यन्क्त के सर्क्ष शपथ या प्रनतज्ञान
लेगा।
4. त्रबना शपथ शलए कोई भी सदस्य सदन र्ें न तो र्त दे सकता है औि न ही कायािाही र्ें
भाग ले सकता है।
o दोहरी सदस्यता: एक व्यन्क्त एक सर्य र्ें विधानर्ंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो
सकता यदद कोई व्यन्क्त दोनों सदनों के शलए ननिााधचत होता है तो िाज्य विधानर्ंडल द्िािा
ननशर्ात विधध के उपबधों के तहत एक सदन से उसकी सीर्ट रिक्त हो जाएगी।
o ननरहाता जन प्रनतननधधत्ि अधधननयर्, 1951 के तहत या संविधान के तहत या संविधान की
दसिीं अनुसूची के तहत।
स्थानों का ररक्त
o त्यागपत्र कोई सदस्य अपना शलखखत इस्तीफा विधान परिषद के र्ार्ले र्ें सभापनत औि
होना
विधानसभा के र्ार्ले र्ें अध्यक्ष को दे सकता है। त्यागपत्र स्िीकाि होने पि उसका पद
रिक्त हो जाएगा।
o अनुपजस्थनत यदद कोई सदस्य त्रबना पूिा अनुर्नत के 60 ददन तक बैठकों से अनुपन्स्थत
िहता है तो सदन उसके पद को रिक्त घोवषत कि सकता है।
o अन्य र्ार्ले: क्रकसी सदस्य का पद रिक्त हो सकता है; यदद न्यायालय द्िािा उसके
ननिााचन को अर्ान्य ठहिा ददया जाए, यदद उसे सदन से ननष्ट्काशसत कि ददया जाए, यदद
िह िाष्ट्रपनत या उपिाष्ट्रपनत के पद पि ननिााधचत हो जाए औि यदद िह क्रकसी िाज्य का
िाज्यपाल ननिााधचत हो जाए।
o कायािाही एिं अन्य कायों को सुननजश्चत करने के मलए िह व्यिस्था एिं मशष्टाचार बनाए
रखता है।
o भारत के संविधान का, सभा के ननयर्ों एिं काया सं चालन की कायािाही र्ें , असेंबली र्ें
अध्यि के काया इसकी पूिा परं पराओं का , और उसके उपबंधों का अंनतर् व्याख्याकताा है।
एिं शजक्तयां o कोरर् की अनुपजस्थनत र्ें िह विधानसभा की बैठक को स्थधगत या ननलंब्रबत कर सकता
है।
o प्रथर् र्ार्ले र्ें िह र्त नहीं दे ता लेककन बराबर र्त होने की जस्थनत र्ें िह ननणाायक
र्त दे सकता है।
o सदन के नेता के आग्रह पर िह गुप्त बैठक को अनुर्नत प्रदान कर सकता है।
o िह इस बात का ननणाय करता है कक कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं। इस प्रश्न
पर उसका ननणाय अंनतर् होता है।
o दसिीं अनुसूची के उपबंधों के आधार पर ककसी सदस्य की ननरहाता को लेकर उठे ककसी
वििाद पर फैसला दे ता है।
o िह विधानसभा की सभी समर्नतयों के अध्यि की ननयुजक्त करता है और उनके कायों का
पयािेिण करता है िह स्ियं कायार्ंत्रणा समर्नत, ननयर् समर्नत एिं सार्ान्य उद्दे श्य
समर्नत का अध्यि होता है।
उपाध्यि o उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपन्स्थनत र्ें उसके सभी कायों को किता है यदद विधानसभा सत्र
के दौिान अध्यक्ष अनुपन्स्थत हो तो िह उसी तिह काया किता है। दोनों र्ार्लों र्ें उसकी
शन्क्तयां अध्यक्ष के सर्ान िहती हैं।
o विधानसभा अध्यक्ष सदस्यों के बीच से सभापनत पैनल का गठन किता है, उनर्ें से कोई
सभापनत का पैनल: भी एक अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष की अनुपन्स्थनत र्ें सभा की कायािाही संपन्न किाता है।
जब िह पीठासीन होता है तो, उस सर्य उसे अध्यक्ष के सर्ान अधधकाि प्राप्त होते हैं।
िह सभापनत के नए पैनल के गठन तक कायाित िहता है।
o Note:यदद अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष दोनों की सीर्टें खाली हैं तो पैनल के सदस्य बैठक की
अध्यक्षता नहीं कि सकते। उस न्स्थनत र्ें सदन को अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष का ननिााचन
किना आिश्यक होगा।
विधानसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष तथा विधानपरिषद के सभापनत एिं उपसभापनत के िेतन औि भत्ते िाज्य
विधानर्ंडल द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं। इन्हें िाज्य की संधचत ननधध पि भारित क्रकया जाता है औि इसशलए इन
पि िाज्य विधानर्ंडल द्िािा िावषाक र्तदान नहीं क्रकया जा सकता।
विधानसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद के सभापनत एिं उपसभापनत के िेतन-भत्ते िाज्य विधान
र्ंडल द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं। इन्हें िाज्य की संधचत ननधध पि भारित क्रकया जाता है औि इसशलए इन पि
िाज्य विधानर्ंडल द्िािा िावषाक र्तदान नहीं क्रकया जा सकता।
आहूत करना • िाज्य विधानर्ंडल के प्रत्येक सदन को िाज्यपाल बैठक का बुलािा भेजता है।
• दोनों सत्रों के बीच 6 र्ाह से अधधक का सर्य नहीं होना चादहए।
स्थगन • बैठक को क्रकसी सर्य विशेष के शलए स्थधगत भी क्रकया जा सकता है। यह सर्य घंर्टों, ददनों
या हफ्टतों का भी हो सकता है।
• अननन्श्चत काल तक स्थगन का अथा है क्रक चालू सत्र को अननन्श्चत काल तक के शलए
सर्ाप्त कि दे ना।
• उपिोक्त दोनों तिह के स्थगन का अधधकाि सदन के पीठासीन अधधकािी को है।
सत्रािसान • पीठासीन अधधकािी अध्यक्ष या सभापनत काया संपन्न होने पि सत्र के अननन्श्चत काल के
शलए स्थगन की घोषणा किते हैं। इसके कुछ ददन बाद अध्यक्ष या सभापनत सत्रािसान की
अधधसूचना जािी किता है। हालांक्रक सत्र के बीच र्ें भी िाज्यपाल सत्रािसान की घोषणा कि
सकता है। स्थगन के विपिीत सत्रािसान सदन के सत्र को सर्ाप्त किता है।
विघटन • एक स्थायी सदन होने के कािण विधान परिषद कभी विघदर्टत नहीं हो सकती।
1. साधारण विधेयक:
धन विधेयक के सं बंध र्ें: • धन विधेयक विधान परिषद र्ें पेश नहीं क्रकया जा सकता।
• केिल िाज्यपाल की शसफारिश के बाद ही विधानसभा र्ें लाया जा सकता है।
• इस तिह का कोई भी विधेयक सिकािी विधेयक होता है औि शसफा एक र्ंत्री द्िािा
ही लाया क्रकया जा सकता है।
• विधानसभा द्िािा पारित होने के बाद एक धन विधेयक को विधान परिषद को
विचािाथा के शलए भेजा जाता है।
• विधान परिषद के पास धन विधेयक के संबं ध र्ें प्रनतबंधधत शन्क्तयां हैं ।
• िह न तो इसे अस्िीकाि कि सकती है औि न ही इसर्ें संशोधन कि सकती है।
प्रकक्रया: • विधान परिषद केिल शसफारिश कि सकती है औि 14 ददनों र्ें विधेयक को लौर्टाना
भी होता है।
• यदद विधानसभा क्रकसी शसफारिश को र्ान लेती है तो विधेयक पारित र्ान शलया
जाता है। यदद िह कोई शसफारिश नहीं र्ानती है तब भी इसे र्ू ल रूप र्ें दोनों
सदनों द्िािा पारित र्ान शलया जाता है । यदद विधान परिषद 14 ददनों के भीति
विधानसभा को विधेयक ना लौर्टाए तो इसे दोनों सदनों द्िािा पारित र्ान शलया
जाता है।
राज्यपाल की स्िीकृनत अंततः जब एक धन विधेयक िाज्यपाल के सर्क्ष पेश क्रकया जाता है तब िह इस पि
अपनी स्िीकृनत दे सकता है, इसे िोक सकता है या िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए
सुिक्षक्षत िख सकता है लेक्रकन िाज्य विधानर्ंडल के पास पुनविा चाि के शलए नहीं भेज
सकता।
• साधािण विधेयकों को पेश किना औि पारित किना। यद्यवप दोनों सदनों के बीच
असहर्नत की न्स्थनत र्ें विधानसभा ज्यादा प्रभािी होती है ।
विधानसभा से • िाज्यपाल द्िािा जािी अध्यादे श को स्िीकृनत (अनुच्छे द 213) दे ना।
सर्ानता • र्ुख्यर्ंत्री सदहत र्ंत्रत्रयों का चयन: संविधान के अंतगात र्ुख्यर्ंत्री सदहत अन्य सभी
र्ंत्रत्रयों को विधानर्ंडल के क्रकसी एक सदन का सदस्य होना चादहए। तथावप अपनी
सदस्यता के बािजूद िह केिल विधानसभा के प्रनत उत्तिदायी होते हैं।
• संिैधाननक ननकायों- जैसे िाज्य वित्त आयोग, िाज्य लोक सेिा आयोग एिं भाित के
ननयंत्रक एिं र्हालेखा पिीक्षक की रिपोर्टों पि विचाि किना।
• िाज्य लोक सेिा आयोग के न्याय क्षेत्र र्ें िृद्धध।
• वित्त विधेयक शसफा विधानसभा र्ें पेश क्रकया जा सकता है, विधान परिषद वित्त
विधानसभा से विधेयक र्ें न संशोधन औि न ही इसे अस्िीकृत कि सकती है।
असर्ानता • कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं , यह तय किने का अधधकाि विधानसभा के
अध्यक्ष को है।
• एक साधािण विधेयक को पास किने का अंनतर् अधधकाि विधानसभा को ही है कुछ
र्ार्लों र्ें परिषद इसे अधधकतर् 4 र्ाह के शलए िोक सकती है पहली बाि र्ें
विधेयक को 3 र्ाह औि दूसिी बाि र्ें 1 र्ाह के शलए िोका जा सकता है।
• विधान परिषद बजर्ट पि शसफा बहस कि सकती है लेक्रकन अनुदान की र्ांग पि
र्तदान नहीं कि सकती, (यह विधानसभा का विशेष अधधकाि है)।
• विधान परिषद अविश्िास प्रस्ताि पारित कि र्ंत्री परिषद को नहीं हर्टा सकती।
• जब एक साधािण विधेयक विधान परिषद से आया हो औि विधानसभा र्ें भे जा गया
हो, यदद सभा अस्िीकृत कि दे तो विधेयक खत्र् हो जाता है।
• विधान परिषद के सदस्य भाित के िाष्ट्रपनत औि िाज्यसभा र्ें िाज्य के प्रनतननधधयों
के चुनाि र्ें भाग नहीं ले सकती।
• संविधान संशोधन विधेयक र्ें विधान परिषद प्रभािी रूप र्ें कुछ नहीं कि सकती। इस
र्ार्ले र्ें भी विधानसभा ही अशभभािी िहती है।
• अंततः विधान परिषद का अन्स्तत्ि ही विधानसभा पि ननभाि किता है। विधानसभा की
शसफारिश के बाद संसद विधान परिषद को सर्ाप्त कि सकती है ।
NOTE: यहां यह स्पष्ट्र्ट किना आिश्यक है क्रक िाज्य विधान र्ंडल के विशे षाधधकाि िाज्यपाल को प्राप्त नहीं होते हैं ,
जो क्रक िाज्य विधानर्ंडल,का अशभन्न अं ग है।
• उन्हें सदन चलने के 40 ददन पहले औि 40 ददन बाद तक धगिफ्टताि नहीं क्रकया जा
सकता। यह छूर्ट केिल शसविल र्ार्ले र्ें है औि आपिाधधक या प्रनतबंधधत ननषेध र्ार्लों
व्यजक्तगत
र्ें नहीं है।
विशेषाधधकार
• िाज्य विधान र्ंडल र्ें उन्हें बोलने की स्ितंत्रता है । उसके द्िािा क्रकसी कायािाही या
सशर्नत र्ें ददए गए र्त या विचाि को क्रकसी अदालत र्ें चुनौती नहीं दी जा सकती। यह
स्ितंत्रता संविधान के उपबंधों औि िाज्य विधानर्ंडल की प्रक्रिया का विननयर्न किने के
शलए ननयर्ों औि अस्थाई आदे शों के अनुरूप है।
• िे न्यानयक सेिाओं से र्ुक्त होते हैं, जब सदन चल िहा हो, िे साक्ष्य दे ने या क्रकसी
र्ार्ले र्ें बतौि गिाह उपन्स्थत होने से इंकाि कि सकते हैं।
• संिैधाननक न्स्थनत: 73 िां औि 74 िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 1992 द्िािा इसे संविधान र्ें शाशर्ल क्रकया
गया था।
• स्थानीय स्िशासन, सातिीं अनुसूची के तहत िाज्य सूची का विषय है।
• अनुच्छे द 40 –“िाज्य ग्रार् पंचायतों का संगठन किने के शलए कदर् उठाएगा औि उनको ऐसी शन्क्तयां औि
प्राधधकाि प्रदान किे गा जो उन्हें स्िायत्त शासन की इकाइयों के रूप र्ें काया किने योग्य बनाने के शलए आिश्यक
हों|”
• राजस्थान पंचायती िाज प्रणाली की स्थापना किने िाला पहला िाज्य था। इस योजना का उद्घार्टन 2 अक्र्टू बि,
1959 को तत्कालीन प्रधानर्ंत्री जिाहिलाल नेहरू ने नागौि न्जले र्ें क्रकया था।
• शहिी स्थानीय शासन की दे खिे ख : - आिास औि शहिी गिीबी उपशर्न र्ंत्रालय + िक्षा र्ंत्रालय + गह
ृ
र्ंत्रालय।
1985 जी.िी.के.राि समर्नत: ग्रार्ीण • न्जला परिषद की र्हत्िपूणा भूशर्का होनी चादहए।
विकास एिं ननधानता उन्र्ूलन • न्जला औि स्थानीय स्ति पि पंचायती िाज संस्थाओं को विकास कायों
कायािर्ों की सर्ीक्षा किना। के ननयोजन क्रियान्ियन एिं ननगिानी र्ें र्हत्िपूणा भूशर्का प्रदान की
जानी चादहए|
• ृ न, इसे न्जला परिषद के र्ुख्य
न्जला विकास आयुक्त के पद का सज
कायाकािी अधधकािी के रूप र्ें काया किना चादहए|
1687 भाित का पहला नगि ननगर् र्द्रास र्ें स्थावपत हुआ था।
1919 भाित सिकाि अधधननयर्, 1919 के द्िािा, स्थानीय स्िशासन को एक हस्तांतरित विषय बना ददया
गया।
कोई भी व्यन्क्त पंचायत का सदस्य नहीं बन पाएगा यदद िह ननम्न प्रकाि से अनहात होगा
:
अनहाताएं: 1. िाज्य विधानर्ंडल के शलए ननिााधचत होने के उद्दे श्य से संबंधधत िाज्य र्ें उस सर्य
प्रभािी कानून के अंतगात, अथिा
2. िाज्य विधानर्ंडल द्िािा बनाए गए क्रकसी भी कानून के अंतगात
3. लेक्रकन क्रकसी भी व्यन्क्त इस आधाि पि अयोग्य घोवषत नहीं क्रकया जाएगा क्रक िे
25 िषा से कर् आयु का है, यदद िह 21 िषा की आयु पूिा कि चुका है।
राज्य चुनाि आयोग • पंचायत स्ति के सभी चुनािों का संचालन िाज्य ननिााचन आयोग किता है।
(अनुच्छे द -243 K): • िाज्य ननिााचन आयुक्त की सेिा शतें औि पदािधध भी िाज्यपाल द्िािा ननधाारित की
जाएंगी।
• िाज्य चुनाि आयुक्त की ननयुन्क्त के बाद उसकी सेिा शतों र्ें ऐसा कोई परिितान नहीं
क्रकया जाएगा न्जससे उसका नुकसान हो|
शजक्तयां, काया और • ग्यारहिीं अनुसूची र्ें शामर्ल 29 र्ार्लों को पंचायतों को हस्तांतररत ककया जा सकता
वित्त संबंधधत र्ार्लों है।
का राज्य द्िारा • आधथाक विकास औि सार्ान्जक न्याय के शलए योजनाओं की तैयािी औि कायाान्ियन
ननधाारण किना।
• वित्त: िाज्य विधानर्ंडल पंचायतों को उपयुक्त कि लगाने के शलए अधधकृत कि सकती
है, िाज्य सिकाि द्िािा आिोवपत औि संग्रदहत कि पंचायतों को सौंप सकती है तथा
िाज्य की सर्ेक्रकत ननधध से पंचायतों को अनुदान सहायता दे सकती है।
• राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 िषा के पश्चात पंचायतों की वित्तीय जस्थनत की सर्ीिा
राज्य वित्त आयोग के मलए वित्त आयोग का गठन करता है।
• संिचना + योग्यता: िाज्य विधानयका द्िािा ननधाारित क्रकया जाता है।
• केंद्रीय वित्त आयोग भी िाज्य र्ें पंचायतों के पूिक स्रोतों र्ें िद्
ृ धध के शलए िाज्य की
सर्ेक्रकत ननधध र्ें आिश्यक उपायों के बािे र्ें सलाह दे गा |
• पांचिीं अनुसूची र्ें िखणात क्षेत्रों र्ें भाग-9 के प्रािधान लागू नहीं होते। हालांक्रक संसद
1996 का पेसा इन प्रािधानों को कुछ अपिादों तथा संशोधनों सदहत उक्त क्षेत्रों पि लागू कि सकती
(PESA) अधधननयर्: है।
• नगर ननगर्: संबंध धत िाज्य विधानर्ंडल की विधध द्िािा िाज्यों र्ें स्थापना ( केंद्र
शाशसत क्षेत्र के संदभा र्ें भाित की संसद द्िािा ) → प्रशासननक ढांचा: र्हापौि( र्ेयि)
की अध्यक्षता िाली परिषद, स्थायी सशर्नत तथा नगि आयुक्त।
• नगर पामलका : नगिपाशलकाएं कस्बों औि छोर्टे शहिों के प्रशासन के शलए स्थावपत की
जाती हैं, िाज्य र्ें िाज्य विधानर्ंडल द्िािा ननशर्ात अधधननयर् से गठन → प्रशासननक
ढांचा: परिषद (प्रधान अध्यक्ष), स्थायी सशर्नत तथा र्ुख्य कायाकािी अधधकािी।
• अधधसूधचत िेत्र समर्नत: दो प्रकाि के क्षेत्रों र्ें – औद्योगीकिण के कािण विकासशील
कस्बा औि िह कस्बा न्जसने अभी तक नगि पाशलका के गठन की आिश्यक शतें पूिी
नहीं की हो, लेक्रकन िाज्य सिकाि द्िािा िह र्हत्िपूणा र्ाना जाए| क्योंक्रक इसे सिकािी
• संविधान के भाग X के अनुच्छे द 244 कुछ ऐसे िेत्रों र्ें, जजन्हें ‘अनुसूधचत िेत्र’ और
‘जनजातीय िेत्र’ नामर्त ककया गया है, प्रशासन की विशेष व्यिस्था की पररकल्पना की
संिैधाननक गई है।
प्रािधान • ू ी र्ें असर् , र्ेघालय, ब्रत्रपुरा और मर्जोरर् (AMTM) को
संविधान की पांचिीं अनुसच
छोडकर अन्य राज्यों के अनुसूधचत िेत्र ि अनुसूधचत जनजानतयों के प्रशासन ि
ननयंत्रण के बारे र्ें चचाा की गई है।
• संविधान के छठी अनुसू ची र्ें चार उत्तर-पूिी राज्यों असर्, र्ेघालय, ब्रत्रपुरा और मर्जोरर्
के प्रशासन के संबंध र्ें उपबं ध है|
संिैधाननक प्रािधानों के अनुसार राष्रपनत िाज्य र्ें अनुसूधचत जनजानतयों के कल्याण हेतु एिं अनुसूधचत क्षेत्रों के
प्रबंधन हेतु आयोग का ननर्ााण कि सकता है। इस संदभा र्ें अभी तक दो आयोग ननयुक्त क्रकए गए हैं - यू.एन. ढे बि
(1960) औि ददलीप शसंह भूरिया सशर्नत (2002)।
• संविधान के भाग 21 र्ें अनुच्छे द 371 से 371 ञ तक →बािह िाज्यों → र्हािाष्ट्र + गुजिात + नागालैंड +
असर् + र्खणपुि + आं ध्र प्रदे श + तेलंगाना + शसन्क्कर् + शर्जोिर् + अरुणाचल प्रदे श + गोिा + कनाार्टक के
संबंध र्ें विशेष प्रािधान ।
• उद्दे श्य: इन िाज्यों के वपछड़े इलाकों र्ें िहने िाले लोगों की आिश्यकताओं को पूिा किना, इन िाज्यों के
जनजानत लोगों के आधथाक एिं सांस्कृनतक दहतों की िक्षा किना तथा उन िाज्यों के स्थानीय लोगों के दहतों की
िक्षा किना है।
• इन िाज्यों के कुछ अशांत इलाकों र्ें कानून एिं व्यिस्था की स्थापना किना है।
अनुच्छे द 371 ग-
• िाष्ट्रपनत को यह अधधकाि है क्रक यदद िह चाहे तो िाज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से र्खणपुि विधान
र्णणपुर सभा के शलए चुने गए सदस्यों से एक सशर्नत का गठन कि सकता है|
(अनुच्छे द- 371- • िाष्ट्रपनत, इस सशर्नत का उधचत काया संचालन सुननन्श्चत किने के शलए िाज्यपाल को विशेष
ग) उत्तिदानयत्ि भी सौंप सकता है|
• िाज्यपाल, पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध र्ें प्रनतिषा िाष्ट्रपनत को प्रनतिेदन भेजेगा|
• केंद्र सिकाि, पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के शलए िाज्य सिकाि को आिश्यक ददशा-ननदे श दे
सकती है।
36 िां संिैधाननक संशोधन अधधननयर्,1975 के द्िारा →अनुच्छे द 371 च जोडा गया, जजसर्ें
उजल्लणखत है कक -
• शसन्क्कर् विधान सभा र्ें कर् से कर् 30 सदस्य होंगे।
मसजक्कर् • लोकसभा र्ें शसन्क्कर् को एक सीर्ट दी जाएगी।
(अनुच्छे द -371- • शसन्क्कर् जनसंख्या के विशभन्न िगों के अधधकािों औि दहतों की िक्षा के शलए संसद को
च) अधधकाि ददया गया है।
• राज्य के राज्यपाल को राज्य र्ें शांनत और सार्ाजजक तथा आधथाक उन्ननत सुननजश्चत करने
के मलए विशेष दानयत्ि प्रदान ककया गया है।
• िाष्ट्रपनत यदद चाहे तो िे भाितीय संघ के िाज्यों के शलए बनाए गए क्रकसी ननयर् को शसन्क्कर्
सदस्य • संविधान र्ें आयोग के सदस्यों की • संविधान र्ें सदस्यों की संख्या का कोई
संख्या का कोई उल्लेख नहीं क्रकया गया उल्लेख नहीं तथा इसे िाज्यपाल के वििेक
है तथा इसे िाष्ट्रपनत के वििेक पि छोड़ पि छोड़ ददया गया है।
ददया गया है
• अध्यक्ष को शर्लाकि 9 से 11 सदस्य
होते हैं।
कायाकाल • 6 िषा की अिधध तक या 65 िषा की • 6 िषा की अिधध तक या 62 िषा की आयु
आयु तक तक
• अध्यि – भारत सरकार या ककसी राज्य • अध्यक्ष– पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं
सरकार के अधीन ककसी और ननयोजन (यानी दूसिे कायाकाल के शलए) या भाित
का पात्र नहीं होता। सिकाि या क्रकसी िाज्य की सिकाि के
• सदस्य- पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं अधीन ननयोजन का पात्र नहीं होगा लेक्रकन
(यानी सदस्य के रूप र्ें दूसिे कायाकाल संघ लोक सेिा आयोग का अध्यक्ष या
के योग्य नहीं) या भाित सिकाि या सदस्य के रूप र्ें ननयुक्त होने का पात्र
क्रकसी िाज्य की सिकाि के अधीन होगा।
ननयोजन का पात्र नहीं होगा लेक्रकन संघ • सदस्य- पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं
लोक सेिा आयोग या अन्य राज्य लोक (यानी सदस्य के रूप र्ें दूसिे कायाकाल के
सेिा आयोग के अध्यि के रूप र्ें योग्य नहीं) या भाित सिकाि या क्रकसी
ननयुक्त होने का पात्र होगा। िाज्य सिकाि के अधीन ननयोजन का पात्र
नहीं होगा लेक्रकन संघ लोक सेिा आयोग
के अध्यक्ष या सदस्य तथा िाज्य लोक
सेिा आयोग के अध्यक्ष के रूप र्ें ननयुक्त
होने का पात्र होगा।
1978 र्ें एक संकल्प के र्ाध्यर् से अनुसूधचत जानत एिं र्ूल रूप से एक सांविधधक
जनजानतयों के शलए एक गैि सांविधधक बहु सदस्यीय ननकाय है। इसे 102िें संविधान
आयोग की स्थापना की गई तथा 1990 र्ें, 65िें संविधान संशोधन अधधननयर् 2018 के
अनुच्छे द
संशोधन के र्ाध्यर् से आयोग की स्थापना तथा 2003 र्ें, तहत संिैधाननक दजाा प्राप्त
89िें संविधान संशोधन अधधननयर् के द्िािा अनुसूधचत हुआ।
जानत आयोग एिं अनुसधू चत जनजानत आयोग को अलग
कि ददया गया।
• भाग 16, अनुच्छे द o भाग 16, अनुच्छे द 3368क • भाग –16, अनुच्छे द 338ख
338
ननयुजक्त • राष्रपनत द्िािा उसके आदे श या र्ुहि लगे आदे श द्िािा होता है।
सदस्य • एक अध्यि, उपाध्यि एिं तीन अन्य सदस्य जो िाष्ट्रपनत द्िािा ननयुक्त क्रकए जाते हैं।
कायाकाल • उनकी सेिा शतें एिं कायाकाल िाष्ट्रपनत द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं ।
• ननयर्ानुसाि, इनका कायाकाल 3 िषों का होता है।
श्रेणी र्ें नहीं आता इसशलए उसे ननजी सुनिाई का अधधकाि होता है।
• भाित के क्रकसी भी क्षेत्र र्ें ककसी भी सशर्नत अथिा उस सभा र्ें, जहां के
अदालत र्ें र्हान्यायिादी को सुनिाई का शलए अधधकृत है, र्ें ब्रबना र्ताधधकार के
कायािाही र्ें भाग लेने या दोनों सदनों की शर्लते हैं, जो विधानर्ंडल के क्रकसी
जी.एस.टी. पररषद, वित्त आयोग तथा भाषायी अल्पसंख्यकों के मलए विशेष अधधकारी
ननकाय जी.एस.टी. पररषद वित्त आयोग भाषाई अल्पसंख्यकों के
मलए विशेष अधधकारी
अनुच्छे द • भाग- 12, अनुच्छे द 279 क 5. भाग-12, अनुच्छे द 280 • भाग–17 , अनुच्छे द- 350
ख
ननयुजक्त राष्रपनत के आदे श पि गठन िाष्ट्रपनत के आदे श पि गठन राष्रपनत के द्िािा
स्थापना • इसका गठन संसद र्ें पारित अधधननयर्(र्ानिाधधकाि संिक्षण अधधननयर्,1993)द्िािा क्रकया
गया है।
• यह एक सांविधधक ननकाय है।
संरचना • बहु-सदस्यीय संस्था • बहु-सदस्यीय संस्था
• अध्यक्ष + 5 सदस्य • अध्यक्ष + 2 सदस्य
• अध्यक्ष – उच्चतर् न्यायालय का सेिाननिृत्त • अध्यक्ष – उच्च न्यायालय के ितार्ान अथिा
र्ुख्य न्यायाधीश सेिाननिृत्त न्यायाधीश
• सदस्य- • सदस्य-
o उच्चतर् न्यायालय र्ें कायाित या • उच्च न्यायालय के ितार्ान अथिा
सेिाननिृत्त न्यायाधीश; सेिाननिृत्त न्यायाधीश या िाज्य के न्जला
योग्यता o उच्च न्यायालय का कायाित या न्यायालय के कोई न्यायाधीश, न्जसे सात
सेिाननिृत्त र्ुख्य न्यायाधीश िषा का अनुभि हो;
o 3 अन्य को (कर् से कर् एक र्दहला • कोई ऐसा व्यन्क्त न्जसे र्ानिाधधकािों के
सदस्य)र्ानिाधधकाि से संबंधधत बािे र्ें विशेष अनुभि हो।
जानकािी अथिा कायाानुभि होना चादहए।
• अन्य पदे न सदस्यों र्ें- िाष्ट्रीय अल्पसंख्यक
आयोग, िाष्ट्रीय अनुसूधचत जानत ि
अनुसूधचत जनजानत आयोग ि िाष्ट्रीय
र्दहला आयोग के अध्यक्ष होते हैं।
• राष्रपनत के द्िािा। • राज्यपाल के द्िािा।
• राष्रीय र्ानिाधधकार आयोग चयन समर्नत • राज्य लोक सेिा आयोग चयन समर्नत: (6
ननयुजक्त (6 सदस्य): प्रधानर्ंत्री + अध्यक्ष (लोक सदस्य) र्ुख्यर्ंत्री + विधान सभा का
सभा) + उपसभापनत (िाज्य सभा) + विपक्ष अध्यक्ष + विपक्ष का नेता (विधान सभा तथा
के नेता (लोक सभा तथा िाज्य सभा दोनों विधान परिषद) + िाज्य का गृह र्ंत्री।
से) + केंद्रीय गृह र्ंत्री
कायाकाल • 5 िषा या 70 िषा की आयु तक
• पुनः ननयुजक्त के योग्य होते हैं लेककन िे केंद्र सरकार अथिा राज्य सरकारों र्ें ककसी भी पद
के योग्य नहीं होते हैं।
• आयोग का अध्यक्ष एिं सदस्य बनने िाले • िेतन - केंद्रीय सतका ता आयुक्त के िेतन, भत्ते
सदस्यों र्ें सािाजननक जीिन का पयााप्त ि अन्य सेिा शतें संघ लोक सेिा आयोग के
अनुभि होना चादहए तथा उन्हें विधध, विज्ञान अध्यि के सर्ान ही होती है औि सतका ता
एिं तकनीकी, सार्ान्जक सेिा, प्रबंधन, आयुक्त की संघ लोक सेिा आयोग के सदस्यों
पत्रकारिता, जनसंचाि या प्रशासन आदद का के सर्ान होती है।
विशशष्ट्र्ट अनुभि होना चादहए।
योग्यता/िेतन • संसद या क्रकसी िाज्य या संघ शाशसत प्रदे श
के विधानर्ंडल का सदस्य नहीं होना चादहए।
• िे क्रकसी िाजनीनतक दल से संबंध धत कोई
लाभ का पद धािण न किते हों तथा कोई
लाभ का व्यापाि या उद्यर् भी ना किते हों।
• िेतन भत्तों का ननधाािण केंद्र सिकाि किती है
तथा उनके सेिाकाल र्ें उनर्ें कोई
अलाभकािी परिितान नहीं क्रकया जा सकता
है।
इस्तीफा • राष्रपनत/राज्यपाल को • राष्रपनत को
ननष्कासन प्रकक्रया • केंद्रीय सूचना आयोग/केंद्रीय सतका ता आयोग- िाष्ट्रपनत के द्िािा हर्टाया जा सकता है तथा
इसकी कायािाही िाष्ट्रीय र्ानिाधधकाि आयोग के जैसी ही होती है।
• िाज्य सूचना आयोग – िाज्यपाल के द्िािा हर्टाया जा सकता है तथा इसकी कायािाही िाज्य
र्ानिाधधकाि आयोग के सर्ान ही होती है।
लोकपाल
ननकाय लोकपाल
• संसद र्ें पारित एक अधधननयर् के द्िािा (लोकपाल एिं लोकायुक्त अधधननयर्, 2013) केंद्र र्ें
गठन लोकपाल तथा िाज्य र्ें लोकायुक्त का गठन क्रकया गया है।
• यह एक सांविधधक ननकाय है।
• सशस्त्र बलों को छोड़कि प्रधानर्ंत्री सदहत सभी िगों के सिकािी कर्ाचािी लोकपाल के दायिे र्ें
आते हैं।
• लोकपाल को यह अधधकाि होगा क्रक लोकपाल द्िािा प्रेवषत र्ार्लों पि िह सीबीआई सदहत
क्रकसी भी जांच एजेंसी पि अधीक्षण तथा ददशा ननदे श किे ।
• न्जन संस्थाओं का सिकाि द्िािा पूणातः या अंशतः वित्तीयन होता है िह लोकपाल के अधधकाि
विविध क्षेत्र र्ें आता है लेक्रकन न्जन संस् थाओं को सिकाि वित्तीय सहायता नहीं दे ती है िह इसके
अधधकाि क्षेत्र से बाहि होते हैं ।
• इसर्ें िे प्रािधान शाशर्ल हैं जो भ्रष्ट्र्ट अधधकारियों द्िािा भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त की गई संपवत्त
को ज़ब्त करें गे, तब भी जबक्रक अमभयोजन की प्रकक्रया बाकी हो।
• िाज्यों को 1 िषा के भीतर लोकायुक्त का गठन किना होगा।
• लोकपाल के द्िािा क्रकसी जांच के शलए ननयुक्त सीबीआई अधधकािी को लोकपाल की अनुर्नत
के ब्रबना उसका तबादला नहीं क्रकया जा सकता है।
संिैधाननक प्रािधान
संविधान के भाग IX-B र्ें सहकािी सशर्नतयों से संबंधधत ननम्नशलखखत प्रािधान क्रकये गये हैं :
सहकारी समर्नतयों का संस्थापन: • िाज्य विधानयका सहकािी सशर्नतयों के ननगर्न, ननयर्न औि सर्ापन के
शलए प्रािधान कि सकती है। (अनुच्छे द 243ZI)
• विधान र्ंडल द्िािा तय क्रकए गए संख्या के अनुसाि बोडा के ननदे शक होंगे,
लेक्रकन क्रकसी सहकािी सशर्नत के ननदे शकों की अधधकतर् संख्या 21 से
बोडा के सदस्यों एिं इसके ज्यादा नहीं होगी।
पदाधधकाररयों की संख्या एिं शतें:( • बोडा के ननिााधचत सदस्यों के कायाकाल औि उसके पदाधधकारियों का
अनुच्छे द 243 ZJ) कायाकाल ननिााचन की नतधथ से पाँच िषा के शलए होगा औि ऐसे ननकाय
द्िािा ितार्ान बोडा के कायाकाल (अनुच्छे द 243 ZK) की सर्ान्प्त से पहले
एक बोडा का चुनाि क्रकया जाएगा, न्जसे िाज्य विधानयका द्िािा तय क्रकया
जाएगा।
• न्जस सहकािी सशर्नत र्ें अनुसधू चत जानत या अनुसधू चत जनजानत के लोग
पदों का आरिण: औि र्दहला सदस्य होंगे िैसे प्रत्येक सहकािी सशर्नत के बोडा र्ें अनुसूधचत
जानत तथा अनुसूधचत जनजानत के शलए एक सीर्ट औि र्दहलाओं के शलए 2
सीर्टों के आिक्षण का प्रािधान िाज्य विधानर्ंडल किे गा।
• िाज्य विधानयका बोडा के सदस्य के रूप र्ें बैंक्रकं ग, प्रबंधन, वित्त आदद के
सहयोजजत सदस्य : क्षेत्र र्ें अनुभि िखने िाले व्यन्क्तयों के सहयोजन का ननयर् बना सकता
है, न्जनकी संख्या र्तदान के अधधकाि के त्रबना (इक्कीस ननदे शकों के
अनतरिक्त ) दो से अधधक नहीं होगी।
• क्रकसी भी बोडा को 6 र्ाह से अधधक सर्य तक विघदर्टत या ननलंत्रबत नहीं
िखा जाएगा।(सहकािी बैंकों के र्ार्ले र्ें, बहु-िाज्य सहकािी बैंकों के
बोडा का विघटन एिं ननलंबन तथा अलािा, यह अिधध एक िषा से अधधक नहीं हो सकती है)। हालांक्रक, ऐसे
अंतररर् प्रबंधन (अनुच्छे द 243 क्रकसी भी सहकािी सशर्नत के बोडा को अधधगह
ृ ीत नहीं क्रकया जाएगा या
ZL) उन्हें ननलंत्रबत नहीं िखा जाएगा, जहां कोई सिकािी दहस्सेदािी या ऋण या
वित्तीय सहायता या सिकाि द्िािा कोई गािं र्टी नहीं है।
सहकारी समर्नतयों के खातों का • िाज्य विधान र्ंडल सहकािी सशर्नतयों के खातों का अनुिक्षण तथा हि
अंकेिण (अनुच्छे द 243 ZM) वित्तीय िषा र्ें कर् से कर् एक बाि खाते के अंकेक्षण का ननयर् बनाएगा।
(वित्तीय िषा के छह र्हीने के भीति)
बहु-राज्य सहकारी समर्नतयों र्ें इन • इस खंड के प्रािधान बहु-िाज्य सहकािी सशर्नतयों पि लागू होंगे औि ये
कानूनों का कायाान्ियन (अनुच्छे द केंद्र सिकाि के दायिे र्ें आएंगे।
• 52िें संविधान संशोधन अधधननयर्, 1985 को सार्ान्यतया दल बदल कानून कहा जाता है , इसर्ें संविधान के
चाि अनुच्छे दों यानी अनुच्छे द 101, 102, 190 औि 191 र्ें परिितान क्रकया गया है जो क्रक सांसदों तथा
विधायकों द्िािा एक िाजनीनतक दल से दूसिे दल र्ें दल परिितान के आधाि पि ननिहाता के बािे र्ें प्रािधान
क्रकया गया है।
• इस संशोधन ने संविधान र्ें एक नई अनुसू ची (दसिीं अनुसूची) को जोड़ा है।
• इसर्ें सांसदों तथा विधायकों द्िािा एक िाजनीनतक दल से दूसिे दल र्ें दल परिितान के आधाि पि ननिहा ता के
बािे र्ें प्रािधान क्रकया गया है।
अयोग्यताएं
ककसी सदन का सदस्य जो ककसी राजनीनतक दल का सदस्य है उस सदन की सदस्यता
राजनीनतक दलों के सदस्य के ननरहाक र्ाना जाएगा
: क. यदद िह स्िेच्छा से ऐसे राजनीनतक दल की सदस्यता छोड दे ता है अथिा
ख. यदद िह सदन र्ें अपने राजनीनतक दल के ननदे शों के विपरीत र्त देता है या
र्तदान र्ें अनुपजस्थत रहता है तथा राजनीनतक दल से उसने 15 ददनों के भीतर
िर्ादान ना पाया हो।
कोई ननदालीय सदस्य (जो त्रबना क्रकसी िाजनीनतक दल का उम्र्ीदिाि होते हुए चुनाि
ननदालीय सदस्य : जीता हो) क्रकसी सदन की सदस्यता के ननिहाक हो जाएगा यदद िह उस चुनाि के बाद