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Prelims & Mains

बिहार लोक सेवा आयोग

सामान्य अध्ययन
पेपर 2 – भाग – 4
भारतीय राजनीबत और सांबिधान
BPSC
पेपर 2 भाग 4
भारतीय राजनीतत और संतिधान
Page
S.No. Chapter Name
No.
1. भारतीय संतिधान की मूल तिशेषताएँ 1
• संविधान के कार्य
• भारत के संविधान का विकास
• संविधान सभा
• संविधान सभा का कार्य प्रणाली
○ उद्दे श्य प्रस्ताि
○ भारतीर् स्वतंत्रता अवधवनर्म, 1947 द्वारा पररिवतयत
○ संविधान सभा द्वारा वनष्पावित अन्य कार्य
• संविधान सभा की सवमवतर्ां
○ प्रारूप सवमवत
• संविधान का प्रभाि में आना
• संविधान सभा की आलोचना
2. प्रस्तािना 8
• प्रस्तािना से संबंवधत प्रमु ख शब्द
• संविधान के एक भाग के रूप में प्रस्तािना
3. संतिधान की मुख्य तिशेषताएं 10
• भारतीर् संविधान के भाग और अनु सूवचर्ां
4. संघ और उसके क्षे त्र 15
• संिैधावनक प्रािधान
• राज्ों और केंद्र शावसत प्रिे शों का विकास
○ स्वतंत्रता के बाि राज्ों का पुनगयठन
○ राज् पुनगयठन अवधवनर्म 1956
○ 1956 के बाि बने नए राज्
○ 1956 के बाि बनाए गए नए केंद्र शावसत प्रिे श
5. नागररकता 19
• संिैधावनक प्रािधान
• नागररकता
○ नागररकता और संविधान
○ अन्य प्रािधान
• नागररकता अवधवनर्म 1955
○ 1.भारतीर् नागररकता का अर्य न
○ नागररकता की समाप्ति
• भारत के प्रिासी नागररक
• भारत में शरणार्थी
• नागररकता संशोधन अवधवनर्म 2019
○ प्रमु ख प्रािधान
○ संशोधन अवधवनर्म के पक्ष में तकय
○ संशोधन अवधवनर्म के प्तखलाफ तकय
• नागररकों का राष्ट्रीर् रवर्स्टर
○ एनआरसी का महत्व
○ एनआरसी सूची से छूटने िाले लोगों के वलए प्रािधान
○ वििे शी न्यार्ावधकरण
○ चुनौवतर्ा
• भविष्य के पहलू
6. मौतलक अतधकार 29
• संिैधावनक प्रािधान
• मौवलक अवधकारों की उत्पवि
• मौवलक अवधकारों की विशे षताएं
• छह मौवलक अवधकार
○ समानता का अवधकार (अनुच्छेि 14-18)
○ स्वतंत्रता का अवधकार (अनुच्छेि 19-22)
○ धमय की स्वतंत्रता का अवधकार (अनु च्छेि 25-28)
○ सां स्कृवतक और शै वक्षक अवधकार (अनु च्छेि 29-30)
○ संिैधावनक उपचार का अवधकार (अनु च्छेि 32)
• ररट और उसके प्रकार
• मौवलक अवधकारों पर प्रवतबंध
• माशय ल लॉ(सैवनक विवध)और मौवलक अवधकार
○ माशय ल लॉ (सैवनक विवध) और राष्ट्रीर् आपातकाल के बीच अंतर
• संविधान के भाग III के बाहर के अवधकार
• मौवलक अवधकारों के अपिाि
• मौवलक अवधकारों का महत्व
○ मौवलक अवधकारों की आलोचना
7. राज्य नीतत के तनदे शक तत्व 51
• संिैधावनक प्रािधान
• वनिे शक वसद्ां तों की विशे षता
• वनिे शक वसद्ां तों का िगीकरण
○ समार्िािी वसद्ां त (सामावर्क और आवर्थय क समानता को बढािा िे ना)
○ गां धीिािी वसद्ां त
○ उिार-बौप्तद्क वसद्ां त
• बाि में र्ोडे गए नए वनिे शक वसद्ां त
• वनिे शक वसद्ां तों की उपर्ोवगता
• राज् नीवत के वनिे शक तत्व का कार्ाय न्वर्न
• संविधान के भाग IV के बाहर वनिे शक तत्व;
• मौवलक अवधकार और नीवत वनिे शक तत्व के बीच संघषय
8. मौतलक कततव्य 58
• संिैधावनक प्रािधान
○ स्वणय वसंह सवमवत की वसफाररशें
• मौवलक कतयव्य
• मौवलक कतयव्यों की विशे षताएं
• मौवलक कतयव्यों की आलोचना
• मौवलक कतयव्यों का महत्व
• मौवलक कतयव्यों पर िमाय सवमवत की वटप्पवणर्ां
9. संिैधातनक संशोधन 60
• संिैधावनक प्रािधान
• संशोधन के प्रकार-
1. विशेष बहुमत से सं शोधन
2. विशेष बहुमत द्वारा सं शोधन
3. सं सि के विशेष बहुमत और राज्ों की सहमवत से सं शोधन
• संशोधन की प्रविर्ा
• संशोधन प्रविर्ा की आलोचना
• संविधान में संशोधन के ऐवतहावसक मामले
10. संतिधान की मूल संरचना 62
• उद्भि
• मू ल संरचना के घटक
11. संसदीय प्रणाली 67
• संिैधावनक प्रािधान
• संसिीर् सरकार
○ भारत में संसिीर् प्रणाली अपनाने का कारण
○ संसिीर् सरकार की विशे षताएं
○ संसिीर् बनाम और राष्ट्रपवत प्रणाली में अंतर
• संसिीर् प्रणाली के गुण
• संसिीर् प्रणाली के िोष
• भारतीर् बनाम विवटश संसिीर् प्रणाली का मॉडल
12. संघीय प्रणाली 70
• संघीर् बनाम एकात्मक प्रणाली
13. केंद्र राज्य संबंध 74
• संिैधावनक प्रािधान
• विधार्ी संबंध
○ केंद्र और राज् विधान का क्षे त्रीर् विस्तार
○ विधार्ी विषर्ों का वितरण
○ अिवशष्ट् विषर्
○ राज् क्षेत्र में संसिीर् विधान
○ राज् विधान पर केंद्र का वनर्ंत्रण
• प्रशासवनक संबंध
○ कार्यकारी शप्तिर्ों का वितरण
○ राज्ों और केंद्र के िावर्त्व
○ राज्ों को केंद्र का वनिे श
○ कार्ों का पारस्पररक प्रवतवनवधमं डल
○ केंद्र और राज्ों के बीच सहर्ोग
• वििीर् संबंध
○ कर शप्तिर्ों का आिंटन
○ राज् की कर शप्ति पर प्रवतबंध
○ कर रार्स्व का वितरण
○ गैर-कर रार्स्व का वितरण
○ राज्ों को सहार्ता अनु िान
○ माल और सेिा कर पररषि
• विि आर्ोग
○ राज्ों के वहतों का संरक्षण
○ केंद्र और राज्ों द्वारा उधार लेना
○ अंतर सरकारी कर उन्मु प्ति
• आपात प्तथर्थवत के प्रभाि
• प्रशासवनक सुधार आर्ोग
○ रार्मन्नार सवमवत
○ पुंछी आर्ोग
14. अं तरातज्यीय संबंध 86
• संिैधावनक प्रािधान
• अंतराय ज्ीर् र्ल वििािों का न्यार्वनणयर्न
• निी र्ल वििाि न्यार्ावधकरण
• पररषि
○ पररषि की थर्थार्ी सवमवत
○ क्षे त्रीर् पररषि
○ उिर पूिी पररषि
15. आपातकालीन प्रािधान 91
• संिैधावनक प्रािधान
• आपातकाल के प्रकार
1. राष्ट्रीर् आपातकाल (अनु च्छेि 352)
2. राज् आपातकाल
3. वििीर् आपातकाल
• आपातकालीन प्रािधानों की आलोचना
16. राष्ट्रपतत 96
• संघ कार्यकाररणी
• संिैधावनक प्रािधान
• राष्ट्रपवत का चुनाि
चुनाि में िोट
र्ोग्यता
• राष्ट्रपवत कार्ाय लर् के वलए शपर्थ
• राष्ट्रपवत कार्ाय लर् के वलए शतें
• राष्ट्रपवत कार्ाय लर् की उन्मु प्तिर्ां और विशे षावधकार
• राष्ट्रपवत कार्ाय लर् का कार्यकाल
• राष्ट्रपवत के विरुद् महावभर्ोग
• राष्ट्रपवत कार्ाय लर् में ररप्ति
ररप्ति पर चुनाि
• राष्ट्रपवत की शप्तिर्ां
1. कार्यकारी शप्तिर्ां
2. विधार्ी शप्तिर्ां
3. वििीर् शप्तिर्ां
4. न्यावर्क शप्तिर्ां
5. रार्नवर्क शप्तिर्ां
6. सैन्य शप्तिर्ां
7. आपातकालीन शप्तिर्ां
• राष्ट्रपवत की िीटो शप्ति
• राष्ट्रपवत की अध्यािे शर्ारी करने की शप्ति (अनु च्छेि 123)
• राष्ट्रपवत की क्षमािान शप्ति
• राष्ट्रपवत की वििेकाधीन शप्ति
• राष्ट्रपवत का पि
17. उपराष्ट्रपतत ((उपाध्यक्ष) 104
• संिैधावनक प्रािधान
• अनु च्छेि
• चुनाि
• र्ोग्यता
• शपर्थ
• कार्ाय लर् की शतें
• पररलप्तिर्ां
• कार्यकाल
• कार्ाय लर् में ररप्ति
• पि से हटाना
• उपराष्ट्रपवत के चुनाि को ले कर वििाि
• उपराष्ट्रपवत की शप्तिर्ां
18. प्रधानमंत्री 106
• संिैधावनक प्रािधान
• शपर्थ
• र्ोग्यता
• कार्यकाल
• पररलप्तिर्ां
• प्रधानमं त्री की शप्तिर्ां
• राष्ट्रपवत और प्रधानमंत्री के बीच संबंध संिैधावनक प्रािधान
○ राष्ट्रपवत के संबंध में प्रधानमं त्री की अन्य शप्तिर्ां
19. केंद्रीय मंतत्रपररषद 109
• संिैधावनक प्रािधान
• संर्ोर्न
• मं त्री की वनर्ुप्ति
• मं वत्रर्ों की शपर्थ
• मं वत्रर्ों का िेतन
• उनके द्वारा िी गई सलाह की प्रकृवत
• मं वत्रर्ों की वर्म्मेिारी
○ व्यप्तिगत वर्म्मेिारी
○ सामू वहक वर्म्मेिारी
○ कानू नी वर्म्मेिारी
• कैवबने ट बनाम केंद्रीर् मं वत्रपररषि
• वकचन कैवबने ट/आं तररक कैवबने ट
○ वकचन कैवबने ट की खू वबर्ां
○ वकचन कैवबने ट के िोष
• छार्ा मं वत्रमं डल
• कैवबने ट सवमवतर्ां
○ कैवबने ट सवमवतर्ों की सूची
○ कैवबने ट सवमवतर्ों की विशे षताएं
○ कैवबने ट सवमवतर्ों के कार्य
○ मं वत्रर्ों के समू ह
20. संसद 114
• संिैधावनक प्रािधान
• संसि की संरचना
○ राज् सभा
○ लोकसभा
• संसि की सिस्यता
○ सीटों का खाली होना
○ शपर्थ र्ा पुवष्ट्
○ िेतन और भिे
• संसि के पीठासीन अवधकारी
○ लोकसभा अध्यक्ष
○ लोकसभा के उपाध्यक्ष
○ राज्सभा के सभापवत
• संसि में ने ता
• संसि के सत्र
• संसिीर् कार्यिाही के उपकरण
• संसि में विधार्ी प्रविर्ा
○ साधारण विधेर्क
○ धन विधेर्क
○ वििीर् वबल
○ सिनों की संर्ुि बैठक
• संसि में बर्ट
○ संिैधावनक प्रािधान/उपबंध
○ भाररत व्यर्
○ अवधवनर्मन के चरण/ पाररत होने की प्रविर्ा
• अनु िान
• केंद्र सरकार के वलए वनवधर्ां
1. भारत की संवचत वनवध
2. भारत का साियर्वनक(लोक) खाता
3 भारत की आकप्तिकता वनवध
• संसि की शप्तिर्ां और कार्य
1. विधार्ी शप्तिर्ां एिं कार्य
2 . कार्यकारी शप्तिर्ां एिं कार्य
3. वििीर् शप्तिर्ां एिं कार्य
4. सां विधावनक शप्तिर्ां और कार्य
5. न्यावर्क शप्तिर्ां और कार्य
6. वनिाय चक शप्तिर्ां और कार्य
7. अन्य शप्तिर्ां और कार्य।
○ प्रशासन और सरकार पर संसिीर् वनर्ंत्रण
• राज्सभा की प्तथर्थवत
○ राज् सभा की विशे ष शप्तिर्ााँ
○ राज्सभा का महत्व
• संसिीर् विशे षावधकार
• संसि की संप्रभु ता
• संसिीर् सवमवतर्ााँ
○ तिर्थय सवमवतर्ां
○ थर्थार्ी सवमवतर्ां
• संसिीर् मं च(Parliamentary Forums)
• संसिीर् समू ह(Parliamentary Groups)
21. कुछ राज्यों के तलए तिशेष प्रािधान 149
• संिैधावनक प्रािधान
• महाराष्ट्र और गुर्रात के वलए प्रािधान
• नागालैं ड से वलए प्रािधान
• असम और मवणपुर के वलए विशे ष प्रािधान
• आं ध्र प्रिे श र्ा तेलंगानाके वलए विशे ष प्रािधान
• वसप्तिम के वलए विशे ष प्रािधान
• वमर्ोरम के वलए विशे ष प्रािधान
• अरुणाचल प्रिे श और गोिा के वलए विशे ष प्रािधान
• गोिा
22. केंद्र शातसत प्रदे श 152
• केंद्र शावसत प्रिे शों का गठन
○ कारण
○ र्म्मू और कश्मीर पुनगयठन विधेर्क 2019
• केंद्र शावसत प्रिे श का प्रशासन
• विल्ली के वलए विशेष प्रािधान
• राष्ट्रीर् रार्धानी क्षेत्र विल्ली सरकार (संशोधन अवधवनर्म), 2021
23. अनु सूतचत और जनजातीय क्षे त्र 154
• संिैधावनक प्रािधान
• अनु सूवचत क्षे त्रों का प्रशासन
• र्नर्ातीर् क्षेत्रों का प्रशासन
24. सिोच्च न्यायालय 156
• न्यावर्क समीक्षा
• न्यावर्क न्यावर्क सविर्ता
• र्नवहत र्ावचका
• न्यार्ावधकरण
• राष्ट्रीर् हररत न्यार्ावधकरण
25. संिैधातनक तनकाय 167
• भारत के महान्यार्िािी
• राज् का महावधििा
• भारत वनिाय चन आर्ोग
• भारत का विि आर्ोग
• राष्ट्रीर् अनु सूवचत र्ावत आर्ोग (SCs)
• राष्ट्रीर् अनु सूवचत र्नर्ावत आर्ोग (STs)
• राष्ट्रीर् वपछडा िगय आर्ोग (NCBCs)
• भाषाई अल्पसंख्यकों िगो के वलए विशे ष अवधकारी
• भारत का वनर्ंत्रक एिं महालेखा परीक्षक (CAG)
• संघ लोक सेिा आर्ोग (UPSC )
• राज् लोक सेिा आर्ोग (SPSC)
• संर्ुि राज् लोक सेिा आर्ोग
• िस्तु एिं सेिा कर पररषि (Goods And Services Tax Council)
26. गै र-संिैधातनक उपाय 183
• राष्ट्रीर् मानिावधकार आर्ोग
(National Human Rights Commission)
• राज् मानिावधकार आर्ोग
• केंद्रीर् सतकयता आर्ोग
(Central Vigilance Commission)
• केंद्रीर् सूचना आर्ोग (CIC)
(Central Information Commission)
• राज् सूचना आर्ोग
(Information Commission)
• भारत का प्रवतस्पधाय आर्ोग
(Competition Commission Of India)
• भारतीर् िू रसंचार वनर्ामक प्रावधकरण
(Telecom Regulatory Authority Of India)
• राष्ट्रीर् उपभोिा वििाि वनिारण आर्ोग
(National Consumer Disputes Redressal Commission)
• राष्ट्रीर् मवहला आर्ोग
(National Commission For Women)
• अल्पसंख्यकों के वलए राष्ट्रीर् आर्ोग
(National Commission For Minorities)
• लोकपाल और लोकार्ुि
• नीवत आर्ोग
• राष्ट्रीर् विकास पररषि
27. अन्य संिैधातनक आयाम 197
• सहकारी सवमवतर्ां
• (Co-Operative Societies)
• रार्भाषा
• लोक सेिाएं
• सरकार के अवधकार और िावर्त्व
• (RIGHTS AND LIABILITIES OF THE GOVERNMENT)
• वहन्दी भाषा में संविधान का आवधकाररक पाठ
28. तितशष्ट् िगों से संबंतधत तिशेष प्रािधान 208
• अनु सूवचत र्ावत र्ा अनु सूवचत र्नर्ावत तर्था अन्य वपछडा िगय के वलए राष्ट्रीर् आर्ोग
29. तनिातचन 210
• संिैधावनक प्रािधान
• भारत में चुनाि के प्रकार
• चुनाि की आिश्यकता
• चुनाि का महत्व
• रार्नीवतक िल
○ प्रकार
○ विवभन्न रार्नीवतक विचारधारा
• विश्व में िलीर् व्यिथर्था
• राष्ट्रीर् और राज् के रार्नीवतक िलों को मान्यता
• क्षे त्रीर् िल
• गठबंधन सरकार
○ चुनाि तंत्र
• चुनाि कानू न
○ र्न-प्रवतवनवधत्व अवधवनर्म, 1950
○ र्नप्रवतवनवधत्व अवधवनर्म, 1951
○ िलबिल विरोधी कानू न
○ 10िीं अनु सूची
▪ विशे षताएं
• 91िें संशोधन अवधवनर्म, 2003 के प्रािधान
• पररसीमन अवधवनर्म, 2002
• चुनाि सुधार
(Electoral Reforms)
○ सवमवतर्ां और आर्ोग
○ भारतीर् चुनािों में ितयमान मु द्दे
○ वकए गए उपार्
○ आिश्यक सुधार
––
1 भारतीय सोंनवधाि की
CHAPTER मूि नवशे िताएाँ
 सं विधान नियम ,ों उपनियम ों का एक ऐसा निखित  रािनीवतक समुदाय की प्रकृनत और अनधकार को घ नित
दस्तावेज है - और पररभानित करना ।
o विसके अनुसार सरकार का सोंचािि वकया िाता  एक राष्ट्रीय समु दाय की पहचाि और मू ल् ों क व्यि
है I करना ।
o िो दे श की राजिीनतक व्यवस्था का बु नियादी  नागररकों के अनधकार ों और कतयव्य ों की घोषणा करना
ढााँ चा वनधाा ररत करता है I और उन्हें पररभानित करना।
o िो राज्य की नवधानयका, काययपानिका और  सरकार की नवधायी, काययकारी और न्यानयक शािाएाँ
न्यायपानिका की स्थापना, उनकी शखिय ों तथा स्थावपत करना ।
दानयत् ों का सीमां कन एिं राज्य के मध्य सोंबोंध ों का  सरकार या उप-राज्य समु दाय ों के विविन्न स्तरों के बीच
नवनियमि करता है I
शखि का नवतरण करना ।
सोंनवधाि के कायय  राज्य की आनधकाररक धानमय क पहचाि घोवषत करना |
 8राजिीनतक समु दाय की सीमाओों को  विशेष रूप से सामानजक, आनथयक या नवकासात्मक
घ नित और पररभानित करना । िक्ष् ों के विए राज्यों को प्रवतबद्ध करना ।

भारत के सोंनवधाि का नवकास


भारत में कोंपिी शासि (1773-1858)

रे गुिेन ों ग एक्ट, 1773  मुोंबई तथा मद्रास प्रेनसडें सी को बोंगाि प्रेनसडें सी के अधीि
* कोंपिी के कमय चाररय ों क निजी व्यापार  बं गाि प्रेवसडें सी में गिनार िनरि ि चार सदस्ों िािी पररषद
तथा भारतीय ि ग ों से उपहार व ररश्वत िे िा के वनयं त्रण में सरकार की स्थापना
प्रनतबों नधत नकया गया I  इस एक्ट के तहत बंगाि के गिनार िनरि िॉडा वारे ि
हे खटों गस थेI
 बंगाि के गिनार को तीनों प्रेसीडे न्सियों का गिनार िनरि कहा िाता थाI
 भारत में केन्द्रीय प्रशासि की नींि रखी।
 किकत्ता में एक सुप्रीम क य की स्थापिा (1774) की गई विसमें एक
मुख्यन्यायाधीश एिं तीन अन्य न्यायाधीश थेI
 िारत में कंपनी के राजस्व, िागररक और सैन्य मामि ों के संबंध में विविश
सरकार को ररपोिा करने के विए कोंपिी के निदे शक मों डि को आवश्यक कर
वदया।

समझौता अनधनियम(बों द बस्त कािू ि),  1781 के संशोधन अवधवनयम ने सवोच्च न्यायािय के अनधकार क्षेत्र से गिनार
1781 िनरि तथा काउं वसि को मुक्त करने के साथ ही कोंपिी के ि क सेवक ों के
द्वारा अपिे कायय काि में सोंपन्न काययवानहय ों के निए मु ि कर नदया गया।
 किकत्ता के सिी निवानसय ों को न्यायािय के अनधकार क्षेत्र के अोंतगयत कर
वदया गया और वहन्दू ि मुन्सिमों के बाद उनके वनिी कानूनों के वहसाब से तय
करने का प्रािधान वकया गया।
 न्यायािय को प्रनतवादी के व्यखिगत कािूि का प्रशासन करने का अवधकार था।

1
नप ् स इों नडया एक्ट, 1784  द्वै त शासि प्रणािी की स्थापना की।
o कंपनी के वानणखज्यक मामि ों का प्रबंधन करने के विए निदे शक मोंडि क
अिुमनत दी |
o अपने राजिीनतक मामि ों का प्रबंधन करने के विए नियोंत्रण ब डय नामक
वनकाय का गठन वकया गया।
 विविश वनयंवत्रत िारत में सिी नागररक, सैन्य सरकार तथा रािस्व गवतविवधयों के
पया िेक्षण की शन्सक्त वनयं त्रण बोडा को प्रदान की गईI

चा य र अनधनियम, 1813  िारत में कोंपिी के व्यापार एकानधकार क समाप्त वकया गयाI
o अपवाद- चाय का व्यापार और चीन के साथ व्यापार को कंपनी के अवधकार
क्षे त्र में ही रखा गया।
 कर िगािे के विए स्थािीय सरकार को अनधकृत वकया |

चा य र अनधनियम, 1833  बोंगाि का गवियर जिरि → भारत का गवियर जिरि(GGI) बिाI


 GGB = िारत के प्रथम गवियर-जिरि (िॉडय नवनियम बेंन क)I
o सिी नागररक और सैन्य शन्सक्तयों को वनवहत वकया गयाI
o संपूणा विविश िारत की अनन्य विधायी शन्सक्तयााँ ।
 कंपनी → विशुद्ध रूप से प्रशासवनक वनकाय बन चुकी थी।

चा य र अनधनियम, 1853  भारत का गवियर जिरि(GGI) की पररषद के नवधायी और प्रशासनिक कायों


का पृथक्करण वकया गया।
 गिनार िनरि के विए नई विधान पररषद गवठत करके उसे िारतीय विधान
पररषद् नाम वदया गया विसमें 6 नए पाषाद िोड़े गएI इसने वमनी सं सद की तरह
काया वकयाI
 िारतीयों के विए िी भारतीय नसनवि सेवाओों के विए िुिी प्रनतय नगता
प्रणािी की व्यवस्था की गई नजसके निए मै कािे सनमनत नियु ि की गई।
 िारतीय (केंद्रीय) नवधाि पररिद् में स्थािीय प्रनतनिनधत् प्रारों भ वकया। (6
सदस्ों में से 4 मद्रास, बॉम्बे , बं गाि और आगरा की स्थानीय सरकारों द्वारा वनयु क्त
वकए िाएाँ गे )

भारत में क्राउि रूि (1858 से 1947)

भारत सरकार  विविश सरकार ने िारत के शासन को अपने अंतगा त िे वियाI


अनधनियम, 1858  एक्ट ऑफ गुड गवियमें ऑफ इों नडया िी कहा िाता है ।
 भारत का गविय र जिरि (GGI) के पद को भारत का वायसराय पदिाम नदया गया (िॉडय कैनिोंग)I
o भारत का गवियर जिरि (GGI)- िारत में विविश क्राउन के प्रवतवनवध।
 ब डय ऑफ कों र ि और क य ऑफ डायरे क्टसय को समाप्त करके द्वे ध प्रणािी को समाप्त वकया गया।
 िारत के राज्य सवचि, पद का सृ िन करके िारतीय प्रशासन पर पूणा अवधकार और वनयं त्रण की शन्सक्त
प्रदान की गई।
 भारत सनचव की सहायता के विए 15 सदस्यीय भारतीय पररिद् का गठन वकया गया।

भारतीय पररिद्  िारतीयों को गै र-आवधकाररक सदस्ों के रूप में नावमत करने के विए िायसराय द्वारा नामां वकत करने की
अनधनियम, 1861 व्यिस्था की गईI (िॉडा कैवनंग ने 3 िारतीयों को नावमत वकया- बनारस के रािा, पवियािा के महारािा

2
और सर वदनकर राि)
 बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडें सी को विधायी शन्सक्तयााँ दे कर विकेंद्रीकरण की शुरुआत की गई।
 बं गाि, उत्तर-पविमी प्रां तों और पंिाब के विए नई विधान पररषदों की स्थापना की।
 िायसराय द्वारा पररषद् के विए वनयम और आदे श बनाए िाएाँ गे |
o िॉडा कैवनंग द्वारा प्रारं ि पोिा फोवियों प्रणािी को मान्यता प्रदान की गईI
 िायसराय आपातकाि में 6 महीने की िै धता के साथ अध्यादे श िारी करने के विए अवधकृत वकया गया।

भारतीय पररिद्  केंद्रीय और प्रां तीय विधान पररषदों में गै र -सरकारी सदस्ों की िृ न्सद्ध की गई।
अनधनियम, 1892  विधान पररषदें बिि पर चचाा कर सकती हैं और काया पाविका के प्रश्ों का उत्तर दे ने के विए अवधकृत
वकया |
 केंद्रीय विधान पररषद् और बं गाि चैम्बर ऑफ़ कॉमसा में गै र सरकारी सदस्ों के नामां कन के विए
िायसराय की शन्सक्तयों का प्रािधान |
 इसके अिािा प्रां तीय विधान पररषदों में गिनार को वििा पररषद् , नगरपाविका, विश्वविद्यािय, चैम्बर ऑफ़
कॉमसा की वसफ़ाररशो पर गैर-सरकारी सदस्ों को वनयु क्त करने की शन्सक्त थी |

भारतीय पररिद्  मॉिे-वमंिो सु धार।


अनधनियम, 1909  केंद्रीय पररषद् में सदस् 16 से 60 तक और प्रां तीय विधान पररषदों में सदस् सं ख्या एक समान नहीं थी।
 दोनों पररषदों के सदस् अनुपूरक प्रश् पूछ सकते थे , बिि पर प्रस्ताि पेश कर सकते थे।
 िायसराय और राज्यपािों की काया कारी पररषदों के साथ वकसी िारतीय को सं बद्ध होने का प्रािधान।
(सत्येंद्र प्रसाद वसन्हा कानून सदस् के रूप में प्रथम िारतीय)
 मुसिमानों के विए सां प्रदावयक प्रवतवनवधत्व और अिग वनिाा चक मंडि का प्रािधान।

भारत सरकार  मोंिेग्यू-चेम्सफोडा सु धार िी कहा िाता है ।


अनधनियम, 1919  केंद्रीय और प्रां तीय विषयों का पृथक्करण वकया गया।
 प्रां तीय विषय- विधान पररषद् के प्रवत उत्तरदायी मंवत्रयों की सहायता से गिनार द्वारा शावषत|
 प्रां तीय विषय- गिनार द्वारा अपनी काया पाविका पररषद् की सहायता से शावसत।
 दे श में वद्वसदनीय व्यिस्था और प्रत्यक्ष वनिाा चन व्यिस्था की शुरुआत की।
 िायसराय की काया कारी पररषद् के 6 में से 3 सदस्ों का िारतीय होना अवनिाया था ।
 वसखों, िारतीय ईसाइयों, एं ग्लो-इं वडयन और यू रोपीय िोगों के विए िी अिग वनिाा चक मंडि की व्यिस्था।
 सं पवत्त, कर या वशक्षा के आधार पर िोगों को मतावधकार प्रदान करना।
 िंदन में िारत के उच्चायु क्त का कायाा िय बनाया गया।
 वसविि से िकों की िती के विए एक केंद्रीय से िा आयोग की स्थापना।
 प्रां तीय बििों को केंद्रीय बिि से अिग वकया और प्रां तीय विधानसिाओं को अपने बिि अवधवनयवमत
करने के विए अवधकृत वकया गया।

भारत सरकार  अन्सखि िारतीय सं घ की स्थापना विसमें राज्य ररयासतें एक इकाई मानी गई।
अनधनियम, 1935  शन्सक्तयों का तीन सू वचयों में पृथक्करण वकया गया।
o संघीय सूची (केंद्र के विए, 59 विषय)
o प्रां तीय सूची (प्रां तों के विए, 54 विषय)
o समिती सूची (दोनों के विए, 36 विषय)।
 अिवशष्ट शन्सक्तयााँ : िायसराय में वनवहत वकया गया I

3
 प्रां तों में द्वै ध शासन को समाप्त करके प्रां तीय स्वायत्तता की शुरुआत की गई।
o प्रां तों में उत्तरदायी विम्मेदार सरकारों की शुरुआत की गईI
 केंद्र में द्वै ध शासन को अपनाकर
 सं घीय विषयों को हस्तां तररत विषयों और आरवक्षत विषयों में वििावित वकया गया था।
 11 में से 6 प्रां तों (बं गाि, बॉम्बे , मद्रास, वबहार, असम और सं युक्त प्रां त) में वद्वसदनीय व्यिस्था की शुरुआत
हुई।
 दवित िगों, मवहिाओं और श्रवमकों के विए अिग वनिाा चक मंडि बनाकर साम्प्रदावयक प्रवतवनवधत्व को
विस्तार प्रदान वकया गया।
 िारतीय पररषद् को समाप्त कर वदया गया।
 िारतीय ररििा बैं क िारत दे श की मुद्रा और ऋण को वनयं वत्रत करने के विए स्थापना की गई।
 सं घीय िोक से िा आयोग, प्रां तीय िोक से िा आयोग एिं सं युक्त िोक से िा आयोग की स्थापना ।
 1937 में सं घीय-न्यायािय स्थावपत वकया गयाI

भारतीय स्वतोंत्रता  माउं िबे िन योिना को तत्काि प्रिाि से िागू वकया गया
अनधनियम, 1947  िारत में विविश शासन को समाप्त करके इसे स्वतं त्र सं प्रिु राष्टर के रूप में घोवषत वकया गयाI
 15 अगस्त 1947 से िारत को स्वतं त्र और सं प्रिु राज्य घोवषत वकया।
 विविश राष्टरमंडि से अिग होने के अवधकार के साथ िारत और पावकस्तान को दो स्वतं त्र ि सं प्रिु राष्टरों के
रूप में वििावित वकया गया।
 सं विधान सिाओं को अपने सं बंवधत राष्टरों का सं विधान बनाने और अपनाने का अवधकार वदया गया |
 िारतीय राज्य सवचि के पद को समाप्त कर वदया और राष्टरमंडि मामिों के राज्य सवचि को अपनी
शन्सक्तयों को स्थानां तररत कर वदया।
 वसविि से िकों की वनयु न्सक्त तथा पदों में आरक्षण की प्रणािी को समाप्त कर वदया गयाI
 इं ग्लैंड के रािा से िारत के सम्राि की उपावध को समाप्त कर वदया गया ।
 उसे विधे यकों को िीिो करने के अवधकार से िं वचत कर वदया या कुछ विधे यकों को उनके अनु मोदन के
विए आरक्षण दे ने के विए कहा।
 िारत के गिनार िनरि तथा प्रां तीय गिनारों को राज्य के सं िैधावनक प्रमुख के रूप में वनयु क्त वकया गयाI

सोंनवधाि सभा  ररयासतों के प्रवतवनवधयों का चयन - ररयासतों के प्रमुखों


िारत की संविधान सिा की स्थापना के विए द्वारा I
कैवबनेि वमशन योिना का प्रािधान-  सदस्ों का चयन - अप्रत्यक्ष रूप से प्रां तीय विधानसिाओं
 कुि सदस् = 389 आं वशक रूप से के सदस्ों द्वारा।
वनिाा वचत और आं वशक रूप से मनोनीतI  िनता की िािनाओं को प्रस्तु त नही ं वकया क्ोंवक प्रां तीय
o 296 सीिें विविश िारत को आिं वित की गईं विधानसिाओं के सदस् स्वयं एक सीवमत मतावधकार पर
 11 गिनासा के प्रां तों से 292 सदस् चुने गए थे। विविश िारतीय प्रां तों के विए चुनाि िुिाई-
 4 मुख्य आयु क्तों के प्रां तों में से 4 सदस् अगस्त, 1946 में हुए।
o दे सी ररयासतों को 93 सीिें उनकी सं बंवधत िनसं ख्या o िारतीय राष्टरीय कां ग्रेस ने 208 सीिें िीती,ं
के अनुपात में सीिें आिं वित की गई । o मुन्सिम िीग ने 73 सीिें िीती,
 प्रत्येक विविश प्रां त को आिं वित सीिों का उनकी o 15 वसिें वनदा िीय प्रवतवनवधयों को वमिी I
िनसं ख्या के अनुपात में मुसिमानों, वसखों और सामान्य  ररयासतों की सीिें नही ं िरी गई क्ोंवक उन्होंने खुद
(अन्य) के बीच वििावित वकया िाना था। को विधानसिा से अिग रखने का वनणा य विया |
 प्रत्येक समुदाय के प्रवतवनवधयों का चुनाि → एकि  सिा में समाि के हर िगा के प्रवतवनवध थे , िेवकन
सं क्रमणीय मत का उपयोग करके आनुपावतक प्रवतवनवधत्व तत्कािीन हन्सस्तयों में से महात्मा गााँ धी संविधान सिा के
द्वारा उस समुदाय के सदस्ों द्वारा चुने िाते हैं । सदस् नही ं थे।

4
 28 अप्रैि, 1947 को 6 राज्यों के प्रवतवनवध विधानसिा का आवदिासी क्षे त्रों और दवितों और अन्य वपछड़े िगों के
वहस्सा बनेI विए पयाा प्त सु रक्षा प्रदान की िाएगी I
o न्याय और सभ्य राष्टरों के कानून के अनुसार गणराज्य
 3 िून 1947 की माउं िबे िन योिना के बाद अवधकां श के क्षे त्र और िूवम, समुद्र और िायु पर उसके सं प्रिु
ररयासतों ने विधानसिा में प्रिे श वकया, बाद में िारतीय अवधकारों की अखंडता बनाए रखें I
अवधराज्य से मुन्सिम िीग िी विधानसिा में शावमि हुई। o दु वनया में अपना सही और सम्मावनत स्थान प्राप्त
सोंनवधाि सभा की कायय प्रणािी करना और विश्व शां वत को बढािा दे ने और मानि
िावत के कल्याण के विए अपना पूणा और इच्छु क
 पहिी बै ठक- 9 वदसं बर, 1946, केिि 21 योगदान दे ना ।
सदस्ों ने िाग विया।
 मुन्सिम िीग ने बै ठक का बवहष्कार वकया भारतीय स्वतोंत्रता अनधनियम, 1947 द्वारा
और पावकस्तान के रूप में एक अिग दे श की मााँ ग कीI पररवनतयत
 डॉ. सन्सच्चदानंद वसन्हा विधानसिा के अस्थायी अध्यक्ष के  सं विधान सिा → सं विधान बनाने के विए पूरी तरह से
रूप में चुने गए, (फ्ां स की तरह ) सं प्रिु वनकाय बनाया गया |
 डॉ. रािेंद्र प्रसाद को विधानसिा के स्थायी अध्यक्ष के रूप  सं विधान सिा: एक विधायी वनकाय बन गया। िो वक
में चुना गया था `सं विधान बनाने और दे श के विए सामान्य कानून बनाने के
 एच.सी. मुखिी और िी.िी. कृष्णमाचारी → उपाध्यक्ष विए विम्मेदार।
उद्दे श्य प्रस्ताव o संिैधावनक वनकाय के रूप में काम वकया → डॉ.
रािेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में I
 13 वदसं बर, 1946 को पं. ििाहर िाि o एक विधावयका के रूप में → िी.िी. माििंकर
नेहरू द्वारा सं विधान सिा में प्रस्तु त वकया अध्यक्ष बने (26 निं बर, 1949 तक)।
गया I विसे 22 िनिरी, 1947 को  मुन्सिम िीग विधानसिा से हि गईI
सिा सम्मवत से विधानसिा द्वारा स्वीकृत o सं विधान सिा की कुि सदस् सं ख्या 389 से घिाकर
कर विया गया। 299 रह गई।
 महत्पूणय प्रावधाि-
o िारत स्वतं त्र सं प्रिु गणराज्य घोवषत तथा िविष्य के सोंनवधाि सभा द्वारा निष्पानदत अन्य कायय -
प्रशासन को चिाने हे तु सं विधान वनमाा ण की घोषणा I  राष्टरमंडि में िारत की सदस्ता की पुवष्ट
o िारत, विविश िारत के क्षेत्रों का एक सं घ की मई, 1949
होगा विनकी सीमाएाँ होगी तथा सं विधान सिा द्वारा  िारत के राष्टरीय ध्वि को अपनाया गया
वनधाा ररत विनके पास अिवशष्ट शन्सक्तयााँ होंगी और िो 22 िुिाई, 1947 को
सं घ में वनवहत सरकार और प्रशासन की सिी शन्सक्तयों
 राष्टरगान को अपनाया गया 24 िनिरी,
और कायों का प्रयोग करें गी।
1950 को
o सं प्रिु स्वतं त्र िारत की सिी शन्सक्तयााँ और अवधकार
 डॉ. रािेंद्र प्रसाद को िारत के पहिे राष्टरपवत के रूप में
िारत की िनता से प्राप्त होगी I
चुना गया 24 िनिरी, 1950 को
o िारत के सिी िोगों को न्याय, सामाविक, आवथाक
और रािनीवतक अिसर की समता और कानून के
 सं विधान सिा ने अपना अंवतम सत्र आयोवित वकया 24
िनिरी, 1950 को िेवकन 26 िनिरी, 1950 से 1951-52
समक्ष विचार, अविव्यन्सक्त, विश्वास, आस्था, पूिा, सं घ
में पहिे आम चु नाि होने तक अंतररम सं सद के रूप में
और काया की स्वतं त्रता अल्पसं ख्यकों, वपछड़े और
काया िारी रखा ।

सोंनवधाि सभा की सनमनतयाों -

सनमनत अध्यक्षता

प्रमु ि सनमनतयााँ सं घ शन्सक्त सवमवत ििाहर िाि नेहरू

सं घीय राज्यों के विए सवमवत ििाहर िाि नेहरू

प्रारूप सवमवत सरदार पिे ि

5
प्रां तीय सं विधान सवमवत डॉ. बी.आर. अम्बे डकर

मौविक अवधकारों, अल्पसं ख्यकों और िनिातीय और बवहष्कृत क्षे त्रों पर सरदार पिे ि
सिाहकार सवमवत – 5 उप सवमवतयााँ

(i) मौविक अवधकार उप-सवमवत िे. बी. कृपिानी

(ii) अल्पसं ख्यक उप सवमवत एच.सी. मुखिी

(iii) उत्तर-पूिा सीमां त िनिातीय क्षे त्र और असम अपिविात और आं वशक गोपीनाथ बारदोिोई
रूप से बवहष्कृत क्षे त्र उप-सवमवत

(iv) बवहष्कृत और आं वशक रूप से बवहष्कृत क्षे त्र (असम के अिािा) उप- ए.िी. ठक्करी
सवमवत

(v) उत्तर-पविम सीमां त िनिातीय क्षे त्र उप-सवमवत अदद

सं चािन सवमवत डॉ. रािेंद्र प्रसाद


राष्टरीय ध्वि सं बंधी तदथा सवमवत

िघु सनमनतयााँ वित्त और कमाचारी सवमवत डॉ. रािेंद्र प्रसाद

साख सवमवत अल्लावद कृष्णास्वामी अय्यर

सदन सवमवत बी पट्टावि सीतारमैया


काया सं चािन सवमवत डॉ. के.एम. मुंशी

सं विधान सिा के कायों संबंधी सवमवत िी.िी. माििंकर

सिोच्च न्यायािय के विये तदथा सवमवत एस. िरदाचारी


सं घ के सं विधान के वित्तीय प्रािधानों पर विशेषज्ञ सवमवत

मुख्य आयु क्तों के प्रां तों के विए सवमवत बी. पट्टावि सीतारमैया

सं घीय सं विधान के वित्तीय प्रािधानों पर विशेषज्ञ सवमवत नविनी रं िन सरकार

िाषाई प्रां त आयोग एस.के. डार (िो की सिा के सदस्


नही ं थे)

प्रारूप सं विधान की िााँ च के विए विशेष सवमवत ििाहरिाि नेहरू

नागररकता पर तदथा सवमवत एस. िरदाचारी


(िो की सिा के सदस् नही ं थे)
o अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर I
प्रारूप सनमनत-
o डॉ. के.एम. मुंशी I
 29 अगस्त 1947 को नए सं विधान का o सै यद मोहम्मद सादु ल्ला I
मसौदा तै यार करने के विए स्थावपत o एन.माधि राि (बी.एि.वमत्र द्वारा स्वास्थ्य कारणों से
वकया गया था। इस्तीफा दे ने पर)I
 सवमवत सदस् सात - o िी.िी. कृष्णमाचारी (1948 में डी. पी. खेतान की मृत्यु
o डॉ. बी.आर. अम्बे डकर → अध्यक्ष I के बाद उनकी िगह िी) I
o एन गोपािस्वामी अय्यं गर I

6
 सं विधान का पहिा प्रारूप तैयार वकया गया फरिरी, 1948 सोंनवधाि सभा की आि चिा-
में
 प्रवतवनवध वनकाय नही ं - सीवमत मतावधकार द्वारा चुनाि के
 दू सरा प्रारूप प्रकावशत हुआ अक्टू बर, 1948 में। कारण िनादे श को प्रवतवबं वबत नही ं हुआ ।
 एक सं प्रिु वनकाय नही ं - क्ोंवक इसका गठन विविश
सोंनवधाि का प्रभाव में आिा
सरकार के प्रस्तािों के आधार पर वकया गया था और
 डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 4 निं बर, 1948 को अंवतम उनकी अनुमवत से इसकी बै ठक आयोवित की गई थी।
प्रारूप पेश वकया I  अमेररकी सं विधान
 प्रारूप पहिी बार पढा गया, पााँ च वदन तक  (केिि 4 महीने) की तु िना में सं विधान बनाने में अवधक
आम चचाा हुई I समय िगा |
 कां ग्रेस का प्रिु त्व रहा I
 सं विधान पर दू सरी बार 15 निं बर, 1948 से
 िकीिों और रािनेताओं का िचास्व रहा I
विचार होना शुरू हुआ I
 वहं दुओं का िचास्व रहा I
 तीसरी बार 14 निं बर, 1949 से विचार होना शुरू हुआ I
 26 निं बर, 1949 (सं विधान वदिस) को पाररत वकया गया ।  एि .एन. मु खिी = सं विधान सिा के मुख्य
प्रारूपकार (चीफ डराफ्टमैन)I
 26 निं बर 1949 को अपनाए गए प्रारूप सं विधान में
वनवहत है – प्रस्तािना, 395 अनुच्छेद 8 अनुसूवचयााँ I  प्रेम वबहारी नारायण रायजादा = सु िेखक
सोंनवधाि का प्रवतयि- (कैविग्राफर) - सं विधान के मूि शब्ों को प्रिावहत
इिै विक शैिी में विखा गया ।
 395 अनुच्छेद |
 नंद िाि बोस और बे हर राममनोहर वसन्हा सवहत
 8 अनुसूवचयााँ ।
शां वत वनकेतन के किाकारों द्वारा सु शोवित और
 अनु च्छेद 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 379, 380,
सिाया गया।
388, 391, 392 और 393 में वनवहत I नागररकता, चुनाि,
 वहं दी सं स्करण की सु िेख = िसंत कृष्ण िै द्य I
अंतररम सं सद, अस्थायी और संक्रमणकािीन प्रािधान और
o सिाया और प्रकावशत = नंद िाि बोस ।
सं वक्षप्त शीषाक 26 निं बर, 1949 को िागू । शेष प्रािधान
26 िनिरी, 1950 को िागू हुए।  हाथी = सं विधान सिा का प्रतीक। हाथी की मूवता सिा
की मुहर पर खुदी हुई है ।
 सं विधान को अपनाने के साथ, िारतीय स्वतं त्रता
अवधवनयम, 1947 और िारत सरकार अवधवनयम, 1935  मूि रूप से िारत के सं विधान में वहं दी िाषा में
के सिी प्रािधान वनरस्त कर वदए गए। सं विधान के एक आवधकाररक विषय िस्तु से सं बंवधत
कोई प्रािधान नही ं वकया था।
 एबोविशन ऑफ़ वप्रिी काउं वसि ज्यू ररन्सस्डक्शन एक्ट
o वहं दी प्रारूप- 1987 के 58िें संविधान सं शोधन
(1949) िागू रहा ।
अवधवनयम द्वारा बनाया गया विसने सं विधान के
अंवतम िाग XXII में एक नया अनु च्छेद 394-ए
डािा गया।

7
––
2
CHAPTER प्रस्तावना

 सं विधान का परिचय या प्रस्तािना,सं विधान के विए


विशावनिे श प्रिान किता है ।
 सं विधान के आधाि के रूप में बु वनयािी िशशन औि मौविक प्रस्तावना के मूल तत्व
मूल्यं का प्रतीक है ।  सं विधान के अवधकाि का स्त्रयत → भाित के ियग।
 सं विधान के सं स्थापकयं के सपनयं औि आकां क्षाओं कय  भाित की प्रकृवत भाित कय सं प्रभु , समाजिािी, धमशवनिपेक्ष
िशाश ता है । ियकतां विक औि गणतां विक िाज्य घयवषत किता है ।
 शेष सं विधान के िागू हयने के बाि अवधवनयवमत वकया  सं विधान के उद्दे श्य: न्याय, स्वतं िता, समानता औि बं धुत्व
 सं विधान कय अपनाने की वतवथ - यह तािीख 26 निं बि,
गया था।
1949 है ।
 न ही विधावयका की शक्ति का स्रयत है औि न ही कयई
वनषेधक। प्रस्तावना से संबंधित प्रमुख शब्द
 गै ि-न्यायसं गत कानून की अिाितयं में िागू किने ययग्य  संप्रभु ता - पूणश सं प्रभु सिकाि िह है जय
नही।ं वकसी अन्य शक्ति द्वािा वनयं वित नही ं
 बु वनयािी ढााँ चे कय बििे वबना सं शयवधत वकया जा सकता हयती है तथा अपने आं तरिक या बाहिी
है । मामियं के वनष्पािन में स्वतं ि है । सं प्रभु

8
हुए वबना वकसी िे श का अपना सं विधान नही ं हय सकता। o रूसी क्ां वत (1917) से न्याय के तत्वयं कय विया गया
भाित एक सं प्रभु िे श है । यह वकसी भी बाहिी वनयं िण से है ।
मुि है । o न्याय के तीन आयाम- सामावजक, आवथशक औि
 समाजवादी - मूि सं विधान का वहस्सा नही।ं िाजनीवतक।
o 42िें सं शयधन अवधवनयम द्वािा जयडा गया।  सामाधजक न्याय - जावत, िं ग, नस्ल, धमश, विंग
o आवथशक वनययजन के सं िभश में उपययग वकया जाता है । आवि के आधाि पि वबना वकसी सामावजक भे ि
o असमानताओं कय िू ि किने , सभी के विए न्यूनतम के सभी नागरिकयं के साथ समान व्यिहाि।
बु वनयािी आिश्यकताओं का प्रािधान, समान काम के  आधथमक न्याय - आवथशक कािकयं पि गै ि-
विए समान िे तन जैसे आिशों कय प्राप्त किने की भे िभाि।
प्रवतबद्धता। सामावजक न्याय + आवथशक न्याय =
 िमम धनरपे क्षता - 42िें सं विधान सं शयधन अवधवनयम 1976 'वितिणात्मक न्याय'
द्वािा जयडा गया।
 राजनीधतक न्याय - सभी नागरिकयं कय समान
o भाित न तय धावमशक है , न अधावमशक है औि न ही धमश
िाजनीवतक अवधकाि, सभी िाजनीवतक
विियधी है ।
कायाश िययं में समान पहुाँ च औि सिकाि तक
o कयई िाष्ट्रीय धमश नही-ं िाज्य वकसी विशेष धमश का
अपनी बात िखने का अवधकाि ।
समथशन नही ं किता है ।
 स्वतंिता - विचाि औि अवभव्यक्ति की व्यक्तिययं की
 लोकतां धिक गणराज्य - सिकाि ियगयं द्वािा चुनी जाती है
गवतविवधययं पि प्रवतबं ध की अनुपक्तस्थवत औि साथ ही
औि ियगयं के प्रवत वजम्मेिाि औि जिाबिे ह हयती है ।
व्यक्तिगत व्यक्तित्व के विकास के अिसि प्रिान किना।
o ियकतां विक प्रािधान - सािश भौवमक ियस्क
o फ्ां सीसी क्ां वत (1789-1799) से विया गया।
मतावधकाि, चुनाि, मौविक अवधकाि औि वजम्मेिाि
 समानता - समाज के वकसी भी िगश के विए विशेष
सिकाि।
विशेषावधकाियं का अभाि औि वबना वकसी भे िभाि के
o गणतं ि - िाज्य का वनिाश वचत प्रमु ख (िाष्ट्रपवत → प्रत्यक्ष
सभी व्यक्तिययं के विए पयाश प्त अिसियं का प्रािधान।
अप्रत्यक्ष रूप से वनिाश वचत) विटे न जैसा िं शानुगत
o समानता के तीन आयाम- नागरिक, िाजनीवतक औि
शासक नही।ं
आवथशक।
 न्याय - ियगयं कय भयजन, िस्त्र, आिास, वनणश य िेने में
भागीिािी औि मनुष्य के रूप में सम्मान के साथ जीने के
 बं िुत्व - भाईचािे की भािना, एकि नागरिकता की
व्यिस्था औि अनुच्छेि 51A (मौविक कतश व्य) द्वािा बं धुत्व
बु वनयािी अवधकाियं के सं िभश में िे क्या हकिाि हैं ।
की भािना कय बढािा िे ता है ।

संधविान के एक भाग के रूप में प्रस्तावना -


बे रुबारी संघ बनाम अज्ञात मामला, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य केंद्र सरकार बनाम
1960 मामला, 1973 एलआईसी ऑफ इं धिया
मामले , 1995

सिोच्च न्यायािय ने कहा वक 'प्रस्तािना सिोच्च न्यायािय ने कहा वक "सं विधान की सिोच्च न्यायािय ने माना वक प्रस्तािना
वनमाश ताओं के विमाग कय खयिने की प्रस्तािना कय अब सं विधान का वहस्सा माना सं विधान का अवभन्न अंग है , िेवकन भाित
कुंजी है ' िेवकन इसे सं विधान का वहस्सा जाएगा। प्रस्तािना सिोच्च शक्ति या वकसी में न्याय के न्यायािय में सीधे िागू किने
नही ं माना जा सकता। इसविए यह प्रवतबं ध या वनषेध का स्रयत नही ं है , िेवकन यह ययग्य नही ं है ।
कानून की अिाित में िागू किने ययग्य सं विधान की विवधययं औि प्रािधानयं की व्याख्या
नही ं है । में महत्वपूणश भू वमका वनभाती है ।"

9
––
3 सोंविधान की मुख्य विशेषताएँ
CHAPTER
 सबसे लंबा ललखित सं लिधान - इसमें शालमल हैं - o दु लनया के कई स्रयतयं और सं लिधानयं से उधार के
o राज्यं और केंद्र और उनके अंतसं बंधयं के ललए अलग प्रािधान।
प्रािधान।

दे श ों भारतीय सोंविधान की अन्य सोंविधान ों से प्रेररत विशेषताएँ

ऑस्ट्रेललया  समिती सू ची
 व्यापार, िालिज् और समागम की स्वतं त्रता
 सं सद के दयनयं सदनयं की संयुक्त बै ठक

कनाडा  एक मजबू त केंद्र के साथ सं घीय व्यिस्था


 केंद्र में अिलशष्ट शखक्तययं का लनलहत हयना
 केंद्र द्वारा राज्यं के राज्पालयं की लनयु खक्त
 अनुसूलचत जालत का सलाहकार क्षे त्रालधकार

आयरलैंड  राज् के नीलत लनदे शक लसद्ां त


 राज्सभा के ललए सदस्यं का नामां कन
 राष्टरपलत के चुनाि की लिलध कानून द्वारा स्थालपत प्रलिया

यू एसएसआर/रूस  मौललक कतत व्य


 प्रस्तािना में न्याय का आदशत (सामालजक, आलथतक और राजनीलतक)

यू . के.  सं सदीय सरकार


 कानून का शासन
 लिधायी प्रलिया
 एकल नागररकता
 कैलबनेट प्रिाली
 लिशेषालधकार ररट
 सं सदीय लिशेषालधकार
 लद्वसदन
 कानून द्वारा स्थालपत प्रलिया

जापान  कानून द्वारा स्थालपत प्रलिया

यू . एस.  मौललक अलधकार


 न्यायपाललका की स्वतं त्रता
 न्यालयक समीक्षा
 राष्टरपलत का महालभययग
 सिोच्च न्यायालय एिं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशयं कय हटाना
 उपाध्यक्ष का पद

जमतनी (िीमर)  आपातकाल के दौरान मौललक अलधकारयं का लनलंबन

दलक्षि अफ्रीका  भारतीय सं लिधान में सं शयधन की प्रलिया


 राज्सभा के सदस्यं का चुनाि

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फ्रां स  गितं त्र
 प्रस्तािना में स्वतं त्रता, समानता और बं धुत्व के आदशत
 पीएम िास्तलिक कायत कारी और मंलत्रपररषद् के
o अनुसूलचत जालत, अनुसूलचत जनजालत, मलहलाओं,
प्रमुि हयते हैं जय सामूलहक रूप से लनचले सदन
बच्चयं और लपछडे क्षे त्रयं के ललए अलग प्रािधान।
(लयकसभा) के ललए लजम्मेदार हयते हैं ।
o अलधकारयं की लिस्तृ त सू ची, डीपीएसपी और प्रशासन
प्रलियाओं का लििरि।  एकल नागररकता- सं घ द्वारा प्रदान की जाने िाली एकल

o मूल रूप से (1949) में एक प्रस्तािना, 395 लेि (22 नागररकता और पूरे भारत में सभी राज्यं द्वारा मान्यता

भागयं में लिभालजत) और 8 अनुसूलचयां थी।ं प्राप्त है ।

o ितत मान में, इसमें एक प्रस्तािना, 25 भाग, 448  साित भौलमक ियस्क मतालधकार- साित भौलमक ियस्क

अनु च्छेद, 12 अनुसूलचयााँ और अब तक के 104 मतालधकार की पद्लत के माध्यम से भारत में राजनीलतक

सं शयधन शालमल हैं । समानता स्थालपत करता है जय 'एक व्यखक्त एक ियट' के

 कठयरता और लचीलेपन का अनू ठा लमश्रि - आधार पर कायत करता है ।

o कुछ लहस्यं में सामान्य कानून बनाने की प्रलिया द्वारा o प्रत्येक भारतीय लजसकी आयु 18 िषत या उससे

सं शयधन लकया जा सकता है , जबलक कुछ प्रािधानयं अलधक है , जालत, ललंग, नस्ल, धमत या खस्थलत के बािजूद

कय उस सदन की कुल सदस्ता के बहुमत से और चुनाि में मतदान करने का हकदार है ।

उस सदन के उपखस्थत और मतदान करने िाले  स्वतं त्र और एकीकृत न्यालयक प्रिाली- कायत पाललका और
सदस्यं के कम से कम दय-लतहाई सदस्यं के बहुमत लिधालयका के प्रभाि से मुक्त।

से सं शयलधत लकया जा सकता है । o सिोच्च न्यायालय के रूप में एससी लजसके नीचे

o कुछ सं शयधनयं कय राष्टरपलत के समक्ष स्वीकृलत के ललए हाईकयटत (उच्च न्यायालय) और लनचली अदालतें आती

प्रस्तु त लकए जाने से पहले कम से कम आधे राज्यं के हैं ।

लिधानमंडलयं द्वारा अनुसमलथतत करने की भी  मौललक अलधकार, मौललक कततव्य और डीपीएसपी -


आिश्यकता हयती है । o मौललक अलधकार पूित नही ं हैं , लेलकन स्वयं सं लिधान

 भारत एक सं प्रभु , समाजिादी, धमतलनरपेक्ष, लयकतां लत्रक द्वारा पररभालषत सीमाओं के अधीन हैं और कानून की

और गितं त्र के रूप में - भारत अपने लयगयं द्वारा अदालत में लागू करने ययग्य हैं ।

साित भौलमक ियस्क मतालधकार के आधार पर अपने चुने o राज् कस नीलत लनदे शक तत्व शासन के सं बंध में

हुए प्रलतलनलधययं के माध्यम से शालसत हयता है । राज्यं द्वारा पालन लकए जाने िाले लदशालनदे श हैं और

 सरकार की सं सदीय प्रिाली- सं सद मंलत्रपररषद् के कानून की अदालत में लागू करने ययग्य नही ं हैं ।

कामकाज कय लनयं लत्रत करती है o 42 िें सं शयधन द्वारा जयडे गए मौललक कतत व्य नैलतक

o कायत पाललका लिधालयका के प्रलत उत्तरदायी हयती है लििे क हैं लजनका नागररकयं कय पालन करना चालहए।

और जब तक उसे लिधालयका का लिश्वास प्राप्त है तब  एक मजबू त केंद्रीकरि प्रिृ लत्त के साथ सं घ- भारत

तक िह सत्ता में बनी रहती है । लिनाशकारी राज्यं के साथ एक अलिनाशी सं घ है । लजसका

 भारत के राष्टरपलत, जय पां च साल तक पद पर बने अथत है लक यह आपातकाल के समय एकात्मक चररत्र प्राप्त

रहते हैं , नाममात्र के या संिैधालनक प्रमुि करता है ।

(कायत कारी) हयते हैं ।  न्यालयक समीक्षा के साथ सं सदीय सिोच्चता कय सं तुललत
करना- न्यालयक समीक्षा की शखक्त के साथ एक स्वतं त्र
न्यायपाललका।

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भारतीय सों विधान के भाग और अनु सूवियाों -

भाग लिषय - िस्तु सं बंलधत अनुच्छेद

I सं घ और उसके क्षे त्र 1- 4

II नागररकता 5 -11

III मौललक अलधकार 12-35

IV राज् के नीलत लनदे शक लसद्ां त 36-51


IV-A मौललक कतत व्य 51-A

V केंद्र सरकार 52-151

अध्याय I - कायत कारी 52 -78


अध्याय II - सं सद 79 - 122
अध्याय III - राष्टरपलत की लिधायी शखक्तयााँ 123
अध्याय IV - सं घ की न्यायपाललका 124 - 147
अध्याय V - भारत के लनयं त्रक-महालेिापरीक्षक 148- 151

VI राज् सरकारें 152-237

अध्याय I - सामान्य 152


अध्याय II - कायत पाललका 153- 167
अध्याय III - राज् लिधानमंडल 168- 212
अध्याय IV - राज्पाल की लिधायी शखक्तयााँ 213
अध्याय V - उच्च न्यायालय 214- 232
अध्याय VI - अधीनस्थ न्यायालय केंद्र शालसत प्रदे श 233- 237

VII केंद्र शालसत प्रदे श 239-242

VIII पंचायतें 243-243-(O)

VIII-A नगर पाललकाओं 243-(P) to 243-(ZG)

VIII-B सहकारी सलमलतयां 243-(ZH) to 243-(ZT)

IX अनुसूलचत और जनजातीय क्षे त्र 244-244 (A)


सं घ और राज्यं के बीच सं बंध 245-263

X अध्याय I - लिधायी सं बंध 245 -255


अध्याय II - प्रशासलनक सं बंध 256 -263

XI लित्त, सं पलत्त, अनुबंध और सू ट 264 - 300-A

अध्याय I - लित्त 264- 291


अध्याय II - उधार लेना 292 -293
अध्याय III - सं पलत्त, अनुबंध, अलधकार, दालयत्व, दालयत्व और सू ट 294- 300
अध्याय IV - सं पलत्त का अलधकार 300-A

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XII भारत के क्षे त्र के भीतर व्यापार, िालिज् और समागम 301 -307

XIII सं घ और राज्यं के अधीन से िाएं 308 -323

अध्याय I - से िाएं 308 -314


अध्याय II - लयक से िा आययग 315- 323

XIII-A न्यायालधकरि 323(A) -323(B)

XIV चुनाि 324 - 329(A)

XV कुछ िगों से सं बंलधत लिशेष प्रािधान 330 -342

XVI राजभाषा 343 -351

अध्याय I - सं घ की भाषा 343- 344


अध्याय II - क्षे त्रीय भाषाएाँ 345 -347
अध्याय III-उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालययं की भाषा और इसी तरह 348 -349
अध्याय IV- लिशेष लनदे श 350 -351

XVII आपातकालीन प्रािधान 352 -360

XVIII लिलिध 361 -367

XIX सं लिधान का सं शयधन 368

XX अस्थायी, सं िमिकालीन और लिशेष प्रािधान 369-392

XXI सं लक्षप्त शीषतक, प्रारं भ, लहं दी में आलधकाररक पाठ और लनरसन 393-395

अनुसूलचयां सं लिधान में सू लचयां हैं जय नौकरशाही गलतलिलध और सरकार की नीलत कय िगीकृत और सारिीबद् करती हैं ।

सोंख्या विषय - िस्तु

पहली 1. राज्यं के नाम और उनके क्षे त्रीय अलधकार क्षे त्र।


अनु सूिी 2. केंद्र शालसत प्रदे शयं के नाम और उनका लिस्तार (सीमाएाँ )।

दू सरी पररलखिययं पर भत्तयं, लिशेषालधकारयं आलद से सं बंलधत प्रािधान


अनु सूिी
1. भारत के राष्टरपलत
2. राज्यं के राज्पाल
3. लयकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
4. राज् सभा के सभापलत और उपसभापलत
5. राज्यं में लिधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
6. राज्यं में लिधान पररषद् के सभापलत और उपसभापलत
7. सिोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
8. उच्च न्यायालययं के न्यायाधीश
9. भारत के लनयं त्रक एिं महालेिापरीक्षक

तीसरी शपथ या पुलष्ट के रूप


अनु सूिी
1. केंद्रीय मंत्री

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2. सं सद के चुनाि के ललए उम्मीदिार
3. सं सद सदस्
4. सिोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
5. भारत के लनयं त्रक-महालेिापरीक्षक
6. राज् के मंत्री
7. राज् लिधानमंडल के चु नाि के ललए उम्मीदिार
8. राज् लिधानमंडल के सदस्
9. उच्च न्यायालययं के न्यायाधीश

िौथी राज्यं और केंद्र शालसत प्रदे शयं कय राज्सभा में सीटयं का आिं टन।
अनु सूिी

पाों ििी अनुसूलचत क्षे त्रयं और अनुसूलचत जनजालतययं के प्रशासन और लनयं त्रि से सं बंलधत प्रािधान।
अनु सूिी

छठी असम, मेघालय, लत्रपुरा और लमजयरम राज्यं में जनजातीय क्षे त्रयं के प्रशासन से सं बंलधत प्रािधान।
अनु सूिी

सातिी ों सू ची I (सं घ सू ची), सू ची II (राज् सू ची) और सू ची III (समिती सू ची) के सं दभत में सं घ और राज्यं के बीच शखक्तययं का
अनु सूिी लिभाजन। ितत मान में , सं घ सू ची में 100 लिषय (मूल रूप से 97), राज् सू ची में 61 लिषय (मूल रूप से 66) और समिती
सू ची में 52 लिषय (मूल रूप से 47) शालमल हैं ।

आठिी ों सं लिधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएाँ । मूल रूप से इसकी 14 भाषाएं थी ं लेलकन ितत मान में 22 भाषाएं हैं । िे हैं - असलमया,
अनु सूिी बं गाली, बयडय, डयगरी (डयंगरी), गु जराती, लहं दी, कन्नड, कश्मीरी, कयंकिी, मैलथली, मलयालम, मलिपुरी, मराठी, नेपाली,
उलडया, पंजाबी, सं स्कृत, सं थाली, लसं धी, तलमल, ते लुगु और उदू त । लसं धी कय 1967 के 21िें सं शयधन अलधलनयम द्वारा जयडा
गया I कयंकिी, मलिपुरी और नेपाली कय 1992 के 71िें सं शयधन अलधलनयम द्वारा जयडा गया और बयडय, डयंगरी, मैलथली
और सं थाली कय 92िें सं शयधन अलधलनयम 2003 द्वारा जयडा गया था।

नौिी ों भू लम सु धार और जमीद ं ारी व्यिस्था के उन्मूलन से सं बंलधत राज् लिधानसभाओं के अलधलनयम और लिलनयम (मूल रूप से
अनु सूिी 13 लेलकन ितत मान में 282) 19। अन्य मामलयं से लनपटने िाली सं सद। मौललक अलधकारयं के उल्लं घन के आधार पर
इसमें शालमल कानू नयं कय न्यालयक जां च से बचाने के ललए इस अनुसूची कय प्रथम सं शयधन (1951) द्वारा जयडा गया था।
हालां लक, 2007 में, सु प्रीम कयटत ने फैसला सु नाया लक 24 अप्रैल, 1973 के बाद इस अनुसूची में शालमल कानून अब
न्यालयक समीक्षा के ललए िुले हैं ।

दसिी ों दलबदल के आधार पर सं सद और राज् लिधानमंडलयं के सदस्यं की अययग्यता से सं बंलधत प्रािधान। इस अनुसूची कय
अनु सूिी 1985 के 52िें सं शयधन अलधलनयम द्वारा जयडा गया, लजसे दलबदल लिरयधी कानून के रूप में भी जाना जाता है ।

ग्यारहिी ों पंचायतयं की शखक्तययं, अलधकार और लजम्मेदाररययं कय लनलदत ष्ट करता है । इसमें 29 मामले हैं । इस अनुसूची कय 1992 के
अनु सूिी 73िें सं शयधन अलधलनयम द्वारा जयडा गया था।

बारहिी ों नगर पाललकाओं की शखक्तययं, अलधकार और लजम्मेदाररययं कय लनलदत ष्ट करता है । इसमें 18 मामले हैं । यह अनुसूची 1992
अनु सूिी के 74िें सं शयधन अलधलनयम द्वारा जयडी गई थी।

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