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“UDAAN” - Quick and Comprehensive Revision Series POLITY
विषय सूची

1 संविधान का ननर्ााण 1
2 संविधान की प्रर्ुख विशेषताएँ 4
3 संविधान की उद्दे शशका(भूशर्का/परिचय) 8
4 संघ ि इसके िाज्य क्षेत्र 13
5 नागरिकता 17
6 र्ूल अधधकाि 21
7 िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि 38
8 र्ूल कताव्य 42
9 संविधान संशोधन 44
10 संविधान की र्ूल संिचना शसद्धांत 47
11 संसदीय व्यिस्था 50
12 केंद्र-िाज्य संबंध 54
13 अंतिााज्यीय संबंध 63
14 आपातकालीन प्रािधान 67
15 िाष्ट्रपनत औि िाज्यपाल 76
16 उप-िाष्ट्रपनत 85
17 प्रधानर्ंत्री औि र्ुख्यर्ंत्री 89
18 केंद्रीय एिं िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद 91
19 संसद 94
20 संसदीय सशर्नतयां 115
21 उच्चतर् न्यायालय 118
22 उच्च न्यायालय 124
23 अधीनस्थ न्यायालय 130
24 अधधकिण 133
25 िाज्य विधानर्ंडल 136
26 स्थानीय सिकाि 147
27 अनुसूधचत एिं जनजातीय क्षेत्र 154
28 कुछ िाज्यों के शलए विशेष प्रािधान 157
29 संिैधाननक ननकाय 160
30 गैि-संिैधाननक ननकाय 165
31 सहकािी सशर्नतयाँ 170
32 दल-बदल कानून 172

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1. संविधान का ननर्ााण

संविधान सभा की र्ांग


• 1924 →संविधान सभा का विचाि पहली बाि स्ििाज पार्टी द्िािा ददया गया था।
• 1934 →संविधान सभा के गठन का विचाि एर्.एन.िॉय द्िािा िखा गया था।
• 1935 →भाितीय िाष्ट्रीय काँग्रेस द्िािा पहली बाि भाित के संविधान के ननर्ााण हेतु आधधकारिक रूप से
संविधान सभा के गठन की र्ाँग की गयी।
• 1940 →इस र्ाँग को अंततः त्रिदर्टश सिकाि ने सैद्धान्न्तक रूप से स्िीकाि कि शलया। इसे ‘अगस्त प्रस्ताि’
(August Offer)के नार् से जाना जाता है।
• 1942 →क्रिप्स के संविधान के प्रस्ताि को खारिज कि ददया गया।
• 1946 → ‘कैत्रबनेर्ट शर्शन योजना’ (Cabinet Mission Plan-CMP) को सभी दलों द्िािा स्िीकाि क्रकया गया।
इसके सदस्य लॉडा पैदरक लॉिें स, सि स्र्टै फोडा क्रिप्स औि ए. िी. एलेक्जेंडि थे। कैत्रबनेर्ट शर्शन ने द्वि-िाष्ट्र एिं
दो संविधान सभा की र्ाँग को अस्िीकाि कि ददया।

संविधान सभा का गठन

• कैत्रबनेर्ट शर्शन योजना के आधाि पि निं बि 1946 र्ें संविधान सभा


का गठन हुआ।
• सीर्टों का बँर्टिािा जनसंख्या के आधाि पि क्रकया गया।
• त्रिदर्टश प्रान्तों से संविधान सभा के सदस्यों का चुनाि आनुपानतक
प्रनतननधधत्ि प्रणाली एिं एकल संिर्णीय र्त पद्धनत के आधाि पि हुआ।
• संविधान सभा का गठन अंशतः ननिााधचत(त्रिदर्टश प्रान्तों) एिं नाशर्त सदस्यों(रियासतों के प्रर्ुखों द्िािा) द्िािा
क्रकया गया था।
• त्रिदर्टश प्रान्तों से संविधान सभा के सदस्यों का ननिााचन िहाँ की विधानयका से हुआ था।
• र्हात्र्ा गाँधी संविधान सभा का दहस्सा नहीं थे।
• दे शी रियासतों को आिंदर्टत 93 सीर्टें नहीं भि पायीं थीं, क्योंक्रक उन्होंने संविधान सभा से अलग िहने का फैसला
क्रकया था।

संविधान सभा की कायािाही

• 9 ददसंबि, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक आयोन्जत हुई (र्ुन्स्लर् लीग ने बैठक का बदहष्ट्काि क्रकया)

• िरिष्ट्ठतर् सदस्य डॉ. सधचदानंद शसन्हा को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया। अस्थाई अध्यक्ष की
ननयुन्क्त फ्रेंच पिम्पिा के अनुसाि की गई थी।
• बाद र्ें डॉ. िाजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया।
• उपाध्यक्ष (दो)→ एच.सी. र्ुखजी औि िी.र्टी. कृष्ट्णार्ाचािी।

उद्दे श्य प्रस्ताि

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• जिाहिलाल नेहरू ने 13 ददसंबि, 1946 को संविधान सभा के ऐनतहाशसक प्रस्ताि को प्रस्तुत क्रकया था।
• इसर्ें संिैधाननक संि चना के र्ूल तत्ि औि दशान ननदहत थे।
• इस प्रस्ताि को 22 जनििी, 1947 को संविधान सभा द्िािा स्िीकाि क्रकया गया था।
• ितार्ान र्ें भाितीय संविधान की उद्दे शशका(Preamble), इसी उद्दे श्य प्रस्ताि का संशोधधत रूप है।

भारतीय स्ितंत्रता अधधननयर्, 1947 के अनुसार पररितान


• दे शी रियासतों औि बचे हुए र्ुन्स्लर् लीग (इंडडयन डोशर्ननयन से) के सदस्य धीिे -धीिे संविधान सभा से जुड़ने
लगे।
• 3 जून, 1947 को र्ाउं र्टबेर्टन योजना (Mountbatten plan) को स्िीकृनत शर्ली (यह योजना भाित के विभाजन
हेतु थी) ।
• भाितीय स्ितंत्रता अधधननयर्, 1947 ने संविधान सभा की न्स्थनत र्ें दो बदलाि क्रकए -
1. संविधान सभा एक संप्रभु संस्था बन गयी, जो स्िेच्छा से संविधान का ननर्ााण कि सकती थी।
2. संविधान सभा को दो प्रकाि का कायों सौंपा गया (दोनों कायों को अलग-अलग रूप से किना था) →
भाित के शलए आर् कानून का ननर्ााण ि उन्हें लागू किना (जी.िी. र्ािलंकि की अध्यक्षता र्ें) औि स्ितंत्र
भाित के शलए संविधान का ननर्ााण किना (डॉ. िाजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता र्ें) ; ये 26 निं बि, 1949 तक
जािी िहे।
• संविधान सभा से र्ुन्स्लर् लीग के सदस्य अलग हो गए थे। इसशलए संविधान सभा की सदस्य संख्या 389 से
घर्टकि 299 िह गयी।

संविधान सभा के अन्य काया


• र्ई, 1949 → िाष्ट्रर्ंडल र्ें भाित की सदस्यता की पुन्ष्ट्र्ट।
• 22 जुलाई, 1947 → िाष्ट्रीय ध्िज को अपनाया गया।
• 24 जनििी, 1950 → िाष्ट्रीय गीत औि िाष्ट्रीय गान को अपनाया गया।
• 24 जनििी, 1950 → डॉ. िाजेंद्र प्रसाद को भाित के पहले िाष्ट्रपनत के रूप र्ें चुना गया।
• 24 जनििी, 1950 → संविधान सभा की अंनतर् बैठक हुई। हालांक्रक इस संव िधान सभा ने ही यह 26
जनििी,1950 से लेकि आर् चुनािों के बाद नयी संसद के गठन(र्ई, 1952) तक अन्तरिर् संसद के रूप र्ें
काया क्रकया।
• कुल सत्र - 11
• कुल सर्य - 2 िषा, 11 र्हीने, 18 ददन

र्ुख्य समर्नतयााँ
• संघ शन्क्त सशर्नत / संघ संविधान सशर्नत / िाज्य सशर्नत (िाज्यों से सर्झौते हेतु) →जिाहिलाल नेहरू
• प्रक्रिया ननयर् सशर्नत / संचालन सशर्नत → डॉ. िाजेंद्र प्रसाद
• प्रांतीय संविधान सशर्नत → सिदाि पर्टे ल
• प्रारूप सशर्नत → डॉ. बी.आि. अम्बेडकि

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• र्ूल अधधकािों, अल्पसंख्यकों औि जनजानतयों औि बदहष्ट्कृत क्षेत्रों हेतु पिार्शी सशर्नत → सिदाि पर्टे ल
• संविधान सभा की सभी सशर्नतयों र्ें प्रारूप सशर्नत सबसे र्हत्िपूणा थी। इसका गठन 29 अगस्त, 1947 को
क्रकया गया था। इसर्ें 7 सदस्य शाशर्ल थे।

संविधान का प्रभाि र्ें आना (ENACTMENT OF THE CONSTITUTION)

• संविधान के प्रारूप के प्रत्येक प्रािधान(clause by clause) पि चचाा के बाद इसे 26 निंबि, 1949 को अपनाया
गया। उस सर्य इसर्ें उद्दे शशका, 395 अनुच्छे द औि 8 अनुसूधचयां शाशर्ल थीं।
• संविधान के पूणा रूप से अधधननयशर्त होने के बाद उसके उद्दे शशका को लागू क्रकया गया था।

संविधान का प्रितान (ENFORCEMENT OF THE CONSTITUTION)

• संविधान के कुछ प्रािधान 26 निंबि, 1949 को स्ितः ही लागू हो गए थे। नागरिकता, चुनाि, तदथा संसद,
अस्थायी औि परिितानशील ननयर् औि छोर्टे शीषाकों से जुड़े कुछ प्रािधान (अनुच्छे द 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324,
366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 औि 393 )।
• संविधान के शेष प्रािधान 26 जनििी, 1950 को लागू हुए थे क्योंक्रक 26 जनििी, 1930 को पूणा स्ििाज ददिस
र्नाया गया था। इस ददन को संविधान के शुरुआत के ददन तथा गणतन्त्र ददिस के रूप र्ें दे खा जाता है।
• संविधान के लागू होने के बाद भाितीय स्ितंत्रता अधधननयर्, 1947 औि भाित सिकाि अधधननयर्, 1935ई.
ननिस्त हो गए। हालाँक्रक एबोशलशन आफ वप्रिी काउं शसल ज्यूरिडडक्सन एक्र्ट,1949 (Abolition of Privy Council
Jurisdiction Act ,1949) लागू िहा।
अन्य र्हत्िपूणा तथ्य

• संविधान सभा का धचन्ह → हाथी।


• सि िी.एन. िाि → संविधान सभा के संिैधाननक सलाहकाि थे।
• एच. िी. आि. अयंगि → संविधान सभा के सधचि थे।
• एस. एन. र्ुखजी → संविधान सभा के र्ुख्य प्रारूपकाि (ड्राफ्ट्सर्ैन) थे।
• प्रेर् त्रबहािी िायजादा→ संविधान के सुलेखक(calligrapher) थे।
• नंद लाल बोस औि बी. आि. शसन्हा → संविधान के र्ूल संस्किण का सौंदयीकिण ि सजािर्ट।
• िसंत कृष्ट्ण िैद्य→ संविधान के र्ूल संस्किण का दहंदी सुलेखन क्रकया।

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2. संविधान की प्रर्ुख विशेष ताएं


• 42िें संिैधाननक संशोधन (1976) को 'मर्नी संविधान' के रूप र्ें भी जाना जाता है।
• केशिानंद भारती बनार् केरल राज्य (1973): इस र्ार्ले र्ें सुप्रीर् कोर्टा की 13 सदस्यीय संविधान पीठ के
फैसले के अनुसाि संसद द्िािा क्रकसी भी न्स्थनत र्ें संविधान की ‘र्ूलभूत संिचना’ र्ें बदलाि नहीं क्रकया जा
सकता हैं।

संविधान की प्रर्ुख विशेषताएं


• सबसे लंबा शलखखत संविधान- भाितीय संविधान, विश्ि के सभी शलखखत संविधानों र्ें सबसे लंबा है।
• ितार्ान र्ें, इसर्ें एक प्रस्तािना, लगभग 470 अनुच्छे द औि 12 अनुसधू चयाँ शाशर्ल हैं।
• संविधान सभा र्ें कानून से संबन्न्धत प्रबुद्धों का प्रभुत्ि।
• केंद्र औि िाज्यों दोनों के शलए एक संविधान।

संविधान के विमभन्न स्रोत:


क्र. सं. स्रोत ग्रहण ककए गए प्रािधान
1 भारत शासन अधधननयर्, संघीय तंत्र, िाज्यपाल का कायाालय,
1935ई. न्यायपाशलका, लोक सेिा आयोग,
आपातकालीन प्रािधान औि
प्रशासननक विििण।

2 ब्रिटे न का संविधान संसदीय सिकाि पद्धनत, विधध का


शासन, एकल नागरिकता, र्ंत्रत्रर्ंडल
(कैत्रबनेर्ट) प्रणाली, संसदीय
विशेषाधधकाि, द्विसदन प्रणाली औि
रिर्ट जािी किने का अधधकाि।

3 संयुक्त राज्य अर्ेररका का र्ौशलक अधधकाि, स्ितंत्र न्यायपाशलका,


संविधान िाष्ट्रपनत पि र्हाशभयोग, न्यानयक सर्ीक्षा,
सिोच्च न्यायालय औि उच्च न्यायालय के
न्यायाधीशों को पद से हर्टाना औि उप-
िाष्ट्रपनत का पद ।

4 आयरलैंड का संविधान िाज्य के नीनत ननदे शक तत्ि, िाष्ट्रपनत के


चुनाि की प्रक्रिया औि िाज्य सभा के सदस्यों
का नार्ांकन ।

5 कनाडा का संविधान र्जबूत केंद्र के साथ संघीय व्यिस्था,


अिशशष्ट्र्ट शन्क्तयों का केंद्र र्ें ननदहत होना,
केंद्र द्िािा िाज्य के िाज्यपालों की ननयुन्क्त
औि सिोच्च न्यायलय का पिार्शादायी
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अधधकाि ।

6 आस्रे मलया का संविधान सर्िती सूची औि संसद के दोनों सदनों की


संयुक्त बैठक ।
7 जर्ानी का िाइर्र संविधान आपातकाल के दौिान र्ौशलक अधधकािों का
ननलंबन ।

8 यूएसएसआर (USSR) का र्ौशलक कताव्य औि प्रस्तािना र्ें न्याय


संविधान (सार्ान्जक, आधथाक औि िाजनीनतक) का
आदशा ।
9 फ़्ांस का संविधान गणतंत्रात्र्क व्यिस्था औि प्रस्तािना र्ें
स्ितंत्रता, सर्ता औि बंधुत्ि के आदशा ।

10 दक्षिण अफ्रीका का संविधान संविधान र्ें संशोधन की प्रक्रिया औि


िाज्यसभा के सदस्यों के चुनाि की प्रक्रिया ।
11 जापान का संविधान विधध द्िािा स्थावपत प्रक्रिया ।

संविधान के भाग स्रोत


संविधान का संिचनात्र्क भाग भाित शासन अधधननयर्, 1935
संविधान का दाशाननक दहस्सा (र्ौशलक अधधकाि संयक्
ु त िाज्य अर्ेरिका का संविधान औि आयिलैंड का
औि िाज्य के नीनत ननदे शक तत्ि) संविधान
संविधान का िाजनीनतक दहस्सा त्रिर्टे न का संविधान
• कठोरता और लचीलापन- भाितीय संविधान न तो कठोि है औि न ही लचीला है, बन्ल्क दोनों का शर्श्रण है।
• एकात्र्कता की ओर झुकाि के साथ संघीय व्यिस्था:
संघीय व्यिस्था की विशेषताएं दो सिकािों की व्यिस्था, शन्क्तयों का विभाजन, शलखखत
संविधान, द्विसदन प्रणाली, संविधान की सिोच्चता आदद।

एकात्र्क प्रणाली की विशेषताएं र्जबूत केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, एकीकृत
न्यायपाशलका, अखखल भाितीय सेिाएं, आपातकालीन प्रािधान
आदद।
• शासन की संसदीय व्यिस्था- भाितीय संविधान ने अर्ेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली के बजाय त्रिदर्टश संसदीय
प्रणाली को प्राथशर्कता दी है। शासन की संसदीय व्यिस्था की विशेषताएं: िाष्ट्रपनत नार् र्ात्र की कायापाशलका है
तथा प्रधानर्ंत्री तथा उसका र्ंत्रत्रर्ंडल िास्तविक कायापाशलका है+ बहुर्त पार्टी का शासन +प्रधानर्ंत्री औि
र्ुख्यर्ंत्री के नेतृत्ि र्ें सिकाि + विधानयका र्ें र्ंत्रत्रयों की सदस्यता + ननचला सदन (लोकसभा) का विघर्टन।
• संसदीय संप्रभुता और न्यानयक सिोच्चता र्ें सर्न्िय- संसद की संप्रभुता का विचाि त्रिदर्टश संसद से आया है
जबक्रक न्यानयक सिोच्चता का विचाि अर्ेरिकी प्रणाली से जुड़ा है । भाितीय संविधान के ननर्ााताओं ने संसदीय

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संप्रभुता के त्रिदर्टश शसद्धांत औि न्यानयक सिोच्चता के अर्ेरिकी शसद्धांत के बीच एक उधचत सर्न्िय को
प्राथशर्कता दी है।
• एकीकृत और स्ितंत्र न्यायपामलका - सुप्रीर् कोर्टा दे श की एकीकृत न्यानयक प्रणाली के शीषा पि है। इसके बाद
िाज्य स्ति पि उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय तथा अन्य ननचली अदालतें हैं ,
जैसे न्जला अदालत आदद। सिोच्च न्यायालय अपील, नागररकों के र्ौमलक अधधकारों का गारं टर और संविधान
का संरिक है।
• र्ौमलक अधधकार– भाितीय संविधान का भाग III (अनुच्छे द 12 से अनुच्छे द 35) सभी नागरिकों को छह र्ौशलक
अधधकािों की गािं र्टी दे ता है →(1) सर्ानता का अधधकाि (अनुच्छे द 14 से अनुच्छे द 18) + (2) स्ितंत्रता का
अधधकाि (अनुच्छे द 19 से 22) + (3) शोषण के विरुद्ध अधधकाि (अनुच्छे द 23 औि 24) + (4)धाशर्ाक स्ितंत्रता
का अधधकाि (अनुच्छे द 25 से 28) + (5) संस्कृनत औि शशक्षा संबंधी अधधकाि (अनुच्छे द 29 औि 30) + (6)
संिैधाननक उपचाि का अधधकाि (अनुच्छे द 32)। यदद क्रकसी भाितीय नागरिक के र्ौशलक अधधकाि का उल्लंघन
क्रकया जाता है तो अनुच्छे द 32 के अंतगात हि नागरिक को यह अधधकाि प्राप्त है क्रक िह अपने र्ौशलक
अधधकािों के उल्लंघन क्रकए जाने पि सीधे उच्च न्यायालय या सिोच्च न्यायालय जा सकता है। सिोच्च
न्यायालय या उच्च न्यायालय र्ौशलक अधधकािों को लागू किने के शलए सिकाि को आदे श औि ननदे श दे सकते
हैं। न्यायालय कई प्रकाि के विशे ष आदे श जािी किते हैं न्जन्हें प्रादे श या रिर्ट कहते हैं; जो इस प्रकाि हैं - बंदी
प्रत्यक्षीकिण, पिर्ादे श, ननषेध आदे श, अधधकाि पृच् छा औि उत्प्रेषण रिर्ट।
• राज्य के नीनत ननदे शक तत्ि– िाज्य के नीनत ननदे शक तत्िों का भाितीय संविधान के भाग IV र्ें उल्लेख क्रकया
गया है। िाज्य के नीनत ननदे शक तत्ि(DPSP) सार्ान्जक औि आधथा क लोकतंत्र के आदशों को बढािा दे ने के शलए
हैं। हालांक्रक र्ौशलक अधधकािों के विपिीत, िाज्य के नीनत ननदे शक तत्ि ‘िाद योग्य नहीं’ हैं। इसका तात्पया यह है
क्रक DPSP संविधान का एक दहस्सा हैं, न्जन्हें न्यायपाशलका द्िािा लागू नहीं किाया जा सकता है।
नोट- मर्निाा मर्ल्स र्ार्ला (1980): इस र्ार्ले र्ें सुप्रीर् कोर्टा ने कहा क्रक भाितीय संविधान की स्थापना र्ौशलक
अधधकािों औि DPSP के बीच संतल
ु न की आधािशशला पि की गई है। - र्ूल संिचना।

• र्ौमलक कताव्य– र्ौशलक कताव्यों को भाितीय संविधान र्ें स्िणा मसंह समर्नत की शसफारिशों के बाद ही जोड़ा गया
था। 86िें संिैधाननक संशोधन (2002) के द्िािा एक औि र्ौशलक कताव्य को जोड़ा गया। र्ौमलक कताव्यों को भी
न्यायपामलका द्िारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
• धर्ाननरपेि राज्य- 'धर्ाननिपे क्ष' शब्द को भाितीय संविधान की प्रस्तािना र्ें 42िें संिैधाननक संशोधन (1976)
द्िािा जोड़ा गया था। भाितीय संविधान धर्ाननिपेक्षता की सकािात्र्क अिधािणा का प्रतीक है , क्योंक्रक यह क्रकसी
धर्ा को भाित के धर्ा के तौि पि र्ान्यता नहीं दे ता है।
• सािाभौमर्क ियस्क र्ताधधकार - 61िें संिैधाननक संशोधन (1988) के द्िािा र्तदान किने की उम्र को 21 िषा
से घर्टाकि 18 िषा कि ददया गया था।
• एकल नागररकता- भाित का संविधान पूिे भाित के शलए एकल नागरिकता की व्यिस्था किता है।
• स्ितंत्र ननकाय- भाित र्ें लोकतांत्रत्रक प्रणाली को र्जबूत किने हेतु संविधान र्ें कुछ स्ितंत्र ननकायों की व्यिस्था
की गई है; ये हैं: चुनाि आयोग + ननयंत्रक औि लेखा पिीक्षक + संघ लोक सेिा आयोग + िाज्य लोक सेिा
आयोग।

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• आपातकालीन प्रािधान - िाष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छे द-352), िाष्ट्रपनत शासन (अनुच्छे द-356 औि अनुच्छे द-
365) औि वित्तीय आपातकाल (अनुच्छे द-360)। आपातकाल के दौिान, संघीय संिचना त्रबना क्रकसी औपचारिक
संशोधन के परििनतात हो जाती है। दे श की पूिी सत्ता केंद्र सिकाि के अधीन आ जाती है।
• ब्रत्रस्तरीय सरकार - 73िें तथा 74िें संिैधाननक संशोधन (1992) के र्ाध्यर् से दे श र्ें तीन स्तिीय सिकाि का
प्रािधान क्रकया गया है , जो विश्ि के क्रकसी भी संविधान र्ें नहीं है। 73िें सं िैधाननक संशोधन (1992) के र्ाध्यर्
से भाितीय संविधान र्ें एक नए भाग 9िें तथा नई 11िीं अनुसच
ू ी जोड़कि पंचायतों को र्ान्यता प्रदान की गई।
इसी प्रकाि 74िें संिैधाननक संशोधन (1992) के र्ाध्यर् से भाितीय संविधान र्ें एक नए भाग 9-A तथा नई
12िी अनुसूची जोड़कि नगिपाशलकाओं (शहिी स्थानीय सिकाि) को र्ान्यता प्रदान की गई।
• सहकारी समर्नतयां - 97िें संिैधाननक संशोधन (2011) के र्ाध्यर् से सहकािी सशर्नतयों को संिैधाननक दजाा
औि संिक्षण ददया गया। इसने सहकािी सशर्नतयों को बनाने को र्ौशलक अधधकाि ददया (अनुच्छे द-19) + िाज्य
के नीनत ननदे शक तत्िों र्ें सहकािी सशर्नतयों हेतु प्रािधान जोड़ा (अनुच्छे द 43-B) + संविधान र्ें एक नया भाग
IX-B जोड़ा गया, न्जसका नार् था "सहकािी सशर्नतयाँ ”(अनुच्छे द 243-ZH से अनुच्छे द 243-ZT ) ।

भारतीय संविधान की र्हत्िपूणा अनुसूधचयां


िर् संख्या विषय
पहली िाज्यों के नार् औि उनके क्षेत्रीय अधधकाि क्षेत्र + केंद्र शाशसत प्रदे शों के नार् औि उनका विििण
दूसरी भाित के िाष्ट्रपनत, िाज्यों के िाज्यपाल,लोकसभा, िाज्यों र्ें विधानसभा के अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष,
उच्चतर् न्यायालय औि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भाित के कैग; िाज्य सभा औि िाज्यों र्ें
विधान परिषद के अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष को प्राप्त होने िाले िेतन, भत्ते औि पेंशन का उल्लेख क्रकया
गया है।
तीसरी विशभन्न पदाधधकारियों जैसे केंद्रीय र्ंत्री, संसद के चुनाि के शलए उम्र्ीदिाि, सांसद, उच्चतर्
न्यायालय औि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भाित के कैग, िाज्य विधानसभा के शलए चुनाि के
उम्र्ीदिाि, िाज्य विधानसभाओं के सदस्य द्िािा पद-ग्रहण के सर्य ली जाने िाली शपथ का
उल्लेख है।
चौथी िाज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की िाज्य सभा र्ें प्रनतननधधत्ि का विििण ददया गया है।
पााँचिी अनुसूधचत क्षेत्रों औि अनुसूधचत जनजानत के प्रशासन औि ननयंत्रण का उल्लेख।
छठी असर्, र्ेघालय, त्रत्रपुिा, शर्जोिर् िाज्यों के जनजानत क्षेत्रों के प्रशासन के बािे र्ें प्रािधान।
सातिीं केंद्र एिं िाज्यों के बीच शन्क्तयों का संघ सूची, िाज्य सूची एिं सर्िती सूची के रूप र्ें बंर्टिािे का
विििण।
आठिीं भाित की 22 आधकारिक भाषाओँ का उल्लेख क्रकया गया है (जबक्रक र्ूल रूप से 14 भाषाएं थीं) ।
निीं िाज्य द्िािा संपवत्त के अधधग्रहण की विधधयों का तथा जर्ींदािी व्यिस्था के उन्र्ूलन का उल्लेख
क्रकया गया है। संविधान र्ें यह अनुसूची प्रथर् संव िधान संशोधन अधधननयर्, 1951 के द्िािा जोड़ी
गई थी।
दसिीं दल-बदल से संबंधधत प्रािधानों का उल्लेख है। यह संविधान र्ें 52िें संशोधन(1985)के द्िािा जोड़ी
गई थी।
ग्यारहिीं पंचायती-िाज से संबन्न्धत। यह अनुसच
ू ी संविधान र्ें 73िें संिैधाननक संशोधन (1993ई.) के द्िािा
जोड़ी गई थी।
बाहरहिीं नगिपाशलकाओं (शहिी स्थानीय सिकाि) से संबन्न्धत। यह अनुसूची संविधान र्ें 74िें संिैधाननक
संशोधन (1993) के द्िािा जोड़ी गई थी।

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3. प्रस्तािना

हर् भारत के लोग, भारत को एक सम्पूणा प्रभुत्ि सम्पन्न, सर्ाजिादी, पंथ-ननरपे ि, लोकतंत्रात्र्क गणराज्य बनाने
के मलए तथा उसके सर्स्त नागररकों को :
सार्ाजजक, आधथाक और राजनीनतक न्याय,
विचार, अमभव्यजक्त, विश्िास, धर्ा और उपासना की स्ितंत्रता,
प्रनतष्ठा और अिसर की सर्ता प्राप्त कराने के मलए,
तथा उन सब र्ें व्यजक्त की गररर्ा और
राष्र की एकता और अखण्डता सुननजश्चत करने िाली बंधुता बढाने के मलए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा र्ें आज तारीख 26 निंबर,19 49 ई. (मर्नत र्ागाशीषा शुक्ल सप्तर्ी,
संित दो हजार छह विक्रर्ी) को एतद द्िारा इस संविधान को अंगीकृत , अधधननयमर्त और आत्र्ावपात करते हैं।

• अर्ेररकी संविधान: पहला संविधान न्जसकी शुरुआत प्रस्तािना से हुई है।


• भाितीय संविधान की प्रस्तािना 13 ददसंबर 1946 को पंडडत नेहरू द्िािा पेश क्रकए गए उद्दे श्य प्रस्ताि पर
आधारित है, न्जसे संविधान सभा ने 22 जनििी 1947 को अपनाया था।
• 42िें संविधान संशोधन द्िारा संशोधन: अभी तक प्रस्तािना र्ें एक ही बाि संशोधन क्रकया गया हैं| इस संशोधन
र्ें तीन शब्द- सर्ाजिादी, पंथ-ननिपेक्ष औि अखण्डता जोड़े गए थे।
• प्रस्तािना र्ें संविधान के र्ूल दशान के साथ-साथ उन आधािभूत िाजनीनतक, नैनतक औि धाशर्ाक र्ूल्यों को
सर्ादहत क्रकया गया है न्जन पि हर्ािा संविधान आधारित है।
• प्रस्तािना संविधान सभा के प्रगनतशील दृन्ष्ट्र्टकोण औि संविधान ननर्ााताओं के सपनों औि आकांक्षाओं को प्रदशशात
किती है।
• प्रस्तािना न तो विधानयका की शन्क्त का स्रोत है औि न ही विधानयका की शन्क्तयों को प्रनतबंधधत किती है।
• यह न तो िाद-योग्य है औि न ही इसे न्यायालय द्िािा लागू क्रकया जा सकता है।
• प्रस्तािना संयुक्त िाज्य अर्ेरिका की स्ितंत्रता की घोषणा के सदृश है – र्ो. दहदायतुल्लाह|
• संविधान के सभी दहस्सों को पारित किने के बाद प्रस्तािना को पारित क्रकया गया था ताक्रक यह संविधान के
अनुरूप बन सके।
• “हर् भारत के लोग” से तात्पया है क्रक संविधान का ननर्ााण भाित के लोगों के द्िािा औि भाितीय लोगों के शलए
क्रकया गया है। यह “लोकवप्रय संप्रभुता की अिधािणा” पि जोि दे ता है।

प्रस्तािना के घटक

संविधान की शजक्त का स्रोत इसकी शजक्त का श्रोत भारत के लोग हैं


भारतीय राज्य की प्रकृनत प्रभुत्ि सम्पन्न, सर्ाजिादी, पंथ-ननिपेक्ष , लोकतंत्रात्र्क गणिाज्य
संविधान का उद्दे श्य न्याय (रूस की िांनत से) , स्ितंत्रता, सर्ानता, बंधत्ु ि (तीनों फ्रांस की
िांनत से)
संविधान के अंगीकरण की नतधथ 26 निंबि 1949

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प्रस्तािना का र्हत्ि

भाितीय लोकतांत्रत्रक गणिाज्य की कं ु डली + संविधान का दशान + भाितीय संविधान का सािांश + हर्ािे संविधान का
पहचान पत्र (एन. ए. पालकीिाला) + संविधान ननर्ााताओं के र्न्स्तष्ट्क की कं ु जी + यह कानूनों की संिैधाननकता की
व्याख्या के शलए न्यायपाशलका की र्ागादशाक है।

प्रस्तािना के र्ुख्य शब्द

• एक पूणा स्ितंत्र राज्य + ककसी अन्य दे श का डोमर्ननयन नहीं + बाह्य और आंतररक दोनों रूप
संप्रभु र्ें संप्रभु + एक संप्रभु राज्य के रूप र्ें,भारत ककसी विदे शी भूमर् को अधधग्रदहत करता है अथिा
ककसी अन्य दे श को अपना दहस्सा दे सकता है।
सर्ाजिादी • 42िें संशोधन द्िािा जोड़ा गया (1976)+ सर्ाजिादी अिधािणा ननदे शक तत्िों (अनुच्छे द
36-51) र्ें पहले से विद्यर्ान थी लेक्रकन 42िें संशोधन के द्िािा इसका स्पष्ट्र्ट उल्लेख कि
ददया गया।

• भाितीय सर्ाजिाद (र्ाक्सािादी+गांधीिादी , गांधीिाद की ओि झुखाि अधधक) →लोकतान्न्त्रक


सर्ाजिाद → शर्धश्रत आधथाक र्ॉडल को अपनाया गया , न्जसर्ें ननजी औि सािाजननक क्षेत्र का
सह-अन्स्तत्ि होता है।
• 42िें संशोधन द्िािा जोड़ा गया (1976) + आधािभूत ढांचे का भाग + सिोच्च न्यायालय
पंथ-ननरपेि (1974)-: धर्ा ननिपेक्ष िाज्य का उल्लेख अनुच्छे द 25-28 र्ें क्रकया गया है।

• भाित का सकािात्र्क पंथ-ननिपेक्ष: यहाँ सभी धर्ा सर्ान है औि उन्हे िाज्य का सर्ान सर्थान
प्राप्त है।
• लोकतान्न्त्रक → लोकवप्रय संप्रभुता का शसद्धान्त→सिोच्च शन्क्त जनता के हाथों र्ें
• इसर्ें सन्म्र्शलत हैं- िाजनीनतक + सार्ान्जक + आधथाक लोकतंत्र
• भाितीय लोकतंत्र: प्रनतननधधत्िात्र्क संसदीय लोकतंत्र। कायापाशलका अपने सभी कायों एिं
नीनतयों के शलए विधानयका के प्रनत न्जम्र्ेदाि है।
• भाितीय लोकतंत्र का घोषणापत्र: सािाभौशर्क ियस्क र्ताधधकाि, आिधधक चुनाि , कानून का
शासन, न्यायपाशलका की स्ितंत्रता औि कुछ आधािों पि भेदभाि की अनुपन्स्थनत।

लोकताजन्त्रक प्रत्यक्ष लोकतंत्र के साधन

1. जनर्त संग्रह जनर्त संग्रह एक प्रत्यक्ष र्तदान है, न्जसके र्ाध्यर् से क्रकसी प्रस्ताि पि
(Referendu लोगो से सीधे र्तदान के शलए कहा जाता है।
m)
2. पहल िह प्रक्रिया न्जसके तहत लोग विधानयका के सर्क्ष क्रकसी कानून के ननर्ााण का
(Initiative) प्रस्ताि िखते है।
3. िापस बुलाना र्तदाताओं द्िािा क्रकसी प्रनतननधध या अधधकािी को उसके कायाकाल पूिा होने से

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(Recall) पहले हर्टाने की प्रक्रिया|
4. लोक-िाय क्रकसी लोक दहत के र्ुद्दे पि दे श के नागरिकों की िाय जानने की प्रक्रिया
(Plebiscite)
• दो प्रकाि: िाजतान्न्त्रक गणिाज्य (त्रिर्टे न) , गणिाज्य (भाित/संयुक्त िाज्य अर्ेरिका)
• भाितीय गणिाज्य: भाित के िाज्य प्रर्ुख (िाष्ट्रपनत) का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाि
• गणिाज्य का अथा: िाजनीनतक संप्रभुता जनता र्ें ननदहत होना। क्रकसी भी प्रकाि के
गणराज्य
विशेषाधधकाि प्राप्त िगा की अनुपन्स्थनत औि प्रत्येक सािाजननक कायाालय तक सभी
नागरिकों के शलए सर्ान रूप से त्रबना क्रकसी भेदभाि के पहुँच|

• अनुच्छे द 54-55 िाष्ट्रपनत के चुनाि से संबंधधत|


• रूस की िांनत (1917) से शलया गया है|
• तीन प्रकाि के न्याय सन्म्र्शलत हैं- िाजनीनतक, सार्ान्जक औि आधथाक |
• वितिणात्र्क न्याय= सार्ान्जक न्याय + आधथाक न्याय |


• सभी नागरिकों के साथ जानत , िं ग, िंश, धर्ा औि शलंग के आधाि पि
न्याय सार्ान्जक भेदभाि के त्रबना सर्ान व्यिहाि |
• क्रकसी िगा विशेष के शलए विशेषाधधकािों की अनुपन्स्थनत |

• िंधचत िगों तथा र्दहलाओं की न्स्थनत र्ें सुधाि |


आधथाक • आधथाक कािकों के आधाि पि भेदभाि की अनुपन्स्थनत |

• संपदा, संपवत्त औि आय की असर्ानता को दूि किना |


िाजनीनतक • सभी नागरिकों को सर्ान िाजनीनतक अधधकाि, िाजनीनतक पदों तक पहुँच
की सर्ानता औि सिकाि तक आपनी बात पहुंचाने की सर्ानता
• स्ितंत्रता, सर्ानता औि बंधुत्ि के आदशा (फ्रांस की िांनत 1789)|
• व्यन्क्तगत गनतविधधयों र्ें िोकर्टोक की अनुपन्स्थनत|
• व्यन्क्तगत विकास के शलए अिसि प्रदान किना|
स्ितंत्रता
• प्रस्तािना िक्षा किता है: अशभव्यन्क्त , धर्ा, विश्िास औि उपासना की स्ितंत्रता के अधधकाि
का|
• स्ितंत्रता की सीर्ा: स्ितंत्रता से तात्पया यह नहीं है क्रक कुछ भी क्रकया जा सकता है, बन्ल्क
स्ितंत्रता के अधधकाि का प्रयोग संविधान की सीर्ा र्ें ही क्रकया जा सकता है|

• प्रस्तािना औि र्ौशलक अधधकािों र्ें दी गई स्ितंत्रता ननिपेक्ष नहीं है।


• क्रकसी भी प्रकाि के विशेषाधधकाि प्राप्त िगा की अनुपन्स्थनत|
• त्रबना भेदभाि के सभी को सर्ान अिसि|
• प्रस्तािना ननन्श्चत किता है: सर्ान सार्ान्जक न्स्थत + अिसि की सर्ानता


• विधध के सर्क्ष सर्ता (अनु. 14)
• धर्ा, र्ूलिंश, जानत, शलंग या जन्र्स्थान के आधाि पि ननषेध (अनु.
नागरिक सर्ता 15)

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सर्ता • लोक ननयोजन र्ें अिसि की सर्ता (अनु. 16)
• अस्पृश्यता का उन्र्ूलन (अनु. 17)

• उपाधधयों का अंत (अनु. 18)


िाजनीनतक सर्ता • धर्ा, र्ू लिंश, जानत, शलंग या जन्र्स्थान के आधाि पि क्रकसी को
र्तदाता सूची र्ें शाशर्ल किने से र्ना नहीं क्रकया जा सकता है ( अनु.
325)

• लोक सभा औि िाज्यों की विधान सभाओं के चुनाि सािाभौर् ियस्क


र्तदान के आधाि पि (अनु. 326)|
आधथाक सर्ता • र्दहलाओं औि पुरुषों के शलए जीिन यापन के पयााप्त साधन औि सर्ान
काया के शलए सर्ान िेतन का अधधकाि (अनु. 39)|
• भाईचािे की भािना। एकल नागरिकता का प्रािधान भाईचािे की भािना को प्रोत्सादहत किता
है।
• अनु. 51A: प्रत्येक नागरिक का कताव्य है क्रक िह धाशर्ाक, भाषाई, क्षेत्रीय अथिा िगा
विविधताओं से हर्टकि सौहादा औि आपसी भाईचािे की भािना को प्रोत्सादहत किे |
बंधुत्ि
• बंधुत्ि: व्यन्क्तगत गरिर्ा (प्रत्येक व्यन्क्त का व्यन्क्तत्ि) + भाित की एकता औि अखंडता
(अखंडता शब्द 42िें संशोधन द्िािा जोड़ा गया था)|
• व्यन्क्त की गरिर्ा को र्ौशलक अधधकािों , नीनत ननदे शक तत्िों औि र्ौशलक कताव्यों के
र्ाध्यर् से सुननन्श्चत क्रकया गया है।

• एकता औि अखंडता र्ें – दे श की अखंडता के र्नोिैज्ञाननक + सीर्ायी दोनों आयार् सन्म्र्शलत


हैं।

त्रय संयोजन = स्ितंत्रता + सर्ता + बंधुत्ि

• उपयुाक्त तीनों का संयोजन एक ऐसे त्रय का ननर्ााण किता है, न्जसर्ें से यदद क्रकसी एक की भी हानन होती
है तो यह लोकतंत्र के उद्दे श्य को ही नष्ट्र्ट कि दे ता है।
• सर्ता के त्रबना स्ितंत्रता, अन्य पि कु छ लोगों के िचास्ि का ननर्ााण किे गी। स्ितंत्रता के त्रबना सर्ता
व्यन्क्तगत पहल र्ें बाधक है।

स्ितंत्रता + सर्ता + बंधुत्ि = सार्ाजजक लोकतंत्र

प्रस्तािना और सिोच्च न्यायालय के िाद

िाद सिोच्च न्यायालय के ननणाय

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बेरुबािी संघ िाद (1960) प्रस्तािना संविधान र्ें ननदहत सार्ान्य प्रयोजनों को दशााती है। अनुच्छे दों र्ें प्रयुक्त
इसके शब्दों के अनेक अथा ननकलते हैं, संविधान की व्याख्या किते सर्य इसकी
सहायता ली जा सकती है।

सिोच्च न्यायालय ने कहा क्रक प्रस्तािना संविधान का भाग नहीं है।


केशिानंद भािती िाद (1973) प्रस्तािना संविधान का भाग है।
एल.आई.सी. ऑफ इंडडया िाद सिोच्च न्यायालय ने पुनः र्ाना क्रक प्रस्तािना संविधान का अशभन्न भाग है।
(1995)

प्रस्तािना र्ें संशोधन

• प्रस्तािना र्ें संशोधन क्रकया जा सकता है या नहीं इसका ननणाय पहली बाि केशिानंद भािती केस (1973) र्ें
हुआ।
• सिोच्च न्यायालय ने बेरुबािी संघ केस (1960) र्ें ददये गए अपने ननणाय को परििनतात किते हुए प्रस्तािना को
संविधान का अशभन्न दहस्सा र्ाना औि कहा क्रक इसे अनुच्छे द-368 के तहत संशोधधत क्रकया जा सकता है। साथ
ही न्यायालय ने यह भी कहा क्रक ऐसे संशोधन र्ें संविधान के “र्ूल ढांचे” र्ें संधोशन नहीं क्रकया जाना चादहए।

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4. संघ एिं इसका िेत्र

• अनुच्छे द 1 से 4, भाग 1 → संघ औि उसके संबन्न्धत क्षेत्रों का विििण → अनुच्छे द 1- भाित, अथाात
इंडडया, िाज्यों का संघ(Union of States) होगा; न क्रक ‘िाज्यों का परिसंघ’(Federation of States) होगा।
• अनुसूची 1 - िाज्यों के नार् औि उनके क्षेत्रीय अधधकाि क्षेत्र।
• भारत का िेत्र - तीन श्रेखणयां → िाज्य + संघ िाज्यक्षेत्र + अधधग्रदहत क्षेत्र
• राज्यों का िेत्र - 28 िाज्य (2020) + 8 संघ िाज्यक्षेत्र (2020) → अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह (1956)
+ लक्षद्िीप (1956) + चंडीगढ (1966) + िाष्ट्रीय िाजधानी क्षेत्र ददल्ली (1962) + पुदच
ु ेिी (1962) + लद्दाख
(2019) + जम्र्ू औि कश्र्ीि (2019) + दादिा औि नगि हिेली ि दर्न औि दीि (2020)
• संघ राज्यिेत्र - केंद्र सिकाि द्िािा ननयंत्रण औि प्रशासन = इन्हें केंद्र शाशसत प्रदे श भी कहा जाता है।
• राज्य - िाज्य संघीय प्रणाली के सदस्य हैं औि केंद्र के साथ शन्क्तयों का वितिण साझा किते हैं।
• केंद्र शामसत प्रदे श - सीधे केंद्र सिकाि द्िािा प्रशाशसत|
• अधधग्रदहत िेत्र - सीधे केंद्र सिकाि द्िािा प्रशाशसत|
• पूिा केंद्र शामसत प्रदे श (अब राज्य) - दहर्ाचल प्रदे श, र्खणपुि, त्रत्रपुिा, शर्जोिर्, अरुणाचल प्रदे श औि गोिा।

राज्यों का संघ

• भाितीय संघ(Indian Union), अर्ेरिकी परिसंघ(Federation) की भांनत िाज्यों के र्ध्य सर्झौते का परिणार्
नहीं है।
• िाज्यों को संघ से अलग होने का कोई अधधकाि नहीं है।

भारत का िेत्र भारतीय संघ

‘भारतीय संघ’ की तुलना र्ें ‘भारत का िेत्र’ की ज्यादा यह ‘भाित का क्षेत्र’ के शसद्धान्त की तुलना र्ें संकीणा
व्यापक अमभव्यजक्त है, क्योंकक इसर्ें न केिल राज्य अिधािणा है, क्योंक्रक इसर्ें केिल िाज्य शाशर्ल हैं।
शामर्ल हैं, बजल्क केंद्र शामसत प्रदे श और िो िेत्र भी
शामर्ल हैं जजन्हें भविष्य र्ें भारत सरकार द्िारा
अधधग्रहण ककया जा सकता है।

जम्र्ू और कश्र्ीर पुनगाठन -2019

• सन 2019 तक, जम्र्ू औि कश्र्ीि िाज्य का अपना संविधान था औि भाितीय संविधान के अनुच्छे द -370 के
आधाि पि इसे विशे ष दजाा प्राप्त था।
• 2019 र्ें, िाष्ट्रपनत के आदे श द्िािा [संविधान आदे श (जम्र्ू औि कश्र्ीि र्ें लागू) संशोधन आदे श,2019] इस
िाज्य का विशेष दजाा को सर्ाप्त कि ददया गया।
• जम्र्ू औि कश्र्ीि पुनगाठन अधधननयर्, 2019 ने जम्र्ू औि कश्र्ीि िाज्य को दो केंद्र शाशसत िाज्यों र्ें
विभान्जत कि ददया-

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1. केंद्र शामसत राज्य जम्र्ू और कश्र्ीर (विधानर्ंडल के साथ) – कािधगल औि लेह न्जलों को छोड़कि ,
इसर्ें पूिािती जम्र्ू औि कश्र्ीि िाज्य के सभी न्जले शाशर्ल हैं।
2. केंद्र शामसत राज्य लद्दाख (विधानर्ंडल के ब्रबना) – इसर्ें कािधगल औि लेह न्जले शाशर्ल हैं।
• 100िां संिैधाननक संशोधन अधधननयर् (2015) : इस संशोधन के तहत भाित औि बांग्लादे श की सिकािों के
बीच र्ें हुए सर्झौते को अनुसिण किते हुए भाित द्िािा शाशसत प्रदे शों को प्राप्त किने औि बांग्लादे श को
कुछ प्रदे शों के हस्तांतिण किने का प्रािधान है।

केंद्र शामसत प्रदे शों का प्रशासन

• भाग 8 र्ें अनुच्छे द 239 से 241 तक


• िाष्ट्रपनत द्िािा ननयुक्त प्रशासक के र्ाध्यर् से प्रशाशसत
• प्रशासक िाष्ट्रपनत का एक एजेंर्ट होता है न क्रक िाज्य का प्रर्ुख।
• उप-राज्यपाल →ददल्ली, पुदच
ु ेिी, अंडर्ान औि ननकोबाि, जम्र्ू औि कश्र्ीि औि लद्दाख।
• प्रशासक→ चंडीगढ, दादिा नागि हिेली ि दर्न औि दीि औि लक्षद्िीप।
• ददल्ली, पुदच
ु ेरी और जम्र्ू और कश्र्ीर → विधान सभा औि र्ुख्यर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें र्ंत्रत्रपरिषद।

ददल्ली िाज्य विधानयका, सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों (सािाजननक
व्यिस्था, पुशलस औि भूशर् को छोड़कि) पि कानून बना सकती है।

जम्र्ू और सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों (सािाजननक व्यिस्था औि पुशलस को
कश्र्ीर छोड़कि) पि कानून बना सकती है।

पुदच
ु ेरी सर्िती सूची औि िाज्य सूची के अंतगात आने िाले विषयों पि कानून बना सकती है।

नोट: संविधान र्ें अधधग्रदहत क्षेत्रों के प्रशासन के शलए कोई अलग प्रािधान नहीं है।

कानून बनाने के मलए संसद की शजक्त

• केंद्रशाशसत प्रदे शों के शलए संसद तीनों सूधचयों (िाज्य सूची सदहत) के क्रकसी भी विषय पि कानून बना सकती है।
• िाष्ट्रपनत अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह, लक्षद्िीप, दादिा औि नगि हिेली ि दर्न औि दीि की शांनत ,
प्रगनत औि अच्छी सिकाि के शलए ननयर् बना सकते हैं।
• िाष्ट्रपनत द्िािा बनाए गए ननयर्, संसद के अधधननयर् के सर्ान प्रभािी होतें हैं।
• संसद, केंद्रशाशसत प्रदे श के शलए एक उच्च न्यायालय स्थावपत कि सकती है।

7िां संविधान संशोधन अधधननयर् (1956) : इसके तहत सार्ान्य दहत के र्ार्लों पि सलाह दे ने के शलए भाित र्ें
जोनल काउं शसल (Zonal Councils) का प्रािधान क्रकया गया।

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ददल्ली के मलए विशेष प्रािधान (अनुच्छे द 239 AA)

• 69िां संविधान संशोधन अधधननयर् (1991) - ददल्ली को िाष्ट्रीय िाजधानी क्षेत्र के रूप र्ें परिभावषत क्रकया गया।
• ददल्ली के शलये 70 सदस्यीय विधानसभा (सीधे लोगों द्िािा चुना जाना) तथा 7 सदस्यीय र्ंत्रत्रपरिषद (10
प्रनतशत) की व्यिस्था भी की गई।
• भाित के चुनाि आयोग द्िािा चुनाि किाए जाने का प्रािधान।
• उपिाज्यपाल औि र्ुख्यर्ंत्री की िाय के अंति के र्ार्ले र्ें उपिाज्यपाल र्ार्ले को िाष्ट्रपनत के संज्ञान र्ें लाते
हें ।
• जब ऐसी न्स्थनत उत्पन्न होती है न्जसर्ें क्षेत्र का प्रशासन उपयुाक्त प्रािधानों के अनुसाि नहीं चलाया जा सकता
है, िाष्ट्रपनत उपयुाक्त प्रािधानों को ननलंत्रबत कि सकते हैं तथा क्षेत्र के प्रशासन के शलए आिश्यक या आकन्स्र्क
प्रािधान बना सकते हैं → अनुच्छे द 356
• उपिाज्यपाल को अध्यादे श ( ordinance) प्रख्यावपत (promulgate) की शन्क्त प्रदान की गयी है → अध्यादे श को
विधानसभा द्िािा छह सप्ताह के भीति अनुर्ोददत किना।

उपिाज्यपाल औि उनके र्ंत्रत्रयों के बीच र्तभेद के र्ार्ले र्ें , लेन्फ्टर्टनेंर्ट गिनाि र्ार्ले को िाष्ट्रपनत के संज्ञान र्ें
लाते हें तथा उनके फैसले के अनुसाि काया कितें हैं।

केंद्र शामसत प्रदे शों के मलए परार्शी समर्नतयााँ

• भारत सरकार (कायािाही आिंटन ) ननयर्, 1961 → गृह र्ंत्रालय, केंद्र शाशसत प्रदे शों के कानून, वित्त औि बजर्ट
से संबंधधत सभी र्ार्लों के शलए नोडल र्ंत्रालय है।
• सभी पााँच केंद्र शामसत प्रदे श (विधानयका के ब्रबना) → अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीप सर्ूह, चंडीगढ, दादिा औि
नगि हिेली ि दर्न औि दीि, लक्षद्िीप औि लद्दाख → इन केंद्र शाशसत प्रदे शों र्ें गृह र्ंत्री सलाहकाि सशर्नत
(HMAC) / प्रशासननक सलाहकाि सशर्नत ( AAC) का फोिर् है।
• ृ र्ंत्री सलाहकाि सशर्नत (HMAC) की अध्यक्षता केंद्रीय गह
गह ृ र्ंत्री द्िािा की जाती है।
• प्रशासननक सलाहकाि सशर्नत ( AAC) की अध्यक्षता केंद्र शाशसत प्रदे श के संबंधधत प्रशासक द्िािा की जाती है।

राज्य केंद्र शामसत प्रदे श


केंद्र के साथ संबंध संघीय है। एकात्र्क संबंध होता है।
शन्क्तयों का केंद्र के साथ साझा वितिण किते हैं। इनका प्रशासन औि ननयंत्रण सीधे केंद्र द्िािा क्रकया
जाता है।
स्िायत्तता िखते हैं। स्िायत्तता नहीं िखते हैं।
प्रशासननक व्यिस्था र्ें एकरूपता होती है। प्रशासननक व्यिस्था र्ें एकरूपता नहीं होती है।

कायाकािी प्रर्ुख िाज्यपाल होतें हैं। कायाकािी प्रर्ुख को विशभन्न पदनार् से जाना जाता
है:
o प्रशासक
o उपिाज्यपाल

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o र्ुख्य आयुक्त
िाज्यपाल िाज्य का संिैधाननक प्रर्ुख होता है प्रशासक िाष्ट्रपनत के एजेंर्ट के रूप र्ैं कार् कितें हैं।
संसद, अनत विशशष्ट्र्ट परिन्स्थनतयों को छोड़कि िाज्यों से संसद, केंद्र शाशसत प्रदे शों के संबंध र्ें िाज्य सूची के
संबन्न्धत िाज्य सू ची के विषयों पि कानून नहीं बना सकती अंतगात तीन सूधचयों के क्रकसी भी विषय पि कानून
है। बना सकती है।

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5. नागरिकता

● भारत में दो तरह के लोग रहते हैं- नागररक और विदे शी।


1. नागरिक: इन्हें सभी नागररक और सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
2. विदे शी (ममत्र विदे शी या शत्रु विदे शी): इन्हें सभी नागररक और सामाजिक अधिकार प्राप्त नह ीं होते हैं।
● संविधान में प्रदत्त िे अधधकाि जो केिल नागरिकों को प्राप्त है विदे शशयों को नह ं:
o अनुच्छे द 15: िमम, मूलिींश, िातत, मलींग या िन्म स्थान के आिार पर भेदभाि के खिलाफ अधिकार।
o अनुच्छे द 16: लोक-तनयोिन में अिसर की समानता का अधिकार।
o अनुच्चीद 19: विचार एिीं अमभव्यजतत की स्ितींत्रता, सींघ बनाने, सम्मेलन करने, सींचरण, तनिास और
व्यिसाय चयन का अधिकार।
o अनुच्छे द 29 औि 30: साींस्कृततक और शैक्षखणक अधिकार।
o लोक सभा और राज्यों की वििान सभाओीं के चुनाि में मतदान का अधिकार।
o सींसद और राज्यवििातयका के सदस्य के रूप में चुने िाने का अधिकारI
o राष्ट्रपतत िैसे सािमितनक पदों को िारण करने का अधिकार। (भारत में िन्म से या प्राकृततक रूप से दोनों
तर के से नागररकता प्राप्त व्यजतत राष्ट्रपतत बनने के मलए योग्य होता है, िबकक अमेररका में केिल िन्म से
अमेररकी नागररक व्यजतत ह िहााँ का राष्ट्रपतत बन सकता है)

संिैधाननक प्रािधान
● सींवििान के भाग-II में अनुच्छे द 5 से अनुच्छे द 11 तक नागररकता से सींबींधित प्राििान ददये गए हैं। सींवििान में
नागररकता के सींबींि में स्थायी और विस्तृत उपबींि नह ीं ददये गए हैं, इसमें मसफम सींव ििान लागू होने की ततधथ के
समय नागररकता प्राप्त लोगों की पहचान की गयी है। (26 िनिर )
● संविधान संसद को यह शक्तत प्रदान किता है कक िह नागररकता से िुड़े मामलों के मलए आिश्यक कानूनों का
तनमामण करे ।
1. अनुच्छे द 5: सींवििान लागू होने के समय प्राप्त नागररकता।
2. अनुच्छे द 6: पाककस्तान से भारत आने िालों को द गई नागररकता।
3. अनुच्छे द 7: पहले पाककस्तान गए और बाद में भारत में पुनप्रमिास करने िालों को द गयी नागररकता।
4. अनुच्छे द 8: भारत के मूल तनिामसयों की नागररकता।
5. अनुच्छे द 9: नागररकता की समाजप्त (ककसी अन्य दे श की नागररकता की स्िैजच्छक स्िीकृतत पर भारतीय
नागररकता का स्ित: समापन)
6. अनुच्छे द 10: नागररकता की तनरीं तरता (िब तक कक सींसद इस सींबींि में ऐसा कोई कानून न बनाए|)
7. अनुच्छे द 11: नागररकता के अधिकारों को वितनयमन सींसद विधि द्िारा करे गी। (सींसद के पास यह शजतत
होगी कक िह नागररकता के अिमन और समाजप्त तथा नागररकता से िुड़े अन्य सभी मामलों के मलए कानून
बना सकती है।

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नागरिकता अधधननयम 1955: नागररकता अधितनयम-1955 में सींवििान लागू के बाद नागररकता के अिमन और
समाजप्त से िुड़े उपबींि ददये गए हैं।

नागरिकता का अजजन:

एक व्यक्तत जो भाित में जन्मा हो:


o 26 जनिि 1950 से 1जुलाई 1987 के बीच जन्मा व्यक्तत अपने माता-वपता की िाष्ट्र यता
जन्म से से शभन्न भाित का नागरिक होगा।
o 1 जुलाई 1987 के बाद- माता-वपता में से कोई एक भाित का नागरिक होना चाहहए।
o 3 हदसंबि 2004 के बाद जन्मा व्यक्तत- माता-वपता दोनों भाित के नागरिक हों या माता-
वपता में से कोई एक भाित का नागरिक हो औि दूसिा अिैध प्रिासी न हो।
o भाित में कायजित विदे शी िाजननयकों औि शत्रु दे श के नागरिकों के बच्चे भाित की
नागरिकता अक्जजत नह ं कि सकते हैं।
एक व्यक्तत जो भाित के बाहि जन्मा हो:
o 26 िनिर 1950 से 10 ददसींबर 1992 के बीच और उसका वपता भारत का नागररक हो।
िंश के आधाि पि o 10 ददसींबर 1992 के बाद- उसके माता-वपता में से कोई एक भारत का नागररक हो।
o 3 ददसींबर 2004 या उसके बाद- िब तक कक उसके िन्म के 1 िर्म के अींदर या इस अिधि
की समाजप्त के बाद केंद्र सरकार की सहमतत से भारतीय दूतािास में उसका पींिीकरण न
कराया गया हो।
केंद्र सरकार, क्रकसी व्यजतत (जो अिैध प्रिासी न हो) के द्िारा ककए गए आिेदन के आधाि पि
पंजीकिण के द्िािा नागररक के रूप में पींिीकृत कर सकती है, यदद िह कुछ तनजश्चत शतों को पूरा करता हो और
िह भारत के नागररक के रूप में पींिीकृत होने से पहले ननष्ट्ठा की शपथ ले।
दे शीकिण द्िािा केंद्र सरकार ककसी विदे शी व्यजतत (िो अिैि परिासी न हो) द्िारा आिेदन ककए िाने पर,
उसके दे शीकरण का प्रमाणपत्र भी िार कर सकती है, यदद िह कुछ तनजश्चत शतों को पूरा
करता हो।
भूशम विस्ताि द्िािा यदद कोई विदे शी क्षेत्र भारत का भाग बन िाता है तो, भारत सरकार उस क्षेत्र के लोगों में से
उन व्यजततयों को तनददमष्ट्ट करती है िो भारत के नागररक होंगे। ऐसे लोग तनिामररत ततधथ से
भारत के नागररक होंगे।

नागरिकता की समाक्प्त

● पूणज आयु (ियस्क) औि क्षमता (स्िस्थ मानशसक क्स्थनत) िाला भाित का कोई भी नागरिक
स्िेच्छा से अपनी भाितीय नागरिकता त्यागने की घोषणा कि सकता है, ऐसी घोषणा के
परित्याग से पंजीकिण के उपिांत िह भाित का नागरिक नह ं िहेगा।
● ऐसे व्यक्तत के अियस्क बच्चों की नागरिकता भी इसके बाद समाप्त हो जाएगी। हालांकक
ियस्क होने के उपिांत िह बच्चा पुन: नागरिकता हाशसल कि सकता है।
● िब कोई भारतीय नागररक स्िेच्छा से (होशो-हिास में, िानबूझकर और बबना दबाि,
बर्ाजस्तगी से अनुधचत प्रभाि या मिबूर के) ककसी अन्य दे श की नागररकता स्िीकार करता है, तो उसकी
भारतीय नागररकता स्ितः समाप्त हो िाती है।

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केंद्र सिकाि द्िािा ककसी व्यक्तत की भाितीय नागरिकता अननिायज रूप से समाप्त कि द जाती
है, यहद:
िंचन से 1. फिी तर के से नागररकता प्राप्त की गयी हो।
2. भारतीय सींवििान का अनादर ककया गया हो।
3. युद्ि काल में शत्रु दे श के साथ गैर-कानूनी रूप से सींबींि स्थावपत ककया गया हो या
सूचनाओीं का आदान-प्रदान ककया गया हो।
4. पींिीकरण या दे शीकरण से हामसल नागररकता के पााँच िर्म के भीतर ककसी अन्य दे श में 2
िर्म की कैद हुई हो।
5. सात िर्ों से लगातार भारत से बाहर तनिास कर रहा हो।

एकल नागरिकता
● यद्यवप भारत में सींघीय सींवििान और दोहर रािव्यिस्था (केंद्र और राज्य) को अपनाया गया है, पिं तु यहााँ केिल
एकल नागररकता की व्यिस्था लागू है- अथाात सींघीय तनष्ट्ठा को व्यतत करती भारतीय नागररकता।
● यहााँ अमेररका और जस्िट्िरलैंड की तरह राज्यों के मलए अलग नागररकता का कोई प्राििान नह ीं है।
● भारत में, सभी नागररकों को, चाहे िे ककसी भी राज्य में िन्में या तनिास करते हों, पूरे दे श में एक समान
नागररक अधिकार प्राप्त हैं और उनके साथ ककसी प्रकार का भेदभाि नह ीं होता है। हालाींकक, भेदभाि रदहत
नागररकता का यह सामान्य तनयम कुछ अपिादों के अिीन है।
● भारत के सींवििान में कनाडा के सींवििान की तरह भाई-चारे और लोगों के बीच एकता बनाए रिने तथा एक
एकीकृत भारतीय राष्ट्र का तनमामण करने के मलए एकल नागररकता के प्राििान के साथ एक समान अधिकार
(विशेर् मामलों के अततररतत) प्रदान ककए गए हैं।

नागरिकता संसोधन अधधननयम 2019


● अिैि प्रिासी की पररभार्ा: यह अधितनयम अिैि प्रिामसयों को भारतीय नागररकता प्राप्त करने से रोकता है। यह
एक विदे शी को एक अिैि प्रिासी के रूप में पररभावर्त करता है: -
(i) िो िैि पासपोटम या यात्रा दस्तािेिों के बबना भारत में प्रिेश करता है।
(ii) अनुमत समय से परे भारत में तनिास करता है।
● 31 ददसींबर 2014 या उससे पहले अफगातनस्तान, बाींग्लादे श और पाककस्तान से भारत आए दहन्दू, मसि, बौद्ि,
िैन, पारसी और ईसाईयों को अिै ि प्रिासी नह ीं माना िाएगा और इन लोगों के समूहों के मलए 11 िर्म की
अतनिायमता हो घटाकर 5 िर्म ककया िाएगा।
● अिैि प्रिामसयों से सींबींध ित ये प्राििान असम , मेघालय, ममज़ोरम और बत्रपुरा के उन आददिासी क्षेत्रों में लागू नह ीं
होंगे, िो सींवििान की 5िीीं अनुसूची में शाममल हैं।
● इसके अलािा, यह बींगाल पू िी सीमा तनयमन, 1873 (Bengal Eastern Frontier Regulation, 1873) के तहत
अधिसूधचत अरुणाचल प्रदे श, ममिोरम, मखणपुर और नागालैंड के “इनर लाइन” क्षेत्रों पर लागू नह ीं होगा।
● ओसीआई (Overseas Citizenship of India ) के पींिीकरण को रद्द करना: इस अधितनयम में यह प्राििान
ककया गया है कक केंद्र सरकार तनम्नमलखित आिारों पर ओसीआई को रद्द कर सकती है-
(i) यदद ओसीआई ने फिी माध्यम से पींिीकरण कराया है।
(ii) यदद, पींिीकरण के 5 िर्म के भीतर, ओसीआई को 2 िर्म या अधिक के कारािास की सिा हुई हो।
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(iii) यदद भारत की सींप्रभुता और सुरक्षा के मलए ऐसा ककया िाना आिश्यक हो गया हो।
(iv) यदद ओसीआई ने इस अधितनयम या केंद्र सरकार द्िारा अधिसूधचत ककसी अन्य कानून के प्राििानों का
उल्लींघन ककया हो।
ओसीआई पींिीकरण रद्द करने का आदे श, ओसीआई काडम-िारक को सुनिाई का मौका ददये बगैर पाररत नह ीं ककया
िाएगा।

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6. र्ूल अधधकार

• भाितीय संविधान के भागIII र्ें अनुच्छे द 12-35तक र्ूल अधधकािों का प्रािधान है।
• र्ूल अधधकाि,अर्ेरिकी संविधान (अधधकाि का त्रबल–Bill of Rights) से प्रेरित हैं + व्यजक्त के सिाांगीण विकास
के मलए ‘र्ूल’ तत्ि:भौनतक,बौद्धधक, नैनतक औि आध्यान्त्र्क + भाित का र्ैग्ना कार्टाा + न्यायोधचत + हि
व्यन्क्त के शलए र्ूल अधधकािों की गािं र्टी लेक्रकन युन्क्तयुक्त प्रनतबंध के साथ + िाजनीनतक लोकतंत्र के आदशा +
कायापाशलका की ननिं कुशता औि विधानयका के कानूनों की र्नर्ानी पि सीर्ाएं + र्ूल अधधकािों औि डीपीएसपी
के बीच संतुलन संविधान की आधािभूत ढांचा का का दहस्सा है।

र्ूल रूप से सात र्ूल अधधकार:


1. सर्ता का अधधकाि (अनुच्छे द 14-18)
2. स्ितंत्रता का अधधकाि (अनुच्छे द 19-22)
3. शोषण के विरुद्ध अधधकाि (अनुच्छे द 23-24)
4. धर्ा की स्ितंत्रता का अधधकाि (अनुच्छे द 25-28)
5. सांस्कृनतक औि शशक्षा संबंधी अधधकाि (अनुच्छे द 29-30)
6. संपवत्त का अधधकाि (अनुच्छे द 31)→अब अनुच्छे द 300A- 44िां संशोधन अधधननयर्, 1978 (कानूनी अधधकाि)
7. सांविधाननक उपचािों का अधधकाि (अनुच्छे द 32)
44िें संशोधन अधधननयर्, 1978 के द्िािा संपवत्त के अधधकाि को र्ूल अधधकािों की सू ची से हर्टाने के बाद ितार्ान
र्ें छ: र्ूल अधधकाि हैं।

र्ूल अधधकारों की विशेषताएं


• कुछ केिल भाितीय नागरिक के शलए उपलब्ध हैं- अनुच्छे द 15, अनुच्छे द 16, अनुच्छे द 19, अनुच्छे द 29 औि
अनुच्छे द 30
• असीशर्त नहीं हैं लेक्रकन िाद-योग्य होते हैं, उधचत प्रनतबंधों के अधीन।
• िाज्य की र्नर्ानी कािािाई के खखलाफ उपलब्ध हैं।
• कुछ नकािात्र्क विशेषता िखते हैं तो कुछ सकािात्र्क।
• र्ूल अधधकाि स्थायी नहीं हैं, इन्हें संसद द्िािा संशोधधत क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 358→ अनुच्छे द 19 को केिल युद्ध या बाह्य आिर्ण के आधाि पि लगाए गए आपातकाल के दौिान
ननलंत्रबत क्रकया जा सकता है। इसे सशस्त्र विद्रोह के कािण लगाए गए आपातकाल के आधाि पि ननलंत्रबत नहीं
क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 359→ अनुच्छे द 19 के अलािा, संविधान के भाग 3 र्ें िखणात क्रकन अधधकािों का क्रकतने सर्य ि
क्रकस क्षेत्र र्ें ननलंबन होगा , इसके शलए िाष्ट्रपनत आदे श जािी किे गा। हालाँक्रक अनुच्छे द 20 औि 21 को िाष्ट्रीय
आपातकाल के दौिान ननलंत्रबत नहीं क्रकया जा सकता है।
• र्ूल अधधकारों के कक्रयान्ियन की सीर्ाएाँ→ अनुच्छे द 31A (संपवत्त आदद के अधधग्रहण के शलए प्रदान किने िाले
कानूनों की िक्षा), अनुच्छे द 31B (9िीं अनुसूची र्ें शाशर्ल होने िाले कुछ अधधननयर्ों औि विननयर्ों का
विधधर्ान्यीकिण) औि अनुच्छे द 31C (कुछ नीनत-ननदे शक तत्िों को प्रभािी किने िाले कानूनों की िक्षा) + सेना
विधध (र्ाशाल लॉ) लागू होने पि र्ूल अधधकािों का ननबंधन (अनुच्छे द 34)।
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• ज़्यादाति र्ूल अधधकाि स्ियं प्रिनतात हैं। िहीं कुछ र्ूल अधधकािों को विधध या कानून के द्िािा प्रभािी बनाया
जाता है। इस तिह के कानून भाित की एकता हेतु संसद द्िािा बनाये जाते हैं, न क्रक िाज्यों के विधानर्ंडल
द्िािा। ऐसा इसशलए क्रकया जाता है ताक्रक पूिे दे श र्ें एकता बनी िहे।

र्ूल अधधकार

• विधध के सर्ि सर्ानता एिं विधधयो का सर्ान संरिण - (अनुच्छे द 14)


सर्ता का अधधकाि • धर्ा, र्ूलिं श,जानत, मलंग या जन्र् स्थान के आधार पर विभेद का प्रनतषेध- (अनुच्छे द
(अनुच्छे द 14-18) 15)
• लोक ननयोजन के विषय र्ें अिसर की सर्ानता - (अनुच्छे द 16)
• अस्पृश्यता का अंत- (अनुच्छे द 17)
• उपाधधयों का अंत - (अनुच्छे द 18)
• स्ितंत्रता के संबंधधत छह अधधकािों का संिक्षण: ( i) िाक औि अशभव्यन्क्त ( ii)
स्ितंत्रता का अधधकाि सम्र्ेलन (iii) संघ (iv) संचिण (v) ननिास औि (vi) पेशा (िृवत्त)- अनुच्छे द 19
(अनुच्छे द 19-22) • अपिाधों के शलए दोषशसद्धध के संबंध र्ें संिक्षण- अनुच्छे द 20
• प्राण औि दै दहक स्ितंत्रता का संिक्षण- अनुच्छे द 21
• प्रािं शभक शशक्षा का अधधकाि - अनुच्छे द 21A
• कुछ दशाओं र्ें धगिफ्टतािी औि ननिोध से संिक्षण - अनुच्छे द 22

शोषण के विरुद्ध • र्ानि औि दुव्याापाि औि बलात्श्रर् का प्रनतषेध- अनुच्छे द 23


अधधकाि (अनुच्छे द • कािखानों आदद र्ें बालकों के ननयोजन का प्रनतषेध- अनुच्छे द 24
23-24)

• अंत:किण की औि धर्ा की अबाध रूप से र्ाननेआचिण औि प्रचाि किने की स्ितंत्रता


धर्ा की स्ितंत्रता का - अनुच्छे द 25
अधधकाि (अनुच्छे द • धाशर्ाक र्ार्लों के प्रबंधन की स्ितंत्रता - अनुच्छे द 26
25-28) • क्रकसी विशशष्ट्र्ट धर्ा की अशभिृद्धध के शलए किों के संदाय के बािे र्ें स्ितंत्रता-
अनुच्छे द 27
• कुल शशक्षा संस्थाओं र्ें धाशर्ाक शशक्षा या धाशर्ाक उपासना र्ें उपन्स्थत होने के बािे र्ें
स्ितंत्रता - अनुच्छे द 28

सांस्कृनतक औि शशक्षा • भाषा, शलवप औि अल्प-संख्यकों िगों की संस्कृनत का संिक्षण - अनुच्छे द 29


संबंधी अधधकाि • शैक्षक्षक संस्थान की स्थापना औि प्रशासन के शलए अल्प-संख्यकों िगों का अधधकाि-
(अनुच्छे द 29-30) अनुच्छे द 30

सांविधाननक उपचािें • र्ूल अधधकािों के प्रितान किाने के शलए सिोच्च न्यायालय जाने का अधधकाि

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का अधधकाि (अनुच्छे द (संविधान के र्ूल ढांचे के शसद्धांत) - अनुच्छे द 32
32)

र्ूल अधधकार और सांविधाननक प्रािधान

अनुच्छे द व्याख्या

• अनुच्छे द 12 र्ें "िाज्य" शब्द को परिभावषत क्रकया है न्जसर्ें सिकाि औि संसद + सिकाि औि
िाज्यों की विधानयका + सभी स्थानीय प्राधधकिण अथाात नगिपाशलकाएं , पंचायत, न्जला बोडा, सु धाि
अनुच्छे द 12
संस्था आदद+ अन्य सभी प्राधधकिण , अथाात ् िैधाननक या गैि-िैधाननक प्राधधकिण जैसे एलआईसी
(LIC), ओएनजीसी (ONGC), सेल (SAIL) आदद।
• उच्चतर् न्यायालय के अनुसाि : एक ननजी ननकाय या िाज्य के एक उपकिण के रूप र्ें कार्
किने िाली संस्था भी अनुच्छे द 12 के तहत िाज्य की परिभाषा के अंतगात आती है।

• अनुच्छे द 13 - सभी "विधध" जो क्रकसी भी र्ूल अधधकाि के साथ असंगत या अपर्ानजनक हैं,
शून्य हो जाएंगे।
• शब्द "विधध" ननरूवपत किता है: संसद या िाज्य विधानसभाओं द्िािा बनाए गई स्थायी विधधयाँ +
िाष्ट्रपनत या िाज्य के िाज्यपालों द्िािा जािी क्रकए गए अध्यादे श जैसी अस्थायी विधधयाँ +
प्रत्यायोन्जत विधान की प्रकृनत र्ें सांविधाननक साधन जैसे - आदे श, ननयर्,उपविधध,विननयर्न या
अनुच्छे द 13
अधधसूचना + विधध के गैि विधायी स्रोत जैसे रूदढ या प्रथा जो विधध का प्रभाि िखती हो।
• इन्हें र्ूल अधधकािों के उल्लंघन के रूप र्ें अदालतों र्ें चुनौती दी जा सकती है औि इसशलए इसे
शून्य घोवषत क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 13 न्यानयक पुनिािलोकन प्रदान किता है।
• अनुच्छे द 13 घोवषत किता है क्रक संविधान संशोधन कोई विधध नहीं है इसशलए इसे चुनौती नहीं दी
जा सकती है। हालाँक्रक, सिोच्च न्यायालय ने केशिानंद भािती र्ार्ले ( 1973) र्ें कहा क्रक र्ूल
अधधकािों के हनन के आधाि पि चुनौती दी जा सकती है। यदद िह संविधान के र्ूल ढांचे के
खखलाफ हो तो उसे अिैध घोवषत क्रकया जा सकता है।
• विधध के सर्क्ष सर्ानता का अधधकाि (त्रिदर्टश धािणा + नकािात्र्क धािणा) + विधधयों का सर्ान
संिक्षण (अर्ेरिकी अिधािणा + सकािात्र्क धािणा)।
• अनुच्छे द 14: िाज्य क्रकसी भी व्यन्क्त को विधध के सर्क्ष सर्ानता या िाज्य क्षेत्र र्ें विधधयों के
सर्ान संिक्षण से इनकाि नहीं किे गा।
• विधध के सर्क्ष सर्ानता (त्रिदर्टश धािणा): क्रकसी भी व्यन्क्त के पक्ष र्ें क्रकसी विशेष विशेषाधधकािों
की अनुपन्स्थनत + साधािण विधध या साधािण विधध न्यायलय के तहत सभी व्यन्क्तयों के शलए
सर्ान व्यिहाि + कोई व्यन्क्त विधध से ऊपि नहीं है।
• विधधयों का सर्ान संिक्षण (अर्ेरिकी अिधािणा):विधधयों द्िािा प्रदत्त विशेषाधधकािों औि
अध्यािोवपत दानयत्िों दोनों र्ें सर्ान परिन्स्थयों क अंतगात व्यिहाि सर्ता + सर्ान विधध के
अंतगात सभी व्यन्क्तयों के शलए सर्ान ननयर् + त्रबना भेदभाि के सभी के साथ सर्ान व्यिहाि।

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• सभी व्यन्क्तयों को प्रदान क्रकए गए हैं (नागरिकों औि विदेशशयों) औि इसर्ें विधधक व्यन्क्त
अनुच्छे द 14 (सांविधाननक ननगर्, कंपननयां, पंजीकृत संस्थाएं या क्रकसी अन्य प्रकाि के विधधक व्यन्क्त) शाशर्ल
हैं।
• विधध का शासन: विधध के सर्क्ष सर्ानता→विधध का शासन → ए िी डायसी
• विधध का शासन → संविधान की र्ूल विशेषता
• सर्ता के अपिाद:
➢ भाित के िाष्ट्रपनत औि िाज्यपाल + विदे शी संप्रभु औि िाजननयक + यूएनओ ( UNO) औि
उसकी अन्य संस्था।
➢ अनुच्छे द 31C (उच्चतर् न्यायालय का कहना है क्रक ‘जहां अनुच्छे द 31C आता है, िहाँ से
अनुच्छे द 14 चला जाता है’)
➢ अनुच्छे द 361A : संसद या िाज्य विधानयका की क्रकसी भी कायािाही की सत्य कायािाही से
संबन्न्धत विषय-िस्तु का सर्ाचाि पत्र र्ैं किता है तो उस पि क्रकसी भी प्रकाि का दीिानी या
फौजदािी का र्ुकदर्ा, दे श क क्रकसी भी न्यायालय र्ें नहीं चलाया जा सकेगा।
➢ अनुच्छे द 105: संसद के सदस्यों को संसदीय विशेषाधधकाि।
➢ अनुच्छे द 194: िाज्य की विधानयका या उसकी सशर्नत के सदस्यों को विशेषाधधकाि।
• अनुच्छे द 15: कुछ आधािों पि विभेद का प्रनतषेध→िाज्य केिल धर्ा, जानत, र्ूल िंश,शलंग या
जन्र् स्थान के आधाि पि क्रकसी भी नागरिक के साथ भेदभाि नहीं किे गा।
• यह प्रािधान िाज्य औि ननजी व्यन्क्तयों दोनों द्िािा भेदभाि पि िोक लगाता है।
• अनुच्छे द 15 (3) औि 15 (4) दे श र्ें आिक्षण का र्ूलभूत आधाि हैं।
• विभेद से प्रनतषेध के इस सार्ान्य ननयर् के चाि अपिाद: िाज्य को र्दहलाओं औि बच्चों के शलए
कोई विशेष प्रािधान किने की अनुर्नत है। + िाज्य सार्ान्जक औि शैक्षखणक रूप से वपछड़े िगों
या अनुसूधचत जानत एिं जनजानत की उन्ननत के शलए विशेष उपबंध कि सकता है। + िाज्य
सार्ान्जक औि शैक्षखणक रूप से वपछड़े िगों या अनुसूधचत जानत एिं जनजानत की उन्ननत के शलए
शैक्षखणक संस्थानों (ननजी संस्थान जो िाज्य से अनुदान प्राप्त किते हैं या नहीं तथा अल्पसंख्यक
शैक्षखणक संस्थानों को छोड़कि) र्ें प्रिेश के शलए कोई विशेष ननयर् बना सकता है + नागरिकों के
अनुच्छे द 15 क्रकसी भी आधथाक रूप से कर्जोि िगा की उन्ननत के शलए।
शैिणणक संस्थानों र्ें अन्य वपछडा िगा के मलए आरिण:
अनुच्छे द 15(C)र्ें अपिाद→ 93िाँ संशोधन अधधननयर् = अधधननयशर्त केंद्रीय शैक्षखणक संस्थान
(प्रिेश र्ें आिक्षण) अधधननयर्, 2006→ IIT औि IIM सदहत सभी केंद्रीय उच्च शै क्षखणक संस्थानों र्ें
अन्य वपछड़ा िगा के शलए 27% आिक्षण का प्रािधान।
शैिणणक संस्थानों र्ें आधथाक रूप से कर्जोर िगा के मलए आरिण:
उपयुाक्त अपिाद (C) को 2019 के 103िें संशोधन अधधननयर् द्िािा जोड़ा गया था → केंद्र सिकाि ने
2019 र्ें
आदे श जािी क्रकया था → आधथाक रूप से कर्जोर िगा को शैक्षखणक संस्थानों र्ें प्रिेश के शलए 10%
आरिण का प्रािधान।
• अनुच्छे द 16: िाज्य के तहत क्रकसी भी कायाालय र्ें िोजगाि या ननयुन्क्त के र्ार्लों र्ें सभी
नागरिकों के शलए अिसि की सर्ानता। केिल धर्ा , जानत, सम्प्रदाय, शलंग, िंश, जन्र् स्थान या

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ननिास स्थान के आधाि पि क्रकसी भी िोजगाि या कायाालय के शलए क्रकसी भी नागरिक के साथ
अनुच्छे द 16 भेदभाि नहीं क्रकया जा सकता है।
लोक ननयोजन र्ें सर्ता के संबंध र्ें चार अपिाद:
1. संसद, िाज्य या केंद्रशाशसत प्रदे श या स्थानीय प्राधधकिण या अन्य प्राधधकिण र्ें ननयुन्क्त के शलए
ननिास की शता का उल्लेख कि सकती है।(अभी केिल आंध्र प्रदे श औि तेलंगाना र्ें)।
2. िाज्य क्रकसी भी वपछड़े िगा के पक्ष र्ें ननयुन्क्तयों या पदों के आिक्षण का प्रािधान कि सकता है
जो िाज्य सेिाओं र्ें पयााप्त रूप से प्रनतननधधत्ि नहीं किता है।
3. विधध के अनुरूप क्रकसी संस्था (धाशर्ाक या संप्रदाय से संबंधधत) या इसके कायाकािी परिषद के
सदस्य की धाशर्ाक आधाि पि व्यिस्था की जा सकती है।
4. िाज्य → क्रकसी भी आधथाक रूप से कर्जोि िगा के नागरिक की ननयुन्क्त के पक्ष र्ें 10% तक
आिक्षण का प्रािधान किने की अनुर्नत दी गई।

• अस्पश्ृ यता का अंत: क्रकसी भी रूप र्ें अस्पश्ृ यता की र्नाही→ अस्पश्ृ यता (अपिाध) अधधननयर्,
1955 = 1976 र्ें संशोधन क्रकया गया औि नया नार् नागरिक अधधकािों क्रकन िक्षा अधधननयर्
ददया गया।
• अस्पश्ृ यता - संविधान या अधधननयर् र्ें पररभावषत नहीं है।
अनुच्छे द 17 • र्ैसूि उच्च न्यायालय: "अनुच्छे द 17 की विषय िस्तु शान्ब्दक या व्याकिखणक अथों र्ें अस्पृश्यता
नहीं है, लेक्रकन दे श र्ें ऐनतहाशसक रूप से विकशसत हुई थी”→ सार्ान्जक ननयोगयता कुछ िगों पि
थोप दी गई।
• कुछ व्यजक्तयों के सार्ाजजक बदहष्कार या धामर्ाक सेिाओं आदद से उनके बदहष्कार को सजम्र्मलत
नहीं ककया गया है।
• ननजी व्यजक्त और राज्य के संिैधाननक दानयत्ि के णखलाफ उपलब्ध है ताकक यह सुननजश्चत ककया
जा सके कक इस अधधकार का उल्लंघन नहीं हुआ है।
• यह िाज्य को क्रकसी भी (चाहे िह एक नागरिक या विदे शी हो) क्रकसी भी उपाधध (एक सै न्य या
शैक्षखणक सम्र्ान को छोड़कि) प्रदान किने को ननषेध किता है।
• यह भाित के नागरिक को क्रकसी भी विदे शी िाज्य से क्रकसी भी उपाधध को स्िीकाि किने का ननषेध

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अनुच्छे द 18 किता है।
• 1996 र्ें, सिोच्च न्यायालय ने िाष्ट्रीय पुिस्कािों- भाित ित्न, पद्र् विभूषण, पद्र् भूषण औि
पद्र् श्री की संिैधाननक िैधता को उधचत ठहिाया था।
• सिोच्च न्यायालय ने कहा क्रक ये पुिस्काि उपाधध तथा अनुच्छे द 18 के प्रािधानों का उल्लंघन नहीं
होता है।
• सिोच्च न्यायालय ने यह भी कहा क्रक पुिस्काि पाने िालों के नार् के प्रत्यय या उपसगा के रूप र्ें
इस्तेर्ाल नहीं क्रकया जाना चादहए अन्यथा , उन्हें पुिस्काि िापस दे ना होगा।
• िाज्य के तहत लाभ या विश्िास का पद धािण किने िाला कोई व्यन्क्त क्रकसी भी विदे शी िाज्य से
या उसके अधीन क्रकसी भी रूप र्ें कोई भेंर्ट , उपलन्ब्ध या पद िाष्ट्रपनत की सहर्नत के त्रबना
स्िीकाि नहीं कि सकता है।

स्ितंत्रता का अधधकार (अनुच्छे द 19): अनुच्छे द 19 स्ितंत्रता के संबंधधत छह अधधकारों का संरिण करता है। यह हैं:
• र्ूल रूप से अनुच्छे द19 र्ें 7 अधधकाि थे → 44िें संशोधन अधधननयर्,1978 के द्िािा संपवत्त के अधधकाि को
हर्टा ददया गया था। जो अब अनुच्छे द 300A के अंतगात आता है।
1. िाक औि अशभव्यन्क्त कीस्ितंत्रता का अधधकाि
2. शांनतपूिाक औि ननिायुध सम्र्ेलन का अधधकाि
3.सगर् या संघ या सहकािी संस्था बनाने काअधधकाि
4. भाित के िाज्यक्षेत्र र्ें सित्रि् अबाध संचिण का अधधकाि
5. भाित के िाज्यक्षेत्र के क्रकसी भी भाग र्ें ननिास किने औि बसने का अधधकाि
6. कोई िृवत्त, उपजीविका, व्यापाि या कािबाि किने का अधधकाि
• इन छह अधधकािों की िक्षा केिल राज्य के णखलाफ र्ार्ले र्ें कर सकते हैं न कक ननजी र्ार्ले र्ें । केिल
नागरिकों को [विदे शी औि कानूनी लोगों जैसे कंपनी या परिषदों के शलए]
• िाज्य इन 6 अधधकािों पि अनुच्छे द 19 र्ें िखणात आधािों पि ही उधचत प्रनतबंध लगा सकता है।
उच्चतर् न्यायालय ने िाक और अमभव्यजक्त की स्ितंत्रता र्ें ननम्नमलणखत को शामर्ल
ककया है:
1. अपने विचािों के साथ-साथ दूसिों के विचािों को प्रसारित किने का अधधकाि
2. प्रेस की स्ितंत्रता
3. व्यािसानयक विज्ञापनों की स्ितंत्रता
4. फोन र्टे वपंग के विरुद्ध अधधकाि
िाक और अमभव्यजक्त 5. प्रसारित किने का अधधकाि, यानी सिकाि का इलेक्रॉननक र्ीडडया पि कोई
की स्ितंत्रता का एकाधधकाि नहीं है।
अधधकार 6. क्रकसी िाजनीनतक दल या संगठन द्िािा आयोन्जत बंद के खखलाफ अधधकाि

अनुच्छे द19 (1): 7. सिकािी गनतविधधयों के बािे र्ें जानने का अधधकाि


8. शांनत का अधधकाि
9. अखबाि पि पूणा प्रनतबंध के खखलाफ अधधकाि
10. प्रदशान औि वििोध का अधधकाि लेक्रकन हड़ताल किने का अधधकाि नहीं

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उधचत प्रनतबंध: भाित की संप्रभुता औि अखंडता + िाज्य की सु िक्षा + विदे शी िाज्यों के
साथ र्ैत्रीपूणा संबंध + सािाजननक आदे श + शशष्ट्र्टता + नैनतकता +न्यायालय की अिहेलना
+ र्ानहानन + अपिाध र्ें संशलप्तता।
• सभी नागरिकों को त्रबना हधथयािों के शांनतपूिाक संगदठत होने का का अधधकाि
• सािाजननक सभा, प्रदशान औि जुलस
ू ननकालने का अधधकाि
• केिल सािाजननक भूशर् पि + शांनतपूणा + त्रबना हधथयािों के
• दहंसा,अव्यिस्था, गलत संगठन एिं सािाजननक शांनत भंग किने का अधधकाि नई दे ता
िाक और अमभव्यजक्त है।
की स्ितंत्रता का • हड़ताल किने का अधधकाि नहीं
अधधकार
अनुच्छे द 19 (2):
उधचत प्रनतबंध:
• भाित की संप्रभुता औि अखंडता + सािाजननक आदे श
• धारा 144 - आपराधधक प्रकक्रया संदहता (1973): र्न्जस्रेर्ट एक सभा, बैठक या
जुलूस को िोक सकता है → र्ानि जीिन के शलए खतिा , स्िास््य या
सुिक्षा,सािाजननक जीिन र्ें व्यिधान या दं गा भड़काने के आधाि पि।
• भारतीय दं ड संदहता ( IPC)की धारा 141: पाँच या अधधक व्यन्क्तयों का संगठन गैि
कानूनी हो सकता है यदद:
➢ क्रकसी भी कानून या कानूनी प्रक्रिया के ननष्ट्पादन का वििोध किना
➢ क्रकसी व्यन्क्त की संपवत्त पि जबिन कब्जा किना
➢ क्रकसी आपिाधधक काया की चचाा हो
➢ क्रकसी व्यन्क्त को गैिकानूनी कार् किने के शलए र्जबूि किना
➢ सिकाि या उसके कर्ाचारियों को उनकी विधायी शन्क्तयों के प्रयोग हेतु धर्काना
• अनुच्छे द 19 (3): सभी नागरिकों को संगर्,संघ या सहकािी सशर्नतयों के गठन का
अधधकाि है:
• गदठत किने का अधधकाि: िाजनीनतक दल + कंपनी + साझेदािी फर्ा + सशर्नतयां
+क्लब + संगठन + रे ड यूननयन या लोगों की अन्य इकाई
• संगर् या संघ को ननयशर्त रूप से संचाशलत किने का अधधकाि
संगर् या संघ बनाने • संगर् या संघ के गठन या उसर्ें शाशर्ल होने के नकािात्र्क अधधकाि भी शाशर्ल हैं।
का अधधकार उधचत प्रनतबंध:
अनुच्छे द 19 (3): • भाित की संप्रभुता औि अखंडता + सािाजननक आदे श + नैनतकता
• संगर् की स्िीकािोन्क्त या र्ान्यता प्राप्त किना र्ूल अधधकाि नहीं है।
• रे ड यूननयन के शलए उच्चतर् न्यायालय ने व्यिस्था दी है क्रक:
➢ र्ोलभाि या सौदे बाजी का कोई अधधकाि नहीं है।
➢ हड़ताल किने का कोई अधधकाि नहीं है।
➢ हड़ताल के अधधकाि को उपयुाक्त औद्योधगक कानून के द्िािा ननयंत्रत्रत क्रकया जा सकता
है।
➢ तालाबंदी किने का कोई अधधकाि नहीं है।
• प्रत्येक नागरिक को संचिण का अधधकाि → एक िाज्य से दूसिे िाज्य र्ें या एक िाज्य
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के भीति
• भाित की एकता → िाष्ट्रीय भािना को बढािा देती है
अबाध संचरण का उधचत प्रनतबंध: आर् जनता का दहत + क्रकसी अनुसूधचत जनजानत के दहतों का संिक्षण
अधधकार • उच्चतर् न्यायालय : सािाजननक स्िास््य औि नैनतकता के आधाि पि िेश्या के संचिण

अनुच्छे द 19 (4): के अधधकाि को प्रनतबंधधत क्रकया जा सकता है।


• आंतरिक स्ितंत्रता – दे श र्ें ननबााध संचिण का अधधकाि → अनुच्छे द 19
• बाहिी स्ितंत्रता: दे श के बाहि घूर्ने का अधधकाि→ अनुच्छे द 21
• दे श के कई दहस्सों र्ें,जनजानतयों को अपनी संस्कृनत के संिक्षण हेतु अपने ननयर् औि
ननिास करने का कानून के बनाने का अधधकाि है।
अधधकार • ननिास का अधधकाि औि घूर्ने का अधधकाि एक दूसिे के पू िक हैं।
अनुच्छे द19 (5):
• सभी नागरिकों को क्रकसी भी पेशे को अपनाने, व्यिसाय किने एिं व्यापाि शुरू किने का
अधधकाि है।
व्यापार या कारबार • यह अधधकाि बहुत विस्तत
ृ है→ यह जीिन ननिाहन हेतु आय से संबन्न्धत है।
करने का अधधकार • राज्य सशक्त है कक िह:
अनुच्छे द19 (6): ➢ ककसी पेशे या व्यिसाय के मलए आिश्यक व्यािसानयक / तकनीकी योग्यताओं को
जरूरी ठहरा सकता है।
➢ ककसी भी व्यापार, व्यिसाय, उद्योग या सेिा को पूणा या आंमशक रूप से स्ियं जारी
रख सकता है।

• िाज्य को अपने एकाधधकाि को सही ठहिाने की आिश्यकता नहीं है।


• इस अधधकाि र्ें ऐसा पेशा या व्यिसाय या व्यापाि शाशर्ल नहीं है जो अनैनतक है या
खतिनाक है– िाज्य इन पि पूिी तिह से प्रनतबंध लगा सकता है या संचालन के शलए
लाइसेंस की अननिायाता कि सकता है।
• अनुच्छे द 20-क्रकसी आिोपी व्यन्क्त चाहे िो नागरिक हो या विदे शी या कानूनी व्यन्क्त
(कंपनी या परिषद) के विरुद्ध र्नर्ाने औि अत्यधधक सजा से संिक्षण प्रदान किता है।
कोई पूिापद प्रभाि कानून नहीं: कोई व्यन्क्त क्रकसी अपिाध के शलए तब तक दोषी नहीं
ठहिाया जाएगा जब तक क्रक उसने काया किने के सर्य , जो अपिाध के रूप र्ें आिोवपत है,
क्रकसी प्रव्रत विधध का अनतिर्ण नहीं क्रकया है या उससे अधधक शन्क्त का भागी नहीं होगा ,
जो उस अपिाध के शलए जाने के सर्य प्रव्रत विधध के अधीन अधधिोवपत क्रक जा सकती थी।
दोहरी िनत नहीं: क्रकसी व्यन्क्त को एक ही अपिाध के शलए एक से अधधक बार दं डडत नहीं
अनुच्छे द20
ककया जाएगा।
नोट: केिल न्यायालय या न्यानयक न्यायाधधकरण के सर्ि कायािाही पर अथाात ् ननकायों के
मलए जो प्रकृनत र्ें न्यानयक हैं।
स्ि-अमभशंसन नहीं: क्रकसी भी अपिाध के शलए अशभयुक्त क्रकसी व्यन्क्त को खुद के खखलाफ
गिाह बनने के शलए र्जबूि नहीं क्रकया जाएगा (र्ौखखक औि दस्तािेजी साक्ष्य दोनों के
शलए। इसका विस्ताि दीिानी सुनिाई पि नहीं हो सकता है या जो सुनिाई आपिाधधक

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प्रकृनत की न हों)
• अनुच्छे द 21: क्रकसी व्यन्क्त को उसके प्राण या दै दहक स्ितन्त्रता से विधध द्िािा
स्थावपत प्रक्रिया के अनुसाि िंधचत क्रकया जाएगा अन्यथा नहीं।
• गोपालन र्ार्ले (1950): सिोच्च न्यायालय–
अनुच्छे द21
➢ अनुच्छे द 21 के तहत संिक्षण र्नर्ानी कायाकािी कािािाई के खखलाफ सुिक्षा
उपलब्ध है न क्रक विधानर्ंडलीय प्रक्रिया के विरुद्ध।
➢ व्यन्क्तगत स्ितंत्रता = केिल व्यन्क्त या व्यन्क्त के शिीि से संबंधधत स्ितंत्रता।

र्ेनका गांधी केस (1978): अनुच्छे द 21 की व्यापक व्याख्या -


➢ व्यन्क्त के जीिन औि व्यन्क्तगत स्ितंत्रता के अधधकाि को विधध द्िािा िंधचत नहीं
क्रकया जा सकता है बशते उस विधध द्िािा ननधाारित प्रक्रिया उधचत , ननष्ट्पक्ष औि
न्यायपूणा हो।
➢ जीिन का अधधकाि = र्ानिीय गरिर्ा के साथ जीने का अधधकाि
➢ व्यन्क्तगत स्ितंत्रता = व्यापक आयार् औि इसर्ें कई प्रकाि के अधधकाि शाशर्ल हैं
जो क्रकसी व्यन्क्त की व्यन्क्तगत स्ितंत्रता का गठन किते हैं।
• अनुच्छे द 21A- िाज्य छह से चौदह िषा की आयु के सभी बच्चों को र्ुफ्टत औि
अननिाया शशक्षा प्रदान किे गा – इसका ननधाािण िाज्य किे गा।
• 86िां संशोधन अधधननयर्,2002 - सभी के शलए शशक्षा - "नागरिकों के अधधकाि के
र्ार्ले र्ें दूसिी िांनत क्रक तिह उठाया गया कदर् था।"
अनुच्छे द 21A • भाग 4 के अनुच्छे द 45– राज्य के नीनत ननदे शक तत्ि - र्ुफ्टत औि अननिाया शशक्षा का
उपबंध
• अभी का बदलाि – िाज्य सभी बच्चों को 14 िषा क्रक आयु पूिी किने तक र्ुफ्टत औि
अननिाया शशक्षादे ने के शलए उपबंध किने का प्रयास किे गा।
• अनुच्छे द51A - भाित के प्रत्येक नागरिक का कताव्य होगा क्रक िह छह या चौदह िषा
तक के अपने बच्चे को शशक्षा के अिसि प्रदान किाएगा।
• 1993 – उच्चतर् न्यायालय ने अनुच्छे द 21 के तहत र्ुफ्टत शशक्षा के अधधकाि को
र्ान्यता दी।
• अनुच्छे द 22: क्रकसी व्यन्क्त को धगिफ्टतािी एिं ननिोध से सुिक्षा प्रदान किता है।
अनुच्छे द 22 • ननिारक दहरासत → त्रबना सुनिाई के अदालत र्ें दोषी ठहिाया जाए।
• दं ड विषयक दहरासत→अदालत र्ें दोषी ठहिाया जाने के बाद दं ड दे ना।
• अनुच्छे द 22(1)- अनुच्छे द 22 के इस पहले भाग र्ें साधािण कानून के तहत दहिासत
र्ें शलए गए व्यन्क्त के अधधकाि का िणान है :
• धगिफ्टताि किने के आधाि पि सूचना दे ने का अधधकाि + विधध व्यिसायी से पिार्शा
औि प्रनतिक्षा किने का अधधकाि + र्न्जस्रे र्ट के सर्क्ष 24 घंर्टे र्ें, यात्रा के सर्य को
शर्लाकि पेश क्रकए जाने का अधधकाि + र्न्जस्रे र्ट द्िािा त्रबना अनतरिक्त ननिोध ददये
24 घंर्टे र्ें रिहा किने का अधधकाि।
• यह सुिक्षा विदे शी व्यन्क्त या ननिािक दहिासत कानून के अंतगात धगिफ्टताि व्यन्क्त के
शलए उपलब्ध नहीं हैं।

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• अनुच्छे द 22(2) - अनुच्छे द 22 के इस दूसिे दं ड विषयक कानून के तहत दहिासत र्ें
शलए गए व्यन्क्त के अधधकाि का िणान है।
• यह सुिक्षा दोनों नागरिक के साथ-साथ विदे शी व्यन्क्त के शलए भी उपलब्ध है।
• जब तक सलाहकाि बोडा विस्तृत या उधचत कािण न बताए तब तक क्रकसी व्यन्क्त की
दहिासत तीन र्हीने से अधधक नहीं बढाई जा सकती। बोडा र्ें उच्च न्यायालयों के
न्यायाधीश होंगे।
• अनुच्छे द 22, संसद को भी यह ननधााररत करने के मलए अधधकृत करता है: परिन्स्थनतयों
औि र्ार्लों के िगा न्जनर्ें एक व्यन्क्त को एक ननिािक ननिोध कानून के तहत तीन
र्हीने से अधधक सर्य तक दहिासत र्ें िखा जा सकता है , त्रबना सलाहकाि सशर्नत की
िाय प्राप्त क्रकए + अधधकतर् अिधध न्जसके शलए क्रकसी व्यन्क्त को दहिासत र्ें शलया
जा सकता है। एक ननिािक ननिोध कानून + प्रक्रिया के तहत र्ार्लों की कक्षाएं एक
जांच र्ें एक सलाहकाि बोडा द्िािा पालन की जानी चादहए।
• अनुच्छे द 22 संसद को यह ननधााररत करने की शजक्त भी दे ता है कक: क्रकन परिन्स्थनतयों
के अधीन औि क्रकस िगा के र्ार्लों र्ें क्रकसी व्यन्क्त को ननिािक ननिोध का उपबंध
किने िाली क्रकसी विधध के अधीन , सलाहकाि बोडा की िाय के त्रबना ही तीन र्ाह से
अधधक अिधध के शलए ननरुद्ध क्रकया जा सकता है + ननिािक ननिोध कानून के अंतगात
क्रकसी व्यन्क्त को अधधकतर् क्रकतने सर्य के शलए ननिोध र्ें िखा जा सकता है + जांच
के दौिान सलाहकाि बोडा द्िािा अपनाई जाने िाली िीनत।
• िक्षा, विदे शी र्ार्ले औि भाित की सुिक्षा जुड़े र्ार्लों के शलए ननिािक कानून के
ननर्ााण के शलए संसद के पास अनन्य अधधकाि है।
• अनुच्छे द 23: र्ानि व्यापाि एिं बलात श्रर् का ननषेध।
• यह अधधकाि ननगरिकों औि गैि-नागरिकों दोनों को प्राप्त होते हैं।
• यह अधधकाि क्रकसी व्यन्क्त को िाज्य औि क्रकसी अन्य व्यन्क्त दोनों से सुिक्षा प्रदान
किता है।
अनुच्छे द 23 • अनुच्छे द 23 िाज्य को यह अधधकाि दे ता है क्रक िाज्य सािाजननक उद्दे श्यों के शलए
अननिाया सेिा, जैसे सै न्य सेिा या सार्ान्जक से िा , आिोवपत कि सकता है, न्जसके शलए
िह िेतन दे ने के शलए बाध्य नहीं है।
• नोट: अनुच्छे द 23 र्ें “आयु” का ननधाािण नहीं क्रकया गया है।
• र्ानि दुव्याापार से अमभप्राय है: पुरुषों,र्दहलाओं औि बच्चों की िस्तुओं के सर्ान खिीद
एिं त्रबिी + िेश्यािृवत्त सदहत र्दहलाओं एिं बच्चों के साथ अनैनतक दे ह व्यापाि +
दे िदासी प्रथा + दास प्रथा।
• अनुच्छे द 24 फैक्री, खानों या अन्य खतिनाक कायों जैसे ननर्ााण काया या िे ल िे के
कायों र्ें 14 िषा के कर् आयु के बच्चों के ननयोजन का प्रनतषेध।
अनुच्छे द 24 • यह नुकसान न पाहु चने िाले औि आसान कायों र्ें ननयोजन को प्रनतबंधधत नहीं किता
है।
• बाल अधधकाि संिक्षण आयोग अधधननयर् 2005 , बालकों के अधधकािों के सं िक्षण के
शलए िाष्ट्रीय औि िाज्य स्ति पि बाल अधधकाि संिक्षण आयोग औि बाल अधधकािों के

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उल्लंघन या बालकों के साथ होने िाले अपिाधों के तीव्र विचािण के शलए बाल
न्यायालय की स्थापना का प्रािधान किता है।
• अनुच्छे द 25: धाशर्ाक स्ितन्त्रता का अधधकाि: सभी व्यन्क्तयों को अंतःकिण की
स्ितन्त्रता के धर्ा को अबाध रूप से र्ानने, आचिण किने औि प्रचाि किने का
अधधकाि।
अनुच्छे द 25 • प्रचाि-प्रसाि के अधधकाि के अंतगात क्रकसी व्यनत को अपने धर्ा र्ें धर्ांतरित किने का
अधधकाि शाशर्ल नहीं है।
• अनुच्छे द 25 र्ें प्रदान किता है- धाशर्ाक विश्िास + धाशर्ाक पुजा, पिं प िा के आचिण
का अधधकाि
• अपिाद: लोक व्यिस्था + नैनतकता + स्िास््य + र्ूल अधधकािों से जुड़े अन्य प्रािधान
के उल्लंघन + धर्ांतिण आदद के र्ार्ले र्ें 25 लागू नहीं होता है।
• अनुच्छे द 26- प्रत्येक धाशर्ाक सार्ुदाय या उसके क्रकसी अनुभाग को ननम्नशलखखत
अधधकाि प्राप्त होंगे: धाशर्ाक औि र्ूता प्रयोजनों के शलए संस्थाओं की स्थापना औि
अनुच्छे द 26 पोषण का अधधकाि + चल एिं अचल संपवत्त को अन्जात किने औि उसका स्िाशर्त्ि
िखने का अधधकाि + ऐसे संपवत्त को विधध के अनुसाि प्रशाशसत किने का अधधकाि+
स्ियं के धर्ा विषयक कायों के प्रबं धन का अधधकाि।

अनुच्छे द 25 अनुच्छे द 26
अन्तःकरण की स्ितन्त्रता और धर्ा के अबाध अनुकरण एिं धाशर्ाक र्ार्लों के प्रबंधन की स्ितन्त्रता
प्रसार का अधधकार
अनुच्छे द 25 व्यजक्तगत अधधकारों की गारं टी दे ता है। अनुच्छे द 26 धाशर्ाक संप्रदायों एिं उसके अनुभागों को
अधधकाि प्रदान किता है।
अनुच्छे द 25 व्यजक्तिादी धामर्ाक स्ितन्त्रता की रिा करा अनुच्छे द 26 सर्ूदहक रूप से धाशर्ाक अधधकािों की िक्षा
है। किता है।
अनुच्छे द 25 के तहत प्राप्त अधधकार लोक अनुच्छे द 25 की तिह ही अनुच्छे द 26 भी लोक
व्यिस्था,नैनतकता,स्िास्थ्य, र्ूल अधधकारों से जुडे अन्य व्यिस्था, नैनतकता, स्िस््य र्ूल अधधकािों से जुड़े अन्य
प्रािधान के उल्लंघन और धर्ाांतरण के र्ार्ले र्े लागू नहीं प्रािधान के उल्लंघन औि धर्ांतिण के र्ार्ले र्े लागू
होगा। नहीं होगा।

• अनुच्छे द 27- धर्ा की अमभिृद्धध के मलए के संदाय से स्ितन्त्रता: ककसी भी व्यजक्त


को ककसी विमशष्ट धर्ा या धामर्ाक संप्रदाय की अमभिृद्धध या पोषण र्ें व्यय करने के
मलए करों के संदाय के मलए बाध्य नहीं ककया जाएगा।
अनुच्छे द 27 • इसके र्ाध्यर् से राज्य को ककसी धर्ा के र्ुक़ाबले दूसरे धर्ा का पि लेने से रोकने
का प्रािधान ककया गया है → करों के रूप र्ें एकब्रत्रत धन का प्रयोग सभी धर्ों के
रखरखाि और उन्ननत के मलए ककया जा सकता है।
• केिल कर के एकत्रण पर रोक है, शुल्क पर नहीं।
• अनुच्छे द 28 - धाशर्ाक शशक्षा र्ें भाग लेने से स्ितंत्रता पूणातः िाज्य ननधध से

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संचाशलत क्रकसी भी शैक्षखणक संस्था र्ें धाशर्ाक शशक्षा नहीं दी जाएगी।
• हालांक्रक िाज्य द्िािा प्रशाशसत क्रकन्तु क्रकसी विन्यास या न्यास द्िािा स्थावपत
संस्थाओं के शलए यह व्यिस्था लागू नहीं होती है।
• अनुच्छे द 28 शशक्षण संस्थाओं र्ें 4 प्रकाि से विभेद किता है:
अनुच्छे द 28 1. पूणातः िाज्य पोवषत संस्थाएं- धाशर्ाक ननदे श पूणातः ननषेध
2. िाज्य द्िािा प्रशाशसत क्रकन्तु न्यास द्िािा स्थावपत - धाशर्ाक शशक्षा की अनुर्नत
3. िाज्य द्िािा र्ान्यता प्राप्त संस्थान स्िैन्च्छक आधाि पि धाशर्ाक

4. िाज्य द्िािा वित्त सहायता प्राप्त किने िाले संस्थान शशक्षा की अनुर्नत

• अनुच्छे द 29 – भाित के क्रकसी भी भाग र्ें िहने िाले नागरिकों के क्रकसी भी अनुभाग
को अपनी बोली, भाषा, शलवप, संस्कृनत को सुिक्षक्षत किने का अधधकाि है ।
• क्रकसी भी नागरिक को िाज्य के अंतगात आने िाले शैक्षखणक संस्थान या िाज्य से
सहायता प्राप्त संस्थान र्ें धर्ा, जानत या भाषा के आधाि पि प्रिेश से िोका नहीं
अनुच्छे द 29 जाएगा।।
• अनुच्छे द 29 (1)–सर्ुदाय के अधधकािों की सुिक्षा किने िाले प्रािधान
• अनुच्छे द 29 (2) -नागरिक के व्यन्क्तगत अधधकािों की गािं र्टी के प्रािधान , चाहे िह
न्जस भी सर्ुदाय का हो।
• अनुच्छे द 29 धाशर्ाक औि भाषायी दोनों अल्पसंख्यकों को सुिक्षा प्रदान किता है।
• संविधान र्ें “अल्पसंख्यक” को परिभावषत नहीं क्रकया गया है।
• सिोच्च न्यायालय ने व्यिस्था दी है कक:
1. भाषा के संिक्षण र्ें भाषा के सं िक्षण के शलए आंदोलन किने का अधधकाि भी
शाशर्ल है।
2. इस अनुच्छे द र्ें दी गई व्यिस्था केिल अल्पसंख्यकों तक ही सीशर्त नहीं है।
क्योंक्रक “नागरिकों के अनुभाग” का अशभप्राय अल्पसंख्यक औि बहुसंख्यक दोनों
से है।
• अनुच्छे द 30–शैक्षखणक संस्थाओं की स्थापना औि प्रशासन किने का अल्पसंख्यक िगों
का अधधकाि। अनुच् छे द 30 अल्पसंख्यक िगों (धाशर्ाक औि भाषायी) को ननम्नशलखखत
अधधकाि प्रदान किता है:-

➢ सभी अल्पसंख्यकों को अपनी रुधच के शैक्षखणक संस्थानों को स्थावपत किने औि


उनके प्रशासन का अधधकाि होगा।
➢ क्रकसी अल्पसंख्यक िगा द्िािा स्थावपत औि प्रशाशसत शशक्षा संस्था की संपवत्त के
अनुच्छे द 30
अननिाया अजान के शलए उपबंध किने िाली विधध बनाते सर्य , िाज्य यह
सुननन्श्चत किे गा क्रक ऐसी संपवत्त के अजान के शलए विधध द्िािा ननयत या उसके
अधीन अिधारित िकर् इतनी हो क्रक उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधधकाि

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ननबंधधत या ननिाकृत न हो जाए। (44िां संविधान संशोधन)
➢ सहायता दे ने र्ें िाज्य अल्पसंख्यक द्िािा प्रबंधधत क्रकसी भी शै क्षखणक संस्थान के
साथ भेदभाि नहीं किे गा।
➢ अनुच्छे द 30 के तहत सुिक्षा की गािं र्टी केिल अल्पसंख्यकों (धाशर्ाक एिं भाषायी)
तक ही सीशर्त है ।
• नोट: अनुच्छे द 30 के अल्पसंख्यकों (धाशर्ाक एिं भाषायी) की सुिक्षा का विस्ताि
नागरिकों के क्रकसी अन्य अनुभाग के शलए नहीं है (अनुच्छे द 29 की तिह नहीं)।
• अनुच्छे द 32: नागरिकों के र्ूल अधधकिों के प्रितान हेतु संिैधाननक उपचाि का
अधधकाि + आधािभूत ढाँचा का दहस्सा हैं।
अनुच्छे द 32 • उच्चतर् न्यायालय र्ूल अधधकािों के िक्षक के रूप र्ें काया किता है।
• अंबेडकर: “एक अनुच्छे द न्जसके त्रबना संविधान अथा विहीन है, यह संविधान की
आत्र्ा औि हृदय है।”
• अनुच्छे द 32 के चार प्रािधान: र्ूल अधधकािों को लागू कििाने हेतु उच्चतर्
न्यायालय जाया जा सकता है + उच्चतर् न्यायालय को रिर्ट जािी किने की शन्क्त है
+ संसद क्रकसी भी अन्य न्यायालय को आदे श , ननदे श या रिर्ट की शन्क्त सौंप
सकती है + संविधान र्ें िखणात प्रािधान के अनतरिक्त यह अधधकाि ननलंत्रबत नहीं
क्रकया जा सकता।

सिोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय


• अनुच्छे द 32: प्राथमर्क िेत्राधधकार, अनन्य नहीं। • अनुच्छे द 226: अनन्य औि प्राथशर्क क्षेत्राधधकाि।
• िादी उच्च न्यायालय र्ें भी जा सकता है। • कानूनी औि संिैधाननक अधधकाि तथा पिं पिागत
• केिल र्ौमलक अधधकारों को ही लागू काया जा सकता अधधकाि।
है। • विस्तृत रिर्ट अधधकारिता।
• िेत्राधधकार उच्च न्यायालय से अधधक विस्तत
ृ है। • संकीणा क्षेत्राधधकाि (केिल िाज्य की सीर्ा तक)।
• ररट जारी करने से र्ाना नहीं कर सकता है । इस • रिर्ट जािी किने से र्ाना कि सकता है।
प्रकार यह नागररकों के र्ौमलक अधधकारों का रिक
और प्रत्याभूनतकताा (Defender and Guarantor)
है।

ररट – प्रकार और िेत्र


• उच्चतर् न्यायालय औि उच्च न्यायालय जािी कि सकते हैं: बंदी प्रत्यक्षीकिण ( Habeas Corpus), पिर्ादे श
(Mandamus), प्रनतषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) औि अधधकाि-प्रच्छा (Quo-Warranto)। ये रिर्ट
अँग्रेजी कानून से ली गई हैं→ इन्हें ‘विशेषाधधकाि रिर्ट’ कहा जाता है = इन्हें ‘न्याय का झिना’ भी कहा जाता है।
o अथा: "को प्रस्तुत ककया जा” + न्यायलय धगरफ्तारी का आदे श जारी करने िाले अधधकारी को
आदे श जारी करता है कक िह बंदी को न्यायाधीश के सार्ने उपजस्थनत दजा करें ।
बंदी

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प्रत्यक्षीकिण • गैरकानूनी बंदी या दहरासत र्ें मलए जाने के णखलाफ़ व्यजक्तगत स्ितंत्रता का एक हधथयार +
जबरन दहरासत र्ें रखने के विरुद्ध + सािाजननक प्राधधकरण या व्यजक्तगत दोनों के
णखलाफ जारी की सकती है।
• तब जारी नहीं की जा सकती, जब, दहरासत कानून सम्र्त हो + न्यायालय की अिर्ानना +
न्यायालय के द्िारा दहरासत + दहरासत न्यायालय के न्यायिेत्र से बाहर हुई हो।

पिर्ादे श • अथा: “हर् आदे श दे ते हैं”


• गनतविधध को ननदे शशत किता है + न्यायलय द्िािा सािाजननक अधधकािी को जािी क्रकया
जाता है क्रक िह उस काया को किें जो उसके क्षेत्र अधधकाि के अंतगात है।
• क्रकसी भी सािाजननक ननकाय, ननगर्, अधीनस्थ न्यायालयों, प्राधधकिण या सिकाि के
खखलाफ सर्ान उद्दे श्य के शलए जािी क्रकया जा सकता है।
• जारी नहीं की जा सकती: ननजी व्यन्क्त या ननकाय के खखलाफ + गै ि-संिैधाननक विभागों +
जब कताव्य वििेकाधीन हो,+ संविदात्र्क दानयत्ि को लागू किने के विरुद्ध + िाष्ट्रपनत या
िाज्यपाल के खखलाफ + उच्च न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश जो न्यानयक क्षर्ता र्ें कायाित
हैं।

• अथा: "िोकना”
• उच्च न्यायालय द्िािा अधीनस्थ न्यायालयों + न्यायक्षेत्र से उच्च न्यानयक कायों को िोकने
प्रनतषेध के शलए + केिल न्यानयक औि अधा-न्यानयक प्राधधकािों के खखलाफ ही जािी की जा सकती
है।
• उपलब्ध नहीं है: प्रशासननक प्राधधकिण + विधायी ननकायों + ननजी व्यन्क्त औि ननकायों के
शलए।

• अथा: “प्रर्ाखणत होना या सूचना दे ना है”’


• उच्च न्यायालय द्िािा अधीनस्थ न्यायालयों कों या अधधकिणों को या लंत्रबत र्ार्लों के
स्थानांतिण को सीधे या पत्र जािी कि क्रकया जाता है।
उत्प्रेषण • ननिािक औि सहायक दोनों तिह का है।
• णखलाफ जारी ककया जा सकता है: न्यानयक औि अधा-न्यानयक प्राधधकिणों के खखलाफ
• 1991 सिोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया: प्रशासननक प्राधधकिणों के खखलाफ भी जािी
क्रकया जा सकता है - जब यह व्यन्क्त के अधधकाि पि प्रभाि डालता है।
• णखलाफ नहीं: विधायी ननकायों + ननजी व्यन्क्त या इकाई के खखलाफ

• अथा: "प्राधधकृत या िािं र्ट के द्िािा"


• न्यायलय द्िािा, क्रकसी व्यन्क्त द्िािा सािाजननक कायाालय र्ें दायि अपने दािे की जांच के
अधधकाि पच्
ृ छा शलए जािी क्रकया जाता है।
• व्यन्क्त द्िािा लोक कायाालय के अिैध अनाधधकाि ग्रहण किने को िोकता है।
• सािाजननक कायाालयों के र्ार्ले र्ें, जब संिैधाननक हो।

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• जारी नहीं ककया जा सकता है: र्ंत्रत्रस्तिीय कायाालय या ननजी कायाालय।
• क्रकसी भी इच्छुक व्यन्क्त द्िािा जािी की जा सकती है, जरूिी नहीं क्रक पीडडत व्यन्क्त द्िािा।

अनुच्छे द 33: संसद को सशस्त्र बलों, अधा-सैन्य बलों, पुमलस बलों, खुकफया एजेंमसयों और अन्य
बलों के र्ूल अधधकारों पर युजक्तयुक्त प्रनतबंध लगाने का अधधकार दे ता है।

• अनुच्छे द 33 के तहत कानून बनाने की शजक्त केिल संसद को है न कक राज्य विधान र्ंडलों
अनुच्छे द 33
को

• इस तरह के संसद द्िारा बनाए गए कानून को ककसी न्यायलय र्ें ककसी र्ूल अधधकार के
उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।

• अनुच्छे द 33 के तहत ननमर्ात संसदीय कानून, जहां तक र्ूल अधधकारों को लागू करने का
संबंध है, कोटा र्ाशाल (सैन्य कानून के तहत स्थावपत अधधकरण) को उच्चतर् न्यायलय या
उच्च न्यायलयों के ररट अधधकार िेत्र से बाहर करता है।

• अनुच्छे द 34 - जब भाित र्ें कहीं भी र्ाशाल लॉ लागू है, तब अनुच्छे द 34 र्ूल अधधकािों
पि प्रनतबंध के शलए प्रािधान किता है।
• यह संसद को यह अधधकाि दे ता है क्रक िह क्रकसी भी सिकािी कर्ा चािी या क्रकसी अन्य
व्यन्क्त द्िािा क्रकए गए काया की व्यिस्था को बिकिाि िखे या पुनननाशर्ात किे संसद क्रकसी
र्ाशाल लॉ क्षेत्र र्ें जािी आदे श को िेधता प्रदान किता है।
अनुच्छे द 34 • र्ाशाल लॉ का तात्पया है - सैन्य शासन – सेना द्िािा सार्ान्य कानून औि सिकाि के
ननलंबन से है।
• र्ाशाल लॉ की अिधािणा को अंग्रेजी कानून से शलया गया है।
• अशभव्यन्क्त "र्ाशाल लॉ" (सैन्य शासन) को संविधान र्ें कहीं भी परिभावषत नहीं क्रकया गया
है।
• अनुच्छे द 34 के तहत भाित के क्रकसी भी क्षेत्र र्ें र्ाशाल लॉ घोवषत क्रकया जा सकता है।
• अनुच्छे द 35 - कुछ विशेष र्ूल अधधकािों को प्रभािी किने के शलए केिल संसद को ही
कानून बनाने की शन्क्त दे ता है न क्रक िाज्य विधान र्ंडलों को।
• यह प्रािधान सुननन्श्चत किता है क्रक र्ूल अधधकािें औि दं ड ि उनकी प्रकृनत के संबंध र्ें
पूिे भाित र्ें एकरूपता है।
• संसद के पास (िाज्य विधानर्ंडलों के पास नहीं) कानून बनाने की शन्क्त होगी: कु छ
िोजगाि या ननयुन्क्तयों के शलए ननिास क्रक व्यिस्था (अनुच्छे द 16) + उच्चतर् न्यायलय
या उच्च न्यायलयों को छोड़कि अन्य न्यायलयों को र्ूल अधधकािों के ननदे श, आदे श, रिर्ट
अनुच्छे द 35 जािी किने के शलए सशक्त बनाना (अनुच्छे द 32) + सशस्त्र बलों, पुशलस बलों, आदद के
सदस्यों के र्ूल अधधकािों पि प्रनतबंध (अनुच्छे द 33) + क्रकसी भी सिकािी कर्ाचािी या
क्रकसी अन्य व्यन्क्त को क्रकसी भी क्षेत्र र्ें र्ाशाल लॉ के दौिान क्रकए गए क्रकसी भी काया के

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शलए क्षनतपूनता दे ना (अनुच्छे द 34)
• संसद के पास (िाज्य विधानर्ंडलों के पास नहीं): र्ूल अधधकािों के तहत दं डडत किने का
कानून बनाने के शलए अधधकाि होगा। इनर्ें ननम्नशलखखत शाशर्ल हैं: अस्पृश्यता का अंत
(अनुच्छे द 17) + र्ानि र्ें दुव्याापाि औि बलात श्रर् का ननषेध (अनुच्छे द 23)
• अनुच्छे द 35 उपयाक्त र्ार्लों पि कानून बनाने के शलए संसद की शन्क्त सुननन्श्चत किता
है, हालांक्रक इनर्े से कुछ अधधकाि िाज्य विधानर्ंडलों (िाज्य सूची) के दायिे र्ें भी होते हैं।

सेना विधध राष्रीय आपातकाल (अनुच्छे द 352)

यह केिल र्ौमलक अधधकारों को प्रभावित करता है। यह न केिल र्ौशलक अधधकािों बन्ल्क केंद्र-िाज्य संबंधों,
केंद्र औि िाज्यों के बीच िाजस्ि औि विधायी शन्क्तयों
के वितिण को प्रभावित किता है तथा संसद के
कायाकाल को बढा भी सकता है।
यह सरकार और अदालतों को ननलंब्रबत करता है। सेना यह सिकाि औि अदालतों को ननलंत्रबत नहीं किता है।
द्िारा मसविल प्रशासन का संचालन ककया जाता है।
ककसी भी िेत्र र्ें कानून व्यिस्था को सुधारने हेतु सेना इसे केिल तीन आधािों पि लागू क्रकया जा सकता है-
विधध को लागू ककया जाता है, जो ककसी कारण खराब हो युद्ध, बाहिी आिर्ण या सशस्त्र विद्रोह।
गयी होती है।
इसे दे श के ककसी भाग या िेत्र र्ें लगाया जाता है। इसे पूिे दे श र्ें या इसके क्रकसी भी दहस्से र्ें लगाया
जाता है।
संविधान र्ें इसका कोई विशेष प्रािधान नहीं है अथाात संविधान र्ें इसका विशशष्ट्र्ट औि विस्तत
ृ प्रािधान है।
भारतीय संविधान र्ें सेना विधध (र्ाशाल ला) को पररभावषत यह संविधान र्ें स्पष्ट्र्ट रूप से है।
नहीं ककया गया है। यह संविधान र्ें ननदहत रूप र्ें है।
र्ूल अधधकारों के अपिाद
• संपदाओं आदद के अजान हेतु प्रािधान किने िाली विधधयों की व्यािृवत्त(बचाि)
• कुछ विधधयों ि विननयर्ों का विधधर्ान्यीकिण: नौिीं अनुसूची
• कुछ ननदे शक तत्िों को प्रभािी किने िाली विधधयों की व्यािवृ त्त(बचाि)

र्ूल अधधकारों की आलोचना र्ूल अधधकारों का र्हत्ि


अत्यधधक(व्यापक) सीर्ाएं + कोई सार्ाजजक और दे श र्ें लोकतांत्रत्रक व्यिस्था की आधािशशला( Bedrock) +
आधथाक अधधकार नहीं + स्पष्टता का अभाि + व्यन्क्तगत स्ितंत्रता के िक्षक + व्यन्क्त की गरिर्ा औि
स्थानयत्ि का अभाि + आपातकाल के दौरान स्थगन+ सम्र्ान सुननन्श्चत किना + भाितीय िाज्य की धर्ाननिपेक्ष
र्हंगा उपचार + ननिारक ननरोध + प्रनतर्ान दशान छवि को र्जबूत किना + अल्पसंख्यक के दहतों की िक्षा
नहीं (No consistent philosophy) किना।

भाग III के अनतररक्त अधधकार


• विधध के प्राधधकाि के त्रबना किों का अधधिोपण न क्रकया जाना – अनुच्छे द 265 (भाग XII)
• विधध के प्राधधकाि के त्रबना व्यन्क्तयों को संपवत्त से िंधचत न क्रकया जाना - अनुच्छे द 300क (भाग XII)
• भाित के िाज्यक्षेत्र र्ें व्यापाि, िाखणज्य औि सर्ागर् की स्ितन्त्रता- अनुच्छे द 301 (भाग XIII)
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र्ूल अधधकार राज्य की नीनत-ननदे शक तत्ि र्ूल कताव्य


• िाद योग्य। • िाद योग्य नहीं। • केिल कताव्य के रूप र्ें(विधधक
• राजनीनतक न्याय। • आधथाक औि सार्ान्जक न्याय। बाध्यता नहीं)
• कानूनी या विधधक ननबांधन। • कानूनी या विधधक ननबंधन नहीं। • कानूनी या विधधक ननबंधन नहीं
• व्यजक्तगत। • सर्ाजिादी • स्ियं प्रिनतात नहीं हैं।
• र्ूल अधधकार स्ियं प्रिनतात हैं। • स्ियं प्रिनतात नहीं हैं।
• यदद कोई कानून र्ूल अधधकार • यदद कोई कानून डीपीएसपी का
का उल्लंघन करता है तो उल्लंघन किता है तो न्यायालय
न्यायालय उसे असंिैधाननक उसे असंिैधाननक घोवषत नहीं कि
घोवषत कर सकता है। सकता है।

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7. राज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि

• भाितीय संविधान र्ें िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्िों(डीपीएसपी) की संकल्पना को 1937 र्ें ननशर्ात आयिलैंड के
संविधान से शलया गया है।
• डॉ. बी.आर. अम्बेडकर: िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि = भाितीय संविधान की अनोखी विशेषताएँ
• ग्रेनविल ऑजस्टन: डीपीएसपी + एफआि = संविधान की र्ूल आत्र्ा
• डीपीएसपी + एफआर = संविधान की दशान औि आत्र्ा
• भाग IV; अनुच्छे द 36 से 51
• नीनत-ननदे शक तत्ि िाज्य पि नैनतक बाध्यता आिोवपत किते हैं।
• नीनत-ननदे शक तत्ि सार्ान्जक-आधथाक लोकतंत्र को स्थावपत किने र्ें र्हत्िपूणा भूशर्का ननभाते हैं। इनकी प्रकृनत
सकािात्र्क है, जबक्रक र्ूल अधधकािों की प्रकृनत नकािात्र्क है।
• िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्ि, र्ूल अधधकािों के पूिक हैं। उनका उद्दे श्य भाग-3 (र्ूल अधधकाि) र्ें अनुपन्स्थत
सार्ान्जक औि आधथाक अधधकािों की प्रनतपूनता किना है।

गोलकनाथ बनार् पंजाब नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु र्ूल अधधकािों र्ें संशोधन नहीं क्रकया जा
राज्य र्ार्ला (1967) सकता है।

मर्नेिाा मर्ल्स केस (1980) र्ूल अधधकार औि डीपीएसपी के बीच सार्ंजस्य औि संतुलन भारतीय संविधान की
आधारमशला(Bedrock) है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

• सर बी.एन. राि (संविधान सभा के संिैधाननक सलाहकाि) ने शसफारिश की थी क्रक िैयन्क्तक अधधकािों को दो
श्रेखणयों र्ें विभान्जत क्रकया जाना चादहए- न्यायोधचत औि गैि- न्यायोधचत, न्जसे प्रारूप सशर्नत द्िािा स्िीकाि
कि शलया गया था।

डीपीएसपी की विशेषताएाँ
• विधायी, कायाकािी औि प्रशासननक र्ार्लों र्ें िाज्य को संिैधाननक ननदे श या शसफारिशें।
• ननदे शक तत्ि भाित शासन अधधननयर्,1935 र्ें उन्ल्लखखत अनुदेशों के सर्ान हैं।
• डीपीएसपी एक आधुननक लोकतांत्रत्रक िाज्य र्ें आधथाक, सार्ान्जक औि िाजनीनतक विषयों हेतु र्हत्िपूणा हैं।
• डीपीएसपी ‘लोक कल्याणकािी िाज्य’ का ननर्ााण किाते हैं , ना क्रक पुशलस िाज्य का।
• डीपीएसपी का उद्दे श्य संविधान की प्रस्तािना र्ें उन्ल्लखखत न्याय, स्ितंत्रता, सर्ानता औि बंधुत्ि को साकाि
किना है।
• डीपीएसपी गैि- न्यायोधचत या िाद योग्य नहीं हैं, अथाात इन्हें लागू कििाने हेतु या इनके उल्लंघन पि अदालत
र्ें िाद दायि नहीं क्रकया जा सकता है।
• डीपीएसपी क्रकसी कानून की संिैधाननक िैधता की जांच औि ननधाािण किने र्ें अदालतों की र्दद किते हैं।
• उच्चतर् न्यायालय : यदद कोई कानून नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किता है तो उसे र्ूल अधधकािों के अनुच्छे द
14 औि 19 के साथ तका संगत होना चादहए।

डीपीएसपी का िगीकरण

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• भाितीय संविधान र्ें िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्िों(डीपीएसपी) का िगीकिण नहीं क्रकया गया है। लेक्रकन विद्िानों
ने सार्ान्य तौि पि इन्हें तीन व्यापक श्रेखणयों र्ें िगीकृत क्रकया है- सर्ाजिादी, गांधीिादी औि उदाि-बौद्धधक ।

1.सर्ाजिादी
• इस िगा के डीपीएसपी, सर्ाजिाद की विचािधािा से प्रेरित हैं तथा लोकतांत्रत्रक सर्ाजिादी िाज्य का खाका खींचते
हैं। इनका लक्ष्य सार्ान्जक औि आधथाक न्याय प्रदान किना है।

अनुच्छे द वििरण

• िाज्य, सार्ान्जक व्यिस्था र्ें लोक कल्याण की अशभिृद्ध हेतु सार्ान्जक, आधथाक औि
अनुच्छे द 38 िाजनीनतक न्याय सुननन्श्चत किे गा। इसके अलािा, आय की असर्ानताओं को कर् किने का
प्रयास किे गा औि प्रनतष्ट्ठा, सुविधाओं ि अिसिों की असर्ानता को भी कर् किे गा (44िें
संविधान संशोधन,1978 द्िािा जोड़ा गया)।
• िाज्य की नीनत को आजीविका के पयााप्त साधनों को सुिक्षक्षत किना चादहए।
• सभी के बीच संसाधनों का सर्ान वितिण।
• धन औि उत्पादन के साधनों के सकेंद्रण को िोकना।
• पुरुषों औि र्दहलाओं के शलए सर्ान कार् के शलए सर्ान िेतन।
अनुच्छे द 39
• श्रशर्कों की शन्क्त ि बच्चों की सुकुर्ाि अिस्था का दुरुपयोग ना हो।
• आधथाक वििशता के कािण नागरिकों को ऐसे िोजगाि र्ें न जाना पड़े जो उनकी आयु ि शन्क्त
के अनुरूप न हो।
• बच्चों के स्िस्थ विकास का अिसि (42 िाँ संशोधन)।
अनुच्छे द 39A सर्ान न्याय को बढािा दे ना औि गिीबों को र्ुफ्टत कानूनी सहायता प्रदान किना
(42 िां संशोधन)।
अनुच्छे द 41 बेिोजगािी, िृद्धािस्था, बीर्ािी की न्स्थनत र्ें काया, शशक्षा औि सािाजननक सहायता का अधधकाि।
अनुच्छे द 42 कार्(work) की न्यायसंगत औि र्ानिोधचत दशाओं का प्रािधान।
अनुच्छे द 43 कर्ाकािों के शलए ननिााह योग्य र्जदूिी, शशष्ट्र्ट जीिन स्ति, अिकाश का उपयोग सुननन्श्चत किने
िाली काया दशाएँ, सार्ान्जक औि सांस्कृनतक अिसि को सुननन्श्चत किना।
अनुच्छे द 43A उद्योगों के प्रबंधन र्ें कार्गािों का भाग लेना ( 42 िें संविधान संशोधन)
अनुच्छे द 47 पोषाहाि स्ति औि जीिन स्ति को ऊँचा किने तथा लोक स्िास््य का सुधाि किने का िाज्य का
कताव्य

2. गांधीिादी
डीपीएसपी का यह िगा गांधीिादी विचािधािा पि आधारित है। ये र्हात्र्ा गांधी द्िािा िाष्ट्रीय आंदोलन के दौिान
पुनननार्ााण के कायािर् का प्रनतननधधत्ि किते हैं।
अनुच्छे द वििरण

अनुच्छे द 40 ग्रार् पंचायतों का संगठन (जर्ीनी स्ति पि लोकतंत्र स्थावपत किना)।


अनुच्छे द 43 ग्रार्ीण क्षेत्रों र्ें िैयन्क्तक एिं सहकािी आधाि पि कुर्टीि उद्योगों को बढािा दे ना।
अनुच्छे द सहकािी सशर्नतयों के स्िैन्च्छक गठन , स्िायत्त सं चालन, लोकतांत्रत्रक ननयंत्रण औि पेशे िि प्रबंधन को
43B बढािा दे ना (97 िें संशोधन, 2011) ।

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अनुच्छे द 46 एससी, एसर्टी औि सर्ाज के अन्य कर्जोि िगों के शैक्षक्षक औि आधथाक दहतों को बढािा दे ने के शलए
+ उन्हें सार्ान्जक अन्याय औि शोषण से बचाने के शलए।
अनुच्छे द 47 र्ादक पेय औि नशीले पदाथों का सेिन प्रनतबंधधत किें ।
अनुच्छे द 48 गायों ि बछड़ों तथा अन्य दुधारू एि िाहक पशुओं के िध पि िोक लगाएं औि उनकी नस्लों र्ें सुधाि
किें ।

3. उदार-बौद्धधक मसद्धांत

अनुच्छे द वििरण

अनुच्छे द 44 नागरिकों के शलए एक सर्ान शसविल संदहता ।


अनुच्छे द 45 िाज्य प्रािन्म्भक शैशिािस्था की दे खिे ख औि सभी बालकों को उस सर्य तक जब तक क्रक िे छः िषा
की आयु न पूणा कि लें, शशक्षा प्रदान किने के शलए प्रयास किे गा(86िें संशोधन, 2002)|
अनुच्छे द 48 आधुननक औि िैज्ञाननक तजा पि कृवष औि पशुपालन को व्यिन्स्थत किना।
अनुच्छे द पयााििण का संिक्षण तथा संिधान औि िन तथा िाणी जीिों की िक्षा(42िें संशोधन 1976)।
48A
अनुच्छे द 49 िाष्ट्रीय र्हत्ि के संस्र्ािकों, स्थानों औि िस्तुओं का संिक्षण।
अनुच्छे द 50 कायापाशलका से न्यायपाशलका का पृथक्किण।
अनुच्छे द 51 िाज्य अंतिााष्ट्रीय शांनत ि सुिक्षा की अशभिद्
ृ ध ,िाष्ट्रों के बीच सम्र्ानजनक संबंध बनाए िखने ,
अंतिााष्ट्रीय कानूनों औि संधध दानयत्िों का सम्र्ान बढाने औि अंतिााष्ट्रीय वििादों के
र्ाध्यस्थर्(Arbitration) द्िािा सर्ाधान किने का प्रयास किे गा।

भाग IV से अनतररक्त ननदे श


अनुच्छे द 335 भाग XVI सेिाओं और पदों के मलए अनुसूधचत जानतयों और अनुसूधचत जनजानतयों के दािे।

अनुच्छे द 350A भाग XVII प्राथशर्क स्ति पि र्ातृभाषा र्ें शशक्षा की सुविधाएं।
अनुच्छे द 351 भाग XVII दहंदी भाषा के विकास के शलए ननदे श।

र्ूल अधधकारों एिं नीनत-ननदे शक तत्िों र्ें टकराि

सुप्रीर् कोर्टा र्ार्ले उच्चतर् न्यायालय की िाय


चंपकर् दोराईराजन • यदद एफआि औि डीपीएसपी के बीच कोई संघषा होता है , तो र्ूल अधधकार को
र्ार्ला, 1951 डीपीएसपी पि ििीयता दी जाएगी।
• संिैधाननक संशोधन के र्ाध्यर् से संसद डीपीएसपी र्ें संशोधन कि सकती है।
गोलकनाथ र्ार्ला, 1967 • डीपीएसपी के कायाान्ियन के शलए र्ूल अधधकार र्ें संशोधन नहीं क्रकया जा सकता है।
• संसद संिैधाननक संशोधन द्िािा क्रकसी भी र्ूल अधधकाि र्ें संशोधन कि सकती है।
• अनुच्छे द 31C को शामर्ल ककया ककया गया- नीनत-ननदे शक तत्िों के अनुच्छे द 39(B)
24िााँ संविधान संशोधन, औि अनुच्छे द 39(c) को लागू किने हेतु बनाए गए कानून को र्ूल अधधकािों के
1971 अनुच्छे द 14,19 एिं 31 के उल्लंघन के आधाि पि चुनौती नहीं दी जाएगी।

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• इस प्रकाि संसद ने संविधान संशोधन किके नीनत-ननदे शक तत्िों को दो र्ूल अधधकािों


(अनुच्छे द 14 एिं अनुच्छे द 19) पि ििीयता दी।

• नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु बनाई गई विधध को न्यायपाशलका र्ें चुनौती
नहीं दी जा सकती है।
केसिानंद भारती र्ार्ला, • संसद द्िािा 24िें संविधान संशोधन के उस प्रािधान को शून्य ि असंिैधाननक घोवषत
1973 कि ददया, न्जसर्ें कहा गया था क्रक नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु बनाई
गई, विधध को न्यायपाशलका र्ें चुनौती नहीं दी जा सकती है। न्यानयक सर्ीक्षा
संविधान की र्ूल संिचना का दहस्सा है।
42िााँ संशोधन, 1976 • क्रकसी भी डीपीएसपी के कायाान्ियन के शलए कोई भी कानून शून्य नहीं होगा यदद यह
अनुच्छे द14 औि अनुच्छे द19 का उल्लंघन किता है। डीपीएसपी को अनुच्छे द 14 औि
अनुच्छे द 19 पि प्रधानता दी।
• यह संविधान संशोधन केशिानन्द भािती र्ार्ले के ननणाय को ननष्ट्प्रभािी किने हेतु
लाया गया था।
मर्निाा मर्ल्स र्ार्ला, • संविधान के 42िें संशोधन के उपिोक्त प्रािधान शून्य ि असंिैधाननक घोवषत क्रकए
1980 गए।
• उच्चतर् न्यायालय ने इस र्ार्ले र्ें कहा क्रक नीनत-ननदे शक तत्िों को लागू किने हेतु
र्ूल अधधकािों को सर्ाप्त किने की आिश्यकता नहीं है। र्ूल अधधकाि औि
डीपीएसपी एक-दूसिे के पूिक हैं।

डीपीएसपी का र्हत्ि
घिे लू औि विदे शी नीनतयों र्ें न्स्थिता औि ननिं तिता की सुविधा + र्ौशलक अधधकािों का पूि क + र्ौशलक अधधकािों
के पूणा औि उधचत क्रियान्ियन हेतु अनुकूल िाताििण बनाना + विपक्ष को सिकाि के संचालन पि प्रभाि औि
ननयंत्रण किने र्ें सक्षर् बनाता है + सिकाि के प्रदशान की कड़ी पिीक्षा किना + आर् िाजनीनतक घोषणा-पत्र के रूप
र्ें हैं + सिकाि के पथ प्रदशाक, दाशाननक ि शर्त्र |

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8. मल
ू कतजव्य

● मूल सींवििान में केिल मूल अधिकार थे न कक मू ल कतमव्य।


● 1976 में, मूल अधिकारों को 42िें सींवििान सींशोिन द्िारा सींवििान में िोड़ा गया था। एक और मूल अधिकार
को 86िें सींवििान सींशोिन (2002) द्िारा िोड़ा गया था।
● मूल या मौमलक कतमव्यों की अििारणा को पूिम सोवियत सींघ के सींवििान से मलया गया है।
● इस समय लोकताजन्त्रक दे शों में भारत एिीं िापान ह ऐसे दे श हैं, िहाीं सींवििान में मूल कतमव्यों का समािेश है।
● सुप्रीम कोर्ज (1992) का ननणजय- ककसी भी कानून की सींिैिातनक िै िता की दृजष्ट्ट से व्याख्या में यदद अदालत को
मालूम चले कक मौमलक कतमव्यों के सींबींि में विधि में प्रश्न उठते हैं तो अनुच्छे द 14 या अनुच्छे द 19 के सींदभम में
इन्हें तकम सींगत माना िा सकता है और इस प्रकार ऐसी विधि को असींिै िातनकता से बचाया िा सकता है।
● कर दे ने का कतमव्य (स्िणम मसींह सममतत द्िारा अनुशींमसत) और चुनाि में मतदान दे ने का कतमव्य, सींवििान में
उजल्लखित मौमलक कतमव्यों में शाममल नह ीं हैं।
● मौमलक कतमव्य, न्यायालयों को ककसी विधि की सींिैिातनक िैिता एिीं उनके पर क्षण के सींबीं ि में सहायता करते
हैं।

स्िणज शसंह सशमनत की शसफ़ारिशें


● सिमप्रथम 1976 में स्िणम मसींह सममतत ने 8 मूल कतमव्यों को सींवििान में शाममल करने की मसफ़ाररश की थी।
इसकी आिश्यकता आींतररक आपातकाल (1975-77) के दौरान महसूस की गई थी।
● 42िें सींवििान सींसोिन (1976) के द्िारा सींवििान में एक नया भाग IV-A िोड़ा गया, जिसमें अनुच्छे द 51A है।
42िें सींवििान सींसोिन द्िारा इसमें 10 मूल कतमव्यों को िोड़ा गया था, िबकक ितममान में इसमें 11 मूल कतमव्य
हैं।
● स्िणम मसींह सममतत की कुछ मसफ़ाररशों को स्िीकार नह ीं ककया गया था, यथा- मूल कतमव्य के उल्लींघन पर दीं ड
दे ने का प्राििान आदद।

मूल कतजव्यों की सूची


1. सींवििान का पालन करें और उसके आदशों, सींस्थाओीं, राष्ट्रध्िि एिीं राष्ट्र य गान का आदर करें ।
2. स्ितींत्रता के मलये राष्ट्र य आींदोलन को प्रेररत करने िाले उच्च आदशों को हृदय में सींिोये रिें और उनका पालन
करें ।
3. भारत की सींप्रभुता, एकता और अिींडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रिें।
4. दे श की रक्षा करें और आह्िान ककये िाने पर राष्ट्र की सेिा करें ।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्ि की भािना का तनमामण करें िो िमम, भार्ा और प्रदे श या
िगम आिाररत सभी प्रकार के भेदभाि से परे हो, ऐसी प्रथाओीं का त्याग करें िो जस्त्रयों के सम्मान के विरुद्ि हैं।
6. हमार सर्द्
ृ ध सींस्कृतत की गौरिशाल परीं परा का महत्त्ि समझें और उसका परररक्षण करें ।
7. प्राकृततक पयामिरण जिसके अींतगमत िन, झील, नद और िन्य िीि आते हैं, आदद की रक्षा करें ।
8. िैज्ञातनक दृजष्ट्टकोण से मानििाद और ज्ञानािमन तथा सुिार की भािना का विकास करें ।
9. सािमितनक सींपवि को सुरक्षक्षत रिें और दहींसा से दूर रहें ।
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10. व्यजततगत और सामूदहक गततविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्म की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र
प्रगतत की और तनरीं तर बढ़ते हुए उपलजधि की नई ऊाँचाइयों को छू ले।
11. िो माता-वपता या सींरक्षक हों िह, छ: से चौदह िर्म के बीच की आयु के, यथाजस्थतत, अपने बच्चे अथिा
प्रततपाल्य को मशक्षा प्राप्त करने के अिसर प्रदान करे गा।

नोट:- 11िें र्ूल कताव्य को 86िें संविधान संशोधन अधधननयर्, 2002 द्िािा जोड़ा गया। न्जसर्ें 6 से 14 िषा तक की आयु के
सभी बच्चों के शलए अननिाया शशक्षा का प्रािधान है (जबक्रक डीपीएसपी र्ें यह छह साल तक की आयु का प्रािधान है)।

मूल कतजव्यों की विशेषताएँ


● मूल कतमव्य केिल भारतीय नागररकों के मलए हैं। ये विदे मशयों के मलए नह ीं हैं।
● मूल कतमव्य न्याय-योग्य या िाद योग्य नह ीं हैं। हालाींकक, सींसद उपयुतत कानून के माध्यम से इन्हें लागू कर
सकती है।
● नोर्: कर अदायगी और मतदान करने का कतमव्य मूल कतमव्यों का दहस्सा नह ीं हैं।

िमाज सशमनत की मूल कतजव्यों पि हर्प्पणणयाँ (1999)


● कुछ मूल कतमव्यों की पहचान ि उनके कियान्ियन हेतु कानूनी प्राििानों को लागू करने की व्यिस्थाएाँ की गई हैं-
जैस-े िन्यिीि सींरक्षण अधितनयम, 1972।
● िमाम सममतत ने स्कूल पाठ्यिम और मशक्षक के मशक्षा कायमिमों (teacher’s education programmes) हेतु
पुनसंरचना(reorienting) तथा उच्च ि व्यािसातयक मशक्षा में मूल कतमव्यों को शाममल करने की मसफाररश की।

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9. संविधान सं शोधन

• भाित के संविधान र्ें संशोधन किने का उद्दे श्य दे श के र्ौशलक कानून या सिोच्च कानून को बदलािों के
र्ाध्यर् से औि र्जबूत किना है। संविधान के भाग XX र्ें संशोधन की प्रक्रिया दी गई है। (अनुच्छे द 368)
• संविधान संशोधन की प्रक्रिया न तो त्रिर्टे न के सर्ान लचीली है औि न ही यूएसए के सर्ान कठोि। यह दोनों का
सन्म्र्शलत रूप है। संसद सविधान र्ें संशोधन तो कि सकती है लेक्रकन र्ूल ढांचे से जुड़े प्रािधानों को संशोधधत
नहीं कि सकती है। (केशिानन्द भािती िाद , 1973)
• संविधान संशोधन के प्रािधान दक्षक्षण अफ्रीका के संविधान से शलए गए हैं।
• अनुच्छे द 368 को 24िें औि 42िें सशोधन द्िािा िर्श: 1971 औि 1976 र्ें संशोधधत क्रकया गया है।

र्हत्िपूणा ननणाय: के शिानन्द भािती िाद, 1973 र्ें, सिोच्च न्यायालय ने यह ननणाय ददया क्रक संसद संविधान के “र्ूल ढांचे”
र्ें परिितान नहीं कि सकती है।

संविधान संशोधन की प्रकक्रया (अनुच्छे द 368)

विधेयक की प्रस्तुनत संविधान संशोधन विधेयक को संसद के क्रकसी भी सदन र्ें प्रस्तुत क्रकया जा सकता
है।

कौन प्रस्तुत कर सकता है? इसे र्ंत्री या क्रकसी भी ननजी सदस्य द्िािा प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
राष्रपनत की भूमर्का ऐसे विधेयक को प्रस्तुत किने के शलए िाष्ट्रपनत की पूिा अनुर्नत की आिश्यकता
नहीं होती है।
विशेष बहुर्त→ सदन के कुल सदस्यों का बहुर्त + सदन र्ें उपन्स्थत औि र्तदान
पाररत करने के मलए आिश्यक किने िाले सदस्यों का 2/3 बहुर्त। (50%+ उपन्स्थत औि र्तदान किने िाले
बहुर्त सदस्यों का 2/3)
सदन द्िारा पाररत ककया दोनों सदनों द्िािा विधेयक को विशेष बहुर्त से पारित क्रकया जाना आिश्यक।
जाना
संयुक्त अधधिेशन (अनुच्छे द संविधान संशोधन विधेयक पि सदनों की संयुक्त बैठक का प्रािधान नहीं है।
108)
संघात्र्क प्रािधानों र्ें संशोधन विशेष बहुर्त + आधे िाज्यों की विधानर्ंडल के साधािण बहुर्त से संस्तुनत
24िां संविधान संशोधन— इसके द्िािा अनुच् छे द 368 र्ें संशोधन किके यह प्रािधान
विधेयक को स्िीकृनत दे ने र्ें क्रकया गया क्रक संसद , संविधान के क्रकसी भी प्रािधान को संशोधधत कि सकती है।
राष्रपनत की भूमर्का साथ यह भी प्रािधान क्रकया गया क्रक िाष्ट्रपनत दोनों सदनों से पारित संविधान
सशोधन विधेयक पि हस्ताक्षि किने के शलए बाध्य है।
संविधान संशोधन र्ें राज्य िाज्य विधानर्ंडल र्ें संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत नहीं क्रकया जा सकता है।
विधानर्ंडल की भूमर्का

बहुर्त के प्रकार:

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साधारण बहुर्त विशेष बहुर्त संसद का विशेष बहुर्त और आधे


राज्यों की सहर्नत

• प्रत्येक सदन र्ें उपजस्थत एिं • सदन के कुल सदस्यों का बहुर्त • विशेष बहुर्त + आधे िाज्यों की
र्तदान करने िाले सदस्यों का (रिन्क्तयों औि अनुपन्स्थत विधानर्ंडल के साधािण बहुर्त
बहुर्त। सदहत) औि प्रत्येक सदन के से संस्तुनत।
• यह एक सार्ान्य कानून पाररत उपन्स्थत एिं र्तदान किने िाले • ज़्यादाति संघीय प्रािधानों इसी
करने के ही सर्ान है। सदस्यों का दो-नतहाई बहुर्त। प्रक्रिया द्िािा संशोधधत क्रकया
• ऐसे संशोधनों को अनुच्छे द 368 के • उदाहिण: 103िें संशोधन के जाता है।
तहत ककया गया संशोधन नहीं र्ाध्यर् से आधथाक रूप से • उदाहिण: जीएसर्टी से संबंधधत
र्ाना जाता है। वपछलड़े िगों के शलए 10% 101िां संशोधन।
• उदाहरण: हाल ही र्ें सिोच्च आिक्षण।
नयायालय के न्यायाधीशों की
संख्या 31 से बढ़ाकर 34 की गयी
है।

विमभन्न प्रािधान और आिश्यक बहुर्त के प्रकार

• नए राज्यों का प्रिेश/स्थापना (अनुच्छे द 2)


• नए राज्यों का गठन और र्ौजूदा राज्यों की सीर्ा और नार् र्ें पररितान (अनुच्छे द 3)
• दूसरी अनुसूची (िेतन, भत्ते और विशेषाधधकार)
• राज्यों र्ें विधान पररषद का गठन/उत्सादन (अनुच्छे द 169)
• संसद र्ें गणपूनता (अनुच्छे द 100)
• संसद सदस्यों का िेतन और भत्ता (अनुच्छे द 106)
• संसद की प्रकक्रया के ननयर् (अनुच्छे द 118)
• संसद र्ें अंग्रेजी का उपयोग
• सिोच्च न्यायालय र्ें जजों की संख्या
साधारण बहुर्त • संसद, उसके सदस्यों और समर्नतयों के विशेषाधधकार (अनुच्छे द 105)
• सिोच्च न्यायालय की अधधकाररता र्ें िृद्धध (अनुच्छे द 138)
• आधधकाररक भाषा का उपयोग (अनुच्छे द 343)
• नागररकता (अनुच्छे द 5-11)
• संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाि
• ननिााचन िेत्रों का पररसीर्न (अनुच्छे द 82)
• छठिीं अनुसूची (अनुच्छे द 244)
• केंद्र शामसत प्रदे श
• पांचिीं अनुसूची [अनुच्छे द 244 (1)]

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• र्ूल अधधकाि
विशेष बहुर्त • िाज्य के नीनत ननदे शक तत्ि
• िे सभी प्रािधान जो अन्य 2 प्रकािों र्ें शाशर्ल नहीं हैं।
• िाष्ट्रपनत का ननिााचन औि ननिााचन की िीनत (अनुच्छे द 54 , 55)
• केंद्र औि िाज्यों की कायाकािी शन्क्तयों र्ें विस्ताि
संसद का विशेष • सिोच्च न्यायालय औि उच्च न्यायालय (अनुच्छे द 124 औि 214)
बहुर्त + आधे • केंद्र औि िाज्यों के बीच विधायी शन्क्तयों का वितिण
राज्यों की सहर्नत • सातिीं अनुसूची (अनुच्छे द 246)
• संसद र्ें िाज्यों का प्रनतननधधत्ि
• अनुच्छे द 368

हामलया संविधान संशोधन:

99िां संशोधन 2014 राष्रीय न्यानयक ननयुजक्त आयोग


100िां संशोधन 2015 भाित औि बांग्लादे श के बीच सीर्ा क्षेत्र र्ें कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान
101िां संशोधन 2017 1 जुलाई 2017 से िस्तु एिं सेिा कि को लागू क्रकया जाना
102िां संशोधन 2018 िाष्ट्रीय वपछड़ा िगा आयोग को संिैधाननक दजाा
103िां संशोधन 2019 103िें संशोधन के र्ाध्यर् से आधथाक रूप से वपछलड़े िगों के शलए 10% आिक्षण।
104िां संशोधन 2020 लोकसभा औि िाज्य विधानसभा र्ें अनुसूधचत जानत एिं अनुसूधचत जनजानत के
शलए आिक्षण की सर्य सीर्ा र्ें िृद्धध।

संशोधन प्रकक्रया की आलोचना:


िाज्य विधानर्ंडल र्ें संशोधन की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती (शसफा संसद द्िािा ही) + िाज्य शसफा एक ही
संशोधन के शलय प्रस्ताि कि सकती है- िाज्य विधान परिषद के गठन के शलए + संविधान र्ें यह सर्य सीर्ा नहीं
दी गयी है क्रक िाज्य विधानर्ंडल क्रकतने ददनों के अंदि संशोधन विधेयक पि संस्तुनत दे गी या नहीं दे गी + संविधान
इस बात पि भी र्ौन है क्रक एक बाि संस्तुनत दे ने के बाद िाज्य विधानर्ंडल अपनी संस्तुनत को िापस ले सकता है
या नहीं + संशोधन के शलए विशेष संस्था का अभाि + कुछ ही र्ार्लों र्ें िाज्य विधानर्ंडल की संस्तुनत की
आिश्यकता + संयुक्त सत्र का कोई प्रािधान न होना + अस्पष्ट्र्ट प्रािधानों के कािण न्यायालयीन हस्तक्षेप की व्यापक
संभािना।

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10. आधारभत
ू ढााँचा की अिधारणा

• आधािभूत ढाँचा(Basic Structure), उन बुननयादी औि आंतरिक र्ूल्यों को सर्ादहत किता है जो भाितीय


संविधान की आधािशशला( Bedrock) का ननर्ााण किते हैं। अनुच्छे द 368 के तहत संसद द्िािा आधािभूत ढाँचे र्ें
संशोधन नहीं क्रकया जा सकता है।
• आधारभूत ढााँचा की अिधारणा→ न्यायपाशलका द्िािा इस अिधािणा का विकास + संविधान के तहत परिभावषत
नहीं + उच्चतर् न्यायालय या क्रकसी अन्य न्यायालय द्िािा इसकी परिभाषा नहीं दी गई + उच्चतर् न्यायालय
के विशभन्न ननणाय आधािभूत ढाँचा के तत्िों का िणान किता हैं|

विकास

उच्चतर् न्यायालय के ननणाय और संविधान वििरण


संशोधन
• इस र्ार्ले र्ें यह दे खा गया क्रक क्या अनुच्छे द 368 के तहत
संसद संविधान संशोधन के र्ाध्यर् से र्ूल अधधकािों र्ें
शंकरी प्रसाद बनार् भारत संघ 1951 संशोधन कि सकती है।
• इस र्ार्ले र्ें प्रथर् संविधान संशोधन( 1951) को चुनौती दी
गई थी। प्रथर् संविधान संशोधन के र्ाध्यर् से संपवत्त के
अधधकाि(उस सर्य यह र्ूल अधधकाि था) पि अंकुश लगाया
गया था।
• सुप्रीर् कोटा: अनुच्छे द 368 के तहत, संसद र्ूल अधधकािों र्ें
संशोधन कि सकती है। अनुच्छे द 13 र्ें केिल सार्ान्य विधध
या कानून शाशर्ल हैं, ना क्रक संविधान संशोधन। इसशलए
एफआि को संशोधधत किने िाले संविधान सं शोधन अनुच्छे द 13
के तहत शून्य नहीं हो सकते।
• इस र्ार्ले र्ें 17िें संविधान संशोधन को चुनौती दी गई थी।
17िें संविधान संशोधन के द्िािा कुछ क़ानूनों को नौिीं अनुसूची
गोलकनाथ र्ार्ला 1967 र्ें शाशर्ल क्रकया गया था।
• उच्चतर् न्यायालय: र्ूल अधधकाि अपरिितानीय ि
अहस्तांतिणीय हैं। इसशलए संसद इनर्ें संशोधन नहीं कि सकती
है। संविधान संशोधन भी अनुच्छे द 13 के तहत िखणात विधध
शब्द के अंतगात आता है। इसशलए र्ूल अधधकािों र्ें संशोधन
किने िाला संविधान संशोधन भी शून्य होगा।
गोलकनाथ र्ार्ले पर संसद की प्रनतकक्रया • 24िााँ संविधान संशोधन (1971) : इसे गोलकनाथ र्ार्ले के
ननणाय को अप्रभािी किने हेतु लाया गया था। संसद क्रकसी भी
र्ूल अधधकाि र्ें अनुच्छे द 368 के तहत संशोधन कि सकती है
औि यह अनुच्छे द 13 के अंतगात नहीं आयेगा।
• केशिानन्द भािती र्ार्ले र्ें संसद ने गोलकनाथ र्ार्ले के
केशिानन्द भारती र्ार्ला 1973 ननणाय को उलर्ट ददया औि 24िें संविधान संशोधन को िै ध

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र्ाना।
• उच्चतर् न्यायालय द्िािा आधािभूत ढाँचा की अिधािणा का
प्रनतपादन क्रकया गया।
• संसद, भाितीय संविधान र्ें कोई भी संशोधन कि सकती है
क्रकन्तु ऐसा संशोधन नहीं कि सकती है न्जससे क्रक संविधान का
आधािभूत ढांचा ही नष्ट्र्ट हो जाये।
39िााँ संविधान संशोधन • इसके द्िािा प्रधानर्ंत्री एिं लोकसभा के सभापनत के चुनाि को
सभी न्यायालयों के क्षेत्राधधकाि से बाहि िखने का प्रािधान
क्रकया गया।
इंददरा गांधी र्ार्ला 1975 • उच्चतर् न्यायालय: 39िें संविधान संशोधन को असंिैधाननक
घोवषत कि ददया गया। उच्चतर् न्यायालय ने कहा क्रक न्यानयक
सर्ीक्षा संविधान का आधािभूत ढांचा है।
42िााँ संविधान संशोधन 1976 • यह संविधान संशोधन केशिानन्द भािती र्ार्ले के ननणाय को
अप्रभािी किने हेतु लाया गया था।
• इसके द्िािा अनुच्छे द 368 र्ें संशोधन क्रकया गया।
• संसद की संविधान संशोधन की शन्क्त असीशर्त है औि इसके
द्िािा क्रकए गए संविधान संशोधन को न्यायालय र्ें चुनौती नहीं
दी जा सकती है।
मर्निाा मर्ल्स र्ार्ला 1980 • 42िें संविधान संशोधन को शू न्य ि असंिैधाननक घोवषत कि
ददया गया।
• संसद आधािभूत ढांचे र्ें संशोधन नहीं कि सकती है।
• न्यानयक सर्ीक्षा संविधान का आधािभूत ढांचा है।
• आधािभूत ढांचे की अिधािणा 24 अप्रैल,1973(केशिानन्द
िार्न राि र्ार्ला 1981 भािती र्ार्ला) के बाद क्रकए गए संविधान संशोधनों पि लागू
होगी।
आई. आर. सेलो या कोदहल्यो र्ार्ला 2007 • नौिीं अनुसूची र्ें शाशर्ल की गई विधधयों की भी न्यानयक
सर्ीक्षा आधािभूत ढांचे के उल्लंघन के आधाि पि की जा
सकती है।

आधारभूत ढााँचा के तत्ि


संविधान की सिोच्चता + संप्रभुता + लोकतन्त्र + पंथ ननिपेक्षता + शन्क्त पृथक्किण का शसद्धान्त + संघीय
व्यिस्था + एकता औि अखंडता + कल्याणकािी िाज्य + न्यानयक सर्ीक्षा + िैयन्क्तक स्ितंत्रता एिं गरिर्ा +
संसदीय प्रणाली + न्यायपाशलका की स्ितंत्रता + विधध का शासन + सर्ानता + िाज्य के नीनत-ननदे शक तत्िों के
बीच संतुलन + स्ितंत्र औि ननष्ट्पक्ष चुनाि + न्याय के शलए प्रभािकािी पहुं च + न्याय का प्राकृनतक शसद्धान्त+
संविधान के अनुच् छे द 226 औि 227 के अंतगात उच्च न्यायालय की शन्क्त+ संविधान संशोधन किने की संसद की
सीशर्त शन्क्त+सुप्रीर् कोर्टा को अनुच्छे द 32 ,136,141 औि 142 के तहत प्राप्त शन्क्तयाँ।

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99िां संविधान संशोधन : इस संविधान संशोधन के र्ाध्यर् से न्यायाधीशों की ननयुन्क्त हेतु कॉलेन्जयर् प्रणाली के स्थान पि
िाष्ट्रीय न्यानयक ननयुन्क्त आयोग लाया गया। हालाँक्रक उच्चतर् न्यायालय ने इसे न्यायपाशलका की स्ितंत्रता के नार् पि
असंिैधाननक घोवषत कि ददया।

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11. सं सद य प्रणाल

• सींसद य प्रणाल के मलए अनुच्छे द: केंद्र के मलए अनुच्छे द 74 और 75 + राज्य के मलए अनुच्छे द 163 और 164
• सींसद य सरकार = कैबबनेट सरकार = उिरदायी सरकार = सरकार का िेस्टममींस्टर मॉडल
संसद य सिकाि औि िाष्ट्रपनत नाशमत सिकाि की विशेषताएं:

संसद य सिकाि अमेरिकी िाष्ट्रपनत नाशमत सिकाि

नाममात्र और िास्तविक (दोहर ) कायमकार : अमेरिकी िाष्ट्रपनत:

• राष्ट्रपतत: नाममात्र के कायमकार प्रमुि (विधित ● राज्य ि सरकार दोनों का प्रमुि होता है।
कायमकार - de jure), राज्य के प्रमुि

• प्रिानमींत्री: िास्तविक प्रमुि (िास्तविक कायमकार - de


facto), सरकार के प्रमु ि।

• राष्ट्रपतत को परामशम दे ने के मलए प्रिानमींत्री की


अध्यक्षता में मींबत्रपररर्द

• सलाह राष्ट्रपतत के मलए बाध्यकार है (42िें और 44िें


सींशोिन के द्िारा)

बहुमत प्राप्त दल का शासन: ● राष्ट्रपतत को तनिामचक मींडल द्िारा चार साल की


तनजश्चत अिधि के मलए तनिामधचत ककया िाता है।
• लोकसभा में जिस रािनीततक दल को बहुमत में सीटें
प्राप्त होती हैं िो ह दल सरकार बनाती है। ● राष्ट्रपतत को काींग्रेस द्िारा हटाया नह ीं िा सकता
(मसिाय एक गींभीर गैर-सींिैिातनक कायम के मलए दोर्ी
• उस दल के नेता को राष्ट्रपतत द्िारा प्रिानमींत्री के रूप
पाए िाने पर महामभयोग के द्िारा)
में तनयुतत ककया िाता है और अन्य मींबत्रयों की तनयुजतत
राष्ट्रपतत द्िारा प्रिानमींत्री की सलाह पर की िाती है।

• यदद कोई भी दल बहुमत प्राप्त नह ीं करती है, तो


राष्ट्रपतत द्िारा दलों के गठबींिन को सरकार बनाने के
मलए आमींबत्रत ककया िाता है।

सामूदहक उिरदातयत्ि: ● राष्ट्रपतत और उसके सधचि काींग्रेस के प्रतत उिरदायी


नह ीं होते हैं।
• सींसद य सरकार का विमशष्ट्ट मसद्िान्त

• अनुच्छे द 75: मींबत्रपररर्द सामूदहक रूप से लोकसभा के


मलए उिरदायी होती है।

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• लोकसभा मींबत्रपररर्द को अविश्िास प्रस्ताि पाररत करके
हटा सकती है।

रािनीततक एकरूपता: ● कैबबनेर्: गैर-तनिामधचत परामशमदात्री इकाई

• एक ह पाटी का बहुमत: मींबत्रपररर्द के सदस्य एक ह ● राष्ट्रपतत द्िारा चयन और तनयुजतत


रािनीततक दल से आते हैं। समान रािनीततक विचारिारा
● केिल राष्ट्रपतत के प्रतत उिरदायी होते हैं।
• गठबींिन सरकार: मींबत्रपररर्द के सदस्य सिमसम्मतत के
● राष्ट्रपतत द्िारा हटाया िा सकता है।
प्रतत बाध्य होते हैं।

दोहर सदस्यता: ● राष्ट्रपतत और उसके सधचि काींग्रेस के सदस्य नह ीं


होते हैं और न ह िे सत्र में भाग लेते हैं।
• मींत्री, वििातयका और कायमपामलका दोनों के सदस्य होते
हैं। ● वििातयका और कायमपामलका के बीच शजततयों का पूणम
विभािन होता है।
• यदद िो व्यजतत सींसद का सदस्य नह ीं है और मींत्री
बनता है तो उसे छह मह ने के अींदर सींसद की सदस्यता
लेनी होगी अन्यथा मींत्री पद से त्यागपत्र दे ना होत है।

प्रिानमींत्री का नेतृत्ि:

• मींबत्रपररर्द के नेता

• सींसद के नेता -----

• सिारूढ दल का नेता

तनचले सदन का विघटन: ● राष्ट्रपतत द्िारा हाउस ऑफ ररप्रेिेंटेदटि (काींग्रेस का


तनचला सदन) विगदठत नह ीं ककया िा सकता है।
• राष्ट्रपतत द्िारा प्रिानमींत्री की मसफाररश पर लोकसभा
को (सींसद का तनचला सदन) विगदठत ककया िा सकता
है।

गोपनीयता:

• मींत्री अपनी कायमिादहयों, नीततयों और तनणमयों के बारे में


गोपनीयता के मसद्िाींत का पालन करते हैं।
-----
• मींबत्रयों को राष्ट्रपतत द्िारा गोपनीयता की शपथ ददलाई
िाती है।

शजततयों का सींलयन शजततयों का विभािन

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संसद य प्रणाल के गुण औि दोष:

गुण दोष

वििातयका और कायमपामलका के बीच सामींिस्य: अक्स्थि सिकाि:

• कायमपामलका → वििातयका का अींग →वििायी और अविश्िास प्रस्ताि, रािनीततक दलबदल या गठबींिन


कायमकार अींगों के बीच सहयोग और सहकार सींबींि। टू टने के कारण सरकार अपना बहुमत िो सकती है।

• पररणामस्िरूप दोनों अींगों के बीच कम वििाद और


सींघर्म।

उिरदायी सरकार: नीनतयों में अननिं तिता:

• मींत्री अपने कृत्यों के मलए सींसद के प्रतत उिरदायी होते • सरकार में पररितमन से नीततयों में पररितमन होता है।
हैं।
• यह अतनरीं तरता, लींबी अिधि में नीतत तनमामण और
• सींसद द्िारा कायमपामलका पर तनयींत्रण: प्रश्नकाल, विचार- कायामन्ियन में अिरोि उत्पन्न करती है।
विमशम या चचाम, बहस, स्थगन प्रस्ताि, अविश्िास प्रस्ताि
आदद के द्िारा।

तनरीं कुशता को रोकता है: मंबत्रमंडल की तानाशाह :

• कायमकार एक समूह में तनदहत न होकर मींबत्रपररर्द में • पूणम बहुमत िाल सिारूढ़ पाटी -> मींबत्रमींडल के पास
तनदहत होती है। असीममत शजततयााँ।

• यह व्यिस्था कायमपामलका की तनरीं कुशता को रोकती है। • सभी नीततयाीं मींबत्रमींडल द्िारा तय की िाती हैं।

िैकजल्पक सरकार की व्यिस्था: शक्ततयों के प्रथतकिण के णर्लाफ:

• यदद सिारूढ़ दल बहुमत िो देता है तो राष्ट्रपतत विपक्षी • मींबत्रपररर्द और मींबत्रमींडल वििातयका का दहस्सा हैं।
दल को िैकजल्पक सरकार बनाने के मलए आमींबत्रत कर
• मींबत्रमींडल: वििातयका और कायमपामलका दोनों की नेता
सकते हैं।
होती है।

व्यापक प्रतततनधित्ि: अकुशल व्यक्ततयों द्िािा सिकाि संचालन:

• मींबत्रपररर्द, सरकार के सभी िगों और क्षेत्रों का • मींत्री अपने क्षेत्रों में विशेर्ज्ञ नह ीं हैं-> कम प्रशासतनक
प्रतततनधित्ि करती है। दक्षता।

• मींत्री केिल सींसद से हो सकते हैं। प्रिानमींत्री के पास


बाहर के विशेर्ज्ञों को चुनने का कोई विकल्प नह ीं है।

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संसद य प्रणाल को अपनाने के कािण:


बिदटश शासनकाल के कारण सींसद य प्रणाल से सीं बींि + अमेररकी व्यिस्था के मुक़ाबले ज्यादा उिरदातयत ् व्यिस्था
को िर यता + सींयुतत राज्य अमेररका की तरह वििातयका और कायमपामलका के ठकराि को रोकने की आिश्यकता,
िो अमेररका की राष्ट्रपतत प्रणाल में पाया िाता है िहाीं शजततयों का पूणम पृथतकरण है + सींसद य प्रणाल , भारतीय
समाि की प्रकृतत िैसे विमभन्न िगों, भार्ाई, िामममक, िातीय विवििता, आदद को व्यापक प्रतततनधित्ि दे ती है।

भाितीय औि बिहर्श मॉडल में विभेद:

भाितीय मॉडल बिहर्श मॉडल


गणतींत्र प्रणाल : राज्य के प्रमुि (राष्ट्रपतत) तनिामधचत होते रािशाह प्रणाल : राज्य के प्रमुि (रािा / रानी)
हैं। (अप्रत्यक्ष रूप से) िींशानुगत होते हैं।
सींवििान की सींप्रभुता सींसद की सींप्रभुता
प्रिानमींत्री सींसद के ककसी भी सदन (लोकसभा और प्रिानमींत्री को सींसद के तनचले सदन का होना चादहए।
रािसभा) के सदस्य हो सकते हैं।
एक व्यजतत िो ककसी भी सदन का सदस्य नह ीं है, उसे आमतौर पर सींसद के सदस्यों को मींत्री के रूप में
मींत्री के रूप में छह मह ने के मलए तनयुतत ककया िा तनयुतत ककया िाता है।
सकता है।

मींबत्रयों की कानूनी जिम्मेदार की कोई व्यिस्था नह ीं है। मींबत्रयों की कानूनी जिम्मेदार की व्यिस्था है। मींबत्रयों
मींबत्रयों को राज्य के मुखिया के रूप में कायामलयी कायम में को राज्य के मुखिया के रूप में कायामलयी कायम में प्रतत
प्रतत हस्ताक्षि करना िरूर नह ीं होता। करना हस्ताक्षि िरूर होता है।
कैबबनेट में छाया कैबबनेट (शेडो कैबबनेट) की व्यिस्था नह ीं विपक्ष द्िारा सिारूढ दल के साथ सींतुलन बनाने के
है। मलए कैबबनेट में छाया कैबबनेट (शेडो कैबबनेट) की
व्यिस्था की िाती है।

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12. केंद्र िाज्य संबंध

विधायी संबंध – (अनु. 245 से 255)

• सींसद/राज्य वििान मींडल अपने सम्पूणम क्षेत्राधिकार या उसके ककसी भाग के मलए कानून
बना सकते हैं।

• अततररतत क्षेत्रीय वििान (भारतीय नागररक और विश्ि के ककसी भी भाग में उनकी सींपवि
के सींबींि में) = केिल सीं सद के द्िारा

• सींसद के क्षेत्राधिकार में कुछ सींिै िातनक प्रततबींि भी लगाए गए है ।

• चार केंद्र शामसत प्रदे शों- अींडमान तनकोबार द्िीपसमूह, लक्ष्यद्िीप, दादरा और नगर हिेल
तथा दमन द ि की शाींतत, उन्नतत और सुशासन के सींबींि में राष्ट्रपतत तनयम बना सकता
है। इस प्रकार बनाए गए तनयम सींसद के द्िारा बनाए गए ककसी अधितनयम के समान ह
प्रयोज्य माने िाएींगे। राष्ट्रपतत ऐसे तनयमों के माध्यम से इन केंद्र शामसत प्रदे शों के सींबींि
केंद्र और राज्य में सींसद द्िारा पाररत ककसी अधितनयम को सींशोधित या समाप्त भी कर सकता है।
का क्षेत्रीय
• राज्यपाल को यह शजतत है कक िह सींसद के ककसी अधितनयम िो अधिसूध चत क्षेत्रों में लागू
विस्तार:
ना करे या उन्हें कुछ सींशोिनों/अपिादों के साथ लागू करे ।

• असम के राज्यपाल को ये शजतत है कक िह सींसद के अधितनयमों को असम के िनिातीय


क्षेत्रों (स्िायि जिलों में) र्ें लागू न करे या कुछ सींशोिनों/अपिादों के साथ लागू करे ।
मेघालय, बत्रपुरा और ममिोरम के सींबींि में ऐसी ह शजततयााँ राष्ट्रपतत को प्रदान की गयी
हैं।

• केंद्र य सूची - 97 विर्य

• राज्य सूची - 66 विर्य

• समिती सूची - 47 (ितममान में 52)

दे श /अधधननयम अिशशष्ट्र् शक्ततयाँ

वििायी विर्यों 1935 अधितनयम गिनमर िनरल


का वितरण:
ितममान भारत में सींसद

कनाडा केंद्र

यूएसए राज्यों

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ककसके द्िािा बनाया गया कानून प्रभािी होगा?

• केंद्र य सूची >समिती सूची>राज्य सूची

• समान्यतः,केंद्र य कानून राज्य कानूनों पर प्रभािी होता है। लेककन इसके कुछ अपिाद भी
है।

• यदद राज्य के कानून को राष्ट्रपतत की सहमतत के आरक्षक्षत ककया गया है और राष्ट्रपतत ने


उस पर अपनी सहमतत द है तो राज्य का ऐसा कानून केंद्रीय कानून पर प्रभािी होगा।

जब िाज्यसभा इस संबंध में कोई प्रस्ताि पारित कि दे (अनु. 249):

• राष्ट्र के आिश्यक मामले पर

• इस तरह के प्रस्ताि को सदन में उपजस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों के दो-ततहाई
का समथमन ममलना चादहए।

• यह प्रस्ताि एक िर्म के मलए ह प्रभािी होगा|

राज्य क्षेत्र में


• यह राज्य वििान मींडल को समान विर्य पर कानून बनाने से रोकने िाला नह ीं होना
सींसद य वििान
चादहए।

िाष्ट्रपनत शासन के दौिान (अनु. 356):

• उस राज्य के सींबींि में राज्य सूची के ककसी भी विर्य पर कानून बनाने का अधिकार सींसद
के पास होगा।

• राष्ट्रपतत शासन के उपराींत भी ऐसे कानून प्रभािी रहते हैं।

• हालाींकक इन क़ानूनों को नए राज्य वििानमींडल के द्िारा तनरसत, सींशोधित या पुनः लागू


ककया िा सकता है।

िाष्ट्र य अपातकाल के दौिान (अनु. 352):

• राज्य सूची के विर्यों में कानून बनाने की शजतत सींसद द्िारा अधिगृह त कर ल िाती है।

• राज्य वििानमींडल भी उस विर्य पर कानून बना सकता है, लेककन सींसद का कानून प्रभािी
होता है।

• आपातकाल समाप्त होने के 6 माह बाद तक यह व्यिस्था बनी रहती है।

िाज्यों के अनुिोध पि:

• िब दो या अधिक राज्य वििानमींडल इस सींबींि में प्रस्ताि पाररत करे ।

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• यह कानून उन्ह ीं राज्यों में लागू होगा जिन राज्यों ने ऐसा प्रस्ताि पाररत ककया है।

• ऐसे कानून को सींसद द्िारा ह सींशोधित या तनरमसत ककया िा सकता है राज्य वििानमींडल
द्िारा नह ीं; उदाहिण- िन्यिीि अधितनयम 1972; िल अधितनयम 1974|

अंतिाष्ट्र य समझौतों को लागू ककया जाना:

• अींतरामष्ट्र य सींधि, समझौतों को लागू करने के मलए सींसद राज्य सूची के ककसी भी विर्य पर
कानून बना सकती है। उदाहिण िेनेिा समझौता अधितनयम 1960; दरप्स (TRIPS)

राज्य • राज्यपाल राज्य वििातयका द्िारा पाररत कुछ वििेयकों को राष्ट्रपतत की सींस्तुतत के मलए
वििानमींडल में आरक्षक्षत कर सकता है। राष्ट्रपतत को ऐसे वििेयकों पर विशेर् िीटो प्राप्त है।
केंद्र का तनयींत्रण:
• राज्य सूची के कुछ विर्यों पर वििेयक केिल राष्ट्रपतत की पूिम अनुमतत से प्रस्तुत ककया
िा सकता है। उदाहिण - व्यापार और िाखणज्य की स्ितींत्रता को प्रततबींधित करने से
सींबजन्ित वििेयक (अनु. 301)।

• वििीय आपातकाल के दौरान राज्य वििातयका द्िारा पाररत िन वििेयक या अन्य विि
वििेयकों को राष्ट्रपतत आरक्षक्षत कर सकता है।

प्रशासननक संबंध (अनु. 256 से 263)

• वििायी शजतत के अनुरूप


• समिती सूची में, सींसदीय कानून राज्य कानून पर प्रभािी होगा (अपिाद- आरक्षक्षत
वििेयक पर राष्ट्रपतत की सहमतत)
• हालाींकक समिती सूची पर बने कानून राज्यों द्िारा लागू ककए िाते है।
• राज्यों को केंद्र के तनदे श (अनु. 257)

कायमकार शजततयों
का वितरण
केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग

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राज्य की कायमकार शजतत पर सींिैिातनक प्रततबींि:

• अनु. 256- प्रत्येक राज्य की कायमकार शजतत में सींसद द्िारा बनाए गए कानूनों और
भारत सरकार के तनदे शों का अनुपालन सुतनजश्चत ककया िाना चादहये।

राज्यों की कायमकार शजतत पर दो प्रततबींि:

1. सींसद द्िारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुतनजश्चत करना


2. राज्य में केंद्र की कायमपामलका शजतत को बाधित या इसके सींबींि में पूिामग्रह न रिना।
अखिल भारतीय • अनु. 312: सींवििान सींसद को राज्यसभा के प्रस्ताि पर नई अखिल भारतीय सेिाओीं के
सेिाएाँ (अनु. 312) गठन की शजतत दे ता है।
• अखिल भारतीय सेिा पि केंद्र और राज्य दोनों का तनयींत्रण होता है। इन पर पूणम तनयींत्रण
केंद्र सरकार का और तत्काल न तनयींत्रण राज्य सरकार का होता है।
एकीकृत न्याय • दोहर रािनीततक व्यिस्था –केंद्र और राज्य
व्यिस्था • न्यातयक प्रशासन में दोहर व्यिस्था को नह ीं अपनाया गया है
• संसद दो या अधिक राज्यों के मलए एक ह उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है।
उदा.: महाराष्ट्र और गोिा के मलए अथिा पींिाब और हररयाणा के मलए|

आपातकाल की 1. िाष्ट्र य आपातकाल (अनु. 352) – केंद्र ककसी भी मामले में राज्यों को तनदे मशत कर
अिधि में: सकती है। इस प्रकार राज्य पूणमतः केंद्र के तनयींत्रणािीन हो िाते हैं, यद्यवप उन्हें
तनलींबबत नह ीं ककया िाता है।
2. िाष्ट्रपनत शासन (अनु. 356) – राज्य सरकार की समस्त शजततयााँ राष्ट्रपतत में तनदहत हो
िाती है और राष्ट्रपतत, राज्यपाल या ककसी अन्य कायमकार अधिकार के माध्यम से
उनका सींचालन करता है।
3. वित्तीय आपातकाल (अनु. 360) – केंद्र वििीय पररसींपवियों के अधिग्रहण के मलए राज्यों
को तनदे मशत कर सकता है तथा राज्य में कायमरत कममचाररयों एिीं उच्च न्यायालय के
न्यायािीशों के िेतन में कटौती करने का आदे श दे सकता है।
• अनु. 355: बाह्य आिमण और आींतररक अशाींतत से प्रत्येक राज्य की रक्षा करना + यह
सुतनजश्चत करना कक राज्य सरकारें सींवििान की व्यसथा के अनु रूप कायम करें ।
अन्य प्राििान: • िाज्यपाल – राष्ट्रपतत द्िािा तनयुतत + केंद्र के एिेंट के रूप में कायम करना
• िाज्य ननिाजचन आयोग: राज्यपाल द्िारा तनयुतत + राष्ट्रपतत द्िारा हटाया िाना

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सींवििानेिर नीतत आयोग + राष्ट्र य एकता पररर्द + क्षेत्रीय पररर्दें + उिर-पूिम पररर्द
युजततयााँ

वित्तीय संबंध (अनु. 268 से 293)


• अनु. 265 - कोई कर विधि के प्राधिकार से ह अधिरोवपत या सींगृह त ककया िाएगा, अन्यथा नह ीं।
• कायमकार आदे श द्िारा कोई कर नह ीं लगाया िा सकता है।

समेककत तनधि • अनु. 266 - भारत और राज्यों के मलए समेककत तनधि


(अनु. 266):
• सरकार को प्राप्त सभी रािस्ि, बािार से मलए गए ऋण और स्िीकृत ऋणों पर प्राप्त
धयाि समेककत तनधि (Consolidated Fund) में िमा होते हैं। कुछ अपिादों के
अततररतत सरकार के सभी व्यय भी इसी तनधि से ककए िाते हैं।

• बबना सींसद की अनुमतत के इस तनधि से कोई भी िन वितनयोजित नह ीं ककया िा सकता


है।

आकजस्मक तनधि • इस तनधि को भारत की आकजस्मक तनधि कहा िाता है (विशेर् उद्दे श्य के मलए बनाई
(अनु. 267) गयी तनधि)| इसके मलए सीं सद ने भारत की आकजस्मक तनधि अधितनयम 1950 को
अधितनयममत ककया है।

• यह भारत के राष्ट्रपतत की ओर से विि सधचि (आधथमक मामलों के विभाग) के तनयींत्रण में


होती है और इसे कायमकार कारमिाई द्िारा सींचामलत ककया िा सकता है।

• सींवििान में करािान की शजततयों का स्पष्ट्ट विभािन ककया गया है और केंद्र तथा राज्यों
के बीच करािान को लेक र कुछ प्रततबींि भी लगाए गए हैं।

• अिमशष्ट्ट शजतत सींसद के पास। इस प्राििान के तहत, सींसद ने उपहार कर, समृद्धि कर
और व्यय कर लगाया है।
करािान शजततयों
• समिती सूची में कोई कर प्रविजष्ट्ट नह ीं हैं। दूसरे शधदों में, कर कानून के सींबींि में कोई
का आिींटन:
समिती क्षेत्राधिकार उपलधि नह ीं है।

• 2016 के 101 िें सींशोिन अधितनयम के द्िारा िीएसट के सींबींि में लाए गए विशे र्
प्राििान इसका अपिाद है। इस सींशोिन ने िीएसट को तनयींबत्रत करने िाले कानूनों को
बनाने के सींदभम में सींसद और राज्य वििानसभाओीं को समिती शजतत प्रदान की है।

विधधक अनुदान वििेकाधीन अनुदान

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अनु. 275 सींसद को यह अधिकार प्रदान अनु. 282 केंद्र और राज्य दोनों को ककसी भी
करता है कक िह राज्यों को आिश्यकता पर सािमितनक उद्दे श्य के मलए अनुदान आिींटन
राज्यों की
अनुदान उपलधि कराये, हालाींकक प्रत्येक का अधिकार दे ता है, भले ह यह उनके
सहायताथम
अनुदान: राज्य के मलए ऐसा करना आिश्यक नह ीं है। सींबींधित वििायी क्षमता के भीतर न हो।
अनुदान की यह रामश भारत की समेककत
तनधि पर भाररत होती है।

सींवििान राज्यों में िनिाततयों के उत्थान इन अनुदानों को वििेकािीन अनुदान भी कहा


एिीं कल्याण तथा अनुसूधचत िनिातत िाता है, केंद्र इसके मलए बाध्य नह ीं है, यह
बाहुल्य राज्यों में प्रशासतनक विकास के मलए पूणमतया उसके स्िवििेक पर तनभमर करता है।
भी राज्यों को विशेर् सहायता प्रदान करने
शजतत सींसद को दे ता है। (इसमें असम भी
शाममल है)

अनु. 275 तहत राज्यों को ददया िाने िाला ये अनुदान,राज्यों को योिनागत लक्ष्यों की
अनुदान विि आयोग की अनुसींशा के अनुरूप प्राजप्त में वििीय सहायता उपलधि कराने और
होता है। राज्यों में राष्ट्र य योिनाओीं को प्रभािी करने
राज्य की कारमिाई को प्रभावित करने और
समन्िय बनाए रिने में केंद्र की मदद करते
हैं।

• सींवििान ने एक तीसरे प्रकार के अनुदान की भी व्यिस्था की है, लेककन अल्प अिधि के


मलए।

• असम, बबहार, उड़ीसा और पजश्चम बींगाल राज्यों को िूट और िूट उत्पादों पर तनयामत
शुल्क के बदले अनुदान का प्राििान।

• यह प्राििान सींवििान प्रारम्भ होने से 10 िर्म की अिधि के मलए ककया गया था।

• ये अनुदान भारत की समेककत तनधि पर भाररत होते थे और विि आयोग की अनुसींशा पर


उपलधि कराये गए थे।

िाज्यों के हहतों का संिक्षण:

तनम्नमलखित वििेयकों को केिल राष्ट्रपतत की सहमतत से ह सींसद में प्रस्तुत ककया िा


सकता है:
अन्य अनुदान

1. िे वििेयक िो ककसी भी कर या शुल्क को लागू या बदलते हैं जिसमें राज्यों के दहत


प्रभावित होते हैं।

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2. ऐसे वििेयक िो "कृवर् आय" की अमभव्यजतत के अथम में पररितमन करते हों।

3. ऐसे वििेयक िो राज्यों में वितररत या वितरण की िाने िाल रामशयों में पररितमन करते
हों।

4. ऐसे वििेयक िो केंद्र के प्रयोिन हेतु ककसी विमशष्ट्ट कर या शुतल पर अधिभार


अध्यारोवपत करते हों।

केंद्र िाज्य

• सींसद द्िारा तनिामररत सीमा के भीतर • राज्य, केंद्र की अनुमतत के बबना ऋण नह ीं


समेककत तनधि की गारीं ट पर ऋण ले ले सकते हैं। (यदद केंद्र द्िारा ददये गए
केंद्र और राज्यों
सकती है (भारत में + भारत के बाहर से) ऋण का कोई भाग बकाया है)
द्िारा ऋण

• राज्य सरकार को ऋण दे सकती है या • राज्य वििानमण्डल तनिामररत सीमा के


राज्य द्िारा मलए गए ऋण के मलए भीतर राज्य की सींधचत की गारीं ट पर ऋण
गारीं ट दे सकती है। के मलया िा सकता है (भारत में, भारत के
बाहर से नह ीं)

सींघ की • केंद्र की सभी पररसींपवियों को राज्य या उसके विमभन्न तनकायों, िैस-े नगरपामलका, जिला
पररसींपवियों को बोडों, पींचायतों आदद को राज्य या राज्य के ककसी प्राधिकरण द्िारा अद्यारोवपत सभी
राज्य के कर से प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है। लेककन सींसद यह प्रततबींि हटा सकती है।
छूट (अनु. 285)
• सींपवि का उपयोग सींप्रभु (िैस-े सशस्त्र सेनाएाँ) या िाखणजज्यक प्रयोिनों के मलए ककया
िाता है।

• केंद्र सरकार द्िारा तनगममत तनगमों या कींपतनयों को राज्य करािान या स्थानीय करािान
से उन्मुजतत प्राप्त नह ीं होती है। (इनका प्रथक विधिक अजस्तत्ि होता है)

• राज्यों की पररसींपवियों एिीं आय को भी केंद्र य कर से छूट प्राप्त होती है। यह आय सीं प्रभु
कायों या िाखणजज्यक कायों से हो सकती है।

• ककन्तु सींसद की अनुमतत से केंद्र राज्य की िाखणजज्यक आय पर कर लगा सकता है।

• राज्य में जस्थत स्थानीय सींस्थाओीं की पररसींपवि और आय केंद्र य कर से उन्मुतत नह ीं


राज्य की
होती है।
पररसींपवियों को
केंद्र य कर से छूट • इसी प्रकार, राज्य के स्िाममत्ि िाले तनगमों और कींपतनयों की पररसींपवि एिीं आय पर केंद्र
(अनु. 289) कर लगा सकती है।

• 1963 में सिोच्च न्यायालय ने अपनी सलाहकार अधिकाररता के तहत सलाह द थी कक


केंद्र, राज्य द्िारा आयाततत या तनयामततत िस्तुओीं पर कर लगा सकती है या िह राज्य में

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उत्पाददत या वितनमममत सामान पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।

िाष्ट्र य आपातकाल (अनु. 352) वित्तीय आपातकाल (अनु. 360)

• राष्ट्रपतत केंद्र और राज्यों के बीच केंद्र िाज्यों को ननदे श दे सकता है:


सींिैिातनक रािस्ि वितरण को पररिततमत
आपातकाल के 1. वििीय औधचत्य सींबींिी मसद्िाींतों के पालन
कर सकता है।
प्रभाि का,
• केंद्र से राज्यों को होने िाले वििीय
2. राज्य की सेिा में लगे सभी िगों के
अींतरण को कम कर सकता है या
कामममकों के िेतन और भिों की कटौती
समाप्त कर सकता है (कर वितरण और
का,
अनुदान दोनों)।
3. सभी िन वििेयकों या अन्य वििीय
• ऐसे पररितमन आपातकाल की समाजप्त
वििेयकों को राष्ट्रपतत की स्िीकृतत के
िाले वििीय िर्म तक प्रभािी रहें गे।
मलए आरक्षक्षत करने का।

कि िाजस्ि का वितिण:

अनुच्छे द कर का सींग्रहण वितनयोिन विमभन्न कर


अध्यारोण

268 केंद्र राज्य राज्य शेयरों, चेकों, प्रोमममसयर नोट्स, बीमा आदद के अींतरण
पर लगने िाले स्टाींप शुल्क

269 केंद्र केंद्र राज्य अींतर-राज्यीय व्यापार और िाखणज्य से सींबींधित कर।

यह रािस्ि भारत की समेककत तनधि का दहस्सा नह ीं


होता है।

270 केंद्र केंद्र केंद्र और राज्यों के केंद्र य सूची के विर्यों पर लगाए गए कर– आयकर
बीच वितररत (कृवर् आय के अततररतत), तनगम कर, आदद।

271 केंद्र केंद्र केंद्र अनु. 268, 269, 270 के तहत करों पर अधिभार

NA राज्य राज्य राज्य बबिी कर, एल्कोहल और स्िापक पदाथों पर उत्पाद


शुल्क, चुींगी कर, िृवि कर (प्रततिर्म अधिकतम 2500
रुपये- सींवििान द्िारा लगी गयी सीमा)

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केंद्र-िाज्य सम्बन्धों पि सशमनत:

केंद्र द्िारा राज्यों द्िारा

सरकाररया आयोग (1983) रािमन्नार सममतत – तममलनाडु (1969)

पुींछी आयोग (2007) आनींदपुर सादहब प्रस्ताि –अकाल दल पींिाब (1973)

प्रथम एिीं द्वितीय प्रशासतनक सुिार आयोग

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13. अंतरााज्यीय संबंध

• अंतिााज्यीय जल वििाद (अनुच्छे द 262)


• अंतिााज्यीय परिषदें (अनुच्छे द 263)
• सािाजननक अधधननयर्, दस्तािेज औि न्यानयक प्रक्रियाएं
• अंतिााज्यीय व्यापाि औि िाखणज्य (अनुच्छे द 301 से 307)
• िाज्यों पुनगाठन अधधननयर्,1956 के तहत क्षेत्रीय परिषदें

अंतरााज्यीय जल वििाद (अनुच्छे द 262)

• अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल का प्रयोग,बँर्टिािे तथा ननयंत्रण से संबन्न्धत क्रकसी
वििाद पि संसद कानून बनाकि ननणाय कि सकती है।
अनुच्छे द
• संसद द्िािा यह भी व्यिस्था की जा सकती है क्रक अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल
262
प्रयोग,बँर्टिािे तथा ननयंत्रण से संबन्न्धत क्रकसी वििाद र्ें न ही उच्चतर् न्यायालय औि न ही कोई
अन्य न्यायालय अपने क्षेत्राधधकाि का प्रयोग किे ।

अनुच्छे द 262 (अंतरााज्यीय जल वििादों का न्यायननणायन) के अंतगात संसद ने दो कानून बनाए हैं -

नदी बोडा अधधननयर् 1956: इसके तहत अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के ननयंत्रण तथा विकास हेतु नदी
जल बोडों का गठन क्रकया जाता है + नदी बोडा का गठन संबन्न्धत िाज्यों के आग्रह
पि केंद्र सिकाि द्िािा उन्हें सलाह दे ने हेतु क्रकया जाता है।

अंतरााज्यीय जल वििाद संघ या केंद्र सिकाि को अंतिााज्यीय नददयों तथा नदी घादर्टयों के जल प्रयोग ,बँर्टिािे
अधधननयर् 1956: तथा ननयंत्रण के संबंध र्ें दो या दो से अधधक िाज्यों के र्ध्य वििाद के
न्यायननणायन के शलए एक अस्थाई अधधकिण के गठन की शन्क्त प्रदान किता है+
अधधकिण के ननणाय बाध्यकािी हैं + कोई न्यायालय ऐसे वििादों पि अधधकाि क्षेत्र
नहीं िखता है|

अब तक स्थावपत दरब्यूनल:

नार् िषा संबद्ध राज्य


कृष्णा जल वििाद 1969 र्हािाष्ट्र, कनाार्टक औि आंध्र प्रदे श
गोदािरी जल वििाद 1969 र्ध्य प्रदे श,ओडडशा,आंध्र प्रदे श,कनाार्टक औि
र्हािाष्ट्र
नर्ादा जल वििाद 1969 िाजस्थान,गुजिात,र्ध्य प्रदे श औि र्हािाष्ट्र
रािी और व्यास जल वििाद 1986 पंजाब,हरियाणा औि िाजस्थान
कािेरी जल वििाद 1990 कनाार्टक,केिल,तशर्लनाडु औि पुद्दुचेिी

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द्ितीय कृष्णा जल वििाद 2004 र्हािाष्ट्र,कनाार्टक औि आंध्रा प्रदे श
िंशधारा जल वििाद 2010 ओडडशा औि आंध्र प्रदे श
र्हादाई जल वििाद 2010 गोिा,कनाार्टक औि र्हािाष्ट्र

अंतरााज्यीय पररषदें (अनुच्छे द 263)

उद्दे श्य • राज्यों और केंद्र के बीच तथा विमभन्न राज्यों के बीच सर्न्िय स्थावपत करनाI

जस्थनत • अनुच्छे द 263 के तहत संिैधाननक ननकाय।

• सिकारिया आयोग (अंतिााज्यीय संबंध पि) की शसफारिशों के अनुसाि, 1990 र्ें पहली बाि
िाष्ट्रपनत के आदे श के तहत गह
ृ र्ंत्रालय के अंतगात अंतिााज्यीय परिषद का गठन हुआ।
गठन

राष्रपनत की • िाष्ट्रपनत ऐसी परिषद का गठन कि सकता है।


भूमर्का • िाष्ट्रपनत अंतिााज्यीय परिषद के कताव्यों , संगठन औि प्रक्रिया को ननधाारित कि सकता है।

काया • अंतिााज्यीय वििादों की जांच किना औि इन पि सलाह देना (अनुच्छे द 131 के तहत उच्चतर्
न्यायालय के अधधकाि क्षेत्र का संपू िक) + उन विषयों की जांच किना औि उन पि चचाा किना
न्जसर्ें िाज्यों या केंद्र औि िाज्यों का एक सर्ान दहत है + नीनत औि इसके क्रियान्ियन के
बेहति सर्न्िय हेतु संस्तुनत किना।

ननणाय • ननणाय बाध्यकािी नहीं है+ विशुद्ध रूप से सलाहकाि ननकाय।

• प्रधानर्ंत्री अध्यक्ष के रूप र्ें + सभी िाज्यों के र्ुख्यर्ंत्री + विधानसभा िाले केंद्र शाशसत प्रदे शों
के र्ुख्यर्ंत्री+ सभी केंद्र शाशसत प्रदे शों के प्रशासक ( जहाँ विधानसभाएं नहीं हैं) + िाष्ट्रपनत
शासन िाले िाज्यों के िाज्यपाल + प्रधानर्ंत्री द्िािा नाशर्त छह केंद्रीय कैत्रबनेर्ट र्ंत्री (गृह र्ंत्री
संरचना सदहत) + प्रधानर्ंत्री द्िािा नाशर्त पांच कैत्रबनेर्ट र्ंत्री / िाज्य र्ंत्री (स्ितंत्र प्रभाि) अंतिााज्यीय
परिषद के स्थायी आर्ंत्रत्रत सदस्य होते हैं।

र्ीदटंग परिषद एक िषा र्ें कर् से कर् तीन बाि शर्ल सकती है। सर्ाधान पि विचाि सिा सम्र्नत से तय
क्रकए जाते हैं।

पररषद की स्थायी समर्नत


• 1996 र्ें स्थावपत+ परिषद के विचािाथा र्ार्लों पि सतत चचाा हेतु।
• समर्नत के सदस्य: केंद्रीय गृह र्ंत्री अध्यक्ष के रूप र्ें + पांच केंद्रीय कैत्रबनेर्ट र्ंत्री + नौ र्ुख्यर्ंत्री।
• इसे अंतरााज्यीय पररषद सधचिालय द्िारा सहायता प्रदान की जाती है: 1991 र्ें स्थावपत + भाित सिकाि का
एक सधचि इसका प्रधान होता है।

अंतरााज्यीय व्यापार तथा िाणणज्य

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अनुच्छे द वििरण
301 • व्यापाि, िाखणज्य औि सर्ागर् की स्ितन्त्रता।
• भाित के िाज्यक्षेत्र र्ें व्यापाि िाखणज्य औि सर्ागर्( intercourse) अबाध होगा।
Provides for restrictions:
302 • संसद सािाजननक दहत र्ें उपिोक्त स्ितंत्रता पि ननबंधन लगा सकती है।
• संसद भाित के क्रकसी भी भाग र्ें िस्तुओं की कर्ी के र्ार्ले को छोड़कि िाज्यों के बीच भेदभाि नहीं
कि सकती है।
303 • िाज्य विधानसभाएँ उस िाज्य के भीति व्यापाि, िाखणज्य औि सर्ागर् की स्ितन्त्रता पि सािाजननक
दहत र्ें प्रनतबंध लगा सकती हैं।
• ऐसे विधेयक के शलए िाष्ट्रपनत की पूिा र्ंजूिी आिश्यक है।
• िाज्य विधानयका िाज्यों के बीच भेदभाि नहीं कि सकती है।
304 • क्रकसी िाज्य की विधानयका दूसिे िाज्य या केंद्र शाशसत प्रदे श से आयानतत उन िस्तुओं पि र्टै क्स लगा
सकती है न्जनका उस संबन्न्धत िाज्य र्ें उत्पादन होता हो।
305 • स्ितंत्रता िाष्ट्रीयकृत कानूनों के अधीन है। िे कानून जो केंद्र या िाज्यों के पक्ष र्ें एकाधधकाि हेतु
पूिाननददाष्ट्र्ट हैं।
• इस तिह के कानून नागरिकों या अन्य को पूिी तिह से या आंशशक रूप से ऐसे व्यापाि को किने से
बाहि कि सकते हैं।

• सािाजननक अधधननयर्, दस्तािेज औि न्यानयक प्रक्रियाएं

सािाजननक अधधननयर्,दस्तािेज़ और न्यानयक प्रकक्रयाएाँ (अनुच्छे द 261)


• पूिे दे श र्ें केंद्र औि िाज्यों के सािाजननक अधधननयर्, दस्तािेज औि न्यानयक कायािादहयों को पूणा विश्िास ि
साख प्रदान की गई है।
• संसद द्िािा ऐसे अधधननयर्, रिकाडा तथा कायािादहयों तथा उनके प्रभाि का ननधाािण कानून बनाकि क्रकया
जाएगा।
• भाित के क्रकसी भी दहस्से र्ें शसविल(दीिानी) अदालतों के अंनतर् ननणाय औि आदे श प्रभािी होंगे। यह ननयर्
शसविल ननणायों पि लागू होता है न क्रक आपिाधधक(फौजदािी) ननणायों पि।

िेत्रीय पररषदें
• सांविधधक (ना क्रक सांविधाननक) ननकाय + िाज्य पुनगाठन अधधननयर्, 1956 (7 िें सीएए 1956) के तहत
स्थावपत।
• क्षेत्रीय परिषदें केिल चचाात्र्क तथा पिार्शादात्री ननकाय हैं, इनकी; शसफारिशें बाध्यकािी नहीं हैं।
• क्षेत्रीय परिषद को िषा र्ें कर् से कर् दो बाि शर्लना चादहए।
• िेत्रीय पररषद के सदस्य: केंद्र सिकाि का गृहर्ंत्री+ र्ुख्यर्ंत्री + क्षेत्र के सभी िाज्यों के र्ुख्यर्ंत्री + क्षेत्र के
प्रत्येक िाज्य से दो अन्य र्ंत्री + क्षेत्र के सभी केंद्र शाशसत िाज्यों के प्रशासक।

पूिोत्तर पररषद
• संसदीय आददननयर् के तहत गदठत एक िेत्रीय पररषद : पूिोत्ति परिषद अधधननयर्, 1971

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• सदस्य: सभी उत्ति-पूिी िाज्य।
• गठन:
o पदे न अध्यि - केंद्रीय गृह र्ंत्री
o उपाध्यि - िाज्य र्ंत्री (स्ितंत्र प्रभाि) , उत्ति-पूिी क्षेत्र विकास र्ंत्रालय।
o सदस्य - सभी आठ िाज्यों के िाज्यपाल औि र्ुख्यर्ंत्री औि िाष्ट्रपनत द्िािा नाशर्त 3 सदस्य।
• शसन्क्कर् को 2002 र्ें पूिोत्ति परिषद के आठिें सदस्य के रूप र्ें जोड़ा गया था।

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14. आपातकालीन प्रािधान

• संिैधाननक प्रािधान: भाग XVIII र्ें अनुच्छे द 352 से 360 तक िखणात है।
• आपातकाल त्रबना क्रकसी औपचारिक संविधान संशोधन के संघीय व्यिस्था को एकात्र्क व्यिस्था र्ें परििनतात
किता है।
• आपातकालीन प्रािधानों को भाित सिकाि अधधननयर्, 1935 से शलया गया है।
• ये प्रािधान क्यों क्रकये गए हैं: दे श की संप्र भुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रत्रक िाजनैनतक प्रणाली औि संविधान की
सुिक्षा सुननन्श्चत किने के शलए क्रकया गया है।

नोट: “आपातकाल की उद्घोषणा के दौिान र्ौशलक अधधकािों के ननलंबन ” का प्रािधान िाइर्ि संविधान (ितार्ान रूस)
से शलया गया है।

आपातकाल के तीन प्रकार हैं :


1. अनुच्छे द 352: युद्ध, बाह्य आिर्ण औि सशस्त्र विद्रोह के कािण आपातकाल( िाष्ट्रीय आपातकाल) ;
2. अनुच्छे द 356: िाज्य र्ें संिैधाननक तंत्र की विफलता के कािण आपातकाल (िाष्ट्रपनत शासन) ;
3. अनुच्छे द 360: भाित के वित्तीय स्थानयत्ि अथिा साख के खतिे के कािण आपातकाल(वित्तीय आपातकाल)

राष्रीय आपातकाल (अनुच्छे द 352):


• बाह्य आपातकाल - ‘युद्ध' या ‘ बाह्य आिर्ण ’ के आधाि पि घोषणा क्रकया जाता है।
• आंतरिक आपातकाल - ‘सशस्त्र विद्रोह’ के आधाि पि घोषणा क्रकया जाता है।

विशेषताएं वििरण 38िां संशोधन 42िां संशोधन 44िां संशोधन


अनुच्छे द 352: िाष्ट्रपनत उपयुाक्त इसने िाष्ट्रपनत को दे श ‘आंतरिक गड़बड़ी’ को
िाष्ट्रपनत घोवषत कि आधािों पि विशभन्न के क्रकसी विशेष भाग ‘सशस्त्र विद्रोह' शब्द से
सकते हैं । उद्घोषणाएं भी जािी या संपूणा दे श पि विस्थावपत क्रकया गया।
यदद भाित की सुिक्षा कि सकता है चाहे िाष्ट्रीय आपातकाल ितार्ान र्ें आंतरिक
या इसके क्रकसी भाग उसने पहले से कोई लागू किने का गड़बड़ी के आधाि पि
को युद्ध, बाह्य उद्घोषणा जािी की हो अधधकाि प्रदान क्रकया आपातकाल की घोषणा
घोषणा का आिर्ण या सशस्त्र अथिा नहीं या ऐसी है। नहीं की जा सकती है।
आधाि विद्रोह से खतिा हो। उद्घोषणा लागू हो।
िे इन घर्टनाओं से
पहले भी िाष्ट्रीय
आपातकाल की घोषणा
कि सकते हैं यदद िह
सर्झे क्रक इनका
आसन्न खतिा है।

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िास्तविक संविधान र्ें िाष्ट्रपनत उद्घोषणा
र्ंत्रत्रर्ंडल की कैत्रबनेर्ट की भूशर्का का केिल र्ंत्रत्रर्ंडल की
भूशर्का उल्लेख नहीं क्रकया गया --- --- शलखखत शसफारिश पि
है। ही कि सकते
हैं।(पहले केिल सहर्नत
पि आधारित था )
िाष्ट्रीय आपातकाल से िाष्ट्रीय आपातकाल को 38िें संशोधन के
संबंधधत न्यानयक न्यानयक सर्ीक्षा से अंतगात क्रकए गए
न्यानयक सर्ीक्षा सर्ीक्षा को स्पष्ट्र्ट नहीं बाहि िखा गया है। प्रािधान को सर्ाप्त
क्रकया गया है। कि ददया गया।
(शर्निाा शर्ल्स िाद :
उच्चतर् न्यायालय ने
--- कहा क्रक िाष्ट्रीय
आपातकाल की
उद्घोषणा को अथिा
इस आधाि पि क्रक
घोषणा पूिी तिह
बाह्य प्रभाि तथा
असंबद्ध त्यों पि या
वििेक शून्य या
हठधशर्ाता के आधाि
पि की गई हो तो उसे
न्यायालय र्ें चुनौती
दी जा सकती है।)
दोनों सदनों द्िािा --- --- दोनों सदनों द्िािा
आपातकाल की अनुर्ोदन के शलए दी
संसदीय उद्घोषणा जािी होने के गई सर्य सीर्ा को दो
अनुर्ोदन 1 र्ाह के भीति र्ाह से घर्टाकि एक
अनुर्ोदन र्ाह कि ददया गया।
आिश्यक(िास्तविक
संविधान र्ें 2 र्हीने)
है।
(नोर्ट: अनुच्छे द 356
औि 360 के शलए 2
र्हीने के भीति

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अनुर्ोदन आिश्यक है)
अनुर्ोदन के पश्चात --- --- आपातकाल को अनंत
आपातकाल 6 र्हीने काल तक बढाया जा
तक जािी िहता सकता है पिं तु इसके
सर्य अिधध है।(िास्तविक संविधान शलए प्रत्येक छ: र्हीने
र्ें एक बाि अनुर्ोदन र्ें संसद का अनुर्ोदन
के पश्चात, आपातकाल आिश्यक है।
र्ंत्रत्रर्ंडल की इच्छा
अनुसाि प्रभािी िह
सकता था। )
अनुर्ोदन के िास्तविक रुप से --- --- अनुर्ोदन के शलए
शलए बहुर्त के सार्ान्य बहुर्त। विशेष बहुर्त से
प्रकाि शुरुआत क्रकया जाता
है।
िाष्ट्रपनत अपनी --- --- िाष्ट्रपनत के शलए ऐसी
उद्घोषणा िापस ले उद्घोषणा को सर्ाप्त
सकते हैं। संसदीय किना आिश्यक है,
अनुर्ोदन आिश्यक जब लोकसभा इसके
नहीं है। जािी िहने के
अनुर्ोदन का प्रस्ताि
ननिस्त कि दे ।(पहले
आपातकाल की उद्घोषणा की सर्ान्प्त
सर्ान्प्त के संदभा र्ें लोकसभा
की कोई भूशर्का नहीं
थी।) लोकसभा (LS)
के 1/10 सदस्यों को
स्पीकि या िाष्ट्रपनत
को शलखखत रूप से
नोदर्टस दे ना आिश्यक
है। (यदद लोकसभा
(LS) सदन र्ें नहीं है
तो इस प्रकाि के
प्रस्ताि पि विचाि
किने के शलए 14
ददनों के भीति एक

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विशेष बैठक बुलाई जा
सकती है।
अस्िीकृनत के --- --- --- अस्िीकृनत के शलए
शलए बहुर्त के लोकसभा र्ें सार्ान्य
प्रकाि बहुर्त की आिश्यकता
होती है।

राष्रीय आपातकाल के प्रभाि:

1. केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाि:

कायापामलका विधानयका वित्तीय


• केंद्र की कायापामलकीय • संसद को िाज्य सूची के अंतगात • िाष्ट्रपनत, केंद्र औि िाज्यों के
शजक्तयों का विस्तार ककसी भी आने िाले क्रकसी भी विषय पि बीच किों के संिैधाननक वितिण
राज्य को ककसी भी विषय पर कानून बनाने की शन्क्त प्राप्त हो को संशोधधत (कर्/सर्ाप्त)कि
कायाकारी ननदे श दे ने तक जाती है। सकता है।
विस्ताररत हो जाता है यदद िह • यद्यवप िाज्य की विधानयका को • इस प्रकाि के संशोधन उस वित्त
आिश्यक सर्झता है। ननलंत्रबत नहीं क्रकया जाता , यह िषा की सर्ान्प्त तक जािी िहते
(सार्ान्य सर्य र्ें केंद्र , राज्य संसद की असीशर्त शन्क्त का प्रभाि हैं, न्जसर्ें आपातकाल सर्ाप्त
को केिल कुछ विशेष विषयों है। होता है।
पर ही कायाकारी ननदे श दे • संसद द्िािा िाज्य के विषय पि • िाष्ट्रपनत के ऐसे प्रत्येक आदे श
सकता है।) बनाए गए यह कानून आपातकाल को संसद के दोनों सदनों के सभा
• अतः राज्य सरकारें , केंद्र के पूणा की सर्ान्प्त के पश्चात छः र्ाह पर्टलों पि िखा जाना आिश्यक
ननयंत्रण र्ें होती हैं, हालांकक तक प्रभािी िहते हैं। है।
उन्हें ननलंब्रबत नहीं ककया • यदद संसद सत्र र्ें नहीं हो तो
जाता। िाष्ट्रपनत, िाज्य सूची के विषय पि
अध्यादे श जािी कि सकता है।
• 42िां संशोधन: उपिोक्त विधायी
औि कायाकािी कायों का विस्ताि न
केिल आपातकाल लागू होने िाले
िाज्य तक बन्ल्क क्रकसी अन्य िाज्य
र्ें भी होता है।

2. लोकसभा एिं राज्य विधानसभा के कायाकाल पर प्रभाि :

लोकसभा पर राज्य विधानसभा पर

• राष्रीय आपातकाल के दौरान, लोकसभा का कायाकाल • केिल संसद विधानसभा के कायाकाल को विस्तारित
संसद द्िारा विधध बनाकर एक बार र्ें एक िषा के कि सकती है(प्रत्येक बाि र्ें एक िषा के शलए क्रकतने
मलए ककतने भी सर्य तक बढ़ाया जा सकता है।

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• यह विस्तार आपातकाल की सर्ाजप्त के पश्चात छः भी सर्य तक)अथाात विस्ताि की अिधध संसद के
र्ाह से अधधक नहीं हो सकता। सर्ान ही होती है।

3. र्ौमलक अधधकारों पर प्रभाि :


• अनुच्छे द 358 औि 359 इन प्रभािों से संबंधधत हैं।
• अनुच्छे द 358: अनुच्छे द 19 के अंतगात प्रदत्त र्ूल अधधकािों के ननलंबन से संबंधधत है।
• अनुच्छे द 359: अन्य र्ूल अधधकािों के ननलंबन से संबंध धत है(अनुच्छे द 20 औि 21को छोड़कि)।

अनुच्छे द 358 और 359 के अंतगात प्रदत्त र्ूल अधधकारों का ननलंबन:

अनुच्छे द 358 अनुच्छे द 359


अनुच्छे द 19 द्िारा प्रदत छः र्ौमलक अधधकार स्ित : ही • यह िाष्ट्रपनत को आपातकाल के दौिान र्ूल अधधकािों
ननलंब्रबत हो जाते हैं और इनके ननलंबन के मलए अलग से को लागू किने के शलए क्रकसी भी न्यायालय र्ें जाने
ककसी आदे श की आिश्यकता नहीं होती। के अधधकाि को ननलंत्रबत किने के शलए अधधकृत
• राज्य अनुच्छे द 19 के अंतगात प्रदत्त अधधकारों को किता है।
हटाने के मलए कानून बना सकता है। इस प्रकार के • र्ौशलक अधधकािों का ननलंबन औि इसकी अिधध को
कानूनों को आपातकाल के दौरान और आपातकाल के िाष्ट्रपनत द्िािा उसके आदे श र्ें िखणात क्रकया जाता
बाद भी न्यायालय र्ें चुनौती नहीं दी जा सकती। है।
• आपातकाल की सर्ाजप्त के पश्चात अनुच्छे द 19 • र्ौशलक अधधकािों का ननलंबन या तो आपातकाल
स्ित: पुनजीवित हो जाता है और आपातकाल के अिधध के शलए या अल्प सर्यािधध के शलए क्रकया
पश्चात अनुच्छे द 19 के विपरीत बना कोई भी कानून जाता है।
अप्रभािी हो जाता है। • इस प्रकाि की सभी आदे शों को र्ंजू िी हेतु दोनों
सदनों र्ें प्रस्तुत क्रकया जाता है।
44िां संशोधन: 44िां संशोधन:
• अनुच्छे द 19के अंतगात आने िाले छ: र्ूल अधधकारों • िाष्ट्रपनत अनुच्छे द 20 औि 21के अंतगात प्रदत
को केिल “युद्ध या बाह्य आक्रर्ण” के आधार पर र्ौशलक अधधकािों को लागू किने के शलए न्यायालय
घोवषत आपातकाल की जस्थनत र्ें ही ननलंब्रबत ककया र्ें जाने के अधधकाि को ननलंत्रबत नहीं कि सकता।
जा सकता है, “सशस्त्र विद्रोह” के आधार पर नहीं। • केिल आपातकाल से संबंधधत विधधयों को न्यानयक
• केिल आपातकाल से संबंधधत विधधयों को न्यानयक सर्ीक्षा से सुिक्षा प्रदान की गई है, अन्य विधधयों को
सर्ीिा से सुरिा प्रदान की गई है जबकक अन्य नहीं।
विधधयों को नहीं ककया गया है।
अनुच्छे द 358 केिल बाह्य आपातकाल के दौरान लागू अनुच्छे द 359 बाह्य आपातकाल औि आंतरिक
होता है ना की आंतररक आपातकाल के दौरान। आपातकाल दोनों के दौिान लागू होता है।
अनुच्छे द 358 अनुच्छे द 19 के अंतगात प्रदत र्ौमलक अनुच्छे द 359 र्ौशलक अधधकािों का ननलंबन औि इसकी
अधधकारों को संपूणा आपातकाल की संपूणा अिधध के मलए सर्य अिधध को िाष्ट्रपनत द्िािा इनके आदे श र्ें िखणात
ननलंब्रबत कर दे ता है। क्रकया जाता है।
यह पूरे दे श र्ें विस्ताररत होता है। इनका विस्ताि या तो पूिे दे श र्ें या इसके क्रकसी विशेष
भाग र्ें, िाष्ट्रपनत द्िािा क्रकया जाता है।
सर्ानताएं: दोनों केिल आपातकाल से संबंधधत विधधयों को न्यायालय र्ें चुनौती दे ने से सुरिा प्रदान करते हैं, अन्य

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विधधयों को नहीं। केिल दोनों के द्िारा संरक्षित कानून के अंतगात ही कोई कायाकारी कदर् उठाया जा सकता है।

• अब तक की गई इस प्रकार की घोषणाएं: िाष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा तीन बाि की गई - 1962 (चीनी


आिर्ण), 1971 (पाक्रकस्तान युद्ध) तथा 1975 (आंतरिक गड़बडडयों के कािण )।
• शाह आयोग: 1975 के आपातकाल की जांच हेतु इसका गठन क्रकया गया औि इसने बताया क्रक आपातकाल की
उद्घोषणा न्यायसंगत नहीं है।

राष्रपनत शासन (अनुच्छे द- 355, 356 और 365):

अनुच्छे द 355 बाह्य आक्रर्ण और आंतररक अशांनत से राज्य की संरिा करने का संघ का कताव्य
1. अनुच्छे द 356: िाष्ट्रपनत को इस संबंध र्ें घोषणा जािी किने का अधधकाि दे ता है , यदद िह
उद्घोषणा का आश्िस्त है क्रक ऐसी न्स्थनत उत्पन्न हो गई है क्रक िाज्य सिकाि संविधान के प्रािधानों के
आधार अनुरूप नहीं चल सकती है तो िह आपातकाल लागू कि सकता है। (िाष्ट्रपनत िाज्यपाल की
रिपोर्टा या अन्य प्रकाि से भी आपातकाल पि प्रनतक्रिया कि सकता है) ।
2. अनुच्छे द 365: यदद कोई िाज्य केंद्र द्िािा ददए गए ननदे शों का पालन किने या उन्हें प्रभावित
किने र्ें असफल होता है तो यह िाष्ट्रपनत के शलए िाष्ट्रपनत शासन लगाने हेतु विधधसंगत
होगा।
संसदीय इस र्ुद्दे पि दोनों सदनों द्िािा दो र्ाह के भीति अनुर्ोदन आिश्यक है (अनुच्छे द 352 के
अनुर्ोदन र्ार्ले र्ें एक र्ाह) ।
सर्य अिधध 6 र्हीने का होता है। इसे प्रत्येक 6 र्हीने र्ें संसदीय अनुर्ोदन के साथ अधधकतर् 3 िषा के
शलए बढाया जा सकता है।
बहुर्त के प्रकार दोनों सदनों र्ें सार्ान्य बहुर्त के द्िािा पारित क्रकया जाता है।
सर्ाजप्त इसे पििती घोषणा द्िािा राष्रपनत ककसी भी सर्य िापस ले सकते हैं। इस प्रकाि की पििती
घोषणा के शलए संसदीय अनुर्ोदन की आिश्यकता नहीं है।
44िां संशोधन एक िषा बाद, िाष्ट्रपनत शासन को एक बाि र्ें 6 र्हीने के शलए बढाया जा सकता है , यदद
ननम्नशलखखत न्स्थनतयां पूिी हों-
1. यदद पूिे भाित र्ें अथिा पूिे िाज्य या उसके क्रकसी भाग र्ें िाष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की
गई हो।
2. यदद चुनाि आयोग यह प्रर्ाखणत किें क्रक कदठन परिन्स्थनतयों के कािण चुनाि संपन्न नहीं
किाया जा सकता।
न्यानयक सर्ीिा 38िां संशोधन: अनुच्छे द 356 के अंतगात िाष्ट्रपनत को संतष्ट्ु र्ट कि इसे न्यानयक सर्ीक्षा से
सुिक्षक्षत क्रकया जाएगा।
44िां संशोधन: इसके द्िािा उपिोक्त प्रािधान को सर्ाप्त कि ददया गया है।
लागू ककया गया • पहली बार िाष्ट्रपनत शासन िषा 1951 र्ें पंजाब र्ें लागू क्रकया गया था।
• सिााधधक बाि र्णणपुर (10 बार) र्ें, इसके बाद यूपी र्ें (9 बाि) लागू क्रकया जा चुका है।

राष्रपनत शासन के पररणार्:


राष्रपनत को ननम्नमलणखत असाधारण शजक्तयां प्राप्त हो जाती हैं:

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1. िाष्ट्रपनत िाज्य सिकाि के काया अपने हाथ र्ें ले लेता है औि उसे िाज्यपाल तथा अन्य कायाकािी अधधकारियों
की शन्क्त प्राप्त हो जाती है।
2. िह घोषणा कि सकता है क्रक िाज्य विधानयका की शन्क्तयों का प्रयोग संसद द्िािा क्रकया जाएगा।
3. िह उन सभी आिश्यक कदर्ों को उठा सकता है, न्जनर्ें िाज्य के क्रकसी भी ननकाय या प्राधधकिण से संबंधधत
संिैधाननक प्रािधानों का ननलंबन किना शाशर्ल है।

िाष्ट्रपनत शासन के दौिान, िाष्ट्रपनत, र्ुख्यर्ंत्री के नेतत्ृ ि िाली र्ंत्री परिषद को भंग कि दे ता है औि िाज्य की
विधेयक औि बजर्ट प्रस्ताि को संसद पारित किती है। िाज्य प्रशासन का िाष्ट्रपनत के नार् पि सं चालन र्ुख्य सधचि
की सहायता से िाज्यपाल द्िािा क्रकया जाता है।

नोट: संसद या िाष्ट्रपनत या क्रकसी अन्य प्राधधकािी द्िािा बनाए गए कानून िाष्ट्रपनत शासन के बाद भी प्रभाि र्ें
िहें गे। िाज्य उच्च न्यायालय की संिैधाननक न्स्थनत , स्ति, शन्क्तयां औि काया िाष्ट्रपनत शासन के दौिान भी उसी
प्रकाि से प्रभािी िहें गे जैसा क्रक सार्ान्य न्स्थनतयों र्ें िहते हैं ।

एस. आर. बोम्र्ई र्ार्ला(1994): उच्चतर् न्यायालय के ददशाननदे श


• िाष्ट्रपनत शासन न्यानयक सर्ीक्षा के अंतगात है।
• िाष्ट्रपनत की संतुन्ष्ट्र्ट तका संगत संसाधनों पि आधारित होनी चादहए। न्यायालय संसाधनों की सत्यता औि
पयााप्तता र्ें हस्तक्षेप नहीं कि सकता पिं तु यह दे ख सकता है क्रक यह ताक्रका क है अथिा नहीं।
• केंद्र को िाष्ट्रपनत शासन की न्यायोधचता को शसद्ध किने की आिश्यकता है।
• यदद िाष्ट्रपनत शासन की घोषणा असंिैधाननक औि अिैध होती है, तो न्यायालय, िाज्य विधानसभा को पुनः
स्थावपत कि सकता है।
• िाज्य विधानसभा का विघर्टन केिल िाष्ट्रपनत की घोषणा को संसद की अनुर्नत शर्लने पि ही होगा , तब तक इसे
केिल ननलंत्रबत क्रकया जा सकता है।
• यदद िाज्य सिकाि सांप्रदानयक नीनतयों को आगे बढाती है, तब यह अनुच्छे द 356 के अंतगात उस पि कायािाही
कि सकता है।

उपयुक्त और अनुपयुक्त प्रयोग के र्ार्ले (सरकाररया आयोग की अनुशंसाओं पर आधाररत ):

राष्रपनत शासन को उपयुक्त तरीके से लागू करना राष्रपनत शासन को अनुपयुक्त तरीके से लागू करना

ब्रत्रशंकु विधानसभा(जब ककसी भी दल के पास बहुर्त न जब र्ंत्रत्रपरिषद त्यागपत्र दे दे औि िाज्यपाल एक


हो)की जस्थनत र्ें । िैकन्ल्पक सिकाि की सं भािनाओं की जांच क्रकए त्रबना ही
िाष्ट्रपनत शासन आिोवपत किने की शसफारिश किे ।
जब बहुर्त प्राप्त दल सरकार बनाने से इंकार कर दे और जब िाज्यपाल र्ंत्री परिषद को सदन र्ें बहुर्त शसद्ध
राज्यपाल के सर्ि विधानसभा र्ें स्पष्ट बहुर्त िाला किने की अनुर्नत न दें औि िाष्ट्रपनत शासन लगाने की
कोई गठबंधन ना हो। अनुशंसा किें ।
जब र्ंब्रत्रपररषद त्यागपत्र दे दे और अन्य ककसी भी दल जब सत्ताधािी दल लोकसभा के आर् चुनािों र्ें भािी हाि

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के पास बहुर्त न हो। का सार्ना किे ।
यदद राज्य सरकार केंद्र सरकार द्िारा ददए गए िाज्य र्ें कुशासन की न्स्थनत उत्पन्न हो जाए।
संिैधाननक ददशाननदे शों को र्ानने से इंकार कर दे ।
जब सरकार संविधान और कानून के विरुद्ध काया करे आंतरिक गड़बड़ी न्जससे कोई आंतरिक उच्छे दन अथिा
और एक उग्र विद्रोह का ननर्ााण करे । भौनतक विघर्टन हो।

वित्तीय आपातकाल: अनुच्छे द 360


अनुच्छे द 360 न्यूनतर् या अधधकतर् रूप से 1933 र्ें पारित संयक्
ु त िाष्ट्र के अधधननयर् न्जसे राष्रीय ररकिरी
अधधननयर् कहा जाता है, के ढांचे के सर्ान है।

उद्घोषणा कौन किता है ? राष्रपनत

कब? जब भाित की वित्तीय न्स्थिता या शाख या इसकी सीर्ा का कोई भी भाग खतिे र्ें
हो।
38िां संशोधन: वित्तीय आपातकाल की घोषणा र्ें िाष्ट्रपनत की संतुन्ष्ट्र्ट को न्यानयक
न्यानयक सर्ीक्षा सर्ीक्षा से सुिक्षा प्रदान की गई है।
44िां संशोधन: 38िें संशोधन के अंतगात बनाए गए प्रािधानों को सर्ाप्त कि इसे
न्यानयक सर्ीक्षा का विषय बनाया।
संसदीय अनुर्ोदन औि इसके लागू होने की नतधथ से दो र्ाह के भीति दोनों सदनों से स्िीकृनत आिश्यक
सर्यािधध है(अनुच्छे द 352 के र्ार्ले र्ें एक र्हीने का सर्य होता है) । वित्तीय आपातकाल को
एक बाि की स्िीकृनत प्रदान किने के पश्चात इसे अननन्श्चत काल तक जािी िखा जा
सकता है जब तक क्रक इसे िापस न शलया जाए।
अनुर्ोदन के शलए बहुर्त के सार्ान्य बहुर्त
प्रकाि
सर्ान्प्त िाष्ट्रपनत द्िािा सर्ान्प्त , संसदीय स्िीकृनत की आिश्यकता नहीं होती है।

नोट: भाित र्ें अभी तक वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है, हालांक्रक 1991 र्ें वित्तीय संकर्ट उत्पन्न हुआ
था।

वित्तीय आपातकाल के प्रभाि:


• केंद्र के आधधकारिक कायाकारिणी का विस्ताि क्रकसी िाज्य को इसके द्िािा ननदे शशत वित्तीय औधचत्य संबंधी
शसद्धांतों के पालन का ननदे श दे सकता है।
• राष्रपनत ननदे श दे सकते हैं:
o िाज्य या संघ की सेिा र्ें क्रकसी भी अथिा सभी िगों के सेिकों औि उच्चतर् न्यायालय एिं उच्च न्यायालय
के सभी न्यायाधीशों के िेतन एिं भत्तों र्ें कर्टौती हेतु।

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o िाज्य विधानयका द्िािा पारित होने के पश्चात सभी धन विधेयकों अथिा अन्य वित्तीय विधेयकों को िाष्ट्रपनत
के विचाि हेतु आिक्षक्षत िखना।

तीनों प्रकार के आपातकाल के र्ध्य आधारभूत मभन्नता:

अनुच्छे द अनुर्ोदन बहुर्त सर्ाजप्त सर्य अिधध

अनुच्छे द एक र्ाह के भीति विशेष िाष्ट्रपनत द्िािा (केिल लोकसभा अननन्श्चत


352 द्िािा)। संसदीय स्िीकृनत की
आिश्यकता नहीं।
अनुच्छे द दो र्ाह के भीति साधािण िाष्ट्रपनत द्िािा ।संसदीय स्िीकृनत की अधधकतर् 3 िषा
356 आिश्यकता नहीं।
अनुच्छे द दो र्ाह के भीति साधािण िाष्ट्रपनत द्िािा। संसदीय स्िीकृनत की अननन्श्चत (बाि-बाि
360 आिश्यकता नहीं। स्िीकृनत की आिश्यकता
नहीं)।

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15. राष्रपनत और राज्यपाल

राष्रपनत राज्यपाल

• भाग V के अनुच्छे द 52 से 78 तक • भाग 6 के अनुच्छे द 153 से 167 तक िखणात


िखणात है। है।
अनुच्छे द
• अनुच्छे द 123 र्ें अध्यादे श प्रख्यावपत • अनुच्छे द 213 र्ें अध्यादे श प्रख्यावपत किने क्रक
किने क्रक शन्क्त दी गई है। शन्क्त दी गई है।
• संघ कायापाशलका र्ें शाशर्ल: िाष्ट्रपनत, • िाज्य कायापाशलका र्ें शाशर्ल: िाज्यपाल,
उप-िाष्ट्रपनत , प्रधानर्ंत्री तथा र्ुख्यर्ंत्री, र्ंत्रीपरिषद औि िाज्य के र्हाधधिक्ता
र्हान्यायिादी। (एडिोकेर्ट जनिल)।

• भाित के लोगों द्िािा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।


• अप्रत्यि चुनाि के र्ुख्य कारण
1. िाष्ट्रपनत केिल नार् र्ात्र का कायाकािी होता है तथा र्ुख्य शन्क्तयां प्रधानर्ंत्री के नेतृत्ि
िाले र्ंत्रत्रर्ंडल र्ें ननदहत होती हैं।
2. िाष्ट्रपनत का प्रत्यक्ष चुनाि अत्यधधक खचीला तथा सर्य ि ऊजाा का अपव्यय है।
• ननिााचक र्ंडल के सदस्य:
1. संसद के दोनों सदन (लोकसभा औि िाज्यसभा) के ननिााधचत सदस्य,
2. िाज्य विधानसभा के ननिााधचत सदस्य (न तो ननिााधचत औि न ही विधान परिषद के
र्नोनीत सदस्य ननिााचक र्ंडल का दहस्सा हैं),
3. केंद्रशाशसत प्रदे शों ददल्ली ि पुडुचेिी विधानसभाओं के ननिााधचत सदस्य।
• िाष्ट्रपनत के चुनाि र्ें विशभन्न िाज्यों के प्रनतननधधत्ि के पैर्ाने के साथ-साथ सभी िाज्यों
औि संघ के बीच सर्ानता प्रदान किने के शलए , िोर्ट का र्ुल्य ननम्नशलखखत तिीके से
ननधाारित क्रकया जाता है।
1. एक विधायक के र्त का र्ूल्य:िाज्य की कुल जनसंख्या/िाज्य विधानसभा के ननिााधचत
िाष्ट्रपनत का सदस्य X
1
1000

ननिााचन

2. एक संसद सदस्य के र्तों का र्ूल्य: सभी िाज्यों के विधायकों के र्तों का कुल


र्ूल्य/संसद के ननिााधचत सदस्यों की कुल सदस्य संख्या

• िाष्ट्रपनत का चुनाि अनुपानतक प्रनतननधधत्ि के अनुसाि एकल संिर्णीय र्त औि गुप्त


र्तदान द्िािा होता है क्रकसी उम्र्ीदिाि को िाष्ट्रपनत के चुनाि र्ें ननिााधचत होने के शलए
र्तों का एक ननन्श्चत भाग प्राप्त किना आिश्यक है।

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ननजश्चत र्तों का भाग = कुल िैध र्त/2 +1

• िाष्ट्रपनत चुनाि से संबंधधत सभी वििादों की जांच ि फैसले उच्चतर् न्यायालय र्ें होते हैं
तथा उसका फैसला अंनतर् होता है।
• यदद उच्चतर् न्यायालय द्िािा क्रकसी व्यन्क्त की िाष्ट्रपनत के रूप र्ें ननयुन्क्त को अिैध
घोवषत क्रकया जाता है, तो उच्चतर् न्यायालय की घोषणा से पूिा उसके द्िािा क्रकए गए काया
अिैध नहीं र्ाने जाएंगे तथा प्रभािी बने िहें गे।

र्हत्िपूणा तथ्य: र्नोनीत सदस्य चुनाि र्ें भाग नहीं लेते हैं, बन्ल्क र्हाशभयोग प्रक्रिया र्ें भाग लेते हैं। िाष्ट्रपनत के
चुनाि को इस आधाि पि चुनौती नहीं दी जा सकती क्रक ननिााचक र्ंडल अपूणा है (ननिााचक र्ंडल के क्रकसी सदस्य
का पद रिक्त होने पि)।

र्ापदं ड राष्रपनत राज्यपाल

भाित की जनता द्िािा अप्रत्यक्ष ननिााचन • राष्रपनत द्िारा र्नोनीत


• िाज्यपाल न तो जनता द्िािा सीधे चुना
ननयुन्क्त जाता है औि न ही अप्रत्यक्ष रूप से
िाष्ट्रपनत की तिह संिैधाननक प्रक्रिया के
तहत उसका चुनाि होता है। (कनाडा
र्ॉडल)

िाज्य र्ें िाज्यपाल का कायाालय केंद्र सिकाि


के अधीन िोजगाि नहीं है, यह एक स्ितंत्र
संविधाननक पद है औि यह केंद्र सिकाि के
अधीनस्थ नहीं है।
• िह भाित का नागरिक हो (प्राकृनतक या • िह भाित का नागरिक हो (प्राकृनतक या
पंजीकृत) पंजीकृत)।
• िह 35 िषा की आयु पूणा कि चुका हो। • िह 35 िषा की आयु पूणा कि चुका हो।
• िह लोकसभा का सदस्य ननिााधचत होने के • दो अन्य पिं पिाएं:
शलए अदहि॔त है। 1. उसे बाहिी होना चादहए अथाात िह उस
अहाताएं • इसके अनतररक्त राष्रपनत के चुनाि के िाज्य से संबंधधत ना हो जहां उसे
नार्ांकन के मलए उम्र्ीदिार के कर् से ननयुक्त क्रकया गया है।
कर् 50 प्रस्तािक ि 50 अनुर्ोदक होने 2. जब िाज्यपाल की ननयुन्क्त हो तब
चादहए। प्रत्येक उम्र्ीदिार भारतीय ररजिा िाष्ट्रपनत के शलए आिश्यक हो क्रक िह
बैंक र्ें ₹15000 जर्ानत रामश के रूप र्ें िाज्य के र्ार्ले र्ें र्ुख्यर्ंत्री से
जर्ा करे गा। यदद उम्र्ीदिार कुल डाले गए पिार्शा किें ताक्रक िाज्य र्ें संिैधाननक

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र्तों का 1/6 भाग प्राप्त करने र्ें असर्था व्यिस्था सुननन्श्चत हो।
रहता है तो यह रामश जब्त हो जाती है।
यद्यवप दोनों पिं पिाओं का कुछ र्ार्लों र्ें
उल्लंघन क्रकया गया है।
उच्चतर् न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश औि िाज्यपाल को शपथ, सं बंधधत िाज्य के उच्च
शपथ या प्रनतज्ञान उनकी अनुपन्स्थनत र्ें िरिष्ट्ठतर् न्यायाधीश न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश ददलिाते हैं।
द्िािा िाष्ट्रपनत को पद की शपथ ददलाई उनकी अनुपन्स्थनत र्ें उपलब्ध िरिष्ट्ठतर्
जाती है। न्यायाधीश शपथ ददलिाते हैं।
संविधान द्िारा:

• उसे न तो संसद सदस्य होना चादहए औि न ही विधानर्ंडल का सदस्य। यदद कोई


व्यन्क्त ननिााधचत होता है तो उसे पद ग्रहण किने से पूिा उस सदन से त्याग-पत्र दे ना
होगा।
• उसे क्रकसी लाभ के पद पि नहीं होना चादहए।
• उसे संसद द्िािा ननधाारित उप-लन्ब्धयों ,भत्ते ि विशेषाधधकाि प्राप्त होंगे।
शतेँ
• उसकी उपलन्ब्धयां औि भत्ते उसकी पदािधध के दौिान कर् नहीं क्रकए जाएंगे।
• यदद िही व्यन्क्त दो या अधधक िाज्यों र्ें बतौि िाज्यपाल ननयुक्त होता है तो ये
उपलन्ब्धयां औि भत्ते िाष्ट्रपनत द्िािा तय र्ानकों के दहसाब से िाज्य शर्लकि प्रदान
किें गे।
उन्र्ुजक्तयां और विशेषाधधकार:

• इन्हें अपने पदीय कताव्यों के संदभा र्ें क्रकए गए काया के शलए क्रकसी न्यायालय र्ें
उत्तिदायी नहीं ठहिाया जा सकता है।
• कायाकाल के दौिान इनके विरुद्ध कोई भी आपिाधधक कायािाही नहीं शुरू की जाएगी।
• इनके कायाकाल के दौिान इनके खखलाफ क्रकसी भी न्यायालय द्िािा इनकी धगिफ्टतािी या
कािािास का कोई आदे श जािी नहीं क्रकया जा सकता।

िाष्ट्रपनत या िाज्यपाल द्िािा इनके पद ग्रहण किने के पू िा या उसके बाद क्रकसी काया के
शलए इनकी पदािधध के दौिान क्रकसी न्यायालय र्ें कोई शसविल कायािाही तब तक नहीं शुरू
की जाएगी जब तक की ऐसे शसविल कायािाही शुरू किने की सूचना िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल
को 2 र्ाह की अधग्रर् सूचना दे कि ही ऐसी कायािाही की जा सकती है।

• कायाकाल- 5 िषा • राज्यपाल का कायाकाल उसके पद ग्रहण से


• त्याग-पत्र उप-िाष्ट्रपनत को दे सकता है। 5 िषा की अिधध के मलए होता है ककं तु
• िह इस पद पि पुनः ननिााधचत हो सकता िास्ति र्ें िह राष्रपनत के प्रसादपयांत पद
कायाकाल है। िह क्रकतनी ही बाि पुनः ननिााधचत हो धारण करता है।
सकता है।(हालांक्रक अर्ेरिका र्ें एक व्यन्क्त • िाज्यपाल के ऊपि िाष्ट्रपनत के प्रसादपयंत
दो बाि से अधधक िाष्ट्रपनत नहीं बन का र्ार्ला न्याय पूणा नहीं है। िाज्यपाल

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सकता) के पास ना तो कायाकाल की सुिक्षा है औि
• जब तक उसका उत्तिाधधकािी पद ग्रहण ना ना ही कायाालय की ननन्श्चंतता है।
कि ले िाष्ट्रपनत अपने 5 िषा के कायाकाल • िह िाष्ट्रपनत को संबोधधत कि त्याग-पत्र दे
के उपिांत भी पद पि बना िह सकता है। सकता है।
• िाज्यपाल 5 िषा के अपने कायाकाल के बाद
भी तब तक पद पि बना िह सकता है जब
तक की उसका उत्तिाधधकािी काया ग्रहण न
कि ले।

• िाष्ट्रपनत पि 'संविधान का उल्लंघन' किने • संविधान ने ऐसी कोई विधध नहीं बनाई है,
पि र्हाशभयोग चलाकि उसे पद से हर्टाया न्जसके तहत िाष्ट्रपनत िाज्यपाल को हर्टा
जा सकता है। हालांक्रक संविधान ने दें ।
'संविधान का उल्लंघन' िाक्य को
परिभावषत नहीं क्रकया है।
• र्हाशभयोग के आिोप संसद के क्रकसी भी
सदन र्ें प्रािं भ क्रकए जा सकते हैं।
• इन आिोपों पि संसद के एक चौथाई
सदस्यों (न्जस सदन ने आिोप लगाया हैं)
के हस्ताक्षि होने चादहए औि िाष्ट्रपनत को
14 ददन का नोदर्टस देना अननिाया है।
र्हाशभयोग • र्हाशभयोग का प्रस्ताि दो नतहाई बहुर्त
से पारित होने के पश्चात यह दूसिे सदन
र्ें भेजा जाता है, न्जसे इन आिोपों की
जांच किनी होती है।
• िाष्ट्रपनत को इसर्ें उपन्स्थत होने तथा
अपना प्रनतननधधत्ि किाने का अधधकाि
होगा। यदद दूसिा सदन इन आिोपों को
सही पाता है औि र्हाशभयोग प्रस्ताि को
दो नतहाई बहुर्त से पारित किता है तो
िाष्ट्रपनत को प्रस्ताि पारित होने की नतधथ
से उसके पद से हर्टना होगा।
• इस प्रकाि र्हाशभयोग संसद की एक अद्ाध
न्यानयक प्रक्रिया है।
o संसद के दोनों सदनों के नार्ांककत
सदस्य जजन्होंने राष्रपनत के चुनाि र्ें
भाग नहीं मलया था, इस र्हामभयोग र्ें

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भाग लेंगे।
o िाज्य विधानसभाओं के ननिााधचत
सदस्य तथा ददल्ली ि पुडुचेिी
केंद्रशाशसत िाज्य विधानसभाओं के
सदस्य इस र्हाशभयोग प्रस्ताि र्ें भाग
नहीं लेते हैं न्जन्होंने िाष्ट्रपनत के चुनाि
र्ें भाग शलया था।

• िाष्ट्रपनत का पद ननम्न प्रकाि से रिक्त हो सकता है: 5 िषीय कायाकाल सर्ाप्त होने पि,
उसके त्यागपत्र देने पि, र्हाशभयोग प्रक्रिया द्िािा उसे पद से हर्टाने पि, उसकी र्त्ृ यु पि,
अन्यथा जैसे यदद िह पद ग्रहण किने के शलए अहाक ना हो अथिा ननिााचन अिैध घोवषत
हो।
• यदद पद रिक्त होने का कािण उसके कायाकाल का सर्ाप्त होना हो तो उस पद को भिने
हेतु उसके कायाकाल पूणा होने से पूिा नया चुनाि किाना चादहए, इस न्स्थनत र्ें
उपिाष्ट्रपनत को यह अिसि नहीं शर्लता है क्रक िह कायािाहक िाष्ट्रपनत की तिह काया किें
औि उसके कताव्यों का ननिाहन किें ।
िाष्ट्रपनत के पद की • यदद उसका पद, उसकी र्त्यु त्यागपत्र ननष्ट्कासन अथिा अन्यथा क्रकसी कािण से रिक्त

रिक्तता होता है तो नए िाष्ट्रपनत का चुनाि पद रिक्त होने की नतधथ से 6 र्हीने के भीति किाना
चादहए। उप-िाष्ट्रपनत,िाष्ट्रपनत के ननिााधचत होने तक कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया
किे गा।
• नया ननिााधचत िाष्ट्रपनत पद ग्रहण किने से 5 िषा तक अपने पद पि बना िहेगा।
• यदद ितार्ान िाष्ट्रपनत अनुपन्स्थत, बीर्ािी या अन्य कािणों से अपने पद पि काया किने
र्ें असर्था हो, तो उपिाष्ट्रपनत उसके पुनः पद ग्रहण किने तक कायािाहक िाष्ट्रपनत के
रूप र्ें काया किे गा। यदद उप-िाष्ट्रपनत का पद भी रिक्त हो तो भाित का र्ुख्य न्यायाधीश
(अथिा उसका भी पद रिक्त होने पि उच्चतर् न्यायालय का िरिष्ट्ठतर्
न्यायाधीश)कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया किे गा तथा उसके कताव्यों का ननिााह
किे गा।

• अत्यंनतक िीर्टों { Absolute Veto (AV)}: इसका संबंध िाष्ट्रपनत की उस शन्क्त से है


न्जसर्ें िह संसद द्िािा पारित क्रकसी विधेयक को अपने पास सुिक्षक्षत िखता है।
• विशेवषत िीर्टो {Qualified veto (QV)}: उच्च बहुर्त के साथ विधानयका द्िािा ननिस्त
िीर्टो शन्क्त की जा सके। (संयुक्त िाज्य अर्ेरिका के िाष्ट्रपनत को प्राप्त)
• ननलंबनकािी िीर्टो {Suspensive veto (SV)}: राष्रपनत इस िीटो का प्रयोग तब करता है
जब िह ककसी विधेयक को संसद के पुनविा चार हेतु लौट दे ता है, राष्रपनत के इस िीटो को
उस विधेयक को साधारण बहुर्त से पुनः पाररत कराकर ननरस्त ककया जा सकता है,

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राष्रपनत धन विधेयकों के र्ार्ले र्ें इस िीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है।
• पॉकेर्ट िीर्टो {Pocket veto (PV)}: इस िीर्टो र्ें िाष्ट्रपनत विधेयक पि न तो कोई सहर्नत
दे ता है न अस्िीकृत किता है औि न ही लौर्टाता है, पिं तु अननन्श्चत काल के शलए
विधेयक को लंत्रबत कि दे ता है, िाष्ट्रपनत की विधेयक पि क्रकसी भी प्रकाि का ननणाय न
दे ने की शन्क्त पॉकेर्ट िीर्टो के नार् से जानी जाती है(44िें संविधान संशोधन अधधननयर्
1978- िाष्ट्रपनत के शलए संिैधाननक संशोधन विधेयकों को अपनी सहर्नत दे ना अननिाया
बना दे ता हैं)।

अनुच्छे द 111 के तहत संसदीय कानून पर अनुच्छे द 200 के तहत राज्य के कानून पर
िीटो: िीटो:

• िह विधेयक पि अपनी स्िीकृनत दे • िह विधेयक पि अपनी स्िीकृनत दे


सकता है, अथिा सकता है, अथिा
• विधेयक पि अपनी स्िीकृनत को सुिक्षक्षत • िह विधेयक पि अपनी स्िीकृनत सुिक्षक्षत
िख सकता है(AV) ,अथिा िख सकता है, अथिा
• िह विधेयक (यदद विधेयक धन विधेयक • िह विधेयक (यदद धन विधेयक न हो)
नहीं है)को संसद के पुनविाचाि हेतु लौर्टा को िाज्य विधानयका को पुनविा चाि के
सकता है हालांक्रक यदद संसद इस शलए लौर्टा सकता है।
विधेयक को पुनः त्रबना क्रकसी संशोधन • िह विधेयक को राष्रपनत के विचाराधीन
के अथिा संशोधन किके िाष्ट्रपनत के आरक्षित कर सकता है।
सार्ने प्रस्तुत किें तो िाष्ट्रपनत को
अपनी स्िीकृनत दे नी ही होगी।

अनुच्छे द 201 के तहत राज्य के कानून पर


िीटो:

• िह विधेयक पि अपनी स्िीकृनत दे


सकता है, अथिा
• िह विधेयक पि अपनी स्िीकृनत सुिक्षक्षत
िख सकता है, अथिा
• िह िाज्यपाल को ननदे श दे सकता है क्रक
िह विधेयक (यदद धन विधेयक नहीं है)
को िाज्य विधानयका के पास पुनविाचाि
हेतु लौर्टा दे । यदद िाज्य विधानयका
क्रकसी संशोधन के त्रबना अथिा संशोधन
किके पुनः विधेयक को पारित कि

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िाष्ट्रपनत के पास भेजती है तो िाष्ट्रपनत
इस पि अपनी सहर्नत दे ने के शलए
बाध्य नहीं है।
• इसके अनतरिक्त संविधान र्ें यह सर्य
सीर्ा भी तय नहीं है क्रक िाज्यपाल
द्िािा िाष्ट्रपनत के विचािाथा िखे विधेयक
पि िाष्ट्रपनत कब तक अपना ननणाय दे ।
इस प्रकाि िाष्ट्रपनत िाज्य विधेयकों के
संदभा र्ें भी पॉकेर्ट िीर्टो का प्रयोग कि
सकता है।

• संविधान के अनुच्छे द 123/212 के तहत िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल को संसद/िाज्य विधानर्ंडल


के सत्रािसान की अिधध र्ें अध्यादे श जािी किने की शन्क्त प्रदान की गई है।
• िह अध्यादे श केिल तभी जारी कर सकता है जब संसद /राज्य विधानर्ंडल के दोनों सदनों
अथिा दोनों र्ें से ककसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो।
• संसद/राज्य विधानर्ंडल सत्रािसान: इस अिधध र्ें पाररत ककया गया प्रत्येक अध्यादे श
संसद/राज्य विधान र्ंडल की पुनः बैठक होने पर दोनों सदनों के सर्ि प्रस्तुत ककया
जाना चादहए। यदद संसद /राज्य विधान र्ंडल के दोनों सदन उस अध्यादे श को पाररत कर
दे ती हैं तो िह कानून का रूप धारण कर लेता है (यदद इस पर संसद कोई कायािाही नहीं
करती तो संसद की दोबारा बैठक के 6 हफ्ते के पश्चात यह अध्यादे श सर्ाप्त हो जाता
है।)
• क्रकसी अध्यादे श की अधधकतर् अिधध संसद की र्ंजूिी न शर्लने की न्स्थनत र्ें 6 र्हीने
अध्यादे श जािी किने औि छह हफ्टतों की होती है। (संसद के दो सत्रों के र्ध्य अधधकतर् अिधध 6 र्हीने होती
की शन्क्त है)।
• अध्यादे श केिल उन्हीं र्ुद्दों पि जािी क्रकया जा सकता है न्जन पि संसद कानून बना
सकती है। अध्यादे श पि िही संिैधाननक सीर्ाएं होती हैं, जो संसद द्िािा बनाए गए क्रकसी
कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादे श क्रकसी भी र्ौशलक अधधकाि का लघुकिण या
उसको छीन नहीं सकता।
• जब िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल इस बात से संतुष्ट्र्ट हो क्रक अब ऐसी परिन्स्थनतयां आ गई हैं क्रक
तुिंत कदर् उठाया जाना जरूिी है तो िह अध्यादे श प्रख्यावपत कि सकते हैं।
• िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल क्रकसी भी सर्य क्रकसी अध्यादे श को िापस ले सकतें हैं।
• हालांकक राष्रपनत /राज्यपाल की अध्यादे श जारी करने की शजक्त उसकी काया स्ितंत्रता का
अंग नहीं है और िह ककसी भी अध्यादे श को प्रधानर्ंत्री/ र्ुख्यर्ंत्री के नेतृत्ि िाले
र्ंब्रत्रर्ंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथिा िापस लेता है।

एक विधेय क की भांनत एक अध्यादे श भी पूिािती हो सकता है अथाात इसे वपछली नतधथ से

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प्रभािी ककया जा सकता है यह संसद/राज्य विधानसभा के ककसी भी काया या अन्य
अध्यादे श को संशोधधत अथिा ननरमसत कर सकता है।
संविधान के अनुच् छे द 72 र्ें िाष्ट्रपनत को संविधान के अनुच्छे द 161 के अंतगात िाज्य
उन व्यन्क्तयों को क्षर्ा किने की शन्क्त का िाज्यपाल भी क्षर्ादान की शन्क्तयां
प्रदान की गई है जो, ननम्नशलखखत र्ार्लों िखता है। िह िाज विधध के विरुद्ध अपिाध
र्ें क्रकसी अपिाध के शलए दोषी किाि ददए र्ें दोषी व्यन्क्त की सजा को ननलंत्रबत कि
गए हैं: सकता है दं ड का स्िरूप बदल सकता है औि
दं ड की अिधध कर् कि सकता है। पिं तु
• संघीय विधध के विरुद्ध क्रकसी अपिाध र्ें
ननम्नशलखखत दो परिन्स्थनतयों र्ें, िाज्यपाल
ददए गए दं ड र्ें;
की क्षर्ादान शन्क्तयां, िाष्ट्रपनत से शभन्न हैं-
• सैन्य न्यायालय द्िािा ददए गए दं ड र्ें,
औि;
• यदद दं ड का स्िरूप र्ृत्युदंड हो।
• िाष्ट्रपनत सैन्य न्यायालय द्िािा दी गई
सजा को क्षर्ा कि सकता है पिं तु
िाज्यपाल नहीं।
• िाष्ट्रपनत र्त्ृ युदंड को क्षर्ा कि सकता है
पिं तु िाज्यपाल नहीं कि सकता। िाज्य

क्षर्ादान किने की विधध द्िािा र्ृत्युदंड की सजा को क्षर्ा

शन्क्त किने की शन्क्त िाष्ट्रपनत र्ें ननदहत है न


क्रक िाज्यपाल र्ें।

िर्ा – पूणत
ा ः र्ाफ़ कर दे ना (इसका तकनीकी र्तलब यह है कक अपराध कभी हुआ ही
नहीं)।
लघुकरण - सज़ा की प्रकृनत को बदलना जैसे र्ृत्यु दं ड को कठोर कारािास र्ें बदलना।
पररहार – सज़ा की अिधध को बदलना जैसे 2 िषा के कठोर कारािास को 1 िषा के कठोर
कारािास र्ें बदलना।
• विरार् – विशेष पररजस्थनतयों की िजह से सज़ा को कर् करना जैसे शारीररक अपंगता या
र्दहलाओं कक गभाािस्था के कारण।
• प्रविलंबन(reprieve)-ककसी दं ड को कुछ सर्य के मलए टालने की प्रकक्रया जैसे फांसी को
कुछ सर्य के मलये टालना।
• यह न्यायपाशलका से स्ितंत्र कायापाशलका की शन्क्त है।
• राष्रपनत /राज्यपाल इस शजक्त का प्रयोग केंद्रीय र्ंब्रत्रर्ंडल के परार्शा पर करे गा।
• िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल अपने आदे श के कािण बताने के शलए बाध्य नहीं है।
• िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल की इस शन्क्त पि कोई भी न्यानयक सर्ीक्षा नहीं की जा सकती
शसिाय तब जब िाष्ट्रपनत/ िाज्यपाल का ननणाय स्िेच्छाचािी, वििेकिदहत, दुभाािनापूणा

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अथिा भेदभािपूणा हो।

ननम्नमलणखत जस्थनतयों र्ें पररजस्थनतजन्य वििेकाधधकार :

• लोकसभा /िाज्य विधानसभा र्ें क्रकसी भी दल के पास स्पष्ट्र्ट बहुर्त न होने पि अथिा
जब प्रधानर्ंत्री /र्ुख्यर्ंत्री की अचानक र्ृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट्र्ट
उत्तिाधधकािी ना हो, िह प्रधानर्ंत्री /र्ुख्यर्ंत्री की ननयुन्क्त किता है।
• िह र्ंत्रत्रर्ंडल को विघदर्टत कि सकता है, यदद िह लोकसभा/ िाज्य विधान सभा र्ें
विश्िास र्त शसद्ध ना कि सके।
• िह लोकसभा/ िाज्य विधान सभा को विघदर्टत कि सकता है यदद र्ंत्रत्रर्ंडल ने अपना
बहुर्त खो ददया हो।

• कोई संिैधाननक वििेकाधधकार नहीं • संिैधाननक वििेकाधधकार :


o िाष्ट्रपनत के विचािाथा क्रकसी विधेयक
को आिक्षक्षत किना।
o िाज्य र्ें िाष्ट्रपनत शासन की शसफारिश
वििेकाधधकाि (र्ंत्रत्रयों
किना।
के सलाह के त्रबना)
o पड़ोसी केंद्र शाशसत िाज्य र्ें (अनतरिक्त
प्रभाि की न्स्थनत र्ें) बतौि प्रशासन के
रूप र्ें काया किते सर्य।
o असर् र्ेघालय त्रत्रपुिा औि शर्जोिर् की
िाज्यपाल द्िािा खननज उत्खनन की
िॉयल्र्टी के रूप र्ें जनजातीय न्जला
परिषद को दे य िाशश का ननधाािण।

इसके अनतरिक्त कुछ विशे ष र्ार्लों र्ें


िाष्ट्रपनत के ननदे श पि िाज्यपाल के विशेष
उत्तिदानयत्ि होते हैं। ऐसे र्ार्लों र्ें
िाज्यपाल र्ुख्यर्ंत्री के नेतत्ृ ि िाली
र्ंत्रत्रपरिषद से पिार्शा लेता है।

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16. उपराष्रपनत ( VICE-PRESIDENT)

• अनुच्छे द 63: भाित के शलए एक उपिाष्ट्रपनत का प्रािधान क्रकया गया है।


• उपिाष्ट्रपनत दे श का दूसिा सबसे ऊंचा पद ग्रहण किे गा + ििीयता की ताशलका र्ें उसे दूसिा स्थान प्राप्त होगा +
कायाालय अर्ेरिका के उपिाष्ट्रपनत की तजा पि बनाया गया है।

उपराष्रपनत का ननिााचन (अनुच्छे द 66)


1. िाष्ट्रपनत का ननिााचन अप्रत्यक्ष चुनाि के र्ाध्यर् से होता है , ननिााचन र्ंडल र्ें संसद के दोनों सदनों के सदस्य
सन्म्र्शलत होते हैं।
2. ननम्न दो र्ार्लों र्ें उपिाष्ट्रपनत का ननिााचन र्ंडल िाष्ट्रपनत के ननिााचन र्ंडल से अलग है:
1. इसर्ें संसद के दोनों अथाात ननिााधचत एिं नाशर्त (िाष्ट्रपनत के ननिााचन र्ें केिल ननिााधचत) सदस्य
सन्म्र्शलत होते हैं।
2. इसर्ें िाज्य विधान सभाओं के सदस्य शाशर्ल नहीं हैं (िाष्ट्रपनत के चुनाि र्ें िाज्य विधानसभा के ननिााधचत
सदस्य भी सन्म्र्शलत होते हैं)।
3. उपिाष्ट्रपनत का चुनाि िाष्ट्रपनत के चुनाि की भांनत ही अनुपानतक प्रनतननधधत्ि प्रणाली र्ें एकल हस्तांतिणीय
र्त द्िािा औि गुप्त प्रणाली द्िािा र्तदान क्रकया जाता है।
4. र्ूल संविधान र्ें प्रािधान है की दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्िािा उपिाष्ट्रपनत का चुनाि किाया जाएगाl यह
प्रक्रिया 1961 के 11िें संिैधाननक संशोधन अधधननयर् द्िािा संशोधधत की गई थी।
5. उपिाष्ट्रपनत के चुनाि से सं बंधधत सभी वििाद की जांच एिं ननणाय सिोच्च न्यायालय द्िािा क्रकए जाएं गे औि
सिोच्च न्यायालय का ननणाय अंनतर् होगा ।
6. अभी तक चाि उपिाष्ट्रपनत ननविािोध चुने जा चुके हैं ।

उपिाष्ट्रपनत के चुनाि हेतु योग्य होने के शलए एक व्यन्क्त र्ें ननम्नशलखखत योग्यताएं होनी
चादहए:
1. िह भाित का नागरिक होना चादहए।
उपिाष्ट्रपनत 2. उसे 35 िषा की आयु पूिी कि लेनी चादहए ।
ननिााधचत होने की 3. उसे िाज्यसभा सदस्य के ननिााचन हेतु योग्य होना चादहए ।
पात्रता 4. उसे केंद्र सिकाि अथिा क्रकसी िाज्य सिकाि अथिा क्रकसी अन्य स्थानीय औि सािाजननक
प्राधधकिण के तहत कोई भी लाभ का पद नहीं धािण किना चादहए ।

नोट: संघ का राष्रपनत अथिा उपराष्रपनत ,ककसी भी राज्य का राज्यपाल और केंद्र शामसत प्रदे श
अथिा राज्य का र्ुख्यर्ंत्री ककसी लाभ के पद पर नहीं र्ाने जाते हैं अतः िह उपराष्रपनत पद के
उम्र्ीदिार हेतु योग्य है ।
उपिाष्ट्रपनत पद • कर् से कर् 20 र्तदाता, प्रस्तािक के रूप र्ें औि 20 र्तदाता, अनुर्ोदक के रूप र्ें होने
के उम्र्ीदिाि को चादहए ।
चुनाि र्ें • भाितीय रिजिा बैंक र्ें ₹ 15,000 की जर्ानत िाशश।

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नार्ांकन के शलए
,आिश्यकता होती
है
उप िाष्ट्रपनत की • उप-िाष्ट्रपनत अपना पद ग्रहण किने से पहले शपथ या प्रनतज्ञान किे गा औि उस पि अपने
शपथ अथिा हस्ताक्षि किे गा।
प्रनतज्ञा (अनुच्छे द • उपिाष्ट्रपनत के पद की शपथ िाष्ट्रपनत या उनके द्िािा ननयुक्त क्रकसी व्यन्क्त द्िािा ददलाई
69) जाती है ।

उप राष्रपनत कायाालय की शतें
संविधान र्ें उपिाष्ट्रपनत कायाालय की ननम्नशलखखत दो शतें हैं:
• िह सींसद के ककसी भी सदन अथिा राज्य वििातयका के ककसी भी सदन का सदस्य ना हो यदद व्यजतत
उपराष्ट्रपतत तनिामधचत होता है तो यह माना िाएगाक्रक उपिाष्ट्रपनत का पद ग्रहण किने की नतधथ से उसने अपनी
उस सदन की सीर्ट को रिक्त कि ददया है ।
• उसे अन्य कोई भी लाभ का पद पि नहीं हो ।

उप राष्रपनत कायाालय की अिधध (अनुच्छे द 67)


• कायाालय र्ें प्रिेश किने की तािीख से 5 िषा के शलए ।
• 5 िषा के कायाकाल के बाद भी िाष्ट्रपनत अपने कायाालय र्ें िह सकते हैं जब तक क्रक उनका उत्तिाधधकािी पद
ग्रहण नहीं कि लेता है ।
• िे प्रत्येक बाि इस पद पि पुनः चुनाि के शलए पात्र हैं।
• इस्तीफा: िाष्ट्रपनत को दे ते हैं।
• उनका कायाकाल पूिा होने से पूिा ही उन्हें हर्टाया जा सकता है, उनके ननष्ट्कासन हेतु औपचारिक र्हाशभयोग की
आिश्यकता नहीं होती है ।
• िाज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुर्त (साधािण बहुर्त) से पारित प्रस्ताि एिं लोक सभा की सहर्नत
से उन्हें हर्टाया जा सकता है । पिं तु इस तिह के क्रकसी भी प्रस्ताि को लाने से पूिा न्यूनतर् 14 ददनों की अधग्रर्
सूचना दे नी होती है।
• संविधान र्ें उनके ननष्ट्कासन हेतु कोई आधाि परिभावषत नहीं क्रकए गए है।

उप-राष्रपनत कायाालय र्ें पद ररजक्तता


• उपिाष्ट्रपनत कायाालय र्ें रिन्क्त ननम्नशलखखत र्ें से क्रकसी भी कािण से हो सकती है: पांच साल के अपने
कायाकाल की सर्ान्प्त पि + उनके इस्तीफे से + उनके ननकाले जाने पि + उनकी र्ृत्यु पि।
• अन्यथा, अन्य कािण जैसे जब िह पद संभालने के शलए अयोग्य हो या उनका ननिााचन अिैध घोवषत कि ददया
गया हो।
• यदद कायाकाल की सर्ान्प्त के कािण उप िाष्ट्रपनत का कायाालय रिक्त होता है तो उत्तिाधधकािी का ननिााचन
कायाालय के सर्ाप्त होने से पूिा हो जाना चादहए।

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• यदद कायाालय इस्तीफा, ननष्ट्कासन, र्ृत्यु या अन्य कािणों से रिक्त हो जाता है, तो रिन्क्त को भिने हेतु
ननिााचन को जल्द से जल्द क्रकया जाना चादहए। निननिााधचत उपिाष्ट्रपनत पद ग्रहण करने के 5 िर्म तक
अपने पद पर बना रहता है ।

उपराष्रपनत के काया एिं शजक्तयां


उपिाष्ट्रपनत के काया दोहरे हैं:

उपिाष्ट्रपनत िाज्यसभा के • इस र्ार्ले र्ें उनकी शजक्तयां लोकसभा अध्यि के सर्ान हैं।
पदे न सभापनत के रूप र्ें • िह िाज्यसभा के पदे न सभापनत के रूप में कायज किता है। इस संदभज में उसकी
काया किते हैं (अनुच्छे द शक्ततयां एिं कायज लोकसभा अध्यक्ष के भांनत ह होते हैं। इस संबंध में िह
64): अमेरिका के उपिाष्ट्रपनत के समान ह कायज किता है, िह भी सीनेर्-अमेरिका में
उच्च सदन का सभापनत होता है ।

िाष्ट्रपनत के कायाालय र्ें o हर्ािे दे श के 2 िाष्ट्रपनत अथाात डॉक्र्टि जाक्रकि हुसैन औि फखरुद्दीन अली अहर्द
ननष्ट्कासन, र्ृत्यु अथिा का जब ननधन हुआ था तो उस सर्य के तत्कालीन उप िाष्ट्रपनतयों अथाात िी.िी.
अन्य कािणों से रिन्क्त धगिी औि बी. डी. जत्ती ने िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया क्रकया था ।
होने पि यह िाष्ट्रपनत के o जब िाष्ट्रपनत का पद उसके त्यागपत्र ,ननष्ट्कासन, र्ृत्यु तथा अन्य कािणों से रिक्त
रूप र्ें भी काया किता है होता है तो िह कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें भी काया किता है। िह कायािाहक
। (अनुच्छे द 65) िाष्ट्रपनत के रूप र्ें अधधकतर् 6 र्हीने की अिधध तक काया कि सकता है इस
अिधध र्ें नए िाष्ट्रपनत का चुनाि आिश्यक है इसके अनतरिक्त ितार्ान िाष्ट्रपनत की
अनुपन्स्थनत बीर्ािी या अन्य क्रकसी कािण से अपने कायों को किने र्ें असर्था हो
तो िह िाष्ट्रपनत के पुनः काया किने तक उसके कताव्यों का ननिाहन किता है।
o कायािाहक राष्ट्रपतत के रूप र्ें काया किते हुए या िाष्ट्रपनत के कायों का ननिाहन
किते हुए उपिाष्ट्रपनत िाज्यसभा के अध्यक्ष के कायाालय संबंधी कताव्यों का ननिाहन
नहीं किता है, इस अिधध के दौिान िाज्यसभा के उपाध्यक्ष उन कताव्यों का ननिाहन
किते हैं।

उप-िाष्ट्रपनत जब क्रकसी अिधध र्ें कायािाहक िाष्ट्रपनत के रूप र्ें काया किता है तो िह िाज्यसभा के सभापनत को
शर्लने िाले िेतन ि भत्ते आदद शर्लते हैं।

भारत बनार् अर्ेररकी उपराष्रपनत


• यद्यवप भारत के उपराष्ट्रपतत का पद अमेररका के उपराष्ट्रपतत के मॉडल पर आिाररत है परीं तु इसमें काफी
मभन्नता है। अमेररका का उपराष्ट्रपतत राष्ट्रपतत का पद ररतत होने पर अपने पू िम राष्ट्रपतत के कायमकाल की शे र्
अिधि तक ह उस पद पर बना रहता है। दूसर ओर भारत का उपराष्ट्रपतत राष्ट्रपतत का पद ररतत होने पर पूिम
राष्ट्रपतत के शेर् कायमकाल तक उस पद पर नह ीं रहता है। िह एक कायमिाहक राष्ट्रपतत के रूप में तब तक कायम
करता है िब तक कक नया राष्ट्रपतत कायमभार ग्रहण ना कर ले।
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• संविधान र्ें उपिाष्ट्रपनत को कोई र्हत्िपूणा कायाभाि नहीं सौंपा गया है। यह कायाालय भाितीय िाज्य की
िाजनीनतक ननिं तिता को बनाए िखने के उद्दे श्य से बनाया गया था।

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17. प्रधानर्ंत्री और र्ुख्यर्ंत्री

र्ापदं ड प्रधानर्ंत्री (PM) र्ुख्यर्ंत्री (CM)


• अनुच्छे द – 75 • अनुच्छे द – 164
• राष्रपनत द्िारा ननयुक्त ककया जाता हैं। • राज्यपाल द्िारा ननयुक्त ककया जाता हैं।
• संविधान र्ें इसके मलए कोई विमशष्ट प्रकक्रया नहीं है । संसदीय व्यिस्था के अनुसाि बहुर्त प्राप्त
दल के नेता को प्रधानर्ंत्री/ र्ुख्यर्ंत्री के रूप र्ें ननयुक्त क्रकया जाता है।
• बहुर्त स्पष्ट न होने की जस्थनत र्ें िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल, प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री का चयन औि
ननयुन्क्त अपनी व्यन्क्तक वििेक की स्ितंत्रता का प्रयोग किके कि सकता है ।
प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री को एक र्हीने के भीतर सदन र्ें विश्िास र्त प्राप्त किना होता है।
ननयुजक्त तथा • जब प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री की आकन्स्र्क र्त्ृ यु हो जाए औि उसका कोई स्पष्ट्र्ट उत्तिाधधकािी ना
शपथ हो तब ऐसी न्स्थनत र्ें िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल अपने व्यजक्तगत ननणाय का प्रयोग कि
प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री का चुनाि औि ननयुन्क्त किता है।
• संिैधाननक रूप से, प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री को संसद/िाज्य विधानर्ंडल के दोनों सदनों र्ें से ककसी
भी एक सदन का सदस्य होना चादहए।
• एक व्यन्क्त जो संसद/िाज्य विधान र्ंडल का सदस्य नहीं है, को छ: र्हीने के शलए
प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री ननयुक्त क्रकया जा सकता है, इस सर्य अिधध र्ें उसे संसद /िाज्य
विधानर्ंडल के क्रकसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा (यह व्यिस्था उच्चतर् न्यायालय
द्िारा एक ननणाय र्ें दी गई)।
कायाकाल • ननजश्चत नहीं, तथा यह िाष्ट्रपनत के • ननजश्चत नहीं, तथा यह िाज्यपाल के
प्रसादपयंत अपने पद पि बना िहता है। प्रसादपयंत अपने पद पि बना िहता है।
िेतन • संसद द्िािा ननधाारित होता है। • िाज्य विधानर्ंडल द्िािा ननधाारित होता है।
• अनुच्छे द 74/163: र्ंत्रत्रपरिषद के साथ प्रधानर्ंत्री /र्ुख्यर्ंत्री, प्रर्ुख के रूप र्े िाष्ट्रपनत/िाज्यपाल
को उसके कायों का अनुपालन किने हेतु सहायता या सलाह देता है।
शजक्तयां और • अनुच्छे द 75/164: अन्य र्ंब्रत्रयों की ननयुजक्त राष्रपनत/राज्यपाल द्िारा प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री की
काया सलाह पर की जाएगी, सभी र्ंत्री िाष्ट्रपनत /िाज्यपाल के प्रसादपयंत अपने पद पि बने िहते हैं
औि सार्ूदहक रूप से लोकसभा/ िाज्य की विधानसभा के प्रनत उत्तिदाई होते हैं।
• प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री त्यागपत्र या र्ृत्यु होने पि र्ंत्री परिषद स्ित: विघदर्टत हो जाती है।

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अनुच्छे द याद रखने की दरक – केंद्र औि िाज्य सिकािों के बीच ‘89' की शभन्नता होती है, जैस-े कायापाशलका +
अधधकांश र्ार्लों र्ें विधायी अंग (सभी र्ें नहीं)। उदाहिण- प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री की ननयुन्क्त-75+ 89 = 164,
अथाात अनुच्छे द 75 र्ें प्रधानर्ंत्री की ननयुन्क्त का प्रािधान है िही अनुच्छे द 164 र्ें र्ुख्यर्ंत्री के ननयुन्क्त का
प्रािधान है।

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18. के न्द्र (भाग V) और राज्य र्ंत्रीपररषद (भाग VI)

केंद्रीय /राज्य र्ंब्रत्रपररषद


• भाितीय परिषद अधधननयर्, 1861 र्ें लॉडा कैननंग द्िािा प्रािं भ की गई पोर्टाफोशलयो प्रणाली को र्ान्यता प्रदान
की गई।
• यूनाइर्टे ड क्रकं गडर् र्ें र्ंत्रत्रपरिषद िास्तविक कायापाशलका है, जो परं परा के आधार पर काया करता है।
• भाित र्ें र्ंत्रत्रपरिषद प्रणाली को भाितीय संविधान र्ें संदहताबद्ध औि उल्लेखखत क्रकया गया है।

र्ापदं ड केंद्रीय र्ंब्रत्रपररषद (CCOM) राज्य र्ंब्रत्रपररषद (SCOM)

• िाष्ट्रपनत द्िािा प्रधानर्ंत्री को ननयुक्त • िाज्यपाल द्िािा र्ुख्यर्ंत्री को ननयुक्त


क्रकया जाता है। ( अनुच्छे द- 75) क्रकया जाता है ( अनुच्छे द.- 164)

• अन्य र्ंत्रत्रयों को प्रधानर्ंत्री की सलाह पि • अन्य र्ंत्रत्रयों को र्ुख्यर्ंत्री की सलाह पि


राष्रपनत द्िारा ननयुक्त ककया जाता है। राज्यपाल द्िारा ननयुक्त ककया जाता है।
ननयुन्क्त, शपथ • प्रत्येक नए र्ंत्री को िाष्ट्रपनत द्िािा शपथ • प्रत्येक नए र्ंत्री को िाज्य के िाज्यपाल द्िािा
औि िेतन ददलाई जाती है। शपथ ददलाई जाती है।
• िेतन संसद द्िािा ननधाारित क्रकया जाता • िेतन िाज्य विधानयका द्िािा ननधाारित क्रकया
है। जाता है।

अनुच्छे द 74 (राष्रपनत को सहायता और सलाह दे ने के मलए एक केंद्रीय र्ंब्रत्रपररषद होगी) /


163 (राज्यपाल को सहायता और सलाह दे ने के मलए एक राज्य र्ंब्रत्रपररषद होगी):
• िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल िर्शः केंद्रीय र्ंत्रत्रपरिषद के अध्यक्ष के रूप र्ें प्रधानर्ंत्री औि
िाज्य केंद्रीय र्ंत्री परिषद के प्रधान के रूप र्ें र्ुख्यर्ंत्री की सलाह के अनुसाि काया
किें गे।
• िाष्ट्रपनत सलाह पि पुनविाचाि के शलए कह सकता हैं, लेक्रकन पुनविाचाि के पश्चात दी गई
सलाह बाध्यकािी होगी।
• केंद्रीय र्ंत्री परिषद / िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद द्िािा दी गई सलाह पि कोई न्यायालय विचाि
नहीं कि सकता।
• लोकसभा / िाज्य विधान सभा के भंग होने के बाद भी केंद्रीय र्ंत्रत्रपरिषद / राज्य
र्ंब्रत्रपररषद अपना कायाालय नहीं छोड़ेंगे(1971 र्ें उच्चतर् न्यायालय द्िािा ननणाय ) ।
• जहाँ भी संविधान र्ें िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल की संतुन्ष्ट्र्ट की अपेक्षा होती है, िहां संतुन्ष्ट्र्ट
केिल िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल की ना होकि केंद्रीय र्ंत्रत्रपरिषद / िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद की भी
होगी (1974 र्ें SC द्िािा ननणाय)।

अनुच्छे द 75/164:

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• र्ंत्रत्रयों को प्रधानर्ंत्री/र्ुख्यर्ंत्री की सलाह पि िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल द्िािा ननयुक्त क्रकया
जाता है औि ये िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल के प्रसादपयान्त तक पद धािण किते हैं।
• िाष्ट्रपनत / िाज्यपाल द्िािा क्रकसी र्ंत्री को पद औि गोपनीयता की शपथ ददलाई जाती
संिैधाननक प्रािधान है।
• इनका िेतन संसद / िाज्य विधानसभा द्िािा ननधाारित क्रकया जाता है।
• र्ंत्रीपरिषद र्ें प्रधानर्ंत्री सदहत र्ंत्रत्रयों की कुल संख्या सदन के सदस्यों की कुल संख्या
के 15 प्रनतशत से अधधक नहीं होनी चादहए(91िां संविधान संशोधन)| संविधान र्ें ननन्श्चत
संख्या औि िगीकिण का उल्लेख नहीं क्रकया गया है, बन्ल्क इसे सर्य औि परिन्स्थनत की
आिश्यकताओं के अनुसाि प्रधानर्ंत्री औि र्ुख्यर्ंत्री पि छोड़ ददया गया है|
• क्रकसी िाज्य र्ें र्ुख्यर्ंत्री सदहत िाज्य विधानयका र्ें र्ंत्रत्रयों की संख्या 12 (91 िें
संविधान संशोधन, 2003) से कर् नहीं होनी चादहए।
• केंद्रीय र्ंत्रीपरिषद / िाज्य र्ंत्रीपरिषद सार्ूदहक रूप से लोकसभा (संसद नहीं) / िाज्य
विधान सभा के प्रनत उत्तिदाई होती है।
• त्रबना क्रकसी सदन की सदस्यता के कोई सदस्य अधधकतर् 6 र्ाह की अिधध के शलए
र्ंत्री बना िह सकता है।
• दलबदल के आधाि पि न्जस सदस्य को अयोग्य घोवषत कि ददया जाता है, िह सदस्य
र्ंत्री (91 िॉ संविधान संशोधन , 2003) के रूप र्ें ननयुक्त होने के शलए भी अयोग्य
होगा।

अनुच्छे द 88/177:

• प्रत्येक र्ंत्री को दोनों सदनों की कायािाही र्ें भाग लेने औि बोलने का अधधकाि है , लेक्रकन
िह केिल र्तदान उसी सदन र्ें कि सकता है न्जस सदन का िह सदस्य होता है ।
• एक र्ंत्री जो संसद / िाज्य विधानयका के क्रकसी एक सदन का सदस्य होता है, उसे
दूसिे सदन की कायािाही र्ें भाग लेने औि बोलने का अधधकाि होता है। लेक्रकन िह
र्तदान केिल उसी सदन र्ें कि सकता है न्जस सदन का िह सदस्य होता है ।

सार्ूदहक उत्तरदानयत्ि :

• केंद्रीय र्ंत्रत्रपरिषद /िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद एक दल के रूप र्ें काया किती है औि संयुक्त रूप
से लोकसभा / िाज्य विधानसभा के प्रनत उत्तिदाई होती है।
• यदद लोकसभा / िाज्य विधानसभा अविश्िास प्रस्ताि पारित किती है, तो सम्पूणा केंद्रीय
र्ंत्रत्रपरिषद / िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद को िाज्यसभा / िाज्य विधान परिषद के र्ंत्रत्रयों सदहत
त्यागपत्र दे ना पड़ता है।
• कैत्रबनेर्ट के फैसले सभी कैत्रबनेर्ट र्ंत्रत्रयों (औि अन्य र्ंत्रत्रयों) के शलए बाध्यकािी हैं। यदद
कोई र्ंत्री कैत्रबनेर्ट के फैसले से सहर्त नहीं है औि िह इसकी प्रनतिक्षा किने के शलए
तैयाि नहीं है, तो उसे त्यागपत्र दे दे ना चादहए। ( तत्कालीन उदाहिण: कृवष कानून र्ुद्दे

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र्ंत्री के उत्तिदानयत्ि पि अकाली दल के सांसद ने र्ंत्री के पद से इस्तीफा दे ददया )

व्यजक्तगत उत्तरदानयत्ि :

• जब यह कहा जाता है क्रक कोई र्ंत्री िाष्ट्रपनत के प्रसादपयंत तक पद धािण किता है ,


इसका अथा है क्रक िाष्ट्रपनत क्रकसी र्ंत्री को प्रधानर्ंत्री की सलाह पि उस सर्य भी
पदच्युत कि सकता है जब केंद्रीय र्ंत्री परिषद को लोकसभा का विश्िास प्राप्त हो।

कोई विधधक उत्तरदानयत्ि नहीं:

• त्रिर्टे न के विपिीत, भाितीय संविधान र्ें र्ंत्री के विधधक उत्तिदानयत्ि का कोई प्रािधान
नहीं है।

केंद्रीय र्ंत्री पररषद:

• संिैधाननक ननकाय, संविधान के अनुच्छे द 74 औि 75 र्ें विस्ताि से िणान क्रकया गया है।
• अनुच्छे द 60 से 70 र्ंत्रत्रयों के ननकाय से संबन्न्धत है।
• तीनों श्रेखणयाँ - कैत्रबनेर्ट र्ंत्री, िाज्य- र्ंत्री औि उपर्ंत्री शाशर्ल हैं।
• सिकािी कार्काज के उद्दे श्य से एक ननकाय के रूप र्ें नहीं शर्लते हैं ।
• कैत्रबनेर्ट द्िािा शलए गए ननणायों को लागू किता है।

र्ंब्रत्रर्ंडल :

• 44िें संविधान संशोधन 1978 के द्िािा अनुच्छे द 352 र्ें सन्म्र्शलत क्रकया गया, जो
केिल कैत्रबनेर्ट को परिभावषत किता है, इसकी शन्क्तयों औि कायों का िणान नहीं किता है।
• लघु ननकाय - 15 से 20 र्ंत्री होते हैं।
• इसर्ें केिल कैत्रबनेर्ट र्ंत्री ही सन्म्र्शलत हैं।
• एक ननकाय के रूपर्ें प्रायः शर्लते हैं औि सिकािी कार्काज के संदभा र्ें ननणाय लेते
अन्य हैं।
• र्ंत्रत्रपरिषद द्िािा अपने ननणायों के क्रियान्ियन का पयािेक्षण किता है।

ककचन केब्रबनेट :

• इस अनौपचारिक ननकाय र्ें प्रधानर्ंत्री औि उसके दो से चाि प्रभािशाली सहयोगी होते


हैं, न्जन पि उसे विश्िास होता है औि न्जनके साथ िह प्रत्येक सर्स्या पि चचाा कि
सकता हैं, औि यही िास्तविक केंद्रीय शन्क्त के रूप र्ें काया किता है|
• इसर्ें न केिल कैत्रबनेर्ट र्ंत्री बन्ल्क शर्त्र औि परििाि क्रक लोग भी सन्म्र्शलत हो
सकते हैं ।
• 'क्रकचन कैत्रबनेर्ट' केिल भाित र्ें ही नहीं है, बन्ल्क संयुक्त िाज्य अर्ेरिका औि त्रिर्टे न र्ें
भी र्ौजूद है।

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19. संसद

संसद(अनच्ु छे द
. 79 से 122 भाग V)

िाष्ट्रपनत (अनुच्छे द. िाज्य या िाज्य सभा लोक सभा(अनुच्छे द.


52) की परिषद(अनुच्छे द. 80) 81)

• िाष्ट्रपनत संसद के क्रकसी भी • 1954 र्ें िाज्य सभा एिं लोक सभा के रूप र्ें इनके दहंदी नार्ों को
सदन का सदस्य नहीं होता है अपनाया गया।
लेक्रकन िह संसद का एक • अधधकतर् सदस्य संख्या– 250 • अधधकतर् सदस्य संख्या- 552
अशभन्न अंग होता है। इस (238 िाज्य औि संघ शाशसत (530 सदस्य िाज्यों से औि 20
संदभा र्ें संविधान ननर्ााताओं ने प्रदे शों से अप्रत्यक्ष रूप से सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों से चुने
अर्ेरिकी व्यिस्था के विपिीत ननिााधचत एिं 12 सदस्य िाष्ट्रपनत जाते हैं औि 2 सदस्य िाष्ट्रपनत
त्रिदर्टश व्यिस्था र्ें विश्िास द्िािा नार्ांक्रकत होते हैं।) द्िािा आंग्ल भाितीय सर्ुदाय से
क्रकया। • ितार्ान सदस्य संख्या – कुल245 ननयुक्त क्रकए जाते हैं।)
• भाित एिं त्रिर्टे न के विपिीत सदस्यों र्ें से 229 सदस्य िाज्यों • ितार्ान सदस्य संख्या– कुल545
अर्ेरिका र्ें िाष्ट्रपनत, एिं 4 सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों सदस्यों र्ें से 530 सदस्य िाज्यों

विधानर्ंडल का अशभन्न अं ग औि 12 सदस्य िाष्ट्रपनत द्िािा से 13 सदस्य संघ शाशसत प्रदे शों
ननयुक्त क्रकए जाने िाले (कला, से एिं 2 सदस्य िाष्ट्रपनत द्िािा
नहीं होता है।
सादहत्य, विज्ञान एिं सार्ान्जक ननयुक्त आंग्ल भाितीय सदस्य
• िाष्ट्रपनत दोनों सदनों का सत्र
सेिा से संबंधधत) सदस्यों का हैं।(अनुच्छे द331)
आहूत कि सकता है, लोकसभा
प्रनतननधधत्ि किते हैं। • ितार्ान र्ें 17िीं लोकसभा र्ें
का विघर्टन कि सकता है, दोनों
• USA की सीनेट र्ें सभी राज्यों आंग्ल भाितीय सर्ुदाय से क्रकसी
सदनों र्ें अशभभाषण कि
को सर्ान प्रनतननधधत्ि प्रदान भी सदस्य को ननयुक्त नहीं क्रकया
सकता है औि संसद के सत्र र्ें
गया है।
ना होने की न्स्थनत र्ें अध्यादे श ककया गया है और सीटों के

जािी कि सकता है। आिंटन र्ें जनसंख्या को आधार


नोट: भारत की संसद एिं िाज्य
• िाष्ट्रपनत 5 िषा की अिधध पूणा नहीं बनाया गया है।
विधान र्ंडलों र्ें आंग्ल भाितीय लोगों
होने से पहले ही लोकसभा का • संविधान की चौथी अनुसूची िाज्यों
विघर्टन कि सकता है औि इस के शलए आिक्षक्षत सीर्टों के प्रािधान को
एिं संघ शाशसत प्रदे शों के शलए
र्ार्ले को क्रकसी भी कानूनी 104िें संविधान संशोधन अधधननयर्,
िाज्यसभा र्ें सीर्टों के आिंर्टन से
न्यायालय र्ें चुनौती नहीं दी संबंधधत है। 2019 द्िािा सर्ाप्त कि ददया गया।
जा सकती है। • नोट: कुल 9 संघ शामसत प्रदे शों र्ें
से केिल ददल्ली पुदच
ु ेरी एिं जम्र्ू
और कश्र्ीर को राज्यसभा र्ें

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प्रनतननधधत्ि प्रदान ककया गया है।
• अर्ेरिका के सीनेर्ट र्ें नार्ांक्रकत
सदस्य नहीं होते हैं।

• इसके सदस्यों को िाज्य विधान • इसके सदस्यों को सािाभौशर्क


सभा के सदस्यों द्िािा एकल ियस्क र्ताधधकाि प्रणाली के
हस्तांतिणीय र्ताधधकाि की र्ाध्यर् से िाज्यों के ननिााचन क्षेत्रों
आनुपानतक प्रनतननधधत्ि प्रणाली के
से प्रत्यक्ष चुनाि के र्ाध्यर् से
र्ाध्यर् से चुना जाता है।
चुना जाता है।
• िाज्यसभा र्ें िाज्यों के शलए सीर्टों
• संघ शाशसत प्रदे शों से लोकसभा के
का आिंर्टन उनकी जनसंख्या के
सदस्यों को भी प्रत्यक्ष ननिााचन के
आधाि पि क्रकया गया है।
र्ाध्यर् से चुना जाता है।
• 61िें संविधान संशोधन अधधननयर्,
1988 द्िािा र्ताधधकाि की आयु
को 21 िषा से घर्टाकि 18 िषा कि
ददया गया।

• यह स्थाई सदन होता है अथाात • यह स्थाई सदन नहीं होता है।


इसका विघर्टन नहीं क्रकया जाता है। सार्ान्य रूप से इसका कायाकाल
हालांक्रक प्रत्येक 2 िषों र्ें इसके आर् चुनाि के बाद प्रथर्
एक नतहाई सदस्य अपने पद से अधधिेशन से 5 िषा तक का होता
र्ुक्त होते हैं। पद र्ुक्त होने िाले है। इसके बाद यह स्ित: ही
सदस्य क्रफि से ननिााचन एिं इसके विघदर्टत हो जाता है।
सदस्य बनने के योग्य होते हैं। • अनुच्छे द 352 के अंतगात िाष्ट्रीय
आपातकाल के सर्य इसके
कायाकाल को एक बाि र्ें 1 िषा के
शलए बढाया जा सकता है।

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104िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 2019: इसके र्ाध्यर् से अनुसूध चत जानत एिं अनुसूध चत जनजानतयों (अनुच्छे द
330 औि 332) के शलए लोकसभा एिं िाज्य विधानसभाओं र्ें आिक्षण के प्रािधान को 25 जनििी 2030 तक के
शलए विस्तारित क्रकया गया औि लोकसभा र्ें दो एंग्लो इंडडयन (अनुच्छे द331) की ननयुन्क्त एिं विधाई ननकायों र्ें
एक एंग्लो इंडडयन की ननयुन्क्त के प्रािधान को सर्ाप्त क्रकया गया है।

राष्रपनत, उपराष्रपनत के साथ-साथ विधान पररषद एिं राज्यसभा के ननिााचन र्ें आनुपानतक प्रनतननधधत्ि प्रणाली का
उपयोग ककया जाता है।

संसद की सदस्यता

संविधान र्ें शाशर्ल प्रािधानों के अनुसाि: भाित का नागरिक होना चादहए।

1. अनुसूची 3 के अंतगात शपथ का प्रािधान ककया गया है।


2. राज्यसभा के मलए 30 िषा से कर् आयु नहीं होनी चादहए।
3. लोकसभा का सदस्य बनने के मलए 25 िषा से कर् आयु नहीं होनी चादहए।
4. संसद द्िारा ककए गए अन्य प्रािधान जैसे जनप्रनतननधधत्ि अधधननयर्, 1951 के द्िारा।

जनप्रनतननधध अधधननयर्, 1951 के अनुसाि:


1. संबंधधत संसदीय ननिााचन िेत्र र्ें र्तदाता के रूप र्ें पंजीकृत होना आिश्यक है।
योग्यताएं:
2. आरक्षित सीट पर ननिााचन हेतु संबंधधत राज्य, संघ शामसत िेत्र र्ें अनुसूधचत जानत एिं
अनुसूधचत जनजानत सर्ुदाय का सदस्य होना आिश्यक है।

ननिााचन हेतु न्यूनतर् आयु(अनुच्छे द 84):


• पंचायत एिं शहरी स्थानीय ननकायों के मलए→21 िषा।
• विधानसभा एिं लोकसभा के मलए→ 25 िषा।
• विधान पररषद एिं राज्यसभा के मलए→ 30 िषा।
• संविधान के अनुसार→ यदद सदस्य द्िारा कोई लाभ का पद धारण ककया गया हो + यदद
िह विकृत धचत्त है औि न्यायालय ने ऐसी घोषणा की है + यदद िह घोवषत ददिाशलया हो +
यदद िह भाित का नागरिक ना हो + संसद द्िािा बनाई गई क्रकसी अन्य विधध के अनुसाि
अयोग्यताएं यदद उसे अयोग्य ठहिाया गया हो।(RPA 1951)।
• जनप्रनतननधधत्ि अधधननयर्, 1951 के अनुसार→ चुनािी अपिाध या चुनाि र्ें भ्रष्ट्र्ट आचिण
के शलए दोषी किाि ददया गया हो + यदद क्रकसी अपिाध र्ें 2 िषा या उससे अधधक की सजा
हुई हो + ननधाारित सर्य के अंदि चुनािी खचा का ब्यौिा ना दे ने पि + सिकािी ठे का कार्
या सेिाओं र्ें ददलचस्पी होने पि+ भ्रष्ट्र्टाचाि या ननष्ट्ठाहीन होने के कािण सिकािी सेिाओं

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से बखाास्त क्रकए जाने पि+ सार्ान्जक अपिाधों र्ें संशलप्त िहने पि+ विशभन्न सर्ूहों र्ें
शत्रुता बढाने औि रिश्ितखोिी के कािण दं डडत होने पि+ कोई व्यन्क्त जो ननगर् र्ें लाभ के
पद या प्रबंध ननदे शक के पद पि हो, न्जसर्ें सिकाि का 25% दहस्सा हो।
• दल बदल के आधार पर→ अगर कोई सदस्य अपनी इच्छा से राजनीनतक दल की सदस्यता
को त्याग दे ता है + िाजनीनतक दल द्िािा ददए गए ननदे शों के विरुद्ध र्तदान किने पि +
ननदालीय सदस्य द्िािा क्रकसी िाजनीनतक दल र्ें शाशर्ल होने पि + नार् ननदे शशत सदस्य
द्िािा 6 र्हीने के बाद क्रकसी िाजनीनतक दल र्ें शाशर्ल होने पि।

नोट: क्रकसी सदस्य र्ें उपयुाक्त ननिहाताओं संबंधी प्रश्न पि िाष्ट्रपनत का फैसला अंनतर् होगा
लेक्रकन िाष्ट्रपनत को ननिााचन आयोग से सलाह लेकि काया किना चादहए।

नोट: दसिीं अनुसूची के तहत ननिहाता के सिालों का ननपर्टािा िाज्यसभा र्ें सभापनत औि
लोकसभा र्ें अध्यक्ष किता है (ना क्रक भाित का िाष्ट्रपनत)।
दोहरी सदस्यता • कोई व्यन्क्त यदद दोनों सदनों र्ें चुन शलया जाता है तो उसे 10 ददनों
के अंदि स्पष्ट्र्ट किना होता है क्रक उसे क्रकस सदन र्ें िहना है अन्यथा
िाज्यसभा र्ें उसकी सीर्ट खाली हो जाएगी।
• यदद क्रकसी सदन का सदस्य दूसिे सदन का भी सदस्य बन जाता है
तो पहले िाले सदन र्ें उसका पद रिक्त हो जाएगा।
• एक ही सदन र्ें क्रकसी व्यन्क्त के 2 सीर्टों पि चुने जाने पि उसे अपनी
इच्छा से 1 सीर्ट को खाली किना होता है अन्यथा दोनों सीर्टें रिक्त हो
जाती हैं।
• कोई व्यन्क्त एक ही सर्य पि संसद या िाज्य के विधान र्ंडल के
सदन का सदस्य नहीं हो सकता है यदद 14 ददनों के अंदि ऐसा सदस्य
िाज्य के विधान र्ंडल की सीर्ट को खाली नहीं किता है तो संसद र्ें
स्थानों का रिक्त
उसकी सदस्यता सर्ाप्त हो जाती है।
होना:

ननरहाता • संविधान के प्रािधानों के अनुसाि एिं संविधान की दसिीं अनुसूची र्ें


दलबदल के प्रािधानों के अनुसाि क्रकसी व्यन्क्त को अयोग्य ठहिाया जा
सकता है।

पद त्याग/ र्ृत्यु • कोई सदस्य सदन के अध्यक्ष को संबोधधत त्यागपत्र द्िािा अपना स्थान
त्याग सकता है।

अनुपजस्थनत • त्रबना अनुर्नत के 60 ददनों से अधधक तक अनुपन्स्थत िहना।

अन्य जस्थनतयां • यदद न्यायालय द्िािा उस चुनाि को अर्ान्य या शून्यकिाि दे ददया जाता
है।
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• यदद क्रकसी सदस्य को सदन द्िािा ननष्ट्काशसत कि ददया जाता है।
• यदद सदस्य िाष्ट्रपनत उपिाष्ट्रपनत के रूप र्ें चुन शलया जाता है।
• यदद सदस्य को क्रकसी िाज्य का िाज्यपाल बना ददया जाता है।

• िाष्ट्रपनत या उसके द्िािा ननयुक्त क्रकसी व्यन्क्त के सर्क्ष शपथ लेता है।
• जब तक कोई सदस्य शपथ नहीं लेता है तब तक िह सदन की क्रकसी बैठक र्ें दहस्सा नहीं
शपथ या प्रनतज्ञान
ले सकता है औि ना ही उसे र्त दे ने का अधधकाि होता है। इसके साथ-साथ िह संसद
: द्िािा प्रदान क्रकए जाने िाले विशेषाधधकािों का भी हकदाि नहीं होता है।

• संसद के सदस्यों को संसद द्िािा ननधाारित िेतन एिं भत्ते प्रदान क्रकए जाते हैं। संविधान र्ें
इनके शलए पेंशन का कोई प्रािधान नहीं है।
• लोकसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष औि िाज्यसभा के सभापनत तथा उपसभापनत के िेतन
िेतन औि भत्ते: एिं भत्तों का ननधाािण भी संसद द्िािा क्रकया जाता है लेक्रकन यह भाित की संधचत ननधध पि
भारित होते हैं।

नोट: अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष अपना पद धािण किने के बाद अलग से कोई शपथ या प्रनतज्ञान नहीं लेते हैं।

संसद के पीठासीन अधधकारी

लोकसभा अध्यि(अनुच्छे द 93) राज्यसभा का सभापनत (अनुच्छे द 89)

• इसकी स्थापना भाित सिकाि अधधननयर्, 1919 के • भारत का उप-राष्रपनत राज्यसभा का पदे न सभापनत
अंतगात की गई थी। होता है।
• जी.िी.र्ािलंकि लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। • यह अपने पद से तभी हर्ट सकता है जब िह उप-
• इसे लोकसभा के सदस्यों द्िािा अपने बीच से ही िाष्ट्रपनत के पद पि नहीं िहता है।
ननयुक्त क्रकया जाता है। • लोकसभा के अध्यक्ष के विपिीत िाज्यसभा का
• इसके ननिााचन की तािीख िाष्ट्रपनत द्िािा ननधाारित सभापनत सदन का सदस्य नहीं होता है।
की जाती है। • अध्यक्ष की तिह सभापनत भी पहली बाि र्त नहीं दे
• लोकसभा के कायाकाल तक अपने पद पि बना िहता सकता है। र्त बिाबि होने की न्स्थनत र्ें िह अपना
है। र्त दे सकता है।
• यह उपाध्यि को अपना त्यागपत्र दे सकता है। • जब सभापनत को पद से हर्टाने से संबंधधत संकल्प
• इसको हटाने से संबंधधत प्रस्ताि के बारे र्ें सदन को विचािाधीन होता है तब िह सदन की कायािाही र्ें
14 ददन पहले सूचना दे ना आिश्यक होता है। इस दहस्सा ले सकता है लेक्रकन उसे सार्ान्य सदस्य की
प्रकार के प्रस्ताि का सदन के पूणा बहुर्त द्िारा तिह र्त दे ने का अधधकाि नहीं होता है।
पाररत होना आिश्यक होता है। (अथाात सदन के सभी • सभापनत के िेतन एिं भत्तों का ननधाािण संसद द्िािा
सदस्यों के बहुर्त द्िारा)। इस प्रस्ताि पर विचार क्रकया जाता है तथा यह भाित की संधचत ननधध पि
करने या चचाा करने के मलए कर् से कर् 50 सदस्यों भारित होते हैं।

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का सर्थान आिश्यक होता है।
• जब अध्यि को हटाने से संबंधधत संकल्प विचाराधीन
होता है तब िह सदन की अध्यिता नहीं करता है।
ऐसी जस्थनत र्ें उसे र्त दे ने का भी अधधकार होता है
लेककन र्तों के बराबर होने की जस्थनत र्ें उसे र्त
दे ने का अधधकार नहीं होता है।
• लोकसभा के विघटन पर अध्यि अपना पद नहीं
छोडता है और िह नई लोकसभा की बैठक तक पद
धारण करता है।
शन्क्त औि काया: इसकी शन्क्तयां एिं उत्तिदानयत्ि लोकसभा अध्यक्ष के
ही सर्ान होते हैं लेक्रकन ननम्नशलखखत दो न्स्थनतयों र्ें
• सदन की कािािाई ि संचालन के क्रियान्ियन को
अपिाद भी दे खा जाता है:
बनाए िखना।
• सदन के अंदि िह भाित के संविधान, लोकसभा की 1. लोकसभा का अध्यक्ष यह ननधाारित किता है क्रक
प्रक्रिया तथा काया संचालन ननयर् औि संसदीय कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं औि इस
पूिाादाहिणों का अंनतर् व्याख्याकाि होता है। संबंध र्ें उसका ननणाय अंनतर् होता है।
• सार्ान्य जस्थनत र्ें यह र्त नहीं दे ता है परं तु र्त 2. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की
बराबर होने की जस्थनत र्ें यह अपना र्त दे ता है। अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्िािा की जाती है।
• यह संसद के दोनों सदनों की संयक्
ु त बैठक की
अध्यिता करता है।(अनुच्छे द- 108)
• सदन के नेता के आग्रह पर िह गुप्त बैठक की
अनुर्नत दे ता है।
• यह तय करता है कक कोई विधेयक धन विधेयक है
या नहीं और इस संदभा र्ें उसका ननणाय अंनतर् होता
है।
• संविधान की दसिीं अनुसूची के अंतगात दलबदल के
प्रािधानों के अनुसार लोकसभा के ककसी सदस्य के
ननरहाता संबंधधत प्रश्न का ननपटारा करता है। इसका
ननणाय न्यानयक पुनविालोकन के अंतगात आता है।
(ककहोतो होलोहान र्ार्ला)
• िह लोकसभा की सभी संसदीय समर्नतयों के सभापनत
की ननयुजक्त करने के साथ-साथ उनके कायों का भी
पयािेिण करता है।
• यह कायार्ंत्रणा समर्नत, ननयर् समर्नत ि सार्ान्य
प्रयोजन समर्नत का भी अध्यि होता है।

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इसकी स्ितंत्रता एिं ननष्ट्पक्षता को विशभन्न तिीकों से


सुननन्श्चत क्रकया जाता है: कायाकाल की सुरिा प्रदान
करना + संसद द्िारा ननधााररत इसके िेतन एिं भत्तों का
भारत की संधचत ननधध पर भाररत होना + स्ितंत्र या
र्ौमलक प्रस्ताि को छोडकर उसके कायों ि आचरण की
चचाा या आलोचना नहीं की जा सकती है + िरीयता सूची
र्ें इसका स्थान काफी ऊपर है इसे भारत के र्ुख्य
न्यायाधीश के साथ सातिें स्थान पर रखा गया है + यह
प्रधानर्ंत्री या उप-प्रधानर्ंत्री को छोडकर सभी कैब्रबनेट
र्ंब्रत्रयों से ऊपर की रैंक पर होता है।

प्रोटे र् अध्यि(अनुच्छे द - 95): वपछली लोकसभा का अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक अपने
पद पि बना िहता है। प्रोर्टे र् अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता किता है। यह सदन को नए
अध्यक्ष का चुनाि किने र्ें सहायता प्रदान किता है। िाष्ट्रपनत, लोकसभा के क्रकसी सदस्य को प्रोर्टे र् अध्यक्ष के रूप
र्ें ननयुक्त किते हैं। सार्ान्य रूप से लोकसभा का िरिष्ट्ठ सदस्य ही इस पद हेतु चुना जाता है।

संसद र्ें नेता

लोकसभा का अध्यि एिं अन्य(अनुच्छे द 93) राज्यसभा का उप-सभापनत एिं अन्य(अनुच्छे द 89)

• 11िीं लोकसभा से सदन र्ें ऐसी परं परा बन गई है • िाज्यसभा का उपसभापनत िाज्यसभा के सभापनत को
कक लोकसभा का अध्यि सत्ताधारी दल से संबंधधत अपना त्यागपत्र सौंपता है।
होता है और उपाध्यि विपिी दल से संबंधधत होता • िाज्यसभा का सभापनत भाित के िाष्ट्रपनत को अपना
है। त्याग पत्र सौंपता है।
• उपाध्यि का ननिााचन लोकसभा के अध्यि के बाद
होता है।
• इनका ननिााचन संबंधधत सदन के सदस्यों र्ें से क्रकया जाता है औि ननिााचन की नतधथ का ननधाािण अध्यक्ष या
सभापनत द्िािा क्रकया जाता है।
• यह अध्यक्ष या सभापनत के अधीनस्थ नहीं होते हैं बन्ल्क सदन के प्रनत प्रत्यक्ष रूप से उत्तिदाई होते हैं।
• इन्हें संसद द्िारा ननधााररत िेतन एिं भत्ते प्रदान ककए जाते हैं जो भारत की संधचत ननधध पर भाररत होते हैं।
• पद र्ुन्क्त की प्रक्रिया अध्यक्ष एिं सभापनत के ही सर्ान होती है।

• अध्यि की अनुपजस्थनत र्ें यह संयुक्त अधधिे शन की


अध्यिता करता है।(अनुच्छे द 108)।
------
• यदद इसे ककसी संसदीय समर्नत का सदस्य बनाया

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जाता है तो यह स्ित: ही उसका अध्यि बन जाता है।

लोकसभा के सभापनतयों/ िाज्यसभा के उपसभापनतयों की ताशलका :

• इनका नार्ांकन अध्यि/ सभापनत द्िारा ककया जाता है।


• इसर्ें 10 से अधधक सदस्य शामर्ल नहीं होते हैं।
• इनर्ें से कोई भी अध्यि या उपाध्यि की अनुपजस्थनत र्ें सदन का पीठासीन अधधकारी हो सकता है।
• जब अध्यि या उपाध्यि का पद ररक्त होता है तो सभापनत द्िारा ननधााररत तामलका के सदस्य द्िारा सदन की
अध्यिता नहीं की जा सकती है। इस सर्य राष्रपनत द्िारा सदन के अध्यि की ननयुजक्त की जाती है।
• इनके िेतन एिं भत्तों का ननधाारण संसद द्िारा ककया जाता है और यह भारत की संध चत ननधध पर भाररत होते
हैं।

सदन का नेता: सदन के ननयर्ों के अंतगात (अथाात लोकसभा या िाज्यसभा) (संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया
गया है), सदन के नेता का अशभप्राय प्रधानर्ंत्री (न्जसका िह सदस्य है)है,या प्रधानर्ंत्री द्िािा सदन के नेता के रूप
र्ें र्नोनीत कोई र्ंत्री जो सदन का सदस्य हो (अथाात लोकसभा औि िाज्यसभा) \।

विपि का नेता: संसदीय ननयर्ों के अनुसाि (संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया गया है) सदन की ऐसी सबसे
बड़ी विपक्षी पार्टी न्जसके सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या के कर् से कर् दसिें दहस्से के बिाबि
हो उसके नेता को विपक्ष के नेता के रूप र्ें र्ान्यता शर्लती है। उसे कैत्रबनेर्ट र्ंत्री के सर्ान सुविधाएं प्रदान की
जाती हैं। सबसे पहली बाि 1969 र्ें विपक्ष के नेता को र्ान्यता दी गई थी। 1977 र्ें इसे सांविधधक र्ान्यता प्राप्त
हुई। आईिि जेननंग ने इसे िै कन्ल्पक प्रधानर्ंत्री की संज्ञा दी है।

जव्हप : न्व्हप के पद का उल्लेख ना तो भाित के संविधान र्ें, ना ही सदन के ननयर्ों र्ें औि ना ही संसदीय विधध
र्ें क्रकया गया है। यह संसदीय सिकाि की पिं पिाओं पि आधारित है। प्रत्येक िाजनीनतक दल का संसद र्ें सहायक
नेता के रूप र्ें अपना न्व्हप होता है। इसका उद्दे श्य अपनी पार्टी के नेताओं को बड़ी संख्या र्ें सदन र्ें उपन्स्थत
िखने औि संबंधधत र्ुद्दे के पक्ष या खखलाफ र्ें पार्टी के अनुसाि उनके सहयोग को सुननन्श्चत किना होता है। यह
संसद र्ें सदस्यों के व्यिहाि पि नजि िखता है।

संसद के सत्र

• राष्रपनत संसद के प्रत्येक सदन को सर्य-सर्य पर आहूत करता है। संसद को 1 िषा र्ें
सत्र आहूत किना कर् से कर् 2 बार बैठक करना चादहए।
(अनुच्छे द 85): • संसद का सत्र इसकी प्रथर् बैठक से लेकर इसके सत्रािसान के र्ध्य की सर्यािधध है।
• एक सत्र के सत्रािसान एिं दूसरे सत्र के प्रारं भ होने के र्ध्य की अिधध को अिकाश कहा
जाता है।
• पीठासीन अधधकािी द्िािा स्थगन के र्ाध्यर् से संसद के सत्र को स्थधगत क्रकया जा

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स्थगन : सकता है जो कुछ ननन्श्चत सर्य, कुछ घंर्टे, ददन या सप्ताह का हो सकता है।
• यह सदन की बैठक को एक ननन्श्चत सर्य के शलए स्थधगत कि दे ता है।
अननन्श्चत काल के • इसका तात्पया सदन के अध्यक्ष या सभापनत द्िािा अननन्श्चत काल के शलए सदन को
शलए स्थगन: स्थधगत किने से है।

• िाष्ट्रपनत सदन की स्थगन एिं सत्र र्ें होने की न्स्थनत र्ें इसके सत्रािसान से संबंध धत
सत्रािसान: नोदर्टक्रफकेशन जािी किता है।
• इससे सदन की बैठक के साथ-साथ सदन का सत्र भी सर्ाप्त हो जाता है।

• केिल लोकसभा का ही विघटन होता है। सत्रािसान के विपरीत विघटन से ितार्ान सभा का
कायाकाल सर्ाप्त हो जाता है और इसका पुनगाठन नए चुनाि के बाद ही होता है।
• लोकसभा को दो कािणों से विघदर्टत क्रकया जा सकता है:
विघर्टन: 1. इसका कायाकाल पूिा हो जाने पि यह स्ियं ही विघदर्टत हो जाती है।
2. िाष्ट्रपनत द्िािा सदन के विघर्टन से संबंधधत ननणाय लेने पि। यह ननणाय लेने के शलए
िाष्ट्रपनत प्राधधकृत होता है।
जब लोकसभा का विघर्टन हो जाता है तो इसके सभी काया जैसे विधेयक, प्रस्ताि,
संकल्प, नोदर्टस, याधचका आदद सर्ाप्त हो जाते हैं।

• यह नई लोकसभा के गठन से पूिा ितार्ान लोकसभा का अंनतर् सत्र होता है।


• ितार्ान लोकसभा के ऐसे सदस्य जो नई लोकसभा के शलए ननिााधचत नहीं हो पाते हैं उन्हें
लेर् डक सत्र लेर् डक कहा जाता है।
• कोिर् या गणपूनता सदन र्ें सदस्यों की िह न्यूनतर् संख्या होती है न्जनकी उपन्स्थनत र्ें
कोिर्: सदन का काया संपाददत होता है।
• यह प्रत्येक सदन र्ें पीठासीन अधधकािी सदहत कुल सदस्यों का दसिां दहस्सा होता है।

• संविधान द्िािा दहंदी औि अंग्रेजी को संसद की कायािाही की भाषा के रूप र्ें घोवषत क्रकया
संसद र्ें भाषा: गया है।
• सदन के सदस्य पीठासीन अधधकािी से पूिा अनुर्नत लेने के पश्चात अपनी र्ातृभाषा र्ें
बोल सकते हैं।

र्ंत्रत्रयों एिं • प्रत्येक र्ंत्री एिं भाित के र्हान्यायिादी को सदन की कायािाही र्ें भाग लेने, दोनों सदनों
र्हान्यायिादी के की संयुक्त बैठक र्ें भाग लेने, सदन र्ें अपने विचाि व्यक्त किने औि ऐसी क्रकसी
अधधकाि सशर्नत, न्जसके िह सदस्य नहीं है, उसकी बैठक की कािािाई र्ें त्रबना र्तदान के भाग
लेने का अधधकाि होता है।

व्यपगत होने 1. लोकसभा र्ें विचािाधीन विधेयक (चाहे लोकसभा र्ें शुरू क्रकए गए हो या क्रफि िाज्यसभा द्िािा
िाले विधेयक हस्तांतरित क्रकए गए हो)
2. लोकसभा र्ें पारित क्रकं तु िाज्यसभा र्ें विचािाधीन विधेयक।
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व्यपगत ना 1. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों की असहर्नत के कािण पारित ना हुआ हो औि इसके संबंध र्ें
होने िाले िाष्ट्रपनत ने विघर्टन होने से पूिा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो।
विधेयक 2. ऐसा विधेयक जो िाज्यसभा र्ें विचािाधीन हो औि लोकसभा द्िािा पारित ना क्रकया गया हो।
3. दोनों सदनों द्िािा पारित औि िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए विचािाधीन विधेयक।
4. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्िािा पारित हो औि िाष्ट्रपनत द्िािा पुनविाचाि के शलए लौर्टाया
गया हो।

राष्रपनत→ अशभभाषण, आहूत, सत्रािसान, विघर्टन किता है।


पीठासीन अधधकारी→ स्थगन औि अननन्श्चत काल के शलए स्थगन किता है।

संसदीय कायािाही के साधन

• संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल का ही होता है इस दौरान संसद के सदस्य प्रश्न पूछते हैं और
सार्ान्यता र्ंत्री उनका उत्तर देते हैं लेककन कभी-कभी ननजी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते
हैं।
प्रश्नकाल: • इसकी शुरुआत भारत पररषद अधधननयर् 1892 के द्िारा हुई थी।
• कारािाई के ननयर्ों र्ें इसका उल्लेख ककया गया है।
• तािांक्रकत प्रश्नों का उत्ति र्ौखखक रूप से ददया जाता है तथा इसके बाद पू िक प्रश्न भी पूछे जा
सकते हैं।
• अतािांक्रकत प्रश्नों र्ें शलखखत उत्ति दे ने की आिश्यकता होती है तथा इसके बाद पूिक प्रश्न नहीं
पूछा जा सकता है।
• अल्प सूचना के प्रश्नों का उत्ति र्ौखखक रूप से ददया जाता है औि इन्हें पूछने के शलए कर् से
कर् 10 ददन पहले नोदर्टस दे ना होता है।
• त्रबना पूिा सूचना के कोई र्ार्ला उठाने का यह एक अनौपचारिक साधन है । यह प्रश्नकाल के
शून्यकाल: तुिंत बाद शुरू होता है।
• 1962 से जारी यह एक भारतीय निाचार है तथा इसका प्रकक्रया के ननयर्ों र्ें उल्लेख नहीं
ककया गया है।

• लोक र्हत्ि से संबंधधत क्रकसी र्ार्ले पि पीठासीन अधधकािी की स्िीकृनत से बहस की जा


प्रस्ताि: सकती है।
• प्रस्तािों की तीन प्रर्ुख श्रेखणयां होती हैं-
1. र्ूल/र्हत्िपूणा प्रस्ताि: यह एक प्रकाि का स्ियं िखणात स्ितंत्र प्रस्ताि होता है न्जसके तहत
अनत र्हत्िपूणा र्ार्लों को उठाया जाता है।
2. स्थानापन्न प्रस्ताि: यह र्ूल प्रस्ताि का ही स्थान लेता है औि यदद सदन द्िािा इसे स्िीकाि
कि शलया जाता है तो र्ूल प्रस्ताि स्थधगत हो जाता है।

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3. पूरक प्रस्ताि: इस प्रस्ताि का स्ियं र्ें कोई अथा नहीं होता है इसे सदन र्ें तब तक पारित
नहीं क्रकया जा सकता है जब तक इसके र्ूल प्रस्ताि का संदभा ना हो।
4. उप श्रेणणयां: सहायक प्रस्ताि, स्थान लेने िाला प्रस्ताि औि संशोधन।

• इस प्रस्ताि को क्रकसी सदस्य द्िािा िाद वििाद को सर्ाप्त किने के शलए लाया जाता है यदद
इसे स्िीकाि कि शलया जाता है तो िाद वििाद को सर्ाप्त कि इसे र्तदान के शलए िखा जाता
है।
• कटौती प्रस्ताि चार प्रकार के होते हैं:
कर्टौती प्रस्ताि: साधारण कटौती: क्रकसी विषय पि पयााप्त चचाा हो जाने के बाद जब उसे र्तदान के शलए
िखा जाता है।
घटकों र्ें कटौती: इसके अंतगात क्रकसी प्रस्ताि का चचाा से पूिा विधेयकों या लंबे संकल्पों
का सर्ूह बना शलया जाता है औि चचाा के बाद इसे र्तदान के शलए िखा जाता है।
कंगारू कटौती: इसके अंतगात केिल र्हत्िपूणा भागों पि ही बहस औि र्तदान की प्रक्रिया
होती है औि शेष खंडों को छोड़ ददया जाता है औि उन्हें पारित र्ान शलया जाता है।
धगलोदटन कटौती: जब क्रकसी संकल्प के क्रकसी भाग पि चचाा नहीं हो पाती है तो उस पि
र्तदान से पूिा चचाा किाने के शलए इस प्रकाि का प्रस्ताि िखा जाता है।

विशेषाधधकि • जब क्रकसी सदस्य को यह र्हसूस होता है क्रक क्रकसी र्ंत्री ने सदन के विशेषाधधकािों का
प्रस्ताि: उल्लंघन क्रकया है तब िह इस प्रस्ताि को ला सकता है।

ध्यानाकषाण • इसके र्ाध्यर् से सदन का कोई सदस्य क्रकसी र्ंत्री का अविलंबनीय लोक र्हत्ि के क्रकसी
प्रस्ताि: र्ार्ले पि ध्यान आकवषात किता है।
• यह भारतीय निाचार है और प्रकक्रया ननयर्ों र्ें इसका उल्लेख ककया गया है।

• क्रकसी अविलंबनीय लोक र्हत्ि के र्ार्ले पि सदन का ध्यान आकषाण किने के शलए इस
प्रस्ताि को लाया जाता है। इसके र्ाध्यर् से ऐसे र्ार्लों को ही उठाया जा सकता है जोक्रक
स्थगन प्रस्ताि: ननन्श्चत, त्यात्र्क, अत्यंत जरूिी औि लोक र्हत्ि के होते हैं।
• यह एक प्रकाि का असाधािण उपकिण है न्जससे संसद की ननयशर्त कािािाई बाधधत होती है।
• िाज्यसभा को इसके उपयोग की अनुर्नत नहीं होती है क्योंक्रक इसर्ें सिकाि के खखलाफ कर्टौती
का तत्ि शाशर्ल होता है।
• इसर्ें एक से अधधक र्ुद्दों को शाशर्ल नहीं क्रकया जाता है औि ना ही इसके र्ाध्यर् से क्रकसी
ऐसे विषय पि चचाा की जाती है न्जस पि उसी सत्र र्ें चचाा हो चु की हो। इसको लाने के शलए
50 सदस्यों का सर्थान आिश्यक होता है।

विश्िास प्रस्ताि: • िाष्ट्रपनत द्िािा सत्ताधािी दल को सदन र्ें उसका बहुर्त शसद्ध किने के शलए कहा जा सकता
है।
• यदद विश्िास प्रस्ताि पारित नहीं होता है तो सिकाि का विघर्टन हो जाता है।

• अनुच्छे द 75- र्ंत्री परिषद, लोकसभा के प्रनत सार्ूदहक रूप से उत्तिदायी होगी। यह शसद्धांत
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संसदीय लोकतंत्र र्ें आधािभूत शसद्धांत होता है।
• संविधान र्ें इसका उल्लेख नहीं क्रकया गया है यह केिल लोकसभा र्ें प्रक्रिया ननयर्ों के तहत
अविश्िास प्रस्ताि ननयर् 198 के अंतगात लाया जाता है।
(अनुच्छे द 75) • सत्ता र्ें बने िहने के शलए र्ंत्री परिषद को लोकसभा के सदस्यों का बहुर्त प्राप्त होना
आिश्यक होता है।
• इस प्रस्ताि को लाने के शलए 50 सदस्यों के सर्थान की आिश्यकता होती है औि इसको लाने
से संबंधधत कािण बताना आिश्यक नहीं होता है।
• इसे संपूणा र्ंत्री परिषद के खखलाफ लाया जाता है औि सदन र्ें यदद यह पास हो जाता है तो
र्ंत्री परिषद को अपना त्यागपत्र दे ना पड़ता है।

ननंदा प्रस्ताि: • इसे सिकाि की कुछ नीनतयों या कायों के खखलाफ ननंदा किने के उद्दे श्य से लाया जाता है।
• इसे स्िीकािने का कािण बताना आिश्यक होता है।
• इसे क्रकसी र्ंत्री या र्ंत्रत्रयों के सर्ूह या संपूणा र्ंत्री परिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है।
• यदद यह लोकसभा र्ें पारित हो जाता है तो र्ंत्रत्रपरिषद को त्यागपत्र दे ना आिश्यक नहीं होता
है। लेक्रकन सिकाि को तत्काल सदन का विश्िास हाशसल किने की आिश्यकता होती है।

• प्रत्येक आर् चुनाि के बाद पहले सत्र औि वित्तीय सत्र के पहले सत्र र्ें िाष्ट्रपनत सदन को
धन्यिाद प्रस्ताि संबोधधत किता है तथा दोनों सदनों र्ें इस पि चचाा होती है इसी को धन्यिाद प्रस्ताि कहा
जाता है।
• चचाा होने के बाद इस प्रस्ताि को र्त के शलए िखा जाता है यदद यह पारित नहीं होता है तो
इसका तात्पया सिकाि का पिान्जत होना होता है।

अननयत ददिस • इसे अध्यक्ष द्िािा लाया जाता है लेक्रकन इसकी चचाा के शलए क्रकसी नतधथ का ननधाािण नहीं
प्रस्ताि: क्रकया जाता है।

• इसे क्रकसी विधेयक या प्रस्ताि पि चचाा के स्थगन के शलए लाया जाता है।
विलंबकिी • प्रस्ताि आने के बाद इसे क्रकसी सदस्य द्िािा क्रकसी भी सर्य लाया जा सकता है।
प्रस्ताि: • इस प्रस्ताि र्ें शाशर्ल र्ार्लों पि बहस नहीं होती है।
• यह प्रस्ताि सदन की सार्ान्य कािािाई को विलंत्रबत किता है।

• सदन र्ें कािािाई के संचालन के सार्ान्य ननयर्ों का पालन ना होने पि सार्ान्यत: सदन के
औधचत्य प्रश्न: विपक्षी दल के सदस्य द्िािा औधचत्य प्रश्न को लाया जाता है इसका उद्दे श्य सिकाि पि दबाि
बनाना होता है।
• यह सदन की कायािाही को सर्ाप्त किने की असाधािण युन्क्त है इस पि क्रकसी तिह की बहस
की अनुर्नत नहीं होती है।

आधे घंर्टे की • इसके र्ाध्यर् से पयााप्त लोक र्हत्ि के र्ुद्दों पि चचाा की जाती है।
चचाा • इसके शलए सदन र्ें कोई औपचारिक प्रस्ताि या र्तदान नहीं होता है।

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अल्पकाशलक • इसे 2 घंर्टे की चचाा भी कहा जाता है क्योंक्रक इस तिह की चचाा के शलए 2 घंर्टे से अधधक का
चचाा: सर्य नहीं ददया जाता है।
• यह सदन का ना तो औपचारिक प्रस्ताि है औि ना ही इस पि र्तदान होता है।

विशेष उल्लेख: • ऐसा र्ार्ला जो क्रकसी ननयर् के अंतगात नहीं आता है उसे विशेष उल्लेख के तहत िाज्य सभा
र्ें उठाया जाता है।

• साधािण लोक र्हत्ि के र्ार्लों पि सिकाि का ध्यान आकवषात किने के शलए कोई सदस्य
संकल्प ला सकता है। इसके अंतगात प्रासंधगक एिं प्रस्ताि से संबंधधत चचाा होती है।
• क्रकसी सदस्य द्िािा लाए गए संकल्प को िापस लेने एिं इसर्ें संशोधन के शलए सदन के
अध्यक्ष की अनुर्नत की आिश्यकता होती है।
• सभी संकल्प र्हत्िपूणा प्रस्तािों की ही श्रेणी र्ें आते हैं लेककन ऐसा आिश्यक नहीं है कक सभी
प्रस्ताि र्हत्िपूणा प्रस्ताि ही हों। इसीमलए सभी प्रस्ताि पर सदन र्ें र्तदान की आिश्यकता
नहीं होती है लेककन सभी संकल्पों पर र्तदान की आिश्यकता होती है।
• संकल्प तीन प्रकार के होते हैं:
1. गैर सरकारी सदस्यों का संकल्प: इस प्रकाि के संकल्प को गै ि सिकािी सदस्य द्िािा लाया
संकल्प: जा सकता है इस पि बहस केिल िैकन्ल्पक शुििाि एिं दोपहि के बाद बैठक र्ें की जा
सकती है।
2. सरकारी संकल्प: यह संकल्प र्ंत्री द्िािा लाया जाता है औि इस पि सोर्िाि से गुरुिाि
तक चचाा हो सकती है।
3. सांविधधक संकल्प: इसे गै ि सिकािी सदस्य द्िािा या र्ंत्री द्िािा लाया जा सकता है।

संसद र्ें विधायी प्रकक्रया


• विधाई प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों र्ें ही संपन्न होती है। प्रत्येक सदन र्ें विधेयक सर्ान चिणों से होकि
पारित होता है।

सिकािी विधेयक: संसद र्ें र्ंत्री द्िािा प्रस्तुत क्रकया जाता है + प्रस्तुत करने से पहले
प्रस्तुत किने के आधाि पि 7 ददनों का नोदटस ददया जाता है + इसका प्रारूप संबंधधत विभाग द्िारा तैयार ककया
: जाता है।

गैर सरकारी विधेयक : इसे र्ंत्री के अनतरिक्त क्रकसी अन्य सदस्य द्िािा प्रस्तुत क्रकया
जाता है + प्रस्तुत किने से पहले एक र्ाह का नोदर्टस आिश्यक होता है+ इसके
ननर्ााण की न्जम्र्ेदािी संबंधधत सदस्य की होती है।

साधारण विधेयक:

• इसर्ें वित्तीय र्ार्लों के अलािा अन्य विषयों को शाशर्ल क्रकया जाता है।
• प्रत्येक साधािण विधेयक संसद र्ें 5 चिणों से होकि गुजिता है न्जसे नीचे दी गई

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ताशलका र्ें प्रदशशात क्रकया गया है।
• इसे लोकसभा औि िाज्यसभा र्ें क्रकसी र्ंत्री या सदस्य द्िािा प्रस्तुत क्रकया जा
सकता है।
• इसे िाष्ट्रपनत की सलाह के त्रबना प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
• इसे िाज्यसभा द्िािा स्िीकाि या अस्िीकाि क्रकया जा सकता है।
• िाज्यसभा इसे अधधकतर् 6 र्हीनों के शलए िख सकती है।
• इसर्ें अध्यक्ष के प्रर्ाण पत्र की आिश्यकता नहीं होती है।
• दोनों सदनों द्िािा पारित हो जाने पि यह िाष्ट्रपनत की सहर्नत के शलए जाता है
औि दोनों सदनों र्ें गनतिोध होने की न्स्थनत र्ें िाष्ट्रपनत द्िािा संयक्
ु त बैठक
बुलाई जा सकती है।
• िाष्ट्रपनत इसे स्िीकृनत दे सकता है, अस्िीकाि कि सकता है या उसे पुनविाचाि के
शलए सदन को िापस लौर्टा सकता है।

धन विधेयक(अनुच्छे द 110):

• इसर्ें वित्तीय र्ार्लों जैसे कि से संबंधधत प्रािधान होते हैं।


• इसे केिल लोकसभा र्ें लाया जा सकता है।

विषय िस्तु के आधाि पि • इसे केिल िाष्ट्रपनत की सलाह पि ही लाया जाता है।
• िाज्यसभा द्िािा इसे अस्िीकृत या संशोधधत नहीं क्रकया जा सकता है बन्ल्क िह
इस पि केिल शसफारिश कि सकती है औि लोकसभा इन शसफारिशों को स्िीकाि
या अस्िीकाि कि सकती है।
• िाज्यसभा इसे अधधकतर् 14 ददनों के शलए अपने पास िख सकती है।
• इसे लोकसभा अध्यि द्िारा प्रर्ाणणत करने की आिश्यकता होती है।
• िाज्यसभा के पास इस विधेयक से संबंधधत शन्क्तयां काफी सीशर्त होती हैं।
• िाष्ट्रपनत इसे स्िीकाि या अस्िीकाि कि सकता है लेक्रकन संसद को पुनविाचाि के
शलए नहीं लौर्टा सकता है।

वित्त विधेयक– अनुच्छे द 117 (1) और 117 (3)

• इसर्ें धन विधेयक के अनतरिक्त वित्तीय र्ार्लों से संबंधधत विषयों को शाशर्ल


क्रकया जाता है।
• सभी धन विधेयक, वित्तीय विधेयक होते हैं लेक्रकन सभी वित्त विधेयक, धन
विधेयक नहीं होते हैं।

संविधान संशोधन विधेयक :

• इसर्ें अनुच्छे द 368 के अंतगात संविधान के प्रािधानों का संशोधन क्रकया जाता है।

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लागू होने के चरण

प्रथर् पाठन • ककसी सदस्य द्िारा सदन र्ें विधेयक को प्रस्तुत करने से पहले इसकी अधग्रर्
सूचना दे नी पडती है।
• इस चरण र्ें विधेयक पर ककसी प्रकार की चचाा नहीं की जाती है।
• यह अनत र्हत्िपूणा चिण है।
• इसके अंतगात 3 उप-चिण शाशर्ल होते हैं:
1. सार्ान्य चचाा का चरण : इसके अंतगात विधेयक के शसद्धांतों एिं उपबं धों
द्वितीय पाठन पि चचाा होती है औि इसे सशर्नत के पास भेज ददया जाता है।
2. सशर्नत अिस्था
3. विचाि विर्शा की अिस्था: इसके अंतगात विधेयक के सर्स्त उपबंधों की
सर्ीक्षा होने के साथ-साथ इसके प्रत्येक उपबं ध पि खंड िाि चचाा एिं
र्तदान होता है।
• इस चिण र्ें केिल विधेयक को स्िीकाि या अस्िीकाि किने के बािे र्ें चचाा की
तत
ृ ीय पाठन जाती है औि इसर्ें क्रकसी प्रकाि का संशोधन नहीं क्रकया जा सकता है।
• यदद इसे स्िीकाि कि शलया जाता है तो इसे अगले सदन र्ें सहर्नत के शलए
भेजा जाता है।
• यदद दूसिे सदन द्िािा क्रकसी प्रकाि के संशोधन के त्रबना या संशोधन के साथ
दूसिे सदन र्ें विधेयक विधेयक को पारित क्रकया जाता है औि प्रथर् सदन द्िािा उन संशोधनों को
स्िीकाि कि शलया जाता है तब इस विधेय क को दोनों सदनों द्िािा पारित
सर्झा जाता है औि इसे िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए भेज ददया जाता है।
िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत • यदद िाष्ट्रपनत द्िािा इस विधेयक को स्िीकृनत प्रदान कि दी जाती है तो यह
अधधननयर् बन जाता है।

वित्त विधेयक(I) और वित्त विधेयक (II)के बीच अंतर

वित्त विधेयक (I) वित्त विधेयक (II)

• ऐसा विधेयक जजसर्ें अनुच्छे द 110 से संबंधधत • इसर्ें भाित की संधचत ननधध पि भारित व्यय संबंधी
र्ार्लों के साथ अन्य सार्ान्य विधधक र्ार्ले शामर्ल उपबंध होते हैं लेक्रकन इसर्ें अनुच्छे द 110 से संबंधधत
होते हैं। विषय शाशर्ल नहीं होते हैं।

• यह दो रूपों र्ें धन विधेयक के सर्ान होता है: • इसे संसद के दोनों सदनों र्ें प्रस्तुत क्रकया जा सकता
1. इसे केिल लोकसभा र्ें प्रस्तुत ककया जा सकता है।
है। • इसे प्रस्तुत किने के शलए िाष्ट्रपनत की सहर्नत की
2. इसे राष्रपनत की पूिा सहर्नत से ही प्रस्तुत ककया आिश्यकता नहीं होती है।
जाता है।

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• सार्ान्य विधेयक की तरह ही इसके मलए सर्ान प्रकक्रया अपनाई जाती है।

• दोनों सदनों के बीच गनतरोध होने की जस्थनत र्ें राष्रपनत इस गनतरोध को सर्ाप्त करने के मलए संयुक्त बैठक
बुला सकता है।

• राष्रपनत या तो विधेयक को अपनी स्िीकृनत प्रदान कर सकता है या उसे रोक सकता है या कफर पुनविाचार के
मलए सदन को िापस भेज सकता है।

दोनों सदनों की संयुक्त बैठक(अनुच्छे द- 108)


• क्रकसी विधेयक पि गनतिोध होने की न्स्थनत र्ें संविधान द्िािा संयुक्त बैठक के रूप र्ें एक असाधािण व्यिस्था
प्रदान की गई है।
• विधेयक से संबंधधत गनतिोध को सर्ाप्त किने औि उस पि चचाा औि र्तदान किने के शलए िाष्ट्रपनत दोनों
सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
• संयुक्त बैठक का प्रािधान साधािण विधेयक, वित्त विधेयक के शलए क्रकया गया है औि धन विधेयक तथा
संविधान संशोधन विधेयक के संदभा र्ें संयक्
ु त बैठक की कोई व्यिस्था नहीं है।
• यदद वििाददत विधेयक को संयुक्त बैठक र्ें दोनों सदनों के उपन्स्थत एिं र्त दे ने िाले सदस्यों की संख्या के
बहुर्त से पारित कि ददया जाता है तो यह र्ाना जाता है क्रक विधेयक को दोनों सदनों ने पारित कि ददया है।
• िाष्ट्रपनत द्िािा संयक्
ु त बैठक का प्रािधान किने के बाद कोई भी सदन इस विधेयक पि कायािाही नहीं कि
सकता है औि ना ही यह विधेयक लोकसभा के विघर्टन से सर्ाप्त होता है।
• दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्िािा की जाती है तथा उसकी अनुपन्स्थनत र्ें
उपाध्यक्ष द्िािा इसकी अध्यक्षता की जाती है। िाज्यसभा का सभापनत इस बैठक की अध्यक्षता नहीं किता है
क्योंक्रक िह संसद के क्रकसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है लेक्रकन िाज्यसभा का उपसभापनत इस बैठक की
अध्यक्षता कि सकता है।
• इस संयुक्त बैठक का कोिर् दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या का दसिां भाग होता है। संयुक्त बैठक की
कायािाही लोकसभा के प्रक्रिया ननयर्ों के अनुसाि संचाशलत होती है ना क्रक िाज्यसभा के ननयर्ों के अनुसाि।
• 1950 से अब तक ननम्नशलखखत तीन र्ार्लों र्ें दोनों सदनों की सं युक्त बैठक बुलाया गया है
1. दहेज प्रनतषेध विधेयक, 1960
2. बैंक सेिा आयोग विधेयक, 1977
3. आतंकिाद ननिािण विधेयक, 2002

संसद र्ें बजट(अनुच्छे द 112)


• संविधान र्ें बजर्ट को िावषाक वित्तीय विििण कहा गया है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छे द 112 र्ें क्रकया
गया है।
• बजर्ट र्ें वित्तीय िषा के दौिान भाित सिकाि की अनुर्ाननत प्रान्प्तयों एिं खचों का विििण होता है।
• भाित के संविधान र्ें बजर्ट की प्रक्रिया से संबंधधत ननम्नशलखखत प्रािधान है :
1. िाष्ट्रपनत द्िािा प्रत्येक वित्त िषा र्ें संसद के दोनों सदनों के पर्टल पि सिकाि के अनुर्ाननत िाजस्ि एिं
खचों से संबंधधत दस्तािेज को िखिाया जाएगा।

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2. िाष्ट्रपनत की शसफारिश के त्रबना अनुदान की र्ांग नहीं की जाएगी।
3. सर्ेक्रकत विधध ननशर्ात विननयोग के भाित की संधचत ननधध से कोई धन नहीं ननकाला जाएगा।
4. विधधक प्रक्रिया के अलािा क्रकसी कि का संग्रहण या उगाही नहीं की जाएगी संसद क्रकसी कि को कर् या
सर्ाप्त कि सकती है लेक्रकन इसे बढा नहीं सकती है।
5. अनुदान की र्ांगों पि िाज्यसभा को र्तदान की शन्क्त प्राप्त नहीं होती है यह लोकसभा का अनन्य
विशेषाधधकाि है।
6. भाित की संधचत ननधध पि भारित व्यय पि संसद र्ें र्तदान नहीं होता है लेक्रकन इस पि संसद र्ें चचाा हो
सकती है।
• बजर्ट र्ें दो प्रकाि के व्यय शाशर्ल होते हैं - भाित की संधचत ननधध पि भारित व्यय औि भाित की संधचत ननधध
से क्रकए गए व्यय।
• िाष्ट्रपनत,उपिाष्ट्रपनत, लोकसभा अध्यक्ष, िाज्यसभा के उपसभापनत, लोकसभा के उपाध्यक्ष, उच्चतर् न्यायालय के
न्यायाधीश इत्यादद के िेतन एिं भत्ते भाित की संधचत ननधध पि भारित व्यय के अंतगात शाशर्ल होते हैं।
• क्रकसी न्यायालय या र्ध्यस्थ अधधकिण के ननणाय,डडिी की पुन्ष्ट्र्ट के शलए अपेक्षक्षत िाशशयां इसपि आधारित होते
है।
• संसद द्िािा विदहत अन्य खचा।
• पाररत होने की प्रकक्रया: बजट को प्रस्तुत करना → सार्ान्य चचाा→ विभागीय सशर्नतयों द्िािा जांच किना →
अनुदान की र्ांगों पि र्तदान किना→ विननयोग विधेयक का पारित होना → वित्त विधेयक का पारित होना।
• सदन के सदस्य अनुदान की र्ांगों पि कर्टौती के शलए प्रस्ताि ला सकते हैं इस प्रकाि के प्रस्ताि को कर्टौती
प्रस्ताि कहा जाता है यह ननम्नशलखखत प्रकाि के होते हैं:

नीनत कर्टौती प्रस्ताि: इसके अंतगात र्ांग की नीनत के प्रनत असहर्नत व्यक्त की जाती है इसर्ें र्ांग की रामश
र्ें एक रुपए की कटौती की र्ांग की जाती है।

इसर्ें र्ांग की िाशश को एक ननन्श्चत सीर्ा तक कर् किने के शलए कहा जाता है( यह
आधथाक कर्टौती प्रस्ताि: या तो र्ांग र्ें एकर्ुश्त कर्टौती हो सकती है या क्रफि पूिा सर्ान्प्त या र्ांग की क्रकसी र्द
र्ें कर्टौती हो सकता है)।

सांकेनतक कर्टौती इसर्ें कुल र्ांग र्ें ₹100 की कर्ी किने के शलए कहा जाता है।
प्रस्ताि:
• एक वित्तीय िषा हेतु आय औि व्यय के सार्ान्य प्रािधान के अलािा संसद द्िािा असाधािण या विशेष
परिन्स्थनतयों र्ें अनेक अन्य अनुदान भी प्रदान क्रकए जाते हैं:

अनुपूिक अनुदान: इसकी स्िीकृनत तब प्रदान की जाती है जब ककसी विशेष सेिा हेतु विननयोग अधधननयर्
द्िारा प्राधधकृत रामश उस िषा हेतु अपयााप्त होती है।

अनतरिक्त अनुदान: जब चालू वित्तीय िषा के दौिान क्रकसी नई से िा को शाशर्ल किने से अनतरिक्त व्यय की
आिश्यकता उत्पन्न होती है तब इसके र्ाध्यर् से धन प्रदान क्रकया जाता है।

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अधधक अनुदान: जब क्रकसी वित्तीय िषा र्ें क्रकसी सेिा के शलए बजर्ट र्ें ननधाारित िाशश से अनतरिक्त
िाशश खचा हो जाती है तब इसके र्ाध्यर् से धन प्रदान क्रकया जाता है।

प्रत्ययानुदान: जब क्रकसी सेिा के शलए आकन्स्र्क रूप से धन की अत्यधधक एिं तुिंत सहायता की
आिश्यकता होती है तो इस प्रकाि की अनुदान की र्ांग िखी जाती है।

अपिादानुदान: इसे विशेष प्रयोजन के शलए प्रदान क्रकया जाता है तथा यह ितार्ान वित्तीय िषा या सेिा
से संबंधधत नहीं होता है।

इस अनुदान की र्ांग तब िखी जाती है जब पहले से प्रस्तावित क्रकसी सेिा के


अनतरिक्त सेिा के शलए धन की आिश्यकता होती है। यह क्रकसी अनतरिक्त व्यय से
सांकेनतक अनुदान:
संबंधधत नहीं होता है।

विमभन्न ननधधयां:

भारत की संधचत ननधध भारत की लोक लेखा ननधध भारत की आकजस्र्कता ननधध

• अनुच्छे द 266 • अनुच्छे द 266 • अनुच्छे द 267

• यह एक ऐसी ननधध है जजसर्ें सभी • भाित की संधचत ननधध र्ें जर्ा होने • कानून के अंतगात संसद द्िािा
प्राजप्तयां जर्ा होती हैं और सभी िाले धन के अलािा अन्य सािाजननक ननधाारित िाशश सर्य-सर्य पि
भुगतान ककए जाते हैं। धन को इसी र्ें जर्ा क्रकया जाता है। इसर्ें जर्ा की जाती है।

• भारत सरकार की ओर से विधधक • इसर्ें भविष्ट्य ननधध जर्ा, न्यानयक • यह ननधध िाष्ट्रपनत के अधधकाि
रुप से प्राधधकृत सभी भुगतान इसी जर्ा, बचत बैंक जर्ा, विभागीय जर्ा र्ें होती है औि िह क्रकसी
ननधध से ककए जाते हैं। इत्यादद शाशर्ल हैं। अप्रत्याशशत व्यय के शलए इससे
अधग्रर् दे सकता है।

• इसर्ें से कोई भी धन संसद की • इस लेखे को कायाकािी प्रक्रिया द्िािा • इस ननधध को िाष्ट्रपनत की ओि


विधध के अनतररक्त नहीं ननकाला संचाशलत क्रकया जाता है। से वित्त सधचि द्िािा िखा जाता
जा सकता है। है। इसे कायाकािी प्रक्रिया द्िािा
संचाशलत क्रकया जाता है।

संसद की भूमर्का
भाित की िाजनीनतक - प्रशासननक व्यिस्था र्ें संसद की केंद्रीय भूशर्का होती है औि इसे विशभन्न शन्क्तयां प्राप्त
होती हैं। इसकी शन्क्तयों एिं कायों को ननम्नशलखखत शीषाकों के तहत िगीकृत क्रकया जा सकता है :विधायी शन्क्तयां
एिं काया + कायाकािी शन्क्तयां एिं काया + वित्तीय शन्क्तयां एिं काया + सांविधधक शन्क्तयां एिं काया + न्यानयक
शन्क्तयां एिं काया + ननिााचक शन्क्तयां एिं काया + अन्य शन्क्तयां एिं काया।

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राज्यसभा की विशेष शजक्तयां


राज्यसभा को ऐसी चार विशेष शजक्तयां प्रदान की गई है जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है जैसे :
1. यह संसद को िाज्य सूची र्ें शाशर्ल विषयों पि विधध बनाने हेतु अधधकृत कि सकती है।(अनुच्छे द 249)
2. यह संसद को केंद्र एिं िाज्य दोनों के शलए नई अखखल भाितीय सेिाओं के सज
ृ न हेतु अधधकृत कि सकती
है।(अनुच्छे द 312)
3. उप-िाष्ट्रपनत को हर्टाने से संबंधधत प्रस्ताि केिल िाज्यसभा र्ें ही लाया जा सकता है ना क्रक लोकसभा
र्ें।(अनुच्छे द 67)
4. यदद आपातकाल से पहले या आपातकाल के दौिान लोकसभा का विघर्टन हो जाता है तो िाष्ट्रीय आपातकाल या
िाष्ट्रपनत शासन या वित्तीय आपातकाल (अनुच्छे द 352, 356 औि 360 ) िाज्यसभा केअनुर्ोदन द्िािा जािी िह
सकता है।

संसदीय विशेषाधधकार
• यह संसद के दोनों सदनों, संसदीय सशर्नतयों औि इनके सदस्यों को प्राप्त होता हैं।
• भाित के संविधान द्िािा भाित के र्हान्यायिादी को संसदीय विशेषाधधकाि प्रदान क्रकए गए हैं लेक्रकन यह भाित
के िाष्ट्रपनत को प्रदान नहीं क्रकए गए हैं जो क्रक संसद का एक अशभन्न अं ग है।

संसद के दोनों सदनों के संबंध र्ें सार्ूदहक विशेषाधधकाि ननम्नशलखखत हैं:

• इसे अपनी रिपोर्टा, िाद वििाद औि कायािाही को प्रकाशशत किने तथा क्रकसी को इसे
प्रकाशशत ना किने दे ने का अधधकाि है।
• यह र्हत्िपूणा विषयों पि विचाि किने के शलए गुप्त बैठक किने के साथ-साथ
अपनी कायािाही से बाहिी लोगों को हर्टा सकते हैं।
• यह अपनी कायािाही के संचालन, काया के प्रबंधन तथा इन र्ार्लों के ननणाय हेतु
स्ियं ननयर् बना सकते हैं।
सार्ूदहक विशेषाधधकार
• यह अपने सदस्यों के साथ-साथ बाहिी व्यन्क्तयों को सदन के विशेषाधधकािों के
:
हनन एिं सदन की अिर्ानना किने पि दं ड दे सकते हैं।
• इसे अपने क्रकसी सदस्य की बंदी, अििोध, अपिाध शसद्धध, कािािास या र्ुन्क्त
संबंधधत तत्काल सूचना प्राप्त किने का अधधकाि है।
• इसे जांच किने तथा गिाह की उपन्स्थनत औि संबंधधत पेप ि एिं रिकॉडा के शलए
आदे श दे ने की शन्क्त है।
• न्यायालय, सदन तथा इसकी सशर्नतयों की कायािाही की जांच के शलए ननषेधधत
है।
• सदन क्षेत्र र्ें पीठासीन अधधकािी की अनुर्नत के त्रबना क्रकसी व्यन्क्त (सदस्य या
बाहिी व्यन्क्त) को बंदी नहीं बनाया जा सकता है औि ना ही कोई कानूनी कािािाई
(शसविल या आपिाधधक) की जा सकती है।

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व्यजक्तगत अधधकारों से संबंधधत विशेषाधधकार ननम्नमलणखत हैं:

• इन्हें संसद की कायािाही के दौिान, कायािाही चलने से 40 ददन पहले तथा बंद होने
के 40 ददन बाद तक बंदी नहीं बनाया जा सकता है। यह अधधकाि केिल नागरिक
व्यजक्तगत विशेषाधधकार
र्ार्लों तक विस्तारित है आपिाधधक औि प्रनतबंधात्र्क ननषेध र्ार्लों र्ें नहीं।
:
• इन्हें संसद र्ें भाषण दे ने की स्ितंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी सदस्य संसद या
इसकी सशर्नत र्ें ददए गए अपने भाषण या र्त के शलए क्रकसी भी न्यायालय की
क्रकसी भी कायािाही के शलए न्जम्र्ेदाि नहीं ठहिाया जाएगा।
• यह न्याय ननणायन सेिा से र्ुक्त होते हैं। यह संसद के सत्र र्ें िहने पि क्रकसी
न्यायालय र्ें लंत्रबत र्ुकदर्े र्ें प्रर्ाण प्रस्तुत किने या उपन्स्थत होने के शलए र्ना
कि सकते हैं।

विशेष अधधकारों का हनन • जब कोई व्यन्क्त या प्राधधकािी क्रकसी सं सद सदस्य की व्यन्क्तगत औि संयुक्त
एिं सदन की अिर्ानना: क्षर्ता र्ें इसके विशेषाधधकािों,अधधकािों औि उन्र्ुन्क्तयों का अपर्ान या उन पि
आिर्ण किता है तो इसे अपिाध विशेषाधधकाि हनन कहा जाता है औि यह सदन
द्िािा दं डनीय है।

र्ूल रूप से संविधान र्ें(अनुच्छे द105) संसद र्ें भाषण देने की स्ितंत्रता तथा इसकी
कायािाही के प्रकाशन के अधधकाि के रूप र्ें दो विशेष अधधकािों को शाशर्ल क्रकया गया
है। संसद ने अब तक विशेष अधधकािों को संदहताबद्ध किने के सं बंध र्ें कोई विशेष
विशेषाधधकारों के स्रोत विधध नहीं बनाई है। यह पांच स्रोतों पि आधारित है जैसे:
:
1. संिैधाननक प्रािधान
2. संसद द्िािा ननशर्ात अनेक कानून
3. दोनों सदनों के ननयर्
4. संसदीय पिं पिा औि
5. न्यानयक व्याख्या।

संसद की संप्रभुता
• संप्रभुता का तात्पया िाज्य की सिोच्च शन्क्त से है। इसके प्रभाि एिं न्याय क्षेत्र पि क्रकसी प्रकाि के प्रनतबं ध का
ना होना है। संसद की संप्रभुता का शसद्धांत त्रिदर्टश संसद से संबंधधत है जहां पि सिोच्च शन्क्त संसद र्ें ननदहत
है।
• भाितीय संसद को संप्रभु इकाई नहीं कहा जा सकता है क्योंक्रक इसके प्रभाि ि न्याय क्षेत्र पि विधधक प्रनतबं ध
आिोवपत हैं।
• भाितीय संसद की संप्रभुता को सीशर्त किने िाले कािक ननम्नशलखखत हैं:
1. संविधान की शलखखत प्रकृनत
2. सिकाि की संघीय व्यिस्था

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3. न्यानयक सर्ीक्षा की व्यिस्था
4. र्ूल अधधकाि
• इस संदभा र्ें भाितीय संसद अर्ेरिकी विधानयका (न्जसे कांग्रेस के रूप र्ें जाना जाता है)के सर्ान है। अर्ेरिका र्ें
भी कांग्रेस की संप्रभुता िै धाननक रूप से संविधान के शलखखत शब्दों, सिकाि की संघीय व्यिस्था, न्यानयक सर्ीक्षा
तथा अधधकािों के विधेयक द्िािा प्रनतबंधधत है।

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20. सं सदीय समर्नतयााँ

• भाित के संविधान र्ें ऐसी सशर्नतयों का अलग-अलग स्थानों एिं संदभों र्ें उल्लेख आता है , लेक्रकन इन
सशर्नतयों के गठन, कायाकाल तथा कायों आदद के संबंध र्ें कोई प्रािधान नहीं शर्लता| इन सभी र्ार्लों के बािे
र्ें संसद के दोनों सदनों के ननयर्न ही प्रभािी होते हैं ।
• संसदीय समर्नत िह समर्नत है जो सदन द्िािा ननयुक्त अथिा ननिााधचत होती है अथिा न्जसे लोकसभा अध्यक्ष
/सभापनत नाशर्त किते हैं, लोकसभा अध्यक्ष/सभापनत के ननदे शानुसाि काया किती है, अपनी रिपोर्टा (अपना
प्रनतिेदन) सदन को अथिा लोकसभा अध्यक्ष/सभापनत को सौंपती है, न्जसका एक सधचिालय होता है तथा
न्जसकी व्यिस्था लोकसभा/िाज्यसभा किता है ।

र्ानदं ड प्राक्कलन समर्नत लोक लेखा समर्नत सािाजननक उपक्रर्ों पर विभागीय स्थायी समर्नत
समर्नत (24 समर्नतयााँ)

व्युत्पवत्त 1950- जॉन र्थाई इस सशर्नत का गठन कृष्ट्ण र्ेनन सशर्नत लोकसभा के ननयर्
की शसफारिश पि भाित सिकाि की शसफारिश पि 1964 सशर्नत की अनुशंसाओं पि
अधधननयर्, 1919 के र्ें गदठत क्रकया गया| 1993 र्ें गदठत क्रकया
अंतगात प्रथर् बाि गया|
1921 र्ें हुआ औि
तब से यह अन्स्तत्ि
र्ें है|
सभी 30 सदस्य ितार्ान र्ें 22 -लोक लेखा सशर्नत के प्रत्येक सशर्नत र्ें 31
लोक सभा से सदस्य (15 सर्ान सदस्य (लोक सभा से 21
(सबसे बड़ी सशर्नत) लोकसभा + 7 िाज्य सभा से 10) होते हैं|
िाज्यसभा)
र्ंत्रत्रयों को सदस्य संबंधधत पीठासीन
-र्ंत्री सदस्य नहीं हो
के रूप र्ें ननयुक्त -सदस्यों का कायाकाल अधधकारियों द्िािा नाशर्त।
सकते
नहीं क्रकया जा एक िषा का होता है
गठन
सकता |
–सर्ानुपानतक
गठन के सर्य से लेकि
प्रनतननधधत्ि के
सशर्नत का कायाकाल एक
शसद्धांत के अनुसाि
िषा का होता है|
एकल हस्तांतिणीय
र्त के र्ाध्यर् से
चुनाि

अध्यक्ष - विपक्षी दल
से

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-र्ंत्री इसके सदस्य
नहीं हो सकते|

इस सशर्नत का कैग ऑडडर्ट रिपोर्टा की विधेयकों की जांच किना,


काया बजर्ट र्ें जाँच किता है औि अनुदान र्ांगों औि अन्य
सािाजननक िेत्र के
सन्म्र्शलत अननयशर्तताओं की र्ार्लों की अनुशंसा किना
उद्यर्ों के ददन
प्राक्कलनों की जांच खोज किता है। है। 24 स्थायी सशर्नतयों
प्रनतददन के कायों र्ें
किना तथा र्ें से, 8 िाज्यसभा तथा
काया हस्तिेप नहीं करता है|
सािाजननक व्यय र्ें 16 लोकसभा के
शर्त्ियता के शलए अधीनकाया किती हैं।
शसफारिश किना है|

सहायक नहीं उपलब्ध है। नहीं नहीं


अधधकािी
ननयंत्रक एिं
र्हालेखा
पिीक्षक(CAG)–लोक
लेखा समर्नत के मलए
मर्त्र, दाशाननक,
र्ागादशाक

नीनत र्ें प्रशासन र्ें काया नहीं नहीं नहीं


भागीदािी कुशलता औि
शर्तव्यनयता लाने
के शलए िैकन्ल्पक
नीनतयों के बािे र्ें
सुझाि दे ना |

कैब्रबनेट समर्नतयां:
• ये सशर्नतयां गैि -संिैधाननक अथिा संविधानेत्ति है ।
• भाित र्ेंकायापाशलका भाित सिकाि(रांजैक्शन ऑफ त्रबजनेस ) ननयर्ािली 1961 के तहत काया किती है।
• ये ननयर् संविधान के अनुच्छे द 77 (3) से व्यूतपन्न होते हैं , न्जसर्ें कहा गया है: "िाष्ट्रपनत भाित सिकाि के
कार्काज को अधधक सुविधाजनक बनाने के शलए औि उक्त कार्काज को र्ंत्रत्रयों के बीच आिंर्टन से सं बंधधत
ननयर् बनाएंगे।
• दो प्रकाि की सशर्नतयां हैं : स्थायी औि तदथा सशर्नतयां।
1. स्थायी→स्थायी सशर्नतयां
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2. तदभा सशर्नतयां →विशेषप्रयोजनों के शलए अस्थायी रूप से गदठत की जाती हैं।
• प्रधानर्ंत्री द्िािा गदठत + सदस्य संख्या 3 से 8 तक हो सकती है + प्रभािी र्ंत्री भी सन्म्र्शलत + िरिष्ट्ठ
र्ंत्री शाशर्ल होते हैं + र्ंत्रत्रर्ंडल के विचाि के शलए प्रस्ताि का ननर्ााण + कैत्रबनेर्ट के कायाभािर्ें कर्ी किना।

कायारत र्ंब्रत्रर्ंडलीय समर्नतयां

• िाजनीनतक र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत (न्जसे सुपि कैत्रबनेर्ट कहा जाता है): विदे शी औि घिे लू र्ार्लों से
संबंधधत सभी नीनतगत र्ार्लों की ननगिानी किती है → प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें |
• आधथाक र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत: आधथा क क्षेत्र की सिकािी गनतविधधयों को ननदे शशत किती हैं तथा उनर्ें
सर्न्िय भी स्थावपत किती है → प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• र्ंत्रत्रर्ंडलीय ननयुन्क्त सशर्नत: केंद्रीय सधचिालय, लोक उद्यर्ों, बैंकों औि वित्तीय संस्थानों र्ें सभी उच्च पदों
पि ननयुन्क्तयों के संबंध र्ें ननणाय लेती हैं →प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• सुिक्षा के शलए र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत →प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें।
• संसदीय र्ार्लों की र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत: संसद र्ें सिकािी कार्काज की प्रगनत को दे खती है → गह
ृ र्ंत्री की
अध्यक्षता र्ें |
• आिास ( accommodation )के शलए र्ंत्रत्रर्ंडलीय सशर्नत |
• ननिेश औि विकास पि कैत्रबनेर्ट सशर्नत→प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें|
• िोजगाि औि कौशल विकास पि कैत्रबनेर्ट सशर्नत→ प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता र्ें|

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21. उच्चतर् न्यायालय

उच्चतर् न्यायालय की संरचना: (अनुच्छे द 124)


• भाितीय संविधान के भाग V र्ें अनुच्छे द 124 से 147 तक उच्चतर् न्यायालय के गठन का प्रािधान है।
• न्यायालय की यह एकल व्यिस्था भाित सिकाि अधधननयर् 1935 से ग्रहण की गई है औि यह केंद्रीय एिं िाज्य
विधधयों को लागू कि सकती है।
• भाित के उच्चतर् न्यायालय का उद्घार्टन 28 जनििी 1950 को क्रकया गया था तथा इसने त्रिर्टे न के वप्रिी
काउं शसल का स्थान ग्रहण क्रकया था, जो अब तक अपील का सिोच्च न्यायालय था।
• इसर्ें कुल शर्लाकि 34 न्यायाधीश हो सकते हैं (र्ुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश)
• उच्चतर् न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन अधधननयर् 2019 के अंतगात न्यायाधीश की कुल संख्या को
31 से बढाकि 34 कि ददया गया है।
• र्ुख्य न्यायाधीश की ननयुन्क्त िाष्ट्रपनत उच्चतर् न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों एिं उच्च न्यायालय के
न्यायाधीशों की सलाह के बाद किता है।
• इसी तिह उच्चतर् न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की ननयुन्क्त भी िाष्ट्रपनत र्ुख्य न्यायाधीश तथा अन्य
न्यायाधीशों की सलाह के बाद किता है।
• र्ुख्य न्यायाधीश के अनतरिक्त अन्य न्यायाधीशों की ननयुन्क्त र्ें र्ुख्य न्यायाधीश का पिार्शा आिश्यक होता
है।

सहर्नत बनार् परार्शा :


• प्रथर् न्यायाधीश र्ार्ले (1982): पिार्शा का र्तलब सहर्नत नहीं, ििन विचािों का आदान प्रदान है।
• द्वितीय न्यायाधीश र्ार्ले (1993): पिार्शा का र्तलब सहर्नत प्रकर्ट किना है। न्यायाधीशों की ननयुन्क्त के
र्ार्ले र्ें उच्चतर् न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश द्िािा दी गई सलाह को र्ानने के शलए िाष्ट्रपनत बाध्य होगा
(लेक्रकन र्ुख्य न्यायािीश यह सलाह अपने दो िररष्ट्ठ सहयोधगयों से विचार-विमशम करने के बाद दे गा)।
• तीसिे न्यायाधीश र्ार्ले (1998): पिार्शा प्रक्रिया को र्ुख्य न्यायाधीश द्िािा 'बहुसंख्यक न्यायाधीशों की विचाि'
प्रक्रिया के तहत र्ाना जाएगा। भाित के र्ुख्य न्यायाधीश को उच्चतर् न्यायालय के चाि िरिष्ट्ठ न्यायाधीशों से
सलाह किनी चादहए (इनर्ें से अगि दो का भी र्त भी पक्ष र्ें नहीं है तो िह ननयुन्क्त के शलए शसफारिश नहीं
भेज सकता)।
• 99िां सींवििान सींशोिन अधधननयर्, 2014 तथा िाष्ट्रीय न्यातयक तनयुजतत आयोग (एनजेएसी) को िषा 2015 र्ें
अर्ान्य ठहराते हुए असींिैिातनक घोवर्त कर ददया।

भाित के मुख्य िररष्ठतर् न्यायाधीश को बतौर र्ुख्य न्यायाधीश ननयुक्त ककया जाता था।(1950-
न्यायाधीश की ननयुक्तत 1973) → बाद र्ें इस व्यिस्था को खत्र् कि ददया गया → दूसिे न्यायािीश मामले
(1993): इसर्ें उच्चतर् न्यायालय ने यह व्यिस्था दी कक उच्चतर् न्यायालय के
िररष्ठत्तर् न्यायाधीश को ही भारत का र्ुख्य न्यायाधीश ननयुक्त ककया जाना चादहए।

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• उसे भाित का नागरिक होना चादहए।
• उसे क्रकसी उच्च न्यायालय का कर् से कर् 5 साल के शलए न्यायाधीश होना चादहए
न्यायाधीशों की अहाताएं
, या
• उसे उच्च न्यायालय या विशभन्न न्यायालयों र्ें शर्लाकि 10 िषा तक िकील होना
चादहए या िाष्ट्रपनत के र्त र्ें उसे सम्र्ाननत न्यायिादी होना चादहए (उच्च
न्यायालय के मलए ऐसी कोई शतम नह ीं है)।
• कोई न्यूनतर् आयु का उल्लेख नहीं है।
शपथ या प्रनतज्ञान 4. उच्चतर् न्यायालय के शलए ननयुक्त न्यायाधीश को अपना कायाकाल संभालने से पूिा
िाष्ट्रपनत या इस काया के शलए उसके द्िािा ननयुक्त व्यन्क्त के सार्ने शपथ लेनी
होगी ।
िेतन एिं भत्ते उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीशों का िेतन, भत्ते, विशेषाधधकाि, अिकाश एिं पेंशन का
ननधाािण सर्य-सर्य पि संसद द्िािा क्रकया जाता है।
• संविधान र्ें उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीशों का कायाकाल तय नहीं क्रकया गया
है।
न्यायाधीशों का कायजकाल
• इसके शलए तीन उपबंध बनाए गए हैं : िह 65 िषा की आयु तक इस पद पि बना
िह सकता है। उसके मामले में ककसी प्रश्न के उठने पर सींसद द्िारा स्थावपत
सींस्था इसका तनिामरण करे गी। + िह िाष्ट्रपनत को शलखखत त्यागपत्र दे सकता है।
+ संसद की शसफारिश पि िाष्ट्रपनत द्िािा उसे पद से हर्टाया जा सकता है।

• उसे िाष्ट्रपनत के आदे श द्िािा उसके पद से हर्टाया जा सकता है।


• िाष्ट्रपनत ऐसा तभी कि सकता है, जब इस प्रकाि हर्टाये जाने हेतु संसद द्िािा उसी
सत्र र्ें ऐसा संबोधन क्रकया गया हो।
न्यायाधीशों को हर्ाना • हर्टाने का आधाि : अक्षर्ता या शसद्ध कदाचाि
• न्यायाधीश जांच अधधननयर् (1968) उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीशों को हर्टाने
के संबंध र्ें र्हाशभयोग की प्रक्रिया का उपबंध किता है।
• ननष्ट्कासन प्रस्ताि : 100 सदस्यों (लोकसभा) या 50 सदस्यों (िाज्यसभा) द्िािा
हस्ताक्षर करने के बाद → अध्यक्ष/सभापनत को ददया जाना चादहए।
• अगर अध्यि/सभापनत इस प्रस्ताि को शामर्ल कर लेते हैं। → इसकी जांच के
शलए उनके द्िािा तीन सदस्यीय सशर्नत का गठन क्रकया जाएगा।
• सशर्नत : र्ुख्य न्यायाधीश या उच्चतर् न्यायालय का कोई न्यायाधीश + क्रकसी
उच्च न्यायालय का र्ुख्य न्यायाधीश + प्रनतन्ष्ट्ठत न्यायिाद ।
न्यायाधीश जांच • अगि उन्हें दोषी पाया जाता है → तो सदन इस प्रस्ताि पि विचाि कि सकता है।
अधधननयम 1968: • विशेष बहुर्त से दोनों सदनों र्ें प्रस्ताि पारित कि इसे िाष्ट्रपनत को भेजा जाता है।
• अंत र्ें िाष्ट्रपनत के द्िािा न्यायाधीश को हर्टाने का आदे श जािी कि ददया जाता है।
• उच्चतर् न्यायालय के क्रकसी भी न्यायाधीश पि अभी तक र्हाशभयोग नहीं लगाया
गया है।

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कायजकाि मुख्य • िाष्ट्रपनत क्रकसी न्यायाधीश को भाित के उच्चतर् न्यायालय का कायाकािी र्ुख्य
न्यायाधीश : न्यायाधीश तब ननयुक्त कि सकता है जब : पद रिक्त हो; अस्थाई रूप से
अनुपजस्थत हो; अपने दानयत्िों के ननिाहन र्ें असर्था हो।

• जब क्रकसी सत्र को पूिा किने के शलए कोिर् पूिा किने र्ें स्थाई न्यायाधीशों की
तदथज न्यायाधीश : संख्या कर् हो िही हो, → भाित का र्ुख्य न्यायाधीश क्रकसी उच्च न्यायालय के
क्रकसी न्यायाधीश को अस्थाई काल के शलए उच्चतर् न्यायालय र्ें तदथा न्यायाधीश
ननयुक्त कि सकता है (ऐसा िह सीं बींधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायािीश के
परामशम एिीं राष्ट्रपतत की पूिम मींिूर के बाद ह कर सकता है।)
• तदथा न्यायाधीश = उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश के न्यायक्षेत्र शन्क्तयां औि
विशेषाधधकाि।

सेिाननिृत्त न्यायाधीश: • क्रकसी भी सर्य भाित का र्ुख्य न्यायाधीश उच्चतर् न्यायालय या उच्च न्यायालय
के सेिाननित्त
ृ न्यायाधीश से अल्पकाल के शलए उच्चतर् न्यायालय र्ें काया किने
का अनुिोध कि सकता है।

उच्चतर् न्यायालय का • ददल्ली (संविधान के अनुसार) + र्ुख्य न्यायािीश को यह अधिकार है कक उच्चतम


स्थान (अनुच्छे द 130): न्यायालय का स्थान कह ीं और ननधाारित कि सकता हैं + िाष्ट्रपनत की पूिम अनुमतत
िरूर ।

o उच्चतर् न्यायालय + िाष्ट्रपनत की र्ंजूिी के बाद न्यायालय की प्रक्रिया औि


संचालन हेतु ननयर् बना सकता है।
न्यायालय की प्रकिया :
o संिैधाननक र्ार्ले + अनुच्छे द 143 = कर् से कर् पांच न्यायाधीशों की पीठ के
द्िािा ननखणात क्रकया जाता है।
o सभी ननणाय = बहुर्त के आधाि पि
• अगि र्त शभन्नता हो तो न्यायाधीश इस असहर्नत का कािण बता सकता है।

o ननयुन्क्त का तिीका : न्यायाधीशों की तनयुजतत न्यायपामलका िुद करती है।


o कायाकाल की सुिक्षा : उन्हें संविधान र्ें उन्ल्लखखत प्रािधानों के जरिए ही शसफा
िाष्ट्रपनत के द्िािा हर्टाया जा सकता है।
o ननन्श्चत सेिा शतें : उनकी ननयुन्क्त के बाद न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते, अिकाश,
उच्चतम न्यायालय की विशेषाधधकाि, पेंशन को उनके शलए प्रनतकूल ढं ग से ननशर्ात नहीं क्रकया जा सकता
स्ितंत्रता: शसिाय वित्तीय आपातकाल के दौिान (अनुच्छे द 360)।
o सभी खचा भाित की संधचत ननधध पि भारित होते हैं।
o न्यायाधीशों के आचिण पि बहस नहीं हो सकती : र्हाशभयोग के अनतरिक्त
न्यायाधीशों के आचिण पि संसद र्ें या िाज्य विधानर्ंडल र्ें बहस नहीं हो सकती।
o सेिाननिृवत्त के बाद िकालत पि िोक : उच्चतर् न्यायालय तथा अन्य उच्च
न्यायालय को छोड़कि।

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o अपने अधिकाररयों एिीं कमम चाररयों को ननयुक्त किने की स्ितंत्रता।
o इसके न्यायक्षेत्र र्ें कर्टौती नहीं की जा सकती : लेककन सींसद इसमें िृद्धि कर
सकती है।
• कायापाशलका से पृथतकरण।

उच्चतम न्यायालय की शक्ततयां एिं क्षेत्राधधकाि

ननम्नशलखखत के बीच वििादों पि ननणाय देता है :


o िाज्य एिं केंद्र
o दो या अधधक िाज्यों के बीच
र्ूल िेत्राधधकार (अनुच्छे द o केंद्र औि कोई िाज्य या िाज्यों का एक तिफ होना एिं एक या अधधक िाज्यों का
131): दूसिी तिफ होना।
• ऐसे र्ार्लों की सुनिाई का अधधकाि शसफा उच्चतर् न्यायालय के पास ही है ] -
'विशेर् र्ूल' न्यायक्षेत्र।
• िाजनीनतक प्रकृनत के प्रश्नों से बचा जाता है।
• वििादों र्ें क्रकसी प्रश्न का होना जरूिी है। (चाहे िह कानून हो या तथ्य)
• कोई वििाद जो क्रकसी पूिा सं िैधाननक संधध, सर्झौता, प्रसंविदा, सनद एिं अन्य
सर्ान संस्थाओं को लेकि उत्पन्न हुआ हो।
• कोई वििाद जो संधध, सर्झौते आदद के बाहि पैदा हुआ हो न्जसर्ें विशेष तौि पि
यह व्यिस्था हो क्रक संबंधधत न्यायक्षेत्र उस वििाद से संबंधधत नहीं है।
• अंतिााजीय िाज्य जल वििाद।
• वित्त आयोग आदद के संदभा िाले र्ार्ले।
• पीडड़त सीधे उच्चतर् न्यायालय र्ें जा सकता है।
• लेक्रकन यह विशेषाधधकाि नहीं है। (उच्च न्यायालय भी न्यायदे श िार कर सकते
हैं)
न्यायादे श क्षेत्राधधकाि • शसफा र्ूल अधधकािों के क्रियान्ियन के शलए (कानूनी अधिकारों के मलए नह ीं –
(अनुच्छे द 32): न्यायादे श न्यायक्षेत्र के र्सले पि उच्च न्यायालय से कर्)।
• न्यायाधीश न्यायाक्षेत्र के र्सले पि उच्च न्यायालय का क्षेत्र उच्चतर् न्यायालय
की तुलना र्ें ज्यादा विस्तृत है।
• नोट - उच्चतम न्यायालय केिल मूल अधिकारों के कियान्ियन के सींबीं ि में ही
न्यायादे श िार कर सकता है तथा “अन्य उद्दे श्य से नहीं ”। इसका र्तलब है
क्रक न्यायादे श न्यायाक्षेत्र के र्सले पि उच्च न्यायालय का क्षेत्र ज़्यादा विस्तृत है।

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अपील य न्यायिेत्र : संिैधाननक मामले + उच्च न्यायालय के फैसले के खखलाफ
अपील + दीिानी र्ार्ले + अपिाधधक र्ार्ले + अपील के शलए विशेष अनुर्नत।

संिैधाननक र्ार्ले : उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ, अगि र्ार्ले र्ें विधध का
पूिक प्रश्न ननदहत है न्जसर्ें संविधान की व्याख्या की जरूित हो।

दीिानी र्ार्ले : उच्चतर् न्यायालय र्ें क्रकसी र्ार्ले को तब लाया जा सकता है जब


: र्ार्ला सार्ान्य र्हत्ि के पूि क प्रश्न पि आधारित हो + ऐसा प्रश्न हो न्जसका
ननणाय उच्चतर् न्यायालय द्िािा क्रकया जाना आिश्यक हो।

अपराधधक मामले : उच्चतर् न्यायालय उच्च न्यायालय के अपिाधधक र्ार्लों के


फैसलों के खखलाफ सुनिाई किता है यदद उच्च न्यायालय ने :

a. आिोपी व्यन्क्त के दोषर्ोचन के आदे श को पलट ददया हो


अपील य क्षेत्राधधकाि : अधधकािों
तथा उसे सजा ए र्ौत दी हो।
का
b. क्रकसी अधीनस्थ न्यायालय से र्ार्ला लेकर आरोपी व्यजक्त
र्ार्ला
को दोषमसद्ध ककया हो तथा उसे सजा ए र्ौत दी हो
c. यह प्रर्ाखणत किें क्रक संबंधधत र्ार्ला उच्चतर् न्यायालय र्ें
ले जाने योग्य है।

अगि उच्च न्यायालय ने बंदीकिण के आदे श को पलर्ट कि आिोपी को दोषर्ुक्त किने का


आदे श ददया हो तो उच्चतर् न्यायालय र्ें अपील का कोई अधधकाि नहीं होगा।

• न्यायालय को इस बात का अधधकाि है क्रक िह अपना र्त विशेष अनुर्नत प्राप्त


अपील को दे जो क्रक ककसी भी फैसले से सींबींधित मामले से िुड़ी हो। फैसला क्रकसी
अपील के मलए विशेष भी न्यायालय या अधधकिणों से संबंधधत हों।
अनुर्नत (अनुच्छे द 136) • अपिाद : कोर्टा र्ाशाल या सैन्य अदालत
• 4 पहलू होते हैं : यह एक वििेकानुसार शन्क्त है तथा अधिकार नह ीं + क्रकसी भी
फैसले र्ें इसका र्त या तो अंनतर् होता है या अंतरिर् + क्रकसी भी मामले से
सींबींधित हो सकता है : संिैधाननक, दीिानी, अपिाधधक, आयकि, श्रर्, िाजस्ि,
िकील आदद + क्रकसी भी न्यायालय या अधधकिण के खखलाफ क्रकया जा सकता है ,
केिल उच्च न्यायालय के खखलाफ ही जरूिी नहीं है → इसका प्रयोग सािधानी के
साथ विशेष परिन्स्थनतयों र्ें ही क्रकया जाता है।
राष्रपनत → उच्चतर् न्यायालय (िाय दे ता है ) → िाष्ट्रपनत

िाष्ट्रपनत को ननम्न दो श्रेणी के र्ार्लों र्ें उच्चतर् न्यायालय से िाय लेने का


सलाहकार क्षेत्राधधकाि
अधधकाि है :
(अनुच्छे द 143):
• सािाजननक र्हत्ि के क्रकसी र्सले या त्य पि विधधक पश्न उठने या संभावित

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रूप से उठने पि → उच्चतर् न्यायालय अपना मत दे भी सकता है और दे ने से
इनकार भी कर सकता है।
• क्रकसी पूिा संिैधाननक संध ध, सर्झौते, संविधान आदद सनद र्ार्लों पि क्रकसी
वििाद के उत्पन्न होने पि → उच्चतर् न्यायालय द्िारा मत दे ना अतनिायम है।
नोट : िाष्ट्रपनत इस सलाह को र्ानने के शलए बाध्य नहीं होता है

उच्चतर् न्यायालय की कायािाही एिं उसके फैसले सािाकाशलक अशभलेख ि साक्ष्य के


अमभलेख का न्यायालय : रूप र्ें िखे जाएं गे :

o इन अशभलेखों पि क्रकसी भी न्यायालय के द्िािा प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।


o उन्हें विधधक संदभा की तिह स्िीकाि क्रकया जाएगा
न्यायालय की अिमानना 2 िषा के शलए सार्ान्य जेल / ₹2000 तक का अथादंड या दोनों।
पर दं डडत करने का
अधधकाि :

• मसविल अिर्ानना : स्िेच्छा से ककसी फैसले आदे श न्यायादे श की अिहेलना करना


या अदालत को ददए गए क्रकसी िचन(अंडिर्टे क्रकं ग) का स्िेच्छा से उल्लंघन।
• आपराधधक अिर्ानना : ककसी ऐसी सामग्री का प्रकाशन औि ऐसा कायम करना
जिसमें → न्जसर्ें न्यायालय की न्स्थनत को कर्ति आंकना या उसको बदनार्
किना + न्यानयक कायािाही या प्रक्रिया र्ें क्रकसी भी तिीके से बाधा पहुंचाना +
न्याय प्रशासन को ककसी भी तर के से रोकना।
न्यायालय की अिमानना • ये चीजें न्यायालय की अिर्ानना र्ें नहीं आती : ककसी मामले का तनदोर् प्रकाशन
: और उसका वितरण + न्यातयक कायािाही की उधचत रिपोर्टा + न्यानयक कायािादहयों
की उधचत ि ननष्ट्पक्ष आलोचना + प्रशासननक ददशा से इस पि दर्टप्पणी।

न्यानयक समीक्षा : उच्चतर् न्यायालय सींवििान का अींततम व्याख्याता है।

• यह िाष्ट्रपनत एिं उपिाष्ट्रपनत के ननिााचन के संबंध र्ें क्रकसी प्रकाि के वििाद का


ननपर्टािा किता है। इस संबंध र्ें यह र्ूल, विशेष एिं अंनतर् व्यिस्थापक है।
• यह संघ लोक सेिा आयोग के अध्यक्ष एिं सदस्यों के व्यिहाि एिं आचिण की
जांच किता है, उस संदभा र्ें न्जसे िाष्ट्रपनत द्िािा ननशर्ात क्रकया गया है →
उच्चतर् न्यायालय द्िारा द गई इस सलाह को मानने के मलए राष्ट्रपतत बाध्य
होता है।
अन्य शक्ततयां : • इसे अपने स्ियं के फैसले या आदे शों की सर्ीक्षा किने की शन्क्त है।
• इसकी विधधयां भाित के सभी न्यायालयों के शलए बाध्य होंगी।

नोट : उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश एिं शन्क्तयों को केंद्रीय सूची से संबंधधत


र्ार्लों पि संसद द्िािा विस्तारित क्रकया जा सकता है।

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22. उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय का संगठन : (अनुच्छे द 216)


• संविधान के भाग छह र्ें अनुच्छे द 214 से 231
• भाित र्ें उच्च न्यायालय संस्था का सिाप्र थर् गठन 1862 र्ें तब हुआ, जब कलकत्ता, बंबई औि र्द्रास उच्च
न्यायालयों की स्थापना हुई।
• भाित की एकल सर्ेक्रकत न्यानयक व्यिस्था र्ें िाज्य के न्यानयक प्रशासन र्ें उच्च न्यायालय की न्स्थनत सबसे
ऊपि होती है।
• िाज्य न्यायपाशलका = उच्च न्यायालय + अधीनस्थ न्यायालय
• संविधान के द्िािा प्रत्येक िाज्य के शलए एक उच्च न्यायालय की व्यिस्था की गई है → सातिें सींशोिन
अधधननयर् 1956 के द्िािा संशोधधत – दो या दो से अधधक िाज्यों एिं संघ िाज्य क्षेत्र के शलए एक साझा उच्च
न्यायालय की स्थापना की जा सकती है|
• संसद एक उच्च न्यायालय के न्यानयक क्षेत्र का विस्ताि, क्रकसी संघ िाज्य क्षेत्र र्ें कि सकती है अथिा क्रकसी संघ
िाज्य क्षेत्र को एक उच्च न्यायालय के न्यानयक क्षेत्र से बाहि कि सकती है|
• केिल ददल्ली औि जम्र्ू एिं कश्र्ीि ही ऐसे संघ िाज्य क्षेत्र हैं न्जसका अपना उच्च न्यायालय है (1966 से)।
• संविधान र्ें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या के बािे र्ें विशेष तौि पि कुछ नहीं बताया गया है तथा
इसे िाष्ट्रपनत के वििेक पि छोड़ ददया गया है।
• र्ुख्य न्यायाधीश की ननयुन्क्त िाष्ट्रपनत द्िािा, भाित के र्ुख्य न्यायाधीश औि संबंधधत िाज्य के िाज्यपाल से
पिार्शा के बाद की जाती है (दो या अधिक राज्यों के साझा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तनयुजतत में
राष्ट्रपतत सभी सींबींधित राज्यों के राज्यपालों से परामशम करता है )।
• अन्य न्यायाधीशों की ननयुन्क्त र्ें संबंधधत उच्च न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश से भी पिार्शा क्रकया जाता है।
• प्रथर् न्यायाधीश र्ार्ले (1982)- उच्चतर् न्यायालय ने कहा था क्रक “पिार्शा ” का र्तलब “सहर्नत” नहीं, ििन
विचािों का आदान प्रदान है।
• द्वितीय न्यायाधीश र्ार्ले (1993)- उच्चतर् न्यायालय ने अपने पूिा के फैसले को पररिततमत ककया तथा कहा
क्रक “पिार्शा का र्तलब सहर्नत प्रकर्ट किना है”।
• तीसरे न्यायाधीश र्ार्ले (1998)- उच्चतर् न्यायालय ने यह र्त ददया क्रक पिार्शा प्रक्रिया को र्ुख्य न्यायाधीश
द्िािा “बहुसंख्यक न्यायाधीशों की विचाि” प्रक्रिया के तहत र्ाना जाएगा (केिल भाित के र्ुख्य न्यायाधीश का
एकल र्त ही पिार्शा प्रक्रिया को पूणा नहीं किता)। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की ननयुन्क्त पि उच्चतर्
न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश को दो ििीयतर् न्यायाधीशों के कॉलेन्जयर् से पिार्शा किना चादहए।
• चतुथा न्यायाधीश र्ार्ले (2015) - सिोच्च न्यायालय के द्िािा 99िें संविधान संशोधन तथा िाष्ट्रीय न्यानयक
ननयुन्क्त आयोग (एनजेएसी) दोनों को न्यायपाशलका की स्ितंत्रता को प्रभावित किने के आधाि पि असंिैधाननक
घोवषत कि ददया गया।

• उसे भारत का नागररक होना चादहए + उसे भारत के न्यानयक काया र्ें 10 िषा का अनुभि

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न्यायाधीशों की होना चादहए या िह उच्च न्यायालय र्ें लगातार 10 िषज तक अधधिक्ता रह चुका हो।
योग्यताएं • कोई न्यूनतर् आयु का ननधाारण नहीं ककया गया है।
• संविधान र्ें राष्रपनत के विचार र्ें “प्रख्यात न्यायविदों” को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश
ननयुक्त करने का कोई प्रािधान नहीं है (उच्चतम न्यायालय के मामले के विपि त)|
शपथ अथिा • न्जस व्यन्क्त को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश ननयुक्त क्रकया गया है, उसे पद संभालने
प्रनतज्ञान : से पूिा उस राज्य के राज्यपाल या इस काया के शलए उसके द्िािा ननयुक्त क्रकसी अन्य
व्यन्क्त के सार्ने शपथ/प्रनतज्ञान लेना होता है।
• उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का िेतन, भत्ते , सुविधाएं , अिकाश औि पेंशन को सर्य
सर्य पि संसद द्िािा ननधाारित क्रकया जाता है।
िेतन एिं भत्ते :
• उनकी ननयुन्क्त के बाद, शसिाय वित्तीय आपातकाल के उनर्ें कोई कर्ी नहीं की जा
सकती है (अनुच्छे द 360)।
• नोर्ट - उच्च न्यायालय के न्यायािीश का िेतन “िाज्य की संधचत ननधध ” पि भारित होता
है जबक्रक पेंशन “भाित के संधचत ननधध” पि भारित होता है|
o संविधान र्ें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कायाकाल ननधााररत नहीं क्रकया गया है।

o इस संबंध में चाि प्रािधान ककए गए हैं : िह 62 िर्म की आयु तक पद पर रहता है (


उच्चतम न्यायालय के र्ार्ले र्ें 65 िषा ) + िाष्ट्रपनत को अपना त्यागपत्र भेज सकता है
कायाकाल :
+ संसद की मसफाररश से राष्ट्रपतत उसे पद से हटा सकता है + उसकी ननयुन्क्त उच्चतम
न्यायालय में न्यायािीश के रूप में हो िाने पर या उसका ककसी दूसरे उच्च न्यायालय में
स्थानाींतरण हो िाने पर िह पद छोड़ दे ता है।
• उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी उसी
प्रकक्रया और आधारों पि हर्टाया जा सकता है।
• संसद की मसफाररशों के आधाि पि िाष्ट्रपनत के आदे श से इसे पद से हर्टाया जा सकता है

• प्रस्ताि को विशेष बहुर्त के साथ संसद के प्रत्येक सदन का सर्थान शर्लना आिश्यक है।
न्यायाधीशों को
• हर्टाने का आधाि :
हर्ाना
• सात्रबत कदाचाि
• अक्षमता
• न्यायाधीश जांच अधधननयर् (1968) र्ें उच्च न्यायालय के न्यायािीश को महामभयोग की
प्रकिया के द्िारा हटाने का प्राििान ककया गया है।
• हर्टाने का प्रस्ताि : 100 सदस्यों (लोकसभा) या 50 सदस्यों (िाज्यसभा) द्िािा
हस्ताक्षरित प्रस्ताि → सींबींधित सदनों के अध्यक्ष/सभापनत को सौंपना|
• अध्यक्ष/सभापनत प्रस्ताि को स्िीकृत/अस्िीकृत कि सकते हैं।
• यदद स्िीकृत हो जाता है – आिोपों की जांच के शलए तीन सदस्यीय सशर्नत का गठन :
इस सशर्नत र्ें उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश/र्ुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के
र्ुख्य न्यायाधीश औि एक प्रख्यात न्यायविद होने चादहए।

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न्यायाधीश जांच • दोषी पाए जाने पि —सदन प्रस्ताि पि विचाि कि सकता है|
अधधननयम 1968: • संसद के दोनों सदनों द्िािा विशेष बहुर्त से प्रस्ताि पास होने के बाद न्यायाधीश को
हर्टाने के शलए इसे िाष्ट्रपनत के पास भेजा जाता है।
• न्यायाधीश को हर्टाने के शलए िाष्ट्रपनत आदे श पारित कि दे ते हैं|
• अब तक उच्च न्यायालय के क्रकसी न्यायाधीश पि र्हाशभयोग नहीं लगाया गया है|
उच्च न्यायालय o िाष्ट्रपनत क्रकसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को तब उस उच्च न्यायालय का कायाकािी
का कायजकाि र्ुख्य न्यायाधीश ननयुक्त कि सकता है जब : उच्च न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश का
मुख्य न्यायाधीश पद रिक्त हो + अस्थाई रूप से अनुपन्स्थत हो + अपने काया ननिाहन र्ें अक्षर् हो|
(अनुच्छे द 223):

उच्च न्यायालय • राष्रपनत के द्िािा ननम्न परिन्स्थनतयों र्ें योग्य व्यन्क्तयों को उच्च न्यायालय के
के अनतरितत औि अनतरिक्त न्यायाधीशों के रूप र्ें अस्थाई रूप से ननयुक्त क्रकया जा सकता है, न्जसकी
कायजकाि अिधध दो िषज से अधधक की नहीं होगी : अस्थाई रूप से उच्च न्यायालय के कार्काज बढ
न्यायाधीश जाने पि + उच्च न्यायालय र्ें बकाया काया अधधक हो जाने पि|
(अनुच्छे द 224):

• जब एक न्यायाधीश : अनुपन्स्थनत या अन्य कािणों से अपने कायों का ननष्ट्पादन किने र्ें


असर्था हो + क्रकसी न्यायाधीश को अस्थाई तौि पि संबंधधत उच्च न्यायालय का र्ुख्य
कायाकारी
न्यायाधीश ननयुक्त क्रकया गया हो|
न्यायाधीश :
• हालांक्रक, अनतरिक्त या कायाकािी दोनों न्यायाधीश 62 िर्म की उम्र के पश्चात पद पि नहीं
िह सकते ।
सेिाननिृत्त • उच्च न्यायालय के र्ुख्य न्यायाधीश क्रकसी भी सर्य उस उच्च न्यायालय अथिा क्रकसी
न्यायाधीश अन्य उच्च न्यायालय के सेिाननिृत्त न्यायाधीश को अस्थायी अिधध के शलए बतौि
(अनुच्छे द 224क): कायाकािी न्यायाधीश कार् किने के शलए कह सकते हैं। िह ऐसा राष्रपनत की पूिा संस्तुनत
एिं संबंधधत व्यजक्त की र्ंजूरी के बाद ही कि सकता है।

1. ननयुन्क्त की विधध : न्यायाधीशों की ननयुन्क्त न्यायपाशलका के द्िािा ही की जाती है|


2. कायाकाल की सुिक्षा : संविधान र्ें उल्लेखखत विधध औि आधािों पि शसफा िाष्ट्रपनत द्िािा
हर्टाया जा सकता है
3. ननन्श्चत सेिा शतें : उनकी ननयुन्क्त के बाद शसिाय वित्तीय आपातकाल के उनके िेतन,
भत्ते, विशेष अधधकािों, अिकाश एिं पेंशन आदद र्ें कर्ी नहीं की जा सकती (अनुच्छे द
360)|
4. इसके सभी खचा(पेंशन को छोड़कि) िाज्य की संधचत ननधध पि भारित होते हैं।
5. न्यायाधीशों के काया पि चचाा नहीं की जा सकती : संसद में िब महामभयोग प्रस्ताि
उच्च न्यायालय
विचारािीन हो तब उसे छोड़कर सींसद अथिा राज्य वििानमींडल में न्यायािीश के आचरणों
की स्ितंत्रता
की चचाम पर प्रततबीं ि होता है।
6. सेिाननिृवत्त के बाद िकालत पि प्रनतबंध : उच्चतर् न्यायालय औि अन्य उच्च न्यायालयों

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को छोड़कि क्रकसी भी न्यायालय र्ें बहस अथिा काया नहीं कि सकता|
7. अपने कममचाररयों के तनयुजतत की स्ितींत्रता
8. इसके न्यानयक क्षेत्र र्ें कर्टौती नहीं की जा सकती : लेक्रकन संसद एिं विधान र्ंड ल द्िािा
विस्तारित क्रकया जा सकता है।
• कायापाशलका से पृथक्किण|

उच्च न्यायालय का न्याय क्षेत्र एिं शक्ततयां (अनुच्छे द 225)

प्रािं शभक क्षेत्राधिकार : अधधकाररकता का र्ार्ला तथा न्यायालय की अिर्ानना + संसद सदस्यों औि िाज्य
(उच्चतर् न्यायालय विधान मंडल सदस्यों के ननिाजचन सं बंधी – वििाद + राजस्ि र्ार्ले + नागररकों के र्ूल
से कम) अधधकारों का प्रितान + संविधान की व्याख्या के संबं ध र्ें अधीनस्थ न्यायालय से
स्थानांतररत र्ार्लों र्ें।

o उच्चतर् न्यायालय की तुलना र्ें अधधक विस्तारित - मौमलक अधधकािों + अन्य


न्यायादे श (रिर्ट) कानूनी अधिकारों दोनों र्ें
क्षेत्राधधकाि : o सभी पांच न्यायादे श + सार्ान्य कानूनी अधधकाि भी शाशर्ल ( उच्चतम न्यायालय के
(अनुच्छे द 226) विपिीत) + उच्च न्यायालय क्रकसी भी व्यन्क्त, प्राधधकिण औि सिकाि को अपने
क्षेत्राधधकाि के िाज्यक्षेत्र की सीर्ाओं के अंदि न्यायादे श दे सकता है। उच्च न्यायालय
>> उच्चतर् न्यायालय
o नोट - उच्चतर् न्यायालय मसफम र्ौशलक अधिकारों के शलए ह न्यायादे श िार कर
सकता है तथा “अन्य क्रकसी उद्दे श्य के शलए नहीं”। इस चलते उच्च न्यायालय का
न्यानयक क्षेत्र उच्चतर् न्यायालय से ज्यादा विस्तारित है।

अपीलीय क्षेत्राधधकाि • दीिानी + आपिाधधक र्ार्ले दोनों


• अपने क्षेत्राधधकाि के सभी न्यायालयों,अधधकिणों का अधीक्षण किता है| (शसिाय सैन्य
न्यायालयों औि अशभकिणों के)
पयािेक्षीय क्षेत्राधधकाि • इसर्ें प्रशासननक पयािेक्षण तथा न्यानयक पयािेक्षण दोनों शाशर्ल होते हैं।
: • अनंनतर् न्यायक्षेत्र
• स्ितः संज्ञान लेने की शन्क्त
• यह एक असाधािण शन्क्त है अतः इसका उपयोग केिल कभी कभाि औि आिश्यक
र्ार्लों र्ें ही क्रकया जाना चादहए। सार्ान्यतः यह : क्षेत्राधधकाि का अनतिर्ण,
नैसधगाक न्याय का घोि उल्लंघन, विधध की त्रुदर्ट, उच्चति न्यायालयों की विधध के प्रनत
सम्र्ान अनुधचत ननष्ट्कषा औि प्रकर्ट अन्याय तक सीशर्त होती है।

o न्जला न्यायाधीशों की ननयुन्क्त, तैनाती औि पदोन्ननत, एिं व्यन्क्त की िाज्य न्यानयक


सेिा र्ें ननयुन्क्त र्ें िाज्यपाल को यह पिार्शा देता है ।
अिीनस्थ
o यह िाज्य की न्यानयक सेिा ( न्जला न्यायाधीशों के अलािा), के तैनाती स्थानांतिण,

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न्यायालयों पि सदस्यों के अनुशासन, अिकाश स्िीकृनत, पदोन्ननत आदद र्ार्लों को भी दे खता है।
तनयींत्रण: o यह अधीनस्थ न्यायालय र्ें लंत्रबत क्रकसी र्ार्ले को िापस ले सकता है, यदद उसर्ें
र्हत्िपूणा कानूनी प्रश्न शाशर्ल हो औि संविधान की व्याख्या की आिश्यकता हो|
o इसके कानून को उन सभी अधीनस्थ न्यायालयों को र्ानने की बाध्यता होती है, जो
इसके न्याय क्षेत्र र्ें आते हैं।

उच्च न्यायालय के पास दो शक्ततयां होती हैं :

• उच्च न्यायालय के फैसले, कायािाही औि काया शाश्ित स्र्ृनत औि परिसाक्ष्य के शलए


िखे जाते हैं → साक्ष्य र्ान + अिीनस्थ न्यायालयों में कायमिाह के समय इनपि
अशभलेख न्यायालय
सिाल नह ीं उठाए िा सकते + कानूनी परीं पराएीं + संदभा
(अनुच्छे द 215):
• न्यायालय की अिर्ानना पि दं ड दे ने की शन्क्त
• अमभलेख न्यायालय के रूप र्ें, एक उच्च न्यायालय को ककसी र्ार्ले के संबंध र्ें ददए
गए अपने स्ियं के आदे श अथिा ननणाय की सर्ीिा करने की और उसर्ें सुधार करने
की शजक्त प्राप्त है।

• “न्यानयक सर्ीक्षा” पदांश का प्रयोग संविधान र्ें कहीं भी नहीं क्रकया गया है।
संिैधाननक प्रािधान → अनुच्छे द 13, 32, 131-136, 143, 226, 246, 256 आदद।
• संिैधाननक िैधता के र्ार्ले र्ें विधायी अधधननयर्नों अथिा कायापाशलका के आदे शों को
न्यानयक चुनौती दी जा सकती है।
सर्ीक्षा : • िाज्य विधानर्ंडल ि केंद्र सिकाि दोनों के अधधननयर्नों औि कायाकािी आदे शों की
संिैधाननकता के पिीक्षण के शलए ननम्न आिारों पर चुनौती द िा सकती है :
• र्ौशलक अधधकािों का हनन
• न्जस प्राधधकिण द्िािा यह तैयाि क्रकया गया है, यह उसके काया क्षेत्र से बाहि है
• संिैधाननक उपबंधों के विरुद्ध हो

दो या अधधक राज्यों और/या केंद्र शामसत प्रदे शों र्ें न्यायिेत्र िाले उच्च न्यायालय :

उच्च न्यायालय न्यायिेत्र


र्ुंबई उच्च न्यायालय र्हािाष्ट्र, गोिा, दादि औि नागि हिेली, दर्न औि दीि
गुिाहार्टी उच्च असर्, नागालैंड, शर्जोिर् औि अरुणाचल प्रदे श
न्यायालय
पंजाब औि हरियाणा पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ
उच्च न्यायालय
कलकत्ता उच्च पन्श्चर् बंगाल, अंडर्ान औि ननकोबाि द्िीपसर्ूह
न्यायालय
तशर्लनाडु उच्च तशर्लनाडु , पुदच
ु ेिी

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न्यायालय
केिल उच्च न्यायालय केिल, लक्षद्िीप

STUDENT NOTES:

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23. अधीनस्थ न्यायालय (भाग VI; अनुच्छे द 233-237)

िाज्य न्यायपाशलका = उच्च न्यायालय + अधीनस्थ न्यायालय

जजला न्यायाधीश की िाज्यपाल द्िािा िाज्य के उच्च न्यायालय के पिार्शा से ननयुक्त क्रकया जाता है।
ननयुजक्त
योग्यताएं:

• िह केंद्र या िाज्य सिकाि र्ें क्रकसी सिकािी सेिा र्ें कायाित ना हो ;


• उसे कर् से कर् 7 िषों का अधधिक्ता के रूप र्ें अनुभि हो;
• उच्च न्यायालय ने उसकी ननयुन्क्त की शसफारिश की हो।

अन्य ननयुजक्तयां (जजला राज्य लोक सेिा आयोग और उच्च न्यायालय के परार्शा के बाद राज्यपाल द्िारा
न्यायाधीश के अनतररक्त) ननयुक्त ककया जाता है।

अधीनस्थ न्यायालयों पर उच्च न्यायालय द्िारा


ननयंत्रण

जजला न्यायाधीश न्जला न्यायाधीश के अंतगात: नगि दीिानी न्यायाधीश + अपि न्जला न्यायाधीश +
संयक्
ु त न्जला न्यायाधीश + सहायक न्जला न्यायाधीश + लघु न्यायालय का र्ुख्य
न्यायाधीश + र्ुख्य प्रेशसडेंसी र्न्जस्रे र्ट + अनतरिक्त र्ुख्य प्रेशसडेंसी र्न्जस्रे र्ट + सत्र
न्यायाधीश + अनतरिक्त सत्र न्यायाधीश + सहायक सत्र न्यायाधीश आते हैं।

न्यानयक सेिाएं न्यानयक सेिा र्ें िे अधधकािी आते हैं जो न्जला न्यायाधीश एिं उससे नीचे के
न्यानयक पदों से संबन्न्धत होते हैं।

संरचना एिं अधधकार िेत्र

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राष्रीय कानूनी सेिा प्राधधकरण
• अनुच्छे द 39A (DPSP) - सर्ाज के कर्जोि िगों के शलए ननःशुल्क कानूनी सहायता का प्रािधान किता है,
औि सबके शलए न्याय सुननन्श्चत किता है।
• अनुच्छे द 14 औि 22(1)- िाज्य के शलए यह बाध्यकािी बनाता है, क्रक िह कानून के सर्क्ष सर्ानता सुननन्श्चत
किने के साथ ही एक ऐसी कानूनी प्रणाली स्थावपत किें जो सबके शलए सर्ान अिसि के आधाि पि न्याय का
संिधान किें ।
• 1987- र्ें कानूनी सेिा प्राधधकिण अधधननयर् संसद द्िािा अधधननयशर्त क्रकया गया →जो क्रक 9 निंबि, 1995
से लागू हुआ।
• नालसा(NALSA): कानूनी सहायता कायािर्ों के कायाान्ियन की ननगिानी औि र्ूल्यांकन किने के शलए + दे शभि
र्ें अधधननयर् के तहत कानूनी सेिाएं उपलब्ध किाने के शलए नीनत औि शसद्धांत + हि िाज्य र्ें िाज्य कानूनी
सेिा प्राधधकिण।
• काया: योग्य लोगों को र्ुफ्त और सिर् कानूनी सेिाएं प्रदान करना + लोक अदालत का आयोजन करना +
कानूनी जागरूकता मशविरों का आयोजन करना।

लोक अदालत:
• पूिा र्ुकदर्ेबाजी के चिण + गांधीिादी शसद्धांतों पि आधारित + ए.डी.आि. (िैकन्ल्पक वििाद ननिािण) के घर्टक
र्ें से एक + अनौपचारिक, सस्ता, शीघ्र + प्रथर् लोक अदालत - 1982 र्ें गुजिात र्ें स्थावपत क्रकया गया।

िैधाननक सेिाएं प्राधधकरण अधधननयर्, 1987 के अनुसार : िाज्य िै धाननक सेिा प्राधधकिण या न्जला िैधाननक सेिा
प्राधधकिण या सिोच्च न्यायालय िैधाननक सेिा सशर्नत या उच्च न्यायालय िैधाननक सेिा सशर्नत या तालुक कानूनी
सेिाएं लोक अदालत का आयोजन कि सकती हैं।
• प्रत्येक अदालत र्ें ऐसी कई सेिाित या से िाननिृत्त न्यानयक अधधकािी औि क्षेत्र के अन्य व्यन्क्त होते हैं जो
ननकाय द्िािा ननददाष्ट्र्ट क्रकए जा सकते हैं।
• लोक अदालत के पास यह अधधकाि होगा की िह ननम्नशलखखत वििादों र्ें दोनों पक्षों के बीच सर्झौता किाने का
ननश्चय किें :
• कोई भी र्ार्ला जो क्रकसी न्यायालय र्ें लंत्रबत हो , या
• कोई भी र्ार्ला जो क्रकसी भी न्यायालय के अधधकाि क्षेत्र र्ें आता हो लोक अदालत के सर्क्ष नहीं लाया
जाएगा।
• गैि-सर्ाधेय अपिाधों के शलए कोई अधधकाि क्षेत्र नहीं प्राप्त है।
• सर्ान शन्क्त,जैसा क्रक शसविल कोर्टा औि आपिाधधक अदालत र्ें शसविल प्रक्रिया औि आपिाधधक प्रक्रिया के तहत
ननदहत होती है।
• लोक अदालत का फैसला = दीिानी न्यायालय का फिर्ान/क्रकसी न्यायालय का आदे श
• इसका ननणाय गैि-अपीलीय होता है।

स्थाई लोक अदालत


• कानूनी सेिा प्राधधकिण अधधननयर्, 1987 → 2002 स्थाई लोक अदालतों की स्थापना प्रािधान करता है।
• विशेषताएं:
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o अध्यि: जो कक जजला न्यायाधीश या अनतररक्त जजला न्यायाधीश रहा हो अथिा जजला न्यायाधीश से भी
उच्चतर श्रेणी के न्यानयक सेिा र्ें रहा हो।
o एक या अधधक उपयोधगता सेिाएं (पररिहन, टे लीफोन सेिा आदद) इसके अधधकार िेत्र के अंतगात होगी।
o आधथाक िेत्राधधकार - 10 लाख तक
o कोई अधधकार िेत्र नहीं – िैसे र्ार्ले जो कानून के सर्ि सर्ाधेय नहीं है।
o फैसले: अंनतर् और बाध्यकारी होती है।

पररिार न्यायालय
• परििाि न्यायालय अधधननयर् 1984 → वििाह औि पारििारिक र्ुद्दों से संबंधधत िादों र्ें र्ध्यस्थता एिं त्िरित
सर्ाधान सुननन्श्चत किने के शलए स्थावपत क्रकया गया।
• विशेषतायें:
o यह िाज्य सिकािों द्िािा उच्च न्यायालय की सहर्नत से परििाि न्यायालय की स्थापना का प्रािधान किता
है।
o यह राज्य सरकारों के मलए एक लाख से अधधक जनसंख्या िाले प्रत्येक नगर र्ें एक पररिार न्यायालय की
स्थापना को बाध्यकारी बनाता है।
o यह िाज्य सिकािों को अन्य क्षेत्रों र्ें भी परििाि न्यायालय स्थावपत किने र्ें सर्था बनाता है।
o विशशष्ट्र्ट अधधकाि क्षेत्र: वििाह सं बंधी िाहत + पनत / पत्नी की सं पवत्त + एक व्यन्क्त की िै धता की घोषणा +
क्रकसी व्यन्क्त का अशभभािक या क्रकसी भी नाबाशलग का संिक्षक + पत्नी, बच्चों औि र्ाता-वपता का गुजािा-
भत्ता।
o पारििारिक न्यायालय के शलए यह अननिाया है क्रक िह प्रथर् तक क्रकसी पारििारिक वििाद र्ें संबंधधत पक्षों के
बीच र्ेल-शर्लाप या सर्झौते का प्रयास किें ।
o विधध विशेषज्ञ द्िािा प्रनतननधधत्ि किने का कोई अधधकाि नहीं होगा।
o यह केिल एक अपील का अधधकाि दे ता है जो उच्च न्यायालय र्ें ही की जा सकती है।

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24. अधधकरण (दरब्यूनल)

• र्ूल संविधान र्ें अधधकिण के संबंध र्ें उपबं ध नहीं था ।


• 42 िें संिैधाननक संशोधन अधधननयर्, 1976 द्िािा संविधान र्ें एक नया भाग XIV-A औि अनुच्छे द 323A
औि 323B के साथ स्िणा शसंह सशर्नत की शसफारिश पि जोड़ा गया। (सशर्नत ने र्ौशलक कताव्यों की भी
शसफारिश की थी)।
• ये दीिानी न्यायालय की कुछ शन्क्तयां िखते हैं।
• अधधकिण नैसधगाक शसद्धांत पि काया किता है, जबक्रक नागरिक प्रक्रिया संदहता का पालन नहीं किता है।

अनुच्छे द323A अनुच्छे द323B

• लोक सेिा र्ार्लों के मलए न्यायाधधकरणों की स्थापना। • कुछ अन्य र्ार्लों के शलए न्यायाधधकिणों की स्थापना
• केिल संसद द्िारा ही स्थावपत ककया जा सकता है और जैसे किाधान, भूशर् सु धाि, आदद क्रकया जाता है।
राज्य विधानसभाओं द्िारा नहीं। • संसद औि िाज्य विधानसभाओं द्िािा उनकी विधायी
• केंद्र के मलए केिल एक अधधकरण और प्रत्येक राज्य या क्षर्ता के भीति आने िाले र्ार्लों के संबंध र्ें दोनों को
दो या दो से अधधक राज्यों के मलए एक अधधकरण की स्थावपत क्रकया जा सकता है।
स्थापना की जा सकती है। • अधधकरणों का पदानुक्रर् बनाया जा सकता है।
• अधधकरणों के पदानुक्रर् का कोई प्रश्न नहीं उठता है।

अनुच्छे द 323A के अनुसाि, संसद ने प्रशासननक न्यायाधधकिण अधधननयर्, 1985 पारित क्रकया है, जो केंद्र सिकाि
को एक कैर्ट(CAT) औि सैर्ट(SAT) स्थावपत किने के शलए अधधकृत किता है।

र्ानदण्ड केंद्रीय प्रशासननक न्यायाधधकरण (CAT) राज्य प्रशासननक न्यायाधधकरण (SAT)

• िाष्ट्रपनत द्िािा एक उच्चस्तिीय चयन • संबंधधत राज्य के राज्यपाल से परार्शा के


सशर्नत की शसफारिशों के आधाि पि क्रकया बाद राष्रपनत द्िारा ननयुक्त ककया जाता है।
जाता है। • दो या दो से अधधक िाज्यों के शलए संयुक्त
• चयन सशर्नत की अध्यक्षता उच्च न्यायालय प्रशासननक न्यायाधधकिण ( JAT) की स्थापना
के एक न्यायाधीश द्िािा की जाती है, न्जसे का प्रािधान है।
भाित के र्ुख्य न्यायाधीश द्िािा नाशर्त
ननयुन्क्त क्रकया जाता है।
• भाित के र्ुख्य न्यायाधीश की सहर्नत प्राप्त
किने के बाद, ननयुन्क्तयों को कैत्रबनेर्ट की
ननयुन्क्त सशर्नत की र्ंजूिी के साथ ननयुक्त
क्रकया जाता है न्जसकी अध्यक्षता प्रधानर्ंत्री
द्िािा की जाती है।
संिचना • यह बहु-सदस्यीय ननकाय है , जजसर्ें 1 -----

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अध्यि और 65 सदस्य शामर्ल होते हैं (
2019 तक)।
अिधध • अध्यि- 5 साल या 65 िषा आयु। -----
• सदस्य – 5 िषा या 62 िषा की आयु।
• इसकी र्ुख्य शाखा ददल्ली र्ें है और • 9 िाज्यों आंध्र प्रदे श, दहर्ाचल प्रदे श,
अनतररक्त 17 शाखाएं संचामलत हैं। (15 ओडडशा, कनाार्टक, र्ध्य प्रदे श, र्हािाष्ट्र,
र्ुख्य न्यायालय की प्रधान पीठों र्ें + 2 तशर्लनाडु , पन्श्चर् बंगाल औि के िल र्ें सैर्ट
जयपुर और लखनऊ र्ें) की स्थापना की जा चुकी है ।
• यह सी.आर.पी.सी. की प्रकक्रयाओं से बाध्य • इसके िेत्राधधकार र्ें राज्य सरकार के
नहीं है, ये प्राकृनतक न्याय के शसद्धांतों द्िािा कर्ाचाररयों की भती और सभी सेिा र्ार्ले
विविध ननदे शशत हैं| आते हैं। .
• इसके सदस्य न्यानयक एिं प्रशासननक दोनों
संस्थानों से शलए जाते हैं।
• िादी स्ियं अथिा अपने िकील के र्ाध्यर् से
उपजस्थत हो सकता है।
• इसके िेत्राधधकार र्ें अणखल भारतीय सेिाओं,
केंद्रीय लोक सेिाओं और केंद्र के अधीन
नागररक पदों और सैन्य सेिाओं के मसविल
कर्ाचाररयों को सजम्र्मलत ककया गया है।

• अनुच्छे द323A- शसविल न्यायालयों औि उच्च न्यायालय से से िा र्ार्लों से सं बंधधत वििादों को सुल झाने के शलए
संसद को शन्क्त प्रदान किता है औि इसे प्रशासननक अधधकिणों के सर्क्ष िखता है।
• चंद्र कुर्ार र्ार्ले र्ें उच्चतर् न्यायालय ने उन 2 अनुच्छे दों के उपबंधो को जजन्हें असंिैधाननक करार ददया गया
उन्हें उच्च न्यायालय और उच्चतर् न्यायालय के न्यायिेत्र से बाहर कर ददया गया है| हालांकक अब इन अधधकारों
के आदे शों के णखलाफ न्यानयक उपचार की व्यिस्था उपलब्ध है ।
• इसर्ें यह भी ननधाारित क्रकया गया है क्रक CAT के आदे शों के विरुद्ध संबंधधत उच्च न्यायालय की खंड पीठ र्ें
भी याधचका दायि की जाएगी।

न्यायालय (court of law) अधधकरण/दरब्यूनल


न्यायालय पारं पररक न्यानयक प्रणाली का एक दहस्सा है। प्रशासननक दरब्यूनल एक ननकाय है , न्जसे अधधननयर्
द्िािा बनाया गया है औि न्यानयक शन्क्त के साथ इसका
गठन क्रकया गया है।
मसविल न्यायालयों के पास लोक प्रकृनत के सभी र्ुकदर्ों अधधकिणों को अधा न्यानयक ननकाय के रूप र्ें जाना
को दे खने की न्यानयक शजक्त (जब तक संज्ञान लेने की जाता है। अधधकिणों को विशेष र्ार्लों के र्ुकदर्ों को
शजक्तयां ख़त्र् नहीं हो जाती है) होती है। दे खने की शन्क्त होती है, जो उन्हें क़ानून द्िािा प्राप्त

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होती है।
कोटा आफ लॉ के न्यायाधीश अपने कायाकाल, से िा और प्रशासननक अधधकिण के सदस्यों के कायाकाल , सेिाओं
शतों आदद र्ें कायापामलका से स्ितंत्र होते हैं,न्यायपामलका के ननयर् औि शतें पूिी तिह से कायापाशलका के हाथों र्ें
कायापामलका से स्ितंत्र होती है। होती हैं।
न्यायलय कानूनी िायसा (vires) का भी ननधाारण करती प्रशासननक अधधकिण ऐसा नहीं कि सकते हैं।
है।
न्यायालय सबूत और प्रकक्रया के ननयर्ों से बंधी है। एक प्रशासननक अधधकिण ननयर्ों से बं धे नहीं हैं बन्ल्क
न्याय के स्िरूप के शसद्धांतों से बंधे हैं।
न्यायालय के पीठासीन अधधकारी को कानून और कानूनी अधधकिण के अध्यक्ष या सदस्य को कानून र्ें प्रशशक्षण
प्रकक्रया के बारे र्ें प्रमशक्षित ककया जाता है। नहीं ददया जा सकता है। िह प्रशासननक र्ार्लों के क्षेत्र
का एक विशेषज्ञ हो सकता है।
न्यायलय को साक्ष्य के आधार पर सभी प्रश्नों का उद्दे श्य उद्दे श्य के बजाय प्रशासननक अधधकिण का ननणाय
तय करना होता है। व्यन्क्तपिक हो सकता है। प्रशासननक अधधकिण विभागीय
नीनत को ध्यान र्ें िखकि सिाल तय कि सकता है।

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25. राज्य विधानर्ंडल: भाग VI- अनुच्छे द168 से 212

राज्य विधानर्ंडल का गठन:


• िाज्य विधानर्ंडल के गठन र्ें कोई एकरूपता नहीं है।
• केिल 6 िाज्यों के विधानर्ंडल र्ें दो सदन हैं,ये िाज्य हैं- आंध्र प्रदे श ,तेलंगाना ,उत्ति प्रदे श ,त्रबहाि, र्हािाष्ट्र
औि कनाार्टक।
• िाज्य विधानर्ंडल का गठन िाज्यपाल एिं विधानसभा से शर्लकि होता है, औि न्जन िाज्यों र्ें द्विसदनीय
व्यिस्था है िहां, विधानर्ंडल र्ें िाज्यपाल, विधान परिषद औि विधानसभा होते हैं।
अनुच्छे द 169: संसद एक विधान परिषद को (यदद यह पहले से है) विघदर्टत कि सकती है औि इसका गठन भी कि
सकती है यदद संबंधधत िाज्य की विधानसभा इस संबंध र्ें संकल्प पारित किे । संसद का यह अधधननयर् अनुच् छे द
368 के प्रयोजनों हेतु संविधान का संशोधन नहीं र्ाना जाएगा औि सार्ान्य विधान की तिह (अथाात साधािण बहु र्त
से) पारित क्रकया जाएगा।

विधानसभा का गठन
• विधानसभा के प्रनतननधधयों को प्रत्यक्ष र्तदान से ियस्क र्ताधधकाि के द्िािा ननिााधचत
क्रकया जाता है।
• इसकी अधधकतर् संख्या 500 औि ननम्नतर् संख्या 60 तय की गई है।
• अरुणाचल प्रदे श, शसन्क्कर् एिं गोिा के र्ार्ले र्ें यह संख्या 30 तय की गई है।
• शर्जोिर्- 40 ि नागालैंड-46
संख्या
• शसन्क्कर् औि नागालैंड के कुछ सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से भी चुने जाते हैं।
• Note: सभी िाज्यों के विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, शसन्क्कर् औि
नागालैंड को छोड़ कि।

नाशर्त सदस्य • संविधान के अनुच्छे द 334 के तहत िाज्यपाल आंग्ल भाितीय सर्ुदाय र्ें से एक सदस्य को
नाशर्त कि सकता है। 104िें संविधान संशोधन (2019) ने एंग्लो-इंडडयंस को ददए गए इस
आिक्षण को सर्ाप्त कि ददया।

क्षेत्रीय ननिााचन • प्रत्यक्ष ननिााचन के शलए।


क्षेत्र • हि िाज्य को क्षेत्रीय विभाजन के आधाि पि बांर्ट ददया गया है। इन चुनाि क्षेत्रों का ननधाािण
िाज्य को आिंदर्टत सीर्टों की संख्या औि जनसंख्या के अनुपात से तय क्रकया जाता है।
संविधान र्ें यह सुननन्श्चत क्रकया गया है क्रक िाज्य के विशभन्न ननिााचन क्षेत्रों को सार्ान
प्रनतननधधत्ि शर्ले।

प्रत्येक • प्रत्येक िाज्य के विधानसभा क्षेत्रों के दहसाब से सीर्टों का ननधाािण औि हि िाज्य का ननिााचन
जनगणना के क्षेत्रों के दहसाब से विभाजन होता है।
बाद पुनननाधाािण • संसद को अधधकाि है क्रक िह संबंध धत र्ार्ले का ननधाािण किें ।

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• संविधान र्ें िाज्य की जनसंख्या के अनुपात के आधाि पि प्रत्येक िाज्य की विधानसभा के
शलए अनुसूधचत जानत /जनजानत के सदस्यों हेतु सीर्टों की व्यिस्था की गई है।
अनुसूधचत जानत/
• र्ूल रूप से यह आिक्षण 10 िषा के शलए था लेक्रकन इस व्यिस्था को हि बाि 10 िषा के
जनजानत के
शलए बढा ददया गया।
शलए स्थानों का
• 104िें संशोधन अधधननयर्, 2019 द्िािा इसे 2030 तक के शलए बढा ददया गया है।
आिक्षण
Note: अनुसूधचत जानत तथा जनजानत के शलए सीर्टों का आिक्षण केिल लोकसभा औि िाज्य
विधानसभा र्ें है, िाज्यसभा औि िाज्यविधान परिषद र्ें नहीं।

• सार्ान्य कायाकाल 5 िषा का है क्रकं तु संविधान के अनुच्छे द 352 के तहत संसद द्िािा
आपातकालीन न्स्थनत र्ें इसका कायाकाल बढाया जा सकता है।
कायाकाल
• िाज्य के िाज्यपाल इसे क्रकसी भी सर्य भंग कि सकते हैं।

विधान पररषद का गठन


संख्या o विधान पररषद र्ें अधधकतर् सदस्यों की संख्या विधानसभा सदस्यों की एक नतहाई ननधााररत
की गई है।
o जजसर्ें न्यूनतर् सदस्यों की संख्या 40 ननजश्चत की गई है।
o सदस्य अप्रत्यि रूप से ननिााधचत होते हैं।
o यद्यवप संविधान ने पररषद की अधधकतर् एिं न्यूनतर् संख्या तय कर दी है, परं तु इसकी
िास्तविक संख्या का ननधाारण संसद द्िारा ककया जाता है।
विधान पररषद के कुल सदस्यों र्ें से 5/6 सदस्यों का अप्रत्यि रूप से चुनाि होता है।
• 1/ 3 सदस्य स्थानीय ननकायों जैस-े नगि पाशलका, न्जला बोडा आदद के द्िािा चुने जाते हैं।
• 1/3 सदस्यों का चुनाि विधानसभा के सदस्यों द्िािा क्रकया जाता है।
• 1/12 सदस्यों को िाज्य र्ें िह िहे, 3 िषों की स्नातक डडग्री प्राप्त किने िाले र्तदाता
ननिााधचत किते हैं।
ननिााचन के
• 1/12 सदस्यों का ननिााचन 3 िषा से अध्यापन कि िहे लोग चुनते हैं लेक्रकन यह अध्यापक
मसद्धांत
र्ाध्यशर्क स्कूलों से कर् के नहीं होने चादहए।
• 1/6 सदस्यों का नार्ांकन िाज्यपाल द्िािा उन लोगों के बीच से क्रकया जाता है न्जन्हें -
सादहत्य, ज्ञान, कला, सहकारिता, आंदोलन औि सर्ाज सेिा का विशेष ज्ञान ि व्यािहारिक
अनुभि हो।
• िाज्यपाल द्िािा नाशर्त क्रकए गए सदस्यों के अलािा,सदस्य एकल संिर्णीय र्त के द्िािा
सर्ानुपानतक प्रनतननधधत्ि प्रणाली के र्ाध्यर् से चुने जाते हैं।

कायाकाल • विधानपरिषद एक सतत ् सदन है अथाात स्थाई अंग जो विघदर्टत नहीं होता है।
• लेक्रकन इसके एक नतहाई सदस्य प्रत्येक दूसिे िषा र्ें सेिाननिृत्त होते िहते हैं।
• सेिाननिृत्त सदस्य भी पुनचुानाि औि िाज्यपाल द्िािा दोबािा नार्ांकन हेतु योग्य होते हैं।

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राज्य विधानर्ंडल की सदस्यता

विधानर्ंडल का सदस्य चुने जाने के शलए संविधान र्ें उन्ल्लखखत क्रकसी व्यन्क्त की अहाताएं
ननम्नशलखखत हैं:

• उसे भारत का नागररक होना चादहए;


• उसे चुनाि आयोग द्िारा अधधकृत ककसी व्यजक्त के सर्ि शपथ लेनी पडती है;
• विधानपररषद के मलए कर् से कर् आयु 30 िषा होनी चादहए जबकक
विधानसभा के मलए उसकी आयु कर् से कर् 25 िषा होनी चादहए।
• उसर्ें संसद द्िारा ननधााररत अन्य अहतााएं भी होनी चादहए।

जन-प्रनतननधधत्ि अधधननयर्1951 के तहत संसद ने ननम्नमलणखत अनतररक्त अहतााओं का


अहाताएं ननधाारण ककया है:

• विधान परिषद र्ें ननिााधचत होने िाला व्यन्क्त विधानसभा का ननिााचन होने की अहाता
िखता हो औि उसर्ें िाज्यपाल द्िािा नाशर्त होने के शलए संबंधधत िाज्य का ननिासी होना
चादहए।
• विधानसभा सदस्य बनने िाला व्यन्क्त संबंधधत िाज्य के ननिााचन क्षेत्र र्ें र्तदाता भी होना
चादहए।
• अनुसूधचत जानत /जनजानत का सदस्य होना चादहए यदद िह अनुसूधचत जानत /जनजानत की
सीर्ट के शलए चुनाि लड़ता है। यद्यवप अनुसूधचत जानत या जनजानत का सदस्य उस सीर्ट के
शलए भी चुनाि लड़ सकता है जो उसके शलए आिक्षक्षत न हो।

संविधान के अनुसार:

• यदद िह केंद्र या िाज्य सिकाि के तहत क्रकसी लाभ के पद पि है।


• यदद िह विकृत धचत्त है औि सक्षर् न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यर्ान है।
• यदद िह अनुन्र्ोधचत ददिाशलया हो।
• यदद िह भाित का नागरिक न हो या उसने विदे श र्ें कहीं स्िेच्छा से नागरिकता अन्जात
कि ली हो।
ननरहाताएं
• यदद संसद द्िािा ननशर्ात क्रकसी विधध द्िािा या उसके अधीन ननिदहात कि ददया जाता है।

Note:उपिोक्त ननिहाताओं के संबं ध र्ें क्रकसी सदस्य के प्रनत यदद प्रश्न उठे तो िाज्यपाल का
ननणाय अंनतर् होगा। हालांक्रक इस र्ार्ले र्ें िह चुनाि आयोग की सलाह लेकि कार् किता है।

दल-बदल के आधार • संविधान की 10िीं अनुसच


ू ी के प्रािधानों के तहत ननिहाता घोवषत क्रकया गया है।
पर ननरहाता • Note: संविधान की दसिीं अनुसूची के तहत यदद ननिहाता का र्ार्ला उठे तो विधानपरिषद
के र्ार्ले र्ें सभापनत एिं विधानसभा के र्ार्ले र्ें अध्यक्ष (िाज्यपाल नहीं) फैसला किे गा।

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• क्रकहोतो होलोहन बनार् जाधचल्हू र्ार्ला र्ें उच्चतर् न्यायालय ने ननणाय ददया क्रक सभापनत
/अध्यक्ष का फैसला न्यानयक सर्ीक्षा की परिधध र्ें आता है।

शपथ या प्रनतज्ञान 3. विधानर्ंडल के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य सदन र्ें सीर्ट ग्रहण किने से पहले
िाज्यपाल या उसके द्िािा इस काया के शलए ननयुक्त व्यन्क्त के सर्क्ष शपथ या प्रनतज्ञान
लेगा।
4. त्रबना शपथ शलए कोई भी सदस्य सदन र्ें न तो र्त दे सकता है औि न ही कायािाही र्ें
भाग ले सकता है।

o दोहरी सदस्यता: एक व्यन्क्त एक सर्य र्ें विधानर्ंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो
सकता यदद कोई व्यन्क्त दोनों सदनों के शलए ननिााधचत होता है तो िाज्य विधानर्ंडल द्िािा
ननशर्ात विधध के उपबधों के तहत एक सदन से उसकी सीर्ट रिक्त हो जाएगी।
o ननरहाता जन प्रनतननधधत्ि अधधननयर्, 1951 के तहत या संविधान के तहत या संविधान की
दसिीं अनुसूची के तहत।
स्थानों का ररक्त
o त्यागपत्र कोई सदस्य अपना शलखखत इस्तीफा विधान परिषद के र्ार्ले र्ें सभापनत औि
होना
विधानसभा के र्ार्ले र्ें अध्यक्ष को दे सकता है। त्यागपत्र स्िीकाि होने पि उसका पद
रिक्त हो जाएगा।
o अनुपजस्थनत यदद कोई सदस्य त्रबना पूिा अनुर्नत के 60 ददन तक बैठकों से अनुपन्स्थत
िहता है तो सदन उसके पद को रिक्त घोवषत कि सकता है।
o अन्य र्ार्ले: क्रकसी सदस्य का पद रिक्त हो सकता है; यदद न्यायालय द्िािा उसके
ननिााचन को अर्ान्य ठहिा ददया जाए, यदद उसे सदन से ननष्ट्काशसत कि ददया जाए, यदद
िह िाष्ट्रपनत या उपिाष्ट्रपनत के पद पि ननिााधचत हो जाए औि यदद िह क्रकसी िाज्य का
िाज्यपाल ननिााधचत हो जाए।

विधानर्ंडल के पीठासीन अधधकारी :


• विधानसभा: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष औि सभापनत का पैनल।
• विधानपरिषद: सभापनत, उपसभापनत औि उपसभाध्यक्ष का पैनल।

विधानसभा के अध्यि और उपाध्यि


विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही अध्यक्ष का ननिााचन किते हैं। सार्ान्यतः विधान सभा के
कायाकाल तक अध्यक्ष का पद होता है। अध्यक्ष के ननिााचन के बाद उपाध्यक्ष का ननिााचन होता है। हालांक्रक िह
ननम्नशलखखत तीन र्ार्लों र्ें अपना पद रिक्त किता है (दोनों पि लागू):
o यदद उसकी विधानसभा सदस्यता सर्ाप्त हो जाए।
o अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को अपना शलखखत र्ें त्यागपत्र दे या उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को शलखखत र्ें अपना त्यागपत्र दे ।
o यदद विधानसभा के तत्कालीन सर्स्त सदस्यों के बहुर्त से पारित संकल्प द्िािा अपने पद से हर्टाया जाए। इस
तिह का कोई प्रस्ताि केिल 14 ददन की पूिा सूचना के बाद ही लाया जा सकता है।

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o कायािाही एिं अन्य कायों को सुननजश्चत करने के मलए िह व्यिस्था एिं मशष्टाचार बनाए
रखता है।
o भारत के संविधान का, सभा के ननयर्ों एिं काया सं चालन की कायािाही र्ें , असेंबली र्ें
अध्यि के काया इसकी पूिा परं पराओं का , और उसके उपबंधों का अंनतर् व्याख्याकताा है।
एिं शजक्तयां o कोरर् की अनुपजस्थनत र्ें िह विधानसभा की बैठक को स्थधगत या ननलंब्रबत कर सकता
है।
o प्रथर् र्ार्ले र्ें िह र्त नहीं दे ता लेककन बराबर र्त होने की जस्थनत र्ें िह ननणाायक
र्त दे सकता है।
o सदन के नेता के आग्रह पर िह गुप्त बैठक को अनुर्नत प्रदान कर सकता है।
o िह इस बात का ननणाय करता है कक कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं। इस प्रश्न
पर उसका ननणाय अंनतर् होता है।
o दसिीं अनुसूची के उपबंधों के आधार पर ककसी सदस्य की ननरहाता को लेकर उठे ककसी
वििाद पर फैसला दे ता है।
o िह विधानसभा की सभी समर्नतयों के अध्यि की ननयुजक्त करता है और उनके कायों का
पयािेिण करता है िह स्ियं कायार्ंत्रणा समर्नत, ननयर् समर्नत एिं सार्ान्य उद्दे श्य
समर्नत का अध्यि होता है।
उपाध्यि o उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपन्स्थनत र्ें उसके सभी कायों को किता है यदद विधानसभा सत्र
के दौिान अध्यक्ष अनुपन्स्थत हो तो िह उसी तिह काया किता है। दोनों र्ार्लों र्ें उसकी
शन्क्तयां अध्यक्ष के सर्ान िहती हैं।
o विधानसभा अध्यक्ष सदस्यों के बीच से सभापनत पैनल का गठन किता है, उनर्ें से कोई
सभापनत का पैनल: भी एक अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष की अनुपन्स्थनत र्ें सभा की कायािाही संपन्न किाता है।
जब िह पीठासीन होता है तो, उस सर्य उसे अध्यक्ष के सर्ान अधधकाि प्राप्त होते हैं।
िह सभापनत के नए पैनल के गठन तक कायाित िहता है।
o Note:यदद अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष दोनों की सीर्टें खाली हैं तो पैनल के सदस्य बैठक की
अध्यक्षता नहीं कि सकते। उस न्स्थनत र्ें सदन को अध्यक्ष औि उपाध्यक्ष का ननिााचन
किना आिश्यक होगा।

विधानसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष तथा विधानपरिषद के सभापनत एिं उपसभापनत के िेतन औि भत्ते िाज्य
विधानर्ंडल द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं। इन्हें िाज्य की संधचत ननधध पि भारित क्रकया जाता है औि इसशलए इन
पि िाज्य विधानर्ंडल द्िािा िावषाक र्तदान नहीं क्रकया जा सकता।

विधान पररषद का सभापनत एिं उपसभापनत:


• विधान परिषद के सदस्य अपने बीच से ही सभापनत को चुनते हैं सभापनत ननम्नशलखखत तीन र्ार्लों र्ें पद
छोड़ सकता है(दोनों पि लागू ):
• यदद उसकी सदस्यता सर्ाप्त हो जाए।

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• यदद सभापनत, उपसभापनत को शलखखत त्यागपत्र दे या उपसभापनत, सभापनत को शलखखत त्यागपत्र दे ।
• यदद विधान परिषद र्ें उपन्स्थत तत्कालीन सदस्य बहुर्त से उसे हर्टाने का संकल्प पास कि दें । इस तिह
का प्रस्ताि 14 ददनों की पूिा सूचना के बाद ही लाया जा सकता है।
• पीठासीन अधधकािी के रूप र्ें परिषद के सभापनत की शन्क्तयां एिं काया विधानसभा के अध्यक्ष की तिह है
हालांक्रक सभापनत को एक विशेष अधधकाि प्राप्त नहीं है जो अध्यक्ष को है क्रक अध्यक्ष यह तय किता है क्रक
कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं औि उसका फैसला अंनतर् होता है जबक्रक यह शन्क्त उपसभापनत/
उपाध्यक्ष को प्राप्त नहीं है।

उपसभापनत • सभापनत की अनुपजस्थनत र्ें उपसभापनत ही कायाभार संभालता है।


• सभापनत सदस्यों के बीच से सभापनत पैनल का गठन किता है उनर्ें से कोई भी एक
सभापनत एिं उपसभापनत की अनुपन्स्थनत र्ें सभा की कायािाही संप न्न किाता है।
उपसभापनत का जब िह पीठासीन होता है तो उस सर्य उसे सभापनत के सर्ान अधधकाि प्राप्त होते
पैनल: हैं िह सभापनत के नए पैनल के गठन तक कायाित िहता है।
• Note: यदद सभापनत औि उपसभापनत की दोनों सीर्टें खाली हैं तो पैनल के सदस्य
बैठक की अध्यक्षता नहीं कि सकते। उस न्स्थनत र्ें सदन को सभापनत औि
उपसभापनत का ननिााचन किना आिश्यक होगा।

विधानसभा के अध्यक्ष एिं उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद के सभापनत एिं उपसभापनत के िेतन-भत्ते िाज्य विधान
र्ंडल द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं। इन्हें िाज्य की संधचत ननधध पि भारित क्रकया जाता है औि इसशलए इन पि
िाज्य विधानर्ंडल द्िािा िावषाक र्तदान नहीं क्रकया जा सकता।

राज्य विधानर्ंडल सत्र

आहूत करना • िाज्य विधानर्ंडल के प्रत्येक सदन को िाज्यपाल बैठक का बुलािा भेजता है।
• दोनों सत्रों के बीच 6 र्ाह से अधधक का सर्य नहीं होना चादहए।
स्थगन • बैठक को क्रकसी सर्य विशेष के शलए स्थधगत भी क्रकया जा सकता है। यह सर्य घंर्टों, ददनों
या हफ्टतों का भी हो सकता है।
• अननन्श्चत काल तक स्थगन का अथा है क्रक चालू सत्र को अननन्श्चत काल तक के शलए
सर्ाप्त कि दे ना।
• उपिोक्त दोनों तिह के स्थगन का अधधकाि सदन के पीठासीन अधधकािी को है।
सत्रािसान • पीठासीन अधधकािी अध्यक्ष या सभापनत काया संपन्न होने पि सत्र के अननन्श्चत काल के
शलए स्थगन की घोषणा किते हैं। इसके कुछ ददन बाद अध्यक्ष या सभापनत सत्रािसान की
अधधसूचना जािी किता है। हालांक्रक सत्र के बीच र्ें भी िाज्यपाल सत्रािसान की घोषणा कि
सकता है। स्थगन के विपिीत सत्रािसान सदन के सत्र को सर्ाप्त किता है।
विघटन • एक स्थायी सदन होने के कािण विधान परिषद कभी विघदर्टत नहीं हो सकती।

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• व्यपगत होने िाले कुछ विधेयक:
• अधधननयर् व्यपगत या लैप्स हो जाएंगे जो विधानसभा र्ें लंत्रबत हो या विधान परिषद
द्िािा प्रेवषत हो।
विघटन पर • िह अधधननयर् जो विधानसभा र्ें पास हो जाते हैं क्रकं तु विधान परिषद र्ें लंत्रबत िहते हैं।
अधधननयर्ों का • अधधननयर् जो व्यपगत नहीं होते:
व्यपगर्न • िह अधधननयर् व्यपगत नहीं होंगे जो विधान परिषद र्ें लंत्रबत हो क्रकं तु विधानसभा द्िािा
प्रेवषत न हो।
• विधानसभा (एक सदनात्र्क) या दोनों सदनों (द्वि सदनात्र्क) द्िािा पारित विधेयक लेक्रकन
िाज्यपाल या िाष्ट्रपनत की सहर्नत के शलए लंत्रबत।
कोरर् • क्रकसी भी काया को किने के शलए उपन्स्थत सदस्यों की एक न्यूनतर् संख्या को कोिर् कहते
(गणपूनता) हैं। यह सदन र्ें 10 सदस्य या कुल सदस्यों का दसिां दहस्सा पीठासीन अधधकािी सदहत
होता है, इनर्ें से जो भी ज्यादा हो।
• यदद सदन की बैठक के दौिान कोिर् ना हो तो यह पीठासीन अधधकािी का कताव्य है क्रक
सदन को स्थधगत किें या कोिर् पूिा होने तक सदन को स्थधगत िखें।
सदन र्ें • क्रकसी भी सदन की बैठक र्ें सभी र्ार्लों को उपन्स्थत सदस्यों के बहुर्त के आधाि पि
र्तदान तय क्रकया जाता है।
• विशेष बहुर्त: विधान परिषद के गठन अथिा स्थगन के शलए अननिाया होता है।
• पूणा बहुर्त: विधानसभा अध्यक्ष को हर्टाना या विधान परिषद के सभापनत को हर्टाना।
• पीठासीन अधधकािी (विधानसभा अध्यक्ष या विधान परिषद के र्ार्ले र्ें सभापनत) पहले
र्ार्ले र्ें र्त नहीं दे सकते लेक्रकन बिाबि र्तों की न्स्थनत र्ें ननणाायक र्त दे सकते हैं ।
विधानर्ंडल र्ें • संविधान के अनुसाि: विधानर्ंडल र्ें कार्काज संप न्न किाने के शलए कायाालयी भाषा या
भाषा उस िाज्य के शलए दहंदी अथिा अंग्रेजी की घोषणा की जाती है।
• हालांक्रक पीठासीन अधधकािी क्रकसी सदस्य को अपनी र्ातृभाषा र्ें सदन को संबोधधत किने
की अनुर्नत दे सकता है।
• िाज्य विधानर्ंडल यह ननणाय लेने को स्ितंत्र है क्रक सदन र्ें अंग्रेजी भाषा का उपयोग जािी
िखा जाए या नहीं। ऐसा संविधान के प्रािं भ होने के 15 िषा बाद (1965) से क्रकया जा
सकता है।
र्ंब्रत्रयों एिं • सदन का सदस्य होने के नाते प्रत्येक र्ंत्री एिं र्हाधधिक्ता को यह अधधकाि है क्रक िह
र्हाधधिक्ता के सदन की कायािाही र्ें भाग ले, बोले एिं सदन से संबद्ध सशर्नत न्जसके शलए िह सदस्य
अधधकार के रूप र्ें नाशर्त है उसर्ें िोर्ट दे ने के अधधकाि के त्रबना भी भाग ले।

विधानर्ंडल र्ें विधायी प्रकक्रया

1. साधारण विधेयक:

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विधेयक का • एक साधारण विधेयक विधानर्ंडल के ककसी भी सदन र्ें प्रारं भ हो सकता है (बहुसदनीय
प्रारं मभक सदन विधानर्ंडल व्यिस्था के अंतगात)।
• विधेयक प्रारं मभक सदन र्ें तीन स्तरों से गुजरता है प्रथर् पाठन, द्वितीय पाठन तथा
तृतीय पाठन।
• जब विधानर्ंडल के दोनों सदन इसे इसके र्ूल रूप र्ें या संशोधधत कर पाररत करते हैं तो
इसे पाररत र्ाना जाता है। एक सदनीय व्यिस्था िाले विधानर्ंडल र्ें इसे पाररत कर सीधे
राज्यपाल की स्िीकृनत के मलए भेजा जाता है।
• दूसिे सदन र्ें भी विधेयक उन तीनों स्तिों के बाद पारित होता है, न्जन्हें प्रथर् िाचन ,
द्वितीय िाचन एिं तत
ृ ीय िाचन कहा जाता है। जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने
के बाद विधान परिषद र्ें भेजा जाता है, तो िहां चाि विकल्प होते हैं:
• इसे उसी रूप र्ें (त्रबना संशोधन के) पारित कि ददया जाए।
• कुछ संशोधनों के बाद पारित कि विचािाथा इसे विधानसभा को भेज ददया जाए।
दूसरे सदन र्ें • विधेयक को अस्िीकृत कि ददया जाए।
विधेयक • इस पि कोई कायािाही ना की जाए औि विधेयक को 3 र्ाह के शलए लंत्रबत िखा जाए।
7. यदद विधान परिषद त्रबना संशोधन के विधेयक को पारित कि दे या विधानसभा उसके संशोधनों
को र्ान ले तो विधेयक दोनों सदनों द्िािा पारित र्ाना जाता है, न्जसे िाज्यपाल के पास
स्िीकृनत के शलए भेजा जाता है।
8. इसके अनतरिक्त यदद विधानसभा परिषद के सुझाि को अस्िीकृत कि दे या विधान परिषद ही
विधेयक को िोक दे या परिषद 3 र्हीने तक कोई कायािाही ना किें , तब विधानसभा क्रफि से
इसे पारित कि विधान परिषद को भेज सकती है। यदद परिषद दोबािा विधेयक को अस्िीकृत
कि दे या उसे उन संशोधनों के साथ पारित कि दें जो विधानसभा को अस्िीकाि हो या 1 र्ाह
के भीति पास ना किें तब इसे दोनों सदनों द्िािा पारित र्ाना जाता है।
9. इस तिह साधािण विधेयक पारित किने के संदभा र्ें विधानसभा को विशेष शन्क्त प्राप्त है।
विधान परिषद एक विधध को ज्यादा से ज्यादा 4 र्ाह के शलए िोक सकती है। पहली बाि र्ें 3
र्ाह के शलए औि दूसिी बाि र्ें 1 र्ाह के शलए।
10. संविधान र्ें क्रकसी विधेयक पि असहर्नत होने के र्ार्ले र्ें दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का
प्रािधान नहीं िखा गया है।
11. िाज्यपाल के पास चाि विकल्प होते हैं:
1. िहां विधेयक को स्िीकृनत प्रदान कि दे ,
राज्यपाल की 2. िह विधेयक को अपनी स्िीकृनत दे ने से िोके िखें,
स्िीकृनत 3. िह सदन या सदनों के पास विधेयक को पुनविाचाि के शलए भेज दे , औि
4. िह िाष्ट्रपनत के विचािाथा विधेयक को सुिक्षक्षत िख ले।
12. यदद िाज्यपाल विधेयक को स्िीकृनत प्रदान कि दें तो विधेयक अधधननयर् बन जाएगा, औि
संविधध की पुस्तक र्ें दजा हो जाता है।
13. यदद िाज्यपाल विधेयक को िोक लेता है तो विधेयक सर्ाप्त हो जाता है औि अधधननयर् नहीं

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बनता।
14. यदद िाज्यपाल विधेयक को पुनविाचाि के शलए भेजता है औि दोबािा सदन या सदनों द्िािा इसे
पारित कि ददया जाता है एिं पुनः िाज्यपाल के पास स्िीकृत के शलए भेजा जाता है तो
िाज्यपाल को उसे र्ंजूिी दे ना अननिाया हो जाता है। इस तिह िाज्यपाल के पास िैकन्ल्पक िीर्टो
पािि होता है।
15. िाष्ट्रपनत के पास तीन विकल्प होते हैं:
• िाष्ट्रपनत अपनी स्िीकृनत दे सकते हैं;
राष्रपनत की • िाष्ट्रपनत उसे िोक सकते हैं; तथा
स्िीकृनत • विधानर्ंडल के सदन या सदनों को पुनविाचाि हेतु भेज सकते हैं।
16. यदद िाष्ट्रपनत विधानर्ंडल के सदन या सदनों को पुनविाचाि के शलए भेजते हैं तो इस पि 6
र्ाह के भीति इस विधेय क पि पुनविाचाि आिश्यक है यदद विधेयक को उसके र्ू ल रूप र्ें या
संशोधधत कि दोबािा िाष्ट्रपनत के पास भेजा जाता है तो संविधान र्ें इस बात का उल्लेख नहीं
है क्रक िाष्ट्रपनत इस विधेयक को र्ंजूिी दे या नहीं।

2. धन विधेयक(अनुच्छे द 198, 199):

धन विधेयक के सं बंध र्ें: • धन विधेयक विधान परिषद र्ें पेश नहीं क्रकया जा सकता।
• केिल िाज्यपाल की शसफारिश के बाद ही विधानसभा र्ें लाया जा सकता है।
• इस तिह का कोई भी विधेयक सिकािी विधेयक होता है औि शसफा एक र्ंत्री द्िािा
ही लाया क्रकया जा सकता है।
• विधानसभा द्िािा पारित होने के बाद एक धन विधेयक को विधान परिषद को
विचािाथा के शलए भेजा जाता है।
• विधान परिषद के पास धन विधेयक के संबं ध र्ें प्रनतबंधधत शन्क्तयां हैं ।
• िह न तो इसे अस्िीकाि कि सकती है औि न ही इसर्ें संशोधन कि सकती है।
प्रकक्रया: • विधान परिषद केिल शसफारिश कि सकती है औि 14 ददनों र्ें विधेयक को लौर्टाना
भी होता है।
• यदद विधानसभा क्रकसी शसफारिश को र्ान लेती है तो विधेयक पारित र्ान शलया
जाता है। यदद िह कोई शसफारिश नहीं र्ानती है तब भी इसे र्ू ल रूप र्ें दोनों
सदनों द्िािा पारित र्ान शलया जाता है । यदद विधान परिषद 14 ददनों के भीति
विधानसभा को विधेयक ना लौर्टाए तो इसे दोनों सदनों द्िािा पारित र्ान शलया
जाता है।
राज्यपाल की स्िीकृनत अंततः जब एक धन विधेयक िाज्यपाल के सर्क्ष पेश क्रकया जाता है तब िह इस पि
अपनी स्िीकृनत दे सकता है, इसे िोक सकता है या िाष्ट्रपनत की स्िीकृनत के शलए
सुिक्षक्षत िख सकता है लेक्रकन िाज्य विधानर्ंडल के पास पुनविा चाि के शलए नहीं भेज
सकता।

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राष्रपनत की स्िीकृनत जब कोई धन विधेयक िाष्ट्रपनत के विचािाथा के शलए सु िक्षक्षत िखा जाता है तो िाष्ट्रपनत
या तो इसे स्िीकृनत दे दे ता है या इसे िोक सकता है लेक्रकन इसे िाज्य विधानर्ंडल के
पास पुनविाचाि के शलए नहीं भेज सकता।

विधान पररषद की जस्थनत

• साधािण विधेयकों को पेश किना औि पारित किना। यद्यवप दोनों सदनों के बीच
असहर्नत की न्स्थनत र्ें विधानसभा ज्यादा प्रभािी होती है ।
विधानसभा से • िाज्यपाल द्िािा जािी अध्यादे श को स्िीकृनत (अनुच्छे द 213) दे ना।
सर्ानता • र्ुख्यर्ंत्री सदहत र्ंत्रत्रयों का चयन: संविधान के अंतगात र्ुख्यर्ंत्री सदहत अन्य सभी
र्ंत्रत्रयों को विधानर्ंडल के क्रकसी एक सदन का सदस्य होना चादहए। तथावप अपनी
सदस्यता के बािजूद िह केिल विधानसभा के प्रनत उत्तिदायी होते हैं।
• संिैधाननक ननकायों- जैसे िाज्य वित्त आयोग, िाज्य लोक सेिा आयोग एिं भाित के
ननयंत्रक एिं र्हालेखा पिीक्षक की रिपोर्टों पि विचाि किना।
• िाज्य लोक सेिा आयोग के न्याय क्षेत्र र्ें िृद्धध।
• वित्त विधेयक शसफा विधानसभा र्ें पेश क्रकया जा सकता है, विधान परिषद वित्त
विधानसभा से विधेयक र्ें न संशोधन औि न ही इसे अस्िीकृत कि सकती है।
असर्ानता • कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं , यह तय किने का अधधकाि विधानसभा के
अध्यक्ष को है।
• एक साधािण विधेयक को पास किने का अंनतर् अधधकाि विधानसभा को ही है कुछ
र्ार्लों र्ें परिषद इसे अधधकतर् 4 र्ाह के शलए िोक सकती है पहली बाि र्ें
विधेयक को 3 र्ाह औि दूसिी बाि र्ें 1 र्ाह के शलए िोका जा सकता है।
• विधान परिषद बजर्ट पि शसफा बहस कि सकती है लेक्रकन अनुदान की र्ांग पि
र्तदान नहीं कि सकती, (यह विधानसभा का विशेष अधधकाि है)।
• विधान परिषद अविश्िास प्रस्ताि पारित कि र्ंत्री परिषद को नहीं हर्टा सकती।
• जब एक साधािण विधेयक विधान परिषद से आया हो औि विधानसभा र्ें भे जा गया
हो, यदद सभा अस्िीकृत कि दे तो विधेयक खत्र् हो जाता है।
• विधान परिषद के सदस्य भाित के िाष्ट्रपनत औि िाज्यसभा र्ें िाज्य के प्रनतननधधयों
के चुनाि र्ें भाग नहीं ले सकती।
• संविधान संशोधन विधेयक र्ें विधान परिषद प्रभािी रूप र्ें कुछ नहीं कि सकती। इस
र्ार्ले र्ें भी विधानसभा ही अशभभािी िहती है।
• अंततः विधान परिषद का अन्स्तत्ि ही विधानसभा पि ननभाि किता है। विधानसभा की
शसफारिश के बाद संसद विधान परिषद को सर्ाप्त कि सकती है ।

राज्य विधानर्ंडल के विशेषाधधकार

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• विशेषाधधकाि िाज्य विधानर्ंडल के सदनों, इसकी सशर्नतयों औि इसके सदस्यों को शर्लने िाले विशेष अधधकािों ,
उन्र्ुन्क्तयों औि छूर्टों का योग है।
• विशेषाधधकाि इनकी कायािादहयों की स्ितंत्रता औि प्रभाविता को सुननन्श्चत किने के शलए अननिाया हैं ।
• यह उन व्यन्क्तयों को भी प्रदान क्रकया गया है , जो िाज्य विधानर्ंडल के सदन या इसकी क्रकसी सशर्नत की
कायािाही र्ें बोलने औि भाग लेने के शलए अधधकृत हैं।

NOTE: यहां यह स्पष्ट्र्ट किना आिश्यक है क्रक िाज्य विधान र्ंडल के विशे षाधधकाि िाज्यपाल को प्राप्त नहीं होते हैं ,
जो क्रक िाज्य विधानर्ंडल,का अशभन्न अं ग है।

• इसे यह अधधकाि है क्रक यह अपने प्रनतिेदनों , िाद- वििाद औि कायािाहीयों को प्रकाशशत


किें औि यह अधधकाि भी है क्रक अन्यों को इसके प्रकाशन से प्रनतबंधधत किें ।
• यह अपरिधचतों को इसकी कायािाइयों से अपिन्जात कि सकती है औि कुछ र्हत्िपूणा
र्ार्लों र्ें गुप्त बैठक कि सकती है।
• यह अपने प्रक्रिया औि काया सं चालन ननयर्ों र्ें विननयर्न कि सकती है औि ऐसे र्ार्लों
पि ननणाय ले सकती है।
• यह भत्साना, फर्टकाि या कािािास (सदस्यों के र्ार्ले र्ें ननलंबन या ननष्ट्कासन कि सकती
है) द्िािा विशेषाधधकािों के उल्लंघन या सभा की अिर्ानना के शलए सदस्यों सदहत बाह्य
सार्ूदहक
व्यन्क्तयों को दं डडत कि सकती है।
विशेषाधधकार
• इसे सदस्य के पकड़े जाने, धगिफ्टताि होने, दोषशसद्धध, कािािास औि छोड़े जाने के संबंध
र्ें तत्काल सूचना प्राप्त किने का अधधकाि है।
• यह जांच प्रािं भ कि सकती है औि साक्षक्षयों को उपन्स्थत होने का आदे श दे सकती है औि
संगत पत्रों औि रिकाडों को भेज सकती है।
• न्यायालय, सभा या इसकी सशर्नतयों की जांच नहीं कि सकती।
• पीठासीन अधधकािी की अनुर्नत के त्रबना क्रकसी व्यन्क्त (सदस्य या बाह्य) को धगिफ्टताि
औि क्रकसी, विधधक प्रक्रिया (शसविल या आपिाधधक) को सभा परिसि र्ें नहीं क्रकया जा
सकता।

• उन्हें सदन चलने के 40 ददन पहले औि 40 ददन बाद तक धगिफ्टताि नहीं क्रकया जा
सकता। यह छूर्ट केिल शसविल र्ार्ले र्ें है औि आपिाधधक या प्रनतबंधधत ननषेध र्ार्लों
व्यजक्तगत
र्ें नहीं है।
विशेषाधधकार
• िाज्य विधान र्ंडल र्ें उन्हें बोलने की स्ितंत्रता है । उसके द्िािा क्रकसी कायािाही या
सशर्नत र्ें ददए गए र्त या विचाि को क्रकसी अदालत र्ें चुनौती नहीं दी जा सकती। यह
स्ितंत्रता संविधान के उपबंधों औि िाज्य विधानर्ंडल की प्रक्रिया का विननयर्न किने के
शलए ननयर्ों औि अस्थाई आदे शों के अनुरूप है।
• िे न्यानयक सेिाओं से र्ुक्त होते हैं, जब सदन चल िहा हो, िे साक्ष्य दे ने या क्रकसी
र्ार्ले र्ें बतौि गिाह उपन्स्थत होने से इंकाि कि सकते हैं।

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26. स्थानीय स्िशासन: पंचायत और नगरपामलकाएाँ

• संिैधाननक न्स्थनत: 73 िां औि 74 िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 1992 द्िािा इसे संविधान र्ें शाशर्ल क्रकया
गया था।
• स्थानीय स्िशासन, सातिीं अनुसूची के तहत िाज्य सूची का विषय है।
• अनुच्छे द 40 –“िाज्य ग्रार् पंचायतों का संगठन किने के शलए कदर् उठाएगा औि उनको ऐसी शन्क्तयां औि
प्राधधकाि प्रदान किे गा जो उन्हें स्िायत्त शासन की इकाइयों के रूप र्ें काया किने योग्य बनाने के शलए आिश्यक
हों|”
• राजस्थान पंचायती िाज प्रणाली की स्थापना किने िाला पहला िाज्य था। इस योजना का उद्घार्टन 2 अक्र्टू बि,
1959 को तत्कालीन प्रधानर्ंत्री जिाहिलाल नेहरू ने नागौि न्जले र्ें क्रकया था।
• शहिी स्थानीय शासन की दे खिे ख : - आिास औि शहिी गिीबी उपशर्न र्ंत्रालय + िक्षा र्ंत्रालय + गह

र्ंत्रालय।

पंचायती राज का विकास:

िषा समर्नत अनुशंसाएं


1957 बलिंत राय र्ेहता समर्नत: • त्रत्र-स्तिीय व्यिस्था को आपनाना।
सार्ुदानयक विकास कायािर् • न्जला स्ति पि योजना औि विकास के काया इन ननकायों को सौंपना।
(1952) औि िाष्ट्रीय विस्ताि • न्जला अधधकािी को न्जला परिषद का अध्यक्ष होना चादहए।
सेिा (1953) द्िािा क्रकए गए
कायों की सर्ीक्षा किना।

1977 अशोक र्ेहता समर्नत (पंचायती • द्विस्तिीय व्यिस्था को अपनाना।


िाज संस्थाओं पि गदठत • कायाकािी ननकाय : न्जला परिषद होना चादहए।
सशर्नत) • इसे संिैधाननक र्ान्यता की शसफारिश किना चादहए।
• न्याय पंचायत को विकास पं चायत से अलग ननकाय के रूप र्ें िखा
जाना चादहए।
• न्जला स्ति पि योजना औि विकास के काया को इन ननकायों को
सौंपना।
• विकास के काया न्जला परिषद को स्थानांतरित होने चादहए।
• पंचायती राज संस्थाओं के र्ार्लों की दे खरे ख के मलए राज्य र्ंत्री
पररषद र्ें एक र्ंत्री की ननयुजक्त होनी चादहए।
• उनकी जनसंख्या के आधाि पि अनुसूधचत जानत ि जनजानत के शलए
स्थान आिक्षक्षत होना चादहए।
• पंचायती िाज संस्थाओं को संिैधाननक र्ान्यता दी जानी चादहए| इससे
उन्हें उपयुक्त हैशसयत (पवित्रता एिं र्हत्ता) के साथ ही सतत
सक्रियता का आश्िासन शर्लेगा।

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1978 दं तेिाला समर्नत: • ब्लॉक स्ति की योजना पि जोि ददया।
1984 हनुर्ान राि समर्नत • न्जला योजना पि जोि ददया |

1985 जी.िी.के.राि समर्नत: ग्रार्ीण • न्जला परिषद की र्हत्िपूणा भूशर्का होनी चादहए।
विकास एिं ननधानता उन्र्ूलन • न्जला औि स्थानीय स्ति पि पंचायती िाज संस्थाओं को विकास कायों
कायािर्ों की सर्ीक्षा किना। के ननयोजन क्रियान्ियन एिं ननगिानी र्ें र्हत्िपूणा भूशर्का प्रदान की
जानी चादहए|
• ृ न, इसे न्जला परिषद के र्ुख्य
न्जला विकास आयुक्त के पद का सज
कायाकािी अधधकािी के रूप र्ें काया किना चादहए|

1986 एल.एर्. मसंघिी समर्नत: • त्रत्र-स्तिीय व्यिस्था को अपनाना।


लोकतंत्र ि विकास के शलए • न्जला परिषद ने योजना औि विकास के शलए प्रशासननक ढांचे को
पंचायती िाज संस्थाओं का एकीकृत क्रकया।
पुनरुद्धाि किना। • न्जला विकास आयुक्त को न्जला परिषद का र्ुख्य कायाकािी अधधकािी
होना चादहए।
• पंचायती िाज्य संस्थाओं को संिैधाननक दजाा ददया जाए औि संविधान
र्ें इसके शलए अलग अध्याय को जोड़ा जाए तथा इन संस्थाओं के
ननयशर्त चुनाि के शलए संविधान र्ें प्रािधान क्रकया जाए|
• न्जला स्ति पि योजना औि विकास के काया को इन ननकायों को
सौंपना।

इस सशर्नत ने ननष्ट्कषा ननकाला क्रक विकास प्रक्रिया को धीिे -धीिे


नौकिशाही औि पंचायती िाज से अलग कि ददया जाना चादहए इसशलए
पीआिआई को 'त्रबना जड़ों िाली घास' कहा गया।

1988 पी. के. थुं गन समर्नत: • त्रत्रस्तिीय व्यिस्था को अपनाना।


• न्जला परिषद : योजना औि विकास का काया सौंपना।
• 5 िषा का ननन्श्चत कायाकाल होना चादहए।
• र्दहलाओं के शलए आिक्षण का प्रािधान किना चादहए।
• न्जला अधधकािी - न्जला परिषद का र्ुख्य कायाकािी अधधकािी होगा।
1988 गाडधगल समर्नत: नीनत औि • त्रत्रस्तिीय व्यिस्था को अपनाना।
कायािर्ों पि सशर्नत। • कायाकािी ननकाय: पंचायत सशर्नत
• संिैधाननक दजाा प्रदान किने की शसफारिश की।
• न्जला स्ति पि योजना औि विकास के काया को इन ननकायों को
सौंपना।
• पंचायत के सभी तीन स्तरों के सदस्यों का प्रत्यि ननिााचन होना
चादहए।
• पंचायती िाज संस्थाओं का कायाकाल 5 िषा ननन्श्चत कि ददया जाए।

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नगर ननकायों का विकास:

1687 भाित का पहला नगि ननगर् र्द्रास र्ें स्थावपत हुआ था।

1726 बंबई औि कलकत्ता नगि ननगर्


1870 वित्तीय विकेंद्रीकिण पि लॉडा र्ेयो का संकल्प

1882 लॉडा रिपन संकल्प -स्थानीय स्िशासन का र्ैग्नाकार्टाा


1907 विकेंद्रीकिण पि िॉयल कर्ीशन

1919 भाित सिकाि अधधननयर्, 1919 के द्िािा, स्थानीय स्िशासन को एक हस्तांतरित विषय बना ददया
गया।

1924 छािनी( Cantonment) अधधननयर्


1935 भाित सिकाि अधधननयर्,1919 के द्िािा स्थानीय स्िशासन को प्रांतीय विषय घोवषत क्रकया गया।

पंचायत ( 73िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 1992)

• ग्रार्ीण स्थानीय स्िशासन की स्थापना।


• 11िीं अनुसूची - (29 काया) + भाग IX; अनुच्छे द 243 से 243O तक।
संिैधाननक प्रािधान: • र्हत्िपूणा अनुच्छे द:
o 243G –पंचायतों की शन्क्तयां, प्राधधकाि तथा उत्तिदानयत्ि
o 243H –पंचायतों की किािोपण की शन्क्त
o 243 I- वित्त आयोग
ग्रार् सभा: प्रत्यक्ष लोकतंत्र का प्रतीक + गाँि के सभी र्तदाता इसके सदस्य होते हैं + कायों का
ननधाािण िाज्य विधानयका द्िािा क्रकया जाता है।

• पूिे दे श र्ें पंचायती िाज की संिचना र्ें सर्रूपता लाना।


ब्रत्र-स्तरीय पंचायत • ग्रार्, र्ध्यिती तथा न्जला स्ति पि पंचायत का गठन।
प्रणाली: • 20 लाख से कर् जनसंख्या िाले िाज्य र्ध्यिती स्ति पि पंचायत का गठन नहीं कि
सकते हैं।
• तीनों स्तिों पि पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्िािा प्रत्यक्ष चुने जाएंगे|
• अध्यि: इनका चुनाि राज्य के विधानर्ंडल द्िारा ननधााररत तरीके से ककया जाएगा।
• सभी तीन स्तिों पि आिक्षण - अनुसधू चत जानत / जनजानत (जनसंख्या के आधाि
पि) के शलए सीर्टों का आिक्षण + र्दहलाओं (एक नतहाई आिक्षण) के शलए आिक्षण।
• अनुसूधचत जानत के शलए आिक्षण का प्रािधान अरुणाचल प्रदे श र्ें लागू नहीं होता।
• कायाकाल: पांच िषा
• एक पंचायत जो सर्य पूिा भं ग होने पि पुनगादठत हुई है िह पू िे 5 िषा की ननधाारित
अिधध तक कायाित नहीं होती , बन्ल्क केिल बचे हुए सर्य के शलए ही कायाित होती

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है।

कोई भी व्यन्क्त पंचायत का सदस्य नहीं बन पाएगा यदद िह ननम्न प्रकाि से अनहात होगा
:
अनहाताएं: 1. िाज्य विधानर्ंडल के शलए ननिााधचत होने के उद्दे श्य से संबंधधत िाज्य र्ें उस सर्य
प्रभािी कानून के अंतगात, अथिा
2. िाज्य विधानर्ंडल द्िािा बनाए गए क्रकसी भी कानून के अंतगात
3. लेक्रकन क्रकसी भी व्यन्क्त इस आधाि पि अयोग्य घोवषत नहीं क्रकया जाएगा क्रक िे
25 िषा से कर् आयु का है, यदद िह 21 िषा की आयु पूिा कि चुका है।
राज्य चुनाि आयोग • पंचायत स्ति के सभी चुनािों का संचालन िाज्य ननिााचन आयोग किता है।
(अनुच्छे द -243 K): • िाज्य ननिााचन आयुक्त की सेिा शतें औि पदािधध भी िाज्यपाल द्िािा ननधाारित की
जाएंगी।
• िाज्य चुनाि आयुक्त की ननयुन्क्त के बाद उसकी सेिा शतों र्ें ऐसा कोई परिितान नहीं
क्रकया जाएगा न्जससे उसका नुकसान हो|

शजक्तयां, काया और • ग्यारहिीं अनुसूची र्ें शामर्ल 29 र्ार्लों को पंचायतों को हस्तांतररत ककया जा सकता
वित्त संबंधधत र्ार्लों है।
का राज्य द्िारा • आधथाक विकास औि सार्ान्जक न्याय के शलए योजनाओं की तैयािी औि कायाान्ियन
ननधाारण किना।
• वित्त: िाज्य विधानर्ंडल पंचायतों को उपयुक्त कि लगाने के शलए अधधकृत कि सकती
है, िाज्य सिकाि द्िािा आिोवपत औि संग्रदहत कि पंचायतों को सौंप सकती है तथा
िाज्य की सर्ेक्रकत ननधध से पंचायतों को अनुदान सहायता दे सकती है।
• राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 िषा के पश्चात पंचायतों की वित्तीय जस्थनत की सर्ीिा
राज्य वित्त आयोग के मलए वित्त आयोग का गठन करता है।
• संिचना + योग्यता: िाज्य विधानयका द्िािा ननधाारित क्रकया जाता है।
• केंद्रीय वित्त आयोग भी िाज्य र्ें पंचायतों के पूिक स्रोतों र्ें िद्
ृ धध के शलए िाज्य की
सर्ेक्रकत ननधध र्ें आिश्यक उपायों के बािे र्ें सलाह दे गा |

• लेखा परीिण: िाज्य विधानयका ननधाारित किती है।


• अनहात याधचकाएाँ: िाज्य विधानयका ननधाारित किती है।
अन्य प्रािधान • संघ राज्य िेत्रों पर लागू होना : िाष्ट्रपनत अधधननयर् के प्रािधान को लागू किने के
शलए ननदे श दे सकता है।
• छूट प्राप्त राज्य ि िेत्र - नागालैंड, शर्जोिर्, र्ेघालय औि कुछ अन्य (र्खणपुि औि
दान्जाशलंग के पहाड़ी क्षेत्र) विशेष क्षेत्रों पि लागू नहीं होता।

• पांचिीं अनुसूची र्ें िखणात क्षेत्रों र्ें भाग-9 के प्रािधान लागू नहीं होते। हालांक्रक संसद
1996 का पेसा इन प्रािधानों को कुछ अपिादों तथा संशोधनों सदहत उक्त क्षेत्रों पि लागू कि सकती
(PESA) अधधननयर्: है।

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• पािं परिक प्रथाओं के अनुरूप स्िशासन प्रदान किना।

नगर ननगर् ( 74िां संविधान संशोधन, 1992)

• शहिी स्थानीय स्िशासन


संिैधाननक प्रािधान: • ू ी 12- (18 काया) + भाग IX A + अनुच्छे द 243 P -243 ZG
अनुसच
• र्हत्िपूणा अनुच्छे द:
o 243 W- नगि पाशलकाओं की शन्क्तयां, प्राधधकाि एिं दानयत्ि।
o 243 X- नगि पाशलका द्िािा किािोपण की शन्क्तयां तथा ननधध इत्यादद।
o 243 Y- वित्त आयोग
o 243 Z- न्जला योजना सशर्नत
o 243 ZE- र्हानगिीय आयोजना के शलए सशर्नत।
1. नगि पंचायत (ग्रार्ीण से शहिी क्षेत्र र्ें परिितान)
2. नगि पाशलका परिषद (छोर्टे शहिी क्षेत्रों के शलए)
तीन प्रकार की 3. नगिपाशलका ननगर् (बड़े शहिी क्षेत्रों के शलए)
नगरपामलकाएं: िाडा समर्नत: तीन लाख या अधधक जनसंख्या िाली नगिपाशलका के क्षेत्र के तहत एक या
अधधक िाडों को शर्लाकि िाडा सशर्नत गदठत होगी।
• नगिपाशलका के अध्यक्ष के ननिााचन का तिीका , िाज्य विधानर्ंडल प्रदान कि सकता
चुनाि: है।
• अनुसूधचत जानत / जनजानत (जनसंख्या के आधाि पि) के शलए सीर्टों का आिक्षण।
• एक नतहाई र्दहला आिक्षण ददया जाना।
• अध्यक्ष औि वपछड़ी जानतयों के आिक्षण के संबंध र्ें िाज्य विधानयका कोई भी उपबंध
बना सकती है।
• 12 िीं अनुसच
ू ी - 18 काया, जो िाज्य विधानर्ंडल द्िािा नगिपाशलकाओं को
काया: हस्तांतरित क्रकए जा सकते हैं।
• अन्य काया: पंचायत के सर्ान ही होता है।

• नगर ननगर्: संबंध धत िाज्य विधानर्ंडल की विधध द्िािा िाज्यों र्ें स्थापना ( केंद्र
शाशसत क्षेत्र के संदभा र्ें भाित की संसद द्िािा ) → प्रशासननक ढांचा: र्हापौि( र्ेयि)
की अध्यक्षता िाली परिषद, स्थायी सशर्नत तथा नगि आयुक्त।
• नगर पामलका : नगिपाशलकाएं कस्बों औि छोर्टे शहिों के प्रशासन के शलए स्थावपत की
जाती हैं, िाज्य र्ें िाज्य विधानर्ंडल द्िािा ननशर्ात अधधननयर् से गठन → प्रशासननक
ढांचा: परिषद (प्रधान अध्यक्ष), स्थायी सशर्नत तथा र्ुख्य कायाकािी अधधकािी।
• अधधसूधचत िेत्र समर्नत: दो प्रकाि के क्षेत्रों र्ें – औद्योगीकिण के कािण विकासशील
कस्बा औि िह कस्बा न्जसने अभी तक नगि पाशलका के गठन की आिश्यक शतें पूिी
नहीं की हो, लेक्रकन िाज्य सिकाि द्िािा िह र्हत्िपूणा र्ाना जाए| क्योंक्रक इसे सिकािी

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नगर पामलका के िाजपत्र र्ें प्रकाशशत कि अधधसूधचत क्रकया जाता है, इसशलए इसे अधधसूधचत क्षेत्र
प्रकार: सशर्नत के रूप र्ें जाना जाता है। यह पूिी तिह से नाशर्त इकाई है|
• नगि क्षेत्रीय सशर्नत : यह छोर्टे कस्बे र्ें प्रशासन के शलए गदठत की जाती है | यह
विधानर्ंडल के एक पृथक अधधननयर् द्िािा गदठत की जाती है, इसे पूणा या आंशशक
रूप से िाज्य सिकाि द्िािा ननिााधचत या नाशर्त क्रकया जा सकता है।
• छािनी पररषद : इसे 2006 के छािनी अधधननयर् के प्रािधानों के तहत स्थावपत क्रकया
गया है। यह विधान केंद्र सिकाि द्िािा ननशर्ात क्रकया गया है + केंद्रीय िक्षा र्ंत्रालय के
प्रशासननक ननयंत्रण के अधीन काया किती है , छािनी परिषद र्ें आंशशक रूप से
ननिााधचत या नाशर्त सदस्य शाशर्ल होते हैं।
• नगरीय िेत्र: इस तिह का शहिी प्रशासन िृहत सािाजननक उपिर्ों द्िािा स्थावपत
क्रकया जाता है + जो उद्योगों के ननकर्ट बनी आिासीय कॉलोननयों र्ें िहने िाले अपने
कर्ाचारियों को सुविधाएं प्रदान किते हैं|
• न्यास पत्तन: इनका गठन संसद के एक अधधननयर् द्िािा क्रकया गया है , इसर्ें
ननिााधचत औि गैि- ननिााधचत दोनों प्रकाि के सदस्य सन्म्र्शलत हैं।
• विशेष उद्दे श्य हेतु अमभकरण : िाज्य द्िािा विशशष्ट्र्ट उद्दे श्य के शलए इसका गठन
क्रकया जाता है, अथाात ये काया आधारित संगठन होते हैं , क्षेत्र आधारित नहीं।

जजला योजना समर्नत (DPC):


• िाज्य विधानयका इसके चुनाि की प्रक्रिया ननधाारित किती है।
• अनुच्छे द 243ZD: पंचायतों औि नगिपाशलकाओं द्िािा तैयाि योजना को सं गदठत किे गी औि न्जला स्ति पि
एक विकास योजना का प्रारूप तैयाि किे गी।
• न्जला योजना सशर्नत के 4/5 भाग सदस्य न्जला पंचायत औि नगिपाशलकाओं के ननिााधचत सदस्यों द्िािा स्ियं
र्ें से चुने जाएंगे।
• 1 / 5 सदस्य र्नोनीत क्रकए जाते हैं।
• सशर्नत के सदस्यों की संख्या न्जले की ग्रार्ीण एिं शहिी जनसंख्या के अनुपात र्ें होनी चादहए।

र्हानगरीय योजना समर्नत (243ZE):


• र्हानगिीय क्षेत्र - दे श का िह क्षेत्र, जहाँ की जनसंख्या 10 लाख से ऊपि है (अनुच्छे द 243P)।
• एक र्सौदा विकास योजना तैयाि किना।
• र्हानगिीय योजना सशर्नत के 2/3 सदस्य र्हानगि क्षेत्र र्ें नगिपाशलका के ननिााधचत सदस्यों तथा पंचायतों
के अध्यक्षों द्िािा स्िंय र्ें से चुने जाएंगे।
• 1 / 3 सदस्य नार्ांक्रकत क्रकए जाएंगे।
• ननिााधचत सदस्य ग्रार्ीण औि शहिी जनसंख्या के अनुपात र्ें होने चादहए।

स्थानीय सरकार की केंद्रीय पररषद :

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• इसकी स्थापना 1954 र्ें, िाष्ट्रपनत के आदे श से भाित के संविधान के अनुच्छे द 263 (अंति-िाज्य परिषद) के
अंतगात िाष्ट्रपनत के एक सलाहकाि ननकाय के रूप र्ें गदठत क्रकया गया था।
• अध्यि - केंद्रीय शहिी विकास र्ंत्री ।
• रचना-इसर्ें भाित सिकाि के नगि विकास र्ंत्री औि िाज्यों के स्थानीय स्िशासन के प्रभािी र्ंत्री सन्म्र्शलत
होते हैं।

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27. अनुसूधचत और जनजातीय िेत्र

• संविधान के भाग X के अनुच्छे द 244 कुछ ऐसे िेत्रों र्ें, जजन्हें ‘अनुसूधचत िेत्र’ और
‘जनजातीय िेत्र’ नामर्त ककया गया है, प्रशासन की विशेष व्यिस्था की पररकल्पना की
संिैधाननक गई है।
प्रािधान • ू ी र्ें असर् , र्ेघालय, ब्रत्रपुरा और मर्जोरर् (AMTM) को
संविधान की पांचिीं अनुसच
छोडकर अन्य राज्यों के अनुसूधचत िेत्र ि अनुसूधचत जनजानतयों के प्रशासन ि
ननयंत्रण के बारे र्ें चचाा की गई है।
• संविधान के छठी अनुसू ची र्ें चार उत्तर-पूिी राज्यों असर्, र्ेघालय, ब्रत्रपुरा और मर्जोरर्
के प्रशासन के संबंध र्ें उपबं ध है|

अनुसूधचत िेत्रों का प्रशासन (5िीं अनुसूची)


विशभन्न सार्ान्जक-आधथाक व्यिस्था के कािण अनुसूधचत क्षेत्रों र्ें विशेष प्रयास की आिश्यकता होती है औि केंद्र
सिकाि की इन क्षेत्रों के प्रनत अधधक न्जम्र्ेदािी होती है।

पांचिीं अनुसूची र्ें िणणात प्रशासन की विशेषताएं:


अनुसूधचत िेत्रों की • िाष्ट्रपनत को संबंधधत िाज्य के िाज्यपाल के साथ पिार्शा कि क्रकसी अनुसूधचत
घोषणा (SAs) क्षेत्र के क्षेत्रफल को बढाने या घर्टाने, सीर्ाओं को बदलने औि इस तिह के नार्ों
को परििनतात किने का अधधकाि है।
केंद्र ि राज्य की कायाकारी • िाज्य की कायाकािी शन्क्त, उनके िाज्य के अंदि अनुसूधचत क्षेत्रों र्ें भी लागू
शजक्त होती है| ऐसे क्षेत्रों के शलए िाज्यपाल पि विशे ष उत्तिदानयत्ि होता है | िाज्यपाल
ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के संदभा र्ें िाष्ट्रपनत को िावषाक रिपोर्टा दे ता है या जब
िाष्ट्रपनत क्षेत्रों के बािे र्ें जानना चाहे| ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के संदभा र्ें िाज्यों
को ननदे श दे ना केंद्र की कायाकािी शन्क्त के अंतगात आता है।
जनजातीय सलाहकार • अनुसूधचत जनजानतयों के कल्याण ि उत्थान के संदभा र्ें सलाह दे ने के शलए उन
पररषद (TAC) – 20 क्षेत्रों र्ें जनजानत सलाहकाि परिषद का गठन क्रकया जाता है। कुल 20 सदस्यों
सदस्यीय ननकाय र्ें से तीन-चौथाई सदस्य िाज्य विधानसभा र्ें अनुसूधचत जनजानतयों के
प्रनतननधध होने चादहए । इस तिह की परिषद िैसे िाज्यों र्ें भी गदठत की जा
सकती है जहां अनुसूध चत जनजानतयां तो है लेक्रकन अनुसूध चत क्षेत्र नहीं है| ऐसा
िाष्ट्रपनत के ननदे श पि क्रकया जाता है।
अनुसूधचत िेत्रों र्ें लागू • िाज्यपाल को यह अधधकाि है क्रक िह संसद या िाज्य विधानर्ंडल के क्रकसी
विधध विशेष अधधननयर् को अनुसूधचत क्षेत्रों र्ें लागू ना किें या कुछ परिितान ि
अपिाद स्िरूप उसे लागू किें | िाज्यपाल अनुसूध चत क्षेत्रों र्ें शांनत ि अच्छी
सिकाि के शलए जनजातीय सलाहकाि परिषद से विचाि-विर्शा कि ननयर् बना
सकता है|

संिैधाननक प्रािधानों के अनुसार राष्रपनत िाज्य र्ें अनुसूधचत जनजानतयों के कल्याण हेतु एिं अनुसूधचत क्षेत्रों के
प्रबंधन हेतु आयोग का ननर्ााण कि सकता है। इस संदभा र्ें अभी तक दो आयोग ननयुक्त क्रकए गए हैं - यू.एन. ढे बि
(1960) औि ददलीप शसंह भूरिया सशर्नत (2002)।

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ितार्ान (2019) र्ें, भाित के दस िाज्यों आंध्र प्रदे श, तेलंगाना, झािखंड, छत्तीसगढ, गुज िात, दहर्ाचल प्रदे श, र्ध्य
प्रदे श, र्हािाष्ट्र, ओडडशा औि िाजस्थान र्ें अनुसूधचत क्षेत्र हैं|

जनजातीय िेत्रों र्ें प्रशासन ( 6ठी अनुसूची ) :


• ू ी र्ें चाि उत्ति-पूिी िाज्यों असर्, र्ेघालय, त्रत्रपुिा औि शर्जोिर् (AMTM) (र्खणपुि
संविधान की छठी अनुसच
नहीं) के जनजानत क्षेत्रों के शलए विशेष प्रािधानों का िणान क्रकया गया है।
• ऐसे क्षेत्रों के लोगों की संस्कृनत, िीनत-रििाजों औि सभ्यताओं की िक्षा के शलए ऐसी व्यिस्था की गई है, न्जन्होंने
अभी भी ऐसे क्षेत्रों र्ें प्रर्ुखता से आधुननक जीिन को आत्र्सात नहीं क्रकया है।

ू ी के अंतगात प्रशासन की ननम्नमलणखत विशेषताएं हैं -


संविधान की छठी अनुसच
1. AMTM के जनजानत क्षेत्रों र्ें स्िशासी न्जलों (Ads) का गठन क्रकया गया है, लेक्रकन ये संबंधधत िाज्य के
कायाकािी प्राधधकाि के अंतगात आते हैं।
2. राज्यपाल को स्िशासी जजलों को स्थावपत एिं पुनस्थाावपत करने का अधधकार है | राज्यपाल स्िशासी जजलों को
कई स्िायत्त िेत्रों र्ें विभाजजत कर सकता है।
3. प्रत्येक स्िशासी न्जले के शलए एक न्जला परिषद होगी, जो तीस सदस्यों से शर्लकि बनेगी (26 ननिााधचत + 4
िाज्यपाल द्िािा नाशर्त), ननिााधचत सदस्यों का कायाकाल 5 िषा का होता है । प्रत्येक स्िायत्त क्षेत्र र्ें अलग-
अलग प्रादे शशक परिषद भी होती है।
4. जजला और िेत्रीय पररषदों की शजक्तयााँ और काया: -
• न्जला ि प्रादे शशक परिषद को अपने अधीन क्षेत्रों के शलए विधध बनाने की शन्क्त है औि क्षेत्रीय परिषद अपने
अधधकाि क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन किती है। िे कु छ र्ार्लों जैसे भूशर्, जंगल , नहि के पानी, अन्य
बातों पि कानून बना सकते हैं, लेक्रकन ऐसे कानूनों के शलए िाज्यपाल की स्िीकृनत की आिश्यकता होती
है।
• न्जला ि प्रादे शशक परिषद को अपने क्षेत्रों र्ें जनजानतयों के आपसी र्ार्लों के ननपर्टािे के शलए ग्रार् परिषद
या न्यायालयों का गठन कि सकती है, िे अपील सुन सकती हैं तथा इन र्ार्लों र्ें उच्च न्यायालय के
क्षेत्राधधकाि का ननधाािण िाज्यपाल द्िािा क्रकया जाएगा।
• न्जला परिषद , अपने न्जले र्ें प्राथशर्क विद्यालयों , औषधालयों, बाजािों, फेिी, र्त्स्य क्षेत्रों, सड़कों आदद को
स्थावपत कि सकती है| न्जला परिषद साहूकािों पि ननयंत्रण औि गैि जनजातीय सर्ुदायों के व्यापाि पि
विननयर्न कि सकती है, लेक्रकन ऐसे विननयर्न के शलए िाज्यपाल के स्िीकृनत अनत आिश्यक है ।
5. केंद्रीय या राज्य विधानर्ंडल का अधधननयर् स्िशासी जजलों या स्िशासी प्रदे श र्ें लागू नहीं होता और अगर
होता भी है तो अपिादों या संशोधनों के साथ लागू होता है।
6. राज्यपाल, स्िशासी जजलों या पररषदों के प्रशासन की जांच और ररपोटा के मलए आयोग गदठत कर सकता है |
राज्यपाल आयोग की मसफाररश पर जजला या प्रादे मशक पररषदों को विघदटत कर सकता है ।

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28. कुछ राज्यों के मलए विशेष प्रािधान

• संविधान के भाग 21 र्ें अनुच्छे द 371 से 371 ञ तक →बािह िाज्यों → र्हािाष्ट्र + गुजिात + नागालैंड +
असर् + र्खणपुि + आं ध्र प्रदे श + तेलंगाना + शसन्क्कर् + शर्जोिर् + अरुणाचल प्रदे श + गोिा + कनाार्टक के
संबंध र्ें विशेष प्रािधान ।
• उद्दे श्य: इन िाज्यों के वपछड़े इलाकों र्ें िहने िाले लोगों की आिश्यकताओं को पूिा किना, इन िाज्यों के
जनजानत लोगों के आधथाक एिं सांस्कृनतक दहतों की िक्षा किना तथा उन िाज्यों के स्थानीय लोगों के दहतों की
िक्षा किना है।
• इन िाज्यों के कुछ अशांत इलाकों र्ें कानून एिं व्यिस्था की स्थापना किना है।

राज्य संिैधाननक प्रािधान


अनुच्छे द 371: राज्यपालका विशेष उत्तरदानयत्ि :
• इनके शलए पृथक विकास बोडों की स्थापना किना:
o विदभा, र्राठिाडा एिं शेष र्हािाष्ट्र
र्हाराष्र और o सौराष्र , कच्छ औि शेष गुज िात
गुजरात • यह प्रािधान किना क्रक इन बोडों के कायों का िावषाक प्रनतिेदन िाज्य विधानसभा र्ें पेश क्रकया
(अनुच्छे द-371) जाएगा।
• उक्त िखणात क्षेत्रों र्ें विकास हेतु ननधधयों का सम्पूणा आिंर्टन किना।
• उक्त क्षेत्रों र्ें तकनीकी शशक्षा एिं व्यिसानयक प्रशशक्षण के शलए पयााप्त सुविधाएं उपलब्ध किाने
के ननशर्त्त उधचत व्यिस्था किना।

अनुच्छे द 371 क: ननम्नमलणखत प्रािधान करता है:


• संसद द्िािा ननम्न र्ार्लों के संबंध र्ें बनाया गया अधधननयर् तब तक नागालैंड पि लागू नहीं
होगा, जब तक िाज्य विधान सभा इसका अनुर्ोदन ना कि दे :
o नागाओं की धाशर्ाक या सार्ान्जक प्रथाएँ
o नागा प्रथागत विधध औि प्रक्रिया
o नागरिक औि आपिाधधक न्याय का प्रशासन
o भूशर् औि उसके संपवत्त स्त्रोतों का स्िाशर्त्ि औि हस्तांतिण।
नागालैंड • नागालैंड र्ें जब तक स्थानीय नागाओं द्िािा क्रकए जा िहे उपद्रि सर्ाप्त नहीं हो जाते , तब
(अनुच्छे द 371- तक िाज्य र्ें कानून एिं व्यिस्था बनाए िखने का विशेष दानयत्ि िाज्यपाल पि है :
क) o िाज्यपाल का ननणाय ही अंनतर् एिं र्ान्य होगा।
• िाज्यपाल का यह दानयत्ि है क्रक िह केंद्र सिकाि द्िािा िाज्य के विकास हेतु विशेष काया हेतु
ददए गए धन का उधचत आिंर्टन एिं व्यय सुननन्श्चत किें , इसर्ें इस काया से सं बंधधत अनुदान
र्ांगे भी सन्म्र्शलत होंगी|
• 35 सदस्यों िाली क्षेत्रीय परिषद → िाज्य का त्िेनसांग न्जला
• त्िेनसांग न्जले का प्रशासन िाज्यपाल द्िािा क्रकया जाएगा:
o नागालैंड विधान सभा द्िािा बनाया गया कोई भी अधधननयर् त्िेनसांग न्जले पि तब तक

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लागू नहीं होगा, जब तक क्रक इस न्जले की क्षेत्रीय परिषद िाज्यपाल को इस बािे र्ें
अनुशंसा न किें |
o िाज्य र्ंत्रत्रपरिषद र्ें त्िेनसांग न्जले के शलये एक र्ंत्री होगा।
असर् अनुच्छे द 371ख के अंतगात असर् का िाज्यपाल िाज्य विधान सभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए
(अनुच्छे द 371 सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से न्जन्हें िह उधचत सर्झता है , एक सशर्नत का गठन कि सकता है|
ख)

अनुच्छे द 371 ग-
• िाष्ट्रपनत को यह अधधकाि है क्रक यदद िह चाहे तो िाज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से र्खणपुि विधान
र्णणपुर सभा के शलए चुने गए सदस्यों से एक सशर्नत का गठन कि सकता है|
(अनुच्छे द- 371- • िाष्ट्रपनत, इस सशर्नत का उधचत काया संचालन सुननन्श्चत किने के शलए िाज्यपाल को विशेष
ग) उत्तिदानयत्ि भी सौंप सकता है|
• िाज्यपाल, पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध र्ें प्रनतिषा िाष्ट्रपनत को प्रनतिेदन भेजेगा|
• केंद्र सिकाि, पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के शलए िाज्य सिकाि को आिश्यक ददशा-ननदे श दे
सकती है।

अनुच्छे द 371घ – राज्य पुनगाठन अधधननयर्, 2014 द्िारा 371-घ को विस्तत


ृ करके तेलंगाना
राज्य की स्थापना की गई। िाष्ट्रपनत को अधधकाि है क्रक :
• िाज्य के विशभन्न क्षेत्रों र्ें ननिास किने िाले लोगों के शलए शशक्षा एिं िोजगाि के अिसिों र्ें
आंध्र प्रदे श या सर्ान अिसि उपलब्ध किाने के शलए उधचत व्यिस्था किना।
तेलंगाना • क्रकसी भी शैक्षक्षक संस्थान र्ें िाज्य के क्रकस भाग के छात्रों को प्रिेश र्ें ििीयता दी जाएगी या
(अनुच्छे द 371- क्रकसी शैक्षक्षक संस्थान र्ें िाज्य के क्रकसी विशेष क्षेत्र के लोगों के शलए विशेष आिक्षण की
घ) व्यिस्था भी कि सकते हैं|
• िाज्य र्ें शसविल से िा के पदों पि कायाित अधधकारियों की शशकायतों एिं वििादों के ननपर्टान
हेतु विशेष प्रशासननक अधधकिण की स्थापना कि सकता है।
o यह अधधकिण िाज्य उच्च न्यायालय के क्षेत्राधधकाि से बाहि काया किे गा|
• अनुच्छे द 371 ङ →संसद को आंध्र प्रदे श राज्य र्ें एक केंद्रीय विश्िविद्यालय की स्थापना का
अधधकाि दे ता है|

36 िां संिैधाननक संशोधन अधधननयर्,1975 के द्िारा →अनुच्छे द 371 च जोडा गया, जजसर्ें
उजल्लणखत है कक -
• शसन्क्कर् विधान सभा र्ें कर् से कर् 30 सदस्य होंगे।
मसजक्कर् • लोकसभा र्ें शसन्क्कर् को एक सीर्ट दी जाएगी।
(अनुच्छे द -371- • शसन्क्कर् जनसंख्या के विशभन्न िगों के अधधकािों औि दहतों की िक्षा के शलए संसद को
च) अधधकाि ददया गया है।
• राज्य के राज्यपाल को राज्य र्ें शांनत और सार्ाजजक तथा आधथाक उन्ननत सुननजश्चत करने
के मलए विशेष दानयत्ि प्रदान ककया गया है।
• िाष्ट्रपनत यदद चाहे तो िे भाितीय संघ के िाज्यों के शलए बनाए गए क्रकसी ननयर् को शसन्क्कर्

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के विशेष संदभा र्ें विस्तारित ( प्रनतषेध या संशोधन के द्िािा ) कि सकते हैं|
अनुच्छे द 371-छ:
• ननम्नमलणखत र्ार्ले से संबंधधत संसद द्िारा बनाया गया कोई ननयर् मर्जोरर् राज्य पर तब
मर्जोरर् तक लागू नहीं होगा, जब तक कक राज्य की विधान सभा ऐसा करने का ननणाय ना करें :
(अनुच्छे द 371 धामर्ाक या सार्ाजजक प्रथाएं + मर्जो प्रथागत विधध और प्रकक्रया + शसविल और
छ) आपराधधक न्याय + भूमर् का स्िाशर्त्ि औि हस्तांतरण।
• मर्जोरर् विधान सभा र्ें 40 से कर् सदस्य नहीं होंगे|
अरुणाचल प्रदे श अनुच्छे द 371-ज:
(अनुच्छे द 371 • अरुणाचल प्रदे श के िाज्यपाल पि िाज्य र्ें कानून एिं व्यिस्था की स्थापना किने का विशेष
ज) दानयत्ि है|
• अरुणाचल प्रदे श विधान सभा र्ें 30 से कर् सदस्य नहींहोंगे।
गोिा अनुच्छे द 371- झ
• विधान सभा र्ें 30 से कर् सदस्य नहीं होंगे।
अनुच्छे द 371- ञ
• हैदिाबाद – कनाार्टक क्षेत्र के शलए अलग विकास बोडों की स्थापना क्रकया गया है।
• बोडा के संचालन से संबंधधत प्रनतिेदन प्रत्येक िषा िाज्य विधान सभा के सर्क्ष प्रस्तुत क्रकया
कनााटक जाएगा।
(अनुच्छे द 371 • क्षेत्र र्ें विकासात्र्क खचों के शलए ननधध का सर्ान आिंर्टन क्रकया जाएगा।
ञ) • क्षेत्र से संबंधधत विद्याधथायों के शलए क्षेत्र के शैक्षखणक तथा व्यािसानयक शशक्षण संस्थानों र्ें
सीर्टों का आिक्षण किना।

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29. संिैधाननक ननकाय

संघ लोक सेिा आयोग तथा राज्य लोक सेिा आयोग

ननकाय संघ लोक सेिा आयोग राज्य लोक सेिा आयोग


अनुच्छे द • भाग–14, अनुच्छे द315 से 323 तक • भाग- 14 , अनुच्छे द 315 से 323 तक
ननयुजक्त • राष्रपनत के द्िािा • ननयुन्क्त िाज्यपाल के द्िािा की जा सकती
है लेक्रकन मसफा राष्रपनत के द्िारा ही
हटाया जा सकता है।
योग्यता • योग्यता का कोई उल्लेख नहीं है, 5. योग्यता का कोई उल्लेख नहीं लेक्रकन
हालांक्रक आधे सदस्यों को भाित सिकाि आयोग के आधे सदस्यों को भाित सिकाि
या िाज्य सिकाि के अधीन कर् से या िाज्य सिकाि के अधीन कर् से कर्
कर् 10 िषा कार् किने का अनुभि 10 िषा कार् किने का अनुभि होना
होना चादहए। चादहए।

सदस्य • संविधान र्ें आयोग के सदस्यों की • संविधान र्ें सदस्यों की संख्या का कोई
संख्या का कोई उल्लेख नहीं क्रकया गया उल्लेख नहीं तथा इसे िाज्यपाल के वििेक
है तथा इसे िाष्ट्रपनत के वििेक पि छोड़ पि छोड़ ददया गया है।
ददया गया है
• अध्यक्ष को शर्लाकि 9 से 11 सदस्य
होते हैं।
कायाकाल • 6 िषा की अिधध तक या 65 िषा की • 6 िषा की अिधध तक या 62 िषा की आयु
आयु तक तक
• अध्यि – भारत सरकार या ककसी राज्य • अध्यक्ष– पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं
सरकार के अधीन ककसी और ननयोजन (यानी दूसिे कायाकाल के शलए) या भाित
का पात्र नहीं होता। सिकाि या क्रकसी िाज्य की सिकाि के
• सदस्य- पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं अधीन ननयोजन का पात्र नहीं होगा लेक्रकन
(यानी सदस्य के रूप र्ें दूसिे कायाकाल संघ लोक सेिा आयोग का अध्यक्ष या
के योग्य नहीं) या भाित सिकाि या सदस्य के रूप र्ें ननयुक्त होने का पात्र
क्रकसी िाज्य की सिकाि के अधीन होगा।
ननयोजन का पात्र नहीं होगा लेक्रकन संघ • सदस्य- पुनः ननयुजक्त के योग्य नहीं
लोक सेिा आयोग या अन्य राज्य लोक (यानी सदस्य के रूप र्ें दूसिे कायाकाल के
सेिा आयोग के अध्यि के रूप र्ें योग्य नहीं) या भाित सिकाि या क्रकसी
ननयुक्त होने का पात्र होगा। िाज्य सिकाि के अधीन ननयोजन का पात्र
नहीं होगा लेक्रकन संघ लोक सेिा आयोग
के अध्यक्ष या सदस्य तथा िाज्य लोक
सेिा आयोग के अध्यक्ष के रूप र्ें ननयुक्त
होने का पात्र होगा।

िेतनर्ान • भारत की संधचत ननधध पि भारित • राज्य की संधचत ननधध पि भारित


त्यागपत्र • राष्रपनत को 17. राज्यपाल को

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• संविधान र्ें उन्ल्लखखत प्रािधानों के अनुसाि उसे िाष्ट्रपनत के द्िािा ननम्नशलखखत
परिन्स्थनतयों र्ें हर्टाया जा सकता है :
• अगि उसे ददिामलया घोवषत कि ददया जाता है, या
• अपने पद अिधध के दौिान अपने पद के कताव्यों के बाहि क्रकसी से िेतन ननयोजन
र्ें लगा हो; या
• अगि िाष्ट्रपनत ऐसा सर्झता है क्रक िह र्ानशसक या शािीरिक असक्षर्ता के कािण
ननष्कासन प्रकक्रया अपने पद पि बने िहने योग्य नहीं है।
• िाष्ट्रपनत संघ लोक सेिा आयोग एिं िाज्य लोक सेिा आयोग के अध्यक्ष या दूसिे
सदस्यों को उनके कदाचाि के कािण भी हर्टा सकता है । हालांक्रक, ऐसे र्ार्लों र्ें
िाष्ट्रपनत को यह र्ार्ला जांच के शलए उच्चतर् न्यायालय र्ें भेजना होता है ।
• उच्चतर् न्यायालय जांच के बाद िाष्ट्रपनत को सलाह देता है , उच्चतर् न्यायालय द्िािा
दी गई सलाह राष्रपनत के मलए बाध्यकारी होता है।
• उच्चतर् न्यायालय द्िािा की जाने िाली जांच के दौिान राष्रपनत संघ लोक सेिा आयोग
और संयुक्त राज्य लोक सेिा आयोग के अध्यक्ष ि दूसिे सदस्यों को ननलंब्रबत कि सकता
है।(िाज्य लोक सेिा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य के र्ार्ले र्ें राज्यपाल)।
• ‘कदाचार’ के बािे र्ें संविधान कहता है क्रक, अगि िह (a) भाित सिकाि या िाज्य सिकाि
की क्रकसी संविदा या किाि से संबंधधत या इच्छुक है (b) ननगशर्त कंपनी के सदस्य औि
कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सन्म्र्शलत रूप से संविदा या किाि र्ें लाभ के शलए भाग
लेता है।
विविध संघ लोक सेिा आयोग:
• ‘र्ेरिर्ट शसस्र्टर्’ का प्रहरी
• दो या अधधक िाज्य द्िािा अनुिोध किने पि संघ लोक सेिा आयोग िाज्यों को संयुक्त
भती की योजना ि प्रितान किने र्ें सहायता किता है।
• िाष्ट्रपनत संघ लोक सेिा आयोग के दायिे से क्रकसी पद, सेिा ि विषय को हटा सकता है।
• संघ लोक सेिा आयोग हि िषा अपने कार्ों की ररपोटा राष्रपनत को दे ता है। िाष्ट्रपनत इस
रिपोर्टा को संसद के दोनों सदनों के सर्क्ष प्रस्तुत किते हैं।
• अस्िीकृनत के सभी र्ार्लों को संघ कैब्रबनेट की ननयुजक्त समर्नत द्िािा स्िीकृत किाया
जाना चादहए।
• क्रकसी स्ितंत्र र्ंत्रालय या विभाग को संघ लोक सेिा आयोग के परार्शा को खाररज करने
का अधधकार नहीं है।
राज्य लोक सेिा आयोग:
• न्जला न्यायाधीश के अलािा न्यानयक सेिा र्ें भती से संबंध धत ननयर् बनाने के र्सले
पि िाज्यपाल, िाज्य लोक सेिा आयोग से संपका किता है।
• िाज्यपाल िाज्य लोक सेिा आयोग के दायिे से क्रकसी पद, सेिा या विषय को हर्टा सकता
है।
संयक्
ु त राज्य लोक सेिा आयोग: इसका गठन संसद द्िािा क्रकया गया है। इस तिह यह एक सांविधधक संस्था है +
राष्रपनत के द्िारा ननयुजक्त + कायाकाल: 6 िषा या 62 िषा तक।

चुनाि आयोग और ननयंत्रक एिं र्हालेखा परीिक(कैग )

ननकाय ननिााचन आयोग ननयंत्रक एिं र्हालेखा परीिक(कैग)


अनुच्छे द • भाग- 15, अनुच्छे द 324 • भाग 5, अनुच्छे द 148 से 151 तक
ननयुजक्त • िाष्ट्रपनत के द्िािा

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योग्यता 1. संविधान के द्िािा क्रकसी प्रकाि की योग्यता ननधााररत नहीं क्रक गयी है।
• सदस्यों की संख्या का उल्लेख नहीं, यह • एकल सदस्यीय ननकाय
सदस्य
राष्रपनत के वििेक पि ननभाि किता है।
• ितार्ान र्ें, 3 सदस्य है।
• सेिा की शतें ि पदािधध राष्रपनत द्िारा • िेतन, सेिा की शतों को संसद के द्िारा

कायाकाल/िेतनर्ा ननधााररत की जाती है। ननधााररत क्रकया जाता है।


न • िेतन उच्चतर् न्यायालय के न्यायधीश के • िेतन उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश के
सर्ान होता है। सर्ान
• ितार्ान र्ें 6 िषा या 65 िषा की आयु तक • कायाकाल - 6 िषा या 65 िषा की आयु
पद पि बना िह सकता है। तक होता है।
• संविधान के द्िािा अन्य दूसरे ननयुजक्तयों • भारत सरकार या ककसी राज्य र्ें
पर रोक नहीं लगाई गई है। ननयुजक्त के योग्य नहीं।
त्यागपत्र • िाष्ट्रपनत को दे गा।
• र्ुख्य ननिााचन आयुक्त तथा कैग को अपने ननधाारित पदािधध र्ें कार् करने की सुरिा है।
• र्ुख्य ननिााचन आयुक्त को उसके पद से उन्हीं आधाि पि ही हर्टाया जा सकता है, न्जस
ननष्कासन प्रकक्रया
आधािों पि उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीशों को हर्टाया जाता है । अथाात उन्हें दुव्यािहाि
या असक्षर्ता के आधाि पि संसद के दोनों सदनों द्िािा विशेष बहुर्त संकल्प पारित
किने के बाद िाष्ट्रपनत द्िािा हर्टाया जा सकता है।
• िह राष्रपनत के प्रसादपयंत पद पि नहीं होता है।
o सदस्यों को र्ुख्य ननिााचन आयुक्त की
शसफारिश पि ही हर्टाया जा सकता है।
----
विविध o सांसद तथा विधायको की अयोग्यता के
र्ार्ले र्ें िाष्ट्रपनत को सलाह देता है।

अनुसूधचत जानत, जनजानत तथा वपछडे िगों के मलए आयोग

ननम्न के मलए राष्रीय आयोग


ननकाय अनुसूधचत जानत अनुसूधचत जनजानत वपछडा िगा

1978 र्ें एक संकल्प के र्ाध्यर् से अनुसूधचत जानत एिं र्ूल रूप से एक सांविधधक
जनजानतयों के शलए एक गैि सांविधधक बहु सदस्यीय ननकाय है। इसे 102िें संविधान
आयोग की स्थापना की गई तथा 1990 र्ें, 65िें संविधान संशोधन अधधननयर् 2018 के
अनुच्छे द
संशोधन के र्ाध्यर् से आयोग की स्थापना तथा 2003 र्ें, तहत संिैधाननक दजाा प्राप्त
89िें संविधान संशोधन अधधननयर् के द्िािा अनुसूधचत हुआ।
जानत आयोग एिं अनुसधू चत जनजानत आयोग को अलग
कि ददया गया।
• भाग 16, अनुच्छे द o भाग 16, अनुच्छे द 3368क • भाग –16, अनुच्छे द 338ख
338
ननयुजक्त • राष्रपनत द्िािा उसके आदे श या र्ुहि लगे आदे श द्िािा होता है।
सदस्य • एक अध्यि, उपाध्यि एिं तीन अन्य सदस्य जो िाष्ट्रपनत द्िािा ननयुक्त क्रकए जाते हैं।
कायाकाल • उनकी सेिा शतें एिं कायाकाल िाष्ट्रपनत द्िािा ननधाारित क्रकए जाते हैं ।
• ननयर्ानुसाि, इनका कायाकाल 3 िषों का होता है।

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• कुछ र्ार्लों र्ें इसे • कुछ र्ार्लों र्ें इसे दीिानी • कुछ र्ार्लों र्ें इसे दीिानी
दीिानी न्यायालय की
न्यायालय की शन्क्तयां न्यायालय की शन्क्तयां प्राप्त
शन्क्तयां प्राप्त होती हैं।
• आंग्ल भारतीय प्राप्त होती हैं। होती है।
• पेसा अधधननयर्, 1996 का • सार्ान्जक रूप से वपछड़े िगों
सर्ुदाय के संबंध र्ें
पूणा कायाान्ियन सुननन्श्चत
विविध भी सर्ान रूप से की न्स्थनत की जांच किने ि
किने संबंधी उपाय किता है।
काया किे गा। • जनजानतयों द्िािा झूर् उनकी न्स्थनत र्ें सुधाि के

खेती के प्रचलन को कर् शलए की जाने िाली कािािाई

किने तथा अंततः सर्ाप्त किने के शलए उतिदायी है।

किने संबंधी उपाय किता


है।
ररपोटा • आयोग अपना िावषाक प्रनतिेदन िाष्ट्रपनत को प्रस्तुत किता है। यदद आिश्यक सर्झा जाता
है तो सर्य से पहले भी आयोग अपना प्रनतिेदन दे सकता है ।
• िाष्ट्रपनत ऐसी सभी रिपोर्टो को संसद के प्रत्येक सदन के सर्क्ष िखिायेगा तथा अगि कोई
ऐसी रिपोर्टा या उसका कोई भाग क्रकसी ऐसे विषय से सं बंधधत है न्जसका क्रकसी िाज्य
सिकाि से संबंध है तो ऐसे रिपोर्टा की एक प्रनत उस िाज्य के िाज्यपाल को भेजी जाएगी
जो उसे िाज्य के विधान र्ंडल के सर्क्ष िखिायेगा।

भारत का र्हान्यायिादी तथा राज्य का अधधिक्ता

ननकाय भारत का र्हान्यायिादी राज्य का अधधिक्ता


अनुच्छे द • भाग- 5, अनुच्छे द 76 • भाग-6, अनुच्छे द 165

ननयुजक्त o राष्रपनत के द्िािा • राज्यपाल के द्िािा


• उच्चतर् न्यायालय का न्यायाधीश ननयुक्त • उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के
होने के योग्य (यानी क्रक िह भाित का योग्य हो(यानी क्रक िह भाित का
योग्यता नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के नागरिक तथा उसे 10 िषा तक न्यानयक
न्यायाधीश के रूप र्ें कार् किने का 5 अधधकािी का या उच्च न्यायालय र्ें 10
िषों का अनुभि या क्रकसी उच्च न्यायालय िषों तक िकालत किने का अनुभि हो)
र्ें िकालत का 10 िषा का अनुभ ि हो) या या िाष्ट्रपनत के र्तानुसाि न्यानयक
िाष्ट्रपनत के र्तानुसाि िह न्यानयक र्ार्लों का योग्य व्यन्क्त हो।
र्ार्लों का योग्य व्यन्क्त हो।
• संविधान द्िािा ननजश्चत नहीं क्रकया गया • संविधान द्िािा र्हाधधिक्ता के कायाकाल
कायाकाल है| (सार्ान्यतः र्ंत्री परिषद के संसद र्ें को ननजश्चत नहीं क्रकया गया
विश्िास र्त हाशसल िहने तक) है|(सार्ान्यतः यह तब तक होता है जब
तक विधानयका र्ें र्ंत्रत्रपरिषद को
विश्िास र्त हाशसल िहता है)
िेतन • संविधान र्ें र्हाधधिक्ता के िेतन-भत्ते को • ननन्श्चत नहीं, इसका ननधाािण राज्यपाल
ननन्श्चत नहीं क्रकया गया है। इसका के द्िािा क्रकया जाता है।
ननधाािण राष्रपनत द्िािा क्रकया जाता है।
इस्तीफा 5. राष्रपनत को • राज्यपाल को

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• संविधान र्ें इसके हर्टाने की व्यिस्था तथा • संविधान र्ें इसे हर्टाने की व्यिस्था तथा
ननष्कासन प्रकक्रया आधाि का कोई िणान नहीं क्रकया गया है। आधाि का कोई िणान नहीं क्रकया गया है
• िह अपने पद पि राष्रपनत के प्रसादपयांत • िह अपने पद पि राज्यपाल के
बना िहता है। प्रसादपयांत बना िहता है।
• दे श का सिोच्च कानून अधधकारी होता है। • िाज्य का सिोच्च कानून अधधकारी होता
• र्हान्यायिादी सिकाि का पूणाकाशलक है।
िकील नहीं है। िह एक सिकािी कर्ी की • राज्य के ककसी भी न्यायालय के सर्ि

श्रेणी र्ें नहीं आता इसशलए उसे ननजी सुनिाई का अधधकाि होता है।

विधधक कायािाही से रोका नहीं जा सकता। • विधानर्ंडल के दोनों सदनों या संबंधधत

• भाित के क्रकसी भी क्षेत्र र्ें ककसी भी सशर्नत अथिा उस सभा र्ें, जहां के

अदालत र्ें र्हान्यायिादी को सुनिाई का शलए अधधकृत है, र्ें ब्रबना र्ताधधकार के

अधधकार है। बोलने ि भाग लेने का अधधकार होता है।


विविध
• उसे संसद के दोनों सदनों र्ें बोलने या • उसे िे सभी विशेषाधधकार एिं भत्ते

कायािाही र्ें भाग लेने या दोनों सदनों की शर्लते हैं, जो विधानर्ंडल के क्रकसी

संयुक्त बैठक र्ें र्ताधधकार के बगै र भाग सदस्य को शर्लते हैं।

लेने का अधधकाि है।


• एक संसद सदस्य की तिह उसे सभी भत्ते
एिं विशेषाधधकार प्राप्त होते हैं।

जी.एस.टी. पररषद, वित्त आयोग तथा भाषायी अल्पसंख्यकों के मलए विशेष अधधकारी
ननकाय जी.एस.टी. पररषद वित्त आयोग भाषाई अल्पसंख्यकों के
मलए विशेष अधधकारी
अनुच्छे द • भाग- 12, अनुच्छे द 279 क 5. भाग-12, अनुच्छे द 280 • भाग–17 , अनुच्छे द- 350

ननयुजक्त राष्रपनत के आदे श पि गठन िाष्ट्रपनत के आदे श पि गठन राष्रपनत के द्िािा

संरचना • वित्त र्ंत्री तथा वित्त 3. 1 अध्यक्ष + 4 • संविधान र्ें योग्यता,


िाज्यर्ंत्री अन्य सदस्य कायाकाल, िेतन, भत्ते,

योग्यता ---- • संसद के द्िािा ननधाािण सेिा शतों तथा हर्टाने


की कायािाही के आधाि
कायाकाल ---- o ननयर्ानुसाि 3 िषा
का िणान नहीं क्रकया
गया है।
o कोिर् – कुल सदस्यों का • शसफारिशों की प्रकृनत
आधा| सलाहकािी होती है।
o उपन्स्थत तथा िोर्ट र्ें • यहां संघीय िाजकोष के
विविध दहस्सा लेने िाले सदस्यों के संतल
ु न र्ें भूशर्का ----
तीन चौथाई बहुर्त के ननभाता है।
द्िािा ननणाय शलया जाता
है।
o कुल ददए गए र्त का केंद्र-
1/3 औि िाज्य- 2/3|

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30. गैर- संिैधाननक ननकाय

राष्रीय र्ानिाधधकार आयोग तथा राज्य र्ानिाधधकार आयोग

ननकाय राष्रीय र्ानिाधधकार आयोग राज्य र्ानिाधधकार आयोग

स्थापना • इसका गठन संसद र्ें पारित अधधननयर्(र्ानिाधधकाि संिक्षण अधधननयर्,1993)द्िािा क्रकया
गया है।
• यह एक सांविधधक ननकाय है।
संरचना • बहु-सदस्यीय संस्था • बहु-सदस्यीय संस्था
• अध्यक्ष + 5 सदस्य • अध्यक्ष + 2 सदस्य
• अध्यक्ष – उच्चतर् न्यायालय का सेिाननिृत्त • अध्यक्ष – उच्च न्यायालय के ितार्ान अथिा
र्ुख्य न्यायाधीश सेिाननिृत्त न्यायाधीश
• सदस्य- • सदस्य-
o उच्चतर् न्यायालय र्ें कायाित या • उच्च न्यायालय के ितार्ान अथिा
सेिाननिृत्त न्यायाधीश; सेिाननिृत्त न्यायाधीश या िाज्य के न्जला
योग्यता o उच्च न्यायालय का कायाित या न्यायालय के कोई न्यायाधीश, न्जसे सात
सेिाननिृत्त र्ुख्य न्यायाधीश िषा का अनुभि हो;
o 3 अन्य को (कर् से कर् एक र्दहला • कोई ऐसा व्यन्क्त न्जसे र्ानिाधधकािों के
सदस्य)र्ानिाधधकाि से संबंधधत बािे र्ें विशेष अनुभि हो।
जानकािी अथिा कायाानुभि होना चादहए।
• अन्य पदे न सदस्यों र्ें- िाष्ट्रीय अल्पसंख्यक
आयोग, िाष्ट्रीय अनुसूधचत जानत ि
अनुसूधचत जनजानत आयोग ि िाष्ट्रीय
र्दहला आयोग के अध्यक्ष होते हैं।
• राष्रपनत के द्िािा। • राज्यपाल के द्िािा।
• राष्रीय र्ानिाधधकार आयोग चयन समर्नत • राज्य लोक सेिा आयोग चयन समर्नत: (6
ननयुजक्त (6 सदस्य): प्रधानर्ंत्री + अध्यक्ष (लोक सदस्य) र्ुख्यर्ंत्री + विधान सभा का
सभा) + उपसभापनत (िाज्य सभा) + विपक्ष अध्यक्ष + विपक्ष का नेता (विधान सभा तथा
के नेता (लोक सभा तथा िाज्य सभा दोनों विधान परिषद) + िाज्य का गृह र्ंत्री।
से) + केंद्रीय गृह र्ंत्री
कायाकाल • 5 िषा या 70 िषा की आयु तक
• पुनः ननयुजक्त के योग्य होते हैं लेककन िे केंद्र सरकार अथिा राज्य सरकारों र्ें ककसी भी पद
के योग्य नहीं होते हैं।

िेतन • केंद्र/िाज्य सिकाि द्िािा ननधाारित होता है।


• ननयुन्क्त के पश्चात अलाभकािी परिितान नहीं क्रकया जा सकता है।
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इस्तीफा • राष्रपनत को • राज्यपाल को
• उसे राष्रपनत के द्िािा ननम्नशलखखत परिन्स्थनतयों र्ें हर्टाया जा सकता है:
• यदद िह ददिामलया हो जाए; या
• यदद िह अपने कायाकाल के दौिान अपने काया क्षेत्र से बाहि से क्रकसी प्रदत िोजगाि र्ें
संशलप्त होता है; या
ननष्कासन प्रकक्रया • यदद िह र्ानमसक ि शारीररक कारणों से काया करने र्ें असर्था हों; या
• यदद िह र्ानमसक रूप से अस्िस्थ हो तथा सक्षर् न्यायालय ऐसी घोषणा किें ; या
• यदद िह न्यायालय द्िािा क्रकसी अपराध का दोषी ि सजा प्राप्त ककया हो।
• संघ लोक सेिा आयोग की ही तरह, िाष्ट्रपनत अध्यक्ष तथा क्रकसी भी सदस्य को उसके
दुिाचिण या अक्षर्ता के कािण पद से हर्टा सकता है। हालांक्रक, इस न्स्थनत र्ें िाष्ट्रपनत इस
विषय को उच्चतर् न्यायालय र्ें जां च के मलए सौंपेंगा। यदद जां च के उपिांत उच्चतर्
न्यायालय इन आिोपों को सही पाता है तो उसकी सलाह पि िाष्ट्रपनत इन सदस्यों ि अध्यक्ष
को उनके पद से हर्टा सकता है।
• आयोग की अपनी कायाप्रणाली होती है तथा िह अपने काया को किने के शलए अधधकृत होता
है। आयोग के पास मसविल न्यायालय जैसी सभी अधधकार ि शजक्तयां होती हैं तथा इसका
चरित्र एिं कायािादहयां भी न्यानयक होती है।
• स्ियं का जांच दल + केंद्र अथिा िाज्य सिकािों की जांच एजेंशसयों से र्दद लेता है।
• आयोग ऐसे क्रकसी र्ार्ले की जांच के शलए अधधकृत नहीं है न्जसे घदर्टत हुए 1 िषा से अधधक
हो गया हो।
• आयोग का काया िस्तुतः मसफाररश या सलाहकार का होता है(बाध्यकारी नहीं)। आयोग
विविध र्ानिाधधकाि उल्लंघन के दोषी को दं ड दे ने का अधधकाि नहीं िखता है, न ही आयोग पीडड़त
को क्रकसी प्रकाि की सहायता, जैसे आधथाक सहायता दे सकता है।
• सशस्त्र बल के सदस्य द्िािा क्रकए गए र्ानिाधधकाि उल्लंघन के र्ार्लों र्ें आयोग की
भूशर्का, शन्क्तयां ि न्यानयकता सीशर्त होती है।
• िाष्ट्रीय/िाज्य र्ानिाधधकाि आयोग की सभी वित्तीय शन्क्तयों का प्रयोग अध्यि के द्िािा
क्रकया जाता है, तथा यह उसके अधीन होता है।
• राष्रीय र्ानिाधधकार आयोग (NHRC) - अपनी िावषाक अथिा विशेष रिपोर्टा केंद्र सिकाि ि
संबंधधत िाज्य सिकािों को भेजता है (िाज्य र्ानिाधधकाि आयोग शसफा िाज्य सिकाि को)।
• राज्य र्ानिाधधकार आयोग- सातिीं अनुसूची के सर्िती सूची तथा िाज्य सूची के अंतगात
आने िाले विषयों की ही जांच कि सकता है ।
• केंद्र सिकाि संघ शाशसत प्रदे शों द्िािा र्ानि अधधकािों से संबंधधत कायों को िाज्य
र्ानिाधधकाि आयोग को प्रदान कि सकती है, संघ शामसत प्रदे श ददल्ली को छोडकर, यह
िाष्ट्रीय र्ानिाधधकाि आयोग के अंतगात आती है।

केंद्रीय अन्िेषण ब्यूरो

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• भ्रष्ट्र्टाचाि पि बनी संथानर् समर्नत की शसफारिशों के आधाि पि एक संकल्प के साथ केंद्रीय अन्िेषण ब्यूिो का
गठन क्रकया गया है। इसे ददल्ली विशेष पुशलस स्थापना अधधननयर्, 1946 से शन्क्त शर्लती है।
• यह कोई िैधाननक संस्था नहीं है। यह कामर्ाक र्ंत्रालय के अंतगात आती है तथा उसकी न्स्थनत एक संबं ध
कायाालय के रूप र्ें है।
• संरचना: सी.बी.आई. का प्रर्ु ख ननदे शक होता है। केंद्रीय सतका ता आयोग अधधननयर्,2003 के द्िािा सी.बी.आई.
ननदे शक को दो िषों की काया अिधध की सुिक्षा शर्लती है। इसके अनतरिक्त, अनेक संयक्
ु त ननदे शक, उप-
र्हाननिीक्षक, पुशलस अधीक्षक तथा पुशलस काशर्ाकों के अन्य िैंक होते हैं।
• ननदे शक की ननयुजक्त: प्रधानर्ंत्री की अध्यक्षता िाली एक 3 सदस्यीय समर्नत की अनुशंसा पि क्रकया जाता है।
• इस सशर्नत र्ें प्रधानर्ंत्री अध्यि के रूप र्ें जबक्रक अन्य सदस्यों के रूप र्ें लोक सभा के विपि का नेता तथा
भारत के र्ुख्य न्यायाधीश या उनके द्िािा नाशर्त सिोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश होता है।
• सीबीआई के द्िािा भ्रष्ट्र्टाचाि, आधथा क अपिाध तथा िैसे संगदठत अपराध जो आतंकिाद की श्रेणी र्ें नहीं आते
हैं, की जांच की जाती है। जबक्रक िाष्ट्रीय जांच एजेंसी के द्िािा आतंकिाद संबंधधत अपिाध जैसे आतंकिादी
हर्लों, आतंकिाद का वित्त पोषण आदद की जांच की जाती है। सीबीआई के द्िािा केंद्रीय सतका ता आयोग तथा
लोकपाल को भी सहयोग प्रदान क्रकया जाता है।
• सीबीआई भाित र्ें इंर्टिपोल के “नेशनल सेंरल ब्यूिो” के रूप र्ें भी काया किती है।

केंद्रीय एिं राज्य सूचना आयोग तथा केंद्रीय सतका ता आयोग

ननकाय केंद्रीय/राज्य सूचना आयोग केंद्रीय सतका ता आयोग


• संसद र्ें पारित एक अधधननयर् के अंतगात • संसद र्ें पारित एक अधधननयर् के द्िािा
गठन इसका गठन क्रकया गया था(सूचना का (केंद्रीय सतका ता आयोग अधधननयर्, 2003)।
अधधकाि अधधननयर्, 2005)। • सांविधधक ननकाय
• सांविधधक ननकाय
18. बहु सदस्यीय संस्था 21. बहु सदस्यीय संस्था
संरचना 19. एक र्ुख्य आयुक्त एिं सूचना आयुक्त 22. केंद्रीय सतका ता आयुक्त एिं अन्य
(न्जनकी संख्या 10 से अधधक नहीं होनी सतका ता आयुक्त (2 से अधधक नहीं)।
चादहए)।
20. केंद्रीय सूचना आयोग – ितार्ान र्ें
अध्यक्ष + 6 अन्य सू चना आयुक्त
ननयुजक्त • राष्रपनत/राज्यपाल के द्िािा • राष्रपनत के द्िािा
• केंद्रीय सूचना आयोग चयन समर्नत (3 • चयन समर्नत (3 सदस्य): प्रधानर्ंत्री,
सदस्य) प्रधानर्ंत्री, लोकसभा के विपक्ष का लोकसभा के विपक्ष का नेता तथा केंद्रीय गृह
नेता तथा प्रधानर्ंत्री के द्िािा नामर्त एक र्ंत्री।
कैत्रबनेर्ट र्ंत्री।
• राज्य सूचना आयोग चयन समर्नत (3
सदस्य): र्ुख्यर्ंत्री, विधानसभा के विपक्ष का

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नेता तथा र्ुख्यर्ंत्री के द्िािा नाशर्त िाज्य
का एक कैत्रबनेर्ट र्ंत्री

• केंद्र सरकार द्िारा ननधााररत अिधध या 65 • अिधध– 4 िषा या 65 िषा की आयु तक


िषा की आयु तक • केंद्रीय िाज्य सिकाि के अंतगात क्रकसी भी पद
कायाकाल • पुनःननयुजक्त के पात्र नहीं(सूचना आयुक्त के पात्र नहीं होते हैं।
र्ुख्य सूचना आयुक्त बनने के पात्र होते हैं
लेक्रकन कुल अिधध 5 िषा से अधधक नहीं
होनी चादहए) होते हैं ।

• आयोग का अध्यक्ष एिं सदस्य बनने िाले • िेतन - केंद्रीय सतका ता आयुक्त के िेतन, भत्ते
सदस्यों र्ें सािाजननक जीिन का पयााप्त ि अन्य सेिा शतें संघ लोक सेिा आयोग के
अनुभि होना चादहए तथा उन्हें विधध, विज्ञान अध्यि के सर्ान ही होती है औि सतका ता
एिं तकनीकी, सार्ान्जक सेिा, प्रबंधन, आयुक्त की संघ लोक सेिा आयोग के सदस्यों
पत्रकारिता, जनसंचाि या प्रशासन आदद का के सर्ान होती है।
विशशष्ट्र्ट अनुभि होना चादहए।
योग्यता/िेतन • संसद या क्रकसी िाज्य या संघ शाशसत प्रदे श
के विधानर्ंडल का सदस्य नहीं होना चादहए।
• िे क्रकसी िाजनीनतक दल से संबंध धत कोई
लाभ का पद धािण न किते हों तथा कोई
लाभ का व्यापाि या उद्यर् भी ना किते हों।
• िेतन भत्तों का ननधाािण केंद्र सिकाि किती है
तथा उनके सेिाकाल र्ें उनर्ें कोई
अलाभकािी परिितान नहीं क्रकया जा सकता
है।
इस्तीफा • राष्रपनत/राज्यपाल को • राष्रपनत को

ननष्कासन प्रकक्रया • केंद्रीय सूचना आयोग/केंद्रीय सतका ता आयोग- िाष्ट्रपनत के द्िािा हर्टाया जा सकता है तथा
इसकी कायािाही िाष्ट्रीय र्ानिाधधकाि आयोग के जैसी ही होती है।
• िाज्य सूचना आयोग – िाज्यपाल के द्िािा हर्टाया जा सकता है तथा इसकी कायािाही िाज्य
र्ानिाधधकाि आयोग के सर्ान ही होती है।

लोकपाल

ननकाय लोकपाल

• संसद र्ें पारित एक अधधननयर् के द्िािा (लोकपाल एिं लोकायुक्त अधधननयर्, 2013) केंद्र र्ें
गठन लोकपाल तथा िाज्य र्ें लोकायुक्त का गठन क्रकया गया है।
• यह एक सांविधधक ननकाय है।

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23. यह एक बहु सदस्यीय ननकाय है।
संरचना 24. इसर्ें अध्यक्ष तथा अधधकतर् 8 सदस्य(50% न्यानयक सदस्य) होते हैं।
25. कर् से कर् 50% सदस्य अनुसूधचत जानत, अनुसूधचत जनजानत, अन्य वपछडी जानत,
अल्पसंख्यक सर्ुदाय तथा र्दहला के बीच से होने चादहए।

• न्यानयक सदस्य - उच्चतर् न्यायालय के ितार्ान या पूिा न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के


योग्यता र्ुख्य न्यायाधीश।
• गैर न्यानयक सदस्य – प्रनतन्ष्ट्ठत व्यन्क्त न्जनके पास लोक प्रशासन, सतका ता, वित्त, इंश्योिें स,
बैंक्रकं ग, कानून एिं प्रबंधन तथा भ्रष्ट्र्टाचाि िोधी नीनतयों के संबंध र्ें विशेष जानकािी तथा कर्
से कर् 25 िषों का अनुभि हो।
ननयुजक्त • राष्रपनत के द्िारा (लोकपाल), राज्यपाल के द्िारा (लोकायुक्त)।
• चयन समर्नत (3 सदस्य) : प्रधानर्ंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा र्ें विपक्ष का नेता, भाित
के र्ुख्य न्यायाधीश या उनके द्िािा नाशर्त सिोच्च न्यायालय का कायाित न्यायाधीश औि
कोई प्रनतन्ष्ट्ठत न्यायिेत्ता जो िाष्ट्रपनत द्िािा चयन सशर्नत के 4 सदस्यों की अनुशंसा पि
नाशर्त हो।
• सचा समर्नत - चयन सशर्नत की र्दद किने के शलए (50% सदस्य अनुसूधचत जानत,
जनजानत, अन्य वपछडा िगा, अल्पसंख्यक तथा र्दहलाओं के िगा से आते हों)

कायाकाल/िेतनर्ान • अिधध - 5 िषा या 70 िषा की आयु होने तक


• अध्यक्ष के िेतन एिं भत्ते भाित के र्ुख्य न्यायाधीश के सर्ान तथा सदस्यों के िेतन एिं भत्ते
उच्चतर् न्यायालय के न्यायाधीश के सर्ान होंगे।
इस्तीफा • राष्रपनत को सौंपते हैं ।

• सशस्त्र बलों को छोड़कि प्रधानर्ंत्री सदहत सभी िगों के सिकािी कर्ाचािी लोकपाल के दायिे र्ें
आते हैं।
• लोकपाल को यह अधधकाि होगा क्रक लोकपाल द्िािा प्रेवषत र्ार्लों पि िह सीबीआई सदहत
क्रकसी भी जांच एजेंसी पि अधीक्षण तथा ददशा ननदे श किे ।
• न्जन संस्थाओं का सिकाि द्िािा पूणातः या अंशतः वित्तीयन होता है िह लोकपाल के अधधकाि
विविध क्षेत्र र्ें आता है लेक्रकन न्जन संस् थाओं को सिकाि वित्तीय सहायता नहीं दे ती है िह इसके
अधधकाि क्षेत्र से बाहि होते हैं ।
• इसर्ें िे प्रािधान शाशर्ल हैं जो भ्रष्ट्र्ट अधधकारियों द्िािा भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त की गई संपवत्त
को ज़ब्त करें गे, तब भी जबक्रक अमभयोजन की प्रकक्रया बाकी हो।
• िाज्यों को 1 िषा के भीतर लोकायुक्त का गठन किना होगा।
• लोकपाल के द्िािा क्रकसी जांच के शलए ननयुक्त सीबीआई अधधकािी को लोकपाल की अनुर्नत
के ब्रबना उसका तबादला नहीं क्रकया जा सकता है।

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31. सहकारी समर्नतयााँ


2011 का 97िाँ संविधान संशोधन अधधननयर् सहकािी सशर्नतयों को संिैधाननक न्स्थनत औि सं िक्षण प्रदान किता है ,
इस शसलशसले र्ें इस विधेयक ने संविधान र्ें ननम्नशलखखत तीन बदलाि क्रकए :
1. इसने सहकािी सशर्नतयां बनाने के अधधकाि को र्ौशलक अधधकाि बनाया( अनुच्छे द 19)।
2. इसे बढािा दे ने के शलए इसने एक नए िाज्य के नीनत ननदे शक शसद्धांत को जोड़ा(अनुच्छे द 43-B)।
3. इसने संविधान र्ें एक नया खंड IX-B जोड़ा न्जसका नार् सहकािी सशर्नतयां (अनुच्छे द 243-ZH to 243-ZT)है।

संिैधाननक प्रािधान
संविधान के भाग IX-B र्ें सहकािी सशर्नतयों से संबंधधत ननम्नशलखखत प्रािधान क्रकये गये हैं :

सहकारी समर्नतयों का संस्थापन: • िाज्य विधानयका सहकािी सशर्नतयों के ननगर्न, ननयर्न औि सर्ापन के
शलए प्रािधान कि सकती है। (अनुच्छे द 243ZI)
• विधान र्ंडल द्िािा तय क्रकए गए संख्या के अनुसाि बोडा के ननदे शक होंगे,
लेक्रकन क्रकसी सहकािी सशर्नत के ननदे शकों की अधधकतर् संख्या 21 से
बोडा के सदस्यों एिं इसके ज्यादा नहीं होगी।
पदाधधकाररयों की संख्या एिं शतें:( • बोडा के ननिााधचत सदस्यों के कायाकाल औि उसके पदाधधकारियों का
अनुच्छे द 243 ZJ) कायाकाल ननिााचन की नतधथ से पाँच िषा के शलए होगा औि ऐसे ननकाय
द्िािा ितार्ान बोडा के कायाकाल (अनुच्छे द 243 ZK) की सर्ान्प्त से पहले
एक बोडा का चुनाि क्रकया जाएगा, न्जसे िाज्य विधानयका द्िािा तय क्रकया
जाएगा।
• न्जस सहकािी सशर्नत र्ें अनुसधू चत जानत या अनुसधू चत जनजानत के लोग
पदों का आरिण: औि र्दहला सदस्य होंगे िैसे प्रत्येक सहकािी सशर्नत के बोडा र्ें अनुसूधचत
जानत तथा अनुसूधचत जनजानत के शलए एक सीर्ट औि र्दहलाओं के शलए 2
सीर्टों के आिक्षण का प्रािधान िाज्य विधानर्ंडल किे गा।
• िाज्य विधानयका बोडा के सदस्य के रूप र्ें बैंक्रकं ग, प्रबंधन, वित्त आदद के
सहयोजजत सदस्य : क्षेत्र र्ें अनुभि िखने िाले व्यन्क्तयों के सहयोजन का ननयर् बना सकता
है, न्जनकी संख्या र्तदान के अधधकाि के त्रबना (इक्कीस ननदे शकों के
अनतरिक्त ) दो से अधधक नहीं होगी।
• क्रकसी भी बोडा को 6 र्ाह से अधधक सर्य तक विघदर्टत या ननलंत्रबत नहीं
िखा जाएगा।(सहकािी बैंकों के र्ार्ले र्ें, बहु-िाज्य सहकािी बैंकों के
बोडा का विघटन एिं ननलंबन तथा अलािा, यह अिधध एक िषा से अधधक नहीं हो सकती है)। हालांक्रक, ऐसे
अंतररर् प्रबंधन (अनुच्छे द 243 क्रकसी भी सहकािी सशर्नत के बोडा को अधधगह
ृ ीत नहीं क्रकया जाएगा या
ZL) उन्हें ननलंत्रबत नहीं िखा जाएगा, जहां कोई सिकािी दहस्सेदािी या ऋण या
वित्तीय सहायता या सिकाि द्िािा कोई गािं र्टी नहीं है।
सहकारी समर्नतयों के खातों का • िाज्य विधान र्ंडल सहकािी सशर्नतयों के खातों का अनुिक्षण तथा हि
अंकेिण (अनुच्छे द 243 ZM) वित्तीय िषा र्ें कर् से कर् एक बाि खाते के अंकेक्षण का ननयर् बनाएगा।
(वित्तीय िषा के छह र्हीने के भीति)
बहु-राज्य सहकारी समर्नतयों र्ें इन • इस खंड के प्रािधान बहु-िाज्य सहकािी सशर्नतयों पि लागू होंगे औि ये
कानूनों का कायाान्ियन (अनुच्छे द केंद्र सिकाि के दायिे र्ें आएंगे।

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243 ZR)
:
• इस खंड के प्रािधान केंद्र शाशसत प्रदे शों पि लागू होंगे। लेक्रकन िाष्ट्रपनत
केंद्र शामसत प्रदे शों र्ें कानूनों का यह ननदे श दे सकते हैं क्रक इस भाग के कोई खास प्रािधान क्रकसी केंद्रीय
कायाान्ियन (अनुच्छे द 243 ZS) क्षेत्र या उसके कुछ भाग पि लागू नहीं होंगे। (अनुच्छे द 243 ZS)
:

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32. दल पररितान/दल बदल कानन


• 52िें संविधान संशोधन अधधननयर्, 1985 को सार्ान्यतया दल बदल कानून कहा जाता है , इसर्ें संविधान के
चाि अनुच्छे दों यानी अनुच्छे द 101, 102, 190 औि 191 र्ें परिितान क्रकया गया है जो क्रक सांसदों तथा
विधायकों द्िािा एक िाजनीनतक दल से दूसिे दल र्ें दल परिितान के आधाि पि ननिहाता के बािे र्ें प्रािधान
क्रकया गया है।
• इस संशोधन ने संविधान र्ें एक नई अनुसू ची (दसिीं अनुसूची) को जोड़ा है।
• इसर्ें सांसदों तथा विधायकों द्िािा एक िाजनीनतक दल से दूसिे दल र्ें दल परिितान के आधाि पि ननिहा ता के
बािे र्ें प्रािधान क्रकया गया है।

91िां संविधान संशोधन अधधननयर् (2003):


91िां संविधान संशोधन अधधननयर्, 2003 द्िािा र्ंत्रत्रर्ंडल का आकाि छोर्टा िखने अयोग्य लोगों को नागरिक पद
धािण किने से िोकने एिं दल परिितान वििोधी कानून को सशक्त बनाने के शलए ननम्नशलखखत उपबंध क्रकए गए हैं :
1. प्रधानर्ंत्री सदहत संपूणा र्ंत्रत्रपरिषद का आकाि िर्शः लोकसभा की कुल सदस्य संख्या( अनुच्छे द 75) औि
विधानसभा की कुल सदस्य संख्या(अनुच्छे द 164) के 15% से अधधक नहीं होगा लेक्रकन, एक िाज्य र्ें र्ुख्यर्ंत्री
सदहत र्ंत्रत्रयों की संख्या 12 से कर् नहीं होगी।
2. संसद के क्रकसी भी सदन के सदस्य (अनुच्छे द 75) या िाज्य विधानर्ंडल के सदस्य (अनुच्छे द 164)जो क्रकसी भी
िाजनीनतक दल से संबंधधत हो,न्जसे दल बदल के आधाि पि अयोग्य घोवषत क्रकया गया है, िह क्रकसी भी र्ंत्री
पद को धािण किने के शलए अयोग्य होगा।
3. संसद या िाज्य विधानर्ंडल के क्रकसी भी सदन का , क्रकसी भी िाजनीनतक दल का ऐसा सदस्य जो दल परिितान
के आधाि पि अयोग्य ठहिाया गया हो, क्रकसी भी लाभ के िाजनीनतक पद को धािण किने के शलए अयोग्य होगा।
4. दसिीं अनुसूची के उपबं ध ( दल परिितान वििोधी कानून) विभाजन की उस दशा र्ें लागू नहीं होंगे , जब क्रकसी
दल के एक नतहाई सदस्य उस विभान्जत सर्ूह र्ें शाशर्ल हों। अथाात विभाजन के आधाि पि ननिहाकों के शलए
कोई औि संिक्षण नहीं है।

दल-पररितान कानून के उपबंध

अयोग्यताएं
ककसी सदन का सदस्य जो ककसी राजनीनतक दल का सदस्य है उस सदन की सदस्यता
राजनीनतक दलों के सदस्य के ननरहाक र्ाना जाएगा
: क. यदद िह स्िेच्छा से ऐसे राजनीनतक दल की सदस्यता छोड दे ता है अथिा
ख. यदद िह सदन र्ें अपने राजनीनतक दल के ननदे शों के विपरीत र्त देता है या
र्तदान र्ें अनुपजस्थत रहता है तथा राजनीनतक दल से उसने 15 ददनों के भीतर
िर्ादान ना पाया हो।
कोई ननदालीय सदस्य (जो त्रबना क्रकसी िाजनीनतक दल का उम्र्ीदिाि होते हुए चुनाि
ननदालीय सदस्य : जीता हो) क्रकसी सदन की सदस्यता के ननिहाक हो जाएगा यदद िह उस चुनाि के बाद

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क्रकसी िाजनीनतक दल की सदस्यता धािण कि लेता है।
एक र्नोनीत सदस्य सदस्यता के अयोग्य हो जाएगा , यदद िह सदन र्ें अपना स्थान
ग्रहण किने के 6 र्ाह बाद क्रकसी िाजनीनतक दल की सदस्यता ग्रहण कि लेता है।
र्नोनीत सदस्य : इसका अथा यह है, क्रक िह सदन की सदस्यता प्राप्त किने के 6 र्ाह के भीति क्रकसी
भी िाजनीनतक दल की सदस्यता ग्रहण कि सकता है(ननलंत्रबत /अयोग्य हुए त्रबना)।

दल पररितान के आधार पर उपयुाक्त अयोग्यता ननम्नमलणखत दो र्ार्लों र्ें लागू नहीं


अपिाद : होगी :
क. यदद कोई सदस्य दल र्ें र्टू र्ट के कािण दल से बाहि हो गया हो , दल र्ें र्टू र्ट तब
र्ानी जाती है जब दो नतहाई सदस्य सदन र्ें एक नए दल का गठन कि लेते हैं।
ख. यदद कोई सदस्य पीठासीन अधधकािी चुने जाने पि अपने दल की सदस्यता से
स्िैन्च्छक रूप से बाहि चला जाता है अथिा अपने कायाकाल के बाद अपने दल की
सदस्यता क्रफि से ग्रहण कि लेता है।
• दल-परिितान से उत्पन्न अयोग्यता संबंधी प्रश्नों का ननणाय सदन का अध्यक्ष किता
है।
ननधाारण प्राधधकारी. : • हालांक्रक, क्रकतोहोतो-होलोहन र्ार्ले (1993) र्ें उच्चतर् न्यायालय ने दसिीं
अनुसूची के तहत अध्यक्ष के ननणाय की अंनतर् रूप को असंिैधाननक घोवषत कि
ददया, औि कहा क्रक उसके ननणाय की भी दुभाािना, प्रनतकूलता आदद के आधाि पि
न्यानयक सर्ीक्षा की जा सकती है।
• एक सदन के अध्यक्ष को दसिीं अनुसूची के प्रािधानों को प्रभािी किने के शलए
ननयर् बनाने की शन्क्त प्राप्त है। ऐसे सभी ननयर्ों को 30 ददनों के शलए सदन
ननयर् बनाने की शजक्त : के सर्क्ष िखा जाना आिश्यक है। सदन ननयर्ों को कर् कि सकता है, इनर्ें
सुधाि कि सकता है अथिा अस्िीकृत कि सकता है।
• अध्यक्ष दल परिितान को संज्ञान र्ें तभी लेता है जब सदन की क्रकसी भी सदस्य
द्िािा उसे शशकायत प्राप्त हो।
• िह इस र्ार्ले को विशेषाधधकाि सशर्नत के पास जांच के शलए भेज सकता है ।
अतः दल-परिितान का कोई तत्काल औि स्ियर्ेि प्रभाि नहीं होता।

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