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राजव्यवस्था, संस्थाएं एवं
राजव्यवस्था, संस्थाएं एवं
भारतीय राजनीतत और
सतं िधान
द्वितीय चरण
षष्ठम ् चरण (1950 (1858-1909 ई.
ई. से आज तक) तक)
आस एक्ट के ऄतं गगत कलकत्ता प्रेतसिेंसी में एक ऐसी सरकार स्थातपत की गइ, जिसमें
गिननर जनरल और ईसकी पररषद के चार सदस्य थे , िो ऄपनी सत्ता का ईपयोग सयं क्त ु रूप से करते
थे. आसकी मख्ु य बातें आस प्रकार हैं -
(i) कंपनी के शासन पर संसदीय तनयंत्रण स्थातपत तकया गया.
(ii) बगं ाल के गिननर को तीनों प्रेतसिेंतसयों का जनरल तनयुक्त तकया गया.
(iii) कलकत्ता में एक सुप्रीम कोिन की स्थापना की गइ.
आसके द्वारा तनयंत्रण बोिन के सदस्यों तथा कमनचाररयों के िेतन अजद को भारतीय राजस्ि में से देने
की व््िस्थायकी गइ.
आसके द्वारा
(i) कंपनी के ऄतधकार-पत्र को 20 सालों के तलए ब़िा जदया गया.
(ii) कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकातधकार को छीन तलया गया. लेजकन ईसे चीन के
साथ व्यापर और पूिी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के तलए एकातधकार
प्राप्त रहा.
(iii) कुछ सीमाओ ं के ऄधीन सभी तितिश नागररकों के तलए भारत के साथ व्यापार खोल तदया
गया.
5. 1833 इ. का चािनर ऄतधतनयम:
आसके द्वारा
(i) कंपनी के व्यापाररक ऄतधकार पूणनतः समाप्त कर जदए गए.
(ii) ऄब कंपनी का कायन तितिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना
रह गया
(iii) बंगाल के गिननर जरनल को भारत का गिननर जनरल कहा िाने लगा.
(iv) भारतीय काननू ों का िगीकरण तकया गया तथा आस कायन के तलए तितध अयोग
की तनयुतक्त की व्यिस्था की गइ.
(i) भारत का शासन कंपनी से लेकर तितिश क्राईन के हाथों सौंपा गया.
(ii) भारत में मंत्री-पद की व्यिस्था की गइ.
(iii) 15 सदस्यों की भारत-पररषद का सृजन हुअ.
(iv) भारतीय मामलों पर तितिश सस ं द का सीधा तनयंत्रण स्थातपत तकया गया.
(i) कें द्र में तद्वसदनात्मक तिधातयका की स्थापना की गइ- प्रथम राज्य पररषद तथा दूसरी
कें द्रीय तिधान सभा. राज्य पररषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 तनिानतचत
होते थे और ईनका कायनकाल 5 िषों का होता था. कें द्रीय तिधान सभा के सदस्यों की
संख्या 145 थी, जिनमें 104 तनिातचनत तथा 41 मनोनीत होते थे. आनका कायनकाल 3 िषों
का था. दोनों सदनों के ऄतधकार समान थे. आनमें तसफन एक ऄंतर था जक बजि पर
स्िीकृतत प्रदान करने का ऄतधकार तनचले सदन को था.
(ii) प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रितनन तकया गया. आस योिना के ऄनसु ार प्रांतीय
तिषयों को दो ईपिगों में तिभातजत जकया गया- अरतक्षत तथा हस्तांतररत.
लॉिन बकन नहेि (भारत सतचि) ने साआमन कमीशन की तनयुतक्त करने के साथ ही राष्ट्ट्रीय नेतृत्ि को
एक ऐसा संतिधान बनाने की चुनौती भी थी जो देश के सभी समुदायों और िगों को स्िीकार हो।
ऄंततः मोतीलाल नेहरू की ऄध्यक्षता िाली एक सतमतत में 28 ऄगस्त 1928 इ. को ऄपनी ररपोिन
प्रस्तुत की तजसे लखनउ में अयोतजत सिनदलीय सम्मेलन में स्िीकार कर तलया गया।
िषन 1935 इ. के भारत शासन के अधार पर फरिरी 1937 इ. में चुनाि हुए, तजसमें कांग्रेस को
बड़ी सफलता तमली।
11 प्रांतों मद्रास, कें द्रीय मध्य प्रांत, तबहार, ईड़ीसा, संयुक्त प्रांत, मुंबइ, ऄसम, ईत्तर पतिम सीमा
प्रांत, बगं ाल, पज ं ाब एिं तसध ं में चुनाि हुए।
कांग्रेस ने 5 प्रांतों मद्रास, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, तबहार ईड़ीसा में पूणन बहुमत प्राप्त तकए।
मुंबइ, ऄसम , ईत्तर पतिमी सीमा प्रांत में िह सबसे बड़ी पािी के रूप में ईभरी।
के िल बगं ाल, पज ं ाब, तथा तसध ं में ही कांग्रेस बहुमत से ितं चत रह गइ।
पंजाब में मुतस्लम लीग तथा यूतनयतनस्ि पािी ने संयुक्त सरकार बनाइ।
बंगाल में कृषक प्रजा पािी तथा मुतस्लम लीग ने संयुक्त सरकार बनाइ।
तसंध में तसंध यूनाआिे ि पािी के ऄधीन संयुक्त सरकार का गठन हुअ।
तितिश प्रधानमंत्री चतचनल ने तितिश सस ं द सदस्य तथा मजदूर नेता सर स्िै नफोिन तक्रप्स के नेतृत्ि
में माचन 1942 में एक तमशन भारत भेजा।
कांग्रेस तथा मुतस्लम लीग दोनों ने तक्रप्स प्रस्ताि को स्िीकार नहीं तकया।
3. युद्ध के तत्काल बाद एक संतिधान तनमान त्री सभा का गठन करना तजसमें तितिश भारत और
2. पररषद में िायसराय तथा सैन्य प्रमुख के ऄततररक्त शेष सभी सदस्य भारतीय होंगे। प्रततरक्षा
तितभन्न प्रस्ताि पर तिचार तिमशन के तलए 25 जून 1945 को तशमला में सम्मे लन
अयोतजत तकया गया तजसमें कांग्रेस के साथ लीग को बराबरी का दजान तदया गया।
तजन्ना की मांग थी तक िायसराय की पररषद के सभी मुतस्लम सदस्य लीग से तलए जाएँ
क्योंतक मुतस्लम लीग ही मुसलमानों की एकमात्र प्रतततनतध है।
तजन्ना की यही मांग तशमला सम्मे लन की ऄसफलता का कारण बनी है।
आस सम्मे लन में कांग्रेस ने ऄपना प्रतततनतध मौलाना ऄबुल कलाम अजाद को तनयुक्त
तकया।
तििे न में तिंस्िन चतचनल की कंजरिेतिि पािी की पराजय के बाद लेबर पािी के नेता तक्लमेंि
एिली तििे न के प्रधानमंत्री बने।
ईसने सर पैतथक लोरेंस को भारत सतचि तनयुक्त तकया तजसने भारत में अम चुनाि करिाए।ं
कें द्रीय तिधानमंिल की 102 सीिों में कांग्रेस 57 सीिों पर सफल हुइ।
प्रांतीय चुनािों में कांग्रेस को बंगाल तसंध और पंजाब के ऄलािा शेष स्थानों पर बहुमत प्राप्त हुइ।
मद्रास, बम्बइ, सयं ुक्त प्रांत, तबहार, ईड़ीसा, ऄसम और मध्य प्रांत में कांग्रेस ने ऄपनी सरकारों का
गठन तकया।
मुतस्लम लीग को के िल बंगाल और तसंध में ही बहुमत तमला।
जनिरी 1946 इ. में एिली ने भारतीय नेताओ ं से औपचाररक स्तर पर बातचीत करने के तलए एक
सस ं दीय दल को भारत भेजने का तनणनय तलया तजसे कै तबनेि तमशन कहा गया।
29 माचन 1946 इ. कै तबनेि तमशन भारत अया।
कै तबनेि तमशन के सदस्यों में सर स्िैनफोिन तक्रप्स, ए िी ऄलेक्जेंिर तथा पैतथक लोरेंस शातमल
थे।
2. तिदेशी मामले प्रततरक्षा तथा सच ं ार साधन कें द्रीय सरकार के ऄधीन होंगे।
3. मुतस्लम लीग की पातकस्तान मांग को आस अधार पर ठुकरा तदया गया था तक आससे
कांग्रेस द्वारा िायसराय की निीनतम प्रस्तािों को स्िीकार कर लेने के बाद ऄगस्त 1946 इ. को
िेिेल ने कांग्रेस ऄध्यक्ष जिाहरलाल नेहरू को ऄंतररम सरकार के गठन के तलए अमंतत्रत तकया।
20 निंबर 1946 इ. को लॉिन िेिेल ने संतिधान सभा की प्रथम बैठक के सदस्यों को अमंतत्रत
तकया।
9 तदसंबर 1946 इ. को संतिधान सभा की प्रथम बैठक हुइ तजसमें िॉ. सतछचदानंद तसन्हा को
ऄस्थाइ ऄध्यक्ष चुना गया।
11 तदसबं र 1946 इ. को िॉ राजेंद्र प्रसाद को सतं िधान का स्थाइ ऄध्यक्ष चुना गया।
13 तदसंबर को नेहरू जी ने ईद्देश्य प्रस्ताि पेश तकया।
सदस्य तिभाग
जिाहरलाल नेहरू कायनकारी पररषद के ईपाध्यक्ष, तिदेश मामले एिं राष्ट्ट्र मंिल से
सबं तं धत मामले
सरदार बल्लभ भाइ पिेल गृह सूचना एिं प्रसारण तिभाग तथा ररयासत संबंधी मामले
बलदेि तसहं रक्षा तिभाग
जॉन मथाइ ईद्योग एिं अपूततन तिभाग
सी राजगोपालाचारी तशक्षा तिभाग
सी एच भाभा कायन ,खान तथा बंदरगाह
िॉ राजेंद्र प्रसाद खाद्य एिं कृतष तिभाग
असफ ऄली रेल तिभाग
जगजीिन राम श्रम तिभाग
तलयाकत ऄली खान तित्त तिभाग
20 फरिरी 1947 इ. को तितिश प्रधानमंत्री लॉिन एिली ने हाईस ऑफ कॉमंस में बयान तदया तक
जून 1948 इ. तक भारतीयों को सत्ता सौंपकर ऄंग्रेज भारत छोड़ देंगे।
िेिेल के स्थान पर 24 माचन 1947 इ. को माईंिबेिन गिननर जनरल बन कर भारत अया।
3 जून को माईंिबेिन ने भारत के तिभाजन के साथ सत्ता हस्तांतरण की योजना प्रस्तुत की।
भारत में सतं िधान सभा के गठन का तिचार सिनप्रथम 1934 में िामपथ ं ी नेता एमएन रॉय द्वारा रखा
गया।
वषग 1934 में ही स्िराज्य पािी द्वारा सजं वधान सभा के गठन का प्रस्ताव रखा गया।
तितिश सरकार के द्वारा 1942 में तक्रप्स तमशन संतिधान तनमानण हेतु भारत भेजा गया जिसे
मुतस्लम लीग ने ऄस्िीकार कर जदया।
जिप्स जमशन की ऄसफलता के बाद 1946 में तीन सदस्यीय कै तबनेि तमशन पैतथक लोरेंस, सर
स्िैनफोिन तक्रप्स और ए िी. एलेग्जेंिर को भारत भेिा गया।
कै तबनेि तमशन के एक प्रस्ताि द्वारा सतं िधान सभा का गठन जकया गया।
13 तदसंबर 1946 को संतिधान सभा में जिाहरलाल नेहरू द्वारा ईद्देश्य प्रस्ताि प्रस्तुत जकया गया।
आस प्रस्ताि को 22 जनिरी 1947 को सिनमान्य रूप से स्िीकार जकया गया।
आस प्रस्ताि ने सतं िधान के स्िरूप और प्रस्तािना के जनमागण में मुख्य भूतमका ऄदा की।
2 िषन 11 महीने और 18 तदनों में सजं वधान सभा ने लगभग 60 देशों के संतिधान का ऄिलोकन कर
भारतीय संजवधान का प्रारूप तैयार जकया।
26 जनिरी 1950 से 1951 – 52 में हुए अम चुनाि के बाद बनने वाली नइ संसद के तनमानण तक
भारत की ऄंतररम संसद के रूप में कायन तकया।
देश प्रािधान
तििेन संसदीय शासन प्रणाली, संसदीय तिशेषातधकार, तितध का शासन, संिैधातनक रूप से
राष्ट्ट्रपतत की तस्थतत, तिधाइ प्रतक्रया, एकल नागररकता, मंतत्रमंिल प्रणाली,
प्ररमातधकार लेख
USA मूल ऄतधकार, न्यातयक पुनरािलोकन, संतिधान की सिोछचता, तनिानतचत राष्ट्ट्रपतत ि
महातभयोग, ईपराष्ट्ट्रपतत का पद
कनािा एक सशक्त कें द्र के साथ ऄधन सघं सरकार का स्िरूप, ऄितशष्ट शतक्तयां कें द्र के पास,
संघ एिं राज्य के बीच शतक्त तिभाजन, राज्यपाल की तनयुतक्त, ईछचतम न्यायालय का
परामशी न्याय तनणनयन
दतक्षण सतं िधान सश ं ोधन की प्रतक्रया, राज्यसभा सदस्यों के तनिानचन प्रतक्रया
ऄफ्रीका
फ्रांस स्ितंत्रता, समानता और बंधुत्ि का तसद्धांत, गणतंत्रात्मक व्यिस्था
हम भारत के लोग, भारत को एक संप्रभुत्ि संपन्न, समाजिादी, पंथ तनरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य
बनाने के तलए तथा ईसके समस्त नागररकों को
सामातजक, अतथनक और राजनीततक न्याय
तिचार, ऄतभव्यतक्त, तिश्वास, धमन और ईपासना की स्ितंत्रता
प्रततष्ठा और ऄिसर की समता
प्राप्त कराने के तलए तथा ईन सब में व्यतक्त की गररमा और राष्ट्ट्र की एकता और ऄखिं ता सतु नतित करने
िाली बंधुता ब़िाने के तलए दृ़ि संकल्प होकर ऄपनी आस संतिधान सभा में अज तारीख 26 निंबर
1949 इ. (मीतत मागनशीषन शुक्ल सप्तमी संित 2006 तिक्रमी) को एतद् द्वारा आस संतिधान को ऄंगीकृत,
ऄतधतनयतमत और अत्मातपनत करते हैं।
सजं वधान के ऄनुछछे द 1 में तनधानररत जकया गया है जक भारत ऄथानत आतं िया राज्यों का संघ होगा।
जिसमें भारत शब्द देश का नाम और संघ शब्द शासन प्रणाली को दशान ता है।
कोइ भी राज्य भारत से ऄलग होने के तलए स्ितंत्र नहीं है ऄथागत भारत तिनाशी राज्यों का
36 िें संतिधान संशोधन 1975 द्वारा जसजक्कम को भारत संघ में सजम्मजलत जकया गया।
1. ऄनुछछे द 3 के द्वारा भारत की संसद को यह शतक्त प्राप्त है संसद नए राज्यों का तनमान ण
कर सकती है
2. ितन मान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओ ं या नामों में पररितन न कर सकती हैं।
आस प्रकार की तितध को ऄनछ ु छे द 368 के प्रयोजन के तलए सतं िधान का सश ं ोधन नहीं समझा
िाएगा।
संघीय क्षेत्रों को संसद के दोनों सदनों में प्रतततनतधत्ि प्राप्त है।
जून 1948 में भारत सरकार द्वारा एस. के . धर की ऄध्यक्षता में भाषाइ प्रांतीय अयोग का गठन हुअ।
तदसंबर 1948 में अयोग ने ऄपनी ररपोिन प्रस्तुत की।
आसमें राज्यों के पनु गनठन का अधार भाषाइ न रखकर प्रशासतनक सतु िधा को रखने की ऄनश ु सं ा
की गइ
धर अयोग की ररपोिन के बाद जदसबं र 1948 में जिाहरलाल नेहरू, िल्लभ भाइ पिेल और पट्टाबी
सीता रमैया के नेतत्ृ व में जेिीपी सतमतत गतठत की गइ।
आस सजमजत ने ऄप्रैल 1949 में ऄपनी ररपोिन सौंपी तथा आसमें भी भाषा के अधार पर राज्यों के
पुनगनठन की मांग स्िीकार नहीं तकया गया।
1953 में पोट्टी श्रीरामलू के तनधन के कारण मद्रास को भाषाइ अधार पर तिभातजत कर तेलगु ु
भाषी पृथक राज्य के रूप में अध्र ं प्रदेश का गठन जकया गया।
भारतीय संजवधान के भाग 2 में ऄनछु छे द 5 से 11 तक नागररकता का प्रािधान जकया गया है।
भारत के संतिधान में एकल नागररकता का प्रािधान है ऄथागत भारत में ऄलग-ऄलग राज्यों के
ऄनुसार नागररकता का प्रािधान नहीं है।
ऄमेररका में दोहरी नागररकता का प्रािधान है।
सस
ं द को नागररकता सबं ध ं ी काननू बनाने का ऄतधकार है।
ऄनछु छे द प्रािधान
ऄनुछछे द 5 संतिधान के प्रारंभ पर नागररकता
ऄनुछछे द 6 पातकस्तान से भारत अने िाले कुछ व्यतक्तयों के नागररकता के ऄतधकार
ऄनुछछे द 7 पातकस्तान को प्रव्रजन करने िाले कुछ व्यतक्तयों के नागररकता के ऄतधकार है
ऄनुछछे द 8 भारतीय मूल के व्यतक्तयों के ऄतधकार
ऄनछु छे द 9 तिदेशी राज्य की नागररकता स्िेछछा से ऄतजनत करने िाले व्यतक्तयों का नागररक
ना होना
ऄनछु छे द 10 नागररकों के ऄतधकारों का बना रहना
ऄनुछछे द 11 संसद द्वारा नागररकता के ऄतधकार का तितध द्वारा तितनयमन तकया जाना।
1. ऄनुछछे द 15, 16, 19, 29, 30 में जदए गए मूल ऄतधकार तसफन भारतीय नागररकों को ही प्राप्त हैं।
2. ऄनछु छे द 14, 20, 21, 21(A), 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28 में जदए गए मूल ऄतधकार भारतीय
नागररकों के साथ साथ तिदेतशयों को भी प्राप्त है।
3. लोकसभा एिं राज्य तिधानसभा के तनिानचन हेतु मत देने का ऄतधकार तथा संसद एिं राज्य
तिधानमंिल की सदस्यता का ऄतधकार के िल भारतीय नागररकों को प्राप्त है।
जो व्यतक्त पातकस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूिान, ऄफगातनस्तान या चीन के नागररक हैं
या कभी भी रहे हैं िह भारतीय मूल के व्यतक्त िगन (POI) में शातमल नहीं हो सकते हैं।
भारत में पहली बार मूल ऄतधकार का प्रािधान नेहरू ररपोिन 1928 में की गइ थी।
1921 के कराची ऄतधिेशन में सरदार िल्लभ भाइ पिेल की ऄध्यक्षता में कांग्रेस ने एक घोषणा
पत्र में मूल ऄतधकारों की मांग की थी।
करािी ऄजधवेशन के मूल ऄतधकारों का प्रारूप (DRAFT) जिाहरलाल नेहरू द्वारा बनाया गया
था।
भारतीय संजवधान के भाग 3 में ऄनछु छे द 12 से 35 तक आसका ईल्लेख है।
संजवधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकािान की संज्ञा दी गइ है।
सजं वधान के भाग 3 को न्यायालय द्वारा संरक्षण प्राप्त है।
मूल संतिधान में मौतलक ऄतधकारों की संख्या 7 थी परंतु ितनमान में के िल 6 मूल ऄतधकार है।
ं ोधन 1978 द्वारा सपं तत्त के मूल ऄतधकार को आस सच
44 िें सतं िधान सश ू ी से हिा कर ऄनछु छे द
300(क) में कानूनी ऄतधकार बना जदया गया।
मूल ऄतधकार स्थायी नहीं है ऄथागत संसद ऄनुछछे द 368 के ऄंतगनत संतिधान संशोधन की शतक्त
के माध्यम से आनको घिा – ब़िा सकती है।
राष्ट्ट्रीय अपातकाल (NATIONAL EMERGENCY) ऄनुछछे द 352 के दौरान ऄनुछछे द 20
और 21 को छोड़कर समस्त मूल ऄतधकार तनलंतबत तकए जा सकते हैं।
आस भाग द्वारा प्रदत्त ऄतधकारों को सिोछच न्यायालय द्वारा संरक्षण प्राप्त है।
ऄनछु छे द 32 आसके तहत ईछचतम न्यायालय मूल ऄतधकारों के ईल्लघं न होने पर सरं क्षण प्रदान
करता है।
ऄनुछछे द 226 ईछच न्यायालयों को मूल ऄतधकारों के ईल्लंघन के संबंध में जकसी जवजध को
सिं ैधातनक या ऄसिं ैधातनक घोतषत करने की शतक्त प्रदान करता है।
के शिानंद भारती बनाम के रल राज्य िाद के ऄनसु ार सिोछच न्यायालय मूल ऄतधकारों में
संशोधन कर सकती है परंतु संतिधान की अधारभूत संरचना को पररिततनत नहीं कर सकती।
माना जाएगा जब तक तक ईसने कोइ कायन करते समय तकसी प्रिृत्त तितध का ईल्लंघन नहीं
तकया है।
2. न्यातयक संदभन में तकसी व्यतक्त को एक ऄपराध के तलए एक से ऄतधक बार ऄतभयोतजत
1. तकसी व्यतक्त को ईसके प्राण एिं दैतहक स्ितंत्रता से तितध द्वारा स्थातपत प्रतक्रया के
ऄनुसार ही िंतचत तकया जा सकता है ऄन्यथा नहीं।
2. तितध द्वारा स्थातपत प्रतक्रया (PROCEDURE ESTABLISHED BY LAW) तितिश
संतिधान की तिशेषता है।
3. तनजता का ऄतधकार एक मूल ऄतधकार है।
आसके ऄतं गगत तकसी व्यतक्त को सामान्य दिं तितध के ऄधीन तगरफ्तार करने पर ईसके तनम्न
ऄतधकार बताए गए हैं
1. ऄपनी तगरफ्तारी का कारण जानने का ऄतधकार
3. 24 घंिे के ऄंदर मतजस्ट्रे ि के समक्ष प्रस्तुतत का ऄतधकार । आन 24 घंिों में ऄिकाश यात्रा में
भारत के प्रत्येक नागररक को तजसकी ऄपनी तितशष्ट, भाषा तलतप, संस्कृतत है ईसे बनाए रखने का
ऄजधकार होगा।
संपतत्त के ऄतधकार को 44 िें संतिधान संशोधन 1978 द्वारा मूल ऄतधकारों की श्रेणी
से हिाकर ऄनुछछे द 300 क के तहत एक तितध तकया कानूनी ऄतधकार के ऄंतगनत शातमल
तकया गया है।
िॉ. भीमराि ऄंबेिकर ने आस ऄनच्ु छे द को सतं िधान की अत्मा और ईसका रृदय कहा है।
ऄनुछछे द 32 के तहत सिोछच न्यायालय को और ऄनुछछे द 226 के तहत ईछच न्यायालय को मूल
ऄतधकारों के ईल्लंघन पर पांच प्रकार के ररि जारी करने का ऄतधकार है।
भारत में न्यायाधीश पीएन भगिती को जनतहत यातचका का जनक माना िाता है।
ऄनुछछे द 33 संसद को यह शतक्त प्रदान करता है जक िह सशस्त्र बलों, खुतफया एजेंतसयों एवं ऄन्य
के मूल ऄतधकारों पर युतक्त युक्त प्रततबंध लगा सके ।
ऄनछु छे द 34 के ऄंतगनत भारत के तकसी क्षेत्र में यतद सैन्य ऄतधतनयम लागू है तो संसद को यह शतक्त
है जक िह मूल ऄतधकारों पर प्रततबंध लगा सकती है।
ऄनुछछे द 35 के तहत संसद को के िल कुछ जवशेष मूल ऄतधकार प्रभािी बनाने के तलए कानून
बनाने की शतक्त प्राप्त है जकंतु यह ऄतधकार राज्य तिधानमंिल को प्राप्त नहीं है।
सजं वधान सभा के सलाहकार बी एन राि द्वारा सलाह दी गइ थी की ऄतधकारों को 2 िगन में बांिा
जाना चातहए
1. िे ऄतधकार जो न्यायालय द्वारा प्रिततनत कराए जा सकते हैं ऄथानत मूल ऄतधकार
2. िे ऄतधकार जो न्यायालय द्वारा प्रितननीय (ENFORCEABLE) नहीं है ऄथानत राज्य के नीतत
तनदेशक तत्ि
राज्य के नीतत तनदेशक तत्ि संजवधान की प्रस्तािना में ईद्धृत सामातजक, अतथन क और राजनीततक
संजवधान के भाग 4 में ऄनछ ु छे द 36 से 51 तक नीतत तनदेशक तत्िों का िणनन जकया गया है।
नीजत जनदेशक तत्वों का प्रािधान अयरलैंि के संतिधान से तलया गया है।
4. तस्त्रयों और परु
ु षों को समान कायन के तलए समान िेतन।
5. पुरुष और स्त्री कमन कारों के स्िास््य और शतक्त का तथा बालकों की सुकुमार ऄिस्था का
दुरुपयोग ना हो।
6. बालकों को स्ितंत्र और गररमामय िातािरण में स्िस्थ तिकास के ऄिसर और सुतिधा दी
जाए।
39 क समान ऄिसर के अधार पर न्याय देना और तन:शुल्क कानूनी सहायता ईपलब्ध कराना
(39th CA)
2. स्वतंत्रता के जलए हमारे राष्ट्रीय अद ं ोलन को प्रेररत करने वाले ईच्ि अदशों को हृदय में संिोए रखें और
ईसका पालन करें ।
3. भारत की संप्रभुता एकता और ऄखंिता की रक्षा करें और ईसे ऄक्षण् ु ण बनाए रखें।
4. देश की रक्षा करे और अवाहन जकए िाने पर राष्ट्र की सेवा करे ।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और सामान भ्रातृत्ि की भािना का तनमान ण करें िो धमग भाषा और
प्रदेश या वगग पर अधाररत सभी भेदभाव से परे हो ऐसी प्रथाओ ं का त्याग करें जो तस्त्रयों के सम्मान के
तिरुद्ध हो।
6. हमारी सामाजसक संस्कृ जत की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और ईसका परररक्षण करें ।
7. प्राकृततक पयान िरण की जिसके ऄंतगनत झील, नदी और िन्य जीि है रक्षा करें और ईसका संिधनन
1975 में बनी सरदार स्िणन तसंह कमे िी की ररपोटग की ऄनश ु सं ा पर आसे 42 िें संतिधान संशोधन
1976 द्वारा सजं वधान में सजम्मजलत जकया गया।
42 िें सतं िधान सश ं ोधन ऄतधतनयम 1976 द्वारा भारतीय सतं िधान में भाग 4 (क) जोड़ा गया और
ऄनुछछे द 51 (क) के तहत 10 मूल कतनव्यों की सूची का समािेश जकया गया।
86 िें संतिधान संशोधन 2002 के द्वारा एक और मूल कतन व्य जोड़ा गया।
भारत में मूल कतन व्य को भूतपूिन सोतियत संघ के संतिधान से ऄपनाया गया है।
तनमाथण तनमाथण
राष्रऩतत राज्यऩाऱ
उऩराष्रऩतत
प्रधानमंत्री
मख्
ु यमंत्री
मंत्रत्रऩररषद मंत्रत्रऩररषद
महान्यायिादी महाधधिक्ता
सघं की कायनपातलका
EXECUTIVE OF UNION
भाग 5 (ऄनुछछे द 52 – 78)
सजं वधान में संघ की कायनपातलका शतक्तयां राष्ट्ट्रपतत को प्राप्त है परंतु िास्ततिक
शतक्तयां प्रधानमंत्री एवं ईसकी मंतत्रपररषद में जनजहत है।
3. राष्ट्ट्रपतत की पदाितध
संघ की कायनपातलका शतक्त राष्ट्ट्रपतत में तनतहत है जिसे िह स्ियं ऄथिा ऄपने
ऄधीनस्थ ऄतधकाररयों द्वारा प्रयुक्त करता है।
2. राष्ट्ट्रपतत शासन के सद
ं भन में ऄनछु छे द – 356 – 365
3. तित्तीय अपात के संदभन में ऄनुछछे द – 360
संतिधान के ऄनुछछे द 111 के ऄंतगनत तिधेयक के सदं भग में राष्ट्ट्रपतत के पास तीन
तिकल्प होते हैं
1. ऄपनी सहमतत दे दे
सस
ं द को िापस लौिा दे। ऐसी तस्थतत में यतद सस ं द तिधेयक में सश ं ोधन तकये ऄथिा तबना
संशोधन तिधेयक राष्ट्ट्रपतत के पास भेजती है तो राष्ट्ट्रपतत को ईस पर ऄपनी सहमतत देनी ही
पड़ती है। - तनलंबनकारी िीिो
ऄध्यादेश संसद की पुनः बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत जकया िाता है।
यजद ससं द के दोनों सदन ऄध्यादेश को पाररत कर देते हैं तो ऄध्यादेश काननू का
रूप ले लेता है।
यतद संसद द्वारा आस पर कारनिाइ नहीं की जाती है तो संसद की दोबारा बैठक के 6
सप्ताह बाद यह ऄध्यादेश समाप्त हो िाएगा
यजद संसद के दोनों सदन ऄध्यादेश पर तनरनुमोदन कर दें तो यह जनधागररत 6 सप्ताह की
ऄितध से पहले ही समाप्त हो िाएगा।
भारत के राष्ट्ट्रपतत
तिजयी ईम्मीदिार तनिानचन िषन
िॉ राजेंद्र प्रसाद 1952
िॉ राजेंद्र प्रसाद 1957
िॉ एस राधाकृष्ट्णन 1962
िॉ जातकर हुसैन 1967
िीिी तगरी 1969
फखरुद्दीन ऄली ऄहमद 1974
नीलम संजीि रेि्िी 1977
ज्ञानी जैल तसहं 1982
अर िेंकिरमन 1987
िॉ शक ं र दयाल शमान 1992
के अर नारायणन 1997
िॉ एपीजे ऄब्दुल कलाम 2002
िॉक्िर श्रीमती प्रततभा पातिल 2007
प्रणि मुखजी 2012
रामनाथ कोतिंद 2017
भारतीय कायगपाजलका व्यवस्था के ऄतं गगत ईपराष्ट्ट्रपतत का पद ऄमेररका के संतिधान से प्रेररत है।
ऄतधकारी क्रम में ईपराष्ट्ट्रपतत का पद राष्ट्ट्रपतत के बाद दूसरा सिोछच पद है।
ईपराष्ट्ट्रपतत राज्यसभा का पदेन सभापतत होता है।
ऄब तक कुल 13 ईपराष्ट्ट्रपतत हुए हैं।
2. ईपराष्ट्ट्रपतत का तनिानचन
3. ईपराष्ट्ट्रपतत की पदाितध
राज्यसभा के पदेन सभापतत के रूप में ईसकी शतक्तयां एिं कायन लोकसभा ऄध्यक्ष की
तरह होती है।
राष्ट्ट्रपतत के रूप में िब ईपराष्ट्ट्रपतत को कायन करने का ऄिसर प्राप्त होता है वह
कायनिाहक राष्ट्ट्रपतत के रूप में कायन करता है राज्यसभा के सभापतत के रूप में कायन
नहीं करता।
कायनिाहक राष्ट्ट्रपतत के रूप में िह ऄतधकतम 6 माह की ऄितध तक कायन कर सकता
है क्योंजक तब तक नए राष्ट्रपजत का जनवागिन होना तय रहता है।
ईपराष्ट्ट्रपतत को जो िेतन जमलता है वह राज्यसभा के पदेन सभापतत होने की िजह से
तमलता है।
ईपराष्ट्ट्रपतत के चुनाि संबंधी तििादों का तनपिारा भारत के सिोछच न्यायालय द्वारा
जकया िाता है एवं न्यायालय का तनणनय सिनमान्य होता है
1. प्रधानमंत्री भी एक मंत्री होता है परंतु वह ऄपने समकक्ष मंतत्रयों में प्रधान होता है
2. प्रधानमत्रं ी मंत्रीपररषद की बैठक की ऄध्यक्षता करता है एवं ईजित जदशा जनदेश देता है
3. प्रधानमत्रं ी तकसी भी मंत्री को त्यागपत्र देने ऄथवा राष्ट्ट्रपतत से ईस को बखानस्त करने की
सलाह दे सकता है।
4. प्रधानमत्रं ी स्ियं त्यागपत्र देकर पूरी मंत्री पररषद को बखानस्त कर सकता है।
2. राष्ट्ट्रपतत के सदं भन में
सघं के प्रशासन और जवधान से संबंजधत ऐसी सिू नाओ ं को प्रदान करें जिसकी राष्ट्रपजत मांग करें ।
प्रधानमत्रं ी राष्ट्ट्रपतत को सलाह एिं परामशन देकर तितभन्न ऄतधकाररयों की तनयुतक्त करवाता
है िैसे
1. भारत का महान्यायिादी
3. सस
ं द के सबं ध
ं में
सकती है।
तनम्नतलतखत का ऄध्यक्ष होता है
1. प्रधानमंत्री नीतत अयोग
प्रधानमत्र ं ी सेनाओ ं का राजनीततक प्रमुख होता है िबजक राष्ट्ट्रपतत तीनों सेनाओ ं का सिोछच
कमांिर होता है
1. ऄनुछछे द 88 –
संतिधान के ऄनुछछे द 76 के ऄतं गगत भारत के महान्यायिादी के पद का प्रािधान जकया गया है।
राष्ट्ट्रपतत द्वारा महान्यायिादी की तनयुतक्त होती है एवं यह राष्ट्ट्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करता
है।
यह देश का सिोछच काननू ी ऄतधकारी होता है जो ईछचतम न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता
रखता है।
यह भारत सरकार को तितध मामले में ऐसे तिषयों पर सलाह देता है जो राष्ट्ट्रपतत द्वारा सौंपे गए हैं।
क्योंजक यह राष्ट्ट्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करता है तो आसके कायनकाल की कोइ तनतित ऄितध
नहीं है।
शतक्तयां
कायनकाल की समातप्त
राष्ट्ट्रपतत द्वारा हिाए जाने पर राष्ट्ट्रपतत को त्यागपत्र देकर सरकार मंत्री पररषद द्वारा त्यागपत्र देने
पर।
शपथ एिं त्यागपत्र
पद शपथ त्यागपत्र
राष्ट्ट्रपतत मुख्य न्यायाधीश ईपराष्ट्ट्रपतत
ईपराष्ट्ट्रपतत राष्ट्ट्रपतत राष्ट्ट्रपतत
राज्यपाल राज्य ईछच न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्ट्रपतत
मुख्य न्यायाधीश राष्ट्ट्रपतत राष्ट्ट्रपतत
प्रधानमंत्री राष्ट्ट्रपतत राष्ट्ट्रपतत
लोकसभा ऄध्यक्ष शपथ नहीं होता है ईपाध्यक्ष
A. राज्यपाल
सजं वधान के भाग 6 में ऄनुछछे द 153 से 167 के ऄंतगनत राज्य की कायनपातलका के बारे में प्रािधान
है।
राष्ट्रपजत की तरह राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है और राज्य के मुतखया मुख्यमंत्री की सलाह से
कायन करता है।
संजवधान के ऄनछु छे द 154 में प्रािधान है तक राज्य की कायनपातलका शतक्त राज्यपाल में तनतहत
होगी तथा वह शजक्त का प्रयोग स्वयं या ऄपने ऄधीनस्थ ऄजधकाररयों के द्वारा करे गा।
सजं वधान के ऄनुछछे द 155 के ऄंतगनत राज्यपाल की तनयुतक्त राष्ट्ट्रपतत करता है।
राज्यपाल राज्य का प्रमुख होने के साथ-साथ कें द्र के प्रतततनतध के रूप में कायन करता है।
संजवधान के ऄनस ु ार एक व्यतक्त को दो या दो से ऄतधक राज्यों का राज्यपाल तनयुक्त तकया िा
सकता है।
1. योग्यताएं
1. भारत का नागररक हो
2. 35 िषन की अयु परू ी कर चुका हो
3. तकसी राज्य ऄथिा संघ सरकार के ऄंतगनत लाभ का पद ना धारण करता हो
4. िह संसद ऄथिा तिधानसभा का सदस्य नहीं होना चातहए।
2. शपथ
सजं वधान के ऄनुछछे द 159 के ऄनुसार राज्यपाल को शपथ ईस राज्य के ईछच न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश के समक्ष लेनी होती है।
संजवधान के ऄनुछछे द 156 के ऄनुसार राज्यपाल राष्ट्ट्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करेगा।
राज्य सरकार के सभी कायनकारी कायन औपचाररक रूप से राज्यपाल के नाम से होते हैं।
वह मुख्यमंत्री एिं मंत्री पररषद के सदस्यों को तनयुक्त करता है।
राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष एिं सदस्य राज्य के महातधिक्ता राज्य के तनिानचन अयोग
के ऄध्यक्ष की तनयुतक्त राज्य तित्त अयोग राज्य के तिश्वतिद्यालयों के कुलपतत की तनयुतक्त
राज्यपाल द्वारा की जाती है।
राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष एिं सदस्यों को हिाने की शतक्त राज्यपाल के पास नहीं
ऄतपतु राष्ट्ट्रपतत के पास है।
राज्यपाल राष्ट्ट्रपतत से राज्य में संिैधातनक अपातकाल के जलए जसफाररश कर सकता है।
2. तित्तीय शतक्तयां
राज्यपाल पच
ं ायतों एिं नगरपातलकाओ ं की तित्तीय तस्थतत की समीक्षा के जलए प्रत्येक 5 िषन राज्य
पर तित्त अयोग का गठन करता है।
राज्यपाल के तबना पूिन ऄनुमतत के धन तिधेयक को राज्य तिधानसभा में प्रस्तुत नहीं तकया जा
सकता।
3. न्यातयक शतक्तयां
4. तििेकाधीन शतक्तयां
1. तकसी तिधेयक को राष्ट्ट्रपतत के तिचाराथन अरतक्षत करना।
2. राज्य में राष्ट्ट्रपतत शासन की तसफाररश करना।
3. राज्य के तिधान मंिल एिं प्रशासतनक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी मांगना।
4. मंत्री पररषद के ऄल्पमत में अने पर राज्य तिधानसभा को तिघतित करना।
ऄनछु छे द 164 में प्रावधान है जक राज्य के मुख्यमंत्री की तनयुतक्त राज्य का राज्यपाल करेगा।
ससं दीय व्यवस्था में राज्यपाल राज्य तिधानसभा से बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री तनयुक्त
करता है।
मुख्यमंत्री को ईसके पद एिं गोपनीयता की शपथ राज्यपाल तदलिाता है।
मुख्यमंत्री का कायनकाल तनतित नहीं होता परंतु सामान्यतः 5 िषन तक राज्यपाल के प्रसादपयंत
ऄपने कतनव्यों एिं दातयत्िों का तनिनहन करता है।
राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को तभी बखानस्त जकया िा सकता है िब मुख्यमंत्री तिधानसभा में ऄपना
बहुमत खो दें।
मुख्यमंत्री के िेतन एिं भत्ते का तनधानरण राज्य तिधानमंिल करती है।
राज्यपाल को मंत्री पररषद के सभी तनणनय और आससे संबंतधत जानकारी जो राज्यपाल मांग करें
ईसे देता है।
मुख्यमंत्री राज्य के महातधिक्ता राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष एिं सदस्यों की तनयुतक्त के
संबंध में राज्यपाल को परामशन देता है।
राज्यपाल को तिधानसभा का सत्र बुलाने एिं ईसे स्थतगत करने के संदभन में सलाह देना
मुख्यमंत्री द्वारा तिधानसभा को तकसी भी समय तिघतित करने की तसफाररश करना
सभा पिल पर सरकारी नीततयों की घोषणा करना
कै तबनेि मंत्री
राज्य मंत्री
ईप मंत्री
मंत्री पररषद का कायन काल 5 िषन का होता है परंतु तिधानसभा में ऄपना बहुमत होने के पिात
D. महातधिक्ता
भारतीय संजवधान के ऄनछु छे द 165 के ऄनसु ार राज्यपाल द्वारा महातधिक्ता की तनयुतक्त की िाती है।
राज्य का सिोछच तितध ऄतधकारी महातधिक्ता होता है।
महातधिक्ता राज्यपाल के प्रसादपयंत कायन करता है।
राज्य सरकार को तितध संबंधी तिषयों पर सलाह देना िो राज्यपाल को सौंपी गए हैं।
राज्य का महातधिक्ता तिधानसभा की कायनिाही में भाग ले सकता है बोल सकता है परंतु मतदान में
का ऄतधकार नहीं होता।
ईसे भी सभी तिशेषातधकार तथा िेतन और भत्ते तदए जाते हैं जो तिधानमंिल के तकसी सदस्य को
तमलते हैं।
10. तिधातयका
संघीय तिधातयका
FEDERAL LEGISLATURE
संसदीय शासन व्यिस्था के ऄतं गगत कें द्र में तद्वसदनीय व्यिस्था को ऄपनाया गया है।
कें द्र में दो सदन होते हैं राज्यसभा (ईछच सदन) और लोकसभा (तनम्न सदन)
लोकसभा के सदस्यों का तनिानचन प्रत्यक्ष रूप से िनता करती है और यह एक ऄस्थाइ सदन है।
लोकसभा को कभी भी भंग तकया जा सकता है।
राज्यसभा एक स्थाइ सदन है ऄथागत आसका तिघिन नहीं होता है।
1. राज्यसभा
भारतीय संजवधान का ऄनुछछे द 80 राज्य सभा के गठन का प्रावधान करता है।
राज्य सभा के सदस्यों की ऄतधकतम संख्या 250 हो सकती है परंतु ितनमान में यह 245 है।
आनमें से राष्ट्ट्रपतत द्वारा सातहत्य, तिज्ञान, कला और समाज सेिा के संबंध में जवशेष ज्ञान रखने िाले
12 सदस्यों को मनोनीत तकया जाता है।
प्रत्येक राज्य से जकतने सदस्य होंगे आसका जनधागरण राज्य जवशेष की िनसंख्या के अधार पर होता है।
वतगमान समय में ईत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्यों की संख्या सिानतधक (31) है।
राज्यसभा के सदस्य होने की ऄहनता
भारत का नागररक हो
1.
राज्यसभा एक स्थाइ सदन है ऄथागत राज्यसभा का तिघिन कभी नहीं होता है।
राज्यसभा के सदस्यों का कायन काल तनतित होता है आस सदन का प्रत्ये क सदस्य 6 िषन के तलए चुना
जाता है एवं प्रत्येक 2 िषन के बाद एक ततहाइ सदस्य सेिातनिृत्त हो िाते हैं।
भारत का ईप राष्ट्ट्रपतत राज्यसभा का पदेन सभापतत होता है जो राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है।
राज्यसभा के सभापतत को हिाने के तलए 14 तदन पूिन सूचना के साथ राज्यसभा में प्रस्ताि पास
गैर तित्तीय तिधेयक के सदं भग में लोकसभा की भांतत राज्यसभा को भी ईतनी ही शतक्त प्राप्त है। ऐसे
तिधेयक दोनों सदनों की सहमतत के बाद ही काननू बनते हैं।
संतिधान संशोधन तिधेयकों के संदभग में राज्यसभा की शतक्तयां लोकसभा की शतक्तयों के बराबर
है।
धन तिधेयक के सदं भन में राज्यसभा को 14 तदनों के भीतर तिचार करके ऄपनी राय लोकसभा को
भेजनी होती है।
2. लोकसभा
भारतीय संजवधान का ऄनुछछे द 81 लोकसभा के गठन का प्रािधान करता है।
लोकसभा में ऄतधकतम सदस्यों की सख् ं या 552 हो सकती है।
ऄनुछछे द 331 के तहत यजद राष्ट्ट्रपतत की राय में अग्ं ल भारतीय समुदाय का प्रतततनतधत्ि पयानप्त
नहीं है तो वह ईस समुदाय की ऄतधकतम दो प्रतततनतधयों को मनोनीत कर सकता है।
लोकसभा के सदस्यों का चुनाि प्रादेतशक प्रतततनतधत्ि प्रणाली के अधार पर एकल तनिानचन क्षेत्र
में जनता द्वारा प्रत्यक्ष तनिानचन से होता है।
लोकसभा के सदस्यों का तनिानचन सािनभौतमक व्यस्क मतातधकार (18 िषन) के अधार पर होता है।
लोकसभा के सदस्यों की ऄहनता
1. िह भारत का नागररक हो
2. 25 िषन की अयु पूणन कर चुका हो
सस
ं द में नेता
सदन के नेता से ऄजभप्राय सामान्यतः प्रधानमंत्री से होता है परंतु प्रधानमत्रं ी सदन के नेता के रूप में
जकसी मत्रं ी को भी जनयक्त
ु कर सकता है।
संतिधान में आस पद का कोइ ईल्लेख नहीं है।
सदन के तनयम एिं सतं ितध में ईल्लेख है।
संसद के दोनों सदनों में एक-एक तिपक्ष का नेता होता है।
लोकसभा के तिपक्ष के नेता का पद लोकसभा के स्पीकर द्वारा जदया िाता है।
तिपक्ष के नेता का दिाग प्राप्त करने के जलए प्रत्येक सदन में कुल सदस्य सख् ं या का 1/10 होना
अिश्यक है।
लोकपाल, मानिातधकार अयोग, कें द्रीय सतकन ता अयोग और मुख्य सूचना अयुक्त की तनयुतक्त
के जलए जवपक्ष के नेता की सहमजत अवश्यक होती है।
प्रत्येक राजनीततक दल का संसद में ऄपना तव्हप होता है िाहे वह सत्ता में हो ऄथिा तिपक्ष में।
आसकी जनयजु क्त रािनीजतक दलों द्वारा सदन में के सहायक नेता के रूप में की िाती है।
आस पद का ईल्लेख ना तो संतिधान में है और ना ही संसद के तनयम एिं संतितध में।
संसद के सत्र
भारत में साधारणतः वषग में 3 बार संसद के सत्र अयोजित होते हैं
1. बजि सत्र (फरिरी से मइ)
सस ं द के दो सत्रों के मध्य तकसी भी तस्थतत में 6 माह से ऄतधक का ऄंतराल नहीं होना िाजहए।
सस ं द के सत्र को राष्ट्ट्रपतत समय-समय पर अहूत करता है।
लोकसभा के चुनाि के पिात पहले सत्र की शुरुअत पर एिं प्रत्ये क तित्तीय िषन के पहले सत्र
2. यतद राष्ट्ट्रपतत तकसी तिशेष कारण से कायन काल पूरा होने के पहले लोकसभा को तिघतित करने
का तनणनय करें। यह तस्थतत प्रायः तब अती है जब सरकार लोकसभा में ऄपना बहुमत खो दें।
सतं िधान सश ं ोधन तिधेयक के जलए राष्ट्ट्रपतत की पिू न ऄनमु तत की अिश्यकता नहीं होती।
यह तिधेयक दोनों सदनों में से तकसी भी सदन में प्रारंभ जकया िा सकता है।
यह तिधेयक दोनों सदनों में से तकसी भी सदन में प्रारंभ तकया िा सकता है।
संसदीय सतमततयां
भारत में मोंिे ग्यू चेम्सफोिन सुधार के अधार पर 1921 में संसदीय सतमततयां ऄतस्तत्ि में अइ थी।
ससं दीय सतमततयों के प्रकार
1. स्थाइ सतमतत
तित्तीय सतमतत या ऄन्य स्थाइ सतमततयां
तिशेषातधकार सतमतत
तिभागीय सतमतत
यह भारत की सबसे पुरानी तित्तीय सतमतत है जिसमें कुल 22 सदस्य होते हैं।
आसके सदस्यों में 15 सदस्य लोकसभा एिं 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं जकस का कायनकाल 1
िषन का होता है।
यह सजमजत सरकार के िातषनक लेखों की जांच कर सरकार को सस ं द के प्रतत ईत्तरदाइ बनाती
है।
यह सजमजत भारत सरकार के लेखों के संदभन में तनयंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा दी गइ
ररपोिन पर तिचार करती है।
आस सतमतत का ऄध्यक्ष कोइ तिपक्षी दल का नेता िनु ा िाता है जिसका चुनाि लोकसभा
ऄध्यक्ष करता है।
आस सतमतत को प्राक्कलन सतमतत की जुड़िा बहन कहते हैं।
2. प्राक्कलन सतमतत (ESTIMATE COMMITTEE)
स्वतत्रं ता के पश्चात पहली बार जॉन मथाइ की तसफाररश पर 1950 में पहली प्राक्कलन
सतमतत का गठन जकया गया।
आसके सदस्यों की संख्या 30 होती है िो लोकसभा से होते हैं।
आसे स्थाइ जमतव्यजयता सजमजत भी कहा िाता है।
आस सजमजत का गठन पहली बार 1964 में कृष्ट्ण मेनन सतमतत के सझु ाव पर जकया गया।
आसके सदस्यों की संख्या 22 होती है जिसमें 15 सदस्य लोकसभा से एिं 7 सदस्य राज्यसभा
से चुने िाते हैं।
प्रत्येक सजमजतयों के सदस्यों का चुनाि एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है
4. तिभागीय स्थाइ सतमततयां
तिधानमंिल
तिधान पररषद
तिधान पररषद की तकसी भी बैठक के तलए जवधान पररषद के कुल सदस्यों का 1/10 गणपूततन होगा।
तिधान पररषद ऄपने सदस्यों में से 2 को क्रमश: सभापतत एिं ईपसभापतत चुनती है।
तिधानसभा
11. न्यायपातलका
सिोछच न्यायालय
भारत की न्याय व्यिस्था एकीकृत है जिस के सिोछच तशखर पर भारत का ईछचतम न्यायालय हैं।
ईछचतम न्यायालय तदल्ली में तस्थत है।
ईच्ितम न्यायालय की स्थापना, गठन, ऄतधकाररता, शतक्तयों के तितनयमन से संबंतधत तितध
तनमानण की शतक्त भारतीय संसद को प्राप्त है।
ईछचतम न्यायालय का गठन सबं ध ं ी प्रािधान ऄनछु छे द 124 में जदया गया है।
ईछचतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 32 ऄन्य न्यायाधीश होते हैं।
1. िह भारत का नागररक हो
2. िह तकसी ईछच न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄतधक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5
िषों तक न्यायाधीश के रूप में कायन कर चुका हो।
3. या तकसी ईछच न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 िषों तक ऄतधिक्ता रह चुका हो।
4. या राष्ट्ट्रपतत की दृतष्ट में कानून का ईछच कोति का ज्ञाता हो।
ईच्ितम न्यायालय के न्यायाधीश ऄिकाश प्राप्त करने के बाद भारत के तकसी भी न्यायालय या
तकसी भी ऄतधकारी के सामने िकालत नहीं कर सकते हैं।
ईच्ितम न्यायालय के न्यायाधीश को पद एिं गोपनीयता की शपथ राष्ट्ट्रपतत जदलाता है।
प्रारंतभक क्षेत्रातधकार
ररि ऄतधकाररता
2. परमादेश MANDAMUS
3. प्रततषे ध PROHIBITION
4. ईत्प्रेषण CERTIORARI
सजं वधान के ऄनुछछे द 132, 133, 134 तथा 136 में सिोछच न्यायालय की ऄपीलीय ऄतधकाररता
ईल्लेख है।
सिोछच न्यायालय तसतिल तथा ऄपरातधक सभी तरह के मामलों में ऄपील का ऄंततम
न्यायालय है।
सवोच्ि न्यायालय की ऄपीलीय क्षेत्रातधकार चार प्रकार के हैं
1. संिैधातनक तिषयों से जुड़ी ऄपीले
सलाहकारी ऄतधकाररता
भारतीय संजवधान के ऄनुछछे द 129 में यह प्रािधान है जक सिोछच न्यायालय ऄतभलेख न्यायालय
होगा और ईसको ऄपने ऄिमानना के तलए दिं देने की शतक्त होगी।
सवोच्ि न्यायालय के सभी तनणनय, अदेश तथा तनदेश अतद ऄस्थाइ स्मृतत में सरु तक्षत रखे जाते हैं
ताजक सभी ऄधीनस्थ न्यायालय ईन्हें पूिन ईदाहरण के रूप में प्रयोग कर सकें ।
आसका प्रयोग संतिधान में कहीं भी नहीं जकया गया है परंतु ऄनुछछे द 13 32 131 से 136 143 145
226 246 372 अतद के ईपबंध से सिोछच न्यायालय को या शतक्त प्राप्त होती है।
न्यातयक पनु तिनलोकन से तात्पयन न्यायपाजलका की शजक्त से है जिसके ऄंतगनत तिधान पातलका द्वारा
बनाए तकसी कानून या कायनपातलका द्वारा जारी तकए गए तकसी भी अदेश को संजवधान के
प्रावधानों के प्रजतकूल होने पर न्यायपाजलका जनरस्त कर सकती है तथा ऄपने तनणनयों की समीक्षा भी कर
सकती हैं।
ईछच न्यायालय
सजं वधान के ऄनसु ार प्रत्येक राज्य के तलए ईछच न्यायालय होगा (ऄनुछछे द 214)।
संसद तितध द्वारा दो या दो से ऄतधक राज्यों और संघ राज्य क्षेत्र के तलए एक ही ईछच न्यायालय
स्थातपत कर सकती है
ितनमान में पंजाब एिं हररयाणा, ऄसम, नागालैंि, तमजोरम तथा ऄरुणाचल प्रदेश; महाराष्ट्ट्र,
गोिा, दादर और नगर हिेली, दमन और दीि, और पतिम बगं ाल, ऄंिमान तनकोबार दीप समूह
अतद के जलए एक ही ईछच न्यायालय है।
वतगमान में भारत में 24 ईछच न्यायालय है।
कें द्र शातसत प्रदेश से के िल तदल्ली में ईछच न्यायालय हैं।
ईच्ि न्यायालय के न्यायाधीशों की तनयुतक्त भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर राष्ट्ट्रपतत द्वारा
की जाती है।
1. भारत का नागररक हो
2. कम से कम 10 िषन तक न्यातयक पद धारण कर चुका हो ऄथिा ईछच न्यायालय में या एक से
है।
ईच्ि न्यायालय के न्यायाधीश को ईसी प्रकार ऄपदस्थ तकया जा सकता है जिस प्रकार ईछचतम
भारतीय संजवधान में कें द्र तथा राज्य के मध्य तिधायी, प्रशासतनक तथा तित्तीय शतक्तयों का
तिभाजन तकया गया है लेजकन न्यायपाजलका को जवभािन की पररजध से बाहर रखा गया है।
भारतीय संतिधान की सातिीं ऄनुसूची में कें द्र एिं राज्य की शतक्तयों के बंििारे के संबंध में तीन
सचू ी दी गइ है
संघ सूची, राज्य सूची, समिती सूची।
1. संघ सूची
सघं सिू ी में ईन तिषयों को शातमल तकया गया है जो राष्ट्ट्रीय महत्ि के हैं।
सघं सिू ी के जवषयों पर काननू बनाने का एकमात्र ऄतधकार कें द्रीय तिधातयका ऄथानत सस
ं द
को है।
आस सूची में कुल 100 तिषय हैं (मूलतः 97)।
2. राज्य सूची
3. समिती सूची
आसमें शातमल तिषयों पर संसद तथा राज्य तिधान मंिल दोनों द्वारा कानून बनाया िाता है।
यजद दोनों कानूनों में तिरोध हो तो संसद द्वारा तनतमनत कानून लागू होगा।
आस में आस समय 52 तिषय हैं (मूलत: 47)।
जैसे – राष्ट्ट्रीय जलमागन, पररिार तनयोजन, जनसंख्या तनयंत्रण, समाचार पत्र, कारखाना,
तशक्षा, अतथनक तथा सामातजक योजना।
सजं वधान के ऄनुछछे द 249 में यह प्रािधान है जक यजद राज्यसभा ऄपनी ईपतस्थतत था मतदान करने
िाले सदस्यों के दो ततहाइ बहुमत से यह पाररत कर दें जक राष्ट्ट्रीय तहत को ध्यान में रखकर सस
ं द राज्य
सूची के तिषय पर कानून बनाएं तो संसद को राज्य सूची में ितणनत तिषयों पर कानून बनाने की
शतक्त प्राप्त हो िाती है।
राष्ट्ट्रीय अपात एवं राष्ट्ट्रपतत शासन के समय भी सस
ं द को राज्य सच ू ी पर काननू बनाने का
ऄतधकार होता है।
राज्यों की सहमतत से भी संसद राज्य सूची पर कानून बना सकती है।
1. सरकाररया अयोग
2. पुंछी अयोग
ऄंतरानज्य पररषद
सजं वधान के ऄनुछछे द 263 के ऄंतगनत कें द्र एिं राज्यों के बीच समन्िय स्थातपत करने के जलए
राष्ट्ट्रपतत एक ऄंतर राज्य पररषद की स्थापना कर सकता है।
सरकाररया अयोग की तसफाररश के अधार पर
पहली बार जून 1990 में ऄंतर राज्य पररषद का गठन जकया गया।
िषन में 3 बार आसकी बैठक की िाती है जिसके तलए कम से कम 10 सदस्य ऄिश्य ईपतस्थत होने
िाजहए।
सजं वधान के ऄनुछछे द 262 में नदी जल तििादों के समाधान से संबंतधत ईपबंध जकए गए हैं।
संसद द्वारा आस संबंध में 1956 में दो ऄतधतनयम पाररत जकए गए
1. नदी बोिन ऄतधतनयम 1956
ऄंतर राज्य नदी जल तििाद ऄतधतनयम 1956 कें द्र सरकार को यह शतक्त देता है जक िह
ऄतधकरण का गठन कर सके ।
ऄतधकरण द्वारा तदए गए तनणनय राजपत्र में प्रकातशत होने के बाद सबं तं धत राज्यों को तनणनय मानने
के तलए बाध्य होना पड़ता है।
राज्य से जशकायत प्राप्त होने पर कें द्र सरकार 1 वषग के ऄदं र ऄजधकरण का गठन करे गी और 3 वषग के भीतर
ऄजधकरण ऄपना जनणगय देगा।
ऄभी तक 8 बार ऄंतर राज्य नदी जल तििाद ऄतधकरण का गठन तकया गया है।
क्षेत्रीय पररषदें
यह संिैधातनक तनकाय नहीं है बजल्क सांतितधक तनकाय हैं क्योंजक आनका गठन संसद के
ऄतधतनयम के तहत जकया गया है।
राज्य पनु गनठन ऄतधतनयम 1956 के माध्यम से क्षेत्रीय पररषदों का गठन तकया गया है एवं परू े देश
को पांच क्षेत्रों में बांिा गया था –
5 क्षेत्रीय पररषदों का ितनमान िगीकरण
संजवधान के भाग 21 में ऄनुछछे द 371 के ऄंतगनत कुछ राज्यों के तलए तिशेष प्रबंध जकए गए हैं।
भारतीय संजवधान के भाग 10 में ऄनछु छे द 244 के तहत ऄनस ु तू चत तथा जनजातीय क्षेत्रों के
प्रशासन के तिषय में ईपबंध जकए गए हैं।
1. सजं वधान की पांचिी ऄनुसूची में राज्यों के ऄनुसूतचत क्षेत्र िह ऄनुसूतचत जनजाततयों के प्रशासन
आन क्षेत्रों िाले राज्यों के राज्यपाल के तलए अवश्यक है जक वह प्रततिषन एिं जब राष्ट्ट्रपतत चाहे ईन्हें
संतिधान के ऄधीन तकसी भाषा को राष्ट्ट्रीय भाषा के रूप में नहीं ऄपनाया गया है आसके ऄधीन
तहदं ी को के िल राजभाषा के रूप में रखा गया है।
भारतीय संजवधान के भाग 17 ईतल्लतखत ऄनुछछे द 343 – 351 में राजभाषा संबंधी प्रािधान है।
13. ते लग
ु ू 14. ईदून 15. तसध ं ी 16. कोंकणी
कुछ भारतीय भाषाओ ं की प्राचीन सातहतत्यक परंपरा का संरक्षण और संिधनन के तलए भारत
सरकार द्वारा ईन्हें शास्त्रीय भाषा का दजान प्रदान तकया जाता रहा है।
शास्त्रीय भाषा िषन शास्त्रीय भाषा िषन
ततमल 2004 कन्नड़ 2008
सस्ं कृत 2005 मलयालम 2013
तेलुगू 2008 ईतड़या 2014
भारतीय संतिधान के भाग 18 में ऄनुछछे द 352 से 360 तक अपातकाल से संबंतधत ईपबंध
ईजल्लजखत है।
भारतीय संजवधान सामान्य पररतस्थततयों में संघात्मक स्िरूप के ऄनसु ार कायग करता है वही
अपातकालीन पररतस्थततयों में यह एकात्मक स्िरूप ग्रहण कर लेता है।
अपात ईपबंध एिं प्रशासतनक तििरण से संबंतधत प्रािधान भारत शासन ऄतधतनयम 1935 से
जलए गए हैं।
िबजक अपातकाल के समय मूल ऄतधकारों के स्थगन सबं ध ं ी प्रािधान जमननी के िाआमर
संतिधान से जलए गए।
अपात ईपबध
ं ों का िगीकरण
भारतीय संजवधान में अपात ईपबंधों तीन भागों में बांिा गया
1. राष्ट्ट्रीय अपात – ऄनुछछे द 352
2. राज्यों में सिं ैधातनक तंत्र की तिफलता या राष्ट्ट्रपतत शासन - ऄनछु छे द 356
3. तित्तीय अपात – ऄनुछछे द 360
2. बाहरी अक्रमण
3. सशस्त्र तिद्रोह
राष्ट्रपजत द्वारा की गइ अपात की ईद्घोषणा एक माह तक प्रितनन में रहती है और यजद आस दौरान आसे
संसद के दो ततहाइ बहुमत से ऄनुमोतदत करिा तलया जाता है वह 6 माह तक प्रितनन में रहती है
सस ं द आसे पनु ः एक बार में 6 महीने तक ब़िा सकती है।
44 िें संतिधान संशोधन द्वारा ऄनुछछे द 352 के ऄधीन ईद्घोषणा संपूणन भारत में या ईसके तकसी भी
भाग में की िा सकती है।
राष्ट्ट्रीय अपात के समय राज्य सरकार तनलंतबत नहीं की िाती है ऄजपतु वह संघ की कायनपातलका
के पूणन तनयंत्रण में अ जाती है।
िब ऄनुछछे द 352 प्रभािी होता है तो ऄनुछछे द 358 के ईपबंध स्ित: प्रभािी हो िाते हैं जिसके
ऄनसु ार ऄनुछछे द 19 में तदए गए मूल ऄतधकारों का तनलंबन स्ियं हो जाता है।
ऄनछु छे द 359 के ऄनस ु ार राष्ट्ट्रपतत राष्ट्ट्रीय अपात के समय ऄनछु छे द 20 एिं 21 में प्रदत्त मूल
ऄतधकारों को छोड़कर ऄन्य मूल ऄतधकारों को तनलंतबत कर सकता है।
ईद्घोषणा की समातप्त
2. तदसबं र 1971 – माचन 1977 तक – पातकस्तान द्वारा भारत के तिरुद्ध ऄघोतषत युद्ध
3. जून 1975 – माचन 1977 – अत ं ररक ऄशांतत के अधार पर
44 िें संतिधान संशोधन 1978 द्वारा ऄनुछछे द 352 में संशोधन कर अत ं ररक ऄशांतत की जगह
सशस्त्र तिद्रोह का प्रािधान जकया गया।
ईद्घोषणा
ऄनछु छे द 356 – यजद कोइ राज्य सरकार जानबझ ू कर सतं िधान के तनदेशों का ईल्लघं न करें ऄथवा
राज्य में ऐसी तस्थतत खड़ी हो जाए जहां सरकार संतिधान के ऄनुरूप शासन न चला पाए तो ऐसे
तो दो अधारों पर राष्ट्ट्रपतत शासन लगाया जाता है
1. ऄनुछछे द 356 के ऄनुसार राष्ट्ट्रपतत को राज्यपाल की ररपोिन के अधार पर या आसके तबना है
समाधान हो जाए तक राज्य का शासन सतं िधान के ईप बध ु ार नहीं चलाया जा सकता है।
ं ों के ऄनस
राष्ट्रपजत शासन की ईद्घोषणा 2 माह तक लागू रहती है ऄगर 2 माह के भीतर संसद के दोनों सदन
ऄलग-ऄलग साधारण बहुमत से आसका ऄनमु ोदन कर देते हैं तो यह घोषणा 6 माह के तलए ब़ि
जाती है।
आसी प्रजिया से अगे भी बढ़ाया िा सकता है लेजकन 1 िषन से ऄतधक समय के तलए ब़िाने हेतु 2 शतें
हैं
1. सप
ं ण ू न भारत में या ईसके तकसी तहस्से में राष्ट्ट्रीय अपात लागू हो
2. भारत का चुनाि अयोग यह प्रमातणत कर दें तक ईस प्रांत में चुनाि नहीं करिाए जा सकते हैं।
ईपरोक्त शते पूरी होने के बाद भी तकसी राज्य ऄपात या राष्ट्ट्रपतत शासन की ऄतधकतम ऄितध 3
प्रभाि
ईद्घोषणा की समातप्त
1. राष्ट्ट्रपतत स्ियं ऄपनी घोषणा द्वारा अदेश कभी भी िापस ले सकता है।
2. ऐसा करने के तलए संसद की ऄनुमोदन की अिश्यकता नहीं है।
ऄनछु छे द 360 के तहत तित्तीय अपात की ईद्घोषणा राष्ट्ट्रपतत द्वारा तब की िाती है िब ईसे तिश्वास
हो जाए जक ऐसी जस्थजत जवद्यमान है तजसके कारण भारत के तित्तीय स्थातयत्ि या साख को खतरा
है।
जवत्तीय अपात की घोषणा को 2 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों के सम्मुख रखना तथा
ईसकी स्िीकृतत प्राप्त करना अिश्यक है।
भारत में पच
ं ायती राज से सबं तं धत प्रमुख सतमततयां
सजमजत गठन वषग ररपोटग जसफाररशें
1. बलिंत राय मेहता सतमतत 1957 (NOV)
ररपोिन – 1957 पंचायत की तत्रस्तरीय ढांचा बनाए जाने की तसफाररश
A. ग्राम स्तर पर – ग्राम पच
ं ायत
B. खंि या ब्लॉक स्तर पर – पंचायत सतमतत
C. तजला स्तर पर – तजला पररषद
पचं ायती राज व्यिस्था को सिं ैधातनक दजान तदया जाना चातहए
तत्रस्तरीय ग्राम खंि और तजला पंचायतों का गठन
दलगत व्यिस्था को पंचायती चुनाि में नहीं ऄपनाना चातहए
ऄनुछछे द 243 (क) में ग्राम सभा की शतक्तयों और कायों का िणनन जकया गया है।
A. व्यस्क मतातधकार के अधार पर प्रत्येक 5िें िषन तनिानचन राज्य तनिानचन अयोग द्वारा कराए
जाते हैं।
B. चुनाि लड़ने की न्यूनतम अयु 21 िषन
C. ऄगर राज्य तिधानमंिल से कोइ तितध पाररत हुइ हो और ईसकी ईपबंध के ऄंतगनत तकसी
पंचायत की सदस्यता के तलए व्यतक्त ऄयोग्य घोतषत कर तदया गया है।
अरक्षण
राज्य तनिानचन अयोग का प्रावधान सतं िधान के ऄनछु छे द 243 (K) मे की गइ है।
राज्य तनिान चन अयुक्त की तनयुतक्त राज्यपाल द्वारा की िाती है तथा ईसकी सेिा शतें और पदाितध
तहमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसग़ि, ईड़ीसा झारखंि, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्ट्र, अध्र ं
प्रदेश तथा तेलंगाना।
नगर पातलका
भारतीय सजं वधान में 74 िें संतिधान संशोधन ऄतधतनयम 1992 द्वारा नगर पातलकाओ ं को
संिैधातनक दजान जदया गया।
आस संशोधन के माध्यम से संतिधान में भाग 9 (क) जोड़ा गया।
ऄनुछछे द 243 त – 243 य (छ) (243 P - 243 ZG) में नगरपातलकाओ ं से संबंतधत ईपबंध है ।
आस संशोधन द्वारा सतं िधान में 12िीं ऄनस ु चू ी जोड़ी गइ जिसके ऄतं गगत नगर पातलकाओ ं को 18
तिषयों की सूची तितनतदनष्ट है।
प्रत्ये क 5 िषन पर तनिान चन कराए जाएग ं े।
जनवागिन के जलए कम से कम 21 िषन की अयु अिश्यक।
नगर पातलका से संबंतधत चुनाि कराने की तजम्मे िारी राज्य तनिान चन अयोग की होती है।
राज्य तिधान मंिल को चुनाि के संबंध में तितध बनाने का ऄतधकार है।
A. जनसंख्या के ऄनुपात में ऄनुसूतचत जातत और ऄनुसूतचत जनजाततयों के तलए स्थान अरतक्षत
होते हैं।
B. मतहलाओ ं के तलए 1/3 स्थान के अरक्षण का प्रािधान।
B. राष्ट्ट्रपतत, ईपराष्ट्ट्रपतत, राज्य सभा एिं राज्य तिधान पररषद के तनिान चन हेतु एकल संक्रमणीय
मत प्राप्त करता है एिं आसके साथ ही तकसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में 4 सीि प्राप्त करता है
ऄथिा
2. यतद िह लोकसभा में 2% स्थान जीता है एिं यह सदस्य तीन तितभन्न राज्यों से चुने जाते हैं
ऄथिा
3. यतद कोइ दल कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो
महत्िपण
ू न त्य
भारतीय संतिधान में तितभन्न ऄनुछछे दों के तहत तजस तनकाय का ईल्लेख है ईन्हें संिैधातनक
तनकाय माना िाता है।
आन तनकायों के सदस्यों की तनयुतक्त राष्ट्ट्रपतत द्वारा की िाती है।
ईन्हें पयानप्त पद सरु क्षा प्रदान की गइ है और ईन्हें सतं िधान में तनतदनष्ट तितधयों के ऄततररक्त तकसी
ऄन्य तरीके से ऄपने पद से नहीं हिाया जा सकता है।
आनकी ररपोिन को संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
1. तित्त अयोग ( FINANCE COMMISSION)
अयोग ऄपनी ररपोिन राष्ट्ट्रपतत को सौंपता है जिसे वह संसद के दोनों सदनों के समक्ष
रखिाता है।
तित्त अयोग द्वारा की गइ तसफाररशें सलाहकारी प्रिृतत्त की होती है आसे मानना या ना मानना
प्रथम तित्त अयोग की स्थापना 1951 में हुइ जिसके ऄध्यक्ष के . सी. तनयोगी थे ।
के संथानम, ए. के . चंदा, िॉ. पी. िी. राजमन्नार िमश: तद्वतीय तृतीय और चतुथन तित्त
भारतीय संतिधान के भाग 14 में ऄनुछछे द 315 के तहत संघ लोक सेिा अयोग का प्रािधान
जकया गया है।
अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्य पद ग्रहण की तारीख से 6 िषन की ऄितध या 65 िषन की अयु
(िो भी पहले हो) तक पद धारण करते हैं।
आनकी तनयुतक्त राष्ट्ट्रपतत द्वारा की िाती है।
ऄध्यक्ष और सदस्य जकसी भी समय राष्ट्ट्रपतत को संबोतधत करते त्यागपत्र दे सकते हैं।
ऄध्यक्ष और सदस्यों को दुव्यनिहार और कदाचार के अधार पर भी पद से हटाया िा सकता है
4. राज्य लोक सेिा अयोग (SPSC)
राज्य लोक सेवा अयोग का प्रावधान संतिधान के भाग 14 में ऄनुछछे द 315 से 323 में तकया
गया है।
आसके ऄध्यक्ष और सदस्यों की तनयुतक्त राज्यपाल द्वारा की िाती है।
ऄध्यक्ष और सदस्यों का कायनकाल 6 िषन या 62 िषन की अयु (िो भी पहले हो) होती है।
भारतीय संतिधान का ऄनुछछे द 338 ऄनुसूतचत जाततयों एिं जनजाततयों के तलए एक तिशेष
ऄतधकारी की तनयुतक्त का ईपबंध करता है।
आस अयोग में एक ऄध्यक्ष एक ईपाध्यक्ष और तीन ऄन्य सदस्य होते है।
आनकी सेिा शतें एिं कायनकाल राष्ट्ट्रपतत द्वारा ही तनधानररत जकए िाते हैं।
तनयमानुसार आनका कायनकाल 3 िषन का होता है।
यह ऄपना ररपोिन राष्ट्ट्रपतत या संबंतधत राज्य के राज्यपाल को सौपता है।
आसके द्वारा संतिधान की अठिीं ऄनुसूची में शाजमल भाषाओ ं में तसंधी को सतम्मतलत कर जलया गया
24 िां संतिधान संशोधन ऄतधतनयम 1971
ऄनछु छे द 13 (2) में संशोधन कर प्रावधान जकया गया जक ऄनुछछे द 368 के तहत पाररत की गइ कोइ
भी तितध ऄनुछछे द 13 (2) में प्रयुक्त तितध शब्द में शातमल नहीं मानी जाएगी।
राष्ट्ट्रपतत संतिधान संशोधन तिधेयक पर ऄनुमतत देने के तलए बाध्य होगा।
आसके ऄतं गगत भूतपूिन देसी राज्यों के शासकों को जवशेष ईपाजधयों एवं ईनके तप्रिी पसन को समाप्त कर
तदया गया
a) संतिधान की प्रस्तािना में समाजिादी, धमनतनरपेक्ष एिं एकता और ऄखंिता शब्द जोड़े गए
b) सभी नीतत तनदेशक तसद्धांतों को मूल ऄतधकारों पर सिोछच का सुतनतित की गइ।
c) आसके ऄंतगनत सतं िधान में 10 मौतलक कतनव्यों को ऄनछु छे द 51 (क) भाग 4 (क) के ऄंतगनत जोड़ा
गया।
d) संतिधान को न्यातयक परीक्षण से मुक्त तकया गया।
e) लोकसभा एिं तिधानसभा ओ ं की ऄितध को 5 से 6 िषन कर तदया गया।
f) आसके द्वारा िन, संपदा, तशक्षा, जनसंख्या, तनयंत्रण, अतद तिषयों को राज्य सूची से समिती सूची
के ऄंतगनत कर तदया गया।
g) आसके ऄंतगनत तनधानररत तकया गया तक राष्ट्ट्रपतत मंत्री पररषद एिं ईसके प्रमुख प्रधानमंत्री की
सलाह के ऄनुसार कायन करेगा।
h) आस ने संसद को राष्ट्ट्र तिरोधी गतततितधयों से तनपिने के तलए कानून बनाने के ऄतधकार तदए एिं
सिोछचता स्थातपत
आसके ऄतं गगत राष्ट्ट्रीय अपात तस्थतत लागू करने के तलए अतं ररक ऄशांतत के स्थान पर सैन्य
तिद्रोह का अधार
संपतत्त के ऄतधकार को मौतलक ऄतधकार से हिाकर तितधक ऄतधकार की श्रेणी में रखा गया।
लोकसभा तथा राज्य तिधानसभा की ऄितध 6 िषन से घिाकर 5 िषन कर दी गइ।
ईछचतम न्यायालय को राष्ट्रपजत तथा ईपराष्ट्रपजत के जनवागिन संबंधी तििाद को हल करने की
ऄतधकाररता प्रदान की गइ।
आसके द्वारा मतदान के तलए अयु सीमा 21 िषन से घिाकर 18 िषन लाने का प्रस्ताि था।
65 िां संतिधान संशोधन ऄतधतनयम 1990
आसके द्वारा ऄनुछछे द 338 में संशोधन करके ऄनुसूतचत जातत तथा जनजातत अयोग के गठन की
व्यिस्था की गइ।
तदल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की तिधानसभाओ ं के सदस्यों को राष्ट्ट्रपतत के तलए तनिानचक
मंिल में सतम्मतलत जकया गया।
अठिीं ऄनस ू ी में कोंकणी, मतणपरु ी और नेपाली भाषा को सतम्मतलत तकया गया।
ु च
आस ऄजधजनयम के द्वारा देश में 6 से 14 िषन तक के बछचों के तलए ऄतनिायन एिं तनशुल्क तशक्षा को
मौतलक ऄतधकार के रूप में मान्यता जदया गया।
आस प्रावधान को ऄनुछछे द 21 (क) के ऄंतगनत जोड़ा गया।
आस ऄजधजनयम द्वारा संतिधान के ऄनुछछे द 45 तथा ऄनुछछे द 51(क) संशोधन तकए जाने का
प्रािधान है।
सजं वधान में एक नया भाग 9(ख) जोड़ा गया तजसका नाम सहकारी सतमततयां है।
आसके ऄतं गगत सजं वधान के ऄनुछछे द 243 यज (ZH) से 243 यन (ZT) जोड़ा गया।
नीतत तनदेशक तत्िों के ऄंतगनत 43 B जोड़ा गया।
ऄनुछछे द 19.1 (ग) में संघ बनाने की स्ितंत्रता के साथ सहकारी सतमतत बनाने का ऄतधकार
शब्द शाजमल जकया गया।
सिोछच न्यायालय और ईछच न्यायालय में जजों की तनयुतक्त के जलए राष्ट्ट्रीय न्यातयक तनयुतक्त
अयोग (NJAC) का प्रािधान करता है।
ऄनस ु च
ू ी तिषय सबं तं धत ऄनछु छे द
प्रथम राज्य संघ राज्य क्षेत्र 1–4
सिं ैधातनक पदों पर असीन ऄतधकाररयों की पररलतब्धयां 59(3),65(3),75(6)
1. भारत के राष्ट्ट्रपतत 97,125,148(3) 158(3)
2. राज्यों के राज्यपाल 164(5),186,221
3. लोकसभा के ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष
4. राज्यसभा के सभापतत और ईपसभापतत
दूसरी 5. राज्य तिधान सभा के ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष
6. राज्य तिधान पररषद के सभापतत और ईपसभापतत
7. सिोछच न्यायालय के न्यायाधीश
8. ईछच न्यायालय के न्यायाधीश
9. भारत के तनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक
तितभन्न ईम्मीदिारों द्वारा ली जाने िाली शपथ का प्रारूप 75(4),84 A, 99,
1. संघ के मंत्री संसद के तलए तनिानचन हेतु ऄभ्यथी 124(6), 148(2),
2. संसद के सदस्य 164(3),173 A ,
3. सिोछच न्यायालय के न्यायाधीश 188, 219
तीसरी 4. भारत के तनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक
5. राज्यों के मंत्री
6. राज्य तिधान मंिल के तनिानचन के तलए ऄभ्यथी
7. राज्य तिधान मंिल के सदस्य
8. ईछच न्यायालय के न्यायाधीश
चौथी राज्यों और कें द्र शातसत प्रदेशों के तलए राज्यसभा में सीिों का 4(1), 80(2)
अिंिन
पांचिी ऄनुसूतचत जातत और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन तथा तनयंत्रण 244(1)
के बारे में ईपबध
ं
छठी ऄसम, मेघालय, तत्रपुरा और तमजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों 244(2), 275(1)
के प्रशासन के बारे में ईपबंध
सघं सच ू ी (मूल रूप से 97 ितनमान में 100 तिषय) राज्य सच ू ी 246
सातिीं (मूल रूप से 66 ितनमान में 61 तिषय) तथा समिती सूची (मूल
रूप से 47 ितनमान में 52 तिषय) के संदभन में राज्य और कें द्र के
भारतीय संशवधान के भाग 15 के ऄनुच्छे द 324 से 329 तक शनवााचन अयोग तथा शनवााचन से
सबं शं धत प्रावधान है।
शनवााचन अयोग एक ऄशखल भारतीय शनकाय है जो कें द्र और राज्य सरकारों के शलए चुनाव
संबंधी शदिाशनदेि का काया करती है।
अयोग की संरचना
शनवााचन अयोग में एक मुख्य चुनाव अयुक्त और दो ऄन्य अयुक्त होते हैं।
मुख्य चुनाव अयुक्त और ऄन्य शनवााचन अयुक्तों की शनयुशक्त राष्ट्रपशत द्वारा की जाती है।
राष्ट्रपशत शनवााचन अयोग की सलाह पर प्रादेशिक अयुक्तों की शनयुशक्त करता है शजसे वह
शनवााचन अयोग की सहायता के शलए अवश्यक समझे।
शनवााचन अयुक्तों और क्षेत्रीय अयुक्तों की सेवा ितों और कायाकाल का शनधाारण राष्ट्रपशत
करता है।
पद से हटाने की शवशध
मुख्य शनवााचन अयुक्त का कायाकाल शनशित है। ईसे ईसके पद से ईसी रीती से हटाया जा सकता
है जैसे सवोच्च न्यायालय के न्यायाधीि को हटाया जाता है (ऄथाात कदाचार और दुर्वयावहार का
दोषी पाए जाने पर)।
भारत में शनवााचन अयुक्त राष्ट्रपशत के प्रसादपयंत पद धारण नहीं करता है।
ऄन्य शनवााचन अयुक्त या प्रादेशिक अयुक्त को मुख्य शनवााचन अयुक्त की शसफाररि पर ही
हटाया जा सकता है ऄन्यथा नहीं।
मुख्य काया
1. शनवााचक नामावली तैयार करना योग्य मतदाताओ ं को पंजीकृत करना।
संशवधान के ऄनुच्छे द 243 त में राज्य शनवााचन अयोग का प्रावधान शकया गया है।
प्रत्येक राज्य के शलए राज्य शनवााचन अयोग होगा शजसमें एक राज्य शनवााचन अयुक्त होगा।
राज्य शनवााचन अयुक्त की शनयुशक्त राज्यपाल द्वारा होती है।
राज्यपाल को ऄशधकार होगा शक वह राज्य शनवााचन अयुक्त की सेवा ितें तथा पदावशध का
शनधाारण करें।
राज्य शनवााचन अयुक्त को ईसी रीशत और ईन्हीं अधारों पर हटाया जा सके गा जैसे शक ईच्च
न्यायालय के शकसी न्यायाधीि को हटाया जाता है।
राज्य शनवााचन अयोग पंचायतों पंचायतों की सभी चुनाव के शलए मतदाता सूची तैयार करने
तथा पच ं ायतों के सभी चुनाव के सच ं ालन के शलए ईत्तरदाइ होता है।
ऄन्य तथ्य
संघ लोक सेवा अयोग भारत में कें द्रीय भती ऄशधकरण है।
संसद के द्वारा आसकी काया क्षेत्र में वृशि की जा सकती है।
ऄध्यक्ष को या सदस्य को पनु ः शनयुक्त ऄथवा दूसरे कायाकाल के शलए चुना जा सकता है।
संवैधाशनक प्रावधान
संशवधान के भाग 14 में ऄनुच्छे द 315 से 323 तक राज्य लोक सेवा अयोग की स्वतंत्रता िशक्त
गठन व सदस्यों की शनयुशक्त तथा बखाास्तगी के बारे में ईल्लेख है।
संवैधाशनक प्रावधान
भारतीय संशवधान का ऄनुच्छे द 148 – 151 भारत के शनयंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से संबंशधत
है।
यह लोक शवत्त का संरक्षक एवं लेखा परीक्षण व लेखा शवभाग का मुशखया होता है।
साथ ही आसका शनयंत्रण कें द्र व राज्य दोनों स्तरों पर पाया जाता है।
डॉ. ऄंबेडकर ने शनयंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को भारतीय संशवधान के ऄंतगात सवााशधक
महत्वपूणा पदाशधकारी की संज्ञा दी है।
नहीं
ऄन्य तथ्य
र्वयवहार में कै ग की ररपोटा भ्रिाचार रोकने का प्रमुख साधन है आस ररपोटा के अधार पर
न्यायालय में कायावाही की जा सकती है।
भारत में शनयंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को लोक लेखा सशमशत के शमत्र, दािाशनक एवं पथ
प्रदिाक की संज्ञा दी जाती है।
नीशत अयोग का गठन कें द्र सरकार द्वारा 1 जनवरी 2015 को योजना अयोग के स्थान पर
शकया गया
यह सरकार के शथंक टैंक के रूप में सेवाएं देगा और कें द्र व राज्य सरकारों की नीशत शनधाारण के
सबं ध
ं में प्रासशं गक, महत्वपण
ू ा एवं तकनीक परामिा ईपलब्ध कराएगा।
संरचना
भारत के प्रधानमंत्री ऄध्यक्ष, गवशनंग काईंशसल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और सघं राज्य
क्षेत्रों के ईपराज्यपाल
शजन कें द्र िाशसत प्रदेिों में शवधानसभा है वहां के मुख्यमंत्री
शवशिि मुद्दों और ऐसे अकशस्मक मामले की शजनका सबं ध ं एक से ऄशधक राज्य या क्षेत्र से हो
को देखने के शलए क्षेत्रीय पररषदें
शविेष अमंशत्रत सदस्य शवशभन्न क्षेत्रों के शविेषज्ञ प्रधानमंत्री द्वारा नाशमत
पूणाकाशलक संगठनात्मक ढांचे में प्रधानमंत्री के ऄध्यक्ष होने के ऄलावा शनम्न होंगे
ईपाध्यक्ष प्रधानमंत्री द्वारा शनयुक्त
सदस्य पूणाकाशलक
मुख्य काया कारी ऄशधकारी भारत सरकार के सशचव स्तर का ऄशधकारी शनशित
कायाकाल हेतु प्रधानमंत्री द्वारा शनयुक्त
सशचवालय का गठन अवश्यकता के ऄनुसार शकया जाएगा।
ईद्देश्य / काया
शवकास प्रशिया में शनदेि और रणनीशतक परामिा देना
सहयोगात्मक सघं वाद का शवकास करना।
ग्राम स्तर पर र्वयावहाररक योजना बनाने में सहयोग एवं योजनाओ ं के ईत्तरोत्तर शवकास में मदद
करना।
कायािमों और नीशतयों के कायाान्वयन हेतु प्रौद्योशगकी व क्षमता शनमााण का शवकास करना।
दीघाकालीन योजना कायािम शनमााण और समयानस ु ार अवश्यक पररवतान अशद करना।
सामान्य पररचय
राष्ट्रीय मानवाशधकार अयोग का गठन मानव ऄशधकार संरक्षण ऄशधशनयम 1993 के तहत शकया
गया।
यह एक सांशवशधक स्वायत्त शनकाय है।
आसका गठन संसदीय ऄशधशनयम के माध्यम से शकया गया है।
ईद्देश्य मानवाशधकार संरक्षण के प्रयासों को सिक्त एवं शनष्ट्पक्ष बनाना, व एक स्वतंत्र संस्था के
रूप में मानवाशधकारों के ईल्लघं न से जुडे मुद्दों पर सरकार का ध्यान अकृि करना।
आसका प्रधान कायाालय शदल्ली में शस्थत है।
यह अयोग ईन मामलों की जांच कर सकता है शजन्हें घशटत हुए 1 वषा से कम समय हुअ हो।
प्रशतवषा 10 शदसंबर को ऄंतरराष्ट्रीय मानवाशधकार शदवस के रुप में मनाया जाता है।
2 सदस्य जो ऐसे र्वयशक्तयों में से शनयुक्त शकए जाएग ं े शजन्हें मानवाशधकारों से सबं शं धत शवषयों
का ज्ञान या र्वयावहाररक ऄनुभव है।
आन स्थाइ सदस्यों के ऄशतररक्त राष्ट्रीय मानवाशधकार अयोग के चार पदेन सदस्य भी होते हैं जो आस
प्रकार हैं
1. राष्ट्रीय ऄल्पसख् ं यक अयोग का ऄध्यक्ष
2. राष्ट्रीय मशहला अयोग के ऄध्यक्ष
1. प्रधानमंत्री,
2. लोकसभा ऄध्यक्ष,
3. राज्यसभा ईपसभापशत,
4. दोनों सदनों में शवपक्षी नेता और कें द्रीय गृह मंत्री होते हैं।
अयोग के काया
मानवाशधकार के ईल्लंघन से संबंशधत मामलों की जांच करना।
शजलों एवं बंदी गृहों में जाकर वहां की शस्थशत देखना व सुधार हेतु ऄनुिंसा करना।
मानव ऄशधकार से संबंशधत ऄंतरराष्ट्रीय संशध समझौतों का प्रभावी शियान्वयन ।
मानवाशधकार संरक्षण हेतु शवशधक ईपायों के प्रशत जन जागरूकता पैदा करना।
न्यायालयों में लंशबत मानवाशधकारों जै से शहस ं ा संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करना।
मानवाशधकारों के क्षेत्र में कायारत गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना।
जांच के सबं ध
ं में काया
1. गवाहों को ऄपने पास बुला कर परीक्षण करना
ऄध्यक्ष या सदस्य की शनयुशक्त के पिात वेतन भत्तों एवं सेवा ितों अशद में कोइ ऄलाभकारी
पररवतान नहीं।
ऄध्यक्ष या सदस्य को कदाचार या क्षमता के अधार पर राष्ट्रपशत हटा सकता है लेशकन ऐसा करने
से पहले वह ईच्चतम न्यायालय में जांच हेतु मामलों को सौंपेगा। जांच की पशु ि होने पर पद मुक्त
शकया जा सकता है।
सामान्य पररचय
राष्ट्रीय मशहला अयोग एक सांशवशधक शनकाय हैं। आसका गठन जनवरी 1992 में मशहला
सिशक्तकरण को प्रभावी बनाने हेतु राष्ट्रीय मशहला अयोग ऄशधशनयम 1990 के तहत शकया
गया।
अयोग की पहली ऄध्यक्ष श्रीमती जयंती पटनायक थी।
भारत सरकार का मशहला एवं बाल शवकास मंत्रालय आस अयोग का नोडल मंत्रालय है।
अयोग का मुख्य ईद्देश्य मशहलाओ ं के शलए संवैधाशनक और कानूनी सुरक्षा ईपायों की समीक्षा
करना व ईपचारात्मक शवधायी, ईपायों की शसफाररि तथा शिकायतों के शनवारण में वृशि करना
है।
संरचना
यह अयोग बहु सदस्यीय है आसमें एक ऄध्यक्ष 5 सदस्य तथा एक सदस्य सशचव होता है।
ऄध्यक्ष सदस्य और सशचव का नामांकन मशहला एवं बाल शवकास मंत्रालय द्वारा शकया जाता
है।
वेतन भत्ते पेंिन तथा सेवा ितों का शनधाारण कें द्र सरकार द्वारा शकया जाता है।
र्वयशक्त
शदवाशलया घोशषत शकया गया हो ।
सक्षम ऄदालत द्वारा मानशसक रूप से ऄस्वस्थ घोशषत शकया गया हो।
शकसी ऄपराध हेतु दोष शसि हो गया हो ऄथवा कें द्र सरकार की नजर में ऄनैशतक हो।
बाल ऄशधकार संरक्षण ऄशधशनयम 2005 के तहत माचा 2007 में राष्ट्रीय बाल ऄशधकार संरक्षण
अयोग की स्थापना की गइ।
ऄशधशनयम के ऄंतगात संयुक्त राष्ट्र संघ समझौता (20 नवंबर 1989) द्वारा बच्चों के ऄशधकारों को
िाशमल शकया गया है।
संवैधाशनक प्रावधान
भारतीय संशवधान का ऄनुच्छे द 338 ऄनुसूशचत जाशतयों के शलए एक शविेष ऄशधकारी की
शनयुशक्त का ईपबंध करता हैजो ऄनुसूशचत जाशतयों एवं जनजाशतयों के संवैधाशनक संरक्षण से
संबंशधत सभी मामलों का शनरीक्षण करें तथा ईससे संबंशधत प्रशतवेदन राष्ट्रपशत के समक्ष प्रस्तुत
करें।
वषा 1978 में कै शबनेट प्रस्ताव द्वारा ऄनुसूशचत जाशत एवं ऄनुसूशचत जनजाशत अयोग की स्थापना
की गइ शफर 1987 में सरकार ने अयोग के कायों में संिोधन शकया तथा अयोग का नाम
बदलकर राष्ट्रीय ऄनस ु शू चत जाशत एवं ऄनसु शू चत जनजाशत अयोग कर शदया।
बाद में 65 वें संशवधान संिोधन ऄशधशनयम 1990 द्वारा ऄनुसूशचत जाशतयों एवं जनजाशतयों के
शलए एक शविेष ऄशधकारी के स्थान पर एक ईच्च स्तरीय बहु सदस्यीय राष्ट्रीय ऄनुसूशचत जाशत
एवं ऄनुसूशचत जनजाशत अयोग की स्थापना की गइ।
89 वें संशवधान संिोधन ऄशधशनयम 2003 के द्वारा आसे पुन: दो भागों में बांट शदया गया और
पृथक पृथक दो अयोग िमिः
1. राष्ट्रीय ऄनुसूशचत जाशत ऄनुच्छे द 338 और
2. राष्ट्रीय ऄनस ु शू चत जनजाशत अयोग ऄनच्ु छे द 338 (क) ऄशस्तत्व में अए।
3. ऄशधशनयम वषा 2004 से प्रभावी हुअ।
सदस्यों का कायाकाल
आस अयोग में एक ऄध्यक्ष एक ईपाध्यक्ष व तीन ऄन्य सदस्य होते हैं शजनकी शनयुशक्त राष्ट्रपशत
द्वारा होती है।
आनकी सेवा ितें एवं कायाकाल राष्ट्रपशत द्वारा शनधााररत शकए जाते हैं।
शनयमानुसार आनका कायाकाल 3 वषा का होता है।
अयोग के काया
संशवधान में ऄनुसूशचत जाशतयों से संबंशधत प्रावधानों के साथ समय-समय पर ईनके शलए बनाए
गए कानूनों का शियान्वयन करना व आनका शनरीक्षण ऄधीक्षण व समीक्षा भी करना।
अयोग की िशक्तयां
अयोग को शसशवल कोटा की िशक्तयां प्राि है। आससे संबंशधत शनम्नशलशखत ऄशधकार प्राि है
1. भारत के शकसी भी भाग में शकसी र्वयशक्त को सम्मन जारी करना।
4. शकसी न्यायालय या कायाा लय से शकसी लोक ऄशभलेख या ईसकी प्रशत को प्राि करना।
अयोग के काया
जनजाशतयों को प्राि संवैधाशनक संरक्षण की समीक्षा करना।
जनजाशतयों को संशवधान में शदए गए ऄशधकार शकस प्रकार से प्राि हो ईसके बारे में सरकार को
परामिा देना।
जनजाशतयों के ऄशधकारों के हनन की शस्थशत की जांच करना।
राष्ट्रपशत को जनजाशतयों के ऄशधकारों व शवकास के बारे में प्रशतवषा ररपोटा देना।
ऄन्य काया
वन क्षेत्र की शनवासी जनजाशतयों को लघु वनोपज पर स्वाशमत्व का ऄशधकार देना।
कानून द्वारा जनजातीय समुदायों के खशनज तथा जल सस ं ाधनों अशद पर ऄशधकार को सुरशक्षत
रखने के ईपाय करना।
जनजाशतयों के शवकास तथा वन्य अजीशवका हेतु रणनीशतयों का शनधाारण करना।
ऐसे समुदाय में वन सुरक्षा व सामाशजक वाशनकी में ऄशधक सहयोग के ईपाय करना।
पेिा ऄशधशनयम 1996 का परू ी कायाान्वयन सशु नशित करना।
जनजातीय समूहों के पुनवाास संबंधी कायों को प्रभावी बनाना।
अयोग की िशक्तयां
आस अयोग की िशक्तयां भी शसशवल कोटा के ही समान है।
आस अयोग की िशक्तयां राष्ट्रीय ऄनुसूशचत जाशत अयोग से ही समान है।
सांशवशधक प्रावधान
भ्रिाचार रोकने के शलए कें द्र सरकार द्वारा बनाइ गइ संथानम सशमशत की शसफाररि पर 1964 में
कें द्र सरकार द्वारा संबंशधत प्रस्ताव पाररत कर अयोग की स्थापना की गइ।
ईच्चतम न्यायालय के शनणाय ऄनुसार अयोग को कें द्रीय सतका ता अयोग ऄध्यादेि 1998 के
द्वारा सांशवशधक दजाा शदया गया है।
आससे संबंशधत शवधेयक 2003 में संसद के दोनों सदनों द्वारा पाररत शकया गया व राष्ट्रपशत की
मंजूरी शमलने के पिात या अयोग ऄशधशनयम प्रभाव में अया।
भारत सरकार द्वारा 2004 में आस अयोग को नाशमत एजेंसी के रूप में ऄशधकृत शकया गया है।
संरचना
यह एक बहु सदस्यीय सस्ं था है आसमें ऄध्यक्ष के रूप में एक कें द्रीय सतका ता अयुक्त व दो या दो
से कम सतका ता अयुक्त होते हैं।
ऄध्यक्ष व सदस्यों की शनयुशक्त राष्ट्रपशत द्वारा एक सशमशत की शसफाररि के अधार पर की जाती
है।
चयन सशमशत में शनम्नशलशखत सदस्य होते हैं
1. प्रधानमंत्री
पदच्युशत के अधार
राष्ट्रपशत कें द्रीय सतका ता अयुक्त या ऄन्य शकसी भी सतका ता अयुक्त को ईसके पद से शकसी भी
समय शनम्नशलशखत पररशस्थशतयों में हटा सकते हैं
यशद वह शदवाशलया घोशषत हो या
नैशतक चररत्र हीनता के अधार पर शकसी ऄपराध में दोषी पाया गया हो या
ऄपनी पद ऄवशध के दौरान ऄपने पद के कतार्वयों से बाहर शकसी वेतन पाने वाले शनयोजन में
लगा हुअ हो या
ईसने ऐसे शवत्तीय या ऄन्य शहत ऄशजात शकए हो शजससे ईसके कें द्रीय सतका ता अयुक्त के रूप में
कृत्यों पर प्रशतकूल प्रभाव पडने की संभावना हो।
ररपोटा
कें द्रीय सतका ता अयोग ऄपनी वाशषाक कायाकलापों की ररपोटा राष्ट्रपशत को सकता है और
राष्ट्रपशत आस ररपोटा को संसद के प्रत्येक सदन में प्रस्तुत करता है।
अयोग द्वारा भ्रिाचार शनवारण हेतु शवज अइ (VIGEYE) नामक पोटाल का प्रारंभ शकया गया
है यह एक शिकायत दजा कराने वाला पोटाल है।
मुख्य सूचना अयुक्त व ऄन्य अयुक्तों की शनयुशक्त राष्ट्रपशत एक सशमशत की शसफाररि पर करता
है शजसमें शनम्न सदस्य होते हैं
1. प्रधानमंत्री
कें द्र सरकार की नजर में नैशतक चररत्र हीनता के अधार पर शकसी ऄपराध में दोषी पाया गया हो
या
राष्ट्रपशत की राय में मानशसक व िारीररक िैशथल्य के कारण पद पर बने रहने की ऄयोग्य हो या
शकसी ऐसे लाभ को प्राि करते हुए पाया जाता है शजससे ईसका काया या शनष्ट्पक्षता प्रभाशवत
होती है।
साशबत कदाचार एवं ऄसमथा ता के अधार पर भी राष्ट्रपशत ईन्हें पद से हटा सकता है बिते
पहले ईच्चतम न्यायालय में राष्ट्रपशत द्वारा शदए गए शनदेि के ऄनुरूप जांच के बाद ऐसी ररपोटा
दी गइ हो।
ऄशधकरण की िशक्तयां
शसशवल प्रशिया संशहता 1908 के तहत ऄशधकरण को शसशवल कोटा का दजाा शदया गया है
आसके तहत ऄशधकरण की िशक्तयां हैं
1. शकसी र्वयशक्त के शखलाफ समन जारी करना
यह ऄशधकरण शसशवल प्रशिया संशहता 1908 से बंधा नहीं होगा बशल्क यह प्राकृशतक न्याय के
शसिांतों द्वारा शनदेशित होगा।
वििेकानंद इंस्टिट्मूि
Mob – 9993259075, 8815894728
203, Pearl Business Park
For Civil Services Vishnupuri, Indore
1. ऄथथव्यवस्था के प्रकार और क्षेत्रक
मुख्यतः ऄथथशास्त्र के दो प्रकार होते है:
1. व्यष्टि ऄथथशास्त्र: इसमे व्यष्टि और ईसके अष्टथथक व्यवहार का ऄध्ययन ष्टकया जाता है। जैसे: व्यक्ति
की आय, उसकी आवश्यकताए, उसकी इच्छाएँ, उसके खर्च करने का तरीका आक्तद का अध्ययन।
2. सष्टमष्टि ऄथथशास्त्र: इसमे देश की सम्पूणथ ऄथथव्यवस्था के अष्टथथक व्यवहार का ऄध्ययन क्तकया जाता
है। जैसे: देश की प्रक्तत व्यक्ति आय, सकल घरे लू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद, देश की मागां एवां पक्तू तच का
अध्ययन, वृक्ति दर, बेरोजगारी दर आक्तद का अध्ययन।
ऄथथव्यवस्था के प्रकार
क्तनजी क्षेत्र और बाजार के सापेक्ष राज्य व सरकार की भक्तू मका के आधार पर अथचव्यवस्था की तीन श्रेक्तणयाां हैं-
1. समाजवादी ऄथथव्यवस्थाः–
2. पूंजीवादी ऄथथव्यवस्था:-
पज ूं ीवादी ऄथथव्यवस्था में मााँग व पूष्टतथ (ष्टनजी क्षेत्र व बाजार) कारकों की भूष्टमका प्रभावकारी होती
है।
ऐसी अथचव्यवस्था में राज्य व सरकार की भूष्टमका सीष्टमत
ऐसी अथचव्यवस्था ऄहस्तक्षेप के ष्टसद्धान्त पर अधाररत
पूंजीवादी ऄथथव्यवस्था में जहां लाभ पर जोर होता है वहीं समाजवादी ऄथथव्यवस्था कल्याणकारी
राज्य की सक ं ल्पना से प्रेररत होती है।
वििेकानंद इंस्टिट्मूि
Mob – 9993259075, 8815894728
203, Pearl Business Park
For Civil Services Vishnupuri, Indore
3. ष्टमष्टित ऄथथव्यवस्था:-
ऐसी अथचव्यवस्था में समाजवादी एवं पूंजीवादी दोनों के लक्षण पाये जाते हैं।
भारत की ऄथथव्यवस्था ष्टमष्टित ऄथथव्यवस्था का ईदाहरण है।
1. योजनाबद्ध िेणी:- एक व्यवक्तस्थत रणनीक्तत के साथ क्तवकास की सांकल्पना को स्वीकार करने वाले
अथचव्यवस्था योजनाबि अथचव्यवस्था की श्रेणी में आती है।
2. गैर योजनाबद्ध िेणी:- ऐसी अथचव्यवस्था जो आयोजन की सक ां ल्पना को स्वीकार नहीं करती, गैर
योजनाबि अथचव्यवस्था कहलाती है।
वतथमान वैष्टिक पररदृश्य में सभी ऄथथव्यवस्थायें योजनाबद्ध ऄथथव्यवस्था की िेणी में अती हैं।
1. ष्टवकष्टसत ऄथथव्यवस्था:-
जहाँ औद्योगीकरण की प्रष्टिया औद्योष्टगक िाष्टन्त के पहले व दूसरे चरण में शुरू हुई थी और आज
ष्टवकास की ईच्च ऄवस्था तक पहुर्ँ र्क ु ी हैं।
ऐसी अथचव्यवस्था ष्टवकष्टसत ऄथथव्यवस्था की िेणी में आती हैं। ऄमेररका व ऄष्टधकांश यूरोपीय
देशों की अथचव्यवस्थायें क्तवकक्तसत अथचव्यवस्था की श्रेणी में रखी जाती हैं।
क्तवकक्तसत अथचव्यवस्थाओ ां की जी0डी0पी0 में सेवा क्षेत्र का महत्व ऄष्टधक होता है और ये आक्तथचक
क्तवकास के तीसरे र्रण में प्रवेश कर र्क
ु ी हैं।
2. ष्टवकासशील ऄथथव्यवस्था:-
ऐसी अथचव्यवस्थायें अपने सांसाधनों का समक्तु र्त दोहन नही कर पायी। यहाँ पर औद्योगीकरण की प्रक्तिया देर
से शरू
ु हुई।
1940-50 के दशक में औपष्टनवेष्टशक स्वतंत्रता प्राप्त करने वाली ऄष्टधकांश देशों की ऄथथव्यवस्थायें
इसी श्रेणी की हैं।
वििेकानंद इंस्टिट्मूि
Mob – 9993259075, 8815894728
203, Pearl Business Park
For Civil Services Vishnupuri, Indore
ऐसी अथचव्यवस्था के जी0डी0पी0 में कृष्टष क्षेत्र का भाग कम हो रहा होता है और औद्योष्टगक एवं सेवा
क्षेत्र का भाग बढ़ रहा होता है।
ये अथचव्यवस्थायें अष्टथथक ष्टवकास के दूसरे चरण में हैं।
ऐसी अथचव्यवस्थायें जो अपने सांसाधनों का दोहन अभी तक नहीं कर पायी हैं तथा अभी वे ष्टवकास के
अरष्टम्भक चरण में हैं, ऄल्प ष्टवकष्टसत ऄथथव्यवस्था कहलाती हैं।
ऐसी अथचव्यवस्थायें अपनी आवश्यकताओ ां की पक्तू तच के क्तलए अन्य देशों व अन्तराचष्ट्रीय सगां ठनों के अनदु ान
पर क्तनभचर होती हैं।
ऐसी अथचव्यवस्था वाले देशों के जी0डी0पी0 में प्राथष्टमक क्षेत्र की भूष्टमका ऄभी भी महत्वपूणथ बनी
हुइ है।
1. बन्द ऄथथव्यवस्था:- ऐसी अथचव्यवस्था जो अत्मष्टनभथरता पर बल देती हैं और शेष ष्टवि के साथ
अष्टथथक ष्टियाओ ं के प्रष्टत ईदासीन रहती हैं। बन्द अथचव्यवस्था कहलाती हैं। 1991 के पवू च भारतीय
अथचव्यवस्था बहुत हद तक इसी श्रेणी में थी।
2. खुली ऄथथव्यवस्था:- ऐसी अथचव्यवस्था प्रष्टतस्पधाथत्मक व्यवस्था को प्रोत्साहन एवं संरक्षणवाद को
हतोत्साष्टहत करती है। खलु ी अथचव्यवस्था वाले देश शेष क्तवश्व के साथ आक्तथचक क्तियाओ ां को प्रोत्साक्तहत करते हैं।
इनका स्वरूप बहुत हद तक ष्टनयंत्रण मुि होता है। 1991 के बाद भारतीय अथचव्यवस्था खल ु ी अथचव्यवस्था के
रूप में अग्रसर हुई।
सामान्यतः सांपणू च अथचव्यवस्था की आक्तथचक गक्ततक्तवक्तधयों को लेखाांक्तकत करने के क्तलए तीन क्षेत्रकों में
ष्टवभाष्टजत क्तकया गया है-
प्राथष्टमक क्षेत्रक (PRIMARY SECTOR)
इसके अतां गचत ऄथथव्यवस्था के प्राकृष्टतक क्षेत्रों का लेखांकन क्तकया जाता है इसके ऄंतगथत ष्टनम्न क्षेत्रों
को सष्टम्मष्टलत क्तकया जाता है
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जैसे – कृष्टष, वाष्टनकी, मत्स्यन (मछली पकड़ना ), खनन (उध्वाथधर खदु ाइ) एवं ईत्खनन (क्षैष्टतक
खुदाइ)
इस क्षेत्रक के अतां गचत मुख्यतः ऄथथव्यवस्था की ष्टवष्टनष्टमथत वस्तुओ ं के ईत्पादन का लेखांकन क्तकया
जाता है –
1. ष्टनमाथण, जहाां क्तकसी स्थाई पररसांपक्ति का क्तनमाचण क्तकया जाए: जैसे -भवन- |
2. ष्टवष्टनमाथण जहाां क्तकसी वस्तु का उत्पादन हो: जैसे -कपड़ा ब्रेड आक्तद-
3. ष्टवद्यतु गैस एवं जल अपष्टू तथ आत्याष्टद से सबां क्तां धत कायच |
तत्त
ृ ीय या सेवा क्षेत्रक (THIRD OR SERVICE SECTOR)
यह क्षेत्र ऄथथव्यवस्था के प्राथष्टमक और ष्टितीयक क्षेत्र को ऄपनी ईपयोगी सेवा प्रदान करता है
इसके अतां गचत पररवहन एवं संचार, बैंष्टकंग, बीमा, भंडारण, व्यापार, सामुदाष्टयक सेवा आक्तद
इसके अतां गचत वे सभी इकाइयाां आ जाती है, जो ऄपने अष्टथथक कायथकलापों का ष्टनयष्टमत लेखांकन
करती है,
भारतीय अथचव्यवस्था में लगभग 9 प्रष्टतशत आस क्षेत्र से है |
इसके अतां गचत सभी इकाइयाां आ जाती है जो ऄपने अष्टथथक कायथकलापों का कोइ लेखा जोखा नहीं
रखती है;
जैसे – रेहड़ी, खोमचे , सब्जी की खुदरा दुकानें, दैष्टनक मजदूर
भारतीय अथचव्यवस्था में आसका योगदान लगभग 91 प्रष्टतशत है |
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अष्टथथक संवृष्टद्ध एवं ष्टवकास (ECONOMIC GROWTH AND DEVELOPMENT)
क्तनक्तित समयावक्तध में ष्टकसी ऄथथव्यवस्था में होने वाली वास्तष्टवक अय की वृष्टद्ध, अष्टथथक समृष्टद्ध है।
यह एक भौक्ततक अवधारणा है।
यक्तद, राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरे लू उत्पाद तथा प्रक्तत व्यक्ति आय में वृक्ति हो रही है, तो माना जाता है क्तक
अष्टथथक सवं ष्टृ द्ध हो रही है।
अष्टथथक ष्टवकास की धारणा आक्तथचक सवां क्तृ ि की धारणा से अक्तधक व्यापक है।
अष्टथथक सवं ृष्टद्ध ईत्पादन की वृष्टद्ध से सबां क्तां धत है, जबक्तक अष्टथथक ष्टवकास ईत्पादन की वृष्टद्ध के साथ-
साथ, सामाष्टजक, सांस्कृष्टतक, अष्टथथक गुणात्मक एवं पररणात्मक सभी पररवतथनों से सम्बष्टन्धत है।
आक्तथचक सांवक्तृ ि वस्तक्तु नष्ट है जबक्तक आक्तथचक क्तवकास व्यक्तिक्तनष्ठ।
अष्टथथक ष्टवकास के माप में प्रष्टत व्यष्टि अय के जीवन की गण ु वत्ता को सही माप नही माना जाता
है।
इसकी माप में ऄनेक चारों को सष्टम्मष्टलत ष्टकया जाता है जैसे-आक्तथचक, राजनैक्ततक तथा सामाक्तजक
सस्ां थाओ ां के स्वरूप में पररवतचन, क्तशक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास््य सेवायें
प्रक्तत व्यक्ति क्तिकाऊ उपभोग वस्तु आक्तद।
अष्टथथक सवं ष्टृ द्ध = के वल पररमाणात्मक पररवतथन
अष्टथथक ष्टवकास = पररणात्मक तथा गण ु ात्मक पररवतथन
ष्टवष्टभन्न देशों के अष्टथथक ष्टवकास की तुलनात्मक ष्टस्थष्टत ज्ञात करने के ष्टलए पााँच दृष्टिकोण हैं-;
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(C) ष्टनवल अष्टथथक कल्याण (NET ECONOMIC WELFARE) मापक -क्तवक्तलयम नोरधस तथा जेम्स
िोक्तबन ने जीवन की गणु विा में सधु ार जो आक्तथचक क्तवकास की मापक है, की माप के क्तलए मजां र आफ इकनाक्तमक
वेलफे यर (MEW) की धारणा क्तवकक्तसत की क्तजसे बाद में सेमएु लसन और सांशोक्तधत क्तकया तथा इसे (NEW)
मापक रहा।
NEW =G.N.P (सकल राष्ट्रीय ईत्पाद)-(ईत्पादन प्रत्यक्ष लागत तथा अधुष्टनक नागररक की हाष्टनयां
तथा गृहष्टणयों की सीमायें।)
(D) िय शष्टि समता ष्टवष्टध (PURCHASING POWER PARITY METHOD):-
आस ष्टवष्टध का प्रष्टतपादन जी0अर0 कै सेल ने क्तकया।
इसके अन्तगचत क्तकसी देश की सकल राष्ट्रीय आय के क्तकसी पव ू च क्तनक्तित अन्तराचष्ट्रीय क्तवदेशाीी क्तवक्तनमय दर
पर व्यि न करे , उस देश के भीतर मद्रु ा की ियशक्ति के आधार पर व्यि क्तकया जाता है।
वतचमान के क्तवश्व बैंक इसी क्तवक्तध का प्रयोग क्तवक्तभन्न देशों के रहन-सहन की तल ु ना के क्तलए कर रहा है।
मानव ष्टवकास के स्तर का पता ष्टनम्न चार सूचकांकों के सदभ ं थ में लगाया जाता है।
1. मानव ष्टवकास सूचकांक (HDI)
2. आनआक्वष्टलिी एडजस्िे ड मानव ष्टवकास सच ू कांक(EAHDI)
3. लैष्टगंक ष्टवषमता सूचकांक (GII)
4. मल्िी डायमेंसनल पविी आडं ेक्स (MPI)
मानव क्तवकास सर्ू काांक की ऄवधारणा का ष्टवकास पाष्टकस्तानी ऄथथशास्त्री महबूब ईल हक िारा
क्तकया गया।
पहला मानव ष्टवकास सूचकांक वषथ 1990 में जारी क्तकया गया।
इसको प्रष्टतवषथ संयुि राष्ट्र ष्टवकास कायथिम िारा जारी क्तकया जाता है।
सूचकांक की गणना 3 प्रमुख संकेतकों-
1. जीवन प्रत्याशा,
2. स्कूली ष्टशक्षा के ऄपेष्टक्षत वषथ, (ष्टशक्षा के औसत वषथ) और
3. प्रष्टत व्यष्टि सकल राष्ट्रीय अय के ऄंतगथत की जाती है।
वैष्टिक लैंष्टगक ऄंतराल सूचकांक ष्टवि अष्टथथक मंच िारा जारी की जाती है।
लैंक्तगक अतां राल/असमानता का तात्पयच ‚लैंक्तगक आधार पर मक्तहलाओ ां के साथ भेद-भाव से है।
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परांपरागत रूप से समाज में मक्तहलाओ ां को कमज़ोर वगच के रूप में देखा जाता रहा है क्तजससे वे समाज में
शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीक्तड़त होती हैं।
‛वैक्तश्वक लैंक्तगक अतां राल सर्ू काांक ष्टनम्नष्टलष्टखत चार क्षेत्रों में लैंष्टगक ऄंतराल का परीक्षण करता है:
1. अष्टथथक भागीदारी और ऄवसर (ECONOMIC PARTICIPATION AND
OPPORTUNITY)
2. शैष्टक्षक ऄवसर (EDUCATIONAL ATTAINMENT)
3. स्वास््य एवं ईत्तरजीष्टवता (HEALTH AND SURVIVAL)
4. राजनीष्टतक सशिीकरण और भागीदारी (POLITICAL EMPOWERMENT)
यह सर्ू काक
ां 0 से 1 के मध्य क्तवस्ताररत है।
इसमें 0 का अथच पणू च क्तलगां असमानता तथा 1 का अथच पणू च लैंक्तगक समानता है।
पहली बार लैंक्तगक अतां राल सर्ू काकां वषच 2006 में जारी क्तकया गया था।
3. जीवन स्तर: ष्टबजली, घर, पेय जल, शौचालय, खाना पकाने का इधन ं और सपं ष्टत्त
प्रत्येक क्तशक्षा और स्वास््य सांकेतक में 1/6 भार होता है
प्रत्येक मानक जीवन स्तर सक ां े तक में 1/18 भार होता है।
मानव ष्टवकास का ऄष्टधकतम मान 1 और न्यूनतम मान 0 होता है।
अथाचत 1 अक्तधकतम मानव क्तवकास की क्तस्थक्तत को दशाचता है और शन्ू य न्यनू तम मानव क्तवकास की क्तस्थक्तत
को।
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वैष्टिक खुशहाली ररपोिथ
यह ररपोिच प्रत्येक वषच सतत् क्तवकास समाधान नेिवकच (Sustainable Development Solution
Network- SDSN) द्वारा प्रकाक्तशत की जाती है।
वैष्टिक खुशहाली ररपोिथ का प्रकाशन वषथ 2012 से शुरू हुआ था।
खश ु हाली को अाँकने के ष्टलये सच ू कांक में
1. प्रष्टत व्यष्टि सकल घरे लू ईत्पाद,
4. सामाष्टजक सरोकार,
सयां ि
ु राष्ट्र के तत्त्वाधान में सयां ि
ु राष्ट्र सतत् क्तवकास समाधान नेिवकच 2012 से काम कर रहा है।
SDSN सतत् क्तवकास हेतु व्यावहाररक समाधान को बढ़ावा देने के क्तलये वैक्तश्वक वैज्ञाक्तनक और तकनीकी
क्तवशेषज्ञता जिु ाता है, क्तजसमें सतत् क्तवकास लक्ष्यों (एसडीजी) और पेररस जलवायु समझौते का कायाचन्वयन
भी शाक्तमल है।
SDSN सांयिु राष्ट्र एजेंक्तसयों, बहुपक्षीय क्तविपोषण सांस्थानों, क्तनजी क्षेत्र और नागररक समाज के साथ
क्तमलकर काम करता है।
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2. राष्ट्रीय अय (National Income)
राष्ट्रीय अय से तात्पयथ क्तकसी देश की अथचव्यवस्था द्वारा पूरे वषथ के दौरान उत्पाक्तदत ऄष्टन्तम वस्तुओ ं व
सेवाओ ं के शुद्ध मूल्य के योग से होता है, इसमें ष्टवदेशों से ऄष्टजथत शुद्ध अय भी शाष्टमल होती है।
राष्ट्रीय अय के ऄध्ययन के कारण:- क्तकसी भी देश में राष्ट्रीय आय का क्तवश्लेषण अथवा राष्ट्रीय आय का
लेखाांकन कई कारणों से महत्वपणू च होता है-
1. देश की आक्तथचक क्तवकास की गक्तत की माप के क्तलए राष्ट्रीय आय और प्रक्तत व्यक्ति आय में होने वाली वृक्ति
का क्तवश्लेषण क्तकया जाता है।
2. दो या दो से अक्तधक देशों के बीर् आक्तथचक क्तवकास की गक्तत की तल
ु ना करने के क्तलए राष्ट्रीय आय का
क्तवश्लेषण अक्तनवायच होता है।
3. राष्ट्रीय आय क्तवश्लेषण के माध्यम से क्षेत्रीय क्तवकास की समीक्षा की जा सकती है और यह पता लगाया जा
सकता है क्तक कौन सा क्षेत्र अक्तधक क्तवकक्तसत है और कौन सा कम क्तवकक्तसत है।
4. . राष्ट्रीय आय के क्तवश्लेषण द्वारा क्तकसी अथचव्यवस्था में प्राथक्तमक क्षेत्र, क्तद्वतीयक क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र के
योगदान का क्तवश्लेषण क्तकया जा सकता है।
5. क्तकसी देश की समक्तष्टभावी आक्तथचक नीक्तत का क्तनधाचरण राष्ट्रीय आय क्तवश्लेषण के आधार पर ही क्तकया जा
है।
राष्ट्रीय अय गणना की ष्टवष्टधयााँ :— राष्ट्रीय आय आक
ां लन के क्तलये मुख्य रूप से तीन ष्टवष्टधयों का प्रयोग
क्तकया जाता है-
1. ईत्पाद ष्टवष्टध
2. अय ष्टवष्टध
3. व्यय ष्टवष्टध
भारत में राष्ट्रीय अय की गणना के ष्टलये व्यय ष्टवष्टध का प्रयोग नहीं ष्टकया जाता है।
के वल उत्पाद एवां आय क्तवक्तध का प्रयोग क्तकया जाता है।
A. ईत्पाद ष्टवष्टध
उत्पाद क्तवक्तध द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय 1 वषच के भीतर ष्टवष्टभन्न क्षेत्रों जैसे प्राथष्टमक,
ष्टितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र में ईत्पाष्टदत समस्त वस्तुओ ं के बाजार मूल्य की गणना करते हैं
प्राथष्टमक क्षेत्र में कृ क्तष वाक्तनकी, मत्स्य पालन, खनन को शाक्तमल क्तकया जाता है।
ष्टितीयक क्षेत्र में क्तनमाचण एवां क्तवक्तनमाचण में क्तबजली गैस एवां जलापक्तू तच को शाक्तमल क्तकया जाता है।
तृतीयक क्षेत्र के अन्तगचत पररवहन सांर्ार सेवा क्षेत्र इत्याक्तद को शाक्तमल क्तकया जाता है।
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B. अय ष्टवष्टध
आय क्तवक्तध के अन्तगचत राष्ट्रीय आय की गणना करते समय क्तकसी क्तदये गये वषच में मजदूरी एवं वेतन, लगान
एवं ष्टकराया, ब्याज, लाभ, लाभांश एवं रायल्िी के समग्र योग को ज्ञात कर ष्टलया जाता है। क्तजसमें
समग्र योग आय को सकल राष्ट्रीय आय (GNI) कहते हैं।
यह मल ू तः क्तनवेश की गई लागत होती है क्तजसे उत्पादक उत्पादन प्रक्तिया के दौरान लगाता है।
जैसे पांजू ी की लागत, ऋणों पर ब्याज, श्रम, क्तकराया, क्तबजली कच्र्ा माल,
साधन लागत में सरकार को भुगतान ष्टकए गए कर को शाष्टमल नहीं ष्टकया जाता है जबष्टक कोइ
ऄनदु ान प्राप्त हो तो ईसे शाष्टमल ष्टकया जाता है।
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बाजार लागत (MARKET COST)
बाजार लागत वह मल्ू य है क्तजसे एक उपभोिा द्वारा क्तकसी वस्तु एवां सेवा को खरीदते समय क्तकसी क्तविे ता
को अदा करता है।
बाजार लागत वस्तु एवं सेवा की साधन लागत पर ऄप्रत्यक्ष कर जोड़ने के बाद ष्टनकाली जाती
है।
सरकार िारा दी गइ ऄनुदान को साधन लागत में से घिाकर बाजार लागत की गणना की जाती
है।
ष्टस्थर कीमतों पर राष्ट्रीय अय को वास्तष्टवक राष्ट्रीय अय कहा जाता है।
ष्टकसी देश के अष्टथथक ष्टवकास का सही सूचक ष्टस्थर कीमत पर राष्ट्रीय अय है।
क्तकसी भी देश की राष्ट्रीय अय में ष्टनम्न को शाष्टमल नहीं ष्टकया जाता है
A. मध्यवती वस्तुओ ं के मूल्य को
B. पुरानी वस्तुओ ं के मूल्य को
C. घरेलू सेवाओ ं ऄथवा कायथ को ष्टवत्तीय पररसंपष्टत्तयों जैसे ऄंशपत्र ऊण पत्र अष्टद के िय
ष्टविय को
D. हस्तांतरण पेंशन वजीफा भुगतान को
E. ष्टवदेशों से प्राप्त ईपहार।
राष्ट्रीय आय की गणना के क्तलए उत्पाद पिक्तत और आय पिक्तत दोनों का सहारा क्तलया जाता है।
राष्ट्रीय आय की माप-करने के क्तलए अनेक धारणाओ ां का प्रयोग क्तकया जाता हैं क्तजसमें से महत्वपूणथ
ऄवधारणाएं क्तनम्नक्तलक्तखत हैं-
सकल राष्ट्रीय ईत्पादन (G.N.P) :-
क्तकसी देश में एक वषच के भीतर उस देश के नागररकों िारा ईत्पाष्टदत समस्त ऄष्टन्तम वस्तुओ ं एवं
ु अय भी शाष्टमल हो, सकल राष्ट्रीय
सेवाओ ं में मौष्टरक मूल्य ष्टजसमें ष्टवदेशों से ष्टमलने वाली शद्ध
उत्पादन कहलाती हैं।
GNP = C+I +G+ (X-M)
यहााँ C= ईपभोिा वस्तुओ ं एवं सेवाओ ं को
I= घरेलू ष्टनवेश
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G= सरकारी व्यय
(X-M) = शुद्ध ष्टवदेशी अय के ष्टनयाथतों एवं अयातों के ऄन्तर को
शुद्ध राष्ट्रीय ईत्पाद (NET NATIONAL PRODUCT) (NNP)
इसकी गणना के क्तलए सकल राष्ट्रीय ईत्पाद में से मूल्य ह्रास (ष्टघसावि व्यय) को घिा देते हैं।
NNP = GNP- मूल्य ह्रास
GNP = NNP + मूल्य ह्रास
इसके अन्तगचत क्तकसी देश की सीमा के भीतर एक वषच के दौरान उत्पाक्तदत समस्त वस्तओ
ु ां एवां
सेवाओ ां के बाजार या मौक्तद्रक मल्ू य को शाक्तमल क्तकया जाता है।
GDP = GNP – ष्टवदेशो से प्राप्त शद्ध ु अय
GNP = GDP + ष्टवदेशों से प्राप्त शद्ध ु अय
GDP के अन्तगचत मजदरू ी और वेतन लगान एवां क्तकराया व्याज लाभ एवां लाभाांस अक्तवतररत कम्पनी काम,
क्तमक्तश्रत आय इत्याक्तद को शाक्तमल क्तकया जाता है।
सकल घरे लू उत्पादन में से मल्ू य ह्नास (क्तघसावि व्यय) को घिा देते हैं।
NDP = GDP- मूल्य ह्नास
GDP = NDP मूल्य ह्नास
प्रक्तत व्यक्ति आय क्तकसी वषच देश की औसत आय होती है। इसकी गणना के क्तलये देश की राष्ट्रीय आय में उस
वषच की जनसख्ां या से भाग दे देते हैंI
प्रष्टत व्यष्टि अय ष्टकसी ष्टनष्टित वषथ से सम्बष्टन्धत होती है।
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वैयष्टिक अय (P.I.) यह देशवाक्तसयों को वास्तव में प्राप्त होने वाली आय हैं क्तजसे क्तनम्न सत्रू से प्राप्त करते
हैं
वैयष्टिक अय = राष्ट्रीय अय - ष्टनगमों को ष्टवतररत लाभांश - ष्टनगम कर - सामाष्टजक सुरक्षा
योजना के ष्टलए ष्टकए गए भुगतान + सरकारी हस्तांतरण भुगतान + व्यापाररक हस्तांतरण भुगतान
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3. अष्टथथक अयोजन
भारत में अष्टथथक अयोजन संबंधी प्रस्ताव सवथप्रथम सन 1934 में ष्टविेिरैया की पुस्तक ‗पलांड
आकोनामी फॉर आष्टं डया‘ में आई थी।
1938 में भारतीय राष्ट्रीय काांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू की ऄध्यक्षता में राष्ट्रीय ष्टनयोजन सष्टमष्टत का
गिन क्तकया।
1944 ई. में बम्बइ के 8 ईद्योगपष्टतयों िारा बम्बे पलान प्रस्ततु क्तकया गया।
बम्बे प्लान 15 वषीय पत्रु वध योजना थे बम्बे पलान के सूत्रधार सर अदेष्टशर दलाल थे।
1944 ई. में भारत सरकार ने ष्टनयोजन एवं ष्टवकास ष्टवभाग नामक नया ष्टवभाग खोला।
इसी वषच िीमन्नारायण ने गांधीवादी योजना बनाई।
1945 में श्री एमएन राय ने जन योजना बनाई।
1950 ई. में जयप्रकाश नारायण ने सवोदय योजना प्रकाष्टशत की।
प्रथम योजना अयोग के ऄध्यक्ष प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं ईपाध्यक्ष गुलजारीलाल नंदा
थे
15 ऄगस्त 2014 इ. को योजना अयोग को समाप्त कर ष्टदया गया।
भारत में अब तक 12 पांर्वषीय योजनाएां लागू की जा र्क ु ी है।
प्रथम पंचवषीय योजना (1951-56):
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इस योजना की लक्तक्षत क्तवकास दर 4.5% और वास्तक्तवक क्तवकास दर 4.27% थी।
क्तद्वतीय पर्
ां वषीय योजना का ईद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना था।
तीसरी पंचवषीय योजना (1961-66):
चौथी पच
ं वषीय योजना (1969-74):
इस योजना के तहत के रोजगार को बढ़ावा, मद्रु ास्फीक्तत की जाांर्, गरीबी ईन्मूलन (गरीबी हिाओ) और
न्याय पर ज़ोर क्तदया।
योजना का मसौदा प्रमुख राजनष्टयक ―डी.पी.धर‖ िारा तैयार क्तकया गया था।
यह कृ क्तष उत्पादन और रक्षा में अत्मष्टनभथरता पर कें ष्टरत था।
भारतीय राष्ट्रीय राजमागथ प्रणाली की शुरूअत की गयी।
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―न्यूनतम अवश्यकता कायथिम‖ लॉन्च क्तकया गया।
जनता पािी के सरकार में आते ही इस योजना को र्ौथे वषच में ही समाप्त कर क्तदया गया याक्तन क्तक 1978 में।
इसकी लक्तक्षत वृक्ति दर 4.4% थी और वास्तक्तवक वृक्ति 4.4% थी।
रोष्टलंग पलान (1978-80):
जनता पािी सरकार ने पांचवीं पंचवषीय योजना को खाररज कर क्तदया और नई छठी पांर्वषीय योजना(1978-
1983) पेश की।
इसके बाद राष्ट्रीय काांग्रेस सरकार ने 1980 में सिा में आने के बाद इस योजना को क्तफर से खाररज कर क्तदया और
एक नई छठी योजना बनाई।
पहली वाली योजना रोक्तलांग योजना के नाम से जानी जाती थी।
रोष्टलंग पलान की ऄवधारणा ―गुन्नार ष्टमडथल‖ द्वारा बनाई गयी थी।
छिी पच
ं वषीय योजना (1980-85):
इस पांर्वषीय योजना का मुख्य ईद्देश्य अष्टथथक व ऄनाज की ईत्पादकता में वृष्टद्ध के साथ-साथ
रोजगार के ऄवसर पैदा करना था।
इस योजना के तहत 1989 में जवाहर रोजगार योजना लॉन्च की गयी।
यह योजना सफल रही तथा इसका लक्तक्षत वृक्ति दर 5.0% और वास्तक्तवक वृक्ति दर 6.01% थी।
वाष्टषथक योजनाएं (1989-91और 1991-92):
राजनीक्ततक अक्तस्थरता के कारण इस अवक्तध के दौरान कोई पाांर् वषीय योजना लागू नहीं की गयी थी।
1990 और 1992 के बीर् अवक्तध के ष्टलए ष्टसफथ वाष्टषथक योजनाएं ही लागू की गयी थी।
1991 में भारत को ष्टवदेशी मुरा भंडार के संकि का सामना करना पड़ा, उस वि के वल 1 अरब
अमेररकी डॉलर के भडां ार देश के पास बर्े थे।
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उस समय डॉ.मनोमहन ष्टसंह ने मुि बाजार सुधार को लॉन्च ष्टकया, क्तजसने लगभग राष्ट्र को क्तदवाक्तलया
होने के कगार से वापस ले आया।
यहीं से भारत में ष्टनजीकरण और ईदारीकरण की शरू
ु अत हुई।
अिवीं पंचवषीय योजना (1992-97):
इस पांर्वषीय योजना ने पयाथप्त रोजगार के ऄवसर पैदा करने, गरीबी कम करने, कृष्टष ईत्पादकता में
बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ग्रामीण ष्टवकास को प्राथष्टमकता दी।
इसके अलावा न्याय व समानता के साथ क्तवकास पर भी जोर क्तदया गया।
क्तस्थर कीमतों के माध्यम से अथचव्यवस्था की क्तवकास दर में तेजी लाई गयी।
सभी लोगों को भोजन व पोषण सरु क्षा सक्तु नक्तित करना। जनसख्ां या पर क्तनयत्रां ण करना।
इस योजना की लक्तक्षत वृक्ति दर 6.5% व वास्तक्तवक वृक्ति दर 5.40% थी।
दसवी पच
ं वषीय योजना (2002-07):
दसवीं पांर्वषीय योजना (2002- 07) में जीडीपी वृक्ति दर 7.7 प्रक्ततशत रही.
इस योजना का ईद्देश्य ―देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना‖ तथा ―ऄगले दस वषों में प्रष्टत
व्यष्टि अय दोगुनी करना‖ था.
योजना के दौरान प्रक्ततवषच 7-5 अरब डालर के प्रत्यक्ष क्तवदेशी क्तनवेश का लक्ष्य रखा गया.
योजना अवक्तध में पाांर् करोड़ रोजगार अवसर सृजन सक्तहत साक्षरता, क्तशशु मृत्य-दर, वन क्तवकास के बड़े लक्तक्ष्य
रखे गए.
दसवीं पर्ां वषीय योजना को इस क्तलहाज से भी उल्लेक्तीखनीय माना जा सकता है क्तक भारत उच्र्क
(सात प्रक्ततशत
से अक्तधक) वृक्ति दर यानी ग्रोथ रे ि की पिरी पर आ गया.
इस योजना में 7.7 प्रष्टतशत की औसत सालाना वृष्टद्ध दर ऄब तक ष्टकसी योजना में ―सवोच्च वृष्टद्ध
दर‖ थी.
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लक्तक्षत वृक्ति दर 8.1% थी और वास्तक्तवक वृक्ति दर 7.3% थी।
ग्यारहवीं पच
ं वषीय योजना (2007-12):
इस योजना का मख्ु य लक्ष्य सकल घरे लू उत्पाद वृक्ति दर को 8% से बढ़ाकर 10% तक करना था तथा 12 वीं
योजना में इसे 10% बनाए रखना था ताक्तक 2016 तक प्रक्तत व्यक्ति आय दोगनु ी हो सके ।
राजीव GANDHI स्वास््य योजना शरू
ु की गई।
70 लाख नए रोजगार के नए अवसर पैदा क्तकए गए।
क्तशक्तक्षत बेरोजगारी को 5% से कम करना था।
इस पंचवषीय योजना का ईद्देश्य तेजी से, अक्तधक समावेशी और सतत क्तवकास के उद्देश्य के साथ 8.2%
की वृक्ति हाक्तसल करना था।
इसका ईद्देश्य कृष्टष में 4 प्रष्टतशत की वृष्टद्ध हाष्टसल करना और गरीबी को 10 प्रक्ततशत तक कम करना
करना था।
स्वास््य, क्तशक्षा और कौशल क्तवकास, पयाचवरण और प्राकृ क्ततक सांसाधन और आधारभतू सांरर्ना क्तवकास इस
योजना का मख्ु य कें द्र थे।
कें द्र सरकार ने योजना अयोग के प्रष्टतस्थापन के रुप में 1 जनवरी 2015 को नीष्टत अयोग(नेशनल
आस्ं िीि्यूि फॉर रांसफारष्टमंग आष्टं डया) की स्थापना की।
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नीक्तत आयोग, योजना आयोग के क्तवपरीत एक ष्टथंक िैंक या फोरम की तरह कायथ करे गा, ष्टजसने पांच
साल की योजनाओ ं को लागू ष्टकया है और अष्टथथक लक्ष्य ष्टनधाथररत करने के ष्टलए संसाधनों को
अवंष्टित करेगा।
नीष्टत अयोग के पररषद में भारत के 29 राज्यों और सात कें र शाष्टसत प्रदेशों के मुख्य कायथकारी
ऄष्टधकारी- एक ष्टडपिी चेयरमैन, ष्टवशेषज्ञों की िीम होगी
जो सीधे प्रधान मंत्री से संपकथ करे गी। जो नीष्टत अयोग के ऄध्यक्ष हैं।
योजना अयोग,नीष्टत अयोग के ष्टवपरीत, राष्ट्रीय ष्टवकास पररषद को ररपोिच करता था।
नीक्तत आयोग व योजना आयोग में सबसे बड़ा अतां र यह है क्तक योजना आयोग प्रत्येक राज्य के बीर् सामान्य
दृक्तष्टकोण था व सभी शक्तियाां कें द्रीकृ त थी, नीक्तत आयोग ने जमीनी स्तर पर कायच करने का क्तनणचय क्तलया व
वहीं राज्यों की भागीदरी भी बढ़ाई।
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4. ग़रीबी
गरीबी को एक ऐसे हालात के रूप में देखा जाता है ष्टजसमें व्यष्टि के पास जीवन ष्टनवाथह के ष्टलये
बष्टु नयादी ज़रूरतें मसलन रोिी, कपड़ा और मकान भी नहीं होती हैं। आस हालत को चरम गरीबी भी कहा
जाता है।
एमडीजी (mellinium development goal) के मुताष्टबक़, जो लोग एक ष्टदन में $1.25 से कम
गरीबी रे खा भारत में गरीबी के अकलन के ष्टलये एक बेंचमाकथ की तरह काम करती है। गरीबी रे खा
आय के उस न्यनू तम स्तर को कहते हैं क्तजससे कम आमदनी होने पे इसां ान अपनी बक्तु नयादी ज़रूरतों को परू ा
करने में असमथच होता है। भारत में समय-समय पर इस ग़रीबी रे खा को तय क्तकया जाता है।
साल 2014 में, ग्रामीण आलाकों में 32 रुपए प्रष्टतष्टदन और कस्बों/शहरों में 47 रुपए प्रष्टतष्टदन के क्तहसाब
से गरीबी रे खा तय की गई थी।
ग़रीबी रे खा को लेकर अलग-अलग सक्तमक्ततयों की अलग अलग राय है।
तेंदुलकर फॉम्यथुले में 22 फीसदी अबादी को गरीब बताया गया था जबष्टक सी. रंगराजन फॉम्यथुले ने
29.5 फीसदी अबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था।
ग़रीब कौन हैं और क्तकतने हैं - यहीं स्पष्ट नहीं है।
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नीष्टत अयोग भारत सरकार की आक्तधकाररक एजेंसी है, जो राज्यों में और परू े देश के ष्टलए समग्र रूप से
गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का अकलन करने का काम करती है।
1. ऄलघ सष्टमष्टत (1979)
जनसंख्या ष्टवस्फोि
सीष्टमत संसाधन
सम्बष्टं धत सस्
ं थाओ ं की ऄक्षमता
भ्रिाचार
ऄष्टशक्षा
ग़ल ु ामी का ऄसर
ऄसल कारण
लोग ग़रीब इसक्तलए हैं क्योंक्तक उन्हें क्तवकल्प र्नु ने की परू ी आक्तथचक आज़ादी नहीं है।
हमारे यहाँ ग़रीबी की असल प्रकृ क्तत क्या है, इसी की समझ नहीं है।
ग़रीबी राजनीक्तत का मद्दु ा बनकर रह गई है। कोई भी राजनीक्ततक पािी इस 'मद्दु 'े को परू ी तरह ख़त्म नहीं
करना र्ाहती।
उदासीन राजनीक्ततक और सामाक्तजक ढाँर्े मसलन जाक्तत और धमच के बांधन।
सांसाधनों का परू ी तरह से दोहन न हो पाना।
कृ क्तष में कम उत्पादकता।
कुछ योजनाओ ं पर एक नज़र –
प्रधानमंत्री जन धन योजना: इस योजना के तहत आक्तथचक रूप से वक्तां र्त लोगों को तमाम क्तविीय
सेवाएँ महु य्ै या कराई जाती हैं। इसमें बर्त खाता, बीमा, ज़रुरत के मतु ाक्तबक़ क़ज़च और पेंशन जैसी
सेवाएँ शाक्तमल हैं।
ष्टकसान ष्टवकास पत्र योजना: एक तरह का प्रमाण पत्र होता है, क्तजसे कोई भी व्यक्ति खरीद सकता
है। इसे बॉन्ड की तरह प्रमाण पत्र के रूप में जारी क्तकया जाता है। इस पर एक तय शुदा ब्याज
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क्तमलती है। इसके ज़ररए क्तकसान 1000, 5000 तथा 10,000 रुपए मल्ू यवगच में क्तनवेश कर सकते हैं।
इससे जमाकत्ताथओ ं का धन क़रीब 100 महीनों में दोगुना हो सकता है।
दीन दयाल ईपाध्याय ग्राम ज्योष्टत योजना: ये योजना ग्रामीण क्षेत्रों को क्तबजली की क्तनरांतर
आपक्तू तच देने के क्तलए शरू
ु क्तकया गया है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंिी ऄष्टधष्टनयम 2005: इस योजना के तहत देश भर
के गाँवों में लोगों को 100 क्तदनों के काम की गारांिी दी गई है। ग्रामीण इलाक़ों में ग़रीबी कम करने में
ये योजना काफी मददगार साक्तबत हुई है।
नरे गा की शरुु आत 2 फरवरी 2006 को आध्रां प्रदेश के बादां ावली क्तजले के अनतां परु गावां से हुआ।
2 अक्िूबर 2009 को इसका नाम पररवक्ततचत करके मनरे गा महात्मा गाांधी रोजगार गारांिी योजना कर
क्तदया गया।
इसके नीक्तत क्तनमाचता ज्याां द्रेज बेक्तल्जयम के अथचशास्त्री है।
इस योजना के तहत कें द्र तथा राज्य सरकारों के मध्य 90:10 के अनपु ात में क्तविीय सहयोग दी जाती
है
मनरे गा ग्रामीण गरीबों को सरां क्तक्षत करने की क्तदशा में प्रायोक्तजत क्तत्रक्तवधा मनरे गा खाद्य सरु क्षा तथा
ग्रामीण स्वास््य क्तमशन में से एक है।
प्रधानमंत्री अवास योजना: इस योजना का उद्देश्य 2022 तक सभी को घर उपलब्ध करना है। इस
के क्तलए सरकार 20 लाख घरो का क्तनमाचण करवाएगी, क्तजसमें 65% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना: इस योजना के तहत गरीबी रे खा से नीर्े की क्तजदां गी बसर करने
वाले पररवार की गभचवती मक्तहलाओ ां को लाभ के रूप में एकमश्ु त राक्तश प्रदान की जाती है।
स्वच्छ भारत ऄष्टभयान: इस अक्तभयान के तहत 2019 तक यानी महात्मा गाांधी की 150वीं जयांती
तक भारत को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य क्तकया गया है।
प्रधानमंत्री मुरा योजना: इस योजना का मख्ु य उद्देश्य था पढ़े-क्तलखे नौजवानों को रोजगार प्रदान
करना।
अयुष्ट्मान भारत: इस योजना के ज़ररए 10 करोड़ से ज्यादा पररवारों के लगभग 50 करोड़ लोगों
को मफ्ु त इलाज क्तमल सके गा।
प्रधानमंत्री ष्टकसान सम्मान ष्टनष्टध: पीएम क्तकसान योजना के तहत क्तकसानों को 3 क्तकश्त में 6 हजार
रुपए की रकम दी जाती है।
ऄन्नपूणाथ योजना इस योजना का प्रारांभ 2 अक्िूबर 2000 को उिर प्रदेश के गाष्टजयाबाद ष्टजले
के ष्टसखोड़ा ग्राम से हुआ
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ऄष्टधष्टनयम 2013 यह अक्तधक्तनयम 12 क्तसतांबर 2013 से प्रभावी हुआ।
इसका मख्ु य उद्देश्य लोगों को पयाचप्त मात्रा में गणु विापणू च खाद की उक्तर्त मल्ू य पर आपक्तू तच करना है।
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इसके अतां गचत लाभ प्राप्त कताच को 5 क्तकलो र्ावल, गेहां या मोिे अनाज िमश 3,2 तथा 1 रुपए प्रक्तत
क्तकलोग्राम प्राप्त करने का काननू ी अक्तधकार प्राप्त है।
साल 2017 में नीक्तत आयोग ने गरीबी दरू करने को लेकर एक 'क्तवज़न डॉक्यमू िें ' पेश क्तकया था। इसमें
2032 तक गरीबी दरू करने की योजना तय की गई थी। आयोग के मतु ाक्तबक़ -
देश में गरीबों की सही तादाद का पता लगाया जाए। और लागू की जाने वाली योजनाओ ां की मॉनीिररांग या
क्तनरीक्षण व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए।
आयोग द्वारा गक्तठत एक सक्तमक्तत ने अपनी ररपोिच में कहा क्तक सामाक्तजक-आक्तथचक जाक्ततगत जनगणना को
आधार बनाकर देश में गरीबों के तादाद का आकलन क्तकया जाना र्ाक्तहए।
आयोग ने गरीबी दरू करने के क्तलये दो क्षेत्रों पर ध्यान देने का सझु ाव क्तदया-पहला योजनाएँ और दसू रा
MSME और कृ क्तष।
देश के कुल वकच फोसच का 65 प्रक्ततशत क्तहस्सा महज़ MSME और कृ क्तष क्षेत्र में काम करता है। वकच फोसच का
यह क्तहस्सा काफी गरीब है और गरीबी में जीवन यापन कर रहा है। यक्तद इन्हें सांसाधन महु यै ा कराए जाएँ,
इनकी आय दोगनु ी हो जाए और मागां आधाररत क्तवकास पर ध्यान क्तदया जाए तो शायद देश से गरीबी ख़त्म
हो सकती है।
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5. बेरोजगारी
यक्तद क्तकसी सक्षम व्यष्टि को मांगने पर रोजगार नहीं ष्टमलता है तो आस ष्टस्थष्टत को बेरोजगारी कहा
जाता है. इसका यह अथच हुआ क्तक ऄनैष्टच्छक बेरोजगारी, बेरोजगारी है
यक्तद कोई व्यष्टि रोजगार की तलाश में नहीं है तो उसे बेरोजगारों की िेणी में सष्टम्मष्टलत नहीं क्तकया
जाएगा
सक्षमता के सांदभच में न्यनू तम रूप से लोगों की आयु को देखा जाता है उनकी अयु कायथशील ईम्र से
संबंष्टधत होना र्ाक्तहए, भारत में NSSO और ऄंतरराष्ट्रीय स्तर पर UNDP 15 से 59 वषथ को
कायथशील ईम्र मानता है
यक्तद क्तकसी राष्ट्र की जनसांख्या में कायचशील उम्र से सांबांक्तधत लोगों की प्रधानता होती है तो इस ष्टस्थष्टत को
डेमोग्राष्टफक ष्टडष्टवडेंड कहा जाता है.
भारत में यही क्तस्थक्तत है लेक्तकन कुशलता क्तवकास पर ध्यान नहीं देना रोजगार में कमी आक्तद के कारण इसका
ठीक से लाभ नहीं क्तमल पा रहा है.
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ईदाहरण के ष्टलए: भारत में स्कूिर का उत्पादन बदां हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस
नए क्तवकास के कारण स्कूिर के उत्पादन में लगे क्तमस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की माांग
बढ़ गयी है.
इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आक्तथचक सरां र्ना में पररवतचन के कारण पैदा होती है.
इस प्रकार की बेरोजगारी अथचव्यवस्था में र्िीय उतार-र्ढ़ाव के कारण पैदा होती है.
जब अथचव्यवस्था में समृक्ति का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं
और जब अथचव्यवस्था में मदां ी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरुरत
होती है क्तजसके कारण बेरोजगारी बढती है.
प्रष्टतरोधात्मक या घषथण जष्टनत बेरोजगारी (FRICTIONAL UNEMPLOYMENT):
ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर क्तकसी दसू रे रोजगार में जाता है, तो दोनों रोजगारों के बीर् की
ऄवष्टध में वह बेरोजगार हो सकता है, या
ऐसा हो सकता है क्तक नयी िेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार से क्तनकलकर या
क्तनकाल क्तदए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो , तो
परु ानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवक्तध की बेरोजगारी को घषचणजक्तनत बेरोजगारी कहते
हैं.
बेरोजगारी के ऄन्य प्रकार आस प्रकार हैं
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इसके अलावा कुछ ऐसे बेरोजगार भी होते हैं क्तजनको मजदरू ी भी ठीक क्तमल सकती है लेक्तकन क्तफर भी ये लोग
काम नही करना चाहते हैं जैसे: ष्टभखारी, साधू और ऄमीर बाप के बेिे आत्याष्टद.
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कायथिम: क्तवक्तनमाचण क्षेत्र के क्तलये 25 लाख रुपए एवां सेवा क्षेत्र के क्तलये
10 लाख रुपए की िे क्तडि या ऋण सीमा प्रदान की गई है।
कौशल ष्टवकास कायथिम: इसके तहत 2022 तक 500 क्तमक्तलयन कुशल काक्तमक च तैयार करने का
लक्ष्य है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंिी कानून 2005 (मनरेगा): यह क्तकसी क्तविीय वषच में
प्रत्येक ग्रामीण पररवार के सभी वयस्क सदस्य, जो अकुशल श्रम के क्तलये तैयार हो, के क्तलये 100 क्तदनों
के रोजगार की गारांिी प्रदान करता है। लाभाक्तथचयों में कम-से-कम 33 प्रक्ततशत मक्तहलाएँ होनी र्ाक्तहये।
मेक आन आष्टं डया: औद्योक्तगक इकाइयों के क्तवकास हेतु इसे लाया गया, क्तजसका बल व्यापार सगु मता,
सरल लाइसेंक्तसांग, तकनीकों का बेहतर प्रयोग आक्तद पर है।
दीनदयाल ईपाध्याय ―िमेव जयते‖ कायथिम: यह श्रम सक्तु वधा पोिचल, आकक्तस्मक क्तनरीक्षण,
यक्तू नवसचल खाता सांख्या, प्रक्तशक्षु प्रोत्साहन योजना, पनु गचक्तठत राष्ट्रीय स्वास््य बीमा योजना सांबांधी
क्तवषयों पर कें क्तद्रत है।
प्रधानमंत्री युवा योजना: 2016 से 2021 तक की अवक्तध में 7 लाख से अक्तधक प्रक्तशक्षओ ु ां को
उद्यमशीलता प्रक्तशक्षण और क्तशक्षा उपलब्ध कराना।
के न्द्र सरकार ने उद्योगों की माँग के अनरू ु प श्रम बल को क्तवकक्तसत करने के क्तलए साल 2015 में
ष्टस्कल आष्टं डया प्रोग्राम की शरू ु आत की।
देश में अक्तधक से अक्तधक रोजगार के अवसर क्तवकक्तसत करने के क्तलए ―स्िैण्डऄप तथा स्िािथ ऄप
आष्टं डया प्रोग्राम‖की शरू ु आत की गयी है।
के न्द्र सरकार ने औद्योक्तगक इकाइयों के क्तवकास के क्तलए ―मेक आन आष्टं डया‖कायथिम शुरू क्तकया है
क्तजसके द्वारा व्यापार सगु मता, सरल लाइसेंक्तसांग, तकनीकों का बेहतर प्रयोग आक्तद पर बल क्तदया जा रहा
है।
स्वयां का व्यवसाय शरू ु करने हेतु सरकार मुरा योजना के तहत सूक्ष्म ऊण ईपलब्ध करा रही है।
देश के लॉक्तजक्तस्िक क्षेत्र, श्रम सधु ार, क्तसांगल क्तवडां ो क्तसस्िम, ऊजाच उपलब्धता इत्याक्तद में सधु ार करके
सरकार ने सन् 2016 से लगातार क्तवश्व बैंक के ईज ऑफ डूईगां क्तबजनेस इडां ेक्स में अपनी रैं क को बेहतर
बनाया है।
सरकार द्वारा श्रम बल में मक्तहलाओ ां की भागीदारी बढ़ाने के क्तलए स्वयां सहायता समहू ों का क्तवकास
क्तकया जा रहा है और उन्हें सस्ती दरों पर क़ज़च उपलब्ध कराया जा रहा है।
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इसी तरह सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण अजीष्टवका ष्टमशन िारा ग्रामीण पररवार की कम से कम एक
मष्टहला सदस्य को स्वयं सहायता नेिवकथ समूह में लाया जा रहा है।
ग़ौरतलब है क्तक जम्मू कश्मीर के युवाओ ं के ष्टलये ―ष्टहमायत‖तथा वामपथ ं ी ईग्रवाद से प्रभाष्टवत
युवाओ ं के ष्टलये ―रोशनी‖योजना शरूु की गई है। क्तजससे क्तक वहाँ के यवु ाओ ां को रोजगार क्तमल सके ।
गरीबी तथा बेरोजगारी ईन्मूलन से संबंष्टधत योजनाएं तथा ईनके प्रारंभ वषथ
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दीनदयाल ईपाध्याय ऄंत्योदय योजना 25 ष्टसतंबर 2014
स्वच्छ भारत ष्टमशन 2 ऄक्िूबर 2014
सांसद अदशथ ग्राम योजना 11 ऄक्िूबर 2014
िमेव जयते 16 ऄक्िूबर 2014
ष्टमशन आरं धनुष (िीकाकरण) 25 ष्टदसंबर 2014
नीष्टत अयोग 1 जनवरी 2015
रृदय (समृद्ध सांस्कृष्टतक सरं क्षण व कायाकल्प) 21 जनवरी 2015
बेिी बचाओ बेिी पढ़ाओ 22 जनवरी 2015
सुकन्या समृष्टद्ध योजना 22 जनवरी 2015
मृदा स्वास््य काडथ 19 फरवरी 2015
प्रधानमंत्री कौशल ष्टवकास 20 फरवरी 2015
जननी सरु क्षा योजना 12 ऄप्रैल 2015
प्रधानमंत्री जीवन ज्योष्टत बीमा योजना 9 मइ 2015
प्रधानमंत्री सरु क्षा बीमा योजना 9 मइ 2015
ऄिल पेंशन योजना 9 मइ 2015
ईस्ताद (ऄल्पसंख्यक कारीगर) 14 मइ 2015
कायाकल्प (जन स्वास््य) 15 मइ 2015
हाईष्टसंग फॉर ऑल 25 जून 2015
ऄिल ष्टमशन फॉर ररजूवनेशन एडं ऄबथन रांसफॉरमेशन (ऄमूतथ) 25 जून 2015
स्मािथ ष्टसिी ष्टमशन 25 जून 2015
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6. नइ अष्टथथक नीष्टत
नई आक्तथचक नीक्तत का उद्देश्य उत्पाक्तदता में सधु ार नई तकनीक को आत्मसात करना तथा समग्र रूप से
क्षमता के पणू तच ः प्रयोग से है।
नई आक्तथचक सधु ार की रूपरेखा सवथप्रथम राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में सन 1985 में शुरू
की गई ।
नई आक्तथचक सधु ार की दूसरी लहर पीवी नरष्टसम्हा राव की सरकार के काल में 1991 में आई।
नई आक्तथचक सधु ार नीक्तत को शुरू करने का प्रमुख कारण खाड़ी युद्ध तथा भारत के भुगतान संतुलन
की समस्या थी।
नइ अष्टथथक नीष्टत के तीन प्रमुख अयाम थे
ष्टनजीकरण, ईदारीकरण और ष्टविव्यापीकरण।
मौक्तद्रक नीक्तत 1991 के तहत क्तस्फक्ततकारी दबाव के क्तलए प्रक्ततबांधात्मक उपाय क्तकए गए।
औद्योष्टगक सुधार नीष्टत 1991 के ऄधीन ष्टजन ईपायों को लागू ष्टकया गया वह हैं
1. 18 ईद्योगो की सूची को छोड़ ऄन्य सभी ईद्योगों के ष्टलए लाआसेंस हिा ष्टदए गए।
2. सावथजष्टनक क्षेत्र के ष्टलए अरष्टक्षत ष्टियाओ ं का दायरा सीष्टमत कर ष्टदया गया तथा ष्टनजी क्षेत्र
को ऄनुमष्टत दी गइ।
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3. व्यापार नीष्टत 1991 के तहत ऄथथव्यवस्था के ऄंतर राष्ट्रीय एकीकरण को पूणथ करने हेतु ईद्योगों
को प्राप्त ऄत्यष्टधक व ष्टववेकपूणथ संरक्षण धीरे-धीरे समाप्त करने की ष्टदशा में कदम ईिाए गए।
आरक्तक्षत उद्योगों की सांख्या घिाकर आठ कर दी गई (वतचमान में के वल 2 उद्योग)।
जीणच उद्योगों के पनु रुत्थान का कायच औद्योक्तगक एवां क्तविीय पनु क्तनचमाचण बोडच को सौंप क्तदया गया
सावचजक्तनक उद्यमों के क्तनष्ट्पादन में उन्नक्तत के क्तलए उद्यमों की बोध ज्ञापन के माध्यम से मजबतू क्तकया गया।
क्तवदेशी पांजू ी के क्तनवेश को बढ़ाया गया।
नवरत्न वैसी कांपक्तनयाां हैं जो क्तवश्वस्तरीय कांपक्तनयों के रूप में उभर रहे हैं तथा क्तजसे सरकार ने प्रोत्साक्तहत
करने के उद्देश्य से पणू च स्वायिता प्रदान की है।
ऐसी कुल 23 कांपक्तनयाां है क्तजसमें आठ कांपक्तनयों को महारत्न का दजाच क्तदया गया है।
िे ष्टडि रेष्टिंग एजेंसी क्या होती है?
िे क्तडि रे क्तिांग के ज़ररये क्तकसी भी सस्ां था की कजच लेने या उसे र्क ु ाने की क्षमता का मल्ू याकां न क्तकया जाता
है।
िे क्तडि रे क्तिांग एजेंक्तसयाां परोक्ष रूप से यह बतातीं है क्तक कोई भी सांस्था आक्तथचक रूप से क्तकतना मजबतू है
और उसको कजच देना क्तकतना जोक्तखम भरा होगा।
रे क्तिांग करते वक़्त ये एजेंक्तसयाां कांपक्तनयों के क्तविीय उत्पादों मसलन बाडां , सावक्तध जमा खाता और कुछ
अन्य छोिी अवक्तध के ऋण दस्तावेजों का आकलन करती हैं।
मौजदू ा वक़्त में भारत में 4 प्रमुख िे ष्टडि रेष्टिंग एजेंष्टसयां काम कर रही हैं। इनमें
1. ष्टिष्टसल (CRISIL),
2. आिा (ICRA),
3. के ऄर (CARE) और
इसी तरह अतां रराष्ट्रीय स्तर पर भी कई िे क्तडि रे क्तिांग एजेंक्तसयाां काम कर रही हैं।
इस समय रे क्तिांग की दुष्टनया में तीन बड़े नाम हैं –
1. स्िै ण्डडथ एड ं पूऄर,
2. मूडीज़ और
3. ष्टफ़च।
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ष्टवत्तीय ष्टस्थरता और ष्टवकास पररषद (FSDC)
इसका गठन क्तदसांबर 2010 में क्तकया गया था।
आसकी ऄध्यक्षता कें रीय ष्टवत्त मंत्री द्वारा की जाती है।
आसके सदस्यों में शाष्टमल होते हैं:
1. भारतीय ररज़वथ बैंक के गवनथर,
2. ष्टवत्त सष्टचव,
6. ष्टवत्त मंत्रालय,
7. सेबी के ऄध्यक्ष,
8. आरडा के ऄध्यक्ष,
9. पी.एफ.अर.डी.ए. के ऄध्यक्ष
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7.भारतीय ष्टवत्त व्यवस्था
भारतीय ष्टवत्त व्यवस्था से तात्पयथ ऐसी व्यवस्था से है इसमें व्यक्तियों, क्तविीय सांस्थाओ,ां बैंक में
औद्योक्तगक कांपक्तनयों तथा सरकार द्वारा क्तवि की माांग होती है तथा इसकी पक्तू तच की जाती है।
भारतीय ष्टवत्त व्यवस्था के दो पक्ष में पहला माांग पक्ष दसू रा पक्तू तच पक्ष।
भारतीय ष्टवत्त व्यवस्था को दो भागों में बांिा गया है
भारतीय मुरा बाजार
1.
2. भारतीय पज ूं ी बाजार।
भारतीय मुरा बाजार को तीन भागों में बांिा गया है
1. ऄसंगष्टित क्षेत्र
2. संगष्टित क्षेत्र में बैंष्टकंग क्षेत्र तथा
3. मुरा बाजार
ऄसग ं ष्टित क्षेत्र के अतां गचत देसी बैंक, साहूकार और महाजन अष्टद परंपरागत स्रोत आते हैं।ग्रामीण
तथा कृ क्तष साख में अब भी इसकी महत्वपणू च भक्तू मका होती है।
संगष्टित क्षेत्र में भारतीय ररजवथ बैंक शीषथ संस्था है तथा आसके ऄष्टतररि सावथजष्टनक क्षेत्र के बैंक ,
ष्टनजी क्षेत्र के बैंक, ष्टवदेशी बैंक तथा ऄन्य ष्टवत्तीय सस्ं थाएं अती है।
आरबीआई देश के मौक्तद्रक गक्ततक्तवक्तधयों के क्तनयमन का क्तनयांत्रण करता है।
सामान्य कें रीय बैंष्टकंग कायथ के ऄधीन भारतीय ररजवच बैंक के द्वारा क्तनम्नक्तलक्तखत कायच क्तकए जाते हैं
1. करेंसी का ष्टनगथमन
2. सरकारी बैंक का काम
3. बैंकों के बैंक का काम
4. ष्टवदेशी ष्टवष्टनयम को ष्टनयंष्टत्रत करना
5. साख ष्टनयंत्रण
6. अक ं ड़ों का सग्रं हण और प्रकाशन।
ष्टवकास संबंधी एवं प्रवतथन कायथ के ऄधीन भारतीय ररजवच बैंक के कायच क्तनम्नक्तलक्तखत हैं
1. मुरा बाजार पर प्रष्टतबंधात्मक ष्टनयंत्रण
2. बचतों को बैंकों व ऄन्य ष्टवत्तीय संस्थाओ ं के माध्यम से ईत्पादन के ष्टलए ईपलब्ध कराना
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3. लोगों में बैंष्टकंग की अदत बढ़ाने के ष्टलए प्रयास करना
बैंक्तकांग की आदत बढ़ाने के उद्देश्य से ही सन 1964 में भारतीय यूष्टनि रस्ि की स्थापना की गई।
सांस्थागत कृ क्तष साख की सक्तु वधाओ ां की व्यवस्था और क्तवस्तार ररजवच बैंक के एक अन्य महत्वपणू च
क्तजम्मेदारी है और इसी उद्देश्य के तहत 1963 इ. में कृष्टष पुनष्टवथत्त एवं ष्टवकास ष्टनगम की स्थापना की
गई।
बैंकों के ग्राहकों की क्तशकायतों का क्तनदान कराने के क्तलए बैंक्तकांग लोकपाल योजना भारत में ररजवथ बैंक में
14 जून 1995 इ. से लागू ष्टकया था।
भारतीय ररजवथ बैंक िारा साख पर ष्टनयंत्रण ष्टनम्नष्टलष्टखत तरीकों से क्तकया जाता है
1. बैंक दर नीष्टत िारा
2. खुले बाजार की ष्टियाओ ं िारा ―
3. बैंकों की नकद सबं ध ं ी अवश्यकताओ ं में पररवतथन करके
4. तरलता संबंधी वैधाष्टनक अवश्यकताओ ं को पूरा करके
5. ष्टवभेदक ब्याज दरों की प्रणाली ऄपनाकर
6. चयनात्मक साख ष्टनयंत्रण नीष्टत से
7. नैष्टतक प्रभाव की नीष्टत िारा
बैंष्टकंग क्षेत्र की प्रमुख ब्याज दरें और प्रचष्टलत शब्दावली
1. रेपो रेि – ऄल्पकालीन अवश्यकताओ ं की पूष्टतथ हेतु क्तजस ब्याज दर पर कमष्टशथयल बैंक ररजवथ बैंक
से नकदी ऊण प्राप्त करते हैं क्तडपॉक्तजि कहलाती है।
2. ररवसथ रेपो रेि – ऄल्पकाष्टलक ऄवष्टध के ष्टलए ररजवथ बैंक िारा कमष्टशथयल बैंकों से क्तजस ब्याज दर पर
नकदी प्राप्त की जाती है ररवसच रे पो रे ि कहलाती है।
सामान्यतः बाजार में मुरा की अपूष्टतथ बढ़ जाने पर उस में कमी लाने के उद्देश्य से ररजवथ बैंक िारा बढ़ी
हुइ ब्याज दरों पर कमष्टशथयल बैंकों को ऄल्पावष्टध के ष्टलए नकदी ररजवथ बैंक में जमा करने हेतु
प्रोत्साक्तहत क्तकया जाता है।
3. बैंक रेि – क्तजस सामान्य ब्याज दर पर ररजवथ बैंक िारा वाष्टणष्टज्यक बैंकों को पैसा ईधार ष्टदया जाता है
बैंक दर कहलाती है
इसके माध्यम से ररजवच बैंक द्वारा साख क्तनयांत्रण या िे क्तडि कांरोल क्तकया जाता है।
4. बचत बैंक दर – बैंक ग्राहकों की छोिी-छोिी बातों पर बैंक द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर को बर्त बैंक दर
कहा जाता है।
5. नकद अरक्षी ऄनपु ात (CRR) – क्तकसी वाष्टणष्टज्यक बैंक में कुल जमा राष्टश का वह (प्रक्ततशत) भाग
ष्टजसे ररजवथ बैंक के पास ऄष्टनवायथ रूप से जमा करना पड़ता है नकद आरक्षी अनपु ात कहा जाता है।
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इसकी दर क्तजतनी ऊांर्ी होती है बैंकों की साख सृजन क्षमता उतनी ही कम होती है।
6. वैधाष्टनक तरलता ऄनुपात (SLR) – क्तकसी भी वाक्तणक्तज्यक बैंक में कुल जमा राष्टश का वह (प्रक्ततशत)
भाग जो नकद स्वणथ या ष्टवदेशी मुरा के रूप में ईसे ऄपने पास ऄष्टनवायथ रूप से रखना पड़ता है
वैधाक्तनक तरलता अनपु ात कहलाता है।
बैंकों को क्तविीय सक ां ि का सामना करने हेतु ररजवच बैंक द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है।
7. प्राआम लेंष्टडगं रेि – क्तकसी भी बैंक के क्तलए प्राइम लेंक्तडांग रे ि वह ब्याज दर है ष्टजस पर बैंक ईस ग्राहक हो
ष्टजस के सबं ध ं में जोष्टखम शन्ू य है को देने को तैयार है।
8. अधार दर प्रणाली – आरबीआई ने PLR आधाररत उधार देय प्रणाली के स्थान पर जल ु ाई 2010 से
आधार दर प्रणाली लागू क्तकया कोई भी बैंक इससे नीर्ी ब्याज दर पर क्तकसी को उधार नहीं देगा।
अए।
ररजवच बैंक ऑफ इक्तां डया के गवनचर वाईवी रे ड्डी के कायचकाल के दौरान 2005 ष्टनगथष्टमत होने वाले नोिों
1 से अक्तधक के नोिों का क्तनगचमन ररजवच बैंक के द्वारा होता है तथा इन नोिों पर हस्ताक्षर ररजवच बैंक के
गवनचर के होते हैं।
भारतीय रुपया 1957 तक 16 आनो में क्तवभाक्तजत था और 1957 में मुरा की दशमलव प्रणाली अपनाई
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वतचमान में अरबीअइ 91 एवं 364 ष्टदन की रेजरी ष्टबल्स ष्टनगथष्टमत करता है इसकी न्यनू तम राक्तश
25000 तथा इसी गणु क में होती है।
भारत में रेजरी ष्टबल्स पहली बार 1917 में ष्टनगथत की गई।
एडहॉक रेजरी ष्टबल्स यह सरकार की अत्यतां ही अस्थाई फांड सबां धां ी आवश्यकता की पक्तू तच के क्तलए
क्तनगचक्तमत की जाती है।
यह ररजवथ बैंक के नाम से ष्टनगथष्टमत होती है भारत में इसकी शरुु अत 1955 में की गई थी लेक्तकन 1997
– 98 के बजि से इसे बांद कर क्तदया गया।
तरलता की दृष्टि से प्रष्टतभूष्टतयों एवं ऊणों का ऄनुिम
नकद > एडहॉक रेजरी ष्टबल्स > रेजरी ष्टबल्स > कॉल मनी।
पूंजी बाजार
पांजू ी बाजार मद्रु ा बाजार से इस बात में क्तभन्न है की मद्रु ा बाजार ऄल्पावष्टध की ष्टवत्तीय व्यवस्था का
बाजार है जबक्तक पूंजी बाजार में मध्यम तथा दीघथकाल के कोषों का आदान प्रदान क्तकया जाता है।
भारतीय पूंजी बाजार को मोिे तौर पर दो भागों में बािां ा जाता
1. ष्टगल्ि एज्ड बाजार
क्तगल्ि एज्ड बाजार में सरकारी और ऄधथ सरकारी प्रष्टतभूष्टतयों का मूल्य ष्टस्थर जाता है और इस क्षेत्र
की अन्य प्रक्ततभक्तू तयों के समान इन में अक्तस्थरता नहीं होती है।
औद्योष्टगक प्रष्टतभूष्टत बाजार में नए स्थाक्तपत होने वाले या पहले से स्थाक्तपत औद्योक्तगक उपिमों के शेयरों
और ष्टडवेंचरों का िय ष्टविय क्तकया जाता है।
पूंजी बाजार दो प्रकार के होते हैं
1. प्राथष्टमक पूंजी बाजार और
भारतीय यूष्टनि रस्ि भारत की सबसे बड़ी म्युचुऄल फंड संस्था है।
स्िॉक एक्सर्ेंज एक ऐसी व्यवस्था का बाजार है क्तजसमें छोिे ष्टनवेशक असानी से ष्टनवेश कर सकते हैं
तथा मौजूद प्रष्टतभूष्टतयों का असानी से िय ष्टविय कर सकते हैं।
भारतीय प्रक्ततभक्तू त एवां क्तवक्तनमय बोडच (सेबी) की स्थापना 12 ऄप्रैल 1988 को की गई।
यह पज ूं ी बाजार के ष्टनयंत्रक का कायथ करता है।
30 जनवरी 1992 को सेबी को म्युचुऄल फंड एवं स्िॉक माके ि के ष्टनयंत्रण का अक्तधकार क्तदया गया।
सेबी का मख्ु यालय मबांु ई में बनाया गया जबक्तक इसके क्षेत्रीय कायाचलय कोलकाता, क्तदल्ली तथा र्ेन्नई में
भी स्थाक्तपत क्तकए गए।
राष्ट्रीय शेयर बाजार की स्थापना फे रवानी सष्टमष्टत की संस्तुष्टत के अधार पर 1992 में की गई।
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मुंबइ स्िॉक एक्सचेंज की स्थापना 1875 में की गई।
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राष्ट्रीय कृ क्तष तथा ग्रामीण क्तवकास बैंक नाबाडच देश में कृ क्तष एवां ग्रामीण क्तवकास हेतु क्तवि उपलब्ध
कराने वाली शीषच सस्ां था है।
नाबाडथ की स्थापना ष्टशव रमन कमेिी की सस्ं तुष्टत पर की गई इसका मख्ु यालय मबांु ई में है।
ष्टकसान िे ष्टडि काडथ योजना की शरुु आत ऄगस्त 1998 में तत्कालीन ष्टवत्त मंत्री यशवंत ष्टसन्हा
िारा की गई थी।
राष्ट्रीय कृ क्तष सहकारी क्तवपणन भारतीय सांघ नेशनल एग्रीकल्र्र कोऑपरे क्तिव माके क्तिांग फे डरे शन ऑफ
इक्तां डया (NAFED) की स्थापना 2 ऄक्िूबर 1958 को हुई।
यह राष्ट्रीय स्तर पर एक शीषच सहकारी सांगठन है।
इसका प्रमख ु कायच र्नु ी हुई कृ क्तष वस्तओ
ु ां को प्राप्त करना क्तवतरण क्तनयाचत तथा आयात करना है।
भारतीय जनजाष्टत सहकारी ष्टवपणन ष्टवकास पररषद (TRYFED) की स्थापना 1987 में हुई थी।
भूष्टम ष्टवकास बैंक मूलतः दीघथकालीन शाख ईपलब्ध कराती है।
भक्तू म क्तवकास बैंक का आरांभ भक्तू म बधां क बैंक के रूप में 1919 ई. में हुई थी।
भारतीय औद्योष्टगक ष्टवकास बैंक की स्थापना 1 फरवरी 1964 को की गई।
भारतीय औद्योक्तगक पनु क्तनचमाचण बैंक की स्थापना अस्वस्थ औद्योक्तगक इकाइयों के पनु क्तनचमाचण के उद्देश्य
से 20 मार्च 1985 में की गई।
भारतीय जीवन बीमा क्तनगम का मख्ु यालय मबांु ई में है इस समय इसके सात जोनल कायाचलय और 100
क्षेत्रीय कायाचलय हैं
भारतीय जीवन बीमा क्तनगम की स्थापना 1956 में की गई थी।
भारतीय साधारण बीमा क्तनगम की स्थापना सन 1972 ईस्वी में की गई थी।
भारतीय बीमा ष्टवष्टनयामक और ष्टवकास प्राष्टधकरण आरडा का मुख्यालय हैदराबाद में है।
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प्रमुख ष्टवत्तीय संस्थाएं
प्रमुख ष्टवत्तीय संस्थाएं स्थापना वषथ प्रमुख ष्टवत्तीय संस्थाएं स्थापना वषथ
आपं ीररयल बैंक ऑफ आष्टं डया 1921 कृष्टष एवं ग्रामीण ष्टवकास हेतु राष्ट्रीय बैंक 12 जुलाइ 1982
भारतीय ररजवथ बैंक 1 ऄप्रैल 1935 भारतीय औद्योष्टगक पनु ष्टनथमाथण बैंक 20 माचथ 1985
भारतीय औद्योष्टगक ष्टनगम 1948 भारतीय लघु ईद्योग ष्टवकास बैंक (ष्टसडबी) ऄप्रैल 1990
(लखनउ)
भारतीय स्िेि बैंक 1 जुलाइ 1955 भारतीय ष्टनयाथत अयात बैंक 1 जनवरी 1983
भारतीय यूष्टनि रस्ि 1 फरवरी 1964 राष्ट्रीय अवास बैंक जुलाइ 1988
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 2 ऄक्िूबर 1975 भारतीय जीवन बीमा ष्टनगम ष्टसतंबर 1956
भारतीय साधारण बीमा ष्टनगम 1 नवंबर 1972 राष्ट्रीय कृष्टष तथा ग्रामीण ष्टवकास बैंक 12 जुलाइ 1982
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8. बजि
भारत में बजि प्रणाली की शुरुअत का िेय वायसराय कै ष्टनंग को जाता है।
भारत में बजि प्रणाली का सस्ं थापक जेम्स ष्टवल्सन को माना जाता है।
सांक्तवधान के ऄनुच्छे द 112 के अतां गचत प्रत्येक क्तविीय वषच के क्तलए कें द्र सरकार की अनमु ाक्तनत प्राक्तप्तयाां
तथा व्यय का एक क्तववरण ससां द के सामने रखना आवश्यक होता है इस वाक्तषक च क्तविीय क्तववरण को कें द्र
सरकार का बजि कहा जाता है।
राष्ट्रपष्टत िारा ष्टनदेष्टशत ष्टतष्टथ पर लोकसभा में बजि पेश की जाती है।
प्रारांभ में रे ल बजि और आम बजि एक साथ ही प्रस्ततु क्तकया जाता था लेक्तकन 1921 में ष्टनयुि एक्वथथ
कमेिी की ष्टसफाररशों के आधार पर 1924 में यह ष्टनणथय ष्टलया गया क्तक रे ल बजि को आम बजि से
अलग प्रस्ततु क्तकया जाए।
स्वतत्रां भारत का पहला बजि 26 नवंबर 1947 को पहले ष्टवत्त मंत्री अर के षणमुखम् शेठ्ठी द्वारा
पेश क्तकया गया था।
जॉन मथाइ को वषच 1950 में गणतांत्र भारत का पहला कें रीय बजि पेश करने का गौरव प्राप्त हुआ।
भारत में अभी तक सबसे ऄष्टधक बार बजि पेश करने वाले ष्टवत्त मंत्री मोरारजी देसाइ थे उन्होंने
कुल 10 बजि पेश ष्टकए जबष्टक पी ष्टचदबं रम ने 8:00 बजि पेश की है।
क्तवि मत्रां ी के रूप में वषच 1991 में डॉ मनमोहन क्तसांह ने देश में अष्टथथक ईदारीकरण की नीष्टत लागू करने
की घोषणा की।
भारत में बजि सामान्यतः ष्टनम्नष्टलष्टखत ऄनुमानों को व्यि करता है ष्टवगत वषथ की वास्तष्टवक
प्राष्टप्तयां तथा व्यय चालू ष्टवत्त वषथ के बजि ऄनमु ान और सश ं ोष्टधत ऄनमु ान अगामी वषथ के
प्रस्ताष्टवत बजि ऄनुमान
इस प्रकार भारत में बजि प्रस्तुतीकरण का संबंध 3 वषों के अक ं ड़ों से होता है।
प्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष कर (आयकर, सांपक्ति कर, क्तनगम िैक्स आक्तद) के मामले में, बोझ सीधे करदाता पर पड़ता है।
ये वह कर है क्तजनको करदाताओ ां द्वारा दसू रों पर स्थानाांतररत नहीं क्तकया जा सकता है।
अयकर
आयकर अक्तधक्तनयम 1961, के अनसु ार वह हर व्यक्ति, जो एक कर दाता है और क्तजनकी कुल आय
अक्तधकतम छूिसीमा से अक्तधक है।
क्तवि अक्तधक्तनयम में क्तनधाचररत दर से आयकर के दायरे में आता है।
इस तरह आयकर क्तपछले वषच की कुल आय पर भगु तान क्तकया जाता है।
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ष्टनगम कर
यह कर कांपनी की शि ु आय पर लगाया जाता है।
क्तववरण:- वे कांपक्तनयाां (क्तनजी और सावचजक्तनक) दोनों जो भारत में कांपनी अक्तधक्तनयम 1956 के तहत पजां ीकृ त
है वे सभी कर का भगु तान करने के क्तलए उिरदायी हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसिी)
एक ऐक्ततहाक्तसक कर बदलाव के रूप में वस्तु एवां सेवा कर 1 जल ु ाई, 2017 से लागू हुआ है।
कें द्र व राज्य दोनों स्तरीय अक्तधभारों को समेिते हुए GST सहकारी सघां वाद को सरकारों द्वारा क्तनयक्तां त्रत क्तकया
जाता है।
101वें सांक्तवधान सांशोधन अक्तधक्तनयम, 2016 के द्वारा अनच्ु छे द 366 में एक नया खडां (12A) जोड़ा गया,
क्तजसके अनसु ार, ‘वस्तु एवां सेवा कर’ का अथच है- मानव उपभोग के क्तलये मादक पेय पदाथों की आपक्तू तच पर
लगने वाले कर को छोड़कर वस्तओ ु ां या सेवाओ ां या दोनों की आपक्तू तच पर लगने वाला कर ।
प्रत्मक्ष कय अप्रत्मक्ष कय
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गंतव्य अधाररत खपत करः
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भारतीय ष्टवत्तीय प्रणाली के घिक
ष्टवत्तीय सस्ं थाए:ं राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर कई क्तविीय सस्ां थाएां बनाई गई हैं। ये सस्ां थाएां उद्योग
जगत की कई क्तविीय ज़रुरतों को परू ा करती हैं। इनमें अक्तखल भारतीय क्तवकास बैंक, क्तवक्तशष्ट क्तविीय
सस्ां थाए,ां क्तनवेश सस्ां थाए,ां राज्य क्तवि क्तनगम तथा राज्य औद्योक्तगक क्तवकास क्तनगम शाक्तमल हैं।
गैर-बैंष्टकंग ष्टवत्तीय कंपष्टनयां (NBFCs): गैर-बैंक्तकांग क्तवि कांपक्तनयाां ऐसी सस्ां थाएां होती हैं जो कांपनी
अक्तधक्तनयम 1956 के तहत रक्तजस्िडच होती हैं और क्तजनका मख्ु य काम उधार देना और क्तवक्तभन्न प्रकार के
शेयरों, प्रक्ततभक्तू तयों, बीमा कारोबार और क्तर्िफांड से जड़ु े कामों में क्तनवेश करना है।
जोष्टखम पूंजी कंपष्टनयां और ईद्यम पूंजी कंपष्टनयां: जोक्तखम पांजू ी कांपक्तनयाां नये उद्यक्तमयों को
दीघचकालीन प्रारांक्तभक पजांू ी उपलब्ध कराती हैं। वही ँ उद्यम पजांू ी, लघु और मध्यम उद्यमों के गठन के क्तलए
और उनके क्तवकास के प्रारक्तम्भक र्रणों में फांक्तडांग का अहम् ज़ररया है।
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9. औद्योष्टगक नीष्टत और मुरास्फीष्टत
आजादी के बाद देश की प्रथम औद्योक्तगक नीक्तत की घोषणा 6 अप्रैल 1948 ई. को तत्कालीन कें द्रीय
उद्योग मत्रां ी श्यामा प्रसाद मख
ु जी द्वारा की गई थी।
नइ औद्योष्टगक नीष्टत की घोषणा 24 जुलाइ 1991 इ.को की गई क्तजसमें व्यापक स्तर पर उदारवादी
कदमों की घोषणा की गई।
इस नइ औद्योष्टगक नीष्टत में 18 प्रमुख ईद्योगों को छोड़कर ऄन्य सभी ईद्योगों को लाआसेंस से मुि
कर क्तदया गया।
बाद में 13 और ईद्योगों को लाआसेंस की अवश्यकता से मुि कर ष्टदया गया।
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व्यापाररक संगिन
ऄंतरराष्ट्रीय मुरा कोष की स्थापना 27 ष्टदसबं र 1945 इ. में ब्रेिनवडु सम्मेलन के ष्टनणथय के अधार
पर क्तकया गया।
अइएमएफ का कायथ सदस्य राष्ट्रों के मध्य ष्टवत्तीय और औद्योष्टगक सहयोग को बढ़ावा देना तथा
ष्टवि व्यापार का सतं ुष्टलत ष्टवस्तार करना है।
IBRD ऄथाथत पुनष्टनथमाथण एवं ष्टवकास के ष्टलए ऄंतराथष्ट्रीय बैंक की स्थापना सन 1945 में हुई।
IBRD को ही ऄन्य संस्थाओ ं के साथ ष्टमलाकर ष्टवि बैंक के नाम से पुकारा जाता है
इन सांस्थाओ ां में ऄंतरराष्ट्रीय ष्टवत्त ष्टनगम, ऄंतरराष्ट्रीय ष्टवकास सघं तथा बहुपक्षीय ष्टवष्टनयोग गारंिी
ऄष्टभकरण है।
इसका उद्देश्य क्तवश्व यि
ु से जजचर हुई अथचव्यवस्था का प्रारांक्तभक पनु क्तनचमाचण तथा अल्प क्तवकक्तसत देशों के
क्तवकास में योगदान देना है।
इस समय यह सदस्य देशों में पांजू ी क्तनवेश में सहायता तथा अतां रराष्ट्रीय व्यापार के दीघचकालीन सांतक्तु लत
क्तवकास को प्रोत्साक्तहत करने में लगा है।
GATT प्रशुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता 30 ऄक्िूबर 1947 को हुअ तथा 1 जनवरी
1948 से लागू हुआ।
12 ष्टदसंबर 1995 को GATT का ऄष्टस्तत्व समाप्त कर ष्टदया गया तथा 1 जनवरी 1995 इ. को
आसका स्थान WTO ऄथाथत ष्टवि व्यापार संगिन ने ले ष्टलया।
डब्ल्यूिीओ का मुख्यालय ष्टजनेवा में है।
पस्ु तक लेखक
वेल्थ ऑफ नेशन्स एडम ष्टस्मथ
फाईंडेशन ऑफ आकोनाष्टमक एनाष्टलष्टसस सैमुऄल्सन
ष्टप्रंष्टसपल्स ऑफ़ आकोनॉष्टमक्स माशथल
दास कै ष्टपिल कालथ माक्सथ
द ्योरी ऑफ एपं लॉयमेंि आिं रेस्ि एडं मनी कीन्स
हाई िू पे फॉर वार कीन्स
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प्रमुख ष्टसद्धांत और प्रष्टतपादक
मद्रु ा मल्ू य में होने वाले पररवतथनों के मुख्य चार रूप होते हैं
1. मुरा स्फीष्टत - ------- (आन्फ्लेशन)
मुरास्फीष्टत –
मद्रु ास्फीक्तत वही क्तस्थक्तत है क्तजसमें कीमत स्तर में वृक्ति होती है तथा मद्रु ा का मल्ू य क्तगरता है।
वस्तओ ु ां एवां सेवाओ ां की तेजी से बढ़ती मागां और फल स्वरुप तेजी से बढ़ती मद्रु ा की सक्तियता के कारण
बढ़ने वाली कीमतें माांग प्रेररत क्तस्थक्तत उत्पन्न करती है।
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वस्तओ ु ां की उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण जब वस्तओ
ु ां की कीमतों को बढ़ाया जाता है तब इसे
लागत प्रेररत स्फीक्तत कहा जाता है।
मुरास्फीष्टत का प्रभाव
1. ईत्पादक वगथ (कृषक, ईद्योगपष्टत, व्यापारी) को लाभ होता है ऊणी को लाभ तथा ऊणदाता को
हाष्टन होती है।
2. ष्टनष्टित अय वाले वगथ को हाष्टन होती है जबष्टक पररवष्टतथत अय वाले वगथ को लाभ होता है।
3. समाज में अष्टथथक ष्टवषमताएाँ बढ़ जाती हैं धनी वगथ और धनी तथा ष्टनधथन वगथ और ष्टनधथन होता
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मुरा संकुचन ऄथवा मुरा ऄवस्फीष्टत
यह मुरास्फीष्टत की ष्टवपरीत ऄवस्था है आसमें मुरा का मूल्य बढ़ता है और वस्तुओ ं एवं सेवाओ ं
का मूल्य घिता है।
मुरा संकुचन ष्टनम्न पररष्टस्थष्टतयों में दृष्टिगोचर होता है
1. मौष्टरक अय यथावत ऄथवा ष्टगरती रहे पर वस्तुओ ं का ईत्पादन बढ़े
2. मौष्टरक अय तथा ईत्पादन दोनों घिे परंतु मौष्टरक अय में कमी ऄष्टधक हो
3. मौष्टरक अय तथा ईत्पादन दोनों बढ़े परंतु ईत्पादन में वृष्टद्ध ऄपेक्षाकृत ऄष्टधक हो
4. ईत्पादन यथावत रहे परंतु मौष्टरक अय घिे जब वस्तु की पूष्टतथ मांग से ऄष्टधक हो।
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4. ष्टवदेशी व्यापार में घािा
5. ईत्पादन लागत में वृष्टद्ध
6. लबं े समय तक मुरास्फीष्टत की ष्टस्थष्टत का बने रहना।
प्रमुख वि
1. लॉरेंज वि – अय के ष्टवतरण में व्याप्त ष्टवषमताओ ं को प्रदक्तशतच करने वाला वि यह आक्तथचक क्तवषमता
की माप करता है।
2. ष्टगनी गुणांक – अय या संपष्टत्त के ष्टवतरण में व्याप्त ऄसमानता की साक्तां ख्यकी माप क्तगनी गणु ाक ां
कहलाता है।
क्तगनी गणु ाांक का मान क्तजतना अक्तधक होगा समाज में क्तवषमता भी उतनी अक्तधक होगी।
3. कुजनेि्स वि – simon-कुजनेि्स के अनसु ार प्रष्टत व्यष्टि अय की वृष्टद्ध के साथ प्रारंभ में अय की
ष्टवषमता बढ़ती है तथा बाद में अय की वृष्टद्ध के साथ अए ष्टवतरण की ष्टवषमानता कम होने लगती
है
यक्तद हम इन दोनों के सांबांधों को वि द्वारा प्रदक्तशतच करें तो यह उल्िी U आकार की प्राप्त
होती है इस वि को ही कुजनेि्स वि कहते हैं।
4. ष्टफष्टलपस वि – क्तकसी भी ऄथथव्यवस्था में ष्टफष्टलपस वि िारा बेरोजगारी की दर एवं मुरास्फीष्टत के
व्युत्िम सांबांधों को दशाचया जाता है।
यक्तद क्तकसी भी देश में बेरोजगारी की दर कम है तो मजदरू ी दर अक्तधक होगी एवां यक्तद
बेरोजगारी की दर अक्तधक है तो मजदरू ी दर कम होगी।
5. लाफर वि – यक्तद करारोपण की दरों को कम कर ष्टदया जाए तो सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व
में वृष्टद्ध होगी लेष्टकन यह वृष्टद्ध एक सीमा से ऄष्टधक कमी कर ष्टदए जाने पर करागत राजस्व में कमी
अएगी।
6. ष्टफशर प्रभाव – यह अवधारणा मुरास्फीष्टत तथा ब्याज दर के बीच संबंध को दशाचता है।
महत्वपण
ू थ सष्टमष्टतयां
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महालनोष्टबस सष्टमष्टत राष्ट्रीय अय
रंगराजन सष्टमष्टत भुगतान संतुलन
राजा चेलैया सष्टमष्टत कर सुधार
मल्होत्रा सष्टमष्टत बीमा क्षेत्र में सुधार
खुसरो सष्टमष्टत कृष्टष साख
भूरेलाल सष्टमष्टत मोिर वाहन करों में वृष्टद्ध
नरष्टसम्हन सष्टमष्टत ष्टवत्तीय बैंष्टकंग सधु ार
भंडारी सष्टमष्टत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर संरचना
सच्चर सष्टमष्टत मुसलमानों की सामाष्टजक अष्टथथक और शैक्षष्टणक ष्टस्थष्टत
का ऄध्ययन
सुरेश तेंदुलकर सष्टमष्टत गरीबी
एस तारापोर सष्टमष्टत रुपए की पज ूं ी खाते पर पररवतथष्टनयत्ता
अष्टबद हुसैन सष्टमष्टत लघु ईद्योग
डॉ कीष्टतथ एस पाररख पेरोष्टलयम ईत्पादों के मूल्य प्रणाली पर सुझाव
बीएस व्यास सष्टमष्टत कृष्टष एवं ग्रामीण साख ष्टवस्तार
महाजन सष्टमष्टत चीनी ईद्योग
सत्यम सष्टमष्टत वस्त्र नीष्टत
मीरा सेि सष्टमष्टत हथकरघा के ष्टवकास
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10. भुगतान शेष (BLANCE OF PAYMENT)
भगु तान शेष क्तकसी देश का अन्य देशों के साथ होने वाले समस्त आक्तथचक लेन देन का लेखा होता है। क्तजसमें
दोहरी प्रक्तवक्तष्ट की जाती है।
भगु तान संतुलन के ऄवयव
(COMPONENTS OF BLANCE OF PAYMENT)
भगु तान शेष में र्ालू खाता एवां पजांू ी खाता होतें हैं।
र्ालू खाते में वस्तुगत व्यापार एवं ऄदृश्य व्यापार अथवा वस्तुगत खाता एवं ऄदृश्य खाता पाया जाता
है।
वस्तुगत खातें में वस्तुओ ं के व्यापार को शाक्तमल क्तकया जाता है जबक्तक ऄदृश्य खाते में सवायें अय
तथा ऄन्तरण को शाक्तमल क्तकया जाता है।
पजूं ी खाते में सभी प्रकार के ष्टवत्तीय लेन-देन का शाक्तमल क्तकया जाता है।
यक्तद जमा पक्ष एवां माांग पक्ष बराबर है तो भगु तान शेष सांतल
ु न में रहता है।
यक्तद जमा पक्ष उधार पक्ष से अक्तधक है तो भगु तान शेष अनक ु ू ल होता है।
यक्तद उधार पक्ष अक्तधक है तो भगु तान शेष प्रक्ततकूल हो जाता है। और प्रक्ततकूल भगु तान सांतल
ु न देश के क्तवकास
में बाधक होता है।
भारत की प्रमख्ु य आक्तथचक समस्या में एक महत्वपणू च समस्या र्ालू खाते का घािा है।
भुगतान शेष में ऄसंतुलन के ष्टलए कइ कारण क्तजम्मेदार होते हैं।
1. जब क्तकसी देश की क्तवकास की प्रक्तिया र्ल रही हा तो क्तवकासात्मक व्यय अक्तधक होता है। आयातों पर
क्तनभचरता बढ़ जाती है। और भगु तान शेष प्रक्ततकूल हो जाता है।
2. भगु तान शेष के प्रक्ततकूल होने का दसू रा कारण अथचव्यवस्था की स्थायी एवां दीघचकालीन प्रवृक्तियाी होती हैं।
लागते अक्तधक होने के कारण क्तनयाचतों में वृक्ति नहीं हो पाती है।
3. व्यापार र्िों में होने वाला पररवतचन भी भगु तान शेष की क्तस्थक्तत को प्रभाक्तवत करता है।
4. क्तकसी देश की अथचव्यवस्था में होने वाले सांरर्नात्मक पररवतचन के कारण उत्पन्न होने वाले असांतल ु न से भी
भगु तान शेष असतां क्तु लत हो जाता है।
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मौष्टरक ईपायों में मौक्तद्रक सक ां ु र्न एवां क्तवस्तार, अवमल्ू यन, क्तवक्तनमय क्तनयत्रां ण क्तवदेशी क्तवक्तनमय दर में
पररवतचन इत्याक्तद का प्रयोग क्तकया जाता है।
घरे लू मद्रु ा की कीमत को अन्य क्तवदेशी मद्रु ाओ ां की तल ु ना में जान बझू कर कम करना अवमल्ू यन कहलाता है।
अवमल्ू यन से क्तनयाचतों में वृक्ति एवां आयातों में कमी पायी जाती है। क्तजससे भगु तान शेष की प्रक्ततकूलता में कमी
पायी जाती है।
सुधारने के ईपाय
मौष्टरक ईपाय-
i. मौष्टरक सक ं ु चन ष्टवस्तार
ii. ऄवमूल्यन ष्टवष्टनमय ष्टनयंत्रण
iii. ष्टवदेशी ष्टवष्टनमय दर मे पररवतथन
राजकोषीय ईपाय-
1. सावथजष्टनक अय
2. सावथजष्टनक व्यय
3. व्यापाररक ईपाय-
a) अयात प्रष्टतस्थापन एवं ष्टनयाथत संवधथन
b) प्रशल्ु क
c) कोिा
ऄन्य ईपाय-
A. ष्टवदेशी ऊण सहायता
B. पयथिन सेवाओ ं का ष्टवस्तार
C. ष्टवदेशी ष्टनवेश को बढ़ावा।
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क्तवदेशी क्तवक्तनमय दर में सरकारी स्तर क्षेत्र ष्टवनमय ष्टनयंत्रण कहलाता है और ऐसे में देश का के न्रीय बैंक
समस्त ष्टवदेशी मुरा भंडार को ऄपने पास रख लेता है और ष्टवदेशी मुरा की पूष्टतथ स्वयं ष्टनधाथररत
करता है।
जब सरकार ष्टवदेशी ष्टवष्टनमय दर को क्तनधाचररत करें तो खुले बाजार में ष्टनधाथ ररत दरों का प्रयोग बांद कर
क्तदया जाय तो इसे ष्टवदेशी ष्टवष्टनमय दर में पररवतथन कहते है।
भग ु तान शेष की प्रक्ततकूलता को सधु ारने के क्तलए सरकार मौष्टरक संकुचन का भी सहारा लेती है।
इसके अन्तगचत साख क्तनयांत्रण की प्रक्तिया को अपना कर साख मद्र ु ा कीपक्तू तच में कमी लाकर आयातों को
प्रभाक्तवत क्तकया जाता है।
भगु तान शेष की प्रक्ततकूलता को दर करने के क्तलए राजकोषीय ईपाय के रूप में सरकार सावथजष्टनक अय
के राजस्व को बढ़ाने का प्रयास करती हैं
जबक्तक दसू री तरफ सावथजष्टनक व्यय में कमी लाने का प्रयास करती है।
भगु तान से इसकी प्रक्ततकूलता को दरू करने के क्तलए व्यापाररक ईपाय भी प्रयोग में लाये जाते हैं और
इसके अन्तगचत सरकार अयात प्रष्टतस्थापन और ष्टनयाथत सवं द्धथन की नीष्टत ऄपनानी है अथाचत क्तजन
वस्तओु ां को पहले अयात ष्टकया जा रहा था ईन्हें घरेलू ईत्पादों से प्रष्टतस्थाष्टपत करने का प्रयास
ष्टकया जाता है जबक्तक ष्टनयाथतों को प्रोत्साष्टहत करके ऄथवा ईन्हें सहयोग देकर ष्टनयाथतों के संवधथन का
प्रयास क्तकया जाता है।
इस प्रकार आयातों में कमी लाकर एवां क्तनयाचतों को बढ़ाकर भगु तान शेष की प्रक्ततकूलता को दरू करना आयात
प्रक्ततथापन क्तनयाचत सांवधचन क्तवक्तध कहलाता है।
अयातों पर लगने वाले कर को प्रशुल्क या ति कर कहा जाता है। इसके लगने से अयातों की कीमतें
बढ़ जाती है। और उनकी मात्रा में कमी अ जाती है। क्तजससे भगु तान शेष सांतक्तु लत होता है।
प्रशल्ु क लगाने से जहाां एक तरफ आयाक्ततत वस्तओ
ु ां की कीमतें बढ़ती हैं वहीं दसू री तरफ आयातों की मात्रा
में कमी पायी जाती है। तथा घरेलू ईत्पादन बढ़ जाता है।
1. िै ररफ
यह राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापाररक अयात या ष्टनयाथत पर लगने वाला सीमा शल्ु क है।
यह व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती वैष्टिक प्रष्टतस्पद्धाथ से घरेलू ईद्योग को सरु ष्टक्षत रखने हेतु ष्टवदेशी
ईत्पादों पर लगाया जाने वाला कर है।
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2. गैर-िै ररफ बाधाएाँ
वे सभी शल्ु क जो क्तक अयात या ष्टनयाथत शुल्क नहीं है, गैर-िैररफ की श्रेणी में आते हैं।
ईदाहरण के तौर पर अयात कोिा, सष्टब्सडी, तकनीकी बाधाएाँ या अयात लाआसेंष्टसंग, सीमा
शल्ु क पर माल के मूल्यांकन के ष्टलये ष्टनयम, पवू थ ष्टशपमेंि ष्टनरीक्षण आत्याष्टद।
प्रायः डांक्तपांग शब्द का प्रयोग सवाचक्तधक अतां राचष्ट्रीय व्यापार काननू के सांदभच में ही क्तकया जाता है, जहाँ डांक्तपांग
का अक्तभप्राय क्तकसी देश के एक क्तनमाचता द्वारा क्तकसी उत्पाद को या तो इसकी घरे लू कीमत से नीर्े या
इसकी उत्पादन लागत से कम कीमत पर क्तकसी दसू रे देश में क्तनयाचत करने करने से होता है।
डष्टं पंग, अयात करने वाले देश में ईस वस्तु की कीमत को प्रभाष्टवत करने के साथ-साथ
वहााँ के घरेलू ईद्योग के लाभ को कम करती हैं।
वैष्टिक व्यापार मानदडं ों के ऄनुसार, एक देश को ऄपने घरेलू ष्टनमाथताओ ं की रक्षा करने
और ईन्हें एक समान ऄवसर प्रदान करने के ष्टलये आस प्रकार की डष्टं पंग पर शुल्क लगाने
की ऄनुमष्टत है।
हालाँक्तक यह शुल्क ष्टकसी ऄद्धथ-न्याष्टयक ष्टनकाय जैसे- भारत में व्यापार ईपचार
महाष्टनदेशालय (DGTR) िारा गहन जााँच के बाद ही ऄष्टधरोष्टपत ष्टकया जा सकता है।
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क्तवश्व व्यापार सांगठन (WTO-World Trade Organisation) की स्वीकृ क्तत से, जनरल एग्रीमेंि ऑन
िैररफ एडां रेड General Agreement on Tariff & Trade-GATT) का अनच्ु छे द VI देशों को डांक्तपगां
के क्तखलाफ कारच वाई करने का क्तवकल्प र्नु ने की अनमु क्तत देता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं क्तक जब कोई देश अपने घरे लू उद्योगों की रक्षा करने और उनके नक ु सान को
कम करने के क्तलये क्तनयाचतक देश में उत्पाद की लागत और अपने यहाँ उत्पाद के मल्ू य के अतां र के बराबर
शल्ु क लगा दे तो इसे ही डांक्तपगां रोधी शल्ु क यानी एिां ी-डांक्तपगां शल्ु क कहा जाता है।
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