You are on page 1of 14

MP - psc

PRE

e / ;çn s ' k y k s d l s o k v k; k s x

Hkkx & 5


MP-PSC PRE
संविधान सरकार और भारत की अर्थव्यिस्र्ा और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वनकाय

Page
S.No. Chapter Name No.
इकाई – 6 (भारतीय संविधान)
1- भारतीय संविधान का वनर्ाथ ण 1
2- संिैधावनक सं शोधन 13
3- र्ौविक अवधकार 22
4- राज्य नीवत के वनदे शक तत्व 41
5- र्ौविक कतथ व्य 47
6- राष्ट्रपवत 50
7- उपराष्ट्रपवत (उपाध्यक्ष) 59
8- प्रधानर्ं त्री 62
9- केन्द्रीय र्ं वत्रपररषद 66
10- संसद 72
11- उच्चतर् न्यायिय 107
12- उच्च न्यायिय 111
13- भारतीय न्यावयक प्रविया के अन्य आयार् 114
इकाई – 6 (भारतीय अर्थव्यिस्र्ा)
14- राष्ट्रीय आय 121
15- र्ु द्रास्फीवत और व्यापार चि 126
16- भारत र्ें बैंवकंग 134
17- वित्तीय सर्ािे शन 153
18- र्ौवद्रक नीवत 157
19- कराधान 162
20- भारतीय सािथ जवनक वित्त 178
21- कृवष 187
22- भारत र्ें उद्योग और सेिा क्षे त्र 214
23- शेयर बाजार 229
24- बाहरी क्षेत्र और भुगतान सं तुिन 232
––
1 भारतीय सोंनवधाि का निमाय ण
CHAPTER

 सं विधान नियम ों ,उपनियम ों का एक ऐसा निखित दस्तावेज है -


o विसके अनुसार सरकार का सों चािि वकया िाता है I
o िो दे श की राजिीनतक व्यवस्था का बुनियादी ढााँ चा वनधाा ररत करता है I
o िो राज्य की नवधानयका, कायय पानिका और न्यायपानिका की स्थापना, उनकी शखिय ों तथा दानयत् ों का सीमां कन एिं
राज्य के मध्य सोंबोंध ों का नवनियमि करता है I

भारत के सोंनवधाि का नवकास


भारत में कोंपिी शासि (1773-1858)
रे गुिेन ों ग एक्ट, 1773  मुंबई तथा मद्रास प्रेवसडें सी को बंगाल प्रेवसडें सी के अधीन
 बं गाल प्रेवसडें सी में गिनार िनरल ि चार सदस्ों िाली पररषद के वनयं त्रण में सरकार की स्थापना
 इस एक्ट के तहत बं गाल के गिनार िनरल लॉडा िारे न हे स्टं गस थेI
 बं गाल के गिनार को तीनों प्रेसीडे स्ियों का गिनार िनरल कहा िाता थाI
 भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींि रखी।
 कलकत्ता में एक सु प्रीम कोर्ा की स्थापना (1774) की गई विसमें एक मुख्यन्यायाधीश एिं तीन
अन्य न्यायाधीश थे I
 भारत में कंपनी के रािस्व, नागररक और सैन्य मामलों के संबंध में विवर्श सरकार को ररपोर्ा
करने के वलए कंपनी के वनदे शक मंडल को आिश्यक कर वदया।
समझौता  1781 के संशोधन अवधवनयम ने सिोच्च न्यायालय के अवधकार क्षेत्र से गिनार िनरल तथा
अनधनियम(बों द बस्त कािू ि), काउं वसल को मुक्त करने के साथ ही कंपनी के लोक से िकों के द्वारा अपने काया काल में सं पन्न
1781 काया िावहयों के वलए मुक्त कर वदया गया।
 कलकत्ता के सभी वनिावसयों को न्यायालय के अवधकार क्षेत्र के अंतगात कर वदया गया और वहन्दू
ि मुस्िमों के बाद उनके वनिी कानूनों के वहसाब से तय करने का प्रािधान वकया गया।
 न्यायालय को प्रवतिादी के व्यस्क्तगत कानून का प्रशासन करने का अवधकार था।
नप ् स इों निया एक्ट, 1784  द्वै त शासन प्रणाली की स्थापना की।
o कंपनी के िावणस्िक मामलों का प्रबंधन करने के वलए वनदे शक मंडल को अनुमवत दी |
o अपने रािनीवतक मामलों का प्रबंधन करने के वलए वनयंत्रण बोडा नामक वनकाय का गठन
वकया गया।
 विवर्श वनयंवत्रत भारत में सभी नागररक, सैन्य सरकार तथा रािस्व गवतविवधयों के पयािेक्षण की
शस्क्त वनयं त्रण बोडा को प्रदान की गईI
चा य र अनधनियम, 1813  भारत में कंपनी के व्यापार एकावधकार को समाप्त वकया गयाI
o अपिाद- चाय का व्यापार और चीन के साथ व्यापार को कंपनी के अवधकार क्षेत्र में ही रखा
गया।
 कर लगाने के वलए स्थानीय सरकारो को अवधकृत वकया |
चा य र अनधनियम, 1833  बंगाल का गिनार िनरल → भारत का गिनार िनरल(GGI) बनाI
 GGB = भारत के प्रथम गिनार-िनरल (लॉडा विवलयम बेंवर्क)I
o सभी नागररक और सैन्य शस्क्तयों को वनवहत वकया गयाI
o संपूणा विवर्श भारत की अनन्य विधायी शस्क्तयााँ ।
 कंपनी → विशुद्ध रूप से प्रशासवनक वनकाय बन चुकी थी।
चा य र अनधनियम, 1853  भारत का गिनार िनरल(GGI) की पररषद के विधायी और प्रशासवनक कायों का पृथक्करण
वकया गया।

1
 गिनार िनरल के वलए नई विधान पररषद गवठत करके उसे भारतीय विधान पररषद् नाम वदया
गया विसमें 6 नए पाषाद िोड़े गएI इसने वमनी सं सद की तरह काया वकयाI
 भारतीयों के वलए भी भारतीय वसविल सेिाओं के वलए खुली प्रवतयोवगता प्रणाली की व्यिस्था की
गई विसके वलए मैकाले सवमवत वनयु क्त की गई।
 भारतीय (केंद्रीय) विधान पररषद् में स्थानीय प्रवतवनवधत्व प्रारं भ वकया। (6 सदस्ों में से 4 मद्रास,
बॉम्बे , बं गाल और आगरा की स्थानीय सरकारों द्वारा वनयु क्त वकए िाएाँ गे )

भारत में क्राउि रूि (1858 से 1947)


भारत सरकार अनधनियम,  विवर्श सरकार ने भारत के शासन को अपने अंतगा त ले वलयाI
1858  एक्ट ऑफ गु ड गिनामेंर् ऑफ इं वडया भी कहा िाता है ।
 भारत का गिनार िनरल (GGI) के पद को भारत का िायसराय पदनाम वदया गया (लॉडा कैवनंग)I
o भारत का गिनार िनरल (GGI)- भारत में विवर्श क्राउन के प्रवतवनवध।
 बोडा ऑफ कंर्र ोल और कोर्ा ऑफ डायरे क्टसा को समाप्त करके द्वे ध प्रणाली को समाप्त वकया
गया।
 भारत के राि सवचि, पद का सृ िन करके भारतीय प्रशासन पर पूणा अवधकार और वनयं त्र ण
की शस्क्त प्रदान की गई।
 भारत सवचि की सहायता के वलए 15 सदस्ीय भारतीय पररषद् का गठन वकया गया।
भारतीय पररषद् अनधनियम,  भारतीयों को गै र-आवधकाररक सदस्ों के रूप में नावमत करने के वलए िायसराय द्वारा नामां वकत
1861 करने की व्यिस्था की गईI (लॉडा कैवनंग ने 3 भारतीयों को नावमत वकया- बनारस के रािा,
पवर्याला के महारािा और सर वदनकर राि)
 बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडें सी को विधायी शस्क्तयााँ दे कर विकेंद्रीकरण की शुरुआत की गई।
 बं गाल, उत्तर-पविमी प्रां तों और पंिाब के वलए नई विधान पररषदों की स्थापना की।
 िायसराय द्वारा पररषद् के वलए वनयम और आदे श बनाए िाएाँ गे |
o लॉडा कैवनंग द्वारा प्रारं भ पोर्ा फोवलयों प्रणाली को मान्यता प्रदान की गईI
 िायसराय आपातकाल में 6 महीने की िै धता के साथ अध्यादे श िारी करने के वलए अवधकृत
वकया गया।
भारतीय पररषद् अनधनियम,  केंद्रीय और प्रां तीय विधान पररषदों में गै र-सरकारी सदस्ों की िृ स्द्ध की गई।
1892  विधान पररषदें बिर् पर चचाा कर सकती हैं और काया पावलका के प्रश्ों का उत्तर दे ने के वलए
अवधकृत वकया |
 केंद्रीय विधान पररषद् और बं गाल चैम्बर ऑफ़ कॉमसा में गैर सरकारी सदस्ों के नामां कन के
वलए िायसराय की शस्क्तयों का प्रािधान |
 इसके अलािा प्रां तीय विधान पररषदों में गिनार को विला पररषद् , नगरपावलका, विश्वविद्यालय,
चैम्बर ऑफ़ कॉमसा की वसफ़ाररशो पर गै र -सरकारी सदस्ों को वनयु क्त करने की शस्क्त थी |
भारतीय पररषद् अनधनियम,  मॉले-वमंर्ो सु धार।
1909  केंद्रीय पररषद् में सदस् 16 से 60 तक और प्रां तीय विधान पररषदों में सदस् सं ख्या एक समान
नही ं थी।
 दोनों पररषदों के सदस् अनुपूरक प्रश् पूछ सकते थे , बिर् पर प्रस्ताि पेश कर सकते थे।
 िायसराय और रािपालों की काया कारी पररषदों के साथ वकसी भारतीय को सं बद्ध होने का
प्रािधान। (सत्येंद्र प्रसाद वसन्हा कानून सदस् के रूप में प्रथम भारतीय)
 मुसलमानों के वलए सां प्रदावयक प्रवतवनवधत्व और अलग वनिाा चक मंडल का प्रािधान।
भारत सरकार अनधनियम,  मोंर्ेग्यू-चेम्सफोडा सु धार भी कहा िाता है ।
1919  केंद्रीय और प्रां तीय विषयों का पृथक्करण वकया गया।
 प्रां तीय विषय- विधान पररषद् के प्रवत उत्तरदायी मंवत्रयों की सहायता से गिनार द्वारा शावषत|
 प्रां तीय विषय- गिनार द्वारा अपनी काया पावलका पररषद् की सहायता से शावसत।
 दे श में वद्वसदनीय व्यिस्था और प्रत्यक्ष वनिाा चन व्यिस्था की शुरुआत की।

2
 िायसराय की काया कारी पररषद् के 6 में से 3 सदस्ों का भारतीय होना अवनिाया था ।
 वसखों, भारतीय ईसाइयों, एं ग्लो-इं वडयन और यू रोपीय लोगों के वलए भी अलग वनिाा चक मंडल
की व्यिस्था।
 सं पवत्त, कर या वशक्षा के आधार पर लोगों को मतावधकार प्रदान करना।
 लंदन में भारत के उच्चायु क्त का कायाा लय बनाया गया।
 वसविल से िकों की भती के वलए एक केंद्रीय से िा आयोग की स्थापना।
 प्रां तीय बिर्ों को केंद्रीय बिर् से अलग वकया और प्रां तीय विधानसभाओं को अपने बिर्
अवधवनयवमत करने के वलए अवधकृत वकया गया।
भारत सरकार अनधनियम,  अस्खल भारतीय सं घ की स्थापना विसमें राि ररयासतें एक इकाई मानी गई।
1935  शस्क्तयों का तीन सू वचयों में पृथक्करण वकया गया।
o संघीय सूची (केंद्र के वलए, 59 विषय)
o प्रां तीय सूची (प्रां तों के वलए, 54 विषय)
o समिती सूची (दोनों के वलए, 36 विषय)।
 अिवशष्ट शस्क्तयााँ : िायसराय में वनवहत वकया गया I
 प्रां तों में द्वै ध शासन को समाप्त करके प्रां तीय स्वायत्तता की शुरुआत की गई।
o प्रां तों में उत्तरदायी विम्मेदार सरकारों की शुरुआत की गईI
 केंद्र में द्वै ध शासन को अपनाकर
 सं घीय विषयों को हस्तां तररत विषयों और आरवक्षत विषयों में विभावित वकया गया था।
 11 में से 6 प्रां तों (बं गाल, बॉम्बे , मद्रास, वबहार, असम और सं युक्त प्रां त) में वद्वसदनीय व्यिस्था
की शुरुआत हुई।
 दवलत िगों, मवहलाओं और श्रवमकों के वलए अलग वनिाा चक मंडल बनाकर साम्प्रदावयक
प्रवतवनवधत्व को विस्तार प्रदान वकया गया।
 भारतीय पररषद् को समाप्त कर वदया गया।
 भारतीय ररििा बैं क भारत दे श की मुद्रा और ऋण को वनयं वत्रत करने के वलए स्थापना की गई।
 सं घीय लोक से िा आयोग, प्रां तीय लोक से िा आयोग एिं सं युक्त लोक से िा आयोग की
स्थापना ।
 1937 में सं घीय-न्यायालय स्थावपत वकया गयाI
भारतीय स्वतोंत्रता अनधनियम,  माउं र्बे र्न योिना को तत्काल प्रभाि से लागू वकया गया
1947  भारत में विवर्श शासन को समाप्त करके इसे स्वतं त्र सं प्रभु राष्टर के रूप में घोवषत वकया गयाI
 15 अगस्त 1947 से भारत को स्वतं त्र और सं प्रभु राि घोवषत वकया।
 विवर्श राष्टरमंडल से अलग होने के अवधकार के साथ भारत और पावकस्तान को दो स्वतं त्र ि
सं प्रभु राष्टरों के रूप में विभावित वकया गया।
 सं विधान सभाओं को अपने सं बंवधत राष्टरों का सं विधान बनाने और अपनाने का अवधकार वदया
गया |
 भारतीय राि सवचि के पद को समाप्त कर वदया और राष्टरमंडल मामलों के राि सवचि को
अपनी शस्क्तयों को स्थानां तररत कर वदया।
 वसविल से िकों की वनयु स्क्त तथा पदों में आरक्षण की प्रणाली को समाप्त कर वदया गयाI
 इं ग्लैंड के रािा से भारत के सम्रार् की उपावध को समाप्त कर वदया गया ।
 उसे विधे यकों को िीर्ो करने के अवधकार से िं वचत कर वदया या कुछ विधे यकों को उनके
अनुमोदन के वलए आरक्षण दे ने के वलए कहा।
 भारत के गिनार िनरल तथा प्रां तीय गिनारों को राि के सं िैधावनक प्रमुख के रूप में वनयु क्त
वकया गयाI

3
सोंनवधाि सभा
कैनबिे नमशि य जिा ने भारत की एक सोंनवधाि सभा की स्थापिा का प्रावधाि वकया था:
 कुि सदस्य = 389 आं वशक रूप से वनिाा वचत और आं वशक रूप से मनोनीत
o 296 सी ें निन श भारत को आिंवर्त की गईं
 292 सदस्य - 11 गिनासा के प्रांतों से
 4 सदस्य - 4 मुख्य आयुक्तों के प्रां तों से
o ररयासत ों को 93 सीर्ें दी गईं।
 उनकी सं बंवधत जिसोंख्या के अिुपात में सी ों का आिं र्न वकया गया था।
 प्रत्येक विवर्श प्रां त को आवों न त सी ों को मुसिमाि ,ों नसि ों और जिरि (अन्य) के बीच उनकी जिसोंख्या के अिु पात में
नवभानजत वकया िाना था।
 प्रत्येक समुदाय के प्रनतनिनधय ों का चुिाव उस समुदाय के सदस्ों द्वारा आिु पानतक प्रनतनिनधत् द्वारा एकल सं क्रमणीय मत
द्वारा वकया िाता था।
 ररयासतों के प्रवतवनवधयों को दे शी ररयासत ों के प्रमुि ों द्वारा मि िीत वकया िाता था।
 सदस्य ों का चुिाव अप्रत्यक्ष रूप से प्रां तीय नवधािसभाओों के सदस्य ों द्वारा वकया िाता था।
 जिता की भाविाओों को प्रस्तुत िही ों वकया, क्ोंवक प्राोंतीय नवधािसभाओों के सदस् सीनमत मतानधकार पर चुने िाते थे ।
 निन श भारतीय प्राोंत ों के वलए चुिाव जुिाई-अगस्त, 1946 में हुए।
o भारतीय राष्ट्रीय काोंग्रेस ने 208 सीर्ें िीती,ं
o मुखिम िीग ने 73 सीर्ें िीती,
o 15 सीर्ें निदय िीय प्रवतवनवधयों को वमली I
 ररयासतों की सी ें िही ों भरी गई क्ोंवक उन्होंने िुद क नवधािसभा से अलग रखने का निणयय वलया |
 सभा में समाि के हर वगय के प्रनतनिनध थे, लेवकन तत्कालीन हस्स्तयों में से महात्मा गााँ धी सं विधान सभा के सदस् नही ं थे।
 28 अप्रै ि, 1947 को 6 रािों के प्रवतवनवध विधानसभा का वहस्सा बने I
 3 जूि 1947 की माउों बे ि य जिा के बाद, अवधकां श ररयासतों ने सभा में प्रिे श वकया।
 बाद में भारतीय अनधराज्य से मुखिम िीग भी सभा में शावमल हो गई।
सोंनवधाि सभा की कायय प्रणािी
 पहिी बै ठक- 9 वदसं बर, 1946
o केिल 21 सदस्य ों ने भाग वलया।
 मुखिम लीग ने बै ठक का बनहष्कार वकया और पानकस्ताि के रूप में एक अलग दे श की मााँग कीI
 िॉ. सखिदािों द नसन्हा विधानसभा के अस्थायी अध्यक्ष के रूप में चुने गए, (फ्ां स प्रथा की तरह )
 िॉ. राजेंद्र प्रसाद को विधानसभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में चुना गया था
 उपाध्यक्ष : एच.सी. मुखिी और िी.र्ी. कृष्णमाचारी
उद्दे श्य प्रस्ताव
 13 नदसोंबर, 1946 को पं. जवाहर िाि िे हरू द्वारा सं विधान सभा में प्रस्तु त वकया गया I
o 22 जिवरी, 1947 को सिासम्मवत से विधानसभा द्वारा स्वीकृत कर वलया गया।
 महत्पूणय प्रावधाि-
o भारत को स्वतोंत्र सोंप्रभु गणराज्य घोवषत वकया I
o भारत, इसमें शावमल होने िाले निन श भारत के क्षेत्र ों का सोंघ होगा।
o सीमाएों सोंनवधाि सभा द्वारा निधायररत की िाएं गी।
 इसके पास अवनशष्ट् शखियाों भी होंगी और सरकार और सोंघ में वनवहत प्रशासन की सभी शखिय ों और कायों का
प्रय ग करे गी।
o सोंप्रभु स्वतोंत्र भारत की सभी शखियााँ और अनधकार भारत की जिता से प्राप्त होगी I

4
o भारत के सभी ि ग ों क नदया िाएगा:
 न्याय- सामाविक, आवथाक और रािनीवतक;
 अिसर की स्स्थवत और कानून के समक्ष समानता;
 विचार, अवभव्यस्क्त, विश्वास, आस्था, उपासना, सं गवत और कमा की स्वतं त्रता
o दु वनया में अपना सही और सम्मानित स्थाि प्राप्त करना और नवश्व शाोंनत को बढािा दे ने और मािव जानत के कल्याण के
वलए अपना पूणा और इच्छु क योगदान दे ना ।
भारतीय स्वतोंत्रता अनधनियम, के बाद पररवतयि 1947
 सोंनवधाि सभा → सं विधान बनाने के वलए पूरी तरह से सोंप्रभु निकाय बनाया गया |
 दे श के वलए सोंनवधाि बिािे और सामान्य कािू ि बनाने के वलए नजम्मे दार नवधायी निकाय बन गया।
o सोंवैधानिक निकाय के रूप में काम वकया → अध्यक्ष: डॉ. रािेंद्र प्रसाद I
o एक नवधानयका के रूप में → िी.िी. मािलंकर अध्यक्ष बने (26 निंबर, 1949 तक)।
 मुखिम िीग सं विधान सभा से ह गईI
o सं विधान सभा की कुि सदस्य सोंख्या 389 से घर्ाकर 299 रह गई।
o भारतीय प्रां तों की कुल सदस् सं ख्या 296 . से घर्कर 229 हो गई
o ररयासतों की कुल सदस् सं ख्या 93 से 70 हो गईं।
सोंनवधाि सभा द्वारा निष्पानदत अन्य कायय -
 मई 1949 में भारत की राष्ट्रमोंिि की सदस्यता की पु नष्ट् की
 भारत के राष्ट्रीय ध्वज को 22 िुलाई, 1947 को अपनाया गया
 राष्ट्रगाि को 24 िनिरी, 1950 को अपनाया गया
 िॉ. राजेंद्र प्रसाद को 24 िनिरी, 1950 को भारत के पहिे राष्ट्रपनत के रूप में चुना गया
 सोंनवधाि सभा ने 24 िनिरी, 1950 को अपना अों नतम सत्र आयोवित वकया लेवकन 26 जिवरी, 1950 से 1951-52 में पहिे
आम चुिाव होने तक अों तररम सोंसद के रूप में काया िारी रखा ।

सोंनवधाि सभा की सनमनतयाों

सनमनत अध्यक्ष
सं घीय शस्क्त सवमवत िेनेहरू .एल .
सं घीय सं विधान सवमवत िेनेहरू .एल .
प्रां तीय सं विधान सवमवत सरदार पर्े ल
प्रारूप सवमवत डॉ बी आर अम्बे डकर
मौवलक अवधकारों, अल्पसं ख्यकों और िनिातीय और अपिविात क्षे त्रों पर सरदार पर्े ल
सलाहकार सवमवत
मौवलक अवधकार उपसवमवत- िे बी कृपलानी
प्रमु ि सनमनत अल्पसं ख्यक उपसवमवत- एच सी मुखिी
उत्तरपूिा सीमां त िनिातीय क्षे त्र और असम अपिविात और आं वशक रूप से - गोपीनाथ बोरदोलोई
सवमवत-अपिविात क्षे त्र उप
अपिविात और आं वशक रूप से अपिविात क्षे त्रसवमवत-उप (असम के अलािा) ए िी ठक्कर
उत्तरसवमवत-पविम सीमां त िनिातीय क्षे त्र उप-
प्रवक्रया के वनयम सवमवत डॉ रािेंद्र प्रसाद
राि सवमवत (रािों के साथ बातचीत के वलए) ििाहर लाल नेहरू
सं चालन सवमवत डॉ रािें द्र प्रसाद
वित्त और कमाचारी सवमवत डॉ रािेंद्र प्रसाद
िघु सनमनत साख सवमवत ए के अय्यर
सदन सवमवत बी पट्टावभ सीतारामय्या

5
"व्यापार का क्रमसवमवत " डॉ के एम मुंशी
राष्टरीय ध्वि पर तदथा सवमवत डॉ रािेंद्र प्रसाद
सं विधान सभा के काया सं बंधी सवमवत िी िी मािलंकर
अनुसूवचत िावत पर तदथा सवमवत एस िरादाचारी
मुख्य आयु क्तों के प्रां तों पर सवमवत पट्टावभ सीतारमैया
सं घ के सं विधान के वित्तीय प्रािधानों पर विशेषज्ञ सवमवत नवलनी रं िन सरकार
भाषाई प्रां त आयोग एस के धार
सं विधान के मसौदे की िां च के वलए विशेष सवमवत ििाहर लाल नेहरू
प्रेस दीघाा सवमवत उषा नाथ से न
नागररकता सं बंधी तदथा सवमवत एस िल्लभाचारी

प्रारूप सनमनत
 29 अगस्त 1947 को नए सं विधान का मसौदा तै यार करने के वलए स्थानपत की गई थी ।
 सनमनत के सदस्य सात -
o डॉ. बी.आर. अम्बे डकर → अध्यक्ष I
o एन गोपालस्वामी अय्यं गर I
o अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर I
o डॉ. के.एम. मुंशी I
o सै यद मोहम्मद सादु ल्ला I
o एन.माधि राि (बी.एल.वमत्र द्वारा स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे ने पर सदस् बनाए गए)I
o र्ी.र्ी. कृष्णमाचारी (1948 में डी. पी. खेतान की मृत्यु के बाद उनकी िगह ली) I
 सं विधान का पहिा प्रारूप फरिरी, 1948 में तैयार वकया गया
 दू सरा प्रारूप अक्टू बर, 1948 में प्रकावशत हुआ ।
सोंनवधाि का प्रभाव में आिा
 िॉ. बी.आर. अोंबेिकर ने 4 निं बर, 1948 को अों नतम प्रारूप पेश वकया I
 प्रारूप पहिी बार पढ़ा गया, पााँ च वदन तक आम चचाा हुई I
 सं विधान पर दू सरी बार 15 निंबर, 1948 से विचार होना शुरू हुआ I
 तीसरी बार 14 निं बर, 1949 से विचार होना शुरू हुआ I
 26 निं बर, 1949 (सोंनवधाि नदवस) को पाररत वकया गया ।
 26 निं बर 1949 को अपनाए गए प्रारूप सोंनवधाि में निनहत थे – प्रस्तािना, 395 अनुच्छेद 8 अनुसूवचयााँ I
 अनु च्छेद 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 और 393 में वनवहत नागररकता, चुनाि, अंतररम सं सद,
अस्थायी और सं क्रमणकालीन प्रािधान और सं वक्षप्त शीषाक 26 निं बर, 1949 को लागू ।
o शेष प्रावधाि 26 िनिरी, 1950 को िागू हुए।
 सोंनवधाि को अपिािे के साथ, भारतीय स्वतं त्रता अवधवनयम, 1947 और भारत सरकार अवधवनयम, 1935 के सभी प्रावधाि
निरस्त कर वदए गए।
 एब निशि ऑफ़ नप्रवी काउों नसि ज्यू ररखस्िक्शि एक्ट (1949) लागू रहा ।
सोंनवधाि सभा की आि चिा
 प्रनतनिनध निकाय िही ों - सीवमत मतावधकार द्वारा चुनाि के कारण िनादे श प्रवतवबं वबत नही ं हुआ ।
 एक सोंप्रभु निकाय िही ों - क्ोंवक इसका गठन विवर्श सरकार के प्रस्तािों के आधार पर वकया गया था और उनकी अनुमवत से
इसकी बै ठक आयोवित की गई थी।
 अमेररकी सोंनवधाि (विसमें केिल 4 महीने लगे ) की तु लना में सोंनवधाि क तैयार करिे में अनधक समय लगा।
 काोंग्रेस का प्रभुत् रहा I
 वकीि ों और राजिे ताओों का वचयस्व रहा I
 नहों दुओ ों का वचयस्व रहा I

6
 एस.एि. मुिजी = सं विधान के मुख्य प्रारूपकार (चीफ डराफ्टमैन)I
 प्रे म नबहारी िारायण रायजादा = सु लेखक (कैवलग्राफर)
o सं विधान के मूल शब्ों को इ ै निक शैिी में वलखा ।
 िों द िाि ब स और राममि हर नसन्हा सवहत शां वत वनकेतन के किाकार ों द्वारा सुश नभत और सिाया गया।
 नहों दी सोंस्करण की सुिेि = िसं त कृष्ण िै द्य I
o िन्द िाि ब स द्वारा सजाया और प्रकावशत वकया गया।
 हाथी = सं विधान सभा का प्रतीक।
o हाथी की छनव सभा की मुहर पर खुदी हुई है ।
 मूल रूप से , भारत के सं विधान ने "नहों दी भाषा में सोंनवधाि के आनधकाररक पाठ" के सं बंध में कोई प्रावधाि िही ों वकया।
o नहों दी प्रारूप- 1987 के 58िें संविधान सं शोधन अवधवनयम द्वारा बनाया गया विसने सं विधान के अंवतम भाग XXII में एक नया
अनु च्छेद 394-ए सस्म्मवलत वकया।

सोंनवधाि के कायय
 8राजिीनतक समु दाय की सीमाओों को घ नषत और पररभानषत करना ।
 रािनीवतक समुदाय की प्रकृनत और अनधकार को घ नषत और पररभानषत करना ।
 एक राष्ट्रीय समु दाय की पहचाि और मू ल् ों क व्यि करना ।
 नागररकों के अनधकार ों और कतयव्य ों की घोषणा करना और उन्हें पररभानषत करना।
 सरकार की नवधायी, काययकारी और न्यानयक शािाएाँ स्थावपत करना ।
 सरकार या उपराज्य समु दाय -ों के विवभन्न स्तरों के बीच शखि का नवतरण करना ।
 राि की आनधकाररक धानमय क पहचाि घोवषत करना |
 विशेष रूप से सामानजक, आनथयक या नवकासात्मक िक्ष् ों के वलए रािों को प्रवतबद्ध करना ।

प्रस्ताविा

“हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूणा प्रभु त्व सं पन्न, समाििादी, पंथ-वनरपेक्ष, लोकतं त्रात्मक गणराि बनाने के वलए तथा
उसके समस्त नागररकों को, सामाविक, आवथाक और रािनैवतक न्याय, विचार, अवभव्यस्क्त, विशिास, धमा और उपासना की
स्वतं त्रता, प्रवतष्ठा और अिसर की सं ता प्राप्त कराने के वलए तथा उन सब में व्यस्क्त की गररमा और राष्टर की एकता और
Constitutional Provisions
अखंडता सु वनवित करने िाली बं धुता बढाने के वलए दृढसं कल्प होकर अपनी इस सं विधान सभा में आि तारीख 26 निम्बर,
1949 ई. (वमवत मागा शीषा शुक्ला सप्तमी, सं िृत दो हिार छह विक्रमी) को एतद्द्िारा इस संविधान को अंगीकृत, अवधवनयवमत
और आत्मसमवपात करते हैं ।”

 सोंनवधाि का पररचय या प्रस्तािना,सोंनवधाि के निए नदशानिदे श प्रदान करता है ।


 सं विधान के आधार के रूप में बु नियादी दशय ि और मौनिक मूल् ों का प्रतीक है ।
 सं विधान के सोंस्थापक ों के सपनों और आकाों क्षाओों को दशाय ता है।
 शेष सोंनवधाि के लागू होने के बाद अनधनियनमत वकया गया था।
 ि ही नवधानयका की शखि का स्र त है और ि ही कोई निषे धक।
 गैर-न्यायसों गत कािू ि की अदाित ों में िागू करिे य ग्य िही ों।
 बु नियादी ढााँ चे को बदले नबिा सोंश नधत वकया िा सकता है ।
प्रस्ताविा के मूि तत्
 सं विधान के अनधकार का स्त्र त → भारत के लोग।
 भारत की प्रकृनत → भारत को सं प्रभु , समाििादी, धमावनरपेक्ष लोकतां वत्रक और गणतां वत्रक राि घोवषत करता है ।
 सोंनवधाि के उद्दे श्य → न्याय, स्वतं त्रता, समwता और बं धुत्व
 सोंनवधाि िागू ह िे की नतनथ - 26 निं बर, 1949 ।

7
प्रस्ताविा में प्रमुि शब्द
 सोंप्रभु ता - पूणा सं प्रभु सरकार िह है िो वकसी अन्य शखि द्वारा नियोंनत्रत िही ों होती है तथा अपने आों तररक या
बाहरी मामि ों के निष्पादि में स्वतोंत्र होती है ।
o सोंप्रभु हुए वबना वकसी दे श का अपिा सोंनवधाि िही ों हो सकता।
o भारत एक सोंप्रभु दे श है ।
o यह वकसी भी बाहरी नियोंत्रण से मु ि है ।
 समाजवादी - मूि सोंनवधाि का नहस्सा िही ों।
o 42वें सोंश धि अनधनियम द्वारा िोड़ा गया।
o आनथयक नियोिन के सं दभा में उपय ग वकया िाता है ।
o असमािताओों को दू र करने , सभी के वलए न्यू ितम बु नियादी आवश्यकताओों का प्रावधाि, समान काम के वलए समाि वे ति
िैसे आदशों को प्राप्त करने की प्रवतबद्धता।
 धमय निरपे क्षता - 42वें सोंनवधाि सोंश धि अनधनियम 1976 द्वारा िोड़ा गया।
o भारत ि तो धानमय क है , ि अधानमय क है और ि ही धमय नवर धी है ।
o क ई राष्ट्रीय धमय नही-ं राि वकसी विशेष धमा का समथान नही ं करता है ।
 ि कताों नत्रक गणतोंत्र - सरकार ि ग ों द्वारा चुनी िाती है और ि ग ों के प्रनत नजम्मेदार और जवाबदे ह होती है ।
o ि कताों नत्रक प्रावधाि - सािा भौवमक ियस्क मतावधकार, चुनाि, मौवलक अवधकार और विम्मेदार सरकार।
o गणतोंत्र - राि का वनिाा वचत प्रमु ख (राष्टरपवत → प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से वनिाा वचत) विर्े न िैसा िं शानु गत शासक नही।ं
 न्याय - लोगों को भोिन, िस्त्र, आिास, वनणा य लेने में भागीदारी और मनुष्य के रूप में गररमा के साथ िीने के बु नियादी अनधकार ों
आवद प्रदाि करिा विसके िह हकदार हैं ।
o न्याय के तत्वों को रूसी क्राों वत (1917) से वलया गया है ।
o न्याय के तीि आयाम- सामाविक, आवथाक और रािनीवतक।
 सामानजक न्याय - िावत, रं ग, नि, धमा, वलंग आवद के आधार पर वबना वकसी सामाविक भे दभाि के सभी नागररकों के
साथ समान व्यिहार।
 आनथयक न्याय - आवथाक कारकों पर कोई भे दभाि नही।ं

सामाविक न्याय + आवथाक न्याय = अनुपाती न्याय'

 राजिीनतक न्याय - सभी नागररकों को समान रािनीवतक अवधकार, सभी रािनीवतक कायाा लयों में समान पहुाँ च और सरकार
तक अपनी बात रखने का अवधकार ।
 स्वतोंत्रता – विचार और अवभव्यस्क्त की स्वतं त्रता; व्यस्क्तयों की गवतविवधयों पर प्रवतबं ध का अभाि और साथ ही व्यस्क्तगत व्यस्क्तत्व
के विकास के अिसर प्रदान करना।
o फ्ाोंसीसी क्राोंनत (1789-1799) से वलया गया।
 समता - समाि के वकसी भी िगा के वलए नवशेष नवशेषानधकार ों का अभाव और नबिा नकसी भेदभाव के सभी व्यस्क्तयों के वलए
पयाय प्त अवसर ों का प्रावधाि।
o समािता के तीि आयाम- नागररक, रािनीवतक और आवथाक।
 बों धुत् - भाईचारे की भािना; एकल नागररकता की व्यिस्था और अनु च्छेद 51ए (मौवलक कता व्य) द्वारा बं धुत्व की भािना को बढािा
दे ता है ।
सोंनवधाि के एक भाग के रूप में प्रस्ताविा

बे रुबािी सोंघ मामिा, 1960 केशवािोंद भारती बिाम केरि राज्य केंद्र सरकार बिाम
मामिा, 1973 एिआईसी ऑफ इों निया
मामिा, 1995

सिोच्च न्यायालय ने कहा वक 'प्रस्तािना सिोच्च न्यायालय ने कहा वक "सं विधान की सिोच्च न्यायालय ने माना वक प्रस्तािना
वनमाा ताओं के मस्स्तष्क को खोलने की प्रस्तािना को अब सं विधान का वहस्सा माना सं विधान का अवभन्न अंग है , लेवकन भारत
कुंिी है ' लेवकन इसे सं विधान का वहस्सा िाएगा। प्रस्तािना सिोच्च शस्क्त या वकसी

8
नही ं माना िा सकता। इसवलए यह प्रवतबं ध या वनषेध का स्रोत नही ं है , लेवकन यह में कानून की अदालत में लागू करने योग्य
कानून की अदालत में लागू करने योग्य सं विधान की विवधयों और प्रािधानों की व्याख्या नही ं है ।
नही ं है । में महत्वपूणा भू वमका वनभाती है ।"

सोंनवधाि की मुख्य नवशे षताएाँ


 सबसे िों बा निखित सोंनवधाि - इसमें शावमल हैं -
o राज्य ों और केंद्र और उनके अोंतसंबोंध ों के वलए अिग प्रावधाि।
o दु वनया के कई स्र त ों और सोंनवधाि ों से उधार निए गए प्रािधान।
क्र. सों. दे श नवशेषताएों
1. ऑटर े वलया  समिती सू ची
 व्यापार, िावणि और समागम की स्वतं त्रता
 सं सद के दोनों सदनों की संयुक्त बै ठक
2. कनाडा  सशक्त केंद्र के साथ सं घीय व्यिस्था
 अिवशष्ट शस्क्तयों का केंद्र में वनवहत होना
 केंद्र द्वारा राि के रािपालों की वनयु स्क्त
 उच्चतम न्यायालय का परामशी न्याय वनणा यन
3. आयरलैंड  राि नीवत के वनदे शक वसद्धां त
 रािसभा के सदस्ों का नामां कन
 राष्टरपवत के चुनाि की विवध
4. िापान  विवध द्वारा स्थावपत प्रवक्रया
5. सोवियत सं घ  मौवलक कता व्य
(रूस)  प्रस्तािना में न्याय सामाविक), आवथाक और रािनीवतकका आदशा (
6. यू के  सं सदीय शासन
 विवध का शासन
 विधायी प्रवक्रया
 एकल नागररकता
 मंवत्रमंडल प्रणाली
 परमावधकार लेख
 सं सदीय विशेषावधकार
 वद्वसदनिाद
7. अमेररका  मौवलक अवधकार
 न्यायपावलका की स्वतं त्रता
 न्यावयक समीक्षा
 राष्टरपवत का महावभयोग
 सिोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हर्ाना
 उपराष्टरपवत का पद
8. िमानी (िीमर)  आपातकाल के समय मौवलक अवधकारों का स्थगन
9. दवक्षण अफ्ीका  भारतीय सं विधान में सं शोधन की प्रवक्रया
 रािसभा के सदस्ों का चुनाि
10. फ्ां स  गणतं त्र
 प्रस्तािना में स्वतं त्रता, समानता और बं धुत्व के विचार

o अिु सूनचत जानत, अनु सूवचत जिजानत, मनहिाओों, बि ों और नपछडे क्षेत्र ों के वलए अिग प्रावधाि।
o अवधकारों की नवस्तृत सूची, िीपीएसपी और प्रशासि प्रनक्रयाओों का नववरण।

9
o मू ि रूप से )1949) में एक प्रस्ताविा, 395 अिुच्छेद )22 भागों में विभावित और (8 अिुसूनचयाों थी।ं
o वतयमाि में, इसमें एक प्रस्ताविा, 25 भाग, 448 अिुच्छेद, 12 अिु सूनचयााँ और अब तक के 104 सोंश धि शावमल हैं ।
 कठ रता और िचीिे पि का अिूठा नमश्रण -
o कुछ वहस्सों में सामान्य कािू ि बनाने की प्रनक्रया द्वारा सोंश धि वकया िा सकता है , िबवक कुछ प्रािधानों को उस सदन की
कुि सदस्यता के बहुमत से और उस सदन के उपखस्थत और मतदाि करने िाले सदस्ों के कम से कम द नतहाई सदस्य -ों
के बहुमत से सोंश नधत वकया िा सकता है ।
o कुछ सोंश धि ों क राष्ट्रपनत के समक्ष स्वीकृनत के वलए प्रस्तु त वकए िाने से पहले कम से कम आधे राज्य ों के नवधािमों िि ों
द्वारा अिुसमनथयत करने की भी आवश्यकता होती है ।
 भारत एक सोंप्रभु, समाजवादी, धमय निरपे क्ष, ि कताों नत्रक और गणतोंत्र के रूप में -
o भारत सावयभौनमक वयस्क मतानधकार के आधार पर अपने निवाय नचत प्रनतनिनधय ों के माध्यम से अपने ि ग ों द्वारा शानसत
होता है ।
 सरकार की सोंसदीय प्रणािी -
o सं सद मों नत्रपररषद् के कामकाज को नियोंनत्रत करती है
o काया पावलका नवधानयका के प्रनत उत्तरदायी होती है और िब तक उसे नवधानयका का नवश्वास प्राप्त है तब तक िह सत्ता में
बनी रहती है ।
 भारत के राष्ट्रपनत, िो पाों च साि तक पद पर बने रहते हैं , िाममात्र के या सोंवैधानिक प्रमु िहोते हैं । (काया कारी)
 प्रधान मंत्री वास्तनवक काययकारी और मोंनत्रपररषद् के (लोकसभा) िो सामूवहक रूप से वनचले सदन) प्रनत नजम्मेदार होता
हैं के प्रमुख होते हैं । (
 एकि िागररकता -
o सं घ द्वारा एकि िागररकता प्रदान की िाती है और पूरे भारत में सभी राज्य ों द्वारा मान्यता प्राप्त है ।
 सावयभौनमक वयस्क मतानधकार -
o यह सावयभौनमक वयस्क मतानधकार की विवध के माध्यम से भारत में राजिीनतक समािता स्थावपत करता है िो 'एक व्यखि
एक व ' के आधार पर काया करता है ।
o प्रत्येक भारतीय विसकी आयु 18 वषय या उससे अवधक है , जानत, निों ग, िि, धमय या खस्थनत के बाििूद चुनाि में मतदान करने
का हकदार है ।
 स्वतोंत्र और एकीकृत न्यानयक प्रणािी -
o काययपानिका और नवधानयका के प्रभाव से मु ि।
o उि न्यायािय और अन्य वनचली अदालतें सवोि न्यायािय है के नीचे आती हैं ।
 मौनिक अनधकार, मौनिक कतयव्य और िीनत निदे शक नसद्ाों त -
o मौवलक अवधकार अपररवतयिीय िही ों हैं , लेवकन स्वयं सं विधान द्वारा पररभानषत सीमाओों के अधीि हैं और न्यायलय के माध्यम
से लागू वकये िा सकते हैं ।
o राि के िीनत निदे शक नसद्ाों त शासन के सं बंध में रािों द्वारा पालन वकए िाने िाले नदशानिदे श हैं और न्यायलय के माध्यम
से िागू िही ों वकये िा सकते ।
o 42 वें सोंश धि द्वारा िोड़े गए मौवलक कतयव्य िैनतक नववेक पर आधाररत हैं विनका िागररक ों क पािि करना चावहए।
 एकात्मकता की ओर झुकी हुई सोंघीय प्रणािी -
o भारत नविाशकारी राज्य ों का एक अनविाशी सोंघ है विसका अथा है वक यह आपातकाि के समय एकात्मक चररत्र प्राप्त
करता है ।
 न्यानयक सवोिता और सोंसदीय सोंप्रभुता के मध्य समन्वय -
o न्यानयक समीक्षा की शस्क्त के साथ एक स्वतोंत्र न्यायपानिका।
भारतीय सोंनवधाि के भाग और अिुसूनचयााँ

भाग नवषय - वस्तु सोंबोंनधत अिुच्छेद


भाग I सं घ और उसका क्षे त्र अनु च्छेद 1 से 4
भाग II नागररकता अनु च्छेद 5 से 11
भाग III मौवलक अवधकार अनु च्छेद 12 से 35
भाग IV राि के नीवत वनदे शक तत्व अनु च्छेद 36 से 51

10
भाग IVA मौवलक कत्ताव्य अनु च्छेद 51A
भाग V केंद्र सरकार अनु च्छेद 52 से 151
अध्याय I – काया पावलका (अनुच्छेद 52 से 78)
अध्याय II – सं सद (अनु च्छेद 79 से 122)
अध्याय III – राष्टरपवत की विधायी शस्क्तयााँ (अनुच्छेद 123)
अध्याय IV -केन्द्रीय न्यायपावलका(अनु च्छेद 124 से 147)
अध्याय V – भारत के वनयं त्रक और महालेखा परीक्षक (अनुच्छेद 148 से 151)
भाग VI राि सरकार अनु च्छेद 152 से 237
अध्याय I – सामान्य वनयम(अनु च्छेद152)
अध्याय II – काया पावलका (अनुच्छेद 153 से 167)
अध्याय III – राि विधावयका (अनुच्छेद 168 से 212)
अध्याय IV – रािपाल की विधायी शस्क्तयााँ (अनुच्छेद 213)
अध्याय V – उच्च न्यायालय(अनु च्छेद 214 से 232)
अध्याय VI – अधीनस्थ न्यायालय(अनु च्छेद 233 से 237)
भाग VII पहली अनुसूची के B भाग में रािों के वनयम,
सं विधान द्वारा वनरवसत (7 िां संशोधन अवधवनयम 1956)
भाग VIII केन्द्र शावसत प्रदे श अनु च्छेद 239 से 242
भाग IX पंचायत अनु च्छेद 243 से 243O
भाग IXA नगरपावलकाएाँ अनु च्छेद 243P से 243ZG
भाग IXB सहकारी सवमवतयााँ अनु च्छेद 243H से 243ZT
भाग X अनुसूवचत और िनिातीय क्षे त्र अनु च्छेद 244 से 244A
भाग XI सं घ और रािों के बीच सं बंध अनु च्छेद 245 से 263
अध्याय I -विधायी सं बंध (अनुच्छेद 245 से 255)
अध्याय II – प्रशासवनक सं बंध (अनुच्छेद 256 से 263)
भाग XII वित्त, सं पवत्त, अनुबंध और िाद अनु च्छेद 264 से 300A
अध्याय I – वित्त(अनु च्छेद 264 से 291)
अध्याय II – ऋण (अनुच्छेद 292 से 293)
अध्याय III – सं पवत्त, अनुबंध, अवधकार, दे यताएाँ , दावयत्व और सूर्(अनु च्छेद
294 से 300)
अध्याय IV – सं पवत्त का अवधकार(अनु च्छेद 300-A)
भाग XIII भारत के क्षे त्र के भीतर व्यापार, िावणि और अन्तराा िीय सम्बन्ध अनु च्छेद 301 से 307
भाग XIV सं घ और रािों के अधीन से िाएाँ अनु च्छेद 308 से 323
भाग XIVA न्यायावधकरण अनु च्छेद 323A से 323B
भाग XV चुनाि / वनिाा चन अनु च्छेद 324 से 329A
भाग XVI कुछ िगों के सं बंध में विशेष प्रािधान अनु च्छेद 330 से 342
भाग XVII आवधकाररक भाषा अनु च्छेद 343 से 351
अध्याय I – सं घ की भाषा (अनुच्छेद 343 से 344)
अध्याय II – क्षे त्रीय भाषाएाँ (अनु च्छेद 345 से 347)
अध्याय III-उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, आवद की भाषा(अनुच्छेद 348
से 349)
अध्याय IV-विशेष वनदे श (अनु च्छेद 350 से 351)
भाग XVIII आपातकाल के प्रािधान अनु च्छेद 352 से 360
भाग XIX विविध अनु च्छेद 361 से 367
भाग XX सं विधान सं शोधन अनु च्छेद 368
भाग XXI अस्थायी, सं क्रमणकालीन (र्र ॉविशनल) और विशेष प्रािधान अनु च्छेद 369 से 392
भाग XXII लघु उपावध, प्रारं भ , वहन्दी में आवधकाररक पाठ और वनरसन अनु च्छेद 393 से 395

11
अनुसूवचयााँ सं विधान में सू वचयााँ हैं िो नौकरशाही गवतविवध और सरकार की नीवत को िगीकृत और सारणीबद्ध करती हैं ।
1. रािों के नाम और उनके क्षे त्रीय अवधकार क्षे त्र।
प्रथम अिु सूची
2. केन्द्र शावसत प्रदे शों के नाम और उनकी सीमा।
इसमें भारत राि-व्यिस्था के विवभन्न पदावधकाररयों (राष्टरपवत, रािपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष,
राि सभा के सभापवत एिं उपसभापवत, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान पररषद् के सभापवत एिं
नद्वतीय अिु सूची
उपसभापवत, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के वनयं त्रक महालेखा परीक्षक
आवद) को प्राप्त होने िाले िे तन, भत्ते और पेंशन का उल्ले ख वकया गया है ।
इसमें विवभन्न पदावधकाररयों (राष्टरपवत, उपराष्टरपवत, मंत्री, उच्चतम एिं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-
तृतीय अिु सूची
ग्रहण के समय ली िाने िाली शपथ का उल्ले ख है ।
चौथी अिुसूची इसमें विवभन्न रािों तथा सं घीय क्षे त्रों की राि सभा में प्रवतवनवधत्व का वििरण वदया गया है ।

पाों चवी अिुसूची इसमें विवभन्न अनुसूवचत क्षे त्रों और अनुसूवचत िनिावत के प्रशासन और वनयं त्रण के बारे में उल्लेख है ।

छठी अिु सूची इसमें असम, मेघालय, वत्रपुरा, वमिोरम रािों के िनिावत क्षे त्रों के प्रशासन के बारे में प्रािधान है ।
इसमें केन्द्र एिं रािों के बीच शस्क्तयों के बं र्िारे के बारे में बताया गया है , इसके अन्तगता तीन सू वचयााँ है - सं घ
सातवी ों अिु सूची
सू ची, राि सू ची एिं समिती सू ची।
इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्ले ख वकया गया है । मूल रूप से आं ठिी ं अनुसूची में 14 भाषाएाँ थी,ं 1967 ई.
आठवी ों अिुसूची में वसं धी को और 1992 ई. में कोंकणी, मवणपुरी तथा नेपाली को आं ठिी ं अनुसूची में शावमल वकया गया।
2004 ई. में मैवथली, सं थाली, डोगरी एिं बोडो को आं ठिी ं अनुसूची में शावमल वकया गया।
सं विधान में यह अनुसूची प्रथम सं विधान सं शोधन अवधवनयम, 1951 के द्वारा िोड़ी गई। इसके अंतगा त राि द्वारा
िौवी ों अिु सूची सं पवत्त के अवधग्रहण की विवधयों का उल्लेख वकया गया है । इन अनुसूची में सस्म्मवलत विषयों को न्यायालय में
चुनौती नही ं दी िा सकती है । ितामान में इस अनुसूची में 284 अवधवनयम हैं ।
दसवी ों अिुसूची यह सं विधान में 52िें सं शोधन, 1985 के द्वारा िोड़ी गई है । इसमें दल-बदल से सं बंवधत प्रािधानों का उल्लेख है ।
यह अनुसूची सं विधान में 73िें सं िैधावनक सं शोधन )1993) के द्वारा िोड़ी गई है । इसमें पंचायतीराि सं स्थाओं को
ग्यारहवी ों अिुसूची
काया करने के वलए 29 विषय प्रदान वकए गए हैं ।
यह अनुसूची 74िें सं िैधावनक सं शोधन )1993) के द्वारा िोड़ी गई है । इसमें शहरी क्षे त्र की स्थानीय स्वशासन
बारहवी ों अिुसूची
सं स्थाओं को काया करने के वलय 18 विषय प्रदान वकए गए हैं ।

12

You might also like