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भारतीय दण्ड संहिता

(1860 का अहिहियम संखयांक 45)1


[6 अक्‍तब
ू र, 1860]
अध्याय 1

प्रस्ताविा
उद्देहिका—2[भारत] के हिए एक सािारण दण्ड संहिता का उपबंि करिा समीचीि िै; अत: यि हिम्‍िहिहित रूप में
अहिहियहमत ककया जाता िै :—
1. संहिता का िाम और उसके प्रवतति का हवस्तार—यि अहिहियम भारतीय दण्ड संहिता कििाएगा, और इसका 3[हवस्तार 4***
सम्पूणत भारत पर िोगा] ।
2. भारत के भीतर ककए गए अपरािों का दण्ड—िर व्यहक्‍त इस संहिता के उपबन्िों के प्रहतकू ि िर कायत या िोप के हिए हजसका
वि 5[भारत] 6*** के भीतर दोषी िोगा, इसी संहिता के अिीि दण्डिीय िोगा अन्यथा ििीं ।
3. भारत से परे ककए गए ककन्तु उसके भीतर हवहि के अिुसार हवचारणीय अपरािों का दण्ड—8[भारत] से परे ककए गए अपराि
के हिए जो कोई व्यहक्‍त ककसी 7[भारतीय हवहि] के अिुसार हवचारण का पात्र िो, 8[भारत] से परे ककए गए ककसी कायत के हिए उससे इस
संहिता के उपबन्िों के अिुसार ऐसा बरता जाएगा, मािो वि कायत 5[भारत] के भीतर ककया गया था ।
9
[4. राज्यक्षेत्रातीत अपरािों पर संहिता का हवस्तार—इस संहिता के उपबंि—
10
[(1) भारत से बािर और परे ककसी स्थाि में भारत के ककसी िागररक द्वारा ;
(2) भारत में रहजस्रीकृ त ककसी पोत या हवमाि पर, चािे वि किीं भी िो ककसी व्यहक्‍त द्वारा, ककए गए ककसी अपराि को
भी िागू िै ;]
[(3)‍भारत‍में‍अवहस्‍थत‍कं प्‍यूटर‍संसािि‍को‍िक्ष्‍य‍बिाकर‍भारत‍के ‍बािर‍और‍परे ‍ककसी‍स्‍थाि‍पर‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍
11

अपराि‍का‍ककया‍जािा‍।]

1
भारतीय‍ दंड‍ संहिता‍का‍ हवस्तार‍ बरार‍ हवहि‍ अहिहियम, 1941 (1941‍ का‍4) द्वारा‍ बरार‍ पर‍ ककया‍ गया‍ िै‍ और‍इसे‍ हिम्‍िहिहित‍ स्थािों‍ पर‍ प्रवृत्त‍ घोहषत‍ ककया‍‍‍‍
गया‍िै‍:—
संथाि‍परगिा‍व्यवस्थापि‍हवहियम‍(1872‍का‍3) की‍िारा‍2‍द्वारा‍संथाि‍परगिों‍पर‍;
पंथ‍हपपिोदा, हवहि‍हवहियम, 1929 (1929‍का‍1) की‍िारा‍2‍तथा‍अिुसूची‍द्वारा‍पंथ‍हपपिोदा‍पर‍;
िोंडमि‍हवहि‍हवहियम, 1936 (1936‍का‍4) की‍िारा‍3‍और‍अिुसूची‍द्वारा‍िोंडमि‍हजिे‍पर‍; और
आंगि ु ‍हवहि‍हवहियम, 1936 (1936‍का‍5) की‍िारा‍3‍और‍अिुसूची‍द्वारा‍आंगि ु ‍हजिे‍पर‍;
इसे‍अिुसूहचत‍हजिा‍अहिहियम, 1874 (1874‍का‍14) की‍िारा‍3 (क)‍के ‍अिीि‍हिम्‍िहिहित‍हजिों‍में‍प्रवृत्त‍घोहषत‍ककया‍गया‍िै, अथातत— ्
संयुक्‍त‍प्रान्त‍तराई‍हजिे—देहिए‍भारत‍का‍राजपत्र‍(अंग्रेजी), 1876, भाग‍1, पृ० 505, िजारीबाग, िोिारदग्गा‍के ‍हजिे‍[जो‍अब‍रांची‍हजिे‍के ‍िाम‍से‍
ज्ञात‍िैं,—देहिए‍किकत्ता‍राजपत्र‍(अंग्रेजी), 1899, भाग‍1, पृ० 44‍और‍मािभूम‍और‍परगिा]‍।‍दािभूम‍तथा‍ससंिभूम‍हजिों‍में‍ कोिािि—देहिए‍भारत‍का‍
राजपत्र‍(अंग्रज े ी), 1881, भाग‍1, पृ० 504‍।
उपरोक्‍त‍ अहिहियम‍ की‍ िारा‍ 5 के ‍ अिीि‍ इसका‍ हवस्तार‍ िुिाई‍ पिाह़ियों‍ पर‍ ककया‍ गया‍ िै—देहिए‍ भारत‍ का‍ राजपत्र‍ (अंग्रेजी), 1898, भाग‍ 2, ‍‍‍‍‍
पृ० 345‍।
इस‍अहिहियम‍का‍हवस्तार, गोवा, दमण‍तथा‍दीव‍पर‍1962 के ‍हवहियम‍सं० 12 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍; दादरा‍तथा‍िागर‍िवेिी‍पर‍1963 के ‍
हवहियम‍सं० 6 की‍िारा‍2 तथा‍अिुसूची‍1 द्वारा‍; पांहडचेरी‍पर‍1963 के ‍हवहियम‍सं० 7 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍और‍िकादीव, हमहिकोय‍और‍
अमीिदीवी‍द्वीप‍पर‍1965 के ‍हवहियम‍सं० 8 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍ककया‍गया‍‍‍िै‍।‍
2
‍“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
3
मूि‍िब्दों‍का‍संिोिि‍अिुक्रमिः‍1891 के ‍अहिहियम‍सं० 12 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1, भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937, भारतीय‍स्वतंत्रता‍
(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 और‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍ककया‍गया‍िै‍।‍‍
4
2019‍के ‍अहिहियम‍सं०‍34‍की‍िारा‍95‍‍और‍पांचवी‍अिुसूची‍द्वारा‍(31-10-2019‍से) “जम्मू-कश्मीर राज्य के हसवाय” िब्‍दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
5
“उक्‍त‍राज्यक्षेत्र”‍मूि‍िब्दों‍का‍संिोिि‍अिुक्रमिः‍‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937, भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍
अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍ककया‍गया‍िै‍।
6
1891 के ‍अहिहियम‍सं० 12 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“पर‍या‍1861 की‍मई‍के ‍उक्‍त‍प्रथम‍कदि‍के ‍पश्‍चात्”‍िब्द‍और‍अंक‍हिरहसत‍।
7
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“सपररषद्‍भारत‍के ‍गवितर‍जिरि‍द्वारा‍पाररत‍हवहि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
8
“उक्‍त‍राज्यक्षेत्रों‍की‍सीमा”‍मूि‍िब्दों‍का‍संिोिि‍अिुक्रमिः‍‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937, भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍
अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍ककया‍गया‍िै‍।
9
1898 के ‍अहिहियम‍सं० 4 की‍िारा‍2 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
10
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍िण्ड‍(1) से‍िण्ड‍(4) के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
11
2009 के ‍अहिहियम‍सं०‍10 की‍िारा‍51 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2

1
[स्पष्‍टीकरण—इस िारा में,—
(क) “अपराि” िब्द के अन्तगतत भारत से बािर ककया गया ऐसा िर कायत आता िै, जो यकद भारत में ककया‍गया‍िोता
तो इस संहिता के अिीि दंडिीय िोता ।
(ि)‍“कं प्‍यूटर‍संसािि”‍पद‍का‍विी‍अथत‍ िै,‍जो‍सूचिा‍प्रौद्योहगकी‍अहिहियम, 2000‍(2000 का 21)‍की‍िारा 2‍की‍
उपिारा‍(1) के ‍िंड‍(ट)‍में‍िै‍;]

2
[दृष्ट‍ ांत]
*** क. 4[जो 5[भारत का िागररक िै]] उगांडा में ित्या करता िै । वि 6[भारत] के ककसी स्थाि में, जिां वि पाया जाए, ित्या के
3

हिए हवचाररत और दोषहसद्ध ककया जा सकता िै ।


7
* * * * *
[5. कु छ हवहियों पर इस अहिहियम द्वारा प्रभाव ि डािा जािा—इस अहिहियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा के
8

आकिसरों, सैहिकों, िौसैहिकों या वायु सैहिकों द्वारा हवरोि और अहभत्यजि को दहण्डत करिे वािे ककसी अहिहियम के उपबन्िों, या
ककसी हविेष या स्थािीय हवहि के उपबन्िों, पर प्रभाव ििीं डािेगी ।]
अध्याय 2

सािारण स्पष्‍टीकरण
6. संहिता में की पररभाषाओं का अपवादों के अध्यिीि समझा जािा—इस संहिता में सवतत्र, अपराि की िर पररभाषा, िर दण्ड
उपबंि और, िर ऐसी पररभाषा या दण्ड उपबंि का िर दृष्‍टांत, “सािारण अपवाद” िीषतक वािे अध्याय में अन्तर्वतष्‍ट अपवादों के
अध्यिीि समझा जाएगा, चािे उि अपवादों को ऐसी पररभाषा, दण्ड उपबंि या दृष्‍टांत में दुिराया ि गया िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) इस संहिता की वे िाराएं, हजिमें अपरािों की पररभाषाएं अन्तर्वतष्‍ट िैं, यि अहभव्यक्‍त ििीं करती कक सात वषत से कम आयु
का हििु ऐसे अपराि ििीं कर सकता, ककन्तु पररभाषाएं उस सािारण अपवाद के अध्यिीि समझी जािी िैं हजसमें यि उपबहन्ित िै कक
कोई बात, जो सात वषत से कम आयु के हििु द्वारा की जाती िै, अपराि ििीं िै ।
(ि) क, एक पुहिस आकिसर, वारण्ट के हबिा, य को, हजसिे ित्या की िै, पक़ि िेता िै । यिां क सदोष परररोि के अपराि का
दोषी ििीं िै, क्योंकक वि य को पक़ििे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध था, और इसहिए यि मामिा उस सािारण अपवाद के अन्तगतत आ
जाता िै, हजसमें यि उपबहन्ित िै कक “कोई बात अपराि ििीं िै जो ककसी ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाए जो उसे करिे के हिए हवहि द्वारा
आबद्ध िो”।
7. एक बार स्पष्‍टीकृ त पद का भाव—िर पद, हजसका स्पष्‍टीकरण इस संहिता के ककसी भाग में ककया गया िै, इस संहिता के िर
भाग में उस स्पष्‍टीकरण के अिुरूप िी प्रयोग ककया गया िै ।
8. सिंग—पुस्‍िंग वाचक िब्द जिां प्रयोग ककए गए िैं, वे िर व्यहक्‍त के बारे में िागू िैं, चािे िर िो या िारी ।
9. वचि—जब तक कक संदभत से तत्‍प्रहतकू ि प्रतीत ि िो, एकवचि द्योतक िब्दों के अन्तगतत बहुवचि आता िै, और बहुवचि
द्योतक िब्दों के अन्तगतत एकवचि आता िै ।
10. “पुरुष”, “स्‍त्री”—“पुरुष” िब्द ककसी भी आयु के मािव िर का द्योतक िै ; “स्‍त्री” िब्द ककसी भी आयु की मािव िारी का
द्योतक िै ।
11. व्यहक्‍त—कोई भी कपिी या संगम, या व्यहक्‍त हिकाय चािे वि हिगहमत िो या ििीं, “व्यहक्‍त” िब्द के अन्तगतत आता िै ।
12. िोक—िोक का कोई भी वगत या कोई भी समुदाय “िोक” िब्द के अन्तगतत आता िै ।
13. [“क्‍वीि” की पररभाषा ।]—हवहि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा हिरहसत ।

1
2009 के ‍अहिहियम‍सं० 10‍की‍िारा‍51 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1957 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“दृष्‍टांत”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1957 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“(क)”‍‍कोष्‍ठकों‍और‍अक्षर‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 द्वारा‍“कोई‍कु िी‍जो‍भारत‍का‍मूि‍िागररक‍िै”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“भारतीय‍अहिवास‍का‍कोई‍‍हिरटि‍िागररक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍।
7
‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍दृष्ट‍ ांत‍(ि), (ग)‍तथा‍(घ)‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
8
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍िारा‍5 के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3

[14. “सरकार का सेवक”—“सरकार का सेवक” िब्द सरकार के प्राहिकार के द्वारा या अिीि, भारत के भीतर उस रूप में बिे
1

रििे कदए गए, हियुक्‍त ककए गए, या हियोहजत ककए गए ककसी भी आकिसर या सेवक के द्योतक िैं ।]
15. [“हिरटि इहण्डया” की पररभाषा ।]—हवहि अिुकूिि आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत ।
16. [“गवितमटें आि इहण्डया” की पररभाषा ।]—भारत िासि (भारतीय हवहि अिुकूिि) आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत ।
2
[17. सरकार—“सरकार” के न्रीय सरकार या ककसी 3*** राज्य की सरकार का द्योतक िै ।]
4
[18. भारत—“भारत” से जम्मू-कश्मीर राज्य के हसवाय भारत का राज्यक्षेत्र अहभप्रेत िै ।]
19. न्यायािीि—“न्यायािीि” िब्द ि के वि िर ऐसे व्यहक्‍त का द्योतक िै, जो पद रूप से न्यायािीि अहभहित िो, ककन्तु उस
िर व्यहक्‍त का भी द्योतक िै,
जो ककसी हवहि-कायतवािी में, चािे वि हसहवि िो या दाहण्डक, अहन्तम हिणतय या ऐसा हिणतय, जो उसके हवरुद्ध अपीि ि िोिे पर
अहन्तम िो जाए या ऐसा हिणतय, जो ककसी अन्य प्राहिकारी द्वारा पुष्‍ट ककए जािे पर अहन्तम िो जाए, देिे के हिए, हवहि द्वारा सिक्‍त
ककया गया िो, अथवा
जो उस व्यहक्‍त हिकाय में से एक िो, जो व्यहक्‍त हिकाय ऐसा हिणतय देिे के हिए हवहि द्वारा सिक्‍त ककया गया िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) सि् 1859 के अहिहियम 10 के अिीि ककसी वाद में अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा किक्टर न्यायािीि िै ।
(ि) ककसी आरोप के संबंि में, हजसके हिए उसे जुमातिा या कारावास का दण्ड देिे की िहक्‍त प्राप्‍त िै, चािे उसकी अपीि िोती िो
या ि िोती िो, अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा महजस्रेट न्यायािीि िै ।
(ग) मरास संहिता के सि् 51816 के हवहियम 7 के अिीि वादों का हवचारण करिे की और अविारण करिे की िहक्‍त रििे वािी
पंचायत का सदस्य न्यायािीि िै ।
(घ) ककसी आरोप के संबंि में, हजिके हिए उसे के वि अन्य न्यायािय को हवचारणाथत सुपुदत करिे की िहक्‍त प्राप्‍त िै, अहिकाररता
का प्रयोग करिे वािा महजस्रेट न्यायािीि ििीं िै ।
20. न्यायािय—“न्यायािय” िब्द उस न्यायािीि का, हजसे अके िे िी को न्याहयकत: कायत करिे के हिए हवहि द्वारा सिक्‍त
ककया गया िो, या उस न्यायािीि-हिकाय का, हजसे एक हिकाय के रूप में न्याहयकत: कायत करिे के हिए हवहि द्वारा सिक्‍त ककया गया
िो, जबकक ऐसा न्यायािीि या न्यायािीि-हिकाय न्याहयकत: कायत कर रिा िो, द्योतक िै ।
दृष्ट‍ ांत
मरास संहिता के सि् 51816 के हवहियम 7 के अिीि कायत करिे वािी पंचायत, हजसे वादों का हवचारण करिे और अविारण
करिे की िहक्‍त प्राप्‍त िै, न्यायािय िै ।
21. िोक सेवक—“िोक सेवक” िब्द उस व्यहक्‍त के द्योतक िैं जो एतहस्मि् पश्‍चात् हिम्‍िगत वणतिों में से ककसी में आता ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
िै, अथातत् :—
6
* * * * *
दूसरा—7[भारत की सेिा] , 8[िौसेिा या वायु सेिा] का िर आयुक्‍त आकिसर ;
9
[तीसरा—िर न्यायािीि हजसके अन्तगतत ऐसा कोई भी व्यहक्‍त आता िै जो ककन्िीं न्यायहिणातयक कृ त्यों का चािे स्वयं या
व्यहक्‍तयों के ककसी हिकाय के सदस्य के रूप में हिवतिि करिे के हिए हवहि द्वारा सिक्‍त ककया गया िो ;]

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍िारा‍14 के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“भाग‍क”‍िब्द‍और‍अक्षर‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍पूवव त ती‍िारा‍जो‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍की‍गई‍थी‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍मूि‍
िारा‍18 हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1937 द्वारा‍हिरहसत‍।
5
मरास‍हसहवि‍न्यायािय‍अहिहियम, 1873 (1873 का‍3) द्वारा‍हिरहसत‍।
6
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍पििे‍िण्ड‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
7
“क्‍वीि‍ की‍ जो‍ भारत‍ सरकार‍ या‍ ककसी‍ सरकार‍ के ‍ अिीि‍ सेवारत‍ िो”‍ मूि‍ िब्दों‍ का‍ संिोिि‍ अिुक्रमिः‍ भारत‍ िासि‍ (भारतीय‍ हवहि‍ अिुकूिि)‍ आदेि, 1937,
भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 और‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍ककया‍गया‍िै‍।
8
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसेिा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
9
1964 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍2 द्वारा‍पूवतवती‍िण्ड‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4

चौथा—न्यायािय का िर आकिसर 1[(हजसके अन्तगतत समापक, ररसीवर या कहमश्‍िर आता िै)] हजसका ऐसे आकिसर के िाते यि
कततव्य िो कक वि हवहि या तथ्य के ककसी मामिे में अन्वेषण या ररपोटत करे , या कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीकृ त करे , या रिे, या
ककसी सम्पहत्त का भार सम्भािे या उस सम्पहत्त का व्ययि करे , या ककसी न्याहयक आदेहिका का हिष्पादि करे , या कोई िपथ ग्रिण
कराए या हिवतचि करे , या न्यायािय में व्यवस्था बिाए रिे और िर व्यहक्‍त, हजसे ऐसे कततव्यों में से ककन्िीं का पािि करिे का प्राहिकार
न्यायािय द्वारा हविेष रूप से कदया गया िो ;
पांचवां—ककसी न्यायािय या िोक सेवक की सिायता करिे वािा िर जूरी-सदस्य, असेसर या पंचायत का सदस्य ;
छठा—िर मध्यस्थ या अन्य व्यहक्‍त, हजसको ककसी न्यायािय द्वारा, या ककसी अन्य सक्षम िोक प्राहिकारी द्वारा, कोई मामिा या
हवषय, हवहिश्‍चय या ररपोटत के हिए हिदेहित ककया गया िो ;
सातवां—िर व्यहक्‍त जो ककसी ऐसे पद को िारण करता िो, हजसके आिार से वि ककसी व्यहक्‍त को परररोि में करिे या रििे के
हिए सिक्‍त िो ;
आठवां—2[सरकार] का िर आकिसर हजसका ऐसे आकिसर के िाते यि कततव्य िो कक वि अपरािों का हिवारण करे , अपरािों की
इहत्तिा दे, अपराहियों को न्याय के हिए उपहस्थत करे , या िोक के स्वास्थ्य, क्षेम या सुहविा की संरक्षा करे ;
िवां—िर आकिसर हजसका ऐसे आकिसर के िाते यि कततव्य िो कक वि 2[सरकार] की ओर से ककसी सम्पहत्त को ग्रिण करे , प्राप्‍त
करे , रिे या व्यय करे , या 2[सरकार] की ओर से कोई सवेक्षण, हििातरण या संहवदा करे , या ककसी राजस्व आदेहिका का हिष्पादि करे ,
या 2[सरकार] के िि-संबंिी हितों पर प्रभाव डाििे वािे ककसी मामिे में अन्वेषण या ररपोटत करे या 2[सरकार] के िि संबंिी हितों से
संबंहित ककसी दस्तावेज को बिाए, अहिप्रमाणीकृ त करे या रिे, या 2[सरकार] 3*** के िि-संबंिी हितों की संरक्षा के हिए ककसी हवहि
के व्यहतक्रम को रोके ;
दसवां—िर आकिसर, हजसका ऐसे आकिसर के िाते यि कततव्य िो कक वि ककसी ग्राम, िगर या हजिे के ककसी िमतहिरपेक्ष
सामान्य प्रयोजि के हिए ककसी सम्पहत्त को ग्रिण करे , प्राप्‍त करे , रिे या व्यय करे , कोई सवेक्षण या हििातरण करे , या कोई रे ट या कर
उद्गृिीत करे , या ककसी ग्राम, िगर या हजिे के िोगों के अहिकारों के अहभहिश्‍चयि के हिए कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीकृ त करे
या रिे ;
[ग्यारिवां—िर व्यहक्‍त जो कोई ऐसा पद िारण करता िो हजसके आिार से वि हिवातचक िामाविी तैयार करिे, प्रकाहित
4

करिे, बिाए रििे, या पुिरीहक्षत करिे के हिए या हिवातचि या हिवातचि के ककसी भाग को संचाहित करिे के हिए सिक्‍त िो ;]
5
[बारिवां—िर व्यहक्‍त, जो—
(क) सरकार की सेवा या वेति में िो, या ककसी िोक कततव्य के पािि के हिए सरकार से िीस या कमीिि के रूप में
पाररश्रहमक पाता िो ;
(ि) स्थािीय प्राहिकारी की, अथवा के न्र, प्रान्त या राज्य के अहिहियम के द्वारा या अिीि स्थाहपत हिगम की अथवा
कम्पिी अहिहियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 617 में यथा पररभाहषत सरकारी कम्पिी की, सेवा या वेति में िो ।]
दृष्ट‍ ांत
िगरपाहिका आयुक्‍त िोक सेवक िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—ऊपर के वणतिों में से ककसी में आिे वािे व्यहक्‍त िोक सेवक िैं, चािे वे सरकार द्वारा हियुक्‍त ककए गए िों ‍‍‍‍‍‍‍‍
या ििीं ।
स्पष्‍टीकरण 2—जिां किीं “िोक सेवक” िब्द आए िैं, वे उस िर व्यहक्‍त के संबंि में समझे जाएंगे जो िोक सेवक के ओिदे को
वास्तव में िारण ककए हुए िों, चािे उस ओिदे को िारण करिे के उसके अहिकार में कै सी िी हवहिक त्रुरट िो ।
[स्पष्‍टीकरण 3—“हिवातचि” िब्द ऐसे ककसी हविायी, िगरपाहिक या अन्य िोक प्राहिकारी के िाते, चािे वि कै से िी स्वरूप
4

का िो, सदस्यों के वरणाथत हिवातचि का द्योतक िै हजसके हिए वरण करिे की पद्धहत ककसी हवहि के द्वारा या अिीि हिवातचि के रूप में
हवहित की गई िो ।]
6
* * * * *
22. “जंगम सम्पहत्त”—“जंगम सम्पहत्त” िब्दों से यि आिहयत िै कक इिके अन्तगतत िर भांहत की मूतत सम्पहत्त आती िै, ककन्तु भूहम
और वे चीजें, जो भू-बद्ध िों या भू-बद्ध ककसी चीज से स्थायी रूप से जक़िी हुई िों, इिके अन्तगतत ििीं आती ।

1
‍1964 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
2
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्राउि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍हजसे‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1937 द्वारा‍“सरकार”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍ककया‍गया‍था‍।
3
1964 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍2 द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
1920 के ‍अहिहियम‍सं० 39 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
5
1964 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍2 द्वारा‍पूवव त ती‍िण्ड‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
6
1964 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍2 द्वारा‍स्पष्‍टीकरण‍4 का‍िोप‍ककया‍गया‍।
5

23. “सदोष अहभिाभ”—“सदोष अहभिाभ” हवहिहवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त का अहभिाभ िै, हजसका वैि रूप से िकदार
अहभिाभ प्राप्‍त करिे वािा व्यहक्‍त ि िो ।
“सदोष िाहि”—“सदोष िाहि” हवहिहवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त की िाहि िै, हजसका वैि रूप से िकदार िाहि उठािे
वािा व्यहक्‍त िो ।
“सदोष अहभिाभ प्राप्‍त करिा”/सदोष िाहि उठािा—कोई व्यहक्‍त सदोष अहभिाभ प्राप्‍त करता िै, यि तब किा जाता िै जब कक
वि व्यहक्‍त सदोष रिे रिता िै और तब भी जबकक वि सदोष अजति करता िै । कोई व्यहक्‍त सदोष िाहि उठाता िै, यि तब किा जाता िै
जब कक उसे ककसी सम्पहत्त से सदोष अिग रिा जाता िै और तब भी जबकक उसे ककसी सम्पहत्त से सदोष वंहचत ककया जाता िै ।
24.‍“बेईमािी से”—जो कोई इस आिय से कोई कायत करता िै कक एक व्यहक्‍त को सदोष अहभिाभ काररत करे या अन्य व्यहक्‍त
को सदोष िाहि काररत करे , वि उस कायत को “बेईमािी से” करता िै, यि किा जाता िै ।
25.‍“कपटपूवतक”—कोई व्यहक्‍त ककसी बात को कपटपूवतक करता िै, यि किा जाता िै, यकद वि उस बात को कपट करिे के आिय
से करता िै, अन्यथा ििीं ।
26. “हवश्‍वास करिे का कारण”—कोई व्यहक्‍त ककसी बात के “हवश्‍वास करिे का कारण” रिता िै, यि तब किा जाता िै जब वि
उस बात के हवश्‍वास करिे का पयातप्त
‍ िेतुक रिता िै, अन्यथा ििीं ।
27. “पत्‍िी, हिहपक या सेवक के कब्जे में सम्पहत्त”—जबकक सम्पहत्त ककसी व्यहक्‍त के हिहमत्त उस व्यहक्‍त की‍पत्‍िी, हिहपक या
सेवक के कब्जे में िै, तब वि इस संहिता के अथत के अन्तगतत उस व्यहक्‍त के कब्जे में िै ।
स्पष्‍टीकरण—हिहपक या सेवक के िाते अस्थायी रूप से या ककसी हवहिष्‍ट अवसर पर हियोहजत व्यहक्‍त इस िारा के अथत के
अन्तगतत हिहपक या सेवक िै ।
28. “कू टकरण”—जो व्यहक्‍त एक चीज को दूसरी चीज के सदृि इस आिय से करता िै कक वि उस सदृि से प्रवंचिा करे , या यि
संभाव्य जािते हुए करता िै कक तद्‍द्वारा प्रवंचिा की जाएगी, वि “कू टकरण” करता िै, यि किा जाता िै ।
1
[स्पष्‍टीकरण 1—कू टकरण के हिए यि आवश्यक ििीं िै कक िकि ठीक वैसी िी िो ।
स्पष्‍टीकरण 2—जब कक कोई व्यहक्‍त एक चीज को दूसरी चीज के सदृि कर दे और सादृश्य ऐसा िै कक तद्‍द्वारा ककसी व्यहक्‍त को
प्रवंचिा िो सकती िो, तो जब तक कक तत्‍प्रहतकू ि साहबत ि ककया जाए, यि उपिारणा की जाएगी कक जो व्यहक्‍त एक चीज को दूसरी
चीज के इस प्रकार सदृि बिाता िै उसका आिय उस सदृि द्वारा प्रवंचिा करिे का था या वि यि सम्भाव्य जािता था कक तद्‍द्वारा
प्रवंचिा की जाएगी ।]
29. “दस्तावेज”—“दस्तावेज” िब्द ककसी भी हवषय का द्योतक िै हजसको ककसी पदाथत पर अक्षरों, अंकों या हचह्ि के सािि
द्वारा, या उिसे एक से अहिक साििों द्वारा अहभव्यक्‍त या वर्णतत ककया गया िो जो उस हवषय के साक्षी के रूप में उपयोग ककए जािे को
आिहयत िो या उपयोग ककया जा सके ।
स्पष्‍टीकरण 1—यि तत्विीि िै कक ककस सािि द्वारा या ककस पदाथत पर अक्षर, अंक या हचह्ि बिाए गए िैं, या यि कक साक्ष्य
ककसी न्यायािय के हिए आिहयत िै या ििीं, या उसमें उपयोग ककया जा सकता िै या ििीं ।
दृष्ट‍ ांत
ककसी संहवदा के हिबन्ििों को अहभव्यक्‍त करिे वािा िेि, जो उस संहवदा के साक्ष्य के रूप में उपयोग ककया जा सके , ‍‍‍‍‍‍
दस्तावेज िै ।
बैंककार पर कदया गया चेक दस्तावेज िै ।
मुखतारिामा दस्तावेज िै ।
मािहचत्र या रे िांक, हजसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में िािे का आिय िो या जो उपयोग में िाया जा सके , दस्तावेज िै ।
हजस िेि में हिदेि या अिुदि
े अन्तर्वतष्‍ट िों, वि दस्तावेज िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—अक्षरों, अंकों या हचह्िों से जो कु छ भी वाहणहज्यक या अन्य प्रथा के अिुसार व्याखया करिे पर अहभव्यक्‍त िोता
िै, वि इस िारा के अथत के अन्तगतत ऐसे अक्षरों, अंकों या हचह्िों से अहभव्यक्‍त हुआ समझा जाएगा, चािे वि वस्तुत: अहभव्यक्‍त ि भी
ककया गया िो ।

1
‍1889 के ‍अहिहियम‍सं० 1 की‍िारा‍9 द्वारा‍मूि‍स्पष्‍टीकरण‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
6

दृष्ट‍ ांत
क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर, जो उसके आदेि के अिुसार देय िै, अपिा िाम हिि देता िै । वाहणहज्यक प्रथा के अिुसार
व्याखया करिे पर इस पृष्‍ठांकि का अथत िै कक िारक को हवहिमयपत्र का भुगताि कर कदया जाए । पृष्‍ठांकि दस्तावेज िै और इसका अथत
उसी प्रकार से िगाया जािा चाहिए मािो िस्ताक्षर के ऊपर “िारक को भुगताि करो” िब्द या तत्‍प्रभाव वािे िब्द हिि कदए गए िों ।
[29क. “इिैक्राहिक अहभिेि”—“इिैक्राहिक अहभिेि” िब्दों का विी अथत िोगा जो सूचिा प्रौद्योहगकी अहिहियम, ‍‍‍‍‍
1

2000 (2000 का 21) की िारा 2 की उपिारा (1) के िण्ड (ि) में िै ।]


30. “मू्यवाि प्रहतभूहत”—“मू्यवाि प्रहतभूहत” िब्द उस दस्तावेज के द्योतक िैं, जो ऐसी दस्तावेज िै, या िोिी तात्पर्यतत िै,
हजसके द्वारा कोई हवहिक अहिकार सृहजत, हवस्तृत, अन्तररत, हिबतहन्ित, हिवातहपत ककया जाए, छो़िा जाए या हजसके द्वारा कोई व्यहक्‍त
यि अहभस्वीकार करता िै कक वि हवहिक दाहयत्व के अिीि िै, या अमुक हवहिक अहिकार ििीं रिता िै ।
दृष्ट‍ ांत
क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर अपिा िाम हिि देता िै । इस पृष्‍ठांकि का प्रभाव ककसी व्यहक्‍त को, जो उसका हवहिपूणत िारक
िो जाए, उस हवहिमयपत्र पर का अहिकार अन्तररत ककया जािा िै, इसहिए यि पृष्‍ठांकि “मू्यवाि प्रहतभूहत” िै ।
31. “हबि”—“हबि” िब्द ककसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक िै ।
32. कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों के अन्तगतत अवैि िोप आता िै—जब तक कक संदभत से तत्‍प्रहतकू ि आिय प्रतीत ि िो, इस
संहिता के िर भाग में ककए गए कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों का हवस्तार अवैि िोपों पर भी िै ।
33. “कायत”—“कायत” िब्द कायातविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक कायत का ।
“िोप”—“िोप” िब्द िोपाविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक िोप का ।
[34. सामान्य आिय को अग्रसर करिे में कई व्यहक्‍तयों द्वारा ककए गए कायत—जबकक कोई आपराहिक कायत कई व्यहक्‍तयों द्वारा
2

अपिे सबके सामान्य आिय को अग्रसर करिे में ककया जाता िै, तब ऐसे व्यहक्‍तयों में से िर व्यहक्‍त उस कायत के हिए उसी प्रकार दाहयत्व
के अिीि िै, मािो वि कायत अके िे उसी िे ककया िो ।]
35. जबकक ऐसा कायत इस कारण आपराहिक िै कक वि आपराहिक ज्ञाि या आिय से ककया गया िै—जब कभी कोई कायत, जो
आपराहिक ज्ञाि या आिय से ककए जािे के कारण िी आपराहिक िै, कई व्यहक्‍तयों द्वारा ककया जाता िै, तब ऐसे व्यहक्‍तयों में से िर
व्यहक्‍त, जो ऐसे ज्ञाि या आिय से उस कायत में सहम्महित िोता िै, उस कायत के हिए उसी प्रकार दाहयत्व के अिीि िै, मािो वि कायत उस
ज्ञाि या आिय से अके िे उसी द्वारा ककया गया िो ।
36. अंित: कायत द्वारा और अंित: िोप द्वारा काररत पररणाम—जिां किीं ककसी कायत द्वारा या ककसी िोप द्वारा ककसी पररणाम
का काररत ककया जािा या उस पररणाम को काररत करिे का प्रयत्‍ि करिा अपराि िै, विां यि समझा जािा िै कक उस पररणाम का
अंित: कायत द्वारा और अंित: िोप द्वारा काररत ककया जािा विी अपराि िै ।
दृष्ट‍ ांत
क अंित: य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करके और अंित: य को पीट कर सािय य की मृत्यु काररत करता िै । क िे ित्या
की िै ।
37. ककसी अपराि को गरठत करिे वािे कई कायों में से ककसी एक को करके सियोग करिा—जबकक कोई अपराि कई कायों द्वारा
ककया जाता िै, तब जो कोई या तो अके िे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के साथ सहम्महित िोकर उि कायों में से कोई एक कायत करके उस
अपराि के ककए जािे में सािय सियोग करता िै, वि उस अपराि को करता िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क और ि पृथक् -पृथक् रूप से और हवहभन्‍ि समयों पर य को हवष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी ित्या करिे को सिमत
िोते िैं । क और ि, य की ित्या करिे के आिय से सिमहत के अिुसार य को हवष देते िैं । य इस प्रकार दी गई हवष की कई मात्राओं के
प्रभाव से मर जाता िै । यिां क और ि ित्या करिे में सािय सियोग करते िैं और क्योंकक उिमें से िर एक ऐसा कायत करता िै, हजससे
मृत्यु काररत िोती िै, वे दोिों इस अपराि के दोषी िैं, यद्यहप उिके कायत पृथक् िैं ।
(ि) क और ि संयुक्‍त जेिर िैं, और अपिी उस िैहसयत में वे एक कै दी य का बारी-बारी से एक समय में 6 घंटे के हिए संरक्षण-
भार रिते िैं य को कदए जािे के प्रयोजि से जो भोजि क और ि को कदया जाता िै, वि भोजि इस आिय से कक य की मृत्यु काररत कर
दी जाए, िर एक अपिे िाहजरी के काि में य को देिे का िोप करके वि पररणाम अवैि रूप से काररत करिे में जािते हुए सियोग करते‍
िैं । य भूि से मर जाता िै । क और ि दोिों य की ित्या के दोषी िैं ।

1
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍1 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
7

(ग) एक जेिर क, एक कै दी य का संरक्षण-भार रिता िै । क, य की मृत्यु काररत करिे के आिय से, य को भोजि देिे का अवैि रूप
से िोप करता िै, हजसके पररणामस्वरूप य की िहक्‍त बहुत क्षीण िो जाती िै, ककन्तु यि क्षुिापी़िि उसकी मृत्य, काररत करिे के हिए
पयातप्त
‍ ििीं िोता । क अपिे पद से च्युत कर कदया जाता िै और ि उसका उत्तरवती िोता िै । क से दुस्संहि या सियोग ककए हबिा ि यि
जािते हुए कक ऐसा करिे से संभाव्य िै कक वि य की मृत्यु काररत कर दे, य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करता िै । य, भूि से मर
जाता िै । ि ित्या का दोषी िै ककन्तु क िे ि से सियोग ििीं ककया, इसहिए क ित्या के प्रयत्‍ि का िी दोषी िै ।
38. आपराहिक कायत में संपक् ृ त
‍ व्यहक्‍त हवहभन्‍ि अपरािों के दोषी िो सकें गे—जिां कक कई व्यहक्‍त ककसी आपराहिक कायत को
करिे में िगे हुए या सम्पृक्‍त िैं, विां वे उस कायत के आिार पर हवहभन्‍ि अपरािों के दोषी िो सकें गे ।
दृष्ट‍ ांत
क गम्भीर प्रकोपि की ऐसी पररहस्थहतयों के अिीि य पर आक्रमण करता िै कक य का उसके द्वारा वि ककया जािा के वि ऐसा
आपराहिक मािव वि िै, जो ित्या की कोरट में ििीं आता िै । ि जो य से वैमिस्य रिता िै, उसका वि करिे के आिय से और प्रकोपि
के विीभूत ि िोते हुए य का वि करिे में क की सिायता करता िै । यिां, यद्यहप क और ि दोिों य की मृत्यु काररत करिे में िगे हुए िैं,
ि ित्या का दोषी िै और क के वि आपराहिक मािव वि का दोषी िै ।
39. “स्वेच्छया”—कोई व्यहक्‍त ककसी पररणाम को “स्वेच्छया” काररत करता िै, यि तब किा जाता िै, जब वि उसे उि साििों
द्वारा काररत करता िै, हजिके द्वारा उसे काररत करिा उसका आिय था या उि साििों द्वारा काररत करता िै हजि साििों को काम में
िाते समय वि यि जािता था, या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिता था कक उिसे उसका काररत िोिा संभाव्य िै ।
दृष्ट‍ ांत
क िूट को सुकर बिािे के प्रयोजि से एक ब़िे िगर के एक बसे हुए गृि में रात को आग िगाता िै और इस प्रकार एक व्यहक्‍त की
मृत्यु काररत कर देता िै । यिां क का आिय भिे िी मृत्यु काररत करिे का ि रिा िो और वि दुहित भी िो कक उसके कायत से मृत्यु काररत
हुई िै तो भी यकद वि यि जािता था कक संभाव्य िै कक वि मृत्यु काररत कर दे तो उसिे स्वेच्छया मृत्यु काररत की िै ।
[40.‍“अपराि”—इस िारा के िण्ड 2 और 3 में वर्णतत 2[अध्यायों] और िाराओं में के हसवाय “अपराि” िब्द इस संहिता द्वारा
1

दण्डिीय की गई ककसी बात का द्योतक िै ।


अध्याय 4, 3[अध्याय 5क] और हिम्‍िहिहित िारा, अथातत् िारा 4[64, 65, 66, 5[67], 71], 109, 110, 112, 114, 115, 116,
6
117, [118, 119‍और‍120],‍187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223,, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347,
348, 388, 389 और 445 में “अपराि” िब्द इस संहिता के अिीि या एहत्स्मिपश्‍चात् यथापररभाहषत हविेष या स्थािीय हवहि के
अिीि दण्डिीय बात का द्योतक िै ।
और िारा 141, 176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 में “अपराि” िब्द का अथत उस दिा में विी िै हजसमें कक हविेष या
स्थािीय हवहि के अिीि दण्डिीय बात ऐसी हवहि के अिीि छि मास या उससे अहिक अवहि के कारावास से, चािे वि जुमातिे सहित िो
या रहित, दण्डिीय िो ।]
41. “हविेष हवहि”—“हविेष हवहि” वि हवहि िै जो ककसी हवहिष्‍ट हवषय को िागू िो ।
42. “स्थािीय हवहि”—“स्थािीय हवहि” वि हवहि िै जो 7[8*** 9[भारत]] के ककसी हवहिष्‍ट भाग को िी िागू िो ।
43. “अवैि”—“करिे के हिए वैि रूप से आबद्ध”—“अवैि” िब्द िर उस बात को िागू िै, जो अपराि िो, या जो हवहि द्वारा
प्रहतहषद्ध िो, या जो हसहवि कायतवािी के हिए आिार उत्पन्‍ि करती िो ; और कोई व्यहक्‍त उस बात को “करिे के हिए वैि रूप से
आबद्ध” किा जाता िै हजसका िोप करिा उसके हिए अवैि िै ।
44. “क्षहत”—“क्षहत” िब्द ककसी प्रकार की अपिाहि का द्योतक िै, जो ककसी व्यहक्‍त के िरीर, मि, खयाहत या सम्पहत्त को अवैि
रूप से काररत हुई िो ।
45.‍“जीवि”—जब तक कक संदभत से तत्‍प्रहतकू ि प्रतीत ि िो, “जीवि” िब्द मािव के जीवि का द्योतक िै ।
46.‍“मृत्यु”—जब तक कक संदभत के तत्‍प्रहतकू ि प्रतीत ि िो, “मृत्यु” िब्द मािव की मृत्यु का द्योतक िै ।

1
1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍2 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1930 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“अध्याय”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍‍‍।
3
1913 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
4
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍1 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
5
1886 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍21‍(1) द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
6
2009 के ‍अहिहियम‍सं०‍10 की‍िारा‍51 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
7
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1948 द्वारा‍“हिरटि‍भारत”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
8
1952 के ‍अहिहियम‍सं० 48 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“समाहवष्‍ट‍राज्यक्षेत्रों‍में”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।‍
9
1951 के ‍ अहिहियम‍ सं० 3 की‍ िारा‍ 3 और‍ अिुसूची‍ द्वारा‍ “राज्यों”‍ के ‍ स्थाि‍ पर‍ प्रहतस्थाहपत‍ हजसे‍ हवहि‍ अिुकूिि‍ आदेि, 1950 द्वारा‍ “प्रान्तों”‍ के ‍ स्थाि‍ पर‍
प्रहतस्थाहपत‍ककया‍गया‍था‍।
8

47.‍“जीवजन्तु”—“जीवजन्तु” िब्द मािव से हभन्‍ि ककसी जीविारी का द्योतक िै ।


48.‍ “जियाि”—“जियाि” िब्द ककसी चीज का द्योतक िै, जो मािवों के या सम्पहत्त के जि द्वारा प्रविण के हिए बिाई ‍‍‍‍‍‍‍
गई िो ।
49. “वषत” या “मास”—जिां किीं “वषत” िब्द या “मास” िब्द का प्रयोग ककया गया िै विां यि समझा जािा िै कक वषत या मास
की गणिा हिरटि किैंडर के अिुकूि की जािी िै ।
50. “िारा”—“िारा” िब्द इस संहिता के ककसी अध्याय के उि भागों में से ककसी एक का द्योतक िै, जो हसरे पर िगे संखयांकों
द्वारा सुहभन्‍ि ककए गए िैं ।
51.‍“िपथ”—िपथ के हिए हवहि द्वारा प्रहतस्थाहपत सत्यहिष्‍ठ प्रहतज्ञाि और ऐसी कोई घोषणा, हजसका ककसी िोक सेवक के
समक्ष ककया जािा या न्यायािय में या अन्यथा सबूत के प्रयोजि के हिए उपयोग ककया जािा हवहि द्वारा अपेहक्षत या प्राहिकृ त िो,
“िपथ” िब्द के अन्तगतत आती िै ।
52. “सद्भ
‍ ावपूवकत ”—कोई बात “सद्‍भावपूवतक” की गई या हवश्‍वास की गई ििीं किी जाती जो सम्यक् सतकत ता और ध्याि के
हबिा की गई या हवश्‍वास की गई िो ।
[52क. “संश्रय”—िारा 157 में के हसवाय और िारा 130 में विां के हसवाय जिां कक संश्रय संहश्रत व्यहक्‍त की पत्‍िी या पहत द्वारा
1

कदया गया िो, “संश्रय” िब्द के अन्तगतत ककसी व्यहक्‍त को आश्रय, भोजि, पेय, िि, वस्‍त्र, आयुि, गोिाबारूद या प्रविण के सािि देिा,
या ककन्िीं साििों से चािे वे उसी प्रकार के िों या ििीं, हजस प्रकार के इस िारा में पररगहणत िैं ककसी व्यहक्‍त की सिायता पक़िे जािे से
बचिे के हिए करिा, आता िै ।]
अध्याय 3

दण्डों के हवषय में


53. “दण्ड”—अपरािी इस संहिता के उपबंिों के अिीि हजि दण्डों से दण्डिीय िैं, वे ये िैं—
पििा—मृत्यु ;
2
[दूसरा—आजीवि कारावास ;]
3
* * * * *
चौथा—कारावास, जो दो भांहत का िै, अथातत् :—
(1) करठि, अथातत् कठोर श्रम के साथ ;
(2) सादा ;
पांचवां—सम्पहत्त का समपिरण ;
छठा—जुमातिा ।
[53क. हिवातसि के प्रहत हिदेि का अथत िगािा—(1) उपिारा (2) के और उपिारा (3) के उपबन्िों के अध्यिीि ककसी अन्य
4

तत्समय प्रवृत्त हवहि में, या ककसी ऐसी हवहि या ककसी हिरहसत अहिहियहमहत के आिार पर प्रभाविीि ककसी हिित या आदेि में
“आजीवि हिवातसि” के प्रहत हिदेि का अथत यि िगाया जाएगा कक वि “आजीवि कारावास” के प्रहत हिदेि िै ।
(2) िर मामिे में, हजसमें कक ककसी अवहि के हिए हिवातसि का दण्डादेि दण्ड प्रकक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम,
[1955 (1955 का 26)] के प्रारम्भ से पूवत कदया गया िै, अपरािी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मािो वि उसी अवहि के हिए करठि
5

कारावास के हिए दण्डाकदष्‍ट ककया गया िो ।


(3) ककसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में ककसी अवहि के हिए हिवातसि या ककसी िघुतर अवहि के हिए हिवातसि के प्रहत (चािे उसे
कोई भी िाम कदया गया िो) कोई हिदेि िुप्त ‍ कर कदया गया समझा जाएगा ।
(4) ककसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में हिवातसि के प्रहत जो कोई हिदेि िो—
(क) यकद उस पद से आजीवि हिवातसि अहभप्रेत िै, तो उसका अथत आजीवि कारावास के प्रहत हिदेि िोिा ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
िगाया‍जाएगा ;

1
1942 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“दूसरा‍—हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
‍1949 के ‍अहिहियम‍सं० 17 की‍िारा‍2 द्वारा‍िण्ड‍“तीसरा”‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍‍।
5
1957 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“1954” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
9

(ि) यकद उस पद से ककसी िघुतर अवहि के हिए हिवातसि अहभप्रेत िै, तो यि समझा जाएगा कक वि िुप्त
‍ कर कदया ‍‍‍
गया िै ।]
54. मृत्यु दण्डादेि का िघुकरण—िर मामिे में, हजसमें मृत्यु का दण्डादेि कदया गया िो, उस दण्ड को अपरािी की सम्महत के
हबिा भी 1[समुहचत सरकार] इस संहिता द्वारा उपबहन्ित ककसी अन्य दंड में िघुकृत कर सके गी ।
55. आजीवि कारावास के दण्डादेि का िघुकरण—िर मामिे में, हजसमें आजीवि 2[कारावास] का दण्डादेि कदया गया िो,
अपरािी की सम्महत के हबिा भी 3[समुहचत सरकार] उस दण्ड को ऐसी अवहि के हिए, जो चौदि वषत से अहिक ि िो, दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास में िघुकृत कर सके गी ।
4
[55क. “समुहचत सरकार” की पररभाषा—िारा 54 और 55 में “समुहचत सरकार” पद से,—
(क) उि मामिों में के न्रीय सरकार अहभप्रेत िै, हजिमें दंडादेि मृत्यु का दण्डादेि िै, या ऐसे हवषय से, हजस पर संघ की
कायतपािि िहक्‍त का हवस्तार िै, संबंहित ककसी हवहि के हवरुद्ध अपराि के हिए िै ; तथा
(ि) उि मामिों में उस राज्य की सरकार, हजसके अन्दर अपरािी दण्डाकदष्‍ट हुआ िै, अहभप्रेत िै, जिां कक दंडादेि ‍‍‍‍‍
(चािे मृत्यु का िो या ििीं) ऐसे हवषय से, हजस पर राज्य की कायतपािि िहक्‍त का हवस्तार िै, संबंहित ककसी हवहि के हवरुद्ध
अपराि के हिए िै ।]
56. [यूरोहपयों तथा अमरीककयों को कठोरश्रम कारावास का दण्डादेि । दस वषत से अहिक ककन्तु जो आजीवि कारावास से अहिक
ि िो, दण्डादेि के संबंि में परन्तुक ।]—दांहडक हवहि (मूिवंिीय हवभेदों का हिराकरण) अहिहियम, 1949 (1949 का 17) द्वारा ‍‍‍‍‍‍‍
(6 अप्रैि, 1949 से) हिरहसत ।
57. दण्डावहियों की हभन्‍िें—दण्डावहियों की हभन्‍िों का गणिा करिे में, आजीवि 1[कारावास] को बीस वषत के 1[कारावास] के
तु्य हगिा जाएगा ।
58. [हिवातसि से दण्डाकदष्‍ट अपराहियों के साथ कै सा व्यविार ककया जाए जब तक वे हिवातहसत ि कर कदए जाएं ।]—दण्ड
प्रकक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत ।
59. [कारावास के बदिे हिवातसि ।]—दण्ड प्रकक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और
अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत ।
60. दण्डाकदष्‍ट कारावास के कहतपय मामिों में सम्पूणत कारावास या उसका कोई भाग करठि या सादा िो सके गा—िर मामिे में,
हजसमें अपरािी दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से दण्डिीय िै, वि न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डादेि देगा, सक्षम िोगा कक
दण्डादेि में यि हिर्दतष्‍ट करे कक ऐसा सम्पूणत कारावास करठि िोगा, या यि कक ऐसा सम्पूणत कारावास सादा िोगा, या यि कक ऐसे
कारावास का कु छ भाग करठि िोगा और िेष सादा ।
61. [सम्पहत्त के समपिरण का दण्डादेि ।]—भारतीय दण्ड संहिता के समपिरण का दण्डादेि भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि)
अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा हिरहसत ।
62. [मृत्यु, हिवातसि या कारावास से दण्डिीय अपराहियों की बाबत सम्पहत्त का समपिरण ।]—भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि)
अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा हिरहसत ।
63. जुमातिे की रकम—जिां कक वि राहि अहभव्यक्‍त ििीं की गई िै हजतिी तक जुमातिा िो सकता िै, विां अपरािी हजस रकम के
जुमातिे का दायी िै, वि अमयातकदत िै ककन्तु अत्यहिक ििीं िोगी ।
64. जुमातिा ि देिे पर कारावास का दण्डादेि—5[कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय अपराि के िर मामिे में, हजसमें
अपरािी कारावास सहित या रहित, जुमातिे से दण्डाकदष्‍ट हुआ िै,]

तथा 6[कारावास या जुमातिे अथवा] के वि जुमातिे से दंडिीय अपराि के िर मामिे में, हजसमें अपरािी जुमातिे से दण्डाकदष्‍ट ‍‍‍‍‍
हुआ िै,]

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“के न्रीय‍सरकार‍या‍उस‍प्रान्त‍की‍प्रान्तीय‍सरकार‍हजसके ‍भीतर‍अपरािी‍को‍दण्ड‍कदया‍जाएगा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍मोटे‍
िब्द‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि‍1937 द्वारा‍“भारत‍सरकार‍या‍उस‍स्थाि‍की‍सरकार”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍थे‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“हिवातसि”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“उस‍प्रान्त‍की‍प्रान्तीय‍सरकार‍हजसके ‍भीतर‍अपरािी‍को‍दण्ड‍कदया‍जाएगा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍मोटे‍िब्द‍भारत‍िासि‍
(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि‍1937 द्वारा‍“भारत‍सरकार‍या‍उस‍स्थाि‍की‍सरकार”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍थे‍।
4
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍िारा‍55क‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍िारा‍55क‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍की‍गई‍
थी‍।‍
5
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 द्वारा‍‍“प्रत्येक‍ऐसी‍दिा‍में‍हजसमें‍अपरािी‍जुमातिे‍से‍दंडाकदष्‍ट‍हुआ‍िै”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1886 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍21(2) द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
10

वि न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डाकदष्‍ट करे गा, सक्षम िोगा कक दण्डादेि द्वारा हिदेि दे कक जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे
की दिा में, अपरािी अमुक अवहि के हिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अहतररक्‍त िोगा हजसके हिए वि
दण्डाकदष्‍ट हुआ िै या हजससे वि दण्डादेि के िघुकरण पर दण्डिीय िै ।
65. जब कक कारावास और जुमातिा दोिों आकदष्‍ट ककए जा सकते िैं, तब जुमातिा ि देिे पर कारावास की अवहि—यकद अपराि
कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय िो, तो वि अवहि, हजसके हिए जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के हिए न्यायािय
अपरािी को कारावाहसत करिे का हिदेि दे, कारावास की उस अवहि की एक चौथाई से अहिक ि िोगी, जो अपराि के हिए अहिकतम
हियत िै ।
66. जुमातिा ि देिे पर ककस भांहत का कारावास कदया जाए—वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे के हिए
अहिरोहपत करे , ऐसा ककसी भांहत का िो सके गा, हजससे अपरािी को उस अपराि के हिए दण्डाकदट ककया जा सकता था ।
67. जुमातिा ि देिे पर कारावास, जबकक अपराि के वि जुमातिे से दण्डिीय िो—यकद अपराि के वि जुमातिे से दण्डिीय िो तो
1
[वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के हिए अहिरोहपत करे , सादा िोगा और] वि अवहि, हजसके
हिए जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के हिए न्यायािय अपरािी को कारावाहसत करिे का हिदेि दे, हिम्‍ि मापमाि से अहिक ििीं
िोगी, अथातत्:—जब कक जुमातिे का पररमाण पचास रुपए से अहिक ि िो तब दो मास से अिहिक कोई अवहि, तथा जब कक जुमातिे का
पररमाण एक सौ रुपए से अहिक ि िो तब चार मास से अिहिक कोई अवहि, तथा ककसी अन्य दिा में छि मास से अिहिक कोई अवहि ।
68. जुमातिा देिे पर कारावास का पयतवसाि िो जािा—जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के हिए अहिरोहपत कारावास तब
पयतवहसत िो जाएगा, जब वि जुमातिा या तो चुका कदया जाए या हवहि की प्रकक्रया द्वारा उद्गृिीत कर हिया जाए ।
69. जुमातिे के आिुपाहतक भाग के दे कदए जािे की दिा में कारावास का पयतवसाि—यकद जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के
हिए हियत की गई कारावास की अवहि का अवसाि िोिे से पूवत जुमातिे का ऐसा अिुपात चुका कदया या उद्गृिीत कर हिया जाए कक देिे
में व्यहतक्रम िोिे पर कारावास की जो अवहि भोगी जा चुकी िो, वि जुमातिे के तब तक ि चुकाए गए भाग के आिुपाहतक से कम ि िो तो
कारावास पयतवहसत िो जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
क एक सौ रुपए के जुमातिे और उसके देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा के हिए चार मास के कारावास से दण्डाकदष्‍ट ककया गया िै ।
यिां, यकद कारावास के एक मास के अवसाि से पूवत जुमातिे के पचत्तिर रुपए चुका कदए जाएं या उद्गृिीत कर हिए जाएं तो प्रथम मास
का अवसाि िोते िी क उन्मुक्‍त कर कदया जाएगा । यकद पचत्तिर रुपए प्रथम मास के अवसाि पर या ककसी भी पश्‍चात्‍वती समय पर,
जब कक क कारावास में िै, चुका कदए या उद्गृिीत कर हिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्‍त कर कदया जाएगा । यकद कारावास के दो मास के
अवसाि से पूवत जुमातिे के पचास रुपए चुका कदए जाएं या उद्गृिीत कर हिए जाएं, तो क दो मास के पूरे िोते िी उन्मुक्‍त कर कदया
जाएगा । यकद पचास रुपए उि दो मास के अवसाि पर या ककसी भी पश्‍चात्‍वती समय पर, जब कक क कारावास में िै, चुका कदए जाएं या
उद्गृिीत कर हिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्‍त कर कदया जाएगा ।
70. जुमातिे का छि वषत के भीतर या कारावास के दौराि में उद्ग्र
‍ िणीय िोिा । सम्पहत्त को दाहयत्व से मृत्यु उन्मुक्त‍ ििीं ‍‍‍‍
करती—जुमातिा या उसका कोई भाग, जो चुकाया ि गया िो, दण्डादेि कदए जािे के पश्‍चात् छि वषत के भीतर ककसी भी समय, और यकद
अपरािी दण्डादेि के अिीि छि वषत से अहिक के कारावास से दण्डिीय िो तो उस कािावहि के अवसाि से पूवत ककसी समय, उद्गृिीत
ककया जा सके गा‍; और अपरािी की मृत्यु ककसी भी सम्पहत्त को, जो उसकी मृत्यु के पश्‍चात् उसके ऋणों के हिए वैि रूप से दायी िो, इस
दाहयत्व से उन्मुक्‍त ििीं करती ।
71. कई अपरािों से हमिकर बिे अपराि के हिए दण्ड की अवहि—जिां कक कोई बात, जो अपराि िै, ऐसे भागों से, हजिमें का
कोई भाग स्वयं अपराि िै, हमिकर बिी िै, विां अपरािी अपिे ऐसे अपरािों में से एक से अहिक के दण्ड से दहण्डत ि ककया जाएगा,
जब तक कक ऐसा अहभव्यक्‍त रूप से उपबहन्ित ि िो ।
[जिां कक कोई बात अपरािों को पररभाहषत या दहण्डत करिे वािी ककसी तत्समय प्रवृत्त हवहि की दो या अहिक पृथक्
2

पररभाषाओं में आिे वािा अपराि िै, अथवा


जिां कक कई कायत, हजिमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाहिक से अपराि गरठत िोता िै, हमिकर हभन्‍ि अपराि गरठत करते िैं,
विां अपरािी को उससे गुरुतर दण्ड से दहण्डत ि ककया जाएगा, जो ऐसे अपरािों में से ककसी भी एक के हिए वि न्यायािय, जो
उसका हवचारण करे , उसे दे सकता िो ।]

1
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।‍
2
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍4 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।‍
11

दृष्ट‍ ांत
(क) क, य पर िाठी से पचास प्रिार करता िै । यिां, िो सकता िै कक क िे सम्पूणत मारपीट द्वारा उि प्रिारों में से िर एक प्रिार
द्वारा भी, हजिसे वि सम्पूणत मारपीट गरठत िै, य की स्वेच्छया उपिहत काररत करिे का अपराि ककया िो । यकद क िर प्रिार के हिए
दण्डिीय िोता वि िर एक प्रिार के हिए एक वषत के हिसाब से पचास वषत के हिए कारावाहसत ककया जा सकता था । ककन्तु वि सम्पूणत
मारपीट के हिए के वि एक िी दण्ड से दण्डिीय िै ।
(ि) ककन्तु यकद उस समय जब क, य को पीट रिा िै, म िस्तक्षेप करता िै, और क, म पर सािय प्रिार करता िै, तो यिां म पर
ककया गया प्रिार उस कायत का भाग ििीं िै, हजसके द्वारा क, य को स्वेच्छया उपिहत काररत करता िै, इसहिए क, य को स्वेच्छया काररत
की गई उपिहत के हिए एक दण्ड से और म पर ककए गए प्रिार के हिए दूसरे दण्ड से दण्डिीय िै ।
72. कई अपरािों में से एक के दोषी व्यहक्‍त के हिए दण्ड जबकक हिणतय में यि कहथत िै कक यि संदिे िै कक वि ककस अपराि का
दोषी िै—उि सब मामिों में, हजिमें यि हिणतय कदया जाता िै कक कोई व्यहक्‍त उस हिणतय में हवहिर्दतष्‍ट कई अपरािों में से एक अपराि
का दोषी िै, ककन्तु यि संदि
े पूणत िै कक वि उि अपरािों में से ककस अपराि का दोषी िै, यकद विी दण्ड सब अपरािों के हिए उपबहन्ित
ििीं िै तो वि अपरािी उस अपराि के हिए दहण्डत ककया जाएगा, हजसके हिए कम से कम दण्ड उपबहन्ित ककया गया िै ।
73. एकांत परररोि—जब कभी कोई व्यहक्‍त ऐसे अपराि के हिए दोषहसद्ध ठिराया जाता िै हजसके हिए न्यायािय को इस
संहिता के अिीि उसे करठि कारावास से दंडाकदष्‍ट करिे की िहक्‍त िै, तो न्यायािय अपिे दंडादेि द्वारा आदेि दे सके गा कक अपरािी को
उस कारावास के , हजसके हिए वि दंडाकदष्‍ट ककया गया िै, ककसी भाग या भागों के हिए, जो कु ि हमिाकर तीि मास से अहिक ि िोंगे,
हिम्‍ि मापमाि के अिुसार एकांत परररोि में रिा जाएगा, अथातत् :—
यकद कारावास की अवहि छि मास से अहिक ि िो तो एक मास से अिहिक समय ;
यकद कारावास की अवहि छि मास से अहिक िो और 1[एक वषत से अहिक ि िो] तो दो मास से अिहिक समय ;
यकद कारावास की अवहि एक वषत से अहिक िो तो तीि मास से अिहिक समय ।
74. एकांत परररोि की अवहि—एकांत परररोि के दण्डादेि के हिष्पादि में ऐसा परररोि ककसी दिा में भी एक बार में चौदि
कदि से अहिक ि िोगा । साथ िी ऐसे एकांत परररोि की कािावहियों के बीच में उि कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोंगे; और जब
कदया गया कारावास तीि मास से अहिक िो, तब कदए गए सम्पूणत कारावास के ककसी एक मास में एकांत परररोि सात कदि से अहिक ि
िोगा, साथ िी एकांत परररोि की कािावहियों के बीच में उन्िीं कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोंगे ।
2
[75. पूवत दोषहसहद्ध के पश्‍चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अिीि कहतपय अपरािों के हिए वर्ितत दण्ड—जो कोई व्यहक्‍त—
(क) 3[भारत] में के ककसी न्यायािय द्वारा इस संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अिीि तीि वषत या उससे अहिक की
अवहि के हिए दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से दण्डिीय अपराि के हिए, 4***
5
* ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍* ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍* ‍‍‍‍‍‍* *
दोषहसद्ध ठिराए जािे के पश्‍चात् उि दोिों अध्यायों में से ककसी अध्याय के अिीि उतिी िी अवहि के हिए वैसे िी कारावास से
दण्डिीय ककसी अपराि का दोषी िो, तो वि िर ऐसे पश्‍चात्‍वती अपराि के हिए 6[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दण्डिीय िोगा ।]
अध्याय 4

सािारण अपवाद
76. हवहि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूि के कारण अपिे आप को हवहि द्वारा आबद्ध िोिे का हवश्‍वास करिे वािे व्यहक्‍त द्वारा
ककया गया कायत—कोई बात अपराि ििीं िै, जो ककसी ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाए, जो उसे करिे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध िो या जो
तथ्य की भूि के कारण, ि कक हवहि की भूि के कारण, सद्‍भावपूवतक हवश्‍वास करता िो कक वि उसे करिे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) हवहि के समादेिों के अिुवतति में अपिे वररष्‍ठ आकिसर के आदेि से एक सैहिक क भी़ि पर गोिी चिाता िै । क िे कोई
अपराि ििीं ककया ।

1
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍5 द्वारा‍“एक‍वषत‍से‍कम‍ििीं‍िो”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1910 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍2 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
4
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍िंड‍(क)‍के ‍अंत‍में‍“अथवा”‍िब्द‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
5
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍िंड‍(ि)‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
6
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
12

(ि) न्यायािय का आकिसर क, म को हगरफ्तार करिे के हिए उस न्यायािय द्वारा आकदष्‍ट ककए जािे पर और सम्यक् जांच के
पश्‍चात् यि हवश्‍वास करके कक य, म िै, य को हगरफ्तार कर िेता िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया ।
77. न्याहयकत: कायत करिे िेतु न्यायािीि का कायत—कोई बात अपराि ििीं िै, जो न्याहयकत: कायत करते हुए न्यायािीि द्वारा
ऐसी ककसी िहक्‍त के प्रयोग में की जाती िै, जो, या हजसके बारे में उसे सद्‍भावपूवतक हवश्‍वास िै कक वि उसे हवहि द्वारा दी गई िै ।
78. न्यायािय के हिणतय या आदेि के अिुसरण में ककया गया कायत—कोई बात, जो न्यायािय के हिणतय या आदेि के अिुसरण में
की जाए या उसके द्वारा अहिकदष्‍ट िो, यकद वि उस हिणतय या आदेि के प्रवृत्त रिते, की जाए, अपराि ििीं िै, चािे उस न्यायािय को
ऐसा हिणतय या आदेि देिे की अहिकाररता ि रिी िो, परन्तु यि तब जब कक वि कायत करिे वािा व्यहक्‍त सद्‍भावपूवतक हवश्‍वास करता
िो कक उस न्यायािय को वैसी अहिकाररता थी ।
79. हवहि द्वारा न्यायािुमत या तथ्य की भूि से अपिे को हवहि द्वारा न्यायािुमत िोिे का हवश्‍वास करिे वािे व्यहक्‍त द्वारा ककया
गया कायत—कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाए, जो उसे करिे के हिए हवहि द्वारा न्यायािुमत िो, या तथ्य की भूि
के कारण, ि कक हवहि की भूि के कारण सद्‍भावपूवतक हवश्‍वास करता िो कक वि उसे करिे के हिए हवहि द्वारा न्यायािुमत िै ।
दृष्ट‍ ांत
क, य को ऐसा कायत करते देिता िै, जो क को ित्या प्रतीत िोता िै । क सद्‍भावपूवतक काम में िाए गए अपिे श्रेष्‍ठ हिणतय के
अिुसार उस िहक्‍त को प्रयोग में िाते हुए, जो हवहि िे ित्याकाररयों को उस कायत में पक़ििे के हिए समस्त व्यहक्‍तयों को दे रिी िै, य को
उहचत प्राहिकाररयों के समक्ष िे जािे के हिए य को अहभगृिीत करता िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया िै, चािे तत्पश्‍चात् असि बात
यि हिकिे कक य आत्म-प्रहतरक्षा में कायत कर रिा था ।
80. हवहिपूणत कायत करिे में दुघटत िा—कोई बात अपराि ििीं िै, जो दुघतटिा या दुभातग्य से और ककसी आपराहिक आिय या ज्ञाि
के हबिा हवहिपूणत प्रकार से हवहिपूणत साििों द्वारा और उहचत सतकत ता और साविािी के साथ हवहिपूणत कायत करिे में िी िो जाती िै ।
दृष्ट‍ ांत
क कु ्िा़िी से काम कर रिा िै ; कु ्िा़िी का िि उसमें से हिकि कर उछट जाता िै, और हिकट ि़िा हुआ व्यहक्‍त उससे मारा
जाता िै । यिां यकद क की ओर से उहचत साविािी का कोई अभाव ििीं था तो उसका कायत मािी योग्य िै और अपराि ििीं िै ।
81. कायत, हजससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, ककं तु जो आपराहिक आिय के हबिा और अन्य अपिाहि के हिवारण के हिए
ककया गया िै—कोई बात के वि इस कारण अपराि ििीं िै कक वि यि जािते हुए की गई िै कक उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै,
यकद वि अपिाहि काररत करिे के ककसी आपराहिक आिय के हबिा और व्यहक्‍त या संपहत्त को अन्य अपिाहि का हिवारण या पररवजति
करिे के प्रयोजि से सद्‍भावपूवतक की गई िो ।
स्पष्‍टीकरण—ऐसे मामिे में यि तथ्य का प्रश्‍ि िै कक हजस अपिाहि का हिवारण या पररवजति ककया जािा िै क्या वि ऐसी प्रकृ हत
की ओर इतिी आसन्‍ि थी कक वि कायत, हजससे यि जािते हुए कक उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, करिे की जोहिम उठािा
न्यायािुमत या मािी योग्य था ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क, जो एक वाष्प जियाि का कप्ताि िै, अचािक और अपिे ककसी कसूर या उपेक्षा के हबिा अपिे आपको ऐसी हस्थहत में पाता
िै कक यकद उसिे जियाि का मागत ििीं बदिा तो इससे पूवत कक वि अपिे जियाि को रोक सके वि बीस या तीस याहत्रयों से भरी िाव
ि को अहिवायतत: टकराकर डु बो देगा, और कक अपिा मागत बदििे से उसे के वि दो याहत्रयों वािी िाव ग को डु बािे की जोहिम उठािी
प़िती िै, हजसको वि संभवत: बचाकर हिकि जाए । यिां, यकद क िाव ग को डु बािे के आिय के हबिा और ि के याहत्रयों के संकट का
पररवजति करिे के प्रयोजि से सद्‍भावपूवतक अपिा मागत बदि देता िै तो यद्यहप वि िाव ग को ऐसे कायत द्वारा टकराकर डु बो देता िै,
हजससे ऐसे पररणाम का उत्पन्‍ि िोिा वि संभाव्य जािता था, तथाहप तथ्यत: यि पाया जाता िै कक वि संकट, हजसे पररवर्जतत करिे का
उसका आिय था, ऐसा था हजससे िाव ग डु बािे की जोहिम उठािा मािी योग्य िै, तो वि ककसी अपराि का दोषी ििीं िै ।
(ि) क एक ब़िे अहग्‍िकांड के समय आग को िै ििे से रोकिे के हिए गृिों को हगरा देता िै । वि इस कायत को मािव जीवि या
संपहत्त को बचािे के आिय से सद्‍भाविापूवतक करता िै । यिां, यकद यि पाया जाता िै कक हिवारण की जािे वािी अपिाहि इस प्रकृ हत
की ओर इतिी आसन्‍ि थी कक क का कायत मािी योग्य िै तो क उस अपराि का दोषी ििीं िै ।
82. सात वषत से कम आयु के हििु का कायत—कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत से कम आयु के हििु द्वारा की जाती िै ।
83. सात वषत से ऊपर ककं तु बारि वषत से कम आयु के अपररपक्‍व समझ के हििु का कायत—कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत
से ऊपर और बारि वषत से कम आयु के ऐसे हििु द्वारा की जाती िै हजसकी समझ इतिी पररपक्‍व ििीं हुई िै कक वि उस अवसर पर अपिे
आचरण की प्रकृ हत और पररणामों का हिणतय कर सके ।
84. हवकृ तहचत्त व्यहक्‍त का कायत—कोई‍बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय हचत्त-हवकृ हत
के कारण उस कायत की प्रकृ हत, या यि कक जो कु छ वि कर रिा िै वि दोषपूणत या हवहि के प्रहतकू ि िै, जाििे में असमथत िै ।
13

85. ऐसे व्यहक्‍त का कायत जो अपिी इच्छा के हवरुद्ध मत्तता में िोिे के कारण हिणतय पर पहुंचिे में असमथत िै—कोई बात अपराि
ििीं िै, जो ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय मत्तता के कारण उस कायत की प्रकृ हत, या यि कक जो कु छ वि कर रिा िै वि
दोषपूणत या हवहि के प्रहतकू ि िै, जाििे में असमथत िै, परन्तु यि तब जब कक वि चीज, हजससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपिे ज्ञाि के
हबिा या इच्छा के हवरुद्ध दी गई थी ।
86. ककसी व्यहक्‍त द्वारा, जो मत्तता में िै, ककया गया अपराि हजसमें हविेष आिय या ज्ञाि का िोिा अपेहक्षत िै—उि दिाओं में,
जिां कक कोई ककया गया कायत अपराि ििीं िोता जब तक कक वि ककसी हवहिष्‍ट ज्ञाि या आिय से ि ककया गया िो, कोई व्यहक्‍त, जो
वि कायत मत्तता की िाित में करता िै, इस प्रकार बरते जािे के दाहयत्व के अिीि िोगा मािो उसे विी ज्ञाि था जो उसे िोता यकद वि
मत्तता में ि िोता जब तक कक वि चीज, हजससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञाि के हबिा या उसकी इच्छा के हवरुद्ध ि दी गई िो ।
87. सम्महत से ककया गया कायत हजससे मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे का आिय ि िो और ि उसकी संभाव्यता का ज्ञाि ‍‍
िो—कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे के आिय से ि की गई िो और हजसके बारे में कतात को यि ज्ञात ि िो कक उससे
मृत्यु या घोर उपिहत काररत िोिा संभाव्य िै, ककसी ऐसी अपिाहि के कारण अपराि ििीं िै जो उस बात से अठारि वषत से अहिक आयु
के व्यहक्‍त को, हजसिे वि अपिाहि सिि करिे की चािे अहभव्यक्‍त, चािे हववहक्षत सम्महत दे दी िो, काररत िो या काररत िोिा कतात
द्वारा आिहयत िो अथवा हजसके बारे में कतात को ज्ञात िो कक वि उपयुतक्‍त जैसे ककसी व्यहक्‍त को, हजसिे उस अपिाहि की जोहिम उठािे
की सम्महत दे दी िै, उस बात द्वारा काररत िोिी संभाव्य िै ।
दृष्ट‍ ांत
क और य आमोदाथत आपस में पटेबाजी करिे को सिमत िोते िैं । इस सिमहत में ककसी अपिाहि को, जो ऐसी पटेबाजी में िेि के
हियम के हवरुद्ध ि िोते हुए काररत िो, उठािे की िर एक को सम्महत हववहक्षत िै, और यकद क यथाहियम पटेबाजी करते हुए य को
उपिहत काररत कर देता िै, तो क कोई अपराि ििीं करता िै ।
88. ककसी व्यहक्‍त के िायदे के हिए सम्महत से सद्भ
‍ ावपूवक
त ककया गया कायत हजससे मृत्यु काररत करिे का आिय ििीं िै—कोई
बात, जो मृत्यु काररत करिे के आिय से ि की गई िो, ककसी ऐसी अपिाहि के कारण ििीं िै जो उस बात से ककसी ऐसे व्यहक्‍त को, हजसके
िायदे के हिए वि बात सद्‍भावपूवतक की जाए और हजसिे उस अपिाहि को सििे, या उस अपिाहि की जोहिम उठािे के हिए चािे
अहभव्यक्‍त, चािे हववहक्षत सम्महत दे दी िो, काररत िो या काररत करिे का कतात का आिय िो या काररत िोिे की संभाव्यता कतात को
ज्ञात िै ।
दृष्ट‍ ांत
क, एक ि्य हचककत्सक, यि जािते हुए कक एक हविेष िस्‍त्रकमत से य को, जो वेदिापूणत व्याहि से ग्रस्त िै, मृत्यु काररत िोिे की
संभाव्यता िै ककं तु य की मृत्यु काररत करिे का आिय ि रिते हुए और सद्‍भावपूवतक य के िायदे के आिय से य की सम्महत से य पर वि
िस्‍त्रकमत करता िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया िै ।
89. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्महत से हििु या उन्मत्त व्यहक्‍त के िायदे के हिए सद्भ
‍ ावपूवतक ककया गया कायत—कोई बात, जो
बारि वषत से कम आयु के या हवकृ तहचत्त व्यहक्‍त के िायदे के हिए सद्‍भावपूवतक उसके संरक्षक के , या हवहिपूणत भारसािक ककसी दूसरे
व्यहक्‍त के द्वारा, या की अहभव्यक्‍त या हववहक्षत सम्महत से, की जाए, ककसी ऐसी अपिाहि के कारण, अपराि ििीं िै जो उस बात से उस
व्यहक्‍त को काररत िो, या काररत करिे का कतात का आिय िो या काररत िोिे की संभाव्यता कतात को ज्ञात िो :
परन्तुक—परन्तु—
पििा—इस अपवाद का हवस्तार सािय मृत्यु काररत करिे या मृत्यु काररत करिे का प्रयत्‍ि करिे पर ि िोगा ;
दूसरा—इस अपवाद का हवस्तार मृत्यु या घोर उपिहत के हिवारण के या ककसी घोर रोग या अंगिैहथ्य से मुक्‍त करिे के प्रयोजि
से हभन्‍ि ककसी प्रयोजि के हिए ककसी ऐसी बात के करिे पर ि िोगा हजसे करिे वािा व्यहक्‍त जािता िो कक उससे मृत्यु काररत िोिा
संभाव्य िै ;
तीसरा—इस अपवाद का हवस्तार स्वेच्छया घोर उपिहत काररत करिे या घोर उपिहत काररत करिे का प्रयत्‍ि करिे पर ि िोगा
जब तक कक वि मृत्यु या घोर उपिहत के हिवारण के , या ककसी घोर रोग या अंगिैहथ्य से मुक्‍त करिे के प्रयोजि से ि की गई िो ;
चौथा—इस अपवाद का हवस्तार ककसी ऐसे अपराि के दुष्‍प्रेरण पर ि िोगा हजस अपराि के ककए जािे पर इसका हवस्तार
ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
क सद्‍भावपूवतक, अपिे हििु के िायदे के हिए अपिे हििु की सम्महत के हबिा, यि संभाव्य जािते हुए कक िस्‍त्रकमत से उस हििु
की मृत्यु काररत िोगी, ि कक इस आिय से कक उस हििु को मृत्यु काररत कर दे, ि्यहचककत्सक द्वारा पथरी हिकिवािे के हिए अपिे
हििु की ि्यकक्रया करवाता िै । क का उद्देश्य हििु को रोगमुक्‍त करािा था, इसहिए वि इस अपवाद के अंतगतत आता िै ।
90. सम्महत, हजसके संबि
ं में यि ज्ञात िो कक वि भय या भ्रम के अिीि दी गई िै—कोई सम्महत ऐसी सम्महत ििीं िै जैसी इस
संहिता की ककसी िारा से आिहयत िै, यकद वि सम्महत ककसी व्यहक्‍त िे क्षहत, भय के अिीि, या तथ्य के भ्रम के अिीि दी िो, और यकद
14

कायत करिे वािा व्यहक्‍त यि जािता िो या उसके पास हवश्‍वास करिे का कारण िो कक ऐसे भय या भ्रम के पररणामस्वरूप वि सम्महत दी
गई थी ; अथवा
उन्मत्त व्यहक्‍त की सम्महत—यकद वि सम्महत ऐसे व्यहक्‍त िे दी िो जो हचत्तहवकृ हत या मत्तता के कारण उस बात की, हजसके हिए
वि अपिी सम्महत देता िै, प्रकृ हत और पररणाम को समझिे में असमथत िो ; अथवा
हििु की सम्महत—जब तक कक संदभत से तत्‍प्रहतकू ि प्रतीत ि िो, यकद वि सम्महत ऐसे व्यहक्‍त िे दी िो जो बारि वषत से कम आयु
का िै ।
91. ऐसे कायों का अपवजति जो काररत अपिाहि के हबिा भी स्वत: अपराि िै—िारा 87, 88 और 89 के अपवादों का हवस्तार उि
कायों पर ििीं िै जो उस अपिाहि के हबिा भी स्वत: अपराि िै जो उस व्यहक्‍त को, जो सम्महत देता िै या हजसकी ओर से सम्महत दी
जाती िै, उि कायों से काररत िो, या काररत ककए जािे का आिय िो, या काररत िोिे की संभाव्यता ज्ञात िो ।
दृष्ट‍ ांत
गभतपात करािा (जब तक कक वि उस स्‍त्री का जीवि बचािे के प्रयोजि से सद्‍भावपूवतक काररत ि ककया गया िो) ककसी अपिाहि
के हबिा भी, जो उसिे उस स्‍त्री को काररत िो या काररत करिे का आिय िो, स्वत: अपराि िै । इसहिए वि “ऐसी अपिाहि के कारण”
अपराि ििीं िै ; और ऐसा गभतपात करािे की उस स्‍त्री की या उसके संरक्षक की सम्महत उस कायत को न्यायािुमत ििीं बिाती ।
92. सम्महत के हबिा ककसी व्यहक्‍त के िायदे के हिए सद्‍भावपूवतक ककया गया कायत—कोई बात जो ककसी व्यहक्‍त के िायदे के हिए
सद्‍भावपूवतक यद्यहप, उसकी सम्महत के हबिा, की गई िै, ऐसी ककसी अपिाहि के कारण, जो उस बात से उस व्यहक्‍त को काररत िो जाए,
अपराि ििीं िै, यकद पररहस्थहतयां ऐसी िों कक उस व्यहक्‍त के हिए यि असंभव िो कक वि अपिी सम्महत प्रकट करे या वि व्यहक्‍त
सम्महत देिे के हिए असमथत िो और उसका कोई संरक्षक या उसका हवहिपूणत भारसािक कोई दूसरा व्यहक्‍त ि िो हजससे ऐसे समय पर
सम्महत अहभप्राप्‍त करिा संभव िो कक वि बात िायदे के साथ की जा सके :
परन्तुक—परन्तु—
पििा—इस अपवाद का हवस्तार सािय मृत्यु काररत करिे या मृत्यु काररत करिे का प्रयत्‍ि करिे पर ि िोगा ;
दूसरा—इस अपवाद का हवस्तार मृत्यु या घोर उपिहत के हिवारण के या ककसी घोर रोग या अंगिैहथ्य से मुक्‍त करिे के प्रयोजि
से हभन्‍ि ककसी प्रयोजि के हिए ककसी ऐसी बात के करिे पर ि िोगा, हजसे करिे वािा व्यहक्‍त जािता िो कक उससे मृत्यु काररत िोिा
संभाव्य िै ;
तीसरा—इस अपवाद का हवस्तार मृत्यु या उपिहत के हिवारण के प्रयोजि से हभन्‍ि ककसी प्रयोजि के हिए स्वेच्छया उपिहत
काररत करिे या उपिहत काररत करिे का प्रयत्‍ि करिे पर ि िोगा ;
चौथा—इस अपवाद का हवस्तार ककसी ऐसे अपराि के दुष्‍प्रेरण पर ि िोगा हजस अपराि के ककए जािे पर इसका हवस्तार
ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य अपिे घो़िे से हगर गया और मूर्छतत िो गया । क एक ि्यहचककत्सक का यि हवचार िै कक य के कपाि पर ि्यकक्रया
आवश्यक िै । क, य की मृत्यु करिे का आिय ि रिते हुए, ककं तु सद्‍भावपूवतक य के िायदे के हिए, य के स्वयं ककसी हिणतय पर पहुंचिे की
िहक्‍त प्राप्‍त करिे से पूवत िी कपाि पर ि्यकक्रया करता िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया ।
(ि) य को एक बाघ उठा िे जाता िै । यि जािते हुए कक संभाव्य िै कक गोिी िगिे से य मर जाए, ककं तु य का वि करिे का आिय
ि रिते हुए और सद्‍भावपूवतक य के िायदे के आिय से क उस बाघ पर गोिी चिाता िै । क की गोिी से य को मृत्युकारक घाव िो जाता
िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया ।
(ग) क, एक ि्यहचककत्सक, यि देिता िै कक एक हििु की ऐसी दुघतटिा िो गई िै हजसका प्राणांतक साहबत िोिा संभाव्य िै, यकद
िस्‍त्रकमत तुरंत ि कर कदया जाए । इतिा समय ििीं‍िै कक उस हििु के संरक्षक से आवेदि ककया जा सके । क, सद्‍भावपूवतक हििु के िायदे
का आिय रिते हुए हििु के अन्यथा अिुिय करिे पर भी िस्‍त्रकमत करता िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया ।
(घ) एक हििु य के साथ क एक जिते हुए गृि में िै । गृि के िीचे िोग एक कं बि ताि िेते िैं । क उस हििु को यि जािते हुए कक
संभाव्य िै कक हगरिे से वि हििु मर जाए ककं तु उस हििु को मार डाििे का आिय ि रिते हुए और सद्‍भावपूवतक उस हििु के िायदे के
आिय से गृि छत पर से िीचे हगरा देता िै । यिां, यकद हगरिे से वि हििु मर भी जाता िै, तो भी क िे कोई अपराि ििीं ककया ।
स्पष्‍टीकरण—के वि िि संबंिी िायदा वि िायदा ििीं िै, जो िारा 88, 89 और 92 के भीतर आता िै ।
93. सद्‍भावपूवतक दी गई संसच
ू िा—सद्‍भावपूवतक दी गई संसूचिा उस अपिाहि के कारण अपराि ििीं िै, जो उस व्यहक्‍त को िो
हजसे वि दी गई िै, यकद वि उस व्यहक्‍त के िायदे के हिए दी गई िो ।
15

दृष्ट‍ ांत
क, एक ि्यहचककत्सक, एक रोगी को सद्‍भावपूवतक यि संसूहचत करता िै कक उसकी राय में वि जीहवत ििीं रि सकता । इस
आघात के पररणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु िो जाती िै । क िे कोई अपराि ििीं ककया िै, यद्यहप वि जािता था कक उस संसूचिा से
उस रोगी की मृत्यु काररत िोिा संभाव्य िै ।
94. वि कायत हजसको करिे के हिए कोई व्यहक्‍त िमककयों द्वारा हववि ककया गया िै—ित्या और मृत्यु से दंडिीय उि अपरािों को
जो राज्य के हवरुद्ध िै, छो़िकर कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यहक्‍त द्वारा की जाए जो उसे करिे के हिए ऐसी िमककयों से हववि
ककया गया िो हजिसे उस बात को करते समय उसको युहक्‍तयुक्‍त रूप से यि आिंका काररत िो गई िो कक अन्यथा पररणाम यि िोगा कक
उस व्यहक्‍त की तत्काि मृत्यु िो जाए, परन्तु यि तब जबकक उस कायत को करिे वािे व्यहक्‍त िे अपिी िी इच्छा से या तत्काि मृत्यु से कम
अपिी अपिाहि की युहक्‍तयुक्‍त आिंका से अपिे को उस हस्थहत में ि डािा िो, हजसमें कक वि ऐसी मजबूरी के अिीि प़ि गया िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—वि व्यहक्‍त, जो स्वयं अपिी इच्छा से, या पीटे जािे की िमकी के कारण, डाकु ओं की टोिी में उिके िीि को
जािते हुए सहम्महित िो जाता िै, इस आिार पर िी इस अपवाद का िायदा उठािे का िकदार ििीं कक वि अपिे साहथयों द्वारा ऐसी
बात करिे के हिए हववि ककया गया था जो हवहििा अपराि िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—डाकु ओं की एक टोिी द्वारा अहभगृिीत और तत्काि मृत्यु की िमकी द्वारा ककसी बात के करिे के हिए, जो
हवहििा अपराि िै, हववि ककया गया व्यहक्‍त, उदािरणाथत, एक िोिार, जो अपिे औजार िेकर एक गृि का द्वार तो़ििे को हववि ककया
जाता िै, हजससे डाकू उसमें प्रवेि कर सकें और उसे िूट सकें , इस अपवाद का िायदा उठािे के हिए िकदार िै ।
95. तुच्छ अपिाहि काररत करिे वािा कायत—कोई बात इस कारण से अपराि ििीं िै कक उससे कोई अपिाहि काररत िोती िै या
काररत की जािी आिहयत िै या काररत िोिे की संभाव्यता ज्ञात िै, यकद वि इतिी तुच्छ िै कक मामूिी समझ और स्वभाव वािा कोई
व्यहक्‍त उसकी हिकायत ि करे गा ।
प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार के हवषय में
96. प्राइवेट प्रहतरक्षा में की गई बातें—कोई बात अपराि ििीं िै, जो प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार के प्रयोग में की जाती िै ।
97. िरीर तथा संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार—िारा 99 में अंतर्वतष्‍ट हिबतन्ििों के अध्यिीि, िर व्यहक्‍त को अहिकार
िै कक, वि—
पििा—मािव िरीर पर प्रभाव डाििे वािे ककसी अपराि के हवरुद्ध अपिे िरीर और ककसी अन्य व्यहक्‍त के िरीर की
प्रहतरक्षा करे ;
दूसरा—ककसी ऐसे कायत के हवरुद्ध, जो चोरी, िूट, ररहष्‍ट या आपराहिक अहतचार की पररभाषा में आिे वािा अपराि िै, या जो
चोरी, िूट, ररहष्‍ट या आपराहिक अहतचार करिे का प्रयत्‍ि िै, अपिी या ककसी अन्य व्यहक्‍त की, चािे जंगम, चािे स्थावर संपहत्त की
प्रहतरक्षा करे ।
98. ऐसे व्यहक्‍त के कायत के हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार जो हवकृ तहचत्त आकद िो—जब कक कोई कायत जो अन्यथा कोई
अपराि िोता, उस कायत को करिे वािे व्यहक्‍त के बािकपि, समझ की पररपक्‍वता के अभाव, हचत्तहवकृ हत या मत्तता के कारण, या उस
व्यहक्‍त के ककसी भ्रम के कारण, वि अपराि ििीं िै, तब िर व्यहक्‍त उस कायत के हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का विी अहिकार रिता िै, जो
वि उस कायत के वैसा अपराि िोिे की दिा में रिता ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य, पागिपि के असर में, क को जाि से मारिे का प्रयत्‍ि करता िै । य ककसी अपराि का दोषी ििीं िै । ककन्तु क को प्राइवेट
प्रहतरक्षा का विी अहिकार िै, जो वि य के स्वस्थहचत्त िोिे की दिा में रिता ।
(ि) क राहत्र में एक ऐसे गृि में प्रवेि करता िै हजसमें प्रवेि करिे के हिए वि वैि रूप से िकदार िै । य, सद्‍भावपूवतक क को ‍‍‍‍
गृि-भेदक समझकर, क पर आक्रमण करता िै । यिां य इस भ्रम के अिीि क पर आक्रमण करके कोई अपराि ििीं करता िै ककं तु क, य के
हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का विी अहिकार रिता िै, जो वि तब रिता, जब य उस भ्रम के अिीि कायत ि करता ।
99. कायत, हजिके हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का कोई अहिकार ििीं िै—यकद कोई कायत, हजससे मृत्यु या घोर उपिहत की आिंका
युहक्‍तयुक्‍त रूप से काररत ििीं िोती, सद्‍भावपूवतक अपिे पदाभास में कायत करते हुए िोक सेवक द्वारा ककया जाता िै या ककए जािे का
प्रयत्‍ि ककया जाता िै तो उस कायत के हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का कोई अहिकार ििीं िै, चािे वि कायत हवहि-अिुसार सवतथा न्यायािुमत
ि भी िो ।
यकद कोई कायत, हजससे मृत्यु या घोर उपिहत की आिंका युहक्‍तयुक्‍त रूप से काररत ििीं िोती, सद्‍भावपूवतक अपिे पदाभास में
कायत करते हुए िोक सेवक के हिदेि से ककया जाता िै, या ककए जािे का प्रयत्‍ि ककया जाता िै, तो उस कायत के हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का
कोई अहिकार ििीं िै, चािे वि हिदेि हवहि-अिुसार सवतथा न्यायािुमत ि भी िो ।
16

उि दिाओं में, हजिमें संरक्षा के हिए िोक प्राहिकाररयों की सिायता प्राप्‍त करिे के हिए समय िै, प्राइवेट प्रहतरक्षा का कोई
अहिकार ििीं िै ।
इस अहिकार के प्रयोग का हवस्तार—ककसी दिा में भी प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का हवस्तार उतिी अपिाहि से अहिक
अपिाहि करिे पर ििीं िै, हजतिी प्रहतरक्षा के प्रयोजि से करिी आवश्यक िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—कोई व्यहक्‍त ककसी िोक सेवा द्वारा ऐसे िोक सेवक के िाते ककए गए या ककए जािे के हिए प्रयहतत, कायत के
हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार से वंहचत ििीं िोता, जब तक कक वि यि ि जािता िो, या हवश्‍वास करिे का कारण ि रिता िो,
कक उस कायत को करिे वािा व्यहक्‍त ऐसा िोक सेवक िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—कोई व्यहक्‍त ककसी िोक सेवक के हिदेि से ककए गए, या ककए जािे के हिए प्रयहतत, ककसी कायत के हवरुद्ध प्राइवेट
प्रहतरक्षा के अहिकार से वंहचत ििीं िोता, जब तक कक वि यि ि जािता िो, या हवश्‍वास करिे का कारण ि रिता िो, कक उस कायत को
करिे वािा व्यहक्‍त ऐसे हिदेि से कायत कर रिा िै, या जब तक कक वि व्यहक्‍त उस प्राहिकार का कथि ि कर दे, हजसके अिीि वि कायत
कर रिा िै, या यकद उसके पास हिहित प्राहिकार िै, जो जब तक कक वि ऐसे प्राहिकार को मांगे जािे पर पेि ि कर दे ।
100. िरीर की प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का हवस्तार मृत्यु काररत करिे पर कब िोता िै—िरीर की प्राइवेट प्रहतरक्षा के
अहिकार का हवस्तार, पूवतवती अंहतम िारा में वर्णतत हिबतन्ििों के अिीि रिते हुए, िमिावर की स्वेच्छया मृत्यु काररत करिे या कोई
अन्य अपिाहि काररत करिे तक िै, यकद वि अपराि, हजसके कारण उस अहिकार के प्रयोग का अवसर आता िै, एहत्स्मिपश्‍चात् प्रगहणत
भांहतयों में से ककसी भी भांहत का िै, अथातत् :—
पििा—ऐसा िमिा हजससे युहक्‍तयुक्‍त रूप से यि आिंका काररत िो कक अन्यथा ऐसे िमिे का पररणाम मृत्यु िोगा ;
दूसरा—ऐसा िमिा हजससे युहक्‍तयुक्‍त रूप से यि आिंका काररत िो कक अन्यथा ऐसे िमिे का पररणाम घोर उपिहत िोगा ;
तीसरा—बिात्संग करिे के आिय से ककया गया िमिा ;
चौथा—प्रकृ हत-हवरुद्ध काम-तृष्णा की तृहप्त के आिय से ककया गया िमिा ;
पांचवां—व्यपिरण या अपिरण करिे के आिय से ककया गया िमिा ;
छठा—इस आिय से ककया गया िमिा कक ककसी व्यहक्‍त का ऐसी पररहस्थहतयों में सदोष परररोि ककया जाए, हजिसे उसे
युहक्‍तयुक्‍त रूप से यि आिंका काररत िो कक वि अपिे को छु ़िवािे के हिए िोक प्राहिकाररयों की सिायता प्राप्‍त ििीं कर सके गा ।
[सातवां—अम्‍ि‍िें किे‍ या‍देिे‍ का‍कृ त्‍य,‍या‍अम्‍ि‍िें किे‍ या‍देिे‍ का‍प्रयास‍करिा‍हजससे‍ युहक्‍तयुक्‍त‍रूप‍से‍ यि‍आंिका‍काररत‍
1

िो‍कक‍ऐसे‍कृ त्‍य‍के ‍पररणामस्‍वरूप‍अन्‍यथा‍घोर‍उपिहत‍काररत‍िोगी‍।]


101. कब ऐसे अहिकार का हवस्तार मृत्यु से हभन्‍ि कोई अपिाहि काररत करिे तक का िोता िै—यकद अपराि पूवतगामी अंहतम
िारा में प्रगहणत भांहतयों में से ककसी भांहत का ििीं िै, तो िरीर की प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का हवस्तार िमिावर की मृत्यु
स्वेच्छया काररत करिे तक का ििीं िोता, ककं तु इस अहिकार का हवस्तार िारा 99 में वर्णतत हिबतन्ििों के अध्यिीि िमिावर की मृत्यु से
हभन्‍ि कोई अपिाहि स्वेच्छया काररत करिे तक का िोता िै ।
102. िरीर की प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का प्रारं भ और बिा रििा—िरीर की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार उसी क्षण
प्रारं भ िो जाता िै, जब अपराि करिे के प्रयत्‍ि या िमकी से िरीर के संकट की युहक्‍तयुक्‍त आिंका पैदा िोती िै, चािे वि अपराि ककया
ि गया िो, और वि तब तक बिा रिता िै जब तक िरीर के संकट की ऐसी आिंका बिी रिती िै ।
103. कब संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का हवस्तार मृत्यु काररत करिे तक का िोता िै—संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा के
अहिकार का हवस्तार, िारा 99 में वर्णतत हिबतन्ििों के अध्यिीि दोषकतात की मृत्यु या अन्य अपिाहि स्वेच्छया काररत करिे तक का िै,
यकद वि अपराि हजसके ककए जािे के , या ककए जािे के प्रयत्‍ि के कारण उस अहिकार के प्रयोग का अवसर आता िै, एतहस्मिपश्‍चात्
प्रगहणत भांहतयों में से ककसी भी भांहत का िै, अथातत्:—
पििा—िूट ;
दूसरा—रात्रौ गृि-भेदि ;
तीसरा—अहग्‍ि द्वारा ररहष्‍ट, जो ककसी ऐसे हिमातण, तंबू या जियाि को की गई िै, जो मािव आवास के रूप में या संपहत्त की
अहभरक्षा के स्थाि के रूप में उपयोग में िाया जाता िै ;
चौथा—चोरी, ररहष्‍ट या गृि-अहतचार, जो ऐसी पररहस्थहतयों में ककया गया िै, हजिसे युहक्‍तयुहक्‍त रूप से यि आिंका काररत िो
कक यकद प्राइवेट प्रहतरक्षा के ऐसे अहिकार का प्रयोग ि ककया गया तो पररणाम मृत्यु या घोर उपिहत िोगा ।
104. ऐसे अहिकार का हवस्तार मृत्यु से हभन्‍ि कोई अपिाहि काररत करिे तक का कब िोता िै—यकद वि अपराि, हजसके ककए
जािे या ककए जािे के प्रयत्‍ि से प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार के प्रयोग का अवसर आता िै, ऐसी चोरी, ररहष्‍ट या आपराहिक अहतचार िै,

1
2013 के ‍अहिहियम‍सं०‍13 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
17

जो पूवतगामी अंहतम िारा में प्रगहणत भांहतयों में से ककसी भांहत का ि िो, तो उस अहिकार का हवस्तार स्वेच्छया मृत्यु काररत करिे तक
का ििीं िोता ककन्तु उसका हवस्तार िारा 99 में वर्णतत हिबंििों के अध्यिीि दोषकतात की मृत्यु से हभन्‍ि कोई अपिाहि स्वेच्छया काररत
करिे तक का िोता िै ।
105. सम्पहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का प्रारं भ और बिा रििा—सम्पहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार तब प्रारं भ
िोता िै, जब सम्पहत्त के संकट की युहक्‍तयुक्‍त आिंका प्रारं भ िोती िै ।
संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार, चोरी के हवरुद्ध अपरािी के संपहत्त सहित पहुंच से बािर िो जािे तक अथवा या तो िोक
प्राहिकाररयों की सिायता अहभप्राप्‍त कर िेिे या संपहत्त प्रत्युद्िृत िो जािे तक बिा रिता िै ।
संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार िूट के हवरुद्ध तब तक बिा रिता िै, जब तक अपरािी ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु या
उपिहत, या सदोष अवरोि काररत करता रिता या काररत करिे का प्रयत्‍ि करता रिता िै, अथवा जब तक तत्काि मृत्यु का, या तत्काि
उपिहत का, या तत्काि वैयहक्‍तक अवरोि का, भय बिा रिता िै ।
संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार आपराहिक अहतचार या ररहष्‍ट के हवरुद्ध तब तक बिा रिता िै, जब तक अपरािी
आपराहिक अहतचार या ररहष्‍ट करता रिता िै ।
संपहत्त की प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार रात्रौ गृि-भेदि के हवरुद्ध तब तक बिा रिता िै, जब तक ऐसे गृिभेदि से आरं भ हुआ
गृि-अहतचार िोता रिता िै ।
106. घातक िमिे के हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा का अहिकार जबकक हिदोष व्यहक्‍त को अपिाहि िोिे की जोहिम िै—हजस िमिे से
मृत्यु की आिंका युहक्‍तयुक्‍त रूप से काररत िोती िै उसके हवरुद्ध प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का प्रयोग करिे में यकद प्रहतरक्षक ऐसी
हस्थहत में िो कक हिदोष व्यहक्‍त की अपिाहि की जोहिम के हबिा वि उस अहिकार का प्रयोग कायतसािक रूप से ि कर सकता िो तो
उसके प्राइवेट प्रहतरक्षा के अहिकार का हवस्तार वि जोहिम उठािे तक का िै ।
दृष्ट‍ ांत
क पर एक भी़ि द्वारा आक्रमण ककया जाता िै, जो उसकी ित्या करिे का प्रयत्‍ि करती िै । वि उस भी़ि पर गोिी चिाए हबिा
प्राइवेट प्रहतरक्षा के अपिे अहिकार का प्रयोग कायतसािक रूप से ििीं कर सकता, और वि भी़ि में हमिे हुए छोटे-छोटे हििुओं की
अपिाहि करिे की जोहिम उठाए हबिा गोिी ििीं चिा सकता । यकद वि इस प्रकार गोिी चिािे से उि हििुओं में से ककसी हििु को
अपिाहि करे तो क कोई अपराि ििीं करता ।
अध्याय 5
दुष्‍प्ररे ण के हवषय में
107. ककसी बात का दुष्प्र
‍ रे ण—वि व्यहक्‍त ककसी बात के ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करता िै, जो—
पििा—उस बात को करिे के हिए ककसी व्यहक्‍त को उकसाता िै ; अथवा
दूसरा—उस बात को करिे के हिए ककसी षड् ‍यंत्र में एक या अहिक अन्य व्यहक्‍त या व्यहक्‍तयों के साथ सहम्महित िोता िै,
यकद उस षड् ‍यंत्र के अिुसरण में, और उस बात को करिे के उद्देश्य से, कोई कायत या अवैि िोप घरटत िो जाए ; अथवा
तीसरा—उस बात के हिए ककए जािे में ककसी कायत या अवैि िोप द्वारा सािय सिायता करता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—जो कोई व्यहक्‍त जािबूझकर दुव्यतपदेिि द्वारा, या ताहववक तथ्य, हजसे प्रकट करिे के हिए वि आबद्ध िै,
जािबूझकर हछपािे द्वारा, स्वेच्छया ककसी बात का ककया जािा काररत या उपाप्‍त करता िै अथवा काररत या उपाप्‍त करिे का प्रयत्‍ि
करता िै, वि उस बात का ककया जािा उकसाता िै, यि किा जाता िै ।
दृष्ट‍ ांत
क, एक िोक आकिसर, न्यायािय के वारन्ट द्वारा य को पक़ििे के हिए प्राहिकृ त िै । ि उस तथ्य को जािते हुए और यि भी
जािते हुए कक ग, य, ििीं िै, क को जािबूझकर यि व्यपकदष्‍ट करता िै कक ग, य िै, और एतद्‍द्वारा सािय क से य को पक़िवाता िै । यिां
ि, ग के पक़िे जािे का उकसािे द्वारा दुष्‍प्रेरण करता िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—जो कोई या तो ककसी कायत के ककए जािे से पूवत या ककए जािे के समय, उस कायत के ककए जािे को सुकर बिािे के
हिए कोई बात करता िै और तद्‍द्वारा उसके ककए जािे को सुकर बिाता िै, वि उस कायत के करिे में सिायता करता िै, यि किा
जाता िै ।
108. दुष्प्र
‍ रे क—वि व्यहक्‍त अपराि का दुष्‍प्रेरण करता िै, जो अपराि के ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करता िै या ऐसे कायत के ककए जािे
का दुष्‍प्रेरण करता िै, जो अपराि िोता, यकद वि कायत अपराि करिे के हिए हवहि अिुसार समथत व्यहक्‍त द्वारा उसी आिय या ज्ञाि से,
जो दुष्‍प्रेरक का िै, ककया जाता ।
18

स्पष्‍टीकरण 1—ककसी कायत के अवैि िोप का दुष्‍प्रेरण अपराि की कोरट में आ सके गा, चािे दुष्‍प्रेरक उस कायत को करिे के हिए
स्वयं आबद्ध ि िो ।
स्पष्‍टीकरण 2—दुष्‍प्रेरण का अपराि गरठत िोिे के हिए यि आवश्यक ििीं िै कक दुष्‍प्रेररत कायत ककया जाए या अपराि गरठत
करिे के हिए अपेहक्षत प्रभाव काररत िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) ग की ित्या करिे के हिए ि को क उकसाता िै । ि वैसा करिे से इन्कार कर देता िै । क ित्या करिे के हिए ि के दुष्‍प्रेरण का
दोषी िै ।
(ि) घ की ित्या करिे के हिए ि को क उकसाता िै । ि ऐसी उकसािट के अिुसरण में घ को हवद्ध करता िै । घ का घाव अच्छा िो
जाता िै । क ित्या करिे के हिए ि को उकसािे का दोषी िै ।
स्पष्‍टीकरण 3—यि आवश्यक ििीं िै कक दुष्‍प्रेररत व्यहक्‍त अपराि करिे के हिए हवहि-अिुसार समथत िो, या उसका विी दूहषत
आिय या ज्ञाि िो, जो दुष्‍प्रेरक का िै, या कोई भी दूहषत आिय या ज्ञाि िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क दूहषत आिय से एक हििु या पागि को वि कायत करिे के हिए दुष्‍प्रेररत करता िै, जो अपराि िोगा, यकद वि ऐसे व्यहक्‍त
द्वारा ककया जाए जो कोई अपराि करिे के हिए हवहि-अिुसार समथत िै और विी आिय रिता िै जो कक क का िै । यिां, चािे वि कायत
ककया जाए या ि ककया जाए क अपराि के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै ।
(ि) य की ित्या करिे के आिय से ि को, जो सात वषत से कम आयु का हििु िै, वि कायत करिे के हिए क उकसाता िै हजससे य की
मृत्यु काररत िो जाती िै । ि दुष्‍प्रेररत के पररणामस्वरूप वि कायत क की अिुपहस्थहत में करता िै और उससे य की मृत्यु काररत करता िै ।
यिां यद्यहप ि वि अपराि करिे के हिए हवहि-अिुसार समथत ििीं था, तथाहप क उसी प्रकार से दण्डिीय िै, मािो ि वि अपराि करिे
के हिए हवहि-अिुसार समथत िो और उसिे ित्या की िो, और इसहिए क मृत्यु दण्ड से दण्डिीय िै ।
(ग) ि को एक हिवासगृि में आग िगािे के हिए क उकसाता िै । ि हचत्तहवकृ हत के पररणामस्वरूप उस कायत की प्रकृ हत या यि
कक वि जो कु छ कर रिा िै वि दोषपूणत या हवहि के प्रहतकू ि िै जाििे में असमथत िोिे के कारण क के उकसािे के पररणामस्वरूप उस गृि
में आग, िगा देता िै । ि िे कोई अपराि ििीं ककया िै, ककन्तु क एक हिवासगृि में आग िगािे के अपराि के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै, और
उस अपराि के हिए उपबहन्ित दण्ड से दण्डिीय िै ।
(घ) क चोरी करािे के आिय से य के कब्‍जे में से य की सम्पहत्त िेिे के हिए ि को उकसाता िै । ि को यि हवश्‍वास करिे के
हिए क उत्‍प्रेररत करता िै कक वि सम्पहत्त क की िै । ि उस सम्पहत्त का इस हवश्‍वास से कक वि क की सम्पहत्त िै, य के कब्जे में से
सद्‍भावपूवतक िे िेता िै । ि इस भ्रम के अिीि कायत करते हुए, उसे बेईमािी से ििीं िेता, और इसहिए चोरी ििीं करता ; ककन्तु क चोरी
के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै, और उसी दण्ड से दण्डिीय िै, मािो ि िे चोरी की िो ।
स्पष्‍टीकरण 4—अपराि का दुष्‍प्रेरण अपराि िोिे के कारण ऐसे दुष्‍प्रेरण का दुष्‍प्रेरण भी अपराि िै ।
दृष्ट‍ ांत
ग को य की ित्या करिे को उकसािे के हिए ि को क उकसाता िै । ि तदिुकूि य की ित्या करिे के हिए ि को उकसाता िै और ि
के उकसािे के पररणामस्वरूप ग उस अपराि को करता िै । ि अपिे अपराि के हिए ित्या के दण्ड से दण्डिीय िै, और क िे उस अपराि
को करिे के हिए ि को उकसाया, इसहिए क भी उसी दण्ड से दण्डिीय िै ।
स्पष्‍टीकरण 5—षड् ‍यंत्र द्वारा दुष्‍प्रेरण का अपराि करिे के हिए यि आवश्यक ििीं िै कक दुष्‍प्रेरक उस अपराि को करिे वािे
व्यहक्‍त के साथ हमिकर उस अपराि की योजिा बिाए । यि पयातप्त ‍ िै कक उस षड् ‍यंत्र में सहम्महित िो हजसके अिुसरण में वि अपराि
ककया जाता िै ।
दृष्ट‍ ांत
य को हवष देिे के हिए क एक योजिा ि से हमिकर बिाता िै । यि सिमहत िो जाती िै कक क हवष देगा । ि तब यि वर्णतत करते
हुए ग को वि योजिा समझा देता िै कक कोई तीसरा व्यहक्‍त हवष देगा, ककन्तु क का िाम ििीं िेता । ग हवष उपाप्‍त करिे के हिए सिमत
िो जाता िै, और उसे उपाप्‍त करके समझाए गए प्रकार से प्रयोग में िािे के हिए ि को पररदत्त करता िै । क हवष देता िै, पररणामस्वरूप
य की मृत्यु िो जाती िै । यिां, यद्यहप क और ग िे हमिकर षड् ‍यंत्र ििीं रचा िै, तो भी ग उस षड् ‍यंत्र में सहम्महित रिा िै, हजसके
अिुसरण में य की ित्या की गई िै । इसहिए ग िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै और ित्या के हिए दण्ड से दण्डिीय िै ।
19

[108क. भारत से बािर के अपरािों का भारत में दुष्प्र


1
‍ रे ण—वि व्यहक्‍त इस संहिता के अथत के अन्तगतत अपराि का दुष्‍प्रेरण करता
िै, जो [भारत] से बािर और उससे परे ककसी ऐसे कायत के ककए जािे का 2[भारत] में दुष्‍प्रेरण करता िै जो अपराि िोगा, यकद 2[भारत]
2

में ककया जाए ।


दृष्ट‍ ांत
क 2[भारत] में ि को, जो गोवा में हवदेिीय िै, गोवा में ित्या करिे के हिए उकसाता िै । क ित्या के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै ।]
109. दुष्प्र
‍ ेरण का दण्ड, यकद दुष्प्र
‍ रे रत कायत उसके पररणामस्वरूप ककया जाए, और जिां कक उसके दण्ड के हिए कोई अहभव्यक्‍त
उपबन्ि ििीं िै—जो कोई ककसी अपराि का दुष्‍प्रेरण करता िै, यकद दुष्‍प्रेररत कायत दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ककया जाता िै, और ऐसे
दुष्‍प्रेरण के दण्ड के हिए इस संहिता द्वारा कोई अहभव्यक्‍त उपबन्ि ििीं ककया गया िै, तो वि उस दण्ड से दहण्डत ककया जाएगा, जो उस
अपराि के हिए उपबहन्ित िै ।
स्पष्‍टीकरण—कोई कायत या अपराि दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ककया गया तब किा जाता िै, जब वि उस उकसािट के
पररणामस्वरूप या उस षड् ‍यंत्र के अिुसरण में या उस सिायता से ककया जाता िै, हजससे दुष्‍प्रेरण गरठत िोता िै ।
दृष्ट‍ ांत

(क) ि को, जो एक िोक सेवक िै, ि के पदीय कृ त्यों के प्रयोग में क पर कु छ अिुग्रि कदिािे के हिए इिाम के रूप में क ररश्‍वत की
प्रस्थापिा करता िै । ि वि ररश्‍वत प्रहतगृिीत कर िेता िै । क िे िारा 161 में पररभाहषत अपराि का दुष्‍प्रेरण ककया िै ।
(ि) ि को हमथ्या साक्ष्य देिे के हिए क उकसाता िै । ि उस उकसािट के पररणामस्वरूप, वि अपराि करता िै । क उस अपराि
के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै, और उसी दण्ड से दण्डिीय िै हजससे ि िै ।
(ग) य को हवष देिे का षड् ‍यंत्र क और ि रचते िैं । क उस षड् ‍यंत्र के अिुसरण में हवष उपाप्‍त करता िै और उसे ि को इसहिए
पररदत्त करता िै कक वि उसे य को दे । ि उस षड् ‍यंत्र के अिुसरण में वि हवष क की अिुपहस्थहत में य को देता िै और उसके द्वारा य की
मृत्यु काररत कर देता िै ।‍यिां, ि ित्या का दोषी िै । क षड् ‍यंत्र द्वारा उस अपराि के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै, और वि ित्या के हिए दण्ड से
दण्डिीय िै ।
110. दुष्प्र‍ ेरण का दण्ड, यकद दुष्प्र‍ रे रत व्यहक्‍त दुष्प्र
‍ ेरक के आिय से हभन्‍ि आिय से कायत करता िै—जो कोई ककसी अपराि के ककए
जािे का दुष्‍प्रेरण करता िै, यकद दुष्‍प्रेररत व्यहक्‍त िे दुष्‍प्रेरक के आिय या ज्ञाि से हभन्‍ि आिय या ज्ञाि से वि कायत ककया िो, तो वि उसी
दण्ड से दहण्डत ककया जाएगा, जो उस अपराि के हिए उपबहन्ित िै, जो ककया जाता यकद वि कायत दुष्‍प्रेरक के िी आिय या ज्ञाि से, ि
कक ककसी अन्य आिय या ज्ञाि से, ककया जाता ।
111. दुष्प्र
‍ रे क का दाहयत्व जब एक कायत का दुष्‍प्ररे ण ककया गया िै और उससे हभन्‍ि कायत ककया गया िै—जब कक ककसी एक कायत
का दुष्‍प्रेरण ककया जाता िै, और कोई हभन्‍ि कायत ककया जाता िै, तब दुष्‍प्रेरक उस ककए गए कायत के हिए उसी प्रकार से और उसी हवस्तार
तक दाहयत्व के अिीि िै, मािो उसिे सीिे उसी कायत का दुष्‍प्रेरण ककया िो‍:
परन्तुक—परन्तु यि तब जब कक ककया गया कायत दुष्‍प्रेरण का अहिसम्भाव्य पररणाम था और उस उकसािट के असर के अिीि या
उस सिायता से या उस षड् ‍यंत्र के अिुसरण में ककया गया था हजससे वि दुष्‍प्रेरण गरठत िोता िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) एक हििु को य के भोजि में हवष डाििे के हिए क उकसाता िै, और उस प्रयोजि से उसे हवष पररदत्त करता िै । वि हििु
उस उकसािट के पररणामस्वरूप भूि से म के भोजि में, जो य के भोजि के पास रिा हुआ िै, हवष डाि देता िै । यिां, यकद वि हििु क के
उकसािे के असर के अिीि उस कायत को कर रिा था, और ककया गया कायत उि पररहस्थहतयों में उस दुष्प्र
‍ ेरण का अहिसम्भाव्य पररणाम
िै, तो क उसी प्रकार और उसी हवस्तार तक दाहयत्व के अिीि िै, मािो उसिे उस हििु को म के भोजि में हवष डाििे के हिए उकसाया
िो ।
(ि) ि को य का गृि जिािे के हिए क उकसाता िै । ि उस गृि को आग िगा देता िै और उसी समय विां सम्पहत्त की चोरी करता
िै । क यद्यहप गृि को जिािे के दुष्‍प्रेरण का दोषी िै, ककन्तु चोरी के दुष्‍प्रेरण का दोषी ििीं िै ; क्योंकक वि चोरी एक अिग कायत थी और
उस गृि जिािे का अहिसम्भाव्य पररणाम ििीं थी ।

1
1898 के ‍अहिहियम‍सं० 4 की‍िारा‍3 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
2
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950‍और‍1951‍के ‍अहिहियम‍
सं० 3‍की‍िारा‍3‍और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
20

(ग) ि और ग को बसे हुए गृि में अितराहत्र में िूट के प्रयोजि से भेदि करिे के हिए क उकसाता िै, और उिको उस प्रयोजि के हिए
आयुि देता िै । ि और ग वि गृि-भेदि करते िैं, और य द्वारा जो हिवाहसयों में से एक िै, प्रहतरोि ककए जािे पर, य की ित्या कर देते िैं ।
यिां, यकद वि ित्या उस दुष्‍प्रेरण का अहिसम्भाव्य पररणाम थी, तो क ित्या के हिए उपबहन्ित दण्ड से दण्डिीय िै ।
112. दुष्प्र
‍ रे क कब दुष्प्र
‍ रे रत कायत के हिए और ककए गए कायत के हिए आकहित दण्ड से दण्डिीय िै—यकद वि कायत, हजसके हिए
दुष्‍प्रेरक अहन्तम पूवतगामी िारा के अिुसार दाहयत्व के अिीि िै, दुष्‍प्रेररत कायत के अहतररक्‍त ककया जाता िै और वि कोई सुहभन्‍ि अपराि
गरठत करता िै, तो दुष्‍प्रेरक उि अपरािों में से िर एक के हिए दण्डिीय ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
ि को एक िोक सेवक द्वारा ककए गए करस्थम् का बिपूवतक प्रहतरोि करिे के हिए क उकसाता िै । ि पररणामस्वरूप उस
करस्थम् का प्रहतरोि करता िै । प्रहतरोि करिे में ि करस्थम् का हिष्पादि करिे वािे आकिसर को स्वेच्छया घोर उपिहत काररत करता
िै । ि िे करस्थम् का प्रहतरोि करिे और स्वेच्छया घोर उपिहत काररत करिे के दो अपराि ककए िैं । इसहिए ि दोिों अपरािों के हिए
दण्डिीय िै, और यकद क यि सम्भाव्य जािता था कक उस करस्थम् का प्रहतरोि करिे में ि स्वेच्छया घोर उपिहत काररत करे गा, तो क भी
उिमें से िर एक अपराि के हिए दण्डिीय िोगा ।
113. दुष्प्र‍ रे रत कायत से काररत उस प्रभाव के हिए दुष्प्र
‍ ेरक का दाहयत्व जो दुष्प्र
‍ ेरक द्वारा आिहयत से हभन्‍ि िो—जबकक कायत का
दुष्‍प्रेरण दुष्‍प्रेरक द्वारा ककसी हवहिष्‍ट प्रभाव को काररत करिे के आिय से ककया जाता िै और दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप हजस कायत के
हिए दुष्‍प्रेरक दाहयत्व के अिीि िै, वि कायत दुष्‍प्रेरक के द्वारा आिहयत प्रभाव से हभन्‍ि प्रभाव काररत करता िै तब दुष्‍प्रेरक काररत प्रभाव
के हिए उसी प्रकार और उसी हवस्तार तक दाहयत्व के अिीि िै, मािो उसिे उस कायत का दुष्‍प्रेरण उसी प्रभाव को काररत करिे के आिय
से ककया िो परन्तु यि तब जब कक वि यि जािता था कक दुष्‍प्रेररत कायत से यि प्रभाव काररत िोिा सम्भाव्य िै ।
दृष्ट‍ ांत
य को घोर उपिहत करिे के हिए ि को क उकसाता िै । ि उस उकसािट के पररणामस्वरूप य को घोर उपिहत काररत करता िै ।
पररणामत: य की मृत्यु िो जाती िै । यिां, यकद क यि जािता था कक दुष्‍प्रेररत घोर उपिहत से मृत्यु काररत िोिा सम्भाव्य िै, तो क ित्या
के हिए उपबहन्ित दण्ड से दण्डिीय िै ।
114. अपराि ककए जाते समय दुष्प्र
‍ ेरक की उपहस्थहत—जब कभी कोई व्यहक्‍त, जो अिुपहस्थत िोिे पर दुष्‍प्रेरक के िाते दण्डिीय
िोता, उस समय उपहस्थत िो जब वि कायत या अपराि ककया जाए हजसके हिए वि दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप दण्डिीय िोता, तब यि
समझा जाएगा कक उसिे ऐसा कायत या अपराि ककया िै ।
115. मृत्यु या आजीवि कारावास से दण्डिीय अपराि का दुष्प्र ‍ रे ण—यकद अपराि ििीं ककया जाता—जो कोई मृत्यु या
1
[आजीवि कारावास] से दण्डिीय अपराि ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करे गा, यकद वि अपराि उस दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ि ककया जाए,
और ऐसे दुष्‍प्रेरण के दण्ड के हिए कोई अहभव्यक्‍त उपबन्ि इस संहिता में ििीं ककया गया िै, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ;
यकद अपिाहि करिे वािा कायत पररणामस्वरूप ककया जाता िै—और यकद ऐसा कोई कायत कर कदया जाए, हजसके हिए दुष्‍प्रेरक
उस दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप दाहयत्व के अिीि िो और हजससे ककसी व्यहक्‍त को उपिहत काररत िो, तो दुष्‍प्रेरक दोिों में से ककसी भांहत
के कारावास से, हजसकी अवहि चौदि वषत की िो सके गी, दण्डिीय िोगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
दृष्ट‍ ांत
ि को य की ित्या करिे के हिए क उकसाता िै । वि अपराि ििीं ककया जाता िै । यकद य की ित्या ि कर देता िै, तो वि मृत्यु या
[आजीवि कारावास] के दण्ड से दण्डिीय िोता । इसहिए, क कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दण्डिीय िै और
1

जुमातिे से भी दण्डिीय िै ; और यकद दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप य को कोई उपिहत िो जाती िै, तो वि कारावास से, हजसकी अवहि
चौदि वषत तक की िो सके गी, दण्डिीय िोगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
116. कारावास से दण्डिीय अपराि का दुष्प्र ‍ रे ण—यकद अपराि ि ककया जाए—जो कोई कारावास से दण्डिीय अपराि का
दुष्‍प्रेरण करे गा यकद वि अपराि उस दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ि ककया जाए और ऐसे दुष्‍प्रेरण के दण्ड के हिए कोई अहभव्यक्‍त उपबन्ि
इस संहिता में ििीं ककया गया िै, तो वि उस अपराि के हिए उपबहन्ित ककसी भांहत के कारावास से ऐसी अवहि के हिए, जो उस
अपराि के हिए उपबहन्ित दीघततम अवहि के एक चौथाई भाग तक की िो सके गी, या ऐसे जुमातिे से, जो उस अपराि के हिए उपबहन्ित
िै, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ;
यकद दुष्प्र
‍ रे क या दुष्‍प्ररे रत व्यहक्‍त ऐसा िोक सेवक िै, हजसका कततव्य अपराि हिवाररत करिा िो—और यकद दुष्‍प्रेरक या दुष्‍प्रेररत
व्यहक्‍त ऐसा िोक सेवक िो, हजसका कततव्य ऐसे अपराि के हिए ककए जािे को हिवाररत करिा िो, तो वि दुष्‍प्रेरक उस अपराि के हिए
उपबंहित ककसी भांहत के कारावास से ऐसी अवहि के हिए, जो उस अपराि के हिए उपबंहित दीघततम अवहि के आिे भाग तक की िो
सके गी, या ऐसे जुमातिे से, जो अपराि के हिए उपबंहित िै, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थहपत‍।
21

दृष्ट‍ ांत
(क) ि को, जो एक िोक सेवक िै, ि के पदीय कृ त्यों के प्रयोग में क अपिे प्रहत कु छ अिुग्रि कदिािे के हिए इिाम के रूप में ररश्‍वत
की प्रस्थापिा करता िै । ि उस ररश्‍वत को प्रहतगृिीत करिे से इन्कार कर देता िै । क इस िारा के अिीि दण्डिीय िै ।
(ि) हमथ्या साक्ष्य देिे के हिए ि को क उकसाता िै । यिां, यकद ि हमथ्या साक्ष्य ि दे, तो भी क िे इस िारा में पररभाहषत
अपराि ककया िै, और वि तद्िुसार दण्डिीय िै ।
(ग) क, एक पुहिस आकिसर, हजसका कततव्य िूट को हिवाररत करिा िै, िूट ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करता िै । यिां, यद्यहप वि िूट
ििीं की जाती, क उस अपराि के हिए उपबहन्ित कारावास की दीघततम अवहि के आिे से, और जुमातिे से भी, दण्डिीय िै ।
(घ) क द्वारा, जो एक पुहिस आकिसर िै, और हजसका कततव्य िूट को हिवाररत करिा िै, उस अपराि के ककए जािे का दुष्‍प्रेरण ि
करता िै, यिां यद्यहप वि िूट‍ि की जाए, ि िूट के अपराि के हिए उपबहन्ित कारावास की दीघततम अवहि के आिे से, और जुमातिे से
भी, दण्डिीय िै ।
117. िोक सािारण द्वारा या दस से अहिक व्यहक्‍तयों द्वारा अपराि ककए जािे का दुष्प्र ‍ ेरण—जो कोई िोक सािारण द्वारा, या
दस से अहिक व्यहक्‍तयों की ककसी भी संखया या वगत द्वारा ककसी अपराि के ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
क, एक िोक स्थाि में एक प्िेकाडत हचपकाता िै, हजसमें एक पंथ को हजसमें दस से अहिक सदस्य िैं, एक हवरोिी पंथ के सदस्यों
पर, जब कक वे जुिूस हिकाििे में िगे हुए िों, आक्रमण करिे के प्रयोजि से, ककसी हिहश्‍चत समय और स्थाि पर हमििे के हिए उकसाया
गया िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
118. मृत्यु या आजीवि कारावास से दंडिीय अपराि करिे की पररक्पिा को हछपािा—जो कोई मृत्यु या 1[आजीवि कारावास]
से दंडिीय अपराि का ककया जािा सुकर बिािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा सुकर बिाएगा यि जािते हुए,
2
[ऐसे अपराि के ककए जािे की पररक्पिा के अहस्तत्व को ककसी कायत या िोप द्वारा‍ या‍ हवगूढ़ि‍ अथवा‍ ककसी‍ अन्‍य‍ सूचिा‍
प्रच्‍छन्‍ि‍ सािि‍ के ‍ उपयोग‍ द्वारा स्वेच्छया हछपाएगा] या ऐसी पररक्पिा के बारे में ऐसा व्यपदेिि करे गा हजसका हमथ्या िोिा वि
जािता िै,
यकद अपराि कर कदया जाए—यकद अपराि ििीं ककया जाए—यकद ऐसा अपराि कर कदया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत
के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, अथवा यकद अपराि ि ककया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और दोिों दिाओं में से िर एक में जुमातिे से भी दंडिीय
िोगा ।
दृष्ट‍ ांत
क, यि जािते हुए कक ि स्थाि पर डकै ती प़ििे वािी िै, महजस्रेट को यि हमथ्या इहत्तिा देता िै कक डकै ती ग स्थाि पर, जो
हवपरीत कदिा में िै, प़ििे वािी िै और इस आिय से कक एतद्‍द्वारा उस अपराि का ककया जािा सुकर बिाए महजस्रेट को भुिावा देता िै
। डकै ती पररक्पिा के अिुसरण में ि स्थाि पर प़िती िै । क इस िारा के अिीि दंडिीय िै ।
119. ककसी ऐसे अपराि के ककए जािे की पररक्पिा का िोक सेवक द्वारा हछपाया जािा, हजसका हिवारण करिा उसका कततव्य
िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए उस अपराि का ककया जािा, हजसका हिवारण करिा ऐसे िोक सेवक के िाते उसका कततव्य िै, सुकर
बिािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा सुकर बिाएगा यि जािते हुए,
[ऐसे अपराि के ककए जािे की पररक्पिा के अहस्तत्व को ककसी कायत या िोप द्वारा या‍हवगूढ़ि‍अथवा‍कोई‍अन्‍य‍सूचिा‍प्रच्‍छन्‍ि‍
2

सािि‍के ‍उपयोग‍द्वारा‍स्वेच्छया हछपाएगा] या ऐसी पररक्पिा के बारे में ऐसा व्यपदेिि करे गा हजसका हमथ्या िोिा वि जािता िै,
यकद अपराि कर कदया जाए—यकद ऐसा अपराि कर कदया जाए, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि ऐसे कारावास की दीघततम अवहि के आिी तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो उस अपराि के हिए उपबंहित िै, या
दोिों से,
यकद अपराि मृत्यु आकद से दंडिीय िै—अथवा यकद वि अपराि मृत्यु या 1[आजीवि कारावास] से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी,
यकद अपराि ििीं ककया जाए—अथवा यकद वि अपराि ििीं ककया जाए, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि ऐसे कारावास की दीघततम अवहि की एक चौथाई तक की िो सके गी, या ऐसे जुमातिे से, जो उस अपराि के
हिए उपबंहित िै, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
2009 के ‍अहिहियम‍सं०‍10 के ‍िारा‍51 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
22

दृष्ट‍ ांत
क, एक पुहिस आकिसर, िूट ककए जािे से संबंहित सब पररक्पिाओं की, जो उसको ज्ञात िो जाए, इहत्तिा देिे के हिए वैि रूप
से आबद्ध िोते हुए और यि जािते हुए कक ि िूट करिे की पररक्पिा बिा रिा िै, उस अपराि के ककए जािे को सुकर बिािे के आिय से
ऐसी इहत्तिा देिे का िोप करता िै । यिां क िे ि की पररक्पिा के अहस्तत्व को एक अवैि िोप द्वारा हछपाया िै, और वि इस िारा के
उपबंि के अिुसार दंडिीय िै ।
120. कारावास से दंडिीय अपराि करिे की पररक्पिा को हछपािा—जो कोई उस अपराि का ककया जािा, जो कारावास से
दंडिीय िै, सुकर बिािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा सुकर बिाएगा यि जािते हुए,
ऐसे अपराि के ककए जािे की पररक्पिा के अहस्तत्व को ककसी कायत या अवैि िोप द्वारा स्वेच्छया हछपाएगा या ऐसी पररक्पिा
के बारे में ऐसा व्यपदेिि करे गा, हजसका हमथ्या िोिा वि जािता िै,
यकद अपराि कर कदया जाए—यकद अपराि ििीं ककया जाए—यकद ऐसा अपराि कर कदया जाए, तो वि उस अपराि के हिए
उपबंहित भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि ऐसे कारावास की दीघततम अवहि की एक चौथाई तक की िो सके गी, और यकद वि
अपराि ििीं ककया जाए, तो वि ऐसे कारावास से, हजसकी अवहि ऐसे कारावास की दीघततम अवहि के आठवें भाग तक की िो सके गी, या
ऐसे जुमातिे से, जो उस अपराि के हिए उपबंहित िै, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
1
[अध्याय 5क

आपराहिक षड् य
‍ ंत्र
120क. आपराहिक षड् य
‍ त्र
ं की पररभाषा—जब कक दो या अहिक व्यहक्‍त—
(1) कोई अवैि कायत, अथवा
(2) कोई ऐसा कायत, जो अवैि ििीं िै, अवैि साििों द्वारा, करिे या करवािे को सिमत िोते िैं, तब ऐसी सिमहत
आपराहिक षड् ‍यंत्र कििाती िै :
परं तु ककसी अपराि को करिे की सिमहत के हसवाय कोई सिमहत आपराहिक षड् ‍यंत्र तब तक ि िोगी, जब तक कक सिमहत के
अिावा कोई कायत उसके अिुसरण में उस सिमहत के एक या अहिक पक्षकारों द्वारा ििीं कर कदया जाता ।
स्पष्‍टीकरण—यि तत्विीि िै कक अवैि कायत ऐसी सिमहत का चरम उद्देश्य िै या उस उद्देश्य का आिुषंहगक मात्र िै ।
120ि. आपराहिक षड् य ‍ त्र
ं का दंड—(1) जो कोई मृत्यु, 2[आजीवि कारावास] या दो वषत या उससे अहिक अवहि के करठि
कारावास से दंडिीय अपराि करिे के आपराहिक षड् ‍यंत्र में िरीक िोगा, यकद ऐसे षड् ‍यंत्र के दंड के हिए इस संहिता में कोई अहभव्यक्‍त
उपबंि ििीं िै, तो वि उसी प्रकार दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे ऐसे अपराि का दुष्‍प्रेरण ककया था ।
(2) जो कोई पूवोक्‍त रूप से दंडिीय अपराि को करिे के आपराहिक षड् ‍यंत्र से हभन्‍ि ककसी आपराहिक षड् ‍यंत्र में िरीक िोगा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास से अहिक की ििीं िोगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।]
अध्याय 6

राज्य के हवरुद्ध अपरािों के हवषय में


121. भारत सरकार के हवरुद्ध युद्ध करिा या युद्ध करिे का प्रयत्‍ि करिा या युद्ध करिे का दुष्प्र ‍ ेरण करिा—जो कोई 3[भारत
सरकार] के हवरुद्ध युद्ध करे गा, या ऐसा युद्ध करिे का प्रयत्‍ि करे गा या ऐसा युद्ध करिे का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि मृत्यु या 2[आजीवि
कारावास] से दंहडत ककया जाएगा 4[और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा] ।
5
[दृष्ट‍ ांत]
6
*** क 3[भारत सरकार] के हवरुद्ध हवप्िव में सहम्महित िोता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
7
* * * * *

1
1913 के ‍अहिहियम‍सं०‍8 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1921 के ‍अहिहियम‍सं०‍16 की‍िारा‍2 द्वारा‍“और‍उसकी‍समस्त‍संपहत्त‍समपहृत‍कर‍िेगा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1957 के ‍अहिहियम‍सं०‍36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“दृष्‍टांत”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1957 के ‍अहिहियम‍सं०‍36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“(क)”‍कोष्‍ठकों‍और‍अक्षर‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
7
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍दृष्ट‍ ांत‍(ि)‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
23

[121क. िारा 121 द्वारा दंडिीय अपरािों को करिे का षड् य


1
‍ त्र
ं —जो कोई िारा 121 द्वारा दंडिीय अपरािों में से कोई अपराि
करिे के हिए [भारत] के भीतर *** या बािर षड् ‍यंत्र करे गा, या 4[कें रीय सरकार को] या ककसी 5[राज्य] की सरकार को 6***]
2 3

आपराहिक बि द्वारा या आपराहिक बि के प्रदिति द्वारा आतंककत करिे का षड् ‍यंत्र करे गा, वि 7[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा 8[और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा] ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के अिीि षड् ‍यंत्र गरठत िोिे के हिए यि आवश्यक ििीं िै कक उसके अिुसरण में कोई कायत या अवैि िोप
गरठत हुआ िो ।]
122. भारत सरकार के हवरुद्ध युद्ध करिे के आिय से आयुि आकद संग्रि करिा—जो कोई 9[भारत सरकार] के हवरुद्ध या तो युद्ध
करिे, या युद्ध करिे की तैयारी करिे के आिय से पुरुष, आयुि या गोिाबारूद संग्रि करे गा, या अन्यथा युद्ध करिे की तैयारी करे गा, वि
7
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि दस वषत से अहिक की ििीं िोगी, दंहडत ककया
जाएगा 10[और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा] ।
123. युद्ध करिे की पररक्पिा को सुकर बिािे के आिय से हछपािा—जो कोई 9[भारत सरकार] के हवरुद्ध युद्ध करिे की
पररक्पिा के अहस्तत्वों को ककसी कायत द्वारा, या ककसी अवैि िोप द्वारा, इस आिय से कक इस प्रकार हछपािे के द्वारा ऐसे युद्ध करिे को
सुकर बिाए, या यि सम्भाव्य जािते हुए कक इस प्रकार हछपािे के द्वारा ऐसे युद्ध करिे को सुकर बिाएगा, हछपाएगा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी, दंडिीय िोगा ।
124. ककसी हवहिपूणत िहक्‍त का प्रयोग करिे के हिए हववि करिे या उसका प्रयोग अवरोहित करिे के आिय से राष्‍रपहत,
राज्यपाि आकद पर िमिा करिा—जो कोई भारत के 11[राष्‍रपहत] या ककसी 12[राज्य] 13*** 14*** 15*** के 16[राज्यपाि 17***] को
ऐसे 18[राष्‍रपहत या 16[राज्यपाि 17***]] की हवहिपूणत िहक्‍तयों में से ककसी िहक्‍त का ककसी प्रकार प्रयोग करिे के हिए या प्रयोग करिे
से हवरत रििे के हिए उत्‍प्रेररत करिे या हववि करिे के आिय से,
ऐसे 18[राष्‍रपहत या 16[राज्यपाि 17***]] पर िमिा करे गा या उसका सदोष अवरोि करे गा, या सदोष अवरोि करिे का प्रयत्‍ि
करे गा या उसे आपराहिक बि द्वारा या आपराहिक बि के प्रदिति द्वारा आतंककत करे गा या ऐसे आतंककत करिे का प्रयत्‍ि करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी,
दंडिीय िोगा ।

1
1870 के ‍अहिहियम‍सं०‍27 की‍िारा‍4 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
“हिरटि‍ भारत”‍ िब्द‍ अिुक्रमिः‍ भारतीय‍ स्वतंत्रता‍ (के न्रीय‍ अहिहियम‍ तथा‍ अध्यादेि‍ अिुकूिि)‍ आदेि, 1948, हवहि‍ अिुकूिि‍ आदेि, 1950 और‍ 1951 के ‍‍‍
अहिहियम‍सं०‍3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“या‍क्‍वीि‍की‍प्रांतों‍या‍उिके ‍ककसी‍भाग‍की‍प्रभुता‍से‍वंहचत‍करिा”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“भारत‍सरकार‍या‍ककसी‍स्थािीय‍सरकार”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“प्रांतीय”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 द्वारा‍“या‍बमात‍सरकार”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
7
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
8
1921 के ‍अहिहियम‍सं०‍16 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।‍
9
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
10
1921 के ‍अहिहियम‍सं०‍16 की‍िारा‍2 द्वारा‍“और‍उसकी‍समस्‍त‍संपहत्त‍समपहृत‍कर‍िी‍जाएगी”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
11
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“गवितर‍जिरि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
12
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“प्रांतीय”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍हजसे‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“प्रेहसडेन्सी”‍के ‍स्थाि‍पर
प्रहतस्थाहपत‍ककया‍गया‍था‍।
13
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“या‍िेहफ्टिेन्ट‍गवितर”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
14
भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 द्वारा‍“या‍भारत‍के ‍गवितर‍जिरि‍की‍पररषद्‍के ‍ककसी‍सदस्य”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया
गया‍।
15
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“या‍ककसी‍प्रेहसडेन्सी‍की‍पररषद्”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
16
1951 के ‍अहिहियम‍सं०‍3 की‍िारा‍3 द्वारा‍“गवितर”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
17
हवहि‍अिुकूिि‍(सं०‍2) आदेि, 1956 द्वारा‍“या‍राजप्रमुि”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
18
“गवितर‍जिरि, गवितर, िेफ्टीिेन्ट‍गवितर, या‍पररषद्‍ के ‍सदस्य”‍मूि‍िब्दों‍का‍संिोिि‍अिुक्रमिः‍भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937, भारतीय‍
स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 और‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍ककया‍गया‍िै‍।
24

1
[124क. राजरोि—जो कोई बोिे गए या हििे गए िब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा
2
*** [भारत] 4*** में हवहि द्वारा स्थाहपत सरकार के प्रहत घृणा या अवमाि पैदा करे गा, या पैदा करिे का, प्रयत्‍ि करे गा या अप्रीहत
3

प्रदीप्‍त करे गा, या प्रदीप्‍त करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि 5[आजीवि कारावास] से, हजसमें जुमातिा जो़िा जा सके गा या तीि वषत तक के
कारावास से, हजसमें जुमातिा जो़िा जा सके गा या जुमातिे से दंहडत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण 1—“अप्रीहत” पद के अंतगतत अभहक्‍त और ित्रुता की समस्त भाविाएं आती िैं ।
स्पष्‍टीकरण 2—घृणा, अवमाि या अप्रीहत को प्रदीप्‍त ककए हबिा या प्रदीप्‍त करिे का प्रयत्‍ि ककए हबिा, सरकार के कामों के प्रहत
हवहिपूणत साििों द्वारा उिको पररवर्ततत करािे की दृहि से अििुमोदि प्रकट करिे वािी टीका-रटप्पहणयां इस िारा के अिीि अपराि
ििीं िैं ।
स्पष्‍टीकरण 3—घृणा, अवमाि या अप्रीहत को प्रदीप्‍त ककए हबिा या प्रदीप्‍त करिे का प्रयत्‍ि ककए हबिा, सरकार की प्रिासहिक
या अन्य कक्रया के प्रहत अििुमोदि प्रकट करिे वािी टीका-रटप्पहणयां इस िारा के अिीि अपराि गरठत ििीं करती ।]
125. भारत सरकार से मैत्री संबंि रििे वािी ककसी एहियाई िहक्‍त के हवरुद्ध युद्ध करिा—जो कोई 6[भारत सरकार] से मैत्री का
या िांहत का संबंि रििे वािी ककसी एहियाई िहक्‍त की सरकार के हवरुद्ध युद्ध करे गा या ऐसा युद्ध करिे का प्रयत्‍ि करे गा, या ऐसा युद्ध
करिे के हिए दुष्‍प्रेरण करे गा, वि 7[आजीवि कारावास] से, हजसमें जुमातिा जो़िा जा सके गा या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, हजसमें जुमातिा जो़िा जा सके गा या जुमातिे से दंहडत ककया जाएगा ।
126. भारत सरकार के साथ िांहत का संबि ं रििे वािी िहक्‍त के राज्यक्षेत्र में िूटपाट करिा—जो कोई 6[भारत सरकार] से मैत्री
का या िांहत का संबंि रििे वािी ककसी िहक्‍त के राज्यक्षेत्र में िूटपाट करे गा, या िूटपाट करिे की तैयारी करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से और ऐसी िूटपाट करिे के हिए
उपयोग में िाई गई या उपयोग में िाई जािे के हिए आिहयत, या ऐसी िूटपाट द्वारा अर्जतत संपहत्त के समपिरण से भी दंडिीय िोगा ।
127. िारा 125 और 126 में वर्णतत युद्ध या िूटपाट द्वारा िी गई सम्पहत्त प्राप्‍त करिा—जो कोई ककसी सम्पहत्त को यि जािते हुए
प्राप्‍त करे गा कक वि िारा 125 और 126 में वर्णतत अपरािों में से ककसी के ककए जािे में िी गई िै वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से और इस प्रकार प्राप्‍त की गई संपहत्त के समपिरण
से भी दंडिीय िोगा ।
128. िोक सेवक का स्वेच्छया राजकै दी या युद्धकै दी को हिकि भागिे देिा—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और ककसी राजकै दी या
युद्धकै दी को अहभरक्षा में रिते हुए, स्वेच्छया ऐसे कै दी को ककसी ऐसे स्थाि से हजसमें ऐसा कै दी परररुद्ध िै, हिकि भागिे देगा, वि
7
[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
129. उपेक्षा से िोक सेवक का ऐसे कै दी का हिकि भागिा सिि करिा—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और ककसी राजकै दी या
युद्धकै दी को अहभरक्षा में रिते हुए उपेक्षा से ऐसे कै दी का ककसी ऐसे परररोि स्थाि से हजसमें ऐसा कै दी परररुद्ध िै, हिकि भागिा सिि
करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी, दंडिीय िोगा ।
130. ऐसे कै दी के हिकि भागिे में सिायता देिा, उसे छु ़िािा या संश्रय देिा—जो कोई जािते हुए ककसी राजकै दी या युद्धकै दी को
हवहिपूणत अहभरक्षा से हिकि भागिे में मदद या सिायता देगा, या ककसी ऐसे कै दी को छु ़िाएगा, या छु ़िािे का प्रयत्‍ि करे गा, या ककसी
ऐसे कै दी को, जो हवहिपूणत अहभरक्षा से हिकि भागा िै, संश्रय देगा या हछपाएगा या ऐसे कै दी के किर से पक़िे जािे का प्रहतरोि करे गा
या करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि 7[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।

1
1898 के ‍ अहिहियम‍ सं०‍ 4 की‍ िारा‍ 4 द्वारा‍ मूि‍ िारा‍ 124क‍ के ‍ स्थाि‍ पर‍ प्रहतस्थाहपत‍ ।‍ मूि‍ िारा‍ 124क‍ को‍ 1870 के ‍ अहिहियम‍ सं०‍ 27 की‍ िारा‍ 5 द्वारा‍
अंतःस्थाहपत‍ककया‍गया‍था‍।
2
“िर‍मजेस्टी‍या”‍िब्दों‍का‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍िोप‍ककया‍गया‍।‍ “या‍क्राउि‍प्रहतहिहि”‍िब्दों‍का, हजन्िें‍ भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍
आदेि, 1937 द्वारा‍“मजेस्टी”‍िब्द‍के ‍पश्‍चात्‍ अंतःस्थाहपत‍ककया‍गया‍था, भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 द्वारा‍िोप‍
ककया‍गया‍।‍
3
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं०3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।‍
4
“या‍हिरटि‍बमात”‍िब्दों‍का, हजन्िें‍ भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍ककया‍गया‍था, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1948 द्वारा‍िोप‍
ककया‍गया‍।‍
5
1955 के ‍अहिहियम‍सं०26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍या‍उससे‍ककसी‍िघुतर‍अवहि‍के ‍हिए‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
7
1955 के ‍अहिहियम‍सं०26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
25

स्पष्‍टीकरण—कोई राजकै दी या युद्धकै दी, हजसे अपिे पैरोि पर 1[भारत] में कहतपय सीमाओं के भीतर, यथेच्छ हवचरण की
अिुज्ञा िै, हवहिपूणत अहभरक्षा से हिकि भागा िै, यि तब किा जाता िै, जब वि उि सीमाओं से परे चिा जाता िै, हजिके भीतर उसे
यथेच्छ हवचरण की अिुज्ञा िै ।
अध्याय 7

सेिा 2[िौसेिा और वायुसि


े ा] से संबहं ित अपरािों के हवषय में
131. हवरोि का दुष्प्र
‍ ेरण या ककसी सैहिक, िौसैहिक या वायुसहै िक को कततव्य से हवचहित करिे का प्रयत्‍ि करिा—जो कोई
3
[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा] के ककसी आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसैहिक] द्वारा हवरोि ककए जािे का
दुष्‍प्रेरण करे गा, या ककसी ऐसे आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसैहिक] को उसकी राजहिष्‍ठा या उसके कततव्य से हवचहित करिे का
प्रयत्‍ि करे गा, वि 6[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
[स्पष्‍टीकरण—इस िारा में “आकिसर”, 8[“सैहिक”, 9[“िौसैहिक”] और “वायुसैहिक”] िब्दों के अंतगतत कोई भी व्यहक्‍त आता िै,
7

जो यथाहस्थहत, 10[आमी ऐक्ट, 11[सेिा अहिहियम, 1950 (1950 का 46)], 9[िेवि हडहसहप्िि ऐक्ट, 12इं हडयि िेवी (हडहसहप्िि) ऐक्ट,
1934 (1934 का 34)], 13*** 14[एअर िोसत ऐक्ट या 15[वायुसेिा अहिहियम, 1950 (1950 का 45)]] के अध्यिीि िो]।]
132. हवरोि का दुष्प्र
‍ रे ण यकद उसके पररणामस्वरूप हवरोि ककया जाए—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या
वायुसेिा] के ककसी आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसैहिक] द्वारा हवरोि ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करे गा, यकद उस दुष्‍प्रेरण के
पररणामस्वरूप हवरोि िो जाए, तो वि मृत्यु से या 6[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
133. सैहिक, िौसैहिक या वायुसहै िक द्वारा अपिे वररष्‍ठ आकिसर पर जब कक वि आकिसर अपिे पद-हिष्पादि में िो, िमिे का
दुष्‍प्ररे ण—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा] के ककसी आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसहै िक] द्वारा ककसी
वररष्‍ठ आकिसर पर, जब कक वि आकिसर अपिे पद-हिष्पादि में िो, िमिे का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
134. ऐसे िमिे का दुष्प्र
‍ रे ण यकद िमिा ककया जाए—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा] के आकिसर,
सैहिक, [िौसैहिक या वायुसैहिक] द्वारा ककसी वररष्‍ठ आकिसर पर, जब कक वि आकिसर अपिे पद-हिष्पादि में िो, िमिे का दुष्‍प्रेरण
5

करे गा, यकद ऐसा िमिा उस दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ककया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात
वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
135. सैहिक, िौसैहिक या वायुसहै िक द्वारा अहभत्यजि का दुष्प्र
‍ ेरण—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा]
के ककसी आकिसर, सैहिक, [िौसैहिक या वायुसैहिक] द्वारा अहभत्यजि ककए जािे का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
5

कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से दंहडत ककया जाएगा ।
136. अहभत्याजक को संश्रय देिा—जो कोई हसवाय एतहस्मि्‍पश्‍चात्‍यथा अपवाकदत के , यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का
कारण रिते हुए कक 3[भारत सरकार] की सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा] के ककसी आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसैहिक] िे
अहभत्यजि ककया िै, ऐसे आकिसर, सैहिक, 5[िौसैहिक या वायुसहै िक] को संश्रय देगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से दंहडत ककया जाएगा ।
अपवाद—इस उपबंि का हवस्तार उस मामिे पर ििीं िै, हजसमें पत्‍िी द्वारा अपिे पहत को संश्रय कदया जाता िै ।

1
‍हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि , 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
2
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“और‍िौसेिा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसेिा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसैहिक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
7
1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍6 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
8
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“और‍सैहिक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
9
1934 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
10
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“िर‍मेजेस्टी‍की‍सेिा‍सुिासि‍के ‍हिए‍युद्ध‍हियमों‍या‍1869 के ‍अहिहियम‍सं० 5 में‍ अन्तर्वतष्‍ट‍युद्ध‍
हियमों”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
11
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“भारतीय‍सेिा‍अहिहियम, 1911” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
12
अब‍िौसेिा‍अहिहियम, 1957 (1957 का‍62) देहिए‍।
13
‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“वि‍अहिहियम‍द्वारा‍उपान्तररत”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
14
1932 के ‍अहिहियम‍सं० 14 की‍िारा‍130 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“या‍वायु‍सेिा‍अहिहियम”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
15
‍1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍‍अिुसूची‍द्वारा‍“भारतीय‍वायु‍सेिा‍अहिहियम, 1932” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
26

137. मास्टर की उपेक्षा से ककसी वाहणहज्यक जियाि पर हछपा हुआ अहभत्याजक—ककसी ऐसे वाहणहज्यक जियाि का, हजस पर
1
[भारत सरकार] की सेिा, 2[िौसेिा या वायुसि े ा] का कोई अहभत्याजक हछपा हुआ िो, मास्टर या भारसािक व्यहक्‍त, यद्यहप वि ऐसे
हछपिे के संबंि में अिहभज्ञ िो, ऐसी िाहस्त से दंडिीय िोगा जो पांच सौ रुपए से अहिक ििीं िोगी, यकद उसे ऐसे हछपिे का ज्ञाि िो
सकता था ककं तु के वि इस कारण ििीं हुआ कक ऐसे मास्टर या भारसािक व्यहक्‍त के िाते उसके कततव्य में कु छ उपेक्षा हुई, या उस जियाि
पर अिुिासि का कु छ अभाव था ।
138. सैहिक, िौसैहिक या वायुसहै िक द्वारा अििीिता के कायत का दुष्प्र
‍ ेरण—जो कोई ऐसी बात का दुष्प्र
‍ ेरण करे गा हजसे कक वि
1
[भारत सरकार] की सेिा, [िौसेिा या वायुसेिा] के ककसी आकिसर, सैहिक, [िौसैहिक या वायुसहै िक] द्वारा अििीिता का कायत
2 3

जािता िो, यकद अििीिता का ऐसा कायत उस दुष्‍प्रेरण के पररणामस्वरूप ककया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
138क. [पूवोक्‍त िाराओं का भारतीय सामुकरक सेवा को िागू िोिा ।]—संिोिि अहिहियम, 1934 (1934 का 35) की िारा 2
4

और अिुसूची द्वारा हिरहसत ।


139. कु छ अहिहियमों के अध्यिीि व्यहक्‍त—कोई व्यहक्‍त, जो 5[आमी ऐक्ट, 6[सेिा अहिहियम, 1950, (1950 का 46)],
िेवि हडहसहप्िि ऐक्ट, 7[8*** 9इं हडयि िेवी (हडहसहप्िि)‍ ऐक्ट, 1934 (1934 का 34)], 10[एअर िोसत ऐक्ट या 11[वायुसेिा
अहिहियम, 1950 (1950 का 45)]]] के अध्यिीि िै, इस अध्याय में पररभाहषत अपरािों में से ककसी के हिए इस संहिता के अिीि
दंडिीय ििीं िै ।
140. सैहिक, िौसैहिक या वायुसहै िक द्वारा उपयोग में िाई जािे वािी पोिाक पिििा या टोकि िारण करिा—जो कोई
1
[भारत सरकार] की सेन्य, 12[िाहवक या वायुसेिा का सैहिक],‍ 3[िौसैहिक या वायुसैहिक] ि िोते हुए, इस आिय से कक यि हवश्‍वास
ककया जाए कक वि ऐसा सैहिक, 3[िौसैहिक या वायुसैहिक] िै, ऐसी कोई पोिाक पििेगा या ऐसा टोकि िारण करे गा जो ऐसे सैहिक,
3
[िौसैहिक या वायुसैहिक] द्वारा उपयोग में िाई जािे वािी पोिाक या टोकि के सदृि िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 8

िोक प्रिांहत के हवरुद्ध अपरािों के हवषय में


141. हवहिहवरुद्ध जमाव—पांच या अहिक व्यहक्‍तयों का जमाव “हवहिहवरुद्ध जमाव” किा जाता िै, यकद उि व्यहक्‍तयों का,
हजिसे वि जमाव गरठत हुआ िै, सामान्य उद्देश्य िो—
पििा—13[कें रीय सरकार को, या ककसी राज्य सरकार को, या संसद् को या, ककसी राज्य के हविाि-मंडि] को, या ककसी
िोक सेवक को, जब कक वि ऐसे िोक सेवक की हवहिपूणत िहक्‍त का प्रयोग कर रिा िो, आपराहिक बि द्वारा, या आपराहिक बि
के प्रदिति द्वारा, आतंककत करिा, अथवा
दूसरा—ककसी हवहि के , या ककसी वैि आदेहिका के , हिष्पादि का प्रहतरोि करिा, अथवा
तीसरा—ककसी ररहष्‍ट या आपराहिक अहतचार या अन्य अपराि का करिा, अथवा
चौथा—ककसी व्यहक्‍त पर आपराहिक बि द्वारा या आपराहिक बि के प्रदिति द्वारा, ककसी संपहत्त का कब्जा िेिा या
अहभप्राप्‍त करिा या ककसी व्यहक्‍त को ककसी मागत के अहिकार के उपभोग से, या जि का उपभोग करिे के अहिकार या अन्य अमूतत
अहिकार से हजसका वि कब्जा रिता िो, या उपभोग करता िो, वंहचत करिा या ककसी अहिकार या अिुहमत अहिकार को
प्रवर्ततत करािा, अथवा
पांचवां—आपराहिक बि द्वारा या आपराहिक बि के प्रदिति द्वारा, ककसी व्यहक्‍त को वि करिे के हिए, हजसे करिे के हिए
वि वैि रूप से आबद्ध ि िो या उसका िोप करिे के हिए, हजसे करिे का वि वैि रूप से िकदार िो, हववि करिा ।

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसेिा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसैहिक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1887 के ‍अहिहियम‍सं० 14 की‍िारा‍79 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
5
‍1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“क्‍वीि‍की‍सेिा‍या‍िौसेिा‍या‍ऐसी‍सेिा‍या‍िौसेिा‍के ‍ककसी‍भी‍भाग‍के ‍हिए‍ककन्िीं‍युद्ध‍हियमों”‍के ‍
स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“भारतीय‍सेिा‍अहिहियम, 1911” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
7
1934 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
8
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“वि‍अहिहियम‍द्वारा‍उपान्तररत”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
9
अब‍िौसेिा‍अहिहियम, 1957 (1957 का‍62) देहिए‍।
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1932 के ‍अहिहियम‍सं० 14 की‍िारा‍130 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“या‍वायुसेिा‍अहिहियम,” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
11
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“भारतीय‍वायुसेिा‍अहिहियम, 1932” के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
12
‍1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िाहवक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
13
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“कें रीय‍या‍ककसी‍प्रान्तीय‍सरकार‍या‍हविाि-मंडि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
27

स्पष्‍टीकरण—कोई जमाव, जो इकठ्ठा िोते समय हवहिहवरुद्ध ििीं था, बाद को हवहिहवरुद्ध जमाव िो सके गा ।
142. हवहिहवरुद्ध जमाव का सदस्य िोिा—जो कोई उि तथ्यों से पररहचत िोते हुए, जो ककसी जमाव को हवहिहवरुद्ध जमाव
बिाते िैं, उस जमाव में सािय सहम्महित िोता िै या उसमें बिा रिता िै, वि हवहिहवरुद्ध जमाव का सदस्य िै, यि किा जाता िै ।
143. दंड—जो कोई हवहिहवरुद्ध जमाव का सदस्य िोगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
144. घातक आयुि से सहज्‍जत िोकर हवहिहवरुद्ध जमाव में सहम्महित िोिा—जो कोई ककसी घातक आयुि से, या ककसी ऐसी
चीज से, हजससे आक्रामक आयुि के रूप में उपयोग ककए जािे पर मृत्यु काररत िोिी संभाव्य िै, सहज्‍जत िोते हुए ककसी हवहिहवरुद्ध
जमाव का सदस्य िोगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से,
दंहडत ककया जाएगा ।
145. ककसी हवहिहवरुद्ध जमाव में यि जािते हुए कक उसके हबिर जािे का समादेि दे कदया गया िै, सहम्महित िोिा या उसमें बिे
रििा—जो कोई ककसी हवहिहवरुद्ध जमाव में यि जािते हुए कक ऐसे हवहिहवरुद्ध जमाव को हबिर जािे का समादेि हवहि द्वारा हवहित
प्रकार से कदया गया िै, सहम्महित िोगा, या बिा रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
146. ब्वा करिा—जब कभी हवहिहवरुद्ध जमाव द्वारा या उसके ककसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर
करिे में बि या सिंसा का प्रयोग ककया जाता िै, तब ऐसे जमाव का िर सदस्य ब्वा करिे के अपराि का दोषी िोगा ।
147. ब्वा करिे के हिए दंड—जो कोई ब्वा करिे का दोषी िोगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
148. घातक आयुि से सहज्‍जत िोकर ब्वा करिा—जो कोई घातक आयुि से, या ककसी ऐसी चीज से, हजससे आक्रामक आयुि के
रूप में उपयोग ककए जािे पर मृत्यु काररत िोिी संभाव्य िो, सहज्‍जत िोते हुए ब्वा करिे का दोषी िोगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
149. हवहिहवरुद्ध जमाव का िर सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करिे के हिए ककए गए अपराि का दोषी—यकद हवहिहवरुद्ध
जमाव के ककसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करिे में अपराि ककया जाता िै, या कोई ऐसा अपराि ककया जाता
िै, हजसका ककया जािा उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करिे में सम्भाव्य जािते थे, तो िर व्यहक्‍त, जो उस अपराि के ककए
जािे के समय उस जमाव का सदस्य िै, उस अपराि का दोषी िोगा ।
150. हवहिहवरुद्ध जमाव में सहम्महित करिे के हिए व्यहक्‍तयों का भा़िे पर िेिा या भा़िे पर िेिे के प्रहत मौिािुकूिता—जो कोई
ककसी व्यहक्‍त को ककसी हवहिहवरुद्ध जमाव में सहम्महित िोिे या उसका सदस्य बिािे के हिए भा़िे पर िेगा या वचिबद्ध या हियोहजत
करे गा या भा़िे पर हिए जािे का, वचिबद्ध या हियोहजत करिे का संप्रवतति करे गा या के प्रहत मौिािुकूि बिा रिेगा, वि ऐसे
हवहिहवरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में, और ककसी ऐसे व्यहक्‍त द्वारा ऐसे हवहिहवरुद्ध जमाव के सदस्य के िाते ऐसे भा़िे पर िेिे,
वचिबद्ध या हियोजि के अिुसरण में ककए गए ककसी भी अपराि के हिए उसी प्रकार दंडिीय िोगा, मािो वि ऐसे हवहिहवरुद्ध जमाव
का सदस्य रिा था या ऐसा अपराि उसिे स्वयं ककया था ।
151. पांच या अहिक व्यहक्‍तयों के जमाव को हबिर जािे का समादेि कदए जािे के पश्‍चात् उसमें जािते हुए सहम्महित िोिा या
बिे रििा—जो कोई पांच या अहिक व्यहक्‍तयों के ककसी जमाव में, हजससे िोक िांहत में हवघ्‍ि काररत िोिा सम्भाव्य िो, ऐसे जमाव को
हबिर जािे का समादेि हवहिपूवतक दे कदए जािे पर जािते हुए सहम्महित िोगा या बिा रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—यकद वि जमाव िारा 141 के अथत के अन्तगतत हवहिहवरुद्ध जमाव िो, तो अपरािी िारा 145 के अिीि ‍‍‍‍‍‍‍
दंडिीय िोगा ।
152. िोक सेवक जब ब्वे इत्याकद को दबा रिा िो, तब उस पर िमिा करिा या उसे बाहित करिा—जो कोई ऐसे ककसी िोक
सेवक पर, जो हवहिहवरुद्ध जमाव के हबिेरिे का, या ब्वे या दंगे को दबािे का प्रयास ऐसे िोक सेवक के िाते अपिे कततव्य के हिवतिि में
कर रिा िो, िमिा करे गा या उसको िमिे की िमकी देगा या उसके काम में बािा डािेगा या बािा डाििे का प्रयत्‍ि करे गा या ऐसे िोक
सेवक पर आपराहिक बि का प्रयोग करे गा या करिे की िमकी देगा, या करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
153. ब्वा करािे के आिय से स्वैररता से प्रकोपि देिा—यकद ब्वा ककया जाए—यकद ब्वा ि ककया जाए—जो कोई अवैि बात
के करिे द्वारा ककसी व्यहक्‍त को पररद्वेष से या स्वैररता से प्रकोहपत इस आिय से या यि सम्भाव्य जािते हुए करे गा कक ऐसे प्रकोपि के
पररणामस्वरूप ब्वे का अपराि ककया जाएगा ; यकद ऐसे प्रकोपि के पररणामस्वरूप ब्वे का अपराि ककया जाए, तो वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, और यकद ब्वे का अपराि ि ककया
जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ‍‍‍
ककया जाएगा ।
28

[153क. िमत, मूिवंि, जन्म-स्थाि, हिवास-स्थाि, भाषा, इत्याकद के आिारों पर हवहभन्‍ि समूिों के बीच ित्रुता का संप्रवतति और
1

सौिादत बिे रििे पर प्रहतकू ि प्रभाव डाििे वािे कायत करिा—(1) जो कोई—
(क) बोिे गए या हििे गए िब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा हवहभन्‍ि िार्मतक, मूिवंिीय या
भाषायी या प्रादेहिक समूिों, जाहतयों या समुदायों के बीच असौिादत अथवा ित्रुता, घृणा या वैमिस्य की भाविाएं, िमत, मूिवंि,
जन्म-स्थाि, हिवास-स्थाि, भाषा, जाहत या समुदाय के आिारों पर या अन्य ककसी भी आिार पर संप्रवर्ततत करे गा या संप्रवर्ततत
करिे का प्रयत्‍ि करे गा, अथवा
(ि) कोई ऐसा कायत करे गा, जो हवहभन्‍ि िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूिों या जाहतयों या समुदायों के बीच
सौिादत बिे रििे पर प्रहतकू ि प्रभाव डाििे वािा िै और जो िोक-प्रिाहन्त में हवघ्‍ि डािता िै या हजससे उसमें हवघ्‍ि प़ििा
सम्भाव्य िो, 2[अथवा]
[(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोिि, कवायद या अन्य वैसा िी कक्रयाकिाप इस आिय से संचाहित करे गा कक ऐसे
2

कक्रयाकिाप में भाग िेिे वािे व्यहक्‍त ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के हवरुद्ध
आपराहिक बि या सिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के हिए प्रहिहक्षत ककए जाएंगे या यि सम्भाव्य जािते हुए संचाहित
करे गा कक ऐसे कक्रयाकिाप में भाग िेिे वािे व्यहक्‍त ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय
के हवरुद्ध आपराहिक बि या सिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के हिए प्रहिहक्षत ककए जाएंगे अथवा ऐसे कक्रयाकिाप में इस
आिय से भाग िेगा कक ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के हवरुद्ध आपराहिक बि या
सिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के हिए प्रहिहक्षत ककया जाए या यि सम्भाव्य जािते हुए भाग िेगा कक ऐसे कक्रयाकिाप में
भाग िेिे वािे व्यहक्‍त ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के हवरुद्ध आपराहिक बि या
सिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के हिए प्रहिहक्षत ककए जाएंगे और ऐसे कक्रयाकिाप से ऐसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या
प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के सदस्यों के बीच, चािे ककसी भी कारण से, भय या संत्रास या असुरक्षा की भाविा उत्पन्‍ि
िोती िै या उत्पन्‍ि िोिी सम्भाव्य िै,]
वि कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से दंहडत ककया जाएगा ।
(2) पूजा के स्थाि आकद में ककया गया अपराि—जो कोई उपिारा (1) में हवहिर्दतष्‍ट अपराि ककसी पूजा के स्थाि में या ककसी
जमाव में, जो िार्मतक पूजा या िार्मतक कमत करिे में िगा हुआ िो, करे गा, वि कारावास से, जो पांच वषत तक का िो सके गा, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।]
[153कक. ककसी जिूस में जािबूझकर आयुि िे जािे या ककसी सामूहिक हिि या सामूहिक प्रहिक्षण का आयुि सहित संचािि
3

या आयोजि करिा या उसमें भाग िेिा—जो कोई ककसी सावतजहिक स्थाि में, दंड प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2) की िारा 144क
के अिीि जारी की गई ककसी िोक सूचिा या ककए गए ककसी आदेि के उ्िंघि में ककसी जिूस में जािबूझकर आयुि िे जाता िै या
सामूहिक हिि या सामूहिक प्रहिक्षण का आयुि सहित जािबूझकर संचािि या आयोजि करता िै या उसमें भाग िेता िै तो वि
कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी और जुमातिे से, जो दो िजार रुपए तक का िो सके गा, दंहडत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—“आयुि” से अपराि या सुरक्षा के हिए िहथयार के रूप में हडजाइि की गई या अपिाई गई ककसी भी प्रकार की कोई
वस्तु अहभप्रेत िै और इसके अन्तगतत अहग्‍ि िस्‍त्र, िुकीिी िार वािे िहथयार, िाठी, डंडा और छ़िी भी िै ।]
2
[153ि. राष्ट्रीय अिंडता पर प्रहतकू ि प्रभाव डाििे वािे िांछि, प्राखयाि—(1) जो कोई बोिे गए या हििे गए िब्दों द्वारा या
संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा,—
(क) ऐसा कोई िांछि िगाएगा या प्रकाहित करे गा कक ककसी वगत के व्यहक्‍त इस कारण से कक वे ककसी िार्मतक, मूिवंिीय,
भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के सदस्य िैं, हवहि द्वारा स्थाहपत भारत के संहविाि के प्रहत सच्‍ची श्रद्धा और
हिष्‍ठा ििीं रि सकते या भारत की प्रभुता और अिंडता की मयातदा ििीं बिाए रि सकते, अथवा
(ि) यि प्राखयाि करे गा, परामित देगा, सिाि देगा, प्रचार करे गा या प्रकाहित करे गा कक ककसी वगत के व्यहक्‍तयों को इस
कारण कक वे ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि या जाहत या समुदाय के सदस्य िैं, भारत के िागररक के रूप में
उिके अहिकार ि कदए जाएं या उन्िें उिसे वंहचत ककया जाए, अथवा
(ग) ककसी वगत के व्यहक्‍तयों की, बाध्यता के संबंि में इस कारण कक वे ककसी िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी या प्रादेहिक समूि
या जाहत या समुदाय के सदस्य िैं, कोई प्राखयाि करे गा, परामित देगा, अहभवाक् करे गा या अपीि करे गा अथवा प्रकाहित करे गा,
और ऐसे प्राखयाि, परामित, अहभवाक् या अपीि से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यहक्‍तयों के बीच असामंजस्य, अथवा ित्रुता या घृणा
या वैमिस्य की भाविाएं उत्पन्‍ि िोती िैं या उत्पन्‍ि िोिी संभाव्य िैं,
वि कारावास से, जो तीि वषत तक का िो सके गा, या जुमातिे से, अथवा दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

1
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍2 द्वारा‍पूवतवती‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1972 के ‍अहिहियम‍सं० 31 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
3
2005 के ‍अहिहियम‍सं० 25 की‍िारा‍44 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
29

(2) जो कोई उपिारा (1) में हवहिर्दतष्‍ट कोई अपराि ककसी उपासिा स्थि में या िार्मतक उपासिा अथवा िार्मतक कमत करिे में िगे
हुए ककसी जमाव में करे गा वि कारावास से, जो पांच वषत तक का िो सके गा, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।]
154. उस भूहम का स्वामी या अहिभोगी, हजस पर हवहिहवरुद्ध जमाव ककया गया िै—जब कभी कोई हवहिहवरुद्ध जमाव या ब्वा
िो, तब हजस पर ऐसा हवहिहवरुद्ध जमाव िो या ऐसा ब्वा ककया जाए, उसका स्वामी या अहिभोगी और ऐसी भूहम में हित रििे वािा
या हित रििे का दावा करिे वािा व्यहक्‍त एक िजार रुपए से अिहिक जुमातिे से दंडिीय िोगा, यकद वि या उसका अहभकतात या प्रबंिक
यि जािते हुए कक ऐसा अपराि ककया जा रिा िै या ककया जा चुका िै या इस बात का हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक ऐसे
अपराि का ककया जािा सम्भाव्य िै, उस बात की अपिी िहक्‍त-भर िीघ्रतम सूचिा हिकटतम पुहिस थािे के प्रिाि आकिसर को ि दे या
ि दें और उस दिा में, हजसमें कक उसे या उन्िें यि हवश्‍वास करिे का कारण िो कक यि िगभग ककया िी जािे वािा िै, अपिी िहक्‍त-भर
सब हवहिपूणत साििों का उपयोग उसका हिवारण करिे के हिए ििीं करता या करते और उसके िो जािे पर अपिी िहक्‍त-भर सब
हवहिपूणत साििों का उस हवहिहवरुद्ध जमाव को हबिेरिे या ब्वे को दबािे के हिए उपयोग ििीं करता या करते ।
155. उस व्यहक्‍त का दाहयत्व, हजसके िायदे के हिए ब्वा ककया जाता िै—जब कभी ककसी ऐसे व्यहक्‍त के िायदे के हिए या
उसकी ओर से ब्वा ककया जाए, जो ककसी भूहम का, हजसके हवषय में ऐसा ब्वा िो, स्वामी या अहिभोगी िो या जो ऐसी भूहम में या
ब्वे को पैदा करिे वािे ककसी हववादग्रस्त हवषय में कोई हित रििे का दावा करता िो या जो उससे कोई िायदा प्रहतगृिीत कर या पा
चुका िो, तब ऐसा व्यहक्‍त, जुमातिे से दंडिीय िोगा, यकद वि या उसका अहभकतात या प्रबंिक इस बात का हवश्‍वास करिे का कारण रिते
हुए कक ऐसा ब्वा ककया जािा संभाव्य था या कक हजस हवहिहवरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा ब्वा ककया गया था, वि जमाव ककया जािा
सम्भाव्य था अपिी िहक्‍त-भर सब हवहिपूणत साििों का ऐसे जमाव या ब्वे का ककया जािा हिवाररत करिे के हिए और उसे दबािे और
हबिरिे के हिए उपयोग ििीं करता या करते ।
156. उस स्वामी या अहिभोगी के अहभकतात का दाहयत्व, हजसके िायदे के हिए ब्वा ककया जाता िै—जब कभी ऐसे व्यहक्‍त के
िायदे के हिए या ऐसे व्यहक्‍त की ओर से ब्वा ककया जाए, जो ककसी भूहम का, हजसके हवषय में ऐसा ब्वा िो, स्वामी िो या अहिभोगी
िो या जो ऐसी भूहम में या ब्वे के पैदा करिे वािे ककसी हववादग्रस्त हवषय में कोई हित रििे का दावा करता िो या जो उससे कोई
िायदा प्रहतगृिीत कर या पा चुका िो,
तब उस व्यहक्‍त का अहभकतात या प्रबंिक जुमातिे से दंडिीय िोगा, यकद ऐसा अहभकतात या प्रबंिक यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते
हुए कक ऐसे ब्वे का ककया जािा सम्भाव्य था या कक हजस हवहिहवरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा ब्वा ककया गया था, उसका ककया जािा सम्भाव्य
था, अपिी िहक्‍त-भर सब हवहिपूणत साििों का ऐसे ब्वे या जमाव का ककया जािा हिवाररत करिे के हिए और उसको दबािे और हबिरिे
के हिए उपयोग ििीं करता या करते ।
157. हवहिहवरुद्ध जमाव के हिए भा़िे पर िाए गए व्यहक्‍तयों को संश्रय देिा—जो कोई अपिे अहिभोग या भारसािि, या
हियंत्रण के अिीि ककसी गृि या पररसर में ककन्िीं व्यहक्‍तयों को, यि जािते हुए कक वे व्यहक्‍त हवहिहवरुद्ध जमाव में सहम्महित िोिे या
सदस्य बििे के हिए भा़िे पर िाए गए, वचिबद्ध या हियोहजत ककए गए िैं या भा़िे पर िाए जािे, वचिबद्ध या हियोहजत ककए जािे
वािे िैं, संश्रय देगा, आिे देगा या सम्मेहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
158. हवहिहवरुद्ध जमाव या ब्वे में भाग िेिे के हिए भा़िे पर जािा—जो कोई िारा 141 में हवहिर्दतष्‍ट कायों में से ककसी को
करिे के हिए या करिे में सिायता देिे के हिए वचिबद्ध ककया या भा़िे पर हिया जाएगा या भा़िे पर हिए जािे या वचिबद्ध ककए जािे
के हिए अपिी प्रस्थापिा करे गा या प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी,
या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
या सिस्‍त्र चििा—तथा जो कोई पूवोक्‍त प्रकार से वचिबद्ध िोिे या भा़िे पर हिए जािे पर, ककसी घातक आयुि से या ऐसी
ककसी चीज से, हजससे आक्रामक आयुि के रूप में उपयोग ककए जािे पर मृत्यु काररत िोिी संभाव्य िै, सहज्‍जत िोकर चिेगा या सहज्‍जत
चििे के हिए वचिबद्ध िोगा या अपिी प्रस्थापिा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
159. दंगा—जब कक दो या अहिक व्यहक्‍त िोकस्थाि में ि़िकर िोक िाहन्त में हवघ्‍ि डािते िैं, तब यि किा जाता िै कक वे ‍‍‍‍
“दंगा करते िैं” ।
160. दंगा करिे के हिए दंड—जो कोई दंगा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की
िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 9

िोक सेवकों द्वारा या उिसे संबहं ित अपरािों के हवषय में


161 से 165क तक—भ्रष्‍टाचार हिवारण अहिहियम, 1988 (1988 का 49) की िारा 31 द्वारा हिरहसत ।
166. िोक सेवक, जो ककसी व्यहक्‍त को क्षहत काररत करिे के आिय से हवहि की अवज्ञा करता िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए
हवहि के ककसी ऐसे हिदेि की जो उस ढंग के बारे में िो हजस ढंग से िोक सेवक के िाते उसे आचरण करिा िै, जािते हुए अवज्ञा इस
30

आिय से या यि सम्भाव्य जािते हुए करे गा कक ऐसी अवज्ञा से वि ककसी व्यहक्‍त को क्षहत काररत करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी
अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

दृष्ट‍ ांत
क, जो एक आकिसर िै, और न्यायािय द्वारा य के पक्ष में दी गई हडक्री की तुहष्‍ट के हिए हिष्पादि में सम्पहत्त िेिे के हिए हवहि
द्वारा हिदेहित िै, यि ज्ञाि रिते हुए कक यि सम्भाव्य िै कक तद्‍द्वारा वि य को क्षहत काररत करे गा, जािते हुए हवहि के उस हिदेि की
अवज्ञा करता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै‍।
1
[166क.‍िोक‍सेवक,‍जो‍हवहि‍के ‍अिीि‍हिदेि‍की‍अवज्ञा‍करता‍िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए,—
(क) हवहि के ककसी ऐसे हिदेि की, जो उसको ककसी अपराि या ककसी अन्य मामिे में अन्वेषण के प्रयोजि के हिए,
ककसी व्यहक्‍त की ककसी स्थाि पर उपहस्थहत की अपेक्षा ककए जािे से प्रहतहषद्ध करता िै, जािते हुए अवज्ञा करे गा ; या
(ि) ककसी ऐसी रीहत को, हजसमें वि ऐसा अन्वेषण करे गा, हवहियहमत करिे वािी हवहि के ककसी अन्य हिदेि की,
ककसी व्यहक्‍त पर प्रहतकू ि प्रभाव डाििे के हिए, जािते हुए अवज्ञा करे गा ; या
(ग) िारा 326क, िारा 326ि, िारा 354, िारा 354ि, िारा 370, िारा 370क, िारा 376, िारा 376क, 2[िारा
376कि, 376ि,‍ िारा 376ग, िारा 376घ, 376घक, 376घि,]‍ िारा 376ङ या िारा 509 के अिीि दंडिीय संज्ञेय अपराि के
संबंि में उसे‍ दंड प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2)‍की िारा 154 की उपिारा (1) के अिीि दी गई ककसी सूचिा को िेिबद्ध
करिे में असिि रिेगा,
वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि छि मास से कम की ििीं िोगी ककं तु जो दो वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
166ि.‍पीह़ित‍का‍उपचार‍ि‍करिे‍ के ‍हिए‍दंड —जो कोई ऐसे ककसी िोक या प्राइवेट अस्पताि का, चािे वि कें रीय सरकार,
राज्य सरकार, स्थािीय हिकाय या ककसी अन्य व्यहक्‍त द्वारा चिाया जा रिा िो, भारसािक िोते हुए दंड प्रकक्रया संहिता,
1973 (1974 का 2) की िारा 357ग के उपबंिों का उ्िंघि करे गा, वि कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी या
जुमातिे से या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।]
167. िोक सेवक, जो क्षहत काररत करिे के आिय से अिुद्ध दस्तावेज रचता िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और ऐसे िोक सेवक
के िाते 3[ककसी दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि की रचिा या अिुवाद करिे का भार-विि करते हुए उस दस्तावेज या इिैक्राहिक
अहभिेि की रचिा, तैयार या अिुवाद] ऐसे प्रकार से हजसे वि जािता िो या हवश्‍वास करता िो कक अिुद्ध िै, इस आिय से, या सम्भाव्य
जािते हुए करे गा कक तद्‍द्वारा वि ककसी व्यहक्‍त को क्षहत काररत करे , वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि
वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
168. िोक सेवक, जो हवहिहवरुद्ध रूप से व्यापार में िगता िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और ऐसे िोक सेवक के िाते इस बात
के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए कक वि व्यापार में ि िगे, व्यापार में िगेगा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की
िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
169. िोक सेवक, जो हवहिहवरुद्ध रूप से संपहत्त क्रय करता िै या उसके हिए बोिी िगाता िै—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और
ऐसे िोक सेवक के िाते इस बात के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए कक वि अमुक संपहत्त को ि तो क्रय करे और ि उसके हिए बोिी
िगाए, या तो अपिे हिज के िाम में, या ककसी दूसरे के िाम में, अथवा दूसरों के साथ संयुक्‍त रूप से, या अंिों में उस संपहत्त को क्रय
करे गा, या उसके हिए बोिी िगाएगा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा, और यकद वि संपहत्त क्रय कर िी गई िै, तो वि अहिहृत कर िी जाएगी ।
170. िोक सेवक का प्रहतरूपण—जो कोई ककसी हवहिष्‍ट पद को िोक सेवक के िाते िारण करिे का अपदेि यि जािते हुए करे गा
कक वि ऐसा पद िारण ििीं करता िै या ऐसा पद िारण करिे वािे ककसी अन्य व्यहक्‍त का छद्म प्रहतरूपण करे गा और ऐसे बिावटी रूप
में ऐसे पदाभास से कोई कायत करे गा या करिे का प्रयत्‍ि करे गा वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की
िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
171. कपटपूणत आिय से िोक सेवक के उपयोग की पोिाक पिििा या टोकि को िारण करिा—जो कोई िोक सेवकों के ककसी
िास वगत का ि िोते हुए, इस आिय से कक यि हवश्‍वास ककया जाए, या इस ज्ञाि से कक सम्भाव्य िै कक यि हवश्‍वास ककया जाए, कक वि
िोक सेवकों के उस वगत का िै, िोक सेवकों के उस वगत द्वारा उपयोग में िाई जािे वािी पोिाक के सदृि पोिाक पििेगा, या टोकि के

1
2013 के ‍अहिहियम‍सं०‍13 की‍िारा 3‍द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2
2019‍के ‍अहिहियम‍सं० 22‍की‍िारा 2‍द्वारा‍“िारा 376ि, िारा 376ग, िारा 376घ”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।‍
3
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
31

सदृि कोई टोकि िारण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से,
जो दो सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
1
[अध्याय 9क

हिवातचि संबि
ं ी अपरािों के हवषय में
171क. “अभ्यथी”, “हिवातचि अहिकार” पररभाहषत—इस अध्याय के प्रयोजिों के हिए—
2
[(क) “अभ्यथी” से वि व्यहक्‍त अहभप्रेत िै जो ककसी हिवातचि में अभ्यथी के रूप में िामहिर्दतष्‍ट ककया गया िै ;]
(ि) “हिवातचि अहिकार” से ककसी हिवातचि में अभ्यथी के रूप में ि़िे िोिे या ि़िे ि िोिे या अभ्यथतिा से अपिा िाम
वापि िेिे या मत देिे या मत देिे से हवरत रििे का ककसी व्यहक्‍त का अहिकार अहभप्रेत िै ।
171ि. ररश्‍वत—(1) जो कोई—
(i) ककसी व्यहक्‍त को इस उद्देश्य से पररतोषण देता िै कक वि उस व्यहक्‍त को या ककसी अन्य व्यहक्‍त को ककसी हिवातचि
अहिकार का प्रयोग करिे के हिए उत्‍प्रेररत करे या ककसी व्यहक्‍त को इसहिए इिाम दे कक उसिे ऐसे अहिकार का प्रयोग ककया िै,
अथवा
(ii) स्वयं अपिे हिए या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हिए कोई पररतोषण ऐसे ककसी अहिकार को प्रयोग में िािे के हिए या
ककसी अन्य व्यहक्‍त को ऐसे ककसी अहिकार को प्रयोग में िािे के हिए उत्‍प्रेररत करिे या उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करिे के हिए
इिाम के रूप में प्रहतगृिीत करता िै,
वि ररश्‍वत का अपराि करता िै :
परं तु िोक िीहत की घोषणा या िोक कायतवािी का वचि इस िारा के अिीि अपराि ि िोगा ।
(2) जो व्यहक्‍त पररतोषण देिे की प्रस्थापिा करता िै या देिे को सिमत िोता िै या उपाप्‍त करिे की प्रस्थापिा या प्रयत्‍ि करता िै,
यि समझा जाएगा कक वि पररतोषण देता िै ।
(3) जो व्यहक्‍त पररतोषण अहभप्राप्‍त करता िै या प्रहतगृिीत करिे को सिमत िै या अहभप्राप्‍त करिे का प्रयत्‍ि करता िै, यि
समझा जाएगा कक वि पररतोषण प्रहतगृिीत करता िै और जो व्यहक्‍त वि बात करिे के हिए, हजसे करिे का उसका आिय ििीं िै,
िेतुस्वरूप, या जो बात उसिे ििीं की िै उसे करिे के हिए इिाम के रूप में पररतोषण प्रहतगृिीत करता िै, यि समझा जाएगा कक उसिे
पररतोषण को इिाम के रूप में प्रहतगृिीत ककया िै ।
171ग. हिवातचिों में असम्यक्‍त असर डाििा—(1) जो कोई ककसी हिवातचि अहिकार के हिबाति प्रयोग में स्वेच्छया िस्तक्षेप करता
िै या िस्तक्षेप करिे का प्रयत्‍ि करता िै, वि हिवातचि में असम्यक् असर डाििे का अपराि करता िै ।
(2) उपिारा (1) के उपबंिों की व्यापकता पर प्रहतकू ि प्रभाव डािे हबिा जो कोई—
(क) ककसी अभ्यथी या मतदाता को, या ककसी ऐसे व्यहक्‍त को, हजससे अभ्यथी या मतदाता हितबद्ध िै, ककसी प्रकार की
क्षहत करिे की िमकी देता िै, अथवा
(ि) ककसी अभ्यथी या मतदाता को यि हवश्‍वास करिे के हिए उत्‍प्रेररत करता िै या उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करता िै कक
वि या कोई ऐसा व्यहक्‍त, हजससे वि हितबद्ध िै, दैवी अप्रसाद या आध्याहत्मक पररहिन्दा का भाजि िो जाएगा या बिा कदया
जाएगा,
यि समझा जाएगा कक वि उपिारा (1) के अथत के अंतगतत ऐसे अभ्यथी या मतदाता के हिवातचि अहिकार के हिबाति प्रयोग में िस्तक्षेप
करता िै ।
(3) िोक िीहत की घोषणा या िोक कायतवािी का वचि या ककसी वैि अहिकार का प्रयोग मात्र, जो ककसी हिवातचि अहिकार में
िस्तक्षेप करिे के आिय के हबिा िै, इस िारा के अथत के अंतगतत िस्तक्षेप करिा ििीं समझा जाएगा ।
171घ. हिवातचिों में प्रहतरूपण—जो कोई ककसी हिवातचि में ककसी अन्य व्यहक्‍त के िाम से, चािे वि जीहवत िो या मृत, या ककसी
कह्पत िाम से, मतपत्र के हिए आवेदि करता या मत देता िै, या ऐसे हिवातचि में एक बार मत दे चुकिे के पश्‍चात् उसी हिवातचि में
अपिे िाम से मतपत्र के हिए आवेदि करता िै, और जो कोई ककसी व्यहक्‍त द्वारा ककसी ऐसे प्रकार से मतदाि को दुष्‍प्रेररत करता िै,
उपाप्‍त करता िै या उपाप्‍त करिे का प्रयत्‍ि करता िै, वि हिवातचि में प्रहतरूपण का अपराि करता िै :

1
1920 के ‍अहिहियम‍सं० 39 की‍िारा‍2 द्वारा‍अध्याय‍9क‍अंतःस्थाहपत‍।
2
1975 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍9 द्वारा‍िंड‍(क)‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
32

[परं तु इस िारा की कोई बात ककसी ऐसे व्यहक्‍त को िागू ििीं िोगी हजसे तत्समय प्रवृत्त ककसी हवहि के अिीि मतदाता की ओर
1

से, जिां तक वि ऐसे मतदाता की ओर से परोक्षी के रूप में मत देता िै, परोक्षी के रूप में मत देिे के हिए प्राहिकृ त ककया गया िै ।]
171ङ. ररश्‍वत के हिए दण्ड—जो कोई ररश्‍वत का अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक
वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा :
परं तु सत्कार के रूप में ररश्‍वत के वि जुमातिे से िी दहण्डत की जाएगी ।
स्पष्‍टीकरण—“सत्कार” से ररश्‍वत का वि रूप अहभप्रेत िै जो पररतोषण, िाद्य, पेय, मिोरं जि या रसद के रूप में िै ।
171च. हिवातचिों में असम्यक् असर डाििे या प्रहतरूपण के हिए दण्ड—जो कोई ककसी हिवातचि में असम्यक् असर डाििे या
प्रहतरूपण का अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
171छ. हिवातचि के हसिहसिे में हमथ्या कथि—जो कोई हिवातचि के पररणाम पर प्रभाव डाििे के आिय से ककसी अभ्यथी के
वैयहक्‍तक िीि या आचरण के संबंि में तथ्य का कथि तात्पर्यतत िोिे वािा कोई ऐसा कथि करे गा या प्रकाहित करे गा, जो हमथ्या िै,
और हजसका हमथ्या िोिा वि जािता या हवश्‍वास करता िै अथवा हजसके सत्य िोिे का वि हवश्‍वास ििीं करता िै वि जुमातिे से दहण्डत
ककया जाएगा ।
171ज. हिवातचि के हसिहसिे में अवैि संदाय—जो कोई ककसी अभ्यथी के सािारण या हविेष हिहित प्राहिकार के हबिा ऐसे
अभ्यथी का हिवातचि अग्रसर करिे या हिवातचि करा देिे के हिए कोई सावतजहिक सभा करिे में या ककसी हवज्ञापि, पररपत्र या प्रकािि
पर या ककसी भी अन्य ढंग से व्यय करे गा या करिा प्राहिकृ त करे गा, वि जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया
जाएगा :
परन्तु यकद कोई व्यहक्‍त, हजसिे प्राहिकार के हबिा कोई ऐसे व्यय ककए िों, जो कु ि हमिाकर दस रुपए से अहिक ि िों, उस तारीि
से हजस तारीि को ऐसे व्यय ककए गए िों, दस कदि के भीतर उस अभ्यथी का हिहित अिुमोदि अहभप्राप्‍त कर िे, तो यि समझा जाएगा
कक उसिे ऐसे व्यय उस अभ्यथी के प्राहिकार से ककए िैं ।
171झ. हिवातचि िेिा रििे में असििता—जो कोई ककसी तत्समय प्रवृत्त हवहि द्वारा या हवहि का बि रििे वािे ककसी हियम
द्वारा इसके हिए अपेहक्षत िोते हुए कक वि हिवातचि में या हिवातचि के संबंि में ककए गए व्ययों का िेिा रिे, ऐसा िेिा रििे में असिि
रिेगा, वि जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, दंहडत ककया जाएगा ।]
अध्याय 10

िोक सेवकों के हवहिपूणत प्राहिकार के अवमाि के हवषय में


172. समिों की तामीि या अन्य कायतवािी से बचिे के हिए िरार िो जािा—जो कोई ककसी ऐसे िोक सेवक द्वारा हिकािे गए
समि, सूचिा या आदेि की तामीि से बचिे के हिए िरार िो जाएगा, जो ऐसे िोक सेवक के िाते ऐसे समि, सूचिा या आदेि को
हिकाििे के हिए वैि रूप से सक्षम िो, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ
रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
अथवा, यकद समि या सूचिा या आदेि 2[ककसी न्यायािय में स्वयं या अहभकतात द्वारा िाहजर िोिे के हिए, या दस्तावेज अथवा
इिैक्राहिक अहभिेि पेि करिे के हिए] िो तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक
िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
173. समि की तामीि का या अन्य कायतवािी का या उसके प्रकािि का हिवारण करिा—जो कोई ककसी िोक सेवक द्वारा जो
िोक सेवक उस िाते कोई समि, सूचिा या आदेि हिकाििे के हिए वैि रूप से सक्षम िो हिकािे गए समि, सूचिा या आदेि की तामीि
अपिे पर या ककसी अन्य व्यहक्‍त पर िोिा ककसी प्रकार सािय हिवाररत करे गा,
अथवा ककसी ऐसे समि, सूचिा या आदेि का ककसी ऐसे स्थाि में हवहिपूवतक िगाया जािा सािय हिवाररत करे गा,
अथवा ककसी ऐसे समि, सूचिा या आदेि को ककसी ऐसे स्थाि से, जिां कक हवहिपूवतक िगाया हुआ िै, सािय िटाएगा,
अथवा ककसी ऐसे िोक सेवक के प्राहिकारािीि की जािे वािी ककसी उद्‍घोषणा का हवहिपूवतक ककया जािा सािय हिवाररत
करे गा, जो ऐसे िोक सेवक के िाते ऐसी उद्‍घोषणा का ककया जािा हिर्दतष्‍ट करिे के हिए वैि रूप से सक्षम िो,
वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या ‍‍‍‍
दोिों से,

1
2003 के ‍अहिहियम‍सं० 24 की‍िारा‍5 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
33

अथवा, यकद समि, सूचिा, आदेि या उद्‍घोषणा 1[ककसी न्यायािय में स्वयं या अहभकतात द्वारा िाहजर िोिे के हिए या दस्तावेज
अथवा इिैक्राहिक अहभिेि पेि करिे के हिए] िो, तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से,
जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
दंहडत ककया जाएगा ।
174. िोक सेवक का आदेि ि मािकर गैर-िाहजर रििा—जो कोई ककसी िोक सेवक द्वारा हिकािे गए उस समि, सूचिा, आदेि
या उद्‍घोषणा के पािि में, हजसे ऐसे िोक सेवक के िाते हिकाििे के हिए वि वैि रूप से सक्षम िो, ककसी हिहश्‍चत स्थाि और समय पर
स्वयं या अहभकतात द्वारा िाहजर िोिे के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए,
उस स्थाि या समय पर िाहजर िोिे का सािय िोप करे गा, या उस स्थाि से, जिां िाहजर िोिे के हिए वि आबद्ध िै, उस समय से
पूवत चिा जाएगा, हजस समय चिा जािा उसके हिए हवहिपूणत िोता,
वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
अथवा, यकद समि, सूचिा, आदेि या उद्‍घोषणा ककसी न्यायािय में स्वयं या ककसी अहभकतात द्वारा िाहजर िोिे के हिए िै, तो वि
सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क किकत्ता 2[उच्‍च न्यायािय] द्वारा हिकािे गए सपीिा के पािि में उस न्यायािय के समक्ष उपसंजात िोिे के हिए वैि रूप
से आबद्ध िोते हुए, उपसंजात िोिे में सािय िोप करता िै, क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
(ि) क 3[हजिा न्यायािीि] द्वारा हिकािे गए समि के पािि में उस 3[हजिा न्यायािीि] के समक्ष साक्षी के रूप में उपसंजात िोिे
के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए, उपसंजात िोिे में सािय िोप करता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
[174क. 1974 के अहिहियम 2 की िारा 82 के अिीि ककसी उद्घ
4
‍ ोषणा के उत्तर में गैर-िाहजरी—जो कोई दंड प्रकक्रया संहिता,
1973 की िारा 82 की उपिारा (1) के अिीि प्रकाहित ककसी उद्‍घोषणा की अपेक्षािुसार हवहिर्दतष्‍ट स्थाि और हवहिर्दतष्‍ट समय पर
िाहजर िोिे में असिि रिेगा, तो वि कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से या दोिों से दंहडत ककया
जाएगा और जिां उस िारा की उपिारा (4) के अिीि कोई ऐसी घोषणा की गई िै हजसमें उसे उद्‍घोहषत अपरािी के रूप में घोहषत
ककया गया िै, विां वि ऐसे कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे का भी
दायी िोगा ।]
175. 5[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] पेि करिे के हिए वैि रूप से आबद्ध व्यहक्‍त का िोक सेवक को 5[दस्तावेज या
इिैक्राहिक अहभिेि] पेि करिे का िोप—जो कोई ककसी िोक सेवक को, ऐसे िोक सेवक के िाते ककसी 5[दस्तावेज या इिैक्राहिक
अहभिेि] को पेि करिे या पररदत्त करिे के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए, उसको इस प्रकार पेि करिे या पररदत्त करिे का सािय
िोप करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या
दोिों से,
अथवा, यकद वि 5[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] ककसी न्यायािय में पेि या पररदत्त की जािी िो, तो वि सादा कारावास
से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक िो सके गा, या दोिों से,
दहण्डत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
क, जो एक 6[एक हजिा न्यायािय] के समक्ष दस्तावेज पेि करिे के हिए वैि रूप से आबद्ध िै, उसको पेि करिे का सािय िोप
करता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
176. सूचिा या इहत्तिा देिे के हिए वैि रूप से आबद्ध व्यहक्‍त द्वारा िोक सेवक को सूचिा या इहत्तिा देिे का िोप—जो कोई
ककसी िोक सेवक को, ऐसे िोक सेवक के िाते ककसी हवषय पर कोई सूचिा देिे या इहत्तिा देिे के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए, हवहि
द्वारा अपेहक्षत प्रकार से और समय पर ऐसी सूचिा या इहत्तिा देिे का सािय िोप करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक
मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,

1
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“उच्‍चतम‍न्यायािय”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“हजिा‍न्यायािीि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
2005 के ‍अहिहियम‍सं० 25 की‍िारा‍44 द्वारा‍‍अंत:स्थाहपत‍।‍
5
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍“दस्तावेज”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍‍“हजिा‍न्यायािय”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
34

अथवा, यकद दी जािे के हिए अपेहक्षत सूचिा या इहत्तिा ककसी अपराि के ककए जािे के हवषय में िो, या ककसी अपराि के ककए
जािे का हिवारण करिे के प्रयोजि से या ककसी अपरािी को पक़ििे के हिए अपेहक्षत िो, तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि
मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
[अथवा, यकद दी जािे के हिए अपेहक्षत सूचिा या इहत्तिा दण्ड प्रकक्रया संहिता, 1898 (1898 का 5) की िारा 565 की उपिारा
1

(1) के अिीि कदए गए आदेि द्वारा अपेहक्षत िै, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो
सके गी या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,]
दंहडत ककया जाएगा ।
177. हमथ्या इहत्तिा देिा—जो कोई ककसी िोक सेवक को ऐसे िोक सेवक के िाते ककसी हवषय पर इहत्तिा देिे के हिए वैि रूप से
आबद्ध िोते हुए उस हवषय पर सच्‍ची इहत्तिा के रूप में ऐसी इहत्तिा देगा हजसका हमथ्या िोिा वि जािता िै या हजसके हमथ्या िोिे का
हवश्‍वास करिे का कारण उसके पास िै, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से जो एक िजार
रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
अथवा, यकद वि इहत्तिा, हजसे देिे के हिए वि वैि रूप से आबद्ध िो, कोई अपराि ककए जािे के हवषय में िो, या ककसी अपराि के
ककए जािे का हिवारण करिे के प्रयोजि से, या ककसी अपरािी को पक़ििे के हिए अपेहक्षत िो, तो वि दोिों में से, ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क, एक भू-िारक, यि जािते हुए कक उसकी भू-सम्पदा की सीमाओं के अंदर एक ित्या की गई िै, उस हजिे के महजस्रेट को
जािबूझकर यि हमथ्या इहत्तिा देता िै कक मृत्यु सांप के काटिे के पररणामस्वरूप दुघतटिा से हुई िै । क इस िारा में पररभाहषत अपराि
का दोषी िै ।
(ि) क, जो ग्राम चौकीदार िै, यि जािते हुए कक अिजािे िोगों का एक ब़िा हगरोि य के गृि में, जो प़िोस के गांव का हिवासी
एक ििी व्यापारी िै, डकै ती करिे के हिए उसके गांव से िोकर गया िै और बंगाि संहिता 1821 के 2हवहियम 3 की िारा 7 के िंड 5 के
अिीि हिकटतम पुहिस थािे के आकिसर को उपरोक्‍त घटिा की इहत्तिा िीघ्र और ठीक समय पर देिे के हिए आबद्ध िोते हुए, पुहिस
आकिसर को जािबूझकर यि हमथ्या इहत्तिा देता िै कक संकदग्ििीि के िोगों का एक हगरोि ककसी हभन्‍ि कदिा में हस्थत एक दूरस्थ स्थाि
पर डकै ती करिे के हिए गांव से िोकर गया िै । यिां क, इस िारा के दूसरे भाग में पररभाहषत अपराि का दोषी िै ।
[स्पष्‍टीकरण—िारा 176 में और इस िारा में “अपराि” िब्द के अंतगतत 4[भारत] से बािर ककसी स्थाि पर ककया गया कोई ऐसा
3

कायत आता िै, जो यकद 4[भारत] में ककया जाता, तो हिम्‍िहिहित िारा अथातत् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398,
399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 में से ककसी िारा के अिीि दंडिीय िोता; और “अपरािी” िब्द के अंतगतत
कोई भी ऐसा व्यहक्‍त आता िै, जो कोई ऐसा कायत करिे का दोषी अहभकहथत िो ।]
178. िपथ या प्रहतज्ञाि से इं कार करिा, जबकक िोक सेवक द्वारा वि वैसा करिे के हिए सम्यक् रूप से अपेहक्षत ककया जाए—जो
कोई सत्य कथि करिे के हिए िपथ 5[या प्रहतज्ञाि] द्वारा अपिे आप को आबद्ध करिे से इं कार करे गा, जबकक उससे अपिे को इस प्रकार
आबद्ध करिे की अपेक्षा ऐसे िोक सेवक द्वारा की जाए जो यि अपेक्षा करिे के हिए वैि रूप से सक्षम िो कक वि व्यहक्‍त इस प्रकार अपिे
को आबद्ध करे , वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा,
या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
179. प्रश्‍ि करिे के हिए प्राहिकृ त िोक सेवक का उत्तर देिे से इं कार करिा—जो कोई ककसी िोक सेवक से ककसी हवषय पर सत्य
कथि करिे के हिए वैि रूप से आबद्ध िोते हुए, ऐसे िोक सेवक की वैि िहक्‍तयों के प्रयोग में उस िोक सेवक द्वारा उस हवषय के बारे में
उससे पूछे गए ककसी प्रश्‍ि का उत्तर देिे से इं कार करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे
से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
180. कथि पर िस्ताक्षर करिे से इं कार—जो कोई अपिे द्वारा ककए गए ककसी कथि पर िस्ताक्षर करिे को ऐसे िोक सेवक द्वारा
अपेक्षा ककए जािे पर, जो उससे यि अपेक्षा करिे के हिए वैि रूप से सक्षम िो कक वि उस कथि पर िस्ताक्षर करे , उस कथि पर
िस्ताक्षर करिे से इं कार करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक
का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
181. िपथ कदिािे या प्रहतज्ञाि करािे के हिए प्राहिकृ त िोक सेवक के , या व्यहक्‍त के समक्ष िपथ या प्रहतज्ञाि पर हमथ्या
कथि—जो कोई ककसी िोक सेवक या ककसी अन्य व्यहक्‍त से, जो ऐसे िपथ 5[कदिािे या प्रहतज्ञाि] देिे के हिए हवहि द्वारा प्राहिकृ त िो,

1
1939 के ‍अहिहियम‍सं०‍22 की‍िारा‍2 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
2
1862 के ‍अहिहियम‍सं०‍17 द्वारा‍हिरहसत‍।
3
1894 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍5 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
4
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
5
1873 के ‍अहिहियम‍सं०‍10 की‍िारा‍15 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
35

ककसी हवषय पर सत्य कथि करिे के हिए िपथ 1[या प्रहतज्ञाि] द्वारा वैि रूप से आबद्ध िोते हुए ऐसे िोक सेवक या यथापूवोक्‍त अन्य
व्यहक्‍त से उस हवषय के संबंि में कोई ऐसा कथि करे गा, जो हमथ्या िै, और हजसके हमथ्या िोिे का या तो उसे ज्ञाि िै, या हवश्‍वास िै या
हजसके सत्य िोिे का उसे हवश्‍वास ििीं िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
[182. इस आिय से हमथ्या इहत्तिा देिा कक िोक सेवक अपिी हवहिपूणत िहक्‍त का उपयोग दूसरे व्यहक्‍त को क्षहत करिे के हिए
2

करे —जो कोई ककसी िोक सेवक को कोई ऐसी इहत्तिा, हजसके हमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या हवश्‍वास िै, इस आिय से देगा कक वि उस
िोक सेवक को प्रेररत करे या यि सम्भाव्य जािते हुए देगा कक वि उसको तद्‍द्वारा प्रेररत करे गा कक वि िोक सेवक—
(क) कोई ऐसी बात करे या करिे का िोप करे हजसे वि िोक सेवक, यकद उसे उस संबंि में, हजसके बारे में ऐसी इहत्तिा दी
गई िै, तथ्यों की सिी हस्थहत का पता िोता तो ि करता या करिे का िोप ि करता, अथवा
(ि) ऐसे िोक सेवक की हवहिपूणत िहक्‍त का उपयोग करे हजस उपयोग से ककसी व्यहक्‍त को क्षहत या क्षोभ िो,
वि दोिों में से, ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक महजस्रेट को यि इहत्तिा देता िै कक य एक पुहिस आकिसर, जो ऐसे महजस्रेट का अिीिस्थ िै, कततव्य पािि में उपेक्षा
या अवचार का दोषी िै, यि जािते हुए देता िै कक ऐसी इहत्तिा हमथ्या िै, और यि सम्भाव्य िै कक उस इहत्तिा से वि महजस्रेट य को
पदच्युत कर देगा । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
(ि) क एक िोक सेवक को यि हमथ्या इहत्तिा देता िै कक य के पास गुप्त
‍ स्थाि में हवहिहषद्ध िमक िै । वि इहतिा यि जािते हुए
देता िै कक ऐसी इहत्तिा हमथ्या िै, और यि जािते हुए देता िै कक यि सम्भाव्य िै कक उस इहत्तिा के पररणामस्वरूप य के पररसर की
तिािी िी जाएगी, हजससे य को क्षोभ िोगा । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
(ग) एक पुहिसजि को क यि हमथ्या इहत्तिा देता िै कक एक हवहिष्‍ट ग्राम के पास उस पर िमिा ककया गया िै और उसे िूट हिया
गया िै । वि अपिे पर िमिावर के रूप में ककसी व्यहक्‍त का िाम ििीं िेता । ककन्तु वि यि जािता िै कक यि संभाव्य िै कक इस इहत्तिा
के पररणामस्वरूप पुहिस उस ग्राम में जांच करे गी और तिाहियां िेगी, हजससे ग्रामवाहसयों या उिमें से कु छ को क्षोभ िोगा । क िे इस
िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।]
183. िोक सेवक के हवहिपूणत प्राहिकार द्वारा संपहत्त हिए जािे का प्रहतरोि—जो कोई ककसी िोक सेवक के हवहिपूणत प्राहिकार
द्वारा ककसी संपहत्त के िे हिए जािे का प्रहतरोि यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए करे गा कक वि ऐसा िोक सेवक
िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
184. िोक सेवक के प्राहिकार द्वारा हवक्रय के हिए प्रस्थाहपत की गई संपहत्त के हवक्रय में बािा उपहस्थत करिा—जो कोई ऐसी
ककसी संपहत्त के हवक्रय में, जो ऐसे िोक सेवक के िाते ककसी िोक सेवक के हवहिपूणत प्राहिकार द्वारा हवक्रय के हिए प्रस्थाहपत की गई िो,
सािय बािा डािेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ
रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
185. िोक सेवक के प्राहिकार द्वारा हवक्रय के हिए प्रस्थाहपत की गई संपहत्त का अवैि क्रय या उसके हिए अवैि बोिी
िगािा—जो कोई संपहत्त के ककसी ऐसे हवक्रय में, जो िोक सेवक के िाते िोक सेवक के हवहिपूणत प्राहिकार द्वारा िो रिा िो, ककसी ऐसे
व्यहक्‍त के हिहमत्त चािे वि व्यहक्‍त वि स्वयं िो, या कोई अन्य िो, ककसी संपहत्त का क्रय करे गा या ककसी संपहत्त के हिए बोिी िगाएगा,
हजसके बारे में वि जािता िो कक वि व्यहक्‍त उस हवक्रय में उस संपहत्त के क्रय करिे के बारे में ककसी हवहिक असमथतता के अिीि िै या
ऐसी संपहत्त के हिए यि आिय रिकर बोिी िगाएगा कक ऐसी बोिी िगािे से हजि बाध्यताओं के अिीि वि अपिे आप को डािता िै
उन्िें उसे पूरा ििीं करिा िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो
दो सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
186. िोक सेवक के िोक कृ त्यों के हिवतिि में बािा डाििा—जो कोई ककसी िोक सेवक के िोक कृ त्यों के हिवतिि में स्वेच्छया
बािा डािेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए
तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
187. िोक सेवक की सिायता करिे का िोप, जबकक सिायता देिे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध िो—जो कोई ककसी िोक सेवक को,
उसके िोक कततव्य के हिष्पादि में सिायता देिे या पहुंचािे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध िोते हुए, ऐसी सिायता देिे का सािय िोप

1
1873 के ‍अहिहियम‍सं०‍10 की‍िारा‍15 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
1895 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍1 द्वारा‍िारा‍182 के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
36

करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो दौ सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से,
दंहडत ककया जाएगा ;
और यकद ऐसी सिायता की मांग उससे ऐसे िोक सेवक द्वारा, जो ऐसी मांग करिे के हिए वैि रूप से सक्षम िो, न्यायािय द्वारा
वैि रूप से हिकािी गई ककसी आदेहिका के हिष्पादि के , या अपराि के ककए जािे का हिवारण करिे के , या ब्वे या दंगे को दबािे के , या
ऐसे व्यहक्‍त को, हजस पर अपराि का आरोप िै या जो अपराि का या हवहिपूणत अहभरक्षा से हिकि भागिे का दोषी िै, पक़ििे के
प्रयोजिों से की जाए, तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
188. िोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रखयाहपत आदेि की अवज्ञा—जो कोई यि जािते हुए कक वि ऐसे िोक सेवक द्वारा
प्रखयाहपत ककसी आदेि से, जो ऐसे आदेि को प्रखयाहपत करिे के हिए हवहिपूवतक सिक्‍त िै, कोई कायत करिे से हवरत रििे के हिए या
अपिे कब्जे में की, या अपिे प्रबन्िािीि, ककसी संपहत्त के बारे में कोई हविेष व्यवस्था करिे के हिए हिर्दतष्‍ट ककया गया िै, ऐसे हिदेि की
अवज्ञा करे गा ;
यकद ऐसी अवज्ञा हवहिपूवतक हियोहजत ककन्िीं व्यहक्‍तयों को बािा, क्षोभ या क्षहत, अथवा बािा, क्षोभ या क्षहत की जोहिम काररत
करे , या काररत करिे की प्रवृहत्त रिती िो, तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि एक मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो दौ
सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
और यकद ऐसी अवज्ञा मािव जीवि, स्वास्थ्य या क्षेम को संकट काररत करे , या काररत करिे की प्रवृहत्त रिती िो, या ब्वा या
दंगा काररत करती िो, या काररत करिे की प्रवृहत्त रिती िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि छि मास तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—यि आवश्यक ििीं िै कक अपरािी का आिय अपिाहि उत्पन्‍ि करिे का िो या उसके ध्याि में यि िो कक उसकी
अवज्ञा करिे से अपिाहि िोिा संभाव्य िै । यि पयातप्त‍ िै कक हजस आदेि की वि अवज्ञा करता िै, उस आदेि का उसे ज्ञाि िै, और यि भी
ज्ञाि िै कक उसके अवज्ञा करिे से अपिाहि उत्पन्‍ि िोती या िोिी संभाव्य िै ।
दृष्ट‍ ांत
एक आदेि, हजसमें यि हिदेि िै कक अमुक िार्मतक जुिूस अमुक स़िक से िोकर ि हिकिे, ऐसे िोक सेवक द्वारा प्रखयाहपत ककया
जाता िै, जो ऐसा आदेि प्रखयाहपत करिे के हिए हवहिपूवतक सिक्‍त िै । क जािते हुए उस आदेि की अवज्ञा करता िै, और तद्‍द्वारा ब्वे
का संकट काररत करता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
189. िोक सेवक को क्षहत करिे की िमकी—जो कोई ककसी िोक सेवक को या ऐसे ककसी व्यहक्‍त को हजससे उस िोक सेवक के
हितबद्ध िोिे का उसे हवश्‍वास िो, इस प्रयोजि से क्षहत की कोई िमकी देगा कक उस िोक सेवक को उत्‍प्रेररत ककया जाए कक वि ऐसे िोक
सेवक के कृ त्यों के प्रयोग से संसक्‍त कोई कायत करे , या करिे से प्रहवरत रिे, या करिे में हविम्ब करे , वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
190. िोक सेवक से संरक्षा के हिए आवेदि करिे से हवरत रििे के हिए ककसी व्यहक्‍त को उत्‍प्ररे रत करिे के हिए क्षहत की िमकी—
जो कोई ककसी व्यहक्‍त को इस प्रयोजि से क्षहत की कोई िमकी देगा कक वि उस व्यहक्‍त को उत्‍प्रेररत करे कक वि ककसी क्षहत से संरक्षा के
हिए कोई वैि आवेदि ककसी ऐसे िोक सेवक से करिे से हवरत रिे, या प्रहतहवरत रिे, जो ऐसे िोक सेवक के िाते ऐसी संरक्षा करिे या
करािे के हिए वैि रूप से सिक्‍त िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे
से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 11

हमथ्या साक्ष्य और िोक न्याय के हवरुद्ध अपरािों के हवषय में


191. हमथ्या साक्ष्य देिा—जो कोई िपथ द्वारा या हवहि के ककसी अहभव्यक्‍त उपबंि द्वारा सत्य कथि करिे के हिए वैि रूप से
आबद्ध िोते हुए, या ककसी हवषय पर घोषणा करिे के हिए हवहि द्वारा आबद्ध िोते हुए, ऐसा कोई कथि करे गा, जो हमथ्या िै, और या तो
हजसके हमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि िै या हवश्‍वास िै, या हजसके सत्य िोिे का उसे हवश्‍वास ििीं िै, वि हमथ्या साक्ष्य देता िै, यि किा ‍‍
जाता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—कोई कथि चािे वि मौहिक िो, या अन्यथा ककया गया िो, इस िारा के अंतगतत आता िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—अिुप्रमाहणत करिे वािे व्यहक्‍त के अपिे हवश्‍वास के बारे में हमथ्या कथि इस िारा के अथत के अंतगतत आता िै और
कोई व्यहक्‍त यि कििे से कक उसे उस बात का हवश्‍वास िै, हजस बात का उसे हवश्‍वास ििीं िै, तथा यि कििे से कक वि उस बात को
जािता िै हजस बात को वि ििीं जािता, हमथ्या साक्ष्य देिे का दोषी िो सके गा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक न्यायसंगत दावे के समथति में, जो य के हवरुद्ध ि के एक िजार रुपए के हिए िै, हवचारण के समय िपथ पर हमथ्या
कथि करता िै कक उसिे य को ि के दावे का न्यायसंगत िोिा स्वीकार करते हुए सुिा था । क िे हमथ्या साक्ष्य कदया िै ।
37

(ि) क सत्य कथि करिे के हिए िपथ द्वारा आबद्ध िोते हुए कथि करता िै कक वि अमुक िस्ताक्षर के संबंि में यि हवश्‍वास करता
िै कक वि य का िस्तिेि िै, जबकक वि उसके य का िस्तिेि िोिे का हवश्‍वास ििीं करता िै । यिां क वि कथि करता िै, हजसका हमथ्या
िोिा वि जािता िै, और इसहिए हमथ्या साक्ष्य देता िै ।
(ग) य के िस्तिेि के सािारण स्वरूप को जािते हुए क यि कथि करता िै कक अमुक िस्ताक्षर के संबंि में उसका यि हवश्‍वास िै
कक वि य का िस्तिेि िै ; क उसके ऐसा िोिे का हवश्‍वास सद्‍भावपूवतक करता िै । यिां, क का कथि के वि अपिे हवश्‍वास के संबंि में िै,
और उसके हवश्‍वास के संबंि में सत्य िै, और इसहिए, यद्यहप वि िस्ताक्षर य का िस्तिेि ि भी िो, क िे हमथ्या साक्ष्य ििीं कदया िै ।
(घ) क िपथ द्वारा सत्य कथि करिे के हिए आबद्ध िोते हुए यि कथि करता िै कक वि यि जािता िै कक य एक हवहिष्‍ट कदि एक
हवहिष्‍ट स्थाि में था, जबकक वि उस हवषय में कु छ भी ििीं जािता । क हमथ्या साक्ष्य देता िै, चािे बतिाए हुए कदि य उस स्थाि पर
रिा िो या ििीं ।
(ङ) क एक दुभाहषया या अिुवादक ककसी कथि या दस्तावेज के , हजसका यथाथत भाषान्तरण या अिुवाद करिे के हिए वि िपथ
द्वारा आबद्ध िै, ऐसे भाषान्तरण या अिुवाद को, जो यथाथत भाषान्तरण या अिुवाद ििीं िै और हजसके यथाथत िोिे का वि हवश्‍वास ििीं
करता, यथाथत भाषान्तरण या अिुवाद के रूप में देता या प्रमाहणत करता िै । क िे हमथ्या साक्ष्य कदया िै ।
192. हमथ्या साक्ष्य गढ़िा—जो कोई इस आिय से ककसी पररहस्थहत को अहस्तत्व में िाता िै, या 1[ककसी पुस्तक या अहभिेि या
इिैक्राहिक अहभिेि में कोई हमथ्या प्रहवहष्‍ट करता िै, या हमथ्या कथि अंतर्वतष्‍ट रििे वािा कोई दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि
रचता िै] कक ऐसी पररहस्थहत, हमथ्या प्रहवहष्‍ट या हमथ्या कथि न्याहयक कायतवािी में, या ऐसी ककसी कायतवािी में जो िोक सेवक के
समक्ष उसके उस िाते या मध्यस्थ के समक्ष हवहि द्वारा की जाती िै, साक्ष्य में दर्ितत िो और कक इस प्रकार साक्ष्य में दर्ितत िोिे पर ऐसी
पररहस्थहत, हमथ्या प्रहवहष्‍ट या हमथ्या कथि के कारण कोई व्यहक्‍त हजसे ऐसी कायतवािी में साक्ष्य के आिार पर राय कायम करिी िै ऐसी
कायतवािी के पररणाम के हिए ताहववक ककसी बात के संबंि में गित राय बिाए, वि “हमथ्या साक्ष्य गढ़ता िै”, यि किा जाता िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक बक्स में, जो य का िै, इस आिय से आभूषण रिता िै कक वे उस बक्स में पाए जाएं, और इस पररहस्थहत से य चोरी के
हिए दोषहसद्ध ठिराया जाए । क िे हमथ्या साक्ष्य गढ़ा िै ।
(ि) क अपिी दुकाि की बिी में एक हमथ्या प्रहवहष्‍ट इस प्रयोजि से करता िै कक वि न्यायािय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम
में िाई जाए । क िे हमथ्या साक्ष्य गढ़ा िै ।
(ग) य को एक आपराहिक षड् ‍यंत्र के हिए दोषहसद्ध ठिराया जािे के आिय से क एक पत्र य के िस्तिेि की अिुकृहत करके
हििता िै, हजससे यि तात्पर्यतत िै कक य िे उसे ऐसे आपराहिक षड् ‍यंत्र के सि अपरािी को संबोहित ककया िै और उस पत्र को ऐसे स्थाि
पर रि देता िै, हजसके संबंि में वि यि जािता िै कक पुहिस आकिसर संभाव्यत: उस स्थाि की तिािी िेंगे । क िे हमथ्या साक्ष्य गढ़ा िै ।
193. हमथ्या साक्ष्य के हिए दंड—जो कोई सािय ककसी न्याहयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में हमथ्या साक्ष्य देगा या ककसी न्याहयक
कायतवािी के ककसी प्रक्रम में उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से हमथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि सात वषत तक की िो सके गी दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी, दंडिीय िोगा ;
और जो कोई ककसी अन्य मामिे में सािय हमथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण 1—सेिा न्यायािय 2*** के समक्ष हवचारणीय न्याहयक कायतवािी िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—न्यायािय के समक्ष कायतवािी प्रारम्भ िोिे के पूव,त जो हवहि द्वारा हिर्दतष्‍ट अन्वेषण िोता िै, वि न्याहयक
कायतवािी का एक प्रक्रम िै, चािे वि अन्वेषण ककसी न्यायािय के सामिे ि भी िो ।
दृष्ट‍ ांत
यि अहभहिश्‍चय करिे के प्रयोजि से कक क्या य को हवचारण के हिए सुपुदत ककया जािा चाहिए, महजस्रेट के समक्ष जांच में क
िपथ पर कथि करता िै, हजसका वि हमथ्या िोिा जािता िै । यि जांच न्याहयक कायतवािी का एक प्रक्रम िै, इसहिए क िे हमथ्या साक्ष्य
कदया िै ।
स्पष्‍टीकरण 3—न्यायािय द्वारा हवहि के अिुसार हिर्दतष्‍ट और न्यायािय के प्राहिकार के अिीि संचाहित अन्वेषण न्याहयक
कायतवािी का एक प्रक्रम िै, चािे वि अन्वेषण ककसी न्यायािय के सामिे ि भी िो ।

1
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
2
‍1889 के ‍अहिहियम‍सं० 13 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“या‍हमहिरी‍कोटत‍आि‍ररक्‍वस्ट”‍िब्द‍हिरहसत‍।
38

दृष्ट‍ ांत
संबंहित स्थाि पर जा कर भूहम की सीमाओं को अहभहिहश्‍चत करिे के हिए न्यायािय द्वारा प्रहतहियुक्त
‍ आकिसर के समक्ष जांच
में क िपथ पर कथि करता िै हजसका हमथ्या िोिा वि जािता िै । यि जांच न्याहयक कायतवािी का एक प्रक्रम िै, इसहिए क िे हमथ्या
साक्ष्य कदया िै ।
194. मृत्यु से दंडिीय अपराि के हिए दोषहसहद्ध करािे के आिय से हमथ्या साक्ष्य देिा या गढ़िा—जो कोई 1[2[भारत] में तत्समय
प्रवृत्त हवहि के द्वारा] मृत्यु से दंडिीय अपराि के हिए ककसी व्यहक्‍त को दोषहसद्ध करािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा दोषहसद्ध
कराएगा यि जािते हुए हमथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वि 3[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक
की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
यकद हिदोष व्यहक्‍त एतद्द्व
‍ ारा दोषहसद्ध ककया जाए और उसे िांसी दी जाए—और यकद ककसी हिदोष व्यहक्‍त को ऐसे हमथ्या
साक्ष्य के पररणामस्वरूप दोषहसद्ध ककया जाए, और उसे िांसी दे दी जाए, तो उस व्यहक्‍त को, जो ऐसा हमथ्या साक्ष्य देगा, या तो मृत्यु
दंड या एतहस्मि्‍पूवत वर्णतत दंड कदया जाएगा ।
195. आजीवि कारावास या कारावास से दंडिीय अपराि के हिए दोषहसहद्ध करािे के आिय से हमथ्या साक्ष्य देिा या गढ़िा—
जो कोई इस आिय से या यि सम्भाव्य जािते हुए कक एतद्‍द्वारा वि ककसी व्यहक्‍त को ऐसे अपराि के हिए, जो 1[2[भारत] में तत्समय
प्रवृत्त हवहि द्वारा] मृत्यु से दंडिीय ि िो ककन्तु 3[आजीवि कारावास] या सात वषत या उससे अहिक की अवहि के कारावास से दंडिीय िो,
दोषहसद्ध कराए, हमथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वि वैसे िी दंहडत ककया जाएगा जैसे वि व्यहक्‍त दंडिीय िोता जो उस अपराि के हिए
दोषहसद्ध िोता ।
दृष्ट‍ ांत
क न्यायािय के समक्ष इस आिय से हमथ्या साक्ष्य देता िै कक एतद्‍द्वारा य डकै ती के हिए दोषहसद्ध ककया जाए । डकै ती का दंड
जुमातिा सहित या रहित 3[आजीवि कारावास] या ऐसा करठि कारावास िै, जो दस वषत तक की अवहि का िो सकता िै । क इसहिए
जुमातिे सहित या रहित 4[आजीवि कारावास] या कारावास से दंडिीय िै ।
5
[195क. ककसी व्यहक्‍त को हमथ्या साक्ष्य देिे के हिए िमकािा या उत्‍प्ररे रत करिा—जो कोई ककसी दूसरे व्यहक्‍त को, उसके िरीर,
खयाहत या संपहत्त को अथवा ऐसे व्यहक्‍त के िरीर या खयाहत को, हजसमें वि व्यहक्‍त हितबद्ध िै, यि काररत करिे के आिय से कोई क्षहत
करिे की िमकी देता िै, कक वि व्यहक्‍त हमथ्या साक्ष्य दे तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की
िो सके गी या जुमातिे से या दोिों से दंहडत ककया जाएगा ;
और यकद कोई हिदोष व्यहक्‍त ऐसे हमथ्या साक्ष्य के पररणामस्वरूप मृत्यु से या सात वषत से अहिक के कारावास से दोषहसद्ध और
दंडाकदष्‍ट ककया जाता िै तो ऐसा व्यहक्‍त, जो िमकी देता िै, उसी दंड से दंहडत ककया जाएगा और उसी रीहत में और उसी सीमा तक
दंडाकदष्‍ट ककया जाएगा जैसे हिदोष व्यहक्‍त दंहडत और दंडाकदष्‍ट ककया गया िै ।]
196. उस साक्ष्य को काम में िािा हजसका हमथ्या िोिा ज्ञात िै—जो कोई ककसी साक्ष्य को, हजसका हमथ्या िोिा या गढ़ा िोिा
वि जािता िै, सच्‍चे या असिी साक्ष्य के रूप में भ्रष्‍टतापूवतक उपयोग में िाएगा, या उपयोग में िािे का प्रयत्‍ि करे गा, वि ऐसे दंहडत
ककया जाएगा मािो उसिे हमथ्या साक्ष्य कदया िो या गढ़ा िो ।
197. हमथ्या प्रमाणपत्र जारी करिा या िस्ताक्षररत करिा—जो कोई ऐसा प्रमाणपत्र, हजसका कदया जािा या िस्ताक्षररत ककया
जािा हवहि द्वारा अपेहक्षत िो, या जो ककसी ऐसे तथ्य से संबंहित िो हजसका वैसा प्रमाणपत्र हवहि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य िो, यि जािते
हुए या हवश्‍वास करते हुए कक वि ककसी ताहववक बात के बारे में हमथ्या िै, वैसा प्रमाणपत्र जारी करे गा या िस्ताक्षररत करे गा, वि उसी
प्रकार दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे हमथ्या साक्ष्य कदया िो ।
198. प्रमाणपत्र को हजसका हमथ्या िोिा ज्ञात िै, सच्‍चे के रूप में काम में िािा—जो कोई ककसी ऐसे प्रमाणपत्र को यि जािते हुए
कक वि ककसी ताहववक बात के संबंि में हमथ्या िै सच्‍चे प्रमाणपत्र के रूप में भ्रष्‍टतापूवतक उपयोग में िाएगा, या उपयोग में िािे का प्रयत्‍ि
करे गा, वि ऐसे दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे हमथ्या साक्ष्य कदया िो ।
199. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में हवहि द्वारा िी जा सके , ककया गया हमथ्या कथि—जो कोई अपिे द्वारा की गई या
िस्ताक्षररत ककसी घोषणा में, हजसकी ककसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में िेिे के हिए कोई न्यायािय, या कोई िोक सेवक या अन्य व्यहक्‍त
हवहि द्वारा आबद्ध या प्राहिकृ त िो कोई ऐसा कथि करे गा, जो ककसी ऐसी बात के संबंि में, जो उस उद्देश्य के हिए ताहववक िो हजसके
हिए वि घोषणा की जाए या उपयोग में िाई जाए, हमथ्या िै और हजसके हमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या हवश्‍वास िै, या हजसके सत्य िोिे
का उसे हवश्‍वास ििीं िै, वि उसी प्रकार दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे हमथ्या साक्ष्य कदया िो ।

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1948 द्वारा‍“हिरटि‍भारत‍या‍इंग्िैंड‍की‍हवहि‍द्वारा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“राज्यों”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“ऐसे‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
2006 के ‍अहिहियम‍सं० 2 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
39

200. ऐसी घोषणा का हमथ्या िोिा जािते हुए सच्‍ची के रूप में काम में िािा—जो कोई ककसी ऐसी घोषणा को, यि जािते हुए
कक वि ककसी ताहववक बात के संबंि में हमथ्या िै, भ्रष्‍टतापूवतक सच्‍ची के रूप में उपयोग में िाएगा, या उपयोग में िािे का प्रयत्‍ि करे गा,
वि उसी प्रकार दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे हमथ्या साक्ष्य कदया िो‍।
स्पष्‍टीकरण—कोई घोषणा, जो के वि ककसी अप्ररूहपता के आिार पर अग्राह्य िै, िारा 199 और िारा 200 के अथत के अंतगतत
घोषणा िै ।
201. अपराि के साक्ष्य का हविोपि, या अपरािी को प्रहतच्छाकदत करिे के हिए हमथ्या इहत्तिा देिा—जो कोई यि जािते हुए या
यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक कोई अपराि ककया गया िै, उस अपराि के ककए जािे के ककसी साक्ष्य का हविोप, इस आिय
से काररत करे गा कक अपरािी को वैि दंड से प्रहतच्छाकदत करे या उस आिय से उस अपराि से संबंहित कोई ऐसी इहत्तिा देगा, हजसके
हमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या हवश्‍वास िै ;
यकद अपराि मृत्यु से दंडिीय िो—यकद वि अपराि हजसके ककए जािे का उसे ज्ञाि या हवश्‍वास िै, मृत्यु से दंडिीय िो, तो वि
दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद आजीवि कारावास से दंडिीय िो—और यकद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] से, या ऐसे कारावास से, जो दस वषत तक का
िो सके गा, दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के , कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी दंहडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद दस वषत से कम के कारावास से दंडिीय िो—और यकद वि अपराि ऐसे कारावास से उतिी अवहि के हिए दंडिीय िो, जो
दस वषत तक की ि िो, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित भांहत के कारावास से उतिी अवहि के हिए, जो उस अपराि के हिए
उपबंहित कारावास की दीघततम अवहि की एक-चौथाई तक िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
क यि जािते हुए कक ि िे य की ित्या की िै ि को दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के आिय से मृत िरीर को हछपािे में ि की सिायता
करता िै । क सात वषत के हिए दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, और जुमातिे से भी दंडिीय िै ।
202. इहत्तिा देिे के हिए आबद्ध व्यहक्‍त द्वारा अपराि की इहत्तिा देिे का सािय िोप—जो कोई यि जािते हुए या यि हवश्‍वास
करिे का कारण रिते हुए कक कोई अपराि ककया गया िै, उस अपराि के बारे में कोई इहत्तिा हजसे देिे के हिए वि वैि रूप से आबद्ध िो,
देिे का सािय िोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
203. ककए गए अपराि के हवषय में हमथ्या इहत्तिा देिा—जो कोई यि जािते हुए, या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए, कक
कोई अपराि ककया गया िै उस अपराि के बारे में कोई ऐसी इहत्तिा देगा, हजसके हमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या हवश्‍वास िो, वि दोिों में
से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
[स्पष्‍टीकरण—िारा 201 और 202 में और इस िारा में “अपराि” िब्द के अंतगतत 3[भारत] से बािर ककसी स्थाि पर ककया गया
2

कोई भी ऐसा कायत आता िै, जो यकद 3[भारत] में ककया जाता तो हिम्‍िहिहित िारा अथातत् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396,
397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 तथा 460 में से ककसी भी िारा के अिीि दंडिीय िोता ।]
204. साक्ष्य के रूप में ककसी 4[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] का पेि ककया जािा हिवाररत करिे के हिए उसको िष्‍ट
करिा—जो कोई ककसी ऐसी 4[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] को हछपाएगा या िष्‍ट करे गा हजसे ककसी न्यायािय में या ऐसी
कायतवािी में, जो ककसी िोक सेवक के समक्ष उसकी वैसी िैहसयत में हवहिपूवतक की गई िै, साक्ष्य के रूप में पेि करिे के हिए उसे
हवहिपूवतक हववि ककया जा सके , या पूवोक्‍त न्यायािय या िोक सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में पेि ककए जािे या उपयोग में िाए जािे
से हिवाररत करिे के आिय से, या उस प्रयोजि के हिए उस 4[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] को पेि करिे को उसे हवहिपूवतक
समहित या अपेहक्षत ककए जािे के पश्‍चात्, ऐसी संपूणत 4[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] को, या उसके ककसी भाग को हमटाएगा, या
ऐसा बिाएगा, जो पढ़ा ि जा सके , वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से,
या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
205. वाद या अहभयोजि में ककसी कायत या कायतवािी के प्रयोजि से हमथ्या प्रहतरूपण—जो कोई ककसी दूसरे का हमथ्या प्रहतरूपण
करे गा और ऐसे िरे हुए रूप में ककसी वाद या आपराहिक अहभयोजि में कोई स्वीकृ हत या कथि करे गा, या दावे की संस्वीकृ हत करे गा, या
कोई आदेहिका हिकिवाएगा या जमाितदार या प्रहतभू बिेगा, या कोई भी अन्य कायत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1894 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍6 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
3
“हिरटि‍भारत”‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951
के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसच ू ी‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍“दस्तावेज”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
40

206. संपहत्त को समपिरण ककए जािे में या हिष्पादि में अहभगृिीत ककए जािे से हिवाररत करिे के हिए उसे कपटपूवतक िटािा
या हछपािा—जो कोई ककसी संपहत्त को, या उसमें के ककसी हित को इस आिय से कपटपूवतक िटाएगा, हछपाएगा या ककसी व्यहक्‍त को
अंतररत या पररदत्त करे गा, कक एतद्‍द्वारा वि उस संपहत्त या उसमें के ककसी हित का ऐसे दंडादेि के अिीि जो न्यायािय या ककसी अन्य
सक्षम प्राहिकारी द्वारा सुिाया जा चुका िै या हजसके बारे में वि जािता िै कक न्यायािय या अन्य सक्षम प्राहिकारी द्वारा उसका सुिाया
जािा संभाव्य िै, समपिरण के रूप में या जुमातिे के चुकािे के हिए हिया जािा या ऐसी हडक्री या आदेि के हिष्पादि में, जो हसहवि वाद
में न्यायािय द्वारा कदया गया िो या हजसके बारे में वि जािता िै कक हसहवि वाद में न्यायािय द्वारा उसका सुिाया जािा संभाव्य िै,
हिया जािा हिवाररत करे , वि दोिों में,‍से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों
से, दंहडत ककया जाएगा ।
207. संपहत्त पर उसके समपिरण ककए जािे में या हिष्पादि में अहभगृिीत ककए जािे से हिवाररत करिे के हिए कपटपूवक त
दावा—जो कोई ककसी संपहत्त को, या उसमें के ककसी हित को, यि जािते हुए कक ऐसी ककसी संपहत्त या हित पर उसका कोई अहिकार या
अहिकारपूणत दावा ििीं िै, कपटपूवतक प्रहतगृिीत करे गा, प्राप्‍त करे गा या उस पर दावा करे गा अथवा ककसी संपहत्त या उसमें के ककसी हित
पर ककसी अहिकार के बारे में इस आिय से प्रवंचिा करे गा कक तद्‍द्वारा वि उस संपहत्त या उसमें के हित का ऐसे दंडादेि के अिीि, जो
न्यायािय या ककसी अन्य सक्षम प्राहिकारी द्वारा सुिाया जा चुका िै या हजसके बारे में वि जािता िै कक न्यायािय या ककसी अन्य सक्षम
प्राहिकारी द्वारा उसका सुिाया जािा संभाव्य िै, समपिरण के रूप में या जुमातिे के चुकािे के हिए हिया जािा, या ऐसी हडक्री या आदेि
के हिष्पादि में, जो हसहवि वाद में न्यायािय द्वारा कदया गया िो, या हजसके बारे में वि जािता िै कक हसहवि वाद में न्यायािय द्वारा
उसका कदया जािा संभाव्य िै, हिया जािा हिवाररत करे , वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
208. ऐसी राहि के हिए जो िोध्य ि िो कपटपूवतक हडक्री िोिे देिा सिि करिा—जो कोई ककसी व्यहक्‍त के बाद में ऐसी राहि के
हिए, जो ऐसे व्यहक्‍त को िोध्य ि िो या िोध्य राहि से अहिक िो, या ककसी ऐसी संपहत्त या संपहत्त में के हित के हिए, हजसका ऐसा
व्यहक्‍त िकदार ि िो, अपिे हवरुद्ध कोई हडक्री या आदेि कपटपूवतक पाररत करवाएगा, या पाररत ककया जािा सिि करे गा अथवा ककसी
हडक्री या आदेि को उसके तुष्‍ट कर कदए जािे के पश्‍चात् या ककसी ऐसी बात के हिए, हजसके हवषय में उस हडक्री या आदेि की तुहष्‍ट कर
दी गई िो, अपिे हवरुद्ध कपटपूवतक हिष्पाकदत करवाएगा या ककया जािा सिि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
य के हवरुद्ध एक वाद क संहस्थत करता िै । य यि संभाव्य जािते हुए कक क उसके हवरुद्ध हडक्री अहभप्राप्‍त कर िेगा, ि के वाद में,
हजसका उसके हवरुद्ध कोई न्यायसंगत दावा ििीं िै, अहिक रकम के हिए अपिे हवरुद्ध हिणतय ककया जािा इसहिए कपटपूवतक सिि
करता िै कक ि स्वयं अपिे हिए या य के िायदे के हिए य की संपहत्त के ककसी ऐसे हवक्रय के आगमों का अंि ग्रिण करे , जो क की हडक्री के
अिीि ककया जाए । य िे इस िारा के अिीि अपराि ककया िै ।
209. बेईमािी से न्यायािय में हमथ्या दावा करिा—जो कोई कपटपूवतक या बेईमािी से या ककसी व्यहक्‍त को क्षहत या क्षोभ काररत
करिे के आिय से न्यायािय में कोई ऐसा दावा करे गा, हजसका हमथ्या िोिा वि जािता िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
210. ऐसी राहि के हिए जो िोध्य ििीं िै कपटपूवतक हडक्री अहभप्राप्‍त करिा—जो कोई ककसी व्यहक्‍त के हवरुद्ध ऐसी राहि के
हिए, जो िोध्य ि िो, या जो िोध्य राहि से अहिक िो, या ककसी संपहत्त या संपहत्त में के हित के हिए, हजसका वि िकदार ि िो, हडक्री
या आदेि कपटपूवतक अहभप्राप्‍त कर िेगा या ककसी हडक्री या आदेि को, उसके तुष्‍ट कर कदए जािे के पश्‍चात् या ऐसी बात के हिए,
हजसके हवषय में उस हडक्री या आदेि की तुहष्‍ट कर दी गई िो, ककसी व्यहक्‍त के हवरुद्ध कपटपूवतक हिष्पाकदत करवाएगा या अपिे िाम में
कपटपूवतक ऐसा कोई कायत ककया जािा सिि करे गा या ककए जािे की अिुज्ञा देगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी
अवहि दो वषत की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
211. क्षहत करिे के आिय से अपराि का हमथ्या आरोप—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को यि जािते हुए कक उस व्यहक्‍त के हवरुद्ध ऐसी
कायतवािी या आरोप के हिए कोई न्यायसंगत या हवहिपूणत आिार ििीं िै क्षहत काररत करिे के आिय से उस व्यहक्‍त के हवरुद्ध कोई
दांहडक कायतवािी संहस्थत करे गा या करवाएगा या उस व्यहक्‍त पर हमथ्या आरोप िगाएगा कक उसिे अपराि ककया िै वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ;
तथा ऐसी दांहडक कायतवािी मृत्यु, 1[आजीवि कारावास] या सात वषत या उससे अहिक के कारावास से दंडिीय अपराि के हमथ्या
आरोप पर संहस्थत की जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
212. अपरािी को संश्रय देिा—जबकक कोई अपराि ककया जा चुका िो, तब जो कोई ककसी ऐसे व्यहक्‍त को, हजसके बारे में वि
जािता िो या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िो कक वि अपरािी िै, वैि दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के आिय से संश्रय देगा ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
या हछपाएगा ;

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
41

यकद अपराि मृत्यु से दंडिीय िो—यकद वि अपराि मृत्यु से दंडिीय िो तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद अपराि आजीवि कारावास से या कारावास से दंडिीय िो—और यकद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] से, या दस वषत तक
के कारावास से, दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
और यकद वि अपराि एक वषत तक, ि कक दस वषत तक के कारावास से दंडिीय िो, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि उस अपराि के हिए उपबंहित कारावास की दीघततम अवहि की एक-चौथाई तक की िो सके गी, या जुमातिे
से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ;
[इस िारा में “अपराि” के अंतगतत 3[भारत] से बािर ककसी स्थाि पर ककया गया ऐसा कायत आता िै, जो, यकद 3[भारत] में ककया
2

जाता िो तो हिम्‍िहिहित िारा, अथातत् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450,
457, 458, 459 और 460 में से ककसी िारा के अिीि दंडिीय िोता और िर एक ऐसा कायत इस िारा के प्रयोजिों के हिए ऐसे दंडिीय
समझा जाएगा, मािो अहभयुक्‍त व्यहक्‍त उसे 3[भारत] में करिे का दोषी था ।]
अपवाद—इस उपबंि का हवस्तार ककसी ऐसे मामिे पर ििीं िै हजससे अपरािी को संश्रय देिा या हछपािा उसके पहत या पत्‍िी
द्वारा िो ।
दृष्ट‍ ांत
क यि जािते हुए कक ि िे डकै ती की िै, ि को वैि दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के हिए जािते हुए हछपा िेता िै । यिां, ि 1[आजीवि
कारावास] से दंडिीय िै, क तीि वषत से अिहिक अवहि के हिए दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से दंडिीय िै और जुमातिे से भी
दंडिीय िै ।
213. अपरािी को दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के हिए उपिार आकद िेिा—जो कोई अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हिए कोई
पररतोषण या अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हिए ककसी संपहत्त का प्रत्यास्थापि, ककसी अपराि के हछपािे के हिए या ककसी व्यहक्‍त को
ककसी अपराि के हिए वैि दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के हिए, या ककसी व्यहक्‍त के हवरुद्ध वैि दंड कदिािे के प्रयोजि से उसके हवरुद्ध की
जािे वािी कायतवािी ि करिे के हिए, प्रहतििस्वरूप प्रहतगृिीत करे गा या अहभप्राप्‍त करिे का प्रयत्‍ि करे गा या प्रहतगृिीत करिे के हिए
करार करे गा‍;
यकद अपराि मृत्यु से दंडिीय िो—यकद वि अपराि मृत्यु से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद आजीवि कारावास या कारावास से दंडिीय िो—तथा यकद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] या दस वषत तक के कारावास
से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
तथा यकद वि अपराि दस वषत से कम तक के कारावास से दंडिीय िो, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित भांहत के कारावास से
इतिी अवहि के हिए, जो उस अपराि के हिए उपबंहित कारावास की दीघततम अवहि की एक चौथाई तक की िो सके गी, या जुमातिे से,
या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
214. अपरािी के प्रहतच्छादि के प्रहतििस्वरूप उपिार की प्रस्थापिा या संपहत्त का प्रत्यावतति—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को कोई
अपराि उस व्यहक्‍त द्वारा हछपाए जािे के हिए या उस व्यहक्‍त द्वारा ककसी व्यहक्‍त को ककसी अपराि के हिए वैि दंड से प्रहतच्छाकदत
ककए जािे के हिए या उस व्यहक्‍त द्वारा ककसी व्यहक्‍त को वैि दंड कदिािे के प्रयोजि से उसके हवरुद्ध की जािे वािी कायतवािी ि की जािे
के हिए प्रहतििस्वरूप कोई पररतोषण देगा या कदिाएगा या देिे या कदिािे की प्रस्थापिा या करार करे गा, या 4[कोई संपहत्त प्रत्यावर्ततत
करे गा या कराएगा] ;
यकद अपराि मृत्यु से दंडिीय िो—यकद वि अपराि मृत्यु से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद आजीवि कारावास या कारावास से दंडिीय िो—तथा यकद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] से या दस वषत तक के
कारावास से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1894 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍7 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
3
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
4
1953 के ‍अहिहियम‍सं० 42 की‍िारा‍4 और‍तीसरी‍अिुसूची‍द्वारा‍“के ‍प्रत्यावर्ततत‍करिे‍या‍प्रत्यावतति‍करािे‍के ‍हिए”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
42

तथा यकद वि अपराि दस वषत से कम के कारावास से दंडिीय िो, तो वि उस अपराि के हिए उपबंहित भांहत के कारावास से
इतिी अवहि के हिए, जो उस अपराि के हिए उपबंहित कारावास की दीघततम अवहि की एक-चौथाई तक की िो सके गी, या जुमातिे से,
या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
[अपवाद—िारा 213 और 214 के उपबंिों का हवस्तार ककसी ऐसे मामिे पर ििीं िै, हजसमें कक अपराि का िमि हवहिपूवतक
1

ककया जा सकता िै ।]
2
* * * * *
215. चोरी की संपहत्त इत्याकद के वापस िेिे में सिायता करिे के हिए उपिार िेिा—जो कोई ककसी व्यहक्‍त की ककसी ऐसी जंगम
संपहत्त के वापस करा िेिे में, हजससे इस संहिता के अिीि दंडिीय ककसी अपराि द्वारा वि व्यहक्‍त वंहचत कर कदया गया िो, सिायता
करिे के बिािे या सिायता करिे की बाबत कोई पररतोषण िेगा या िेिे का करार करे गा या िेिे को सम्मत िोगा, वि, जब तक कक
अपिी िहक्‍त में के सब साििों को अपरािी को पक़िवािे के हिए और अपराि के हिए दोषहसद्ध करािे के हिए उपयोग में ि िाए, दोिों
में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
216. ऐसे अपरािी को संश्रय देिा, जो अहभरक्षा से हिकि भागा िै या हजसको पक़ििे का आदेि कदया जा चुका िै—जब ककसी
अपराि के हिए दोषहसद्ध या आरोहपत व्यहक्‍त उस अपराि के हिए वैि अहभरक्षा में िोते हुए ऐसी अहभरक्षा से हिकि भागे,
अथवा जब कभी कोई िोक सेवक ऐसे िोक सेवक की हवहिपूणत िहक्‍तयों का प्रयोग करते हुए ककसी अपराि के हिए ककसी व्यहक्‍त
को पक़ििे का आदेि दे, तब जो कोई ऐसे हिकि भागिे को या पक़िे जािे के आदेि को जािते हुए, उस व्यहक्‍त को पक़िा जािा हिवाररत
करिे के आिय से उसे संश्रय देगा या हछपाएगा, वि हिम्‍िहिहित प्रकार से दंहडत ककया जाएगा, अथातत् :—
यकद अपराि मृत्यु से दंडिीय िो—यकद वि अपराि, हजसके हिए वि व्यहक्‍त अहभरक्षा में था या पक़िे जािे के हिए आदेहित िै,
मृत्यु से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद आजीवि कारावास या कारावास से दंडिीय िो—यकद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] से या दस वषत के कारावास से
दंडिीय िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा ;
तथा यकद वि अपराि ऐसे कारावास से दंडिीय िो, जो एक वषत तक का, ि कक दस वषत तक का िो सकता िै, तो वि उस अपराि के
हिए उपबंहित भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि उस अपराि के हिए उपबंहित कारावास की दीघततम अवहि की एक चौथाई तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से दंहडत ककया जाएगा ।
[इस िारा में “अपराि” के अंतगतत कोई भी ऐसा कायत या िोप भी आता िै, हजसका कोई व्यहक्‍त 4[भारत] से बािर दोषी िोिा
3

अहभकहथत िो, जो यकद वि 4[भारत] में उसका दोषी िोता, तो अपराि के रूप में दंडिीय िोता और हजसके हिए, वि प्रत्यपतण से संबंहित
ककसी हवहि के अिीि 5*** या अन्यथा 4[भारत] में पक़िे जािे या अहभरक्षा में हिरुद्ध ककए जािे के दाहयत्व के अिीि िो, और िर ऐसा
कायत या िोप इस िारा के प्रयोजिों के हिए ऐसे दंडिीय समझा जाएगा, मािो अहभयुक्‍त व्यहक्‍त 4[भारत] में उसका दोषी‍हुआ था ।]
अपवाद—इस उपबंि का हवस्तार ऐसे मामिे पर ििीं िै, हजसमें संश्रय देिा या हछपािा पक़िे जािे वािे व्यहक्‍त के पहत या पत्‍िी
द्वारा िो ।
[216क. िुटेरों या डाकु ओं को संश्रय देिे के हिए िाहस्त—जो कोई यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक कोई
6

व्यहक्‍त िूट या डकै ती िाि िी में करिे वािे िैं या िाि िी में िूट या डकै ती कर चुके िैं, उिको या उिमें से ककसी को, ऐसी िूट या डकै ती
का ककया जािा सुकर बिािे के , या उिको या उिमें से ककसी को दंड से प्रहतच्छाकदत करिे के आिय से संश्रय देगा, वि करठि कारावास
से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के प्रयोजिों के हिए यि तवविीि िै कक िूट या डकै ती 4[भारत] में करिी आिहयत िै या की जा चुकी िै,
या [भारत] से बािर ।
4

अपवाद—इस उपबंि का हवस्तार ऐसे मामिे पर ििीं िै, हजसमें संश्रय देिा, या हछपािा अपरािी के पहत या पत्‍िी द्वारा िो ।]
[216ि. [िारा 212, िारा 216 और िारा 216क में “संश्रय” की पररभाषा ।]—भारतीय दंड संहिता (संिोिि) अहिहियम,
1

1942 (1942 का 8) की िारा 3 द्वारा हिरहसत ।]

1
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍6 द्वारा‍मूि‍अपवाद‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
दृष्ट‍ ांत‍1882 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍हिरहसत‍।
3
1886 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍23 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
4
‍“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
5
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“या‍फ्यूहजरटव‍आिे न्डरस‍ऐक्ट, 1881 के ‍अिीि”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
6
1894 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍8 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
43

217. िोक सेवक द्वारा ककसी व्यहक्‍त को दंड से या ककसी संपहत्त के समपिरण से बचािे के आिय से हवहि के हिदेि की ‍‍‍
अवज्ञा—जो कोई िोक सेवक िोते हुए हवहि के ऐसे ककसी हिदेि की, जो उस संबंि में िो कक उससे ऐसे िोक सेवक के िाते ककस ढंग का
आचरण करिा चाहिए, जािते हुए अवज्ञा ककसी व्यहक्‍त को वैि दंड से बचािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा बचाएगा यि जािते हुए
अथवा उतिे दंड की अपेक्षा, हजससे वि दंडिीय िै, तद्‍द्वारा कम दंड कदिवाएगा यि संभाव्य जािते हुए अथवा ककसी संपहत्त को ऐसे
समपिरण या ककसी भार से, हजसके हिए वि संपहत्त हवहि के द्वारा दाहयत्व के अिीि िै बचािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा
बचाएगा यि जािते हुए करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
218. ककसी व्यहक्‍त को दंड से या ककसी संपहत्त को समपिरण से बचािे के आिय से िोक सेवक द्वारा अिुद्ध अहभिेि या िेि की
रचिा—जो कोई िोक सेवक िोते हुए और ऐसे िोक सेवक के िाते कोई अहभिेि या अन्य िेि तैयार करिे का भार रिते हुए, उस
अहभिेि या िेि की इस प्रकार से रचिा, हजसे वि जािता िै कक अिुद्ध िै िोक को या ककसी व्यहक्‍त को िाहि या क्षहत काररत करिे के
आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा काररत करे गा यि जािते हुए अथवा ककसी व्यहक्‍त को वैि दंड से बचािे के आिय से या संभाव्यत:
तद्‍द्वारा बचाएगा यि जािते हुए अथवा ककसी संपहत्त को ऐसे समपिरण या अन्य भार से, हजसके दाहयत्व के अिीि वि संपहत्त हवहि के
अिुसार िै, बचािे के आिय से या संभाव्यत: तद्‍द्वारा बचाएगा या जािते हुए करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
219. न्याहयक कायतवािी में हवहि के प्रहतकू ि ररपोटत आकद का िोक सेवक द्वारा भ्रष्‍टतापूवक
त ककया जािा—जो कोई िोक सेवक
िोते हुए, न्याहयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में कोई ररपोटत, आदेि, अहिमत या हवहिश्‍चय, हजसका हवहि के प्रहतकू ि िोिा वि जािता
िो, भ्रष्‍टतापूवतक या हवद्वेषपूवतक देगा, या सुिाएगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
220. प्राहिकार वािे व्यहक्‍त द्वारा जो यि जािता िै कक वि हवहि के प्रहतकू ि कायत कर रिा िै, हवचारण के हिए या परररोि करिे
के हिए सुपुदग
त ी—जो कोई ककसी ऐसे पद पर िोते हुए, हजससे व्यहक्‍तयों को हवचारण या परररोि के हिए सुपुदत करिे का, या व्यहक्‍तयों
को परररोि में रििे का उसे वैि प्राहिकार िो ककसी व्यहक्‍त को उस प्राहिकार के प्रयोग में यि जािते हुए भ्रष्‍टतापूवतक या हवद्वेषपूवतक
हवचारण या परररोि के हिए सुपद ु त करे गा या परररोि में रिेगा कक ऐसा करिे में वि हवहि के प्रहतकू ि कायत कर रिा िै, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
221. पक़ििे के हिए आबद्ध िोक सेवक द्वारा पक़ििे का सािय िोप—जो कोई ऐसा िोक सेवक िोते हुए, जो ककसी अपराि के
हिए आरोहपत या पक़िे जािे के दाहयत्व के अिीि ककसी व्यहक्‍त को पक़ििे या परररोि में रििे के हिए सेवक के िाते वैि रूप से आबद्ध
िै, ऐसे व्यहक्‍त को पक़ििे का सािय िोप करे गा या ऐसे परररोि में से ऐसे व्यहक्‍त का हिकि भागिा सािय सिि करे गा या ऐसे व्यहक्‍त
के हिकि भागिे में या हिकि भागिे के हिए प्रयत्‍ि करिे में सािय मदद करे गा, वि हिम्‍िहिहित रूप से दंहडत ककया जाएगा, ‍‍‍‍‍‍
अथातत् :—
यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो व्यहक्‍त पक़िा जािा चाहिए था वि मृत्यु से दंडिीय अपराि के हिए आरोहपत या पक़िे जािे के
दाहयत्व के अिीि िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी,
अथवा
यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो व्यहक्‍त पक़िा जािा चाहिए था वि 1[आजीवि कारावास] या दस वषत तक की अवहि के कारावास से
दंडिीय अपराि के हिए आरोहपत या पक़िे जािे के दाहयत्व के अिीि िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, अथवा
यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो पक़िा जािा चाहिए था वि दस वषत से कम की अवहि के हिए कारावास से दंडिीय अपराि के हिए
आरोहपत या पक़िे जािे के दाहयत्व के अिीि िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से ।
222. दंडादेि के अिीि या हवहिपूवतक सुपुदत ककए गए व्यहक्‍त को पक़ििे के हिए आबद्ध िोक सेवक द्वारा पक़ििे का सािय
िोप—जो कोई ऐसा िोक सेवक िोते हुए, जो ककसी अपराि के हिए न्यायािय के दंडादेि के अिीि 2[या अहभरक्षा में रिे जािे के हिए
हवहिपूवतक सुपुदत ककए गए] ककसी व्यहक्‍त को पक़ििे या परररोि में रििे के हिए ऐसे िोक सेवक के िाते वैि रूप से आबद्ध िै, ऐसे
व्यहक्‍त को पक़ििे का सािय िोप करे गा, या ऐसे परररोि में से सािय ऐसे व्यहक्‍त का हिकि भागिा सिि करे गा या ऐसे व्यहक्‍त के
हिकि भागिे में, या हिकि भागिे का प्रयत्‍ि करिे में सािय मदद करे गा, वि हिम्‍िहिहित रूप से दंहडत ककया जाएगा, अथातत् :—
यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो व्यहक्‍त पक़िा जािा चाहिए था वि मृत्यु दंडादेि के अिीि िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित
1
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि चौदि वषत तक की िो सके गी, अथवा

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍8 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
44

यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो व्यहक्‍त पक़िा जािा चाहिए था वि न्यायािय के दंडादेि से, या ऐसे दंडादेि से िघुकरण के आिार
पर [आजीवि कारावास] 2*** 3*** 4*** 5*** या दस वषत की या उससे अहिक की अवहि के हिए कारावास के अध्यिीि िो, तो वि
1

जुमातिे सहित या रहित, दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, अथवा
यकद परररुद्ध व्यहक्‍त या जो व्यहक्‍त पक़िा जािा चाहिए था वि न्यायािय के दंडादेि से दस वषत से कम की अवहि के हिए
कारावास के अध्यिीि िो 6[या यकद वि व्यहक्‍त अहभरक्षा में रिे जािे के हिए हवहिपूवतक सुपुदत ककया गया िो,] तो वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से ।
223. िोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परररोि या अहभरक्षा में से हिकि भागिा सिि करिा—जो कोई ऐसा िोक सेवक िोते हुए, जो
अपराि के हिए आरोहपत या दोषहसद्ध 6[या अहभरक्षा में रिे जािे के हिए हवहिपूवतक सुपुदत ककए गए] ककसी व्यहक्‍त को परररोि में रििे
के हिए ऐसे िोक सेवक के िाते वैि रूप से आबद्ध िो, ऐसे व्यहक्‍त का परररोि में से हिकि भागिा उपेक्षा से सिि करे गा, वि सादा
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
224. ककसी व्यहक्‍त द्वारा हवहि के अिुसार अपिे पक़िे जािे में प्रहतरोि या बािा—जो कोई ककसी ऐसे अपराि के हिए, हजसका
उस पर आरोप िो, या हजसके हिए वि दोषहसद्ध ककया गया िो, हवहि के अिुसार अपिे पक़िे जािे में सािय प्रहतरोि करे गा या अवैि
बािा डािेगा, या ककसी अहभरक्षा से, हजसमें वि ककसी ऐसे अपराि के हिए हवहिपूवतक हिरुद्ध िो, हिकि भागेगा, या हिकि भागिे का
प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा में उपबंहित दंड उस दंड के अहतररक्‍त िै हजससे वि व्यहक्‍त, हजसे पक़िा जािा िो, या अहभरक्षा में हिरुद्ध
रिा जािा िो, उस अपराि के हिए दंडिीय था, हजसका उस पर आरोप िगाया गया था या हजसके हिए वि दोषहसद्ध ककया गया था ।
225. ककसी अन्य व्यहक्‍त के हवहि के अिुसार पक़िे जािे में प्रहतरोि या बािा—जो कोई ककसी अपराि के हिए ककसी दूसरे व्यहक्‍त
के हवहि के अिुसार पक़िे जािे में सािय प्रहतरोि करे गा या अवैि बािा डािेगा, या ककसी दूसरे व्यहक्‍त को ककसी ऐसी अहभरक्षा से,
हजसमें वि व्यहक्‍त ककसी अपराि के हिए हवहिपूवतक हिरुद्ध िो, सािय छु ़िाएगा या छु ़िािे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत
के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ;
अथवा यकद उस व्यहक्‍त पर, हजसे पक़िा जािा िो, या जो छु ़िाया गया िो, या, हजसके छु ़िािे का प्रयत्‍ि ककया गया िो, 1[आजीवि
कारावास] से, या दस वषत तक की अवहि के कारावास से दंडिीय अपराि का आरोप िो या वि उसके हिए पक़िे जािे के दाहयत्व के
अिीि िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी दंडिीय िोगा ;
अथवा यकद उस व्यहक्‍त पर, हजसे पक़िा जािा िो या जो छु ़िाया गया िो, या हजसके छु ़िािे का प्रयत्‍ि ककया गया िो, मृत्यु-दंड से
दंडिीय अपराि का आरोप िो या वि उसके हिए पक़िे जािे के दाहयत्व के अिीि िो तो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
अथवा यकद वि व्यहक्‍त, हजसे पक़िा जािा िो या जो छु ़िाया गया िो, या हजसके छु ़िािे का प्रयत्‍ि ककया गया िो, ककसी न्यायािय
के दंडादेि के अिीि या वि ऐसे दंडादेि के िघुकरण के आिार पर 1[आजीवि कारावास] 3*** 4*** 5*** या दस वषत या उससे अहिक
अवहि के कारावास से दंडिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
अथवा यकद वि व्यहक्‍त, हजसे पक़िा जािा िो, या जो छु ़िाया गया िो या हजसके छु ़िािे का प्रयत्‍ि ककया गया िो, मृत्यु दंडादेि के
अिीि िो, तो वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, इतिी अवहि के हिए जो दस वषत से अिहिक िै,
दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
7
[225क. उि दिाओं में हजिके हिए अन्यथा उपबंि ििीं िै िोक सेवक द्वारा पक़ििे का िोप या हिकि भागिा सिि करिा—जो
कोई ऐसा िोक सेवक िोते हुए जो ककसी व्यहक्‍त को पक़ििे या परररोि में रििे के हिए िोक सेवक के िाते वैि रूप से आबद्ध िो उस
व्यहक्‍त को ककसी ऐसी दिा में, हजसके हिए िारा 221, िारा 222 या िारा 223 अथवा ककसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में कोई उपबंि
ििीं िै, पक़ििे का िोप करे गा या परररोि में से हिकि भागिा सिि करे गा—
(क) यकद वि ऐसा सािय करे गा, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी
या जुमातिे से, या दोिों से, तथा

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1949 के ‍अहिहियम‍सं० 17 की‍िारा‍2 द्वारा‍“या‍आजीवि‍कठोरश्रम‍कारावास”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
3
1957 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“या....‍के ‍हिए”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“हिवातसि”‍िब्द‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
5
1949 के ‍अहिहियम‍सं० 17 की‍िारा‍2 द्वारा‍“या‍कठोरश्रम‍कारावास”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
6
1870 के ‍अहिहियम‍सं०‍27 की‍िारा‍8 द्वारा अंत:स्‍थाहपत‍।
7
1886 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍24(1) द्वारा‍िारा‍225क‍तथा‍225ि‍को‍िारा‍225क, जो‍1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍9 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍की‍गई‍थी,
के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
45

(ि) यकद वि ऐसा उपेक्षापूवतक करे गा तो वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से,
दंहडत ककया जाएगा ।
225ि. अन्यथा अिुपबंहित दिाओं में हवहिपूवक त पक़ििे में प्रहतरोि या बािा या हिकि भागिा या छु ़िािा—जो कोई स्वयं
अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हवहिपूवतक पक़िे जािे में सािय कोई प्रहतरोि करे गा या अवैि बािा डािेगा या ककसी अहभरक्षा में से,
हजसमें वि हवहिपूवतक हिरुद्ध िो, हिकि भागेगा या हिकि भागिे का प्रयत्‍ि करे गा या ककसी अन्य व्यहक्‍त को ऐसी अहभरक्षा में से,
हजसमें वि व्यहक्‍त हवहिपूवतक हिरुद्ध िो, छु ़िाएगा या छु ़िािे का प्रयत्‍ि करे गा वि ककसी ऐसी दिा में, हजसके हिए िारा 224 या िारा
225 या ककसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में उपबंि ििीं िै, दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।]
226. [हिवातसि से हवहिहवरुद्ध वापसी ।]—दंड प्रकक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और
अिुसूची द्वारा हिरहसत ।
227. दंड के पररिार की ितत का अहतक्रमण—जो कोई दंड का सितत पररिार प्रहतगृिीत कर िेिे पर ककसी ितत का हजस पर ऐसा
पररिार कदया गया था, जािते हुए अहतक्रमण करे गा, यकद वि उस दंड का, हजसके हिए वि मूित: दंडाकदष्‍ट ककया गया था, कोई भाग
पििे िी ि भोग चुका िो, तो वि उस दंड से और यकद वि उस दंड का कोई भाग भोग चुका िो, तो वि उस दंड के उतिे भाग से, हजतिे
को वि पििे िी भोग चुका िो, दंहडत ककया जाएगा ।
228. न्याहयक कायतवािी में बैठे हुए िोक सेवक का सािय अपमाि या उसके कायत में हवघ्‍ि—जो कोई ककसी िोक सेवक का उस
समय, जबकक ऐसा िोक सेवक न्याहयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में बैठा हुआ िो, सािय कोई अपमाि करे गा या उसके कायत में कोई
हवघ्‍ि डािेगा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा,
या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
[228क. कहतपय अपरािों आकद से पीह़ित व्यहक्‍त की पिचाि का प्रकटीकरण—(1) जो कोई ककसी िाम या अन्य बात को, हजससे
1

ककसी ऐसे व्यहक्‍त की (हजसे इस िारा में इसके पश्‍चात् पीह़ित व्यहक्‍त किा गया िै) पिचाि िो सकती िै, हजसके हवरुद्ध
2
[376क,‍िारा 376कि, 376ि,‍िारा 376ग, िारा 376घ, 376घक, 376घि,] के अिीि ककसी अपराि का ककया जािा अहभकहथत िै या
ककया गया पाया गया िै, मुकरत या प्रकाहित करे गा वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी,
दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(2) उपिारा (1) की ककसी भी बात का हवस्तार ककसी िाम या अन्य बात के मुरण या प्रकािि पर, यकद उससे पीह़ित व्यहक्‍त की
पिचाि िो सकती िै, तब ििीं िोता िै जब ऐसा मुरण या प्रकािि—
(क) पुहिस थािे के भारसािक अहिकारी के या ऐसे अपराि का अन्वेषण करिे वािे पुहिस अहिकारी के , जो ऐसे अन्वेषण
के प्रयोजि के हिए सद्‍भावपूवतक कायत करता िै, द्वारा या उसके हिहित आदेि के अिीि ककया जाता िै ; या
(ि) पीह़ित व्यहक्‍त द्वारा या उसके हिहित प्राहिकार से ककया जाता िै ; या
(ग) जिां पीह़ित व्यहक्‍त की मृत्यु िो चुकी िै अथवा वि अवयस्क या हवकृ तहचत्त िै विां, पीह़ित व्यहक्‍त के हिकट संबंिी
द्वारा या उसके हिहित प्राहिकार से, ककया जाता िै :
परन्तु हिकट संबंिी द्वारा कोई भी ऐसा प्राहिकार ककसी मान्यताप्राप्‍त क्याण संस्था या संगठि के अध्यक्ष या सहचव से, चािे
उसका जो भी िाम िो, हभन्‍ि ककसी अन्य व्यहक्‍त को ििीं कदया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस उपिारा के प्रयोजिों के हिए “मान्यताप्राप्‍त क्याण संस्था या संगठि” से के न्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस
उपिारा के प्रयोजिों के हिए ककसी मान्यताप्राप्‍त कोई समाज क्याण संस्था या संगठि अहभप्रेत िै ।
(3) जो कोई उपिारा (1) में हिर्दतष्‍ट ककसी अपराि की बाबत ककसी न्यायािय के समक्ष ककसी कायतवािी के संबंि में, कोई बात
उस न्यायािय की पूवत अिुज्ञा के हबिा मुकरत या प्रकाहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक
की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—ककसी उच्‍च न्यायािय या उच्‍चतम न्यायािय के हिणतय का मुरण या प्रकािि इस िारा के अथत में अपराि की कोरट
में ििीं आता िै ।]
229. जूरी सदस्य या असेसर का प्रहतरूपण—जो कोई ककसी मामिे में प्रहतरूपण द्वारा या अन्यथा, अपिे को यि जािते हुए जूरी
सदस्य या असेसर के रूप में ताहिकांककत, पेिहित या गृिीतिपथ सािय कराएगा या िोिे देिा जािते हुए सिि करे गा कक वि इस
प्रकार ताहिकांककत, पेिहित या गृिीतिपथ िोिे का हवहि द्वारा िकदार ििीं िै या यि जािते हुए कक वि इस प्रकार ताहिकांककत,

1
1983 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
2018‍के ‍अहिहियम‍सं० 22‍की‍िारा 3‍द्वारा “िारा 376, िारा 376क, िारा 376ि, िारा 376ग, िारा 376घ‍या‍िारा‍376ङ”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
46

पेिहित या गृिीतिपथ हवहि के प्रहतकू ि हुआ िै ऐसी जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छा सेवा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
1
[229क. जमाित या बंिपत्र पर छो़िे गए व्यहक्‍त द्वारा न्यायािय में िाहजर िोिे में असििता—जो कोई, ककसी अपराि से
आरोहपत ककए जािे पर और जमाित पर या अपिे बंिपत्र पर छो़ि कदए जािे पर, जमाित या बंिपत्र के हिबंििों के अिुसार न्यायािय
में पयातप्त
‍ कारणों के हबिा (जो साहबत करिे का भार उस पर िोगा) िाहजर िोिे में असिि रिेगा वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के अिीि दंड—
(क) उस दंड के अहतररक्‍त िै, हजसके हिए अपरािी उस अपराि के हिए, हजसके हिए उसे आरोहपत ककया गया िै,
दोषहसहद्ध पर दायी िोता ; और
(ि) न्यायािय की बंिपत्र के समपिरण का आदेि करिे की िहक्‍त पर प्रहतकू ि प्रभाव डाििे वािा ििीं िै ।]
अध्याय 12

हसक्‍कों‍और सरकारी स्टाम्पों से संबहं ित अपरािों के हवषय में


230. “हसक्‍का” की पररभाषा—2[हसक्‍का, तत्समय िि के रूप में उपयोग में िाई जा रिी और इस प्रकार उपयोग में िाए जािे के
हिए ककसी राज्य या संपूणत प्रभुत्व सम्पन्‍ि िहक्‍त के प्राहिकार द्वारा, स्टाहम्पत और प्रचाहित िातु िै ।]
भारतीय हसक्‍का—3[भारतीय हसक्‍का िि के रूप में उपयोग में िाए जािे के हिए भारत सरकार के प्राहिकार द्वारा स्टाहम्पत और
प्रचाहित िातु िै ; और इस प्रकार स्टाहम्पत और प्रचाहित िातु इस अध्याय के प्रयोजिों के हिए भारतीय हसक्‍का बिी रिेगी, यद्यहप
िि के रूप में उसका उपयोग में िाया जािा बन्द िो गया िो ।]

दृष्ट‍ ांत
(क) कौह़ियां हसक्‍के ििीं िैं ।
(ि) अस्टाहम्पत तांबे के टु क़िे, यद्यहप िि के रूप में उपयोग में िाए जाते िैं, हसक्‍के ििीं िैं ।
(ग) पदक हसक्‍के ििीं िैं, क्योंकक वे िि के रूप में उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत ििीं िैं ।
(घ) हजस हसक्‍के का िाम कम्पिी रुपया िै, वि 4[भारतीय हसक्‍का] िै ।
5
[(ङ) “िरूिाबाद रुपया”, जो िि के रूप में भारत सरकार के प्राहिकार के अिीि पििे कभी उपयोग में िाया जाता था,
3
[भारतीय हसक्‍का] िै, यद्यहप वि अब इस प्रकार उपयोग में ििीं िाया जाता िै ।]
231. हसक्‍के का कू टकरण—जो कोई हसक्‍के का कू टकरण करे गा या जािते हुए हसक्‍के के कू टकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—जो व्यहक्‍त असिी हसक्‍के को ककसी हभन्‍ि हसक्‍के के जैसा कदििाई देिे वािा इस आिय से बिाता िै कक प्रवंचिा की
जाए या यि संभाव्य जािते हुए बिाता िै कक तद्‍द्वारा प्रवंचिा की जाएगी, वि यि अपराि करता िै ।
232. भारतीय हसक्‍के का कू टकरण—जो कोई 3[भारतीय हसक्‍के] का कू टकरण करे गा या जािते हुए भारतीय हसक्‍के के कू टकरण
की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, वि 6[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत
तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
233. हसक्‍के के कू टकरण के हिए उपकरण बिािा या बेचिा—जो कोई ककसी डाई या उपकरण को हसक्‍के के कू टकरण के हिए
उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से, या यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक वि हसक्‍के के कू टकरण में उपयोग में
िाए जािे के हिए आिहयत िै, बिाएगा या सुिारे गा या बिािे या सुिारिे की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, अथवा िरीदेगा, बेचेगा

1
2005 के ‍अहिहियम‍सं० 25 की‍िारा‍44 द्वारा‍‍अंत:स्थाहपत‍।
2
1872 के ‍अहिहियम‍सं० 19 की‍िारा‍1 द्वारा‍प्रथम‍मूि‍पैरा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍पूवव त ती‍पैरा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि‍का‍हसक्‍का”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
‍1896 के ‍अहिहियम‍सं० 6 की‍िारा‍1 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
6
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
47

या व्ययहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
234. भारतीय हसक्‍के के कू टकरण के हिए उपकरण बिािा या बेचिा—जो कोई ककसी डाई या उपकरण को भारतीय हसक्‍के के
कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से, या यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक वि 1[भारतीय
हसक्‍के] के कू टकरण में उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िै, बिाएगा या सुिारे गा या बिािे या सुिारिे की प्रकक्रया के ककसी भाग
को करे गा अथवा िरीदेगा, बेचेगा या व्ययहित करे गा वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
235. हसक्‍के के कू टकरण के हिए उपकरण या सामग्री उपयोग में िािे के प्रयोजि से उसे कब्जे में रििा— जो कोई ककसी उपकरण
या सामग्री को हसक्‍के के कू टकरण में उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से या यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक
वि उस प्रयोजि के हिए उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िै, अपिे कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ;
यकद भारतीय हसक्‍का िो—और यकद कू टकरण ककया जािे वािा हसक्‍का 2[भारतीय हसक्‍का] िो, तो वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
236. भारत से बािर हसक्‍के के कू टकरण का भारत में दुष्प्र ‍ रे ण—जो कोई 3[भारत] में िोते हुए 3[भारत] से बािर हसक्‍के के
कू टकरण का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि ऐसे दंहडत ककया जाएगा, मािो उसिे ऐसे हसक्‍के के कू टकरण का दुष्‍प्रेरण 3[भारत] में ककया िो ।
237. कू टकृ त हसक्‍के का आयात या हियातत—जो कोई ककसी कू टकृ त हसक्‍के का यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का कारण रिते
हुए कक वि कू टकृ त िै, 3[भारत] में आयात करे गा या 3[भारत] से हियातत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
238. भारतीय हसक्‍के की कू टकृ हतयों का आयात या हियातत—जो कोई ककसी कू टकृ त हसक्‍के को, यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे
का कारण रिते हुए कक वि 2[भारतीय हसक्‍के] की कू टकृ हत िै, 3[भारत] में आयात करे गा या 3[भारत] से हियातत करे गा, वि 4[आजीवि
कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी दंडिीय िोगा ।
239. हसक्‍के का पररदाि हजसका कू टकृ त िोिा कब्जे में आिे के समय ज्ञात था—जो कोई अपिे पास कोई ऐसा कू टकृ त हसक्‍का िोते
हुए हजसे वि उस समय, जब वि उसके कब्जे में आया था, जािता था कक वि कू टकृ त िै, कपटपूवतक, या इस आिय से कक कपट ककया
जाए, उसे ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त करे गा या ककसी व्यहक्‍त को उसे िेिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
240. उस भारतीय हसक्‍के का पररदाि हजसका कू टकृ त िोिा कब्जे में आिे के समय ज्ञात था—जो कोई अपिे पास कोई ऐसा
कू टकृ त हसक्‍का िोते हुए, जो 1[भारतीय हसक्‍के] की कू टकृ हत िो और हजसे वि उस समय, जब वि उसके कब्जे में आया था, जािता था कक
वि 1[भारतीय हसक्‍के] की कू टकृ हत िै, कपटपूवतक, या इस आिय से कक कपट ककया जाए, उसे ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त करे गा या ककसी
व्यहक्‍त को उसे िेिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की
िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
241. ककसी हसक्‍के का असिी हसक्‍के के रूप में पररदाि, हजसका पररदाि करिे वािा उस समय जब वि उसके कब्जे में पििी बार
आया था, कू टकृ त िोिा ििीं जािता था—जो कोई ककसी दूसरे व्यहक्‍त को कोई ऐसा कू टकृ त हसक्‍का, हजसका कू टकृ त िोिा वि जािता
िो, ककन्तु हजसका वि उस समय, जब उसिे उसे अपिे कब्जे में हिया, कू टकृ त िोिा ििीं जािता था, असिी हसक्‍के के रूप में पररदाि
करे गा, या ककसी दूसरे व्यहक्‍त को उसे असिी हसक्‍के के रूप में िेिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या इतिे जुमातिे से, जो कू टकृ त हसक्‍के के मू्य के दस गुिे तक का िो सके गा, या
दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
क, एक हसक्‍काकार, अपिे सि-अपरािी ि को कू टकृ त कम्पिी का रुपए चिािे के हिए पररदत्त करता िै, ि उि रुपयों को हसक्‍का
चिािे वािे एक दूसरे व्यहक्‍त ग को बेच देता िै, जो उन्िें कू टकृ त जािते हुए िरीदता िै । ग उि रुपयों को घ को, जो उिको कू टकृ त ि
जािते हुए प्राप्‍त करता िै, माि के बदिे दे देता िै । घ को रुपया प्राप्‍त िोिे के पश्‍चात् यि पता चिता िै कक वे रुपए कू टकृ त िैं, और वि
उिको इस प्रकार चिाता िै, मािो वे असिी िों । यिां, घ के वि इस िारा के अिीि दंडिीय िै, ककन्तु ि और ग, यथाहस्थहत, िारा 239
या 240 के अिीि दंडिीय िैं ।

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि‍के ‍हसक्‍के”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि‍का‍हसक्‍का”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
‍“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।‍
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
48

242. कू टकृ त हसक्‍के पर ऐसे व्यहक्‍त का कब्जा जो उस समय उसका कू टकृ त िोिा जािता था जब वि उसके कब्जे में आया था—जो
कोई ऐसे कू टकृ त हसक्‍के को, हजसे वि उस समय, जब वि हसक्‍का उसके कब्जे में आया था, जािता था कक वि कू टकृ त िै, कपटपूवतक या
इस आिय से कक कपट ककया जाए, कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
243. भारतीय हसक्‍के पर ऐसे व्यहक्‍त का कब्जा जो उसका कू टकृ त िोिा उस समय जािता था जब वि उसके कब्जे में आया था—
जो कोई ऐसे कू टकृ त हसक्‍के को, जो 1[भारतीय हसक्‍के] की कू टकृ हत िै और हजसे वि उस समय, जब वि हसक्‍का उसके कब्जे में आया था,
जािता था कक वि 1[भारतीय हसक्‍के] की कू टकृ हत िै, कपटपूवतक, या इस आिय से कक कपट ककया जाए, कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
244. टकसाि में हियोहजत व्यहक्‍त द्वारा हसक्‍के का उस वजि या हमश्रण से हभन्‍ि काररत ककया जािा जो हवहि द्वारा हियत िै—
जो कोई 2[भारत] में हवहिपूवतक स्थाहपत ककसी टकसाि में से हियोहजत िोते हुए इस आिय से कोई कायत करे गा, या उस कायत का िोप
करे गा, हजसे करिे के हिए वि वैि रूप से आबद्ध िो कक उस टकसाि से प्रचाहित कोई हसक्‍का हवहि द्वारा हियत वजि या हमश्रण से
हभन्‍ि वजि या हमश्रण का काररत िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
245. टकसाि से हसक्‍का बिािे का उपकरण हवहिहवरुद्ध रूप से िेिा—जो कोई 2[भारत] में हवहिपूवतक स्थाहपत ककसी टकसाि में
से हसक्‍का बिािे के ककसी औजार या उपकरण को हवहिपूणत प्राहिकार के हबिा बािर हिकाि िाएगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
246. कपटपूवतक या बेईमािी से हसक्‍के का वजि कम करिा या हमश्रण पररवर्ततत करिा—जो कोई कपटपूवतक या बेईमािी से
ककसी हसक्‍के पर कोई ऐसी कक्रया करे गा, हजससे उस हसक्‍के का वजि कम िो जाए या उसका हमश्रण पररवर्ततत िो जाए वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—वि व्यहक्‍त, जो हसक्‍के के ककसी भाग को िुरच कर हिकाि देता िै, और उस ग़िढे में कोई अन्य वस्तु भर देता िै, उस
हसक्‍के का हमश्रण पररवर्ततत करता िै ।
247. कपटपूवतक या बेईमािी से भारतीय हसक्‍के का वजि कम करिा या हमश्रण पररवर्ततत करिा—जो कोई कपटपूवतक या
बेईमािी से 3[ककसी भारतीय हसक्‍के] पर कोई ऐसी कक्रया करे गा हजससे उस हसक्‍के का वजि कम िो जाए या उसका हमश्रण पररवर्ततत िो
जाए, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
248. इस आिय से ककसी हसक्‍के का रूप पररवर्ततत करिा कक वि हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के रूप में चि जाए—जो कोई ककसी
हसक्‍के पर इस आिय से कक वि हसक्‍का हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के रूप में चि जाए, कोई ऐसी कक्रया करे गा, हजससे उस हसक्‍के का रूप
पररवर्ततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
249. इस आिय से भारतीय हसक्‍के का रूप पररवर्ततत करिा कक वि हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के रूप में चि जाए—जो कोई 3[ककसी
भारतीय हसक्‍के] पर इस आिय से कक वि हसक्‍का हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के रूप में चि जाए, कोई ऐसी कक्रया करे गा, हजससे उस हसक्‍के
का रूप पररवर्ततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
250. ऐसे हसक्‍के का पररदाि जो इस ज्ञाि के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररवर्ततत ककया गया िै—जो कोई ककसी ऐसे हसक्‍के
को कब्जे में रिते हुए, हजसके बारे में िारा 246 या 248 में पररभाहषत अपराि ककया गया िो, और हजसके बारे में उस समय, जब यि
हसक्‍का उसके कब्जे में आया था, वि यि जािता था कक ऐसा अपराि उसके बारे में ककया गया िै, कपटपूवतक या इस आिय से कक कपट
ककया जाए, ककसी अन्य व्यहक्‍त को वि हसक्‍का पररदत्त करे गा, या ककसी अन्य व्यहक्‍त को उसे िेिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
251. भारतीय हसक्‍के का पररदाि जो इस ज्ञाि के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररवर्ततत ककया गया िै—जो कोई ककसी ऐसे
हसक्‍के को कब्जे में रिते हुए, हजसके बारे में िारा 247 या 249 में पररभाहषत अपराि ककया गया िो, और हजसके बारे में उस समय, जब
वि हसक्‍का उसके कब्जे में आया था, वि यि जािता था कक ऐसा अपराि उसके बारे में ककया गया िै, कपटपूवतक, या इस आिय से कक
कपट ककया जाए, ककसी अन्य व्यहक्‍त को वि हसक्‍का पररदत्त करे गा या ककसी अन्य व्यहक्‍त को उसे िेिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि

1
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि‍के ‍हसक्‍के”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
“हिरटि‍भारत”‍िब्द‍अिुक्रमिः‍भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948, हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 और‍1951 के ‍अहिहियम‍
सं० 3 को‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍ककए‍गए‍िैं‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“क्‍वीि‍के ‍ककसे‍भी‍हसक्‍के”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
49

करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
252. ऐसे व्यहक्‍त द्वारा हसक्‍के पर कब्जा जो उसका पररवर्ततत िोिा उस समय जािता था जब वि उसके कब्जे में आया—जो कोई
कपटपूवतक, या इस आिय से कक कपट ककया जाए, ऐसे हसक्‍के को कब्जे में रिेगा, हजसके बारे में िारा 246 या 248 में से ककसी में
पररभाहषत अपराि ककया गया िो और जो उस समय, जब वि हसक्‍का उसके कब्जे में आया था, यि जािता था कक उस हसक्‍के के बारे में
ऐसा अपराि ककया गया िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
253. ऐसे व्यहक्‍त द्वारा भारतीय हसक्‍के पर कब्जा जो उसका पररवर्ततत िोिा उस समय जािता था जब वि उसके कब्जे में
आया—जो कोई कपटपूवतक, या इस आिय से कक कपट ककया जाए, ऐसे हसक्‍के को कब्जे में रिेगा, हजसके बारे में िारा 247 या 249 में से
ककसी में पररभाहषत अपराि ककया गया िो और जो उस समय, जब यि हसक्‍का उसके कब्जे में आया था, यि जािता था कक उस हसक्‍के के
बारे में ऐसा अपराि ककया गया िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
254. हसक्‍के का असिी हसक्‍के के रूप में पररदाि हजसका पररदाि करिे वािा उस समय जब वि उसके कब्जे में पििी बार आया
था, पररवर्ततत िोिा ििीं जािता था—जो कोई ककसी दूसरे व्यहक्‍त को कोई हसक्‍का, हजसके बारे में वि जािता िो कक कोई ऐसी कक्रया,
जैसी िारा 246, 247, 248 या 249 में वर्णतत िै, की जा चुकी िै, ककन्तु हजसके बारे में वि उस समय, जब उसिे उसे अपिे कब्जे में हिया
था, यि ि जािता था कक उस पर ऐसी कक्रया कर दी गई िै, असिी के रूप में, या हजस प्रकार का वि िै उससे हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के
रूप में, पररदत्त करे गा या असिी के रूप में या हजस प्रकार का वि िै उससे हभन्‍ि प्रकार के हसक्‍के के रूप में, ककसी व्यहक्‍त को उसे िेिे के
हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या इतिे
जुमातिे से, जो उस हसक्‍के की कीमत के दस गुिे तक का िो सके गा, हजसके बदिे में पररवर्ततत हसक्‍का चिाया गया िो या चिािे का प्रयत्‍ि
ककया गया िो, दंहडत ककया जाएगा ।
255. सरकारी स्टाम्प का कू टकरण—जो कोई सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित ककसी स्टाम्प का कू टकरण करे गा
या जािते हुए उसके कू टकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—वि व्यहक्‍त इस अपराि को करता िै, जो एक अहभिाि के ककसी असिी स्टाम्प को हभन्‍ि अहभिाि के असिी स्टाम्प
के समाि कदिाई देिे वािा बिा कर कू टकरण करता िै ।
256. सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के हिए उपकरण या सामग्री कब्जे में रििा—जो कोई सरकार के द्वारा राजस्व के प्रयोजि के
हिए प्रचाहित ककसी स्टाम्प के कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से, या यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण
रिते हुए कक वि ऐसे कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िै, कोई उपकरण या सामग्री अपिे कब्जे में रिेगा, वि
दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
257. सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के हिए उपकरण बिािा या बेचिा—जो कोई सरकार के द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए
प्रचाहित ककसी स्टाम्प के कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के प्रयोजि से, या यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते
हुए कक वि ऐसे कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िै, कोई उपकरण बिाएगा या बिािे की प्रकक्रया के ककसी भाग
को करे गा या ऐसे ककसी उपकरण को िरीदेगा, या बेचेगा या व्ययहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
258. कू टकृ त सरकारी स्टाम्प का हवक्रय—जो कोई ककसी स्टाम्प को यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए
बेचेगा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित ककसी स्टाम्प की कू टकृ हत िै, वि दोिों में
से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
259. सरकारी कू टकृ त स्टाम्प को कब्जे में रििा—जो कोई असिी स्टाम्प के रूप में उपयोग में िािे के या व्ययि करिे के आिय
से, या इसहिए कक वि असिी स्टाम्प के रूप में उपयोग में िाया जा सके , ककसी ऐसे स्टाम्प को अपिे कब्जे में रिेगा, हजसे वि जािता िै
कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित स्टाम्प की कू टकृ हत िै वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
260. ककसी सरकारी स्टाम्प को, कू टकृ त जािते हुए उसे असिी स्टाम्प के रूप में उपयोग में िािा—जो कोई ककसी ऐसे स्टाम्प को,
हजसे वि जािता िै कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए चाहित स्टाम्प की कू टकृ हत िै, असिी स्टाम्प के रूप में उपयोग में
िाएगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।

1
1955‍के ‍अहिहियम‍सं० 26‍की‍िारा‍117‍और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
50

261. इस आिय से कक सरकार को िाहि काररत िो, उस पदाथत पर से, हजस पर सरकारी स्टाम्प िगा हुआ िै, िेि हमटािा या
दस्तावेज से वि स्टाम्प िटािा जो उसके हिए उपयोग में िाया गया िै—जो कोई कपटपूवतक, या इस आिय से कक सरकार को िाहि
काररत की जाए, ककसी पदाथत पर से, हजस पर सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित कोई स्टाम्प िगा हुआ िो, ककसी िेि
या दस्तावेज को, हजसके हिए ऐसा स्टाम्प उपयोग में िाया गया िो, िटाएगा या हमटाएगा या ककसी िेि या दस्तावेज पर से उस िेि
या दस्तावेज के हिए उपयोग में िाया गया स्टाम्प इसहिए िटाएगा कक ऐसा स्टाम्प ककसी हभन्‍ि िेि या दस्तावेज के हिए उपयोग में
िाया जाए, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।
262. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग हजसके बारे में ज्ञात िै कक उसका पििे उपयोग िो चुका िै—जो कोई कपटपूवतक, या इस
आिय से कक सरकार को िाहि काररत की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित ककसी स्टाम्प को, हजसके बारे में वि
जािता िै कक वि स्टाम्प उससे पििे उपयोग में िाया जा चुका िै, ककसी प्रयोजि के हिए उपयोग में िाएगा, वि दोिों में से ककसी भांहत
के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
263. स्टाम्प के उपयोग ककए जा चुकिे के द्योतक हचह्ि का छीिकर हमटािा—जो कोई कपटपूवतक, या इस आिय से कक सरकार
को िाहि काररत की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के हिए प्रचाहित स्टाम्प पर से उस हचह्ि को छीिकर हमटाएगा या
िटाएगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यि द्योति करिे के प्रयोजि से कक वि उपयोग में िाया जा चुका िै, िगा हुआ या छाहपत िो या ऐसे ककसी
स्टाम्प को, हजस पर से ऐसा हचह्ि हमटाया या िटाया गया िो, जािते हुए अपिे कब्जे में रिेगा या बेचेगा या व्ययहित करे गा, या ऐसे
ककसी स्टाम्प को, जो वि जािता िै कक उपयोग में िाया जा चुका िै, बेचेगा या व्ययहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
1
[263क. बिावटी स्टाम्पों का प्रहतषेघ—(1) जो कोई ककसी बिावटी स्टाम्प को—
(क) बिाएगा, जािते हुए चिाएगा, उसका व्यौिार करे गा या उसका हवक्रय करे गा या उसे डाक संबंिी ककसी प्रयोजि के
हिए जािते हुए उपयोग में िाएगा, अथवा
(ि) ककसी हवहिपूणत प्रहतिेतु के हबिा अपिे कब्जे में रिेगा, अथवा
(ग) बिािे की ककसी डाइ, पट्टी, उपकरण या सामहग्रयों को बिाएगा, या ककसी हवहिपूणत प्रहतिेतु के हबिा अपिे कब्जे
में रिेगा,
वि जुमातिे से, जो दो सौ रुपए तक िो सके गा, दंहडत ककया जाएगा ।
(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बिावटी स्टाम्प बिािे की डाई, पट्टी, उपकरण या सामहग्रयां, जो ककसी व्यहक्‍त के कब्जे में िो,
2
[अहभगृिीत की जा सके गी और अहभगृिीत की जाएं] तो समपहृत कर िी जाएगी ।
(3) इस िारा में “बिावटी स्टाम्प” से ऐसा कोई स्टाम्प अहभप्रेत िै, हजससे यि हमथ्या रूप से तात्पर्यतत िो कक सरकार िे डाक
मिसूि की दर के द्योति के प्रयोजि से उसे प्रचाहित ककया िै या जो सरकार द्वारा उस प्रयोजि से प्रचाहित ककसी स्टाम्प की, कागज पर
या अन्यथा, अिुहिहप, अिुकृहत‍या समरूपण िो ।
(4) इस िारा में और िारा 255 से िेकर िारा 263 तक में भी, हजिमें ये दोिों िाराएं भी समाहवष्‍ट िैं, “सरकार” िब्द के अंतगतत,
जब भी वि डाक मिसूि की दर के द्योति के प्रयोजि से प्रचाहित ककए गए ककसी स्टाम्प के ससंग या हिदेिि में उपयोग ककया गया िै,
िारा 17 में ककसी बात के िोते हुए भी, वि या वे व्यहक्‍त समझे जाएंगे जो भारत के ककसी भाग में और िर मजेस्टी की डोमीहियिों के
ककसी भाग में, या ककसी हवदेि में भी, कायतपाहिका सरकार का प्रिासि चिािे के हिए हवहि द्वारा प्राहिकृ त िो ।]
अध्याय 13

बाटों और मापों से संबहं ित अपरािों के हवषय में


264. तोििे के हिए िोटे उपकरणों का कपटपूवतक उपयोग—जो कोई तोििे के हिए ऐसे ककसी उपकरण का, हजसका िोटा िोिा
वि जािता िै, कपटपूवतक उपयोग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या
जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
265. िोटे बाट या माप का कपटपूवतक उपयोग—जब कोई ककसी िोटे बाट का या िम्बाई या िाररता के ककसी िोटे माप का
कपटपूवतक उपयोग करे गा, या ककसी बाट का, या िम्बाई या िाररता के ककसी माप का या उससे हभन्‍ि बाट या माप के रूप में कपटपूवतक
उपयोग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।

1
1895 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍2 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
2
1953 के ‍अहिहियम‍सं० 42 की‍िारा‍4 और‍अिुसूची‍3 द्वारा‍“अहभगृिीत‍की‍जा‍सके गी‍और”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
51

266. िोटे बाट या माप को कब्जे में रििा—जो कोई तोििे के ऐसे ककसी उपकरण या बाट को, या िम्बाई या िाररता के ककसी
माप को, हजसका िोटा िोिा वि जािता िै, 1*** इस आिय से कब्जे में रिेगा कक उसे कपटपूवतक उपयोग में िाया जाए, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
267. िोटे बाट या माप का बिािा या बेचिा—जो कोई तोििे के ऐसे ककसी उपकरण या बाट को, या िम्बाई या िाररता के ऐसे
ककसी माप को, हजसका िोटा िोिा वि जािता िै, इसहिए कक उसका िरे की तरि उपयोग ककया जाए या यि सम्भाव्य जािते हुए कक
उसका िरे की तरि उपयोग ककया जाए, बिाएगा, बेचेगा या व्ययहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 14

िोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुहविा, हिष्‍टता और सदाचार पर प्रभाव डाििे वािे अपरािों के हवषय में
268. िोक न्यूसन्े स—वि व्यहक्‍त िोक न्यूसेन्स का दोषी िै, जो कोई ऐसा कायत करता िै या ककसी ऐसे अवैि िोप का दोषी िै,
हजससे िोक को या जिसािारण को जो आसपास में रिते िों या आसपास की सम्पहत्त पर अहिभोग रिते िों, कोई सामान्य क्षहत, संकट
या क्षोभ काररत िो या हजससे उि व्यहक्‍तयों का हजन्िें ककसी िोक अहिकार को उपयोग में िािे का मौका प़िे, क्षहत, बािा, संकट या
क्षोभ काररत िोिा अवश्यंभावी िो ।
कोई सामान्य न्यूसेन्स इस आिार पर मािी योग्य ििीं िै कक उससे कु छ सुहविा या भिाई काररत िोती िै ।
269. उपेक्षापूणत कायत हजससे जीवि के हिए संकटपूणत रोग का संक्रम िै ििा संभाव्य िो—जो कोई हवहिहवरुद्ध रूप से या उपेक्षा से
ऐसा कोई कायत करे गा, हजससे कक और हजससे वि जािता या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िो कक, जीवि के हिए संकटपूणत ककसी रोग
का संक्रम िै ििा संभाव्य िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
270. पररद्वेषपूणत कायत, हजससे जीवि के हिए संकटपूणत रोग का संक्रम िै ििा संभाव्य िो—जो कोई पररद्वेष से ऐसा कोई कायत
करे गा हजससे कक, और हजससे वि जािता या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िो कक, जीवि के हिए संकटपूणत ककसी रोग का संक्रम
िै ििा संभाव्य िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।
271. करन्तीि के हियम की अवज्ञा—जो कोई ककसी जियाि को करन्तीि की हस्थहत में रिे जािे के , या करन्तीि की हस्थहत वािे
जियािों का ककिारे से या अन्य जियािों से समागम हवहियहमत करिे के , या ऐसे स्थािों के , जिां कोई संक्रामक रोग िै ि रिा िो और
अन्य स्थािों के बीच समागम हवहियहमत करिे के हिए 2[*** 3*** 4*** सरकार द्वारा] बिाए गए और प्रखयाहपत ककसी हियम को
जािते हुए अवज्ञा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों
से, दंहडत ककया जाएगा ।
272. हवक्रय के हिए आिहयत िाद्य या पेय का अपहमश्रण—जो कोई ककसी िािे या पीिे की वस्तु को इस आिय से कक वि ऐसी
वस्तु के िाद्य या पेय के रूप में बेचे या यि संभाव्य जािते हुए कक वि िाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, ऐसे अपहमहश्रत करे गा कक
ऐसी वस्तु िाद्य या पेय के रूप में अपायकर बि जाए वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
273. अपायकर िाद्य या पेय का हवक्रय—जो कोई ककसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई िो, या िो गई िो, या िािे पीिे
के हिए अिुपयुक्‍त दिा में िो, यि जािते हुए या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक वि िाद्य या पेय के रूप में अपायकर िै,
िाद्य या पेय के रूप में बेचेगा, या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा या बेचिे के हिए अहभदर्ितत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत
ककया जाएगा ।
274. ओषहियों का अपहमश्रण—जो कोई ककसी ओषहि या भेषजीय हिर्मतहत में अपहमश्रण इस आिय से कक या यि सम्भाव्य
जािते हुए कक वि ककसी ओषिीय प्रयोजि के हिए ऐसे बेची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मािो उसमें ऐसा अपहमश्रण ि हुआ िो,
ऐसे प्रकार से करे गा कक उस ओषहि या भेषजीय हिर्मतहत की प्रभावकाररता कम िो जाए, कक्रया बदि जाए या वि अपायकर िो जाए, वि
दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा,
या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
275. अपहमहश्रत ओषहियों का हवक्रय—जो कोई यि जािते हुए कक ककसी ओषहि या भेषजीय हिर्मतहत में इस प्रकार से अपहमश्रण
ककया गया िै कक उसकी प्रभावकाररता कम िो गई या उसकी कक्रया बदि गई िै, या वि अपायकर बि गई िै, उसे बेचेगा या बेचिे की

1
1953 के ‍अहिहियम‍सं० 42 की‍िारा‍4 और‍अिुसूची‍3 द्वारा‍“और”‍िब्द‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
2
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“भारत‍सरकार‍द्वारा‍या‍ककसी‍सरकार‍द्वारा”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“के न्रीय‍या‍ककसी‍प्रादेहिक”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
भारतीय‍स्वतंत्रता‍(के न्रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948 द्वारा‍“या‍क्राउि‍प्रहतहिहि”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
52

प्रस्थापिा करे गा या बेचिे के हिए अहभदर्ितत करे गा, या ककसी ओषिािय से ओषिीय प्रयोजिों के हिए उसे अिपहमहश्रत के तौर पर
देगा या उसका अपहमहश्रत िोिा ि जाििे वािे व्यहक्‍त द्वारा ओषिीय प्रयोजिों के हिए उसका उपयोग काररत करे गा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों
से, दहण्डत ककया जाएगा ।
276. ओषहि का हभन्‍ि औषहि या हिर्मतहत के तौर पर हवक्रय—जो कोई ककसी ओषहि या भेषजीय हिर्मतहत को, हभन्‍ि ओषहि या
भेषजीय हिर्मतहत के तौर पर जािते हुए बेचेगा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा या बेचिे के हिए अहभदर्ितत करे गा या ओषिीय प्रयोजिों
के हिए औषिािय से देगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक
िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
277. िोक जि-स्रोत या जिािय का जि किुहषत करिा—जो कोई ककसी िोक जि-स्रोत या जिािय के जि को स्वेच्छया इस
प्रकार भ्रष्‍ट या किुहषत करे गा कक वि उस प्रयोजि के हिए, हजसके हिए वि मामूिी तौर पर उपयोग में आता िो, कम उपयोगी िो जाए,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
278. वायुमण्डि को स्वास्थ्य के हिए अपायकर बिािा—जो कोई ककसी स्थाि के वायुमण्डि को स्वेच्छया इस प्रकार दूहषत
करे गा कक वि जिसािारण के स्वास्थ्य के हिए, जो प़िोस में हिवास या कारबार करते िों, या िोक मागत से आते जाते िों अपायकर बि
जाए, वि जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया जाएगा ।
279. िोक मागत पर उताविेपि से वािि चिािा या िांकिा—जो कोई ककसी िोक मागत पर ऐसे उताविेपि या उपेक्षा से कोई
वािि चिाएगा या सवार िोकर िांकेगा हजससे मािव जीवि संकटापन्‍ि िो जाए या ककसी अन्य व्यहक्‍त को उपिहत या क्षहत काररत
िोिा सम्भाव्य िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार
रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
280. जियाि का उताविेपि से चिािा—जो कोई ककसी जियाि को ऐसे उताविेपि या उपेक्षा से चिाएगा, हजससे मािव
जीवि संकटापन्‍ि िो जाए या ककसी अन्य व्यहक्‍त को उपिहत या क्षहत काररत िोिा सम्भाव्य िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
281. भ्रामक प्रकाि, हचह्ि या बोये का प्रदिति—जो कोई ककसी भ्रामक प्रकाि, हचह्ि या बोये का प्रदिति इस आिय से, या यि
सम्भाव्य जािते हुए करे गा, कक ऐसा प्रदिति ककसी िौपररवािक को मागत भ्रष्‍ट कर देगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
282. अक्षमकर या अहत िदे हुए जियाि में भा़िे के हिए जिमागत से ककसी व्यहक्‍त का प्रविण—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को ककसी
जियाि में जिमागत से, जािते हुए या उपेक्षापूवतक भा़िे पर तब प्रविण करे गा, या कराएगा जब वि जियाि ऐसी दिा में िो या इतिा
िदा हुआ िो हजससे उस व्यहक्‍त का जीवि संकटापन्‍ि िो सकता िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास
तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
283. िोक मागत या िौपररविि पथ में संकट या बािा—जो कोई ककसी कायत को करके या अपिे कब्जे में की, या अपिे भारसािि
के अिीि ककसी सम्पहत्त की व्यवस्था करिे का िोप करिे द्वारा, ककसी िोकमागत या िौपररविि के िोक पथ में ककसी व्यहक्‍त को संकट,
बािा या क्षहत काररत करे गा वि जुमातिे से, जो दो सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया जाएगा ।
284. हवषैिे पदाथत के संबि
ं में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई ककसी हवषैिे पदाथत से कोई कायत ऐसे उताविेपि या उपेक्षा से करे गा,
हजससे मािव जीवि संकटापन्‍ि िो जाए, या हजससे ककसी व्यहक्‍त को, उपिहत या क्षहत काररत िोिा सम्भाव्य िो ।
या अपिे कब्जे में के ककसी हवषैिे पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो ऐसे हवषैिे पदाथत से मािव जीवि को ककसी
अहिसम्भाव्य संकट से बचािे के हिए पयातप्त
‍ िो, जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का
िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
285. अहग्‍ि या ज्विििीि पदाथत के सम्बन्ि में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई अहग्‍ि या ककसी ज्विििीि पदाथत से कोई कायत ऐसे
उताविेपि या उपेक्षा से करे गा हजससे मािव जीवि संकटापन्‍ि िो जाए या हजससे ककसी अन्य व्यहक्‍त को उपिहत या क्षहत काररत िोिा
सम्भाव्य िो,
अथवा अपिे कब्जे में की अहग्‍ि या ककसी ज्विििीि पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो ऐसी अहग्‍ि या ज्विििीि पदाथत से
मािव जीवि को ककसी अहिसम्भाव्य संकट से बचािे के हिए पयातप्त
‍ िो, जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का
िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
53

286. हवस्िोटक पदाथत के बारे में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई ककसी हवस्िोटक पदाथत से, कोई कायत ऐसे उताविेपि या उपेक्षा से
करे गा, हजससे मािव जीवि संकटापन्‍ि िो जाए या हजससे ककसी अन्य व्यहक्‍त को उपिहत या क्षहत काररत िोिा सम्भाव्य िो,
अथवा अपिे कब्जे में की ककसी हवस्िोटक पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का, जैसी ऐसे पदाथत से मािव जीवि को अहिसम्भाव्य
संकट से बचािे के हिए पयातप्त
‍ िो, जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
287. मिीिरी के सम्बन्ि में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई ककसी मिीिरी से, कोई कायत ऐसे उताविेपि या उपेक्षा से करे गा,
हजससे मािव जीवि संकटापन्‍ि िो जाए या हजससे ककसी अन्य व्यहक्‍त को उपिहत या क्षहत काररत िोिा सम्भाव्य िो,
अथवा अपिे कब्जे में की या अपिी देिरे ि के अिीि की ककसी मिीिरी की ऐसी व्यवस्था करिे का जो, ऐसी मिीिरी से मािव
जीवि को ककसी अहभसम्भाव्य संकट से बचािे के हिए पयातप्त
‍ िो, जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो
सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
288. ककसी हिमातण को हगरािे या उसकी मरम्मत करिे के संबि ं में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई ककसी हिमातण को हगरािे या
उसकी मरम्मत करिे में उस हिमातण की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो उस हिमातण के या उसके ककसी भाग के हगरिे से मािव जीवि को
ककसी अहभसम्भाव्य संकट से बचािे के हिए पयातप्त
‍ िो, जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
289. जीवजन्तु के संबि
ं में उपेक्षापूणत आचरण—जो कोई अपिे कब्जे में के ककसी जीवजन्तु के संबंि में ऐसी व्यवस्था करिे का, जो
ऐसे जीवजन्तु से मािव जीवि को ककसी अहभसम्भाव्य संकट या घोर उपिहत के ककसी अहभसंभाव्य संकट से बचािे के हिए पयातप्त ‍ िो,
जािते हुए या उपेक्षापूवतक िोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या
जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
290. अन्यथा अिुपबहन्ित मामिों में िोक न्यूसन्े स के हिए दण्ड—जो कोई ककसी ऐसे मामिे में िोक न्यूसेन्स करे गा जो इस
संहिता द्वारा अन्यथा दण्डिीय ििीं िै, वि जुमातिे से, जो दो सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया जाएगा ।
291. न्यूसन्े स बन्द करिे के व्यादेि के पश्‍चात् उसका चािू रििा—जो कोई ककसी िोक सेवक द्वारा, हजसको ककसी न्यूसेन्स की
पुिरावृहत्त ि करिे या उसे चािू ि रििे के हिए व्यादेि प्रचाहित करिे का प्राहिकार िो, ऐसे व्याकदष्‍ट ककए जािे पर, ककसी िोक
न्यूसेन्स की पुिरावृहत्त करे गा, या उसे चािू रिेगा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
1
[292. अश्‍िीि पुस्तकों आकद का हवक्रय आकद—2[(1) उपिारा (2) के प्रयोजिाथत ककसी पुस्तक, पुहस्तका, कागज, िेि, रे िाहचत्र,
रं गहचत्र, रूपण, आकृ हत या अन्य वस्तु को अश्‍िीि समझा जाएगा यकद वि कामोद्दीपक िै या कामुक व्यहक्‍तयों के हिए रुहचकर िै या
उसका या (जिां उसमें दो या अहिक सुहभन्‍ि मदें समाहवष्‍ट िैं विां) उसकी ककसी मद का प्रभाव, समग्र रूप से हवचार करिे पर, ऐसा िै
जो उि व्यहक्‍तयों को दुराचारी तथा भ्रष्‍ट बिाए हजसके द्वारा उसमें अन्तर्वतष्‍ट या सहन्‍िहवष्‍ट हवषय का पढ़ा जािा, देिा जािा या सुिा
जािा सभी सुसंगत पररहस्थहतयों को ध्याि में रिते िए सम्भाव्य िै ।]
3
[(2)] जो कोई—
(क) ककसी अश्‍िीि पुस्तक, पुहस्तका, कागज, रे िाहचत्र, रं गहचत्र, रूपण या आकृ हत या ककसी भी अन्य अश्‍िीि वस्तु को,
चािे वि कु छ भी िो, बेचेगा, भा़िे पर देगा, हवतररत करे गा, िोक प्रदर्ितत करे गा, या उसको ककसी भी प्रकार पररचाहित करे गा,
या उसे हवक्रय, भा़िे, हवतरण, िोक प्रदिति या पररचािि के प्रयोजिों के हिए रचेगा, उत्पाकदत करे गा, या अपिे कब्जे में ‍‍‍
रिेगा, अथवा
(ि) ककसी अश्‍िीि वस्तु का आयात या हियातत या प्रविण पूवोक्‍त प्रयोजिों में से ककसी प्रयोजि के हिए करे गा या यि
जािते हुए, या यि हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए करे गा कक ऐसी वस्तु बेची, भा़िे पर दी, हवतररत या िोक प्रदर्ितत या,
ककसी प्रकार से पररचाहित की जाएगी, अथवा
(ग) ककसी ऐसे कारबार में भाग िेगा या उससे िाभ प्राप्‍त करे गा, हजस कारबार में वि यि जािता िै या यि हवश्‍वास करिे
का कारण रिता िै कक कोई ऐसी अश्‍िीि वस्तु पूवोक्‍त प्रयोजिों में से ककसी प्रयोजि के हिए रची जातीं, उत्पाकदत की जातीं, क्रय
की जातीं, रिी जातीं, आयात की जातीं, हियातत की जातीं, प्रविण की जातीं, िोक प्रदर्ितत की जातीं या ककसी भी प्रकार से
पररचाहित की जाती िैं, अथवा

1
1925 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
3
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍2 द्वारा‍िारा‍292 को‍उस‍िारा‍की‍उपिारा‍(2) के ‍रूप‍में‍पुि:संखयांककत‍ककया‍गया‍।
54

(घ) यि हवज्ञाहपत करे गा या ककन्िीं साििों द्वारा वे चािे कु छ भी िों यि ज्ञात कराएगा कक कोई व्यहक्‍त ककसी ऐसे कायत में,
जो इस िारा के अिीि अपराि िै, िगा हुआ िै, या िगिे के हिए तैयार िै, या यि कक कोई ऐसी अश्‍िीि वस्तु ककसी व्यहक्‍त से या
ककसी व्यहक्‍त के द्वारा प्राप्‍त की जा सकती िै, अथवा
(ङ) ककसी ऐसे कायत को, जो इस िारा के अिीि अपराि िै, करिे की प्रस्थापिा करे गा या करिे का प्रयत्‍ि करे गा,
[प्रथम दोषहसहद्ध पर दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी और जुमातिे से, जो दो
1

िजार रुपए तक का िो सके गा, तथा हद्वतीय या पश्‍चात्‍वती दोषहसहद्ध की दिा में दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
पांच वषत तक की िो सके गी और जुमातिे से भी, जो पांच िजार रुपए तक का िो सके गा] दहण्डत ककया जाएगा ।
‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
2
[अपवाद—इस िारा का हवस्तार हिम्‍िहिहित पर ि िोगाः—
(क) कोई ऐसी पुस्तक, पुहस्तका, कागज, िेि, रे िाहचत्र, रं गहचत्र, रूपण या आकृ हत—
(i) हजसका प्रकािि िोकहित में िोिे के कारण इस आिार पर न्यायोहचत साहबत िो गया िै कक ऐसी पुस्तक,
पुहस्तका, कागज, िेि, रे िाहचत्र, रं गहचत्र, रूपण या आकृ हत हवज्ञाि, साहित्य, किा या हवद्या या सवतजि सम्बन्िी अन्य
उद्देश्यों के हित में िै, अथवा
(ii) जो सद्‍भावपूवतक िार्मतक प्रयोजिों के हिए रिी या उपयोग में िाई जाती िै;
(ि) कोई ऐसा रूपण जो—
(i) प्राचीि संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थि और अविेष अहिहियम, 1958 (1958 का 24) के अथत में प्राचीि
संस्मारक पर या उसमें, अथवा
(ii) ककसी मंकदर पर या उसमें या मूर्ततयों के प्रविण के उपयोग में िाए जािे वािे या ककसी िार्मतक प्रयोजि के हिए
रिे या उपयोग में िाए जािे वािे ककसी रथ पर,
तहक्षत, उत्कीणत, रं गहचहत्रत या अन्यथा रूहपत िों ।]]
3
[293. तरुण व्यहक्‍त को अश्‍िीि वस्तुओं का हवक्रय, आकद—जो कोई बीस वषत से कम आयु के ककसी व्यहक्‍त को कोई ऐसी अश्‍िीि
वस्तु, जो अंहतम पूवतगामी िारा में हिर्दतष्‍ट िै, बेचेगा, भा़िे पर देगा, हवतरण करे गा, प्रदर्ितत करे गा या पररचाहित करे गा या ऐसा करिे
की प्रस्थापिा या प्रयत्‍ि करे गा 1[प्रथम दोषहसहद्ध पर दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी,
और जुमातिे से, जो दो िजार रुपए तक का िो सके गा, तथा हद्वतीय या पश्‍चात्‍वती दोषहसहद्ध की दिा में दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी और जुमातिे से भी, जो पांच िजार रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया
जाएगा ।]]
4
[294. अश्‍िीि कायत और गािे—जो कोई—
(क) ककसी िोक स्थाि में कोई अश्‍िीि कायत करे गा, अथवा
(ि) ककसी िोक स्थाि में या उसके समीप कोई अश्‍िीि गािे, पवां़िे या िब्द गाएगा, सुिाएगा या उच्‍चाररत करे गा,
हजससे दूसरों को क्षोभ िोता िो,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
ककया जाएगा ।]
5
[294क. िाटरी कायातिय रििा—जो कोई ऐसी कोई िाटरी, 6[जो ि तो 7[राज्य िाटरी] िो और ि तत्संबंहित 8[राज्य] सरकार
द्वारा प्राहिकृ त िाटरी िो,] हिकाििे के प्रयोजि के हिए कोई कायातिय या स्थाि रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि छि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ;

1
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍2 द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 36 की‍िारा‍2 द्वारा‍अपवाद‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1925 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍2 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1895 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1870 के ‍अहिहियम‍सं० 27 की‍िारा‍10 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
6
भारत‍िासि‍(भारतीय‍हवहि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1937 द्वारा‍“सरकार‍द्वारा‍अप्राहिकृ त”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
7
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“के न्दीय‍सरकार‍या‍भाग‍क‍राज्य‍या‍भाग‍ि‍राज्य‍की‍सरकार‍द्वारा‍चािू‍की‍गई‍िाटरी”‍के ‍स्थाि‍पर‍
प्रहतस्थाहपत‍।‍
8
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“प्रादेहिक”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
55

तथा‍जो‍कोई‍ऐसी‍िाटरी‍में‍ ककसी‍रटकट,‍िाट,‍संखय ‍ ांक‍या‍आकृ हत‍को‍हिकाििे‍ से‍ संबंहित‍या‍िागू‍ िोिे‍ वािी‍ककसी‍घटिा‍


या‍पररहस्‍थहत‍पर‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍के ‍िायदे‍ के ‍हिए‍ककसी‍राहि‍को‍देिे‍ की,‍या‍ककसी‍माि‍के ‍पररदाि‍को,‍या‍ककसी‍बात‍को‍करिे‍ की,‍
या‍ककसी‍बात‍से‍प्रहवरत‍रििे‍की‍कोई‍प्रस्‍थापिा‍प्रकाहित‍करे गा,‍वि‍जुमातिे‍से,‍जो‍एक‍िजार‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍दहण्‍डत‍ककया‍
जाएगा‍।]
अध्‍याय‍15

िमत‍से‍संबहं ित‍अपरािों‍के ‍हवषय‍में


295.‍ककसी‍वगत‍ के ‍िमत‍ का‍अपमाि‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ उपासिा‍के ‍स्‍थाि‍को‍क्षहत‍करिा‍या‍अपहवत्र‍करिा—जो कोई‍ककसी‍
उपासिा‍स्‍थाि‍को‍या‍व्‍यहक्‍तयों‍के ‍ककसी‍वगत‍द्वारा‍पहवत्र‍मािी‍गई‍ककसी‍वस्‍तु‍को‍िष्‍ट,‍िुकसािग्रस्‍त‍या‍अपहवत्र‍इस‍आिय‍से‍करे गा‍
कक‍ककसी‍वगत‍ के ‍िमत‍ का‍तद्‍द्वारा‍अपमाि‍ककए‍जाए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍करे गा‍कक‍व्‍यहक्‍तयों‍का‍कोई‍वगत‍ ऐसे‍ िाि,‍िुकसाि‍
या‍अपहवत्र‍ककए‍जािे‍को‍अपिे‍ िमत‍के ‍प्रहत‍अपमाि‍समझेगा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍तक‍
की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
1
[295क.‍हवमर्ितत‍और‍हवद्वेषपूण‍त कायत‍ जो‍ककसी‍वगत‍ के ‍िमत‍ या‍िार्मतक‍हवश्‍वासों का‍अपमाि‍करके ‍उसकी‍िार्मतक‍भाविाओं‍
को‍ आित‍ करिे‍ के ‍ आिय‍ से‍ ककए‍ गए‍ िों—जो‍ कोई‍ 2[भारत‍ के ‍ िागररकों‍ के ]‍ ककसी‍ वगत‍ की‍ िार्मतक‍ भाविाओं‍ को‍ आित‍ करिे‍ के ‍
हवमर्ितत‍और‍हवद्वेषपूणत‍आिय‍से‍उस‍वगत‍के ‍िमत‍या‍िार्मतक‍हवश्‍वासों‍का‍अपमाि‍3[उच्‍चाररत‍या‍हिहित‍िब्‍दों‍द्वारा‍या‍संकेतों‍द्वारा‍
या‍दृश्‍यरूपणों‍द्वारा‍या‍अन्‍यथा] करे गा‍या‍करिे‍ का‍प्रयत्‍ि‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍ 4[तीि‍
वषत]‍तक‍की‍िो सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।]
296.‍िार्मतक‍जमाव‍में‍ हवघ्‍ि‍करिा—जो‍कोई‍िार्मतक‍उपासिा‍या‍िार्मतक‍संस्‍कारों‍में‍ वैि‍रूप‍से‍ िगे‍ हुए‍ककसी‍जमाव‍में‍
स्‍वच्े ‍छया‍हवघ्‍ि‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍
दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
297.‍कहिस्‍तािों‍आकद‍में‍ अहतचार‍करिा—जो‍कोई‍ककसी‍उपासिा‍स्‍थाि‍में,‍या‍ककसी‍कहिस्‍ताि‍पर‍या‍अन्‍त्‍येहष्‍ट‍कक्रयाओं‍के ‍
हिए‍या‍मृतकों‍के ‍अविेषों‍के ‍हिए‍हिक्षेप‍स्‍थाि‍के ‍रूप‍में‍ पृथक् ‍रिे‍ गए‍ककसी‍स्‍थाि‍में‍ अहतचार‍या‍ककसी‍मािव‍िव‍की‍अविेििा‍
या‍अन्‍त्‍येहष्‍ट‍संस्‍कारों‍के ‍हिए‍एकहत्रत‍ककन्‍िीं‍व्‍यहक्‍तयों‍को‍हवघ्‍ि‍काररत,‍
इस‍आिय‍से‍ करे गा‍कक‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍भाविाओं‍को‍ठे स‍पहुंचाए‍या‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍के ‍िमत‍ का‍अपमाि‍करे ,‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍
जािते‍हुए‍करे गा‍कक‍तद्‍द्वारा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍भाविाओं‍को‍ठे स‍पहुंचेगी,‍या‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍के ‍िमत‍का‍अपमाि‍िोगा,
वि‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ एक‍ वषत‍ तक‍ की‍ िो‍ सके गी,‍ या‍ जुमातिे‍ से,‍ या‍ दोिों‍ से,‍ दहण्‍डत‍‍‍‍‍
ककया‍जाएगा‍।
298.‍िार्मतक‍भाविाओं‍को‍ठे स‍पहुंचािे‍के ‍हवमर्ितत‍आिय‍से ,‍िब्‍द‍उच्‍चाररत‍करिा‍आकद—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍िार्मतक‍
भाविाओं‍को‍ठे स‍पहुंचािे‍ के ‍हवमर्ितत‍आिय‍से‍ उसकी‍श्रवणगोचरता‍में‍ कोई‍िब्‍द ‍उच्‍चाररत‍करे गा‍या‍कोई‍ध्‍वहि‍करे गा‍या‍उसकी‍
दृहष्‍टगोचरता‍में‍ कोई‍अंगहवक्षेप‍करे गा,‍या‍कोई‍वस्‍तु‍ रिेगा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ तक‍
की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
अध्‍याय‍16

मािव‍िरीर‍पर‍प्रभाव‍डाििे‍वािे‍अपरािों‍के ‍हवषयों‍में
जीवि‍के ‍हिए‍संकटकारी‍अपरािों‍के ‍हवषय‍में
299.‍आपराहिक‍मािव‍वि—जो‍कोई‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍के ‍आिय‍से,‍या‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍करिे‍के ‍आिय‍से‍हजससे‍
मृत्‍यु‍ काररत‍िो‍जािा‍सम्‍भाव्‍य‍िो,‍या‍यि‍ज्ञाि‍रिते‍ हुए‍कक‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍ कक‍वि‍उस‍कायत‍ से‍ मृत्‍यु‍ काररत‍कर‍दे,‍कोई‍कायत‍ करके ‍
मृत्‍यु‍काररत‍कर‍देता‍िै,‍वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍अपराि‍करता‍िै‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍क‍एक‍गड्ढे‍पर‍िकह़ियां‍और‍घास‍इस‍आिय‍से‍हबछाता‍िै‍कक‍तद्‍द्वारा‍मृत्‍यु‍काररत‍करे ‍या‍यि‍ज्ञाि‍रिते‍हुए‍हबछाता‍िै‍
कक‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍कक‍तद्‍द्वारा‍मृत्‍यु‍काररत‍िो‍।‍य‍यि‍हवश्‍वास‍करते‍हुए‍कक‍वि‍भूहम‍सुदढ़ृ ‍िै‍उस‍पर‍चिता‍िै,‍उसमें‍हगर‍प़िता‍िै‍और‍
मारा‍जाता‍िै‍।‍क‍िे‍आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍अपराि‍ककया‍िै‍।

1
1927 के ‍अहिहियम‍सं०‍25 की‍िारा‍ 2 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि,‍1950 द्वारा‍“हिज‍मजेस्‍टी‍की‍प्रजा”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1961 के ‍अहिहियम‍सं०‍41 की‍िारा 3‍द्वारा‍कहतपय‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
4
‍1961 के ‍अहिहियम‍सं०‍41 की‍िारा 3‍द्वारा‍“दो‍वषत” के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
56

(ि)‍क‍यि‍जािता‍िै‍ कक‍य‍एक‍झा़िी‍के ‍पीछे‍ िै‍ ।‍ि‍यि‍ििीं‍जािता‍।‍य‍की‍मृत्‍यु‍ करिे‍ के ‍आिय‍से‍ या‍यि‍जािते‍ हुए‍कक‍


उससे‍य‍की‍मृत्‍यु‍काररत‍िोिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै,‍ि‍को‍उस‍झा़िी‍पर‍गोिी‍चिािे‍के ‍हिए‍क‍उत्‍प्रेररत‍करता‍िै‍।‍ि‍गोिी‍चिाता‍िै‍और‍य‍
को‍मार‍डािता‍िै‍ ।‍यिां,‍यि‍िो‍सकता‍िै‍ कक‍ि‍ककसी‍भी‍अपराि‍का‍दोषी‍ि‍िो,‍ककन्‍तु‍ क‍िे‍ आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍अपराि‍
ककया‍िै‍।
(ग)‍क‍एक‍मुगे‍ को‍मार‍डाििे‍ और‍उसे‍ चुरा‍िेिे‍ के ‍आिय‍से‍ उस‍पर‍गोिी‍चिाकर‍ ि‍को,‍जो‍एक‍झा़िी‍के ‍पीछे‍ िै,‍मार‍
डािता‍िै,‍ककन्‍तु‍ क‍यि‍ििीं‍जािता‍था‍कक‍ि‍विां‍ िै‍ ।‍यिां,‍यद्यहप‍क‍हवहिहवरुद्ध‍कायत‍ कर‍रिा‍था,‍तथाहप,‍वि‍आपराहिक‍मािव‍
वि‍का‍दोषी‍ििीं‍िै‍ क्‍योंकक‍उसका‍आिय‍ि‍को‍मार‍डाििे‍ का,‍या‍कोई‍ऐसा‍कायत‍ करके ,‍हजससे‍ मृत्‍यु‍ काररत‍करिा‍वि‍सम्‍भाव्‍य‍
जािता‍िो,‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍का‍ििीं‍था‍।
स्‍पष्‍टीकरण‍1—वि‍व्‍यहक्‍त,‍जो‍ककसी‍दूसरे ‍व्‍यहक्‍त‍को,‍जो‍ककसी‍हवकार‍रोग‍या‍अंगिैहथ्‍य‍से‍ग्रस्‍त‍िै,‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍
करता‍िै‍और‍तद्‍द्वारा‍उस‍दूसरे ‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍त्‍वररत‍कर‍देता‍िै,‍उसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍करता‍िै,‍यि‍समझा‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण‍2—जिां‍ कक‍िारीररक‍क्षहत‍से‍ मृत्‍यु‍ काररत‍की‍गई‍िो,‍विां‍ हजस‍व्‍यहक्‍त‍िे,‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍की‍िो,‍
उसिे‍ वि‍ मृत्‍यु‍ काररत‍ की‍ िै,‍ यि‍ समझा‍ जाएगा,‍ यद्यहप‍ उहचत‍ उपचार‍ और‍ कौििपूणत‍ हचककत्‍सा‍ करिे‍ से‍ वि‍ मृत्‍यु‍ रोकी‍ जा‍‍‍‍‍‍‍‍
सकती‍थी‍।
स्‍पष्‍टीकरण‍3—मां‍ के ‍गभत‍ में‍ हस्‍थत‍ककसी‍हििु‍ की‍मृत्‍यु‍ काररत‍करिा‍मािव‍वि‍ििीं‍िै‍ ।‍ककन्‍तु ‍ ककसी‍जीहवत‍हििु‍ की‍मृत्य
‍ ु‍
काररत‍करिा‍आपराहिक‍मािव‍वि‍की‍कोरट‍में‍ आ‍सके गा,‍यकद‍उस‍हििु‍ का‍कोई‍भाग‍बािर‍हिकि‍आया‍िो,‍यद्यहप‍उस‍हििु‍ िे‍
श्‍वास‍ि‍िी‍िो‍या‍वि‍पूणतत:‍उत्‍पन्‍ि‍ि‍हुआ‍िो‍।
300.‍ित्‍या—एतहस्‍मि्‍पश्‍चात्‍अपवाकदत‍दिाओं‍को‍छो़िकर‍आपराहिक‍मािव‍वि‍ित्‍या‍िै,‍यकद‍वि‍कायत,‍हजसके ‍द्वारा‍मृत्‍यु‍
काररत‍की‍गई‍िो,‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍के ‍आिय‍से‍ककया‍गया‍िो,‍अथवा‍
दूसरा—यकद‍वि‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ ककया‍गया‍िो‍हजससे‍ अपरािी‍जािता‍िो‍कक‍उस‍व्‍य हक्‍त‍को‍
मृत्‍यु‍काररत‍करिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍हजसको‍वि‍अपिाहि‍काररत‍की‍गई‍िै,‍अथवा‍
तीसरा—यकद‍वि‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ ककया‍गया‍िो‍और‍वि‍िारीररक‍क्षहत,‍हजसके ‍
काररत‍करिे‍का‍आिय‍िो,‍प्रकृ हत‍के ‍मामूिी‍अिुक्रम‍में‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍के ‍हिए‍पयातप्त
‍ ‍िो,‍अथवा
चौथा—यकद‍कायत‍करिे‍वािा‍व्‍यहक्‍त‍यि‍जािता‍िो‍कक‍वि‍कायत‍इतिा‍आसन्‍ि‍संकट‍िै‍कक‍पूरी‍अहिसंभाव्‍यता‍िै‍कक‍वि‍मृत्‍यु‍
काररत‍कर‍िी‍देगा‍या‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍कर‍िी‍देगा‍हजससे‍ मृत्‍यु ‍ काररत‍िोिा‍संभाव्‍य‍िै‍ और‍वि‍मृत्‍यु‍ काररत‍करिे‍ या‍
पूवोक्‍त‍रूप‍की‍क्षहत‍काररत‍करिे‍की‍जोहिम‍उठािे‍के ‍हिए‍ककसी‍प्रहतिेतु‍के ‍हबिा‍ऐसा‍कायत‍करे ‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍को‍मार‍डाििे‍के ‍आिय‍से‍क‍उस‍पर‍गािी‍चिाता‍िै‍पररणामस्‍वरूप‍य‍मर‍जाता‍िै‍।‍क‍ित्‍या‍करता‍िै‍।
(ि)‍क‍यि‍जािते‍हुए‍कक‍य‍ऐसे‍रोग‍से‍ग्रस्‍त‍िै‍कक‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍कक‍एक‍प्रिार‍उसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍कर‍दे,‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍
करिे‍के ‍आिय‍से‍उस‍पर‍आघात‍करता‍िै‍।‍य‍उस‍प्रिार‍के ‍पररणामस्‍वरूप‍मर‍जाता‍िै‍।‍क‍ित्‍या‍का‍दोषी‍िै,‍यद्यहप‍वि‍प्रिार‍ककसी‍
अच्‍छे‍ स्‍वस्‍थ‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍ करिे‍ के ‍हिए‍प्रकृ हत‍के ‍मामूिी‍अिुक्रम‍में‍ पयातप्त
‍ ‍ि‍िोता‍।‍ककन्‍तु‍ यकद‍क,‍यि‍ि‍जािते‍ हुए‍कक‍य‍ककसी‍
रोग‍से‍ ग्रस्‍त‍ िै,‍उस‍पर‍ऐसा‍प्रिार‍करता‍िै,‍हजससे‍ कोई‍अच्‍छा‍स्‍वस्‍थ‍ व्‍यहक्‍त‍प्रकृ हत‍के ‍मामूिी‍अिुक्रम‍में‍ ि‍मरता,‍तो‍यिां,‍क,‍
यद्यहप‍िारीररक‍क्षहत‍काररत‍करिे‍ का‍उसका‍आिय‍िो,‍ित्‍या‍का‍दोषी‍ििीं‍िै,‍यकद‍उसका‍आिय‍मृत्‍यु‍ काररत‍करिे‍ का‍या‍ऐसी‍
िारीररक‍क्षहत‍काररत‍करिे‍का‍ििीं‍था,‍हजससे‍प्रकृ हत‍के ‍मामूिी‍अिुक्रम‍में‍मृत्‍यु‍काररत‍िो‍जाए‍।
(ग)‍य‍को‍तिवार‍या‍िाठी‍से‍ऐसा‍घाव‍क‍सािय‍करता‍िै,‍जो‍प्रकृ हत‍के ‍मामूिी‍अिुक्रम‍में‍ककसी‍मिुष्‍य‍की‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍
के ‍हिए‍पयातप्त
‍ ‍िै,‍पररणामस्‍वरूप‍य‍की‍मृत्‍य‍ु काररत‍िो‍जाती‍िै,‍यिां‍ क‍ित्‍या‍का‍दोषी‍िै,‍यद्यहप‍उसका‍आिय‍य‍की‍मृत्‍यु‍ काररत‍
करिे‍का‍ि‍रिा‍िो‍।
(घ)‍क‍ककसी‍प्रहतिेतु‍के ‍हबिा‍व्‍यहक्‍तयों‍के ‍एक‍समूि‍पर‍भरी‍हुई‍तोप‍चिाता‍िै‍और‍उिमें‍से‍एक‍का‍वि‍कर‍देता‍िै‍।‍क‍ित्‍या‍
का‍दोषी‍िै,‍यद्यहप‍ककसी‍हवहिष्‍ट‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍की‍उसकी‍पूवतहचहन्‍तत‍पररक्‍पिा‍ि‍रिी‍िो‍।
अपवाद 1—आपराहिक‍मािव‍वि‍कब‍ित्‍या‍ििीं‍िै—आपराहिक‍मािव‍वि‍ित्‍या‍ििीं‍िै,‍यकद‍अपरािी‍उस‍समय‍जबकक‍वि‍
गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍से‍आत्‍म‍संयम‍की‍िहक्‍त‍से‍वंहचत‍िो,‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की,‍हजसिे‍कक‍वि‍प्रकोपि‍कदया‍था,‍मृत्‍यु‍काररत‍करे‍
या‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍भूि‍या‍दुघतटिावि‍काररत‍करे ‍।
ऊपर‍का‍अपवाद‍हिम्‍िहिहित‍परं तुकों‍के ‍अध्‍यिीि‍िै—
पििा—यि‍कक‍वि‍प्रकोपि‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍वि‍करिे‍ या‍अपिाहि‍करिे‍ के ‍हिए‍अपरािी‍द्वारा‍प्रहतिेतु‍ के ‍रूप‍में‍ ईहप्‍सत‍ि‍
िो‍या‍स्‍वेच्‍छया‍प्रकोहपत‍ि‍िो‍।
57

दूसरा—यि‍कक‍वि‍प्रकोपि‍ककसी‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍ि‍कदया‍गया‍िो‍जो‍कक‍हवहि‍के ‍पािि‍में‍ या‍िोक‍सेवक‍द्वारा‍ऐसे‍ िोक‍


सेवक‍की‍िहक्‍तयों‍के ‍हवहिपूणत‍प्रयोग‍में,‍की‍गई‍िो‍।
तीसरा—यि‍कक‍वि‍प्रकोपि‍ककसी‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍ि‍कदया‍गया‍िो,‍जो‍प्राइवेट‍प्रहतरक्षा‍के ‍अहिकार‍और‍हवहिपूणत‍ प्रयोग‍में‍
की‍गई‍िो‍।
स्‍पष्‍टीकरण—प्रकोपि‍इतिा‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍था‍या‍ििीं‍कक‍अपराि‍को‍ित्‍या‍की‍कोरट‍में‍ जािे‍ से‍ बचा‍दे,‍यि‍तथ्‍य‍का‍
प्रश्‍ि‍िै‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍द्वारा‍कदए‍गए‍प्रकोपि‍के ‍कारण‍प्रदीप्‍त‍आदेि‍के ‍असर‍में‍म‍का,‍जो‍य‍का‍हििु‍िै,‍क‍सािय‍वि‍करता‍िै‍।‍यि‍ित्‍या‍िै,‍
क्‍योंकक‍ प्रकोपि‍ उस‍ हििु‍ द्वारा‍ ििीं‍ कदया‍ गया‍ था‍ और‍ उस‍ हििु‍ की‍ मृत्‍यु‍ उस‍ प्रकोपि‍ से‍ ककए‍ गए‍ कायत‍ को‍ करिे‍ में‍ दुघतटिा‍ या‍
दुभातग्य
‍ ‍से‍ििीं‍हुई‍िै‍।
(ि)‍क‍को‍म‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍देता‍िै‍ ।‍क‍इस‍प्रकोपि‍से‍ म‍पर‍हपस्‍तौि‍चिाता‍िै,‍हजसमें‍ि‍तो‍उसका‍आिय‍य‍
का,‍जो‍समीप‍िी‍िै‍ककन्‍तु‍दृहष्‍ट‍से‍बािर‍िै,‍वि‍करिे‍का‍िै,‍और‍ि‍वि‍यि‍जािता‍िै‍कक‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍ कक‍वि‍य‍का‍वि‍कर‍दे‍ ।‍क,‍य‍
का‍वि‍करता‍िै‍।‍यिां‍क‍िे‍ित्‍या‍ििीं‍की‍िै,‍ककन्‍तु‍के वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍ककया‍िै‍।
(ग)‍ य‍ द्वारा,‍ जो‍ एक‍ बेहिि‍ िै,‍ क‍ हवहिपूवतक‍ हगरफ्तार‍ ककया‍ जाता‍ िै‍ ।‍ उस‍ हगरफ्तारी‍ के ‍ कारण‍ क‍ को‍ अचािक‍ और‍ तीव्र‍
आवेि‍आ‍जाता‍िै‍ और‍वि‍य‍का‍वि‍कर‍देता‍िै‍ ।‍यि‍ित्‍या‍िै,‍क्‍योंकक‍प्रकोपि‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍कदया‍गया‍था,‍जो‍एक‍िोक‍सेवक‍
द्वारा‍उसकी‍िहक्‍त‍के ‍प्रयोग‍में‍की‍गई‍थी‍।
(घ)‍य‍के ‍समक्ष,‍जो‍एक‍महजस्‍रेट‍िै,‍साक्षी‍के ‍रूप‍में‍ क‍उपसंजात‍िोता‍िै‍ ।‍य‍यि‍किता‍िै‍ कक‍वि‍क‍के ‍अहभसाक्ष्‍य‍के ‍एक‍
िब्‍द‍पर‍भी‍हवश्‍वास‍ििीं‍करता‍और‍यि‍कक‍क‍िे‍िपथ-भंग‍ककया‍िै‍।‍क‍को‍इि‍िब्‍दों‍से‍अचािक‍आवेि‍आ‍जाता‍िै‍और‍वि‍य‍का‍
वि‍कर‍देता‍िै‍।‍यि‍ित्‍या‍िै‍।
(ङ) य‍की‍िाक‍िींचिे‍ का‍प्रयत्‍ि‍क‍करता‍िै‍ ।‍य‍प्राइवेट‍प्रहतरक्षा‍के ‍अहिकार‍के ‍प्रयोग‍में‍ ऐसा‍करिे‍ से‍ रोकिे ‍ के ‍हिए‍क‍को‍
पक़ि‍ िेता‍ िै‍ ।‍ पररणामस्‍वरूप‍ क‍ को‍ अचािक‍ और‍ तीव्र‍ आवेि‍ आ‍ जाता‍ िै‍ और‍ वि‍ य‍ का‍ वि‍ कर‍ देता‍ िै‍ ।‍ यि‍ ित्‍या‍ िै,‍ क्‍योंकक‍
प्रकोपि‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍कदया‍गया‍था‍जो‍प्राइवेट‍प्रहतरक्षा‍के ‍अहिकार‍के ‍प्रयोग‍में‍की‍गई‍थी‍।
(च)‍ि‍पर‍य‍आघात‍करता‍िै‍।‍ि‍को‍इस‍प्रकोपि‍से‍तीव्र‍क्रोि‍आ‍जाता‍िै‍।‍क,‍जो‍हिकट‍िी‍ि़िा‍हुआ‍िै,‍ि‍के ‍क्रोि‍का‍िाभ‍
उठािे‍ और‍उससे‍ य‍का‍वि‍करािे‍ के ‍आिय‍से‍ उसके ‍िाथ‍में‍ एक‍छु री‍उस‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍दे‍ देता‍िै‍ ।‍ ि‍उस‍छु री‍से‍ य‍का‍वि‍कर‍
देता‍िै,‍यिां‍ि‍िे‍चािे‍के वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍िी‍ककया‍िो,‍ककन्‍तु‍क‍ित्‍या‍का‍दोषी‍िै‍।
अपवाद‍ 2—आपराहिक‍ मािव‍ वि‍ ित्‍या‍ ििीं‍ िै,‍ यकद‍ अपरािी,‍ िरीर‍ या‍ सम्‍पहत्त‍ की‍ प्राइवेट‍ प्रहतरक्षा‍ के ‍ अहिकार‍ को‍
सद्‍भावपूवतक‍ प्रयोग‍ में‍ िाते‍ हुए‍ हवहि‍ द्वारा‍ उसे‍ दी‍ गई‍ िहक्‍त‍ का‍ अहतक्रमण‍ कर‍ दे,‍ और‍ पूवतहचन्‍ति‍ हबिा‍ और‍ ऐसी‍ प्रहतरक्षा‍ के ‍
प्रयोजि‍से‍ हजतिी‍अपिाहि‍करिा‍आवश्‍यक‍िो‍उससे‍ अहिक‍अपिाहि‍करिे‍ के ‍ककसी‍आिय‍के ‍हबिा‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍ काररत‍कर‍
दे‍हजसके ‍हवरुद्ध‍वि‍प्रहतरक्षा‍का‍ऐसा‍अहिकार‍प्रयोग‍में‍िा‍रिा‍िो‍।
दृष्ट‍ ांत
क‍को‍चाबुक‍मारिे‍ का‍प्रयत्‍ि‍य‍करता‍िै,‍ककन्‍तु‍ इस‍प्रकार‍ििीं‍कक‍क‍को‍घोर‍उपिहत‍काररत‍िो‍।‍क‍एक‍हपस्‍तौि‍हिकाि‍
िेता‍िै‍।‍य‍िमिे‍को‍चािू‍रिता‍िै‍।‍क‍सद्‍भावपूवतक‍यि‍हवश्‍वास‍करते‍हुए‍कक‍वि‍अपिे‍को‍चाबुक‍िगाए‍जािे‍से‍ककसी‍अन्‍य‍सािि‍
द्वारा‍ििीं‍बचा‍सकता‍िै‍गोिी‍से‍य‍का‍वि‍कर‍देता‍िै‍।‍क‍िे‍ित्‍या‍ििीं‍की‍िै,‍ककन्‍तु‍के वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍ककया‍िै‍।
अपवाद 3—आपराहिक‍मािव‍वि‍ित्‍या‍ििीं‍िै,‍यकद‍अपरािी‍ऐसा‍िोक‍सेवक‍िोते‍हुए,‍या‍ऐसे‍िोक‍सेवक‍को‍मद्‍द‍देते‍हुए,‍
जो‍िोक‍न्‍याय‍की‍अग्रसरता‍में‍ कायत‍ कर‍रिा‍िै,‍उसे‍ हवहि‍द्वारा‍दी‍गई‍िहक्‍त‍से‍ आगे‍ बढ़‍जाए,‍और‍कोई‍ऐसा‍कायत‍ करके ‍हजसे‍ वि‍
हवहिपूणत‍और‍ऐसे‍िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍उसके ‍कततव्‍य ‍के ‍सम्‍यक् ,‍हिवतिि‍के ‍हिए‍आवश्‍यक‍िोिे‍का‍सद्‍भावपूवतक‍हवश्‍वास‍करता‍िै,‍और‍
उस‍व्‍यहक्‍त‍के ‍प्रहत,‍हजसकी‍कक‍मृत्‍यु‍काररत‍की‍गई‍िो,‍वैमिस्‍य‍के ‍हबिा‍मृत्‍यु‍काररत‍करे ‍।
अपवाद‍4—आपराहिक‍मािव‍वि‍ित्‍या‍ििीं‍िै,‍यकद‍वि‍मािव‍वि‍अचािक‍झग़िा‍जहित‍आवेि‍की‍तीव्रता‍में‍ हुई‍अचािक‍
ि़िाई‍में‍ पूवतहचन्‍ति‍हबिा‍और‍अपरािी‍द्वारा‍अिुहचत‍िाभ‍उठाए‍हबिा‍या‍क्रूरतापूणत‍ या‍अप्राहयक‍रीहत‍से‍ कायत‍ ककए‍हबिा‍ककया‍
गया‍िो‍।
स्‍पष्‍टीकरण—ऐसी‍दिाओं‍में‍यि‍तत्‍विीि‍िै‍कक‍कौि‍पक्ष‍प्रकोपि‍देता‍िै‍या‍पििा‍िमिा‍करता‍िै‍।
अपवाद‍5—आपराहिक‍मािव‍वि‍ित्‍या‍ििीं‍िै,‍यकद‍वि‍व्‍यहक्‍त‍हजसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍की‍जाए,‍अठारि‍वषत‍से‍अहिक‍आयु‍का‍
िोते‍हुए,‍अपिी‍सम्‍महत‍से‍मृत्‍यु‍िोिा‍सिि‍करे ,‍या‍मृत्‍यु‍की‍जोहिम‍उठाए‍।
58

दृष्ट‍ ांत
य‍को,‍जो‍अठारि‍वषत‍से‍ कम‍आयु‍का‍िै,‍उकसा‍कर‍क‍उससे‍स्‍वेच्‍छया‍आत्‍मित्‍या‍करवाता‍िै‍।‍यिां,‍कम‍उम्र‍िोिे‍ के ‍कारण‍य‍
अपिी‍मृत्‍यु‍के ‍हिए‍सम्‍महत‍देिे‍में‍असमथत‍था,‍इसहिए,‍क‍िे‍ित्‍या‍का‍दुष्‍प्रेरण‍ककया‍िै‍।
301.‍हजस‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्य ‍ ‍ु काररत‍करिे‍ का‍आिय‍था‍उससे‍ हभन्‍ि‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्य
‍ ‍ु करके ‍आपराहिक‍मािव‍वि—यकद‍कोई‍
व्‍यहक्‍त‍ कोई‍ ऐसी‍ बात‍ करिे‍ द्वारा,‍ हजससे‍ उसका‍ आिय‍ मृत्‍यु‍ काररत‍ करिा‍ िो,‍ या‍ हजससे‍ वि‍ जािता‍ िो‍ कक‍ मृत्‍यु‍ काररत‍ िोिा‍
सम्‍भाव्‍य‍िै,‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍काररत‍करके ,‍हजसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍का‍ि‍तो‍उसका‍आिय‍िो‍और‍ि‍वि‍यि‍संभाव्‍य‍जािता‍
िो‍कक‍वि‍उसकी‍मृत्‍यु‍ काररत‍करे गा,‍आपराहिक‍मािव‍वि‍करे ,‍तो‍अपरािी‍द्वारा‍ककया‍गया‍आपराहिक‍मािव‍वि‍उस‍भांहत‍का‍
िोगा‍हजस‍भांहत‍का‍वि‍िोता,‍यकद‍वि‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍काररत‍करता‍हजसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍करिा‍उसके ‍द्वारा‍आिहयत‍था‍या‍वि‍
जािता‍था‍कक‍उस‍द्वारा‍उसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍िोिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍।
302.‍ित्‍या‍के ‍हिए‍दण्‍ड—जो‍कोई‍ित्‍या‍करे गा,‍वि‍मृत्‍यु‍ या‍ 1[आजीवि‍कारावास]‍से‍ दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍ से‍ भी‍
दण्‍डिीय‍िोगा‍।
303.‍आजीवि‍हसद्धदोष‍द्वारा‍ित्‍या‍के ‍हिए‍दण्‍ड—जो‍कोई‍1[आजीवि‍कारावास]‍के ‍दण्‍डादेि‍के ‍अिीि‍िोते‍हुए‍ित्‍या‍करे गा,‍
वि‍मृत्‍यु‍से‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
304.‍ित्‍या‍की‍कोरट‍में‍ि‍आिे‍वािे‍आपराहिक‍मािव‍वि‍के ‍हिए‍दण्‍ड —जो‍कोई‍ऐसा‍आपराहिक‍मािव‍वि‍करे गा,‍जो‍ित्‍या‍
की‍कोरट‍में‍ ििीं‍आता‍िै,‍यकद‍वि‍कायत‍ हजसके ‍द्वारा‍मृत्‍यु‍ काररत‍की‍गई‍िै,‍मृत्‍यु‍ या‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत,‍हजससे‍ मृत्‍यु‍ िोिा‍संभाव्‍य‍
िै,‍काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ ककया‍जाए,‍तो‍वि‍ 1[आजीवि‍कारावास]‍से,‍या‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍
दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
अथवा‍यकद‍वि‍कायत‍ इस‍ज्ञाि‍के ‍साथ‍कक‍उससे‍ मृत्‍यु‍ काररत‍करिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै,‍ककन्‍तु‍ मृत्‍यु‍ या‍ऐसी‍िारीररक‍क्षहत,‍हजससे‍
मृत्‍यु‍ काररत‍करिा‍सम्‍भाव्‍य‍ िै,‍ काररत‍करिे‍ के ‍ककसी‍आिय‍ के ‍हबिा‍ककया‍जाए,‍तो‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍
हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
[304क.‍ उपेक्षा‍ द्वारा‍ मृत्य
2
‍ ु‍ काररत‍ करिा—जो‍ कोई‍ उताविेपि‍ से‍ या‍ उपेक्षापूणत‍ ककसी‍ ऐसे‍ कायत‍ से‍ ककसी‍ व्‍य हक्‍त‍ की‍ मृत्‍यु‍
काररत‍करे गा,‍जो‍आपराहिक‍मािव‍वि‍की‍कोरट‍में‍ ििीं‍आता,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍
तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।]
[304ि.‍दिेज‍मृत्य
3
‍ ु—‍(1) जिां‍ककसी‍स्‍त्री‍की‍मृत्‍यु‍ककसी‍दाि‍या‍िारीररक‍क्षहत‍द्वारा‍काररत‍की‍जाती‍िै‍या‍उसके ‍हववाि‍के ‍
सात‍वषत‍के ‍भीतर‍सामान्‍य‍पररहस्‍थहतयों‍से‍अन्‍यथा‍िो‍जाती‍िै‍और‍यि‍दर्ितत‍ककया‍जाता‍िै‍कक‍उसकी‍मृत्‍यु ‍के ‍कु छ‍पूवत‍उसके ‍पहत‍िे‍
या‍उसके ‍पहत‍के ‍ककसी‍िातेदार‍िे,‍दिेज‍की‍ककसी‍मांग‍के ‍हिए,‍या‍उसके ‍संबंि‍में,‍उसके ‍साथ‍क्रूरता‍की‍थी‍या‍उसे‍ तंग‍ककया‍था‍
विां‍ऐसी‍मृत्‍यु‍को‍“दिेज‍मृत्‍यु”‍किा‍जाएगा‍और‍ऐसा‍पहत‍या‍िातेदार‍उसकी‍मृत्‍यु‍काररत‍करिे‍वािा‍समझा‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—इस‍उपिारा‍के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍“दिेज”‍का‍विी‍अथत‍ िै‍ जो‍दिेज‍प्रहतषेि‍अहिहियम,‍1961 (1961 का 28)‍की‍
िारा‍2 में‍िै‍।
(2)‍ जो‍ कोई‍ दिेज‍ मृत्‍यु‍ काररत‍ करे गा‍ वि‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ सात‍ वषत‍ से‍ कम‍ की‍ ििीं‍ िोगी‍ ककन्‍तु‍ जो‍ आजीवि‍
कारावास‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।]
305.‍हििु‍ या‍उन्‍मत‍व्‍यहक्‍त‍की‍आत्‍मित्‍या‍का‍दुष्प्र ‍ ेरण—यकद‍कोई‍अठारि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ का‍व्‍यहक्‍त,‍कोई‍उन्‍मत‍व्‍यहक्‍त,‍
कोई‍ हवपयतस्‍तहचत्त‍ व्‍यहक्‍त,‍ कोई‍ ज़ि‍ व्‍यहक्‍त,‍ या‍ कोई‍ व्‍यहक्‍त,‍ जो‍ मत्तता‍ की‍ अवस्‍था‍ में‍ िै,‍ आत्‍मित्‍या‍ कर‍ िे‍ तो‍ जो‍ कोई‍ ऐसी‍
आत्‍मित्‍या‍के ‍ककए‍जािे‍ का‍दुष्‍प्रेरण‍करे गा,‍वि‍मृत्‍यु‍ या‍ 1[आजीवि‍कारावास]‍या‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍ से‍ अहिक‍की‍
ि‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
306.‍आत्‍मित्‍या‍का‍दुष्प्र
‍ रे ण—यकद‍कोई‍व्‍यहक्‍त‍आत्‍मित्‍या‍करे ,‍तो‍जो‍कोई‍ऐसी‍आत्‍मित्‍या‍का‍दुष्‍प्रेरण‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍
ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
307.‍ित्‍या‍करिे‍ का‍प्रयत्‍ि—जो‍कोई‍ककसी‍कायत‍ को‍ऐसे‍ आिय‍या‍ज्ञाि‍से‍ और‍ऐसी‍पररहस्‍थ हतयों‍में‍ करे गा‍कक‍यकद‍वि‍उस‍
कायत‍द्वारा‍मृत्‍यु‍ काररत‍कर‍देता‍तो‍वि‍ित्‍या‍का‍दोषी‍िोता,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍
की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍ से‍ भी‍दण्‍डिीय‍िोगा,‍और‍यकद‍ऐसे‍ कायत‍ द्वारा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍काररत‍िो‍
जाए,‍तो‍वि‍अपरािी‍या‍तो‍1[आजीवि‍कारावास]‍से‍या‍ऐसे‍दण्‍ड‍से‍दण्‍डिीय‍िोगा,‍जैसा‍एतहस्‍मिपूवत‍वर्णतत‍िै‍।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1870 के ‍अहिहियम‍सं०‍27 की‍िारा‍12 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
3
1986 के ‍अहिहियम‍सं० 43‍की‍िारा‍10 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
59

आजीवि‍ हसद्धदोष‍ द्वारा‍ प्रयत्‍ि—1[जब‍ कक‍ इस‍ िारा‍ में‍ वर्णतत‍ अपराि‍ करिे‍ वािा‍ कोई‍ व्‍यहक्‍त‍ 2[आजीवि‍ कारावास]‍ के ‍
दण्‍डादेि‍के ‍अिीि‍िो,‍तब‍यकद‍उपिहत‍काररत‍हुई‍िो,‍तो‍वि‍मृत्‍यु‍से‍दहण्‍डत‍ककया‍जा‍सके गा‍।]
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍का‍वि‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ क‍उस‍पर‍ऐसी‍पररहस्‍थहतयों‍में‍गोिी‍चिाता‍िै‍कक‍यकद‍मृत्‍यु‍िो‍जाती,‍तो‍क‍ित्‍या‍का‍दोषी‍
िोता‍।‍क‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍दण्‍डिीय‍िै‍।
(ि)‍क‍कोमि‍वयस‍के ‍हििु‍ की‍मृत्‍यु‍ करिे‍ के ‍आिय‍से‍ उसे‍ एक‍हिजति‍स्‍थाि‍में‍ अरहक्षत‍छो़ि‍देता‍िै‍ ।‍क‍िे‍ उस‍िारा‍द्वारा‍
पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै,‍यद्यहप‍पररणामस्‍वरूप‍उस‍हििु‍की‍मृत्‍यु‍ििीं‍िोती‍।
(ग)‍य‍की‍ित्‍या‍का‍आिय‍रिते‍ हुए‍क‍एक‍बन्‍दक ू ‍िरीदता‍िै‍ और‍उसको‍भरता‍िै‍ ।‍क‍िे‍ अभी‍तक‍अपराि‍ििीं‍ककया‍िै‍ ।‍य‍
पर‍क‍बन्‍दक
ू ‍चिाता‍िै‍ ।‍उसिे‍इस‍िारा‍में‍पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै ,‍यकद‍इस‍प्रकार‍गोिी‍मार‍कर‍वि‍य‍को‍घायि‍कर‍देता‍िै,‍
तो‍वि‍इस‍िारा‍3[के ‍प्रथम‍पैरे]‍के ‍हपछिे‍भाग‍द्वारा‍उपबहन्‍ित‍दण्‍ड‍से‍दण्‍डिीय‍िै‍।
(घ)‍हवष‍द्वारा‍य‍की‍ित्‍या‍करिे‍ का‍आिय‍रिते‍ हुए‍क‍हवष‍िरीदता‍िै,‍और‍उसे‍ उस‍भोजि‍में‍ हमिा‍देता‍िै,‍जो‍क‍के ‍अपिे‍
पास‍रिता‍िै,‍क‍िे‍ इस‍िारा‍में‍ पररभाहषत‍अपराि‍अभी‍तक‍ििीं‍ककया‍िै‍ ।‍क‍उस‍भोजि‍को‍य‍की‍मेज‍पर‍रिता‍िै,‍या‍उसको‍य‍
की‍मेज‍पर‍रििे‍के ‍हिए‍य‍के ‍सेवकों‍को‍पररदत्त‍करता‍िै‍।‍क‍िे‍इस‍िारा‍में‍पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै‍।
308.‍आपराहिक‍मािव‍वि‍करिे‍ का‍प्रयत्‍ि—जो‍कोई‍ककसी‍कायत‍ को‍ऐसे‍ आिय‍या‍ज्ञाि‍से‍ और‍ऐसी‍पररहस्‍थ हतयों‍में‍ करे गा‍
कक‍यकद‍उस‍कायत‍से‍वि‍मृत्‍यु‍काररत‍कर‍देता,‍तो‍वि‍ित्‍या‍की‍कोरट‍में‍ि‍आिे‍वािे‍आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍दोषी‍िोता,‍वि‍दोिों‍
में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍या‍दोिों‍से,‍दंहडत‍ककया‍जाएगा‍;‍और‍
यकद‍ऐसे‍कायत‍द्वारा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍िो‍जाए‍तो‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍
िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
दृष्ट‍ ांत
क‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍पर,‍ऐसी‍पररहस्‍थहतयों‍में,‍य‍पर‍हपस्‍तौि‍चिाता‍िै‍कक‍यकद‍तद्‍द्वारा‍वि‍मृत्‍यु‍काररत‍कर‍देता‍
तो‍वि‍ित्‍या‍की‍कोरट‍में‍ि‍आिे‍वािे‍आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍दोषी‍िोता‍।‍क‍िे‍इस‍िारा‍में‍पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै‍।
309.‍ आत्‍मित्‍या‍ करिे‍ का‍ प्रयत्‍ि—जो‍ कोई‍ आत्‍मित्‍या‍ करिे‍ का‍ प्रयत्‍ि‍ करे गा,‍ और‍ उस‍ अपराि‍ के ‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ कोई‍ कायत‍
करे गा,‍वि‍सादा‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍4[या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,]‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
310.‍ठग—जो‍कोई‍इस‍अहिहियम‍के ‍पाररत‍िोिे‍ के ‍पश्‍चात्‍ककसी‍समय‍ित्‍या‍द्वारा‍या‍ित्‍या‍सहित‍िूट‍या‍हििुओं‍की‍चोरी‍
करिे‍के ‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍या‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍तयों‍से‍अभ्‍यासत:‍सियुक्‍त‍रिता‍िै‍वि‍ठग‍िै‍।
311.‍दण्‍ड—जो‍कोई‍ठग‍िोगा,‍वि‍2[आजीवि‍कारावास]‍से‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
गभतपात‍काररत‍करिे,‍अजात‍हििुओं‍को‍क्षहत‍काररत‍करिे,‍हििुओं‍को‍अरहक्षत‍छो़ििे‍और‍जन्‍म‍हछपािे‍के ‍हवषय‍में
312.‍गभतपात‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍गभतवती‍स्‍त्री‍का‍स्‍वेच्‍छया‍गभतपात‍काररत‍करे गा,‍यकद‍ऐसा‍गभतपात‍उस‍स्‍त्री‍का‍जीवि‍
बचािे‍के ‍प्रयोजि‍से‍ सद्‍भावपूवतक,‍काररत‍ि‍ककया‍जाए,‍तो‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍तक‍
की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा,‍और‍यकद‍वि‍स्‍त्री‍स्‍पन्‍दिगभात‍ िो,‍तो‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍
कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—जो‍स्‍त्री‍स्‍वयं‍अपिा‍गभतपात‍काररत‍करती‍िै,‍वि‍इस‍िारा‍के ‍अथत‍के ‍अन्‍तगतत‍आती‍िै‍।
313.‍स्‍त्री‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍गभतपात‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍उस‍स्‍त्री‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा,‍चािे‍वि‍स्‍त्री‍स्‍पन्‍दिगभात‍ िो‍या‍
ििीं,‍पूवतवती‍अहन्‍तम‍िारा‍में‍ पररभाहषत‍अपराि‍करे गा,‍वि‍ 2[आजीवि‍कारावास]‍से,‍या‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍
हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा,‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
314.‍गभतपात‍काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ ककए‍गए‍कायों‍द्वारा‍काररत‍मृत्य ‍ ु —जो‍कोई‍गभतवती‍स्‍त्री‍का‍गभतपात‍काररत‍करिे‍ के ‍
आिय‍से‍ कोई‍ऐसा‍कायत‍ करे गा,‍हजससे‍स्‍त्री‍की‍मृत्‍यु‍ काररत‍िो‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍
वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
यकद‍ वि‍ कायत‍ स्‍त्री‍ की‍ सम्‍महत‍ के ‍ हबिा‍ ककया‍ जाए—और‍ यकद‍ वि‍ कायत‍ उस‍ स्‍त्री‍ की‍ सम्‍महत‍ के ‍ हबिा‍ ककया‍ जाए,‍ तो‍ वि‍
2
[आजीवि‍कारावास]‍से,‍या‍ऊपर‍बताए‍हुए‍दण्‍ड‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—इस‍अपराि‍के ‍हिए‍यि‍आवश्‍यक‍ििीं‍िै‍कक‍अपरािी‍जािता‍िो‍कक‍उस‍कायत‍से‍मृत्‍यु‍काररत‍करिा‍संभाव्‍य‍िै‍।‍

1
1870 के ‍अहिहियम‍सं०‍27 की‍िारा‍11 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1891 के ‍अहिहियम‍सं०‍12 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
4
1882 के ‍अहिहियम‍सं०‍8 की‍िारा 7‍द्वारा‍“और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
60

315.‍हििु‍ का‍जीहवत‍पैदा‍िोिा‍रोकिे‍ या‍जन्‍म ‍के ‍पश्‍चात्‍ उसकी‍मृत्य


‍ ‍ु काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ ककया‍गया‍कायत—जो‍कोई‍
ककसी‍हििु‍ के ‍जन्‍म‍से‍ पूवत‍ कोई‍कायत‍ इस‍आिय‍से‍ करे गा‍कक‍उस‍हििु‍ का‍जीहवत‍पैदा‍िोिा‍तद्‍द्वारा‍रोका‍जाए‍या‍जन्‍म‍के ‍पश्‍चात्‍
तद्‍द्वारा‍उसकी‍मृत्‍यु‍ काररत‍िो‍जाए,‍और‍ऐसे‍ कायत‍ से‍ उस‍हििु‍ का‍जीहवत‍पैदा‍िोिा‍रोके गा,‍या‍उसके ‍जन्‍म‍के ‍पश्‍चात्‍ उसकी‍मृत्‍य‍ु
काररत‍कर‍देगा,‍यकद‍वि‍कायत‍ माता‍के ‍जीवि‍को‍बचािे‍ के ‍प्रयोजि‍से‍ सद्‍भावपूवतक‍ििीं‍ककया‍गया‍िो,‍तो‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍
भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
316.‍ऐसे‍ कायत‍ द्वारा‍जो‍आपराहिक‍ मािव‍वि‍की‍कोरट‍में‍ आता‍िै,‍ककसी‍सजीव‍अजात‍हििु‍ की‍मृत्य ‍ ु‍ काररत‍करिा—जो‍
कोई‍ऐसा‍कोई‍कायत‍ ऐसी‍पररहस्‍थ हतयों‍में‍ करे गा‍कक‍यकद‍वि‍तद्‍द्वारा‍मृत्‍यु‍ काररत‍कर‍देता,‍तो‍वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍का‍दोषी‍
िोता‍और‍ऐसे‍कायत‍द्वारा‍ककसी‍सजीव‍अजात‍हििु‍की‍मृत्‍यु ‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍
दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा,‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
दृष्ट‍ ांत
क,‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍कक‍वि‍गभतवती‍स्‍त्री‍की‍मृत्‍यु‍ काररत‍कर‍दे,‍ऐसा‍कायत‍ करता‍िै,‍जो‍यकद‍उससे‍ उस‍स्‍त्री‍की‍मृत्‍यु‍
काररत‍िो‍जाती,‍तो‍वि‍आपराहिक‍मािव‍वि‍की‍कोरट‍में‍ आता‍।‍उस‍ स्‍त्री‍को‍क्षहत‍िोती‍िै,‍ककन्‍तु‍ उसकी‍मृत्‍यु‍ ििीं‍िोती,‍ककन्‍त‍ु
तद्‍द्वारा‍उस‍अजात‍सजीव‍हििु‍की‍मृत्‍यु‍िो‍जाती‍िै,‍जो‍उसके ‍गभत‍में‍िै‍।‍क‍इस‍िारा‍में‍पररभाहषत‍अपराि‍का‍दोषी‍िै‍।
317.‍हििु‍ के ‍हपता‍या‍माता‍या‍उसकी‍देिरे ि‍रििे‍ वािे‍ व्‍य हक्‍त‍द्वारा‍बारि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ के ‍हििु‍ का‍अरहक्षत‍डाि‍कदया‍
जािा‍और‍पररत्‍याग—जो‍कोई‍बारि‍वषत‍से‍कम‍आयु‍के ‍हििु‍का‍हपता‍या‍माता‍िोते‍हुए,‍या‍ऐसे‍हििु‍की‍देिरे ि‍का‍भार‍रिते‍हुए,‍
ऐसे‍ हििु‍ का‍पूणतत:‍पररत्‍याग‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ उस‍हििु‍ को‍ककसी‍स्‍थाि‍में‍ अरहक्षत‍डाि‍देगा‍या‍छो़ि‍देगा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍
भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—यकद‍हििु‍ अरहक्षत‍डाि‍कदए‍जािे‍ के ‍पररणामस्‍वरूप‍मर‍जाए,‍तो,‍यथाहस्‍थहत,‍ित्‍या‍या‍आपराहिक‍मािव‍वि‍
के ‍हिए‍अपरािी‍का‍हवचारण‍हिवाररत‍करिा‍इस‍िारा‍से‍आिहयत‍ििीं‍िै‍।
318.‍ मृत‍ िरीर‍ के ‍ गुप्त
‍ ‍ व्ययि‍ द्वारा‍ जन्‍म‍ हछपािा—जो‍ कोई‍ ककसी‍ हििु‍ के ‍ मृत‍ िरीर‍ को‍ गुप्‍त‍ रूप‍ से‍ गा़िकर‍ या‍ अन्‍यथा‍
उसका‍व्‍ययि‍करके ,‍चािे‍ ऐसे‍ हििु‍ की‍मृत्‍यु‍ उसके ‍जन्‍म‍से‍ पूवत‍ या‍पश्‍चात्‍ या‍जन्‍म‍के ‍दौराि‍में‍ हुई‍िो,‍ऐसे‍ हििु‍ के ‍जन्‍म‍को‍सािय‍
हछपाएगा‍ या‍ हछपािे‍ का‍ प्रयास‍करे गा,‍ वि‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ दो‍ वषत‍ तक‍ की‍ िो‍ सके गी,‍ या‍
जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
उपिहत‍के ‍हवषय‍में
319.‍उपिहत—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍िारीररक‍पी़िा,‍रोग‍या‍अंग-िैहथ्‍य‍काररत‍करता‍िै,‍वि‍उपिहत‍करता‍िै,‍यि‍किा‍
जाता‍िै‍।
320.‍घोर‍उपिहत—उपिहत‍की‍के वि‍िीचे‍हििी‍ककस्‍में‍“घोर”‍कििाती‍िैं—
पििा—पुंस्‍त्‍विरण‍।
दूसरा—दोिों‍में‍से‍ककसी‍भी‍िेत्र‍की‍दृहष्‍ट‍का‍स्‍थायी‍हवच्‍छेद‍।
तीसरा—दोिों‍में‍से‍ककसी‍भी‍काि‍की‍श्रवणिहक्‍त‍का‍स्‍थायी‍हवच्‍छेद‍।
चौथा—ककसी‍भी‍अंग‍या‍जो़ि‍का‍हवच्‍छेद‍।
पांचवां—ककसी‍भी‍अंग‍या‍जो़ि‍की‍िहक्‍तयों‍का‍िाि‍या‍स्‍थायी‍ह्रास‍।
छठा—हसर‍या‍चेिरे ‍का‍स्‍थायी‍हवरूहपकरण‍।
सातवां—अहस्‍थ‍या‍दांत‍का‍भंग‍या‍हवसंिाि‍।
आठवां—कोई‍ उपिहत‍ जो‍ जीवि‍ का‍ संकटापन्‍ि‍ करती‍ िै‍ या‍ हजसके ‍ कारण‍ उपित‍ व्‍यहक्‍त‍ बीस‍ कदि‍ तक‍ तीव्र‍
िारीररक‍पी़िा‍में‍रिता‍िै‍या‍अपिे‍मामूिी‍कामकाज‍को‍करिे‍के ‍हिए‍असमथत‍रिता‍िै‍।
321.‍स्‍वेच्छ
‍ या‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍ककसी‍कायत‍को‍इस‍आिय‍से‍करता‍िै‍कक‍तद्‍द्वारा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍
काररत‍करे ‍ या‍इस‍ज्ञाि‍के ‍साथ‍करता‍िै‍ कक‍यि‍संभाव्‍य‍िै‍ कक‍वि‍तद्‍द्वारा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍काररत‍करे ‍ और‍तद्‍द्वारा‍ककसी‍
व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍काररत‍करता‍िै,‍वि‍“स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍करता‍िै”,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
322.‍स्‍वेच्छ
‍ या‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करता‍िै,‍यकद‍वि‍उपिहत,‍हजसे‍काररत‍करिे‍
का‍उसका‍आिय‍िै‍ या‍हजसे‍ वि‍जािता‍िै‍ कक‍उसके ‍द्वारा‍उसका‍ककया‍जािा‍सम्‍भाव्‍य‍िै‍ घोर‍उपिहत‍िै,‍और‍यकद‍वि‍उपिहत,‍जो‍
वि‍काररत‍करता‍िै,‍घोर‍उपिहत‍को,‍तो‍वि‍“स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍करता‍िै”,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
स्‍पष्‍टीकरण—कोई‍व्‍यहक्‍त‍स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करता‍िै,‍यि‍ििीं‍किा‍जाता‍िै‍ हसवाय‍जबकक‍वि‍घोर‍उपिहत‍
काररत‍करता‍िै‍ और‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिे‍ का‍उसका‍आिय‍िो‍या‍घोर‍उपिहत‍काररत‍िोिा‍वि‍सम्‍भाव्‍य‍जािता‍िो‍।‍ककन्‍तु‍
61

यकद‍वि‍यि‍आिय‍रिते‍ हुए‍या‍यि‍संभाव्‍य‍जािते‍ हुए‍कक‍वि‍ककसी‍एक‍ककस्‍म‍की‍घोर‍उपिहत‍काररत‍कर‍दे‍ वास्‍तव‍में‍ दूसरी‍िी‍


ककस्‍म‍की‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करता‍िै,‍तो‍वि‍स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।

दृष्ट‍ ांत
क,‍यि‍आिय‍रिते‍ हुए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍कक‍वि‍य‍के ‍चेिरे ‍ को‍स्‍थायी‍रूप‍से‍ हवरूहपत‍कर‍दे,‍य‍के ‍चेिरे ‍ पर‍
प्रिार‍ करता‍ िै‍ हजससे‍ य‍ का‍ चेिरा‍ स्‍थायी‍ रूप‍ से‍ हवरूहपत‍ तो‍ ििीं‍ िोता,‍ ककन्‍तु‍ हजससे‍ य‍ को‍ बीस‍ कदि‍ तक‍ तीव्र‍ िारीररक‍ पी़िा‍
काररत‍िोती‍िै‍।‍क‍िे‍स्‍वच्े ‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍की‍िै‍।
323.‍ स्‍वच्े ‍छया‍ उपिहत‍ काररत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ दण्‍ड—उस‍ दिा‍ के ‍ हसवाय,‍ हजसके ‍ हिए‍ िारा‍ 334‍ में‍ उपबंि‍ िै,‍ जो‍ कोई‍
स्‍वच्े ‍छया‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍
जो‍एक‍िजार‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
324.‍ितरिाक‍आयुिों‍या‍साििों‍द्वारा‍स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करिा—उस‍दिा‍के ‍हसवाय,‍हजसके ‍हिए‍िारा‍334‍में‍
उपबंि‍िै,‍जो‍कोई‍असि,‍वेिि‍या‍काटिे‍ के ‍ककसी‍उपकरण‍द्वारा‍या‍ककसी‍ऐसे‍ उपकरण‍द्वारा‍जो‍यकद‍आक्रामक‍आयुि‍के ‍तौर‍पर‍
उपयोग‍में‍िाया‍जाए,‍तो‍उससे‍मृत्‍यु‍काररत‍िोिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै,‍या‍अहग्‍ि‍या‍ककसी‍तप्‍त‍पदाथत‍द्वारा,‍या‍ककसी‍हवष‍या‍ककसी‍संक्षारक‍
पदाथत‍द्वारा‍या‍ककसी‍हवस्‍िोटक‍पदाथत‍द्वारा‍या‍ककसी‍ऐसे‍पदाथत‍द्वारा,‍हजसका‍श्‍वास‍में‍जािा‍या‍हिगििा‍या‍रक्‍त‍में‍पहुंचिा‍मािव‍
िरीर‍के ‍हिए‍िाहिकारक‍िै,‍या‍ककसी‍जीवजन्‍तु‍ द्वारा‍स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍
हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
325.‍स्‍वेच्छ
‍ या‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिे‍ के ‍हिए‍दण्‍ड—उस‍दिा‍के ‍हसवाय,‍हजसके ‍हिए‍िारा‍335‍में‍ उपबंि‍िै,‍जो‍कोई‍
स्‍वच्े ‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍
ककया‍जाएगा,‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
326.‍ितरिाक‍आयुिों‍या‍साििों‍द्वारा‍स्‍वेच्छ
‍ या‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिा—उस‍दिा‍के ‍हसवाय,‍हजसके ‍हिए‍िारा‍335‍
में‍उपबंि‍िै,‍जो‍कोई‍असि,‍वेिि‍या‍काटिे‍के ‍ककसी‍उपकरण‍द्वारा‍या‍ककसी‍ऐसे‍उपकरण‍द्वारा,‍जो‍यकद‍आक्रामक‍आयुि‍के ‍तौर‍पर‍
उपयोग‍में‍िाया‍जाए,‍तो‍उससे‍मृत्‍यु‍काररत‍िोिा‍सम्‍भाव्‍य‍िै,‍या‍अहग्‍ि‍या‍ककसी‍तप्‍त‍पदाथत‍द्वारा,‍या‍ककसी‍हवष‍या‍संक्षारक‍पदाथत‍
द्वारा,‍या‍ककसी‍हवस्‍िोटक‍पदाथत‍ द्वारा,‍या‍ककसी‍ऐसे‍ पदाथत‍ द्वारा,‍हजसका‍श्‍वास‍में‍ जािा‍या‍हिगििा‍या‍रक्‍त‍में‍ पहुंचिा‍मािव‍
िरीर‍के ‍हिए‍िाहिकारक‍िै,‍या‍ककसी‍जीवजन्‍तु‍ द्वारा‍स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍ 1[आजीवि‍कारावास] से,‍या‍दोिों‍में‍
से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।

[326क.‍अम्‍ि‍आकद‍का‍प्रयोग‍करके ‍स्‍वेच्छ
2
‍ या‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो कोई ककसी व्यहक्‍त के िरीर के ककसी भाग या
ककन्िीं भागों को उस व्यहक्‍त पर अम्ि िें ककर या उसे अम्ि देकर या ककन्िीं अन्य साििों का‍प्रयोग‍करके , ऐसा काररत करिे के आिय
या ज्ञाि से कक संभाव्य िै उिसे ऐसी क्षहत या उपिहत काररत िो, स्थायी या आंहिक िुकसाि काररत‍करे गा या अंगहवकार करे गा या
जिाएगा या हवकिांग बिाएगा या हवरूहपत करे गा या हि:िक्‍त बिाएगा या घोर उपिहत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा :‍

परं तु ऐसा जुमातिा पीह़ित के उपचार के हचककत्सीय िचों को पूरा करिे के हिए न्यायोहचत और युहक्‍तयुक्‍त िोगा :
परं तु यि और कक इस िारा के अिीि अहिरोहपत कोई जुमातिा पीह़ित को संदत्त ककया जाएगा ।

326ि. स्‍वेच्छ
‍ या‍ अम्‍ि‍ िें किा‍ या‍ िें किे‍ का‍ प्रयत्‍ि‍ करिा—जो कोई, ककसी व्यहक्‍त को स्थायी या आंहिक िुकसाि काररत
करिे या उसका अंगहवकार करिे या जिािे या हवकिांग बिािे या हवरूहपत करिे या हि:िक्‍त बिािे या घोर उपिहत काररत करिे के
आिय से उस व्यहक्‍त पर अम्ि िें के गा या िें किे का प्रयत्‍ि करे गा या ककसी व्यहक्‍त को अम्ि देगा या अम्ि देिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों
में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत से कम की ििीं िोगी ककन्तु जो सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।

स्पष्‍टीकरण 1—िारा 326क और इस िारा के प्रयोजिों के हिए “अम्ि” में कोई ऐसा पदाथत सहम्महित िै जो ऐसे अम्िीय या
संक्षारक स्वरूप या ज्विि प्रकृ हत का िै, जो ऐसी िारीररक क्षहत करिे योग्य िै, हजससे क्षतहचह्ि बि जाते िैं या हवरूपता या अस्थायी
या स्थायी हि:िक्‍तता िो जाती िै ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
2013 के ‍अहिहियम‍के ‍सं०‍13 की‍िारा‍5 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
62

स्पष्‍टीकरण 2—िारा 326क और इस िारा के प्रयोजिों के हिए स्थायी या आंहिक िुकसाि या अंगहवकार का अपररवततिीय
िोिा आवश्यक ििीं िोगा ।]‍
327.‍संपहत्त‍उद्दाहपत‍करिे‍के ‍हिए‍या‍अवैि‍कायत‍करािे‍को‍मजबूर‍करिे‍के ‍हिए‍स्‍वे च्छ
‍ या‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍
इस‍प्रयोजि‍से‍ स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करे गा‍कक‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍से,‍या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से,‍कोई‍सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍
प्रहतभूहत‍उद्दाहपत‍की‍जाए‍या‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍को‍या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍कोई‍ऐसी‍बात,‍जो‍अवैि‍िो,‍या‍हजससे‍ ककसी‍
अपराि‍का‍ककया‍जािा‍सुकर‍िोता‍िो,‍करिे‍ के ‍हिए‍मजबूर‍ककया‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍
दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
328.‍ अपराि‍ करिे‍ के ‍ आिय‍ से‍ हवष‍ इत्‍याकद‍ द्वारा‍ उपिहत‍ काररत‍ करिा—जो‍ कोई‍ इस‍ आिय‍ से‍ कक‍ ककसी‍ व्‍यहक्‍त‍ की‍
उपिहत‍काररत‍की‍जाए‍या‍अपराि‍करिे‍ के ,‍या‍ककए‍जािे‍ को‍सुकर‍बिािे‍ के ‍आिय‍से,‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍कक‍वि‍तद्‍द्वारा‍
उपिहत‍काररत‍करे गा,‍कोई‍हवष‍या‍जह़िमाकारी,‍ििा‍करिे‍ वािी‍या‍अस्‍वास्‍थ्‍यकर‍ओषहि‍या‍अन्‍य‍चीज‍उस‍व्‍यहक्‍त‍को‍देगा‍या‍
उसके ‍द्वारा‍हिया‍जािा‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍
ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
329.‍ सम्‍पहत्त‍ उद्दाहपत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ या‍ अवैि‍ कायत‍ करािे‍ को‍ मजबूर‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ स्‍वे च्छ
‍ या‍ घोर‍ उपिहत‍ काररत‍‍‍‍
करिा—जो‍कोई‍इस‍प्रयोजि‍से‍ स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा‍कक‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍से‍ या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से‍ कोई‍
सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍उद्दाहपत‍की‍जाए‍या‍उपित‍व्‍य हक्‍त‍को‍या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍कोई‍ऐसी‍बात,‍जो‍अवैि‍
िो‍या‍हजससे‍ ककसी‍अपराि‍का‍ककया‍जािा‍सुकर‍िोता‍िो,‍करिे‍ के ‍हिए‍मजबूर‍ककया‍जाए,‍वि‍ 1[आजीवि‍कारावास] से,‍या‍दोिों‍
में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
330.‍संस्व
‍ ीकृ हत‍उद्दाहपत‍करिे‍ या‍हववि‍करके ‍संपहत्त‍का‍प्रत्‍यावतति‍करािे‍ के ‍हिए‍स्‍वेच्छ
‍ या‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍
कोई‍इस‍प्रयोजि‍से‍ स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करे गा‍कक‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍से‍ या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्यहक्‍त‍से‍ कोई‍संस्‍वीकृ हत‍या‍कोई‍
जािकारी,‍हजससे‍ ककसी‍अपराि‍अथवा‍अवचार‍का‍पता‍चि‍सके ,‍उद्दाहपत‍की‍जाए‍अथवा‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍या‍उससे‍ हितबद्ध‍व्‍यहक्‍त‍
को‍मजबूर‍ककया‍जाए‍कक‍वि‍कोई‍सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍प्रत्‍यावर्ततत‍करे ,‍या‍करवाए,‍या‍ककसी‍दावे‍ या‍मांग‍की‍पुहष्‍ट,‍या‍
ऐसी‍जािकारी‍दे,‍हजससे‍ककसी‍सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍का‍प्रत्‍यावतति‍कराया‍जा‍सके ,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍
से,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍क,‍एक‍पुहिस‍आकिसर,‍य‍को‍यि‍संस्‍वीकृ हत‍करिे‍ को‍कक‍उसिे‍ अपराि‍ककया‍िै‍ उत्‍प्रे ररत‍करिे‍ के ‍हिए‍यातिा‍देता‍‍‍
िै‍।‍क‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अपराि‍का‍दोषी‍िै‍।
(ि)‍क,‍एक‍पुहिस‍आकिसर,‍यि‍बतिािे‍को‍कक‍अमुक‍चुराई‍हुई‍सम्‍पहत्त‍किां‍रिी‍िै‍ उत्‍प्रेररत‍करिे‍ के ‍हिए‍ि‍को‍यातिा‍
देता‍िै‍।‍क‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अपराि‍का‍दोषी‍िै‍।
(ग)‍क,‍एक‍राजस्‍व‍आकिसर,‍राजस्‍व‍की‍वि‍बकाया,‍जो‍य‍द्वारा‍िोध्‍य‍िै,‍देिे‍ को‍य‍को‍हववि‍करिे‍ के ‍हिए‍उसे‍ यातिा‍
देता‍िै‍।‍क‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अपराि‍का‍दोषी‍िै‍।
(घ)‍क,‍एक‍जमींदार,‍भाटक‍देिे‍को‍हववि‍करिे‍के ‍हिए‍अपिी‍एक‍रै यत‍को‍यातिा‍देता‍िै‍।‍क‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अपराि‍
का‍दोषी‍िै‍।
331.‍संस्‍वीकृ हत‍उद्दाहपत‍करिे‍ के ‍हिए‍या‍हववि‍करके ‍सम्‍प हत्त‍का‍प्रत्‍यावतति‍करािे‍ के ‍हिए‍स्‍वच्े ‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍
करिा—जो‍कोई‍इस‍प्रयोजि‍से‍ स्‍वेच्‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा‍कक‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍से‍ या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से‍ कोई‍
संस्‍वीकृ हत‍या‍कोई‍जािकारी,‍हजससे‍ कक‍ककसी‍अपराि‍अथवा‍अवचार‍का‍पता‍चि‍सके ,‍उद्दाहपत‍की‍जाए‍अथवा‍उपित‍व्‍यहक्‍त‍या‍
उससे‍हितबद्ध‍व्‍यहक्‍त‍को‍मजबूर‍ककया‍जाए‍कक‍वि‍कोई‍सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍प्रत्‍यावर्ततत‍करे ‍या‍करवाए,‍या‍ककसी‍दावे‍या‍
मांग‍की‍पुहष्‍ट‍करे ,‍या‍ऐसी‍जािकारी‍दे,‍हजससे‍ ककसी‍सम्‍पहत्त‍या‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍का‍प्रत्‍यावतति‍कराया‍जा‍सके ,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍
ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
332.‍िोक‍सेवक‍को‍अपिे‍ कततव्य ‍ ‍से‍ भयोपरत‍करिे‍ के ‍हिए‍स्‍वेच्‍छया‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍ककसी‍ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍
को,‍जो‍िोक‍सेवक‍िो,‍उस‍समय‍जब‍वि‍वैसे‍ िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍ अपिे‍ कततव्‍य ‍का‍हिवतिि‍कर‍रिा‍िो‍अथवा‍इस‍आिय‍से‍ कक‍उस‍
व्‍यहक्‍त‍को‍या‍ककसी‍अन्‍य‍िोक‍सेवक‍को,‍वैसे‍ िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍ उसके ‍अपिे‍ कततव्‍य‍के ‍हवहिपूणत‍ हिवतिि‍से‍ हिवाररत‍या‍भयोपरत‍
करे ‍ अथवा‍वैसे‍ िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍ उस‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍अपिे‍ कततव्‍य‍के ‍हवहिपूणत‍ हिवतिि‍में‍ की‍गई‍या‍ककए‍जािे‍ के ‍हिए‍प्रयहतत‍ककसी‍
बात‍के ‍पररणामस्‍वरूप‍स्‍वच्े ‍छया‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍ तक‍की‍
िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
333.‍ िोक‍ सेवक‍ को‍ अपिे‍ कततव्य
‍ ों‍ से‍ भयोपरत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ स्‍वेच्‍छया‍ घोर‍ उपिहत‍ काररत‍ करिा—जो‍ कोई‍ ककसी‍ ऐसे‍
व्‍यहक्‍त‍को,‍जो‍िोक‍सेवक‍िो,‍उस‍समय‍जब‍वि‍वैसे‍िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍अपिे‍कततव्‍य‍का‍हिवतिि‍कर‍रिा‍िो‍अथवा‍इस‍आिय‍से‍कक‍

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
63

उस‍व्‍यहक्‍त‍को,‍या‍ककसी‍अन्‍य‍िोक‍सेवक‍को‍वैसे‍ िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍ उसके ‍अपिे‍ कततव्‍य ‍के ‍हिवतिि‍से‍ हिवाररत‍या‍भयोपरत‍करे ‍


अथवा‍वैसे‍िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍उस‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍अपिे‍कततव्‍य‍के ‍हवहिपूणत‍हिवतिि‍में‍की‍गई‍या‍ककए‍जािे‍के ‍हिए‍प्रयहतत‍ककसी‍बात‍
के ‍पररणामस्‍वरूप‍स्‍वच्े ‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍
सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
334.‍ प्रकोपि‍ पर‍ स्‍वेच्छ
‍ या‍ उपिहत‍ काररत‍ करिा—जो‍ कोई‍ गम्‍भीर‍ और‍ अचािक‍ प्रकोपि‍ पर‍ स्‍वेच्‍छया‍ उपिहत‍ काररत‍
करे गा,‍यकद‍ि‍तो‍उसका‍आिय‍उस‍व्‍यहक्‍त‍से‍ हभन्‍ि,‍हजसिे‍ प्रकोपि‍कदया‍था,‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍काररत‍करिे‍ का‍िो‍और‍ि‍
वि‍अपिे‍ द्वारा‍ऐसी‍उपिहत‍काररत‍ककया‍जािा‍सम्‍भाव्‍य‍जािता‍िो,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍
मास‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍पांच‍सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
335.‍प्रकोपि‍पर‍स्‍वच्े ‍छया‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिा—जो‍कोई‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍पर‍1[स्‍वच्े ‍छया] घोर‍उपिहत‍
काररत‍करे गा,‍यकद‍ि‍तो‍उसका‍आिय‍उस‍व्‍यहक्‍त‍से‍हभन्‍ि,‍हजसिे‍प्रकोपि‍कदया‍था,‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिे‍का‍
िो‍और‍ि‍वि‍अपिे‍ द्वारा‍ऐसी‍उपिहत‍काररत‍ककया‍जािा‍सम्‍भाव्‍य‍जािता‍िो,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍
अवहि‍चार‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍दो‍िजार‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—अहन्‍तम‍दो‍िाराएं‍उन्‍िीं‍परं तुकों‍के ‍अध्‍यिीि‍िैं,‍हजिके ‍अध्‍यिीि‍िारा‍300‍का‍अपवाद‍1‍िै‍।
336.‍ कायत‍ हजससे‍ दूसरों‍ का‍ जीवि‍ या‍ वैयहक्‍तक‍ क्षेम‍ संकटापन्‍ि‍ िो—जो‍ कोई‍ इतिे‍ उताविेपि‍ या‍ उपेक्षा‍ से‍ कोई‍ कायत‍
करे गा‍कक‍उससे‍ मािव‍जीवि‍या‍दूसरों‍का‍वैयहक्‍तक‍क्षेम‍संकटापन्‍ि‍िोता‍िो,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍
अवहि‍तीि‍मास‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍ढ़ाई‍सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
337.‍ऐसे‍ कायत‍ द्वारा‍उपिहत‍काररत‍करिा,‍हजससे‍ दूसरों‍का‍जीवि‍या‍वैयहक्‍तक‍क्षेम‍संकटापन्‍ि‍िो‍जाए—जो‍कोई‍ऐसे‍
उताविेपि‍या‍उपेक्षा‍से‍कोई‍कायत‍करिे‍द्वारा,‍हजससे‍मािव‍जीवि‍या‍दूसरों‍का‍वैयहक्‍तक‍क्षेम‍संकटापन्‍ि‍िो‍जाए,‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍
उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍छि‍मास‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍पांच‍
सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
338.‍ऐसे‍ कायत‍ द्वारा‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करिा,‍हजससे‍ दूसरों‍का‍जीवि‍या‍वैयहक्‍तक‍क्षेम‍संकटापन्‍ि‍िो‍जाए—जो‍कोई‍
ऐसे‍ उताविेपि‍या‍उपेक्षा‍से‍ कोई‍कायत‍ करिे‍ के ‍द्वारा,‍हजससे‍ मािव‍जीवि‍या‍दूसरों‍का‍वैयहक्‍तक‍क्षेम‍संकटापन्‍ि‍िो‍जाए,‍ककसी‍
व्‍यहक्‍त‍को‍घोर‍उपिहत‍काररत‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍
से,‍जो‍एक‍िजार‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
सदोष‍अवरोि‍और‍सदोष‍परररोि‍के ‍हवषय‍में
339.‍सदोष‍अवरोि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍स्‍वेच्‍छया‍ऐसे‍ बािा‍डािता‍िै‍कक‍उस‍व्‍यहक्‍त‍को‍उस‍कदिा‍में,‍हजसमें‍उस‍
व्‍यहक्‍त‍को‍जािे‍का‍अहिकार‍िै,‍जािे‍से‍हिवाररत‍कर‍दे,‍वि‍उस‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍अवरोि‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
अपवाद—भूहम‍के ‍या‍जि‍के ‍ऐसे‍ प्राइवेट‍मागत‍में‍बािा‍डाििा‍हजसके ‍सम्‍ब न्‍ि‍में‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍सद्‍भावपूवतक‍हवश्‍वास‍िै‍
कक‍विां‍बािा‍डाििे‍का‍उसे‍हवहिपूणत‍अहिकार‍िै,‍इस‍िारा‍के ‍अथत‍के ‍अन्‍तगतत‍अपराि‍ििीं‍िै‍।
दृष्ट‍ ांत
क‍एक‍मागत‍ में,‍हजससे‍ िोकर‍जािे‍ का‍य‍का‍अहिकार‍िै,‍सद्‍भावपूवतक‍यि‍हवश्‍वास‍ि‍रिते‍ हुए‍कक‍उसको‍मागत‍ रोकिे‍ का‍
अहिकार‍प्राप्‍त‍िै,‍बािा‍डािता‍िै‍।‍य‍जािे‍से‍तद्‍द्वारा‍रोक‍कदया‍जाता‍िै‍।‍क,‍य‍का‍सदोष‍अवरोि‍करता‍िै‍।
340.‍सदोष‍परररोि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍इस‍प्रकार‍सदोष‍अवरोि‍करता‍िै‍ कक‍उस‍व्‍य हक्‍त‍को‍हिहश्‍चत‍पररसीमा‍
से‍परे ‍जािे‍से‍हिवाररत‍कर‍दे,‍वि‍उस‍व्‍यहक्‍त‍का‍“सदोष‍परररोि”‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍को‍दीवार‍से‍ हघरे ‍ हुए‍स्‍थाि‍में‍ प्रवेि‍कराकर‍क‍उसमें‍ तािा‍िगा‍देता‍िै‍ ।‍इस‍प्रकार‍य‍दीवार‍की‍पररसीमा‍से‍ परे‍
ककसी‍भी‍कदिा‍में‍ििीं‍जा‍सकता‍।‍क‍िे‍य‍का‍सदोष‍परररोि‍ककया‍िै‍।
(ि)‍क‍एक‍भवि‍के ‍बािर‍जािे‍ के ‍द्वारों‍पर‍बन्‍द ूकिारी‍मिुष्‍यों‍को‍बैठा‍देता‍िै‍ और‍य‍से‍ कि‍देता‍िै‍ कक‍यकद‍य‍भवि‍के ‍
बािर‍जािे‍का‍प्रयत्‍ि‍करे गा,‍तो‍वे‍य‍को‍गोिी‍मार‍देंगे‍।‍क‍िे‍य‍का‍सदोष‍परररोि‍ककया‍िै‍।
341.‍सदोष‍अवरोि‍के ‍हिए‍दण्‍ड—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍अवरोि‍करे गा,‍वि‍सादा‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍
एक‍मास‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍पांच‍सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।

1
1882 के ‍अहिहियम‍सं०‍8 की‍िारा‍8 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
64

342.‍ सदोष‍ परररोि‍ के ‍ हिए‍ दण्‍ड—जो‍ कोई‍ ककसी‍ व्‍यहक्‍त‍ का‍ सदोष‍ परररोि‍ करे गा,‍ वि‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍
कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍जो‍एक‍िजार‍रुपर‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍
ककया‍जाएगा‍।
343.‍तीि‍या‍अहिक‍कदिों‍के ‍हिए‍सदोष‍परररोि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍तीि‍या‍अहिक‍कदिों‍के ‍हिए‍
करे गा,‍ वि‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ दो‍ वषत‍ तक‍ की‍ िो‍ सके गी,‍ या‍ जुमातिे‍ से,‍ या‍ दोिों‍ से,‍ दहण्‍डत‍‍‍‍‍
ककया‍जाएगा‍।
344.‍दस‍या‍अहिक‍कदिों‍के ‍हिए‍सदोष‍परररोि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍दस‍या‍अहिक‍कदिों‍के ‍हिए‍
करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍ भी‍
दण्‍डिीय‍िोगा‍।
345.‍ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍हजसके ‍छो़ििे‍ के ‍हिए‍ररट‍हिकि‍चुका‍िै—जो‍कोई‍यि‍जािते‍ हुए‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍
सदोष‍परररोि‍में‍ रिेगा‍कक‍उस‍व्‍यहक्‍त‍को‍छो़ििे‍ के ‍हिए‍ररट‍सम्‍यक् ‍रूप‍से‍ हिकि‍चुका‍िै‍ ।‍वि‍ककसी‍अवहि‍के ‍उस‍कारावास‍के ‍
अहतररक्‍त,‍हजससे‍ कक‍वि‍इस‍अध्‍याय‍की‍ककसी‍अन्‍य‍िारा‍के ‍अिीि‍दण्‍डिीय‍िो,‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍
अवहि‍दो‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
346.‍गुप्त
‍ ‍स्‍थाि‍में‍ सदोष‍परररोि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍इस‍प्रकार‍करे गा‍हजससे‍ यि‍आिय‍प्रतीत‍
िोता‍िो‍कक‍ऐसे‍ परररुद्ध‍व्‍यहक्‍त‍से‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍या‍ककसी‍िोक‍सेवक‍को‍ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍के ‍परररोि‍की‍जािकारी‍ि‍िोिे‍
पाए‍या‍एतहस्मि्‍पूव‍त वर्णतत‍ककसी‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍या‍िोक‍सेवक‍को,‍ऐसे‍परररोि‍के ‍स्‍थाि‍की‍जािकारी‍ि‍िोिे‍पाए‍या‍उसका‍पता‍वि‍
ि‍चिा‍पाए,‍वि‍उस‍दण्‍ड‍के ‍अहतररक्‍त‍हजसके ‍हिए‍वि‍ऐसे‍सदोष‍परररोि‍के ‍हिए‍दण्‍डिीय‍िो,‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍
से,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
347.‍ सम्‍पहत्त‍ उद्दाहपत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ या‍ अवैि‍ कायत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ मजबूर‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ सदोष‍ परररोि—जो‍ कोई‍ ककसी‍
व्‍यहक्‍त‍ का‍ सदोष‍ परररोि‍ इस‍ प्रयोजि‍ से‍ करे गा‍ कक‍ उस‍ परररुद्ध‍ व्‍यहक्‍त‍ से,‍ या‍ उससे‍ हितबद्ध‍ ककसी‍ व्‍यहक्‍त‍ से,‍ कोई‍ सम्‍पहत्त‍ या‍
मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍उद्दाहपत‍की‍जाए,‍अथवा‍उस‍परररुद्ध‍व्‍यहक्‍त‍को‍या‍उससे‍हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को,‍कोई‍ऐसी‍अवैि‍बात‍करिे‍के ‍
हिए,‍या‍कोई‍ऐसी‍जािकारी‍देि‍े के ‍हिए‍हजससे ‍ अपराि‍का‍ककया‍जािा‍सुकर‍िो‍जाए,‍मजबूर‍ककया‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍
भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी,‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
348.‍संस्व
‍ ीकृ हत‍उद्दाहपत‍करिे‍के ‍हिए‍या‍हववि‍करके ‍सम्‍पहत्त‍का‍प्रत्‍यावतति‍करिे‍के ‍हिए‍सदोष‍परररोि—जो‍कोई‍ककसी‍
व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍इस‍प्रयोजि‍से‍ करे गा‍कक‍उस‍परररुद्ध‍व्‍यहक्‍त‍से,‍या‍उससे‍ हितबद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से,‍कोई‍संस्व
‍ ीकृ हत‍या‍
कोई‍जािकारी,‍हजससे‍ककसी‍अपराि‍या‍अवचार‍का‍पता‍चि‍सके ,‍उद्दाहपत‍की‍जाए,‍या‍वि‍परररुद्ध‍व्‍यहक्‍त‍या‍उससे‍हितबद्ध‍कोई‍
व्‍यहक्‍त‍मजबूर‍ककया‍जाए‍कक‍वि‍ककसी‍सम्‍पहत्त‍या‍ककसी‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍को‍प्रत्‍यावर्ततत‍करे ‍ या‍करवाए‍या‍ककसी‍दावे‍ या‍मांग‍
की‍तुहष्‍ट‍करे ‍या‍कोई‍ऐसी‍जािकारी‍दे‍हजससे‍ककसी‍सम्‍प हत्त‍या‍ककसी‍मू्‍यवाि‍प्रहतभूहत‍का‍प्रत्‍यावतति‍कराया‍जा‍सके ,‍वि‍दोिों‍में‍
से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
आपराहिक‍बि‍और‍िमिे‍के ‍हवषय‍में
349. बि—कोई‍व्‍यहक्‍त‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै,‍यकद‍वि‍उस‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍में‍गहत,‍
गहत-पररवतति‍या‍गहतिीिता‍काररत‍कर‍देता‍िै‍या‍यकद‍वि‍ककसी‍पदाथत‍में‍ऐसी‍गहत,‍गहत-पररवतति‍या‍गहतिीिता‍काररत‍कर‍देता‍
िै,‍हजससे‍उस‍पदाथत‍का‍स्‍पित‍उस‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍के ‍िरीर‍के ‍ककसी‍भाग‍से‍या‍ककसी‍ऐसी‍चीज‍से,‍हजसे‍वि‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍पििे‍हुए‍िै‍या‍
िे‍जा‍रिा‍िै,‍या‍ककसी‍ऐसी‍चीज‍से,‍जो‍इस‍प्रकार‍हस्‍थत‍िै‍कक‍ऐसे‍संस्‍पित‍से‍उस‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍की‍संवेदि‍िहक्‍त‍पर‍प्रभाव‍प़िता‍िै,‍
िो‍जाता‍िै‍ :‍परं तु‍ यि‍तब‍जबकक‍गहतमाि,‍गहत-पररवतति‍या‍गहतिीिता‍करिे‍ वािा‍व्‍यहक्‍त‍उस‍गहत,‍गहत-पररवतति‍या‍गहतिीिता‍
को‍एतहस्मि्‍पश्‍चात्‍वर्णतत‍तीि‍तरीकों‍में‍से‍ककसी‍एक‍द्वारा‍काररत‍करता‍िै,‍अथातत्‍:—
पििा—अपिी‍हिजी‍िारीररक‍िहक्‍त‍द्वारा‍।
दूसरा—ककसी‍पदाथत‍ के ‍इस‍प्रकार‍व्‍ययि‍द्वारा‍कक‍उसके ‍अपिे‍ या‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍कोई‍अन्‍य‍कायत‍ के ‍ककए‍जािे‍ के ‍
हबिा‍िी‍गहत‍या‍गहत-पररवतति‍या‍गहतिीिता‍घरटत‍िोती‍िै‍।
तीसरा—ककसी‍जीवजन्‍तु‍को‍गहतमाि‍िोिे,‍गहत-पररवतति‍करिे‍या‍गहतिीि‍िोिे‍के ‍हिए‍उत्‍प्रेरण‍द्वारा‍।
350.‍आपराहिक‍बि—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍पर‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍बि‍का‍प्रयोग‍ककसी‍अपराि‍को‍करिे‍के ‍
हिए‍उस‍व्‍यहक्‍त‍को,‍हजस‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍जाता‍िै,‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ,‍ऐसे‍ बि‍के ‍प्रयोग‍से‍ काररत‍करिे‍ के ‍आिय‍से,‍या‍
ऐसे‍ बि‍के ‍प्रयोग‍से‍ सम्‍भाव्‍यत:‍काररत‍करे गा‍यि‍जािते‍ हुए‍सािय‍करता‍िै,‍वि‍उस‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍
करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍िदी‍के ‍ककिारे ‍ रस्‍सी‍से‍बंिी‍हुई‍िाव‍पर‍बैठा‍िै‍ ।‍क‍रहस्‍सयों‍को‍उद्‍बंहित‍करता‍िै‍और‍उस‍प्रकार‍िाव‍को‍िार‍में ‍
सािय‍बिा‍देता‍िै‍ ।‍यिां‍ क,‍य‍को‍सािय‍गहतमाि‍करता‍िै,‍और‍वि‍ऐसा‍उि‍पदाथों‍को‍ऐसी‍रीहत‍से‍ व्‍य यहित‍करके ‍करता‍िै‍ कक‍
65

ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍ओर‍से‍ कोई‍अन्‍य‍कायत‍ ककए‍हबिा‍िी‍गहत‍उत्‍पन्‍ि‍िो‍जाती‍िै‍ ।‍अतएव,‍क‍िे‍ य‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍सािय‍ककया‍िै,‍


और‍यकद‍उसिे‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍कोई‍अपराि‍करिे‍ के ‍हिए‍या‍यि‍आिय‍रिते‍हुए,‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍ककया‍
िै‍कक‍ऐसे‍बि‍के ‍प्रयोग‍से‍वि‍य‍को‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ‍काररत‍करे ,‍तो‍क‍िे‍य‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(ि)‍य‍एक‍रथ‍में‍ सवार‍िोकर‍चि‍रिा‍िै‍ ।‍क,‍य‍के ‍घो़िों‍को‍चाबुक‍मारता‍िै,‍और‍उसके ‍द्वारा‍उिकी‍चाि‍को‍तेज‍कर‍
देता‍ िै‍ ।‍ यिां‍ क‍ िे‍ जीवजन्‍तुओं‍ को‍ उिकी‍ अपिी‍ गहत‍ पररवर्ततत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ उत्‍प्रेररत‍ करके ‍ य‍ का‍ गहत-पररवतति‍ कर‍ कदया‍ िै‍ ।‍
अतएव,‍क‍िे‍य‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै,‍और‍यकद‍क‍िे‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍यि‍आिय‍रिते‍हुए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍
हुए‍ककया‍िै‍कक‍वि‍उससे‍य‍को‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ‍उत्‍पन्‍ि‍करे ‍तो‍क‍िे‍य‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(ग)‍य‍एक‍पािकी‍में‍ सवार‍िोकर‍चि‍रिा‍िै‍ ।‍ य‍को‍िूटिे‍ का‍आिय‍रिते‍ हुए‍ क‍पािकी‍का‍डंडा‍पक़ि‍िेता‍िै,‍और‍
पािकी‍को‍रोक‍देता‍िै‍ ।‍यिां,‍क‍िे‍य‍को‍गहतिीि‍ककया‍िै,‍और‍यि‍उसिे‍अपिी‍िारीररक‍िहक्‍त‍द्वारा‍ककया‍िै,‍अतएव‍क‍िे‍य‍पर‍
बि‍ का‍ प्रयोग‍ ककया‍ िै,‍ और‍ क‍ िे‍ य‍ की‍ सम्‍महत‍ के ‍ हबिा‍ यि‍ कायत‍ अपराि‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ सािय‍ ककया‍ िै,‍ इसहिए‍ क‍ िे‍ य‍ पर‍
आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(घ)‍क‍स़िक‍पर‍सािय‍य‍को‍िक्‍का‍देता‍िै,‍यिां‍ क‍िे‍ अपिी‍हिजी‍िारीररक‍िहक्‍त‍द्वारा‍अपिे‍ िरीर‍को‍इस‍प्रकार‍गहत‍
दी‍िै‍कक‍वि‍य‍के ‍संस्‍पित‍में‍आए‍।‍अतएव‍उसिे‍सािय‍य‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै,‍और‍यकद‍उसिे‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍
यि‍ आिय‍ रिते‍ हुए‍ या‍ यि‍ सम्‍भाव्‍य‍ जािते‍ हुए‍ ककया‍ िै‍ कक‍ वि‍ उससे‍ य‍ को‍ क्षहत,‍ भय‍ या‍ क्षोभ‍ उत्‍पन्‍ि‍ करे ,‍ तो‍ उसिे‍ य‍ पर‍
आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(ङ)‍क‍यि‍आिय‍रिते‍हुए‍या‍यि‍बात‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍एक‍पत्‍थर‍िें कता‍िै‍कक‍वि‍पत्‍थर‍इस‍प्रकार‍य,‍या‍य‍के ‍वस्‍त्र‍
के ‍या‍य‍द्वारा‍िे‍ जाई‍जािे‍ वािी‍ककसी‍वस्‍तु‍ के ‍संस्‍पित‍ में‍ आएगा‍या‍यि‍कक‍वि‍पािी‍में‍ हगरे गा‍और‍उछिकर‍पािी‍य‍के ‍कप़िों‍पर‍
या‍य‍द्वारा‍िे‍जाई‍जािे‍वािी‍ककसी‍वस्‍तु‍पर‍जा‍प़िेगा‍।‍यिां,‍यकद‍पत्‍थर‍के ‍िें के ‍जािे‍से‍यि‍पररणाम‍उत्‍पन्‍ि‍िो‍जाए‍कक‍कोई‍पदाथत‍
य,‍या‍य‍के ‍वस्‍त्रों‍के ‍संस्‍पित‍में‍आ‍जाए,‍तो‍क‍िे‍य‍पर‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍ ;‍और‍यकद‍उसिे‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍उसके ‍
द्वारा‍य‍को‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ‍उत्‍पन्‍ि‍करिे‍का‍आिय‍रिते‍हुए‍ककया‍िै,‍तो‍उसिे‍य‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(च)‍क‍ककसी‍स्‍त्री‍का‍घूंघट‍सािय‍िटा‍देता‍िै‍ ।‍यिां,‍क‍िे‍ उस‍पर‍सािय‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै,‍और‍यकद‍उसिे‍ उस‍स्‍त्री‍
की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍यि‍आिय‍रिते‍हुए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍ककया‍िै‍कक‍उससे‍उसको‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ‍उत्‍पन्‍ि‍िो,‍
तो‍उसिे‍उस‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(छ)‍य‍स्‍िाि‍कर‍रिा‍िै‍ ।‍क‍स्‍िाि‍करिे‍ के ‍टब‍में‍ ऐसा‍जि‍डाि‍देता‍िै‍ हजसे‍ वि‍जािता‍िै‍ कक‍वि‍उबि‍रिा‍िै‍ ।‍यिां ,‍
उबिते‍ हुए,‍जि‍में‍ ऐसी‍गहत‍को‍अपिी‍िारीररक‍िहक्‍त‍द्वारा‍सािय‍उत्‍पन्‍ि‍करता‍िै‍ कक‍उस‍जि‍का‍संस्‍पित‍ य‍से‍ िोता‍िै‍ या‍अन्‍य‍
जि‍से‍ िोता‍िै,‍जो‍इस‍प्रकार‍हस्‍थत‍िै‍ कक‍ऐसे‍ संस्‍पित‍ से‍ य‍की‍संवेदि‍िहक्‍त‍प्रभाहवत‍िोती‍िै‍ ;‍इसहिए‍क‍िे‍ य‍पर‍सािय‍बि‍का‍
प्रयोग‍ककया‍िै,‍और‍यकद‍उसिे‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा‍यि‍कायत‍यि‍आिय‍रिते‍हुए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍ककया‍िै‍कक‍वि‍उससे‍
य‍को‍क्षहत,‍भय‍या‍क्षोभ‍उत्‍पन्‍ि‍करे ,‍तो‍क‍िे‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
(ज)‍क,‍य‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा,‍एक‍कु त्ते‍ को‍य‍पर‍झपटिे‍ के ‍हिए‍भ़िकाता‍िै‍ ।‍यिां‍ यकद‍क‍का‍आिय‍य‍को‍क्षहत,‍भय‍या‍
क्षोभ‍काररत‍करिे‍का‍िै‍तो‍उसिे‍य‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍ककया‍िै‍।
351.‍िमिा—जो‍कोई,‍कोई‍अंगहवक्षेप‍या‍कोई‍तैयारी‍इस‍आिय‍से‍करता‍िै,‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍करता‍िै‍कक‍ऐसे‍
अंगहवक्षेप‍या‍ऐसी‍तैयारी‍करिे‍ से‍ ककसी‍उपहस्‍थत‍व्‍यहक्‍त‍को‍यि‍आिंका‍िो‍जाएगी‍कक‍जो‍वैसा‍अंगहवक्षेप‍या‍तै यारी‍करता‍िै,‍वि‍
उस‍व्‍यहक्‍त‍पर‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍करिे‍िी‍वािा‍िै,‍वि‍िमिा‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
स्पष्‍टीकरण—के वि‍िब्‍द‍िमिे‍ की‍कोरट‍में‍ ििीं‍आते‍ ।‍ककन्‍तु‍ जो‍िब्‍द‍कोई‍व्‍यहक्‍त‍प्रयोग‍करता‍िै,‍वे‍ उसके ‍अंगहवक्षेप‍या‍
तैयाररयों‍को‍ऐसा‍अथत‍दे‍सकते‍िैं‍हजससे‍वे‍अंगहवक्षेप‍या‍तैयाररयां‍िमिे‍की‍कोरट‍में‍आ‍जाएं‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍य‍पर‍अपिा‍मुक्‍का‍क‍इस‍आिय‍से‍ या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍हििाता‍िै‍ कक‍उसके ‍द्वारा‍य‍को‍यि‍हवश्‍वास‍िो‍जाए‍
कक‍क,‍य‍को‍मारिे‍वािा‍िी‍िै‍।‍क‍िे‍िमिा‍ककया‍िै‍।
(ि)‍क‍एक‍सिंस्‍त्र‍कु त्ते‍की‍मुिबन्ििी‍इस‍आिय‍से‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍िोििा‍आरं भ‍करता‍िै‍कक‍उसके ‍द्वारा‍य‍को‍
यि‍हवश्‍वास‍िो‍जाए‍कक‍वि‍य‍पर‍कु त्ते‍से‍आक्रमण‍करािे‍वािा‍िै‍।‍क‍िे‍य‍पर‍िमिा‍ककया‍िै‍।
(ग)‍य‍से‍ यि‍किते‍ हुए‍कक‍“मैं‍ तुम्‍ि‍ें पीटूंगा”‍क‍एक‍छ़िी‍उठा‍िेता‍िै‍ ।‍यिां‍ यद्यहप‍क‍द्वारा‍प्रयोग‍में‍ िाए‍गए‍िब्‍द‍ककसी‍
अवस्‍था‍में‍ िमिे‍ की‍कोरट‍में‍ ििीं‍आते‍ और‍यद्यहप‍के वि‍अंगहवक्षेप‍बिािा‍हजसके ‍साथ‍अन्‍य ‍पररहस्‍थहतयों‍का‍अभाव‍िै,‍िमिे‍ की‍
कोरट‍में‍ि‍भी‍आए‍तथाहप‍िब्‍दों‍द्वारा‍स्‍पष्‍टीकृ त‍वि‍अंगहवक्षेप‍िमिे‍की‍कोरट‍में‍आ‍सकता‍िै‍।
352.‍गम्‍भीर‍प्रकोपि‍िोिे‍से‍अन्‍यथा‍िमिा‍करिे‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍करिे‍ के ‍हिए‍दण्‍ड —जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍
पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍ का‍प्रयोग‍उस‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍कदए‍जािे‍ पर‍करिे‍ से‍ अन्‍यथा‍करे गा,‍वि‍
दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍तीि‍मास‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍पांच‍सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍
या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
66

स्‍पष्‍टीकरण—इस‍िारा‍के ‍अिीि‍ककसी‍अपराि‍के ‍दण्‍ड‍में‍ कमी‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍के ‍कारण‍ि‍िोगी,‍यकद‍वि‍


प्रकोपि‍अपराि‍करिे‍के ‍हिए‍प्रहतिेतु‍के ‍रूप‍में‍अपरािी‍द्वारा‍ईहप्‍स त‍या‍स्‍वेच्‍छया‍प्रकोहपत‍ककया‍गया‍िो,‍अथवा
यकद‍वि‍प्रकोपि‍ककसी‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍कदया‍गया‍िो‍जो‍हवहि‍के ‍पािि‍में ,‍या‍ककसी‍िोक‍सेवक‍द्वारा‍ऐसे‍ िोक‍सेवक‍की‍
िहक्‍त‍के ‍हवहिपूणत‍प्रयोग‍में,‍की‍गई‍िो,‍अथवा
यकद‍वि‍प्रकोपि‍ककसी‍ऐसी‍बात‍द्वारा‍कदया‍गया‍िो‍जो‍प्राइवेट‍प्रहतरक्षा‍के ‍अहिकार‍के ‍हवहिपूणत‍प्रयोग‍में‍की‍गई‍िो‍।
प्रकोपि‍अपराि‍को‍कम‍करिे‍के ‍हिए‍पयातप्त
‍ ‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍था‍या‍ििीं,‍यि‍तथ्‍य‍का‍प्रश्‍ि‍िै‍।
353.‍ िोक‍ सेवक‍ को‍ अपिे‍ कततव्य ‍ ‍ के ‍ हिवतिि‍ से‍ भयोपरत‍ करिे‍ के ‍ हिए‍ िमिा‍ या‍ आपराहिक‍ बि‍ का‍ प्रयोग—जो‍ कोई‍
ककसी‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍पर,‍जो‍िोक‍सेवक‍िो,‍उस‍समय‍जब‍वैसे‍ िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍वि‍उसके ‍अपिे‍ कततव्‍य ‍का‍हिष्‍पादि‍कर‍रिा‍िो,‍या‍
इस‍आिय‍से‍कक‍उस‍व्‍यहक्‍त‍को‍वैसे‍िोक‍सेवक‍के ‍िाते‍अपिे‍कततव्‍य‍के ‍हिवतिि‍से‍हिवाररत‍करे ‍या‍भयोपरत‍करे ‍या‍ऐसे‍िोक‍सेवक‍
के ‍िाते‍ उसके ‍अपिे‍ कततव्‍य‍के ‍हवहिपूणत‍ हिवतिि‍में‍ की‍गई‍या‍की‍जािे‍ के ‍हिए‍प्रयहतत‍ककसी‍बात‍के ‍पररणामस्‍व रूप‍िमिा‍करे गा‍या‍
आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍
या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
354.‍स्‍त्री‍की‍िज्‍जा‍भंग‍करिे‍के ‍आिय‍से‍उस‍पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग—जो‍कोई‍ककसी‍स्‍त्री‍की‍िज्‍जा‍भंग‍
करिे‍ के ‍आिय‍से‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍कक‍तद्‍द्वारा‍वि‍उसकी‍िज्‍जा‍भंग‍करे गा,‍उस‍स्‍त्री‍पर‍िमिा‍करे गा‍या‍आपराहिक‍बि‍
का‍प्रयोग‍करे गा,‍ 1[वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ से‍ कम‍की‍ििीं‍िोगी‍ककन्‍तु ‍ जो‍पांच‍वषत‍ तक‍
की‍िो‍सके गी,‍दंहडत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दंडिीय‍िोगा‍।]
2
[354क.‍िैंहगक‍उत्‍पी़िि‍और‍िैंहगक‍उत्‍पी़िि‍के ‍हिए‍दंड—(1) ऐसा कोई हिम्‍िहिहित कायत, अथातत् :—

(i) िारीररक संस्‍पित और अग्रकक्रयाएं करिे, हजिमें अवांछिीय और िैंहगक संबंि बिािे संबंिी स्पष्‍ट प्रस्ताव
अंतवतहित िों ; या

(ii) िैंहगक स्वीकृ हत के हिए कोई मांग या अिुरोि करिे ; या

(iii) ककसी स्‍त्री की इच्छा के हवरुद्ध अश्‍िीि साहित्य कदिािे ; या

(iv) िैंहगक आभासी रटप्पहणयां करिे,

वािा पुरुष िैंहगक उत्पी़िि के अपराि का दोषी िोगा ।

(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपिारा (1) के िंड (i) या िंड (ii) या िंड (iii) में हवहिर्दतष्‍ट अपराि करे गा, वि कठोर कारावास से,
हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपिारा (1) के िंड (iv) में हवहिर्दतष्‍ट अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
354ि. हववस्‍त्र‍ करिे‍ के ‍आिय‍से‍ स्‍त्री‍पर‍ िमिा‍या‍आपराहिक‍ बि‍का‍प्रयोग—ऐसा कोई पुरुष, जो ककसी स्‍त्री को हववस्‍त्र
करिे या हिवतस्‍त्र िोिे के हिए बाध्य करिे के आिय से उस पर िमिा करे गा या उसके प्रहत आपराहिक बि का प्रयोग करे गा या ऐसे कृ त्य
का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की
िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
354ग. दृश्य
‍ रहतकता—ऐसा कोई पुरुष, जो कोई ककसी‍प्राइवेट‍कृ त्‍य‍में‍ िगी‍ककसी‍स्‍त्री को, जो उि पररहस्थहतयों में, हजिमें वि
यि प्रत्यािा करती िै कक उसे देिा ििीं‍जा‍रिा‍िै, एकटक देिेगा या‍उस‍कृ त्‍य‍में‍ हिप्‍त‍व्‍यहक्‍त‍या‍उस‍कृ त्‍य‍में‍ हिप्‍त‍व्‍यहक्‍त‍के ‍कििे‍
पर‍कोई‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍उसका हचत्र िींचेगा अथवा उस हचत्र को प्रसाररत करे गा, प्रथम दोषहसहद्ध पर दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि एक वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत‍ककया‍जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय‍
िोगा और हद्वतीय अथवा पश्‍चात्‍वती ककसी दोषहसहद्ध पर दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत से कम की
ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण 1—इस िारा के प्रयोजिों के हिए, “प्राइवेट कृ त्य” के अंतगतत‍ताकिे‍का‍ऐसा‍कोई‍कृ त्‍य‍आता िै‍जो‍ऐसे‍ककसी‍स्‍थाि‍
में‍ककया‍जाता‍िै, हजसके संबंि में, पररहस्थहतयों के अिीि, युहक्‍तयुक्‍त रूप से यि प्रत्यािा की जाती िै कक विां एकांतता िोगी और जिां
कक पीह़िता के जििांगों, हितंबों या वक्षस्थिों को अहभदर्ितत ककया जाता िै या के वि अिोवस्‍त्र से ढंका जाता िै अथवा जिां पीह़िता
ककसी िौचघर का प्रयोग कर रिी िै ; या जिां पीह़िता ऐसा कोई िैंहगक कृ त्य कर रिी िै जो ऐसे प्रकार का ििीं िै जो सािारणतया
सावतजहिक तौर पर ककया जाता िै ।

1
2013 के ‍अहिहियम‍सं०‍13 की‍िारा‍6 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
2013 के ‍अहिहियम‍सं०‍13 की‍िारा‍7 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
67

स्पष्‍टीकरण 2—जिां पीह़िता हचत्रों या ककसी अहभिय के हचत्र को िींचिे के हिए सम्महत देती िै ककन्तु अन्य व्यहक्‍तयों को उन्िें
प्रसाररत करिे की सम्महत ििीं देती िै और जिां उस हचत्र या कृ त्य का प्रसारण ककया जाता िै विां ऐसे प्रसारण को इस िारा के अिीि
अपराि मािा जाएगा ।
354घ. पीछा‍करिा—(1) ऐसा कोई पुरुष, जो—
(i) ककसी स्‍त्री का उससे व्यहक्‍तगत अन्योन्यकक्रया को आगे बढ़ािे के हिए, उस स्‍त्री द्वारा स्पष्‍ट रूप से अहिच्छा
उपदर्ितत ककए जािे के बावजूद, बारं बार पीछा करता िै और संस्‍पित करता िै या संस्‍पित करिे का प्रयत्‍ि करता िै ; या
(ii) जो कोई ककसी स्‍त्री द्वारा इं टरिेट, ई-मेि या ककसी अन्य प्ररूप की इिैक्राहिक संसूचिा का प्रयोग ककए जािे को
मािीटर करता िै,
पीछा करिे का अपराि करता िै :
परं तु ऐसा आचरण पीछा करिे की कोरट में ििीं आएगा, यकद वि पुरुष, जो ऐसा करता िै, यि साहबत कर देता िै कक—
(i) ऐसा कायत अपराि के हिवारण या पता िगािे के प्रयोजि के हिए ककया गया था और पीछा करिे के अहभयुक्‍त
पुरुष को राज्य द्वारा उस अपराि के हिवारण और पता िगािे का उत्तरदाहयत्व सौंपा गया था ; या
(ii) ऐसा ककसी हवहि के अिीि या ककसी हवहि के अिीि ककसी व्यहक्‍त द्वारा अहिरोहपत ककसी ितत या अपेक्षा का
पािि करिे के हिए ककया गया था ; या
(iii) हवहिष्‍ट पररहस्थहतयों में ऐसा आचरण युहक्‍तयुक्‍त और न्यायोहचत था ।
(2) जो कोई पीछा करिे का अपराि करे गा, वि‍प्रथम‍दोषहसहद्ध‍पर‍दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
तीि वषत तक‍की िो‍सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा‍;‍और‍ककसी‍हद्वतीय‍या‍पश्‍चात्‍वती‍दोषहसहद्ध‍पर‍
ककसी‍भी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍पांच‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दंहडत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दंडिीय‍िोगा ।]
355.‍ गम्‍भीर‍प्रकोपि‍ िोिे‍ से‍ अन्‍यथा‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍अिादर‍ करिे‍ के ‍आिय‍से‍ उस‍पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍ बि‍का‍
प्रयोग—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍उस‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍कदए‍जािे‍ पर‍
करिे,‍से‍ अन्‍यथा,‍इस‍आिय‍से‍ करे गा‍कक‍तद्‍द्वारा‍उसका‍अिादर‍ककया‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍
अवहि‍दो‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
356.‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍िे‍ जाई‍जािे‍ वािी‍संपहत्त‍की‍चोरी‍के ‍प्रयत्‍िों‍में‍ िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग—जो‍कोई‍
ककसी‍व्‍यहक्‍त‍पर‍ िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍ का‍प्रयोग‍ककसी‍ऐसी‍सम्‍प हत्त‍की‍चोरी‍ करिे‍ के ‍प्रयत्‍ि‍में‍ करे गा‍हजसे‍ वि‍ व्‍यहक्‍त‍उस‍
समय‍पििे‍ हुए‍िो,‍या‍हिए‍जा‍रिा‍िो,‍वि‍दोिों‍में‍ से,‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दो‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍
जुमातिे‍से,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
357.‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍करिे‍ के ‍प्रयत्‍िों‍में‍ िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍पर‍
िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग‍उस‍व्‍यहक्‍त‍का‍सदोष‍परररोि‍करिे‍ का‍प्रयत्‍ि‍करिे‍ में‍ करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से,‍ककसी‍भांहत‍के ‍
कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमाति‍े से,‍जो‍एक‍िजार‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा,‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍
ककया‍जाएगा‍।
358.‍गम्‍भीर‍प्रकोपि‍हमििे‍पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍का‍प्रयोग—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍पर‍िमिा‍या‍आपराहिक‍बि‍
का‍प्रयोग‍उस‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍कदए‍गए‍गम्‍भीर‍और‍अचािक‍प्रकोपि‍पर‍करे गा,‍वि‍सादा‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍मास‍तक‍की‍
िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍से,‍जो‍दो‍सौ‍रुपए‍तक‍का‍िो‍सके गा‍या‍दोिों‍से,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
स्‍पष्‍टीकरण—अंहतम‍िारा‍उसी‍स्‍पष्‍टीकरण‍के ‍अध्‍यिीि‍िै‍हजसके ‍अध्‍यिीि‍िारा‍352 िै‍।
व्‍यपिरण,‍अपिरण,‍दासत्‍व‍और‍बिात्श्र
‍ म‍के ‍हवषय‍में
359.‍व्‍यपिरण—व्‍यपिरण‍दो‍ककस्‍म‍का‍िोता‍िै‍;‍1[भारत]‍में‍से‍व्‍यपिरण‍और‍हवहिपूणत‍संरक्षकता‍में‍से‍व्‍यपिरण‍।
360.‍भारत‍में‍ से‍ व्‍यपिरण—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की,‍या‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की‍ओर‍से‍ सम्‍महत‍देिे‍ के ‍हिए‍वैि‍
रूप‍से‍प्राहिकृ त‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍सम्‍महत‍के ‍हबिा, 1[भारत]‍की‍सीमाओं‍से‍परे ‍प्रविण‍कर‍देता‍िै,‍वि‍1[भारत]‍में‍से‍उस‍व्‍यहक्‍त‍का‍
व्‍यपिरण‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
361.‍हवहिपूणत‍ संरक्षकता‍में‍ से‍ व्‍यपिरण—जो‍कोई‍ककसी‍अप्राप्‍तवय‍को,‍यकद‍ वि‍िर‍ िो,‍तो‍ 2[सोिि]‍ वषत‍ से‍ कम‍आयु‍
वािे‍को,‍या‍यकद‍वि‍िारी‍िो‍तो‍3[अठारि]‍वषत‍से‍कम‍आयु‍वािी‍को‍या‍ककसी‍हवकृ तहचत्त‍व्‍यहक्‍त‍को,‍ऐसे‍अप्राप्‍तवय‍या‍हवकृ तहचत्त‍

1
“हिरटि‍भारत”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍अिुक्रमि:‍भारतीय‍स्‍वतंत्रता‍(के न्‍रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्‍यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948,‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950‍और‍1951
‍‍‍के ‍अहिहियम‍सं० 3‍की‍िारा 3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1949 के ‍अहिहियम‍सं०‍42 की‍िारा‍2 द्वारा‍“चौदि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1949 के ‍अहिहियम‍सं० 42 की‍िारा‍2 द्वारा‍“सौिि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
68

व्‍यहक्‍त‍के ‍हवहिपूणत‍ संरक्षक‍की‍संरक्षकता‍में‍ से‍ ऐसे‍ संरक्षक‍की‍सम्‍म हत‍के ‍हबिा‍िे‍ जाता‍िै‍ या‍बिका‍िे‍ जाता‍िै,‍वि‍ऐसे‍ अप्राप्‍तवय‍
या‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍का‍हवहिपूणत‍संरक्षकता‍में‍से‍व्‍यपिरण‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
स्‍पष्‍टीकरण—इस‍ िारा‍ में‍ “हवहिपूणत‍ सरं क्षक” िब्‍दों‍ के ‍ अन्‍तगतत‍ ऐसा‍ व्‍यहक्‍त‍ आता‍ िै‍ हजस‍ पर‍ ऐसे‍ अप्राप्‍तवय‍ या‍ अन्‍य‍
व्‍यहक्‍त‍की‍देिरे ि‍या‍अहभरक्षा‍का‍भार‍हवहिपूवतक‍न्‍य स्‍त‍ककया‍गया‍िै‍।
अपवाद—इस‍ िारा‍ का‍ हवस्‍तार‍ ककसी‍ ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍ के ‍ कायत‍ पर‍ ििीं‍ िै,‍ हजसे‍ सद्‍भावपूवतक‍ यि‍ हवश्‍वास‍ िै‍ कक‍ वि‍ ककसी‍
अिमतज‍हििु‍ का‍हपता‍िै,‍या‍हजसे‍ सद्‍भावपूवतक‍यि‍हवश्‍वास‍िै‍ कक‍वि‍ऐसे‍ हििु‍ की‍हवहिपूणत‍ अहभरक्षा‍का‍िकदार‍िै,‍जब‍तक‍कक‍
ऐसा‍कायत‍दुराचाररक‍या‍हवहिहवरुद्ध‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍ि‍ककया‍जाए‍।
362.‍अपिरण—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍ककसी‍स्‍थाि‍से‍ जािे‍ के ‍हिए‍बि‍द्वारा‍हववि‍करता‍िै,‍या‍ककन्‍िीं‍प्रवंचिापूण‍त
उपायों‍द्वारा‍उत्‍प्रेररत‍करता‍िै,‍वि‍उस‍व्‍यहक्‍त‍का‍अपिरण‍करता‍िै,‍यि‍किा‍जाता‍िै‍।
363.‍व्‍यपिरण‍के ‍हिए‍दण्‍ड—जो‍कोई‍ 1[भारत]‍में‍ से‍ या‍हवहिपूणत‍ संरक्षकता‍में‍ से‍ ककसी‍व्‍य हक्‍त‍का‍व्‍यपिरण‍करे गा,‍वि‍
दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ सात‍ वषत‍ तक‍ की‍ िो‍ सके गी,‍ दहण्‍डत‍ ककया‍ जाएगा‍ और‍ जुमातिे‍ से‍ भी‍
दण्‍डिीय‍िोगा‍।
2
[363क. भीि‍मांगिे‍ के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍अप्राप्‍तवय‍का‍व्‍यपिरण‍या‍हवकिांगीकरण—(1)‍जो कोई‍ककसी‍अप्राप्‍तवय‍का‍
इसहिए‍व्‍यपिरण‍करे गा‍या‍अप्राप्‍तवय‍का‍हवहिपूणत‍ संरक्षक‍स्‍वयं‍ ि‍िोते‍ हुए‍अप्राप्‍तवय‍की‍अहभरक्षा‍इसहिए‍अहभप्राप्‍त‍करे गा‍कक‍
ऐसा‍अप्राप्‍तवय‍भीि‍मांगिे‍के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍हियोहजत‍या‍प्रयु क्‍त‍ककया‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍
अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दण्‍डिीय‍िोगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दंडिीय‍िोगा‍।
(2)‍जो‍कोई‍ककसी‍अप्राप्‍तवय‍को‍हवकिांग‍इसहिए‍करे गा‍कक‍ऐसा‍अप्राप्‍तवय‍भीि‍मांगिे‍ के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍हियोहजत‍
या‍प्रयुक्‍त‍ककया‍जाए,‍वि‍आजीवि‍कारावास‍से‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
(3)‍जिां‍ कक‍कोई‍व्‍यहक्‍त,‍जो‍अप्राप्‍तवय‍का‍हवहिपूणत‍ संरक्षक‍ििीं‍िै,‍उस‍अप्राप्‍तवय‍को‍भीि‍मांगिे‍ के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍
हियोहजत‍या‍प्रयुक्‍त‍करे गा,‍विां‍ जब‍तक‍कक‍तत्‍प्रहतकू ि‍साहबत‍ि‍कर‍कदया‍जाए,‍यि‍उपिारणा‍की‍जाएगी‍कक‍उसिे‍ इस‍उद्देश्‍य‍से‍
उस‍अप्राप्‍तवय‍का‍व्‍यपिरण‍ककया‍था‍या‍अन्‍यथा‍उसकी‍अहभरक्षा‍अहभप्राप्‍त‍की‍थी‍कक‍वि‍अप्राप्‍तवय‍भीि‍मांगिे‍ के ‍प्रयोजिों‍के ‍
हिए‍हियोहजत‍या‍प्रयुक्‍त‍ककया‍जाए‍।
(4)‍इस‍िारा‍में,—‍
(क)‍“भीि‍मांगिे”‍से‍अहभप्रेत‍िै—
(i)‍िोक‍स्‍थाि‍में‍ हभक्षा‍की‍याचिा‍या‍प्राहप्‍त‍चािे‍ गािे,‍िाचिे,‍भाग्‍य‍बतािे,‍करतब‍कदिािे‍ या‍चीजें‍
बेचिे‍के ‍बिािे‍अथवा‍अन्‍यथा‍करिा,
(ii)‍हभक्षा‍की‍याचिा‍या‍प्राहप्‍त‍करिे‍के ‍प्रयोजि‍से‍ककसी‍प्राइवेट‍पररसर‍में‍प्रवेि‍करिा,‍
(iii)‍हभक्षा‍अहभप्राप्‍त‍या‍उद्दाहपत‍करिे‍ के ‍उद्देश्‍य‍से‍ अपिा‍या‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍का‍या‍जीवजन्‍तु‍ का‍
कोई‍व्रण,‍घाव,‍क्षहत,‍हवरूपता‍या‍रोग‍अहभदर्ितत‍या‍प्रदर्ितत‍करिा,‍
(iv)‍हभक्षा‍की‍याचिा‍या‍प्राहप्‍त‍के ‍प्रयोजि‍से‍अप्राप्‍तवय‍का‍प्रदर्ितत‍के ‍रूप‍में‍प्रयोग‍करिा‍;
(ि)‍अप्राप्‍तवय‍से‍वि‍व्‍यहक्‍त‍अहभप्रेत‍िै,‍जो—
(i)‍यकद‍िर‍िै,‍तो‍सोिि‍वषत‍से‍कम‍आयु‍का‍िै‍;‍तथा
(ii)‍यकद‍िारी‍िै,‍तो‍अठारि‍वषत‍से‍कम‍आयु‍की‍िै‍।]
364.‍ित्‍या‍करिे‍ के ‍हिए‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण—जो‍कोई‍इसहिए‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍करे गा‍कक‍ऐसे‍
व्‍यहक्‍त‍की‍ित्‍या‍की‍जाए‍या‍उसको‍ऐसे‍व्‍ययहित‍ककया‍जाए‍कक‍वि‍अपिी‍ित्‍या‍िोिे‍के ‍ितरे ‍में‍प़ि‍जाए,‍वि‍3[आजीवि‍कारावास]‍
से‍या‍करठि‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
दृष्ट‍ ांत
(क)‍ क‍ इस‍ आिय‍ से‍ या‍ यि‍ सम्‍भाव्‍य‍ जािते‍ हुए‍ कक‍ ककसी‍ देव‍ मूर्तत‍ पर‍ य‍ की‍ बहि‍ चढ़ाई‍ जाए‍ 1[भारत]‍ में‍ से‍ य‍ का‍
व्‍यपिरण‍करता‍िै‍।‍क‍िे‍इस‍िारा‍में‍पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै‍।

1
“हिरटि‍भारत”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍अिुक्रमि:‍भारतीय‍स्‍वतंत्रता‍(के न्‍रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्‍यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948,‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950‍और‍1951
‍‍के ‍अहिहियम‍सं० 3‍की‍िारा 3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1959 के ‍अहिहियम‍सं०‍52 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
3
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
69

(ि)‍ ि‍ को‍ उसके ‍ गृि‍ से‍ क‍ इसहिए‍ बिपूवतक‍ या‍ बिकाकर‍ िे‍ जाता‍ िै‍ कक‍ ि‍ की‍ ित्‍या‍ की‍ जाए‍ ।‍ क‍ िे‍ इस‍ िारा‍ में‍
पररभाहषत‍अपराि‍ककया‍िै‍।
1[364क. किरौती,‍ आकद‍ के ‍ हिए‍ व्‍यपिरण—जो‍ कोई‍ इसहिए‍ ककसी‍ व्‍यहक्‍त‍ का‍ व्‍यपिरण‍ या‍ अपिरण‍ करे गा‍ या‍ ऐसे‍
व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍के ‍पश्‍चात्‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍को‍हिरोि‍में‍रिेगा‍और‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍या‍उसकी‍उपिहत‍काररत‍करिे‍ की‍िमकी‍
देगा‍या‍अपिे‍आचरण‍से‍ऐसी‍युहक्‍तयुक्‍त‍आिंका‍पैदा‍करे गा‍कक‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍की‍मृत्‍यु‍िो‍सकती‍िै‍या‍उसको‍उपिहत‍की‍जा‍सकती‍िै‍
या‍ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍को‍उपिहत‍या‍उसकी‍मृत्‍यु‍ काररत‍करे गा‍हजससे‍ कक‍सरकार‍या‍ 2[ककसी‍हवदेिी‍राज्‍य‍या‍अंतरराष्‍रीय‍अंतर-सरकारी‍
संगठि‍या‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त]‍को‍ककसी‍कायत‍ को‍करिे‍ या‍करिे‍ से‍ प्रहवरत‍रििे‍ के ‍हिए‍या‍किरौती‍देिे‍ के ‍हिए‍हववि‍ककया‍जाए,‍
वि‍मृत्‍यु‍या‍आजीवि‍कारावास‍से‍दंहडत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दंडिीय‍िोगा‍।]
365.‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍गुप्त
‍ ‍रीहत‍से‍ और‍सदोष‍परररोि‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ व्‍य पिरण‍या‍अपिरण—जो‍कोई‍इस‍आिय‍से‍
ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍करे गा‍कक‍उसका‍गुप्‍त‍रीहत‍से‍और‍सदोष‍परररोि‍ककया‍जाए,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍
कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
366.‍हववाि‍आकद‍के ‍करिे‍ को‍हववि‍करिे‍ के ‍हिए‍ककसी‍ स्‍त्री‍को‍व्‍यपहृत‍करिा,‍अपहृत‍करिा‍या‍उत्‍प्रेररत‍करिा—जो‍
कोई‍ककसी‍स्‍त्री‍का‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍उसकी‍इच्‍छा‍के ‍हवरुद्ध‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से‍ हववाि‍करिे‍ के ‍हिए‍उस‍स्‍त्री‍को‍हववि‍करिे‍ के ‍
आिय‍से‍या‍वि‍हववि‍की‍जाएगी‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍अथवा‍अयुक्‍त‍संभोग‍करिे‍के ‍हिए‍उस‍स्‍त्री‍को‍हववि‍या‍हवक्षुब्ि ‍ ‍करिे‍के ‍
हिए‍या‍वि‍स्‍त्री‍अयुक्‍त‍संभोग‍करिे‍के ‍हिए‍हववि‍या‍हविुब्‍ि‍की‍जाएगी‍यि‍संभाव्‍य‍जािते‍हुए‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍
के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍ से‍ भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍;‍ 3[और‍जो‍कोई‍
ककसी‍स्‍त्री‍को‍ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍से‍ अयुक्‍त‍संभोग‍करिे‍ के ‍हिए‍हववि‍या‍हविुब्‍ि‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ या‍वि‍हववि‍या‍हविुब्‍ि ‍की‍
जाएगी‍यि‍संभाव्‍य‍जािते‍हुए‍इस‍संहिता‍में‍यथापररभाहषत‍आपराहिक‍अहभत्रास‍द्वारा‍अथवा‍प्राहिकार‍के ‍दुरुपयोग‍या‍हववि‍करिे‍
के ‍अन्‍य‍सािि‍द्वारा‍उस‍स्‍त्री‍को‍ककसी‍स्‍थाि‍से‍जािे‍को‍उत्‍प्रेररत‍करे गा,‍वि‍भी‍पूवोक्‍त‍प्रकार‍से‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।]
4[366क.‍अप्राप्‍तवय‍ि़िकी‍का‍उपापि—जो‍कोई‍अठारि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍अप्राप्‍तवय‍ि़िकी‍को‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍से‍ अयुक्‍त‍

संभोग‍करिे‍ के ‍हिए‍हववि‍या‍हविुब्‍ि‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ या‍तद्‍द्वारा‍हववि‍या‍हविुब्‍ि‍ककया‍जाएगा‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍ऐसी‍


ि़िकी‍को‍ककसी‍स्‍थाि‍से‍जािे‍को‍या‍कोई‍कायत‍ करिे‍ को‍ककसी‍भी‍सािि‍द्वारा‍उत्‍प्रे ररत‍करे गा,‍वि‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍
वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।]
366ि. हवदेि‍से‍ ि़िकी‍ का‍आयात‍ करिा—जो‍कोई‍ इक्‍कीस‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍ककसी‍ ि़िकी‍ को‍ 5[भारत]‍के ‍ बािर‍के ‍
ककसी‍देि‍से‍ 6[या‍जम्‍मू-कश्‍मीर‍राज्‍य‍से]‍आयात,‍उसे‍ ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त‍से‍ अयुक्त
‍ ‍संभोग‍करिे‍ के ‍हिए‍हववि‍या‍हविुब्ि
‍ ‍करिे‍ के ‍
आिय‍से‍ या‍तद्‍द्वारा‍वि‍हववि‍या‍हविुब्‍ि‍की‍जाएगी‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍करे गा‍ 7*** वि‍कारावास‍से‍ हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍
तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।]
367.‍व्‍यहक्‍त‍को‍घोर‍उपिहत,‍दासत्‍व,‍आकद‍का‍हवषय‍बिािे‍के ‍उद्देश्य ‍ ‍से‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍का‍
व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍इसहिए‍करे गा‍कक‍उसे‍ घोर‍उपिहत‍या‍दासत्‍व ‍का‍या‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍की‍प्रकृ हत‍हवरुद्ध‍काम‍वासिा‍का‍हवषय‍
बिाया‍जाए‍या‍बिाए‍जािे‍ के ‍ितरे ‍ में‍ वि‍जैसे‍ प़ि‍सकता‍िै‍ वैसे‍ उसे‍ व्‍ययहित‍ककया‍जाए‍या‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍करे गा‍कक‍ऐसे‍
व्‍यहक्‍त‍ को‍ उपयुतक्‍त‍ बातों‍ का‍ हवषय‍ बिाया‍ जाएगा‍ या‍ उपयुतक्‍त‍ रूप‍ से‍ व्‍ययहित‍ ककया‍ जाएगा,‍ वि‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍
कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
368.‍व्‍यपहृत‍या‍अपहृत‍व्‍यहक्‍त‍को‍सदोष‍हछपािा‍या‍परररोि‍में‍रििा—जो‍कोई‍यि‍जािते‍हुए‍कक‍कोई‍व्‍यहक्‍त‍व्‍यपहृत‍
या‍अपहृत‍ककया‍गया‍िै,‍ऐसे‍व्‍यहक्‍त‍को‍सदोष‍हछपाएगा‍या‍परररोि‍में‍रिेगा,‍वि‍उसी‍प्रकार‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍मािो‍उसिे‍उसी‍
आिय‍या‍ज्ञाि‍या‍प्रयोजि‍से‍ ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍का‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍ककया‍िो‍हजससे‍ उसिे‍ ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍को‍हछपाया‍या‍परररोि‍में‍
हिरुद्ध‍रिा‍िै‍।
369.‍दस‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ के ‍हििु‍ के ‍िरीर‍पर‍से‍ चोरी‍करिे‍ के ‍आिय‍से‍ उसका‍व्यपिरण‍या‍अपिरण—जो‍कोई‍दस‍वषत‍
से‍कम‍आयु‍के ‍ककसी‍हििु‍का‍इस‍आिय‍से‍व्‍यपिरण‍या‍अपिरण‍करे गा‍कक‍ऐसे‍हििु‍के ‍िरीर‍पर‍से‍कोई‍जंगम‍सम्‍प हत्त‍बेईमािी‍से‍
िे‍ िे,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍सात‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍ भी‍
दण्‍डिीय‍िोगा‍।
8[370.‍व्‍यहक्‍त‍का‍दुव्य
‍ ातपार—(1) जो कोई, िोषण के प्रयोजि के हिए,—

1
1993 के ‍अहिहियम‍सं०‍42 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2
1995 के ‍अहिहियम‍सं० 24‍की‍िारा‍2 द्वारा‍“ककसी‍अन्‍य‍व्‍यहक्‍त”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1923 के ‍अहिहियम‍सं० 20‍की‍िारा 2‍द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
4
1923 के ‍अहिहियम‍सं० 20‍की‍िारा 3‍द्वारा अंत:स्‍थाहपत‍।
5
“हिरटि‍भारत”‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍अिुक्रमि:‍भारतीय‍स्‍वतंत्रता‍(के न्‍रीय‍अहिहियम‍तथा‍अध्‍यादेि‍अिुकूिि)‍आदेि, 1948,‍हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950‍और‍1951
के ‍अहिहियम‍सं० 3‍की‍िारा 3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
6
1951 के ‍अहिहियम‍सं०‍3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
7
1951 के ‍अहिहियम‍सं०‍3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा कहतपय‍िब्‍दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
8
2013 के ‍अहिहियम‍सं० 13‍की‍िारा‍8 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
70

पििा—िमककयों का प्रयोग करके ; या


दूसरा—बि या ककसी भी अन्य प्रकार के प्रपी़िि का प्रयोग करके ; या
तीसरा—अपिरण द्वारा ; या
चौथा—कपट का प्रयोग करके या प्रवंचिा द्वारा ; या
पांचवां—िहक्‍त का दुरुपयोग करके ; या
छठवां—उत्‍प्रेरणा द्वारा, हजसके अंतगतत ऐसे ककसी व्यहक्‍त की, जो भती ककए गए, पररविहित, संहश्रत, स्थािांतररत
या गृिीत व्यहक्‍त पर हियंत्रण रिता िै, सम्महत प्राप्‍त करिे के हिए भुगताि या िायदे देिा या प्राप्‍त करिा भी आता िै,
ककसी व्यहक्‍त या ककन्िीं व्यहक्‍तयों को (क) भती करता िै, (ि) पररविहित करता िै, (ग) संश्रय देता िै, (घ) स्थािांतररत करता िै,
या (ङ) गृिीत करता िै, वि दुव्यातपार का अपराि करता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—“िोषण” पद के अंतगतत िारीररक िोषण का कोई कृ त्य या ककसी प्रकार का िैंहगक िोषण, दासता या
दासता अहिसेहवता के समाि व्यविार या अंगों का बिात् अपसारण भी िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—दुव्यातपार के अपराि के अविारण में पीह़ित की सम्महत मित्विीि िै ।
(2) जो कोई दुव्यातपार का अपराि करे गा वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो
दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(3) जिां अपराि में एक से अहिक व्यहक्‍तयों का दुव्यातपार अंतवतहित िै, विां वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत
से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, दंहडत िोगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(4) जिां अपराि में ककसी अवयस्क का दुव्यातपार अंतवतहित िै, विां वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत से कम
की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, दंहडत िोगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(5) जिां अपराि में एक से अहिक अवयस्कों का दुव्यातपार अंतवतहित िै, विां वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि चौदि
वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, दंडिीय‍िोगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(6) यकद ककसी व्यहक्‍त को अवयस्क का एक से अहिक अवसरों पर दुव्यातपार ककए जािे के अपराि के हिए हसद्धदोष
ठिराया जाता िै तो ऐसा व्यहक्‍त आजीवि कारावास से, हजससे उस व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त जीविकाि के हिए कारावास अहभप्रेत
िोगा, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
(7) जिां कोई िोक सेवक या कोई पुहिस अहिकारी ककसी व्यहक्‍त के दुव्यातपार में अंतवतहित िै, विां ऐसा िोक सेवक या
पुहिस अहिकारी आजीवि कारावास से, हजससे उस व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त जीविकाि के हिए कारावास अहभप्रेत िोगा, दंहडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
370क. ऐसे‍ व्‍यहक्‍त‍का,‍हजसका‍दुव्‍यातपार‍ककया‍गया‍िै,‍िोषण—(1) जो कोई यि जािते हुए या इस बात का हवश्‍वास करिे का
कारण रिते हुए कक ककसी अवयस्क का दुव्यातपार ककया गया िै, ऐसे अवयस्क को ककसी भी रीहत में िैंहगक िोषण के हिए रिेगा वि
कठोर कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दंडिीय िोगा ।
(2) जो कोई यि जािते हुए या इस बात का हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक ककसी व्यहक्‍त का दुव्यातपार ककया गया िै, ऐसे
व्यहक्‍त को ककसी भी रीहत में िैंहगक िोषण के हिए रिेगा, वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु
जो पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।]
371.‍ दासों‍ का‍ आभ्‍याहसक‍ व्‍यौिार‍ करिा—जो‍ कोई‍ अभ्‍यासत:‍ दासों‍ को‍ आयात‍ करे गा,‍ हियातत‍ करे गा,‍ अपसाररत‍ करे गा,‍
िरीदेगा,‍ बेचेगा‍ या‍ उिका‍ दुव्‍यातपार‍ या‍ व्‍यौिार‍ करे गा,‍ वि‍ 1[आजीवि‍ कारावास]‍ से,‍ या‍ दोिों‍ में‍ से‍ ककसी‍ भांहत‍ के ‍ कारावास‍ से,‍
हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍से‍अहिक‍ि‍िोगी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।
372.‍वेश्य
‍ ावृहत्त‍आकद‍के ‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍अप्राप्‍तवय‍को‍बेचिा—जो‍कोई‍ 2[अठारि‍वषत‍ के ‍कम‍आयु‍ के ‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍इस‍
आिय‍से‍ कक‍ऐसा‍व्‍यहक्‍त‍ककसी‍आयु‍ में‍ भी‍वेश्‍यावृहत्त‍या‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से‍ अयुक्‍त‍संभोग‍करिे‍ के ‍हिए‍या‍ककसी‍हवहिहवरुद्ध‍और‍
दुराचाररक‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍काम‍में‍िाया‍या‍उपयोग‍ककया‍जाए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍हुए‍कक‍ऐसा‍व्‍यहक्‍त,‍ककसी‍आयु‍में‍भी]‍ऐसे‍
ककसी‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍काम‍में‍िाया‍जाएगा‍या‍उपयोग‍ककया‍जाएगा,‍बेचेगा,‍भा़िे‍पर‍देगा‍या‍अन्‍यथा‍व्‍ययहित‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍
से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दण्‍डिीय‍िोगा‍।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1924 के ‍अहिहियम‍सं०‍18 की‍िारा‍2 द्वारा‍कहतपय‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
71

1
[स्‍पष्‍टीकरण‍1—जबकक‍अठारि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍िारी‍ककसी‍वेश्य ‍ ा‍को‍या‍ककसी‍अन्‍य‍व्यहक्‍त‍को,‍जो‍वेश्‍यागृि‍चिाता‍िो‍
या‍उसका‍प्रबंि‍करता‍िो,‍बेची‍जाए,‍भा़िे‍ पर‍दी‍जाए‍या‍अन्‍यथा‍व्‍ययहित‍की‍जाए,‍तब‍इस‍प्रकार‍ऐसी‍िारी‍को‍व्‍ययहित‍करिे‍
वािे‍ व्‍यहक्‍त‍के ‍बारे ‍ में,‍जब‍तक‍कक‍तत्‍प्रहतकू ि‍साहबत‍ि‍कर‍कदया‍जाए,‍यि‍उपिारणा‍की‍जाएगी‍कक‍उसिे‍ उसको‍इस‍आिय‍से‍
व्ययहित‍ककया‍िै‍कक‍वि‍वेश्‍यावृहत्त‍के ‍हिए‍उपयोग‍में‍िाई‍जाएगी‍।
स्‍पष्‍टीकरण‍2—“अयुक्‍त‍संभोग”‍से‍इस‍िारा‍के ‍प्रयोजिों‍के ‍हिए‍ऐसे‍व्‍यहक्‍तयों‍में‍मैथुि‍अहभप्रेत‍िै‍ जो‍हववाि‍से‍संयुक्‍त‍ििीं‍
िैं,‍या‍ऐसे‍ ककसी‍संयोग‍या‍बन्‍िि‍से‍ संयुक्‍त‍ििीं‍िैं‍ जो‍यद्यहप‍हववाि‍की‍कोरट‍में‍ तो‍ििीं‍आता‍तथाहप‍उस‍समुदाय‍की,‍हजसके ‍वे‍ िैं‍
या‍यकद‍वे‍ हभन्‍ि‍समुदायों‍के ‍िैं‍ तो‍ऐसे‍ दोिों‍समुदायों‍की,‍स्‍वीय‍हवहि‍या‍रूकढ‍द्वारा‍उिके ‍बीच‍में‍ हववाि-सदृि‍सम्‍बन्‍ि‍अहभज्ञात‍
ककया‍जाता‍िो‍।]
373.‍वेश्य
‍ ावृहत्त‍आकद‍के ‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍अप्राप्‍तवय‍का‍िरीदिा—जो‍कोई‍ 2[अठारि‍वषत‍के ‍कम‍आयु‍ के ‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍इस‍
आिय‍से‍ कक‍ऐसा‍व्‍यहक्‍त‍ककसी‍आयु‍ में‍ भी‍वेश्‍यावृहत्त‍या‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍से‍ अयुक्‍त‍संभोग‍करिे‍ के ‍हिए‍या‍ककसी‍हवहिहवरुद्ध‍और‍
दुराचाररक‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍काम‍में‍ िाया‍या‍उपयोग‍ककया‍जाए‍या‍यि‍सम्‍भाव्‍य‍जािते‍ हुए‍कक‍ऐसा‍व्‍यहक्‍त,‍ककसी‍आयु‍में‍ भी] ऐसे‍
ककसी‍प्रयोजि‍के ‍हिए‍काम‍में‍ िाया‍जाएगा‍या‍उपयोग‍ककया‍जाएगा,‍िरीदेगा,‍भा़िे‍ पर‍िेगा,‍या‍अन्‍यथा‍उसका‍कब्‍जा‍अहभप्राप्‍त‍
करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍से‍ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍दस‍वषत‍तक‍की‍िो‍सके गी,‍दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍
दण्‍डिीय‍िोगा‍।
[स्‍पष्‍टीकरण‍1—अठारि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍िारी‍को‍िरीदिे‍ वािी,‍भा़िे‍ पर‍िेिे‍ वािी‍या‍अन्‍यथा‍उसका‍कब्‍जा‍अहभप्राप्‍त‍
3

करिे‍वािी‍ककसी‍वेश्‍या‍के ‍या‍वेश्य
‍ ागृि‍चिािे‍या‍उसका‍प्रबन्‍ि‍करिे‍वािे‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍के ‍बारे ‍में,‍जब‍तक‍कक‍तत्‍प्रहतकू ि‍साहबत‍ि‍
कर‍ कदया‍ जाए,‍ यि‍ उपिारणा‍ की‍ जाएगी‍ कक‍ ऐसी‍ िारी‍ का‍ कब्‍जा‍ उसिे‍ इस‍ आिय‍ से‍ अहभप्राप्‍त‍ ककया‍ िै‍ कक‍ वि‍ वेश्‍यावृहत्त‍ के ‍
प्रयोजिों‍के ‍हिए‍उपयोग‍में‍िाई‍जाएगी‍।]
[स्‍पष्‍टीकरण‍2—“अयुक्‍त‍संभोग”‍का‍विी‍अथत‍िै,‍जो‍िारा‍372 में‍िै‍।]
374.‍हवहिहवरुद्ध‍अहिवायत‍श्रम—जो‍कोई‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍को‍उस‍व्‍यहक्‍त‍की‍इच्‍छा‍के ‍हवरुद्ध‍श्रम‍करिे‍के ‍हिए‍हवहिहवरुद्ध‍तौर‍
पर‍हववि‍करे गा,‍वि‍दोिों‍में‍ से‍ ककसी‍भांहत‍के ‍कारावास‍से ,‍हजसकी‍अवहि‍एक‍वषत‍ तक‍की‍िो‍सके गी,‍या‍जुमातिे‍ से,‍या‍दोिों‍से,‍
दहण्‍डत‍ककया‍जाएगा‍।
4
[375.‍बिात्‍सग
ं —यकद कोई पुरुष,—
(क) ककसी स्‍त्री की योहि, उसके मुंि, मूत्रमागत या गुदा में अपिा सिंग ककसी भी सीमा तक प्रवेि करता िै या उससे ऐसा
अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के साथ कराता िै ; या
(ि) ककसी स्‍त्री की योहि, मूत्रमागत या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या िरीर का कोई भाग, जो सिंग ि िो, ककसी भी सीमा
तक अिुप्रहवष्‍ट करता िै या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के साथ कराता िै ; या
(ग) ककसी स्‍त्री के िरीर के ककसी भाग का इस प्रकार िस्तसािि करता िै हजससे कक उस स्‍त्री की योहि, गुदा, मूत्रमागत या
िरीर के ककसी भाग में प्रवेिि काररत ककया जा सके या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के साथ कराता िै ; या
(घ) ककसी स्‍त्री की योहि, मूत्रमागत,‍गुदा पर अपिा मुंि िगाता िै या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यहक्‍त के साथ
कराता िै,
तो उसके बारे में यि किा जाएगा कक उसिे बिात्संग ककया िै, जिां ऐसा हिम्‍िहिहित सात भांहत की पररहस्थहतयों में से ककसी के अिीि
ककया जाता िै :—
पििा—उस स्‍त्री की इच्छा के हवरुद्ध ।
दूसरा—उस स्‍त्री की सम्महत के हबिा ।
तीसरा—उस स्‍त्री की सम्महत से, जब उसकी सम्महत उसे या ऐसे ककसी व्यहक्‍त को, हजससे वि हितबद्ध िै, मृत्यु या उपिहत के
भय में डािकर अहभप्राप्‍त की गई िै ।
चौथा—उस स्‍त्री की सम्महत से, जब कक वि पुरुष यि जािता िै कक वि उस‍स्‍त्री‍का पहत ििीं िै और उस‍स्‍त्री‍िे सम्महत
इस कारण दी िै कक वि यि हवश्‍वास करती िै कक वि ऐसा अन्य पुरुष िै हजससे वि हवहिपूवतक हववाहित िै या हववाहित िोिे का
हवश्‍वास करती िै ।

1
1924 के ‍अहिहियम‍सं०‍18 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2
1924 के ‍अहिहियम‍सं०‍18 की‍िारा‍2 द्वारा कहतपय‍िब्‍दों‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1924 के ‍अहिहियम‍सं०‍18 की‍िारा‍4 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
4
2013 के ‍अहिहियम‍सं० 13‍की‍िारा‍9 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
72

पांचवां—उस स्‍त्री की सम्महत से, जब ऐसी सम्महत देिे के समय, वि हवकृ तहचत्तता या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा
व्यहक्‍तगत रूप से या ककसी अन्य‍व्‍यहक्‍त‍के माध्यम से कोई संज्ञािून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदाथत कदए जािे के कारण, उस बात की,
हजसके बारे में वि सम्महत देती िै, प्रकृ हत और पररणामों को समझिे में असमथत िै ।
छठवां—उस स्‍त्री की सम्महत से या उसके हबिा, जब वि अठारि वषत से कम आयु की िै ।
सातवां—जब वि स्‍त्री सम्महत संसहू चत करिे में असमथत िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—इस िारा के प्रयोजिों के हिए, “योहि” के अंतगतत वृित्त् भगौष्‍ठ भी िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—सम्महत से कोई स्पष्‍ट स्वैहच्छक सिमहत अहभप्रेत िै, जब स्‍त्री िब्दों, संकेतों या ककसी प्रकार की मौहिक या
अमौहिक संसूचिा द्वारा हवहिर्दतष्‍ट िैंहगक कृ त्य में भाग‍िेिे की इच्छा व्यक्‍त करती िै :
परं तु ऐसी स्‍त्री के बारे में, जो प्रवेिि के कृ त्य का भौहतक रूप से हवरोि ििीं करती िै, मात्र इस तथ्य के कारण यि ििीं समझा
जाएगा कक उसिे िैंहगक कक्रयाकिाप के प्रहत सम्‍महत प्रदाि की िै ।
अपवाद 1—ककसी हचककत्सीय प्रकक्रया या अंत:प्रवेिि से बिात्संग गरठत ििीं िोगा ।
अपवाद 2—ककसी पुरुष की अपिी स्वयं की पत्‍िी के साथ‍ मैथुि‍ या‍ िैंहगक‍ कृ त्‍य, यकद पत्‍िी पंरि वषत से कम आयु की ि िो,
बिात्संग ििीं िै ।
376.‍बिात्‍सग
ं ‍के ‍हिए‍दंड—(1) जो कोई, उपिारा (2) में उपबंहित मामिों के हसवाय, बिात्संग करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कठोर कारावास से, 1[हजसकी अवहि‍दस‍वषत से कम की ििीं िोगी ककन्तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।]
(2) जो कोई—
(क) पुहिस अहिकारी िोते हुए—
2
* * * * * *
(ii) ककसी भी थािे के पररसर में‍बिात्संग करे गा ; या
(iii) ऐसे पुहिस अहिकारी की अहभरक्षा में या ऐसे पुहिस अहिकारी के अिीिस्थ ककसी पुहिस अहिकारी
की अहभरक्षा में,‍ककसी स्‍त्री से‍बिात्संग करे गा ; या
(ि) िोक सेवक िोते हुए, ऐसे िोक सेवक की अहभरक्षा में या ऐसे िोक सेवक के अिीिस्थ ककसी िोक सेवक की
अहभरक्षा में की ककसी स्‍त्री से बिात्संग करे गा ; या
(ग) कें रीय या ककसी राज्य सरकार द्वारा ककसी क्षेत्र में अहभहियोहजत सिस्‍त्र बिों का कोई सदस्य िोते हुए, उस क्षेत्र
में बिात्संग करे गा ; या
(घ) तत्समय प्रवृत्त ककसी हवहि द्वारा या उसके अिीि स्थाहपत ककसी जेि, प्रहतप्रेषण गृि या अहभरक्षा के अन्य स्थाि
के या हस्‍त्रयों या बािकों की ककसी संस्था के प्रबंितंत्र या कमतचाररवृंद में िोते हुए, ऐसी जेि, प्रहतप्रेषण गृि, स्थाि या संस्था के
ककसी हिवासी से बिात्संग करे गा ; या
(ङ) ककसी अस्पताि के प्रबंितंत्र या कमतचाररवृंद में िोते हुए, उस अस्पताि में ककसी स्‍त्री से बिात्संग करे गा ; या
(च) स्‍त्री का िातेदार, संरक्षक या अध्यापक अथवा उसके प्रहत न्यास या प्राहिकारी की िैहसयत में का कोई व्यहक्‍त
िोते हुए, उस स्‍त्री से बिात्संग करे गा ; या
(छ) सांप्रदाहयक या पंथीय सिंसा के दौराि बिात्संग करे गा ; या
(ज) ककसी स्‍त्री से यि जािते हुए कक वि गभतवती िै, बिात्संग करे गा ; या
(झ) ककसी स्‍त्री से, जब वि सोिि वषत से कम आयु की िै, बिात्संग करे गा ; या
(ञ) उस स्‍त्री से, जो सम्महत देिे में असमथत िै, बिात्संग करे गा ; या
(ट) ककसी स्‍त्री पर हियंत्रण या प्रभाव रििे की हस्थहत में िोते हुए, उस स्‍त्री से बिात्संग करे गा ; या
(ठ) मािहसक या िारीररक हि:िक्‍तता से ग्रहसत ककसी स्‍त्री से बिात्संग करे गा ; या

1
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍िारा 4‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।‍
2
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍िारा 4‍द्वारा “िंड‍(i)”‍िोप‍ककया‍गया‍।‍
73

(ड) बिात्संग करते समय ककसी स्‍त्री को गंभीर िारीररक अपिाहि काररत करे गा या हवकिांग बिाएगा या हवरूहपत
करे गा या उसके जीवि को संकटापन्‍ि करे गा ; या
(ढ) उसी स्‍त्री से बारबार बिात्संग करे गा,
वि कठोर कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत से कम की ििीं िोगी, ककन्तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, हजससे उस
व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त जीविकाि के हिए कारावास अहभप्रेत िोगा, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस उपिारा के प्रयोजिों के हिए,—
(क) “सिस्‍त्र बि” से िौसेिा‍बि,‍सैन्‍य‍बि और वायु सैिा‍बि अहभप्रेत िै और इसके अंतगतत तत्समय प्रवृत्त ककसी
हवहि के अिीि गरठत सिस्‍त्र बिों का, हजसमें ऐसे अितसैहिक बि और कोई सिायक बि भी िैं, जो कें रीय सरकार या राज्य
सरकार के हियंत्रणािीि िैं, कोई सदस्य भी िै ;
(ि) “अस्पताि” से अस्पताि का अिाता अहभप्रेत िै और इसके अंतगतत ककसी ऐसी संस्था का अिाता भी िै, जो
स्वास्थ्य िाभ कर रिे व्यहक्‍तयों को या हचककत्सीय देिरे ि या पुिवातस की अपेक्षा रििे वािे व्यहक्‍तयों के प्रवेि और उपचार
करिे के हिए िै ;
(ग) “पुहिस अहिकारी” का विी अथत िोगा जो पुहिस अहिहियम, 1861‍(1861 का 5) के अिीि “पुहिस” पद में
उसका िै ;
(घ) “हस्‍त्रयों या बािकों की संस्था” से हस्‍त्रयों और बािकों को ग्रिण करिे और उिकी देिभाि करिे के हिए
स्थाहपत और अिुरहक्षत कोई संस्था अहभप्रेत िै चािे उसका िाम अिाथािय िो या उपेहक्षत हस्‍त्रयों या बािकों के हिए गृि िो
या हविवाओं के हिए गृि या ककसी अन्य िाम से ज्ञात कोई संस्था िो ।‍
1[जो‍कोई,‍सोिि‍वषत‍से‍कम‍आयु‍की‍ककसी‍स्‍त्री‍से‍बिात्‍संग‍करे गा,‍वि‍करठि‍कारावास‍से,‍हजसकी‍अवहि‍बीस‍वषत‍से‍कम‍

की‍ ििीं‍ िोगी‍ ककन्‍तु‍ जो‍ आजीवि‍ कारावास,‍ हजससे‍ उस‍ व्‍यहक्‍त‍ के ‍ िेष‍ प्राकृ त‍ जीविकाि‍ का‍ कारावास‍ अहभप्रेत‍ िै,‍ दंहडत‍ ककया‍
जाएगा‍और‍जुमातिे‍का‍भी‍दायी‍िोगा‍:‍
परं तु‍ऐसा‍जुमातिा‍पीह़िता‍के ‍हचककत्‍सीय‍िचों‍को‍पूरा‍करिे‍और‍पुिवातस‍के ‍हिए‍न्‍यायोहचत‍और‍युहक्‍तयुक्त
‍ ‍िोगा‍:‍
परं तु‍यि‍और‍कक‍इस‍उपिारा‍के ‍अिीि‍अहिरोहपत‍ककसी‍भी‍जुमातिे‍का‍संदाय‍पीह़िता‍को‍ककया‍जाएगा‍।]
376क. पीह़िता‍की‍मृत्य ‍ ु‍ या‍िगातार‍हवकृ तिीि‍दिा‍काररत‍करिे‍ के ‍हिए‍दंड —जो कोई, िारा 376 की उपिारा (1) या
उपिारा (2) के अिीि दंडिीय कोई अपराि करे गा और ऐसे अपराि के दौराि ऐसी कोई क्षहत पहुंचाएगा हजससे स्‍त्री की मृत्यु काररत िो
जाती िै या हजसके कारण उस स्‍त्री की दिा िगातार हवकृ तिीि िो जाती िै, वि ऐसी अवहि के कठोर कारावास से, हजसकी अवहि बीस
वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सके गी, हजससे उस व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त जीविकाि के हिए कारावास
अहभप्रेत िोगा, या मृत्युदड
ं से दंहडत ककया जाएगा ।‍
[376कि.‍ बारि‍ वषत‍ से‍ कम‍ आयु‍ की‍ स्‍त्री‍ से‍ बिात्‍सग
2
ं ‍ के ‍ हिए‍ दंड—जो‍ कोई,‍ बारि‍ वषत‍ से‍ कम‍ आयु‍ की‍ ककसी‍ स्‍त्री‍ से‍
बिात्‍संग‍ करे गा,‍ वि‍ करठि‍ कारावास‍ से,‍ हजसकी‍ अवहि‍ बीस‍ वषत‍ से‍ कम‍ की‍ ििीं‍ िोगी‍ ककन्‍तु‍ जो‍आजीवि‍ कारावास,‍ हजससे‍ उस‍
व्‍यहक्‍त‍के ‍िेष‍प्राकृ त‍जीविकाि‍का‍कारावास‍अहभप्रेत‍िै,‍और‍जुमातिे‍से,‍अथवा‍मृत्‍युदड ं ‍से‍दंहडत‍ककया‍जाएगा‍:‍
परं तु‍ऐसा‍जुमातिा‍पीह़िता‍के ‍हचककत्‍सीय‍िचों‍को‍पूरा‍करिे‍और‍पुिवातस‍के ‍हिए‍न्‍यायोहचत‍और‍युहक्‍तयुक्त
‍ ‍िोगा‍:‍
परं तु‍यि‍और‍कक‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अहिरोहपत‍ककसी‍भी‍जुमातिे‍का‍संदाय‍पीह़िता‍को‍ककया‍जाएगा‍।]
376ि. पहत‍द्वारा‍अपिी‍पत्‍िी‍के ‍साथ‍पृथक्‍करण‍के ‍दौराि‍मैथि
ु —जो कोई, अपिी पत्‍िी के साथ, जो पृथक्‍करण की हडक्री के
अिीि या अन्यथा, पृथक् रि रिी िै, उसकी सम्महत के हबिा मैथुि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि दो
वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण— इस िारा में, “मैथुि” से िारा 375 के िंड (क) से िंड (घ) में वर्णतत कोई कृ त्य अहभप्रेत िै ।
376ग. प्राहिकार‍में‍ककसी‍व्‍यहक्‍त‍द्वारा‍मैथि
ु —जो कोई,—
(क) प्राहिकार की ककसी हस्थहत या वैश्‍वाहसक संबंि रिते हुए ; या
(ि) कोई िोक सेवक िोते हुए ; या
(ग) तत्समय प्रवृत्त ककसी हवहि द्वारा या उसके अिीि स्थाहपत ककसी जेि, प्रहतप्रेषण-गृि या अहभरक्षा के अन्य
स्थाि का या हस्‍त्रयों या बािकों की ककसी संस्था का अिीक्षक या प्रबंिक िोते हुए ; या

1
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍ िारा‍4‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।‍
2
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍ िारा‍5‍द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
74

(घ) अस्पताि के प्रबंितंत्र या ककसी अस्पताि का कमतचाररवृंद िोते हुए,


ऐसी ककसी स्‍त्री को, जो उसकी अहभरक्षा में िै या उसके भारसािि के अिीि िै या पररसर में उपहस्थत िै, अपिे साथ मैथुि करिे िेतु,
जो बिात्संग के अपराि की कोरट में ििीं आता िै, उत्‍प्रेररत या हविुब्ि करिे के हिए ऐसी हस्थहत या वैश्‍वाहसक संबंि का दुरुपयोग
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के ‍कठोर‍कारावास से, हजसकी‍अवहि पांच वषत से कम की ििीं िोगी ककन्तु जो दस वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण 1—इस िारा में, “मैथुि” से िारा 375 के िंड (क) से िंड (घ) में वर्णतत कोई कृ त्य अहभप्रेत िोगा ।
स्पष्‍टीकरण 2—इस िारा के प्रयोजिों के हिए, िारा 375 का स्पष्‍टीकरण 1 भी िागू िोगा ।
स्पष्‍टीकरण 3—ककसी जेि, प्रहतप्रेषण-गृि या अहभरक्षा के अन्य स्थाि या हस्‍त्रयों या बािकों की ककसी संस्था के संबंि में,
“अिीक्षक” के अंतगतत कोई ऐसा व्यहक्‍त िै, जो जेि, प्रहतप्रेषण-गृि, स्थाि या संस्था में ऐसा कोई पद िारण करता िै हजसके आिार पर वि
उसके हिवाहसयों पर ककसी प्राहिकार या हियंत्रण का प्रयोग कर सकता िै ।
स्पष्‍टीकरण 4—“अस्पताि” और “हस्‍त्रयों या बािकों की संस्था” पदों का क्रमिः विी अथत िोगा जो िारा 376 की ‍‍‍‍‍‍
उपिारा (2) के स्पष्‍टीकरण में उिका िै ।
376घ. सामूहिक‍बिात्‍सग
ं —जिां ककसी स्‍त्री से, एक या अहिक व्यहक्‍तयों द्वारा, एक समूि गरठत करके या सामान्य आिय को
अग्रसर करिे में कायत करते हुए बिात्संग ककया जाता िै, विां उि व्यहक्‍तयों में से प्रत्येक के बारे में यि समझा जाएगा कक उसिे बिात्संग
का अपराि ककया िै और वि ऐसी अवहि के कठोर कारावास से, हजसकी अवहि बीस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि
कारावास तक की िो सके गी, हजससे उस व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त जीविकाि के हिए कारावास अहभप्रेत िोगा, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा :
परं तु ऐसा जुमातिा पीह़िता के हचककत्सीय िचों को पूरा करिे और पुिवातस के हिए न्यायोहचत और युहक्‍तयुक्‍त िोगा :
परं तु यि और कक इस िारा के अिीि अहिरोहपत कोई जुमातिा पीह़िता को संदत्त ककया जाएगा ।‍
1
[376घक.‍सोिि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍स्‍त्री‍से‍ सामूहिक‍बिात्‍संग‍के ‍हिए‍दंड—जिां‍ एक‍या‍अहिक‍व्‍यहक्‍तयों‍द्वारा‍समूि‍
गरठत‍करके ‍या‍सामान्‍य‍आिय‍को‍अग्रसर‍करिे‍ में‍ कायत‍ करते‍ हुए‍सोिि‍वषत‍ से‍ कम‍आयु‍ की‍ककसी‍स्‍त्री‍से‍ बिात्‍संग‍ककया‍जाता‍िै,‍
विां‍ उि‍ व्‍यहक्‍तयों‍ में‍ से‍ प्रत्‍येक‍ व्‍यहक्‍त‍ के ‍ बारे ‍ में‍ यि‍ समझा‍ जाएगा‍ कक‍ उसिे‍ बिात्‍संग‍ का‍ अपराि‍ ककया‍ िै‍ और‍ वि‍ आजीवि‍
कारावास‍से,‍हजससे‍उस‍व्‍यहक्‍त‍से‍िेष‍प्राकृ त‍जीविकाि‍के ‍हिए‍कारावास‍अहभप्रेत‍िै‍और‍जुमातिे‍से‍दंडिीय‍िोगा‍:‍
पंरतु‍ऐसा‍जुमातिा‍पीह़िता‍के ‍हचककत्‍सीय‍िचों‍को‍पूरा‍करिे‍और‍पुिवातस‍के ‍हिए‍न्‍यायोहचत‍और‍युहक्‍तयुक्त
‍ ‍िोगा‍:‍
परं तु‍यि‍और‍कक‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अहिरोहपत‍ककसी‍भी‍जुमातिे‍का‍संदाय‍पीह़िता‍को‍ककया‍जाएगा‍।
376घि.‍ बारि‍ वषत‍ से‍ कम‍ आयु‍ की‍ स्‍त्री‍ से‍ सामूहिक‍ बिात्‍संग‍ के ‍ हिए‍ दंड—जिां‍ एक‍ या‍ अहिक‍ व्‍यहक्‍तयों‍ द्वारा‍ समूि‍
गरठत‍करके ‍या‍सबके ‍सामान्‍य‍आिय‍को‍अग्रसर‍करिे‍में‍कायत‍करते‍हुए‍बारि‍वषत‍से‍कम‍आयु‍की‍ककसी‍स्‍त्री‍से‍बिात्‍संग‍ककया‍जाता‍
िै,‍विां‍ उि‍व्‍यहक्‍तयों‍में‍ से‍ प्रत्‍येक‍व्‍यहक्‍त‍ के ‍बारे ‍ में‍ यि‍समझा‍जाएगा‍कक‍उसिे‍ बिात्‍संग‍का‍अपराि‍ककया‍िै‍ और‍वि‍आजीवि‍
कारावास‍से‍ हजससे‍ उस‍व्‍यहक्‍त‍के ‍िेष‍प्राकृ त‍जीविकाि‍के ‍हिए‍कारावास‍अहभप्रेत‍िै‍ और‍जुमातिे‍ से‍अथवा‍मृत्‍यु ‍ दंड‍से‍ दंहडत‍ककया‍
जाएगा‍:‍
परं तु‍ऐसा‍जुमातिा‍पीह़िता‍के ‍हचककत्‍सीय‍िचों‍को‍पूरा‍करिे‍और‍पुिवातस‍के ‍हिए‍न्‍यायोहचत‍और‍युहक्‍तयुक्त
‍ ‍िोगा‍:‍
परं तु‍यि‍और‍कक‍इस‍िारा‍के ‍अिीि‍अहिरोहपत‍ककसी‍भी‍जुमातिे‍का‍संदाय‍पीह़िता‍को‍ककया‍जाएगा‍।]
376ङ. पुिरावृहत्तकतात अपराहियों के हिए दंड—जो कोई, िारा 376 या िारा 376क या 2[िारा 376कि‍या‍िारा 376घ‍या‍
िारा‍376घक‍या‍िारा 376घि] के अिीि दंडिीय ककसी अपराि के हिए पूवत में दंहडत ककया गया िै और तत्पश्‍चात् उक्‍त िाराओं में से
ककसी के अिीि दंडिीय ककसी अपराि के हिए हसद्धदोष ठिराया जाता िै, आजीवि कारावास से, हजससे उस व्यहक्‍त के िेष प्राकृ त
जीविकाि के हिए कारावास अहभप्रेत िोगा, या मृत्युदड
ं से दंहडत ककया जाएगा ।]
प्रकृ हत हवरुद्ध अपरािों के हवषय में
377. प्रकृ हत हवरुद्ध अपराि—जो कोई ककसी पुरुष, स्‍त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकृ हत की व्यवस्था के हवरुद्ध स्वेच्छया
इहन्रयभोग करे गा वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी,
दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा में वर्णतत अपराि के हिए आवश्यक इहन्रयभोग गरठत करिे के हिए प्रवेिि पयातप्त
‍ िै ।

1
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍ िारा‍6‍द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
2
2018‍के ‍अहिहियम‍सं०‍22‍की‍ िारा‍7‍द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
75

अध्याय 17

सम्पहत्त के हवरुद्ध अपरािों के हवषय में


चोरी के हवषय में
378. चोरी—जो कोई ककसी व्यहक्‍त के कब्जे में से, उस व्यहक्‍त की सम्महत के हबिा कोई जंगम सम्पहत्त बेईमािी से िे िेिे का
आिय रिते हुए वि सम्पहत्त ऐसे िेिे के हिए िटाता िै, वि चोरी करता िै, यि किा जाता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रिती िै, जंगम सम्पहत्त ि िोिे से चोरी का हवषय ििीं िोती ; ककन्तु ज्यों िी वि
भूहम से पृथक् की जाती िै वि चोरी का हवषय िोिे योग्य िो जाती िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—िटािा, जो उसी कायत द्वारा ककया गया िै हजससे पृथक्‍करण ककया गया िै, चोरी िो सके गा ।
स्पष्‍टीकरण 3—कोई व्यहक्‍त ककसी चीज का िटािा काररत करता िै, यि किा जाता िै जब वि उस बािा को िटाता िै जो उस
चीज को िटािे से रोके हुए िो या जब वि उस चीज को ककसी दूसरी चीज से पृथक् करता िै तथा जब वि वास्तव में उसे िटाता िै
स्पष्‍टीकरण 4—वि व्यहक्‍त जो ककसी सािि द्वारा ककसी जीवजन्तु का िटािा काररत करता िै, उस जीवजन्तु को िटाता िै, यि
किा जाता िै ; और यि किा जाता िै कक वि ऐसी िर एक चीज को िटाता िै जो इस प्रकार उत्पन्‍ि की गई गहत के पररणामस्वरूप उस
जीवजन्तु द्वारा िटाई जाती िै ।
स्पष्‍टीकरण 5—पररभाषा में वर्णतत संपहत्त अहभव्यक्‍त या हववहक्षत िो सकती िै, और वि या तो कब्जा रििे वािे व्यहक्‍त
द्वारा, या ककसी ऐसे व्यहक्‍त द्वारा, जो उस प्रयोजि के हिए अहभव्यक्‍त या हववहक्षत प्राहिकार रिता िै, दी जा सकती िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य की सम्महत के हबिा य के कब्जे में से एक वृक्ष बेईमािी से िेिे के आिय से य की भूहम पर िगे हुए उस वृक्ष को क काट
डािता िै । यिां, ज्योंहि क िे इस प्रकार िेिे के हिए उस वृक्ष को पृथक् ककया, उसिे चोरी की ।
(ि) क अपिी जेब में कु त्तों के हिए ििचािे वािी वस्तु रिता िै, और इस प्रकार य के कु त्तों को अपिे पीछे चििे के हिए उत्‍प्रेररत
करता िै । यिां, यकद क का आिय य की सम्महत के हबिा य के कब्जे में से उस कु त्ते को बेईमािी से िेिा िो, तो ज्योंिी य के कु त्ते िे क के
पीछे चििा आरं भ ककया, क िे चोरी की ।
(ग) मू्यवाि वस्तु की पेटी िे जाते हुए एक बैि क को हमिता िै । वि उस बैि को इसहिए एक िास कदिा में िांकता िै कक वे
मू्यवाि वस्तुएं बेईमािी से िे सके । ज्योंिी उस बैि िे गहतमाि िोिा प्रारभ्भ ककया, क िे मू्यवाि वस्तुएं चोरी की ।
(घ) क, जो य का सेवक िै और हजसे य िे अपिी प्िेट की देिरे ि न्यस्त कर दी िै, य की सम्महत के हबिा प्िेट को िेकर बेईमािी से
भाग गया । क िे चोरी की ।
(ङ) य यात्रा को जाते समय अपिी प्िेट िौटकर आिे तक, क को, जो एक भाण्डागाररक िै, न्यस्त कर देता िै । क उस प्िेट को एक
सुिार के पास िे जाता िै और वि प्िेट बेच देता िै । यिां वि प्िेट य के कब्जे में ििीं थीं, इसहिए वि य के कब्जे में से ििीं िी जा सकती
थी और क िे चोरी ििीं की िै, चािे उसिे आपराहिक न्यासभंग ककया िो ।
(च) हजस गृि पर य का अहिभोग िै उसके मेज पर य की अंगूठी क को हमिती िै । यिां, वि अंगूठी य के कब्जे में िै, और यकद क
उसको बेईमािी से िटाता िै, तो वि चोरी करता िै ।
(छ) क को राजमागत पर प़िी हुई अंगूठी हमिती िै, जो ककसी व्यहक्‍त के कब्जे में ििीं िै । क िे उसके िे िेिे से चोरी ििीं की िै,
भिे िी उसिे संपहत्त का आपराहिक दुर्वतहियोग ककया िो ।
(ज) य के घर में मेज पर प़िी हुई य की अंगूठी क देिता िै । तिािी और पता िगिे के भय से उस अंगूठी का तुरंत दुर्वतहियोग
करिे का सािस ि करते हुए क उस अंगूठी को ऐसे स्थाि पर, जिां से उसका य को कभी भी हमििा अहत अिहिसम्भाव्य िै, इस आिय से
हछपा देता िै कक हछपािे के स्थाि से उसे उस समय िे िे और बेच दे जबकक उसका िोया जािा याद ि रिे । यिां, क िे उस अंगूठी को
प्रथम बार िटाते समय चोरी की िै ।
(झ) य को, जो एक जौिरी िै, क अपिी घ़िी समय ठीक करिे के हिए पररदत्त करता िै । य उसको अपिी दुकाि पर िे जाता ‍िै ।
क, हजस पर उस जौिरी का, कोई ऐसा ऋण ििीं िै, हजसके हिए कक वि जौिरी उस घ़िी को प्रहतभूहत के रूप में हवहिपूवतक रोक सके ,
िुिे तौर पर उस दुकाि में घुसता िै, य के िाथ से अपिी घ़िी बिपूवतक िे िेता िै, और उसको िे जाता िै । यिां क िे भिे िी आपराहिक
अहतचार और िमिा ककया िो, उसिे चोरी ििीं की िै, क्योंकक जो कु छ भी उसिे ककया बेईमािी से ििीं ककया ।
(ञ) यकद उस घ़िी की मरम्मत के संबंि में य को क से िि िोध्‍य िै, और यकद य उस घ़िी को उस ऋण की प्रहतभूहत के रूप में
हवहिपूवतक रिे रिता िै और क उस घ़िी को य के कब्जे में से इस आिय से िे िेता िै कक य को उसके ऋण की प्रहतभूहत रूप उस संपहत्त
से वंहचत कर दे तो उसिे चोरी की िै क्योंकक वि उसे बेईमािी से िेता िै ।
76

(ट) और यकद क अपिी घ़िी य के पास पण्यम करिे के बाद घ़िी के बदिे हिए गए ऋण को चुकाए हबिा उसे य के कब्जे में से य
की सम्महत के हबिा िे िेता िै, तो उसिे चोरी की िै, यद्यहप वि घ़िी उसकी अपिी िी संपहत्त िै, क्योंकक वि उसको बेईमािी से िेता िै ।
(ठ) क एक वस्तु को उस समय तक रि िेिे के आिय से जब तक कक उसके प्रत्यावतति के हिए पुरस्कार के रूप में उसे य से िि
अहभप्राप्‍त ि िो जाए, य की सम्महत्त के हबिा य के कब्जे में से िेता िै । यिां क बेईमािी से िेता िै, इसहिए, क िे चोरी की ।
(ड) क, जो य का हमत्र िै, य की अिुपहस्थहत में य के पुस्तकािय में जाता िै, और य की अहभव्यक्‍त सम्महत के हबिा एक पुस्तक
के वि पढ़िे के हिए और वापस करिे के आिय से िे जाता िै । यिां यि अहिसम्भाव्य िै कक क िे यि हवचार ककया िो कक पुस्तक उपयोग
में िािे के हिए उसको य की हववहक्षत सम्महत प्राप्‍त िै, यकद क का यि हवचार था, तो क िे चोरी ििीं की िै ।
(ढ) य की पत्‍िी से क िैरात मांगता िै । वि क को िि, भोजि और कप़िे देती िै हजिको क जािता िै कक वे उसके पहत य के िैं ।
यिां, यि अहिसंभाव्य िै कक क का यि हवचार िो कक य की पत्‍िी को हभक्षा देिे का प्राहिकार िै । यकद क का यि हवचार था, तो क िे
चोरी ििीं की िै ।
(ण) क, य की पत्‍िी का जार िै । वि क को एक मू्यवाि संपहत्त देती िै हजसके संबि ं में क यि जािता िै कक वि उसके पहत य की
िै, और वि ऐसी संपहत्त िै, हजसको देिे का प्राहिकार उसे य से प्राप्‍त ििीं िै । यकद क उस संपहत्त को बेईमािी से िेता िै, तो वि चोरी
करता िै ।
(त) य की संपहत्त को अपिी स्वयं की संपहत्त िोिे का सद्‍भावपूवतक हवश्‍वास करते हुए ि के कब्जे में से उस संपहत्त को क िे िेता
िै । यिां क बेईमािी से ििीं िेता, इसहिए वि चोरी ििीं करता ।
379. चोरी के हिए दंड—जो कोई चोरी करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
380. हिवास-गृि आकद में चोरी—जो कोई ऐसे ककसी हिमातण, तम्बू या जियाि में चोरी करे गा, जो हिमातण, तम्बू या जियाि
मािव हिवास के रूप में, या संपहत्त की अहभरक्षा के हिए उपयोग में आता िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
381. हिहपक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे में संपहत्त की चोरी—जो कोई हिहपक या सेवक िोते हुए, या हिहपक या सेवक की
िैहसयत में हियोहजत िोते हुए, अपिे माहिक या हियोक्ता के कब्जे की ककसी संपहत्त की चोरी करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
382. चोरी करिे के हिए मृत्यु, उपिहत या अवरोि काररत करिे की तैयारी के पश्‍चात् चोरी—जो कोई चोरी करिे के हिए, या
चोरी करिे के पश्‍चात् हिकि भागिे के हिए, या चोरी द्वारा िी गई संपहत्त को रिे रििे के हिए, ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु, या उसे उपिहत
या उसका अवरोि काररत करिे की, या मृत्यु का, उपिहत का या अवरोि का भय काररत करिे की तैयारी करके चोरी करे गा, वि करठि
कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य के कब्जे में की संपहत्त पर क चोरी करता िै और यि चोरी करते समय अपिे पास अपिे वस्‍त्रों के भीतर एक भरी हुई
हपस्तौि रिता िै, हजसे उसिे य द्वारा प्रहतरोि ककए जािे की दिा में य को उपिहत करिे के हिए अपिे पास रिा था । क िे इस िारा में
पररभाहषत अपराि ककया िै ।
(ि) क, य की जेब काटता िै, और ऐसा करिे के हिए अपिे कई साहथयों को अपिे पास इसहिए हियुक्‍त करता िै कक यकद य यि
समझ जाए कक क्या िो रिा िै और प्रहतरोि करे , या क को पक़ििे का प्रयत्‍ि करे , तो वे य का अवरोि करें । क िे इस िारा में पररभाहषत
अपराि ककया िै ।
उद्दापि के हवषय में
383. उद्दापि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को स्वयं उस व्यहक्‍त को या ककसी अन्य व्यहक्‍त को कोई क्षहत करिे के भय में सािय डािता
िै, और तद्‍द्वारा इस प्रकार भय में डािे गए व्यहक्‍त को, कोई संपहत्त या मू्यवाि प्रहतभूहत या िस्ताक्षररत या मुरांककत कोई चीज, हजसे
मू्यवाि प्रहतभूहत में पररवर्ततत ककया जा सके , ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त करिे के हिए बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता िै, वि “उद्दापि”
करता िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क यि िमकी देता िै कक यकद य िे उसको िि ििीं कदया, तो वि य के बारे में माििाहिकारक अपमाििेि प्रकाहित करे गा ।
अपिे को िि देिे के हिए वि इस प्रकार य को उत्‍प्रेररत करता िै । क िे उद्दापि ककया िै ।
(ि) क, य को यि िमकी देता िै कक यकद वि क को कु छ िि देिे के संबंि में अपिे आपको आबद्ध करिे वािा एक वचिपत्र
िस्ताक्षररत करके क को पररदत्त ििीं कर देता, तो वि य के हििु को सदोष परररोि में रिेगा । य वचिपत्र िस्ताक्षररत करके पररदत्त कर
देता िै । क िे उद्दापि ककया िै ।
77

(ग) क यि िमकी देता िै कक यकद य, ि को कु छ उपज पररदत्त करािे के हिए िाहस्तयुक्‍त बंिपत्र िस्ताक्षररत ििीं करे गा और ि
को ि देगा, तो वि य के िेत को जोत डाििे के हिए िठै त भेज देगा और तद्‍द्वारा य को वि बंिपत्र िस्ताक्षररत करिे के हिए और
पररदत्त करिे के हिए उत्‍प्रेररत करता िै । क िे उद्दापि ककया िै ।
(घ) क, य को घोर उपिहत करिे के भय में डािकर बेईमािी से य को उत्‍प्रेररत करता िै कक वि कोरे कागज पर िस्ताक्षर कर दे या
अपिी मुरा िगा दे और उसे क को पररदत्त कर दे । य उस कागज पर िस्ताक्षर करके उसे क को पररदत्त कर देता िै यिां, इस प्रकार
िस्ताक्षररत कागज मू्यवाि प्रहतभूहत में पररवर्ततत ककया जा सकता िै, इसहिए क िे उद्दापि ककया िै ।
384. उद्दापि के हिए दंड—जो कोई उद्दापि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की
िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
385. उद्दापि करिे के हिए ककसी व्यहक्‍त को क्षहत के भय में डाििा—जो कोई उद्दापि करिे के हिए ककसी व्यहक्‍त को ककसी क्षहत
के पहुंचािे के भय में डािेगा या भय में डाििे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
386. ककसी व्यहक्‍त को मृत्यु या घोर उपिहत के भय में डािकर उद्दापि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को स्वयं उसकी या ककसी अन्य
व्यहक्‍त की मृत्यु या घोर उपिहत के भय में डािकर उद्दापि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत
तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
387. उद्दापि करिे के हिए ककसी व्यहक्‍त को मृत्यु या घोर उपिहत के भय में डाििा—जो कोई उद्दापि करिे के हिए ककसी
व्यहक्‍त को स्वयं उसकी या ककसी अन्य व्यहक्‍त की मृत्यु या घोर उपिहत के भय में डािेगा या भय में डाििे का प्रयत्‍ि करे गा, वि दोिों में
से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
388. मृत्यु या आजीवि कारावास, आकद से दंडिीय अपराि का अहभयोग िगािे की िमकी देकर उद्दापि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त
को स्वयं उसके हवरुद्ध या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हवरुद्ध यि अहभयोग िगािे के भय में डािकर कक उसिे कोई ऐसा अपराि ककया िै, या
करिे का प्रयत्‍ि ककया िै, जो मृत्यु से या 1[आजीवि कारावास] से या ऐसे कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी,
दंडिीय िै, अथवा यि कक उसिे ककसी अन्य व्यहक्‍त को ऐसा अपराि करिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का प्रयत्‍ि ककया िै, उद्दापि करे गा, वि
दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा,
तथा यकद वि अपराि ऐसा िो जो इस संहिता की िारा 377 के अिीि दंडिीय िै, तो वि 1[आजीवि कारावास] से दंहडत ककया जा
सके गा ।
389. उद्दापि करिे के हिए ककसी व्यहक्‍त को अपराि का अहभयोग िगािे के भय में डाििा—जो कोई उद्दापि करिे के हिए
ककसी व्यहक्‍त को, स्वयं उसके हवरुद्ध या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हवरुद्ध यि अहभयोग िगािे का भय कदििाएगा या यि भय कदििािे का
प्रयत्‍ि करे गा कक उसिे ऐसा अपराि ककया िै, या करिे का प्रयत्‍ि ककया िै, जो मृत्यु से या 1[आजीवि कारावास] से, या दस वषत तक के
कारावास से दण्डिीय िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ; तथा यकद वि अपराि ऐसा िो जो इस संहिता की िारा 377 के अिीि दंडिीय िै, तो वि 1[आजीवि
कारावास] से दंहडत ककया जा सके गा ।

िूट और डकै ती के हवषय में


390. िूट—सब प्रकार की िूट में या तो चोरी या उद्दापि िोता िै ।
चोरी कब िूट िै—चोरी “िूट” िै, यकद उस चोरी को करिे के हिए, या उस चोरी के करिे में या उस चोरी द्वारा अहभप्राप्‍त सम्पहत्त
को िे जािे या िे जािे का प्रयत्‍ि करिे में, अपरािी उस उद्देश्य से स्वेच्छया ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु, या उपिहत या उसका सदोष अवरोि
या तत्काि मृत्यु का, या तत्काि उपिहत का, या तत्काि सदोष अवरोि का भय काररत करता या काररत करिे का प्रयत्‍ि करता िै ।
उद्दापि कब िूट िै—उद्दापि “िूट” िै, यकद अपरािी वि उद्दापि करते समय भय में डािे गए व्यहक्‍त की उपहस्थहत में िै, और उस
व्यहक्‍त को स्वयं उसकी या ककसी अन्य व्यहक्‍त की तत्काि मृत्यु या तत्काि उपिहत या तत्काि सदोष अवरोि के भय में डािकर वि
उद्दापि करता िै और इस प्रकार भय में डािकर इस प्रकार भय में डािे गए व्यहक्‍त को उद्दापि की जािे वािी चीज उसी समय और विां
िी पररदत्त करिे के हिए उत्‍प्रेररत करता िै ।
स्पष्‍टीकरण—अपरािी का उपहस्थत िोिा किा जाता िै, यकद वि उस अन्य व्यहक्‍त को तत्काि मृत्यु के , तत्काि उपिहत के , या
तत्काि सदोष अवरोि के भय में डाििे के हिए पयातप्त
‍ रूप से हिकट िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क, य को दबोच िेता िै, और य के कप़िे में से य का िि और आभूषण य की सम्महत के हबिा कपटपूवतक हिकाि िेता िै ।
यिां, क िे चोरी की िै और वि चोरी करिे के हिए स्वेच्छया य का सदोष अवरोि काररत करता िै । इसहिए क िे िूट की िै ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
78

(ि) क, य को राजमागत पर हमिता िै, एक हपस्तौि कदििाता िै और य की थैिी मांगता िै । पररणामस्वरूप य अपिी थैिी दे
देता िै । यिां क िे य को तत्काि उपिहत का भय कदििाकर थैिी उद्दाहपत की िै और उद्दापि करते समय वि उसकी उपहस्थहत में िै ।
अत: क िे िूट की िै ।
(ग) क राजमागत पर य और य के हििु से हमिता िै । क उस हििु को पक़ि िेता िै और यि िमकी देता िै कक यकद य उसको अपिी
थैिी ििीं पररदत्त कर देता, तो वि उस हििु को कगार से िीचे िें क देगा । पररणामस्वरूप य अपिी थैिी पररदत्त कर देता िै । यिां क िे
य को यि भय काररत करके कक वि उस हििु को, जो विां उपहस्थत िै, तत्काि उपिहत करे गा, य से उसकी थैिी उद्दाहपत की िै ।
इसहिए क िे य को िूटा िै ।
(घ) क, य से यि कि कर, सम्पहत्त अहभप्राप्‍त करता िै कक “तुम्िारा हििु मेरी टोिी के िाथों में िै, यकद तुम िमारे पास दस िजार
रुपया ििीं भेज दोगे, तो वि मार डािा जाएगा ।” यि उद्दापि िै, और इसी रूप में दण्डिीय िै ; ककन्तु यि िूट ििीं िै, जब तक कक य को
उसके हििु की तत्काि मृत्यु के भय में ि डािा जाए ।
391. डकै ती—जबकक पांच या अहिक व्यहक्‍त संयुक्‍त िोकर िूट करते िैं या करिे का प्रयत्‍ि करते िैं या जिां कक वे व्यहक्‍त, जो
संयुक्‍त िोकर िूट करते िैं या करिे का प्रयत्‍ि करते िैं और वे व्यहक्‍त जो उपहस्थत िैं और ऐसे िूट के ककए जािे या ऐसे प्रयत्‍ि में मदद
करते िैं, कु ि हमिाकर पांच या अहिक िैं, तब िर व्यहक्‍त जो इस प्रकार िूट करता िै, या उसका प्रयत्‍ि करता िै या उसमें मदद करता िै,
किा जाता िै कक वि “डकै ती” करता िै ।
392. िूट के हिए दण्ड—जो कोई िूट करे गा, वि करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा, और यकद िूट राजमागत पर सूयातस्त और सूयोदय के बीच की जाए, तो कारावास चौदि वषत तक
का िो सके गा ।
393. िूट करिे का प्रयत्‍ि—जो कोई िूट करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि करठि कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो
सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
394. िूट करिे में स्वेच्छया उपिहत काररत करिा—यकद कोई व्यहक्‍त िूट करिे में या िूट का प्रयत्‍ि करिे में स्वेच्छया उपिहत
काररत करे गा, तो ऐसा व्यहक्‍त और जो कोई अन्य व्यहक्‍त ऐसी िूट करिे में, या िूट का प्रयत्‍ि करिे में संयुक्‍त तौर पर संपृक्‍त िोगा, वि
1
[आजीवि कारावास] से या करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।
395. डकै ती के हिए दण्ड—जो कोई डकै ती करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत
तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
396. ित्या सहित डकै ती—यकद ऐसे पांच या अहिक व्यहक्‍तयों में से, जो संयुक्‍त िोकर डकै ती कर रिे िों, कोई एक व्यहक्‍त इस
प्रकार डकै ती करिे में ित्या कर देगा, तो उि व्यहक्‍तयों में से िर व्यहक्‍त मृत्यु से, या 1[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से,
हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
397. मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे के प्रयत्‍ि के साथ िूट या डकै ती—यकद िूट या डकै ती करते समय अपरािी ककसी घातक
आयुि का उपयोग करे गा, या ककसी व्यहक्‍त को घोर उपिहत काररत करे गा, या ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु काररत करिे या उसे घोर उपिहत
काररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, तो वि कारावास, हजससे ऐसा अपरािी दहण्डत ककया जाएगा, सात वषत से कम का ििीं िोगा ।
398. घातक आयुि से सहज्‍जत िोकर िूट या डकै ती करिे का प्रयत्‍ि—यकद िूट या डकै ती करिे का प्रयत्‍ि करते समय, अपरािी
ककसी घातक आयुि से सहज्‍जत िोगा, तो वि कारावास, हजससे ऐसा अपरािी दहण्डत ककया जाएगा, सात वषत से कम का ििीं िोगा ।
399. डकै ती करिे के हिए तैयारी करिा—जो कोई डकै ती करिे के हिए कोई तैयारी करे गा, वि करठि कारावास से, हजसकी
अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
400. डाकु ओं की टोिी का िोिे के हिए दण्ड—जो कोई इस अहिहियम के पाररत िोिे के पश्‍चात् ककसी भी समय ऐसे व्यहक्‍तयों
की टोिी का िोगा, जो अभ्यासत: डकै ती करिे के प्रयोजि से सियुक्‍त िों, वि 2[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से, हजसकी
अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
401. चोरों की टोिी का िोिे के हिए दण्ड—जो कोई इस अहिहियम के पाररत िोिे के पश्‍चात् ककसी भी समय ऐसे व्यहक्‍तयों की
ककसी घूमती-किरती या अन्य टोिी का िोगा जो, अभ्यासत: चोरी या िूट करिे के प्रयोजि से सियुक्‍त िों और वि टोिी ठगों या डाकु ओं
की टोिी ि िो, वि करठि कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय
िोगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
79

402. डकै ती करिे के प्रयोजि से एकहत्रत िोिा—जो कोई इस अहिहियम के पाररत िोिे के पश्‍चात् ककसी भी समय डकै ती करिे के
प्रयोजि से एकहत्रत पांच या अहिक व्यहक्‍तयों में से एक िोगा, वि करठि कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी,
दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
सम्पहत्त के आपराहिक दुर्वतहियोग के हवषय में
403. सम्पहत्त का बेईमािी से दुर्वतहियोग—जो कोई बेईमािी से ककसी जंगम सम्पहत्त का दुर्वतहियोग करे गा या उसको अपिे
उपयोग के हिए संपररवर्ततत कर िेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे
से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क, य की सम्पहत्त को उस समय जब कक क उस सम्पहत्त को िेता िै, यि हवश्‍वास रिते हुए कक वि सम्पहत्त उसी की िै, य के
कब्जे में से सद्‍भावपूवतक िेता िै । क, चोरी का दोषी ििीं िै । ककन्तु यकद क अपिी भूि मािूम िोिे के पश्‍चात् उस सम्पहत्त का बेईमािी
से अपिे हिए हवहियोग कर िेता िै, तो वि इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
(ि) क, जो य का हमत्र िै, य की अिुपहस्थहत में य के पुस्तकािय में जाता िै और य की अहभव्यक्‍त सम्महत्त के हबिा एक पुस्तक िे
जाता िै । यिां यकद, क का यि हवचार था कक पढ़िे के प्रयोजि के हिए पुस्तक िेिे की उसको य की हववहक्षत सम्महत प्राप्‍त िै, तो क िे
चोरी ििीं की िै । ककन्तु यकद क बाद में उस पुस्तक को अपिे िायदे के हिए बेच देता िै, तो वि इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
(ग) क और ि एक घो़िे के संयुक्‍त स्वामी िैं । क उस घो़िे को उपयोग में िािे के आिय से ि के कब्जे में से उसे िे जाता िै । यिां,
क को उस घो़िे को उपयोग में िािे का अहिकार िै, इसहिए वि उसका बेईमािी से दुर्वतहियोग ििीं िै । ककन्तु यकद क उस घो़िे को बेच
देता िै, और सम्पूणत आगम का अपिे हिए हवहियोग कर िेता िै तो वि इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—के वि कु छ समय के हिए बेईमािी से दुर्वतहियोग करिा इस िारा के अथत के अंतगतत दुर्वतहियोग िै ।
दृष्ट‍ ांत
क को य का एक सरकारी वचिपत्र हमिता िै, हजस पर हिरं क पृष्‍ठांकि िै । क, यि जािते हुए कक वि वचिपत्र य का िै, उसे ऋण
के हिए प्रहतभूहत के रूप में बैंककार के पास इस आिय से हगरवी रि देता िै कक वि भहवष्य में उसे य को प्रत्यावर्ततत कर देगा । क िे इस
िारा के अिीि अपराि ककया िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—-हजस व्यहक्‍त को ऐसी सम्पहत्त प़िी हमि जाती िै, जो ककसी अन्य व्यहक्‍त के कब्जे में ििीं िै और वि उसके स्वामी
के हिए उसको संरहक्षत रििे या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्ततत करिे के प्रयोजि से ऐसी सम्पहत्त को िेता िै, वि ि तो बेईमािी से उसे
िेता िै और ि बेईमािी से उसका दुर्वतहियोग करता िै, और ककसी अपराि का दोषी ििीं िै, ककन्तु वि ऊपर पररभाहषत अपराि का
दोषी िै, यकद वि उसके स्वामी को जािते हुए या िोज हिकाििे के सािि रिते हुए अथवा उसके स्वामी को िोज हिकाििे और सूचिा
देिे के युहक्‍तयुक्‍त सािि उपयोग में िािे और उसके स्वामी को उसकी मांग करिे को समथत करिे के हिए उस सम्पहत्त की युहक्‍तयुक्‍त
समय तक रिे रििे के पूवत उसको अपिे हिए हवहियोहजत कर िेता िै ।
ऐसी दिा में युहक्‍तयुक्‍त सािि क्या िैं, या युहक्‍तयुक्‍त समय क्या िै, यि तथ्य का प्रश्‍ि िै ।
यि आवश्यक ििीं िै कक पािे वािा यि जािता िो कक सम्पहत्त का स्वामी कौि िै या यि कक कोई हवहिष्‍ट व्यहक्‍त उसका स्वामी ‍‍
िै । यि पयातप्त
‍ िै कक उसको हवहियोहजत करते समय उसे यि हवश्‍वास ििीं िै कक वि उसकी अपिी सम्पहत्त िै, या सद्‍भावपूवतक यि
हवश्‍वास िै कक उसका असिी स्वामी ििीं हमि सकता ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क को राजमागत पर एक रुपया प़िा हमिता िै । यि ि जािते हुए कक वि रुपया ककसका िै क उस रुपए को उठा िेता िै । यिां
क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ििीं ककया िै ।
(ि) क को स़िक पर एक हचट्ठी प़िी हमिती िै, हजसमें एक बैंक िोट िै । उस हचट्ठी में कदए हुए हिदेि और हवषय-वस्तु से उसे ज्ञात
िो जाता िै कक वि िोट ककसका िै । वि उस िोट का हवहियोग कर िेता िै । वि इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
(ग) वािक-देय एक चेक क को प़िा हमिता िै । वि उस व्यहक्‍त के संबंि में हजसका चेक िोया िै, कोई अिुमाि ििीं िगा सकता,
ककन्तु उस चेक पर उस व्यहक्‍त का िाम हििा िै, हजसिे वि चेक हििा िै । क यि जािता िै कक वि व्यहक्‍त क को उस व्यहक्‍त का पता
बता सकता िै हजसके पक्ष में वि चेक हििा गया था, क उसके स्वामी को िोजिे का प्रयत्‍ि ककए हबिा उस चेक का हवहियोग कर िेता
िै । वि इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
(घ) क देिता िै कक य की थैिी, हजसमें िि िै, य से हगर गई िै । क वि थैिी य को प्रत्यावर्ततत करिे के आिय से उठा िेता िै ।
ककन्तु तत्पश्‍चात् उसे अपिे उपयोग के हिए हवहियोहजत कर िेता िै । क िे इस िारा के अिीि अपराि ककया िै ।
(ङ) क को एक थैिी, हजसमें िि िै, प़िी हमिती िै । वि ििीं जािता िै कक वि ककसकी िै । उसके पश्‍चात् उसे यि पता चि जाता
िै कक वि य की िै, और वि उसे अपिे उपयोग के हिए हवहियुक्‍त कर िेता िै । क इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
80

(च) क को एक मू्यवाि अंगूठी प़िी हमिती िै । वि ििीं जािता िै कक वि ककसकी िै । क उसके स्वामी को िोज हिकाििे का
प्रयत्‍ि ककए हबिा उसे तुरन्त बेच देता िै । क इस िारा के अिीि अपराि का दोषी िै ।
404. ऐसी सम्पहत्त का बेईमािी से दुर्वतहियोग जो मृत व्यहक्‍त की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी—जो कोई ककसी सम्पहत्त को,
यि जािते हुए कक ऐसी सम्पहत्त ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु के समय उस मृत व्यहक्‍त के कब्जे में थी, और तब से ककसी व्यहक्‍त के कब्जे में ििीं
रिी िै, जो ऐसे कब्जे का वैि रूप से िकदार िै, बेईमािी से दुर्वतहियोहजत करे गा या अपिे उपयोग में संपररवर्ततत कर िेगा, वि दोिों में
से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा, और
यकद वि अपरािी, ऐसे व्यहक्‍त की मृत्यु के समय हिहपक या सेवक के रूप में उसके द्वारा हियोहजत था, तो कारावास सात वषत तक का िो
सके गा ।
दृष्ट‍ ांत
य के कब्जे में ििीचर और िि था । वि मर जाता िै । उसका सेवक क, उस िि के ककसी ऐसे व्यहक्‍त के कब्जे में आिे से पूव,त जो
ऐसे कब्जे का िकदार िै बेईमािी से उसका दुर्वतहियोग करता िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
आपराहिक न्यासभंग के हवषय में
405. आपराहिक न्यासभंग—जो कोई सम्पहत्त या सम्पहत्त पर कोई भी अित्यार ककसी प्रकार अपिे को न्यस्त ककए जािे पर उस
सम्पहत्त का बेईमािी से दुर्वतहियोग कर िेता िै या उसे अपिे उपयोग में संपररवर्ततत कर िेता िै या हजस प्रकार ऐसा न्यास हिवतिि ककया
जािा िै, उसको हवहित करिे वािी हवहि के ककसी हिदेि का, या ऐसे न्यास के हिवतिि के बारे में उसके द्वारा की गई ककसी अहभव्यक्‍त या
हववहक्षत वैि संहवदा का अहतक्रमण करके बेईमािी से उस सम्पहत्त का उपयोग या व्ययि करता िै, या जािबूझकर ककसी अन्य व्यहक्‍त का
ऐसा करिा सिि करता िै, वि “आपराहिक न्यास भंग” करता िै ।
1
[स्पष्‍टीकरण 2[1]—जो व्यहक्‍त, 3[ककसी स्थापि का हियोजक िोते हुए, चािे वि स्थापि कमतचारी भहवष्य-हिहि और प्रकीणत
उपबंि अहिहियम, 1952 (1952 का 19) की िारा 17 के अिीि छू ट प्राप्‍त िै या ििीं], तत्समय प्रवृत्त ककसी हवहि द्वारा स्थाहपत
भहवष्य-हिहि या कु टुंब पेंिि हिहि में जमा करिे के हिए कमतचारी-अहभदाय की कटौती कमतचारी को संदय े मजदूरी में से करता िै उसके
बारे में यि समझा जाएगा कक उसके द्वारा इस प्रकार कटौती ककए गए अहभदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई िै और यकद वि उक्‍त
हिहि में ऐसे अहभदाय का संदाय करिे में, उक्‍त हवहि का अहतक्रमण करके व्यहतक्रम करे गा तो उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसिे
यथापूवोक्‍त हवहि के ककसी हिदेि का अहतक्रमण करके उक्‍त अहभदाय की रकम का बेईमािी से उपयोग ककया िै ।]
[स्पष्‍टीकरण 2—जो व्यहक्‍त, हियोजक िोते हुए, कमतचारी राज्य बीमा अहिहियम, 1948 (1948 का 34) के अिीि स्थाहपत
4

कमतचारी राज्य बीमा हिगम द्वारा िाररत और िाहसत कमतचारी राज्य बीमा हिगम हिहि में जमा करिे के हिए कमतचारी को संदय े
मजदूरी में से कमतचारी-अहभदाय की कटौती करता िै, उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसे अहभदाय की वि रकम न्यस्त कर दी गई
िै, हजसकी उसिे इस प्रकार कटौती की िै और यकद वि उक्‍त हिहि में ऐसे अहभदाय के संदाय करिे में, उक्‍त अहिहियम का अहतक्रमण
करके , व्यहतक्रम करता िै, तो उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसिे यथापूवोक्‍त हवहि के ककसी हिदेि का अहतक्रमण करके उक्‍त
अहभदाय की रकम का बेईमािी से उपयोग ककया िै ।]
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक मृत व्यहक्‍त की हवि का हिष्पादक िोते हुए उस हवहि की, जो चीजबस्त को हवि के अिुसार हवभाहजत करिे के हिए
उसको हिदेि देती िै, बेईमािी से अवज्ञा करता िै, और उस चीजबस्त को अपिे उपयोग के हिए हवहियुक्‍त कर िेता िै । क िे आपराहिक
न्यासभंग ककया िै ।
(ि) क भांडागाररक िै । य यात्रा को जाते हुए अपिा ििीचर क के पास उस संहवदा के अिीि न्यस्त कर जाता िै कक वि भांडागार
के कमरे के हिए ठिराई गई राहि के दे कदए जािे पर िौटा कदया जाएगा । क उस माि को बेईमािी से बेच देता िै । क िे आपराहिक
न्यासभंग ककया िै ।
(ग) क, जो किकत्ता में हिवास करता िै, य का, जो कद्िी में हिवास करता िै अहभकतात िै । क और य के बीच यि अहभव्यक्‍त या
हववहक्षत संहवदा िै कक य द्वारा क को प्रेहषत सब राहियां क द्वारा य के हिदेि के अिुसार हवहिहित की जाएंगी । य, क को इि हिदेिों के
साथ एक िाि रुपए भेजता िै कक उसको कं पिी पत्रों में हवहिहित ककया जाए । क उि हिदेिों की बेईमािी से अवज्ञा करता िै और उस
िि को अपिे कारबार के उपयोग में िे आता िै । क िे आपराहिक न्यासभंग ककया िै ।
(घ) ककं तु यकद हपछिे दृष्‍टांत में क बेईमािी से ििीं प्रत्युत सद्‍भावपूवतक यि हवश्‍वास करते हुए कक बैंक आि बंगाि में अंि िारण
करिा य के हिए अहिक िायदाप्रद िोगा, य के हिदेिों की अवज्ञा करता िै, और कं पिी पत्र िरीदिे के बजाय य के हिए बैंक आि बंगाि

1
1973 के ‍अहिहियम‍सं० 40 की‍िारा‍9 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
‍1975 के ‍अहिहियम‍सं० 38 की‍िारा‍9 द्वारा‍स्पष्‍टीकरण‍को‍स्पष्‍टीकरण‍1 के ‍रूप‍में‍संखयांककत‍ककया‍गया‍।
3
1988 के ‍अहिहियम‍सं० 33 की‍िारा‍27 द्वारा‍“हियोजक‍िोते‍हुए”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1975 के ‍अहिहियम‍सं० 38 की‍िारा‍9 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
81

के अंि िरीदता िै, तो यद्यहप य को िाहि िो जाए और उस िाहि के कारण, वि क के हवरुद्ध हसहवि कायतवािी करिे का िकदार िो,
तथाहप, यत: क िे, बेईमािी से कायत ििीं ककया िै, उसिे आपराहिक न्यासभंग ििीं ककया िै ।
(ङ) एक राजस्व आकिसर, क के पास िोक िि न्यस्त ककया गया िै और वि उस सब िि को, जो उसके पास न्यस्त ककया गया िै,
एक हिहश्‍चत िजािे में जमा कर देिे के हिए या तो हवहि द्वारा हिदेहित िै या सरकार के साथ अहभव्यक्‍त या हववहक्षत संहवदा द्वारा
आबद्ध िै । क उस िि को बेईमािी से हवहियोहजत कर िेता िै । क िे आपराहिक न्यासभंग ककया िै ।
(च) भूहम से या जि से िे जािे के हिए य िे क के पास, जो एक वािक िै, संपहत्त न्यस्त की िै । क उस संपहत्त का बेईमािी से
दुर्वतहियोग कर िेता िै । क िे आपराहिक न्यासभंग ककया िै ।
406. आपराहिक न्यासभंग के हिए दंड—जो कोई आपराहिक न्यासभंग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
407. वािक, आकद द्वारा आपराहिक न्यासभंग—जो कोई वािक, घाटवाि, या भांडागाररक के रूप में अपिे पास संपहत्त न्यस्त
ककए जािे पर ऐसी संपहत्त के हवषय में आपराहिक न्यासभंग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत
तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
408. हिहपक या सेवक द्वारा आपराहिक न्यासभंग—जो कोई हिहपक या सेवक िोते हुए, या हिहपक या सेवक के रूप में हियोहजत
िोते हुए, और इस िाते ककसी प्रकार संपहत्त, या संपहत्त पर कोई भी अखत्यार अपिे में न्यस्त िोते हुए, उस संपहत्त के हवषय में आपराहिक
न्यासभंग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
409. िोक सेवक द्वारा या बैंकर, व्यापारी या अहभकतात द्वारा आपराहिक न्यासभंग—जो कोई िोक सेवक के िाते अथवा बैंकर,
व्यापारी, िै क्टर, दिाि, अटिी या अहभकतात के रूप में अपिे कारबार के अिुक्रम में ककसी प्रकार संपहत्त या संपहत्त पर कोई भी अखत्यार
अपिे को न्यस्त िोते हुए उस संपहत्त के हवषय में आपराहिक न्यासभंग करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
चुराई हुई संपहत्त प्राप्‍त करिे के हवषय में
410. चुराई हुई संपहत्त—वि संपहत्त, हजसका कब्जा चोरी द्वारा, या उद्दापि द्वारा या िूट द्वारा अंतररत ककया गया िै, और वि
संपहत्त, हजसका आपराहिक दुर्वतहियोग ककया गया िै, या हजसके हवषय में आपराहिक न्यासभंग 2*** ककया गया िै, चुराई हुई “संपहत्त”
कििाती िै, 3[चािे वि अंतरण या वि दुर्वतहियोग या न्यासभंग 4[भारत] के भीतर ककया गया िो या बािर] । ककं तु यकद ऐसी संपहत्त
तत्पश्‍चात् ऐसे व्यहक्‍त के कब्जे में पहुंच जाती िै, जो उसके कब्जे के हिए वैि रूप से िकदार िै, तो वि चुराई हुई संपहत्त ििीं रि जाती ।
411. चुराई हुई संपहत्त को बेईमािी से प्राप्‍त करिा—जो कोई ककसी चुराई हुई संपहत्त को, यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का
कारण रिते हुए कक वि चुराई हुई संपहत्त िै, बेईमािी से प्राप्‍त करे गा या रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
412. ऐसी संपहत्त को बेईमािी से प्राप्‍त करिा जो डकै ती करिे में चुराई गई िै—जो कोई ऐसी चुराई गई संपहत्त को बेईमािी से
प्राप्‍त करे गा या रिे रिेगा, हजसके कब्जे के हवषय में वि यि जािता िै या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै कक वि डकै ती द्वारा अंतररत
की गई िै, अथवा ककसी ऐसे व्यहक्‍त से, हजसके संबंि में वि यि जािता िै या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै कक वि डाकु ओं की टोिी
का िै या रिा िै, ऐसी संपहत्त, हजसके हवषय में वि यि जािता िै या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै कक वि चुराई हुई िै, बेईमािी से
प्राप्‍त करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा, और
जुमातिे से भी, दंडिीय िोगा ।
413. चुराई हुई संपहत्त का अभ्यासत: व्यापार करिा—जो कोई ऐसी संपहत्त, हजसके संबंि में वि यि जािता िै, या हवश्‍वास करिे
का कारण रिता िै कक वि चुराई हुई संपहत्त िै, अभ्यासत: प्राप्‍त करे गा, या अभ्यासत: उसमें व्यविार करे गा, वि 5[आजीवि कारावास]
से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय
िोगा ।
414. चुराई हुई संपहत्त हछपािे में सिायता करिा—जो कोई ऐसी संपहत्त को हछपािे में, या व्ययहित करिे में, या इिर-उिर करिे
में स्वेच्छया सिायता करे गा, हजसके हवषय में वि यि जािता िै या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै कक वि चुराई हुई संपहत्त िै, वि
दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।

1
‍1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1891 के ‍अहिहियम‍सं० 12 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 और‍1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍9 द्वारा‍“का‍अपराि”‍िब्द‍हिरहसत‍।
3
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍9 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
4
“हिरटि‍ भारत”‍ िब्दों‍ के ‍ स्थाि‍ पर, अिुक्रमिः‍ भारतीय‍ स्वतंत्रता‍ (के न्रीय‍ अहिहियम‍ तथा‍ अध्यादेि‍ अिुकूिि)‍ आदेि, 1948, हवहि‍ अिुकूिि‍ आदेि, 1950 और‍
1951 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍द्वारा‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1955 के ‍अहिहियम‍सं०‍26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्‍थाि‍पर‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
82

छि के हवषय में
415. छि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त से प्रवंचिा कर उस व्यहक्‍त को, हजसे इस प्रकार प्रवंहचत ककया गया िै, कपटपूवतक या बेईमािी
से उत्‍प्रेररत करता िै कक वि कोई संपहत्त ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त कर दे, या यि सम्महत दे दे कक कोई व्यहक्‍त ककसी संपहत्त को रि रिे
या सािय उस व्यहक्‍त को, हजसे इस प्रकार प्रवंहचत ककया गया िै, उत्‍प्रेररत करता िै कक वि ऐसा कोई कायत करे , या करिे का िोप करे ,
हजसे वि यकद उसे िर प्रकार प्रवंहचत ि ककया गया िोता तो, ि करता, या करिे का िोप ि करता, और हजस कायत या िोप से उस व्यहक्‍त
को िारीररक, मािहसक, खयाहत संबंिी या साम्पहत्तक िुकसाि या अपिाहि काररत िोती िै, या काररत िोिी सभ्भाव्य िै, वि “छि”
करता िै, यि किा जाता िै ।
स्पष्‍टीकरण—तथ्यों का बेईमािी से हछपािा इस िारा के अथत के अंतगतत प्रवंचिा िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क हसहवि सेवा में िोिे का हमथ्या अपदेि करके सािय य से प्रवंचिा करता िै, और इस प्रकार बेईमािी से य को उत्‍प्रेररत
करता िै कक वि उसे उिार पर माि िे िेिे दे, हजसका मू्य चुकािे का उसका इरादा ििीं िै । क छि करता िै ।
(ि) क एक वस्तु पर कू टकृ त हचह्ि बिाकर य से सािय प्रवंचिा करके उसे यि हवश्‍वास कराता िै कक वि वस्तु ककसी प्रहसद्ध
हवहिमातता द्वारा बिाई गई िै, और इस प्रकार उस वस्तु का क्रय करिे और उसका मू्य चुकािे के हिए य को बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता ‍‍
िै । क छि करता िै ।
(ग) क, य को ककसी वस्तु का, िकिी सैम्पि कदििाकर य से सािय प्रवंचिा करके उसे यि हवश्‍वास कराता िै कक वि वस्तु उस
सैम्पि के अिुरूप िै, और तद्‍द्वारा उस वस्तु को िरीदिे और उसका मू्य चुकािे के हिए य को बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता िै । क छि
करता िै ।
(घ) क ककसी वस्तु का मू्य देिे में ऐसी कोठी पर हुंडी करके , जिां क का कोई िि जमा ििीं िै, और हजसके द्वारा क को हुंडी का
अिादर ककए जािे की प्रत्यािा िै, आिय से य की प्रवंचिा करता िै, और तद्‍द्वारा बेईमािी से य को उत्‍प्रेररत करता िै कक वि वस्तु
पररदत्त कर दे हजसका मू्य चुकािे का उसका आिय ििीं िै । क छि करता िै ।
(ङ) क ऐसे िगों को, हजिको वि जािता िै कक वे िीरे ििीं िैं, िीरों के रूप में हगरवी रिकर य से सािय प्रवंचिा करता िै, और
तद्‍द्वारा िि उिार देिे के हिए य को बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता िै । क छि करता िै ।
(च) क सािय प्रवंचिा करके य को यि हवश्‍वास कराता िै कक क को जो िि य उिार देगा उसे वि चुका देगा, और तद्‍द्वारा
बेईमािी से य को उत्‍प्ररे रत करता िै कक वि उसे िि उिार दे दे, जबकक क का आिय उस िि को चुकािे का ििीं िै । क छि करता िै ।
(छ) क, य से सािय प्रवंचिा करके यि हवश्‍वास कदिाता िै कक क का इरादा य को िीि के पौिों का एक हिहश्‍चत पररमाण पररदत्त
करिे का िै, हजसको पररदत्त करिे का उसका आिय ििीं िै, और तद्‍द्वारा ऐसे पररदाि के हवश्‍वास पर अहग्रम िि देिे के हिए य को
बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता िै । क छि करता िै । यकद क िि अहभप्राप्‍त करते समय िीि पररदत्त करिे का आिय रिता िो, और उसके
पश्‍चात् अपिी संहवदा भंग कर दे और वि उसे पररदत्त ि करे , तो वि छि ििीं करता िै, ककं तु संहवदा भंग करिे के हिए के वि हसहवि
कायतवािी के दाहयत्व के अिीि िै ।
(ज) क सािय प्रवंचिा करके य को यि हवश्‍वास कदिाता िै कक क िे य के साथ की गई संहवदा के अपिे भाग का पािि कर कदया
िै, जब कक उसका पािि उसिे ििीं ककया िै, और तद्‍द्वारा य को बेईमािी से उत्‍प्रेररत करता िै कक वि िि दे । क छि करता िै ।
(झ) क, ि को एक संपदा बेचता िै और िस्तांतररत करता िै । क यि जािते हुए कक ऐसे हवक्रय के पररणामस्वरूप उस संपहत्त पर
उसका कोई अहिकार ििीं िै, ि को ककए गए पूवत हवक्रय और िस्तांतरण के तथ्य को प्रकट ि करते हुए उसे य के िाथ बेच देता िै या
बंिक रि देता िै, और य से हवक्रय या बंिक िि प्राप्‍त कर िेता िै । क छि करता िै ।
416. प्रहतरूपण द्वारा छि—कोई व्यहक्‍त “प्रहतरूपण द्वारा छि करता िै”, यि तब किा जाता िै, जब वि यि अपदेि करके कक
वि कोई अन्य व्यहक्‍त िै, या एक व्यहक्‍त को ककसी अन्य व्यहक्‍त के रूप में जािते हुए प्रहतस्थाहपत करके , या यि व्यपकदष्‍ट करके कक वि
या कोई अन्य व्यहक्‍त, कोई ऐसा व्यहक्‍त िै, जो वस्तुत: उससे या अन्य व्यहक्‍त से हभन्‍ि िै, छि करता िै ।
स्पष्‍टीकरण—यि अपराि िो जाता िै चािे वि व्यहक्‍त हजसका प्रहतरूपण ककया गया िै, वास्तहवक व्यहक्‍त िो या का्पहिक ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क उसी िाम का अमुक ििवाि बैंकर िै इस अपदेि द्वारा छि करता िै । क प्रहतरूपण द्वारा छि करता िै ।
(ि) ि, हजसकी मृत्यु िो चुकी िै, िोिे का अपदेि करिे द्वारा क छि करता िै । क प्रहतरूपण द्वारा छि करता िै ।
417. छि के हिए दंड—जो कोई छि करे गा, दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी,
या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
83

418. इस ज्ञाि के साथ छि करिा कक उस व्यहक्‍त को सदोष िाहि िो सकती िै हजसका हित संरहक्षत रििे के हिए अपरािी
आबद्ध िै—जो कोई इस ज्ञाि के साथ छि करे गा कक यि सम्भाव्य िै कक वि तद्‍द्वारा उस व्यहक्‍त को सदोष िाहि पहुंचाए, हजसका हित
उस संव्यविार में हजससे वि छि संबंहित िै, संरहक्षत रििे के हिए वि या तो हवहि द्वारा, या वैि संहवदा द्वारा, आबद्ध था, वि दोिों में
से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
419. प्रहतरूपण द्वारा छि के हिए दंड—जो कोई प्रहतरूपण द्वारा छि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
420. छि करिा और संपहत्त पररदत्त करिे के हिए बेईमािी से उत्‍प्ररे रत करिा—जो कोई छि करे गा, और तद्‍द्वारा उस व्यहक्‍त
को, हजसे प्रवंहचत ककया गया िै, बेईमािी से उत्‍प्रेररत करे गा कक वि कोई संपहत्त ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त कर दे, या ककसी भी मू्यवाि
प्रहतभूहत को, या ककसी चीज को, जो िस्ताक्षररत या मुरांककत िै, और जो मू्यवाि प्रहतभूहत में संपररवर्ततत ककए जािे योग्य िै, पूणतत:
या अंित: रच दे, पररवर्ततत कर दे, या िष्‍ट कर दे, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
कपटपूणत हविेिों और संपहत्त व्ययिों के हवषय में
421. िेिदारों में हवतरण हिवाररत करिे के हिए संपहत्त का बेईमािी से या कपटपूवतक अपसारण या हछपािा—जो कोई ककसी
संपहत्त का अपिे िेिदारों या ककसी अन्य व्यहक्‍त के िेिदारों के बीच हवहि के अिुसार हवतररत ककया जािा तद्‍द्वारा हिवाररत करिे के
आिय से, या तद्‍द्वारा सम्भाव्यत: हिवाररत करे गा यि जािते हुए उस संपहत्त को बेईमािी से या कपटपूवतक अपसाररत करे गा या
हछपाएगा या ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त करे गा या पयातप्त‍ प्रहतिि के हबिा ककसी व्यहक्‍त को अंतररत करे गा या कराएगा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
422. ऋण को िेिदारों के हिए उपिब्ि िोिे से बेईमािी से या कपटपूवतक हिवाररत करिा—जो कोई ककसी ऋण का या मांग का,
जो स्वयं उसको या ककसी अन्य व्यहक्‍त को िोध्य िो, अपिे या ऐसे अन्य व्यहक्‍त के ऋणों को चुकािे के हिए हवहि के अिुसार उपिभ्य
िोिा कपटपूवतक या बेईमािी से हिवाररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी,
या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
423. अन्तरण के ऐसे हविेि का, हजसमें प्रहतिि के संबि
ं में हमथ्या कथि अन्तर्वतष्ट‍ िै, बेईमािी से या कपटपूवतक हिष्पादि—जो
कोई बेईमािी से या कपटपूवतक ककसी ऐसे हविेि या हिित को िस्ताक्षररत करे गा, हिष्पाकदत करे गा, या उसका पक्षकार बिेगा, हजससे
ककसी सम्पहत्त का, या उसमें के ककसी हित का, अंतररत ककया जािा, या ककसी भार के अिीि ककया जािा, तात्पर्यतत िै, और हजसमें ऐसे
अंतरण या भार के प्रहतिि से संबंहित, या उस व्यहक्‍त या उि व्यहक्‍तयों से संबंहित, हजसके या हजिके उपयोग या िायदे के हिए उसका
प्रवर्ततत िोिा वास्तव में आिहयत िै, कोई हमथ्या कथि अन्तर्वतष्‍ट िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत
तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
424. सम्पहत्त का बेईमािी से या कपटपूवतक अपसारण या हछपाया जािा—जो कोई बेईमािी से या कपटपूवतक अपिी या ककसी
अन्य व्यहक्‍त की ककसी सम्पहत्त को हछपाएगा या अपसाररत करे गा, या उसके हछपाए जािे में या अपसाररत ककए जािे में बेईमािी से या
कपटपूवतक सिायता करे गा, या बेईमािी से ककसी ऐसी मांग या दावे को, हजसका वि िकदार िै, छो़ि देगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

ररहष्‍ट के हवषय में


425. ररहष्‍ट—जो कोई इस आिय से, या यि सम्भाव्य जािते हुए कक, वि िोक को या ककसी व्यहक्‍त को सदोष िाहि या िुकसाि
काररत करे , ककसी सम्पहत्त का िाि या ककसी सम्पहत्त में या उसकी हस्थहत में ऐसी तब्दीिी काररत करता िै, हजससे उसका मू्य या
उपयोहगता िष्‍ट या कम िो जाती िै, या उस पर क्षहतकारक प्रभाव प़िता िै, वि “ररहष्‍ट” करता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—ररहष्‍ट के अपराि के हिए यि आवश्यक ििीं िै कक अपरािी क्षहतग्रस्त या िष्‍ट सम्पहत्त के स्वामी को िाहि या
िुकसाि काररत करिे का आिय रिे । यि पयातप्त ‍ िै कक उसका यि आिय िै या वि यि सम्भाव्य जािता िै कक वि ककसी सम्पहत्त को
क्षहत करके ककसी व्यहक्‍त को, चािे वि सम्पहत्त उस व्यहक्‍त की िो या ििीं, सदोष िाहि या िुकसाि काररत करे ।
स्पष्‍टीकरण 2—ऐसी सम्पहत्त पर प्रभाव डाििे वािे कायत द्वारा, जो उस कायत को करिे वािे व्यहक्‍त की िो, या संयुक्‍त रूप से उस
व्यहक्‍त की और अन्य व्यहक्‍तयों की िो, ररहष्‍ट की जा सके गी ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य की सदोष िाहि काररत करिे के आिय से य की मू्यवाि प्रहतभूहत को क स्वेच्छया जिा देता िै। क िे ररहष्‍ट की िै ।
(ि) य की सदोष िाहि करिे के आिय से, उसके बित -घर में क पािी छो़ि देता िै, और इस प्रकार बित को गिा देता िै । क िे
ररहष्‍ट की िै ।
(ग) क इस आिय से य की अंगूठी िदी में स्वेच्छया िैं क देता िै कक य को तद्‍द्वारा सदोष िाहि काररत करे । क िे ररहष्‍ट की िै ।
84

(घ) क यि जािते हुए कक उसकी चीज-बस्त उस ऋण की तुहष्‍ट के हिए जो य को उस द्वारा िोध्य िै, हिष्पादि में िी जािे वािी
िै, उस चीज-बस्त को इस आिय से िष्‍ट कर देता िै कक ऐसा करके ऋण की तुहष्‍ट अहभप्राप्‍त करिे में य को हिवाररत कर दे और इस
प्रकार य को िुकसाि काररत करे । क िे ररहष्‍ट की िै ।
(ङ) क एक पोत का बीमा करािे के पश्‍चात् उसे इस आिय से कक बीमा करिे वािों को िुकसाि काररत करे , उसको स्वेच्छया
संत्यक्‍त करा देता िै । क िे ररहष्‍ट की िै ।
(च) य को, हजसिे बाटमरी पर िि उिार कदया िै, िुकसाि काररत करिे के आिय से क उस पोत को संत्यक्‍त करा देता िै । क िे
ररहष्‍ट की िै ।
(छ) य के साथ एक घो़िे में संयुक्‍त संपहत्त रिते हुए य को सदोष िाहि काररत करिे के आिय से क उस घो़िे को गोिी मार देता
िै । क िे ररहष्‍ट की िै ।
(ज) क इस आिय से और यि सम्भाव्य जािते हुए कक वि य की िसि को िुकसाि काररत करे , य के िेत में ढोरों का प्रवेि काररत
कर देता िै, क िे ररहष्‍ट की िै ।
426. ररहष्‍ट के हिए दण्ड—जो कोई ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि मास तक की
िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
427. ररहष्‍ट हजससे पचास रुपए का िुकसाि िोता िै—जो कोई ररहष्‍ट करे गा और तद्‍द्वारा पचास रुपए या उससे अहिक ररहष्‍ट की
िाहि या िुकसाि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
428. दस रुपए के मू्य के जीवजन्तु को वि करिे या उसे हवकिांग करिे द्वारा ररहष्‍ट—जो कोई दस रुपए या उससे अहिक के
मू्य के ककसी जीवजन्तु या जीवजन्तुओं को वि करिे, हवष देिे, हवकिांग करिे या हिरुपयोगी बिािे द्वारा ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
429. ककसी मू्य के ढोर, आकद को या पचास रुपए के मू्य के ककसी जीवजन्तु को वि करिे या उसे हवकिांग करिे द्वारा ररहष्‍ट—
जो कोई ककसी िाथी, ऊंट, घो़िे, िच्‍चर, भैंस, सां़ि, गाय या बैि को, चािे उसका कु छ भी मू्य िो, या पचास रुपए या उससे अहिक
मू्य के ककसी भी अन्य जीवजन्तु को वि करिे, हवष देिे, हवकिांग करिे या हिरुपयोगी बिािे द्वारा ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
430. ससंचि संकमत को क्षहत करिे या जि को दोषपूवतक मो़ििे द्वारा ररहष्‍ट—जो कोई ककसी ऐसे कायत के करिे द्वारा ररहष्‍ट करे गा,
हजससे कृ हषक प्रयोजिों के हिए, या मािव प्राहणयों के या उि जीवजन्तुओं के , जो सम्पहत्त िै, िािे या पीिे के , या सिाई के या ककसी
हवहिमातण को चिािे के जिप्रदाय में कमी काररत िोती िो या कमी काररत िोिा वि सम्भाव्य जािता िो वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
431. िोक स़िक, पुि, िदी या जिसरणी को क्षहत पहुंचाकर ररहष्‍ट—जो कोई ककसी ऐसे कायत के करिे द्वारा ररहष्‍ट करे गा, हजससे
ककसी िोक स़िक, पुि, िाव्य, िदी या प्राकृ हतक या कृ हत्रम िाव्य जिसरणी को यात्रा या सम्पहत्त प्रविण के हिए अगम्य या कम हिरापद
बिा कदया जाए या बिा कदया जािा वि सम्भाव्य जािता िो, वि दोिों में से, ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
432. िोक जि हिकास में िुकसािप्रद जिप्िावि या बािा काररत करिे द्वारा ररहष्‍ट—जो कोई ककसी ऐसे कायत के करिे द्वारा
ररहष्‍ट करे गा, हजससे ककसी िोक जिहिकास में क्षहतप्रद या िुकसािप्रद जिप्िावि या बािा काररत िो जाए, या िोिा वि सम्भाव्य
जािता िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत
ककया जाएगा ।
433. ककसी दीपगृि या समुरी-हचह्ि को िष्‍ट करके , िटाकर या कम उपयोगी बिाकर ररहष्‍ट—जो कोई ककसी दीपगृि को, या
समुरी-हचह्ि के रूप में उपयोग में आिे वािे अन्य प्रकाि के , या ककसी समुरी-हचह्ि या बोया या अन्य चीज के , जो िौ-चािकों के हिए
मागत प्रदिति के हिए रिी गई िो, िष्‍ट करिे या, िटािे द्वारा अथवा कोई ऐसा कायत करिे द्वारा, हजससे कोई ऐसा दीपगृि, समुरी-हचह्ि,
बोया या पूवोक्‍त जैसी अन्य चीज िौ-चािकों के हिए मागत प्रदितक के रूप में कम उपयोगी बि जाए, ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
434. िोक प्राहिकारी द्वारा िगाए गए भूहम हचह्ि के िष्‍ट करिे या िटािे आकद द्वारा ररहष्‍ट—जो कोई िोक सेवक के प्राहिकार
द्वारा िगाए गए ककसी भूहम हचह्ि के िष्‍ट करिे या िटािे द्वारा अथवा कोई ऐसा कायत करिे द्वारा, हजससे ऐसा भूहम हचह्ि ऐसे भूहम
हचह्ि के रूप में कम उपयोगी बि जाए, ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो
सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
85

435. सौ रुपए का या (कृ हष उपज की दिा में) दस रुपए का िुकसाि काररत करिे के आिय से अहग्‍ि या हवस्िोटक पदाथत द्वारा
ररहष्‍ट—जो कोई ककसी सम्पहत्त को, एक सौ रुपए या उससे अहिक का 1[या (जिां कक सम्पहत्त कृ हष उपज िो, विां) दस रुपए या उससे
अहिक] का िुकसाि काररत करिे के आिय से, या यि सम्भाव्य जािते हुए कक वि तद्‍द्वारा ऐसा िुकसाि काररत करे गा, अहग्‍ि या ककसी
हवस्िोटक पदाथत द्वारा ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
436. गृि आकद को िष्‍ट करिे के आिय से अहग्‍ि या हवस्िोटक पदाथत द्वारा ररहष्‍ट—जो कोई ककसी ऐसे हिमातण का, जो मामूिी
तौर पर उपासिा स्थाि के रूप में या मािव-हवकास के रूप में या संपहत्त की अहभरक्षा के स्थाि के रूप में उपयोग में आता िो, िाि
काररत करिे के आिय से, या यि सभ्भाव्य जािते हुए कक वि तद्‍द्वारा उसका िाि काररत करे गा, अहग्‍ि या ककसी हवस्िोटक पदाथत द्वारा
ररहष्‍ट करे गा, वि 2[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत
ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
437. त्िायुक्त ‍ या बीस टि बोझ वािे जियाि को िष्‍ट करिे या सापद बिािे के आिय से ररहष्‍ट—जो कोई ककसी त्िायुक्‍त
जियाि या बीस टि या उससे अहिक बोझ वािे जियाि को िष्‍ट करिे या सापद बिा देिे के आिय से, या यि संभाव्य जािते हुए कक
वि तद्‍द्वारा उसे िष्‍ट करे गा, या सापद बिा देगा, उस जियाि की ररहष्‍ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
438. िारा 437 में वर्णतत अहग्‍ि या हवस्िोटक पदाथत द्वारा की गई ररहष्‍ट के हिए दंड—जो कोई अहग्‍ि या ककसी हवस्िोटक पदाथत
द्वारा ऐसी ररहष्‍ट करे गा या करिे का प्रयत्‍ि करे गा, जैसी अंहतम पूवव
त ती िारा में वर्णतत िै, वि 2[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
439. चोरी, आकद करिे के आिय से जियाि को सािय भूहम या ककिारे पर चढ़ा देिे के हिए दंड—जो कोई ककसी जियाि को
यि आिय रिते हुए कक वि उसमें अंतर्वतष्‍ट ककसी संपहत्त की चोरी करे या बेईमािी से ऐसी ककसी संपहत्त का दुर्वतहियोग करे , या इस
आिय से कक ऐसी चोरी या संपहत्त का दुर्वतहियोग ककया जाए, सािय भूहम पर चढ़ा देगा या ककिारे से िगा देगा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
440. मृत्यु या उपिहत काररत करिे की तैयारी के पश्‍चात् की गई ररहष्‍ट—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को मृत्यु या उसे उपिहत या
उसका सदोष अवरोि काररत करिे की अथवा मृत्यु का, या उपिहत का, या सदोष अवरोि का भय काररत करिे की, तैयारी करके ररहष्‍ट
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दंडिीय िोगा ।
आपराहिक अहतचार के हवषय में
441. आपराहिक अहतचार—जो कोई ऐसी संपहत्त में या ऐसी संपहत्त पर, जो ककसी दूसरे के कब्जे में िै, इस आिय से प्रवेि करता
िै, कक वि कोई अपराि करे या ककसी व्यहक्‍त को, हजसके कब्जे में ऐसी संपहत्त िै ; अहभत्रस्त, अपमाहित या क्षुब्ि करे ,
अथवा ऐसी संपहत्त में या ऐसी संपहत्त पर, हवहिपूवतक प्रवेि करके विां हवहिहवरुद्ध रूप में इस आिय से बिा रिता िै कक तद्‍द्वारा
वि ककसी ऐसे व्यहक्‍त को अहभत्रस्त, अपमाहित या क्षुब्ि करे या इस आिय से बिा रिता िै कक वि कोई अपराि करे ,
वि “आपराहिक अहतचार” करता िै, यि किा जाता िै ।
442. गृि-अहतचार—जो कोई ककसी हिमातण, तम्बू या जियाि में, जो मािव-हिवास के रूप में उपयोग में आता िै, या ककसी
हिमातण में, जो उपासिा-स्थाि के रूप में, या ककसी संपहत्त की अहभरक्षा के स्थाि के रूप में उपयोग में आता िै, प्रवेि करके या उसमें बिा
रि कर, आपराहिक अहतचार करता िै, वि “गृि-अहतचार” करता िै, यि किा जाता िै ।
स्पष्‍टीकरण—आपराहिक अहतचार करिे वािे व्यहक्‍त के िरीर के ककसी भाग का प्रवेि गृि-अहतचार गरठत करिे के हिए पयातप्त

प्रवेि िै ।
443. प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार—जो कोई यि पूवातविािी बरतिे के पश्‍चात् गृि-अहतचार करता िै कक ऐसे गृि-अहतचार को ककसी
ऐसे व्यहक्‍त से हछपाया जाए हजसे उस हिमातण, तम्बू या जियाि में से, जो अहतचार का हवषय िै, अहतचारी को अपवर्जतत करिे या बािर
कर देिे का अहिकार िै, वि “प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार” करता िै, यि किा जाता िै ।
444. रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार—जो कोई सूयातस्त के पश्‍चात् और सूयोदय से पूवत प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार करता िै, वि “रात्रौ
प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार” करता िै, यि किा जाता िै ।
445. गृि-भेदि—जो व्यहक्‍त गृि-अहतचार करता िै, वि “गृि-भेदि” करता िै, यि किा जाता िै, यकद वि उस गृि में या उसके
ककसी भाग में एतहस्मि्‍पश्‍चात्‍वर्णतत छि तरीकों में से ककसी तरीके से प्रवेि करता िै अथवा यकद वि उस गृि में या उसके ककसी भाग में

1
1882 के ‍अहिहियम‍सं० 8 की‍िारा‍10 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
86

अपराि करिे के प्रयोजि से िोते हुए, या विां अपराि कर चुकिे पर, उस गृि से या उसके ककसी भाग से ऐसे छि तरीकों में से ककसी
तरीके से बािर हिकिता िै, अथातत् :—
पििा—यकद वि ऐसे रास्ते से प्रवेि करता िै या बािर हिकिता िै, जो स्वयं उसिे या उस गृि-अहतचार के ककसी दुष्‍प्रेरक िे वि
गृि-अहतचार करिे के हिए बिाया िै,
दूसरा—यकद वि ककसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराि के दुष्‍प्रेरक से हभन्‍ि ककसी व्यहक्‍त द्वारा मािव प्रवेि के हिए
आिहयत ििीं िै, या ककसी ऐसे रास्ते से, हजस तक कक वि ककसी दीवार या हिमातण पर सीढ़ी द्वारा या अन्यथा चढ़कर पहुंचा िै, प्रवेि
करता िै या बािर हिकिता िै,
तीसरा—यकद वि ककसी ऐसे रास्ते से प्रवेि करता िै या बािर हिकिता िै हजसको उसिे या उस गृि-अहतचार के ककसी दुष्‍प्रेरक िे
वि गृि-अहतचार करिे के हिए ककसी ऐसे सािि द्वारा िोिा िै, हजसके द्वारा उस रास्ते का िोिा जािा उस गृि के अहिभोगी द्वारा
आिहयत ििीं था,
चौथा—यकद उस गृि-अहतचार को करिे के हिए, या गृि-अहतचार के पश्‍चात् उस गृि से हिकि जािे के हिए वि ककसी तािे को
िोिकर प्रवेि करता या बािर हिकिता िै,
पांचवां—यकद वि आपराहिक बि के प्रयोग या िमिे या ककसी व्यहक्‍त पर िमिा करिे की िमकी द्वारा अपिा प्रवेि करता िै या
प्रस्थाि करता िै,
छठा—यकद वि ककसी ऐसे रास्ते से प्रवेि करता िै या बािर हिकिता िै हजसके बारे में वि जािता िै कक वि ऐसे प्रवेि या प्रस्थाि
को रोकिे के हिए बंद ककया हुआ िै और अपिे द्वारा या उस गृि-अहतचार के दुष्‍प्रेरक द्वारा िोिा गया िै ।
स्पष्‍टीकरण—कोई उपगृि या हिमातण जो ककसी गृि के साथ-साथ अहिभोग में िै, और हजसके और ऐसे गृि के बीच आिे जािे का
अव्यवहित भीतरी रास्ता िै, इस िारा के अथत के अंतगतत उस गृि का भाग िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) य के गृि की दीवार में छेद करके और उस छेद में से अपिा िाथ डािकर क गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
(ि) क त्िों के बीच की बारी में से रें ग कर एक पोत में प्रवेि करिे द्वारा गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
(ग) य के गृि में एक हि़िकी से प्रवेि करिे द्वारा क गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
(घ) एक बंद द्वार को िोिकर य के गृि में उस द्वार से प्रवेि करिे द्वारा क गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
(ङ) य के गृि में द्वार के छेद में से तार डािकर हसटकिी को ऊपर उठाकर उस द्वार में प्रवेि करिे द्वारा क गृि-अहतचार करता िै ।
यि गृि-भेदि िै ।
(च) क को य के गृि के द्वार की चाबी हमि जाती िै, जो य से िो गई थी, और वि उस चाबी से द्वार िोि कर य के गृि में प्रवेि
करिे द्वारा गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
(छ) य अपिी‍ड् ‍योढ़ी में ि़िा िै । य को िक्‍के से हगराकर क उस गृि में बिात् प्रवेि करिे द्वारा गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-
भेदि िै ।
(ज) य, जो म का दरबाि िै, म की ड् ‍योढ़ी‍में ि़िा िै । य को मारिे की िमकी देकर क उसको हवरोि करिे से भयोपरत करके उस
गृि में प्रवेि करिे द्वारा गृि-अहतचार करता िै । यि गृि-भेदि िै ।
446. रात्रौ गृि-भेदि—जो कोई सूयातस्त के पश्‍चात् और सूयोदय से पूवत गृि-भेदि करता िै, वि “रात्रौ गृि-भेदि” करता िै, यि
किा जाता िै ।
447. आपराहिक अहतचार के हिए दंड—जो कोई आपराहिक अहतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
448. गृि-अहतचार के हिए दंड—जो कोई गृि-अहतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक
वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
449. मृत्यु से दंडिीय अपराि को करिे के हिए गृि-अहतचार—जो कोई मृत्यु से दंडिीय कोई अपराि करिे के हिए गृि-अहतचार
करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या करठि कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत से अहिक ििीं िोगी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
87

450. आजीवि कारावास से दंडिीय अपराि को करिे के हिए गृि-अहतचार—जो कोई 1[आजीवि कारावास] से दंडिीय कोई
अपराि करिे के हिए गृि-अहतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत से अहिक ििीं िोगी,
दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
451. कारावास से दंडिीय अपराि को करिे के हिए गृि-अहतचार—जो कोई कारावास से दंडिीय कोई अपराि करिे के हिए
गृि-अहतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा, तथा यकद वि अपराि, हजसका ककया जािा आिहयत िो, चोरी िो, तो कारावास की अवहि सात वषत तक की
िो सके गी ।
452. उपिहत, िमिा या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्‍चात् गृि-अहतचार—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को उपिहत काररत करिे की,
या ककसी व्यहक्‍त पर िमिा करिे की, या ककसी व्यहक्‍त का सदोष अवरोि करिे की अथवा ककसी व्यहक्‍त को उपिहत के , या िमिे के , या
सदोष अवरोि के भय में डाििे की तैयारी करके गृि-अहतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात
वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
453. प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि के हिए दंड—जो कोई प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
454. कारावास से दंडिीय अपराि करिे के हिए प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि—जो कोई कारावास से दंडिीय अपराि
करिे के हिए प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार का गृि-भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो
सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा, तथा यकद वि अपराि, हजसका ककया जािा आिहयत िो, चोरी िो, तो
कारावास की अवहि दस वषत तक की िो सके गी ।
455. उपिहत, िमिे या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्‍चात् प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को
उपिहत काररत करिे की या ककसी व्यहक्‍त पर िमिा करिे की या ककसी व्यहक्‍त का सदोष अवरोि करिे की अथवा ककसी व्यहक्‍त को
उपिहत के , या िमिे के , या सदोष अवरोि के भय में डाििे की तैयारी करके , प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि करे गा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
456. रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि के हिए दंड—जो कोई रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि करे गा,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय
िोगा ।
457. कारावास से दंडिीय अपराि करिे के हिए रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि—जो कोई कारावास से दंडिीय
कोई अपराि करिे के हिए रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि पांच वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा, तथा यकद वि अपराि हजसका ककया जािा
आिहयत िो, चोरी िो, तो कारावास की अवहि चौदि वषत तक की िो सके गी ।
458. उपिहत, िमिा या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्‍चात् रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि—जो कोई ककसी
व्यहक्‍त को उपिहत काररत करिे की या ककसी व्यहक्‍त पर िमिा करिे की या ककसी व्यहक्‍त का सदोष अवरोि या रात्रौ गृि-भेदि करिे
की अथवा ककसी व्यहक्‍त को उपिहत के , या िमिे के , या सदोष अवरोि के , भय में डाििे की तैयारी करके , रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या
रात्रौ गृि-भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि चौदि वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
459. प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि करते समय घोर उपिहत काररत िो—जो कोई प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या गृि-भेदि करते
समय ककसी व्यहक्‍त को घोर उपिहत काररत करे गा या ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, वि
1
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
460. रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि में संयुक्त
‍ त: सम्पृक्त
‍ समस्त व्यहक्‍त दंडिीय िैं, जबकक उिमें से एक द्वारा
मृत्यु या घोर उपिहत काररत की‍गई‍िो—यकद रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि करते समय ऐसे अपराि का दोषी कोई
व्यहक्‍त स्वेच्छया ककसी व्यहक्‍त की मृत्यु या घोर उपिहत काररत करे गा या मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, तो ऐसे
रात्रौ प्रच्छन्‍ि गृि-अहतचार या रात्रौ गृि-भेदि करिे में संयुक्‍तत: सम्पृक्‍त िर व्यहक्‍त, 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दंडिीय िोगा ।
461. ऐसे पात्र को, हजसमें संपहत्त िै, बेईमािी से तो़िकर िोििा—जो कोई ककसी ऐसे बंद पात्र को, हजसमें संपहत्त िो या हजसमें
संपहत्त िोिे का उसे हवश्‍वास िो, बेईमािी से या ररहष्‍ट करिे के आिय से तो़िकर िोिेगा या उपबंहित करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
88

462. उसी अपराि के हिए दंड, जब कक वि ऐसे व्यहक्‍त द्वारा ककया गया िै हजसे अहभरक्षा न्यस्त की गई िै—जो कोई ऐसा बंद
पात्र, हजसमें संपहत्त िो, या हजसमें संपहत्त िोिे का उसे हवश्‍वास िो, अपिे पास न्यस्त ककए जािे पर उसको िोििे का प्राहिकार ि रिते
हुए, बेईमािी से या ररहष्‍ट करिे के आिय से, उस पात्र को तो़िकर िोिेगा या उपबंहित करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 18

दस्तावेजों और संपहत्त ‍1*** हचह्िों संबि


ं ी अपरािों के हवषय में
463. कू टरचिा—2[जो कोई, ककसी हमथ्या दस्तावेज या हमथ्या इिैक्राहिक अहभिेि अथवा दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि
के ककसी भाग को] इस आिय से रचता िै कक िोक को या ककसी व्यहक्‍त को िुकसाि या क्षहत काररत की जाए, या ककसी दावे या िक का
समथति ककया जाए, या यि काररत ककया जाए कक कोई व्यहक्‍त संपहत्त अिग करे या कोई अहभव्यक्‍त या हववहक्षत संहवदा करे या इस
आिय से रचता िै कक कपट करे , या कपट ककया जा सके , वि कू टरचिा करता िै ।
464. हमथ्या दस्तावेज रचिा—3[उस व्यहक्‍त के बारे में यि किा जाता िै कक वि व्यहक्‍त हमथ्या दस्तावेज या हमथ्या इिैक्राहिक
अहभिेि रचता िै,—
पििा—जो बेईमािी से या कपटपूवतक इस आिय से—
(क) ककसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रहचत, िस्ताक्षररत, मुरांककत या हिष्पाकदत करता िै ;
(ि) ककसी इिैक्राहिक अहभिेि को या ककसी इिैक्राहिक अहभिेि के भाग को रहचत या पारे हषत करता िै ;
(ग) ककसी इिैक्राहिक अहभिेि पर कोई 3[इिैक्‍राहिक‍हचह्िक] िगाता िै ;
(घ) ककसी दस्तावेज के हिष्पादि का या ऐसे व्यहक्‍त या 4[इिैक्‍राहिक‍हचह्िक] की अहिप्रमाहणकता का द्योति करिे वािा
कोई हचह्ि िगाता िै,
कक यि हवश्‍वास ककया जाए कक ऐसा दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इिैक्राहिक अहभिेि या 4[इिैक्‍राहिक‍ हचह्िक] की रचिा,
िस्ताक्षरण, मुरांकि, हिष्पादि, पारे षण या िगािा ऐसे व्यहक्‍त द्वारा या ऐसे व्यहक्‍त के प्राहिकार द्वारा ककया गया था, हजसके द्वारा या
हजसके प्राहिकार द्वारा उसकी रचिा, िस्ताक्षरण, मुरांकि या हिष्पादि, िगाए जािे या पारे हषत ि िोिे की बात वि जािता िै ; या
दूसरा—जो ककसी दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि के ककसी ताहववक भाग में पररवतति, उसके द्वारा या ऐसे ककसी अन्य व्यहक्‍त
द्वारा, चािे ऐसा व्यहक्‍त, ऐसे पररवतति के समय जीहवत िो या ििीं, उस दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि के रहचत या हिष्पाकदत ककए
जािे या 4[इिैक्‍राहिक‍ हचह्ि] िगाए जािे के पश्‍चात्, उसे रद्द करके या अन्यथा, हवहिपूवतक प्राहिकार के हबिा, बेईमािी से या
कपटपूवतक करता िै ; अथवा
तीसरा—जो ककसी व्यहक्‍त द्वारा, यि जािते हुए कक ऐसा व्यहक्‍त ककसी दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि की हवषय-वस्तु को या
पररवतति के रूप को, हवकृ तहचत्त या मत्तता की िाित िोिे के कारण जाि ििीं सकता था या उस प्रवंचिा के कारण, जो उससे की गई िै,
जािता ििीं िै, उस दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि को बेईमािी से या कपटपूवतक िस्ताक्षररत, मुरांककत, हिष्पाकदत या पररवर्ततत
ककया जािा या ककसी इिैक्राहिक अहभिेि पर अपिे 4[इिैक्‍राहिक‍हचह्िक] िगाया जािा काररत करता िै ।]

दृष्ट‍ ांत
(क) क के पास य द्वारा ि पर हििा हुआ 10,000 रुपए का एक प्रत्यय पत्र िै । ि से कपट करिे के हिए क 10,000 में एक िून्य
बढ़ा देता िै और उस राहि को 1,00,000 रुपए इस आिय से बिा देता िै कक ि यि हवश्‍वास कर िे कक य िे वि पत्र ऐसा िी हििा था ।
क िे कू टरचिा की िै ।
(ि) क इस आिय से कक वि य की सम्पदा ि को बेच दे और उसके द्वारा ि से क्रय िि अहभप्राप्‍त कर िे, य के प्राहिकार के हबिा
य की मुरा एक ऐसी दस्तावेज पर िगाता िै, जो कक य की ओर से क की सम्पदा का िस्तान्तर-पत्र िोिा तात्पर्यतत िै । क िे कू टरचिा ‍‍
की िै ।
(ग) एक बैंकर पर हििे हुए और वािक को देय चेक को क उठा िेता िै । चेक ि द्वारा िस्ताक्षररत िै, ककन्तु उस चेक में कोई राहि
अंककत ििीं िै । क 10,000 रुपए की राहि अंककत करके चेक को कपटपूवतक भर िेता िै । क कू टरचिा करता िै ।

1
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“व्यापार‍या”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।‍
2
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
2009 के ‍अहिहियम‍सं० 10‍की‍िारा‍51 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
89

(घ) क अपिे अहभकतात ि के पास एक बैंकर पर हििा हुआ, क द्वारा िस्ताक्षररत चेक, देय ििराहि अंककत ककए हबिा छो़ि देता ‍
िै । ि को क इस बात के हिए प्राहिकृ त कर देता िै कक वि कु छ संदाय करिे के हिए चेक में ऐसी ििराहि, जो दस िजार रुपए से अहिक
ि िो अंककत करके चेक भर िे । ि कपटपूवतक चेक में बीस िजार रुपए अंककत करके उसे भर िेता िै । ि कू टरचिा करता िै ।
(ङ) क, ि के प्राहिकार के हबिा ि के िाम में अपिे ऊपर एक हवहिमयपत्र इस आिय से हििता िै कक वि एक बैंकर से असिी
हवहिमयपत्र की भांहत बट्टा देकर उसे भुिा िे, और उस हवहिमयपत्र को उसकी पररपक्‍वता पर िे िे, यिां क इस आिय से उस
हवहिमयपत्र को हििता िै कक प्रवंचिा करके बैंकर को यि अिुमाि करा दे कक उसे ि की प्रहतभूहत प्राप्‍त िै, और इसहिए वि उस
हवहिमयपत्र को बट्टा िेकर भुिा दे । क कू टरचिा का दोषी िै ।
(च) य की हवि में ये िब्द अन्तर्वतष्‍ट िैं कक “मैं हिदेि देता हं कक मेरी समस्त िेष सम्पहत्त क, ि और ग में बराबर बांट दी जाए” ।
क बेईमािी से ि का िाम इस आिय से िुरच डािता िै कक यि हवश्‍वास कर हिया जाए कक समस्त सम्पहत्त उसके स्वयं के हिए और ग के
हिए िी छो़िी गई थी । ि िे कू टरचिा की िै ।
(छ) क एक सरकारी वचिपत्र को पृष्‍ठांककत करता िै और उस पर िब्द “य को या उसके आदेिािुसार दे दो” हििकर और
पृष्‍ठांकि पर िस्ताक्षर करके उसे य को या उसके आदेिािुसार देय कर देता िै । ि बेईमािी से “य को या उसके आदेिािुसार दे दो” इि
िब्दों को छीिकर हमटा डािता िै, और इस प्रकार उस हविेष पृष्‍ठांकि को एक हिरं क पृष्‍ठांकि में पररवर्ततत कर देता िै । ि कू टरचिा
करता िै ।
(ज) क एक सम्पदा य को बेच देता िै और उसका िस्तांतर-पत्र हिि देता िै । उसके पश्‍चात् क, य को कपट करके सम्पदा से वंहचत
करिे के हिए उसी सम्पदा को एक िस्तान्तर-पत्र हजस पर य के िस्तान्तर-पत्र की तारीि से छि मास पूवत की तारीि प़िी हुई िै, ि के
िाम इस आिय से हिष्पाकदत कर देता िै कक यि हवश्‍वास कर हिया जाए कक उसिे अपिी सम्पदा य को िस्तान्तररत करिे से पूवत ि को
िस्तान्तररत कर दी थी । क िे कू टरचिा की िै ।
(झ) य अपिी हवि क से हििवाता िै । क सािय एक ऐसे वसीयतदार का िाम हिि देता िै, जो कक उस वसीयतदार से हभन्‍ि िै,
हजसका िाम य िे किा िै, और य को यि व्यपकदष्‍ट करके कक उसिे हवि उसके अिुदि
े ों के अिुसार िी तैयार की िै, य को हवि पर
िस्ताक्षर करिे के हिए उत्‍प्रेररत करता िै । क िे कू टरचिा की िै ।
(ञ) क एक पत्र हििता िै और ि के प्राहिकार के हबिा, इस आिय से कक उस पत्र के द्वारा य से और अन्य व्यहक्‍तयों से हभक्षा
अहभप्राप्‍त करे , ि के िाम के िस्ताक्षर यि प्रमाहणत करते हुए कर देता िै कक क अच्छे िीि का व्यहक्‍त िै और अिवेहक्षत दुभातग्य के कारण
दीि अवस्था में िै । यिां क, िे य को सम्पहत्त, अिग करिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे की हमथ्या दस्तावेज रची िै, इसहिए क िे कू टरचिा ‍‍‍
की िै ।
(ट) ि के प्राहिकार के हबिा क इस आिय से कक उसके द्वारा य के अिीि िौकरी अहभप्राप्‍त करे , क के िीि को प्रमाहणत करते हुए
एक पत्र हििता िै, और उसे ि के िाम से िस्ताक्षररत करता िै । क िे कू टरचिा की िै क्योंकक उसका आिय कू टरहचत प्रमाणपत्र द्वारा य
को प्रवंहचत करिे का और ऐसा करके य की सेवा की अहभव्यक्‍त या हववहक्षत संहवदा में प्रहवष्‍ट िोिे के हिए उत्‍प्रेररत करिे का था ।
स्पष्‍टीकरण 1—ककसी व्यहक्‍त का स्वयं अपिे िाम का िस्ताक्षर करिा कू टरचिा की कोरट में आ सके गा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक हवहिमयपत्र पर अपिे िस्ताक्षर इस आिय से करता िै कक यि हवश्‍वास कर हिया जाए कक वि हवहिमयपत्र उसी िाम
के ककसी अन्य व्यहक्‍त द्वारा हििा गया था । क िे कू टरचिा की िै ।
(ि) क एक कागज के टु क़िे पर िब्द “प्रहतगृिीत ककया” हििता िै और उस पर य के िाम के िस्ताक्षर इसहिए करता िै कक ि
बाद में इस कागज पर एक हवहिमयपत्र, जो ि िे य के ऊपर ककया िै, हििे और उस हवहिमयपत्र का इस प्रकार परक्रामण करे , मािो वि
य के द्वारा प्रहतगृिीत कर हिया गया था । क कू टरचिा का दोषी िै, तथा यकद ि इस तथ्य को जािते हुए क के आिय के अिुसरण में, उस
कागज पर हवहिमयपत्र हिि देता िै, तो ि भी कू टरचिा का दोषी िै ।
(ग) क अपिे िाम के ककसी अन्य व्यहक्‍त के आदेिािुसार देय हवहिमयपत्र प़िा पाता िै । क उसे उठा िाता िै और यि हवश्‍वास
करािे के आिय से स्वयं अपिे िाम पृष्‍ठांककत करता िै कक इस हवहिमयपत्र पर पृष्‍ठांकि उसी व्यहक्‍त द्वारा हििा गया था हजसके
आदेिािुसार वि देय िै । यिां, क िे कू टरचिा की िै ।
(घ) क, ि के हवरुद्ध एक हडक्री के हिष्पादि में बेची गई सम्पदा को िरीदता िै । ि सम्पदा के अहभगृिीत ककए जािे के पश्‍चात् य
के साथ दुस्सहन्ि करके क को कपटवंहचत करिे और यि हवश्‍वास करािे के आिय से कक वि पट्टा अहभग्रिण से पूवत हिष्पाकदत ककया गया
था, िाममात्र के भाटक पर और एक िम्बी कािावहि के हिए य के िाम उस सम्पदा का पट्टा कर देता िै और पट्टे पर अहभग्रिण से छि
मास पूवत की तारीि डाि देता िे । ि यद्यहप पट्टे का हिष्पादि स्वयं अपिे िाम से करता िै, तथाहप उस पर पूवत की तारीि डािकर वि
कू टरचिा करता िै ।
(ङ) क एक व्यापारी अपिे कदवािे का पूवातिुमाि करके अपिी चीजवस्तु ि के पास क के िायदे के हिए और अपिे िेिदारों को
कपटवंहचत करिे के आिय से रि देता िै; और प्राप्‍त मू्य के बदिे में, ि को एक ििराहि देिे के हिए अपिे को आबद्व करते हुए, एक
वचिपत्र उस संव्यविार की सच्‍चाई की रं गत देिे के हिए हिि देता िै, और इस आिय से कक यि हवश्‍वास कर हिया जाए कक यि
90

वचिपत्र उसिे उस समय से पूवत िी हििा था जब उसका कदवािा हिकििे वािा था, उस पर पििे की तारीि डाि देता िै । क िे
पररभाषा के प्रथम िीषतक के अिीि कू टरचिा की िै ।
स्पष्‍टीकरण 2—कोई हमथ्या दस्तावेज ककसी कह्पत व्यहक्‍त के िाम से इस आिय से रचिा कक यि हवश्‍वास कर हिया जाए कक
वि दस्तावेज एक वास्तहवक व्यहक्‍त द्वारा रची गई थी, या ककसी मृत व्यहक्‍त के िाम से इस आिय से रचिा कक यि हवश्‍वास कर हिया
जाए कक वि दस्तावेज उस व्यहक्‍त द्वारा उसके जीवि काि में रची गई थी, कू टरचिा की कोरट में आ सके गा ।
1
[स्पष्‍टीकरण 3—इस िारा के प्रयोजिों के हिए, “2[इिैक्‍राहिक‍ हचह्िक] िगािे” पद का विी अथत िोगा जो उसका सूचिा
प्रौद्योहगकी अहिहियम, 2000‍(2000 का 21)‍की िारा 2 की उपिारा (1) के िंड (घ) में िै ।]
दृष्ट‍ ांत
क एक कह्पत व्यहक्‍त के िाम कोई हवहिमयपत्र हििता िै, और उसका परक्रामण करिे के आिय से उस हवहिमयपत्र को ऐसे
कह्पत व्यहक्‍त के िाम से कपटपूवतक प्रहतगृिीत कर िेता िै । क कू टरचिा करता िै ।
465. कू टरचिा के हिए दण्ड—जो कोई कू टरचिा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक
की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
466. न्यायािय के अहभिेि की या िोक रहजस्टर आकद की कू टरचिा—3[जो कोई ऐसे दस्तावेज की या ऐसे इिैक्राहिक अहभिेि
की] हजसका कक ककसी न्यायािय का या न्यायािय में अहभिेि या कायतवािी िोिा, या जन्म, बपहतस्मा, हववाि या अन्त्येहष्‍ट का
रहजस्टर, या िोक सेवक द्वारा िोक सेवक के िाते रिा गया रहजस्टर िोिा तात्पर्यतत िो, अथवा ककसी प्रमाणपत्र की या ऐसी दस्तावेज
की हजसके बारे में यि तात्पर्यतत िो कक वि ककसी िोक सेवक द्वारा उसकी पदीय िैहसयत में रची गई िै, या जो ककसी वाद को संहस्थत
करिे या वाद में प्रहतरक्षा करिे का, उसमें कोई कायतवािी करिे का, या दावा संस्वीकृ त कर िेिे का, प्राहिकार िो या कोई मुखतारिामा
िो, कू टरचिा करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
[स्पष्‍टीकरण—इस िारा के प्रयोजिों के हिए, “रहजस्टर” के अंतगतत सूचिा प्रौद्योहगकी अहिहियम, 2000 (2000 का 21) की
1

िारा 2 की उपिारा (1) के िंड (द) में पररभाहषत इिैक्राहिक रूप में रिी गई कोई सूची, डाटा या ककसी प्रहवहष्‍ट का अहभिेि भी िै ।]
467. मू्यवाि प्रहतभूहत, हवि, इत्याकद की कू टरचिा—जो कोई ककसी ऐसी दस्तावेज की, हजसका कोई मू्यवाि प्रहतभूहत या
हवि या पुत्र के दत्तकग्रिण का प्राहिकार िोिा तात्पर्यतत िो, अथवा हजसका ककसी मू्यवाि प्रहतभूहत की रचिा या अन्तरण का, या उस
पर के मूििि, ब्याज या िाभांि को प्राप्‍त करिे का, या ककसी िि, जंगम सम्पहत्त या मू्यवाि प्रहतभूहत को प्राप्‍त करिे या पररदत्त करिे
का प्राहिकार िोिा तात्पर्यतत िो, अथवा ककसी दस्तावेज को, हजसका िि कदए जािे की अहभस्वीकृ हत करिे वािा हिस्तारणपत्र या रसीद
िोिा, या ककसी जंगम संपहत्त या मू्यवाि प्रहतभूहत के पररदाि के हिए हिस्तारणपत्र या रसीद िोिा तात्पर्यतत िो, कू टरचिा करे गा वि
4
[आजीवि कारावास] से, या दािों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
468. छि के प्रयोजि से कू टरचिा—जो कोई कू टरचिा इस आिय से करे गा कक 3[वि दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि हजसकी
कू टरचिा की जाती िै,] छि के प्रयोजि से उपयोग में िाई जाएगी, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत
तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
469. खयाहत को अपिाहि पहुंचािे के आिय से कू टरचिा—5[जो कोई कू टरचिा इस आिय से करे गा कक वि दस्तावेज या
इिैक्राहिक अहभिेि] हजसकी कू टरचिा की जाती िै, ककसी पक्षकार की खयाहत की अपिाहि करे गी, या यि सम्भाव्य जािते हुए करे गा
कक इस प्रयोजि से उसका उपयोग ककया जाए, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी,
दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
470. कू टरहचत 6[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि]—वि हमथ्या 2[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] जो पूणतत: या भागत:
कू टरचिा द्वारा रची गई िै, “कू टरहचत 2[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि]” कििाती िै ।
471. कू टरहचत 2[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] का असिी के रूप में उपयोग में िािा—जो कोई ककसी ऐसी 2[दस्तावेज या
इिैक्राहिक अहभिेि] को, हजसके बारे में वि यि जािता या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िो कक वि कू टरहचत 2[दस्तावेज या
इिैक्राहिक अहभिेि] िै, कपटपूवतक या बेईमािी से असिी के रूप में उपयोग में िाएगा, वि उसी प्रकार दहण्डत ककया जाएगा, मािो
उसिे ऐसी 2[दस्तावेज या इिैक्राहिक अहभिेि] की कू टरचिा की िो ।

1
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
2
2009 के ‍अहिहियम‍सं० 10‍की‍िारा‍51 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
3
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍“दस्तावेज”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
91

472. िारा 467 के अिीि दण्डिीय कू टरचिा करिे के आिय से कू टकृ त मुरा, आकद का बिािा या कब्जे में रििा—जो कोई ककसी
मुरा, पट्टी या छाप िगािे के अन्य उपकरण को इस आिय से बिाएगा या उसकी कू टकृ हत तैयार करे गा कक उसे कोई ऐसी कू टरचिा करिे
के प्रयोजि के हिए उपयोग में िाया जाए, जो इस संहिता की िारा 467 के अिीि दण्डिीय िै, या इस आिय से, ककसी ऐसी मुरा, पट्टी
या अन्य उपकरण को, उसे कू टकृ त जािते हुए अपिे कब्जे में रिेगा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास
से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
473. अन्यथा दण्डिीय कू टरचिा करिे के आिय से कू टकृ त मुरा, आकद का बिािा या कब्जे में रििा—जो कोई ककसी मुरा, पट्टी
या छाप िगािे के अन्य उपकरण को इस आिय से बिाएगा या उसकी कू टकृ हत करे गा, कक उसे कोई ऐसी कू टरचिा करिे के प्रयोजि के
हिए उपयोग में िाया जाए, जो िारा 467 से हभन्‍ि इस अध्याय की ककसी िारा के अिीि दण्डिीय िै, या इस आिय से ककसी ऐसी मुरा,
पट्टी या अन्य उपकरण को, उसे कू टकृ त जािते हुए अपिे कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात
वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
474. िारा 466 या 467 में वर्णतत दस्तावेज को, उसे कू टरहचत जािते हुए और उसे असिी के रूप में उपयोग में िािे का आिय
रिते हुए, कब्जे में रििा—1[जो कोई, ककसी दस्तावेज या ककसी इिैक्राहिक अहभिेि को उसे कू टरहचत जािते हुए और यि आिय
रिते हुए कक वि कपटपूवतक या बेईमािी से असिी रूप में उपयोग में िाया जाएगा, अपिे कब्जे में रिेगा, यकद वि दस्तावेज या
इिैक्राहिक अहभिेि इस संहिता की िारा 466 में वर्णतत भांहत का िो] तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा, तथा यकद वि दस्तावेज िारा 467 में वर्णतत भांहत
की िो तो वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
475. िारा 467 में वर्णतत दस्तावेजों के अहिप्रमाणीकरण के हिए उपयोग में िाई जािे वािी अहभिक्षणा या हचह्ि की कू टकृ हत
बिािा या कू टकृ त हचह्ियुक्त‍ पदाथत को कब्जे में रििा—जो कोई ककसी पदाथत के ऊपर, या उसके उपादाि में, ककसी ऐसी अहभिक्षणा
या हचह्ि की, हजसे इस संहिता की िारा 467 में वर्णतत ककसी दस्तावेज के अहिप्रमाणीकरण के प्रयोजि के हिए, उपयोग में िाया जाता
िो, कू टकृ हत यि आिय रिते हुए बिाएगा कक ऐसी अहभिक्षणा या ऐसे हचह्ि की, ऐसे पदाथत पर उस समय कू टरहचत की जा रिी या
उसके पश्‍चात् कू टरहचत की जािे वािी ककसी दस्तावेज को अहिप्रमाणीकृ त का आभास प्रदाि करिे के प्रयोजि से उपयोग में िाया
जाएगा या जो ऐसे आिय से कोई ऐसा पदाथत अपिे कब्जे में रिेगा, हजस पर या हजसके उपादाि में ऐसी अहभिक्षणा को या ऐसे हचह्ि
की कू टकृ हत बिाई गई िो, वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो
सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
476. िारा 467 में वर्णतत दस्तावेजों से हभन्‍ि दस्तावेजों के अहिप्रमाणीकरण के हिए उपयोग में िाई जािे वािी अहभिक्षणा या
हचह्ि की कू टकृ हत बिािा या कू टकृ त हचह्ियुक्त
‍ पदाथत को कब्जे में रििा—जो कोई ककसी पदाथत के ऊपर, या उसके उपादाि में, ककसी
ऐसी अहभिक्षणा या हचह्ि की, हजसे इस संहिता की िारा 467 में वर्णतत दस्तावेजों से हभन्‍ि 2[ककसी दस्तावेज या इिैक्राहिक
अहभिेि] के अहिप्रमाणीकरण के प्रयोजि के हिए, उपयोग में िाया जाता िो, कू टकृ हत यि आिय रिते हुए बिाएगा कक वि ऐसी
अहभिक्षणा या ऐसे हचह्ि को, ऐसे पदाथत पर उस समय कू टरहचत की जा रिी या उसके पश्‍चात् कू टरहचत की जािे वािी ककसी दस्तावेज
को अहिप्रमाणीकृ त का आभास प्रदाि करिे के प्रयोजि से उपयोग में िाया जाएगा या जो ऐसे आिय से कोई ऐसा पदाथत अपिे कब्जे में
रिेगा, हजस पर या हजसके उपादाि में ऐसी अहभिक्षणा या ऐसे हचह्ि की कू टकृ हत बिाई गई िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
477. हवि, दत्तकग्रिण प्राहिकार-पत्र या मू्यवाि प्रहतभूहत को कपटपूवक त रद्द, िष्‍ट, आकद करिा—जो कोई कपटपूवतक या
बेईमािी से, या िोक को या ककसी व्यहक्‍त को िुकसाि या क्षहत काररत करिे के आिय से, ककसी ऐसी दस्तावेज को, जो हवि या पुत्र के
दत्तकग्रिण करिे का प्राहिकार-पत्र या कोई मू्यवाि प्रहतभूहत िो, या िोिा तात्पर्यतत िो, रद्द, िष्‍ट या हवरूहपत करे गा या रद्द, िष्‍ट या
हवरूहपत करिे का प्रयत्‍ि करे गा, या हछपाएगा या हछपािे का प्रयत्‍ि करे गा या ऐसी दस्तावेज के हवषय में ररहष्‍ट करे गा, वि 3[आजीवि
कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दण्डिीय िोगा ।
4
[477क. िेिा का हमथ्याकरण—जो कोई, हिहपक, आकिसर या सेवक िोते हुए, या हिहपक, आकिसर या सेवक के िाते हियोहजत
िोते या कायत करते हुए, ककसी 5[पुस्तक, इिैक्राहिक अहभिेि, कागज, िेि,] मू्यवाि प्रहतभूहत या िेिा को जो उसके हियोजक का िो
या उसके हियोजक के कब्जे में िो या हजसे उसिे हियोजक के हिए या उसकी ओर से प्राप्‍त ककया िो, जािबूझकर और कपट करिे के
आिय से िष्‍ट, पररवर्ततत, हवकृ त या हमथ्याकृ त करे गा अथवा ककसी ऐसी 3[पुस्तक, इिैक्राहिक अहभिेि, कागज, िेि] मू्यवाि
प्रहतभूहत या िेिा में जािबूझकर और कपट करिे के आिय से कोई हमथ्या प्रहवहष्‍ट करे गा या करिे के हिए दुष्‍प्रेरण करे गा, या उसमें से

1
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍“ककसी‍दस्तावेज”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
4
1895 के ‍अहिहियम‍सं० 3 की‍िारा‍4 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
5
2000 के ‍अहिहियम‍सं० 21 की‍िारा‍91 और‍पििी‍अिुसूची‍द्वारा‍“पुस्तक, कागज, िेि”‍के ‍स्थाि‍पर‍‍प्रहतस्थाहपत‍।
92

या उसमें ककसी ताहववक हवहिहष्‍ट का िोप या पररवतति करे गा या करिे का दुष्‍प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के अिीि ककसी आरोप में, ककसी हवहिष्‍ट व्यहक्‍त का, हजससे कपट करिा आिहयत था, िाम बताए हबिा
या ककसी हवहिष्‍ट ििराहि का, हजसके हवषय में कपट ककया जािा आिहयत था या ककसी हवहिष्‍ट कदि का, हजस कदि अपराि ककया
गया था, हवहिदेि ककए हबिा, कपट करिे के सािारण आिय का अहभकथि पयातप्त ‍ िोगा ।]
1
[संपहत्त 2*** हचह्िों और अन्य हचह्िों के हवषय में
478. [व्यापार हचह्ि ।] व्यापार और पण्य हचह्ि अहिहियम, 1958 (1958 का 43) की िारा 135 और अिुसूची द्वारा ‍‍‍‍‍‍‍‍
(25-11-1959 से) हिरहसत ।
479. सम्पहत्त-हचह्ि—वि हचह्ि जो यि द्योति करिे के हिए उपयोग में िाया जाता िै कक जंगम संपहत्त ककसी हवहिष्‍ट व्यहक्‍त
की िै, सम्पहत्त हचह्ि किा जाता िै ।
480. [हमथ्या व्यापार हचह्ि का प्रयोग ककया जािा ।]—व्यापार और पण्य हचह्ि अहिहियम, 1958 (1958 का 43) की िारा 135
और अिुसूची द्वारा (25-11-1959 से) हिरहसत ।
481. हमथ्या सम्पहत्त-हचह्ि को उपयोग में िािा—जो कोई ककसी जंगम सम्पहत्त या माि को या ककसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र
को, हजसमें जंगम सम्पहत्त या माि रिा िै, ऐसी रीहत से हचहह्ित करता िै या ककसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, हजस पर कोई हचह्ि
िै, ऐसी रीहत से उपयोग में िाता िै, जो इसहिए युहक्‍तयुक्‍त रूप से प्रकह्पत िै कक उससे यि हवश्‍वास काररत िो जाए कक इस प्रकार
हचहह्ित सम्पहत्त या माि, या इस प्रकार हचहह्ित ककसी ऐसे पात्र में रिी हुई कोई सम्पहत्त या माि, ऐसे व्यहक्‍त का िै, हजसका वि ििीं
िै, वि हमथ्या सम्पहत्त-हचह्ि का उपयोग करता िै, यि किा जाता िै ।
482. हमथ्या सम्पहत्त-हचह्ि को उपयोग करिे के हिए दण्ड—जो कोई 3*** ककसी हमथ्या सम्पहत्त-हचह्ि का उपयोग करे गा, जब
तक कक वि यि साहबत ि कर दे कक उसिे कपट करिे के आिय के हबिा कायत ककया िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से दहण्डत ककया जाएगा ।
483. अन्य व्यहक्‍त द्वारा उपयोग में िाए गए सम्पहत्त-हचह्ि का कू टकरण—जो कोई ककसी 4*** सम्पहत्त-हचह्ि का, जो ककसी
अन्य व्यहक्‍त द्वारा उपयोग में िाया जाता िो, कू टकरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की
िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
484. िोक सेवक द्वारा उपयोग में िाए गए हचह्ि का कू टकरण—जो कोई ककसी सम्पहत्त-हचह्ि का, जो िोक सेवक द्वारा उपयोग
में िाया जाता िो, या ककसी ऐसे हचह्ि का, जो िोक सेवक द्वारा यि द्योति करिे के हिए उपयोग में िाया जाता िो कक कोई सम्पहत्त
ककसी हवहिष्‍ट व्यहक्‍त द्वारा या ककसी हवहिष्‍ट समय या स्थाि पर हवहिर्मतत की गई िै, या यि कक वि सम्पहत्त ककसी हवहिष्‍ट क्‍वाहिटी
की िै या ककसी हवहिष्‍ट कायातिय में से पाररत िो चुकी िै, या यि कक ककसी छू ट की िकदार िै, कू टकरण करे गा, या ककसी ऐसे हचह्ि को
उसे कू टकृ त जािते हुए असिी के रूप में उपयोग में िाएगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की
िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
5
[485. सम्पहत्त-हचह्ि के कू टकरण के हिए कोई उपकरण बिािा या उस पर कब्जा—जो कोई सम्पहत्त-हचह्ि के कू टकरण के
प्रयोजि से कोई डाई, पट्टी या अन्य उपकरण बिाएगा या अपिे कब्जे में रिेगा, अथवा यि द्योति करिे के प्रयोजि से कक कोई माि ऐसे
व्यहक्‍त का िै, हजसका वि ििीं िै, ककसी सम्पहत्त-हचह्ि को अपिे कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।]
486. कू टकृ त सम्पहत्त-हचह्ि से हचहह्ित माि का हवक्रय—6[जो कोई ककसी माि या चीजों को, स्वयं उि पर या ककसी ऐसी पेटी,
पैकेज या अन्य पात्र पर, हजसमें ऐसा माि रिा िो, कोई कू टकृ त सम्पहत्त-हचह्ि िगा हुआ या छपा हुआ िोते हुए, बेचेगा या बेचिे के
हिए अहभदर्ितत करे गा या अपिे कब्जे में रिेगा], जब तक कक वि यि साहबत ि कर दे कक—
(क) इस िारा के हवरुद्ध अपराि ि करिे की सब युहक्‍तयुक्‍त पूवातविािी बरतते हुए, हचह्ि के असिीपि के सम्बन्ि में संदि

करिे के हिए उसके पास कोई कारण अहिकहथत अपराि करते समय ििीं था, तथा
(ि) अहभयोजक द्वारा या उसकी ओर से मांग ककए जािे पर, उसिे उि व्यहक्‍तयों के हवषय में, हजिसे उसिे ऐसा माि या
चीजें अहभप्राप्‍त की थीं, वि सब जािकारी दे दी थी, जो उसकी िहक्‍त में थी, अथवा
(ग) अन्यथा उसिे हिदोहषतापूवतक कायत ककया था,

1
1889 के ‍अहिहियम‍सं० 4 की‍िारा‍3 द्वारा‍मूि‍िीषत‍और‍िारा‍478 से‍489 के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“व्यापार”‍िब्द‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
3
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“ककसी‍हमथ्या‍व्यापार‍हचह्ि‍या”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
4
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“व्यापार‍हचह्ि‍या”‍िब्दों‍का‍िोप‍ककया‍गया‍।
5
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1958 के ‍अहिहियम‍सं० 43 की‍िारा‍135 और‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
93

वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
487. ककसी ऐसे पात्र के ऊपर हमथ्या हचह्ि बिािा हजसमें माि रिा िै—जो कोई ककसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र के ऊपर,
हजसमें माि रिा हुआ िो, ऐसी रीहत से कोई ऐसा हमथ्या हचह्ि बिाएगा, जो इसहिए युहक्‍तयुक्‍त रूप से प्रकह्पत िै कक उससे ककसी
िोक सेवक को या ककसी अन्य व्यहक्‍त को यि हवश्‍वास काररत िो जाए कक ऐसे पात्र में ऐसा माि िै, जो उसमें ििीं िै, या यि कक उसमें
ऐसा माि ििीं िै, जो उसमें िै, या यि कक ऐसे पात्र में रिा हुआ माि ऐसी प्रकृ हत या क्‍वाहिटी का िै जो उसकी वास्तहवक प्रकृ हत या
क्‍वाहिटी से हभन्‍ि िै, जब तक कक वि यि साहबत ि कर दे कक उसिे वि कायत कपट करिे के आिय के हबिा ककया िै वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
488. ककसी ऐसे हमथ्या हचह्ि को उपयोग में िािे के हिए दण्ड—जो कोई अहन्तम पूवतगामी िारा द्वारा प्रहतहषद्ध ककसी प्रकार से
ककसी ऐसे हमथ्या हचह्ि का उपयोग करे गा, जब तक कक वि यि साहबत ि कर दे कक उसिे वि कायत कपट करिे के आिय के हबिा ककया
िै, वि उसी प्रकार दहण्डत ककया जाएगा, मािो उसिे उस िारा के हवरुद्ध अपराि ककया िो ।
489. क्षहत काररत करिे के आिय से सम्पहत्त-हचह्ि को हबगा़ििा—जो कोई ककसी सम्पहत्त-हचह्ि को, यि आिय रिते हुए, या
यि सम्भाव्य जािते हुए कक वि तद्‍द्वारा ककसी व्यहक्‍त को क्षहत करे , ककसी सम्पहत्त-हचह्ि को अपसाररत करे गा, िष्‍ट करे गा, हवरूहपत
करे गा या उसमें कु छ जो़िेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।]
1
[करें सी िोटों और बैंक िोटों के हवषय में
489क. करे न्सी िोटों या बैंक िोटों का कू टकरण—जो कोई ककसी करे न्सी िोट या बैंक िोट का कू टकरण करे गा, या जािते हुए
करे न्सी िोट या बैंक िोट के कू टकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को सम्पाकदत करे गा, वि 2[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी
भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के और िारा 489ि, 3[489ग, 489घ और 489ङ] के प्रयोजिों के हिए “बैंक िोट” पद से उसके वािक को
मांग पर िि देिे के हिए ऐसा वचिपत्र या वचिबंि अहभप्रेत िै, जो संसार के ककसी भी भाग में बैंककारी करिे वािे ककसी व्यहक्‍त द्वारा
प्रचाहित ककया गया िो, या ककसी राज्य या संपूणत प्रभुत्व संपन्‍ि िहक्‍त द्वारा या उसके प्राहिकार के अिीि प्रचाहित ककया गया िो, और
जो िि के समतु्य या स्थािापन्‍ि के रूप में उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िो ।
489ि. कू टरहचत या कू टकृ त करें सी िोटों या बैंक िोटों को असिी के रूप में उपयोग में िािा—जो कोई ककसी कू टरहचत या
कू टकृ त करे न्सी िोट या बैंक िोट को, यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक वि कू टरहचत या कू टकृ त िै, ककसी अन्य
व्यहक्‍त को बेचेगा या उससे िरीदेगा या प्राप्‍त करे गा या अन्यथा उसका दुव्यातपार करे गा या असिी के रूप में उसे उपयोग में िाएगा,
वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
489ग. कू टरहचत या कू टकृ त करे न्सी िोटों या बैंक िोटों को कब्जे में रििा—जो कोई ककसी कू टरहचत या कू टकृ त करे न्सी िोट या
बैंक िोट को यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए कक वि कू टरहचत या कू टकृ त िै और यि आिय रिते हुए कक उसे
असिी के रूप उपयोग में िाए या वि असिी के रूप में उपयोग में िाई जा सके , अपिे कब्जे में रिेगा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
489घ. करे न्सी िोटों या बैंक िोटों की कू टरचिा या कू टकरण के हिए उपकरण या सामग्री बिािा या कब्जे में रििा—जो कोई
ककसी मिीिरी, उपकरण या सामग्री को ककसी करे न्सी िोट या बैंक िोट की कू टरचिा या कू टकरण के हिए उपयोग में िाए जािे के
प्रयोजि से, या यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे के कारण रिते हुए कक वि ककसी करे न्सी िोट या बैंक िोट की कू टरचिा या कू टकरण के
हिए उपयोग में िाए जािे के हिए आिहयत िै, बिाएगा, या बिािे की प्रकक्रया के ककसी भाग का संपादि करे गा या िरीदेगा, या बेचेगा,
या व्ययहित करे गा, या अपिे कब्जे में रिेगा, वि 4[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से हजसकी अवहि
दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।]
5
[489ङ. करे न्सी िोटों या बैंक िोटों से सदृश्य रििे वािी दस्तावेजों की रचिा या उपयोग—(1) जो कोई ककसी दस्तावेज को, जो
करे न्सी िोट या बैंक िोट िोिा तात्पर्यतत िो या करे न्सी िोट या बैंक िोट के ककसी भी प्रकार सदृि िो या इतिे हिकटत: सदृि िो कक
प्रवंचिा िो जािा प्रकह्पत िो, रचेगा या रचवाएगा या ककसी भी प्रयोजि के हिए उपयोग में िाएगा या ककसी व्यहक्‍त को पररदत्त
करे गा, वि जुमातिे से, जो एक सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया जाएगा ।

1
1899 के ‍अहिहियम‍सं० 12 की‍िारा‍2 द्वारा‍जो़िा‍गया‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1950 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍3 और‍अिुसूची‍2 द्वारा‍“489ग‍और‍489घ”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍
4
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1943 के ‍अहिहियम‍सं० 6 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
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(2) यकद कोई व्यहक्‍त हजसका िाम ऐसी दस्तावेज पर िो, हजसकी रचिा उपिारा (1) के अिीि अपराि िै, ककसी पुहिस आकिसर
को उस व्यहक्‍त का िाम और पता, हजसके द्वारा वि मुकरत की गई थी या अन्यथा रची गई थी, बतािे के हिए अपेहक्षत ककए जािे पर उसे
हवहिपूणत प्रहतिेतु के हबिा बतािे से इं कार करे गा, वि जुमातिे से, जो दो सौ रुपए तक का िो सके गा, दहण्डत ककया जाएगा ।
(3) जिां कक ककसी ऐसी दस्तावेज पर हजसके बारे में ककसी व्यहक्‍त पर उपिारा (1) के अिीि अपराि का आरोप िगाया गया िो,
या ककसी अन्य दस्तावेज पर, जो उस दस्तावेज के सम्बन्ि में उपयोग में िाई गई िो, या हवतररत की गई िो, ककसी व्यहक्‍त का िाम िो,
विां जब तक तत्‍प्रहतकू ि साहबत ि कर कदया जाए, यि उपिारणा की जा सके गी कक उसी व्यहक्‍त िे वि दस्तावेज रचवाई िै ।]
अध्याय 19

सेवा संहवदाओं के अपराहिक भंग के हवषय में


490. [समुर यात्रा या यात्रा के दौराि सेवा भंग ।]—कमतकार संहवदा भंग (हिरसि) अहिहियम, 1925 (1925 का 3) की िारा 2
और अिुसूची द्वारा हिरहसत ।
491. असिाय व्यहक्‍त की पररचयात करिे की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्तत करिे की संहवदा का भंग—जो कोई ककसी ऐसे
व्यहक्‍त की, जो ककिोरावस्था या हचत्तहवकृ हत या रोग या िारीररक दुबतिता के कारण असिाय िै, या अपिे हिजी क्षेम की व्यवस्था या
अपिी हिजी आवश्यकताओं की पूर्तत करिे के हिए असमथत िै, पररचयात करिे के हिए या उसकी आवश्यकताओं की पूर्तत करिे के हिए
हवहिपूणत संहवदा द्वारा आबद्ध िोते हुए, स्वेच्छया ऐसा करिे का िोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि
तीि मास तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो दो सौ रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
492. [दूर वािे स्थाि पर सेवा करिे का संहवदा भंग जिां सेवक को माहिक के िचे पर िे जाया जाता िै ।]—कमतकार संहवदा भंग
(हिरसि) अहिहियम, 1925 (1925 का 3) की िारा 2 और अिुसूची द्वारा हिरहसत ।
अध्याय 20

हववाि सम्बन्िी अपरािों के हवषय में


493. हवहिपूणत हववाि का प्रवंचिा से हवश्‍वास उत्‍प्ररे रत करिे वािे पुरुष द्वारा काररत सिवास—िर पुरुष जो ककसी स्‍त्री को, जो
हवहिपूवतक उससे हववाहित ि िो, प्रवंचिा से यि हवश्‍वास काररत करे गा कक वि हवहिपूवतक उससे हववाहित िै और इस हवश्‍वास में उस
स्‍त्री का अपिे साथ सिवास या मैथुि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो
सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
494. पहत या पत्‍िी के जीविकाि में पुिः हववाि करिा—जो कोई पहत या पत्‍िी के जीहवत िोते हुए ककसी ऐसी दिा में हववाि
करे गा हजसमें ऐसा हववाि इस कारण िून्य िै कक वि ऐसे पहत या पत्‍िी के जीविकाि में िोता िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
अपवाद—इस िारा का हवस्तार ककसी ऐसे व्यहक्‍त पर ििीं िै, हजसका ऐसे पहत या पत्‍िी के साथ हववाि सक्षम अहिकाररता के
न्यायािय द्वारा िून्य घोहषत कर कदया गया िो,
और ि ककसी ऐसे व्यहक्‍त पर िै, जो पूवत पहत या पत्‍िी के जीविकाि में हववाि कर िेता िै, यकद ऐसा पहत या पत्‍िी उस
पश्‍चात्‍वती हववाि के समय ऐसे व्यहक्‍त से सात वषत तक हिरन्तर अिुपहस्थत रिा िो, और उस काि के भीतर ऐसे व्यहक्‍त िे यि ििीं
सुिा िो कक वि जीहवत िै, परन्तु यि तब जब कक ऐसा पश्‍चात्‍वती हववाि करिे वािा व्यहक्‍त उस हववाि के िोिे से पूवत उस व्यहक्‍त को,
हजसके साथ ऐसा हववाि िोता िै, तथ्यों की वास्तहवक हस्थहत की जािकारी, जिां तक कक उिका ज्ञाि उसको िो, दे दे ।
495. विी अपराि पूवव त ती हववाि को उस व्यहक्‍त से हछपाकर हजसके साथ पश्‍चात्व
‍ ती हववाि ककया जाता िै—जो कोई पूवतवती
अहन्तम िारा में पररभाहषत अपराि अपिे पूवत हववाि की बात उस व्यहक्‍त से हछपाकर करे गा, हजससे पश्‍चात्‍वती हववाि ककया जाए,
वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।
496. हवहिपूणत हववाि के हबिा कपटपूवक त हववाि कमत पूरा कर िेिा—जो कोई बेईमािी से या कपटपूणत आिय से हववाहित िोिे
का कमत यि जािते हुए पूरा करे गा कक तद्‍द्वारा वि हवहिपूवतक हववाहित ििीं हुआ िै, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी
अवहि सात वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
497. जारकमत—जो कोई ऐसे व्यहक्‍त के साथ, जो कक ककसी अन्य पुरुष की पत्‍िी िै और हजसका ककसी अन्य पुरुष की पत्‍िी िोिा
वि जािता िै या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै, उस पुरुष की सम्महत या मौिािुकूिता के हबिा ऐसा मैथुि करे गा जो बिात्संग के
अपराि की कोरट में ििीं आता, वि जारकमत के अपराि का दोषी िोगा, और दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि पांच
वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा । ऐसे मामिे में पत्‍िी दुष्‍प्रेरक के रूप में दण्डिीय ििीं िोगी ।
498. हववाहित स्‍त्री को आपराहिक आिय से िु सिाकर िे जािा, या िे जािा या हिरुद्ध रििा—जो कोई ककसी स्‍त्री को, जो
ककसी अन्य पुरुष की पत्‍िी िै, और हजसका अन्य पुरुष की पत्‍िी िोिा वि जािता िै, या हवश्‍वास करिे का कारण रिता िै, उस पुरुष के
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पास से, या ककसी ऐसे व्यहक्‍त के पास से, जो उस पुरुष की ओर से उसकी देिरे ि करता िै, इस आिय से िे जाएगा, या िु सिाकर िे
जाएगा कक वि ककसी व्यहक्‍त के साथ अयुक्‍त संभोग करे या इस आिय से ऐसी ककसी स्‍त्री को हछपाएगा या हिरुद्ध करे गा, वि दोिों में से
ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
1
[अध्याय 20क

पहत या पहत के िातेदारों द्वारा क्रूरता के हवषय में


498क. ककसी स्‍त्री के पहत या पहत के िातेदार द्वारा उसके प्रहत क्रूरता करिा—जो कोई, ककसी स्‍त्री का पहत या पहत‍का‍िातेदार
िोते हुए, ऐसी स्‍त्री के प्रहत क्रूरता करे गा, वि कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दण्डिीय िोगा ।
स्पष्‍टीकरण—इस िारा के प्रयोजिों के हिए,‍“क्रूरता” से हिम्‍िहिहित अहभप्रेत िै—
(क) जािबूझकर ककया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृ हत का िै हजससे उस स्‍त्री को आत्मित्या करिे के हिए प्रेररत करिे
की या उस स्‍त्री के जीवि, अंग या स्वास्थ्य की (जो चािे मािहसक िो या िारीररक) गंभीर क्षहत या ितरा काररत करिे के हिए
उसे करिे की सम्भाविा िै ; या
(ि) ककसी स्‍त्री को तंग करिा, जिां उसे या उससे सम्बहन्ित ककसी व्यहक्‍त को ककसी सम्पहत्त या मू्यवाि प्रहतभूहत के हिए
ककसी हवहिहवरुद्ध मांग को पूरी करिे के हिए प्रपीह़ित करिे‍की दृहष्‍ट से या उसके अथवा उससे संबंहित ककसी व्यहक्‍त के ऐसे मांग
पूरी करिे में असिि रििे के कारण इस प्रकार तंग ककया जा रिा िै ।]
अध्याय 21

माििाहि के हवषय में


499. माििाहि—जो कोई बोिे गए या पढ़े जािे के हिए आिहयत िब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपणों द्वारा ककसी व्यहक्‍त
के बारे में कोई िांछि इस आिय से िगाता या प्रकाहित करता िै कक ऐसे िांछि से ऐसे व्यहक्‍त की खयाहत की अपिाहि की जाए या यि
जािते हुए या हवश्‍वास करिे का कारण रिते हुए िगाता या प्रकाहित करता िै ऐसे िांछि से ऐसे व्यहक्‍त की खयाहत की अपिाहि िोगी,
एतहस्मि्‍पश्‍चात्‍अपवाकदत दिाओं के हसवाय उसके बारे में किा जाता िै कक वि उस व्यहक्‍त की माििाहि करता िै ।
स्पष्‍टीकरण 1—ककसी मृत व्यहक्‍त को कोई िांछि िगािा माििाहि की कोरट में आ सके गा यकद वि िांछि उस व्यहक्‍त की खयाहत
की, यकद वि जीहवत िोता, अपिाहि करता, और उसके पररवार या अन्य हिकट सम्बहन्ियों की भाविाओं को उपित करिे के हिए
आिहयत िो ।
स्पष्‍टीकरण 2—ककसी कम्पिी या संगम या व्यहक्‍तयों के समूि के सम्बन्ि में उसकी वैसी िैहसयत में कोई िांछि िगािा माििाहि
की कोरट में आ सके गा ।
स्पष्‍टीकरण 3—अिुक्प के रूप में, या व्यंगोहक्‍त के रूप में अहभव्यक्‍त िांछि माििाहि की कोरट में आ सके गा ।
स्पष्‍टीकरण 4—कोई िांछि ककसी व्यहक्‍त की खयाहत की अपिाहि करिे वािा ििीं किा जाता जब तक कक वि िांछि दूसरों की
दृहष्‍ट में प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उस व्यहक्‍त के सदाचाररक या बौहद्धक स्वरूप को िेय ि करे या उस व्यहक्‍त की जाहत के या उसकी
आजीहवका के सम्बन्ि में उसके िीि को िेय ि करे या उस व्यहक्‍त की साि को िीचे ि हगराए या यि हवश्‍वास ि कराए कक उस व्यहक्‍त
का िरीर घृणोत्पादक दिा में िै या ऐसी दिा में िै जो सािारण रूप से हिकृ ष्‍ट समझी जाती िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क यि हवश्‍वास करािे के आिय से कक य िे ि की घ़िी अवश्य चुराई िै, किता िै, “य एक ईमािदार व्यहक्‍त िै, उसिे ि की
घ़िी कभी ििीं चुराई िै” । जब तक कक यि अपवादों में से ककसी के अन्तगतत ि आता िो यि माििाहि िै ।
(ि) क से पूछा जाता िै कक ि की घ़िी ककसिे चुराई िै । क यि हवश्‍वास करािे के आिय से कक य िे ि की घ़िी चुराई िै, य की
ओर संकेत करता िै जब तक कक यि अपवादों में से ककसी के अन्तगतत ि आता िो, यि माििाहि िै ।
(ग) क यि हवश्‍वास करािे के आिय से कक य िे ि की घ़िी चुराई िै, य का एक हचत्र िींचता िै हजसमें वि ि की घ़िी िेकर भाग
रिा िै । जब तक कक यि अपवादों में से ककसी के अन्तगतत ि आता िो यि माििाहि िै ।
पििा अपवाद—सत्य बात का िांछि हजसका िगाया जािा या प्रकाहित ककया जािा िोक क्याण के हिए अपेहक्षत िै—ककसी
ऐसी बात का िांछि िगािा, जो ककसी व्यहक्‍त के सम्बन्ि में सत्य िो, माििाहि ििीं िै, यकद यि िोक क्याण के हिए िो कक वि िांछि
िगाया जाए या प्रकाहित ककया जाए । वि िोक क्याण के हिए िै या ििीं यि तथ्य का प्रश्‍ि िै ।

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1983 के ‍अहिहियम‍सं० 46 की‍िारा‍2 द्वारा‍अंत:स्थाहपत‍।
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दूसरा अपवाद—िोक सेवकों का िोकाचरण—उसके िोक कृ त्यों के हिवतिि में िोक सेवक के आचरण के हवषय में या उसके िीि
के हवषय में, जिां तक उसका िीि उस आचरण से प्रकट िोता िो, ि कक उससे आगे, कोई राय, चािे वि कु छ भी िो, सद्‍भावपूवतक
अहभव्यक्‍त करिा माििाहि ििीं िै ।
तीसरा अपवाद—ककसी िोक प्रश्‍ि के सम्बन्ि में ककसी व्यहक्‍त का आचरण—ककसी िोक प्रश्‍ि के सम्बन्ि में ककसी व्यहक्‍त के
आचरण के हवषय में, और उसके िीि के हवषय में, जिां तक कक उसका िीि उस आचरण से प्रकट िोता िो, ि कक उससे आगे, कोई राय,
चािे वि कु छ भी िो, सद्‍भावपूवतक अहभव्यक्‍त करिा माििाहि ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
ककसी िोक प्रश्‍ि पर सरकार को अजी देिे में, ककसी िोक प्रश्‍ि के हिए सभा बुिािे के अपेक्षण पर िस्ताक्षर करिे में, ऐसी सभा
का सभापहतत्व करिे में या उसमें िाहजर िोिे में, ककसी ऐसी सहमहत का गठि करिे में या उसमें सहम्महित िोिे में, जो िोक समथति
आमंहत्रत करती िै, ककसी ऐसे पद के ककसी हवहिष्‍ट अभ्यथी के हिए मत देिे में या उसके पक्ष में प्रचार करिे में, हजसके कततव्यों के
दक्षतापूणत हिवतिि से िोक हितबद्ध िै, य आचरण के हवषय में क द्वारा कोई राय, चािे वि कु छ भी िो, सद्‍भावपूवतक अहभव्यक्‍त करिा
माििाहि ििीं िै ।
चौथा अपवाद—न्यायाियों की कायतवाहियों की ररपोटों का प्रकािि— ककसी न्यायािय की कायतवाहियों की या ककन्िीं ऐसी
कायतवाहियों के पररणाम की सारत: सिी ररपोटत को प्रकाहित करिा माििाहि ििीं िै ।
स्पष्‍टीकरण—कोई जहस्टस आि पीस या अन्य आकिसर, जो ककसी न्यायािय में हवचारण से पूवत की प्रारहम्भक जांच िुिे
न्यायािय में कर रिा िो, उपरोक्‍त िारा के अथत के अन्तगतत न्यायािय िै ।
पांचवां अपवाद—न्यायािय में हवहिहश्‍चत मामिे के गुणागुण या साहक्षयों तथा सम्पृक्त ‍ अन्य व्यहक्‍तयों का आचरण—ककसी ऐसे
मामिे के गुणागुण के हवषय में चािे वि हसहवि िो या दाहण्डक, जो ककसी न्यायािय द्वारा हवहिहश्‍चत िो चुका िो या ककसी ऐसे मामिे
के पक्षकार, साक्षी या अहभकतात के रूप में ककसी व्यहक्‍त के आचरण के हवषय में या ऐसे व्यहक्‍त के िीि के हवषय में, जिां तक कक उसका
िीि उस आचरण से प्रकट िोता िो, ि कक उसके आगे, कोई राय, चािे वि कु छ भी िो, सद्‍भावपूवतक अहभव्यक्‍त करिा माििाहि ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क किता िै “मैं समझता हं कक उस हवचारण में य का साक्ष्य ऐसा परस्पर हवरोिी िै कक वि अवश्य िी मूित या बेईमाि िोिा
चाहिए” । यकद क ऐसा सद्‍भावपूवतक किता िै तो वि इस अपवाद के अन्तगतत आ जाता िै, क्योंकक जो राय वि य के िीि के सम्बन्ि में
अहभव्यक्‍त करता िै, वि ऐसी िै जैसी कक साक्षी के रूप में य के आचरण से, ि कक उसके आगे, प्रकट िोती िै ।
(ि) ककन्तु यकद क किता िै “जो कु छ य िे उस हवचारण में दृढ़तापूवतक किा िै, मैं उस पर हवश्‍वास ििीं करता क्योंकक मैं जािता हं
कक वि सत्यवाकदता से रहित व्यहक्‍त िै,” तो क इस अपवाद के अन्तगतत ििीं आता िै, क्योंकक वि राय जो वि य के िीि के सम्बन्ि में
अहभव्यक्‍त करता िै, ऐसी राय िै, जो साक्षी के रूप में य के आचरण पर आिाररत ििीं िै ।
छठा अपवाद—िोककृ हत के गुणागुण—ककसी ऐसी कृ हत के गुणागुण के हवषय में, हजसको उसके कतात िे िोक के हिणतय के हिए
रिा िो, या उसके कतात के िीि के हवषय में, जिां तक कक उसका िीि ऐसी कृ हत में प्रकट िोता िो, ि कक उसके आगे, कोई राय
सद्‍भावपूवतक अहभव्यक्‍त करिा माििाहि ििीं िै ।
स्पष्‍टीकरण—कोई कृ हत िोक के हिणतय के हिए अहभव्यक्‍त रूप से या कतात की ओर से ककए गए ऐसे कायों द्वारा, हजिसे िोक के
हिणतय के हिए ऐसा रिा जािा हववहक्षत िो, रिी जा सकती िै ।
दृष्ट‍ ांत
(क) जो व्यहक्‍त पुस्तक प्रकाहित करता िै वि उस पुस्तक को िोक के हिणतय के हिए रिता िै ।
(ि) वि व्यहक्‍त, जो िोक के समक्ष भाषण देता िै, उस भाषण को िोक के हिणतय के हिए रिता िै ।
(ग) वि अहभिेता या गायक, जो ककसी िोक रं गमंच पर आता िै, अपिे अहभिय या गायि को िोक के हिणतय के हिए रिता िै ।
(घ) क, य द्वारा प्रकाहित एक पुस्तक के संबंि में किता िै “य की पुस्तक मूिततापूणत िै, य अवश्य कोई दुबति पुरुष िोिा चाहिए । य
की पुस्तक अहिष्‍टतापूणत िै, य अवश्य िी अपहवत्र हवचारों का व्यहक्‍त िोिा चाहिए” । यकद क ऐसा सद्‍भावपूवतक किता िै, तो वि इस
अपवाद के अन्तगतत आता िै, क्योंकक वि राय जो वि, य के हवषय में अहभव्यक्‍त करता िै, य के िीि से विीं तक, ि कक उससे आगे
सम्बन्ि रिती िै जिां तक कक य का िीि उसकी पुस्तक से प्रकट िोता िै ।
(ङ) ककन्तु यकद क किता िै “मुझे इस बात का आश्‍चयत ििीं िै कक य की पुस्तक मूिततापूणत तथा अहिष्‍टतापूणत िै क्योंकक वि एक
दुबति और िम्पट व्यहक्‍त िै” । क इस अपवाद के अन्तगतत ििीं आता क्योंकक वि राय, जो कक वि य के िीि के हवषय में अहभव्यक्‍त करता
िै, ऐसी राय िै जो य की पुस्तक पर आिाररत ििीं िै ।
97

सातवां अपवाद—ककसी अन्य व्यहक्‍त के ऊपर हवहिपूणत प्राहिकार रििे वािे व्यहक्‍त द्वारा सद्‍भावपूवतक की गई पररहिन्दा—
ककसी ऐसे व्यहक्‍त द्वारा, जो ककसी अन्य व्यहक्‍त के ऊपर कोई ऐसा प्राहिकार रिता िो, जो या तो हवहि द्वारा प्रदत्त िो या उस अन्य
व्यहक्‍त के साथ की गई ककसी हवहिपूणत संहवदा से उद्भूत िो, ऐसे हवषयों में, हजिसे कक ऐसा हवहिपूणत प्राहिकार सम्बहन्ित िो, उस अन्य
व्यहक्‍त के आचरण की सद्‍भावपूवतक की गई कोई पररहिन्दा माििाहि ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
ककसी साक्षी के आचरण की या न्यायािय के ककसी आकिसर के आचरण की सद्‍भावपूवतक पररहिन्दा करिे वािा कोई न्यायािीि,
उि व्यहक्‍तयों की, जो उसके आदेिों के अिीि िै, सद्‍भावपूवतक पररहिन्दा करिे वािा कोई हवभागाध्यक्ष, अन्य हििुओं की उपहस्थहत में
ककसी हििु की सद्‍भावपूवतक पररहिन्दा करिे वािा हपता या माता, अन्य हवद्यार्थतयों की उपहस्थहत में ककसी हवद्याथी की सद्‍भावपूवतक
पररहिन्दा करिे वािा हिक्षक, हजसे हवद्याथी के माता-हपता के प्राहिकार प्राप्‍त िैं, सेवा में हिहथिता के हिए सेवक की सद्‍भावपूवतक
पररहिन्दा करिे वािा स्वामी, अपिे बैंक के रोकह़िए की, ऐसे रोकह़िए के रूप में ऐसे रोकह़िए के आचरण के हिए, सद्‍भावपूवतक
पररहिन्दा करिे वािा कोई बैंककार इस अपवाद के अन्तगतत आते िैं ।
आठवां अपवाद—प्राहिकृ त व्यहक्‍त के समक्ष सद्‍भावपूवतक अहभयोग िगािा—ककसी व्यहक्‍त के हवरुद्ध कोई अहभयोग ऐसे
व्यहक्‍तयों में से ककसी व्यहक्‍त के समक्ष सद्‍भावपूवतक िगािा, जो उस व्यहक्‍त के ऊपर अहभयोग की हवषय-वस्तु के सम्बन्ि में हवहिपूणत
प्राहिकार रिते िों, माििाहि ििीं िै ।
दृष्ट‍ ांत
यकद क एक महजस्रेट के समक्ष य पर सद्‍भावपूवतक अहभयोग िगाता िै, यकद क एक सेवक य के आचरण के सम्बन्ि में य के माहिक
से सद्‍भावपूवतक हिकायत करता िै ; यकद क एक हििु य के सम्बन्ि में य के हपता से सद्‍भावपूवतक हिकायत करता िै ; तो क इस अपवाद
के अन्तगतत आता िै ।
िौवां अपवाद—अपिे या अन्य के हितों की संरक्षा के हिए ककसी व्यहक्‍त द्वारा सद्भ
‍ ावपूवक
त िगाया गया िांछि—ककसी अन्य के
िीि पर िांछि िगािा माििाहि ििीं िै, परन्तु यि तब जबकक उसे िगािे वािे व्यहक्‍त के या ककसी अन्य व्यहक्‍त के हित की संरक्षा के
हिए, या िोक क्याण के हिए, वि िांछि सद्‍भावपूवतक िगाया गया िो ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क एक दुकािदार िै । वि ि से, जो उसके कारबार का प्रबन्ि करता िै, किता िै, “य को कु छ मत बेचिा जब तक कक वि तुम्िें
िकद िि ि दे दे, क्योंकक उसकी ईमािदारी के बारे में मेरी राय अच्छी ििीं िै”। यकद उसिे य पर यि िांछि अपिे हितों की संरक्षा के
हिए सद्‍भावपूवतक िगाया िै, तो क इस अपवाद के अन्तगतत आता िै ।
(ि) क, एक महजस्रेट अपिे वररष्‍ठ आकिसर को ररपोटत देते हुए, य के िीि पर िांछि िगाता िै ।‍ यिां, यकद वि िांछि
सद्‍भावपूवतक और िोक क्याण के हिए िगाया गया िै, तो क इस अपवाद के अन्तगतत आता िै ।
दसवां अपवाद—साविािी, जो उस व्यहक्‍त की भिाई के हिए, हजसे कक वि दी गई िै या िोक क्याण के हिए आिहयत िै—एक
व्यहक्‍त को दूसरे व्यहक्‍त के हवरुद्ध सद्‍भावपूवतक साविाि करिा माििाहि ििीं िै, परन्तु यि तब जब कक ऐसी साविािी उस व्यहक्‍त की
भिाई के हिए, हजसे वि दी गई िो, या ककसी ऐसे व्यहक्‍त की भिाई के हिए, हजससे वि व्यहक्‍त हितबद्ध िो, या िोक क्याण के हिए
आिहयत िो ।
500. माििाहि के हिए दण्ड—जो कोई ककसी अन्य व्यहक्‍त की माििाहि करे गा, वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत
तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
501. माििाहिकारक जािी हुई बात को मुकरत या उत्कीणत करिा—जो कोई ककसी बात को यि जािते हुए या हवश्‍वास करिे का
अच्छा कारण रिते हुए कक ऐसी बात ककसी व्यहक्‍त के हिए माििाहिकारक िै, मुकरत करे गा, या उत्कीणत करे गा, वि सादा कारावास से,
हजसकी अवहि दो वषत तक िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
502. माििाहिकारक हवषय रििे वािे मुकरत या उत्कीणत पदाथत का बेचिा—जो कोई ककसी मुकरत या उत्कीणत पदाथत को, हजसमें
माििाहिकारक हवषय अन्तर्वतष्‍ट िै, यि जािते हुए कक उसमें ऐसा हवषय अन्तर्वतष्‍ट िै, बेचेगा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा, वि सादा
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
अध्याय 22

आपराहिक अहभत्रास, अपमाि और क्षोभ के हवषय में


503. आपराहिक अहभत्रास—जो कोई ककसी अन्य व्यहक्‍त के िरीर, खयाहत या सम्पहत्त को या ककसी ऐसे व्यहक्‍त के िरीर या
खयाहत को, हजससे कक वि व्यहक्‍त हितबद्ध िो कोई क्षहत करिे की िमकी उस अन्य व्यहक्‍त को इस आिय से देता िै कक उसे संत्रास काररत
ककया जाए, या उससे ऐसी िमकी के हिष्पादि का पररवजति करिे के सािि स्वरूप कोई ऐसा कायत कराया जाए, हजसे करिे के हिए वि
वैि रूप से आबद्ध ि िो, या ककसी ऐसे कायत को करिे का िोप कराया जाए, हजसे करिे के हिए वि वैि रूप से िकदार िो, वि
आपराहिक अहभत्रास करता िै ।
98

स्पष्‍टीकरण—ककसी ऐसे मृत व्यहक्‍त की खयाहत को क्षहत करिे की िमकी हजससे वि व्यहक्‍त, हजसे िमकी दी गई िै, हितबद्ध िो,
इस िारा के अन्तगतत आता िै ।
दृष्ट‍ ांत
हसहवि वाद चिािे से उपरत रििे के हिए ि को उत्‍प्रेररत करिे के प्रयोजि से ि के घर को जिािे की िमकी क देता िै । क
आपराहिक अहभत्रास का दोषी िै ।
504. िोकिांहत भंग करािे को प्रकोहपत करिे के आिय से सािय अपमाि—जो कोई ककसी व्यहक्‍त को सािय अपमाहित करे गा
और तद्‍द्वारा उस व्यहक्‍त को इस आिय से, या यि सम्भाव्य जािते हुए, प्रकोहपत करे गा कक ऐसे प्रकोपि से वि िोक िाहन्त भंग या कोई
अन्य अपराि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों
से, दहण्डत ककया जाएगा ।
1
[505. िोक ररहष्‍टकारक वक्‍तव्य—2[(1)] जो कोई ककसी कथि, जिश्रुहत या ररपोटत की—
(क) इस आिय से कक, या हजससे यि सम्भाव्य िो कक, 3[भारत की] सेिा, 4[िौसेिा या वायुसेिा] का कोई आकिसर, सैहिक,
5
[िाहवक या वायुसैहिक] हवरोि करे या अन्यथा वि अपिे उस िाते, अपिे कततव्य की अविेििा करे या उसके पािि में असिि
रिे, अथवा
(ि) इस आिय से कक, या हजससे यि सम्भाव्य िो कक, िोक या िोक के ककसी भाग को ऐसा भय या संत्रास काररत िो
हजससे कोई व्यहक्‍त राज्य के हवरुद्ध या िोक-प्रिाहन्त के हवरुद्ध अपराि करिे के हिए उत्‍प्रेररत िो, अथवा
(ग) इस आिय से कक, या हजससे यि सम्भाव्य िो कक, उससे व्यहक्‍तयों का कोई वगत या समुदाय ककसी दूसरे वगत या समुदाय
के हवरुद्ध अपराि करिे के हिए उद्दीप्‍त ककया जाए,
रचेगा, प्रकाहित करे गा या पररचाहित करे गा, वि कारावास से, जो 6[तीि वषत] तक का िो सके गा, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत
ककया जाएगा ।
7
[(2) हवहभन्‍ि वगों में ित्रुता, घृणा या वैमिस्य पैदा या संप्रवर्ततत करिे वािे कथि—जो कोई जिश्रुहत या संत्रासकारी समाचार
अन्तर्वतष्‍ट करिे वािे ककसी कथि या ररपोटत को, इस आिय से कक, या हजससे यि संभाव्य िो कक, हवहभन्‍ि िार्मतक, मूिवंिीय, भाषायी
या प्रादेहिक समूिों या जाहतयों या समुदायों के बीच ित्रुता, घृणा या वैमिस्य की भाविाएं, िमत, मूिवंि, जन्म-स्थाि, हिवास-स्थाि,
भाषा, जाहत या समुदाय के आिारों पर या अन्य ककसी भी आिार पर पैदा या संप्रवर्ततत िो, रचेगा, प्रकाहित करे गा या पररचाहित
करे गा, वि कारावास से, जो तीि वषत तक का िो सके गा, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
(3) पूजा के स्थाि आकद में ककया गया उपिारा (2) के अिीि अपराि—जो कोई उपिारा (2) में हवहिर्दतष्‍ट अपराि ककसी पूजा के
स्थाि में या ककसी जमाव में, जो िार्मतक पूजा या िार्मतक कमत करिे में िगा हुआ िो, करे गा, वि कारावास से, जो पांच वषत तक का िो
सके गा, दंहडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।]
अपवाद—ऐसा कोई कथि, जिश्रुहत या ररपोटत इस िारा के अथत के अन्तगतत अपराि की कोरट में ििीं आती, जब उसे रचिे वािे,
प्रकाहित करिे वािे या पररचाहित करिे वािे व्यहक्‍त के पास इस हवश्‍वास के हिए युहक्‍तयुक्‍त आिार िो कक ऐसा कथि, जिश्रुहत या
ररपोटत सत्य िै और 8[वि उसे सद्‍भावपूवतक तथा पूवोक्‍त जैसे ककसी आिय के हबिा] रचता िै, प्रकाहित करता िै या पररचाहित
करता िै ।
506. आपराहिक अहभत्रास के हिए दण्ड—जो कोई आपराहिक अहभत्रास का अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
यकद िमकी मृत्यु या घोर उपिहत इत्याकद काररत करिे की िो—तथा यकद िमकी मृत्यु या घोर उपिहत काररत करिे की, या अहग्‍ि
द्वारा ककसी सम्पहत्त का िाि काररत करिे की या मृत्यु दण्ड से या 9[आजीवि कारावास] से, या सात वषत की अवहि तक के कारावास से
दण्डिीय अपराि काररत करिे की, या ककसी स्‍त्री पर असहतत्व का िांछि िगािे की िो ; तो वि दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से,
हजसकी अवहि सात वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत जाएगा ।

1
1898 के ‍अहिहियम‍सं० 4 की‍िारा‍6 द्वारा‍मूि‍िारा‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
2
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍3 द्वारा‍िारा‍505 को‍उसकी‍उपिारा‍(1) के ‍रूप‍में‍पुि:संखयांककत‍ककया‍गया‍।
3
हवहि‍अिुकूिि‍आदेि, 1950 द्वारा‍“िर‍मजेस्टी‍की‍या‍इम्पीररयि‍सर्वतस‍ट्रूप्स”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।‍“मजेस्टी”‍िब्द‍के ‍पश्‍चात्व
‍ ती‍‍“या‍रायि‍इं हडयि‍मैररि‍
में”‍िब्दों‍का‍1934 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍द्वारा‍िोप‍ककया‍गया‍था‍।
4
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसैिा”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
5
1927 के ‍अहिहियम‍सं० 10 की‍िारा‍2 और‍अिुसूची‍1 द्वारा‍“या‍िौसैहिक”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
6
1961 के ‍अहिहियम‍सं० 41 की‍िारा‍4 द्वारा‍“दो‍वषत”‍‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
7
1969 के ‍अहिहियम‍सं० 35 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंतःस्थाहपत‍।
8
1969 के ‍अहिहियम‍सं०‍35 की‍िारा‍3 द्वारा‍अंत:स्‍थाहपत‍।
9
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍‍।
99

507. अिाम संसचू िा द्वारा आपराहिक अहभत्रास—जो कोई अिाम संसूचिा द्वारा या उस व्यहक्‍त का, हजसिे िमकी दी िो, िाम
या हिवास-स्थाि हछपािे की पूवातविािी करके आपराहिक अहभत्रास का अपराि करे गा, वि पूवतवती अंहतम िारा द्वारा उस‍अपराि के
हिए उपबहन्ित दण्ड के अहतररक्‍त, दोिों में से ककसी भांहत के कारावास से, हजसकी अवहि दो वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया
जाएगा ।
508. व्यहक्‍त को यि हवश्‍वास करिे के हिए उत्‍प्ररे रत करके कक वि दैवी अप्रसाद का भाजि िोगा कराया गया कायत—जो कोई
ककसी व्यहक्‍त को यि हवश्‍वास करिे के हिए उत्‍प्रेररत करके , या उत्‍प्ररे रत करिे का प्रयत्‍ि करके , कक यकद वि उस बात को ि करे गा, हजसे
उससे करािा अपरािी का उद्देश्य िो, या यकद वि उस बात को करे गा हजसका उससे िोप करािा अपरािी का उद्देश्य िो, तो वि या कोई
व्यहक्‍त, हजससे वि हितबद्ध िै, अपरािी के ककसी कायत से दैवी अप्रसाद का भाजि िो जाएगा, या बिा कदया जाएगा, स्वेच्छया उस
व्यहक्‍त से कोई ऐसी बात करवाएगा या करवािे का प्रयत्‍ि करे गा, हजसे करिे के हिए वि वैि रूप से आबद्ध ि िो, या ककसी ऐसी बात के
करिे का िोप करवाएगा या करवािे का प्रयत्‍ि करे गा, हजसे करिे के हिए वि वैि रूप से िकदार िो, वि दोिों में से ककसी भांहत के
कारावास से, हजसकी अवहि एक वषत तक की िो सके गी, या जुमातिे से, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।
दृष्ट‍ ांत
(क) क, यि हवश्‍वास करािे के आिय से य के द्वार पर िरिा देता िै कक इस प्रकार िरिा देिे से वि य को दैवी अप्रसाद का भाजि
बिा रिा िै । क िे इस िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
(ि) क, य को िमकी देता िै कक यकद य अमुक कायत ििीं करे गा, तो क अपिे बच्‍चों में से ककसी एक का वि ऐसी पररहस्थहतयों में
कर डािेगा हजससे ऐसे वि करिे के पररणामस्वरूप यि हवश्‍वास ककया जाए, कक य दैवी अप्रसाद का भाजि बिा कदया गया िै । क िे इस
िारा में पररभाहषत अपराि ककया िै ।
509. िब्द, अंगहवक्षेप या कायत जो ककसी स्‍त्री की िज्‍जा का अिादर करिे के हिए आिहयत िै—जो कोई ककसी स्‍त्री की िज्‍जा का
अिादर करिे के आिय से कोई िब्द किेगा, कोई ध्वहि या अंगहवक्षेप करे गा, या कोई वस्तु प्रदर्ितत करे गा, इस आिय से कक ऐसी स्‍त्री
द्वारा ऐसा िब्द या ध्वहि सुिी जाए, या ऐसा अंगहवक्षेप या वस्तु देिी जाए, अथवा ऐसी स्‍त्री की एकान्तता का अहतक्रमण करे गा, ‍‍‍
1
[वि सादा कारावास से, हजसकी अवहि तीि वषत तक की िो सके गी, दहण्डत ककया जाएगा‍और‍जुमातिे‍से‍भी‍दंडिीय‍िोगा ।]
510. मत्त व्यहक्‍त द्वारा िोक स्थाि में अवचार—जो कोई मत्तता की िाित में ककसी िोक स्थाि में, या ककसी ऐसे स्थाि में, हजसमें
उसका प्रवेि करिा अहतचार िो, आएगा और विां इस प्रकार का आचरण करे गा हजससे ककसी व्यहक्‍त को क्षोभ िो, वि सादा कारावास
से, हजसकी अवहि चौबीस घंटे तक की िो सके गी, या जुमातिे से, जो दस रुपए तक का िो सके गा, या दोिों से, दंहडत ककया जाएगा ।
अध्याय 23

अपरािों को करिे के प्रयत्‍िों के हवषय में


511. आजीवि कारावास या अन्य कारावास से दण्डिीय अपरािों को करिे के प्रयत्‍ि करिे के हिए दण्ड—जो कोई इस संहिता
द्वारा [आजीवि कारावास] से या कारावास से दण्डिीय अपराि करिे का, या ऐसा अपराि काररत ककए जािे का प्रयत्‍ि करे गा, और ऐसे
2

प्रयत्‍ि में अपराि करिे की कदिा में कोई कायत करे गा, जिां कक ऐसे प्रयत्‍ि के दण्ड के हिए कोई अहभव्यक्‍त उपबन्ि इस संहिता द्वारा ििीं
ककया गया िै, विां वि 3[उस अपराि के हिए उपबहन्ित ककसी भांहत के कारावास से उस अवहि के हिए, जो, यथाहस्थहत, आजीवि
कारावास से आिे तक की या उस अपराि के हिए उपबहन्ित दीघततम अवहि के आिे तक की िो सके गी] या ऐसे जुमातिे से, जो उस
अपराि के हिए उपबहन्ित िै, या दोिों से, दहण्डत ककया जाएगा ।

दृष्ट‍ ांत
(क) क, एक सन्दूक तो़िकर िोिता िै और उसमें से कु छ आभूषण चुरािे का प्रयत्‍ि करता िै । सन्दूक इस प्रकार िोििे के पश्‍चात्
उसे ज्ञात िोता िै कक उसमें कोई आभूषण ििीं िै । उसिे चोरी करिे की कदिा में कायत ककया िै, और इसहिए, वि इस िारा के अिीि
दोषी िै ।
(ि) क, य की जेब में िाथ डािकर य की जेब से चुरािे का प्रयत्‍ि करता िै । य की जेब में कु छ ि िोिे के पररणामस्वरूप क अपिे
प्रयत्‍ि में असिि रिता िै । क इस िारा के अिीि दोषी िै ।

______

1
2013 के ‍अहिहियम‍सं० 13‍की‍िारा‍10 द्वारा‍प्रहतस्‍थाहपत‍।
2
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍“आजीवि‍हिवातसि”‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
3
1955 के ‍अहिहियम‍सं० 26 की‍िारा‍117 और‍अिुसूची‍द्वारा‍कहतपय‍िब्दों‍के ‍स्थाि‍पर‍प्रहतस्थाहपत‍।
100

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