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लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1951∗

(1951 का अिधिनयम संख्यांक 43)


[17 जुलाई, 1951]
संसद् के सदन� और हर एक राज्य के िवधान-मंडल के सदन या सदन� के िलए िनवार्चन� के
संचालन के िलए, उन सदन� क� सदस्यता के िलए अहर्ता� और िनहर्रता� के
िलए ऐसे िनवार्चन� म� या उनसे संसक्त/�ष्ट 1*** आचरण�
और अन्य अपराध� के , और ऐसे िनवार्चन�
से उद्भूत या संसक्त शंका� और
िववाद� के िलए उपबंध
करने के िलए
अिधिनयम

संसद् �ारा िनम्निलिखत �प म� यह अिधिनयिमत हो :—


भाग 1

�ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम—यह अिधिनयम लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1951 कहा जा सके गा ।

2. िनवर्चन—(1) इस अिधिनयम म�, जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—

(क) उस हर एक पद का, जो लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) क� धारा 2 म� या धारा 27 क�
उपधारा (1) म� प�रभािषत है �कं तु इस अिधिनयम म� प�रभािषत नह� है, वही अथर् होगा जो इस अिधिनयम म� है ;

(ख) “समुिचत �ािधकारी” से लोक सभा या राज्य सभा 2*** के िनवार्चन के संबंध म� के न्�ीय सरकार और राज्य क�
िवधान सभा या िवधान प�रषद् के िनवार्चन के संबंध म� राज्य सरकार अिभ�ेत है ;

[(खख) “मुख्य िनवार्चन आ�फसर” से लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) क� धारा 13क के अधीन
3

िनयुक्त आ�फसर अिभ�ेत है ;]

(ग) “�ष्ट आचरण” से धारा 123 4*** म� िविन�दर्ष्ट आचरण� म� से कोई भी आचरण अिभ�ेत है ;

[(गग) “िजला िनवार्चन आ�फसर” से लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) क� धारा 13कक के अधीन
5

पदािभिहत या नामिन�दर्ष्ट आ�फसर अिभ�ेत है ;]

(घ) “िनवार्चन” से संसद् के दोन� सदन� से �कसी म� के या 6*** 7*** �कसी राज्य के िवधान-मंडल के सदन या दोन�
सदन� म� से �कसी सदन के स्थान या स्थान� को भरने के िलए िनवार्चन अिभ�ेत है ;

[(ङ) “िनवार्चक” से �कसी िनवार्चन-क्षे� के संबंध म� वह �िक्त अिभ�ेत है िजसका नाम उस िनवार्चन-क्षे� के िलए
8

तत्समय �वृ� िनवार्चक नामावली म� �िवष्ट है और जो लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) क� धारा 16 म�
व�णर्त िनरहर्ता� म� से �कसी के अध्यधीन नह� है ;]

[(च) “राजनैितक दल” से भारत के �िष्टक नाग�रक� का ऐसा संगम या िनकाय अिभ�ेत है जो धारा 29क के अधीन
9

राजनैितक दल के �प म� िनवार्चन आयोग के पास रिजस्�ीकृ त है ;]

(छ) “िविहत” इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम� �ारा िविहत अिभ�ेत है ;


1963 के िविनयम सं० क� धारा और अनुसूची �ारा दादरा और नागर हवेली पर िवस्ता�रत �कया गया ।
1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 2 �ारा “और अवैध” शब्द� का लोप �कया गया ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 103 क� धारा 66 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा अंतःस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा “या धारा 124” शब्द� और अंक� का लोप �कया गया ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 15 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
6
2019 के अिधिनयम सं० 34 क� धारा 95 और पांचवी अनुसूची �ारा (31.10.2019 से) “जम्मू-कश्मीर राज्य से िभन्न” शब्द� का लोप �कया गया ।
7
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 14 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा खंड (ङ) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
खंड (च), िजसका 1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा लोप �कया गया था, 1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 3 �ारा (15-6-1989 से) अंतःस्थािपत ।
2

[(ज) “लोक अवकाश �दन” से कोई ऐसा �दन अिभ�ेत है जो पर�ाम्य िलखत अिधिनयम, 1881 (1881 का 26) क�
1

धारा 25 के �योजन� के िलए लोक अवकाश �दन है ;]


2
* * * * * * *
3
* * * * * * *

[(झ)] “हस्ताक्षर करने” से ऐसे �िक्त के संबंध म�, जो अपना नाम िलखने म� असमथर् है, ऐसी रीित म� अिध�मािणत करना
4

अिभ�ेत है जैसी िविहत क� जाए ।


5
* * * * * * *
6
* * * * * * *

(2) 7*** संसदीय िनवार्चन-क्षे�, सभा िनवार्चन-क्षे�, प�रषद् िनवार्चन-क्षे�, स्थानीय �ािधकारी िनवार्चन-क्षे�, स्नातक
िनवार्चन-क्षे� और िशक्षक िनवार्चन-क्षे� म� से हर एक इस अिधिनयम के �योजन� के िलए िविभन्न वगर् का िनवार्चन-क्षे�
समझा जाएगा ।

(3) इस अिधिनयम के अधीन ऐसी �कसी अपेक्षा का, �क �कसी �ािधकारी �ारा िनकाली गई या बनाई गई अिधसूचना, आदेश,
िनयम, घोषणा, सूचना या सूची को शासक�य राजप� म� �कािशत �कया जाए, अथर् जब तक �क इस अिधिनयम म� अन्यथा अिभ�क्त
�प से उपबंिधत न हो, ऐसे लगाया जाएगा मानो यह अपेक्षा है �क वह अिधसूचना, आदेश, िनयम, घोषणा, सूचना या सूची—

(क) जहां �क वह के न्�ीय सरकार �ारा िनकाली गई या बनाई गई है, वहां भारत के राजप� म� �कािशत क� जाए ;
(ख) जहां �क वह राज्य सरकार �ारा िनकाली गई या बनाई गई है, वहां राज्य के शासक�य राजप� म� �कािशत क�
जाए ; तथा
(ग) जहां �क वह �कसी अन्य �ािधकारी �ारा िनकाली गई या बनाई गई है, वहां य�द वह संसद् के दोन� सदन� म� से
�कसी के िलए िनवार्चन या उसक� सदस्यता के संबंध म� है, तो भारत के राजप� म� और य�द वह �कसी राज्य के िवधान-मंडल
के सदन या दोन� म� से �कसी सदन के िलए िनवार्चन 7*** या उसक� सदस्यता के संबंध म� है, तो उस राज्य के शासक�य
राजप� म� �कािशत क� जाए ।
(4) जहां �क इस अिधिनयम के उपबंध� म� से �कसी के अधीन कोई बात िविहत क� जानी है वहां िविभन्न मामल� या मामल� के
वग� के िलए िविभन्न उपबंध �कए जा सक� गे ।
8
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18 [[ *
9 8 10
* * * * * *]]
8
* * * * * * *
भाग 2

20
11
[अहर्ताएं और िनरहर्ताएं]
अध्याय 1—संसद् क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं
[3. राज्य सभा क� सदस्यता के िलए अहर्ता—राज्य सभा म�, �कसी राज्य 13*** या संघ राज्यक्षे� के �ितिनिध के �प म� चुने
21
12

जाने के िलए कोई �िक्त तब तक अ�हर्त न होगा जब तक �क वह 14[भारत म�] संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ।]

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 15 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा (ज) और (झ) खंड� का लोप �कया गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा खंड (ञ) को खंड (ज) के �प म� पुनःअक्षरां�कत और िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा (ट) और (ठ) खंड� को (झ) और (ट) के �प म� पुनःअक्षरां�कत �कया गया ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा अंतःस्थािपत खंड (ञ) को िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा लोप �कया गया ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 15 �ारा खंड (ट) का (14-12-1966 से) लोप �कया गया ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 103 क� धारा 66 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 3 �ारा (5) और (7) उपधारा� का लोप �कया गया और उपधारा (6) को उपधारा (5) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
9
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 15 �ारा उपधारा (5) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
10
2019 के अिधिनयम सं० 34 क� धारा 95 और पांचवी अनुसूची �ारा (31.10.2019 से) उपधारा (5) का लोप �कया गया ।
11
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 16 �ारा (14-12-1966 से) पूवर्वत� शीषर्क के स्थान पर �ितस्थािपत ।
12
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा धारा 3 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
13
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 17 �ारा (14-12-1966 से) कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
14
2003 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 2 �ारा �ितस्थािपत ।
3

4. लोक सभा क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं—लोक सभा 1*** म� �कसी स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए कोई �िक्त
तब तक अ�हर्त न होगा जब तक �क—

(क) अनुसूिचत जाितय� के िलए �कसी राज्य म� आरिक्षत स्थान क� दशा म�, वह उस राज्य क� या �कसी अन्य राज्य
क� अनुसूिचत जाितय� म� से �कसी का सदस्य न हो और �कसी संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ;

(ख) (असम के स्वशासी िजल� म� क� अनुसूिचत जनजाितय� से िभन्न) अनुसूिचत जनजाितय� के िलए �कसी राज्य म�
आरिक्षत स्थान क� दशा म� वह (असम के जनजाित क्षे�� का अपवजर्न करके ) उस राज्य क� या �कसी अन्य राज्य क� अनुसिू चत
जनजाितय� म� से �कसी का सदस्य न हो और �कसी संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ;

(ग) असम के स्वशासी िजल� म� क� अनुसूिचत जनजाितय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, वह उन अनुसूिचत
जनजाितय� म� से �कसी का सदस्य न हो और उस संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िजसम� ऐसा स्थान आरिक्षत है या �कसी ऐसे
स्वशासी िजले को समािवष्ट करने वाले अन्य संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ; 2***

[(गग) 4[लक्ष�ीप] के संघ राज्यक्षे� म� अनुसूिचत जनजाितय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, वह उन
26
3

अनुसूिचत जनजाितय� म� से �कसी का सदस्य न हो और उस संघ राज्यक्षे� के संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न
हो; 5***]

[(गगग) िसिक्कम राज्य को आबंटन म� िमले स्थान क� दशा म�, वह िसिक्कम के संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए
29
6

िनवार्चक न हो, तथा ]

(घ) �कसी अन्य स्थान क� दशा म�, वह �कसी संसदीय िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ।
अध्याय 2—राज्य िवधान-मंडल� क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं
5. िवधान सभा क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं—�कसी राज्य क� िवधान सभा म� के स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए
कोई �िक्त तब तक अ�हर्त न होगा जब तक �क—
(क) उस राज्य क� अनुसूिचत जाितय� के िलए या अनुसूिचत जनजाितय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, वह,
यथािस्थित, उन जाितय� म� से या उन जनजाितय� म� से �कसी का सदस्य न हो और उस राज्य म� के �कसी सभा िनवार्चन-क्षे�
के िलए िनवार्चक न हो ;
(ख) असम 7*** के �कसी स्वशासी िजले के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, वह 8[�कसी स्वशासी िजले क�
अनुसूिचत जनजाित] का सदस्य न हो और उन सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए, िजसम� उस िजले के िलए ऐसा स्थान या कोई अन्य
स्थान आरिक्षत है िनवार्चक न हो, तथा
(ग) �कसी अन्य स्थान क� दशा म� वह उस राज्य म� के �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो :
[परन्तु अनुच्छेद 371 के खण्ड (2) म� िन�दर्ष्ट कालाविध के िलए कोई �िक्त तब तक नागालैण्ड क� िवधान सभा म�
9

ट् य◌ूनसांग िजले को आबं�टत �कसी स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए अ�हर्त नह� होगा जब तक �क वह उस अनुच्छेद म� िन�दर्ष्ट
�ादेिशक प�रषद् का सदस्य न हो ।]
[5क. िसिक्कम क� िवधान सभा क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं— 11[(1)] धारा 5 म� �कसी बात के होते �ए भी, िसिक्कम क�
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10

िवधान सभा म� (जो संिवधान के अधीन उस राज्य क� सम्यक् त �प से ग�ठत िवधान सभा समझी जाती है) स्थान को भरने के िलए चुने
जाने के िलए कोई �िक्त तब तक अ�हर्त नह� होगा जब तक �क वह—
(क) भू�टया-लेप्चा उद्भव के िसिक्किमय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, या तो भू�टया या लेप्चा उद्भव का
�िक्त न हो और राज्य म� �कसी ऐसे सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए, जो संघ� के िलए आरिक्षत िनवार्चन-क्षे� से िभन्न है, िनवार्चक
न हो ;

1
1975 के अिधिनयम सं० 29 क� धारा 12 �ारा (15-8-1975 से) कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 18 �ारा (14-12-1966 से) “और” शब्द का लोप �कया गया ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 18 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
4
लक्ष�ीप (िमिनकाय और अमीनदीवी �ीप समूह नाम प�रवतर्न) िविध अनुकूलन आदेश, 1974 �ारा (1-11-1973 से) �ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975 से) “और” शब्द का लोप �कया गया ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975 से) अन्तःस्थािपत ।
7
पूव��र क्षे� (पुनगर्ठन) (संघ िवषय� पर िविध अनुकूलन) आदेश, 1974 �ारा (21-1-1972 से) कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
8
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 19 �ारा (14-12-1966 से) “उस िजले क� अनुसूिचत जनजाित” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1962 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 11 �ारा अन्तःस्थािपत ।
10
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975 से) अन्तःस्थािपत ।
11
1980 के अिधिनयम सं० 8 क� धारा 3 �ारा (1-9-1979 से) धारा 5क को उसक� उपधारा (1) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4

(ख) नेपाली उद्भव के िसिक्किमय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, नेपाली उद्भव का �िक्त न हो और राज्य
म� �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ;
(ग) अनुसिू चत जाितय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, �र�ज�टेशन आफ िसिक्कम सब्जेक्ट्स ऐक्ट, 1974 म�
िविन�दर्ष्ट जाितय� म� से �कसी जाित का सदस्य न हो और राज्य म� �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ; तथा
(घ) संघ� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म� संघ िनवार्चन-क्षे� का िनवार्चक न हो ।]
[(2) धारा 5 म� �कसी बात के होते �ए भी, िसिक्कम राज्य क� िवधान सभा म�, जो लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम,
35
1

1980 के �ारम्भ के पश्चात् �कसी भी समय ग�ठत क� जानी है, स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए कोई �िक्त तब तक अ�हर्त नह�
होगा जब तक �क वह—
(क) भू�टया-लेप्चा उद्भव के िसिक्किमय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, या तो भू�टया या लेप्चा उद्भव का
�िक्त न हो और राज्य म� �कसी ऐसे सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए, जो संघ� के िलए आरिक्षत िनवार्चन-क्षे� से िभन्न है,
िनवार्चक न हो;
(ख) अनुसूिचत जाितय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, िसिक्कम राज्य म� उन जाितय� म� से �कसी का सदस्य न
हो और राज्य म� �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो;
(ग) संघ� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, संघ िनवार्चन-क्षे� का िनवार्चक न हो ;
(घ) �कसी अन्य स्थान क� दशा म�, राज्य म� के �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा म�, “भू�टया” के अन्तगर्त चूिम्बपा, डोप्थापा, दकपा, कगाते, शेरपा, ितब्बती, टोमोपा और योल्मो
भी है ।]
6. िवधान प�रषद् क� सदस्यता के िलए अहर्ताएं—(1) �कसी राज्य क� िवधान प�रषद् म� के उस स्थान को भरने के िलए, जो
िनवार्चन �ारा भरा जाना है, चुने जाने के िलए कोई �िक्त तब तक अ�हर्त न होगा जब तक �क वह उस राज्य म� के �कसी सभा िनवार्चन-
क्षे� के िलए िनवार्चक न हो ।
(2) �कसी राज्य क� िवधान प�रषद् म� के उस स्थान को भरने के िलए, जो राज्यपाल 2*** �ारा नामिनद�शन �ारा भरा जाना
है, चुने जाने के िलए कोई �िक्त तब तक अ�हर्त न होगा जब तक �क वह उस राज्य म� मामूली तौर से िनवासी न हो ।
37
3
[अध्याय 3—संसद् और राज्य िवधान-मंडल� क� सदस्यता के िलए िनरहर्ताएं
7. प�रभाषाएं—इस अध्याय म�—
(क) “समुिचत सरकार” से संसद् के दोन� सदन� म� से �कसी का सदस्य चुने जाने या सदस्य होने या रहने के िलए
�कसी िनरहर्ता के सम्बन्ध म� के न्�ीय सरकार तथा �कसी राज्य क� िवधान सभा या िवधान प�रषद् का सदस्य चुने जाने या
सदस्य होने या रहने के िलए �कसी िनरहर्ता के सम्बन्ध म� वह राज्य सरकार अिभ�ेत है ;
(ख) “िनर�हर्त” से 4[इस अध्याय के उपबंध� के अधीन और न �क �कसी अन्य आधार पर] संसद् के दोन� सदन� से
�कसी का या �कसी राज्य क� िवधान सभा या िवधान प�रषद् का सदस्य चुने जाने और सदस्य होने या रहने के िलए िनर�हर्त
अिभ�ेत है ।
8. कितपय अपराध� के िलए दोषिसि� पर िनरहर्ता— 5[(1) िनम्निलिखत के अधीन दंडनीय �कसी अपराध के िलए िस�दोष
ठहराया गया �िक्त 6[जहां िस�दोष ठहराया गया �िक्त—
(i) के वल जुमार्ने से दंडा�दष्ट �कया जाता है, वहां ऐसी दोषिसि� क� तारीख से छह वषर् क� कालाविध के िलए
िनर�हर्त होगा ;
(ii) कारावास से दंडा�दष्ट �कया जाता है, वहां ऐसी दोषिसि� क� तारीख से िनर�हर्त होगा और उसके छोड़े जाने से
छह वषर् क� अित�रक्त कालाविध के िलए िनर�हर्त बना रहेगा], अथार्त् :—
(क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) क� धारा 153क (धमर्, मूलवंश, जन्म-स्थान, िनवास-स्थान,
भाषा, इत्या�द के आधार� पर िविभन्न समूह� के बीच श�ुता का सं�वतर्न और सौहा�र् बने रहने पर �ितकू ल �भाव
डालने वाले कायर् करने का अपराध) या धारा 171ङ (�रश्वत का अपराध) या धारा 171च (िनवार्चन� म� असम्यक् त

1
1980 के अिधिनयम सं० 8 क� धारा 3 �ारा (1-9-1979 से) अन्तःस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “यथािस्थित, या राज�मुख” शब्द� का लोप �कया गया ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 20 �ारा (14-12-1966 से) अध्याय 3 के स्थान पर �ितस्थािपत । पूवव
र् त� अध्याय 4 (10 और 11 धाराएं) का 1956 के अिधिनयम
सं० 103 क� धारा 66 �ारा िनरसन �कया गया था ।
4
2013 के अिधिनयम सं० 29 क� धारा 2 �ारा (10-7-2013 से) अंतःस्थािपत और इस संशोधन अिधिनयम क� धारा 4 �ारा सभी सम्यक् समय� पर िविधमान्य है ।
5
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 4 �ारा (15-3-1989 से) उपधारा (1) और (2) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
2003 के अिधिनयम सं० 9 क� धारा 2 �ारा (7-1-2003 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5

असर डालने या �ित�पण का अपराध) या धारा 376 क� उपधारा (1) या उपधारा (2) या धारा 376क या धारा
376ख या धारा 376ग या धारा 376घ (बलात्संग से संबंिधत अपराध), या धारा 498क (�कसी स्�ी के पित या पित
के नातेदार �ारा उसके �ित �ू रता करने का अपराध), या धारा 505 क� उपधारा (2) या उपधारा (3) या
(िविभन्न वग� म� श�ुता, घृणा या वैमनस्य पैदा या सं�व�तर्त करने वाले कथन अथवा �कसी पूजा के स्थान म� या
�कसी जमाव म�, जो धा�मर्क पूजा या धा�मर्क कमर् करने म� लगा �आ हो, ऐसा कथन करने से संबंिधत अपराध) ;
(ख) िसिवल अिधकार संरक्षण अिधिनयम, 1955 (1955 का 22) जो “अस्पृश्यता” का �चार और आचरण
करने और उससे उपजी �कसी िनय�ग्यता को लागू करने के िलए दंड का उपबंध करता है ; या
(ग) सीमाशुल्क अिधिनयम, 1962 (1962 का 52) (�ितिष� माल का आयात या िनयार्त करने का
अपराध) ; या
(घ) िविधिव�� ��याकलाप (िनवारण) अिधिनयम, 1967 (1967 का 37) क� धारा 10 से धारा 12 तक
(िविधिव�� घोिषत �कए गए �कसी संगम का सदस्य होने का अपराध, �कसी िविधिव�� संगम क� िनिधय� के
बरतने से संबंिधत अपराध या �कसी अिधसूिचत स्थान के संबंध म� �कए गए आदेश के उल्लंघन से संबंिधत
अपराध); या
(ङ) िवदेशी मु�ा (िविनयमन) अिधिनयम, 1973 (1973 का 46) ; या
(च) स्वापक ओषिध और मनः�भावी पदाथर् अिधिनयम, 1985 (1985 का 61) ; या
(छ) आतंकवादी और िवध्वंसकारी ��याकलाप (िनवारण) अिधिनयम, 1987 (1987 का 28) क� धारा 3
(आतंकवादी कायर् करने का अपराध) या धारा 4 (िवध्वंसकारी ��याकलाप करने का अपराध) ; या
(ज) धा�मर्क संस्था (दु�पयोग िनवारण) अिधिनयम, 1988 (1988 का 41) क� धारा 7 (धारा 3 से धारा 6
तक के उपबंध� के उल्लंघन का अपराध) ; या

(झ) इस अिधिनयम क� धारा 125 (िनवार्चन के संबंध म� वग� के बीच श�ुता सं�व�तर्त करने का अपराध)
या धारा 135 (मतदान के न्�� से मतप�� को हटाने का अपराध) या धारा 135क (बूथ� के बलात् �हण का अपराध)
या धारा 136 क� उपधारा (2) का खंड (क) (�कसी नामिनद�शन को कपटपूवर्क िव�िपत करने या कपटपूवर्क नष्ट
करने का अपराध) ; 1[या]

[(ञ) उपासना स्थल (िवशेष उपबंध) अिधिनयम, 1991 क� धारा 6 (�कसी उपासना स्थल के संप�रवतर्न
1

का अपराध)] ; 2[या]

[(ट) राष्�-गौरव अपमान-िनवारण अिधिनयम, 1971 (1971 का 69) क� धारा 2 (भारतीय राष्�ीय
43
3

ध्वज या भारत के संिवधान का अपमान करने का अपराध) या धारा 3 (राष्�गान के गायन को रोकने का अपराध)]
4
44 [; या]
4
[(ठ) सती (िनवारण) अिधिनयम, 1987 (1988 का 3) ; या

(ड) �ष्टाचार िनवारण अिधिनयम, 1988 (1988 का 49); या

(ढ) आंतकवाद िनवारण अिधिनयम, 2002 (2002 का 15) ।]

(2) कोई �िक्त जो—

(क) जमाखोरी या मुनाफाखोरी का िनवारण करने का उपबंध करने वाली �कसी िविध ; या

(ख) खा� या ओषिध के अपिम�ण से संबंिधत �कसी िविध ; या

(ग) दहेज �ितषेध अिधिनयम, 1961 (1961 का 28) के �कन्ही उपबंध� ; 5***
5
* * * * * * *

1
1991 के अिधिनयम सं० 42 क� धारा 8 �ारा (18-9-1991 से) अंतःस्थािपत ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 3 �ारा (1-8-1996 से) जोड़ा गया ।
3
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 3 �ारा (1-8-1996 से) अंतःस्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 9 क� धारा 2 �ारा (7-1-2003 से) अंतःस्थािपत ।
5
2003 के अिधिनयम सं० 9 क� धारा 2 �ारा “या” और खंड (घ) का लोप �कया गया ।
6

के उल्लंघन के िलए िस�दोष ठहराया गया है और छह मास से अन्यून के कारावास से दंडा�दष्ट �कया गया है, वह ऐसी दोषिसि� क�
तारीख से िनर�हर्त होगा और अपने छोड़े जाने से छह वषर् क� अित�रक्त कालाविध के िलए िनर�हर्त बना रहेगा ।

(3) कोई �िक्त जो [उपधारा (1) या उपधारा (2) म� िन�दर्ष्ट �कसी अपराध से िभन्न] �कसी अपराध के िलए िस�दोष
ठहराया गया है और दो वषर् से अन्यून के कारावास से दंडा�दष्ट �कया गया है, ऐसी दोषिसि� क� तारीख से िनर�हर्त होगा और उसे छोड़े
जाने से छह वषर् क� अित�रक्त कालाविध के िलए िनर�हर्त बना रहेगा ।]

[(4)] 2[ उपधारा (1), उपधारा (2) या उपधारा (3) म�] �कसी बात के होते �ए भी दोन� उपधारा� म� से �कसी के अधीन
46
1

िनरहर्ता उस �िक्त क� दशा म� जो दोषिसि� क� तारीख को संसद् का या राज्य के िवधान-मंडल का सदस्य है, तब तक �भावशील नह�
होगी जब तक उस तारीख से तीन मास न बीत गए ह�, अथवा, य�द उस कालाविध के भीतर उस दोषिसि� या दंडादेश क� बाबत अपील
या पुनरीक्षण के िलए आवेदन �कया गया है तो जब तक न्यायालय �ारा उस अपील या आवेदन का िनपटारा न हो गया हो ।

स्पष्टीकरण—इस धारा म�—


(क) “जमाखोरी या मुनाफाखोरी के िनवारण के िलए उपबंध करने वाली िविध” से कोई ऐसी िविध या िविध का बल
रखने वाला कोई ऐसा आदेश, िनयम या अिधसूचना अिभ�ेत है जो िनम्निलिखत के िलए उपबंध करती है—
(i) �कसी आवश्यक वस्तु के उत्पादन या िविनमार्ण का िविनयमन,
(ii) उस क�मत का िनयं�ण िजस पर कोई आवश्यक वस्तु खरीदी या बेची जा सके ,
(iii) �कसी आवश्यक वस्तु के अजर्न, कब्जे, भंडारकरण, प�रवहन, िवतरण, �यन, उपयोग या उपभोग
का िविनयमन,
(iv) �कसी ऐसी आवश्यक वस्तु के िवधारण का �ितषेध, जो मामूली तौर पर िव�य के िलए
रखा जाता है ;
(ख) “ओषिध” का वह अथर् है जो उसे ओषिध और �साधन साम�ी अिधिनयम, 1940 (1940 का 23) म�
समनु�दष्ट है ;
(ग) “आवश्यक वस्तु” का वह अथर् है जो उसे आवश्यक वस्तु अिधिनयम, 1955 (1955 का 10) म� समनु�दष्ट है ;
(घ) “खा�” का वह अथर् है जो उसे खा� अपिम�ण िनवारण अिधिनयम, 1954 (1954 का 37) म� समनु�दष्ट है ।
[8क. �ष्ट आचरण के िलए िनरहर्ता—(1) धारा 99 के अधीन �कसी आदेश �ारा �ष्ट आचरण के दोषी ठहराए गए �त्येक
48
3

�िक्त का मामला, 4[ऐसे आदेश के �भावशील होने क� तारीख से तीन मास क� अविध के भीतर यथाशक्य शी�,] ऐसे �ािधकारी �ारा,
िजसे के न्�ीय सरकार उस िनिम� िविन�दर्ष्ट करे , इस �श्न का अवधारण करने के िलए राष्�पित को �स्तुत �कया जाएगा �क क्या ऐसा
�िक्त िनर�हर्त �कया जाए और य�द �कया जाए तो �कतनी कालाविध के िलए :
परन्तु वह कालाविध िजसके िलए कोई �िक्त इस उपधारा के अधीन िनर�हर्त �कया जा सके गा, �कसी भी दशा म� उस तारीख
से छह वषर् से अिधक नह� होगी िजसको धारा 99 के अधीन उसके संबध
ं म� �कया गया आदेश �भावशील होता है ।
(2) कोई �िक्त जो इस अिधिनयम क� धारा 8क के अधीन, जैसी �क वह िनवार्चन िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1975
(1975 का 40) के आरम्भ के ठीक पहले थी, िनर�हर्त हो गया है, य�द ऐसी िनरहर्ता क� कालाविध समाप्त नह� हो गई है तो, उक्त
कालाविध के शेष भाग के िलए ऐसी िनरहर्ता के हटाए जाने के िलए राष्�पित को अज� �स्तुत कर सके गा ।
(3) उपधारा (1) म� व�णर्त �कसी �श्न या उपधारा (2) के अधीन �स्तुत क� गई �कसी अज� पर िविनश्चय देने से पूवर् राष्�पित
िनवार्चन आयोग से �कसी ऐसे �श्न और अज� पर राय लेगा और उस राय के अनुसार,कायर् करे गा ।]
9. �ष्टाचार या अभिक्त के िलए पदच्युत होने पर िनरहर्ता—(1) वह �िक्त, जो भारत सरकार के अधीन या �कसी राज्य क�
सरकार के अधीन पद धारण करते �ए �ष्टाचार के कारण या राज्य के �ित अभिक्त के कारण पदच्युत �कया गया है, ऐसी पदच्युित क�
तारीख से पांच वषर् क� कालाविध के िलए िनर�हर्त होगा ।
(2) उपधारा (1) के �योजन� के िलए िनवार्चन आयोग �ारा िनकाला गया इस भाव का �माणप� �क कोई �िक्त भारत
सरकार के अधीन या �कसी राज्य सरकार के अधीन पद धारण करते �ए �ष्टाचार के कारण या राज्य के �ित अभिक्त के कारण पदच्युत
�कया गया था या नह�, उस तथ्य का िनश्चायक सबूत होगा :

1
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 4 �ारा (15-3-1989 से) उपधारा (3) को उपधारा (4) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 4 �ारा (15-3-1989 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 2 �ारा धारा 8क के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 41 क� धारा 4 �ारा (1-2-2010 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7

परन्तु इस भाव का कोई भी �माणप� �क कोई �िक्त �ष्टाचार या राज्य के �ित अभिक्त के कारण पदच्युत �कया गया है,
तब तक नह� िनकाला जाएगा जब तक �क उक्त �िक्त को सुने जाने का अवसर न दे �दया गया हो ।
9क. सरकार के साथ क� गई संिवदा� आ�द के िलए िनरहर्ता—कोई भी �िक्त िनर�हर्त होगा य�द और जब तक कोई ऐसी
संिवदा िव�मान है जो उसने समुिचत सरकार के साथ अपने �ापार या कारबार के अनु�म म� उस सरकार को माल का �दाय करने के
िलए या उस सरकार �ारा उप�ांत �कन्ही संकम� के िनष्पादन के िलए क� है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन� के िलए, जहां �क कोई संिवदा उस �िक्त �ारा, िजसके �ारा वह समुिचत सरकार के साथ
क� गई थी, पूणत र् या िनष्पा�दत कर दी गई है, वहां उस संिवदा के बारे म� के वल इस तथ्य के कारण �क सरकार ने उस संिवदा के अपने
भाग का पूणर्तः या भागतः पालन नह� �कया है यह नह� समझा जाएगा �क वह िव�मान है ।
10. सरकारी कम्पनी के अधीन पद के िलए िनरहर्ता—कोई भी �िक्त िनर�हर्त होगा य�द और जब तक वह (सहकारी
सोसाइटी से िभन्न) �कसी ऐसी कम्पनी या िनगम का िजसक� पूंजी म� समुिचत सरकार का पच्चीस �ितशत से अन्यून अंश है, �बंध
अिभकतार्, �बंधक या सिचव है ।
[10क. िनवार्चन �य� का लेखा दािखल करने म� असफलता के कारण िनरहर्ता—य�द िनवार्चन आयोग का समाधान हो जाता
1

है �क कोई �िक्त—
(क) िनवार्चन �य� का लेखा उस समय के भीतर और उस रीित म� जैसी इस अिधिनयम के �ारा या अधीन अपेिक्षत
है, दािखल करने म� असफल रहा है ; तथा
(ख) उस असफलता के िलए कोई अच्छा कारण या न्यायोिचत्य नह� रखता है,
तो िनवार्चन आयोग शासक�य राजप� म� �कािशत आदेश �ारा उसको िनर�हर्त घोिषत करे गा और ऐसा �िक्त उस आदेश क� तारीख से
तीन वषर् क� कालाविध के िलए िनर�हर्त होगा ।
11. िनरहर्ता क� कालाविध को हटाना या कम करना—िनवार्चन आयोग उन कारण� के िलए, जो अिभिलिखत �कए जाएंगे इस
अध्याय के अधीन 2[(िसवाय धारा 8क) के अधीन,] क� �कसी िनरहर्ता को हटा सके गा या ऐसी �कसी िनरहर्ता क� कालाविध को कम कर
सके गा ।
अध्याय 4—मत देने के िलए िनरहर्ताएं
1
[11क. दोषिसि� और �ष्ट आचरण� से उद्भूत िनरहर्ता— 3[(1)] य�द कोई �िक्त इस अिधिनयम के �ारम्भ के पश्चात्—
*** भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) क� धारा 171ङ या धारा 171च अथवा इस अिधिनयम क� धारा 125 या
4

धारा 135 के अधीन या धारा 136 क� उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन दंडनीय �कसी अपराध का िस�दोष ठहराया गया है,
5
***
6
* * * * * *
तो वह, दोषिसि� क� तारीख से या उस तारीख से िजसको वह आदेश �भावशील होता है, छह वषर् क� कालाविध के िलए, �कसी भी
िनवार्चन म� मत देने से िनर�हर्त होगा ।
[(2) धारा 8 क� उपधारा (1) के अधीन राष्�पित के �कसी आदेश �ारा �कसी कालाविध के िलए िनर�हर्त �िक्त, �कसी
56
7

िनवार्चन म� मत देने से उसी कालाविध के िलए िनर�हर्त होगा ।


(3) �कसी �िक्त �ारा संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य क� िवधान सभा या िवधान प�रषद् का सदस्य चुने जाने और
सदस्य होने या रहने के िलए �कसी िनरहर्ता क� बाबत धारा 8क क� उपधारा (2) के अधीन �स्तुत क� गई �कसी अज� पर राष्�पित का
िविनश्चय, जहां तक हो सके इस अिधिनयम क� धारा 11क क� उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन, जैसा �क वह िनवार्चन िविध
(संशोधन) अिधिनयम, 1975 (1975 का 40) के �ारम्भ के ठीक पहले था, �कसी िनवार्चन म� मत देने के िलए उसके �ारा उपगत िनरहर्ता
क� बाबत, उसी �कार लागू होगा मानो ऐसा िविनश्चय मत देने के िलए उक्त िनरहर्ता क� बाबत िविनश्चय हो।]
[11ख. िनरहर्ता� का हटाया जाना—िनवार्चन आयोग उन कारण� के िलए, जो अिभिलिखत �कए जाएंग,े 8[धारा 11क क�
1

उपधारा (1) के अधीन �कसी िनरहर्ता] को हटा सके गा ।]

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 20 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 3 �ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 4 �ारा धारा 11क को उसक� उपधारा (1) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 38 क� धारा 3 और ि�तीय अनुसूची �ारा “(क)” अक्षर और कोष्ठक� का लोप �कया गया ।
5
1978 के अिधिनयम सं० 38 क� धारा 3 और ि�तीय अनुसूची �ारा “या” शब्द का लोप �कया गया।
6
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 4 �ारा खंड (ख) का लोप �कया गया ।
7
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 4 �ारा अन्तःस्थािपत ।
8
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 5 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8

1
[भाग 3

साधारण िनवार्चन� क� अिधसूचना


12. राज्य सभा के ि�वा�षर्क िनवार्चन के िलए अिधसूचना—राज्य सभा के उन सदस्य� के स्थान� को भरने के �योजन के िलए,
जो अपनी पदाविध के अवसान के पश्चात् िनवृ� हो रहे ह�, राष्�पित ऐसी तारीख या तारीख� को, िजसक� िसफा�रश िनवार्चन आयोग
�ारा क� जाए, भारत के राजप� म� �कािशत एक या अिधक अिधसूचना� �ारा हर एक संपृक्त राज्य को, यथािस्थित, िवधान सभा के
िनवार्िचत सदस्य� से या िनवार्चकगण के सदस्य� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� और �कए गए
आदेश� के उपबंध� के अनुसार सदस्य िनवार्िचत करे :
परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी अिधसूचना उस तारीख से तीन मास से अिधक पूवर् न िनकाली जाएगी िजस तारीख को
िनवृ� होने वाले सदस्य� क� पदाविध का अवसान होना है ।
[12क. राज्य सभा म� िसिक्कम राज्य को आबंटन म� िमले स्थान को भरने के िलए िनवार्चन क� अिधसूचना—राज्य सभा म�
2

िसिक्कम राज्य को संिवधान (छ�ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 �ारा आबंटन म� िमले स्थान को �थम बार भरने के �योजन के िलए
राष्�पित, भारत के राजप� म� �कािशत अिधसूचना �ारा ऐसी तारीख को, िजसक� िसफा�रश िनवार्चन आयोग �ारा क� जाए, िसिक्कम
राज्य क� िवधान सभा के िनवार्िचत सदस्य� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और उसके अधीन बनाए गए िनयम� तथा आदेश� के
उपबंध� के अनुसरण म� एक सदस्य को िनवार्िचत कर� और इस �कार से �कया गया िनवार्चन सभी �योजन� और आशय के िलए धारा 12
के अधीन �कया गया िनवार्चन समझा जाएगा।]
13. [कु छ संघ राज्यक्षे�� के िलए िनवार्चकगण के पुनगर्ठन क� अिधसूचना ।]—क्षे�ीय प�रषद् अिधिनयम, 1956
(1956 का 103) क� धारा 66 �ारा िनरिसत ।
14. लोक सभा के साधारण िनवार्चन के िलए अिधसूचना—(1) नई लोक सभा ग�ठत करने के �योजन के िलए साधारण
िनवार्चन वतर्मान सदन क� अिस्तत्वाविध के अवसान पर या उसके िवघटन पर �कया जाएगा ।
(2) उक्त �योजन के िलए राष्�पित ऐसी तारीख या तारीख� को, िजनक� िसफा�रश िनवार्चन आयोग �ारा क� जाए, भारत के
राजप� म� �कािशत एक या अिधक अिधसूचना� �ारा सब संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और
तद्धीन बनाए गए िनयम� और �कए गए आदेश� के उपबंध� के अनुसार सदस्य िनवार्िचत कर� :
परन्तु जहां �क वतर्मान लोक सभा के िवघटन पर होने से अन्यथा साधारण िनवार्चन होता है वहां ऐसी कोई अिधसूचना उस
तारीख से, िजसको सदन क� अिस्तत्वाविध का अवसान अनुच्छेद 83 के खंड (2) के उपबंध� के अधीन होता, पूवर् के छह मास के पहले न
िनकाली जाएगी ।
[14क. िव�मान लोक सभा म� िसिक्कम राज्य के �ितिनिध का िनवार्चन करने के िलए अिधसूचना—लोक सभा म� िसिक्कम
2

राज्य के �ितिनिध का िनवार्चन करने के �योजन के िलए, जैसा �क संिवधान के अनुच्छेद 371च के खंड (ङ) म� िविन�दर्ष्ट है, िनवार्चन
आयोग िसिक्कम राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और उसके अधीन बनाए गए िनयम� और
आदेश� के ऐसे उपबंध� के अनुसरण म�, जो राज्य सभा के सदस्य� के िनवार्चन के िलए लागू ह�, �ितिनिध िनवार्िचत कर� ।]
15. राज्य क� िवधान सभा के िलए साधारण िनवार्चन के िलए अिधसूचना—(1) नई िवधान सभा ग�ठत करने के �योजन के
िलए, साधारण िनवार्चन वतर्मान सभा क� अिस्तत्वाविध के अवसान पर या उसके िवघटन पर �कया जाएगा ।
(2) उक्त �योजन के िलए 3[यथािस्थित, राज्यपाल या �शासक] 4*** ऐसी तारीख या तारीख� को, िजनक� िसफा�रश
िनवार्चन आयोग �ारा क� जाए, राज्य के शासक�य राजप� म� �कािशत एक या अिधक अिधसूचना� �ारा राज्य म� के सब सभा
िनवार्चन-क्षे�� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� और �कए गए आदेश� के उपबंध� के अनुसार
सदस्य िनवार्िचत कर� :
परन्तु जहां �क वतर्मान िवधान सभा के िवघटन पर होने से अन्यथा साधारण िनवार्चन होता है वहां ऐसी कोई अिधसूचना उस
तारीख से, िजसको सभा क� अिस्तत्वाविध का अवसान 5[यथािस्थित] अनुच्छेद 172 के खंड (1) 4*** उपबंध� के अधीन 5[या संघ
राज्यक्षे� शासन अिधिनयम, 1963 (1963 का 20) क� धारा 5 के उपबंध� के अधीन होता, पूवर् के छह मास से पहले न िनकाली जाएगी ।]
[15क. िवधान प�रषद� के कितपय िनवार्चन� के िलए अिधसूचना—राज्य पुनगर्ठन अिधिनयम, 1956 (1956 का 37) के अधीन
6

मध्य �देश राज्य क� िवधान प�रषद् के गठन और 7[आं� �देश िवधान प�रषद् अिधिनयम, 2005 (2006 का 1) के अधीन] आं� �देश

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 7 �ारा भाग 3 (धारा 12 से धारा 18) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975) से अन्तःस्थािपत ।
3
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसूची �ारा “राज्यपाल” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “यथािस्थित, राज�मुख, उप राज्यपाल या मुख्य आयु�” शब्द� का लोप �कया गया ।
5
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और ि�तीय अनुसूची �ारा अन्तःस्थािपत ।
6
1957 के अिधिनयम सं० 37 क� धारा 13 �ारा अन्तःस्थािपत ।
7
2006 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 5 �ारा (11-1-2006 से) �ितस्थािपत ।
9

राज्य क� िवधान प�रषद् के गठन 1[और तिमलनाडु िवधान प�रषद् अिधिनयम, 2010 (2010 का 16) के अधीन तिमलनाडु राज्य क�
िवधान प�रषद् के गठन] 2[और आं� �देश पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 के अधीन तेलंगाना राज्य क� िवधान प�रषद् के गठन] के �योजन
के िलए पूव�क्त राज्य� म� से हर एक का राज्यपाल, ऐसी तारीख या तारीख�, िजनक� िसफा�रश िनवार्चन आयोग �ारा क� जाए, राज्य के
शासक�य राजप� म� �कािशत एक या अिधक अिधसूचना� �ारा, राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� से और सब प�रषद् िनवार्चन-क्षे��
से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� और �कए गए आदेश� के उपंबंध� के अनुसार सदस्य िनवार्िचत
कर� ।]
16. राज्य िवधान प�रषद् के ि�वा�षर्क िनवार्चन के िलए अिधसूचना—राज्य क� िवधान प�रषद् के उन सदस्य� के स्थान� को
भरने के �योजन के िलए, जो अपनी पदाविध के अवसान के पश्चात् िनवृ� हो रहे ह�, राज्यपाल 3*** ऐसी तारीख या तारीख� को,
िजनक� िसफा�रश िनवार्चन आयोग �ारा क� जाए, राज्य के शासक�य राजप� म� �कािशत एक या अिधक अिधसूचना� �ारा राज्य क�
िवधान सभा के सदस्य� से और संपृक्त सब प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� से अपेक्षा करे गा �क वे इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए
िनयम� और �कए गए आदेश� के उपबंध� के अनुसार सदस्य िनवार्िचत कर� :
परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी अिधसूचना उस तारीख से तीन मास से अिधक पूवर् न िनकाली जाएगी िजस तारीख को
िनवृ� होने वाले सदस्य� क� पदाविध का अवसान होना है ।]
भाग 4

िनवार्चन� के संचालन के िलए �शासिनक मशीनरी


19. प�रभाषा—इस भाग म� और 5 म�, जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, “िनवार्चन क्षे�” से 4*** संसदीय
िनवार्चन-क्षे� या सभा िनवार्चन-क्षे� या प�रषद् िनवार्चन-क्षे� अिभ�ेत है ।
[19क. िनवार्चन आयोग के कृ त्य� का �त्यायोजन—संिवधान के , लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) के और
69
5

इस अिधिनयम के या तद्धीन बनाए गए िनयम� के अधीन, िनवार्चन आयोग के कृ त्य� का, उपिनवार्चन आयुक्त �ारा या िनवार्चन आयोग
के सिचव �ारा भी ऐसे साधारण या िवशेष िनदेश� के अध्यधीन, य�द कोई ह�, जो िनवार्चन आयोग �ारा इस िनिम� �दए जाएं, पालन
�कया जा सके गा ।]
[20. मुख्य िनवार्चन आ�फसर� के साधारण कतर्�—िनवार्चन आयोग के अधीक्षण, िनदेशन और िनयं�ण के अध्यधीन रहते
6

�ए हर एक राज्य का मुख्य िनवार्चन आ�फसर उस राज्य म� इस अिधिनयम के अधीन के सब िनवार्चन� के संचालन का पयर्वेक्षण करे गा ।
[20क. िजला िनवार्चन आ�फसर के साधारण कतर्�—(1) मुख्य िनवार्चन आ�फसर के अधीक्षण, िनदेशन और िनयं�ण के
7

अध्यधीन रहते �ए, िजला िनवार्चन आ�फसर उस िजले म� या अपनी अिधका�रता के भीतर के क्षे� म� संसद् और राज्य के िवधान-मण्डल
के सब िनवार्चन� के संचालन के संसद् म� सब काम का समन्वय और पयर्वेक्षण करे गा ।
(2) िजला िनवार्चन आ�फसर ऐसे अन्य कृ त्य� का भी पालन करे गा जो उसे िनवार्चन आयोग और मुख्य िनवार्चन आ�फसर �ारा
न्यस्त �कए जाएं ।]
[20ख. �ेक्षक—(1) िनवार्चन आयोग, एक �ेक्षक का, जो सरकार का अिधकारी होगा, �कसी िनवार्चन-क्षे� या िनवार्चन-क्षे��
8

के समूह म� िनवार्चन या िनवार्चन� के संचालन क� िनगरानी करने के िलए और ऐसे अन्य कृ त्य� का पालन करने के िलए जो िनवार्चन
आयोग �ारा स�पे जाएं, नामिनद�शन कर सके गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन नामिनद�िशत �ेक्षक को उस िनवार्चन-क्षे� के या ऐसे िनवार्चन-क्षे�� म� से �कसी के , िजसके िलए उसे
नामिनद�िशत �कया गया है, �रट�न�ग आ�फसर को प�रणाम क� घोषणा के पूवर् �कसी भी समय मत� क� गणना रोक देने या प�रणाम को
घोिषत न करने के िलए िनदेश देने क� शिक्त होगी, य�द �ेक्षक क� राय म� ब�त से मतदान के न्�� म� अथवा मतदान के िलए िनयत स्थान�
म� या मत� क� गणना के िलए िनयत स्थान� म� बूथ� का बलात् �हण �कया गया है या �कसी मतदान के न्� म� या मतदान के िलए िनयत
�कसी स्थान म� �युक्त �कन्ह� मतप�� को �रट�न�ग आ�फसर क� अिभरक्षा म� से िविधिव��तया िनकाल िलया गया है या घटनावश या
साशय िवनष्ट कर �दया गया है या खो �दया गया है या उस सीमा तक उन्ह� नुकसान प�ंचाया गया है या उनम� गड़बड़ क� गई है �क उस
मतदान के न्� या स्थान पर मतदान का प�रणाम अिभिनिश्चत नह� �कया जा सकता है ।

1
2010 के अिधिनयम सं० 16 क� धारा 5 �ारा (तारीख अभी अिधसूिचत क� जानी है) अंतःस्थािपत ।
2
2014 के अिधिनयम सं० 6 क� धारा 98 �ारा अंत:स्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “या राज्यपाल, यथािस्थित,” शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 103 क� धारा 66 �ारा कितपय शब्द� को लोप �कया गया ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 21 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 9 �ारा धारा 20 और धारा 21 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 22 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
8
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 4 �ारा (1-8-1996 से) अन्तःस्थािपत ।
10

(3) जहां �कसी �ेक्षक ने इस धारा के अधीन �रट�न�ग आ�फसर को मत� क� गणना रोकने या प�रणाम क� घोषणा न करने का
िनदेश �दया गया है, वहां �ेक्षक, उस मामले क� �रपोटर् तुरन्त िनवार्चन आयोग को करे गा और ऐसा होने पर िनवार्चन आयोग, सभी
ताि�वक प�रिस्थितय� को ध्यान म� रखकर, धारा 58क या धारा 64क या धारा 66 के अधीन समुिचत िनद�श देगा ।
स्पष्टीकरण—उपधारा (2) और उपधारा (3) के �योजन� के िलए, “�ेक्षक” के अन्तगर्त �ादेिशक आयुक्त या िनवार्चन आयोग
का कोई ऐसा अिधकारी है, िजसे आयोग �ारा इस धारा के अधीन �कसी िनवार्चन-क्षे� म� या िनवार्चन-क्षे�� के समूह म� िनवार्चन या
िनवार्चन� के संचालन क� िनगरानी करने का कतर्� स�पा गया है ।]
21. �रट�न�ग आ�फसर—िनवार्चन आयोग, हर िनवार्चन-क्षे� के िलए राज्य सभा म� के स्थान या स्थान� को भरने के िलए हर
िनवार्चन के िलए और राज्य क� िवधान सभा के सदस्य �ारा राज्य क� िवधान प�रषद् म� के स्थान या स्थान� को भरने के िलए हर
िनवार्चन के िलए, राज्य क� सरकार के परामशर् से, एक �रट�न�ग आ�फसर पदािभिहत या नामिन�दर्ष्ट करे गा जो 1[सरकार का या
स्थानीय �ािधकारी का आ�फसर] ही होगा :
परन्तु एक िनवार्चन-क्षे� से अिधक के िलए उसी �िक्त को �रट�न�ग आ�फसर पदािभिहत या नामिन�दर्ष्ट करने से िनवार्चन
आयोग को इस धारा क� कोई बात िनवा�रत न करे गी ।]
22. सहायक �रट�न�ग आ�फसर—(1) िनवार्चन आयोग �कसी �रट�न�ग आ�फसर क� उसके कृ त्य� के पालन म� सहायता करने के
िलए एक या अिधक �िक्तय� को िनयुक्त कर सके गा :
परं तु हर ऐसा �िक्त 1[सरकार का या स्थानीय �ािधकारी का आ�फसर] ही होगा ।
(2) हर सहायक �रट�न�ग आ�फसर, �रट�न�ग आ�फसर के िनयं�ण के अध्यधीन रहते �ए, �रट�न�ग आ�फसर के सब कृ त्य� या
उनम� से �कसी का भी पालन करने के िलए सक्षम होगा :
परन्तु �रट�न�ग आ�फसर के जो कृ त्य 2**** नामिनद�शन� क� संवीक्षा 3*** से सम्ब� ह� उनम� से �कसी को कोई सहायक
�रट�न�ग आ�फसर तब तक न करे गा जब तक �क �रट�न�ग आ�फसर उक्त कृ त्य को करने से अप�रवजर्नीयतः िनवा�रत न हो जाए ।
23. �रट�न�ग आ�फसर के अन्तगर्त �रट�न�ग आ�फसर के कृ त्य� का पालन करने वाले सहायक �रट�न�ग आ�फसर आएंगे—इस
अिधिनयम म� �रट�न�ग आ�फसर के �ित िनद�श� के अन्तगर्त, जब तक �क सन्दभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, उस �कसी कृ त्य का पालन करने
वाला सहायक �रट�न�ग आ�फसर आता है िजस कृ त्य का पालन करने के िलए वह धारा 22 क� उपधारा (2) के अधीन �ािधकृ त है, यह
समझा जाएगा ।
24. �रट�न�ग आ�फसर का साधारण कतर्�—�कसी भी िनवार्चन म� �रट�न�ग आ�फसर का यह साधारण कतर्� होगा �क वह वे
सब कायर् और बात� करे जो इस अिधिनयम और तद्धीन बनाए गए िनयम� और �कए गए आदेश� �ारा उपबिन्धत रीित म� िनवार्चन का
�भावी �प से संचालन करने के िलए आवश्यक हो ।
[25. िनवार्चन-क्षे�� के िलए मतदान के न्�� का उपबन्ध—िजला िनवार्चन आ�फसर, िनवार्चन आयोग के पूवर् अनुमोदन से, हर
76
4

ऐसे िनवार्चन-क्षे� के िलए पयार्प्त संख्या म� मतदान के न्�� का उपबन्ध करे गा जो सम्पूणर् या िजसका अिधक भाग उसक� अिधका�रता के
भीतर है, और ऐसे उपबिन्धत मतदान के न्�� को और उन मतदान क्षे�� को या मतदाता� के समूह� को, िजनके िलए वे �मशः उपबिन्धत
�कए गए ह�, द�शर्त करने वाली सूची ऐसी रीित म�, जैसी िनवार्चन आयोग िन�दर्ष्ट करे , �कािशत करे गा।]
26. मतदान के न्�� के िलए पीठासीन आ�फसर� क� िनयुिक्त—(1) 5[िजला िनवार्चन आ�फसर] हर एक मतदान के न्� के िलए
एक पीठासीन आ�फसर और ऐसे मतदान आ�फसर या ऐसे मतदान आ�फसर� को, जैसे वह आवश्यक समझे, िनयुक्त करे गा, �कन्तु वह
�कसी ऐसे �िक्त को िनयुक्त नह� करे गा जो िनवार्चन म� या िनवार्चन क� बाबत �कसी अभ्यथ� �ारा या उसक� ओर से िनयोिजत �कया
गया है या अन्यथा उसके िलए काम करता रहा है :
परन्तु य�द मतदान के न्� से मतदान आ�फसर अनुपिस्थत है तो पीठासीन आ�फसर उस �िक्त से िभन्न, जो िनवार्चन म� या
िनवार्चन क� बाबत �कसी अभ्यथ� �ारा या उसक� ओर से िनयोिजत �कया गया है या अन्यथा उसके िलए काम करता रहा है, �कसी ऐसे
�िक्त को, जो मतदान के न्� म� उपिस्थत है, पूवर् किथत आ�फसर क� अनुपिस्थित के दौरान मतदान आ�फसर होने के िलए िनयुक्त कर
सके गा और िजला िनवार्चन आ�फसर को तद्नुसार इि�ला देगा :
[परन्तु यह और भी �क इस उपधारा क� कोई भी बात िजला िनवार्चन आ�फसर को एक ही �िक्त को एक ही प�रसर म� के एक
6

से अिधक मतदान के न्�� के िलए पीठासीन आ�फसर िनयुक्त करने से िनवा�रत न करे गी ।]

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 24 �ारा “सरकार का आ�फसर” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 10 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 10 �ारा “या मतगणना से” शब्द� का लोप �कया गया।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 25 �ारा (14-12-1966 से) धारा 25 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 26 �ारा (14-12-1966 से) “�रट�न�ग आ�फसर” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 12 �ारा अन्तःस्थािपत ।
11

(2) य�द मतदान आ�फसर पीठासीन आ�फसर �ारा ऐसा करने के िलए िन�दर्ष्ट �कया जाए तो वह इस अिधिनयम के या
तद्धीन बनाए गए �कन्ह� िनयम� या �कए गए आदेश� के अधीन पीठासीन आ�फसर के सब या �कन्ह� कृ त्य� का पालन करे गा ।
(3) य�द पीठासीन आ�फसर �ग्णता या अन्य अप�रवजर्नीय हेतुक के कारण मतदान के न्� से स्वयं अनुपिस्थत रहने के िलए
बाध्य हो जाए तो उसके कृ त्य� का पालन ऐसे मतदान आ�फसर �ारा �कया जाएगा िजसे 1[िजला िनवार्चन आ�फसर] ने �कसी ऐसी
अनुपिस्थित के दौरान ऐसे कृ त्य� के पालन के िलए पहले से ही �ािधकृ त �कया है ।
(4) इस अिधिनयम म� पीठासीन आ�फसर के �ित िनद�श� के अन्तगर्त, जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, उस �कसी
कृ त्य का पालन करने वाला कोई �िक्त आता है िजस कृ त्य का पालन करने के िलए वह, यथािस्थित, उपधारा (2) या उपधारा (3) के
अधीन �ािधकृ त है, यह समझा जाएगा ।
2
* * * * * *
27. पीठासीन आ�फसर का साधारण कतर्�—मतदान के न्� म� �वस्था बनाए रखना और यह सुिनिश्चत करना �क मतदान
ऋजुता से हो मतदान के न्� म� के पीठासीन आ�फसर का साधारण कतर्� होगा ।
28. मतदान आ�फसर के कतर्�—मतदान के न्� के मतदान आ�फसर� का यह कतर्� होगा �क वे ऐसे के न्� के पीठासीन आ�फसर
क� उसके कृ त्य� के पालन म� सहायता कर� ।
[28क. �रट�न�ग आ�फसर, पीठासीन आ�फसर, आ�द को िनवार्चन आयोग म� �ितिनयुक्त समझना—�कसी िनवार्चन के
81
3

संचालन के िलए �रट�न�ग आ�फसर, सहायक �रट�न�ग आ�फसर, पीठासीन आ�फसर, मतदान आ�फसर और इस भाग के अधीन िनयुक्त
कोई अन्य आ�फसर, और �कसी राज्य सरकार �ारा तत्समय पदािभिहत कोई पुिलस आ�फसर, उस अविध के िलए, जो ऐसे िनवार्चन क�
अपेक्षा करने वाली अिधसूचना क� तारीख से �ारं भ होती है और ऐसे िनवार्चन के प�रणाम� के घोिषत �कए जाने क� तारीख को समाप्त
होती है, िनवार्चन आयोग म� �ितिनयुक्त समझे जाएंगे और तद्नुसार ऐसे आ�फसर उस अविध के दौरान िनवार्चन आयोग के िनयं�ण,
अधीक्षण और अनुशासन के अधीन ह�गे ।]
29. कितपय िनवार्चन� क� दशा म� िवशेष उपबंध—(1) राज्य सभा म� के स्थान या स्थान� को भरने के िलए िनवार्चन के िलए
या राज्य क� िवधान प�रषद् म� के स्थान या स्थान� को भरने के िलए राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� �ारा िनवार्चन के िलए 4***
�रट�न�ग आ�फसर िनवार्चन आयोग के पूवार्नुमोदन से वह स्थान िनयत करे गा जहां �क ऐसे िनवार्चन के िलए मतदान होगा और ऐसे
िनयत स्थान को ऐसी रीित म� अिधसूिचत करे गा जैसी िनवार्चन आयोग िन�दर्ष्ट करे ।
(2) �रट�न�ग आ�फसर ऐसे िनयत स्थान म� ऐसे िनवार्चन म� पीठासीन होगा और अपनी सहायता के िलए ऐसा या ऐसे मतदान
आ�फसर िनयुक्त करे गा जैसे वह आवश्यक समझे, �कन्तु वह �कसी ऐसे �िक्त को िनयुक्त नह� करे गा जो िनवार्चन म� या िनवार्चन क�
बाबत अभ्यथ� �ारा या उसक� ओर से िनयोिजत �कया गया है या अन्यथा उसके िलए काम करता रहा है ।
5
[भाग 4क

राजनैितक दल� का रिजस्�ीकरण


29क. संगम� और िनकाय� का राजनैितक दल� के �प म� आयोग के पास रिजस्�ीकरण—(1) भारत के �िष्टक नाग�रक� का
कोई संगम या िनकाय, जो स्वयं को राजनैितक दल कहता है और जो इस भाग के उपबंध� का लाभ उठाना चाहता है, इस अिधिनयम के
�योजन� के िलए, राजनैितक दल के �प म� अपना रिजस्�ीकरण कराने के िलए िनवार्चन आयोग को आवेदन करे गा ।
(2) ऐसा �त्येक आवेदन,—
(क) य�द संगम या िनकाय लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1989 का 1) के �ारं भ पर िव�मान है
तो ऐसे �ारं भ के ठीक आगामी साठ �दन के भीतर �कया जाएगा ;
(ख) य�द संगम या िनकाय ऐसे �ारं भ के पश्चात् बनाया जाता है तो उसके बनाए जाने क� तारीख के ठीक आगामी
तीस �दन के भीतर �कया जाएगा ।

(3) उपधारा 1 के अधीन �त्येक आवेदन पर संगम या िनकाय के मुख्य कायर्पालक अिधकारी के (चाहे ऐसा मुख्य कायर्पालक
अिधकारी सिचव के �प म� जाना जाता है या �कसी अन्य पदािभधान से जाना जाता है) हस्ताक्षर ह�गे और वह आयोग के सिचव को पेश
�कया जाएगा या ऐसे सिचव को रिजस्�ी डाक से भेजा जाएगा ।

(4) ऐसे �त्येक आवेदन म� िनम्निलिखत िविशिष्टयां ह�गी, अथार्त् :—

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 26 �ारा (14-12-1966 से) “�रट�न�ग आ�फसर” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 12 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत और 2004 के अिधिनयम सं० 2 क� धारा 3 �ारा लोप �कया गया ।
3
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 5 �ारा (15-3-1989 से) अन्तःस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 13 �ारा “(�ाथिमक िनवार्चन से िभन्न)” शब्द� और कोष्ठक� का लोप �कया गया ।
5
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 6 �ारा (15-6-1989 से) अन्तःस्थािपत ।
12

(क) संगम या िनकाय का नाम ;

(ख) वह राज्य िजसम� उसका �धान कायार्लय िस्थत है ;

(ग) वह पता िजस पर उसके िलए आशियत प� और अन्य संसूचनाएं भेजी जाएं ;

(घ) उसके अध्यक्ष, सिचव, कोषाध्यक्ष और अन्य पदािधका�रय� के नाम ;

(ङ) उसके सदस्य� क� संख्या और य�द उसके सदस्य� के �वगर् ह� तो �त्येक �वगर् क� संख्या ;

(च) क्या उसके कोई स्थानीय एकक ह�, य�द ह�, तो �कन स्तर� पर ह� ;

(छ) क्या संसद् के या �कसी राज्य िवधान-मंडल के �कसी सदन म� �कसी सदस्य या �कन्ह� सदस्य� �ारा उसका
�ितिनिधत्व �कया जाता है ; य�द �कया जाता है तो ऐसे सदस्य या सदस्य� क� संख्या ।

(5) उपधारा (1) के अधीन आवेदन के साथ संगम या िनकाय के , ज्ञापन या िनयम� और िविनयम� क� चाहे वह िजस नाम से
ज्ञात हो, एक �ित होगी और ऐसे ज्ञापन या िनयम� और िविनयम� म� यह िविन�दर्ष्ट उपबंध होगा �क वह संगम या िनकाय िविध �ारा
स्थािपत भारत के संिवधान के �ित तथा समाजवाद, पंथिनरपेक्षता और लोकतं� के िस�ांत� के �ित सच्ची ��ा और िनष्ठा रखेगा और
भारत क� �भुता, एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा ।

(6) आयोग संगम या िनकाय से ऐसी अन्य िविशिष्टयां मंगा सके गा जैसी वह ठीक समझे ।

(7) आयोग अपने कब्जे म� क� यथापूव�क्त सभी िविशिष्टय� और कोई अन्य आवश्यक और सुसंगत बात� पर िवचार करने के
पश्चात् और संगम या िनकाय के �ितिनिधय� को सुनवाई का युिक्तयुक्त अवसर देने के पश्चात् या तो उस संगम या िनकाय को इस भाग
के �योजन� के िलए राजनैितक दल के �प म� रिजस्�ीकृ त करने का, या जो इस �कार रिजस्�ीकृ त न करने का, िविनश्चय करे गा ; और
आयोग अपना िविनश्चय ऐसे संगम या िनकाय को संसिू चत करे गा :

परं तु कोई संगम या िनकाय इस उपधारा के अधीन राजनैितक दल के �प म� तब तक रिजस्�ीकृ त नह� �कया जाएगा जब तक
�क ऐसे संगम या िनकाय का ज्ञापन या िनयम और िविनयम उपधारा (5) के उपबन्ध� के अनु�प नह� ह� ।
(8) आयोग का िविनश्चय अंितम होगा ।
(9) �कसी संगम या िनकाय के यथापूव�क्त राजनैितक दल के �प म� रिजस्�ीकृ त �कए जाने के पश्चात् उसके नाम, �धान
कायार्लय, पदािधका�रय�, पते या �कन्ह� अन्य ताि�वक िवषय� म� कोई तब्दीली आयोग को अिवलंब संसूिचत क� जाएगी ।]
[29ख. राजनैितक दल� का अिभदाय स्वीकार करने का हकदार होना—कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के उपबंध� के
1

अधीन रहते �ए, �त्येक राजनैितक दल, सरकारी कं पनी से िभन्न �कसी �िक्त या कं पनी �ारा उसे स्वेच्छया �स्थािपत अिभदाय क�
कोई भी रकम स्वीकार कर सके गा :

परन्तु कोई भी राजनैितक दल िवदेशी अिभदाय (िविनयमन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 49) क� धारा 2 के खंड (ङ) के
अधीन प�रभािषत �कसी िवदेशी �ोत से कोई अिभदाय स्वीकार करने का पा� नही होगा ।

स्पष्टीकरण—इस धारा और धारा 29ग के �योजन� के िलए,—

(क) “कं पनी” से धारा 3 म� यथाप�रभािषत कोई कं पनी अिभ�ेत है ;

(ख) “सरकारी कं पनी” से धारा 617 के अथा�तगर्त कोई कं पनी अिभ�ेत है; और

(ग) “अिभदाय” का वही अथर् है जो कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) क� धारा 293क म� है और इसके अंतगर्त
�कसी राजनैितक दल को �कसी �िक्त �ारा �स्थािपत कोई संदान या अिभदान भी है; और
(घ) “�िक्त” का वही अथर् है जो आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) क� धारा 2 के खंड (31) म� है �कन्तु
इसके अंतगर्त सरकारी कं पनी, स्थानीय �ािधकारी और सरकार �ारा पूणर्तः या भागतः िव� पोिषत �त्येक कृ ि�म िविधक
�िक्त नह� है ।
29ग. राजनैितक दल� �ारा �ाप्त संदान क� घोषणा—](1) �कसी राजनैितक दल का कोषाध्यक्ष या उक्त राजनैितक दल �ारा
इस िनिम� �ािधकृ त कोई अन्य �िक्त, �त्येक िव�ीय वषर् म�, िनम्निलिखत के संबंध म� एक �रपोटर् तैयार करे गा, अथार्त्:—

(क) ऐसे राजनैितक दल �ारा उस िव�ीय वषर् म� �कसी �िक्त से �ाप्त बीस हजार �पए से अिधक का अिभदाय ;

1
2003 के अिधिनयम सं० 46 क� धारा 2 �ारा अंतःस्थािपत ।
13

(ख) ऐसे राजनैितक दल �ारा उस िव�ीय वषर् म� सरकारी कं पिनय� से िभन्न कं पिनय� से �ाप्त बीस हजार �पए से
अिधक अिभदाय ।

[िस्लप___________________________________________________________________________
1

(2) उपधारा (1) के अधीन �रपोटर् ऐसे ��प म� होगी जो िविहत �कया जाए ।
(3) उपधारा (1) के अधीन �कसी िव�ीय वषर् के िलए �रपोटर्, �कसी राजनैितक दल के कोषाध्यक्ष या उक्त राजनैितक दल �ारा
इस िनिम� �ािधकृ त �कसी अन्य �िक्त �ारा आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) क� धारा 139 के अधीन उस िव�ीय वषर् क�
उसक� आय क� िववरणी देने के िलए िनयत तारीख से पूवर्, िनवार्चन आयोग को �स्तुत क� जाएगी ।
(4) जहां �कसी राजनैितक दल का कोषाध्यक्ष या उक्त राजनैितक दल �ारा इस िनिम� �ािधकृ त कोई अन्य �िक्त, उपधारा
(3) के अधीन कोई �रपोटर् �स्तुत करने म� असफल रहता है, वहां, ऐसा राजनैितक दल, आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) म�
�कसी बात के होते �ए भी, उस अिधिनयम के अधीन �कसी कर राहत का हकदार नह� होगा ।]
भाग 5

िनवार्चन� का संचालन
अध्याय 1—अभ्य�थर्य� का नामिनद�शन

[30. नामिनद�शन� आ�द के िलए तारीख� िनयत करना—जैसे ही सदस्य या सदस्य� को िनवार्िचत करने के िलए िनवार्चन-क्षे�
86
2

से अपेक्षा करने वाली अिधसूचना िनकाली जाए वैसे ही िनवार्चन आयोग शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा—

(क) नामिनद�शन करने के िलए अंितम तारीख जो �थम व�णर्त अिधसूचना के �काशन क� तारीख के पश्चात् वाले
3
[सातव� �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो लोक अवकाश
�दन नह� है ;

(ख) नामिनद�शन� क� संवीक्षा क� तारीख जो नामिनद�शन करने के िलए िनयत अंितम तारीख के 4[अ�विहत
आगामी �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो लोक अवकाश
�दन नह� है ;
(ग) अभ्य�थर्ता वापस लेने के िलए िनयत अंितम तारीख, जो नामिनद�शन� क� संवीक्षा के िलए िनयत तारीख के
पश्चात् [दूसरे �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो अवकाश
5

�दन नह� है ;
(घ) वह तारीख या वे तारीख� िजसको या िजनको य�द आवश्यक हो तो मतदान होगा और जो तारीख या िजन
तारीख� म� से पहली तारीख अभ्य�थर्ताएं वापस लेने के िलए िनयत अंितम तारीख के पश्चात् 6[चौदहव� �दन] से पूवर्तर न होने
वाली तारीख होगी; तथा
(ङ) वह तारीख िजसके पूवर् िनवार्चन समाप्त कर �दया जाएगा ।
7
* * * * * *]
31. िनवार्चन क� लोक सूचना— 8*** �रट�न�ग आ�फसर धारा 30 के अधीन अिधसूचना के िनकाले जाने पर ऐसे िनवार्चन के
िलए अभ्य�थर्य� के नामिनद�शन आमंि�त करते �ए, और वह स्थान जहां नामिनद�शन-प� प�रद� �कए जाने ह�, िविन�दर्ष्ट करते �ए
आशियत िनवार्चन क� लोक सूचना ऐसे ��प और रीित म� देगा जैसा या जैसी िविहत �कया या क� जाए ।

1
2017 के अिधिनयम सं० 7 क� धारा 137 �ारा अंत:स्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 14 �ारा धारा 30 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 7 �ारा (20-9-1961 से) “दसव� �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 27 �ारा (14-12-1966 से) “दूसरे �दन के पश्चात्” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 27 �ारा (14-12-1966 से) “तीसरे �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 5 �ारा (1-8-1996 से) “बीसव� �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 27 �ारा (14-12-1966 से) स्पष्टीकरण का लोप �कया गया ।
8
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 28 �ारा (14-12-1966 से) “िनवार्चन-क्षे� के िलए” शब्द� का लोप �कया गया ।
14

32. िनवार्चन अभ्य�थर्य� का नामिनद�शन—य�द कोई �िक्त 1*** �कसी स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए
2
[यथािस्थित] संिवधान और इस अिधिनयम के उपबन्ध� के अधीन 3*** 2[या संघ राज्यक्षे� शासन अिधिनयम, 1963 (1963 का 20)] के
उपबन्ध� के अधीन अ�हर्त है तो वह उस स्थान को भरने के िलए िनवार्चन अभ्यथ� के �प म� नामिन�दर्ष्ट �कया जा सके गा ।
[33. नामिनद�शन-प� का उपिस्थत �कया जाना और िविधमान्य नामिनद�शन के िलए अपेक्षाएं—(1) हर एक अभ्यथ� िविहत
4

��प म� पू�रत और अपने �ारा तथा िनवार्चन-क्षे� म� के एक िनवार्चक �ारा �स्थापक के �प म� हस्ताक्ष�रत नामिनद�शन-प� �रट�न�ग
आ�फसर को उस स्थान पर जो धारा 31 के अधीन िनकाली गई सूचना म� इस िनिम� िविन�दर्ष्ट है धारा 30 के खंड (क) के अधीन िनयत
तारीख को या के और पूवर् पूवार्ह्न ग्यारह बजे और अपराह्न तीन बजे के बीच या तो स्वयं या अपने �स्थापक �ारा प�रद� करे गा :
[परन्तु ऐसा कोई अभ्यथ�, जो �कसी मान्यता�ाप्त राजनैितक दल �ारा खड़ा नह� �कया गया है, �कसी िनवार्चन-क्षे� से
5

िनवार्चन के िलए सम्यक् �प से तब तक नामिनद�िशत �कया गया नह� समझा जाएगा जब तक �क नामिनद�शन-प� पर ऐसे दस
�स्थापक� �ारा, जो िनवार्चन-क्षे� के िनवार्चक ह�, हस्ताक्षर न �कए गए ह� :
परन्तु यह और �क कोई भी नामिनद�शन-प� �रट�न�ग आ�फसर को ऐसे �दन प�रद� नह� �कया जाएगा जो लोक अवकाश
�दन हो :
परन्तु यह भी �क स्थानीय �ािधकारी िनवार्चन-क्षे�, स्नातक िनवार्चन-क्षे� या िशक्षक िनवार्चन-क्षे� क� दशा म�,
“िनवार्चन-क्षे� म� के एक िनवार्चक �ारा �स्थापक के �प म�” के �ित िनद�श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह “िनवार्चन-क्षे� के
िनवार्चक� के दस �ितशत �ारा या ऐसे दस िनवार्चक� �ारा, इनम� से जो भी कम हो, �स्थापक� के �प म�” के �ित िनद�श ह� ।]
[(1क) उपधारा (1) म� �कसी बात के होते �ए भी िसिक्कम िवधान सभा के (जो संिवधान के अधीन उस राज्य क� सम्यक् त
6

�प से ग�ठत िवधान सभा समझी जाती है) िनवार्चन के िलए �रट�न�ग आ�फसर को प�रद� �कया जाने वाला नामिनद�शन-प� ऐसे ��प
म� और ऐसी रीित से होगा िजन्ह� िविहत �कया जाए :
परन्तु उक्त नामिनद�शन-प� अभ्यथ� �ारा यह दशार्ने के िलए हस्ताक्ष�रत �कया जाएगा �क उसने नामिनद�शन के िलए अपनी
अनुमित दे दी है अथवा—
(क) भू�टया-लेप्चा उद्भव के िसिक्किमय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, �स्थापक� के �प म� उस
िनवार्चन-क्षे� के कम से कम बीस िनवार्चक� �ारा और समथर्क� के �प म� िनवार्चन-क्षे� के बीस िनवार्चक� �ारा भी;
(ख) संघ� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म� �स्थापक� के �प म� उस िनवार्चन-क्षे� के कम से कम बीस िनवार्चक�
�ारा और समथर्क� के �प म� उस िनवार्चन-क्षे� के कम से कम बीस िनवार्चक� �ारा भी ;
(ग) नेपाली उद्भव के िसिक्किमय� के िलए आरिक्षत स्थान क� दशा म�, �स्थापक के �प म� उस िनवार्चन-क्षे� के एक
िनवार्चक �ारा,
हस्ताक्ष�रत �कया जाएगा :
परन्तु यह और �क �रट�न�ग आ�फसर को कोई नामिनद�शन-प� ऐसे �दन प�रद� नह� �कया जाएगा जो लोक अवकाश
�दन है ।]
(2) िजस िनवार्चन-क्षे� म� कोई स्थान आरिक्षत है उसम� कोई अभ्यथ� उस स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए अ�हर्त न
समझा जाएगा जब तक �क उसके अपने नामिनद�शन-प� म� वह िविशष्ट जाित या जनजाित िजसका वह सदस्य है और वह क्षे� िजसके
संबंध म� वह जाित या जनजाित उस राज्य क�, यथािस्थित, अनुसूिचत जाित या अनुसिू चत जनजाित है िविन�दर्ष्ट करने वाली उसके �ारा
क� गई घोषणा अन्त�वर्ष्ट न हो ।
(3) जहां �क अभ्यथ� 7[धारा 9] म� िन�दर्ष्ट �कसी पद को धारण करने वाला ऐसा �िक्त है जो पदच्युत कर �दया गया है और
पदच्युित से पांच वषर् क� कालाविध बीती नह� है वहां जब तक �क िविहत रीित म� िनवार्चन आयोग �ारा �कया गया यह �माणप� �क
वह �ष्ट आचरण या राज्य के �ित अभिक्त के िलए पदच्युत नह� �कया गया है उसके नामिनद�शन-प� के साथ न हो तो ऐसा �िक्त
अभ्यथ� के �प म� सम्यक् त �प से नामिन�दर्ष्ट �आ न समझा जाएगा ।
(4) नामिनद�शन-प� के उपिस्थत �कए जाने पर �रट�न�ग आ�फसर अपना यह समाधान करे गा �क नामिनद�शन-प� म�
यथा�िवष्ट अभ्यथ� और उसके �स्थापक के नाम और िनवार्चक नामावली संख्यांक वे ही ह� जो िनवार्चक नामाविलय� म� �िवष्ट ह� :

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 15 �ारा “�कसी िनवार्चन-क्षे� म�” शब्द� का लोप �कया गया ।
2
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसूची �ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 15 �ारा अन्तःस्थािपत कितपय शब्द� का, िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 16 �ारा धारा 33 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 6 �ारा (1-8-1996 से) परन्तुक� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975 से) अन्तःस्थािपत ।
7
1978 के अिधिनयम सं० 38 क� धारा 3 और दूसरी अनुसूची �ारा “धारा 7 के खण्ड (च)” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
15

[परन्तु िनवार्चक नामावली या नामिनद�शन-प� म� व�णर्त अभ्यथ� या उसके �स्थापक या �कसी अन्य �िक्त के नाम के बारे
1

म� या �कसी स्थान के बारे म� �कसी गलत नाम या अशु� वणर्न अथवा लेखन संबंधी तकनीक� या मु�ण संबंधी भूल का और िनवार्चक
नामावली म� या नामिनद�शन-प� म� ऐसे �कसी �िक्त के िनवार्चक नामावली संख्यांक� के बारे म� लेखन संबंधी तकनीक� या मु�ण संबंधी
भूल का �भाव ऐसे �िक्त या स्थान क� बाबत िनवार्चक नामावली या नामिनद�शन-प� के पूरे �वतर्न पर �कसी ऐसी दशा म� नह� पड़ेगा
िजसम� उस �िक्त या स्थान के नाम के बारे म� वणर्न ऐसा है जो सामान्यतः समझा जा सकने वाला है और �रट�न�ग आ�फसर ऐसे �कसी
गलत नाम या अशु� वणर्न अथवा लेखन संबंधी तकनीक� या मु�ण संबंधी भूल को शु� �कए जाने क� अनुज्ञा देगा और जहां �क आवश्यक
हो वहां यह िनदेश देगा �क िनवार्चक नामावली म� या नामिनद�शन-प� म� ऐसे �कसी गलत नाम, अशु� वणर्न, लेखन संबंधी, तकनीक� या
मु�ण संबंधी भूल क� अनुवेक्षा क� जाए ।]
(5) जहां �क अभ्यथ� �कसी िभन्न िनवार्चन-क्षे� का िनवार्चक है, वहां उस िनवार्चन-क्षे� क� िनवार्चक नामावली क� या उसके
सुसंगत भाग क� एक �ित या ऐसी नामावली म� क� सुसंगत �िविष्टय� क� एक �मािणत �ित, जब तक �क वह नामिनद�शन-प� के साथ
फाइल न कर दी गई हो, संवीक्षा के समय �रट�न�ग आ�फसर के समक्ष पेश क� जाएगी ।
2
[(6) इस धारा क� कोई भी बात �कसी अभ्यथ� को एक से अिधक नामिनद�शन-प� �ारा नामिन�दर्ष्ट �कए जाने से िनवा�रत
न करे गी :
परन्तु एक ही िनवार्चन-क्षे� म� िनवार्चन के िलए चार से अिधक नामिनद�शन-प� �कसी अभ्यथ� �ारा या उसक� ओर से न तो
उपिस्थत �कए जाएंगे और न �रट�न�ग आ�फसर �ारा �ितगृहीत �कए जाएंगे ।]
3
[(7) इस अिधिनयम क� उपधारा (6) म� या उसके �कन्ह� अन्य उपबंध� म� �कसी बात के होते �ए भी, कोई �िक्त,—
(क) लोक सभा के िलए साधारण िनवार्चन क� दशा म� (चाहे सभी संसदीय िनवार्चन-क्षे�� म� साथ-साथ िनवार्चन
कराए गए ह� या नह�), दो से अिधक संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से ;
(ख) राज्य क� िवधान सभा के िलए साधारण िनवार्चन क� दशा म� (चाहे सभी िवधान सभा िनवार्चन-क्षे�� म�
साथ-साथ िनवार्चन कराए गए ह� या नह�), उस राज्य म� दो से अिधक िवधान सभा िनवार्चन-क्षे�� से ;
(ग) राज्य क� िवधान प�रषद् के िलए, जहां ऐसी प�रषद् है, ि�वा�षर्क िनवार्चन क� दशा म�, उस राज्य म� दो से
अिधक प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� से ;
(घ) �कसी राज्य को आबं�टत दो या अिधक स्थान� को भरने के िलए राज्य सभा के िलए ि�वा�षर्क िनवार्चन क� दशा
म�, ऐसे दो से अिधक स्थान� को भरने के िलए ;
(ङ) दो या अिधक संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से लोक सभा के िलए उप-िनवार्चन� क� दशा म�, जो साथ-साथ कराए गए
ह�, ऐसे दो से अिधक संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से ;
(च) दो या अिधक संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से राज्य क� िवधान सभा के िलए उप-िनवार्चन� क� दशा म�, जो
साथ-साथ कराए गए ह�, ऐसे दो से अिधक िवधान सभा िनवार्चन-क्षे�� से ;
(छ) राज्य को आबं�टत दो या अिधक स्थान� को भरने के िलए राज्य सभा के िलए उप-िनवार्चन� क� दशा म�, जो
साथ-साथ कराए गए ह�, ऐसे दो से अिधक स्थान� को भरने के िलए ;
(ज) दो या अिधक प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� से राज्य क� िवधान प�रषद् के िलए, जहां ऐसी प�रषद् है, उप-िनवार्चन�
क� दशा म�, जो साथ-साथ कराए गए ह�, ऐसे दो से अिधक प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� से,
िनवार्चन के िलए अभ्यथ� के �प म� नामिनद�िशत नह� �कया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के �योजन� के िलए दो या अिधक उप-िनवार्चन साथ-साथ कराए गए तब समझे जाएंगे, जब ऐसे
उप-िनवार्चन� क� अपेक्षा करने वाली अिधसूचना िनवार्चन आयोग �ारा, यथािस्थित, धारा 147, धारा 149, धारा 150 या धारा 151 के
अधीन एक ही तारीख को िनकाली जाती है । ]
[33क. सूचना का अिधकार—(1) कोई अभ्यथ�, ऐसी सूचना के अित�रक्त िजसक� उससे धारा 33 क� उपधारा (1) के अधीन
4

प�रद� �कए गए अपने नामिनद�शन-प� म� इस अिधिनयम या तद्धीन बनाए गए िनयम� के अधीन �दए जाने क� अपेक्षा क� जाती है,
इस बारे म� भी सूचना देगा �क क्या वह,—
(i) �कसी ऐसे लंिबत मामले म�, िजसम� सक्षम अिधका�रता वाले �कसी न्यायालय �ारा आरोप िवरिचत कर �दया
गया है, दो वषर् या उससे अिधक क� अविध के कारावास से दंडनीय �कसी अपराध का अिभयुक्त है ;

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 29 �ारा (14-12-1966 से) परन्तुक के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 8 �ारा (20-9-1961 से) उपधारा (6) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 6 �ारा (1-8-1996 से) अन्तःस्थािपत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 72 क� धारा 2 �ारा (24-8-2002 से) अंतःस्थािपत ।
16

(ii) [धारा 8 क� उपधारा (1) या उपधारा (2) म� िन�दर्ष्ट अथवा उपधारा (3) के अंतगर्त आने वाले �कसी अपराध से
िभन्न] �कसी अपराध के िलए िस�दोष ठहराया गया है और एक वषर् या उससे अिधक के कारावास से दंडा�दष्ट �कया गया है ।
(2) यथािस्थित, अभ्यथ� या उसका �स्थापक, धारा 33 क� उपधारा (1) के अधीन �रट�न�ग आ�फसर को नामिनद�शन-प�
प�रद� करते समय, िविहत ��प म� उपधारा (1) म� िविन�दर्ष्ट सूचना सत्यािपत करते �ए अभ्यथ� �ारा �दया गया शपथप� भी प�रद�
करे गा ।
(3) �रट�न�ग आ�फसर, उपधारा (1) के अधीन उसको सूचना �दए जाने के पश्चात् यथाशी�, उपधारा (2) के अधीन प�रद�
शपथप� क� एक �ित, �कसी ऐसे िनवार्चन-क्षे� से िजसके िलए नामिनद�शन-प� प�रद� �कया गया है, संबंिधत मतदाता� क�
जानकारी के िलए अपने कायार्लय के �कसी सहजदृश्य स्थान पर िचपका कर पूव�क्त सूचना �द�शर्त करे गा ।]
[33ख. अभ्यथ� �ारा के वल अिधिनयम और िनयम� के अधीन ही सूचना का �दया जाना—�कसी न्यायालय के �कसी िनणर्य,
1

िड�� या आदेश अथवा िनवार्चन आयोग �ारा जारी �कए गए �कसी िनदेश, आदेश या �कसी अन्य अनुदश े म� �कसी बात के होते �ए भी,
कोई अभ्यथ� अपने िनवार्चन क� बाबत ऐसी कोई सूचना �कट करने या देने के दाियत्वाधीन नह� होगा जो इस अिधिनयम या तद्धीन
बनाए गए िनयम� के अधीन �कट �कए जाने या �दए जाने के िलए अपेिक्षत नह� है ।]
34. िनक्षेप— 2[(1) जब तक �क अभ्यथ�—
(क) �कसी संसदीय िनवार्चन-क्षे� से िनवार्चन क� दशा म�, 3[पच्चीस हजार �पए क� रािश, अथवा जहां अभ्यथ�
अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य है वहां बारह हजार पांच सौ �पए क� रािश] ; और
(ख) �कसी िवधान सभा या प�रषद् िनवार्चन-क्षे� से �कसी िनवार्चन क� दशा म�, 3[दस हजार �पए क� रािश, अथवा
जहां अभ्यथ� अनुसिू चत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य है वहां पांच हजार �पए क� रािश,]
िनिक्षप्त न कर दे या िनिक्षप्त न करा दे, वह �कसी िनवार्चन-क्षे� से िनवार्चन के िलए सम्यक् त �प से नामिन�दर्ष्ट �आ वहां समझा
जाएगा :
परन्तु जहां अभ्यथ� एक ही िनवार्चन-क्षे� म� िनवार्चन के िलए एक से अिधक नामिनद�शन-प�� �ारा नामिन�दर्ष्ट �कया गया है
वहां इस उपधारा के अधीन उससे एक से अिधक िनक्षेप क� अपेक्षा नह� क� जाएगी ।]
(2) उपधारा (1) के अधीन िनक्षेप के िलए अपेिक्षत कोई रािश उस उपधारा के अधीन िनिक्षप्त क� गई नह� समझी जाएगी जब
तक �क 4[धारा 33 क�, यथािस्थित, उपधारा (1) या उपधारा (1क) के अधीन] नामिनद�शन-प�� के प�रदान के समय अभ्यथ� ने �रट�न�ग
आ�फसर के पास या तो नकदी म� उसे िनिक्षप्त नह� कर �दया है या िनिक्षप्त नह� करवा �दया है या नामिनद�शन-प� के साथ यह द�शर्त
करने वाली रसीद �क उक्त रािश �रजवर् ब�क आफ इं िडया या सरकारी खजाने म� उसके �ारा या उसक� ओर से िनिक्षप्त कर दी गई है, नह�
लगा दी है ।

35. नामिनद�शन� क� सूचना और उनक� संवीक्षा के िलए समय और स्थान—�रट�न�ग आ�फसर [धारा 33 4यथािस्थित, क�
उपधारा (1) या उपधारा (1क) के अधीन] नामिनद�शन-प� क� �ािप्त पर उसे प�रद� करने वाले �िक्त या �िक्तय� को नामिनद�शन�
क� संवीक्षा के िलए िनयत तारीख, समय और स्थान क� इि�ला देगा और नामिनद�शन-प� पर उसका �म संख्यांक �िवष्ट करे गा और
उस पर वह तारीख िजसको और वह समय िजस पर उसे नामिनद�शन-प� प�रद� �कया गया है किथत वाला �माणप� हस्ताक्ष�रत
करे गा और तत्पश्चात् यथाशक्य शी� नामिनद�शन क� ऐसी सूचना िजनम� अभ्यथ� और 5[�स्थापक] दोन� के वैसे ही वणर्न अन्त�वर्ष्ट ह�
जैसे वे नामिनद�शन-प� म� ह� अपने कायार्लय म� �कसी सहजदृश्य स्थान म� लगवाएगा ।
36. नामिनद�शन� क� संवीक्षा—(1) धारा 30 के अधीन नामिनद�शन� क� संवीक्षा के िलए िनयत तारीख को अभ्यथ�, उनके
िनवार्चन अिभकतार्, हर एक अभ्यथ� का एक �स्थापक 6*** और हर एक अभ्यथ� �ारा िलिखत �प म� सम्यक् त �प से �ािधकृ त एक
दूसरा �िक्त, न �क कोई भी अन्य �िक्त, ऐसे समय और स्थान म� जैसा �रट�न�ग आ�फसर िनयत करे हािजर हो सक� गे और �रट�न�ग
आ�फसर सब अभ्य�थर्य� के नामिनद�शन-प�� क� जो उसे धारा 33 म� अिधकिथत समय के भीतर और रीित म� �द� �कए गए ह�, परीक्षा
करने के िलए उन्ह� सब युिक्तयुक्त सुिवधाएं देगा ।
(2) �रट�न�ग आ�फसर तब नामिनद�शन-प�� क� परीक्षा करे गा और उन सब आक्षेप� का िविनश्चय करे गा जो �कसी
नामिनद�शन क� बाबत �कए जाएं और ऐसी संिक्षप्त जांच के पश्चात् य�द कोई हो, जैसी वह आवश्यक समझे �कसी नामिनद�शन को ऐसे
आक्षेप पर या स्व�ेरणा से िनम्निलिखत आधार� म� से �कसी आधार पर, अथार्त् :—

1
2002 के अिधिनयम सं० 72 क� धारा 3 �ारा (2-5-2002 से) अंतःस्थािपत ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 7 �ारा (1-8-1996 से) उपधारा (1) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 41 क� धारा 5 �ारा (1-2-2010 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (9-9-1975 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 18 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा “और एक समथर्क” श्◌ाब्द� का लोप �कया गया ।
17

[(क) इस आधार पर
110
1 2
[�क अभ्यथ� नामिनद�शन� क� संवीक्षा के िलए िनयत क� गई तारीख] को िनम्निलिखत
उपबन्ध�, अथार्त् :—]
अनुच्छेद 84, 102, 173 और 191 3***
[इस अिधिनयम के भाग 2 और संघ राज्यक्षे� शासन अिधिनयम, 1963 (1963 का 20) क� धारा� 4
113
4

और 14 *** म� से जो भी लागू होती हो उसके अधीन उस स्थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए या तो अ�हर्त
5

नह� है या िनर�हर्त है, अथवा


(ख) इस आधार पर �क धारा 33 या धारा 34 के उपबंध� म� से �कसी का अनुवतर्न करने म� असफलता �ई है, अथवा
(ग) इस आधार पर नामिनद�शन-प� पर अभ्यथ� का या �स्थापक का हस्ताक्षर असली नह� है,
6
[र�] कर सके गा ।
(3) य�द अभ्यथ� �कसी ऐसे अन्य नामिनद�शन-प� �ारा िजसके बारे म� कोई अिनयिमतता नह� क� गई है सम्यक् �प से
नामिन�दर्ष्ट कर �दया गया है तो उपधारा (2) के 7[खंड (ख) या खंड (ग)] म� अन्त�वर्ष्ट �कसी भी बात के बारे म� यह न समझा जाएगा �क
वह �कसी अभ्यथ� के नामिनद�शन-प� म� �कसी अिनयिमतता के आधार पर 8[�ितक्षेिपत] करने के िलए �ािधकृ त करती है ।
(4) �रट�न�ग आ�फसर �कसी नामिनद�शन-प� को ऐसी �कसी 9*** �ु�ट के आधार पर जो सारवान् �प क� नह� है, �ितक्षेिपत
न करे गा ।
(5) �रट�न�ग आ�फसर धारा 30 के खंड (ख) के अधीन इस िनिम� िनयत तारीख को संवीक्षा करे गा और कायर्वािहय� का कोई
स्थगन उस दशा के िसवाय अनुज्ञात न करे गा िजसम� ऐसी कायर्वािहय� म� बलवे या खुली �हंसा से या उसके िनयं�ण के बाहर वाले
कारण� से िवघ्न या बाधा �ई है :
परं तु उस दशा म� िजसम� 10[आक्षेप �रट�न�ग आ�फसर �ारा उठाया जाता है या �कसी अन्य �िक्त �ारा �कया जाता है] संपृक्त
अभ्यथ� को संवीक्षा के िलए िनयत तारीख से एक �दन छोड़कर अगले �दन तक का न �क उसके पश्चात् का समय उसका खंडन करने के
िलए अनुज्ञात �कया जा सके गा और �रट�न�ग आ�फसर अपना िविनश्चय उस तारीख को, िजस तक कायर्वािहयां स्थिगत क� गई ह�;
अिभिलिखत करे गा ।
(6) �रट�न�ग आ�फसर हर एक नामिनद�शन-प� पर उसे �ितगृहीत करने या �ितक्षेिपत करने का अपना िविनश्चय पृष्ठां�कत
करे गा और य�द नामिनद�शन-प� �ितक्षेिपत �कया गया है तो ऐसे �ितक्षेपण के िलए अपने कारण� का संिक्षप्त कथन िलिखत �प म�
अिभिलिखत करे गा ।
[(7) जब तक �क यह सािबत न कर �दया जाए �क वह लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) क� धारा 16 म�
11

व�णर्त िनरहर्ता के अध्यधीन है, �कसी िनवार्चन-क्षे� क� तत्समय �वृ� िनवार्चक नामावली म� क� �िविष्ट क� �मािणत �ित इस धारा के
�योजन� के िलए इस तथ्य का िनश्चायक सा�य होगी �क वह �िक्त, जो उस �िविष्ट म� िन�दर्ष्ट �कया गया है, उस िनवार्चन-क्षे� के
िलए िनवार्चक है ।
(8) �रट�न�ग आ�फसर सब नामिनद�शन-प�� क� संवीक्षा �कए जाने और उनके �ितगृहीत या �ितक्षेिपत �कए जाने के
िविनश्चय� के अिभिलिखत �कए जाने के अ�विहत पश्चात् िविधमान्यतः नामिन�दर्ष्ट अभ्य�थर्य� क� अथार्त् उन अभ्य�थर्य� क�, िजनके
नामिनद�शन िविधमान्य ठहराए गए ह�, सूची तैयार करे गा और उसे अपने सूचना फलक पर लगवाएगा ।]
37. अभ्य�थर्ता वापस लेना—(1) कोई भी अभ्यथ� अपनी अभ्य�थर्ता ऐसी िलिखत सूचना �ारा वापस ले सके गा िजसम� ऐसी
िविशिष्टयां अन्त�वर्ष्ट ह�गी जैसी िविहत क� जाएं और जो स्वयं उस �ारा हस्ताक्ष�रत ह�गी और �रट�न�ग आ�फसर को या तो स्वयं ऐसे
अभ्यथ� �ारा या उसके �स्थापक �ारा 12*** या ऐसे िनवार्चन अिभकतार् �ारा जो ऐसे अभ्यथ� �ारा िलिखत �प म� इस िनिम�
�ािधकृ त �कया गया है धारा 30 के खण्ड (ग) के अधीन िनयत �दन को अपराह्न तीन बजे से पहले प�रद� कर दी जाएगी ।
12
* * * * *

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा खंड (क) से खंड (ङ) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 9 �ारा (20-9-1961 से) “�क अभ्यथ�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा अन्त:स्थािपत “और” शब्द का 1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसूची �ारा लोप �कया गया ।
4
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसूची �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
6
1956 के अिधिनयम सं 27 क� धारा 19 �ारा “�ितक्षेिपत” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा “खंड (ग), खंड (घ) या खंड (ङ) ” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा “ नामंजूरी” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा “�ािविधक” शब्द का लोप �कया गया ।
10
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 9 �ारा (20-9-1961 से) “कोई आपि� क� गई है” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
11
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 19 �ारा उपधारा (7) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
12
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 20 �ारा “समथर्क” शब्द और परन्तुक का लोप �कया गया ।
18

(2) िजस �िक्त ने अपनी अभ्य�थर्ता वापस लेने क� सूचना उपधारा (1) के अधीन दी है उसे उस सूचना को र� करने के िलए
अनुज्ञात न �कया जाएगा ।
[(3) �रट�न�ग आ�फसर अभ्य�थर्ता वापस लेने क� सूचना के असली होने के बारे म� और उपधारा (1) के अधीन उसे प�रद�
122
1

करने वाले �िक्त क� अनन्यता के बारे म� अपना समाधान हो जाने पर उस सूचना को अपने कायार्लय के �कसी सहजदृश्य स्थान म�
लगवाएगा ।]
[38. िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� सूची का �काशन—(1) �रट�न�ग आ�फसर उस कालाविध के िजसके भीतर धारा 37
2

क� उपधारा (1) के अधीन अभ्य�थर्ताएं वापस ली जा सक� गी, अवसान के अ�विहत पश्चात् िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� अथार्त्
उन अभ्य�थर्य� क�, जो िविधमान्यतः नामिन�दर्ष्ट अभ्य�थर्य� क� सूची के अन्तगर्त थे और िजन्ह�ने उक्त कालाविध के भीतर अपनी
अभ्य�थर्ता वापस नह� ली है, सूची ऐसे ��प और रीित म� जैसी िविहत क� जाए, तैयार करे गा और �कािशत करे गा ।
[(2) उपधारा (1) के अधीन नाम� को सूचीब� करने के �योजन के िलए अभ्य�थर्य� को िनम्निलिखत �प म� वग�कृ त �कया
3

जाएगा, अथार्त् :—
(i) मान्यता�ाप्त राजनैितक दल� के अभ्यथ� ;
(ii) खंड (i) म� उिल्लिखत अभ्य�थर्य� से िभन्न रिजस्�ीकृ त राजनैितक दल� के अभ्यथ� ;
(iii) अन्य अभ्यथ� ।
(3) उपधारा (2) म� उिल्लिखत �वगर् उसम� िविन�दर्ष्ट �प म� �मब� �कए जाएंगे और �त्येक �वगर् म� से अभ्य�थर्य� के नाम
वणर्�म म� तथा िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� के पते ऐसे जैसे वे नामिनद�शन-प�� म� �दए गए ह�, ऐसी अन्य िविशिष्टय� सिहत, जो
िविहत क� जाएं, �मब� �कए जाएंगे ।]
[39. अन्य िनवार्चन� म� अभ्य�थर्य� का नामिनद�शन—(1) जैसे ही �कसी राज्य क� िवधान सभा के िनवार्िचत सदस्य� से या
4

�कसी 5[संघ राज्यक्षे�] के िनवार्चकगण के सदस्य� से सदस्य या सदस्य� का िनवार्चन करने के िलए अपेक्षा करने वाली अिधसूचना
िनकाली जाए वैसे ही िनवार्चन आयोग शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा—
(क) नामिनद�शन करने के िलए अिन्तम तारीख, जो �थम व�णर्त अिधसूचना के �काशन क� तारीख के पश्चात् वाले
6
[सातव� �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो लोक अवकाश
�दन नह� है ;
(ख) नामिनद�शन� क� संवीक्षा क� तारीख जो नामिनद�शन करने के िलए िनयत अंितम तारीख के 7[अ�विहत
आगामी �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो लोक अवकाश
�दन नह� है;
(ग) अभ्य�थर्ताएं वापस लेने के िलए िनयत अंितम तारीख जो नामिनद�शन� क� संवीक्षा के िलए िनयत तारीख के
पश्चात् 8[दूसरे �दन] क� होगी या य�द वह �दन लोक अवकाश �दन है, तो िनकटतम उ�रवत� ऐसे �दन क� होगी जो लोक
अवकाश �दन नह� है;
(घ) वह तारीख या वे तारीख� िजसको या िजनको य�द आवश्यक हो तो मतदान होगा और जो तारीख या िजन
तारीख� म� से पहली तारीख अभ्य�थर्ताएं वापस लेने के िलए िनयत अंितम तारीख के पश्चात् सातव� �दन के पूवर्तर न होने
वाली तारीख होगी; तथा
(ङ) वह तारीख िजसके पूवर् िनवार्चन समाप्त कर िलया जाएगा,
िनयत करे गा ।
9
* * * * *
(2) धारा 33 क� उपधारा (2) और (5) और 1[धारा 34 क� उपधारा (1) के खण्ड (क)] का अपवजर्न करके धारा 31 से लेकर
धारा 38 तक के उपबंध �कसी ऐसे िनवार्चन के संबंध म� ऐसे लागू ह�गे जैसे वे �कसी िनवार्चन-क्षे� म� के िनवार्चन के संबंध म� लागू होते ह�
:

1
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 10 �ारा (20-9-1961 से) उपधारा (3) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 21 �ारा धारा 38 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 8 �ारा (1-8-1996 से) उपधारा (2) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 22 �ारा धारा 39 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “ भाग ग राज्य” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 11 �ारा (20-9-1961 से) “दसव� �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 30 �ारा (14-12-1966 से) “दूसरे �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 30 �ारा (14-12-1966 से) “तीसरे �दन” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 30 �ारा (14-12-1966 से) स्पष्टीकरण का लोप �कया गया ।
19

1
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 19 �ारा “धारा 34” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
20

परं तु—
(क) जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो िनवार्चन-क्षे� क� िनवार्चक नामावली के �ित जो कोई िनदेश उक्त
उपबंध� म� ह� उनका अथर् यह लगाया जाएगा �क वे राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� या िनवार्िचत सदस्य� �ारा िनवार्चन क�
दशा म� उस सभा के , यथािस्थित, सदस्य� या िनवार्िचत सदस्य� क� उस सूची के �ित िनद�श ह� जो धारा 152 क� उपधारा (1) के
अधीन रखी जाती ह�, और �कसी 1[संघ राज्यक्षे�] के िनवार्चकगण के सदस्य� �ारा िनवार्चन क� दशा म� ऐसे िनवार्चकगण के
सदस्य� क� उस सूची के �ित िनद�श ह� जो उस धारा क� उपधारा (2) के अधीन रखी जाती है ;
[(कक) धारा 33 क� उपधारा (1) के �ारिम्भक पैरा म� “िनवार्चन-क्षे� म� के एक िनवार्चक �ारा �स्थापक के �प म�”
2

के �ित िनद�श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह “यथािस्थित, िनवार्िचत सदस्य� के या �कसी राज्य क� िवधान सभा के
सदस्य� के या संघ राज्यक्षे� के िनवार्चकगण के सदस्य� के दस �ितशत �ारा या संबंिधत दस सदस्य� �ारा, इनम� से जो भी
कम हो, �स्थापक� के �प म�” के �ित िनद�श है :
परं तु जहां इस खंड म� िन�दर्ष्ट �ितशतता क� गणना के प�रणामस्व�प �ाप्त सदस्य संख्या म� कोई िभन्न आती है
और य�द इस �कार �ाप्त िभन्न आधे से अिधक है तो उसे एक िगना जाएगा और य�द इस �कार �ाप्त िभन्न आधी से कम है
तो उसक� उपेक्षा क� जाएगी ;]
[ [(कख)] �कसी राज्य क� िवधान प�रषद् के उस राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� �ारा िनवार्चन क� दशा म� धारा
3 4

36 क� उपधारा (2) के खंड (क) का, अथर् यह लगाया जाएगा �क उसके अन्तगर्त अनुच्छेद 171 के खंड (3) के उपखंड (घ) के
�ित िनद�श आता है ;]
(ख) धारा 30 के �ित जो कोई िनद�श उक्त उपबंध� म� ह� उनका अथर् यह लगाया जाएगा �क वे उस धारा क� उपधारा
(1) के �ित िनद�श ह�, तथा
(ग) �रट�न�ग आ�फसर नामिनद�शन-प� के उपिस्थत �कए जाने के समय उसे पेश करने वाले �िक्त से यह अपेक्षा कर
सके गा �क वह िनवार्चक नामावली क� या िनवार्चक नामावली के उस भाग क� िजसम� अभ्यथ� का नाम सिम्मिलत है एक �ित
अथवा ऐसी िनवार्चक नामावली म� क� सुसंगत �िविष्टय� क� एक �मािणत �ित उपिस्थत करे ।]
[39क. समय क� साम्यापूणर् भागीदारी का आबंटन—(1) तत्समय �वृ� �कसी अन्य िविध म� �कसी बात के होते �ए भी,
5

िनवार्चन आयोग, िनवार्चन� के दौरान, �कसी मान्यता�ाप्त राजनैितक दल के पूवर् �दशर्न के आधार पर, के बल टेलीिवजन नेटवकर् और
अन्य इलैक्�ािनक मीिडया पर समय क� साम्यापूणर् भागीदारी का आबंटन ऐसी रीित से करे गा जो �कसी िनवार्चन िवषय के सं�दशर्न या
�चार के िलए या �कसी िनवार्चन के संबंध म� जनता को संबोिधत करने के िलए, िविहत क� जाए ।
(2) �कसी िनवार्चन के संबंध म�, उपधारा (1) के अधीन समय क� साम्यापूणर् भागीदारी का आबंटन, िनवार्चन के िलए धारा 38
के अधीन िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� सूची के �काशन के पश्चात्, �कया जाएगा और वह ऐसे िनवार्चन के िलए मतदान के िलए
िनयत समय के अड़तालीस घंटे पूवर् तक िविधमान्य होगा ।
(3) उपधारा (1) के अधीन समय क� साम्यापूणर् भागीदारी का आबंटन सभी संबंिधत राजनैितक दल� पर आब�कर होगा ।
(4) िनवार्चन आयोग, इस धारा के �योजन� के िलए, के बल आपरे टर� और इलैक्�ािनक मीिडया के िलए आचार संिहता बना
सके गा और के बल आपरे टर तथा इलैक्�ािनक मीिडया का �बंध करने वाला या �बंध करने के िलए उ�रदायी �त्येक �िक्त, ऐसी आचार
संिहता का पालन करे गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन� के िलए,—
(क) “इलैक्�ािनक मीिडया” के अंतगर्त रे िडयो और कोई अन्य �सारण मीिडया है जो के न्�ीय सरकार �ारा राजप�
म� अिधसूिचत �कया गया हो;
(ख) “के बल टेलीिवजन नेटवकर् ” और “के बल आपरे टर” के वही अथर् ह� जो �मशः उनके के बल टे लीिवजन नेटवकर्
(िविनयमन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 7) म� ह� ।]

1
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “ भाग ग राज्य” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 8 �ारा (1-4-1989 से) अंतःस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 30 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
4
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 8 �ारा (1-4-1989 से) खंड (कक) खंड (कख) के �प म� पुनःसंख्यां�कत ।
5
2003 के अिधिनयम सं० 46 क� धारा 3 �ारा (24-9-2003 से) अंतःस्थािपत ।
21

अध्याय 2—अभ्यथ� और उनके अिभकतार्


[40. िनवार्चन अिभकतार्—िनवार्चन म� अभ्यथ� अपने से िभन्न �कसी एक �िक्त को अपना िनवार्चन अिभकतार् होने के िलए
1

िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा और जब�क ऐसी कोई िनयुिक्त क� जाए तब उस िनयुिक्त क� सूचना �रट�न�ग आ�फसर को िविहत
रीित म� दी जाएगी।]
[41. िनवार्चन अिभकतार् होने के िलए िनरहर्ता—कोई भी �िक्त, जो संिवधान के अधीन या इस अिधिनयम के अधीन संसद्
2

के दोन� सदन� म� से �कसी का या �कसी राज्य के िवधान-मंडल के सदन का या दोन� सदन� म� से �कसी का सदस्य होने या रहने के िलए,
या िनवार्चन� म� मत देने के िलए तत्समय िनर�हर्त है, तब तक जब तक �क िनरहर्ता िव�मान है, �कसी भी िनवार्चन म� िनवार्चन
अिभकतार् होने के िलए भी िनर�हर्त होगा।]
42. िनवार्चन अिभकतार् क� िनयुिक्त का �ितसंहरण या उसक� मृत्यु—(1) िनवार्चन अिभकतार् 3*** क� िनयुिक्त का कोई भी
�ितसंहरण अभ्यथ� �ारा हस्ताक्ष�रत �कया जाएगा और उस तारीख से �व�तर्त होगा िजस तारीख को वह �रट�न�ग आ�फसर के पास
दािखल �कया जाए ।
[(2) ऐसे �ितसंहरण क� या िनवार्चन अिभकतार् क� मृत्यु क� दशा म� चाहे वह घटना िनवार्चन के पूवर् या दौरान या िनवार्चन के
4

पश्चात् �कन्तु अभ्यथ� के िनवार्चन �य� के लेखा� क� धारा 78 के उपबंध� के अनुसार दािखल �कए जाने के पूवर् �ई हो, अभ्यथ� �कसी
अन्य �िक्त को अपना िनवार्चन अिभकतार्, िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा और जब�क ऐसी िनयुिक्त हो जाए, तब उस िनयुिक्त क�
सूचना �रट�न�ग आ�फसर को िविहत रीित म� दी जाएगी ।]
43. [धारा 42 के अन्तगर्त िनवार्चन अिभकतार् क� िनयुिक्त क� �ु�ट पर �भाव ।]—लोक �ितिनिधत्व (दूसरा संशोधन)
अिधिनयम, 1956 (1956 का 27) क� धारा 25 �ारा िनरिसत ।
44. [िनवार्चन अिभकतार् का लेखा रखने का कृ त्य ।]—लोक �ितिनिधत्व (दूसरा संशोधन) अिधिनयम, 1956 (1956 का 27)
क� धारा 25 �ारा िनरिसत ।
[45. िनवार्चन अिभकतार्� के कृ त्य—िनवार्चन अिभकतार् िनवार्चन के संबंध म� ऐसे कृ त्य� का पालन कर सके गा जैसे िनवार्चन
5

अिभकतार् �ारा �कए जाने के िलए इस अिधिनयम के �ारा या अधीन �ािधकृ त ह� ।]


[46. मतदान अिभकतार्� क� िनयुिक्त—िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ� या उसका िनवार्चन अिभकतार् इतनी संख्या म�
6

अिभकतार् और अवमुिक्त अिभकतार् िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा िजतनी धारा 25 के अधीन उपबंिधत हर एक मतदान के न्� म� या
मतदान के िलए धारा 29 क� उपधारा (1) के अधीन िनयत स्थान म� ऐसे अभ्यथ� के मतदान अिभकतार्� के �प म� कायर् करने के िलए
िविहत क� जाए ।]
[47. गणन अिभकतार्� क� िनयुिक्त—िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ� या उसका िनवार्चन अिभकतार् एक या अिधक �कन्तु
7

ऐसी संख्या से अनिधक, जैसी िविहत क� जाए, �िक्तय� को अपने गणन अिभकतार्� या अिभकतार्� के �प म� मत� क� गणना के अवसर
पर उपिस्थत रहने के िलए िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा और जब�क ऐसी कोई िनयुिक्त क� जाए तब उस िनयुिक्त क� सूचना
�रट�न�ग आ�फसर को िविहत रीित म� दी जाएगी ।]
48. मतदान अिभकतार्� या गणन अिभकतार् क� िनयुिक्त का �ितसंहरण या उसक� मृत्यु—(1) मतदान अिभकतार् क� िनयुिक्त
का कोई भी �ितसंहरण अभ्यथ� �ारा या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा हस्ताक्ष�रत �कया जाएगा, और उस तारीख से �व�तर्त होगा
िजस तारीख को वह ऐसे आ�फसर के पास, जैसा िविहत �कया जाए, दािखल �कया गया है और मतदान के बंद होने से पूवर् ऐसे �ितसंहरण
क� या मतदान अिभकतार् क� मृत्यु क� दशा म�, अभ्यथ� या उसका िनवार्चन अिभकतार् मतदान बन्द होने से पूवर् �कसी भी समय दूसरा
मतदान अिभकतार् िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा और ऐसी िनयुिक्त क� सूचना िविहत रीित म� ऐसे आ�फसर को तत्क्षण देगा जैसा
िविहत �कया जाए ।
(2) गणन अिभकतार् क� िनयुिक्त का कोई भी �ितसंहरण अभ्यथ� �ारा या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा हस्ताक्ष�रत �कया
जाएगा और उस तारीख से �व�तर्त होगा िजस तारीख को वह �रट�न�ग आ�फसर के पास दािखल �कया गया है और मत� क� गणना के
�ारम्भ होने से पूवर् ऐसे �ितसंहरण क� या गणन अिभकतार् क� मृत्यु क� दशा म� अभ्यथ� या उसका िनवार्चन अिभकतार् मत� क� गणना के
�ारम्भ होने से पूवर् �कसी भी समय दूसरा गणन अिभकतार् िविहत रीित म� िनयुक्त कर सके गा और ऐसी िनयुिक्त क� सूचना �रट�न�ग
आ�फसर को िविहत रीित म� तत्क्षण देगा ।
49. मतदान अिभकतार्� और गणन अिभकतार्� के कृ त्य—(1) मतदान अिभकतार् मतदान से संसक्त ऐसे कृ त्य� का पालन कर
सके गा जैस� का मतदान अिभकतार् �ारा पालन �कया जाना इस अिधिनयम के �ारा या अधीन �ािधकृ त है ।

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 23 �ारा धारा 40 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 31 �ारा (14-12-1966 से) धारा 41 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 24 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 24 �ारा उपधारा (2) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 26 �ारा धारा 45 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 27 �ारा धारा 46 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 28 �ारा धारा 47 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
22

(2) गणन अिभकतार् मत� क� गणना से संसक्त ऐसे कृ त्य� का पालन कर सके गा जैस� का गणन अिभकतार् �ारा पालन �कया
जाना इस अिधिनयम के �ारा या अधीन �ािधकृ त है ।
50. िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� मतदान के न्�� म� हािजरी और मतदान अिभकतार् या गणन
अिभकतार् के कृ त्य� का उसके �ारा पालन—(1) हर ऐसे िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है ऐसे िनवार्चन म� के हर एक 1[िनवार्चन लड़ने
वाले अभ्यथ�] और उसके िनवार्चन अिभकतार् का यह अिधकार होगा �क वह मतदान के िलए धारा 25 के अधीन उपबंिधत �कसी भी
मतदान के न्� म� या मतदान के िलए धारा 29 क� उपधारा (1) के अधीन िनयत �कसी भी स्थान म� उपिस्थत रहे ।
(2) 1[िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ�] या उसका िनवार्चन अिभकतार् स्वयं वह कायर् या बात कर सके गा िजसे य�द ऐसे िनवार्चन
लड़ने वाले अभ्यथ� या कोई मतदान अिभकतार् या गणन अिभकतार् िनयुक्त �कया गया होता तो वह उसे करने के िलए इस अिधिनयम के
�ारा या अधीन �ािधकृ त होता या ऐसे 1[िनवार्चन लड़ने वाले अभ्यथ�] के �कसी भी मतदान अिभकतार् या गणन अिभकतार् क� �कसी ऐसे
कायर् या बात करने म� सहायता कर सके गा ।
51. मतदान या गणन अिभकतार्� क� गैरहािजरी—जहां �क कोई कायर् या बात मतदान या गणन अिभकतार् क� उपिस्थित म�
�कए जाने के िलए इस अिधिनयम के �ारा या अधीन अपेिक्षत या �ािधकृ त है, वहां उस �योजन के िलए िनयत समय और स्थान पर
�कसी ऐसे अिभकतार् या अिभकतार्� क� गैरहािजरी उस �कए गए कायर् या बात को, य�द वह कायर् या बात अन्यथा सम्यक् �प से क� गई,
अिविधमान्य नह� करे गी ।
अध्याय 3—िनवार्चन� म� साधारण ���या
[52. मतदान के पूवर् मान्यता�ाप्त राजनैितक दल के अभ्यथ� क� मृत्यु—(1) य�द ऐसे अभ्यथ� क�, जो �कसी मान्यता�ाप्त
2

राजनैितक दल �ारा खड़ा �कया गया है,—


(क) नामिनद�शन करने के अंितम तारीख को पूवार्ह्न 11 बजे के पश्चात् �कसी समय मृत्यु हो जाती है और उसका
नामिनद�शन धारा 36 के अधीन संवीक्षा पर िविधमान्य ठहराया गया है ; या
(ख) िजसका नामिनद�शन धारा 36 के अधीन संवीक्षा पर िविधमान्य ठहराया गया है और िजसने धारा 37 के अधीन
अपनी अभ्य�थर्ता वापस नह� ली है, मृत्यु हो जाती है,
और दोन� म� से �त्येक दशा म�, उसक� मृत्यु क� �रपोटर्, धारा 38 के अधीन िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� सूची के �काशन के पूवर्
�कसी समय, �ाप्त हो जाती है ; या
(ग) िनवार्चन लड़ने वाले अभ्यथ� के �प म� मृत्यु हो जाती है और उसक� मृत्यु क� �रपोटर्, मतदान के �ारं भ होने के
पूवर् �ाप्त हो जाती है,
तो �रट�न�ग आ�फसर, उस अभ्यथ� क� मृत्यु के तथ्य के संबंध म� अपना समाधान हो जाने पर, आदेश �ारा, उस तारीख तक जो बाद म�
अिधसूिचत क� जाएगी, मतदान के स्थगन क� घोषणा करे गा और इस तथ्य क� �रपोटर् िनवार्चन आयोग को और समुिचत �ािधकारी को
भी करे गा :
परं तु खंड (क) म� िन�दर्ष्ट दशा म�, मतदान का स्थगन करने वाला कोई आदेश, सभी नामिनद�शन� क�, िजनके अंतगर्त मृत
अभ्यथ� का नामिनद�शन है, संवीक्षा के पश्चात् ही �कया जाएगा, अन्यथा नह� ।
(2) िनवार्चन आयोग, उपधारा (1) के अधीन �रट�न�ग आ�फसर से �रपोटर् �ाप्त होने पर, उस मान्यता�ाप्त राजनैितक दल से,
िजसके अभ्यथ� क� मृत्यु हो गई है, उक्त मतदान के िलए ऐसे राजनैितक दल को ऐसी सूचना के जारी �कए जाने से सात �दन के भीतर
�कसी अन्य अभ्यथ� को नामिन�दर्ष्ट करने क� अपेक्षा करे गा और धारा 30 से धारा 37 के उपबंध, जहां तक हो सके , ऐसे नामिनद�शन के
संबंध म� वैसे ही लागू ह�गे जैसे वे अन्य नामिनद�शन� के संबंध म� लागू होते :
परं तु ऐसा कोई �िक्त, िजसने मतदान का स्थगन �कए जाने के पूवर् अपनी अभ्य�थर्ता वापस लेने क� सूचना धारा 37 क�
उपधारा (1) के अधीन दे दी है, ऐसा स्थगन �कए जाने के पश्चात् िनवार्चन के िलए अभ्यथ� के �प म� नामिनद�शन �कए जाने के िलए
अपा� नह� होगा ।
(3) जहां िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� कोई सूची, उपधारा (1) के अधीन मतदान के स्थगन के पूवर्, धारा 38 के अधीन,
�कािशत क� गई थी वहां �रट�न�ग आ�फसर िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� नई सूची उस धारा के अधीन नए िसरे से तैयार करे गा
और �कािशत करे गा िजसम� �क उस अभ्यथ� का नाम, िजसे उपधारा (2) के अधीन िविधमान्य �प से नामिन�दर्ष्ट �कया गया है,
सिम्मिलत �कया जा सके ।
स्पष्टीकरण—इस धारा, धारा 33 और धारा 38 के �योजन� के िलए, “मान्यता�ाप्त राजनैितक दल” से िनवार्चन �तीक
(आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 के अधीन िनवार्चन आयोग �ारा मान्यता�ाप्त राजनैितक दल अिभ�ेत है ।]
53. सिवरोध और अिवरोध िनवार्चन� म� ���या— 3[(1) य�द िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� संख्या भरे जाने वाले स्थान�
क� संख्या से अिधक है, तो मतदान होगा ।]

1
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 20 �ारा “अभ्यथ�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1992 के अिधिनयम सं० 2 क� धारा 2 �ारा तत्पश्चात् 1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 9 �ारा (1-8-1996 से) धारा 52 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 30 �ारा उपधारा (1) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
23

(2) य�द ऐसे अभ्य�थर्य� क� संख्या भरे जाने वाले स्थान� क� संख्या के बराबर है, तो �रट�न�ग आ�फसर तत्क्षण ऐसे सभी
अभ्य�थर्य� के उन स्थान� को भरने के िलए सम्यक् �प से िनवार्िचत घोिषत कर देगा ।
(3) य�द ऐसे अभ्य�थर्य� क� संख्या भरे जाने वाले स्थान� क� संख्या से कम है, तो �रट�न�ग आ�फसर तत्क्षण ऐसे सभी
अभ्य�थर्य� को िनवार्िचत घोिषत कर देगा और 1[िनवार्चन आयोग,] यथािस्थित, सम्पृक्त िनवार्चन-क्षे� से या िनवार्िचत सदस्य� से या
राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� से या िनवार्चकगण के सदस्य� से 2*** शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा अपेक्षा करे गा �क वे शेष
स्थान या स्थान� को भरने के िलए �िक्त या �िक्तय� को िनवार्िचत कर� 3*** :
परं तु जहां �क िनवार्चन-क्षे� या िनवार्िचत सदस्य� या राज्य िवधान सभा के सदस्य� या िनवार्चकगण के सदस्य� से 2*** इस
उपधारा के अधीन पहले ही ऐसी अपेक्षा क� जा चुक� है और वह या वे �रिक्त या �रिक्तय� को भरने के िलए अपेिक्षत संख्या म�,
यथािस्थित, �िक्त या �िक्तय� को िनवार्िचत करने म� असफल रहा है या रहे ह� वहां 1[िनवार्चन आयोग] �िक्त या �िक्तय� को
िनवार्िचत करने के िलए िनवार्िचत क्षे� से या ऐसे सदस्य� से पुनः अपेक्षा करने के िलए तब तक आब� न होगा 4[जब तक �क उसका
समाधान नह� हो जाता �क य�द उससे या उनसे पुनः अपेक्षा क� गई तो ऐसा िनवार्चन-क्षे� या ऐसे सदस्य ऐसे असफल न रहेगा या न
रह�ग]े ।
54. [अनुसिू चत जाितय� या अनुसिू चत जनजाितय� के िलए जहां स्थान आरिक्षत ह� वहां िनवार्चन के िलए िनवार्चन-क्षे�� म�
िवशेष ���या ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1961 (1961 का 40) क� धारा 2 �ारा (20-9-1961 से ) िनरिसत ।
55. अनुसिू चत जाितय� या अनुसिू चत जनजाितय� के िलए जो स्थान आरिक्षत नह� ह� उन्ह� धारण करने क� उन जाितय� या
जनजाितय� के सदस्य� क� पा�ता—शंका के प�रवजर्न के िलए एतद्�ारा घोिषत �कया जाता है �क अनुसूिचत जाितय� का या अनुसूिचत
जनजाितय� का कोई सदस्य �कसी ऐसे स्थान को जो उन जाितय� या जनजाितय� के सदस्य� के िलए आरिक्षत नह� ह�, धारण करने के
िलए िनर�हर्त नह� होगा य�द वह, 5[यथािस्थित,] संिवधान और इस अिधिनयम के 5[या संघ राज्यक्षे� शासन अिधिनयम, 1963
(1963 का 49)] के अधीन उस स्थान को धारण करने के िलए अन्यथा अ�हर्त है ।
55क. [संसदीय और िवधान सभा िनवार्चन-क्षे�� म� िनवार्चन लड़ने से िनवृ� होना ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन)
6

अिधिनयम, 1958 (1958 का 58) क� धारा 22 �ारा िनरिसत ।


अध्याय 4—मतदान
56. मतदान के िलए समय िनयत करना— [िनवार्चन आयोग] ऐसा समय िनयत करे गा िजसके दौरान मतदान होगा और ऐसा
7

िनयत समय ऐसी रीित म� �कािशत �कया जाएगा जैसा िविहत �कया जाए :
परं तु 8[संसदीय या सभा के िनवार्चन-क्षे�] म� िनवार्चन के िलए मतदान के िलए आबं�टत कु ल कालाविध �कसी एक �दन म� आठ
घंट� से कम क� न होगी ।
57. आपात म� मतदान का स्थगन—(1) य�द िनवार्चन म� धारा 25 के अधीन उपबिन्धत �कसी मतदान के न्� म� या मतदान के
िलए धारा 29 क� उपधारा (1) के अधीन िनयत स्थान म� कायर्वािहय� म� बलवे या खुली �हंसा के �ारा िवघ्न या बाधा पड़ जाए या य�द
िनवार्चन म� �कसी मतदान के न्� या ऐसे स्थान म� �कसी �ाकृ ितक िवपि� के कारण या �कसी अन्य पयार्प्त हेतुक से मतदान होना संभव
नह� है, तो, यथािस्थित, ऐसे मतदान के न्� के िलए पीठासीन आ�फसर या ऐसे स्थान म� पीठासीन �रट�न�ग आ�फसर मतदान को ऐसी
तारीख तक के िलए स्थिगत �कए जाने का आख्यापन करे गा जो तत्पश्चात् अिधसूिचत क� जाएगी और जहां �क मतदान पीठासीन
आ�फसर �ारा ऐसे स्थिगत �कया जाता है, वहां वह संयुक्त �रट�न�ग आ�फसर को तत्क्षण इि�ला देगा ।
(2) जब कभी मतदान उपधारा (1) के अधीन स्थिगत �कया जाए तब �रट�न�ग आ�फसर प�रिस्थितय� क� �रपोटर् समुिचत
�ािधकारी और िनवार्चन आयोग को अिवलम्ब करे गा और वह िनवार्चन आयोग के पूवर् अनुमोदन से यथाशक्य शी� वह �दन िनयत करे गा
िजसको मतदान पुनः �ारम्भ होगा और वह मतदान के न्� या स्थान जहां, और वह समय िजसके भीतर मतदान होगा, िनयत करे गा और
ऐसे िनवार्चन म� �दए गए मत� क� गणना तब तक न करे गा जब तक ऐसा स्थिगत मतदान पूरा न हो गया हो ।
(3) �रट�न�ग आ�फसर यथापूव�क्त हर मामले म�, मतदान के िलए वह तारीख, स्थान और समय, जो उपधारा (2) के अधीन
िनयत क� गई या �कया गया है, ऐसी रीित म� अिधसूिचत करे गा जैसी िनवार्चन आयोग िन�दर्ष्ट करे ।
155
9
[58. मतपे�टय� के िवनष्ट होने आ�द क� दशा म� नया मतदान—(1) य�द �कसी िनवार्चन म�—

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 30 �ारा “समुिचत �ािधकारी” शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 49 क� धारा 44 और पांचवी अनुसूची �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 30 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 30 �ारा “जब तक �क िनवार्चन आयोग इस िनिम� ऐसी तारीख िविन�दर्� करे ” शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसूची �ारा अंतःस्थािपत । 1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 32 �ारा “या भाग ग राज्य� क� सरकार
अिधिनयम, 1951 (1951 का 49) के अधीन जैसी भी िस्थित हो” अंतःस्थािपत शब्द� का िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा लोप �कया गया ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 33 �ारा अंतःस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 34 �ारा “समुिचत �ािधकारी” शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 23 �ारा “िनवार्चन-क्षे�” शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 13 �ारा ( 20-9-1961 से) धारा 58 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
24

(क) मतदान के न्� म� या मतदान के िलए िनयत स्थान म� उपयोग म� लाई गई कोई मतपेटी पीठासीन आ�फसर या
�रट�न�ग आ�फसर क� अिभरक्षा म� से िविधिव��तया िनकाल ली जाती है या घटनावश या साशय िवनष्ट हो जाती है या कर
दी जाती है या खो जाती है या खो दी जाती है अथवा इस िवस्तार तक उसे नुकसान प�ंचाया जाता है या उसम� गड़बड़ कर दी
जाती है �क उस मतदान के न्� या स्थान पर के मतदान का प�रणाम अिभिनिश्चत नह� �कया जा सकता, अथवा
156
1
[(कक) �कसी मतदान मशीन म� अिभिलिखत करने के अनु�म म� कोई यांि�क िवफलता पैदा हो जाती है, अथवा]
(ख) मतदान के न्� या मतदान के िलए िनयत स्थान म� ���या संबंधी ऐसी कोई गलती या अिनयिमतता क� जाती है
िजससे यह सम्भा� है �क मतदान दूिषत हो जाए,

तो �रट�न�ग आ�फसर उस मामले क� �रपोटर् िनवार्चन आयोग को तत्क्षण करे गा ।


(2) िनवार्चन आयोग तब सब ताि�वक प�रिस्थितय� को ध्यान म� रख कर, या तो—
(क) उस मतदान के न्� या स्थान म� उस मतदान को शून्य घोिषत करे गा, उस मतदान के न्� या स्थान म� नए मतदान के
िलए �दन और समय िनयत करे गा और ऐसे िनयत �दन और िनयत समय को ऐसी रीित म� अिधसूिचत करे गा जैसी वह ठीक
समझे, अथवा
(ख) य�द उसका यह समाधान हो जाता है �क उस मतदान के न्� या स्थान म� नए मतदान के प�रणाम से िनवार्चन
प�रणाम �कसी भी �कार �भािवत नह� होगा या �क 1[मतदान मशीन क� यांि�क िवफलता या] ���या संबंधी गलती या
अिनयिमतता ताि�वक नह� है, तो �रट�न�ग आ�फसर को उस िनवार्चन के आगे संचालन और पूरा �कए जाने के िलए ऐसे िनदेश
देगा जैसे वह उिचत समझे ।
(3) इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� या �कए गए आदेश� के उपबंध हर ऐसे नए मतदान को ऐसे लागू ह�गे
जैसे वे मूल मतदान को लागू ह� ।]
[58क. बूथ� के बलात् �हण के कारण मतदान का स्थिगत या िनवार्चन का �त्या�दष्ट �कया जाना—(1) य�द �कसी
157
2

िनवार्चन म�,—
(क) �कसी मतदान के न्� पर या मतदान पर या मतदान के िलए िनयत स्थान पर (िजसे इस धारा म� इसके पश्चात्
स्थान कहा गया है) बूथ का बलात् �हण ऐसी रीित से �कया गया है िजससे ऐसे मतदान के न्� या स्थान म� मतदान का प�रणाम
अिभिनिश्चत नह� �कया जा सकता है; अथवा
(ख) �कसी मतगणना स्थान पर बूथ का बलात् �हण ऐसी रीित से �कया जाता है �क उस स्थान पर मतगणना का
प�रणाम अिभिनिश्चत नह� �कया जा सकता है,
तो �रट�न�ग आ�फसर उस मामले क� �रपोटर् िनवार्चन आयोग को तत्क्षण करे गा ।
(2) िनवार्चन आयोग �रट�न�ग आ�फसर से उपधारा (1) के अधीन �रपोटर् �ाप्त होने पर और सब ताि�वक प�रिस्थितय� को
ध्यान म� रख कर या तो,—
(क) उस मतदान के न्� या स्थान म� उस मतदान को, शून्य घोिषत करे गा, उस मतदान के न्� या स्थान म� नए िसरे से
मतदान के िलए �दन और समय िनयत करे गा और ऐसे िनयत �दन और समय को ऐसी रीित म� अिधसूिचत करे गा, जैसी वह
ठीक समझे ; अथवा
(ख) य�द उसका यह समाधान हो जाता है �क अिधक संख्या म� मतदान के न्�� या स्थान� के बलात् �हण को देखते
�ए, िनवार्चन के प�रणाम पर �भाव पड़ने क� संभा�ता है या यह �क बूथ� के बलात् �हण का मत� क� गणना पर ऐसी रीित
से �भाव पड़ा है िजससे िनवार्चन का प�रणाम �भािवत होगा, तो वह उस िनवार्चन-क्षे� म� िनवार्चन को �त्या�दष्ट करे गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म�, “बूथ� के बलात् �हण” का वही अथर् है जो धारा 135क म� है । ]
59. िनवार्चन� म� मत देने क� रीित—ऐसे हर िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है, मतप� �ारा ऐसी रीित म� मत �दए जाएंगे
जैसी िविहत क� जाए 3[और इस अिधिनयम �ारा अिभ�क्त �प से जैसा उपबंिधत है, उसके िसवाय, कोई मत परोक्षी के माध्यम से नह�
िलया जाएगा]:
4
[परन्तु राज्य सभा म� �कसी स्थान या स्थान� को भरने के िलए हर िनवार्चन म� खुले मतप� �ारा मत �दए जाएंगे ।]

1
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 9 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
2
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 10 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
3
2003 के अिधिनयम सं० 24 क� धारा 2 �ारा (22-9-2003 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 3 �ारा अंतःस्थािपत ।
25

[60. कु छ वग� के �िक्तय� �ारा मत �दए जाने के िलए िवशेष ���या—धारा 59 म� अन्त�वर्ष्ट उपबंध� क� �ापकता पर
1

�ितकू ल �भाव डाले िबना, इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम� �ारा,—


(क) �कसी �िक्त को, जो लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) (िजसे इस धारा म� इसके पश्चात्
1950 का अिधिनयम कहा गया है) क� धारा 20 क� उपधारा (8) के खंड (क) या खंड (ख) म� िन�दर्ष्ट �कया गया है, िनवार्चन-
क्षे� म� के �कसी िनवार्चन म�, स्वयं या डाक मतप� �ारा या परोक्षी �ारा, न �क �कसी अन्य रीित म�, अपना मत देने म� ;
(ख) िनम्निलिखत �िक्तय� म� से �कसी को िनवार्चन-क्षे� म� के �कसी िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है, स्वयं या
डाक-मतप� �ारा, न �क �कसी अन्य रीित म�, अपना मत देने म�, अथार्त् :—
(i) कोई ऐसा �िक्त, जो 1950 के अिधिनयम क� धारा 20 क� उपधारा (8) के खंड (ग) या खंड (घ) म�
िन�दर्ष्ट है ;
(ii) �कसी ऐसे �िक्त क�, िजसको 1950 के अिधिनयम क� धारा 20 क� उपधारा (3) के उपबंध लागू होते
ह�, पत्नी और जो पत्नी उस धारा क� उपधारा (6) के िनबंधन� के अनुसार उस �िक्त के साथ मामूली तौर पर
िनवास कर रही हो ;
(ग) �कसी ऐसे �िक्त को, जो �िक्तय� के �कसी ऐसे वगर् का �िक्त हो, जो िनवार्चन आयोग �ारा सरकार के
परामशर् से अिधसूिचत �कया गया है, िनवार्चन-क्षे� म� के �कसी िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है, ऐसी अपेक्षा� क� पू�तर्
करने के अध्यधीन रहते �ए, जैसी उन िनयम� �ारा िविन�दर्ष्ट क� जाएं, डाक मतप� �ारा, न �क �कसी अन्य रीित म�, अपना
मत देने म� ;
(घ) �कसी ऐसे �िक्त को, जो तत्समय �वृ� �कसी िविध के अधीन िनवारक िनरोध के अध्यधीन है, िनवार्चन-क्षे�
के ऐसे िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है, ऐसी अपेक्षा� क� पू�तर् करने के अध्यधीन रहते �ए, जैसी उन िनयम� �ारा
िविन�दर्ष्ट क� जाएं, डाक मतप� �ारा, न �क �कसी अन्य रीित म�, अपना मत देने म�,
समथर् बनाने के िलए उपबंध �कया जा सके गा ।]
[61. िनवार्चक� के �ित�पण का िनवारण करने के िलए िवशेष ���या—इस दृिष्ट से �क िनवार्चक� के �ित�पण का िनवारण
2

�कया जा सके ,—

(क) ऐसे हर िनवार्चक के , जो मतदान के न्� म� मत देने के �योजन के िलए मतप� या मतप�� के िलए आवेदन करता
है, अंगूठे या �कसी दूसरी अंगल
ु ी को अिमट] स्याही से, उसे ऐसे प� या ऐसे प�� के प�रदान के पूवर्, िचिह्नत करने के िलए,

(ख) य�द लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) के अधीन उस िनिम� बनाए गए िनयम� के अधीन,
उस िनवार्चन-क्षे� के , िजसम� मतदान के न्� िस्थत है, अभ्य�थर्य� को अिभज्ञान-प� उन पर संलग्न उनके अपने फोटो�ाफ� के
सिहत या उनके िबना �दए गए ह� तो यथोपरोक्त ऐसे हर िनवार्चक को मतप� या मतप�� के प�रदान के पूवर्, उसके �ारा
मतदान के न्� के पीठासीन आ�फसर या मतदान आ�फसर के समक्ष अपना अिभज्ञान-प� पेश �कए जाने के िलए, तथा

(ग) य�द िजस समय ऐसा �िक्त ऐसे मतप� के िलए आवेदन करता है उस समय उसके अंगूठे या �कसी दूसरी अंगुली
पर ऐसा िचह्न पहले से ही है या वह मांग पर अपने अिभज्ञान-प� को मतदान के न्� के पीठासीन आ�फसर या मतदान
आ�फसर के समक्ष पेश नह� करता तो वैसे �कसी �िक्त को मतदान के न्� म� मत देने के िलए �कसी मतप� के प�रदान का
�ितषेध करने के िलए,

उपबंध इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम� �ारा �कया जा सके गा ।]

[61क. िनवार्चन� म� मतदान मशीन�—इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िनयम� म� �कसी बात के होते �ए भी,
3

मतदान मशीन� से ऐसी रीित से, जो िविहत क� जाए, मत देना और अिभिलिखत करना ऐसे िनवार्चन-क्षे� या िनवार्चन-क्षे�� म� अंगीकार
�कया जा सके गा जो िनवार्चन आयोग �त्येक मामले क� प�रिस्थितय� को ध्यान म� रखते �ए, िविन�दर्ष्ट करे ।

स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन के िलए “मतदान मशीन” से अिभ�ेत है मत देने या अिभिलिखत करने के िलए �युक्त कोई
मशीन या सािध�, चाहे वह इलैक्�ािनक� �ारा या अन्यथा �चािलत ह� और इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए, िनयम� म�
मतपेटी या मतप� के �ित �कसी िनद�श का अथर्, जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय, इस �कार लगाया जाएगा मानो उसके अंतगर्त
जहां कह� ऐसी मतदान मशीन का �कसी िनवार्चन म� �योग होता है, ऐसी मतदान मशीन के �ित िनद�श है ।]

1
2003 के अिधिनयम सं० 24 क� धारा 3 �ारा (22-9-2003 से) �ितस्थािपत ।
2
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 25 �ारा धारा 61 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 11 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
26

62. मत देने का अिधकार—(1) कोई भी �िक्त िजसका नाम �कसी िनवार्चन-क्षे� क� िनवार्चक नामावली म� तत्समय �िवष्ट
नह� है उस िनवार्चन-क्षे� म� मत देने का हकदार न होगा और हर �िक्त िजसका नाम �कसी िनवार्चन-क्षे� क� िनवार्चक नामावली म�
तत्समय �िवष्ट है इस अिधिनयम म� अन्यथा स्पष्टतः उपबंिधत के िसवाय उस िनवार्चन-क्षे� म� मत देने का हकदार होगा ।

(2) कोई भी �िक्त �कसी िनवार्चन-क्षे� म� िनवार्चन म� मत न देगा य�द वह लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950
(1950 का 43) क� धारा 16 म� िन�दर्ष्ट िनरहर्ता� म� से �कसी के अध्यधीन है ।

(3) कोई भी �िक्त साधारण िनवार्चन म� एक ही वगर् के एक िनवार्चन-क्षे� से अिधक म� मत न देगा और य�द कोई �िक्त एक
से अिधक ऐसे िनवार्चन-क्षे� म� मत दे, तो ऐसे सब िनवार्चन-क्षे�� म� के उसके मत शून्य ह�गे ।

(4) कोई भी �िक्त �कसी िनवार्चन म� एक ही िनवार्चन-क्षे� म� एक से अिधक बार इस बात के होते �ए भी, मत न देगा �क
उसका नाम उस िनवार्चन-क्षे� क� िनवार्चक नामावली म� एक से अिधक बार रिजस्�ीकृ त है और य�द वह ऐसे मत दे देता है, तो उस
िनवार्चन-क्षे� म� उसके सब मत शून्य ह�गे ।

(5) कोई भी �िक्त, �कसी िनवार्चन म� मत नह� देगा य�द वह कारावास या िनवार्सन के दण्डादेश के अधीन या अन्यथा
कारावास म� प�र�� है या पुिलस क� िविधपूणर् अिभरक्षा म� है :
परं तु इस उपधारा क� कोई बात �कसी तत्समय �वृ� िविध के अधीन िनवारक िनरोध के अध्यधीन �िक्त को लागू न होगी:
[परं तु यह और �क ऐसा कोई �िक्त, िजसका नाम िनवार्चक नामावली म� दजर् �कया जा चुका है, इस उपधारा के अधीन मत
1

देने पर �ितषेध के कारण, मतदाता होने से �िवरत नह� होगा ।]


[(6) उपधारा (3) और उपधारा (4) क� कोई बात �कसी ऐसे �िक्त को लागू नह� होगी िजसे इस अिधिनयम के अधीन �कसी
2

मतदाता क� ओर से, जहां तक वह ऐसे मतदाता क� ओर से परोक्षी के �प मे मत देता है, परोक्षी के �प म� मत देने के िलए �ािधकृ त �कया
गया है ।]
63. [मतदान प�ित ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1961 (1961 का 40) क� धारा 14 �ारा (20-9-1961 से)
िनरिसत ।
अध्याय 5—मत� क� गणना
64. मत� क� गणना—ऐसे हर िनवार्चन म�, िजसम� मतदान होता है, मत� क� गणना �रट�न�ग आ�फसर �ारा या उसके
3
[पयर्वेक्षण और िनदेशन] के अधीन क� जाएगी और हर एक 4[िवरोधी अभ्यथ�] का, उसके िनवार्चन अिभकतार् का और उसके
5
[गणन अिभकतार्�] का यह अिधकार होगा �क वे गणना के समय उपिस्थत रह� ।
[64क. गणना के समय मतप�� का िवनाश, हािन, आ�द—(1) य�द मत� क� गणना समाप्त होने से पूवर्, �कसी भी समय �कसी
6

मतदान के न्� पर या मतदान के िलए िनयत स्थान पर उपयोग म� लाए गए कोई मतप� िनवार्चन आ�फसर क� अिभरक्षा म� से
िविधिव��तया िनकाल िलए जाते ह� अथवा घटनावश या साशय िवनष्ट हो जाते ह� या कर �दए जाते ह� या खो जाते ह� अथवा इस
िवस्तार तक उनको नुकसान प�ंचाया जाता है या उनम� गड़बड़ कर दी जाती है �क उस मतदान के न्� या स्थान पर के मतदान का
प�रणाम अिभिनिश्चत नह� �कया जा सकता तो �रट�न�ग आ�फसर उस मामले क� �रपोटर् िनवार्चन आयोग को तत्क्षण करे गा ।
(2) िनवार्चन आयोग तब सब ताि�वक प�रिस्थितय� को ध्यान म� रखकर, या तो—
(क) िनदेश देगा �क मत� क� गणना बंद क� जाए, घोषणा करे गा �क उस मतदान के न्� या स्थान पर का मतदान शून्य
है उस मतदान के न्� या स्थान पर नए मतदान के िलए कोई �दन और समय िनयत करे गा तथा ऐसी िनयत तारीख और ऐसा
िनयत समय ऐसी रीित म� अिधसूिचत करे गा जैसी वह ठीक समझे, अथवा
(ख) य�द उसका यह समाधान हो जाता है �क उस मतदान के न्� या स्थान पर नए मतदान के प�रणाम से िनवार्चन
प�रणाम �कसी भी �कार �भािवत नह� होगा तो �रट�न�ग आ�फसर को गणना के पुनरारम्भ और पूरे �कए जाने के िलए और
उस िनवार्चन के आगे संचालन और पूरे �कए जाने के िलए िजसके बारे म� मत� क� गणना क� गई है ऐसे िनदेश देगा, जैसे वह
उिचत समझे ।
(3) इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� या िनकाले गए आदेश� के उपबंध हर ऐसे नए मतदान को ऐसे लागू
ह�गे जैसे वे मूल मतदान को लागू ह� ।]

1
2013 के अिधिनयम सं० 29 क� धारा 3 �ारा (10-7-2013 से) अंतःस्थािपत ।
2
2003 के अिधिनयम सं० 24 क� धारा 4 �ारा (22-9-2003 से) अंतःस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 36 �ारा “पयर्वेक्षण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 26 �ारा “अभ्यथ�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 36 �ारा “गणन अिभकतार्” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 34 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
27

65. मत बराबर होना—य�द मत� क� गणना के समाप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है �क �कन्ह� अभ्य�थर्य� के बीच मत
बराबर ह� और मत� म� से एक मत जोड़ �दए जाने से उन अभ्य�थर्य� म� से कोई िनवार्िचत घोिषत �कए जाने के िलए हकदार हो जाएगा
तो �रट�न�ग आ�फसर उन अभ्य�थर्य� के बीच लाट �ारा तत्क्षण िविनश्चय करे गा और ऐसे अ�सर होगा मानो िजस अभ्यथ� के हक म� लाट
िनकली है उसे अित�रक्त मत �ाप्त हो गया है ।
66. िनवार्चन प�रणाम क� घोषणा—जब मत� क� गणना समाप्त हो जाए तब �रट�न�ग आ�फसर िनवार्चन प�रणाम को
1
[िनवार्चन आयोग के �ारा तत्�ितकू ल �कसी िनदेश के अभाव म� तत्क्षण] उस रीित म� घोिषत करे गा जो इस अिधिनयम या तद्धीन
बनाए गए िनयम� �ारा उपबंिधत है ।
67. िनवार्चन प�रणाम क� �रपोटर्—िनवार्चन के प�रणाम के घोिषत �कए जाने के पश्चात्, यथाशक्य िनवार्चन आ�फसर उस
िनवार्चन प�रणाम क� �रपोटर् समुिचत �ािधकारी और िनवार्चन आयोग को और संसद् के या राज्य के िवधान-मंडल के �कसी सदन के
िनवार्चन क� दशा म�, उस सदन के सिचव को भी भेज देगा और समुिचत �ािधकारी िनवार्िचत अभ्य�थर्य� के नाम� को अन्त�वर्ष्ट रखने
वाली घोषणाएं शासक�य राजप� म� �कािशत कराएगा ।
[67क. अभ्यथ� के िनवार्चन क� तारीख—�रट�न�ग आ�फसर �ारा िजस तारीख को अभ्यथ� के बारे म� यह घोषणा क� जाती है
2

�क वह संसद् या राज्य के िवधान-मंडल के 3*** �कसी सदन के िलए धारा 53 4*** 5*** या धारा 66 के उपबंध� के अधीन िनवार्िचत
172

हो गया है, उस तारीख क� बाबत इस अिधिनयम के �योजन� के िलए यह समझा जाएगा �क वह उस अभ्यथ� के िनवार्चन क�
तारीख है ।]
अध्याय 6—ब�स्थािनक िनवार्चन
68. संसद् के दोन� सदन� के िलए िनवार्िचत हो जाने पर स्थान� का �रक्त हो जाना—(1) जो कोई �िक्त लोक सभा और राज्य
सभा दोन� का सदस्य चुन िलया जाता है और िजसने दोन� सदन� म� से �कसी म� अपना स्थान �हण नह� �कया है वह अपने �ारा
हस्ताक्ष�रत और िनवार्चन आयोग के सिचव को प�रद� िलिखत सूचना �ारा 6[उस तारीख के या उन तारीख� के पश्चात् वाली तारीख से
दस �दन के भीतर, िजसको या िजनको वह ऐसे चुना गया है, यह �ज्ञािपत कर सके गा] �क वह दोन� सदन� म� से �कस म� सेवा करना
चाहता है और ऐसा करने पर उसका उस सदन म� स्थान, िजसम� वह सेवा नह� करना चाहता, �रक्त हो जाएगा ।
(2) पूव�क्त कालाविध के भीतर ऐसी �ज्ञापना के देने म� �ित�म करने पर राज्य सभा म� का उसका स्थान उस कालाविध के
अवसान पर �रक्त हो जाएगा ।
(3) उपधारा (1) के अधीन दी गई �ज्ञापना अंितम और अ�ितसंहरणीय होगी ।
[(4) िजस तारीख को �िक्त संसद् के �कसी सदन का सदस्य होने के िलए चुना गया है, इस धारा और धारा 69 के �योजन�
7

के िलए वह तारीख, िनवार्िचत सदस्य क� दशा म�, उसके िनवार्चन क� तारीख होगी और नामिन�दर्ष्ट सदस्य क� दशा म�, उसके
नामिनद�शन के भारत के राजप� म� �थम �काशन क� तारीख होगी ।]
69. जो �िक्त संसद् के एक सदन के सदस्य पहले से ही ह� दूसरे सदन के िलए उनके िनवार्िचत हो जाने पर उनके स्थान� का
�रक्त हो जाना—(1) जो �िक्त लोक सभा का पहले से ही सदस्य है और ऐसे सदन म� अपना स्थान �हण कर चुका है य�द वह राज्य
सभा का सदस्य चुन िलया जाता है तो लोक सभा म� उसका स्थान 8[उस तारीख को, िजसको वह ऐसे चुना जाता है,] �रक्त हो जाएगा ।
(2) जो �िक्त राज्य सभा का पहले से ही सदस्य है और ऐसी सभा म� अपना स्थान �हण कर चुका है य�द वह लोक सभा का
सदस्य चुन िलया जाता है तो राज्य सभा म� का उसका स्थान 8[उस तारीख को, िजसको वह ऐसे चुना जाता है,] �रक्त हो जाएगा ।
70. संसद् के दोन� सदन� म� से �कसी म� या राज्य के िवधान-मंडल के सदन या दोन� सदन� म� से �कसी म� के एक से अिधक
स्थान के िलए िनवार्चन—य�द कोई �िक्त संसद् के दोन� सदन� म� से �कसी म� या राज्य के िवधान-मंडल के सदन या दोन� सदन� म� से
�कसी एक से अिधक स्थान के िलए िनवार्िचत हो गया है तो जब तक �क वह, 9[यथािस्थित, अध्यक्ष या सभापित को या ऐसे अन्य
�ािधकारी या आ�फसर को, जैसा िविहत �कया जाए, संबोिधत अपने हस्ताक्षर सिहत] लेख �ारा उन स्थान� म� से के वल एक के
अित�रक्त सब के त्यागप� िविहत समय के अन्दर नह� दे देता वे सब स्थान �रक्त हो जाएंगे ।

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 35 �ारा (14-12-1966 से) “तत्क्षण घोिषत करेगा” शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 37 �ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 15 �ारा (20-9-1961 से) “धारा 54” शब्द और अंक का लोप �कया गया ।
4
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 27 �ारा “धारा 55क” शब्द, अंक और अक्षर का लोप �कया गया ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 103 क� धारा 66 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 38 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 38 �ारा अन्तःस्थािपत ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 39 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 40 �ारा अन्तःस्थािपत ।
28

अध्याय 7—िनवार्चन प�रणाम� और नामिनद�शन� का �काशन


[71. राज्य सभा के िनवार्चन प�रणाम� का और राष्�पित �ारा नामिन�दर्ष्ट �िक्तय� के नाम� का �काशन—धारा 12 के
1

अधीन िनकाली गई अिधसूचना� के अनुसरण म�, �कसी वषर् म� �कए गए िनवार्चन� के पश्चात् उन सदस्य� के नाम, जो राज्य� क� िवधान
सभा� के िनवार्िचत सदस्य� �ारा और िविभन्न 2[संघ राज्यक्षे��] के िलए िनवार्चकगण� के सदस्य� �ारा उक्त िनवार्चन� म� िनवार्िचत
�कए गए ह�, ऐसे �कन्ह� �िक्तय� के नाम� के सिहत, िजन्ह� राष्�पित ने, राज्य सभा के िलए अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उपखंड (क) के
अधीन या �कन्ह� अन्य उपबंध� के अधीन नामिन�दर्ष्ट �कया है, शासक�य राजप� म� समुिचत �ािधकारी �ारा अिधसूिचत �कए जाएंगे ।
72. [कितपय संघ राज्यक्षे�� के िनवार्चकगण के पुनगर्ठन के िलए िनवार्चन� के प�रणाम� का �काशन ।]—क्षे�ीय प�रषद्
अिधिनयम, 1956 (1956 का 103) क� धारा 66 �ारा िनरिसत ।
73. लोक सभा और राज्य िवधान सभा� के िलए साधारण िनवार्चन� के प�रणाम� का �काशन—जहां �क नई लोक सभा या
नई राज्य िवधान सभा ग�ठत करने के �योजन के िलए साधारण िनवार्चन �कया जाता है वहां 3[सभी िनवार्चन-क्षे�� म� (जो उन
िनवार्चन-क्षे�� से िभन्न ह� िजनम� धारा 30 के खंड (घ) के अधीन मूलतः िनयत तारीख को �कसी कारणवश मतदान नह� हो सका था
िजनके िलए िनवार्चन समाप्त होने का समय धारा 153 के उपबंध� के अधीन बढ़ा �दया गया है) यथािस्थित, धारा 53 या धारा 66 के
उपबंध� के अधीन �रट�न�ग आ�फसर �ारा प�रणाम� क� घोषणा �कए जाने के पश्चात् यथाशक्य शी� उन सदस्य� के नाम, जो उन
िनवार्चन-क्षे�� से िनवार्िचत �ए ह�, शासक�य राजप� म� 4[िनवार्चन आयोग] �ारा अिधसूिचत �कए जाएंगे] 5*** और ऐसी अिधसूचना
के िनकलने पर उस लोक सभा या िवधान सभा क� बाबत यह समझा जाएगा �क वह सम्यक् �प से ग�ठत हो गई है :
परं तु ऐसी अिधसूचना के िनकाले जाने से यह न समझा जाएगा �क वह—
[(क) (i) �कसी संसदीय या �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� या िनवार्चन-क्षे�� म�, िजनम� धारा 30 के खंड (घ) के अधीन
6

मूलतः िनयत तारीख को �कसी कारणवश मतदान नह� हो सका था, मतदान करने और िनवार्चन क� समािप्त को, अथवा
(ii) �कसी संसदीय या �कसी सभा िनवार्चन-क्षे� या िनवार्चन-क्षे�� के , िजनके िलए धारा 153 के उपबंध� के अधीन
समय बढ़ा �दया गया है, िनवार्चन क� समािप्त को,
�वा�रत करती है ; अथवा]
(ख) उक्त अिधसूचना के िनकाले जाने से अ�विहत पूवर् कृ त्य कर रही लोक सभा या राज्य िवधान सभा क�, य�द
कोई हो, अिस्तत्चाविध पर �भाव डालती है ।
[73क. कु छ िनवार्चन� के बारे म� िवशेष उपबंध—इस अिधिनयम क� धारा 73 म� या उसके �कसी अन्य उपबंध म� �कसी बात के
7

होते �ए भी, नव� लोक सभा के िवघटन पर नई लोक सभा का गठन करने के �योजन के िलए साधारण िनवार्चन के संबंध म�,—
(क) धारा 73 के अधीन अिधसूचना जम्मू-कश्मीर राज्य* के संसदीय िनवार्चन-क्षे�� को िहसाब म� िलए िबना जारी
क� जा सके गी; और
(ख) िनवार्चन आयोग जम्मू-कश्मीर राज्य* के संसदीय िनवार्चन-क्षे�� से िनवार्चन� के संबंध म� पृथक् �प से और
ऐसी रीित से तथा ऐसी तारीख या तारीख� को, जो वह समुिचत समझे, कारर् वाई कर सके गा ।]
74. राज्य िवधान प�रषद� के िलए िनवार्चन प�रणाम� का और ऐसी प�रषद� के िलए नामिन�दर्ष्ट �िक्तय� के नाम� का
�काशन— 8[धारा 15क के अधीन िनकाली गई अिधसूचना� के अनुसरण म�] या धारा 16 के अधीन िनकाली गई अिधसूचना� के
अनुसरण म�, �कसी वषर् म� �कए गए िनवार्चन� के पश्चात् उन सदस्य� के नाम, जो िविभन्न प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� के िलए और राज्य क�
िवधान सभा के सदस्य� �ारा उक्त िनवार्चन� म� िनवार्िचत �कए गए ह�, �कन्ह� ऐसे �िक्तय� के नाम� सिहत, िजन्ह� राज्यपाल 9***
अनुच्छेद 171 के खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नामिन�दर्ष्ट �कया है, शासक�य राजप�� म� समुिचत �ािधकारी �ारा अिधसूिचत �कए
जाएंगे ।]

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 41 �ारा 71 से 75 तक क� धारा� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “भाग ग राज्य�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1961 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 16 �ारा (20-9-1961 से) “समुिचत �ािधकारी” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 16 �ारा (20-9-1961 से) कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
6
1967 के अिधिनयम सं० 10 क� धारा 2 �ारा खंड (क) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1991 के अिधिनयम सं० 31 क� धारा 2 �ारा (18-4-1991 से) धारा 73क और धारा 73कक के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8
1957 के अिधिनयम सं० 37 क� धारा 13 �ारा अंतःस्थािपत ।
9
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “या राज�मुख जैसी भी िस्थित है” शब्द� का लोप �कया गया ।
*अिधसूचना सं० का०आ० 3912 (अ) तारीख 30.10.2019 �ारा वह अिधिनयम जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षे� और ल�ाख संघ राज्य क्षे� को लागू कर �दया गया है ।
29

1
[अध्याय 7क

आिस्तय� और दाियत्व� क� घोषणा


75क. आिस्तय� और दाियत्व� क� घोषणा—(1) संसद् के �कसी सदन के िलए �त्येक िनवार्िचत अभ्यथ�, उस तारीख से,
िजसको वह संसद् के �कसी भी सदन म� अपना स्थान �हण करने के िलए, संिवधान क� तीसरी अनुसूची म� उक्त �योजन के िलए व�णर्त
��प के अनुसार शपथ लेता है या �ितज्ञान करता है, नब्बे �दन के भीतर, यथािस्थित, राज्य सभा के सभापित या लोक सभा के अध्यक्ष
को िनम्निलिखत के संबंध म�, सूचना देगा—
(i) जंगम और स्थावर संपि�, िजसका वह, उसक� पत्नी या उसका पित और उसके आि�त बालक संयुक्ततः या
पृथक् तः स्वामी है या िहतािधकारी ह�;
(ii) �कसी लोक िव�ीय संस्था के �ित उसके दाियत्व ; और
(iii) क� �ीय सरकार या राज्य सरकार के �ित उसके दाियत्व ।
(2) उपधारा (1) के अधीन सूचना ऐसे ��प म� और ऐसी रीित से दी जाएगी जो उपधारा (3) के अधीन बनाए गए िनयम� म�
िविहत क� जाए ।
(3) यथािस्थित, राज्य सभा का सभापित या लोक सभा का अध्यक्ष उपधारा (2) के �योजन� के िलए िनयम बना सके गा ।
(4) यथािस्थित, राज्य सभा के सभापित या लोक सभा के अध्यक्ष �ारा उपधारा (3) के अधीन बनाए गए िनयम, बनाए जाने के
पश्चात् यथाशी�, यथािस्थित, राज्य सभा या लोक सभा के समक्ष, जब वह ऐसी कु ल तीस �दन क� अविध के िलए, जो एक स� म� अथवा
दो या अिधक आनु�िमक स�� म� पूरी हो सके गी, स� म� हो, रखे जाएंगे और वे उक्त तीस �दन क� अविध क� समािप्त के पश्चात् �भावी
हो जाएंगे जब तक �क उनका उससे पूवर् राज्य सभा या लोक सभा �ारा उपांतरण� सिहत या उनके िबना अनुमोदन नह� कर �दया जाता
अथवा अननुमोदन नह� कर �दया जाता और जहां उनका इस �कार अनुमोदन कर �दया जाता है वहां वे ऐसे अनुमोदन पर, यथािस्थित,
उस �प म� �भावी हो जाएंगे िजसम� वे रखे गए थे या इस �कार उपांत�रत �प म� �भावी ह�गे और जहां उनका इस �कार अननुमोदन
�कया जाता है वहां वे िन�भावी हो जाएंगे ।
(5) यथािस्थित, राज्य सभा का सभापित या लोक सभा का अध्यक्ष यह िनदेश दे सके गा �क उपधारा (1) म� िन�दर्ष्ट संसद् के
�कसी सदन के िलए �कसी िनवार्िचत अभ्यथ� �ारा, उपधारा (3) के अधीन बनाए गए िनयम� के �कसी स्वेच्छया उल्लंघन के संबंध म�
उसी रीित से कारर् वाई क� जा सके गी िजसम�, यथािस्थित, लोक सभा या राज्य सभा के िवशेषािधकार के भंग क� दशा म� क� जाती है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन� के िलए,—
(i) “स्थावर संपि�” से भूिम अिभ�ेत है और इसके अंतगर्त कोई भवन या उक्त भूिम से संलग्न अन्य संरचना या ऐसी
�कसी चीज से स्थायी �प से जुड़ी �ई कोई चीज है जो भूिम से संलग्न है ;
(ii) “जंगम संपि�” से कोई ऐसी अन्य संपि� अिभ�ेत है जो स्थावर संपि� नह� है और इसके अंतगर्त �त्येक �कार
क� मूतर् और अमूतर् संपि� भी है ;
(iii) “लोक िव�ीय संस्था” से कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) क� धारा 4क के अथार्न्तगर्त लोक िव�ीय
संस्था अिभ�ेत है और इसके अंतगर्त ब�क भी है ;
(iv) खंड (iii) म� िन�दर्ष्ट “ब�क” से अिभ�ेत है—
(क) भारतीय स्टेट ब�क अिधिनयम, 1955 (1955 का 23) क� धारा 3 के अधीन ग�ठत “भारतीय स्टेट
ब�क”;
(ख) समनुषंगी ब�क, िजसका वही अथर् है जो उसका भारतीय स्टेट] ब�क (समनुषंगी ब�क) अिधिनयम, 1959
(1959 का 38) क� धारा 2 के खंड (ट) म� है ;
(ग) �ादेिशक �ामीण ब�क अिधिनयम, 1976 (1976 का 21) क� धारा 3 के अधीन स्थािपत �ादेिशक
�ामीण ब�क;
(घ) तत्स्थानी नया ब�क, िजसका वही अथर् है जो उसका ब�ककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949
(1949 का 10) क� धारा 5 के खंड (घक) म� है ; और
(ङ) सहकारी ब�क, िजसका वही अथर् है जो उसका ब�ककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10)
क� धारा 56 के खंड (ग) के उपखंड (i) �ारा यथा उपांत�रत उस अिधिनयम क� धारा 5 के खंड (गगi) म� है; और

1
2002 के अिधिनयम सं० 72 क� धारा 4 �ारा (24-8-2002 से) अंतःस्थािपत ।
30

(v) “आि�त बालक” से ऐसे पु� और पुि�यां अिभ�ेत ह� िजनके उपाजर्न के कोई पृथक् साधन नह� ह� और जो अपनी
जीिवका के िलए उपधारा (1) म� िन�दर्ष्ट िनवार्िचत अभ्यथ� पर पूणर्तः आि�त ह� ।]
अध्याय 8—िनवार्चन �य
1
[76. अध्याय का लागू होना—यह अध्याय के वल लोक सभा के और राज्य क� िवधान सभा के िलए िनवार्चन� को लागू होगा ।]
77. िनवार्चन �य� का लेखा और उनक� अिधकतम मा�ा—(1) िनवार्चन म� हर अभ्यथ� िनवार्चन संबंधी उस सब �य का जो,
2
[उस तारीख के , िजसको यह नामिन�दर्ष्ट �कया गया है] और उस िनवार्चन के प�रणाम� क� घोषणा, क� तारीख के , िजनके अंतगर्त ये
दोन� तारीख� आती ह�, बीच स्वयं �ारा या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा उपगत या �ािधकृ त �कया गया है, पृथक् और सही लेखा या तो
वह स्वयं रखेगा या अपने िनवार्चन अिभकतार् �ारा रखवाएगा ।
3
[स्पष्टीकरण 1—शंका� को दूर करने के िलए यह घोिषत �कया जाता है �क,—
(क) �कसी राजनैितक दल के नेता� �ारा, राजनैितक दल के कायर्�म का �चार करने के िलए वायुयान �ारा या
प�रवहन के �कसी अन्य साधन �ारा क� गई या�ा म�े उपगत �य इस उपधारा के �योजन� के िलए उस राजनैितक दल के
अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा िनवार्चन के संबंध म� उपगत या �ािधकृ त �य नह� माना जाएगा;
(ख) सरकार क� सेवा म� और धारा 123 के खंड (7) म� व�णर्त वग� म� से �कसी से संबंिधत �कसी �िक्त �ारा, उस
खंड के परन्तुक म� यथाव�णर्त अपने शासक�य कतर्� के िनवर्हन म� या तात्प�यर्त िनवर्हन म� क� गई �कन्ह� �वस्था�, �दान
क� गई सुिवधा� या �कए गए �कसी अन्य कायर् या बात के संबंध म� उपगत कोई �य, इस उपधारा के �योजन� के िलए
अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा िनवार्चन के संबंध म� उपगत या �ािधकृ त �य नह� माना जाएगा ।
स्पष्टीकरण 2—स्पष्टीकरण 1 के खंड (क) के �योजन� के िलए, �कसी िनवार्चन के संबंध म�, “राजनैितक दल के नेता�”
पद से,—
(i) जहां ऐसा राजनैितक दल मान्यता�ाप्त राजनैितक दल है, वहां संख्या म� चालीस से अनिधक ऐसे �िक्त, और
(ii) जहां ऐसा राजनैितक दल �कसी मान्या�ाप्त राजनैितक दल से िभन्न है, वहां संख्या म� बीस से अनिधक
ऐसे �िक्त,
अिभ�ेत ह� िजनके नाम राजनैितक दल �ारा ऐसे िनवार्चन के �योजन� के िलए नेता� के �प म� ऐसे िनवार्चन के िलए, यथािस्थित,
भारत के राजप� म� या उस राज्य के राजप� म� इस अिधिनयम के अधीन �कािशत अिधसूचना क� तारीख से सात �दन क� अविध के
भीतर िनवार्चन आयोग और राज्य� के मुख्य िनवार्चन अिधका�रय� को संसूिचत कर �दए गए ह� :
परन्तु कोई राजनैितक दल, उस दशा म� जहां, यथािस्थित, खंड (i) म� या खंड (ii) म� िन�दर्ष्ट �िक्तय� म� से �कसी क� मृत्यु हो
जाती है या वह ऐसे राजनैितक दल का सदस्य नह� रहता है, िनवार्चन आयोग और राज्य� के मुख्य िनवार्चन अिधका�रय� को और
संसूचना �ारा, ऐसे िनवार्चन के िलए अंितम मतदान पूरा होने के िलए िनयत समय समाप्त होने के ठीक अड़तालीस घंटे पहले समाप्त
होने वाली अविध के दौरान, इस �कार मृत �िक्त या सदस्य न रहे �िक्त के नाम के स्थान पर, नए नेता को पदािभिहत करने के
�योजन� के िलए नया नाम �ितस्थािपत कर सके गी ।]
(2) लेखे म� ऐसी िविशिष्टयां अन्त�वर्ष्ट ह�गी जैसी िविहत क� जाएं ।
(3) उक्त �य का जोड़ उस रकम से अिधक न होगा जो िविहत क� जाए ।
78. लेखे को िजला िनवार्चन आ�फसर के पास दािखल �कया जाना— 4[(1)] िनवार्चन म� का हर िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ�
िनवार्िचत अभ्यथ� के िनवार्चन क� तारीख से या य�द िनवार्चन म� एक से अिधक िनवार्िचत अभ्यथ� ह�, और उनके िनवार्चन क� तारीख�
िभन्न ह� तो उन तारीख� म� से पश्चात्वत� तारीख से तीस �दन के अन्दर अपने िनवार्चन �य� का लेखा जो उस लेखा क� सही �ित होगी
िजसे उसने या उसके िनवार्चन अिभकतार् ने धारा 77 के अधीन रखा है 5[िजला िनवार्चन आ�फसर] के पास दािखल करे गा ।
6
* * * * * * *

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 42 �ारा धारा 76 से 78 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 6 �ारा (भूतलक्षी �प से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
2003 के अिधिनयम सं० 46 क� धारा 4 �ारा स्पष्टीकरण के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 36 �ारा धारा 78 को उसक� उपधारा (1) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 36 �ारा “�रट�न�ग आ�फसर” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 36 �ारा (14-12-1966 से) उपधारा (2) अंतःस्थािपत और 2004 के अिधिनयम सं० 2 क� धारा 3 (ख) �ारा लोप �कया गया ।
31

1
[भाग 5क

मान्यता�ाप्त राजनैितक दल� के अभ्य�थर्य� को कितपय साम�ी का िन:शुल्क �दाय


78क. िनवार्चक नामाविलय� क� �ितय� का िन:शुल्क �दाय—(1) सरकार, लोक सभा या �कसी राज्य क� िवधान सभा का
गठन करने के �योजन� के िलए होने वाले �कसी िनवार्चन म�, मान्यता�ाप्त राजनैितक दल� के अभ्य�थर्य� को लोक �ितिनिधत्व
अिधिनयम, 1950 (1950 का 43) के अधीन अंितम �प से यथा�कािशत िनवार्चक नामाविलय� क� उतनी �ितय� का और ऐसी अन्य
साम�ी का, जो िविहत क� जाए, िन:शुल्क �दाय करे गी ।
(2) उपधारा (1) म� िन�दर्ष्ट साम�ी का,—
(i) ऐसी शत� के अधीन रहते �ए, िजन्ह� अभ्यथ� �ारा धारा 77 के अधीन उपगत �कए जा सकने वाले अिधकतम �य
को कम करने के संबंध म�, के न्�ीय सरकार, िनवार्चन आयोग के परामशर् से, अिधरोिपत करे ; और
(ii) ऐसे अिधका�रय� के माध्यम से, जो िनवार्चन आयोग �ारा िविन�दर्ष्ट �कए जाएं और जो ऐसे साधारण या
िवशेष िनदेश� के अनुसार कायर् कर� ग,े जो िनवार्चन आयोग �ारा �दए जाएं,
�दाय �कया जाएगा ।
78ख. अभ्य�थर्य� आ�द, को कितपय वस्तु� का �दाय—(1) िनवार्चन आयोग, लोक सभा या �कसी राज्य क� िवधान सभा का
गठन करने के �योजन� के िलए िनवार्चन को आ�त करने वाली अिधसूचना के �काशन क� तारीख और उस तारीख के , िजसको मतदान
होना है, बीच �कसी भी समय, संबिं धत िनवार्चन-क्षे�� म� िनवार्चक� को या मान्यता�ाप्त राजनैितक दल� �ारा खड़े �कए गए अभ्य�थर्य�
को ऐसी वस्तुएं, िजन्ह� के न्�ीय सरकार, िनवार्चन आयोग के परामशर् से, आदेश �ारा अवधा�रत करे , �दाय करे गा या करवाएगा ।
(2) जहां िनवार्चन आयोग, उपधारा (1) के अधीन अभ्य�थर्य� को वस्तु� का �दाय करता है वहां के न्�ीय सरकार, िनवार्चन
आयोग के परामशर् से, उस अिधकतम �य को कम करने के संबंध म�, जो अभ्यथ� �ारा धारा 77 के अधीन उपगत �कया जा सकता है, शत�
अिधरोिपत कर सके गी ।
स्पष्टीकरण—धारा 39क, इस अध्याय और धारा 169 क� उपधारा (2) के खंड (जज) के �योजन� के िलए, “मान्यता�ाप्त
राजनैितक दल” का वही अथर् होगा, जो िनवार्चन सं�तीक (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 म� है ।]
भाग 6

िनवार्चन� क� बाबत िववाद


अध्याय 1—िनवार्चन
79. प�रभाषाएं—इस भाग म� और 2[भाग 7] म� जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो—
[(क) �कसी ऐसे संघ राज्यक्षे� के संबंध म�, जहां न्याियक आयुक्त का न्यायालय है, उच्च न्यायालय के या उच्च
196
3

न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के या न्यायाधीश के �ित िनद�श का अथर् यह लगाया जाएगा �क वह, यथािस्थित, न्याियक
आयुक्त के उक्त न्यायालय के �ित या न्याियक आयुक्त के �ित या �कसी अपर न्याियक आयुक्त के �ित िनद�श है;]
[(ख) “अभ्यथी” से वह �िक्त अिभ�ेत है जो �कसी िनवार्चन म� अभ्यथ� के �प म� सम्यक् त: नामिन�दर्ष्ट �कया
197
4

गया है या सम्यक् ततः नामिन�दर्ष्ट होने का दावा करता है;]


(ग) “खच�” से िनवार्चन अज� के िवचारण के या उससे आनुषंिगक सब खच�, �भार और �य अिभ�ेत है;
(घ) “िनवार्चन अिधकार” से �कसी िनवार्चन म� अभ्यथ� के �प म� खड़े होने या न खड़े होने या अभ्य�थर्ता
198
5
[वापस लेने या न लेन]े या मत देने से िवरत रहने का �कसी �िक्त का अिधकार अिभ�ेत है;
[(ङ) “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अिभ�ेत है िजसक� अिधका�रता क� स्थानीय सीमा� के भीतर वह
199
6

िनवार्चन �आ है िजससे िनवार्चन अज� सम्ब� है;]


(च) “िनवार्िचत अभ्यथी” से ऐसा अभ्यथ� अिभ�ेत है िजसका नाम सम्यक् िनवार्िचत के �प म� धारा 67 के अधीन
�कािशत कर �दया गया है ।

1
2003 के अिधिनयम सं० 46 क� धारा 5 �ारा अंत:स्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 37 �ारा “भाग 7 और 8” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 37 �ारा अन्तःस्थािपत । 1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 43 �ारा मूल खंड (क) का लोप �कया गया था ।
4
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 7 �ारा (भूतलक्षी �प से) खंड (ख) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 37 �ारा (14-12-1966 से) “वािपस लेने” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 37 �ारा (14-12-1966 से) खंड (ङ) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
32

अध्याय 2—िनवार्चन अ�जर्य� का 1[उच्च न्यायालय] को उपिस्थत �कया जाना


80. िनवार्चन अ�जर्यां—कोई भी िनवार्चन इस भाग के उपबंध� के अनुसार उपिस्थत क� गई िनवार्चन अज� �ारा �श्नगत �कए
जाने के िसवाय �श्नगत न �कया जाएगा ।
[80क. उच्च न्यायालय �ारा िनवार्चन अ�जर्य� का िवचारण—(1) उच्च न्यायालय ही िनवार्चन अज� का िवचारण करने क�
201
2

अिधका�रता रखने वाला न्यायालय होगा ।


(2) ऐसी अिधका�रता मामूली तौर पर उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश �ारा �युक्त क� जाएगी और मुख्य न्यायमू�तर् उस
�योजन के िलए समय-समय पर एक या अिधक न्यायाधीश समनु�दष्ट करे गा :
परं तु जहां �क उच्च न्यायालय के वल एक न्यायाधीश �ारा ग�ठत है, वहां वह उस न्यायालय को उपस्थािपत सब िनवार्चन
अ�जर्य� का िवचारण करे गा ।
(3) उच्च न्यायालय न्याय या सुिवधा के िहत� म� �कसी िनवार्चन अज� का पूणर्तः या भागतः िवचारण ऐसे स्थान म� जो उच्च
न्यायालय क� बैठक के स्थान से िभन्न है स्विववेकानुसार कर सके गा ।]
81. अ�जर्य� का उपिस्थत �कया जाना—(1) �कसी िनवार्चन को �श्नगत करने वाली िनवार्चन अज� धारा 100 क�
[उपधारा (1)] और धारा 101 म� िविन�दर्ष्ट आधार� म� से एक या अिधक पर 4[उच्च न्यायालय] को ऐसे िनवार्चन म� के �कसी अभ्यथ�
202
3

�ारा या �कसी िनवार्चक �ारा िनवार्िचत अभ्यथ� के 5[िनवार्चन क� तारीख से या य�द िनवार्चन म� एक से अिधक िनवार्िचत अभ्यथ� ह�
और िनवार्चन क� तारीख िभन्न है तो उन तारीख� म� से पश्चात्वत� तारीख से प�तालीस �दन के भीतर �कं तु उस तारीख से पहले नह�]
उपिस्थत क� जा सके गी ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा म� “िनवार्चक” से वह �िक्त अिभ�ेत है जो उस िनवार्चन से, िजससे िनवार्चन अज� सम्ब� है मत
देने के िलए हकदार था भले ही उसने ऐसे िनवार्चन म� मतदान �कया हो या न �कया हो ।
6
* * * * * * *
[(3) हर िनवार्चन अज� के साथ उसक� उतनी �ितयां ह�गी िजतने �त्यथ� उस अज� म� व�णर्त ह� 8*** और अज�दार हर ऐसी
206
7

�ित को अपने हस्ताक्षर से अनु�मािणत करे गा �क वह अज� क� सही �ित है ।]


208
9
[82. अज� के पक्षकार—अज�दार अपनी अज� म� �त्यथ� के �प म�—
(क) उस दशा म�, िजसम� �क अज�दार इस घोषणा के िलए �क सब िनवार्िचत अभ्य�थर्य� या उनम� से �कसी का
िनवार्चन शून्य है, दावा करने के अित�रक्त इस अित�रक्त घोषणा के िलए भी �क वह स्वयं या कोई अन्य अभ्यथ� सम्यक् त �प
से िनवार्िचत हो गया है दावा करता है, अज�दार से िभन्न िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� को और उस दशा मे, िजसम� �क
ऐसी अित�रक्त घोषणा के िलए दावा नह� �कया गया है सब िनवार्चन अभ्य�थर्य� को ; तथा
(ख) �कसी अन्य अभ्यथ� को िजसके िव�� �कसी �ष्ट आचरण के अिभकथन अज� म� �कए गए ह�,
संयोिजत करे गा ।]
209
10
[83. अज� क� अन्तवर्स्तु—(1) िनवार्चन अज�—]
(क) म� उन ताि�वक तथ्य� का संिक्षप्त कथन अन्त�वर्ष्ट होगा िजन पर अज�दार िनभर्र करता है;
(ख) म� ऐसे �कसी �ष्ट आचरण क� पूरी िविशिष्टयां, िजनका अज�दार अिभकथन करता है, उन पक्षकार� के नाम� के
यथाशक्य पूणर् कथन के सिहत िजनक� बाबत यह अिभकथन है �क उन्ह�ने ऐसा �ष्ट आचरण �कया है और हर एक ऐसा
आचरण �कए जाने क� तारीख और स्थान उपव�णर्त होगा; तथा
(ग) अज�दार �ारा हस्ताक्ष�रत क� जाएगी और उस रीित म� सत्यािपत क� जाएगी जो अिभवचन� के सत्यापन के
िलए िसिवल ���या संिहता, 1908 (1908 का 5) म� अिधकिथत है :

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 39 �ारा (14-12-1966 से) “ िनवार्चन आयोग” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 38 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 44 �ारा “उपधारा� (1) और (2)” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 39 �ारा (14-12-1966 से) “िनवार्चन आयोग” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 44 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 39 �ारा (14-12-1966 से) उपधारा (2) का लोप �कया गया ।
7
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 17 �ारा ( 20-9-1961 से) अन्तःस्थािपत ।
8
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 39 �ारा (14-12-1966 से) कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 45 �ारा धारा 82 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
10
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 46 �ारा धारा 83 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
33

[परं तु जहां �क अज�दार �कसी �ष्ट आचरण का अिभकथन करता है, वहां ऐसे �ष्ट आचरण के अिभकथन के और उसक�
1

िविशिष्टय� के समथर्न म� िविहत ��प म� एक शपथप� भी अज� के साथ होगा ।]


(2) अज� म� लगी �ई कोई अनुसूची या उपाबन्ध भी अज�दार �ारा हस्ताक्ष�रत �कया जाएगा और उसी रीित म� सत्यािपत
�कया जाएगा िजस रीित म� अज� सत्यािपत क� जाती है ।]
[84. वह अनुतोष िजसका दावा अज�दार कर सके गा—अज�दार इस घोषणा का �क सब िनवार्िचत अभ्य�थर्य� या उनम� से
211
2

�कसी का िनवार्चन शून्य है, दावा करने के अित�रक्त इस अित�रक्त घोषणा का भी दावा कर सके गा �क वह स्वयं या कोई अन्य अभ्यथ�
सम्यक् �प से िनवार्िचत हो गया है ।]
85. [यािचका �ाप्त होने पर ���या ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1966 (1966 का 47) क� धारा 40 �ारा
िनरिसत ।
अध्याय 3—िनवार्चन अ�जर्य� का िवचारण
[86. िनवार्चन अ�जर्य� का िवचारण—(1) उच्च न्यायालय �कसी िनवार्चन अज� को खा�रज कर देगा जो धारा 81 या धारा
212
3

82 या धारा 117 के उपबन्ध� का अनुपालन नह� करती है ।


स्पष्टीकरण—इस उपधारा के अधीन िनवार्चन अज� को खा�रज करने वाला उच्च न्यायालय का आदेश धारा 98 के खंड (क)
के अधीन �कया गया आदेश समझा जाएगा ।
(2) उच्च न्यायालय को िनवार्चन अज� उपस्थािपत �कए जाने के पश्चात् यथाशक्यशी� उसे उस न्यायाधीश को या उन
न्यायाधीश� म� से एक को िन�दर्ष्ट �कया जाएगा जो िनवार्चन अ�जर्य� के िवचारण के िलए मुख्य न्यायमू�तर् �ारा धारा 80क क� उपधारा
(2) के अधीन समनु�दष्ट �कया गया है या �कए गए ह� ।
(3) जहां �क उसी िनवार्चन क� बाबत एक से अिधक िनवार्चन अ�जर्यां उच्च न्यायालय को उपस्थािपत क� जाती ह�, वहां उनम�
से सब उसी न्यायाधीश को िवचारण के िलए िन�दर्ष्ट क� जाएंगी जो अपने िववेकानुसार उनको पृथक् त: या एक या अिधक समूह� म�
िवचा�रत कर सके गा ।
(4) कोई अभ्यथ�, जो पहले से ही �त्यथ� न ह�, िवचारण के �ारम्भ क� तारीख से चौदह �दन के भीतर उच्च न्यायालय से
उसके �ारा आवेदन �कए जाने पर और खच� के िलए �ितभूित के बारे म� �कसी ऐसे आदेश के अध्यधीन, जो उच्च न्यायालय �ारा �कया
जाए, �त्यथ� के �प म� संयोिजत �कए जाने का हकदार होगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा और धारा 97 के �योजन� के िलए �कसी अज� का िवचारण उस तारीख को �ारम्भ �आ समझा
जाएगा जो �त्य�थर्य� के उच्च न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने और अज� म� �कए गए दावे या दाव� का उ�र देने के िलए िनयत क�
गई है ।
(5) उच्च न्यायालय खच� के बारे म� और अन्यथा ऐसे िनबंधन� पर, िजन्ह� वह ठीक समझे, अज� म� अिभकिथत �कसी �ष्ट
आचरण क� िविशिष्टय� के ऐसी रीित म� संशोधन �कए जाने या प�रव�धर्त �कए जाने क� अनुज्ञा दे सके गा जैसी अज� के ऋजु या �भावी
िवचारण को सुिनिश्चत करने के िलए उसक� राय म� आवश्यक ह�, �कन्तु अज� का कोई ऐसा संशोधन अनुज्ञात नह� करे गा िजसका �भाव
�ष्ट आचरण क� ऐसी िविशिष्टय� को, जो अज� म� पहले से अिभकिथत न ह�, �िवष्ट करने का हो ।
(6) िनवार्चन अज� का िवचारण, जहां तक �क वह िवचारण के बारे म� न्याय के िहत� से संगत रहते �ए साध्य हो उसक�
समािप्त तक �दन �ित�दन चालू रहेगा जब तक उच्च न्यायालय उन कारण� से जो अिभिलिखत �कए जाएंगे यह िनष्कषर् न िनकाले �क
िवचारण को आगामी �दन से परे स्थिगत करना आवश्यक है ।
(7) हर िनवार्चन अज� यथासंभव शी�ता से िवचा�रत क� जाएगी और उस तारीख से, िजसको िनवार्चन अज� उच्च न्यायालय को
िवचारण के िलए उपस्थािपत क� गई है, छह मास के भीतर िवचारण को समाप्त करने का �यत्न �कया जाएगा ।
87. उच्च न्यायालय के समक्ष ���या—(1) इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए �कन्ह� भी िनयम� के उपबन्ध� के
अध्यधीन रहते �ए, हर िनवार्चन अज� उच्च न्यायालय �ारा यथाशक्य िनकटतम उस ���या के अनुसार िवचा�रत क� जाएगी जो
िसिवल ���या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन वाद� के िवचारण को लागू है :
परं तु उच्च न्यायालय को यह िववेकािधकार होगा �क वह उन कारण� से जो लेखन �ारा अिभिलिखत �कए जाएंगे �कसी साक्षी
या सािक्षय� क� परीक्षा करने से इन्कार कर दे, य�द उसक� यह राय हो �क ऐसे साक्षी या सािक्षय� का सा�य अज� के िविनश्चय के िलए
ताि�वक नह� है या यह �क ऐसे साक्षी या सािक्षय� को पेश करने वाला पक्षकार तुच्छ आधार� पर या कायर्वािहय� को िनलंिबत करने क�
दृिष्ट से ऐसा कर रहा है ।

1
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 18 �ारा ( 20-9-1961 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 47 �ारा धारा 84 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 41 �ारा (14-12-1966 से) धारा 86 से 92 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
34

(2) भारतीय सा�य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) के उपबन्ध इस अिधिनयम के उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए सब �कार
िनवार्चन अज� के िवचारण को लागू ह�गे, यह समझा जाएगा ।]
93. दस्तावेजी सा�य—�कसी अिधिनयिमित म� कोई �ितकू ल बात होते �ए भी, कोई भी दस्तावेज िनवार्चन अज� के िवचारण
म� सा�य के �प म� इस आधार पर �क वह सम्यक् �प से स्टािम्पत या रिजस्�ीकृ त नह� है अ�ा� न होगी ।
94. मतदान क� गोपनीयता का अितलंघन न �कया जाना—�कसी सा�य या अन्य �िक्त से यह किथत करने क� अपेक्षा न क�
जाएगी �क उसने िनवार्चन म� �कसके िलए मत �दया है :
1
[परन्तु यह धारा ऐसे साक्षी या अन्य �िक्त को लागू नह� होगी िजसने खुले मतप� �ारा मत �दया हो ।]
95. अपराध म� फं साने वाले �श्न� का उ�र देना और प�र�ाण का �माणप�—(1) कोई साक्षी, िनवार्चन अज� के िवचारण म�
िववा�क िवषय से सुसंगत �कसी िवषय के बारे म� �कए गए �कसी �श्न का उ�र देने से, इस आधार पर क्षम्य न होगा �क ऐसे �श्न का
उ�र ऐसे साक्षी को अपराध म� फं सा सके गा या उसक� �वृि� अपराध म� फं साने क� होगी अथवा वह ऐसे साक्षी को �कसी शािस्त या
समपहरण के िलए उच्छन्न कर सके गा या उसक� �वृि� उच्छन्न करने क� हो सके गी :
परं तु—
(क) वह साक्षी जो उन सब ��� का सही उ�र देता है िजनका उ�र देने क� उससे अपेक्षा क� गई है
214
2
[उच्च न्यायालय] से प�र�ाण �माणप� �ाप्त करने के िलए हकदार होगा, तथा
(ख) 2[उच्च न्यायालय] के �ारा या समक्ष �कए गए �श्न का जो उ�र साक्षी �ारा �दया गया है, वह उस सा�य
संबंधी शपथ-भंग के िलए दािण्डक कायर्वाही क� दशा म� �ा� होने के िसवाय, उसके िव�� �कसी िसिवल या दािण्डक
कायर्वाही म� सा�य म� �ा� न होगा ।
(2) जब�क �कसी साक्षी को प�र�ाण �माणप� अनुद� कर �दया गया है तब उसका अिभवचन वह �कसी न्यायालय म� कर
सके गा और ऐसे �कसी िवषय से उद्भूत होने वाले, िजसके संबंध म� ऐसा �माणप� है, भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) के अध्याय
9क के अधीन या इस अिधिनयम के भाग 7 के अधीन �कसी आरोप के िव�� या बाबत सम्पूणर् �ितरक्षा होगी, �कन्तु उसक� बाबत यह न
समझा जाएगा �क वह िनवार्चन से संसक्त �कसी ऐसी िनरहर्ता से, जो इस अिधिनयम या �कसी अन्य िविध �ारा अिधरोिपत है, उससे
अवमुक्त कर देता है ।
96. सािक्षय� के �य—सा�य देने के िलए हािजर होने म� �कसी �िक्त �ारा उपगत युिक्तयुक्त �य 2[उच्च न्यायालय] ऐसे
�िक्त को अनुज्ञात कर सके गा और जब तक �क उच्च न्यायालय अन्यथा िन�दर्ष्ट न करे वे युिक्तयुक्त �य खचर् के भाग समझे जाएंगे ।
97. स्थान के िलए दावा �कए जाने पर �त्यारोप—(1) जब�क िनवार्चन अज� म� इस घोषणा का दावा �कया गया है �क
िनवार्िचत अभ्यथ� से िभन्न कोई अभ्यथ� सम्यक् �प से िनवार्िचत हो गया है तब िनवार्िचत अभ्यथ� या कोई अन्य पक्षकार यह सािबत
करने के िलए सा�य दे सके गा �क य�द ऐसा अभ्यथ� िनवार्िचत अभ्यथ� होता और उसके िनवार्चन को �श्नगत करने के िलए अज� दी गई
होती, तो ऐसे अभ्यथ� का िनवार्चन शून्य होता :
परं तु जब तक �क िनवार्िचत अभ्यथ� या यथापूव�क्त जैसे अन्य पक्षकार ने अपने ऐसा करने के आशय क� सूचना
2
[उच्च न्यायालय] को 3[िवचारण �ारम्भ होने क�] तारीख से चौदह �दन के भीतर न दे दी हो और �मशः धारा� 117 और 118 म�
िन�दर्ष्ट �ितभूित और अित�रक्त �ितभूित भी न दे दी हो, वह ऐसा सा�य देने के िलए हकदार न होगा ।
(2) उपधारा (1) म� िन�दर्ष्ट हर सूचना के साथ वह कथन और 4*** िविशिष्टयां ह�गी जो िनवार्चन अज� क� दशा म� धारा 83
�ारा अपेिक्षत ह� और वह ऐसी ही रीित म� हस्ताक्ष�रत और सत्यािपत ह�गी ।
98. उच्च न्यायालय का िविनश्चय—िनवार्चन अज� के िवचारण क� समािप्त पर 2[उच्च न्यायालय]—
(क) िनवार्चन अज� को खा�रज करने का, अथवा
(ख) यह घोषणा करने वाला �क 5[सब िनवार्िचत अभ्य�थर्य� का या उनम� से �कसी] का िनवार्चन शून्य है, अथवा
(ग) यह घोषणा करने वाला �क 5[सब िनवार्िचत अभ्य�थर्य� का या उनम� से �कसी] का िनवार्चन शून्य है और
अज�दार या कोई अन्य अभ्यथ� सम्यक् �प से िनवार्िचत हो गया है । 6*** 218

6
* * * * * * *

1
2003 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 4 �ारा अंतःस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 42 �ारा (14-12-1966 से) “न्यायािधकरण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 52 �ारा “धारा 90 के अधीन िनवार्चन यािचका के �काशन क�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 52 �ारा “क� सूची” शब्द� का लोप �कया गया ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 53 �ारा “िनवार्िचत अभ्यथ�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 53 �ारा “या” और खंड (घ) का लोप �कया गया ।
35

आदेश करे गा ।
99. उच्च न्यायालय �ारा �कए जाने वाले अन्य आदेश—(1) धारा 98 के अधीन आदेश करते समय 1[उच्च न्यायालय]—
220
2
[(क) उस दशा म�, िजसम� अज� म� यह आरोप �कया गया है �क िनवार्चन म� कोई �ष्ट आचरण �कया गया है —
(i) यह िनष्कषर् अिभिलिखत करते �ए �क िनवार्चन म� 3*** �कसी �ष्ट आचरण का �कया जाना सािबत
�आ है या सािबत नह� �आ है और उस �ष्ट आचरण क� �कृ ित अिभिलिखत करते �ए, तथा
(ii) उन सब �िक्तय� के नाम, य�द कोई ह�, िजनक� बाबत िवचारण म� यह सािबत �आ है �क वे �कसी
�ष्ट आचरण के दोषी ह� और उस आचरण क� �कृ ित अिभिलिखत करते �ए, तथा]
(ख) संदये खच� क� कु ल रकम को िनयत करते �ए उन �िक्तय� को िविन�दर्ष्ट करते �ए िजनके �ारा और िजनको
खचर् �दए जाएंगे,
आदेश भी करे गाः
परं तु जब तक 4[उस �िक्त को, जो अज� का पक्षकार नही ह�—]
(क) 1[उच्च न्यायालय] के समक्ष उपसंजात होने के िलए और यह हेतुक द�शर्त करने क� �क उसे क्य� न ऐसे नािमत
�कया जाए, सूचना न दे दी गई हो, तथा
(ख) य�द वह सूचना के अनुसरण म� उपसंजात होता है, तो उस 1[उच्च न्यायालय] �ारा पहले ही िजस साक्षी क�
परीक्षा क� जा चुक� है और िजसने उसके िव�� सा�य �दया है उसक� �ितपरीक्षा करने का, अपनी �ितरक्षा म� सा�य पेश करने
या कराने का और अपनी सुनवाई का अवसर न दे �दया गया हो, उसे खण्ड (क) के उपखंड (ii) के अधीन आदेश म� 4[नािमत न
�कया जाएगा] ।
223
5
[(2) इस धारा म� और धारा 100 म� “अिभकतार्” पद का वही अथर् है जो उसका धारा 123 म� है ।]
100. िनवार्चन को शून्य घोिषत करने के आधार— 6[(1) उपधारा (2) के उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए, यह �क य�द 1[उच्च
न्यायालय] क� यह राय है �क —
(क) िनवार्िचत अभ्यथ� अपने िनवार्चन क� तारीख को स्थान भरने के िलए चुने जाने के िलए संिवधान या इस
अिधिनयम के 7[या संघ राज्यक्षे� शासन अिधिनयम, 1963 (1963 का 20)] के अधीन अ�हर्त नह� था या िनर�हर्त कर �दया
गया था, अथवा
(ख) िनवार्िचत अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् �ारा या िनवार्िचत अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क�
सम्मित से �कसी अन्य �िक्त �ारा कोई �ष्ट आचरण �कया गया है, अथवा
(ग) कोई नामिनद�शन अनुिचत �प से �ितक्षेिपत �कया गया है ; अथवा
(घ) जहां तक �क िनवार्चन का प�रणाम िनवार्िचत अभ्यथ� से सम्पृक्त है, वहां तक िनवार्चन प�रणाम—
(i) �कसी नामिनद�शन के अनुिचत �ित�हण से, अथवा
(ii) ऐसे �कसी �ष्ट आचरण से, जो िनवार्िचत अभ्यथ� के िहत म� 8[उसके िनवार्चन अिभकतार् से िभन्न
अिभकतार् �ारा] �कया गया है ; अथवा
(iii) �कसी मत के अनुिचत तौर पर िलए जाने के इन्कार करने या �ितक्षेिपत �कए जाने के या ऐसे �कसी
मत के िलए जाने के , जो शून्य हो, कारण से, अथवा
(iv) संिवधान के या अिधिनयम के या इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए �कन्ह� िनयम� या आदेश� के
उपबंध� के �कसी अनुपालन से, ताि�वक �प से �भािवत �आ है,
तो 1[उच्च न्यायालय] िनवार्िचत अभ्यथ� के िनवार्चन क� बाबत यह घोषणा करे गा �क वह शून्य है ।]

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 42 �ारा (14-12-1966 से) “न्यायािधकरण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 54 �ारा खंड (क) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 29 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 54 �ारा “�कसी �ि� को नािमत न �कया जाएगा—” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 54 �ारा उपधारा (2) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 55 �ारा उपधारा� (1) और (2) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1963 के अिधिनयम सं० 20 क� धारा 57 और दूसरी अनुसच ू ी �ारा अन्तःस्थािपत “या भाग ग राज्य� क� सरकार अिधिनयम, 1951 (1951 का 49)” शब्द� का िविध
अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा लोप �कया गया था ।
8
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 30 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
36

[(2)] य�द 2[उच्च न्यायालय] क� यह राय है �क िनवार्िचत अभ्यथ� अपने िनवार्चन अिभकतार् से िभन्न अिभकतार् �ारा 3***
1

�कसी �ष्ट आचरण का दोषी रहा है �कन्तु 2[उच्च न्यायालय] का यह समाधान हो गया है �क—
(क) अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् ने िनवार्चन म� ऐसा कोई �ष्ट आचरण नह� �कया था और हर ऐसा �ष्ट
आचरण अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् के आदेश� के �ितकू ल था और उसका 4[सम्मित के िबना] �कया गया था,
5
* * * * *
(ग) अभ्यथ� और उसके िनवार्चन अिभकतार् ने िनवार्चन म� �ष्ट 6*** आचरण �कए जाने का िनवारण करने के िलए
सब युिक्तयुक्त उपाय �कए थे, तथा
(घ) िनवार्चन अन्य सब बात� म� अभ्यथ� या उसके अिभकतार्� म� से �कसी क� तरफ से �कसी भी �ष्ट 7***
आचरण
से मुक्त था,
तो 2[उच्च न्यायालय] यह िविनश्चय कर सके गा �क िनवार्िचत अभ्यथ� का िनवार्चन शून्य नह� है ।
101. िनवार्िचत अभ्यथ� से िभन्न अभ्यथ� िजन आधार� पर िनवार्िचत घोिषत �कया जा सके गा वे आधार—य�द ऐसे �कसी
�िक्त ने, िजसने अज� दािखल क� है िनवार्िचत अभ्यथ� के िनवार्चन को �श्नगत करने के अित�रक्त इस घोषणा के िलए दावा �कया है
�क वह स्वयं या कोई अन्य अभ्यथ� सम्यक् �प से िनवार्िचत हो गया है और 2[उच्च न्यायालय] क� यह राय है �क —
(क) अज�दार को या ऐसे अन्य अभ्यथ� को िविधमान्य मत� क� ब�संख्या वास्तव म� �ाप्त �ई है, अथवा
(ख) िनवार्िचत अभ्यथ� को �ष्ट 7*** आचरण �ारा अिभ�ाप्त मत� के अभाव म� अज�दार या ऐसे अन्य अभ्यथ� को
िविधमान्य मत� क� ब�संख्या अिभ�ाप्त �ई होती,
तो 2[उच्च न्यायालय] िनवार्िचत अभ्यथ� के िनवार्चन को शून्य घोिषत करने के पश्चात् यह घोषणा करे गा �क, यथािस्थित, अज�दार या
ऐसा अन्य अभ्यथ� सम्यक् �प से िनवार्िचत हो गया है ।
102. मत� के बराबर होने क� दशा म� ���या—य�द िनवार्िचत अज� के िवचारण के दौरान यह �तीत होता है �क िनवार्चन म�
�कन्ह� अभ्य�थर्य� के बीच मत बराबर ह� और मत� म� एक मत के जोड़ देने से उन अभ्य�थर्य� म� से कोई िनवार्िचत घोिषत �कए जाने का
हकदार हो जाएगा, तो—
(क) �रट�न�ग आ�फसर �ारा इस अिधिनयम के उपबंध� के अधीन �कया गया कोई िविनश्चय वहां तक, जहां तक �क
उन अभ्य�थर्य� के बीच �श्न का अवधारण करता है, उस अज� के �योजन� के िलए भी �भावी होगा, तथा
(ख) जहां तक �क वह �श्न ऐसे िविनश्चय �ारा अवधा�रत नह� �आ है, वहां तक 2[उच्च न्यायालय] उनके बीच लाट
�ारा िविनश्चय करे गा और ऐसे अ�सर होगा मानो िजस �कसी के पक्ष म� लाट िनकल आए उसे एक अित�रक्त मत �ाप्त
�आ था ।
8
[103. उच्च न्यायालय के आदेश� क� संसच ू ना—उच्च न्यायालय िनवार्चन अज� के िवचारण क� समािप्त के पश्चात्
यथाशक्य शी� िविनश्चय के सारांश क� �ज्ञापना िनवार्चन आयोग और, यथािस्थित, संसद् के या सम्पृक्त राज्य िवधान-मंडल के सदन के
अध्यक्ष या सभापित को देगा और तत्पश्चात् यथाशक्य शी� िविनश्चय क� अिध�मािणकृ त �ित िनवार्चन आयोग को भेजेगा ।]
104. [न्यायािधकरण के सदस्य� क� राय म� िभन्नता ।]—लोक �ितिनिधत्व (ि�तीय संशोधन) अिधिनयम, 1956
(1956 का 27) क� धारा 57 �ारा िनरिसत ।
105. [न्यायािधकरण के आदेश अिन्तम और िविनश्चायक ह�गे ।]—लोक �ितिनिधत्व (ि�तीय संशोधन) अिधिनयम, 1956
(1956 का 27) क� धारा 58 �ारा िनरिसत ।
106. आदेश का समुिचत �ािधकारी आ�द को पारे षण और उसका �काशन—िनवार्चन आयोग, 2[उच्च न्यायालय] �ारा धारा
98 या धारा 99 के अधीन �कए गए �कसी आदेश क� �ािप्त के पश्चात् यथाशक्य शी� आदेश क� �ितयां समुिचत �ािधकारी को भेजेगा,
और जहां �क ऐसा आदेश 9*** संसद् के �कसी सदन के िलए िनवार्चन से या �कसी राज्य के िवधान-मंडल के सदन या सदन� म� से �कसी
235

सदन के िलए िनवार्चन से संब� है, वहां, यथािस्थित, सम्पृक्त सदन के अध्यक्ष या सभापित को भी भेजेगा, और 10[आदेश को—

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 55 �ारा उपधारा (3) को उपधारा (2) के �प म� पुनस�ख्यां�कत �कया गया ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 42 �ारा (14-12-1966 से) “न्यायािधकरण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 55 �ारा “धारा 123 म� िविन�दर्�” शब्द� और अंक� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 55 �ारा “िबना मंजरू ी और मौनानुकूलता” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 30 �ारा खंड (ख) का लोप �कया गया ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 55 �ारा “या अवैध” शब्द� का लोप �कया गया ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 56 �ारा “या अवैध” शब्द� का लोप �कया गया ।
8
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 43 �ारा (14-12-1966 से) धारा 103 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 59 �ारा “(�ाथिमक िनवार्चन से िभन्न)” शब्द� और कोष्ठक� का लोप �कया गया ।
10
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 59 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
37

(क) जहां �क आदेश संसद् के �कसी सदन के िलए िनवार्चन से संब� है, वहां भारत के राजप� म� और साथ ही
सम्पृक्त राज्य के शासक�य राजप� म�, तथा
(ख) जहां �क आदेश के राज्य िवधान-मंडल के सदन या सदन� म� से �कसी सदन के िलए िनवार्चन से संब� है वहां
राज्य के शासक�य राजप� म�,
�कािशत कराएगा ।]
[107. उच्च न्यायालय के आदेश� का �भाव — 2[(1) अध्याय 4क म� अन्त�वर्ष्ट उन उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए जो उच्च
1

न्यायालय �ारा धारा 98 या धारा 99 के अधीन �कसी आदेश के �वतर्न को रोक देने से संबंिधत है, यह है �क हर ऐसा आदेश ज्य� ही उच्च
न्यायालय �ारा �ख्यािपत �कया जाए त्य� ही �भावी हो जाएगा ।]
(2) जहां �क िनवार्िचत अभ्यथ� का िनवार्चन धारा 98 के अधीन आदेश �ारा शून्य घोिषत कर �दया जाता है । जहां वे कायर्
और कायर्वाही िजनम� उस िनवार्िचत अभ्यथ� ने उसक� तारीख के पूवर् संसद् के सदस्य के �प म� या राज्य िवधान-मंडल के सदस्य के �प
म� भाग िलया है, उस आदेश के कारण ही अिविधमान्य न हो जाएगी और न ऐसा अभ्यथ� ऐसे भाग लेने के आधार पर ही �कसी दाियत्व
या शािस्त के अध्यधीन �कया जाएगा ।]
अध्याय 4—िनवार्चन अ�जर्य� का �त्याहरण और उपशमन
108. [न्यायािधकरण क� िनयुिक्त से यािचका� का �त्याहरण ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1966
(1966 का 47) क� धारा 45 �ारा िनरिसत ।
[109. िनवार्चन अ�जर्य� का �त्याहरण—(1) िनवार्चन अ�जर्य� का �त्याहरण के वल उच्च न्यायालय क� इजाजत से ही �कया
3

जा सके गा ।
(2) जहां �क उपधारा (1) के अधीन �त्याहरण का आवेदन �कया गया है, वहां उसक� सूचना िजसम� आवेदन क� सुनवाई के
िलए तारीख िनयत हो अज� के अन्य सब पक्षकार� को दी जाएगी और शासक�य राजप� म� �कािशत क� जाएगी ।
110. िनवार्चन अ�जर्य� के �त्याहरण के िलए ���या—(1) य�द एक से अिधक अज�दार ह�, तो िनवार्चन अज� के �त्याहरण
का कोई भी आवेदन सब अज�दार� क� सम्मित के िबना नह� �कया जाएगा ।
(2) �त्याहरण का कोई आवेदन मंजूर नह� �कया जाएगा, य�द उच्च न्यायालय क� राय म� ऐसा आवेदन �कसी ऐसे सौदे या
�ितफल के �ारा उत्�े�रत �कया गया है जो अनुज्ञात नह� �कया जाना चािहए ।
(3) य�द आवेदन मंजूर �कया जाता है तो —
(क) अज�दार को आदेश �दया जाएगा �क वह �त्य�थर्य� को तब तक उपगत खच� का या उनके ऐसे �भाग का, जैसा
उच्च न्यायालय ठीक समझे, संदाय करे ;
(ख) उच्च न्यायालय िनदेश देगा �क �त्याहरण क� सूचना शासक�य राजप� म� और ऐसी अन्य रीित म�, जैसी वह
िविन�दर्ष्ट करे , �कािशत क� जाएगी और तदुप�र सूचना तद्नुसार �कािशत क� जाएगी ;
(ग) कोई �िक्त जो स्वयं अज�दार हो सकता था, ऐसे �काशन के चौदह �दन के भीतर �त्याहरण करने वाले
पक्षकार के स्थान म� अज�दार के �प म� �ितस्थािपत �कए जाने के िलए आवेदन कर सके गा और �ितभूित के बारे म� शत� का
य�द कोई ह�, अनुपालन करने पर ऐसे �ितस्थािपत �कए जाने का और कायर्वािहय� को ऐसे िनबन्धन� पर चालू रखने का, िजसे
उच्च न्यायालय ठीक समझे, हकदार होगा ।]
111. उच्च न्यायालय �ारा िनवार्चन आयोग को �त्याहरण क� �रपोटर् —जब�क �त्याहरण का आवेदन 4[उच्च न्यायालय]
�ारा मंजूर कर िलया गया है और धारा 110 क� उपधारा (3) के खंड (ग) के अधीन कोई �िक्त �त्याहरण करने वाले पक्षकार के स्थान म�
अज�दार के �प म� �ितस्थािपत नह� �कया गया है, 4[उच्च न्यायालय] इस तथ्य क� �रपोटर् िनवार्चन आयोग को देगा 5[और तदुप�र
िनवार्चन आयोग �रपोटर् को शासक�य राजप� म� �कािशत करे गा] ।
[112. िनवार्चन अ�जर्य� का उपशमन—(1) िनवार्चन अज� का उपशमन एकमा� अज�दार क� या कई अज�दार� म� से
6

उ�रजीवी क� मृत्यु पर होगा ।


(2) जहां �क �कसी िनवार्चन अज� का उपधारा (1) के अधीन उपशमन हो जाता है वहां उच्च न्यायालय उस तथ्य का ऐसी
रीित म�, जैसी वह ठीक समझे, �काशन करवाएगा ।

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 60 �ारा धारा 107 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 44 �ारा (14-12-1966 से) उपधारा (1) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 46 �ारा (14-12-1966 से) 109 और 110 धारा� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 47 �ारा (14-12-1966 से) “न्यायािधकरण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 61 �ारा अन्तःस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 48 �ारा (14-12-1966 से) 112 से 115 तक क� धारा� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
38

(3) कोई �िक्त जो स्वयं अज�दार हो सकता था, ऐसे �काशन के चौदह �दन के भीतर अज�दार के �प म� �ितस्थािपत �कए
जाने के िलए आवेदन कर सके गा और �ितभूित के बारे म� शत� का, य�द कोई ह�, अनुपालन करने पर ऐसे �ितस्थािपत �कए जाने का और
कायर्वािहय� को ऐसे िनबन्धन� पर चालू रखने का, जैसे उच्च न्यायालय ठीक समझे, हकदार होगा ।]
116. �त्यथ� क� मृत्यु पर उपशमन या �ितस्थापन—िनवार्चन अज� के परीक्षण क� समािप्त से पूवर् य�द एक मा� �त्यथ� मर
जाता है या यह सूचना देता है �क वह अज� का िवरोध करने का आशय नह� रखता या �त्य�थर्य� म� से कोई मर जाता है या ऐसी सूचना
देता है और अज� के िवरोध करने वाला कोई अन्य �त्यथ� नह� है तो 1[उच्च न्यायालय] ऐसी घटना क� सूचना शासक�य राजप� म�
�कािशत कराएगा और तदुप�र कोई �िक्त, जो अज�दार हो सकता था, ऐसे �त्यथ� के स्थान म� अज� का िवरोध करने के िलए
�ितस्थािपत �कए जाने के िलए आवेदन ऐसे �काशन के चौदह �दन के भीतर कर सके गा और ऐसे िनबन्धन� पर, जैसे 1[उच्च न्यायालय]
ठीक समझता हो, कायर्वाही को चालू रखने का हकदार होगा ।
2
[अध्याय 4क—अपील�
[116क. उच्चतम न्यायालय म� अपील�—(1) तत्समय �वृ� �कसी अन्य िविध म� अन्त�वर्ष्ट �कसी बात के होते �ए भी �कसी
3

उच्च न्यायालय �ारा धारा 98 या धारा 99 के अधीन �कए गए हर आदेश से �कसी भी �श्न पर (चाहे वह िविध का हो या तथ्य का)
अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी ।
(2) इस अध्याय के अधीन हर अपील उच्च न्यायालय के धारा 98 या धारा 99 के अधीन के आदेश क� तारीख से तीस �दन क�
कालाविध के भीतर क� जाएगी :
परन्तु य�द उच्चतम न्यायालय का समाधान हो जाता है �क ऐसी कालाविध के भीतर अपील �स्तुत न करने के िलए अपीलाथ�
के पास पयार्प्त हेतुक था तो वह तीस �दन क� उक्त कालाविध के अवसान के पश्चात् अपील �हण कर सके गा ।
116ख. उच्च न्यायालय के आदेश के �वतर्न का रोका जाना—(1) उच्च न्यायालय �ारा धारा 98 या धारा 99 के अधीन �कए
गए �कसी आदेश के �वतर्न को रोकने के िलए आवेदन, उस आदेश से अपील करने के िलए अनुज्ञात समय के अवसान के पूवर् उच्च
न्यायालय को �कया जा सके गा और उच्च न्यायालय, पयार्प्त हेतुक के द�शर्त �कए जाने पर और ऐसे िनबन्धन� और शत� पर, जैसी वह
ठीक समझे, उस आदेश के �वतर्न को रोक सके गा ; �कन्तु उच्चतम न्यायालय को अपील कर देने के पश्चात्, रोकने के िलए कोई भी
आवेदन, उच्च न्यायालय को नह� �कया जाएगा ।

(2) जहां �क धारा 98 या धारा 99 के अधीन �कए गए आदेश के िव�� अपील क� गई है, वहां उच्चतम न्यायालय, पयार्प्त
हेतुक द�शर्त �कए जाने पर और ऐसे िनबन्धन� और शत� पर, जैसी वह ठीक समझे, उस आदेश के �वतर्न को, िजसक� अपील क� गई है,
रोक सके गा ।
(3) जहां �कसी आदेश का �वतर्न, यथािस्थित, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय �ारा रोका जाता है, वहां उस आदेश के
बारे म� यह समझा जाएगा �क वह आदेश धारा 107 क� उपधारा (1) के अधीन कभी भी �भावी नह� �आ ; और उस रोक आदेश क� एक
�ित, यथािस्थित, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय �ारा िनवार्चन आयोग को और, यथािस्थित, संसद् के या सम्पृक्त राज्य
िवधान-मंडल के सदन के अध्यक्ष या सभापित को तुंरन्त भेजी जाएगी ।
116ग. अपील म� ���या—(1) इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� के , य�द कोई ह�, उपबन्ध� के अध्यधीन रहते
�ए हर अपील उच्चतम न्यायालय �ारा उस ���या के यथाशक्य िनकटतम अनुसार सुनी और अवधा�रत क� जाएगी जो ऐसी अपील क�
सुनवाई और अवधारण को लागू होती है जो उच्च न्यायालय �ारा उसक� मूल िसिवल अिधका�रता के �योग म� पा�रत �कसी अिन्तम
आदेश से क� जाए और िसिवल ���या संिहता, 1908 (1908 का 5) के और उस न्यायालय के िनयम� के सभी उपबन्ध (िजनके अन्तगर्त
�ितभूित देने और न्यायालय के �कसी आदेश के िनष्पादन से सम्ब� उपबन्ध आते ह�) ऐसी अपील के संबंध म� यावत्शक्य लागू ह�गे ।

(2) ज्य� ही अपील िविनिश्चत क� जाए त्य� ही उच्चतम न्यायालय, िविनश्चय का सार, िनवार्चन आयोग को और,
यथािस्थित, संसद् के या संपृक्त राज्य िवधान-मंडल के सदन के अध्यक्ष या सभापित को �ज्ञािपत करे गा और तत्पश्चात् यथाशक्य शी�,
िविनश्चय क� एक अिध�माणीकृ त �ित िनवार्चन आयोग को भेजेगा, और उसक� �ािप्त पर िनवार्चन आयोग—

(क) उसक� �ितयां उन �ािधका�रय� को भेजेगा िजनको उच्च न्यायालय के आदेश क� �ितयां धारा 106 के अधीन
भेजी गई थ� ; तथा

(ख) उस िविनश्चय को उस राजप� म� या उन राजप�� म� �कािशत करवाएगा िजसम� या िजनम� वह आदेश उक्त
धारा के अधीन �कािशत �कया गया था ।]]

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 49 �ारा (14-12-1966 से) “न्यायािधकरण” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 62 �ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 50 �ारा (14-12-1966 से) 116क और 116ख धाराएं �ितस्थािपत ।
39

अध्याय 5—खच� और खच� के िलए �ितभूित


[117. खच� के िलए �ितभूित—(1) िनवार्चन अज� के उपस्थापन के समय अज�दार उच्च न्यायालय के िनयम� के अनुसार
1

अज� के खच� के िलए �ितभूित के �प म� दो हजार �पए क� रािश का िनक्षेप उच्च न्यायालय म� करे गा ।
(2) िनवार्चन अज� के िवचारण के दौरान उच्च न्यायालय �कसी भी समय अज�दार से खच� के िलए ऐसी अित�रक्त �ितभूित
देने क� अपेक्षा कर सके गा, जैसी वह िन�दर्ष्ट करे ।
118. �त्यथ� से खच� के िलए �ितभूित—जब तक �कसी �िक्त ने खच� के िलए ऐसी �ितभूित न दे दी हो, जैसी उच्च
न्यायालय �ारा िन�दर्ष्ट क� जाए, तब तक वह �िक्त धारा 86 क� उपधारा (4) के अधीन �त्यथ� के �प म� संयोिजत �कए जाने का
हकदार नह� होगा ।
119. खच�—खच� का अिधिनणर्य उच्च न्यायालय के िववेकाधीन होगा :
परन्तु जहां �क अज� धारा 98 के खण्ड (क) के अधीन खा�रज क� जाती है, वहां िनवार्िचत अभ्यथ� ने अज� का �ितिवरोध करने
म� जो खचर् उपगत �कए ह� उन्ह� पाने का वह हकदार होगा और उच्च न्यायालय खच� का आदेश िनवार्िचत अभ्यथ� के पक्ष म� तद्नुसार
करे गा ।]
121. �ितभूित िनक्षेप� म� से खच� का संदाय और ऐसे िनक्षेप� क� वापसी—(1) य�द इस भाग के उपबन्ध� के अधीन खच� क�
बाबत �कसी आदेश म� �कसी �िक्त को �कसी पक्षकार �ारा खच� का संदाय �कए जाने के िलए िनदेश है तो य�द ऐसे खच� पहले ही संद�
नह� कर �दए गए ह� तो ऐसे खच� ऐसे पक्षकार के �ारा इस भाग के अधीन �कए गए �ितभूित िनक्षेप म� से और य�द अित�रक्त �ितभूित
िनक्षेप हो तो उनम� से भी तिन्निम� उस िलिखत आवेदन पर पूणर्तः या यावत्साध्य �दए जाएंगे जो उस �िक्त ने, िजसके पक्ष म� खच�
अिधिनण�त �कए गए ह�, 2[ऐसे आदेश क� तारीख से एक वषर् क� कालाविध के भीतर] 3[उच्च न्यायालय] से �कया है ।
(2) य�द उक्त �ितभूित िनक्षेप� म� से �कसी म� से अितशेष उपधारा (1) म� िन�दर्ष्ट खच� का उस उपधारा के अधीन संदाय करने
के पश्चात् बच जाता है, तो ऐसा अितशेष, या जहां �क खच� अिधिनण�त नह� �कए गए ह� या यथापूव�क्त आवेदन 4[एक वषर्] क� उक्त
कालाविध के भीतर नह� �कया गया है वहां उक्त �ितभूित िनक्षेप पूणर्तः ऐसे आवेदन पर जो उस �िक्त �ारा, िजसने िनक्षेप �कए ह�, या
य�द ऐसा �िक्त ऐसे िनक्षेप करने के पश्चात् मर गया है, तो ऐसे �िक्त के िविधक �ितिनिध �ारा तिन्निम� 3[उच्च न्यायालय] से
िलिखत �प म� �कया गया है, यथािस्थित, उक्त �िक्त को या उसके िविधक �ितिनिध को वापस कर �दए जाएंगे ।

122. खच� संबंधी आदेश� का िनष्पादन—इस भाग के उपबन्ध� के अधीन खच� क� बाबत कोई आदेश उस आरिम्भक
अिधका�रता वाले �धान िसिवल न्यायालय के समक्ष, िजसक� अिधका�रता क� स्थानीय सीमा� के भीतर उस �िक्त के िनवास-स्थान
पर कारबार का स्थान है, िजससे धन क� कोई रािश संद� करने के िलए ऐसे आदेश �ारा िन�दर्ष्ट �कया गया है, या जहां �क ऐसा स्थान
�ेिसड�सी नगर के भीतर है वहां उस नगर म� अिधका�रता रखने वाले लघुवाद न्यायालय के समक्ष पेश �कया जा सके गा और ऐसा
न्यायालय ऐसी रीित म� और ऐसी ���या �ारा उस आदेश का िनष्पादन करे गा या कराएगा मानो वह वाद म� धन के संदाय के िलए उसके
�ारा दी गई िड�� हो :

परन्तु जहां �क कोई ऐसे खच� या उसका कोई �भाग धारा 121 क� उपधारा (1) के अधीन �कए गए आवेदन पर वसूल �कया जा
सकता है, वहां जब तक �क कोई आवेदन �कन्ह� खच� के उस अितशेष क� वसूली के िलए न ह� जो उस उपधारा के अधीन �कए गए
आवेदन के पश्चात् इस कारण अनाप्त रह गया है �क उस उपधारा म� िन�दर्ष्ट �ितभूित िनक्षेप� क� रकम अपयार्प्त है, इस धारा के अधीन
कोई आवेदन 5[ऐसे आदेश क� तारीख से एक वषर् क� कालाविध के भीतर] न होगा ।

भाग 7
6
[�ष्ट आचरण और िनवार्चन अपराध]
7
[अध्याय 1— �ष्ट आचरण
123. �ष्ट आचरण—िनम्निलिखत इस अिधिनयम के �योजन� के िलए �ष्ट आचरण समझे जाएंगे —
8
[(1) “ �रश्वत” अथार्त् :—

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 51 �ारा (14-12-1966 से) धारा 117, धारा 118, धारा 119, धारा 119क और धारा 120 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 34 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 52 �ारा (14-12-1966 से) “िनवार्चन आयोग” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 34 �ारा “छह मास” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 35 �ारा कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 65 �ारा “�� और अवैध आचरण और िनवार्चन अपराध” शीषर्क के स्थान पर �ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 66 �ारा अध्याय 1 और 2 (123 से 125 तक क� धारा�) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
8
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा खंड (1) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
40

(अ) �कसी अभ्यथ� या उसके अिभकतार् �ारा अथवा �कसी अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क�
सम्मित से �कसी अन्य �िक्त �ारा �कसी भी �िक्त को, वह चाहे जो कोई भी हो, �कसी प�रतोषण का ऐसा दान,
�स्थापना या वचन, िजसका �त्यक्षतः या परतः यह उ�ेश्य हो �क—
(क) �कसी �िक्त को िनवार्चन म� अभ्यथ� के �प म� खड़े होने या न होने के िलए या अभ्य�थर्ता
254
1
[वापस लेने या न लेने के िलए], अथवा
(ख) �कसी िनवार्चक को �कसी िनवार्चन म� मत देने के या मत देने से िवरत रहने के िलए,
उत्�े�रत �कया जाए,

अथवा जो—

(i) �कसी �िक्त के िलए इस बात से वह इस �कार खड़ा �आ या नह� �आ या उसने अपनी
अभ्य�थर्ता 2[वापस ले ली या नह� ली], अथवा

(ii) �कसी िनवार्चक के िलए इस बात के �क उसने मत �दया या मत देने से िवरत रहा,

इनाम के �प म� हो;

(आ) (क) �िक्त �ारा अभ्यथ� के �प म� खड़े होने या खड़े न होने या अभ्य�थर्ता 3[वापस लेने या न लेने के
िलए] ; या

(ख) �कसी �िक्त �ारा, वह चाहे जो कोई हो; स्वयं अपने िलए या �कसी अन्य �िक्त के िलए, मतदान
करने या मतदान करने से िवरत रहने या �कसी अभ्यथ� को अभ्य�थर्ता 3[वापस लेने या न लेने के िलए] उत्�े�रत
करने या उत्�े�रत करने का �यत्न करने के िलए,

चाहे हेतुक के �प म� या इनामवत् कोई प�रतोषण �ाप्त करना या �ाप्त करने के िलए करार करना ।
स्पष्टीकरण—इस खण्ड के �योजन� के िलए “प�रतोषण” पद धन �पी प�रतोषण� या धन म� �ाक्कलनीय
प�रतोषण� तक ही िनबर्िन्धत नह� है और इसके अन्तगर्त सब �प के मनोरं जन और इनाम के िलए सब �प के िनयोजन आते ह�
�कन्तु �कसी िनवार्चन म� या िनवार्चन के �योजन के िलए सद्भावपूवर्क उपगत और धारा 78 म� िन�दर्ष्ट िनवार्चन �य� के लेखे
म� सम्यक् �प से �िवष्ट �कन्ह� �य� के संदाय इसके अन्तगर्त नह� आते ह� ।]
(2) असम्यक् असर डालना, अथार्त् �कसी िनवार्चन अिधकार के स्वतं� �योग म� अभ्यथ� या उसके अिभकतार् क� या
4
[अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से] �कसी अन्य �िक्त क� ओर से �कया गया कोई �त्यक्षतः या परतः
हस्तक्षेप या हस्तक्षेप का �यत्न :
परन्तु —
(क) इस खण्ड के उपबन्ध� क� �ापकता पर �ितकू ल �भाव डाले िबना उसम� यथािन�दर्ष्ट ऐसे �कसी �िक्त क�
बाबत जो—
(i) �कसी अभ्यथ� या �कसी िनवार्चक या ऐसे �कसी �िक्त को, िजससे अभ्यथ� या िनवार्चक िहतब� है,
�कसी �कार क� क्षित, िजसके अन्तगर्त सामािजक बिहष्कार और �कसी जाित या समुदाय से बाहर करना या
िनष्कासन आता है, प�ंचाने क� धमक� देता है, अथवा
(ii) �कसी अभ्यथ� या िनवार्चक को यह िवश्वास करने के िलए उत्�े�रत करता है या उत्�े�रत करने का
�यत्न करता है �क वह या कोई ऐसा �िक्त, िजससे वह िहतब� है, दैवी अ�साद या आध्याित्मक प�रिनन्दा का
भाजन हो जाएगा या बना �दया जाएगा,
यह समझा जाएगा �क वह ऐसे अभ्यथ� या िनवार्चक के िनवार्चन अिधकार के स्वतं� �योग म� इस खण्ड के अथर् के अन्दर
हस्तक्षेप करता है ;
(ख) लोकनीित क� घोषणा या लोक कारर् वाई का वचन या �कसी वैध अिधकार या �योगमा�, जो �कसी िनवार्चन
अिधकार म� हस्तक्षेप करने के आशय के िबना है, इस खंड के अथर् के अन्दर हस्तक्षेप करना नह� समझा जाएगा ।
5
[(3) �कसी �िक्त के धमर्, मूलवंश, जाित, समुदाय या भाषा के आधार पर �कसी �िक्त के िलए मत देने या मत

1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 53 �ारा (14-12-1966 से) “वापस लेने” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 53 �ारा (14-12-1966 से) “वापस ले ली” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 53 �ारा (14-12-1966 से) “वापस लेने के िलए” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा अन्तःस्थािपत ।
5
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 23 �ारा (20-9-1961 से) खण्ड (3) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
41

देने से िवरत रहने क� अभ्यथ� या उसके अिभकतार् �ारा या अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से �कसी अन्य
�िक्त �ारा अपील या उस अभ्यथ� के िनवार्चन क� सम्भा�ता� को अ�सर करने के िलए या �कसी अभ्यथ� के िनवार्चन पर
�ितकू ल �भाव डालने के िलए धा�मर्क �तीक� का उपयोग या उनक� दुहाई या राष्�ीय �तीक तथा राष्�ध्वज या राष्�ीय
सं�तीक का उपयोग या दुहाई :
[परन्तु इस अिधिनयम के अधीन �कसी अभ्यथ� को आबं�टत कोई �तीक इस खंड के �योजन� के िलए धा�मर्क
1

�तीक या राष्�ीय �तीक नह� समझा जाएगा ।]


(3क) �कसी अभ्यथ� या उसके अिभकतार् या अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सहमित से �कसी अन्य �िक्त
�ारा उस अभ्यथ� के िनवार्चन क� सम्भा�ता� को अ�सर करने के िलए या �कसी अभ्यथ� के िनवार्चन पर �ितकू ल �भाव
डालने के िलए श�ुता या घृणा क� भावनाएं भारत के नाग�रक� के िविभन्न वग� के बीच धमर्, मूलवंश, जाित, समुदाय या
भाषा के आधार पर सं�वतर्न या सं�वतर्न का �यत्न करना ।]
[(3ख) �कसी अभ्यथ� या उसके अिभकतार् या अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सहमित से �कसी अन्य
2

�िक्त �ारा उस अभ्यथ� के िनवार्चन क� सम्भा�ता� को अ�सर करने के िलए या �कसी अभ्यथ� के िनवार्चन पर �ितकू ल
�भाव डालने के िलए सती क� �था या उसके कमर् का �चार या उसका गौरवान्वयन ।
स्पष्टीकरण—इस खंड के �योजन� के िलए, “सती कमर्” और सती कमर् के संबंध म� “गौरवान्वयन” के �मशः वही
अथर् ह�गे, जो सती (िनवारण) अिधिनयम, 1987 (1988 का 3) म� ह� ।]
(4) �कसी अभ्यथ� के वैयिक्तक शील या आचरण के सम्बन्ध म� या �कसी अभ्यथ� क� अभ्य�थर्ता या अभ्य�थर्ता
वापस लेने के सम्बन्ध म� या अभ्यथ� या उसके अिभकतार् �ारा या 3[अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से] �कसी
अन्य �िक्त �ारा �कसी ऐसे तथ्य के कथन का �काशन जो िमथ्या है और या तो िजसके िमथ्या होने का उसको िवश्वास है या
िजसके सत्य होने का वह िवश्वास नह� करता है और जो उस अभ्यथ� के 4*** िनवार्चन क� सम्भा�ता� पर �ितकू ल �भाव
डालने के िलए युिक्तयुक्त �प से �किल्पत कथन है ।
(5) धारा 25 के अधीन उपबिन्धत �कसी मतदान के न्� या मतदान के िलए धारा 29 क� उपधारा (1) के अधीन िनयत
स्थान को या से (स्वयं अभ्यथ�, उसके कु टु म्ब के सदस्य या उसके अिभकतार् से िभन्न) �कसी िनवार्चक के 5[मुक्त �वहण के िलए
�कसी यान या जलयान को अभ्यथ� या उसके अिभकतार् �ारा] या 3[अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से] �कसी
अन्य �िक्त �ारा संदाय करके या अन्यथा, भाड़े पर लेना या उपाप्त करना अथवा 5[ऐसे यान या जलयान का उपयोग करना]:
परन्तु य�द िनवार्चक या कई िनवार्चक� �ारा अपने संयुक्त खच� पर अपने को �कसी ऐसे मतदान के न्� या मतदान के
िलए िनयत स्थान को या से �वािहत �कए जाने के �योजन के िलए यान या जलयान भाड़े पर िलया गया है, तो य�द यान या
जलयान यांि�क शिक्त से �चािलत न होने वाला है, तो ऐसे यान या जलयान के भाड़े पर िलए जाने क� बाबत यह न समझा
जाएगा �क वह �ष्ट आचरण है :
परन्तु यह और भी �क �कसी ऐसे मतदान के न्� या मतदान के िलए िनयत स्थान को जाने या वहां से आने के �योजन
के िलए अपने ही खच� पर �कसी िनवार्चक �ारा �कसी लोक प�रवहन यान या जलयान या �कसी �ाम या रे लगाड़ी के उपयोग
क� बाबत यह न समझा जाएगा �क वह इस खंड के अधीन �ष्ट आचरण है ।
स्पष्टीकरण—इस खण्ड म� “यान” से ऐसा कोई यान अिभ�ेत है, जो सड़क प�रवहन के िलए उपयोग म� लाया जाता
है या उपयोग म� लाए जाने के योग्य है, चाहे वह यांि�क शिक्त से या अन्यथा �चािलत हो और चाहे अन्य यान� को ख�चने के
िलए या अन्यथा उपयोग म� लाया जाता हो ।
(6) धारा 77 के उल्लंघन म� �य उपगत करना या �ािधकृ त करना ।
(7) 6[�कसी �िक्त से, चाहे वह सरकार क� सेवा म� हो या नह�] और िनम्निलिखत वग� म� से, अथार्त् :—
(क) राजपि�त आ�फसर�,
(ख) साम्बिलक न्यायाधीश� और मिजस्�ेट�,
(ग) संघ के सशस्� बल� के सदस्य�,
(घ) पुिलस बल� के सदस्य�,

1
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 8 �ारा (भूतलक्षी �भाव से) अन्तःस्थािपत ।
2
1988 के अिधिनयम सं० 3 क� धारा 19 �ारा (भूतलक्षी �भाव से) अन्तःस्थािपत ।
3
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा अन्तःस्थािपत ।
4
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा “या िनवार्चन लड़ने से हट जाने” शब्द� का लोप �कया गया ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 53 �ारा (14-12-1966 से) “�वहण के िलए” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
2009 के अिधिनयम सं० 41 क� धारा 6 �ारा (1-2-2010 से) �ितस्थािपत ।
42

(ङ) उत्पाद-शुल्क आ�फसर�,


[(च) राजस्व आ�फसर, जो लंबरदार, मालगुजार, पटेल, देशमुख के �प म� या �कसी अन्य नाम से ज्ञात
1

�ाम राजस्व आ�फसर� से िभन्न है, िजसका कतर्� भू-राजस्व संगृहीत करना है और िजनको पा�र�िमक अपने �ारा
संगृहीत भू-राजस्व क� रकम के अंश या उस पर कमीशन �ारा िमलना है �कं तु जो �कन्ह� पुिलस कृ त्य� का िनवर्हन
नह� करते, और]
(छ) सरकार क� सेवा म� के ऐसे अन्य �िक्त वगर् जैसे िविहत �कए जाएं,
[(ज) िनवार्चन� के संचालन के संबंध म� िनवार्चन आयोग �ारा स्थानीय �ािधकारी, िवश्विव�ालय,
2

सरकारी कं पनी या संस्था या समुत्थान या उप�म क� सेवा म� िनयुक्त या �ितिनयुक्त �िक्तय� के वगर्,]
म� से �कसी वगर् म� के �कसी �िक्त से अभ्यथ� के िनवार्चन क� संभा�ता� को अ�सर करने के िलए (मत देने से अन्यथा) कोई सहायता
अभ्यथ� या उसके अिभकतार् �ारा या 3[अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से] �कसी अन्य �िक्त �ारा अिभ�ाप्त या
उपाप्त �कया जाना या अिभ�ाप्त या उपाप्त करने का दुष्�ेरण या �यत्न करना :
[परं तु सरकार क� सेवा म� का और पूव�क्त वग� म� से �कसी वगर् म� का कोई �िक्त �कसी अभ्यथ� या उसके अिभकतार्, या उस
4

अभ्यथ� या उसके िनवार्चन अिभकतार् क� सम्मित से कायर् करने वाले �कसी अन्य �िक्त के िलए या उसके संबंध म� अपने पदीय कतर्� के
िनवर्हन या तात्प�यर्त िनवर्हन म� (चाहे अभ्यथ� �ारा धा�रत पद के कारण या �कसी अन्य कारणवश) कोई इं तजाम करता है या कोई
सुिवधा देता है या कोई अन्य कायर् या बात करता है, तो ऐसा इं तजाम, सुिवधा या कायर् या बात उस अभ्यथ� के िनवार्चन क� संभा�ता�
को अ�सर करने के िलए सहायता नह� समझी जाएगी ।]
5
[(8) अभ्यथ� या उसके अिभकतार् या अन्य �िक्त �ारा बूथ का बलात् �हण ।]
स्पष्टीकरण—(1) िनवार्चन अिभकतार्, मतदान अिभकतार् और ऐसा कोई �िक्त, िजसक� बाबत यह ठहराया जाए �क उसने
अभ्यथ� क� सम्मित से िनवार्चन के संबंध म� अिभकतार् के �प म� कायर् �कया है, इस धारा म� के “अिभकतार्” पद के अन्तगर्त आते ह� ।
(2) य�द �कसी �िक्त ने अभ्यथ� के िनवार्चन अिभकतार् 6*** के �प म� कायर् �कया है, तो खण्ड (7) के �योजन� के िलए उस
�िक्त क� बाबत यह समझा जाएगा �क उसने उस अभ्यथ� के िनवार्चन क� सम्भा�ता� को अ�सर करने म� सहायता दी है ।]
[(3) खण्ड (7) के �योजन� के िलए, �कसी अन्य िविध म� �कसी बात के होते �ए भी के न्�ीय सरकार क� सेवा म� के �कसी
7

�िक्त को (िजसके अन्तगर्त �कसी संघ राज्यक्षे� के �शासन के सम्बन्ध म� सेवा करने वाला �िक्त भी है) या �कसी राज्य सरकार क�
सेवा म� के �कसी �िक्त क� िनयुिक्त, पदत्याग, सेवा के पयर्वसान, पदच्युित या सेवा से हटाए जाने का शासक�य राजप� म� �काशन—
(i) यथािस्थित, ऐसी िनयुिक्त, पदत्याग, सेवा के पयर्वसान, पदच्युित या सेवा से हटाए जाने का िनश्चायक सबूत
होगा, और
(ii) जहां, यथािस्थित, ऐसी िनयुिक्त, पदत्याग, सेवा के पयर्वसान, पदच्युित या सेवा से हटाए जाने के �भावशील
होने क� तारीख ऐसे �काशन म� किथत है वहां इस तथ्य का भी िनश्चायक सबूत होगा �क ऐसा �िक्त उक्त तारीख से िनयुक्त
�कया गया था या पदत्याग, सेवा के पयर्वसान, पदच्युित या सेवा से हटाए जाने क� दशा म� ऐसा �िक्त उक्त तारीख से ऐसी
सेवा म� नह� रहा था ।]
8
[(4) खंड (8) के �योजन� के िलए “बूथ का बलात् �हण” का वही अथर् है जो धारा 135क म� है ।
अध्याय 3 —िनवार्चन अपराध
[125. िनवार्चन के संबंध म� वग� के बीच श�ुता सं�व�तर्त करना—जो कोई �िक्त इस अिधिनयम के अधीन होने वाले
9

िनवार्चन के संबंध म� श�ुता या घृणा क� भावनाएं भारत के नाग�रक� के िविभन्न वग� के बीच धमर्, मूलवंश, जाित, समुदाय या भाषा के
आधार� पर सं�व�तर्त करे गा या सं�व�तर्त करने का �यत्न करे गा, वह कारावास से, िजसक� अविध तीन वषर् तक हो सके गी, या जुमार्ने से,
या दोन� से, दण्डनीय होगा ।]

1
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा उपखंड (च) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 41 क� धारा 6 �ारा (1-2-2010 से) अंतःस्थािपत ।
3
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 36 �ारा अंतःस्थािपत ।
4
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 8 �ारा (भूतलक्षी �भाव से) अंत:स्थािपत ।
5
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 13 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 53 �ारा (14-12-1966 से) “या मतदान अिभकतार् या गणन अिभकतार्” शब्द� का लोप �कया गया ।
7
1975 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 8 �ारा (भूतलक्षी �भाव से) जोड़ा गया ।
8
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 13 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
9
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 24 �ारा (20-9-1961 से) अंतःस्थािपत ।
43

[125क. िमथ्या शपथप�, आ�द फाइल करने के िलए शािस्त—कोई अभ्यथ�, जो स्वयं या अपने �स्थापक के माध्यम से, �कसी
1

िनवार्चन म� िनवार्िचत होने के आशय से, यथािस्थित, धारा 33 क� उपधारा (1) के अधीन प�रद� अपने नामिनद�शन प� म� या धारा 33क
क� उपधारा (2) के अधीन प�रद� �कए जाने के िलए अपेिक्षत अपने शपथ प� म�,—
(i) धारा 33क क� उपधारा (1) से संबंिधत सूचना देने म� असफल रहेगा ; या
(ii) ऐसी िमथ्या सूचना देगा िजसके बारे म� वह जानता है या उसके पास यह िवश्वास करने का कारण है �क वह
िमथ्या है ; या
(iii) कोई सूचना िछपाएगा,
तत्समय �वृ� �कसी अन्य िविध म� �कसी बात के होते �ए भी, कारावास से, िजसक� अविध छह मास तक क� हो सके गी या जुमार्ने से
अथवा दोन� से, दंडनीय होगा ।]
[126. मतदान क� समािप्त के िलए िनयत �कए गए समय के साथ समाप्त होने वाले अड़तालीस घंट� क� कालाविध के दौरान
2

सावर्जिनक सभा� का �ितषेध—(1) कोई भी �िक्त, �कसी मतदान क्षे� म�, उस मतदान क्षे� म� �कसी िनवार्चन के िलए मतदान क�
समािप्त के िलए िनयत �कए गए समय के साथ समाप्त होने वाले अड़तालीस घंट� क� कालाविध के दौरान,—
(क) िनवार्चन के संबंध म� कोई सावर्जिनक सभा या जुलूस न बुलाएगा, न आयोिजत करे गा, न उसम� उपिस्थत होगा,
न उसम� सिम्मिलत होगा और न उसे संबोिधत करे गा ; या
(ख) चलिच�, टेलीिवजन या वैसे ही अन्य सािध�� �ारा जनता के समक्ष �कसी िनवार्चन संबंधी बात का सं�दशर्न
नह� करे गा ; या
(ग) कोई संगीत समारोह या कोई ना� अिभनय या कोई अन्य मनोरं जन या आमोद-�मोद जनता के सदस्य� को
उसके �ित आक�षर्त करने क� दृिष्ट से, आयोिजत करके या उसके आयोजन क� �वस्था करके , जनता के समक्ष �कसी िनवार्चन
संबंधी बात का �चार नह� करे गा ।
(2) वह �िक्त, जो उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा; कारावास से, िजसक� अविध दो वषर् तक क� हो सके गी, या
जुमार्ने से, या दोन� से, दंडनीय होगा ।
(3) इस धारा म�, “िनवार्चन संबंधी बात” पद से अिभ�ेत है कोई ऐसी बात जो �कसी िनवार्चन के प�रणाम पर असर डालने या
उसे �भािवत करने के िलए आशियत या �किल्पत है ।]
[126क. िनगर्म मत सव�क्षण के प�रणाम आ�द के �काशन और �सारण पर िनब�धन—(1) कोई भी �िक्त कोई िनगर्म मत
3

सव�क्षण नह� करे गा और �कसी िनगर्म मत सव�क्षण के प�रणाम का, ऐसी अविध के दौरान जो िनवार्चन आयोग �ारा इस संबंध म�
अिधसूिचत क� जाए, ��ंट या इलैक्�ािनक मीिडया के माध्यम से �काशन या �चार या �कसी भी �कार क� अन्य रीित म� �सार
नह� करे गा ।
(2) िनवार्चन आयोग, उपधारा (1) के �योजन के िलए, िनम्निलिखत को ध्यान म� रखते �ए साधारण आदेश �ारा तारीख और
समय अिधसूिचत करे गा, अथार्त् :—
(क) साधारण िनवार्चन क� दशा म�, वह अविध मतदान के पहले �दन को मतदान के िलए िनयत समय के आरं भ होने से
�ारं भ हो सके गी और सभी राज्य� और संघ राज्यक्षे�� म�, मतदान समाप्त होने के पश्चात् आधे घंटे तक जारी रह सके गी ;
(ख) �कसी उप-िनवार्चन या एक साथ कराए जाने वाले अनेक उप-िनवार्चन� क� दशा म� वह अविध मतदान के पहले
�दन से ही मतदान के िलए िनयत समय के आरं भ होने से �ारं भ हो सके गी और मतदान समाप्त होने के पश्चात् आधे घंटे तक
जारी रह सके गी :
परं तु िभन्न-िभन्न �दन� पर एक साथ कराए जाने वाले अनेक उप-िनवार्चन� क� दशा म�, वह अविध मतदान के पहले �दन को
मतदान के िलए िनयत समय के आरं भ होने से �ारं भ हो सके गी और अंितम मतदान समाप्त होने के पश्चात् आधे घंटे तक जारी
रह सके गी ।
(3) ऐसा कोई �िक्त, जो इस धारा के उपबंध� का उल्लंघन करे गा ऐसी अविध के कारावास से, जो दो वषर् तक क� हो सके गी
या जुमार्ने से या दोन� से, दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन� के िलए :—

1
2002 का अिधिनयम सं० 72 क� धारा 5 �ारा (24-8-2002 से) अंतःस्थािपत ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 10 �ारा (1-8-1996 से) धारा 126 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 41 क� धारा 7 �ारा (1-2-2010 से) अंतःस्थािपत ।
44

(क) “िनगर्म मत सव�क्षण” से वह राय सव�क्षण अिभ�ेत है जो इस संबंध म� है �क िनवार्चक� ने कै से �कसी िनवार्चन म�
मतदान �कया या इस संबंध म� है �क �कसी िनवार्चन म� �कसी राजनीितक दल या अभ्यथ� क� पहचान सभी मतदाता� ने कै से
क� है ;
(ख) “इलैक्�ािनक मीिडया” के अन्तगर्त इं टरनेट, रे िडयो और टे लीिवजन भी ह�, िजसम� इं टरनेट �ोटोकाल
टेलीिवजन, सेटेलाइट, क्षे�ीय या के बल चैनल, मोबाइल और ऐसा अन्य मीिडया सिम्मिलत है जो सरकार के या िनजी �िक्त
अथवा दोन� के स्वािमत्वाधीन है ;
(ग) “��ंट मीिडया” के अन्तगर्त कोई समाचारप�, पि�का या िनयतकािलक पि�का, पोस्टर, प्लेकाडर्, ह�डिबल या
कोई अन्य दस्तावेज भी है ;
(घ) “�सार” के अन्तगर्त �कसी “��ंट मीिडया” म� �काशन या �कसी इलैक्�ािनक मीिडया पर �सारण या �दशर्न
भी है ।
126ख. कं पिनय� �ारा अपराध—(1) जहां धारा 126क क� उपधारा (2) के अधीन कोई अपराध �कसी कं पनी �ारा �कया गया
है, वहां ऐसा �त्येक �िक्त, जो उस अपराध के �कए जाने के समय उस कं पनी के कारबार के संचालन के िलए उस कं पनी का भारसाधक
और उसके �ित उ�रदायी था और साथ ही वह कं पनी भी, ऐसे अपराध के िलए दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने िव�� कायर्वाही
�कए जाने और दंिडत �कए जाने के भागी ह�गे :
परं तु इस उपधारा क� कोई बात �कसी ऐसे �िक्त को इस अिधिनयम म� उपबंिधत �कसी दंड का भागी नह� बनाएगी, य�द वह
यह सािबत कर देता है �क अपराध उसक� जानकारी के िबना �कया गया था या उसने ऐसे अपराध के �कए जाने का िनवारण करने के
िलए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) म� �कसी बात के होते �ए भी, जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध, �कसी कं पनी �ारा �कया गया है
और यह सािबत हो जाता है �क वह अपराध कं पनी के �कसी िनदेशक, �बंधक, सिचव या अन्य अिधकारी क� सहमित या मौनानुकूलता
से �कया गया है या उस अपराध का �कया जाना उसक� �कसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा िनदेशक, �बंधक, सिचव या
अन्य अिधकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने िव�� कायर्वाही �कए जाने और दंिडत �कए जाने का भागी
होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के �योजन� के िलए,—
(क) “कं पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभ�ेत है और इसके अन्तगर्त कोई फमर् या अन्य �िष्ट संगम भी है ; और
(ख) “िनदेशक” से �कसी फमर् के संबंध म� फमर् का भागीदार अिभ�ेत है ।]
127. िनवार्चन सभा� म� उप�व—(1) जो कोई �िक्त ऐसी सावर्जिनक सभा म�, िजसके संबंध म� यह धारा लागू है, उस
कारबार के सं�वहार को िनवा�रत करने के �योजन के िलए, िजसके िलए वह सभा बुलाई गई है, िवच्छृ खलता से कायर् करे गा या दूसर�
को कायर् करने के िलए उ�ीप्त करे गा 1[वह कारावास से, िजसक� अविध 2[छह मास तक क� हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दो हजार �पए
तक का हो सके गा,] या दोन� से, दण्डनीय होगा ।]
3
[(1क) उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]
(2) यह धारा राजनीितक �कृ ित क� �कसी ऐसी सावर्जिनक सभा को लागू है, जो सदस्य या सदस्य� को िनवार्िचत करने के िलए
िनवार्चन-क्षे� से अपेक्षा करने वाली इस अिधिनयम के अधीन िनकाली गई अिधसूचना क� तारीख के और उस तारीख के बीच, िजस
तारीख को ऐसा िनवार्चन होता है, उस िनवार्चन-क्षे� म� क� गई है ।
(3) य�द कोई पुिलस आ�फसर �कसी �िक्त क� बाबत युिक्तयुक्त �प से संदह
े करता है �क उसने उपधारा (1) के अधीन
अपराध �कया है और तो य�द सभा के सभापित �ारा उससे ऐसा करने क� �ाथर्ना क� जाए, तो वह उस �िक्त से अपेक्षा कर सके गा �क
वह तुरन्त अपना नाम और पता बताए और य�द वह �िक्त अपना नाम और पता बताने से इं कार करता है या बताने म� असफल रहता है
या य�द पुिलस आ�फसर उसक� बाबत युिक्तयुक्त �प से संदह
े करता है �क उसने िमथ्या नाम या पता �दया है, तो पुिलस आ�फसर उसे
वारं ट] के िबना िगरफ्तार कर सके गा ।
[127क. पुिस्तका�, पोस्टर� आ�द के मु�ण पर िनबर्न्धन—(1) कोई भी �िक्त कोई ऐसी िनवार्चन पुिस्तका या पोस्टर
4

िजसके मुख्य पृ� पर उसके मु�क और �काशक के नाम और पते न ह� मु��त या �कािशत न करे गा और न मु��त या �कािशत कराएगा ।
(2) कोई भी �िक्त �कसी िनवार्चन पुिस्तका या पोस्टर को—

1
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 14 �ारा (15-3-1989 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 11 �ारा (1-8-1996 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 11 �ारा (1-8-1996 से) अंतःस्थािपत ।
4
1961 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 26 �ारा (20-9-1961 से) अंतःस्थािपत ।
45

(क) उस दशा म� के िसवाय न तो मु��त करे गा, और न मु��त कराएगा िजसम� वह उसके �काशक क� अनन्यता के
बारे म� अपने �ारा हस्ताक्ष�रत और ऐसे दो �िक्तय� �ारा जो उसे स्वयं जानते ह� अनु�मािणत ि��तीक घोषणा मु�क को
प�रद� कर देता है ; तथा
(ख) उस दशा म� के िसवाय न तो मु��त करे गा, और न मु��त कराएगा, िजसम� �क मु�क घोषणा क� एक �ित
दस्तावेज क� एक �ित के सिहत—
(i) उस दशा म� िजसम� �क वह राज्य क� राजधानी म� मु��त क� जाती है, मुख्य िनवार्चन आ�फसर को,
तथा
(ii) �कसी अन्य दशा म� उस िजले के , िजसम� �क वह मु��त क� जाती है, िजला मिजस्�ेट को दस्तावेज के
मु�ण के पश्चात् युिक्तयुक्त समय के भीतर भेज देता है ।
(3) इस धारा के �योजन� के िलए—
(क) दस्तावेज क� अनेकानेक �ितयां बनाने क� �कसी ऐसी ���या क� बाबत जो हाथ से नकल करके ऐसी �ितयां
बनाने से िभन्न है, यह समझा जाएगा �क वह मु�ण है, और “मु�क” पद का अथर् तदनुसार लगाया जाएगा ; तथा
(ख) “िनवार्चन पुिस्तका या पोस्टर” से �कसी अभ्यथ� या अभ्य�थर्य� के समूह के िनवार्चन को सं�व�तर्त या
�ितकू लतः �भािवत करने के �योजन के िलए िवत�रत कोई मु��त पुिस्तका, पचार् या अन्य दस्तावेज या िनवार्चन के �ित
िनद�श करने वाला कोई प्लेकाडर् या पोस्टर अिभ�ेत है, �कन्तु �कसी िनवार्चन सभा क� तारीख, समय, स्थान और अन्य
िविशिष्टय� को के वल आख्यािपत करने वाला या िनवार्चन अिभकतार्� या कायर्कतार्� को चयार् संबंधी अनुदश
े देने वाला कोई
पचार्, प्लेकाडर् या पोस्टर इसके अन्तगर्त नह� आता ।
(4) जो कोई �िक्त उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंध� म� से �कसी का उल्लंघन करे गा वह कारावास से, िजसक� अविध
छह मास तक क� हो सके गी या जुमार्ने से, जो दो हजार �पए तक का हो सके गा, या दोन� से, दंडनीय होगा ।]
128. मतदान क� गोपनीयता को बनाए रखना—(1) ऐसा हर आ�फसर, िलिपक, अिभकतार् या अन्य �िक्त जो िनवार्चन म�
मत� को अिभिलिखत करने या उनक� गणना करने से संसक्त �कसी कतर्� का पालन करता है, मतदान क� गोपनीयता को बनाए रखेगा
और बनाए रखने म� सहायता करे गा और ऐसी गोपनीयता का अित�मण करने के िलए �किल्पत कोई जानकारी �कसी �िक्त को
(�कसी िविध के �ारा या अधीन �ािधकृ त �कसी �योजन के िलए संसूिचत करने के िसवाय) संसूिचत न करे गा :
1
[परन्तु इस उपधारा के उपबंध ऐसे आ�फसर, िलिपक, अिभकतार् या अन्य �िक्त को, जो राज्य सभा म� �कसी स्थान या स्थान�
को भरने के िलए �कसी िनवार्चन म� ऐसे �कसी कतर्� का पालन करता है, लागू नह� ह�गे ।]
(2) जो कोई �िक्त उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा, वह कारावास से, िजसक� अविध तीन मास तक क� हो सके गी,
या जुमार्ने से, या दोन� से, दंडनीय होगा ।
129. िनवार्चन� म� आ�फसर आ�द अभ्य�थर्य� के िलए कायर् न कर� गे और न मत �दए जाने म� कोई असर डाल�गे—(1) जो
2
[कोई िजला िनवार्चन आ�फसर या �रट�न�ग आ�फसर] या सहायक �रट�न�ग आ�फसर है या िनवार्चन म� पीठासीन या मतदान आ�फसर है
या ऐसा आ�फसर है या िलिपक है िजसे �रट�न�ग आ�फसर या पीठासीन आ�फसर ने िनवार्चन से संसक्त �कसी कतर्� के पालन के िलए
िनयुक्त �कया है वह िनवार्चन के संचालन या �बंध म� (मत देने से िभन्न) कोई कायर् अभ्यथ� के िनवार्चन क� सम्भा�ता� को अ�सर
करने के िलए न करे गा ।
(2) यथापूव�क्त कोई भी �िक्त और पुिलस बल का कोई भी सदस्य—
(क) न तो �कसी �िक्त को िनवार्चन म� अपना मत देने के िलए मनाने का ; और न
(ख) �कसी �िक्त को िनवार्चन म� अपना मत न देने के िलए मनाने का ; और न
(ग) िनवार्चन म� �कसी �िक्त के मत देने म� �कसी रीित के असर डालने का,
�यास करे गा ।
(3) जो कोई �िक्त उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा, वह कारावास से, जो छह मास तक का हो
सके गा, या जुमार्ने से, या दोन� से, दण्डनीय होगा ।
3
[(4) उपधारा (3) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]

1
2003 के अिधिनयम सं० 40 क� धारा 5 �ारा अंतःस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 55 �ारा (14-12-1966 से) “�रट�न�ग आ�फसर” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 55 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
46

130. मतदान के न्�� म� या उनके िनकट मत संयाचना का �ितषेध—(1) कोई भी �िक्त उस तारीख को या उन तारीख� को,
िजसको या िजनको �कसी मतदान के न्� म� मतदान होता है, मतदान के न्� के भीतर या मतदान के न्� से 1[एक सौ मीटर] क� दूरी के भीतर
�कसी लोक स्थान या �ाइवे] स्थान म� िनम्निलिखत काय� म� से कोई कायर् न करे गा, अथार्त् :—
(क) मत� के िलए संयाचना ;
(ख) �कसी िनवार्चक से उनके मत को याचना करना ;
(ग) �कसी िविशष्ट अभ्यथ� के िलए मत न देने को �कसी िनवार्चक को मनाना ;
(घ) िनवार्चन म� मत न देने के िलए िनवार्चक को मनाना ; और
(ङ) िनवार्चन के संबंध म� (शासक�य सूचना से िभन्न) कोई सूचना संकेत �द�शर्त करना ।
(2) जो कोई �िक्त उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा वह जुमार्ने से, जो ढाई सौ �पए तक का हो सके गा,
दण्डनीय होगा ।
(3) इस धारा के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा ।
131. मतदान के न्�� म� या उनके िनकट िवच्छृ ंखल आचरण के िलए शािस्त—(1) कोई भी �िक्त उस तारीख या उन तारीख�
को िजनको �कसी मतदान के न्� म� मतदान होता है —
(क) मानव ध्विन के �वधर्न या �त्युत्पादन के िलए कोई मेगाफोन या ध्विन िवस्तारक जैसा सािध� मतदान के न्� के
भीतर या �वेश �ार पर या उसके पड़ोस म� �कसी लोक स्थान या �ाइवेट स्थान म� ऐसे न तो उपयोग म� लाएगा और न
चलाएगा ; और न
(ख) मतदान के न्� के भीतर या �वेश �ार पर या उसके पड़ोस म� के �कसी लोक स्थान या �ाइवेट स्थान म� ऐसे
िचल्लाएगा या िवच्छृ खलता से ऐसा कोई अन्य कायर् करे गा,
�क मतदान के िलए मतदान के न्� म� आने वाले �कसी �िक्त को क्षोभ हो या मतदान के न्� म� कतर्�ा�ढ़ आ�फसर� या अन्य �िक्तय� के
काम म� हस्तक्षेप हो ।
(2) जो कोई �िक्त उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा या उल्लंघन म� जानबूझकर सहायता देगा या उसका दुष्�ेरण
करे गा वह कारावास से, जो तीन मास तक का हो सके गा या जुमार्ने से, या दोन� से, दण्डनीय होगा ।
(3) य�द मतदान के न्� के पीठासीन आ�फसर के पास यह िवश्वास करने का कारण है �क कोई �िक्त इस धारा के अधीन
दण्डनीय अपराध कर रहा है या कर चुका है, तो वह �कसी पुिलस आ�फसर को िनदेश दे सके गा �क वह ऐसे �िक्त को िगरफ्तार करे और
पुिलस आ�फसर उस पर उसे िगरफ्तार करे गा ।
(4) कोई पुिलस आ�फसर ऐसे कदम उठा सके गा और ऐसा बल �योग कर सके गा जैसे या जैसा उपधारा (1) के उपबंध� म� �कसी
उल्लंघन का िनवारण करने के िलए युिक्तयुक्त �प से आवश्यक है और ऐसे उल्लंघन के िलए उपयोग म� लाए गए �कसी सािध� को
अिभगृहीत कर सके गा ।
132. मतदान के न्� के अवचार के िलए शािस्त—(1) जो कोई �िक्त �कसी मतदान के न्� म� मतदान के िलए िनयत घंट� के
दौरान स्वयं अवचार करता है या पीठासीन आ�फसर के िविधपूणर् िनदेश� के अनुपालन म� असफल रहता है, उसे पीठासीन आ�फसर या
कतर्�ा�ढ़ कोई पुिलस आ�फसर या ऐसे पीठासीन आ�फसर �ारा एतिन्निम� �ािधकृ त कोई �िक्त मतदान के न्� से हटा सके गा ।
(2) उपधारा (1) �ारा �द� शिक्तयां ऐसे �युक्त न क� जाएंगी िजससे कोई ऐसा िनवार्चक, जो मतदान के न्� म� मत देने के
िलए अन्यथा हकदार है, उस के न्� म� मतदान करने का अवसर पाने से िनवा�रत हो जाए ।
(3) य�द कोई �िक्त, जो मतदान के न्� से ऐसे हटा �दया गया है, पीठासीन आ�फसर क� अनुज्ञा के िबना मतदान के न्� म� पुनः
�वेश करे गा, तो वह कारावास से, िजसक� अविध तीन मास तक क� हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन� से, दण्डनीय होगा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।
[132क. मतदान करने के िलए ���या का अनुपालन करने म� असफलता के िलए शािस्त—य�द कोई �िक्त िजसे कोई मतप�
2

जारी �कया गया है, मतदान करने के िलए िविहत ���या का अनुपालन करने से इं कार करता है तो, उसको जारी �कया गया मतप� र�
�कया जा सके गा ।]
[133. िनवार्चन� म� �वहण के अवैध �प से भाड़े पर लेने या उपाप्त करने के िलए शािस्त—य�द कोई �िक्त, िनवार्चन म� या
1

िनवार्चन के संबंध म� �कसी ऐसे �ष्ट आचरण का दोषी है जो धारा 123 के खंड (5) म� िविन�दर्ष्ट है तो वह कारावास से, िजसक� अविध
तीन मास तक क� हो सके गी, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा ।]
1
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 56 �ारा (14-12-1966 से) “एक सौ गज” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1986 के अिधिनयम सं० 4 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (15-5-1986 से) अंतःस्थािपत ।
47

134. िनवार्चन� से संसक्त पदीय कतर्� के भंग—(1) य�द कोई �िक्त, िजसे यह धारा लागू है, अपने पदीय कतर्� के भंग म�
�कसी कायर् या लोप का युिक्तयुक्त हेतुक के िबना दोषी होगा तो वह जुमार्ने से, जो पांच सौ �पए तक हो सके गा, दंडनीय होगा ।
2
[(1क) उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]
(2) यथापूव�क्त �कसी कायर् या लोप क� बाबत नुकसानी के िलए कोई वाद या अन्य िविधक कायर्वाही ऐसे �कसी �िक्त के
िखलाफ न होगी ।
(3) वे �िक्त, िजन्ह� यह धारा लागू है या ह�, 3*** 4[िजला िनवार्चन आ�फसर, �रट�न�ग आ�फसर], सहायक �रट�न�ग आ�फसर,
पीठासीन आ�फसर, मतदान आ�फसर और अभ्य�थर्य� के नामिनद�शन �ाप्त करने या अभ्य�थर्ताएं वापस लेने या िनवार्चन म� मत� का
अिभलेख करने या गणना करने से संसक्त 5*** �कसी कतर्� के पालन के िलए िनयुक्त कोई अन्य �िक्त, तथा “पदीय कतर्�” पदावली
का अथर् इस धारा के �योजन� के िलए तदनुसार लगाया जाएगा �कन्तु इसके अन्तगर्त वे कतर्� न ह�गे जो इस अिधिनयम के �ारा या
अधीन 3*** अिधरोिपत होने से अन्यथा अिधरोिपत है ।
[134क. िनवार्चन अिभकतार्, मतदान अिभकतार् या गणन अिभकतार् के �प म� कायर् करने वाले सरकारी सेवक� के िलए
6

शािस्त—य�द सरकार क� सेवा म� का कोई �िक्त �कसी िनवार्चन म� अभ्यथ� के िनवार्चन अिभकतार् या मतदान अिभकतार् या गणन
अिभकतार् के �प म� कायर् करे गा, तो वह कारावास से, िजसक� अविध तीन मास तक क� हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन� से, दण्डनीय
होगा ।]
[134ख. मतदान के न्� म� या उसके िनकट आयुध लेकर जाने का �ितषेध—(1) �रट�न�ग आ�फसर, पीठासीन आ�फसर और
7

�कसी पुिलस आ�फसर से तथा मतदान के न्� पर शांित और �वस्था बनाए रखने के िलए िनयुक्त �कसी अन्य �िक्त से, जो मतदान के न्�
पर कतर्�ा�ढ़ है, िभन्न कोई �िक्त, मतदान के �दन मतदान के न्� के आस-पास आयुध अिधिनयम, 1959 (1959 का 54) म� प�रभािषत
�कसी �कार के आयुध� से सि�त होकर नह� जाएगा ।
(2) य�द कोई �िक्त, उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा तो वह कारावास से, िजसक� अविध दो वषर् तक हो सके गी,
या जुमार्ने से, या दोन� से, दंडनीय होगा ।
(3) आयुध अिधिनयम, 1959 (1959 का 54) म� �कसी बात के होते �ए भी, जहां कोई �िक्त इस धारा के अधीन �कसी
अपराध के िलए िस�दोष ठहराया जाता है वहां उक्त अिधिनयम म� प�रभािषत ऐसे आयुध, जो उसके कब्जे म� पाए जाएं, अिधहरण के
दायी ह�गे और ऐसे आयुध� के संबंध म� दी गई अनुज्ञिप्त उस अिधिनयम क� धारा 17 के अधीन �ितसं�त क� गई समझी जाएगी ।
(4) उपधारा (2) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]
135. मतदान के न्� से मतप�� को हटाना अपराध होगा—(1) जो कोई �िक्त िनवार्चन म� मतदान के न्� से मतप�
8
[अ�ािधकृ त �प से] बाहर ले जाएगा या बाहर ले जाने का �यत्न करे गा या ऐसे �कसी कायर् के करने म� जानबूझकर सहायता देगा या
उसका दुष्�ेरण करे गा वह कारावास से, िजसक� अविध एक वषर् तक क� हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ �पए तक का हो सके गा, या
दोन� से, दंडनीय होगा ।
(2) य�द मतदान के न्� के पीठासीन आ�फसर के पास यह िवश्वास करने का कारण है �क कोई �िक्त उपधारा (1) के अधीन
दंडनीय अपराध कर रहा है या कर चुका है तो ऐसा आ�फसर ऐसे �िक्त �ारा मतदान के न्� छोड़े जाने से पूवर् ऐसे �िक्त को िगरफ्तार
कर सके गा या ऐसे �िक्त को िगरफ्तार करने के िलए पुिलस आ�फसर को िनदेश दे सके गा और ऐसे �िक्त क� तलाशी ले सके गा या
पुिलस आ�फसर �ारा उसक� तलाशी करवा सके गा :
परन्तु जब कभी �कसी स्�ी क� तलाशी कराई जानी आवश्यक हो, तब वह अन्य स्�ी �ारा िशष्टता का पूरा ध्यान रखते �ए,
ली जाएगी ।
(3) िगरफ्तार �िक्त क� तलाशी लेने पर उसके पास कोई िमला मतप� सुरिक्षत अिभरक्षा म� रखे जाने के िलए पीठासीन
आ�फसर �ारा पुिलस आ�फसर के हवाले कर �दया जाएगा या जब तलाशी पुिलस आ�फसर �ारा ली गई हो तब उसे ऐसा आ�फसर
सुरिक्षत अिभरक्षा म� रखेगा ।
(4) उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।

1
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 12 �ारा (1-8-1996 से) धारा 133 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 58 �ारा (14-12-1966 से) अंतःस्थािपत ।
3
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 37 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 58 �ारा (14-12-1966 से) “�रट�न�ग आ�फसर�” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 37 �ारा “िनवार्चन नामावली के तैयार करने” शब्द� का लोप �कया गया ।
6
1966 के अिधिनयम सं० 47 क� धारा 59 �ारा (14-12-1966 से) अन्तःस्थािपत ।
7
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 13 �ारा (1-8-1996 से) अन्तःस्थािपत ।
8
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 14 �ारा (1-8-1996 से) “कपटपूवर्क” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
48

[135क. बूथ के बलात् �हण का अपराध— 2[(1)] जो कोई बूथ के बलात् �हण का अपराध करे गा वह कारावास से, िजसक�
1

अविध 3[एक वषर् से कम क� नह� होगी �कन्तु तीन वषर् तक क� हो सके गी, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा और जहां ऐसा अपराध सरकार
क� सेवा म� के �कसी �िक्त �ारा �कया जाता है वहां वह कारावास से, िजसक� अविध तीन वषर् से कम क� नह� होगी �कन्तु पांच वषर् तक
क� हो सके गी, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा] ।
स्पष्टीकरण— 4[इस उपधारा और धारा 20ख] के �योजन� के िलए “बूथ का बलात् �हण” के अन्तगर्त अन्य बात� के साथ-साथ
िनम्निलिखत सभी या उनम� से कोई ��याकलाप है, अथार्त् :—
(क) �कसी �िक्त या �कन्ह� �िक्तय� �ारा मतदान के न्� या मतदान के िलए िनयत स्थान का अिभ�हण करना,
मतदान �ािधका�रय� से मतप�� या मतदान मशीन� को अभ्य�पर्त कराना और ऐसा कोई अन्य कायर् करना जो िनवार्चन� के
�विस्थत संचालन को �भािवत करता है ;
(ख) �कसी �िक्त या �कन्ह� �िक्तय� �ारा �कसी मतदान के न्� या मतदान के िलए िनयत �कसी स्थान को कब्जे म�
लेना और के वल उसके या उनके अपने समथर्क� को ही मत देने के अपने अिधकार का �योग करने देना और अन्य� को
3
[उसके मतदान करने के अिधकार का स्वतं� �प से �योग करने से िनवा�रत करना] ;
(ग) �कसी िनवार्चक को 5[�त्यक्षतः या अ�त्यक्षतः �पीिड़त करना या अिभ�स्त करना या धमक� देना] और उसे
अपना मत देने के िलए मतदान के न्� या मतदान के िलए िनयत स्थान पर जाने से िनवा�रत करना ;
(घ) �कसी �िक्त या �कन्ह� �िक्तय� �ारा मतगणना करने के स्थान का अिभ�हण करना, मतगणना �ािधका�रय�
को मतप�� या मतदान मशीन� को अभ्य�पर्त कराना और ऐसा कोई अन्य कायर् करना, जो मत� क� �विस्थत गणना को
�भािवत करता है ;
(ङ) सरकार क� सेवा म� के �कसी �िक्त �ारा �कसी अभ्यथ� के िनवार्चन क� संभा�ता� को अ�सर करने के िलए
पूव�क्त सभी या �कसी ��याकलाप का �कया जाना या �कसी ऐसे ��याकलाप म� सहायता करना या मौनानुमित देना ।]
6
[(2) उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]
[135ख. मतदान के �दन कमर्चा�रय� को सवेतन अवकाश क� मंजूरी—(1) �कसी कारबार, �वसाय, औ�ोिगक उप�म या
7

�कसी अन्य स्थापन म� िनयोिजत �त्येक �िक्त को, जो लोक सभा या �कसी राज्य क� िवधान सभा के िलए िनवार्चन म� मतदान करने का
हकदार है, मतदान के �दन अवकाश मंजूर �कया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के अनुसार अवकाश मंजूर �कए जाने के कारण �कसी ऐसे �िक्त क� मजदूरी से कोई कटौती या उसम� कोई
कमी नह� क� जाएगी और य�द ऐसा �िक्त इस आधार पर िनयोिजत �कया जाता है �क उसे सामान्यतया �कसी ऐसे �दन के िलए
मजदूरी �ाप्त नह� होगी तो इस बात के होते �ए भी, उसे ऐसे �दन के िलए वह मजदूरी संद� क� जाएगी, जो उस �दन उसे अवकाश
मंजूर न �कए जाने क� दशा म� दी गई होती ।
(3) य�द कोई िनयोजक उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा, तो ऐसा िनयोजक जुमार्ने से, जो पांच सौ
�पए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(4) यह धारा �कसी ऐसे िनवार्चक को लागू नह� होगी िजसक� अनुपिस्थित से उस िनयोजन के संबंध म� िजसम� वह लगा �आ
है, कोई खतरा या सारवान् हािन हो सकती है ।
135ग. मतदान के �दन िलकर का न तो िव�य �कया जाना, न �दया जाना और न िवतरण �कया जाना—(1) मतदान क्षे�
म� �कसी िनवार्चन के िलए मतदान समाप्त होने के िलए िनयत समय के साथ समाप्त होने वाली अड़तालीस घंटे क� अविध के दौरान उस
मतदान क्षे� के भीतर, �कसी होटल, भोजन, पाठशाला, दुकान म� अथवा �कसी अन्य लोक या �ाइवेट स्थान म� कोई भी िस्प�रटयुक्त,
�किण्वत या मादक िलकर या वैसी ही �कृ ित का अन्य पदाथर् न तो िव�य �कया जाएगा, न �दया जाएगा और न िवत�रत �कया जाएगा ।
(2) कोई भी �िक्त, जो उपधारा (1) के उपबंध� का उल्लंघन करे गा वह कारावास से िजसक� अविध छह मास तक क� हो
सके गी, या जुमार्ने से, जो दो हजार �पए तक का हो सके गा, या दोन� से, दण्डनीय होगा ।
(3) जहां कोई �िक्त इस धारा के अधीन �कसी अपराध के िलए िस�दोष ठहराया जाता है, वहां िस्प�रटयुक्त, �किण्वत या
मादक िलकर या वैसी ही �कृ ित के अन्य पदाथर्, जो उसके कब्जे म� पाए जाएं, अिधहरण के दायी ह�गे और उनका �यन ऐसी रीित से
�कया जाएगा जो िविहत क� जाए ।]
136. अन्य अपराध और उनके िलए शािस्तयां—(1) य�द �कसी िनवार्चन म� कोई �िक्त—

1
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 15 �ारा (15-3-1989 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 15 �ारा (1-8-1996 से) धारा 135क उसक� उपधारा (1) के �प म� पुनःसंख्यां�कत ।
3
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 15 �ारा (1-8-1996 से) कितपय शब्द� के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 15 �ारा (1-8-1996 से) “इस धारा” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 15 �ारा (1-8-1996 से) “धमक� देना” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 15 �ारा (1-8-1996 से) अन्तःस्थािपत ।
7
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 16 �ारा (1-8-1996 से) अंतःस्थािपत ।
49

(क) कोई नामिनद�शन-प� कपटपूवर्क िव�िपत करे गा या कपटपूवर्क नष्ट करे गा ; अथवा
(ख) �रट�न�ग आ�फसर के �ािधकार के �ारा या अधीन लगाई गई �कसी सूची, सूचना या अन्य दस्तावेज को
कपटपूवर्क िव�िपत करे गा, या नष्ट करे गा या हटाएगा, अथवा
(ग) �कसी मतप� या �कसी मतप� पर के शासक�य िचह्न या अनन्यता क� �कसी घोषणा या शासक�य िलफाफे को,
जो डाक-मतप� �ारा मत देने के संबंध म� उपयोग म� लाया गया है, कपटपूवर्क िव�िपत करे गा या कपटपूवर्क नष्ट करे गा ; अथवा
(घ) सम्यक् �ािधकार के िबना �कसी �िक्त को कोई मतप� देगा 1[या �कसी �िक्त से कोई मतप� �ाप्त करे गा या
सम्यक् �ािधकार के िबना उसके कब्जे म� कोई मतप� होगा ;] अथवा
(ङ) �कसी मतपेटी म� उस मतप� से िभन्न, िजसे वह उसम� डालने के िलए िविध �ारा �ािधकृ त है, कोई चीज
कपटपूवर्क डालेगा ; अथवा
(च) सम्यक् �ािधकार के िबना �कसी मतपेटी या मतप�� को, जो िनवार्चन के �योजन� के िलए तब उपयोग म� है,
नष्ट करे गा, लेगा, खोलेगा या अन्यथा उसम� हस्तक्षेप करे गा ; अथवा
(छ) यथािस्थित, कपटपूवर्क या सम्यक् �ािधकार के िबना पूवर्वत� काय� म� से कोई कायर् करने का �यत्न करे गा या
�कन्ह� ऐसे काय� के करने म� जानबूझकर सहायता देगा या उन काय� का दुष्�ेरण करे गा,
तो वह �िक्त िनवार्चन अपराध का दोषी होगा ।
(2) इस धारा के अधीन िनवार्चन अपराध का दोषी कोई �िक्त :—
(क) य�द वह �रट�न�ग आ�फसर या सहायक �रट�न�ग आ�फसर या मतदान के न्� म� पीठासीन आ�फसर या िनवार्चन
से संसक्त पदीय कतर्� पर िनयोिजत कोई अन्य आ�फसर या िलिपक है तो, कारावास से, िजसक� अविध दो वषर् तक हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन� से, दंडनीय होगा ;
(ख) य�द वह कोई अन्य �िक्त है तो, कारावास से, िजसक� अविध छह मास तक क� हो सके गी या जुमार्ने से, या
दोन� से, दण्डनीय होगा ।
(3) इस धारा के �योजन� के िलए वह �िक्त पदीय कतर्� पर समझा जाएगा िजसका यह कतर्� है �क वह िनवार्चन के िजसके
अन्तगर्त मत� क� गणना आती है, या िनवार्चन के भाग के संचालन म� भाग ले या ऐसे िनवार्चन के सम्बन्ध म� उपयोग म� लाए गए मतप��
और अन्य दस्तावेज� के िलए िनवार्चन के पश्चात् उ�रदायी रहे �कन्तु “पदीय कतर्�” पद के अन्तगर्त ऐसा कोई कतर्� न होगा जो इस
अिधिनयम के �ारा या अधीन 2*** अिधरोिपत �कए जाने से अन्यथा अिधरोिपत होगा ।
3
[(4) उपधारा (2) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा ।]
137. [कु छ अपराध� के िलए अिभयोजन ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1966 (1966 का 47) क� धारा 61
�ारा िनरिसत ।
138. [1898 के अिधिनयम 5 का संशोधन।]—िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1957 (1957 का 36) क� धारा 2 और
अनुसूची �ारा िनरिसत ।
भाग 8

िनरहर्ताएं
139.—145. [अध्याय 1 से 3 तक ।]—लोक �ितिनिधत्व (संशोधन) अिधिनयम, 1966 (1966 का 47) क� धारा 62 �ारा
िनरिसत ।
4
[अध्याय 4—सदस्य� क� िनरहर्ता� क� जांच के संबध
ं म� िनवार्चन आयोग क� शिक्तयां
146. िनवार्चन आयोग क� शिक्तयां—(1) जहां �क, यथािस्थित, अनुच्छेद 103 के अधीन या संघ राज्यक्षे� शासन अिधिनयम,
1963 (1963 का 20) क� धारा 14 क� उपधारा (4) के अधीन राष्�पित को या अनुच्छेद 192 के अधीन राज्यपाल को कोई राय िनिवद�
करने के संबंध म� िनवार्चन आयोग जांच करना आवश्यक या उिचत समझता है, और आयोग का समाधान हो जाता है �क ऐसी जांच म�
सम्पृक्त पक्षकार� �ारा स्वयं फाइल �कए गए शपथ-प� और पेश क� गई दस्तावेज� के आधार पर वह उस मामले क�, िजसक� जांच क�
जा रही है, िविनश्चायक राय नह� बना सकता, वहां आयोग को ऐसी जांच के �योजन� के िलए, िनम्निलिखत मामल� के बारे
म�, अथार्त् :—

(क) �कसी �िक्त को समन करने, हािजर कराने और उसक� शपथ पर परीक्षा करने ;

1
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 70 �ारा अन्तःस्थािपत ।
2
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 38 �ारा “या लोक �ितिनिधत्व अिधिनयम, 1950 के �ारा या के अंतगर्त” का लोप �कया गया ।
3
1966 के अधिनयम सं० 47 क� धारा 60 �ारा (14-12-1966 से) उपधारा (4) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
4
1965 के अिधिनयम सं० 17 क� धारा 2 �ारा अन्तःस्थािपत ।
50

(ख) �कसी दस्तावेज या सा�य के �प म� पेश �कए जाने योग्य �कसी भौितक पदाथर् को �कट और पेश करने क�
अपेक्षा करने ;

(ग) शपथ-प�� पर सा�य �ाप्त करने ;

(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से कोई लोक अिभलेख या उसक� �ित अध्यपेिक्षत करने ;

(ङ) सािक्षय� या दस्तावेज� क� परीक्षा के िलए कमीशन िनकालने,

के बारे म�, वे शिक्तयां ह�गी जो िसिवल न्यायालय क� िसिवल ���या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन वाद का िवचारण करते
समय होती ह� ।

(2) आयोग को यह शिक्त भी होगी �क वह �कसी �िक्त से �कसी ऐसे िवशेषािधकार के अध्यधीन रहते �ए िजसका दावा उस
�िक्त �ारा �कसी तत्समय �वृ� िविध के अधीन �कया जा सके , ऐसी बात� या मामल� पर, जो आयोग क� राय म� जांच क� िवषयवस्तु
के िलए उपयोगी या सुसंगत हो, जानकारी लेने क� अपेक्षा करे ।
(3) आयोग िसिवल न्यायालय समझा जाएगा और जब�क कोई ऐसा अपराध, जो भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) क�
धारा 175, धारा 178, धारा 179, धारा 180 या धारा 228 म� व�णर्त है, आयोग के सामने या उपिस्थित म� �कया जाता है, तब आयोग
अपराध को ग�ठत करने वाले तथ्य� को और अिभयुक्त के कथन को अिभिलिखत करने के पश्चात्, जैसा दंड ���या संिहता, 1898
(1898 का 5) 1 म� उपबिन्धत है, मामले को उसका िवचारण करने क� अिधका�रता रखने वाले मिजस्�ेट को भेज देगा और मिजस्�ेट,
िजसके पास ऐसा मामला भेजा गया हो, अिभयुक्त के िव�� प�रवाद सुनने के िलए ऐसे अ�सर होगा मानो मामला उसके पास दण्ड
���या संिहता, 18981 क� धारा 482 के अधीन भेजा गया था ।
(4) आयोग के समक्ष कोई भी कायर्वाही भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) क� धारा 193 और धारा 228 के अथर् के भीतर
न्याियक कायर्वाही समझी जाएगी ।
146क. िनवार्चन आयोग के समक्ष �िक्तय� �ारा �कए गए कथन—िनवार्चन आयोग के समक्ष सा�य देने के अनु�म म� �कसी
�िक्त �ारा �कया गया कोई कथन ऐसे कथन �ारा, िमथ्या सा�य देने के अिभयोजन के िसवाय उसे �कसी िसिवल या दािण्डक कायर्वाही
के अध्यधीन नह� करे गा और न उसम� उसके िव�� उपयोग म� लाया जाएगा :
परन्तु यह तब जब�क कथन—
(क) ऐसे �श्न के उ�र म� �दया गया है िजसका उ�र देने के िलए वह आयोग �ारा अपेिक्षत है ; या
(ख) जांच क� िवषयवस्तु से सुसंगत है ।
146ख. िनवार्चन आयोग �ारा अनुसरण क� जाने वाली ���या—िनवार्चन आयोग को अपनी ���या (िजसके अन्तगर्त उसक�
अपनी बैठक� के स्थान और समय िनयत करना और यह िविनश्चय करना आते ह� �क बैठक लोक हो या �ाइवेट) िविनयिमत करने क�
शिक्त होगी ।
146ग. सद्भावपूवर्क �कए गए अिभकायर् का प�र�ाण—कोई भी वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही �कसी ऐसी बात
के बारे म� जो इस अध्याय के पूवर्गामी उपबंध� के या तद्धीन बनाए गए �कसी आदेश के अनुसरण म� सद्भावपूवर्क क� गई या क� जाने के
िलए आशियत है अथवा, यथािस्थित, राष्�पित या राज्यपाल को आयोग �ारा कोई राय िनिवद� करने के बारे म� अथवा �कसी ऐसी राय,
कागजप� या कायर्वाही के आयोग के �ािधकार के �ारा या अधीन �काशन के बारे म� है, आयोग के या आयोग के िनदेश के अधीन कायर्
करने वाले �कसी �िक्त के िव�� नह� क� जाएगी ।]

भाग 9

उपिनवार्चन
147. राज्य सभा म� �ई आकिस्मक �रिक्तयां— 2[(1)] जब �क राज्य सभा के िलए िनवार्िचत सदस्य क� पदाविध के अवसान से
पूवर् उसका स्थान �रक्त हो जाता है या �रक्त घोिषत कर �दया जाता है या राज्य सभा के िलए उसका िनवार्चन शून्य घोिषत कर �दया
जाता है तब िनवार्चन आयोग, यथािस्थित, संपृक्त िवधान सभा के िनवार्िचत सदस्य� से या िनवार्चकगण के सदस्य� 3*** से भारत के
राजप� म� अिधसूचना �ारा अपेक्षा करे गा �क वे ऐसे �ई �रिक्त को भरने के �योजन के िलए ऐसी तारीख से पूवर्, जैसी अिधसूचना म�
िविन�दर्ष्ट क� जाए, एक �िक्त िनवार्िचत कर दे और इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� और आदेश� के उपबंध ऐसी
�रिक्त को भरने के िलए सदस्य के िनवार्चन के संबंध म� यावत्शक्य लागू ह�गे ।

1
अब तत्समान उपबंध दण्ड ���या संिहता, 1973 (1974 का 2) म� देिखए ।
2
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा धारा 147 को उसक� उपधारा (1) के �प म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 49 क� धारा 44 और पांचव� अनुसूची �ारा “या कु गर् िवधान प�रषद् के िनवार्िचत सदस्य�” लोप �कया गया ।
51

[(2) संिवधान (सप्तम संशोधन) अिधिनयम, 1956 के �ारं भ क� तारीख के पश्चात् यथाशक्य शी� उन �रिक्तय� को भरने के
1

िलए उप-िनवार्चन �कए जाएंगे जो असम, उड़ीसा और उ�र �देश राज्य�, और �दल्ली, िहमाचल �देश ∗ और मिणपुर* के संघ राज्यक्षे��
को आबं�टत स्थान� म� उस तारीख को िव�मान ह� ।]

148. [कु छ संघ राज्यक्षे�� के िलए िनवार्चकगण� म� आकिस्मक �रिक्तयां।]—क्षे�ीय प�रषद् अिधिनयम, 1956
(1956 का 103) क� धारा 64 �ारा िनरिसत ।

149. लोक सभा म� �ई आकिस्मक �रिक्तयां—(1) जब �क लोक सभा के िलए िनवार्िचत सदस्य का स्थान �रक्त हो जाता है या
�रक्त घोिषत कर �दया जाता है या लोक सभा के िलए उसका िनवार्चन शून्य घोिषत कर �दया जाता है तब िनवार्चन आयोग उपधारा
(2) के उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए संपृक्त संसदीय िनवार्चन-क्षे� से भारत के राजप� म� अिधसूचना �ारा अपेक्षा करे गा �क वह ऐसे
�ई �रिक्त को भरने के �योजन के िलए ऐसी तारीख से पूवर्, जैसी अिधसूचना म� िविन�दर्ष्ट क� जाए, एक �िक्त िनवार्िचत कर दे और
इस अिधिनयम और इसके अधीन बनाए गए िनयम� और आदेश� के उपबंध ऐसी �रिक्त को भरने के िलए सदस्य के िनवार्चन के संबंध म�
यावत्शक्य लागू ह�गे ।

(2) य�द ऐसे �ई �रिक्त ऐसे स्थान क� �रिक्त हो, जो �कसी ऐसे िनवार्चन-क्षे� म� अनुसूिचत जाितय� के िलए या �कन्ह�
अनुसूिचत जनजाितय� के िलए आरिक्षत है, तो उपधारा (1) के अधीन िनकाली गई अिधसूचना म� यह िविन�दर्ष्ट होगा �क उस स्थान को
भरने के िलए �िक्त, यथािस्थित, अनुसूिचत जाितय� या ऐसी अनूसिू चत जनजाितय� का ही होगा ।

150. राज्य िवधान सभा� म� �ई आकिस्मक �रिक्तयां—(1) जब�क �कसी राज्य क� िवधान सभा के िलए िनवार्िचत सदस्य का
स्थान �रक्त हो जाता है या �रक्त घोिषत कर �दया जाता है या िवधान सभा के िलए उसका िनवार्चन शून्य घोिषत कर �दया जाता है,
तब िनवार्चन आयोग उपधारा (2) के उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए संपृक्त सभा िनवार्चन-क्षे� से शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा
अपेक्षा करे गा �क वह ऐसे �ई �रिक्त को भरने के �योजन के िलए ऐसी तारीख से पूवर्, जैसी अिधसूचना म� िविन�दर्ष्ट क� जाए, एक
�िक्त िनवार्िचत कर दे और इस अिधिनयम और इसके अधीन बनाए गए िनयम� और आदेश� के उपबंध ऐसी �रिक्त को भरने के िलए
सदस्य के िनवार्चन के संबंध म� यावत्शक्य लागू ह�गे ।

(2) य�द ऐसे �ई �रिक्त ऐसे स्थान क� �रिक्त हो, जो �कसी ऐसे िनवार्चन-क्षे� म� अनुसूिचत जाितय� के िलए या �कन्ह�
अनुसूिचत जनजाितय� के िलए आरिक्षत है, तो उपधारा (1) के अधीन िनकाली गई अिधसूचना म� यह िविन�दर्ष्ट होगा �क उस स्थान को
भरने के िलए �िक्त, यथािस्थित, अनुसूिचत जाितय� या ऐसी अनुसिू चत जनजाितय� का ही होगा ।
151. राज्य िवधान प�रषद� म� �ई आकिस्मक �रिक्तयां—जब�क राज्य क� िवधान प�रषद् के िलए िनवार्िचत सदस्य क�
पदाविध के अवसान से पूवर् उसका स्थान �रक्त हो जाता है या �रक्त घोिषत कर �दया जाता है या िवधान प�रषद् के िलए उसका
िनवार्चन शून्य घोिषत कर �दया जाता है, तब िनवार्चन आयोग, यथािस्थित, सम्पृक्त प�रषद् िनवार्चन-क्षे� या उस राज्य क� िवधान
सभा के सदस्य� से शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा अपेक्षा करे गा �क वे ऐसे �ई �रिक्त को भरने के �योजन के िलए ऐसी तारीख से
पूवर्, जैसी अिधसूचना म� िविन�दर्ष्ट क� जाए, एक �िक्त िनवार्िचत कर दे और इस अिधिनयम के और तद्धीन बनाए गए िनयम� और
आदेश� के उपबंध ऐसी �रिक्त को भरने के िलए सदस्य के िनवार्चन के संबंध म� यावत्शक्य लागू ह�गे ।
[151क. धारा 147, धारा 149, धारा 150 और धारा 151 म� िन�दर्ष्ट �रिक्तय� को भरने के िलए समय क� प�रसीमा—धारा
2

147, धारा 149, धारा 150 और धारा 151 म� �कसी बात के होते �ए भी, उक्त धारा� म� से �कसी म� िन�दर्ष्ट �कसी �रिक्त को भरने के
िलए उप-िनवार्चन, �रिक्त होने क� तारीख से छह मास क� अविध के भीतर कराया जाएगा :
परन्तु इस धारा क� कोई बात उस दशा म� लागू नह� होगी, िजसम�—
(क) �कसी �रिक्त से संबंिधत सदस्य क� पदाविध का शेष भाग एक वषर् से कम है ; या
(ख) िनवार्चन आयोग, के न्�ीय सरकार से परामशर् करके , यह �मािणत करता है �क उक्त अविध के भीतर ऐसा
उप-िनवार्चन कराना क�ठन है ।]
भाग 10

�क�णर्
152. राज्य िवधान सभा� म� और िनवार्चकगण� के सदस्य� क� सूची संयुक्त �रट�न�ग आ�फसर रख�ग— े (1) राज्य सभा म�
के स्थान या स्थान� को भरने के िलए राज्य क� िवधान सभा के िनवार्िचत सदस्य� �ारा िनवार्चन के िलए या राज्य क� िवधान प�रषद् म�
के स्थान या स्थान� को भरने के िलए राज्य क� िवधान सभा के सदस्य� �ारा िनवार्चन के िलए �रट�न�ग आ�फसर, यथािस्थित, उस िवधान
सभा के िनवार्िचत सदस्य� क� सूची या सदस्य� क� सूची ऐसे िनवार्चन के �योजन� के िलए अपने कायार्लय म� िविहत रीित और ��प म�
रखेगा ।

1
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा अंतःस्थािपत ।

अब यह राज्य है ।
2
1996 के अिधिनयम सं० 21 क� धारा 17 �ारा (1-8-1996 से) अंतःस्थािपत ।
52

(2) राज्य सभा म� के स्थान या स्थान� को भरने के िलए 1[संघ राज्यक्षे�] 2*** के िलए िनवार्चकगण के सदस्य �ारा 3***
िनवार्चन के िलए �रट�न�ग आ�फसर उस िनवार्चकगण के सदस्य� क� सूची ऐसे िनवार्चन के �योजन� के िलए अपने कायार्लय म� िविहत
रीित और ��प म� रखेगा ।
(3) उपधारा� (1) और (2) म� िन�दर्ष्ट सूिचय� क� �ितयां िव�य के िलए उपलब्ध क� जाएंगी ।
[153 िनवार्चन को पूरा करने के िलए समय का िवस्तारण—िनवार्चन आयोग धारा 30 या धारा 39 क� उपधारा (1) के
314
4

अधीन अपने �ारा िनकाली गई अिधसूचना म� आवश्यक संशोधन करके �कसी िनवार्चन को पूरा करने के िलए समय का िवस्तार उन
कारण� के िलए, िजन्ह� वह पयार्प्त समझे, करने के िलए सक्षम होगा ।]
154. राज्य सभा के सदस्य� क� पदाविध— 5[(1) उपधारा� (2) और (2क) के उपबंध� के अध्यधीन रहते �ए, आकिस्मक
�रिक्त को भरने के िलए चुने गए सदस्य से िभन्न राज्य सभा के सदस्य क� पदाविध छह वषर् क� होगी । ]
(2) 6*** राज्य सभा के �थम गठन पर राष्�पित िनवार्चन आयोग से परामशर् करने के पश्चात् उस समय चुने गए सदस्य� म� से
कु छ क� पदाविध को इस �कार कम कर देने के िलए ऐसा उपबंध, िजसे वह ठीक समझता हो आदेश �ारा करे गा �क हर एक वगर् के स्थान�
को धारण करने वाले सदस्य� म� से यथाशक्य िनकटतम एक ितहाई तत्पश्चात् हर दूसरे वषर् के अवसान पर िनवृ� हो जाएंगे ।
317
7[(2क)
इसिलए �क सदस्य� म� से यथाशक्य िनकटतम एक ितहाई 1958 क� अ�ैल के ि�तीय �दन और तत्पश्चात् हर दूसरे वषर्
के अवसान पर िनवृ� हो जाएं, राष्�पित, संिवधान (सप्तम संशोधन) अिधिनयम, 1956 के �ारभ्भ के पश्चात् यथाशक्य शी� िनवार्चन
आयोग से परामशर् करने के पश्चात् ऐसे उपबंध, जैसे वह ठीक समझता हो, धारा 147 क� उपधारा (2) के अधीन िनवार्िचत सदस्य� क�
पदाविध के बारे म�, आदेश �ारा करे गा ।]
(3) आकिस्मक �रिक्त को भरने के िलए चुना गया सदस्य अपने पूवर्वत� के शेष भाग के िलए सेवा करने के िलए चुना जाएगा ।

155. राज्य सभा के सदस्य� क� पदाविध का �ारम्भ—(1) राज्य सभा के ऐसे सदस्य क� पदाविध िजसके नाम का शासक�य
राजप� म� धारा 71 के अधीन अिधसूिचत �कया जाना अपेिक्षत है, ऐसी अिधसूचना क� तारीख से आरम्भ होगी ।

(2) राज्य सभा के ऐसे सदस्य क� पदाविध, िजसके नाम का धारा 71 के अधीन अिधसूिचत �कया जाना अपेिक्षत नह� है,
यथािस्थित, िनवार्िचत के �प म� ऐसे �िक्त के नाम को अन्त�वर्ष्ट रखने वाली घोषणा के धारा 67 के अधीन शासक�य राजप� म�
�काशन क� तारीख से या ऐसे �िक्त के राज्य सभा के िलए नामिनद�शन का आख्यापन करने वाली अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उपखंड
(क) के अधीन या �कसी अन्य उपबंध के अधीन िनकाली गई अिधसूचना क� तारीख से आरम्भ होगी ।

156. राज्य िवधान प�रषद� के सदस्य� क� पदाविध—(1) राज्य क� िवधान प�रषद् म� आकिस्मक �रिक्त को भरने के िलए
चुने गए सदस्य से िभन्न उस प�रषद् के सदस्य क� पदाविध छह वषर् क� होगी �कन्तु प�रषद् के �थम गठन पर राज्यपाल 8*** िनवार्चन
आयोग से परामशर् करने के पश्चात् उस समय चुने गए सदस्य� म� से कु छ क� पदाविध को इस �कार कम कर देने के िलए ऐसा उपबंध,
जैसा वह ठीक समझे, आदेश �ारा करे गा �क हर एक वगर् के स्थान� को धारण करने वाले सदस्य� म� से यथाशक्य िनकटतम एक ितहाई
तत्पश्चात् हर दूसरे वषर् के अवसान पर िनवृ� हो जाएं ।

(2) आकिस्मक �रिक्त को भरने के िलए चुना गया सदस्य अपने पूवर्वत� क� पदाविध के श्◌ोष भाग के िलए सेवा करने के
िलए चुना जाएगा ।

157. िवधान प�रषद� के सदस्य� क� पदाविध का �ारम्भ—(1) राज्य क� िवधान प�रषद् के ऐसे सदस्य क� पदाविध, िजसके
नाम का शासक�य राजप� म� 9[धारा 74] के अधीन अिधसूिचत �कया जाना अपेिक्षत है, ऐसी अिधसूचना क� तारीख से आरम्भ होगी ।

(2) राज्य क� िवधान प�रषद् के ऐसे सदस्य क� पदाविध, िजसके नाम का 9[धारा 74] के अधीन अिधसूिचत �कया जाना
अपेिक्षत नह� है, यथािस्थित, िनवार्िचत के �प म� ऐसे व्यिक्त के नाम को अन्त�वर्ष्ट रखने वाली घोषणा के धारा 67 के अधीन शासक�य
राजप� म� �काशन क� तारीख से या ऐसे व्यिक्त के प�रषद् के िलए नामिनद�शन का आख्यापन करने वाली अनुच्छेद 171 के खण्ड (3)
के उपखंड (ङ) के अधीन िनकाली गई अिधसूचना क� तारीख से आरम्भ होगी ।

1
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “भाग ग राज्य” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 77 �ारा “या ऐसे राज्य� का समूह” शब्द� का लोप �कया गया ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 49 क� धारा 44 और पांचव� अनुसूची �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 78 �ारा धारा 153 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा उपधारा (1) के स्थान पर �ितस्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा कितपय शब्द� का लोप �कया गया ।
7
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा अंत:स्थािपत ।
8
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 �ारा “या राज�मुख, जैसी भी िस्थित हो” शब्द� का लोप �कया गया ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 79 �ारा “धारा 75” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
53

[158. अभ्यथ� के िनक्षेप क� वापसी का समपहरण—(1) धारा 34 के अधीन या धारा 39 क� उपधारा (2) के साथ प�ठत उस
1

धारा के अधीन �कया गया िनक्षेप या तो िनक्षेप करने वाले �िक्त अथवा उसके िविधक �ितिनिध को वापस कर �दया जाएगा या इस
धारा के उपबंध� के अनुसार समुिचत �ािधकारी को समप�त हो जाएगा ।

(2) इस धारा म� एतत्पश्चात् व�णर्त दशा� के िसवाय िनक्षेप िनवार्चन प�रणाम क� घोषणा के पश्चात् यथासाध्य शी�ता से
वापस कर �दया जाएगा ।

(3) य�द अभ्यथ� िनवार्चन लड़ने वाले अभ्य�थर्य� क� सूची म� द�शर्त नह� �कया गया है या य�द मतदान के �ारम्भ से पूवर्
उसक� मृत्यु हो जाती है तो िनक्षेप, यथािस्थित, सूची के �काशन के पश्चात् या उसक� मृत्यु के पश्चात् यथासाध्य शी�ता से वापस कर
�दया जाएगा ।

(4) य�द ऐसे िनवार्चन म�, िजसम� मतदान �आ है, अभ्यथ� िनवार्िचत नह� होता और उसे �ाप्त िविधमान्य मत� क� संख्या सब
अभ्य�थर्य� को �ाप्त िविधमान्य मत� क� कु ल संख्या के छठे भाग से, या िनवार्चन म� एक से अिधक सदस्य� के िनवार्चन क� दशा म� उस
संख्या के छठे भाग से, जो ऐसे पड़े �ए िविधमान्य मत� क� कु ल संख्या को, िनवार्िचत �कए जाने वाले सदस्य� क� संख्या से, भाग देने पर
आए, अिधक नह� है, तो िनक्षेप उपधारा (3) के उपबंध� के अध्यधीन समप�त हो जाएगा :

परन्तु आनुपाितक �ितिनिधत्व प�ित के अनुसार एकल सं�मणीय मत �ारा �कए गए िनवार्चन म� जहां �क अभ्यथ� िनवार्िचत
नह� होता वहां उसके �ारा �कया गया िनक्षेप समप�त हो जाएगा य�द उसे मत� क� उस संख्या के छठे भाग से अिधक मत �ाप्त नह� होते
जो अभ्यथ� हो जाने के िलए पयार्प्त �प म� इस िनिम� िविहत ह� ।
(5) उपधारा� (2), (3) और (4) म� �कसी बात के होते �ए भी—
(क) य�द साधारण िनवार्चन म� अभ्यथ� एक से अिधक संसदीय िनवार्चन-क्षे� म� या एक से अिधक सभा
िनवार्चन-क्षे� म� िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ� है तो एक ही िनक्षेप वापस �कया जाएगा और अन्य िनक्षेप समप�त हो जाएंगे ;
(ख) य�द अभ्यथ� िनवार्चन म� एक से अिधक प�रषद् िनवार्चन-क्षे�� म�, या िनवार्चन म� एक प�रषद् िनवार्चन-क्षे� म�
और िवधान प�रषद् म� स्थान� को भरने के िलए राज्य िवधान सभा के सदस्य� �ारा िनवार्चन म�, िनवार्चन लड़ने वाला अभ्यथ�
है तो एक ही िनक्षेप वापस �कया जाएगा और अन्य िनक्षेप समप�त हो जाएंगे ।
[159. कितपय �ािधका�रय� के कमर्चा�रवृन्द िनवार्चन के काम के िलए उपलब्घ �कए जाएंगे—(1) जब अनुच्छेद 324 के
2

खंड (4) के अधीन िनयुक्त �ादेिशक आयुक्त या राज्य का मुख्य िनवार्चन आ�फसर, ऐसा अनुरोध करे तब, उपधारा (2) म� िविन�दर्ष्ट
�ािधकारी �कसी �रट�न�ग आ�फसर को उतने कमर्चा�रवृन्द उपलब्ध कराएंगे िजतने िनवार्चन के संबंध म� �कन्ह� कतर्�� के पालन के िलए
आवश्यक ह� ।
(2) उपधारा (1) के �योजन� के िलए िनम्निलिखत �ािधकारी ह�गे, अथार्त् :—
(i) हर स्थानीय �ािधकारी ;
(ii) के न्�ीय, �ान्तीय या राज्य अिधिनयम �ारा स्थािपत या िनगिमत हर िवश्विव�ालय ;
(iii) कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) क� धारा 617 म� प�रभािषत कोई सरकारी कं पनी ;
(iv) ऐसी कोई अन्य संस्था, समुत्थान या उप�म, जो के न्�ीय, �ान्तीय या राज्य अिधिनयम �ारा या उसके अधीन
स्थािपत �कया गया है या जो के न्�ीय सरकार या �कसी राज्य सरकार �ारा �त्यक्षतः या अ�त्यक्षतः उपलब्ध कराई गई
िनिधय� �ारा पूणर्तः या सारतः िनयंि�त या िव�पोिषत है ।]
160. प�रसर, यान� आ�द का िनवार्चन के �योजन के िलए अिध�हण—(1) य�द राज्य सरकार को यह �तीत होता है �क राज्य
के भीतर होने वाले िनवार्चन के संबंध म�—
(क) इस �योजन के िलए �क उसका मतदान के न्� के �प म� या मतदान होने के पश्चात् मतपे�टय� के रखने के िलए
उपयोग �कया जाए, �कसी प�रसर क� आवश्यकता है या आवश्यकता होनी संभा� है ; अथवा
(ख) �कसी मतदान के न्� से या को मतपे�टय� के प�रवहन के �योजन के िलए या ऐसे िनवार्चन के संचालन के दौरान
�वस्था बनाए रखने के िलए पुिलस बल के सदस्य� के प�रवहन के या ऐसे िनवार्चन के संबंध म� �कन्ह� कतर्�� के पालन के
िलए �कसी आ�फसर या अन्य �िक्त के प�रवहन के िलए �कसी यान, जलयान या जीवजन्तु क� आवश्यकता है या आवश्यकता
होनी संभा� है,
तो वह सरकार ऐसे प�रसर या, यथािस्थित, ऐसे यान, जलयान या जीवजन्तु का अिध�हण िलिखत आदेश �ारा कर सके गी, और ऐसे
अित�रिक्त आदेश दे सके गी जैसे �क अिध�हण के संबंध म� उसे आवश्यक या समीचीन �तीत ह� :

1
1958 के अिधिनयम सं० 58 क� धारा 39 �ारा धारा 158 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
2
1998 के अिधिनयम सं० 12 क� धारा 2 �ारा (23-12-1997 से) धारा 159 के स्थान पर �ितस्थािपत ।
54

परन्तु ऐसा कोई यान, जलयान या जीवजन्तु, िजसे अभ्यथ� या उसका अिभकतार् ऐसे अभ्यथ� के िनवार्चन से संसक्त �कसी
�योजन के िलए िविधपूणर्तः उपयोग म� ला रहा है, इस उपधारा के अधीन तब तक अिधगृहीत न �कया जाएगा जब तक ऐसे िनवार्चन म�
मतदान समाप्त न हो जाए ।
(2) अिध�हण उस �िक्त को संबोिधत िलिखत आदेश �ारा �कया जाएगा िजसक� बाबत राज्य सरकार यह समझती है �क वह
उस सम्पि� का स्वामी है या उस पर कब्जा रखने वाला �िक्त है और ऐसे आदेश क� उस �िक्त पर तामील, िजसे वह संबोिधत है,
िविहत रीित म� क� जाएगी ।
(3) जब कभी कोई सम्पि� उपधारा (1) के अधीन अिधगृहीत क� जाए तब ऐसे अिध�हण क� कालाविध उस कालाविध के परे
िवस्तृत न होगी िजसके िलए ऐसी सम्पि� उस उपधारा म� व�णर्त �योजन� म� से �कसी के िलए अपेिक्षत है ।
(4) इस धारा म�—

(क) “प�रसर” से कोई भूिम, भवन या भवन का भाग अिभ�ेत है और झ�पड़ी, शेड या अन्य संरचना या उसका कोई
भाग इसके अन्तगर्त आता है ;

(ख) “यान” से ऐसा कोई यान अिभ�ेत है जो सड़क प�रवहन के �योजन के िलए उपयोग म� आता है या उपयोग म�
लाए जाने योग्य है भले ही वह यांि�क शिक्त से नो�दत हो या न हो ।

161. �ितकर का संदाय—(1) जब कभी राज्य सरकार �कसी प�रसर को धारा 160 के अनुसरण म� अिधगृहीत करे तब िहतब�
�िक्तय� को �ितकर संद� �कया जाएगा िजसक� रकम का अवधारण िनम्निलिखत बात� को ध्यान म� रखकर �कया जाएगा, अथार्त् :—

(i) प�रसर क� बाबत देय भाटक या य�द कोई भाटक ऐसे देय न हो तो उस प�रक्षे� म� वैसे ही प�रसर के िलए
देय भाटक;

(ii) य�द िहतब� �िक्त प�रसर के अिध�हण के प�रणामस्व�प अपने िनवास-स्थान या कारबार के स्थान को
बदलने के िलए िववश �आ हो तो ऐसे बदलने से आनुषंिगक युिक्तयुक्त �य (य�द कोई हो) :

परन्तु जहां �क कोई िहतब� �िक्त ऐसे अवधा�रत �ितकर क� रकम से �िथत होते �ए राज्य सरकार से िविहत समय के
अन्दर यह आवेदन करता है �क वह मामला मध्यस्थ को िनद�िशत कर �दया जाए वहां �दए जाने वाले �ितकर क� रकम ऐसी रकम होगी
जैसी राज्य सरकार �ारा इस िनिम� िनयुक्त मध्यस्थ अवधा�रत कर� :

परन्तु यह और भी जहां �ितकर पाने के हक क� बाबत या �ितकर क� रकम के �भाजन क� बाबत कोई िववाद है वहां
अवधारण के िलए उसे राज्य सरकार अपने �ारा इस िनिम� िनयुक्त मध्यस्थ को िन�दर्ष्ट करे गी और वह िववाद ऐसे मध्यस्थ के
िविनश्चय के अनुसार अवधा�रत �कया जाएगा ।

स्पष्टीकरण—इस उपधारा म� “िहतब� �िक्त” पदाविल से वह �िक्त, जो धारा 160 के अधीन अिधगृहीत प�रसर पर
अिध�हण के अ�विहत पूवर् वास्तिवक कब्जा रखता था या जहां �क कोई �िक्त ऐसा वास्तिवक कब्जा नह� रखता था वहां ऐसे प�रसर
का स्वामी अिभ�ेत है ।

(2) जब कभी राज्य सरकार कोई यान, जलयान या जीवजन्तु धारा 160 के अनुसरण म� अिधगृहीत करे तब उसके स्वामी को
�ितकर संद� �कया जाएगा िजसक� रकम का अवधारण राज्य सरकार ऐसे यान, जलयान या जीवजन्तु को भाड़े पर लेने के िलए उस
प�रक्षे� म� �चिलत भाड़े या दर� के आधार पर करे गी :

परन्तु जहां �क ऐसे यान, जलयान या जीवजन्तु का स्वामी ऐसे अवधा�रत �ितकर क� रकम से �िथत होते �ए राज्य सरकार
से िविहत समय के भीतर यह आवेदन करता है �क वह मामला मध्यस्थ को िन�दर्ष्ट कर �दया जाए वहां �दए जाने वाले �ितकर क� रकम
ऐसी रकम होगी जैसी राज्य सरकार �ारा इस िनिम� िनयुक्त मध्यस्थ अवधा�रत करे :

परन्तु यह और भी �क जहां अिधगृहीत �कए जाने से अ�विहत पूवर् यान या जलयान स्वामी से िभन्न �िक्त के कब्जे म�
अव�य करार के आधार पर था वहां अिध�हण के बारे म� संदय े कु ल �ितकर के �प म� इस उपधारा के अधीन अवधा�रत रकम उस �िक्त
और स्वामी के बीच म� ऐसी रीित म�, िजसके िलए वे सहमत हो जाएं, और ऐसी सहमित के अभाव म�, ऐसी रीित म�, जैसी राज्य सरकार
�ारा इस िनिम� िनयुक्त मध्यस्थ िविनिश्चत करे , �भािजत क� जाएगी ।

162. जानकारी अिभ�ाप्त करने क� शिक्त—राज्य सरकार �कसी सम्पि� को धारा 160 के अधीन अिधगृहीत करने क� या
धारा 181 के अधीन संदय े �ितकर को अवधा�रत करने क� दृिष्ट से �कसी �िक्त से आदेश �ारा अपेक्षा कर सके गी �क वह ऐसी सम्पि�
संबंधी अपने कब्जे क� ऐसी जानकारी, जैसी आदेश म� िविन�दर्ष्ट क� जाए, ऐसे �ािधकारी को दे जो ऐसे िविन�दर्ष्ट �कया जाए ।

163. �कसी प�रसर आ�द म� �वेश करने और उनके िनरीक्षण क� शिक्तयां—(1) यह अवधारण करने के �योजन के िलए �क
क्या �कसी प�रसर, �कसी यान, जलयान या जीवजन्तु के संबंध म� धारा 160 के अधीन आदेश �कया जाए और य�द �कय़ा जाए तो �कस
रीित म� �कया जाए या इस दृिष्ट से �क उस धारा के अधीन �कए गए �कसी आदेश का अनुपालन सुिनिश्चत �कया जाए कोई �िक्त, जो
55

राज्य सरकार �ारा या इस िनिम� �ािधकृ त �कया गया है, ऐसे प�रसर म� �वेश कर सके गा और ऐसे प�रसर और उनम� के �कसी यान,
जलयान या जीवजन्तु का िनरीक्षण कर सके गा ।

(2) इस धारा म� “प�रसर” तथा “यान” पद� के वही अथर् ह� जो धारा 160 म� ह� ।
164. अिधगृहीत प�रसर से बेदखली—(1) जो कोई �िक्त �कसी अिधगृहीत प�रसर पर धारा 160 के अधीन �कए गए �कसी
आदेश के उल्लंघन म� कब्जा �कए रहता है, उसे राज्य सरकार �ारा इस िनिम� सशक्त कोई आ�फसर उस प�रसर म� से संक्षेपतः बेदखल
कर सके गा ।
(2) ऐसे सशक्त कोई आ�फसर ऐसी �कसी स्�ी को, जो लोक समक्ष नह� आती, युिक्तयुक्त चेतावनी और हट जाने के िलए
सुिवधा देकर �कसी भवन के �कसी ताले या चटखनी को हटा या खोल सके गा और �कसी �ार को तोड़ सके गा या ऐसी बेदखली के �योजन
के िलए कोई अन्य आवश्यक कायर् कर सके गा ।
165. अिध�हण से प�रसर क� िनमुिर् क्त—(1) जब �क धारा 160 के अधीन अिधगृहीत कोई प�रसर अिध�हण से िनमुर्क्त �कए
जाने ह�, तब उनका कब्जा उस �िक्त को, िजससे प�रसर के अिधगृहीत �कए जाने के समय कब्जा िलया गया था, या य�द कोई ऐसा
�िक्त नह� था तो उस �िक्त को, िजसक� बाबत राज्य सरकार यह समझती है �क वह ऐसे प�रसर का स्वामी है प�रद� �कया जाएगा,
और कब्जे का ऐसे प�रदान राज्य सरकार को उन सब दाियत्व� से, जो ऐसे प�रदान के बारे म� ह�, पूणत
र् ः उन्मोिचत कर देगा, �कन्तु उससे
प�रसर क� बाबत ऐसे �कन्ह� अिधकार� पर �ितकू ल �भाव न पड़ेगा िजन्ह� कोई अन्य �िक्त उस �िक्त के िखलाफ, िजसे प�रसर का
कब्जा ऐसे प�रद� �कया गया है, िविध क� सम्यक् ���या �व�तर्त कराने के िलए हकदार हो ।
(2) जहां �क वह �िक्त, िजसे धारा 160 के अधीन अिधगृहीत �कसी प�रसर का कब्जा उपधारा (1) के अधीन �दया जाना है,
पाया नह� जा सकता या िजसका आसानी से अिभिनश्चय नह� हो पाता या उसक� ओर से प�रदान �ितगृहीत करने के िलए सशक्त कोई
अिभकतार् या कोई अन्य �िक्त नह� है वहां राज्य सरकार यह घोषणा करने वाली सूचना �क ऐसे प�रसर अिध�हण से िनमुर्क्त कर �दए
गए ह� ऐसे प�रसर के �कसी सहजदृश्य भाग म� लगवाएगी और सूचना को शासक�य राजप� म� �कािशत करे गी ।
(3) जब �क उपधारा (2) म� िन�दर्ष्ट सूचना शासक�य राजप� म� �कािशत कर दी गई है तब ऐसी सूचना म� िविन�दर्ष्ट प�रसर
ऐसे अिध�हण के अध्यधीन ऐसे �काशन क� तारीख को और से न रह�गे और उनक� बाबत यह समझा जाएगा �क वे उस �िक्त को
प�रद� कर �दए गए ह�, जो उन पर कब्जा रखने का हकदार है, और राज्य सरकार उक्त तारीख के पश्चात् �कसी कालाविध के िलए ऐसे
प�रसर के संबंध म� �कसी �ितकर या अन्य दावे के िलए दाियत्वाधीन न होगी ।
166. अिध�हण क� बाबत राज्य सरकार के कृ त्य� का �त्यायोजन—राज्य सरकार शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा
िनदेश दे सके गी �क उस सरकार पर धारा 160 से लेकर धारा 165 तक के उपबन्ध� म� से �कसी �ारा �द� कोई शिक्तयां या अिधरोिपत
कोई कतर्� ऐसी शत� के अधीन, य�द कोई ह�, जैसी उस िनदेश म� िविन�दर्ष्ट क� जाएं ऐसे आ�फसर या ऐसे वगर् के आ�फसर� �ारा
�युक्त या िनवार्िहत �कए जाएंगे जैसे िविन�दर्ष्ट �कए जाएं ।
167. अिध�हण संबध ं ी �कसी आदेश के उल्लंघन के िलए शािस्त—य�द कोई �िक्त धारा 160 या धारा 162 के अधीन �कए
गए आदेश का उल्लंघन करे गा, तो वह कारावास से, िजसक� अविध एक वषर् तक क� हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन� से, दंडनीय होगा ।
168. [भूतपूवर् देशी राज्य� के शासक� क� बाबत िवशेष उपबंध ।]—देशी राज्य शासक (िवशेषािधकार समािप्त) अिधिनयम,
1972 (1972 का 54) क� धारा 4 �ारा (9-9-1972) से िनरिसत ।
भाग 11

साधारण
169. िनयम बनाने क� शिक्त—(1) के न्�ीय सरकार इस अिधिनयम के �योजन� को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम 1, 322

िनवार्चन आयोग से परामशर् करने के पश्चात् शासक�य राजप� म� अिधसूचना �ारा बना सके गी ।
(2) िविशष्टतः और पूवर्गामी शिक्त क� �ापकता पर �ितकू ल �भाव डाले िबना, ऐसे िनयम सब िनम्निलिखत बात� का, या
उनम� से �कसी के िलए, उपबंध कर सक� गे, अथार्त् :—
2
[(क) धारा 33क क� उपधारा (2) के अधीन शपथप� का ��प ;]
3
[(कक) मतदान के न्�� म� पीठासीन आ�फसर� और मतदान आ�फसर� के कतर्� ; ]
4
[(ककक) अिभदाय �रपोटर् का ��प ;]
(ख) िनवार्चक नामाविलय� के �ित िनद�श से मतदाता� क� जांच-पड़ताल करना ;

1
िनवार्चन� का संचालन िनयम, 1961, िजल्द 2 म� देिखए ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 72 क� धारा 6 �ारा (24-8-2002 से) अंतःस्थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 72 क� धारा 6 �ारा (24-8-2002 से) पुनःसंख्यां�कत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 46 क� धारा 6 �ारा अंतःस्थािपत ।
56

[(खख) के बल टेलीिवजन नेटवकर् और अन्य इलैक्�ािनक मीिडया पर समय क� साम्यापूणर् भागीदारी के आबंटन क�
1

रीित ;]
(ग) वह रीित िजसम� मत इन दोन� दशा� म�, अथार्त् साधारणतः और िनरक्षर मतदाता� या शारी�रक या अन्य
िनय�ग्यता से �स्त मतदाता� क� दशा� म�, �दए जाने ह� ;
(घ) वह रीित िजसम� पीठासीन आ�फसर, मतदान आ�फसर, मतदान अिभकतार् या �कसी अन्य �िक्त �ारा, जो एक
िनवार्चन-क्षे� के िलए िनवार्चक होते �ए ऐसे मतदान के न्� म� कतर्� के िलए अ�ािधकृ त या िनयुक्त �कया गया है, िजसम� वह
मत देने का हकदार नह� है, मत �दए जाने ह� ;
(ङ) उस �िक्त �ारा मत के िनिवदान क� बाबत, अनुसरण क� जाने वाली ���या, जो यह �पदेश �क म� िनवार्चक
�ं, �कसी दूसरे �िक्त �ारा ऐसे िनवार्चक के �प म� मत �दए जाने के पश्चात् करता है ;
[(ङङ) मतदान मशीन� के �ारा मत देने और अिभिलिखत करने क� रीित और ऐसे मतदान के न्�� पर, जहां ऐसी
1

मशीन� का �योग �कया जाता है, अनुसरण क� जाने वाली मतदान ���या ;]
(च) वह ���या िजसका अनुसरण आनुपाितक �ितिनिधत्व प�ित के अनुसार एकल सं�मणीय मत �ारा होने वाले
िनवार्चन� म� मत देने के िलए �कया जाना है ;
(छ) मत� क� संवीक्षा और गणना, िजसके अन्तगर्त वे मामले आते ह�, िजनम� िनवार्चन प�रणाम क� घोषणा के पूवर्
मत� क� पुनगर्णना क� जानी है ;
[(छछ) मतदान मशीन� �ारा अिभिलिखत मत� क� गणना क� ���या ;]
2

(ज) 2[मत पे�टय�, मतदान मशीन�,] मतप�� क� और िनवार्चन के अन्य कागजप�� क� सुरिक्षत अिभरक्षा, वह
कालाविध िजस तक ऐसे कागजप� प�ररिक्षत �कए जाएंगे और ऐसे कागजप�� का िनरीक्षण और पेश �कया जाना ;
[(जज) सरकार �ारा, लोक सभा या �कसी राज्य क� िवधान सभा का गठन करने के �योजन� के िलए होने वाले
1

�कसी िनवार्चन म� मान्यता�ाप्त राजनैितक दल� के अभ्य�थर्य� को �दाय क� जाने वाली साम�ी ;]
(झ) ऐसी कोई अन्य बात जो इस अिधिनयम �ारा िविहत �कए जाने के िलए अपेिक्षत है ।
3
[(3) इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया �त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशी�, संसद् के �त्येक सदन के समक्ष,
जब वह स� म� हो, कु ल तीस �दन क� अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक स� म� अथवा दो या अिधक आनु�िमक स�� म� पूरी
हो सके गी । य�द उस स� के या पूव�क्त आनु�िमक स�� के ठीक बाद के स� के अवसान के पूवर् दोन� सदन उस िनयम म� कोई प�रवतर्न
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे प�रव�तर्त �प म� ही �भावी होगा । य�द उक्त अवसान के पूवर् दोन� सदन सहमत
हो जाएं �क वह िनयम नह� बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िन�भाव हो जाएगा । �कन्तु िनयम के ऐसे प�रव�तर्त या िन�भाव
होने से उसके अधीन पहले क� गई �कसी बात क� िविधमान्यता पर �ितकू ल �भाव नह� पड़ेगा ।]
170. िसिवल न्यायालय� क� अिधका�रता व�जर्त—�कसी भी िसिवल न्यायालय को यह अिधका�रता न होगी �क वह �रट�न�ग
आ�फसर या �कसी ऐसे अन्य �िक्त �ारा, जो इस अिधिनयम के अधीन िनयुक्त है, िनवार्चन के संबंध म� क� गई �कसी कायर्वाही या
�कसी िविनश्चय क� वैधता को �श्नगत करे ।
171. [1920 के अिधिनयम 39 का िनरसन ।]—िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1957 (1957 का 36) क� धारा 2 और
अनुसूची 1 �ारा िनरिसत ।

______

1
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 16 �ारा (15-3-1989 से) अंतःस्थािपत ।
2
1989 के अिधिनयम सं० 1 क� धारा 16 �ारा (15-3-1989 से) “मतपे�टय� को” के स्थान पर �ितस्थािपत ।
3
1986 के अिधिनयम सं० 4 क� धारा 2 और अनुसूची �ारा (15-5-1986 से) उपधारा (3) से स्थान पर �ितस्थािपत जो 1956 के अिधिनयम सं० 27 क� धारा 82 �ारा
अंतःस्थािपत और 1961 के अिधिनयम सं 40 क� धारा 29 �ारा �ितस्थािपत क� गई थी ।
57

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