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दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973

(1974 का अिधिनयम संख्यांक 2)


[25 जनवरी, 1974]
दण्ड पर्िकर्या संबध
ं ी िविध का
समेकन और संशोधन
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के चौबीसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :—
अध्याय 1

पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 है ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय संपूणर् भारत पर है :
परं तु इस संिहता के अध्याय 8, 10 और 11 से संबंिधत उपबंध से िभन्न, उपबंध,—
(क) नागालड राज्य को ;
(ख) जनजाित क्षेतर् को,
लागू नह ह गे, िकतु संब राज्य सरकार अिधसूचना ारा, ऐसे उपबंध या उनम से िकसी को, यथािस्थित, संपूणर् नागालड राज्य या ऐसे
जनजाित क्षेतर् अथवा उनके िकसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक या पािरणािमक उपान्तर सिहत लागू कर सकती है जो अिधसूचना
म िविनिदष्ट िकए जाएं ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म, “जनजाित क्षेतर्” से वे राज्य क्षेतर् अिभपर्ेत ह जो 1972 की जनवरी के 21व िदन के ठीक पहले, संिवधान
की षष्ठ अनुसूची के पैरा 20 म यथािनिदष्ट असम के जनजाित क्षेतर् म सिम्मिलत थे और जो िशलांग नगरपािलका की स्थानीय सीमा
के भीतर के क्षेतर् से िभन्न ह ।
(3) यह 1974 के अपर्ैल के पर्थम िदन पर्वृ होगा ।
2. पिरभाषाएं—इस संिहता म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “जमानतीय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपर्ेत है जो पर्थम अनुसच
ू ी म जमानतीय के रूप म िदखाया गया है या
तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा जमानतीय बनाया गया है और “अजमानतीय अपराध” से कोई अन्य अपराध अिभपर्ेत है ;
(ख) “आरोप” के अंतगर्त, जब आरोप म एक से अिधक शीषर् ह , आरोप का कोई भी शीषर् है ;
(ग) “संज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपर्ेत है िजसके िलए और “संज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अिभपर्ेत है िजसम,
पुिलस अिधकारी पर्थम अनुसूची के या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अनुसार वारण्ट के िबना िगरफ्तार कर सकता है ;
(घ) “पिरवाद” से इस संिहता के अधीन मिजस्टर्ेट ारा कारर् वाई िकए जाने की दृिष्ट से मौिखक या िलिखत रूप म उससे
िकया गया यह अिभकथन अिभपर्ेत है िक िकसी िक्त ने, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध िकया है, िकतु इसके अंतगर्त
पुिलस िरपोटर् नह है ;
स्पष्टीकरण—ऐसे िकसी मामले म, जो अन्वेषण के पश्चात् िकसी असंज्ञेय अपराध का िकया जाना पर्कट करता है, पुिलस
अिधकारी ारा की गई िरपोटर् पिरवाद समझी जाएगी और वह पुिलस अिधकारी िजसके ारा ऐसी िरपोटर् की गई है, पिरवादी
समझा जाएगा ;
(ङ) “उच्च न्यायालय” से अिभपर्ेत है,—
(i) िकसी राज्य के संबंध म, उस राज्य का उच्च न्यायालय ;
(ii) िकसी ऐसे संघ राज्यक्षेतर् के संबंध म िजस पर िकसी राज्य के उच्च न्यायालय की अिधकािरता का िवस्तार िविध
ारा िकया गया है, वह उच्च न्यायालय ;
(iii) िकसी अन्य संघ राज्यक्षेतर् के संबंध म, भारत के उच्चतम न्यायालय से िभन्न, उस संघ राज्यक्षेतर् के िलए
दािण्डक अपील का सव च्च न्यायालय ;
2

(च) “भारत” से वे राज्यक्षेतर् अिभपर्ेत ह िजन पर इस संिहता का िवस्तार है ;


(छ) “जांच” से, अिभपर्ेत है िवचारण से िभन्न, ऐसी पर्त्येक जांच जो इस संिहता के अधीन मिजस्टर्ेट या न्यायालय ारा
की जाए ;
(ज) “अन्वेषण” के अंतगर्त वे सब कायर्वािहयां ह जो इस संिहता के अधीन पुिलस अिधकारी ारा या (मिजस्टर्ेट से िभन्न)
िकसी भी ऐसे िक्त ारा जो मिजस्टर्ेट ारा इस िनिम पर्ािधकृ त िकया गया है, सा य एकतर् करने के िलए की जाएं ;
(झ) “न्याियक कायर्वाही” के अंतगर्त कोई ऐसी कायर्वाही है िजसके अनुकर्म म सा य वैध रूप से शपथ पर िलया जाता है
या िलया जा सकता है ;
(ञ) िकसी न्यायालय या मिजस्टर्ेट के संबंध म “स्थानीय अिधकािरता” से वह स्थानीय क्षेतर् अिभपर्ेत है िजसके भीतर ऐसा
न्यायालय या मिजस्टर्ेट इस संिहता के अधीन अपनी सभी या िकन्ह शिक्तय का पर्योग कर सकता है 1 [और ऐसे स्थानीय क्षेतर् म
संपूणर् राज्य या राज्य का कोई भाग समािवष्ट हो सकता है जो राज्य सरकार, अिधसूचना ारा िविनिदष्ट करे ] ;
(ट) “महानगर क्षेतर्” से वह क्षेतर् अिभपर्ेत है जो धारा 8 के अधीन महानगर क्षेतर् घोिषत िकया गया है या घोिषत समझा
गया है ;
(ठ) “असंज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपर्ेत है िजसके िलए और “असंज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अिभपर्ेत है िजसम
पुिलस अिधकारी को वारण्ट के िबना िगरफ्तारी करने का पर्ािधकार नह होता है ;
(ड) “अिधसूचना” से राजपतर् म पर्कािशत अिधसूचना अिभपर्ेत है ;
(ढ) “अपराध” से कोई ऐसा कायर् या लोप अिभपर्ेत है जो तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा दण्डनीय बना िदया गया है और
इसके अंतगर्त कोई ऐसा कायर् भी है िजसके बारे म पशु अितचार अिधिनयम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन पिरवाद
िकया जा सकता है ;
(ण) “पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी” के अंतगर्त, जब पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी थाने से अनुपिस्थत हो
या बीमारी या अन्य कारण से अपने कतर् का पालन करने म असमथर् हो, तब थाने म उपिस्थत ऐसा पुिलस अिधकारी है, जो
ऐसी अिधकारी से पंिक्त म ठीक नीचे है और कान्स्टेबल की पंिक्त से ऊपर है, या जब राज्य सरकार ऐसा िनदेश दे तब, इस पर्कार
उपिस्थत कोई अन्य पुिलस अिधकारी भी है ;
(त) “स्थान” के अंतगर्त गृह, भवन, तम्बू, यान और जलयान भी ह ;
(थ) िकसी न्यायालय म िकसी कायर्वाही के बारे म पर्योग िकए जाने पर “प्लीडर” से, ऐसे न्यायालय म तत्समय पर्वृ
िकसी िविध ारा या उसके अधीन िविध- वसाय करने के िलए पर्ािधकृ त िक्त अिभपर्ेत है, और इसके अंतगर्त कोई भी अन्य
िक्त है, जो ऐसी कायर्वाही म कायर् करने के िलए न्यायालय की अनुज्ञा से िनयुक्त िकया गया है ;
(द) “पुिलस िरपोटर्” से पुिलस अिधकारी ारा धारा 173 की उपधारा (2) के अधीन मिजस्टर्ेट को भेजी गई िरपोटर्
अिभपर्ेत है ;
(ध) “पुिलस थाना” से कोई भी चौकी या स्थान अिभपर्ेत है िजसे राज्य सरकार ारा साधारणतया या िवशेषतया पुिलस
थाना घोिषत िकया गया है और इसके अंतगर्त राज्य सरकार ारा इस िनिम िविनिदष्ट कोई स्थानीय क्षेतर् भी ह ;
(न) “िविहत” से इस संिहता के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है ;
(प) “लोक अिभयोजक” से धारा 24 के अधीन िनयुक्त िक्त अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त लोक अिभयोजक के िनदेश के
अधीन कायर् करने वाला िक्त भी है ;
(फ) “उपखण्ड” से िजले का उपखण्ड अिभपर्ेत है ;
(ब) “समन-मामला” से ऐसा मामला अिभपर्ेत है जो िकसी अपराध से संबंिधत है और जो वारण्ट-मामला नह है ;
[(बक) “पीिड़त” से ऐसा िक्त अिभपर्ेत है िजसे उस कायर् या लोप के कारण कोई हािन या क्षित कािरत हुई है िजसके
2

िलए अिभयुक्त िक्त पर आरोप लगाया गया है और “पीिड़त” पद के अंतगर्त उसका संरक्षक या िविधक वािरस भी है ;]
(भ) “वारण्ट-मामला” से ऐसा मामला अिभपर्ेत है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वषर् से अिधक की अविध के
कारावास से दण्डनीय िकसी अपराध से संबंिधत है ;
(म) उन शब्द और पद के , जो इसम पर्युक्त ह और पिरभािषत नह ह िकतु भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) म
पिरभािषत ह, वही अथर् ह गे जो उनके उस संिहता म ह ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
3

3. िनदश का अथर् लगाना—(1) इस संिहता म—


(क) िवशेषक शब्द के िबना मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का अथर्, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(i) महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी क्षेतर् के संबंध म न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा ;
(ii) महानगर क्षेतर् के संबंध म महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा ;
(ख) ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह
ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित और महानगर क्षेतर् के संबंध म महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(ग) पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का,—
(i) िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करने वाले
महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(ii) िकसी अन्य क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करने वाले पर्थम
वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(घ) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म
अिधकािरता का पर्योग करने वाले मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ।
(2) इस संिहता म जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय के पर्ित िनदश का महानगर क्षेतर् के
संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् के महानगर मिजस्टर्ेट के न्यायालय के पर्ित िनदश है ।
(3) जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो इस संिहता के पर्ारं भ के पूवर् पािरत िकसी अिधिनयिमित म, —
(क) पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(ख) ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट या तृतीय वगर् मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ि तीय वगर् न्याियक
मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(ग) पर्ेिसडसी मिजस्टर्ेट या मुख्य पर्ेिसडसी मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह कर्मशः महानगर
मिजस्टर्ेट या मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ;
(घ) महानगर क्षेतर् म सिम्मिलत िकसी क्षेतर् के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसे महानगर क्षेतर् के पर्ित
िनदश है, और पर्थम वगर् या ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का ऐसे क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर्
म अिधकािरता का पर्योग करने वाले महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ।
(4) जहां इस संिहता से िभन्न िकसी िविध के अधीन, िकसी मिजस्टर्ेट ारा िकए जा सकने वाले कृ त्य ऐसे मामल से संबंिधत ह, —
(क) िजनम सा य का अिधमूल्यन अथवा सू म परीक्षण या कोई ऐसा िविनश्चय करना अंतवर्िलत है िजससे िकसी िक्त
को िकसी दंड या शािस्त की अथवा अन्वेषण, जांच या िवचारण होने तक अिभरक्षा म िनरोध की संभावना हो सकती है या
िजसका पर्भाव उसे िकसी न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए भेजना होगा, वहां वे कृ त्य इस संिहता के उपबंध के अधीन रहते
हुए न्याियक मिजस्टर्ेट ारा िकए जा सकते ह ; या
(ख) जो पर्शासिनक या कायर्पालक पर्कार के ह जैसे अनुज्ञिप्त का अनुदान, अनुज्ञिप्त का िनलंबन या र िकया जाना,
अिभयोजन की मंजूरी या अिभयोजन वापस लेना, वहां वे यथापूव क्त के अधीन रहते हुए, कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा िकए जा
सकते ह ।
4. भारतीय दंड संिहता और अन्य िविधय के अधीन अपराध का िवचार—(1) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अधीन सब
अपराध का अन्वेषण, जांच, िवचारण और उनके संबंध म अन्य कायर्वाही इसम इसके पश्चात् अन्तिवष्ट उपबंध के अनुसार
की जाएगी ।
(2) िकसी अन्य िविध के अधीन सब अपराध का अन्वेषण, जांच, िवचारण और उनके संबंध म अन्य कायर्वाही इन्ह उपबंध के
अनुसार िकतु ऐसे अपराध के अन्वेषण, जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही की रीित या स्थान का िविनयमन करने वाली तत्समय पर्वृ
िकसी अिधिनयिमित के अधीन रहते हुए, की जाएगी ।
5. ावृि —इससे पर्ितकू ल िकसी िविनिदष्ट उपबंध के अभाव म इस संिहता की कोई बात तत्समय पर्वृ िकसी िवशेष या
स्थानीय िविध पर, या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा पर्द िकसी िवशेष अिधकािरता या शिक्त या उस िविध ारा िविहत िकसी
िवशेष पर्िकर्या पर पर्भाव नह डालेगी ।
4

अध्याय 2

दंड न्यायालय और कायार्लय का गठन


6. दंड न्यायालय के वगर्—उच्च न्यायालय और इस संिहता से िभन्न िकसी िविध के अधीन गिठत न्यायालय के अितिरक्त,
पर्त्येक राज्य म िनम्निलिखत वग के दंड न्यायालय ह गे, अथार्त् :—
(i) सेशन न्यायालय ;
(ii) पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट और िकसी महानगर क्षेतर् म महानगर मिजस्टर्ेट ;
(iii) ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट ; और
(iv) कायर्पालक मिजस्टर्ेट ।
7. पर्ादेिशक खंड—(1) पर्त्येक राज्य एक सेशन खंड होगा या उसम सेशन खंड ह गे और इस संिहता के पर्योजन के िलए पर्त्येक
सेशन खंड एक िजला होगा या उसम िजले ह गे :
परं तु पर्त्येक महानगर क्षेतर्, उक्त पर्योजन के िलए, एक पृथक् सेशन खंड और िजला होगा ।
(2) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामशर् के पश्चात्, ऐसे खंड और िजल की सीमा या संख्या म पिरवतर्न कर सकती है ।
(3) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामशर् के पश्चात्, िकसी िजले को उपखंड म िवभािजत कर सकती है और ऐसे उपखंड की
सीमा या संख्या म पिरवतर्न कर सकती है ।
(4) िकसी राज्य म इस संिहता के पर्ारं भ के समय िव मान सेशन खंड, िजले और उपखंड इस धारा के अधीन बनाए गए
समझे जाएंगे ।
8. महानगर क्षेतर्—(1) राज्य सरकार, अिधसूचना ारा, घोिषत कर सकती है िक उस तारीख से ; जो अिधसूचना म िविनिदष्ट की
जाए, राज्य का कोई क्षेतर् िजसम ऐसा नगर या नगरी समािवष्ट है िजसकी जनसंख्या दस लाख से अिधक है, इस संिहता के पर्योजन के
िलए महानगर क्षेतर् होगा ।
(2) इस संिहता के पर्ारं भ से, मुंबई, कलक ा और मदर्ास पर्ेिसडेन्सी नगर म से पर्त्येक और अहमदाबाद नगर, उपधारा (1) के
अधीन महानगर क्षेतर् घोिषत िकए गए समझे जाएंगे ।
(3) राज्य सरकार, अिधसूचना ारा, महानगर क्षेतर् की सीमा को बढ़ा सकती है, कम कर सकती है या पिरवितत कर सकती है,
िकतु ऐसी कमी या पिरवतर्न इस पर्कार नह िकया जाएगा िक उस क्षेतर् की जनसंख्या दस लाख से कम रह जाए ।
(4) जहां िकसी क्षेतर् के महानगर क्षेतर् घोिषत िकए जाने या घोिषत समझे जाने के पश्चात् ऐसे क्षेतर् की जनसंख्या दस लाख से कम हो
जाती है वहां ऐसा क्षेतर्, ऐसी तारीख को और उससे, जो राज्य सरकार, अिधसूचना ारा इस िनिम िविनिदष्ट करे , महानगर क्षेतर् नह
रहेगा ; िकतु महानगर क्षेतर् न रहने पर भी ऐसी जांच, िवचारण या अपील जो ऐसे न रहने के ठीक पहले ऐसे क्षेतर् म िकसी न्यायालय या
मिजस्टर्ेट के समक्ष लंिबत थी इस संिहता के अधीन इस पर्कार िनपटाई जाएगी मानो वह महानगर क्षेतर् हो ।
(5) जहां राज्य सरकार उपधारा (3) के अधीन, िकसी महानगर क्षेतर् की सीमा को कम करती है या पिरवितत करती है वहां ऐसी
जांच, िवचारण या अपील पर जो ऐसे कम करने या पिरवतर्न के ठीक पहले िकसी न्यायालय या मिजस्टर्ेट के समक्ष लंिबत थी ऐसे कम
करने या पिरवतर्न का कोई पर्भाव नह होगा और ऐसी पर्त्येक जांच, िवचारण या अपील इस संिहता के आधीन उसी पर्कार िनपटाई
जाएगी मानो ऐसी कमी या पिरवतर्न न हुआ हो ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म, “जनसंख्या” पद से नवीनतम पूवर्वत जनगणना म यथा अिभिनिश्चत वह जनसंख्या अिभपर्ेत है िजसके
सुसंगत आंकड़े पर्कािशत हो चुके ह ।
9. सेशन न्यायालय—(1) राज्य सरकार पर्त्येक सेशन खंड के िलए एक सेशन न्यायालय स्थािपत करे गी ।
(2) पर्त्येक सेशन न्यायालय म एक न्यायाधीश पीठासीन होगा, जो उच्च न्यायालय ारा िनयुक्त िकया जाएगा ।
(3) उच्च न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश को भी सेशन न्यायालय म अिधकािरता का पर्योग
करने के िलए िनयुक्त कर सकता है ।
(4) उच्च न्यायालय ारा एक सेशन खंड के सेशन न्यायाधीश को दूसरे खंड का अपर सेशन न्यायाधीश भी िनयुक्त िकया जा
सकता है और ऐसी अवस्था म वह मामल को िनपटाने के िलए दूसरे खंड के ऐसे स्थान या स्थान म बैठ सकता है िजनका उच्च न्यायालय
िनदेश दे ।
(5) जहां िकसी सेशन न्यायाधीश का पद िरक्त होता है वहां उच्च न्यायालय िकसी ऐसे अजन्ट आवेदन के , जो उस सेशन
न्यायालय के समक्ष िकया जाता है या लंिबत है, अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश ारा, अथवा यिद अपर या सहायक सेशन
न्यायाधीश नह है तो सेशन खंड के मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा िनपटाए जाने के िलए वस्था कर सकता है और ऐसे पर्त्येक
5

न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट को ऐसे आवेदन पर कायर्वाही करने की अिधकािरता होगी ।


(6) सेशन न्यायालय सामान्यत: अपनी बैठक ऐसे स्थान या स्थान पर करे गा जो उच्च न्यायालय अिधसूचना ारा िविनिदष्ट
करे ; िकतु यिद िकसी िवशेष मामले म, सेशन न्यायालय की यह राय है िक सेशन खंड म िकसी अन्य स्थान म बैठक करने से पक्षकार और
सािक्षय को सुिवधा होगी तो वह, अिभयोजन और अिभयुक्त की सहमित से उस मामले को िनपटाने के िलए या उसम साक्षी या सािक्षय
की परीक्षा करने के िलए उस स्थान पर बैठक कर सकता है ।
स्पष्टीकरण—इस संिहता के पर्योजन के िलए “िनयुिक्त” के अंतगर्त सरकार ारा संघ या राज्य के कायर्कलाप के संबंध म िकसी
सेवा या पद पर िकसी िक्त की पर्थम िनयुिक्त, पद-स्थापना या पदोन्नित नह है जहां िकसी िविध के अधीन ऐसी िनयुिक्त, पद-
स्थापना या पदोन्नित सरकार ारा िकए जाने के िलए अपेिक्षत है ।
10. सहायक सेशन न्यायाधीश का अधीनस्थ होना—(1) सब सहायक सेशन न्यायाधीश उस सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ ह गे
िजसके न्यायालय म वे अिधकािरता का पर्योग करते ह ।
(2) सेशन न्यायाधीश ऐसे सहायक सेशन न्यायाधीश म कायर् के िवतरण के बारे म इस संिहता से संगत िनयम, समय-समय पर
बना सकता है ।
(3) सेशन न्यायाधीश, अपनी अनुपिस्थित म या कायर् करने म असमथर्ता की िस्थित म, िकसी अजण्ट आवेदन के अपर या सहायक
सेशन न्यायाधीश ारा, या यिद कोई अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश न हो तो, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा िनपटाए जाने के िलए
भी वस्था कर सकता है ; और यह समझा जाएगा िक ऐसे पर्त्येक न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट को ऐसे आवेदन पर कायर्वाही करने की
अिधकािरता है ।
11. न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय—(1) पर्त्येक िजले म (जो महानगर क्षेतर् नह है) पर्थम वगर् और ि तीय वगर् न्याियक
मिजस्टर्ेट के इतने न्यायालय, ऐसे स्थान म स्थािपत िकए जाएंगे िजतने और जो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामशर् के पश्चात्
अिधसूचना ारा िविनिदष्ट कर :
[परं तु राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामशर् के पश्चात् िकसी स्थानीय क्षेतर् के िलए, पर्थम वगर् या ि तीय वगर् के न्याियक
1

मिजस्टर्ेट के एक या अिधक िवशेष न्यायालय, िकसी िवशेष मामले या िवशेष वगर् के मामल का िवचारण करने के िलए स्थािपत कर
सकती है और जहां कोई ऐसा िवशेष न्यायालय स्थािपत िकया जाता है उस स्थानीय क्षेतर् म मिजस्टर्ेट के िकसी अन्य न्यायालय को िकसी
ऐसे मामले या ऐसे वगर् के मामल का िवचारण करने की अिधकािरता नह होगी, िजनके िवचारण के िलए न्याियक मिजस्टर्ेट का ऐसा
िवशेष न्यायालय स्थािपत िकया गया है ।]
(2) ऐसे न्यायालय के पीठासीन अिधकारी उच्च न्यायालय ारा िनयुक्त िकए जाएंगे ।
(3) उच्च न्यायालय, जब कभी उसे यह समीचीन या आवश्यक पर्तीत हो, िकसी िसिवल न्यायालय म न्यायाधीश के रूप म कायर्रत
राज्य की न्याियक सेवा के िकसी सदस्य को पर्थम वगर् या ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट की शिक्तयां पर्दान कर सकता है ।
12. मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट और अपर मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, आिद—(1) उच्च न्यायालय, पर्त्येक िजले म (जो महानगर क्षेतर् नह
है) एक पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट को मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट िनयुक्त करे गा ।
(2) उच्च न्यायालय िकसी पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट को अपर मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट िनयुक्त कर सकता है और ऐसे मिजस्टर्ेट
को इस संिहता के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट की सब या कोई शिक्तयां, िजनका उच्च
न्यायालय िनदेश दे, ह गी ।
(3) (क) उच्च न्यायालय आवश्यकतानुसार िकसी उपखंड म िकसी पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट को उपखंड न्याियक मिजस्टर्ेट के
रूप म पदािभिहत कर सकता है और उसे इस धारा म िविनिदष्ट उ रदाियत्व से मुक्त कर सकता है ।
(ख) पर्त्येक उपखंड न्याियक मिजस्टर्ेट को मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए उपखंड म (अपर मुख्य
न्याियक मिजस्टर्ेट से िभन्न) न्याियक मिजस्टर्ेट के काम पर पयर्वेक्षण और िनयंतर्ण की ऐसी शिक्तयां भी ह गी, जैसी उच्च न्यायालय
साधारण या िवशेष आदेश ारा इस िनिम िविनिदष्ट करे , और वह उनका पर्योग करे गा ।
13. िवशेष न्याियक मिजस्टर्ेट—(1) यिद कदर्ीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के िलए अनुरोध करती है तो उच्च
न्यायालय िकसी िक्त को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या िजसने कोई पद धारण िकया है, 2 [िकसी स्थानीय क्षेतर् म, जो
महानगर क्षेतर् नह है, िवशेष मामल या िवशेष वगर् के मामल के संबंध म] ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट को इस संिहता ारा या उसके
अधीन पर्द या पर्द की जा सकने वाली सभी या कोई शिक्तयां पर्द कर सकता है :
परं तु ऐसी कोई शिक्त िकसी िक्त को पर्दान नह की जाएगी जब तक उसके पास िविधक मामल के संबंध म ऐसी अहर्ता या
अनुभव नह है जो उच्च न्यायालय, िनयम ारा िविनिदष्ट करे ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा जोड़ा गया ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6

(2) ऐसे मिजस्टर्ेट िवशेष न्याियक मिजस्टर्ेट कहलाएंगे और एक समय म एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए िनयुक्त
िकए जाएंगे िजतनी उच्च न्यायालय, साधारण या िवशेष आदेश ारा िनिदष्ट करे ।
[(3) उच्च न्यायालय िकसी िवशेष न्याियक मिजस्टर्ेट को अपनी स्थानीय अिधकािरता के बाहर के िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध
1

म महानगर मिजस्टर्ेट की शिक्तय का पर्योग करने के िलए सशक्त कर सकता है ।]


14. न्याियक मिजस्टर्ेट की स्थानीय अिधकािरता—(1) उच्च न्यायालय के िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट,
समय-समय पर उन क्षेतर् की स्थानीय सीमाएं पिरिनिश्चत कर सकता है िजनके अंदर धारा 11 या धारा 13 के अधीन िनयुक्त मिजस्टर्ेट उन
सब शिक्तय का या उनम से िकन्ह का पर्योग कर सकगे, जो इस संिहता के अधीन उनम िनिहत की जाएं :
[परं तु िवशेष मिजस्टर्ेट का न्यायालय उस स्थानीय क्षेतर् के भीतर, िजसके िलए वह स्थािपत िकया गया है, िकसी स्थान म अपनी
2

बैठक कर सकता है ।]
(2) ऐसे पिरिनश्चय ारा जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय पर्त्येक ऐसे मिजस्टर्ेट की अिधकािरता और शिक्तय का िवस्तार िजले म
सवर्तर् होगा ।
[(3) जहां धारा 11 या धारा 13 या धारा 18 के अधीन िनयुक्त मिजस्टर्ेट की स्थानीय अिधकािरता का िवस्तार, यथािस्थित, उस
3

िजले या महानगर क्षेतर् के , िजसके भीतर वह मामूली तौर पर अपनी बैठके करता है, बाहर िकसी क्षेतर् तक है वहां इस संिहता म सेशन
न्यायालय, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का ऐसे मिजस्टर्ेट के संबंध म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा
अपेिक्षत न हो, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उसकी स्थानीय अिधकािरता के संपूणर् क्षेतर् के भीतर उक्त िजला या महानगर क्षेतर् के
संबंध म अिधकािरता का पर्योग करने वाले, यथािस्थित, सेशन न्यायालय, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के पर्ित
िनदश है ।]
15. न्याियक मिजस्टर्ेट का अधीनस्थ होना—(1) पर्त्येक मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और पर्त्येक
अन्य न्याियक मिजस्टर्ेट, सेशन न्यायाधीश के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के अधीनस्थ होगा ।
(2) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, अपने अधीनस्थ न्याियक मिजस्टर्ेट म कायर् के िवतरण के बारे म, समय-समय पर, इस संिहता से
संगत िनयम बना सकता है या िवशेष आदेश दे सकता है ।
16. महानगर मिजस्टर्ेट के न्यायालय—(1) पर्त्येक महानगर क्षेतर् म महानगर मिजस्टर्ेट के इतने न्यायालय, ऐसे स्थान म
स्थािपत िकए जाएंगे िजतने और जो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामशर् के पश्चात्, अिधसूचना ारा िविनिदष्ट करे ।
(2) ऐसे न्यायालय के पीठासीन अिधकारी उच्च न्यायालय ारा िनयुक्त िकए जाएंगे ।
(3) पर्त्येक महानगर मिजस्टर्ेट की अिधकािरता और शिक्तय का िवस्तार महानगर क्षेतर् म सवर्तर् होगा ।
17. मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट और अपर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट—(1) उच्च न्यायालय अपनी स्थानीय अिधकािरता के भीतर
पर्त्येक महानगर क्षेतर् के संबंध म एक महानगर मिजस्टर्ेट को ऐसे महानगर क्षेतर् का मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट िनयुक्त करे गा ।
(2) उच्च न्यायालय िकसी महानगर मिजस्टर्ेट को अपर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट िनयुक्त कर सकता है, और ऐसे मिजस्टर्ेट को, इस
संिहता के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट की सब या कोई शिक्तयां, िजनका उच्च
न्यायालय िनदेश दे, ह गी ।
18. िवशेष महानगर मिजस्टर्ेट—(1) यिद कदर्ीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के िलए अनुरोध करती है तो उच्च
न्यायालय िकसी िक्त को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या िजसने कोई पद धारण िकया है, अपनी स्थानीय अिधकािरता
के भीतर िकसी महानगर क्षेतर् म िवशेष मामल के या िवशेष वगर् के मामल के 4 *** संबंध म महानगर मिजस्टर्ेट को इस संिहता ारा या
उसके अधीन पर्द या पर्द की जा सकने वाली सभी या कोई शिक्तयां पर्द कर सकता है :
परं तु ऐसी कोई शिक्त िकसी िक्त को पर्दान नह की जाएगी जब तक उसके पास िविधक मामल के संबंध म ऐसी अहर्ता या
अनुभव नह है जो उच्च न्यायालय, िनयम ारा िविनिदष्ट करे ।
(2) ऐसे मिजस्टर्ेट िवशेष महानगर मिजस्टर्ेट कहलाएंगे और एक समय म एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए िनयुक्त िकए
जाएंगे िजतनी उच्च न्यायालय, साधारण या िवशेष आदेश ारा, िनिदष्ट करे ।
[(3) यथािस्थित, उच्च न्यायालय या राज्य सरकार िकसी महानगर मिजस्टर्ेट को, महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी स्थानीय क्षेतर् म
5

पर्थम वगर् के न्याियक मिजस्टर्ेट की शिक्तय का पर्योग करने के िलए सशक्त कर सकती है ।]

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 5 ारा जोड़ा गया ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 5 ारा अन्तःस्थािपत ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा “साधारणतया मामल के ” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7

19. महानगर मिजस्टर्ेट का अधीनस्थ होना—(1) मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट और पर्त्येक अपर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट सेशन
न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और पर्त्येक अन्य महानगर मिजस्टर्ेट सेशन न्यायाधीश के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए मुख्य
महानगर मिजस्टर्ेट के अधीनस्थ होगा ।
(2) उच्च न्यायालय, इस संिहता के पर्योजन के िलए पिरिनिश्चत कर सके गा िक अपर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट िकस िवस्तार
तक, यिद कोई हो, मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के अधीनस्थ होगा ।
(3) मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट महानगर मिजस्टर्ेट म कायर् के िवतरण के बारे म और अपर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट को कायर् के
आबंटन के बारे म, समय-समय पर, इस संिहता से संगत िनयम बना सके गा या िवशेष आदेश दे सके गा ।
20. कायर्पालक मिजस्टर्ेट—(1) राज्य सरकार पर्त्येक िजले और पर्त्येक महानगर क्षेतर् म उतने िक्तय को, िजतने वह उिचत
समझे, कायर्पालक मिजस्टर्ेट िनयुक्त कर सकती है और उनम से एक को िजला मिजस्टर्ेट िनयुक्त करे गी ।
(2) राज्य सरकार िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट को अपर िजला मिजस्टर्ेट िनयुक्त कर सके गी, और ऐसे मिजस्टर्ेट को इस संिहता के
अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन िजला मिजस्टर्ेट की 1 [वे] शिक्तयां ह गी, 2 [जो राज्य सरकार िनिदष्ट करे ] ।
(3) जब कभी िकसी िजला मिजस्टर्ेट के पद की िरिक्त के पिरणामस्वरूप कोई अिधकारी उस िजले के कायर्पालक पर्शासन के िलए
अस्थायी रूप से उ रवत होता है तो ऐसा अिधकारी, राज्य सरकार ारा आदेश िदए जाने तक, कर्मशः उन सभी शिक्तय का पर्योग और
कतर् का पालन करे गा जो उस संिहता ारा िजला मिजस्टर्ेट को पर्द या उस पर अिधरोिपत ह ।
(4) राज्य सरकार आवश्यकतानुसार िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट को उपखंड का भारसाधक बना सकती है और उसको भारसाधन
से मुक्त कर सकती है और इस पर्कार िकसी उपखंड का भारसाधक बनाया गया मिजस्टर्ेट उपखंड मिजस्टर्ेट कहलाएगा ।
[(4क) राज्य सरकार, साधारण या िवशेष आदेश ारा और ऐसे िनयंतर्ण और िनदेश के अधीन रहते हुए, जो वह अिधरोिपत
3

करना ठीक समझे, उपधारा (4) के अधीन अपनी शिक्तयां, िजला मिजस्टर्ेट को पर्त्यायोिजत कर सके गी ।]
(5) इस धारा की कोई बात तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन, महानगर क्षेतर् के संबंध म कायर्पालक मिजस्टर्ेट की सब शिक्तयां
या उनम से कोई शिक्त पुिलस आयुक्त को पर्द करने से राज्य सरकार को पर्वािरत नह करे गी ।
21. िवशेष कायर्पालक मिजस्टर्ेट—(1) राज्य सरकार िविशष्ट क्षेतर् के िलए या िविशष्ट कृ त्य का पालन करने के िलए कायर्पालक
मिजस्टर्ेट को, जो िवशेष कायर्पालक मिजस्टर्ेट के रूप म ज्ञात ह गे, इतनी अविध के िलए िजतनी वह उिचत समझे, िनयुक्त कर सकती है
और इस संिहता के अधीन कायर्पालक मिजस्टर्ेट को पर्द की जा सकने वाली शिक्तय म से ऐसी शिक्तयां, िजन्ह वह उिचत समझे, इन
िवशेष कायर्पालक मिजस्टर्ेट को पर्द कर सकती है ।
22. कायर्पालक मिजस्टर्ेट की स्थानीय अिधकािरता—(1) राज्य सरकार के िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए िजला मिजस्टर्ेट, समय-
समय पर, उन क्षेतर् की स्थानीय सीमाएं पिरिनिश्चत कर सकता है िजनके अंदर कायर्पालक मिजस्टर्ेट उन सब शिक्तय का या उनम से
िकन्ह का पर्योग कर सकगे, जो इस संिहता के अधीन उनम िनिहत की जाएं ।
(2) ऐसे पिरिनश्चय ारा जैसा उपबंिधत है उनके िसवाय, पर्त्येक ऐसे मिजस्टर्ेट की अिधकािरता और शिक्तय का िवस्तार िजले
म सवर्तर् होगा ।
23. कायर्पालक मिजस्टर्ेट का अधीनस्थ होना—(1) अपर िजला मिजस्टर्ेट से िभन्न सब कायर्पालक मिजस्टर्ेट, िजला मिजस्टर्ेट के
अधीनस्थ ह गे और (उपखंड मिजस्टर्ेट से िभन्न) पर्त्येक कायर्पालक मिजस्टर्ेट, जो उपखंड म शिक्त का पर्योग कर रहा है, िजला मिजस्टर्ेट
के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, उपखंड मिजस्टर्ेट के भी अधीनस्थ होगा ।
(2) िजला मिजस्टर्ेट अपने अधीनस्थ कायर्पालक मिजस्टर्ेट म कायर् के िवतरण के बारे म और अपर िजला मिजस्टर्ेट को कायर् के
आबंटन के बारे म समय-समय पर इस संिहता से संगत िनयम बना सकता है या िवशेष आदेश दे सकता है ।
[24. लोक अिभयोजक—(1) पर्त्येक उच्च न्यायालय के िलए, कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार उस उच्च न्यायालय से परामशर् के
4

पश्चात्, यथािस्थित, कदर्ीय या राज्य सरकार की ओर से उस उच्च न्यायालय म िकसी अिभयोजन, अपील या अन्य कायर्वाही के संचालन
के िलए एक लोक अिभयोजक िनयुक्त करे गी और एक या अिधक अपर लोक अिभयोजक िनयुक्त कर सकती है ।
(2) कदर्ीय सरकार िकसी िजले या स्थानीय क्षेतर् म िकसी मामले या िकसी वगर् के मामल के संचालन के पर्योजन के िलए एक या
अिधक लोक अिभयोजक िनयुक्त कर सकती है ।
(3) पर्त्येक िजले के िलए, राज्य सरकार एक लोक अिभयोजक िनयुक्त करे गी और िजले के िलए एक या अिधक अपर लोक
अिभयोजक भी िनयुक्त कर सकती है :

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा “सब या कोई” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 8 ारा धारा 24 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8

परं तु एक िजले के िलए िनयुक्त लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िकसी अन्य िजले के िलए भी, यथािस्थित, लोक
अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक्त िकया जा सकता है ।
(4) िजला मिजस्टर्ेट, सेशन न्यायाधीश के परामशर् से, ऐसे िक्तय के नाम का एक पैनल तैयार करे गा जो, उसकी राय म, उस
िजले के िलए लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक्त िकए जाने के योग्य है ।
(5) कोई िक्त राज्य सरकार ारा उस िजले के िलए लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक्त नह िकया जाएगा जब
तक िक उसका नाम उपधारा (4) के अधीन िजला मिजस्टर्ेट ारा तैयार िकए गए नाम के पैनल म न हो ।
(6) उपधारा (5) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकसी राज्य म अिभयोजन अिधकािरय का िनयिमत काडर है वहां राज्य
सरकार ऐसा काडर, गिठत करने वाले िक्तय म से ही लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक्त करे गी :
परं तु जहां राज्य सरकार की राय म ऐसे काडर म से कोई उपयुक्त िक्त िनयुिक्त के िलए उपलब्ध नह है वहां राज्य सरकार
उपधारा (4) के अधीन िजला मिजस्टर्ेट ारा तैयार िकए गए नाम के पैनल म से, यथािस्थित, लोक अिभयोजक या अपर लोक
अिभयोजक के रूप म िकसी िक्त को िनयुक्त कर सकती है ।
1
[स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए,—
(क) “अिभयोजन अिधकािरय का िनयिमत काडर” से अिभयोजन अिधकािरय का वह काडर अिभपर्ेत है, िजसम लोक
अिभयोजक का, चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो, पद सिम्मिलत है और िजसम उस पद पर सहायक लोक अिभयोजक की, चाहे वह
िकसी भी नाम से ज्ञात हो, पदोन्नित के िलए उपबंध िकया गया है ;
(ख) “अिभयोजन अिधकारी” से लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक के कृ त्य का पालन करने
के िलए इस संिहता के अधीन िनयुक्त िकया गया िक्त अिभपर्ेत है, चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो ।]
(7) कोई िक्त उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) या उपधारा (6) के अधीन लोक अिभयोजक या अपर लोक
अिभयोजक िनयुक्त िकए जाने का पातर् तभी होगा जब वह कम से कम सात वषर् तक अिधववक्ता के रूप म िविध वसाय करता
रहा हो ।
(8) कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार िकसी मामले या िकसी वगर् के मामल के पर्योजन के िलए िकसी अिधववक्ता को, जो कम से
कम दस वषर् तक िविध वसाय करता रहा हो, िवशेष लोक अिभयोजक िनयुक्त कर सकती है :
[परं तु न्यायालय इस उपधारा के अधीन पीिड़त को, अिभयोजन की सहायता करने के िलए अपनी पसंद का अिधववक्ता रखने के
2

िलए अनुज्ञात कर सके गा ।]


(9) उपधारा (7) और उपधारा (8) के पर्योजन के िलए उस अविध के बारे म, िजसके दौरान िकसी िक्त ने प्लीडर के रूप म िविध
वसाय िकया है या लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक या अन्य अिभयोजन अिधकारी के रूप म,
चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो, सेवाएं की ह (चाहे इस संिहता के पर्ारं भ के पहले की गई ह या पश्चात्) यह समझा जाएगा िक वह
ऐसी अविध है िजसके दौरान ऐसे िक्त ने अिधवक्ता के रूप म िविध वसाय िकया है ।
25. सहायक लोक अिभयोजक—(1) राज्य सरकार पर्त्येक िजले म मिजस्टर्ेट के न्यायालय म अिभयोजन का संचालन करने के
िलए एक या अिधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक्त करे गी ।
[(1क) कदर्ीय सरकार मिजस्टर्ेट के न्यायालय म िकसी मामले या िकसी वगर् के मामल के संचालन के पर्योजन के िलए एक या
3

अिधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक्त कर सकती है ।]


(2) जैसा उपधारा (3) म उपबंिधत है उसके िसवाय, कोई पुिलस अिधकारी सहायक लोक अिभयोजक िनयुक्त होने का
पातर् होगा ।
(3) जहां कोई सहायक लोक अिभयोजक िकसी िविशष्ट मामले के पर्योजन के िलए उपलभ्य नह है वहां िजला मिजस्टर्ेट िकसी
अन्य िक्त को उस मामले का भारसाधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक्त कर सकता है :
परं तु कोई पुिलस अिधकारी इस पर्कार िनयुक्त नह िकया जाएगा—
(क) यिद उसने उस अपराध के अन्वेषण म कोई भाग िलया है, िजसके बारे म आयुक्त अिभयोिजत िकया जा रहा है, या
(ख) यिद वह िनरीक्षक की पंिक्त से नीचे का है ।
4
[25क. अिभयोजन िनदेशालय—(1) राज्य सरकार एक अिभयोजन िनदेशालय स्थािपत कर सके गी, िजसम एक अिभयोजन

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 9 ारा अंत:स्थािपत ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
9

िनदेशक और उतने अिभयोजन उप-िनदेशक ह गे, िजतने वह ठीक समझे ।


(2) कोई िक्त अिभयोजन िनदेशक या उप अिभयोजन िनदेशक के रूप म िनयुिक्त के िलए के वल तभी पातर् होगा यिद वह
अिधववक्ता के रूप म कम-से-कम दस वषर् तक वसाय म रहा है और ऐसी िनयुिक्त उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूित की सहमित से
की जाएगी ।
(3) अिभयोजन िनदेशालय का पर्धान अिभयोजन िनदेशक होगा, जो राज्य म गृह िवभाग के पर्धान के पर्शासिनक िनयंतर्ण के
अधीन कृ त्य करे गा ।
(4) पर्त्येक अिभयोजन उप-िनदेशक, अिभयोजन िनदेशक के अधीनस्थ होगा ।
(5) राज्य सरकार ारा धारा 24 की, यथािस्थित, उपधारा (1) या उपधारा (8) के अधीन, उच्च न्यायालय म मामल का
संचालन करने के िलए िनयुक्त िकया गया पर्त्येक लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक और िवशेष लोक अिभयोजक, जो अिभयोजन
िनदेशक के अधीनस्थ होगा ।
(6) राज्य सरकार ारा, धारा 24 की, यथािस्थित, उपधारा (3) या उपधारा (8) के अधीन िजला न्यायालय म मामल का
संचालन करने के िलए िनयुक्त िकया गया पर्त्येक लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक और िवशेष लोक अिभयोजक, और जो धारा
25 की उपधारा (1) के अधीन िनयुक्त िकया गया पर्त्येक सहायक लोक अिभयोजक, जो अिभयोजन उप-िनदेशक के अधीनस्थ होगा ।
(7) अिभयोजन िनदेशक और अिभयोजन उप-िनदेशक की शिक्तयां तथा कृ त्य तथा वे क्षेतर् िजनके िलए पर्त्येक अिभयोजन
िनदेशक िनयुक्त िकया जाएगा, वे ह गे जो राज्य सरकार, अिधसूचना ारा, िविनिदष्ट करे ।
(8) लोक अिभयोजक के कृ त्य का पालन करने म, इस धारा के उपबंध राज्य के महािधववक्ता को लागू नह ह गे ।]
अध्याय 3

न्यायालय की शिक्त
26. न्यायालय, िजनके ारा अपराध िवचारणीय ह—इस संिहता के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए,—
(क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अधीन िकसी अपराध का िवचारण—
(i) उच्च न्यायालय ारा िकया जा सकता है, या
(ii) सेशन न्यायालय ारा िकया जा सकता है, या
(iii) िकसी अन्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसके ारा उसका िवचारणीय होना पर्थम अनुसच
ू ीम
दिशत िकया गया है :
[परं तु 2 [भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 376 और धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ या
1

धारा 376ङ] के अधीन िकसी अपराध का िवचारण यथासाध्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जाएगा, िजसम मिहला पीठासीन हो।]
(ख) िकसी अन्य िविध के अधीन िकसी अपराध का िवचारण, जब उस िविध म इस िनिम कोई न्यायालय उिल्लिखत है,
तब उस न्यायालय ारा िकया जाएगा और जब कोई न्यायालय इस पर्कार उिल्लिखत नह है तब—
(i) उच्च न्यायालय ारा िकया जा सकता है, या
(ii) िकसी अन्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसके ारा उसका िवचारणीय होना पर्थम अनुसूची म
दिशत िकया गया है ।
27. िकशोर के मामल म अिधकािरता—िकसी ऐसे अपराध का िवचारण, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नह है और
जो ऐसे िक्त ारा िकया गया है, िजसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हािजर हो या लाया जाए, सोलह वषर् से
कम है, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय ारा या िकसी ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसे बालक अिधिनयम, 1960
(1960 का 60) या िकशोर अपरािधय के उपचार, पर्िशक्षण और पुनवार्स के िलए उपबंध करने वाली तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के
अधीन िवशेष रूप से सशक्त िकया गया है ।
28. दंडादेश, जो उच्च न्यायालय और सेशन न्यायाधीश दे सकगे—(1) उच्च न्यायालय िविध ारा पर्ािधकृ त कोई दंडादेश दे
सकता है ।
(2) सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश िविध ारा पर्ािधकृ त कोई भी दंडादेश दे सकता है ; िकतु उसके ारा िदए गए
मृत्यु दंडादेश के उच्च न्यायालय ारा पुष्ट िकए जाने की आवश्यकता होगी ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 11 ारा पर्ितस्थािपत ।
10

(3) सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वषर् से अिधक की अविध के िलए कारावास के दंडादेश के
िसवाय कोई ऐसा दंडादेश दे सकता है जो िविध ारा पर्ािधकृ त है ।
29. दंडादेश, जो मिजस्टर्ेट दे सकगे—(1) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वषर् से
अिधक की अविध के िलए कारावास के दंडादेश के िसवाय कोई ऐसा दंडादेश दे सकता है जो िविध ारा पर्ािधकृ त है ।
(2) पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट का न्यायालय तीन वषर् से अनिधक अविध के िलए कारावास का या 1 [दस हजार रुपए] से अनिधक जुमार्ने
का, या दोन का, दंडादेश दे सकता है ।
(3) ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट का न्यायालय एक वषर् से अनिधक अविध के िलए कारावास का या 2 [पांच हजार रुपए] से अनिधक
जुमार्ने का, या दोन का, दंडादेश दे सकता है ।
(4) मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट के न्यायालय को मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय की शिक्तयां और महानगर मिजस्टर्ेट के
न्यायालय को पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट की शिक्तयां ह गी ।
30. जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर कारावास का दंडादेश—(1) िकसी मिजस्टर्ेट का न्यायालय जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर
इतनी अविध का कारावास अिधिनण त कर सकता है जो िविध ारा पर्ािधकृ त है :
परं तु वह अविध—
(क) धारा 29 के अधीन मिजस्टर्ेट की शिक्त से अिधक नह होगी ;
(ख) जहां कारावास मुख्य दंडादेश के भाग के रूप म अिधिनण त िकया गया है, वहां वह उस कारावास की अविध के
चौथाई से अिधक न होगी िजसको मिजस्टर्ेट उस अपराध के िलए, न िक जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर दंड के तौर पर, देने के
िलए सक्षम है ।
(2) इस धारा के अधीन अिधिनण त कारावास उस मिजस्टर्ेट ारा धारा 29 के अधीन अिधिनण त की जा सकने वाली अिधकतम
अविध के कारावास के मुख्य दंडादेश के अितिरक्त हो सकता है ।
31. एक ही िवचारण म कई अपराध के िलए दोषिस होने के मामल म दंडादेश—(1) जब एक िवचारण म कोई िक्त दो या
अिधक अपराध के िलए दोषिस िकया जाता है तब, भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 71 के उपबंध के अधीन रहते हुए,
न्यायालय उसे उन अपराध के िलए िविहत िविभन्न दंड म से उन दंड के िलए, िजन्ह देने के िलए ऐसा न्यायालय सक्षम है, दंडादेश दे
सकता है ; जब ऐसे दंड कारावास के रूप म ह तब, यिद न्यायालय ने यह िनदेश न िदया हो िक ऐसे दंड साथ-साथ भोगे जाएंग,े तो वे
ऐसे कर्म से एक के बाद एक पर्ारं भ ह गे िजसका न्यायालय िनदेश दे ।
(2) दंडादेश के कर्मवत होने की दशा म के वल इस कारण से िक कई अपराध के िलए संकिलत दंड उस दंड से अिधक है जो वह
न्यायालय एक अपराध के िलए दोषिसि पर देने के िलए सक्षम है, न्यायालय के िलए यह आवश्यक नह होगा िक अपराधी को उच्चतर
न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए भेजे :
परं तु—
(क) िकसी भी दशा म ऐसा िक्त चौदह वषर् से अिधक की अविध के कारावास के िलए दंडािदष्ट नह िकया जाएगा ;
(ख) संकिलत दंड उस दंड की मातर्ा के दुगने से अिधक न होगा िजसे एक अपराध के िलए देने के िलए वह न्यायालय
सक्षम है ।
(3) िकसी िस दोष िक्त ारा अपील के पर्योजन के िलए उन कर्मवत दंडादेश का योग, जो इस धारा के अधीन उसके िवरु
िदए गए ह, एक दंडादेश समझा जाएगा ।
32. शिक्तयां पर्दान करने का ढंग—(1) इस संिहता के अधीन शिक्तयां पर्दान करने म, यथािस्थित, उच्च न्यायालय या राज्य
सरकार िक्तय को िवशेषतया नाम से या उनके पद के आधार पर अथवा पदधािरय के वग को साधारणतया उनके पदीय अिभधान
से, आदेश ारा, सशक्त कर सकती है ।
(2) ऐसा पर्त्येक आदेश उस तारीख से पर्भावी होगा िजस तारीख को वह ऐसे सशक्त िकए गए िक्त को संसूिचत िकया जाता है ।
33. िनयुक्त अिधकािरय की शिक्तयां—सरकार की सेवा म पद धारण करने वाला ऐसा िक्त, िजसम उच्च न्यायालय या राज्य
सरकार ारा, उस संिहता के अधीन कोई शिक्तयां िकसी समगर् स्थानीय क्षेतर् के िलए िनिहत की गई ह, जब कभी उसी पर्कार के समान
या उच्चतर पद पर उसी राज्य सरकार के अधीन वैसे ही स्थानीय क्षेतर् के अंदर िनयुक्त िकया जाता है, तब वह, जब तक, यथािस्थित,
उच्च न्यायालय या राज्य सरकार अन्यथा िनदेश न दे या न दे चुकी हो, उस स्थानीय क्षेतर् म, िजसम वह ऐसे िनयुक्त िकया गया है, उन्ह
शिक्तय का पर्योग करे गा ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 5 ारा “पांच हजार रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अधिनयम सं० 25 की धारा 5 ारा “एक हजार रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11

34. शिक्तय को वापस लेना—(1) यथािस्थित, उच्च न्यायालय या राज्य सरकार, उन सब शिक्तय को या उनम से िकसी को
वापस ले सकती है जो उसने या उसके अधीनस्थ िकसी अिधकारी ने िकसी िक्त को इस संिहता के अधीन पर्दान की ह ।
(2) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या िजला मिजस्टर्ेट ारा पर्द िकन्ह शिक्तय को उस मिजस्टर्ेट ारा वापस िलया जा सकता है
िजसके ारा वे शिक्तयां पर्दान की गई थ ।
35. न्यायाधीश और मिजस्टर्ेट की शिक्तय का उनके पद-उ रवितय ारा पर्योग िकया जा सकना—(1) इस संिहता के अन्य
उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट की शिक्तय और कतर् का पर्योग या पालन उसके पद-उ रवत ारा
िकया जा सकता है ।
(2) जब इस बारे म कोई शंका है िक िकसी अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश का पद-उ रवत कौन है तब सेशन न्यायाधीश
िलिखत आदेश ारा यह अवधािरत करे गा िक कौन सा न्यायाधीश इस संिहता के , या इसके अधीन िकन्ह कायर्वािहय या आदेश के
पर्योजन के िलए ऐसे अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश का पद-उ रवत समझा जाएगा ।
(3) जब इस बारे म कोई शंका है िक िकसी मिजस्टर्ेट का पद-उ रवत कौन है तब, यथािस्थित, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या िजला
मिजस्टर्ेट िलिखत आदेश ारा यह अवधािरत करे गा िक कौन सा मिजस्टर्ेट इस संिहता के , या इसके अधीन िकन्ह कायर्वािहय या आदेश
के , पर्योजन के िलए ऐसे मिजस्टर्ेट का पद-उ रवत समझा जाएगा ।
अध्याय 4

क—विरष्ठ पुिलस अिधकािरय की शिक्तयां


36. विरष्ठ पुिलस अिधकािरय की शिक्तयां— पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी से पंिक्त म विरष्ठ पुिलस अिधकारी िजस
स्थानीय क्षेतर् म िनयुक्त है, उसम सवर्तर्, उन शिक्तय का पर्योग कर सकते ह िजनका पर्योग अपने थाने की सीमा के अंदर ऐसे
अिधकारी ारा िकया जा सकता है ।

ख—मिजस्टर्ेट और पुिलस को सहायता


37. जनता कब मिजस्टर्ेट और पुिलस की सहायता करे गी—पर्त्येक िक्त, ऐसे मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी की सहायता करने के
िलए आब है, जो िनम्निलिखत काय म उसकी सहायता उिचत रूप से मांगता है,—
(क) िकसी अन्य ऐसे िक्त को, िजसे ऐसा मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी िगरफ्तार करने के िलए पर्ािधकृ त है, पकड़ना या
उसका िनकल भागने से रोकना ; अथवा
(ख) पिरशािन्त भंग का िनवारण या दमन ; अथवा
(ग) िकसी रे ल, नहर, तार या लोक-संपि को क्षित पहुंचाने के पर्यत्न का िनवारण ।
38. पुिलस अिधकारी से िभन्न ऐसे िक्त को सहायता जो वारं ट का िनष्पादन कर रहा है—जब कोई वारं ट पुिलस अिधकारी से
िभन्न िकसी िक्त को िनिदष्ट है तब कोई भी अन्य िक्त उस वारं ट के िनष्पादन म सहायता कर सकता है यिद वह िक्त, िजसे वारं ट
िनिदष्ट है, पास म ह और वारं ट के िनष्पादन म कायर् कर रहा है ।
39. कु छ अपराध की इि ला का जनता ारा िदया जाना—(1) पर्त्येक िक्त जो भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की
िनम्निलिखत धारा के अधीन दंडनीय िकसी अपराध के िकए जाने से या िकसी अन्य िक्त ारा करने के आशय से अवगत है, उिचत
पर्ितहेतु के अभाव म, िजसे सािबत करने का भार इस पर्कार अवगत िक्त पर होगा, ऐसे िकए जाने या आशय की इि ला तुरंत
िनकटतम मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी को देगा, अथार्त्:—
(i) धारा 121 से 126, दोन सिहत, और धारा 130 (अथार्त्, उक्त संिहता के अध्याय 6 म िविनिदष्ट राज्य के
िवरु अपराध) ;
(ii) धारा 143, 144, 145, 147 और 148 (अथार्त्, उक्त संिहता के अध्याय 8 म िविनिदष्ट लोक पर्शांित के
िवरु अपराध) ;
(iii) धारा 161 से 165क, दोन सिहत, (अथार्त्, अवैध पिरतोषण से संबंिधत अपराध) ;
(iv) धारा 272 से 278, दोन सिहत, (अथार्त्, खा और औषिधय के अपिमशर्ण से संबंिधत अपराध आिद) ;
(v) धारा 302, 303 और 304 (अथार्त् जीवन के िलए संकटकारी अपराध) ;
1
[(vक) धारा 364क (अथार्त् िफरौती, आिद के िलए पहरण से संबिं धत अपराध) ;]
(vi) धारा 382 (अथार्त्, चोरी करने के िलए मृत्यु, उपहित या अवरोधकािरत करने की तैयार के पश्चात् चोरी

1
1993 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
12

का अपराध) ;
(vii) धारा 392 से 399, दोन सिहत, और धारा 402 (अथार्त,् लूट और डकै ती के अपराध) ;
(viii) धारा 409 (अथार्त्, लोक सेवक आिद ारा आपरािधक न्यासभंग से संबंिधत अपराध) ;
(ix) धारा 431 से 439, दोन सिहत, (अथार्त्, संपि के िवरु िरिष्ट के अपराध) ;
(x) धारा 449 और 450 (अथार्त,् गृह अितचार का अपराध) ;
(xi) धारा 456 से 460, दोन सिहत, (अथार्त्, पर्च्छन्न गृह अितचार के अपराध) ; और
(xii) धारा 489क से 489ङ, दोन सिहत, (अथार्त्, करसी नोट और बक नोट से संबिं धत अपराध) ।
(2) इस धारा के पर्योजन के िलए “अपराध” शब्द के अंतगर्त भारत के बाहर िकसी स्थान म िकया गया कोई ऐसा कायर् भी है जो
यिद भारत म िकया जाता तो अपराध होता ।
40. गर्ाम के मामल के संबध
ं म िनयोिजत अिधकािरय के कितपय िरपोटर् करने का कतर् —(1) िकसी गर्ाम के मामल के संबंध म
िनयोिजत पर्त्येक अिधकारी और गर्ाम म िनवास करने वाला पर्त्येक िक्त, िनकटतम मिजस्टर्ेट को या िनकटतम पुिलस थाने के
भारसाधक अिधकारी को, जो भी िनकटतर हो, कोई भी जानकारी जो उसके पास िनम्निलिखत के बारे म हो, तत्काल संसूिचत करे गा,—
(क) ऐसे गर्ाम म या ऐसे गर्ाम के पास िकसी ऐसे िक्त का, जो चुराई हुई संपि का कु ख्यात पर्ापक या िवकर्ेता है, स्थायी या
अस्थायी िनवास ;
(ख) िकसी िक्त का, िजसका वह ठग, लुटेरा, िनकल भागा िस दोष या उ ोिषत अपराधी होना जानता है या िजसके ऐसा होने
का उिचत रूप से संदह
े करता है, ऐसे गर्ाम के िकसी भी स्थान म आना-जाना या उसम से हो कर जाना ;
(ग) ऐसे गर्ाम म या उसके िनकट कोई अजमानतीय अपराध या भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 143, धारा 144,
धारा 145, धारा 147 या धारा 148 के अधीन दंडनीय कोई अपराध िकया जाना या करने का आशय ;
(घ) ऐसे गर्ाम म या उसके िनकट कोई आकिस्मक या अपर्ाकृ ितक मृत्यु होना, या सन्देहजनक पिरिस्थितय म कोई मृत्यु होना, या
ऐसे गर्ाम म या उसके िनकट िकसी शव का, या शव के अंग का ऐसी पिरिस्थितय म, िजनसे उिचत रूप से संदह े पैदा होता है िक ऐसी
मृत्यु हुई, पाया जाना, या ऐसे गर्ाम से िकसी िक्त का, ऐसी पिरिस्थितय म िजनसे उिचत रूप से संदह े पैदा होता है िक ऐसे िक्त के
संबंध म अजमानतीय अपराध िकया गया है, गायब हो जाना ;
(ङ) ऐसे गर्ाम के िनकट, भारत के बाहर िकसी स्थान म ऐसा कोई कायर् िकया जाना या करने का आशय जो यिद भारत म िकया
जाता तो भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की इन घारा , अथार्त्—231 से 238 तक (दोन सिहत), 302, 304, 382, 392 से 399
तक (दोन सिहत), 402, 435, 436, 449, 450, 457 से 460 तक (दोन सिहत), 489क, 489,ख, 489ग और 489घ म से िकसी के अधीन
दंडनीय अपराध होता ;
(च) वस्था बनाए रखने या अपराध के िनवारण अथवा िक्त या संपि के क्षेम पर संभा ता पर्भाव डालने वाला कोई िवषय
िजसके संबंध म िजला मिजस्टर्ेट ने राज्य सरकार की पूवर् मंजूरी से िकए गए साधारण या िवशेष आदेश ारा उसे िनदेश िदया है िक वह
उस िवषय पर जानकारी संसूिचत करे ।
(2) इस धारा म,—
(i) “गर्ाम” के अंतगर्त गर्ाम-भूिमयां भी ह ;
(ii) “उ ोिषत अपराधी” पद के अंतगर्त ऐसा िक्त भी है िजसे भारत के िकसी ऐसे राज्यक्षेतर् म िजस पर इस संिहता का
िवस्तार नह है िकसी न्यायालय या पर्ािधकारी ने िकसी ऐसे कायर् के बारे म, अपराधी उ ोिषत िकया है जो यिद उन राज्यक्षेतर् म,
िजन पर इस संिहता का िवस्तार है, िकया जाता तो भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की इन धारा , अथार्त्—302, 304,
382, 392 से 399 तक (दोन सिहत), 402, 435, 436, 449, 450 और 457 से 460 तक (दोन सिहत), म से िकसी के अधीन
दंडनीय अपराध होता ;
(iii) “गर्ाम के मामल के संबंध म िनयोिजत पर्त्येक अिधकारी” शब्द से गर्ाम पंचायत का कोई सदस्य अिभपर्ेत है और इसके
अंतगर्त गर्ामीण और पर्त्येक ऐसा अिधकारी या अन्य िक्त भी है जो गर्ाम के पर्शासन के संबंध म िकसी कृ त्य का पालन करने के
िलए िनयुक्त िकया गया है ।
अध्याय 5

िक्तय की िगरफ्तारी
41. पुिलस वारं ट के िबना कब िगरफ्तार कर सके गी—(1) कोई पुिलस अिधकारी मिजस्टर्ेट के आदेश के िबना और वारं ट के िबना
िकसी ऐसे िक्त को िगरफ्तार कर सकता है—
13

1
[(क) जो पुिलस अिधकारी की उपिस्थित म संज्ञेय अपराध करता है ;
(ख) िजसके िवरु इस बारे म उिचत पिरवाद िकया जा चुका है या िवश्वसनीय इि ला पर्ाप्त हो चुकी है या उिचत
संदह
े िव मान है िक उसने कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् से कम की हो सके गी या िजसकी अविध सात वषर् की हो
सके गी, चाहे वह जुमार्ने सिहत हो अथवा जुमार्ने के िबना, दंडनीय संज्ञेय अपराध िकया है, यिद िन िलिखत शत पूरी कर दी
जाती ह, अथार्त् —
(i) पुिलस अिधकारी के पास ऐसे पिरवाद, इि ला या संदह
े के आधार पर यह िवश्वास करने का कारण है
िक उस िक्त ने उक्त अपराध िकया है ;
(ii) पुिलस अिधकारी का यह समाधान हो गया है िक ऐसी िगरफ्तारी —
(क) ऐसे िक्त को कोई और अपराध करने से िनवािरत करने के िलए ; या
(ख) अपराध के समुिचत अन्वेषण के िलए ; या
(ग) ऐसे िक्त को ऐसे अपराध के सा य को गायब करने या ऐसे सा य के साथ िकसी भी रीित म
छेड़छाड़ करने से िनवािरत करने के िलए ; या
(घ) उस िक्त को, िकसी ऐसे िक्त को, जो मामले के तथ्य से पिरिचत है, उपर्ेिरत करने, उसे धमकी
देने या उससे वायदा करने से िजससे उसे न्यायालय या पुिलस अिधकारी को ऐसे तथ्य को पर्कट न करने के
िलए मनाया जा सके , िनवािरत करने के िलए ; या
(ङ) जब तक ऐसे िक्त को िगरफ्तार नह कर िलया जाता, न्यायालय म उसकी उपिस्थित, जब भी
अपेक्षत हो, सुिनि त नह की जा सकती,
आवश्यक है, और पुिलस अिधकारी ऐसी िगरफ्तारी करते समय अपने कारण को लेखब करे गा ;
[परं तु कोई पुिलस अिधकारी, ऐसे सभी मामल म, जहां िकसी व्यिक्त की िगरफ्तारी इस उपधारा के उपबंध के
2

अधीन अपेिक्षत नह है, िगरफ्तारी ने करने के कारण को लेखब करे गा ।]


(खक) िजसके िवरु िवश्वसनीय इि ला पर्ाप्त हो चुकी है िक उसने कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् से अिधक
की हो सके गी, चाहे वह जुमार्ने सिहत हो अथवा जुमार्ने के िबना, अथवा मृत्यु दंडादेश से दंडनीय संज्ञेय अपराध िकया है और
पुिलस अिधकारी के पास उस इि ला के आधार पर यह िवश्वास करने का कारण है िक उस िक्त ने उक्त अपराध िकया है ;]
(ग) जो या तो इस संिहता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश ारा अपराधी उ ोिषत िकया जा चुका है ; अथवा
(घ) िजसके कब्जे म कोई ऐसी चीज पाई जाती है िजसके चुराई हुई संपि होने का उिचत रूप से संदह
े िकया जा
सकता है और िजस पर ऐसी चीज के बारे म अपराध करने का उिचत रूप से संदह
े िकया जा सकता है ; अथवा
(ङ) जो पुिलस अिधकारी को उस समय बाधा पहुंचाता है जब वह अपना कतर् कर रहा है, या जो िविधपूणर्
अिभरक्षा से िनकल भागा है या िनकल भागने का पर्यत्न करता है ; अथवा
(च) िजस पर संघ के सश बल म से िकसी से अिभत्याजक होने का उिचत संदह
े है ; अथवा
(छ) जो भारत से बाहर िकसी स्थान म िकसी ऐसे कायर् िकए जाने से, जो यिद भारत म िकया गया होता तो अपराध के
रूप म दंडनीय होता, और िजसके िलए वह पर्त्यपर्ण संबंधी िकसी िविध के अधीन या अन्यथा भारत म पकड़े जाने का या
अिभरक्षा म िनरु िकए जाने का भागी है, संब रह चुका है या िजसके िवरु इस बारे म उिचत पिरवाद िकया जा चुका है या
िवश्वसनीय इि ला पर्ाप्त हो चुकी है या उिचत संदह
े िव मान है िक वह ऐसे संब रह चुका है ; अथवा
(ज) जो छोड़ा गया िस दोष होते हुए धारा 356 की उपधारा (5) के अधीन बनाए गए िकसी िनयम को भंग करता
है ; अथवा
(झ) िजसकी िगरफ्तारी के िलए िकसी अन्य पुिलस अिधकारी से िलिखत या मौिखक अध्यपेक्षा पर्ाप्त हो चुकी है,
परं तु यह तब जब िक अध्यपेक्षा म उस िक्त का, िजसे िगरफ्तार िकया जाना है, और उस अपराध का या अन्य कारण का,
िजसके िलए िगरफ्तारी की जानी है, िविनदश है और उससे यह दिशत होता है िक अध्यपेक्षा जारी करने वाले अिधकारी
ारा वारं ट के िबना वह िक्त िविधपूवर्क िगरफ्तार िकया जा सकता था ।
[(2) धारा 42 के उपबंध के अधीन रहते हुए, ऐसे िकसी िक्त को, जो िकसी असंज्ञेय अपराध से संब है या िजसके िवरु कोई
3

पिरवाद िकया जा चुका है या िवश्वसनीय इि ला पर्ाप्त हो चुकी है या उिचत संदह


े िव मान है िक वह ऐसे संब रह चुका है, मिजस्टर्ेट के

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 5 ारा खंड (क) और (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2010 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 5 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14

वारं ट या आदेश के िसवाय, िगरफ्तार नह िकया जाएगा ।]


[41क. पुिलस अिधकारी के समक्ष हािजर होने की सूचना—(1) पुिलस अिधकारी, ऐसे सभी मामल म िजनम धारा 41 की
1

उपधारा (1) के उपबंध के अधीन िकसी िक्त की िगरफ्तारी अपेिक्षत नह है, उस िक्त को िजसके िवरु इस बारे म उिचत पिरवाद
िकया जा चुका है या िवश्वसनीय इि ला पर्ाप्त हो चुकी है या उिचत संदह
े िव मान है िक उसने संज्ञेय अपराध िकया है, उसके समक्ष यह
ऐसे अन्य स्थान पर, जो सूचना म िविनिदष्ट िकया जाए उपसंजात होने के िलए िनदेश देते हुए सूचना 2 [जारी करे गा] ।
(2) जहां ऐसी सूचना िकसी िक्त को जारी की जाती है, वहां उस िक्त का यह कतर् होगा िक वह सूचना के िनबंधन का
अनुपालन करे ।
(3) जहां ऐसा िक्त सूचना का अनुपालन करता है और अनुपालन करता रहता है वहां उसे सूचना म िनिदष्ट अपराध के संबंध म
तब तक िगरफ्तार नह िकया जाएगा जब तक लेखब िकए जाने वाले कारण से पुिलस अिधकारी की यह राय न हो िक उसे िगरफ्तार
कर लेना चािहए ।
[(4) जहां ऐसा िक्त, िकसी भी समय सूचना के िनबंधन का अनुपालन करने म असफल रहता है, वहां पुिलस अिधकारी के िलए
3

यह िविधपूणर् होगा िक वह उसे, ऐसे आदेश के अधीन रहते हुए, जो इस िनिम सक्षम न्यायालय ारा पािरत िकए गए ह , सूचना म
विणत अपराध के िलए िगरफ्तार करे ।]
41ख. िगरफ्तारी की पर्िकर्या और िगरफ्तारी करने वाले अिधकारी के कतर् —पर्त्येक पुिलस अिधकारी, िगरफ्तारी करते समय,—
(क) अपने नाम की सही, पर्कट और स्पष्ट पहचान धारण करे गा, िजससे उसकी आसानी से पहचान हो सके ,
(ख) िगरफ्तारी का एक ज्ञापन तैयार करे गा जो—
(i) कम से कम एक साक्षी ारा अनुपर्मािणत िकया जाएगा जो िगरफ्तार िकए गए िक्त के कु टुंब का सदस्य है या
उस पिरक्षेतर् का, जहां िगरफ्तारी की गई है, पर्िति त सदस्य है ;
(ii) िगरफ्तार िकए गए िक्त ारा पर्ितहस्ताक्षिरत होगा ; और
(ग) जब तक उसके कु टुंब के िकसी सदस्य ारा ज्ञापन को अनुपर्मािणत न कर िदया गया हो, िगरफ्तार िकए गए िक्त को
यह इि ला देगा िक उसे यह अिधकार है िक उसके िकसी नातेदार या िमतर् को, िजसका वह नाम दे, उसकी िगरफ्तारी की इि ला
दी जाए ।
41ग. िजले म िनयंतर्ण कक्ष—(1) राज्य सरकार—
(क) पर्त्येक िजले म ; और
(ख) राज्य स्तर पर,
पुिलस िनयंतर्ण कक्ष की स्थापना करे गी ।
(2) राज्य सरकार पर्त्येक िजले के िनयंतर्ण कक्ष के बाहर रखे गए सूचना प पर िगरफ्तार िकए गए िक्तय के नाम और पते तथा
उन पुिलस अिधकािरय के नाम और पदनाम संपर्दिशत कराएगी, िजन्ह ने िगरफ्तािरयां की ह ।
(3) राज्य स्तर पर पुिलस मुख्यालय म िनयंतर्ण कक्ष, समय-समय पर, िगरफ्तार िकए गए िक्तय , उस अपराध की पर्कृ ित
िजसका उन पर आरोप लगाया गया है, के बारे म ब्यौरे संगृहीत करे गा और आम जनता की जानकारी के िलए डाटा बेस रखेगा ।
41घ. िगरफ्तार िकए गए िक्त का पूछताछ के दौरान अपनी पसंद के अिधवक्ता से िमलने का अिधकार—जब िकसी िक्त को
िगरफ्तार िकया जाता है और पुिलस ारा पूछताछ की जाती है, तब िगरफ्तार िक्त पूछताछ के दौरान अपनी पसंद के अिधवक्ता से
िमलने का हकदार होगा िकतु संपूणर् पूछताछ के दौरान नह ।
(2) कोई पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी िकसी ऐसे िक्त को जो धारा 109 या धारा 110 म िविनिदष्ट िक्तय के
पर्वग म से एक या एक से अिधक का हो इसी पर्कार िगरफ्तार कर सकता है या करा सकता है ।
42. नाम और िनवास बताने से इनकार करने पर िगरफ्तारी—(1) जब कोई िक्त िजसने पुिलस अिधकारी की उपिस्थित म
असंज्ञेय अपराध िकया है या िजस पर पुिलस अिधकारी की उपिस्थित म असंज्ञेय अपराध करने का अिभयोग लगाया गया है, उस
अिधकारी की मांग पर अपना नाम और िनवास बताने से इनकार करता है या ऐसा नाम या िनवास बताता है, िजसके बारे म उस
अिधकारी को यह िवश्वास करने का कारण है िक वह िमथ्या है, तब वह ऐसे अिधकारी ारा इसिलए िगरफ्तार िकया जा सकता है िक
उसका नाम और िनवास अिभिनिश्चत िकया जा सके ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2010 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 3 ारा “जारी कर सके गा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2010 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
15

(2) जब ऐसे िक्त का सही नाम और िनवास अिभिनिश्चत कर िलया जाता है तब वह पर्ितभु सिहत या रिहत यह बंधपतर्
िनष्पािदत करने पर छोड़ िदया जाएगा िक यिद उससे मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होने की अपेक्षा की गई तो वह उसके समक्ष हािजर होगा :
परं तु यिद ऐसा िक्त भारत म िनवासी नह है तो वह बंधपतर् भारत म िनवासी पर्ितभू या पर्ितभु ारा पर्ितभूत
िकया जाएगा ।
(3) यिद िगरफ्तारी के समय से चौबीस घंट के अंदर ऐसे िक्त का सही नाम और िनवास अिभिनिश्चत नह िकया जा सकता है या
वह बंधपतर् िनष्पािदत करने म या अपेिक्षत िकए जाने पर पयार्प्त पर्ितभू देने म असफल रहता है तो वह अिधकािरता रखने वाले िनकटतम
मिजस्टर्ेट के पास तत्काल भेज िदया जाएगा ।
43. पर्ाइवेट िक्त ारा िगरफ्तारी और ऐसी िगरफ्तारी पर पर्िकर्या—(1) कोई पर्ाइवेट िक्त िकसी ऐसे िक्त को जो उसकी
उपिस्थित म अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है, या िकसी उ ोिषत अपराधी को िगरफ्तार कर सकता है या िगरफ्तार करवा सकता
है और ऐसे िगरफ्तार िकए गए िक्त को अनावश्यक िवलंब के िबना पुिलस अिधकारी के हवाले कर देगा या हवाले करवा देगा या पुिलस
अिधकारी की अनुपिस्थित म ऐसे िक्त को अिभरक्षा म िनकटतम पुिलस थाने ले जाएगा या िभजवाएगा ।
(2) यिद यह िवश्वास करने का कारण है िक ऐसा िक्त धारा 41 के उपबंध के अंतगर्त आता है तो पुिलस अिधकारी उसे िफर से
िगरफ्तार करे गा ।
(3) यिद यह िवश्वास करने का कारण है िक उसने असंज्ञेय अपराध िकया है और वह पुिलस अिधकारी की मांग पर अपना नाम
और िनवास बताने से इनकार करता है, या ऐसा नाम या िनवास बताता है, िजसके बारे म ऐसे अिधकारी को यह िवश्वास करने का
कारण है िक वह िमथ्या है, तो उसके िवषय म धारा 42 के उपबंध के अधीन कायर्वाही की जाएगी ; िकतु यिद यह िवश्वास करने का कोई
पयार्प्त कारण नह है िक उसने कोई अपराध िकया है तो वह तुरंत छोड़ िदया जाएगा ।
44. मिजस्टर्ेट ारा िगरफ्तारी—(1) जब कायर्पालक या न्याियक मिजस्टर्ेट की उपिस्थित म उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर
कोई अपराध िकया जाता है तब वह अपराधी को स्वयं िगरफ्तार कर सकता है या िगरफ्तार करने के िलए िकसी िक्त को आदेश दे
सकता है और तब जमानत के बारे म इसम अंतिवष्ट उपबंध के अधीन रहते हुए, अपराधी को अिभरक्षा के िलए सुपुदर् कर सकता है ।
(2) कोई कायर्पालक या न्याियक मिजस्टर्ेट िकसी भी समय अपनी स्थानीय अिधकािरता के भीतर िकसी ऐसे िक्त को िगरफ्तार
कर सकता है, या अपनी उपिस्थित म उसकी िगरफ्तारी का िनदेश दे सकता है, िजसकी िगरफ्तारी के िलए वह उस समय और उन
पिरिस्थितय म वारं ट जारी करने के िलए सक्षम है ।
45. सश बल के सदस्य का िगरफ्तारी से संरक्षण—(1) धारा 41 से 44 तक की धारा म (दोन सिहत) िकसी बात के होते हुए
भी संघ के सश बल का कोई भी सदस्य अपने पदीय कतर् का िनवर्हन करने म अपने ारा की गई या की जाने के िलए तात्पियत िकसी
बात के िलए तब तक िगरफ्तार नह िकया जाएगा जब तक कदर्ीय सरकार की सहमित नह ले ली जाती ।
(2) राज्य सरकार अिधसूचना ारा िनदेश दे सकती है िक उसम यथािविनिदष्ट बल के ऐसे वगर् या पर्वगर् के सदस्य को, िजन्ह लोक
वस्था बनाए रखने का कायर्भार स पा गया है, जहां कह वे सेवा कर रहे ह , उपधारा (1) के उपबंध लागू ह गे और तब उस उपधारा के
उपबंध इस पर्कार लागू ह गे मानो उसम आने वाले “कदर्ीय सरकार” पद के स्थान पर “राज्य सरकार” पद रख िदया गया हो ।
46. िगरफ्तारी कै से की जाएगी—(1) िगरफ्तारी करने म पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त, जो िगरफ्तारी कर रहा है, िगरफ्तार
िकए जाने वाले िक्त के शरीर को वस्तुत: छु एगा या पिररु करे गा, जब तक उसने वचन या कमर् ारा अपने को अिभरक्षा म समिपत न
कर िदया हो ।
[परं तु जहां िकसी स्तर्ी को िगरफ्तार िकया जाना है वहां जब तक िक पिरिस्थितय से इसके िवपरीत उपदिशत न हो, िगरफ्तारी
1

की मौिखक इि ला पर अिभरक्षा म उसके समपर्ण कर देने की उपधारणा की जाएगी और जब तक िक पिरिस्थितय म अन्यथा अपेिक्षत
न हो या जब तक पुिलस अिधकारी मिहला न हो, तब तक पुिलस अिधकारी मिहला को िगरफ्तार करने के िलए उसके शरीर को
नह छु एगा ।]
(2) यिद ऐसा िक्त अपने िगरफ्तार िकए जाने के पर्यास का बलात् पर्ितरोध करता है या िगरफ्तारी से बचने का पर्यत्न करता है तो
ऐसा पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त िगरफ्तारी करने के िलए आवश्यक सब साधन को उपयोग म ला सकता है ।
(3) इस धारा की कोई बात ऐसे िक्त की िजस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का अिभयोग नह है, मृत्यु
कािरत करने का अिधकार नह देती है ।
2
[(4) असाधारण पिरिस्थितय के िसवाय, कोई स्तर्ी सूयार्स्त के पश्चात् और सूय दय से पहले िगरफ्तार नह की जाएगी और जहां
ऐसी असाधारण पिरिस्थितयां िव मान ह वहां स्तर्ी पुिलस अिधकारी, िलिखत म िरपोटर् करके , उस पर्थम शर्ेणी के न्याियक मिजस्टर्ेट की
पूवर् अनुज्ञा अिभपर्ाप्त करे गी, िजसकी स्थानीय अिधकािरता के भीतर अपराध िकया गया है या िगरफ्तारी की जानी है ।]
47. उस स्थान की तलाशी िजसम ऐसा िक्त पर्िवष्ट हुआ है िजसकी िगरफ्तारी की जानी है—(1) यिद िगरफ्तारी के वारं ट के

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
16

अधीन कायर् करने वाले िकसी िक्त को, या िगरफ्तारी करने के िलए पर्ािधकृ त िकसी पुिलस अिधकारी को, यह िवश्वास करने का कारण है
िक वह िक्त िजसे िगरफ्तार िकया जाना है, िकसी स्थान म पर्िवष्ट हुआ है, या उसके अंदर है तो ऐसे स्थान म िनवास करने वाला, या उस
स्थान का भारसाधक कोई भी िक्त, पूव क्त रूप म कायर् करने वाले िक्त ारा या ऐसे पुिलस अिधकारी ारा मांग की जाने पर उसम
उसे अबाध पर्वेश करने देगा और उसके अंदर तलाशी लेने के िलए सब उिचत सुिवधाएं देगा ।
(2) यिद ऐसे स्थान म पर्वेश उपधारा (1) के अधीन नह हो सकता तो िकसी भी मामले म उस िक्त के िलए, जो वारं ट के अधीन
कायर् कर रहा है, और िकसी ऐसे मामले म, िजसम वारं ट िनकाला जा सकता है िकतु िगरफ्तार िकए जाने वाले िक्त को भाग जाने का
अवसर िदए िबना पर्ाप्त नह िकया जा सकता, पुिलस अिधकारी के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह ऐसे स्थान म पर्वेश करे और वहां
तलाशी ले और ऐसे स्थान म पर्वेश कर पाने के िलए िकसी गृह या स्थान के , चाहे वह उस िक्त का हो िजसे िगरफ्तार िकया जाना है,
या िकसी अन्य िक्त का हो, िकसी बाहरी या भीतरी ार या िखड़की को तोड़कर खोल ले यिद अपने पर्ािधकार और पर्योजन की सूचना
देने के तथा पर्वेश करने की सम्यक् रूप से मांग करने के पश्चात् वह अन्यथा पर्वेश पर्ाप्त नह कर सकता है :

परं तु यिद ऐसा कोई स्थान ऐसा कमरा है जो (िगरफ्तार िकए जाने वाले िक्त से िभन्न) ऐसी स्तर्ी के वास्तिवक अिधभोग म है
जो रूिढ़ के अनुसार लोग के सामने नह आती है तो ऐसा िक्त या पुिलस अिधकारी उस कमरे म पर्वेश करने के पूवर् उस स्तर्ी को सूचना
देगा िक वह वहां से हट जाने के िलए स्वतंतर् है और हट जाने के िलए उसे पर्त्येक उिचत सुिवधा देगा और तब कमरे को तोड़कर खोल
सकता है और उसम पर्वेश कर सकता है ।
(3) कोई पुिलस अिधकारी या िगरफ्तार करने के िलए पर्ािधकृ त अन्य िक्त िकसी गृह या स्थान का कोई बाहरी या भीतरी ार
या िखड़की अपने को या िकसी अन्य िक्त को जो िगरफ्तार करने के पर्योजन से िविधपूवर्क पर्वेश करने के पश्चात् वहां िनरु है, मुक्त
करने के िलए तोड़कर खोल सकता है ।
48. अन्य अिधकािरता म अपरािधय का पीछा करना—पुिलस अिधकारी ऐसे िकसी िक्त को िजसे िगरफ्तार करने के िलए वह
पर्ािधकृ त है, वारं ट के िबना िगरफ्तार करने के पर्योजन से भारत के िकसी स्थान म उस िक्त का पीछा कर सकता है ।

49. अनावश्यक अवरोध न करना—िगरफ्तार िकए गए िक्त को उससे अिधक अवरु न िकया जाएगा िजतना उसको िनकल
भागने से रोकने के िलए आवश्यक है ।
50. िगरफ्तार िकए गए िक्त को िगरफ्तारी के आधार और जमानत के अिधकार की इि ला दी जाना—(1) िकसी िक्त को
वारं ट के िबना िगरफ्तार करने वाला पर्त्येक पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त उस िक्त को उस अपराध की, िजसके िलए वह िगरफ्तार
िकया गया है, पूणर् िविशिष्टयां या ऐसी िगरफ्तारी के अन्य आधार तुरंत संसूिचत करे गा ।
(2) जहां कोई पुिलस अिधकारी अजमानतीय अपराध के अिभयुक्त िक्त से िभन्न िकसी िक्त को वारं ट के िबना िगरफ्तार
करता है वहां वह िगरफ्तार िकए गए िक्त को इि ला देगा िक वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है और वह अपनी ओर से
पर्ितभु का इं तजाम करे ।
1
[50क. िगरफ्तारी करने वाले िक्त की, िगरफ्तारी आिद के बारे म, नािमत िक्त को जानकारी देने की बाध्यता—(1) इस
संिहता के अधीन कोई िगरफ्तारी करने वाला पर्त्येक पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त, ऐसी िगरफ्तारी और उस स्थान के बारे म, जहां
िगरफ्तार िकया गया िक्त रखा जा रहा है, जानकारी उसके िमतर् , नातेदार या ऐसे अन्य िक्त को, जो िगरफ्तार िकए गए िक्त
ारा ऐसी जानकारी देने के पर्योजन के िलए पर्कट या नामिनिदष्ट िकया जाए, तुरंत देगा ।
(2) पुिलस अिधकारी िगरफ्तार िकए गए िक्त को, जैसे ही वह पुिलस थाने म लाया जाता है, उपधारा (1) के अधीन उसके
अिधकार के बारे म सूिचत करे गा ।
(3) इस तथ्य की पर्िविष्ट िक ऐसे िक्त की िगरफ्तारी की इि ला िकसे दी गई है, पुिलस थाने म रखी जाने वाली पुस्तक म ऐसे
पर्रूप म, जो राज्य सरकार ारा इस िनिम िविहत िकया जाए, की जाएगी ।

(4) उस मिजस्टर्ेट का, िजसके समक्ष ऐसे िगरफ्तार िकया गया िक्त, पेश िकया जाता है, यह कतर् होगा िक वह अपना
समाधान करे िक उपधारा (2) और उपधारा (3) की अपेक्षा का ऐसे िगरफ्तार िकए गए िक्त के संबंध म अनुपालन िकया गया है ।]

51. िगरफ्तार िकए गए िक्तय की तलाशी—(1) जब कभी पुिलस अिधकारी ारा ऐसे वारं ट के अधीन, जो जमानत िलए जाने
का उपबंध नह करता है या ऐसे वारं ट के अधीन, जो जमानत िलए जाने का उपबंध करता है िकतु िगरफ्तार िकया गया िक्त जमानत
नह दे सकता है, कोई िक्त िगरफ्तार िकया जाता है, तथा जब कभी कोई िक्त वारं ट के िबना या पर्ाइवेट िक्त ारा वारं ट के अधीन
िगरफ्तार िकया जाता है और वैध रूप से उसकी जमानत नह ली जा सकती है या वह जमानत देने म असमथर् है, तब िगरफ्तारी करने
वाला अिधकारी, या जब िगरफ्तारी पर्ाइवेट िक्त ारा की जाती है तब वह पुिलस अिधकारी, िजसे वह िक्त िगरफ्तार िकए गए
िक्त को स पता है, उस िक्त की तलाशी ले सकता है और पहनने के आवश्यक व को छोड़कर उसके पास पाई गई सब वस्तु को

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
17

सुरिक्षत अिभरक्षा म रख सकता है और जहां िगरफ्तार िकए गए िक्त से कोई वस्तु अिभगृहीत की जाती है वहां ऐसे िक्त को एक
रसीद दी जाएगी िजसम पुिलस अिधकारी ारा कब्जे म की गई वस्तुं दिशत ह गी ।
(2) जब कभी िकसी स्तर्ी की तलाशी करना आवश्यक हो तब ऐसी तलाशी िशष्टता का पूरा ध्यान रखते हुए अन्य स्तर्ी ारा
की जाएगी ।
52. आकर्ामक आयुध का अिभगर्हण करने की शिक्त—वह अिधकारी या अन्य िक्त, जो इस संिहता के अधीन िगरफ्तारी करता
है िगरफ्तार िकए गए िक्त से कोई आकर्ामक आयुध, जो उसके शरीर पर ह , ले सकता है और ऐसे िलए गए सब आयुध उस न्यायालय
या अिधकारी को पिरद करे गा, िजसके समक्ष वह अिधकारी या िगरफ्तार करने वाला िक्त िगरफ्तार िकए गए िक्त को पेश करने
के िलए इस संिहता ारा अपेिक्षत है ।
53. पुिलस अिधकारी की पर्ाथर्ना पर िचिकत्सा- वसायी ारा अिभयुक्त की परीक्षा—(1) जब कोई िक्त ऐसा अपराध करने
के आरोप म िगरफ्तार िकया जाता है जो ऐसी पर्कृ ित का है और िजसका ऐसी पिरिस्थितय म िकया जाना अिभकिथत है िक यह िवश्वास
करने के उिचत आधार ह िक उसकी शारीिरक परीक्षा ऐसा अपराध िकए जाने के बारे म सा य पर्दान करे गी, तो ऐसे पुिलस अिधकारी
की, जो उप िनरीक्षक की पंिक्त से नीचे का न हो, पर्ाथर्ना पर कायर् करने म रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी के िलए और स ावपूवर्क
उसकी सहायता करने म और उसके िनदेशाधीन कायर् करने म िकसी िक्त के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह िगरफ्तार िकए गए
िक्त की ऐसी परीक्षा कर जो उन तथ्य को, जो ऐसा सा य पर्दान कर सक, अिभिनिश्चत करने के िलए उिचत रूप से आवश्यक है और
उतना बल पर्योग करे िजतना उस पर्योजन के िलए उिचत रूप से आवश्यक है ।
(2) जब कभी इस धारा के अधीन िकसी स्तर्ी की शारीिरक परीक्षा की जानी है तो ऐसी परीक्षा के वल िकसी मिहला ारा जो
रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी है या उसके पयर्वेक्षण म की जाएगी ।
1
[स्पष्टीकरण—इस धारा म और धारा 53क और धारा 54 म—
(क) ‘परीक्षा’ म खून, खून के धब्ब , सीमन, लिगक अपराध की दशा म सुआब, थूक और स्वाब, बाल के नमून और उं गली
के नाखून की कतरन की आधुिनक और वैज्ञािनक तकनीक के , िजनके अंतगर्त डी.एन.ए. पर्ोफाइल करना भी है, पर्योग ारा
परीक्षा और ऐसे अन्य परीक्षण, िजन्ह रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी िकसी िविशष्ट मामले म आवश्यक समझता है, सिम्मिलत
ह गे ;
(ख) ‘रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी’ से वह िचिकत्सा- वसायी अिभपर्ेत है, िजसके पास भारतीय िचिकत्सा पिरषद्
अिधिनयम, 1956 (1956 का 102) की धारा 2 के खंड (ज) म यथापिरभािषत कोई िचिकत्सीय अहर्ता है और िजसका नाम राज्य
िचिकत्सा रिजस्टर म पर्िवष्ट िकया गया है ।]
[53क. बलात्संग के अपराधी िक्त की िचिकत्सा- वसायी ारा परीक्षा—(1) जब िकसी िक्त को बलात्संग या बलात्संग का
2

पर्यत्न करने का अपराध करने के आरोप म िगरफ्तार िकया जाता है और यह िवश्वास करने के उिचत आधार ह िक उस िक्त की परीक्षा
से ऐसा अपराध करने के बारे म सा य पर्ाप्त होगा तो सरकार ारा या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी ारा चलाए जा रहे अस्पताल म
िनयोिजत िकसी रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी के िलए और उस स्थान से जहां अपराध िकया गया है, सोलह िकलोमीटर की पिरिध के
भीतर ऐसे िचिकत्सा- वसायी की अनुपिस्थित म ऐसे पुिलस अिधकारी के िनवेदन पर, जो उप िनरीक्षक की पंिक्त से नीचे का न हो,
िकसी अन्य रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी के िलए, तथा स ावपूवर्क उसकी सहायता के िलए तथा उसके िनदेश के अधीन कायर् कर रहे
िकसी िक्त के िलए, ऐसे िगरफ्तार िक्त की ऐसी परीक्षा करना और उस पर्योजन के िलए उतनी शिक्त का पर्योग करना िजतनी
युिक्तयुक्त रूप से आवश्यक हो, िविधपूणर् होगा ।
(2) ऐसी परीक्षा करने वाला रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी ऐसे िक्त की िबना िवलंब के परीक्षा करे गा और उसकी परीक्षा की
एक िरपोटर् तैयार करे गा, िजसम िनम्निलिखत िविशिष्टयां दी जाएंगी, अथार्त् :—
(i) अिभयुक्त और उस िक्त का, जो उसे लाया है, नाम और पता ;
(ii) अिभयुक्त की आयु ;
(iii) अिभयुक्त के शरीर पर क्षित के िनशान, यिद कोई ह ;
(iv) डी.एन.ए. पर्ोफाइल करने के िलए अिभयुक्त के शरीर से ली गई सामगर्ी का वणर्न ; और
(v) उिचत ब्यौरे सिहत, अन्य ताित्त्वक िविशिष्टयां ।

(3) िरपोटर् म संक्षेप म वे कारण अिधकिथत िकए जाएंगे, िजनसे पर्त्येक िनष्कषर् िनकाला गया है ।

(4) परीक्षा पर्ारं भ और समािप्त करने का सही समय भी िरपोटर् म अंिकत िकया जाएगा ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 8 ारा स्पष्टीकरण के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 9 ारा अंत:स्थािपत ।
18

(5) रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी, िबना िवलंब के अन्वेषण अिधकारी को िरपोटर् भेजेगा, जो उसे धारा 173 म िनिदष्ट मिजस्टर्ेट
को उस धारा की उपधारा (5) के खंड (क) म िनिदष्ट दस्तावेज के भागरूप म भेजेगा ।]

[54. िगरफ्तार िक्त की िचिकत्सा अिधकारी ारा परीक्षा—(1) जब कोई िक्त िगरफ्तार िकया जाता है तब िगरफ्तार िकए
1

जाने के तुरंत पश्चात् उसकी कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार के सेवाधीन िचिकत्सा अिधकारी और जहां िचिकत्सा अिधकारी उपलब्ध
नह ह वहां रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा वसायी ारा परीक्षा की जाएगी :

परं तु जहां िगरफ्तार िकया गया िक्त मिहला है, वहां उसके शरीर की परीक्षा के वल मिहला िचिकत्सा अिधकारी और जहां
मिहला िचिकत्सा अिधकारी उपलब्ध नह है वहां रिजस्टर्ीकृ त मिहला िचिकत्सा वसायी ारा या उसके पयर्वेक्षणाधीन की जाएगी ।

(2) िगरफ्तार िकए गए िक्त की इस पर्कार परीक्षा करने वाला िचिकत्सा अिधकारी या रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा वसायी ऐसी
परीक्षा का अिभलेख तैयार करे गा िजसम िगरफ्तार िकए गए िक्त के शरीर पर िकन्ह क्षितय या िहसा के िचह्न तथा अनुमािनत
समय का वणर्न करे गा जब ऐसी क्षित या िचह्न पहुंचाए गए ह गे ।

(3) जहां उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है वहां ऐसी परीक्षा की िरपोटर् की एक पर्ित, यथािस्थित, िचिकत्सा अिधकारी या
रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा वसायी ारा िगरफ्तार िकए गए िक्त या ऐसे िगरफ्तार िकए गए िक्त ारा नामिनिदष्ट िक्त को दी
जाएगी ।]

[54क. िगरफ्तार िक्त की िशनाख्त—जहां कोई िक्त िकसी अपराध को करने के आरोप पर िगरफ्तार िकया जाता है और
2

उसकी िशनाख्त िकसी अन्य िक्त या िक्तय ारा ऐसे अपराध के अन्वेषण के िलए आवश्यक समझी जाती है तो वहां वह
न्यायालय, िजसकी अिधकािरता है, पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के िनवेदन पर, िगरफ्तार िकए गए िक्त की, ऐसी रीित से जो
न्यायालय ठीक समझता है, िकसी अन्य िक्त या िकन्ह अन्य िक्तय ारा िशनाख्त कराने का आदेश दे सके गा :]

[परं तु यिद िगरफ्तार िकए गए व्यिक्त की शनाख्त करने वाला व्यिक्त मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है, तो शनाख्त
3

करने की ऐसी पर्िकर्या न्याियक मिजस्टर्ेट के पयर्वेक्षण के अधीन होगी जो यह सुिनिश्चत करने के िलए समुिचत कदम उठाएगा िक उसे
व्यिक्त ारा िगरफ्तार िकए गए व्यिक्त की उन पि य का पर्योग करते हुए शनाख्त की जाए, जो उस व्यिक्त के िलए सुिवधापूणर् ह :

परं तु यह और िक यिद िगरफ्तार िकए गए व्यिक्त की शनाख्त करने वाला व्यिक्त मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है, तो
शनाख्त िकए जाने की पर्िकर्या की वीिडयो िफल्म तैयार की जाएगी ।]

55. जब पुिलस अिधकारी वारं ट के िबना िगरफ्तार करने के िलए अपने अधीनस्थ को पर्ितिनयुक्त करता है तब पर्िकर्या—(1) जब
अध्याय 12 के अधीन अन्वेषण करता हुआ कोई पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी, या कोई पुिलस अिधकारी, अपने अधीनस्थ िकसी
अिधकारी से िकसी ऐसे िक्त को जो वारं ट के िबना िविधपूवर्क िगरफ्तार िकया जा सकता है, वारं ट के िबना (अपनी उपिस्थित म नह ,
अन्यथा) िगरफ्तार करने की अपेक्षा करता है, तब वह उस िक्त का िजसे िगरफ्तार िकया जाना है और उस अपराध का या अन्य कारण
का, िजसके िलए िगरफ्तारी की जानी है, िविनदश करते हुए िलिखत आदेश उस अिधकारी को पिरद करे गा िजससे यह अपेक्षा है िक वह
िगरफ्तारी करे और इस पर्कार अपेिक्षत अिधकारी उस िक्त को, िजसे िगरफ्तार करना है, उस आदेश का सार िगरफ्तारी करने के पूवर्
सूिचत करे गा और यिद वह िक्त अपेक्षा करे तो उसे वह आदेश िदखा देगा ।

(2) उपधारा (1) की कोई बात िकसी पुिलस अिधकारी की धारा 41 के अधीन िकसी िक्त को िगरफ्तार करने की शिक्त पर
पर्भाव नह डालेगी ।

[55क. िगरफ्तार िकए गए िक्त का स्वास्थ्य और सुरक्षा—अिभयुक्त को अिभरक्षा म रखने वाले


4
िक्त का यह कतर् होगा
िक वह अिभयुक्त के स्वास्थ्य और सुरक्षा की उिचत देखभाल करे ।]

56. िगरफ्तार िकए गए िक्त का मिजस्टर्ेट या पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के समक्ष ले जाया जाना—वारं ट के िबना
िगरफ्तारी करने वाला पुिलस अिधकारी अनावश्यक िवलंब के िबना और जमानत के संबंध म इसम अंतिवष्ट उपबंध के अधीन रहते हुए,
उस िक्त को, जो िगरफ्तार िकया गया है, उस मामले म अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट के समक्ष या िकसी पुिलस थाने के भारसाधक
अिधकारी के समक्ष ले जाएगा या भेजेगा ।
57. िगरफ्तार िकए गए िक्त का चौबीस घंटे से अिधक िनरु न िकया जाना—कोई पुिलस अिधकारी वारं ट के िबना िगरफ्तार
िकए गए िक्त को उससे अिधक अविध के िलए अिभरक्षा म िनरु नह रखेगा जो उस मामले की सब पिरिस्थितय म उिचत है तथा

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 8 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 11 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2013 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 12 ारा अंत:स्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 9 ारा अंत:स्थािपत ।
19

ऐसी अविध, मिजस्टर्ेट के धारा 167 के अधीन िवशेष आदेश के अभाव म िगरफ्तारी के स्थान से मिजस्टर्ेट के न्यायालय तक यातर्ा के िलए
आवश्यक समय को छोड़कर, चौबीस घंटे से अिधक की नह होगी ।
58. पुिलस का िगरफ्तािरय की िरपोटर् करना—पुिलस थान के भारसाधक अिधकारी िजला मिजस्टर्ेट को, या उसके ऐसा िनदेश
देने पर, उपखंड मिजस्टर्ेट को, अपने-अपने थान की सीमा के अंदर वारं ट के िबना िगरफ्तार िकए गए सब िक्तय के मामल की
िरपोटर् करगे, चाहे उन िक्तय की जमानत ले ली गई हो या नह ।
59. पकड़े गए िक्त का उन्मोचन—पुिलस अिधकारी ारा िगरफ्तार िकए गए िकसी िक्त का उन्मोचन उसी के बंधपतर् पर या
जमानत पर या मिजस्टर्ेट के िवशेष आदेश के अधीन ही िकया जाएगा, अन्यथा नह ।
60. िनकल भागने पर पीछा करने और िफर पकड़ लेने की शिक्त—(1) यिद कोई िक्त िविधपूणर् अिभरक्षा म से िनकल भागता
है या छु ड़ा िलया जाता है तो वह िक्त, िजसकी अिभरक्षा से वह िनकल भागा है, छु ड़ाया गया है, उसका तुरंत पीछा कर सकता है और
भारत के िकसी स्थान म उसे िगरफ्तार कर सकता है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िगरफ्तािरय को धारा 47 के उपबंध लागू ह गे भले ही ऐसी िगरफ्तारी करने वाला िक्त वारं ट के
अधीन कायर् न कर रहा हो और िगरफ्तारी करने का पर्ािधकार रखने वाला पुिलस अिधकारी न हो ।
[60क. िगरफ्तारी का सवर्था संिहता के अनुसार ही िकया जाना—कोई िगरफ्तारी इस संिहता या िगरफ्तारी के िलए उपबंध
1

करने वाली तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के उपबंध के अनुसार ही की जाएगी ।]
अध्याय 6

हािजर होने को िववश करने के िलए आदेिशकाएं


क—समन
61. समन का पर्रूप—न्यायालय ारा इस संिहता के अधीन जारी िकया गया पर्त्येक समन िलिखत रूप म और दो पर्ितय म, उस
न्यायालय के पीठासीन अिधकारी ारा या अन्य ऐसे अिधकारी ारा, िजसे उच्च न्यायालय िनयम ारा समय-समय पर िनिदष्ट करे ,
हस्ताक्षिरत होगा और उस पर उस न्यायालय की मुदर्ा लगी होगी ।
62. समन की तामील कै से की जाए—(1) पर्त्येक समन की तामील पुिलस अिधकारी ारा या ऐसे िनयम के अधीन जो राज्य
सरकार इस िनिम बनाए, उस न्यायालय के , िजसने वह समन जारी िकया है, िकसी अिधकारी ारा या अन्य लोक सेवक ारा
की जाएगी ।
(2) यिद साध्य हो तो समन िकए गए िक्त पर समन की तामील उसे उस समन की दो पर्ितय म से एक का पिरदान या िनिवदान
करके वैयिक्तक रूप से की जाएगी ।
(3) पर्त्येक िक्त, िजस पर समन की ऐसे तामील की गई है, यिद तामील करने वाले अिधकारी ारा ऐसी अपेक्षा की जाती है तो,
दूसरी पर्ित पृष्ठ के भाग पर उसके िलए रसीद हस्ताक्षिरत करे गा ।
63. िनगिमत िनकाय और सोसाइिटय पर समन की तामील—िकसी िनगम पर समन की तामील िनगम के सिचव, स्थानीय
पर्बंधक या अन्य पर्धान अिधकारी पर तामील करके की जा सकती है या भारत म िनगम के मुख्य अिधकारी के पते पर रिजस्टर्ीकृ त डाक
ारा भेजे गए पतर् ारा की जा सकती है, िजस दशा म तामील तब हुई समझी जाएगी जब डाक से साधारण रूप से वह पतर् पहुंचता ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “िनगम” से िनगिमत कं पनी या अन्य िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त सोसाइटी
रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त सोसाइटी भी है ।
64. जब समन िकए गए िक्त न िमल सक तब तामील—जहां समन िकया गया िक्त सम्यक् तत्परता बरतने पर भी न िमल सके
वहां समन की तामील दो पर्ितय म से एक को उसके कु टुंब के उसके साथ रहने वाले िकसी वयस्क पुरुष सदस्य के पास उस िक्त के िलए
छोड़कर की जा सकती है और यिद तामील करने वाले अिधकारी ारा ऐसी अपेक्षा की जाती है तो, िजस िक्त के पास समन ऐसे छोड़ा
जाता है वह दूसरी पर्ित के पृष्ठ भाग पर उसके िलए रसीद हस्ताक्षिरत करे गा ।
स्पष्टीकरण—सेवक, इस धारा के अथर् म कु टु म्ब का सदस्य नह है ।
65. जब पूवर् उपबंिधत पर्कार से तामील न की जा सके तब पर्िकर्या—यिद धारा 62, धारा 63 या धारा 64 म उपबंिधत रूप से
तामील सम्यक् तत्परता बरतने पर भी न की जा सके तो तामील करने वाला अिधकारी समन की दो पर्ितय म से एक को उस गृह या
वासस्थान के , िजसम समन िकया गया िक्त मामूली तौर पर िनवास करता है, िकसी सहजदृश्य भाग म लगाएगा ; और तब न्यायालय
ऐसी जांच करने के पश्चात् जैसी वह ठीक समझे या तो यह घोिषत कर सकता है िक समन की सम्यक् तामील हो गई है या वह ऐसी रीित
से नई तामील का आदेश दे सकता है िजसे वह उिचत समझे ।
66. सरकारी सेवक पर तामील—(1) जहां समन िकया गया िक्त सरकार की सिकर्य सेवा म है वहां समन जारी करने वाला

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 10 ारा अंत:स्थािपत ।
20

न्यायालय मामूली तौर पर ऐसा समन दो पर्ितय म उस कायार्लय के पर्धान को भेजग


े ा िजसम वह िक्त सेवक है और तब वह पर्धान,
धारा 62 म उपबंिधत पर्कार से समन की तामील कराएगा और उस धारा ारा अपेिक्षत पृष्ठांकन सिहत उस पर अपने हस्ताक्षर करके
उसे न्यायालय को लौटा देगा ।
(2) ऐसा हस्ताक्षर सम्यक् तामील का सा य होगा ।
67. स्थानीय सीमा के बाहर समन की तामील—जब न्यायालय यह चाहता है िक उसके ारा जारी िकए गए समन की तामील
उसकी स्थानीय अिधकािरता के बाहर िकसी स्थान म की जाए तब वह मामूली तौर पर ऐसा समन दो पर्ितय म उस मिजस्टर्ेट को भेजेगा
िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर उसकी तामील की जानी है या समन िकया गया िक्त िनवास करता है ।
68. ऐसे मामल म और जब तामील करने वाला अिधकारी उपिस्थत न हो तब तामील का सबूत—(1) जब न्यायालय ारा जारी
िकए गए समन की तामील उसकी स्थानीय अिधकािरता के बाहर की गई है तब और ऐसे िकसी मामले म िजसम वह अिधकारी िजसने
समन की तामील की है, मामले की सुनवाई के समय उपिस्थत नह है, मिजस्टर्ेट के समक्ष िकया गया तात्पियत यह शपथपतर् िक ऐसे समन
की तामील हो गई है और समन की दूसरी पर्ित, िजसका उस िक्त ारा िजसको समन पिरद या िनिवद िकया गया था, या िजसके
पास वह छोड़ा गया था (धारा 62 या धारा 64 म उपबंिधत पर्कार से), पृष्ठांिकत होना तात्पियत है, सा य म गर्ा होगी और जब तक
तत्पर्ितकू ल सािबत न िकया जाए, उसम िकए गए कथन सही माने जाएंगे ।
(2) इस धारा म विणत शपथपतर् समन की दूसरी पर्ित से संलग्न िकया जा सकता है और उस न्यायालय को भेजा जा सकता है ।
69. साक्षी पर डाक ारा समन की तामील—(1) इस अध्याय की पूवर्वत धारा म िकसी बात के होते हुए भी साक्षी के िलए
समन जारी करने वाला न्यायालय, ऐसा समन जारी करने के अितिरक्त और उसके साथ-साथ िनदेश दे सकता है िक उस समन की एक
पर्ित की तामील साक्षी के उस स्थान के पते पर, जहां वह मामूली तौर पर िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभाथर् स्वयं
काम करता है रिजस्टर्ीकृ त डाक ारा की जाए ।
(2) जब साक्षी ारा हस्ताक्षर की गई तात्पियत अिभस्वीकृ ित या डाक कमर्चारी ारा िकया गया तात्पियत यह पृष्ठांकन िक
साक्षी ने समन लेने से इनकार कर िदया है, पर्ाप्त हो जाता है तो समन जारी करने वाला न्यायालय यह घोिषत कर सकता है िक समन की
तामील सम्यक् रूप से कर दी गई है ।

ख—िगरफ्तारी का वारं ट
70. िगरफ्तारी के वारं ट का पर्रूप और अविध—(1) न्यायालय ारा इस संिहता के अधीन जारी िकया गया िगरफ्तारी का पर्त्येक
वारं ट िलिखत रूप म और ऐसे न्यायालय के पीठासीन अिधकारी ारा हस्ताक्षिरत होगा और उस पर उस न्यायालय की मुदर्ा लगी होगी ।
(2) ऐसा पर्त्येक वारं ट तब तक पर्वतर्न म रहेगा जब तक वह उसे जारी करने वाले न्यायालय ारा र नह कर िदया जाता है या
जब तक वह िनष्पािदत नह कर िदया जाता है ।
71. पर्ितभूित िलए जाने का िनदेश देने की शिक्त—(1) िकसी िक्त की िगरफ्तारी के िलए वारं ट जारी करने वाला कोई
न्यायालय वारं ट पर पृष्ठांकन ारा स्विववेकानुसार यह िनदेश दे सकता है िक यिद वह िक्त न्यायालय के समक्ष िविनिदष्ट समय पर
और तत्पश्चात् जब तक न्यायालय ारा अन्यथा िनदेश नह िदया जाता है तब तक अपनी हािजरी के िलए पयार्प्त पर्ितभु सिहत
बंधपतर् िनष्पािदत करता है तो वह अिधकार िजसे वारं ट िनिदष्ट िकया गया है, ऐसी पर्ितभूित लेगा और उस िक्त को अिभरक्षा से छोड़
देगा ।
(2) पृष्ठांकन म िनम्निलिखत बात किथत ह गी :—
(क) पर्ितभु की संख्या ;
(ख) वह रकम, िजसके िलए कर्मशः पर्ितभू और वह िक्त, िजसकी िगरफ्तारी के िलए वारं ट जारी िकया गया है, आब
होने ह ;
(ग) वह समय जब न्यायालय के समक्ष उसे हािजर होना है ।
(3) जब कभी इस धारा के अधीन पर्ितभूित ली जाती है तब वह अिधकारी िजसे वारं ट िनिदष्ट है बंधपतर् न्यायालय के पास
भेज देगा ।
72. वारं ट िकसको िनिदष्ट ह गे—(1) िगरफ्तारी का वारं ट मामूली तौर पर एक या अिधक पुिलस अिधकािरय को िनिदष्ट होगा ;
िकतु यिद ऐसे वारं ट का तुरंत िनष्पादन आवश्यक है और कोई पुिलस अिधकारी तुरंत न िमल सके तो वारं ट जारी करने वाला न्यायालय
िकसी अन्य िक्त या िक्तय को उसे िनिदष्ट कर सकता है और ऐसा िक्त या ऐसे िक्त उसका िनष्पादन करगे ।
(2) जब वारं ट एक से अिधक अिधकािरय या िक्तय को िनिदष्ट है तब उसका िनष्पादन उन सबके ारा या उनम से िकसी एक
या अिधक के ारा िकया जा सकता है ।
73. वारं ट िकसी भी िक्त को िनिदष्ट हो सकगे—(1) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट िकसी िनकल भागे
िस दोष, उ ोिषत अपराधी या िकसी ऐसे िक्त की जो िकसी अजमानतीय अपराध के िलए अिभयुक्त है और िगरफ्तारी से बच रहा
21

है, िगरफ्तारी करने के िलए वारं ट अपनी स्थानीय अिधकािरता के अंदर के िकसी भी िक्त को िनिदष्ट कर सकता है ।
(2) ऐसा िक्त वारं ट की पर्ािप्त को िलिखत रूप म अिभस्वीकार करे गा और यिद वह िक्त, िजसकी िगरफ्तारी के िलए वह
वारं ट जारी िकया गया है, उसके भारसाधन के अधीन िकसी भूिम या अन्य संपि म है या पर्वेश करता है तो वह उस वारं ट का
िनष्पादन करे गा ।
(3) जब वह िक्त, िजसके िवरु ऐसा वारं ट जारी िकया गया है, िगरफ्तार कर िलया जाता है, तब वह वारं ट सिहत िनकटतम
पुिलस अिधकारी के हवाले कर िदया जाएगा, जो, यिद धारा 71 के अधीन पर्ितभूित नह ली गई है तो, उसे उस मामले म अिधकािरता
रखने वाले मिजस्टर्ेट के समक्ष िभजवाएगा ।
74. पुिलस अिधकारी को िनिदष्ट वारं ट—िकसी पुिलस अिधकारी को िनिदष्ट वारं ट का िनष्पादन िकसी अन्य ऐसे पुिलस
अिधकारी ारा भी िकया जा सकता है िजसका नाम वारं ट पर उस अिधकारी ारा पृष्ठांिकत िकया जाता है िजसे वह िनिदष्ट या
पृष्ठांिकत है ।
75. वारं ट के सार की सूचना—पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त, जो िगरफ्तारी के वारं ट का िनष्पादन कर रहा है, उस िक्त को
िजसे िगरफ्तार करना है, उसका सार सूिचत करे गा और यिद ऐसी अपेक्षा की जाती है तो वारं ट उस िक्त को िदखा देगा ।
76. िगरफ्तार िकए गए िक्त का न्यायालय के समक्ष अिवलम्ब लाया जाना—पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त, जो िगरफ्तारी
के वारं ट का िनष्पादन करता है िगरफ्तार िकए गए िक्त को (धारा 71 के पर्ितभूित संबंधी उपबंध के अधीन रहते हुए) अनावश्यक
िवलंब के िबना उस न्यायालय के समक्ष लाएगा िजसके समक्ष उस िक्त को पेश करने के िलए वह िविध ारा अपेिक्षत है :
परं तु ऐसा िवलंब िकसी भी दशा म िगरफ्तारी के स्थान से मिजस्टर्ेट के न्यायालय तक यातर्ा के िलए आवश्यक समय को छोड़कर
चौबीस घंटे से अिधक नह होगा ।
77. वारं ट कहां िनष्पािदत िकया जा सकता है—िगरफ्तारी का वारं ट भारत के िकसी भी स्थान म िनष्पािदत िकया जा सकता है ।
78. अिधकािरता के बाहर िनष्पादन के िलए भेजा गया वारं ट—(1) जब वारं ट का िनष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की
स्थानीय अिधकािरता के बाहर िकया जाना है, तब वह न्यायालय ऐसा वारं ट अपनी अिधकािरता के अंदर िकसी पुिलस अिधकारी को
िनिदष्ट करने के बजाय उसे डाक ारा या अन्यथा िकसी ऐसे कायर्पालक मिजस्टर्ेट या िजला पुिलस अधीक्षक या पुिलस आयुक्त को भेज
सकता है िजसकी अिधकािरता का स्थानीय सीमा के अंदर उसका िनष्पादन िकया जाना है, और वह कायर्पालक मिजस्टर्ेट या िजला
अधीक्षक या आयुक्त उस पर अपना नाम पृष्ठांिकत करे गा और यिद साध्य है तो उसका िनष्पादन इसम इसके पूवर् उपबंिधत रीित
से कराएगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन वारं ट जारी करने वाला न्यायालय िगरफ्तार िकए जाने वाले िक्त के िवरु ऐसी जानकारी का सार
ऐसी दस्तावेज सिहत, यिद कोई हो, जो धारा 81 के अधीन कारर् वाई करने वाले न्यायालय को, यह िविनिश्चत करने म िक उस िक्त
की जमानत मंजूर की जाए या नह समथर् बनाने के िलए पयार्प्त ह, वारं ट के साथ भेजेगा ।
79. अिधकािरता के बाहर िनष्पादन के िलए पुिलस अिधकारी को िनिदष्ट वारं ट—(1) जब पुिलस अिधकारी को िनिदष्ट वारं ट का
िनष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अिधकािरता के बाहर िकया जाना है तब वह पुिलस अिधकारी उसे पृष्ठांकन के
िलए मामूली तौर पर ऐसे कायर्पालक मिजस्टर्ेट के पास या पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी से अिनम्न पंिक्त के पुिलस अिधकारी के
पास िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के अंदर उस वारं ट का िनष्पादन िकया जाना है, ले जाएगा ।
(2) ऐसा मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी उस पर अपना नाम पृष्ठांिकत करे गा और ऐसा पृष्ठांकन उस पुिलस अिधकारी के िलए,
िजसको वह वारं ट िनिदष्ट िकया गया है, उसका िनष्पादन करने के िलए पयार्प्त पर्ािधकार होगा और स्थानीय पुिलस यिद ऐसी अपेक्षा
की जाती है तो ऐसे अिधकारी की ऐसे वारं ट का िनष्पादन करने म सहायता करे गा ।
(3) जब कभी यह िवश्वास करने का कारण हो िक उस मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी का िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर वह
वारं ट िनष्पािदत िकया जाना है, पृष्ठांकन पर्ाप्त करने म होने वाले िवलंब से ऐसा िनष्पादन न हो पाएगा, तब वह पुिलस अिधकारी िजसे वह
िनिदष्ट िकया गया है उसका िनष्पादन उस न्यायालय की िजसने उसे जारी िकया है, स्थानीय अिधकािरता से परे िकसी स्थान म ऐसे
पृष्ठांकन के िबना कर सकता है ।
80. िजस िक्त के िवरु वारं ट जारी िकया गया है, उसके िगरफ्तार होने पर पर्िकर्या—जब िगरफ्तारी के वारं ट का िनष्पादन
उस िजले से बाहर िकया जाता है िजसम वह जारी िकया गया था तब िगरफ्तार िकए गए िक्त को, उस दशा के िसवाय िजसम वह
न्यायालय िजसने वह वारं ट जारी िकया िगरफ्तारी के स्थान से तीस िकलोमीटर के अंदर है या उस कायर्पालक मिजस्टर्ेट या िजला पुिलस
अधीक्षक या पुिलस आयुक्त से िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के अंदर िगरफ्तारी की गई थी, अिधक िनकट है, या धारा 71 के
अधीन पर्ितभूित ले ली गई है, ऐसे मिजस्टर्ेट या िजला अधीक्षक या आयुक्त के समक्ष ले जाया जाएगा ।
81. उस मिजस्टर्ेट ारा पर्िकर्या िजसके समक्ष ऐसे िगरफ्तार िकया गया िक्त लाया जाए—(1) यिद िगरफ्तार िकया गया िक्त
वही िक्त पर्तीत होता है जो वारं ट जारी करने वाले न्यायालय ारा आशियत है तो ऐसा कायर्पालक मिजस्टर्ेट या िजला पुिलस अधीक्षक
या पुिलस आयुक्त उस न्यायालय के पास उसे अिभरक्षा म भेजने का िनदेश देगा :
22

परं तु यिद अपराध जमानतीय है और ऐसा िक्त ऐसी जमानत देने के िलए तैयार और रजामंद है िजससे ऐसे मिजस्टर्ेट, िजला
अधीक्षक या आयुक्त का समाधान हो जाए या वारं ट पर धारा 71 के अधीन िनदेश पृष्ठांिकत है और ऐसा िक्त ऐसे िनदेश ारा
अपेिक्षत पर्ितभूित देने के िलए तैयार और रजामंद है तो वह मिजस्टर्ेट, िजला अधीक्षक या आयुक्त यथािस्थित ऐसी जमानत या पर्ितभूित
लेगा और बंधपतर् उस न्यायालय को भेज देगा िजसने वारं ट जारी िकया था :
परं तु यह और िक यिद अपराध अजमानतीय है तो (धारा 437 के उपबंध के अधीन रहते हुए) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के िलए या
उस िजले के िजसम िगरफ्तारी की गई है सेशन न्यायाधीश के िलए धारा 78 की उपधारा (2) म िनिदष्ट जानकारी और दस्तावेज पर
िवचार करने के पश्चात् ऐसे िक्त को छोड़ देना िविधपूणर् होगा ।
(2) इस धारा की कोई बात पुिलस अिधकारी को धारा 71 के अधीन पर्ितभूित लेने से रोकने वाली न समझी जाएगी ।
ग—उ ोषणा और कु क
82. फरार िक्त के िलए उ ोषणा—(1) यिद िकसी न्यायालय को (चाहे सा य लेने के पश्चात् या िलए िबना) यह िवश्वास करने
का कारण है िक कोई िक्त िजसके िवरु उसने वारं ट जारी िकया है, फरार हो गया है, या अपने को िछपा रहा है िजससे ऐसे वारं ट का
िनष्पादन नह िकया जा सकता तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करने वाली िलिखत उ ोषणा पर्कािशत कर सकता है िक वह िक्त
िविनिदष्ट स्थान म और िविनिदष्ट समय पर, जो उस उ ोषणा के पर्काशन की तारीख से कम से कम तीस िदन पश्चात् का होगा,
हािजर हो ।
(2) उ ोषणा िनम्निलिखत रूप से पर्कािशत की जाएगी :—
(i) (क) वह उस नगर या गर्ाम के , िजसम ऐसा िक्त मामूली तौर पर िनवास करता है, िकसी सहजदृश्य स्थान म
सावर्जिनक रूप से पढ़ी जाएगी ;
(ख) वह उस गृह या वासस्थान के , िजसम ऐसा िक्त मामूली तौर पर िनवास करता है, िकसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे
नगर या गर्ाम के िकसी सहजदृश्य स्थान पर लगाई जाएगी ;
(ग) उसकी एक पर्ित उस न्याय सदन के िकसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी ;
(ii) यिद न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह िनदेश भी दे सकता है िक उ ोषणा की एक पर्ित उस स्थान म, पिरचािलत
िकसी दैिनक समाचार-पतर् म पर्कािशत की जाए जहां ऐसा िक्त मामूली तौर पर िनवास करता है ।
(3) उ ोषणा जारी करने वाले न्यायालय ारा यह िलिखत कथन िक उ ोषणा िविनिदष्ट िदन उपधारा (2) के खंड (i) म
िविनिदष्ट रीित से सम्यक् रूप से पर्कािशत कर दी गई है, इस बात का िनश्चायक सा य होगा िक इस धारा की अपेक्षा का अनुपालन
कर िदया गया है और उ ोषणा उस िदन पर्कािशत कर दी गई थी ।
[(4) जहां उपधारा (1) के अधीन पर्कािशत की गई उ ोषणा भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 302, धारा 304,
1

धारा 364, धारा 367, धारा 382, धारा 392, धारा 393, धारा 394, धारा 395, धारा 396, धारा 397, धारा 398, धारा 399,
धारा 400, धारा 402, धारा 436, धारा 449, धारा 459, या धारा 460 के अधीन दंडनीय अपराध के अिभयुक्त िक्त के संबंध म है
और ऐसा िक्त उ ोषणा म अपेिक्षत िविनिदष्ट स्थान और समय पर उपिस्थत होने म असफल रहता है तो न्यायालय, तब ऐसी जांच
करने के पश्चात् जैसी वह ठीक समझता है, उसे उ ोिषत अपराधी पर्कट कर सके गा और उस पर्भाव की घोषणा कर सके गा ।
(5) उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंध न्यायालय ारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा को उसी पर्कार लागू ह गे जैसे
वे उपधारा (1) के अधीन पर्कािशत उ ोषणा को लागू होते ह ।]
83. फरार िक्त की संपि की कु क —(1) धारा 82 के अधीन उ ोषणा जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे कारण से, जो लेखब
िकए जाएंगे उ ोषणा जारी िकए जाने के पश्चात् िकसी भी समय, उ ोिषत िक्त की जंगम या स्थावर अथवा दोन पर्कार की िकसी भी
संपि की कु क का आदेश दे सकता है :
परं तु यिद उ ोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथपतर् ारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है िक वह िक्त
िजसके संबंध म उ ोषणा िनकाली जाती है—
(क) अपनी समस्त संपि या उसके िकसी भाग का यन करने वाला है, अथवा
(ख) अपनी समस्त संपि या उसके िकसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अिधकािरता से हटाने वाला है,
तो वह उ ोषणा जारी करने के साथ ही साथ कु क का आदेश दे सकता है ।
(2) ऐसा आदेश उस िजले म, िजसम वह िदया गया है, उस िक्त की िकसी भी संपि की कु क पर्ािधकृ त करे गा और उस िजले के
बाहर की उस िक्त की िकसी संपि की कु क तब पर्ािधकृ त करे गा जब वह उस िजला मिजस्टर्ेट ारा, िजसके िजले म ऐसी संपि िस्थत
है, पृष्ठांिकत कर िदया जाए ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 12 ारा अंत:स्थािपत ।
23

(3) यिद वह संपि िजसको कु कर् करने का आदेश िदया गया है, ऋण या अन्य जंगम संपि हो, तो इस धारा के अधीन कु क —
(क) अिभगर्हण ारा की जाएगी ; अथवा
(ख) िरसीवर की िनयुिक्त ारा की जाएगी ; अथवा
(ग) उ ोिषत िक्त को या उसके िनिम िकसी को भी उस संपि का पिरदान करने का पर्ितषेध करने वाले िलिखत
आदेश ारा की जाएगी ; अथवा
(घ) इन रीितय म से सब या िकन्ह दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे ।
(4) यिद वह संपि िजसको कु कर् करने का आदेश िदया गया है, स्थावर है तो इस धारा के अधीन कु क राज्य सरकार को राजस्व देने
वाली भूिम की दशा म उस िजले के कलक्टर के माध्यम से की जाएगी िजसम वह भूिम िस्थत है, और अन्य सब दशा म −
(क) कब्जा लेकर की जाएगी ; अथवा
(ख) िरसीवर की िनयुिक्त ारा की जाएगी ; अथवा
(ग) उ ोिषत िक्त को या उसके िनिम िकसी को भी संपि का िकराया देने या उस संपि का पिरदान करने का
पर्ितषेध करने वाले िलिखत आदेश ारा की जाएगी ; अथवा
(घ) इन रीितय म से सब या िकन्ह दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे ।
(5) यिद वह संपि िजसको कु कर् करने का आदेश िदया गया है, जीवधन है या िवनश्वर पर्कृ ित की है तो, यिद न्यायालय समीचीन
समझता है तो वह उसके तुरंत िवकर्य का आदेश दे सकता है और ऐसी दशा म िवकर्य के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहगे ।
(6) उस धारा के अधीन िनयुक्त िरसीवर की शिक्तयां, कतर् और दाियत्व वे ही ह गे जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5)
के अधीन िनयुक्त िरसीवर के होते ह ।
84. कु क के बारे म दावे और आपि यां—(1) यिद धारा 83 के अधीन कु कर् की गई िकसी संपि के बारे म उस कु क की तारीख से
छह मास के भीतर कोई िक्त, जो उ ोिषत िक्त से िभन्न है, इस आधार पर दावा या उसके कु कर् िकए जाने पर आपि करता है िक
दावेदार या आपि कतार् का उस संपि म कोई िहत है और ऐसा िहत धारा 83 के अधीन कु कर् नह िकया जा सकता तो उस दावे या आपि
की जांच की जाएगी, और उसे पूणर्त: या भागत: मंजूर या नामंजूर िकया जा सकता है :
परं तु इस उपधारा ारा अनुज्ञात अविध के अंदर िकए गए िकसी दावे या आपि को दावेदार या आपि कतार् की मृत्यु हो जाने की
दशा म उसके िविधक पर्ितिनिध ारा चालू रखा जा सकता है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन दावे या आपि यां उस न्यायालय म, िजसके ारा कु क का आदेश जारी िकया गया है, या यिद दावा या
आपि ऐसी संपि के बारे म है जो धारा 83 की उपधारा (2) के अधीन पृष्ठांिकत आदेश के अधीन कु कर् की गई है तो, उस िजले के ,
िजसम कु क की जाती है मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय म की जा सकती है ।
(3) पर्त्येक ऐसे दावे या आपि की जांच उस न्यायालय ारा की जाएगी िजसम वह िकया गया या की गई है :
परं तु यिद वह मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय म िकया गया या की गई है तो वह उसे िनपटारे के िलए अपने अधीनस्थ िकसी
मिजस्टर्ेट को दे सकता है ।
(4) कोई िक्त, िजसके दावे या आपि को उपधारा (1) के अधीन आदेश ारा पूणर्त: या भागत: नामंजूर कर िदया गया है, ऐसे
आदेश की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर, उस अिधकार को िस करने के िलए, िजसका दावा वह िववादगर्स्त संपि के बारे म
करता है, वाद संिस्थत कर सकता है ; िकतु वह आदेश ऐसे वाद के , यिद कोई हो, पिरणाम के अधीन रहते हुए िनश्चायक होगा ।
85. कु कर् की हुई संपि को िनमुक्
र् त करना, िवकर्य और वापस करना—(1) यिद उ ोिषत िक्त उ ोषणा म िविनिदष्ट समय के
अंदर हािजर हो जाता है तो न्यायालय संपि को कु क से िनमुर्क्त करने का आदेश देगा ।
(2) यिद उ ोिषत िक्त उ ोषणा म िविनिदष्ट समय के अंदर हािजर नह होता है तो कु कर् संपि , राज्य सरकार के यनाधीन
रहेगी, और, उसका िवकर्य कु क की तारीख से छह मास का अवसान हो जाने पर तथा धारा 84 के अधीन िकए गए िकसी दावे या आपि
का उस धारा के अधीन िनपटारा हो जाने पर ही िकया जा सकता है िकतु यिद वह शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है या न्यायालय के
िवचार म िवकर्य करना स्वामी के फायदे के िलए होगा तो इन दोन दशा म से िकसी म भी न्यायालय, जब कभी ठीक समझे, उसका
िवकर्य करा सकता है ।
(3) यिद कु क की तारीख से दो वषर् के अंदर कोई िक्त, िजसकी संपि उपधारा (2) के अधीन राज्य सरकार के यनाधीन है या
रही है, उस न्यायालय के समक्ष, िजसके आदेश से वह संपि कु कर् की गई थी या उस न्यायालय के समक्ष, िजसके ऐसे न्यायालय अधीनस्थ
है, स्वेच्छा से हािजर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है और उस न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर देता है िक वह
वारं ट के िनष्पादन से बचने के पर्योजन से फरार नह हुआ या नह िछपा और यह िक उसे उ ोषणा की ऐसी सूचना नह िमली थी िजससे
वह उसम िविनिदष्ट समय के अंदर हािजर हो सकता तो ऐसी संपि का, या यिद वह िवकर्य कर दी गई है तो िवकर्य के शु आगम का,
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या यिद उसका के वल कु छ भाग िवकर्य िकया गया है तो ऐसे िवकर्य के शु आगम और अविशष्ट संपि का, कु क के पिरणामस्वरूप
उपगत सब खच को उसम से चुका कर, उसे पिरदान कर िदया जाएगा ।
86. कु कर् संपि की वापसी के िलए आवेदन नामंजरू करने वाले आदेश से अपील—धारा 85 की उपधारा (3) म िनिदष्ट कोई
िक्त, जो संपि या उसके िवकर्य के आगम के पिरदान के इनकार से िथत है, उस न्यायालय से अपील कर सकता है िजसम पर्थम
उिल्लिखत न्यायालय के दंडादेश से सामान्यता या अपील होती ह ।
घ—आदेिशका संबध
ं ी अन्य िनयम
87. समन के स्थान पर या उसके अितिरक्त वारं ट का जारी िकया जाना—न्यायालय िकसी भी ऐसे मामले म, िजसम वह िकसी
िक्त की हािजरी के िलए समन जारी करने के िलए इस संिहता ारा सशक्त िकया गया है, अपने कारण को अिभिलिखत करने के
पश्चात्, उसकी िगरफ्तारी के िलए वारं ट जारी कर सकता है—
(क) यिद या तो ऐसा समन जारी िकए जाने के पूवर् या पश्चात् िकतु उसकी हािजरी के िलए िनयत समय के पूवर् न्यायालय
को यह िवश्वास करने का कारण िदखाई पड़ता है िक वह फरार हो गया है या समन का पालन न करे गा ; अथवा
(ख) यिद वह ऐसे समय पर हािजर होने म असफल रहता है और यह सािबत कर िदया जाता है िक उस पर समन की
तामील सम्यक् रूप से ऐसे समय म कर दी गई थी िक उसके तद्नुसार हािजर होने के िलए अवसर था और ऐसी असफलता के िलए
कोई उिचत पर्ितहेतु नह िदया जाता है ।
88. हािजरी के िलए बंधपतर् लेने की शिक्त—जब कोई िक्त, िजसकी हािजरी या िगरफ्तारी के िलए िकसी न्यायालय का
पीठासीन अिधकारी समन या वारं ट जारी करने के िलए सशक्त है, ऐसे न्यायालय म उपिस्थत है तब वह अिधकारी उस िक्त से अपेक्षा
कर सकता है िक वह उस न्यायालय म या िकसी अन्य न्यायालय म, िजसको मामला िवचारण के िलए अंतिरत िकया जाता है, अपनी
हािजरी के िलए बंधपतर्, पर्ितभु सिहत या रिहत, िनष्पािदत करे ।
89. हािजरी का बंधपतर् भंग करने पर िगरफ्तारी—जब कोई िक्त, जो इस संिहता के अधीन िलए गए िकसी बंधपतर् ारा
न्यायालय के समक्ष हािजर होने के िलए आब है, हािजर नह होता है तब उस न्यायालय का पीठासीन अिधकारी यह िनदेश देते हुए
वारं ट जारी कर सकता है िक वह िक्त िगरफ्तार िकया जाए और उसके समक्ष पेश िकया जाए ।
90. इस अध्याय के उपबंध का साधारणतया समन और िगरफ्तारी के वारं ट को लागू होना—समन और वारं ट तथा उन्ह जारी
करने, उनकी तामील और उनके िनष्पादन संबंधी जो उपबंध इस अध्याय म ह वे इस संिहता के अधीन जारी िकए गए पर्त्येक समन और
िगरफ्तारी के पर्त्येक वारं ट को, यथाशक्य लागू ह गे ।
अध्याय 7

चीज पेश करने को िववश करने के िलए आदेिशकाएं


6 क—पेश करने के िलए समन
91. दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के िलए समन—(1) जब कभी कोई न्यायालय या पुिलस थाने का कोई भारसाधक
अिधकारी यह समझता है िक िकसी ऐसे अन्वेषण, जांच, िवचारण, या अन्य कायर्वाही के पर्योजन के िलए, जो इस संिहता के अधीन
ऐसे न्यायालय या अिधकारी के ारा या समक्ष हो रही ह, िकसी दस्तावेज या अन्य चीज का पेश िकया जाना आवश्यक या वांछनीय है
तो िजस िक्त के कब्जे या शिक्त म ऐसी दस्तावेज या चीज के होने का िवश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा
अिधकारी एक िलिखत आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है िक उस समन या आदेश म उिल्लिखत समय और स्थान
पर उसे पेश करे अथवा हािजर हो और उसे पेश करे ।
(2) यिद कोई िक्त, िजससे इस धारा के अधीन दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के िलए
स्वयं हािजर होने के बजाय उस दस्तावेज या चीज को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा िक उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर
िदया है ।
(3) इस धारा की कोई बात—
(क) भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 या बककार बही सा य अिधिनयम,
1891 (1891 का 13) पर पर्भाव डालने वाली नह समझी जाएगी  अथवा
(ख) डाक या तार पर्ािधकारी की अिभरक्षा म िकसी पतर्, पोस्टकाडर्, तार या अन्य दस्तावेज या िकसी पासर्ल या चीज को
लागू होने वाली नह समझी जाएगी ।
92. पतर् और तार के संबध ं म पर्िकर्या—(1) यिद िकसी िजला मिजस्टर्ेट, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, सेशन न्यायालय या उच्च
न्यायालय की राय म िकसी डाक या तार पर्ािधकारी की अिभरक्षा की कोई दस्तावेज, पासर्ल या चीज इस संिहता के अधीन िकसी
अन्वेषण, जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के पर्योजन के िलए चािहए तो वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय, यथािस्थित, डाक या तार
पर्ािधकारी से यह अपेक्षा कर सकता है िक उस दस्तावेज, पासर्ल या चीज का पिरदान उस िक्त को, िजसका वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय
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िनदेश दे, कर िदया जाए ।


(2) यिद िकसी अन्य मिजस्टर्ेट की, चाहे वह कायर्पालक है या न्याियक, या िकसी पुिलस आयुक्त या िजला पुिलस अधीक्षक की राय
म ऐसी कोई दस्तावेज, पासर्ल या चीज ऐसे िकसी पर्योजन के िलए चािहए तो वह, यथािस्थित, डाक या तार पर्ािधकारी से अपेक्षा कर
सकता है िक वह ऐसी दस्तावेज, पासर्ल या चीज के िलए तलाशी कराए और उसे उपधारा (1) के अधीन िजला मिजस्टर्ेट, मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट या न्यायालय के आदेश के िमलने तक िनरु रखे ।
ख—तलाशी-वारं ट
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93. तलाशी-वारं ट कब जारी िकया जा सकता है—(1)(क) जहां िकसी न्यायालय को यह िवश्वास करने का कारण है िक वह िक्त,
िजसको धारा 91 के अधीन समन या आदेश या धारा 92 की उपधारा (1) के अधीन अपेक्षा संबोिधत की गई है या की जाती है, ऐसे समन
या अपेक्षा ारा यथा अपेिक्षत दस्तावेज या चीज पेश नह करे गा या हो सकता है िक पेश न करे  अथवा
(ख) जहां ऐसी दस्तावेज या चीज के बारे म न्यायालय को यह ज्ञात नह है िक वह िकसी िक्त के कब्जे म है  अथवा
(ग) जहां न्यायालय यह समझता है िक इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के पर्योजन की पूित साधारण
तलाशी या िनरीक्षण से होगी, वहां वह तलाशी-वारं ट जारी कर सकता है  और वह िक्त िजसे ऐसा वारं ट िनिदष्ट है, उसके अनुसार और
इसम इसके पश्चात् अंतिवष्ट उपबंध के अनुसार तालशी ले सकता है या िनरीक्षण कर सकता है ।
(2) यिद, न्यायालय ठीक समझता है, तो वह वारं ट म उस िविशष्ट स्थान या उसके भाग को िविनिदष्ट कर सकता है और के वल
उसी स्थान या भाग की तलाशी या िनरीक्षण होगा  तथा वह िक्त िजसको ऐसे वारं ट के िनष्पादन का भार स पा जाता है के वल उसी
स्थान या भाग की तलाशी लेगा या िनरीक्षण करे गा जो ऐसे िविनिदष्ट है ।
(3) इस धारा की कोई बात िजला मिजस्टर्ेट या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट से िभन्न िकसी मिजस्टर्ेट को डाक या तार पर्ािधकारी की
अिभरक्षा म िकसी दस्तावेज, पासर्ल या अन्य चीज की तलाशी के िलए वारं ट जारी करने के िलए पर्ािधकृ त नह करे गी ।
94. उस स्थान की तलाशी, िजसम चुराई हुई संपि , कू टरिचत दस्तावेज आिद होने का संदह े है—(1) यिद िजला मिजस्टर्ेट,
उपखंड मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को इि ला िमलने पर और ऐसी जांच के पश्चात् जैसी वह आवश्यक समझे, यह िवश्वास करने
का कारण है िक कोई स्थान चुराई हुई संपि के िनक्षेप या िवकर्य के िलए या िकसी ऐसी आपि जनक वस्तु के , िजसको यह धारा लागू
होती है, िनक्षेप, िवकर्य या उत्पादन के िलए उपयोग म लाया जाता है, या कोई ऐसी आपि जनक वस्तु िकसी स्थान म िनिक्षप्त है, तो वह
कांस्टेबल की पंिक्त से ऊपर के िकसी पुिलस अिधकारी को वारं ट ारा यह पर्ािधकार दे सकता है िक वह—
(क) उस स्थान म ऐसी सहायता के साथ, जैसी आवश्यक हो, पर्वेश करे 
(ख) वारं ट म िविनिदष्ट रीित से उसकी तलाशी ले 
(ग) वहां पाई गई िकसी भी संपि या वस्तु को, िजसके चुराई हुई संपि या ऐसी आपि जनक वस्तु, िजसको यह धारा
लागू होती है, होने का उसे उिचत संदह
े है, कब्जे म ले 
(घ) ऐसी संपि या वस्तु को मिजस्टर्ेट के पास ले जाए या अपराधी को मिजस्टर्ेट के समक्ष ले जाने तक उसको उसी स्थान
पर पहरे म रखे या अन्यथा उसे िकसी सुरिक्षत स्थान म रखे 
(ङ) ऐसे स्थान म पाए गए ऐसे पर्त्येक िक्त को अिभरक्षा म ले और मिजस्टर्ेट के समक्ष ले जाए, िजसके बारे म पर्तीत हो
िक वह िकसी ऐसी संपि या वस्तु के िनक्षेप, िवकर्य या उत्पादन म यह जानते हुए या संदह े करने का उिचत कारण रखते हुए
संसग रहा है िक, यथािस्थित, वह चुराई हुई संपि है या ऐसी आपि जनक वस्तु है, िजसको यह धारा लागू होती है ।
(2) वे आपि जनक वस्तुए,ं िजनको यह धारा लागू होती है, िनम्निलिखत ह —
(क) कू टकृ त िसक्का 
(ख) धातु टोकन अिधिनयम, 1889 (1889 का 1) के उल्लंघन म बनाए गए अथवा सीमाशुल्क अिधिनयम,
1962 (1962 का 52) की धारा 11 के अधीन तत्समय पर्वृ िकसी अिधसूचना के उल्लंघन म भारत म लाए गए धातु-खंड 
(ग) कू टकृ त करसी नोट  कू टकृ त स्टाम्प 
(घ) कू टरिचत दस्तावेज 
(ङ) नकली मुदर्ाएं 
(च) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 292 म िनिदष्ट अश्लील वस्तुं 
(छ) खंड (क) से (च) तक के खंड म उिल्लिखत वस्तु म से िकसी के उत्पादन के िलए पर्युक्त उपकरण या सामगर्ी ।
95. कु छ पर्काशन के समपहृत होने की घोषणा करने और उनके िलए तलाशी-वारं ट जारी करने की शिक्त—(1) जहां राज्य
सरकार को पर्तीत होता है िक—
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(क) िकसी समाचार-पतर् या पुस्तक म  अथवा


(ख) िकसी दस्तावेज म,
चाहे वह कह भी मुिदर्त हुई हो, कोई ऐसी बात अंतिवष्ट है िजसका पर्काशन भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 124क या
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धारा 153क या धारा 153ख या धारा 292 या धारा 293 या धारा 295क के अधीन दंडनीय है, वहां राज्य सरकार ऐसी बात अंतिवष्ट
करने वाले समाचार-पतर् के अंक की पर्त्येक पर्ित का और ऐसी पुस्तक या अन्य दस्तावेज की पर्त्येक पर्ित का सरकार के पक्ष म समपहरण
कर िलए जाने की घोषणा, अपनी राय के आधार का कथन करते हुए, अिधसूचना ारा कर सकती है और तब भारत म, जहां भी वह
िमले, कोई भी पुिलस अिधकारी उसे अिभगृहीत कर सकता है और कोई मिजस्टर्ेट, उप-िनरीक्षक से अिनम्न पंिक्त के िकसी पुिलस
अिधकारी को, िकसी ऐसे पिरसर म, जहां ऐसे िकसी अंक की कोई पर्ित या ऐसी कोई पुस्तक या अन्य दस्तावेज है या उसके होने का
उिचत संदहे है, पर्वेश करने और उसके िलए तलाशी लेने के िलए वारं ट ारा पर्ािधकृ त कर सकता है ।
(2) इस धारा म और धारा 96 म—
(क) “समाचार-पतर्” और “पुस्तक” के वे ही अथर् ह गे जो पर्ेस और पुस्तक रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1867 (1867 का 25)
म ह,
(ख) “दस्तावेज” के अंतगर्त रं गिचतर् रे खािचतर् या फोटोिचतर् या अन्य दृश्यरूपण भी ह ।
(3) इस धारा के अधीन पािरत िकसी आदेश या की गई िकसी कारर् वाई को िकसी न्यायालय म धारा 96 के उपबंध के अनुसार ही
पर्श्नगत िकया जाएगा अन्यथा नह ।
96. समपहरण की घोषणा को अपास्त करने के िलए उच्च न्यायालय म आवेदन—(1) िकसी ऐसे समाचार-पतर्, पुस्तक या अन्य
दस्तावेज म, िजसके बारे म धारा 95 के अधीन समपहरण की घोषणा की गई है, कोई िहत रखने वाला कोई िक्त उस घोषणा के
राजपतर् म पर्काशन की तारीख से दो मास के अंदर उस घोषणा को इस आधार पर अपास्त कराने के िलए उच्च न्यायालय म आवेदन कर
सकता है िक समाचार-पतर् के उस अंक या उस पुस्तक अथवा अन्य दस्तावेज म, िजसके बारे म वह घोषणा की गई थी  कोई ऐसी बात
अंतिवष्ट नह है जो धारा 95 की उपधारा (1) म िनिदष्ट है ।
(2) जहां उच्च न्यायालय म तीन या अिधक न्यायाधीश ह, वहां ऐसा पर्त्येक आवेदन उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश से बनी
िवशेष न्यायपीठ ारा सुना और अवधािरत िकया जाएगा और जहां उच्च न्यायालय म तीन से कम न्यायाधीश ह वहां ऐसी िवशेष
न्यायपीठ म उस उच्च न्यायालय के सब न्यायाधीश ह गे ।
(3) िकसी समाचार-पतर् के संबंध म ऐसे िकसी आवेदन की सुनवाई म, उस समाचार-पतर् म, िजसकी बाबत समपहरण की घोषणा
की गई थी, अंतिवष्ट शब्द , िचह्न या दृश्यरूपण की पर्कृ ित या पर्वृि के सबूत म सहायता के िलए उस समाचार-पतर् की कोई पर्ित
सा य म दी जा सकती है ।
(4) यिद उच्च न्यायालय का इस बारे म समाधान नह होता है िक समाचार-पतर् के उस अंक म या उस पुस्तक या अन्य दस्तावेज
म, िजसके बारे म वह आवेदन िकया गया है, कोई ऐसी बात अंतिवष्ट है जो धारा 95 की उपधारा (1) म िनिदष्ट है, तो वह समपहरण की
घोषणा को अपास्त कर देगा ।
(5) जहां उन न्यायाधीश म, िजनसे िवशेष न्यायपीठ बनी है, मतभेद है वहां िविनश्चय उन न्यायाधीश की बहुसंख्या की राय के
अनुसार होगा ।
97. सदोष पिररु िक्तय के िलए तलाशी—यिद िकसी िजला मिजस्टर्ेट, उपखंड मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को यह
िवश्वास करने का कारण है िक कोई िक्त ऐसी पिरिस्थितय म पिररु है, िजनम वह पिररोध अपराध की कोिट म आता है, तो वह
तलाशी-वारं ट जारी कर सकता है और वह िक्त, िजसको ऐसा वारं ट िनिदष्ट िकया जाता है, ऐसे पिररु िक्त के िलए तलाशी ले
सकता है, और ऐसी तलाशी तद्नुसार ही ली जाएगी और यिद वह िक्त िमल जाए, तो उसे तुरंत मिजस्टर्ेट के समक्ष ले जाया जाएगा,
जो ऐसा आदेश करे गा जैसा उस मामले की पिरिस्थितय म उिचत पर्तीत हो ।
98. अपहृत िस्तर्य को वापस करने के िलए िववश करने की शिक्त—िकसी स्तर्ी या अठारह वषर् से कम आयु की िकसी बािलका के
िकसी िविधिवरु पर्योजन के िलए अपहृत िकए जाने या िविधिवरु िनरु रखे जाने का शपथ पर पिरवाद िकए जाने की दशा म िजला
मिजस्टर्ेट, उपखंड मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट यह आदेश कर सकता है िक उस स्तर्ी को तुरंत स्वतंतर् िकया जाए या वह बािलका उसके
पित, माता-िपता, संरक्षक या अन्य िक्त को, जो उस बािलका का िविधपूणर् भारसाधक है, तुरंत वापस कर दी जाए और ऐसे आदेश का
अनुपालन ऐसे बल के पर्योग ारा, जैसा आवश्यक हो, करा सकता है ।
ग—तलाशी संबध
49 ं ी साधारण उपबंध
99. तलाशी-वारं ट का िनदेशन आिद—धारा 38, 70, 72, 74, 77, 78 और 79 के उपबंध, जहां तक हो सके , उन सब
तलाशी-वारं ट को लागू ह गे जो धारा 93, धारा 94, धारा 95 या धारा 97 के अधीन िकए जाते ह ।
100. बंद स्थान के भारसाधक िक्त तलाशी लेने दगे—(1) जब कभी इस अध्याय के अधीन तलाशी िलए जाने या िनरीक्षण िकए
जाने वाला कोई स्थान बंद है तब उस स्थान म िनवास करने वाला या उसका भारसाधक िक्त उस अिधकारी या अन्य िक्त की, जो
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वारं ट का िनष्पादन कर रहा है, मांग पर और वारं ट के पेश िकए जाने पर उसे उसम अबाध पर्वेश करने देगा और वहां तलाशी लेने के िलए
सब उिचत सुिवधाएं देगा ।
(2) यिद उस स्थान म इस पर्कार पर्वेश पर्ाप्त नह हो सकता है तो वह अिधकारी या अन्य िक्त, जो वारं ट का िनष्पादन कर रहा
है धारा 47 की उपधारा (2) ारा उपबंिधत रीित से कायर्वाही कर सके गा ।
(3) जहां िकसी ऐसे िक्त के बारे म, जो ऐसे स्थान म या उसके आसपास है, उिचत रूप से यह संदह
े िकया जाता है िक वह अपने
शरीर पर कोई ऐसी वस्तु िछपाए हुए है िजसके िलए तलाशी ली जानी चािहए तो उस िक्त की तलाशी ली जा सकती है और यिद वह
िक्त स्तर्ी है, तो तलाशी िशष्टता का पूणर् ध्यान रखते हुए अन्य स्तर्ी ारा ली जाएगी ।
(4) इस अध्याय के अधीन तलाशी लेने के पूवर् ऐसा अिधकारी या अन्य िक्त, जब तलाशी लेने ही वाला हो, तलाशी म हािजर
रहने और उसके साक्षी बनने के िलए उस मुहल्ले के , िजसम तलाशी िलया जाने वाला स्थान है, दो या अिधक स्वतंतर् और पर्िति त
िनवािसय को या यिद उक्त मुहल्ले का ऐसा कोई िनवासी नह िमलता है या उस तलाशी का साक्षी होने के िलए रजामंद नह है तो
िकसी अन्य मुहल्ले के ऐसे िनवािसय को बुलाएगा और उनको या उनम से िकसी को ऐसा करने के िलए िलिखत आदेश जारी कर सके गा ।
(5) तलाशी उनकी उपिस्थित म ली जाएगी और ऐसी तलाशी के अनुकर्म म अिभगृहीत सब चीज की और िजन-िजन स्थान म वे
पाई गई ह उनकी सूची ऐसे अिधकारी या अन्य िक्त ारा तैयार की जाएगी और ऐसे सािक्षय ारा उस पर हस्ताक्षर िकए जाएंगे,
िकतु इस धारा के अधीन तलाशी के साक्षी बनने वाले िकसी िक्त से, तलाशी के साक्षी के रूप म न्यायालय म हािजर होने की अपेक्षा
उस दशा म ही की जाएगी जब वह न्यायालय ारा िवशेष रूप से समन िकया गया हो ।
(6) तलाशी िलए जाने वाले स्थान के अिधभोगी को या उसकी ओर से िकसी िक्त को तलाशी के दौरान हािजर रहने की अनुज्ञा
पर्त्येक दशा म दी जाएगी और इस धारा के अधीन तैयार की गई उक्त सािक्षय ारा हस्ताक्षिरत सूची की एक पर्ितिलिप ऐसे अिधभोगी
या ऐसे िक्त को पिरद की जाएगी ।
(7) जब िकसी िक्त की तलाशी उपधारा (3) के अधीन ली जाती है तब कब्जे म ली गई सब चीज की सूची तैयार की जाएगी
और उसकी एक पर्ितिलिप ऐसे िक्त को पिरद की जाएगी ।
(8) कोई िक्त जो इस धारा के अधीन तलाशी म हािजर रहने और साक्षी बनने के िलए ऐसे िलिखत आदेश ारा, जो उसे पिरद
या िनिवद िकया गया है, बुलाए जाने पर, ऐसा करने से उिचत कारण के िबना इनकार या उसम उपेक्षा करे गा, उसके बारे म यह समझा
जाएगा िक उसने भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 187 के अधीन अपराध िकया है ।
101. अिधकािरता के परे तलाशी म पाई गई चीज का यन—जब तलाशी-वारं ट को िकसी ऐसे स्थान म िनष्पािदत करने म, जो
उस न्यायालय की िजसने उसे जारी िकया है, स्थानीय अिधकािरता से परे है, उन चीज म से, िजनके िलए तलाशी ली गई है, कोई चीज
पाई जाएं तब वे चीज, इसम इसके पश्चात् अंतिवष्ट उपबंध के अधीन तैयार की गई, उनकी सूची के सिहत उस न्यायालय के समक्ष, िजसने
वारं ट जारी िकया था तुरंत ले जाई जाएंगी िकतु यिद वह स्थान ऐसे न्यायालय की अपेक्षा उस मिजस्टर्ेट के अिधक समीप है, जो वहां
अिधकािरता रखता है, तो सूची और चीज उस मिजस्टर्ेट के समक्ष तुंरत ले जाई जाएंगी और जब तक तत्पर्ितकू ल अच्छा कारण न हो, वह
मिजस्टर्ेट उन्ह ऐसे न्यायालय के पास ले जाने के िलए पर्ािधकृ त करने का आदेश देगा ।
घ—पर्कीणर्
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102. कु छ संपि को अिभगृहीत करने की पुिलस अिधकारी की शिक्त—(1) कोई पुिलस अिधकारी िकसी ऐसी संपि को,
अिभगृहीत कर सकता है िजसके बारे म यह अिभकथन या संदह
े है िक वह चुराई हुई है अथवा जो ऐसी पिरिस्थितय म पाई जाती है,
िजनसे िकसी अपराध के िकए जाने का संदह
े हो ।
(2) यिद ऐसा पुिलस अिधकारी पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के अधीनस्थ है तो वह उस अिधगर्हण की िरपोटर् उस
अिधकारी को तत्काल देगा ।
1
[(3) उपधारा (1) के अधीन कायर् करने वाला पर्त्येक पुिलस अिधकारी अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को अिभगर्हण की िरपोटर्
तुरंत देगा और जहां अिभगृहीत संपि ऐसी है िक वह सुगमता से न्यायालय म नह लाई जा सकती है 2 [या जहां ऐसी संपि की
अिभरक्षा के िलए उिचत स्थान पर्ाप्त करने म किठनाई है, या जहां अन्वेषण के पर्योजन के िलए संपि को पुिलस अिभरक्षा म िनरं तर
रखा जाना आवश्यक नह समझा जाता है] वहां वह उस संपि को िकसी ऐसे िक्त की अिभरक्षा म देगा जो यह वचनबंध करते हुए
बंधपतर् िनष्पािदत करे िक वह संपि को जब कभी अपेक्षा की जाए तब न्यायालय के समक्ष पेश करे गा और उसके यन की बाबत
न्यायालय के अितिरक्त आदेश का पालन करे गा ]
[परं तु जहां उपधारा (1) के अधीन अिभगृहीत की गई संपि शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील हो और यिद ऐसी संपि के कब्जे
3

का हकदार िक्त अज्ञात है अथवा अनुपिस्थत है और ऐसी संपि का मूल्य पांच सौ रुपए से कम है, तो उसका पुिलस अधीक्षक के आदेश
से तत्काल नीलामी ारा िवकर्य िकया जा सके गा और धारा 457 और धारा 458 के उपबंध, यथासाध्य िनकटतम रूप म, ऐसे िवकर्य के

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 13 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 13 ारा जोड़ा गया ।
28

शु आगम को लागू ह गे ।]
103. मिजस्टर्ेट अपनी उपिस्थित म तलाशी ली जाने का िनदेश दे सकता है—कोई मिजस्टर्ेट िकसी स्थान की, िजसकी तलाशी के
िलए वह तलाशी वारं ट जारी करने के िलए सक्षम है, अपनी उपिस्थित म तलाशी ली जाने का िनदेश दे सकता है ।
104. पेश की गई दस्तावेज आिद, को पिरब करने की शिक्त—यिद कोई न्यायालय ठीक समझता है, तो वह िकसी दस्तावेज या
चीज को, जो इस संिहता के अधीन उसके समक्ष पेश की गई है, पिरब कर सकता है ।
105. आदेिशका के बारे म ितकारी वस्था—(1) जहां उन राज्य क्षेतर् का कोई न्यायालय, िजन पर इस संिहता का िवस्तार
है (िजन्ह इसके पश्चात् इस धारा म उक्त राज्यक्षेतर् कहा गया है) यह चाहता है िक—
(क) िकसी अिभयुक्त िक्त के नाम िकसी समन की  अथवा
(ख) िकसी अिभयुक्त िक्त की िगरफ्तारी के िलए िकसी वारं ट की  अथवा
(ग) िकसी िक्त के नाम यह अपेक्षा करने वाले ऐसे िकसी समन की िक वह िकसी दस्तावेज या अन्य चीज को पेश करे ,
अथवा हािजर हो और उसे पेश करे  अथवा
(घ) िकसी तलाशी-वारं ट की,
1
[जो उस न्यायालय ारा जारी िकया गया है, तामील या िनष्पादन िकसी ऐसे स्थान म िकया जाए जो—
(i) उक्त राज्यक्षेतर् के बाहर भारत म िकसी राज्य या क्षेतर् के न्यायालय की स्थानीय अिधकािरता के अंदर है, वहां वह ऐसे
समन या वारं ट की तामील या िनष्पादन के िलए, दो पर्ितय म, उस न्यायालय के पीठासीन अिधकारी के पास डाक ारा या अन्यथा भेज
सकता है  और जहां खंड (क) या खंड (ग) म िनिदष्ट िकसी समन की तामील इस पर्कार कर दी गई है वहां धारा 68 के उपबंध उस समन
के संबंध म ऐसे लागू ह गे, मानो िजस न्यायालय को वह भेजा गया है उसका पीठासीन अिधकारी उक्त राज्यक्षेतर् म मिजस्टर्ेट है 
(ii) भारत के बाहर िकसी ऐसे देश या स्थान म है, िजसकी बाबत कदर्ीय सरकार ारा, दांिडक मामल के संबंध म समन या
वारं ट की तामील या िनष्पादन के िलए ऐसे देश या स्थान की सरकार के (िजसे इस धारा म इसके पश्चात् संिवदाकारी राज्य कहा गया है)
साथ वस्था की गई है, वहां वह ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट को िनिदष्ट ऐसे समन या वारं ट को, दो पर्ितय म, ऐसे पर्रूप म
और पारे षण के िलए ऐसे पर्ािधकारी को भेजेगा, जो कदर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ।]
(2) जहां उक्त राज्यक्षेतर् के न्यायालय को—
(क) िकसी अिभयुक्त िक्त के नाम कोई समन  अथवा
(ख) िकसी अिभयुक्त िक्त की िगरफ्तारी के िलए कोई वारं ट  अथवा
(ग) िकसी िक्त से यह अपेक्षा करने वाला ऐसा कोई समन िक वह कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करे अथवा हािजर हो और
उसे पेश करे  अथवा
(घ) कोई तलाशी-वारं ट,
1
[जो िनम्निलिखत म से िकसी के ारा जारी िकया गया है —
(1) उक्त राज्यक्षेतर् के बाहर भारत म िकसी राज्य या क्षेतर् के न्यायालय 
(2) िकसी संिवदाकारी राज्य का कोई न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट,
तामील या िनष्पादन के िलए पर्ाप्त होता है, वहां वह उसकी तामील या िनष्पादन ऐसे कराएगा] मानो वह ऐसा समन या वारं ट है जो
83

उसे उक्त राज्यक्षेतर् के िकसी अन्य न्यायालय से अपनी स्थानीय अिधकािरता के अंदर तामील या िनष्पादन के िलए पर्ाप्त हुआ है 
और जहां—
(i) िगरफ्तारी का वारं ट िनष्पािदत कर िदया जाता है, वहां िगरफ्तार िकए गए िक्त के बारे म कायर्वाही यथासंभव धारा
80 और 81 ारा िविहत िकर्या के अनुसार की जाएगी,
(ii) तलाशी-वारं ट िनष्पािदत कर िदया जाता है वहां तलाशी म पाई गई चीज के बारे म कायर्वाही यथासंभव धारा 101 म
िविहत पर्िकर्या के अनुसार की जाएगी 
[परं तु उस मामले म, जहां संिवदाकारी राज्य से पर्ाप्त समन या तलाशी वारं ट का िनष्पादन कर िदया गया है, तलाशी म पेश
2

िकए गए दस्तावेज या चीज या पाई गई चीज, समन या तलाशी वारं ट जारी करने वाले न्यायालय की, ऐसे पर्ािधकारी की माफर् त अगर्ेिषत
की जाएंगी जो कदर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे । ]

1
1988 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1988 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
29

1
[अध्याय 7 क
कु छ मामल म सहायता के िलए
88 ितकारी वस्था तथा संपि की कु क
89 और समपहरण के िलए पर्िकर्या
105क. पिरभाषाएं—इस अध्याय म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “संिवदाकारी राज्य” से भारत के बाहर कोई देश या स्थान अिभपर्ेत है िजसके संबंध म कदर्ीय सरकार ारा संिध के
माध्यम से या अन्यथा ऐसे देश की सरकार के साथ कोई वस्था की गई है 
(ख) “पहचान करना” के अंतगर्त यह सबूत स्थािपत करना है िक संपि िकसी अपराध के िकए जाने से ुत्पन्न हुई है या
उसम उपयोग की गई है 
(ग) “अपराध के आगम” से आपरािधक िकर्याकलाप के (िजनके अंतगर्त मुदर्ा अंतरण को अंतवर्िलत करने वाले अपराध ह)
पिरणामस्वरूप िकसी िक्त ारा पर्त्यक्ष या अपर्त्यक्ष रूप से ुत्पन्न या अिभपर्ाप्त कोई संपि या ऐसी िकसी संपि का मूल्य
अिभपर्ेत है 
(घ) “संपि से भौितक या अभौितक”, जंगम या स्थावर, मूतर् या अमूतर् हर पर्कार की संपि और आिस्त तथा ऐसी संपि
या आिस्त म हक या िहत को साि यत करने वाला िवलेख और िलखत अिभपर्ेत है जो िकसी अपराध के िकए जाने से ुत्पन्न होती
है या उसम उपयोग की जाती है और इसके अंतगर्त अपराध के आगम के माध्यम से अिभपर्ाप्त संपि है 
(ङ) “पता लगाना” से िकसी संपि की पर्कृ ित, उसका सर्ोत, यन, संचलन, हक या स्वािमत्व का अवधारण करना
अिभपर्ेत है ।
105ख. िक्तय का अंतरण सुिनिश्चत करने म सहायता—(1) जहां भारत का कोई न्यायालय, िकसी आपरािधक मामले के
संबंध म यह चाहता है िक हािजर होने अथवा िकसी दस्तावेज या अन्य चीज को पेश करने के िलए, िकसी िक्त की िगरफ्तारी के िलए
िकसी वारं ट का, जो उस न्यायालय ारा जारी िकया गया है, िनष्पादन िकसी संिवदाकारी राज्य के िकसी स्थान म िकया जाए वहां वह
ऐसे वारं ट को दो पर्ितय म और ऐसे पर्रूप म ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट को, ऐसे पर्ािधकारी के माध्यम से भेजेगा, जो कदर्ीय
सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे , और, यथािस्थित, वह न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट उसका िनष्पादन
कराएगा ।
(2) इस संिहता म िकसी बात के होते हुए भी, यिद, िकसी अपराध के िकसी अन्वेषण या िकसी जांच के दौरान अन्वेषण अिधकारी
या अन्वेषण अिधकारी से पंिक्त म विरष्ठ िकसी अिधकारी ारा यह आवेदन िकया जाता है िक िकसी ऐसे िक्त की, जो िकसी
संिवदाकारी राज्य के िकसी स्थान म है, ऐसे अन्वेषण या जांच के संबंध म हािजरी अपेिक्षत है और न्यायालय का यह समाधान हो जाता
है िक ऐसी हािजरी अपेिक्षत है तो वह उक्त िक्त के िवरु ऐसे समन या वारं ट को तामील और िनष्पादन कराने के िलए, दो पर्ितय म,
ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट को ऐसे पर्रूप म जारी करे गा, जो कदर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
(3) जहां भारत िकसी न्यायालय को, िकसी आपरािधक मामले के संबंध म, िकसी संिवदाकारी राज्य के िकसी न्यायालय,
न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा जारी िकया गया कोई वारं ट िकसी िक्त की िगरफ्तारी के िलए पर्ाप्त होता है िजसम ऐसे िक्त से उस
न्यायालय म या िकसी अन्य अन्वेषण अिभकरण के समक्ष हािजर होने अथवा हािजर होने और कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने की
अपेक्षा की गई है वहां वह उसका िनष्पादन इस पर्कार कराएगा मानो यह ऐसा वारं ट हो जो उसे भारत के िकसी अन्य न्यायालय से अपनी
स्थानीय अिधकािरता के भीतर िनष्पादन के िलए पर्ाप्त हुआ है ।
(4) जहां उपधारा (3) के अनुसरण म िकसी संिवदाकारी राज्य को अंतिरत कोई िक्त भारत म बंदी है वहां भारत का न्यायालय
या कदर्ीय सरकार ऐसी शत अिधरोिपत कर सके गी जो वह न्यायालय या सरकार ठीक समझे ।
(5) जहां उपधारा (1) या उपधारा (2) के अनुसरण म भारत को अंतिरत कोई िक्त िकसी संिवदाकारी राज्य म बंदी है वहां भारत
का न्यायालय यह सुिनिश्चत करे गा िक उन शत का, िजनके अधीन बंदी भारत को अंतिरत िकया जाता है, अनुपालन िकया जाए और ऐसे
बंदी को ऐसी शत के अधीन अिभरक्षा म रखा जाएगा, जो कदर्ीय सरकार िलिखत रूप म िनिदष्ट करे ।
105ग. संपि की कु क या समपहरण के आदेश के संबध ं म सहायता—(1) जहां भारत के िकसी न्यायालय के पास यह िवश्वास
करने के युिक्तयुक्त आधार ह िक िकसी िक्त ारा अिभपर्ाप्त कोई संपि ऐसे िक्त को िकसी अपराध के िकए जाने से पर्त्यक्ष या
अपर्त्यक्ष रूप से ुत्पन्न या अिभपर्ाप्त हुई है वहां वह ऐसी संपि की कु क या समपहरण का कोई आदेश दे सके गा जो वह धारा 105घ से
धारा 105ञ (दोन सिहत) के उपबंध के अधीन ठीक समझे ।
(2) जहां न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन िकसी संपि की कु क या समपहरण का कोई आदेश िदया है और ऐसी संपि के
िकसी संिवदाकारी राज्य म होने का संदह
े है वहां न्यायालय, संिवदाकारी राज्य के न्यायालय या पर्ािधकारी को ऐसे आदेश के िनष्पादन के
िलए अनुरोध-पतर् जारी कर सके गा ।

1
1993 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
30

(3) जहां कदर्ीय सरकार को िकसी संिवदाकारी राज्य के िकसी न्यायालय या िकसी पर्ािधकारी से अनुरोध-पतर् पर्ाप्त होता है िजसम
िकसी ऐसी संपि की भारत म कु क या समपहरण करने का अनुरोध िकया गया है जो िकसी िक्त ारा िकसी ऐसे अपराध के िकए जाने
से पर्त्यक्ष या अपर्त्यक्ष रूप से ुत्पन्न या अिभपर्ाप्त की गई है जो उस संिवदाकारी राज्य म िकया गया है वहां कदर्ीय सरकार, ऐसा
अनुरोध-पतर् ऐसे िकसी न्यायालय को, िजसे वह ठीक समझे, यथािस्थित, धारा 105घ से धारा 105ञ (दोन सिहत) के या तत्समय पर्वृ
िकसी अन्य िविध के उपबंध के अनुसार िनष्पादन के िलए अगर्ेिषत कर सके गी ।
105घ. िविधिवरु तया अिजत संपि की पहचान करना—(1) न्यायालय, धारा 105ग की उपधारा (1) के अधीन या उसकी
उपधारा (3) के अधीन अनुरोध-पतर् पर्ाप्त होने पर पुिलस उप-िनरीक्षक से अिनम्न पंिक्त के िकसी पुिलस अिधकारी को ऐसी संपि का
पता लगाने और पहचान करने के िलए सभी आवश्यक कारर् वाई करने के िलए िनदेश देगा ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट कारर् वाई के अंतगर्त, िकसी िक्त, स्थान, संपि , आिस्त, दस्तावेज, िकसी बक या सावर्जिनक िव ीय
संस्था की लेखाबही या िकसी अन्य सुसंगत िवषय की बाबत जांच, अन्वेषण या सवक्षण भी हो सके गा ।
(3) उपधारा (2) म िनिदष्ट कोई जांच, अन्वेषण या सवक्षण, उक्त न्यायालय ारा इस िनिम िदए गए िनदेश के अनुसार
उपधारा (1) म उिल्लिखत अिधकारी ारा िकया जाएगा ।
105ङ. सम्पि का अिभगर्हण या कु क —(1) जहां धारा 105घ के अधीन जांच या अन्वेषण करने वाले िकसी अिधकारी के पास
यह िवश्वास करने का कारण है िक िकसी संपि के , िजसके संबंध म ऐसी जांच या अन्वेषण िकया जा रहा है, िछपाए जाने, अंतिरत िकए
जाने या उसके िवषय म िकसी रीित से वहार िकए जाने की संभावना है िजसका पिरणाम ऐसी संपि का यन होगा वहां वह उक्त
संपि का अिभगर्हण करने का आदेश कर सके गा और जहां ऐसी संपि का अिभगर्हण करना साध्य नह है वहां वह कु क का आदेश यह
िनदेश देते हुए कर सके गा िक ऐसी संपि ऐसा आदेश करने वाले अिधकारी की पूवर् अनुज्ञा के िबना अंतिरत नह की जाएगी या उसके
िवषय म अन्यथा वहार नह िकया जाएगा और ऐसे आदेश की एक पर्ित की तामील संबंिधत िक्त पर की जाएगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िकए गए िकसी आदेश का तब तक कोई पर्भाव नह होगा, जब तक उक्त आदेश की, उसके िकए जाने से
तीस िदन की अविध के भीतर उक्त न्यायालय के आदेश ारा पुिष्ट नह कर दी जाती है ।
105च. इस अध्याय के अधीन अिभगृहीत या समपहृत संपि का पर्बंध—(1) न्यायालय उस क्षेतर् के , जहां संपि िस्थत है, िजला
मिजस्टर्ेट को, या अन्य िकसी अिधकारी को, जो िजला मिजस्टर्ेट ारा नामिनदिशत िकया जाए, ऐसी संपि के पर्शासक के कृ त्य का
पालन करने के िलए िनयुक्त कर सके गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िनयुक्त िकया गया पर्शासक, उस संपि को, िजसके संबंध म धारा 105ङ की उपधारा (1) के अधीन या
धारा 105ज के अधीन आदेश िकया गया है, ऐसी रीित से और ऐसी शत के अधीन रहते हुए, जो कदर्ीय सरकार ारा िविनिदष्ट की जाएं,
पर्ाप्त करे गा और उसका पर्बंध करे गा ।
(3) पर्शासक, कदर्ीय सरकार को समपहृत संपि के यन के िलए ऐसे उपाय भी करे गा, जो कदर्ीय सरकार िनिदष्ट करे ।
105छ. संपि के समपहरण की सूचना—(1) यिद, धारा 105घ के अधीन जांच, अन्वेषण या सवक्षण के पिरणामस्वरूप,
न्यायालय के पास यह िवश्वास करने का कारण है िक सभी या कोई संपि , अपराध का आगम है तो वह ऐसे िक्त पर (िजसे इसम
इसके पश्चात् पर्भािवत िक्त कहा गया है) ऐसी सूचना की तामील कर सके गा िजसम उससे यह अपेक्षा की गई हो िक वह उस सूचना म
िविनिदष्ट तीस िदन की अविध के भीतर उस आय, उपाजर्न या आिस्तय के वे सर्ोत, िजनसे या िजनके ारा उसने ऐसी संपि अिजत की
है, वह सा य िजस पर वह िनभर्र करता है तथा अन्य सुसंगत जानकारी और िविशिष्टयां उपदिशत करे और यह कारण बताए िक,
यथािस्थित, ऐसी सभी या िकसी संपि को अपराध का आगम क्य न घोिषत िकया जाए और उसे कदर्ीय सरकार को क्य न समपहृत
कर िलया जाए ।
(2) जहां िकसी िक्त को उपधारा (1) के अधीन सूचना म यह िविनिदष्ट िकया जाता है िक कोई संपि ऐसे िक्त की ओर से
िकसी अन्य िक्त ारा धािरत है वहां सूचना की एक पर्ित की ऐसे अन्य िक्त पर भी तामील की जाएगी ।
105ज. कितपय मामल म संपि का समपहरण—(1) न्यायालय, धारा 105छ के अधीन जारी की गई कारण बताओ सूचना के
स्पष्टीकरण पर, यिद कोई हो, और उसके समक्ष उपलब्ध सामिगर्य पर िवचार करने के पश्चात् तथा पर्भािवत िक्त को (और ऐसे
मामले म जहां पर्भािवत िक्त सूचना म िविनिदष्ट कोई संपि िकसी अन्य िक्त के माध्यम से धािरत करता है वहां ऐसे अन्य िक्त
को भी) सुनवाई का युिक्तयुक्त अवसर देने के पश्चात्, आदेश ारा, अपना यह िनष्कषर् अिभिलिखत करे गा िक पर्श्नगत सभी या कोई
संपि अपराध का आगम है या नह :
परं तु यिद पर्भािवत िक्त (और मामले म जहां पर्भािवत िक्त सूचना म िविनिदष्ट कोई संपि िकसी अन्य िक्त के माध्यम
115

से धािरत करता है वहां ऐसा अन्य िक्त भी) न्यायालय के समक्ष हािजर नह होता है या कारण बताओ सूचना म िविनिदष्ट तीस िदन
की अविध के भीतर उसके समक्ष अपना मामला अभ्यावेिदत नह करता है तो न्यायालय, अपने समक्ष उपलब्ध सा य के आधार पर इस
उपधारा के अधीन एकपक्षीय िनष्कषर् अिभिलिखत करने के िलए अगर्सर हो सके गा ।
(2) जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक कारण बताओ सूचना म िनिदष्ट संपि म से कु छ अपराध का आगम है िकतु
ऐसी संपि की िविनिदष्ट रूप से पहचान करना संभव नह है वहां न्यायालय के िलए ऐसी संपि को िविनिदष्ट करना जो उसके
31

सव म अधीन िनष्कषर् अिभिलिखत करना िविधपूणर् होगा ।


(3) जहां न्यायालय इस धारा के अधीन इस आशय का िनष्कषर् अिभिलिखत करता है िक कोई संपि अपराध का आगम है वहां
ऐसी संपि सभी िवल्लंगम से मुक्त होकर कदर्ीय सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
(4) जहां िकसी कं पनी के कोई शेयर इस धारा के अधीन कदर्ीय सरकार को समपहृत हो जाते ह वहां कं पनी अिधिनयम, 1956
(1956 का 1) म या कं पनी के संगम-अनुच्छेद म िकसी बात के होते हुए भी, कं पनी कदर्ीय सरकार को ऐसे शेयर के अंतिरती के रूप म
तुरंत रिजस्टर करे गी ।
105झ. समपहरण के बदले जुमार्ना—(1) जहां न्यायालय यह घोषणा करता है िक कोई संपि धारा 105ज के अधीन कदर्ीय
सरकार को समपहृत हो गई है और यह ऐसा मामला है जहां ऐसी संपि के के वल कु छ भाग का सर्ोत न्यायालय को समाधानपर्द रूप म
सािबत नह िकया गया है वहां वह पर्भािवत िक्त को, समपहरण के बदले म ऐसे भाग के बाजार मूल्य के बराबर जुमार्ने का संदाय
करने का िवकल्प देते हुए, आदेश देगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन जुमार्ना अिधरोिपत करने का आदेश देने के पूवर्, पर्भािवत िक्त को सुनवाई का युिक्तयुक्त अवसर
िदया जाएगा ।
(3) जहां पर्भािवत िक्त, उपधारा (1) के अधीन देय जुमार्ने का ऐसे समय के भीतर, जो उस िनिम अनुज्ञात िकया जाए, संदाय
कर देता है वहां न्यायालय, आदेश ारा, धारा 105ज के अधीन की गई समपहरण की घोषणा का पर्ितसंहरण कर सके गा और तब ऐसी
संपि िनमुर्क्त हो जाएगी ।
105ञ. कु छ अंतरण का अकृ त और शून्य होना—जहां धारा 105ङ की उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करने या धारा 105छ के
अधीन कोई सूचना जारी करने के पश्चात्, उक्त आदेश या सूचना म िनिदष्ट कोई संपि िकसी भी रीित से अंतिरत कर दी जाती है वहां इस
अध्याय के अधीन कायर्वािहय के पर्योजन के िलए, ऐसे अंतरण पर ध्यान नह िदया जाएगा और यिद ऐसी संपि बाद म धारा 105ज के
अधीन कदर्ीय सरकार को समपहृत हो जाती है तो ऐसी संपि का अंतरण अकृ त और शून्य समझा जाएगा ।
105ट. अनुरोध पतर् की बाबत पर्िकर्या—इस अध्याय के अधीन कदर्ीय सरकार को िकसी संिवदाकारी राज्य से पर्ाप्त पर्त्येक
अनुरोध-पतर्, समन या वारं ट और िकसी संिवदाकारी राज्य को पारे िषत िकया जाने वाला पर्त्येक अनुरोध-पतर्, समन या वारं ट कदर्ीय
सरकार ारा, ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित से जो कदर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट कर, यथािस्थित, संिवदाकारी
राज्य को परे िषत िकया जाएगा या भारत के संबंिधत न्यायालय को भेजा जाएगा ।
105ठ. इस अध्याय का लागू होना—कदर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, यह िनदेश दे सके गी िक ऐसे संिवदाकारी राज्य
के संबंध म, िजसके साथ ितकारी वस्था की गई है, इस अध्याय का लागू होना ऐसी शत , अपवाद या अहर्ता के अधीन होगा जो
उक्त अिधसूचना म िविनिदष्ट की जाएं ।]
अध्याय 8

पिरशांित कायम रखने के िलए और सदाचार के िलए पर्ितभूित


106. दोषिसि पर पिरशांित कायम रखने के िलए पर्ितभूित—(1) जब सेशन न्यायालय या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट का न्यायालय
िकसी िक्त को उपधारा (2) म िविनिदष्ट अपराध म से िकसी अपराध के िलए या िकसी ऐसे अपराध के दुपर्ेरण के िलए िस दोष
ठहराता है और उसकी यह राय है िक यह आवश्यक है िक पिरशांित कायम रखने के िलए ऐसे िक्त से पर्ितभूित ली जाए, तब न्यायालय
ऐसे िक्त को दंडादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है िक वह तीन वषर् से अनिधक इतनी अविध के िलए, िजतनी वह ठीक समझे,
पिरशांित कायम रखने के िलए पर्ितभु सिहत या रिहत, बंधपतर् िनष्पािदत करे ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट अपराध िनम्निलिखत ह —
(क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 8 के अधीन दंडनीय कोई अपराध जो धारा 153क या धारा 153ख या
धारा 154 के अधीन दंडनीय अपराध से िभन्न है ;
(ख) कोई ऐसा अपराध जो, या िजसके अंतगर्त, हमला या आपरािधक बल का पर्योग या िरिष्ट करना है ;
(ग) आपरािधक अिभतर्ास का कोई अपराध ;
(घ) कोई अन्य अपराध, िजससे पिरशांित भंग हुई है या िजससे पिरशांित भंग आशियत है, या िजसके बारे म ज्ञात था िक
उससे पिरशांित भंग संभा है ।
(3) यिद दोषिसि अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो बंधपतर्, जो ऐसे िनष्पािदत िकया गया था, शून्य हो जाएगा ।
(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय ारा या िकसी न्यायालय ारा भी जब वह पुनरीक्षण की अपनी शिक्तय का
पर्योग कर रहा हो, िकया जा सके गा ।
107. अन्य दशा म पिरशांित कायम रखने के िलए पर्ितभूित—(1) जब िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट को इि ला िमलती है िक
32

संभा है िक कोई िक्त पिरशांित भंग करे गा या लोक पर्शांित िवक्षुब्ध करे गा या कोई ऐसा सदोष कायर् करे गा िजससे संभा त:
पिरशांित भंग हो जाएगी या लोक पर्शांित िवक्षुब्ध हो जाएगी तब यिद उसकी राय म कायर्वाही करने के िलए पयार्प्त आधार है तो वह,
ऐसे िक्त से इसम इसके पश्चात् उपबंिधत रीित से अपेक्षा कर सकता है िक वह कारण दिशत करे िक एक वषर् से अनिधक की इतनी
अविध के िलए, िजतनी मिजस्टर्ेट िनयत करना ठीक समझे, पिरशांित कायम रखने के िलए उसे 1 [पर्ितभु सिहत या रिहत] बंधपतर्
िनष्पािदत करने के िलए आदेश क्य न िदया जाए ।
(2) इस धारा के अधीन कायर्वाही िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट के समक्ष तब की जा सकती है जब या तो वह स्थान जहां पिरशांित
भंग या िवक्षोभ की आशंका है, उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर है या ऐसी अिधकािरता के अंदर कोई ऐसा िक्त है, जो ऐसी
अिधकािरता के परे संभा त: पिरशांित भंग करे गा या लोक पर्शांित िवक्षुब्ध करे गा या यथापूव क्त कोई सदोष कायर् करे गा ।
108. राजदर्ोहात्मक बात को फै लाने वाले िक्तय से सदाचार के िलए पर्ितभूित—(1) जब िकसी 2 [कायर्पालक मिजस्टर्ेट] को
इि ला िमलती है िक उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर कोई ऐसा िक्त है जो ऐसी अिधकािरता के अंदर या बाहर—
(i) या तो मौिखक रूप से या िलिखत रूप से या िकसी अन्य रूप से िनम्निलिखत बात साशय फै लाता है या फै लाने का
पर्यत्न करता है या फै लाने का दुपर्ेरण करता है, अथार्त्—
(क) कोई ऐसी बात, िजसका पर्काशन भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 124क या धारा 153क या
धारा 153ख या धारा 295क के अधीन दंडनीय है ; अथवा
(ख) िकसी न्यायाधीश से, जो अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर् कर रहा है या कायर् करने का तात्पयर् रखता है,
संब कोई बात जो भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अधीन आपरािधक अिभतर्ास या मानहािन की कोिट म आती
है ; अथवा
(ii) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 292 के यथािनिदष्ट कोई अश्लील वस्तु िवकर्य के िलए बनाता, उत्पािदत
करता, पर्कािशत करता या रखता है, आयात करता है, िनयार्त करता है, पर्वहण करता है, िवकर्य करता है, भाड़े पर देता है,
िवतिरत करता है, सावर्जिनक रूप से पर्दिशत करता है या िकसी अन्य पर्कार से पिरचािलत करता है,
और उस मिजस्टर्ेट की राय म कायर्वाही करने के िलए पयार्प्त आधार है तब ऐसा मिजस्टर्ेट, ऐसे िक्त से इसम इसके पश्चात् उपबंिधत
रीित से अपेक्षा कर सकता है िक वह कारण दिशत करे िक एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए, िजतनी वह मिजस्टर्ेट ठीक
समझे, उसे अपने सदाचार के िलए पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर् िनष्पािदत करने के िलए आदेश क्य न िदया जाए ।
(2) पर्ेस और पुस्तक रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1867 (1867 का 25) म िदए गए िनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त, और उनके अनुरूप
संपािदत, मुिदर्त और पर्कािशत िकसी पर्काशन म अंतिवष्ट िकसी बात के बारे म कोई कायर्वाही ऐसे पर्काशन के संपादक, स्वत्वधारी,
मुदर्क या पर्काशक के िवरु राज्य सरकार के , या राज्य सरकार ारा इस िनिम सशक्त िकए गए िकसी अिधकारी के आदेश से या उसके
पर्ािधकार के अधीन ही की जाएगी, अन्यथा नह ।
109. संिदग्ध िक्तय से सदाचार के िलए पर्ितभूित—जब िकसी 3 [कायर्पालक मिजस्टर्ेट] को इि ला िमलती है िक कोई िक्त
उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर अपनी उपिस्थित िछपाने के िलए पूवार्वधािनयां बरत रहा है और यह िवश्वास करने का कारण है िक
वह कोई संज्ञेय अपराध करने की दृिष्ट से ऐसा कर रहा है, तब वह मिजस्टर्ेट ऐसे िक्त से इसम इसके पश्चात् उपबंिधत रीित से अपेक्षा
कर सकता है िक वह कारण दिशत करे िक एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए, िजतनी वह मिजस्टर्ेट ठीक समझे, उसे अपने सदाचार
के िलए पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर् िनष्पािदत करने के िलए आदेश क्य न िदया जाए ।
110. आभ्यािसक अपरािधय से सदाचार के िलए पर्ितभूित—जब िकसी 1[कायर्पालक मिजस्टर्ेट] को यह इि ला िमलती है िक
उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर कोई ऐसा िक्त है, जो—
(क) अभ्यासत: लुटेरा, गृहभेदक, चोर या कू टरचियता है ; अथवा
(ख) चुराई हुई संपि का, उसे चुराई हुई जानते हुए, अभ्यासत: पर्ापक है ; अथवा
(ग) अभ्यासत: चोर की संरक्षा करता है या चोर को संशर्य देता है या चुराई हुई संपि को िछपाने या उसके यन म
सहायता देता है ; अथवा
(घ) पहरण, अपहरण, उ ापन, छल या िरिष्ट का अपराध या भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 12 के
अधीन या उस संिहता की धारा 489क, धारा 489ख, धारा 489ग या धारा 489घ के अधीन दंडनीय कोई अपराध अभ्यासत:
करता है या करने का पर्यत्न करता है या करने का दुपर्ेरण करता है ; अथवा
(ङ) ऐसे अपराध अभ्यासत: करता है या करने का पर्यत्न करता है या करने का दुष्पर्ेरण करता है, िजनम पिरशांित भंग
समािहत है ; अथवा

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 11 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 2 ारा “पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 2 ारा “पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
33

(च) कोई ऐसा अपराध अभ्यासत: करता है या करने का पर्यत्न करता है या करने का दुष्पर्ेरण करता है जो —
(i) िनम्निलिखत अिधिनयम म से एक या अिधक के अधीन कोई अपराध है, अथार्त् :—
(क) औषिध और पर्साधन सामगर्ी अिधिनयम, 1940 (1940 का 23) ;
1
[(ख) िवदेशी मुदर्ा िविनयमन अिधिनयम, 1973 (1973 का 46) ;]
(ग) कमर्चारी भिवष्य-िनिध 2 [और कु टुंब पशन िनिध] अिधिनयम, 1952 (1952 का 19) ;
(घ) खा अपिमशर्ण िनवारण अिधिनयम, 1954 (1954 का 37) ;
(ङ) आवश्यक वस्तु अिधिनयम, 1955 (1955 का 10) ;
(च) अस्पृश्यता (अपराध) अिधिनयम, 1955 (1955 का 22) ;
(छ) सीमाशुल्क अिधिनयम, 1962 (1962 का 52), 3 * * *
4
[(ज) िवदेिशय िवषयक अिधिनयम, 1946 (1946 का 31) ; या ]
(ii) जमाखोरी या मुनाफाखोरी अथवा खा या औषिध के अपिमशर्ण या भर्ष्टाचार के िनवारण के िलए उपबंध
करने वाली िकसी अन्य िविध के अधीन दंडनीय कोई अपराध है ; या
(झ) ऐसा दुसाहिसक और भयंकर है िक उसका पर्ितभूित के िबना स्वच्छन्द रहना समाज के िलए पिरसंकटमय है,
तब ऐसा मिजस्टर्ेट ऐसे िक्त से इसम इसके पश्चात् उपबंिधत रीित से अपेक्षा कर सकता है िक वह कारण दिशत करे िक तीन वषर् से
अनिधक की इतनी अविध के िलए, िजतनी वह मिजस्टर्ेट ठीक समझता है, उसे अपने सदाचार के िलए पर्ितभु सिहत बंधपतर् िनष्पािदत
करने का आदेश क्य न िदया जाए ।
111. आदेश का िदया जाना—जब कोई मिजस्टर्ेट, जो धारा 107, धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कायर् कर रहा है,
यह आवश्यक समझता है िक िकसी िक्त से अपेक्षा की जाए िक वह उस धारा के अधीन कारण दिशत करे तब वह मिजस्टर्ेट पर्ाप्त
इि ला का सार, उस बंधपतर् की रकम, जो िनष्पािदत िकया जाना है, वह अविध िजसके िलए वह पर्वतर्न म रहेगा और पर्ितभु की (यिद
कोई हो) अपेिक्षत संख्या, पर्कार और वगर् बताते हुए िलिखत आदेश देगा ।
112. न्यायालय म उपिस्थत िक्त के बारे म पर्िकर्या—यिद वह िक्त, िजसके बारे म ऐसा आदेश िदया जाता है, न्यायालय म
उपिस्थत है तो वह उसे पढ़कर सुनाया जाएगा या यिद वह ऐसा चाहे तो उसका सार उसे समझाया जाएगा ।
113. ऐसे िक्त के बारे म समन या वारं ट जो उपिस्थत नह है—यिद ऐसा िक्त न्यायालय म उपिस्थत नह है तो मिजस्टर्ेट
उससे हािजर होने की अपेक्षा करते हुए समन, या जब ऐसा िक्त अिभरक्षा म है तब िजस अिधकारी की अिभरक्षा म वह है उस
अिधकारी को उसे न्यायालय के समक्ष लाने का िनदेश देते हुए वारं ट, जारी करे गा :
परं तु जब कभी ऐसे मिजस्टर्ेट को पुिलस अिधकारी की िरपोटर् पर या अन्य इि ला पर (िजस िरपोटर् या इि ला का सार मिजस्टर्ेट
ारा अिभिलिखत िकया जाएगा), यह पर्तीत होता है िक पिरशांित भंग होने के डर के िलए कारण है और ऐसे िक्त की तुरंत िगरफ्तारी
के िबना ऐसे पिरशांित भंग करने का िनवारण नह िकया जा सकता है तब वह मिजस्टर्ेट उसकी िगरफ्तारी के िलए िकसी समय वारं ट
जारी कर सके गा ।
114. समन या वारं ट के साथ आदेश की पर्ित होगी—धारा 113 के अधीन जारी िकए गए पर्त्येक समन या वारं ट के साथ धारा 111
के अधीन िदए गए आदेश की पर्ित होगी और उस समन या वारं ट की तामील या िनष्पादन करने वाला अिधकारी वह पर्ित उस िक्त को
पिरद करे गा िजस पर उसकी तामील की गई है या जो उसके अधीन िगरफ्तार िकया गया है ।
115. वैयिक्तक हािजरी से अिभमुिक्त देने की शिक्त—यिद मिजस्टर्ेट को पयार्प्त कारण िदखाई देता है तो वह ऐसे िकसी िक्त
को, िजससे इस बात का कारण दिशत करने की अपेक्षा की गई है िक उसे पिरशांित कायम रखने या सदाचार के िलए बंधपतर् िनष्पािदत
करने के िलए आदेश क्य न िदया जाए, वैयिक्तक हािजरी से अिभमुिक्त दे सकता है और प्लीडर ारा हािजर होने की अनुज्ञा दे
सकता है ।
116. इि ला की सच्चाई के बारे म जांच—(1) जब धारा 111 के अधीन आदेश िकसी िक्त को, जो न्यायालय म उपिस्थत है,
धारा 112 के अधीन पढ़कर सुना या समझा िदया गया है अथवा जब कोई िक्त धारा 113 के अधीन जारी िकए गए समन या वारं ट के
अनुपालन या िनष्पादन म मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर है या लाया जाता है तब मिजस्टर्ेट उस इि ला की सच्चाई के बारे म जांच करने के
िलए अगर्सर होगा िजसके आधार पर वह कारर् वाई की गई है और ऐसा अितिरक्त सा य ले सकता है जो उसे आवश्यक पर्तीत हो ।

1
1974 के अिधिनयम सं० 56 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा मद ख के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 56 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 14 ारा “या” शब्द का लोप िकया गया ।
4
2005 के अिधिनय सं० 25 की धारा 14 अंत:स्थािपत ।
34

(2) ऐसी जांच यथासाध्य, उस रीित से की जाएगी जो समन-मामल के िवचारण और सा य के अिभलेखन के िलए इसम इसके
पश्चात् िविहत है ।
(3) उपधारा (1) के अधीन जांच पर्ारं भ होने के पश्चात् और उसकी समािप्त से पूवर् यिद मिजस्टर्ेट समझता है िक पिरशांित भंग का
या लोक पर्शांित िवक्षुब्ध होने का या िकसी अपराध के िकए जाने का िनवारण करने के िलए, या लोक सुरक्षा के िलए तुरंत उपाय करने
आवश्यक ह, तो वह ऐसे कारण से, िजन्ह लेखब िकया जाएगा, उस िक्त को, िजसके बारे म धारा 111 के अधीन आदेश िदया गया है
िनदेश दे सकता है िक वह जांच समाप्त होने तक पिरशांित कायम रखने और सदाचारी बने रहने के िलए पर्ितभु सिहत या रिहत
बंधपतर् िनष्पािदत करे और जब तक ऐसा बंधपतर् िनष्पािदत नह कर िदया जाता है, या िनष्पादन म ितकर्म होने की दशा म जब तक
जांच समाप्त नह हो जाती है, उसे अिभरक्षा म िनरु रख सकता है :
परं तु—
(क) िकसी ऐसे िक्त को, िजसके िवरु धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कायर्वाही नह की जा रही है,
सदाचारी बने रहने के िलए बंधपतर् िनष्पािदत करने के िलए िनदेश नह िदया जाएगा ;
(ख) ऐसे बंधपतर् की शत, चाहे वे उसकी रकम के बारे म ह या पर्ितभू उपलब्ध करने के या उनकी संख्या के , या उनके
दाियत्व की धन संबंधी सीमा के बारे म ह , उनसे अिधक दुभर्र न ह गी जो धारा 111 के अधीन आदेश म िविनिदष्ट ह ।
(4) इस धारा के पर्योजन के िलए यह तथ्य िक कोई िक्त आभ्यािसक अपराधी है या ऐसा दुसाहिसक और भयंकर है िक उसका
पर्ितभूित के िबना स्वच्छन्द रहना समाज के िलए पिरसंकटमय है, साधारण ख्याित के सा य से या अन्यथा सािबत िकया जा सकता है ।
(5) जहां दो या अिधक िक्त जांच के अधीन िवषय म सहयुक्त रहे ह वहां मिजस्टर्ेट एक ही जांच या पृथक् जांच म, जैसा वह
न्यायसंगत समझे, उनके बारे म कायर्वाही कर सकता है ।
(6) इस धारा के अधीन जांच उसके आरं भ की तारीख से छह मास की अविध के अंदर पूरी की जाएगी, और यिद जांच इस पर्कार पूरी
नह की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कायर्वाही उक्त अविध की समािप्त पर, पयर्विसत हो जाएगी जब तक िवशेष कारण के आधार
पर, जो लेखब िकए जाएंग,े मिजस्टर्ेट अन्यथा िनदेश नह करता है :
परं तु जहां कोई िक्त, ऐसी जांच के लंिबत रहने के दौरान िनरु रखा गया है वहां उस िक्त के िवरु कायर्वाही, यिद पहले ही
पयर्विसत नह हो जाती है तो ऐसे िनरोध के छह मास की अविध की समािप्त पर पयर्विसत हो जाएगी ।
(7) जहां कायर्वािहय को चालू रखने की अनुज्ञा देते हुए उपधारा (6) के अधीन िनदेश िकया जाता है, वहां सेशन न्यायाधीश
िथत पक्षकार ारा उसे िकए गए आवेदन पर ऐसे िनदेश को र कर सकता है, यिद उसका समाधान हो जाता है िक वह िकसी िवशेष
कारण पर आधािरत नह था या अनुिचत था ।
117. पर्ितभूित देने का आदेश—यिद ऐसी जांच से यह सािबत हो जाता है िक, यथािस्थित, पिरशांित कायम रखने के िलए या
सदाचार बनाए रखने के िलए यह आवश्यक है िक वह िक्त, िजसके बारे म वह जांच की गई है, पर्ितभु सिहत या रिहत, बंधपतर्
िनष्पािदत करे तो मिजस्टर्ेट तद्नुसार आदेश देगा :
परं तु—
(क) िकसी िक्त को उस पर्कार से िभन्न पर्कार की या उस रकम से अिधक रकम की या उस अविध से दीघर्तर अविध के
िलए पर्ितभूित देने के िलए आिदष्ट न िकया जाएगा, जो धारा 111 के अधीन िदए गए आदेश म िविनिदष्ट है ;
(ख) पर्त्येक बंधपतर् की रकम मामले की पिरिस्थितय का सम्यक् ध्यान रख कर िनयत की जाएगी और अत्यिधक न होगी ;
(ग) जब वह िक्त, िजसके बारे म जांच की जाती है, अवयस्क है, तब बंधपतर् के वल उसके पर्ितभु ारा िनष्पािदत
िकया जाएगा ।
118. उस िक्त का उन्मोचन िजसके िवरु इि ला दी गई है—यिद धारा 116 के अधीन जांच पर यह सािबत नह होता है िक,
यथािस्थित, पिरशांित कायम रखने के िलए या सदाचार बनाए रखने के िलए यह आवश्यक है िक वह िक्त, िजसके बारे म जांच की गई
है, बंधपतर् िनष्पािदत करे तो मिजस्टर्ेट उस अिभलेख म उस भाव की पर्िविष्ट करे गा और यिद ऐसा िक्त के वल उस जांच के पर्योजन के
िलए ही अिभरक्षा म है तो उसे छोड़ देगा अथवा यिद ऐसा िक्त अिभरक्षा म नह है तो उसे उन्मोिचत कर देगा ।
119. िजस अविध के िलए पर्ितभूित अपेिक्षत की गई है उसका पर्ारं भ—(1) यिद कोई िक्त, िजसके बारे म पर्ितभूित की अपेक्षा
करने वाला आदेश धारा 106 या धारा 117 के अधीन िदया गया है, ऐसा आदेश िदए जाने के समय कारावास के िलए दंडािदष्ट है या
दंडादेश भुगत रहा है तो वह अविध, िजसके िलए ऐसी पर्ितभूित की अपेक्षा की गई है, ऐसे दंडादेश के अवसान पर पर्ारं भ होगी ।
(2) अन्य दशा म ऐसी अविध, ऐसे आदेश की तारीख से पर्ारं भ होगी, जब तक िक मिजस्टर्ेट पयार्प्त कारण से कोई बाद की
तारीख िनयत न करे ।
120. बंधपतर् की अंतवर्स्तु—
ं ऐसे िकसी िक्त ारा िनष्पािदत िकया जाने वाला बंधपतर् उसे, यथािस्थित, पिरशांित कायम रखने
या सदाचारी रहने के िलए आब करे गा और बाद की दशा म कारावास से दंडनीय कोई अपराध करना या करने का पर्यत्न या दुष्पर्ेरण
35

करना चाहे, वह कह भी िकया जाए, बंधपतर् का भंग है ।


121. पर्ितभु को अस्वीकार करने की शिक्त—(1) मिजस्टर्ेट िकसी पेश िकए गए पर्ितभू को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है या
अपने ारा, या अपने पूवर्वत ारा, इस अध्याय के अधीन पहले स्वीकार िकए गए िकसी पर्ितभू को इस आधार पर अस्वीकार कर सकता है
िक ऐसा पर्ितभू बंधपतर् के पर्योजन के िलए अनुपयुक्त िक्त है :
परं तु िकसी ऐसे पर्ितभू को इस पर्कार स्वीकार करने से इनकार करने या उसे अस्वीकार करने के पहले वह पर्ितभू की उपयुक्तता के
बारे म या तो स्वयं शपथ पर जांच करे गा या अपने अधीनस्थ मिजस्टर्ेट से ऐसी जांच और उसके बारे म िरपोटर् करवाएगा ।
(2) ऐसा मिजस्टर्ेट जांच करने के पहले पर्ितभू को और ऐसे िक्त को, िजसने वह पर्ितभू पेश िकया है, उिचत सूचना देगा और
जांच करने म अपने सामने िदए गए सा य के सार को अिभिलिखत करे गा ।
(3) यिद मिजस्टर्ेट को अपने समक्ष या उपधारा (1) के अधीन पर्ितिनयुक्त मिजस्टर्ेट के समक्ष ऐसे िदए गए सा य पर और ऐसे
मिजस्टर्ेट की िरपोटर् पर (यिद कोई हो), िवचार करने के पश्चात् समाधान हो जाता है िक वह पर्ितभू बंधपतर् के पर्योजन के िलए
अनुपयुक्त िक्त है तो वह उस पर्ितभू को, यथािस्थित, स्वीकार करने से इनकार करने का या उसे अस्वीकार करने का आदेश करे गा और
ऐसा करने के िलए अपने कारण अिभिलिखत करे गा :
परं तु िकसी पर्ितभू को, जो पहले स्वीकार िकया जा चुका है, अस्वीकार करने का आदेश देने के पहले मिजस्टर्ेट अपना समन या
वारं ट, िजसे वह ठीक समझे, जारी करे गा और उस िक्त को, िजसके िलए पर्ितभू आब है, अपने समक्ष हािजर कराएगा या
बुलवाएगा ।
122. पर्ितभूित देने म ितकर्म होने पर कारावास—(1) (क) यिद कोई िक्त, िजसे धारा 106 या धारा 117 के अधीन पर्ितभूित
देने के िलए आदेश िदया गया है, ऐसी पर्ितभूित उस तारीख को या उस तारीख के पूवर्, िजसको वह अविध, िजसके िलए ऐसी पर्ितभूित दी
जानी है, पर्ारं भ होती है, नह देता है, तो वह इसम इसके पश्चात् ठीक आगे विणत दशा के िसवाय कारागार म भेज िदया जाएगा अथवा
यिद वह पहले से ही कारागार म है तो वह कारागार म तब तक िनरु रखा जाएगा जब तक ऐसी अविध समाप्त न हो जाए या जब तक
ऐसी अविध के भीतर वह उस न्यायालय या मिजस्टर्ेट को पर्ितभूित दे दे िजसने उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश िदया था ।
(ख) यिद िकसी िक्त ारा धारा 117 के अधीन मिजस्टर्ेट के आदेश के अनुसरण म पिरशांित बनाए रखने के िलए
1
[पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर्] िनष्पािदत कर िदए जाने के पश्चात्, उसके बारे म ऐसे मिजस्टर्ेट या उसके पद-उ रवत को
समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर िदया जाता है िक उसने बंधपतर् का भंग िकया है तो ऐसा मिजस्टर्ेट या पद-उ रवत , ऐसे सबूत के
आधार को लेखब करने के पश्चात् आदेश कर सकता है िक उस िक्त को िगरफ्तार िकया जाए और बंधपतर् की अविध की समािप्त तक
कारागार म िनरु रखा जाए तथा ऐसा आदेश ऐसे िकसी अन्य दंड या समपहरण पर पर्ितकू ल पर्भाव नह डालेगा िजससे िक उक्त िविध के
अनुसार दाियत्वाधीन हो ।
(2) जब ऐसे िक्त को एक वषर् से अिधक की अविध के िलए पर्ितभूित देने का आदेश मिजस्टर्ेट ारा िदया गया है, तब यिद ऐसा
िक्त यथापूव क्त पर्ितभूित नह देता है तो वह मिजस्टर्ेट यह िनदेश देते हुए वारं ट जारी करे गा िक सेशन न्यायालय का आदेश होने तक,
वह िक्त कारागार म िनरु रखा जाए और वह कायर्वाही सुिवधानुसार शीघर् ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी ।
(3) ऐसा न्यायालय ऐसी कायर्वाही की परीक्षा करने के और उस मिजस्टर्ेट से िकसी और इि ला या सा य की, िजसे वह आवश्यक
समझे, अपेक्षा करने के पश्चात् और संब िक्त को सुने जाने का उिचत अवसर देने के पश्चात् मामले म ऐसे आदेश पािरत कर सकता है
जो वह ठीक समझे :
परं तु वह अविध (यिद कोई हो) िजसके िलए कोई िक्त पर्ितभूित देने म असफल रहने के कारण कारावािसत िकया जाता है, तीन
वषर् से अिधक की न होगी ।
(4) यिद एक ही कायर्वाही म ऐसे दो या अिधक िक्तय से पर्ितभूित की अपेक्षा की गई है, िजनम से िकसी एक के बारे म कायर्वाही
सेशन न्यायालय को उपधारा (2) के अधीन िनदिशत की गई है, तो ऐसे िनदश म ऐसे िक्तय म से िकसी अन्य िक्त का भी, िजसे
पर्ितभूित देने के िलए आदेश िदया गया है, मामला शािमल िकया जाएगा और उपधारा (2) और (3) के उपबंध उस दशा म ऐसे अन्य िक्त
के मामले को भी इस बात के िसवाय लागू ह गे िक वह अविध (यिद कोई हो) िजसके िलए वह कारावािसत िकया जा सकता है, उस अविध से
अिधक न होगी, िजसके िलए पर्ितभूित देने के िलए उसे आदेश िदया गया था ।
(5) सेशन न्यायाधीश उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन उसके समक्ष रखी गई िकसी कायर्वाही को स्विववेकानुसार अपर सेशन
न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश को अंतिरत कर सकता है और ऐसे अंतरण पर ऐसा अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन
न्यायाधीश ऐसी कायर्वाही के बारे म इस धारा के अधीन सेशन न्यायाधीश की शिक्तय का पर्योग कर सकता है ।
(6) यिद पर्ितभूित जेल के भारसाधक अिधकारी को िनिवद की जाती है तो वह उस मामले को उस न्यायालय या मिजस्टर्ेट को,
िजसने आदेश िकया, तत्काल िनदिशत करे गा और ऐसे न्यायालय या मिजस्टर्ेट के आदेश की पर्तीक्षा करे गा ।
(7) पिरशांित कायम रखने के िलए पर्ितभूित देने म असफलता के कारण कारावास सादा होगा ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 15 ारा “पर्ितभु से रिहत बंधपतर्” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
36

(8) सदाचार के िलए पर्ितभूित देने म असफलता के कारण कारावास, जहां कायर्वाही धारा 108 के अधीन की गई है, वहां सादा
होगा और, जहां कायर्वाही धारा 109 या धारा 110 के अधीन की गई है वहां, जैसा पर्त्येक मामले म न्यायालय या मिजस्टर्ेट िनदेश दे,
किठन या सादा होगा ।
123. पर्ितभूित देने म असफलता के कारण कारावािसत िक्तय को छोड़ने की शिक्त—(1) जब कभी 1 [धारा 117 के अधीन िकसी
कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकसी आदेश के मामले म िजला मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] की यह राय है
िक कोई िक्त जो इस अध्याय के अधीन पर्ितभूित देने म असफल रहने के कारण कारावािसत है, समाज या िकसी अन्य िक्त को पिरसंकट
म डाले िबना छोड़ा जा सकता है तब वह ऐसे िक्त के उन्मोिचत िकए जाने का आदेश दे सकता है ।
(2) जब कभी कोई िक्त इस अध्याय के अधीन पर्ितभूित देने म असफल रहने के कारण कारावािसत िकया गया हो तब उच्च
न्यायालय या सेशन न्यायालय या जहां आदेश िकसी अन्य न्यायालय ारा िकया गया है वहां 1[धारा 117 के अधीन िकसी कायर्पालक
मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकसी आदेश के मामले म िजला मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] पर्ितभूित की रकम को
या पर्ितभु की संख्या को या उस समय को, िजसके िलए पर्ितभूित की अपेक्षा की गई है, कम करते हुए आदेश दे सकता है ।
(3) उपधारा (1) के अधीन आदेश ऐसे िक्त का उन्मोचन या तो शत के िबना या ऐसी शत पर, िजन्ह वह िक्त स्वीकार करे ,
िनिदष्ट कर सकता है :
परं तु अिधरोिपत की गई कोई शतर् उस अविध की समािप्त पर, पर्वृ न रहेगी िजसके िलए पर्ितभूित देने का आदेश िदया गया है ।
(4) राज्य सरकार उन शत को िविहत कर सकती है िजन पर सशतर् उन्मोचन िकया जा सकता है ।
(5) यिद कोई शतर्, िजस पर ऐसा कोई िक्त उन्मोिचत िकया गया है, 1[धारा 117 के अधीन िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा
पािरत िकसी आदेश के मामले म िजला मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] की राय म, िजसने उन्मोचन का आदेश
िदया था या उसके उ रवत की राय म पूरी नह की गई है, तो वह उस आदेश को र कर सकता है ।
(6) जब उन्मोचन का सशतर् आदेश उपधारा (5) के अधीन र कर िदया जाता है तब ऐसा िक्त िकसी पुिलस अिधकारी ारा वारं ट
के िबना िगरफ्तार िकया जा सके गा और िफर 1[धारा 117 के अधीन िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकसी आदेश के मामले म
िजला मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] के समक्ष पेश िकया जाएगा ।
(7) उस दशा के िसवाय िजसम ऐसा िक्त मूल आदेश के िनबंधन के अनुसार उस अविध के शेष भाग के िलए, िजसके िलए उसे
पर्थम बार कारागार सुपुदर् िकया गया था या िनरु िकए जाने का आदेश िदया गया था (और ऐसा भाग उस अविध के बराबर समझा
जाएगा, जो उन्मोचन की शत के भंग होने की तारीख और उस तारीख के बीच की है िजसको यह ऐसे सशतर् उन्मोचन के अभाव म छोड़े
जाने का हकदार होता) पर्ितभूित दे देता है, 1[धारा 117 के अधीन िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकसी आदेश के मामले म
िजला मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] उस िक्त को ऐसा शेष भाग भुगतने के िलए कारागार भेज सकता है ।
(8) उपधारा (7) के अधीन कारागार भेजा गया िक्त, ऐसे न्यायालय या मिजस्टर्ेट को, िजसने ऐसा आदेश िकया था या उसके
उ रवत को, पूव क्त शेष भाग के िलए मूल आदेश के िनबंधन के अनुसार पर्ितभूित देने पर, धारा 122 के उपबंध के अधीन रहते हुए,
िकसी भी समय छोड़ा जा सकता है ।
(9) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय पिरशांित कायम रखने के िलए या सदाचार के िलए बंधपतर् को, जो उसके ारा िकए गए
िकसी आदेश से इस अध्याय के अधीन िनष्पािदत िकया गया है, पयार्प्त कारण से, जो अिभिलिखत िकए जाएंग,े िकसी समय भी र कर
सकता है और जहां ऐसा बंधपतर् 1[धारा 117 के अधीन िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकसी आदेश के मामले म िजला मिजस्टर्ेट
या िकसी अन्य मामले म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट] के या उसके िजले के िकसी न्यायालय के आदेश के अधीन िनष्पािदत िकया गया है वहां
वह उसे ऐसे र कर सकता है ।
(10) कोई पर्ितभू जो िकसी अन्य िक्त के शांितमय आचरण या सदाचार के िलए इस अध्याय के अधीन बंधपतर् के िनष्पािदत
करने के िलए आिदष्ट है, ऐसा आदेश करने वाले न्यायालय से बंधपतर् को र करने के िलए िकसी भी समय आवेदन कर सकता है और
ऐसा आवेदन िकए जाने पर न्यायालय यह अपेक्षा करते हुए िक वह िक्त, िजसके िलए ऐसा पर्ितभू आब है, हािजर हो या उसके समक्ष
लाया जाए, समन या वारं ट, जो भी वह ठीक समझे, जारी करे गा ।
124. बंधपतर् की शेष अविध के िलए पर्ितभूित—(1) जब वह िक्त, िजसको हािजरी के िलए धारा 121 की उपधारा (3) के
परं तुक के अधीन या धारा 123 की उपधारा (10) के अधीन समन या वारं ट जारी िकया गया है, मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष हािजर
होता है या लाया जाता है तब वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय ऐसे िक्त ारा िनष्पािदत बंधपतर् को र कर देगा और उस िक्त को ऐसे
बंधपतर् की अविध के शेष भाग के िलए उसी भांित की, जैसी मूल पर्ितभूित थी, नई पर्ितभूित देने के िलए आदेश देगा ।
(2) ऐसा पर्त्येक आदेश धारा 120 से धारा 123 तक की धारा के (िजसके अंतगर्त ये दोन धाराएं भी ह) पर्योजन के िलए,
यथािस्थित, धारा 106 या धारा 117 के अधीन िदया गया आदेश समझा जाएगा ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 12 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
37

अध्याय 9

पत्नी, संतान और माता-िपता के भरणपोषण के िलए आदेश


125. पत्नी, संतान और माता-िपता के भरणपोषण के िलए आदेश—(1) यिद पयार्प्त साधन वाला कोई िक्त—
(क) अपनी पत्नी का, जो अपना भरणपोषण करने म असमथर् है, या
(ख) अपनी धमर्ज या अधमर्ज अवयस्क संतान का चाहे िववािहत हो या न हो, जो अपना भरणपोषण करने म असमथर् है, या
(ग) अपनी धमर्ज या अधमर्ज संतान का (जो िववािहत पुतर्ी नह है), िजसने वयस्कता पर्ाप्त कर ली है, जहां ऐसी संतान
िकसी शारीिरक या मानिसक असामान्यता या क्षित के कारण अपना भरणपोषण करने म असमथर् है, या
(घ) अपने िपता या माता का, जो अपना भरणपोषण करने म असमथर् है,
भरणपोषण करने म उपेक्षा करता है या भरणपोषण करने से इनकार करता है तो पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के सािबत
हो जाने पर, ऐसे िक्त को यह िनदेश दे सकता है िक वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, िपता या माता के भरणपोषण के िलए 1 *** ऐसी
मािसक दर पर, िजसे मिजस्टर्ेट ठीक समझे, मािसक भ ा दे और उस भ े का संदाय ऐसे िक्त को करे िजसको संदाय करने का मिजस्टर्ेट
समय-समय पर िनदेश दे :
परं तु मिजस्टर्ेट खंड (ख) म िनिदष्ट अवयस्क पुतर्ी के िपता को िनदेश दे सकता है िक वह उस समय तक ऐसा भ ा दे जब तक वह
वयस्क नह हो जाती है यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक ऐसी अवयस्क पुतर्ी के , यिद वह िववािहत हो, पित के पास पयार्प्त
साधन नह है ।
[परं तु यह और िक मिजस्टर्ेट, इस उपधारा के अधीन भरणपोषण के िलए मािसक भ े के संबंध म कायर्वाही के लंिबत रहने के
2

दौरान, ऐसे िक्त को यह आदेश दे सकता है िक वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, िपता या माता के अंतिरम भरणपोषण के िलए मािसक
भ ा और ऐसी कायर्वाही का य दे िजसे मिजस्टर्ेट उिचत समझे और ऐसे िक्त को उसका संदाय करे िजसको संदाय करने का मिजस्टर्ेट
समय-समय पर िनदेश दे :
परं तु यह भी िक दूसरे परं तुक के अधीन अंतिरम भरणपोषण के िलए मािसक भ े और कायर्वाही के य का कोई आवेदन,
यथासंभव, ऐसे िक्त पर आवेदन की सूचना की तामील की तारीख से साठ िदन के भीतर िनपटाया जाएगा ।]
स्पष्टीकरण—इस अध्याय के पर्योजन के िलए —
(क) “अवयस्क” से ऐसा िक्त अिभपर्ेत है िजसके बारे म भारतीय वयस्कता अिधिनयम, 1875 (1875 का 9) के उपबंध के
अधीन यह समझा जाता है िक उसने वयस्कता पर्ाप्त नह की है ;
(ख) “पत्नी” के अंतगर्त ऐसी स्तर्ी भी है िजसके पित ने उससे िववाह-िवच्छेद कर िलया है या िजसने अपने पित से िववाह-
िवच्छेद कर िलया है और िजसने पुनिववाह नह िकया है ।
[(2) भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण के िलए ऐसा कोई भ ा और कायर्वाही के िलए
3
य, आदेश की तारीख से, या, यिद
ऐसा आदेश िदया जाता है तो, यथािस्थित, भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण और कायर्वाही के य के िलए आवेदन की तारीख से
संदय
े ह गे ।]
(3) यिद कोई िक्त िजसे आदेश िदया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने म पयार्प्त कारण के िबना असफल रहता है तो उस
आदेश के पर्त्येक भंग के िलए ऐसा कोई मिजस्टर्ेट देय रकम के ऐसी रीित से उद्गृहीत िकए जाने के िलए वारं ट जारी कर सकता है जैसी
रीित जुमार्ने उद्गृहीत करने के िलए उपबंिधत है, और उस वारं ट के िनष्पादन के पश्चात् पर्त्येक मास के न चुकाए गए 4 [यथािस्थित,
भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण के िलए पूरे भ े और कायर्वाही के य] या उसके िकसी भाग के िलए ऐसे िक्त को एक मास तक
की अविध के िलए, अथवा यिद वह उससे पूवर् चुका िदया जाता है तो चुका देने के समय तक के िलए, कारावास का दंडादेश दे सकता है :
परं तु इस धारा के अधीन देय िकसी रकम की वसूली के िलए कोई वारं ट तब तक जारी न िकया जाएगा जब तक उस रकम को
उद्गृहीत करने के िलए, उस तारीख से िजसको वह देय हुई एक वषर् की अविध के अंदर न्यायालय से आवेदन नह िकया गया है :
परं तु यह और िक यिद ऐसा िक्त इस शतर् पर भरणपोषण करने की पर्स्थापना करता है िक उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह
पित के साथ रहने से इनकार करती है तो ऐसा मिजस्टर्ेट उसके ारा किथत इनकार के िकन्ह आधार पर िवचार कर सकता है और ऐसी
पर्स्थापना के िकए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है यिद उसका समाधान हो जाता है िक ऐसा आदेश देने के िलए
न्यायसंगत आधार है ।

1
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
2
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा “पूरे भ े” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
38

स्पष्टीकरण—यिद पित ने अन्य स्तर्ी से िववाह कर िलया है या वह रखेल रखता है तो यह उसकी पत्नी ारा उसके साथ रहने से
इनकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा ।
(4) कोई पत्नी अपने पित से इस आधार के अधीन 1 [यथािस्थित, भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण के िलए भ ा और कायर्वाही
के य] पर्ाप्त करने की हकदार न होगी, यिद वह जारता की दशा म रह रही है अथवा यिद वह पयार्प्त कारण के िबना अपने पित के
साथ रहने से इनकार करती है अथवा यिद वे पारस्पिरक सम्मित से पृथक् रह रहे ह ।
(5) मिजस्टर्ेट यह सािबत होने पर आदेश को र कर सकता है िक कोई पत्नी, िजसके पक्ष म इस धारा के अधीन आदेश िदया गया
है जारता की दशा म रह रही है अथवा पयार्प्त कारण के िबना अपने पित के साथ रहने से इनकार करती है अथवा वे पारस्पिरक सम्मित
से पृथक् रह रहे ह ।
126. पर्िकर्या—(1) िकसी िक्त के िवरु धारा 125 के अधीन कायर्वाही िकसी ऐसे िजले म की जा सकती है—
(क) जहां वह है, अथवा
(ख) जहां वह या उसकी पत्नी िनवास करती है, अथवा
(ग) जहां उसने अंितम बार, यथािस्थित, अपनी पत्नी के साथ या अधमर्ज संतान की माता के साथ िनवास िकया है ।
(2) ऐसी कायर्वाही म सब सा य, ऐसे िक्त की उपिस्थित म, िजसके िवरु भरणपोषण के िलए संदाय का आदेश देने की
पर्स्थापना है, अथवा जब उसकी वैयिक्तक हािजरी से अिभयुिक्त दे दी गई है तब उसके प्लीडर की उपिस्थित म िलया जाएगा और उस
रीित से अिभिलिखत िकया जाएगा जो समन-मामल के िलए िविहत है :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाए िक ऐसा िक्त िजसके िवरु भरणपोषण के िलए संदाय का आदेश देने की पर्स्थापना
है, तामील से जानबूझकर बच रहा है अथवा न्यायालय म हािजर होने म जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है तो मिजस्टर्ेट मामले को एकपक्षीय
रूप म सुनने और अवधारण करने के िलए अगर्सर हो सकता है और ऐसे िदया गया कोई आदेश उसकी तारीख से तीन मास के अंदर िकए
गए आवेदन पर दिशत अच्छे कारण से ऐसे िनबंधन के अधीन िजनके अंतगर्त िवरोधी पक्षकार को खच के संदाय के बारे म ऐसे िनबंधन
भी ह जो मिजस्टर्ेट न्यायोिचत और उिचत समझ, अपास्त िकया जा सकता है ।

(3) धारा 125 के अधीन आवेदन पर कायर्वाही करने म न्यायालय को शिक्त होगी िक वह खच के बारे म ऐसा आदेश दे जो
न्यायसंगत है ।

127. भ े म पिरवतर्न— 2 [(1) धारा 125 के अधीन भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण के िलए मािसक भ ा पाने वाले या,
यथािस्थित, अपनी पत्नी, संतान, िपता या माता को भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण के िलए मािसक भ ा देने के िलए उसी धारा के
अधीन आिदष्ट िकसी िक्त की पिरिस्थितय म तब्दीली सािबत हो जाने पर मिजस्टर्ेट, यथािस्थित, भरणपोषण या अंतिरम
भरणपोषण के िलए भ े म ऐसा पिरवतर्न कर सकता है जो वह ठीक समझे ।]

(2) जहां मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक धारा 125 के अधीन िदया गया कोई आदेश िकसी सक्षम िसिवल न्यायालय के िकसी
िविनश्चय के पिरणामस्वरूप र या पिरवितत िकया जाना चािहए वहां वह, यथािस्थित, उस आदेश को तद्नुसार र कर देगा या
पिरवितत कर देगा ।

(3) जहां धारा 125 के अधीन कोई आदेश ऐसी स्तर्ी के पक्ष म िदया गया है िजसके पित ने उससे िववाह-िवच्छेद कर िलया है या
िजसने अपने पित से िववाह-िवच्छेद पर्ाप्त कर िलया है वहां यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक—

(क) उस स्तर्ी ने ऐसे िववाह-िवच्छेद की तरीख के पश्चात् पुन: िववाह कर िलया है, तो वह ऐसे आदेश को उसके पुनिववाह
की तारीख से र कर देगा ;

(ख) उस स्तर्ी के पित ने उससे िववाह-िवच्छेद कर िलया है और उस स्तर्ी ने उक्त आदेश के पूवर् या पश्चात् वह पूरी धनरािश
पर्ाप्त कर ली है जो पक्षकार को लागू िकसी रूिढ़जन्य या स्वीय िविध के अधीन ऐसे िववाह-िवच्छेद पर देय थी तो वह ऐसे
आदेश को,—

(i) उस दशा म िजसम ऐसी धनरािश ऐसे आदेश से पूवर् दे दी गई थी उस आदेश के िदए जाने की तारीख से र
कर देगा ;

(ii) िकसी अन्य दशा म उस अविध की, यिद कोई हो, िजसके िलए पित ारा उस स्तर्ी को वास्तव म भरणपोषण
िदया गया है, समािप्त की तारीख से र कर देगा ;

1
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा “भ ा” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 3 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
39

(ग) उस स्तर्ी ने अपने पित से िववाह-िवच्छेद पर्ाप्त कर िलया है और उसने अपने िववाह-िवच्छेद के पश्चात् अपने
1
[यथािस्थित, भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण] के आधार का स्वेच्छा से अभ्यपर्ण कर िदया था, तो वह आदेश को उसकी
तारीख से र कर देगा ।

(4) िकसी भरणपोषण या दहेज की, िकसी ऐसे िक्त ारा, िजसे धारा 125 के अधीन 2 [भरणपोषण और अंतिरम भरणपोषण या
उनम से िकसी के िलए कोई मािसक भ ा संदाय िकए जाने का आदेश िदया गया है,] वसूली के िलए िडकर्ी करने के समय िसिवल
न्यायालय उस रािश की भी गणना करे गा जो ऐसे आदेश के 2[अनुसरण म, यथािस्थित भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण या उनम से
िकसी के िलए मािसक भ े के रूप म] उस िक्त को संदाय की जा चुकी है या उस िक्त ारा वसूल की जा चुकी है ।

128. भरणपोषण के आदेश का पर्वतर्न— 3 [यथािस्थित, भरणपोषण या अंतिरम भरणपोषण और कायर्वािहय के य ] के आदेश
की पर्ित, उस िक्त को, िजसके पक्ष म वह िदया गया है या उसके संरक्षक को, यिद कोई हो, या उस िक्त को, [िजसे, यथािस्थित,
4

भरणपोषण के िलए भ ा या अंतिरम भरणपोषण के िलए भ ा और कायर्वाही के िलए य िदया जाना है] िन:शुल्क दी जाएगी और ऐसे
आदेश का पर्वतर्न िकसी ऐसे स्थान म, जहां वह िक्त है, िजसके िवरु वह आदेश िदया गया था, िकसी मिजस्टर्ेट ारा पक्षकार को
पहचान के बारे म और [यथािस्थित, देय भ े या
5
य ] के न िदए जाने के बारे म ऐसे मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाने पर िकया जा
सकता है ।

अध्याय 10

लोक वस्था और पर्शांित बनाए रखना


क—िविधिवरु जमाव
129. िसिवल बल के पर्योग ारा जमाव को िततर-िबतर करना—(1) कोई कायर्पालक मिजस्टर्ेट या पुिलस थाने का भारसाधक
अिधकारी या ऐसे भारसाधक अिधकारी की अनुपिस्थित म उप िनरीक्षक की पंिक्त से अिनम्न कोई पुिलस अिधकारी िकसी िविधिवरु
जमाव को, या पांच या अिधक िक्तय के िकसी ऐसे जमाव को, िजससे लोकशांित िवक्षुब्ध होने की संभावना है, िततर-िबतर होने का
समादेश दे सकता है और तब ऐसे जमाव के सदस्य का यह कतर् होगा िक वे तद्नुसार िततर-िबतर हो जाएं ।
(2) यिद ऐसा समादेश िदए जाने पर ऐसा कोई जमाव िततर-िबतर नह होता है या यिद ऐसे समािदष्ट हुए िबना वह इस पर्कार
से आचरण करता है, िजससे उसका िततर-िबतर न होने का िनश्चय दिशत होता है, तो उपधारा (1) म िनिदष्ट कोई कायर्पालक मिजस्टर्ेट
या पुिलस अिधकारी उस जमाव को बल ारा िततर-िबतर करने की कायर्वाही कर सकता है और िकसी पुरुष से जो सश बल का
अिधकारी या सदस्य नह है और उस नाते कायर् नह कर रहा है, ऐसे जमाव को िततर-िबतर करने के पर्योजन के िलए और यिद आवश्यक
हो तो उन िक्तय को, जो उसम सिम्मिलत ह, इसिलए िगरफ्तार करने और पिररु करने के िलए िक ऐसा जमाव िततर-िबतर िकया
जा सके या उन्ह िविध के अनुसार दंड िदया जा सके , सहायता की अपेक्षा कर सकता है ।
130. जमाव को िततर-िबतर करने के िलए सश बल का पर्योग—(1) यिद कोई ऐसा जमाव अन्यथा िततर-िबतर नह िकया जा
सकता है और यिद लोक सुरक्षा के िलए यह आवश्यक है िक उसको िततर-िबतर िकया जाए तो उच्चतम पंिक्त का कायर्पालक मिजस्टर्ेट,
जो उपिस्थत हो, सश बल ारा उसे िततर-िबतर करा सकता है ।
(2) ऐसा मिजस्टर्ेट िकसी एसे अिधकारी से, जो सश बल के िक्तय की िकसी टुकड़ी का समादेशन कर रहा है, यह अपेक्षा कर
सकता है िक वह अपने समादेशाधीन सश बल की मदद से जमाव को िततर-िबतर कर दे और उसम सिम्मिलत ऐसे िक्तय को,
िजनकी बाबत मिजस्टर्ेट िनदेश दे या िजन्ह जमाव को िततर-िबतर करने या िविध के अनुसार दंड देने के िलए िगरफ्तार और पिररु
करना आवश्यक है, िगरफ्तार और पिररु करे ।
(3) सश बल का पर्त्येक ऐसा अिधकारी ऐसी अध्यपेक्षा का पालन ऐसी रीित से करे गा जैसी वह ठीक समझे, िकतु ऐसा करने म
के वल इतने ही बल का पर्योग करे गा और शरीर और संपि को के वल इतनी ही हािन पहुंचाएगा िजतनी उस जमाव को िततर-िबतर
करने और ऐसे िक्तय को िगरफ्तार और िनरु करने के िलए आवश्यक है ।
131. जमाव को िततर-िबतर करने की सश बल के कु छ अिधकािरय की शिक्त—जब कोई ऐसा जमाव लोक सुरक्षा को
स्पष्टतया संकटापन्न कर देता है और िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट से संपकर् नह िकया जा सकता है तब सश बल का कोई आयुक्त या
राजपितर्त अिधकारी ऐसे जमाव को अपने समादेशाधीन सश बल की मदद से िततर-िबतर कर सकता है और ऐसे िकन्ह िक्तय को,
जो उसम सिम्मिलत ह , ऐसे जमाव को िततर-िबतर करने के िलए या इसिलए िक उन्ह िविध के अनुसार दंड िदया जा सके , िगरफ्तार
और पिररु कर सकता है, िकतु यिद उस समय, जब वह इस धारा के अधीन कायर् कर रहा है, कायर्पालक मिजस्टर्ेट से संपकर् करना उसके

1
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 3 ारा “भरणपोषण” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 4 ारा “भरणपोषण” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 4 ारा “िजसे भ ा िदया जाना है” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2001 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 4 ारा “देय भ े” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
40

िलए साध्य हो जाता है तो वह ऐसा करे गा और तदनन्तर इस बारे म िक वह ऐसी कायर्वाही चालू रखे या न रखे, मिजस्टर्ेट के अनुदश
े का
पालन करे गा ।
132. पूवव
र् त धारा के अधीन िकए गए काय के िलए अिभयोजन से संरक्षण—(1) िकसी कायर् के िलए, जो धारा 129, धारा 130
या धारा 131 के अधीन िकया गया तात्पियत है, िकसी िक्त के िवरु कोई अिभयोजन िकसी दंड न्यायालय म—
(क) जहां ऐसा िक्त सश बल का कोई अिधकारी या सदस्य है, वहां कदर्ीय सरकार की मंजूरी के िबना संिस्थत नह
िकया जाएगा ;
(ख) िकसी अन्य मामले म राज्य सरकार की मंजूरी के िबना संिस्थत नह िकया जाएगा ।
(2) (क) उक्त धारा म से िकसी के अधीन स ावपूवर्क कायर् करने वाले िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी के
बारे म ;
(ख) धारा 129 या धारा 130 के अधीन अपेक्षा के अनुपालन म स ावपूवर्क कायर् करने वाले िकसी िक्त के बारे म ;
(ग) धारा 131 के अधीन स ावपूवर्क कायर् करने वाले सश बल के िकसी अिधकारी के बारे म ;
(घ) सश बल का कोई सदस्य िजस आदेश का पालन करने के िलए आब हो उसके पालन म िकए गए िकसी कायर् के िलए
उस सदस्य के बारे म,
यह न समझा जाएगा िक उसने उसके ारा कोई अपराध िकया है ।
(3) इस धारा म और इस अध्याय की पूवर्वत धारा म—
(क) “सश बल” पद से भूिम बल के रूप म िकर्याशील सेना, नौसेना और वायुसेना अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त इस
पर्कार िकर्याशील संघ के अन्य सश बल भी ह ;
(ख) सश बल के संबंध म “अिधकारी” से सश बल के आिफसर के रूप म आयुक्त, राजपितर्त या वेतनभोगी िक्त
अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त किनष्ठ आयुक्त आिफसर, वारं ट आिफसर, पेटी आिफसर, अनायुक्त आिफसर तथा अराजपितर्त
आिफसर भी ह ;
(ग) सश बल के संबंध म “सदस्य” से सश बल के अिधकारी से िभन्न उसका कोई सदस्य अिभपर्ेत है ।
ख—लोक न्यूसन्े स
133. न्यूसन्े स हटाने के िलए सशतर् आदेश—(1) जब िकसी िजला मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट का या राज्य सरकार ारा इस
िनिम िवशेषतया सशक्त िकसी अन्य कायर्पालक मिजस्टर्ेट का िकसी पुिलस अिधकारी से िरपोटर् या अन्य इि ला पर्ाप्त होने पर और
ऐसा सा य (यिद कोई हो) लेने पर, जैसा वह ठीक समझे, यह िवचार है िक—
(क) िकसी लोक स्थान या िकसी मागर्, नदी या जलसरणी से, जो जनता ारा िविधपूवर्क उपयोग म लाई जाती है या लाई
जा सकती है, कोई िविधिवरु बाधा या न्यूसेन्स हटाया जाना चािहए ; अथवा
(ख) िकसी ापार या उपजीिवका को चलाना या िकसी माल या पण्य वस्तु को रखना समाज के स्वास्थ्य या शारीिरक सुख
के िलए हािनकर है और पिरणामत: ऐसा ापार या उपजीिवका पर्ितिष या िविनयिमत की जानी चािहए या ऐसा माल या
पण्य वस्तु हटा दी जानी चािहए या उसको रखना िविनयिमत िकया जाना चािहए ; अथवा
(ग) िकसी भवन का िनमार्ण या िकसी पदाथर् का यन, िजससे सम्भा है िक अिग्नकांड या िवस्फोट हो जाए, रोक िदया
या बंद कर िदया जाना चािहए ; अथवा
(घ) कोई भवन, तंब,ू संरचना या कोई वृक्ष ऐसी दशा म है िक संभा है िक वह िगर जाए और पड़ोस म रहने या कारबार
करने वाले या पास से िनकलने वाले िक्तय को उससे हािन हो, और पिरणामत: ऐसे भवन, तम्बू या संरचना को हटाना, या
उसकी मरम्मत करना या उसम आलंब लगाना, या ऐसे वृक्ष को हटाना या उसम आलांब लगाना आवश्यक है ;
(ङ) ऐसे िकसी मागर् या लोक स्थान के पाश्वर्स्थ िकसी तालाब, कु एं या उत्खात को इस पर्कार से बाड़ लगा दी जानी चािहए
िक जनता को होने वाले खतरे का िनवारण हो सके ; अथवा
(च) िकसी भयानक जीवजंतु को नष्ट, पिररु या उसका अन्यथा यन िकया जाना चािहए,
तब ऐसा मिजस्टर्ेट ऐसी बाधा या न्यूसस पैदा करने वाले या ऐसा ापार या उपजीिवका चलाने वाले या िकसी ऐसे माल या पण्य वस्तु
को रखने वाले या ऐसे भवन, तंब,ू संरचना, पदाथर्, तालाब, कु एं या उत्खात का स्वािमत्व या कब्जा या िनयंतर्ण रखने वाले या ऐसे
जीवजंतु या वृक्ष का स्वािमत्व या कब्जा रखने वाले िक्त से यह अपेक्षा करते हुए सशतर् आदेश दे सकता है िक उतने समय के अंदर,
िजतना उस आदेश म िनयत िकया जाएगा, वह—
(i) ऐसी बाधा या न्यूसेन्स को हटा दे ; अथवा
41

(ii) ऐसा ापार या उपजीिवका चलाना छोड़ दे या उसे ऐसी रीित से बंद कर दे या िविनयिमत करे , जैसी िनिदष्ट की जाए
अथवा ऐसे मामले या पण्य वस्तु को हटाए या उसको रखना ऐसी रीित से िविनयिमत करे जैसी िनिदष्ट की जाए ; अथवा
(iii) ऐसे भवन का िनमार्ण रोके या बंद करे , या ऐसे पदाथर् के यन म पिरवतर्न करे ; अथवा
(iv) ऐसे भवन, तंबू या संरचना को हटाए, उसकी मरम्मत कराए या उसम आलम्ब लगाए अथवा ऐसे वृक्ष को हटाए या
उनम आलंब लगाए ; अथवा
(v) ऐसे तालाब, कु एं या उत्खात को बाढ़ लगाए ; अथवा
(vi) ऐसे भयानक जीवजंतु को उस रीित से नष्ट करे , पिररु करे या उसका यन करे , जो उस आदेश म उपबंिधत है,
अथवा यिद वह ऐसा करने म आपि करता है तो वह स्वयं उसके समक्ष या उसके अधीनस्थ िकसी अन्य कायर्पालक मिजस्टर्ेट के समक्ष
उस समय और स्थान पर, जो उस आदेश ारा िनयत िकया जाएगा, हािजर हो और इसम इसके पश्चात् उपबंिधत पर्कार से कारण दिशत
करे िक उस आदेश को अंितम क्य न कर िदया जाए ।
(2) मिजस्टर्ेट ारा इस धारा के अधीन सम्यक् रूप से िदए गए िकसी भी आदेश को िकसी िसिवल न्यायालय म पर्श्नगत नह िकया
जाएगा ।
स्पष्टीकरण—“लोक स्थान” के अंतगर्त राज्य की संपि , पड़ाव के मैदान और स्वच्छता या आमोद-पर्मोद के पर्योजन के िलए
खाली छोड़े गए मैदान भी ह ।
134. आदेश की तामील या अिधसूचना—(1) आदेश की तामील उस िक्त पर, िजसके िवरु वह िकया गया है, यिद साध्य हो
तो उस रीित से की जाएगी जो समन की तामील के िलए इसम उपबंिधत है ।
(2) यिद ऐसे आदेश की तामील इस पर्कार नह की जा सकती है तो उसकी अिधसूचना ऐसी रीित से पर्कािशत उ ोषणा ारा की
जाएगी जैसी राज्य सरकार िनयम ारा िनिदष्ट करे और उसकी एक पर्ित ऐसे स्थान या स्थान पर िचपका दी जाएगी जो उस िक्त को
इि ला पहुंचाने के िलए सबसे अिधक उपयुक्त ह ।
135. िजस िक्त को आदेश संबोिधत है वह उसका पालन करे गा या कारण दिशत करे गा—वह िक्त िजसके िवरु ऐसा आदेश
िदया गया है—
(क) उस आदेश ारा िनिदष्ट कायर् उस समय के अंदर और उस रीित से करे गा जो आदेश म िविनिदष्ट है, अथवा
(ख) उस आदेश के अनुसार हािजर होगा और उसके िवरु कारण दिशत करे गा ।
136. उसके ऐसा करने म असफल रहने का पिरणाम—यिद ऐसा िक्त ऐसे कायर् को नह करता है या हािजर होकर कारण दिशत
नह करता है, तो वह भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 188 म उस िनिम िविहत शािस्त का दायी होगा और आदेश अंितम
कर िदया जाएगा ।
137. जहां लोक अिधकार के अिस्तत्व से इनकार िकया जाता है वहां पर्िकर्या—(1) जहां िकसी मागर्, नदी, जलसरणी या स्थान के
उपयोग म जनता को होने वाली बाधा, न्यूसेन्स या खतरे का िनवारण करने के पर्योजन के िलए कोई आदेश धारा 133 के अधीन िकया
जाता है वहां मिजस्टर्ेट उस िक्त के िजसके िवरु वह आदेश िकया गया है अपने समक्ष हािजर होने पर, उससे पर्श्न करे गा िक क्या वह
उस मागर्, नदी, जलसरणी या स्थान के बारे म िकसी लोक अिधकार के अिस्तत्व से इनकार करता है और यिद वह ऐसा करता है तो
मिजस्टर्ेट धारा 138 के अधीन कायर्वाही करने के पहले उस बात की जांच करे गा ।
(2) यिद ऐसी जांच म मिजस्टर्ेट इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक ऐसे इनकार के समथर्न म कोई िवश्वसनीय सा य है तो वह
कायर्वाही को तब तक के िलए रोक देगा जब तक ऐसे अिधकार के अिस्तत्व का मामला सक्षम न्यायालय ारा िविनिश्चत नह कर िदया
जाता है ; और यिद वह इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक ऐसा कोई सा य नह है तो वह धारा 138 के अनुसार कायर्वाही करे गा ।
(3) मिजस्टर्ेट ारा उपधारा (1) के अधीन पर्श्न िकए जाने पर, जो िक्त उसम िनिदष्ट पर्कार के लोक अिधकार के अिस्तत्व से
इनकार नह करता है या ऐसा इनकार करने पर उसके समथर्न म िवश्वसनीय सा य देने म असफल रहता है उसे पश्चात्वत कायर्वािहय
म ऐसा कोई इन्कार नह करने िदया जाएगा ।
138. जहां वह कारण दिशत करने के िलए हािजर है वहां पर्िकर्या—(1) यिद वह िक्त, िजसके िवरु धारा 133 के अधीन आदेश
िदया गया है, हािजर है और आदेश के िवरु कारण दिशत करता है तो मिजस्टर्ेट उस मामले म उस पर्कार सा य लेगा जैसे समन मामले
मे िलया जाता है ।
(2) यिद मिजस्टर्ेट का यह समाधान हो जाता है िक आदेश या तो जैसा मूलत: िकया गया था उस रूप म या ऐसे पिरवतर्न के साथ,
िजसे वह आवश्यक समझे, युिक्तयुक्त और उिचत है तो वह आदेश, यथािस्थित, पिरवतर्न के िबना या ऐसे पिरवतर्न के सिहत अंितम कर
िदया जाएगा ।

(3) यिद मिजस्टर्ेट का ऐसा समाधान नह होता है तो उस मामले म आगे कोई कायर्वाही नह की जाएगी ।
42

139. स्थानीय अन्वेषण के िलए िनदेश देने और िवशेषज्ञ की परीक्षा करने की मिजस्टर्ेट की शिक्त—मिजस्टर्ेट धारा 137 या
धारा 138 के अधीन िकसी जांच के पर्योजन के िलए,—

(क) ऐसे िक्त ारा, िजसे वह ठीक समझे, स्थानीय अन्वेषण िकए जाने के िलए िनदेश दे सकता है, अथवा

(ख) िकसी िवशेषज्ञ को समन कर सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है ।

140. मिजस्टर्ेट की िलिखत अनुदश


े आिद देने की शिक्त—(1) जहां मिजस्टर्ेट धारा 139 के अधीन िकसी िक्त ारा स्थानीय
अन्वेषण िकए जाने के िलए िनदेश देता है वहां मिजस्टर्ेट—

(क) उस िक्त को ऐसे िलिखत अनुदश


े दे सकता है जो उसके मागर्दशर्न के िलए आवश्यक पर्तीत हो,

(ख) यह घोिषत कर सकता है िक स्थानीय अन्वेषण का सब आवश्यक य, या उसका कोई भाग, िकसके ारा
िदया जाएगा ।

(2) ऐसे िक्त की िरपोटर् को मामले म सा य के रूप म पढ़ा जा सकता है ।

(3) जहां मिजस्टर्ेट धारा 139 के अधीन िकसी िवशेषज्ञ को समन करता है और उसकी परीक्षा करता है वहां मिजस्टर्ेट िनदेश दे
सकता है िक ऐसे समन करने और परीक्षा करने के खच िकसके ारा िदए जाएंगे ।

141. आदेश अंितम कर िदए जाने पर पर्िकर्या और उसकी अवज्ञा के पिरणाम—(1) जब धारा 136 या धारा 138 के अधीन आदेश
अंितम कर िदया जाता है तब मिजस्टर्ेट उस िक्त को, िजसके िवरु वह आदेश िदया गया है, उसकी सूचना देगा और उससे यह भी
अपेक्षा करे गा िक वह उस आदेश ारा िनिदष्ट कायर् इतने समय के अंदर करे , िजतना सूचना म िनयत िकया जाएगा और उसे इि ला देगा
िक अवज्ञा करने पर वह भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 188 ारा उपबंिधत शािस्त का भागी होगा ।

(2) यिद ऐसा कायर् िनयत समय के अंदर नह िकया जाता है तो मिजस्टर्ेट उसे करा सकता है और उसके िकए जाने म हुए खच को
िकसी भवन, माल या अन्य संपि के , जो उसके आदेश ारा हटाई गई है, िवकर्य ारा अथवा ऐसे मिजस्टर्ेट की स्थानीय अिधकािरता के
अंदर या बाहर िस्थत उस िक्त की अन्य जंगम संपि के करस्थम् और िवकर्य ारा वसूल कर सकता है और यिद ऐसी अन्य संपि ऐसी
अिधकािरता के बाहर है तो उस आदेश से ऐसी कु क और िवकर्य तब पर्ािधकृ त होगा जब वह उस मिजस्टर्ेट ारा पृष्ठांिकत कर िदया
जाता है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर कु कर् की जाने वाली संपि पाई जाती है ।

(3) इस धारा के अधीन स ावपूवक


र् की गई िकसी बात के बारे म कोई वाद न होगा ।

142. जांच के लंिबत रहने तक ादेश—(1) यिद धारा 133 के अधीन आदेश देने वाला मिजस्टर्ेट यह समझता है िक जनता को
आसन्न खतरे या गंभीर िकस्म की हािन का िनवारण करने के िलए तुरंत उपाय िकए जाने चािहए तो वह, उस िक्त को, िजसके िवरु
आदेश िदया गया था, ऐसा ादेश देगा जैसा उस खतरे या हािन को, मामले का अवधारण होने तक, दूर या िनवािरत करने के िलए
अपेिक्षत है ।

(2) यिद ऐसे ादेश के तत्काल पालन म उस िक्त ारा ितकर्म िकया जाता है तो मिजस्टर्ेट स्वयं ऐसे साधन का उपयोग कर
सकता है या करवा सकता है जो वह उस खतरे को दूर करने या हािन का िनवारण करने के िलए ठीक समझे ।

(3) मिजस्टर्ेट ारा इस धारा के अधीन स ावपूवर्क की गई िकसी बात के बारे म कोई वाद न होगा ।

143. मिजस्टर्ेट लोक नयूसस की पुनरावृि या उसे चालू रखने का पर्ितषेध कर सकता है—कोई िजला मिजस्टर्ेट अथवा उपखंड
मिजस्टर्ेट या राज्य सरकार या िजला मिजस्टर्ेट ारा इस िनिम सशक्त िकया गया कोई अन्य कायर्पालक मिजस्टर्ेट िकसी िक्त को
आदेश दे सकता है िक वह भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) म या िकसी अन्य िवशेष या स्थानीय िविध म यथापिरभािषत लोक न्यूसस
की न तो पुनरावृि करे और न उसे चालू रखे ।
ग—न्यूसस या आशंिकत खतरे के अजट मामले

144. न्यूसस या आशंिकत खतरे के अजट मामल म आदेश जारी करने की शिक्त—(1) उन मामल म, िजनम िजला मिजस्टर्ेट या
उपखंड मिजस्टर्ेट अथवा राज्य सरकार ारा इस िनिम िवशेषतया सशक्त िकए गए िकसी अन्य कायर्पालक मिजस्टर्ेट की राय म इस
धारा के अधीन कायर्वाही करने के िलए पयार्प्त आधार है और तुरंत िनवारण या शीघर् उपचार करना वांछनीय है, वह मिजस्टर्ेट ऐसे
िलिखत आदेश ारा िजसम मामले के ताित्त्वक तथ्य का कथन होगा और िजसकी तामील धारा 134 ारा उपबंिधत रीित से कराई
43

जाएगी, िकसी िक्त को कायर्-िवशेष न करने या अपने कब्जे की या अपने पर्बंधाधीन िकसी िविशष्ट संपि की कोई िविशष्ट वस्था
करने का िनदेश उस दशा म दे सकता है िजसम ऐसा मिजस्टर्ेट समझता है िक ऐसे िनदेश से यह संभा है, या ऐसे िनदेश की यह पर्वृि है
िक िविधपूवर्क िनयोिजत िकसी िक्त को बाधा, क्षोभ या क्षित का, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का, या लोक पर्शांित
िवक्षुब्ध होने का, या बलवे या दंगे का िनवारण हो जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन आदेश, आपात की दशा म या उन दशा म जब पिरिस्थितयां ऐसी ह िक उस िक्त पर, िजसके िवरु
वह आदेश िनिदष्ट है, सूचना की तामील सम्यक् समय म करने की गुंजाइश न हो, एक पक्षीय रूप म पािरत िकया जा सकता है ।

(3) इस धारा के अधीन आदेश िकसी िविशष्ट िक्त को, या िकसी िवशेष स्थान या क्षेतर् म िनवास करने वाले िक्तय को
अथवा आम जनता को, जब वे िकसी िवशेष स्थान या क्षेतर् म जाते रहते ह या जाएं, िनिदष्ट िकया जा सकता है ।

(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश उस आदेश के िदए जाने की तारीख से दो मास से आगे पर्वृ न रहेगा :

परं तु यिद राज्य सरकार मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का िनवारण करने के िलए अथवा बलवे या िकसी दंगे का
िनवारण करने के िलए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह अिधसूचना ारा यह िनदेश दे सकती है िक मिजस्टर्ेट ारा इस धारा के
अधीन िकया गया कोई आदेश उतनी अितिरक्त अविध के िलए, िजतनी वह उक्त अिधसूचना म िविनिदष्ट करे , पर्वृ रहेगा ; िकतु वह
अितिरक्त अविध उस तारीख से छह मास से अिधक की न होगी िजसको मिजस्टर्ेट ारा िदया गया आदेश ऐसे िनदेश के अभाव म समाप्त
हो गया होता ।

(5) कोई मिजस्टर्ेट या तो स्वपर्ेरणा से या िकसी िथत िक्त के आवेदन पर िकसी ऐसे आदेश को िवखंिडत या पिरवितत कर
सकता है जो स्वयं उसने या उसके अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट ने या उसके पद-पूवर्वत ने इस धारा के अधीन िदया है ।

(6) राज्य सरकार उपधारा (4) के परं तुक के अधीन अपने ारा िदए गए िकसी आदेश को या तो स्वपर्ेरणा से या िकसी िथत
िक्त के आवेदन पर िवखंिडत या पिरवितत कर सकती है ।

(7) जहां उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन आवेदन पर्ाप्त होता है वहां, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या राज्य सरकार आवेदक को
या तो स्वयं या प्लीडर ारा उसके समक्ष हािजर होने और आदेश के िवरु कारण दिशत करने का शीघर् अवसर देगी ; और यिद,
यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या राज्य सरकार आवेदन को पूणर्त: या अंशत: नामंजरू कर दे तो वह ऐसा करने के अपने कारण को
लेखब करे गी ।
1*
[144क.—पिरिशष्ट 1 देिखए ।]

घ—स्थावर संपि के बारे म िववाद

145. जहां भूिम या जल से संब िववाद से पिरशांित भंग होना संभा है वहां पर्िकर्या—(1) जब कभी िकसी कायर्पालक
मिजस्टर्ेट का, पुिलस अिधकारी की िरपोटर् से या अन्य इि ला पर समाधान हो जाता है िक उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर िकसी
भूिम या जल या उसकी सीमा से संब ऐसा िववाद िव मान है, िजससे पिरशांित भंग होना संभा है, तब वह अपना ऐसा समाधान
होने के आधार का कथन करते हुए और ऐसे िववाद से संब पक्षकार से यह अपेक्षा करते हुए िलिखत आदेश देगा िक वे िविनिदष्ट
तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर ारा उसके न्यायालय म हािजर ह और िववाद की िवषयवस्तु पर वास्तिवक कब्जे के तथ्य के बारे
म अपने-अपने दाव का िलिखत कथन पेश कर ।
(2) इस धारा के पर्योजन के िलए “भूिम या जल” पद के अंतगर्त भवन, बाजार, मीनक्षेतर्, फसल, भूिम की अन्य उपज और ऐसी
िकसी संपि के भाटक या लाभ भी ह ।
(3) इस आदेश की एक पर्ित की तामील इस संिहता ारा समन की तामील के िलए उपबंिधत रीित से ऐसे िक्त या िक्तय
पर की जाएगी, िजन्ह मिजस्टर्ेट िनिदष्ट करे और कम से कम एक पर्ित िववाद की िवषयवस्तु पर या उसके िनकट िकसी सहजदृश्य स्थान
पर लगाकर पर्कािशत की जाएगी ।
(4) मिजस्टर्ेट तब िववाद की िवषयवस्तु को पक्षकार म से िकसी के भी कब्जे म रखने के अिधकार के गुणागुण या दावे के पर्ित
िनदश िकए िबना उन कथन का, जो ऐसे पेश िकए गए ह, पिरशीलन करे गा, पक्षकार को सुनेगा और ऐसा सभी सा य लेगा जो उनके
ारा पर्स्तुत िकया जाए, ऐसा अितिरक्त सा य, यिद कोई हो ; लेगा जैसा वह आवश्यक समझे और यिद संभव हो तो यह िविनिश्चत
करे गा िक क्या उन पक्षकार म से कोई उपधारा (1) के अधीन उसके ारा िदए गए आदेश की तारीख पर िववाद की िवषयवस्तु पर
कब्जा रखता था और यिद रखता था तो वह कौन सा पक्षकार था :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक कोई पक्षकार उस तारीख के , िजसको पुिलस अिधकारी की िरपोटर् या अन्य इि ला

1
* 2005के अिधिनयम सं० 25 की धारा 16 ारा अंत:स्थािपत ।
44

मिजस्टर्ेट को पर्ाप्त हुई, ठीक पूवर् दो मास के अंदर या उस तारीख के पश्चात् और उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तारीख के पूवर्
बलात् और सदोष रूप से बेकब्जा िकया गया है तो वह यह मान सके गा िक उस पर्कार बेकब्जा िकया गया पक्षकार उपधारा (1) के अधीन
उसके आदेश की तारीख को कब्जा रखता था ।
(5) इस धारा की कोई बात, हािजर होने के िलए ऐसे अपेिक्षत िकसी पक्षकार को या िकसी अन्य िहतब िक्त को यह दिशत
करने से नह रोके गी िक कोई पूव क्त पर्कार का िववाद वतर्मान नह है या नह रहा है और ऐसी दशा म मिजस्टर्ेट अपने उक्त आदेश को
र कर देगा और उस पर आगे की सब कायर्वािहयां रोक दी जाएंगी िकतु उपधारा (1) के अधीन मिजस्टर्ेट का आदेश ऐसे र करण के
अधीन रहते हुए अंितम होगा ।
(6) (क) यिद मिजस्टर्ेट यह िविनश्चय करता है िक पक्षकार म से एक का उक्त िवषयवस्तु पर ऐसा कब्जा था या उपधारा (4) के
परं तुक के अधीन ऐसा कब्जा माना जाना चािहए, तो वह यह घोषणा करने वाला िक ऐसा पक्षकार उस पर तब तक कब्जा रखने का
हकदार है जब तक उसे िविध के सम्यक् अनुकर्म म बेदखल न कर िदया जाए और या िनषेध करने वाला िक जब तक ऐसी बेदखली न कर
दी जाए तब तक ऐसे कब्जे म कोई िवघ्न न डाला जाए, आदेश जारी करे गा ; और जब वह उपधारा (4) के परं तुक के अधीन कायर्वाही
करता है तब उस पक्षकार को, जो बलात् और सदोष बेकब्जा िकया गया है, कब्जा लौटा सकता है ।
(ख) इस उपधारा के अधीन िदया गया आदेश उपधारा (3) म अिधकिथत रीित से तामील और पर्कािशत िकया जाएगा ।
(7) जब िकसी ऐसी कायर्वाही के पक्षकार की मृत्यु हो जाती है तब मिजस्टर्ेट मृत पक्षकार के िविधक पर्ितिनिध को कायर्वाही का
पक्षकार बनवा सके गा और िफर जांच चालू रखेगा और यिद इस बारे म कोई पर्श्न उत्पन्न होता है िक मृत पक्षकार का ऐसी कायर्वाही के
पर्योजन के िलए िविधक पर्ितिनिध कौन है तो मृत पक्षकार का पर्ितिनिध होने का दावा करने वाले सब िक्तय को उस कायर्वाही का
पक्षकार बना िलया जाएगा ।
(8) यिद मिजस्टर्ेट की यह राय है िक उस संपि की, जो इस धारा के अधीन उसके समक्ष लंिबत कायर्वाही म िववाद की
िवषयवस्तु है, कोई फसल या अन्य उपज शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है तो वह ऐसी संपि की उिचत अिभरक्षा या िवकर्य के िलए
आदेश दे सकता है और जांच के समाप्त होने पर ऐसी संपि के या उसके िवकर्य के आगम के यन के िलए ऐसा आदेश दे सकता है जो
वह ठीक समझे ।
(9) यिद मिजस्टर्ेट ठीक समझे तो वह इस धारा के अधीन कायर्वािहय के िकसी पर्कर्म म पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर िकसी
साक्षी के नाम समन यह िनदेश देते हुए जारी कर सकता है िक वह हािजर हो या कोई दस्तावेज या चीज पेश करे ।
(10) इस धारा की कोई बात धारा 107 के अधीन कायर्वाही करने की मिजस्टर्ेट की शिक्तय का अल्पीकरण करने वाली नह
समझी जाएगी ।
146. िववाद की िवषयवस्तु की कु कर् करने की और िरसीवर िनयुक्त करने की शिक्त—(1) यिद धारा 145 की उपधारा (1) के
अधीन आदेश करने के पश्चात् िकसी समय मिजस्टर्ेट मामले को आपाितक समझता है अथवा यिद वह िविनश्चय करता है िक पक्षकार म
से िकसी का धारा 145 म यथािनिदष्ट कब्जा उस समय नह था, अथवा यिद वह अपना समाधान नह कर पाता है िक उस समय उनम से
िकसका ऐसा कब्जा िववाद की िवषयवस्तु पर था तो वह िववाद की िवषयवस्तु को तब तक के िलए कु कर् कर सकता है जब तक कोई
सक्षम न्यायालय उसके कब्जे का हकदार िक्त होने के बारे म उसके पक्षकार के अिधकार का अवधारण नह कर देता है :
परं तु यिद ऐसे मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक िववाद की िवषयवस्तु के बारे म पिरशांित भंग होने की कोई संभा ता नह
रही तो वह िकसी समय भी कु क वापस ले सकता है ।
(2) जब मिजस्टर्ेट िववाद की िवषयवस्तु को कु कर् करता है तब यिद ऐसी िववाद की िवषयवस्तु के संबंध म कोई िरसीवर िकसी
िसिवल न्यायालय ारा िनयुक्त नह िकया गया है तो, वह उसके िलए ऐसा इं तजाम कर सकता है जो वह उस संपि की देखभाल के
िलए उिचत समझता है अथवा यिद वह ठीक समझता है तो, उसके िलए िरसीवर िनयुक्त कर सकता है िजसको मिजस्टर्ेट के िनयंतर्ण के
अधीन रहते हुए वे सब शिक्तयां पर्ाप्त ह गी जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन िरसीवर की होती ह :
परं तु यिद िववाद की िवषयवस्तु के संबंध म कोई िरसीवर िकसी िसिवल न्यायालय ारा बाद म िनयुक्त कर िदया जाता है तो
मिजस्टर्ेट—
(क) अपने ारा िनयुक्त िरसीवर को आदेश देगा िक वह िववाद की िवषयवस्तु का कब्जा िसिवल न्यायालय ारा िनयुक्त
िरसीवर को दे दे और तत्पश्चात् वह अपने ारा िनयुक्त िरसीवर को उन्मोिचत कर देगा,
(ख) ऐसे अन्य आनुषंिगक या पािरणािमक आदेश कर सके गा जो न्यायसंगत ह ।
147. भूिम या जल के उपयोग के अिधकार से संब िववाद—(1) जब िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट का, पुिलस अिधकारी की िरपोटर्
से या अन्य इि ला पर, समाधान हो जाता है िक उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर िकसी भूिम या जल के उपयोग के िकसी
अिभकिथत अिधकार के बारे म, चाहे ऐसे अिधकार का दावा सुखाचार के रूप म िकया गया हो या अन्यथा, िववाद वतर्मान है िजससे
पिरशांित भंग होनी संभा है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधार का कथन करते हुए और िववाद से संब पक्षकार से यह
अपेक्षा करते हुए िलिखत आदेश दे सकता है िक वे िविनिदष्ट तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर ारा उसके न्यायालय म हािजर ह
और अपने-अपने दाव का िलिखत कथन पेश कर ।
45

स्पष्टीकरण—“भूिम या जल” पद का वही अथर् होगा जो धारा 145 की उपधारा (2) म िदया गया है ।
(2) मिजस्टर्ेट तब इस पर्कार पेश िकए गए कथन का पिरशीलन करे गा, पक्षकार को सुनेगा, ऐसा सब सा य लेगा जो उनके ारा
पेश िकया जाए, ऐसे सा य के पर्भाव पर िवचार करे गा, ऐसा अितिरक्त सा य, यिद कोई हो, लेगा जो वह आवश्यक समझे और, यिद
संभव हो तो िविनश्चय करे गा िक क्या ऐसा अिधकार वतर्मान है ; और ऐसी जांच के मामले म धारा 145 के उपबंध यावतशक्य
लागू ह गे ।
(3) यिद उस मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक ऐसे अिधकार वतर्मान ह तो वह ऐसे अिधकार के पर्योग म िकसी भी हस्तक्षेप का
पर्ितषेध करने का और यथोिचत मामले म ऐसे िकसी अिधकार के पर्योग म िकसी बाधा को हटाने का भी आदेश दे सकता है :
परं तु जहां ऐसे अिधकार का पर्योग वषर् म हर समय िकया जा सकता है वहां जब तक ऐसे अिधकार का पर्योग उपधारा (1) के
अधीन पुिलस अिधकारी की िरपोटर् या अन्य इि ला की, िजसके पिरणामस्वरूप जांच संिस्थत की गई है, पर्ािप्त के ठीक पहले तीन मास
के अंदर नह िकया गया है अथवा जहां ऐसे अिधकार का पर्योग िविशष्ट मौसम म हो या िविशष्ट अवसर पर ही िकया जा सकता है
वहां जब तक ऐसे अिधकार का पर्योग ऐसी पर्ािप्त के पूवर् के ऐसे मौसम म से अंितम मौसम के दौरान या ऐसे अवसर म से अंितम अवसर
पर नह िकया गया है, ऐसा कोई आदेश नह िदया जाएगा ।
(4) जब धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन पर्ारं भ की गई िकसी कायर्वाही म मिजस्टर्ेट को यह मालूम पड़ता है िक िववाद भूिम
या जल के उपयोग के िकसी अिभकिथत अिधकार के बारे म है, तो वह, अपने कारण अिभिलिखत करने के पश्चात् कायर्वाही को ऐसे चालू
रख सकता है, मानो वह उपधारा (1) के अधीन पर्ारं भ की गई हो ;
और जब उपधारा (1) के अधीन पर्ारं भ की गई िकसी कायर्वाही म मिजस्टर्ेट को यह मालूम पड़ता है िक िववाद के संबंध म
धारा 145 के अधीन कायर्वाही की जानी चािहए तो वह अपने कारण अिभिलिखत करने के पश्चात् कायर्वाही को ऐसे चालू रख सकता है,
मानो वह धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन पर्ारं भ की गई हो ।
148. स्थानीय जांच—(1) जब कभी धारा 145 या धारा 146 या धारा 147 के पर्योजन के िलए स्थानीय जांच आवश्यक हो तब
कोई िजला मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट को जांच करने के िलए पर्ितिनयुक्त कर सकता है और उसे ऐसे
िलिखत अनुदशे दे सकता है जो उसके मागर्दशर्न के िलए आवश्यक पर्तीत हो और घोिषत कर सकता है िक जांच का सब आवश्यक य या
उसका कोई भाग, िकसके ारा िदया जाएगा ।
(2) ऐसे पर्ितिनयुक्त िक्त की िरपोटर् को मामले म सा य के रूप म पढ़ा जा सकता है ।
(3) जब धारा 145, धारा 146 या धारा 147 के अधीन कायर्वाही के िकसी पक्षकार ारा कोई खच िकए गए ह तब िविनश्चय
करने वाला मिजस्टर्ेट यह िनदेश दे सकता है िक ऐसे खच िकसके ारा िदए जाएंग,े ऐसे पक्षकार ारा िदए जाएंगे या कायर्वाही के िकसी
अन्य पक्षकार ारा और पूरे के पूरे िदए जाएंगे अथवा भाग या अनुपात म ; और ऐसे खच के अंतगर्त सािक्षय के और प्लीडर की फीस के
बारे म वे य भी हो सकते है, िजन्ह न्यायालय उिचत समझे ।
अध्याय 11

पुिलस का िनवारक कायर्


149. पुिलस का संज्ञय े अपराध का िनवारण करना—पर्त्येक पुिलस अिधकारी िकसी संज्ञेय अपराध के िकए जाने का िनवारण
करने के पर्योजन से हस्तक्षेप कर सके गा और अपनी पूरी सामथ्यर् से उसे िनवािरत करे गा ।
150. संज्ञय
े अपराध के िकए जाने की पिरकल्पना की इि ला—पर्त्येक पुिलस अिधकारी, िजसे िकसी संज्ञेय अपराध को करने की
पिरकल्पना की इि ला पर्ाप्त होती है, ऐसी इि ला की संसूचना उस पुिलस अिधकारी को, िजसके वह अधीनस्थ है, और िकसी अन्य
अिधकारी को देगा िजसका कतर् िकसी ऐसे अपराध के िकए जाने का िनवारण या संज्ञान करना है ।
151. संज्ञय
े अपराध का िकया जाना रोकने के िलए िगरफ्तारी—(1) कोई पुिलस अिधकारी िजसे िकसी संज्ञेय अपराध करने की
पिरकल्पना का पता है, ऐसी पिरकल्पना करने वाले िक्त को मिजस्टर्ेट के आदेश के िबना और वारं ट के िबना उस दशा म िगरफ्तार कर
सकता है िजसम ऐसे अिधकारी को पर्तीत होता है िक उस अपराध का िकया जाना अन्यथा नह रोका जा सकता ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िगरफ्तार िकए गए िकसी िक्त को उसकी िगरफ्तारी के समय से चौबीस घंटे की अविध से अिधक के
िलए अिभरक्षा म उस दशा के िसवाय िनरु नह रखा जाएगा िजसम उसका और आगे िनरु रखा जाना इस संिहता के या तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध के िकन्ह अन्य उपबंध के अधीन अपेिक्षत या पर्ािधकृ त है ।
152. लोक संपि की हािन का िनवारण—िकसी पुिलस अिधकारी की दृिष्टगोचरता म िकसी भी जंगम या स्थावर लोक संपि को
हािन पहुंचाने का पर्यत्न िकए जाने पर वह उसका, या िकसी लोक भूिम-िचह्न या बोया या नौपिरवहन के िलए पर्युक्त अन्य िचह्न के
हटाए जाने या उसे हािन पहुंचाए जाने का, िनवारण करने के िलए अपने ही पर्ािधकार से अंत:क्षेप कर सकता है ।
153. बाट और माप का िनरीक्षण—(1) कोई पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी उस थाने की सीमा के अंदर िकसी स्थान
म, जब कभी उसके पास यह िवश्वास करने का कारण है िक ऐसे स्थान म कोई बाट, माप या तोलने के उपकरण ह जो खोटे ह, वहां पर्युक्त
या रखे हुए िकन्ह बाट या माप या तोलने के उपकरण के िनरीक्षण या तलाशी के पर्योजन के िलए वारं ट के िबना पर्वेश कर सकता है ।
46

(2) यिद वह उस स्थान म कोई ऐसे बाट, माप या तोलने के उपकरण पाता है जो खोटे ह तो वह उन्ह अिभगृहीत कर सकता है और
ऐसे अिभगर्हण की इि ला अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को तत्काल देगा ।
अध्याय 12

पुिलस को इि ला और उनकी अन्वेषण करने की शिक्तयां


154. संज्ञय
े मामल म इि ला—(1) संज्ञेय अपराध के िकए जाने से संबंिधत पर्त्येक इि ला, यिद पुिलस थाने के भारसाधक
अिधकारी को मौिखक दी गई है तो उसके ारा या उसके िनदेशाधीन लेखब कर ली जाएगी और इि ला देने वाले को पढ़कर सुनाई
जाएगी और पर्त्येक ऐसी इि ला पर, चाहे वह िलिखत रूप म दी गई हो या पूव क्त रूप म लेखब की गई हो, उस िक्त ारा
हस्ताक्षर िकए जाएंगे जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक म, जो उस अिधकारी ारा ऐसे रूप म रखी जाएगी िजसे राज्य सरकार इस
िनिम िविहत करे , पर्िवष्ट िकया जाएगा :
[परं तु यिद िकसी स्तर्ी ारा, िजसके िवरु भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा
1

354ग, धारा 354घ, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन िकसी
अपराध के िकए जाने या िकए जाने का पर्यत्न िकए जाने का अिधकथन िकया गया है, कोई इि ला दी जाती है तो ऐसी इि ला िकसी
मिहला पुिलस अिधकारी या िकसी मिहला अिधकारी ारा अिभिलिखत की जाएगी :
परन्तु यह और िक—
(क) यिद वह व्यिक्त, िजसके िवरु भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख,
धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन
िकसी अपराध के िकए जाने का या िकए जाने का पर्यत्न िकए जाने का अिभकथन िकया गया है, अस्थायी या स्थायी रूप से
मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है, तो ऐसी इि ला िकसी पुिलस अिधकारी ारा उस व्यिक्त के , जो ऐसे अपराध की
िरपोटर् करने की ईप्सा करता है, िनवास-स्थान पर या उस व्यिक्त के िवकल्प के िकसी सुगम स्थान पर, यथािस्थित, िकसी
ि भािषए या िकसी िवशेष पर्बोधक की उपिस्थित म अिभिलिखत की जाएगी ;
(ख) ऐसी इि ला के अिभलेखन की वीिडयो िफल्म तैयार की जाएगी ;
(ग) पुिलस अिधकारी धारा 164 की उपधारा (5क) के खंड (क) के अधीन िकसी न्याियक मिजस्टर्ेट ारा उस व्यिक्त
का कथन यथासंभवशीघर् अिभिलिखत कराएगा ।]
(2) उपधारा (1) के अधीन अिभिलिखत इि ला की पर्ितिलिप, इि ला देने वाले को तत्काल िन:शुल्क दी जाएगी ।
(3) कोई िक्त जो िकसी पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के उपधारा (1) म िनिदष्ट इि ला को अिभिलिखत करने से इनकार
करने से िथत है, ऐसी इि ला का सार िलिखत रूप म और डाक ारा संब पुिलस अधीक्षक को भेज सकता है जो, यिद उसका यह
समाधान हो जाता है िक ऐसी इि ला से िकसी संज्ञय
े अपराध का िकया जाना पर्कट होता है तो, या तो स्वयं मामले का अन्वेषण करे गा या
अपने अधीनस्थ िकसी पुिलस अिधकारी ारा इस संिहता ारा उपबंिधत रीित म अन्वेषण िकए जाने का िनदेश देगा और उस अिधकारी
को उस अपराध के संबंध म पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी की सभी शिक्तयां ह गी ।
155. असंज्ञय े मामल के बारे म इि ला और ऐसे मामल का अन्वेषण—(1) जब पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को उस
थाने की सीमा के अंदर असंज्ञेय अपराध के िकए जाने की इि ला दी जाती है तब वह ऐसी इि ला का सार, ऐसी पुस्तक म, जो ऐसे
अिधकारी ारा ऐसे पर्रूप म रखी जाएगी जो राज्य सरकार इस िनिम िविहत करे , पर्िवष्ट करे गा या पर्िवष्ट कराएगा और इि ला देने
वाले को मिजस्टर्ेट के पास जाने को िनदिशत करे गा ।
(2) कोई पुिलस अिधकारी िकसी असंज्ञेय मामले का अन्वेषण ऐसे मिजस्टर्ेट के आदेश के िबना नह करे गा िजसे ऐसे मामले का
िवचारण करने की या मामले को िवचारणाथर् सुपुदर् करने की शिक्त है ।
(3) कोई पुिलस अिधकारी ऐसा आदेश िमलने पर (वारं ट के िबना िगरफ्तारी करने की शिक्त के िसवाय) अन्वेषण के बारे म वैसी
ही शिक्तय का पर्योग कर सकता है जैसी पुिलस थाने का भारसाधक संज्ञेय मामले म कर सकता है ।
(4) जहां मामले का संबंध ऐसे दो या अिधक अपराध से है, िजनम से कम से कम एक संज्ञेय है, वहां इस बात के होते हुए भी िक
अन्य अपराध असंज्ञेय ह, यह मामला संज्ञेय मामला समझा जाएगा ।
156. संज्ञय
े मामल का अन्वेषण करने की पुिलस अिधकारी की शिक्त—(1) कोई पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी मिजस्टर्ेट
के आदेश के िबना िकसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है, िजसकी जांच या िवचारण करने की शिक्त उस थाने की सीमा के
अंदर के स्थानीय क्षेतर् पर अिधकािरता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंध के अधीन है ।
(2) ऐसे िकसी मामले म पुिलस अिधकारी की िकसी कायर्वाही को िकसी भी पर्कर्म म इस आधार पर पर्श्नगत न िकया जाएगा िक
वह मामला ऐसा था िजसम ऐसा अिधकारी इस धारा के अधीन अन्वेषण करने के िलए सशक्त न था ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 13 ारा अंत:स्थािपत ।
47

(3) धारा 190 के अधीन सशक्त िकया गया कोई मिजस्टर्ेट पूव क्त पर्कार के अन्वेषण का आदेश कर सकता है ।
157. अन्वेषण के िलए पर्िकर्या—(1) यिद पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को, इि ला पर्ाप्त होने पर या अन्यथा, यह संदह

करने का कारण है िक ऐसा अपराध िकया गया है िजसका अन्वेषण करने के िलए धारा 156 के अधीन वह सशक्त है तो वह उस अपराध की
िरपोटर् उस मिजस्टर्ेट को तत्काल भेजेगा जो ऐसे अपराध का पुिलस िरपोटर् पर संज्ञान करने के िलए सशक्त है और मामले के तथ्य और
पिरिस्थितय का अन्वेषण करने के िलए, और यिद आवश्यक हो तो अपराधी का पता चलाने और उसकी िगरफ्तारी के उपाय करने के िलए,
उस स्थान पर या तो स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अिधकािरय म से एक को भेजेगा जो ऐसी पंिक्त से िनम्नतर पंिक्त का न होगा िजसे
राज्य सरकार साधारण या िवशेष आदेश ारा इस िनिम िविहत करे :
परं तु—
(क) जब ऐसे अपराध के िकए जाने की कोई इि ला िकसी िक्त के िवरु उसका नाम देकर की गई है और मामला गंभीर
पर्कार का नह है तब यह आवश्यक न होगा िक पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी उस स्थान पर अन्वेषण करने के िलए स्वयं
जाए या अधीनस्थ अिधकारी को भेजे ;
(ख) यिद पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को यह पर्तीत होता है िक अन्वेषण करने के िलए पयार्प्त आधार नह है तो
वह उस मामले का अन्वेषण न करे गा ।
[परं तु यह और िक बलात्संग के अपराध के संबंध म, पीिड़त का कथन, पीिड़त के िनवास पर या उसकी पसंद के स्थान पर
1

और यथासाध्य, िकसी मिहला पुिलस अिधकारी ारा उसके माता-िपता या संरक्षक या नजदीकी नातेदार या पिरक्षेतर् के सामािजक
कायर्क ार् की उपिस्थित म अिभिलिखत िकया जाएगा ।]
(2) उपधारा (1) के परं तुक के खंड (क) और (ख) म विणत दशा म से पर्त्येक दशा म पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी अपनी
िरपोटर् म उस उपधारा की अपेक्षा का पूणर्तया अनुपालन न करने के अपने कारण का कथन करे गा और उक्त परं तुक के खंड (ख) म
विणत दशा म ऐसा अिधकारी इि ला देने वाले को, यिद कोई हो, ऐसी रीित से, जो राज्य सरकार ारा िविहत की जाए तत्काल इस बात
की सूचना दे देगा िक वह उस मामले म अन्वेषण न तो करे गा और न कराएगा ।
158. िरपोट कै से दी जाएंगी—(1) धारा 157 के अधीन मिजस्टर्ेट को भेजी जाने वाली पर्त्येक िरपोटर्, यिद राज्य सरकार ऐसा
िनदेश देती है, तो पुिलस के ऐसे विरष्ठ अिधकारी के माध्यम से दी जाएगी, िजसे राज्य सरकार साधारण या िवशेष आदेश ारा इस
िनिम िनयत करे ।
(2) ऐसा विरष्ठ अिधकारी पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को ऐसे अनुदश े दे सकता है जो वह ठीक समझे और उस िरपोटर्
पर उन अनुदश
े को अिभिलिखत करने के पश्चात् उसे अिवलंब मिजस्टर्ेट के पास भेज देगा ।
159. अन्वेषण या पर्ारं िभक जांच करने की शिक्त—ऐसा मिजस्टर्ेट ऐसी िरपोटर् पर्ाप्त होने पर अन्वेषण के िलए आदेश दे सकता है,
या यिद वह ठीक समझे तो वह इस संिहता म उपबंिधत रीित से मामले की पर्ारं िभक जांच करने के िलए या उसको अन्यथा िनपटाने के
िलए तुरंत कायर्वाही कर सकता है, या अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट को कायर्वाही करने के िलए पर्ितिनयुक्त कर सकता है ।
160. सािक्षय की हािजरी की अपेक्षा करने की पुिलस अिधकारी की शिक्त—(1) कोई पुिलस अिधकारी, जो इस अध्याय के
अधीन अन्वेषण कर रहा है, अपने थाने की या िकसी पास के थाने की सीमा के अंदर िव मान िकसी ऐसे िक्त से, िजसकी दी गई
इि ला से या अन्यथा उस मामले के तथ्य और पिरिस्थितय से पिरिचत होना पर्तीत होता है, अपने समक्ष हािजर होने की अपेक्षा
िलिखत आदेश ारा कर सकता है और वह िक्त अपेक्षानुसार हािजर होगा :
परं तु िकसी पुरुष से 2 [जो पंदर्ह वषर् से कम आयु का या पसठ वषर् से अिधक आयु का है या िकसी स्तर्ी से या िकसी मानिसक या
शारीिरक रूप से िन:शक्त व्यिक्त से] ऐसे स्थान से िजसम ऐसा पुरुष या स्तर्ी िनवास करती है, िभन्न िकसी स्थान पर हािजर होने की
अपेक्षा नह की जाएगी ।
(2) अपने िनवास-स्थान से िभन्न िकसी स्थान पर उपधारा (1) के अधीन हािजर होने के िलए पर्त्येक िक्त के उिचत खच का
पुिलस अिधकारी ारा संदाय कराने के िलए राज्य सरकार इस िनिम बनाए गए िनयम ारा उपबंध कर सकती है ।
161. पुिलस ारा सािक्षय की परीक्षा—(1) कोई पुिलस अिधकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है या ऐसे
अिधकारी की अपेक्षा पर कायर् करने वाला पुिलस अिधकारी, जो ऐसी पंिक्त से िनम्नतर पंिक्त का नह है िजसे राज्य सरकार साधारण
या िवशेष आदेश ारा इस िनिम िविहत करे , मामले के तथ्य और पिरिस्थितय से पिरिचत समझे जाने वाले िकसी िक्त की मौिखक
परीक्षा कर सकता है ।
(2) ऐसा िक्त उन पर्श्न के िसवाय, िजनके उ र की पर्वृि उसे आपरािधक आरोप या शािस्त या समपहरण की आशंका म
डालने की है, ऐसे मामले से संबंिधत उन सब पर्श्न का सही-सही उ र देने के िलए आब होगा जो ऐसा अिधकारी उससे पूछता है ।
(3) पुिलस अिधकारी इस धारा के अधीन परीक्षा के दौरान उसके समक्ष िकए गए िकसी भी कथन को लेखब कर सकता है और

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 11 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 14 ारा पर्ितस्थािपत ।
48

यिद वह ऐसा करता है, तो वह पर्त्येक ऐसे िक्त के कथन का पृथक् और सही अिभलेख बनाएगा, िजसका कथन वह अिभिलिखत
करता है ।
1
[परं तु इस उपधारा के अधीन िकया गया कथन शर् -दृश्य इलैक्टर्ािनक साधन ारा भी अिभिलिखत िकया जा सके गा ।]
[परं तु यह और िक िकसी ऐसी स्तर्ी का कथन, िजसके िवरु भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क,
2

धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509, के
अधीन िकसी अपराध के िकए जाने या िकए जाने का पर्यत्न िकए जाने का अिधकथन िकया गया है, िकसी मिहला पुिलस अिधकारी या
िकसी मिहला अिधकारी ारा अिभिलिखत िकया जाएगा ।]
162. पुिलस से िकए गए कथन का हस्ताक्षिरत न िकया जाना ; कथन का सा य म उपयोग—(1) िकसी िक्त ारा िकसी
पुिलस अिधकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान िकया गया कोई कथन, यिद लेखब िकया जाता है तो कथन करने वाले
िक्त ारा हस्ताक्षिरत नह िकया जाएगा, और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अिभलेख चाहे वह पुिलस, डायरी म हो या न हो,
और न ऐसे कथन या अिभलेख का कोई भाग ऐसे िकसी अपराध की, जो ऐसा कथन िकए जाने के समय अन्वेषणाधीन था, िकसी जांच या
िवचारण म, इसम इसके पश्चात् यथाउपबंिधत के िसवाय, िकसी भी पर्योजन के िलए उपयोग म लाया जाएगा :
परं तु जब कोई ऐसा साक्षी, िजसका कथन उपयुर्क्त रूप म लेखब कर िलया गया है, ऐसी जांच या िवचारण म अिभयोजन की
ओर से बुलाया जाता है तब यिद उसके कथन का कोई भाग, सम्यक् रूप से सािबत कर िदया गया है तो, अिभयुक्त ारा और न्यायालय
की अनुज्ञा से अिभयोजन ारा उसका उपयोग ऐसे साक्षी का खंडन करने के िलए भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की
धारा 145 ारा उपबंिधत रीित से िकया जा सकता है और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस पर्कार उपयोग म लाया जाता है तब उसका
कोई भाग ऐसे साक्षी की पुन:परीक्षा म भी, िकतु उसकी पर्ितपरीक्षा म िनिदष्ट िकसी बात का स्पष्टीकरण करने के पर्योजन से ही,
उपयोग म लाया जा सकता है ।
(2) इस धारा की िकसी बात के बारे म यह न समझा जाएगा िक वह भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 32
के खंड (1) के उपबंध के अंदर आने वाले िकसी कथन को लागू होती है या उस अिधिनयम की धारा 27 के उपबंध पर पर्भाव डालती है ।
स्पष्टीकरण—उपधारा (1) म िनिदष्ट कथन म िकसी तथ्य या पिरिस्थित के कथन का लोप या खंडन हो सकता है यिद वह उस
संदभर् को ध्यान म रखते हुए, िजसम ऐसा लोप िकया गया है महत्वपूणर् और अन्यथा संगत पर्तीत होता है और कोई लोप िकसी िविशष्ट
संदभर् म खंडन है या नह यह तथ्य का पर्श्न होगा ।
163. कोई उत्पर्ेरणा न िदया जाना—(1) कोई पुिलस अिधकारी या पर्ािधकार वाला अन्य िक्त भारतीय सा य अिधिनयम,
1872 (1872 का 1) की धारा 24 म यथाविणत कोई उत्पर्ेरणा, धमकी या वचन न तो देगा और न करे गा तथा न िदलवाएगा और
न करवाएगा ।
(2) िकतु कोई पुिलस अिधकारी या अन्य िक्त इस अध्याय के अधीन िकसी अन्वेषण के दौरान िकसी िक्त को कोई कथन करने
से, जो वह अपनी स्वतंतर् इच्छा से करना चाहे, िकसी चेतावनी ारा या अन्यथा िनवािरत न करे गा :
परं तु इस धारा की कोई बात धारा 164 की उपधारा (4) के उपबंध पर पर्भाव न डालेगी ।
164. संस्वीकृ ितय और कथन को अिभिलिखत करना—(1) कोई महानगर मिजस्टर्ेट या न्याियक मिजस्टर्ेट, चाहे उसे मामले म
अिधकािरता हो या न हो, इस अध्याय के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन िकसी अन्वेषण के दौरान या तत्पश्चात्
जांच या िवचारण पर्ारं भ होने के पूवर् िकसी समय अपने से की गई िकसी संस्वीकृ ित या कथन को अिभिलिखत कर सकता है :
3
[परं तु इस उपधारा के अधीन की गई कोई संस्वीकृ ित या कथन अपराध के अिभयुक्त िक्त के अिधववक्ता की उपिस्थित म
शर् -दृश्य इलैक्टर्ािनक साधन ारा भी अिभिलिखत िकया जा सके गा :
परं तु यह और िक िकसी पुिलस अिधकारी ारा, िजसे तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन मिजस्टर्ेट की कोई शिक्त पर्द की गई
है, कोई संस्वीकृ ित अिभिलिखत नह की जाएगी ।]
(2) मिजस्टर्ेट िकसी ऐसी संस्वीकृ ित को अिभिलिखत करने के पूवर् उस िक्त को, जो संस्वीकृ ित कर रहा है, यह समझाएगा िक
वह ऐसी संस्वीकृ ित करने के िलए आब नह है और यिद वह उसे करे गा तो वह उसके िवरु सा य म उपयोग म लाई जा सकती है ;
और मिजस्टर्ेट कोई ऐसी संस्वीकृ ित तब तक अिभिलिखत न करे गा जब तक उसे करने वाले िक्त से पर्श्न करने पर उसको यह िवश्वास
करने का कारण न हो िक वह स्वेच्छा से की जा रही है ।
(3) संस्वीकृ ित अिभिलिखत िकए जाने से पूवर् यिद मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होने वाला िक्त यह कथन करता है िक वह
संस्वीकृ ित करने के िलए इच्छु क नह है तो मिजस्टर्ेट ऐसे िक्त के पुिलस की अिभरक्षा म िनरोध को पर्ािधकृ त नह करे गा ।
(4) ऐसी संस्वीकृ ित िकसी अिभयुक्त िक्त की परीक्षा को अिभिलिखत करने के िलए धारा 281 म उपबंिधत रीित से

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 12 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 15 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 13 ारा परं तक
ु के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
49

अिभिलिखत की जाएगी और संस्वीकृ ित करने वाले िक्त ारा उस पर हस्ताक्षर िकए जाएंगे ; और मिजस्टर्ेट ऐसे अिभलेख के नीचे
िनम्निलिखत भाव का एक ज्ञापन िलखेगा :—
“मने—(नाम)—को यह समझा िदया है िक वह संस्वीकृ ित करने के िलए आब नह है और यिद वह ऐसा करता है तो कोई
संस्वीकृ ित, जो वह करे गा, उसके िवरु सा य भी उपयोग म लाई जा सकती है और मुझे िवश्वास है िक यह संस्वीकृ ित स्वेच्छा से की गई
है । यह मेरी उपिस्थित म और मेरे सुनते हुए िलखी गई है और िजस िक्त ने यह संस्वीकृ ित की है उसे यह पढ़कर सुना दी गई है और
उसने उसका सही होना स्वीकार िकया है और उसके ारा िकए गए कथन का पूरा और सही वृ ांत इसम है ।
(हस्ताक्षर क. ख मिजस्टर्ेट)”
(5) उपधारा (1) के अधीन िकया गया (संस्वीकृ ित से िभन्न) कोई कथन सा य अिभिलिखत करने के िलए इसम इसके पश्चात्
उपबंिधत ऐसी रीित से अिभिलिखत िकया जाएगा जो मिजस्टर्ेट की राय म, मामले की पिरिस्थितय म सवार्िधक उपयुक्त हो ; तथा
मिजस्टर्ेट को उस िक्त को शपथ िदलाने की शिक्त होगी िजसका कथन इस पर्कार अिभिलिखत िकया जाता है ।
[(5क) (क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 376
1

की उपधारा (1) या उपधारा (2), धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन दंडनीय
मामल म न्याियक मिजस्टर्ेट उस व्यिक्त का, िजसके िवरु उपधारा (5) म िविहत रीित म ऐसा अपराध िकया गया है, कथन जैसे ही
अपराध का िकया जाना पुिलस की जानकारी म लाया जाता है, अिभिलिखत करे गा :
परन्तु यिद कथन करने वाला व्यिक्त अस्थायी या स्थायी रूप से मािनसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है, तो मिजस्टर्ेट कथन
अिभिलिखत करने म िकसी ि भािषए या िवशेष पर्बोधक की सहायता लेगा :
परन्तु यह है और िक यिद कथन करने वाला व्यिक्त अस्थायी रूप से मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है तो िकसी
ि भािषए या िवशेष पर्बोधक की सहायता से उस व्यिक्त ारा िकए गए कथन की वीिडयो िफल्म तैयार की जाएगी ;
(ख) ऐसे िकसी व्यिक्त के , जो अस्थायी या स्थायी रूप से मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है, खंड (क) के अधीन
अिभिलिखत कथन को भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 137 म यथािविनिदष्ट मुख्य परीक्षा के स्थान पर एक
कथन समझा जाएगा और ऐसा कथन करने वाल की, िवचारण के समय उसको अिभिलिखत करने की आवश्यकता के िबना, ऐसे कथन
पर पर्ितपरीक्षा की जा सके गी ।]
(6) इस धारा के अधीन िकसी संस्वीकृ ित या कथन को अिभिलिखत करने वाला मिजस्टर्ेट, उसे उस मिजस्टर्ेट के पास भेजेगा िजसके
ारा मामले की जांच या िवचारण िकया जाना है ।
[164क. बलात्संग के पीिड़त िक्त की िचिकत्सीय परीक्षा—(1) जहां, ऐसे पर्कर्म के दौरान जब बलात्संग या बलात्संग करने का
2

पर्यत्न करने के अपराध का अन्वेषण िकया जा रहा है उस स्तर्ी के शरीर की, िजसके साथ बलात्संग िकया जाना या करने का पर्यत्न करना
अिभकिथत है, िकसी िचिकत्सा िवशेषज्ञ से परीक्षा कराना पर्स्थािपत है वहां ऐसी परीक्षा, सरकार या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी ारा
चलाए जा रहे िकसी अस्पताल म िनयोिजत रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी ारा, और ऐसे वसायी की अनुपिस्थित म िकसी अन्य
रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी ारा, ऐसी स्तर्ी की सहमित से या उसकी ओर से ऐसी सहमित देने के िलए सक्षम िक्त की सहमित से
की जाएगी और ऐसी स्तर्ी को, ऐसा अपराध िकए जाने से संबंिधत इि ला पर्ाप्त होने के समय से चौबीस घंटे के भीतर ऐसे रिजस्टर्ीकृ त
िचिकत्सा- वसायी के पास भेजा जाएगा ।
(2) वह रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी, िजसके पास ऐसी स्तर्ी भेजी जाती है, िबना िकसी िवलंब के , उसके शरीर की परीक्षा
करे गा और एक परीक्षा िरपोटर् तैयार करे गा िजसम िनम्निलिखत ब्यौरे िदए जाएंग,े अथार्त् :—
(i) स्तर्ी का, और उस िक्त का, जो उसे लाया है, नाम और पता ;
(ii) स्तर्ी की आयु ;
(iii) डी. एन. ए. पर्ोफाइल करने के िलए स्तर्ी के शरीर से ली गई सामगर्ी का वणर्न ;
(iv) स्तर्ी के शरीर पर क्षित के , यिद कोई है, िचह्न ;
(v) स्तर्ी की साधारण मानिसक दशा ; और
(vi) उिचत ब्यौरे सिहत अन्य ताित्त्वक िविशिष्टयां ।
(3) िरपोटर् म संक्षेप म वे कारण अिभिलिखत िकए जाएंगे िजनसे पर्त्येक िनष्कषर् िनकाला गया है ।
(4) िरपोटर् म िविनिदष्ट रूप से यह अिभिलिखत िकया जाएगा िक ऐसी परीक्षा के िलए स्तर्ी की सहमित या उसकी ओर से ऐसी
सहमित देने के िलए सक्षम िक्त की सहमित, अिभपर्ाप्त कर ली गई है ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 16 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 17 ारा अंत:स्थािपत ।
50

(5) िरपोटर् म परीक्षा पर्ारं भ और समाप्त करने का सही समय भी अंिकत िकया जाएगा ।
(6) रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी, िबना िवलंब के , िरपोटर् अन्वेषण अिधकारी को भेजेगा जो उसे धारा 173 म िनिदष्ट
मिजस्टर्ेट को, उस धारा की उपधारा (5) के खंड (क) म िनिदष्ट दस्तावेज के भाग-रूप म भेजेगा ।
(7) इस धारा की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह स्तर्ी की सहमित के िबना या उसकी ओर से ऐसी सहमित देने
के िलए सक्षम िकसी िक्त की सहमित के िबना िकसी परीक्षा को िविधमान्य बनाती है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए “परीक्षा” और “रिजस्टर्ीकृ त िचिकत्सा- वसायी” के वही अथर् ह, जो उनके धारा 53
म ह ।]
165. पुिलस अिधकारी ारा तलाशी—(1) जब कभी पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी या अन्वेषण करने वाले पुिलस
अिधकारी के पास यह िवश्वास करने के उिचत आधार ह िक िकसी ऐसे अपराध के अन्वेषण के पर्योजन के िलए, िजसका अन्वेषण करने
के िलए वह पर्ािधकृ त है, आवश्यक कोई चीज उस पुिलस थाने की, िजसका वह भारसाधक है या िजससे वह संलग्न है, सीमा के अंदर
िकसी स्थान म पाई जा सकती है और उसकी राय म ऐसी चीज अनुिचत िवलंब के िबना तलाशी से अन्यथा अिभपर्ाप्त नह की जा सकती,
तब ऐसा अिधकारी अपने िवश्वास के आधार को लेखब करने, और यथासंभव उस चीज को, िजसके िलए तलाशी ली जानी है, ऐसे लेख
म िविनिदष्ट करने के पश्चात् उस थाने की सीमा के अंदर िकसी स्थान म ऐसी चीज के िलए तलाशी ले सकता है या तलाशी िलवा
सकता है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन कायर्वाही करने वाला पुिलस अिधकारी, यिद साध्य है तो, तलाशी स्वयं लेगा ।
(3) यिद वह तलाशी स्वयं लेने म असमथर् है और कोई अन्य ऐसा िक्त, जो तलाशी लेने के िलए सक्षम है, उस समय उपिस्थत
नह है तो वह ऐसा करने के अपने कारण को लेखब करने के पश्चात्, अपने अधीनस्थ िकसी अिधकारी से अपेक्षा कर सकता है िक वह
तलाशी ले और ऐसे अधीनस्थ अिधकारी को ऐसा िलिखत आदेश देगा िजसम उस स्थान को िजसकी तलाशी ली जानी है, और यथासंभव
उस चीज को, िजसके िलए तलाशी ली जानी है, िविनिदष्ट िकया जाएगा और तब ऐसा अधीनस्थ अिधकारी उस चीज के िलए तलाशी
उस स्थान म ले सके गा ।
(4) तलाशी-वारं ट के बारे म इस संिहता के उपबंध और तलािशय के बारे म धारा 100 के साधारण उपबंध इस धारा के अधीन
ली जाने वाली तलाशी को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
(5) उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए िकसी भी अिभलेख की पर्ितयां तत्काल ऐसे िनकटतम मिजस्टर्ेट के पास भेज
दी जाएंगी जो उस अपराध का संज्ञान करने के िलए सशक्त है और िजस स्थान की तलाशी ली गई है, उसके स्वामी या अिधभोगी को,
उसके आवेदन पर, उसकी एक पर्ितिलिप मिजस्टर्ेट ारा िन:शुल्क दी जाएगी ।
166. पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी कब िकसी अन्य अिधकारी से तलाशी-वारं ट जारी करने की अपेक्षा कर
सकता है—(1) पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी या उपिनरीक्षक से अिनम्न पंिक्त का पुिलस अिधकारी, जो अन्वेषण कर रहा है,
िकसी दूसरे पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी से, चाहे वह उस िजले म हो या दूसरे िजले म हो, िकसी स्थान म ऐसे मामले म तलाशी
िलवाने की अपेक्षा कर सकता है िजसम पूवर्किथत अिधकारी स्वयं अपने थाने की सीमा के अंदर ऐसी तलाशी िलवा सकता है ।
(2) ऐसा अिधकारी ऐसी अपेक्षा िकए जाने पर धारा 165 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही करे गा और यिद कोई चीज िमले तो उसे
उस अिधकारी के पास भेजेगा िजसकी अपेक्षा पर तलाशी ली गई है ।
(3) जब कभी यह िवश्वास करने का कारण है िक दूसरे पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी से उपधारा (1) के अधीन तलाशी
िलवाने की अपेक्षा करने म जो िवलंब होगा उसका पिरणाम यह हो सकता है िक अपराध िकए जाने का सा य िछपा िदया जाए या नष्ट
कर िदया जाए, तब पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के िलए या उस अिधकारी के िलए जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा
है, यह िविधपूणर् होगा िक वह दूसरे पुिलस थाने की स्थानीय सीमा के अंदर िकसी स्थान की धारा 165 के उपबंध के अनुसार ऐसी
तलाशी ले या िलवाए मान ऐसा स्थान उसके अपने थाने की सीमा के अंदर हो ।
(4) कोई अिधकारी, जो उपधारा (3) के अधीन तलाशी संचािलत कर रहा है, पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को, िजसकी
सीमा के अंदर ऐसा स्थान है, तलाशी की सूचना तत्काल भेजेगा और ऐसी सूचना के साथ धारा 100 के अधीन तैयार की गई सूची की
(यिद कोई हो) पर्ितिलिप भी भेजेगा और उस अपराध का संज्ञान करने के िलए सशक्त िनकटतम मिजस्टर्ेट को धारा 165 की उपधारा (1)
और (3) म िनिदष्ट अिभलेख की पर्ितिलिपयां भी भेजेगा ।
(5) िजस स्थान की तलाशी ली गई है, उसके स्वामी या अिधभोगी को, आवेदन करने पर उस अिभलेख की, जो मिजस्टर्ेट को
उपधारा (4) के अधीन भेजा जाए, पर्ितिलिप िन:शुल्क दी जाएगी ।
[166क. भारत के बाहर िकसी देश या स्थान म अन्वेषण के िलए सक्षम पर्ािधकारी को अनुरोध-पतर्—(1) इस संिहता म िकसी
1

बात के होते हुए भी, यिद िकसी अपराध के अन्वेषण के अनुकर्म म अन्वेषण अिधकारी या अन्वेषण अिधकारी की पंिक्त से विरष्ठ कोई
अिधकारी यह आवेदन करता है िक भारत के बाहर िकसी देश या स्थान म सा य उपलभ्य हो सकता है तो कोई दांिडक न्यायालय

1
1990 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
51

अनुरोध-पतर् भेजकर उस देश या स्थान के ऐसे न्यायालय या पर्ािधकारी से, जो ऐसे अनुरोध-पतर् पर कारर् वाई करने के िलए सक्षम है, यह
अनुरोध कर सके गा िक वह िकसी ऐसे िक्त की मौिखक परीक्षा करे , िजसके बारे म यह अनुमान है िक वह मामले के तथ्य और
पिरिस्थितय से अवगत है, और ऐसी परीक्षा के अनुकर्म म िकए गए उसके कथन को अिभिलिखत करे और ऐसे िक्त या िकसी अन्य
िक्त से उस मामले से संबंिधत ऐसे दस्तावेज या चीज को पेश करने की अपेक्षा करे जो उसके कब्जे म है और इस पर्कार िलए गए या
संगृहीत सभी सा य या उसकी अिधपर्मािणत पर्ितिलिप या इस पर्कार संगृहीत चीज को ऐसा पतर् भेजने वाले न्यायालय को अगर्ेिषत करे ।
(2) अनुरोध-पतर् ऐसी रीित म पारे िषत िकया जाएगा जो कदर्ीय सरकार इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अिभिलिखत पर्त्येक कथन या पर्ाप्त पर्त्येक दस्तावेज या चीज इस अध्याय के अधीन
अन्वेषण के दौरान संगृहीत सा य समझा जाएगा ।
166ख. भारत के बाहर के िकसी देश या स्थान से भारत म अन्वेषण के िलए िकसी न्यायालय या पर्ािधकारी को
अनुरोध-पतर्—(1) भारत के बाहर के िकसी देश या स्थान के ऐसे न्यायालय या पर्ािधकारी से, जो उस देश या स्थान म अन्वेषणाधीन
िकसी अपराध के संबंध म िकसी िक्त की परीक्षा करने के िलए या िकसी दस्तावेज या चीज को पेश कराने के िलए उस देश या स्थान म
ऐसा पतर् भेजने के िलए सक्षम है, अनुरोध-पतर् की पर्ािप्त पर, कदर्ीय सरकार यिद वह उिचत समझे तो, —
(i) उसे मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या ऐसे महानगर मिजस्टर्ेट या न्याियक मिजस्टर्ेट को, िजसे वह
इस िनिम िनयुक्त करे , अगर्ेिषत कर सके गी जो तब उस िक्त को अपने समक्ष समन करे गा तथा उसके कथन को अिभिलिखत
करे गा या दस्तावेज या चीज को पेश करवाएगा ; या
(ii) उस पतर् को अन्वेषण के िलए िकसी पुिलस अिधकारी को भेज सके गा जो तब उसी रीित म अपराध का अन्वेषण करे गा,
मानो वह अपराध भारत के भीतर िकया गया हो ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िलए गए या संगृहीत सभी सा य, उसकी अिधपर्मािणत पर्ितिलिपयां या इस पर्कार संगृहीत चीज,
यथािस्थित-मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी ारा उस न्यायालय या पर्ािधकारी को, िजसने अनुरोध-पतर् भेजा था, पारे िषत करने के िलए
कदर्ीय सरकार को ऐसी रीित म, िजसे कदर्ीय सरकार उिचत समझे, अगर्ेिषत करे गा ।]
167. जब चौबीस घंटे के अंदर अन्वेषण पूरा न िकया जा सके तब पर्िकर्या—(1) जब कभी कोई िक्त िगरफ्तार िकया गया है और
अिभरक्षा म िनरु है और यह पर्तीत हो िक अन्वेषण धारा 57 ारा िनयत चौबीस घंटे की अविध के अंदर पूरा नह िकया जा सकता और
यह िवश्वास करने के िलए आधार है िक अिभयोग या इि ला दृढ़ आधार पर है तब पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी या यिद अन्वेषण
करने वाला पुिलस अिधकारी उपिनरीक्षक से िनम्नतर पंिक्त का नह है तो वह, िनकटतम न्याियक मिजस्टर्ेट को इसम इसके पश्चात् िविहत
डायरी की मामले म संबंिधत पर्िविष्टय की एक पर्ितिलिप भेजेगा और साथ ही अिभयुक्त िक्त को भी उस मिजस्टर्ेट के पास भेजेगा ।
(2) वह मिजस्टर्ेट, िजसके पास अिभयुक्त िक्त इस धारा के अधीन भेजा जाता है, चाहे उस मामले के िवचारण की उसे
अिधकािरता हो या न हो, अिभयुक्त का ऐसी अिभरक्षा म, जैसी वह मिजस्टर्ेट ठीक समझे इतनी अविध के िलए, जो कु ल िमलाकर पंदर्ह
िदन से अिधक न होगी, िनरु िकया जाना समय-समय पर पर्ािधकृ त कर सकता है तथा यिद उसे मामले के िवचारण की या िवचारण के
िलए सुपुदर् करने की अिधकािरता नह है और अिधक िनरु रखना उसके िवचार म अनावश्यक है तो वह अिभयुक्त को ऐसे मिजस्टर्ेट के
पास, िजसे ऐसी अिधकािरता है, िभजवाने के िलए आदेश दे सकता है :
परं तु—
1
[(क) मिजस्टर्ेट अिभयुक्त िक्त का पुिलस अिभरक्षा से अन्यथा िनरोध पंदर्ह िदन की अविध से आगे के िलए उस दशा म
पर्ािधकृ त कर सकता है िजसम उसका समाधान हो जाता है िक ऐसा करने के िलए पयार्प्त आधार है, िकतु कोई भी मिजस्टर्ेट
अिभयुक्त िक्त का इस पैरा के अधीन अिभरक्षा म िनरोध,—
(i) कु ल िमलाकर नब्बे िदन से अिधक की अविध के िलए पर्ािधकृ त नह करे गा जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के संबंध म
है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वषर् से अन्यून की अविध के िलए कारावास से दंडनीय है ;
(ii) कु ल िमलाकर साठ िदन से अिधक की अविध के िलए पर्ािधकृ त नह करे गा जहां अन्वेषण िकसी अन्य अपराध के
संबंध म है,
और, यथािस्थित, नब्बे िदन या साठ िदन की उक्त अविध की समािप्त पर यिद अिभयुक्त िक्त जमानत देने के िलए तैयार है
और दे देता है तो उसे जमानत पर छोड़ िदया जाएगा और यह समझा जाएगा िक इस उपधारा के अधीन जमानत पर छोड़ा गया
पर्त्येक िक्त अध्याय 33 के पर्योजन के िलए उस अध्याय के उपबंध के अधीन छोड़ा गया है ;]
2
[(ख) कोई मिजस्टर्ेट इस धारा के अधीन िकसी अिभयुक्त का पुिलस अिभरक्षा म िनरोध तब तक पर्ािधकृ त नह करे गा जब
तक िक अिभयुक्त उसके समक्ष पहली बार और तत्पश्चात् हर बार, जब तक अिभयुक्त पुिलस की अिभरक्षा म रहता है, िक्तगत
रूप से पेश नह िकया जाता है िकतु मिजस्टर्ेट अिभयुक्त के या तो िक्तगत रूप से या इलैक्टर्ािनक दृश्य संपकर् के माध्यम से पेश

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 13 ारा खंड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 14 ारा खंड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
52

िकए जाने पर न्याियक अिभरक्षा म िनरोध को और बढ़ा सके गा ।]


(ग) कोई ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट, जो उच्च न्यायालय ारा इस िनिम िवशेषतया सशक्त नह िकया गया है, पुिलस की
अिभरक्षा म िनरोध पर्ािधकृ त न करे गा ।
[स्पष्टीकरण 1—शंकाएं दूर करने के िलए इसके ारा यह घोिषत िकया जाता है िक पैरा (क) म िविनिदष्ट अविध समाप्त हो
1

जाने पर भी अिभयुक्त- िक्त तब तक अिभरक्षा म िनरु रखा जाएगा जब तक िक वह जमानत नह दे देता है ।]


2
[स्पष्टीकरण 2—यिद यह पर्श्न यह उठता है िक क्या कोई अिभयुक्त िक्त मिजस्टर्ेट के समक्ष पेश िकया गया था, जैसािक पैरा
(ख) के अधीन अपेिक्षत है, तो अिभयुक्त िक्त की पेशी को, यथािस्थित, िनरोध पर्ािधकृ त करने वाले आदेश पर उसके हस्ताक्षर से या
मिजस्टर्ेट ारा अिभयुक्त िक्त की इलैक्टर्ािनक दृश्य संपकर् के माध्यम से पेशी के बारे म पर्मािणत आदेश ारा सािबत िकया जा सकता
है :]
[परं तु यह और िक अठारह वषर् से कम आयु की स्तर्ी की दशा म, िकसी पर्ितपर्ेषण गृह या मान्यतापर्ाप्त सामािजक संस्था की
3

अिभरक्षा म िनरोध िकए जाने को पर्ािधकृ त िकया जाएगा ।]


4
[(2क) उपधारा (1) या उपधारा (2) म िकसी बात के होते हुए भी, पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी या अन्वेषण करने
वाला पुिलस अिधकारी, यिद उपिनरीक्षक से िनम्नतर पंिक्त का नह है तो, जहां न्याियक मिजस्टर्ेट न िमल सकता हो, वहां कायर्पालक
मिजस्टर्ेट को िजसको न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट की शिक्तयां पर्दान की गई ह, इसम इसके पश्चात् िविहत डायरी की
मामले से संबंिधत पर्िविष्टय की एक पर्ितिलिप भेजेगा और साथ ही अिभयुक्त िक्त को भी उस कायर्पालक मिजस्टर्ेट के पास भेजेगा
और तब ऐसा कायर्पालक मिजस्टर्ेट लेखब िकए जाने वाले कारण से िकसी अिभयुक्त- िक्त का ऐसी अिभरक्षा म िनरोध, जैसा वह
ठीक समझे, ऐसी अविध के िलए पर्ािधकृ त कर सकता है जो कु ल िमलाकर सात िदन से अिधक नह हो और ऐसे पर्ािधकृ त िनरोध की
अविध की समािप्त पर उसे जमानत पर छोड़ िदया जाएगा, िकतु उस दशा म नह िजसम अिभयुक्त िक्त के आगे और िनरोध के िलए
आदेश ऐसे मिजस्टर्ेट ारा िकया गया है जो ऐसा आदेश करने के िलए सक्षम है और जहां ऐसे आगे और िनरोध के िलए आदेश िकया जाता
है वहां वह अविध, िजसके दौरान अिभयुक्त- िक्त इस उपधारा के अधीन िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट के आदेश के अधीन अिभरक्षा म
िनरु िकया गया था, उपधारा (2) के परं तुक के पैरा (क) म िविनिदष्ट अविध की संगणना करने म िहसाब म ली जाएगी :
परं तु उक्त अविध की समािप्त के पूवर् कायर्पालक मिजस्टर्ेट, मामले के अिभलेख, मामले से संबंिधत डायरी की पर्िविष्टय के सिहत
जो, यथािस्थित, पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी या अन्वेषण करने वाले अिधकारी ारा उसे भेजी गई थी, िनकटतम न्याियक
मिजस्टर्ेट को भेजगे ा ।]
(3) इस धारा के अधीन पुिलस अिभरक्षा म िनरोध पर्ािधकृ त करने वाला मिजस्टर्ेट ऐसा करने के अपने कारण अिभिलिखत करे गा ।
(4) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट से िभन्न कोई मिजस्टर्ेट जो ऐसा आदेश दे अपने आदेश की एक पर्ितिलिप आदेश देने के अपने कारण
के सिहत मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को भेजेगा ।
(5) यिद समन मामले के रूप म मिजस्टर्ेट ारा िवचारणीय िकसी मामले म अन्वेषण, अिभयुक्त के िगरफ्तार िकए जाने की
तारीख से छह मास की अविध के भीतर समाप्त नह होता है तो मिजस्टर्ेट अपराध म आगे और अन्वेषण को रोकने के िलए आदेश करे गा
जब तक अन्वेषण करने वाला अिधकारी मिजस्टर्ेट का समाधान नह कर देता है िक िवशेष कारण से और न्याय के िहत म छह मास की
अविध के आगे अन्वेषण जारी रखना आवश्यक है ।
(6) जहां उपधारा (5) के अधीन िकसी अपराध का आगे और अन्वेषण रोकने के िलए आदेश िदया गया है वहां यिद सेशन
न्यायाधीश का उसे आवेदन िदए जाने पर या अन्यथा, समाधान हो जाता है िक उस अपराध का आगे और अन्वेषण िकया जाना चािहए
तो वह उपधारा (5) के अधीन िकए गए आदेश को र कर सकता है और यह िनदेश दे सकता है िक जमानत और अन्य मामल के बारे म
ऐसे िनदेश के अधीन रहते हुए जो वह िविनिदष्ट करे , अपराध का आगे और अन्वेषण िकया जाए ।
168. अधनीस्थ पुिलस अिधकारी ारा अन्वेषण की िरपोटर्—जब कोई अधीनस्थ पुिलस अिधकारी इस अध्याय के अधीन कोई
अन्वेषण करता है तब वह उस अन्वेषण के पिरणाम की िरपोटर् पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को करे गा ।
169. जब सा य अपयार्प्त हो तब अिभयुक्त का छोड़ा जाना—यिद इस अध्याय के अधीन अन्वेषण पर पुिलस थाने के भारसाधक
अिधकारी को यह पर्तीत होता है िक ऐसा पयार्प्त सा य या संदहे का उिचत आधार नह है िजससे अिभयुक्त को मिजस्टर्ेट के पास भेजना
न्यायानुमत है तो ऐसा अिधकारी उस दशा म िजसम वह िक्त अिभरक्षा म है उसके ारा पर्ितभु के सिहत या रिहत, जैसा ऐसा
अिधकारी िनिदष्ट करे , यह बंधपतर् िनष्पािदत करने पर उसे छोड़ देगा िक यिद और जब अपेक्षा की जाए तो और तब वह ऐसे मिजस्टर्ेट के
समक्ष हािजर होगा जो पुिलस िरपोटर् पर ऐसे अपराध का संज्ञान करने के िलए, और अिभयुक्त का िवचारण करने या उसे िवचारणाथर्
सुपुदर् करने के िलए सशक्त है ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 13 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 14 ारा स्पष्टीकरण 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 14 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 13 ारा अंत:स्थािपत ।
53

170. जब सा य पयार्प्त है तब मामल का मिजस्टर्ेट के पास भेज िदया जाना—(1) यिद इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करने पर
पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को यह पर्तीत होता है िक यथापूव क्त पयार्प्त सा य या उिचत आधार है, तो वह अिधकारी पुिलस
िरपोटर् पर उस अपराध का संज्ञान करने के िलए और अिभयुक्त का िवचारण करने या उसे िवचारणाथर् सुपुदर् करने के िलए सशक्त
मिजस्टर्ेट के पास अिभयुक्त को अिभरक्षा म भेजेगा अथवा यिद अपराध जमानतीय है और अिभयुक्त पर्ितभूित देने के िलए समथर् है तो
ऐसे मिजस्टर्ेट के समक्ष िनयत िदन उसके हािजर होने के िलए और ऐसे मिजस्टर्ेट के समक्ष, जब तक अन्यथा िनदेश न िदया जाए तब तक,
िदन-पर्ितिदन उसकी हािजरी के िलए पर्ितभूित लेगा ।
(2) जब पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी अिभयुक्त के इस धारा के अधीन मिजस्टर्ेट के पास भेजता है या ऐसे मिजस्टर्ेट के
समक्ष उसके हािजर होने के िलए पर्ितभूित लेता है तब उस मिजस्टर्ेट के पास वह ऐसा कोई आयुध या अन्य वस्तु जो उसके समक्ष पेश
करना आवश्यक हो, भेजेगा और यिद कोई पिरवादी हो, तो उससे और ऐसे अिधकारी को मामले के तथ्य और पिरिस्थितय से पिरिचत
पर्तीत होने वाले उतने िक्तय से, िजतने वह आवश्यक समझे मिजस्टर्ेट के समक्ष िनिदष्ट पर्कार से हािजर होने के िलए और
(यथािस्थित) अिभयोजन करने के िलए या अिभयुक्त के िवरु आरोप के िवषय म सा य देने के िलए बंधपतर् िनष्पािदत करने की अपेक्षा
करे गा ।
(3) यिद बंधपतर् म मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट का न्यायालय उिल्लिखत है तो उस न्यायालय के अंतगर्त कोई ऐसा न्यायालय भी
समझा जाएगा िजसे ऐसा मिजस्टर्ेट मामले की जांच या िवचारण के िलए िनदिशत करता है, परं तु यह तब जब ऐसे िनदश की उिचत
सूचना उस पिरवादी या उन िक्तय को दे दी गई है ।
(4) वह अिधकारी, िजसकी उपिस्थित म बंधपतर् िनष्पािदत िकया जाता है, उस बंधपतर् की एक पर्ितिलिप उन िक्तय म से एक
को पिरद करे गा जो उसे िनष्पािदत करता है और तब मूल बंधपतर् को अपनी िरपोटर् के साथ मिजस्टर्ेट के पास भेजेगा ।
171. पिरवादी और सािक्षय से पुिलस अिधकारी के साथ जाने की अपेक्षा न िकया जाना और उनका अवरु न िकया
जाना—िकसी पिरवादी या साक्षी से, जो िकसी न्यायालय म जा रहा है, पुिलस अिधकारी के साथ जाने की अपेक्षा न की जाएगी, और न
तो उसे अनावश्यक रूप से अवरु िकया जाएगा या असुिवधा पहुंचाई जाएगी और न उससे अपनी हािजरी के िलए उसके अपने बंधपतर्
से िभन्न कोई पर्ितभूित देने की अपेक्षा की जाएगी 
परं तु यिद कोई पिरवादी या साक्षी हािजर होने से, या धारा 170 म िनिदष्ट पर्कार का बंधपतर् िनष्पािदत करने से, इनकार करता
है तो पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी उसे मिजस्टर्ेट के पास अिभरक्षा म भेज सकता है, जो उसे तब तक अिभरक्षा म िनरु रख
सकता है जब तक वह ऐसा बंधपतर् िनष्पािदत नह कर देता है या जब तक मामले की सुनवाई समाप्त नह हो जाती है ।
172. अन्वेषण म कायर्वािहय की डायरी—(1) पर्त्येक पुिलस अिधकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करता है, अन्वेषण म
की गई अपनी कायर्वाही को िदन-पर्ितिदन एक डायरी म िलखेगा, िजसम वह समय जब उसे इि ला िमली, वह समय जब उसने अन्वेषण
आरं भ िकया और जब समाप्त िकया, वह स्थान या वे स्थान जहां वह गया और अन्वेषण ारा अिभिनिश्चत पिरिस्थितय का िववरण
होगा ।
[(1क) धारा 161 के अधीन अन्वेषण के दौरान अिभिलिखत िकए गए सािक्षय के कथन के स डायरी म अंत: स्थािपत
1

िकए जाएंगे ।
(1ख) उपधारा (1) म िनिदष्ट डायरी िजल्द रूप म होगी और उसके पृष्ठ सम्यक् रूप से संख्यांिकत ह गे ।]
(2) कोई दंड न्यायालय ऐसे न्यायालय म जांच या िवचारण के अधीन मामले की पुिलस डायिरय को मंगा सकता है और ऐसी
डायिरय को मामले म सा य के रूप म तो नह िकतु ऐसी जांच या िवचारण म अपनी सहायता के िलए उपयोग म ला सकता है ।
(3) न तो अिभयुक्त और न उसके अिभकतार् ऐसी डायिरय को मंगाने के हकदार ह गे और न वह या वे के वल इस कारण उन्ह देखने
के हकदार ह गे िक वे न्यायालय ारा देखी गई ह, िकतु यिद वे उस पुिलस अिधकारी ारा, िजसने उन्ह िलखा है, अपनी स्मृित को ताजा
करने के िलए उपयोग म लाई जाती है, या यिद न्यायालय उन्ह ऐसे पुिलस अिधकारी की बात का खंडन करने के पर्योजन के िलए
उपयोग म लाता है तो भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की, यथािस्थित, धारा 161 या धारा 145 के उपबंध लागू ह गे ।
173. अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुिलस अिधकारी की िरपोटर्—(1) इस अध्याय के अधीन िकया जाने वाला पर्त्येक अन्वेषण
अनावश्यक िवलंब के िबना पूरा िकया जाएगा ।
[(1क) बािलका के साथ बलात्संग के संबंध म अन्वेषण उस तारीख से, िजसको पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी ारा इि ला
2

अिभिलिखत की गई थी, तीन मास के भीतर पूरा िकया जा सके गा ।]


(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी, पुिलस िरपोटर् पर उस अपराध का संज्ञान करने के
िलए सशक्त मिजस्टर्ेट को राज्य सरकार ारा िविहत पर्रूप म एक िरपोटर् भेजेगा, िजसम िनम्निलिखत बात किथत ह गी :—
(क) पक्षकार के नाम ;

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 15 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 16 ारा अंत:स्थािपत ।
54

(ख) इि ला का स्वरूप ;
(ग) मामले की पिरिस्थितय से पिरिचत पर्तीत होने वाले िक्तय के नाम ;
(घ) क्या कोई अपराध िकया गया पर्तीत होता है और यिद िकया गया पर्तीत होता है, तो िकसके ारा ;
(ङ) क्या अिभयुक्त िगरफ्तार कर िलया गया है ;
(च) क्या वह अपने बंधपतर् पर छोड़ िदया गया है और यिद छोड़ िदया गया है तो वह बंधपतर् पर्ितभु सिहत है या
पर्ितभु रिहत ;
(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अिभरक्षा म भेजा जा चुका है ।
[(ज) जहां अन्वेषण भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 376, 376क, धारा 376ख, धारा 2 [376ग, धारा 376घ
1

या धारा 376ङ] के अधीन िकसी अपराध के संबंध म है, वहां क्या स्तर्ी की िचिकत्सा परीक्षा की िरपोटर् संलग्न की गई है ।]
(ii) वह अिधकारी अपने ारा की गई कायर्वाही की संसूचना, उस िक्त को, यिद कोई हो, िजसने अपराध िकए जाने के संबंध म
सवर्पर्थम इि ला दी उस रीित से देगा, जो राज्य सरकार ारा िविहत की जाए ।
(3) जहां धारा 158 के अधीन कोई विरष्ठ पुिलस अिधकारी िनयुक्त िकया गया है वहां ऐसे िकसी मामले म, िजसम राज्य सरकार
साधारण या िवशेष आदेश ारा ऐसा िनदेश देती है, वह िरपोटर् उस अिधकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मिजस्टर्ेट का आदेश होने
तक के िलए, पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को यह िनदेश दे सकता है िक वह आगे और अन्वेषण करे ।
(4) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई िरपोटर् से यह पर्तीत होता है िक अिभयुक्त को उसके बंधपतर् पर छोड़ िदया गया है तब
मिजस्टर्ेट उस बंधपतर् के उन्मोचन के िलए या अन्यथा ऐसा आदेश करे गा जैसा वह ठीक समझे ।
(5) जब ऐसी िरपोटर् का संबंध ऐसे मामले से है िजसको धारा 170 लागू होती है, तब पुिलस अिधकारी मिजस्टर्ेट को िरपोटर् के
साथ-साथ िनम्निलिखत भी भेजेगा :—
(क) वे सब दस्तावेज या उनके सुसंगत उ रण, िजन पर िनभर्र करने का अिभयोजन का िवचार है और जो उनसे िभन्न ह िजन्ह
अन्वेषण के दौरान मिजस्टर्ेट को पहले ही भेज िदया गया है ;
(ख) उन सब िक्तय के , िजनकी सािक्षय के रूप म परीक्षा करने का अिभयोजन का िवचार है, धारा 161 के अधीन
अिभिलिखत कथन ।
(6) यिद पुिलस अिधकारी की यह राय है िक ऐसे िकसी कथन का कोई भाग कायर्वाही की िवषयवस्तु से सुसंगत नह है या उसे
अिभयुक्त को पर्कट करना न्याय के िहत म आवश्यक नह है और लोकिहत के िलए असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदिशत
करे गा और अिभयुक्त को दी जाने वाली पर्ितिलिप म से उस भाग को िनकाल देने के िलए िनवेदन करते हुए और ऐसा िनवेदन करने के
अपने कारण का कथन करते हुए एक नोट मिजस्टर्ेट को भेजेगा ।
(7) जहां मामले का अन्वेषण करने वाला पुिलस अिधकारी ऐसा करना सुिवधापूणर् समझता है वहां वह उपधारा (5) म िनिदष्ट
सभी या िकन्ह दस्तावेज की पर्ितयां अिभयुक्त को दे सकता है ।
(8) इस धारा की कोई बात िकसी अपराध के बारे म उपधारा (2) के अधीन मिजस्टर्ेट को िरपोटर् भेज दी जाने के पश्चात् आगे और
अन्वेषण को पर्विरत करने वाली नह समझी जाएगी तथा जहां ऐसे अन्वेषण पर पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को कोई अितिरक्त
मौिखक या दस्तावेजी सा य िमले वहां वह ऐसे सा य के संबंध म अितिरक्त िरपोटर् या िरपोट मिजस्टर्ेट को िविहत पर्रूप म भेजेगा, और
उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी िरपोटर् या िरपोट के बारे म, जहां तक हो सके , ऐसे लागू ह गे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी
गई िरपोटर् के संबध
ं म लागू होते ह ।
174. आत्महत्या, आिद पर पुिलस का जांच करना और िरपोटर् देना—(1) जब पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी, या राज्य
सरकार ारा उस िनिम िवशेषतया सशक्त िकए गए िकसी अन्य पुिलस अिधकारी को यह इि ला िमलती है िक िकसी िक्त ने
आत्महत्या कर ली है अथवा कोई िक्त िकसी अन्य िक्त ारा या जीव-जंतु ारा या िकसी यंतर् ारा या दुघर्टना ारा मारा गया है,
अथवा कोई िक्त ऐसी पिरिस्थितय म मरा है िजनसे उिचत रूप से यह संदह े होता है िक िकसी अन्य िक्त ने कोई अपराध िकया है
तो वह मृत्यु समीक्षाएं करने के िलए सशक्त िनकटतम कायर्पालक मिजस्टर्ेट को तुरंत उसकी सूचना देगा और जब तक राज्य सरकार ारा
िविहत िकसी िनयम ारा या िजला या उपखंड मिजस्टर्ेट के िकसी साधारण या िवशेष आदेश ारा अन्यथा िनिदष्ट न हो वह उस स्थान
को जाएगा जहां ऐसे मृत िक्त का शरीर है और वहां पड़ोस के दो या अिधक पर्िति त िनवािसय की उपिस्थित म अन्वेषण करे गा और
मृत्यु के दृश्यमान कारण की िरपोटर् तैयार करे गा िजसम ऐसे घाव , अिस्थभंग , नील और क्षित के अन्य िचह्न का जो शरीर पर पाए
जाएं, वणर्न होगा और यह कथन होगा िक ऐसे िचह्न िकस पर्कार से और िकस आयुध या उपकरण ारा (यिद कोई हो) िकए गए पर्तीत
होते ह ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 16 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 17 ारा पर्ितस्थािपत ।
55

(2) उस िरपोटर् पर ऐसे पुिलस अिधकारी और अन्य िक्तय ारा, या उनम से इतन ारा जो उससे सहमत ह, हस्ताक्षर िकए
जाएंगे और वह िजला मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट को तत्काल भेज दी जाएगी ।
(3) 1 [जब—
(i) मामले म िकसी स्तर्ी ारा उसके िववाह की तारीख से सात वषर् के भीतर आत्महत्या अंतवर्िलत है ; या
(ii) मामला िकसी स्तर्ी की उसके िववाह के सात वषर् के भीतर ऐसी पिरिस्थितय म मृत्यु से संबंिधत है जो यह युिक्तयुक्त
संदह
े उत्पन्न करती है िक िकसी अन्य िक्त ने ऐसी स्तर्ी के संबंध म कोई अपराध िकया है ; या
(iii) मामला िकसी स्तर्ी की उसके िववाह के सात वषर् के भीतर मृत्यु से संबंिधत है और उस स्तर्ी के िकसी नातेदार ने उस
िनिम िनवेदन िकया है ; या
(iv) मृत्यु के कारण की बाबत कोई संदह
े है ; या
(v) िकसी अन्य कारण पुिलस अिधकारी ऐसा करना समीचीन समझता है,
तब] ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार ारा इस िनिम िविहत िकए जाएं, वह अिधकारी यिद मौसम ऐसा है और दूरी
इतनी है िक रास्ते म शरीर के ऐसे सड़ने की जोिखम के िबना, िजससे उसकी परीक्षा थर् हो जाए, उसे िभजवाया जा सकता है तो शरीर
को उसकी परीक्षा की दृिष्ट से, िनकटतम िसिवल सजर्न के पास या राज्य सरकार ारा इस िनिम िनयुक्त अन्य अिहत िचिकत्सक के
पास भेजेगा ।
(4) िनम्निलिखत मिजस्टर्ेट मृत्यु-समीक्षा करने के िलए सशक्त ह, अथार्त् कोई िजला मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट और राज्य
सरकार ारा या िजला मिजस्टर्ेट ारा इस िनिम िवशेषतया सशक्त िकया गया कोई अन्य कायर्पालक मिजस्टर्ेट ।
175. िक्तय को समन करने की शिक्त—(1) धारा 174 के अधीन कायर्वाही करने वाला पुिलस अिधकारी यथापूव क्त दो या
अिधक िक्तय को उक्त अन्वेषण के पर्योजन से और िकसी अन्य ऐसे िक्त को, जो मामले के तथ्य से पिरिचत पर्तीत होता है,
िलिखत आदेश ारा समन कर सकता है तथा ऐसे समन िकया गया पर्त्येक िक्त हािजर होने के िलए और उन पर्श्न के िसवाय, िजनके
उ र की पर्वृि उसे आपरािधक आरोप या शािस्त या समपहरण की आशंका म डालने की है, सब पर्श्न का सही-सही उ र देने के िलए
आब होगा ।
(2) यिद तथ्य से ऐसा कोई संज्ञेय अपराध, िजसे धारा 170 लागू है, पर्कट नह होता है तो पुिलस अिधकारी ऐसे िक्त से
मिजस्टर्ेट के न्यायालय म हािजर होने की अपेक्षा न करे गा ।
176. मृत्यु के कारण की मिजस्टर्ेट ारा जांच —(1) 2 [ 3 **** जब मामला धारा 174 की उपधारा (3) के खंड (i) या खंड (ii) म
िनिदष्ट पर्कृ ित का है] तब मृत्यु के कारण की जांच, पुिलस अिधकारी ारा िकए जाने वाले अन्वेषण के बजाय या उसके अितिरक्त, वह
िनकटतम मिजस्टर्ेट करे गा जो मृत्यु-समीक्षा करने के िलए सशक्त है और धारा 174 की उपधारा (1) म विणत िकसी अन्य दशा म इस
पर्कार सशक्त िकया गया कोई भी मिजस्टर्ेट कर सके गा ; और यिद वह ऐसा करता है तो उसे ऐसी जांच करने म वे सब शिक्तयां ह गी जो
उसे िकसी अपराध की जांच करने म होती ।
4
[(1क) जहां,—
(क) कोई िक्त मर जाता है या गायब हो जाता है, या
(ख) िकसी स्तर्ी के साथ बलात्संग िकया गया अिभकिथत है,
तो उस दशा म जब िक ऐसा िक्त या स्तर्ी पुिलस अिभरक्षा या इस संिहता के अधीन मिजस्टर्ेट या न्यायालय ारा पर्ािधकृ त िकसी अन्य
अिभरक्षा म है, वहां पुिलस ारा की गई जांच या िकए गए अन्वेषण के अितिरक्त, यथािस्थित, ऐसे न्यायाियक मिजस्टर्ेट या महानगर
मिजस्टर्ेट ारा, िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर अपराध िकया गया है, जांच की जाएगी ।]
(2) ऐसी जांच करने वाला मिजस्टर्ेट उसके संबंध म िलए गए सा य को इसम इसके पश्चात् िविहत िकसी पर्कार से, मामले की
पिरिस्थितय के अनुसार अिभिलिखत करे गा ।
(3) जब कभी ऐसे मिजस्टर्ेट के िवचार म यह समीचीन है िक िकसी िक्त के , जो पहले ही गाड़ िदया गया है, मृत शरीर की
इसिलए परीक्षा की जाए िक उसकी मृत्यु के कारण का पता चले तब मिजस्टर्ेट उस शरीर को िनकलवा सकता है और उसकी परीक्षा करा
सकता है ।
(4) जहां कोई जांच इस धारा के अधीन की जानी है, वहां मिजस्टर्ेट, जहां कह साध्य है, मृतक के उन नातेदार को, िजनके नाम
और पते ज्ञात ह, इि ला देगा और उन्ह जांच के समय उपिस्थत रहने की अनुज्ञा देगा ।

1
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 4 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 18 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 18 ारा अंत:स्थािपत ।
56

[(5) उपधारा (1क) के अधीन, यथािस्थित, जांच या अन्वेषण करने वाला न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट या
1

कायर्पालक मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी, िकसी िक्त की मृत्यु के चौबीस घंटे के भीतर उसकी परीक्षा िकए जाने की दृिष्ट से शरीर को
िनकटतम िसिवल सजर्न या अन्य अिहत िचिकत्सा िक्त को, जो इस िनिम राज्य सरकार ारा िनयुक्त िकया गया हो, भेजेगा जब तक
िक लेखब िकए जाने वाले कारण से ऐसा करना संभव न हो ।]
स्पष्टीकरण—इस धारा म “नातेदार” पद से माता-िपता, संतान, भाई, बिहन और पित या पत्नी अिभपर्ेत ह ।
अध्याय 13

जांच और िवचारण म दंड न्यायालय की अिधकािरता


177. जांच और िवचारण का मामूली स्थान—पर्त्येक अपराध की जांच और िवचारण मामूली तौर पर ऐसे न्यायालय ारा िकया
जाएगा िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर वह अपराध िकया गया है ।
178. जांच या िवचारण का स्थान—(क) जहां यह अिनिश्चत है िक कई स्थानीय क्षेतर् म से िकसम अपराध िकया गया है, अथवा
(ख) जहां अपराध अंशत: एक स्थानीय क्षेतर् म और अंशत: िकसी दूसरे म िकया गया है, अथवा
(ग) जहां अपराध चालू रहने वाला है और उसका िकया जाना एक से अिधक स्थानीय क्षेतर् म चालू रहता है, अथवा
(घ) जहां वह िविभन्न स्थानीय क्षेतर् म िकए गए कई काय से िमलकर बनता है, वहां उसकी जांच या िवचारण ऐसे स्थानीय क्षेतर्
म से िकसी पर अिधकािरता रखने वाले न्यायालय ारा िकया जा सकता है ।
179. अपराध वहां िवचारणीय होगा जहां कायर् िकया गया या जहां पिरणाम िनकला—जब कोई कायर् िकसी की गई बात के और
िकसी िनकले हुए पिरणाम के कारण अपराध है तब ऐसे अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है, िजसकी
स्थानीय अिधकािरता के अंदर ऐसी बात की गई या ऐसा पिरणाम िनकला ।
180. जहां कायर् अन्य अपराध से संबिं धत होने के कारण अपराध है वहां िवचारण का स्थान—जब कोई कायर् िकसी ऐसे अन्य कायर्
से संबंिधत होने के कारण अपराध है, जो स्वयं भी अपराध है या अपराध होता यिद कतार् अपराध करने के िलए समथर् होता, तब पर्थम
विणत अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर उन दोन म से कोई
भी कायर् िकया गया है ।
181. कु छ अपराध की दशा म िवचारण का स्थान—(1) ठग होने के , या ठग ारा हत्या के , डकै ती के , हत्या सिहत डकै ती के ,
डकै त की टोली का होने के , या अिभरक्षा से िनकल भागने के िकसी अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता
है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर अपराध िकया गया है या अिभयुक्त िक्त िमला है ।
(2) िकसी िक्त के पहरण या अपहरण के िकसी अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है
िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर वह िक्त पहृत या अपहृत िकया गया या ले जाया गया या िछपाया गया या िनरु िकया
गया है ।
(3) चोरी, उ ीपन या लूट के िकसी अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसकी स्थानीय
अिधकािरता के अंदर ऐसा अपराध िकया गया है या चुराई हुई संपि को जो िक अपराध का िवषय है उसे करने वाले िक्त ारा या
िकसी ऐसे िक्त ारा कब्जे म रखी गई है िजसने उस संपि को चुराई हुई संपि जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते हुए
पर्ाप्त िकया या रखे रखा ।
(4) आपरािधक दुिविनयोग या आपरािधक न्यासभंग के िकसी अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता
है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर अपराध िकया गया है या उस संपि का, जो अपराध का िवषय है, कोई भाग अिभयुक्त िक्त
ारा पर्ाप्त िकया गया या रखा गया है अथवा उसका लौटाया जाना या लेखा िदया जाना अपेिक्षत है ।
(5) िकसी ऐसे अपराध की, िजसम चुराई हुई संपि का कब्जा भी है, जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है
िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर ऐसा अपराध िकया गया है या चुराई हुई संपि िकसी ऐसे िक्त ारा कब्जे म रखी गई है,
िजसने उसे चुराई हुई जानते हुए या िवश्वास करने का कारण होते हुए पर्ाप्त िकया या रखे रखा ।
182. पतर् , आिद ारा िकए गए अपराध—(1) िकसी ऐसे अपराध की, िजसम छल करना भी है, जांच या उनका िवचारण, उस दशा
म िजसम ऐसी पर्वंचना पतर् या दूरसंचार संदश े के माध्यम से की गई है ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसकी स्थानीय
अिधकािरता के अंदर ऐसे पतर् या संदश
े भेजे गए ह या पर्ाप्त िकए गए ह तथा छल करने और बेईमानी से संपि का पिरदान उपर्ेिरत करने
वाले िकसी अपराध की जांच या उनका िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर संपि ,
पर्वंिचत िक्त ारा पिरद की गई है या अिभयुक्त िक्त ारा पर्ाप्त की गई है ।
(2) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 494 या धारा 495 के अधीन दंडनीय िकसी अपराध की जांच या उनका

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 18 ारा अंत:स्थािपत ।
57

िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर अपराध िकया गया है या अपराधी ने पर्थम
िववाह की अपनी पत्नी या पित के साथ अंितम बार िनवास िकया है 1 [या पर्थम िववाह की पत्नी अपराध के िकए जाने के पश्चात् स्थायी
रूप से िनवास करती है] ।
183. यातर्ा या जलयातर्ा म िकया गया अपराध—यिद कोई अपराध उस समय िकया गया है जब वह िक्त, िजसके ारा, या वह
िक्त िजसके िवरु , या वह चीज िजसके बारे म वह अपराध िकया गया, िकसी यातर्ा या जलयातर्ा पर है, तो उसकी जांच या िवचारण
ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है, िजसकी स्थानीय अिधकािरता म होकर या उसके अंदर वह िक्त या चीज उस यातर्ा या
जलयातर्ा के दौरान गई ह ।
184. एक साथ िवचारणीय अपराध के िलए िवचारण का स्थान—जहां,—
(क) िकसी िक्त ारा िकए गए अपराध ऐसे ह िक पर्त्येक ऐसे अपराध के िलए धारा 219, धारा 220 या धारा 221 के
उपबंध के आधार पर एक ही िवचारण म उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका िवचारण िकया जा सकता है, अथवा
(ख) कई िक्तय ारा िकया गया अपराध या िकए गए अपराध ऐसे ह िक उनके िलए उन पर धारा 223 के उपबंध के
आधार पर एक साथ आरोप लगाया जा सकता है और िवचारण िकया जा सकता है,
वहां अपराध की जांच या िवचारण ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता है जो उन अपराध म से िकसी की जांच या िवचारण करने के
िलए सक्षम है ।
185. िविभन्न सेशन खंड म मामल के िवचारण का आदेश देने की शिक्त—इस अध्याय के पूवर्वत उपबंध म िकसी बात के होते
हुए भी, राज्य सरकार िनदेश दे सकती है िक ऐसे िकन्ह मामल का या िकसी वगर् के मामल का िवचारण, जो िकसी िजले म िवचारणाथर्
सुपुदर् हो चुके ह, िकसी भी सेशन खंड म िकया जा सकता है :
परं तु यह तब जब िक ऐसा िनदेश उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ारा संिवधान के अधीन या इस संिहता के या तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन पहले ही जारी िकए गए िकसी िनदेश के िवरु नह है ।
186. संदह
े की दशा म उच्च न्यायालय का वह िजला िविनिश्चत करना िजसम जांच या िवचारण होगा—जहां दो या अिधक
न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान कर लेते ह और यह पर्श्न उठता है िक उनम से िकसे उस अपराध की जांच या िवचारण करना
चािहए, वहां वह पर्श्न—
(क) यिद वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ ह तो उस उच्च न्यायालय ारा ;
(ख) यिद वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ नह ह, तो उस उच्च न्यायालय ारा िजसकी अपीली दांिडक
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के अंदर कायर्वाही पहले पर्ारं भ की गई है,
िविनिश्चत िकया जाएगा, और तब उस अपराध के संबंध म अन्य सब कायर्वािहयां बंद कर दी जाएंगी ।
187. स्थानीय अिधकािरता के परे िकए गए अपराध के िलए समन या वारं ट जारी करने की शिक्त—(1) जब िकसी पर्थम वगर्
मिजस्टर्ेट को यह िवश्वास करने का कारण िदखाई देता है िक उसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर के िकसी िक्त ने ऐसी अिधकािरता के
बाहर, (चाहे भारत के अंदर या बाहर) ऐसा अपराध िकया है िजसकी जांच या िवचारण 177 से 185 तक की धारा के (िजनके अंतगर्त ये
दोन धाराएं भी ह), उपबंध के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन ऐसी अिधकािरता के अंदर नह िकया जा सकता है
िकतु जो तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन भारत म िवचारणीय है तब ऐसा मिजस्टर्ेट उस अपराध की जांच ऐसे कर सकता है मानो वह
ऐसी स्थानीय अिधकािरता के अंदर िकया गया है और ऐसे िक्त को अपने समक्ष हािजर होने के िलए इसम इसके पूवर् उपबंिधत पर्कार से
िववश कर सकता है और ऐसे िक्त को ऐसे अपराध की जांच या िवचारण करने की अिधकािरता वाले मिजस्टर्ेट के पास भेज सकता है या
यिद ऐसा अपराध मृत्यु से या आजीवन कारावास से दंडनीय नह है और ऐसा िक्त इस धारा के अधीन कारर् वाई करने वाले मिजस्टर्ेट को
समाधानपर्द रूप म जमानत देने के िलए तैयार और इच्छु क है तो ऐसी अिधकािरता वाले मिजस्टर्ेट के समक्ष उसकी हािजरी के िलए पर्ितभु
सिहत या रिहत बंधपतर् ले सकता है ।
(2) जब ऐसी अिधकािरता वाले मिजस्टर्ेट एक से अिधक ह और इस धारा के अधीन कायर् करने वाला मिजस्टर्ेट अपना समाधान
नह कर पाता है िक िकस मिजस्टर्ेट के पास या समक्ष ऐसा िक्त भेजा जाए या हािजर होने के िलए आब िकया जाए, तो मामले की
िरपोटर् उच्च न्यायालय के आदेश के िलए की जाएगी ।
188. भारत से बाहर िकया गया अपराध—जब कोई अपराध भारत से बाहर—
(क) भारत के िकसी नागिरक ारा चाहे खुले समुदर् पर या अन्यतर् ; अथवा
(ख) िकसी िक्त ारा, जो भारत का नागिरक नह है, भारत म रिजस्टर्ीकृ त िकसी पोत या िवमान पर,
िकया जाता है तब उस अपराध के बारे म उसके िवरु ऐसी कायर्वाही की जा सकती है मानो वह अपराध भारत के अंदर उस स्थान म

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 15 ारा अंत:स्थािपत ।
58

िकया गया है जहां वह पाया गया है :


परं तु इस अध्याय की पूवर्वत धारा म से िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे िकसी अपराध की भारत म जांच या उसका िवचारण
कदर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी के िबना नह िकया जाएगा ।
189. भारत के बाहर िकए गए अपराध के बारे म सा य लेना—जब िकसी ऐसे अपराध की, िजसका भारत से बाहर िकसी क्षेतर् म
िकया जाना अिभकिथत है, जांच या िवचारण धारा 188 के उपबंध के अधीन िकया जा रहा है तब, यिद कदर्ीय सरकार उिचत समझे तो यह
िनदेश दे सकती है िक उस क्षेतर् म या उस क्षेतर् के िलए न्याियक अिधकारी के समक्ष या उस क्षेतर् म या उस क्षेतर् के िलए भारत के राजनियक या
क सलीय पर्ितिनिध के समक्ष िदए गए अिभसा य की या पेश िकए गए पर्दश की पर्ितय को ऐसी जांच या िवचारण करने वाले न्यायालय
ारा िकसी ऐसे मामले म सा य के रूप म िलया जाएगा िजसम ऐसा न्यायालय ऐसी िकन्ह बात के बारे म, िजनसे ऐसे अिभसा य या पर्दशर्
संबंिधत ह सा य लेने के िलए कमीशन जारी कर सकता है ।
अध्याय 14

कायर्वािहयां शुरू करने के िलए अपेिक्षत शत


190. मिजस्टर्ेट ारा अपराध का संज्ञान—(1) इस अध्याय के उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट और उपधारा
(2) के अधीन िवशेषतया सशक्त िकया गया कोई ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट, िकसी भी अपराध का संज्ञान िनम्निलिखत दशा म कर
सकता है :—
(क) उन तथ्य का, िजनसे ऐसा अपराध बनता है पिरवाद पर्ाप्त होने पर ;
(ख) ऐसे तथ्य के बारे म पुिलस िरपोटर् पर ;
(ग) पुिलस अिधकारी से िभन्न िकसी िक्त से पर्ाप्त इस इि ला पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर िक ऐसा अपराध
िकया गया है ।
(2) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट िकसी ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट को ऐसे अपराध का, िजनकी जांच या िवचारण करना उसकी क्षमता के
अंदर है, उपधारा (1) के अधीन संज्ञान करने के िलए सशक्त कर सकता है ।
191. अिभयुक्त के आवेदन पर अंतरण—जब मिजस्टर्ेट िकसी अपराध का संज्ञान धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन
करता है तब अिभयुक्त को, कोई सा य लेने से पहले, इि ला दी जाएगी िक वह मामले की िकसी अन्य मिजस्टर्ेट से जांच या िवचारण
कराने का हकदार है और यिद अिभयुक्त, या यिद एक से अिधक अिभयुक्त ह तो उनम से कोई, संज्ञान करने वाले मिजस्टर्ेट के समक्ष आगे
कायर्वाही िकए जाने पर आपि करता है तो मामला उस अन्य मिजस्टर्ेट को अंतिरत कर िदया जाएगा जो मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा
इस िनिम िविनिदष्ट िकया जाएगा ।
192. मामले मिजस्टर्ेट के हवाले करना — (1) कोई मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात् मामले को जांच
या िवचारण के िलए अपने अधीनस्थ िकसी सक्षम मिजस्टर्ेट के हवाले कर सकता है ।
(2) मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा इस िनिम सशक्त िकया गया कोई पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात्,
मामले को जांच या िवचारण के िलए अपने अधीनस्थ िकसी ऐसे सक्षम मिजस्टर्ेट के हवाले कर सकता है िजसे मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट
साधारण या िवशेष आदेश ारा िविनिदष्ट करे , और तब ऐसा मिजस्टर्ेट जांच या िवचारण कर सकता है ।
193. अपराध का सेशन न्यायालय ारा संज्ञान—इस संिहता ारा या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा अिभ क्त रूप से
जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, कोई सेशन न्यायालय आरं िभक अिधकािरता वाले न्यायालय के रूप म िकसी अपराध का संज्ञान तब तक
नह करे गा जब तक मामला इस संिहता के अधीन मिजस्टर्ेट ारा उसके सुपुदर् नह कर िदया गया है ।
194. अपर और सहायक सेशन न्यायाधीश को हवाले िकए गए मामल पर उनके ारा िवचारण—अपर सेशन न्यायाधीश या
सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसे मामल का िवचारण करे गा िजन्ह िवचारण के िलए उस खंड का सेशन न्यायाधीश साधारण या िवशेष
आदेश ारा उसके हवाले करता है या िजनका िवचारण करने के िलए उच्च न्यायालय िवशेष आदेश ारा उसे िनदेश देता है ।
195. लोक न्याय के िवरु अपराध के िलए और सा य म िदए गए दस्तावेज से संबिं धत अपराध के िलए लोक सेवक के
िविधपूणर् पर्ािधकार के अवमान के िलए अिभयोजन—(1) कोई न्यायालय,—
(क) (i) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 172 से धारा 188 तक की धारा के (िजनके अंतगर्त ये दोन धाराएं
भी ह) अधीन दंडनीय िकसी अपराध का, अथवा
(ii) ऐसे अपराध के िकसी दुपर्ेरण या ऐसा अपराध करने के पर्यत्न का, अथवा
(iii) ऐसा अपराध करने के िलए िकसी आपरािधक षडय़ंतर् का,
59

1
[संज्ञान संब लोक सेवक के , या िकसी अन्य ऐसे लोक सेवक के , िजसके वह पर्शासिनक तौर पर अधीनस्थ है, िलिखत पिरवाद पर ही
करे गा, अन्यथा नह ;]
(ख) (i) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की िनम्निलिखत धारा अथार्त् 193 से 196 (िजनके अंतगर्त ये दोन धाराएं
भी ह ), 199, 200, 205 से 211 (िजनके अंतगर्त ये दोन धाराएं भी ह) और 228 म से िकन्ह के अधीन दंडनीय िकसी अपराध का,
जब ऐसे अपराध के बारे म यह अिभकिथत है िक वह िकसी न्यायालय म की कायर्वाही म या उसके संबध ं म िकया गया है ; अथवा
(ii) उसी संिहता की धारा 463 म विणत या धारा 471, धारा 475 या धारा 476 के अधीन दंडनीय अपराध का, जब ऐसे
अपराध के बारे म यह अिभकिथत है िक वह िकसी न्यायालय म की कायर्वाही म पेश की गई सा य म दी गई िकसी दस्तावेज के
बारे म िकया गया है ; अथवा
(iii) उपखंड (i) या उपखंड (ii) म िविनिदष्ट िकसी अपराध को करने के िलए आपरािधक षडय़ंतर् या उसे करने के पर्यत्न या
उसके दुपर्ेरण के अपराध का,
संज्ञान ऐसे न्यायालय के , या न्यायालय के ऐसे अिधकारी के , िजसे वह न्यायालय इस िनिम िलिखत रूप म पर्ािधकृ त करे या िकसी अन्य
न्यायालय के , िजसके वह न्यायालय अधीनस्थ है िलिखत पिरवाद पर ही] करे गा अन्यथा नह ।
(2) जहां िकसी लोक सेवक ारा उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन कोई पिरवाद िकया गया है वहां ऐसा कोई पर्ािधकारी, िजसके
वह पर्शासिनक तौर पर अधीनस्थ है, उस पिरवाद को वापस लेने का आदेश दे सकता है और ऐसे आदेश की पर्ित न्यायालय को भेजेगा ; और
न्यायालय ारा उसकी पर्ािप्त पर उस पिरवाद के संबंध म आगे कोई कायर्वाही नह की जाएगी :
पंरतु ऐसे वापस लेने का कोई आदेश उस दशा म नह िदया जाएगा िजसम िवचारण पर्थम बार के न्यायालय म समाप्त हो
चुका है ।
(3) उपधारा (1) के खंड (ख) म “न्यायालय” शब्द से कोई िसिवल, राजस्व या दंड न्यायालय अिभपर्ेत है और उसके अंतगर्त िकसी
कदर्ीय, पर्ांतीय या राज्य अिधिनयम ारा या उसके अधीन गिठत कोई अिधकरण भी है यिद वह उस अिधिनयम ारा इस धारा के
पर्योजनाथर् न्यायालय घोिषत िकया गया है ।
(4) उपधारा (1) के खंड (ख) के पर्योजन के िलए कोई न्यायालय उस न्यायालय के िजसम ऐसे पूवर्किथत न्यायालय की अपीलनीय
िडिकर्य या दंडादेश की साधारणतया अपील होती है, अधीनस्थ समझा जाएगा या ऐसा िसिवल न्यायालय, िजसकी िडिकर्य की
साधारणतया कोई अपील नह होती है, उस मामूली आरं िभक िसिवल अिधकािरता वाले पर्धान न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा
िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अंदर ऐसा िसिवल न्यायालय िस्थत है :
परन्तु—
(क) जहां अपील एक से अिधक न्यायालय म होती ह वहां अवर अिधकािरता वाला अपील न्यायालय वह न्यायालय होगा
िजसके अधीनस्थ ऐसा न्यायालय समझा जाएगा ;
(ख) जहां अपील िसिवल न्यायालय म और राजस्व न्यायालय म भी होती ह वहां ऐसा न्यायालय उस मामले या कायर्वाही
के स्वरूप के अनुसार, िजसके संबध
ं म उस अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, िसिवल या राजस्व न्यायालय के अधीनस्थ
समझा जाएगा ।
[195क. धमकी देने आिद की दशा म सािक्षय के िलए पर्िकर्या—कोई साक्षी या कोई अन्य
2
िक्त भारतीय दंड संिहता, (1860
का 45) की धारा 195क के अधीन अपराध के संबंध म पिरवाद फाइल कर सके गा ।]
196. राज्य के िवरु अपराध के िलए और ऐसे अपराध करने के िलए आपरािधक षडय़ंतर् के िलए अिभयोजना—(1) कोई
न्यायालय,—
(क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 6 के अधीन या धारा 153क, 3 [धारा 295क या धारा 505 की उपधारा
(1)] के अधीन दंडनीय िकसी अपराध का ; अथवा
(ख) ऐसा अपराध करने के िलए आपरािधक षडय़ंतर् का ; अथवा
(ग) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 108क म यथाविणत िकसी दुपर्ेरण का,
संज्ञान कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार की पूवर् मंजरू ी से ही करे गा, अन्यथा नह ।
4
[(1क) कोई न्यायालय,—

1
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 17 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 3 ारा “धारा 153ख धारा, 295क या धारा 505” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
60

(क) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 153ख या धारा 505 की उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन दंडनीय
िकसी अपराध का, अथवा
(ख) ऐसा अपराध करने के िलए आपरािधक षडयंतर् का,
संज्ञान कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार या िजला मिजस्टर्ेट की पूवर् मंजूरी से ही करे गा, अन्यथा नह ।]
(2) कोई न्यायालय भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 120ख के अधीन दंडनीय िकसी आपरािधक षडय़ंतर् के िकसी ऐसे
अपराध का, जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वषर् या उससे अिधक की अविध के किठन कारावास से दंडनीय 1 [अपराध] करने के
आपरािधक षडय़ंतर् से िभन्न है, संज्ञान तब तक नह करे गा जब तक राज्य सरकार या िजला मिजस्टर्ेट ने कायर्वाही शुरू करने के िलए
िलिखत सम्मित नह दे दी है :
परं तु जहां आपरािधक षडय़ंतर् ऐसा है िजसे धारा 195 के उपबंध लागू ह वहां ऐसी कोई सम्मित आवश्यक न होगी ।
(3) कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार, 2 [उपधारा (1) या उपधारा (1क) के अधीन मंजरू ी देने के पूवर् और िजला मिजस्टर्ेट, उपधारा
(1क) के अधीन मंजूरी देने से पूवर्,] और राज्य सरकार या िजला मिजस्टर्ेट, उपधारा (2) के अधीन सम्मित देने के पूवर्, ऐसे पुिलस
अिधकारी ारा जो िनरीक्षक की पंिक्त से नीचे का नह है, पर्ारं िभक अन्वेषण िकए जाने का आदेश दे सकता है और उस दशा म ऐसे
पुिलस अिधकारी की वे शिक्तयां ह गी जो धारा 155 की उपधारा (3) म िनिदष्ट ह ।
197. न्यायाधीश और लोक सेवक का अिभयोजन—(1) जब िकसी िक्त पर, जो न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट या ऐसा लोक सेवक
है या था िजसे सरकार ारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकता है, अन्यथा नह , िकसी ऐसे अपराध का अिभयोग है
िजसके बारे म यह अिभकिथत है िक वह उसके ारा तब िकया गया था जब वह अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर् कर रहा था जब
उसका ऐसे कायर् करना तात्पियत था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान, जैसा 3 [लोकपाल और लोकायुक्त]—
(क) ऐसे िक्त की दशा म, जो संघ के कायर्कलाप के संबंध म, यथािस्थित, िनयोिजत है या अिभकिथत अपराध के िकए
जाने के समय िनयोिजत या कदर्ीय सरकार की ;
(ख) ऐसे िक्त की दशा म, जो िकसी राज्य के कायर्कलाप के संबंध म, यथािस्थित, िनयोिजत है या अिभकिथत अपराध के
िकए जाने के समय िनयोिजत था, उस राज्य सरकार की, पूवर् मंजूरी से ही करे गा, अन्यथा नह :
[परं तु जहां अिभकिथत अपराध खंड (ख) म िनिदष्ट िकसी िक्त ारा उस अविध के दौरान िकया गया था जब राज्य म
4

संिवधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उ ोषणा पर्वृ थी, वहां खंड (ख) इस पर्कार लागू होगा मानो उसम आने
वाले “राज्य सरकार” पद के स्थान पर “कदर्ीय सरकार” पद रख िदया गया है ।]
[स्पष्टीकरण—शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक ऐसे िकसी लोक सेवक की दशा म, िजसके बारे म
5

यह अिभकथन िकया गया है िक उसने भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 166क, धारा 166ख, धारा 354, धारा 354क,
धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 370, धारा 375, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 509 के
अधीन कोई अपराध िकया है, कोई पूवर् मंजूरी अपेिक्षत नह होगी ।]
(2) कोई भी न्यायालय संघ के सश बल के िकसी सदस्य ारा िकए गए िकसी अपराध का संज्ञान, िजसके बारे म यह अिभकिथत
है िक वह उसके ारा तब िकया गया था, जब वह अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर् कर रहा था या जब उसका ऐसे कायर् करना
तात्पियत था, कदर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी से ही करे गा, अन्यथा नह ।
(3) राज्य सरकार अिधसूचना ारा िनदेश दे सकती है िक उसम यथािविनिदष्ट बल के ऐसे वगर् या पर्वगर् के सदस्य को िजन्ह लोक
वस्था बनाए रखने का कायर्-भार स पा गया है, जहां कह भी वे सेवा कर रहे ह , उपधारा (2) के उपबंध लागू ह गे और तब उस
उपधारा के उपबंध इस पर्कार लागू ह गे मान उसम आने वाले “कदर्ीय सरकार” पद के स्थान पर “राज्य सरकार” पद रख िदया गया है ।
[(3क) उपधारा (3) म िकसी बात के होते हुए भी कोई भी न्यायालय ऐसे बल के िकसी सदस्य ारा, िजसे राज्य म लोक
6

वस्था बनाए रखने का कायर्-भार स पा गया है, िकए गए िकसी ऐसे अपराध का संज्ञान, िजसके बारे म यह अिभकिथत है िक वह उसके
ारा तब िकया गया था जब वह, उस राज्य म संिवधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उ ोषणा के पर्वृ रहने के दौरान,
अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर् कर रहा था या जब उसका ऐसे कायर् करना तात्पियत था, कदर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी से ही
करे गा, अन्यथा नह ।
(3ख) इस संिहता म या िकसी अन्य िविध म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी, यह घोिषत िकया जाता है िक 20 अगस्त, 1991
को पर्ारं भ होने वाली और दंड पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1991 (1991 का 43), पर राष्टर्पित िजस तारीख को अनुमित देते ह

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 16 ारा “संज्ञेय अपराध” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 3 ारा “उपधारा (1) के अधीन मंजूरी देने के पूवर्” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2014 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 58 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
4
1991 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 2 ारा परं तुक जोड़ा गया ।
5
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 18 ारा अंत:स्थािपत ।
6
1991 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
61

उस तारीख की ठीक पूवर्वत तारीख को समाप्त होने वाली अविध के दौरान ऐसे िकसी अपराध के संबंध म िजसका उस अविध के दौरान
िकया जाना अिभकिथत है जब संिवधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उ ोषणा राज्य म पर्वृ थी, राज्य सरकार ारा
दी गई कोई मंजूरी या ऐसी मंजूरी पर िकसी न्यायालय ारा िकया गया कोई संज्ञान अिविधमान्य होगा और ऐसे िवषय म कदर्ीय सरकार
मंजूरी पर्दान करने के िलए सक्षम होगी तथा न्यायालय उसका संज्ञान करने के िलए सक्षम होगा ।]
(4) यथािस्थित, कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार उस िक्त का िजसके ारा और उस रीित का िजससे वह अपराध या वे अपराध,
िजसके या िजनके िलए ऐसे न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या लोक सेवक का अिभयोजन िकया जाना है, अवधारण कर सकती है और वह
न्यायालय िविनिदष्ट कर सकती है िजसके समक्ष िवचारण िकया जाना है ।
198. िववाह के िवरु अपराध के िलए अिभयोजन—(1) कोई न्यायालय भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 20 के
अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से िथत िकसी िक्त ारा िकए गए पिरवाद पर ही करे गा, अन्यथा नह :
परं तु—
(क) जहां ऐसा िक्त अठारह वषर् से कम आयु का है अथवा जड़ या पागल है अथवा रोग या अंग-शैिथल्य के कारण पिरवाद
करने के िलए असमथर् है, या ऐसी स्तर्ी है जो स्थानीय रुिढ़य और रीितय के अनुसार लोग के सामने आने के िलए िववश नह की
जानी चािहए वहां उसकी ओर से कोई अन्य िक्त न्यायालय की इजाजत से पिरवाद कर सकता है ;
(ख) जहां ऐसा िक्त पित है, और संघ के सश बल म से िकसी म से ऐसी पिरिस्थितय म सेवा कर रहा है िजनके बारे म
उसके कमान आिफसर ने यह पर्मािणत िकया है िक उनके कारण उसे पिरवाद कर सकने के िलए अनुपिस्थित छु ी पर्ाप्त नह हो
सकती, वहां उपधारा (4) के उपबंध के अनुसार पित ारा पर्ािधकृ त कोई अन्य िक्त उसकी ओर से पिरवाद कर सकता है ;
(ग) जहां भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की 1 [ धारा 494 या धारा 495] के अधीन दंडनीय अपराध से िथत िक्त
पत्नी है वहां उसकी ओर से उसके िपता, माता, भाई, बिहन, पुतर् या पुतर्ी या उसके िपता या माता के भाई या बिहन ारा 2 [ या
न्यायालय की इजाजत से, िकसी ऐसे अन्य िक्त ारा, जो उससे रक्त, िववाह या द क ारा संबंिधत है,] पिरवाद िकया जा
सकता है ।
(2) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए, स्तर्ी के पित से िभन्न कोई िक्त उक्त संिहता की धारा 497 या धारा 498 के अधीन
दंडनीय अपराध से िथत नह समझा जाएगा :
परं तु पित की अनुपिस्थित म, कोई ऐसा िक्त, जो उस समय जब ऐसा अपराध िकया गया था ऐसी स्तर्ी के पित की ओर से
उसकी देख-रे ख कर रहा था उसकी ओर से न्यायालय की इजाजत से पिरवाद कर सकता है ।
(3) जब उपधारा (1) के परं तुक के खंड (क) के अधीन आने वाले िकसी मामले म अठारह वषर् से कम आयु के िक्त या पागल
िक्त की ओर से िकसी ऐसे िक्त ारा पिरवाद िकया जाना है, जो सक्षम पर्ािधकारी ारा अवयस्क या पागल के शरीर का संरक्षक
िनयुक्त या घोिषत नह िकया गया है, और न्यायालय का समाधान हो जाता है िक ऐसा कोई संरक्षक जो ऐसे िनयुक्त या घोिषत िकया
गया है तब न्यायालय इजाजत के िलए आवेदन मंजूर करने के पूवर्, ऐसे संरक्षक को सूचना िदलवाएगा और सुनवाई का उिचत अवसर
देगा ।
(4) उपधारा (1) के परं तुक के खंड (ख) म िनिदष्ट पर्ािधकार िलिखत रूप म िदया जाएगा और, वह पित ारा हस्ताक्षिरत या
अन्यथा अनुपर्मािणत होगा, उसम इस भाव का कथन होगा िक उसे उन अिभकथन की जानकारी दे दी गई है िजनके आधार पर पिरवाद
िकया जाना है और वह उसके कमान आिफसर ारा पर्ितहस्ताक्षिरत होगा, तथा उसके साथ उस आिफसर ारा हस्ताक्षिरत इस भाव का
पर्माणपतर् होगा िक पित को स्वयं पिरवाद करने के पर्योजन के िलए अनुपिस्थित छु ी उस समय नह दी जा सकती है ।
(5) िकसी दस्तावेज के बारे म, िजसका ऐसा पर्ािधकार होना तात्पियत है और िजससे उपधारा (4) के उपबंध की पूित होती है
और िकसी दस्तावेज के बारे म, िजसका उस उपधारा ारा अपेिक्षत पर्माणपतर् होना तात्पियत है, जब तक पर्ितकू ल सािबत न कर िदया
जाए, यह उपधारणा की जाएगी िक वह असली है और उसे सा य म गर्हण िकया जाएगा ।
(6) कोई न्यायालय भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 376 के अधीन अपराध का संज्ञान, जहां ऐसा अपराध िकसी
पुरुष ारा 3 [अठारह वषर् से कम आयु की] अपनी ही पत्नी के साथ मैथुन करता है, उस दशा म न करे गा जब उस अपराध के िकए जाने की
तारीख से एक वषर् से अिधक तीत हो चुका है ।
(7) इस धारा के उपबंध िकसी अपराध के दुपर्ेरण या अपराध करने के पर्यत्न को ऐसे लागू ह गे, जैसे वे अपराध को लागू होते ह ।
[198क. भारतीय दंड संिहता की धारा 498क के अधीन अपराध का अिभयोजन—कोई न्यायालय भारतीय दंड संिहता
4

(1860 का 45) की धारा 498क के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध को गिठत करने वाले तथ्य की पुिलस िरपोटर् पर

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 17 ारा “धारा 494” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 17 ारा अंत: स्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 18 ारा “पंदर्ह वषर् से कम आयु की” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 5 ारा अंत:स्थािपत ।
62

अथवा अपराध से िथत िक्त ारा या उसके िपता, माता, भाई, बिहन ारा या उसके िपता अथवा माता के भाई या बिहन ारा िकए
गए पिरवाद पर या रक्त, िववाह या द क गर्हण ारा उससे संबंिधत िकसी अन्य िक्त ारा न्यायालय की इजाजत से िकए गए
पिरवाद पर ही करे गा अन्यथा नह ।]
[198ख. अपराध का संज्ञान—कोई भी न्यायालय भारतीय दंड संिहता की धारा 376ख के अधीन दंडनीय िकसी अपराध का,
1

जहां व्यिक्तय म वैवहािक संबंध है, उन तथ्य का, िजनसे पत्नी ारा पित के िवरु पिरवाद फाइल िकए जाने का पर अपराध गिठत
होता है, पर्थमदृष् ा समाधान होने के िसवाय संज्ञान नह करे गा ।]
199. मानहािन के िलए अिभयोजन—(1) कोई न्यायालय भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 21 के अधीन दंडनीय
अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से िथत िकसी िक्त ारा िकए गए पिरवाद पर ही करे गा, अन्यथा नह :
परं तु जहां ऐसा िक्त अठारह वषर् से कम आयु का है अथवा जड़ या पागल है अथवा रोग या अंग-शैिथल्य के कारण पिरवाद करने
के िलए असमथर् है, या ऐसी स्तर्ी है, जो स्थानीय रूिढ़य और रीितय के अनुसार लोग के सामने आने के िलए िववश नह की जानी
चािहए, वहां उसकी ओर से कोई अन्य िक्त न्यायालय की इजाजत से पिरवाद कर सकता है ।
(2) इस संिहता म िकसी बात के होते हुए भी, जब भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 21 के अधीन आने वाले िकसी
अपराध के बारे म यह अिभकिथत है िक वह ऐसे िक्त के िवरु , जो ऐसा अपराध िकए जाने के समय भारत का राष्टर्पित, या भारत
का उपराष्टर्पित या िकसी राज्य का राज्यपाल या िकसी संघ राज्यक्षेतर् का पर्शासक या संघ या िकसी राज्य का या िकसी संघ राज्यक्षेतर्
का मंतर्ी अथवा संघ या िकसी राज्य के कायर्कलाप के संबंध म िनयोिजत अन्य लोक सेवक था, उसके लोक कृ त्य के िनवर्हन को उसके
आचरण के संबंध म िकया गया है तब सेशन न्यायालय, ऐसे अपराध का संज्ञान, उसको मामला सुपुदर् हुए िबना, लोक अिभयोजक ारा
िकए गए िलिखत पिरवाद पर कर सकता है ।
(3) उपधारा (2) म िनिदष्ट ऐसे पर्त्येक पिरवाद म वे तथ्य, िजनसे अिभकिथत अपराध बनता है, ऐसे अपराध का स्वरूप और ऐसी
अन्य िविशिष्टयां विणत ह गी जो अिभयुक्त को उसके ारा िकए गए अिभकिथत अपराध की सूचना देने के िलए उिचत रूप से
पयार्प्त है ।
(4) उपधारा (2) के अधीन लोक अिभयोजक ारा कोई पिरवाद—
(क) िकसी ऐसे िक्त की दशा म जो िकसी राज्य का राज्यपाल है या रहा है या िकसी राज्य की सरकार का मंतर्ी है या रहा
है, उस राज्य सरकार की ;
(ख) िकसी राज्य के कायर्कलाप के संबंध म िनयोिजत िकसी अन्य लोक सेवक की दशा म, उस राज्य सरकार की ;
(ग) िकसी अन्य दशा म, कदर्ीय सरकार की,
पूवर् मंजूरी से ही िकया जाएगा, अन्यथा नह ।
(5) कोई सेशन न्यायालय उपधारा (2) के अधीन िकसी अपराध का संज्ञान तभी करे गा जब पिरवाद उस तारीख से छह मास के
अंदर कर िदया जाता है िजसको उस अपराध का िकया जाना अिभकिथत है ।
(6) इस धारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त के , िजसके िवरु अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, उस अपराध की बाबत
अिधकािरता वाले िकसी मिजस्टर्ेट के समक्ष पिरवाद करने के अिधकार पर या ऐसे पिरवाद पर अपराध का संज्ञान करने की ऐसे मिजस्टर्ेट
की शिक्त पर पर्भाव डालेगी ।
अध्याय 15

मिजस्टर्ेट से पिरवाद
200. पिरवादी की परीक्षा—पिरवाद पर िकसी अपराध का संज्ञान करने वाला मिजस्टर्ेट, पिरवादी की और यिद कोई साक्षी
उपिस्थत है तो उनकी शपथ पर परीक्षा करे गा और ऐसी परीक्षा का सारांश लेखब िकया जाएगा और पिरवादी और सािक्षय ारा तथा
मिजस्टर्ेट ारा भी हस्ताक्षिरत िकया जाएगा :
परं तु जब पिरवाद िलख कर िकया जाता है तब मिजस्टर्ेट के िलए पिरवादी या सािक्षय की परीक्षा करना आवश्यक न होगा —
(क) यिद पिरवाद अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर् करने वाले या कायर् करने का तात्पयर् रखने वाले लोक सेवक ारा
या न्यायालय ारा िकया गया है, अथवा
(ख) यिद मिजस्टर्ेट जांच या िवचारण के िलए मामले को धारा 192 के अधीन िकसी अन्य मिजस्टर्ेट के हवाले कर देता है :
परं तु यह और िक यिद मिजस्टर्ेट पिरवादी या सािक्षय की परीक्षा करने के पश्चात् मामले को धारा 192 के अधीन िकसी अन्य
मिजस्टर्ेट के हवाले करता है तो बाद वाले मिजस्टर्ेट के िलए उनकी िफर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 19 ारा अंत:स्थािपत ।
63

201. ऐसे मिजस्टर्ेट ारा पर्िकर्या जो मामले का संज्ञान करने के िलए सक्षम नह है—यिद पिरवाद ऐसे मिजस्टर्ेट को िकया जाता है
जो उस अपराध का संज्ञान करने के िलए सक्षम नह है, तो—
(क) यिद पिरवाद िलिखत है तो वह उसको समुिचत न्यायालय म पेश करने के िलए, उस भाव के पृष्ठांकन सिहत,
लौटा देगा ;
(ख) यिद पिरवाद िलिखत नह है तो वह पिरवादी को उिचत न्यायालय म जाने का िनदेश देगा ।
202. आदेिशका के जारी िकए जाने को मुल्तवी करना—(1) यिद कोई मिजस्टर्ेट ऐसे अपराध का पिरवाद पर्ाप्त करने पर, िजसका
संज्ञान करने के िलए वह पर्ािधकृ त है या जो धारा 192 के अधीन उसके हवाले िकया गया है, ठीक समझता है तो 1 [ और ऐसे मामले म जहां
अिभयुक्त ऐसे िकसी स्थान म िनवास कर रहा है जो उस क्षेतर् से परे है िजसम वह अपनी अिधकािरता का पर्योग करता है] अिभयुक्त के
िवरु आदेिशका का जारी िकया जाना मुल्तवी कर सकता है और यह िविनिश्चत करने के पर्योजन से िक कायर्वाही करने के िलए पयार्प्त
आधार है अथवा नह , या तो स्वयं ही मामले की जांच कर सकता है या िकसी पुिलस अिधकारी ारा या अन्य ऐसे िक्त ारा, िजसको
वह ठीक समझे अन्वेषण िकए जाने के िलए िनदेश दे सकता है :
परं तु अन्वेषण के िलए ऐसा कोई िनदेश वहां नह िदया जाएगा—
(क) जहां मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक वह अपराध िजसका पिरवाद िकया गया है अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा
िवचारणीय है ; अन्यथा
(ख) जहां पिरवाद िकसी न्यायालय ारा नह िकया गया है जब तक िक पिरवादी की या उपिस्थत सािक्षय की (यिद कोई
हो) धारा 200 के अधीन शपथ पर परीक्षा नह कर ली जाती है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िकसी जांच म यिद मिजस्टर्ेट ठीक समझता है तो सािक्षय का शपथ पर सा य ले सकता है :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक वह अपराध िजसका पिरवाद िकया गया है अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा
िवचारणीय है तो यह पिरवादी से अपने सब सािक्षय को पेश करने की अपेक्षा करे गा और उनकी शपथ पर परीक्षा करे गा ।
(3) यिद उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण िकसी ऐसे िक्त ारा िकया जाता है जो पुिलस अिधकारी नह है तो उस अन्वेषण के
िलए उसे वारं ट के िबना िगरफ्तार करने की शिक्त के िसवाय पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को इस संिहता ारा पर्द सभी
शिक्तयां ह गी ।
203. पिरवाद का खािरज िकया जाना—यिद पिरवादी के और सािक्षय के शपथ पर िकए गए कथन पर (यिद कोई हो), और धारा
202 के अधीन जांच या अन्वेषण के (यिद कोई हो) पिरणाम पर िवचार करने के पश्चात्, मिजस्टर्ेट की यह राय है िक कायर्वाही करने के
िलए पयार्प्त आधार नह है तो वह पिरवाद को खािरज कर देगा और ऐसे पर्त्येक मामले म वह ऐसा करने के अपने कारण को संक्षेप म
अिभिलिखत करे गा ।
अध्याय 16

मिजस्टर्ेट के समक्ष कायर्वाही का पर्ारं भ िकया जाना


204. आदेिशका का जारी िकया जाना—(1) यिद िकसी अपराध का संज्ञान करने वाले मिजस्टर्ेट की राय म कायर्वाही करने के िलए
पयार्प्त आधार ह और—
(क) मामला समन-मामला पर्तीत होता है तो वह अिभयुक्त की हािजरी के िलए समन जारी करे गा ; अथवा
(ख) मामला वारं ट-मामला पर्तीत होता है तो वह अपने या (यिद उसकी अपनी अिधकािरता नह है तो) अिधकािरता वाले
िकसी अन्य मिजस्टर्ेट के समक्ष अिभयुक्त के िनिश्चत समय पर लाए जाने या हािजर होने के िलए वारं ट, या यिद ठीक समझता है
समन, जारी कर सकता है ।
(2) अिभयुक्त के िवरु उपधारा (1) के अधीन तब तक कोई समन या वारं ट जारी नह िकया जाएगा जब तक अिभयोजन के
सािक्षय की सूची फाइल नह कर दी जाती है ।
(3) िलिखत पिरवाद पर संिस्थत कायर्वाही म उपधारा (1) के अधीन जारी िकए गए पर्त्येक समन वारं ट के साथ उस पिरवाद की
एक पर्ितिलिप होगी ।
(4) जब तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन कोई आदेिशका फीस या अन्य फीस संदय
े है तब कोई आदेिशका तब तक जारी नह
की जाएगी जब तक फीस नह दे दी जाती है और यिद ऐसी फीस उिचत समय के अंदर नह दी जाती है तो मिजस्टर्ेट पिरवाद को खािरज
कर सकता है ।
(5) इस धारा की कोई बात धारा 87 के उपबंध पर पर्भाव डालने वाली नह समझी जाएगी ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 19 ारा अंत:स्थािपत ।
64

205. मिजस्टर्ेट का अिभयुक्त को वैयिक्तक हािजरी से अिभमुिक्त दे सकना—(1) जब कभी कोई मिजस्टर्ेट समन जारी करता है
तब यिद उसे ऐसा करने का कारण पर्तीत होता है तो वह अिभयुक्त को वैयिक्तक हािजरी से अिभमुक्त कर सकता है और अपने प्लीडर
ारा हािजर होने की अनुज्ञा दे सकता है ।
(2) िकतु मामले की जांच या िवचारण करने वाला मिजस्टर्ेट, स्विववेकानुसार, कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म अिभयुक्त की वैयिक्तक
हािजरी का िनदेश दे सकता है और यिद आवश्यक हो तो उसे इस पर्कार हािजर होने के िलए इसम इसके पूवर् उपबंिधत रीित से िववश कर
सकता है ।
206. छोटे अपराध के मामले म िवशेष समन—(1) यिद िकसी छोटे अपराध का संज्ञान करने वाले मिजस्टर्ेट की राय म मामले को
1
[धारा 260 या धारा 261 के अधीन] संक्षेपत: िनपटाया जा सकता है तो वह मिजस्टर्ेट उस दशा के िसवाय जहां उन कारण से जो
लेखब िकए जाएंगे उसकी पर्ितकू ल राय है, अिभयुक्त से यह अपेक्षा करते हुए उसके िलए समन जारी करे गा िक वह िविनिदष्ट तारीख
को मिजस्टर्ेट के समक्ष या तो स्वयं या प्लीडर ारा हािजर हो या वह मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर हुए िबना आरोप का दोषी होने का
अिभवचन करना चाहता है तो िलिखत रूप म उक्त अिभवाक् और समन म िविनिदष्ट जुमार्ने की रकम डाक या संदश े वाहक ारा
िविनिदष्ट तारीख के पूवर् भेज दे या यिद वह प्लीडर ारा हािजर होना चाहता है और ऐसे प्लीडर ारा उस आरोप के दोषी होने का
अिभवचन करना चाहता है तो प्लीडर को अपनी ओर से आरोप के दोषी होने का अिभवचन करने के िलए िलखकर पर्ािधकृ त करे और ऐसे
प्लीडर की माफर् त जुमार्ने का संदाय करे :
परं तु ऐसे समन म िविनिदष्ट जुमार्ने की रकम 2 [एक हजार रुपए] से अिधक न होगी ।
(2) इस धारा के पर्योजन के िलए “छोटे अपराध” से कोई ऐसा अपराध अिभपर्ेत है जो के वल एक हजार रुपए से अनिधक जुमार्ने
से दंडनीय है िकतु इसके अंतगर्त कोई ऐसा अपराध नह है जो मोटरयान अिधिनयम, 1939 (1939 का 4) के अधीन या िकसी अन्य ऐसी
िविध के अधीन, िजसम दोषी होने के अिभवाक् पर अिभयुक्त की अनुपिस्थित म उसको दोषिस करने के िलए उपबंध है, इस पर्कार
दंडनीय है ।
3
[(3) राज्य सरकार, िकसी मिजस्टर्ेट को उपधारा (1) ारा पर्द शिक्तय का पर्योग िकसी ऐसे अपराध के संबंध म करने के िलए,
जो धारा 320 के अधीन शमनीय है, या जो कारावास से, िजसकी अविध तीन मास से अिधक नह है या जुमार्ने से या दोन से दंडनीय है
अिधसूचना ारा िवशेष रूप से वहां सशक्त कर सकती है, जहां मामले के तथ्य और पिरिस्थितय का ध्यान रखते हुए मिजस्टर्ेट की राय
है िक के वल जुमार्ना अिधरोिपत करने से न्याय के उ ेश्य पूरे हो जाएंगे ।]
207. अिभयुक्त को पुिलस िरपोटर् या अन्य दस्तावेज की पर्ितिलिप देना—िकसी ऐसे मामले म जहां कायर्वाही पुिलस िरपोटर् के
आधार पर संिस्थत की गई है, मिजस्टर्ेट िनम्निलिखत म से पर्त्येक की एक पर्ितिलिप अिभयुक्त को अिवलंब िन:शुल्क देगा :—
(i) पुिलस िरपोटर् ;
(ii) धारा 154 के अधीन लेखब की गई पर्थम इि ला िरपोटर् ;
(iii) धारा 161 की उपधारा (3) के अधीन अिभिलिखत उन सभी िक्तय के कथन, िजनकी अपने सािक्षय के रूप म
परीक्षा करने का अिभयोजन का िवचार है, उनम से िकसी ऐसे भाग को छोड़कर िजनको ऐसे छोड़ने के िलए िनवेदन धारा 173 की
उपधारा (6) के अधीन पुिलस अिधकारी ारा िकया गया है ;
(iv) धारा 164 के अधीन लेखब की गई संस्वीकृ ितयां या कथन, यिद कोई ह ;
(v) कोई अन्य दस्तावेज या उसका सुसंगत उ रण, जो धारा 173 की उपधारा (5) के अधीन पुिलस िरपोटर् के साथ
मिजस्टर्ेट को भेजी गई है :
परं तु मिजस्टर्ेट खण्ड (iii) म िनिदष्ट कथन के िकसी ऐसे भाग का पिरशीलन करने और ऐसे िनवेदन के िलए पुिलस अिधकारी
ारा िदए गए कारण पर िवचार करने के पश्चात् यह िनदेश दे सकता है िक कथन के उस भाग की या उसके ऐसे पर्भाग की, जैसा
मिजस्टर्ेट ठीक समझे, एक पर्ितिलिप अिभयुक्त को दी जाए :
परं तु यह और िक यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक खंड (v) म िनिदष्ट कोई दस्तावेज िवशालकाय है तो वह अिभयुक्त
को उसकी पर्ितिलिप देने के बजाय यह िनदेश देगा िक उसे स्वयं या प्लीडर ारा न्यायालय म उसका िनरीक्षण ही करने िदया जाएगा ।
208. सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय अन्य मामल म अिभयुक्त को कथन और दस्तावेज की पर्ितिलिपयां देना—जहां पुिलस
िरपोटर् से िभन्न आधार पर संिस्थत िकसी मामले म, धारा 204 के अधीन आदेिशका जारी करने वाले मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक
अपराध अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय है, वहां मिजस्टर्ेट िनम्निलिखत म से पर्त्येक की एक पर्ितिलिप अिभयुक्त को अिवलंब
िन:शुल्क देगा :—
(i) उन सभी िक्तय के , िजनकी मिजस्टर्ेट ारा परीक्षा की जा चुकी है, धारा 200 या धारा 202 के अधीन लेखब िकए

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 20 ारा “धारा 260 के अधीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 20 ारा “एक सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 18 ारा अंत:स्थािपत ।
65

गए कथन ;
(ii) धारा 161 या धारा 164 के अधीन लेखब िकए गए कथन, और संस्वीकृ ितयां, यिद कोई ह ;
(iii) मिजस्टर्ेट के समक्ष पेश की गई कोई दस्तावेज, िजन पर िनभर्र रहने का अिभयोजन का िवचार है :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक ऐसी कोई दस्तावेज िवशालकाय है, तो वह अिभयुक्त को उसकी पर्ितिलिप देने के
बजाय यह िनदेश देगा िक उसे स्वयं या प्लीडर ारा न्यायालय म उसका िनरीक्षण ही करने िदया जाएगा ।
209. जब अपराध अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय है तब मामला उसे सुपद ु र् करना—जब पुिलस िरपोटर् पर या अन्यथा
संिस्थत िकसी मामले म अिभयुक्त मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होता है या लाया जाता है और मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक अपराध
अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय है तो वह—
1
[(क) यथािस्थित, धारा 207 या धारा 208 के उपबंध का अनुपालन करने के पश्चात् मामला सेशन न्यायालय को सुपुदर्
करे गा और जमानत से संबंिधत इस संिहता के उपबंध के अधीन रहते हुए अिभयुक्त िक्त को अिभरक्षा म तब तक के िलए
पर्ितपर्ेिषत करे गा जब तक ऐसी सुपुदग
र् ी नह कर दी जाती है ;]
(ख) जमानत से संबंिधत इस संिहता के उपबंध के अधीन रहते हुए िवचारण के दौरान और समाप्त होने तक अिभयुक्त की
अिभरक्षा म पर्ितपर्ेिषत करे गा ;
(ग) मामले का अिभलेख तथा दस्तावेज और वस्तुं, यिद कोई ह , िजन्ह सा य म पेश िकया जाना है, उस न्यायालय
को भेजेगा ;
(घ) मामले के सेशन न्यायालय को सुपुदर् िकए जाने की लोक अिभयोजक को सूचना देगा ।
210. पिरवाद वाले मामले म अनुसरण की जाने वाली पर्िकर्या और उसी अपराध के बारे म पुिलस अन्वेषण—(1) जब पुिलस
िरपोटर् से िभन्न आधार पर संिस्थत िकसी मामले म (िजसे इसम इसके पश्चात् पिरवाद वाला मामला कहा गया है) मिजस्टर्ेट ारा की
जाने वाली जांच या िवचारण के दौरान उसके समक्ष यह पर्कट िकया जाता है िक उस अपराध के बारे म जो उसके ारा की जाने वाली
जांच या िवचारण का िवषय है पुिलस ारा अन्वेषण हो रहा है, तब मिजस्टर्ेट ऐसी जांच या िवचारण की कायर्वािहय को रोक देगा और
अन्वेषण करने वाले पुिलस अिधकारी से उस मामले की िरपोटर् मांगेगा ।
(2) यिद अन्वेषण करने वाले पुिलस अिधकारी ारा धारा 173 के अधीन िरपोटर् की जाती है और ऐसी िरपोटर् पर मिजस्टर्ेट ारा
ऐसे िक्त के िवरु िकसी अपराध का संज्ञान िकया जाता है जो पिरवाद वाले मामले म अिभयुक्त है तो, मिजस्टर्ेट पिरवाद वाले मामले
की और पुिलस िरपोटर् से पैदा होने वाले मामले की जांच या िवचारण साथ-साथ ऐसे करे गा मानो दोन मामले पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत
िकए गए ह ।
(3) यिद पुिलस िरपोटर् पिरवाद वाले मामले म िकसी अिभयुक्त से संबंिधत नह है या यिद मिजस्टर्ेट पुिलस िरपोटर् पर िकसी
अपराध का संज्ञान नह करता है तो वह उस जांच या िवचारण म जो उसके ारा रोक ली गई थी, इस संिहता के उपबंध के अनुसार
कायर्वाही करे गा ।
अध्याय 17

आरोप
क—आरोप का पर्रूप
211. आरोप की अंतवर्स्तु—(1) इस संिहता के अधीन पर्त्येक आरोप म उस अपराध का कथन होगा िजसका अिभयुक्त पर
आरोप है ।
(2) यिद उस अपराध का सृजन करने वाली िविध ारा उसे कोई िविनिदष्ट नाम िदया गया है तो आरोप म उसी नाम से उस
अपराध का वणर्न िकया जाएगा ।
(3) यिद उस अपराध का सृजन करने वाली िविध ारा उसे कोई िविनिदष्ट नाम नह िदया गया है तो अपराध की इतनी
पिरभाषा देनी होगी िजतनी से अिभयुक्त को उस बात की सूचना हो जाए िजसका उस पर आरोप है ।
(4) वह िविध और िविध की वह धारा, िजसके िवरु अपराध िकया जाना किथत है, आरोप म उिल्लिखत होगी ।
(5) यह तथ्य िक आरोप लगा िदया गया है इस कथन के समतुल्य है िक िविध ारा अपेिक्षत पर्त्येक शतर् िजससे आरोिपत अपराध
बनता है उस िविशष्ट मामले म पूरी हो गई ह ।
(6) आरोप न्यायालय की भाषा म िलखा जाएगा ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 19 ारा खंड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
66

(7) यिद अिभयुक्त िकसी अपराध के िलए पहले दोषिस िकए जाने पर िकसी पश्चात्वत अपराध के िलए ऐसी पूवर् दोषिसि के
कारण विधत दंड का या िभन्न पर्कार के दंड का भागी है और यह आशियत है िक ऐसी पूवर् दोषिसि उस दंड को पर्भािवत करने के
पर्योजन के िलए सािबत की जाए िजसे न्यायालय पश्चात्वत अपराध के िलए देना ठीक समझे तो पूवर् दोषिसि का तथ्य, तारीख और
स्थान आरोप म किथत ह गे ; और यिद ऐसा कथन रह गया है तो न्यायालय दंडादेश देने के पूवर् िकसी समय भी उसे जोड़ सके गा ।

दृष्टांत
(क) क पर ख की हत्या का आरोप है । यह बात इस कथन के समतुल्य है िक क का कायर् भारतीय दंड संिहता (1860 का
45) की धारा 299 और 300 म दी गई हत्या की पिरभाषा के अंदर आता है और वह उसी संिहता के साधारण अपवाद म से िकसी
के अंदर नह आता और वह धारा 300 के पांच अपवाद म से िकसी के अंदर भी नह आता, या यिद वह अपवाद 1 के अंदर आता है
तो उस अपवाद के तीन परं तुक म से कोई न कोई परं तुक उसे लागू होता है ।
(ख) क पर असन के उपकरण ारा ख को स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करने के िलए भारतीय दंड संिहता (1860 का
45) की धारा 326 के अधीन आरोप है । यह इस कथन के समतुल्य है िक उस मामले के िलए भारतीय दंड संिहता की धारा 335
ारा उपबंध नह िकया गया है और साधारण अपवाद उसको लागू नह होते ह ।
(ग) क पर हत्या, छल, चोरी, उ ीपन, जारकमर् या आपरािधक अिभतर्ास या िमथ्या संपि िचह्न को उपयोग म लाने
का अिभयोग है । आरोप म उन अपराध की भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) म दी गई पिरभाषा के िनदश के िबना यह
कथन हो सकता है िक क ने हत्या या छल या चोरी या उ ीपन या जारकमर् या आपरािधक अिभतर्ास िकया है या यह िक उसने
िमथ्या संपि िचह्न का उपयोग िकया है ; िकतु पर्त्येक दशा म वे धाराएं, िजनके अधीन अपराध दंडनीय है, आरोप म िनिदष्ट
करनी पड़गी ।
(घ) क पर भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 184 के अधीन यह आरोप है िक उसने लोक सेवक के िविधपूणर्
पर्ािधकार ारा िवकर्य के िलए पर्स्थािपत संपि के िवकर्य म साशय बाधा डाली है । आरोप उन शब्द म ही होना चािहए ।
212. समय, स्थान और िक्त के बारे म िविशिष्टयां—(1) अिभकिथत अपराध के समय और स्थान के बारे म और िजस िक्त के
(यिद कोई हो) िवरु अथवा िजस वस्तु के (यिद कोई हो) िवषय म वह अपराध िकया गया उस िक्त या वस्तु के बारे म ऐसी
िविशिष्टयां, जैसी अिभयुक्त को उस बात की, िजसका उस पर आरोप है, सूचना देने के िलए उिचत रूप से पयार्प्त ह आरोप म
अंतिवष्ट ह गी ।
(2) जब अिभयुक्त पर आपरािधक न्यासभंग या बेईमानी से धन या अन्य जंगम संपि के दुिविनयोग का आरोप है तब इतना ही
पयार्प्त होगा िक िविशष्ट मद का िजनके िवषय म अपराध िकया जाना अिभकिथत है, या अपराध करने की ठीक-ठीक तारीख का
िविनदश िकए िबना, यथािस्थित, उस सकल रािश का िविनदश या उस जंगम संपि का वणर्न कर िदया जाता है िजसके िवषय म
अपराध िकया जाना अिभकिथत है, और उन तारीख का, िजनके बीच म अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, िविनदश कर िदया
जाता है और ऐसे िवरिचत आरोप धारा 219 के अथर् म एक ही अपराध का आरोप समझा जाएगा :
परं तु ऐसी तारीख म से पहली और अंितम के बीच का समय एक वषर् से अिधक का न होगा ।
213. कब अपराध िकए जाने की रीित किथत की जानी चािहए—जब मामला इस पर्कार का है िक धारा 211 और 212 म विणत
िविशिष्टयां अिभयुक्त को उस बात की, िजसका उस पर आरोप है, पयार्प्त सूचना नह देती तब उस रीित की, िजसम अिभकिथत अपराध
िकया गया, ऐसी िविशिष्टयां भी, जैसी उस पर्योजन के िलए पयार्प्त ह, आरोप म अंतिवष्ट ह गी ।

दृष्टांत
(क) क पर वस्तु-िवशेष की िवशेष समय और स्थान म चोरी करने का अिभयोग है । यह आवश्यक नह है िक आरोप म
वह रीित उपविणत हो िजससे चोरी की गई ।
(ख) क पर ख के साथ किथत समय पर और किथत स्थान म छल करने का अिभयोग है । आरोप म वह रीित, िजससे क ने
ख के साथ छल िकया, उपविणत करनी होगी ।
(ग) क पर किथत समय पर और किथत स्थान म िमथ्या सा य देने का अिभयोग है । आरोप म क ारा िकए गए सा य
का वह भाग उपविणत करना होगा िजसका िमथ्या होना अिभकिथत है ।
(घ) क पर लोक सेवक ख को उसके लोक कृ त्य के िनवर्हन म किथत समय पर और किथत स्थान म बािधत करने का
अिभयोग है । आरोप म वह रीित उपविणत करनी होगी िजससे क ने ख को उसके कृ त्य के िनवर्हन म बािधत िकया ।
(ङ) क पर किथत समय पर और किथत स्थान म ख की हत्या करने का अिभयोग है । यह आवश्यक नह है िक आरोप म
वह रीित किथत हो िजससे क ने ख की हत्या की ।
(च) क पर ख को दंड से बचाने के आशय से िविध के िनदेश की अवज्ञा करने का अिभयोग है । आरोिपत अवज्ञा और
अितलंिघत िविध का उपवणर्न आरोप म करना होगा ।
67

214. आरोप के शब्द का वह अथर् िलया जाएगा जो उनका उस िविध म है िजसके अधीन वह अपराध दंडनीय है—पर्त्येक आरोप म
अपराध का वणर्न करने म उपयोग म लाए गए शब्द को उस अथर् म उपयोग म लाया गया समझा जाएगा जो अथर् उन्ह इस िविध ारा
िदया गया है िजसके अधीन ऐसा अपराध दंडनीय है ।
215. गलितय का पर्भाव—अपराध के या उन िविशिष्टय के , िजनका आरोप म कथन होना अपेिक्षत है, कथन करने म िकसी
गलती को और उस अपराध या उन िविशिष्टय के कथन करने म िकसी लोप को मामले के िकसी पर्कर्म म तब ही ताित्त्वक माना जाएगा
जब ऐसी गलती या लोप से अिभयुक्त वास्तव म भुलावे म पड़ गया है और उसके कारण न्याय नह हो पाया है अन्यथा नह ।
दृष्टान्त
(क) क पर भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 242 के अधीन यह आरोप है िक “उसने कब्जे म ऐसा कू टकृ त
िसक्का रखा है िजसे वह उस समय, जब वह िसक्का उसके कब्जे म आया था, जानता था िक वह कू टकृ त है” और आरोप म
“कपटपूवर्क” शब्द छू ट गया है । जब तक यह पर्तीत नह होता है िक क वास्तव म इस लोप से भुलावे म पड़ गया, इस गलती को
ताित्त्वक नह समझा जाएगा ।
(ख) क पर ख से छल करने का आरोप है और िजस रीित से उसने ख के साथ छल िकया है वह आरोप म उपविणत नह है
या अशु रूप म उपविणत है । क अपनी पर्ितरक्षा करता है, सािक्षय को पेश करता है और सं वहार का स्वयं अपना िववरण
देता है । न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है िक छल करने की रीित के उपवणर्न का लोप ताित्त्वक नह है ।
(ग) क पर ख से छल करने का आरोप है और िजस रीित से उसने ख से छल िकया है वह आरोप म उपविणत नह है ।
क और ख के बीच अनेक सं वहार हुए ह और क के पास यह जानने का िक आरोप का िनदश उनम से िकसके पर्ित है कोई साधन
नह था और उसने अपनी कोई पर्ितरक्षा नह की । न्यायालय ऐसे तथ्य से यह अनुमान कर सकता है िक छल करने की रीित के
उपवणर्न का लोप उस मामले म ताित्त्वक गलती थी ।
(घ) क पर 21 जनवरी, 1882 को खुदाबख्श की हत्या करने का आरोप है । वास्तव म मृत िक्त का नाम हैदरबख्श था
और हत्या की तारीख 20 जनवरी, 1882 थी । क पर कभी भी एक हत्या के अितिरक्त दूसरी िकसी हत्या का आरोप नह लगाया
गया और उसने मिजस्टर्ेट के समक्ष हुई जांच को सुना था िजसम हैदरबख्श के मामले का ही अनन्य रूप से िनदश िकया गया था ।
न्यायालय इन तथ्य से यह अनुमान कर सकता है िक क उससे भुलावे म नह पड़ा था और आरोप म यह गलती ताित्त्वक नह थी ।
(ङ) क पर 20 जनवरी, 1883 को हैदरबख्श की हत्या और 21 जनवरी, 1882 को खुदाबख्श की (िजसने उसे हत्या के
िलए िगरफ्तार करने का पर्यास िकया था) हत्या करने का आरोप है । जब वह हैदरबख्श की हत्या के िलए आरोिपत हुआ, तब
उसका िवचारण खुदाबख्श की हत्या के िलए हुआ । उसकी पर्ितरक्षा म उपिस्थत साक्षी हैदरबख्श वाले मामले म साक्षी थे ।
न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है िक क भुलावे म पड़ गया था और यह गलती ताित्त्वक थी ।
216. न्यायालय आरोप पिरवितत कर सकता है—(1) कोई भी न्यायालय िनणर्य सुनाए जाने के पूवर् िकसी समय िकसी भी आरोप
म पिरवतर्न या पिरवधर्न कर सकता है ।
(2) ऐसा पर्त्येक पिरवतर्न या पिरवधर्न अिभयुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा ।
(3) यिद आरोप म िकया गया पिरवतर्न या पिरवधर्न ऐसा है िक न्यायालय की राय म िवचारण को तुरंत आगे चलाने से अिभयुक्त
पर अपनी पर्ितरक्षा करने म या अिभयोजक पर मामले के संचालन म कोई पर्ितकू ल पर्भाव पड़ने की संभावना नह है, तो न्यायालय ऐसे
पिरवतर्न या पिरवधर्न के पश्चात् स्विववेकानुसार िवचारण को ऐसे आगे चला सकता है मानो पिरवितत या पिरविधत आरोप ही मूल
आरोप है ।
(4) यिद पिरवतर्न या पिरवधर्न ऐसा है िक न्यायालय की राय म िवचारण को तुरंत आगे चलाने से इस बात की संभावना है िक
अिभयुक्त या अिभयोजक पर पूव क्त रूप से पर्ितकू ल पर्भाव पड़ेगा तो न्यायालय या तो नए िवचारण का िनदेश दे सकता है या िवचारण
को इतनी अविध के िलए, िजतनी आवश्यक हो, स्थिगत कर सकता है ।
(5) यिद पिरवितत या पिरविधत आरोप म किथत अपराध ऐसा है, िजसके अिभयोजन के िलए पूवर् मंजूरी की आवश्यकता है, तो
उस मामले म ऐसी मंजूरी अिभपर्ाप्त िकए िबना कोई कायर्वाही नह की जाएगी जब तक िक उन्ह तथ्य के आधार पर िजन पर
पिरवितत या पिरविधत आरोप आधािरत ह, अिभयोजन के िलए मंजूरी पहले ही अिभपर्ाप्त नह कर ली गई है ।
217. जब आरोप पिरवितत िकया जाता है तब सािक्षय का पुन: बुलाया जाना—जब कभी िवचारण पर्ारं भ होने के पश्चात्
न्यायालय ारा आरोप पिरवितत या पिरविधत िकया जाता है तब अिभयोजक और अिभयुक्त को—
(क) िकसी ऐसे साक्षी को, िजसकी परीक्षा की जा चुकी है, पुन: बुलाने की या पुन: समन करने की और उसकी ऐसे
पिरवतर्न या पिरवधर्न के बारे म परीक्षा करने की अनुज्ञा दी जाएगी जब तक न्यायालय का ऐसे कारण से, जो लेखब िकए
जाएंग,े यह िवचार नह है िक, यथािस्थित, अिभयोजक या अिभयुक्त तंग करने के या िवलंब करने के या न्याय के उ ेश्य को
िवफल करने के पर्योजन से ऐसे साक्षी को पुन: बुलाना या उसकी पुन: परीक्षा करना चाहता है ।
(ख) िकसी अन्य ऐसे साक्षी को भी, िजसे न्यायालय आवश्यक समझे, बुलाने की अनुज्ञा दी जाएगी ।
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ख—आरोप का संयोजन
218. सुिभन्न अपराध के िलए पृथक् आरोप—(1) पर्त्येक सुिभन्न अपराध के िलए, िजसका िकसी िक्त पर अिभयोग है, पृथक्
आरोप होगा और ऐसे पर्त्येक आरोप का िववरण पृथक्तत: िकया जाएगा :
परं तु जहां अिभयुक्त िक्त, िलिखत आवेदन ारा, ऐसा चाहता है और मिजस्टर्ेट की राय है िक उससे ऐसे िक्त पर पर्ितकू ल
पर्भाव नह पड़ेगा वहां मिजस्टर्ेट उस िक्त के िवरु िवरिचत सभी या िकन्ह आरोप का िवचारण एक साथ कर सकता है ।
2. उपधारा (1) की कोई बात धारा 219, 220, 221 और 223 के उपबंध के पर्वतर्न पर पर्भाव नह डालेगी ।

दृष्टांत
क पर एक अवसर पर चोरी करने और दूसरे िकसी अवसर पर घोर उपहित कािरत करने का अिभयोग है । चोरी के िलए और घोर
उपहित कािरत करने के िलए क पर पृथक् -पृथक् आरोप लगाने ह गे और उनका िवचारण पृथक्तत: करना होगा ।
219. एक ही वषर् म िकए गए एक ही िकस्म के तीन अपराध का आरोप एक साथ लगाया जा सके गा—(1) जब िकसी िक्त पर
एक ही िकस्म के ऐसे एक से अिधक अपराध का अिभयोग है जो उन अपराध म से पहले अपराध से लेकर अंितम अपराध तक बारह
मास के अंदर ही िकए गए ह, चाहे वे एक ही िक्त के बारे म िकए गए ह या नह , तब उस पर उनम से तीन से अनिधक िकतने ही
अपराध के िलए एक ही िवचारण म आरोप लगाया और िवचारण िकया जा सकता है ।
(2) अपराध एक ही िकस्म के तब होते ह जब वे भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) या िकसी िवशेष या स्थानीय िविध की एक ही
धारा के अधीन दंड की समान मातर्ा से दंडनीय होते ह :
परं तु इस धारा के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 379 के अधीन दंडनीय
अपराध उसी िकस्म का अपराध है िजस िकस्म का उक्त संिहता की धारा 380 के अधीन दंडनीय अपराध है, और भारतीय दंड संिहता या
िकसी िवशेष या स्थानीय िविध की िकसी धारा के अधीन दंडनीय अपराध उसी िकस्म का अपराध है िजस िकस्म का ऐसे अपराध करने
का पर्यत्न है, जब ऐसा पर्यत्न अपराध हो ।
220. एक से अिधक अपराध के िलए िवचारण—(1) यिद परस्पर संब ऐसे काय के , िजनसे एक ही सं वहार बनता है, एक
कर्म म एक से अिधक अपराध एक ही िक्त ारा िकए गए ह तो ऐसे पर्त्येक अपराध के िलए एक ही िवचारण म उस पर आरोप लगाया
जा सकता है और उसका िवचारण िकया जा सकता है ।
(2) जब धारा 212 की उपधारा (2) म या धारा 219 की उपधारा (1) म उपबंिधत रूप म, आपरािधक न्यासभंग या बेईमानी से
सम्पि के दुिविनयोग के एक या अिधक अपराध से आरोिपत िकसी िक्त पर उस अपराध या अपराध के िकए जाने को सुकर बनाने
या िछपाने के पर्योजन से लेखा के िमथ्याकरण के एक या अिधक अपराध का अिभयोग है, तब उस पर ऐसे पर्त्येक अपराध के िलए एक
ही िवचारण म आरोप लगाया जा सकता है और िवचारण िकया जा सकता है ।
(3) यिद अिभकिथत काय से तत्समय पर्वृ िकसी िविध की, िजससे अपराध पिरभािषत या दंडनीय ह , दो या अिधक पृथक्
पिरभाषा म आने वाले अपराध बनते ह तो िजस िक्त पर उन्ह करने का अिभयोग है उस पर ऐसे अपराध म से पर्त्येक के िलए एक
ही िवचारण म आरोप लगाया जा सकता है और िवचारण िकया जा सकता है ।
(4) यिद कई कायर्, िजनम से एक से या एक से अिधक से स्वयं अपराध बनते ह, िमलकर िभन्न अपराध बनते ह तो ऐसे काय से
िमलकर बने अपराध के िलए और ऐसे काय म से िकसी एक या अिधक ारा बने िकसी अपराध के िलए अिभयुक्त िक्त पर एक ही
िवचारण म आरोप लगाया जा सकता है और िवचारण िकया जा सकता है ।
(5) इस धारा की कोई बात भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 71 पर पर्भाव न डालेगी ।

उपधारा (1) के दृष्टांत


(क) क एक िक्त ख को, जो िविधपूणर् अिभरक्षा म है, छु ड़ाता है और ऐसा करने म कांस्टेबल ग को, िजसकी अिभरक्षा
म ख है, घोर उपहित कािरत करता है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 225 और 333 के अधीन अपराध के
िलए आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
(ख) ख िदन म गृहभेदन इस आशय से करता है िक जारकमर् करे और ऐसे पर्वेश िकए गए गृह म ख की पत्नी से जारकमर्
करता है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 454 और 497 के अधीन आरोप के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया
जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
(ग) क इस आशय से ख को, जो ग की पत्नी है, फु सलाकर ग से अलग ले जाता है िक ख से जारकमर् करे और िफर वह
उससे जारकमर् करता है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 498 और 497 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत:
आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
69

(घ) क के कब्जे म कई मुदर्ाएं ह िजन्ह वह जानता है िक वे कू टकृ त ह और िजनके संबंध म वह यह आशय रखता है िक
भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 466 के अधीन दंडनीय कई कू ट रचनाएं करने के पर्योजन से उन्ह उपयोग म लाए ।
क पर पर्त्येक मुदर्ा पर कब्जे के िलए भारतीय दंड संिहता की धारा 473 के अधीन पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह
दोषिस िकया जा सके गा ।
(ङ) ख को क्षित कािरत करने के आशय से क उसके िवरु दांिडक कायर्वाही यह जानते हुए संिस्थत करता है िक ऐसी
कायर्वाही के िलए कोई न्यायसंगत या िविधपूणर् आधार नह है और ख पर अपराध करने का िमथ्या अिभयोग, यह जानते हुए
लगाता है िक ऐसे आरोप के िलए कोई न्यायसंगत या िविधपूणर् आधार नह है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की
धारा 211 के अधीन दंडनीय दो अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
(च) ख को क्षित कािरत करने के आशय से क उस पर एक अपराध करने का अिभयोग यह जानते हुए लगाता है िक ऐसे
आरोप के िलए कोई न्यायसंगत या िविधपूणर् आधार नह है । िवचारण म ख के िवरु क इस आशय से िमथ्या सा य देता है िक
उसके ारा ख को मृत्यु से दंडनीय अपराध के िलए दोषिस करवाए । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 211
और 194 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
(छ) क छह अन्य िक्तय के सिहत बल्वा करने, घोर उपहित करने और ऐसे लोक सेवक पर, जो ऐसे बल्वे को दबाने का
पर्यास ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कतर् का िनवर्हन करने म कर रहा है, हमला करने का अपराध करता है । क पर भारतीय दंड
संिहता, (1860 का 45) की धारा 147, 325 और 152 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह
दोषिस िकया जा सके गा ।
(ज) ख, ग और घ के शरीर को क्षित की धमकी क इस आशय से एक ही समय देता है िक उन्ह संतर्ास कािरत िकया जाए ।
क पर भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 506 के अधीन तीन अपराध म से पर्त्येक के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा
सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
दृष्टांत (क) से लेकर (ज) तक म कर्मशः िनिदष्ट पृथक् आरोप का िवचारण एक ही समय िकया जा सके गा ।

उपधारा (3) के दृष्टांत


(झ) क बत से ख पर संदोष आघात करता है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 352 और 323 के
अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया जा सके गा ।
(ञ) चुराए हुए धान्य के कई बोरे क और ख को, जो यह जानते ह िक वे चुराई हुई संपि ह, इस पर्योजन से दे िदए जाते
ह िक वे उन्ह िछपा द । तब क और ख उन बोर को अनाज की खेती के तले म िछपाने म स्वेच्छया एक दूसरे की मदद करते ह । क
और ख पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 411 और 414 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा
सके गा और वे दोषिस िकए जा सकगे ।
(ट) क अपने बालक को यह जानते हुए आरिक्षत डाल देती है िक यह संभा है िक उससे वह उसकी मृत्यु कािरत कर दे ।
बालक ऐसे अरिक्षत डाले जाने के पिरणामस्वरूप मर जाता है । क पर भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 317 और
304 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस की जा सके गी ।
(ठ) क कू टरिचत दस्तावेज को बेईमानी से असली सा य के रूप म इसिलए उपयोग म लाता है िक एक लोक सेवक ख को
भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 167 के अधीन अपराध के िलए दोषिस करे । क पर भारतीय दंड संिहता की
(धारा 466 के साथ पिठत) धारा 471 के और धारा 196 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह
दोषिस िकया जा सके गा ।

उपधारा (4) का दृष्टांत


(ड) ख को क लूटता है और ऐसा करने म उसे स्वेच्छया उपहित कािरत करता है । क पर भारतीय दंड संिहता (1860 का
45) की धारा 323, 392, और 394 के अधीन अपराध के िलए पृथक्तत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया
जा सके गा ।
221. जहां इस बारे म संदह
े है िक कौन-सा अपराध िकया गया है—(1) यिद कोई एक कायर् या काय का कर्म इस पर्कार का है िक यह
संदह
े है िक उन तथ्य से, जो िस िकए जा सकते ह, कई अपराध म से कौन सा अपराध बनेगा तो अिभयुक्त पर ऐसे सब अपराध या उनम
से कोई करने का आरोप लगाया जा सके गा और ऐसे आरोप म से िकतन ही का एक साथ िवचारण िकया जा सके गा ; या उस पर उक्त
अपराध म से िकसी एक को करने का अनुकल्पत: आरोप लगाया जा सके गा ।
(2) यिद ऐसे मामले म अिभयुक्त पर एक अपराध का आरोप लगाया गया है और सा य से यह पर्तीत होता है िक उसने िभन्न
अपराध िकया है, िजसके िलए उस पर उपधारा (1) के उपबंध के अधीन आरोप लगाया जा सकता था, तो वह उस अपराध के िलए
दोषिस िकया जा सके गा िजसका उसके ारा िकया जाना दिशत है, य िप उसके िलए उस पर आरोप नह लगाया गया था ।
70

दृष्टांत
(क) क पर ऐसे कायर् का अिभयोग है जो चोरी की, या चुराई गई संपि पर्ाप्त करने की, या आपरािधक न्यासभंग की, या
छल की कोिट म आ सकता है । उस पर चोरी करने, चुराई हुई संपि पर्ाप्त करने, आपरािधक न्यासभंग करने और छल करने का
आरोप लगाया जा सके गा अथवा उस पर चोरी करने का या चोरी की संपि पर्ाप्त करने का या आपरािधक न्यासभंग करने का या
छल करने का आरोप लगाया जा सके गा ।
(ख) ऊपर विणत मामले म क पर के वल चोरी का आरोप है । यह पर्तीत होता है िक उसने आपरािधक न्यासभंग का यह
चुराई हुई संपि पर्ाप्त करने का अपराध िकया है । वह (यथािस्थित) आपरािधक न्यासभंग या चुराई हुई संपि पर्ाप्त करने के
िलए दोषिस िकया जा सके गा, य िप उस पर उस अपराध का आरोप नह लगाया गया था ।
(ग) क मिजस्टर्ेट के समक्ष शपथ पर कहता है िक उसने देखा िक ख ने ग को लाठी मारी । सेशन न्यायालय के समक्ष क
शपथ पर कहता है िक ख ने ग को कभी नह मारा । य िप यह सािबत नह िकया जा सकता िक इन दो परस्पर िवरु कथन म से
कौन सा िमथ्या है तथािप क पर साशय िमथ्या देने के िलए अनुकल्पत: आरोप लगाया जा सके गा और वह दोषिस िकया
जा सके गा ।
222. जब वह अपराध, जो सािबत हुआ है, आरोिपत अपराध के अंतगर्त है—(1) जब िकसी िक्त पर ऐसे अपराध का आरोप है
िजसम कई िविशिष्टयां ह, िजनम से के वल कु छ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग सािबत हो जाता है िकन्तु
शेष िविशिष्टयां सािबत नह होती ह तब वह उस छोटे अपराध के िलए दोषिस िकया जा सकता है य िप उस पर उसका आरोप
नह था ।
(2) जब िकसी िक्त पर िकसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य सािबत कर िदए जाते ह जो उसे घटाकर छोटा
अपराध कर देते ह तब वह छोटे अपराध के िलए दोषिस िकया जा सकता है य िप उस पर उसका आरोप नह था ।
(3) जब िकसी िक्त पर िकसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के पर्यत्न के िलए दोषिस िकया जा सकता है
य िप पर्यत्न के िलए पृथक् आरोप न लगाया गया हो ।
(4) इस धारा की कोई बात िकसी छोटे अपराध के िलए उस दशा म दोषिस पर्ािधकृ त करने वाली न समझी जाएगी िजसम ऐसे
छोटे अपराध के बारे म कायर्वाही शुरू करने के िलए अपेिक्षत शत पूरी नह हुई ह ।

दृष्टांत
(क) क पर उस संपि के बारे म, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है, आपरािधक न्यासभंग के िलए भारतीय दंड
संिहता, (1860 का 45) की धारा 407 के अधीन आरोप लगाया गया है । यह पर्तीत होता है िक उस संपि के बारे म धारा 406 के
अधीन उसने आपरािधक न्यायभंग तो िकया है िकन्तु वह उसे वाहक के रूप म न्यस्त नह की गई थी । वह धारा 406 के अधीन
आपरािधक न्यासभंग के िलए दोषिस िकया जा सके गा ।
(ख) क पर घोर उपहित कािरत करने के िलए भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 325 के अधीन आरोप है ।
वह सािबत कर देता है िक उसने घोर और आकिस्मक पर्कोपन पर कायर् िकया था । वह उस संिहता की धारा 335 के अधीन
दोषिस िकया जा सके गा ।
223. िकन िक्तय पर संयक्
ु त रूप से आरोप लगाया जा सके गा—िनम्निलिखत िक्तय पर एक साथ आरोप लगाया जा
सके गा और उनका एक साथ िवचारण िकया जा सके गा, अथार्त् :—
(क) वे िक्त िजन पर एक ही सं वहार के अनुकर्म म िकए गए एक ही अपराध का अिभयोग है ;
(ख) वे िक्त िजन पर िकसी अपराध का अिभयोग है और वे िक्त िजन पर ऐसे अपराध का दुपर्ेरण या पर्यत्न करने का
अिभयोग है ;
(ग) वे िक्त िजन पर बारह मास की अविध के अन्दर संयुक्त रूप म उनके ारा िकए गए धारा 219 के अथर् म एक ही
िकस्म के एक से अिधक अपराध का अिभयोग है ;
(घ) वे िक्त िजन पर एक ही सं वहार के अनुकर्म म िदए गए िभन्न अपराध का अिभयोग है ;
(ङ) वे िक्त िजन पर ऐसे अपराध का, िजसके अन्तगर्त चोरी, उ ापन, छल या आपरािधक दुिविनयोग भी है, अिभयोग है
और वे िक्त, िजन पर ऐसी संपि को, िजसका कब्जा पर्थम नािमत िक्तय ारा िकए गए िकसी ऐसे अपराध ारा अन्तिरत
िकया जाना अिभकिथत है, पर्ाप्त करने या रखे रखने या उसके यन या िछपाने म सहायता करने का या िकसी ऐसे अंितम नािमत
अपराध का दुपर्ेरण या पर्यत्न करने का अिभयोग है ;
(च) वे िक्त िजन पर ऐसी चुराई हुई संपि के बारे म, िजसका कब्जा एक ही अपराध ारा अंतिरत िकया गया है,
भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 411 और धारा 414 के , या उन धारा म से िकसी के अधीन अपराध का
अिभयोग है ;
71

(छ) वे िक्त िजन पर भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 12 के अधीन कू टकृ त िसक्के के संबंध म िकसी
अपराध का अिभयोग है और वे िक्त िजन पर उसी िसक्के के संबंध म उक्त अध्याय के अधीन िकसी भी अन्य अपराध का या
िकसी ऐसे अपराध का दुपर्ेरण या पर्यत्न करने का अिभयोग है ; और इस अध्याय के पूवर्वत भाग के उपबंध सब ऐसे आरोप को
यथाशक्य लागू ह गे :
परन्तु जहां अनेक िक्तय पर पृथक् अपराध का आरोप लगाया जाता है और वे िक्त इस धारा म िविनिदष्ट कोिटय म से
िकसी म नह आते ह वहां 1 [मिजस्टर्ेट या सेशन न्यायालय] ऐसे सब िक्तय का िवचारण एक साथ कर सकता है यिद ऐसे िक्त
िलिखत आवेदन ारा ऐसा चाहते ह और 2 [मिजस्टर्ेट या सेशन न्यायालय] का समाधान हो जाता है िक उससे ऐसे िक्तय पर पर्ितकू ल
पर्भाव नह पड़ेगा और ऐसा करना समीचीन है ।
224. कई आरोप म से एक के िलए दोषिसि पर शेष आरोप को वापस लेना—जब एक ही िक्त के िवरु ऐसा आरोप
िवरिचत िकया जाता है िजसम एक से अिधक शीषर् ह और जब उनम से एक या अिधक के िलए, दोषिसि कर दी जाती है तब पिरवादी
या अिभयोजन का संचालन करने वाला अिधकारी न्यायालय की सम्मित से शेष आरोप या आरोप को वापस ले सकता है अथवा
न्यायालय ऐसे आरोप या आरोप की जांच या िवचारण स्वपर्ेरणा से रोक सकता है और ऐसे वापस लेने का पर्भाव ऐसे आरोप या आरोप
से दोषमुिक्त होगा ; िकन्तु यिद दोषिसि अपास्त कर दी जाती है तो उक्त न्यायालय (दोषिसि अपास्त करने वाले न्यायालय के आदेश
के अधीन रहते हुए) ऐसे वापस िलए गए आरोप या आरोप की जांच या िवचारण म आगे कायर्वाही कर सकता है ।
अध्याय 18

सेशन न्यायालय के समक्ष िवचारण


225. िवचारण का संचालन लोक अिभयोजक ारा िकया जाना—सेशन न्यायालय के समक्ष पर्त्येक िवचारण म, अिभयोजन का
संचालन लोक अिभयोजक ारा िकया जाएगा ।
226. अिभयोजन के मामले के कथन का आरं भ—जब अिभयुक्त धारा 209 के अधीन मामले की सुपुदग र् ी के अनुसरण म न्यायालय
के समक्ष हािजर होता है या लाया जाता है तब अिभयोजक अपने मामले का कथन, अिभयुक्त के िवरु लगाए गए आरोप का वणर्न करते
हुए और यह बताते हुए आरं भ करे गा िक वह अिभयुक्त के दोष को िकस सा य से सािबत करने की पर्स्थापना करता है ।
227. उन्मोचन—यिद मामले के अिभलेख और उसके साथ दी गई दस्तावेज पर िवचार कर लेने पर, और इस िनिम अिभयुक्त
और अिभयोजन के िनवेदन की सुनवाई कर लेने के पश्चात् न्यायाधीश यह समझता है िक अिभयुक्त के िवरु कायर्वाही करने के िलए
पयार्प्त आधार नह है तो वह अिभयुक्त को उन्मोिचत कर देगा और ऐसा करने के अपने कारण को लेखब करे गा ।
228. आरोप िवरिचत करना—(1) यिद पूव क्त रूप से िवचार, और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है िक ऐसी
उपधारणा करने का आधार है िक अिभयुक्त ने ऐसा अपराध िकया है जो—
(क) अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय नह है तो वह अिभयुक्त के िवरु आरोप िवरिचत कर सकता है और
आदेश ारा, मामले की िवचारण के िलए मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को अन्तिरत कर सकता है 3 या कोई अन्य पर्थम वगर् न्याियक
मिजस्टर्ेट, ऐसी तारीख को जो वह ठीक समझे, अिभयुक्त को, यथािस्थित, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट
के समक्ष हािजर होने का िनदेश दे सके गा, और तब ऐसा मिजस्टर्ेट उस मामले का िवचारण पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत वारं ट
मामल के िवचारण के िलए पर्िकर्या के अनुसार करे गा ;
(ख) अनन्यत: उस न्यायालय ारा िवचारणीय है तो वह अिभयुक्त के िवरु आरोप िलिखत रूप म िवरिचत करे गा ।
(2) जहां न्यायाधीश उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कोई आरोप िवरिचत करता है वहां वह आरोप अिभयुक्त को पढ़कर
सुनाया और समझाया जाएगा और अिभयुक्त से यह पूछा जाएगा िक क्या वह उस अपराध का, िजसका आरोप लगाया गया है, दोषी
होने का अिभवचन करता है या िवचारण िकए जाने का दावा करता है ।
229. दोषी होने के अिभवचन—यिद अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन करता है तो न्यायाधीश उस अिभवाक् को लेखब करे गा
और उसके आधार पर उसे, स्विववेकानुसार, दोषिस कर सकता है ।
230. अिभयोजन सा य के िलए तारीख—यिद अिभयुक्त अिभवचन करने से इनकार करता है या अिभवचन नह करता है या
िवचारण िकए जाने का दावा करता है या धारा 229 के अधीन िस दोष नह िकया जाता है तो न्यायाधीश सािक्षय की परीक्षा करने के
िलए तारीख िनयत करे गा और अिभयोजन के आवेदन पर िकसी साक्षी को हािजर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने को
िववश करने के िलए कोई आदेिशका जारी कर सकता है ।
231. अिभयोजन के िलए सा य—(1) ऐसे िनयत तारीख पर न्यायाधीश ऐसा सब सा य लेने के िलए अगर्सर होगा जो अिभयोजन
के समथर्न म पेश िकया जाए ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 21 ारा “मिजस्टर्ेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 21 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
.2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 22 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
72

(2) न्यायाधीश, स्विववेकानुसार, िकसी साक्षी की पर्ितपरीक्षा तब तक के िलए, जब तक िकसी अन्य साक्षी या सािक्षय की परीक्षा
न कर ली जाए, आस्थिगत करने की अनुज्ञा दे सकता है या िकसी साक्षी को अितिरक्त पर्ितपरीक्षा के िलए पुन: बुला सकता है ।
232. दोषमुिक्त—यिद सम्ब िवषय के बारे म अिभयोजन का सा य लेन,े अिभयुक्त की परीक्षा करने और अिभयोजन और
पर्ितरक्षा को सुनने के पश्चात् न्यायाधीश का यह िवचार है िक इस बात का सा य नह है िक अिभयुक्त ने अपराध िकया है तो न्यायाधीश
दोषमुिक्त का आदेश अिभिलिखत करे गा ।
233. पर्ितरक्षा आरं भ करना—(1) जहां अिभयुक्त धारा 232 के अधीन दोषमुक्त नह िकया जाता है वहां उससे अपेक्षा की जाएगी
िक अपनी पर्ितरक्षा आरं भ करे और कोई भी सा य जो उसके समथर्न म उसके पास हो पेश करे ।
(2) यिद अिभयुक्त कोई िलिखत कथन देता है तो न्यायाधीश उसे अिभलेख म फाइल करे गा ।
(3) यिद अिभयुक्त िकसी साक्षी को हािजर होने या कोई दस्तावेज या चीज पेश करने को िववश करने के िलए कोई आदेिशका
जारी करने के िलए आवेदन करता है तो न्यायाधीश ऐसी आदेिशका जारी करे गा जब तक उसका ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे,
यह िवचार न हो िक आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर िदया जाना चािहए िक वह तंग करने या िवलंब करने या न्याय के उ ेश्य को
िवफल करने के पर्योजन से िकया गया है ।
234. बहस—जब पर्ितरक्षा के सािक्षय की (यिद कोई ह ) परीक्षा समाप्त हो जाती है तो अिभयोजक अपने मामले का उपसंहार
करे गा और अिभयुक्त या उसका प्लीडर उ र देने का हकदार होगा :
परन्तु जहां अिभयुक्त या उसका प्लीडर कोई िविध-पर्श्न उठाता है वहां अिभयोजन न्यायाधीश की अनुज्ञा से, ऐसे िविध-पर्श्न पर
अपना िनवेदन कर सकता है ।
235. दोषमुिक्त या दोषिसि का िनणर्य—(1) बहस और िविध-पर्श्न (यिद कोई ह ) सुनने के पश्चात् न्यायाधीश मामले म
िनणर्य देगा ।
(2) यिद अिभयुक्त दोषिस िकया जाता है तो न्यायाधीश, उस दशा के िसवाय िजसम वह धारा 360 के उपबंध के अनुसार
कायर्वाही करता है दंड के पर्श्न पर अिभयुक्त को सुनेगा और तब िविध के अनुसार उसके बारे म दंडादेश देगा ।
236. पूवर् दोषिसि —ऐसे मामले म, िजसम धारा 211 की उपधारा (7) के उपबंध के अधीन पूवर् दोषिसि का आरोप लगाया
गया है और अिभयुक्त यह स्वीकार नह करता है िक आरोप म िकए गए अिभकथन के अनुसार उसे पहले दोषिस िकया गया था,
न्यायाधीश उक्त अिभयुक्त को धारा 229 या धारा 235 के अधीन दोषिस करने के पश्चात् अिभकिथत पूवर् दोषिसि के बारे म सा य
ले सके गा और उस पर िनष्कषर् अिभिलिखत करे गा :
परन्तु जब तक अिभयुक्त धारा 229 या धारा 235 के अधीन दोषिस नह कर िदया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप
न्यायाधीश ारा पढ़कर सुनाया जाएगा, न अिभयुक्त से उस पर अिभवचन करने को कहा जाएगा और न पूवर् दोषिसि का िनदश
अिभयोजन ारा, या उसके ारा िदए गए िकसी सा य म, िकया जाएगा ।
237. धारा 199(2) के अधीन संिस्थत मामल म पर्िकर्या—(1) धारा 199 की उपधारा (2) के अधीन अपराध का संज्ञान करने
वाला सेशन न्यायालय मामले का िवचारण, मिजस्टर्ेट के न्यायालय के समक्ष पुिलस िरपोटर् से िभन्न आधार पर संिस्थत िकए गए वारं ट
मामल के िवचारण की पर्िकर्या के अनुसार करे गा :
परन्तु जब तक सेशन न्यायालय उन कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, अन्यथा िनदेश नह देता है उस िक्त की, िजसके िवरु
अपराध का िकया जाना अिभकिथत है अिभयोजन के साक्षी के रूप म परीक्षा की जाएगी ।
(2) यिद िवचारण के दोन पक्षकार म से कोई ऐसी वांछा करता है या यिद न्यायालय ऐसा करना ठीक समझता है तो इस धारा के
अधीन पर्त्येक िवचारण बंद कमरे म िकया जाएगा ।
(3) यिद ऐसे िकसी मामले म न्यायालय सब अिभयुक्त को या उनम से िकसी को उन्मोिचत या दोषमुक्त करता है और उसकी यह
राय है िक उनके या उनम से िकसी के िवरु अिभयोग लगाने का उिचत कारण नह था तो वह उन्मोचन या दोषमुिक्त के अपने आदेश
ारा (राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या िकसी राज्य के राज्यपाल या िकसी संघ राज्यक्षेतर् के पर्शासक से िभन्न) उस िक्त को, िजसके
िवरु अपराध का िकया जाना अिभकिथत िकया गया था यह िनदेश दे सके गा िक वह कारण दिशत करे िक वह उस अिभयुक्त को या
जब ऐसे अिभयुक्त एक से अिधक ह तब उनम से पर्त्येक को या िकसी को पर्ितकर क्य न दे ।
(4) न्यायालय इस पर्कार िनिदष्ट िक्त ारा दिशत िकसी कारण को लेखब करे गा और उस पर िवचार करे गा और यिद उसका
समाधान हो जाता है िक अिभयोग लगाने का कोई उिचत कारण नह था, तो वह एक हजार रुपए से अनिधक इतनी रकम का, िजतनी
वह अवधािरत करे , पर्ितकर उस िक्त ारा अिभयुक्त को या, उनम से पर्त्येक को या िकसी को, िदए जाने का आदेश, उन कारण से जो
लेखब िकए जाएंगे, दे सके गा ।
(5) उपधारा (4) के अधीन अिधिनण त पर्ितकर ऐसे वसूल िकया जाएगा मानो वह मिजस्टर्ेट ारा अिधरोिपत िकया गया
जुमार्ना हो ।
73

(6) उपधारा (4) के अधीन पर्ितकर देने के िलए िजस िक्त को आदेश िदया जाता है उसे ऐसे आदेश के कारण इस धारा के अधीन
िकए गए पिरवाद के बारे म िकसी िसिवल या दांिडक दाियत्व से छू ट नह दी जाएगी :
परन्तु अिभयुक्त िक्त को इस धारा के अधीन दी गई कोई रकम, उसी मामले से संबंिधत िकसी पश्चात्वत िसिवल वाद म उस
िक्त के िलए पर्ितकर अिधिनण त करते समय िहसाब म ली जाएगी ।
(7) उपधारा (4) के अधीन पर्ितकर देने के िलए िजस िक्त को आदेश िदया जाता है वह उस आदेश की अपील, जहां तक वह
पर्ितकर के संदाय के संबंध म है, उच्च न्यायालय म कर सकता है ।
(8) जब िकसी अिभयुक्त िक्त को पर्ितकर िदए जाने का आदेश िकया जाता है, तब उसे ऐसा पर्ितकर, अपील पेश करने के िलए
अनुज्ञात अविध के बीत जाने के पूवर्, या यिद अपील पेश कर दी गई है तो अपील के िविनिश्चत कर िदए जाने के पूवर्, नह िदया जाएगा ।
अध्याय 19

मिजस्टर्ेट ारा वारण्ट-मामल का िवचारण


क—पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत मामले
238. धारा 207 का अनुपालन—जब पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत िकसी वारण्ट-मामले म अिभयुक्त िवचारण के पर्ारं भ म मिजस्टर्ेट
के समक्ष हािजर होता है या लाया जाता है तब मिजस्टर्ेट अपना यह समाधान कर लेगा िक उसने धारा 207 के उपबंध का अनुपालन कर
िलया है ।
239. अिभयुक्त को कब उन्मोिचत िकया जाएगा—यिद धारा 173 के अधीन पुिलस िरपोटर् और उसके साथ भेजी गई दस्तावेज
पर िवचार कर लेने पर और अिभयुक्त की ऐसी परीक्षा, यिद कोई हो, जैसी मिजस्टर्ेट आवश्यक समझे, कर लेने पर और अिभयोजन और
अिभयुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् मिजस्टर्ेट अिभयुक्त के िवरु आरोप को िनराधार समझता है तो वह उसे उन्मोिचत कर
देगा और ऐसा करने के अपने कारण लेखब करे गा ।
240. आरोप िवरिचत करना—(1) यिद ऐसे िवचार, परीक्षा, यिद कोई हो, और सुनवाई कर लेने पर मिजस्टर्ेट की यह राय है िक
ऐसी उपधारणा करने का आधार है िक अिभयुक्त ने इस अध्याय के अधीन िवचारणीय ऐसा अपराध िकया है िजसका िवचारण करने के
िलए, वह मिजस्टर्ेट सक्षम है और जो उसकी राय म उसके ारा पयार्प्त रूप से दंिडत िकया जा सकता है तो वह अिभयुक्त के िवरु
आरोप िलिखत रूप म िवरिचत करे गा ।
(2) तब वह आरोप अिभयुक्त को पढ़ कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे यह पूछा जाएगा िक क्या वह उस अपराध का,
िजसका आरोप लगाया गया है दोषी होने का अिभवाक् करता है या िवचारण िकए जाने का दावा करता है ।
241. दोषी होने के अिभवाक् पर दोषिसि —यिद अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन करता है तो मिजस्टर्ेट उस अिभवाक् को
लेखब करे गा और उसके आधार पर उसे, स्विववेकानुसार, दोषिस कर सके गा ।
242. अिभयोजन के िलए सा य—(1) यिद अिभयुक्त अिभवचन करने से इनकार करता है या अिभवचन नह करता है या
िवचारण िकए जाने का दावा करता है या मिजस्टर्ेट अिभयुक्त को धारा 241 के अधीन दोषिस नह करता है तो वह मिजस्टर्ेट सािक्षय
की परीक्षा के िलए तारीख िनयत करे गा ।
[परं तु मिजस्टर्ेट अिभयुक्त को पुिलस
1
ारा अन्वेषण के दौरान अिभिलिखत िकए गए सािक्षय के कथन अिगर्म रूप से
पर्दाय करे गा ।]
(2) मिजस्टर्ेट अिभयोजन के आवेदन पर उसके सािक्षय म से िकसी को हािजर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का
िनदेश देने वाला समन जारी कर सकता है ।
(3) ऐसी िनयत तारीख पर मिजस्टर्ेट ऐसा सब सा य लेने के िलए अगर्सर होगा जो अिभयोजन के समथर्न म पेश िकया जाता है :
परन्तु मिजस्टर्ेट िकसी साक्षी की पर्ितपरीक्षा तब तक के िलए, जब तक िकसी अन्य साक्षी या सािक्षय की परीक्षा नह कर ली जाती
है, आस्थिगत करने की अनुज्ञा दे सके गा या िकसी साक्षी को अितिरक्त पर्ितपरीक्षा के िलए पुन: बुला सके गा ।
243. पर्ितरक्षा का सा य—(1) तब अिभयुक्त से अपेक्षा की जाएगी िक वह अपनी पर्ितरक्षा आरं भ करे और अपना सा य पेश कर ;
और यिद अिभयुक्त कोई िलिखत कथन देता है तो मिजस्टर्ेट उसे अिभलेख म फाइल करे गा ।
(2) यिद अिभयुक्त अपनी पर्ितरक्षा आरं भ करने के पश्चात् मिजस्टर्ेट से आवेदन करता है िक वह परीक्षा या पर्ितपरीक्षा के , या कोई
दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के पर्योजन से हािजर होने के िलए िकसी साक्षी को िववश करने के िलए कोई आदेिशका जारी करे तो,
मिजस्टर्ेट ऐसी आदेिशका जारी करे गा जब तक उसका यह िवचार न हो िक ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर िदया जाना चािहए
िक वह तंग करने के या िवलंब करने के या न्याय के उ ेश्य को िवफल करने के पर्योजन से िकया गया है, और ऐसा कारण उसके ारा
लेखब िकया जाएगा :

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 19 ारा अंत:स्थािपत ।
74

परन्तु जब अपनी पर्ितरक्षा आरं भ करने के पूवर् अिभयुक्त ने िकसी साक्षी की पर्ितपरीक्षा कर ली है या उसे पर्ितपरीक्षा करने का
अवसर िमल चुका है तब ऐसे साक्षी को हािजर होने के िलए इस धारा के अधीन तब तक िववश नह िकया जाएगा जब तक मिजस्टर्ेट का
यह समाधान नह हो जाता है िक ऐसा करना न्याय के पर्योजन के िलए आवश्यक है ।
(3) मिजस्टर्ेट उपधारा (2) के अधीन िकसी आवेदन पर िकसी साक्षी को समन करने के पूवर् यह अपेक्षा कर सकता है िक िवचारण के
पर्योजन के िलए हािजर होने म उस साक्षी ारा िकए जाने वाले उिचत य न्यायालय म जमा कर िदए जाएं ।
ख—पुिलस िरपोटर् से िभन्न आधार पर संिस्थत मामले
244. अिभयोजन का सा य—(1) जब पुिलस िरपोटर् से िभन्न आधार पर संिस्थत िकसी वारण्ट-मामले म मिजस्टर्ेट के समक्ष
अिभयुक्त हािजर होता है या लाया जाता है तब मिजस्टर्ेट अिभयोजन को सुनने के िलए और ऐसा सब सा य लेने के िलए अगर्सर होगा
जो अिभयोजन के समथर्न म पेश िकया जाए ।
(2) मिजस्टर्ेट, अिभयोजन के आवेदन पर, उसके सािक्षय म से िकसी को हािजर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का
िनदेश देने वाला समन जारी कर सकता है ।
245. अिभयुक्त को कब उन्मोिचत िकया जाएगा—(1) यिद धारा 244 म िनिदष्ट सब सा य लेने पर मिजस्टर्ेट का, उन कारण से,
जो लेखब िकए जाएंगे, यह िवचार है िक अिभयुक्त के िवरु ऐसा कोई मामला िस नह हुआ है जो अखंिडत रहने पर उसकी
दोषिसि के िलए समुिचत आधार हो तो मिजस्टर्ेट उसको उन्मोिचत कर देगा ।
(2) इस धारा की कोई बात मिजस्टर्ेट को मामले के िकसी पूवर्तन पर्कर्म म अिभयुक्त को उस दशा म उन्मोिचत करने से िनवािरत
करने वाली न समझी जाएगी िजसम ऐसा मिजस्टर्ेट ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंग,े यह िवचार करता है िक आरोप
िनराधार है ।
246. पर्िकर्या, जहां अिभयुक्त उन्मोिचत नह िकया जाता—(1) यिद ऐसा सा य ले िलए जाने पर या मामले के िकसी पूवर्तन
पर्कर्म म मिजस्टर्ेट की यह राय है िक ऐसी उपधारणा करने का आधार है िक अिभयुक्त ने इस अध्याय के अधीन िवचारणीय ऐसा अपराध
िकया है िजसका िवचारण करने के िलए वह मिजस्टर्ेट सक्षम है और जो उसकी राय म उसके ारा पयार्प्त रूप से दंिडत िकया जा सकता है
तो वह अिभयुक्त के िवरु आरोप िलिखत रूप म िवरिचत करे गा ।
(2) तब वह आरोप अिभयुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे पूछा जाएगा िक क्या वह दोषी होने का
अिभवाक् करता है अथवा पर्ितरक्षा करना चाहता है ।
(3) यिद अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन करता है तो मिजस्टर्ेट उस अिभवाक् को लेखब करे गा और उसके आधार पर उसे,
स्विववेकानुसार, दोषिस कर सके गा ।
(4) यिद अिभयुक्त अिभवचन करने से इन्कार करता है या अिभवचन नह करता है या िवचारण िकए जाने का दावा करता है या
यिद अिभयुक्त को उपधारा (3) के अधीन दोषिस नह िकया जाता है तो उससे अपेक्षा की जाएगी िक वह मामले की अगली सुनवाई के
पर्ारं भ म, या, यिद मिजस्टर्ेट उन कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, ऐसा ठीक समझता है तो, तत्काल बताए िक क्या वह अिभयोजन के
उन सािक्षय म से, िजनका सा य िलया जा चुका है, िकसी की पर्ितपरीक्षा करना चाहता है और, यिद करना चाहता है तो िकस की ।
(5) यिद वह कहता है िक वह ऐसा चाहता है तो उसके ारा नािमत सािक्षय को पुन: बुलाया जाएगा और पर्ितपरीक्षा के और
पुन:परीक्षा (यिद कोई हो) के पश्चात् वे उन्मोिचत कर िदए जाएंगे ।
(6) िफर अिभयोजन के िकन्ह शेष सािक्षय का सा य िलया जाएगा और पर्ितपरीक्षा के और पुन:परीक्षा (यिद कोई हो) के पश्चात्
वे भी उन्मोिचत कर िदए जाएंगे ।
247. पर्ितरक्षा का सा य—तब अिभयुक्त से अपेक्षा की जाएगी िक वह अपनी पर्ितरक्षा आरं भ करे और अपना सा य पेश करे और
मामले को धारा 243 के उपबंध लागू ह गे ।
ग—िवचारण की समािप्त
248. दोषमुिक्त या दोषिसि —(1) यिद इस अध्याय के अधीन िकसी मामले म, िजसम आरोप िवरिचत िकया गया है, मिजस्टर्ेट
इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त दोषी नह है तो वह दोषमुिक्त का आदेश अिभिलिखत करे गा ।
(2) जहां इस अध्याय के अधीन िकसी मामले म मिजस्टर्ेट इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त दोषी है िकन्तु वह धारा 325 या
धारा 360 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही नह करता है वहां वह दंड के पर्श्न पर अिभयुक्त को सुनने के पश्चात् िविध के अनुसार उसके
बारे म दंडादेश दे सकता है ।
(3) जहां इस अध्याय के अधीन िकसी मामले म धारा 211 की उपधारा (7) के उपबंध के अधीन पूवर् दोषिसि का आरोप लगाया
गया है और अिभयुक्त यह स्वीकार नह करता है िक आरोप म िकए गए अिभकथन के अनुसार उसे पहले दोषिस िकया गया था वहां
मिजस्टर्ेट उक्त अिभयुक्त को दोषिस करने के पश्चात् अिभकिथत पूवर् दोषिसि के बारे म सा य ले सके गा और उस पर िनष्कषर्
अिभिलिखत करे गा :
75

परन्तु जब तक अिभयुक्त उपधारा (2) के अधीन दोषिस नह कर िदया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप मिजस्टर्ेट ारा
पढ़कर सुनाया जाएगा, न अिभयुक्त से उस पर अिभवचन करने को कहा जाएगा, और न पूवर् दोषिसि का िनदश अिभयोजन ारा, या
उसके ारा िदए गए िकसी सा य म, िकया जाएगा ।
249. पिरवादी की अनुपिस्थित—जब कायर्वाही पिरवाद पर संिस्थत की जाती है और मामले की सुनवाई के िलए िनयत िकसी
िदन पिरवादी अनुपिस्थत है और अपराध का िविधपूवर्क शमन िकया जा सकता है या वह संज्ञेय अपराध नह है तब मिजस्टर्ेट, इसम
इसके पूवर् िकसी बात के होते हुए भी, आरोप के िवरिचत िकए जाने के पूवर् िकसी भी समय अिभयुक्त को, स्विववेकानुसार, उन्मोिचत
कर सके गा ।
250. उिचत कारण के िबना अिभयोग के िलए पर्ितकर—(1) यिद पिरवाद पर या पुिलस अिधकारी या मिजस्टर्ेट को दी गई
इि ला पर संिस्थत िकसी मामले म मिजस्टर्ेट के समक्ष एक या अिधक िक्तय पर मिजस्टर्ेट ारा िवचारणीय िकसी अपराध का
अिभयोग है और वह मिजस्टर्ेट िजसके ारा मामले की सुनवाई होती है, तब अिभयुक्त को या उनम से िकसी को उन्मोिचत या दोषमुक्त
कर देता है और उसकी यह राय है िक उनके या उनम से िकसी के िवरु अिभयोग लगाने का कोई उिचत कारण नह था तो वह मिजस्टर्ेट
उन्मोचन या दोषमुिक्त के अपने आदेश ारा, यिद वह िक्त िजसके पिरवाद या इि ला पर अिभयोग लगाया गया था उपिस्थत है तो
उससे अपेक्षा कर सके गा िक वह तत्काल कारण दिशत करे िक वह उस अिभयुक्त को, या जब ऐसे अिभयुक्त एक से अिधक ह तो उनम से
पर्त्येक को या िकसी को पर्ितकर क्य न दे अथवा यिद ऐसा िक्त उपिस्थत नह है तो हािजर होने और उपयुर्क्त रूप से कारण दिशत
करने के िलए उसके नाम समन जारी िकए जाने का िनदेश दे सके गा ।
(2) मिजस्टर्ेट ऐसा कोई कारण, जो ऐसा पिरवादी या इि ला देने वाला दिशत करता है, अिभिलिखत करे गा और उस पर िवचार
करे गा और यिद उसका समाधान हो जाता है िक अिभयोग लगाने का कोई उिचत कारण नह था तो िजतनी रकम का जुमार्ना करने के
िलए वह सशक्त है, उससे अनिधक इतनी रकम का, िजतनी वह अवधािरत करे , पर्ितकर ऐसे पिरवादी या इि ला देने वाले ारा
अिभयुक्त को या उनम से पर्त्येक को या िकसी को िदए जाने का आदेश, ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंग,े दे सके गा ।
(3) मिजस्टर्ेट उपधारा (2) के अधीन पर्ितकर िदए जाने का िनदेश देने वाले आदेश ारा यह अितिरक्त आदेश दे सके गा िक वह
िक्त, जो ऐसा पर्ितकर देने के िलए आिदष्ट िकया गया है, संदाय म ितकर्म होने पर तीस िदन से अनिधक की अविध के िलए सादा
कारावास भोगेगा ।
(4) जब िकसी िक्त को उपधारा (3) के अधीन कारावास िदया जाता है, तब भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 68
और 69 के उपबंध, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
(5) इस धारा के अधीन पर्ितकर देने के िलए िजस िक्त को आदेश िदया जाता है, ऐसे आदेश के कारण उसे अपने ारा िकए गए
िकसी पिरवाद या दी गई िकसी इि ला के बारे म िकसी िसिवल या दांिडक दाियत्व से छू ट नह दी जाएगी :
परन्तु अिभयुक्त िक्त को इस धारा के अधीन दी गई कोई रकम उसी मामले से संबिं धत िकसी पश्चात्वत िसिवल वाद म उस
िक्त के िलए पर्ितकर अिधिनण त करते समय िहसाब म ली जाएगी ।
(6) कोई पिरवादी या इि ला देने वाला, जो ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा उपधारा (2) के अधीन एक सौ रुपए से अिधक पर्ितकर देने
के िलए आिदष्ट िकया गया है, उस आदेश की अपील ऐसे कर सके गा मानो वह पिरवादी या इि ला देने वाला ऐसे मिजस्टर्ेट ारा िकए
गए िवचारण म दोषिस िकया गया है ।
(7) जब िकसी अिभयुक्त िक्त को ऐसे मामले म, जो उपधारा (6) के अधीन अपीलनीय है, पर्ितकर िदए जाने का आदेश िकया
जाता है तब उसे ऐसा पर्ितकर, अपील पेश करने के िलए अनुज्ञात अविध के बीत जाने के पूवर् या यिद अपील पेश कर दी गई है तो अपील
के िविनिश्चत कर िदए जाने के पूवर् न िदया जाएगा और जहां ऐसा आदेश ऐसे मामले म हुआ है, जो ऐसे अपीलनीय नह है, वहां ऐसा
पर्ितकर आदेश की तारीख से एक मास की समािप्त के पूवर् नह िदया जाएगा ।
(8) इस धारा के उपबंध समन-मामल तथा वारण्ट-मामल दोन को लागू ह गे ।
अध्याय 20

मिजस्टर्ेट ारा समन-मामल का िवचारण


251. अिभयोग का सारांश बताया जाना—जब समन-मामले म अिभयुक्त मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होता है या लाया जाता है, तब
उसे उस अपराध की िविशिष्टयां बताई जाएंगी िजसका उस पर अिभयोग है, और उससे पूछा जाएगा िक क्या वह दोषी होने का अिभवाक्
करता है अथवा पर्ितरक्षा करना चाहता है ; िकन्तु यथा रीित आरोप िवरिचत करना आवश्यक न होगा ।
252. दोषी होने के अिभवाक् पर दोषिसि —यिद अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन करता है तो मिजस्टर्ेट अिभयुक्त का
अिभवाक् यथासंभव उन्ह शब्द म लेखब करे गा िजनका अिभयुक्त ने पर्योग िकया है और उसके आधार पर उसे, स्विववेकानुसार,
दोषिस कर सके गा ।
253. छोटे मामल म अिभयुक्त की अनुपिस्थित म दोषी होने के अिभवाक् पर दोषिसि —(1) जहां धारा 206 के अधीन समन
जारी िकया जाता है और अिभयुक्त मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर हुए िबना आरोप का दोषी होने का अिभवचन करना चाहता है, वहां वह
76

अपना अिभवाक् अन्तिवष्ट करने वाला एक पतर् और समन म िविनिदष्ट जुमार्ने की रकम डाक या संदश
े वाहक ारा मिजस्टर्ेट को भेजेगा ।
(2) तब मिजस्टर्ेट, स्विववेकानुसार, अिभयुक्त को उसके दोषी होने के अिभवाक् के आधार पर उसकी अनुपिस्थित म दोषिस
करे गा और समन म िविनिदष्ट जुमार्ना देने के िलए दण्डादेश देगा और अिभयुक्त ारा भेजी गई रकम उस जुमार्ने म समायोिजत की
जाएगी या जहां अिभयुक्त ारा इस िनिम पर्ािधकृ त प्लीडर अिभयुक्त की ओर से उसके दोषी होने का अिभवचन करता है वहां
मिजस्टर्ेट यथासंभव प्लीडर ारा पर्युक्त िकए गए शब्द म अिभवाक् को लेखब करे गा और स्विववेकानुसार उस अिभयुक्त को ऐसे
अिभवाक् पर दोषिस कर सके गा और उसे यथापूव क्त दण्डादेश दे सके गा ।
254. पर्िकर्या जब दोषिस न िकया जाए—(1) यिद मिजस्टर्ेट अिभयुक्त को धारा 252 या धारा 253 के अधीन दोषिस नह
करता है तो वह अिभयोजन को सुनने के िलए और सब ऐसा सा य, जो अिभयोजन के समथर्न म पेश िकया जाए, लेने के िलए और
अिभयुक्त को भी सुनने के िलए और सब ऐसा सा य, जो वह अपनी पर्ितरक्षा म पेश करे , लेने के िलए, अगर्सर होगा ।
(2) यिद मिजस्टर्ेट अिभयोजन या अिभयुक्त के आवेदन पर ठीक समझता है, तो वह िकसी साक्षी को हािजर होने या कोई दस्तावेज
या अन्य चीज पेश करने का िनदेश देने वाला समन जारी कर सकता है ।
(3) मिजस्टर्ेट ऐसे आवेदन पर िकसी साक्षी को समन करने के पूवर् यह अपेक्षा कर सकता है िक िवचारण के पर्योजन के िलए हािजर
होने म िकए जाने वाले उसके उिचत य न्यायालय म जमा कर िदए जाएं ।
255. दोषमुिक्त या दोषिसि —(1) यिद मिजस्टर्ेट धारा 254 म िनिदष्ट सा य और ऐसा अितिरक्त सा य, यिद कोई हो, जो वह
स्वपर्ेरणा से पेश करवाए, लेने पर इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त दोषी नह है तो वह दोषमुिक्त का आदेश
अिभिलिखत करे गा ।
(2) जहां मिजस्टर्ेट धारा 325 या धारा 360 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही नह करता है वहां यिद वह इस िनष्कषर् पर पहुंचता है
िक अिभयुक्त दोषी है तो वह िविध के अनुसार उसके बारे म दंडादेश दे सके गा ।
(3) कोई मिजस्टर्ेट, धारा 252 या धारा 255 के अधीन, िकसी अिभयुक्त को, चाहे पिरवाद या समन िकसी भी पर्कार का रहा हो,
इस अध्याय के अधीन िवचारणीय िकसी भी ऐसे अपराध के िलए जो स्वीकृ त या सािबत तथ्य से उसके ारा िकया गया पर्तीत होता है,
दोषिस कर सकता है यिद मिजस्टर्ेट का समाधान हो जाता है िक उससे अिभयुक्त पर कोई पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
256. पिरवादी का हािजर न होना या उसकी मृत्यु—(1) यिद पिरवाद पर समन जारी कर िदया गया हो और अिभयुक्त की
हािजरी के िलए िनयत िदन, या उसके पश्चात्वत िकसी िदन, िजसके िलए सुनवाई स्थिगत की जाती है, पिरवादी हािजर नह होता है
तो, मिजस्टर्ेट इसम इसके पूवर् िकसी बात के होते हुए भी, अिभयुक्त को दोषमुक्त कर देगा जब तक िक वह िकन्ह कारण से िकसी अन्य
िदन के िलए मामले की सुनवाई स्थिगत करना ठीक न समझे :
परन्तु जहां पिरवादी का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा या अिभयोजन का संचालन करने वाले अिधकारी ारा िकया जाता है या जहां
मिजस्टर्ेट की यह राय है िक पिरवादी की वैयिक्तक हािजरी आवश्यक नह है वहां मिजस्टर्ेट उसकी हािजरी से उसे अिभमुिक्त दे सकता है
और मामले म कायर्वाही कर सकता है ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध, जहां तक हो सके , उन मामल को भी लागू ह गे, जहां पिरवादी के हािजर न होने का कारण उसकी
मृत्यु है ।
257. पिरवाद को वापस लेना—यिद पिरवादी िकसी मामले म इस अध्याय के अधीन अंितम आदेश पािरत िकए जाने के पूवर् िकसी
समय मिजस्टर्ेट का समाधान कर देता है िक अिभयुक्त के िवरु , या जहां एक से अिधक अिभयुक्त ह वहां उन सब या उनम से िकसी के
िवरु उसका पिरवाद वापस लेने की उसे अनुज्ञा देने के िलए पयार्प्त आधार है तो मिजस्टर्ेट उसे पिरवाद वापस लेने की अनुज्ञा दे सके गा
और तब उस अिभयुक्त को, िजसके िवरु पिरवाद इस पर्कार वापस िलया जाता है, दोषमुक्त कर देगा ।
258. कु छ मामल म कायर्वाही रोक देने की शिक्त—पिरवाद से िभन्न आधार पर संिस्थत िकसी समन-मामले म कोई पर्थम वगर्
मिजस्टर्ेट, अथवा मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट की पूवर् मंजूरी से कोई अन्य न्याियक मिजस्टर्ेट ऐसे कारण से, जो उसके ारा लेखब िकए
जाएंग,े कायर्वाही को िकसी भी पर्कर्म म कोई िनणर्य सुनाए िबना रोक सकता है और जहां मुख्य सािक्षय के सा य को अिभिलिखत िकए
जाने के पश्चात् इस पर्कार कायर्वािहयां रोकी जाती ह वहां दोषमुिक्त का िनणर्य सुना सकता है और िकसी अन्य दशा म अिभयुक्त को
छोड़ सकता है और ऐसे छोड़ने का पर्भाव उन्मोचन होगा ।
259. समन-मामल को वारण्ट-मामल म संपिरवितत करने की न्यायालय की शिक्त—जब िकसी ऐसे अपराध से संबंिधत समन-
मामले के िवचारण के दौरान जो छह मास से अिधक अविध के कारावास से दंडनीय है, मिजस्टर्ेट को यह पर्तीत होता है िक न्याय के िहत
म उस अपराध का िवचारण वारण्ट-मामल के िवचारण की पर्िकर्या के अनुसार िकया जाना चािहए तो ऐसा मिजस्टर्ेट वारण्ट-मामल के
िवचारण के िलए इस संिहता ारा उपबंिधत रीित से उस मामले की पुन: सुनवाई कर सकता है और ऐसे सािक्षय को पुन: बुला सकता है
िजनकी परीक्षा की जा चुकी है ।
77

अध्याय 21

संिक्षप्त िवचारण
260. संिक्षप्त िवचारण करने की शिक्त—(1) इस संिहता म िकसी बात के होते हुए भी यिद,—
(क) कोई मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ;
(ख) कोई महानगर मिजस्टर्ेट ;
(ग) कोई पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट जो उच्च न्यायालय ारा इस िनिम िवशेषतया सशक्त िकया गया है,
ठीक समझता है तो वह िनम्निलिखत सब अपराध का या उनम से िकसी का संक्षेपत: िवचारण कर सकता है,—
(i) वे अपराध जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वषर् से अिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय नह है ;
(ii) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 379, धारा 380 या धारा 381 के अधीन चोरी, जहां चुराई हुई संपि का
मूल्य 1 [दो हजार रुपए] से अिधक नह है ;
(iii) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 411 के अधीन चोरी की संपि को पर्ाप्त करना या रखे रखा, जहां ऐसी
संपि का मूल्य 1[दो हजार रुपए] से अिधक नह है ;
(iv) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 414 के अधीन चुराई हुई संपि को िछपाने का उसका यन करने म
सहायता करना, जहां ऐसी संपि का मूल्य 1[दो हजार रुपए] से अिधक नह है ;
(v) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 454 और 456 के अधीन अपराध ;
(vi) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 504 के अधीन लोकशांित भंग कराने को पर्कोिपत करने के आशय से
अपमान और धारा 506 के अधीन 2 [आपरािधक अिभतर्ास, जो ऐसे कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से
या दोन से दंडनीय होगा ।]
(vii) पूवर्वत अपराध म से िकसी का दुपर्ेरण ;
(viii) पूवर्वत अपराध म से िकसी को करने का पर्यत्न, जब ऐसा पर्यत्न, अपराध है ;
(ix) ऐसे कायर् से होने वाला कोई अपराध, िजसकी बाबत पशु अितचार अिधिनयम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के
अधीन पिरवाद िकया जा सकता है ।
(2) जब संिक्षप्त िवचारण के दौरान मिजस्टर्ेट को पर्तीत होता है िक मामला इस पर्कार का है िक उसका िवचारण संक्षेपत: िकया
जाना अवांछनीय है तो वह मिजस्टर्ेट िकन्ह सािक्षय को, िजनकी परीक्षा की जा चुकी है, पुन: बुलाएगा और मामले को इस संिहता ारा
उपबंिधत रीित से पुन: सुनने के िलए अगर्सर होगा ।
261. ि तीय वगर् के मिजस्टर्ेट ारा संिक्षप्त िवचारण—उच्च न्यायालय िकसी ऐसे मिजस्टर्ेट को, िजसम ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट की
शिक्तयां िनिहत ह, िकसी ऐसे अपराध का, जो के वल जुमार्ने से या जुमार्ने सिहत या रिहत छह मास से अनिधक के कारावास से दंडनीय है
और ऐसे िकसी अपराध के दुपर्ेरण या ऐसे िकसी अपराध को करने के पर्यत्न का संक्षेपत: िवचारण करने की शिक्त पर्दान कर सकता है ।
262. संिक्षप्त िवचारण की पर्िकर्या—(1) इस अध्याय के अधीन िवचारण म इसके पश्चात् इसम जैसा विणत है उसके िसवाय, इस
संिहता म समन-मामल के िवचारण के िलए िविनिदष्ट पर्िकर्या का अनुसरण िकया जाएगा ।
(2) तीन मास से अिधक की अविध के िलए कारावास का कोई दंडादेश इस अध्याय के अधीन िकसी दोषिसि के मामले म न
िदया जाएगा ।
263. संिक्षप्त िवचारण म अिभलेख—संक्षेपत: िवचािरत पर्त्येक मामले म मिजस्टर्ेट ऐसे पर्रूप म, जैसा राज्य सरकार िनिदष्ट
करे , िनम्निलिखत िविशिष्टयां पर्िवष्ट करे गा, अथार्त् :—
(क) मामले का कर्म संख्यांक ;
(ख) अपराध िकए जाने की तारीख ;
(ग) िरपोटर् या पिरवाद की तारीख ;
(घ) पिरवादी का (यिद कोई हो) नाम ;
(ङ) अिभयुक्त का नाम, उसके माता-िपता का नाम और उसका िनवास ;

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 23 ारा “दो सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 23 ारा “आपरािधक अिभतर्ास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
78

(च) वह अपराध िजसका पिरवाद िकया गया है और वह अपराध जो सािबत हुआ है (यिद कोई हो), और धारा 260 की
उपधारा (1) के खंड (ii), खंड (iii) या (iv) के अधीन आने वाले मामल म उस संपि का मूल्य िजसके बारे म अपराध िकया
गया है ;
(छ) अिभयुक्त का अिभवाक् और उसकी परीक्षा (यिद कोई हो) ;
(ज) िनष्कषर् ;
(झ) दंडादेश या अन्य अिन्तम आदेश ;
(ञ) कायर्वाही समाप्त होने की तारीख ।
264. संक्षप
े त: िवचािरत मामल म िनणर्य—संक्षेपत: िवचािरत पर्त्येक ऐसे मामले म, िजसम अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन
नह करता है, मिजस्टर्ेट सा य का सारांश और िनष्कषर् के कारण का संिक्षप्त कथन देते हुए िनणर्य अिभिलिखत करे गा ।
265. अिभलेख और िनणर्य की भाषा—(1) ऐसा पर्त्येक अिभलेख और िनणर्य न्यायालय की भाषा म िलखा जाएगा ।
(2) उच्च न्यायालय संक्षेपत: िवचारण करने के िलए सशक्त िकए गए िकसी मिजस्टर्ेट को पर्ािधकृ त कर सकता है िक वह पूव क्त
अिभलेख या िनणर्य या दोन उस अिधकारी से तैयार कराए जो मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा इस िनिम िनयुक्त िकया गया है और इस
पर्कार तैयार िकया गया अिभलेख या िनणर्य ऐसे मिजस्टर्ेट ारा हस्ताक्षिरत िकया जाएगा ।
1
[अध्याय 21क

सौदा अिभवाक्
265क. अध्याय का लागू होना—(1) यह अध्याय ऐसे अिभयुक्त के संबंध म लागू होगा िजसके िवरु —
(क) पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी ारा धारा 173 के अधीन यह अिभकिथत करते हुए िरपोटर् अगर्ेिषत की गई है
िक उसके ारा ऐसे अपराध से िभन्न कोई अपराध िकया गया पर्तीत होता है, िजसके िलए तत्समय पर्वृ िविध के अधीन मृत्यु या
आजीवन या सात वषर् से अिधक की अविध के कारावास के दंड का उपबंध है ; या
(ख) मिजस्टर्ेट ने पिरवाद पर उस अपराध का, संज्ञान ले िलया है जो उस अपराध से िभन्न है, िजसके िलए तत्समय
पर्वृ िविध के अधीन मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वषर् से अिधक की अविध के कारावास के दंड का उपबंध है और धारा
200 के अधीन पिरवादी और साक्षी की परीक्षा करने के पश्चात् धारा 204 के अधीन आदेिशका जारी की है,
िकतु यह अध्याय वहां लागू नह होगा जहां ऐसा अपराध देश की सामािजक-आिथक दशा को पर्भािवत करता है या िकसी मिहला अथवा
चौदह वषर् की आयु से कम के बालक के िवरु िकया गया है ।
(2) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए, के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा तत्समय पर्वृ िविध के अधीन वे अपराध अवधािरत
करे गी जो देश की सामािजक-आिथक दशा को पर्भािवत करते ह ।
265ख. सौदा अिभवाक् के िलए आवेदन—(1) िकसी अपराध का अिभयुक्त िक्त, सौदा अिभवाक् के िलए उस न्यायालय म
आवेदन फाइल कर सके गा िजसम ऐसे अपराध का िवचारण लंिबत है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन आवेदन म उस मामले का संिक्षप्त वणर्न होगा िजसके संबंध म आवेदन फाइल िकया गया है, और उसम
उस अपराध का वणर्न भी होगा िजससे वह मामला संबंिधत है तथा उसके साथ अिभयुक्त का शपथ पतर् होगा िजसम यह किथत होगा िक
उसने िविध के अधीन उस अपराध के िलए उपबंिधत दंड की पर्कृ ित और सीमा को समझने के पश्चात् अपने मामले म स्वेच्छा से सौदा
अिभवाक् दािखल िकया है और यह िक उसे िकसी न्यायालय ने इससे पूवर् िकसी ऐसे मामले म, िजसम उसे उसी अपराध से आरोिपत
िकया गया था, यह िक िस दोष नह ठहराया गया है ।
(3) न्यायालय उपधारा (1) के अधीन आवेदन पर्ाप्त होने के पश्चात्, यथािस्थित, लोक अिभयोजक या पिरवादी को और साथ ही
अिभयुक्त को मामले म िनयत तारीख को हािजर होने के िलए सूचना जारी करे गा ।
(4) जहां उपधारा (3) के अधीन िनयत तारीख को, यथािस्थित, लोक अिभयोजक या मामले का पिरवादी और अिभयुक्त हािजर
होते ह, वहां न्यायालय अपना समाधान करने के िलए िक अिभयुक्त ने आवेदन स्वेच्छा से दािखल िकया है, अिभयुक्त की बंद कमरे म
परीक्षा करे गा, जहां मामले का दूसरा पक्षकार उपिस्थत नह होगा और जहां—
(क) न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक वह आवेदन अिभयुक्त ारा स्वेच्छा से फाइल िकया गया है, वहां वह,
यथािस्थित, लोक अिभयोजक या पिरवादी और अिभयुक्त को मामले के पारस्पिरक संतोषपर्द िनपटाने के िलए समय देगा िजसम
अिभयुक्त ारा पीिड़त िक्त को मामले के दौरान पर्ितकर और अन्य खचर् देना सिम्मिलत है और तत्पश्चात् मामले की आगे
सुनवाई के िलए तारीख िनयत करे गा ;

1
.2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
79

(ख) न्यायालय को यह पता चलता है िक आवेदन अिभयुक्त ारा स्वेच्छा से फाइल नह िकया गया है, या उसे िकसी
न्यायालय ारा िकसी मामले म िजसम उस पर उसी अपराध का आरोप था, िस दोष ठहराया गया है तो वह इस संिहता के
उपबंध के अनुसार, उस पर्कर्म से जहां उपधारा (1) के अधीन ऐसा आवेदन फाइल िकया गया है, आगे कायर्वाही करे गा ।
265ग. पारस्पिरक संतोषपर्द िनपटारे के िलए मागर्दश िस ांत—धारा 265ख की उपधारा (4) के खंड (क) के अधीन पारस्पिरक
संतोषपर्द िनपटारे के िलए, न्यायालय िनम्निलिखत पर्िकर्या अपनाएगा, अथार्त् :—
(क) पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत िकसी मामले म, न्यायालय, लोक अिभयोजक, पुिलस अिधकारी, िजसने मामले का अन्वेषण
िकया है, अिभयुक्त और मामले म पीिड़त िक्त को, उस मामले का संतोषपर्द िनपटारा करने के िलए बैठक म भाग लेने के िलए
सूचना जारी करे गा :
परन्तु मामले के संतोषपर्द िनपटारे की ऐसी संपूणर् पर्िकर्या के दौरान न्यायालय का यह कतर् होगा िक वह सुिनिश्चत करे
िक सारी पर्िकर्या बैठक म भाग लेने वाले पक्षकार ारा स्वेच्छा से पूणर् की गई है :
परन्तु यह और िक अिभयुक्त, यिद ऐसी वांछा करे तो, मामले म लगाए गए अपने अिभववक्ता, यिद कोई हो, के साथ इस
बैठक म भाग ले सके गा ;
(ख) पुिलस िरपोटर् से अन्यथा संिस्थत मामले म, न्यायालय, अिभयुक्त और उस मामले म पीिड़त िक्त को मामले के
संतोषपर्द िनपटारे के िलए की जाने वाली बैठक म भाग लेने के िलए सूचना जारी करे गा :
परन्तु न्यायालय का यह कतर् होगा िक वह मामले का संतोषपर्द िनपटारा करने की संपूणर् पर्िकर्या के दौरान यह
सुिनिश्चत करे िक उसे बैठक म भाग लेने वाले पक्षकार ारा स्वेच्छा से पूरा िकया गया है :
परन्तु यह और िक यिद, यथािस्थित, मामले म, पीिड़त िक्त या अिभयुक्त, यिद ऐसी वांछा करे , तो वह उस मामले म
लगाए गए अपने अिभववक्ता के साथ उस बैठक म भाग ले सके गा ।
265घ. पारस्पिरक संतोषपर्द िनपटारे की िरपोटर् का न्यायालय के समक्ष पर्स्तुत िकया जाना—जहां धारा 265ग के अधीन बैठक म
मामले का कोई संतोषपर्द िनपटारा तैयार िकया गया है, वहां न्यायालय ऐसे िनपटारे की िरपोटर् तैयार करे गा िजस पर न्यायालय के
पीठासीन अिधकारी और उन अन्य सभी िक्तय के हस्ताक्षर ह गे िजन्ह ने बैठक म भाग िलया था और यिद ऐसा कोई िनपटारा तैयार
नह िकया जा सका है तो न्यायालय ऐसा संपर्ेक्षण लेखब करे गा और इस संिहता के उपबंध के अनुसार उस पर्कर्म से आगे कायर्वाही
करे गा, जहां से उस मामले म धारा 265ख की उपधारा (1) के अधीन आवेदन फाइल िकया गया है ।
265ङ मामले का िनपटारा—जहां धारा 265घ के अधीन मामले का कोई संतोषपर्द िनपटारा तैयार िकया गया है वहां न्यायालय
मामले का िनपटारा िनम्निलिखत रीित से करे गा, अथार्त् :—
(क) न्यायालय, पीिड़त िक्त को धारा 265घ के अधीन िनपटारे के अनुसार पर्ितकर देगा और दंड की मातर्ा, अिभयुक्त को
सदाचार की पिरवीक्षा पर या धारा 360 के अधीन भत्सर्ना के पश्चात्, छोड़ने अथवा अपराधी पिरवीक्षा अिधिनयम, 1958
(1958 का 20) या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के उपबंध के अधीन अिभयुक्त के संबंध म कारर् वाई करने के िवषय म
पक्षकार की सुनवाई करे गा और अिभयुक्त पर दंड अिधरोिपत करने के िलए पश्चात्वत खंड म िविनिदष्ट पर्िकर्या का
पालन करे गा ;
(ख) खंड (क) के अधीन पक्षकार की सुनवाई के पश्चात् यिद न्यायालय का यह मत हो िक धारा 360 या अपराधी पिरवीक्षा
अिधिनयम, 1958 (1958 का 20) या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के उपबंध अिभयुक्त के मामले म आकिषत होते ह, तो वह,
यथािस्थित, अिभयुक्त को पिरवीक्षा पर छोड़ सके गा या ऐसी िकसी िविध का लाभ दे सके गा ;
(ग) खंड (ख) के अधीन पक्षकार को सुनने के पश्चात्, यिद न्यायालय को यह पता चलता है िक अिभयुक्त ारा िकए गए
अपराध के िलए िविध म न्यूनतम दंड उपबंिधत िकया गया है तो वह अिभयुक्त को ऐसे न्यूनतम दंड के आधे का दंड दे सके गा ;
(घ) खंड (ख) के अधीन पक्षकार को सुनने के पश्चात्, यिद न्यायालय को पता चलता है िक अिभयुक्त ारा िकया गया
अपराध खंड (ख) या खंड (ग) के अन्तगर्त नह आता है तो वह अिभयुक्त को, यथािस्थित, ऐसे अपराध के िलए उपबंिधत या बढ़ाए
जा सकने वाले दंड के एक-चौथाई का दंड दे सके गा ।
265च. न्यायालय का िनणर्य—न्यायालय, अपना िनणर्य, धारा 276ङ के िनबंधन के अनुसार, खुले न्यायालय म देगा और उस पर
न्यायालय के पीठासीन अिधकारी के हस्ताक्षर ह गे ।
265छ. िनणर्य का अंितम होना—न्यायालय ारा धारा 265छ के अधीन िदया गया िनणर्य अंितम होगा और उससे कोई अपील
(संिवधान के अनुच्छेद 136 के अधीन िवशेष इजाजत यािचका और अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 227 के अधीन िरट यािचका के िसवाय)
ऐसे िनणर्य के िवरु िकसी न्यायालय म नह होगी ।
265ज. सौदा अिभवाक् म न्यायालय की शिक्त—न्यायालय के पास, इस अध्याय के अधीन अपने कृ त्य का िनवर्हन करने के
पर्योजन के िलए जमानत, अपराध के िवचारण और इस संिहता के अधीन ऐसे न्यायालय म िकसी मामले के िनपटारे से संबंिधत अन्य
िवषय के बारे म िविहत सभी शिक्तयां ह गी ।
80

265झ. अिभयुक्त ारा भोगी गई िनरोध की अविध का कारावास के दंडादेश के िवरु मुजरा िकया जाना—इस अध्याय के
अधीन अिधरोिपत कारावास के दंडादेश के िवरु अिभयुक्त ारा भोगी गई िनरोध की अविध का मुजरा िकए जाने के िलए धारा 428 के
उपबंध उसी रीित से लागू ह गे जैसे िक वह इस संिहता के िकन्ह अन्य उपबंध के अधीन कारावास के संबंध म लागू होते ह ।
265ञ. ावृि —इस अध्याय के उपबंध इस संिहता के िकन्ह अन्य उपबंध म अन्तिवष्ट उनसे असंगत िकसी बात के होते हुए भी
पर्भावी ह गे और ऐसे अन्य उपबंध म िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह इस अध्याय के िकसी उपबंध के अथर् को
सीिमत करती है ।
स्पष्टीकरण—इस अध्याय के पर्योजन के िलए, “लोक अिभयोजक” पद का वही अथर् होगा जो धारा 2 के खंड (प) के अधीन
उसका है और इसम धारा 25 के अधीन िनयुक्त सहायक लोक अिभयोजक सिम्मिलत है ।
265ट. अिभयुक्त के कथन का उपयोग न िकया जाना—तत्समय पर्वृ िकसी िविध म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, िकसी
अिभयुक्त ारा धारा 265ख के अधीन फाइल िकए गए सौदा अिभवाक् के िलए आवेदन म किथत कथन या तथ्य का, इस अध्याय के
पर्योजन के िसवाय िकसी अन्य पर्योजन के िलए उपयोग नह िकया जाएगा ।
265ठ. अध्याय का लागू न होना—इस अध्याय की कोई बात, िकशोर न्याय (बालक की देखरे ख और संरक्षण) अिधिनयम, 2000
(2000 का 56) की धारा 2 के उपखंड (ट) म यथापिरभािषत िकसी िकशोर या बालक को लागू नह होगी ।]
अध्याय 22

कारागार म पिररु या िनरु िक्तय की हािजरी


266. पिरभाषाएं—इस अध्याय म,—
(क) “िनरु ” के अन्तगर्त िनवारक िनरोध के िलए उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िनरु भी है ;
(ख) “कारागार” के अन्तगर्त िनम्निलिखत भी ह, —
(i) कोई ऐसा स्थान िजसे राज्य सरकार ने, साधारण या िवशेष आदेश ारा अितिरक्त जेल घोिषत िकया है ;
(ii) कोई सुधारालय, बोस्टर्ल-संस्था या इसी पर्कार की अन्य संस्था ।
267. बिन्दय को हािजर कराने की अपेक्षा करने की शिक्त—(1) जब कभी इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य
कायर्वाही के दौरान िकसी दंड न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक,—
(क) कारागार म पिररु या िनरु िक्त को िकसी अपराध के आरोप का उ र देने के िलए या उसके िवरु िकन्ह
कायर्वािहय के पर्योजन के िलए न्यायालय के समक्ष लाया जाना चािहए, अथवा
(ख) न्याय के उ ेश्य के िलए यह आवश्यक है िक ऐसे िक्त की साक्षी के रूप म परीक्षा की जाए,
तब वह न्यायालय, कारागार के भारसाधक अिधकारी से यह अपेक्षा करने वाला आदेश दे सकता है िक वह ऐसे िक्त को, यथािस्थित,
आरोप का उ र देने के िलए या ऐसी कायर्वािहय के पर्योजन के िलए या सा य देने के िलए न्यायालय के समक्ष पेश करे ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा िदया जाता है, वहां वह कारागार के भारसाधक अिधकारी
को तब तक भेजा नह जाएगा या उसके ारा उस पर तब तक कोई कायर्वाही नह की जाएगी जब तक वह ऐसे मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट
ारा पर्ितहस्ताक्षिरत न हो, िजसके अधीनस्थ वह मिजस्टर्ेट है ।
(3) उपधारा (2) के अधीन पर्ितहस्ताक्षिरत के िलए पेश िकए गए पर्त्येक आदेश के साथ ऐसे तथ्य का, िजनसे मिजस्टर्ेट की राय म
आदेश आवश्यक हो गया है, एक िववरण होगा और वह मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, िजसके समक्ष वह पेश िकया गया है उस िववरण पर
िवचार करने के पश्चात् आदेश पर पर्ितहस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है ।
268. धारा 267 के पर्वतर्न से कितपय िक्तय को अपविजत करने की राज्य सरकार की शिक्त—(1) राज्य सरकार, उपधारा (2)
म िविनिदष्ट बात को ध्यान म रखते हुए, िकसी समय, साधारण या िवशेष आदेश ारा, यह िनदेश दे सकती है िक िकसी िक्त को या
िकसी वगर् के िक्तय को उस कारागार से नह हटाया जाएगा िजसम उसे या उन्ह पिररु या िनरु िकया गया है, और तब, जब तक
ऐसा आदेश पर्वृ रहे, धारा 267 के अधीन िदया गया कोई आदेश, चाहे वह राज्य सरकार के आदेश के पूवर् िकया गया हो या उसके पश्चात्,
ऐसे िक्त या ऐसे वगर् के िक्तय के बारे म पर्भावी न होगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश देने के पूवर्, राज्य सरकार िनम्निलिखत बात का ध्यान रखेगी, अथार्त् :—
(क) उस अपराध का स्वरूप िजसके िलए, या वे आधार, िजन पर, उस िक्त को या उस वगर् के िक्तय को कारागार म
पिररु या िनरु करने का आदेश िदया गया है ;
(ख) यिद उस िक्त को या उस वगर् के िक्तय को कारागार से हटाने की अनुज्ञा दी जाए तो लोक- वस्था म िवघ्न
की संभा ता ;
81

(ग) लोक िहत, साधारणत: ।


269. कारागार के भारसाधक अिधकारी का कितपय आकिस्मकता म आदेश को कायार्िन्वत न करना—जहां वह िक्त, िजसके
बारे म धारा 267 के अधीन कोई आदेश िदया गया है—
(क) बीमारी या अंगशैिथल्य के कारण कारागार से हटाए जाने के योग्य नह है ; अथवा
(ख) िवचारण के िलए सुपुदग
र् ी के अधीन है या िवचारण के लंिबत रहने तक के िलए या पर्ारं िभक अन्वेषण तक के िलए
पर्ितपर्ेषणाधीन है ; अथवा
(ग) इतनी अविध के िलए अिभरक्षा म है िजतनी आदेश का अनुपालन करने के िलए और उस कारागार म िजसम वह
पिररु या िनरु है, उसे वापस ले आने के िलए अपेिक्षत समय के समाप्त होने के पूवर् समाप्त होती है ; अथवा
(घ) ऐसा िक्त है िजसे धारा 268 के अधीन राज्य सरकार ारा िदया गया कोई आदेश लागू होता है,
वहां कारागार का भारसाधक अिधकारी न्यायालय के आदेश को कायार्िन्वत नह करे गा और ऐसा न करने के कारण का िववरण
न्यायालय को भेजेगा :
परन्तु जहां ऐसे िक्त से िकसी ऐसे स्थान पर, जो कारागार से पच्चीस िकलोमीटर से अिधक दूर नह है, सा य देने के िलए हािजर
होने की अपेक्षा की जाती है, वहां कारागार के भारसाधक अिधकारी के ऐसा न करने का कारण खंड (ख) म विणत कारण नह होगा ।
270. बन्दी का न्यायालय म अिभरक्षा म लाया जाना—धारा 269 के उपबंध के अधीन रहते हुए, कारागार का भारसाधक
अिधकारी, धारा 267 की उपधारा (1) के अधीन िदए गए और जहां आवश्यक है, वहां उसकी उपधारा (2) के अधीन सम्यक् रूप से
पर्ितहस्ताक्षिरत आदेश के पिरदान पर, आदेश म नािम िक्त को ऐसे न्यायालय म, िजसम उनकी हािजरी अपेिक्षत है, िभजवाएगा
िजससे वह आदेश म उिल्लिखत समय पर वहां उपिस्थत हो सके , और उसे न्यायालय म या उसके पास अिभरक्षा म तब तक रखवाएगा
जब तक उसकी परीक्षा न कर ली जाए या जब तक न्यायालय उसे उस कारागार को, िजसम वह पिररु या िनरु था, वापस ले जाए
जाने के िलए पर्ािधकृ त न करे ।
271. कारागार म साक्षी की परीक्षा के िलए कमीशन जारी करने की शिक्त—कारागार म पिररु या िनरु िकसी िक्त को
साक्षी के रूप म परीक्षा के िलए धारा 284 के अधीन कमीशन जारी करने की न्यायालय की शिक्त पर इस अध्याय के उपबंध का कोई
पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ; और अध्याय 23 के भाग (ख) के उपबंध कारागार म ऐसे िकसी िक्त की कमीशन पर परीक्षा के संबध
ं म
वैसे ही लागू ह गे जैसे वे िकसी अन्य िक्त की कमीशन पर परीक्षा के संबंध म लागू होते ह ।
अध्याय 23

जांच और िवचारण म सा य
क—सा य लेने और अिभिलिखत करने का ढंग
272. न्यायालय की भाषा—राज्य सरकार यह अवधािरत कर सकती है िक इस संिहता के पर्योजन के िलए राज्य के अन्दर उच्च
न्यायालय से िभन्न पर्त्येक न्यायालय की कौन सी भाषा होगी ।
273. सा य का अिभयुक्त की उपिस्थित म िलया जाना—अिभ क्त रूप से जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, िवचारण या अन्य
कायर्वाही के अनुकर्म म िलया गया सब सा य अिभयुक्त की उपिस्थित म या जब उसे वैयिक्तक हािजरी से अिभमुक्त कर िदया गया है
तब उसके प्लीडर की उपिस्थित म िलया जाएगा :
[परन्तु जहां अठारह वषर् से कम आयु की स्तर्ी का, िजससे बलात्संग या िकसी अन्य लिगक अपराध के िकए जाने का अिभकथन
1

िकया गया है, सा य अिभिलिखत िकया जाना है, वहां न्यायालय यह सुिनिश्चत करने के िलए ऐसी स्तर्ी का अिभयुक्त से सामना न हो
और साथ ही अिभयुक्त की पर्ितपरीक्षा के अिधकार को सुिनिश्चत करते हुए समुिचत उपाय कर सके गा ।]
स्पष्टीकरण—इस धारा म “अिभयुक्त” के अन्तगर्त ऐसा िक्त भी है िजसकी बाबत अध्याय 8 के अधीन कोई कायर्वाही इस
संिहता के अधीन पर्ारं भ की जा चुकी है ।
274. समन-मामल और जांच म अिभलेख—(1) मिजस्टर्ेट के समक्ष िवचािरत सब समन-मामल म, धारा 145 से धारा 148 तक
की धारा के अधीन (िजनके अन्तगर्त ये दोन धाराएं भी ह) सब जांच म, और िवचारण के अनुकर्म की कायर्वािहय से िभन्न धारा 446
के अधीन सब कायर्वािहय म, मिजस्टर्ेट जैसे-जैसे पर्त्येक साक्षी की परीक्षा होती जाती है, वैस-े वैसे उसके सा य के सारांश का ज्ञापन
न्यायालय की भाषा म तैयार करे गा :
परन्तु यिद मिजस्टर्ेट ऐसा ज्ञापन स्वयं तैयार करने म असमथर् है तो वह अपनी असमथर्ता के कारण को अिभिलिखत करने के
पश्चात् ऐसे ज्ञापन को खुले न्यायालय म स्वयं बोलकर िलिखत रूप म तैयार कराएगा ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 20 ारा अंत:स्थािपत ।
82

(2) ऐसे ज्ञापन पर मिजस्टर्ेट हस्ताक्षर करे गा और वह अिभलेख का भाग होगा ।


275. वारण्ट-मामल म अिभलेख—(1) मिजस्टर्ेट के समक्ष िवचािरत सब वारं ट-मामल म पर्त्येक साक्षी का सा य जैसे-जैसे उसकी
परीक्षा होती जाती है, वैस-े वैसे या तो स्वयं मिजस्टर्ेट ारा िलखा जाएगा या खुले न्यायालय म उसके ारा बोलकर िलखवाया जाएगा या
जहां वह िकसी शारीिरक या अन्य असमथर्ता के कारण ऐसा करने म असमथर् है, वहां उसके ारा इस िनिम िनयुक्त न्यायालय के िकसी
अिधकारी ारा उसके िनदेशन और अधीक्षण म िलखा जाएगा :
[परं तु इस उपधारा के अधीन साक्षी का सा य उस अपराध के अिभयुक्त
1
िक्त के अिधववक्ता की उपिस्थित म शर् -दृश्य
इलैक्टर्ािनक साधन ारा भी अिभिलिखत िकया जा सके गा ।]
(2) जहां मिजस्टर्ेट सा य िलखवाए वहां वह यह पर्माणपतर् अिभिलिखत करे गा िक सा य उपधारा (1) म िनिदष्ट कारण से स्वयं
उसके ारा नह िलखा जा सका ।
(3) ऐसा सा य मामूली तौर पर वृ ांत के रूप म अिभिलिखत िकया जाएगा िकन्तु मिजस्टर्ेट स्विववेकानुसार, ऐसे सा य के िकसी
भाग को पर् ो र के रूप म िलख या िलखवा सकता है ।
(4) ऐसे िलखे गए सा य पर मिजस्टर्ेट हस्ताक्षर करे गा और वह अिभलेख का भाग होगा ।
276. सेशन न्यायालय के समक्ष िवचारण म अिभलेख—(1) सेशन न्यायालय के समक्ष सब िवचारण म पर्त्येक साक्षी का सा य,
जैस-े जैसे उसकी परीक्षा होती जाती है, वैस-े वैसे या तो स्वयं पीठासीन न्यायाधीश ारा िलखा जाएगा या खुले न्यायालय म उसके ारा
बोलकर िलखवाया जाएगा या उसके ारा इस िनिम िनयुक्त न्यायालय के िकसी अिधकारी ारा उसके िनदेशन और अधीक्षण म
िलखा जाएगा ।
[(2) ऐसा सा य मामूली तौर पर वृ ांत के रूप म िलखा जाएगा िकन्तु पीठासीन न्यायाधीश स्विववेकानुसार ऐसे सा य के
2

िकसी भाग को पर् ो र के रूप म िलख सकता है या िलखवा सकता है ।]


(3) ऐसे िलखे गए सा य पर पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करे गा और वह अिभलेख का भाग होगा ।
277. सा य के अिभलेख की भाषा—पर्त्येक मामले म जहां सा य धारा 275 या धारा 276 के अधीन िलखा जाता है वहां—
(क) यिद साक्षी न्यायालय की भाषा म सा य देता है तो उसे उसी भाषा म िलखा जाएगा ;
(ख) यिद वह िकसी अन्य भाषा म सा य देता है तो उसे, यिद सा य हो तो, उसी भाषा म िलखा जा सके गा और यिद ऐसा
करना साध्य न हो तो जैसे-जैसे साक्षी की परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे सा य का न्यायालय की भाषा म सही अनुवाद तैयार
िकया जाएगा, उस पर मिजस्टर्ेट या पीठासीन न्यायाधीश ारा हस्ताक्षर िकए जाएंगे और वह अिभलेख का भाग होगा ;
(ग) उस दशा म िजसम सा य खंड (ख) के अधीन न्यायालय की भाषा से िभन्न िकसी भाषा म िलखा जाए, न्यायालय की
भाषा म उसका सही अनुवाद यथासाध्य शीघर् तैयार िकया जाएगा, उस पर मिजस्टर्ेट या पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करे गा
और वह अिभलेख का भाग होगा :
परन्तु जब खंड (ख) के अधीन सा य अंगर्ेजी म िलखा जाता है और न्यायालय की भाषा म उसके अनुवाद की िकसी पक्षकार ारा
अपेक्षा नह की जाती है तो न्यायालय ऐसे अनुवाद से अिभमुिक्त दे सकता है ।
278. जब ऐसा सा य पूरा हो जाता है तब उसके संबध ं म पर्िकर्या—(1) जैस-े जैसे पर्त्येक साक्षी का सा य जो धारा 275 या धारा
276 के अधीन िलया जाए, पूरा होता जाता है, वैसे-वैसे वह, यिद अिभयुक्त हािजर हो तो उसकी, या यिद वह प्लीडर ारा हािजर हो तो
उसके प्लीडर की उपिस्थित म साक्षी को पढ़कर सुनाया जाएगा और यिद आवश्यक हो तो शु िकया जाएगा ।
(2) यिद साक्षी सा य के िकसी भाग की शु ता से उस समय इनकार करता है जब वह उसे पढ़कर सुनाया जाता है तो मिजस्टर्ेट या
पीठासीन न्यायाधीश सा य को शु करने के बजाय उस पर साक्षी ारा उस बाबत की गई आपि का ज्ञापन िलख सकता है और उसम
ऐसी िटप्पिणयां जोड़ देगा जैसी वह आवश्यक समझे ।
(3) यिद सा य का अिभलेख उस भाषा से िभन्न भाषा म है िजसम वह िदया गया है और साक्षी उस भाषा को नह समझता है तो,
उसे ऐसे अिभलेख का भाषान्तर उस भाषा म िजसम वह िदया गया था अथवा उस भाषा म िजसे वह समझता हो, सुनाया जाएगा ।
279. अिभयुक्त या उसके प्लीडर को सा य का भाषान्तर सुनाया जाना—(1) जब कभी कोई सा य ऐसी भाषा म िदया जाए िजसे
अिभयुक्त नह समझता है और वह न्यायालय म स्वयं उपिस्थत है तब खुले न्यायालय म उसे उस भाषा म उसका भाषान्तर सुनाया
जाएगा िजसे वह समझता है ।
(2) यिद वह प्लीडर ारा हािजर हो और सा य न्यायालय की भाषा से िभन्न और प्लीडर ारा न समझी जाने वाली भाषा म
िदया जाता है तो उसका भाषान्तर ऐसे प्लीडर को न्यायालय की भाषा म सुनाया जाएगा ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 20 ारा अंत:स्थािपत ।
2
.1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 20 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
83

(3) जब दस्तावेज यथा रीित सबूत के पर्योजन के िलए पेश की जाती ह तब यह न्यायालय के स्विववेक पर िनभर्र करे गा िक वह
उनम से उतने का भाषान्तर सुनाए िजतना आवश्यक पर्तीत हो ।
280. साक्षी की भावभंगी के बारे म िटप्पिणयां—जब पीठासीन न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट साक्षी का सा य अिभिलिखत कर लेता है
तब वह उस साक्षी की परीक्षा िकए जाते समय उसकी भावभंगी के बारे म ऐसी िटप्पिणयां भी अिभिलिखत करे गा (यिद कोई ह ), जो वह
ताित्त्वक समझता है ।
281. अिभयुक्त की परीक्षा का अिभलेख—(1) जब कभी अिभयुक्त की परीक्षा िकसी महानगर मिजस्टर्ेट ारा की जाती है तो वह
मिजस्टर्ेट अिभयुक्त की परीक्षा के सारांश का ज्ञापन न्यायालय की भाषा म तैयार करे गा और ऐसे ज्ञापन पर मिजस्टर्ेट हस्ताक्षर करे गा
और वह अिभलेख का भाग होगा ।
(2) जब कभी अिभयुक्त की परीक्षा महानगर मिजस्टर्ेट से िभन्न िकसी मिजस्टर्ेट या सेशन न्यायालय ारा की जाती है तब उससे
पूछे गए पर्त्येक पर्श्न और उसके ारा िदए गए पर्त्येक उ र िहत ऐसी सब परीक्षा स्वयं पीठासीन न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा या जहां
वह िकसी शारीिरक या अन्य असमथर्ता के कारण ऐसा करने म असमथर् है, वहां उसके ारा इस िनिम िनयुक्त न्यायालय के िकसी
अिधकारी ारा उसके िनदेशन और अधीक्षण म पूरे तौर पर अिभिलिखत की जाएंगी ।
(3) अिभलेख, यिद साध्य हो तो, उस भाषा म होगा िजसम अिभयुक्त की परीक्षा की जाती है या यिद यह साध्य न हो तो
न्यायालय की भाषा म होगा ।
(4) अिभलेख अिभयुक्त को िदखा िदया जाएगा या उसे पढ़ कर सुना िदया जाएगा या यिद वह भाषा को नह समझता है िजसम
वह िलखा गया है तो उसका भाषान्तर उसे उस भाषा म, िजसे वह समझता है, सुनाया जाएगा और वह अपने उ र का स्पष्टीकरण करने
या उनम कोई बात जोड़ने के िलए स्वतंतर् होगा ।
(5) तब उस पर अिभयुक्त और मिजस्टर्ेट या पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करगे और मिजस्टर्ेट या पीठासीन न्यायाधीश अपने
हस्ताक्षर से पर्मािणत करे गा िक परीक्षा उसकी उपिस्थित म की गई थी और उसने उसे सुना था और अिभलेख म अिभयुक्त ारा िकए गए
कथन का पूणर् और सही वणर्न है ।
(6) इस धारा की कोई बात संिक्षप्त िवचारण के अनुकर्म म अिभयुक्त की परीक्षा को लागू होने वाली न समझी जाएगी ।
282. दुभािषया ठीक-ठीक भाषान्तर करने के िलए आब होगा—जब िकसी सा य या कथन के भाषान्तर के िलए दुभािषए की
सेवा की िकसी दंड न्यायालय ारा अपेक्षा की जाती है तब वह दुभािषया ऐसे सा य या कथन का ठीक भाषान्तर करने के िलए
आब होगा ।
283. उच्च न्यायालय म अिभलेख—पर्त्येक उच्च न्यायालय, साधारण िनयम ारा ऐसी रीित िविहत कर सकता है िजससे उन
मामल म सािक्षय के सा य को और अिभयुक्त की परीक्षा को िलखा जाएगा जो उसके समक्ष आते ह, और ऐसे सा य और परीक्षा को ऐसे
िनयम के अनुसार िलखा जाएगा ।
ख—सािक्षय की परीक्षा के िलए कमीशन
284. कब सािक्षय को हािजर होने से अिभमुिक्त दी जाए और कमीशन जारी िकया जाएगा—(1) जब कभी इस संिहता के अधीन
िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के अनुकर्म म, न्यायालय या मिजस्टर्ेट को पर्तीत होता है िक न्याय के उ ेश्य के िलए यह
आवश्यक है िक िकसी साक्षी की परीक्षा की जाए और ऐसे साक्षी की हािजरी इतने िवलम्ब, य या असुिवधा के िबना, िजतनी मामले की
पिरिस्थितय म अनुिचत होगी, नह कराई जा सकती है तब न्यायालय या मिजस्टर्ेट ऐसी हािजरी से अिभमुिक्त दे सकता है और साक्षी की
परीक्षा की जाने के िलए इस अध्याय के उपबंध के अनुसार कमीशन जारी कर सकता है :
परन्तु जहां न्याय के उ ेश्य के िलए भारत के राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या िकसी राज्य के राज्यपाल या िकसी संघ राज्यक्षेतर् के
पर्शासक की साक्षी के रूप म परीक्षा करना आवश्यक है वहां ऐसे साक्षी की परीक्षा करने के िलए कमीशन जारी िकया जाएगा ।
(2) न्यायालय अिभयोजन के िकसी साक्षी की परीक्षा के िलए कमीशन जारी करते समय यह िनदेश दे सकता है िक प्लीडर की
फीस सिहत ऐसी रकम जो न्यायालय अिभयुक्त के य की पूित के उिचत समझे, अिभयोजन ारा दी जाए ।
285. कमीशन िकसको जारी िकया जाएगा—(1) यिद साक्षी उन राज्यक्षेतर् के अन्दर है, िजन पर इस संिहता का िवस्तार है, तो
कमीशन, यथािस्थित, उस महानगर मिजस्टर्ेट या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को िनिदष्ट होगा िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अन्दर ऐसा
साक्षी िमल सकता है ।
(2) यिद साक्षी भारत म है िकन्तु ऐसे राज्य या ऐसे िकसी क्षेतर् म है िजस पर इस संिहता का िवस्तार नह है तो कमीशन ऐसे
न्यायालय या अिधकारी को िनिदष्ट होगा िजसे के न्दर्ीय सरकार अिधसूचना ारा इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
(3) यिद साक्षी भारत से बाहर के देश या स्थान म है और ऐसे देश या स्थान की सरकार से के न्दर्ीय सरकार ने आपरािधक मामल
के संबंध म सािक्षय का सा य लेने के िलए ठहराव कर रखे है तो कमीशन ऐसे पर्रूप म जारी िकया जाएगा, ऐसे न्यायालय या अिधकारी
को िनिदष्ट होगा और पारे िषत िकए जाने के िलए ऐसे पर्ािधकारी को भेजा जाएगा जो के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा इस िनिम
िविहत करे ।
84

286. कमीशन का िनष्पादन—कमीशन पर्ाप्त होने पर मुख्य महानगर मिजस्टर्ेट या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, अथवा ऐसा
महानगर मिजस्टर्ेट या न्याियक मिजस्टर्ेट िजसे वह इस िनिम िनयुक्त करे , साक्षी को अपने समक्ष आने के िलए समन करे गा अथवा उस
स्थान को जाएगा जहां साक्षी है और उसका सा य उसी रीित से िलखेगा और इस पर्योजन के िलए उन्ह शिक्तय का पर्योग कर सके गा
जो इस संिहता के अधीन वारं ट-मामल के िवचारण के िलए ह ।
287. पक्षकार सािक्षय की परीक्षा कर सकगे—(1) इस संिहता के अधीन िकसी ऐसी कायर्वाही के पक्षकार, िजसम कमीशन जारी
िकया गया है, अपने-अपने ऐसे िलिखत पिरपर्श्न भेज सकते ह िजन्ह कमीशन का िनदेश देने वाला न्यायालय या मिजस्टर्ेट िववा क से
सुसंगत समझता है और उस मिजस्टर्ेट, न्यायालय या अिधकारी के िलए, िजसे कमीशन िनिदष्ट िकया जाता है या िजसे उसके िनष्पादन
का कतर् पर्त्यायोिजत िकया जाता है, यह िविधपूणर् होगा िक वह ऐसे पिरपर्श्न के आधार पर साक्षी की परीक्षा करे ।
(2) कोई ऐसा पक्षकार ऐसे मिजस्टर्ेट, न्यायालय या अिधकारी के समक्ष प्लीडर ारा, या यिद अिभरक्षा म नह है तो स्वयं हािजर
हो सकता है और उक्त साक्षी की (यथािस्थित) परीक्षा, पर्ित-परीक्षा और पुन: परीक्षा कर सकता है ।
288. कमीशन का लौटाया जाना—(1) धारा 284 के अधीन जारी िकए गए िकसी कमीशन के सम्यक् रूप से िनष्पािदत िकए जाने
के पश्चात् वह उसके अधीन परीिक्षत सािक्षय के अिभसा य सिहत उस न्यायालय या मिजस्टर्ेट को, िजसने कमीशन जारी िकया था,
लौटाया जाएगा; और वह कमीशन, उससे संब िववरणी और अिभसा य सब उिचत समय पर पक्षकार के िनरीक्षण के िलए पर्ाप्य
ह गे, और सब न्यायसंगत अपवाद के अधीन रहते हुए, िकसी पक्षकार ारा मामले म सा य पढ़े जा सकगे और अिभलेख का भाग ह गे ।
(2) यिद ऐसे िलया गया कोई अिभसा य, भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 33 ारा िविहत शत को पूरा
करता है, तो वह िकसी अन्य न्यायालय के समक्ष भी मामले के िकसी पश्चात्वत पर्कर्म म सा य म िलया जा सके गा ।
289. कायर्वाही का स्थगन—पर्त्येक मामले म, िजसम धारा 284 के अधीन कमीशन जारी िकया गया है, जांच िवचारण या अन्य
कायर्वाही ऐसे िविनिदष्ट समय तक के िलए, जो कमीशन के िनष्पादन और लौटाए जाने के िलए उिचत रूप से पयार्प्त है, स्थिगत की जा
सकती है ।
290. िवदेशी कमीशन का िनष्पादन—(1) धारा 286 के उपबंध और धारा 287 और धारा 288 के उतने भाग के उपबंध, िजतना
कमीशन का िनष्पादन िकए जाने और उसके लौटाए जाने से संबंिधत है, इसम इसके पश्चात् विणत िकन्ह न्यायालय , न्यायाधीश या
मिजस्टर्ेट ारा जारी िकए गए कमीशन के बारे म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे धारा 284 के अधीन जारी िकए गए कमीशन को लागू
होते है ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट न्यायालय, न्यायाधीश और मिजस्टर्ेट िनम्निलिखत ह—
(क) भारत के ऐसे क्षेतर् के अन्दर, िजस पर इस संिहता का िवस्तार नह है, अिधकािरता का पर्योग करने वाला ऐसा
न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट िजसे के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ;
(ख) भारत से बाहर के िकसी ऐसे देश या स्थान म, िजसे के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ,
अिधकािरता का पर्योग करने वाला और उस देश या स्थान म पर्वृ िविध के अधीन आपरािधक मामल के संबंध म सािक्षय की
परीक्षा के िलए कमीशन जारी करने का पर्ािधकार रखने वाला न्यायालय, न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ।
291. िचिकत्सीय साक्षी का अिभसा य—(1) अिभयुक्त की उपिस्थित म मिजस्टर्ेट ारा िलया गया और अनुपर्मािणत िकया गया
या इस अध्याय के अधीन कमीशन पर िलया गया, िसिवल सजर्न या अन्य िचिकत्सीय साक्षी का अिभसा य इस संिहता के अधीन िकसी
जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही म सा य म िदया जा सके गा, य िप अिभसाक्षी को साक्षी के तौर पर नह बुलाया गया है ।
(2) यिद न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे िकसी अिभसाक्षी को समन कर सकता है और उसके अिभसा य की िवषयवस्तु के
बारे म उसकी परीक्षा कर सकता है और अिभयोजन या अिभयुक्त के आवेदन पर वैसा करे गा ।
[291क. मिजस्टर्ेट की िशनाख्त िरपोटर्—(1) कोई दस्तावेज, िजसका िकसी िक्त या सम्पि के संबंध म िकसी कायर्पालक
1

मिजस्टर्ेट की स्वहस्ताक्षिरत िशनाख्त िरपोटर् होना तात्पियत है, इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही म सा य
के रूप म उपयोग म लाया जा सके गा, य िप ऐसे मिजस्टर्ेट को साक्षी के तौर पर नह बुलाया गया है :
परन्तु जहां ऐसी िरपोटर् म ऐसे िकसी संिदग्ध िक्त या साक्षी का िववरण है, िजसे भारतीय सा य अिधिनयम, 1872
(1872 का 1) की, यथािस्थित, धारा 21, धारा 32, धारा 33, धारा 155 या धारा 157 के उपबंध लागू होते ह, वहां, ऐसा िववरण इस
उपधारा के अधीन, उन धारा के उपबंध के अनुसार के िसवाय, पर्योग म नह लाया जाएगा ।
(2) न्यायालय, यिद वह ठीक समझता है और अिभयोजन या अिभयुक्त के आवेदन पर ऐसे मिजस्टर्ेट को समन कर सके गा और
उक्त िरपोटर् की िवषय-वस्तु के बारे म उसकी परीक्षा कर सके गा और करे गा ।]
292. टकसाल के अिधकािरय का सा य—(1) कोई दस्तावेज, 2 [जो, यथािस्थित, िकसी टकसाल या नोट छपाई मुदर्ाणालय के या
िसक्योिरटी िपर्िटग पर्ेस के (िजसके अन्तगर्त स्टांप और लेखन सामगर्ी िनयंतर्क का कायार्लय भी है) या न्याय संबंधी िवभाग या

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 5 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
85

न्यायालियक पर्योगशाला पर्भाग के ऐसे अिधकारी की या पर्श्नगत दस्तावेज के सरकारी परीक्षक या पर्श्नगत दस्तावेज के राज्य परीक्षक
की] िजसे के न्दर्ीय सरकार अिधसूचना ारा इस िनिम िविनिदष्ट करे , इस संिहता के अधीन िकसी कायर्वाही के दौरान परीक्षा और
िरपोटर् के िलए सम्यक्त रूप से उसे भेजी गई िकसी सामगर्ी या चीज के बारे म स्वहस्ताक्षिरत िरपोटर् होनी तात्पियत है, इस संिहता के
अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही म सा य के तौर पर उपयोग म लाई जा सके गी, य िप ऐसे अिधकारी को साक्षी के तौर
पर नह बुलाया गया है ।
(2) यिद न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे अिधकारी को समन कर सकता है और उसकी िरपोटर् की िवषयवस्तु के बारे म
उसकी परीक्षा कर सकता है :
परन्तु ऐसा कोई अिधकारी िकन्ह ऐसे अिभलेख को पेश करने के िलए समन नह िकया जाएगा िजन पर िरपोटर् आधािरत है ।
(3) भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना यह है िक
ऐसा कोई अिधकारी 1 [यथािस्थित, िकसी टकसाल या नोट छपाई मुदर्ाणालय या िसक्योिरटी िपर्िटग पर्ेस या न्याय संबंधी िवभाग के
महापर्बंधक या िकसी अन्य भारसाधक अिधकारी या न्यायालियक पर्योगशाला के भारसाधक िकसी अिधकारी या पर्श्नगत दस्तावेज
संगठन के सरकारी परीक्षक या पर्श्नगत दस्तावेज संगठन के राज्य परीक्षक की] अनुज्ञा के िबना,—
(क) ऐसे अपर्कािशत शासकीय अिभलेख से, िजन पर िरपोटर् आधािरत है, पर्ाप्त कोई सा य देने के िलए अनुज्ञात नह िकया
जाएगा ; अथवा
(ख) िकसी सामगर्ी या चीज की परीक्षा के दौरान उसके ारा िकए गए परीक्षण के स्वरूप या िविशिष्टय को पर्कट करने के
िलए अनुज्ञात नह िकया जाएगा ।
293. कितपय सरकारी वैज्ञािनक िवशेषज्ञ की िरपोटर्—(1) कोई दस्तावेज, जो िकसी सरकारी वैज्ञािनक िवशेषज्ञ की, िजसे यह
धारा लागू होती है, इस संिहता के अधीन िकसी कायर्वाही के दौरान परीक्षा या िवश्लेषण और िरपोटर् के िलए सम्यक् रूप से उसे भेजी गई
िकसी सामगर्ी या चीज के बारे म स्वहस्ताक्षिरत िरपोटर् होनी तात्पियत है, इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही
म सा य के तौर पर उपयोग म लाई जा सके गी ।
(2) यिद न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे िवशेषज्ञ को समन कर सकता है और उसकी िरपोट की िवषयवस्तु के बारे म
उसकी परीक्षा कर सके गा ।
(3) जहां ऐसे िकसी िवशेषज्ञ को न्यायालय ारा समन िकया जाता है और वह स्वयं हािजर होने म असमथर् है वहां, उस दशा के
िसवाय िजससे न्यायालय ने उसे स्वयं हािजर होने के िलए स्पष्ट रूप से िनदेश िदया है, वह अपने साथ काम करने वाले िकसी िजम्मेदार
अिधकारी को न्यायालय म हािजर होने के िलए पर्ितिनयुक्त कर सकता है यिद वह अिधकारी मामले के तथ्य से अवगत है तथा
न्यायालय म उसकी ओर से समाधानपर्द रूप म अिभसा य दे सकता है ।
(4) यह धारा िनम्निलिखत सरकारी वैज्ञािनक िवशेषज्ञ को लागू होती है अथार्त् :—
(क) सरकार का कोई रासायिनक परीक्षक या सहायक रासायिनक परीक्षक ;
2
[(ख) मुख्य िवस्फोटक िनयंतर्क] ;
(ग) अंगुली-छाप कायार्लय िनदेशक ;
(घ) िनदेशक, हाफकीन संस्थान, मुम्बई ;
(ङ) िकसी के न्दर्ीय न्याय संबंधी िवज्ञान पर्योगशाला या िकसी राज्य न्याय संबंधी िवज्ञान पर्योगशाला का िनदेशक
3
[उप-(िनदेशक या सहायक िनदेशक] ;
(च) सरकारी सीरम िवज्ञानी ।
[(छ) कोई अन्य सरकारी वैज्ञािनक िवशेषज्ञ, जो इस पर्योजन के िलए के न्दर्ीय सरकार ारा, अिधसूचना ारा िविनिदष्ट
4

िकया गया हो ।]
294. कु छ दस्तावेज का औपचािरक सबूत आवश्यक न होना—(1) जहां अिभयोजन या अिभयुक्त ारा िकसी न्यायालय के समक्ष
कोई दस्तावेज फाइल की गई है वहां ऐसी पर्त्येक दस्तावेज की िविशिष्टयां एक सूची म सिम्मिलत की जाएंगी और, यथािस्थित,
अिभयोजन या अिभयुक्त अथवा अिभयोजन या अिभयुक्त के प्लीडर से, यिद कोई ह , ऐसी पर्त्येक दस्तावेज का असली होना स्वीकार या
इनकार करने की अपेक्षा की जाएगी ।
(2) दस्तावेज की सूची ऐसे पर्रूप म होगी जो राज्य सरकार ारा िविहत िकया जाए ।

1
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 5 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 26 ारा खंड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 21 ारा अंत:स्थािपत ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 26 ारा जोड़ा गया ।
86

(3) जहां िकसी दस्तावेज का असली होना िववादगर्स्त नह है वहां ऐसी दस्तावेज उस िक्त के िजसके ारा हस्ताक्षिरत होना
तात्पियत है, हस्ताक्षर के सबूत के िबना इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही म सा य म पढ़ी जा सके गी :
परन्तु न्यायालय, स्विववेकानुसार, यह अपेक्षा कर सकता है िक ऐसे हस्ताक्षर सािबत िकए जाएं ।
295. लोक सेवक के आचरण के सबूत के बारे म शपथपतर्—जब िकसी न्यायालय म इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण
या अन्य कायर्वाही के दौरान कोई आवेदन िकया जाता है और उसम िकसी लोक सेवक के बारे म अिभकथन िकए जाते ह तब आवेदक
आवेदन म अिभकिथत तथ्य का शपथपतर् ारा सा य दे सकता है और यिद न्यायालय ठीक समझे तो वह आदेश दे सकता है िक ऐसे
तथ्य से संबंिधत सा य इस पर्कार िदया जाए ।
296. शपथपतर् पर औपचािरक सा य—(1) िकसी भी िक्त का ऐसा सा य जो औपचािरक है शपथपतर् ारा िदया जा सकता है
और, सब न्यायसंगत अपवाद के अधीन रहते हुए इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही म सा य म पढ़ा जा
सकता है ।

(2) यिद न्यायालय ठीक समझे तो वह िकसी िक्त को समन कर सकता है और उसके शपथपतर् म अन्तिवष्ट तथ्य के बारे म
उसकी परीक्षा कर सकता है िकन्तु अिभयोजन या अिभयुक्त के आवेदन पर ऐसा करे गा ।

297. पर्ािधकारी िजनके समक्ष शपथपतर् पर शपथ गर्हण िकया जा सके गा—(1) इस संिहता के अधीन िकसी न्यायालय के समक्ष
उपयोग म लाए जाने वाले शपथपतर् पर शपथ गर्हण या पर्ितज्ञान िनम्निलिखत के समक्ष िकया जा सकता है—
1
[(क) कोई न्यायाधीश या कोई न्याियक या कायर्पालक मिजस्टर्ेट ; अथवा] ;

(ख) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ारा िनयुक्त कोई शपथ किमश्नर ; अथवा

(ग) नोटरी अिधिनयम, 1952 (1952 का 53) के अधीन िनयुक्त कोई नोटरी ।

(2) शपथपतर् ऐसे तथ्य तक, िजन्ह अिभसाक्षी स्वयं अपनी जानकारी से सािबत करने के िलए समथर् है और ऐसे तथ्य तक िजनके
सत्य होने का िवश्वास करने के िलए उसके पास उिचत आधार है, सीिमत ह गे और उसम उनका कथन अलग-अलग होगा तथा िवश्वास
के आधार की दशा म अिभसाक्षी ऐसे िवश्वास के आधार का स्पष्ट कथन करे गा ।

(3) न्यायालय शपथपतर् म िकसी कलंकात्मक और िवसंगत बात के काटे जाने या संशोिधत िकए जाने का आदेश दे सके गा ।

298. पूवर् दोषिसि या दोषमुिक्त कै से सािबत की जाए—पूवर् दोषिसि या दोषमुिक्त को, इस संिहता के अधीन िकसी, जांच,
िवचारण या अन्य कायर्वाही म, िकसी अन्य ऐसे ढंग के अितिरक्त, जो तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा उपबंिधत है,—

(क) ऐसे उ रण ारा, िजसका उस न्यायालय के , िजसम ऐसी दोषिसि या दोषमुिक्त हुई, अिभलेख को अिभरक्षा म
रखने वाले अिधकारी के हस्ताक्षर ारा पर्मािणत उस दंडादेश या आदेश की पर्ितिलिप होना है ; अथवा

(ख) दोषिसि की दशा म, या तो ऐसे पर्माणपतर् ारा, जो उस जेल के भारसाधक अिधकारी ारा हस्ताक्षिरत है िजसम
दंड या उसका कोई भाग भोगा गया या सुपुदग
र् ी के उस वारं ट को पेश करके , िजनके अधीन दंड भोगा गया था,

और इन दशा म से पर्त्येक म इस बात के सा य के साथ िक अिभयुक्त िक्त वही िक्त है जो ऐसे दोषिस या दोषमुक्त िकया गया,
सािबत िकया जा सके गा ।

299. अिभयुक्त की अनुपिस्थित म सा य का अिभलेख—(1) यिद यह सािबत कर िदया जाता है िक अिभयुक्त िक्त फरार हो
गया है और उसके तुरन्त िगरफ्तार िकए जाने की कोई सम्भावना नह है तो उस अपराध के िलए, िजसका पिरवाद िकया गया है, उस
िक्त का 2 [िवचारण करने के िलए या िवचारण के िलए सुपुदर् करने के िलए सक्षम] न्यायालय अिभयोजन की ओर से पेश िकए गए
सािक्षय की (यिद कोई हो), उसकी अनुपिस्थित म परीक्षा कर सकता है और उनका अिभसा य अिभिलिखत कर सकता है और ऐसा कोई
अिभसा य उस िक्त के िगरफ्तार होने पर, उस अपराध की जांच या िवचारण म, िजसका उस पर आरोप है, उसके िवरु सा य म
िदया जा सकता है यिद अिभसाक्षी मर गया है, या सा य देने के िलए असमथर् है, या िमल नह सकता है या उसकी हािजरी इतने िवलम्ब,
य या असुिवधा के िबना, िजतनी िक मामले की पिरिस्थितय म अनुिचत होगी, नह कराई जा सकती है ।

(2) यिद यह पर्तीत होता है िक मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय कोई अपराध िकसी अज्ञात िक्त या िकन्ह अज्ञात
िक्तय ारा िकया गया है तो उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश िनदेश दे सकता है िक कोई पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट जांच करे और

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 22 ारा खंड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 23 ारा अंत:स्थािपत ।
87

िकन्ह सािक्षय की जो अपराध के बारे म सा य दे सकते ह , परीक्षा करे और ऐसे िलया गया कोई अिभसा य, िकसी ऐसे िक्त के
िवरु िजस पर अपराध का तत्पश्चात् अिभयोग लगाया जाता है, सा य म िदया जा सकता है यिद अिभसाक्षी मर जाता है या सा य देने
के िलए असमथर् हो जाता है या भारत की सीमा से परे है ।
अध्याय 24

जांच तथा िवचारण के बारे म साधारण उपबंध


300. एक बार दोषिस या दोषमुक्त िकए गए िक्त का उसी अपराध के िलए िवचारण न िकया जाना—(1) िजस िक्त का
िकसी अपराध के िलए सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय ारा एक बार िवचारण िकया जा चुका है और जो ऐसे अपराध के िलए
दोषिस या दोषमुक्त िकया जा चुका है, वह जब तक ऐसी दोषिसि या दोषमुिक्त पर्वृ रहती है तब तक न तो उसी अपराध के िलए
िवचारण का भागी होगा और न उन्ह तथ्य पर िकसी ऐसे अन्य अपराध के िलए िवचारण का भागी होगा िजसके िलए उसके िवरु
लगाए गए आरोप से िभन्न आरोप धारा 221 की उपधारा (1) के अधीन लगाया जा सकता था या िजसके िलए वह उसकी उपधारा (2) के
अधीन दोषिस िकया जा सकता था ।
(2) िकसी अपराध के िलए दोषमुक्त या दोषिस िकए गए िकसी िक्त का िवचारण, तत्पश्चात् राज्य सरकार की सम्मित से
िकसी ऐसे िभन्न अपराध के िलए िकया जा सकता है िजसके िलए पूवर्गामी िवचारण म उसके िवरु धारा 220 की उपधारा (1) के
अधीन पृथक् आरोप लगाया जा सकता था ।
(3) जो िक्त िकसी ऐसे कायर् से बनने वाली िकसी अपराध के िलए दोषिस िकया गया है, जो ऐसे पिरणाम पैदा करता है जो
उस कायर् से िमलकर उस अपराध से, िजसके िलए वह दोषिस हुआ, िभन्न कोई अपराध बनाते ह, उसका ऐसे अिन्तम विणत अपराध के
िलए तत्पश्चात् िवचारण िकया जा सकता है, यिद उस समय जब वह दोषिस िकया गया था वे पिरणाम हुए नह थे या उनका होना
न्यायालय को ज्ञात नह था ।
(4) जो िक्त िकन्ह काय से बनने वाले िकसी अपराध के िलए दोषमुक्त या दोषिस िकया गया है, उस पर ऐसी दोषमुिक्त या
दोषिसि के होने पर भी, उन्ह काय से बनने वाले और उसके ारा िकए गए िकसी अन्य अपराध के िलए तत्पश्चात् आरोप लगाया जा
सकता है और उसका िवचारण िकया जा सकता है, यिद वह न्यायालय, िजसके ारा पहले उसका िवचारण िकया गया था, उस अपराध
के िवचारण के िलए सक्षम नह था िजसके िलए बाद म उस पर आरोप लगाया जाता है ।
(5) धारा 258 के अधीन उन्मोिचत िकए गए िक्त का उसी अपराध के िलए पुन: िवचारण उस न्यायालय की, िजसके ारा वह
उन्मोिचत िकया गया था, अन्य िकसी ऐसे न्यायालय की, िजसके पर्थम विणत न्यायालय अधीनस्थ है, सम्मित के िबना नह
िकया जाएगा ।
(6) इस धारा की कोई बात साधारण खंड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 26 के या इस संिहता की धारा 188 के
उपबंध पर पर्भाव न डालेगी ।
स्पष्टीकरण—पिरवाद का खािरज िकया जाना या अिभयुक्त का उन्मोचन इस धारा के पर्योजन के िलए दोषमुिक्त नह है ।

दृष्टांत
(क) क का िवचारण सेवक की हैिसयत म चोरी करने के आरोप पर िकया जाता है और वह दोषमुक्त कर िदया जाता है ।
जब तक दोषमुिक्त पर्वृ रहे, उस पर सेवक के रूप म चोरी के िलए या उन्ह तथ्य पर के वल चोरी के िलए या आपरािधक
न्यासभंग के िलए बाद म आरोप नह लगाया जा सकता है ।
(ख) घोर उपहित कािरत करने के िलए क का िवचारण िकया जाता है और वह दोषिस िकया जाता है । क्षत िक्त
तत्पश्चात् मर जाता है । आपरािधक मानववध के िलए क का पुन: िवचारण िकया जा सके गा ।
(ग) ख के आपरािधक मानववध के िलए क पर सेशन न्यायालय के समक्ष आरोप लगाया जाता है और वह दोषिस
िकया जाता है । ख की हत्या के िलए क का उन्ह तथ्य पर तत्पश्चात् िवचारण नह िकया जा सके गा ।
(घ) ख को स्वेच्छा से उपहित कािरत करने के िलए क पर पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट ारा आरोप लगाया जाता है और वह
दोषिस िकया जाता है । ख को स्वेच्छा से घोर उपहित कािरत करने के िलए क का उन्ह तथ्य पर तत्पश्चात् िवचारण नह
िकया जा सके गा जब तक िक मामला इस धारा की उपधारा (3) के अन्दर न आए ।
(ङ) ख के शरीर से सम्पि की चोरी करने के िलए क पर ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा आरोप लगाया जाता है और वह
दोषिस िकया जाता है । उन्ह तथ्य पर तत्पश्चात् क पर लूट का आरोप लगाया जा सके गा और उसका िवचारण िकया जा
सके गा ।
(च) घ को लूटने के िलए क, ख और ग पर पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट ारा आरोप लगाया जाता है और वे दोषिस िकए जाते
ह । डकै ती के िलए उन्ह तथ्य पर तत्पश्चात् क, ख और ग पर आरोप लगाया जा सके गा और उनका िवचारण िकया जा सके गा ।
88

301. लोक अिभयोजक ारा हािजरी—(1) िकसी मामले का भारसाधक लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक िकसी
न्यायालय म, िजसम वह मामला जांच, िववरण या अपील के अधीन है, िकसी िलिखत पर्ािधकार के िबना हािजर हो सकता है और
अिभवचन कर सकता है ।
(2) िकसी ऐसे मामले म यिद कोई पर्ाइवेट िक्त िकसी न्यायालय म िकसी िक्त को अिभयोिजत करने के िलए िकसी प्लीडर
को अनुदश े देता है तो मामले का भारसाधक लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक अिभयोजन का संचालन करे गा और ऐसे
अनुिदष्ट प्लीडर उसम लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक के िनदेश के अधीन कायर् करे गा और न्यायालय की अनुज्ञा से उस
मामले म सा य की समािप्त पर िलिखत रूप म तकर् पेश कर सके गा ।
302. अिभयोजन का संचालन करने की अनुज्ञा—(1) िकसी मामले की जांच या िवचारण करने वाला कोई मिजस्टर्ेट िनरीक्षक की
पंिक्त से नीचे के पुिलस अिधकारी से िभन्न िकसी भी िक्त ारा अिभयोजन के संचािलत िकए जाने की अनुज्ञा दे सकता है ; िकन्तु
महािधववक्ता या सरकारी अिधववक्ता या लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक से िभन्न कोई िक्त ऐसी अनुज्ञा के िबना ऐसा
करने का हकदार न होगा :
परन्तु यिद पुिलस के िकसी अिधकारी ने उस अपराध के अन्वेषण म, िजसके बारे म अिभयुक्त का अिभयोजन िकया जा रहा है,
भाग िलया है तो अिभयोजन का संचालन करने की उसे अनुज्ञा न दी जाएगी ।
(2) अिभयोजन का संचालन करने वाला कोई िक्त स्वयं या प्लीडर ारा ऐसा कर सकता है ।
303. िजस िक्त के िवरु कायर्वाही संिस्थत की गई है उसका पर्ितरक्षा कराने का अिधकार—जो िक्त दंड न्यायालय के समक्ष
अपराध के िलए अिभयुक्त है या िजसके िवरु इस संिहता के अधीन कायर्वाही संिस्थत की गई है, उसका यह अिधकार होगा िक उसकी
पसंद के प्लीडर ारा उसकी पर्ितरक्षा की जाए ।
304. कु छ मामल म अिभयुक्त को राज्य के य पर िविधक सहायता—(1) जहां सेशन न्यायालय के समक्ष िकसी िवचारण म,
अिभयुक्त का पर्ितिनिधत्व िकसी प्लीडर ारा नह िकया जाता है और जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक अिभयुक्त के पास िकसी
प्लीडर को िनयुक्त करने के िलए पयार्प्त साधन नह है, वहां न्यायालय उसकी पर्ितरक्षा के िलए राज्य के य पर प्लीडर
उपलब्ध करे गा ।
(2) राज्य सरकार के पूवर् अनुमोदन से उच्च न्यायालय—
(क) उपधारा (1) के अधीन पर्ितरक्षा के िलए प्लीडर के चयन के ढंग का,
(ख) ऐसे प्लीडर को न्यायालय ारा दी जाने वाली सुिवधा का,
(ग) ऐसे प्लीडर को सरकार ारा संदय
े फीस का और साधारणत: उपधारा (1) के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए,
उपबंध करने वाले िनयम बना सकता है ।
(3) राज्य सरकार अिधसूचना ारा यह िनदेश दे सकती है िक उस तारीख से, जो अिधसूचना म िविनिदष्ट की जाए, उपधारा (1)
और (2) के उपबंध राज्य के अन्य न्यायालय के समक्ष िकसी वगर् के िवचारण के संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे सेशन न्यायालय के
समक्ष िवचारण के संबंध म लागू होते ह ।
305. पर्िकर्या, जब िनगम या रिजस्टर्ीकृ त सोसाइटी अिभयुक्त है—(1) इस धारा म “िनगम” से कोई िनगिमत कम्पनी या अन्य
िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है, और इसके अंतगर्त सोसाइटी रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त
सोसाइटी भी है ।
(2) जहां कोई िनगम िकसी जांच या िवचारण म अिभयुक्त िक्त या अिभयुक्त िक्तय म से एक है वहां वह ऐसी जांच या
िवचारण के पर्योजनाथर् एक पर्ितिनिध िनयुक्त कर सकता है और ऐसी िनयुिक्त िनगम की मुदर्ा के अधीन करना आवश्यक नह होगा ।
(3) जहां िनगम का कोई पर्ितिनिध हािजर होता है, वहां इस संिहता की इस अपेक्षा का िक कोई बात अिभयुक्त की हािजरी म की
जाएगी या अिभयुक्त को पढ़कर सुनाई जाएगी या बताई जाएगी या समझाई जाएगी, इस अपेक्षा के रूप म अथर् लगाया जाएगा िक वह
बात पर्ितिनिध की हािजरी म की जाएगी, पर्ितिनिध को पढ़कर सुनाई जाएगी या बताई जाएगी या समझाई जाएगी और िकसी ऐसी
अपेक्षा का िक अिभयुक्त की परीक्षा की जाएगी, इस अपेक्षा के रूप म अथर् लगाया जाएगा िक पर्ितिनिध की परीक्षा की जाएगी ।
(4) जहां िनगम का कोई पर्ितिनिध हािजर नह होता है, वहां कोई ऐसी अपेक्षा, जो उपधारा (3) म िनिदष्ट है, लागू नह होगी ।
(5) जहां िनगम के पर्बंध िनदेशक ारा या िकसी ऐसे िक्त ारा (वह चाहे िजस नाम से पुकारा जाता हो) जो िनगम के
कायर्कलाप का पर्बंध करता है या पर्बंध करने वाले िक्तय म से एक है, हस्ताक्षर िकया गया तात्पियत इस भाव का िलिखत कथन
फाइल िकया जाता है िक कथन म नािमत िक्त को इस धारा के पर्योजन के िलए िनगम के पर्ितिनिध के रूप म िनयुक्त िकया गया है,
वहां न्यायालय, जब तक इसके पर्ितकू ल सािबत नह िकया जाता है, यह उपधारणा करे गा िक ऐसा िक्त इस पर्कार िनयुक्त िकया
गया है ।
(6) यिद यह पर्श्न उठता है िक न्यायालय के समक्ष िकसी जांच या िवचारण म िनगम के पर्ितिनिध के रूप म हािजर होने वाला
89

कोई िक्त ऐसा पर्ितिनिध है या नह , तो उस पर्श्न का अवधारण न्यायालय ारा िकया जाएगा ।
306. सह-अपराधी को क्षमा-दान—(1) िकसी ऐसे अपराध से, िजसे यह धारा लागू होती है, पर्त्यक्ष या परोक्ष रूप म संब या
संसिगत समझे जाने वाले िकसी िक्त का सा य अिभपर्ाप्त करने की दृिष्ट से, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट अपराध के
अन्वेषण या जांच या िवचारण के िकसी पर्कर्म म, और अपराध की जांच या िवचारण करने वाला पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट जांच या िवचारण
के िकसी पर्कर्म म उस िक्त को इस शतर् पर क्षमा-दान कर सकता है िक वह अपराध के संबंध म और उसके िकए जाने म चाहे कतार् या
दुपर्ेरक के रूप म संब पर्त्येक अन्य िक्त के संबध
ं म सब पिरिस्थितय का, िजनकी उसे जानकारी हो, पूणर् और सत्य पर्कटन कर दे ।
(2) यह धारा िनम्निलिखत को लागू होती है :—
(क) अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा या दंड िविध संशोधन अिधिनयम, 1952 (1952 का 46) के अधीन िनयुक्त िवशेष
न्यायाधीश के न्यायालय ारा िवचारणीय कोई अपराध ;
(ख) ऐसे कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो या अिधक कठोर दंड से दंडनीय कोई अपराध ।
(3) पर्त्येक मिजस्टर्ेट, जो उपधारा (1) के अधीन क्षमा-दान करता है,—
(क) ऐसा करने के अपने कारण को अिभिलिखत करे गा ;
(ख) यह अिभिलिखत करे गा िक क्षमा-दान उस िक्त ारा, िजसको िक वह िकया गया था स्वीकार कर िलया गया था
या नह ,
और अिभयुक्त ारा आवेदन िकए जाने पर उसे ऐसे अिभलेख की पर्ितिलिप िन:शुल्क देगा ।
(4) उपधारा (1) के अधीन क्षमा-दान स्वीकार करने वाले—
(क) पर्त्येक िक्त की अपराध का संज्ञान करने वाले मिजस्टर्ेट के न्यायालय म और पश्चात्वत िवचारण म यिद कोई हो,
साक्षी के रूप म परीक्षा की जाएगी ;
(ख) पर्त्येक िक्त को, जब तक िक वह पहले से ही जमानत पर न हो, िवचारण खत्म होने तक अिभरक्षा म िनरु
रखा जाएगा ।
(5) जहां िकसी िक्त ने उपधारा (1) के अधीन िकया गया क्षमा-दान स्वीकार कर िलया है और उसकी उपधारा (4) के अधीन
परीक्षा की जा चुकी है, वहां अपराध का संज्ञान करने वाला मिजस्टर्ेट, मामले म कोई अितिरक्त जांच िकए िबना, —
(क) मामले को—
(i) यिद अपराध अनन्यत: सेशन न्यायालय ारा िवचारणीय है या यिद संज्ञान करने वाला मिजस्टर्ेट मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट है तो, उस न्यायालय को सुपुदर् कर देगा ;
(ii) यिद अपराध अनन्यत: दंड िविध संशोधन अिधिनयम, 1952 (1952 का 46) के अधीन िनयुक्त िवशेष न्यायाधीश
के न्यायालय ारा िवचारणीय है तो उस न्यायालय को सुपुदर् कर देगा ;
(ख) िकसी अन्य दशा म, मामला मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के हवाले करे गा जो उसका िवचारण स्वयं करे गा ।
307. क्षमा-दान का िनदेश देने की शिक्त—मामले की सुपुदग र् ी के पश्चात् िकसी समय िकन्तु िनणर्य िदए जाने के पूवर् वह न्यायालय
िजसे मामला सुपुदर् िकया जाता है िकसी ऐसे अपराध से पर्त्यक्ष या परोक्ष रूप म सम्ब या संसिगत समझे जाने वाले िकसी िक्त का
सा य िवचारण म अिभपर्ाप्त करने की दृिष्ट से उस िक्त को उसी शतर् पर क्षमा-दान कर सकता है ।
308. क्षमा की शत का पालन न करने वाले िक्त का िवचारण—(1) जहां ऐसे िक्त के बारे म िजसने धारा 306 या धारा 307
के अधीन क्षमा-दान स्वीकार कर िलया है, लोक अिभयोजक पर्मािणत करता है िक उसकी राय म ऐसे िक्त ने या तो िकसी अत्यावश्यक
बात को जानबूझकर िछपा कर या िमथ्या सा य देकर उस शतर् का पालन नह िकया है िजस पर क्षमा-दान िकया गया था वहां ऐसे
िक्त का िवचारण उस अपराध के िलए, िजसके बारे म ऐसे क्षमा-दान िकया गया था या िकसी अन्य अपराध के िलए, िजसका वह उस
िवषय के संबंध म दोषी पर्तीत होता है, और िमथ्या सा य देने के िलए भी अपराध के िलए भी िवचारण िकया जा सकता है :
परन्तु ऐसे िक्त का िवचारण अन्य अिभयुक्त म से िकसी के साथ संयुक्तत: नह िकया जाएगा :
परन्तु यह और िक िमथ्या सा य देने के अपराध के िलए ऐसे िक्त का िवचारण उच्च न्यायालय की मंजूरी के िबना नह िकया
जाएगा और धारा 195 या धारा 340 की कोई बात उस अपराध को लागू न होगी ।
(2) क्षमा-दान स्वीकार करने वाले ऐसे िक्त ारा िकया गया और धारा 164 के अधीन िकसी मिजस्टर्ेट ारा या धारा 306 की
उपधारा (4) के अधीन िकसी न्यायालय ारा अिभिलिखत कोई कथन ऐसे िवचारण म उसके िवरु सा य म िदया जा सकता है ।
(3) ऐसे िवचारण म अिभयुक्त यह अिभवचन करने का हकदार होगा िक उसने उन शत का पालन कर िदया है िजन पर उसे क्षमा-
दान िदया गया था, और तब यह सािबत करना अिभयोजन का काम होगा िक ऐसी शत का पालन नह िकया गया है ।
90

(4) ऐसे िवचारण के समय न्यायालय—


(क) यिद वह सेशन न्यायालय है तो आरोप अिभयुक्त को पढ़कर सुनाए जाने और समझाए जाने के पूवर् ;
(ख) यिद वह मिजस्टर्ेट का न्यायालय है तो अिभयोजन के सािक्षय का सा य िलए जाने के पूवर्,
अिभयुक्त से पूछेगा िक क्या वह यह अिभवचन करता है िक उसने उन शत का पालन िकया है िजन पर उसे क्षमा-दान िदया गया था ।
(5) यिद अिभयुक्त ऐसा अिभवचन करता है तो न्यायालय उस अिभवाक् को अिभिलिखत करे गा और िवचारण के िलए अगर्सर
होगा और वह मामले म िनणर्य देने के पूवर् इस िवषय म िनष्कषर् िनकालेगा िक अिभयुक्त ने क्षमा की शत का पालन िकया है या नह ;
और यिद यह िनष्कषर् िनकलता है िक उसने ऐसा पालन िकया है तो वह इस संिहता म िकसी बात के होते हुए भी, दोषमुिक्त का
िनणर्य देगा ।
309. कायर्वाही को मुल्तवी या स्थिगत करने की शिक्त— 1 [(1) पर्त्येक जांच या िवचारण म, कायर्वािहयां सभी हािजर सािक्षय
की परीक्षा हो जाने तक िदन-पर्ितदन जारी रखी जाएंगी, जब तक िक ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, न्यायालय उन्ह अगले
िदन से परे स्थिगत करना आवश्यक न समझे :
परन्तु जब जांच या िवचारण भारतीय दंड संिहता की धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग या धारा 376घ के
अधीन िकसी अपराध से संबंिधत है, तब जांच या िवचारण, यथासंभव आरोप पतर् फाइल िकए जाने की तारीख से दो मास की अविध के
भीतर पूरा िकया जाएगा ।]
(2) यिद न्यायालय िकसी अपराध का संज्ञान करने या िवचारण के पर्ारं भ होने के पश्चात् यह आवश्यक या उिचत समझता है िक
िकसी जांच या िवचारण का पर्ारं भ करना मुल्तवी कर िदया जाए या उसे स्थिगत कर िदया जाए तो वह समय-समय पर ऐसे कारण से,
जो लेखब िकए जाएंग,े ऐसे िनबन्धन पर, जैसे वह ठीक समझे, उतने समय के िलए िजतना वह उिचत समझे उसे मुल्तवी या स्थिगत
कर सकता है और यिद अिभयुक्त अिभरक्षा म है तो उसे वारण्ट ारा पर्ितपर्ेिषत कर सकता है :
परन्तु कोई मिजस्टर्ेट िकसी अिभयुक्त को इस धारा के अधीन एक समय म पन्दर्ह िदन से अिधक की अविध के िलए अिभरक्षा म
पर्ितपर्ेिषत न करे गा :
परन्तु यह और िक जब साक्षी हािजर ह तब उनकी परीक्षा िकए िबना स्थगन या मुल्तवी करने की मंजूरी िवशेष कारण के िबना,
जो लेखब िकए जाएंग,े नह दी जाएगी :
[परन्तु यह भी िक कोई स्थगन के वल इस पर्योजन के िलए नह मंजूर िकया जाएगा िक वह अिभयुक्त
2
िक्त को उस पर
अिधरोिपत िकए जाने के िलए पर्स्थािपत दंडादेश के िवरु हेतुक दिशत करने म समथर् बनाए ।]
3
[परं तु यह भी िक—
(क) कोई भी स्थगन िकसी पक्षकार के अनुरोध पर तभी मंजूर िकया जाएगा, जब पिरिस्थितयां उस पक्षकार के िनयंतर्ण
से परे ह ;
(ख) यह तथ्य िक पक्षकार का प्लीडर िकसी अन्य न्यायालय म स्त है, स्थगन के िलए आधार नह होगा ;
(ग) जहां साक्षी न्यायालय म हािजर है िकतु पक्षकार या उसका प्लीडर हािजर नह है या पक्षकार या उसका प्लीडर
न्यायालय म हािजर तो है, िकतु साक्षी की परीक्षा या पर्ितपरीक्षा करने के िलए तैयार नह है वहां यिद न्यायालय ठीक समझता है
तो वह साक्षी का कथन अिभिलिखत कर सके गा और ऐसे आदेश पािरत कर सके गा, जो, यथािस्थित, साक्षी की मुख्य परीक्षा या
पर्ितपरीक्षा से छू ट देने के िलए ठीक समझे ।]
स्पष्टीकरण 1—यिद यह संदह
े करने के िलए पयार्प्त सा य पर्ाप्त कर िलया गया है िक हो सकता है िक अिभयुक्त ने अपराध
िकया है और यह संभा पर्तीत होता है िक पर्ितपर्ेषण करने पर अितिरक्त सा य पर्ाप्त िकया जा सकता है तो यह पर्ितपर्ेषण के िलए एक
उिचत कारण होगा ।
स्पष्टीकरण 2—िजन िनबंधन पर कोई स्थगन या मुल्तवी करना मंजूर िकया जा सकता है, उनके अन्तगर्त समुिचत मामल म
अिभयोजन या अिभयुक्त ारा खच का िदया जाना भी है ।
310. स्थानीय िनरीक्षण—(1) कोई न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म, पक्षकार
को सम्यक् सूचना देने के पश्चात् िकसी स्थान म, िजसम अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, या िकसी अन्य स्थान म जा सकता है और
उसका िनरीक्षण कर सकता है, िजसके बारे म उसकी राय है िक उसका अवलोकन ऐसी जांच या िवचारण म िदए गए सा य का उिचत
िववेचन करने के पर्योजन से आवश्यक है और ऐसे िनरीक्षण म देखे गए िकन्ह सुसग ं त तथ्य का ज्ञापन, अनावश्यक िवलम्ब के िबना,
लेखब करे गा ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 21 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 21 ारा अंत:स्थािपत ।
91

(2) ऐसा ज्ञापन मामले के अिभलेख का भाग होगा और यिद अिभयोजक, पिरवादी या अिभयुक्त या मामले का अन्य कोई पक्षकार
ऐसा चाहे तो उसे ज्ञापन की पर्ितिलिप िन:शुल्क दी जाएगी ।
311. आवश्यक साक्षी को समन करने या उपिस्थत िक्त की परीक्षा करने की शिक्त—कोई न्यायालय इस संिहता के अधीन
िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म िकसी िक्त को साक्षी के तौर पर समन कर सकता है या िकसी ऐसे िक्त
की, जो हािजर हो, य िप वह साक्षी के रूप म समन न िकया गया हो, परीक्षा कर सकता है, िकसी िक्त को, िजसकी पहले परीक्षा की
जा चुकी है पुन: बुला सकता है और उसकी पुन: परीक्षा कर सकता है ; और यिद न्यायालय को मामले के न्यायसंगत िविनश्चय के िलए
िकसी ऐसे िक्त का सा य आवश्यक पर्तीत होता है तो वह ऐसे िक्त को समन करे गा और उसकी परीक्षा करे गा या उसे पुन: बुलाएगा
और उसकी पुन: परीक्षा करे गा ।
[311क. नमूना हस्ताक्षर या हस्तलेख देने के िलए िकसी िक्त को आदेश देने की मिजस्टर्ेट की शिक्त—यिद पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
1

का यह समाधान हो जाता है िक इस संिहता के अधीन िकसी अन्वेषण या कायर्वाही के पर्योजन के िलए, िकसी िक्त को, िजसके
अन्तगर्त अिभयुक्त िक्त भी है, नमूना हस्ताक्षर या हस्तलेख देने के िलए िनदश देना समीचीन है, तो वह उस आशय का आदेश कर
सके गा और उस दशा म, वह िक्त, िजससे आदेश संबंिधत है, ऐसे आदेश म िविनिदष्ट समय और स्थान पर पेश िकया जाएगा या वहां
उपिस्थत होगा और अपने नमूना हस्ताक्षर या हस्तलेख देगा :
परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब तक उस िक्त को ऐसे अन्वेषण या कायर्वाही के संबंध म
िकसी समय िगरफ्तार न िकया गया हो ।]
312. पिरवािदय और सािक्षय के य—राज्य सरकार ारा बनाए गए िकन्ह िनयम के अधीन रहते हुए, यिद कोई दंड
न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे न्यायालय के समक्ष इस संिहता के अधीन िकसी जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही के पर्योजन से
हािजर होने वाले िकसी पिरवादी या साक्षी के उिचत य के राज्य सरकार ारा िदए जाने के िलए आदेश दे सकता है ।
313. अिभयुक्त की परीक्षा करने की शिक्त—(1) पर्त्येक जांच या िवचारण म, इस पर्योजन से िक अिभयुक्त अपने िवरु सा य म
पर्कट होने वाली िकन्ह पिरिस्थितय का स्वयं स्पष्टीकरण कर सके , न्यायालय—
(क) िकसी पर्कर्म म, अिभयुक्त को पहले से चेतावनी िदए िबना, उससे ऐसे पर्श्न कर सकता है जो न्यायालय
आवश्यक समझे ;
(ख) अिभयोजन के सािक्षय की परीक्षा िकए जाने के पश्चात् और अिभयुक्त से अपनी पर्ितरक्षा करने की अपेक्षा िकए जाने
के पूवर् उस मामले के बारे म उससे साधारणतया पर्श्न करे गा :

परन्तु िकसी समन-मामले म, जहां न्यायालय ने अिभयुक्त को वैयिक्तक हािजरी से अिभमुिक्त दे दी है, वहां वह खंड (ख)
के अधीन उसकी परीक्षा से भी अिभमुिक्त दे सकता है ।

(2) जब अिभयुक्त की उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है तब उसे कोई शपथ न िदलाई जाएगी ।

(3) अिभयुक्त ऐसे पर्श्न के उ र देने से इनकार करने से या उसके िमथ्या उ र देने से दंडनीय न हो जाएगा ।

(4) अिभयुक्त ारा िदए गए उ र पर उस जांच या िवचारण म िवचार िकया जा सकता है और िकसी अन्य ऐसे अपराध की,
िजसका उसके ारा िकया जाना दशार्ने की उन उ र की पर्वृि हो, िकसी अन्य जांच या िवचारण म ऐसे उ र को उसके पक्ष म या
उसके िवरु सा य के तौर पर रखा जा सकता है ।
2
[(5) न्यायालय ऐसे सुसंगत पर्श्न तैयार करने म, जो अिभयुक्त से पूछे जाने ह, अिभयोजक और पर्ितरक्षा काउं सेल की सहायता ले
सके गा और न्यायालय इस धारा के पयार्प्त अनुपालन के रूप म अिभयुक्त ारा िलिखत कथन फाइल िकए जाने की अनुज्ञा दे सके गा ।]

314. मौिखक बहस और बहस का ज्ञापन—(1) कायर्वाही का कोई पक्षकार, अपने सा य की समािप्त के पश्चात् यथाशक्य शीघर्
संिक्षप्त मौिखक बहस कर सकता है और अपनी मौिखक बहस, यिद कोई हो, पूरी करने के पूवर्, न्यायालय को एक ज्ञापन दे सकता है
िजसम उसके पक्ष के समथर्न म तकर् संक्षेप म और सुिभन्न शीषर्क म िदए जाएंगे, और ऐसा पर्त्येक ज्ञापन अिभलेख का भाग होगा ।

(2) ऐसे पर्त्येक ज्ञापन की एक पर्ितिलिप उसी समय िवरोधी पक्षकार को दी जाएगी ।

(3) कायर्वाही का कोई स्थगन िलिखत बहस फाइल करने के पर्योजन के िलए तब तक नह िदया जाएगा जब तक न्यायालय ऐसे
कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, ऐसा स्थगन मंजूर करना आवश्यक न समझे ।

(4) यिद न्यायालय की यह राय है िक मौिखक बहस संिक्षप्त या सुसंगत नह है तो वह ऐसी बहस को िविनयिमत कर सकता है ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 27 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 22 ारा अंत:स्थािपत ।
92

315. अिभयुक्त िक्त का सक्षम साक्षी होना—(1) कोई िक्त, जो िकसी अपराध के िलए िकसी दंड न्यायालय के समक्ष
अिभयुक्त है, पर्ितरक्षा के िलए सक्षम साक्षी होगा और अपने िवरु या उसी िवचारण म उसके साथ आरोिपत िकसी िक्त के िवरु
लगाए गए आरोप को नासािबत करने के िलए शपथ पर सा य दे सकता है :

परन्तु—

(क) वह स्वयं अपनी िलिखत पर्ाथर्ना के िबना साक्षी के रूप म न बुलाया जाएगा,

(ख) उसका स्वयं सा य न देना पक्षकार म से िकसी के ारा या न्यायालय ारा िकसी टीका-िटप्पणी का िवषय न बनाया
जाएगा और न उसे उसके , या उसी िवचारण म उसके साथ आरोिपत िकसी िक्त के िवरु कोई उपधारणा ही की जाएगी ।

(2) कोई िक्त िजसके िवरु िकसी दंड न्यायालय म धारा 98 या धारा 107 या धारा 108 या धारा 109 या धारा 110 के अधीन
या अध्याय 9 के अधीन या अध्याय 10 के भाग ख, भाग ग या भाग घ के अधीन कायर्वाही संिस्थत की जाती, ऐसी कायर्वाही म अपने
आपको साक्षी के रूप म पेश कर सकता है :

परन्तु धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कायर्वाही म ऐसे िक्त ारा सा य न देना पक्षकार म से िकसी के ारा या
न्यायालय के ारा िकसी टीका-िटप्पणी का िवषय नह बनाया जाएगा और न उसे उसके या िकसी अन्य िक्त के िवरु िजसके िवरु
उसी जांच म ऐसे िक्त के साथ कायर्वाही की गई है, कोई उपधारणा ही की जाएगी ।

316. पर्कटन उपर्ेिरत करने के िलए िकसी असर का काम म न लाया जाना—धारा 306 और 307 म जैसा उपबंिधत है उसके
िसवाय, िकसी वचन या धमकी ारा या अन्यथा कोई असर अिभयुक्त िक्त पर इस उ ेश्य से नह डाला जाएगा िक उसे अपनी
जानकारी की िकसी बात को पर्कट करने या न करने के िलए उपर्ेिरत िकया जाए ।
317. कु छ मामल म अिभयुक्त की अनुपिस्थित म जांच और िवचारण िकए जाने के िलए उपबंध—(1) इस संिहता के अधीन जांच
या िवचारण के िकसी पर्कर्म म यिद न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट का उन कारण से, जो अिभिलिखत िकए जाएंग,े समाधान हो जाता है िक
न्यायालय के समक्ष अिभयुक्त की वैयिक्तक हािजरी न्याय के िहत म आवश्यक नह है या अिभयुक्त न्यायालय की कायर्वाही म बार-बार
िवघ्न डालता है तो, ऐसे अिभयुक्त का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा िकए जाने की दशा म, वह न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट उसकी हािजरी से
उसे अिभमुिक्त दे सकता है और उसकी अनुपिस्थित म ऐसी जांच या िवचारण करने के िलए अगर्सर हो सकता है और कायर्वाही के िकसी
पश्चात्वत पर्कर्म म ऐसे अिभयुक्त को वैयिक्तक हािजरी का िनदेश दे सकता है ।
(2) यिद ऐसे िकसी मामले म अिभयुक्त का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा नह िकया जा रहा है अथवा यिद न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट
का यह िवचार है िक अिभयुक्त की वैयिक्तक हािजरी आवश्यक है तो, यिद वह ठीक समझे तो, उन कारण से, जो उसके ारा लेखब
िकए जाएंग,े वह या तो ऐसी जांच या िवचारण स्थिगत कर सकता है या आदेश दे सकता है िक ऐसे अिभयुक्त का मामला अलग से िलया
जाए या िवचािरत िकया जाए ।
318. पर्िकर्यां जहां अिभयुक्त कायर्वाही नह समझता है—यिद अिभयुक्त िवकृ त-िच न होने पर भी ऐसा है िक उसे कायर्वाही
समझाई नह जा सकती तो न्यायालय जांच या िवचारण म अगर्सर हो सकता है ; और उच्च न्यायालय से िभन्न न्यायालय की दशा म,
यिद ऐसी कायर्वाही का पिरणाम दोषिसि है, तो कायर्वाही को मामले की पिरिस्थितय की िरपोटर् के साथ उच्च न्यायालय भेज िदया
जाएगा और उच्च न्यायालय उस पर ऐसा आदेश देगा जैसा वह ठीक समझे ।
319. अपराध के दोषी पर्तीत होने वाले अन्य िक्तय के िवरु कायर्वाही करने की शिक्त—(1) जहां िकसी अपराध की जांच या
िवचारण के दौरान सा य से यह पर्तीत होता है िक िकसी िक्त ने, जो अिभयुक्त नह है, कोई ऐसा अपराध िकया है िजसके िलए ऐसे
िक्त का अिभयुक्त के साथ िवचारण िकया जा सकता है, वहां न्यायालय उस िक्त के िवरु उस अपराध के िलए िजसका उसके ारा
िकया जाना पर्तीत होता है, कायर्वाही कर सकता है ।
(2) जहां ऐसा िक्त न्यायालय म हािजर नह है वहां पूव क्त पर्योजन के िलए उसे मामले की पिरिस्थितय की अपेक्षानुसार,
िगरफ्तार या समन िकया जा सकता है ।
(3) कोई िक्त जो िगरफ्तार या समन न िकए जाने पर भी न्यायालय म हािजर है, ऐसे न्यायालय ारा उस अपराध के िलए,
िजसका उसके ारा िकया जाना पर्तीत होता है, जांच या िवचारण के पर्योजन के िलए िनरु िकया जा सकता है ।
(4) जहां न्यायालय िकसी िक्त के िवरु उपधारा (1) के अधीन कायर्वाही करता है, वहां—
(क) उस िक्त के बारे म कायर्वाही िफर से पर्ारं भ की जाएगी और सािक्षय को िफर से सुना जाएगा ;
(ख) खंड (क) के उपबंध के अधीन रहते हुए, मामले म ऐसे कायर्वाही की जा सकती है, मानो वह िक्त उस समय
अिभयुक्त िक्त था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान िकया था िजस पर जांच या िवचारण पर्ारं भ िकया गया था ।
320. अपराध का शमन—(1) नीचे दी गई सारणी के पर्थम दो स्तम्भ म िविनिदष्ट भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की
93

धारा के अधीन दंडनीय अपराध का शमन उस सारणी के तृतीय स्तम्भ म उिल्लिखत िक्तय ारा िकया जा सकता है :—
1
[सारणी

अपराध भारतीय दंड वह िक्त िजसके ारा अपराध का शमन िकया जा सकता
संिहता की है
धारा जो लागू
होती है
1 2 3
िकसी िक्त की धािमक भावना को ठे स 298 वह िक्त िजसकी धािमक भावना को ठे स पहुंचना
पहुंचाने के िवमिशत आशय से शब्द उच्चािरत आशियत है ।
करना, आिद ।
स्वेच्छया उपहित कािरत करना । 323 वह िक्त िजसे उपहित कािरत की गई है ।
पर्कोपन पर स्वेच्छया उपहित कािरत करना । 334 यथोक्त ।
गंभीर और अचानक पर्कोपन पर स्वेच्छया घोर 335 वह िक्त िजसे उपहित कािरत की गई है ।
उपहित कािरत करना ।
िकसी िक्त का सदोष अवरोध या पिररोध । 341, 342 वह िक्त जो अवरु या पिररु िकया गया है ।
िकसी िक्त का तीन या अिधक िदन के िलए 343 पिररु िक्त ।
सदोष पिररोध ।
िकसी िक्त का दस या अिधक िदन के िलए सदोष 344 यथोक्त ।
पिररोध ।
िकसी िक्त का गुप्त स्थान म सदोष पिररोध । 346 यथोक्त ।
हमला या आपरािधक बल का पर्योग । 352, 355, वह िक्त िजस पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग
358 िकया गया है ।
चोरी । 379 चुराई हुई संपि का स्वामी ।
संपि का बेईमानी से दुिविनयोग । 403 दुिविनयोिजत संपि का स्वामी ।
वाहक, घाटवाल, आिद ारा आपरािधक 407 उस संपि का स्वामी, िजसके संबंध म न्यासभंग िकया
न्यासभंग । गया है ।
चुराई हुई संपि को, उसे चुराई हुई जानते हुए 411 चुराई हुई संपि का स्वामी ।
बेईमानी से पर्ाप्त करना ।
चुराई हुई संपि को, यह जानते हुए िक वह चुराई 414 यथोक्त ।
हुई है, िछपाने म या यिनत करने म सहायता
करना ।
छल । 417 वह िक्त िजससे छल िकया गया है ।
पर्ितरूपण ारा छल । 419 यथोक्त ।
लेनदार म िवतरण िनवािरत करने के िलए संपि 421 उससे पर्भािवत लेनदार ।
आिद का कपटपूवर्क अपसारण या िछपाना ।
अपराधी का अपने को शोध्य ऋण या मांग का 422 उससे पर्भािवत लेनदार ।
लेनदार के िलए उपलब्ध कया जाना कपटपूवक
र्
िनवािरत करना ।
अंतरण के ऐसे िवलेख का, िजसम पर्ितफल के संबंध 423 उससे पर्भािवत िक्त ।
म िमथ्या कथन अंतिवष्ट है, कपटपूवर्क िनष्पादन ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 23 ारा सारणी के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
94

1 2 3
संपि का कपटपूवर्क अपसारण या िछपाया जाना । 424 उससे पर्भािवत िक्त ।
िरिष्ट, जब कािरत हािन या नुकसान के वल पर्ाइवेट 426, 427 वह िक्त, िजसे हािन या नुकसान हुआ है ।
िक्त को हुई हािन या नुकसान है ।
जीवजन्तु का वध करने या उसे िवकलांग करने के 428 जीवजन्तु का स्वामी ।
ारा िरिष्ट ।
ढोर आिद का वध करने या उसे िवकलांग करने के 429 ढोर या जीवजन्तु का स्वामी ।
ारा िरिष्ट ।
िसचन संकमर् को क्षित करने या जल को दोषपूवर्क 430 वह िक्त, िजसे हािन या नुकसान हुआ है ।
मोड़ने के ारा िरिष्ट, जब उससे कािरत हािन या
नुकसान के वल पर्ाइवेट िक्त को हुई हािन या
नुकसान है ।
आपरािधक अितचार । 447 वह िक्त िजसके कब्जे म ऐसी संपि है िजस पर
अितचार िकया गया है ।
गृह-अितचार । 448 यथोक्त ।
कारावास से दंडनीय अपराध को (चोरी से िभन्न) 451 वह िक्त िजसका उस गृह पर कब्जा है िजस पर अितचार
करने के िलए गृह-अितचार । िकया गया है ।
िमथ्या ापार या संपि िचह्न का उपयोग । 482 वह िक्त, िजसे ऐसे उपयोग से हािन या क्षित कािरत हुई
है ।
अन्य िक्त ारा उपयोग म लाए गए ापार या 483 यथोक्त ।
संपि िचह्न का कू टकरण ।
कू टकृ त संपि िचह्न से िचिह्नत माल को जानते 486 यथोक्त ।
हुए िवकर्य या अिभदिशत करना या िवकर्य के िलए
या िविनमार्ण के पर्योजन के िलए कब्जे म रखना ।
सेवा संिवदा का आपरािधक भंग । 491 वह िक्त िजसके साथ अपराधी ने संिवदा की है ।
जारकमर् । 497 स्तर्ी का पित ।
िववािहत स्तर्ी को आपरािधक आशय से फु सलाकर ले 498 स्तर्ी का पित और स्तर्ी ।
जाना या ले जाना या िनरु रखना ।
मानहािन, िसवाय ऐसे मामल के जो उपधारा (2) 500 वह िक्त िजसकी मानहािन की गई है ।
के नीचे की सारणी के स्तंभ 1 म भारतीय दंड
संिहता (1860 का 45) की धारा 500 के सामने
िविनिदष्ट िकए गए ह ।
मानहािनकारक जानी हुई बात को मुिदर्त या 501 यथोक्त ।
उत्कीणर् करना ।
मानहािनकारक िवषय रखने वाले मुिदर्त या उत्कीणर् 502 यथोक्त ।
पदाथर् का यह जानते हुए बेचना िक उसम ऐसा
िवषय अंतिवष्ट है ।
लोक-शांित भंग कराने को पर्कोिपत करने के आशय 504 अपमािनत िक्त ।
से अपमान ।
अपरािधक अिभतर्ास । 506 अिभतर्स्त िक्त ।
िकसी िक्त को यह िवश्वास करने के िलए 508 वह िक्त िजसे उपर्ेिरत िकया गया ।]
उपर्ेिरत करके िक वह दैवी अपर्साद का भाजन
होगा, कराया गया कायर् ।
95

(2) नीचे दी गई सारणी के पर्थम दो स्तम्भ म िविनिदष्ट भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा के अधीन दंडनीय
अपराध का शमन उस न्यायालय की अनुज्ञा से, िजनके समक्ष ऐसे अपराध के िलए कोई अिभयोजन लंिबत है, उस सारणी के तृतीय स्तंभ
म िलिखत िक्तय ारा िकया जा सकता है ।
1
[सारणी

अपराध भारतीय दंड वह िक्त िजसके ारा अपराध शमन िकया जा सकता है
संिहता की
धारा जो लागू
होती है
1 2 3
गभर्पात कािरत करना । 312 वह स्तर्ी िजसका गभर्पात िकया गया है ।
स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना । 325 वह िक्त िजसे उपहित कािरत की गई है ।
ऐसे उतावलेपन और उपेक्षा से कोई कायर् करने के 337 यथोक्त ।
ारा उपहित कािरत करना िजससे मानव जीवन
या दूसर का वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो जाए ।
ऐसे उतावलेपन और उपेक्षा से कोई कायर् करने के 338 यथोक्त ।
ारा घोर उपहित कािरत करना िजससे मानव
जीवन या दूसर का वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न
हो जाए ।
िकसी िक्त का सदोष पिररोध करने के पर्यत्न म 357 वह िक्त िजस पर हमला िकया गया या िजस पर बल का
हमला या आपरािधक बल का पर्योग । पर्योग िकया गया था ।
िलिपक या सेवक ारा स्वामी के कब्जे की संपि 381 चुराई हुई संपि का स्वामी ।
की चोरी ।
आपरािधक न्यासभंग । 406 उस संपि का स्वामी, िजसके संबंध म न्यास भंग िकया गया
है ।
िलिपक या सेवक ारा आपरािधक न्यासभंग । 408 उस संपि का स्वामी, िजसके संबंध म न्यास भंग िकया गया
है ।
ऐसे िक्त के साथ छल करना िजसका िहत 418 वह िक्त, िजससे छल िकया गया है ।
संरिक्षत रखने के िलए अपराधी या तो िविध ारा
या वैध संिवदा ारा आब था ।
छल करना या संपि पिरद करने अथवा 420 वह िक्त, िजससे छल िकया गया है ।
मूल्यवान पर्ितभूित की रचना करने या उसे
पिरवितत या नष्ट करने के िलए बेईमानी से
उपर्ेिरत करना ।
पित या पत्नी के जीवनकाल म पुन:िववाह करना । 494 ऐसे िववाह करने वाले िक्त का पित या पत्नी ।
राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या िकसी राज्य के 500 वह िक्त िजसकी मानहािन की गई है ।
राज्यपाल या िकसी संघ राज्यक्षेतर् के पर्शासक, या
िकसी मंतर्ी के िवरु , उसके लोक कृ त्य के संबंध म
मानहािन, जब मामला लोक अिभयोजक ारा
िकए गए पिरवाद पर संिस्थत है ।
स्तर्ी की लज्जा का अनादर करने के आशय से शब्द 509 वह स्तर्ी िजसका अनादर करना आशियत था या िजसकी
कहना या ध्विनयां करना या अंगिवक्षेप करना या एकांतता का अितकर्मण िकया गया था ।]
कोई वस्तु पर्दिशत करना या िकसी स्तर्ी की
एकांतता का अितकर्मण करना ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 23 ारा सारणी के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
96

[(3) जब कोई अपराध इस धारा के अधीन शमनीय है तब ऐसे अपराध के दुपर्ेरण का, अथवा ऐसे अपराध को करने के पर्यत्न का
1

(जब ऐसा पर्यत्न स्वयं अपराध हो) अथवा जहां अिभयुक्त भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 34 या धारा 149 के अधीन दायी
हो, शमन उसी पर्कार से िकया जा सकता है ।]
(4) (क) जब वह िक्त, जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के िलए अन्यथा सक्षम होता, अठारह वषर् से कम आयु का
है या जड़ या पागल है तब कोई िक्त जो उसकी ओर से संिवदा करने के िलए सक्षम हो, न्यायालय की अनुज्ञा से, ऐसे अपराध का शमन
कर सकता है ।
(ख) जब वह िक्त, जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के िलए अन्यथा सक्षम होता, मर जाता है तब ऐसे िक्त का,
िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) म यथापिरभािषत, िविधक पर्ितिनिध, न्यायालय की सम्मित से, ऐसे अपराध का शमन कर
सकता है ।
(5) जब अिभयुक्त िवचारणाथर् सुपुदर् कर िदया जाता है या जब वह दोषिस कर िदया जाता है और अपील लंिबत है, तब अपराध
का शमन, यथािस्थित, उस न्यायालय की इजाजत के िबना अनुज्ञात न िकया जाएगा िजसे वह सुपुदर् िकया गया है, या िजसके समक्ष
अपील सुनी जानी है ।
(6) धारा 401 के अधीन पुनरीक्षण की अपनी शिक्तय के पर्योग म कायर् करते हुए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय िकसी
िक्त को िकसी ऐसे अपराध का शमन करने की अनुज्ञा दे सकता है िजसका शमन करने के िलए वह िक्त इस धारा के अधीन
सक्षम है ।
(7) यिद अिभयुक्त पूवर् दोषिसि के कारण िकसी अपराध के िलए या तो विधत दंड से या िभन्न िकस्म के दंड से दंडनीय है तो ऐसे
अपराध का शमन न िकया जाएगा ।
(8) अपराध के इस धारा के अधीन शमन का पर्भाव उस अिभयुक्त की दोषमुिक्त होगा िजससे अपराध का शमन िकया गया है ।
(9) अपराध का शमन इस धारा के उपबंध के अनुसार ही िकया जाएगा, अन्यथा नह ।
321. अिभयोजन वापस लेना— िकसी मामले का भारसाधक कोई लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक िनणर्य सुनाए
जाने के पूवर् िकसी समय िकसी िक्त के अिभयोजन को या तो साधारणत: या उन अपराध म से िकसी एक या अिधक के बारे म, िजनके
िलए उस िक्त का िवचारण िकया जा रहा है, न्यायालय की सम्मित से वापस ले सकता है और ऐसे वापस िलए जाने पर—
(क) यिद वह आरोप िवरिचत िकए जाने के पहले िकया जाता है तो अिभयुक्त ऐसे अपराध या अपराध के बारे म
उन्मोिचत कर िदया जाएगा ;
(ख) यिद वह आरोप िवरिचत िकए जाने के पश्चात् या जब इस संिहता ारा कोई आरोप अपेिक्षत नह है, तब िकया जाता
है तो वह ऐसे अपराध या अपराध के बारे म दोषमुक्त कर िदया जाएगा;
परन्तु जहां—
(i) ऐसा अपराध िकसी ऐसी बात से संबंिधत िकसी िविध के िवरु है िजस पर संघ को कायर्पािलका शिक्त का
िवस्तार है, अथवा
(ii) ऐसे अपराध का अन्वेषण िदल्ली िवशेष पुिलस स्थापन अिधिनयम, 1946 (1946 का 25) के अधीन िदल्ली
िवशेष पुिलस ारा िकया गया है, अथवा
(iii) ऐसे अपराध म के न्दर्ीय सरकार को िकसी सम्पि का दुिविनयोग, नाश या नुकसान अन्तगर्र्स्त है, अथवा
(iv) ऐसा अपराध के न्दर्ीय सरकार की सेवा म िकसी िक्त ारा िकया गया है, जब वह अपने पदीय कतर् के
िनवर्हन म कायर् कर रहा है या कायर् करना तात्पियत है,
और मामले का भारसाधक अिभयोजक के न्दर्ीय सरकार ारा िनयुक्त नह िकया गया है, तो वह जब तक के न्दर्ीय सरकार ारा उसे ऐसा
करने की अनुज्ञा नह दी जाती है, अिभयोजन को वापस लेने के िलए न्यायालय से उसकी सम्मित के िलए िनवेदन नह करे गा तथा
न्यायालय अपनी सम्मित देने के पूवर्, अिभयोजक को यह िनदेश देगा िक वह अिभयोजन को वापस लेने के िलए के न्दर्ीय सरकार ारा दी
गई अनुज्ञा उसके समक्ष पेश करे ।
322. िजन मामल का िनपटारा मिजस्टर्ेट नह कर सकता, उनम पर्िकर्या—(1) यिद िकसी िजले म िकसी मिजस्टर्ेट के समक्ष
अपराध की िकसी जांच या िवचारण के दौरान उसे सा य ऐसा पर्तीत होता है िक उसके आधार पर यह उपधारणा की जा सकती
है िक—
(क) उसे मामले का िवचारण करने या िवचारणाथर् सुपुदर् करने की अिधकािरता नह है, अथवा

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 23 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
97

(ख) मामला ऐसा है जो िजले के िकसी अन्य मिजस्टर्ेट ारा िवचािरत या िवचारणाथर् सुपुदर् िकया जाना चािहए, अथवा
(ग) मामले का िवचारण मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा िकया जाना चािहए,
तो वह कायर्वाही को रोक देगा और मामले की ऐसी संिक्षप्त िरपोटर् सिहत, िजसम मामले का स्वरूप स्पष्ट िकया गया है, मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट को या अिधकािरता वाले अन्य ऐसे मिजस्टर्ेट को, िजसे मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट िनिदष्ट करे , भेज देगा ।
(2) यिद वह मिजस्टर्ेट, िजसे मामला भेजा गया है, ऐसा करने के िलए सशक्त है, तो वह उस मामले का िवचारण स्वयं कर सकता
है या उसे अपने अधीनस्थ अिधकािरता वाले मिजस्टर्ेट को िनदिशत कर सकता है या अिभयुक्त को िवचारणाथर् सुपुदर् कर सकता है ।
323. पर्िकर्या जब जांच या िवचारण के पर्ारं भ के पश्चात् मिजस्टर्ेट को पता चलता है िक मामला सुपद ु र् िकया जाना चािहए—यिद
िकसी मिजस्टर्ेट के समक्ष अपराध की िकसी जांच या िवचारण म िनणर्य पर हस्ताक्षर करने के पूवर् कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म उसे यह
पर्तीत होता है िक मामला ऐसा है, िजसका िवचारण सेशन न्यायालय ारा िकया जाना चािहए, तो वह उसे इसम इसके पूवर् अंतिवष्ट
उपबंध के अधीन उस न्यायालय को सुपुदर् कर देगा 1 [और तब अध्याय 18 के उपबंध ऐसी सुपुदग र् ी को लागू ह गे] ।
324. िसक्के , स्टाम्प िविध या सम्पि के िवरु अपराध के िलए तत्पूवर् दोषिस िक्तय का िवचारण—(1) जहां कोई िक्त
भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वषर् या अिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय
अपराध के िलए दोषिस िकए जा चुकने पर उन अध्याय म से िकसी के अधीन तीन वषर् या अिधक की अविध के िलए कारावास से
दंडनीय िकसी अपराध के िलए पुन: अिभयुक्त है, और उस मिजस्टर्ेट का, िजसके समक्ष मामला लंिबत है, समाधान हो जाता है िक यह
उपधारणा करने के िलए आधार है िक ऐसे िक्त ने अपराध िकया है तो वह उस दशा के िसवाय िवचारण के िलए मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट को भेजा जाएगा या सेशन न्यायालय के सुपुदर् िकया जाएगा, जब मिजस्टर्ेट मामले का िवचारण करने के िलए सक्षम है और
उसकी यह राय है िक यिद अिभयुक्त दोषिस िकया गया तो वह स्वयं उसे पयार्प्त दंड का आदेश दे सकता है ।
(2) जब उपधारा (1) के अधीन कोई िक्त िवचारण के िलए मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को भेजा जाता है या सेशन न्यायालय को
सुपुदर् िकया जाता है तब कोई अन्य िक्त, जो उसी जांच या िवचारण म उसके साथ संयुक्तत: अिभयुक्त है, वैसे ही भेजा जाएगा या
सुपुदर् िकया जाएगा जब तक ऐसे अन्य िक्त को मिजस्टर्ेट, यथािस्थित, धारा 239 या धारा 245 के अधीन उन्मोिचत न कर दे ।
325. पर्िकर्या जब मिजस्टर्ेट पयार्प्त कठोर दंड का आदेश नह दे सकता—(1) जब कभी अिभयोजन और अिभयुक्त का सा य सुनने
के पश्चात् मिजस्टर्ेट की यह राय है िक अिभयुक्त दोषी है और उसे उस पर्कार के दंड से िभन्न पर्कार का दंड या उस दंड से अिधक कठोर
दंड, जो वह मिजस्टर्ेट देने के िलए सशक्त है, िदया जाना चािहए अथवा ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट होते हुए उसकी यह राय है िक अिभयुक्त से
धारा 106 के अधीन बंधपतर् िनष्पािदत करने की अपेक्षा की जानी चािहए तब वह अपनी राय अिभिलिखत कर सकता है और कायर्वाही
तथा अिभयुक्त को मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को, िजसके वह अधीनस्थ हो, भेज सकता है ।
(2) जब एक से अिधक अिभयुक्त का िवचारण एक साथ िकया जा रहा है और मिजस्टर्ेट ऐसे अिभयुक्त म से िकसी के बारे म
उपधारा (1) के अधीन कायर्वाही करना आवश्यक समझता है तब वह उन सभी अिभयुक्त को, जो उसकी राय म दोषी ह, मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट को भेज देगा ।
(3) यिद मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट, िजसके पास कायर्वाही भेजी जाती है, ठीक समझता है तो पक्षकार की परीक्षा कर सकता है और
िकसी साक्षी को, जो पहले ही मामले म सा य दे चुका है, पुन: बुला सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है और कोई अितिरक्त सा य
मांग सकता है और ले सकता है और मामले म ऐसा िनणर्य, दंडादेश या आदेश देगा, जो वह ठीक समझता है और जो िविध के अनुसार है ।
326. भागत: एक न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा और भागत: दूसरे न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा अिभिलिखत सा य पर
दोषिसि या सुपद ु —(1) जब कभी िकसी जांच या िवचारण म सा य को पूणर्त: या भागत: सुनने और अिभिलिखत करने के पश्चात्
कोई [न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट] उसम अिधकािरता का पर्योग नह कर सकता है और कोई अन्य 2 [न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट], िजसे ऐसी
2

अिधकािरता है और जो उसका पर्योग करता है, उसका उ रवत हो जाता है, तो ऐसा उ रवत 2[न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट] अपने
पूवर्वत ारा ऐसे अिभिलिखत या भागत: अपने पूवर्वत ारा अिभिलिखत और भागत: अपने ारा अिभिलिखत सा य पर कायर् कर
सकता है :
परन्तु यिद उ रवत 2[न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट] की यह राय है िक सािक्षय म से िकसी की िजसका सा य पहले ही अिभिलिखत
िकया जा चुका है, अितिरक्त परीक्षा करना न्याय के िहत म आवश्यक है तो वह िकसी भी ऐसे साक्षी को पुन: समन कर सकता है और
ऐसी अितिरक्त परीक्षा, पर्ितपरीक्षा और पुन:परीक्षा के , यिद कोई हो, जैसी वह अनुज्ञात करे , पश्चात् वह साक्षी उन्मोिचत कर िदया
जाएगा ।
(2) जब कोई मामला 3 [एक न्यायाधीश से दूसरे न्यायाधीश को या एक मिजस्टर्ेट से दूसरे मिजस्टर्ेट को] इस संिहता के उपबंध के
अधीन अंतिरत िकया जाता है तब उपधारा (1) के अथर् म पूवर्किथत मिजस्टर्ेट के बारे म समझा जाएगा िक वह उसम अिधकािरता का
पर्योग नह कर सकता है और पश्चात्किथत मिजस्टर्ेट उसका उ रवत हो गया है ।

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 26 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 27 ारा “मिजस्टर्ेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 27 ारा “एक मिजस्टर्ेट से दूसरे मिजस्टर्ेट को” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
98

(3) इस धारा की कोई बात संिक्षप्त िवचारण को या उन मामल को लागू नह होती ह िजनम कायर्वािहयां धारा 322 के अधीन
रोक दी गई है या िजसम कायर्वािहयां विरष्ठ मिजस्टर्ेट को धारा 325 के अधीन भेज दी गई ह ।
327. न्यायालय का खुला होना— 1 [(1)] वह स्थान, िजसम कोई दंड न्यायालय िकसी अपराध की जांच या िवचारण के पर्योजन
से बैठता है, खुला न्यायालय समझा जाएगा, िजसम जनता साधारणत: पर्वेश कर सके गी जहां तक िक सुिवधापूवर्क वे उसम समा सके :
परन्तु यिद पीठासीन न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ठीक समझता है तो वह िकसी िविशष्ट मामले की जांच या िवचारण के िकसी पर्कर्म
म आदेश दे सकता है िक जनसाधारण या कोई िवशेष िक्त उस कमरे म या भवन म, जो न्यायालय ारा उपयोग म लाया जा रहा है, न
तो पर्वेश करे गा, न होगा और न रहेगा ।
2
[(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख,
3
[धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 376ङ] के अधीन बलात्संग या िकसी अपराध की जांच या उसका िवचारण बंद कमरे म िकया
जाएगा :

परन्तु पीठासीन न्यायाधीश, यिद वह ठीक समझता है तो, या दोन म से िकसी पक्षकार ारा आवेदन िकए जाने पर, िकसी
िविशष्ट िक्त को, उस कमरे म या भवन म, जो न्यायालय ारा उपयोग म लाया जा रहा है, पर्वेश करने, होने या रहने की अनुज्ञा दे
सकता है :
4
[परं तु यह और िक बंद कमरे म िवचारण यथासाध्य िकसी मिहला न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा िकया जाएगा ।]

(3) जहां उपधारा (2) के अधीन कोई कायर्वाही की जाती है वहां िकसी िक्त के िलए िकसी ऐसी कायर्वाही के संबंध म िकसी
बात को न्यायालय की पूवर् अनुज्ञा के िबना, मुिदर्त या पर्कािशत करना िविधपूणर् नह होगा : ]
5
[परं तु बलात्संग के अपराध के संबध
ं म िवचारण की कायर्वािहय के मुदर्ण या पर्काशन पर पाबंदी, पक्षकार के नाम और पते की
गोपनीयता को बनाए रखने के अध्यधीन हटाई जा सके गी ।]

अध्याय 25

िवकृ तिच अिभयुक्त िक्तय के बारे म उपबंध


328. अिभयुक्त के पागल होने की दशा म पर्िकर्या—(1) जब जांच करने वाले मिजस्टर्ेट को यह िवश्वास करने का कारण है िक वह
िक्त िजसके िवरु जांच की जा रही है िवकृ तिच है और पिरणामत: अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् है तब मिजस्टर्ेट ऐसी िच -
िवकृ ित के तथ्य की जांच करे गा और ऐसे िक्त की परीक्षा उस िजले के िसिवल सजर्न या अन्य ऐसे िचिकत्सक अिधकारी ारा कराएगा,
िजसे राज्य सरकार िनिदष्ट करे , और िफर ऐसे िसिवल सजर्न या अन्य अिधकारी की साक्षी के रूप म परीक्षा करे गा और उस परीक्षा को
लेखब करे गा ।
6
[(1क) यिद िसिवल सजर्न इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त िवकृ तिच है तो वह ऐसे िक्त को देखभाल, उपचार और
अवस्था के पूवार्नम
ु ान के िलए मनिश्चिकत्सक या रोग िवषयक् मनोिवज्ञानी को िनिदष्ट करे गा और, यथािस्थित, मनिश्चिकत्सक या रोग
िवषयक् मनोिवज्ञानी मिजस्टर्ेट को सूिचत करे गा िक अिभयुक्त िच िवकृ ित या मानिसक मंदता से गर्स्त है अथवा नह :

परं तु यिद अिभयुक्त, यथािस्थित, मनिश्चिकत्सक या रोग िवषयक् मनोिवज्ञानी ारा मिजस्टर्ेट को दी गई सूचना से िथत है तो
वह िचिकत्सा बोडर् के समक्ष, अपील कर सके गा जो िनम्निलिखत से िमलकर बनेगा, —

(क) िनकटतम सरकारी अस्पताल म मनिश्चिकत्सा एकक पर्मुख ; और

(ख) िनकटतम िचिकत्सा महािव ालय म मनिश्चिकत्सा संकाय का सदस्य ।]

(2) ऐसी परीक्षा और जांच लंिबत रहने तक मिजस्टर्ेट ऐसे िक्त के बारे म धारा 330 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही कर
सकता है ।
7
[(3) यिद ऐसे मिजस्टर्ेट को यह सूचना दी जाती है िक उपधारा (1क) म िनिदष्ट िक्त िवकृ तिच का िक्त है तो मिजस्टर्ेट

1
1983 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 4 ारा धारा 327 उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत ।
2
1983 के अिधिनयम सं 43 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 22 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
5
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
6
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 25 ारा अंत:स्थािपत ।
7
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 25 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
99

आगे यह अवधािरत करे गा िक क्या िच िवकृ ित अिभयुक्त को पर्ितरक्षा करने म असमथर् बनाती है और यिद अिभयुक्त इस पर्कार
असमथर् पाया जाता है तो मिजस्टर्ेट उस आशय का िनष्कषर् अिभिलिखत करे गा और अिभयोजन ारा पेश िकए गए सा य के अिभलेख की
परीक्षा करे गा तथा अिभयुक्त के अिधववक्ता को सुनने के पश्चात् िकतु अिभयुक्त से पर्श्न िकए िबना, यिद वह इस िनष्कषर् पर पहुंचता है
िक अिभयुक्त के िवरु पर्थमदृष्टय़ा मामला नह बनता है तो वह जांच की मुल्तवी करने की बजाए अिभयुक्त को उन्मोिचत कर देगा
और उसके संबंध म धारा 330 के अधीन उपबंिधत रीित म कायर्वाही करे गा :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक उस अिभयुक्त के िवरु पर्थमदृष्टय़ा मामला बनता है िजसके संबंध म
िवकृ तिच होने का िनष्कषर् िनकाला गया है तो वह कायर्वाही को ऐसी अविध के िलए मुल्तवी कर देगा जो मनिश्चिकत्सक या रोग
िवषयक् मनोिवज्ञानी की राय म अिभयुक्त के उपचार के िलए अपेिक्षत है और यह आदेश देगा िक अिभयुक्त के संबंध म धारा 330 के
अधीन उपबंिधत रूप म कायर्वाही की जाए ।
(4) यिद ऐसे मिजस्टर्ेट को यह सूचना दी जाती है िक उपधारा (1क) म िनिदष्ट िक्त मानिसक मंदता से गर्स्त िक्त है तो
मिजस्टर्ेट आगे इस बारे म अवधािरत करे गा िक मानिसक मंदता के कारण अिभयुक्त िक्त अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् है और यिद
अिभयुक्त इस पर्कार असमथर् पाया जाता है, तो मिजस्टर्ेट जांच बंद करने का आदेश देगा और अिभयुक्त के संबंध म धारा 330 के अधीन
उपबंिधत रीित म कायर्वाही करे गा ।]
329. न्यायालय के समक्ष िवचािरत िक्त के िवकृ तिच होने की दशा म पर्िकर्या—(1) यिद िकसी मिजस्टर्ेट या सेशन न्यायालय
के समक्ष िकसी िक्त के िवचारण के समय उस मिजस्टर्ेट या न्यायालय को वह िक्त िवकृ तिच और पिरणामस्वरूप अपनी पर्ितरक्षा
करने म असमथर् पर्तीत होता है, तो वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय, पर्थमत: ऐसी िच -िवकृ ित और असमथर्ता के तथ्य का िवचारण करे गा
और यिद उस मिजस्टर्ेट या न्यायालय का ऐसे िचिकत्सीय या अन्य सा य पर, जो उसके समक्ष पेश िकया जाता है, िवचार करने के पश्चात्
उस तथ्य के बारे म समाधान हो जाता है तो वह उस भाव का िनष्कषर् अिभिलिखत करे गा और मामले म आगे की कायर्वाही मुल्तवी
कर देगा ।
[(1क) यिद मिजस्टर्ेट या सेशन न्यायालय िवचारण के दौरान इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त िवकृ तिच है तो वह ऐसे
1

िक्त को देखभाल और उपचार के िलए मनिश्चिकत्सक या रोग िवषयक् मनोिवज्ञानी को िनदिशत करे गा और, यथािस्थित,
मनिश्चिकत्सक या रोग िवषयक् मनोिवज्ञानी मिजस्टर्ेट या न्यायालय को िरपोटर् करे गा िक अिभयुक्त िच िवकृ ित से गर्स्त है या नह :
परं तु यिद अिभयुक्त, यथािस्थित, मनिश्चिकत्सक या रोग िवषयक मनोिवज्ञानी ारा मिजस्टर्ेट को दी गई सूचना से िथत है तो
वह िचिकत्सा बोडर् के समक्ष अपील कर सके गा, जो िनम्निलिखत से िमलकर बनेगा,—
(क) िनकटतम सरकारी अस्पताल म मनिश्चिकत्सा एकक पर्मुख ; और
(ख) िनकटतम िचिकत्सा महािव ालय म मनिश्चिकत्सा संकाय का सदस्य ।]
2
[(2) यिद ऐसे मिजस्टर्ेट या न्यायालय को सूचना दी जाती है िक उपधारा (1क) म िनिदष्ट िक्त िवकृ तिच का िक्त है, तो
मिजस्टर्ेट या न्यायालय आगे अवधािरत करे गा िक िच िवकृ ित के कारण अिभयुक्त िक्त अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् है और यिद
अिभयुक्त इस पर्कार असमथर् पाया जाता है तो मिजस्टर्ेट या न्यायालय उस आशय का िनष्कषर् अिभिलिखत करे गा और अिभयोजन ारा
पर्स्तुत सा य के अिभलेख की परीक्षा करे गा और अिभयुक्त के अिधववक्ता को सुनने के पश्चात् िकतु अिभयुक्त से पर्श्न पूछे िबना, यिद
मिजस्टर्ेट या न्यायालय इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त के िवरु कोई पर्थमदृष्टय़ा मामला नह बनता है, तो वह िवचारण को
स्थिगत करने की बजाए अिभयुक्त को उन्मोिचत कर देगा और उसके संबंध म धारा 330 के अधीन उपबंिधत रीित म कायर्वाही करे गा :
परं तु यिद मिजस्टर्ेट या न्यायालय इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक उस अिभयुक्त के िवरु पर्थमदृष्टय़ा मामला बनता है िजसके
संबंध म िवकृ तिच होने का िनष्कषर् िनकाला गया है तो वह िवचारण को ऐसी अविध के िलए मुल्तवी कर देगा जो मनिश्चिकत्सक या
रोग िवषयक् मनोिवज्ञानी की राय म अिभयुक्त के उपचार के िलए अपेिक्षत है ।
(3) यिद मिजस्टर्ेट या न्यायालय इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक अिभयुक्त के िवरु पर्थमदृष्टय़ा मामला बनता है और वह मानिसक
मंद ा के कारण अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् है तो मिजस्टर्ेट या न्यायालय िवचारण नह करे गा और यह आदेश देगा िक अिभयुक्त के
संबंध म धारा 330 के अनुसार कायर्वाही की जाए ।]
[330. अन्वेषण या िवचारण के लंिबत रहने तक िवकृ तिच
3
िक्त का छोड़ा जाना—(1) जब कभी कोई िक्त धारा 328 या
धारा 329 के अधीन िच िवकृ ित या मानिसक मंदता के कारण अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् पाया जाता है तब, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट
या न्यायालय, चाहे मामला ऐसा हो िजसम जमानत ली जा सकती है या ऐसा न हो, ऐसे िक्त को जमानत पर छोड़े जाने का
आदेश देगा :
परं तु अिभयुक्त ऐसी िच िवकृ ित या मानिसक मंदता से गर्स्त है जो अंतरं ग रोगी उपचार के िलए समादेिशत नह करती हो और

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 26 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 26 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 27 ारा धारा 330 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
100

कोई िमतर् या नातेदार िकसी िनकटतम िचिकत्सा सुिवधा से िनयिमत बा रोगी मिन:िचिकत्सा उपचार कराने और उसे अपने आपको या
िकसी अन्य िक्त को क्षित पहुंचाने से िनवािरत रखने का वचन देता है ।
(2) यिद मामला ऐसा है िजसम, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय की राय म, जमानत नह दी जा सकती या यिद कोई समुिचत
वचनबंध नह िदया गया है तो वह अिभयुक्त को ऐसे स्थान म रखे जाने का आदेश देगा, जहां िनयिमत मिन:िचिकत्सा उपचार कराया जा
सकता है और की गई कारर् वाई की िरपोटर् राज्य सरकार को देगा :
परं तु पागलखाने म अिभयुक्त को िनरु िकए जाने के िलए कोई आदेश राज्य सरकार ारा मानिसक स्वास्थ्य अिधिनयम, 1987
(1987 का 14) के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार ही िकया जाएगा, अन्यथा नह ।
(3) जब कभी कोई िक्त धारा 328 या धारा 329 के अधीन िच िवकृ ित या मानिसक मंदता के कारण अपनी पर्ितरक्षा करने म
असमथर् पाया जाता है तब, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय कािरत िकए गए कायर् की पर्कृ ित और िच िवकृ ित या मानिसक मंदता की
सीमा को ध्यान म रखते हुए आगे यह अवधािरत करे गा िक क्या अिभयुक्त को छोड़ने का आदेश िदया जा सकता है :
परं तु—
(क) यिद िचकत्सा राय या िकसी िवशेषज्ञ की राय के आधार पर, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय धारा 328 या धारा
329 के अधीन उपबंिधत रीित म अिभयुक्त के उन्मोचन का आदेश करने का िविनश्चय करता है तो ऐसे छोड़े जाने का आदेश
िकया जा सके गा, यिद पयार्प्त पर्ितभूित दी जाती है िक अिभयुक्त को अपने आपको या िकसी अन्य िक्त को क्षित पहुंचाने से
िनवािरत िकया जाएगा ;
(ख) यिद, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय की यह राय है िक अिभयुक्त के उन्मोचन का आदेश नह िदया जा सकता है तो
अिभयुक्त को िच िवकृ ित या मानिसक मंदता के िक्तय के िलए आवासीय सुिवधा म अंतिरत करने का आदेश िदया जा सकता
है जहां अिभयुक्त की देखभाल की जा सके और समुिचत िशक्षा और पर्िशक्षण िदया जा सके ।]
331. जांच या िवचारण को पुन: चालू करना—(1) जब कभी जांच या िवचारण को धारा 328 या धारा 329 के अधीन मुल्तवी
िकया गया है, तब, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय जांच या िवचारण को संब िक्त के िवकृ तिच न रहने पर िकसी भी समय
पुन: चालू कर सकता है और ऐसे मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष अिभयुक्त के हािजर होने या लाए जाने की अपेक्षा कर सकता है ।
(2) जब अिभयुक्त धारा 330 के अधीन छोड़ िदया गया है और उसकी हािजरी के िलए पर्ितभू उसे उस अिधकारी के समक्ष पेश
करते ह, िजसे मिजस्टर्ेट या न्यायालय ने इस िनिम िनयुक्त िकया है, तब ऐसे अिधकारी का यह पर्माणपतर् िक अिभयुक्त अपनी पर्ितरक्षा
करने म समथर् है सा य म िलए जाने योग्य होगा ।
332. मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष अिभयुक्त के हािजर होने पर पर्िकर्या—(1) जब अिभयुक्त, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या
न्यायालय के समक्ष हािजर होता है या पुन: लाया जाता है, तब यिद मिजस्टर्ेट या न्यायालय का यह िवचार है िक वह अपनी पर्ितरक्षा
करने म समथर् है तो, जांच या िवचारण आगे चलेगा ।
(2) यिद मिजस्टर्ेट या न्यायालय का यह िवचार है िक अिभयुक्त अभी अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् है तो मिजस्टर्ेट या
न्यायालय, यथािस्थित, धारा 328 या धारा 329 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही करे गा और यिद अिभयुक्त िवकृ तिच और
पिरणामस्वरूप अपनी पर्ितरक्षा करने म असमथर् पाया जाता है तो ऐसे अिभयुक्त के बारे म वह धारा 330 के उपबंध के अनुसार
कायर्वाही करे गा ।
333. जब यह पर्तीत हो िक अिभयुक्त स्वस्थिच रहा है—जब अिभयुक्त जांच या िवचारण के समय स्वस्थिच पर्तीत होता है
और मिजस्टर्ेट का अपने समक्ष िदए गए सा य से समाधान हो जाता है िक यह िवश्वास करने का कारण है िक अिभयुक्त ने ऐसा कायर्
िकया है, जो यिद वह स्वस्थिच होता तो अपराध होता और यह िक वह उस समय जब वह कायर् िकया गया था िच -िवकृ ित के कारण
उस कायर् का स्वरूप या यह जानने म असमथर् था, िक यह दोषपूणर् या िविध के पर्ितकू ल है, तब मिजस्टर्ेट मामले म आगे कायर्वाही करे गा
और यिद अिभयुक्त का िवचारण सेशन न्यायालय ारा िकया जाना चािहए तो उसे सेशन न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए
सुपुदर् करे गा ।
334. िच -िवकृ ित के आधार पर दोष-मुिक्त का िनणर्य—जब कभी कोई िक्त इस आधार पर दोषमुक्त िकया जाता है िक उस
समय जबिक यह अिभकिथत है िक उसने अपराध िकया वह िच -िवकृ ित के कारण उस कायर् का स्वरूप, िजसका अपराध होना
अिभकिथत है, या यह िक वह दोषपूणर् या िविध के पर्ितकू ल है जानने म असमथर् था, तब िनष्कषर् म यह िविनिदष्टत: किथत होगा िक
उसने वह कायर् िकया या नह िकया ।
335. ऐसे आधार पर दोषमुक्त िकए गए िक्त का सुरिक्षत अिभरक्षा म िनरु िकया जाना—(1) जब कभी िनष्कषर् म यह किथत
है िक अिभयुक्त िक्त ने अिभकिथत कायर् िकया है तब वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय, िजसके समक्ष िवचारण िकया गया है, उस दशा म
जब ऐसा कायर् उस असमथर्ता के न होने पर, जो पाई गई, अपराध होता,—
(क) उस िक्त को ऐसे स्थान म और ऐसी रीित से, िजसे ऐसा मिजस्टर्ेट या न्यायालय ठीक समझे, सुरिक्षत अिभरक्षा म
िनरु करने का आदेश देगा ; अथवा
101

(ख) उस िक्त को उसके िकसी नातेदार या िमतर् को स पने का आदेश देगा ।


(2) पागलखाने म अिभयुक्त को िनरु करने का उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार ारा भारतीय
पागलपन अिधिनयम, 1912 (1912 का 4) के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार ही िकया जाएगा अन्यथा नह ।
(3) अिभयुक्त को उसके िकसी नातेदार या िमतर् को स पने का उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कोई आदेश उसके ऐसे नातेदार
या िमतर् के आवेदन पर और उसके ारा िनम्निलिखत बात की बाबत मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समाधापर्द पर्ितभूित देने पर ही िकया
जाएगा, अन्यथा नह —
(क) स पे गए िक्त की समुिचत देख-रे ख की जाएगी और वह अपने आपको या िकसी अन्य िक्त को क्षित पहुंचाने से
िनवािरत रखा जाएगा ;
(ख) स पा गया िक्त ऐसे अिधकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थान पर, जो राज्य सरकार ारा िनिदष्ट िकए जाएं,
िनरीक्षण के िलए पेश िकया जाएगा ।
(4) मिजस्टर्ेट या न्यायालय उपधारा (1) के अधीन की गई कारर् वाई की िरपोटर् राज्य सरकार को देगा ।
336. भारसाधक अिधकारी को कृ त्य का िनवर्हन करने के िलए सशक्त करने की राज्य सरकार की शिक्त—राज्य सरकार उस जेल
के भारसाधक अिधकारी को, िजसम कोई िक्त धारा 330 या धारा 335 के उपबंध के अधीन पिररु है, धारा 337 या धारा 338 के
अधीन कारागार के महािनरीक्षक के सब कृ त्य का या उनम से िकसी का िनवर्हन करने के िलए सशक्त कर सकती है ।
337. जहां यह िरपोटर् की जाती है िक पागल बंदी अपनी पर्ितरक्षा करने म समथर् है वहां पर्िकर्या—यिद ऐसा िक्त धारा 330 की
उपधारा (2) के उपबंध के अधीन िनरु िकया जाता है और, जेल म िनरु िक्त की दशा म कारागार का महािनरीक्षक या
पागलखाने म िनरु िक्त की दशा म उस पागलखाने की पिरदशर्क या उनम से कोई दो पर्मािणत कर, िक उसकी या उनकी राय म वह
िक्त अपनी पर्ितरक्षा करने म समथर् है तो वह, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष उस समय, िजसे वह मिजस्टर्ेट या
न्यायालय िनयत करे , लाया जाएगा और वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय उस िक्त के बारे म धारा 332 के उपबंध के अधीन कायर्वाही
करे गा, और पूव क्त महािनरीक्षक या पिरदशर्क का पर्माणपतर् सा य के तौर पर गर्हण िकया जा सके गा ।
338. जहां िनरु पागल छोड़े जाने के योग्य घोिषत कर िदया जाता है वहां पर्िकर्या—(1) यिद ऐसा िक्त धारा 330 की
उपधारा (2) या धारा 335 के उपबंध के अधीन िनरु है और ऐसा महािनरीक्षक या ऐसे पिरदशर्क पर्मािणत करते ह िक उसके या उनके
िवचार म वह अपने को या िकसी अन्य िक्त को क्षित पहुंचाने के खतरे के िबना छोड़ा जा सकता है तो राज्य सरकार तब उसके छोड़े
जाने का या अिभरक्षा म िनरु रखे जाने का या, यिद वह पहले ही लोक पागलखाने नह भेज िदया गया है तो ऐसे पागलखाने को
अन्तिरत िकए जाने का आदेश दे सकती है और यिद वह उसे पागलखाने को अन्तिरत करने का आदेश देती है तो वह एक न्याियक और दो
िचिकत्सक अिधकािरय का एक आयोग िनयुक्त कर सकती है ।
(2) ऐसा आयोग ऐसा सा य लेकर, जो आवश्यक हो, ऐसे िक्त के िच की दशा की यथारीित जांच करे गा और राज्य सरकार को
िरपोटर् देगा, जो उसके छोड़े जाने या िनरु रखे जाने का जैसा वह ठीक समझे, आदेश दे सकती है ।
339. नातेदार या िमतर् की देख-रे ख के िलए पागल का स पा जाना—(1) जब कभी धारा 330 या धारा 335 के उपबंध के अधीन
िनरु िकसी िक्त का कोई नातेदार या िमतर् यह चाहता है िक वह िक्त उसकी देख-रे ख और अिभरक्षा म रखे जाने के िलए स प िदया
जाए जब राज्य सरकार उस नातेदार या िमतर् के आवेदन पर और उसके ारा ऐसी राज्य सरकार को समाधानपर्द पर्ितभूित इस बाबत िदए
जाने पर िक—
(क) स पे गए िक्त की समुिचत देख-रे ख की जाएगी और वह अपने आपको या िकसी अन्य िक्त को क्षित पहुंचाने से
िनवािरत रखा जाएगा ;
(ख) स पा गया िक्त ऐसे अिधकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थान पर, जो राज्य सरकार ारा िनिदष्ट िकए जाएं,
िनरीक्षण के िलए पेश िकया जाएगा ;
(ग) स पा गया िक्त, उस दशा म िजसम वह धारा 330 की उपधारा (2) के अधीन िनरु िक्त है, अपेक्षा िकए जाने पर
ऐसे मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष पेश िकया जाएगा,
ऐसे िक्त को ऐसे नातेदार या िमतर् को स पने का आदेश दे सके गी ।
(2) यिद ऐसे स पा गया िक्त िकसी ऐसे अपराध के िलए अिभयुक्त है, िजसका िवचारण उसके िवकृ तिच होने और अपनी
पर्ितरक्षा करने म असमथर् होने के कारण मुल्तवी िकया गया है और उपधारा (1) के खंड (ख) म िनिदष्ट िनरीक्षण अिधकारी िकसी समय
मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष यह पर्मािणत करता है िक ऐसा िक्त अपनी पर्ितरक्षा करने म समथर् है तो ऐसा मिजस्टर्ेट या न्यायालय
उस नातेदार या िमतर् से, िजसे ऐसा अिभयुक्त स पा गया है, अपेक्षा करे गा िक वह उसे उस मिजस्टर्ेट या न्यायालय के समक्ष पेश करे और
ऐसे पेश िकए जाने पर वह मिजस्टर्ेट या न्यायालय धारा 332 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही करे गा और िनरीक्षण अिधकारी का
पर्माणपतर् सा य के तौर पर गर्हण िकया जा सकता है ।
102

अध्याय 26

न्याय-पर्शासन पर पर्भाव डालने वाले अपराध के बारे म उपबंध


340. धारा 195 म विणत मामल म पर्िकर्या—(1) जब िकसी न्यायालय की, उससे इस िनिम िकए गए आवेदन पर या अन्यथा,
यह राय है िक न्याय के िहत म यह समीचीन है िक धारा 195 की उपधारा (1) के खंड (ख) म िनिदष्ट िकसी अपराध की, जो उसे,
यथािस्थित, उस न्यायालय की कायर्वाही म या उसके संबंध म अथवा उस न्यायालय की कायर्वाही म पेश की गई या सा य म दी गई
दस्तावेज के बारे म िकया हुआ पर्तीत होता है, जांच की जानी चािहए तब ऐसा न्यायालय ऐसी पर्ारं िभक जांच के पश्चात् यिद कोई हो,
जैसी वह आवश्यक समझे,—
(क) उस भाव का िनष्कषर् अिभिलिखत कर सकता है ;
(ख) उसका िलिखत पिरवाद कर सकता है ;
(ग) उसे अिधकािरता रखने वाले पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को भेज सकता है ;
(घ) ऐसे मिजस्टर्ेट के समक्ष अिभयुक्त के हािजर होने के िलए पयार्प्त पर्ितभूित ले सकता है अथवा यिद अिभकिथत अपराध
अजमानतीय है और न्यायालय ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, अिभयुक्त को ऐसे मिजस्टर्ेट के पास अिभरक्षा म भेज सकता
है ; और
(ङ) ऐसे मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होने और सा य देने के िलए िकसी िक्त को आब कर सकता है ।
(2) िकसी अपराध के बारे म न्यायालय को उपधारा (1) ारा पर्द शिक्त का पर्योग, ऐसे मामले म िजसम उस न्यायालय ने
उपधारा (1) के अधीन उस अपराध के बारे म न तो पिरवाद िकया है और न ऐसे पिरवाद के िकए जाने के िलए आवेदन को नामंजूर िकया है,
उस न्यायालय ारा िकया जा सकता है िजसके ऐसा पूवर्किथत न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के अथर् म अधीनस्थ है ।
(3) इस धारा के अधीन िकए गए पिरवाद पर हस्ताक्षर,—
(क) जहां पिरवाद करने वाला न्यायालय उच्च न्यायालय है वहां उस न्यायालय के ऐसे अिधकारी ारा िकए जाएंग,े िजसे
वह न्यायालय िनयुक्त करे ;
[(ख) िकसी अन्य मामले म, न्यायालय के पीठासीन अिधकारी ारा या न्यायालय के ऐसे अिधकारी ारा, िजसे न्यायालय
1

इस िनिम िलिखत म पर्ािधकृ त करे , िकए जाएंगे ।]


(4) इस धारा म “न्यायालय” का वही अथर् है जो धारा 195 म है ।
341. अपील—(1) कोई िक्त, िजसके आवेदन पर उच्च न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ने धारा 340 की उपधारा (1) या
उपधारा (2) के अधीन पिरवाद करने से इनकार कर िदया है या िजसके िवरु ऐसा पिरवाद ऐसे न्यायालय ारा िकया गया है, उस
न्यायालय म अपील कर सकता है, िजसके ऐसा पूवक र् िथत न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के अथर् म अधीनस्थ है और तब विरष्ठ
न्यायालय संब पक्षकार को सूचना देने के पश्चात्, यथािस्थित, उस पिरवाद को वापस लेने का या वह पिरवाद करने का िजसे ऐसा
पूवर्किथत न्यायालय धारा 340 के अधीन कर सकता था, िनदेश दे सके गा और यिद वह ऐसा पिरवाद करता है तो उस धारा के उपबंध
तद्नुसार लागू ह गे ।

(2) इस धारा के अधीन आदेश, और ऐसे आदेश के अधीन रहते हुए धारा 340 के अधीन आदेश, अंितम होगा और उसका पुनरीक्षण
नह िकया जा सके गा ।

342. खच का आदेश देने की शिक्त—धारा 340 के अधीन पिरवाद फाइल करने के िलए िकए गए िकसी आवेदन या धारा 341 के
अधीन अपील के संबंध म कायर्वाही करने वाले िकसी भी न्यायालय को खच के बारे म ऐसा आदेश देने की शिक्त होगी, जो
न्यायसंगत हो ।

343. जहां मिजस्टर्ेट संज्ञान करे वहां पर्िकर्या—(1) वह मिजस्टर्ेट, िजससे कोई पिरवाद धारा 340 या धारा 341 के अधीन िकया
जाता है, अध्याय 15 म िकसी बात के होते हुए भी, जहां तक हो सके मामले म इस पर्कार कायर्वाही करने के िलए अगर्सर होगा, मानो वह
पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत है ।

(2) जहां ऐसे मिजस्टर्ेट के या िकसी अन्य मिजस्टर्ेट के , िजसे मामला अंतिरत िकया गया है, ध्यान म यह बात लाई जाती है िक उस
न्याियक कायर्वाही म, िजससे वह मामला उत्पन्न हुआ है, िकए गए िविनश्चय के िवरु अपील लंिबत है वहां वह, यिद ठीक समझता है
तो, मामले की सुनवाई को िकसी भी पर्कर्म पर तब तक के िलए स्थिगत कर सकता है जब तक ऐसी अपील िविनिश्चत न हो जाए ।

344. िमथ्या सा य देने पर िवचारण के िलए संिक्षप्त पर्िकर्या—(1) यिद िकसी न्याियक कायर्वाही को िनपटाते हुए िनणर्य या

1
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 6 ारा पर्ितस्थािपत ।
103

अंितम आदेश देते समय कोई सेशन न्यायालय या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट यह राय क्त करता है िक ऐसी कायर्वाही म उपिस्थत होने वाले
िकसी साक्षी ने जानते हुए या जानबूझकर िमथ्या सा य िदया है या इस आशय से िमथ्या सा य गढ़ा है िक ऐसा सा य ऐसी कायर्वाही म
पर्युक्त िकया जाए तो यिद उसका समाधान हो जाता है िक न्याय के िहत म यह आवश्यक और समीचीन है िक साक्षी का, यथािस्थित,
िमथ्या सा य देने या गढ़ने के िलए संक्षेपत: िवचारण िकया जाना चािहए तो वह ऐसे अपराध का संज्ञान कर सके गा और अपराधी को
ऐसा कारण दिशत करने का िक क्य न उसे ऐसे अपराध के िलए दंिडत िकया जाए, उिचत अवसर देने के पश्चात्, ऐसे अपराध का
संक्षेपत: िवचारण कर सके गा और उसे कारावास से िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी या जुमार्ने से जो पांच सौ रुपए तक का
हो सके गा अथवा दोन से, दंिडत कर सके गा ।

(2) ऐसे पर्त्येक मामले म न्यायालय संिक्षप्त िवचारण के िलए िविहत पर्िकर्या का यथासाध्य अनुसरण करे गा ।

(3) जहां न्यायालय इस धारा के अधीन कायर्वाही करने के िलए अगर्सर नह होता है वहां इस धारा की कोई बात, अपराध के िलए
धारा 340 के अधीन पिरवाद करने की उस न्यायालय की शिक्त पर पर्भाव नह डालेगी ।

(4) जहां, उपधारा (1) के अधीन िकसी कायर्वाही के पर्ारं भ िकए जाने के पश्चात्, सेशन न्यायालय या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को यह
पर्तीत कराया जाता है िक उस िनणर्य या आदेश के िवरु िजसम उस उपधारा म िनिदष्ट राय अिभ क्त की गई है अपील या पुनरीक्षण
के िलए आवेदन िकया गया है वहां वह, यथािस्थित, अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के िनपटाए जाने तक आगे िवचारण की कायर्वािहय
को रोक देगा और तब आगे िवचारण की कायर्वािहयां अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के पिरणाम के अनुसार ह गी ।

345. अवमान के कु छ मामल म पर्िकर्या—(1) जब कोई ऐसा अपराध, जैसा भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 175,
धारा 178, धारा 179, धारा 180 या धारा 228 म विणत है, िकसी िसिवल, दंड या राजस्व न्यायालय की दृिष्टगोचरता या उपिस्थित म
िकया जाता है तब न्यायालय अिभयुक्त को अिभरक्षा म िनरु करा सकता है और उसी िदन न्यायालय के उठने के पूवर् िकसी समय,
अपराध का संज्ञान कर सकता है और अपराधी को ऐसा कारण दिशत करने का, िक क्य न उसे इस धारा के अधीन दंिडत िकया जाए,
उिचत अवसर देने के पश्चात् अपराधी को दो सौ रुपए से अनिधक जुमार्ने का और जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर एक मास तक की
अविध के िलए, जब तक िक ऐसा जुमार्ना उससे पूवर्तर न दे िदया जाए, सादा कारावास का दंडादेश दे सकता है ।

(2) ऐसे पर्त्येक मामले म न्यायालय वे तथ्य िजनसे अपराध बनता है, अपराधी ारा िकए गए कथन के (यिद कोई हो) सिहत, तथा
िनष्कषर् और दंडादेश भी अिभिलिखत करे गा ।

(3) यिद अपराध भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) की धारा 228 के अधीन है तो अिभलेख म यह दिशत होगा िक िजस
न्यायालय के कायर् म िवघ्न डाला गया था या िजसका अपमान िकया गया था, उसकी बैठक िकस पर्कार की न्याियक कायर्वाही के संबंध म
और उसके िकस पर्कर्म पर हो रही थी और िकस पर्कार का िवघ्न डाला गया या अपमान िकया गया था ।
346. जहां न्यायालय का िवचार है िक मामले म धारा 345 के अधीन कायर्वाही नह की जानी चािहए वहां पर्िकर्या—(1) यिद
िकसी मामले म न्यायालय का यह िवचार है िक धारा 345 म िनिदष्ट और उसकी दृिष्टगोचरता या उपिस्थित म िकए गए अपराध म से
िकसी के िलए अिभयुक्त िक्त जुमार्ना देने म ितकर्म करने से अन्यथा कारावािसत िकया जाना चािहए या उस पर दो सौ रुपए से
अिधक जुमार्ना अिधरोिपत िकया जाना चािहए या िकसी अन्य कारण से उस न्यायालय की यह राय है िक मामला धारा 345 के अधीन
नह िनपटाया जाना चािहए तो वह न्यायालय उन तथ्य को िजनसे अपराध बनता है और अिभयुक्त के कथन को इसम इसके पूवर्
उपबंिधत पर्कार से अिभिलिखत करने के पश्चात्, मामला उसका िवचारण करने की अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को भेज सके गा
और ऐसे मिजस्टर्ेट के समक्ष ऐसे िक्त की हािजरी के िलए पर्ितभूित दी जाने की अपेक्षा कर सके गा, अथवा यिद पयार्प्त पर्ितभूित न दी
जाए तो ऐसे िक्त को अिभरक्षा म ऐसे मिजस्टर्ेट के पास भेजेगा ।
(2) वह मिजस्टर्ेट, िजसे कोई मामला इस धारा के अधीन भेजा जाता है, जहां तक हो सके इस पर्कार कायर्वाही करने के िलए
अगर्सर होगा मानो वह मामला पुिलस िरपोटर् पर संिस्थत है ।
347. रिजस्टर्ार या उप-रिजस्टर्ार कब िसिवल न्यायालय समझा जाएगा—जब राज्य सरकार ऐसा िनदेश दे तब कोई भी रिजस्टर्ार
या कोई भी उप-रिजस्टर्ार, जो 1 *** रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1908 (1908 का 16) के अधीन िनयुक्त है, धारा 345 और 346 के अथर् म
िसिवल न्यायालय समझा जाएगा ।
348. माफी मांगने पर अपराधी का उन्मोचन—जब िकसी न्यायालय ने िकसी अपराधी को कोई बात, िजसे करने की उससे
िविधपूवर्क अपेक्षा की गई थी, करने से इनकार करने या उसे न करने के िलए या साशय कोई अपमान करने या िवघ्न डालने के िलए धारा
345 के अधीन दंिडत िकए जाने के िलए न्यायिनण त िकया है या धारा 346 के अधीन िवचारण के िलए मिजस्टर्ेट के पास भेजा है, तब वह
न्यायालय अपने आदेश या अपेक्षा के उसके ारा मान िलए जाने पर या उसके ारा ऐसे माफी मांगे जाने पर, िजससे न्यायालय का
समाधान हो जाए, स्विववेकानुसार अिभयुक्त को उन्मोिचत कर सकता है या दंड का पिरहार कर सकता है ।

1
1974 के अिधिनयम सं0 56 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा “भारतीय” शब्द का लोप िकया गया ।
104

349. उ र देने या दस्तावेज पेश करने से इनकार करने वाले िक्त को कारावास या उसकी सुपदु ग
र् ी—यिद दंड न्यायालय के समक्ष
कोई साक्षी या कोई िक्त, जो िकसी दस्तावेज या चीज को पेश करने के िलए बुलाया गया है, उन पर्श्न का, जो उससे िकए जाएं, उ र
देने से या अपने कब्जे या शिक्त म की िकसी दस्तावेज या चीज को, िजसे पेश करने की न्यायालय उससे अपेक्षा करे , पेश करने से इनकार
करता है और ऐसे इनकार के िलए कोई उिचत कारण पेश करने के िलए युिक्तयुक्त अवसर िदए जाने पर ऐसा नह करता है तो ऐसा
न्यायालय उन कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, उसे सात िदन से अनिधक की िकसी अविध के िलए सादा कारावास का दंडादेश दे
सके गा अथवा पीठासीन मिजस्टर्ेट या न्यायाधीश ारा हस्ताक्षिरत वारण्ट ारा न्यायालय के िकसी अिधकारी की अिभरक्षा के िलए सुपुदर्
कर सके गा, जब तक िक उस बीच ऐसा िक्त अपनी परीक्षा की जाने और उ र देने के िलए या दस्तावेज या चीज पेश करने के िलए
सहमत नह हो जाता है और उसके इनकार पर डटे रहने की दशा म उसके बारे म धारा 345 या धारा 346 के उपबंध के अनुसार कायर्वाही
की जा सके गी ।
350. समन के पालन म साक्षी के हािजर न होने पर उसे दंिडत करने के िलए संिक्षप्त पर्िकर्या — (1) यिद िकसी दंड न्यायालय के
समक्ष हािजर होने के िलए समन िकए जाने पर कोई साक्षी समन के पालन म िकसी िनिश्चत स्थान और समय पर हािजर होने के िलए
वैध रूप से आब है और न्यायसंगत कारण के िबना, उस स्थान या समय पर हािजर होने म उपेक्षा या हािजर होने से इनकार करता है
अथवा उस स्थान से, जहां उसे हािजर होना है, उस समय से पहले चला जाता है िजस समय चला जाना उसके िलए िविधपूणर् है और िजस
न्यायालय के समक्ष उस साक्षी को हािजर होना है उसका समाधान हो जाता है िक न्याय के िहत म यह समीचीन है िक ऐसे साक्षी का
संक्षेपत: िवचारण िकया जाए तो वह न्यायालय उस अपराध का संज्ञान कर सकता है और अपराधी को इस बात का कारण दिशत करने
का िक क्य न उसे इस धारा के अधीन दंिडत िकया जाए अवसर देने के पश्चात् उसे एक सौ रुपए से अनिधक जुमार्ने का दंडादेश दे
सकता है ।
(2) ऐसे पर्त्येक मामले म न्यायालय उस पर्िकर्या का यथासाध्य अनुसरण करे गा जो संिक्षप्त िवचारण के िलए िविहत है ।
351. धारा 344, 345, 349 और 350 के अधीन दोषिसि य से अपील—(1) उच्च न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ारा
धारा 344, धारा 345, धारा 349 या धारा 350 के अधीन दंडािदष्ट कोई िक्त, इस संिहता म िकसी बात के होते हुए भी, उस
न्यायालय म अपील कर सकता है िजसम ऐसे न्यायालय ारा दी गई िडिकर्य या आदेश की अपील मामूली तौर पर होती है ।
(2) अध्याय 29 के उपबंध, जहां तक वे लागू हो सकते ह, इस धारा के अधीन अपील को लागू ह गे, और अपील न्यायालय िनष्कषर्
को पिरवितत कर सकता है या उलट सकता है या उस दंड को, िजसके िवरु अपील की गई है, कम कर सकता है या उलट सकता है ।
(3) लघुवाद न्यायालय ारा की गई ऐसी दोषिसि की अपील उस सेशन खंड के सेशन न्यायालय म होगी िजस खंड म वह
न्यायालय िस्थत है ।
(4) धारा 347 के अधीन जारी िकए गए िनदेश के आधार पर िसिवल न्यायालय समझे गए िकसी रिजस्टर्ार या उप-रिजस्टर्ार ारा
की गई ऐसी दोषिसि से अपील उस सेशन खंड के सेशन न्यायालय म होगी िजस खंड म ऐसे रिजस्टर्ार या उप-रिजस्टर्ार का कायार्लय
िस्थत है ।
352. कु छ न्यायाधीश और मिजस्टर्ेट के समक्ष िकए गए अपराध का उनके ारा िवचारण न िकया जाना—धारा 344, 345, 349
और 350 म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से िभन्न) दंड न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश या
मिजस्टर्ेट धारा 195 म िनिदष्ट िकसी अपराध के िलए िकसी िक्त का िवचारण उस दशा म नह करे गा, जब वह अपराध उसके समक्ष
या उसके पर्ािधकार का अवमान करके िकया गया है अथवा िकसी न्याियक कायर्वाही के दौरान ऐसे न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट की हैिसयत
म उसके ध्यान म लाया गया है ।
अध्याय 27

िनणर्य
353. िनणर्य—(1) आरं िभक अिधकािरता के दंड न्यायालय म होने वाले पर्त्येक िवचारण म िनणर्य पीठासीन अिधकारी ारा खुले
न्यायालय म या तो िवचारण के खत्म होने के पश्चात् तुरन्त या बाद म िकसी समय, िजसकी सूचना पक्षकार या उनके प्लीडर को
दी जाएगी,—
(क) संपूणर् िनणर्य देकर सुनाया जाएगा ; या
(ख) संपूणर् िनणर्य पढ़कर सुनाया जाएगा ; या
(ग) अिभयुक्त या उसके प्लीडर ारा समझी जाने वाली भाषा म िनणर्य का पर्वतर्नशील भाग पढ़कर और िनणर्य का सार
समझाकर सुनाया जाएगा ।
(2) जहां उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन िनणर्य िदया जाता है, वहां पीठासीन अिधकारी उसे आशुिलिप म िलखवाएगा और
जैसे ही अनुिलिप तैयार हो जाती है वैसे ही खुले न्यायालय म उस पर और उसके पर्त्येक पृष्ठ पर हस्ताक्षर करे गा, और उस पर िनणर्य िदए
जाने की तारीख डालेगा ।
(3) जहां िनणर्य या उसका पर्वतर्नशील भाग, यथािस्थित, उपधारा (1) के खंड (ख) या खंड (ग) के अधीन पढ़कर सुनाया जाता है,
105

वहां पीठासीन अिधकारी ारा खुले न्यायालय म उस पर तारीख डाली जाएगी और हस्ताक्षर िकए जाएंगे और यिद वह उसके ारा स्वयं
अपने हाथ से नह िलखा गया है तो िनणर्य के पर्त्येक पृष्ठ पर उसके ारा हस्ताक्षर िकए जाएंगे ।
(4) जहां िनणर्य उपधारा (1) के खंड (ग) म िविनिदष्ट रीित से सुनाया जाता है, वहां संपूणर् िनणर्य या उसकी एक पर्ितिलिप
पक्षकार या उनके प्लीडर के पिरशीलन के िलए तुरंत िन:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी ।
(5) यिद अिभयुक्त अिभरक्षा म है तो िनणर्य सुनने के िलए उसे लाया जाएगा ।
(6) यिद अिभयुक्त अिभरक्षा म नह है तो उससे न्यायालय ारा सुनाए जाने वाले िनणर्य को सुनने के िलए हािजर होने की अपेक्षा
की जाएगी, िकन्तु उस दशा म नह की जाएगी िजसम िवचारण के दौरान उसकी वैयिक्तक हािजरी से उसे अिभमुिक्त दे दी गई है और
दंडादेश के वल जुमार्ने का है या उसे दोषमुक्त िकया गया है :
परन्तु जहां एक से अिधक अिभयुक्त ह और उनम से एक या एक से अिधक उस तारीख को न्यायालय म हािजर नह ह िजसको
िनणर्य सुनाया जाने वाला है तो पीठासीन अिधकारी उस मामले को िनपटाने म अनुिचत िवलंब से बचने के िलए उनकी अनुपिस्थित म
भी िनणर्य सुना सकता है ।
(7) िकसी भी दंड न्यायालय ारा सुनाया गया कोई िनणर्य के वल इस कारण िविधत: अमान्य न समझा जाएगा िक उसके सुनाए
जाने के िलए सूिचत िदन को या स्थान म कोई पक्षकार या उसका प्लीडर अनुपिस्थत था या पक्षकार पर या उनके प्लीडर पर या उनम
से िकसी पर ऐसे िदन और स्थान की सूचना की तामील करने म कोई लोप या तर्ुिट हुई थी ।

(8) इस धारा की िकसी बात का अथर् नह लगाया जाएगा िक वह धारा 465 के उपबंध के िवस्तार को िकसी पर्कार से पिरसीिमत
करती है ।

354. िनणर्य की भाषा और अन्तवर्स्तु—(1) इस संिहता ारा अिभ क्त रूप से अन्यथा उपबंिधत के िसवाय, धारा 353 म
िनिदष्ट पर्त्येक िनणर्य—

(क) न्यायालय की भाषा म िलखा जाएगा ;

(ख) अवधारण के िलए पर्श्न, उस पर्श्न या उन पर्श्न पर िविनश्चय और िविनश्चय के कारण अन्तिवष्ट करे गा ;

(ग) वह अपराध (यिद कोई हो) िजसके िलए और भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) या अन्य िविध की वह धारा, िजसके
अधीन अिभयुक्त दोषिस िकया गया है, और वह दंड िजसके िलए वह दंडािदष्ट है, िविनिदष्ट करे गा ;

(घ) यिद िनणर्य दोषमुिक्त का है तो, उस अपराध का कथन करे गा िजससे अिभयुक्त दोषमुक्त िकया गया है और िनदेश
देगा िक वह स्वतंतर् कर िदया जाए ।

(2) जब दोषिसि भारतीय दंड संिहता, (1860 का 45) के अधीन है और यह संदह


े है िक अपराध उस संिहता की दो धारा म से
िकसके अधीन या एक ही धारा के दो भाग म से िकसके अधीन आता है तो न्यायालय इस बात को स्पष्ट रूप से अिभ क्त करे गा और
अनुकल्पत: िनणर्य देगा ।

(3) जब दोषिसि , मृत्यु से अथवा अनुकल्पत: आजीवन कारावास से या कई वष की अविध के कारावास से दंडनीय िकसी
अपराध के िलए है, तब िनणर्य म, िदए गए दंडादेश के कारण का और मृत्यु के दंडादेश की दशा म ऐसे दंडादेश के िलए िवशेष कारण का,
कथन होगा ।

(4) जब दोषिसि एक वषर् या उससे अिधक की अविध के कारावास से दंडनीय अपराध के िलए है िकन्तु न्यायालय तीन मास से
कम अविध के कारावास का दंड अिधरोिपत करता है, तब वह ऐसा दंड देने के अपने कारण को लेखब करे गा उस दशा के िसवाय जब
वह दंडादेश न्यायालय के उठने तक के िलए कारावास का नह है या वह मामला इस संिहता के उपबंध के अधीन संक्षेपत: िवचािरत नह
िकया गया है ।

(5) जब िकसी िक्त को मृत्यु का दंडादेश िदया जाता है तो वह दंडादेश यह िनदेश देगा िक उसे गदर्न म फांसी लगाकर तब तक
लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए ।

(6) धारा 117 के अधीन या धारा 138 की उपधारा (2) के अधीन पर्त्येक आदेश म और धारा 125, धारा 145 या धारा 147 के
अधीन िकए गए पर्त्येक अंितम आदेश म, अवधारण के िलए पर्श्न, उस पर्श्न या उन पर्श्न पर िविनश्चय और िविनश्चय के कारण
अन्तिवष्ट ह गे ।

355. महानगर मिजस्टर्ेट का िनणर्य—महानगर मिजस्टर्ेट िनणर्य को इसम इसके पूवर् उपबंिधत रीित से अिभिलिखत करने के
बजाय िनम्निलिखत िविशिष्टय को अिभिलिखत करे गा, अथार्त् :—
106

(क) मामले का कर्म संख्यांक ;


(ख) अपराध िकए जाने की तारीख ;
(ग) यिद कोई पिरवादी है तो उसका नाम ;
(घ) अिभयुक्त िक्त का नाम और उसके माता-िपता का नाम और उसका िनवास-स्थान ;
(ङ) अपराध िजसका पिरवाद िकया गया है या जो सािबत हुआ है ;
(च) अिभयुक्त का अिभवाक् और उसकी परीक्षा (यिद कोई हो) ;
(छ) अंितम आदेश ;
(ज) ऐसे आदेश की तारीख ;
(झ) उन सब मामल म, िजनम धारा 373 के अधीन या धारा 374 की उपधारा (3) के अधीन अंितम आदेश के िवरु
अपील होती है, िनणर्य के कारण का संिक्षप्त कथन ।
356. पूवत
र् न िस दोष अपराधी को अपने पते की सूचना देने का आदेश—(1) जब कोई िक्त, िजसे भारत म िकसी न्यायालय ने
भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 215, धारा 489क, धारा 489ख, धारा 489ग या धारा 489घ 1 [या धारा 506 (जहां तक
वह आपरािधक अिभतर्ास से संबंिधत है जो ऐसे कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से या दोन से दंडनीय
हो)] के अधीन दंडनीय अपराध के िलए या उसी संिहता के अध्याय 12 1[या अध्याय 16] या अध्याय 17 के अधीन तीन वषर् या उससे
अिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय िकसी अपराध के िलए दोषिस िकया है, िकसी अपराध के िलए, जो उन धारा म से
िकसी के अधीन दंडनीय है या उन अध्याय म से िकसी के अधीन तीन वषर् या उससे अिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय है,
ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट के न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ारा पुन: दोषिस िकया जाता है तब, यिद ऐसा न्यायालय ठीक समझे तो
वह उस िक्त को कारावास का दंडादेश देते समय यह आदेश भी कर सकता है िक छोड़े जाने के पश्चात् उसके िनवास-स्थान की और
ऐसे िनवास-स्थान की िकसी तब्दीली की या उससे उसकी अनुपिस्थित की इसम इसके पश्चात् उपबंिधत रीित से सूचना ऐसे दंडादेश की
समािप्त की तारीख से पांच वषर् से अनिधक अविध तक दी जाएगी ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध, जहां तक वे उसम उिल्लिखत अपराध के संबंध म ह, उन अपराध को करने के आपरािधक षडय़ंतर्
और उन अपराध के दुपर्ेरण तथा उन्ह करने के पर्य को भी लागू होते ह ।
(3) यिद ऐसी दोषिसि अपील म या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो ऐसा आदेश शून्य हो जाएगा ।
(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय ारा, या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ारा भी जब वह अपनी पुनरीक्षण
की शिक्तय का पर्योग कर रहा है, िकया जा सकता है ।
(5) राज्य सरकार, छोड़े गए िस दोष के िनवास-स्थान की या िनवास-स्थान की तब्दीली की या उससे उनकी अनुपिस्थित की
सूचना से संबंिधत इस धारा के उपबंध को िकर्यािन्वत करने के िलए िनयम अिधसूचना ारा बना सकती है ।
(6) ऐसे िनयम उनके भंग िकए जाने के िलए दंड का उपबंध कर सकते ह और िजस िक्त पर ऐसे िकसी िनयम को भंग करने का
आरोप है उसका िवचारण उस िजले म सक्षम अिधकािरता वाले मिजस्टर्ेट ारा िकया जा सकता है िजसम उस िक्त ारा अपने िनवास-
स्थान के रूप म अन्त म सूिचत स्थान है ।
357. पर्ितकर देने का आदेश—(1) जब कोई न्यायालय जुमार्ने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश (िजसके अन्तगर्त मृत्यु
दंडादेश भी है) देता है िजसका भाग जुमार्ना भी है, तब िनणर्य देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है िक वसूल िकए गए सब
जुमार्ने या उसके िकसी भाग का उपयोजन—
(क) अिभयोजन म उिचत रूप से उपगत य को चुकाने म िकया जाए ;
(ख) िकसी िक्त को उस अपराध ारा हुई िकसी हािन या क्षित का पर्ितकर देने म िकया जाए, यिद न्यायालय की राय म
ऐसे िक्त ारा पर्ितकर िसिवल न्यायालय म वसूल िकया जा सकता है ;
(ग) उस दशा म, जब कोई िक्त िकसी अन्य िक्त की मृत्यु कािरत करने के , या ऐसे अपराध के िकए जाने का दुपर्ेरण
करने के िलए दोषिस िकया जाता है, उन िक्तय को, जो ऐसी मृत्यु से अपने को हुई हािन के िलए दंडािदष्ट िक्त से
नुकसानी वसूल करने के िलए घातक दुघर्टना अिधिनयम, 1855 (1855 का 13) के अधीन हकदार है, पर्ितकर देने म िकया जाए ;
(घ) जब कोई िक्त, िकसी अपराध के िलए, िजसके अन्तगर्त चोरी, आपरािधक दुिविनयोग, आपरािधक न्यासभंग या छल
भी है, या चुराई हुई संपि को उस दशा म जब वह यह जानता है या उसको यह िवश्वास करने का कारण है िक वह चुराई हुई है
बेईमानी से पर्ाप्त करने या रखे रखने के िलए या उसके यन म स्वेच्छया या सहायता करने के िलए, दोषिस िकया जाए, तब
ऐसी संपि के स ावपूणर् कर्ेता को, ऐसी संपि उसके हकदार िक्त के कब्जे म लौटा दी जाने की दशा म उसकी हािन के िलए,

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 29 ारा अंत:स्थािपत ।
107

पर्ितकर देने म िकया जाए ।


(2) यिद जुमार्ना ऐसे मामले म िकया जाता है जो अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय, अपील उपिस्थत करने के िलए अनुज्ञात
अविध के बीत जाने से पहले या यिद अपील उपिस्थत की जाती है तो उसके िविनश्चय के पूवर्, नह िकया जाएगा ।
(3) जब न्यायालय ऐसा दंड अिधरोिपत करता है िजसका भाग जुमार्ना नह है तब न्यायालय िनणर्य पािरत करते समय, अिभयुक्त
िक्त को यह आदेश दे सकता है िक उस कायर् के कारण िजसके िलए उसे ऐसा दंडादेश िदया गया है, िजस िक्त को कोई हािन या क्षित
उठानी पड़ी है, उसे वह पर्ितकर के रूप म इतनी रकम दे िजतनी आदेश म िविनिदष्ट है ।
(4) इस धारा के अधीन आदेश, अपील न्यायालय ारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ारा भी िकया जा सके गा जब वह
अपनी पुनरीक्षण की शिक्तय का पर्योग कर रहा हो ।
(5) उसी मामले से संबंिधत िकसी पश्चात्वत िसिवल वाद म पर्ितकर अिधिनण त करते समय न्यायालय ऐसी िकसी रािश को, जो
इस धारा के अधीन पर्ितकर के रूप म दी गई है या वसूल की गई है, िहसाब म लेगा ।
[357क. पीिड़त पर्ितकर स्कीम—(1) पर्त्येक राज्य सरकार कदर्ीय सरकार के सहयोग से ऐसे पीिड़त या उसके आिशर्त को,
1

िजन्ह अपराध के पिरणामस्वरूप हािन या क्षित हुई है और िजन्ह पुनवार्स की आवश्यकता है, पर्ितकर के पर्योजन के िलए िनिधयां
उपलब्ध कराने के िलए एक स्कीम तैयार करे गी ।
(2) जब कभी न्यायालय ारा पर्ितकर के िलए िसफािरश की जाती है, तब, यथािस्थित, िजला िविधक सेवा पर्ािधकरण या राज्य
िविधक सेवा पर्ािधकरण उपधारा (1) म िनिदष्ट स्कीम के अधीन िदए जाने वाले पर्ितकर की मातर्ा का िविनश्चय करे गा ।
(3) यिद िवचारण न्यायालय का, िवचारण की समािप्त पर, यह समाधान हो जाता है िक धारा 357 के अधीन अिधिनण त
पर्ितकर ऐसे पुनवार्स के िलए पयार्प्त नह है या जहां मामले दोषमुिक्त या उन्मोचन म समाप्त होते ह और पीिड़त को पुनवार्िसत करना
है, वहां वह पर्ितकर के िलए िसफािरश कर सके गा ।
(4) जहां अपराधी का पता नह लग पाता है या उसकी पहचान नह हो पाती है िकतु पीिड़त की पहचान हो जाती है और जहां
कोई िवचारण नह होता है, वहां पीिड़त या उसके आिशर्त पर्ितकर िदए जाने के िलए राज्य या िजला िविधक सेवा पर्ािधकरण को आवेदन
कर सकगे ।
(5) उपधारा (4) के अधीन ऐसी िसफािरश या आवेदन पर्ाप्त होने पर, राज्य या िजला िविधक सेवा पर्ािधकरण, सम्यक् जांच करने
के पश्चात्, दो मास के भीतर जांच पूरी करके पयार्प्त पर्ितकर अिधिनण त करे गा ।
(6) यथािस्थित, राज्य या िजला िविधक सेवा पर्ािधकरण पीिड़त की यातना को कम करने के िलए, पुिलस थाने के भारसाधक से
अन्यून पंिक्त के पुिलस अिधकारी या संब क्षेतर् के मिजस्टर्ेट के पर्माणपतर् पर पर्ाथिमक िचिकत्सा सुिवधा या िचिकत्सा पर्सुिवधाएं
उपलब्ध कराने या कोई अन्य अंतिरम अनुतोष िदलाने, िजसे समुिचत पर्ािधकरण ठीक समझे, के िलए तुरंत आदेश कर सके गा ।]
[357ख. पर्ितकर का भारतीय दंड संिहता की धारा 326क या धारा 376घ के अधीन के जुमार्ने के अितिरक्त होना—धारा 357क
2

के अधीन राज्य सरकार ारा संदय े पर्ितकर भारतीय दंड संिहता की धारा 326क या धारा 376घ के अधीन पीिड़ता को जुमार्ने का
संदाय िकए जाने के अितिरक्त होगा ।
357ग. पीिड़त का उपचार—सभी लोक या पर्ाइवेट अस्पताल, चाहे वे के न्दर्ीय सरकार, राज्य सरकार, सभानीय िनकाय या
िकसी अन्य व्यिक्त ारा चलाए जा रहे ह , भारतीय दंड संिहता की धारा 326क, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग,
धारा 376घ या धारा 376ङ के अधीन आने वाले िकसी अपराध के पीिड़त को तुरंत िन:शुल्क पर्ाथिमक या िचिकत्सीय उपचार उपलब्ध
कराएंगे और ऐसी घटना की पुिलस को तुरन्त सुचना दगे ।]
358. िनराधार िगरफ्तार करवाए गए िक्तय को पर्ितकर—(1) जब कभी कोई िक्त िकसी अन्य िक्त को पुिलस अिधकारी
से िगरफ्तार कराता है, तब यिद उस मिजस्टर्ेट को, िजसके ारा वह मामला सुना जाता है यह पर्तीत होता है िक ऐसी िगरफ्तारी कराने के
िलए कोई पयार्प्त आधार नह था तो, वह मिजस्टर्ेट अिधिनणर्य दे सकता है िक ऐसे िगरफ्तार िकए गए िक्त को इस संबंध म उसके
समय की हािन और य के िलए 3 [एक हजार रुपए] से अनिधक इतना पर्ितकर िजतना मिजस्टर्ेट ठीक समझे, िगरफ्तार कराने वाले
िक्त ारा िदया जाएगा ।
(2) ऐसे मामल म यिद एक से अिधक िक्त िगरफ्तार िकए जाते ह तो मिजस्टर्ेट उनम से पर्त्येक के िलए उसी रीित से 3[एक
हजार रुपए] से अनिधक उतना पर्ितकर अिधिनण त कर सके गा, िजतना ऐसा मिजस्टर्ेट ठीक समझे ।
(3) इस धारा के अधीन अिधिनण त समस्त पर्ितकर ऐसे वसूल िकया जा सकता है मानो वह जुमार्ना है और यिद वह ऐसे वसूल
नह िकया जा सकता तो उस िक्त को, िजसके ारा वह संदय े है, तीस िदन से अनिधक की इतनी अविध के िलए, िजतनी मिजस्टर्ेट
िनिदष्ट करे , सादे कारावास का दंडादेश िदया जाएगा जब तक िक ऐसी रािश उससे पहले न दे दी जाए ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 28 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 23 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 30 ारा “एक सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
108

359. असंज्ञय
े मामल म खचार् देने के िलए आदेश—(1) जब कभी िकसी असंज्ञेय अपराध का कोई पिरवाद न्यायालय म िकया
जाता है तब, यिद न्यायालय अिभयुक्त को दोषिस कर देता है तो, वह अिभयुक्त पर अिधरोिपत शािस्त के अितिरक्त उसे यह आदेश दे
सकता है िक वह पिरवादी को अिभयोजन म उसके ारा िकए गए खच पूणर्त: या अंशत: दे और यह अितिरक्त आदेश दे सकता है िक उसे
देने म ितकर्म करने पर अिभयुक्त तीस िदन से अनिधक की अविध के िलए सादा कारावास भोगेगा और ऐसे खच के अन्तगर्त
आदेिशका फीस, सािक्षय और प्लीडर की फीस की बाबत िकए गए कोई य भी हो सकगे िजन्ह न्यायालय उिचत समझे ।
(2) इस धारा के अधीन आदेश िकसी अपील न्यायालय ारा, या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ारा भी िकया जा सके गा
जब वह अपनी पुनरीक्षण शिक्तय का पर्योग कर रहा हो ।
360. सदाचरण की पिरवीक्षा पर या भत्सर्ना के पश्चात् छोड़ देने का आदेश—(1) जब कोई िक्त जो इक्कीस वषर् से कम आयु
का नह है के वल जुमार्ने से या सात वषर् या उससे कम अविध के कारावास से दंडनीय अपराध के िलए दोषिस िकया जाता है अथवा जब
कोई िक्त जो इक्कीस वषर् से कम आयु का है या कोई स्तर्ी ऐसे अपराध के िलए, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नह है,
दोषिस की जाती है और अपराधी के िवरु कोई पूवर् दोषिसि सािबत नह की गई है तब, यिद उस न्यायालय को, िजसके समक्ष उसे
दोषिस िकया गया है, अपराधी की आयु, शील या पूवर्वृ को और उन पिरिस्थितय को, िजनम अपराध िकया गया, ध्यान म रखते हुए
यह पर्तीत होता है िक अपराधी को सदाचरण की पिरवीक्षा पर छोड़ देना समीचीन है तो न्यायालय उसे तुरन्त कोई दंडादेश देने के बजाय
िनदेश दे सकता है िक उसे पर्ितभु सिहत या रिहत उसके ारा यह बंधपतर् िलख देने पर छोड़ िदया जाए िक वह (तीन वषर् से अनिधक)
इतनी अविध के दौरान, िजतनी न्यायालय िनिदष्ट करे , बुलाए जाने पर हािजर होगा और दंडादेश पाएगा और इस बीच पिरशांित कायम
रखेगा और सदाचारी बना रहेगा :
परन्तु जहां कोई पर्थम अपराधी िकसी ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा, जो उच्च न्यायालय ारा िवशेषतया सशक्त नह िकया गया है,
दोषिस िकया जाता है और मिजस्टर्ेट की यह राय है िक इस धारा ारा पर्द शिक्तय का पर्योग िकया जाना चािहए वहां वह उस भाव
की अपनी राय अिभिलिखत करे गा और पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को वह कायर्वाही िनवेिदत करे गा और उस अिभयुक्त को उस मिजस्टर्ेट के
पास भेजेगा अथवा उसकी उस मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजरी के िलए जमानत लेगा और वह मिजस्टर्ेट उस मामले का िनपटारा उपधारा (2)
ारा उपबंिधत रीित से करे गा ।
(2) जहां कोई कायर्वाही पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट को उपधारा (1) ारा उपबंिधत रूप म िनवेिदत की गई है, वहां ऐसा मिजस्टर्ेट उस
पर ऐसा दंडादेश या आदेश दे सकता है जैसा यिद मामला मूलत: उसके ारा सुना गया होता तो वह दे सकता और यिद वह िकसी पर्श्न
पर अितिरक्त जांच या अितिरक्त सा य आवश्यक समझता है तो वह स्वयं ऐसी जांच कर सकता है या ऐसा सा य ले सकता है अथवा
ऐसी जांच िकए जाने या ऐसा सा य िलए जाने का िनदेश दे सकता है ।
(3) िकसी ऐसी दशा म, िजसम कोई िक्त चोरी, िकसी भवन म चोरी, बेईमानी से दुिविनयोग, छल या भारतीय दंड संिहता
(1860 का 45) के अधीन दो वषर् से अनिधक के कारावास से दंडनीय िकसी अपराध के िलए या के वल जुमार्ने से दंडनीय िकसी अपराध के
िलए दोषिस िकया जाता है और उसके िवरु कोई पूवर् दोषिसि सािबत नह की गई है, यिद वह न्यायालय, िजसके समक्ष वह ऐसे
दोषिस िकया गया है, ठीक समझे, तो वह अपराधी की आयु, शील, पूवर्वृ या शारीिरक या मानिसक दशा को और अपराध की तुच्छ
पर्कृ ित को, या िकन्ह पिरशमनकारी पिरिस्थितय को, िजनम अपराध िकया गया था, ध्यान म रखते हुए उसे कोई दंडादेश देने के बजाय
सम्यक् भत्सर्ना के पश्चात् छोड़ सकता है ।
(4) इस धारा के अधीन आदेश िकसी अपील न्यायालय ारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ारा भी िकया जा सके गा
जब वह अपनी पुनरीक्षण शिक्तय का पर्योग कर रहा हो ।
(5) जब िकसी अपराधी के बारे म इस धारा के अधीन आदेश िदया गया है तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, उस दशा म जब
उस न्यायालय म अपील करने का अिधकार है, अपील िकए जाने पर, या अपनी पुनरीक्षण शिक्तय का पर्योग करते हुए, ऐसे आदेश को
अपास्त कर सकता है और ऐसे अपराधी को उसके बदले म िनिध के अनुसार दंडादेश दे सकता है :
परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय इस उपधारा के अधीन उस दंड से अिधक दंड न देगा जो उस न्यायालय ारा िदया जा
सकता था िजसके ारा अपराधी दोषिस िकया गया था ।
(6) धारा 121, 124 और 373 के उपबंध इस धारा के उपबंध के अनुसरण म पेश िकए गए पर्ितभु के बारे म जहां तक हो सके ,
लागू ह गे ।
(7) िकसी अपराधी के उपधारा (1) के अधीन छोड़े जाने का िनदेश देने के पूवर् न्यायालय अपना समाधान कर लेगा िक उस
अपराधी का, या उसके पर्ितभू का (यिद कोई हो) कोई िनयत वास स्थान या िनयिमत उपजीिवका उस स्थान म है िजसके संबंध म वह
न्यायालय कायर् करता है या िजसम अपराधी के उस अविध के दौरान रहने की सम्भा ता है, जो शत के पालन के िलए उिल्लिखत की
गई है ।
(8) यिद उस न्यायालय का, िजसने अपराधी को दोषिस िकया है, या उस न्यायालय का, जो अपराधी के संबंध म उसके मूल
अपराध के बारे म कायर्वाही कर सकता था, समाधान हो जाता है िक अपराधी अपने मुचलके की शत म से िकसी का पालन करने म
असफल रहा है तो उसके पकड़े जाने के िलए वारण्ट जारी करा सकता है ।
(9) जब कोई अपराधी ऐसे िकसी वारण्ट पर पकड़ा जाता है तब वह वारण्ट जारी करने वाले मिजस्टर्ेट के समक्ष तत्काल लाया
109

जाएगा और वह न्यायालय या तो तब तक के िलए उसे अिभरक्षा म रखे जाने के िलए पर्ितपर्ेिषत कर सकता है जब तक मामले म सुनवाई
न हो, या इस शतर् पर िक वह दंडादेश के िलए हािजर होगा, पयार्प्त पर्ितभूित लेकर जमानत मंजूर कर सकता है और ऐसा न्यायालय
मामले की सुनवाई के पश्चात् दंडादेश दे सकता है ।
(10) इस धारा की कोई बात, अपराधी पिरवीक्षा अिधिनयम, 1958 (1958 का 20) या बालक अिधिनयम, 1960 (1960 का 60)
या िकशोर अपरािधय के उपचार, पर्िशक्षण या सुधार से संबंिधत तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के उपबंध पर पर्भाव न डालेगी ।
361. कु छ मामल म िवशेष कारण का अिभिलिखत िकया जाना—जहां िकसी मामले म न्यायालय,—
(क) िकसी अिभयुक्त िक्त के संबंध म कारर् वाई धारा 360 के अधीन या अपराधी पिरवीक्षा अिधिनयम, 1958
(1958 का 20) के उपबंध के अधीन कर सकता था ; या
(ख) िकसी िकशोर अपराधी के संबंध म कारर् वाई, बालक अिधिनयम, 1960 (1960 का 60) के अधीन या िकशोर
अपरािधय के उपचार, पर्िशक्षण या सुधार से संबंिधत तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन कर सकता था,
िकन्तु उसने ऐसा नह िकया है वहां वह ऐसा न करने के िवशेष कारण अपने िनणर्य म अिभिलिखत करे गा ।
362. न्यायालय का अपने िनणर्य म पिरवतर्न न करना—इस संिहता या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा जैसा उपबंिधत है
उसके िसवाय कोई न्यायालय जब उसने िकसी मामले को िनपटाने के िलए अपने िनणर्य या अंितम आदेश पर हस्ताक्षर कर िदए ह तब
िलिपकीय या गिणतीय भूल को ठीक करने के िसवाय उसम कोई पिरवतर्न नह करे गा या उसका पुनिवलोकन नह करे गा ।
363. अिभयुक्त और अन्य िक्तय को िनणर्य की पर्ित का िदया जाना—(1) जब अिभयुक्त को कारावास का दंडादेश िदया जाता
है तब िनणर्य के सुनाए जाने के पश्चात् िनणर्य की एक पर्ित उसे िन:शुल्क तुरन्त दी जाएगी ।
(2) अिभयुक्त के आवेदन पर, िनणर्य की एक पर्मािणत पर्ित या जब वह चाहे तब, यिद संभव है तो उसकी भाषा म या न्यायालय
की भाषा म उसका अनुवाद, अिवलंब उसे िदया जाएगा और जहां िनणर्य की अिभयुक्त ारा अपील हो सकती है वहां पर्त्येक दशा म ऐसी
पर्ित िन:शुल्क दी जाएगी :
परन्तु जहां मृत्यु का दंडादेश उच्च न्यायालय ारा पािरत या पुष्ट िकया जाता है वहां िनणर्य की पर्मािणत पर्ित अिभयुक्त को
तुरन्त िन:शुल्क दी जाएगी चाहे वह उसके िलए आवेदन करे या न करे ।
(3) उपधारा (2) के उपबंध धारा 117 के अधीन आदेश के संबंध म उसी पर्कार लागू ह गे जैसे वे उस िनणर्य के संबंध म लागू होते ह
िजसकी अिभयुक्त अपील कर सकता है ।
(4) जब अिभयुक्त को िकसी न्यायालय ारा मृत्यु दंडादेश िदया जाता है और ऐसे िनणर्य से सािधकार अपील होती है तो
न्यायालय उसे उस अविध की जानकारी देगा िजसके भीतर यिद वह चाहे तो अपील कर सकता है ।
(5) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय िकसी दांिडक न्यायालय ारा पािरत िनणर्य या आदेश ारा पर्भािवत िक्त
को, इस िनिम आवेदन करने पर और िविहत पर्भार देने पर ऐसे िनणर्य या आदेश की या िकसी अिभसा य की या अिभलेख के अन्य भाग
की पर्ित दी जाएगी :
परन्तु यिद न्यायालय िकन्ह िवशेष कारण से ठीक समझता है तो उसे वह िन:शुल्क भी दे सकता है ।
(6) उच्च न्यायालय िनयम ारा उपबंध कर सकता है िक िकसी दांिडक न्यायालय के िकसी िनणर्य या आदेश की पर्ितयां ऐसे
िक्त को, जो िनणर्य या आदेश ारा पर्भािवत न हो उस िक्त ारा ऐसी फीस िदए जाने पर और ऐसी शत के अधीन दे दी जाए जो
उच्च न्यायालय ऐसे िनयम ारा उपबंिधत करे ।
364. िनणर्य का अनुवाद कब िकया जाएगा—मूल िनणर्य कायर्वाही के अिभलेख म फाइल िकया जाएगा और जहां मूल िनणर्य ऐसी
भाषा म अिभिलिखत िकया गया है जो न्यायालय की भाषा से िभन्न है और अिभयुक्त अपेक्षा करता है तो न्यायालय की भाषा म उसका
अनुवाद अिभलेख म जोड़ िदया जाएगा ।
365. सेशन न्यायालय ारा िनष्कषर् और दंडादेश की पर्ित िजला मिजस्टर्ेट को भेजना—ऐसे मामल म, िजनका िवचारण सेशन
न्यायालय या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ारा िकया गया है, यथािस्थित, न्यायालय या मिजस्टर्ेट अपने िनष्कषर् और दंडादेश की (यिद कोई
हो) एक पर्ित उस िजला मिजस्टर्ेट को भेजेगा िजसकी स्थानीय अिधकािरता के भीतर िवचारण िकया गया है ।
अध्याय 28

मृत्यु दंडादेश की पुिष्ट के िलए पर्स्तुत िकया जाना


366. सेशन न्यायालय ारा मृत्यु दंडादेश का पुिष्ट के िलए पर्स्तुत िकया जाना—(1) जब सेशन न्यायालय मृत्यु दंडादेश देता है
तब कायर्वाही उच्च न्यायालय को पर्स्तुत की जाएगी और दंडादेश तब तक िनष्पािदत न िकया जाएगा जब तक वह उच्च न्यायालय ारा
पुष्ट न कर िदया जाए ।
110

(2) दंडोदश पािरत करने वाला न्यायालय वारं ट के अधीन दोषिस िक्त को जेल की अिभरक्षा के िलए सुपुदर् करे गा ।

367. अितिरक्त जांच िकए जाने के िलए या अितिरक्त सा य िलए जाने के िलए िनदेश देने की शिक्त—(1) यिद ऐसी कायर्वाही
के पर्स्तुत िकए जाने पर उच्च न्यायालय यह ठीक समझता है िक दोषिस िक्त को दोषी या िनद ष होने से संबंिधत िकसी पर्श्न पर
अितिरक्त जांच की जाए या अितिरक्त सा य िलया जाए तो वह स्वयं ऐसी जांच कर सकता है या ऐसा सा य ले सकता है या सेशन
न्यायालय ारा उसके िकए जाने या िलए जाने का िनदेश दे सकता है ।

(2) जब तक उच्च न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे, दोषिस िक्त को, जांच िकए जाने या सा य िलए जाने के समय उपिस्थत
होने से, अिभमुिक्त दी जा सकती है ।

(3) जब जांच या सा य (यिद कोई हो) उच्च न्यायालय ारा नह की गई है या नह िलया गया है तब ऐसी जांच या सा य का
पिरणाम पर्मािणत करके उस न्यायालय को भेजा जाएगा ।

368. दंडादेश को पुष्ट करने या दोषिसि को बाितल करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—उच्च न्यायालय धारा 366 के अधीन
पर्स्तुत िकसी मामले म,—

(क) दंडादेश की पुिष्ट कर सकता है या िविध ारा समिथत कोई अन्य दंडादेश दे सकता है ; अथवा

(ख) दोषिसि को बाितल कर सकता है और अिभयुक्त को िकसी ऐसे अपराध के िलए दोषिस कर सकता है िजसके िलए
सेशन न्यायालय उसे दोषिस कर सकता था, या उसी या संशोिधत आरोप पर नए िवचारण का आदेश दे सकता है ; अथवा

(ग) अिभयुक्त िक्त को दोषमुक्त कर सकता है :

परन्तु पुिष्ट का कोई आदेश इस धारा के अधीन तब तक नह िदया जाएगा जब तक अपील करने के िलए अनुज्ञात अविध समाप्त
न हो गई हो या यिद ऐसी अविध के अन्दर अपील पेश कर दी गई है तो जब तक उस अपील का िनपटारा न हो गया हो ।

369. नए दंडादेश की पुिष्ट का दो न्यायाधीश ारा हस्ताक्षिरत िकया जाना—इस पर्कार पर्स्तुत पर्त्येक मामले म उच्च न्यायालय
ारा दंडादेश का पुिष्टकरण या उसके ारा पािरत कोई नया दंडादेश, या आदेश, यिद ऐसे न्यायालय म दो या अिधक न्यायाधीश ह तो,
उनम से कम से कम दो न्यायाधीश ारा िकया, पािरत िकया और हस्ताक्षिरत िकया जाएगा ।

370. मतभेद की दशा म पर्िकर्या—जहां कोई ऐसा मामला न्यायाधीश के न्यायपीठ के समक्ष सुना जाता है और ऐसे न्यायाधीश
राय के बारे म समान रूप से िवभािजत ह वहां मामला धारा 392 ारा उपबंिधत रीित से िविनिश्चत िकया जाएगा ।

371. उच्च न्यायालय की पुिष्ट के िलए पर्स्तुत मामल म पर्िकर्या—मृत्यु दंडादेश की पुिष्ट के िलए उच्च न्यायालय को सेशन
न्यायालय ारा पर्स्तुत मामल म उच्च न्यायालय ारा पुिष्ट के आदेश या अन्य आदेश के िदए जाने के पश्चात् उच्च न्यायालय का
समुिचत अिधकारी िवलंब के िबना, आदेश की पर्ितिलिप उच्च न्यायालय की मुदर्ा लगाकर और अपने पदीय हस्ताक्षर से अनुपर्मािणत
करके सेशन न्यायालय को भेजेगा ।

अध्याय 29

अपील
372. जब तक अन्यथा उपबंिधत न हो िकसी अपील का न होना—दंड न्यायालय के िकसी िनणर्य या आदेश से कोई अपील इस
संिहता ारा या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा जैसा उपबंिधत हो उसके िसवाय न होगी :
[परं तु पीिड़त को न्यायालय ारा पािरत अिभयुक्त को दोषमुक्त करने वाले या कम अपराध के िलए दोषिस करने वाले या
1

अपयार्प्त पर्ितकर अिधरोिपत करने वाले आदेश के िवरु अपील करने का अिधकार होगा और ऐसी अपील उस न्यायालय म होगी िजसम
ऐसे न्यायालय की दोषिसि के आदेश के िवरु मामूली तौर पर अपील होती है ।]
373. पिरशािन्त कायम रखने या सदाचार के िलए पर्ितभूित अपेिक्षत करने वाले या पर्ितभूित स्वीकार करने से इनकार करने वाले
या अस्वीकार करने वाले आदेश से अपील—कोई िक्त,—
(i) िजसे पिरशािन्त कायम रखने या सदाचार के िलए पर्ितभूित देने के िलए धारा 117 के अधीन आदेश िदया गया
है, अथवा
(ii) जो धारा 121 के अधीन पर्ितभू स्वीकार करने से इनकार करने या उसे अस्वीकार करने वाले िकसी आदेश से िथत है,

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 29 ारा अंत:स्थािपत ।
111

सेशन न्यायालय म ऐसे आदेश के िवरु अपील कर सकता है :


परन्तु इस धारा की कोई बात उन िक्तय को लागू नह होगी िजनके िवरु कायर्वाही सेशन न्यायाधीश के समक्ष धारा 122 की
उपधारा (2) या उपधारा (4) के उपबंध के अनुसार रखी गई है ।
374. दोषिसि से अपील—(1) कोई िक्त जो उच्च न्यायालय ारा असाधारण आरं िभक दांिडक अिधकािरता के पर्योग म िकए
गए िवचारण म दोषिस िकया गया है, उच्चतम न्यायालय म अपील कर सकता है ।
(2) कोई िक्त जो सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश ारा िकए गए िवचारण म या िकसी अन्य न्यायालय ारा िकए
गए िवचारण म दोषिस िकया गया है, िजसम सात वषर् से अिधक के कारावास का दंडादेश 1 [उसके िवरु या उसी िवचारण म
दोषिस िकए गए िकसी अन्य िक्त के िवरु िदया गया है] उच्च न्यायालय म अपील कर सकता है ।
(3) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, कोई िक्त,—
(क) जो महानगर मिजस्टर्ेट या सहायक सेशन न्यायाधीश या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट या ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा िकए गए
िवचारण म दोषिस िकया गया है, अथवा
(ख) जो धारा 325 के अधीन दंडािदष्ट िकया गया है, अथवा
(ग) िजसके बारे म िकसी मिजस्टर्ेट ारा धारा 360 के अधीन आदेश िदया गया है या दंडादेश पािरत िकया गया है,
सेशन न्यायालय म अपील कर सकता है ।
375. कु छ मामल म जब अिभयुक्त दोषी होने का अिभवचन करे , अपील न होना—धारा 374 म िकसी बात के होते हुए भी, जहां
अिभयुक्त िक्त ने दोषी होने का अिभवचन िकया है, और ऐसे अिभवचन पर वह दोषिस िकया गया है वहां,—
(क) यिद दोषिसि उच्च न्यायालय ारा की गई है, तो कोई अपील नह होगी, अथवा
(ख) यिद दोषिसि सेशन न्यायालय, महानगर मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट या ि तीय मिजस्टर्ेट ारा की गई है तो
अपील, दंड के पिरणाम या उसकी वैधता के बारे म ही हो सके गी, अन्यथा नह ।
376. छोटे मामल म अपील न होना—धारा 374 म िकसी बात के होते हुए भी, दोषिस िक्त ारा कोई अपील िनम्निलिखत
म से िकसी मामले म न होगी, अथार्त् :—
(क) जहां उच्च न्यायालय के वल छह मास से अनिधक की अविध के कारावास का या एक हजार रुपए से अनिधक जुमार्ने का
अथवा ऐसे कारावास और जुमार्ने दोन का, दंडादेश पािरत करता है ;
(ख) जहां सेशन न्यायालय या महानगर मिजस्टर्ेट के वल तीन मास से अनिधक की अविध के कारावास का या दो सौ रुपए से
अनिधक जुमार्ने का अथवा ऐसे कारावास और जुमार्ने दोन का, दंडादेश पािरत करता है ;
(ग) जहां पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट के वल एक सौ रुपए से अनिधक जुमार्ने का दंडादेश पािरत करता है ; अथवा
(घ) जहां संक्षेपत: िवचािरत िकसी मामले म, धारा 260 के अधीन कायर् करने के िलए सशक्त मिजस्टर्ेट के वल दो सौ रुपए से
अनिधक जुमार्ने का दंडादेश पािरत करता है :
परन्तु यिद ऐसे िकसी दंडादेश के साथ कोई अन्य दंड िमला िदया गया है तो ऐसे दंडादेश के िवरु अपील की जा सकती है िकन्तु
वह के वल इस आधार पर अपीलनीय न हो जाएगा िक—
(i) दोषिस िक्त को पिरशािन्त कायम रखने के िलए पर्ितभूित देने का आदेश िदया गया है ; अथवा
(ii) जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर कारावास के िनदेश को दंडादेश म सिम्मिलत िकया गया है ; अथवा
(iii) उस मामले म जुमार्ने का एक से अिधक दंडादेश पािरत िकया गया है, यिद अिधरोिपत जुमार्ने की कु ल रकम उस
मामले की बाबत इसम इसके पूवर् िविनिदष्ट रकम से अिधक नह है ।
377. राज्य सरकार ारा दंडादेश के िवरु अपील—(1) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय राज्य सरकार, उच्च
न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ारा िकए गए िवचारण म दोषिसि के िकसी मामले म लोक अिभयोजक को दंडादेश की
2
[अपयार्प्तता के आधार पर उसके िवरु —
(क) सेशन न्यायालय म, यिद दंडादेश िकसी मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकया जाता है ; और
(ख) उच्च न्यायालय म, यिद दंडादेश िकसी अन्य न्यायालय ारा पािरत िकया जाता है,
अपील पर्स्तुत करने का िनदेश दे सकती है]

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 28 ारा “िदया गया है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 31 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
112

(2) यिद ऐसी दोषिसि िकसी ऐसे मामले म है िजसम अपराध का अन्वेषण िदल्ली िवशेष पुिलस स्थापन अिधिनयम, 1946
(1946 का 25) के अधीन गिठत िदल्ली िवशेष पुिलस स्थापन ारा या इस संिहता से िभन्न िकसी के न्दर्ीय अिधिनयम के अधीन अपराध
का अन्वेषण करने के िलए सशक्त िकसी अन्य अिभकरण ारा िकया गया है तो 1 [के न्दर्ीय सरकार भी] लोक अिभयोजक को दंडादेश की
2
[अपयार्प्तता के आधार पर उसके िवरु —
(क) सेशन न्यायालय म, यिद दंडादेश िकसी मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकया जाता है ; और
(ख) उच्च न्यायालय म, यिद दंडादेश िकसी अन्य न्यायालय ारा पािरत िकया जाता है,
अपील पर्स्तुत करने का िनदेश दे सकती है]
(3) जब दंडादेश के िवरु अपयार्प्तता के आधार पर अपील की गई है तब 3 [यथािस्थित, सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय] उस
दंडादेश म वृि तब तक नह करे गा जब तक िक अिभयुक्त को ऐसी वृि के िवरु कारण दिशत करने का युिक्तयुक्त अवसर नह दे
िदया गया है और कारण दिशत करते समय अिभयुक्त अपनी दोषमुिक्त के िलए या दंडादेश म कमी करने के िलए अिभवचन कर सकता
है ।
378. दोषमुिक्त की दशा म अपील—(1) 4 [(1) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय और उपधारा (3) और उपधारा
(5) के उपबंध के अधीन रहते हुए,—
(क) िजला मिजस्टर्ेट, िकसी मामले म, लोक अिभयोजक को िकसी संज्ञेय और अजमानतीय अपराध की बाबत िकसी
मिजस्टर्ेट ारा पािरत दोषमुिक्त के आदेश से सेशन न्यायालय म अपील पर्स्तुत करने का िनदेश दे सके गा ;
(ख) राज्य सरकार, िकसी मामले म लोक अिभयोजक को उच्च न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ारा पािरत दोषमुिक्त
के मूल या अपीली आदेश से [जो खंड (क) के अधीन आदेश नह है] या पुनरीक्षण म सेशन न्यायालय ारा पािरत दोषमुिक्त के
आदेश से उच्च न्यायालय म,
अपील पर्स्तुत करने का िनदेश दे सके गी ।]
(2) यिद ऐसा दोषमुिक्त का आदेश िकसी ऐसे मामले म पािरत िकया जाता है िजसम अपराध का अन्वेषण िदल्ली िवशेष पुिलस
स्थापन अिधिनयम, 1946 (1946 का 25) के अधीन गिठत िदल्ली िवशेष पुिलस स्थापन ारा या इस संिहता से िभन्न िकसी के न्दर्ीय
अिधिनयम के अधीन अपराध का अन्वेषण करने के िलए सशक्त िकसी अन्य अिभकरण ारा िकया गया है तो 5 [के न्दर्ीय सरकार उपधारा
(3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, लोक अिभयोजक को—
(क) दोषमुिक्त के ऐसे आदेश से, जो संज्ञेय और अजमानतीय अपराध की बाबत िकसी मिजस्टर्ेट ारा पािरत िकया गया है
सेशन न्यायालय म ;
(ख) दोषमुिक्त के ऐसे मूल या अपीली आदेश से, जो िकसी उच्च न्यायालय से िभन्न िकसी न्यायालय ारा पािरत िकया
गया है [जो खंड (क) के अधीन आदेश नह है] या दोषमुिक्त के ऐसे आदेश से, जो पुनरीक्षण म सेशन न्यायालय ारा पािरत िकया
गया है, उच्च न्यायालय म, अपील पर्स्तुत करने का िनदेश दे सकती है ।]
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन 6 [उच्च न्यायालय को कोई अपील] उच्च न्यायालय की इजाजत के िबना गर्हण नह
की जाएगी ।
(4) यिद दोषमुिक्त का ऐसा आदेश पिरवाद पर संिस्थत िकसी मामले म पािरत िकया गया है और उच्च न्यायालय, पिरवादी ारा
उससे इस िनिम आवेदन िकए जाने पर, दोषमुिक्त के आदेश की अपील करने की िवशेष इजाजत देता है तो पिरवादी ऐसी अपील उच्च
न्यायालय म उपिस्थत कर सकता है ।
(5) दोषमुिक्त के आदेश से अपील करने की िवशेष इजाजत िदए जाने के िलए उपधारा (4) के अधीन कोई आवेदन उच्च न्यायालय
ारा, उस दशा म िजसम पिरवादी लोक सेवक है उस दोषमुिक्त के आदेश की तारीख से संगिणत, छह मास की समािप्त के पश्चात् और
पर्त्येक अन्य दशा म ऐसे संगिणत साठ िदन की समािप्त के पश्चात् गर्हण नह िकया जाएगा ।
(6) यिद िकसी मामले म दोषमुिक्त के आदेश से अपील करने की िवशेष इजाजत िदए जाने के िलए उपधारा (4) के अधीन कोई
आवेदन नामंजूर िकया जाता है तो उस दोषमुिक्त के आदेश से उपधारा (1) के अधीन या उपधारा (2) के अधीन कोई अपील नह होगी ।
379. कु छ मामल म उच्च न्यायालय ारा दोषिस िकए जाने के िवरु अपील—यिद उच्च न्यायालय ने अिभयुक्त िक्त को
दोषमुिक्त के आदेश को अपील म उलट िदया है और उसे दोषिस िकया है तथा उसे मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वषर् अथवा

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 29 ारा “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 31 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 31 ारा “उच्च न्यायालय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 32 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 32 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 32 ारा “कोई अपील” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
113

अिधक की अविध के कारावास का दंड िदया है तो वह उच्चतम न्यायालय म अपील कर सकता है ।


380. कु छ मामल म अपील करने का िवशेष अिधकार—इस अध्याय म िकसी बात के होते हुए भी, जब एक से अिधक िक्त एक
ही िवचारण म दोषिस िकए जाते ह, और ऐसे िक्तय म से िकसी के बारे म अपीलनीय िनणर्य या आदेश पािरत िकया गया है तब ऐसे
िवचारण म दोषिस िकए गए सब िक्तय को या उनम से िकसी को भी अपील का अिधकार होगा ।
381. सेशन न्यायालय म की गई अपील कै से सुनी जाएंगी—(1) उपधारा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, सेशन न्यायालय म
या सेशन न्यायाधीश को की गई अपील सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश ारा सुनी जाएगी :
परन्तु ि तीय वगर् मिजस्टर्ेट ारा िकए गए िवचारण म दोषिसि के िवरु अपील सहायक सेशन न्यायाधीश या मुख्य न्याियक
मिजस्टर्ेट ारा सुनी जा सके गी और िनपटायी जा सके गी ।
(2) अपर सेशन न्यायाधीश, सहायक सेशन न्यायाधीश या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के वल ऐसी अपील सुनेगा िजन्ह खंड का सेशन
न्यायाधीश, साधारण या िवशेष आदेश ारा, उसके हवाले करे या िजन्ह सुनने के िलए उच्च न्यायालय, िवशेष आदेश ारा, उसे
िनदेश दे ।
382. अपील की अज —पर्त्येक अपील अपीलाथ या उसके प्लीडर ारा उपिस्थत की गई िलिखत अज के रूप म की जाएगी, और
पर्त्येक ऐसी अज के साथ (जब तक वह न्यायालय िजसम वह उपिस्थत की जाए अन्यथा िनदेश न दे) उस िनणर्य या आदेश की पर्ितिलिप
होगी िजसके िवरु अपील की जा रही है ।
383. जब अपीलाथ जेल म है तब पर्िकर्या—यिद अपीलाथ जेल म है तो वह अपनी अपील की अज और उसके साथ वाली
पर्ितिलिपय को जेल के भारसाधक अिधकारी को दे सकता है, जो तब ऐसी अज और पर्ितिलिपयां समुिचत अपील न्यायालय
को भेजेगा ।
384. अपील का संक्षप
े त: खािरज िकया जाना—(1) यिद धारा 382 या धारा 383 के अधीन पर्ाप्त अपील की अज और िनणर्य की
पर्ितिलिप की परीक्षा करने पर अपील न्यायालय का यह िवचार है िक हस्तक्षेप करने का कोई पयार्प्त आधार नह है तो वह अपील को
संक्षेपत: खािरज कर सकता है ।
परन्तु—
(क) धारा 382 के अधीन उपिस्थत की गई कोई अपील तब तक खािरज न की जाएगी जब तक अपीलाथ या उसके प्लीडर
को उसके समथर्न म सुने जाने का उिचत अवसर न िमल चुका हो ;
(ख) धारा 383 के अधीन कोई अपील उसके समथर्न म अपीलाथ को सुनवाई का उिचत अवसर िदए िबना खािरज नह की
जाएगी, जब तक अपील न्यायालय का यह िवचार न हो िक अपील तुच्छ है या न्यायालय के समक्ष अिभयुक्त को अिभरक्षा म पेश
करने से मामले की पिरिस्थितय के अनुपात म कह अिधक असुिवधा होगी ;
(ग) धारा 383 के अधीन उपिस्थत की गई कोई अपील तब तक संक्षेपत: खािरज न की जाएगी जब तक ऐसी अपील करने के
िलए अनुज्ञात अविध का अवसान न हो चुका हो ।
(2) िकसी अपील को इस धारा के अधीन खािरज करने के पूवर् न्यायालय मामले के अिभलेख मंगा सकता है ।
(3) जहां इस धारा के अधीन अपील खािरज करने वाला अपील न्यायालय, सेशन न्यायालय या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट का
न्यायालय है वहां वह ऐसा करने के अपने कारण अिभिलिखत करे गा ।
(4) जहां धारा 383 के अधीन उपिस्थत की गई कोई अपील इस धारा के अधीन संक्षेपत: खािरज कर दी जाती है और अपील
न्यायालय का यह िनष्कषर् है िक उसी अपीलाथ की ओर से धारा 382 के अधीन सम्यक् रूप से उपिस्थत की गई अपील की अन्य अज पर
उसके ारा िवचार नह िकया गया है वहां, धारा 393 म िकसी बात के होते हुए भी, यिद उस न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक
ऐसा करना न्याय के िहत म आवश्यक है तो वह ऐसी अपील िविध के अनुसार सुन सकता है और उसका िनपटारा कर सकता है ।
385. संक्षप
े त: खािरज न की गई अपील की सुनवाई के िलए पर्िकर्या—(1) यिद अपील न्यायालय अपील को संक्षेपत: खािरज नह
करता है तो वह उस समय और स्थान की, जब और जहां ऐसी अपील सुनी जाएगी, सूचना—
(i) अपीलाथ या उसके प्लीडर को ;
(ii) ऐसे अिधकारी को, िजसे राज्य सरकार इस िनिम िनयुक्त करे ;
(iii) यिद पिरवाद पर संिस्थत मामले म दोषिस के िनणर्य के िवरु अपील की गई है, तो पिरवादी को ;
(iv) यिद अपील धारा 377 या धारा 378 के अधीन की गई है तो अिभयुक्त को,
िदलवाएगा और ऐसे अिधकारी, पिरवादी और अिभयुक्त को अपील के आधार की पर्ितिलिप भी देगा ।
(2) यिद अपील न्यायालय म मामले का अिभलेख, पहले से ही उपलभ्य नह है तो वह न्यायालय ऐसा अिभलेख मंगाएगा और
पक्षकार को सुनेगा :
114

परन्तु यिद अपील के वल दंड के पिरमाण या उसकी वैधता के बारे म है तो न्यायालय अिभलेख मंगाए िबना ही अपील का िनपटारा
कर सकता है ।
(3) जहां दोषिसि के िवरु अपील का आधार के वल दंडादेश की अिभकिथत कठोरता है वहां अपीलाथ न्यायालय की इजाजत
के िबना अन्य िकसी आधार के समथर्न म न तो कहेगा और न उसे उसके समथर्न म सुना ही जाएगा ।
386. अपील न्यायालय की शिक्तयां—ऐसे अिभलेख के पिरशीलन और यिद अपीलाथ या उसका प्लीडर हािजर है तो उसे तथा
यिद लोक अिभयोजक हािजर है तो उसे और धारा 377 या धारा 378 के अधीन अपील की दशा म यिद अिभयुक्त हािजर है तो उसे सुनने
के पश्चात्, अपील न्यायालय उस दशा म िजसम उसका यह िवचार है िक हस्तक्षेप करने का पयार्प्त आधार नह है अपील को खािरज कर
सकता है, अथवा,—
(क) दोषमुिक्त के आदेश से अपील म ऐसे आदेश को उलट सकता है और िनदेश दे सकता है िक अितिरक्त जांच की जाए
अथवा अिभयुक्त, यथािस्थित, पुन: िवचािरत िकया जाए या िवचाराथर् सुपुदर् िकया जाए, अथवा उसे दोषी ठहरा सकता है और
उसे िविध के अनुसार दंडादेश दे सकता है ;
(ख) दोषिसि से अपील म,—
(i) िनष्कषर् और दंडादेश को उलट सकता है और अिभयुक्त को दोषमुक्त या उन्मोिचत कर सकता है या ऐसे अपील
न्यायालय के अधीनस्थ सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय ारा उसके पुन: िवचािरत िकए जाने का या िवचारणाथर् सुपुदर्
िकए जाने का आदेश दे सकता है, अथवा
(ii) दंडादेश को कायम रखते हुए िनष्कषर् म पिरवतर्न कर सकता है, अथवा
(iii) िनष्कषर् म पिरवतर्न करके या िकए िबना दंड के स्वरूप या पिरमाण म अथवा स्वरूप और पिरमाण म पिरवतर्न
कर सकता है, िकन्तु इस पर्कार नह िक उससे दंड म वृि हो जाए ;
(ग) दंडादेश की वृि के िलए अपील म,—
(i) िनष्कषर् और दंडादेश को उलट सकता है और अिभयुक्त को दोषमुक्त या उन्मोिचत कर सकता है या ऐसे अपराध
का िवचारण करने के िलए सक्षम न्यायालय ारा उसका पुनिवचारण करने का आदेश दे सकता है, या
(ii) दंडादेश को कायम रखते हुए िनष्कषर् म पिरवतर्न कर सकता है, या
(iii) िनष्कषर् म पिरवतर्न करके या िकए िबना, दंड के स्वरूप या पिरमाण म अथवा स्वरूप और पिरमाण म
पिरवतर्न कर सकता है िजससे उसम वृि या कमी हो जाए ;
(घ) िकसी अन्य आदेश से अपील म ऐसे आदेश को पिरवितत कर सकता है या उलट सकता है ;
(ङ) कोई संशोधन या कोई पािरणािमक या आनुषंिगक आदेश, जो न्यायसंगत या उिचत हो, कर सकता है :
परन्तु दंड म तब तक वृि नह की जाएगी जब तक अिभयुक्त को ऐसी वृि के िवरु कारण दिशत करने का अवसर न िमल
चुका हो :
परन्तु यह और िक अपील न्यायालय उस अपराध के िलए, िजसे उसकी राय म अिभयुक्त ने िकया है उससे अिधक दंड नह देगा,
जो अपीलाधीन आदेश या दंडादेश पािरत करने वाले न्यायालय ारा ऐसे अपराध के िलए िदया जा सकता था ।
387. अधीनस्थ अपील न्यायालय के िनणर्य—आरं िभक अिधकािरता वाले दंड न्यायालय के िनणर्य के बारे म अध्याय 27 म
अन्तिवष्ट िनयम, जहां तक साध्य हो, सेशन न्यायालय या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय के अपील म िदए गए िनणर्य को
लागू ह गे :
परन्तु िनणर्य िदया जाना सुनने के िलए अिभयुक्त न तो लाया जाएगा और न उससे हािजर होने की अपेक्षा की जाएगी जब तक िक
अपील न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे ।
388. अपील म उच्च न्यायालय के आदेश का पर्मािणत करके िनचले न्यायालय को भेजा जाना—(1) जब कभी अपील म कोई
मामला उच्च न्यायालय ारा इस अध्याय के अधीन िविनिश्चत िकया जाता है तब वह अपना िनणर्य या आदेश पर्मािणत करके उस
न्यायालय को भेजेगा िजसके ारा वह िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश, िजसके िवरु अपील की गई थी अिभिलिखत िकया गया या पािरत
िकया गया था और यिद ऐसा न्यायालय मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट से िभन्न न्याियक मिजस्टर्ेट का है तो उच्च न्यायालय का िनणर्य या
आदेश मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट की माफर् त भेजा जाएगा ; और यिद ऐसा न्यायालय कायर्पालक मिजस्टर्ेट का है तो उच्च न्यायालय का
िनणर्य या आदेश िजला मिजस्टर्ेट की माफर् त भेजा जाएगा ।
(2) तब वह न्यायालय, िजसे उच्च न्यायालय अपना िनणर्य या आदेश पर्मािणत करके भेजे ऐसे आदेश करे गा जो उच्च न्यायालय के
िनणर्य या आदेश के अनुरूप ह ; और यिद आवश्यक हो तो अिभलेख म तद्नुसार संशोधन कर िदया जाएगा ।
389. अपील लंिबत रहने तक दंडादेश का िनलम्बन ; अपीलाथ का जमानत पर छोड़ा जाना—(1) अपील न्यायालय, ऐसे कारण
115

से, जो उसके ारा अिभिलिखत िकए जाएंग,े आदेश दे सकता है िक उस दंडादेश या आदेश का िनष्पादन, िजसके िवरु अपील की गई है,
दोषिस िक्त ारा की गई अपील के लंिबत रहने तक िनलंिबत िकया जाए और यिद वह िक्त पिररोध म है तो यह भी आदेश दे
सकता है िक उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपतर् पर छोड़ िदया जाए :
[परन्तु अपील न्यायालय ऐसे दोषिस
1
िक्त को, जो मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वषर् से अन्यून अविध के कारावास से
दंडनीय िकसी अपराध के िलए दोषिस िकया गया है, जमानत पर या उसके अपने बंधपतर् पर छोड़ने से पूवर्, लोक अिभयोजक को ऐसे
छोड़ने के िवरु िलिखत म कारण दशार्ने का अवसर देगा :
परन्तु यह और िक ऐसे मामल म, जहां िकसी दोषिस िक्त को जमानत पर छोड़ा जाता है वहां लोक अिभयोजक जमानत र
िकए जाने के िलए आवेदन फाइल कर सके गा ।]
(2) अपील न्यायालय को इस धारा ारा पर्द शिक्त का पर्योग उच्च न्यायालय भी िकसी ऐसी अपील के मामले म कर सकता है
जो िकसी दोषिस िक्त ारा उसके अधीनस्थ न्यायालय म की गई है ।
(3) जहां दोषिस िक्त ऐसे न्यायालय का िजसके ारा वह दोषिस िकया गया है यह समाधान कर देता है िक वह अपील
पर्स्तुत करना चाहता है वहां वह न्यायालय,—
(i) उस दशा म जब ऐसा िक्त, जमानत पर होते हुए, तीन वषर् से अनिधक की अविध के िलए कारावास से दंडािदष्ट
िकया गया है, या
(ii) उस दशा म जब वह अपराध, िजसके िलए ऐसा िक्त दोषिस िकया गया है, जमानतीय है और वह जमानत पर है,
यह आदेश देगा िक दोषिस िक्त को इतनी अविध के िलए िजतनी से अपील पर्स्तुत करने और उपधारा (1) के अधीन अपील
न्यायालय के आदेश पर्ाप्त करने के िलए पयार्प्त समय िमल जाएगा जमानत पर छोड़ िदया जाए जब तक िक जमानत से इनकार करने के
िवशेष कारण न ह और जब तक वह ऐसे जमानत पर छू टा रहता है तब तक कारावास का दंडादेश िनलिम्बत समझा जाएगा ।
(4) जब अंततोगत्वा अपीलाथ को िकसी अविध के कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश िदया जाता है, तब वह समय,
िजसके दौरान वह ऐसे छू टा रहता है, उस अविध की संगणना करने म, िजसके िलए उसे ऐसा दंडादेश िदया गया है, िहसाब म नह
िलया जाएगा ।
390. दोषमुिक्त से अपील म अिभयुक्त की िगरफ्तारी—जब धारा 378 के अधीन अपील उपिस्थत की जाती है तब उच्च
न्यायालय वारण्ट जारी कर सकता है िजसम यह िनदेश होगा िक अिभयुक्त िगरफ्तार िकया जाए और उसके या िकसी अधीनस्थ
न्यायालय के समक्ष लाया जाए, और वह न्यायालय िजसके समक्ष अिभयुक्त लाया जाता है, अपील का िनपटारा होने तक उसे कारागार
को सुपुदर् कर सकता है या उसकी जमानत ले सकता है ।
391. अपील न्यायालय अितिरक्त सा य ले सके गा या उसके िलए जाने का िनदेश दे सके गा—(1) इस अध्याय के अधीन िकसी
अपील पर िवचार करने म यिद अपील न्यायालय अितिरक्त सा य आवश्यक समझता है तो वह अपने कारण को अिभिलिखत करे गा
और ऐसा सा य या तो स्वयं ले सकता है या मिजस्टर्ेट ारा, या जब अपील न्यायालय उच्च न्यायालय है तब सेशन न्यायालय या
मिजस्टर्ेट ारा, िलए जाने का िनदेश दे सकता है ।
(2) जब अितिरक्त सा य सेशन न्यायालय या मिजस्टर्ेट ारा ले िलया जाता है तब वह ऐसा सा य पर्मािणत करके अपील
न्यायालय को भेजेगा और तब ऐसा न्यायालय अपील िनपटाने के िलए अगर्सर होगा ।
(3) अिभयुक्त या उसके प्लीडर को उस समय उपिस्थत होने का अिधकार होगा जब अितिरक्त सा य िलया जाता है ।
(4) इस धारा के अधीन सा य का िलया जाना अध्याय 23 के उपबंध के अधीन होगा मानो वह कोई जांच हो ।
392. जहां अपील न्यायालय के न्यायाधीश राय के बारे म समान रूप म िवभािजत ह , वहां पर्िकर्या—जब इस अध्याय के अधीन
अपील उच्च न्यायालय ारा उसके न्यायाधीश के न्यायपीठ के समक्ष सुनी जाती है और वे राय म समान रूप से िवभािजत ह तब अपील
उनकी राय के सिहत उसी न्यायालय के िकसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाएगी और ऐसा न्यायाधीश, ऐसी सुनवाई के पश्चात्, जैसी
वह ठीक समझे, अपनी राय देगा और िनणर्य या आदेश ऐसी राय के अनुसार होगा :
परन्तु यिद न्यायपीठ गिठत करने वाले न्यायाधीश म से कोई एक न्यायाधीश या जहां अपील इस धारा के अधीन िकसी अन्य
न्यायाधीश के समक्ष रखी जाती है वहां वह न्यायाधीश अपेक्षा करे तो अपील, न्यायाधीश के वृह र न्यायपीठ ारा पुन: सुनी जाएगी
और िविनिश्चत की जाएगी ।
393. अपील पर आदेश और िनणर्य का अंितम होना—अपील म अपील न्यायालय ारा पािरत िनणर्य या आदेश धारा 377,
धारा 378, धारा 384 की उपधारा (4) या अध्याय 30 म उपबंिधत दशा के िसवाय अंितम ह गे :
परन्तु िकसी मामले म दोषिसि के िवरु अपील का अंितम िनपटारा हो जाने पर भी, अपील न्यायालय—

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 33 ारा अंत:स्थािपत ।
116

(क) धारा 378 के अधीन दोषमुिक्त के िवरु उसी मामले से पैदा होने वाली अपील को ; अथवा
(ख) धारा 377 के अधीन दंडादेश म वृि के िलए उसी मामले से पैदा होने वाली अपील को, सुन सकता है और गुणागुण के
आधार पर उसका िनपटारा कर सकता है ।
394. अपील का उपशमन—(1) धारा 377 या धारा 378 के अधीन पर्त्येक अन्य अपील का अिभयुक्त की मृत्यु पर अंितम रूप से
उपशमन हो जाएगा ।
(2) इस अध्याय के अधीन (जुमार्ने के दंडादेश की अपील के िसवाय) पर्त्येक अन्य अपील का अपीलाथ की मृत्यु पर अंितम रूप से
उपशमन हो जाएगा :
परन्तु जहां अपील, दोषिसि और मृत्यु के या कारावास के दंडादेश के िवरु है और अपील के लंिबत रहने के दौरान अपीलाथ
की मृत्यु हो जाती है वहां उसका कोई भी िनकट नातेदार, अपीलाथ की मृत्यु के तीस िदन के अन्दर अपील जारी रखने की इजाजत के
िलए अपील न्यायालय म आवेदन कर सकता है ; और यिद इजाजत दे दी जाती है तो अपील का उपशमन न होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “िनकट नातेदार” से माता-िपता, पित या पत्नी, पारं पिरक वंशज, भाई या बहन अिभपर्ेत है ।
अध्याय 30

िनदश और पुनरीक्षण
395. उच्च न्यायालय को िनदश—(1) जहां िकसी न्यायालय का समाधान हो जाता है िक उसके समक्ष लंिबत मामले म िकसी
अिधिनयम, अध्यादेश या िविनयम की अथवा िकसी अिधिनयम, अध्यादेश या िविनयम म अन्तिवष्ट िकसी उपबंध की िविधमान्यता के
बारे म ऐसा पर्श्न अन्तगर्र्स्त है, िजसका अवधारण उस मामले को िनपटाने के िलए आवश्यक है, और उसकी यह राय है िक ऐसा
अिधिनयम, अध्यादेश, िविनयम या उपबंध अिविधमान्य या अपर्वतर्नशील है िकन्तु उस उच्च न्यायालय ारा, िजसके वह न्यायालय
अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय ारा ऐसा घोिषत नह िकया गया है वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारण को उिल्लिखत
करते हुए मामले का कथन तैयार करे गा और उसे उच्च न्यायालय के िविनश्चय के िलए िनदिशत करे गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “िविनयम” से साधारण खंड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) म या िकसी राज्य के साधारण खंड
अिधिनयम म यथापिरभािषत कोई िविनयम अिभपर्ेत है ।
(2) यिद सेशन न्यायालय या महानगर मिजस्टर्ेट अपने समक्ष लंिबत िकसी मामले म, िजसे उपधारा (1) के उपबंध लागू नह होते
ह, ठीक समझता है तो वह, ऐसे मामले की सुनवाई म उठने वाले िकसी िविध-पर्श्न को उच्च न्यायालय के िविनश्चय के िलए िनदिशत कर
सकता है ।
(3) कोई न्यायालय, जो उच्च न्यायालय को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन िनदश करता है, उस पर उच्च न्यायालय का
िविनश्चय होने तक, अिभयुक्त को जेल को सुपुदर् कर सकता है या अपेक्षा िकए जाने पर हािजर होने के िलए जमानत पर छोड़ सकता है ।
396. उच्च न्यायालय के िविनश्चय के अनुसार मामले का िनपटारा—(1) जब कोई पर्श्न ऐसे िनदिशत िकया जाता है तब उच्च
न्यायालय उस पर ऐसा आदेश पािरत करे गा जैसा वह ठीक समझे और उस आदेश की पर्ितिलिप उस न्यायालय को िभजवाएगा िजसके
ारा वह िनदश िकया गया था और वह न्यायालय उस मामले को उक्त आदेश के अनुरूप िनपटाएगा ।
(2) उच्च न्यायालय िनदेश दे सकता है िक ऐसे िनदेश का खचार् कौन देगा ।
397. पुनरीक्षण की शिक्तय का पर्योग करने के िलए अिभलेख मंगाना—(1) उच्च न्यायालय या कोई सेशन न्यायाधीश अपनी
स्थानीय अिधकािरता के अन्दर िस्थत िकसी अवर दंड न्यायालय के समक्ष की िकसी कायर्वाही के अिभलेख को, िकसी अिभिलिखत या
पािरत िकए गए िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश की शु ता, वैधता या औिचत्य के बारे म और ऐसे अवर न्यायालय की िकन्ह कायर्वािहय
की िनयिमतता के बारे म अपना समाधान करने के पर्योजन से, मंगा सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है और ऐसा अिभलेख मंगाते
समय िनदेश दे सकता है िक अिभलेख की परीक्षा लंिबत रहने तक िकसी दंडादेश का िनष्पादन िनलंिबत िकया जाए और यिद अिभयुक्त
पिररोध म है तो उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपतर् पर छोड़ िदया जाए ।
स्पष्टीकरण—सभी मिजस्टर्ेट, चाहे वे कायर्पालक ह या न्याियक और चाहे वे आरं िभक अिधकािरता का पर्योग कर रहे ह , या
अपीली अिधकािरता का, इस उपधारा के और धारा 398 के पर्योजन के िलए सेशन न्यायाधीश से अवर समझे जाएंगे ।
(2) उपधारा (1) ारा पर्द पुनरीक्षण की शिक्तय का पर्योग िकसी अपील, जांच िवचारण या अन्य कायर्वाही म पािरत िकसी
अंतवर्त आदेश की बाबत नह िकया जाएगा ।
(3) यिद िकसी िक्त ारा इस धारा के अधीन आवेदन या तो उच्च न्यायालय को या सेशन न्यायाधीश को िकया गया है तो उसी
िक्त ारा कोई और आवेदन उनम से दूसरे के ारा गर्हण नह िकया जाएगा ।
398. जांच करने का आदेश देने की शिक्त—िकसी अिभलेख की धारा 397 के अधीन परीक्षा करने पर या अन्यथा उच्च न्यायालय या
सेशन न्यायाधीश, मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को िनदेश दे सकता है िक वह, ऐसे िकसी पिरवाद की, जो धारा 203 या धारा 204 की
उपधारा (4) के अधीन खािरज कर िदया गया है, या िकसी अपराध के अिभयुक्त ऐसे िक्त के मामले की, जो उन्मोिचत कर िदया गया है,
117

अितिरक्त जांच स्वयं करे या अपने अधीनस्थ मिजस्टर्ेट म से िकसी के ारा कराए तथा मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट ऐसी अितिरक्त जांच स्वयं
कर सकता है या उसे करने के िलए अपने िकसी अधीनस्थ मिजस्टर्ेट को िनदेश दे सकता है :
परन्तु कोई न्यायालय िकसी ऐसे िक्त के मामले म, जो उन्मोिचत कर िदया गया है, इस धारा के अधीन जांच करने का कोई
िनदेश तभी देगा जब इस बात का कारण दिशत करने के िलए िक ऐसा िनदेश क्य नह िदया जाना चािहए, ऐसे िक्त को अवसर िमल
चुका हो ।
399. सेशन न्यायाधीश की पुनरीक्षण की शिक्तयां—(1) ऐसी िकसी कायर्वाही के मामले म िजसका अिभलेख सेशन न्यायाधीश ने
स्वयं मंगवाया है, वह उन सभी या िकन्ह शिक्तय का पर्योग कर सकता है िजनका पर्योग धारा 401 की उपधारा (1) के अधीन उच्च
न्यायालय कर सकता है ।
(2) जहां सेशन न्यायाधीश के समक्ष पुनरीक्षण के रूप म कोई कायर्वाही उपधारा (1) के अधीन पर्ारं भ की गई है वहां धारा 401 की
उपधारा (2), (3), (4) और (5) के उपबंध, जहां तक हो सके , ऐसी कायर्वाही को लागू ह गे और उक्त उपधारा म उच्च न्यायालय के
पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे सेशन न्यायाधीश के पर्ित िनदश ह ।
(3) जहां िकसी िक्त ारा या उसकी ओर से पुनरीक्षण के िलए आवेदन सेशन न्यायाधीश के समक्ष िकया जाता है वहां ऐसे
िक्त के संबंध म उस बाबत सेशन न्यायाधीश का िविनश्चय अिन्तम होगा और ऐसे िक्त की पर्ेरणा पर पुनरीक्षण के रूप म और
कायर्वाही उच्च न्यायालय या िकसी अन्य न्यायालय ारा गर्हण नह की जाएगी ।
400. अपर सेशन न्यायाधीश की शिक्त—अपर सेशन न्यायाधीश को िकसी ऐसे मामले के बारे म, जो सेशन न्यायाधीश के िकसी
साधारण या िवशेष आदेश के ारा या अधीन उसे अंतिरत िकया जाता है, सेशन न्यायाधीश की इस अध्याय के अधीन सब शिक्तयां पर्ाप्त
ह गी और वह उनका पर्योग कर सकता है ।
401. उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शिक्तयां—(1) ऐसी िकसी कायर्वाही के मामले म, िजसका अिभलेख उच्च न्यायालय ने स्वयं
मंगवाया है िजसकी उसे अन्यथा जानकारी हुई है, वह धाराएं 386, 389, 390 और 391 ारा अपील न्यायालय को या धारा 307 ारा सेशन
न्यायालय को पर्द शिक्तय म से िकसी का स्विववेकानुसार पर्योग कर सकता है और जब वे न्यायाधीश, जो पुनरीक्षण न्यायालय म पीठासीन
ह, राय म समान रूप से िवभािजत ह तब मामले का िनपटारा धारा 392 ारा उपबंिधत रीित से िकया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन कोई आदेश, जो अिभयुक्त या अन्य िक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव डालता है, तब तक न िकया जाएगा जब
तक उसे अपनी पर्ितरक्षा म या तो स्वयं या प्लीडर ारा सुने जाने का अवसर न िमल चुका हो ।
(3) इस धारा की कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुिक्त के िनष्कषर् को दोषिसि के िनष्कषर् म संपिरवितत करने के िलए
पर्ािधकृ त करने वाली न समझी जाएगी ।
(4) जहां संिहता के अधीन अपील हो सकती है िकन्तु कोई अपील की नह जाती है वहां उस पक्षकार की पर्ेरणा पर, जो अपील कर
सकता था, पुनरीक्षण की कोई कायर्वाही गर्हण न की जाएगी ।
(5) जहां इस संिहता के अधीन अपील होती है िकन्तु उच्च न्यायालय को िकसी िक्त ारा पुनरीक्षण के िलए आवेदन िकया गया
है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक ऐसा आवेदन इस गलत िवश्वास के आधार पर िकया गया था िक उससे कोई
अपील नह होती है और न्याय के िहत म ऐसा करना आवश्यक है तो उच्च न्यायालय पुनरीक्षण के िलए आवेदन को अपील की अज मान
सकता है और उस पर तद्नुसार कायर्वाही कर सकता है ।
402. उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण के मामल को वापस लेने या अन्तिरत करने की शिक्त—(1) जब एक ही िवचारण म दोषिस
एक या अिधक िक्त पुनरीक्षण के िलए आवेदन उच्च न्यायालय को करते ह और उसी िवचारण म दोषिस कोई अन्य िक्त पुनरीक्षण
के िलए आवेदन सेशन न्यायाधीश को करता है तब उच्च न्यायालय, पक्षकार की सुिवधा और अन्तगर्र्स्त पर्श्न के महत्व को ध्यान म रखते
हुए यह िविनश्चय करे गा िक उन दोन म से कौन सा न्यायालय पुनरीक्षण के िलए आवेदन को अंितम रूप से िनपटाएगा और जब उच्च
न्यायालय यह िविनश्चय करता है िक पुनरीक्षण के िलए सभी आवेदन उसी के ारा िनपटाए जाने चािहए तब उच्च न्यायालय यह िनदेश
देगा िक सेशन न्यायाधीश के समक्ष लंिबत पुनरीक्षण के िलए आवेदन उसे अन्तिरत कर िदए जाएं और जहां उच्च न्यायालय यह िविनश्चय
करता है िक पुनरीक्षण के आवेदन उसके ारा िनपटाए जाने आवश्यक नह है वहां वह यह िनदेश देगा िक उसे िकए गए पुनरीक्षण के िलए
आवेदन सेशन न्यायाधीश को अन्तिरत िकए जाएं ।
(2) जब कभी पुनरीक्षण के िलए आवेदन उच्च न्यायालय को अन्तिरत िकया जाता है तब वह न्यायालय उसे इस पर्कार िनपटाएगा
मानो वह उसके समक्ष सम्यक्तत: िकया गया आवेदन है ।
(3) जब कभी पुनरीक्षण के िलए आवेदन सेशन न्यायाधीश को अन्तिरत िकया जाता है तब वह न्यायाधीश उसे इस पर्कार
िनपटाएगा मानो वह उसके समक्ष सम्यक्तत: िकया गया आवेदन है ।
(4) जहां पुनरीक्षण के िलए आवेदन उच्च न्यायालय ारा सेशन न्यायाधीश को अन्तिरत िकया जाता है वहां उस िक्त या उन
िक्तय की पर्ेरणा पर िजनके पुनरीक्षण के िलए आवेदन सेशन न्यायाधीश ारा िनपटाए गए ह पुनरीक्षण के िलए कोई और आवेदन
उच्च न्यायालय या िकसी अन्य न्यायालय म नह होगा ।
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403. पक्षकार को सुनने का न्यायालय का िवकल्प—इस संिहता म अिभ क्त रूप से जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, जो
न्यायालय अपनी पुनरीक्षण की शिक्तय का पर्योग कर रहा है उसके समक्ष स्वयं या प्लीडर ारा सुने जाने का अिधकार िकसी भी
पक्षकार को नह है ; िकन्तु यिद न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसी शिक्तय का पर्योग करते समय िकसी पक्षकार को स्वयं या उसके
प्लीडर ारा सुन सके गा ।
404. महानगर मिजस्टर्ेट के िविनश्चय के आधार के कथन पर उच्च न्यायालय ारा िवचार िकया जाना—जब उच्च न्यायालय
या सेशन न्यायालय ारा िकसी महानगर मिजस्टर्ेट का अिभलेख धारा 397 के अधीन मंगाया जाता है तब वह मिजस्टर्ेट अपने िविनश्चय
या आदेश के आधार का और िकन्ह ऐसे तथ्य का, िजन्ह वह िववा क के िलए ताित्त्वक समझता है, वणर्न करने वाला कथन अिभलेख के
साथ भेज सकता है और न्यायालय उक्त िविनश्चय या आदेश को उलटने या अपास्त करने से पूवर् ऐसे कथन पर िवचार करे गा ।
405. उच्च न्यायालय के आदेश का पर्मािणत करके िनचले न्यायालय को भेजा जाना—जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश
ारा कोई मामला इस अध्याय के अधीन पुनरीिक्षत िकया जाता है तब वह धारा 388 ारा उपबंिधत रीित से अपना िविनश्चय या आदेश
पर्मािणत करके उस न्यायालय को भेजेगा, िजसके ारा पुनरीिक्षत िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश अिभिलिखत िकया गया या पािरत िकया
गया था, और तब वह न्यायालय, िजसे िविनश्चय या आदेश ऐसे पर्मािणत करके भेजा गया है ऐसे आदेश करे गा, जो ऐसे पर्मािणत
िविनश्चय के अनुरूप है और यिद आवश्यक हो तो अिभलेख म तद्नुसार संशोधन कर िदया जाएगा ।
अध्याय 31

आपरािधक मामल का अन्तरण


406. मामल और अपील को अन्तिरत करने की उच्चतम न्यायालय की शिक्त—(1) जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह पर्तीत
कराया जाता है िक न्याय के उ ेश्य के िलए यह समीचीन है िक इस धारा के अधीन आदेश िकया जाए, तब वह िनदेश दे सकता है िक
कोई िविशष्ट मामला या अपील एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दंड न्यायालय से
दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या विरष्ठ अिधकािरता वाले दूसरे दंड न्यायालय को अन्तिरत कर दी जाए ।
(2) उच्चतम न्यायालय भारत के महान्यायवादी या िहतब पक्षकार के आवेदन पर ही इस धारा के अधीन कायर् कर सकता है और
ऐसा पर्त्येक आवेदन समावेदन ारा िकया जाएगा जो उस दशा के िसवाय, जब िक आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का
महािधववक्ता है, शपथपतर् या पर्ितज्ञान ारा समिथत होगा ।
(3) जहां इस धारा ारा पर्द शिक्तय का पर्योग करने के िलए कोई आवेदन खािरज कर िदया जाता है वहां, यिद उच्चतम
न्यायालय की यह राय है िक आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है िक वह एक हजार रुपए से
अनिधक इतनी रािश, िजतनी वह न्यायालय उस मामले की पिरिस्थितय म समुिचत समझे, पर्ितकर के तौर पर उस िक्त को दे िजसने
आवेदन का िवरोध िकया था ।
407. मामल और अपील को अन्तिरत करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—(1) जब कभी उच्च न्यायालय को यह पर्तीत कराया
जाता है िक—
(क) उसके अधीनस्थ िकसी दंड न्यायालय म ऋजु और पक्षपातरिहत जांच या िवचारण न हो सके गा ; अथवा
(ख) िकसी असाधारणत: किठन िविध पर्श्न के उठने की संभा ता है ; अथवा
(ग) इस धारा के अधीन आदेश इस संिहता के िकसी उपबंध ारा अपेिक्षत है, या पक्षकार या सािक्षय के िलए साधारण
सुिवधापर्द होगा, या न्याय के उ ेश्य के िलए समीचीन है,
तब वह आदेश दे सके गा िक—
(i) िकसी अपराध की जांच या िवचारण ऐसे िकसी न्यायालय ारा िकया जाए जो धारा 177 से 185 तक के (िजनके
अन्तगर्त ये दोन धाराएं भी ह) अधीन तो अिहत नह है िकन्तु ऐसे अपराध की जांच या िवचारण करने के िलए अन्यथा
सक्षम है ;
(ii) कोई िविशष्ट मामला या अपील या मामल या अपील का वगर् उसके पर्ािधकार के अधीनस्थ िकसी दंड
न्यायालय से ऐसे समान विरष्ठ अिधकािरता वाले िकसी अन्य दंड न्यायालय को अंतिरत कर िदया जाए ;
(iii) कोई िविशष्ट मामला सेशन न्यायालय को िवचारणाथर् सुपुदर् कर िदया जाए ; अथवा
(iv) कोई िविशष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अन्तिरत कर दी जाए, और उसका िवचारण उसके समक्ष
िकया जाए ।
(2) उच्च न्यायालय िनचले न्यायालय की िरपोटर् पर, या िहतब पक्षकार के आवेदन पर या स्वपर्ेरणा पर कायर्वाही कर
सकता है :
परन्तु िकसी मामले को एक ही सेशन खंड के एक दंड न्यायालय से दूसरे दंड न्यायालय को अन्तिरत करने के िलए आवेदन उच्च
न्यायालय से तभी िकया जाएगा जब ऐसा अन्तरण करने के िलए आवेदन सेशन न्यायाधीश को कर िदया गया है और उसके ारा नामंजूर
119

कर िदया गया है ।
(3) उपधारा (1) के अधीन आदेश के िलए पर्त्येक आवेदन समावेदन ारा िकया जाएगा, जो उस दशा के िसवाय जब आवेदक राज्य
का महािधववक्ता हो, शपथपतर् या पर्ितज्ञान ारा समिथत होगा ।
(4) जब ऐसा आवेदन कोई अिभयुक्त िक्त करता है, तब उच्च न्यायालय उसे िनदेश दे सकता है िक वह िकसी पर्ितकर के संदाय
के िलए, जो उच्च न्यायालय उपधारा (7) के अधीन अिधिनण त करे , पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर् िनष्पािदत करे ।
(5) ऐसा आवेदन करने वाला पर्त्येक अिभयुक्त िक्त लोक अिभयोजक को आवेदन की िलिखत सूचना उन आधार की पर्ितिलिप
के सिहत देगा िजन पर वह िकया गया है, और आवेदन के गुणागुण पर तब तक कोई आदेश न िकया जाएगा जब तक ऐसी सूचना के िदए
जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कम से कम चौबीस घंटे न बीत गए ह ।
(6) जहां आवेदन िकसी अधीनस्थ न्यायालय से कोई मामला या अपील अंतिरत करने के िलए है, वहां यिद उच्च न्यायालय का
समाधान हो जाता है िक ऐसा करना न्याय के िहत म आवश्यक है, तो वह आदेश दे सकता है िक जब तक आवेदन का िनपटारा न हो जाए
तब तक के िलए अधीनस्थ न्यायालय की कायर्वािहयां, ऐसे िनबंधन पर, िजन्ह अिधरोिपत करना उच्च न्यायालय ठीक समझे, रोक
दी जाएंगी :
परन्तु ऐसी रोक धारा 309 के अधीन पर्ितपर्ेषण की अधीनस्थ न्यायालय की शिक्त पर पर्भाव न डालेगी ।
(7) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश देने के िलए आवेदन खािरज कर िदया जाता है वहां, यिद उच्च न्यायालय की यह राय है
िक आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है िक वह एक हजार रुपए से अनिधक इतनी रािश, िजतनी
वह न्यायालय उस मामले की पिरिस्थितय म समुिचत समझे, पर्ितकर के तौर पर उस िक्त को दे िजसने आवेदन का िवरोध िकया था ।
(8) जब उच्च न्यायालय िकसी न्यायालय से िकसी मामले का अन्तरण अपने समक्ष िवचारण करने के िलए उपधारा (1) के अधीन
आदेश देता है तब वह ऐसे िवचारण म उसी पर्िकर्या का अनुपालन करे गा िजस मामले का ऐसा अन्तरण न िकए जाने की दशा म वह
न्यायालय करता ।
(9) इस धारा की कोई बात धारा 197 के अधीन सरकार के िकसी आदेश पर पर्भाव डालने वाली न समझी जाएगी ।
408. मामल और अपील को अन्तिरत करने की सेशन न्यायाधीश की शिक्त—(1) जब कभी सेशन न्यायाधीश को यह पर्तीत
कराया जाता है िक न्याय के उ ेश्य के िलए यह समीचीन है िक इस उपधारा के अधीन आदेश िदया जाए, तब वह आदेश दे सकता है िक
कोई िविशष्ट मामला उसके सेशन खंड म एक दंड न्यायालय से दूसरे दंड न्यायालय को अन्तिरत कर िदया जाए ।
(2) सेशन न्यायाधीश िनचले न्यायालय की िरपोटर् पर या िकसी िहतब पक्षकार के आवेदन पर या स्वपर्ेरणा पर कारर् वाई कर
सकता है ।
(3) धारा 407 की उपधारा (3), (4), (5), (6), (7) और (9) के उपबंध इस धारा की उपधारा (1) के अधीन आदेश के िलए सेशन
न्यायाधीश को आवेदन के संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे धारा 407 की उपधारा (1) के अधीन आदेश के िलए उच्च न्यायालय को
आवेदन के संबंध म लागू होते ह, िसवाय इसके िक उस धारा की उपधारा (7) इस पर्कार लागू होगी मानो उसम आने वाले “एक हजार
रुपए” शब्द के स्थान पर “दो सौ पचास रुपए” शब्द रख िदए गए ह ।
409. सेशन न्यायाधीश ारा मामल और अपील का वापस िलया जाना—(1) सेशन न्यायाधीश अपने अधीनस्थ िकसी सहायक
सेशन न्यायाधीश या मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट से कोई मामला या अपील वापस ले सकता है या कोई मामला या अपील, िजसे उसने उसके
हवाले िकया हो, वापस मंगा सकता है ।
(2) अपर सेशन न्यायाधीश के समक्ष मामले का िवचारण या अपील की सुनवाई पर्ारं भ होने से पूवर् िकसी समय सेशन न्यायाधीश
िकसी मामले या अपील को, िजसे उसने अपर सेशन न्यायाधीश के हवाले िकया है, वापस मंगा सकता है ।
(3) जहां सेशन न्यायाधीश कोई मामला या अपील उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन वापस मंगाता है या वापस लेता है वहां
वह, यथािस्थित, या तो उस मामले का अपने न्यायालय म िवचारण कर सकता है या उस अपील को स्वयं सुन सकता है या उसे िवचारण
या सुनवाई के िलए इस संिहता के उपबंध के अनुसार दूसरे न्यायालय के हवाले कर सकता है ।
410. न्याियक मिजस्टर्ेट ारा मामल का वापस िलया जाना—(1) कोई मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट
से िकसी मामले को वापस ले सकता है या िकसी मामले को, िजसे उसने ऐसे मिजस्टर्ेट के हवाले िकया है, वापस मंगा सकता है और मामले
की जांच या िवचारण स्वयं कर सकता है या उसे जांच या िवचारण के िलए िकसी अन्य ऐसे मिजस्टर्ेट को िनदिशत कर सकता है जो
उसकी जांच या िवचारण करने के िलए सक्षम है ।
(2) कोई न्याियक मिजस्टर्ेट िकसी मामले को, जो उसने धारा 192 की उपधारा (2) के अधीन िकसी अन्य मिजस्टर्ेट के हवाले िकया
है, वापस मंगा सकता है और ऐसे मामले की जांच या िवचारण स्वयं कर सकता है ।
411. कायर्पालक मिजस्टर्ेट ारा मामल का अपने अधीनस्थ मिजस्टर्ेट के हवाले िकया जाना या वापस िलया जाना—कोई िजला
मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट—
120

(क) िकसी ऐसी कायर्वाही को, जो उसके समक्ष आरं भ हो चुकी है, िनपटाने के िलए अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट के
हवाले कर सकता है ;
(ख) अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट से िकसी मामले को वापस ले सकता है या िकसी मामले को, िजसे उसने ऐसे मिजस्टर्ेट
के हवाले िकया हो, वापस मंगा सकता है और ऐसी कायर्वाही को स्वयं िनपटा सकता है या उसे िनपटाने के िलए िकसी अन्य
मिजस्टर्ेट को िनदिशत कर सकता है ।
412. कारण का अिभिलिखत िकया जाना—धारा 408, धारा 409, धारा 410 या धारा 411 के अधीन आदेश करने वाला सेशन
न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ऐसा आदेश करने के अपने कारण को अिभिलिखत करे गा ।
अध्याय 32

दंडादेश का िनष्पादन, िनलंबन, पिरहार और लघुकरण


क—मृत्यु दंडादेश
413. धारा 368 के अधीन िदए गए आदेश का िनष्पादन—जब मृत्यु दंडादेश की पुिष्ट के िलए उच्च न्यायालय को पर्स्तुत िकसी
मामले म, सेशन न्यायालय को उस पर उच्च न्यायालय ारा पुिष्ट का आदेश या अन्य आदेश पर्ाप्त होता है, तो वह वारं ट जारी करके या
अन्य ऐसे कदम उठाकर, जो आवश्यक हो, उस आदेश को िकर्यािन्वत कराएगा ।
414. उच्च न्यायालय ारा िदए गए मृत्यु दंडादेश का िनष्पादन—जब अपील म या पुनरीक्षण म उच्च न्यायालय ारा मृत्यु
दंडादेश िकया जाता है तब सेशन न्यायालय उच्च न्यायालय का आदेश पर्ाप्त होने पर वारं ट जारी करके दंडादेश को िकर्यािन्वत
कराएगा ।
415. उच्चतम न्यायालय की अपील की दशा म मृत्यु दंडादेश के िनष्पादन का मुल्तवी िकया जाना—(1) जहां िकसी िक्त को
उच्च न्यायालय ारा मृत्यु दंडादेश िदया गया है और उसके िनणर्य के िवरु कोई अपील संिवधान के अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड
(क) या उपखंड (ख) के अधीन उच्चतम न्यायालय को होती है वहां उच्च न्यायालय दंडादेश का िनष्पादन तब तक के िलए मुल्तवी िकए
जाने का आदेश देगा जब तक ऐसी अपील करने के िलए अनुज्ञात अविध समाप्त नह हो जाती है अथवा यिद उस अविध के अन्दर कोई
अपील की गई है तो जब तक उस अपील का िनपटारा नह हो जाता है ।
(2) जहां उच्च न्यायालय ारा मृत्यु दंडादेश िदया गया है या उसकी पुिष्ट की गई है, और दंडािदष्ट िक्त संिवधान के
अनुच्छेद 132 के अधीन या अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन पर्माणपतर् िदए जाने के िलए उच्च न्यायालय से आवेदन
करता है, तो उच्च न्यायालय दंडादेश का िनष्पादन तब तक के िलए मुल्तवी िकए जाने का आदेश देगा जब तक उस आवेदन का उच्च
न्यायालय ारा िनपटारा नह हो जाता है या यिद ऐसे आवेदन पर कोई पर्माणपतर् िदया गया है, तो जब तक उस पर्माणपतर् पर उच्चतम
न्यायालय को अपील करने के िलए अनुज्ञात अविध समाप्त नह हो जाती है ।
(3) जहां उच्च न्यायालय ारा मृत्यु दंडादेश िदया गया है या उसकी पुिष्ट की गई है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो
जाता है िक दंडािदष्ट िक्त संिवधान के अनुच्छेद 136 के अधीन अपील के िलए िवशेष इजाजत िदए जाने के िलए उच्चतम न्यायालय
म अज पेश करना चाहता है, वहां उच्च न्यायालय दंडादेश का िनष्पादन इतनी अविध तक के िलए, िजतनी वह ऐसी अज पेश करने के
िलए पयार्प्त समझे, मुल्तवी िकए जाने का आदेश देगा ।
416. गभर्वती स्तर्ी को मृत्यु दंड का मुल्तवी िकया जाना—यिद वह स्तर्ी, िजसे मृत्यु दंडादेश िदया गया है, गभर्वती पाई जाती है तो
उच्च न्यायालय 1 [***] दंडादेश का आजीवन कारावास के रूप म लघुकरण कर सके गा ।
ख—कारावास
417. कारावास का स्थान िनयत करने की शिक्त—(1) तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय राज्य
सरकार िनदेश दे सकती है िक िकसी िक्त को, िजसे इस संिहता के अधीन कारावािसत िकया जा सकता है या अिभरक्षा के िलए सुपुदर्
िकया जा सकता है, िकस स्थान म पिररु िकया जाएगा ।
(2) यिद कोई िक्त, िजसे इस संिहता के अधीन कारावािसत िकया जा सकता है या अिभरक्षा के िलए सुपुदर् िकया जा सकता है,
िसिवल जेल म पिररु है तो कारावास या सुपुदग र् ी के िलए आदेश देने वाला न्यायालय या मिजस्टर्ेट उस िक्त के दांिडक जेल म भेजे
जाने का िनदेश दे सकता है ।
(3) जब उपधारा (2) के अधीन कोई िक्त दांिडक जेल म भेजा जाता है तब वहां से छोड़ िदए जाने पर उसे उस दशा के िसवाय
िसिवल जेल को लौटाया जाएगा जब या तो—
(क) दांिडक जेल म उसके भेजे जाने से तीन वषर् बीत गए ह ; िजस दशा म वह, यथािस्थित, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908
(1908 का 5) की धारा 58 या पर्ांतीय िदवाला अिधिनयम, 1920 (1920 का 5) की धारा 23 के अधीन िसिवल जेल से छोड़ा गया
समझा जाएगा, या

1
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 30 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
121

(ख) िसिवल जेल म उसके कारावास का आदेश देने वाले न्यायालय ारा दांिडक जेल के भारसाधक अिधकारी को यह
पर्मािणत करके भेज िदया गया है िक वह, यथािस्थित, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) की धारा 58 या पर्ांतीय
िदवाला अिधिनयम, 1920 (1920 का 5) की धारा 23 के अधीन छोड़े जाने का हकदार है ।
418. कारावास के दंडादेश का िनष्पादन—(1) जहां उन मामल से, िजनके िलए धारा 413 ारा उपबंध िकया गया है, िभन्न
मामल म अिभयुक्त आजीवन कारावास या िकसी अविध के कारावास के िलए दंडािदष्ट िकया गया है, वहां दंडादेश देने वाला न्यायालय
उस जेल या अन्य स्थान को, िजसम वह पिररु है या उसे पिररु िकया जाना है तत्काल वारण्ट भेजग े ा और यिद अिभयुक्त पहले से ही
उस जेल या अन्य स्थान म पिररु नह है तो वारं ट के साथ उसे ऐसी जेल या अन्य स्थान को िभजवाएगा :
परन्तु जहां अिभयुक्त को न्यायालय के उठने तक के िलए कारावास का दंडादेश िदया गया है, वहां वारण्ट तैयार करना या वारण्ट
जेल को भेजना आवश्यक न होगा और अिभयुक्त को ऐसे स्थान म, जो न्यायालय िनिदष्ट करे , पिररु िकया जा सकता है ।
(2) जहां अिभयुक्त न्यायालय म उस समय उपिस्थत नह है जब उसे ऐसे कारावास का दंडादेश िदया गया है जैसा उपधारा (1) म
उिल्लिखत है, वहां न्यायालय उसे जेल या ऐसे अन्य स्थान म, जहां उसे पिररु िकया जाना है, भेजने के पर्योजन से उसकी िगरफ्तारी के
िलए वारं ट जारी करे गा ; और ऐसे मामले म दंडादेश उसकी िगरफ्तारी की तारीख से पर्ारं भ होगा ।
419. िनष्पादन के िलए वारण्ट का िनदेशन—कारावास के दंडादेश के िनष्पादन के िलए पर्त्येक वारण्ट उस जेल या अन्य स्थान के
भारसाधक अिधकारी को िनिदष्ट होगा, िजसम बंदी पिररु है या पिररु िकया जाना है ।
420. वारण्ट िकसको स पा जाएगा—जब बंदी जेल म पिररु िकया जाना है, तब वारण्ट जेलर को स पा जाएगा ।
ग—जुमार्ने का उगर्हण
421. जुमार्ना उद्गृहीत करने के िलए वारण्ट—(1) जब िकसी अपराधी को जुमार्ने का दंडादेश िदया गया है तब दंडादेश देने वाला
न्यायालय िनम्निलिखत पर्कार म से िकसी या दोन पर्कार से जुमार्ने की वसूली के िलए कारर् वाई कर सकता है, अथार्त् वह —
(क) अपराधी की िकसी जंगम संपि की कु क और िवकर्य ारा रकम को उद्गृहीत करने के िलए वारण्ट जारी कर
सकता है,
(ख) ितकर्मी की जंगम या स्थावर संपि या दोन से भू-राजस्व की बकाया के रूप म रकम को उद्गृहीत करने के िलए
िजले के कलक्टर को पर्ािधकृ त करते हुए उसे वारं ट जारी कर सकता है :
परन्तु यिद दंडादेश िनिदष्ट करता है िक जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर अपराधी कारावािसत िकया जाएगा और यिद अपराधी
ने ितकर्म के बदले म ऐसा पूरा कारावास भुगत िलया है तो कोई न्यायालय ऐसा वारण्ट तब तक न जारी करे गा जब तक वह िवशेष
कारण से जो अिभिलिखत िकए जाएंग,े ऐसा करना आवश्यक न समझे अथवा जब तक उसने जुमार्ने म से य या पर्ितकर के संदाय के
िलए धारा 357 के अधीन आदेश न िकया हो ।
(2) राज्य सरकार उस रीित को िविनयिमत करने के िलए, िजससे उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन वारं ट िनष्पािदत िकए जाने ह
और ऐसे वारण्ट के िनष्पादन म कु कर् की गई िकसी संपि के बारे म अपराधी से िभन्न िकसी िक्त ारा िकए गए िकन्ह दाव के
संिक्षप्त अवधारण के िलए, िनयम बना सकती है ।
(3) जहां न्यायालय कलक्टर को उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन वारण्ट जारी करता है वहां कलक्टर उस रकम को भू-राजस्व
की बकाया की वसूली से संबंिधत िविध के अनुसार वसूल करे गा मानो ऐसा वारण्ट ऐसी िविध के अधीन जारी िकया गया पर्माणपतर् हो :
परन्तु ऐसा कोई वारण्ट अपराधी की िगरफ्तारी या कारावास म िनरोध ारा िनष्पािदत न िकया जाएगा ।
422. ऐसे वारण्ट का पर्भाव—िकसी न्यायालय ारा धारा 421 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन जारी िकया गया कोई
वारण्ट उस न्यायालय को स्थानीय अिधकािरता के अन्दर िनष्पािदत िकया जा सकता है और वह ऐसी अिधकािरता के बाहर की िकसी
ऐसी संपि की कु क और िवकर्य उस दशा म पर्ािधकृ त करे गा जब वह उस िजला मिजस्टर्ेट ारा िजसकी स्थानीय अिधकािरता के अन्दर
ऐसी संपि पाई जाए, पृष्ठांिकत कर िदया गया है ।
423. जुमार्ने के उगर्हण के िलए िकसी ऐसे राज्यक्षेतर् के न्यायालय ारा िजस पर इस संिहता का िवस्तार नह है, जारी िकया गया
वारण्ट—इस संिहता म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी जब िकसी अपराधी को िकसी ऐसे राज्यक्षेतर् के ,
िजस पर इस संिहता का िवस्तार नह है िकसी दंड न्यायालय ारा जुमार्ना देने का दंडादेश िदया गया है और दंडादेश देने वाला
न्यायालय ऐसी रकम को, भू-राजस्व की बकाया के तौर पर उद्गृहीत करने के िलए, उन राज्यक्षेतर् के , िजन पर इस संिहता का िवस्तार है,
िकसी िजले के कलक्टर को पर्ािधकृ त करते हुए वारण्ट जारी करता है, तब ऐसा वारण्ट उन राज्यक्षेतर् के , िजन पर इस संिहता का िवस्तार
है, िकसी न्यायालय ारा धारा 421 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन जारी िकया गया वारण्ट समझा जाएगा और तद्नुसार ऐसे
वारण्ट के िनष्पादन के बारे म उक्त धारा की उपधारा (3) के उपबंध लागू ह गे ।
424. कारावास के दंडादेश के िनष्पादन का िनलंबन—(1) जब अपराधी को के वल जुमार्ने का और जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर
कारावास का दंडादेश िदया गया है और जुमार्ना तत्काल नह िदया जाता है तब न्यायालय—
122

(क) आदेश दे सकता है िक जुमार्ना या तो ऐसी तारीख को या उससे पहले, जो आदेश की तारीख से तीस िदन से अिधक बाद
की न होगी, पूणत
र् : संदय
े होगा, या दो या तीन िकस्त म संदय
े होगा िजनम से पहली िकस्त ऐसी तारीख को या उससे पहले संदय

होगी, जो आदेश की तारीख से तीस िदन से अिधक बाद की न होगी और, अन्य िकस्त या िकस्त, यथािस्थित, तीस िदन से अिधक के
अन्तराल या अन्तराल पर संदय े होगी या ह गी ;
(ख) कारावास के दंडादेश का िनष्पादन िनलिम्बत कर सकता है और अपराधी ारा पर्ितभु सिहत या रिहत, जैसा
न्यायालय ठीक समझे, इस शतर् का बंधपतर् िनष्पािदत िकए जाने पर िक, यथािस्थित, जुमार्ना या उसकी िकस्त देने की तारीख या
तारीख को वह न्यायालय के समक्ष हािजर होगा, अपराधी को छोड़ सकता है, और यिद, यथािस्थित, जुमार्ने की या िकसी िकस्त
की रकम उस अंितम तारीख को या उसके पूवर् िजसको वह आदेश के अधीन संदय े हो, पर्ाप्त न हो तो न्यायालय कारावास के
दंडादेश के तुरंत िनष्पािदत िकए जाने का िनदेश दे सकता है ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध िकसी ऐसे मामले म भी लागू ह गे िजसम ऐसे धन के संदाय के िलए आदेश िकया गया है िजसके वसूल
न होने पर कारावास अिधिनण त िकया जा सकता है और धन तुरंत नह िदया गया है, और यिद वह िक्त िजसके िवरु आदेश िदया
गया है उस उपधारा म िनिदष्ट बंधपतर् िलखने की अपेक्षा िकए जाने पर ऐसा करने म असफल रहता है तो न्यायालय कारावास का
दंडादेश तुरन्त पािरत कर सकता है ।
घ—िनष्पादन के बारे म साधारण उपबंध
425. वारण्ट कौन जारी कर सके गा—िकसी दंडादेश के िनष्पादन के िलए पर्त्येक वारण्ट या तो उस न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा,
िजसने दंडादेश पािरत िकया है या उसके पद-उ रवत ारा जारी िकया जा सकता है ।
426. िनकल भागे िस दोष पर दंडादेश कब पर्भावशील होगा—(1) जब िनकल भागे िस दोष को इस संिहता के अधीन मृत्यु,
आजीवन कारावास या जुमार्ने का दंडादेश िदया जाता है तब ऐसा दंडादेश इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट उपबंध के अधीन रहते हुए तुरन्त
पर्भावी हो जाएगा ।
(2) जब िनकल भागे िस दोष को इस संिहता के अधीन िकसी अविध के कारावास का दंडादेश िदया जाता है, तब,—
(क) यिद ऐसा दंडादेश उस दंडादेश से कठोरतर िकस्म का हो िजसे ऐसा िस दोष, जब वह िनकल भागा था, तब भोग रहा
था तो नया दंडादेश तुरन्त पर्भावी हो जाएगा ;
(ख) यिद ऐसा दंडादेश उस दंडादेश से कठोरतर िकस्म का न हो िजसे ऐसा िस दोष, जब वह िनकल भागा था तब, भोग
रहा था, तो नया दंडादेश, उसके ारा उस अितिरक्त अविध के िलए कारावास भोग िलए जाने के पश्चात् पर्भावी होगा, जो उसके
िनकल भागने के समय उसके पूवर्वत दंडादेश की शेष अविध के बराबर है ।
(3) उपधारा (2) के पर्योजन के िलए, कठोर कारावास का दंडादेश सादा कारावास के दंडादेश से कठोरतर िकस्म का
समझा जाएगा ।
427. ऐसे अपराधी की दंडादेश जो अन्य अपराध के िलए पहले से दंडािदष्ट है—(1) जब कारावास का दंडादेश पहले से ही भोगने
वाले िक्त को पश्चात्वत -दोषिसि पर कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश िदया जाता है तब जब तक न्यायालय यह िनदेश
न दे िक पश्चात्वत दंडादेश ऐसे पूवर् दंडादेश के साथ-साथ भोगा जाएगा, ऐसा कारावास या आजीवन कारावास उस कारावास की
समािप्त पर, िजसके िलए, वह पहले दंडादेश हुआ था, पर्ारं भ होगा :
परन्तु, जहां उस िक्त को, िजसे पर्ितभूित देने म ितकर्म करने पर धारा 122 के अधीन आदेश ारा कारावास का दंडादेश िदया
गया है ऐसा दंडादेश भोगने के दौरान ऐसे आदेश के िदए जाने के पूवर् िकए गए अपराध के िलए कारावास का दंडादेश िदया जाता है, वहां
पश्चात्किथत दंडादेश तुरन्त पर्ारं भ हो जाएगा ।
(2) जब िकसी िक्त को, जो आजीवन कारावास का दंडादेश पहले से ही भोग रहा है, पश्चात्वत दोषिसि पर िकसी अविध के
कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश िदया जाता है तब पश्चात्वत दंडादेश पूवर् दंडादेश के साथ-साथ भोगा जाएगा ।
428. अिभयुक्त ारा भोगी गई िवरोध की अविध का कारावास के दंडादेश के िवरु मुजरा िकया जाना—जहां अिभयुक्त िक्त
दोषिसि पर िकसी अविध के िलए कारावास से दंडािदष्ट िकया गया है, 1 [जो जुमार्ने के संदाय म ितकर्म के िलए कारावास नह है]
वहां उसी मामले के अन्वेषण, जांच या िवचारण के दौरान और ऐसी दोषिसि की तारीख से पहले उसके ारा भोगे गए, यिद कोई हो,
िनरोध की अविध का, ऐसी दोषिसि पर उस पर अिधरोिपत कारावास की अविध के िवरु मुजरा िकया जाएगा और ऐसी दोषिसि
पर उस िक्त का कारावास म जाने का दाियत्व उस पर अिधरोिपत कारावास की अविध के शेष भाग तक, यिद कोई हो, िनबर्िन्धत
िकया जाएगा ।
[“परन्तु धारा 433क म िनिदष्ट मामल म िनरोध की ऐसी अविध का उस धारा म िनिदष्ट चौदह वषर् की अविध के िवरु मुजरा
2

िकया जाएगा ।”]

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 31 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 34 ारा अन्तःस्थािपत ।
123

429. ावृि —(1) धारा 426 या धारा 427 की कोई बात िकसी िक्त को उस दंड के िकसी भाग से क्षम्य करने वाली न समझी
जाएगी िजसका वह अपनी पूवर् या पश्चात्वत दोषिसि पर भागी है ।
(2) जब जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर कारावास का अिधिनणर्य कारावास के मुख्य दंडादेश के साथ उपाब है और दंडादेश
भोगने वाले िक्त को उसके िनष्पादन के पश्चात् कारावास के अितिरक्त मुख्य दंडादेश या अितिरक्त मुख्य दंडादेश को भोगना है तब
जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर कारावास का अिधिनणर्य तब तक िकर्यािन्वत न िकया जाएगा जब तक वह िक्त अितिरक्त दंडादेश
या दंडादेश को भुगत चुका हो ।
430. दंडादेश के िनष्पादन पर वारण्ट का लौटाया जाना—जब दंडादेश पूणर्तया िनष्पािदत िकया जा चुका है तब उसका िनष्पादन
करने वाला अिधकारी वारण्ट को, वारण्ट स्व-हस्ताक्षर सिहत पृष्ठांकन ारा उस रीित को, पर्मािणत करते हुए, िजससे दंडादेश का
िनष्पादन िकया गया था, उस न्यायालय को, िजसने उसे जारी िकया था, लौटा देगा ।
431. िजस धन का संदाय करने का आदेश िदया गया है उसका जुमार्ने के रूप म वसूल िकया जा सकना—कोई धन (जो जुमार्ने से
िभन्न है) जो इस संिहता के अधीन िदए गए िकसी आदेश के आधार पर संदय े है और िजसकी वसूली का ढंग अिभ क्त रूप से अन्यथा
उपबंिधत नह है, ऐसे वसूल िकया जा सकता है मानो वह जुमार्ना है :
परन्तु इस धारा के आधार पर, धारा 359 के अधीन िकसी आदेश को लागू होने म धारा 421 का अथर् इस पर्कार लगाया जाएगा
मानो धारा 421 की उपधारा (1) के परन्तुक म “धारा 357 के अधीन आदेश” शब्द और अंक के पश्चात्, “या खच के संदाय के िलए
धारा 359 के अधीन आदेश” शब्द और अंक अन्तःस्थािपत कर िदए गए ह ।
ङ—दंडादेश का िनलम्बन, पिरहार और लघुकरण
432. दंडादेश का िनलम्बन या पिरहार करने की शिक्त—(1) जब िकसी िक्त को िकसी अपराध के िलए दंडादेश िदया जाता है
तब समुिचत सरकार िकसी समय, शत के िबना या ऐसी शत पर िजन्ह दंडािदष्ट िक्त स्वीकार करे उसके दंडादेश के िनष्पादन का
िनलंबन या जो दंडादेश उसे िदया गया है उसका पूरे का या उसके िकसी भाग का पिरहार कर सकती है ।
(2) जब कभी समुिचत सरकार से दंडादेश के िनलम्बन या पिरहार के िलए आवेदन िकया जाता है तब समुिचत सरकार उस
न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से, िजसके समक्ष दोषिसि हुई थी या िजसके ारा उसकी पुिष्ट की गई थी, अपेक्षा कर सके गी िक वह
इस बारे म िक आवेदन मंजूर िकया जाए या नामंजूर िकया जाए, अपनी राय ऐसी राय के िलए अपने कारण सिहत किथत करे और
अपनी राय के कथन के साथ िवचारण के अिभलेख की या उसके ऐसे अिभलेख की, जैसा िव मान हो, पर्मािणत पर्ितिलिप भी भेजे ।
(3) यिद कोई शतर्, िजस पर दंडादेश का िनलम्बन या पिरहार िकया गया है, समुिचत सरकार की राय म पूरी नह हुई है तो
समुिचत सरकार िनलम्बन या पिरहार को र कर सकती है और तब, यिद वह िक्त, िजसके पक्ष म दंडादेश का िनलम्बन या पिरहार
िकया गया था मुक्त है तो वह िकसी पुिलस अिधकारी ारा वारण्ट के िबना िगरफ्तार िकया जा सकता है और दंडादेश के अनविसत भाग
को भोगने के िलए पर्ितपर्ेिषत िकया जा सकता है ।
(4) वह शतर्, िजस पर दंडादेश का िनलम्बन या पिरहार इस धारा के अधीन िकया जाए, ऐसी हो सकती है जो उस िक्त ारा,
िजसके पक्ष म दंडादेश का िनलम्बन या पिरहार िकया जाए, पूरी की जाने वाली हो या ऐसी हो सकती है जो उसकी इच्छा पर आिशर्त
न हो ।
(5) समुिचत सरकार दंडादेश के िनलम्बन के बारे म, और उन शत के बारे म िजन पर अिजयां उपिस्थत की और िनपटाई जानी
चािहएं, साधारण िनयम या िवशेष आदेश ारा िनदेश दे सकती है :
परन्तु अठारह वषर् से अिधक की आयु के िकसी पुरुष के िवरु िकसी दंडादेश की दशा म (जो जुमार्ने के दंडादेश से िभन्न है)
दंडािदष्ट िक्त ारा या उसकी ओर से िकसी अन्य िक्त ारा दी गई कोई ऐसी अज तब तक गर्हण नह की जाएगी जब तक
दंडािदष्ट िक्त जेल म न हो, तथा—
(क) जहां ऐसी अज दंडािदष्ट िक्त ारा दी जाती है वहां जब तक वह जेल के भारसाधक अिधकारी की माफर् त उपिस्थत
न की जाए ; अथवा
(ख) जहां ऐसी अज िकसी अन्य िक्त ारा दी जाती है वहां जब तक उसम यह घोषणा न हो िक दंडािदष्ट िक्त जेल
म है ।
(6) ऊपर की उपधारा के उपबंध दंड न्यायालय ारा इस संिहता की या िकसी, अन्य िविध की िकसी धारा के अधीन पािरत ऐसे
आदेश को भी लागू ह गे जो िकसी िक्त की स्वतंतर्ता को िनबर्िन्धत करता है या उस पर या उसकी सम्पि पर कोई दाियत्व अिधरोिपत
करता है ।
(7) इस धारा म और धारा 433 म “समुिचत सरकार” पद से,—
(क) उन दशा म िजनम दंडादेश ऐसे िवषय से सम्ब िकसी िविध के िवरु अपराध के िलए ह, या उपधारा (6) म
िनिदष्ट आदेश ऐसे िवषय से संब िकसी िविध के अधीन पािरत िकया गया है, िजस िवषय पर संघ की कायर्पािलका शिक्त का
िवस्तार है, के न्दर्ीय सरकार, अिभपर्ेत है ;
124

(ख) अन्य दशा म, उस राज्य की सरकार अिभपर्ेत है िजसम अपराधी दंडािदष्ट िकया गया है या उक्त आदेश पािरत
िकया गया है ।
433. दंडादेश के लघुकरण की शिक्त—समुिचत सरकार दंडािदष्ट िक्त की सम्मित के िबना—
(क) मृत्यु दंडादेश का भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) ारा उपबिन्धत िकसी अन्य दंड के रूप म लघुकरण कर
सकती है ;
(ख) आजीवन कारावास के दंडादेश का, चौदह वषर् से अनिधक अविध के कारावास म या जुमार्ने के रूप म लघुकरण कर
सकती है ;
(ग) किठन कारावास के दंडादेश का िकसी ऐसी अविध के सादा कारावास म िजसके िलए वह िक्त दंडािदष्ट िकया जा
सकता है, या जुमार्ने के रूप म लघुकरण कर सकती है ;
(घ) सादा कारावास के दंडादेश का जुमार्ने के रूप म लघुकरण कर सकती है ।
[433क. कु छ मामल म छू ट या लघुकरण की शिक्तय पर िनबर्न्धन—धारा 432 म िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकसी िक्त को
1

ऐसे अपराध के िलए, िजसके िलए मृत्यु दंड िविध ारा उपबंिधत दंड म से एक है आजीवन कारावास का दंडादेश िदया गया है या धारा 433
के अधीन िकसी िक्त को िदए गए मृत्यु दंडादेश का आजीवन कारावास के रूप म लघुकरण िकया गया है वहां ऐसा िक्त कारावास से तब
तक नह छोड़ा जाएगा जब तक िक उसने चौदह वषर् का कारावास पूरा न कर िलया हो ।]
434. मृत्यु दंडादेश की दशा म के न्दर्ीय सरकार की समवत शिक्त—धारा 431 और 433 ारा राज्य सरकार को पर्द शिक्तयां
मृत्यु दंडादेश की दशा म के न्दर्ीय सरकार ारा भी पर्युक्त की जा सकती ह ।
435. कु छ मामल म राज्य सरकार का के न्दर्ीय सरकार से परामशर् करने के पश्चात कायर् करना—(1) िकसी दंडादेश का पिरहार
करने या उसके लघुकरण के बारे म धारा 432 और 433 ारा राज्य सरकार को पर्द शिक्तय का राज्य सरकार ारा पर्योग उस दशा म
के न्दर्ीय सरकार से परामशर् िकए िबना नह िकया जाएगा जब दंडादेश िकसी ऐसे अपराध के िलए है—
(क) िजसका अन्वेषण िदल्ली िवशेष पुिलस स्थापन अिधिनयम, 1946 (1946 का 25) के अधीन गिठत िदल्ली िवशेष पुिलस
स्थापन ारा या इस संिहता से िभन्न िकसी के न्दर्ीय अिधिनयम के अधीन अपराध का अन्वेषण करने के िलए सशक्त िकसी अन्य
अिभकरण ारा िकया गया है, अथवा
(ख) िजसम के न्दर्ीय सरकार की िकसी संपि का दुिविनयोग या नाश या नुकसान अन्तगर्र्स्त है, अथवा
(ग) जो के न्दर्ीय सरकार की सेवा म के िकसी िक्त ारा तब िकया गया है जब वह अपने पदीय कतर् के िनवर्हन म कायर्
कर रहा था या उसका ऐसे कायर् करना तात्पियत था ।
(2) िजस िक्त को ऐसे अपराध के िलए दोषिस िकया गया है िजनम से कु छ उन िवषय से संबंिधत ह िजन पर संघ की
कायर्पािलका शिक्त का िवस्तार है, और िजसे पृथक् -पृथक् अविध के कारावास का, जो साथ-साथ भोगी जानी है, दंडादेश िदया गया है,
उसके संबंध म दंडादेश के िनलंबन, पिरहार या लघुकरण का राज्य सरकार ारा पािरत कोई आदेश पर्भावी तभी होगा जब ऐसे िवषय के
बारे म िजन पर संघ की कायर्पािलका शिक्त का िवस्तार है, उस िक्त ारा िकए गए अपराध के संबंध म ऐसे दंडादेश के , यथािस्थित,
पिरहार, िनलंबन या लघुकरण का आदेश के न्दर्ीय सरकार ारा भी कर िदया गया है ।
अध्याय 33

जमानत और बंधपतर् के बारे म उपबंध


436. िकन मामल म जमानत ली जाएगी—(1) जब अजमानतीय अपराध के अिभयुक्त िक्त से िभन्न कोई िक्त पुिलस थाने
के भारसाधक अिधकारी ारा वारण्ट के िबना िगरफ्तार या िनरु िकया जाता है या न्यायालय के समक्ष हािजर होता है या लाया जाता
है और जब वह ऐसे अिधकारी की अिभरक्षा म है उस बीच िकसी समय, या ऐसे न्यायालय के समक्ष कायर्वािहय के िकसी पर्कर्म म,
जमानत देने के िलए तैयार है तब ऐसा िक्त जमानत पर छोड़ िदया जाएगा :
परन्तु यिद ऐसा अिधकारी या न्यायालय ठीक समझता है 2 [तो वह ऐसे िक्त से जमानत लेने के बजाय उसे इसम इसके पश्चात्
उपबंिधत पर्कार से अपने हािजर होने के िलए पर्ितभु रिहत बंधपतर् िनष्पािदत करने पर उन्मोिचत कर सके गा और यिद ऐसा िक्त
िनधर्न है और जमानत देने म असमथर् है, तो उसे ऐसे उन्मोिचत करे गा ।]
3
[स्पष्टीकरण—जहां कोई िक्त अपनी िगरफ्तारी की तारीख के एक स ाह के भीतर जमानत देने म असमथर् है वहां अिधकारी
या न्यायालय के िलए यह उपधारणा करने का पयार्प्त आधार होगा िक वह इस परन्तुक के पर्योजन के िलए िनधर्न िक्त है ।] :

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 32 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 35 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 35 ारा अंत:स्थािपत ।
125

परन्तु यह और िक इस धारा की कोई बात धारा 116 की उपधारा (3) 1 [या धारा 446क] के उपबंध पर पर्भाव डालने वाली न
समझी जाएगी ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां कोई िक्त, हािजरी के समय और स्थान के बारे म जमानतपतर् की शत का
अनुपालन करने म असफल रहता है वहां न्यायालय उसे, जब वह उसी मामले म िकसी पश्चात्वत अवसर पर न्यायालय के समक्ष हािजर
होता है या अिभरक्षा म लाया जाता है, जमानत पर छोड़ने से इनकार कर सकता है और ऐसी िकसी इनकारी का, ऐसे जमानतपतर् से
आब िकसी िक्त से धारा 446 के अधीन उसके शािस्त देने की अपेक्षा करने की न्यायालय की शिक्तय पर कोई पर्ितकू ल पर्भाव
नह पड़ेगा ।
[436क. अिधकतम अविध, िजसके िलए िवचाराधीन कै दी िनरु िकया जा सकता है—जहां कोई िक्त, िकसी िविध के अधीन
2

िकसी अपराध के (जो ऐसा अपराध नह है िजसके िलए उस िविध के अधीन मृत्यु दंड एक दंड के रूप म िविनिदष्ट िकया गया है) इस
संिहता के अधीन अन्वेषण, जांच या िवचारण की अविध के दौरान कारावास की उस अिधकतम अविध के , जो उस िविध के अधीन उस
अपराध के िलए िविनिदष्ट की गई है, आधे से अिधक की अविध के िलए िनरोध भोग चुका है, वहां वह पर्ितभु सिहत या रिहत
िक्तगत बंधपतर् पर न्यायालय ारा छोड़ िदया जाएगा :
परन्तु न्यायालय, लोक अिभयोजक की सुनवाई के पश्चात् और उन कारण से जो उस ारा लेखब िकए जाएंग,े ऐसे िक्त के
उक्त आधी अविध से दीघर्तर अविध के िलए िनरोध को जारी रखने का आदेश कर सके गा या िक्तगत बंधपतर् के बजाय पर्ितभु सिहत
या रिहत जमानत पर उसे छोड़ देगा :
परन्तु यह और िक कोई भी ऐसा िक्त अन्वेषण, जांच या िवचारण की अविध के दौरान उस िविध के अधीन उक्त अपराध के
िलए उपबंिधत कारावास की अिधकतम अविध से अिधक के िलए िकसी भी दशा म िनरु नह रखा जाएगा ।
स्पष्टीकरण—जमानत मंजूर करने के िलए इस धारा के अधीन िनरोध की अविध की गणना करने म अिभयुक्त ारा कायर्वाही म
िकए गए िवलंब के कारण भोगी गई िनरोध की अविध को अपविजत िकया जाएगा ।]
437. अजमानतीय अपराध की दशा म कब जमानत ली जा सके गी— 3 [(1) जब कोई िक्त, िजस पर अजामनतीय अपराध का
अिभयोग है या िजस पर यह संदह
े है िक उसने अजमानतीय अपराध िकया है, पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी ारा वारण्ट के िबना
िगरफ्तार या िनरु िकया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से िभन्न न्यायालय के समक्ष हािजर होता है या लाया
जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, िकन्तु—
(i) यिद यह िवश्वास करने के िलए उिचत आधार पर्तीत होते ह िक ऐसा िक्त मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय
अपराध का दोषी है तो वह इस पर्कार नह छोड़ा जाएगा ;
(ii) यिद ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा िक्त मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वषर् या उससे अिधक के
कारावास से दंडनीय िकसी अपराध के िलए पहले दोषिस िकया गया है, या वह 4 [तीन वषर् या उससे अिधक के , िकन्तु सात वषर्
से अनिधक की अविध के कारावास से दंडनीय िकसी संज्ञेय अपराध] के िलए दो या अिधक अवसर पर पहले दोषिस िकया िकया
गया है तो वह इस पर्कार नह छोड़ा जाएगा :
परन्तु न्यायालय यह िनदेश दे सके गा िक खंड (i) या खंड (ii) म िनिदष्ट िक्त जमानत पर छोड़ िदया जाए यिद ऐसा िक्त,
सोलह वषर् से कम आयु का है या कोई स्तर्ी या कोई रोगी या िशिथलांग िक्त है :
परन्तु यह और िक न्यायालय यह भी िनदेश दे सके गा िक खंड (ii) म िनिदष्ट िक्त जमानत पर छोड़ िदया जाए, यिद उसका यह
समाधान हो जाता है िक िकसी अन्य िवशेष कारण से ऐसा करना न्यायोिचत तथा ठीक है :
परन्तु यह और भी िक के वल यह बात िक अिभयुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण म सािक्षय ारा पहचाने जाने के िलए हो सकती
है, जमानत मंजूर करने से इनकार करने के िलए पयार्प्त आधार नह होगी, यिद वह अन्यथा जमानत पर छोड़ िदए जाने के िलए हकदार
है और वह वचन देता है िक वे ऐसे िनदेश का, जो न्यायालय ारा िदए जाएं, अनुपालन करे गा :]
[परन्तु यह भी िक िकसी भी िक्त को, यिद उस ारा िकया गया अिभकिथत अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वषर्
5

अथवा उससे अिधक के कारावास से दंडनीय है तो लोक अिभयोजक को सुनवाई का कोई अवसर िदए िबना इस उपधारा के अधीन
न्यायालय ारा जमानत पर नह छोड़ा जाएगा ।]
(2) यिद ऐसे अिधकारी या न्यायालय को, यथािस्थित, अन्वेषण, जांच या िवचारण के िकसी पर्कर्म म यह पर्तीत होता है िक यह
िवश्वास करने के िलए उिचत आधार नह है िक अिभयुक्त ने अजमानतीय अपराध िकया है िकन्तु उसके दोषी होने के बारे म और जांच

1
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 36 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 5 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 37 ारा “िकसी अजमानतीय और संज्ञेय अपराध” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 37 ारा अंत:स्थािपत ।
126

करने के िलए पयार्प्त आधार है 1 [तो अिभयुक्त धारा 446क के उपबंध के अधीन रहते हुए और ऐसी जांच लंिबत रहने तक] जमानत पर,
या ऐसे अिधकारी या न्यायालय के स्विववेकानुसार, इसम इसके पश्चात् उपबंिधत पर्कार से अपने हािजर होने के िलए पर्ितभु रिहत
बंधपतर् िनष्पािदत करने पर छोड़ िदया जाएगा ।
(3) जब कोई िक्त, िजस पर ऐसे कारावास से िजसकी अविध सात वषर् तक की या उससे अिधक की है, दंडनीय कोई अपराध या
भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे िकसी अपराध का
दुपर्ेरण या षडय़ंतर् या पर्यत्न करने का अिभयोग या संदह
े है, उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है 2 [तो न्यायालय यह शतर्
अिधरोिपत करे गा :—
(क) िक ऐसा िक्त इस अध्याय के अधीन िनष्पािदत बंधपतर् की शत के अनुसार हािजर होगा ;
(ख) िक ऐसा िक्त उस अपराध जैसा, िजसको करने का उस पर अिभयोग या संदह
े है, कोई अपराध नह करे गा ; और
(ग) िक ऐसा िक्त उस मामले के तथ्य से अवगत िकसी िक्त को न्यायालय या िकसी पुिलस अिधकारी के समक्ष ऐसे
तथ्य को पर्कट न करने के िलए मनाने के वास्ते पर्त्यक्षत: या अपर्त्यक्षत: उसे कोई उत्पर्ेरणा, धमकी या वचन नह देगा या सा य
को नह िबगाड़ेगा,
और न्याय के िहत म ऐसी अन्य शत, िजसे वह ठीक समझे, भी अिधरोिपत कर सके गा ।]
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर िकसी िक्त को छोड़ने वाला अिधकारी या न्यायालय ऐसा करने के
अपने 3 [कारण या िवशेष कारण ] को लेखब करे गा ।
(5) यिद कोई न्यायालय, िजसने िकसी िक्त को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना
आवश्यक समझता है तो ऐसे िक्त को िगरफ्तार करने का िनदेश दे सकता है और उसे अिभरक्षा के िलए सुपुदर् कर सकता है ।
(6) यिद मिजस्टर्ेट ारा िवचारणीय िकसी मामले म ऐसे िक्त का िवचारण, जो िकसी अजमानतीय अपराध का अिभयुक्त है,
उस मामले म सा य देने के िलए िनयत पर्थम तारीख के साठ िदन की अविध के अन्दर पूरा नह हो जाता है तो, यिद ऐसा िक्त उक्त
सम्पूणर् अविध के दौरान अिभरक्षा म रहा है तो, जब तक ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे मिजस्टर्ेट अन्यथा िनदेश न दे वह
मिजस्टर्ेट की समाधानपर्द जमानत पर छोड़ िदया जाएगा ।
(7) यिद अजमानतीय अपराध के अिभयुक्त िक्त के िवचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात् और िनणर्य िदए जाने के पूवर् िकसी
समय न्यायालय की यह राय है िक यह िवश्वास करने के उिचत आधार ह िक अिभयुक्त िकसी ऐसे अपराध का दोषी नह है और
अिभयुक्त अिभरक्षा म है तो वह अिभयुक्त को, िनणर्य सुनने के िलए अपने हािजर होने के िलए पर्ितभु रिहत बंधपतर् उसके ारा
िनष्पािदत िकए जाने पर छोड़ देगा ।
4
[437क. अिभयुक्त को अगले अपील न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने की अपेक्षा के िलए जमानत—(1) िवचारण के समाप्त होने
से पूवर् और अपील के िनपटान से पूवर्, यथािस्थित, अपराध का िवचारण करने वाला न्यायालय या अपील न्यायालय अिभयुक्त से यह
अपेक्षा कर सके गा िक जब उच्चतर न्यायालय संबंिधत न्यायालय के िनणर्य के िवरु फाइल की गई िकसी अपील या यािचका की बाबत
सूचना जारी करे , तो वह उच्चतर न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के िलए पर्ितभूित सिहत जमानतपतर् िनष्पािदत करे और ऐसे बंधपतर्
छह मास तक पर्भावी रहगे ।
(2) यिद ऐसा अिभयुक्त उपसंजात होने म असफल रहता है तो बंधपतर् समपहृत हो जाएगा और धारा 446 के अधीन पर्िकर्या
लागू होगी ।]
438. िगरफ्तारी की आशंका करने वाले िक्त की जमानत मंजरू करने के िलए िनदेश—(1) जब िकसी िक्त को यह िवश्वास
करने का कारण है िक उसको िकसी अजमानतीय अपराध के िकए जाने के अिभयोग म िगरफ्तार िकया जा सकता है, तो वह इस धारा के
अधीन िनदेश के िलए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है ; और यिद वह न्यायालय ठीक समझे तो वह िनदेश
दे सकता है िक ऐसी िगरफ्तारी की िस्थित म उसको जमानत पर छोड़ िदया जाए ।
(2) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन िनदेश देता है तब वह उस िविशष्ट मामले के तथ्य को ध्यान म
रखते हुए उन िनदेश म ऐसी शत, जो वह ठीक समझे, सिम्मिलत कर सकता है िजनके अन्तगर्त िनम्निलिखत भी ह—
(i) यह शतर् िक वह िक्त पुिलस अिधकारी ारा पूछे जाने वाले पिरपर्श्न का उ र देने के िलए जैसे और जब अपेिक्षत हो,
उपलब्ध होगा ;
(ii) यह शतर् िक वह िक्त उस मामले के तथ्य से अवगत िकसी िक्त को न्यायालय या िकसी पुिलस अिधकारी के समक्ष
ऐसे तथ्य को पर्कट न करने के िलए मनाने के वास्ते पर्त्यक्षत: या अपर्त्यक्षत: उसे कोई उत्पर्ेरणा, धमकी या वचन नह देगा ;

1
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 5 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 37 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 5 ारा “कारण ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 31 ारा अंत:स्थािपत ।
127

(iii) यह शतर् की वह िक्त न्यायालय की पूवर् अनुज्ञा के िबना भारत नह छोड़ेगा ;


(iv) ऐसी अन्य शत जो धारा 437 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे अिधरोिपत की जा सकती ह मानो उस धारा के अधीन
जमानत मंजूर की गई हो ।
(3) यिद तत्पश्चात् ऐसे िक्त को ऐसे अिभयोग पर पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी ारा वारण्ट के िबना िगरफ्तार िकया
जाता है और वह या तो िगरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अिधकारी की अिभरक्षा म है तब िकसी समय जमानत देने के िलए तैयार है,
तो उसे जमानत पर छोड़ िदया जाएगा, तथा यिद ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मिजस्टर्ेट यह िविनश्चय करता है िक उस िक्त के
िवरु पर्थम बार ही वारण्ट जारी िकया जाना चािहए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के िनदेश के अनुरूप जमानतीय वारण्ट
जारी करे गा ।
439. जमानत के बारे म उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की िवशेष शिक्तयां—(1) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह
िनदेश दे सकता है िक—
(क) िकसी ऐसे िक्त को, िजस पर िकसी अपराध का अिभयोग है और जो अिभरक्षा म है, जमानत पर छोड़ िदया जाए
और यिद अपराध धारा 437 की उपधारा (3) म िविनिदष्ट पर्कार का है, तो वह ऐसी कोई शतर्, िजसे वह उस उपधारा म विणत
पर्योजन के िलए आवश्यक समझे, अिधरोिपत कर सकता है ;
(ख) िकसी िक्त को जमानत पर छोड़ने के समय मिजस्टर्ेट ारा अिधरोिपत कोई शतर् अपास्त या उपांतिरत कर दी जाए :
परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय िकसी ऐसे िक्त की, जो ऐसे अपराध का अिभयुक्त है जो अनन्यत: सेशन न्यायालय
ारा िवचारणीय है, या जो य िप इस पर्कार िवचारणीय नह है, आजीवन कारावास से दंडनीय है, जमानत लेने के पूवर् जमानत के िलए
आवेदन की सूचना लोक अिभयोजक को उस दशा के िसवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे यह राय है िक ऐसी
सूचना देना साध्य नह है ।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, िकसी ऐसे िक्त को, िजसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है,
िगरफ्तार करने का िनदेश दे सकता है और उसे अिभरक्षा के िलए सुपुदर् कर सकता है ।
440. बंधपतर् की रकम और उसे घटाना—(1) इस अध्याय के अधीन िनष्पािदत पर्त्येक बंधपतर् की रकम मामले की पिरिस्थितय
का सम्यक् ध्यान रख कर िनयत की जाएगी और अत्यिधक नह होगी ।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह िनदेश दे सकता है िक पुिलस अिधकारी या मिजस्टर्ेट ारा अपेिक्षत जमानत
घटाई जाए ।
441. अिभयुक्त और पर्ितभु का बंधपतर्—(1) िकसी िक्त के जमानत पर छोड़े जाने या अपने बंधपतर् पर छोड़े जाने के पूवर् उस
िक्त ारा, और जब वह जमानत पर छोड़ा जाता है तब एक या अिधक पयार्प्त पर्ितभु ारा इतनी धनरािश के िलए िजतनी,
यथािस्थित, पुिलस अिधकारी या न्यायालय पयार्प्त समझे, इस शतर् का बंधपतर् िनष्पािदत िकया जाएगा िक ऐसा िक्त बंधपतर् म
विणत समय और स्थान पर हािजर होगा और जब तक, यथािस्थित, पुिलस अिधकारी या न्यायालय ारा अन्यथा िनदेश नह िदया जाता
है इस पर्कार बराबर हािजर होता रहेगा ।
(2) जहां िकसी िक्त को जमानत पर छोड़ने के िलए कोई शतर् अिधरोिपत की गई है, वहां बंधपतर् म वह शतर् भी अंतिवष्ट होगी ।
(3) यिद मामले से ऐसा अपेिक्षत है तो बंधपतर् ारा, जमानत पर छोड़े गए िक्त को अपेक्षा िकए जाने पर आरोप का उ र देने
के िलए उच्च न्यायालय, सेशन न्यायालय या अन्य न्यायालय म हािजर होने के िलए भी आब िकया जाएगा ।
(4) यह अवधािरत करने के पर्योजन के िलए िक क्या पर्ितभू उपयुक्त या पयार्प्त है अथवा नह , न्यायालय शपथपतर् को पर्ितभु
के पयार्प्त या उपयुक्त होने के बारे म उनम अन्तिवष्ट बात के सबूत के रूप म, स्वीकार कर सकता है अथवा यिद न्यायालय आवश्यक
समझे तो वह ऐसे पयार्प्त या उपयुक्त होने के बारे म या तो स्वयं जांच कर सकता है या अपने अधीनस्थ िकसी मिजस्टर्ेट से जांच करवा
सकता है ।
[441क. पर्ितभु
1
ारा घोषणा—ऐसा पर्त्येक िक्त, जो जमानत पर अिभयुक्त िक्त के छोड़े जाने के िलए उसका पर्ितभू है,
न्यायालय के समक्ष ऐसे िक्तय के बारे म घोषणा करे गा, िजनके िलए उसने पर्ितभूित दी है िजसके अन्तगर्त अिभयुक्त भी है और उसम
सभी सुसंगत िविशिष्टयां दी जाएंगी ।]
442. अिभरक्षा से उन्मोचन—(1) ज्य ही बंधपतर् िनष्पािदत कर िदया जाता है त्य ही वह िक्त, िजसकी हािजरी के िलए वह
िनष्पािदत िकया गया है, छोड़ िदया जाएगा और जब वह जेल म हो तब उसकी जमानत मंजूर करने वाला न्यायालय जेल के भारसाधक
अिधकारी को उसके छोड़े जाने के िलए आदेश जारी करे गा और वह अिधकारी आदेश की पर्ािप्त पर उसे छोड़ देगा ।
(2) इस धारा की या धारा 436 या धारा 437 की कोई भी बात िकसी ऐसे िक्त के छोड़े जाने की अपेक्षा करने वाली न समझी
जाएगी जो ऐसी बात के िलए िनरु िकए जाने का भागी है जो उस बात से िभन्न है िजसके बारे म बंधपतर् िनष्पािदत िकया गया है ।

1
2005 के अिधिनयम सं0 25 की धारा 39 ारा अंत:स्थािपत ।
128

443. जब पहले ली गई जमानत अपयार्प्त है तब पयार्प्त जमानत के िलए आदेश देने की शिक्त—यिद भूल या कपट के कारण या
अन्यथा अपयार्प्त पर्ितभू स्वीकार कर िलए गए ह अथवा यिद वे बाद म अपयार्प्त हो जाते ह तो न्यायालय यह िनदेश देते हुए िगरफ्तारी
का वारण्ट जारी कर सकता है िक जमानत पर छोड़े गए िक्त को उसके समक्ष लाया जाए और उसे पयार्प्त पर्ितभू देने का आदेश दे
सकता है और उसके ऐसा करने म असफल रहने पर उसे जेल सुपुदर् कर सकता है ।
444. पर्ितभु का उन्मोचन—(1) जमानत पर छोड़े गए िक्त की हािजरी और उपिस्थित के िलए पर्ितभु म से सब या कोई
बंधपतर् के या तो पूणर्तया या वहां तक, जहां तक वह आवेदक से संबिं धत है, पर्भावोन्मुक्त िकए जाने के िलए िकसी समय मिजस्टर्ेट से
आवेदन कर सकते ह ।
(2) ऐसा आवेदन िकए जाने पर मिजस्टर्ेट यह िनदेश देते हुए िगरफ्तारी का वारण्ट जारी करे गा िक ऐसे छोड़े गए िक्त को उसके
समक्ष लाया जाए ।
(3) वारण्ट के अनुसरण म ऐसे िक्त के हािजर होने पर या उसके स्वेच्छया अभ्यपर्ण करने पर मिजस्टर्ेट बंधपतर् के या तो पूणर्तया
या, वहां तक, जहां तक िक वह आवेदक से संबंिधत है, पर्भावोन्मुक्त िकए जाने का िनदेश देगा और ऐसे िक्त से अपेक्षा करे गा िक वह
अन्य पयार्प्त पर्ितभू दे और यिद वह ऐसा करने म असफल रहता है तो उसे जेल सुपुदर् कर सकता है ।
445. मुचलके के बजाय िनक्षेप—जब िकसी िक्त से िकसी न्यायालय या अिधकारी ारा पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर्
िनष्पािदत करने की अपेक्षा की जाती है तब वह न्यायालय या अिधकारी, उस दशा म जब वह बंधपतर् सदाचार के िलए नह है उसे ऐसे
बंधपतर् के िनष्पादन के बदले म इतनी धनरािश या इतनी रकम के सरकारी वचन पतर्, िजतनी वह न्यायालय या अिधकारी िनयत करे ,
िनिक्षप्त करने की अनुज्ञा दे सकता है ।
446. पर्िकर्या, जब बंधपतर् समपहृत कर िलया जाता है—(1) जहां इस संिहता के अधीन कोई बंधपतर् िकसी न्यायालय के समक्ष
हािजर होने या सम्पि पेश करने के िलए है और उस न्यायालय या िकसी ऐसे न्यायालय को, िजसे तत्पश्चात् मामला अंतिरत िकया गया
है, समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर िदया जाता है िक बंधपतर् समपहृत हो चुका है,
अथवा जहां इस संिहता के अधीन िकसी अन्य बंधपतर् की बाबत उस न्यायालय को िजसके ारा बंधपतर् िलया गया था, या ऐसे
िकसी न्यायालय को, िजसे तत्पश्चात् मामला अंतिरत िकया गया है, या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट के िकसी न्यायालय को, समाधानपर्द रूप म
यह सािबत कर िदया जाता है िक बंधपतर् समपहृत हो चुका है,
वहां न्यायालय ऐसे सबूत के आधार को अिभिलिखत करे गा और ऐसे बंधपतर् से आब िकसी िक्त से अपेक्षा कर सके गा िक वह
उसकी शािस्त दे या कारण दिशत करे िक वह क्य नह दी जानी चािहए ।
स्पष्टीकरण—न्यायालय के समक्ष हािजर होने या सम्पि पेश करने के िलए बंधपतर् की िकसी शतर् का यह अथर् लगाया जाएगा िक
उसके अंतगर्त ऐसे न्यायालय के समक्ष, िजसको तत्पश्चात् मामला अन्तिरत िकया जाता है, यथािस्थित, हािजर होने या सम्पि पेश करने
की शतर् भी है ।
(2) यिद पयार्प्त कारण दिशत नह िकया जाता है और शािस्त नह दी जाती है तो न्यायालय उसकी वसूली के िलए अगर्सर हो
सके गा मानो वह शािस्त इस संिहता के अधीन उसके ारा अिधरोिपत जुमार्ना हो :
[परन्तु जहां ऐसी शािस्त नह दी जाती है और वह पूव क्त रूप म वसूल नह की जा सकती है वहां, पर्ितभू के रूप म इस पर्कार
1

आब िक्त, उस न्यायालय के आदेश से, जो शािस्त की वसूली का आदेश करता है, िसिवल कारागार म कारावास से, िजसकी अविध
छह मास तक की हो सके गी, दंडनीय होगा ।]
(3) न्यायालय 2 [ऐसा करने के अपने कारण को लेखब करने के पश्चात्] उिल्लिखत शािस्त के िकसी पर्भाग का पिरहार और
के वल भाग के संदाय का पर्वतर्न कर सकता है ।
(4) जहां बंधपतर् के िलए कोई पर्ितभू बंधपतर् का समपहरण होने के पूवर् मर जाता है वहां उसकी संपदा, बंधपतर् के बारे म सारे
दाियत्व से उन्मोिचत हो जाएगी ।
(5) जहां कोई िक्त, िजसने धारा 106 या धारा 117 या धारा 360 के अधीन पर्ितभूित दी है, िकसी ऐसे अपराध के िलए
दोषिस िकया जाता है, िजसे करना उसके बंधपतर् की या उसके बंधपतर् के बदले म धारा 448 के अधीन िनष्पािदत बंधपतर् की शत का
भंग होता है, वहां उस न्यायालय के िनणर्य की, िजसके ारा वह ऐसे अपराध के िलए दोषिस िकया गया था, पर्मािणत पर्ितिलिप उसके
पर्ितभू या पर्ितभु के िवरु इस धारा के अधीन सब कायर्वािहय म सा य के रूप म उपयोग म लाई जा सकती है और यिद ऐसी
पर्मािणत पर्ितिलिप इस पर्कार उपयोग म लाई जाती है तो, जब तक पर्ितकू ल सािबत नह कर िदया जाता है, न्यायालय यह उपधारणा
करे गा िक ऐसा अपराध उसके ारा िकया गया था ।
3
[446क. बंधपतर् और जमानत पतर् का र करण—धारा 446 के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, जहां इस संिहता के अधीन

1
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 6 ारा जोड़ा गया ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 40 ारा “स्विववेकानुसार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
129

कोई बंधपतर् िकसी मामले म हािजर होने के िलए है और उसकी िकसी शतर् के भंग होने के कारण उसका समपहरण हो जाता है, वहां—
(क) ऐसे िक्त ारा िनष्पािदत बंधपतर् तथा उस मामले म उसके पर्ितभु ारा िनष्पािदत एक या अिधक बंधपतर् भी
यिद कोई ह , र हो जाएंगे ; और
(ख) तत्पश्चात् ऐसा कोई िक्त, उस मामले म के वल अपने ही बंधपतर् पर छोड़ा नह जाएगा यिद, यथािस्थित, पुिलस
अिधकारी या न्यायालय का, िजसके समक्ष हािजर होने के िलए बंधपतर् िनष्पािदत िकया गया था, यह समाधान हो जाता है िक
बंधपतर् की शतर् का अनुपालन करने म असफल रहने के िलए बंधपतर् से आब िक्त के पास कोई पयार्प्त कारण नह था :
परन्तु इस संिहता के िकसी अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, उसे उस मामले म उस दशा म छोड़ा जा सकता है जब वह ऐसी
धनरािश के िलए कोई नया िक्तगत बंधपतर् िनष्पािदत कर दे और ऐसे एक या अिधक पर्ितभु से बंधपतर् िनष्पािदत करा दे जो,
यथािस्थित, पुिलस अिधकारी या न्यायालय पयार्प्त समझे ।]
447. पर्ितभू के िदवािलया हो जाने या उसकी मृत्यु हो जाने या बंधपतर् का समपहरण हो जाने की दशा म पर्िकर्या—जब इस
संिहता के अधीन बंधपतर् का कोई पर्ितभू िदवािलया हो जाता है या मर जाता है अथवा जब िकसी बंधपतर् का धारा 446 के उपबंध के
अधीन समपहरण हो जाता है तब वह न्यायालय, िजसके आदेश से ऐसा बंधपतर् िलया गया था या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट उस िक्त को,
िजससे ऐसी पर्ितभूित मांगी गई थी, यह आदेश दे सकता है िक वह मूल आदेश के िनदेश के अनुसार नई पर्ितभूित दे और यिद ऐसी
पर्ितभूित न दी जाए तो वह न्यायालय या मिजस्टर्ेट ऐसे कायर्वाही कर सकता है मानो उस मूल आदेश के अनुपालन म ितकर्म िकया
गया है ।
448. अवयस्क से अपेिक्षत बंधपतर्—यिद बंधपतर् िनष्पािदत करने के िलए िकसी न्यायालय या अिधकारी ारा अपेिक्षत िक्त
अवयस्क है तो वह न्यायालय या अिधकारी उसके बदले म के वल पर्ितभू या पर्ितभु ारा िनष्पािदत बंधपतर् स्वीकार कर सकता है ।
449. धारा 446 के अधीन आदेश से अपील—धारा 446 के अधीन िकए गए सभी आदेश की िनम्निलिखत को अपील
होगी, अथार्त् :—
(i) िकसी मिजस्टर्ेट ारा िकए गए आदेश की दशा म सेशन न्यायाधीश ;
(ii) सेशन न्यायालय ारा िकए गए आदेश की दशा म वह न्यायालय िजसे ऐसे न्यायालय ारा िकए गए आदेश की अपील
होती है ।
450. कु छ मुचलक पर देय रकम का उगर्हण करने का िनदेश देने की शिक्त—उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय िकसी मिजस्टर्ेट
को िनदेश दे सकता है िक वह उस रकम को उद्गृहीत करे जो ऐसे उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय म हािजर और उपिस्थत होने के
िलए िकसी बंधपतर् पर देय है ।
अध्याय 34

सम्पि का यन
451. कु छ मामल म िवचारण लंिबत रहने तक सम्पि की अिभरक्षा और यन के िलए आदेश—जब कोई सम्पि , िकसी दंड
न्यायालय के समक्ष िकसी जांच या िवचारण के दौरान पेश की जाती है तब वह न्यायालय उस जांच या िवचारण के समाप्त होने तक ऐसी
सम्पि की उिचत अिभरक्षा के िलए ऐसा आदेश, जैसा वह ठीक समझे, कर सकता है और यिद वह सम्पि शीघर्तया या पर्कृ त्या क्षयशील है
या यिद ऐसा करना अन्यथा समीचीन है तो वह न्यायालय, ऐसा सा य अिभिलिखत करने के पश्चात् जैसा वह आवश्यक समझे, उसके
िवकर्य या उसका अन्यथा यन िकए जाने के िलए आदेश कर सकता है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए “सम्पि ” के अन्तगर्त िनम्निलिखत है,—
(क) िकसी भी िकस्म की सम्पि या दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष पेश की जाती है या जो उसकी अिभरक्षा म है,
(ख) कोई भी सम्पि िजसके बारे म कोई अपराध िकया गया पर्तीत होता है या जो िकसी अपराध के करने म पर्युक्त की गई
पर्तीत होती है ।
452. िवचारण की समािप्त पर सम्पि के यन के िलए आदेश—(1) जब िकसी दंड न्यायालय म जांच या िवचारण समाप्त हो
जाता है तब न्यायालय उस सम्पि या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष पेश की गई है, या उसकी अिभरक्षा म है अथवा िजसके बारे म कोई
अपराध िकया गया पर्तीत होता है या जो िकसी अपराध के करने म पर्युक्त की गई है, नष्ट करके , अिधहृत करके या िकसी ऐसे िक्त को
पिरदान करके , जो उस पर कब्जा करने का हकदार होने का दावा करता है, या िकसी अन्य पर्कार से उसका यन करने के िलए आदेश दे
सके गा जैसा वह ठीक समझे ।
(2) िकसी सम्पि के कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले िकसी िक्त को उस संपि के पिरदान के िलए उपधारा (1) के
अधीन आदेश िकसी शतर् के िबना या इस शतर् पर िदया जा सकता है िक वह न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह वचनबंध करते हुए
पर्ितभु सिहत या रिहत बंधपतर् िनष्पािदत करे िक यिद उपधारा (1) के अधीन िकया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण म उपांतिरत या
अपास्त कर िदया गया तो वह उस सम्पि को ऐसे न्यायालय को वापस कर देगा ।
130

(3) उपधारा (1) के अधीन स्वयं आदेश देने के बदले सेशन न्यायालय सम्पि को मुख्य न्याियक मिजस्टर्ेट को पिरद िकए जाने का
िनदेश दे सकता है, जो तब उस सम्पि के िवषय म धारा 457, 458 और 459 म उपबंिधत रीित से कारर् वाई करे गा ।
(4) उस दशा के िसवाय, जब सम्पि पशुधन है या शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है या जब उपधारा (2) के अनुसरण म बंधपतर्
िनष्पािदत िकया गया है, उपधारा (1) के अधीन िदया गया आदेश दो मास तक अथवा जहां अपील उपिस्थत की गई है वहां जब तक उस
अपील का िनपटारा न हो जाए, कायार्िन्वत न िकया जाएगा ।
(5) उस सम्पि की दशा म, िजसके बारे म अपराध िकया गया पर्तीत होता है, इस धारा म “सम्पि ” पद के अन्तगर्त न के वल
ऐसी सम्पि है जो मूलत: िकसी पक्षकार के कब्जे या िनयंतर्ण म रह चुकी है वरन् ऐसी कोई सम्पि िजसम या िजसके िलए उस सम्पि
का संपिरवतर्न या िविनमय िकया गया है और ऐसे संपिरवतर्न या िविनमय से, चाहे अ विहत रूप से चाहे अन्यथा, अिजत कोई चीज
भी है ।
453. अिभयुक्त के पास िमले धन का िनद ष कर्ेता को संदाय—जब कोई िक्त िकसी अपराध के िलए, िजसके अन्तगर्त चोरी या
चुराई हुई सम्पि को पर्ाप्त करना है अथवा जो चोरी या चुराई हुई सम्पि पर्ाप्त करने की कोिट म आता है, दोषिस िकया जाता है
और यह सािबत कर िदया जाता है िकसी अन्य िक्त ने चुराई हुई सम्पि को, यह जाने िबना या अपने पास यह िवश्वास करने का
कारण हुए िबना िक वह चुराई हुई है, उससे कर्य िकया है और िस दोष िक्त की िगरफ्तारी पर उसके कब्जे म से कोई धन िनकाला
गया था तब न्यायालय ऐसे कर्ेता के आवेदन पर और चुराई हुई सम्पि पर कब्जे के हकदार िक्त को उस सम्पि के वापस कर िदए
जाने पर आदेश दे सकता है िक ऐसे कर्ेता ारा िदए गए मूल्य से अनिधक रािश ऐसे धन म उसे पिरद की जाए ।
454. धारा 452 या 453 के अधीन आदेश के िवरु अपील—(1) धारा 452 या धारा 453 के अधीन िकसी न्यायालय ारा िदए
गए आदेश से िथत कोई िक्त उसके िवरु अपील उस न्यायालय म कर सकता है िजसम मामूली तौर पर पूवर्किथत न्यायालय ारा
की गई दोषिसि के िवरु अपील होती ह ।
(2) ऐसी अपील पर, अपील न्यायालय यह िनदेश दे सकता है िक अपील का िनपटारा होने तक आदेश रोक िदया जाए या वह ऐसे
आदेश को उपांतिरत, पिरवितत या र कर सकता है और कोई अितिरक्त आदेश, जो न्यायसंगत हो, कर सकता है ।
(3) िकसी ऐसे मामले को, िजसम उपधारा (1) म िनिदष्ट आदेश िदया गया है, िनपटाते समय अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण
न्यायालय भी उपधारा (2) म िनिदष्ट शिक्तय का पर्योग कर सकता है ।
455. अपमानलेखीय और अन्य सामगर्ी का नष्ट िकया जाना—(1) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 292, धारा 293,
धारा 501 या धारा 502 के अधीन दोषिसि पर न्यायालय उस चीज की सब पर्ितय के , िजसके बारे म दोषिसि हुई है और जो
न्यायालय की अिभरक्षा म है, या िस दोष िक्त के कब्जे या शिक्त म है, नष्ट िकए जाने के िलए आदेश दे सकता है ।
(2) न्यायालय भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 272, धारा 273, धारा 274 या धारा 275 के अधीन दोषिसि पर
उस खा , पेय, ओषिध या भेषजीय िनिमत के , िजसके बारे म दोषिसि हुई है, नष्ट िकए जाने का उसी पर्कार से आदेश दे सकता है ।
456. स्थावर सम्पि का कब्जा लौटाने की शिक्त—(1) जब आपरािधक बल या बल-पर्दशर्न या आपरािधक अिभतर्ास से युक्त
िकसी अपराध के िलए कोई िक्त दोषिस िकया जाता है और न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक ऐसे बल या बल-पर्दशर्न या
अिभतर्ास से कोई िक्त िकसी स्थावर संपि से बेकब्जा िकया गया है तब, यिद न्यायालय ठीक समझे तो, आदेश दे सकता है िक िकसी
ऐसे िक्त को, िजसका उस सम्पि पर कब्जा है यिद आवश्यक हो तो, बल ारा बेदखल करने के पश्चात्, उस िक्त को उसका कब्जा
लौटा िदया जाए :
परन्तु न्यायालय ारा ऐसा कोई आदेश दोषिसि की तारीख से एक मास के पश्चात् नह िदया जाएगा ।
(2) जहां अपराध का िवचारण करने वाले न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश नह िदया है, वहां अपील, पुष्टीकरण
या पुनरीक्षण न्यायालय, यिद ठीक समझे तो, यथािस्थित, अपील, िनदश या पुनरीक्षण को िनपटाते समय ऐसा आदेश दे सकता है ।
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश िदया गया है, वहां धारा 454 के उपबंध उसके संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे धारा 453
के अधीन िदए गए िकसी आदेश के संबंध म लागू होते ह ।
(4) इस धारा के अधीन िदया गया कोई आदेश ऐसी स्थावर सम्पि पर िकसी ऐसे अिधकार या उसम िकसी ऐसे िहत पर पर्ितकू ल
पर्भाव न डालेगा िजसे कोई िक्त िसिवल वाद म िस करने म सफल हो जाता है ।
457. सम्पि के अिभगर्हण पर पुिलस ारा पर्िकर्या—(1) जब कभी िकसी पुिलस अिधकारी ारा िकसी सम्पि के अिभगर्हण की
िरपोटर् इस संिहता के उपबंध के अधीन मिजस्टर्ेट को की जाती है और जांच या िवचारण के दौरान ऐसी सम्पि दंड न्यायालय के समक्ष
पेश नह की जाती है तो मिजस्टर्ेट ऐसी सम्पि के यन के , या उस पर कब्जा करने के हकदार िक्त को ऐसी सम्पि का पिरदान िकए
जाने के बारे म या यिद ऐसा िक्त अिभिनिश्चत नह िकया जा सकता है तो ऐसी सम्पि की अिभरक्षा और पेश िकए जाने के बारे म
ऐसा आदेश कर सकता है जो वह ठीक समझे ।
(2) यिद ऐसा हकदार िक्त ज्ञात है, तो मिजस्टर्ेट वह सम्पि उसे उन शत पर (यिद कोई हो), जो मिजस्टर्ेट ठीक समझे पिरद
िकए जाने का आदेश दे सकता है और यिद ऐसा िक्त अज्ञात है तो मिजस्टर्ेट उस सम्पि को िनरु कर सकता है और ऐसी दशा म एक
131

उ ोषणा जारी करे गा, िजसम उस सम्पि की अंगभूत वस्तु का िविनदश हो, और िजसम िकसी िक्त से, िजसका उसके ऊपर दावा
है, यह अपेक्षा की गई हो िक वह उसके समक्ष हािजर हो और ऐसी उ ोषणा की तारीख से छह मास के अन्दर अपने दावे को िस करे ।
458. जहां छह मास के अन्दर कोई दावेदार हािजर न हो वहां पर्िकर्या—(1) यिद ऐसी अविध के अन्दर कोई िक्त सम्पि पर
अपना दावा िस न करे और वह िक्त िजसके कब्जे म ऐसी सम्पि पाई गई थी, यह दिशत करने म असमथर् है िक वह उसके ारा वैध
रूप से अिजत की गई थी तो मिजस्टर्ेट आदेश ारा िनदेश दे सकता है िक ऐसी सम्पि राज्य सरकार के यनाधीन होगी तथा उस
सरकार ारा िवकर्य की जा सके गी और ऐसे िवकर्य के आगम के संबध
ं म ऐसी रीित से कायर्वाही की जा सके गी जो िविहत की जाए ।
(2) िकसी ऐसे आदेश के िवरु अपील उस न्यायालय म होगी िजसम मामूली तौर पर मिजस्टर्ेट ारा की गई दोषिसि के िवरु
अपील होती ह ।
459. िवनश्वर सम्पि को बेचने की शिक्त—यिद ऐसी सम्पि पर कब्जे का हकदार िक्त अज्ञात या अनुपिस्थत है और सम्पि
शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है अथवा यिद उस मिजस्टर्ेट की, िजसे उसके अिभगर्हण की िरपोटर् की गई है यह राय है िक उसका िवकर्य
स्वामी के फायदे के िलए होगा अथवा ऐसी सम्पि का 1 [मूल्य पांच सौ रुपए से कम है] तो मिजस्टर्ेट िकसी समय भी उसके िवकर्य का
िनदेश दे सकता है और ऐसे िवकर्य के शु आगम को धारा 457 और 458 के उपबंध यथासाध्य िनकटतम रूप से लागू ह गे ।
अध्याय 35

अिनयिमत कायर्वािहयां
460. वे अिनयिमतताएं जो कायर्वाही को दूिषत नह करत —यिद कोई मिजस्टर्ेट, जो िनम्निलिखत बात म से िकसी को करने के
िलए िविध ारा सशक्त नह है, गलती से स ावपूवर्क उस बात को करता है तो उसकी कायर्वाही को के वल इस आधार पर िक वह ऐसे
सशक्त नह था अपास्त नह िकया जाएगा, अथार्त् :—
(क) धारा 94 के अधीन तलाशी-वारण्ट जारी करना ;
(ख) िकसी अपराध का अन्वेषण करने के िलए पुिलस को धारा 155 के अधीन आदेश देना ;
(ग) धारा 176 के अधीन मृत्यु-समीक्षा करना ;
(घ) अपनी स्थानीय अिधकािरता के अन्दर के उस िक्त को, िजसने ऐसी अिधकािरता की सीमा के बाहर अपराध िकया
है, पकड़ने के िलए धारा 187 के अधीन आदेिशका जारी करना ;
(ङ) िकसी अपराध का धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) के अधीन संज्ञान करना ;
(च) िकसी मामले को धारा 192 की उपधारा (2) के अधीन हवाले करना ;
(छ) धारा 306 के अधीन क्षमादान करना ;
(ज) धारा 410 के अधीन मामले को वापस मंगाना और उसका स्वयं िवचारण करना ; अथवा
(झ) धारा 458 या धारा 459 के अधीन सम्पि का िवकर्य ।

461. वे अिनयिमतताएं जो कायर्वाही को दूिषत करती ह—यिद कोई मिजस्टर्ेट, जो िनम्निलिखत बात म से कोई बात िविध ारा
इस िनिम सशक्त न होते हुए, करता है तो उसकी कायर्वाही शून्य होगी, अथार्त् :—

(क) सम्पि को धारा 83 के अधीन कु कर् करना और उसका िवकर्य ;

(ख) िकसी डाक या तार पर्ािधकारी की अिभरक्षा म की िकसी दस्तावेज, पासर्ल या अन्य चीज के िलए तलाशी-वारण्ट
जारी करना ;

(ग) पिरशािन्त कायम रखने के िलए पर्ितभूित की मांग करना ;

(घ) सदाचार के िलए पर्ितभूित की मांग करना ;

(ङ) सदाचारी बने रहने के िलए िविधपूवर्क आब िक्त को उन्मोिचत करना ;

(च) पिरशािन्त कायम रखने के बंधपतर् को र करना ;

(छ) भरण-पोषण के िलए आदेश देना ;

(ज) स्थानीय न्यूसेन्स के बारे म धारा 133 के अधीन आदेश देना ;

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 41 ारा “मूल्य दस रुपए से कम है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
132

(झ) लोक न्यूसेन्स की पुनरावृि या उसे चालू रखने की धारा 143 के अधीन पर्ितषेध करना ;

(ञ) अध्याय 10 के भाग ग या भाग घ के अधीन आदेश देना ;

(ट) िकसी अपराध का धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन संज्ञान करना ;

(ठ) िकसी अपराधी का िवचारण करना ;

(ड) िकसी अपराधी का संक्षेपत: िवचारण करना ;

(ढ) िकसी अन्य मिजस्टर्ेट ारा अिभिलिखत कायर्वाही पर धारा 325 के अधीन दंडादेश पािरत करना ;

(ण) अपील का िविनश्चय करना ;

(त) कायर्वाही को धारा 397 के अधीन मंगाना ; अथवा

(थ) धारा 446 के अधीन पािरत आदेश का पुनरीक्षण करना ।

462. गलत स्थान म कायर्वाही—िकसी दंड न्यायालय का कोई िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश के वल इस आधार पर िक वह जांच,
िवचारण या अन्य कायर्वाही िजसके अनुकर्म म उस िनष्कषर् पर पहुंचा गया था या वह दंडादेश या आदेश पािरत िकया गया था, गलत
सेशन खंड, िजला, उपखंड या अन्य स्थानीय क्षेतर् म हुई थी उस दशा म ही अपास्त िकया जाएगा जब यह पर्तीत होता है िक ऐसी गलती
के कारण वस्तुत: न्याय नह हो पाया है ।

463. धारा 164 या धारा 281 के उपबंध का अननुपालन—(1) यिद कोई न्यायालय, िजसके समक्ष अिभयुक्त िक्त की
संस्वीकृ ित या अन्य कथन, जो धारा 164 या धारा 281 के अधीन अिभिलिखत है या अिभिलिखत होना तात्पियत है, सा य म िदया जाता
है या िलया जाता है, इस िनष्कषर् पर पहुंचता है िक कथन अिभिलिखत करने वाले मिजस्टर्ेट ारा इन धारा म से िकसी धारा के िकसी
उपबंध का अनुपालन नह िकया गया है तो वह, भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 91 म िकसी बात के होते हुए
भी, ऐसे अननुपालन के बारे म सा य ले सकता है और यिद उसका यह समाधान हो जाता है िक ऐसे अननुपालन से अिभयुक्त की,
गुणागुण िवषयक बात पर अपनी पर्ितरक्षा करने म कोई हािन नह हुई है और उसने अिभिलिखत कथन सम्यक् रूप से िकया था, तो ऐसे
कथन को गर्हण कर सकता है ।

(2) इस धारा के उपबंध अपील, िनदश और पुनरीक्षण न्यायालय को लागू होते ह ।

464. आरोप िवरिचत न करने या उसके अभाव या उसम गलती का पर्भाव—(1) िकसी सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय का कोई
िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश के वल इस आधार पर िक कोई आरोप िवरिचत नह िकया गया अथवा इस आधार पर िक आरोप म कोई गलती,
लोप या अिनयिमतता थी, िजसके अन्तगर्त आरोप का कु संयोजन भी है, उस दशा म ही अिविधमान्य समझा जाएगा जब अपील,
पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय की राय म उसके कारण वस्तुत: न्याय नह हो पाया है ।

(2) यिद अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय की यह राय है िक वस्तुत: न्याय नह हो पाया है तो वह—

(क) आरोप िवरिचत न िकए जाने वाली दशा म यह आदेश कर सकता है िक आरोप िवरिचत िकया जाए और आरोप की
िवरचना के ठीक पश्चात् से िवचारण पुन: पर्ारं भ िकया जाए :

(ख) आरोप म िकसी गलती, लोप या अिनयिमतता वाली दशा म यह िनदेश दे सकता है िक िकसी ऐसी रीित से, िजसे वह
ठीक समझे, िवरिचत आरोप पर नया िवचारण िकया जाए :

परन्तु यिद न्यायालय की यह राय है िक मामले के तथ्य ऐसे ह िक सािबत तथ्य की बाबत अिभयुक्त के िवरु कोई िविधमान्य
आरोप नह लगाया जा सकता तो वह दोषिसि को अिभखंिडत कर देगा ।

465. िनष्कषर् या दंडादेश कब गलती, लोप या अिनयिमतता के कारण उलटने योग्य होगा—(1) इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट उपबंध
के अधीन यह है िक सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय ारा पािरत कोई िनष्कषर्, दंडादेश या आदेश िवचारण के पूवर् या दौरान पिरवाद,
समन, वारण्ट, उ ोषणा, आदेश, िनणर्य या अन्य कायर्वाही म हुई या इस संिहता के अधीन िकसी जांच या अन्य कायर्वाही म हुई िकसी
गलती, लोप या अिनयिमतता या अिभयोजन के िलए मंजूरी म हुई िकसी गलती या अिनयिमतता के कारण अपील, पुष्टीकरण का
पुनरीक्षण न्यायालय ारा तब तक न तो उलटा जाएगा और न पिरवितत िकया जाएगा जब तक न्यायालय की यह राय नह है िक उसके
कारण वस्तुत: न्याय नह हो पाया है ।

(2) यह अवधािरत करने म िक क्या इस संिहता के अधीन िकसी कायर्वाही म िकसी गलती, लोप या अिनयिमतता या अिभयोजन
के िलए मंजूरी म हुई िकसी गलती या अिनयिमतता के कारण न्याय नह हो पाया है न्यायालय इस बात को ध्यान म रखेगा िक क्या वह
133

आपि कायर्वाही के िकसी पूवर्तर पर्कर्म म उठायी जा सकती थी और उठायी जानी चािहए थी ।

466. तर्ुिट या गलती के कारण कु क का अवैध न होना—इस संिहता के अधीन की गई कोई कु क ऐसी िकसी तर्ुिट के कारण या
पर्रूप के अभाव के कारण िविधिवरु न समझी जाएगी जो समन, दोषिसि , कु क की िरट या तत्संबंधी अन्य कायर्वाही म हुई है और न
उसे करने वाला कोई िक्त अितचारी समझा जाएगा ।

अध्याय 36 1

कु छ अपराध का संज्ञान करने के िलए पिरसीमा


467. पिरभाषा—इस अध्याय के पर्योजन के िलए, जब तक संदभर् म अन्यथा अपेिक्षत न हो, “पिरसीमा-काल” से िकसी अपराध
का संज्ञान करने के िलए धारा 468 म िविनिदष्ट अविध अिभपर्ेत है ।

468. पिरसीमा-काल की समािप्त के पश्चात् संज्ञान का वजर्न—(1) इस संिहता म अन्यतर् जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय,
कोई न्यायालय उपधारा (2) म िविनिदष्ट पर्वगर् के िकसी अपराध का संज्ञान पिरसीमा-काल की समािप्त के पश्चात् नह करे गा ।

(2) पिरसीमा-काल,—

(क) छह मास होगा, यिद अपराध के वल जुमार्ने से दंडनीय है ;

(ख) एक वषर् होगा, यिद अपराध एक वषर् से अनिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय है ;

(ग) तीन वषर् होगा, यिद अपराध एक वषर् से अिधक िकन्तु तीन वषर् से अनिधक की अविध के िलए कारावास से दंडनीय है ।
2
[(3) इस धारा के पर्योजन के िलए उन अपराध के संबंध म, िजनका एक साथ िवचारण िकया जा सकता है, पिरसीमा-काल उस
अपराध के पर्ितिनदश से अवधािरत िकया जाएगा जो, यथािस्थित, कठोरतर या कठोरतम दंड से दंडनीय है ।]

469. पिरसीमा-काल का पर्ारं भ—(1) िकसी अपराधी के संबंध म पिरसीमा-काल,—

(क) अपराध की तारीख को पर्ारं भ होगा ; या

(ख) जहां अपराध के िकए जाने की जानकारी अपराध ारा िथत िक्त को या िकसी पुिलस अिधकारी को नह है वहां
उस िदन पर्ारं भ होगा िजस िदन पर्थम बार ऐसे अपराध की जानकारी ऐसे िक्त या ऐसे पुिलस अिधकारी को होती है, इनम से
जो भी पहले हो ; या

(ग) जहां यह ज्ञात नह है िक अपराध िकसने िकया है, वहां उस िदन पर्ारं भ होगा िजस िदन पर्थम बार अपराधी का पता
अपराध ारा िथत िक्त को या अपराध का अन्वेषण करने वाले पुिलस अिधकारी को चलता है, इनम से जो भी पहले हो ।

(2) उक्त अविध की संगणना करने म, उस िदन को छोड़ िदया जाएगा िजस िदन ऐसी अविध की संगणना की जानी है ।

470. कु छ दशा म समय का अपवजर्न—(1) पिरसीमा-काल की संगणना करने म, उस समय का अपवजर्न िकया जाएगा, िजसके
दौरान कोई िक्त चाहे पर्थम बार के न्यायालय म या अपील या पुनरीक्षण न्यायालय म अपराधी के िवरु अन्य अिभयोजन सम्यक्
तत्परता से चला रहा है :

परन्तु ऐसा अपवजर्न तब तक नह िकया जाएगा जब तक अिभयोजन उन्ह तथ्य से संबंिधत न हो और ऐसे न्यायालय म
स ावपूवर्क न िकया गया हो जो अिधकािरता म दोष या इसी पर्कार के अन्य कारण से उसे गर्हण करने म असमथर् हो ।

(2) जहां िकसी अपराध की बाबत अिभयोजन का संिस्थत िकया जाना िकसी ादेश या आदेश ारा रोक िदया गया है वहां
पिरसीमा-काल की संगणना करने म ादेश या आदेश के बने रहने की अविध को, उस िदन को, िजसको वह जारी िकया गया था या िदया
गया था और उस िदन को, िजस िदन उसे वापस िलया गया था, अपविजत िकया जाएगा ।

(3) जहां िकसी अपराध के अिभयोजन के िलए सूचना दी गई है, या जहां तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन सरकार या िकसी
अन्य पर्ािधकारी की पूवर् अनुमित या मंजूरी िकसी अपराध की बाबत अिभयोजन संिस्थत करने के िलए अपेिक्षत है वहां पिरसीमा-काल
की संगणना करने म, ऐसी सूचना की अविध, या, यथािस्थित, ऐसी अनुमित या मंजूरी पर्ाप्त करने के िलए आवश्यक समय अपविजत

1
इस अध्याय के उपबंध कितपय आिथक अपराध को लागू नह ह गे, देिखए आिथक अपराध (पिरसीमा का लागू न होना) अिधिनयम, 1974 (1974 का 12) की धारा 2
और अनुसूची ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 33 ारा अन्तःस्थािपत ।
134

िकया जाएगा ।

स्पष्टीकरण—सरकार या िकसी अन्य पर्ािधकारी की अनुमित या मंजूरी पर्ाप्त करने के िलए आवश्यक समय की संगणना करने म
उस तारीख का िजसको अनुमित या मंजूरी पर्ाप्त करने के िलए आवेदन िदया गया था और उस तारीख का िजसको सरकार या अन्य
पर्ािधकारी का आदेश पर्ाप्त हुआ, दोन का, अपवजर्न िकया जाएगा ।

(4) पिरसीमा-काल की संगणना करने म, वह समय अपविजत िकया जाएगा िजसके दौरान अपराधी,—

(क) भारत से या भारत से बाहर िकसी राज्यक्षेतर् से, जो के न्दर्ीय सरकार के पर्शासन के अधीन है, अनुपिस्थत रहा है, या

(ख) फरार होकर या अपने को िछपाकर िगरफ्तारी से बचता है ।

471. िजस तारीख को न्यायालय बंद हो उस तारीख का अपवजर्न—यिद पिरसीमा-काल उस िदन समाप्त होता है जब न्यायालय
बंद है तो न्यायालय उस िदन संज्ञान कर सकता है िजस िदन न्यायालय पुन: खुलता है ।

स्पष्टीकरण—न्यायालय उस िदन इस धारा के अथार्न्तगर्त बंद समझा जाएगा िजस िदन अपने सामान्य काम के घंट म वह बंद
रहता है ।

472. चालू रहने वाला अपराध—िकसी चालू रहने वाले अपराध की दशा म नया पिरसीमा-काल उस समय के पर्त्येक क्षण से
पर्ारं भ होगा िजसके दौरान अपराध चालू रहता है ।

473. कु छ दशा म पिरसीमा-काल का िवस्तारण—इस अध्याय के पूवर्वत उपबंध म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, कोई
भी न्यायालय िकसी अपराध का संज्ञान पिरसीमा-काल के अवसान के पश्चात् कर सकता है यिद मामले के तथ्य या पिरिस्थितय से
उसका समाधान हो जाता है िक िवलंब का उिचत रूप से स्पष्टीकरण कर िदया गया है या न्याय के िहत म ऐसा करना आवश्यक है ।

अध्याय 37

पर्कीणर्
474. उच्च न्यायालय के समक्ष िवचारण—जब िकसी अपराध का िवचारण उच्च न्यायालय ारा धारा 407 के अधीन न करके
अन्यथा िकया जाता है तब वह अपराध के िवचारण म वैसी ही पर्िकर्या का अनुपालन करे गा, िजसका सेशन न्यायालय अनुपालन करता
यिद उसके ारा उस मामले का िवचारण िकया जाता ।

475. सेना न्यायालय ारा िवचारणीय िक्तय का कमान आिफसर को स पा जाना—(1) के न्दर्ीय सरकार इस संिहता से और
सेना अिधिनयम, 1950 (1950 का 46), नौसेना अिधिनयम, 1957 (1957 का 62) और वायुसेना अिधिनयम, 1950 (1950 का 45) और
संघ के सश बल से संबंिधत तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध से संगत िनयम ऐसे मामल के िलए बना सके गी िजनम सेना, नौसेना या
वायुसेना संबंधी िविध या अन्य ऐसी िविध के अधीन होने वाले िक्तय का िवचारण ऐसे न्यायालय ारा, िजसको यह संिहता लागू
होती है, या सेना न्यायालय ारा िकया जाएगा ; तथा जब कोई िक्त िकसी मिजस्टर्ेट के समक्ष लाया जाता है और ऐसे अपराध के िलए
आरोिपत िकया जाता है, िजसके िलए उसका िवचारण या तो उस न्यायालय ारा िजसको यह संिहता लागू होती है, या सेना न्यायालय
ारा िकया जा सकता है तब ऐसा मिजस्टर्ेट ऐसे िनयम को ध्यान म रखेगा और उिचत मामल म उसे उस अपराध के कथन सिहत,
िजसका उस पर अिभयोग है, उस यूिनट के िजसका वह हो, कमान आिफसर को या, यथािस्थित, िनकटतम सैिनक, नौसैिनक या
वायुसैिनक स्टेशन के कमान आिफसर को सेना न्यायालय ारा उसका िवचारण िकए जाने के पर्योजन से स प देगा ।

स्पष्टीकरण—इस धारा म,—

(क) “यूिनट” के अन्तगर्त रे िजमट, कोर, पोत, टुकड़ी, गर्ुप, बटािलयन या कम्पनी भी है ;

(ख) “सेना न्यायालय” के अन्तगर्त ऐसा कोई अिधकरण भी है िजसकी वैसी ही शिक्तयां ह जैसी संघ के सश बल को लागू
सुसंगत िविध के अधीन गिठत िकसी सेना न्यायालय की होती ह ।

(2) पर्त्येक मिजस्टर्ेट ऐसे अपराध के िलए अिभयुक्त िक्त को पकड़ने और सुरिक्षत रखने के िलए अपनी ओर से अिधकतम पर्यास
करे गा जब उसे िकसी ऐसे स्थान म आिस्थत या िनयोिजत सैिनक , नािवक या वायु सैिनक के िकसी यूिनट या िनकाय के कमान
आिफसर से उस पर्योजन के िलए िलिखत आवेदन पर्ाप्त होता है ।

(3) उच्च न्यायालय, यिद ठीक समझे तो, यह िनदेश दे सकता है िक राज्य के अंदर िस्थत िकसी जेल म िनरु िकसी बंदी को सेना
135

न्यायालय के समक्ष लंिबत िकसी मामले के बारे म िवचारण के िलए या परीक्षा िकए जाने के िलए सेना न्यायालय के समक्ष लाया जाए ।

476. पर्रूप—संिवधान के अनुच्छेद 237 ारा पर्द शिक्तय के अधीन रहते हुए, ि तीय अनुसूची म िदए गए पर्रूप ऐसे
पिरवतर्न सिहत, जैसे पर्त्येक मामले की पिरिस्थितय से अपेिक्षत ह , उसम विणत संब पर्योजन के िलए उपयोग म लाए जा सकते ह
और यिद उपयोग म लाए जाते ह तो पयार्प्त ह गे ।

477. उच्च न्यायालय की िनयम बनाने की शिक्त—(1) पर्त्येक उच्च न्यायालय राज्य सरकार की पूवर् मंजूरी से िनम्निलिखत के
बारे म िनयम बना सके गा :—

(क) वे िक्त जो उसके अधीनस्थ दंड न्यायालय म अज लेखक के रूप म काम करने के िलए अनुज्ञात िकए जा सकगे ;

(ख) ऐसे िक्तय को अनुज्ञिप्त िदए जाने, उनके ारा काम काज करने और उनके ारा ली जाने वाली फीस के मापमान
का िविनयमन ;

(ग) इस पर्कार बनाए गए िनयम म से िकसी के उल्लंघन के िलए शािस्त उपबंिधत करना और वह पर्ािधकारी, िजसके ारा
ऐसे उल्लंघन का अन्वेषण िकया जा सके गा और शािस्तयां अिधरोिपत की जा सकगी, अवधािरत करना ;

(घ) कोई अन्य िवषय िजसका िविहत िकया जाना अपेिक्षत है या जो िविहत िकया जाए ।

(2) इस धारा के अधीन बनाए गए सब िनयम राजपतर् म पर्कािशत िकए जाएंगे ।


1
[478. कु छ दशा म कायर्पालक मिजस्टर्ेट को स पे गए कृ त्य को पिरवितत करने की शिक्त—यिद िकसी राज्य का िवधान-
मंडल संकल्प ारा ऐसी अनुज्ञा देता है तो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामशर् करने के पश्चात्, अिधसूचना ारा यह िनदेश दे
सके गी िक धारा 108, 109, 110, 145 और 147 म िकसी कायर्पालक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश का अथर् यह लगाया जाएगा िक वह िकसी
पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट के पर्ित िनदश है ।]

479. वह मामला िजसम न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट वैयिक्तक रूप से िहतब है—कोई न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट िकसी ऐसे मामले
का, िजसम वह पक्षकार है, या वैयिक्तक रूप से िहतब है, उस न्यायालय की अनुज्ञा के िबना, िजसम उसके न्यायालय से अपील होती है,
न तो िवचारण करे गा और न उसे िवचारणाथर् सुपुदर् करे गा और न कोई न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट अपने ारा पािरत या िकए गए िकसी
िनणर्य या आदेश की अपील ही सुनग
े ा।

स्पष्टीकरण—कोई न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट िकसी मामले म के वल इस कारण से िक वह उससे सावर्जिनक हैिसयत म संब है या
के वल इस कारण से िक उसने उस स्थान का, िजसम अपराध का होना अिभकिथत है, या िकसी अन्य स्थान का, िजसम मामले के िलए
महत्वपूणर् िकसी अन्य सं वहार का होना अिभकिथत है, अवलोकन िकया है और उस मामले के संबंध म जांच की है इस धारा के अथर् म
पक्षकार या वैयिक्तक रूप से िहतब न समझा जाएगा ।

480. िविध- वसाय करने वाले प्लीडर का कु छ न्यायालय म मिजस्टर्ेट के तौर पर न बैठना—कोई प्लीडर, जो िकसी मिजस्टर्ेट के
न्यायालय म िविध- वसाय करता है, उस न्यायालय म या उस न्यायालय की स्थानीय अिधकािरता के अन्दर िकसी न्यायालय म
मिजस्टर्ेट के तौर पर न बैठेगा ।

481. िवकर्य से संब लोक सेवक का सम्पि का कर्य न करना और उसके िलए बोली न लगाना—कोई लोक सेवक, िजसे इस
संिहता के अधीन संपि के िवकर्य के बारे म िकसी कतर् का पालन करना है, उस संपि का न तो कर्य करे गा और न उसके िलए बोली
लगाएगा ।

482. उच्च न्यायालय की अन्तिनिहत शिक्तय की ावृि —इस संिहता की कोई बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की
अन्तिनिहत शिक्त को सीिमत या पर्भािवत करने वाली न समझी जाएगी जैसे इस संिहता के अधीन िकसी आदेश को पर्भावी करने के
िलए या िकसी न्यायालय की कायर्वाही का दुरुपयोग िनवािरत करने के िलए या िकसी अन्य पर्कार से न्याय के उ ेश्य की पर्ािप्त
सुिनिश्चत करने के िलए आवश्यक हो ।

483. न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय पर अधीक्षण का िनरं तर पर्योग करने का उच्च न्यायालय का कतर् —पर्त्येक उच्च
न्यायालय अपने अधीनस्थ न्याियक मिजस्टर्ेट के न्यायालय पर अपने अधीक्षण का पर्योग इस पर्कार करे गा िजससे यह सुिनिश्चत हो
जाए िक ऐसे मिजस्टर्ेट ारा मामल का िनपटारा शीघर् और उिचत रूप से िकया जाता है ।

1
1980 के अिधिनयम सं० 63 की धारा 8 ारा धारा 478 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
136

484. िनरसन और ावृि यां—(1) दंड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) इसके ारा िनरिसत की जाती है ।

(2) ऐसे िनरसन के होते हुए भी यह है िक,—

(क) यिद उस तारीख के िजसको यह संिहता पर्वृ हो, ठीक पूवर् कोई अपील, आवेदन, िवचारण, जांच या अन्वेषण लंिबत
हो तो ऐसी अपील, आवेदन, िवचारण, जांच या अन्वेषण को ऐसे पर्ारं भ के ठीक पूवर् यथा पर्वृ दंड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898
का 5) के (िजसे इसम इसके पश्चात् पुरानी संिहता कहा गया है) उपबंध के अनुसार, यथािस्थित, ऐसे िनपटाया जाएगा, चालू
रखा जाएगा या िकया जाएगा मानो यह संिहता पर्वृ न हुई हो :

परन्तु यह िक पुरानी संिहता के अध्याय 18 के अधीन की गई पर्त्येक जांच, जो इस संिहता के पर्ारं भ पर लंिबत है, इस
संिहता के उपबंध के अनुसार की और िनपटायी जाएगी :

(ख) पुरानी संिहता के अधीन पर्कािशत सभी अिधसूचनाएं, जारी की गई सभी उ ोषणाएं, पर्द सभी शिक्तयां, िविहत
सभी पर्रूप, पिरिनिश्चत सभी स्थानीय अिधकािरताएं, िदए गए सभी दंडादेश, िकए गए सभी आदेश, िनयम और ऐसी िनयुिक्तयां
जो िवशेष मिजस्टर्ेट के रूप म िनयुिक्तयां नह ह और जो इस संिहता के पर्ारं भ के तुरंत पूवर् पर्वतर्न म ह, कर्मशः इस संिहता के
तत्स्थानी उपबंध के अधीन पर्कािशत अिधसूचनाएं, जारी की गई उ ोषणाएं, पर्द शिक्तयां, िविहत पर्रूप, पिरिनिश्चत
स्थानीय अिधकािरताएं, िदए गए दंडादेश और िकए गए आदेश, िनयम और िनयुिक्तयां समझी जाएंगी ;

(ग) पुरानी संिहता के अधीन दी गई िकसी ऐसी मंजूरी या सम्मित के बारे म, िजसके अनुसरण म उस संिहता के अधीन कोई
कायर्वाही पर्ारं भ न की गई हो, यह समझा जाएगा िक वह इस संिहता के तत्स्थानी उपबंध के अधीन दी गई है और ऐसी मंजूरी या
सम्मित के अनुसरण म इस संिहता के अधीन कायर्वािहयां की जा सकगी ;

(घ) पुरानी संिहता के उपबंध का संिवधान के अनुच्छेद 363 के अथर् के अन्तगर्त िकसी शासक के िवरु पर्त्येक अिभयोजन
की बाबत लागू होना चालू रहेगा ।

(3) जहां पुरानी संिहता के अधीन िकसी आवेदन या अन्य कायर्वाही के िलए िविहत अविध इस संिहता के पर्ारं भ पर या उसके पूवर्
समाप्त हो गई हो, वहां इस संिहता की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह इस संिहता के अधीन ऐसे आवेदन के िकए
जाने या कायर्वाही के पर्ारं भ िकए जाने के िलए के वल इस कारण समथर् करती है िक उसके िलए इस संिहता ारा दीघर्तर अविध िविहत
की गई है या इस संिहता म समय बढ़ाने के िलए उपबंध िकया गया है ।
137

पर्थम अनुसूची
अपराध का वग करण
स्प ीकरण नोट : (1) भारतीय दंड संिहता के अधीन अपराध के बारे म, उस धारा के सामने की, िजसका संख्यांक पर्थम स्तम्भ म
िदया हुआ है, ि तीय और तृतीय स्तम्भ की पर्िविष्टयां भारतीय दंड संिहता की अपराध की पिरभाषा के और उसके िलए िविहत दंड के
रूप म आशियत नह ह, वरन् उस धारा का सारांश बताने के िलए ही आशियत ह ।
(2) इस अनुसूची म (i) “पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट” और “कोई मिजस्टर्ेट” पद के अंतगर्त महानगर मिजस्टर्ेट भी है, िकन्तु कायर्पालन
मिजस्टर्ेट नह है; (ii) “संज्ञेय” शब्द “कोई पुिलस अिधकारी वारं ट के िबना िगरफ्तार कर सके गा” के िलए है; और (iii) “असंज्ञेय” शब्द
“कोई पुिलस अिधकारी वारं ट के िबना िगरफ्तार नह करे गा” के िलए है ।
1. भारतीय दंड संिहता के अधीन अपराध
धारा अपराध दंड संज्ञेय या जमानतीय िकस न्यायालय ारा
असंज्ञेय या िवचारणीय है
अजमानतीय
1 2 3 4 5 6
अध्याय 5—दुष्पर्ेरण
109 िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण यिद वही जो दुष्पर्ेिरत अपराध इसके अनुसार इसके अनुसार िक उस न्यायालय
दुष्पर्ेिरत कायर् उसके पिरणाम-स्वरूप के िलए है । िक दुष्पर्ेिरत दुष्पर्ेिरत अपराध ारा िजसके ारा
िकया जाता है और जहां उसके दंड के अपराध संज्ञेय जमानतीय है या दुष्पर्ेिरत अपराध
िलए कोई अिभ क्त उपबंध नह है । है या असंज्ञेय । अजमान-तीय । िवचारणीय है ।
110 िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण, यिद यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुष्पर्ेिरत िक्त दुष्पर्ेरक के आशय से
िभन्न आशय से कायर् करता है ।
111 िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण, जब एक वही जो दुष्पर्ेिरत िकए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कायर् का दुष्पर्ेरण िकया गया है और जाने के िलए अशियत
उससे िभन्न कायर् िकया गया है, अपराध के िलए है ।
परन्तुक के अधीन रहते हुए ।
113 िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण, जब वही दंड जो िकए गए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुष्पर्ेिरत कायर् से ऐसा पर्भाव पैदा अपराध के िलए है ।
होता है जो दुष्पर्ेरक ारा आशियत से
िभन्न है ।
114 िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण, यिद यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुष्पर्ेरक अपराध िकए जाते समय
उपिस्थत है ।
115 मृत्यु या आजीवन कारावास से सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
दंडनीय अपराध का दुष्पर्ेरण यिद कारावास और
दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप अपराध जुमार्ना ।
नह िकया जाता ।
यिद अपहािन करने वाला कायर् चौदह वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया कारावास और
जाता है । जुमार्ना ।
116 कारावास से दंडनीय अपराध का उस दीघर्तम अविध के यथोक्त इसके अनुसार िक यथोक्त
दुष्पर्ेरण, यिद दुष्पर्ेरण के एक चौथाई भाग तक दुष्पर्ेिरत अपराध
पिरणामस्वरूप अपराध नह िकया का कारावास जो जमानतीय है या
जाता है । अपराध के िलए अजमानतीय ।
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
यिद दुष्पर्ेरक या दुष्पर्ेिरत िक्त उस दीघर्तम अविध के यथोक्त यथोक्त यथोक्त
ऐसा लोक सेवक है िजसका कतर् आधे भाग तक का
िनवािरत करना है । कारावास, जो अपराध
के िलए उपबंिधत है,
या जुमार्ना, या दोन ।
138

1 2 3 4 5 6
117 लोक साधारण ारा या दस से अिधक तीन वषर् के िलए इसके अनुसार इसके अनुसार उस न्यायालय
िक्त ारा अपराध िकए जाने का कारावास, या िक दुष्पर्ेिरत िक दुष्पर्ेिरत ारा िजसके
दुष्पर्ेरण । जुमार्ना, या दोन । अपराध संज्ञेय अपराध ारा दुष्पर्ेिरत
है या जमानतीय है अपराध
असंज्ञय
े । या िवचारणीय है ।
अजमानतीय ।
118 मृत्यु या आजीवन कारावास से सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
दंडनीय अपराध करने की पिरकल्पना कारावास और
को िछपाना, यिद अपराध कर िदया जुमार्ना ।
जाता है ।
यिद अपराध नह िकया जाता है। तीन वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
119 िकसी ऐसे अपराध के िकए जाने की उस दीघर्तम अविध यथोक्त इसके अनुसार िक यथोक्त
पिरकल्पना का लोक सेवक ारा के आधे भाग तक का दुष्पर्ेिरत अपराध
िछपाया जाना िजसका िनवारण कारावास जो उस जमानतीय है या
करना उसका कतर् है, यिद अपराध अपराध के िलए अजमानतीय।
कर िदया जाता है । उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
यिद अपराध मृत्यु या आजीवन दस वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
कारावास से दंडनीय है । कारावास ।
यिद अपराध नह िकया जाता है । उस दीघर्तम अविध के यथोक्त जमानतीय यथोक्त
एक चौथाई भाग तक
का कारावास जो उस
अपराध के िलए
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
120 कारावास से दंडनीय अपराध करने की यथोक्त यथोक्त इसके अनुसार यथोक्त
पिरकल्पना को िछपाना, यिद अपराध िक दुष्पर्ेिरत
कर िदया जाता है । अपराध
जमानतीय है
या
अजमानतीय।
यिद अपराध नह िकया जाता है । उस दीघर्तम अविध के इसके जमानतीय उस न्यायालय
आठव भाग का अनुसार के ारा िजसके ारा
कारावास जो अपराध दुष्पर्ेिरत दुष्पर्ेिरत अपराध
के िलए उपबंिधत है, अपराध िवचारणीय है ।
या जुमार्ना, या दोन ।संज्ञेय है या
असंज्ञय े ।
अध्याय 5क—आपरािधक षड़यंतर्
120ख मृत्यु या आजीवन कारावास या दो वही, जो उस अपराध इसके अनुसार इसके अनुसार उस न्यायालय
वषर् या उससे अिधक अविध के किठन के , जो षड़यंतर् ारा िक अपराध, िक वह अपराध ारा िजसके ारा
कारावास से दंडनीय अपराध करने के उि ष्ट है, दुष्पर्ेरण के जो िक षड़यंतर् जो षड़यंतर् उस अपराध का
िलए आपरािधक षड़यंतर् । िलए है । ारा उि ष्ट ारा उि ष्ट है, दुष्पर्ेरण, जो षड़यंतर्
है, संज्ञेय है या जमानतीय है ारा उि ष्ट है,
असंज्ञय े । या िवचारणीय है ।
अजमानतीय ।
139

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कोई अन्य आपरािधक षड़यंतर् । छह मास के िलए असंज्ञय े जमानतीय पर्थम वगर्
कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
अध्याय 6—राज्य के िवरु अपराध
121 भारत सरकार के िवरु यु करना या मृत्यु या आजीवन संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
यु करने का पर्यत्न करना, या यु कारावास और
करने का दुष्पर्ेरण करना । जुमार्ना ।
121क राज्य के िवरु कितपय अपराध को आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करने के िलए षड़यंतर् । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
122 भारत सरकार के िवरु यु करने के आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आशय से आयुध आिद संगर्ह करना । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
123 यु करने की पिरकल्पना को सुकर दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
बनाने के आशय से िछपाना । कारावास और
जुमार्ना ।
124 िकसी िविधपूणर् शिक्त का पर्योग करने सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के िलए िववश करने या उसका पर्योग कारावास और
अवरोिधत करने के आशय से जुमार्ना ।
राष्टर्पित, राज्यपाल आिद पर हमला
करना ।
124क राजदर्ोह । आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
और जुमार्ना, या तीन
वषर् के िलए कारावास
और जुमार्ना, या
जुमार्ना ।
125 भारत सरकार से मैतर्ी संबंध रखने आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
वाली या उससे शांित का संबंध रखने और जुमार्ना, या सात
वाली िकसी एिशयाई शिक्त के िवरु वषर् के िलए कारावास
यु करना या ऐसे यु करने का और जुमार्ना, या
दुष्पर्ेरण । जुमार्ना ।
126 भारत सरकार के साथ मैतर्ी संबंध सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
रखने वाली या उससे शािन्त का संबंध कारावास और
रखने वाली िकसी शिक्त के राज्यक्षेतर् जुमार्ना और कु छ
म लूटपाट करना । सम्पि का
समपहरण ।
127 धारा 125 और 126 म विणत यु या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
लूटपाट ारा ली गई सम्पि पर्ाप्त
करना ।
128 लोक सेवक का स्वेच्छया राजकै दी या आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
यु कै दी को अपनी अिभरक्षा म से या दस वषर् के िलए
िनकल भागने देना । कारावास और
जुमार्ना ।
129 अपेक्षा से लोक सेवक का राजकै दी या तीन वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय पर्थम वगर्
यु कै दी का अपनी अिभरक्षा म से सादा कारावास और मिजस्टर्ेट
िनकल भागना सहन करना । जुमार्ना ।
140

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130 ऐसे कै दी के िनकल भागने म सहायता आजीवन कारावास, संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
देना, उसे छु ड़ाना या संशर्य देना या या दस वषर् के िलए
ऐसे कै दी के िफर से पकड़े जाने का कारावास और
पर्ितरोध करना। जुमार्ना ।
अध्याय 7—सेना, नौसेना और वायुसन
े ा से संबिं धत अपराध
131 िवदर्ोह का दुष्पर्ेरण या िकसी आिफसर, आजीवन कारावास, संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
सैिनक, नौसैिनक या वायुसैिनक को या दस वषर् के िलए
उसकी राजिन ा या कतर् से कारावास और
िवचिलत करने का पर्यत्न करना । जुमार्ना ।
132 िवदर्ोह का दुष्पर्ेरण, यिद उसके मृत्यु या आजीवन यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिरणामस्वरूप िवदर्ोह िकया जाए । कारावास, या दस
वषर् के िलए कारावास
और जुमार्ना ।
133 आिफसर सैिनक, नौसैिनक या तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
वायुसैिनक ारा अपने विर आिफसर कारावास और जुमार्ना ।
पर जब वह आिफसर अपने पद िनष्पादन
म हो, हमले का दुष्पर्ेरण ।
134 ऐसे हमले का दुष्पर्ेरण, यिद हमला सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िकया जाता है । कारावास और
जुमार्ना ।
135 आिफसर, सैिनक, नौसैिनक या दो वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
वायुसैिनक ारा अिभत्यजन का कारावास, या
दुष्पर्ेरण । जुमार्ना, या दोन ।
136 ऐसे आिफसर, सैिनक नौसैिनक या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
वायुसैिनक को, िजसने अिभ-त्यजन
िकया है, संशर्य देना ।
137 मास्टर या भारसाधक िक्त की पांच सौ रुपए का असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
उपेक्षा से वािणिज्यक जलयान पर जुमार्ना ।
िछपा हुआ अिभत्याजक ।
138 आिफसर, सैिनक, नौसैिनक या छह मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
वायुसैिनक ारा अनधीनता के कायर् कारावास, या
का दुष्पर्ेरण, यिद उसके जुमार्ना, या दोन ।
पिरणामस्वरूप वह अपराध िकया
जाता है ।
140 इस आशय से सैिनक, नौसैिनक या तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
वायुसैिनक ारा उपयोग म लाई जाने कारावास, या पांच
वाली पोशाक पहनना या कोई टोकन सौ रुपए का जुमार्ना,
धारण करना िक यह िवश्वास िकया या दोन ।
जाए िक वह ऐसा सैिनक, नौसैिनक या
वायुसैिनक है ।
अध्याय 8—लोक पर्शािन्त के िवरु अपराध
143 िविधिवरु जमाव का सदस्य होना । छह मास के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
144 िकसी घातक आयुध से सिज्जत होकर दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िविधिवरु जमाव म सिम्मिलत कारावास, या
होना । जुमार्ना, या दोन ।
141

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145 िकसी िविधिवरु जमाव म यह दो वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
जानते हुए िक उसके िबखर जाने का कारावास, या
समादेश िदया गया है सिम्मिलत होना जुमार्ना, या दोन ।
या उसम बने रहना ।
147 बल्वा करना । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
148 घातक आयुध से सिज्जत होकर बल्वा तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
करना । कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
149 यिद िविधिवरु जमाव के िकसी वही जो उस अपराध के इसके अनुसार इसके अनुसार वह न्यायालय
सदस्य ारा अपराध िकया जाता है तो िलए है । िक वह अपराध िक अपराध िजसके ारा वह
ऐसे जमाव का हर अन्य सदस्य उस संज्ञेय है या जमानतीय है या अपराध
अपराध का दोषी होगा । असंज्ञये । अजमानतीय । िवचारणीय है ।
150 िविधिवरु जमाव म भाग लेने के वही जो उस ऐसे संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
िलए िक्तय को भाड़े पर लेना, जमाव के सदस्य के
वचनब करना, या िनयोिजत करना । िलए और ऐसे जमाव
के िकसी सदस्य ारा
िकए गए िकसी
अपराध के िलए है ।
151 पांच या अिधक िक्तय के िकसी छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
जमाव को िबखर जाने का समादेश कारावास, या
िदए जाने के पश्चात् उसम जानते हुए जुमार्ना, या दोन ।
सिम्मिलत होना या बने रहना ।
152 लोक सेवक जब बल्वे इत्यािद को दबा तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
रहा हो तब उस पर हमला करना या कारावास, या मिजस्टर्ेट
उसे बािधत करना । जुमार्ना, या दोन ।
153 बल्वा कराने के आशय से स्वैिरता से एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
पर्कोपन देना, यिद बल्वा िकया कारावास, या
जाता है । जुमार्ना, या दोन ।
यिद बल्वा नह िकया जाता है । छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
153क वग के बीच शतर्ुता का संपर्वतर्न । तीन वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
पूजा के स्थान आिद म वग के बीच पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
शतर्ुता का संपर्वतर्न । कारावास और
जुमार्ना ।
153ख रा ीय एकता पर पर्ितकू ल पर्भाव तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
डालने वाले लांछन, पर्ाख्यान करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
यिद सावर्जिनक पूजा स्थल आिद पर पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िकया जाए । कारावास और
जुमार्ना ।
154 बल्वे आिद की इि ला का भूिम के एक हजार रुपए का असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
स्वामी या अिधभोगी ारा न जुमार्ना ।
िदया जाना ।
142

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155 िजस िक्त के फायदे के िलए या जुमार्ना असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
िजसकी ओर से बल्वा होता है उस
िक्त ारा उसका िनवारण करने के
िलए सब िविधपूणर् साधन का
उपयोग न िकया जाना ।
156 िजस स्वामी या अिधभोगी के फायदे यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के िलए बल्वा िकया जाता है, उसके
अिभकतार् ारा उसका िनवारण करने
के िलए सब िविधपूणर् साधन का
उपयोग न िकया जाना ।
157 िविधिवरु जमाव के िलए भाड़े पर छह मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
लाए गए िक्तय को संशर्य देना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
158 िविधिवरु जमाव या बल्वे म भाग यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
लेने के िलए भाड़े पर जाना ।
या सश चलना । दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
160 दंगा करना । एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या सौ
रुपए का जुमार्ना, या
दोन ।
अध्याय 9—लोक सेवक ारा या उनसे संबिं धत अपराध
161 लोक सेवक होते हुए या होने की तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
पर्त्याशा रखते हुए और पदीय कायर् के कारावास, या मिजस्टर्ेट
बारे म वैध पािरशर्िमक से िभन्न जुमार्ना, या दोन ।
पिरतोषण लेना ।
162 लोक सेवक पर भर्ष्ट या अवैध साधन यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
ारा असर डालने के िलए पिरतोषण
लेना ।
163 लोक सेवक पर वैयिक्तक असर डालने एक वषर् के िलए सादा यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के िलए पिरतोषण लेना । कारावास, या जुमार्ना,
या द न ।
164 अंितम दो पूवर्गामी धारा म तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिरभािषत अपराध का लोक सेवक कारावास, या
ारा अपने बारे म दुष्पर्ेरण । जुमार्ना, या दोन ।
165 लोक सेवक, जो ऐसे लोक सेवक ारा यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
की गई कायर्वाही या कायर् से सम्पृक्त
िक्त से पर्ितफल के िबना कोई
मूल्यवान चीज अिभपर्ाप्त करता है ।
165क धारा 161 या धारा 165 के अधीन यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दंडनीय अपराध के दुष्पर्ेरण के िलए
दंड ।
166 लोक सेवक, जो िकसी िक्त को क्षित एक वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े जमानतीय यथोक्त
कािरत करने के आशय से िविध के कारावास, या
िनदेश की अवज्ञा करता है । जुमार्ना, या दोन ।
143

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पर्थम वगर्
1
[166क लो सेवक, जो िविध के अधीन के कम से कम छह मास संज्ञेय जमानतीय
िनदेश की अवज्ञा करता है । के िलए कारावास जो मिजस्टर्ेट ।
दो वषर् तक का हो
सके गा और जुमार्ना
166ख अस्पताल ारा पीिड़त का उपचार न एक वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त ।]
िकया जाना । कारावास या जुमार्ना
या दोन
167 लोक सेवक, जो क्षित कािरत करने के तीन वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
आशय से अशु दस्तावेज रचता है । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
168 लोक सेवक, जो िविधिवरु रूप से एक वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
ापार म लगता है । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
169 लोक सेवक, जो िविधिवरु रूप से दो वषर् के िलए सादा यथोक्त यथोक्त यथोक्त
संपि कर्य करता है या उसके िलए कारावास, या
बोली लगाता है । जुमार्ना, या दोन
और यिद संपि कर्य
कर ली गई है तो
उसका अिधहरण ।
170 लोक सेवक का पर्ितरूपण । दो वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
171 कपटपूणर् आशय से लोक सेवक के तीन मास के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन कारावास, या दो सौ
को धारण करना । रुपए का जुमार्ना, या
दोन ।
अध्याय 9क—िनवार्चन संबध
ं ी अपराध
171ङ िरश्वत । एक वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय पर्थम वगर्
कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन , या
यिद सत्कार के रूप म
ही ली गई है तो
के वल जुमार्ना ।
171च िनवार्चन म असम्यक् असर डालना । एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
िनवार्चन म पर्ितरूपण । यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
171छ िनवार्चन के िसलिसले म िमथ्या जुमार्ना असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
कथन ।
171ज िनवार्चन के िसलिसले म अवैध पांच सौ रुपए का यथोक्त यथोक्त यथोक्त
संदाय । जुमार्ना ।

171झ िनवार्चन लेखा रखने म असफलता । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
144

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अध्याय 10—लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार का अवमान
172 लोक सेवक ारा िनकाले गए समन की एक मास के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
तामील से या की गई अन्य कायर्वाही सादा कारावास, या
से बचने के िलए फरार हो जाना । पांच सौ रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
यिद वह समन या सूचना न्यायालय म छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
वैयिक्तक हािजरी आिद अपेिक्षत सादा कारावास, या
करती है । एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
173 िकसी समन या सूचना की तामील या एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
लगाया जाना िनवािरत करना या सादा कारावास, या
उसके लगाए जाने के पश्चात् उसे पांच सौ रुपए का
हटाना या उ ोषणा को िनवािरत जुमार्ना, या दोन ।
करना ।
यिद समन आिद न्यायालय म छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
वैयिक्तक हािजरी आिद अपेिक्षत सादा कारावास, या
करते ह । एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
174 िकसी स्थान म स्वयं या अिभकतार् एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
ारा हािजर होने का वैध आदेश न सादा कारावास, या
मानना या वहां से पर्ािधकार के िबना पांच सौ रुपए का
चला जाना । जुमार्ना, या दोन ।
यिद आदेश न्यायालय म वैयिक्तक छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
हािजरी यिद अपेिक्षत करता है । सादा कारावास, या
एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
1
[174क इस संिहता की धारा 82 की उपधारा तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
(1) के अधीन पर्कािशत उ ोषणा की कारावास, या जुमार्ने मिजस्टर्ेट
अपेक्षानुसार िविनिदष्ट स्थान और से, या दोन से ।
िविनिदष्ट समय पर हािजर होने म
असफलता ।
175 िकसी ऐसे मामले म जहां िकसी सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
िक्त को, उ ोिषत अपराधी के रूप कारावास और
म घोिषत करते हुए इस संिहता की जुमार्ना ।
धारा 82 की उपधारा (4) के अधीन
एक मास के िलए सादा 2
[असंज्ञय
े ] 2
[जमानतीय] अध्याय 26 के
घोषणा की गई है ।
कारावास, या पांच सौ उपबंध के
दस्तावेज पेश करने या पािरत करने के रुपए का जुमार्ना, या अधीन रहते
िलए वैध रूप से आब िक्त ारा दोन । हुएवह न्यायालय
लोक सेवक को ऐसी दस्तावेज पेश िजसम अपराध
करने का साशय लोप । िकया गया है ;
या यिद अपराध
न्यायालय म नह
िकया गया है तो
कोई मिजस्टर्ेट ।
यिद उस दस्तावेज का न्यायालय म छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पेश िकया जाना या पिरद िकया सादा कारावास, या
जाना अपेिक्षत है । एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “यथोक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
145

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176 सूचना या इि ला देने के िलए वैध रूप एक मास के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
से आब िक्त ारा लोक सेवक को सादा कारावास, या
ऐसी सूचना या इि ला देने का साशय पांच सौ रुपए का
लोप । जुमार्ना, या दोन ।
यिद अपेिक्षत सूचना या इि ला छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अपराध िकए जाने आिद के िवषय सादा कारावास, या
म है । एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
यिद सूचना या इि ला इस संिहता की छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
धारा 356 की उपधारा (1) के अधीन सादा कारावास, या
िदए गए आदेश ारा अपेिक्षत है । एक हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
177 लोक सेवक को जानते हुए िमथ्या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
इि ला देना ।
यिद अपेिक्षत इि ला अपराध िकए दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जाने आिद के िवषय म हो । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
178 शपथ से इनकार करना जब लोक छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सेवक ारा वह शपथ लेने के िलए सादा कारावास, या
सम्यक् रूप से अपेिक्षत िकया एक हजार रुपए का
जाता है । जुमार्ना, या दोन ।
179 सत्य कथन करने के िलए वैध रूप से यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आब होते हुए पर् का उ र देने से
इनकार करना ।
180 लोक सेवक से िकए गए कथन पर तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
हस्ताक्षर करने से इनकार करना जब सादा कारावास, या
वह वैसा करने के िलए वैध रूप से पांच सौ रुपए का
अपेिक्षत है । जुमार्ना, या दोन ।
181 लोक सेवक से शपथ पर जानते हुए तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
सत्य के रूप म ऐसा कथन करना जो कारावास और मिजस्टर्ेट
िमथ्या है । जुमार्ना ।
182 िकसी लोक सेवक को इस आशय से छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
िमथ्या इि ला देना िक वह अपनी कारावास, या एक
िविधपूणर् शिक्त का उपयोग दूसरे हजार रुपए का
िक्त को क्षित या क्षोभ करने के जुमार्ना, या दोन ।
िलए करे ।
183 लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
ारा सम्पि िलए जाने का पर्ितरोध ।
184 लोक सेवक के पर्ािधकार ारा िवकर्य एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के िलए पर्स्थािपत की गई सम्पि के कारावास, या पांच
िवकर्य म बाधा उपिस्थत करना । सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
146

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185 िविधपूवर्क पर्ािधकृ त िवकर्य म सम्पि एक मास के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
के िलए ऐसे िक्त का, जो उसे कर्य कारावास, या दो सौ
करने के िलए िकसी िविधक असमथर्ता रुपए का जुमार्ना, या
के अधीन है, बोली लगाना या उपगत दोन ।
बाध्यता को पूरा करने का आशय न
रखते हुए बोली लगाना ।
186 लोक सेवक के लोक कृ त्य के िनवर्हन तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
म बाधा डालना । कारावास, या पांच
सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
187 लोक सेवक की सहायता करने का लोप एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जब ऐसी सहायता देने के िलए िविध सादा कारावास, या
ारा आब हो । दो सौ रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
ऐसे लोक सेवक की, जो आदेिशका के छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िनष्पादन, अपराध के िनवारण आिद सादा कारावास, या
के िलए सहायता मांगता है, सहायता पांच सौ रुपए का
देने म जानबूझकर उपेक्षा करना । जुमार्ना, या दोन ।
188 लोक सेवक ारा िविधपूवर्क एक मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
पर्ख्यािपत आदेश की अवज्ञा, यिद ऐसी सादा कारावास, या
अवज्ञा िविधपूवर्क िनयोिजत दो सौ रुपए का
िक्तय को बाधा, क्षोभ या जुमार्ना, या दोन ।
क्षितकािरत करे ।
यिद ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
स्वास्थ्य या क्षेम आिद को संकट कारावास, या एक
कािरत करे । हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
189 िकसी पदीय कृ त्य को करने या करने से दो वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
पर्िवरत रहने के िलए लोक सेवक को कारावास, या
उपर्ेिरत करने के िलए लोक सेवक या जुमार्ना, या दोन ।
उसको िजसम वह िहतब है क्षित
करने की धमकी देना ।
190 क्षित के संरक्षण के िलए वैध आवेदन एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
देने से िवरत रहने के िलए िकसी कारावास, या
िक्त को उपर्ेिरत करने के िलए उसे जुमार्ना, या दोन ।
धमकी देना ।

अध्याय 11—िमथ्या सा य और लोक न्याय के िवरु अपराध

193 न्याियक कायर्वाही म िमथ्या सा य सात वषर् के िलए असंज्ञय


े जमानतीय पर्थम वगर्
देना या गढ़ना । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
िकसी अन्य मामले म िमथ्या सा य तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
देना या गढ़ना । कारावास और
जुमार्ना ।
194 िकसी िक्त की मृत्यु से दंडनीय आजीवन कारावास, या यथोक्त अजमानतीय सेशन न्यायालय
अपराध के िलए दोषिस कराने के दस वषर् के िलए किठन
आश्य से िमथ्या सा य देना या गढ़ना । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद िनद ष िक्त उसके ारा मृत्य या यथा यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दोषिस िकया जाता है और उसे उपयुर्क्त
फांसी दे दी जाती है ।
147

1 2 3 4 5 6
195 आजीवन कारावास या सात वषर् या वही जो उस अपराध के असंज्ञय
े अजमातीय सेशन
उससे अिधक के कारवास से दंडनीय िलए है । न्यायालय ।
अपराध के िलए दोषिस कराने के
आशय से िमथ्या सा य देना या
गढ़ना ।
1
[195क िकसी िक्त को िमथ्या सा य देने के सात वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त वह न्यायालय
िलए धमकाना । कारावास, या िजसके ारा
जुमार्ना, या दोन । िमथ्या सा य देने
का अपराध
िवचार-णीय है ।
यिद िनद ष िक्त को िमथ्या सा य वही जो अपराध के यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
के पिरणामस्वरूप दोषिस िकया िलए है ।
जाता है और मृत्यु या सात वषर् से
अिधक के कारावास से दंडािदष्ट िकया
जाता है ।
196 उस सा य को न्याियक कायर्वाही म वही जो िमथ्या सा य 2
[असंज्ञेय] इसके अनुसार वह न्यायालय
काम म लाना िजसका मथ्या होना या देने या गढ़ने के िलए िक ऐसा सा य िजसके ारा िमथ्या
गढ़ा होना ज्ञात है । है । देने का अपराध सा य देने या गढ़ने
जमानतीय है का अपराध
या िवचारणीय है ।
अजमानतीय।
197 िकसी ऐसे तथ्य से संबंिधत िमथ्या यथोक्त यथोक्त जमानतीय वह न्यायालय
पर्माणपतर् जानते हुए देना या िजसके ारा िमथ्या
हस्ताक्षिरत करना िजसके िलए ऐसा सा य देने का
पर्माणपतर् िविध ारा सा य म अपराध
गर्ा है । िवचारणीय है ।
198 पर्माणपतर् को िजसका ताित्वक बात के यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
संबंध म िमथ्या होना ज्ञात है, सच्चे
पर्माणपतर् के रूप म काम म लाना ।
199 ऐसी घोषणा म, जो सा य के रूप म यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िविध ारा ली जा सके , िकया गया
िमथ्या कथन ।
200 ऐसी घोषणा का िमथ्या होना जानते यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
हुए सच्ची के रूप म काम म लाना ।

201 िकए गए अपराध के सा य का सात वषर् के िलए इसके अनुसार जमानतीय सेशन न्यायालय
िवलोपन कािरत करना या अपराधी कारावास और िक ऐसा
को पर्ितच्छािदत करने के िलए उस जुमार्ना । अपराध
अपराध के बारे म िमथ्या इि ला िजसकी बाबत
देना, यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय है । सा य का
िवलोपन हुआ
है संज्ञेय है या
असंज्ञये ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के तीन वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त पर्थम वगर्
िलए कारावास से दंडनीय है । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।

1
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 7 ारा “यथोक्त” के स्थान पर्ितस्थािपत ।
148

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यिद दस वषर् से कम के कारावास से उस दीघर्तम अविध असंज्ञय
े जमानतीय वह न्यायालय
दंडनीय है । की एक चौथाई का िजसके ारा
कारावास, जो उस अपराध
अपराध के िलए िवचारणीय है ।
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
202 इि ला देने के िलए वैध रूप से आब छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
यिक्त ारा अपराध की इि ला देने कारावास, या जुमार्ना,
का साशय लोप । या दोन ।
203 िकए गए अपराध के िवषय म िमथ्या दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
इि ला देना । कारावास, या जुमार्ना,
यो दोन ।
204 सा य के रूप म िकसी दस्तावेज का यथोक्त यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
पेश िकया जाना िनवािरत करने िक मिजस्टर्ेट
िलए उसको िछपाना या नष्ट करना ।
205 वाद या आपरािधक अिभयोजन म तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कोई कायर् या कायर्वाही करने या कारावास, या जुमार्ना,
जमानतदार या पर्ितभू बनने के यो दोन ।
पर्योजन के िलए छ पर्ितरूपण ।
206 सम्पि को समपहरण के रूप म या दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
दंडादेश के अधीन जुमार्ना चुकाने म कारावास, या
या िडकर्ी के िनष्पादन म अिभगृहीत जुमार्ना, यो दोन ।
िकए जाने से िनवािरत करने के िलए
उसे कपटपूवर्क हटाना या िछपाना,
आिद ।
207 सम्पि को समपहरण के रूप म या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दंडादेश के अधीन जुमार्ना चुकाने म
या िडकर्ी के िनष्पादन म िलए जाने से
िनवािरत करने के िलए उस पर
अिधकार के िबना दावा करना या उस
पर िकसी अिधकार के बारे म पर्वंचना
करना ।
208 ऐसी रािश के िलए, जो शोध्य न हो, यथोक्त यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
कपटपूवर्क िडकर्ी होने देना सहन मिजस्टर्ेट
करना या िडकर्ी का तुष्ट कर िदए
जाने के पश्चात् िनष्पािदत िकया
जाना सहन करना ।
209 न्यायालय म िमथ्या दावा । दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
210 ऐसी रािश के िलए, जो शोध्य नह है दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कपटपूवर्क िडकर्ी अिभपर्ाप्त करना या कारावास, या जुमार्ना,
िडकर्ी को तुष्ट कर िदए जाने के या दोन ।
पश्चात् िनष्पािदत करवाना ।
211 क्षित करने के आशय से अपराध का यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िमथ्या आरोप ।
149

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यिद आरोिपत अपराध सात वषर् या सात वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय पर्थम वगर्
उससे अिधक अविध के कारावास से कारावास और मिजस्टर्ेट
दंडनीय है । जुमार्ना ।
यिद आरोिपत अपराध मृत्यु या यथोक्त यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
आजीवन कारावास से दंडनीय है ।
212 अपराधी को संशर्य देना, यिद अपराध पांच वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त पर्थम वगर्
मृत्यु से दंडनीय है । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय है । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद एक वषर् के िलए, न िक दस वषर् के उस दीघर्तम अविध की यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय है । एक चौथाई का और
उस भांित का
कारावास, जो उस
अपराध के िलए
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
213 अपराधी को दंड से पर्ितच्छािदत करने सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के िलए उपहार आिद लेना, यिद कारावास और
अपराध मृत्यु से दंडनीय है । जुमार्ना ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय है । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद दस वषर् से कम के िलए कारावास उस दीघर्तम अविध यथोक्त यथोक्त यथोक्त
से दंडनीय है । की एक चौथाई का
कारावास, जो उस
अपराध के िलए
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
214 अपराधी के पर्ितच्छादन के सात वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
पर्ितफलस्वरूप उपहार की पर्स्थापना कारावास और
या सम्पि का पर्त्यावतर्न, यिद जुमार्ना ।
अपराध मृत्यु से दंडनीय है ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय है । कारावास और
जुमार्ना ।

यिद दस वषर् से कम के िलए कारावास उस दीघर्तम अविध यथोक्त यथोक्त यथोक्त


से दंडनीय है । की एक चौथाई का
कारावास, जो उस
अपराध के िलए
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
150

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215 अपराधी को पकड़वाए िबना उस दो वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
जंगम सम्पि को वापस कराने म कारावास, या मिजस्टर्ेट
सहायता करने के िलए उपहार लेना जुमार्ना या दोन ।
िजससे कोई िक्त अपराध ारा
वंिचत कर िदया गया है ।
216 ऐसे अपराधी को संशर्य देना जो सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अिभरक्षा से िनकल भागा है या कारावास और
िजसको पकड़ने का आदेश िदया जा जुमार्ना ।
चुका है यिद अपराध मृत्यु से
दंडनीय है ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के जुमार्ना सिहत या यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय है । रिहत तीन वषर् के
िलए कारावास ।
यिद एक वषर् के िलए, न िक दस वषर् के उस दीघर्तम अविध यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए, कारावास से दंडनीय है । की एक चौथाई का
कारावास, जो उस
अपराध के िलए
उपबंिधत है, या
जुमार्ना, या दोन ।
216क लुटेर या डाकु को संशर्य देना । सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
किठन कारावास, और
जुमार्ना ।
217 लोक सेवक ारा िकसी िक्त को दंड दो वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
से या िकसी सम्पि को समपहरण से कारावास, या
बचाने के आशय से िविध के िनदेश की जुमार्ना, या दोन ।
अवज्ञा ।
218 िकसी िक्त को दंड से या िकसी तीन वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त पर्थम वगर्
सम्पि को समपहरण से बचाने के कारावास, या मिजस्टर्ेट
आशय से लोक सेवक ारा अशु जुमार्ना, या दोन ।
अिभलेख या लेख की रचना ।
219 न्याियक कायर्वाही म लोक सेवक ारा सात वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
ऐसा आदेश, िरपोटर्, अिधमत या कारावास, या
िविन य भर्ष्टता- पूवर्क िदया जाना जुमार्ना, या दोन ।
और सुनाया जाना िजसका िविध के
पर्ितकू ल होना वह जानता है ।
220 पर्ािधकार वाले िक्त ारा, जो वह यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जानता है िक वह िविध के पर्ितकू ल
कायर् कर रहा है, िवचारण के िलए या
पिररोध करने के िलए सुपुदग
र् ी ।
221 अपराधी को पकड़ने के िलए िविध जुमार्ना सिहत या इसके अनुसार यथोक्त यथोक्त
ारा आब लोक सेवक ारा उसे रिहत सात वषर् के िक ऐसा
पकड़ने का साशय लोप, यिद अपराध िलए कारावास । अपराध
मृत्य से दंडनीय है । िजसकी बाबत
लोप हुआ है
संज्ञय
े है या
असंज्ञये ।
151

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यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के जुमार्ना सिहत या संज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
िलए कारावास से दंडनीय है । रिहत दो वषर् के िलए मिजस्टर्ेट
कारावास ।
यिद दस वषर् से कम के िलए कारावास जुमार्ना सिहत या यथोक्त यथोक्त यथोक्त
से दंडनीय है । रिहत तीन वषर् के
िलए कारावास ।
222 न्यायालय के दंडादेश के अधीन िक्त जुमार्ना सिहत या यथोक्त अजमानतीय सेशन न्यायालय
को पकड़ने के िलए िविध ारा आब रिहत आजीवन
लोक सेवक ारा उसे पकड़ने का कारावास, या चौदह
साशय लोप, यिद वह िक्त मृत्यु के वषर् के िलए कारावास
दंडादेश के अधीन है । ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् जुमार्ना सिहत या यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
या उससे अिधक के कारावास के रिहत सात वषर् के मिजस्टर्ेट
दंडादेश के अधीन है । िलए कारावास ।
यिद दस वषर् से कम के िलए कारावास तीन वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
के दंडादेश के अधीन है या अिभरक्षा म कारावास, या
रखे जाने के िलए िविधपूवर्क सुपुदर् जुमार्ना, या दोन ।
िकया गया है ।
223 लोक सेवक ारा उपेक्षा से पिररोध म दो वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
से िनकल भागना सहन करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
224 िकसी िक्त ारा िविध के अनुसार दो वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
अपने पकड़े जाने म पर्ितरोध या कारावास या
बाधा । जुमार्ना, या दोन ।
225 िकसी िक्त के िविध के अनुसार यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पकड़े जाने म पर्ितरोध या बाधा या
िविधपूवर्क अिभरक्षा से उसे छु ड़ाना ।
यिद आजीवन कारावास या दस वषर् के तीन वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय पर्थम वगर्
िलए कारावास से दंडनीय अपराध से कारावास और मिजस्टर्ेट
आरोिपत हो । जुमार्ना ।
यिद मृत्यु दंड से दंडनीय अपराध से सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आरोिपत है । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद वह िक्त आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
या दस वषर् या उससे अिधक के
कारावास से दंडािदष्ट है ।
यिद मृत्यु दंडादेश के अधीन है । आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।

225क उन दशा म िजनके िलए अन्यथा


उपबंध नह है लोक सेवक को पकड़ने
का लोप या िनकल भागना सहन
करना—

(क) जब लोप या सहन करना तीन वषर् के िलए असंज्ञय


े जमानतीय पर्थम वगर्
साशय है, कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
152

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(ख) जब लोप या सहन करना दो वषर् के िलए सादा असंज्ञय


े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
उपेक्षापूवक
र् है । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
225ख उन दशा म, िजनके िलए अन्यथा छह मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
उपलब्ध नह है, िविधपूवर्क पकड़ने म कारावास, या
पर्ितरोध या बाधा या िनकल भागना जुमार्ना, या दोन ।
या छु ड़ाना ।

227 दंड के पिरहार की शतर् का अितकर्मण । मूल दंडादेश का दंड, यथोक्त अजमानतीय वह न्यायालय
या यिद दंड का भाग िजसके ारा मूल
भोग िलया गया है तो अपराध
अविशष्ट भाग । िवचारणीय था ।
228 न्याियक कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म छह मास के िलए असंज्ञय
े जमानतीय अध्याय 26 के
बैठे हुए लोक सेवक का साशय अपमान सादा कारावास, या उपबंध के अधीन
या उसके कायर् म िव । एक हजार रुपए का रहते हुए, वह
जुमार्ना, या दोन । न्यायालय िजसम
अपराध िकया गया
है ।
1
[228क कु छ अपराध आिद से पीिड़त िक्त दो वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
की पहचान का पर्कटीकरण । कारावास और
जुमार्ना ।
न्यायालय की पूवर् अनुज्ञा के िबना यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
िकसी कायर्वाही का मुदर्ण या
पर्काशन ।
229 जूरी-सदस्य या असेसर का दो वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त पर्थम वगर्
पर्ितरूपण । कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
2
[229क जमानत पर या बंधपतर् पर छोड़े गए एक वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट ]
िक्त ारा न्यायालय म हािजर होने कारावास, या
म असफलता । जुमार्ना, या दोन ।
अध्याय 12—िसक्के और सरकारी स्टाम्प से संबिं धत अपराध
231 िसक्के का कू टकरण या उसके कू टकरण सात वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
की पर्िकर्या के िकसी भाग को करना । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
232 भारतीय िसक्के का कू टकरण या उसके आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
कू टकरण की पर्िकर्या के िकसी भाग को या दस वषर् के िलए
करना । कारावास और
जुमार्ना ।

233 िसक्के के कू टकरण के पर्योजन के िलए तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
उपकरण बनाना, खरीदना या बेचना । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
234 भारतीय िसक्के के कू टकरण के सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
पर्योजन के िलए उपकरण बनाना, कारावास और
खरीदना या बेचना । जुमार्ना ।

1
1983 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 5 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा अंतःस्थािपत ।
153

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235 िसक्के के कू टकरण के िलए उपयोग म तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
लाने के पर्योजन से उपकरण या कारावास और मिजस्टर्ेट
सामगर्ी कब्जे म रखना । जुमार्ना ।
यिद वह भारतीय िसक्का है । दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
कारावास और
जुमार्ना ।
236 भारत से बाहर िसक्के के कू टकरण का वही दंड जो भारत म यथोक्त यथोक्त यथोक्त
भारत म दुष्पर्ेरण । ऐसे िसक्के के
कू टकरण के दुष्पर्ेरण
के िलए उपबंिधत है ।
237 कू टकृ ट िसक्के को यह जानते हुए िक तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
वह कू टकृ त है, आयात या िनयार्त । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
238 भारतीय िसक्के की कू टकृ ितय का आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
यह जानते हुए िक वे कू टकृ त ह, या दस वषर् के िलए
आयात या िनयार्त । कारावास और
जुमार्ना ।
239 िकसी कू टकृ त िसक्के को, िजसका ऐसा पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
होना वह तब जानता था जब वह कारावास और मिजस्टर्ेट
उसके कब्जे म आया, रखना और िकसी जुमार्ना ।
िक्त को उसका पिरदान आिद
करना ।
240 भारतीय िसक्के के बारे म वही दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
अपराध । कारावास और
जुमार्ना ।
241 िकसी कू टकृ त िसक्के का असली िसक्के दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
के रूप म जानते हुए दूसरे को पिरदान कारावास, या कू टकृ त
िजसका पिरदान करने वाला उस िसक्के के मूल्य का
समय जब वह उसके कब्जे म पहली दस गुना जुमार्ना, या
बार आया था कू टकृ त होना नह दोन ।
जानता था ।
242 कू टकृ त िसक्के पर ऐसे िक्त का तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
कब्जा जो उस समय उसका कू टकृ त कारावास और मिजस्टर्ेट
होना जानता था जब वह उसके कब्जे जुमार्ना ।
म आया था ।
243 भारतीय िसक्के पर से िक्त का सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कब्जा जो उसका कू टकृ त होना उस कारावास और
समय जानता था, जब वह उसके कब्जे जुमार्ना ।
म आया था ।

244 टकसाल म िनयोिजत िक्त ारा यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त


िसक्के का उस वजन या िमशर्ण से
िभन्न कािरत िकया जाना जो िविध
ारा िनयत है ।

245 टकसाल से िसक्का बनाने का उपकरण यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त


िविधिवरु रूप से लेना।
154

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246 कपटपूवर्क िकसी िसक्के का वजन कम तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
करना या िमशर्ण पिरवितत करना । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
247 कपटपूवर्क भारतीय िसक्के का वजन सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कम करना या िमशर्ण पिरवितत कारावास और
करना । जुमार्ना ।
248 इस आशय से िकसी िसक्के का रूप तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिरवितत करना िक वह िभन्न पर्कार कारावास और
के रूप म चल जाए । जुमार्ना ।
249 इस आशय से भारतीय िसक्के का रूप सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिरवितत करना िक वह िभन्न पर्कार कारावास और
के िसक्के के रूप म चल जाए । जुमार्ना ।
250 दूसरे को ऐसे िसक्के का पिरदान, जो पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
इस ज्ञान के साथ कब्जे म आया है िक कारावास और
उसे पिरवितत िकया गया है । जुमार्ना ।
251 भारतीय िसक्के का पिरदान, जो इस दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
ज्ञान के साथ कब्जे म आया है िक उसे कारावास और
पिरवितत िकया गया है । जुमार्ना ।
252 ऐसे िक्त ारा पिरवितत िसक्के , तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
पर कब्जा जो उसका पिरवितत होना कारावास और मिजस्टर्ेट
उस समय जानता था जब वह उसके जुमार्ना ।
कब्जे म आया ।
253 ऐसे िक्त ारा भारतीय िसक्के पर पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कब्जा जो उसका पिरवितत होना उस कारावास और
समय जानता था जब वह उसके कब्जे जुमार्ना ।
म आया ।
254 दूसरे िसक्के का असली िसक्के के रूप दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
म पिरदान िजसका पिरदान करने कारावास, या िसक्के
वाला उस समय जब वह उसके कब्जे के मूल्य का दस गुना
म पहली बार आया था उसका जुमार्ना ।
पिरवितत होना नह जानता था ।
255 सरकारी स्टाम्प का कू टकरण । आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
256 सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
पर्योजन के िलए उपकरण या सामगर्ी कारावास और मिजस्टर्ेट
कब्जे म रखना । जुमार्ना ।

257 सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त


पर्योजन के िलए उपकरण बनाना या
खरीदना या बेचना ।
258 कू टकृ त सरकारी स्टाम्प का िवकर्य । यथोक्त यथोक्त जमानतीय यथोक्त
259 कू टकृ त सरकारी स्टाम्प को कब्जे म यथोक्त यथोक्त जमानतीय यथोक्त
रखना ।
155

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260 िकसी सरकारी स्टाम्प को कू टकृ त सात वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
जानते हुए उसे असली स्टाम्प के रूप कारावास, या मिजस्टर्ेट
म उपयोग म लाना । जुमार्ना, या दोन ।
261 इस आशय से िक सरकार को हािन तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कािरत हो, उस पदाथर् पर से, िजस पर कारावास, या
सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख जुमार्ना, या दोन ।
िमटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प
हटाना जो उसके िलए उपयोग म लाया
गया है ।
262 ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
िजसके बारे म ज्ञात है िक उसका पहले कारावास, या
उपयोग हो चुका हो । जुमार्ना, या दोन ।
263 स्टाम्प के उपयोग िकए जा चुकने के तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
ोतक िचह्न को छील-कर िमटाना । कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
263क बनावटी स्टाम्प दो सौ रुपए का यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
जुमार्ना
अध्याय 13—बाट और माप से संबिं धत अपराध
264 तोलने के िलए खोटे उपकरण का एक वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
कपटपूवर्क उपयोग । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
265 खोटे बाट या माप का कपटपूवर्क यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उपयोग ।
266 खोटे बाट या माप को कपटपूवर्क यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उपयोग के िलए कब्जे म रखना ।
267 खोटे बाट या माप को कपटपूवर्क यथोक्त संज्ञेय अजमानतीय यथोक्त
उपयोग के िलए बनाना या बेचना ।
अध्याय 14—लोक स्वास्थ्य क्षेम, सुिवधा, िशष्टता और सदाचार पर पर्भाव डालने वाले अपराध
269 उपेक्षा से कोई ऐसा कायर् करना िजसके छह मास के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
बारे म ज्ञात है िक उससे जीवन के िलए कारावास, या
संकटपूणर् िकसी रोग का संकर्म फै लना जुमार्ना, या दोन ।
संभा है ।
270 पिर षे से ऐसा कोई कायर् करना िजसके दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
बारे म ज्ञात है िक उससे जीवन के िलए कारावास, या
संकटपूणर् िकसी रोग का संकर्म फै लना जुमार्ना, या दोन ।
संभा है ।
271 िकसी करन्तीन के िनयम की जानते छह मास के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
हुए अवज्ञा । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।

272 िवकर्य के िलए आशियत खा या पेय छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
का ऐसा उपिमशर्ण िजसम वह कारावास, या एक
अपायकर बन जाए । हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
273 खा और पेय के रूप म िकसी खा यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
और पेय को, यह जानते हुए िक वह
अपायकर है, बेचना ।
156

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274 िवकर्य के िलए आशियत िकसी ओषिध छह मास के िलए असंज्ञय
े 1
[अजमानतीय] कोई मिजस्टर्ेट
या भेषजीय िनिमत का ऐसा कारावास, या एक
अपिमशर्ण िजससे उसकी हजार रुपए का
पर्भावकािरता कम हो जाए या उसकी जुमार्ना, या दोन ।
िकर्या बदल जाए या वह अपायकर
हो जाए ।
275 िकसी ओषिध या भेषजीय िनिमित को यथोक्त यथोक्त 1
[जमानतीय] यथोक्त
िजसके बारे म ज्ञात है िक वह
अपिमिशर्त है बेचने की पर्स्थापना
करना या ओषधालय से देना ।
276 िकसी ओषिध या भेषजीय िनिमित को यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िभन्न ओषिध या भेषजीय िनिमित के
रूप म, जानते हुए, बेचना या
ओषधालय से देना ।
277 लोक जल-सर्ोत या जलाशय का जल तीन मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
कलुिषत करना । कारावास, या पांच
सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
278 वायुमंडल को स्वास्थ्य के िलए पांच सौ रुपए का असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
अपायकर बनाना । जुमार्ना ।
279 लोक मागर् पर ऐसे उतावलेपन या छह मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
उपेक्षा से वाहन चलाना या सवार कारावास, या एक
होकर हांकना िजससे मानव जीवन हजार रुपए का
संकटापन्न हो जाए, आिद । जुमार्ना, या दोन ।
280 िकसी जलयान को ऐसे उतावलेपन या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उपेक्षा से चलाना िजससे मानव जीवन
संकटापन्न हो जाए, आिद ।
281 भर्ामक पर्काश िचह्न या बोये का सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
पर्दशर्न । कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
282 जल ारा िकसी िक्त का भाड़े पर छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
पर्वहण जब वह जलयान ऐसी दशा म कारावास, या एक
हो या इतना लदा हुआ हो िक उससे हजार रुपए का
उस िक्त का जीवन संकटापन्न हो जुमार्ना, या दोन ।
जाए ।
283 िकसी लोक मागर् या नौपिरवहन-पथ दो सौ रुपए का यथोक्त यथोक्त यथोक्त
म संकट, बाधा या क्षित कािरत जुमार्ना ।
करना ।

284 िकसी िवषैले पदाथर् से ऐसे बरतना छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो कारावास, या एक
जाए, आिद । हजार रुपए जुमार्ना,
या दोन ।
285 अिग्न या िकसी ज्वलनशील पदाथर् से यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
ऐसे बरतना िजससे मानव जीवन
संकटापन्न हो जाए, आिद ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “यथोक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
157

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286 िकसी िवस्फोटक पदाथर् से उसी पर्कार छह मास के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
बरतना । कारावास, या एक
हजार रुपए जुमार्ना,
या दोन ।
287 िकसी मशीनरी से उसी पर्कार यथोक्त असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
बरतना ।
288 िजस िनमार्ण को िगराने या िजसकी यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
मरम्मत करने का हक पर्दान करने वाला
िकसी िक्त को अिधकार है उसके
िगरने से मानव जीवन को अिधसंभा
संकट से बचाने का उस िक्त ारा
लोप ।
289 अपने कब्जे म के िकसी जीवजन्तु के यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
संबंध म ऐसी वस्था करने का िकसी
िक्त ारा लोप िजससे ऐसे
जीवजन्तु से मानव जीवन को संकट या
घोर उपहित के संकट से बचाव हो ।
290 लोक न्यूसस करना । दो सौ रुपए का असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
जुमार्ना ।
291 न्यूसस बंद करने के ादेश के पश्चात् छह मास के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
उसका चालू रखना । सादा कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
292 अश्लील पुस्तक , आिद का िवकर्य, पर्थम दोषिसि पर यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आिद । दो वषर् के िलए
कारावास और दो
हजार रुपए का
जुमार्ना, और ि तीय
या पश्चात्वत
दोषिसि पर, पांच
वषर् के िलए कारावास
और पांच हजार रुपए
का जुमार्ना ।
293 तरुण िक्तय को अश्लील वस्तु पर्थम दोषिसि पर यथोक्त यथोक्त यथोक्त
का िवकर्य आिद । तीन वषर् के िलए
कारावास और दो
हजार रुपए का
जुमार्ना, और ि तीय
या पश्चात्वत
दोषिसि पर, सात
वषर् के िलए
कारावास और पांज
हजार रुपए का
जुमार्ना ।
294 अश्लील गाने । तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
294क लाटरी कायार्लय रखना । छह मास के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
158

1 2 3 4 5 6
लाटरी संबंधी पर्स्थापना का एक हजार रुपए का असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
पर्काशन । जुमार्ना ।
अध्याय 15—धमर् से संबिं धत अपराध
295 िक्तय के िकसी वगर् के धमर् का दो वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
अपमान करने के आशय से उपासना के कारावास, या
स्थान अथवा िकसी पिवतर् वस्तु को जुमार्ना, या दोन ।
नष्ट, नुकसान-गर्स्त या अपिवतर्
करना ।
295क िकसी वगर् के धमर् या धािमक िवश्वास तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
का िव ष
े त: अपमान । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
296 धािमक उपासना म लगे हुए जमाव म एक वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
िवघ्न कािरत करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
297 िकसी िक्त की भावना को ठे स यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पहुंचाने के या िकसी िक्त के धमर्
का अपमान करने के आशय से
उपासना स्थान या कबर्स्थान म
अितचार करना या अंत्येिष्ट म िवघ्न
कािरत करना या मानव शव की
अवहेलना करना ।
298 िकसी िक्त की धािमक भावना यथोक्त असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
को ठे स पहुंचाने के आशय से उनकी
शर्वणगोचरता म कोई शब्द उच्चािरत
करना या कोई ध्विन करना अथवा
उसकी दृिष्टगोचरता म कोई अंग-
िवक्षेप करना या कोई वस्तु रखना ।
अध्याय 16—मानव शरीर पर पर्भाव डालने वाला अपराध
302 हत्या । मृत्यु, या आजीवन संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
कारावास और जुमार्ना ।
303 आजीवन कारावास के दंडादेश के मृत्यु । यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अधीन िक्त ारा हत्या ।
304 हत्या की कोिट म न आने वाला आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आपरािधक मानववध, यिद वह कायर्, या दस वषर् के िलए
िजसके ारा मृत्यु कािरत की गई, कारावास और
मृत्यु आिद कािरत करने के आशय से जुमार्ना ।
िकया जाता है ।
यिद वह कायर् इस ज्ञान के साथ िक दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उससे मृत्यु कािरत करना संभा है, कारावास, या
िकन्तु मृत्यु आिद कािरत करने के जुमार्ना, या दोन ।
आशय के िबना, िकया जाता है ।
304क उतावलेपन के या उपेक्षापूणर् कायर् से दो वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
मृत्यु कािरत करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
159

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1
[304ख दहेज मृत्यु । कम से कम सात वषर् के संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय]
िलए कारावास िकतु
जो आजीवन
कारावास तक का हो
सके गा ।
305 िशशु या उन्मत या िवपयर्स्तिचत मृत्यु, या आजीवन यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िक्त या जड़ िक्त या म ता की कारावास, या दस
अवस्था म िक्त ारा आत्महत्या वषर् के िलए
िकए जाने का दुष्पर्ेरण । कारावास और
जुमार्ना ।
306 आत्महत्या िकए जाने का दुष्पर्ेरण । दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
307 हत्या करने का पर्यत्न । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
यिद ऐसे कायर् से िकसी िक्त को आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उपहित कािरत हो जाए । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
आजीवन िस दोष ारा हत्या का मृत्यु या दस वषर् के यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पर्यत्न, यिद उपहित कािरत हो िलए कारावास और
जाए । जुमार्ना ।
308 आपरािधक मानववध करने का तीन वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
पर्यत्न । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
यिद ऐसे कायर् ारा िकसी िक्त को सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उपहित कािरत हो जाए । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
309 आत्महत्या करने का पर्यत्न । एक वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
सादा कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
311 ठग होना । आजीवन कारावास यथोक्त अजमानतीय सेशन न्यायालय
और जुमार्ना ।
312 गभर्पात कािरत करना । तीन वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
यिद स्तर्ी स्पन्दनगभार् हो । सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
313 स्तर्ी की सम्मित के िबना गभर्पात आजीवन कारावास, संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
कािरत करना । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।

1
1986 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 11 ारा से अंतःस्थािपत ।
160

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314 गभर्पात कािरत करने के आशय से दस वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय ।
िकए गए कायर् ारा कािरत मृत्यु । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद वह कायर् स्तर्ी की सम्मित के आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िबना िकया जाता है । या यथा उपयुर्क्त ।
315 िशशु का जीिवत पैदा होना रोकने या दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कािरत कारावास, या
करने के आशय से िकया गया कायर् । जुमार्ना, या दोन ।
316 ऐसे कायर् ारा, जो आपरािधक दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
मानववध की कोिट म आता है, िकसी कारावास और
अजीव अजात् िशशु की मृत्यु कािरत जुमार्ना ।
करना ।
317 िशशु के िपता या माता या उसकी सात वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
देखरे ख रखने वाले िक्त ारा बारह कारावास, या
वषर् से कम आयु के िशशु को पूणर्तया जुमार्ना, या दोन ।
पिरत्याग करने के आशय से अरिक्षत
डाल देना ।
318 मृत शरीर के गुप्त यन ारा जन्म दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िछपाना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
323 स्वेच्छया उपहित कािरत करना । एक वषर् के िलए असंज्ञय
े यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या एक
हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
324 खतरनाक आयुध या साधन ारा तीन वषर् के िलए संज्ञेय 1
[अजमानतीय] यथोक्त
स्वेच्छया उपहित कािरत करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
325 स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना । सात वषर् के िलए यथोक्त 1
[जमानतीय] यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
326 खतरनाक आयुध या साधन ारा आजीवन कारावास, यथोक्त अजमानतीय पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
2
[326 अम्ल, आिद का पर्योग करके स्वेच्छया कम से कम दस वषर् संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय । ।
क घोर उपहित कािरत करना । के िलए कारावास
िकतु जो आजीवन
कारावास तक का हो
सके गा और जुमार्ना,
िजसका संदाय
पीिड़त को िकया
जाएगा ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “यथोक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा पर्ितस्थािपत ।
161

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326ख स्वेच्छया अम्ल फकना या फकने का पांच वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय ।
पर्यत्न करना । कारावास िकतु जो ।]
सात वषर् तक का हो
सके गा और जुमार्ना ।
327 सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उ ािपत करने के िलए अथवा कोई कारावास और
बात, जो अवैध है या िजससे अपराध जुमार्ना ।
िकया जाना सुकर होता हो, करने के
िलए मजबूर करने के िलए स्वेच्छया
उपहित कािरत करना ।
328 उपहित कािरत करने के आशय से यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जिरमाकारी ओषिध देना, आिद ।
329 सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
उ ािपत करने के िलए अथवा कोई या दस वषर् के िलए
बात, जो अवैध है या िजससे अपराध कारावास और
का िकया जाना सुकर होता हो, करने जुमार्ना ।
के िलए मजबूर करने के िलए स्वेच्छया
घोर उपहित कािरत करना ।
330 संस्वीकृ ित या जानकारी उ ािपत सात वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
करने के िलए अथवा सम्पि कारावास और
पर्त्यावितत करने के िलए मजबूर करने जुमार्ना ।
के िलए स्वेच्छया उपहित कािरत
करना, आिद ।
331 संस्वीकृ ित या जानकारी उ ािपत दस वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
करने के िलए अथवा सम्पि कारावास और
पर्त्यावितत करने के िलए मजबूर करने जुमार्ना ।
के िलए स्वेच्छया घोर उपहित कािरत
करना, आिद ।
332 लोक सेवक को अपने कतर् से तीन वषर् के िलए यथोक्त 1
[यथोक्त] पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
भयोपरत करने के िलए स्वेच्छया कारावास, या
उपहित कािरत करना । जुमार्ना, या दोन ।
333 लोक सेवक को अपने कतर् से दस वषर् के िलए यथोक्त 2
[यथोक्त] सेशन न्यायालय
भयोपरत करने के िलए स्वेच्छया घोर कारावास और
उपहित कािरत करना । जुमार्ना ।
334 पर्कोपन देने वाले िक्त से िभन्न एक मास के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
िकसी िक्त को उपहित करने का कारावास, या पांच
आशय न रखते हुए गंभीर और सौ रुपए का जुमार्ना,
अचानक पर्कोपन पर स्वेच्छया या दोन ।
उपहित कािरत करना ।
335 पर्कोपन देने वाले िक्त से िभन्न चार वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
िकसी िक्त को उपहित करने का कारावास, या दो
आशय न रखते हुए गंभीर और हजार रुपए का
अचानक पर्कोपन पर घोर उपहित जुमार्ना, या दोन ।
कािरत करना ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “जमानतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “अजमानतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
162

1 2 3 4 5 6
336 कोई कायर् करना िजससे मानव जीवन तीन मास के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
या वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो । कारावास, या ढाई सौ
रुपए का जुमार्ना, या
दोन ।
337 ऐसे कायर् ारा घोर उपहित कािरत छह मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करना िजससे मानव जीवन संकटापन्न कारावास, या पांच
हो, आिद । सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
338 ऐसे कायर् ारा घोर उपहित कािरत दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करना िजससे मानव जीवन संकटापन्न कारावास, या एक
हो, आिद । हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
341 िकसी िक्त का सदोष अवरोध एक मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करना । सादा कारावास, या
पांच सौ रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
342 िकसी िक्त का सदोष पिररोध । एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या एक
हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
343 तीन या अिधक िदन के िलए सदोष दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिररोध । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
344 दस या अिधक िदन के िलए सदोष तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पिररोध । कारावास और
जुमार्ना ।
345 िकसी िक्त को यह जानते हुए सदोष िकसी अन्य धारा के यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
पिररोध म रखना िक उसको छोड़ने के अधीन कारावास के
िलए िरट िनकल चुका है । अितिरक्त दो वषर् के
िलए कारावास ।
346 गुप्त स्थान म सदोष पिररोध । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
347 सम्पि उ ािपत करने के िलए या तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
अवैध कायर् करने के िलए मजबूर करने कारावास और
आिद के पर्योजन के िलए सदोष जुमार्ना ।
पिररोध ।
348 संस्वीकृ ित या जानकारी उ ािपत यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करने या सम्पि आिद को पर्त्यावितत
करने के िलए िववश करने आिद के
पर्योजन के िलए सदोष पिररोध ।
352 गंभीर पर्कोपन होने से अन्यथा हमला तीन मास के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
या आपरािधक बल का पर्योग । कारावास, या पांच
सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
353 लोक सेवक को अपने कतर् के दो वषर् के िलए संज्ञेय 1
[अजमानतीय] कोई मिजस्टर्ेट ।
िनवर्हन से भयोपरत करने के िलए कारावास या
हमला या आपरािधक बल का पर्योग । जुमार्ना, या दोन ।

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 42 ारा “यथोक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
163

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1
[354 स्तर्ी की लज्जा भंग करने के आशय से एक वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट ।
उस पर हमला या आपरािधक बल का कारावास, जो पांच
पर्योग वषर् तक का हो
सके गा और जुमार्ना ।
354क अवांछनीय शारीिरक संस्पशर् और कारावास, जो तीन वषर् संज्ञेय जमानतीय यथोक्त
अगर्िकर्याएं अथवा लिगक संबंध की तक का हो सके गा या
स्वीकृ ित की कोई मांग या अनुरोध जुमार्ना या दोन ।
करने, अश्लील सािहत्य िदखाने की
पर्कृ ित का लिगक उत्पीड़न ।
लिगक आभासी िटप्पणीयां करने की कारावास, जो एक वषर् संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
पर्कृ ित का लिगक उत्पीड़न तक का हो सके गा या
जुमार्ना या दोन ।
354 ख
िववस्तर् करने के आशय से स्तर्ी पर कम से कम तीन वषर् संज्ञेय अजमानतीय यथोक्त
हमला या आपरािधक बल का पर्योग । के िलए कारावास,
िकतु जो सात वषर्
तक का हो सके गा
और जुमार्ना ।
354ग दृश्यरितकता । पर्थम दोषिसि के संज्ञेय जमानतीय यथोक्त
िलए कम से कम एक
वषर् के िलए
कारावास, िकतु जो
तीन वषर् तक का हो
सके गा और जुमार्ना ।
ि तीय या संज्ञेय अजमानतीय यथोक्त
पश्चात्वत
दोषिसि के िलए
कम से कम तीन वषर्
के िलए कारावास
िकतु जो सात वषर्
तक का हो सके गा
और जुमार्ना ।
354घ पीछा करना । पर्थम दोषिसि के संज्ञेय जमानतीय यथोक्त
िलए तीन वषर् तक के
िलए कारावास और
जुमार्ना ।
ि तीय या संज्ञेय अजमानतीय यथोक्त]
पश्चातवत
दोषिसि के िलए
पांच वषर् तक के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
355 गंभीर और अचानक पर्कोपन होने से दो वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय यथोक्त
अन्यथा िकसी िक्त का िनरादर कारावास, या
करने के आशय के उस पर हमला या जुमार्ना, या दोन ।
आपरािधक बल का पर्योग ।
356 िकसी िक्त ारा पहनी हुई या ले यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
जाई जाने वाली सम्पि की चोरी के
पर्यत्न म हमला या आपरािधक बल
का पर्योग ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा पर्ितस्थािपत ।
164

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357 िकसी िक्त का सदोष पिररोध करने एक वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट ।
के पर्यत्न म हमला या आपरािधक बल कारावास, या एक
का पर्योग । हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
358 गंभीर और अचानक पर्कोपन िमलने एक मास के िलए असंज्ञय
े यथोक्त यथोक्त
पर हमला या आपरािधक बल का सादा कारावास, या
पर्योग । दो सौ रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
363 पहरण । सात वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
कारावास और
जुमार्ना ।
363क अपर्ाप्तवय का इसिलए पहरण या दस वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
अपर्ाप्तवय की अिभरक्षा इसिलए कारावास और
अिभपर्ाप्त करना िक ऐसा अपर्ाप्तवय जुमार्ना ।
भीख मांगने के पर्योजन के िलए
िनयोिजत या पर्युक्त िकया जाए ।
अपर्ाप्तवय को इसिलए िवकलांग आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
करना िक ऐसा अपर्ाप्तवय भीख और जुमार्ना ।
मांगने के पर्योजन के िलए िनयोिजत
या पर्युक्त िकया जाए ।
364 हत्या करने के िलए पहरण या आजीवन कारावास, या यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अपहरण । दस वषर् के िलए किठन
कारावास और जुमार्ना ।
1
[364क िफरोती, आिद के िलए पहरण । मृत्यु या आजीवन यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
कारावास, और
जुमार्ना ।
365 िकसी िक्त का गुप्त रीित से और सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट
सदोष पिररोध करने के आशय से कारावास और
पहरण या अपहरण । जुमार्ना ।
366 िकसी स्तर्ी को िववाह करने के िलए दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
िववश करने या भर्ष्ट करने आिद के कारावास और
िलए उसे पहृत या अपहर्त करना। जुमार्ना ।
366क अपर्ाप्तवय लड़की का उपापन । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
366ख िवदेश से लड़की का आयात करना । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
367 िकसी िक्त को घोर उपहित, यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दासत्व, आिद का िवषय बनाने के
उ ेश्य से पहरण या अपहरण ।
368 पहृत िक्त को िछपाना या पहरण या यथोक्त यथोक्त वह न्यायालय
पिररोध म रखना । अपहरण के िलए िजसके ारा
दंड । पहरण या
अपहरण
िवचारणीय है ।
369 िकसी िशशु के शरीर पर से सम्पि सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
लेने के आशय से उस िशशु का कारावास और मिजस्टर्ेट
पहरण या अपहरण । जुमार्ना ।

1
1993 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 4 ारा अंतःस्थािपत ।
165

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1
[370 व्यिक्त का दुव्यार्पार । कम से कम सात वषर् संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
के िलए कारावास,
िकतु जो दस वषर् तक
का हो सके गा और
जुमार्ना ।
एक से अिधक व्यिक्तय का कम से कम दस वषर् यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुव्यार्पार । के िलए कारावास,
िकतु जो आजीवन
कारावास तक का हो
सके गा और जुमार्ना ।
िकसी अवयस्क का दुव्यार्पार । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
एक से अिधक अवयस्क का कम से कम चौदह यथोक्त यथोक्त यथोक्त
दुव्यार्पार । वषर् के िलए
कारावास िकतु जो
आजीवन कारावास
तक का हो सके गा
और जुमार्ना ।
व्यिक्त को एक से अिधक अवसर आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पर अवयस्क के दुव्यार्पार के अपराध िजससे उस व्यिक्त
के िलए िस दोष ठहराया जाना । के शेष पर्ाकृ त
जीवन-काल का
कारावास अिभपर्ेत
होगा और जुमार्ना ।
लोक सेवक या िकसी पुिलस यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अिधकारी का अवयस्क के दुव्यार्पार
म अंतवर्िलत होना ।
370क ऐसे िकसी बालक का शोषण, कम से कम पांच वषर् यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िजसका दुव्यार्पार िकया गया है । के िलए कारावास,
िकतु जो सात वषर्
तक का हो सके गा
और जुमार्ना ।
ऐसे िकसी व्यिक्त का शोषण, कम से कम तीन वषर् यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
िजसका दुव्यार्पार िकया गया है । के िलए कारावास,
िकतु जो पांच वषर्
तक का हो सके गा
और जुमार्ना ।

371 दास का आभ्यािसक ौहार करना । आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
372 वेश्यावृि , आिद के पर्योजन के िलए दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अपर्ाप्तवय को बेचना या भाड़े पर कारावास और
देना । जुमार्ना ।
373 उन्ह पर्योजन के िलए अपर्ाप्तवय यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
को खरीदना या उसका कब्जा
अिभपर्ाप्त करना ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा पर्ितस्थािपत ।
166

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374 िविधिवरु अिनवायर् शर्म । एक वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
1
[376 बलात्संग । कम से कम सात वषर् यथोक्त अजमानतीय सेशन न्यायालय
के िलए कठोर
कारावास, िकतु जो
आजीवन कारावास
तक का हो सके गा और
जुमार्ना ।

िकसी पुिलस अिधकारी ारा या कम से कम दस वषर् यथोक्त यथोक्त यथोक्त


िकसी लोक सेवक या सशस्तर् बल के के िलए कठोर
सदस्य ारा या िकसी जेल, कारावास, िकतु जो
पर्ितपर्ेषण-गृह या अिभरक्षा के अन्य आजीवन कारावास,
स्थान या िस्तर्य या बालक की तक का हो सके गा
िकसी संस्था के पर्बंधतंतर् या िजससे उस व्यिक्त
कमर्चािरवृंद म के िकसी व्यिक्त ारा के शेष पर्ाकृ त
या िकसी अस्पताल के पर्बंधतंतर् या जीवनकाल का
कमर्चािरवृंद म के िकसी व्यिक्त ारा कारावास अिभपर्ेत
बलात्संग और उस व्यिक्त के पर्ित, होगा और जुमार्ना
िजससे बलात्संग िकया गया है न्यास
या पर्ािधकारी की िस्थित म िकसी
व्यिक्त ारा या उस व्यिक्त के ,
िजससे बलात्संग िकया गया है, िकसी
िनकट नातेदार ारा िकया गया
बलात्संग ।
376क बलात्संग का अपराध करने और ऐसी कम से कम बीस वषर् यथोक्त यथोक्त यथोक्त
क्षित पहुंचाने वाला व्यिक्त िजससे के िलए कठोर
स्तर्ी की मृत्यु कािरत हो जाती है या कारावास, िकतु जो
उसकी लगातार िवकृ तशील दशा हो आजीवन कारावास,
जाती है । तक का हो सके गा
िजससे उस व्यिक्त
के शेष पर्ाकृ त जीवन
काल के िलए
कारावास अिभपर्ेत
होगा या मृत्युदडं ।
376ख पित ारा अपनी पत्नी के साथ कम से कम दो वषर् के संज्ञेय (िकतु जमानतीय यथोक्त
पृथक्ककरण के दौरान मैथुन । िलए कारावास, िकतु के वल पीिड़ता
जो सात वषर् तक का ारा पिरवाद
हो सके गा और करने पर)
जुमार्ना ।

यथोक्त
376ग पर्ािधकार म िकसी व्यिक्त ारा कम से कम पांच वषर् संज्ञेय अजमानतीय
मैथुन । के िलए कठोर
कारावास िकतु जो
दस वषर् तक का हो
सके गा

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा पर्ितस्थािपत ।
167

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376घ सामूिहक बलात्संग कम से कम बीस वषर् संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
के िलए कठारे
कारावास, िकतु जो
आजीवन कारावास
तक का हो सके गा
िजससे उस व्यिक्त
के शेष पर्ाकृ त
जीवनकाल के िलए
कारावास अिभपर्ेत
होगा, और जुमार्ना,
िजसका संदाय
पीिड़ता को िकया
जाएगा ।
376ङ पुनरावृि कतार् अपराधी आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त]
िजससे उस व्यिक्त
के शेष पर्ाकृ त
जीवनकाल के िलए
कारावास अिभपर्ेत
होगा या मृत्युदडं ।
1
[377 पर्कृ ित िवरु अपराध । आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
या दस वषर् के िलए मिजस्टर्ेट]
कारावास और
जुमार्ना ।
अध्याय 17—सम्पि के िवरु अपराध
379 चोरी । तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
380 िनमार्ण, तम्बू या जलयान म चोरी । सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
381 िलिपक या सेवक ारा स्वामी के या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िनयोक्ता के कब्जे की सम्पि की
चोरी ।
382 चोरी करने के िलए या उसके करने के दस वषर् के िलए यथोक्त पर्थम वगर्
पश्चात् िनकल भागने के िलए या उसके किठन कारावास और मिजस्टर्ेट
ारा ली गई सम्पि को रखे रखने के जुमार्ना ।
िलए मृत्यु या उपहित कािरत करने या
अवरोध कािरत करने अथवा मृत्यु या
उपहित या अवरोध का भय कािरत
करने की तैयारी के पश्चात्, चोरी ।

384 उ ापन । तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट


कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
385 उ ापन करने के िलए क्षित के भय म दो वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
डालना या डालने का पर्यत्न करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।

1
2001 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 और दूसरी अनुसूची ारा धारा 377 की पर्िविष्टय के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
168

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386 िकसी िक्त को मृत्यु या घोर उपहित के दस वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
भय म डालकर उ ापन । कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
387 उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
मृत्यु या घोर उपहित के भय म डालना कारावास और मिजस्टर्ेट
या डालने का पर्यत्न करना । जुमार्ना ।
388 मृत्यु, आजीवन कारावास, या दस वषर् के दस वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
िलए कारावास से दंडनीय अपराध का कारावास और
अिभयोग लगाने की धमकी देकर जुमार्ना ।
उ ापन ।
यिद वह अपराध, िजसकी धमकी दी गई आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
हो, पर्कृ ित िवरु अपराध हो ।
389 उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वषर् के कारावास और
िलए कारावास से दंडनीय अपराध का जुमार्ना ।
अिभयोग लगाने के भय म डालना ।
यिद अपराध पर्कृ ित िवरु अपराध है । आजीवन कारावास यथोक्त यथोक्त यथोक्त
392 लूट । दस वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
किठन कारावास और
जुमार्ना ।
यिद राजमागर् पर सूयार्स्त और सूय दय चौदह वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के बीच की जाती है । किठन कारावास और
जुमार्ना ।
393 लूट करने का पर्यत्न । सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
किठन कारावास और
जुमार्ना ।
394 लूट करने म या करने के पर्यत्न म िक्त आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
का या ऐसी लूट म संयुक्त तौर से या दस वषर् के िलए
सम्पृक्त िकसी अन्य िक्त का स्वेच्छया किठन कारावास और
उपहित करना । जुमार्ना ।
395 डकै ती । यथोक्त यथोक्त यथोक्त
397 मृत्यु, या घोर उपहित कािरत करने के सात वषर् से कम न यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पर्यत्न के साथ लूट या डकै ती । होने वाला किठन
कारावास ।

398 घातक आयुध से सिज्जत होकर लूट या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
डकै ती करने का पर्यत्न ।
399 डकै ती करने के िलए तैयारी करना । दस वषर् के िलए किठन यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
400 अभ्यासत: डकै ती करने के पर्योजन से आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सहयुक्त िक्तय की टोली का होना । या दस वषर् के िलए
किठन कारावास और
जुमार्ना ।
401 अभ्यासत: चोरी करने के िलए सहयुक्त सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
िक्तय की घूमती-िफरती टोली का किठन कारावास और मिजस्टर्ेट
होना । जुमार्ना ।
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402 डकै ती करने के पर्योजन के िलए एकितर्त सात वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय सेशन
पांच या अिधक िक्तय म से एक किठन कारावास और न्यायालय
होना । जुमार्ना
403 जंगम संपि का बेईमानी से दुिविनयोग दो वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
या उसे अपने उपयोग के िलए कारावास, या
संपिरवितत कर लेना । जुमार्ना, या दोन ।
404 िकसी सम्पि का, यह जानते हुए तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
बेईमानी से दुिविनयोग िक कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
वह मृत िक्त के कब्जे म उसकी मृत्यु के
समय थी और तब से वह उसके वैध रूप
से हकदार िक्त के कब्जे म नह
रही है ।
405 यिद वह अपराध मृत िक्त ारा सात वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय पर्थम वगर्
िनयोिजत िलिपक या िक्त ारा िकया कारावास और मिजस्टर्ेट
जाता है । जुमार्ना ।
406 आपरािधक न्यासभंग । तीन वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
407 वाहक, घाटवाल, आिद ारा सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
आपरािधक न्यासभंग । कारावास और
जुमार्ना ।
408 िलिपक या सेवक ारा आपरािधक यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
न्यासभंग ।
409 लोक सेवक ारा या बकर, ापारी या आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अिभकतार्, आिद ारा आपरािधक या दस वषर् के िलए
न्यासभंग । कारावास और
जुमार्ना ।
411 चुराई हुई संपि को उसे चुराई हुई तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
जानते हुए बेईमानी से पर्ाप्त करना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
412 चुराई हुई सम्पि को यह जानते हुए िक आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त सेशन
वह डकै ती ारा पर्ाप्त की गई है, या दस वषर् के िलए न्यायालय
अिभपर्ात करना । किठन कारावास और
जुमार्ना ।
413 चुराई हुई सम्पि का अभ्यासत: ापार आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करना । या दस वषर् के िलए
कारावास और
जुमार्ना ।
414 चुराई हुई सम्पि को, यह जानते हुए िक तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
वह चुराई हुई है, िछपाने म या यिनत कारावास, या
करने म सहायता करना । जुमार्ना, या दोन ।
417 छल । एक वषर् के िलए अंसज्ञेय जमानतीय यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
170

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418 उस िक्त से छल करना िजसका िहत तीन वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
संरिक्षत रखने के िलए अपराधी या तो कारावास, या
िविध ारा या वैध संिवदा ारा आब जुमार्ना, या दोन ।
था ।
419 पर्ितरूपेण ारा छल । यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
420 छल करना और त ारा सम्पि पिरद सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय पर्थम वगर्
करने के िलए बेईमानी से उपर्ेिरत करना कारावास और मिजस्टर्ेट
अथवा त ारा बेईमानी से मूल्यवान जुमार्ना ।
पर्ितभूित को रच देना, पिरवितत कर
देना या नष्ट कर देना ।
421 लेनदार म िवतरण िनवािरत करने के दो वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
िलए सम्पि का कपटपूवर्क अपसारण कारावास, या
या िछपाना, आिद । जुमार्ना, या दोन ।
422 अपराधी का अपने को शोध्य ऋण या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
मांग का लेनदार के िलए उपलब्ध
िकया जाना कपटपूवर्क िनवािरत
करना ।
423 अन्तरण के ऐसे िवलेख का, िजसम यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पर्ितफल के संबंध म िमथ्या कथन
अंतिवष्ट है, कपटपूवर्क िनष्पादन ।
424 अपनी या िकसी अन्य िक्त की यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सम्पि का कपटपूवर्क अपसारण या
िछपाया जाना अथवा उसके करने म
सहायता करना अथवा िजस मांग या
दावे का वह हकदार है उसे बेईमानी से
छोड़ देना ।
426 िरिष्ट । तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
427 िरिष्ट और त ारा पचास रुपए या दो वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
उससे अिधक रकम का नुकसान कािरत कारावास, या
करना । जुमार्ना, या दोन ।
428 दस रुपए या उससे अिधक मूल्य के िकसी यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
जीव-जन्तु को वध करने, िवष देने,
िवकलांग करने या िनरुपयोगी बनाने
ारा िरिष्ट ।
429 िकसी मूल्य के हाथी, ऊंट, घोड़े, आिद पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
को अथवा पचास रुपए या उससे अिधक कारावास, या मिजस्टर्ेट
मूल्य के िकसी भी अन्य जीव-जन्तु को जुमार्ना, या दोन ।
वध करने, िवष देन,े िवकलांग करने या
िनरुपयोगी बनाने ारा िरिष्ट ।
430 कृ िषक पर्योजन , आिद के िलए जल यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पर्दाय म कमी कािरत करने ारा
िरिष्ट ।
171

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431 लोक सड़क, पुल, ना नदी अथवा पांच वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
ना जल सरणी को क्षित पहुंचाने और कारावास, या मिजस्टर्ेट
उसे यातर्ा या संपि पर्वहण के िलए जुमार्ना, या दोन ।
अगम्य या कम िनरापद बना देने ारा
िरिष्ट ।
432 लोक जलिनकास म नुकसानपर्द यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जलप्लावन या बाधा कािरत करने ारा
िरिष्ट ।
433 िकसी दीपगृह या समुदर्ी िचह्न को नष्ट सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करने या हटाने या कम उपयोगी बनाने कारावास, या
अथवा िकसी िमथ्या पर्काश को पर्दिशत जुमार्ना, या दोन ।
करने ारा िरिष्ट ।
434 लोक पर्ािधकारी ारा लगाए गए भूिम एक वषर् के िलए असंज्ञेय यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
िचह्न को नष्ट करने या हटाने आिद कारावास, या
ारा िरिष्ट । जुमार्ना, या दोन ।
435 सौ रुपए या उससे अिधक का, अथवा सात वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त पर्थम वगर्
कृ िष उपज की दशा म दस रुपए या कारावास और मिजस्टर्ेट
उससे अिधक का नुकसान कािरत करने जुमार्ना ।
के आशय से अिग्न या िवस्फोटक पदाथर्
ारा िरिष्ट ।
436 गृह, आिद को नष्ट करने के आशय से आजीवन कारावास, यथोक्त अजमानतीय सेशन
अिग्न या िवस्फोटक पदाथर् ारा या दस वषर् के िलए न्यायालय
िरिष्ट । कारावास और
जुमार्ना ।
437 तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने कारावास और
के आशय से िरिष्ट । जुमार्ना ।
438 िपछली धारा म विणत िरिष्ट जब आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
अिग्न या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा या दस वषर् के िलए
की गई हो । कारावास और
जुमार्ना ।
439 चोरी आिद करने के आशय से से जलयान क दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िकनारे पर चढ़ा देना । कारावास और
जुमार्ना ।
440 मृत्यु या उपहित कािरत करने, आिद के पांच वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय पर्थम वगर्
िलए की गई तैयारी के पश्चात् की गई कारावास और मिजस्टर्ेट
िरिष्ट । जुमार्ना ।
447 आपरािधक अितचार । तीन मास के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
कारावास, या पांच
सौ रुपए का जुमार्ना,
या दोन ।
448 गृह-अितचार । एक वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
कारावास, या एक
हजार रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
172

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449 मृत्यु से दंडनीय अपराध को करने के आजीवन कारावास, संज्ञेय अजमानतीय सेशन
िलए गृह-अितचार । या दस वषर् के िलए न्यायालय
किठन कारावास और
जुमार्ना ।
450 आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
को करने के िलए गृह-अितचार । कारावास और
जुमार्ना ।
451 कारावास से दंडनीय अपराध को करने के दो वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
िलए गृह-अितचार । कारावास और
जुमार्ना ।
यिद वह अपराध चोरी है । सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
452 उपहित कािरत करने, हमला करने, आिद यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
की तैयारी के पश्चात् गृह-अितचार ।
453 पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन । दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
454 कारावास से दंडनीय अपराध करने के तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िलए पर्च्छन्न गृह-अितचार या कारावास और
गृह-भेदन । जुमार्ना ।
यिद वह अपराध चोरी है । दस वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
कारावास और मिजस्टर्ेट
जुमार्ना ।
455 उपहित कािरत करने, हमला, आिद की यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
तैयारी के पश्चात् पर्च्छन्न गृह-अितचार
या गृह-भेदन ।
456 रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
गृह-भेदन । कारावास और
जुमार्ना ।
457 कारावास से दंडनीय अपराध करने के पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
िलए रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या कारावास और मिजस्टर्ेट
रातर्ौ गृह-भेदन । जुमार्ना ।
यिद वह अपराध चोरी है । चौदह वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
458 उपहित कािरत करने, आिद की तैयारी के यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
पश्चात् रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या
रातर्ौ गृह-भेदन ।
459 पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन करते आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त सेशन
समय कािरत घोर उपहित । या दस वषर् के िलए न्यायालय
कारावास और
जुमार्ना ।
460 रातर्ौ गृह-भेदन, आिद म संयुक्तत: यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सम्पृक्त समस्त िक्तय म से एक ारा
कािरत मृत्यु या घोर उपहित ।
173

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461 ऐसे बंद पातर् को, िजसम सम्पि है या दो वषर् के िलए संज्ञेय अजमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
समझी जाती है, बेईमानी से तोड़ कर कारावास, या
खोलना या उपबंिधत करना । जुमार्ना, या दोन ।
462 ऐसे बंद पातर् को, िजसम सम्पि है या तीन वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
समझी जाती है, न्यस्त िकए जाने पर कारावास, या
कपटपूवर्क खोलना । जुमार्ना, या दोन ।
अध्याय 18—दस्तावेज और सम्पि िचह्न संबध
ं ी अपराध
465 कू टरचना । दो वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
466 न्यायालय के अिभलेख या जन्म के सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
रिजस्टर आिद की, जो लोक सेवक कारावास, या
ारा रखा जाता है, कू टरचना । जुमार्ना, या दोन ।
467 मूल्यवान पर्ितभूित, िवल या िकसी आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
मूल्यवान पर्ितभूित की रचना या या दस वषर् के िलए
अन्तरण के पर्ािधकार, अथवा िकसी कारावास और
धन आिद को पर्ाप्त करने के पर्ािधकार जुमार्ना ।
की कू टरचना ।
जब मूल्यवान पर्ितभूित के न्दर्ीय यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
सरकार का वचनपतर् है ।
468 छल के पर्योजन के िलए कू टरचना । सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कारावास और
जुमार्ना ।
469 िकसी िक्त की ख्याित को अपहािन तीन वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
पहुंचाने के पर्योजन से या यह संभा कारावास और मिजस्टर्ेट
जानते हुए िक इस पर्योजन से उसका जुमार्ना ।
उपयोग िकया जाएगा, की गई
कू टरचना ।
471 कू टरिचत दस्तावेज को, िजसके बारे ऐसी दस्तावेज की यथोक्त यथोक्त यथोक्त
म ज्ञात है िक वह कू टरिचत है, कू टरचना के िलए
असली के रूप म उपयोग म लाना । दंड ।
जब कू टरिचत दस्तावेज के न्दर्ीय यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सरकार का वचनपतर् है ।
472 भारतीय दंड संिहता की धारा 467 आजीवन कारावास, यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के अधीन दंडनीय कू टरचना करने के या सात वषर् के िलए
आशय से, मुदर्ा, प ी, आिद बनाना कारावास और
या उनकी कू टकृ ित तैयार करना जुमार्ना ।
अथवा िकसी ऐसी मुदर्ा, प ी, आिद
को, उसे कू टकृ त जानते हुए, वैसे
आशय से अपने कब्जे म रखना ।
473 भारतीय दंड संिहता की धारा 467 सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
के अन्यथा दंडनीय कू टरचना करने के कारावास और
आशय से, मुदर्ा, प ी, आिद बनाना जुमार्ना ।
या उनकी कू टकृ ित करना अथवा
िकसी ऐसी मुदर्ा, प ी, आिद को, उसे
कू टकृ त जानते हुए, वैसे आशय से
अपने कब्जे म रखना ।
174

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474 िकसी दस्तावेज को, उसे कू ट- रिचत सात वषर् के िलए संज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
जानते हुए इस आशय से िक उसे कारावास और मिजस्टर्ेट
असली के रूप म उपयोग म लाया जुमार्ना ।
जाए अपने कब्जे म रखना, यिद वह
दस्तावेज भारतीय दंड संिहता की
धारा 466 म विणत भांित की हो ।
यिद वह दस्तावेज भारतीय दंड आजीवन कारावास, असंज्ञेय यथोक्त यथोक्त
संिहता की धारा 467 म विणत भांित या सात वषर् के िलए
की हो । कारावास और
जुमार्ना ।
475 भारतीय दंड संिहता की धारा 467 म यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
विणत दस्तावेज के अिधपर्माणीकरण
के िलए उपयोग म लाई जाने वाली
अिभलक्षणा या िचह्न की कू टकृ ित
बनाना या कू टकृ त िचह्न युक्त पदाथर्
को कब्जे म रखना ।
476 भारतीय दंड संिहता की धारा 467 म सात वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
विणत दस्तावेज से िभन्न दस्तावेज कारावास और
के अिधपर्माणी- करण के िलए जुमार्ना ।
उपयोग म लाई जाने वाली
अिभलक्षणा या िचह्न की कू टकृ ित
बनाना या कू टकृ त िचह्न युक्त पदाथर्
को कब्जे म रखना ।
477 िवल, आिद को कपटपूवर्क नष्ट या आजीवन कारावास असंज्ञय
े अजमानतीय पर्थम वगर्
िवरूिपत करना या उसे नष्ट या या सात वषर् के िलए मिजस्टर्ेट
िवरूिपत करने का पर्यत्न करना, या कारावास और
िछपाना । जुमार्ना ।
477क लेखा का िमथ्याकरण । सात वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
482 िमथ्या सम्पि िचह्न का इस आशय एक वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
से उपयोग करना िक िकसी िक्त को कारावास, या
पर्वंिचत करे या क्षित करे । जुमार्ना, या दोन ।
483 अन्य िक्त ारा उपयोग म लाए गए दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सम्पि िचह्न का इस आशय से कारावास, या
कू टकरण िक नुकसान क्षित जुमार्ना, या दोन ।
कािरत हो ।
484 लोक सेवक ारा उपयोग म लाए गए तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
सम्पि िचह्न का या िकसी सम्पि कारावास और मिजस्टर्ेट
के िविनमार्ण, क्वािलटी आिद का जुमार्ना ।
ोतन करने वाले िकसी िचह्न का,
जो लोक सेवक ारा उपयोग म लाया
जाता हो, कू टकरण ।
485 िकसी लोक या पर्ाइवेट सम्पि िचह्न तीन वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय पर्थम वगर्
के कू टकरण के िलए कोई डाई, प ी, कारावास, या मिजस्टर्ेट
या अन्य उपकरण कपटपूवर्क बनाना जुमार्ना, या दोन ।
या अपने कब्जे म रखना ।
175

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486 कू टकृ त सम्पि िचह्न से िचिह्नत एक वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
माल का जानते हुए िवकर्य । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
487 िकसी पैकेज या पातर् पर, िजसम तीन वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
माल रखा हुआ हो, इस आशय से कारावास, या
िमथ्या िचह्न कपटपूवर्क बनाना िक जुमार्ना, या दोन ।
यह िवश्वास कािरत हो जाए िक
उसम ऐसा माल है जो उसम नह है,
आिद ।
488 िकसी ऐसे िमथ्या िचह्न का उपयोग यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
करना ।
489 क्षित कािरत करने के आशय से िकसी एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
सम्पि िचह्न को िमटाना, नष्ट कारावास, या
करना या िवरूिपत करना । जुमार्ना, या दोन ।
489क करसी नोट या बक नोट का आजीवन कारावास, संज्ञेय अजमानतीय सेशन
कू टकरण । या दस वषर् के िलए न्यायालय
कारावास और
जुमार्ना ।
489ख कू टरिचत या कू टकृ त करसी नोट या यथोक्त यथोक्त यथोक्त यथोक्त
बक नोट को असली के रूप म उपयोग
म लाना ।
489ग कू टरिचत या कू टकृ त करसी नोट या सात वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
बक नोट को कब्जे म रखना । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
489घ करसी नोट या बक नोट की आजीवन कारावास, यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
कू टरचना या कू टकरण के िलए या दस वषर् के िलए
मशीनरी, उपकरण या सामगर्ी कारावास और
बनाना या कब्जे म रखना । जुमार्ना ।
489ङ करसी नोट या बक नोट से सादृश्य एक सौ रुपए का असंज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
रखने वाली दस्तावेज की रचना या जुमार्ना ।
उपयोग ।
490 मुदर्क का नाम और पता बताने से दो सौ रुपए का यथोक्त यथोक्त यथोक्त
इनकार पर । जुमार्ना ।
अध्याय 19—सेवा संिवदा का आपरािधक भंग

मुदर्क का नाम और पता बताने से दो सौ रुपए का असंज्ञेय जमानतीय कोई


इं कार पर । जुमार्ना मिजस्टर्ेट
अध्याय 20—िववाह संबध
ं ी अपराध
493 पुरुष ारा स्तर्ी को, जो उससे दस वषर् के िलए असंज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
िविधपूवर्क िववािहत नह है, कारावास और मिजस्टर्ेट
पर्वंचना से िवश्वास कािरत करके िक जुमार्ना ।
वह उससे िविधपूवर्क िववािहत है,
उस िवश्वास म उससे सहवास
करना ।
494 पित या पत्नी के जीवनकाल म पुनः सात वषर् के िलए यथोक्त जमानतीय यथोक्त
िववाह करना । कारावास और
जुमार्ना ।
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495 वही अपराध पूववर् त िववाह को उस दस वषर् के िलए असंज्ञेय अजमानतीय पर्थम वगर्
िक्त से िछपाकर, िजसके साथ कारावास और मिजस्टर्ेट
पश्चात्वत िववाह िकया जाता है । जुमार्ना ।
496 कपटपूणर् आशय से िववािहत होने के सात वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
कमर् को यह जानते हुए िकसी िक्त कारावास और
ारा पूरा िकया जाना िक त ारा वह जुमार्ना ।
िविधपूवर्क िववािहत नह हुआ है ।
497 जारकमर् । पांच वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
498 िववािहत स्तर्ी को आपरािधक आशय दो वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
से फु सलाकर ले जाना या िनरु कारावास, या
रखना । जुमार्ना, या दोन ।
1
[अध्याय 20क—पित या पित के नातेदार ारा कर्ूरता के िवषय म

498क िकसी िववािहत स्तर्ी के पर्ित कर्ूरता तीन वषर् के िलए संज्ञेय यिद अजमानतीय पर्थम वगर्
करने के िलए दंड । कारावास और अपराध िकए मिजस्टर्ेट]
जुमार्ना । जाने से संबंिधत
इि ला पुिलस
थाने के
भारसाधक
अिधकारी को
अपराध से
िथत िक्त
ारा या रक्त,
िववाह अथवा
द क गर्हण
ारा उससे
संबंिधत िकसी
िक्त ारा या
यिद कोई ऐसा
नातेदार नह है
तो ऐसे वगर् या
पर्वगर् के िकसी
लोक सेवक
ारा जो राज्य
सरकार ारा
अिधसूिचत
िकया जाए, दी
गई है ।
अध्याय 21—मानहािन
500 राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या राज्य के दो वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े जमानतीय सेशन न्यायालय
राज्यपाल या संघ राज्यक्षेतर् के कारावास, या
पर्शासक या मंतर्ी के िवरु मानहािन जुमार्ना, या दोन ।
जो उसके लोककृ त्य के िनवर्हन म
उसके आचरण के बारे म हो जब लोक
अिभयोजक ने पिरवाद संिस्थत िकया
हो ।

1
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 6 ारा अंतःस्थािपत ।
177

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िकसी अन्य मामले म मानहािन । दो वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े जमानतीय सेशन न्यायालय
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
(क) राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या राज्य के यथोक्त यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय
राज्यपाल या संघ राज्यक्षेतर् के
पर्शासक या मंतर्ी के िवरु
मानहािनकारक जानते हुए ऐसी बात
को मुिदर्त या उत्कीणर् करना जो उसके
लोककृ त्य के िनवर्हन म उसके
आचरण के बारे म हो, जब लोक
अिभयोजक ने पिरवाद संिस्थत
िकया हो ।
(ख) िकसी अन्य मामले म मानहािन- यथोक्त यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
कारक जानते हुए, िकसी बात को मिजस्टर्ेट
मुिदर्त या उत्कीणर् करना ।

502(क) मानहािनकारक िवषय अन्तिवष्ट यथोक्त यथोक्त यथोक्त सेशन न्यायालय


रखने वाले मुिदर्त या उत्कीणर् पदाथर्
का, यह जानते हुए िवकर्य िक उनम
राष्टर्पित या उपराष्टर्पित या राज्य
के राज्यपाल या संघ राज्यक्षेतर् के
पर्शासक या मंतर्ी के िवरु उसके
लोककृ त्य के िनवर्हन म उसके
आचरण के बारे म ऐसा िवषय
अंतिवष्ट है, जब लोक अिभयोजक ने
पिरवाद संिस्थत िकया हो ।
(ख) िकसी अन्य मामले म मानहािन- दो वषर् के िलए सादा असंज्ञय
े जमानतीय पर्थम वगर्
कारक बात को अंतिवष्ट रखने वाले कारावास, या मिजस्टर्ेट
मुिदर्त या उत्कीणर् पदाथर् का यह जुमार्ना, या दोन ।
जानते हुए िवकर्य िक उसम ऐसा
िवषय अंतिवष्ट है ।
अध्याय 22—आपरािधक अिभतर्ास, अपमान और क्षोभ
504 लोक-शांित भंग कराने को पर्कोिपत दो वषर् के िलए असंज्ञय
े जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
करने के आशय से अपमान । कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
505 िमथ्या कथन, जनशर्ुित, आिद को इस तीन वषर् के िलए यथोक्त अजमानतीय यथोक्त
आशय से पिरचािलत करना िक कारावास, या
िवदर्ोह हो अथवा लोक-शािन्त के जुमार्ना, या दोन ।
िवरु अपराध हो ।
िमथ्या कथन, जनशर्ुित, आिद, इस यथोक्त संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
आशय से िक िविभन्न वग के बीच
शतर्ुता, घृणा या वैमनस्य पैदा हो ।
पूजा के स्थान आिद म िकया गया पांच वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त यथोक्त
िमथ्या कथन, जनशर्ुित, आिद इस कारावास, या
आशय से िक शतर्ुता, घृणा या जुमार्ना ।
वैमनस्य पैदा हो ।
506 आपरािधक अिभतर्ास । दो वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय यथोक्त
कारावास, या
जुमार्ना, या दोन ।
178

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यिद धमकी, मृत्यु या घोर उपहित सात वषर् के िलए असंज्ञेय जमानतीय पर्थम वगर्
कािरत करने, आिद की हो । कारावास, या मिजस्टर्ेट
जुमार्ना, या दोन ।
507 अनाम संसूचना ारा अथवा वह ऊपर की धारा के यथोक्त यथोक्त यथोक्त
धमकी कहां से आती है उसके िछपाने अधीन दंड के
की पूवार्वधानी करके िकया गया अितिरक्त, दो वषर् के
आपरािधक अिभतर्ास । िलए कारावास ।
508 िक्त को यह िवश्वास करने के िलए एक वषर् के िलए यथोक्त यथोक्त कोई मिजस्टर्ेट
उपर्ेिरत करके िक वह दैवी अपर्साद कारावास, या
का भाजन होगा, कराया गया कायर् । जुमार्ना, या दोन ।
509 स्तर्ी की लज्जा का अनादर करने के 1
[तीन वषर् के िलए संज्ञेय यथोक्त यथोक्त
आशय से कोई शब्द कहना या कोई सादा कारावास और
अंगिवक्षेप करना, आिद । जुमार्ना ।]
510 म ता की हालत म लोक स्थान, चौबीस घंटे के िलए असंज्ञेय यथोक्त यथोक्त
आिद म पर्वेश करना और िकसी सादा कारावास, या
िक्त को क्षोभ कािरत करना । दस रुपए का
जुमार्ना, या दोन ।
अध्याय 23—अपराध को करने के पर्यत्न
511 आजीवन कारावास या कारावास से आजीवन कारावास इसके अनुसार इसके अनुसार वह न्यायालय
दंडनीय अपराध को करने का पर्यत्न या उस दीघर्तम िक वह िक वह अपराध िजसके ारा िक
करना और ऐसे पर्यत्न म ऐसे अपराध अविध के आधे से अपराध संज्ञेय िजसका पर्यितत अपराध
के िकए जाने की दशा म कोई कायर् अिधक न होने वाला है या अपराधी ारा िवचारणीय है ।
करना । कारावास जो उस असंज्ञेय । पर्यत्न िकया
अपराध के िलए गया है
उपबंिधत है, या जमानतीय है या
जुमार्ना, या दोन । नह ।
II—अन्य िविधय के िवरु अपराध का वग करण

अपराध संज्ञेय या असंज्ञेय जमानतीय या अजमानतीय िकसी न्यायालय


ारा िवचारणीय
है
यिद मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वषर् से संज्ञेय अजमानतीय सेशन न्यायालय
अिधक के िलए कारावास से दंडनीय है ।
यिद तीन वषर् और उससे अिधक िकतु सात वषर् से यथोक्त यथोक्त पर्थम वगर्
अनिधक के िलए कारावास से दंडनीय है । मिजस्टर्ेट
यिद तीन वषर् से कम के िलए कारावास या के वल असंज्ञेय जमानतीय कोई मिजस्टर्ेट
जुमार्ने से दंडनीय है ।

1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 24 ारा पर्ितस्थािपत ।
179

ि तीय अनुसूची
(धारा 476 देिखए)

पर्रूप सं० 1
अिभयुक्त िक्त को समन
(धारा 61 देिखए)
पर्ेिषती—
.....................………………………………………………………….(अिभयुक्त का नाम और पता)
………………………………………………………(आरोिपत अपराध संक्षप े म िलिखए) के आरोप का उ र देने के िलए
आपका हािजर होना आवश्यक है, इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप स्वयं (या, यथािस्थित, प्लीडर ारा)
……………………………………….के ……………………(मिजस्टर्ेट) के समक्ष तारीख………………….को हािजर ह ।
इसम चूक नह होनी चािहए ।

ता०………………..
(न्यायालय की मुदर्ा) (हस्ताक्षर)
———

पर्रूप सं० 2
िगरफ्तारी का वारण्ट
(धारा 70 देिखए)
पर्ेिषती—(उस िक्त का या उन िक्तय के नाम और पदनाम िजसे या िजन्ह वारण्ट िनष्पािदत करना है)
............................................................................(पता) के …………...................................................(अिभयुक्त का नाम) पर
...............................................................(अपराध िलिखए) के अपराध का आरोप है; इसिलए आपको इसके ारा िनदेश िदया जाता
है िक आप उक्त ..............................................................................................को िगरफ्तार कर और मेरे समक्ष पेश कर । इसम
चूक नह होनी चािहए ।

ता०..........................
(न्यायालय की मुदर्ा) (हस्ताक्षर)
______
(धारा 71 देिखए)
यह वारण्ट िनम्निलिखत रूप से पृष्ठांिकत िकया जा सके गा :—
यिद उक्त ....................................तारीख................................................…को मेरे समक्ष हािजर होने के िलए और
जब तक मेरे ारा अन्यथा िनिदष्ट न िकया जाए ऐसे हािजर होते रहने के िलए स्वयं ………..........................रुपए की रािश की
जमानत.........................रुपए की रािश के एक पर्ितभू सिहत (या दो पर्ितभु सिहत, िजनम से पर्त्येक …….........................रुपए
की रािश का होगा) दे दे तो उसे छोड़ा जा सकता है ।

ता० .........................
(न्यायालय की मुदर्ा) (हस्ताक्षर)

______
180

पर्रूप सं० 3
वारण्ट के अधीन िगरफ्तारी के पश्चात् बंधपतर् और जमानतपतर्
(धारा 81 देिखए)
म .................................................(नाम) जो िक.............................................................................(पता) का हूं,
.........................के आरोप का उ र देने के िलए हािजर होने के िलए मुझे िववश करने के िलए जारी िकए गए वारण्ट के अधीन
.........................................के िजला मिजस्टर्ेट (या यथािस्थित) के समक्ष लाए जाने पर इसके ारा अपने को आब करता हूं िक उक्त
आरोप का उ र देने के िलए म अगली तारीख.........................को.........................के न्यायालय म हािजर होऊंगा, और जब तक िक
न्यायालय ारा अन्यथा िनिदष्ट न िकया जाए तब तक ऐसे हािजर होता रहूंगा; तथा म अपने को आब करता हूं िक यिद इसम मने कोई
चूक की तो मेरी .........................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ......................... (हस्ताक्षर)

..........................................................................(पता) के उक्त ...........................................(नाम) के िलए म अपने को


इसके ारा इस बात के िलए पर्ितभू घोिषत करता हूं िक वह उस आरोप का उ र देने के िलए, िजसके िलए िक वह िगरफ्तार िकया गया
है, अगली तारीख .........................को .................................................के न्यायालय म …………………..............................................
के समक्ष हािजर होगा, और जब तक न्यायालय ारा अन्यथा िनिदष्ट न िकया जाए, ऐसे हािजर होता रहेगा, और म अपने को आब
करता हूं िक यिद इसम उसने कोई चूक की तो मेरी ......................... रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।

ता० ......................... (हस्ताक्षर)


______

पर्रूप सं० 4
अिभयुक्त िक्त की हािजरी की अपेक्षा करने वाली उ ोषणा
(धारा 82 देिखए)
मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है िक .......................................(नाम, वणर्न और पता) मने भारतीय दंड संिहता की धारा
................................................................ के अधीन दंडनीय,...........................................................................का अपराध िकया
है (या संदह े है िक उसने िकया है), और उस पर जारी िकए गए िगरफ्तारी के वारण्ट को यह िलखकर लौटा िदया गया है िक उक्त
.........................(नाम) िमल नह रहा है, और मुझे समाधानपर्द रूप म यह दिशत कर िदया गया है िक उक्त.........................(नाम)
फरार हो गया है (या उक्त वारण्ट की तामील से बचने के िलए अपने आपको िछपा रहा है) ;
इसिलए इसके ारा उ ोषणा की जाती है िक…………………………………………………………….के उक्त
..........................................................................से अपेक्षा की जाती है िक वह इस न्यायालय के समक्ष (या मेरे समक्ष) उक्त पिरवाद
का उ र देने के िलए ......................... (स्थान) म तारीख......................को हािजर हो ।

ता० ......................... (हस्ताक्षर)


(न्यायालय की मुदर्ा)
______
181

पर्रूप सं० 5
साक्षी की हािजरी की अपेक्षा करने वाली उ ोषणा
(धारा 82, 87 और 90 देिखए)
मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है िक ...........................................(नाम, वणर्न और पता) ने
...........................................................................(अपराध का संक्षेप म वणर्न कीिजए) का अपराध िकया है (या सन्देह है िक उसने
िकया है) और उक्त पिरवाद के िवषय के बारे म परीक्षा की जाने के िलए इस न्यायालय के समक्ष हािजर होने के िलए
.........................(साक्षी का नाम, वणर्न और पता) को िववश करने के िलए वारण्ट जारी िकया जा चुका है, तथा उक्त वारण्ट को यह
िलखकर लौटा िदया गया है िक उक्त .........................(साक्षी का नाम) पर उसकी तामील नह की जा सकती, और मुझे समाधानपर्द
रूप म यह दिशत कर िदया गया है िक वह फरार हो गया है (या उक्त वारण्ट की तामील से बचने के िलए अपने आपको िछपा रहा है) ;
इसिलए इसके ारा उ ोषणा की जाती है िक उक्त ......................(नाम) से अपेक्षा की जाती है िक वह .........................के
उस अपराध के बारे म िजसका पिरवाद िकया गया है परीक्षा की जाने के िलए तारीख ......................... .........................को
...................बजे ....................(स्थान) म .................... के न्यायालय के समक्ष हािजर हो ।

ता० ......................... (हस्ताक्षर)


(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 6
साक्षी को हािजर होने के िलए िववश करने के िलए कु क का आदेश
(धारा 83 देिखए)
पर्ेिषती—
.........................के पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी इस न्यायालय के समक्ष िवचाराधीन पिरवाद के बारे म अिभसा य
देने के िलए हािजर होने के िलए..................................................(नाम, वणर्न और पता) को िववश करने के िलए वारण्ट सम्यक् रूप से
िनकाला जा चुका है और उक्त वारण्ट यह िलखकर लौटा िदया गया है िक उसकी तामील नह की जा सकती, और मुझे समाधानपर्द रूप
म यह दिशत कर िदया गया है िक वह फरार हो गया है (या वारण्ट की तामील से बचने के िलए अपने आपको िछपा रहा है), और उस पर
उक्त .........................(नाम) से यह अपेक्षा करने वाली उ ोषणा सम्यक् रूप से जारी और पर्कािशत की जा चुकी है या की जा रही है िक
वह उसम उिल्लिखत समय और स्थान पर हािजर हो और सा य द ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक.........................िजले के अंदर उक्त
.........................की.........................रुपए तक की कीमत की जो जंगम संपि आपको िमले उसे आप अिभगर्हण ारा कु कर् कर ल और
उक्त संपि को इस न्यायालय का आगे और कोई आदेश होने तक कु कर् रख और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा
पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।

ता० ......................... (हस्ताक्षर)


(न्यायालय की मुदर्ा)
______
182

पर्रूप सं० 7
अिभयुक्त िक्त को हािजर होने के िलए िववश करने के िलए कु क का आदेश
(धारा 83 देिखए)
पर्ेिषती—
................................................................................................................................(उस िक्त का या उन िक्तय
के नाम और पदनाम िजसे या िजन्ह वारण्ट िनष्पािदत करना है)
मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है िक..........................................(नाम, वणर्न और पता) ने भारतीय दंड संिहता की
धारा.............................के अधीन दंडनीय .............................का अपराध िकया है (या संदह
े है िक उसने िकया है), और उस पर
जारी िकए गए िगरफ्तारी के वारं ट को यह िलखकर लौटा िदया गया है िक उक्त.............................(नाम) िमल नह रहा है और मुझे
समाधानपर्द रूप म यह दिशत कर िदया गया है िक उक्त.............................(नाम) फरार हो गया है (या उक्त वारण्ट की तामील से
बचने के िलए अपने आपको िछपा रहा है) और उस पर उक्त.............................से यह अपेक्षा करने वाली उ ोषणा सम्यक् रूप से जारी
और पर्कािशत की जा चुकी है या की जा रही है िक वह..........................िदन के अंदर उक्त आरोप का उ र देने के िलए हािजर हो ;
तथा .............................िजले म.............................गर्ाम (या नगर) म सरकार को राजस्वदायी भूिम से िभन्न िनम्निलिखत संपि
अथार्त्...............उक्त................के कब्जे म है और उसकी कु क के िलए आदेश िकया जा चुका है ;
इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त संपि को धारा 83 की उपधारा (2) के खंड (क) या खंड (ग) या दोन * म
िविनिदष्ट रीित से कु कर् कर ल और उसे इस न्यायालय का आगे और कोई आदेश होने तक कु कर् रख और इस वारं ट के िनष्पादन की रीित म
पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करके इसे लौटा द ।
ता० ......................... (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

* कु कर् की जाने वाली संपि के स्वरूप के आधार पर िकसी एक को, जो लागू न हो, काट िदया जाए ।

______

पर्रूप सं० 8
िजला मिजस्टर्ेट या कलक्टर के ारा कु क िकया जाना पर्ािधकृ त करने के िलए आदेश
125

(धारा 83 देिखए)
पर्ेिषती—
.........................................................िजले का िजला मिजस्टर्ेट/कलक्टर मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है
िक.........................(नाम, वणर्न और पता) ने भारतीय दंड संिहता की धारा.......के अधीन दंडनीय.............................का अपराध
िकया है (या संदह े है िक उसने िकया है), और उस पर जारी िकए गए िगरफ्तारी के वारं ट को यह िलखकर लौटा िदया गया है िक
उक्त.............................(नाम) िमल नह रहा है ; तथा मुझे समाधानपर्द रूप म यह दिशत कर िदया गया है िक
उक्त .............................(नाम) फरार हो गया है (या उक्त वारण्ट की तामील से बचने के िलए अपने आपको िछपा रहा है) और उस पर
उक्त............. (नाम) से यह अपेक्षा करने वाली उ ोषणा सम्यक् रूप से जारी और पर्कािशत की जा चुकी है या की जा रही है िक
वह..........िदन के अंदर उक्त आरोप का उ र देने के िलए हािजर हो ; तथा...............िजले म........(गर्ाम या नगर) म सरकार को
राजस्वदायी कु छ भूिम उक्त..............के कब्जे म है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अनुरोध िकया जाता है िक आप उक्त भूिम को धारा 83 की उपधारा (4)
के खंड (क) या खंड (ग) या दोन म िविनिदष्ट रीित से कु कर् करा ल और इस न्यायालय का आगे और कोई आदेश होने तक उसे कु कर् रख
और इस आदेश के अनुसरण म जो कु छ आपने िकया हो उसे अिवलंब पर्मािणत कर ।
ता०........................ (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

* जो वांिछत न हो उसे काट दीिजए ।


183

पर्रूप सं० 9
साक्षी को लाने के िलए पर्थम बार वारण्ट
(धारा 87 देिखए)

पर्ेिषती—
................................................................................(उस पुिलस अिधकारी का या उस अन्य िक्त का या उन अन्य
िक्तय के नाम और पदनाम िजसे या िजन्ह वारण्ट िनष्पािदत करना है)
मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है िक....................................(पता) के ..........................................(अिभयुक्त का नाम)
ने.............................(अपराध का संक्षप े म वणर्न कीिजए) का अपराध िकया है (या संदह े है िक उसने िकया है), और यह संभा पर्तीत
होता है िक ..................................................(साक्षी का नाम और वणर्न) उक्त पिरवाद के बारे म सा य दे सकते ह, तथा मेरे पास यह
िवश्वास करने का अच्छा और पयार्प्त कारण है िक जब तक ऐसा करने के िलए िववश न िकए जाएं वह उक्त पिरवाद की सुनवाई म
साक्षी के रूप म हािजर नह ह गे ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त......................
.............................(साक्षी का नाम) को िगरफ्तार कर और उस अपराध के बारे म िजसका पिरवाद िकया गया है परीक्षा की जाने के
िलए उसे तारीख .............................को इस न्यायालय के समक्ष लाएं ।

ता० ............................. (हस्ताक्षर)


(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 10
िविशष्ट अपराध की इि ला के पश्चात् तलाशी के िलए वारण्ट
126

(धारा 93 देिखए)
पर्ेिषती—
.................................................................................................................... (उस पुिलस अिधकारी का या उस अन्य
िक्त का या उन अन्य िक्तय के नाम और पदनाम िजसे या िजन्ह वारण्ट िनष्पािदत करना है)
..................................................(अपराध का संक्षप
े म वणर्न कीिजए) के अपराध के िकए जाने (या िकए जाने के संदह
े ) की मेरे
समक्ष इि ला दी गई है (या पिरवाद िकया गया है), और मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक उक्त अपराध (या संिदग्ध अपराध) की जांच के
िलए, जो अब की जा रही है (या की जाने वाली है) ..............(चीज को स्पष्ट रूप से िविनिदष्ट कीिजए) का पेश िकया जाना आवश्यक है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप.............................(उस गृह या स्थान का या
उसके उस भाग का वणर्न कीिजए, िजस तक तलाशी सीिमत रहेगी) म उक्त.......(िविनिदष्ट चीज) के िलए तलाशी ल और यिद यह पाई
जाए तो उसे तुंत इस न्यायालय के समक्ष पेश कर, और इस वारण्ट के अधीन जो कु छ आपने िकया है उसे पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते
हुए, इसे, इसका िनष्पादन हो जाने पर, अिवलम्ब लौटा द ।

ता० ............................. (हस्ताक्षर)


(न्यायालय की मुदर्ा)
______
184

पर्रूप सं० 11
संिदग्ध िनक्षेप-स्थान की तलाशी के िलए वारण्ट
(धारा 94 देिखए)
पर्ेिषती—
............................................................................................................................... (कांस्टेबल की पंिक्त से ऊपर की
पंिक्त के पुिलस अिधकारी का नाम और पदनाम)
मेरे समक्ष यह इि ला दी गई है और उस पर की गई सम्यक् जांच के पश्चात् मुझे यह िवश्वास हो गया है
िक.............................(गृह या अन्य स्थान का वणर्न कीिजए) का चुराई हुई सम्पि के िनक्षेप (या िवकर्य) (या यिद धारा म अिभ क्त
िकए गए अन्य पर्योजन म से िकसी के िलए उपयोग म लाया जाता है तो धारा के शब्द म उस पर्योजन को िलिखए) के िलए स्थान के
रूप म उपयोग िकया जाता है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त गृह (या अन्य स्थान) म ऐसी सहायता के
साथ पर्वेश कर, जैसी अपेिक्षत हो, और यिद आवश्यक है तो उस पर्योजन के िलए उिचत बल का पर्योग कर और उक्त गृह (या अन्य
स्थान) के पर्त्येक भाग (या यिद तलाशी िकसी भाग तक ही सीिमत रहती है तो उस भाग को स्पष्टतया िविनिदष्ट कीिजए) की तलाशी ल
और िकसी संपि (या यथािस्थित दस्तावेज या स्टाम्प या मुदर्ा या िसक्क या अश्लील वस्तु ) को (जब मामले म ऐसा अपेिक्षत हो
तो जोिड़ए) और िकन्ह उपकरण और सामिगर्य को भी िजनके बारे म आपको उिचत रूप से िवश्वास हो सके िक वे (यथािस्थित)
कू टरिचत दस्तावेज या कू टकृ त स्टाम्प , िमथ्या मुदर्ा या कू टकृ त िसक्क या कू टकृ त करसी नोट के िविनमार्ण के िलए रखी गई है,
अिभगृहीत कर और अपने कब्जे म ल और उक्त चीज म से अपने कब्जे म ली गई चीज को तत्काल इस न्यायालय के समक्ष लाएं और इस
वारण्ट के अधीन जो कु छ आपने िकया उसे पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे, इसका िनष्पािदत हो जाने पर, अिवलम्ब लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

______

पर्रूप सं० 12
पिरशांित कायम रखने के िलए बंधपतर्
(धारा 106 और 107 देिखए)

म.............................(नाम)............................. (स्थान) का िनवासी हूं ; मुझसे यह अपेक्षा की गई है िक म


..................................................... की अविध के िलए या जब तक .............................के न्यायालय म........................... के मामले
म इस समय लंिबत जांच समाप्त न हो जाए पिरशांित कायम रखने के िलए बंधपतर् िलखूं ;
इसिलए म इसके ारा अपने को आब करता हूं िक उक्त अविध के दौरान, या जब तक उक्त जांच समाप्त न हो जाए,
पिरशांित भंग नह करूंगा अथवा कोई ऐसा कायर् नह करूंगा िजससे पिरशांित भंग होना संभा हो, और म इसके ारा अपने को आब
करता हूं िक यिद इसम मने कोई चूक की तो मेरी.......................................................................................रुपए की रािश सरकार
को समपहृत हो जाएगी ।

ता० ............................. (हस्ताक्षर)

______
185

पर्रूप सं० 13
सदाचार के िलए बंधपतर्
(धारा 108, 109 और 110 देिखए)

म....................................(नाम)...................................(स्थान) का िनवासी हूं ; मुझसे यह अपेक्षा की गई है िक म


.........................................................(अविध िलिखए) की अविध के िलए या जब तक.............................के न्यायालय म
.......................................................... के मामले म इस समय लंिबत जांच समाप्त न हो जाए, सरकार और भारत के सब नागिरक के
पर्ित सदाचार बरतने के िलए, बंधपतर् िलखूं;
इसिलए म इसके ारा अपने को आब करता हूं िक उक्त अविध के दौरान, या जब तक उक्त जांच समाप्त न हो जाए सरकार
और भारत के सब नागिरक के पर्ित सदाचार बरतूंगा और म इसके ारा अपने को आब करता हूं िक यिद इसम मने कोई चूक की तो
मेरी....................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(जहां पर्ितभु सिहत बंधपतर् िनष्पािदत िकया जाना है वहां यह जोिड़ए)
हम उक्त.........................................................के िलए अपने को इसके ारा इस बात के िलए पर्ितभू घोिषत करते ह
िक वह उक्त अविध के दौरान या जब तक उक्त जांच समाप्त न हो जाए सरकार और भारत के सब नागिरक के पर्ित सदाचार
बरतेगा और हम अपने को संयुक्तत: और पृथक्तत: आब करते ह िक यिद इसम उसने कोई चूक की तो
हमारी..........................................................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
______

पर्रूप सं० 14
पिरशांित भंग की संभावना की इि ला पर समन
(धारा 113 देिखए)
पर्ेिषती—
(नाम) ..........................................(पता) .....................................
इस िव सनीय इि ला ारा िक.......................................(इि ला का सार िलिखए) मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक
यह संभा है िक आप पिरशांित भंग करगे (या ऐसा कायर् करगे िजससे िक संभवत: पिरशांित भंग होगी) ; इसिलए इसके ारा आपसे
अपेक्षा की जाती है िक आप स्वयं (अथवा अपने सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा) तारीख.............................को
.............................के मिजस्टर्ेट के कायार्लय म िदन म दस बजे इस बात का कारण दिशत करने के िलए हािजर ह िक आपसे यह अपेक्षा
क्य न की जाए िक इस बात के िलए िक आप.................अविध के िलए पिरशांित कायम रखगे आप..................रुपए के िलए एक
बंधपतर् िलख [जब पर्ितभू अपेिक्षत ह तब यह जोिड़ए, और एक पर्ितभू (या, यथािस्थित, दो पर्ितभु ) के (यिद एक से अिधक पर्ितभू ह
तो) उनम से पर्त्येक के .............................रुपए की रािश के िलए बंधपतर् ारा भी पर्ितभूित द] ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
186

पर्रूप सं० 15
पिरशांित कायम रखने के िलए पर्ितभूित देने म असफल रहने पर सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट
(धारा 122 देिखए)
पर्ेिषती—
....................................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी......................................(नाम और पता),
उस समन के अनुपालन म, िजससे िक उनसे अपेक्षा की गई थी िक वह इस बात का कारण दिशत कर िक क्य न वह एक पर्ितभु सिहत
(या दो पर्ितभु सिहत, िजनम से पर्त्येक.............................रुपए के िलए पर्ितभू हो)...................रुपए के िलए इस बाबत बंधपतर् िलख
िक वह अथार्त् उक्त.............................(नाम)............................. मास की अविध के िलए पिरशांित कायम रखगे, मेरे समक्ष
तारीख ..........................को स्वयं (या अपने पर्ािधकृ त, अिभकतार् ारा) हािजर हुए थे ; तथा तब उक्त................................(नाम) से
यह अपेक्षा करने वाला आदेश िकया गया था िक वह ऐसी पर्ितभूित (जब आिदष्ट पर्ितभूित समन म उिल्लिखत पर्ितभूित से िभन्न , तब
आिदष्ट पर्ितभूित िलिखए) द और जुटाएं और वह उक्त आदेश का अनुपालन करने म असफल रहे ह ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.................................. (नाम) को
अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उक्त जेल म.............................(कारावास की अविध) की उक्त अविध के िलए, जब
तक इस बीच उनके छोड़े जाने के िलए िविधपूवर्क आदेश न दे िदया जाए, सुरिक्षत रख और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन
ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
पर्रूप सं० 16
सदाचार के िलए पर्ितभूित देने म असफल रहने पर सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट
(धारा 122 देिखए)
पर्ेिषती—
.............................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक......................................................(नाम और वणर्न).............................िजले के भीतर
अपनी उपिस्थित िछपा रहा है और यह िवश्वास करने का कारण है िक वह कोई संज्ञय े अपराध करने के िलए ऐसा कर रहा है ;
अथवा
.............................(नाम और वणर्न) के साधारण चिरतर् के बारे म मेरे समक्ष सा य िदया गया है और अिभिलिखत िकया गया
है िजससे यह पर्तीत होता है िक वह आभ्यािसक लुटेरा (या, यथािस्थित, गृहभेदक आिद) है ;
तथा ऐसा कथन करने वाला और उक्तवी.............................(नाम) से यह अपेक्षा करने वाला आदेश अिभिलिखत िकया गया
है िक एक पर्ितभू सिहत (या, यथािस्थित, दो या अिधक पर्ितभु के सिहत) वह स्वयं.............................रुपए के िलए और उक्त पर्ितभू
(या उक्त पर्ितभु म से पर्त्येक)............................ .............................रुपए के िलए बंधपतर् िलखकर.............................(अविध
िलिखए) अविध के िलए अपने सदाचार के िलए पर्ितभूित दे, और उक्त .............................(नाम) उक्त आदेश का अनुपालन करने म
असफल रहा है और ऐसी चूक के िलए उसकी बाबत.............................(अविध िलिखए) के िलए, जब तक उससे पूवर् ही उक्त पर्ितभूित
न दे दी जाए, कारावास का न्यायिनणर्यन िकया गया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.......................
.............................(नाम) को अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उक्त जेल म .........................(कारावास की अविध) की
उक्त अविध के िलए, सुरिक्षत रख या यिद वे पहले ही कारागार म ह तो उसम िनरु रख जब तक इस बीच उसके छोड़े जाने के िलए
िविधपूवर्क आदेश न दे िदया जाए और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
187

पर्रूप सं० 17
पर्ितभूित देने म असफल रहने पर कारावािसत िक्त को उन्मोिचत
करने के िलए वारण्ट
(धारा 122 और 123 देिखए)
पर्ेिषती—
..........................................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी (या अन्य अिधकारी िजसकी अिभरक्षा म
वह िक्त है) ।
.............................(बंदी का नाम और वणर्न) को ता०.................के न्यायालय के वारण्ट के अधीन आपकी अिभरक्षा म
सुपुदर् िकया गया था और उसने तत्पश्चात् दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 की धारा.............................के अधीन पर्ितभूित सम्यक् रूप से दे
दी है ;
अथवा
19.................के ...................मास के .................... िदन के न्यायालय के वारण्ट के अधीन.........................................
(बंदी का नाम और वणर्न) को आपकी अिभरक्षा म सुपुदर् िकया गया था और मुझे इस राय के पयार्प्त आधार पर्तीत होते ह िक उसे समाज
को पिरसंकट म डाले िबना छोड़ा जा सकता है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.......................
.............................(नाम) को अपनी अिभरक्षा से, जब तक उसे िकसी अन्य कारण से िनरु करना आवश्यक न हो, तत्काल उन्मोिचत
कर द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 18
भरणपोषण देने म असफल रहने पर कारावास का वारण्ट
(धारा 125 देिखए)
पर्ेिषती—
...........................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी ..................... (नाम, वणर्न और पता) के बारे म मेरे
समक्ष यह सािबत कर िदया गया है िक वह अपनी पत्नी...................................................(नाम) [या अपने
बालक................................................(नाम) या अपने िपता या माता...................................................... (नाम)] का, जो
......................................................(कारण िलिखए) के कारण अपना भरणपोषण करने म असमथर् है, भरणपोषण करने के पयार्प्त
साधन रखता है और उसने उनका भरणपोषण करने म उपेक्षा की है (या ऐसा करने से इं कार िकया है) और उक्त
....................................... (नाम) से यह अपेक्षा करने वाला आदेश सम्यक् रूप से िकया जा चुका है िक वह अपनी उक्त पत्नी (या
बालक या िपता या माता) को भरणपोषण के िलए .............................रुपए की मािसक रािश दे, तथा यह भी सािबत कर िदया गया है
िक उक्त..............................(नाम) उक्त आदेश की जानबूझकर अवहेलना करके ....................रुपए, जो..................मास (या मास )
के िलए भ े की रकम है, देने म असफल रहा है ;
और तब यह न्यायिनण त करने वाला आदेश िकया गया िक वह उक्त जेल म……………… अविध के िलए कारावास भोगे ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त .......................
.............................(नाम) को उक्त जेल म अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और वहां उक्त आदेश को िविध के अनुसार
िनष्पािदत कर और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
188

पर्रूप सं० 19
कु क और िवकर्य ारा भरणपोषण का संदाय कराने के िलए वारण्ट
127

(धारा 125 देिखए)


पर्ेिषती—
....................................................................................................................................(उस पुिलस अिधकारी का या
अन्य िक्त का नाम और पदनाम िजसे वारं ट का िनष्पादन करना है) ...........................................................................(नाम) से
यह अपेक्षा करने वाला आदेश सम्यक् रूप से िकया जा चुका है िक वह अपनी उक्त पत्नी (या अपने बालक या िपता या माता) को
भरणपोषण के िलए .........................रुपए की मािसक रािश दे, तथा उक्त .................................... (नाम) उक्त आदेश की जानबूझकर
अवहेलना करके .............................रुपए जो....................के मास (या मास ) के िलए भ े की रकम है, देने म असफल रहा है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप............................. िजले के अंदर उक्त
..............................................(नाम) की जो कोई जंगम संपि िमले उसे कु कर् कर ल और यिद ऐसी कु क के पश्चात्
..........................................................(अनुज्ञात िदन या घंट की संख्या िलिखए) के अंदर उक्त रािश नह दी जाती है तो (या
तत्काल) कु कर् की गई जंगम संपि का या उसके इतने भाग का, िजतना उक्त रािश को चुकाने के िलए पयार्प्त हो, िवकर्य कर द और इस
वारं ट के अधीन जो कु छ आपने िकया हो उसे पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे, इसका िनष्पादन हो जाने पर, तुत ं लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 20
न्यूसस को हटाने के िलए आदेश
(धारा 133 देिखए)
पर्ेिषती—
......................................... (नाम, वणर्न और पता) मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आपने..........................................
(यह िलिखए िक वह क्या है िजससे बाधा या न्यूसस कािरत होता है) इत्यािद, इत्यािद ारा सावर्जिनक सड़क मागर् (या अन्य लोक
स्थान)...................................(सड़क या लोक स्थान का वणर्न कीिजए) इत्यािद, इत्यािद को उपयोग म लाने वाले िक्तय को बाधा
(या न्यूसस) की है और वह बाधा (या न्यूसस) अब भी वतर्मान है ;
अथवा
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आप स्वामी की या पर्बंधक की हैिसयत से......................(िविशष्ट ापार या उपजीिवका
िलिखए) का ापार या उपजीिवका.........................................................म (वह स्थान जहां वह ापार या उपजीिवका चलाई जा
रही है िलिखए) चला रहे ह और वह........................के (िजस रीित से हािनकारक पर्भाव पैदा हुए ह वहां संक्षपे त: िलिखए) कारण लोक-
स्वास्थ्य (या सुख) के िलए हािनकारक है और उसे बंद कर िदया जाना चािहए या दूसरे स्थान को हटा िदया जाना चािहए ;
अथवा
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आप लोक मागर्.............................(आम रास्ते का वणर्न कीिजए) के पाश्वर्स्थ िकसी तालाब
(या कु एं या उत्खात) के स्वामी ह (या उस पर आपका कब्जा है या िनयंतर्ण है) और उक्त तालाब (या कु एं या उत्खात) पर बाड़ न होने
(या असुरिक्षत रूप से बाड़ होने) के कारण सावर्जिनक सुरक्षा को खतरा होता है ;
अथवा
........................................इत्यािद, इत्यािद (यथािस्थित) ;
इसिलए म आपको िनदेश देता हूं और आपसे अपेक्षा करता हूं िक आप..............(अनुज्ञात समय िलिखए) के अंदर
.......................................(न्यूसस के उपशमन के िलए क्या िकया जाना अपेिक्षत है वह िलिखए) या तारीख................... को
......................के न्यायालय म हािजर ह और इस बात का कारण दिशत कर िक इस आदेश को क्य पर्वितत न कराया जाए ;
189

अथवा
इसिलए म आपको िनदेश देता हूं और आपसे अपेक्षा करता हूं िक आप............................ (अनुज्ञात समय िलिखए) के अंदर
उक्त ापार या उपजीिवका को उक्त स्थान म चलाना बंद कर द और उसे िफर न चलाएं या उक्त ापार को उस स्थान से जहां वह
अब चलाया जा रहा है हटा द, या तारीख .......................को हािजर ह , इत्यािद, इत्यािद ;
अथवा
इसिलए म आपको िनदेश देता हूं और आपसे अपेक्षा करता हूं िक आप ..................................(अनुज्ञात समय िलिखए) के
अंदर........................(बाड़ की िकस्म और िजस भाग म बाड़ लगाई जानी है वह िलिखए) पयार्प्त बाड़ लगाएं या तारीख
................................को हािजर ह , इत्यािद ;
अथवा
इसिलए म आपको िनदेश देता हूं और आपसे अपेक्षा करता हूं िक........................ इत्यािद, इत्यािद (यथािस्थित) ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 21
मिजस्टर्ेट ारा सूचना और अिनवायर् आदेश
(धारा 141 देिखए)
पर्ेिषती—
.................................................................. (नाम, वणर्न और पता)
म आपको सूचना देता हूं िक यह पाया गया है िक तारीख.......................................................को जारी िकया गया और
आपसे...................................(आदेश म की गई अपेक्षा का सार िलिखए) अपेक्षा करने वाला आदेश युिक्तयुक्त और उिचत है । वह
आदेश अब अंितम कर िदया गया है तथा म आपको िनदेश देता हूं और आपसे अपेक्षा करता हूं िक...........................(अनुज्ञात समय
िलिखए) के अंदर उक्त आदेश का अनुपालन कर, नह तो उसकी अवज्ञा के िलए भारतीय दंड संिहता ारा उपबंिधत शािस्त आपको
भोगनी पड़ेगी ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 22
जांच होने तक आसन्न खतरे के िवरु उपबंध करने के िलए
128 ादेश
(धारा 142 देिखए)
पर्ेिषत —
...................................................................(नाम, वणर्न और पता) तारीख...........................को मेरे ारा जारी िकए
गए सशतर् आदेश की जांच अभी तक लंिबत है और मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक उक्त आदेश म विणत न्यूसस से जनता को ऐसा
खतरा या गंभीर िकस्म की हािन आसन्न है िक उस खतरे या हािन का िनवारण करने के िलए अिवलंब उपाय करना आवश्यक हो गया
है ; इसिलए म दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 की धारा 142 के उपबंध के अधीन आपको िनदेश और ादेश देता हूं िक आप जांच का
पिरणाम िनकलने तक के िलए तत्काल........(अस्थायी सुरक्षा के रूप म क्या िकया जाना अपेिक्षत है या स्पष्टतया िलिखए) कर ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
190

पर्रूप सं० 23
न्यूसस की पुनरावृि आिद का पर्ितषेध करने के िलए मिजस्टर्ेट का आदेश
(धारा 143 देिखए)
पर्ेिषती—
...................................................................(नाम, वणर्न और पता)
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आप................................इत्यािद, इत्यािद (यथािस्थित, पर्रूप 20 या पर्रूप 24 के
अनुसार यहां उिचत वणर्न कीिजए) ;
इसिलए म आपको सख्त आदेश और ादेश देता हूं िक आप..................................उक्त न्यूसस की पुनरावृि न कर या उसे
चालू न रख ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 24
बाधा, बल्वा आिद का िनवारण करने के िलए मिजस्टर्ेट का आदेश
(धारा 144 देिखए)
पर्ेिषती—
....................................................................(नाम, वणर्न और पता)
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आप............................................(संपि का स्पष्ट वणर्न कीिजए) का कब्जा रखते ह
(या पर्बंध करते ह) और उक्त भूिम म नाली खोदने म आप खोदी हुई िम ी और पत्थर के कु छ भाग को पाश्वर्वत सावर्जिनक सड़क पर
फकने या रख देने वाले ह, िजससे सड़क का उपयोग करने वाले िक्तय को बाधा की जोिखम पैदा होगी ;
अथवा
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक आप और कई अन्य िक्त...................................................................( िक्तय के वगर्
का वणर्न कीिजए) समवेत होने वाले ह और सावर्जिनक सड़क पर होकर जुलस ू िनकालने वाले ह, इत्यािद (यथािस्थित) और ऐसे जुलूस से
बल्वा या दंगा हो जाना संभा है ;
अथवा
.......................................................इत्यािद, इत्यािद (यस्थािस्थित) ;
इसिलए म इसके ारा आपको आदेश देता हूं िक आप भूिम म से खोदी हुई िकसी भी िम ी या पत्थर को उक्त सड़क के िकसी
भी भाग पर न रख और न रखने की अनुज्ञा द ;
अथवा
इसिलए म इसके ारा उक्त सड़क पर होकर जुलूस के जाने का पर्ितषेध करता हूं और आपको सख्त चेतावनी और आदेश देता हूं
िक आप ऐसे जुलस
ू म कोई भाग न ल (या जैसा विणत मामले म अपेिक्षत हो) ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 25
िववादगर्स्त भूिम आिद का कब्जा रखने के हकदार पक्षकार की घोषणा करने वाला मिजस्टर्ेट का आदेश
(धारा 145 देिखए)
सम्यक् रूप से अिभिलिखत आधार पर मुझे यह पर्तीत होने पर िक मेरी स्थानीय अिधकािरता के अंदर
िस्थत .......................(िववाद-वस्तु थोड़े म िलिखए) से संब िववाद िजससे पिरशांित भंग हो जाना संभा है..............................
191

(पक्षकार के नाम और िनवास अथवा यिद िववाद गर्ामीण के समूह के बीच है तो के वल िनवास का वणर्न कीिजए) के बीच है, सब उक्त
पक्षकार से अपेक्षा की गई थी िक वे उक्त............................(िववाद-वस्तु) पर वास्तिवक कब्जे के तथ्य के बारे म अपने दाव का
िलिखत कथन द और तब उक्त पक्षकार म से िकसी के कब्जे के वैध अिधकार के दावे के गुणागुण के पर्ित कोई िनदेश िकए िबना सम्यक्
जांच करने पर मेरा समाधान हो जाने पर िक उक्त......................................... (नाम या वणर्न) का उस पर वास्तिवक कब्जे का
दावा सही है ; म यह िविनश्चय करता हूं और घोिषत करता हूं िक उक्त.........................(िववाद-वस्तु) पर उसका (या उनका) कब्जा
है और, जब तक िक िविध के सम्यक् अनुकर्म म वह (या वे) िनकाल न िदया जाए (या िदए जाएं) तब तक वह (या वे) ऐसा कब्जा रखने का
हकदार है (या के हकदार है) और इस बीच म उसके (या उनके ) कबजे म िकसी पर्कार का िवघ्न डालने का म सख्त िनषेध करता हूं ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 26
भूिम आिद के कब्जे के बारे म िववाद के मामले म कु क का वारण्ट
(धारा 146 देिखए)
पर्ेिषती—
.................................................................(स्थान) के पुिलस थाने का भारसाधक पुिलस अिधकारी
[या...........................................................(स्थान) का कलक्टर] ।
मुझे यह पर्तीत कराया गया है िक मेरी अिधकािरता की सीमा के अंदर िस्थत................................(िववाद-वस्तु थोड़े म
िलिखए) संब िववाद, िजससे पिरशांित भंग हो जाना संभा है....................................(संब पक्षकार के नाम और िनवास, अथवा
यिद िववाद गर्ामीण के समूह के बीच है तो के वल िनवास का वणर्न कीिजए) के बीच है और तब उक्त पक्षकार से सम्यक् रूप से अपेक्षा
की गई थी िक वे उक्त.....................................................(िववाद-वस्तु) पर वास्तिवक कब्जे के तथ्य के बारे म अपने दावे का िलिखत
कथन द, और उक्त दाव की सम्यक् जांच करने पर मने यह िविनश्चय िकया है िक उक्त..................................(िववाद-वस्तु) पर
कब्जा उक्त पक्षकार म से िकसी का भी नह है (या यथापूव क्त रूप म कब्जा िकस पक्षकार का है इस बारे म अपना समाधान करने म म
असमथर् हूं) ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप
उक्त....................................................................(िववाद-वस्तु) को उसका कब्जा लेकर और रखकर कु कर् कर और जब तक
पक्षकार के अिधकार का या कब्जे के दावे का अवधारण करने वाली सक्षम न्यायालय की िडकर्ी या आदेश पर्ाप्त न कर ली जाए या न कर
िलया जाए तब तक उसे कु कर् रखे रह और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 27
भूिम या जल पर िकसी बात के िकए जाने का पर्ितषेध करने वाला मिजस्टर्ेट का आदेश
(धारा 147 देिखए)
मेरी स्थानीय अिधकािरता के अंदर िस्थत..............................................(िववाद-वस्तु को थोड़े म िलिखए) के उपयोग के
अिधकार से संब , िजस भूिम (या जल) पर या अनन्य कब्जे का दावा........................................( िक्त या िक्तय का वणर्न
कीिजए) ारा िकया गया है, िववाद उठने पर और उसकी सम्यक् जांच से मुझे यह पर्तीत होने पर िक उक्त भूिम (या जल) का जनता (या
यिद िक्त िवशेष या िक्तय के वगर् ारा उपयोग िकया जाता है तो उसका या उनका वणर्न कीिजए) के िलए ऐसे उपयोग का उपभोग
करना खुला रहा है और (यिद सारे वषर् के उपयोग का उपभोग िकया जाता है तो) उक्त जांच के संिस्थत िकए जाने के तीन मास के अंदर
(या यिद उपयोग का िविशष्ट मौसम म ही उपभोग िकया जा सकता है तो किहए) “ उन मौसम म से, िजनम िक उसका उपभोग िकया
जा सकता है, अंितम मौसम के दौरान” उपर उपयोग का उपभोग िकया गया है ;
192

म यह आदेश देता हूं िक उक्त.......................................................(कब्जे का या के दावेदार) या उसके (या उनके ) िहत


म कोई िक्त उक्त भूिम (या जल) का कब्जा, यथापूव क्त उपयोग के अिधकार के उपभोग का अपवजर्न करके , न लेगा (या पर्ितधािरत
न करे गा) जब तक वह (या वे) सक्षम न्यायालय की उसे (या उन्ह) अनन्य कब्जे का (या के ) हकदार न्यायिनण त करने वाली िडकर्ी या
आदेश पर्ाप्त न कर ले (या ल) ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 28
पुिलस अिधकारी के समक्ष पर्ारं िभक जांच पर बंधपतर् और जमानत पतर्
(धारा 169 देिखए)
म..............................................(नाम) जो...................................................हूं.....................................................के
अपराध से आरोिपत होने पर और जांच के पश्चात्..............मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर होने के िलए अपेिक्षत िकए जाने पर ;
अथवा
और जांच के पश्चात् अपना मुचलका इसिलए देने की अपेक्षा की जाने पर िक जब भी मुझसे अपेक्षा की जाएगी, म हािजर होऊंगा ; इसके
ारा अपने को आब करता हूं िक म..................................................(स्थान) म.......................................के न्यायालय म तारीख
....................................को (या ऐसे िदन जब हािजर होने की मुझसे इसके पश्चात् अपेक्षा की जाए) उक्त आरोप का अितिरक्त उ र
देने के िलए हािजर होऊंगा और म अपने को आब करता हूं िक यिद इसम से कोई चूक करूं तो मेरी................................रुपए की
रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ........................ (हस्ताक्षर)
म इसके ारा अपने को (या हम संयुक्तत: और पृथक्तत: अपने को और अपने म से पर्त्येक को) उपयुर्क्त...........................
(नाम) के िलए इस बात के िलए पर्ितभू घोिषत करता हूं (या करते ह) िक वह...........................(स्थान)
म.........................................................के न्यायालय म तारीख.....................................को (या ऐसे िदन जब हािजर होने की उससे
इसके पश्चात् अपेक्षा की जाए) अपने िवरु लंिबत आरोप का अितिरक्त उ र देने के िलए हािजर होगा, और म इसके ारा अपने को
आब करता हूं (या हम इसके ारा अपने को आब करते ह) िक यिद इसम वह चूक करे तो मेरी (या हमारी).....................रुपए की
रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।

ता० ............................. (हस्ताक्षर)


______

पर्रूप सं० 29
अिभयोजन चलाने के िलए या सा य देने के िलए बंधपतर्
(धारा 170 देिखए)
म................................................ (नाम), जो.............................(स्थान) का हूं, अपने को आब करता हूं िक म
तारीख ......................को................बजे..............................के न्यायालय म हािजर होऊंगा और वह और उसी समय क, ख, के
िवरु ..........................................आरोप के मामले म अिभयोजन चलाऊंगा (या अिभयोजन चलाऊंगा और सा य दूग ं ा) (या सा य
दूग
ं ा), और म अपने को आब करता हूं िक यिद इसम म चूक करूं तो मेरी................................................रुपए की रािश सरकार
को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
______
193

पर्रूप सं० 30
छोटे अपराध के अिभयुक्त को िवशेष समन
129

(धारा 206 देिखए)


पर्ेिषती—
..................................................................(अिभयुक्त का नाम).................................................(पता)
.................................................. के छोटे अपराध (आरोिपत अपराध का संिक्षप्त िववरण) के आरोप का उ र देने के िलए आपकी
हािजरी आवश्यक है, अत: आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप स्वयं (या प्लीडर ारा).......................................(मिजस्टर्ेट) के समक्ष
19....................के ......................मास के ...................................िदन हािजर ह या यिद आप मिजस्टर्ेट के समक्ष हािजर हुए िबना
आरोप के दोषी होने का अिभवचन करना चाह तो आप दोषी होने का िलिखत रूप म अिभवचन और जुमार्ने के रूप म
...................................रुपए की रािश उपरोक्त तारीख के पूवर् भेज द, या यिद आप प्लीडर ारा हािजर होना चाह और दोषी होने का
अिभवचन ऐसे प्लीडर की माफर् त करना चाह तो अपनी ओर से इस पर्कार दोषी होने का अिभवचन करने के िलए आप ऐसे प्लीडर को
िलिखत रूप म पर्ािधकृ त कर और ऐसे प्लीडर की माफर् त जुमार्ने का संदाय कर । इसम चूक नह होनी चािहए ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
(िटप्पण—इस समन म िविनिदष्ट जुमार्ने की रकम एक सौ रुपए से अिधक न होगी)
______
पर्रूप सं० 31
मिजस्टर्ेट ारा लोक अिभयोजक को सुपद
ु ग
र् ी की सूचना
(धारा 209 देिखए)
............................................का मिजस्टर्ेट सूचना देता है िक उसने...............................की अगले सेशन म िवचारण के िलए
सुपुदर् िकया है ; और मिजस्टर्ेट लोक अिभयोजक को उक्त मामले म अिभयोजन का संचालन करने का अनुदश े देता है ।
अिभयुक्त के िवरु आरोप है िक...............................................इत्यािद (आरोप म िदया गया अपराध िलिखए)
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 32
आरोप
(धारा 211, 212 और 213 देिखए)

I. एक शीषर् आरोप
(1) (क) म.............................................. (मिजस्टर्ेट का नाम और पद, आिद) आप............................(अिभयुक्त िक्त
का नाम) पर िनम्निलिखत आरोप लगाता हूं :—
(ख) धारा 121 पर—आपने तारीख............................................को, या उसके लगभग..............म भारत सरकार के िवरु
यु िकया और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 121 के अधीन दंडनीय अपराध है, और इस
न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(ग) और म इसके ारा िनदेश देता हूं िक आपका इस न्यायालय ारा उक्त आरोप पर िवचारण िकया जाए ।
(मिजस्टर्ेट के हस्ताक्षर और मुदर्ा)
[(ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत िकया जाए] :—
(2) धारा 124 पर—आपने तारीख............................को या उसके लगभग........................................भारत के राष्टर्पित
[या यथािस्थित (राज्य का नाम) के राज्यपाल] को ऐसे राष्टर्पित (या यथािस्थित, राज्यपाल) के रूप म अपनी िविधपूणर् शिक्त का पर्योग
194

करने से िवरत रहने के िलए उपर्ेिरत करने के आशय से ऐसे राष्टर्पित (या यथािस्थित, राज्यपाल) पर हमला िकया, और उसके ारा आपने
ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 124 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त ह ।

(3) धारा 161 पर—आपने........................................िवभाग म लोक सेवक होते हुए....................(नाम िलिखए) से अन्य
पक्षकार.................................(नाम िलिखए) के िलए पदीय कायर् से पर्िवरत रहने के िलए वैध पािरशर्िमक से िभन्न पिरतोषण पर्त्यक्षत:
स्वीकार िकया, और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 161 के अधीन दंडनीय है और इस
न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(4) धारा 166 पर—आपने तारीख...............को या उसके लगभग.....................म ऐसा आचरण िकया (या यथािस्थित,
करने का लोप िकया) जो.................अिधिनयम की धारा.................के उपबंध के पर्ितकू ल है और िजसके बारे म आपको ज्ञात था िक
वह.......................पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला है, और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा
166 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(5) धारा 193 पर—आपने तारीख.............................को या उसके लगभग..............................म................................
के समक्ष.............................के िवचारण के अनुकर्म म सा य म कथन िकया िक “.......................................................” िजस कथन
के िमथ्या होने का आपको ज्ञान था या िवश्वास था या, िजसके सत्य होने का आपको िवश्वास नह था ; और उसके ारा आपने ऐसा
अपराध िकया था भारतीय दंड संिहता की धारा 193 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(6) धारा 304 पर—आपने तारीख......................को या उसके लगभग...................म हत्या की कोिट म न आने वाला
आपरािधक मानववध िकया िजससे................................की मृत्यु कािरत हुई और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय
दंड संिहता की धारा 304 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(7) धारा 306 पर—आपने तारी .........................को या उसके लगभग...................म क, ख, ारा जो िक मृत अवस्था म था,
आत्महत्या िकए जाने का दुपर्ेरण िकया और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 306 के अधीन
दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(8) धारा 325 पर—आपने तारीख.....................को या उसके लगभग ...................म...............को स्वेच्छया घोर उपहित
कािरत की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 325 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के
संज्ञान के अंतगर्त है ।
(9) धारा 392 पर—आपने तारीख................................................को या उससे लगभग.................
म............................(नाम िलिखए) को लूटा और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 392 के
अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(10) धारा 395 पर—आपने तारीख ..................को या उसके लगभग.......................... म डकै ती डाली जो अपराध भारतीय
दंड संिहता की धारा 392 के अधीन दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।

II. दो या अिधक शीषर् वाले आरोप


(1) (क) म................................................................................(मिजस्टर्ेट का नाम और पद, आिद)
आप....................................................(अिभयुक्त शिक्त का नाम) पर िनम्निलिखत आरोप लगाता हूं :—
(ख) धारा 241 पर—पहला—आपने तारीख............................को या उसके लगभग....................म एक िसक्का यह
जानते हुए िक वह कू टकृ त है, क, ख नाम के एक अन्य िक्त को असली के रूप म पिरद िकया और उसके ारा आपने ऐसा अपराध
िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 241 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
दूसरा—आपने तारीख.....................को या उसके लगभग....................म एक िसक्का यह जानते हुए िक वह कू टकृ त है, क,
ख नाम के एक अन्य िक्त को असली िसक्के के रूप म लेने के िलए उपर्ेिरत करने का पर्य िकया और उसके ारा आपने ऐसा अपराध
िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 241 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(ग) और म इसके ारा िनदेश देता हूं िक आपका उक्त न्यायालय ारा उक्त आरोप पर िवचारण िकया जाए ।
(मिजस्टर्ेट के हस्ताक्षर और मुदर्ा)
[(ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत िकया जाए ] :—
(2) धारा 302 और 304 पर—पहला—आपने तारीख.....................को या उसके लगभग..............म
....................................की मृत्यु कािरत करके हत्या की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा
302 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
195

दूसरा—आपने तारीख..................................को या उसके लगभग......................................म...................................की


मृत्यु कािरत करके हत्या की कोिट म न आने वाला मानववध िकया और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता
की धारा 304 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(3) धारा 379 और 382 पर—पहला—आपने तारीख...........................को या उसके लगभग
.................................................म चोरी की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 379 के
अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
दूसरा—आपने तारीख..................................को या उसके लगभग...........................म चोरी करने के िलए िकसी िक्त की
मृत्यु कािरत करने की तैयारी करके , चोरी की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 382 के अधीन
दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
तीसरा—आपने तारीख .............................को या उसके लगभग..........................................म, चोरी करने के पश्चात्
िनकल भागने के िलए िकसी िक्त का अवरोध कािरत करने की तैयारी करके , चोरी की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध िकया जो
भारतीय दंड संिहता की धारा 382 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
चौथा—आपने तारीख ..............................को या उसके लगभग...........................म चोरी ारा ली गई संपि को
पर्ितधािरत करने की दृि से िकसी िक्त को उपहित का भय कािरत करने की तैयारी करके चोरी की और उसके ारा आपने ऐसा
अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 382 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(4) धारा 193 पर अनुकल्पी आरोप—आपने तारीख..................को या उसके लगभग.................म.........................के
समक्ष..........................की जांच के अनुकर्म म सा य म कथन िकया “.........................................................” और आपने तारीख
.....................................................को या उसके लगभग...........................................म...............................................के
समक्ष.............................................................के िवचारण के अनुकर्म म सा य म कथन िकया िक “.................” िजन दो कथन
म से एक के िमथ्या होने का आपको ज्ञान या िवश्वास था या उसके सत्य होने का आपको िवश्वास नह था और उसके ारा आपने ऐसा
अपराध िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 193 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है ।
(मिजस्टर्ेट ारा िवचािरत िकए जाने वाले मामल म “सेशन न्यायालय के संज्ञान के अंतगर्त है” के स्थान पर “मेरे संज्ञान के
अंतगर्त है” िलिखए ।

III. पूवर् दोषिसि के पश्चात् चोरी के आरोप


म...............................................(मिजस्टर्ेट का नाम और पद आिद) आप................................(अिभयुक्त िक्त का
नाम) पर िनम्निलिखत आरोप लगाता हूं :—
यह िक आपने तारीख ......................को या उसके लगभग .......................म चोरी की और उसके ारा आपने ऐसा अपराध
िकया जो भारतीय दंड संिहता की धारा 379 के अधीन दंडनीय है और सेशन न्यायालय (या, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट) के संज्ञान के अंतगर्त
है और आप, उक्त.........................(अिभयुक्त का नाम) पर यह भी आरोप है िक आप उक्त अपराध करने के पूवर् अथार्त् तारीख
..................................को...........................के ......................................(वह न्यायालय िलिखए िजसके ारा दोषिसि की गई
थी) ारा भारतीय दंड संिहता के अध्याय 17 के अधीन तीन वषर् की अविध के िलए कारावास से दंडनीय अपराध के िलए, अथार्त् रातर्ौ
गृह-भेदन के अपराध.............................(उस धारा के शब्द म अपराध का वणर्न कीिजए िजसके अधीन अिभयुक्त दोषिस िकया गया
था) के िलए दोषिस िकए गए थे जो दोषिसि अब तक पूणर्तया पर्वृ और पर्भावशील है और आप भारतीय दंड संिहता की धारा 75 के
अधीन पिरविधत दंड से दंडनीय ह ।
और म इसके ारा िनदेश देता हूं िक आपका िवचारण िकया जाए, इत्यािद ।
______

पर्रूप सं० 33
साक्षी को समन
(धारा 61 और 244 देिखए)
पर्ेिषती—
...........................................(स्थान) का.....................................................नाम मेरे समक्ष पिरवाद िकया गया है
िक ....................(पता) के ..................................(अिभयुक्त का नाम) ने.....................................(समय और स्थान सिहत अपराध
थोड़े म िलिखए) का अपराध िकया है (या संदह े है िक उसने िकया है) और मुझे यह पर्तीत होता है िक संभा है िक आप अिभयोजन के
िलए ताित्वक सा य द या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश कर ;
196

इसिलए आपको समन िकया जाता है िक ऐसा दस्तावेज या चीज पेश करने या उक्त पिरवाद के िवषय से संब आप जो कु छ
जानते ह उसका अिभसा य देने के िलए इस न्यायालय के समक्ष तारीख..................को िदन म दस बजे हािजर ह और न्यायालय की
इजाजत के िबना वहां से न जाएं और आपको इसके ारा चेतावनी दी जाती है िक यिद न्यायसंगत कारण के िबना आपने उस तारीख पर
हािजर होने म उपेक्षा की या उससे इं कार िकया तो आपको हािजर होने को िववश करने के िलए वारण्ट जारी िकया जाएगा ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 34
यिद कारावास या जुमार्ने का दंडादेश 1 [न्यायालय] ारा िदया गया है तो
उस पर सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट
2
[(धारा 235, 248 और 255 देिखए)]
पर्ेिषती—
..............................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी सन्.............के कलेण्डर के मामले
संख्यांक......................म बंदी (या यस्थािस्थित पहले, दूसरे , तीसरे बंदी)...................(बंदी का नाम)...................................को मेरे
ारा ............................(नाम और शासकीय पदािभधान) भारतीय दंड संिहता की (या...........................................अिधिनयम की)
धारा (या धारा )...........................के अधीन.............................(अपराध का थोड़े म वणर्न कीिजए) के अपराध के िलए दोषिस
िकया गया और...............................(दंड पूणत र् या और स्पष्टतया िलिखए) के िलए तारीख.............को दंडािदष्ट िकया गया ।
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.....................(बंदी का नाम) को उक्त
जेल म अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत लेकर पूव क्त दंड को िविध के अनुसार िनष्पािदत कर ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 35
पर्ितकर का संदाय करने म असफल रहने पर कारावास का वारण्ट
(धारा 250 देिखए)
पर्ेिषती—
.......................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी......................(नाम और वणर्न) ने
....................................(अिभयुक्त का नाम और वणर्न) के िवरु यह पिरवाद िकया है िक..................................(इसे थोड़े म वणर्न
कीिजए) और वह इस आधार पर खािरज कर िदया गया है िक उक्त (नाम)..................................के िवरु अिभयोग लगाने के िलए
उिचत आधार नह है और खािरज करने का आदेश यह अिधिनण त करता है िक उक्त......................................(पिरवादी का नाम)
ारा पर्ितकर के रूप म...............................रुपए की रािश का संदाय िकया जाए ; और उक्त रािश अभी तक दी नह गई है और यह
आदेश कर िदया गया है िक उसे.....................िदन की अविध के िलए, यिद पूव क्त रािश उससे पूवर् नह दे दी जाती है तो जेल म सादा
कारावास म रखा जाए ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त......................(नाम) को अपनी
अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ले और भारतीय दंड संिहता की धारा 69 के उपबंध के अधीन रहते हुए उससे उक्त जेल म उक्त अविध
.....................(कारावास की अविध) के िलए, यिद उक्त रािश उससे पूवर् नह दे दी जाती है तो सुरिक्षत रख और उक्त रािश के पर्ाप्त
होने पर उसे तत्काल स्वतंतर् कर द और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

1
1978 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 35 ारा “मिजस्टर्ेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 35 ारा “(धारा 248 और 255 देिखए)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
197

पर्रूप सं० 36
कारागार म बंद िक्त को िकसी अपराध के आरोप का उ र देने के िलए न्यायालय म
पेश करने की अपेक्षा करने वाला आदेश
(धारा 267 देिखए)
पर्ेिषती—
............................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी
उक्त कारागार म इस समय पिररु /िनरु .........................................(बंदी का नाम) की इस न्यायालय म हािजरी
.................................................(आरोिपत अपराध संक्षप
े म िलिखए) के आरोप का उ र देने के िलए या........................................
(कायर्वाही की संिक्षप्त िविशिष्टयां दीिजए) कायर्वाही के पर्योजनाथर् अपेिक्षत है ;
इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त...............................को सुरिक्षत और सुिनिश्चत रूप से लाकर उक्त आरोप
का उ र देने के िलए या उक्त कायर्वाही के पर्योजनाथर् तारीख........................को िदन म...........................बजे इस न्यायालय के समक्ष
पेश कर और इस न्यायालय ारा उसे आगे हािजर करने से छू ट िदए जाने पर उसे उक्त कारागार को सुरिक्षत और सुिनिश्चत रूप से
वापस ले जाएं ।
और आपसे यह और अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त...........................को इस आदेश की अंतवर्स्तु की इि ला द और उसकी
संलग्न पर्ित उसे पिरद कर ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा) पर्ितहस्ताक्षिरत
(मुदर्ा) (हस्ताक्षर)
______

पर्रूप सं० 37
कारागार म िनरु िक्त को सा य देने के िलए न्यायालय म पेश करने की अपेक्षा
करने वाला आदेश
130

(धारा 267 देिखए)


पर्ेिषती—
........................................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी इस न्यायालय के समक्ष पिरवाद िकया गया
है िक ........................(स्थान) के .......................(अिभयुक्त का नाम) ने......................................(समय और स्थान सिहत अपराध
थोड़े म िलिखए) का अपराध िकया है और यह पर्तीत होता है िक उक्त कारागार म इस समय पिररु /िनरु .........................(बंदी का
नाम) अिभयोजन/पर्ितरक्षा के िलए ताित्वक सा य दे सकता है ;
इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.............................को सुरिक्षत और सुिनिश्चत रूप से लाकर इस न्यायालय
के समक्ष लंिबत मामले म सा य देने के िलए तारीख...........................................को िदन म.....................बजे इस न्यायालय के
समक्ष पेश कर और इस न्यायालय ारा उसे आगे हािजर करने से छू ट िदए जाने पर उसे उक्त कारागार को सुरिक्षत और सुिनिश्चत रूप
से वापस ले जाएं ;
और आपसे यह और अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त......................को इस आदेश की अंतवर्स्तु की इि ला द और उसकी
संलग्न पर्ित उसे पिरद कर ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा) पर्ितहस्ताक्षिरत
(मुदर्ा) (हस्ताक्षर)
______
198

पर्रूप सं० 38
अवमान के ऐसे मामल म सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट िजसम जुमार्ना अिधरोिपत िकया गया है
(धारा 345 देिखए)
पर्ेिषती—
...........................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी
आज मेरे समक्ष हुए न्यायालय म.............................................(अपराधी का नाम और वणर्न) ने न्यायालय की उपिस्थित म
(या दृि गोचरता म) जानबूझकर अवमान िकया है ;
और ऐसे अवमान के िलए उक्त...............................................(अपराधी का नाम) को............रुपए का जुमार्ना देने के िलए
या उसम चूक करने पर ..................................... (मास या िदन की संख्या िलिखए) अविध के िलए सादा कारावास भुगतने के िलए
न्यायालय ारा न्यायिनण त िकया गया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त....................(अपराधी का नाम) को
अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट सिहत ल और, उक्त जेल म......................(कारावास की अविध) की उक्त अविध के िलए, जब तक उक्त
जुमार्ना उससे पूवर् न दे िदया जाए, सुरिक्षत रख और उक्त जुमार्ने के पर्ाप्त होने पर उसे तत्काल स्वतंतर् कर द और इस वारण्ट के िनष्पादन
की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 39
उ र देने से या दस्तावेज पेश करने से इं कार करने वाले साक्षी की सुपद
ु ग
र् ी
के िलए मिजस्टर्ेट या न्यायाधीश का वारण्ट
(धारा 349 देिखए)
पर्ेिषती—
......................................................................(न्यायालय के अिधकारी का नाम और पदािभधान)
........................................(नाम और वणर्न) ने साक्षी के रूप म समन िकए जाने पर (या इस न्यायालय के समक्ष लाए जाने पर) और
अिभकिथत अपराध की जांच म सा य देने की आज अपेक्षा की जाने पर उक्त अिभकिथत अपराध के बारे म उससे पूछे गए और सम्यक्
रूप से अिभिलिखत पर् (या पर् ) का उ र देने से या दस्तावेज पेश करने की अपेक्षा िकए जाने पर ऐसे दस्तावेज को पेश करने से इं कार
िकया है और इं कार करने के िलए िकसी न्यायसंगत पर्ितहेतु का अिभकथन नह िकया है और इस इं कार के िलए उसको
................................(न्यायिनण त िनरोध की अविध) के िलए अिभरक्षा म िनरु िकए जाने के िलए आिदष्ट िकया गया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त.....................
................................................(नाम) को अपनी अिभरक्षा म ल और उसे अपनी अिभरक्षा म ..................िदन की अविध के िलए,
जब तक िक इस बीच म ही वह अपनी ऐसी परीक्षा िकए जाने और उससे पूछे गए पर् का उ र देने के िलए या उससे अपेिक्षत दस्तावेज
को पेश करने के िलए सहमत न हो जाए, सुरिक्षत रख और उसे इन िदन म से अंितम िदन, या ऐसी सहमित के ज्ञात होने पर तत्काल,
िविध के अनुसार कारर् वाई की जाने के िलए इस न्यायालय के समक्ष लाएं और इस वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत
करते हुए इसे लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
199

पर्रूप सं० 40
मृत्यु दंडादेश के अधीन सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट
(धारा 366 देिखए)
पर्ेिषती—
.........................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी तारीख...................को मेरे समक्ष हुए सेशन म
............................................(बंदी का नाम), जो िक उक्त सेशन म 19....................................................के कलेण्डर के मामला
संख्यांक............................म बंदी (या यथािस्थित, पहला दूसरा, तीसरा बंदी) है, भारतीय दंड संिहता की धारा
..........................................के अधीन हत्या की कोिट म आने वाले आपरािधक मानववध के अपराध के िलए सम्यक् रूप से दोषिस
िकया गया था और ..........................के ..............................न्यायालय ारा उक्त दंडादेश की पुि िकए जाने के अध्यधीन रहते हुए,
मृत्यु के िलए दंडािदष्ट हुआ था ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त......................
.........................................................(बंदी का नाम) को उक्त जेल म अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उसे तब तक
सुरिक्षत रख जब तक िक उक्त....................................................................न्यायालय के आदेश को पर्भावशील करने के िलए इस
न्यायालय का आगे वारण्ट या आदेश आपको न िमले ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 41
दंडादेश के लघुकरण के पश्चात् वारण्ट
1
[(धारा 286, 413 और 416 देिखए)]
पर्ेिषती—
.....................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी तारीख..................को हुए सेशन म
...................................................(बंदी का नाम), जो उक्त सेशन म 19.................के कलेण्डर के मामला संख्यांक...........................
म बंदी (या, यथािस्थित, पहला, दूसरा, तीसरा बंदी) है, भारतीय दंड संिहता की धारा.................के अधीन दंडनीय................के
अपराध के िलए दोषिस िकया गया था और............................के िलए दंडािदष्ट िकया गया था और तब आपकी अिभरक्षा म सुपुदर्
िकया गया था तथा.....................के ...............न्यायालय के आदेश ारा (िजसकी दूसरी पर्ित इसके साथ संलग्न है) उक्त दंडादेश ारा
न्यायिनण त दंड का आजीवन कारावास....................के दंड के रूप म लघुकरण िकया गया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त........................................................
(बंदी का नाम) को उक्त जेल म अपनी अिभरक्षा म, िविध ारा अपेिक्षत रूप म, तब तक सुरिक्षत रख जब तक वह उक्त आदेश के अधीन
आजीवन कारावास का दंड भुगतने के पर्योजन के िलए आपके ारा समुिचत पर्ािधकारी को और अिभरक्षा म पिरद न कर िदया जाए,
अथवा
यिद कम िकया गया दंडादेश कारावास का है तो “ उक्त जेल म अपनी अिभरक्षा म” शब्द के पश्चात् िलिखए “सुरिक्षत रख और वहां
उक्त आदेश के अधीन कारावास के दंड को िविध के अनुसार िनष्पािदत कर” ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 35 ारा “(धारा 386 देिखए)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
200

पर्रूप सं० 42
मृत्यु दंडादेश के िनष्पादन का वारण्ट
1
[(धारा 413 और 414 देिखए)]
पर्ेिषती—
.................................................(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी तारीख.................. को मेरे समक्ष हुए सेशन म
19.......................के कलेण्डर के मामला संख्यांक.............म बंदी...........................(या, यथािस्थित, पहला, दूसरा, तीसरा बंदी)
.............................(बंदी का नाम) इस न्यायालय के तारीख....................के वारण्ट ारा मृत्यु का दंडादेश देकर आपकी अिभरक्षा म
सुपुदर् िकया गया था ; तथा उक्त दंडादेश को पुष्ट करने वाला उच्च न्यायालय का आदेश इस न्यायालय को पर्ाप्त हो गया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त..................................................को
.....................................(िनष्पादन का समय और स्थान) म जब तक वह मर न जाए तब तक गदर्न से लटकवाकर उक्त दंडादेश का
िनष्पादन कर और यह वारण्ट इस न्यायालय को पृष्ठांकन ारा यह पर्मािणत करते हुए लौटा द िक दंडादेश का िनष्पादन कर िदया
गया है ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 43
कु क और िवकर्य ारा जुमार्ने का उगर्हण करने के िलए वारण्ट
131

(धारा 421 देिखए)


पर्ेिषती—
.............................................(उस पुिलस अिधकारी का या उस अन्य िक्त का या उन अन्य िक्तय के नाम और
पदािभधान िजसे या िजन्ह वारण्ट िनष्पािदत करना है) ।
..........................................................................(अपराधी का नाम और वणर्न) तारीख..............................को
..............................................(अपराध का थोड़े म वणर्न कीिजए) के अपराध के िलए मेरे समक्ष दोषिस िकया गया था और
...............................................रुपए का जुमार्ना देने के िलए दंडािदष्ट िकया गया था तथा उक्त............................................(नाम)
ने उक्त जुमार्ना देने की अपेक्षा की जाने पर भी वह जुमार्ना या उसका कोई भाग नह िदया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप.......................................................िजले
के अंदर पाई जाने वाली उक्त............................................(नाम) की िकसी भी जंगम संपि को कु कर् कर ; और यिद ऐसी कु क के ठीक
पश्चात्........................................................................................(अनुज्ञात िदन या घंट की संख्या) के अंदर (या तत्काल) उक्त
रािश न दी जाए तो कु कर् की गई जंगम संपि का या उसके इतने भाग का िजतना उक्त जुमार्ने की पूित के िलए पयार्प्त हो, िवकर्य कर द
और इस वारण्ट के अधीन जो कु छ आपने िकया हो उसे पर्मािणत करते हुए इसे, इसका िनष्पादन हो जाने पर पृष्ठांकन करके तुंत उ
लौटा द ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 35 ारा “(धारा 414 देिखए)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
201

पर्रूप सं० 44
जुमार्ने की वसूली के िलए वारण्ट
132

(धारा 421 देिखए)


पर्ेिषती—
.................................................................................................................................................िजले का कलेक्टर ।
......................................................................(अपराधी का नाम, पता और वणर्न) को 19...............के ..........................मास के
......................................िदन.......................................................(अपराध का संिक्षप्त वणर्न कीिजए) के अपराध के िलए मेरे समक्ष
िस दोष िकया गया था और.................................................रुपए का जुमार्ना देने के िलए दंडािदष्ट िकया गया था ; और
उक्त ................................................. (नाम) से य िप उक्त जुमार्ना देने की अपेक्षा की गई थी िकतु उसने वह जुमार्ना या
उसका कोई भाग नह िदया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अनुरोध िकया जाता है िक आप उक्त............................................
(नाम) की जंगम या स्थावर संपि या दोन से उक्त जुमार्ने की रकम भू-राजस्व की बकाया के रूप म वसूल कीिजए और अिवलंब यह
पर्मािणत कीिजए िक आपने इस आदेश के अनुसरण म क्या िकया है ।
ता० ............................. (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
____
1
[पर्रूप सं० 44क
जुमार्ने के वसूल होने तक छोड़े गए अपराधी के हािजर होने के िलए बंधपतर्
133

[धारा 424(1)(ख) देिखए]


म (नाम)(स्थान) का िनवासी हूं । मुझ.े .........................................रुपए का जुमार्ना देने के िलए दंडािदष्ट िकया गया था और
जुमार्ना देने म ितकर्म होने पर......................................(अविध) के िलए कारावास का दंडादेश िदया गया है । न्यायालय ने इस शतर्
पर मेरे छोड़े जाने का आदेश िकया है िक म िनम्निलिखत तारीख (या तारीख ) को हािजर होने के िलए एक बंधपतर् िनष्पािदत करूं,
अथार्त् :—
म इसके ारा अपने को आब करता हूं िक म.....................................न्यायालय के समक्ष िनम्निलिखत तारीख (या तारीख )
को, अथार्त.् ..................को...................बजे हािजर होऊंगा और म अपने को आब करता हूं िक यिद म इसम ितकर्म करूं तो मेरी
..................................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ............................................... (हस्ताक्षर)
जहां बंधपतर् पर्ितभु के साथ िनष्पािदत िकया जाना है वहां यह जोड़
हम इसके ारा अपने को उपयुर्क्त.....................................(नाम) के िलए इस बात के िलए पर्ितभू घोिषत करते ह िक वह
.......................................न्यायालय के समक्ष िनम्निलिखत तारीख (या तारीख ) अथार्त्..........................................को हािजर होगा
और हम इसके ारा अपने को संयुक्तत: और
पृथक्तत: आब करते ह िक इसम उसके ारा ितकर्म िकए जाने पर हमारी.................................रुपए की रािश सरकार को समपहृत
हो जाएगी ।

(हस्ताक्षर)
______

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 35 ारा अंतःस्थािपत ।
202

पर्रूप सं० 45
थाने या न्यायालय के भारसाधक अिधकारी के समक्ष हािजर होने के िलए बंधपतर् और जमानतपतर्
[धारा 436, 1 [(436क)], 437, 2 [437क] 438(3) और 441 देिखए]
म ...................................(नाम) ........................................(स्थान) का िनवासी हूँ ;......................................थाने के
भारसाधक अिधकारी ारा िबना वारण्ट िगरफ्तार या िनरु कर िलए जाने पर (या.................न्यायालय के समक्ष लाए जाने पर)
अपराध से आरोिपत िकया गया हूं तथा मुझसे ऐसे अिधकारी या न्यायालय के समक्ष हािजरी के िलए पर्ितभूित देने की अपेक्षा की गई है ;
म अपने को इस बात के िलए आब करता हूं िक म ऐसे अिधकारी या न्यायालय के समक्ष ऐसे पर्त्येक िदन, हािजर होऊंगा, िजसम ऐसे
आरोप की बाबत कोई अन्वेषण या िवचारण िकया जाए, तथा म अपने को आब करता हूं िक यिद इसम म चूक करूं तो मेरी
............................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ..................... (हस्ताक्षर)
म इसके ारा अपने को (या हम संयुक्तत: और पृथक्तत: अपने को और अपने म से पर्त्येक को) उपरोक्त (नाम) के िलए इस बात के
िलए पर्ितभू घोिषत करता हूं (या करते ह) िक वह.....................................थाने के भारसाधक अिधकारी या................................
न्यायालय के समक्ष ऐसे पर्त्येक िदन, िजसको आरोप का अन्वेषण िकया जाएगा या ऐसे आरोप का िवचारण िकया जाएगा, हािजर होगा,
िक वह ऐसे अिधकारी या न्यायालय के समक्ष (यथािस्थित) ऐसे अन्वेषण के पर्योजन के िलए या उसके िवरु आरोप का उ र देने के िलए
उपिस्थत होगा और म इसके ारा अपने को आब करता हूं (या हम अपने को आब करते ह) िक इसम उसके ारा चूक िकए जाने की
दशा म मेरी/हमारी..............रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ।
ता० ...................... (हस्ताक्षर)
______

पर्रूप सं० 46
पर्ितभूित देने म असफल रहने पर कारावािसत िक्त के उन्मोचन के िलए वारण्ट
(धारा 442 देिखए)

पर्ेिषती—
......................................(स्थान) के जेल का भारसाधक अिधकारी (या वह अन्य अिधकारी िजसकी अिभरक्षा म उक्त िक्त है)
(बन्दी का नाम और वणर्न) तारीख..............................के इस न्यायालय के वारण्ट के अधीन आपकी अिभरक्षा म सुपुदर् िकया
गया था और उसने तत्पश्चात् अपने पर्ितभू (या पर्ितभु ) के सिहत दंड पर्िकर्या संिहता की धारा 441 के अधीन बन्धपतर् सम्यक् रूप से
िनष्पािदत कर िदया है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) को अपनी अिभरक्षा से, जब तक िक
िकसी दूसरी बात के िलए उसका िनरु िकया जाना आवश्यक न हो, तत्काल उन्मोिचत कर द ।
ता०................... (हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 43 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 32 ारा अंत:स्थािपत ।
203

1
[पर्रूप सं० 47
बन्धपतर् पर्वितत कराने के िलए कु क का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
(स्थान) के पुिलस थाने का भारसाधक पुिलस अिधकारी ।

( िक्त का नाम, वणर्न और पता) अपने मुचलके के अनुसरण म (अवसर का उल्लेख कर) पर हािजर होने म असफल रहा है और इस
ितकर्म के कारण उसकी (बंधपतर् म विणत शािस्त) रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो गई है और उक्त ( िक्त का नाम), को सम्यक्
सूचना िदए जाने पर, उक्त रािश देने म या इस बात का िक उक्त रािश की वसूली उससे क्य न की जाए, पयार्प्त कारण बताने म असफल
रहा है ;

इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है िक और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) की...............................िजले के
भीतर पाई जाने वाली जंगम सम्पि को, उसका अिभगर्हण और िनरोध करके कु कर् कर ल और यिद उक्त रािश....................................
िदन के भीतर नह दे दी जाती है तो इस पर्कार कु कर् की गई सम्पि को या उसके उतने भाग को, जो उपयुर्क्त रािश की वसूली के िलए
पयार्प्त हो, बेच द और इस वारण्ट का िनष्पादन करने पर तुंत यह िववरण द िक आपने इस वारण्ट के अधीन क्या िकया है ।

ता० ................
(हस्ताक्षर)]
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 48
बंधपतर् का भंग होने पर पर्ितभू को सूचना
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
....................................................................................(नाम और पता)
आप तारीख.............................को......................................(नाम)..................(स्थान) के इसिलए पर्ितभू बने थे िक वह
इस न्यायालय के समक्ष.................................(तारीख) को हािजर होगा और आपने अपने को आब िकया था िक यिद इसम ितकर्म
होता है तो आपकी....................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ; और उक्त (नाम) इस न्यायालय के समक्ष हािजर होने
म असफल रहा है और इस ितकर्म के कारण आपकी...........................रुपए की उपयुर्क्त रािश समपहृत हो गई है ;

इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप आज की तारीख से...........................िदन के भीतर उक्त शािस्त का संदाय कर द या
यह कारण बताएं िक आपसे उक्त रािश वसूल क्य न की जाए ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

1
1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 35 ारा अन्तःस्थािपत ।
204

पर्रूप सं० 49
सदाचार के िलए बंधपतर् के समपहरण की पर्ितभू को सूचना
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
.... .............................................................................(नाम और पता)
आप तारीख ...........................को.........................................(नाम).............................................(स्थान) के िलए इस
बंधपतर् ारा पर्ितभू बने थे िक वह.......................अविध के िलए सदाचारी रहेगा और आपने अपने को आब िकया था िक इसम
ितकर्म होने पर आपकी...................................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो जाएगी ; और आपके ऐसे पर्ितभू बनने के बाद
से उक्त.....................................(नाम) को.............................................(यहां पर संक्षप
े म अपराध का उल्लेख कर) के अपराध के
िलए दोषिस िकया गया है, इस कारण आपका पर्ितभूित बंधपतर् समपहृत हो गया है ;

इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप...............................िदन के भीतर उक्त.............................रुपए की शािस्त दे द या


यह कारण बताएं िक उसका संदाय क्य नह िकया जाना चािहए ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

______

पर्रूप सं० 50
पर्ितभू के िवरु कु क का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
.................................................................................(नाम और पता)
............................................................................(नाम, वणर्न और पता) ने अपने को.......................................की हािजरी
के िलए पर्ितभू के रूप म आब िकया है िक (बंधपतर् की शतर् का उल्लेख कीिजए) और उक्त (नाम) ने ितकर्म िकया है और इस कारण
उसकी...................................................(बंधपतर् म विणत शािस्त) रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो गई है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) की..............................िजले के
भीतर पाई जाने वाली जंगम सम्पि को, उसका अिभगर्हण और िनरोध करके कु कर् कर ल ; और यिद उक्त रािश...........................िदन
के भीतर नह दे दी जाती है तो इस पर्कार कु कर् की गई सम्पि को या उसके उतने भाग को जो उपयुर्क्त रािश की वसूली के िलए पयार्प्त
हो, बेच द और इस वारण्ट का िनष्पादन करने पर तुत ं यह िववरण द िक आपने इस वारण्ट के , अधीन क्या िकया है ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
205

पर्रूप सं० 51
जमानत पर छोड़े गए अिभयुक्त िक्त के पर्ितभू की सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—

...........................................................................................(स्थान) की िसिवल जेल का अधीक्षक (या पालक) ।


............................................................(पर्ितभू का नाम और वणर्न) ने अपने को.................की हािजरी के िलए पर्ितभू के रूप म
आब िकया है िक (बंधपतर् की शतर् का उल्लेख कीिजए) और उक्त (नाम) की इसम ितकर्म िकया है इसिलए उक्त बंधपतर् म विणत
शािस्त सरकार को समपहृत हो गई है ; और उक्त (पर्ितभू का नाम), को सम्यक् सूचना िदए जाने पर भी उक्त रािश का संदाय करने म या
ऐसा पयार्प्त कारण बताने म असफल रहा है िक उससे उक्त रािश वसूल क्य न की जाए तथा वह रािश उसकी जंगम सम्पि की कु क
और उसे बेचकर वसूल नह की जा सकती है, और िसिवल जेल म......................................(अविध का उल्लेख कीिजए) के िलए उसके
कारावास का आदेश िकया गया है ;
इसिलए आप अथार्त् उक्त अधीक्षक (या पालक) को पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त
..........................................(नाम) को अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उसे उक्त जेल म उक्त (कारावास की अविध) के
िलए सुरिक्षत रख और वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

______

पर्रूप सं० 52
पिरशािन्त कायम रखने के िलए बंधपतर् के समपहरण की कतार् को सूचना
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
........................................................................(नाम, वणर्न और पता)
आपने तारीख ..........................................को यह बंधपतर् िनष्पािदत िकया था िक आप.............(जैसा बंधपतर् म हो) नह करगे
और उस बंधपतर् के समपहरण का सबूत मेरे समक्ष िदया गया है और वह सम्यक् रूप से अिभिलिखत कर िलया गया है ;
इसिलए आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप........................................िदन के भीतर...........................................रुपए की
उक्त शािस्त का संदाय कर द या यह कारण बताएं िक आपसे उक्त रािश वसूल क्य न की जाए ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)

______
206

पर्रूप सं० 53
पिरशांित कायम रखने के िलए बंधपतर् का भंग होने पर कतार् की सम्पि की कु क का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
................................(स्थान) के पुिलस थाने का................................(पुिलस अिधकारी का नाम और पदनाम) ।
...............................................................................(नाम और वणर्न) ने तारीख........................को..............................
रुपए की रािश के िलए एक बंधपतर् िनष्पािदत िकया था िजसम उसने अपने को आब िकया था िक वह पिरशांित का भंग आिद (जैसा
बंधपतर् म हो) नह करे गा और उक्त बंधपतर् के समपहरण का सबूत मेरे समक्ष िदया गया है और वह सम्यक् रूप से अिभिलिखत कर िलया
गया है ; और उक्त (नाम) ......................................... को सूचना देकर उससे अपेक्षा की गई है िक वह कारण बताए िक उक्त रािश का
संदाय क्य नह िकया जाना चािहए तथा वह ऐसा करने म या उक्त रािश का संदाय करने म असफल रहा है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) की......................िजले म पाई जाने
वाली...........................रुपए के मूल्य की जंगम सम्पि को, उसका अिभगर्हण करके कु कर् कर ल और यिद उक्त रािश
...............................के भीतर नह दे दी जाती है तो इस पर्कार कु कर् की गई सम्पि या उसके उतने भाग को जो उस रािश की वसूली के
िलए पयार्प्त हो, बेच द और वारण्ट का िनष्पादन करने पर तुंत यह िववरण द िक आपने इस वारण्ट के अधीन क्या िकया है ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 54
पिरशांित कायम रखने के िलए बंधपतर् का भंग होने पर कारावास का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
...............................(स्थान) की िसिवल जेल का अधीक्षक (या पालक) ।
मेरे समक्ष इस बात का सबूत िदया गया है िक वह सम्यक् रूप से अिभिलिखत िकया गया है िक
...........................................................(नाम और वणर्न) ने उस बंधपतर् का भंग िकया है जो उसने पिरशांित कायम रखने के िलए
िनष्पािदत िकया था और इसिलए उसकी........................रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो गई है, और उक्त (नाम) ऊपर बताई
गई रािश का संदाय करने म या यह कारण बताने म िक उक्त रािश का संदाय क्य नह िकया जाना चािहए, असफल रहा है, य िप
उससे ऐसा करने की सम्यक् रूप से अपेक्षा की गई थी तथा उक्त रािश की वसूली उसकी जंगम सम्पि की कु क करके नह की जा सकती
है और (कारावास की अविध) की अविध के िलए िसिवल जेल म उक्त (नाम) के कारावास के िलए आदेश िकया गया है ;
इसिलए आपको अथार्त् उक्त िसिवल जेल के अधीक्षक (या पालक) को पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक
आप (नाम) को अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उसे उक्त अविध (कारावास की अविध) के िलए उक्त जेल म सुरिक्षत रख
और वारण्ट के िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______
207

पर्रूप सं० 55
सदाचार के बंधपतर् के समपहरण पर कु क और िवकर्य का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
.......................................................................(स्थान) के पुिलस थाने का भारसाधक पुिलस अिधकारी ।
................................................................(नाम, वणर्न और पता) ने तारीख.......................को..............................(कतार् का
नाम आिद) के सदाचार के िलए......................रुपए की रािश के बंधपतर् ारा पर्ितभूित दी थी और मेरे समक्ष यह सबूत िदया गया है और
वह सम्यक् रूप से अिभिलिखत िकया गया है िक उक्त (नाम) ने...............................का अपराध िकया है और इसिलए उक्त बंधपतर्
समपहृत हो गया है, और उक्त (नाम) को यह अपेक्षा करते हुए सूचना दी गई थी िक वह कारण बताए िक उक्त रकम का संदाय क्य नह
िकया जाना चािहए तथा वह ऐसा करने म या उक्त रािश का संदाय करने म असफल रहा है ;
इसिलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) की.............िजले म पाई जाने
वाली..................................रुपए के मूल्य की जंगम सम्पि को, उसका अिभगर्हण करके कु कर् कर ल और यिद उक्त रािश
....................................के भीतर नह दी दी जाती है तो इस पर्कार कु कर् की गई सम्पि या उसके उतने भाग को जो उस रािश की
वसूली के िलए पयार्प्त हो बेच द और इस वारण्ट का िनष्पादन करने पर तुंत यह िववरण द िक आपने इस वारण्ट के अधीन क्या
िकया है ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

पर्रूप सं० 56
सदाचार के िलए बंधपतर् के समपहरण पर कारावास का वारण्ट
(धारा 446 देिखए)
पर्ेिषती—
....................................................(स्थान) की िसिवल जेल का अधीक्षक (या पालक) ।
......................................................(नाम, वणर्न और पता) ने तारीख..................................................को
...............................................(कतार् का नाम आिद) के सदाचार के िलए.................................रुपए की रािश के बंधपतर् ारा
पर्ितभूित दी थी और उक्त बंधपतर् के भंग िकए जाने का सबूत मेरे समक्ष िदया गया है और वह सम्यक् रूप से अिभिलिखत कर िलया गया
है और इसिलए उक्त (नाम) को...................................की रुपए की रािश सरकार को समपहृत हो गई है ; और वह उक्त रािश का
संदाय करने म या यह कारण बताने म िक उक्त रािश का संदाय क्य नह िकया जाना चािहए असफल रहा है, य िप उससे ऐसा करने
की अपेक्षा सम्यक् रूप से की गई थी और उक्त रािश की वसूली उसकी जंगम सम्पि की कु क ारा नह की जा सकती है, और िसिवल
जेल म...........................................(कारावास की अविध) अविध के िलए उक्त (नाम) के कारावास के िलए आदेश कर िदया गया है ;
इसिलए आप अथार्त् अधीक्षक (या पालक) को पर्ािधकृ त िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त (नाम) को
अपनी अिभरक्षा म इस वारण्ट के सिहत ल और उसे उक्त जेल म उक्त अविध (कारावास की अविध) के िलए सुरिक्षत रख और वारण्ट के
िनष्पादन की रीित को पृष्ठांकन ारा पर्मािणत करते हुए इसे लौटा द ।
ता० .....................
(हस्ताक्षर)
(न्यायालय की मुदर्ा)
______

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