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पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण
अिधिनयम, 1999 है ।
(2) इसका िवस्तार संपूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा जो के न्दर्ीयत सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे :
परन्तु इस अिधिनयम के िभन्न-िभन्न उपबंध के िलए िभन्न-िभन्न तारीख िनयत की जा सकगी और िकसी ऐसे उपबंध म इस
अिधिनयम के पर्ारं भ के पर्ित िकसी िनदश का अथर् यह लगाया जाएगा िक वह उस उपबंध के पर्वृ होने के पर्ित िनदश है ।
2. पिरभाषाएं—(1) इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “िनयत िदन” से वह तारीख अिभपर्ेत है, िजसको धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन पर्ािधकरण स्थािपत िकया
जाता है ;
(ख) “पर्ािधकरण” से धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थािपत बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण
अिभपर्ेत है ;
(ग) “अध्यक्ष” से पर्ािधकरण का अध्यक्ष अिभपर्ेत है ;
(घ) “िनिध” से धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन गिठत बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण िनिध
अिभपर्ेत है ;
(ङ) “अंतिरम बीमा िविनयामक पर्ािधकरण” से के न्दर्ीय सरकार ारा संकल्प सं० 17(2)/94-बीमा-5, तारीख
23 जनवरी, 1996 ारा स्थािपत बीमा िविनयामक पर्ािधकरण अिभपर्ेत है ;
(च) “मध्यवत या बीमा मध्यवत ” के अंतगर्त बीमा दलाल, पुनब मा दलाल, बीमा परामश , सवक्षक और
हािन-िनधार्रक ह ;
(छ) “सदस्य” से पर्ािधकरण का पूणर्कािलक या अंशकािलक सदस्य अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त अध्यक्ष भी है ;
(ज) “अिधसूचना” से राजपतर् म पर्कािशत अिधसूचना अिभपर्ेत है ;
(झ) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है ;
(ञ) “िविनयम ” से पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम अिभपर्ेत ह ।
(2) उन शब्द और पद के , जो इस अिधिनयम म पर्युक्त ह और पिरभािषत नह ह िकतु बीमा अिधिनयम, 1938
(1938 का 4) या जीवन बीमा िनगम अिधिनयम, 1956 (1956 का 31) अथवा साधारण बीमा कारबार (राष्टर्ीकरण) अिधिनयम, 1972
(1972 का 57) म पिरभािषत ह, वही अथर् ह जो उनके उन अिधिनयम म ह ।
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अध्याय 2
(ग) अंतिरम बीमा िविनयामक पर्ािधकरण को उस िदन के ठीक पूवर् देय सभी धनरािशयां पर्ािधकरण को देय समझी
जाएंगी ;
(घ) ऐसे सभी वाद और अन्य िविधक कायर्वािहयां जो उस िदन के ठीक पूवर् अंतिरम बीमा िविनयामक पर्ािधकरण
ारा या उसके िवरु संिस्थत की गई थ या जो इस पर्कार संिस्थत की जा सकती थ , पर्ािधकरण ारा या उसके िवरु जारी
रखी जा सकगी या संिस्थत की जा सकगी ।
अध्याय 4
अध्याय 5
िव , लेखा और संपरीक्षा
15. के न्दर्ीय सरकार ारा अनुदान—के न्दर्ीय सरकार, इस िनिम संसद् ारा, िविध ारा, िकए गए सम्यक् िविनयोग के
पश्चात्, पर्ािधकरण को ऐसी धनरािशय का अनुदान दे सके गी जो सरकार इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए उपयोग िकए जाने हेतु
ठीक समझे ।
16. िनिध का गठन—(1) “बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण िनिध” के नाम से ज्ञात एक िनिध का गठन िकया
जाएगा और उसम िनम्निलिखत जमा िकया जाएगा,—
(क) पर्ािधकरण ारा पर्ाप्त सभी सरकारी अनुदान, फीस और पर्भार ;
(ख) पर्ािधकरण ारा ऐसे अन्य सर्ोत से पर्ाप्त सभी रािशयां िजसका के न्दर्ीय सरकार ारा िविनश्चय िकया जाए ;
(ग) बीमाकतार् से पर्ाप्त िविहत पर्ीिमयम आय का पर्ितशत ।
(2) िनिध का उपयोजन िनम्निलिखत की पूित के िलए िकया जाएगा, अथार्त्:—
(क) पर्ािधकरण के सदस्य , अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय के वेतन, भ े और अन्य पािरशर्िमक ;
(ख) पर्ािधकरण के कृ त्य के िनवर्हन से संबंिधत और इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए उसके अन्य य।
17. लेखा और संपरीक्षा—(1) पर्ािधकरण, उिचत लेखा और अन्य सुसंगत अिभलेख रखेगा और लेखा का एक वािषक
िववरण ऐसे पर्रूप म तैयार करे गा जैसा के न्दर्ीय सरकार, भारत के िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक से परामशर् करके िविहत करे ।
(2) पर्ािधकरण के लेखा की संपरीक्षा, भारत का िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक ऐसे अंतराल पर, जो वह िविनिदष्ट करे ,
करे गा और ऐसी संपरीक्षा के संबंध म उपगत य पर्ािधकरण ारा भारत के िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक को संदय
े होगा ।
(3) भारत के िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक और पर्ािधकरण के लेखा की संपरीक्षा के संबंध म उसके ारा िनयुक्त िकसी अन्य
िक्त के , उस संपरीक्षा के संबंध म वे ही अिधकार, िवशेषािधकार और पर्ािधकार ह गे जो िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक के सरकारी
लेखा की संपरीक्षा के संबंध म साधारणतया होते ह और उसे िविशष्ट रूप से बिहयां, लेखा, संबंिधत वाउचर और अन्य दस्तावेज और
कागज पेश िकए जाने की मांग करने और पर्ािधकरण के िकसी भी कायार्लय का िनरीक्षण करने का अिधकार होगा ।
(4) भारत के िनयंतर्क-महालेखापरीक्षक ारा या इस िनिम उसके ारा यथा िनयुक्त िकसी अन्य िक्त ारा पर्मािणत
पर्ािधकरण के लेखे, उनकी संपरीक्षा िरपोटर् के साथ हर वषर् के न्दर्ीय सरकार को अगर्ेिषत िकए जाएंगे और वह सरकार उन्ह संसद् के
पर्त्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।
अध्याय 6
पर्कीणर्
18. िनदेश देने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त—(1) इस अिधिनयम के पूवर्गामी उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना
पर्ािधकरण, इस अिधिनयम के अधीन अपनी शिक्तय के पर्योग या अपने कृ त्य के पालन म, तकनीकी और पर्शासिनक िवषय से
संबंिधत पर्श्न से िभन्न नीित के पर्श्न पर ऐसे िनदेश से आब होगा जो के न्दर्ीय सरकार उसे समय-समय पर िलिखत रूप म दे :
परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई िनदेश िदए जाने के पूवर् पर्ािधकरण को अपने िवचार क्त करने का यावत्साध्य अवसर
िदया जाएगा ।
(2) इस बारे म िक कोई पर्श्न नीित का है या नह , के न्दर्ीय सरकार का िविनश्चय अंितम होगा ।
19. के न्दर्ीय सरकार की पर्ािधकरण को अितिष्ठत करने की शिक्त—(1) यिद िकसी समय के न्दर्ीय सरकार की यह राय
हो िक—
(क) ऐसी पिरिस्थितय के कारण, जो पर्ािधकरण के िनयंतर्ण से बाहर ह, वह इस अिधिनयम के उपबंध ारा या
उनके अधीन उस पर अिधरोिपत कृ त्य का िनवर्हन या कतर् का पालन करने म असमथर् है; या
(ख) पर्ािधकरण ने के न्दर्ीय सरकार ारा इस अिधिनयम के अधीन िदए गए िकसी िनदेश के अनुपालन म या इस
अिधिनयम के उपबंध ारा या उनके अधीन उस पर अिधरोिपत कृ त्य के िनवर्हन या कतर् के पालन म बार-बार ितकर्म
िकया है और ऐसे ितकर्म के फलस्वरूप पर्ािधकरण की िव ीय िस्थित या पर्ािधकरण के पर्शासन को नुकसान हुआ है ; या
(ग) ऐसी पिरिस्थितयां िव मान ह िजनके कारण लोकिहत म ऐसा करना आवश्यक है,
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तो के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा और उन कारण से जो उसम िविनिदष्ट िकए जाएं, अिधक से अिधक छह मास की इतनी अविध
के िलए, िजतनी अिधसूचना म िविनिदष्ट की जाए, पर्ािधकरण को अितिष्ठत कर सके गी और िकसी िक्त को बीमा अिधिनयम, 1938
(1938 का 4) की धारा 2ख के अधीन बीमा िनयंतर्क के रूप म िनयुक्त कर सके गी, यिद ऐसा पहले ही नह कर िदया गया है :
परं तु ऐसी कोई अिधसूचना जारी करने से पूवर्, के न्दर्ीय सरकार, पर्ािधकरण को पर्स्तािवत अिधकर्मण के िवरु अभ्यावेदन
करने का उिचत अवसर देगी और पर्ािधकरण के अभ्यावेदन पर, यिद कोई ह , िवचार करे गी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन पर्ािधकरण को अितिष्ठत करने वाली अिधसूचना के पर्काशन पर,—
(क) अध्यक्ष और अन्य सदस्य, अिधकर्मण की तारीख से ही, उस रूप म अपने पद िरक्त कर दगे ;
(ख) ऐसी सभी शिक्तय , कृ त्य और कतर् का, िजनका इस अिधिनयम के उपबंध ारा या उनके अधीन
पर्ािधकरण ारा या उसकी ओर से पर्योग या िनवर्हन िकया जा सके गा, तब तक, जब तक िक उपधारा (3) के अधीन
पर्ािधकरण का पुनगर्ठन नह कर िदया जाता है, बीमा िनयंतर्क ारा पर्योग और िनवर्हन िकया जाएगा ; और
(ग) पर्ािधकरण के स्वािमत्व या िनयंतर्ण के अधीन सभी संपि , तब तक, जब तक िक उपधारा (3) के अधीन
पर्ािधकरण का पुनगर्ठन नह कर िदया जाता है, के न्दर्ीय सरकार म िनिहत होगी ।
(3) उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अिधसूचना म िविनिदष्ट अितिष्ठत काल की समािप्त पर या उसके पूवर्, के न्दर्ीय
सरकार, उसके अध्यक्ष और अन्य सदस्य की नई िनयुिक्त ारा पर्ािधकरण का पुनगर्ठन करे गी और ऐसी दशा म कोई ऐसा िक्त
िजसने उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन अपना पद िरक्त िकया था, पुनिनयुिक्त के िलए िनरिहत नह समझा जाएगा ।
(4) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अिधसूचना की एक पर्ित और इस धारा के अधीन की गई िकसी
कारर् वाई की और उन पिरिस्थितय की, िजनके कारण ऐसी कारर् वाई की गई है पूरी िरपोटर् शीघर्ाितशीघर् संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष
रखवाएगी ।
20. के न्दर्ीय सरकार को िववरिणय , आिद का िदया जाना—(1) पर्ािधकरण, के न्दर्ीय सरकार को, बीमा उ ोग के संपर्वतर्न
और िवकास के िलए िकसी पर्स्तािवत या िव मान कायर्कर्म के संबंध म ऐसी िववरिणयां, ब्यौरे और ऐसी िविशिष्टयां, िजनकी के न्दर्ीय
सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे , ऐसे समय पर तथा ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित से देगा, जो िविहत की जाए या जैसा के न्दर्ीय
सरकार उन्ह देने का िनदेश दे ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, पर्ािधकरण, पर्त्येक िव ीय वषर् के समाप्त होने के पश्चात् नौ
मास के भीतर, पूवर् िव ीय वषर् के दौरान बीमा कारबार के संपर्वतर्न और िवकास के िलए िकर्याकलाप सिहत अपने िकर्याकलाप का
सही और पूणर् ब्यौरा देते हुए एक िरपोटर् के न्दर्ीय सरकार को पर्स्तुत करे गा ।
(3) उपधारा (2) के अधीन पर्ाप्त िरपोट की पर्ितयां, उनके पर्ाप्त होने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष
रखी जाएंगी ।
21. पर्ािधकरण के अध्यक्ष, सदस्य , अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय का लोक सेवक होना—पर्ािधकरण के अध्यक्ष, सदस्य ,
अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय के बारे म, जब वे इस अिधिनयम के िकन्ह उपबंध के अनुसरण म कोई कायर् कर रहे ह या उनका
कायर् करना तात्पियत है, यह समझा जाएगा िक वे भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 21 के अथर् के भीतर लोक सेवक ह ।
22. स ावपूवक र् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण—इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िनयम या िविनयम के
अधीन स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत िकसी बात के िलए कोई वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही के न्दर्ीय
सरकार या के न्दर्ीय सरकार के िकसी अिधकारी या पर्ािधकरण के िकसी सदस्य, अिधकारी या अन्य कमर्चारी के िवरु नह होगी :
परं तु इस अिधिनयम की कोई बात िकसी िक्त को ऐसे िकसी वाद या अन्य कायर्वाही से जो इस अिधिनयम के अितिरक्त,
उसके िवरु लाई जा सकती है, छू ट पर्दान नह करे गी ।
23. शिक्तय का पर्त्यायोजन—(1) पर्ािधकरण, िलिखत साधारण या िवशेष आदेश ारा, पर्ािधकरण के अध्यक्ष या िकसी
अन्य सदस्य या अिधकारी को ऐसी शत के , यिद कोई ह , अधीन रहते हुए, जो आदेश म िविनिदष्ट की जाएं, इस अिधिनयम के अधीन
अपनी ऐसी शिक्तय और कृ त्य को, िजन्ह वह आवश्यक समझे, पर्त्यायोिजत कर सके गा ।
(2) पर्ािधकरण, िलिखत साधारण या िवशेष आदेश ारा सदस्य की सिमितयां भी गिठत कर सके गा और उन्ह पर्ािधकरण की
ऐसी शिक्तयां और कृ त्य जो िविनयम ारा िविनिदष्ट िकए जाएं, पर्त्यायोिजत कर सके गा ।
24. िनयम बनाने की शिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार, इस अिधिनयम के उपबंध को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम,
अिधसूचना ारा, बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम िनम्निलिखत सभी या िकन्ह
िवषय के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :—
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(क) धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन अंशकािलक सदस्य से िभन्न सदस्य को संदय
े वेतन और भ े तथा उनकी
सेवा के अन्य िनबंधन और शत ;
(ख) धारा 7 की उपधारा (2) के अधीन अंशकािलक सदस्य को संद िकए जाने वाले भ े ;
(ग) ऐसी अन्य शिक्तयां, जो धारा 14 की उपधारा (2) के खंड (थ) के अधीन पर्ािधकरण ारा पर्योग की जा
सकगी ;
(घ) पर्ािधकरण ारा धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन रखे जाने वाले लेखा के वािषक िववरण का पर्रूप ;
(ङ) वह पर्रूप और रीित िजसम और वह समय िजसके भीतर धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन के न्दर्ीय सरकार
को िववरिणयां और िववरण तथा िविशिष्टयां दी जाएंगी ;
(च) धारा 25 की उपधारा (5) के अधीन वे िवषय िजन पर बीमा सलाहकार सिमित पर्ािधकरण को सलाह देगी ;
(छ) कोई अन्य िवषय, जो िनयम ारा िविहत िकया जाना है या िविहत िकया जाए अथवा िजसकी बाबत उपबंध
िकया जाना है या िकया जाए ।
25. बीमा सलाहकार सिमित की स्थापना—(1) पर्ािधकरण, अिधसूचना ारा, ऐसी तारीख से िजसे वह ऐसी अिधसूचना म
िविनिदष्ट करे , बीमा सलाहकार सिमित के नाम से ज्ञात सिमित की स्थापना कर सके गा ।
(2) बीमा सलाहकार सिमित म वािणज्य, उ ोग, पिरवहन, कृ िष, उपभोक्ता मंच , सवक्षक , अिभकतार् , मध्यवितय ,
सुरक्षा और हािन िनवारण म लगे हुए संगठन , अनुसंधान िनकाय और बीमा सेक्टर के कमर्चारी संगम के िहत का पर्ितिनिधत्व करने
के िलए 25 से अनिधक सदस्य ह गे, िजनम पदेन सदस्य सिम्मिलत नह ह ।
(3) पर्ािधकरण का अध्यक्ष और सदस्य, बीमा सलाहकार सिमित का पदेन अध्यक्ष और पदेन सदस्य ह गे ।
(4) बीमा सलाहकार सिमित का उ ेश्य धारा 26 के अधीन िविनयम बनाने से संबंिधत िवषय पर पर्ािधकरण को सलाह
देना होगा ।
(5) उपधारा (4) के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, बीमा सलाहकार सिमित ऐसे अन्य िवषय पर जो िविहत िकए
जाएं, पर्ािधकरण को सलाह दे सके गी ।
26. िविनयम बनाने की शिक्त—(1) पर्ािधकरण, बीमा सलाहकार सिमित के परामशर् से, इस अिधिनयम के पर्योजन को
कायार्िन्वत करने के िलए, अिधसूचना ारा, ऐसे िविनयम बना सके गा जो इस अिधिनयम और इसके अधीन बनाए गए िनयम से
संगत ह ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िविनयम िनम्निलिखत सभी या
िकन्ह िवषय के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :—
(क) धारा 10 की उपधारा (1) के अधीन पर्ािधकरण के अिधवेशन का समय और स्थान तथा ऐसे अिधवेशन म
कारबार के सं वहार के िलए अपनाई जाने वाली पर्िकर्या, िजसके अंतगर्त आवश्यक गणपूित भी है ;
(ख) धारा 10 की उपधारा (4) के अधीन इसके अिधवेशन म कारबार का सं वहार ;
(ग) धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन पर्ािधकरण के अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय की सेवा के िनबंधन और
अन्य शत ;
(घ) वे शिक्तयां और कृ त्य जो धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन सदस्य की सिमितय को पर्त्यायोिजत िकए जा
सकगे ; और
(ङ) कोई अन्य िवषय, जो िविनयम ारा िविनिदष्ट िकया जाना है या िकया जाए अथवा िजसकी बाबत िविनयम
ारा उपबंध िकया जाना है या िकया जाए ।
27. िनयम और िविनयम का संसद् के समक्ष रखा जाना—इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम और पर्त्येक
िविनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा
जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर्
के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम या िविनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात्
वह िनयम या िविनयम ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िनयम
या िविनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम या िविनयम के ऐसे पिरवितत या
िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
28. अन्य िविधय का लागू होना विजत न होना—इस अिधिनयम के उपबंध तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के उपबंध के
अितिरक्त ह गे न िक उनके अल्पीकरण म ।
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29. किठनाइय को दूर करने की शिक्त—(1) यिद इस अिधिनयम के उपबंध को पर्भावी करने म कोई किठनाई उत्पन्न होती
है तो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म पर्कािशत ऐसे आदेश ारा, ऐसे उपबंध कर सके गी, जो इस अिधिनयम के उपबंध से असंगत न ह
और जो उस किठनाई को दूर करने के िलए आवश्यक पर्तीत ह :
परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश िनयत िदन से दो वषर् की समािप्त के पश्चात् नह िकया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया पर्त्येक आदेश, िकए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष रखा
जाएगा ।
30. 1938 के अिधिनयम 4 का संशोधन—बीमा अिधिनयम, 1938 का संशोधन इस अिधिनयम की पहली अनुसूची म
िविनिदष्ट रीित से िकया जाएगा ।
31. 1956 के अिधिनयम 31 का संशोधन—जीवन बीमा िनगम अिधिनयम, 1956 का संशोधन इस अिधिनयम की दूसरी
अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट रीित से िकया जाएगा ।
32. 1972 के अिधिनयम 57 का संशोधन—साधारण बीमा कारबार (राष्टर्ीयकरण) अिधिनयम, 1972 का संशोधन इस
अिधिनयम की तीसरी अनुसूची म िविनिदष्ट रीित से िकया जाएगा ।
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पहली अनुसूची
(धारा 30 देिखए)
6. धारा 2ग की उपधारा (1) म दूसरे परं तुक के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“परं तु यह भी िक भारतीय बीमा कं पनी से िभन्न कोई बीमाकतार् बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण
अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ पर या उसके पश्चात् भारत म इस अिधिनयम के अधीन िकसी भी पर्कार का बीमा कारबार
करना आरं भ नह करे गा ।” ।
7. धारा 3 म,—
(क) उपधारा (1) म पहले परं तुक के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“परन्तु यह और िक, यथािस्थित, ऐसा िक्त या बीमाकतार् जो बीमा िविनयामक और िवकास
पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ पर या उसके पूवर्, भारत म िकसी वगर् का ऐसा बीमा कारबार कर रहा हो
िजसके िलए ऐसे पर्ारं भ के पूवर् कोई रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् आवश्यक नह था, ऐसे पर्ारं भ से तीन मास की अविध
तक अथवा यिद उसने तीन मास की उक्त अविध के भीतर ऐसे रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन कर िदया था तो ऐसे
आवेदन के िनपटारे तक ऐसा कारबार करता रह सके गा :
परन्तु यह भी िक बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ से ठीक पूवर्
अिभपर्ाप्त िकए गए रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् के बारे म यह समझा जाएगा िक वह पर्ािधकरण से इस अिधिनयम के
उपबंध के अनुसार ही अिभपर्ाप्त िकया गया है ।” ;
(ख) उपधारा (2) म,—
(i) पर्ारं िभक भाग म, “रिजस्टर्ीकरण के िलए पर्त्येक आवेदन के साथ िनम्निलिखत िदए जाएंग—
े ”
के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“रिजस्टर्ीकरण के िलए पर्त्येक आवेदन ऐसी रीित से िकया जाएगा जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए
िविनयम ारा अवधािरत की जाए और उसके साथ िनम्निलिखत िदए जाएंगे :—” ;
(ii) खंड (घ) म “कामकाज पूंजी” के स्थान पर “समाद साधारण पूंजी या कामकाज पूंजी” रख ;
(iii) खंड (च) म, परं तुक के अंत म आने वाले, “और” का लोप कर ;
(iv) खंड (छ) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“(छ) ऐसी फीस का जो िविनयम ारा अवधािरत की जाए, संदाय पर्कट करने वाली रसीद
जो ऐसे पर्त्येक वगर् के कारबार के िलए जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट िकया
जाए पचास हजार रुपए से अिधक नह होगी ;
(ज) ऐसे अन्य दस्तावेज जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट
िकए जाएं ;”;
(ग) उपधारा (2क) के पश्चात् अंतःस्थािपत कर—
“(2कक) पर्ािधकरण ऐसे आवेदक को रिजस्टर करने के िलए अिधमान देगा और उसे रिजस्टर्ीकरण
पर्माणपतर् अनुद करे गा यिद ऐसा आवेदक िष्टय या िष्टय के समूह को स्वास्थ्य रक्षण उपलब्ध कराने के
िलए जीवन बीमा कारबार या साधारण बीमा कारबार करने के ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित म, जो पर्ािधकरण
ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट की जाए, सहमित देता है ।”;
(घ) उपधारा (4) म,—
(i) खंड (च) म “उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम या िकए गए िकसी आदेश” के स्थान पर
िनम्निलिखत रख, —
“उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम या िकसी िविनयम या िकए गए िकसी आदेश अथवा जारी िकए
गए िकसी िनदेश, या”;
(ii) खंड (ज) म, अन्त म “या” अंतःस्थािपत कर;
(iii) खंड (ज) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“(झ) यिद बीमाकतार् बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के अधीन
पर्ािधकरण ारा, यथािस्थित, जारी िकए गए िकसी िनदेश या िकए गए िकसी आदेश का पालन करने म
ितकर्म करता है; या
11
(ञ) यिद बीमाकतार्, कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) या जीवन बीमा िनगम
अिधिनयम, 1956 (1956 का 31) या साधारण बीमा कारबार (राष्टर्ीयकरण) अिधिनयम, 1972
(1972 का 57) अथवा िवदेशी मुदर्ा िविनयमन अिधिनयम, 1973 (1973 का 46) की िकसी अपेक्षा का
पालन करने म ितकर्म करता है या उसके उल्लंघन म कायर् करता है ।” ;
(ङ) उपधारा (5ग) म,—
(i) “खंड (ज)” के स्थान पर, “खंड (ज) या खंड (झ) या खंड (ञ)” रख ;
(ii) “इस अिधिनयम की या इसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम या िकए गए िकसी आदेश की िकसी
अपेक्षा” के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“इस अिधिनयम की या बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 की या उनके
अधीन बनाए गए िकसी िनयम या िकसी िविनयम की या िकए गए िकसी आदेश की अथवा उन अिधिनयम के
अधीन जारी िकए गए िकसी िनदेश की अपेक्षा” ;
(च) उपधारा (5घ) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“(5ङ) पर्ािधकरण, आदेश ारा, िकसी रिजस्टर्ीकरण को ऐसी रीित से जो उसके ारा बनाए गए
िविनयम ारा अवधािरत की जाए, िनलंिबत या र कर सके गा :
परं तु इस उपधारा के अधीन कोई आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब तक संब िक्त को सुने जाने
का उिचत अवसर न दे िदया गया हो ।”;
(च) उपधारा (7) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“(7) पर्ािधकरण, रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् के खोने, नष्ट होने या िवकृ त होने या ऐसी िकसी अन्य दशा म,
िजसम िक पर्ािधकरण की यह राय हो िक पर्माणपतर् की दूसरी पर्ित का िदया जाना आवश्यक है, उसकी दूसरी पर्ित
पांच हजार रुपए से अनिधक की ऐसी फीस की अदायगी पर दे सके गा, जो िविनयम ारा अवधािरत की जाए ।” ।
8. धारा 3क म,—
(क) उपधारा (1) म, “31 िदसंबर, 1941” के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ पश्चात् 31 माचर्” ;
(ख) उपधारा (2) म,—
(i) “िविहत फीस” के स्थान पर, “ऐसी फीस जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा अवधािरत
की जाए,” रख ;
(ii) खंड (i) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“(i) ऐसी पर्ीिमयम आय के एक पर्ितशत के एक-चौथाई से या पांच करोड़ रुपए से, जो भी कम
हो, अिधक नह होगी ;” ;
(iii) खंड (ii) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“(ii) पर्त्येक वगर् के बीमा कारबार के िलए िकसी भी दशा म पचास हजार रुपए से कम
नह होगी ।” ;
(ग) उपधारा (3) म, “िविहत फीस” के स्थान पर, “ऐसी फीस जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा
अवधािरत की जाए,” रख ;
(घ) उपधारा (4) म “िविहत फीस से” के स्थान पर, “ऐसी फीस से जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा
अवधािरत की जाए,” रख ।
9. धारा 6 के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“6. पूज
ं ी संबध
ं ी अपेक्षा—ऐसे िकसी भी बीमाकतार् को जो बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम,
1999 के पर्ारं भ पर या उसके पश्चात् भारत म जीवन बीमा, साधारण बीमा या पुनब मा का कारबार कर रहा है, तब तक
रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा जब तक िक उसके पास,—
(i) जीवन बीमा या साधारण बीमा का कारबार करने वाले िक्त की दशा म, एक अरब रुपए की
समाद साधारण पूंजी न हो, या
12
(ii) पुनब माकतार् के रूप म अनन्य रूप से कारबार करने वाले िक्त की दशा म, दो अरब रुपए की
समाद साधारण पूंजी न हो :
परं तु खंड (i) या खंड (ii) के अधीन िविनिदष्ट समाद साधारण पूंजी का अवधारण करने म, धारा 7 के
अधीन िकए जाने वाले िनक्षेप और कं पनी के बनाए जाने तथा रिजस्टर्ीकरण म उपगत िकन्ह पर्ारं िभक य को
अपविजत िकया जाएगा :
परन्तु यह और िक ऐसे बीमाकतार् के पास जो बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम,
1999 के पर्ारं भ के पूवर् भारत म जीवन बीमा, साधारण बीमा या पुनब मा का कारबार कर रहा है और िजससे इस
अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त होने की अपेक्षा की जाती है, उस अिधिनयम के पर्ारं भ से छह मास के भीतर,
यथािस्थित, खंड (i) और खंड (ii) के अनुसार, समाद साधारण पूंजी होगी ।” ।
10. धारा 6क म,—
(क) उपधारा (4) के खंड (ख) म,—
(I) उपखंड (i) म, अंत म आने वाले “और” का लोप कर ;
(II) उपखंड (ii) म, “ऐसे अंतरण के िलए के न्दर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी अिभपर्ाप्त नह की गई है” के
स्थान पर, “ऐसे अंतरण के िलए पर्ािधकरण का पूवर् अनुमोदन अिभपर्ाप्त नह कर िलया है” रख ;
(III) उपखंड (ii) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
‘(iii) जहां िकसी िष्ट, फमर्, समूह, समूह के संघटक या उसी पर्बंध के अधीन िनगिमत
िनकाय ारा संयुक्त रूप से अथवा पृथक् रूप से अंतिरत िकए जाने के िलए आशियत शेयर का अिभिहत
मूल्य बीमाकतार् की समाद साधारण पूंजी के एक पर्ितशत से अिधक हो जाता है वहां जब तक िक ऐसे
अंतरण के िलए पर्ािधकरण का पूवर् अनुमोदन अिभपर्ाप्त नह कर िलया है ।
स्पष्टीकरण—इस उपखंड के पर्योजन के िलए, “समूह” और “उसी पर्बंध” पद के वही अथर्
ह गे जो एकािधकार तथा अवरोधक ापािरक वहार अिधिनयम, 1969 (1969 का 54) म
कर्मशः ह ;’;
(ख) उपधारा (11) म,—
(i) “स्पष्टीकरण 1” के स्थान पर, “स्पष्टीकरण” रख ;
(ii) स्पष्टीकरण 2 का लोप कर ।
11. धारा 6क के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“6कक. कितपय मामल म संपर्वतर्क ारा आिधक्य शेयर धारण को िनिनिहत करने की रीित—(1) कोई भी
संपर्वतर्क, िकसी भी समय िकसी भारतीय बीमा कं पनी म समाद साधारण पूंजी के छब्बीस पर्ितशत या ऐसे अन्य पर्ितशत
से, जो िविहत िकया जाए, अिधक धारण नह करे गा :
परं तु ऐसी दशा म जहां भारतीय बीमा कं पनी, जीवन बीमा, साधारण बीमा या पुनब मा का कारबार शुरू करती है
िजसम संपर्वतर्क समाद साधारण पूंजी के छब्बीस पर्ितशत से अिधक या ऐसा अन्य अिधक पर्ितशत, जो िविहत िकया जाए,
धारण करता है वहां ऐसे संपर्वतर्क, समाद साधारण पूंजी के छब्बीस पर्ितशत से अिधक शेयर पूंजी को या ऐसी अिधक
समाद साधारण पूंजी म जो िविहत की जाए, ऐसी भारतीय बीमा कं पनी ारा उक्त कारबार के पर्ारं भ की तारीख से दस
वषर् की अविध के पश्चात् या ऐसी अविध के भीतर, जो के न्दर्ीय सरकार ारा िविहत की जाए, चरणब रीित से
िनिनिहत करे गा ।
स्पष्टीकरण—शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक परं तुक की कोई बात धारा 2 के खंड
(7क) के उपखंड (ख) म िनिदष्ट ऐसे संपर्वतर्क को जो िवदेशी कं पनी है, लागू नह होगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन आिधक्य म की शेयर पूंजी को िनिनिहत करने की रीित और पर्िकर्या पर्ािधकरण ारा
बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट की जाएगी ।” ।
12. धारा 7 म,—
(क) उपधारा (1) म,—
(i) “जो धारा 2 के खंड (9) के उपखंड (ग) म िविनिदष्ट बीमाकतार् नह है,” का लोप कर ;
(ii) खंड (क) और खंड (ख) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
13
“(क) जीवन बीमा कारबार की दशा म, उसके उस समस्त पर्ीिमयम के योग के जो 31 माचर्,
2000 के पश्चात् पर्ारं भ हुए िकसी िव ीय वषर् म भारत म िलिखत है, दस करोड़ रुपए से अिधक नह है
एक पर्ितशत के बराबर की रािश होगी ;
(ख) साधारण बीमा कारबार की दशा म, उसके उस समस्त पर्ीिमयम के योग के जो 31 माचर्,
2000 के पश्चात् पर्ारं भ हुए िकसी िव ीय वषर् म भारत म िलिखत है, दस करोड़ रुपए से अिधक नह है
तीन पर्ितशत के बराबर की रािश होगी ;
(ग) पुनब मा कारबार की दशा म, बीस करोड़ रुपए की रािश होगी ;” ;
(ख) उपधारा (1क), उपधारा (1ख), उपधारा (1ग), उपधारा (1घ) और उपधारा (1ङ) का लोप कर ।
13. धारा 11 म,—
(क) उपधारा (1) म “पर्त्येक कै लेण्डर वषर्” के स्थान पर, “पर्त्येक िव ीय वषर्” रख ;
(ख) उपधारा (1) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“(1क) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक बीमाकतार्, बीमा िविनयामक और िवकास
पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ पर या उसके पश्चात् उसके ारा िकए गए बीमा कारबार के संबंध म और
उसके शेयरधारक की िनिधय के संबंध म, पर्त्येक िव ीय वषर् की समािप्त पर उस वषर् के संबंध म, पर्ािधकरण
ारा बनाए गए िविनयम के अनुसार एक तुलनपतर्, लाभ-हािन लेखा, पर्ािप्तय और संदाय का पृथक् लेखा,
आमदनी खाता तैयार करे गा ।
(1ख) पर्त्येक बीमाकतार्, शेयरधारक और पािलसी धारक की िनिधय से संबंिधत पृथक् खाता
रखेगा ;” ।
14. धारा 13 म—
(क) उपधारा (1) म—
(i) “पर्त्येक तीन वषर् म कम से कम एक बार” के स्थान पर, “पर्त्येक वषर्” रख ;
(ii) पहले परं तुक म “चार वषर् के पश्चात् की न हो” के स्थान पर, “दो वषर् के पश्चात् की न हो” रख ;
(iii) दूसरे परं तुक के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“परं तु यह भी िक बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ के
ठीक पहले भारत म जीवन बीमा कारबार करने वाले बीमाकतार् के िलए अंितम तारीख, िजसको ऐसे
पर्ारं भ के पश्चात् पर्थम अन्वेषण बीमांकक ारा कराया जाना चािहए, 31 माचर्, 2001 होगी ;”;
(iv) तीसरे परं तक
ु के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“परं तु यह भी िक पर्त्येक बीमाकतार्, बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम,
1999 के पर्ारं भ को या उसके पश्चात् बीमांकक की िरपोटर् की संिक्षिप्त पर्ािधकरण ारा बनाए गए
िविनयम ारा िविनिदष्ट रीित म तैयार कराएगा ।” ;
(ख) उपधारा (4) म परं तुक के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“परं तु यह और िक उपधारा (4) म िनिदष्ट िववरण, पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट पर्रूप
और रीित म संलग्न िकया जाएगा ।” ।
15. धारा 27ख के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“27ग. भारत से बाहर िनिधय के िविनधान का पर्ितषेध—कोई भी बीमाकतार् पािलसी धारक की िनिधय का
पर्त्यक्षतः या अपर्त्यक्षतः भारत से बाहर िविनधान नह करे गा ।
27घ. िविनधान की रीित और शत—(1) पर्ािधकरण, धारा 27, धारा 27क और धारा 27ख म की िकसी बात पर
पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, पािलसी धारक के िहत म, उसके ारा बनाए गए िविनयम ारा, इस अिधिनयम के पर्योजन के
िलए िकसी बीमाकतार् ारा धारण की जाने वाली आिस्तय के िविनधान का समय, रीित और अन्य शत िविनिदष्ट
कर सके गा ।
14
(2) पर्ािधकरण, ऐसे समय, रीित और अन्य शत के बारे म िविनिदष्ट िनदेश दे सके गा िजनके अधीन रहते हुए
पािलसीधारक की िनिधयां ऐसी अवसंरचना और सामािजक सेक्टर म िविनधान की जाएंगी जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए
िनयम ारा िविनिदष्ट िकए जाएं और ऐसे िविनयम बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ
पर या उसके पश्चात् भारत म जीवन बीमा, साधारण बीमा या पुनब मा कारबार करने वाले सभी बीमाकतार् को एकरूप
म लागू ह गे ।
(3) पर्ािधकरण, कारबार की पर्कृ ित को ध्यान म रखते हुए और पािलसी धारक के िहत को संरिक्षत करने के िलए
बीमाकतार् को उसके ारा धािरत की जाने वाली आिस्तय के िविनधान के समय, रीित और अन्य शत से संबंिधत िनदेश
जारी कर सके गा :
परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई िनदेश तब तक जारी नह िकया जाएगा जब तक िक संब बीमाकतार् को सुने
जाने का उिचत अवसर न दे िदया गया हो ।”।
16. धारा 28क की उपधारा (1) म “िदसम्बर के इकतीसव िदन” के स्थान पर, “माचर् के इकतीसव िदन” रख ।
17. धारा 28ख की उपधारा (1) म “िदसम्बर के इकतीसव िदन” के स्थान पर, “माचर् के इकतीसव िदन” रख ।
18. धारा 31ख म,—
(क) उपधारा (1) म “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर, दोन स्थान पर, जहां वे आते ह, “पर्ािधकरण” रख ;
(ख) उपधारा (2) म “िविहत पर्रूप म एक िववरण देगा” के स्थान पर, “पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम
ारा िविनिदष्ट पर्रूप म एक िववरण देगा” रख ;
(ग) उपधारा (3) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(4) इस धारा के अधीन पर्त्येक िनदेश पर्ािधकरण ारा िकए गए आदेश ारा जारी िकया जाएगा :
परं तु इस धारा के अधीन कोई आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब तक िक संब िक्त को सुने जाने
का अवसर न दे िदया गया हो ।” ।
19. धारा 32क के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“32ख. गर्ामीण और सामािजक सेक्टर म बीमा कारबार—पर्त्येक बीमाकतार्, बीमा िविनयामक और िवकास
पर्ािधकरण अिधिनयम 1999 के पर्ारं भ के पश्चात्, गर्ामीण या सामािजक सेक्टर म उतना पर्ितशत जीवन बीमा कारबार और
साधारण बीमा कारबार करे गा िजतना पर्ािधकरण ारा, राजपतर् म, इस िनिम िविनिदष्ट िकया जाए ।” ।
“32ग. गर्ामीण या असंगिठत सेक्टर और िपछड़े वग के संबध
ं म बीमाकतार् की बाध्यताएं—पर्त्येक बीमाकतार्,
बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ के पश्चात्, ऐसे िक्तय को जो गर्ामीण सेक्टर म
िनवास कर रहे ह, असंगिठत या अिनयिमत सेक्टर के कमर्कार अथवा समाज के आिथक रूप से असुरिक्षत या िपछड़े वग के
और ऐसे अन्य पर्वगर् के िक्तय को जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट िकया जाए, जीवन बीमा या
साधारण बीमा पािलिसयां उपलब्ध कराने के िलए धारा 32ख के अधीन बाध्यता का िनवर्हन करे गा और ऐसी पािलिसय
के अन्तगर्त फसल के िलए बीमा भी होगा ।” ।
20. धारा 33 के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
‘अन्वेषण
33. पर्ािधकरण की अन्वेषण और िनरीक्षण की शिक्त—(1) पर्ािधकरण, िकसी भी समय िलिखत आदेश ारा िकसी
ऐसे िक्त को, जो आदेश म िविनिदष्ट हो (िजसे इस धारा म, इसके पश्चात् “अन्वेषक पर्ािधकारी” कहा गया है), िकसी
बीमाकतार् के कायर्कलाप का अन्वेषण करने तथा ऐसे अन्वेषक पर्ािधकारी ारा िकए गए ऐसे िकसी अन्वेषण की िरपोटर्
पर्ािधकरण को देने का िनदेश दे सके गा :
परन्तु ऐसा अन्वेषक पर्ािधकारी, जब कभी आवश्यक हो, इस धारा के अधीन िकसी अन्वेषण म अपनी सहायता के
पर्योजन से लेखापरीक्षक या बीमांकक या दोन को, िनयोिजत कर सके गा ।
(2) कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 235 म इसके पर्ितकू ल िकसी बात के होते हुए भी, अन्वेषक
पर्ािधकारी िकसी बीमाकतार् का तथा उसकी बिहय और लेखा का अपने एक या अिधक अिधकािरय ारा िनरीक्षण िकसी
भी समय करा सके गा तथा पर्ािधकरण ारा ऐसा करने का िनदेश िदए जाने पर कराएगा और अन्वेषक पर्ािधकारी ऐसे
िनरीक्षण की अपनी िरपोटर् की एक पर्ित बीमाकतार् को देगा ।
15
(3) बीमाकतार् के हर पर्बंधक, पर्बंध िनदेशक या अन्य अिधकारी का यह कतर् होगा िक वह उपधारा (1) के अधीन
अन्वेषण अथवा उपधारा (2) के अधीन, िनरीक्षण करने के िलए िनिदष्ट अन्वेषक पर्ािधकारी के समक्ष ऐसी सब लेखा-बिहयां,
रिजस्टर और अन्य दस्तावेज, जो उसकी अिभरक्षा और शिक्त म ह, पेश करे तथा बीमाकतार् के कायर्कलाप से संबंिधत ऐसे
कोई िववरण और जानकारी, िजनकी उक्त अन्वेषक पर्ािधकारी ारा उससे अपेक्षा की जाए, इतने समय के अन्दर उस दे
िजतना उक्त अन्वेषक पर्ािधकारी ारा िविनिदष्ट िकया जाए ।
(4) उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण करने के िलए अथवा उपधारा (2) के अधीन िनरीक्षण करने के िलए िनिदष्ट,
अन्वेषक पर्ािधकारी बीमाकतार् के कारबार के संबंध म बीमाकतार् के िकसी पर्बंधक, पर्बंध िनदेशक या अन्य अिधकारी की शपथ
पर परीक्षा कर सके गा और उसके अनुसार शपथ गर्हण करा सके गा ।
(5) अन्वेषक पर्ािधकारी, इस धारा के अधीन िकए गए िकसी िनरीक्षण की बाबत पर्ािधकरण को िरपोटर् उस दशा म
देगा जबिक िनरीक्षण करने का िनदेश पर्ािधकरण ने उसे िदया हो, तथा िकसी अन्य दशा म पर्ािधकरण को दे सके गा ।
(6) उपधारा (1) अथवा उपधारा (5) के अधीन िकसी िरपोटर् की पर्ािप्त पर, पर्ािधकरण, उस िरपोटर् के संबंध म
अभ्यावेदन करने का बीमाकतार् को ऐसा अवसर देने के पश्चात् जो पर्ािधकरण की राय म युिक्तयुक्त पर्तीत हो, िलिखत
आदेश ारा—
(क) बीमाकतार् से यह अपेक्षा कर सके गा िक िरपोटर् से उत्पन्न िकसी िवषय के बारे म वह ऐसी कारर् वाई
करे जैसी पर्ािधकरण ठीक समझे ; या
(ख) बीमाकतार् का रिजस्टर्ीकरण र कर सके गा ; या
(ग) िकसी िक्त को िनदेश दे सके गा िक वह उस दशा म, िजसम िक बीमाकतार् कं पनी है, उसके
पिरसमापन के िलए न्यायालय म आवेदन करे , भले ही बीमाकतार् का रिजस्टर्ीकरण खंड (ख) के अधीन र िकया
गया हो या नह ।
(7) पर्ािधकरण, बीमाकतार् को युिक्तयुक्त सूचना देने के पश्चात् उपधारा (5) के अधीन अन्वेषक पर्ािधकारी ारा
दी गई िरपोटर् को, या उसके ऐसे भाग को, जो उसे आवश्यक पर्तीत हो, पर्कािशत कर सके गा ।
(8) पर्ािधकरण वह न्यूनतम जानकारी, जो बीमाकतार् ारा अपनी बिहय म रखी जानी है, वह रीित िजसम ऐसी
जानकारी रखी जाएगी, वे जांच-पड़ताल तथा अन्य सत्यापन, जो बीमाकतार् ारा इस संबंध म िकए जाने ह तथा उनसे
आनुषंिगक सब अन्य ऐसी बात, जो उसकी राय म अन्वेषक पर्ािधकारी को इस धारा के अधीन अपने कृ त्य के िनवर्हन म
समथर् बनाने के िलए आवश्यक ह, उसके ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट कर सके गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए “बीमाकतार्” शब्द के अन्तगर्त, भारत म िनगिमत बीमाकतार् की
दशा म,—
(क) उसकी वे सब समनुषंगी आती ह जो अनन्यतः भारत के बाहर बीमा कारबार करने के पर्योजन से
बनाई गई ह ; और
(ख) उसकी सब शाखाएं आती ह, भले ही वे भारत म या भारत के बाहर िस्थत ह ।
(9) उपधारा (6) के खंड (ख) के अधीन िकए गए आदेश से िभन्न िकसी भी ऐसे आदेश पर, जो इस धारा के अधीन
िकया गया है, िकसी न्यायालय म आक्षेप नह िकया जाएगा ।
(10) इस धारा के अधीन िकए गए िकसी अन्वेषण के और उससे आनुषंिगक सब य बीमाकतार् ारा चुकाए जाएंगे
तथा बीमाकतार् से शोध्य अन्य ऋण पर अगर्ता रखगे तथा भू-राजस्व की बकाया के रूप म वसूलीय ह गे ।” ।
21. धारा 33क म से “के न्दर्ीय सरकार या” का लोप कर ।
22. धारा 34ज म,—
(क) उपधारा (1) म,—
(i) “िनयंतर्क” के स्थान पर “पर्ािधकरण के अध्यक्ष” रख ;
(ii) “सहायक बीमा िनयंतर्क” के स्थान पर “पर्ािधकरण ारा पर्ािधकृ त अिधकारी” रख ;
(ख) उपधारा (5) और उपधारा (7) म, “िनयंतर्क” के स्थान पर, जहां भी वह आता है, “पर्ािधकरण के
अध्यक्ष” रख ।
23. धारा 35 म,—
(क) उपधारा (1) म “िनयंतर्क ारा मंजूर की गई” के स्थान पर “पर्ािधकरण ारा अनुमोदन की गई” रख ;
16
िविनयम ारा अवधािरत फीस का संदाय करने पर और यिद अनुज्ञिप्त के नवीकरण का आवेदन िनगर्मन पर्ािधकारी के पास
उस तारीख से, िजसको वह अनुज्ञिप्त पर्वृ नह रह गई है, कम से कम तीस िदन पूवर् नह पहुंचता है तो शािस्त के रूप म
िविनयम ारा अवधािरत अितिरक्त फीस का, जो सौ रुपए से अिधक नह होगी, संदाय करने पर एक बार म तीन वषर् की
अविध के िलए नवीकृ त की जाएगी ।
(4) इस धारा के अधीन अनुज्ञिप्त के नवीकरण के िलए कोई भी आवेदन उस दशा म गर्हण नह िकया जाएगा, जब
िक वह आवेदन, िनगर्मन पर्ािधकारी के पास उस अनुज्ञिप्त के पर्वृ न रह जाने के पूवर् नह पहुंच जाता :
परं तु यिद पर्ािधकरण का यह समाधान हो गया है िक अन्यथा असम्यक् किठनाई होगी तो वह इस उपधारा के
उल्लंघन म िकसी आवेदन को आवेदक ारा सात सौ पचास रुपए की शािस्त का संदाय िकए जाने पर स्वीकार कर सके गा ।
(5) ऊपर िनिदष्ट िनरहर्ताएं िनम्निलिखत ह गी :—
(क) यह िक वह िक्त अवयस्क है ;
(ख) यह िक सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय का यह िनष्कषर् है िक वह िवकृ तिच है ;
(ग) यह िक उसके बारे म सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय का यह िनष्कषर् है िक वह आपरािधक
दुिविनयोजन या आपरािधक न्यास भंग या छल या कू टरचना का या ऐसे िकसी अपराध के दुष्पर्ेरण का या उसे
करने के पर्यत्न का दोषी है :
परं तु जहां िकसी ऐसे अपराध की बाबत िकसी िक्त पर अिधरोिपत दंडादेश की समािप्त से कम से कम
पांच वषर् तीत हो गए ह, वहां पर्ािधकरण ऐसे िक्त की बाबत मामूली तौर पर यह घोषणा करे गा िक उसकी
दोषिसि इस खंड के अधीन िनरहर्ता के रूप म पर्वृ नह रह गई है ;
(घ) यह िक िकसी बीमा पािलसी से या िकसी बीमा कं पनी के पिरसमापन से संबिं धत िकसी न्याियक
कायर्वाही के दौरान या िकसी बीमाकतार् के कायर्कलाप के अन्वेषण के दौरान यह िनष्कषर् िनकाला गया है िक वह
बीमाकतार् या बीमाकृ त के पर्ित िकसी कपट, बेइमानी या दु र्पदेशन का दोषी है यह जानते हुए उसम भागीदार
रहा है या ऐसे अपराध के पर्ित मौनानुकूल रहा है ;
(ङ) यह िक उसके पास ऐसी अपेिक्षत अहर्ताएं और बारह मास से अनिधक की अविध का ऐसा
ावहािरक पर्िशक्षण नह है, जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा इस िनिम िविनिदष्ट िकया जाए ;
(च) यह िक उसने ऐसी परीक्षा उ ीणर् नह की है, जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा इस
िनिम िविनिदष्ट की जाए ;
(छ) यह िक उसने उस आचार संिहता का अितकर्मण िकया है जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम
ारा िविनिदष्ट की जाए ।
(6) यिद यह िनष्कषर् िनकलता है िक मध्यवत या बीमा मध्यवत पूवर्गामी िनरहर्ता म से िकसी से गर्स्त है तो
ऐसी िकसी अन्य शािस्त पर, पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना िजसके िलए वह दायी हो, पर्ािधकरण, इस धारा के अधीन मध्यवत
या बीमा मध्यवत को दी गई अनुज्ञिप्त को र कर देगा और उस दशा म भी र कर सके गा जबिक मध्यवत या बीमा
मध्यवत ने जानते हुए इस अिधिनयम के उपबंध म से िकसी का उल्लंघन िकया है ।
(7) पर्ािधकरण खो गई, नष्ट हो गई या िवकृ त हो गई अनुज्ञिप्त के बदले म उसकी दूसरी पर्ित ऐसी फीस का संदाय
करने पर, जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा अवधािरत की जाए, दे सके गा ।
(8) जो िक्त, मध्यवत या बीमा मध्यवत के रूप म कायर् करने के िलए इस धारा के अधीन दी गई अनुज्ञिप्त
पर्ाप्त िकए िबना मध्यवत या बीमा मध्यवत के रूप म कायर् करे गा वह, जुमार्ने से दंडनीय होगा और जो बीमाकतार् या
बीमाकतार् की ओर से कायर् करने वाला िक्त, िकसी ऐसे िक्त को मध्यवत या बीमा मध्यवत के रूप म िनयुक्त करे गा,
जो उस रूप म कायर् करने के िलए अनुज्ञप्त नह है या भारत म बीमा कारबार ऐसे िकसी िक्त के माध्यम से, करे गा, वह
जुमार्ने से दंडनीय होगा ।
(9) यिद उपधारा (8) का उल्लंघन करने वाला िक्त कं पनी या फमर् है, तो ऐसी िकन्ह अन्य कायर्वािहय पर,
पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना जो कं पनी या फमर् के िवरु की जा सकगी, कं पनी का ऐसा पर्त्येक िनदेशक, पर्बंधक, सिचव या
अन्य अिधकारी और फमर् का ऐसा पर्त्येक भागीदार, िजसने जानते हुए ऐसे उल्लंघन म भाग िलया है, जुमार्ने से दंडनीय
होगा ।” ।
30. धारा 64पक की उपधारा (1) के खंड (क) म “बीमा िनयंतर्क” के स्थान पर “पर्ािधकरण का अध्यक्ष” रख ।
31. धारा 64पख म,—
(क) उपधारा (1) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
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“(1) पर्ािधकरण, इस भाग के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए राजपतर् म अिधसूचना ारा
िविनयम बना सके गा ।” ;
(ख) उपधारा (2) म, “िनयम” के स्थान पर “िविनयम” रख ;
(ग) उपधारा (3) म, “कदर्ीय सरकार” के स्थान पर, दोन स्थान पर, जहां-जहां वे आते ह, “पर्ािधकरण” रख ;
(घ) उपधारा (5) म, “बीमा िनयंतर्क” के स्थान पर “पर्ािधकरण का अध्यक्ष” रख ।
32. धारा 64पग की उपधारा (1) के परन्तुक म “िनयंतर्क के न्दर्ीय सरकार के पूवार्नुमोदन से” के स्थान पर “पर्ािधकरण” रख ।
33. धारा 64पघ म उपधारा (1) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“परं तु पर्ािधकरण का अध्यक्ष, बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ से ही
सलाहकार सिमित का अध्यक्ष बन जाएगा और उस रूप म कायर् करे गा तथा ऐसे पर्ारं भ से ठीक पहले पद धारण करने वाला
टैिरफ सिमित की कोई अध्यक्ष उसका अध्यक्ष नह रहेगा ।” ।
34. धारा 64पञ की उपधारा (5) म “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर, जहां-जहां वह आता है, “पर्ािधकरण” रख ।
35. धारा 64पड म,—
(क) उपधारा (1) म,—
(i) खंड (ख) म “बीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1968 के पर्ारं भ से एक वषर् की अविध की समािप्त के
पश्चात्” के पश्चात् “िकतु बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ से पूवर्”
अंतःस्थािपत कर ;
(ii) खंड (ख) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(खक) ऐसा पर्त्येक िक्त, जो बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999
के पर्ारं भ से एक वषर् की अविध की समािप्त के पश्चात् सवक्षक या हािन-िनधार्रक के रूप म कायर् करने
का इरादा रखता है, पर्ािधकरण को ऐसे समय के भीतर, ऐसी रीित से िजसम और ऐसी फीस का संदाय
करके , जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा अवधािरत की जाए, आवेदन करे गा :
परं तु बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ के ठीक पहले दी
गई अनुज्ञिप्त के बारे म यह समझा जाएगा िक वह ऐसी अनुज्ञिप्त का उपबंध करने वाले िविनयम के
अनुसार दी गई है ।”;
(iii) खंड (ग) म, “जो िविहत की जाए,” के स्थान पर, “जो िविनयम ारा अवधािरत की जाए,” रख ;
(iv) खंड (घ) के उपखंड (i) म,—
(अ) मद (क) के स्थान िनम्निलिखत रख,—
“(क) वह बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ की
तारीख को सवक्षक या हािन-िनधार्रक के रूप म वसाय कर रहा था, या” ;
(आ) मद (च) म, “िविहत” के स्थान पर “पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा
िविनिदष्ट” रख ;
(ख) उपधारा (1) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर—
“(1क) पर्त्येक सवक्षक और हािन-िनधार्रक, अपने कतर् , उ रदाियत्व और अन्य वृि क अपेक्षा की
बाबत उस आचार संिहता का अनुपालन करे गा जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट
की जाए ।”।
36. धारा 64फ म,—
(क) उपधारा (1) म,—
(i) खंड (i) म, खंड (छ) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
“(ज) ऐसी अन्य आिस्त या आिस्तयां, जो इस िनिम बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट की
जाएं ;”;
(ii) खंड (ii) म,—
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(अ) उपखंड (ख) की मद (i) और मद (ii) म, “40 पर्ितशत” के स्थान पर, “50 पर्ितशत” रख ;
(आ) उपखंड (च) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(छ) ऐसा अन्य दाियत्व जो खंड (ii) के पर्योजन के िलए सिम्मिलत िकए जाने हेतु
इस िनिम सृिजत िकया जाए ।” ;
(ख) उपधारा (2) के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“(2) पर्त्येक बीमाकतार्, यथािस्थित, साधारण बीमा कारबार के संबंध म पर्ािधकरण ारा अनुमोिदत
लेखापरीक्षक ारा या जीवन बीमा कारबार की बाबत पर्ािधकरण ारा अनुमोिदत बीमांकक ारा पर्मािणत अपनी
आिस्तय और दाियत्व का िववरण, िजनका इस धारा ारा अपेिक्षत रीित से िनधार्रण पूवर्वत वषर् की 31 माचर्
को िकया गया है, यथािस्थित, धारा 15 या धारा 16 के अधीन दी गई अपनी िववरिणय के साथ पर्ािधकरण
को देगा ।
(3) पर्त्येक बीमाकतार् अपनी आिस्तय और दाियत्व का मूल्यांकन इस धारा ारा अपेिक्षत रीित से और
पर्ािधकरण ारा इस िनिम बनाए गए िविनयम के अनुसार, करे गा ।” ।
37. धारा 64फक म,—
(क) उपधारा (1) म, “सदैव” के स्थान पर, “बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ
के पूवर् सदैव” रख ;
(ख) उपधारा (1) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर,—
‘(1क) पर्त्येक बीमाकतार्, अपने दाियत्व की रकम के ऊपर अपनी आिस्तय का मूल्य बीमा िविनयामक
और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ को या उसके पश्चात्, सदैव इतना अिधक बनाए रखेगा जो
िनम्निलिखत रीित से िनकाली गई रकम से कम न हो (िजसे इस धारा म इसके पश्चात्, “अपेिक्षत शोधन क्षमता
मािजन” कहा गया है, अथार्त् :—
(i) जीवन बीमा कारबार करने वाले बीमाकतार् की दशा म, अपेिक्षत शोधन क्षमता मािजन
िनम्निलिखत रकम से उच्चतर होगा—
(क) पचास करोड़ रुपए (पुनब माकतार् की दशा म, एक अरब रुपए) ;
(ख) नीचे उिल्लिखत मद (I) और (II) म िनकाले गए पिरणाम की कु ल रािश :—
(I) नीचे मद (अ) (“पर्कर्म 1”) म विणत संगणना और नीचे मद (आ)
(“पर्कर्म 2”) म विणत संगणना को लागू करके पर्ाप्त पिरणाम का योग :
(अ) पर्कर्म 1 के िलए—
(अ-1) िविनयम ारा अवधािरत पर्ितशत के बराबर
रािश, जो सीधे कारबार के िलए गिणतीय आरिक्षित के पांच
पर्ितशत से अिधक नह होगी और पुनब मा समािप्त के िलए
िकसी कटौती के िबना पुनब मा स्वीकृ ितय की रािश िनकाली
जाएगी ;
(अ-2) पुनब मा समािप्तय की कटौती के पश्चात्,
पूवर्वत िव ीय वषर् के अंत म गिणतीय आरिक्षितय की रकम,
ऐसी िकसी कटौती के पूवर् उन गिणतीय आरिक्षितय की रकम
के पर्ितशत के रूप म क्त की जाएगी; और
(अ-3) ऊपर मद (अ-1) म उिल्लिखत रािश को
िनम्निलिखत से गुणा िकया जाएगा—
(अ-3.1) जहां ऊपर मद (अ-2) के अधीन
िनकाला गया पर्ितशत पचासी पर्ितशत (या अनन्य
रूप से पुनब मा कारबार करने वाले पुनब माकतार् की
दशा म, पचास पर्ितशत) से अिधक है उतने अिधक
पर्ितशत, और
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(iii) “जोिखम रािश” से जीवन बीमा पािलसी के संबंध म, ऐसी रािश अिभपर्ेत है जो—
(क) ऐसी िकसी दशा म, िजसम नीचे उपखंड (ख) के अंतगर्त आने वाले मामले से िभन्न िकसी
मामले म मृत्यु के पिरणामस्वरूप रकम संदय
े है, मृत्यु पर संदय
े रकम, और
(ख) िकसी ऐसी दशा म, िजसम पर्श्नगत पािलसी के अधीन फायदे के अंतगर्त, मृत्यु के
पिरणामस्वरूप, िकसी वािषकी का संदाय, िकस्त म की गई िकसी रािश का संदाय अथवा िकसी अन्य
िकस्म के साविधक संदाय ह तो उस फायदे का वतर्मान मूल्य, नई लाइन से दोन दशा म, सुसंगत
पािलिसय की बाबत गिणतीय आरिक्षितय म से कम की जाएगी ।’ ;
(ग) उपधारा (2) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(2क) यिद बीमाकतार् िकसी समय, अपेिक्षत शोधन क्षमता मािजन इस धारा के उपबंध के अनुसार,
नह बनाए रखता है, तो वह, पर्ािधकरण ारा जारी िकए गए िनदेश के अनुसार, पर्ािधकरण को, तीन मास से
अनिधक की िविनिदष्ट अविध के भीतर, कमी को दूर करने के िलए कायर् योजना उपदिशत करते हुए, एक िव ीय
योजना पर्स्तुत करे गा ।
(2ख) ऐसा बीमाकतार्, िजसने पर्ािधकरण को उपधारा (2क) के अधीन योजना पर्स्तुत की है, यिद
पर्ािधकरण इसे अपयार्प्त समझता है तो योजना म उपांतरण का पर्स्ताव करे गा और पर्ािधकरण ारा पयार्प्त रूप
म स्वीकार की गई योजना को पर्भावी करे गा ।
(2ग) ऐसा बीमाकतार् उपधारा (2क) के उपबंध का अनुपालन नह करे गा, तो उसे िदवािलया समझा
जाएगा और न्यायालय ारा उसका पिरसमापन कर िदया जाएगा ।” ;
(घ) उपधारा (6) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(7) पर्त्येक बीमाकतार्, यथािस्थित, धारा 15 या धारा 16 के अधीन पर्ािधकरण को अपनी िववरिणय के
साथ, बीमाकतार् ारा रखे जाने वाले अपेिक्षत शोधन क्षमता मािजन का, जीवन बीमा कारबार की दशा म,
पर्ािधकरण ारा अनुमोिदत बीमांकक ारा पर्मािणत एक िववरण और साधारण बीमा कारबार की दशा म,
पर्ािधकरण ारा अनुमोिदत लेखापरीक्षक ारा पर्मािणत िववरण उपधारा (1क) ारा अपेिक्षत रीित म पर्स्तुत
करे गा ।” ।
38. धारा 70 की उपधारा (1) म, “उसने िनयंतर्क से रिजस्टर्ीकरण का पर्माणपतर्” के स्थान पर “बीमा िविनयामक और
िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ की तारीख के पूवर् उसने पर्ािधकरण से रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर्” रख ।
39. धारा 95 की उपधारा (1) म, “इस भाग म—” के स्थान पर “बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण अिधिनयम,
1999 के पर्ारं भ की तारीख के पूवर् इस भाग म—” रख ।
40. धारा 101क म,—
(क) उपधारा (1) म, “के न्दर्ीय सरकार ारा” के स्थान पर “पर्ािधकरण ारा के न्दर्ीय सरकार के पूवर्
अनुमोदन से,” रख ;
(ख) उपधारा (2) म, “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर “पर्ािधकरण” रख ।
41. धारा 101ख म,—
(क) उपधारा (1) म, “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर “पर्ािधकरण, के न्दर्ीय सरकार के पूवर् अनुमोदन से,” रख ।
(ख) उपधारा (2) म, “िविहत” के स्थान पर, “पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा अवधािरत” रख ।
42. धारा 102 से धारा 105 के स्थान पर िनम्निलिखत रख,—
“102. इस अिधिनयम के अनुपालन म चूक के िलए या उसके उल्लंघन म कायर् के िलए शािस्त—यिद कोई िक्त
िजससे इस अिधिनयम, या उसके अधीन बनाए गए िनयम अथवा िविनयम के अधीन अपेक्षा है िक वह—
(क) पर्ािधकरण को कोई दस्तावेज, िववरण, लेखा, िववरणी या िरपोटर् पर्स्तुत करे , उन्ह पेश करने म
असफल रहेगा ; या
(ख) िनदेश का पालन करे , ऐसे िनदेश का पालन करने म असफल रहेगा ;
(ग) शोधन क्षमता मािजन बनाए रखे, ऐसा शोधन क्षमता मािजन बनाए रखने म असफल रहेगा ;
(घ) बीमा संिधय के बारे म िनदेश का पालन करे , उक्त बीमा संिधय के ऐसे िनदेश का पालन करने म
असफल रहेगा,
23
तो वह शािस्त का जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए पांच लाख रुपए से अिधक की नह होगी, दायी होगा और जुमार्ने से
दंडनीय होगा ।
103. धारा 3, धारा 7 और धारा 98 के उल्लंघन म बीमा कारबार करने के िलए शािस्त—यिद कोई िक्त ऐसा कथन करे गा
या कोई दस्तावेज, िववरण, लेखा, िववरणी या िरपोटर् पर्स्तुत करे गा जो िमथ्या है और िजसकी बाबत वह या तो यह जानता है या
िवश्वास करता है िक वह िमथ्या है या उसका यह िवश्वास नह है िक वह सही है,—
(क) तो वह शािस्त का जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए पांच लाख रुपए से अिधक की नह होगी,
दायी होगा; और
(ख) वह कारावास से िजसकी अविध ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए तीन वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से
दंडनीय होगा ।
104. दस्तावेज म िमथ्या कथन के िलए शािस्त—यिद कोई िक्त धारा 27 या धारा 27क या धारा 27ख या धारा 27ग या
धारा 27घ के उपबंध का पालन करने म असफल रहेगा तो वह शािस्त का जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए पांच लाख रुपए से
अिधक की नह होगी, दायी होगा ।
105. संपि सदोष अिभपर्ाप्त करना या िवधािरत करना—यिद बीमाकतार् का ऐसा कोई भी िनदेशक, पर्बंध िनदेशक, पर्बंधक
या अन्य अिधकारी या कमर्चारी िकसी संपि का कब्जा सदोष अिभपर्ाप्त करे गा या उक्त अिधिनयम के िकसी पर्योजन के िलए सदोष
उपयोिजत करे गा, तो वह शािस्त का जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए दो लाख रुपए से अिधक की नह होगी, दायी होगा ।
105क. कम्पिनय ारा अपराध—(1) जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध िकसी कं पनी ारा िकया गया है, वहां
ऐसा पर्त्येक िक्त, जो अपराध के िकए जाने के समय उस कं पनी के कारबार के संचालन के िलए उस कं पनी का भारसाधक और उसके
पर्ित उ रदायी था और साथ ही वह कं पनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने
और दंिडत िकए जाने के भागी ह गे :
परं तु इस उपधारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त को दंड का भागी नह बनाएगी यिद वह यह सािबत कर देता है िक
अपराध उसकी जानकारी के िबना िकया गया था या उसने ऐसे अपराध के िकए जाने का िनवारण करने के िलए सब सम्यक् तत्परता
बरती थी ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध िकसी कं पनी ारा िकया गया है
और यह सािबत हो जाता है िक वह अपराध कं पनी के िकसी िनदेशक, पर्बंधक, सिचव या अन्य अिधकारी की सहमित या मौनानुकूलता
से िकया गया है या उस अपराध का िकया जाना उसकी िकसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहां ऐसा िनदेशक, पर्बंधक, सिचव
या अन्य अिधकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दंिडत िकए जाने का
दायी होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए,—
(क) “कं पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त—
(i) फमर् ; और
(ii) िक्तय का संगम या िष्टय का िनकाय है चाहे वह िनगिमत हो या नह ; और
(ख) “िनदेशक” से,—
(i) फमर् के संबध
ं म, फमर् का भागीदार अिभपर्ेत है ;
(ii) िक्तय के संगम या िष्टय के िनकाय के संबंध म, उसके काय का िनयंतर्ण करने वाला कोई
सदस्य अिभपर्ेत है ।
105ख. धारा 32ख का अनुपालन करने म असफलता के िलए शािस्त—यिद बीमाकतार् धारा 32ख के उपबंध का पालन करने
म असफल रहेगा, तो वह ऐसी शािस्त का जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए पांच लाख रुपए से अिधक की नह होगी, दायी होगा और
कारावास से, िजसकी अविध ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए तीन वषर् से कम की नह होगी, अथवा जुमार्ने से, दंडनीय होगा ।
105ग. धारा 32ग का अनुपालन करने म असफलता के िलए शािस्त—यिद बीमाकतार् धारा 32ग के उपबंध का पालन करने
म असफल रहेगा तो वह शािस्त का, जो ऐसी पर्त्येक असफलता के िलए पच्चीस लाख रुपए से अिधक की नह होगी, दायी होगा और
पश्चात्वत और चालू रहने वाली असफलता की दशा म, धारा 3 के अधीन ऐसे बीमाकतार् को अनुद रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर्
पर्ािधकरण ारा र कर िदया जाएगा ।” ।
43. धारा 110क, धारा 110ख और धारा 110ग म, “िनयंतर्क” के स्थान पर, जहां-जहां वह आता है, “पर्ािधकरण का अध्यक्ष”
रख ।
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44. धारा 110छ म, “िनयंतर्क” के स्थान पर, दोन स्थान पर जहां वह आता है, “पर्ािधकरण का अध्यक्ष” रख ।
45. धारा 110ज की उपधारा (1) म, “धारा 34” के स्थान पर, “धारा 27घ, धारा 34” रख ।
46. धारा 114 की उपधारा (2) म—
(क) खंड (क) के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“(कक) समाद साधारण पूंजी के छब्बीस पर्ितशत से अिधक समाद साधारण पूंजी का ऐसा अन्य
पर्ितशत और वह अविध िजसके भीतर ऐसी अिधक समाद साधारण पूंजी धारा 6कक की उपधारा (1) के अधीन
िनिनिहत की जाएगी ।” ;
(ख) खंड (छ) और खंड (ठठ) का लोप कर ।
47. धारा 114 के पश्चात् िनम्निलिखत अंतःस्थािपत कर :—
“114क. िविनयम बनाने की पर्ािधकरण की शिक्त—(1) पर्ािधकरण, इस अिधिनयम के पर्योजन को िकर्यािन्वत
करने के िलए ऐसे िविनयम राजपतर् म अिधसूचना ारा, बना सके गा जो इस अिधिनयम और इसके अधीन बनाए गए िनयम
से सुसंगत ह ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िविनयम िनम्निलिखत
सभी या िकन्ह िवषय के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :—
(क) धारा 3 के अधीन बीमाकतार् के रिजस्टर्ीकरण से संबंिधत िवषय, िजनके अंतगर्त फीस भी है ;
(ख) धारा 3 की उपधारा (5ङ) के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िनलंबन या र करण की रीित ;
(ग) धारा 3 की उपधारा (7) के अधीन रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् की दूसरी पर्ित जारी िकए जाने के िलए
पांच हजार रुपए से अनिधक की ऐसी फीस जो िविनयम ारा अवधािरत की जाए ;
(घ) धारा 3क के अधीन रिजस्टर्ीकरण के नवीकरण और उसके िलए फीस से संबंिधत िवषय ;
(ङ) धारा 6कक की उपधारा (2) के अधीन आिधक्य शेयर पूंजी को िनिनिहत करने की रीित और
पर्िकर्या ;
(च) धारा 11 की उपधारा (1क) के अधीन तुलन-पतर्, लाभ-हािन लेखा और पर्ािप्तय तथा संदाय का
पृथक् लेखा और आय लेखा तैयार करना ;
(छ) वह रीित िजससे धारा 13 की उपधारा (1) के चौथे परं तुक के अधीन बीमांकक की िरपोटर् का सारांश
िविनिदष्ट िकया जाएगा ;
(ज) वह पर्रूप िजसम और वह रीित िजससे धारा 13 की उपधारा (4) म िनिदष्ट िववरण संलग्न िकया
जाएगा ;
(झ) धारा 27घ की उपधारा (1), उपधारा (2) और उपधारा (3) के अधीन बीमाकतार् ारा धािरत
आिस्तय के िविनधान का समय, रीित और अन्य शत ;
(ञ) बीमाकतार् ारा अपनी लेखा पुस्तक म रखी जाने वाली न्यूनतम जानकारी, वह रीित िजसम ऐसी
जानकारी रखी जानी चािहए, बीमा अिभकतार् ारा उस संबध
ं म अपनाई जाने वाली जांच और अन्य सत्यापन
तथा धारा 33 की उपधारा (8) के अधीन उनसे आनुषंिगक सभी अन्य िवषय ;
(ट) धारा 42 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित, बीमा अिभकतार् के रूप म कायर् करने के
िलए अनुज्ञिप्त जारी करने की रीित और फीस ;
(ठ) धारा 42 की उपधारा (3) के अधीन बीमा अिभकतार् की अनुज्ञिप्त के नवीकरण के िलए अवधािरत
की जाने वाली फीस और अितिरक्त फीस ;
(ड) धारा 42 की उपधारा (4) के खंड (ङ) के अधीन बीमा अिभकतार् के रूप म कायर् करने के िलए
अपेिक्षत अहर्ताएं और ावहािरक पर्िशक्षण ;
(ढ) धारा 42 की उपधारा (4) के खंड (च) के अधीन बीमा अिभकतार् के रूप म कायर् करने के िलए परीक्षा
पास करना ;
(ण) धारा 42 की उपधारा (4) के खंड (छ) के अधीन आचार संिहता ;
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(त) धारा 42 की उपधारा (6) के अधीन अनुज्ञिप्त की दूसरी पर्ित जारी करने के िलए फीस जो पचास
रुपए से अिधक की नह होगी ;
(थ) धारा 42घ की उपधारा (1) के अधीन मध्यवत या बीमा मध्यवत को अनुज्ञिप्त देने की रीित
और फीस ;
(द) वह फीस और अितिरक्त फीस जो धारा 42घ की उपधारा (3) के अधीन मध्यवितय या बीमा
मध्यवितय की अनुज्ञिप्त के नवीकरण के िलए अवधािरत की जाएगी ;
(ध) धारा 42घ की उपधारा (5) के खंड (ङ) के अधीन मध्यवितय या बीमा मध्यवितय के िलए अपेिक्षत
और ावहािरक पर्िशक्षण ;
(न) धारा 42घ की उपधारा (5) के खंड (च) के अधीन मध्यवितय या बीमा मध्यवितय के रूप म कायर्
करने के िलए उ ीणर् की जाने वाली परीक्षा ;
(प) धारा 42घ की उपधारा (5) के खंड (छ) के अधीन आचार संिहता ;
(फ) धारा 42घ की उपधारा (7) के अधीन अनुज्ञिप्त की दूसरी पर्ित जारी करने के िलए फीस ;
(ब) ऐसे िवषय जो टैिरफ सलाहकार सिमित से संबंिधत धारा 64पख की उपधारा (2) म िविनिदष्ट िकए
जाएं ;
(भ) धारा 64पड के अधीन सवक्षक और हािन-िनधार्रक के अनुज्ञापन, उनके कतर् , उ रदाियत्व
और अन्य वृि क अपेक्षा से संबंिधत िवषय ;
(म) ऐसी अन्य आिस्त या आिस्तयां, जो धारा 64फक के अधीन आिस्तय की पयार्प्तता सुिनिश्चत करने
के पर्योजन के िलए धारा 64फ की उपधारा (1) के खंड (ज) के अधीन िविनिदष्ट की जाएं ;
(य) धारा 64फ की उपधारा (3) के अधीन आिस्तय और दाियत्व का मूल्यांकन ;
(यक) आिस्तय की पयार्प्तता से संबंिधत धारा 64फक की उपधारा (1क) म िविनिदष्ट िवषय ;
(यख) धारा 101क और धारा 101ख के अधीन पुनब मा से संबंिधत िवषय ;
(यग) पािलसीधारक के िहत का संरक्षण करने के िलए िशकायत को दूर करने और बीमा उ ोग का
िविनयमन, संपर्वतर्न करने तथा उसके सु विस्थत िवकास को सुिनिश्चत करने से संबंिधत िवषय ;
(यघ) कोई अन्य िवषय जो पर्ािधकरण ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट िकया जाना है या
िकया जाए या िजसकी बाबत िविनयम ारा उपबंध िकए जाने ह या िकए जाएं ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िविनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन
के समक्ष, जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म या दो अिधक
आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन
सदन उस िविनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त
अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िविनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो
जाएगा । िकन्तु िविनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर
पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।”
48. धारा 116क म, “के न्दर्ीय सरकार” के स्थान पर, दोन स्थान पर जहां वे आते ह, “बीमा िविनयामक और िवकास
पर्ािधकरण अिधिनयम, 1999 के पर्ारं भ की तारीख से पूवर्, के न्दर्ीय सरकार” रख ।
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दूसरी अनुसूची
(धारा 31 देिखए)
तीसरी अनुसूची
(धारा 32 देिखए)
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