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H198845
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1990 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 30 और अनुसूची/भाग 5 ारा पर्ितस्थािपत ।
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(2) बेनामी धािरत संपि के वास्तिवक स्वामी होने का दावा करने वाले व्यिक्त ारा या उसकी ओर से उस व्यिक्त के िवरु
िजसके नाम संपि धािरत है, या िकसी अन्य व्यिक्त के िवरु , िकसी वाद, दावे या कारर् वाई म बेनामी धािरत िकसी संपि की बाबत
िकसी अिधकार पर आधािरत कोई पर्ितरक्षा अनुज्ञात नह की जाएगी ।
(3) इस धारा की कोई बात वहां लागू नह होगी जहां,—
(क) वह व्यिक्त, िजसके नाम म संपि धािरत है, िहदू अिवभक्त कु टुंब म सहदाियक है, और ऐसी संपि कु टुंब के
सहदाियक के फायदे के िलए धािरत है; या
(ख) वह व्यिक्त, िजसके नाम म संपि धािरत है, न्यासी है या वैश्वािसक हैिसयत म िस्थत अन्य व्यिक्त है, और
संपि ऐसे अन्य व्यिक्त के फायदे के िलए धािरत है िजसके िलए वह न्यासी है या िजसके पर्ित वह ऐसी हैिसयत म िस्थत है ।
5. बेनामी धािरत संपि के अजर्न के िलए दायी होना—(1) सभी बेनामी धािरत संपि यां ऐसे पर्ािधकारी ारा ऐसी रीित म
और ऐसी पर्िकर्या के अनुसार अिजत की जा सकगी, जो िविहत की जाएं ।
(2) शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक उपधारा (1) के अधीन िकसी संपि के अजर्न के िलए कोई
रकम संदय
े नह होगी ।
6. अिधिनयम का कु छ दशा म लागू न होना—इस अिधिनयम की कोई बात संपि अंतरण अिधिनयम,
1882 (1882 का 4) की धारा 53 के उपबंध पर, या अवैध पर्योजन के िलए अंतरण से संबंिधत िकसी िविध पर, पर्भाव नह डालेगी ।
7. कु छ अिधिनयम के उपबंध का िनरसन—(1) भारतीय न्यास अिधिनयम, 1882 (1882 का 2) की धारा 81, धारा 82 और
धारा 94, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) की धारा 66 और आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) की धारा 281क
िनरिसत की जाती है ।
(2) शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक उपधारा (1) की कोई बात आय-कर अिधिनयम, 1961
(1961 का 43) की धारा 281क के जम्मू-कश्मीर राज्य म पर्वृ रहने पर पर्भाव नह डालेगी ।
8. िनयम बनाने की शिक्त—(1) कदर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस अिधिनयम के पर्योजन को िकर्यािन्वत
करने के िलए िनयम बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम िनम्निलिखत सभी िवषय या
उनम से िकसी के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :—
(क) धारा 5 के अधीन संपि य के अजर्न के िलए सक्षम पर्ािधकारी;
(ख) धारा 5 के अधीन संपि य के अजर्न के िलए रीित और अनुसरण की जा सकने वाली पर्िकर्या;
(ग) कोई अन्य िवषय जो िविहत िकया जाना है या िविहत िकया जाए ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब
वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो
सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत
हो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकतु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव
होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
9. िनरसन और व्यावृि —(1) बेनामी संव्यवहार (संपि पर्त्यु रण अिधकार पर्ितषेध) अध्यादेश, 1988 (1988 का
अध्यादेश 2) िनरिसत िकया जाता है ।
(2) ऐसे िनरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कारर् वाई इस अिधिनयम के तत्स्थानी उपबंध
के अधीन की गई समझी जाएगी ।
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