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िवशेष िववाह अिधिनयम, 1954

(1954 का अिधिनयम संख्यांक 43) 1


[9 अक्तूबर, 1954]
कु छ दशा म िवशेष पर्कार के िववाह का, इस पर्कार के
तथा कु छ अन्य िववाह के रिजस्टर्ीकरण का और
िववाह-िवच्छेद का उपबन्ध
करने के िलए
अिधिनयम
भारण गणराज्य के पांचव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
अध्याय 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ––(1) यह अिधिनयम िवशेष िववाह अिधिनयम, 1954 कहा जा सके गा ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय संपूणर् भारत पर है, और यह उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर इस अिधिनयम का
िवस्तार है, अिधविसत भारत के उन नागिरक को भी लागू है जो 2 [जम्मू-कश्मीर राज्य म] है ।
(3) यह उस तारीख 3 को पर्वृ होगा िजसे के न्दर्ीय सरकार, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं––इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
4
* * * * * * *
(ख) “पर्ितिष कोिट की नातेदारी”––िकसी पुरुष और पर्थम अनुसूची के भाग 1 म विणत व्यिक्तय म से िकसी की
तथा िकसी स्तर्ी और उक्त अनुसूची के भाग 2 म विणत व्यिक्तय म से िकसी की नातेदारी पर्ितिष कोिट की
नातेदारी है ।
स्पष्टीकरण 1––नातेदारी के अन्तगर्त––
(क) अधर् या एकोदर रक्त की नातेदारी और पूणर् रक्त की नातेदारी दोन ह;
(ख) अधमर्ज रक्त की नातेदारी और धमर्ज रक्त की नातेदारी दोन ह;
(ग) द क नातेदारी और रक्त की नातेदारी दोन ह,
और इस अिधिनयम म नातेदारी ोतक सब पद का तदनुसार अथर् िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 2––“पूणर् रक्त और अधर् रक्त”––कोई दो व्यिक्त एक दूसरे से पूणर् रक्त से सम्बिन्धत तब कहे जाते ह
जब वे एक ही पूवर्ज से एक ही पत्नी ारा अवजिनत ह और अधर् रक्त से सम्बिन्धत तब कहे जाते ह जब वे एक ही पूवर्ज से
िकन्तु उसकी िभन्न पित्नय ारा अवजिनत ह ।
स्पष्टीकरण 3––“एकोदर रक्त”––दो व्यिक्त एक दूसरे से एकोदर रक्त से सम्बिन्धत तब कहे जाते ह जब वे एक
ही पूवर्जा से िकन्तु िभन्न पितय ारा अवजिनत ह ।
स्पष्टीकरण 4––स्पष्टीकरण 2 और 3 म “पूवर्ज” के अन्तगर्त िपता और “पूवर्जा” के अन्तगर्त माता भी है;
5
* * * * * * *
(घ) िववाह अिधकारी के सम्बन्ध म “िजला” से वह क्षेतर् अिभपर्ेत है िजसके िलए वह धारा 3 की उपधारा (1) या
उपधारा (2) के अधीन उस रूप म िनयुक्त िकया जाए;

1
इस अिधिनयम का िवस्तार 1963 के िविनयम सं० 6 भी धारा 2 और अनुसूची I ारा (1-7-1965 से) दादरा और नागर हवेली पर तथा 1963 के िविनयम सं० 7 के
धारा 3 और अनुसूची I ारा पांिडचेरी पर िवस्तािरत िकया गया ।
2
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा “उक्त राज्यक्षेतर् के बाहर” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1 जनवरी, 1955, भारत के राजपतर्, असाधारण, 1954, भाग 2, अनुभाग 3, पृ० 2463, की अिधसूचना सं० का०िन०आ० 3606, तारीख 17 िदसम्बर, 1954 देिखए ।
4
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा खण्ड (क) का लोप िकया गया ।
5
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा खण्ड (ग) का लोप िकया गया ।
2

1
[(ङ) “िजला न्यायालय” से ऐसे िकसी क्षेतर् म, िजसके िलए नगर िसिवल न्यायालय है, वह न्यायालय और िकसी
अन्य क्षेतर् म आरिम्भक अिधकािरता का पर्धान िसिवल न्यायालय, अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त ऐसा कोई अन्य िसिवल
न्यायालय, भी है िजसे राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा इस अिधिनयम म िदए गए िवषय के बारे म अिधकािरता
रखने वाला िविनिदष्ट करे ;]
(च) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;
2
[(छ) िकसी संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म “राज्य सरकार” से उसका पर्शासक अिभपर्ेत है ।]
3. िववाह अिधकारी––(1) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए राज्य सरकार, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, सम्पूणर्
राज्य या उसके िकसी भाग के िलए एक या अिधक िववाह अिधकारी िनयुक्त कर सके गी ।
[(2) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए उन राजक्षेतर् म, िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, अिधविसत भारत के ऐसे
3

नागिरक को, जो जम्मू-कश्मीर राज्य म ह , लागू होने के सम्बन्ध म के न्दर्ीय सरकार, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, के न्दर्ीय
सरकार के ऐसे अिधकािरय को, िजन्ह वह ठीक समझे, उस राज्य या उसके िकसी भाग के िलए िववाह अिधकािरय के रूप म
िविनिदष्ट कर सके गी ।]
अध्याय 2

िवशेष िववाह का अनुष्ठापन


4. िवशेष िववाह के अनुष्ठापन संबधं ी शत––िववाह के अनुष्ठापन सम्बन्धी िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म िकसी बात
के होते हुए भी, िकन्ह दो व्यिक्तय का इस अिधिनयम के अधीन िववाह अनुष्ठािपत िकया जा सके गा यिद उस िववाह के समय
िनम्निलिखत शत पूरी हो जाती ह, अथार्त् :––
(क) िकसी पक्षकार का पित या पत्नी जीिवत नह है;
4
[(ख) दोन पक्षकार म से––
(i) कोई पक्षकार िच -िवकृ ित के पिरणामस्वरूप िविधमान्य सम्पि देने म असमथर् नह है; या
(ii) कोई पक्षकार िविधमान्य सम्पि देने म समथर् होने पर भी इस पर्कार के या इस हद तक मानिसक
िवकार से पीिड़त नह रहा है िक वह िववाह और सन्तानोत्पि के अयोग्य है; या
(iii) िकसी पक्षकार की उन्म ता 5 * * * का बार-बार दौरा नह पड़ता रहता है;]
(ग) पुरुष ने इक्कीस वषर् की आयु और स्तर्ी ने अठराह वषर् की आयु पर्ाप्त कर ली है;
6
[(घ) पक्षकार म पर्ितिष कोिट की नातेदारी नह है :
परन्तु जहां कम से कम एक पक्षकार को शासित करने वाली रूिढ़ उनम िववाह अनुज्ञात करे वहां ऐसा िववाह,
उनम पर्ितिष कोिट की नातेदारी होते हुए भी अनुष्ठािपत िकया जा सके गा; तथा]
[(ङ) जहां िववाह जम्मू-कश्मीर राज्य म अनुष्ठािपत िकया गया है वहां दोन पक्षकार उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर
7

इस अिधिनयम का िवस्तार ह, अिधवािसत भारत के नागिरक ह ।]


[स्पष्टीकरण––इस धारा म िकसी जनजाित, समुदाय, समूह या कु टु म्ब के िकसी व्यिक्त के सम्बन्ध म “रूिढ़” से कोई ऐसा
8

िनयम अिभपर्ेत है िजसे राज्य सरकार उस जनजाित, समुदाय, समूह या कु टु म्ब के सदस्य को लागू िनयम के रूप म, शासकीय राजपतर्
म अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे :]
परन्तु िकसी जनजाित, समुदाय, समूह या कु टु म्ब के सदस्य के सम्बन्ध म ऐसी कोई अिधसूचना तब तक जारी नह की
जाएगी जब तक राज्य सरकार का यह समाधान न हो जाए िक––
(i) उस िनयम का अनुपालन उन सदस्य म बहुत समय तक लगातार और एकरूपता के साथ होता रहा है;
(ii) वह िनयम िनिश्चत है और अयुिक्तयुक्त या लोकनीित-िवरु नह है; तथा

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 20 ारा (27-5-1976 से) पूवर्वत खण्ड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन (संख्यांक 3) आदेश, 1956 ारा मूल खंड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा उपधारा (2) के स्थान पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 21 ारा (27-5-1976 से) पूवर्वत खण्ड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 3 ारा लोप िकया गया ।
6
1969 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा खण्ड (घ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा खण्ड (ङ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1963 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
3

(iii) वह िनयम के वल कु टु म्ब को लागू होने की दशा म, उस कु टु म्ब ारा उसका अनुपालन बन्द नह
िकया गया है ।]
5. आशियत िववाह की सूचना––जब िकसी िववाह का इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठापन आशियत हो तब िववाह के
पक्षकार ि तीय अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट पर्रूप म उसकी िलिखत सूचना उस िजला के िववाह अिधकारी को दगे िजसम िववाह के
पक्षकार म से कम से कम एक ने उस सूचना के िदए जाने की तारीख से ठीक पहले तीस िदन से अन्यून की कालाविध तक िनवास
िकया हो ।
6. िववाह-सूचना पुस्तक और पर्काशन––(1) िववाह अिधकारी धारा 5 के अधीन दी गई सब सूचना को अपने कायार्लय के
अिभलेख के साथ रखेगा और ऐसे पर्त्येक सूचना की एक सही पर्ितिलिप भी उस पर्योजन के िलए िविहत पुस्तक म, जो िववाह-सूचना
पुस्तक कही जाएगी, तत्काल पर्िवष्ट करे गा तथा ऐसी पुस्तक उसके िनरीक्षण के इच्छु क व्यिक्त ारा िबना फीस के , िनरीक्षण के िलए
सभी उिचत समय पर उपलब्ध रहेगी ।
(2) िववाह अिधकारी पर्त्येक ऐसी सूचना का पर्काशन उसकी एक पर्ितिलिप अपने कायार्लय के िकसी सहजदृश्य स्थान पर
लगवाकर कराएगा ।
(3) जहां आशियत िववाह के पक्षकार म से कोई उस िववाह अिधकारी के , िजसे धारा 5 के अधीन सूचना दी गई हो, िजले की
स्थानीय सीमा के भीतर स्थायी रूप से िनवास न करता हो वहा िववाह अिधकारी उस सूचना की पर्ितिलिप उस िजले के िववाह
अिधकारी को भी िभजवाएगा िजसकी सीमा के भीतर ऐसा पक्षकार स्थायी रूप से िनवास करता हो और तब वह िववाह अिधकारी
उसकी पर्ितिलिप अपने कायार्लय के िकसी सहज-दृश्य स्थान पर लगवाएगा ।
7. िववाह के पर्ित आक्षेप––(1) धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन सूचना के पर्काशन की तारीख से तीस िदन की समािप्त के
पूवर् कोई व्यिक्त उस िववाह के पर्ित इस आधार पर आक्षेप कर सके गा िक वह धारा 4 म िविनिदष्ट िकसी एक या अिधक शत का
उल्लंघन करे गा ।
(2) उस तारीख से, जब आशियत िववाह की सूचना धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन पर्कािशत की गई हो, तीस िदन की
समािप्त के पश्चात् वह िववाह, जब तक उसके पर्ित पहले की उपधारा (1) के अधीन आक्षेप नह कर िदया गया हो, अनुष्ठािपत िकया
जा सके गा ।
(3) आक्षेप की पर्कृ ित िववाह अिधकारी ारा िववाह-सूचना पुस्तक म लेखब की जाएगी, यिद आवश्यक हो तो आक्षेप करने
वाले व्यिक्त को पढ़कर सुनाई और ससझाई जाएगी और उस पर उस व्यिक्त ारा या उसकी ओर से हस्ताक्षर िकए जाएंगे ।
8. आक्षेप के पर्ाप्त होने पर पर्िकर्या––(1) यिद आशियत िववाह के पर्ित धारा 7 के अधीन आक्षेप िकया जाता है तो िववाह
अिधकारी वह िववाह तब तक अनुष्ठािपत न करे गा जब तक वह उस आक्षेप के िवषय म जांच न कर ले और उसका समाधान न हो जाए
िक वह आक्षेप ऐसी नह है िक िववाह अनुष्ठािपत न िकया जाए या जब तक उस व्यिक्त ारा, िजसने आक्षेप िकया हो, वह आक्षेप
वापस न ले िलया जाए; िकन्तु िववाह अिधकारी आक्षेप के िवषय म जांच करने और उसका िविनश्चय करने म आक्षेप की तारीख से
तीस िदन से अिधक नह लगाएगा ।
(2) यिद िववाह अिधकारी आक्षेप को ठीक ठहराता है और उस िववाह को अनुष्ठािपत करने से इन्कार करता है तो आशियत
िववाह का कोई पक्षकार ऐसे इं कार की तारीख से तीस िदन की कालाविध के भीतर उस िजला न्यायालय म अपील कर सके गा िजसकी
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर उस िववाह अिधकारी का कायार्लय हो और उस अपील म िजला न्यायालय का िविनश्चय
अिन्तम होगा तथा िववाह अिधकारी उस न्यायालय के िविनश्चय के अनुरूप कायर् करे गा ।
9. जांच के बारे म िववाह अिधकािरय की शिक्तयां––(1) धारा 8 के अधीन िकसी जांच के पर्योजन के िलए िववाह अिधकारी
को िनम्निलिखत िवषय , अथार्त् :––
(क) सािक्षय को समन करने और उनको हािजर कराने तथा शपथ पर उनकी परीक्षा करने;
(ख) पर्कटीकरण और िनरीक्षण;
(ग) दस्तावेज पेश करने के िलए िववश करने;
(घ) शपथ-पतर् पर सा य लेने; तथा
(ङ) सािक्षय की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालने,
की बाबत, वही शिक्तयां ह गी जो वाद का िवचारण करते समय िसिवल न्यायालय म िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के
अधीन िनिहत होती ह और िववाह अिधकारी के समक्ष कोई कायर्वाही भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) की धारा 193 के अथर् म
न्याियक कायर्वाही समझी जाएगी ।
स्पष्टीकरण––िववाह अिधकारी की अिधकािरता की स्थानीय सीमाएं ही िकसी व्यिक्त को सा य देने के िलए हािजर कराने
के पर्योजन के िलए उस अिधकारी के िजले की स्थानीय सीमाएं ह गी ।
4

(2) यिद िववाह अिधकारी को यह पर्तीत होता है िक आशियत िववाह के पर्ित िकया गया आक्षेप उिचत नह है और
सद्भावपूवर्क नह िकया गया है तो वह आक्षेप करने वाले व्यिक्त पर पर्ितकर के रूप म खचार् अिधरोिपत कर सके गा, जो एक हजार
रुपए से अिधक न होगा, और संपणू र् या उसका कोई भाग आशियत िववाह के पक्षकार को िदलवा सके गा तथा खच के बारे म इस पर्कार
िदया गया कोई आदेश उसी रीित से िनष्पािदत िकया जा सके गा िजससे उस िजला न्यायालय ारा पािरत िडकर्ी की जाती हो िजसकी
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िववाह अिधकािरता का कायार्लय हो ।
10. बाहर के िववाह अिधकारी को आक्षेप पर्ाप्त होने पर पर्िकर्या––जहां 1 [जम्मू-कश्मीर राज्य म आशियत िववाह के बारे म]
कोई आक्षेप उस राज्य म िववाह अिधकारी से धारा 7 के अधीन िकया जाए और िववाह अिधकारी के मन म उस िवषय म ऐसी जांच
करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उस बाबत शंका बनी रहे वहां वह िववाह अनुष्ठािपत नह करे गा, िकन्तु उस िवषय म ऐसे
कथन के साथ जैसा वह ठीक समझे अिभलेख के न्दर्ीय सरकार को भेजेगा और के न्दर्ीय सरकार उस िवषय म ऐसी जांच करने के पश्चात्
और ऐसी सलाह अिभपर्ाप्त करने के पश्चात् जैसी वह ठीक समझे उस पर अपना िविनश्चय िलिखत रूप म िववाह अिधकारी को देगी,
जो के न्दर्ीय सरकार के िविनश्चय के अनुरूप कायर् करे गा ।
11. पक्षकार और सािक्षय ारा घोषणा––िववाह का अनुष्ठापन होने के पूवर् पक्षकार और तीन साक्षी इस अिधिनयम की
तृतीय अनुसूची म िविनिदष्ट पर्रूप म घोषणा पर हस्ताक्षर िववाह अिधकारी की उपिस्थित म करगे तथा उस घोषणा पर िववाह
अिधकारी पर्ितहस्ताक्षर करे गा ।
12. अनुष्ठापन का स्थान और रूप––(1) िववाह, िववाह अिधकारी के कायार्लय म या वहां से उिचत दूरी के भीतर ऐसे अन्य
स्थान पर, जैसा दोन पक्षकार चाह, और ऐसी शत पर तथा ऐसी अितिरक्त फीस देने पर, िजन्ह िविहत िकया जाए, अनुष्ठािपत िकया
जा सके गा ।
(2) िववाह िकसी भी रूप म, िजसे पक्षकार अपनाना पसन्द कर, अनुष्ठािपत िकया जा सके गा :
परन्तु जब तक पर्त्येक पक्षकार दूसरे पक्षकार से िववाह अिधकारी और तीन सािक्षय की उपिस्थित म तथा ऐसी भाषा म
िजसे पक्षकार समझ सक यह न कहे िक “म (क) तुम (ख) को अपनी िविधपूणर् पत्नी स्वीकार करता हूं (या अपना िविधपूणर् पित स्वीकार
करती हूं)” तब तक वह पूणर् और पक्षकार पर आब कर न होगा ।
13. िववाह का पर्माणपतर्––(1) जब िववाह अनुष्ठािपत हो जाए तब िववाह अिधकारी चतुथर् अनुसूची म िविनिदष्ट पर्रूप म
उसका पर्माणपतर् उस पर्योजन के िलए अपने ारा रखी गई पुस्तक म पर्िवष्ट करे गा, जो िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक कही जाएगी, और
ऐसे पर्माणपतर् पर िववाह के पक्षकार और तीन साक्षी हस्ताक्षर करगे ।
(2) िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म िववाह अिधकारी ारा पर्माणपतर् पर्िवष्ट िकए जाने पर वह पर्माणपतर् इस तथ्य का
िनश्चायक सा य समझा जाएगा िक इस अिधिनयम के अधीन िववाह अनुष्ठािपत हो गया है तथा सािक्षय के हस्ताक्षर के सम्बन्ध म
सब पर्रूिपता का अनुपालन हो गया है ।
14. तीन मास के भीतर िववाह का अनुष्ठापन न होने पर नई सूचना का िदया जाना––जब िकसी िववाह का अनुष्ठान उस
तारीख से, जब उसकी सूचना िववाह अिधकारी को धारा 5 ारा अपेिक्षत रूप म दी गई हो, तीन कलैण्डर मास के भीतर अथवा जहां
धारा 8 की उपधारा (2) के अधीन अपील फाइल की गई हो वहां उस अपील पर िजला न्यायालय के िविनश्चय की तारीख से तीन मास
के भीतर, अथवा जहां धारा 10 के अधीन िकसी मामले का अिभलेख के न्दर्ीय सरकार को भेजा गया हो वहां के न्दर्ीय सरकार के
िविनश्चय की तारीख से तीन मास के भीतर, नह होता, तब वह सूचना और उससे पैदा होने वाली सब अन्य कायर्वािहयां व्यपगत हुई
समझी जाएंगी और जब तक इस अिधिनयम म दी गई रीित से नई सूचना नह दी जाती, कोई िववाह अिधकारी उस िववाह का
अनुष्ठापन नह करे गा ।
अध्याय 3

अन्य रूप म अनुष्ठािपत िववाह का रिजस्टर्ीकरण


15. अन्य रूप म अनुष्ठािपत िववाह का रिजस्टर्ीकरण–– 2 िवशेष िववाह अिधिनयम, 1872 (1872 का 38) के अधीन या इस
अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िववाह से िभन्न िववाह, चाहे वह इस अिधिनयम के पर्ारं भ के पूवर् अनुष्ठािपत िकया गया हो या उसके
पश्चात् उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है िववाह अिधकारी ारा इस अध्याय के अधीन रिजस्टर्ीकृ त िकया जा
सके गा यिद िनम्निलिखत शत पूरी ह जाएं, अथार्त् :––
(क) पक्षकार का परस्पर िववाह को चुका है और वे तब से बराबर पित-पत्नी के रूप म साथ रह रहे ह
(ख) िकसी पक्षकार का एक से अिधक पित या पत्नी रिजस्टर्ीकरण के समय जीिवत नह है;
(ग) कोई पक्षकार रिजस्टर्ीकरण के समय जड़ या पागल नह है;

1
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इस अिधिनयम की धारा 51 ारा िनरिसत ।
5

(घ) पक्षकार रिजस्टर्ीकरण के समय इक्कीस वषर् की आयु पर्ाप्त कर चुके ह;


(ङ) पक्षकार म पर्ितिष कोिट की नातेदारी नह है :
परन्तु इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के पूवर् अनुष्ठािपत िववाह की दशा म यह शतर् पक्षकार म से पर्त्येक को शािसत
करने वाली िकसी ऐसी िविध के या िविध का बल रखने वाली रूिढ़ या पर्था के अध्यधीन होगी िजससे उन दोन म िववाह
अनुज्ञात हो; तथा
(च) पक्षकार उस िववाह अिधकारी के िजले के भीतर उस तारीख के ठीक पहले, जब िववाह के रिजस्टर्ीकरण के
िलए आवेदन िववाह अिधकारी से िकया गया हो, कम से कम तीस िदन की कालाविध तक िनवास करते रहे ह ।
16. रिजस्टर्ीकरण के िलए पर्िकर्या––इस अध्याय के अधीन िववाह के रिजस्टर्ीकरण के िलए िववाह के दोन पक्षकार ारा
हस्ताक्षिरत आवेदन की पर्ािप्त पर िववाह अिधकारी उसकी लोक सूचना ऐसी रीित से देगा जैसी िविहत की जाए और आक्षेप के िलए
तीन िदन की कालाविध अनुज्ञात करने के पश्चात् तथा उस कालाविध के भीतर पर्ाप्त िकसी आक्षेप को सुनने के पश्चात्, यिद उसका
सामाधान हो जाए िक धारा 15 म विणत सब शत पुरी हो जाती ह, तो वह िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म िववाह का पर्माणपतर्, उस पर्रूप
म जो पंचम अनुसूची म िविनिदष्ट है पर्िवष्ट करे गा और ऐसे पर्माणपतर् पर िववाह के पक्षकार और तीन साक्षी हस्ताक्षर करगे ।
17. धारा 16 के अधीन आदेश से अपील––िववाह को इस अध्याय के अधीन रिजस्टर्ीकृ त करने से इन्कार करने के िववाह
अिधकारी के िकसी आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त, उस आदेश की तारीख से तीस िदन के भीतर, उस आदेश के िवरु अपील उस िजला
न्यायालय म कर सके गा िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर उस िववाह अिधकारी का कायार्लय हो और उस अपील पर
उस िजला न्यायालय का िविनश्चय अिन्तम होगा तथा वह िववाह अिधकारी, िजससे आवेदन िकया गया था, ऐसे िविनश्चय के अनुरूप
कायर् करे गा ।
18. इस अध्याय के अधीन िववाह के रिजस्टर्ीकरण का पर्भाव––धारा 24 की उपधारा (2) के उपबन्ध के अध्यधीन रहते हुए,
जहां िववाह का पर्माणपतर् िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म इस अध्याय के अधीन अिन्तम रूप से पर्िवष्ट कर िलया गया हो वहां उस िववाह
के बारे म ऐसी पर्िविष्ट की तारीख से यह समझा जाएगा िक वह इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िववाह है और िववाह की तारीख
के पश्चात् पैदा हुई सब संतान के बारे म (िजनके नाम भी िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म दजर् िकए जाएंगे) सब िवषय म यह समझा
जाएगा िक वे अपने माता-िपता की धमर्ज संतान ह और सदैव रही ह :
परन्तु इस धारा की िकसी बात का यह अथर् नह िकया जाएगा िक वह िकसी ऐसी संतान को अपने माता-िपता से िभन्न
िकसी व्यिक्त की सम्पि म या उस पर कोई अिधकार िकसी ऐसी दशा म पर्दान करती है जब ऐसी संतान ऐसा कोई अिधकार रखने या
अिजत करने के िलए इस अिधिनयम के पािरत न होने की दशा म इस कारण अयोग्य होती िक वह अपने माता-िपता की धमर्ज संतान
नह है ।
अध्याय 4

इस अिधिनयम के अधीन िववाह के पिरणाम


19. अिवभक्त कु टु म्ब के सदस्य पर िववाह का पर्भाव––अिवभक्त कु टु म्ब के ऐसे सदस्य के , जो िहन्दू, बौ , िसख या जैन धमर्
को मानता हो, इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िववाह के बारे म यह समझा जाएगा िक वह उसे उस कु टु म्ब से पृथक् कर देता है ।
20. अिधकार और िनय ग्यता का अिधिनयम ारा पर्भािवत न होना––धारा 19 के उपबन्ध के अध्यधीन रहते हुए, कोई
व्यिक्त, िजसका िववाह इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत हो, िकसी संपि पर उ रािधकार के बारे म वही अिधकार रखेगा और
उन्ह िनय ग्यता के अध्यधीन होगा जो वह व्यिक्त रखता या िजनके अध्यधीन वह व्यिक्त होता िजसे जाित िनय ग्यता िनवारण,
अिधिनयम, 1850 (1850 का 21) लागू होता ।
21. अिधिनयम के अधीन िववािहत पक्षकार की संपि का उ रािधकार––भारतीय उ रािधकार अिधिनयम, 1925
(1925 का 39) म कु छ समुदाय के सदस्य को उसके लागू होने के सम्बन्ध म िकन्ह िनबर्ंधन के होते हुए भी, िकसी ऐसे व्यिक्त की
सम्पि का, िजसका िववाह इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत हुआ हो, और ऐसे िववाह की संतान की सम्पि का उ रािधकार
उक्त अिधिनयम के उपबन्ध ारा िविनयिमत होगा और वह अिधिनयम इस धारा के पर्योजन के िलए इस पर्कार पर्भावी होगा मानो
भाग 5 के अध्याय 3 (पारसी िनवर्सीयत के िलए िवशेष िनयम) का उससे लोप कर िदया गया हो ।
[21क. कितपय मामल म िवशेष उपबन्ध––जहां िकसी ऐसे व्यिक्त का, जो िहन्दू, बौ , िसख या जैन धमार्वलम्बी है,
1

िववाह इस अिधिनयम के अधीन िकसी ऐसे व्यिक्त के साथ अनुष्ठािपत होता है, जो िहन्दू, बौ , िसख या जैन धमार्वलम्बी है, वहां
धारा 19 और धारा 21 लागू नह होगी और धारा 20 का वह भाग भी लागू नह होगा िजससे अयोग्यता सृिजत होती है ।]

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 22 ारा (27-5-1976 से) अन्त:स्थािपत । ।
6

अध्याय 5

दाम्पत्य अिधकार का पर्त्यास्थापन और न्याियक पृथक्करण


22. दापत्य अिधकार का पर्त्यास्थापन––जब पित या पत्नी ने अपने को दूसरे के साहचयर् से उिचत कारण के िबना अलग कर
िलया हो तब व्यिथत पक्षकार दाम्पत्य अिधकार के पर्त्यास्थापन के िलए िजला न्यायालय म आवेदन, अज ारा, कर सके गा और
न्यायालय उस अज म िकए गए कथन की सत्यता के बारे म तथा इस बारे म िक आवेदन को मंजूर न करने का कोई वैध आधार नह है,
अपना समाधान हो जाने पर तद्नुसार दाम्पत्य अिधकार की पर्त्यास्थापन िडकर्ी कर सके गा ।
[स्पष्टीकरण––जहां यह पर्श्न उठता है िक क्या साहचयर् से अलग होने के िलए उिचत कारण है वहां उिचत कारण सािबत
1

करने का भार उस व्यिक्त पर होगा जो साहचयर् से अलग हुआ है ।]


23. न्याियक पृथक्करण––(1) न्याियक पृथक्करण के िलए अज पित या पत्नी ारा––
(क) 2 [धारा 27 की उपधारा (1) 3 [और उपधारा (1क)] म] िविनिदष्ट आधार म से िकसी आधार पर, िजस पर
िववाह-िवच्छेद के िलए अज पेश की जा सकती हो; अथवा
(ख) दाम्पत्य अिधकार के पर्त्यास्थापन की िडकर्ी का अनुपालन करने म असफलता के आधार पर,
िजला न्यायालय म पेश की जा सके गी और न्यायालय उस अज म िकए गए कथन की सत्यता के बारे म तथा इस बारे म िक आवेदन
को मंजूर न करने का कोई वैध आधार नह है, अपना समाधान हो जाने पर तद्नुसार न्याियक पृथक्करण िडकर्ी कर सके गा ।
(2) जहां न्यायालय न्याियक पृथक्करण की िडकर्ी दे वहां अज दार पर्त्यथ के साथ सहवास करने के िलए बाध्य नह होगा
िकन्तु िकसी पक्षकार के अज ारा आवेदन करने पर तथा उस अज म िकए गए कथन की सत्यता के बारे म अपना समाधान हो जाने
पर वह िडकर्ी को, जब वह ऐसा करना न्यायसंगत और उिचत समझे, िवखंिडत कर सके गा ।
अध्याय 6

िववाह की अकृ तता और िववाह-िवच्छेद


24. शून्य िववाह––(1) इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िववाह अकृ त और शून्य होगा 4 [और िववाह के िकसी पक्षकार
ारा दूसरे पक्षकार के िवरु पेश की गई अज पर] अकृ तता की िडकर्ी ारा 4[ऐसा घोिषत िकया जा सके गा,] यिद––
(i) धारा 4 के खण्ड (क), (ख), (ग), और (घ) म िविनिदष्ट शत म से कोई पूरी न की गई हो, अथवा
(ii) पर्त्यथ िववाह के समय और वाद संिस्थत िकए जाने के समय नपुंसक रहा हो ।
(2) इस धारा की कोई बात िकसी ऐसे िववाह को लागू न होगी िजसके बारे म धारा 18 के अथर् म यह समझा जाए िक वह
इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िकया गया, िकन्तु ऐसे िकसी िववाह का अध्याय 3 के अधीन रिजस्टर्ीकरण, यिद वह धारा 15 के
खण्ड (क) से खण्ड (ङ) तक म िविनिदष्ट शत म से िकसी के उल्लंघन म िकया गया हो तो, पर्भावहीन घोिषत िकया जा सके गा :
परन्तु ऐसी घोषणा उस दशा म नह की जाएगी जब धारा 17 के अधीन अपील की गई हो और िजला न्यायालय का
िविनश्चय अिन्तम हो गया हो ।
25. शून्यकरणीय िववाह––इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत िववाह शून्यकरणीय होगा और अकृ तता की िडकर्ी ारा
बाितल िकया जा सके गा यिद––
(i) पर्त्यथ के िववाहो र संभोग से जानबूझकर इन्कार के कारण िववाहो र संभोग नह हो पाया हो; अथवा
(ii) पर्त्यथ िववाह के समय अज दार से िभन्न िकसी व्यिक्त ारा गभर्वती थी; अथवा
(iii) िववाह के िलए िकसी पक्षकार की सम्पि भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) म यथा
पिरभािषत पर्पीड़न या कपट ारा अिभपर्ाप्त की गई हो :
परन्तु खण्ड (ii) म िविनिदष्ट दशा म न्यायालय तब तक िडकर्ी नह देगा जब तक उसका यह समाधान न हो जाए िक––
(क) अज दार अिभकिथत तथ्य से िववाह के समय अनिभज्ञ था;
(ख) कायर्वाही िववाह की तारीख से एक वषर् के भीतर संिस्थत कर दी गई थी; तथा

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 23 ारा जोड़ा गया ।
2
1970 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 2 ारा कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 24 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 25 ारा कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7

(ग) अज दार की सम्मित से वैवािहक संभोग िडकर्ी के िलए आधार के अिस्तत्व का पता अज दार को चल जाने के
समय से नह हुआ है :
परन्तु यह और िक खण्ड (iii) म िविनिदष्ट दशा म न्यायालय िडकर्ी न देगा यिद––
(क) कायर्वाही, यथािस्थित, पर्पीड़न के बन्द हो जाने या कपट का पता चलने के पश्चात् एक वषर् के भीतर संिस्थत
न कर दी गई हो; अथवा
(ख) अज दार, यथािस्थित, पर्पीड़न बन्द हो जाने या कपट का पता चलने के पश्चात् अपनी स्वतन्तर् सम्मित से
िववाह के दूसरे पक्षकार के साभ पित या पत्नी के रूप म रहा या रही हो ।
[26. शून्य और शून्यकरणीय िववाह की संतान की धमर्जता––(1) इस बात के होते हुए भी िक िववाह धारा 24 के अधीन
1

अकृ त और शून्य है, ऐसे िववाह की कोई संतान धमर्ज होगी, जो िववाह के िविधमान्य होने की दशा म धमर्ज होती, चाहे ऐसी सन्तान
का जन्म िववाह िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1976 के पर्ारम्भ से पूवर् या पश्चात् हुआ हो और चाहे उस िववाह के सम्बन्ध म अकृ तता
की िडकर्ी इस अिधिनयम के अधीन मंजरू की गई हो या नह और चाहे वह िववाह इस अिधिनयम के अधीन अज से िभन्न आधार पर
शून्य अिभिनधार्िरत िकया गया हो या नह ।
(2) जहां धारा 25 के अधीन शून्यकरणीय िववाह के संबंध म अकृ तता की िडकर्ी मंजूर की जाती है वहां िडकर्ी की जाने के पूवर्
जिनत या गभार्िहत ऐसी कोई संतान, जो यिद िववाह िडकर्ी की तारीख को अकृ त िकए जाने के बजाय िवघिटत कर िदया गया होता तो
िववाह के पक्षकार की धमर्ज संतान होती, अकृ तता की िडकर्ी होते हुए भी उनकी धमर्ज संतान समझी जाएगी ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह ऐसे िववाह की िकसी संतान को,
जो अकृ त और शून्य है या िजसे धारा 25 के अधीन अकृ तता की िडकर्ी ारा अकृ त िकया गया है, उसके माता-िपता से िभन्न िकसी
व्यिक्त की संपि म या संपि के िलए कोई अिधकार िकसी ऐसी दशा म पर्दान करती है िजसम िक यिद यह अिधिनयम पािरत न
िकया गया होता तो वह संतान अपने माता-िपता की धर्मज संतान न होने के कारण ऐसा कोई अिधकार रखने या अिजत करने म
असमथर् होती ।]
27. िववाह-िवच्छेद–– 2 [(1)] इस अिधिनयम के उपबंध और तद्धीनबनाए गए िनयम के अध्यधीन रहते हुए, िववाह-
िवच्छेद के िलए अज िजला न्यायालय म पित या पत्नी ारा इस आधार पर पेश की जा सके गी िक––
[(क) पर्त्यथ ने िववाह के अनुष्ठान के पश्चात् अपने पित या अपनी पत्नी से िभन्न िकसी व्यिक्त के साथ स्वेच्छया
3

मैथुन िकया है; अथवा


(ख) पर्त्यथ ने अज के पेश िकए जाने के ठीक पहले कम से कम दो वषर् की िनरन्तर कालाविध भर अज दार को
अिभत्यक्त रखा है; अथवा]
(ग) पर्त्यथ भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) म यथा पिरभािषत अपराध के िलए सात वषर् या उससे अिधक के
कारावास का दण्ड भोग रहा है;
4
* * * * * * *
(घ) पर्त्यथ ने िववाह के अनुष्ठान के पश्चात् अज दार से कर्ूरता का व्यवहार िकया है; अथवा
[(ङ) पर्त्यथ असाध्य रूप से िवकृ त-िच रहा है अथवा िनरन्तर या आंतराियक रूप से इस पर्कार के और इस हद
5

तक मानिसक िवकास से पीिड़त रहा है िक अज दार से युिक्तयुक्त रूप से यह आशा नह की जा सकती है िक वह पर्त्यथ के
साथ रहे ।
स्पष्टीकरण––(क) इस खण्ड म “मानिसक िवकार” पद से मानिसक बीमारी, मािस्तष्क का संरोध या अपूणर्
िवकास, मनोिवकृ ित या मिस्तष्क का कोई अन्य िवकार या िन:शक्तता अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त िवखंिडत मनस्कता है;

(ख) “मनोिवकृ ित” पद से मिस्तष्क का दीघर् स्थायी िवकार या िन:शक्तता (चाहे इसम वृि की असामान्यता हो या
नह ) अिभपर्ेत है िजसके पिरणामस्वरूप पर्त्यथ का आचरण असामान्य रूप से आकर्ामक या गंभीर रूप से अनु रदायी हो
जाता है और चाहे उसके िलए िचिकत्सीय उपचार अपेिक्षत हो या नह अथवा ऐसा उपचार िकया जा सकता हो या नह ;
अथवा
(च) पर्त्यथ संचारी रूप के रितज रोग से पीिड़त रहा है; अथवा]

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 26 ारा (27-5-1976 से) धारा 26 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1970 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा धारा 27 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा खंड (क) और (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा परन्तुक का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा खंड (27-5-1976 से) खंड (ङ) और (च) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8

(छ) 1 *** पर्त्यथ कु ष्ठ से पीिड़त रहा है जो रोग उसे अज दार से नह लगा था; अथवा]
(ज) पर्त्यथ के बारे म सात वषर् या उससे अिधक की कालाविध म उन व्यिक्तय ारा, िजन्ह ने पर्त्यथ के बार म,
यिद वह जीिवत होता तो, स्वाभािवकतया सुना होता, यह नह सुना गया है िक वह जीिवत है ।] 2 ***
2
* * * * * * *
[स्पष्टीकरण––इस उपधारा म “अिभत्यजन” पद से िववाह के दूसरे पक्षकार ारा अज दार का ऐसा अिभत्यजन अिभपर्ेत है
3

जो, उिचत हेतुक के िबना और ऐसे पक्षकार की सम्मित के िबना या इच्छा के िवरु हो और इसके अन्तगर्त िववाह के दूसरे पक्षकार
ारा अज दार की जानबूझकर उपेक्षा करना भी है और इस पद के व्याकरिणक रूपभेद तथा सजातीय पद के अथर् तदनुसार
लगाए जाएंगे ।]
4
* * * * * * *
3
[(1क) पत्नी भी िववाह-िवच्छेद के िलए िनम्निलिखत आधार पर िजला न्यायालय म अज पेश कर सके गी––
(i) िक उसका पित िववाह के अनुष्ठापन के पश्चात् बलात्कार, गुदा-मैथुन या पशुगमन का दोषी हुआ है ;
(ii) िक िहन्दू द क तथा भरण-पोषण अिधिनयम, 1956 (1956 का 78) की धारा 18 के अधीन बाद म या दंड
पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 के अधीन [या दंड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) की तत्समान धारा
488 के अधीन)] कायर्वाही म, पत्नी को भरण-पोषण िदलवाने के िलए, पित के िवरु , यथािस्थित, िडक या आदेश इस बात
के होते हुए भी पािरत िकया गया है िक वह अलग रहती थी और ऐसी िडकर्ी या आदेश के पािरत िकए जाने के समय से एक
वषर् या ऊपर की कालाविध भर उन पक्षकार के बीच सहवास का पुनरारं भ नह हुआ है ।]
[(2) इस अिधिनयम के उपबंध और तद्धीनबनाए गए िनयम के अध्यधीन रहते हुए, िववाह का, जो चाहे िवशेष िववाह
5

(संशोधन) अिधिनयम, 1970 के पर्ारम्भ के पूवर् अनुष्ठािपत िकया गया हो या, उसके पश्चात् कोई पक्षकार िववाह-िवच्छेद के िलए अज
िजला न्यायालय म इस आधार पर पेश कर सके गा िक––
(i) ऐसी कायर्वाही म, िजसके वे पक्षकार थे, न्याियक पृथक्करण की िडकर्ी पािरत िकए जाने के पश्चात् एक वषर् या
उससे अिधक की कालाविध तक िववाह के पक्षकार के बीच सहवास का पुनरारं भ नह हुआ है; अथवा
(ii) ऐसी कायर्वाही म िजसके वे पक्षकार थे, दांपत्य अिधकार के पर्त्यास्थापन के िलए िडकर्ी पािरत िकए जाने के
पश्चात् एक वषर् या उससे अिधक की कालाविध तक िववाह के पक्षकार के बीच दांपत्य अिधकार का पर्त्यास्थापन
नह हुआ है ।]
[27क. िववाह-िवच्छेद की कायर्वािहय म वैकिल्पक अनुतोष––इस अिधिनयम के अधीन िकसी कायर्वाही म िववाह-िवच्छेद
6

की िडकर्ी ारा िववाह के िवघटन के िलए अज पर, उस दशा को छोड़कर िजसम अज धारा 27 की उपधारा (1) के खण्ड (ज) म विणत
आधार पर है, यिद न्यायालय मामले की पिरिस्थितय को ध्यान म रखते हुए न्यायसंगत समझता है तो, वह िववाह-िवच्छेद की िडकर्ी
के बजाय न्याियक-पृथक्करण के िलए िडकर्ी पािरत कर सके गा ।]
28. पारस्पिरक सम्मित से िववाह-िवच्छेद––(1) इस अिधिनयम के उपबंध और तद्धीन बनाए गए िनयम के अध्यधीन
रहते हुए, दोन पक्षकार िमलकर िववाह-िवच्छेद के िलए अज िजला न्यायालय म इस आधार पर पेश कर सकगे िक वे एक वषर् या
उससे अिधक से अलग-अलग रह रहे ह और वे एक साथ नह रह सके ह तथा वे इस बात के िलए परस्पर सहमत हो गए ह िक िववाह
िवघिटत कर देना चािहए ।
(2) 7 [उपधारा (1) म िविनिदष्ट अज के पेश िकए जाने की तारीख से छह मास के पश्चात् और अठारह मास के भीतर दोन
पक्षकार ारा िकए गए पर्स्ताव पर,] यिद इस बीच म अज वापस न ले ली गई हो तो, िजला न्यायालय पक्षकार को सुनने के पश्चात्
और ऐसी जांच, जैसी वह ठीक समझे, करने के पश्चात् अपना यह समाधान कर लेने पर िक िववाह इस अिधिनयम के अधीन
अनुष्ठािपत हुआ है और अज म िकए गए पर्ाक्कथन सही ह, यह घोषणा करने वाली िडकर्ी पािरत करे गा िक िववाह िडकर्ी की तारीख से
िवघिटत हो जाएगा ।

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा खंड (27-5-1976 से) कु छ शब्द का लोप िकया गया ।
2
1970 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा “या” शब्द और खंड (झ) और (ञ) का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा (27-5-1976 से) अंत:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 27 ारा कु छ शब्द का लोप िकया गया ।
5
1970 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 28 ारा (27-5-1976 से) अंत:स्थािपत ।
7
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 29 ारा खंड (27-5-1976 से) कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9

29. िववाह के पश्चात् पर्थम तीन वष के दौरान िववाह-िवच्छेद के िलए अज देने पर िनबर्न्धन––(1) िववाह-िवच्छेद के
िलए कोई अज िजला न्यायालय म तब तक पेश न की जाएगी 1 [जब तक अज पेश िकए जाने की तारीख तक उस तारीख से एक वषर्
व्यतीत न हो गया हो] जब िववाह का पर्माणपतर् िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म पर्िवष्ट िकया गया था :
परन्तु िजला न्यायालय अपने से आवेदन िकए जाने पर कोई अज 1[एक वषर् व्यतीत होने से पहले] पेश करने की अनुज्ञा इस
आधार पर दे सके गा िक वह मामला अज दार ारा असाधारण कष्ट भोगे जाने का या पर्त्यथ की असाधारण दुराचािरता का है; िकन्तु
यिद िजला न्यायालय को अज की सुनवाई से यह पर्तीत हो िक अज दार ने अज पेश करने की इजाजत िकसी दुव्यर्पदेशन ारा या
मामले की पर्कृ ित को िछपाने ारा अिभपर्ाप्त की थी तो िजला न्यायालय िडकर्ी देने की दशा म इस शतर् के अध्यधीन ऐसा कर सके गा िक
िडकर्ी तब तक पर्भावी न होगी जब तक िववाह की तारीख से 1[एक वषर् का अवसान] न हो जाए, अथवा उस अज को, िकसी अन्य ऐसी
अज पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, खािरज कर सके गा जो 1[उक्त एक वषर् के अवसान] के पश्चात् उन्ह या सारत: उन्ह तथ्य पर दी
जाए जो ऐसे खािरज की गई अज के समथर्न म सािबत िकए गए ।
(2) िववाह की तारीख से 1[एक वषर् के अवसान] के पहले िववाह-िवच्छेद की अज पेश करने की इजाजत के िलए इस धारा के
अधीन आवेदन का िनपटारा करने म िजला न्यायालय उस िववाह से उत्पन्न िकसी संतान के िहत का तथा इस बात का ध्यान रखेगा
िक क्या पक्षकार के बीच; 1[उक्त एक वषर्] के अवसान के पहले पुनिमलाप की कोई उिचत अिधसंभाव्यता है ।
30. िविच्छन िववाह व्यिक्तय का पुनिववाह––जब िववाह-िवच्छेद की िडकर्ी ारा िववाह िवघिटत कर िदया गया हो और
या तो िडकर्ी के िवरु अपील करने का कोई अिधकार न हो या अपील का ऐसा अिधकार होने की दशा म अपील करने के समय का
अवसान अपील पेश िकए गए िबना हो गया हो या अपील पेश की तो गई हो िकन्तु खािरज कर दी गई हो, 2 *** िववाह का कोई
पक्षकार पुनिववाह कर सके गा ।
अध्याय 7

अिधकािरता और पर्िकर्या
31. वह न्यायालय िजससे अज दी जानी चािहए–– 3 [(1) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन पर्त्येक अज उस िजला न्यायालय
म पेश की जाएगी िजसकी आरिम्भक िसिवल अिधकािरता की स्थानीय सीमा के अंदर,––
(i) िववाह का अनुष्ठान हुआ था; या
(ii) पर्त्यथ , अज के पेश िकए जाने के समय, िनवास करता है; या
(iii) िववाह के पक्षकार ने अिन्तम बार एक साथ िनवास िकया था; या
4
[(iiiक) यिद पत्नी अज दार है तो वहां अज पेश िकए जाने के समय िनवास कर रही है; या]
(iv) अज दार अज के पेश िकए जाने के समय िनवास कर रहा है, यह ऐसे मामले म, िजसम पर्त्यथ उस समय ऐसे
राज्यक्षेतर् के बाहर िनवास कर रहा है िजस पर इस अिधिनयम का िवस्तार है अथवा वह जीिवत है या नह इसके बारे म सात
वषर् या उससे अिधक की कालाविध के भीतर उन्ह ने कु छ नह सुनता है, िजन्ह ने उसके बारे म, यिद वह जीिवत होता तो,
स्वाभािवकतया सुना होता ।]
(2) न्यायालय ारा उपधारा (1) के अधीन पर्योक्तव्य अिधकािरता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना यह है िक िजला न्यायालय
िववाह की अकृ तता के िलए या िववाह-िवच्छेद के िलए पत्नी ारा दी गई अज इस उपधारा के आधार पर गर्हण कर सके गा यिद वह
उन राज्यक्षेतर् म अिधवािसत हो िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है और वह उक्त राज्यक्षेतर् म िनवास करती हो तथा िववाह की
अकृ तता या िववाह-िवच्छेद के िलए अज पेश करने के ठीक पहले तीन वषर् की कालाविध तक वहां मामूली तौर पर िनवास करती रही
हो और पित उक्त राज्यक्षेतर् म िनवास न करता हो ।
32. अिजय की अन्तवर्स्तु और सत्यापन––(1) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन पर्त्येक अज उन सब तथ्य का, िजन पर
अनुतोष का दावा आधािरत हो, कथन इतने स्पष्ट तौर पर करे गी िजतना उस मामले म हो सके और वह यह कथन भी करे गी िक
अज दार और िववाह के दूसरे पक्षकार के बीच दुस्संिध नह है ।
(2) पर्त्येक ऐसी अज म अन्तिवष्ट कथन अज दार ारा या िकसी अन्य सक्षम व्यिक्त ारा उस रीित से सत्यािपत िकए
जाएंगे जो वादपतर् के सत्यापन के िलए िविध ारा अपेिक्षत है और सुनवाई म सा य के रूप म िनिदष्ट िकए जा सकगे ।
[33. कायर्वािहय का बंद कमरे म होना और उन्ह मुिदर्त या पर्कािशत न िकया जाना––(1) इस अिधिनयम के अधीन हर
5

कायर्वाही बन्द कमरे म की जाएगी और िकसी व्यिक्त के िलए ऐसी िकसी कायर्वाही के सम्बन्ध म िकसी बात को मुिदर्त या पर्कािशत

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 30 ारा कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 31 ारा कु छ शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 32 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 50 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 33 ारा (27-5-1976 से) धारा 33 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10

करना िविधपूणर् नह होगा िकन्तु उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के उस िनणर्य को छोड़कर जो उस न्यायालय की पूवर् अनुज्ञा से
मुिदर्त या पर्कािशत िकया गया है ।
(2) यिद कोई व्यिक्त उपधारा (1) के उपबंध के उल्लंघन म कोई बात मुिदर्त या पर्कािशत करे गा तो वह ऐसे जुमार्ने से, जो
जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, दण्डनीय होगा ।]
34. िडिकर्यां पािरत करने म न्यायालय का कतर्व्य––(1) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन की िकसी कायर्वाही म, चाहे उसम
पर्ितरक्षा की गई हो या नह यिद न्यायालय का समाधान हो जाए िक––
(क) अनुतोष अनुद करने के आधार म से कोई आधार िव मान है; तथा
(ख) 1 [जहां अज धारा 27 की उपधारा (1) के खण्ड (क) म िविनिदष्ट आधार पर है वहां अज दार उसम िनिदष्ट
मैथुन कायर् म न तो िकसी पर्कार उपसाधक रहा है, न उसकी उसम मौनानुकूलता है और न उसने उसका उपमषर्ण िकया है]
अथवा जहां अज का आधार कर्ूरता है वहां अज दार ने कर्ूरता का िकसी तरह उपमषर्ण नह िकया है; तथा
(ग) जब िववाह-िवच्छेद पारस्पिरक सम्मित के आधार पर चाहा गया है तब ऐसी सम्मित बल, कपट या असम्यक्
असर से अिभपर्ाप्त नह की गई है; तथा
(घ) अज पर्त्यथ के साथ दुस्संिध करके पेश या अिभयोिजत नह की गई है; तथा
(ङ) कायर्वाही संिस्थत करने म कोई अनावश्यक या अनुिचत िवलंब नह हुआ है; तथा
(च) अनुतोष अनुद न करने के िलए कोई वैध आधार नह है,
तो और ऐसी दशा म न्यायालय तदनुसार ऐसा अनुतोष िडकर्ी करे गा, अन्यथा नह ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन कोई अनुतोष अनुद करने के िलए अगर्सर होने के पूवर् न्यायालय का सबसे पहले यह कतर्व्य
होगा िक वह पर्त्येक ऐसे मामले म, िजसम मामले की पर्कृ ित और पिरिस्थितय से संगत रूप से ऐसा करना संभव हो, पक्षकार म
पुन:िमलाप कराने के िलए पर्त्येक पर्यास करे :
[परन्तु इस धारा की कोई बात िकसी ऐसी कायर्वाही को लागू नह होगी िजसम धारा 27 की उपधारा (1) के खण्ड (ग),
2

खण्ड (ङ), खण्ड (च), खण्ड (छ) और खण्ड (ज) म िनिदष्ट आधार म से िकसी आधार पर अनुतोष चाहा गया है ।]
[(3) ऐसा मेल-िमलाप करने म न्यायालय की सहायता के पर्योजन के िलए न्यायालय, यिद पक्षकार चाहे तो या यिद
3

न्यायालय ऐसा करना न्यायसंगत और उिचत समझे तो, कायर्वािहय को पन्दर्ह िदन से अनिधक की युिक्तयुक्त कालाविध के िलए
स्थिगत कर सके गा और उस मामले को पक्षकार ारा इस िनिम नािमत िकसी व्यिक्त को या यिद पक्षकार कोई व्यिक्त नािमत करने
म असफल रहते ह तो न्यायालय ारा नामिनदिशत िकसी व्यिक्त को इन िनदेश के साथ िनदिशत कर सके गा िक वह न्यायालय को
इस बारे म िरपोटर् दे िक मेल-िमलाप कराया जा सकता है या नह और करा िदया गया है या नह और न्यायालय कायर्वाही का
िनपटारा करने म ऐसी िरपोटर् को सम्यक् रूप से ध्यान म रखेगा ।
(4) ऐसे पर्त्येक मामले म, िजसम िववाह का िवघटन िववाह-िवच्छेद ारा होता है, िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय
पर्त्येक पक्षकार को उसकी पर्ित मुफ्त देगा ।]
[35. िववाह-िवच्छेद और अन्य कायर्वािहय म पर्त्यथ को अनुतोष––िववाह-िवच्छेद या न्याियक पृथक्करण या दाम्प्त्य
4

अिधकार के पर्त्यास्थापन के िलए िकसी कायर्वाही म पर्त्यथ अज दार के जारकमर्, कर्ूरता या अिभत्यजन के आधार पर चाहे गए
अनुतोष का न के वल िवरोध कर सके गा बिल्क वह उस आधार पर इस अिधिनयम के अधीन िकसी अनुतोष के िलए पर्ितदावा भी कर
सके गा और यिद अज दार का जारकमर्, कर्ूरता या अिभत्यजन सािबत हो जाता है तो न्यायालय पर्त्यथ को इस अिधिनयम के अधीन
कोई ऐसा अनुतोष दे सके गा िजसके िलए वह उस दशा म हकदार होता या होती िजसम उसने उस आधार पर ऐसे अनुतोष की मांग
करते हुए अज पेश की होती ।]
36. वादकालीन िनवार्िहका––जहां अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन िकसी कायर्वाही म िजला न्यायालय को यह पर्तीत हो
िक पत्नी की कोई ऐसी स्वतंतर् आय नह है जो उसकी संभाल और उसके आवश्यक व्यय के िलए पयार्प्त हो वहां यह पत्नी के आवेदन
पर पित को आदेश दे सके गा िक वह पत्नी को कायर्वाही म पड़ने वाले व्यय तथा कायर्वाही के दौरान ऐसी साप्तािहक या मािसक रािश
दे जो पित की आय को ध्यान म रखते हुए न्यायालय को उिचत पर्तीत हो ।
[परन्तु कायर्वाही के व्यय और अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन कायर्वाही के दौरान ऐसी साप्तािहक या मािसक रािश के
5

संदाय के िलए आवेदन को यथासंभव, पित पर सूचना की तामील की तारीख से, साठ िदन के भीतर िनपटाया जाएगा ।]

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 34 ारा (27-5-1976 से) अंत:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 34 ारा (27-5-1976 से) कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 34 ारा (27-5-1976 से) अंत:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 35 ारा (27-5-1976 से) धारा 35 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2001 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
11

37. स्थायी िनवार्िहका और भरणपोषण––(1) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन अिधकािरता का पर्योग कर रहा कोई
न्यायालय िडकर्ी पािरत करते समय या िडकर्ी के पश्चात् िकसी समय, उस पर्योजन के िलए अपने से आवेदन िकए जाने पर यह आदेश
कर सके गा िक पित, पत्नी के भरणपोषण और संभाल के िलए, यिद आवश्यक हो तो पित की सम्पि पर पर्भार ारा, ऐसी सकल रािश
अथवा ऐसी मािसक या कािलक रािश पत्नी को जीवनकाल से अनिधक अविध के िलए पर्ाप्त कराए जैसी स्वयं पत्नी की संपि को, यिद
कोई हो, उसके पित की संपि और साम्थयर् को और 1 [पक्षकार के आचरण तथा मामले की अन्य पिरिस्थितय को] ध्यान म रखते हुए
न्यायालय को न्यायसंगत पर्तीत हो ।
(2) यिद िजला न्यायालय का समाधान हो जाए उसके उपधारा (1) के अधीन आदेश करने के पश्चात् िकसी समय पक्षकार म
से िकसी की पिरिस्थितय म तब्दीली हो गई हो तो वह िकसी पक्षकार की पर्ेरणा पर, ऐसी रीित से जो न्यायालय को न्यायसंगत पर्तीत
हो, ऐसे िकसी आदेश म फे रफार या उपान्तर कर सके गा या उसे िवखिण्डत कर सके गा ।
(3) यिद िजला न्यायालय का समाधान हो जाए, िक पत्नी से, िजसके पक्ष म इस धारा के अधीन आदेश िदया गया, पुनिववाह
कर िलया है या सती जीवन नह िबता रही है 1[तो वह पित की पर्ेरणा पर और ऐसी रीित म, जो न्यायालय न्यायसंगत समझे, ऐसे
िकसी आदेश को पिरवितत, उपान्तिरत का िवखिण्डत कर सके गा ।]
38. संतान की अिभरक्षा––अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन की िकसी कायर्वाही म िजला न्यायालय अवयस्क संतान की
अिभरक्षा, भरणपोषण और िशक्षा के बारे म जहां संभव हो वहां उनकी इच्छा से संगत, समय-समय पर, ऐसे अन्तिरम आदेश पािरत
कर सके गा और िडकर्ी म ऐसे उपबंध कर सके गा जो उसे न्यायसंगत और उिचत पर्तीत ह और िडकर्ी के पश्चात्, इस पर्योजन के िलए
अज ारा िकए गए आवेदन पर ऐसी संतान की अिभरक्षा, भरण-पोषण और िशक्षा के बारे म, समय-समय पर, सब ऐसे आदेश और
उपबंध कर सके गा, पर्ितसंहृत कर सके गा या िनलिम्बत कर सके गा या उनम फे रफार कर सके गा जैसे यिद ऐसी िडकर्ी अिभपर्ाप्त करने के
िलए कायर्वाही लिम्बत होती तो ऐसी िडकर्ी या अंतिरम आदेश ारा िकए जा सकते ।
[परन्तु कायर्वाही के दौरान अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन अवयस्क संतान के भरण-पोषण और िशक्षा की बाबत आवेदन
2

को यथासंभव, पर्त्यथ पर सूचना की तामील की तारीख से, साठ िदन के भीतर िनपटाया जाएगा ।]
[39. िडिकर्य और आदेश की अपील––(1) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन िकसी कायर्वाही म न्यायालय ारा दी गई
3

सभी िडिकर्यां, उपधारा (3) के उपबंध के अध्यधीन उसी पर्कार अपीलनीय ह गी जैसे उस न्यायालय ारा अपनी आरिम्भक िसिवल
अिधकािरता के पर्योग म दी गई िडकर्ी अपीलनीय होती है और ऐसी अपील उस न्यायालय म होगी िजसम उस न्यायालय ारा अपनी
आरिम्भक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म िकए गए िविनश्चय की अपील सामान्यत: होती ह ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन िकसी कायर्वाही म न्यायालय ारा धारा 37 या धारा 38 के अधीन िकए गए आदेश, उपधारा
(3) के उपबंध के अध्यधीन, तभी अपीलनीय ह गे जब वे अंतिरम आदेश ह और ऐसी पर्त्येक अपील उस न्यायालय म होगी िजसम उस
न्यायालय ारा अपनी आरं िभक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म िकए गए िविनश्चय की अपील सामान्यत: होती ह ।
(3) के वल खच के िवषय म कोई अपील इस धारा के अधीन नह होगी ।
(4) इस धारा के अधीन पर्त्येक अपील िडकर्ी या आदेश की तारीख से 4 [नब्बे िदन की कालाविध] के अंदर की जाएगी ।
39क. िडिकर्य और आदेश का पर्वतर्न––अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन िकसी कायर्वाही म न्यायालय ारा दी गई सभी
िडिकर्य और आदेश का पर्वतर्न उसी पर्कार िकया जाएगा िजस पर्कार उस न्यायालय ारा अपनी आरं िभक िसिवल अिधकािरता के
पर्योग म दी गई िडिकर्य और आदेश का तत्समय पर्वतर्न िकया जाता है।]
40. 1908 के अिधिनयम 5 का लागू होना––इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के और ऐसे िनयम के , जो उच्च न्यायालय इस
िनिम बनाए, अध्यधीन रहते हुए, इस अिधिनयम के अधीन सब कायर्वािहयां िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) से
यथाशक्य िनयिमत ह गी ।
5
[40क. कु छ मामल म अिजय को अन्तिरत करने की शिक्त––(1) जहां––
(क) इस अिधिनयम के अधीन कोई अज अिधकािरता रखने वाले िजला न्यायालय म िववाह के िकसी पक्षकार
ारा धारा 23 के अधीन न्याियक पृथक्करण की िडकर्ी के िलए या धारा 27 के अधीन िववाह-िवच्छेद की िडकर्ी के िलए
पर्ाथर्ना करते हुए पेश की गई है, और
(ख) उसके पश्चात् इस अिधिनयम के अधीन कोई दूसरी अज िववाह के दूसरे पक्षकार ारा िकसी आधार पर धारा
23 के अधीन न्याियक पृथक्करण की िडकर्ी के िलए या धारा 27 के अधीन िववाह-िवच्छेद की िडकर्ी के िलए पर्ाथर्ना करते हुए
चाहे उसी िजला न्यायालय म अथवा उसी राज्य के या िकसी िभन्न राज्य के िकसी िभन्न िजला न्यायालय म पेश की गई है,

1
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 36 ारा कु छ शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2001 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 37 ारा (27-5-1976 से) धारा 39 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं०50 की धारा 3 ारा “तीस िदन की कालाविध” पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 38 ारा अंत:स्थािपत ।
12

वहां ऐसी अिजय के संबंध म उपधारा (2) म िविनिदष्ट रीित से कायर्वाही की जाएगी ।
(2) ऐसे मामले म िजसे उपधारा (1) लागू होती है,––
(क) यिद ऐसी अिजयां एक ही िजला न्यायालय म पेश की जाती ह, तो दोन अिजय का िवचारण और उनकी
सुनवाई उस िजला न्यायालय ारा एक साथ की जाएगी;
(ख) यिद ऐसी अिजयां िभन्न-िभन्न िजला न्यायालय म पेश की जाती ह तो बाद वाली पेश की गई अज उस
िजला न्यायालय को अंतिरत की जाएगी िजसम पहले वाली अज पेश की गई थी और दोन अिजय की सुनवाई और उनका
िनपटारा उस िजला न्यायालय ारा एक साथ िकया जाएगा िजसम पहले वाली अज पेश की गई थी ।
(3) ऐसे मामले म, िजसे उपधारा (2) का खंड (ख) लागू होता है, यथािस्थित, वह न्यायालय या सरकार, जो िकसी वाद या
कायर्वाही को उस िजला न्यायालय से, िजसम बाद वाली अज पेश की गई है, उस िजला न्यायालय को िजसम पहले वाली अज लंिबत
है, अंतिरत करने के िलए िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सक्षम है, ऐसी बाद वाली अज का अंतरण करने के
िलए अपनी शिक्तय का वैसे ही पर्योग करे गी मानो वह उक्त संिहता के अधीन ऐसा करने के िलए सशक्त की गई है ।
40ख. इस अिधिनयम के अधीन दी जाने वाली अिजय के िवचारण और िनपटारे के संबध ं म उपबन्ध––(1) इस अिधिनयम के
अधीन अज का िवचारण, जहां तक िक न्याय के िहत म संगत रहते हुए, उस िवचारण के बारे म, साध्य हो िदन पर्ितिदन तब तक
िनरं तर चालू रहेगा जब तक िक वह समाप्त न हो जाए िकन्तु उस दशा म नह िजसम न्यायालय िवचारण का अगले िदन से परे के िलए
स्थान करना उन कारण से आवश्यक समझे जो लेखब िकए जाएंगे ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन पर्त्येक अज का िवचारण जहां तक सम्भव हो शीघर् िकया जाएगा और पर्त्यथ पर अज की
सूचना की तामील होने की तारीख से छह मास के अंदर िवचारण समाप्त करने का पर्यास िकया जाएगा ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन पर्त्येक अपील की सुनवाई जहां तक संभव हो शीघर् की जाएगी और पर्त्यथ पर अपील की
सूचना की तामील होने की तारीख से तीन मास के अंदर सुनवाई समाप्त करने का पर्यास िकया जाएगा ।
40ग. दस्तावेजी सा य––िकसी अिधिनयम म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी यह है िक इस अिधिनयम के अधीन अज के
िवचारण की िकसी कायर्वाही म कोई दस्तावेज सा य म इस आधार पर अगर् नह होगी िक वह सम्यक् रूप से स्टांिपत या रिजस्टर्ीकृ त
नह है ।]
41. पर्िकर्या का िविनयमन करने वाले िनयम बनाने की उच्च न्यायालय की शिक्त––(1) उच्च न्यायालय िसिवल पर्िकर्या
संिहता, 1908 (1908 का 5) और इस अिधिनयम के उपबंध से संगत ऐसे िनयम, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, बनाएगा जो
वह अध्याय 5, 6 और 7 के उपबंध को िकर्यािन्वत करने के पर्योजन के िलए समीचीन समझे ।
(2) िविशष्टत: और पूवर्गागी उपबंध की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत के िलए
उपबंध करगे,––
(क) जारकमर् के आधार पर िववाह-िवच्छेद के िलए अज म जारकम को भी सहपर्त्यथ के रूप म वाद का पक्षकार
बनाना और वे पिरिस्थितयां िजनम अज दार ऐसा करने से अिभमुक्त िकया जा सके गा;
(ख) ऐसे िकसी सहपर्त्यथ के िवरु नुकसानी अिधिनण त करना;
(ग) अध्याय 5 या अध्याय 6 के अधीन की िकसी कायर्वाही म, उसके पहले से ही पक्षकार न होने वाले िकसी व्यिक्त
ारा मध्यक्षेप;
(घ) िववाह की अकृ तता के िलए या िववाह-िवच्छेद के िलए अज का पर्रूप और अंतवर्स्तु तथा ऐसी अिजय के
पक्षकार ारा उपगत खच का िदया जाना; तथा
(ङ) कोई अन्य ऐसा िवषय िजसके िलए इस अिधिनयम म कोई उपबंध या पयार्प्त उपबंध नह िकया गया है और
िजसके िलए भारतीय िववाह-िवच्छेद अिधिनयम, 1869 (1869 का 4) म उपबंध िकया गया है ।
अध्याय 8

पर्कीणर्
42. व्यावृि ––इस अिधिनयम की कोई बात िकसी ऐसे िववाह की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह डालेगी जो इसके
उपबंध के अधीन अनुष्ठािपत न िकया गया हो; और न इस अिधिनयम के बारे म यह समझा जाएगा िक वह िववाह करने के िकसी ढंग
की िविधमान्यता पर पर्त्यक्षत: या परोक्षत: पर्भाव डालती है ।
43. िववािहत व्यिक्त के इस अिधिनयम के अधीन पुन: िववाह करने के िलए शािस्त––अध्याय 3 म अन्यथा उपबंिधत के
िसवाय, पर्त्येक ऐसे व्यिक्त के बारे म, जो उस समय िववािहत होने पर भी इस अिधिनयम के अधीन अपना िववाह अनुष्ठािपत
13

कराएगा, यह समझा जाएगा िक उसने भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की, यथािस्थित, धारा 494 या धारा 495 के अधीन अपराध
िकया है, और ऐसे अनुष्ठािपत िववाह शून्य होगा ।
44. ि िववाह के िलए दंड––पर्त्येक व्यिक्त िजसका िववाह इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत हुआ हो और जो पित या
पत्नी के जीवनकाल म दूसरा िववाह करे गा, पित या पत्नी के जीवनकाल म पुन: िववाह करने के अपराध के िलए भारतीय दंड संिहता
(1860 का 45) की धारा 494 और धारा 495 म उपबंिधत शािस्तय का भागी होगा और ऐसे िकया गया िववाह शून्य होगा ।
45. िमथ्या घोषणा या पर्माणपतर् पर हस्ताक्षर करने के िलए शािस्त––पर्त्येक व्यिक्त, जो इस अिधिनयम के अधीन या उसके
ारा अपेिक्षत कोई ऐसी घोषणा करे या पर्माणपतर् बनाए, या ऐसी घोषणा या पर्माणपतर् हस्ताक्षिरत करे या अनुपर्मािणत करे िजसम
ऐसा कथन हो जो िमथ्या हो और या तो िजसके बारे म वह जानता हो या िवश्वास करता हो िक वह िमथ्या है या िजसके सत्य होने का
उसे िवश्वास न हो, भारतीय दंण्ड संिहता (1860 का 45) की धारा 199 म विणत अपराध का दोषी होगा ।
46. िववाह अिधकारी के दोषपूणर् कायर् के िलए शािस्त––कोई िववाह अिधकारी जो इस अिधिनयम के अधीन िववाह का
अनुष्ठापन :––
(1) उस िववाह के बारे म धारा 5 ारा अपेिक्षत सूचना पर्कािशत िकए िबना; अथवा
(2) ऐसे िववाह की सूचना के पर्काशन की तारीख से तीस िदन के भीतर, अथवा
(3) इस अिधिनयम के िकसी अन्य उपबंध के उल्लंघन म,
जानते हुए और जानबूझकर करे गा वह सादे कारावास से, जो एक वषर् तक का हो सके गा, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
47. िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक का िनरीक्षण के िलए उपलब्ध रहना––(1) इस अिधिनयम के अधीन रखी जाने वाली
िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक सभी उिचत समय पर िनरीक्षण के िलए उपलब्ध रहेगी और उसम अंतिवष्ट कथन के सा य के रूप म गर्ा
होगी ।
(2) िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म से पर्मािणत उ रण िववाह अिधकारी, आवेदन िकए जाने पर और आवेदक ारा िविहत फीस
िदए जाने पर उसे देगा ।
48. िववाह अिभलेख की पर्िविष्टय की पर्ितिलिपय का भेजा जाना––राज्य का पर्त्येक िववाह अिधकारी उस राज्य के जन्म,
मृत्यु और िववाह के महारिजस्टर्ार को, ऐसे अंतराल पर और ऐसे पर्रूप म, जो िविहत िकए जाएं, उन सब पर्िविष्टय की सही
पर्ितिलिप भेजेगा जो उसने ऐसे अंितम अंतराल के बाद िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक म की ह और उन राज्यक्षेतर् से बाहर के , िजन पर इस
अिधिनयम का िवस्तार है, िववाह अिधकािरय की दशा म सही पर्ितिलिप ऐसे पर्ािधकारी को भेजी जाएगी जैसा कदर्ीय सरकार इस
िनिम िविनिदष्ट करे ।
49. गलितय का ठीक िकया जाना––(1) कोई िववाह अिधकारी, जो िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक की िकसी पर्िविष्ट के पर्रूप या
सार म िकसी गलती का पता चलाए, उस गलती का पता चलने के पश्चात् एक मास के भीतर उन िववािहत व्यिक्तय के समक्ष या
उनकी मृत्यु या उनके अनुपिस्थत होने की दशा म दो अन्य िवश्वसनीय सािक्षय के समक्ष, उस गलती के पाश्वर् म पर्िविष्ट करके और
मूल पर्िविष्ट म पिरवतर्न िकए िबना, उसे ठीक कर सके गा और पाश्वर् पर्िविष्ट पर हस्ताक्षर करे गा और उसम ऐसे ठीक करने की तारीख
जोड़ेगा और िववाह अिधकारी उसके पर्माणपतर् म भी वैसी ही पाश्वर् पर्िविष्ट करे गा ।
(2) इस धारा के अधीन गलती ठीक करने की पर्िविष्ट उन सािक्षय ारा, िजनके समक्ष वह की गई हो, अनुपर्मािणत
की जाएगी ।
(3) जहां पर्िविष्ट की पर्ितिलिप धारा 48 के अधीन महारिजस्टर्ार या अन्य पर्ािधकारी को पहले ही भेज दी गई ह वहां िववाह
अिधकारी मूल गलत पर्िविष्ट और उसकी पािश्वक शुि य का वैसी ही रीित से पृथक् पर्माणपतर् बनाएगा और भेजेगा ।
50. िनयम बनाने की शिक्त––(1) कदर्ीय सरकार 1 *** अिधकािरय की दशा म कदर्ीय सरकार और सब अन्य दशा म
राज्य सरकार इस अिधिनयम के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम 2 , शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा बना सके गी ।
(2) िविशष्टत: और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत िवषय के िलए या
उनम से िकसी के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :––
(क) िववाह अिधकािरय के कतर्व्य और उनकी शिक्तयां और वे क्षेतर् िजनम वे अिधकािरता का पर्योग कर सकगे;
(ख) वह रीित िजससे िववाह अिधकारी इस अिधिनयम के अधीन जांच कर सके गा और उसके िलए पर्िकर्या;
(ग) वह पर्रूप िजसम और वह रीित िजसम इस अिधिनयम ारा या उसके अधीन अपेिक्षत पुस्तक रखी जाएंगी;

1
1969 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 29 ारा “राजनियक और क सलीय अिधकािरय और अन्य” शब्द का लोप िकया गया ।
2
िवशेष िववाह (राजनियक और क सलीय अिधकारी) िनयम, 1954 के िलए देिखए भारत का राजपतर्, 1955, भार 2, खण्ड 3, पृ० 1517
14

(घ) वे फीस जो िववाह अिधकारी पर इस अिधिनयम के अधीन अिधरोिपत िकसी कतर्व्य के पालन के िलए
उद्गृहीत की जा सकगी;
(ङ) वह रीित िजससे धारा 16 के अधीन लोक सूचना दी जाएगी;
(च) वह रीित िजससे और वे अंतराल िजनके भीतर िववाह-पर्माणपतर् पुस्तक की पर्िविष्टय की पर्ितिलिपयां धारा
48 के अनुसरण म भेजी जाएंगी;
(छ) कोई अन्य िवषय जो िविहत िकया जाए या िजसका िविहत िकया जाना अपेिक्षत हो ।
[(3) इस अिधिनयम के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा बनाया गया पर्त्येक िनयम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर् संसद् के
1

पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक
आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस
िनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के
पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम के ऐसे
पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
(4) इस अिधिनयम के अधीन राज्य सरकार ारा बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने पर, यथाशीघर्, राज्य िवधान-मण्डल
के समक्ष रखा जाएगा ।]
51. िनरसन और व्यावृितयां––(1) िवशेष िववाह अिधिनयम, 1872 (1872 का 3) को और िवशेष िववाह अिधिनयम, 1872
की िकसी तत्स्थानी िविध को जो, इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के ठीक पहले िकसी भाग ख राज्य म पर्वृ हो, एतद् ारा िनरिसत िकया
जाता है ।
(2) ऐसे िनरसन के होते हुए भी,––
(क) िवशेष िववाह अिधिनयम, 1872 (1872 का 3) या ऐसी िकसी तत्स्थानी िविध के अधीन सम्यक् रूप से
अनुष्ठािपत सब िववाह इस अिधिनयम के अधीन अनुष्ठािपत समझे जाएंगे;
(ख) वैवािहक मामल और िवषय के सब वाद और कायर्वािहयां जो इस अिधिनयम के पर्वतर्न म आने के समय
िकसी न्यायालय म लंिबत ह उस न्यायालय ारा यावत्शक्य ऐसे िनपटाई या िविनश्चत की जाएंगी मानो वे मूलत: उसम
ही इस अिधिनयम के अधीन संिस्थत की गई ह ।
(3) उपधारा (2) के उपबंध साधारण खंड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव नह
डालगे और उक्त धारा 6 के उपबंध तत्स्थानीय िविध के िनरसन को भी ऐसे ही लागू ह गे मानो वह तत्स्थानी िविध अिधिनयिमित हो ।

पर्थम अनुसूची
[धारा 2(ख) देिखए]

पर्ितिष कोिट की नातेदारी


भाग 1
1. माता
2. िपता की िवधवा (सौतेली माता)
3. माता की माता
4. माता के िपता की िवधवा (सौतेली नानी)
5. माता की माता की माता
6. माता की माता के िपता की िवधवा (सौतेली परनानी)
7. माता के िपता की माता
8. माता के िपता के िपता की िवधवा (सौतेली परनानी)
9. िपता की माता
10. िपता के िपता की िवधवा (सौतेली दादी)
11. िपता की माता की माता

1
1983 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 2 और अनुसूची ारा (15-3-1984 से) अंत:स्थािपत ।
15

12. िपता की माता के िपता की िवधवा (सौतेली परनानी)


13. िपता के िपता की माता
14. िपता के िपता के िपता की िवधवा (परदादी)
15. पुतर्ी
16. पुतर् की िवधवा
17. पुतर्ी की पुतर्ी
18. पुतर्ी के पुतर् की िवधवा
19. पुतर् की पुतर्ी
20. पुतर् के पुतर् की िवधवा
21. पुतर्ी की पुतर्ी की पुतर्ी
22. पुतर्ी की पुतर्ी के पुतर् की िवधवा
23. पुतर्ी के पुतर् की पुतर्ी
24. पुतर्ी के पुतर् के पुतर् की िवधवा
25. पुतर् की पुतर्ी की पुतर्ी
26. पुतर् की पुतर्ी के पुतर् की िवधवा
27. पुतर् के पुतर् की पुतर्ी
28. पुतर् के पुतर् के पुतर् की िवधवा
29. बिहन
30. बिहन की पुतर्ी
31. भाई की पुतर्ी
32. माता की बिहन
33. िपता की बिहन
34. िपता के भाई की पुतर्ी
35. िपता की बिहन की पुतर्ी
36. माता की बिहन की पुतर्ी
37. माता के भाई की पुतर्ी
स्पष्टीकरण––इस भाग के पर्योजन के िलए “िवधवा” पद के अन्तगर्त िविच्छन्न-िववाह पत्नी भी है ।
भाग 2
1. िपता
2. माता का पित (सौतेला िपता)
3. िपता का िपता
4. िपता की माता का पित (सौतेला दादा)
5. िपता के िपता का िपता
6. िपता के िपता की माता का पित (सौतेला परदादा)
7. िपता की माता का िपता
8. िपता की माता की माता का पित (सौतेला परदादा)
9. माता का िपता
16

10. माता की माता का पित (सौतेला नाना)


11. माता के िपता का िपता
12. माता के िपता की माता का पित (सौतेला परनाना)
13. माता की माता का िपता
14. माता की माता की माता का पित (सौतेला परनाना)
15. पुतर्
16. पुतर्ी का पित
17. पुतर् का पुतर्
18. पुतर् की पुतर्ी का पित
19. पुतर्ी का पुतर्
20. पुतर्ी की पुतर्ी का पित
21. पुतर् के पुतर् का पुतर्
22. पुतर् के पुतर् की पुतर्ी का पित
23. पुतर् की पुतर्ी का पुतर्
24. पुतर् की पुतर्ी की पुतर्ी का पित
25. पुतर्ी के पुतर् का पुतर्
26. पुतर्ी के पुतर् की पुतर्ी का पित
27. पुतर्ी की पुतर्ी का पुतर्
28. पुतर्ी की पुतर्ी की पुतर्ी का पित
29. भाई
30. भाई का पुतर्
31. बिहन का पुतर्
32. माता का भाई
33. िपता का भाई
34. िपता के भाई का पुतर्
35. िपता की बिहन का पुतर्
36. माता की बिहन का पुतर्
37. माता के भाई का पुतर्
स्पष्टीकरण––इस भाग के पर्योजन के िलए “पित” पद के अन्तगर्त िविच्छन्न-िववाह पित भी है ।
17

ि तीय अनुसूची
आशियत िववाह की सूचना
(धारा 5 देिखए)
………………………………िजला के िववाह अिधकारी ।
हम एतद् ारा आपको सूचना देते ह िक इसकी तारीख से तीन कलडर मास के भीतर हम दोन का परस्पर िववाह िवशेष
िववाह अिधिनयम, 1954 के अधीन अनुष्ठािपत होना आशियत है ।

नाम िस्थित उपजीिवका आयु रहने का यिद रहने का वतर्मान स्थान स्थायी न िनवास की अविध
स्थान हो तो रहने का स्थायी स्थान
अिववािहत
क.ख
िवधुर
िविच्छन्न-िववाह
ग.घ अिववािहत
िवधवा
िविच्छन्न-िववाह
आज सन् 19………………के ……………… मास के ……………………… िदन हमने हस्ताक्षर िकए ।
(हस्ताक्षर) क. ख
(हस्ताक्षर) ग. घ

तृतीय अनुसूची
(धारा 11 देिखए)

वर ारा की जाने वाली घोषणा


म क.ख. एतद् ारा िनम्निलिखत घोषणा करता हूं :––
1. म इस समय अिववािहत (या, यथािस्थित, िवधुर या िविच्छन्न-िववाह) हूं ।
2. मैने .......................वषर् की आयु पर्ाप्त कर ली है ।
3. मेरी ग. घ. (वधु) से पर्ितिष कोिट की नातेदारी नह है ।
4. म यह जानता हूं िक यिद इस घोषणा म कोई कथन िमथ्या हुआ और यिद ऐसा कथन करते समय यह जानता होऊं या
िवश्वास करता होऊं िक वह िमथ्या है या उसके सत्य होने का मुझे िवश्वास न हो तो म कारावास से और जुमार्ने से भी दंडनीय होऊंगा ।
(हस्ताक्षर) क. ख. (वर)

वधु ारा की जाने वाली घोषणा


म ग. घ., एतद् ारा िनम्निलिखत घोषणा करती हूं :––
1. इस समय अिववािहत (या, यथािस्थित, िवधवा या िविच्छन्न-िववाह) हूं ।
2. मैने .......................वषर् की आयु पर्ाप्त कर ली है ।
3. मेरी क. ख. (वर) से पर्ितिष कोिट की नातेदारी नह है ।
4. म यह जानती हूं िक यिद इस घोषणा म कोई कथन िमथ्या हुआ, और यिद ऐसा कथन करते समय यह जानती होऊं या
िवश्वास करती होऊं िक वह िमथ्या है या उसके सत्य होने का मुझे िवश्वास न हो तो म कारावास से और जुमार्ने से भी दंडनीय होऊंगी ।
(हस्ताक्षर) ग. घ. (वधु)
18

ऊपिरनािमत क.ख. और ग.घ. ारा हमारी उपिस्थित म हस्ताक्षर िकए गए । जहां तक हम जानते ह इस िववाह म कोई
िविधपूणर् बाधा नह है ।
(हस्ताक्षर) छ.ज

(हस्ताक्षर) झ.ञ तीन साक्षी


(हस्ताक्षर) ट.ठ
पर्ितहस्ताक्षिरत ङ. च.
िववाह अिधकारी
तारीख 19………………के ……………… मास का……………………… िदन

चतुथर् अनुसूची
(धारा 13 देिखए)

िववाह का पर्माणपतर्
म, ङ. च, एतद् ारा पर्मािणत करता हूं िक 2000..............................के ..........................मास के ..................िदन
क.ख. और ग.घ  . मेरे समक्ष हािजर हुए और उनम से पर्त्येक ने मेरी उपिस्थित म और उन तीन सािक्षय की उपिस्थित म, िजन्ह ने
इसम नीचे हस्ताक्षर िकए ह, धारा 11 ारा अपेिक्षत घोषणाएं क और उनका परस्पर िववाह इस अिधिनयम के अधीन मेरी उपिस्थित
म अनुष्ठािपत िकया गया ।
(हस्ताक्षर) ङ. च.
..........का िववाह अिधकारी
(हस्ताक्षर) क. ख.
वर
(हस्ताक्षर) ग. घ.
वधु
(हस्ताक्षर) छ.ज.

(हस्ताक्षर) झ.ञ. तीन साक्षी


(हस्ताक्षर) ट.ठ.
तारीख 19………………के ……………… मास का……………………… िदन ।


यहां पक्षकार की िविशिष्टयां दीिजए ।
19

पंचम अनुसूची
(धारा 16 देिखए)

अन्य रूप म अनुष्ठािपत िववाह का पर्माणपतर्


म, ङ.च, एतद् ारा पर्मािणत करता हूं िक क. ख. और ग. घ*.19.......................के ..........................
मास के ..................िदन मेरे समक्ष हािजर हुए और उनम से पर्त्येक ने मेरी उपिस्थित म िजन्ह ने इसम नीचे हस्ताक्षर िकए ह घोषणा
की िक उनका परस्पर िववाह हो चुका है और वे अपने िववाह के समय से पित और पत्नी के रूप म साथ रह रहे ह और इस अिधिनयम
के अधीन अपना िववाह रिजस्टर्ीकृ त कराने की उनकी इच्छा के अनुसार उक्त िववाह आज…………19…………के ……….
मास के …………..िदन इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है और ………….से पर्भावी है ।
(हस्ताक्षर) ङ. च.
..........का िववाह अिधकारी
(हस्ताक्षर) क. ख.
पित
(हस्ताक्षर) ग. घ.
पत्नी

(हस्ताक्षर) छ.ज.

(हस्ताक्षर) झ.ञ. तीन साक्षी


(हस्ताक्षर) ट.ठ.
तारीख 2000………………के ……………… मास का……………………… िदन ।

________

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