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उपासना स्थल (िवशेष उपबंध) अिधिनयम, 1991

(1991 का अिधिनयम संख्यांक 42)


[18 िसतंबर, 1991]
िकसी उपासना स्थल का संपिरवतर्न पर्ितिष करने के िलए
और 15 अगस्त, 1947 को यथािव मान िकसी उपासना
स्थल के धािमक स्वरूप को बनाए रखने
तथा उससे संसक्त या उसके
आनुषिं गक िवषय का
उपबंध करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के बयालीसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम उपासना स्थल (िवशेष उपबंध)
अिधिनयम, 1991 है ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय सम्पूणर् भारत पर है ।
(3) इस अिधिनयम की धारा 3, धारा 6 और धारा 8 के उपबंध तुरंत पर्वृ ह गे और इसके शेष उपबंध 11 जुलाई, 1991 को
पर्वृ हुए समझे जाएंगे ।
2. पिरभाषाएं––इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) “इस अिधिनयम का पर्ारं भ” से 11 जुलाई, 1991 को इस अिधिनयम का पर्ारं भ अिभपर्ेत है ;
(ख) “संपिरवतर्न” के अंतगर्त, उसके व्याकरिणक रूपभेद संिहत, िकसी भी पर्कार का पिरवतर्न या तब्दीली है ;
(ग) “उपासना स्थल” से कोई मंिदर, मिस्जद, गुरु ारा, िगरजाघर, मठ या िकसी धािमक संपर्दाय या उसके
अनुभाग का, चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो, लोक धािमक उपासना का कोई अन्य स्थल अिभपर्ेत है ।
3. उपासना स्थल के संपिरवतर्न का वजर्न––कोई भी व्यिक्त िकसी धािमक संपर्दाय या उसके िकसी अनुभाग के िकसी
उपासना स्थल का उसी धािमक संपर्दाय के िभन्न अनुभाग के या िकसी िभन्न धािमक संपर्दाय या उसके िकसी अनुभाग के उपासना
स्थल म संपिरवतर्न नह करे गा ।
4. कितपय उपासना स्थल के धािमक स्वरूप के बारे म घोषणा और न्यायालय , आिद की अिधकािरता का वजर्न––(1) यह
घोिषत िकया जाता है िक 15 अगस्त, 1947 को िव मान उपासना स्थल का धािमक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस िदन
िव मान था ।
(2) यिद इस अिधिनयम के पर्ारं भ पर, 15 अगस्त, 1947 को िव मान िकसी उपासना स्थल के धािमक स्वरूप के संपिरवतर्न
के बारे म कोई वाद, अपील या अन्य कायर्वाही िकसी न्यायालय, अिधकरण या अन्य पर्ािधकारी के समक्ष लिम्बत है तो वह उपशिमत
हो जाएगी और ऐसे िकसी मामले की बाबत कोई वाद, अपील या अन्य कायर्वाही ऐसे पर्ारं भ पर या उसके पश्चात् िकसी न्यायालय,
अिधकरण या अन्य पर्ािधकारी के समक्ष नह होगी :
परं तु यिद इस आधार पर िक ऐसे िकसी स्थल के धािमक स्वरूप म 15 अगस्त, 1947 के पश्चात् संपिरवतर्न हुआ है, संिस्थत
या फाइल िकया गया कोई वाद, अपील या अन्य कायर्वाही इस अिधिनयम के पर्ारं भ पर लिम्बत है, तो ऐसा वाद, अपील या अन्य
कायर्वाही इस पर्कार उपशिमत नह होगी और ऐसे पर्त्येक वाद, अपील या अन्य कायर्वाही का िनपटारा उपधारा (1) के उपबंध के
अनुसार िकया जाएगा ।
(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) की कोई बात िनम्निलिखत को लागू नह होगी,––
(क) उक्त उपधारा म िनिदष्ट कोई उपासना स्थल, जो पर्ाचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष
अिधिनयम, 1958 (1958 का 24) या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अन्तगर्त आने वाला कोई पर्ाचीन और ऐितहािसक
संस्मारक या कोई पुरातत्वीय स्थल या अवशेष है ;
(ख) उपधारा (2) म िनिदष्ट िकसी मामले की बाबत कोई वाद, अपील या अन्य कायर्वाही, िजसका इस अिधिनयम
के पर्ारं भ के पूवर् िकसी न्यायालय, अिधकरण या अन्य पर्ािधकारी ारा अंितम रूप से िविनश्चय, पिरिनधार्रण या िनपटारा
कर िदया गया है ;
(ग) ऐसे िकसी मामले के बारे म कोई िववाद जो ऐसे पर्ारं भ के पूवर् पक्षकार ारा आपस म तय हो गया है ;
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(घ) ऐसे िकसी स्थल का कोई संपिरवतर्न जो ऐसे पर्ारं भ के पूवर् उपमित ारा िकया गया है ;
(ङ) ऐसे पर्ारं भ के पूवर् ऐसे िकसी स्थल का िकया गया कोई संपिरवतर्न, जो तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन
पिरसीमा ारा विजत होने के कारण िकसी न्यायालय, अिधकरण या अन्य पर्ािधकारी के समक्ष आक्षेपणीय नह है ।
5. अिधिनयम का राम जन्मभूिम-बाबरी मिस्जद को लागू न होना––इस अिधिनयम की कोई बात उ र पर्देश राज्य के
अयोध्या म िस्थत राम जन्मभूिम-बाबरी मिस्जद के रूप म सामान्यतया ज्ञात स्थान या उपासना स्थल को और उक्त स्थान या उपासना
स्थल से संबंिधत िकसी वाद, अपील या अन्य कायर्वाही को लागू नह होगी ।
6. धारा 3 के उल्लंघन के िलए दंड––(1) जो कोई धारा 3 के उपबंध का उल्लंघन करे गा, वह कारावास से, िजसकी अविध
तीन वषर् तक ही हो सके गी, दंडनीय होगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
(2) जो कोई उपधारा (1) के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने का पर्यत्न करे गा या ऐसा अपराध कराएगा और ऐसे पर्यत्न म
अपराध करने की िदशा म कोई कायर् करे गा, वह उस अपराध के िलए उपबंिधत दंड से दंडनीय होगा ।
(3) जो कोई उपधारा (1) के अधीन दंडनीय िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण करे गा या उसे करने म आपरािधक ष ंतर् का पक्षकार
होगा, चाहे ऐसा अपराध ऐसी दुष्पर्ेरणा के पिरणामस्वरूप या ऐसे आपरािधक ष ंतर् के अनुसरण म िकया गया हो या न िकया गया
हो, वह भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 116 म िकसी बात के होते हुए भी, उस अपराध के िलए उपबंिधत दंड से दंडनीय
होगा ।
7. अिधिनयम का अन्य अिधिनयिमितय पर अध्यारोही होना––इस अिधिनयम के उपबंध, तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध
या इस अिधिनयम से िभन्न िकसी िविध के आधार पर पर्भावी िकसी िलखत म उससे असंगत िकसी बात के होते हुए भी, पर्भावी ह गे ।
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2001 के अधीिनयम सं० 30 की धारा 2 और पहली अनुसूची ारा िनरिसत ।

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