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H186045
H186045
पर्स्तावना
उ ेिशका— [भारत] के िलए एक साधारण दण्ड संिहता का उपबंध करना समीचीन है; अत: यह िनम्निलिखत रूप म
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1
भारतीय दंड संिहता का िवस्तार बरार िविध अिधिनयम, 1941 (1941 का 4) ारा बरार पर िकया गया है और इसे िनम्निलिखत स्थान पर पर्वृ घोिषत िकया
गया है :—
संथाल परगना वस्थापन िविनयम (1872 का 3) की धारा 2 ारा संथाल परगन पर ;
पंथ िपपलोदा, िविध िविनयम, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 तथा अनुसूची ारा पंथ िपपलोदा पर ;
ख डमल िविध िविनयम, 1936 (1936 का 4) की धारा 3 और अनुसूची ारा ख डमल िजले पर ; और
आंगुल िविध िविनयम, 1936 (1936 का 5) की धारा 3 और अनुसूची ारा आंगुल िजले पर ;
इसे अनुसूिचत िजला अिधिनयम, 1874 (1874 का 14) की धारा 3 (क) के अधीन िनम्निलिखत िजल म पर्वृ घोिषत िकया गया है, अथार्त्—
संयुक्त पर्ान्त तराई िजले—देिखए भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1876, भाग 1, पृ० 505, हजारीबाग, लोहारदग्गा के िजले [जो अब रांची िजले के नाम से
ज्ञात ह,—देिखए कलक ा राजपतर् (अंगर्ेजी), 1899, भाग 1, पृ० 44 और मानभूम और परगना] । दालभूम तथा िसहभूम िजल म कोलाहन—देिखए भारत का
राजपतर् (अंगर्ेजी), 1881, भाग 1, पृ० 504 ।
उपरोक्त अिधिनयम की धारा 5 के अधीन इसका िवस्तार लुशाई पहािड़य पर िकया गया है—देिखए भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1898, भाग 2,
पृ० 345 ।
इस अिधिनयम का िवस्तार, गोवा, दमण तथा दीव पर 1962 के िविनयम सं० 12 की धारा 3 और अनुसूची ारा ; दादरा तथा नागर हवेली पर 1963 के
िविनयम सं० 6 की धारा 2 तथा अनुसूची 1 ारा ; पांिडचेरी पर 1963 के िविनयम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 1 ारा और लकादीव, िमिनकोय और
अमीनदीवी ीप पर 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा िकया गया है ।
2
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
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मूल शब्द का संशोधन अनुकर्मशः 1891 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 और अनुसूची 1, भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंतर्ता
(के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 और िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा िकया गया है ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भाग ख राज्य को छोड़कर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
“उक्त राज्यक्षेतर्” मूल शब्द का संशोधन अनुकर्मशः भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश
अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा िकया गया है ।
6
1891 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “पर या 1861 की मई के उक्त पर्थम िदन के पश्चात्” शब्द और अंक िनरिसत ।
7
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् भारत के गवनर्र जनरल ारा पािरत िविध” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
“उक्त राज्यक्षेतर् की सीमा” मूल शब्द का संशोधन अनुकर्मशः भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा
अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा िकया गया है ।
9
1898 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा खण्ड (1) से खण्ड (4) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
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2009 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 51 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1
[स्पष्टीकरण—इस धारा म,—
(क) “अपराध” शब्द के अन्तगर्त भारत से बाहर िकया गया ऐसा हर कायर् आता है, जो यिद भारत म िकया गया होता
तो इस संिहता के अधीन दंडनीय होता ।
(ख) “कं प्यूटर संसाधन” पद का वही अथर् है, जो सूचना पर्ौ ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) की धारा 2 की
उपधारा (1) के खंड (ट) म है ;]
2
[दृष्टांत]
*** क. 4 [जो 5 [भारत का नागिरक है]] उगांडा म हत्या करता है । वह 6 [भारत] के िकसी स्थान म, जहां वह पाया जाए, हत्या के
3
[5. कु छ िविधय पर इस अिधिनयम ारा पर्भाव न डाला जाना—इस अिधिनयम म की कोई बात भारत सरकार की सेवा के
8
आिफसर , सैिनक , नौसैिनक या वायु सैिनक ारा िवदर्ोह और अिभत्यजन को दिण्डत करने वाले िकसी अिधिनयम के उपबन्ध , या
िकसी िवशेष या स्थानीय िविध के उपबन्ध , पर पर्भाव नह डालेगी ।]
अध्याय 2
साधारण स्पष्टीकरण
6. संिहता म की पिरभाषा का अपवाद के अध्यधीन समझा जाना—इस संिहता म सवर्तर्, अपराध की हर पिरभाषा, हर दण्ड
उपबंध और, हर ऐसी पिरभाषा या दण्ड उपबंध का हर दृष्टांत, “साधारण अपवाद” शीषर्क वाले अध्याय म अन्तिवष्ट अपवाद के
अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवाद को ऐसी पिरभाषा, दण्ड उपबंध या दृष्टांत म दुहराया न गया हो ।
दृष्टांत
(क) इस संिहता की वे धाराएं, िजनम अपराध की पिरभाषाएं अन्तिवष्ट ह, यह अिभ क्त नह करती िक सात वषर् से कम आयु
का िशशु ऐसे अपराध नह कर सकता, िकन्तु पिरभाषाएं उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी ह िजसम यह उपबिन्धत है िक
कोई बात, जो सात वषर् से कम आयु के िशशु ारा की जाती है, अपराध नह है ।
(ख) क, एक पुिलस आिफसर, वारण्ट के िबना, य को, िजसने हत्या की है, पकड़ लेता है । यहां क सदोष पिररोध के अपराध का
दोषी नह है, क्य िक वह य को पकड़ने के िलए िविध ारा आब था, और इसिलए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तगर्त आ
जाता है, िजसम यह उपबिन्धत है िक “कोई बात अपराध नह है जो िकसी ऐसे िक्त ारा की जाए जो उसे करने के िलए िविध ारा
आब हो”।
7. एक बार स्पष्टीकृ त पद का भाव—हर पद, िजसका स्पष्टीकरण इस संिहता के िकसी भाग म िकया गया है, इस संिहता के हर
भाग म उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही पर्योग िकया गया है ।
8. िलग—पुिल्लग वाचक शब्द जहां पर्योग िकए गए ह, वे हर िक्त के बारे म लागू ह, चाहे नर हो या नारी ।
9. वचन—जब तक िक संदभर् से तत्पर्ितकू ल पर्तीत न हो, एकवचन ोतक शब्द के अन्तगर्त बहुवचन आता है, और बहुवचन
ोतक शब्द के अन्तगर्त एकवचन आता है ।
10. “परु
ु ष”, “स्तर्ी”—“पुरुष” शब्द िकसी भी आयु के मानव नर का ोतक है ; “स्तर्ी” शब्द िकसी भी आयु की मानव नारी का
ोतक है ।
11. िक्त—कोई भी कपनी या संगम, या िक्त िनकाय चाहे वह िनगिमत हो या नह , “ िक्त” शब्द के अन्तगर्त आता है ।
12. लोक—लोक का कोई भी वगर् या कोई भी समुदाय “लोक” शब्द के अन्तगर्त आता है ।
1
2009 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 51 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “दृष्टांत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “(क)” कोष्ठक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “कोई कु ली जो भारत का मूल नागिरक है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारतीय अिधवास का कोई िबर्िटश नागिरक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा दृष्टांत (ख), (ग) तथा (घ) का लोप िकया गया ।
8
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा धारा 5 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
रहने िदए गए, िनयुक्त िकए गए, या िनयोिजत िकए गए िकसी भी आिफसर या सेवक के ोतक ह ।]
15. [“िबर्िटश इिण्डया” की पिरभाषा ।]—िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा िनरिसत ।
16. [“गवनर्मट आफ इिण्डया” की पिरभाषा ।]—भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा िनरिसत ।
2
[17. सरकार—“सरकार” के न्दर्ीय सरकार या िकसी 3 *** राज्य की सरकार का ोतक है ।]
4
[18. भारत—“भारत” से जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय भारत का राज्यक्षेतर् अिभपर्ेत है ।]
19. न्यायाधीश—“न्यायाधीश” शब्द न के वल हर ऐसे िक्त का ोतक है, जो पद रूप से न्यायाधीश अिभिहत हो, िकन्तु उस
हर िक्त का भी ोतक है,
जो िकसी िविध-कायर्वाही म, चाहे वह िसिवल हो या दािण्डक, अिन्तम िनणर्य या ऐसा िनणर्य, जो उसके िवरु अपील न होने पर
अिन्तम हो जाए या ऐसा िनणर्य, जो िकसी अन्य पर्ािधकारी ारा पुष्ट िकए जाने पर अिन्तम हो जाए, देने के िलए, िविध ारा सशक्त
िकया गया हो, अथवा
जो उस िक्त िनकाय म से एक हो, जो िक्त िनकाय ऐसा िनणर्य देने के िलए िविध ारा सशक्त िकया गया हो ।
दृष्टांत
(क) सन् 1859 के अिधिनयम 10 के अधीन िकसी वाद म अिधकािरता का पर्योग करने वाला कलक्टर न्यायाधीश है ।
(ख) िकसी आरोप के संबंध म, िजसके िलए उसे जुमार्ना या कारावास का दण्ड देने की शिक्त पर्ाप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो
या न होती हो, अिधकािरता का पर्योग करने वाला मिजस्टर्ेट न्यायाधीश है ।
(ग) मदर्ास संिहता के सन् 5 1816 के िविनयम 7 के अधीन वाद का िवचारण करने की और अवधारण करने की शिक्त रखने वाली
पंचायत का सदस्य न्यायाधीश है ।
(घ) िकसी आरोप के संबंध म, िजनके िलए उसे के वल अन्य न्यायालय को िवचारणाथर् सुपुदर् करने की शिक्त पर्ाप्त है, अिधकािरता
का पर्योग करने वाला मिजस्टर्ेट न्यायाधीश नह है ।
20. न्यायालय—“न्यायालय” शब्द उस न्यायाधीश का, िजसे अके ले ही को न्याियकत: कायर् करने के िलए िविध ारा सशक्त
िकया गया हो, या उस न्यायाधीश-िनकाय का, िजसे एक िनकाय के रूप म न्याियकत: कायर् करने के िलए िविध ारा सशक्त िकया गया
हो, जबिक ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-िनकाय न्याियकत: कायर् कर रहा हो, ोतक है ।
दृष्टांत
मदर्ास संिहता के सन् 51816 के िविनयम 7 के अधीन कायर् करने वाली पंचायत, िजसे वाद का िवचारण करने और अवधारण
करने की शिक्त पर्ाप्त है, न्यायालय है ।
21. लोक सेवक—“लोक सेवक” शब्द उस िक्त के ोतक ह जो एतिस्मन् पश्चात् िनम्नगत वणर्न म से िकसी म आता
है, अथार्त् :—
6
* * * * *
दूसरा— 7 [भारत की सेना] , 8 [नौसेना या वायु सेना] का हर आयुक्त आिफसर ;
9
[तीसरा—हर न्यायाधीश िजसके अन्तगर्त ऐसा कोई भी िक्त आता है जो िकन्ह न्यायिनणार्यक कृ त्य का चाहे स्वयं या
िक्तय के िकसी िनकाय के सदस्य के रूप म िनवर्हन करने के िलए िविध ारा सशक्त िकया गया हो ;]
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा धारा 14 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भाग क” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पूवर्वत धारा जो िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अंतःस्थािपत की गई थी के स्थान पर पर्ितस्थािपत । मूल
धारा 18 िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा िनरिसत ।
5
मदर्ास िसिवल न्यायालय अिधिनयम, 1873 (1873 का 3) ारा िनरिसत ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा पहले खण्ड का लोप िकया गया ।
7
“क्वीन की जो भारत सरकार या िकसी सरकार के अधीन सेवारत हो” मूल शब्द का संशोधन अनुकर्मशः भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937,
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 और िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा िकया गया है ।
8
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1964 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा पूवर्वत खण्ड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
चौथा—न्यायालय का हर आिफसर 1 [(िजसके अन्तगर्त समापक, िरसीवर या किमश्नर आता है)] िजसका ऐसे आिफसर के नाते
यह कतर् हो िक वह िविध या तथ्य के िकसी मामले म अन्वेषण या िरपोटर् करे , या कोई दस्तावेज बनाए, अिधपर्माणीकृ त करे , या रखे,
या िकसी सम्पि का भार सम्भाले या उस सम्पि का यन करे , या िकसी न्याियक आदेिशका का िनष्पादन करे , या कोई शपथ गर्हण
कराए या िनवर्चन करे , या न्यायालय म वस्था बनाए रखे और हर िक्त, िजसे ऐसे कतर् म से िकन्ह का पालन करने का पर्ािधकार
न्यायालय ारा िवशेष रूप से िदया गया हो ;
पांचवां—िकसी न्यायालय या लोक सेवक की सहायता करने वाला हर जूरी-सदस्य, असेसर या पंचायत का सदस्य ;
छठा—हर मध्यस्थ या अन्य िक्त, िजसको िकसी न्यायालय ारा, या िकसी अन्य सक्षम लोक पर्ािधकारी ारा, कोई मामला या
िवषय, िविनश्चय या िरपोटर् के िलए िनदिशत िकया गया हो ;
सातवां—हर िक्त जो िकसी ऐसे पद को धारण करता हो, िजसके आधार से वह िकसी िक्त को पिररोध म करने या रखने के
िलए सशक्त हो ;
आठवां— 2 [सरकार] का हर आिफसर िजसका ऐसे आिफसर के नाते यह कतर् हो िक वह अपराध का िनवारण करे , अपराध की
इि ला दे, अपरािधय को न्याय के िलए उपिस्थत करे , या लोक के स्वास्थ्य, क्षेम या सुिवधा की संरक्षा करे ;
नवां—हर आिफसर िजसका ऐसे आिफसर के नाते यह कतर् हो िक वह 2[सरकार] की ओर से िकसी सम्पि को गर्हण करे , पर्ाप्त
करे , रखे या य करे , या 2[सरकार] की ओर से कोई सवक्षण, िनधार्रण या संिवदा करे , या िकसी राजस्व आदेिशका का िनष्पादन करे ,
या 2[सरकार] के धन-संबंधी िहत पर पर्भाव डालने वाले िकसी मामले म अन्वेषण या िरपोटर् करे या 2[सरकार] के धन संबंधी िहत से
संबंिधत िकसी दस्तावेज को बनाए, अिधपर्माणीकृ त करे या रखे, या 2[सरकार] 3 *** के धन-संबंधी िहत की संरक्षा के िलए िकसी िविध
के ितकर्म को रोके ;
दसवां—हर आिफसर, िजसका ऐसे आिफसर के नाते यह कतर् हो िक वह िकसी गर्ाम, नगर या िजले के िकसी धमर्िनरपेक्ष
सामान्य पर्योजन के िलए िकसी सम्पि को गर्हण करे , पर्ाप्त करे , रखे या य करे , कोई सवक्षण या िनधार्रण करे , या कोई रे ट या कर
उद्गृहीत करे , या िकसी गर्ाम, नगर या िजले के लोग के अिधकार के अिभिनश्चयन के िलए कोई दस्तावेज बनाए, अिधपर्माणीकृ त करे
या रखे ;
[ग्यारहवां—हर िक्त जो कोई ऐसा पद धारण करता हो िजसके आधार से वह िनवार्चक नामावली तैयार करने, पर्कािशत
4
करने, बनाए रखने, या पुनरीिक्षत करने के िलए या िनवार्चन या िनवार्चन के िकसी भाग को संचािलत करने के िलए सशक्त हो ;]
5
[बारहवां—हर िक्त, जो—
(क) सरकार की सेवा या वेतन म हो, या िकसी लोक कतर् के पालन के िलए सरकार से फीस या कमीशन के रूप म
पािरशर्िमक पाता हो ;
(ख) स्थानीय पर्ािधकारी की, अथवा के न्दर्, पर्ान्त या राज्य के अिधिनयम के ारा या अधीन स्थािपत िनगम की अथवा
कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 म यथा पिरभािषत सरकारी कम्पनी की, सेवा या वेतन म हो ।]
दृष्टांत
नगरपािलका आयुक्त लोक सेवक है ।
स्पष्टीकरण 1—ऊपर के वणर्न म से िकसी म आने वाले िक्त लोक सेवक ह, चाहे वे सरकार ारा िनयुक्त िकए गए ह
या नह ।
स्पष्टीकरण 2—जहां कह “लोक सेवक” शब्द आए ह, वे उस हर िक्त के संबंध म समझे जाएंगे जो लोक सेवक के ओहदे को
वास्तव म धारण िकए हुए ह , चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अिधकार म कै सी ही िविधक तर्ुिट हो ।
[स्पष्टीकरण 3—“िनवार्चन” शब्द ऐसे िकसी िवधायी, नगरपािलक या अन्य लोक पर्ािधकारी के नाते, चाहे वह कै से ही स्वरूप
4
का हो, सदस्य के वरणाथर् िनवार्चन का ोतक है िजसके िलए वरण करने की प ित िकसी िविध के ारा या अधीन िनवार्चन के रूप म
िविहत की गई हो ।]
6
* * * * *
1
1964 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “कर्ाउन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत िजसे िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा “सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत िकया गया था ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
4
1920 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
5
1964 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा पूवर्वत खण्ड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1964 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा स्पष्टीकरण 4 का लोप िकया गया ।
5
22. “जंगम सम्पि ”—“जंगम सम्पि ” शब्द से यह आशियत है िक इनके अन्तगर्त हर भांित की मूतर् सम्पि आती है, िकन्तु भूिम
और वे चीज, जो भू-ब ह या भू-ब िकसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई ह , इनके अन्तगर्त नह आती ।
23. “सदोष अिभलाभ”—“सदोष अिभलाभ” िविधिवरु साधन ारा ऐसी सम्पि का अिभलाभ है, िजसका वैध रूप से हकदार
अिभलाभ पर्ाप्त करने वाला िक्त न हो ।
“सदोष हािन”—“सदोष हािन” िविधिवरु साधन ारा ऐसी सम्पि की हािन है, िजसका वैध रूप से हकदार हािन उठाने
वाला िक्त हो ।
“सदोष अिभलाभ पर्ाप्त करना”/सदोष हािन उठाना—कोई िक्त सदोष अिभलाभ पर्ाप्त करता है, यह तब कहा जाता है जब िक
वह िक्त सदोष रखे रखता है और तब भी जबिक वह सदोष अजर्न करता है । कोई िक्त सदोष हािन उठाता है, यह तब कहा जाता है
जब िक उसे िकसी सम्पि से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबिक उसे िकसी सम्पि से सदोष वंिचत िकया जाता है ।
24. “बेईमानी से”—जो कोई इस आशय से कोई कायर् करता है िक एक िक्त को सदोष अिभलाभ कािरत करे या अन्य िक्त
को सदोष हािन कािरत करे , वह उस कायर् को “बेईमानी से” करता है, यह कहा जाता है ।
25. “कपटपूवक र् ”—कोई िक्त िकसी बात को कपटपूवर्क करता है, यह कहा जाता है, यिद वह उस बात को कपट करने के आशय
से करता है, अन्यथा नह ।
26. “िवश्वास करने का कारण”—कोई िक्त िकसी बात के “िवश्वास करने का कारण” रखता है, यह तब कहा जाता है जब वह
उस बात के िवश्वास करने का पयार्प्त हेतुक रखता है, अन्यथा नह ।
27. “पत्नी, िलिपक या सेवक के कब्जे म सम्पि ”—जबिक सम्पि िकसी िक्त के िनिम उस िक्त की पत्नी, िलिपक या
सेवक के कब्जे म है, तब वह इस संिहता के अथर् के अन्तगर्त उस िक्त के कब्जे म है ।
स्पष्टीकरण—िलिपक या सेवक के नाते अस्थायी रूप से या िकसी िविशष्ट अवसर पर िनयोिजत िक्त इस धारा के अथर् के
अन्तगर्त िलिपक या सेवक है ।
28. “कू टकरण”—जो िक्त एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है िक वह उस सदृश से पर्वंचना करे , या यह
संभा जानते हुए करता है िक तद् ारा पर्वंचना की जाएगी, वह “कू टकरण” करता है, यह कहा जाता है ।
1
[स्पष्टीकरण 1—कू टकरण के िलए यह आवश्यक नह है िक नकल ठीक वैसी ही हो ।
स्पष्टीकरण 2—जब िक कोई िक्त एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सादृश्य ऐसा है िक तद् ारा िकसी िक्त को
पर्वंचना हो सकती हो, तो जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न िकया जाए, यह उपधारणा की जाएगी िक जो िक्त एक चीज को दूसरी
चीज के इस पर्कार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश ारा पर्वंचना करने का था या वह यह सम्भा जानता था िक तद् ारा
पर्वंचना की जाएगी ।]
29. “दस्तावेज”—“दस्तावेज” शब्द िकसी भी िवषय का ोतक है िजसको िकसी पदाथर् पर अक्षर , अंक या िचह्न के साधन
ारा, या उनसे एक से अिधक साधन ारा अिभ क्त या विणत िकया गया हो जो उस िवषय के साक्षी के रूप म उपयोग िकए जाने को
आशियत हो या उपयोग िकया जा सके ।
स्पष्टीकरण 1—यह तत्वहीन है िक िकस साधन ारा या िकस पदाथर् पर अक्षर, अंक या िचह्न बनाए गए ह, या यह िक सा य
िकसी न्यायालय के िलए आशियत है या नह , या उसम उपयोग िकया जा सकता है या नह ।
दृष्टांत
िकसी संिवदा के िनबन्धन को अिभ क्त करने वाला लेख, जो उस संिवदा के सा य के रूप म उपयोग िकया जा सके ,
दस्तावेज है ।
बककार पर िदया गया चेक दस्तावेज है ।
मुख्तारनामा दस्तावेज है ।
मानिचतर् या रे खांक, िजसको सा य के रूप म उपयोग म लाने का आशय हो या जो उपयोग म लाया जा सके , दस्तावेज है ।
िजस लेख म िनदश या अनुदश
े अन्तिवष्ट ह , वह दस्तावेज है ।
स्पष्टीकरण 2—अक्षर , अंक या िचह्न से जो कु छ भी वािणिज्यक या अन्य पर्था के अनुसार ाख्या करने पर अिभ क्त होता
है, वह इस धारा के अथर् के अन्तगर्त ऐसे अक्षर , अंक या िचह्न से अिभ क्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वस्तुत: अिभ क्त न भी
िकया गया हो ।
1
1889 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 9 ारा मूल स्पष्टीकरण के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
दृष्टांत
क एक िविनमयपतर् की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम िलख देता है । वािणिज्यक पर्था के अनुसार
ाख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अथर् है िक धारक को िविनमयपतर् का भुगतान कर िदया जाए । पृष्ठांकन दस्तावेज है और इसका अथर्
उसी पर्कार से लगाया जाना चािहए मानो हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करो” शब्द या तत्पर्भाव वाले शब्द िलख िदए गए ह ।
[29क. “इलैक्टर्ािनक अिभलेख”—“इलैक्टर्ािनक अिभलेख” शब्द का वही अथर् होगा जो सूचना पर्ौ ोिगकी अिधिनयम,
1
अपने सबके सामान्य आशय को अगर्सर करने म िकया जाता है, तब ऐसे िक्तय म से हर िक्त उस कायर् के िलए उसी पर्कार दाियत्व
के अधीन है, मानो वह कायर् अके ले उसी ने िकया हो ।]
35. जबिक ऐसा कायर् इस कारण आपरािधक है िक वह आपरािधक ज्ञान या आशय से िकया गया है—जब कभी कोई कायर्, जो
आपरािधक ज्ञान या आशय से िकए जाने के कारण ही आपरािधक है, कई िक्तय ारा िकया जाता है, तब ऐसे िक्तय म से हर
िक्त, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कायर् म सिम्मिलत होता है, उस कायर् के िलए उसी पर्कार दाियत्व के अधीन है, मानो वह कायर् उस
ज्ञान या आशय से अके ले उसी ारा िकया गया हो ।
36. अंशत: कायर् ारा और अंशत: लोप ारा कािरत पिरणाम—जहां कह िकसी कायर् ारा या िकसी लोप ारा िकसी पिरणाम
का कािरत िकया जाना या उस पिरणाम को कािरत करने का पर्यत्न करना अपराध है, वहां यह समझा जाना है िक उस पिरणाम का
अंशत: कायर् ारा और अंशत: लोप ारा कािरत िकया जाना वही अपराध है ।
दृष्टांत
क अंशत: य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करके और अंशत: य को पीट कर साशय य की मृत्यु कािरत करता है । क ने हत्या
की है ।
37. िकसी अपराध को गिठत करने वाले कई काय म से िकसी एक को करके सहयोग करना—जबिक कोई अपराध कई काय ारा
िकया जाता है, तब जो कोई या तो अके ले या िकसी अन्य िक्त के साथ सिम्मिलत होकर उन काय म से कोई एक कायर् करके उस
अपराध के िकए जाने म साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है ।
दृष्टांत
(क) क और ख पृथक् -पृथक् रूप से और िविभन्न समय पर य को िवष की छोटी-छोटी मातर्ाएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत
होते ह । क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमित के अनुसार य को िवष देते ह । य इस पर्कार दी गई िवष की कई मातर्ा के
पर्भाव से मर जाता है । यहां क और ख हत्या करने म साशय सहयोग करते ह और क्य िक उनम से हर एक ऐसा कायर् करता है, िजससे
मृत्यु कािरत होती है, वे दोन इस अपराध के दोषी ह, य िप उनके कायर् पृथक् ह ।
(ख) क और ख संयुक्त जेलर ह, और अपनी उस हैिसयत म वे एक कै दी य का बारी-बारी से एक समय म 6 घंटे के िलए संरक्षण-
भार रखते ह य को िदए जाने के पर्योजन से जो भोजन क और ख को िदया जाता है, वह भोजन इस आशय से िक य की मृत्यु कािरत कर
1
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
2
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 1 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
दी जाए, हर एक अपने हािजरी के काल म य को देने का लोप करके वह पिरणाम अवैध रूप से कािरत करने म जानते हुए सहयोग करते
ह । य भूख से मर जाता है । क और ख दोन य की हत्या के दोषी ह ।
(ग) एक जेलर क, एक कै दी य का संरक्षण-भार रखता है । क, य की मृत्यु कािरत करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप
से लोप करता है, िजसके पिरणामस्वरूप य की शिक्त बहुत क्षीण हो जाती है, िकन्तु यह क्षुधापीड़न उसकी मृत्य, कािरत करने के िलए
पयार्प्त नह होता । क अपने पद से च्युत कर िदया जाता है और ख उसका उ रवत होता है । क से दुस्संिध या सहयोग िकए िबना ख यह
जानते हुए िक ऐसा करने से संभा है िक वह य की मृत्यु कािरत कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है । य, भूख से मर
जाता है । ख हत्या का दोषी है िकन्तु क ने ख से सहयोग नह िकया, इसिलए क हत्या के पर्यत्न का ही दोषी है ।
38. आपरािधक कायर् म संपक् ृ त िक्त िविभन्न अपराध के दोषी हो सकगे—जहां िक कई िक्त िकसी आपरािधक कायर् को
करने म लगे हुए या सम्पृक्त ह, वहां वे उस कायर् के आधार पर िविभन्न अपराध के दोषी हो सकगे ।
दृष्टांत
क गम्भीर पर्कोपन की ऐसी पिरिस्थितय के अधीन य पर आकर्मण करता है िक य का उसके ारा वध िकया जाना के वल ऐसा
आपरािधक मानव वध है, जो हत्या की कोिट म नह आता है । ख जो य से वैमनस्य रखता है, उसका वध करने के आशय से और पर्कोपन
के वशीभूत न होते हुए य का वध करने म क की सहायता करता है । यहां, य िप क और ख दोन य की मृत्यु कािरत करने म लगे हुए ह,
ख हत्या का दोषी है और क के वल आपरािधक मानव वध का दोषी है ।
39. “स्वेच्छया”—कोई िक्त िकसी पिरणाम को “स्वेच्छया” कािरत करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उसे उन साधन
ारा कािरत करता है, िजनके ारा उसे कािरत करना उसका आशय था या उन साधन ारा कािरत करता है िजन साधन को काम म
लाते समय वह यह जानता था, या यह िवश्वास करने का कारण रखता था िक उनसे उसका कािरत होना संभा है ।
दृष्टांत
क लूट को सुकर बनाने के पर्योजन से एक बड़े नगर के एक बसे हुए गृह म रात को आग लगाता है और इस पर्कार एक िक्त की
मृत्यु कािरत कर देता है । यहां क का आशय भले ही मृत्यु कािरत करने का न रहा हो और वह दुिखत भी हो िक उसके कायर् से मृत्यु कािरत
हुई है तो भी यिद वह यह जानता था िक संभा है िक वह मृत्यु कािरत कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्यु कािरत की है ।
[40. “अपराध”—इस धारा के खण्ड 2 और 3 म विणत 2 [अध्याय ] और धारा
1
म के िसवाय “अपराध” शब्द इस संिहता ारा
दण्डनीय की गई िकसी बात का ोतक है ।
अध्याय 4, 3 [अध्याय 5क] और िनम्निलिखत धारा, अथार्त् धारा 4 [64, 65, 66, 5 [67], 71], 109, 110, 112, 114, 115, 116,
117, [118, 119 और 120], 187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223,, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347,
6
348, 388, 389 और 445 म “अपराध” शब्द इस संिहता के अधीन या एित्स्मनपश्चात् यथापिरभािषत िवशेष या स्थानीय िविध के
अधीन दण्डनीय बात का ोतक है ।
और धारा 141, 176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 म “अपराध” शब्द का अथर् उस दशा म वही है िजसम िक िवशेष या
स्थानीय िविध के अधीन दण्डनीय बात ऐसी िविध के अधीन छह मास या उससे अिधक अविध के कारावास से, चाहे वह जुमार्ने सिहत हो
या रिहत, दण्डनीय हो ।]
41. “िवशेष िविध”—“िवशेष िविध” वह िविध है जो िकसी िविशष्ट िवषय को लागू हो ।
42. “स्थानीय िविध”—“स्थानीय िविध” वह िविध है जो 7 [ 8 *** 9 [भारत]] के िकसी िविशष्ट भाग को ही लागू हो ।
43. “अवैध”—“करने के िलए वैध रूप से आब ”—“अवैध” शब्द हर उस बात को लागू है, जो अपराध हो, या जो िविध ारा
पर्ितिष हो, या जो िसिवल कायर्वाही के िलए आधार उत्पन्न करती हो ; और कोई िक्त उस बात को “करने के िलए वैध रूप से
आब ” कहा जाता है िजसका लोप करना उसके िलए अवैध है ।
44. “क्षित”—“क्षित” शब्द िकसी पर्कार की अपहािन का ोतक है, जो िकसी िक्त के शरीर, मन, ख्याित या सम्पि को अवैध
रूप से कािरत हुई हो ।
1
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 2 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1930 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “अध्याय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1913 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 1 ारा अंत:स्थािपत ।
5
1886 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 21 (1) ारा अंत:स्थािपत ।
6
2009 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 51 ारा अंत:स्थािपत ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1948 ारा “िबर्िटश भारत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1952 के अिधिनयम सं० 48 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “समािवष्ट राज्यक्षेतर् म” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत िजसे िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ान्त ” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत िकया गया था ।
8
45. “जीवन”—जब तक िक संदभर् से तत्पर्ितकू ल पर्तीत न हो, “जीवन” शब्द मानव के जीवन का ोतक है ।
46. “मृत्यु”—जब तक िक संदभर् के तत्पर्ितकू ल पर्तीत न हो, “मृत्यु” शब्द मानव की मृत्यु का ोतक है ।
47. “जीवजन्तु”—“जीवजन्तु” शब्द मानव से िभन्न िकसी जीवधारी का ोतक है ।
48. “जलयान”—“जलयान” शब्द िकसी चीज का ोतक है, जो मानव के या सम्पि के जल ारा पर्वहण के िलए बनाई
गई हो ।
49. “वषर्” या “मास”—जहां कह “वषर्” शब्द या “मास” शब्द का पर्योग िकया गया है वहां यह समझा जाना है िक वषर् या मास
की गणना िबर्िटश कलडर के अनुकूल की जानी है ।
50. “धारा”—“धारा” शब्द इस संिहता के िकसी अध्याय के उन भाग म से िकसी एक का ोतक है, जो िसरे पर लगे संख्यांक
ारा सुिभन्न िकए गए ह ।
51. “शपथ”—शपथ के िलए िविध ारा पर्ितस्थािपत सत्यिनष्ठ पर्ितज्ञान और ऐसी कोई घोषणा, िजसका िकसी लोक सेवक के
समक्ष िकया जाना या न्यायालय म या अन्यथा सबूत के पर्योजन के िलए उपयोग िकया जाना िविध ारा अपेिक्षत या पर्ािधकृ त हो,
“शपथ” शब्द के अन्तगर्त आती है ।
52. “सद्भावपूवक
र् ”—कोई बात “सद्भावपूवर्क” की गई या िवश्वास की गई नह कही जाती जो सम्यक् सतकर् ता और ध्यान के
िबना की गई या िवश्वास की गई हो ।
[52क. “संशर्य”—धारा 157 म के िसवाय और धारा 130 म वहां के िसवाय जहां िक संशर्य संिशर्त िक्त की पत्नी या पित ारा
1
िदया गया हो, “संशर्य” शब्द के अन्तगर्त िकसी िक्त को आशर्य, भोजन, पेय, धन, वस्तर्, आयुध, गोलाबारूद या पर्वहण के साधन देना,
या िकन्ह साधन से चाहे वे उसी पर्कार के ह या नह , िजस पर्कार के इस धारा म पिरगिणत ह िकसी िक्त की सहायता पकड़े जाने से
बचने के िलए करना, आता है ।]
अध्याय 3
दण्ड के िवषय म
53. “दण्ड”—अपराधी इस संिहता के उपबंध के अधीन िजन दण्ड से दण्डनीय ह, वे ये ह—
पहला—मृत्यु ;
2
[दूसरा—आजीवन कारावास ;]
3
* * * * *
चौथा—कारावास, जो दो भांित का है, अथार्त् :—
(1) किठन, अथार्त् कठोर शर्म के साथ ;
(2) सादा ;
पांचवां—सम्पि का समपहरण ;
छठा—जुमार्ना ।
[53क. िनवार्सन के पर्ित िनदश का अथर् लगाना—(1) उपधारा (2) के और उपधारा (3) के उपबन्ध के अध्यधीन िकसी अन्य
4
तत्समय पर्वृ िविध म, या िकसी ऐसी िविध या िकसी िनरिसत अिधिनयिमित के आधार पर पर्भावशील िकसी िलखत या आदेश म
“आजीवन िनवार्सन” के पर्ित िनदश का अथर् यह लगाया जाएगा िक वह “आजीवन कारावास” के पर्ित िनदश है ।
(2) हर मामले म, िजसम िक िकसी अविध के िलए िनवार्सन का दण्डादेश दण्ड पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम,
5
[1955 (1955 का 26)] के पर्ारम्भ से पूवर् िदया गया है, अपराधी से उसी पर्कार बरता जाएगा, मानो वह उसी अविध के िलए किठन
कारावास के िलए दण्डािदष्ट िकया गया हो ।
(3) िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म िकसी अविध के िलए िनवार्सन या िकसी लघुतर अविध के िलए िनवार्सन के पर्ित (चाहे उसे
कोई भी नाम िदया गया हो) कोई िनदश लुप्त कर िदया गया समझा जाएगा ।
(4) िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म िनवार्सन के पर्ित जो कोई िनदश हो—
1
1942 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “दूसरा —िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1949 के अिधिनयम सं० 17 की धारा 2 ारा खण्ड “तीसरा” का लोप िकया गया ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
5
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “1954” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
(क) यिद उस पद से आजीवन िनवार्सन अिभपर्ेत है, तो उसका अथर् आजीवन कारावास के पर्ित िनदश होना
लगाया जाएगा ;
(ख) यिद उस पद से िकसी लघुतर अविध के िलए िनवार्सन अिभपर्ेत है, तो यह समझा जाएगा िक वह लुप्त कर िदया
गया है ।]
54. मृत्यु दण्डादेश का लघुकरण—हर मामले म, िजसम मृत्यु का दण्डादेश िदया गया हो, उस दण्ड को अपराधी की सम्मित के
िबना भी 1 [समुिचत सरकार] इस संिहता ारा उपबिन्धत िकसी अन्य दंड म लघुकृत कर सके गी ।
55. आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण—हर मामले म, िजसम आजीवन 2 [कारावास] का दण्डादेश िदया गया हो,
अपराधी की सम्मित के िबना भी 3 [समुिचत सरकार] उस दण्ड को ऐसी अविध के िलए, जो चौदह वषर् से अिधक न हो, दोन म से िकसी
भांित के कारावास म लघुकृत कर सके गी ।
4
[55क. “समुिचत सरकार” की पिरभाषा—धारा 54 और 55 म “समुिचत सरकार” पद से,—
(क) उन मामल म के न्दर्ीय सरकार अिभपर्ेत है, िजनम दंडादेश मृत्यु का दण्डादेश है, या ऐसे िवषय से, िजस पर संघ की
कायर्पालन शिक्त का िवस्तार है, संबंिधत िकसी िविध के िवरु अपराध के िलए है ; तथा
(ख) उन मामल म उस राज्य की सरकार, िजसके अन्दर अपराधी दण्डािदष्ट हुआ है, अिभपर्ेत है, जहां िक दंडादेश
(चाहे मृत्यु का हो या नह ) ऐसे िवषय से, िजस पर राज्य की कायर्पालन शिक्त का िवस्तार है, संबंिधत िकसी िविध के िवरु
अपराध के िलए है ।]
56. [यूरोिपय तथा अमरीिकय को कठोरशर्म कारावास का दण्डादेश । दस वषर् से अिधक िकन्तु जो आजीवन कारावास से अिधक
न हो, दण्डादेश के संबध ं म परन्तुक ।]—दांिडक िविध (मूलवंशीय िवभेद का िनराकरण) अिधिनयम, 1949 (1949 का 17) ारा
(6 अपर्ैल, 1949 से) िनरिसत ।
57. दण्डाविधय की िभन्न—दण्डाविधय की िभन्न का गणना करने म, आजीवन 1[कारावास] को बीस वषर् के 1[कारावास] के
तुल्य िगना जाएगा ।
58. [िनवार्सन से दण्डािदष्ट अपरािधय के साथ कै सा वहार िकया जाए जब तक वे िनवार्िसत न कर िदए जाएं ।]—दण्ड
पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची ारा (1 जनवरी, 1956 से) िनरिसत ।
59. [कारावास के बदले िनवार्सन ।]—दण्ड पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और
अनुसच
ू ी ारा (1 जनवरी, 1956 से) िनरिसत ।
60. दण्डािदष्ट कारावास के कितपय मामल म सम्पूणर् कारावास या उसका कोई भाग किठन या सादा हो सके गा—हर मामले म,
िजसम अपराधी दोन म से िकसी भांित के कारावास से दण्डनीय है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादेश देगा, सक्षम होगा िक
दण्डादश
े म यह िनिदष्ट करे िक ऐसा सम्पूणर् कारावास किठन होगा, या यह िक ऐसा सम्पूणर् कारावास सादा होगा, या यह िक ऐसे
कारावास का कु छ भाग किठन होगा और शेष सादा ।
61. [सम्पि के समपहरण का दण्डादेश ।]—भारतीय दण्ड संिहता के समपहरण का दण्डादेश भारतीय दण्ड संिहता (संशोधन)
अिधिनयम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 ारा िनरिसत ।
62. [मृत्यु, िनवार्सन या कारावास से दण्डनीय अपरािधय की बाबत सम्पि का समपहरण ।]—भारतीय दण्ड संिहता (संशोधन)
अिधिनयम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 ारा िनरिसत ।
63. जुमार्ने की रकम—जहां िक वह रािश अिभ क्त नह की गई है िजतनी तक जुमार्ना हो सकता है, वहां अपराधी िजस रकम के
जुमार्ने का दायी है, वह अमयार्िदत है िकन्तु अत्यिधक नह होगी ।
64. जुमार्ना न देने पर कारावास का दण्डादेश— 5 [कारावास और जुमार्ना दोन से दण्डनीय अपराध के हर मामले म, िजसम
अपराधी कारावास सिहत या रिहत, जुमार्ने से दण्डािदष्ट हुआ है,]
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “के न्दर्ीय सरकार या उस पर्ान्त की पर्ान्तीय सरकार िजसके भीतर अपराधी को दण्ड िदया जाएगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । मोटे
शब्द भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश 1937 ारा “भारत सरकार या उस स्थान की सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत िकए गए थे ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “उस पर्ान्त की पर्ान्तीय सरकार िजसके भीतर अपराधी को दण्ड िदया जाएगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । मोटे शब्द भारत शासन
(भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश 1937 ारा “भारत सरकार या उस स्थान की सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत िकए गए थे ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा धारा 55क के स्थान पर पर्ितस्थािपत । धारा 55क भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अंत:स्थािपत की गई
थी ।
5
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा “पर्त्येक ऐसी दशा म िजसम अपराधी जुमार्ने से दंडािदष्ट हुआ है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
तथा 1 [कारावास या जुमार्ने अथवा] के वल जुमार्ने से दंडनीय अपराध के हर मामले म, िजसम अपराधी जुमार्ने से दण्डािदष्ट
हुआ है,]
वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डािदष्ट करे गा, सक्षम होगा िक दण्डादेश ारा िनदेश दे िक जुमार्ना देने म ितकर्म होने
की दशा म, अपराधी अमुक अविध के िलए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अितिरक्त होगा िजसके िलए वह
दण्डािदष्ट हुआ है या िजससे वह दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है ।
65. जब िक कारावास और जुमार्ना दोन आिदष्ट िकए जा सकते ह, तब जुमार्ना न देने पर कारावास की अविध—यिद अपराध
कारावास और जुमार्ना दोन से दण्डनीय हो, तो वह अविध, िजसके िलए जुमार्ना देने म ितकर्म होने की दशा के िलए न्यायालय
अपराधी को कारावािसत करने का िनदेश दे, कारावास की उस अविध की एक चौथाई से अिधक न होगी, जो अपराध के िलए अिधकतम
िनयत है ।
66. जुमार्ना न देने पर िकस भांित का कारावास िदया जाए—वह कारावास, िजसे न्यायालय जुमार्ना देने म ितकर्म होने के िलए
अिधरोिपत करे , ऐसा िकसी भांित का हो सके गा, िजससे अपराधी को उस अपराध के िलए दण्डािदट िकया जा सकता था ।
67. जुमार्ना न देने पर कारावास, जबिक अपराध के वल जुमार्ने से दण्डनीय हो—यिद अपराध के वल जुमार्ने से दण्डनीय हो तो
2
[वह कारावास, िजसे न्यायालय जुमार्ना देने म ितकर्म होने की दशा के िलए अिधरोिपत करे , सादा होगा और] वह अविध, िजसके
िलए जुमार्ना देने म ितकर्म होने की दशा के िलए न्यायालय अपराधी को कारावािसत करने का िनदेश दे, िनम्न मापमान से अिधक नह
होगी, अथार्त्:—जब िक जुमार्ने का पिरमाण पचास रुपए से अिधक न हो तब दो मास से अनिधक कोई अविध, तथा जब िक जुमार्ने का
पिरमाण एक सौ रुपए से अिधक न हो तब चार मास से अनिधक कोई अविध, तथा िकसी अन्य दशा म छह मास से अनिधक कोई अविध ।
68. जुमार्ना देने पर कारावास का पयर्वसान हो जाना—जुमार्ना देने म ितकर्म होने की दशा के िलए अिधरोिपत कारावास तब
पयर्विसत हो जाएगा, जब वह जुमार्ना या तो चुका िदया जाए या िविध की पर्िकर्या ारा उद्गृहीत कर िलया जाए ।
69. जुमार्ने के आनुपाितक भाग के दे िदए जाने की दशा म कारावास का पयर्वसान—यिद जुमार्ना देने म ितकर्म होने की दशा के
िलए िनयत की गई कारावास की अविध का अवसान होने से पूवर् जुमार्ने का ऐसा अनुपात चुका िदया या उद्गृहीत कर िलया जाए िक देने
म ितकर्म होने पर कारावास की जो अविध भोगी जा चुकी हो, वह जुमार्ने के तब तक न चुकाए गए भाग के आनुपाितक से कम न हो तो
कारावास पयर्विसत हो जाएगा ।
दृष्टांत
क एक सौ रुपए के जुमार्ने और उसके देने म ितकर्म होने की दशा के िलए चार मास के कारावास से दण्डािदष्ट िकया गया है ।
यहां, यिद कारावास के एक मास के अवसान से पूवर् जुमार्ने के पच हर रुपए चुका िदए जाएं या उद्गृहीत कर िलए जाएं तो पर्थम मास
का अवसान होते ही क उन्मुक्त कर िदया जाएगा । यिद पच हर रुपए पर्थम मास के अवसान पर या िकसी भी पश्चात्वत समय पर,
जब िक क कारावास म है, चुका िदए या उद्गृहीत कर िलए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर िदया जाएगा । यिद कारावास के दो मास के
अवसान से पूवर् जुमार्ने के पचास रुपए चुका िदए जाएं या उद्गृहीत कर िलए जाएं, तो क दो मास के पूरे होते ही उन्मुक्त कर िदया
जाएगा । यिद पचास रुपए उन दो मास के अवसान पर या िकसी भी पश्चात्वत समय पर, जब िक क कारावास म है, चुका िदए जाएं या
उद्गृहीत कर िलए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर िदया जाएगा ।
70. जुमार्ने का छह वषर् के भीतर या कारावास के दौरान म उद्गर्हणीय होना । सम्पि को दाियत्व से मृत्यु उन्मुक्त नह
करती—जुमार्ना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश िदए जाने के पश्चात् छह वषर् के भीतर िकसी भी समय, और यिद
अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वषर् से अिधक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस कालाविध के अवसान से पूवर् िकसी समय, उद्गृहीत
िकया जा सके गा ; और अपराधी की मृत्यु िकसी भी सम्पि को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋण के िलए वैध रूप से दायी हो, इस
दाियत्व से उन्मुक्त नह करती ।
71. कई अपराध से िमलकर बने अपराध के िलए दण्ड की अविध—जहां िक कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भाग से, िजनम का
कोई भाग स्वयं अपराध है, िमलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराध म से एक से अिधक के दण्ड से दिण्डत न िकया जाएगा,
जब तक िक ऐसा अिभ क्त रूप से उपबिन्धत न हो ।
[जहां िक कोई बात अपराध को पिरभािषत या दिण्डत करने वाली िकसी तत्समय पर्वृ
3
िविध की दो या अिधक पृथक्
पिरभाषा म आने वाला अपराध है, अथवा
जहां िक कई कायर्, िजनम से स्वयं एक से या स्वयं एकािधक से अपराध गिठत होता है, िमलकर िभन्न अपराध गिठत करते ह,
वहां अपराधी को उससे गुरुतर दण्ड से दिण्डत न िकया जाएगा, जो ऐसे अपराध म से िकसी भी एक के िलए वह न्यायालय, जो
उसका िवचारण करे , उसे दे सकता हो ।]
1
1886 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 21(2) ारा अंत:स्थािपत ।
2
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 4 ारा जोड़ा गया ।
11
दृष्टांत
(क) क, य पर लाठी से पचास पर्हार करता है । यहां, हो सकता है िक क ने सम्पूणर् मारपीट ारा उन पर्हार म से हर एक पर्हार
ारा भी, िजनसे वह सम्पूणर् मारपीट गिठत है, य की स्वेच्छया उपहित कािरत करने का अपराध िकया हो । यिद क हर पर्हार के िलए
दण्डनीय होता वह हर एक पर्हार के िलए एक वषर् के िहसाब से पचास वषर् के िलए कारावािसत िकया जा सकता था । िकन्तु वह सम्पूणर्
मारपीट के िलए के वल एक ही दण्ड से दण्डनीय है ।
(ख) िकन्तु यिद उस समय जब क, य को पीट रहा है, म हस्तक्षेप करता है, और क, म पर साशय पर्हार करता है, तो यहां म पर
िकया गया पर्हार उस कायर् का भाग नह है, िजसके ारा क, य को स्वेच्छया उपहित कािरत करता है, इसिलए क, य को स्वेच्छया कािरत
की गई उपहित के िलए एक दण्ड से और म पर िकए गए पर्हार के िलए दूसरे दण्ड से दण्डनीय है ।
72. कई अपराध म से एक के दोषी िक्त के िलए दण्ड जबिक िनणर्य म यह किथत है िक यह संदह े है िक वह िकस अपराध का
दोषी है—उन सब मामल म, िजनम यह िनणर्य िदया जाता है िक कोई िक्त उस िनणर्य म िविनिदष्ट कई अपराध म से एक अपराध
का दोषी है, िकन्तु यह संदह
े पूणर् है िक वह उन अपराध म से िकस अपराध का दोषी है, यिद वही दण्ड सब अपराध के िलए उपबिन्धत
नह है तो वह अपराधी उस अपराध के िलए दिण्डत िकया जाएगा, िजसके िलए कम से कम दण्ड उपबिन्धत िकया गया है ।
73. एकांत पिररोध—जब कभी कोई िक्त ऐसे अपराध के िलए दोषिस ठहराया जाता है िजसके िलए न्यायालय को इस
संिहता के अधीन उसे किठन कारावास से दंडािदष्ट करने की शिक्त है, तो न्यायालय अपने दंडादश
े ारा आदेश दे सके गा िक अपराधी को
उस कारावास के , िजसके िलए वह दंडािदष्ट िकया गया है, िकसी भाग या भाग के िलए, जो कु ल िमलाकर तीन मास से अिधक न ह गे,
िनम्न मापमान के अनुसार एकांत पिररोध म रखा जाएगा, अथार्त् :—
यिद कारावास की अविध छह मास से अिधक न हो तो एक मास से अनिधक समय ;
यिद कारावास की अविध छह मास से अिधक हो और 1 [एक वषर् से अिधक न हो] तो दो मास से अनिधक समय ;
यिद कारावास की अविध एक वषर् से अिधक हो तो तीन मास से अनिधक समय ।
74. एकांत पिररोध की अविध—एकांत पिररोध के दण्डादेश के िनष्पादन म ऐसा पिररोध िकसी दशा म भी एक बार म चौदह
िदन से अिधक न होगा । साथ ही ऐसे एकांत पिररोध की कालाविधय के बीच म उन कालाविधय से अन्यून अंतराल ह गे; और जब
िदया गया कारावास तीन मास से अिधक हो, तब िदए गए सम्पूणर् कारावास के िकसी एक मास म एकांत पिररोध सात िदन से अिधक न
होगा, साथ ही एकांत पिररोध की कालाविधय के बीच म उन्ह कालाविधय से अन्यून अंतराल ह गे ।
2
[75. पूवर् दोषिसि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कितपय अपराध के िलए विधत दण्ड—जो कोई िक्त—
(क) 3 [भारत] म के िकसी न्यायालय ारा इस संिहता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वषर् या उससे अिधक की
अविध के िलए दोन म से िकसी भांित के कारावास से दण्डनीय अपराध के िलए, 4 ***
5
* * * * *
दोषिस ठहराए जाने के पश्चात् उन दोन अध्याय म से िकसी अध्याय के अधीन उतनी ही अविध के िलए वैसे ही कारावास से
दण्डनीय िकसी अपराध का दोषी हो, तो वह हर ऐसे पश्चात्वत अपराध के िलए 6 [आजीवन कारावास] से या दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दण्डनीय होगा ।]
अध्याय 4
साधारण अपवाद
76. िविध ारा आब या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को िविध ारा आब होने का िवश्वास करने वाले िक्त ारा
िकया गया कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो िकसी ऐसे िक्त ारा की जाए, जो उसे करने के िलए िविध ारा आब हो या जो
तथ्य की भूल के कारण, न िक िविध की भूल के कारण, सद्भावपूवर्क िवश्वास करता हो िक वह उसे करने के िलए िविध ारा आब है ।
1
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 5 ारा “एक वषर् से कम नह हो” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1910 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 2 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा खंड (क) के अंत म “अथवा” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा खंड (ख) का लोप िकया गया ।
6
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
दृष्टांत
(क) िविध के समादेश के अनुवतर्न म अपने विरष्ठ आिफसर के आदेश से एक सैिनक क भीड़ पर गोली चलाता है । क ने कोई
अपराध नह िकया ।
(ख) न्यायालय का आिफसर क, म को िगरफ्तार करने के िलए उस न्यायालय ारा आिदष्ट िकए जाने पर और सम्यक् जांच के
पश्चात् यह िवश्वास करके िक य, म है, य को िगरफ्तार कर लेता है । क ने कोई अपराध नह िकया ।
77. न्याियकत: कायर् करने हेतु न्यायाधीश का कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो न्याियकत: कायर् करते हुए न्यायाधीश ारा
ऐसी िकसी शिक्त के पर्योग म की जाती है, जो, या िजसके बारे म उसे सद्भावपूवर्क िवश्वास है िक वह उसे िविध ारा दी गई है ।
78. न्यायालय के िनणर्य या आदेश के अनुसरण म िकया गया कायर्—कोई बात, जो न्यायालय के िनणर्य या आदेश के अनुसरण म
की जाए या उसके ारा अिधिदष्ट हो, यिद वह उस िनणर्य या आदेश के पर्वृ रहते, की जाए, अपराध नह है, चाहे उस न्यायालय को
ऐसा िनणर्य या आदेश देने की अिधकािरता न रही हो, परन्तु यह तब जब िक वह कायर् करने वाला िक्त सद्भावपूवक
र् िवश्वास करता
हो िक उस न्यायालय को वैसी अिधकािरता थी ।
79. िविध ारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को िविध ारा न्यायानुमत होने का िवश्वास करने वाले िक्त ारा िकया
गया कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो ऐसे िक्त ारा की जाए, जो उसे करने के िलए िविध ारा न्यायानुमत हो, या तथ्य की भूल
के कारण, न िक िविध की भूल के कारण सद्भावपूवर्क िवश्वास करता हो िक वह उसे करने के िलए िविध ारा न्यायानुमत है ।
दृष्टांत
क, य को ऐसा कायर् करते देखता है, जो क को हत्या पर्तीत होता है । क सद्भावपूवर्क काम म लाए गए अपने शर्ेष्ठ िनणर्य के
अनुसार उस शिक्त को पर्योग म लाते हुए, जो िविध ने हत्याकािरय को उस कायर् म पकड़ने के िलए समस्त िक्तय को दे रखी है, य को
उिचत पर्ािधकािरय के समक्ष ले जाने के िलए य को अिभगृहीत करता है । क ने कोई अपराध नह िकया है, चाहे तत्पश्चात् असल बात
यह िनकले िक य आत्म-पर्ितरक्षा म कायर् कर रहा था ।
80. िविधपूणर् कायर् करने म दुघटर् ना—कोई बात अपराध नह है, जो दुघर्टना या दुभार्ग्य से और िकसी आपरािधक आशय या ज्ञान
के िबना िविधपूणर् पर्कार से िविधपूणर् साधन ारा और उिचत सतकर् ता और सावधानी के साथ िविधपूणर् कायर् करने म ही हो जाती है ।
दृष्टांत
क कु ल्हाड़ी से काम कर रहा है ; कु ल्हाड़ी का फल उसम से िनकल कर उछट जाता है, और िनकट खड़ा हुआ िक्त उससे मारा
जाता है । यहां यिद क की ओर से उिचत सावधानी का कोई अभाव नह था तो उसका कायर् माफी योग्य है और अपराध नह है ।
81. कायर्, िजससे अपहािन कािरत होना संभा है, िकतु जो आपरािधक आशय के िबना और अन्य अपहािन के िनवारण के िलए
िकया गया है—कोई बात के वल इस कारण अपराध नह है िक वह यह जानते हुए की गई है िक उससे अपहािन कािरत होना संभा है,
यिद वह अपहािन कािरत करने के िकसी आपरािधक आशय के िबना और िक्त या संपि को अन्य अपहािन का िनवारण या पिरवजर्न
करने के पर्योजन से सद्भावपूवर्क की गई हो ।
स्पष्टीकरण—ऐसे मामले म यह तथ्य का पर्श्न है िक िजस अपहािन का िनवारण या पिरवजर्न िकया जाना है क्या वह ऐसी पर्कृ ित
की ओर इतनी आसन्न थी िक वह कायर्, िजससे यह जानते हुए िक उससे अपहािन कािरत होना संभा है, करने की जोिखम उठाना
न्यायानुमत या माफी योग्य था ।
दृष्टांत
(क) क, जो एक वाष्प जलयान का क ान है, अचानक और अपने िकसी कसूर या उपेक्षा के िबना अपने आपको ऐसी िस्थित म पाता
है िक यिद उसने जलयान का मागर् नह बदला तो इससे पूवर् िक वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस याितर्य से भरी नाव
ख को अिनवायर्त: टकराकर डु बो देगा, और िक अपना मागर् बदलने से उसे के वल दो याितर्य वाली नाव ग को डु बाने की जोिखम उठानी
पड़ती है, िजसको वह संभवत: बचाकर िनकल जाए । यहां, यिद क नाव ग को डु बाने के आशय के िबना और ख के याितर्य के संकट का
पिरवजर्न करने के पर्योजन से सद्भावपूवर्क अपना मागर् बदल देता है तो य िप वह नाव ग को ऐसे कायर् ारा टकराकर डु बो देता है,
िजससे ऐसे पिरणाम का उत्पन्न होना वह संभा जानता था, तथािप तथ्यत: यह पाया जाता है िक वह संकट, िजसे पिरविजत करने का
उसका आशय था, ऐसा था िजससे नाव ग डु बाने की जोिखम उठाना माफी योग्य है, तो वह िकसी अपराध का दोषी नह है ।
(ख) क एक बड़े अिग्नकांड के समय आग को फै लने से रोकने के िलए गृह को िगरा देता है । वह इस कायर् को मानव जीवन या
संपि को बचाने के आशय से सद्भावनापूवर्क करता है । यहां, यिद यह पाया जाता है िक िनवारण की जाने वाली अपहािन इस पर्कृ ित
की ओर इतनी आसन्न थी िक क का कायर् माफी योग्य है तो क उस अपराध का दोषी नह है ।
82. सात वषर् से कम आयु के िशशु का कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो सात वषर् से कम आयु के िशशु ारा की जाती है ।
13
83. सात वषर् से ऊपर िकतु बारह वषर् से कम आयु के अपिरपक्व समझ के िशशु का कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो सात वषर्
से ऊपर और बारह वषर् से कम आयु के ऐसे िशशु ारा की जाती है िजसकी समझ इतनी पिरपक्व नह हुई है िक वह उस अवसर पर अपने
आचरण की पर्कृ ित और पिरणाम का िनणर्य कर सके ।
84. िवकृ तिच िक्त का कायर्—कोई बात अपराध नह है, जो ऐसे िक्त ारा की जाती है, जो उसे करते समय िच -िवकृ ित
के कारण उस कायर् की पर्कृ ित, या यह िक जो कु छ वह कर रहा है वह दोषपूणर् या िविध के पर्ितकू ल है, जानने म असमथर् है ।
85. ऐसे िक्त का कायर् जो अपनी इच्छा के िवरु म ता म होने के कारण िनणर्य पर पहुंचने म असमथर् है—कोई बात अपराध
नह है, जो ऐसे िक्त ारा की जाती है, जो उसे करते समय म ता के कारण उस कायर् की पर्कृ ित, या यह िक जो कु छ वह कर रहा है वह
दोषपूणर् या िविध के पर्ितकू ल है, जानने म असमथर् है, परन्तु यह तब जब िक वह चीज, िजससे उसकी म ता हुई थी, उसको अपने ज्ञान के
िबना या इच्छा के िवरु दी गई थी ।
86. िकसी िक्त ारा, जो म ता म है, िकया गया अपराध िजसम िवशेष आशय या ज्ञान का होना अपेिक्षत है—उन दशा म,
जहां िक कोई िकया गया कायर् अपराध नह होता जब तक िक वह िकसी िविशष्ट ज्ञान या आशय से न िकया गया हो, कोई िक्त, जो
वह कायर् म ता की हालत म करता है, इस पर्कार बरते जाने के दाियत्व के अधीन होगा मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यिद वह
म ता म न होता जब तक िक वह चीज, िजससे उसे म ता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के िबना या उसकी इच्छा के िवरु न दी गई हो ।
87. सम्मित से िकया गया कायर् िजससे मृत्यु या घोर उपहित कािरत करने का आशय न हो और न उसकी संभा ता का ज्ञान
हो—कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहित कािरत करने के आशय से न की गई हो और िजसके बारे म कतार् को यह ज्ञात न हो िक उससे
मृत्यु या घोर उपहित कािरत होना संभा है, िकसी ऐसी अपहािन के कारण अपराध नह है जो उस बात से अठारह वषर् से अिधक आयु
के िक्त को, िजसने वह अपहािन सहन करने की चाहे अिभ क्त, चाहे िवविक्षत सम्मित दे दी हो, कािरत हो या कािरत होना कतार्
ारा आशियत हो अथवा िजसके बारे म कतार् को ज्ञात हो िक वह उपयुर्क्त जैसे िकसी िक्त को, िजसने उस अपहािन की जोिखम उठाने
की सम्मित दे दी है, उस बात ारा कािरत होनी संभा है ।
दृष्टांत
क और य आमोदाथर् आपस म पटेबाजी करने को सहमत होते ह । इस सहमित म िकसी अपहािन को, जो ऐसी पटेबाजी म खेल के
िनयम के िवरु न होते हुए कािरत हो, उठाने की हर एक को सम्मित िवविक्षत है, और यिद क यथािनयम पटेबाजी करते हुए य को
उपहित कािरत कर देता है, तो क कोई अपराध नह करता है ।
88. िकसी िक्त के फायदे के िलए सम्मित से सद्भावपूवर्क िकया गया कायर् िजससे मृत्यु कािरत करने का आशय नह है—कोई
बात, जो मृत्यु कािरत करने के आशय से न की गई हो, िकसी ऐसी अपहािन के कारण नह है जो उस बात से िकसी ऐसे िक्त को, िजसके
फायदे के िलए वह बात सद्भावपूवर्क की जाए और िजसने उस अपहािन को सहने, या उस अपहािन की जोिखम उठाने के िलए चाहे
अिभ क्त, चाहे िवविक्षत सम्मित दे दी हो, कािरत हो या कािरत करने का कतार् का आशय हो या कािरत होने की संभा ता कतार् को
ज्ञात है ।
दृष्टांत
क, एक शल्य िचिकत्सक, यह जानते हुए िक एक िवशेष शस्तर्कमर् से य को, जो वेदनापूणर् ािध से गर्स्त है, मृत्यु कािरत होने की
संभा ता है िकतु य की मृत्यु कािरत करने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूवक र् य के फायदे के आशय से य की सम्मित से य पर वह
शस्तर्कमर् करता है । क ने कोई अपराध नह िकया है ।
89. संरक्षक ारा या उसकी सम्मित से िशशु या उन्म िक्त के फायदे के िलए सद्भावपूवक र् िकया गया काय— र् कोई बात, जो
बारह वषर् से कम आयु के या िवकृ तिच िक्त के फायदे के िलए सद्भावपूवर्क उसके संरक्षक के , या िविधपूणर् भारसाधक िकसी दूसरे
िक्त के ारा, या की अिभ क्त या िवविक्षत सम्मित से, की जाए, िकसी ऐसी अपहािन के कारण, अपराध नह है जो उस बात से उस
िक्त को कािरत हो, या कािरत करने का कतार् का आशय हो या कािरत होने की संभा ता कतार् को ज्ञात हो :
परन्तुक—परन्तु—
पहला—इस अपवाद का िवस्तार साशय मृत्यु कािरत करने या मृत्यु कािरत करने का पर्यत्न करने पर न होगा ;
दूसरा—इस अपवाद का िवस्तार मृत्यु या घोर उपहित के िनवारण के या िकसी घोर रोग या अंगशैिथल्य से मुक्त करने के पर्योजन
से िभन्न िकसी पर्योजन के िलए िकसी ऐसी बात के करने पर न होगा िजसे करने वाला िक्त जानता हो िक उससे मृत्यु कािरत होना
संभा है ;
तीसरा—इस अपवाद का िवस्तार स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करने या घोर उपहित कािरत करने का पर्यत्न करने पर न होगा
जब तक िक वह मृत्यु या घोर उपहित के िनवारण के , या िकसी घोर रोग या अंगशैिथल्य से मुक्त करने के पर्योजन से न की गई हो ;
चौथा—इस अपवाद का िवस्तार िकसी ऐसे अपराध के दुष्पर्ेरण पर न होगा िजस अपराध के िकए जाने पर इसका िवस्तार
नह है ।
दृष्टांत
14
क सद्भावपूवर्क, अपने िशशु के फायदे के िलए अपने िशशु की सम्मित के िबना, यह संभा जानते हुए िक शस्तर्कमर् से उस िशशु
की मृत्यु कािरत होगी, न िक इस आशय से िक उस िशशु को मृत्यु कािरत कर दे, शल्यिचिकत्सक ारा पथरी िनकलवाने के िलए अपने
िशशु की शल्यिकर्या करवाता है । क का उ ेश्य िशशु को रोगमुक्त कराना था, इसिलए वह इस अपवाद के अंतगर्त आता है ।
ं म यह ज्ञात हो िक वह भय या भर्म के अधीन दी गई है—कोई सम्मित ऐसी सम्मित नह है जैसी इस
90. सम्मित, िजसके संबध
संिहता की िकसी धारा से आशियत है, यिद वह सम्मित िकसी िक्त ने क्षित, भय के अधीन, या तथ्य के भर्म के अधीन दी हो, और यिद
कायर् करने वाला िक्त यह जानता हो या उसके पास िवश्वास करने का कारण हो िक ऐसे भय या भर्म के पिरणामस्वरूप वह सम्मित दी
गई थी ; अथवा
उन्म िक्त की सम्मित—यिद वह सम्मित ऐसे िक्त ने दी हो जो िच िवकृ ित या म ता के कारण उस बात की, िजसके िलए
वह अपनी सम्मित देता है, पर्कृ ित और पिरणाम को समझने म असमथर् हो ; अथवा
िशशु की सम्मित—जब तक िक संदभर् से तत्पर्ितकू ल पर्तीत न हो, यिद वह सम्मित ऐसे िक्त ने दी हो जो बारह वषर् से कम आयु
का है ।
91. ऐसे काय का अपवजर्न जो कािरत अपहािन के िबना भी स्वत: अपराध है—धारा 87, 88 और 89 के अपवाद का िवस्तार उन
काय पर नह है जो उस अपहािन के िबना भी स्वत: अपराध है जो उस िक्त को, जो सम्मित देता है या िजसकी ओर से सम्मित दी
जाती है, उन काय से कािरत हो, या कािरत िकए जाने का आशय हो, या कािरत होने की संभा ता ज्ञात हो ।
दृष्टांत
गभर्पात कराना (जब तक िक वह उस स्तर्ी का जीवन बचाने के पर्योजन से सद्भावपूवर्क कािरत न िकया गया हो) िकसी अपहािन
के िबना भी, जो उसने उस स्तर्ी को कािरत हो या कािरत करने का आशय हो, स्वत: अपराध है । इसिलए वह “ऐसी अपहािन के कारण”
अपराध नह है ; और ऐसा गभर्पात कराने की उस स्तर्ी की या उसके संरक्षक की सम्मित उस कायर् को न्यायानुमत नह बनाती ।
92. सम्मित के िबना िकसी िक्त के फायदे के िलए सद्भावपूवकर् िकया गया कायर्—कोई बात जो िकसी िक्त के फायदे के िलए
सद्भावपूवर्क य िप, उसकी सम्मित के िबना, की गई है, ऐसी िकसी अपहािन के कारण, जो उस बात से उस िक्त को कािरत हो जाए,
अपराध नह है, यिद पिरिस्थितयां ऐसी ह िक उस िक्त के िलए यह असंभव हो िक वह अपनी सम्मित पर्कट करे या वह िक्त
सम्मित देने के िलए असमथर् हो और उसका कोई संरक्षक या उसका िविधपूणर् भारसाधक कोई दूसरा िक्त न हो िजससे ऐसे समय पर
सम्मित अिभपर्ाप्त करना संभव हो िक वह बात फायदे के साथ की जा सके :
परन्तुक—परन्तु—
पहला—इस अपवाद का िवस्तार साशय मृत्यु कािरत करने या मृत्यु कािरत करने का पर्यत्न करने पर न होगा ;
दूसरा—इस अपवाद का िवस्तार मृत्यु या घोर उपहित के िनवारण के या िकसी घोर रोग या अंगशैिथल्य से मुक्त करने के पर्योजन
से िभन्न िकसी पर्योजन के िलए िकसी ऐसी बात के करने पर न होगा, िजसे करने वाला िक्त जानता हो िक उससे मृत्यु कािरत होना
संभा ह ै ;
तीसरा—इस अपवाद का िवस्तार मृत्यु या उपहित के िनवारण के पर्योजन से िभन्न िकसी पर्योजन के िलए स्वेच्छया उपहित
कािरत करने या उपहित कािरत करने का पर्यत्न करने पर न होगा ;
चौथा—इस अपवाद का िवस्तार िकसी ऐसे अपराध के दुष्पर्ेरण पर न होगा िजस अपराध के िकए जाने पर इसका िवस्तार
नह है ।
दृष्टांत
(क) य अपने घोड़े से िगर गया और मूिछत हो गया । क एक शल्यिचिकत्सक का यह िवचार है िक य के कपाल पर शल्यिकर्या
आवश्यक है । क, य की मृत्यु करने का आशय न रखते हुए, िकतु सद्भावपूवर्क य के फायदे के िलए, य के स्वयं िकसी िनणर्य पर पहुंचने की
शिक्त पर्ाप्त करने से पूवर् ही कपाल पर शल्यिकर्या करता है । क ने कोई अपराध नह िकया ।
(ख) य को एक बाघ उठा ले जाता है । यह जानते हुए िक संभा है िक गोली लगने से य मर जाए, िकतु य का वध करने का आशय
न रखते हुए और सद्भावपूवर्क य के फायदे के आशय से क उस बाघ पर गोली चलाता है । क की गोली से य को मृत्युकारक घाव हो जाता
है । क ने कोई अपराध नह िकया ।
(ग) क, एक शल्यिचिकत्सक, यह देखता है िक एक िशशु की ऐसी दुघर्टना हो गई है िजसका पर्ाणांतक सािबत होना संभा है, यिद
शस्तर्कमर् तुरंत न कर िदया जाए । इतना समय नह है िक उस िशशु के संरक्षक से आवेदन िकया जा सके । क, सद्भावपूवर्क िशशु के फायदे
का आशय रखते हुए िशशु के अन्यथा अनुनय करने पर भी शस्तर्कमर् करता है । क ने कोई अपराध नह िकया ।
(घ) एक िशशु य के साथ क एक जलते हुए गृह म है । गृह के नीचे लोग एक कं बल तान लेते ह । क उस िशशु को यह जानते हुए िक
संभा है िक िगरने से वह िशशु मर जाए िकतु उस िशशु को मार डालने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूवर्क उस िशशु के फायदे के
आशय से गृह छत पर से नीचे िगरा देता है । यहां, यिद िगरने से वह िशशु मर भी जाता है, तो भी क ने कोई अपराध नह िकया ।
15
दृष्टांत
क, एक शल्यिचिकत्सक, एक रोगी को सद्भावपूवर्क यह संसूिचत करता है िक उसकी राय म वह जीिवत नह रह सकता । इस
आघात के पिरणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है । क ने कोई अपराध नह िकया है, य िप वह जानता था िक उस संसूचना से
उस रोगी की मृत्यु कािरत होना संभा है ।
94. वह कायर् िजसको करने के िलए कोई िक्त धमिकय ारा िववश िकया गया है—हत्या और मृत्यु से दंडनीय उन अपराध को
जो राज्य के िवरु है, छोड़कर कोई बात अपराध नह है, जो ऐसे िक्त ारा की जाए जो उसे करने के िलए ऐसी धमिकय से िववश
िकया गया हो िजनसे उस बात को करते समय उसको युिक्तयुक्त रूप से यह आशंका कािरत हो गई हो िक अन्यथा पिरणाम यह होगा िक
उस िक्त की तत्काल मृत्यु हो जाए, परन्तु यह तब जबिक उस कायर् को करने वाले िक्त ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मत्यु
ृ से कम
अपनी अपहािन की युिक्तयुक्त आशंका से अपने को उस िस्थित म न डाला हो, िजसम िक वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है ।
स्पष्टीकरण 1—वह िक्त, जो स्वयं अपनी इच्छा से, या पीटे जाने की धमकी के कारण, डाकु की टोली म उनके शील को
जानते हुए सिम्मिलत हो जाता ह,ै इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नह िक वह अपने सािथय ारा ऐसी
बात करने के िलए िववश िकया गया था जो िविधना अपराध है ।
स्पष्टीकरण 2—डाकु की एक टोली ारा अिभगृहीत और तत्काल मृत्यु की धमकी ारा िकसी बात के करने के िलए, जो
िविधना अपराध है, िववश िकया गया िक्त, उदाहरणाथर्, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गृह का ार तोड़ने को िववश िकया
जाता है, िजससे डाकू उसम पर्वेश कर सक और उसे लूट सक, इस अपवाद का फायदा उठाने के िलए हकदार है ।
95. तुच्छ अपहािन कािरत करने वाला कायर्—कोई बात इस कारण से अपराध नह है िक उससे कोई अपहािन कािरत होती है या
कािरत की जानी आशियत है या कािरत होने की संभा ता ज्ञात है, यिद वह इतनी तुच्छ है िक मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई
िक्त उसकी िशकायत न करे गा ।
पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के िवषय म
96. पर्ाइवटे पर्ितरक्षा म की गई बात—कोई बात अपराध नह है, जो पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के पर्योग म की जाती है ।
97. शरीर तथा संपि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार—धारा 99 म अंतिवष्ट िनबर्न्धन के अध्यधीन, हर िक्त को अिधकार
है िक, वह—
पहला—मानव शरीर पर पर्भाव डालने वाले िकसी अपराध के िवरु अपने शरीर और िकसी अन्य िक्त के शरीर की
पर्ितरक्षा करे ;
दूसरा—िकसी ऐसे कायर् के िवरु , जो चोरी, लूट, िरिष्ट या आपरािधक अितचार की पिरभाषा म आने वाला अपराध है, या जो
चोरी, लूट, िरिष्ट या आपरािधक अितचार करने का पर्यत्न है, अपनी या िकसी अन्य िक्त की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपि की
पर्ितरक्षा करे ।
98. ऐसे िक्त के कायर् के िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार जो िवकतिच
ृ आिद हो—जब िक कोई कायर् जो अन्यथा कोई
अपराध होता, उस कायर् को करने वाले िक्त के बालकपन, समझ की पिरपक्वता के अभाव, िच िवकृ ित या म ता के कारण, या उस
िक्त के िकसी भर्म के कारण, वह अपराध नह है, तब हर िक्त उस कायर् के िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का वही अिधकार रखता है, जो
वह उस कायर् के वैसा अपराध होने की दशा म रखता ।
दृष्टांत
(क) य, पागलपन के असर म, क को जान से मारने का पर्यत्न करता है । य िकसी अपराध का दोषी नह है । िकन्तु क को पर्ाइवेट
पर्ितरक्षा का वही अिधकार है, जो वह य के स्वस्थिच होने की दशा म रखता ।
(ख) क राितर् म एक ऐसे गृह म पर्वेश करता है िजसम पर्वेश करने के िलए वह वैध रूप से हकदार है । य, सद्भावपूवर्क क को
गृह-भेदक समझकर, क पर आकर्मण करता है । यहां य इस भर्म के अधीन क पर आकर्मण करके कोई अपराध नह करता है िकतु क, य के
िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का वही अिधकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भर्म के अधीन कायर् न करता ।
99. कायर्, िजनके िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का कोई अिधकार नह है—यिद कोई कायर्, िजससे मृत्यु या घोर उपहित की आशंका
युिक्तयुक्त रूप से कािरत नह होती, सद्भावपूवक र् अपने पदाभास म कायर् करते हुए लोक सेवक ारा िकया जाता है या िकए जाने का
पर्यत्न िकया जाता है तो उस कायर् के िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का कोई अिधकार नह है, चाहे वह कायर् िविध-अनुसार सवर्था न्यायानुमत
न भी हो ।
16
यिद कोई कायर्, िजससे मृत्यु या घोर उपहित की आशंका युिक्तयुक्त रूप से कािरत नह होती, सद्भावपूवर्क अपने पदाभास म
कायर् करते हुए लोक सेवक के िनदेश से िकया जाता है, या िकए जाने का पर्यत्न िकया जाता है, तो उस कायर् के िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का
कोई अिधकार नह है, चाहे वह िनदेश िविध-अनुसार सवर्था न्यायानुमत न भी हो ।
उन दशा म, िजनम संरक्षा के िलए लोक पर्ािधकािरय की सहायता पर्ाप्त करने के िलए समय है, पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का कोई
अिधकार नह है ।
इस अिधकार के पर्योग का िवस्तार—िकसी दशा म भी पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार का िवस्तार उतनी अपहािन से अिधक
अपहािन करने पर नह है, िजतनी पर्ितरक्षा के पर्योजन से करनी आवश्यक है ।
स्पष्टीकरण 1—कोई िक्त िकसी लोक सेवा ारा ऐसे लोक सेवक के नाते िकए गए या िकए जाने के िलए पर्यितत, कायर् के
िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार से वंिचत नह होता, जब तक िक वह यह न जानता हो, या िवश्वास करने का कारण न रखता हो,
िक उस कायर् को करने वाला िक्त ऐसा लोक सेवक है ।
स्पष्टीकरण 2—कोई िक्त िकसी लोक सेवक के िनदेश से िकए गए, या िकए जाने के िलए पर्यितत, िकसी कायर् के िवरु पर्ाइवेट
पर्ितरक्षा के अिधकार से वंिचत नह होता, जब तक िक वह यह न जानता हो, या िवश्वास करने का कारण न रखता हो, िक उस कायर् को
करने वाला िक्त ऐसे िनदेश से कायर् कर रहा है, या जब तक िक वह िक्त उस पर्ािधकार का कथन न कर दे, िजसके अधीन वह कायर्
कर रहा है, या यिद उसके पास िलिखत पर्ािधकार है, जो जब तक िक वह ऐसे पर्ािधकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे ।
100. शरीर की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार का िवस्तार मृत्यु कािरत करने पर कब होता है—शरीर की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के
अिधकार का िवस्तार, पूवर्वत अंितम धारा म विणत िनबर्न्धन के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कािरत करने या कोई
अन्य अपहािन कािरत करने तक है, यिद वह अपराध, िजसके कारण उस अिधकार के पर्योग का अवसर आता है, एित्स्मनपश्चात् पर्गिणत
भांितय म से िकसी भी भांित का है, अथार्त् :—
पहला—ऐसा हमला िजससे युिक्तयुक्त रूप से यह आशंका कािरत हो िक अन्यथा ऐसे हमले का पिरणाम मृत्यु होगा ;
दूसरा—ऐसा हमला िजससे युिक्तयुक्त रूप से यह आशंका कािरत हो िक अन्यथा ऐसे हमले का पिरणाम घोर उपहित होगा ;
तीसरा—बलात्संग करने के आशय से िकया गया हमला ;
चौथा—पर्कृ ित-िवरु काम-तृष्णा की तृि के आशय से िकया गया हमला ;
पांचवां— पहरण या अपहरण करने के आशय से िकया गया हमला ;
छठा—इस आशय से िकया गया हमला िक िकसी िक्त का ऐसी पिरिस्थितय म सदोष पिररोध िकया जाए, िजनसे उसे
युिक्तयुक्त रूप से यह आशंका कािरत हो िक वह अपने को छु ड़वाने के िलए लोक पर्ािधकािरय की सहायता पर्ाप्त नह कर सके गा ।
[सातवां—अम्ल फकने या देने का कृ त्य, या अम्ल फकने या देने का पर्यास करना िजससे युिक्तयुक्त रूप से यह आंशका कािरत
1
1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
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चौथा—चोरी, िरिष्ट या गृह-अितचार, जो ऐसी पिरिस्थितय म िकया गया है, िजनसे युिक्तयुिक्त रूप से यह आशंका कािरत हो
िक यिद पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के ऐसे अिधकार का पर्योग न िकया गया तो पिरणाम मृत्यु या घोर उपहित होगा ।
104. ऐसे अिधकार का िवस्तार मृत्यु से िभन्न कोई अपहािन कािरत करने तक का कब होता है—यिद वह अपराध, िजसके िकए
जाने या िकए जाने के पर्यत्न से पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के पर्योग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, िरिष्ट या आपरािधक अितचार है,
जो पूवर्गामी अंितम धारा म पर्गिणत भांितय म से िकसी भांित का न हो, तो उस अिधकार का िवस्तार स्वेच्छया मृत्यु कािरत करने तक
का नह होता िकन्तु उसका िवस्तार धारा 99 म विणत िनबर्ंधन के अध्यधीन दोषकतार् की मृत्यु से िभन्न कोई अपहािन स्वेच्छया कािरत
करने तक का होता है ।
105. सम्पि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार का पर्ारं भ और बना रहना—सम्पि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार तब पर्ारं भ
होता है, जब सम्पि के संकट की युिक्तयुक्त आशंका पर्ारं भ होती है ।
संपि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार, चोरी के िवरु अपराधी के संपि सिहत पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक
पर्ािधकािरय की सहायता अिभपर्ाप्त कर लेने या संपि पर्त्युद्धृत हो जाने तक बना रहता है ।
संपि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार लूट के िवरु तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी िकसी िक्त की मृत्यु या
उपहित, या सदोष अवरोध कािरत करता रहता या कािरत करने का पर्यत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल
उपहित का, या तत्काल वैयिक्तक अवरोध का, भय बना रहता है ।
संपि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार आपरािधक अितचार या िरिष्ट के िवरु तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी
आपरािधक अितचार या िरिष्ट करता रहता है ।
संपि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार रातर्ौ गृह-भेदन के िवरु तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरं भ हुआ
गृह-अितचार होता रहता है ।
106. घातक हमले के िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा का अिधकार जबिक िनद ष िक्त को अपहािन होने की जोिखम है—िजस हमले से
मृत्यु की आशंका युिक्तयुक्त रूप से कािरत होती है उसके िवरु पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार का पर्योग करने म यिद पर्ितरक्षक ऐसी
िस्थित म हो िक िनद ष िक्त की अपहािन की जोिखम के िबना वह उस अिधकार का पर्योग कायर्साधक रूप से न कर सकता हो तो
उसके पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार का िवस्तार वह जोिखम उठाने तक का है ।
दृष्टांत
क पर एक भीड़ ारा आकर्मण िकया जाता है, जो उसकी हत्या करने का पर्यत्न करती है । वह उस भीड़ पर गोली चलाए िबना
पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अपने अिधकार का पर्योग कायर्साधक रूप से नह कर सकता, और वह भीड़ म िमले हुए छोटे-छोटे िशशु की
अपहािन करने की जोिखम उठाए िबना गोली नह चला सकता । यिद वह इस पर्कार गोली चलाने से उन िशशु म से िकसी िशशु को
अपहािन करे तो क कोई अपराध नह करता ।
अध्याय 5
दुष्पर्ेरण के िवषय म
107. िकसी बात का दुष्पर्ेरण—वह िक्त िकसी बात के िकए जाने का दुष्पर्ेरण करता है, जो—
पहला—उस बात को करने के िलए िकसी िक्त को उकसाता है ; अथवा
दूसरा—उस बात को करने के िलए िकसी षड् यंतर् म एक या अिधक अन्य िक्त या िक्तय के साथ सिम्मिलत होता है,
यिद उस षड् यंतर् के अनुसरण म, और उस बात को करने के उ ेश्य से, कोई कायर् या अवैध लोप घिटत हो जाए ; अथवा
तीसरा—उस बात के िलए िकए जाने म िकसी कायर् या अवैध लोप ारा साशय सहायता करता है ।
स्पष्टीकरण 1—जो कोई िक्त जानबूझकर दु र्पदेशन ारा, या ताित्त्वक तथ्य, िजसे पर्कट करने के िलए वह आब है,
जानबूझकर िछपाने ारा, स्वेच्छया िकसी बात का िकया जाना कािरत या उपाप्त करता है अथवा कािरत या उपाप्त करने का पर्यत्न
करता है, वह उस बात का िकया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत
क, एक लोक आिफसर, न्यायालय के वारन्ट ारा य को पकड़ने के िलए पर्ािधकृ त है । ख उस तथ्य को जानते हुए और यह भी
जानते हुए िक ग, य, नह है, क को जानबूझकर यह पिदष्ट करता है िक ग, य है, और एतद् ारा साशय क से य को पकड़वाता है । यहां
ख, ग के पकड़े जाने का उकसाने ारा दुष्पर्ेरण करता है ।
स्पष्टीकरण 2—जो कोई या तो िकसी कायर् के िकए जाने से पूवर् या िकए जाने के समय, उस कायर् के िकए जाने को सुकर बनाने के
िलए कोई बात करता है और तद् ारा उसके िकए जाने को सुकर बनाता है, वह उस कायर् के करने म सहायता करता है, यह कहा
जाता है ।
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108. दुष्पर्ेरक—वह िक्त अपराध का दुष्पर्ेरण करता है, जो अपराध के िकए जाने का दुष्पर्ेरण करता है या ऐसे कायर् के िकए जाने
का दुष्पर्ेरण करता है, जो अपराध होता, यिद वह कायर् अपराध करने के िलए िविध अनुसार समथर् िक्त ारा उसी आशय या ज्ञान से,
जो दुष्पर्ेरक का है, िकया जाता ।
स्पष्टीकरण 1—िकसी कायर् के अवैध लोप का दुष्पर्ेरण अपराध की कोिट म आ सके गा, चाहे दुष्पर्ेरक उस कायर् को करने के िलए
स्वयं आब न हो ।
स्पष्टीकरण 2—दुष्पर्ेरण का अपराध गिठत होने के िलए यह आवश्यक नह है िक दुष्पर्ेिरत कायर् िकया जाए या अपराध गिठत
करने के िलए अपेिक्षत पर्भाव कािरत हो ।
दृष्टांत
(क) ग की हत्या करने के िलए ख को क उकसाता है । ख वैसा करने से इन्कार कर देता है । क हत्या करने के िलए ख के दुष्पर्ेरण का
दोषी है ।
(ख) घ की हत्या करने के िलए ख को क उकसाता है । ख ऐसी उकसाहट के अनुसरण म घ को िव करता है । घ का घाव अच्छा हो
जाता है । क हत्या करने के िलए ख को उकसाने का दोषी है ।
स्पष्टीकरण 3—यह आवश्यक नह है िक दुष्पर्ेिरत िक्त अपराध करने के िलए िविध-अनुसार समथर् हो, या उसका वही दूिषत
आशय या ज्ञान हो, जो दुष्पर्ेरक का है, या कोई भी दूिषत आशय या ज्ञान हो ।
दृष्टांत
(क) क दूिषत आशय से एक िशशु या पागल को वह कायर् करने के िलए दुष्पर्ेिरत करता है, जो अपराध होगा, यिद वह ऐसे िक्त
ारा िकया जाए जो कोई अपराध करने के िलए िविध-अनुसार समथर् है और वही आशय रखता है जो िक क का है । यहां, चाहे वह कायर्
िकया जाए या न िकया जाए क अपराध के दुष्पर्ेरण का दोषी है ।
(ख) य की हत्या करने के आशय से ख को, जो सात वषर् से कम आयु का िशशु है, वह कायर् करने के िलए क उकसाता है िजससे य की
मृत्यु कािरत हो जाती है । ख दुष्पर्ेिरत के पिरणामस्वरूप वह कायर् क की अनुपिस्थित म करता है और उससे य की मृत्यु कािरत करता है ।
यहां य िप ख वह अपराध करने के िलए िविध-अनुसार समथर् नह था, तथािप क उसी पर्कार से दण्डनीय है, मानो ख वह अपराध करने
के िलए िविध-अनुसार समथर् हो और उसने हत्या की हो, और इसिलए क मृत्यु दण्ड से दण्डनीय है ।
(ग) ख को एक िनवासगृह म आग लगाने के िलए क उकसाता है । ख िच िवकृ ित के पिरणामस्वरूप उस कायर् की पर्कृ ित या यह
िक वह जो कु छ कर रहा है वह दोषपूणर् या िविध के पर्ितकू ल है जानने म असमथर् होने के कारण क के उकसाने के पिरणामस्वरूप उस गृह
म आग, लगा देता है । ख ने कोई अपराध नह िकया है, िकन्तु क एक िनवासगृह म आग लगाने के अपराध के दुष्पर्ेरण का दोषी है, और
उस अपराध के िलए उपबिन्धत दण्ड से दण्डनीय है ।
(घ) क चोरी कराने के आशय से य के कब्जे म से य की सम्पि लेने के िलए ख को उकसाता है । ख को यह िवश्वास करने के
िलए क उत्पर्ेिरत करता है िक वह सम्पि क की है । ख उस सम्पि का इस िवश्वास से िक वह क की सम्पि है, य के कब्जे म से
सद्भावपूवर्क ले लेता है । ख इस भर्म के अधीन कायर् करते हुए, उसे बेईमानी से नह लेता, और इसिलए चोरी नह करता ; िकन्तु क चोरी
के दुष्पर्ेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है, मानो ख ने चोरी की हो ।
स्पष्टीकरण 4—अपराध का दुष्पर्ेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्पर्ेरण का दुष्पर्ेरण भी अपराध है ।
दृष्टांत
ग को य की हत्या करने को उकसाने के िलए ख को क उकसाता है । ख तदनुकूल य की हत्या करने के िलए ख को उकसाता है और ख
के उकसाने के पिरणामस्वरूप ग उस अपराध को करता है । ख अपने अपराध के िलए हत्या के दण्ड से दण्डनीय है, और क ने उस अपराध
को करने के िलए ख को उकसाया, इसिलए क भी उसी दण्ड से दण्डनीय है ।
स्पष्टीकरण 5—षड् यंतर् ारा दुष्पर्ेरण का अपराध करने के िलए यह आवश्यक नह है िक दुष्पर्ेरक उस अपराध को करने वाले
िक्त के साथ िमलकर उस अपराध की योजना बनाए । यह पयार्प्त है िक उस षड् यंतर् म सिम्मिलत हो िजसके अनुसरण म वह अपराध
िकया जाता है ।
दृष्टांत
य को िवष देने के िलए क एक योजना ख से िमलकर बनाता है । यह सहमित हो जाती है िक क िवष देगा । ख तब यह विणत करते
हुए ग को वह योजना समझा देता है िक कोई तीसरा िक्त िवष देगा, िकन्तु क का नाम नह लेता । ग िवष उपाप्त करने के िलए सहमत
हो जाता है, और उसे उपाप्त करके समझाए गए पर्कार से पर्योग म लाने के िलए ख को पिरद करता है । क िवष देता है, पिरणामस्वरूप
य की मृत्यु हो जाती है । यहां, य िप क और ग ने िमलकर षड् यंतर् नह रचा है, तो भी ग उस षड् यंतर् म सिम्मिलत रहा है, िजसके
अनुसरण म य की हत्या की गई है । इसिलए ग ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है और हत्या के िलए दण्ड से दण्डनीय है ।
19
[108क. भारत से बाहर के अपराध का भारत म दुष्पर्ेरण—वह िक्त इस संिहता के अथर् के अन्तगर्त अपराध का दुष्पर्ेरण करता
1
है, जो [भारत] से बाहर और उससे परे िकसी ऐसे कायर् के िकए जाने का 2[भारत] म दुष्पर्ेरण करता है जो अपराध होगा, यिद 2[भारत]
2
म िकया जाए ।
दृष्टांत
क [भारत] म ख को, जो गोवा म िवदेशीय है, गोवा म हत्या करने के िलए उकसाता है । क हत्या के दुष्पर्ेरण का दोषी है ।]
2
109. दुष्पर्ेरण का दण्ड, यिद दुष्पर्ेिरत कायर् उसके पिरणामस्वरूप िकया जाए, और जहां िक उसके दण्ड के िलए कोई अिभ क्त
उपबन्ध नह है—जो कोई िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण करता है, यिद दुष्पर्ेिरत कायर् दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया जाता है, और ऐसे
दुष्पर्ेरण के दण्ड के िलए इस संिहता ारा कोई अिभ क्त उपबन्ध नह िकया गया है, तो वह उस दण्ड से दिण्डत िकया जाएगा, जो उस
अपराध के िलए उपबिन्धत है ।
स्पष्टीकरण—कोई कायर् या अपराध दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया गया तब कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के
पिरणामस्वरूप या उस षड् यंतर् के अनुसरण म या उस सहायता से िकया जाता है, िजससे दुष्पर्ेरण गिठत होता है ।
दृष्टांत
(क) ख को, जो एक लोक सेवक है, ख के पदीय कृ त्य के पर्योग म क पर कु छ अनुगर्ह िदखाने के िलए इनाम के रूप म क िरश्वत की
पर्स्थापना करता है । ख वह िरश्वत पर्ितगृहीत कर लेता है । क ने धारा 161 म पिरभािषत अपराध का दुष्पर्ेरण िकया है ।
(ख) ख को िमथ्या सा य देने के िलए क उकसाता है । ख उस उकसाहट के पिरणामस्वरूप, वह अपराध करता है । क उस अपराध
के दुष्पर्ेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है िजससे ख है ।
(ग) य को िवष देने का षड् यंतर् क और ख रचते ह । क उस षड् यंतर् के अनुसरण म िवष उपाप्त करता है और उसे ख को इसिलए
पिरद करता है िक वह उसे य को दे । ख उस षड् यंतर् के अनुसरण म वह िवष क की अनुपिस्थित म य को देता है और उसके ारा य की
मृत्यु कािरत कर देता है । यहां, ख हत्या का दोषी है । क षड् यंतर् ारा उस अपराध के दुष्पर्ेरण का दोषी है, और वह हत्या के िलए दण्ड से
दण्डनीय है ।
110. दुष्पर्ेरण का दण्ड, यिद दुष्पर्ेिरत िक्त दुष्पर्ेरक के आशय से िभन्न आशय से कायर् करता है—जो कोई िकसी अपराध के िकए
जाने का दुष्पर्ेरण करता है, यिद दुष्पर्ेिरत िक्त ने दुष्पर्ेरक के आशय या ज्ञान से िभन्न आशय या ज्ञान से वह कायर् िकया हो, तो वह उसी
दण्ड से दिण्डत िकया जाएगा, जो उस अपराध के िलए उपबिन्धत है, जो िकया जाता यिद वह कायर् दुष्पर्ेरक के ही आशय या ज्ञान से, न
िक िकसी अन्य आशय या ज्ञान से, िकया जाता ।
111. दुष्पर्ेरक का दाियत्व जब एक कायर् का दुष्पर्ेरण िकया गया है और उससे िभन्न कायर् िकया गया है—जब िक िकसी एक कायर्
का दुष्पर्ेरण िकया जाता है, और कोई िभन्न कायर् िकया जाता है, तब दुष्पर्ेरक उस िकए गए कायर् के िलए उसी पर्कार से और उसी िवस्तार
तक दाियत्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कायर् का दुष्पर्ेरण िकया हो :
परन्तुक—परन्तु यह तब जब िक िकया गया कायर् दुष्पर्ेरण का अिधसम्भा पिरणाम था और उस उकसाहट के असर के अधीन या
उस सहायता से या उस षड् यंतर् के अनुसरण म िकया गया था िजससे वह दुष्पर्ेरण गिठत होता है ।
दृष्टांत
(क) एक िशशु को य के भोजन म िवष डालने के िलए क उकसाता है, और उस पर्योजन से उसे िवष पिरद करता है । वह िशशु
उस उकसाहट के पिरणामस्वरूप भूल से म के भोजन म, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है, िवष डाल देता है । यहां, यिद वह िशशु क के
उकसाने के असर के अधीन उस कायर् को कर रहा था, और िकया गया कायर् उन पिरिस्थितय म उस दुष्पर्ेरण का अिधसम्भा पिरणाम
है, तो क उसी पर्कार और उसी िवस्तार तक दाियत्व के अधीन है, मानो उसने उस िशशु को म के भोजन म िवष डालने के िलए उकसाया
हो ।
(ख) ख को य का गृह जलाने के िलए क उकसाता है । ख उस गृह को आग लगा देता है और उसी समय वहां सम्पि की चोरी करता
है । क य िप गृह को जलाने के दुष्पर्ेरण का दोषी है, िकन्तु चोरी के दुष्पर्ेरण का दोषी नह है ; क्य िक वह चोरी एक अलग कायर् थी और
उस गृह जलाने का अिधसम्भा पिरणाम नह थी ।
1
1898 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 3 ारा जोड़ा गया ।
2
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
20
(ग) ख और ग को बसे हुए गृह म अधर्राितर् म लूट के पर्योजन से भेदन करने के िलए क उकसाता है, और उनको उस पर्योजन के िलए
आयुध देता है । ख और ग वह गृह-भेदन करते ह, और य ारा जो िनवािसय म से एक है, पर्ितरोध िकए जाने पर, य की हत्या कर देते ह ।
यहां, यिद वह हत्या उस दुष्पर्ेरण का अिधसम्भा पिरणाम थी, तो क हत्या के िलए उपबिन्धत दण्ड से दण्डनीय है ।
112. दुष्पर्ेरक कब दुष्पर्ेिरत कायर् के िलए और िकए गए कायर् के िलए आकिलत दण्ड से दण्डनीय है—यिद वह कायर्, िजसके िलए
दुष्पर्ेरक अिन्तम पूवर्गामी धारा के अनुसार दाियत्व के अधीन है, दुष्पर्ेिरत कायर् के अितिरक्त िकया जाता है और वह कोई सुिभन्न अपराध
गिठत करता है, तो दुष्पर्ेरक उन अपराध म से हर एक के िलए दण्डनीय नह है ।
दृष्टांत
ख को एक लोक सेवक ारा िकए गए करस्थम् का बलपूवर्क पर्ितरोध करने के िलए क उकसाता है । ख पिरणामस्वरूप उस
करस्थम् का पर्ितरोध करता है । पर्ितरोध करने म ख करस्थम् का िनष्पादन करने वाले आिफसर को स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करता
है । ख ने करस्थम् का पर्ितरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करने के दो अपराध िकए ह । इसिलए ख दोन अपराध के िलए
दण्डनीय है, और यिद क यह सम्भा जानता था िक उस करस्थम् का पर्ितरोध करने म ख स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा, तो क भी
उनम से हर एक अपराध के िलए दण्डनीय होगा ।
113. दुष्पर्ेिरत कायर् से कािरत उस पर्भाव के िलए दुष्पर्ेरक का दाियत्व जो दुष्पर्ेरक ारा आशियत से िभन्न हो—जबिक कायर् का
दुष्पर्ेरण दुष्पर्ेरक ारा िकसी िविशष्ट पर्भाव को कािरत करने के आशय से िकया जाता है और दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िजस कायर् के
िलए दुष्पर्ेरक दाियत्व के अधीन है, वह कायर् दुष्पर्ेरक के ारा आशियत पर्भाव से िभन्न पर्भाव कािरत करता है तब दुष्पर्ेरक कािरत पर्भाव
के िलए उसी पर्कार और उसी िवस्तार तक दाियत्व के अधीन है, मानो उसने उस कायर् का दुष्पर्ेरण उसी पर्भाव को कािरत करने के आशय
से िकया हो परन्तु यह तब जब िक वह यह जानता था िक दुष्पर्ेिरत कायर् से यह पर्भाव कािरत होना सम्भा है ।
दृष्टांत
य को घोर उपहित करने के िलए ख को क उकसाता है । ख उस उकसाहट के पिरणामस्वरूप य को घोर उपहित कािरत करता है ।
पिरणामत: य की मृत्यु हो जाती है । यहां, यिद क यह जानता था िक दुष्पर्ेिरत घोर उपहित से मृत्यु कािरत होना सम्भा है, तो क हत्या
के िलए उपबिन्धत दण्ड से दण्डनीय है ।
114. अपराध िकए जाते समय दुष्पर्ेरक की उपिस्थित—जब कभी कोई िक्त, जो अनुपिस्थत होने पर दुष्पर्ेरक के नाते दण्डनीय
होता, उस समय उपिस्थत हो जब वह कायर् या अपराध िकया जाए िजसके िलए वह दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप दण्डनीय होता, तब यह
समझा जाएगा िक उसने ऐसा कायर् या अपराध िकया है ।
115. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्पर्ेरण—यिद अपराध नह िकया जाता—जो कोई मृत्यु या
1
[आजीवन कारावास] से दण्डनीय अपराध िकए जाने का दुष्पर्ेरण करे गा, यिद वह अपराध उस दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप न िकया जाए,
और ऐसे दुष्पर्ेरण के दण्ड के िलए कोई अिभ क्त उपबन्ध इस संिहता म नह िकया गया है, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ;
यिद अपहािन करने वाला कायर् पिरणामस्वरूप िकया जाता है—और यिद ऐसा कोई कायर् कर िदया जाए, िजसके िलए दुष्पर्ेरक
उस दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप दाियत्व के अधीन हो और िजससे िकसी िक्त को उपहित कािरत हो, तो दुष्पर्ेरक दोन म से िकसी भांित
के कारावास से, िजसकी अविध चौदह वषर् की हो सके गी, दण्डनीय होगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
ख को य की हत्या करने के िलए क उकसाता है । वह अपराध नह िकया जाता है । यिद य की हत्या ख कर देता है, तो वह मृत्यु या
[आजीवन कारावास] के दण्ड से दण्डनीय होता । इसिलए, क कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दण्डनीय है और
1
जुमार्ने से भी दण्डनीय है ; और यिद दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप य को कोई उपहित हो जाती है, तो वह कारावास से, िजसकी अविध
चौदह वषर् तक की हो सके गी, दण्डनीय होगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
116. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्पर्ेरण—यिद अपराध न िकया जाए—जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का
दुष्पर्ेरण करे गा यिद वह अपराध उस दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप न िकया जाए और ऐसे दुष्पर्ेरण के दण्ड के िलए कोई अिभ क्त उपबन्ध
इस संिहता म नह िकया गया है, तो वह उस अपराध के िलए उपबिन्धत िकसी भांित के कारावास से ऐसी अविध के िलए, जो उस
अपराध के िलए उपबिन्धत दीघर्तम अविध के एक चौथाई भाग तक की हो सके गी, या ऐसे जुमार्ने से, जो उस अपराध के िलए उपबिन्धत
है, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ;
यिद दुष्पर्ेरक या दुष्पर्ेिरत िक्त ऐसा लोक सेवक है, िजसका कतर् अपराध िनवािरत करना हो—और यिद दुष्पर्ेरक या दुष्पर्ेिरत
िक्त ऐसा लोक सेवक हो, िजसका कतर् ऐसे अपराध के िलए िकए जाने को िनवािरत करना हो, तो वह दुष्पर्ेरक उस अपराध के िलए
उपबंिधत िकसी भांित के कारावास से ऐसी अविध के िलए, जो उस अपराध के िलए उपबंिधत दीघर्तम अविध के आधे भाग तक की हो
सके गी, या ऐसे जुमार्ने से, जो अपराध के िलए उपबंिधत है, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थिपत ।
21
दृष्टांत
(क) ख को, जो एक लोक सेवक है, ख के पदीय कृ त्य के पर्योग म क अपने पर्ित कु छ अनुगर्ह िदखाने के िलए इनाम के रूप म िरश्वत
की पर्स्थापना करता है । ख उस िरश्वत को पर्ितगृहीत करने से इन्कार कर देता है । क इस धारा के अधीन दण्डनीय है ।
(ख) िमथ्या सा य देने के िलए ख को क उकसाता है । यहां, यिद ख िमथ्या सा य न दे, तो भी क ने इस धारा म पिरभािषत
अपराध िकया है, और वह तद्नुसार दण्डनीय है ।
(ग) क, एक पुिलस आिफसर, िजसका कतर् लूट को िनवािरत करना है, लूट िकए जाने का दुष्पर्ेरण करता है । यहां, य िप वह लूट
नह की जाती, क उस अपराध के िलए उपबिन्धत कारावास की दीघर्तम अविध के आधे से, और जुमार्ने से भी, दण्डनीय है ।
(घ) क ारा, जो एक पुिलस आिफसर है, और िजसका कतर् लूट को िनवािरत करना है, उस अपराध के िकए जाने का दुष्पर्ेरण ख
करता है, यहां य िप वह लूट न की जाए, ख लूट के अपराध के िलए उपबिन्धत कारावास की दीघर्तम अविध के आधे से, और जुमार्ने से
भी, दण्डनीय है ।
117. लोक साधारण ारा या दस से अिधक िक्तय ारा अपराध िकए जाने का दुष्पर्ेरण—जो कोई लोक साधारण ारा, या
दस से अिधक िक्तय की िकसी भी संख्या या वगर् ारा िकसी अपराध के िकए जाने का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क, एक लोक स्थान म एक प्लेकाडर् िचपकाता है, िजसम एक पंथ को िजसम दस से अिधक सदस्य ह, एक िवरोधी पंथ के सदस्य
पर, जब िक वे जुलूस िनकालने म लगे हुए ह , आकर्मण करने के पर्योजन से, िकसी िनिश्चत समय और स्थान पर िमलने के िलए उकसाया
गया है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
118. मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की पिरकल्पना को िछपाना—जो कोई मृत्यु या 1 [आजीवन कारावास]
से दंडनीय अपराध का िकया जाना सुकर बनाने के आशय से या संभा त: तद् ारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,
[ऐसे अपराध के िकए जाने की पिरकल्पना के अिस्तत्व को िकसी कायर् या लोप ारा या िवगूढ़न अथवा िकसी अन्य सूचना
2
पर्च्छन्न साधन के उपयोग ारा स्वेच्छया िछपाएगा] या ऐसी पिरकल्पना के बारे म ऐसा पदेशन करे गा िजसका िमथ्या होना वह
जानता है,
यिद अपराध कर िदया जाए—यिद अपराध नह िकया जाए—यिद ऐसा अपराध कर िदया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित
के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, अथवा यिद अपराध न िकया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और दोन दशा म से हर एक म जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा ।
दृष्टांत
क, यह जानते हुए िक ख स्थान पर डकै ती पड़ने वाली है, मिजस्टर्ेट को यह िमथ्या इि ला देता है िक डकै ती ग स्थान पर, जो
िवपरीत िदशा म है, पड़ने वाली है और इस आशय से िक एतद् ारा उस अपराध का िकया जाना सुकर बनाए मिजस्टर्ेट को भुलावा देता है
। डकै ती पिरकल्पना के अनुसरण म ख स्थान पर पड़ती है । क इस धारा के अधीन दंडनीय है ।
119. िकसी ऐसे अपराध के िकए जाने की पिरकल्पना का लोक सेवक ारा िछपाया जाना, िजसका िनवारण करना उसका कतर्
है—जो कोई लोक सेवक होते हुए उस अपराध का िकया जाना, िजसका िनवारण करना ऐसे लोक सेवक के नाते उसका कतर् है, सुकर
बनाने के आशय से या संभा त: तद् ारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,
[ऐसे अपराध के िकए जाने की पिरकल्पना के अिस्तत्व को िकसी कायर् या लोप ारा या िवगूढ़न अथवा कोई अन्य सूचना पर्च्छन्न
2
साधन के उपयोग ारा स्वेच्छया िछपाएगा] या ऐसी पिरकल्पना के बारे म ऐसा पदेशन करे गा िजसका िमथ्या होना वह जानता है,
यिद अपराध कर िदया जाए—यिद ऐसा अपराध कर िदया जाए, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध ऐसे कारावास की दीघर्तम अविध के आधी तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो उस अपराध के िलए उपबंिधत है, या
दोन से,
यिद अपराध मृत्यु आिद से दंडनीय है—अथवा यिद वह अपराध मृत्यु या 1[आजीवन कारावास] से दंडनीय हो, तो वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी,
यिद अपराध नह िकया जाए—अथवा यिद वह अपराध नह िकया जाए, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध ऐसे कारावास की दीघर्तम अविध की एक चौथाई तक की हो सके गी, या ऐसे जुमार्ने से, जो उस अपराध के
िलए उपबंिधत है, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 10 के धारा 51 ारा पर्ितस्थािपत ।
22
दृष्टांत
क, एक पुिलस आिफसर, लूट िकए जाने से संबंिधत सब पिरकल्पना की, जो उसको ज्ञात हो जाए, इि ला देने के िलए वैध रूप
से आब होते हुए और यह जानते हुए िक ख लूट करने की पिरकल्पना बना रहा है, उस अपराध के िकए जाने को सुकर बनाने के आशय से
ऐसी इि ला देने का लोप करता है । यहां क ने ख की पिरकल्पना के अिस्तत्व को एक अवैध लोप ारा िछपाया है, और वह इस धारा के
उपबंध के अनुसार दंडनीय है ।
120. कारावास से दंडनीय अपराध करने की पिरकल्पना को िछपाना—जो कोई उस अपराध का िकया जाना, जो कारावास से
दंडनीय है, सुकर बनाने के आशय से या संभा त: तद् ारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,
ऐसे अपराध के िकए जाने की पिरकल्पना के अिस्तत्व को िकसी कायर् या अवैध लोप ारा स्वेच्छया िछपाएगा या ऐसी पिरकल्पना
के बारे म ऐसा पदेशन करे गा, िजसका िमथ्या होना वह जानता है,
यिद अपराध कर िदया जाए—यिद अपराध नह िकया जाए—यिद ऐसा अपराध कर िदया जाए, तो वह उस अपराध के िलए
उपबंिधत भांित के कारावास से, िजसकी अविध ऐसे कारावास की दीघर्तम अविध की एक चौथाई तक की हो सके गी, और यिद वह
अपराध नह िकया जाए, तो वह ऐसे कारावास से, िजसकी अविध ऐसे कारावास की दीघर्तम अविध के आठव भाग तक की हो सके गी, या
ऐसे जुमार्ने से, जो उस अपराध के िलए उपबंिधत है, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
[अध्याय 5क
7
* * * * *
1
1913 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1921 के अिधिनयम सं० 16 की धारा 2 ारा “और उसकी समस्त संपि समपहृत कर लेगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “दृष्टांत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “(क)” कोष्ठक और अक्षर का लोप िकया गया ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा दृष्टांत (ख) का लोप िकया गया ।
23
[121क. धारा 121 ारा दंडनीय अपराध को करने का षड् यंतर्—जो कोई धारा 121 ारा दंडनीय अपराध म से कोई अपराध
1
करने के िलए 2 [भारत] के भीतर 3 *** या बाहर षड् यंतर् करे गा, या 4 [कदर्ीय सरकार को] या िकसी 5 [राज्य] की सरकार को 6 ***]
आपरािधक बल ारा या आपरािधक बल के पर्दशर्न ारा आतंिकत करने का षड् यंतर् करे गा, वह 7 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा 8 [और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा] ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के अधीन षड् यंतर् गिठत होने के िलए यह आवश्यक नह है िक उसके अनुसरण म कोई कायर् या अवैध लोप
गिठत हुआ हो ।]
122. भारत सरकार के िवरु यु करने के आशय से आयुध आिद संगर्ह करना—जो कोई 9 [भारत सरकार] के िवरु या तो यु
करने, या यु करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या गोलाबारूद संगर्ह करे गा, या अन्यथा यु करने की तैयारी करे गा, वह
7
[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध दस वषर् से अिधक की नह होगी, दंिडत िकया
जाएगा 10 [और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा] ।
123. यु करने की पिरकल्पना को सुकर बनाने के आशय से िछपाना—जो कोई 9[भारत सरकार] के िवरु यु करने की
पिरकल्पना के अिस्तत्व को िकसी कायर् ारा, या िकसी अवैध लोप ारा, इस आशय से िक इस पर्कार िछपाने के ारा ऐसे यु करने को
सुकर बनाए, या यह सम्भा जानते हुए िक इस पर्कार िछपाने के ारा ऐसे यु करने को सुकर बनाएगा, िछपाएगा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी, दंडनीय होगा ।
124. िकसी िविधपूणर् शिक्त का पर्योग करने के िलए िववश करने या उसका पर्योग अवरोिधत करने के आशय से राष्टर्पित,
राज्यपाल आिद पर हमला करना—जो कोई भारत के 11 [राष्टर्पित] या िकसी 12 [राज्य] 13 *** 14 *** 15 *** के 16 [राज्यपाल 17 ***] को
ऐसे 18 [राष्टर्पित या 16[राज्यपाल 17***]] की िविधपूणर् शिक्तय म से िकसी शिक्त का िकसी पर्कार पर्योग करने के िलए या पर्योग करने
से िवरत रहने के िलए उत्पर्ेिरत करने या िववश करने के आशय से,
ऐसे 18[राष्टर्पित या 16[राज्यपाल 17***]] पर हमला करे गा या उसका सदोष अवरोध करे गा, या सदोष अवरोध करने का पर्यत्न
करे गा या उसे आपरािधक बल ारा या आपरािधक बल के पर्दशर्न ारा आतंिकत करे गा या ऐसे आतंिकत करने का पर्यत्न करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी,
दंडनीय होगा ।
1
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 4 ारा अंतःस्थािपत ।
2
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के
अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “या क्वीन की पर्ांत या उनके िकसी भाग की पर्भुता से वंिचत करना” शब्द का लोप िकया गया ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत सरकार या िकसी स्थानीय सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ांतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या बमार् सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1921 के अिधिनयम सं० 16 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
9
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1921 के अिधिनयम सं० 16 की धारा 2 ारा “और उसकी समस्त संपि समपहृत कर ली जाएगी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ांतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । िजसे भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “पर्ेिसडेन्सी” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत िकया गया था ।
13
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “या लेिफ्टनेन्ट गवनर्र” शब्द का लोप िकया गया ।
14
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या भारत के गवनर्र जनरल की पिरषद् के िकसी सदस्य” शब्द का लोप िकया
गया ।
15
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “या िकसी पर्ेिसडेन्सी की पिरषद्” शब्द का लोप िकया गया ।
16
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 ारा “गवनर्र” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “या राजपर्मुख” शब्द का लोप िकया गया ।
18
“गवनर्र जनरल, गवनर्र, लेफ्टीनेन्ट गवनर्र, या पिरषद् के सदस्य” मूल शब्द का संशोधन अनुकर्मशः भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय
स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 और िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा िकया गया है ।
24
1
[124क. राजदर्ोह—जो कोई बोले गए या िलखे गए शब्द ारा या संकेत ारा, या दृश्यरूपण ारा या अन्यथा
2
*** [भारत] *** म िविध ारा स्थािपत सरकार के पर्ित घृणा या अवमान पैदा करे गा, या पैदा करने का, पर्यत्न करे गा या अपर्ीित
3 4
पर्दीप्त करे गा, या पर्दीप्त करने का पर्यत्न करे गा, वह 5 [आजीवन कारावास] से, िजसम जुमार्ना जोड़ा जा सके गा या तीन वषर् तक के
कारावास से, िजसम जुमार्ना जोड़ा जा सके गा या जुमार्ने से दंिडत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 1—“अपर्ीित” पद के अंतगर्त अभिक्त और शतर्ुता की समस्त भावनाएं आती ह ।
स्पष्टीकरण 2—घृणा, अवमान या अपर्ीित को पर्दीप्त िकए िबना या पर्दीप्त करने का पर्यत्न िकए िबना, सरकार के काम के पर्ित
िविधपूणर् साधन ारा उनको पिरवितत कराने की दृि से अननुमोदन पर्कट करने वाली टीका-िटप्पिणयां इस धारा के अधीन अपराध
नह ह ।
स्पष्टीकरण 3—घृणा, अवमान या अपर्ीित को पर्दीप्त िकए िबना या पर्दीप्त करने का पर्यत्न िकए िबना, सरकार की पर्शासिनक
या अन्य िकर्या के पर्ित अननुमोदन पर्कट करने वाली टीका-िटप्पिणयां इस धारा के अधीन अपराध गिठत नह करती ।]
125. भारत सरकार से मैतर्ी संबध ं रखने वाली िकसी एिशयाई शिक्त के िवरु यु करना—जो कोई 6 [भारत सरकार] से मैतर्ी
का या शांित का संबंध रखने वाली िकसी एिशयाई शिक्त की सरकार के िवरु यु करे गा या ऐसा यु करने का पर्यत्न करे गा, या ऐसा
यु करने के िलए दुष्पर्ेरण करे गा, वह 7 [आजीवन कारावास] से, िजसम जुमार्ना जोड़ा जा सके गा या दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, िजसम जुमार्ना जोड़ा जा सके गा या जुमार्ने से दंिडत िकया जाएगा ।
126. भारत सरकार के साथ शांित का संबधं रखने वाली शिक्त के राज्यक्षेतर् म लूटपाट करना—जो कोई 6[भारत सरकार] से मैतर्ी
का या शांित का संबंध रखने वाली िकसी शिक्त के राज्यक्षेतर् म लूटपाट करे गा, या लूटपाट करने की तैयारी करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और वह जुमार्ने से और ऐसी लूटपाट करने के िलए
उपयोग म लाई गई या उपयोग म लाई जाने के िलए आशियत, या ऐसी लूटपाट ारा अिजत संपि के समपहरण से भी दंडनीय होगा ।
127. धारा 125 और 126 म विणत यु या लूटपाट ारा ली गई सम्पि पर्ाप्त करना—जो कोई िकसी सम्पि को यह जानते हुए
पर्ाप्त करे गा िक वह धारा 125 और 126 म विणत अपराध म से िकसी के िकए जाने म ली गई है वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और वह जुमार्ने से और इस पर्कार पर्ाप्त की गई संपि के समपहरण
से भी दंडनीय होगा ।
128. लोक सेवक का स्वेच्छया राजकै दी या यु कै दी को िनकल भागने देना—जो कोई लोक सेवक होते हुए और िकसी राजकै दी या
यु कै दी को अिभरक्षा म रखते हुए, स्वेच्छया ऐसे कै दी को िकसी ऐसे स्थान से िजसम ऐसा कै दी पिररु है, िनकल भागने देगा, वह
7
[आजीवन कारावास] से या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
129. उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कै दी का िनकल भागना सहन करना—जो कोई लोक सेवक होते हुए और िकसी राजकै दी या
यु कै दी को अिभरक्षा म रखते हुए उपेक्षा से ऐसे कै दी का िकसी ऐसे पिररोध स्थान से िजसम ऐसा कै दी पिररु है, िनकल भागना सहन
करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी, दंडनीय होगा ।
130. ऐसे कै दी के िनकल भागने म सहायता देना, उसे छु ड़ाना या संशर्य देना—जो कोई जानते हुए िकसी राजकै दी या यु कै दी को
िविधपूणर् अिभरक्षा से िनकल भागने म मदद या सहायता देगा, या िकसी ऐसे कै दी को छु ड़ाएगा, या छु ड़ाने का पर्यत्न करे गा, या िकसी
ऐसे कै दी को, जो िविधपूणर् अिभरक्षा से िनकल भागा है, संशर्य देगा या िछपाएगा या ऐसे कै दी के िफर से पकड़े जाने का पर्ितरोध करे गा
या करने का पर्यत्न करे गा, वह 7[आजीवन कारावास] से या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
1
1898 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 4 ारा मूल धारा 124क के स्थान पर पर्ितस्थािपत । मूल धारा 124क को 1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 5 ारा
अंतःस्थािपत िकया गया था ।
2
“हर मजेस्टी या” शब्द का िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा लोप िकया गया । “या कर्ाउन पर्ितिनिध” शब्द का, िजन्ह भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन)
आदेश, 1937 ारा “मजेस्टी” शब्द के पश्चात् अंतःस्थािपत िकया गया था, भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा लोप
िकया गया ।
3
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं०3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
4
“या िबर्िटश बमार्” शब्द का, िजन्ह भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अंतःस्थािपत िकया गया था, िविध अनुकूलन आदेश, 1948 ारा लोप
िकया गया ।
5
1955 के अिधिनयम सं०26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन या उससे िकसी लघुतर अविध के िलए िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1955 के अिधिनयम सं०26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
25
स्पष्टीकरण—कोई राजकै दी या यु कै दी, िजसे अपने पैरोल पर 1 [भारत] म कितपय सीमा के भीतर, यथेच्छ िवचरण की
अनुज्ञा है, िविधपूणर् अिभरक्षा से िनकल भागा है, यह तब कहा जाता है, जब वह उन सीमा से परे चला जाता है, िजनके भीतर उसे
यथेच्छ िवचरण की अनुज्ञा है ।
अध्याय 7
132. िवदर्ोह का दुष्पर्ेरण यिद उसके पिरणामस्वरूप िवदर्ोह िकया जाए—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेना, 4[नौसेना या
वायुसेना] के िकसी आिफसर, सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा िवदर्ोह िकए जाने का दुष्पर्ेरण करे गा, यिद उस दुष्पर्ेरण के
पिरणामस्वरूप िवदर्ोह हो जाए, तो वह मृत्यु से या 6[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और वह जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
133. सैिनक, नौसैिनक या वायुसिै नक ारा अपने विरष्ठ आिफसर पर जब िक वह आिफसर अपने पद-िनष्पादन म हो, हमले का
दुष्पर्ेरण—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेना, 4[नौसेना या वायुसेना] के िकसी आिफसर, सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा िकसी
विरष्ठ आिफसर पर, जब िक वह आिफसर अपने पद-िनष्पादन म हो, हमले का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और वह जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
134. ऐसे हमले का दुष्पर्ेरण यिद हमला िकया जाए—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेना, 4[नौसेना या वायुसेना] के आिफसर,
सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा िकसी विरष्ठ आिफसर पर, जब िक वह आिफसर अपने पद-िनष्पादन म हो, हमले का दुष्पर्ेरण
करे गा, यिद ऐसा हमला उस दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात
वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और वह जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
135. सैिनक, नौसैिनक या वायुसिै नक ारा अिभत्यजन का दुष्पर्ेरण—जो कोई 3[भारत सरकार] की सेना, 4[नौसेना या वायुसेना]
के िकसी आिफसर, सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा अिभत्यजन िकए जाने का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से दंिडत िकया जाएगा ।
136. अिभत्याजक को संशर्य देना—जो कोई िसवाय एतिस्मन्पश्चात् यथा अपवािदत के , यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का
कारण रखते हुए िक 3[भारत सरकार] की सेना, 4[नौसेना या वायुसेना] के िकसी आिफसर, सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] ने
अिभत्यजन िकया है, ऐसे आिफसर, सैिनक, 5[नौसैिनक या वायुसैिनक] को संशर्य देगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से दंिडत िकया जाएगा ।
अपवाद—इस उपबंध का िवस्तार उस मामले पर नह है, िजसम पत्नी ारा अपने पित को संशर्य िदया जाता है ।
1
िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
2
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “और नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 6 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “और सैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
10
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “हर मेजेस्टी की सेना सुशासन के िलए यु िनयम या 1869 के अिधिनयम सं० 5 म अन्तिवष्ट यु
िनयम ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भारतीय सेना अिधिनयम, 1911” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
अब नौसेना अिधिनयम, 1957 (1957 का 62) देिखए ।
13
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “वह अिधिनयम ारा उपान्तिरत” शब्द का लोप िकया गया ।
14
1932 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 130 और अनुसूची ारा “या वायु सेना अिधिनयम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भारतीय वायु सेना अिधिनयम, 1932” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
26
137. मास्टर की उपेक्षा से िकसी वािणिज्यक जलयान पर िछपा हुआ अिभत्याजक—िकसी ऐसे वािणिज्यक जलयान का, िजस पर
1
[भारत सरकार] की सेना, 2 [नौसेना या वायुसेना] का कोई अिभत्याजक िछपा हुआ हो, मास्टर या भारसाधक िक्त, य िप वह ऐसे
िछपने के संबंध म अनिभज्ञ हो, ऐसी शािस्त से दंडनीय होगा जो पांच सौ रुपए से अिधक नह होगी, यिद उसे ऐसे िछपने का ज्ञान हो
सकता था िकतु के वल इस कारण नह हुआ िक ऐसे मास्टर या भारसाधक िक्त के नाते उसके कतर् म कु छ उपेक्षा हुई, या उस जलयान
पर अनुशासन का कु छ अभाव था ।
138. सैिनक, नौसैिनक या वायुसिै नक ारा अनधीनता के कायर् का दुष्पर्ेरण—जो कोई ऐसी बात का दुष्पर्ेरण करे गा िजसे िक वह
1
[भारत सरकार] की सेना, 2[नौसेना या वायुसेना] के िकसी आिफसर, सैिनक, 3 [नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा अनधीनता का कायर्
जानता हो, यिद अनधीनता का ऐसा कायर् उस दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
138क. [पूव क्त धारा
4
का भारतीय सामुिदर्क सेवा को लागू होना ।]—संशोधन अिधिनयम, 1934 (1934 का 35) की धारा 2
और अनुसूची ारा िनरिसत ।
139. कु छ अिधिनयम के अध्यधीन िक्त—कोई िक्त, जो 5 [आम ऐक्ट, 6 [सेना अिधिनयम, 1950, (1950 का 46)],
नेवल िडिसिप्लन ऐक्ट, 7 [ 8 *** 9 इं िडयन नेवी (िडिसिप्लन) ऐक्ट, 1934 (1934 का 34)], 10 [एअर फोसर् ऐक्ट या 11 [वायुसेना
अिधिनयम, 1950 (1950 का 45)]]] के अध्यधीन है, इस अध्याय म पिरभािषत अपराध म से िकसी के िलए इस संिहता के अधीन
दंडनीय नह है ।
140. सैिनक, नौसैिनक या वायुसिै नक ारा उपयोग म लाई जाने वाली पोशाक पहनना या टोकन धारण करना—जो कोई
1
[भारत सरकार] की सेन्य, 12 [नािवक या वायुसेना का सैिनक], 3[नौसैिनक या वायुसिै नक] न होते हुए, इस आशय से िक यह िवश्वास
िकया जाए िक वह ऐसा सैिनक, 3[नौसैिनक या वायुसैिनक] है, ऐसी कोई पोशाक पहनेगा या ऐसा टोकन धारण करे गा जो ऐसे सैिनक,
3
[नौसैिनक या वायुसैिनक] ारा उपयोग म लाई जाने वाली पोशाक या टोकन के सदृश हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
अध्याय 8
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1887 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 79 ारा अंतःस्थािपत ।
5
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “क्वीन की सेना या नौसेना या ऐसी सेना या नौसेना के िकसी भी भाग के िलए िकन्ह यु िनयम ” के
स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भारतीय सेना अिधिनयम, 1911” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
8
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “वह अिधिनयम ारा उपान्तिरत” शब्द का लोप िकया गया ।
9
अब नौसेना अिधिनयम, 1957 (1957 का 62) देिखए ।
10
1932 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 130 और अनुसूची ारा “या वायुसेना अिधिनयम,” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भारतीय वायुसेना अिधिनयम, 1932” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नािवक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “कदर्ीय या िकसी पर्ान्तीय सरकार या िवधान-मंडल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
27
स्पष्टीकरण—कोई जमाव, जो इक ा होते समय िविधिवरु नह था, बाद को िविधिवरु जमाव हो सके गा ।
142. िविधिवरु जमाव का सदस्य होना—जो कोई उन तथ्य से पिरिचत होते हुए, जो िकसी जमाव को िविधिवरु जमाव
बनाते ह, उस जमाव म साशय सिम्मिलत होता है या उसम बना रहता है, वह िविधिवरु जमाव का सदस्य है, यह कहा जाता है ।
143. दंड—जो कोई िविधिवरु जमाव का सदस्य होगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
144. घातक आयुध से सिज्जत होकर िविधिवरु जमाव म सिम्मिलत होना—जो कोई िकसी घातक आयुध से, या िकसी ऐसी
चीज से, िजससे आकर्ामक आयुध के रूप म उपयोग िकए जाने पर मृत्यु कािरत होनी संभा है, सिज्जत होते हुए िकसी िविधिवरु
जमाव का सदस्य होगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से,
दंिडत िकया जाएगा ।
145. िकसी िविधिवरु जमाव म यह जानते हुए िक उसके िबखर जाने का समादेश दे िदया गया है, सिम्मिलत होना या उसम बने
रहना—जो कोई िकसी िविधिवरु जमाव म यह जानते हुए िक ऐसे िविधिवरु जमाव को िबखर जाने का समादेश िविध ारा िविहत
पर्कार से िदया गया है, सिम्मिलत होगा, या बना रहेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
146. बल्वा करना—जब कभी िविधिवरु जमाव ारा या उसके िकसी सदस्य ारा ऐसे जमाव के सामान्य उ ेश्य को अगर्सर
करने म बल या िहसा का पर्योग िकया जाता है, तब ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा ।
147. बल्वा करने के िलए दंड—जो कोई बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
148. घातक आयुध से सिज्जत होकर बल्वा करना—जो कोई घातक आयुध से, या िकसी ऐसी चीज से, िजससे आकर्ामक आयुध के
रूप म उपयोग िकए जाने पर मृत्यु कािरत होनी संभा हो, सिज्जत होते हुए बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
149. िविधिवरु जमाव का हर सदस्य, सामान्य उ ेश्य को अगर्सर करने के िलए िकए गए अपराध का दोषी—यिद िविधिवरु
जमाव के िकसी सदस्य ारा उस जमाव के सामान्य उ ेश्य को अगर्सर करने म अपराध िकया जाता है, या कोई ऐसा अपराध िकया जाता
है, िजसका िकया जाना उस जमाव के सदस्य उस उ ेश्य को अगर्सर करने म सम्भा जानते थे, तो हर िक्त, जो उस अपराध के िकए
जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा ।
150. िविधिवरु जमाव म सिम्मिलत करने के िलए िक्तय का भाड़े पर लेना या भाड़े पर लेने के पर्ित मौनानुकूलता—जो कोई
िकसी िक्त को िकसी िविधिवरु जमाव म सिम्मिलत होने या उसका सदस्य बनाने के िलए भाड़े पर लेगा या वचनब या िनयोिजत
करे गा या भाड़े पर िलए जाने का, वचनब या िनयोिजत करने का संपर्वतर्न करे गा या के पर्ित मौनानुकूल बना रहेगा, वह ऐसे
िविधिवरु जमाव के सदस्य के रूप म, और िकसी ऐसे िक्त ारा ऐसे िविधिवरु जमाव के सदस्य के नाते ऐसे भाड़े पर लेने,
वचनब या िनयोजन के अनुसरण म िकए गए िकसी भी अपराध के िलए उसी पर्कार दंडनीय होगा, मानो वह ऐसे िविधिवरु जमाव
का सदस्य रहा था या ऐसा अपराध उसने स्वयं िकया था ।
151. पांच या अिधक िक्तय के जमाव को िबखर जाने का समादेश िदए जाने के पश्चात् उसम जानते हुए सिम्मिलत होना या
बने रहना—जो कोई पांच या अिधक िक्तय के िकसी जमाव म, िजससे लोक शांित म िवघ्न कािरत होना सम्भा हो, ऐसे जमाव को
िबखर जाने का समादेश िविधपूवर्क दे िदए जाने पर जानते हुए सिम्मिलत होगा या बना रहेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—यिद वह जमाव धारा 141 के अथर् के अन्तगर्त िविधिवरु जमाव हो, तो अपराधी धारा 145 के अधीन
दंडनीय होगा ।
152. लोक सेवक जब बल्वे इत्यािद को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बािधत करना—जो कोई ऐसे िकसी लोक
सेवक पर, जो िविधिवरु जमाव के िबखेरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का पर्यास ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कतर् के िनवर्हन म
कर रहा हो, हमला करे गा या उसको हमले की धमकी देगा या उसके काम म बाधा डालेगा या बाधा डालने का पर्यत्न करे गा या ऐसे लोक
सेवक पर आपरािधक बल का पर्योग करे गा या करने की धमकी देगा, या करने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
153. बल्वा कराने के आशय से स्वैिरता से पर्कोपन देना—यिद बल्वा िकया जाए—यिद बल्वा न िकया जाए—जो कोई अवैध बात
के करने ारा िकसी िक्त को पिर ष े से या स्वैिरता से पर्कोिपत इस आशय से या यह सम्भा जानते हुए करे गा िक ऐसे पर्कोपन के
पिरणामस्वरूप बल्वे का अपराध िकया जाएगा ; यिद ऐसे पर्कोपन के पिरणामस्वरूप बल्वे का अपराध िकया जाए, तो वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, और यिद बल्वे का अपराध न िकया
जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
28
[153क. धमर्, मूलवंश, जन्म-स्थान, िनवास-स्थान, भाषा, इत्यािद के आधार पर िविभन्न समूह के बीच शतर्ुता का संपर्वतर्न और
1
सौहादर् बने रहने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाले कायर् करना—(1) जो कोई—
(क) बोले गए या िलखे गए शब्द ारा या संकेत ारा या दृश्यरूपण ारा या अन्यथा िविभन्न धािमक, मूलवंशीय या
भाषायी या पर्ादेिशक समूह , जाितय या समुदाय के बीच असौहादर् अथवा शतर्ुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धमर्, मूलवंश,
जन्म-स्थान, िनवास-स्थान, भाषा, जाित या समुदाय के आधार पर या अन्य िकसी भी आधार पर संपर्वितत करे गा या संपर्वितत
करने का पर्यत्न करे गा, अथवा
(ख) कोई ऐसा कायर् करे गा, जो िविभन्न धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाितय या समुदाय के बीच
सौहादर् बने रहने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला है और जो लोक-पर्शािन्त म िवघ्न डालता है या िजससे उसम िवघ्न पड़ना
सम्भा हो, 2[अथवा]
[(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोलन, कवायद या अन्य वैसा ही िकर्याकलाप इस आशय से संचािलत करे गा िक ऐसे
2
िकर्याकलाप म भाग लेने वाले िक्त िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के िवरु
आपरािधक बल या िहसा का पर्योग करगे या पर्योग करने के िलए पर्िशिक्षत िकए जाएंगे या यह सम्भा जानते हुए संचािलत
करे गा िक ऐसे िकर्याकलाप म भाग लेने वाले िक्त िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय
के िवरु आपरािधक बल या िहसा का पर्योग करगे या पर्योग करने के िलए पर्िशिक्षत िकए जाएंगे अथवा ऐसे िकर्याकलाप म इस
आशय से भाग लेगा िक िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के िवरु आपरािधक बल या
िहसा का पर्योग करगे या पर्योग करने के िलए पर्िशिक्षत िकया जाए या यह सम्भा जानते हुए भाग लेगा िक ऐसे िकर्याकलाप म
भाग लेने वाले िक्त िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के िवरु आपरािधक बल या
िहसा का पर्योग करगे या पर्योग करने के िलए पर्िशिक्षत िकए जाएंगे और ऐसे िकर्याकलाप से ऐसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या
पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के सदस्य के बीच, चाहे िकसी भी कारण से, भय या संतर्ास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न
होती है या उत्पन्न होनी सम्भा है,]
वह कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से दंिडत िकया जाएगा ।
(2) पूजा के स्थान आिद म िकया गया अपराध—जो कोई उपधारा (1) म िविनिदष्ट अपराध िकसी पूजा के स्थान म या िकसी
जमाव म, जो धािमक पूजा या धािमक कमर् करने म लगा हुआ हो, करे गा, वह कारावास से, जो पांच वषर् तक का हो सके गा, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
[153कक. िकसी जलूस म जानबूझकर आयुध ले जाने या िकसी सामूिहक िडर्ल या सामूिहक पर्िशक्षण का आयुध सिहत संचालन
3
या आयोजन करना या उसम भाग लेना—जो कोई िकसी सावर्जिनक स्थान म, दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 144क
के अधीन जारी की गई िकसी लोक सूचना या िकए गए िकसी आदेश के उल्लंघन म िकसी जलूस म जानबूझकर आयुध ले जाता है या
सामूिहक िडर्ल या सामूिहक पर्िशक्षण का आयुध सिहत जानबूझकर संचालन या आयोजन करता है या उसम भाग लेता है तो वह
कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी और जुमार्ने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सके गा, दंिडत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—“आयुध” से अपराध या सुरक्षा के िलए हिथयार के रूप म िडजाइन की गई या अपनाई गई िकसी भी पर्कार की कोई
वस्तु अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त अिग्न शस्तर्, नुकीली धार वाले हिथयार, लाठी, डंडा और छड़ी भी है ।]
2
[153ख. रा ीय अखंडता पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाले लांछन, पर्ाख्यान—(1) जो कोई बोले गए या िलखे गए शब्द ारा या
संकेत ारा या दृश्यरूपण ारा या अन्यथा,—
(क) ऐसा कोई लांछन लगाएगा या पर्कािशत करे गा िक िकसी वगर् के िक्त इस कारण से िक वे िकसी धािमक, मूलवंशीय,
भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के सदस्य ह, िविध ारा स्थािपत भारत के संिवधान के पर्ित सच्ची शर् ा और
िनष्ठा नह रख सकते या भारत की पर्भुता और अखंडता की मयार्दा नह बनाए रख सकते, अथवा
(ख) यह पर्ाख्यान करे गा, परामशर् देगा, सलाह देगा, पर्चार करे गा या पर्कािशत करे गा िक िकसी वगर् के िक्तय को इस
कारण िक वे िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह या जाित या समुदाय के सदस्य ह, भारत के नागिरक के रूप म
उनके अिधकार न िदए जाएं या उन्ह उनसे वंिचत िकया जाए, अथवा
(ग) िकसी वगर् के िक्तय की, बाध्यता के संबंध म इस कारण िक वे िकसी धािमक, मूलवंशीय, भाषायी या पर्ादेिशक समूह
या जाित या समुदाय के सदस्य ह, कोई पर्ाख्यान करे गा, परामशर् देगा, अिभवाक् करे गा या अपील करे गा अथवा पर्कािशत करे गा,
और ऐसे पर्ाख्यान, परामशर्, अिभवाक् या अपील से ऐसे सदस्य तथा अन्य िक्तय के बीच असामंजस्य, अथवा शतर्ुता या घृणा
या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती ह या उत्पन्न होनी संभा ह,
वह कारावास से, जो तीन वषर् तक का हो सके गा, या जुमार्ने से, अथवा दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
1969 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 ारा पूवर्वत धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1972 के अिधिनयम सं० 31 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
3
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 44 ारा अंत:स्थािपत ।
29
(2) जो कोई उपधारा (1) म िविनिदष्ट कोई अपराध िकसी उपासना स्थल म या धािमक उपासना अथवा धािमक कमर् करने म लगे
हुए िकसी जमाव म करे गा वह कारावास से, जो पांच वषर् तक का हो सके गा, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
154. उस भूिम का स्वामी या अिधभोगी, िजस पर िविधिवरु जमाव िकया गया है—जब कभी कोई िविधिवरु जमाव या बल्वा
हो, तब िजस पर ऐसा िविधिवरु जमाव हो या ऐसा बल्वा िकया जाए, उसका स्वामी या अिधभोगी और ऐसी भूिम म िहत रखने वाला
या िहत रखने का दावा करने वाला िक्त एक हजार रुपए से अनिधक जुमार्ने से दंडनीय होगा, यिद वह या उसका अिभकतार् या पर्बंधक
यह जानते हुए िक ऐसा अपराध िकया जा रहा है या िकया जा चुका है या इस बात का िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक ऐसे
अपराध का िकया जाना सम्भा है, उस बात की अपनी शिक्त-भर शीघर्तम सूचना िनकटतम पुिलस थाने के पर्धान आिफसर को न दे या
न द और उस दशा म, िजसम िक उसे या उन्ह यह िवश्वास करने का कारण हो िक यह लगभग िकया ही जाने वाला है, अपनी शिक्त-भर
सब िविधपूणर् साधन का उपयोग उसका िनवारण करने के िलए नह करता या करते और उसके हो जाने पर अपनी शिक्त-भर सब
िविधपूणर् साधन का उस िविधिवरु जमाव को िबखेरने या बल्वे को दबाने के िलए उपयोग नह करता या करते ।
155. उस िक्त का दाियत्व, िजसके फायदे के िलए बल्वा िकया जाता है—जब कभी िकसी ऐसे िक्त के फायदे के िलए या
उसकी ओर से बल्वा िकया जाए, जो िकसी भूिम का, िजसके िवषय म ऐसा बल्वा हो, स्वामी या अिधभोगी हो या जो ऐसी भूिम म या
बल्वे को पैदा करने वाले िकसी िववादगर्स्त िवषय म कोई िहत रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा पर्ितगृहीत कर या पा
चुका हो, तब ऐसा िक्त, जुमार्ने से दंडनीय होगा, यिद वह या उसका अिभकतार् या पर्बंधक इस बात का िवश्वास करने का कारण रखते
हुए िक ऐसा बल्वा िकया जाना संभा था या िक िजस िविधिवरु जमाव ारा ऐसा बल्वा िकया गया था, वह जमाव िकया जाना
सम्भा था अपनी शिक्त-भर सब िविधपूणर् साधन का ऐसे जमाव या बल्वे का िकया जाना िनवािरत करने के िलए और उसे दबाने और
िबखरने के िलए उपयोग नह करता या करते ।
156. उस स्वामी या अिधभोगी के अिभकतार् का दाियत्व, िजसके फायदे के िलए बल्वा िकया जाता है—जब कभी ऐसे िक्त के
फायदे के िलए या ऐसे िक्त की ओर से बल्वा िकया जाए, जो िकसी भूिम का, िजसके िवषय म ऐसा बल्वा हो, स्वामी हो या अिधभोगी
हो या जो ऐसी भूिम म या बल्वे के पैदा करने वाले िकसी िववादगर्स्त िवषय म कोई िहत रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई
फायदा पर्ितगृहीत कर या पा चुका हो,
तब उस िक्त का अिभकतार् या पर्बंधक जुमार्ने से दंडनीय होगा, यिद ऐसा अिभकतार् या पर्बंधक यह िवश्वास करने का कारण रखते
हुए िक ऐसे बल्वे का िकया जाना सम्भा था या िक िजस िविधिवरु जमाव ारा ऐसा बल्वा िकया गया था, उसका िकया जाना सम्भा
था, अपनी शिक्त-भर सब िविधपूणर् साधन का ऐसे बल्वे या जमाव का िकया जाना िनवािरत करने के िलए और उसको दबाने और िबखरने
के िलए उपयोग नह करता या करते ।
157. िविधिवरु जमाव के िलए भाड़े पर लाए गए िक्तय को संशर्य देना—जो कोई अपने अिधभोग या भारसाधन, या
िनयंतर्ण के अधीन िकसी गृह या पिरसर म िकन्ह िक्तय को, यह जानते हुए िक वे िक्त िविधिवरु जमाव म सिम्मिलत होने या
सदस्य बनने के िलए भाड़े पर लाए गए, वचनब या िनयोिजत िकए गए ह या भाड़े पर लाए जाने, वचनब या िनयोिजत िकए जाने
वाले ह, संशर्य देगा, आने देगा या सम्मेिलत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
158. िविधिवरु जमाव या बल्वे म भाग लेने के िलए भाड़े पर जाना—जो कोई धारा 141 म िविनिदष्ट काय म से िकसी को
करने के िलए या करने म सहायता देने के िलए वचनब िकया या भाड़े पर िलया जाएगा या भाड़े पर िलए जाने या वचनब िकए जाने
के िलए अपनी पर्स्थापना करे गा या पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी,
या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
या सशस्तर् चलना—तथा जो कोई पूव क्त पर्कार से वचनब होने या भाड़े पर िलए जाने पर, िकसी घातक आयुध से या ऐसी
िकसी चीज से, िजससे आकर्ामक आयुध के रूप म उपयोग िकए जाने पर मृत्यु कािरत होनी संभा है, सिज्जत होकर चलेगा या सिज्जत
चलने के िलए वचनब होगा या अपनी पर्स्थापना करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
159. दंगा—जब िक दो या अिधक िक्त लोकस्थान म लड़कर लोक शािन्त म िवघ्न डालते ह, तब यह कहा जाता है िक वे
“दंगा करते ह” ।
160. दंगा करने के िलए दंड—जो कोई दंगा करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
अध्याय 9
आशय से या यह सम्भा जानते हुए करे गा िक ऐसी अवज्ञा से वह िकसी िक्त को क्षित कािरत करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी
अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क, जो एक आिफसर है, और न्यायालय ारा य के पक्ष म दी गई िडकर्ी की तुिष्ट के िलए िनष्पादन म सम्पि लेने के िलए िविध
ारा िनदेिशत है, यह ज्ञान रखते हुए िक यह सम्भा है िक तद् ारा वह य को क्षित कािरत करे गा, जानते हुए िविध के उस िनदेश की
अवज्ञा करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
1
[166क. लोक सेवक, जो िविध के अधीन िनदेश की अवज्ञा करता है—जो कोई लोक सेवक होते हुए,—
(क) िविध के िकसी ऐसे िनदेश की, जो उसको िकसी अपराध या िकसी अन्य मामले म अन्वेषण के पर्योजन के िलए,
िकसी िक्त की िकसी स्थान पर उपिस्थित की अपेक्षा िकए जाने से पर्ितिष करता है, जानते हुए अवज्ञा करे गा ; या
(ख) िकसी ऐसी रीित को, िजसम वह ऐसा अन्वेषण करे गा, िविनयिमत करने वाली िविध के िकसी अन्य िनदेश की,
िकसी िक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने के िलए, जानते हुए अवज्ञा करे गा ; या
(ग) धारा 326क, धारा 326ख, धारा 354, धारा 354ख, धारा 370, धारा 370क, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख,
धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध म उसे दंड पर्िकर्या संिहता,
1973 (1974 का 2) की धारा 154 की उपधारा (1) के अधीन दी गई िकसी सूचना को लेखब करने म असफल रहेगा,
वह कठोर कारावास से, िजसकी अविध छह मास से कम की नह होगी िकतु जो दो वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
166ख. पीिड़त का उपचार न करने के िलए दंड—जो कोई ऐसे िकसी लोक या पर्ाइवेट अस्पताल का, चाहे वह कदर्ीय सरकार,
राज्य सरकार, स्थानीय िनकाय या िकसी अन्य िक्त ारा चलाया जा रहा हो, भारसाधक होते हुए दंड पर्िकर्या संिहता,
1973 (1974 का 2) की धारा 357ग के उपबंध का उल्लंघन करे गा, वह कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी या
जुमार्ने से या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।]
167. लोक सेवक, जो क्षित कािरत करने के आशय से अशु दस्तावेज रचता है—जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक
के नाते 2 [िकसी दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख की रचना या अनुवाद करने का भार-वहन करते हुए उस दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक
अिभलेख की रचना, तैयार या अनुवाद] ऐसे पर्कार से िजसे वह जानता हो या िवश्वास करता हो िक अशु है, इस आशय से, या सम्भा
जानते हुए करे गा िक तद् ारा वह िकसी िक्त को क्षित कािरत करे , वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन
वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
168. लोक सेवक, जो िविधिवरु रूप से ापार म लगता है—जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते इस बात
के िलए वैध रूप से आब होते हुए िक वह ापार म न लगे, ापार म लगेगा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की
हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
169. लोक सेवक, जो िविधिवरु रूप से संपि कर्य करता है या उसके िलए बोली लगाता है—जो कोई लोक सेवक होते हुए और
ऐसे लोक सेवक के नाते इस बात के िलए वैध रूप से आब होते हुए िक वह अमुक संपि को न तो कर्य करे और न उसके िलए बोली
लगाए, या तो अपने िनज के नाम म, या िकसी दूसरे के नाम म, अथवा दूसर के साथ संयुक्त रूप से, या अंश म उस संपि को कर्य
करे गा, या उसके िलए बोली लगाएगा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा, और यिद वह संपि कर्य कर ली गई है, तो वह अिधहृत कर ली जाएगी ।
170. लोक सेवक का पर्ितरूपण—जो कोई िकसी िविशष्ट पद को लोक सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करे गा
िक वह ऐसा पद धारण नह करता है या ऐसा पद धारण करने वाले िकसी अन्य िक्त का छ पर्ितरूपण करे गा और ऐसे बनावटी रूप
म ऐसे पदाभास से कोई कायर् करे गा या करने का पर्यत्न करे गा वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की
हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
171. कपटपूणर् आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन को धारण करना—जो कोई लोक सेवक के िकसी
खास वगर् का न होते हुए, इस आशय से िक यह िवश्वास िकया जाए, या इस ज्ञान से िक सम्भा है िक यह िवश्वास िकया जाए, िक वह
लोक सेवक के उस वगर् का है, लोक सेवक के उस वगर् ारा उपयोग म लाई जाने वाली पोशाक के सदृश पोशाक पहनेगा, या टोकन के
1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
31
सदृश कोई टोकन धारण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
[अध्याय 9क
िनवार्चन संबध
ं ी अपराध के िवषय म
171क. “अभ्यथ ”, “िनवार्चन अिधकार” पिरभािषत—इस अध्याय के पर्योजन के िलए—
2
[(क) “अभ्यथ ” से वह िक्त अिभपर्ेत है जो िकसी िनवार्चन म अभ्यथ के रूप म नामिनिदष्ट िकया गया है ;]
(ख) “िनवार्चन अिधकार” से िकसी िनवार्चन म अभ्यथ के रूप म खड़े होने या खड़े न होने या अभ्यथर्ना से अपना नाम
वापल लेने या मत देने या मत देने से िवरत रहने का िकसी िक्त का अिधकार अिभपर्ेत है ।
171ख. िरश्वत—(1) जो कोई—
(i) िकसी िक्त को इस उ ेश्य से पिरतोषण देता है िक वह उस िक्त को या िकसी अन्य िक्त को िकसी िनवार्चन
अिधकार का पर्योग करने के िलए उत्पर्ेिरत करे या िकसी िक्त को इसिलए इनाम दे िक उसने ऐसे अिधकार का पर्योग िकया है,
अथवा
(ii) स्वयं अपने िलए या िकसी अन्य िक्त के िलए कोई पिरतोषण ऐसे िकसी अिधकार को पर्योग म लाने के िलए या
िकसी अन्य िक्त को ऐसे िकसी अिधकार को पर्योग म लाने के िलए उत्पर्ेिरत करने या उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करने के िलए
इनाम के रूप म पर्ितगृहीत करता है,
वह िरश्वत का अपराध करता है :
परं तु लोक नीित की घोषणा या लोक कायर्वाही का वचन इस धारा के अधीन अपराध न होगा ।
(2) जो िक्त पिरतोषण देने की पर्स्थापना करता है या देने को सहमत होता है या उपाप्त करने की पर्स्थापना या पर्यत्न करता है,
यह समझा जाएगा िक वह पिरतोषण देता है ।
(3) जो िक्त पिरतोषण अिभपर्ाप्त करता है या पर्ितगृहीत करने को सहमत है या अिभपर्ाप्त करने का पर्यत्न करता है, यह
समझा जाएगा िक वह पिरतोषण पर्ितगृहीत करता है और जो िक्त वह बात करने के िलए, िजसे करने का उसका आशय नह है,
हेतुस्वरूप, या जो बात उसने नह की है उसे करने के िलए इनाम के रूप म पिरतोषण पर्ितगृहीत करता है, यह समझा जाएगा िक उसने
पिरतोषण को इनाम के रूप म पर्ितगृहीत िकया है ।
171ग. िनवार्चन म असम्यक्त असर डालना—(1) जो कोई िकसी िनवार्चन अिधकार के िनबार्ध पर्योग म स्वेच्छया हस्तक्षेप करता
है या हस्तक्षेप करने का पर्यत्न करता है, वह िनवार्चन म असम्यक् असर डालने का अपराध करता है ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना जो कोई—
(क) िकसी अभ्यथ या मतदाता को, या िकसी ऐसे िक्त को, िजससे अभ्यथ या मतदाता िहतब है, िकसी पर्कार की
क्षित करने की धमकी देता है, अथवा
(ख) िकसी अभ्यथ या मतदाता को यह िवश्वास करने के िलए उत्पर्ेिरत करता है या उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करता है िक
वह या कोई ऐसा िक्त, िजससे वह िहतब है, दैवी अपर्साद या आध्याित्मक पिरिनन्दा का भाजन हो जाएगा या बना िदया
जाएगा,
यह समझा जाएगा िक वह उपधारा (1) के अथर् के अंतगर्त ऐसे अभ्यथ या मतदाता के िनवार्चन अिधकार के िनबार्ध पर्योग म हस्तक्षेप
करता है ।
(3) लोक नीित की घोषणा या लोक कायर्वाही का वचन या िकसी वैध अिधकार का पर्योग मातर्, जो िकसी िनवार्चन अिधकार म
हस्तक्षेप करने के आशय के िबना है, इस धारा के अथर् के अंतगर्त हस्तक्षेप करना नह समझा जाएगा ।
171घ. िनवार्चन म पर्ितरूपण—जो कोई िकसी िनवार्चन म िकसी अन्य िक्त के नाम से, चाहे वह जीिवत हो या मृत, या िकसी
किल्पत नाम से, मतपतर् के िलए आवेदन करता या मत देता है, या ऐसे िनवार्चन म एक बार मत दे चुकने के पश्चात् उसी िनवार्चन म
अपने नाम से मतपतर् के िलए आवेदन करता है, और जो कोई िकसी िक्त ारा िकसी ऐसे पर्कार से मतदान को दुष्पर्ेिरत करता है,
उपाप्त करता है या उपाप्त करने का पर्यत्न करता है, वह िनवार्चन म पर्ितरूपण का अपराध करता है :
1
1920 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 2 ारा अध्याय 9क अंतःस्थािपत ।
2
1975 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 9 ारा खंड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
32
[परं तु इस धारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त को लागू नह होगी िजसे तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन मतदाता की ओर
1
से, जहां तक वह ऐसे मतदाता की ओर से परोक्षी के रूप म मत देता है, परोक्षी के रूप म मत देने के िलए पर्ािधकृ त िकया गया है ।]
171ङ. िरश्वत के िलए दण्ड—जो कोई िरश्वत का अपराध करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक
वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा :
परं तु सत्कार के रूप म िरश्वत के वल जुमार्ने से ही दिण्डत की जाएगी ।
स्पष्टीकरण—“सत्कार” से िरश्वत का वह रूप अिभपर्ेत है जो पिरतोषण, खा , पेय, मनोरं जन या रसद के रूप म है ।
171च. िनवार्चन म असम्यक् असर डालने या पर्ितरूपण के िलए दण्ड—जो कोई िकसी िनवार्चन म असम्यक् असर डालने या
पर्ितरूपण का अपराध करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
171छ. िनवार्चन के िसलिसले म िमथ्या कथन—जो कोई िनवार्चन के पिरणाम पर पर्भाव डालने के आशय से िकसी अभ्यथ के
वैयिक्तक शील या आचरण के संबंध म तथ्य का कथन तात्पियत होने वाला कोई ऐसा कथन करे गा या पर्कािशत करे गा, जो िमथ्या है,
और िजसका िमथ्या होना वह जानता या िवश्वास करता है अथवा िजसके सत्य होने का वह िवश्वास नह करता है वह जुमार्ने से दिण्डत
िकया जाएगा ।
171ज. िनवार्चन के िसलिसले म अवैध संदाय—जो कोई िकसी अभ्यथ के साधारण या िवशेष िलिखत पर्ािधकार के िबना ऐसे
अभ्यथ का िनवार्चन अगर्सर करने या िनवार्चन करा देने के िलए कोई सावर्जिनक सभा करने म या िकसी िवज्ञापन, पिरपतर् या पर्काशन
पर या िकसी भी अन्य ढंग से य करे गा या करना पर्ािधकृ त करे गा, वह जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया
जाएगा :
परन्तु यिद कोई िक्त, िजसने पर्ािधकार के िबना कोई ऐसे य िकए ह , जो कु ल िमलाकर दस रुपए से अिधक न ह , उस तारीख
से िजस तारीख को ऐसे य िकए गए ह , दस िदन के भीतर उस अभ्यथ का िलिखत अनुमोदन अिभपर्ाप्त कर ले, तो यह समझा जाएगा
िक उसने ऐसे य उस अभ्यथ के पर्ािधकार से िकए ह ।
171झ. िनवार्चन लेखा रखने म असफलता—जो कोई िकसी तत्समय पर्वृ िविध ारा या िविध का बल रखने वाले िकसी िनयम
ारा इसके िलए अपेिक्षत होते हुए िक वह िनवार्चन म या िनवार्चन के संबंध म िकए गए य का लेखा रखे, ऐसा लेखा रखने म असफल
रहेगा, वह जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दंिडत िकया जाएगा ।]
अध्याय 10
1
2003 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 5 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
33
अथवा, यिद समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा 1 [िकसी न्यायालय म स्वयं या अिभकतार् ारा हािजर होने के िलए या दस्तावेज
अथवा इलैक्टर्ािनक अिभलेख पेश करने के िलए] हो, तो वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दंिडत िकया जाएगा ।
174. लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हािजर रहना—जो कोई िकसी लोक सेवक ारा िनकाले गए उस समन, सूचना, आदेश
या उद्घोषणा के पालन म, िजसे ऐसे लोक सेवक के नाते िनकालने के िलए वह वैध रूप से सक्षम हो, िकसी िनिश्चत स्थान और समय पर
स्वयं या अिभकतार् ारा हािजर होने के िलए वैध रूप से आब होते हुए,
उस स्थान या समय पर हािजर होने का साशय लोप करे गा, या उस स्थान से, जहां हािजर होने के िलए वह आब है, उस समय से
पूवर् चला जाएगा, िजस समय चला जाना उसके िलए िविधपूणर् होता,
वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
अथवा, यिद समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा िकसी न्यायालय म स्वयं या िकसी अिभकतार् ारा हािजर होने के िलए है, तो वह
सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क कलक ा 2 [उच्च न्यायालय] ारा िनकाले गए सपीना के पालन म उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के िलए वैध रूप
से आब होते हुए, उपसंजात होने म साशय लोप करता है, क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
(ख) क 3 [िजला न्यायाधीश] ारा िनकाले गए समन के पालन म उस 3[िजला न्यायाधीश] के समक्ष साक्षी के रूप म उपसंजात
होने के िलए वैध रूप से आब होते हुए, उपसंजात होने म साशय लोप करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
[174क. 1974 के अिधिनयम 2 की धारा 82 के अधीन िकसी उद्घोषणा के उ र म गैर-हािजरी—जो कोई दंड पर्िकर्या संिहता,
4
1973 की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन पर्कािशत िकसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार िविनिदष्ट स्थान और िविनिदष्ट समय पर
हािजर होने म असफल रहेगा, तो वह कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से या दोन से दंिडत िकया
जाएगा और जहां उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है िजसम उसे उद्घोिषत अपराधी के रूप म घोिषत
िकया गया है, वहां वह ऐसे कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने का भी
दायी होगा ।]
175. 5 [दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] पेश करने के िलए वैध रूप से आब िक्त का लोक सेवक को 5[दस्तावेज या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख] पेश करने का लोप—जो कोई िकसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते िकसी 5[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक
अिभलेख] को पेश करने या पिरद करने के िलए वैध रूप से आब होते हुए, उसको इस पर्कार पेश करने या पिरद करने का साशय
लोप करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या
दोन से,
अथवा, यिद वह 5[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] िकसी न्यायालय म पेश या पिरद की जानी हो, तो वह सादा कारावास
से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक हो सके गा, या दोन से,
दिण्डत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क, जो एक 6 [एक िजला न्यायालय] के समक्ष दस्तावेज पेश करने के िलए वैध रूप से आब है, उसको पेश करने का साशय लोप
करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
176. सूचना या इि ला देने के िलए वैध रूप से आब िक्त ारा लोक सेवक को सूचना या इि ला देने का लोप—जो कोई
िकसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते िकसी िवषय पर कोई सूचना देने या इि ला देने के िलए वैध रूप से आब होते हुए, िविध
ारा अपेिक्षत पर्कार से और समय पर ऐसी सूचना या इि ला देने का साशय लोप करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक
मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
1
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “उच्चतम न्यायालय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िजला न्यायाधीश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 44 ारा अंत:स्थािपत ।
5
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा “दस्तावेज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िजला न्यायालय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
34
अथवा, यिद दी जाने के िलए अपेिक्षत सूचना या इि ला िकसी अपराध के िकए जाने के िवषय म हो, या िकसी अपराध के िकए
जाने का िनवारण करने के पर्योजन से या िकसी अपराधी को पकड़ने के िलए अपेिक्षत हो, तो वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह
मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
1
[अथवा, यिद दी जाने के िलए अपेिक्षत सूचना या इि ला दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) की धारा 565 की उपधारा
(1) के अधीन िदए गए आदेश ारा अपेिक्षत है, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो
सके गी या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,]
दंिडत िकया जाएगा ।
177. िमथ्या इि ला देना—जो कोई िकसी लोक सेवक को ऐसे लोक सेवक के नाते िकसी िवषय पर इि ला देने के िलए वैध रूप से
आब होते हुए उस िवषय पर सच्ची इि ला के रूप म ऐसी इि ला देगा िजसका िमथ्या होना वह जानता है या िजसके िमथ्या होने का
िवश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से जो एक हजार
रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
अथवा, यिद वह इि ला, िजसे देने के िलए वह वैध रूप से आब हो, कोई अपराध िकए जाने के िवषय म हो, या िकसी अपराध के
िकए जाने का िनवारण करने के पर्योजन से, या िकसी अपराधी को पकड़ने के िलए अपेिक्षत हो, तो वह दोन म से, िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क, एक भू-धारक, यह जानते हुए िक उसकी भू-सम्पदा की सीमा के अंदर एक हत्या की गई है, उस िजले के मिजस्टर्ेट को
जानबूझकर यह िमथ्या इि ला देता है िक मृत्यु सांप के काटने के पिरणामस्वरूप दुघटर् ना से हुई है । क इस धारा म पिरभािषत अपराध
का दोषी है ।
(ख) क, जो गर्ाम चौकीदार है, यह जानते हुए िक अनजाने लोग का एक बड़ा िगरोह य के गृह म, जो पड़ोस के गांव का िनवासी
एक धनी ापारी है, डकै ती करने के िलए उसके गांव से होकर गया है और बंगाल संिहता 1821 के 2 िविनयम 3 की धारा 7 के खंड 5 के
अधीन िनकटतम पुिलस थाने के आिफसर को उपरोक्त घटना की इि ला शीघर् और ठीक समय पर देने के िलए आब होते हुए, पुिलस
आिफसर को जानबूझकर यह िमथ्या इि ला देता है िक संिदग्धशील के लोग का एक िगरोह िकसी िभन्न िदशा म िस्थत एक दूरस्थ स्थान
पर डकै ती करने के िलए गांव से होकर गया है । यहां क, इस धारा के दूसरे भाग म पिरभािषत अपराध का दोषी है ।
3
[स्पष्टीकरण—धारा 176 म और इस धारा म “अपराध” शब्द के अंतगर्त 4 [भारत] से बाहर िकसी स्थान पर िकया गया कोई
ऐसा कायर् आता है, जो यिद 4[भारत] म िकया जाता, तो िनम्निलिखत धारा अथार्त् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397,
398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 म से िकसी धारा के अधीन दंडनीय होता; और “अपराधी” शब्द के
अंतगर्त कोई भी ऐसा िक्त आता है, जो कोई ऐसा कायर् करने का दोषी अिभकिथत हो ।]
178. शपथ या पर्ितज्ञान से इं कार करना, जबिक लोक सेवक ारा वह वैसा करने के िलए सम्यक् रूप से अपेिक्षत िकया जाए—जो
कोई सत्य कथन करने के िलए शपथ 5 [या पर्ितज्ञान] ारा अपने आप को आब करने से इं कार करे गा, जबिक उससे अपने को इस पर्कार
आब करने की अपेक्षा ऐसे लोक सेवक ारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के िलए वैध रूप से सक्षम हो िक वह िक्त इस पर्कार अपने
को आब करे , वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा,
या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
179. पर्श्न करने के िलए पर्ािधकृ त लोक सेवक का उ र देने से इं कार करना—जो कोई िकसी लोक सेवक से िकसी िवषय पर सत्य
कथन करने के िलए वैध रूप से आब होते हुए, ऐसे लोक सेवक की वैध शिक्तय के पर्योग म उस लोक सेवक ारा उस िवषय के बारे म
उससे पूछे गए िकसी पर्श्न का उ र देने से इं कार करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने
से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
180. कथन पर हस्ताक्षर करने से इं कार—जो कोई अपने ारा िकए गए िकसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक सेवक ारा
अपेक्षा िकए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के िलए वैध रूप से सक्षम हो िक वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे , उस कथन पर
हस्ताक्षर करने से इं कार करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक
का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
181. शपथ िदलाने या पर्ितज्ञान कराने के िलए पर्ािधकृ त लोक सेवक के , या िक्त के समक्ष शपथ या पर्ितज्ञान पर िमथ्या
कथन—जो कोई िकसी लोक सेवक या िकसी अन्य िक्त से, जो ऐसे शपथ 5[िदलाने या पर्ितज्ञान] देने के िलए िविध ारा पर्ािधकृ त हो,
1
1939 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
2
1862 के अिधिनयम सं० 17 ारा िनरिसत ।
3
1894 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 5 ारा जोड़ा गया ।
4
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
5
1873 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 15 ारा अंतःस्थािपत ।
35
िकसी िवषय पर सत्य कथन करने के िलए शपथ 1 [या पर्ितज्ञान] ारा वैध रूप से आब होते हुए ऐसे लोक सेवक या यथापूव क्त अन्य
िक्त से उस िवषय के संबंध म कोई ऐसा कथन करे गा, जो िमथ्या है, और िजसके िमथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या िवश्वास है या
िजसके सत्य होने का उसे िवश्वास नह है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत
िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
[182. इस आशय से िमथ्या इि ला देना िक लोक सेवक अपनी िविधपूणर् शिक्त का उपयोग दूसरे िक्त को क्षित करने के िलए
2
करे —जो कोई िकसी लोक सेवक को कोई ऐसी इि ला, िजसके िमथ्या होने का उसे ज्ञान या िवश्वास है, इस आशय से देगा िक वह उस
लोक सेवक को पर्ेिरत करे या यह सम्भा जानते हुए देगा िक वह उसको तद् ारा पर्ेिरत करे गा िक वह लोक सेवक—
(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे िजसे वह लोक सेवक, यिद उसे उस संबंध म, िजसके बारे म ऐसी इि ला दी
गई है, तथ्य की सही िस्थित का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता, अथवा
(ख) ऐसे लोक सेवक की िविधपूणर् शिक्त का उपयोग करे िजस उपयोग से िकसी िक्त को क्षित या क्षोभ हो,
वह दोन म से, िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क एक मिजस्टर्ेट को यह इि ला देता है िक य एक पुिलस आिफसर, जो ऐसे मिजस्टर्ेट का अधीनस्थ है, कतर् पालन म उपेक्षा
या अवचार का दोषी है, यह जानते हुए देता है िक ऐसी इि ला िमथ्या है, और यह सम्भा है िक उस इि ला से वह मिजस्टर्ेट य को
पदच्युत कर देगा । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
(ख) क एक लोक सेवक को यह िमथ्या इि ला देता है िक य के पास गुप्त स्थान म िविनिष नमक है । वह इितला यह जानते हुए
देता है िक ऐसी इि ला िमथ्या है, और यह जानते हुए देता है िक यह सम्भा है िक उस इि ला के पिरणामस्वरूप य के पिरसर की
तलाशी ली जाएगी, िजससे य को क्षोभ होगा । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
(ग) एक पुिलसजन को क यह िमथ्या इि ला देता है िक एक िविशष्ट गर्ाम के पास उस पर हमला िकया गया है और उसे लूट िलया
गया है । वह अपने पर हमलावर के रूप म िकसी िक्त का नाम नह लेता । िकन्तु वह यह जानता है िक यह संभा है िक इस इि ला
के पिरणामस्वरूप पुिलस उस गर्ाम म जांच करे गी और तलािशयां लेगी, िजससे गर्ामवािसय या उनम से कु छ को क्षोभ होगा । क ने इस
धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।]
183. लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार ारा संपि िलए जाने का पर्ितरोध—जो कोई िकसी लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार
ारा िकसी संपि के ले िलए जाने का पर्ितरोध यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए करे गा िक वह ऐसा लोक सेवक
है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
184. लोक सेवक के पर्ािधकार ारा िवकर्य के िलए पर्स्थािपत की गई संपि के िवकर्य म बाधा उपिस्थत करना—जो कोई ऐसी
िकसी संपि के िवकर्य म, जो ऐसे लोक सेवक के नाते िकसी लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार ारा िवकर्य के िलए पर्स्थािपत की गई हो,
साशय बाधा डालेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ
रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
185. लोक सेवक के पर्ािधकार ारा िवकर्य के िलए पर्स्थािपत की गई संपि का अवैध कर्य या उसके िलए अवैध बोली
लगाना—जो कोई संपि के िकसी ऐसे िवकर्य म, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के िविधपूणर् पर्ािधकार ारा हो रहा हो, िकसी ऐसे
िक्त के िनिम चाहे वह िक्त वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, िकसी संपि का कर्य करे गा या िकसी संपि के िलए बोली लगाएगा,
िजसके बारे म वह जानता हो िक वह िक्त उस िवकर्य म उस संपि के कर्य करने के बारे म िकसी िविधक असमथर्ता के अधीन है या
ऐसी संपि के िलए यह आशय रखकर बोली लगाएगा िक ऐसी बोली लगाने से िजन बाध्यता के अधीन वह अपने आप को डालता है
उन्ह उसे पूरा नह करना है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो
दो सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
186. लोक सेवक के लोक कृ त्य के िनवर्हन म बाधा डालना—जो कोई िकसी लोक सेवक के लोक कृ त्य के िनवर्हन म स्वेच्छया
बाधा डालेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए
तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
187. लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबिक सहायता देने के िलए िविध ारा आब हो—जो कोई िकसी लोक सेवक को,
उसके लोक कतर् के िनष्पादन म सहायता देने या पहुंचाने के िलए िविध ारा आब होते हुए, ऐसी सहायता देने का साशय लोप
1
1873 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 15 ारा अंतःस्थािपत ।
2
1895 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 1 ारा धारा 182 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
36
करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दौ सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दंिडत िकया जाएगा ;
और यिद ऐसी सहायता की मांग उससे ऐसे लोक सेवक ारा, जो ऐसी मांग करने के िलए वैध रूप से सक्षम हो, न्यायालय ारा
वैध रूप से िनकाली गई िकसी आदेिशका के िनष्पादन के , या अपराध के िकए जाने का िनवारण करने के , या बल्वे या दंगे को दबाने के , या
ऐसे िक्त को, िजस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या िविधपूणर् अिभरक्षा से िनकल भागने का दोषी है, पकड़ने के
पर्योजन से की जाए, तो वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
188. लोक सेवक ारा सम्यक् रूप से पर्ख्यािपत आदेश की अवज्ञा—जो कोई यह जानते हुए िक वह ऐसे लोक सेवक ारा
पर्ख्यािपत िकसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को पर्ख्यािपत करने के िलए िविधपूवर्क सशक्त है, कोई कायर् करने से िवरत रहने के िलए या
अपने कब्जे म की, या अपने पर्बन्धाधीन, िकसी संपि के बारे म कोई िवशेष वस्था करने के िलए िनिदष्ट िकया गया है, ऐसे िनदेश की
अवज्ञा करे गा ;
यिद ऐसी अवज्ञा िविधपूवर्क िनयोिजत िकन्ह िक्तय को बाधा, क्षोभ या क्षित, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षित की जोिखम कािरत
करे , या कािरत करने की पर्वृि रखती हो, तो वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दौ
सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
और यिद ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को संकट कािरत करे , या कािरत करने की पर्वृि रखती हो, या बल्वा या
दंगा कािरत करती हो, या कािरत करने की पर्वृि रखती हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध छह मास तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—यह आवश्यक नह है िक अपराधी का आशय अपहािन उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान म यह हो िक उसकी
अवज्ञा करने से अपहािन होना संभा है । यह पयार्प्त है िक िजस आदेश की वह अवज्ञा करता है, उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी
ज्ञान है िक उसके अवज्ञा करने से अपहािन उत्पन्न होती या होनी संभा है ।
दृष्टांत
एक आदेश, िजसम यह िनदेश है िक अमुक धािमक जुलूस अमुक सड़क से होकर न िनकले, ऐसे लोक सेवक ारा पर्ख्यािपत िकया
जाता है, जो ऐसा आदेश पर्ख्यािपत करने के िलए िविधपूवर्क सशक्त है । क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद् ारा बल्वे
का संकट कािरत करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
189. लोक सेवक को क्षित करने की धमकी—जो कोई िकसी लोक सेवक को या ऐसे िकसी िक्त को िजससे उस लोक सेवक के
िहतब होने का उसे िवश्वास हो, इस पर्योजन से क्षित की कोई धमकी देगा िक उस लोक सेवक को उत्पर्ेिरत िकया जाए िक वह ऐसे लोक
सेवक के कृ त्य के पर्योग से संसक्त कोई कायर् करे , या करने से पर्िवरत रहे, या करने म िवलम्ब करे , वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
190. लोक सेवक से संरक्षा के िलए आवेदन करने से िवरत रहने के िलए िकसी िक्त को उत्पर्ेिरत करने के िलए क्षित की धमकी—
जो कोई िकसी िक्त को इस पर्योजन से क्षित की कोई धमकी देगा िक वह उस िक्त को उत्पर्ेिरत करे िक वह िकसी क्षित से संरक्षा के
िलए कोई वैध आवेदन िकसी ऐसे लोक सेवक से करने से िवरत रहे, या पर्ितिवरत रहे, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या
कराने के िलए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने
से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
अध्याय 11
(ख) क सत्य कथन करने के िलए शपथ ारा आब होते हुए कथन करता है िक वह अमुक हस्ताक्षर के संबंध म यह िवश्वास करता
है िक वह य का हस्तलेख है, जबिक वह उसके य का हस्तलेख होने का िवश्वास नह करता है । यहां क वह कथन करता है, िजसका िमथ्या
होना वह जानता है, और इसिलए िमथ्या सा य देता है ।
(ग) य के हस्तलेख के साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है िक अमुक हस्ताक्षर के संबंध म उसका यह िवश्वास है
िक वह य का हस्तलेख है ; क उसके ऐसा होने का िवश्वास सद्भावपूवर्क करता है । यहां, क का कथन के वल अपने िवश्वास के संबंध म है,
और उसके िवश्वास के संबंध म सत्य है, और इसिलए, य िप वह हस्ताक्षर य का हस्तलेख न भी हो, क ने िमथ्या सा य नह िदया है ।
(घ) क शपथ ारा सत्य कथन करने के िलए आब होते हुए यह कथन करता है िक वह यह जानता है िक य एक िविशष्ट िदन एक
िविशष्ट स्थान म था, जबिक वह उस िवषय म कु छ भी नह जानता । क िमथ्या सा य देता है, चाहे बतलाए हुए िदन य उस स्थान पर
रहा हो या नह ।
(ङ) क एक दुभािषया या अनुवादक िकसी कथन या दस्तावेज के , िजसका यथाथर् भाषान्तरण या अनुवाद करने के िलए वह शपथ
ारा आब है, ऐसे भाषान्तरण या अनुवाद को, जो यथाथर् भाषान्तरण या अनुवाद नह है और िजसके यथाथर् होने का वह िवश्वास नह
करता, यथाथर् भाषान्तरण या अनुवाद के रूप म देता या पर्मािणत करता है । क ने िमथ्या सा य िदया है ।
192. िमथ्या सा य गढ़ना—जो कोई इस आशय से िकसी पिरिस्थित को अिस्तत्व म लाता है, या 1 [िकसी पुस्तक या अिभलेख या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख म कोई िमथ्या पर्िविष्ट करता है, या िमथ्या कथन अंतिवष्ट रखने वाला कोई दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख
रचता है] िक ऐसी पिरिस्थित, िमथ्या पर्िविष्ट या िमथ्या कथन न्याियक कायर्वाही म, या ऐसी िकसी कायर्वाही म जो लोक सेवक के
समक्ष उसके उस नाते या मध्यस्थ के समक्ष िविध ारा की जाती है, सा य म दिशत हो और िक इस पर्कार सा य म दिशत होने पर ऐसी
पिरिस्थित, िमथ्या पर्िविष्ट या िमथ्या कथन के कारण कोई िक्त िजसे ऐसी कायर्वाही म सा य के आधार पर राय कायम करनी है ऐसी
कायर्वाही के पिरणाम के िलए ताित्त्वक िकसी बात के संबंध म गलत राय बनाए, वह “िमथ्या सा य गढ़ता है”, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत
(क) क एक बक्स म, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है िक वे उस बक्स म पाए जाएं, और इस पिरिस्थित से य चोरी के
िलए दोषिस ठहराया जाए । क ने िमथ्या सा य गढ़ा है ।
(ख) क अपनी दुकान की बही म एक िमथ्या पर्िविष्ट इस पर्योजन से करता है िक वह न्यायालय म सम्पोषक सा य के रूप म काम
म लाई जाए । क ने िमथ्या सा य गढ़ा है ।
(ग) य को एक आपरािधक षड् यंतर् के िलए दोषिस ठहराया जाने के आशय से क एक पतर् य के हस्तलेख की अनुकृित करके
िलखता है, िजससे यह तात्पियत है िक य ने उसे ऐसे आपरािधक षड् यंतर् के सह अपराधी को संबोिधत िकया है और उस पतर् को ऐसे स्थान
पर रख देता है, िजसके संबंध म वह यह जानता है िक पुिलस आिफसर संभा त: उस स्थान की तलाशी लगे । क ने िमथ्या सा य गढ़ा है ।
193. िमथ्या सा य के िलए दंड—जो कोई साशय िकसी न्याियक कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म िमथ्या सा य देगा या िकसी न्याियक
कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से िमथ्या सा य गढ़ेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध सात वषर् तक की हो सके गी दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी, दंडनीय होगा ;
और जो कोई िकसी अन्य मामले म साशय िमथ्या सा य देगा या गढ़ेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1—सेना न्यायालय 2 *** के समक्ष िवचारणीय न्याियक कायर्वाही है ।
स्पष्टीकरण 2—न्यायालय के समक्ष कायर्वाही पर्ारम्भ होने के पूवर्, जो िविध ारा िनिदष्ट अन्वेषण होता है, वह न्याियक
कायर्वाही का एक पर्कर्म है, चाहे वह अन्वेषण िकसी न्यायालय के सामने न भी हो ।
दृष्टांत
यह अिभिनश्चय करने के पर्योजन से िक क्या य को िवचारण के िलए सुपुदर् िकया जाना चािहए, मिजस्टर्ेट के समक्ष जांच म क
शपथ पर कथन करता है, िजसका वह िमथ्या होना जानता है । यह जांच न्याियक कायर्वाही का एक पर्कर्म है, इसिलए क ने िमथ्या सा य
िदया है ।
स्पष्टीकरण 3—न्यायालय ारा िविध के अनुसार िनिदष्ट और न्यायालय के पर्ािधकार के अधीन संचािलत अन्वेषण न्याियक
कायर्वाही का एक पर्कर्म है, चाहे वह अन्वेषण िकसी न्यायालय के सामने न भी हो ।
1
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1889 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 2 और अनुसूची ारा “या िमिलटर्ी कोटर् आफ िरक्वस्ट” शब्द िनरिसत ।
38
दृष्टांत
संबंिधत स्थान पर जा कर भूिम की सीमा को अिभिनिश्चत करने के िलए न्यायालय ारा पर्ितिनयुक्त आिफसर के समक्ष जांच
म क शपथ पर कथन करता है िजसका िमथ्या होना वह जानता है । यह जांच न्याियक कायर्वाही का एक पर्कर्म है, इसिलए क ने िमथ्या
सा य िदया है ।
194. मृत्यु से दंडनीय अपराध के िलए दोषिसि कराने के आशय से िमथ्या सा य देना या गढ़ना—जो कोई 1 [ 2 [भारत] म
तत्समय पर्वृ िविध के ारा] मृत्यु से दंडनीय अपराध के िलए िकसी िक्त को दोषिस कराने के आशय से या संभा त: तद् ारा
दोषिस कराएगा यह जानते हुए िमथ्या सा य देगा या गढ़ेगा, वह 3 [आजीवन कारावास] से, या किठन कारावास से, िजसकी अविध दस
वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
यिद िनद ष िक्त एतद् ारा दोषिस िकया जाए और उसे फांसी दी जाए—और यिद िकसी िनद ष िक्त को ऐसे िमथ्या
सा य के पिरणामस्वरूप दोषिस िकया जाए, और उसे फांसी दे दी जाए, तो उस िक्त को, जो ऐसा िमथ्या सा य देगा, या तो मृत्यु
दंड या एतिस्मन्पूवर् विणत दंड िदया जाएगा ।
195. आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय अपराध के िलए दोषिसि कराने के आशय से िमथ्या सा य देना या गढ़ना—
जो कोई इस आशय से या यह सम्भा जानते हुए िक एतद् ारा वह िकसी िक्त को ऐसे अपराध के िलए, जो 1[2[भारत] म तत्समय
पर्वृ िविध ारा] मृत्यु से दंडनीय न हो िकन्तु 3[आजीवन कारावास] या सात वषर् या उससे अिधक की अविध के कारावास से दंडनीय हो,
दोषिस कराए, िमथ्या सा य देगा या गढ़ेगा, वह वैसे ही दंिडत िकया जाएगा जैसे वह िक्त दंडनीय होता जो उस अपराध के िलए
दोषिस होता ।
दृष्टांत
क न्यायालय के समक्ष इस आशय से िमथ्या सा य देता है िक एतद् ारा य डकै ती के िलए दोषिस िकया जाए । डकै ती का दंड
जुमार्ना सिहत या रिहत 3[आजीवन कारावास] या ऐसा किठन कारावास है, जो दस वषर् तक की अविध का हो सकता है । क इसिलए
जुमार्ने सिहत या रिहत 4 [आजीवन कारावास] या कारावास से दंडनीय है ।
5
[195क. िकसी िक्त को िमथ्या सा य देने के िलए धमकाना या उत्पर्ेिरत करना—जो कोई िकसी दूसरे िक्त को, उसके शरीर,
ख्याित या संपि को अथवा ऐसे िक्त के शरीर या ख्याित को, िजसम वह िक्त िहतब है, यह कािरत करने के आशय से कोई क्षित
करने की धमकी देता है, िक वह िक्त िमथ्या सा य दे तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की
हो सके गी या जुमार्ने से या दोन से दंिडत िकया जाएगा ;
और यिद कोई िनद ष िक्त ऐसे िमथ्या सा य के पिरणामस्वरूप मृत्यु से या सात वषर् से अिधक के कारावास से दोषिस और
दंडािदष्ट िकया जाता है तो ऐसा िक्त, जो धमकी देता है, उसी दंड से दंिडत िकया जाएगा और उसी रीित म और उसी सीमा तक
दंडािदष्ट िकया जाएगा जैसे िनद ष िक्त दंिडत और दंडािदष्ट िकया गया है ।]
196. उस सा य को काम म लाना िजसका िमथ्या होना ज्ञात है—जो कोई िकसी सा य को, िजसका िमथ्या होना या गढ़ा होना
वह जानता है, सच्चे या असली सा य के रूप म भर्ष्टतापूवर्क उपयोग म लाएगा, या उपयोग म लाने का पर्यत्न करे गा, वह ऐसे दंिडत
िकया जाएगा मानो उसने िमथ्या सा य िदया हो या गढ़ा हो ।
197. िमथ्या पर्माणपतर् जारी करना या हस्ताक्षिरत करना—जो कोई ऐसा पर्माणपतर्, िजसका िदया जाना या हस्ताक्षिरत िकया
जाना िविध ारा अपेिक्षत हो, या जो िकसी ऐसे तथ्य से संबंिधत हो िजसका वैसा पर्माणपतर् िविध ारा सा य म गर्ा हो, यह जानते
हुए या िवश्वास करते हुए िक वह िकसी ताित्त्वक बात के बारे म िमथ्या है, वैसा पर्माणपतर् जारी करे गा या हस्ताक्षिरत करे गा, वह उसी
पर्कार दंिडत िकया जाएगा, मानो उसने िमथ्या सा य िदया हो ।
198. पर्माणपतर् को िजसका िमथ्या होना ज्ञात है, सच्चे के रूप म काम म लाना—जो कोई िकसी ऐसे पर्माणपतर् को यह जानते हुए
िक वह िकसी ताित्त्वक बात के संबध
ं म िमथ्या है सच्चे पर्माणपतर् के रूप म भर्ष्टतापूवक
र् उपयोग म लाएगा, या उपयोग म लाने का पर्यत्न
करे गा, वह ऐसे दंिडत िकया जाएगा, मानो उसने िमथ्या सा य िदया हो ।
199. ऐसी घोषणा म, जो सा य के रूप म िविध ारा ली जा सके , िकया गया िमथ्या कथन—जो कोई अपने ारा की गई या
हस्ताक्षिरत िकसी घोषणा म, िजसकी िकसी तथ्य के सा य के रूप म लेने के िलए कोई न्यायालय, या कोई लोक सेवक या अन्य िक्त
िविध ारा आब या पर्ािधकृ त हो कोई ऐसा कथन करे गा, जो िकसी ऐसी बात के संबंध म, जो उस उ ेश्य के िलए ताित्त्वक हो िजसके
िलए वह घोषणा की जाए या उपयोग म लाई जाए, िमथ्या है और िजसके िमथ्या होने का उसे ज्ञान या िवश्वास है, या िजसके सत्य होने
का उसे िवश्वास नह है, वह उसी पर्कार दंिडत िकया जाएगा, मानो उसने िमथ्या सा य िदया हो ।
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1948 ारा “िबर्िटश भारत या इं ग्लड की िविध ारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “ऐसे िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2006 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
39
200. ऐसी घोषणा का िमथ्या होना जानते हुए सच्ची के रूप म काम म लाना—जो कोई िकसी ऐसी घोषणा को, यह जानते हुए
िक वह िकसी ताित्त्वक बात के संबंध म िमथ्या है, भर्ष्टतापूवर्क सच्ची के रूप म उपयोग म लाएगा, या उपयोग म लाने का पर्यत्न करे गा,
वह उसी पर्कार दंिडत िकया जाएगा, मानो उसने िमथ्या सा य िदया हो ।
स्पष्टीकरण—कोई घोषणा, जो के वल िकसी अपर्रूिपता के आधार पर अगर्ा है, धारा 199 और धारा 200 के अथर् के अंतगर्त
घोषणा है ।
201. अपराध के सा य का िवलोपन, या अपराधी को पर्ितच्छािदत करने के िलए िमथ्या इि ला देना—जो कोई यह जानते हुए या
यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक कोई अपराध िकया गया है, उस अपराध के िकए जाने के िकसी सा य का िवलोप, इस आशय
से कािरत करे गा िक अपराधी को वैध दंड से पर्ितच्छािदत करे या उस आशय से उस अपराध से संबंिधत कोई ऐसी इि ला देगा, िजसके
िमथ्या होने का उसे ज्ञान या िवश्वास है ;
यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय हो—यिद वह अपराध िजसके िकए जाने का उसे ज्ञान या िवश्वास है, मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद आजीवन कारावास से दंडनीय हो—और यिद वह अपराध 1 [आजीवन कारावास] से, या ऐसे कारावास से, जो दस वषर् तक
का हो सके गा, दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के , कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद दस वषर् से कम के कारावास से दंडनीय हो—और यिद वह अपराध ऐसे कारावास से उतनी अविध के िलए दंडनीय हो, जो
दस वषर् तक की न हो, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत भांित के कारावास से उतनी अविध के िलए, जो उस अपराध के िलए
उपबंिधत कारावास की दीघर्तम अविध की एक-चौथाई तक हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क यह जानते हुए िक ख ने य की हत्या की है ख को दंड से पर्ितच्छािदत करने के आशय से मृत शरीर को िछपाने म ख की सहायता
करता है । क सात वषर् के िलए दोन म से िकसी भांित के कारावास से, और जुमार्ने से भी दंडनीय है ।
202. इि ला देने के िलए आब िक्त ारा अपराध की इि ला देने का साशय लोप—जो कोई यह जानते हुए या यह िवश्वास
करने का कारण रखते हुए िक कोई अपराध िकया गया है, उस अपराध के बारे म कोई इि ला िजसे देने के िलए वह वैध रूप से आब हो,
देने का साशय लोप करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
203. िकए गए अपराध के िवषय म िमथ्या इि ला देना—जो कोई यह जानते हुए, या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए, िक
कोई अपराध िकया गया है उस अपराध के बारे म कोई ऐसी इि ला देगा, िजसके िमथ्या होने का उसे ज्ञान या िवश्वास हो, वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
[स्पष्टीकरण—धारा 201 और 202 म और इस धारा म “अपराध” शब्द के अंतगर्त 3 [भारत] से बाहर िकसी स्थान पर िकया गया
2
कोई भी ऐसा कायर् आता है, जो यिद 3[भारत] म िकया जाता तो िनम्निलिखत धारा अथार्त् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396,
397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 तथा 460 म से िकसी भी धारा के अधीन दंडनीय होता ।]
204. सा य के रूप म िकसी 4 [दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] का पेश िकया जाना िनवािरत करने के िलए उसको नष्ट
करना—जो कोई िकसी ऐसी 4[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] को िछपाएगा या नष्ट करे गा िजसे िकसी न्यायालय म या ऐसी
कायर्वाही म, जो िकसी लोक सेवक के समक्ष उसकी वैसी हैिसयत म िविधपूवर्क की गई है, सा य के रूप म पेश करने के िलए उसे
िविधपूवर्क िववश िकया जा सके , या पूव क्त न्यायालय या लोक सेवक के समक्ष सा य के रूप म पेश िकए जाने या उपयोग म लाए जाने
से िनवािरत करने के आशय से, या उस पर्योजन के िलए उस 4[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] को पेश करने को उसे िविधपूवर्क
समिनत या अपेिक्षत िकए जाने के पश्चात्, ऐसी संपूणर् 4[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] को, या उसके िकसी भाग को िमटाएगा, या
ऐसा बनाएगा, जो पढ़ा न जा सके , वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
205. वाद या अिभयोजन म िकसी कायर् या कायर्वाही के पर्योजन से िमथ्या पर्ितरूपण—जो कोई िकसी दूसरे का िमथ्या पर्ितरूपण
करे गा और ऐसे धरे हुए रूप म िकसी वाद या आपरािधक अिभयोजन म कोई स्वीकृ ित या कथन करे गा, या दावे की संस्वीकृ ित करे गा, या
कोई आदेिशका िनकलवाएगा या जमानतदार या पर्ितभू बनेगा, या कोई भी अन्य कायर् करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1894 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 6 ारा अंतःस्थािपत ।
3
“िबर्िटश भारत” शब्द के स्थान पर अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951
के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
4
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा “दस्तावेज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
40
206. संपि को समपहरण िकए जाने म या िनष्पादन म अिभगृहीत िकए जाने से िनवािरत करने के िलए उसे कपटपूवक र् हटाना
या िछपाना—जो कोई िकसी संपि को, या उसम के िकसी िहत को इस आशय से कपटपूवर्क हटाएगा, िछपाएगा या िकसी िक्त को
अंतिरत या पिरद करे गा, िक एतद् ारा वह उस संपि या उसम के िकसी िहत का ऐसे दंडादेश के अधीन जो न्यायालय या िकसी अन्य
सक्षम पर्ािधकारी ारा सुनाया जा चुका है या िजसके बारे म वह जानता है िक न्यायालय या अन्य सक्षम पर्ािधकारी ारा उसका सुनाया
जाना संभा है, समपहरण के रूप म या जुमार्ने के चुकाने के िलए िलया जाना या ऐसी िडकर्ी या आदेश के िनष्पादन म, जो िसिवल वाद
म न्यायालय ारा िदया गया हो या िजसके बारे म वह जानता है िक िसिवल वाद म न्यायालय ारा उसका सुनाया जाना संभा है,
िलया जाना िनवािरत करे , वह दोन म, से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन
से, दंिडत िकया जाएगा ।
207. संपि पर उसके समपहरण िकए जाने म या िनष्पादन म अिभगृहीत िकए जाने से िनवािरत करने के िलए कपटपूवक र्
दावा—जो कोई िकसी संपि को, या उसम के िकसी िहत को, यह जानते हुए िक ऐसी िकसी संपि या िहत पर उसका कोई अिधकार या
अिधकारपूणर् दावा नह है, कपटपूवर्क पर्ितगृहीत करे गा, पर्ाप्त करे गा या उस पर दावा करे गा अथवा िकसी संपि या उसम के िकसी िहत
पर िकसी अिधकार के बारे म इस आशय से पर्वंचना करे गा िक तद् ारा वह उस संपि या उसम के िहत का ऐसे दंडादेश के अधीन, जो
न्यायालय या िकसी अन्य सक्षम पर्ािधकारी ारा सुनाया जा चुका है या िजसके बारे म वह जानता है िक न्यायालय या िकसी अन्य सक्षम
पर्ािधकारी ारा उसका सुनाया जाना संभा है, समपहरण के रूप म या जुमार्ने के चुकाने के िलए िलया जाना, या ऐसी िडकर्ी या आदेश
के िनष्पादन म, जो िसिवल वाद म न्यायालय ारा िदया गया हो, या िजसके बारे म वह जानता है िक िसिवल वाद म न्यायालय ारा
उसका िदया जाना संभा है, िलया जाना िनवािरत करे , वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
208. ऐसी रािश के िलए जो शोध्य न हो कपटपूवक र् िडकर्ी होने देना सहन करना—जो कोई िकसी िक्त के बाद म ऐसी रािश के
िलए, जो ऐसे िक्त को शोध्य न हो या शोध्य रािश से अिधक हो, या िकसी ऐसी संपि या संपि म के िहत के िलए, िजसका ऐसा
िक्त हकदार न हो, अपने िवरु कोई िडकर्ी या आदेश कपटपूवर्क पािरत करवाएगा, या पािरत िकया जाना सहन करे गा अथवा िकसी
िडकर्ी या आदेश को उसके तुष्ट कर िदए जाने के पश्चात् या िकसी ऐसी बात के िलए, िजसके िवषय म उस िडकर्ी या आदेश की तुिष्ट कर
दी गई हो, अपने िवरु कपटपूवर्क िनष्पािदत करवाएगा या िकया जाना सहन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
य के िवरु एक वाद क संिस्थत करता है । य यह संभा जानते हुए िक क उसके िवरु िडकर्ी अिभपर्ाप्त कर लेगा, ख के वाद म,
िजसका उसके िवरु कोई न्यायसंगत दावा नह है, अिधक रकम के िलए अपने िवरु िनणर्य िकया जाना इसिलए कपटपूवर्क सहन
करता है िक ख स्वयं अपने िलए या य के फायदे के िलए य की संपि के िकसी ऐसे िवकर्य के आगम का अंश गर्हण करे , जो क की िडकर्ी के
अधीन िकया जाए । य ने इस धारा के अधीन अपराध िकया है ।
209. बेईमानी से न्यायालय म िमथ्या दावा करना—जो कोई कपटपूवर्क या बेईमानी से या िकसी िक्त को क्षित या क्षोभ कािरत
करने के आशय से न्यायालय म कोई ऐसा दावा करे गा, िजसका िमथ्या होना वह जानता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
210. ऐसी रािश के िलए जो शोध्य नह है कपटपूवक र् िडकर्ी अिभपर्ाप्त करना—जो कोई िकसी िक्त के िवरु ऐसी रािश के
िलए, जो शोध्य न हो, या जो शोध्य रािश से अिधक हो, या िकसी संपि या संपि म के िहत के िलए, िजसका वह हकदार न हो, िडकर्ी
या आदेश कपटपूवर्क अिभपर्ाप्त कर लेगा या िकसी िडकर्ी या आदेश को, उसके तुष्ट कर िदए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के िलए,
िजसके िवषय म उस िडकर्ी या आदेश की तुिष्ट कर दी गई हो, िकसी िक्त के िवरु कपटपूवर्क िनष्पािदत करवाएगा या अपने नाम म
कपटपूवर्क ऐसा कोई कायर् िकया जाना सहन करे गा या िकए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी
अविध दो वषर् की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
211. क्षित करने के आशय से अपराध का िमथ्या आरोप—जो कोई िकसी िक्त को यह जानते हुए िक उस िक्त के िवरु ऐसी
कायर्वाही या आरोप के िलए कोई न्यायसंगत या िविधपूणर् आधार नह है क्षित कािरत करने के आशय से उस िक्त के िवरु कोई
दांिडक कायर्वाही संिस्थत करे गा या करवाएगा या उस िक्त पर िमथ्या आरोप लगाएगा िक उसने अपराध िकया है वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ;
तथा ऐसी दांिडक कायर्वाही मृत्यु, 1 [आजीवन कारावास] या सात वषर् या उससे अिधक के कारावास से दंडनीय अपराध के िमथ्या
आरोप पर संिस्थत की जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
212. अपराधी को संशर्य देना—जबिक कोई अपराध िकया जा चुका हो, तब जो कोई िकसी ऐसे िक्त को, िजसके बारे म वह
जानता हो या िवश्वास करने का कारण रखता हो िक वह अपराधी है, वैध दंड से पर्ितच्छािदत करने के आशय से संशर्य देगा
या िछपाएगा ;
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
41
यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय हो—यिद वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद अपराध आजीवन कारावास से या कारावास से दंडनीय हो—और यिद वह अपराध 1 [आजीवन कारावास] से, या दस वषर् तक
के कारावास से, दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
और यिद वह अपराध एक वषर् तक, न िक दस वषर् तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत भांित के
कारावास से, िजसकी अविध उस अपराध के िलए उपबंिधत कारावास की दीघर्तम अविध की एक-चौथाई तक की हो सके गी, या जुमार्ने
से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ;
[इस धारा म “अपराध” के अंतगर्त 3 [भारत] से बाहर िकसी स्थान पर िकया गया ऐसा कायर् आता है, जो, यिद 3[भारत] म िकया
2
जाता हो तो िनम्निलिखत धारा, अथार्त् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450,
457, 458, 459 और 460 म से िकसी धारा के अधीन दंडनीय होता और हर एक ऐसा कायर् इस धारा के पर्योजन के िलए ऐसे दंडनीय
समझा जाएगा, मानो अिभयुक्त िक्त उसे 3[भारत] म करने का दोषी था ।]
अपवाद—इस उपबंध का िवस्तार िकसी ऐसे मामले पर नह है िजससे अपराधी को संशर्य देना या िछपाना उसके पित या पत्नी
ारा हो ।
दृष्टांत
क यह जानते हुए िक ख ने डकै ती की है, ख को वैध दंड से पर्ितच्छािदत करने के िलए जानते हुए िछपा लेता है । यहां, ख 1[आजीवन
कारावास] से दंडनीय है, क तीन वषर् से अनिधक अविध के िलए दोन म से िकसी भांित के कारावास से दंडनीय है और जुमार्ने से भी
दंडनीय है ।
213. अपराधी को दंड से पर्ितच्छािदत करने के िलए उपहार आिद लेना—जो कोई अपने या िकसी अन्य िक्त के िलए कोई
पिरतोषण या अपने या िकसी अन्य िक्त के िलए िकसी संपि का पर्त्यास्थापन, िकसी अपराध के िछपाने के िलए या िकसी िक्त को
िकसी अपराध के िलए वैध दंड से पर्ितच्छािदत करने के िलए, या िकसी िक्त के िवरु वैध दंड िदलाने के पर्योजन से उसके िवरु की
जाने वाली कायर्वाही न करने के िलए, पर्ितफलस्वरूप पर्ितगृहीत करे गा या अिभपर्ाप्त करने का पर्यत्न करे गा या पर्ितगृहीत करने के िलए
करार करे गा ;
यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय हो—यिद वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय हो—तथा यिद वह अपराध 1[आजीवन कारावास] या दस वषर् तक के कारावास
से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
तथा यिद वह अपराध दस वषर् से कम तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत भांित के कारावास से
इतनी अविध के िलए, जो उस अपराध के िलए उपबंिधत कारावास की दीघर्तम अविध की एक चौथाई तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
214. अपराधी के पर्ितच्छादन के पर्ितफलस्वरूप उपहार की पर्स्थापना या संपि का पर्त्यावतर्न—जो कोई िकसी िक्त को कोई
अपराध उस िक्त ारा िछपाए जाने के िलए या उस िक्त ारा िकसी िक्त को िकसी अपराध के िलए वैध दंड से पर्ितच्छािदत
िकए जाने के िलए या उस िक्त ारा िकसी िक्त को वैध दंड िदलाने के पर्योजन से उसके िवरु की जाने वाली कायर्वाही न की जाने
के िलए पर्ितफलस्वरूप कोई पिरतोषण देगा या िदलाएगा या देने या िदलाने की पर्स्थापना या करार करे गा, या 4 [कोई संपि
पर्त्यावितत करे गा या कराएगा] ;
यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय हो—यिद वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय हो—तथा यिद वह अपराध 1[आजीवन कारावास] से या दस वषर् तक के
कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा
और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1894 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
3
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
4
1953 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 4 और तीसरी अनुसूची ारा “के पर्त्यावितत करने या पर्त्यावतर्न कराने के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
42
तथा यिद वह अपराध दस वषर् से कम के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के िलए उपबंिधत भांित के कारावास से
इतनी अविध के िलए, जो उस अपराध के िलए उपबंिधत कारावास की दीघर्तम अविध की एक-चौथाई तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
[अपवाद—धारा 213 और 214 के उपबंध का िवस्तार िकसी ऐसे मामले पर नह है, िजसम िक अपराध का शमन िविधपूवर्क
1
िकया जा सकता है ।]
2
* * * * *
215. चोरी की संपि इत्यािद के वापस लेने म सहायता करने के िलए उपहार लेना—जो कोई िकसी िक्त की िकसी ऐसी जंगम
संपि के वापस करा लेने म, िजससे इस संिहता के अधीन दंडनीय िकसी अपराध ारा वह िक्त वंिचत कर िदया गया हो, सहायता
करने के बहाने या सहायता करने की बाबत कोई पिरतोषण लेगा या लेने का करार करे गा या लेने को सम्मत होगा, वह, जब तक िक
अपनी शिक्त म के सब साधन को अपराधी को पकड़वाने के िलए और अपराध के िलए दोषिस कराने के िलए उपयोग म न लाए, दोन
म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
216. ऐसे अपराधी को संशर्य देना, जो अिभरक्षा से िनकल भागा है या िजसको पकड़ने का आदेश िदया जा चुका है—जब िकसी
अपराध के िलए दोषिस या आरोिपत िक्त उस अपराध के िलए वैध अिभरक्षा म होते हुए ऐसी अिभरक्षा से िनकल भागे,
अथवा जब कभी कोई लोक सेवक ऐसे लोक सेवक की िविधपूणर् शिक्तय का पर्योग करते हुए िकसी अपराध के िलए िकसी िक्त
को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे िनकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस िक्त को पकड़ा जाना िनवािरत
करने के आशय से उसे संशर्य देगा या िछपाएगा, वह िनम्निलिखत पर्कार से दंिडत िकया जाएगा, अथार्त् :—
यिद अपराध मृत्यु से दंडनीय हो—यिद वह अपराध, िजसके िलए वह िक्त अिभरक्षा म था या पकड़े जाने के िलए आदेिशत है,
मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय हो—यिद वह अपराध 1[आजीवन कारावास] से या दस वषर् के कारावास से
दंडनीय हो, तो वह जुमार्ने सिहत या रिहत दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत
िकया जाएगा ;
तथा यिद वह अपराध ऐसे कारावास से दंडनीय हो, जो एक वषर् तक का, न िक दस वषर् तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के
िलए उपबंिधत भांित के कारावास से, िजसकी अविध उस अपराध के िलए उपबंिधत कारावास की दीघर्तम अविध की एक चौथाई तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से दंिडत िकया जाएगा ।
[इस धारा म “अपराध” के अंतगर्त कोई भी ऐसा कायर् या लोप भी आता है, िजसका कोई िक्त 4 [भारत] से बाहर दोषी होना
3
अिभकिथत हो, जो यिद वह 4[भारत] म उसका दोषी होता, तो अपराध के रूप म दंडनीय होता और िजसके िलए, वह पर्त्यपर्ण से संबंिधत
िकसी िविध के अधीन 5 *** या अन्यथा 4[भारत] म पकड़े जाने या अिभरक्षा म िनरु िकए जाने के दाियत्व के अधीन हो, और हर ऐसा
कायर् या लोप इस धारा के पर्योजन के िलए ऐसे दंडनीय समझा जाएगा, मानो अिभयुक्त िक्त 4[भारत] म उसका दोषी हुआ था ।]
अपवाद—इस उपबंध का िवस्तार ऐसे मामले पर नह है, िजसम संशर्य देना या िछपाना पकड़े जाने वाले िक्त के पित या पत्नी
ारा हो ।
[216क. लुटेर या डाकु को संशर्य देने के िलए शािस्त—जो कोई यह जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक कोई
6
िक्त लूट या डकै ती हाल ही म करने वाले ह या हाल ही म लूट या डकै ती कर चुके ह, उनको या उनम से िकसी को, ऐसी लूट या डकै ती
का िकया जाना सुकर बनाने के , या उनको या उनम से िकसी को दंड से पर्ितच्छािदत करने के आशय से संशर्य देगा, वह किठन कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए यह तत्त्वहीन है िक लूट या डकै ती 4[भारत] म करनी आशियत है या की जा चुकी है,
या [भारत] से बाहर ।
4
अपवाद—इस उपबंध का िवस्तार ऐसे मामले पर नह है, िजसम संशर्य देना, या िछपाना अपराधी के पित या पत्नी ारा हो ।]
[216ख. [धारा 212, धारा 216 और धारा 216क म “संशर्य” की पिरभाषा ।]—भारतीय दंड संिहता (संशोधन) अिधिनयम,
1
1
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 6 ारा मूल अपवाद के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
दृष्टांत 1882 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा िनरिसत ।
3
1886 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 23 ारा अंतःस्थािपत ।
4
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “या फ्यूिजिटव आफे न्डरस ऐक्ट, 1881 के अधीन” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1894 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 8 ारा अंतःस्थािपत ।
43
217. लोक सेवक ारा िकसी िक्त को दंड से या िकसी संपि के समपहरण से बचाने के आशय से िविध के िनदेश की
अवज्ञा—जो कोई लोक सेवक होते हुए िविध के ऐसे िकसी िनदेश की, जो उस संबंध म हो िक उससे ऐसे लोक सेवक के नाते िकस ढंग का
आचरण करना चािहए, जानते हुए अवज्ञा िकसी िक्त को वैध दंड से बचाने के आशय से या संभा त: तद् ारा बचाएगा यह जानते हुए
अथवा उतने दंड की अपेक्षा, िजससे वह दंडनीय है, तद् ारा कम दंड िदलवाएगा यह संभा जानते हुए अथवा िकसी संपि को ऐसे
समपहरण या िकसी भार से, िजसके िलए वह संपि िविध के ारा दाियत्व के अधीन है बचाने के आशय से या संभा त: तद् ारा
बचाएगा यह जानते हुए करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
218. िकसी िक्त को दंड से या िकसी संपि को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक ारा अशु अिभलेख या लेख की
रचना—जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते कोई अिभलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस
अिभलेख या लेख की इस पर्कार से रचना, िजसे वह जानता है िक अशु है लोक को या िकसी िक्त को हािन या क्षित कािरत करने के
आशय से या संभा त: तद् ारा कािरत करे गा यह जानते हुए अथवा िकसी िक्त को वैध दंड से बचाने के आशय से या संभा त:
तद् ारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा िकसी संपि को ऐसे समपहरण या अन्य भार से, िजसके दाियत्व के अधीन वह संपि िविध के
अनुसार है, बचाने के आशय से या संभा त: तद् ारा बचाएगा या जानते हुए करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
219. न्याियक कायर्वाही म िविध के पर्ितकू ल िरपोटर् आिद का लोक सेवक ारा भर्ष्टतापूवकर् िकया जाना—जो कोई लोक सेवक
होते हुए, न्याियक कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म कोई िरपोटर्, आदेश, अिधमत या िविनश्चय, िजसका िविध के पर्ितकू ल होना वह जानता
हो, भर्ष्टतापूवर्क या िव ष े पूवर्क देगा, या सुनाएगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
220. पर्ािधकार वाले िक्त ारा जो यह जानता है िक वह िविध के पर्ितकू ल कायर् कर रहा है, िवचारण के िलए या पिररोध करने
के िलए सुपद
ु ग
र् ी—जो कोई िकसी ऐसे पद पर होते हुए, िजससे िक्तय को िवचारण या पिररोध के िलए सुपुदर् करने का, या िक्तय
को पिररोध म रखने का उसे वैध पर्ािधकार हो िकसी िक्त को उस पर्ािधकार के पर्योग म यह जानते हुए भर्ष्टतापूवक र् या िव ष
े पूवर्क
िवचारण या पिररोध के िलए सुपुदर् करे गा या पिररोध म रखेगा िक ऐसा करने म वह िविध के पर्ितकू ल कायर् कर रहा है, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
221. पकड़ने के िलए आब लोक सेवक ारा पकड़ने का साशय लोप—जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो िकसी अपराध के
िलए आरोिपत या पकड़े जाने के दाियत्व के अधीन िकसी िक्त को पकड़ने या पिररोध म रखने के िलए सेवक के नाते वैध रूप से आब
है, ऐसे िक्त को पकड़ने का साशय लोप करे गा या ऐसे पिररोध म से ऐसे िक्त का िनकल भागना साशय सहन करे गा या ऐसे िक्त
के िनकल भागने म या िनकल भागने के िलए पर्यत्न करने म साशय मदद करे गा, वह िनम्निलिखत रूप से दंिडत िकया जाएगा,
अथार्त् :—
यिद पिररु िक्त या जो िक्त पकड़ा जाना चािहए था वह मृत्यु से दंडनीय अपराध के िलए आरोिपत या पकड़े जाने के
दाियत्व के अधीन हो, तो वह जुमार्ने सिहत या रिहत दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी,
अथवा
यिद पिररु िक्त या जो िक्त पकड़ा जाना चािहए था वह 1 [आजीवन कारावास] या दस वषर् तक की अविध के कारावास से
दंडनीय अपराध के िलए आरोिपत या पकड़े जाने के दाियत्व के अधीन हो, तो वह जुमार्ने सिहत या रिहत दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, अथवा
यिद पिररु िक्त या जो पकड़ा जाना चािहए था वह दस वषर् से कम की अविध के िलए कारावास से दंडनीय अपराध के िलए
आरोिपत या पकड़े जाने के दाियत्व के अधीन हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से ।
222. दंडादेश के अधीन या िविधपूवकर् सुपद
ु र् िकए गए िक्त को पकड़ने के िलए आब लोक सेवक ारा पकड़ने का साशय
लोप—जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो िकसी अपराध के िलए न्यायालय के दंडादेश के अधीन 2 [या अिभरक्षा म रखे जाने के िलए
िविधपूवर्क सुपुदर् िकए गए] िकसी िक्त को पकड़ने या पिररोध म रखने के िलए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आब है, ऐसे
िक्त को पकड़ने का साशय लोप करे गा, या ऐसे पिररोध म से साशय ऐसे िक्त का िनकल भागना सहन करे गा या ऐसे िक्त के
िनकल भागने म, या िनकल भागने का पर्यत्न करने म साशय मदद करे गा, वह िनम्निलिखत रूप से दंिडत िकया जाएगा, अथार्त् :—
यिद पिररु िक्त या जो िक्त पकड़ा जाना चािहए था वह मृत्यु दंडादेश के अधीन हो, तो वह जुमार्ने सिहत या रिहत
1
[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध चौदह वषर् तक की हो सके गी, अथवा
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 8 ारा अंतःस्थािपत ।
44
यिद पिररु िक्त या जो िक्त पकड़ा जाना चािहए था वह न्यायालय के दंडादेश से, या ऐसे दंडादेश से लघुकरण के आधार
पर [आजीवन कारावास] 2 *** 3 *** 4 *** 5 *** या दस वषर् की या उससे अिधक की अविध के िलए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह
1
जुमार्ने सिहत या रिहत, दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, अथवा
यिद पिररु िक्त या जो िक्त पकड़ा जाना चािहए था वह न्यायालय के दंडादेश से दस वषर् से कम की अविध के िलए
कारावास के अध्यधीन हो 6 [या यिद वह िक्त अिभरक्षा म रखे जाने के िलए िविधपूवर्क सुपुदर् िकया गया हो,] तो वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से ।
223. लोक सेवक ारा उपेक्षा से पिररोध या अिभरक्षा म से िनकल भागना सहन करना—जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो
अपराध के िलए आरोिपत या दोषिस 6[या अिभरक्षा म रखे जाने के िलए िविधपूवर्क सुपुदर् िकए गए] िकसी िक्त को पिररोध म रखने
के िलए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आब हो, ऐसे िक्त का पिररोध म से िनकल भागना उपेक्षा से सहन करे गा, वह सादा
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
224. िकसी िक्त ारा िविध के अनुसार अपने पकड़े जाने म पर्ितरोध या बाधा—जो कोई िकसी ऐसे अपराध के िलए, िजसका
उस पर आरोप हो, या िजसके िलए वह दोषिस िकया गया हो, िविध के अनुसार अपने पकड़े जाने म साशय पर्ितरोध करे गा या अवैध
बाधा डालेगा, या िकसी अिभरक्षा से, िजसम वह िकसी ऐसे अपराध के िलए िविधपूवर्क िनरु हो, िनकल भागेगा, या िनकल भागने का
पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म उपबंिधत दंड उस दंड के अितिरक्त है िजससे वह िक्त, िजसे पकड़ा जाना हो, या अिभरक्षा म िनरु
रखा जाना हो, उस अपराध के िलए दंडनीय था, िजसका उस पर आरोप लगाया गया था या िजसके िलए वह दोषिस िकया गया था ।
225. िकसी अन्य िक्त के िविध के अनुसार पकड़े जाने म पर्ितरोध या बाधा—जो कोई िकसी अपराध के िलए िकसी दूसरे िक्त
के िविध के अनुसार पकड़े जाने म साशय पर्ितरोध करे गा या अवैध बाधा डालेगा, या िकसी दूसरे िक्त को िकसी ऐसी अिभरक्षा से,
िजसम वह िक्त िकसी अपराध के िलए िविधपूवक र् िनरु हो, साशय छु ड़ाएगा या छु ड़ाने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित
के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ;
अथवा यिद उस िक्त पर, िजसे पकड़ा जाना हो, या जो छु ड़ाया गया हो, या, िजसके छु ड़ाने का पर्यत्न िकया गया हो, 1[आजीवन
कारावास] से, या दस वषर् तक की अविध के कारावास से दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके िलए पकड़े जाने के दाियत्व के
अधीन हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से
भी दंडनीय होगा ;
अथवा यिद उस िक्त पर, िजसे पकड़ा जाना हो या जो छु ड़ाया गया हो, या िजसके छु ड़ाने का पर्यत्न िकया गया हो, मृत्यु-दंड से
दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके िलए पकड़े जाने के दाियत्व के अधीन हो तो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
अथवा यिद वह िक्त, िजसे पकड़ा जाना हो या जो छु ड़ाया गया हो, या िजसके छु ड़ाने का पर्यत्न िकया गया हो, िकसी न्यायालय
के दंडादेश के अधीन या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर 1[आजीवन कारावास] 3*** 4*** 5*** या दस वषर् या उससे अिधक
अविध के कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत
िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
अथवा यिद वह िक्त, िजसे पकड़ा जाना हो, या जो छु ड़ाया गया हो या िजसके छु ड़ाने का पर्यत्न िकया गया हो, मृत्यु दंडादेश के
अधीन हो, तो वह 1[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, इतनी अविध के िलए जो दस वषर् से अनिधक है,
दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
[225क. उन दशा म िजनके िलए अन्यथा उपबंध नह है लोक सेवक ारा पकड़ने का लोप या िनकल भागना सहन करना—जो
7
कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए जो िकसी िक्त को पकड़ने या पिररोध म रखने के िलए लोक सेवक के नाते वैध रूप से आब हो उस
िक्त को िकसी ऐसी दशा म, िजसके िलए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथवा िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म कोई उपबंध
नह है, पकड़ने का लोप करे गा या पिररोध म से िनकल भागना सहन करे गा—
(क) यिद वह ऐसा साशय करे गा, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी
या जुमार्ने से, या दोन से, तथा
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1949 के अिधिनयम सं० 17 की धारा 2 ारा “या आजीवन कठोरशर्म कारावास” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1957 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “या.... के िलए” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “िनवार्सन” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1949 के अिधिनयम सं० 17 की धारा 2 ारा “या कठोरशर्म कारावास” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 8 ारा अंत:स्थािपत ।
7
1886 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 24(1) ारा धारा 225क तथा 225ख को धारा 225क, जो 1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत की गई थी,
के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
45
(ख) यिद वह ऐसा उपेक्षापूवर्क करे गा तो वह सादा कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से,
दंिडत िकया जाएगा ।
225ख. अन्यथा अनुपबंिधत दशा म िविधपूवक र् पकड़ने म पर्ितरोध या बाधा या िनकल भागना या छु ड़ाना—जो कोई स्वयं
अपने या िकसी अन्य िक्त के िविधपूवर्क पकड़े जाने म साशय कोई पर्ितरोध करे गा या अवैध बाधा डालेगा या िकसी अिभरक्षा म से,
िजसम वह िविधपूवर्क िनरु हो, िनकल भागेगा या िनकल भागने का पर्यत्न करे गा या िकसी अन्य िक्त को ऐसी अिभरक्षा म से,
िजसम वह िक्त िविधपूवर्क िनरु हो, छु ड़ाएगा या छु ड़ाने का पर्यत्न करे गा वह िकसी ऐसी दशा म, िजसके िलए धारा 224 या धारा
225 या िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म उपबंध नह है, दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।]
226. [िनवार्सन से िविधिवरु वापसी ।]—दंड पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और
अनुसच
ू ी ारा िनरिसत ।
227. दंड के पिरहार की शतर् का अितकर्मण—जो कोई दंड का सशतर् पिरहार पर्ितगृहीत कर लेने पर िकसी शतर् का िजस पर ऐसा
पिरहार िदया गया था, जानते हुए अितकर्मण करे गा, यिद वह उस दंड का, िजसके िलए वह मूलत: दंडािदष्ट िकया गया था, कोई भाग
पहले ही न भोग चुका हो, तो वह उस दंड से और यिद वह उस दंड का कोई भाग भोग चुका हो, तो वह उस दंड के उतने भाग से, िजतने
को वह पहले ही भोग चुका हो, दंिडत िकया जाएगा ।
228. न्याियक कायर्वाही म बैठे हुए लोक सेवक का साशय अपमान या उसके कायर् म िवघ्न—जो कोई िकसी लोक सेवक का उस
समय, जबिक ऐसा लोक सेवक न्याियक कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करे गा या उसके कायर् म कोई
िवघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा,
या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
[228क. कितपय अपराध आिद से पीिड़त िक्त की पहचान का पर्कटीकरण—(1) जो कोई िकसी नाम या अन्य बात को,
1
िजससे िकसी ऐसे िक्त की (िजसे इस धारा म इसके पश्चात् पीिड़त िक्त कहा गया है) पहचान हो सकती है, िजसके िवरु
2
[धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 376ङ] के अधीन िकसी अपराध का िकया जाना अिभकिथत
है या िकया गया पाया गया है, मुिदर्त या पर्कािशत करे गा वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
(2) उपधारा (1) की िकसी भी बात का िवस्तार िकसी नाम या अन्य बात के मुदर्ण या पर्काशन पर, यिद उससे पीिड़त िक्त की
पहचान हो सकती है, तब नह होता है जब ऐसा मुदर्ण या पर्काशन—
(क) पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुिलस अिधकारी के , जो ऐसे अन्वेषण
के पर्योजन के िलए सद्भावपूवर्क कायर् करता है, ारा या उसके िलिखत आदेश के अधीन िकया जाता है ; या
(ख) पीिड़त िक्त ारा या उसके िलिखत पर्ािधकार से िकया जाता है ; या
(ग) जहां पीिड़त िक्त की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या िवकृ तिच है वहां, पीिड़त िक्त के िनकट संबंधी
ारा या उसके िलिखत पर्ािधकार से, िकया जाता है :
परन्तु िनकट संबंधी ारा कोई भी ऐसा पर्ािधकार िकसी मान्यतापर्ाप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सिचव से, चाहे
उसका जो भी नाम हो, िभन्न िकसी अन्य िक्त को नह िदया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए “मान्यतापर्ाप्त कल्याण संस्था या संगठन” से के न्दर्ीय या राज्य सरकार ारा इस
उपधारा के पर्योजन के िलए िकसी मान्यतापर्ाप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अिभपर्ेत है ।
(3) जो कोई उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी अपराध की बाबत िकसी न्यायालय के समक्ष िकसी कायर्वाही के संबंध म, कोई बात
उस न्यायालय की पूवर् अनुज्ञा के िबना मुिदर्त या पर्कािशत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक
की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—िकसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के िनणर्य का मुदर्ण या पर्काशन इस धारा के अथर् म अपराध की कोिट
म नह आता है ।]
229. जूरी सदस्य या असेसर का पर्ितरूपण—जो कोई िकसी मामले म पर्ितरूपण ारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए जूरी
सदस्य या असेसर के रूप म तािलकांिकत, पेनिलत या गृहीतशपथ साशय कराएगा या होने देना जानते हुए सहन करे गा िक वह इस
पर्कार तािलकांिकत, पेनिलत या गृहीतशपथ होने का िविध ारा हकदार नह है या यह जानते हुए िक वह इस पर्कार तािलकांिकत,
1
1983 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
46
पेनिलत या गृहीतशपथ िविध के पर्ितकू ल हुआ है ऐसी जूरी म या ऐसे असेसर के रूप म स्वेच्छा सेवा करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
[229क. जमानत या बंधपतर् पर छोड़े गए िक्त ारा न्यायालय म हािजर होने म असफलता—जो कोई, िकसी अपराध से
आरोिपत िकए जाने पर और जमानत पर या अपने बंधपतर् पर छोड़ िदए जाने पर, जमानत या बंधपतर् के िनबंधन के अनुसार न्यायालय
म पयार्प्त कारण के िबना (जो सािबत करने का भार उस पर होगा) हािजर होने म असफल रहेगा वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के अधीन दंड—
(क) उस दंड के अितिरक्त है, िजसके िलए अपराधी उस अपराध के िलए, िजसके िलए उसे आरोिपत िकया गया है,
दोषिसि पर दायी होता ; और
(ख) न्यायालय की बंधपतर् के समपहरण का आदेश करने की शिक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला नह है ।]
अध्याय 12
दृष्टांत
(क) कौिड़यां िसक्के नह ह ।
(ख) अस्टािम्पत तांबे के टुकड़े, य िप धन के रूप म उपयोग म लाए जाते ह, िसक्के नह ह ।
(ग) पदक िसक्के नह ह, क्य िक वे धन के रूप म उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत नह ह ।
(घ) िजस िसक्के का नाम कम्पनी रुपया है, वह 4 [भारतीय िसक्का] है ।
5
[(ङ) “फरूखाबाद रुपया”, जो धन के रूप म भारत सरकार के पर्ािधकार के अधीन पहले कभी उपयोग म लाया जाता था,
3
[भारतीय िसक्का] है, य िप वह अब इस पर्कार उपयोग म नह लाया जाता है ।]
231. िसक्के का कू टकरण—जो कोई िसक्के का कू टकरण करे गा या जानते हुए िसक्के के कू टकरण की पर्िकर्या के िकसी भाग को
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—जो िक्त असली िसक्के को िकसी िभन्न िसक्के के जैसा िदखलाई देने वाला इस आशय से बनाता है िक पर्वंचना की
जाए या यह संभा जानते हुए बनाता है िक तद् ारा पर्वंचना की जाएगी, वह यह अपराध करता है ।
232. भारतीय िसक्के का कू टकरण—जो कोई 3[भारतीय िसक्के ] का कू टकरण करे गा या जानते हुए भारतीय िसक्के के कू टकरण
की पर्िकर्या के िकसी भाग को करे गा, वह 6 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर्
तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
233. िसक्के के कू टकरण के िलए उपकरण बनाना या बेचना—जो कोई िकसी डाई या उपकरण को िसक्के के कू टकरण के िलए
उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से, या यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक वह िसक्के के कू टकरण म उपयोग म
लाए जाने के िलए आशियत है, बनाएगा या सुधारे गा या बनाने या सुधारने की पर्िकर्या के िकसी भाग को करे गा, अथवा खरीदेगा, बेचेगा
1
2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 44 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1872 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 1 ारा पर्थम मूल पैरा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा पूवर्वत पैरा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन का िसक्का” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1896 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 1 ारा जोड़ा गया ।
6
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
47
या यिनत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
234. भारतीय िसक्के के कू टकरण के िलए उपकरण बनाना या बेचना—जो कोई िकसी डाई या उपकरण को भारतीय िसक्के के
कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से, या यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक वह 1 [भारतीय
िसक्के ] के कू टकरण म उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत है, बनाएगा या सुधारे गा या बनाने या सुधारने की पर्िकर्या के िकसी भाग
को करे गा अथवा खरीदेगा, बेचेगा या यिनत करे गा वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
235. िसक्के के कू टकरण के िलए उपकरण या सामगर्ी उपयोग म लाने के पर्योजन से उसे कब्जे म रखना— जो कोई िकसी उपकरण
या सामगर्ी को िसक्के के कू टकरण म उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से या यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक
वह उस पर्योजन के िलए उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत है, अपने कब्जे म रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ;
यिद भारतीय िसक्का हो—और यिद कू टकरण िकया जाने वाला िसक्का 2 [भारतीय िसक्का] हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
236. भारत से बाहर िसक्के के कू टकरण का भारत म दुष्पर्ेरण—जो कोई 3 [भारत] म होते हुए 3[भारत] से बाहर िसक्के के
कू टकरण का दुष्पर्ेरण करे गा, वह ऐसे दंिडत िकया जाएगा, मानो उसने ऐसे िसक्के के कू टकरण का दुष्पर्ेरण 3[भारत] म िकया हो ।
237. कू टकृ त िसक्के का आयात या िनयार्त—जो कोई िकसी कू टकृ त िसक्के का यह जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते
हुए िक वह कू टकृ त है, 3[भारत] म आयात करे गा या 3[भारत] से िनयार्त करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
238. भारतीय िसक्के की कू टकृ ितय का आयात या िनयार्त—जो कोई िकसी कू टकृ त िसक्के को, यह जानते हुए या िवश्वास करने
का कारण रखते हुए िक वह 2[भारतीय िसक्के ] की कू टकृ ित है, 3[भारत] म आयात करे गा या 3[भारत] से िनयार्त करे गा, वह 4 [आजीवन
कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से
भी दंडनीय होगा ।
239. िसक्के का पिरदान िजसका कू टकृ त होना कब्जे म आने के समय ज्ञात था—जो कोई अपने पास कोई ऐसा कू टकृ त िसक्का होते
हुए िजसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे म आया था, जानता था िक वह कू टकृ त है, कपटपूवर्क, या इस आशय से िक कपट िकया
जाए, उसे िकसी िक्त को पिरद करे गा या िकसी िक्त को उसे लेने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
240. उस भारतीय िसक्के का पिरदान िजसका कू टकृ त होना कब्जे म आने के समय ज्ञात था—जो कोई अपने पास कोई ऐसा
कू टकृ त िसक्का होते हुए, जो 1[भारतीय िसक्के ] की कू टकृ ित हो और िजसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे म आया था, जानता था िक
वह 1[भारतीय िसक्के ] की कू टकृ ित है, कपटपूवर्क, या इस आशय से िक कपट िकया जाए, उसे िकसी िक्त को पिरद करे गा या िकसी
िक्त को उसे लेने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की
हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
241. िकसी िसक्के का असली िसक्के के रूप म पिरदान, िजसका पिरदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे म पहली बार
आया था, कू टकृ त होना नह जानता था—जो कोई िकसी दूसरे िक्त को कोई ऐसा कू टकृ त िसक्का, िजसका कू टकृ त होना वह जानता
हो, िकन्तु िजसका वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे म िलया, कू टकृ त होना नह जानता था, असली िसक्के के रूप म पिरदान
करे गा, या िकसी दूसरे िक्त को उसे असली िसक्के के रूप म लेने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या इतने जुमार्ने से, जो कू टकृ त िसक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सके गा, या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क, एक िसक्काकार, अपने सह-अपराधी ख को कू टकृ त कम्पनी का रुपए चलाने के िलए पिरद करता है, ख उन रुपय को िसक्का
चलाने वाले एक दूसरे िक्त ग को बेच देता है, जो उन्ह कू टकृ त जानते हुए खरीदता है । ग उन रुपय को घ को, जो उनको कू टकृ त न
जानते हुए पर्ाप्त करता है, माल के बदले दे देता है । घ को रुपया पर्ाप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है िक वे रुपए कू टकृ त ह, और वह
उनको इस पर्कार चलाता है, मानो वे असली ह । यहां, घ के वल इस धारा के अधीन दंडनीय है, िकन्तु ख और ग, यथािस्थित, धारा 239
या 240 के अधीन दंडनीय ह ।
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन के िसक्के ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन का िसक्का” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
48
242. कू टकृ त िसक्के पर ऐसे िक्त का कब्जा जो उस समय उसका कू टकृ त होना जानता था जब वह उसके कब्जे म आया था—जो
कोई ऐसे कू टकृ त िसक्के को, िजसे वह उस समय, जब वह िसक्का उसके कब्जे म आया था, जानता था िक वह कू टकृ त है, कपटपूवर्क या
इस आशय से िक कपट िकया जाए, कब्जे म रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
243. भारतीय िसक्के पर ऐसे िक्त का कब्जा जो उसका कू टकृ त होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे म आया था—
जो कोई ऐसे कू टकृ त िसक्के को, जो 1 [भारतीय िसक्के ] की कू टकृ ित है और िजसे वह उस समय, जब वह िसक्का उसके कब्जे म आया था,
जानता था िक वह 1[भारतीय िसक्के ] की कू टकृ ित है, कपटपूवर्क, या इस आशय से िक कपट िकया जाए, कब्जे म रखेगा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
244. टकसाल म िनयोिजत िक्त ारा िसक्के का उस वजन या िमशर्ण से िभन्न कािरत िकया जाना जो िविध ारा िनयत है—
जो कोई 2[भारत] म िविधपूवर्क स्थािपत िकसी टकसाल म से िनयोिजत होते हुए इस आशय से कोई कायर् करे गा, या उस कायर् का लोप
करे गा, िजसे करने के िलए वह वैध रूप से आब हो िक उस टकसाल से पर्चािलत कोई िसक्का िविध ारा िनयत वजन या िमशर्ण से
िभन्न वजन या िमशर्ण का कािरत हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत
िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
245. टकसाल से िसक्का बनाने का उपकरण िविधिवरु रूप से लेना—जो कोई 2 [भारत] म िविधपूवर्क स्थािपत िकसी टकसाल
म से िसक्का बनाने के िकसी औजार या उपकरण को िविधपूणर् पर्ािधकार के िबना बाहर िनकाल लाएगा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
246. कपटपूवक र् या बेईमानी से िसक्के का वजन कम करना या िमशर्ण पिरवितत करना—जो कोई कपटपूवर्क या बेईमानी से
िकसी िसक्के पर कोई ऐसी िकर्या करे गा, िजससे उस िसक्के का वजन कम हो जाए या उसका िमशर्ण पिरवितत हो जाए वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—वह िक्त, जो िसक्के के िकसी भाग को खुरच कर िनकाल देता है, और उस गड़ढे म कोई अन्य वस्तु भर देता है, उस
िसक्के का िमशर्ण पिरवितत करता है ।
247. कपटपूवक र् या बेईमानी से भारतीय िसक्के का वजन कम करना या िमशर्ण पिरवितत करना—जो कोई कपटपूवर्क या
बेईमानी से 3 [िकसी भारतीय िसक्के ] पर कोई ऐसी िकर्या करे गा िजससे उस िसक्के का वजन कम हो जाए या उसका िमशर्ण पिरवितत
हो जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
248. इस आशय से िकसी िसक्के का रूप पिरवितत करना िक वह िभन्न पर्कार के िसक्के के रूप म चल जाए—जो कोई िकसी
िसक्के पर इस आशय से िक वह िसक्का िभन्न पर्कार के िसक्के के रूप म चल जाए, कोई ऐसी िकर्या करे गा, िजससे उस िसक्के का रूप
पिरवितत हो जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
249. इस आशय से भारतीय िसक्के का रूप पिरवितत करना िक वह िभन्न पर्कार के िसक्के के रूप म चल जाए—जो कोई 3[िकसी
भारतीय िसक्के ] पर इस आशय से िक वह िसक्का िभन्न पर्कार के िसक्के के रूप म चल जाए, कोई ऐसी िकर्या करे गा, िजससे उस िसक्के
का रूप पिरवितत हो जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा
और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
250. ऐसे िसक्के का पिरदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे म आया हो िक उसे पिरवितत िकया गया है—जो कोई िकसी ऐसे िसक्के
को कब्जे म रखते हुए, िजसके बारे म धारा 246 या 248 म पिरभािषत अपराध िकया गया हो, और िजसके बारे म उस समय, जब यह
िसक्का उसके कब्जे म आया था, वह यह जानता था िक ऐसा अपराध उसके बारे म िकया गया है, कपटपूवर्क या इस आशय से िक कपट
िकया जाए, िकसी अन्य िक्त को वह िसक्का पिरद करे गा, या िकसी अन्य िक्त को उसे लेने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
251. भारतीय िसक्के का पिरदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे म आया हो िक उसे पिरवितत िकया गया है—जो कोई िकसी ऐसे
िसक्के को कब्जे म रखते हुए, िजसके बारे म धारा 247 या 249 म पिरभािषत अपराध िकया गया हो, और िजसके बारे म उस समय, जब
वह िसक्का उसके कब्जे म आया था, वह यह जानता था िक ऐसा अपराध उसके बारे म िकया गया है, कपटपूवर्क, या इस आशय से िक
कपट िकया जाए, िकसी अन्य िक्त को वह िसक्का पिरद करे गा या िकसी अन्य िक्त को उसे लेने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन के िसक्के ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
“िबर्िटश भारत” शब्द अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम
सं० 3 को धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत िकए गए ह ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “क्वीन के िकसे भी िसक्के ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
49
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
252. ऐसे िक्त ारा िसक्के पर कब्जा जो उसका पिरवितत होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे म आया—जो कोई
कपटपूवर्क, या इस आशय से िक कपट िकया जाए, ऐसे िसक्के को कब्जे म रखेगा, िजसके बारे म धारा 246 या 248 म से िकसी म
पिरभािषत अपराध िकया गया हो और जो उस समय, जब वह िसक्का उसके कब्जे म आया था, यह जानता था िक उस िसक्के के बारे म
ऐसा अपराध िकया गया है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा
और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
253. ऐसे िक्त ारा भारतीय िसक्के पर कब्जा जो उसका पिरवितत होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे म
आया—जो कोई कपटपूवर्क, या इस आशय से िक कपट िकया जाए, ऐसे िसक्के को कब्जे म रखेगा, िजसके बारे म धारा 247 या 249 म से
िकसी म पिरभािषत अपराध िकया गया हो और जो उस समय, जब यह िसक्का उसके कब्जे म आया था, यह जानता था िक उस िसक्के के
बारे म ऐसा अपराध िकया गया है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
254. िसक्के का असली िसक्के के रूप म पिरदान िजसका पिरदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे म पहली बार आया
था, पिरवितत होना नह जानता था—जो कोई िकसी दूसरे िक्त को कोई िसक्का, िजसके बारे म वह जानता हो िक कोई ऐसी िकर्या,
जैसी धारा 246, 247, 248 या 249 म विणत है, की जा चुकी है, िकन्तु िजसके बारे म वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे म िलया
था, यह न जानता था िक उस पर ऐसी िकर्या कर दी गई है, असली के रूप म, या िजस पर्कार का वह है उससे िभन्न पर्कार के िसक्के के
रूप म, पिरद करे गा या असली के रूप म या िजस पर्कार का वह है उससे िभन्न पर्कार के िसक्के के रूप म, िकसी िक्त को उसे लेने के
िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या इतने
जुमार्ने से, जो उस िसक्के की कीमत के दस गुने तक का हो सके गा, िजसके बदले म पिरवितत िसक्का चलाया गया हो या चलाने का पर्यत्न
िकया गया हो, दंिडत िकया जाएगा ।
255. सरकारी स्टाम्प का कू टकरण—जो कोई सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत िकसी स्टाम्प का कू टकरण करे गा
या जानते हुए उसके कू टकरण की पर्िकर्या के िकसी भाग को करे गा, वह 1 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—वह िक्त इस अपराध को करता है, जो एक अिभधान के िकसी असली स्टाम्प को िभन्न अिभधान के असली स्टाम्प
के समान िदखाई देने वाला बना कर कू टकरण करता है ।
256. सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के िलए उपकरण या सामगर्ी कब्जे म रखना—जो कोई सरकार के ारा राजस्व के पर्योजन के
िलए पर्चािलत िकसी स्टाम्प के कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से, या यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण
रखते हुए िक वह ऐसे कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत है, कोई उपकरण या सामगर्ी अपने कब्जे म रखेगा, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
257. सरकारी स्टाम्प के कू टकरण के िलए उपकरण बनाना या बेचना—जो कोई सरकार के ारा राजस्व के पर्योजन के िलए
पर्चािलत िकसी स्टाम्प के कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के पर्योजन से, या यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते
हुए िक वह ऐसे कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत है, कोई उपकरण बनाएगा या बनाने की पर्िकर्या के िकसी भाग
को करे गा या ऐसे िकसी उपकरण को खरीदेगा, या बेचेगा या यिनत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
258. कू टकृ त सरकारी स्टाम्प का िवकर्य—जो कोई िकसी स्टाम्प को यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए
बेचेगा या बेचने की पर्स्थापना करे गा िक वह सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत िकसी स्टाम्प की कू टकृ ित है, वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
259. सरकारी कू टकृ त स्टाम्प को कब्जे म रखना—जो कोई असली स्टाम्प के रूप म उपयोग म लाने के या यन करने के आशय
से, या इसिलए िक वह असली स्टाम्प के रूप म उपयोग म लाया जा सके , िकसी ऐसे स्टाम्प को अपने कब्जे म रखेगा, िजसे वह जानता है
िक वह सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत स्टाम्प की कू टकृ ित है वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
260. िकसी सरकारी स्टाम्प को, कू टकृ त जानते हुए उसे असली स्टाम्प के रूप म उपयोग म लाना—जो कोई िकसी ऐसे स्टाम्प को,
िजसे वह जानता है िक वह सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए चािलत स्टाम्प की कू टकृ ित है, असली स्टाम्प के रूप म उपयोग म
लाएगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
50
261. इस आशय से िक सरकार को हािन कािरत हो, उस पदाथर् पर से, िजस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख िमटाना या
दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना जो उसके िलए उपयोग म लाया गया है—जो कोई कपटपूवर्क, या इस आशय से िक सरकार को हािन
कािरत की जाए, िकसी पदाथर् पर से, िजस पर सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत कोई स्टाम्प लगा हुआ हो, िकसी लेख
या दस्तावेज को, िजसके िलए ऐसा स्टाम्प उपयोग म लाया गया हो, हटाएगा या िमटाएगा या िकसी लेख या दस्तावेज पर से उस लेख
या दस्तावेज के िलए उपयोग म लाया गया स्टाम्प इसिलए हटाएगा िक ऐसा स्टाम्प िकसी िभन्न लेख या दस्तावेज के िलए उपयोग म
लाया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
262. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग िजसके बारे म ज्ञात है िक उसका पहले उपयोग हो चुका है—जो कोई कपटपूवर्क, या इस
आशय से िक सरकार को हािन कािरत की जाए, सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत िकसी स्टाम्प को, िजसके बारे म वह
जानता है िक वह स्टाम्प उससे पहले उपयोग म लाया जा चुका है, िकसी पर्योजन के िलए उपयोग म लाएगा, वह दोन म से िकसी भांित
के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
263. स्टाम्प के उपयोग िकए जा चुकने के ोतक िचह्न का छीलकर िमटाना—जो कोई कपटपूवर्क, या इस आशय से िक सरकार
को हािन कािरत की जाए, सरकार ारा राजस्व के पर्योजन के िलए पर्चािलत स्टाम्प पर से उस िचह्न को छीलकर िमटाएगा या
हटाएगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यह ोतन करने के पर्योजन से िक वह उपयोग म लाया जा चुका है, लगा हुआ या छािपत हो या ऐसे िकसी
स्टाम्प को, िजस पर से ऐसा िचह्न िमटाया या हटाया गया हो, जानते हुए अपने कब्जे म रखेगा या बेचेगा या यिनत करे गा, या ऐसे
िकसी स्टाम्प को, जो वह जानता है िक उपयोग म लाया जा चुका है, बेचेगा या यिनत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
1
[263क. बनावटी स्टाम्प का पर्ितषेघ—(1) जो कोई िकसी बनावटी स्टाम्प को—
(क) बनाएगा, जानते हुए चलाएगा, उसका ौहार करे गा या उसका िवकर्य करे गा या उसे डाक संबंधी िकसी पर्योजन के
िलए जानते हुए उपयोग म लाएगा, अथवा
(ख) िकसी िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना अपने कब्जे म रखेगा, अथवा
(ग) बनाने की िकसी डाइ, प ी, उपकरण या सामिगर्य को बनाएगा, या िकसी िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना अपने कब्जे
म रखेगा,
वह जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक हो सके गा, दंिडत िकया जाएगा ।
(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बनावटी स्टाम्प बनाने की डाई, प ी, उपकरण या सामिगर्यां, जो िकसी िक्त के कब्जे म हो,
2
[अिभगृहीत की जा सके गी और अिभगृहीत की जाएं] तो समपहृत कर ली जाएगी ।
(3) इस धारा म “बनावटी स्टाम्प” से ऐसा कोई स्टाम्प अिभपर्ेत है, िजससे यह िमथ्या रूप से तात्पियत हो िक सरकार ने डाक
महसूल की दर के ोतन के पर्योजन से उसे पर्चािलत िकया है या जो सरकार ारा उस पर्योजन से पर्चािलत िकसी स्टाम्प की, कागज पर
या अन्यथा, अनुिलिप, अनुकृित या समरूपण हो ।
(4) इस धारा म और धारा 255 से लेकर धारा 263 तक म भी, िजनम ये दोन धाराएं भी समािवष्ट ह, “सरकार” शब्द के अंतगर्त,
जब भी वह डाक महसूल की दर के ोतन के पर्योजन से पर्चािलत िकए गए िकसी स्टाम्प के ससंग या िनदशन म उपयोग िकया गया है,
धारा 17 म िकसी बात के होते हुए भी, वह या वे िक्त समझे जाएंगे जो भारत के िकसी भाग म और हर मजेस्टी की डोमीिनयन के
िकसी भाग म, या िकसी िवदेश म भी, कायर्पािलका सरकार का पर्शासन चलाने के िलए िविध ारा पर्ािधकृ त हो ।]
अध्याय 13
1
1895 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
2
1953 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 4 और अनुसूची 3 ारा “अिभगृहीत की जा सके गी और” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
51
266. खोटे बाट या माप को कब्जे म रखना—जो कोई तोलने के ऐसे िकसी उपकरण या बाट को, या लम्बाई या धािरता के िकसी
माप को, िजसका खोटा होना वह जानता है, 1 *** इस आशय से कब्जे म रखेगा िक उसे कपटपूवर्क उपयोग म लाया जाए, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
267. खोटे बाट या माप का बनाना या बेचना—जो कोई तोलने के ऐसे िकसी उपकरण या बाट को, या लम्बाई या धािरता के ऐसे
िकसी माप को, िजसका खोटा होना वह जानता है, इसिलए िक उसका खरे की तरह उपयोग िकया जाए या यह सम्भा जानते हुए िक
उसका खरे की तरह उपयोग िकया जाए, बनाएगा, बेचेगा या यिनत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
अध्याय 14
लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुिवधा, िशष्टता और सदाचार पर पर्भाव डालने वाले अपराध के िवषय म
268. लोक न्यूसन्े स—वह िक्त लोक न्यूसेन्स का दोषी है, जो कोई ऐसा कायर् करता है या िकसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है,
िजससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास म रहते ह या आसपास की सम्पि पर अिधभोग रखते ह , कोई सामान्य क्षित, संकट
या क्षोभ कािरत हो या िजससे उन िक्तय का िजन्ह िकसी लोक अिधकार को उपयोग म लाने का मौका पड़े, क्षित, बाधा, संकट या
क्षोभ कािरत होना अवश्यंभावी हो ।
कोई सामान्य न्यूसेन्स इस आधार पर माफी योग्य नह है िक उससे कु छ सुिवधा या भलाई कािरत होती है ।
269. उपेक्षापूणर् कायर् िजससे जीवन के िलए संकटपूणर् रोग का संकर्म फै लना संभा हो—जो कोई िविधिवरु रूप से या उपेक्षा से
ऐसा कोई कायर् करे गा, िजससे िक और िजससे वह जानता या िवश्वास करने का कारण रखता हो िक, जीवन के िलए संकटपूणर् िकसी रोग
का संकर्म फै लना संभा है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
270. पिर ष
े पूणर् कायर्, िजससे जीवन के िलए संकटपूणर् रोग का संकर्म फै लना संभा हो—जो कोई पिर ष े से ऐसा कोई कायर्
करे गा िजससे िक, और िजससे वह जानता या िवश्वास करने का कारण रखता हो िक, जीवन के िलए संकटपूणर् िकसी रोग का संकर्म
फै लना संभा है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
271. करन्तीन के िनयम की अवज्ञा—जो कोई िकसी जलयान को करन्तीन की िस्थित म रखे जाने के , या करन्तीन की िस्थित वाले
जलयान का िकनारे से या अन्य जलयान से समागम िविनयिमत करने के , या ऐसे स्थान के , जहां कोई संकर्ामक रोग फै ल रहा हो और
अन्य स्थान के बीच समागम िविनयिमत करने के िलए 2 [*** 3 *** 4 *** सरकार ारा] बनाए गए और पर्ख्यािपत िकसी िनयम को
जानते हुए अवज्ञा करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन
से, दंिडत िकया जाएगा ।
272. िवकर्य के िलए आशियत खा या पेय का अपिमशर्ण—जो कोई िकसी खाने या पीने की वस्तु को इस आशय से िक वह ऐसी
वस्तु के खा या पेय के रूप म बेचे या यह संभा जानते हुए िक वह खा या पेय के रूप म बेची जाएगी, ऐसे अपिमिशर्त करे गा िक
ऐसी वस्तु खा या पेय के रूप म अपायकर बन जाए वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
273. अपायकर खा या पेय का िवकर्य—जो कोई िकसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई हो, या हो गई हो, या खाने पीने
के िलए अनुपयुक्त दशा म हो, यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक वह खा या पेय के रूप म अपायकर है,
खा या पेय के रूप म बेचेगा, या बेचने की पर्स्थापना करे गा या बेचने के िलए अिभदिशत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।
274. ओषिधय का अपिमशर्ण—जो कोई िकसी ओषिध या भेषजीय िनिमित म अपिमशर्ण इस आशय से िक या यह सम्भा
जानते हुए िक वह िकसी ओषधीय पर्योजन के िलए ऐसे बेची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मानो उसम ऐसा अपिमशर्ण न हुआ हो,
ऐसे पर्कार से करे गा िक उस ओषिध या भेषजीय िनिमित की पर्भावकािरता कम हो जाए, िकर्या बदल जाए या वह अपायकर हो जाए, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा,
या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
275. अपिमिशर्त ओषिधय का िवकर्य—जो कोई यह जानते हुए िक िकसी ओषिध या भेषजीय िनिमित म इस पर्कार से अपिमशर्ण
िकया गया है िक उसकी पर्भावकािरता कम हो गई या उसकी िकर्या बदल गई है, या वह अपायकर बन गई है, उसे बेचेगा या बेचने की
1
1953 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 4 और अनुसूची 3 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत सरकार ारा या िकसी सरकार ारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “के न्दर्ीय या िकसी पर्ादेिशक” शब्द का लोप िकया गया ।
4
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या कर्ाउन पर्ितिनिध” शब्द का लोप िकया गया ।
52
पर्स्थापना करे गा या बेचने के िलए अिभदिशत करे गा, या िकसी ओषधालय से ओषधीय पर्योजन के िलए उसे अनपिमिशर्त के तौर पर
देगा या उसका अपिमिशर्त होना न जानने वाले िक्त ारा ओषधीय पर्योजन के िलए उसका उपयोग कािरत करे गा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन
से, दिण्डत िकया जाएगा ।
276. ओषिध का िभन्न औषिध या िनिमित के तौर पर िवकर्य—जो कोई िकसी ओषिध या भेषजीय िनिमित को, िभन्न ओषिध या
भेषजीय िनिमित के तौर पर जानते हुए बेचेगा या बेचने की पर्स्थापना करे गा या बेचने के िलए अिभदिशत करे गा या ओषधीय पर्योजन
के िलए औषधालय से देगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक
हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
277. लोक जल-सर्ोत या जलाशय का जल कलुिषत करना—जो कोई िकसी लोक जल-सर्ोत या जलाशय के जल को स्वेच्छया इस
पर्कार भर्ष्ट या कलुिषत करे गा िक वह उस पर्योजन के िलए, िजसके िलए वह मामूली तौर पर उपयोग म आता हो, कम उपयोगी हो जाए,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
278. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के िलए अपायकर बनाना—जो कोई िकसी स्थान के वायुमण्डल को स्वेच्छया इस पर्कार दूिषत
करे गा िक वह जनसाधारण के स्वास्थ्य के िलए, जो पड़ोस म िनवास या कारबार करते ह , या लोक मागर् से आते जाते ह अपायकर बन
जाए, वह जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया जाएगा ।
279. लोक मागर् पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना—जो कोई िकसी लोक मागर् पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई
वाहन चलाएगा या सवार होकर हांकेगा िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या िकसी अन्य िक्त को उपहित या क्षित कािरत
होना सम्भा हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार
रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
280. जलयान का उतावलेपन से चलाना—जो कोई िकसी जलयान को ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से चलाएगा, िजससे मानव
जीवन संकटापन्न हो जाए या िकसी अन्य िक्त को उपहित या क्षित कािरत होना सम्भा हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
281. भर्ामक पर्काश, िचह्न या बोये का पर्दशर्न—जो कोई िकसी भर्ामक पर्काश, िचह्न या बोये का पर्दशर्न इस आशय से, या यह
सम्भा जानते हुए करे गा, िक ऐसा पर्दशर्न िकसी नौपिरवाहक को मागर् भर्ष्ट कर देगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
282. अक्षमकर या अित लदे हुए जलयान म भाड़े के िलए जलमागर् से िकसी िक्त का पर्वहण—जो कोई िकसी िक्त को िकसी
जलयान म जलमागर् से, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क भाड़े पर तब पर्वहण करे गा, या कराएगा जब वह जलयान ऐसी दशा म हो या इतना
लदा हुआ हो िजससे उस िक्त का जीवन संकटापन्न हो सकता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास
तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
283. लोक मागर् या नौपिरवहन पथ म संकट या बाधा—जो कोई िकसी कायर् को करके या अपने कब्जे म की, या अपने भारसाधन
के अधीन िकसी सम्पि की वस्था करने का लोप करने ारा, िकसी लोकमागर् या नौपिरवहन के लोक पथ म िकसी िक्त को संकट,
बाधा या क्षित कािरत करे गा वह जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया जाएगा ।
284. िवषैले पदाथर् के संबध
ं म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई िकसी िवषैले पदाथर् से कोई कायर् ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करे गा,
िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या िजससे िकसी िक्त को, उपहित या क्षित कािरत होना सम्भा हो ।
या अपने कब्जे म के िकसी िवषैले पदाथर् की ऐसी वस्था करने का, जो ऐसे िवषैले पदाथर् से मानव जीवन को िकसी
अिधसम्भा संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का
हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
285. अिग्न या ज्वलनशील पदाथर् के सम्बन्ध म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई अिग्न या िकसी ज्वलनशील पदाथर् से कोई कायर् ऐसे
उतावलेपन या उपेक्षा से करे गा िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या िजससे िकसी अन्य िक्त को उपहित या क्षित कािरत होना
सम्भा हो,
अथवा अपने कब्जे म की अिग्न या िकसी ज्वलनशील पदाथर् की ऐसी वस्था करने का, जो ऐसी अिग्न या ज्वलनशील पदाथर् से
मानव जीवन को िकसी अिधसम्भा संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का
हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
53
286. िवस्फोटक पदाथर् के बारे म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई िकसी िवस्फोटक पदाथर् से, कोई कायर् ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से
करे गा, िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या िजससे िकसी अन्य िक्त को उपहित या क्षित कािरत होना सम्भा हो,
अथवा अपने कब्जे म की िकसी िवस्फोटक पदाथर् की ऐसी वस्था करने का, जैसी ऐसे पदाथर् से मानव जीवन को अिधसम्भा
संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
287. मशीनरी के सम्बन्ध म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई िकसी मशीनरी से, कोई कायर् ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करे गा,
िजससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या िजससे िकसी अन्य िक्त को उपहित या क्षित कािरत होना सम्भा हो,
अथवा अपने कब्जे म की या अपनी देखरे ख के अधीन की िकसी मशीनरी की ऐसी वस्था करने का जो, ऐसी मशीनरी से मानव
जीवन को िकसी अिभसम्भा संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो
सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
288. िकसी िनमार्ण को िगराने या उसकी मरम्मत करने के संबध ं म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई िकसी िनमार्ण को िगराने या
उसकी मरम्मत करने म उस िनमार्ण की ऐसी वस्था करने का, जो उस िनमार्ण के या उसके िकसी भाग के िगरने से मानव जीवन को
िकसी अिभसम्भा संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
289. जीवजन्तु के संबध
ं म उपेक्षापूणर् आचरण—जो कोई अपने कब्जे म के िकसी जीवजन्तु के संबंध म ऐसी वस्था करने का, जो
ऐसे जीवजन्तु से मानव जीवन को िकसी अिभसम्भा संकट या घोर उपहित के िकसी अिभसंभा संकट से बचाने के िलए पयार्प्त हो,
जानते हुए या उपेक्षापूवर्क लोप करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या
जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
290. अन्यथा अनुपबिन्धत मामल म लोक न्यूसन्े स के िलए दण्ड—जो कोई िकसी ऐसे मामले म लोक न्यूसेन्स करे गा जो इस
संिहता ारा अन्यथा दण्डनीय नह है, वह जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया जाएगा ।
291. न्यूसन्े स बन्द करने के ादेश के पश्चात् उसका चालू रखना—जो कोई िकसी लोक सेवक ारा, िजसको िकसी न्यूसेन्स की
पुनरावृि न करने या उसे चालू न रखने के िलए ादेश पर्चािलत करने का पर्ािधकार हो, ऐसे ािदष्ट िकए जाने पर, िकसी लोक
न्यूसेन्स की पुनरावृि करे गा, या उसे चालू रखेगा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
1
[292. अश्लील पुस्तक आिद का िवकर्य आिद— 2 [(1) उपधारा (2) के पर्योजनाथर् िकसी पुस्तक, पुिस्तका, कागज, लेख,
रे खािचतर्, रं गिचतर्, रूपण, आकृ ित या अन्य वस्तु को अश्लील समझा जाएगा यिद वह कामो ीपक है या कामुक िक्तय के िलए रुिचकर
है या उसका या (जहां उसम दो या अिधक सुिभन्न मद समािवष्ट ह वहां) उसकी िकसी मद का पर्भाव, समगर् रूप से िवचार करने पर,
ऐसा है जो उन िक्तय को दुराचारी तथा भर्ष्ट बनाए िजसके ारा उसम अन्तिवष्ट या सिन्निवष्ट िवषय का पढ़ा जाना, देखा जाना या
सुना जाना सभी सुसंगत पिरिस्थितय को ध्यान म रखते हए सम्भा है ।]
3
[(2)] जो कोई—
(क) िकसी अश्लील पुस्तक, पुिस्तका, कागज, रे खािचतर्, रं गिचतर्, रूपण या आकृ ित या िकसी भी अन्य अश्लील वस्तु को,
चाहे वह कु छ भी हो, बेचेगा, भाड़े पर देगा, िवतिरत करे गा, लोक पर्दिशत करे गा, या उसको िकसी भी पर्कार पिरचािलत करे गा,
या उसे िवकर्य, भाड़े, िवतरण, लोक पर्दशर्न या पिरचालन के पर्योजन के िलए रचेगा, उत्पािदत करे गा, या अपने कब्जे म
रखेगा, अथवा
(ख) िकसी अश्लील वस्तु का आयात या िनयार्त या पर्वहण पूव क्त पर्योजन म से िकसी पर्योजन के िलए करे गा या यह
जानते हुए, या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए करे गा िक ऐसी वस्तु बेची, भाड़े पर दी, िवतिरत या लोक पर्दिशत या,
िकसी पर्कार से पिरचािलत की जाएगी, अथवा
(ग) िकसी ऐसे कारबार म भाग लेगा या उससे लाभ पर्ाप्त करे गा, िजस कारबार म वह यह जानता है या यह िवश्वास करने
का कारण रखता है िक कोई ऐसी अश्लील वस्तु पूव क्त पर्योजन म से िकसी पर्योजन के िलए रची जात , उत्पािदत की जात , कर्य
की जात , रखी जात , आयात की जात , िनयार्त की जात , पर्वहण की जात , लोक पर्दिशत की जात या िकसी भी पर्कार से
पिरचािलत की जाती ह, अथवा
1
1925 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1969 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
3
1969 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 2 ारा धारा 292 को उस धारा की उपधारा (2) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
54
(घ) यह िवज्ञािपत करे गा या िकन्ह साधन ारा वे चाहे कु छ भी ह यह ज्ञात कराएगा िक कोई िक्त िकसी ऐसे कायर् म,
जो इस धारा के अधीन अपराध है, लगा हुआ है, या लगने के िलए तैयार है, या यह िक कोई ऐसी अश्लील वस्तु िकसी िक्त से या
िकसी िक्त के ारा पर्ाप्त की जा सकती है, अथवा
(ङ) िकसी ऐसे कायर् को, जो इस धारा के अधीन अपराध है, करने की पर्स्थापना करे गा या करने का पर्यत्न करे गा,
1
[पर्थम दोषिसि पर दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से, जो दो
हजार रुपए तक का हो सके गा, तथा ि तीय या पश्चात्वत दोषिसि की दशा म दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
पांच वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सके गा] दिण्डत िकया जाएगा ।
2
[अपवाद—इस धारा का िवस्तार िनम्निलिखत पर न होगाः—
(क) कोई ऐसी पुस्तक, पुिस्तका, कागज, लेख, रे खािचतर्, रं गिचतर्, रूपण या आकृ ित—
(i) िजसका पर्काशन लोकिहत म होने के कारण इस आधार पर न्यायोिचत सािबत हो गया है िक ऐसी पुस्तक,
पुिस्तका, कागज, लेख, रे खािचतर्, रं गिचतर्, रूपण या आकृ ित िवज्ञान, सािहत्य, कला या िव ा या सवर्जन सम्बन्धी अन्य
उ ेश्य के िहत म है, अथवा
(ii) जो सद्भावपूवर्क धािमक पर्योजन के िलए रखी या उपयोग म लाई जाती है;
(ख) कोई ऐसा रूपण जो—
(i) पर्ाचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अिधिनयम, 1958 (1958 का 24) के अथर् म पर्ाचीन
संस्मारक पर या उसम, अथवा
(ii) िकसी मंिदर पर या उसम या मूितय के पर्वहण के उपयोग म लाए जाने वाले या िकसी धािमक पर्योजन के िलए
रखे या उपयोग म लाए जाने वाले िकसी रथ पर,
तिक्षत, उत्कीणर्, रं गिचितर्त या अन्यथा रूिपत ह ।]]
3
[293. तरुण िक्त को अश्लील वस्तु का िवकर्य, आिद—जो कोई बीस वषर् से कम आयु के िकसी िक्त को कोई ऐसी अश्लील
वस्तु, जो अंितम पूवर्गामी धारा म िनिदष्ट है, बेचग
े ा, भाड़े पर देगा, िवतरण करे गा, पर्दिशत करे गा या पिरचािलत करे गा या ऐसा करने
की पर्स्थापना या पर्यत्न करे गा 1[पर्थम दोषिसि पर दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी,
और जुमार्ने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सके गा, तथा ि तीय या पश्चात्वत दोषिसि की दशा म दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया
जाएगा ।]]
4
[294. अश्लील कायर् और गाने—जो कोई—
(क) िकसी लोक स्थान म कोई अश्लील कायर् करे गा, अथवा
(ख) िकसी लोक स्थान म या उसके समीप कोई अश्लील गाने, पवांड़े या शब्द गाएगा, सुनाएगा या उच्चािरत करे गा,
िजससे दूसर को क्षोभ होता हो,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।]
[294क. लाटरी कायार्लय रखना—जो कोई ऐसी कोई लाटरी, 6 [जो न तो 7 [राज्य लाटरी] हो और न तत्संबंिधत 8 [राज्य]
5
सरकार ारा पर्ािधकृ त लाटरी हो,] िनकालने के पर्योजन के िलए कोई कायार्लय या स्थान रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ;
1
1969 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1969 के अिधिनयम सं० 36 की धारा 2 ारा अपवाद के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1925 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1895 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 10 ारा अंतःस्थािपत ।
6
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार ारा अपर्ािधकृ त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “के न्दीय सरकार या भाग क राज्य या भाग ख राज्य की सरकार ारा चालू की गई लाटरी” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत ।
8
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ादेिशक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
55
तथा जो कोई ऐसी लाटरी म िकसी िटकट, लाट, संख्यांक या आकृ ित को िनकालने से संबंिधत या लागू होने वाली िकसी घटना
या पिरिस्थित पर िकसी व्यिक्त के फायदे के िलए िकसी रािश को देने की, या िकसी माल के पिरदान को, या िकसी बात को करने की,
या िकसी बात से पर्िवरत रहने की कोई पर्स्थापना पर्कािशत करे गा, वह जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया
जाएगा ।]
अध्याय 15
296. धािमक जमाव म िवघ्न करना—जो कोई धािमक उपासना या धािमक संस्कार म वैध रूप से लगे हुए िकसी जमाव म
स्वेच्छया िवघ्न कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
297. किबर्स्तान आिद म अितचार करना—जो कोई िकसी उपासना स्थान म, या िकसी किबर्स्तान पर या अन्त्येिष्ट िकर्या के
िलए या मृतक के अवशेष के िलए िनक्षेप स्थान के रूप म पृथक् रखे गए िकसी स्थान म अितचार या िकसी मानव शव की अवहेलना
या अन्त्येिष्ट संस्कार के िलए एकितर्त िकन्ह व्यिक्तय को िवघ्न कािरत,
इस आशय से करे गा िक िकसी व्यिक्त की भावना को ठे स पहुंचाए या िकसी व्यिक्त के धमर् का अपमान करे , या यह सम्भाव्य
जानते हुए करे गा िक तद् ारा िकसी व्यिक्त की भावना को ठे स पहुंचेगी, या िकसी व्यिक्त के धमर् का अपमान होगा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।
298. धािमक भावना को ठे स पहुंचाने के िवमिशत आशय से, शब्द उच्चािरत करना आिद—जो कोई िकसी व्यिक्त की धािमक
भावना को ठे स पहुंचाने के िवमिशत आशय से उसकी शर्वणगोचरता म कोई शब्द उच्चािरत करे गा या कोई ध्विन करे गा या उसकी
दृिष्टगोचरता म कोई अंगिवक्षेप करे गा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
अध्याय 16
1
1927 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मजेस्टी की पर्जा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1961 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1961 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 3 ारा “दो वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
56
(ख) क यह जानता है िक य एक झाड़ी के पीछे है । ख यह नह जानता । य की मृत्यु करने के आशय से या यह जानते हुए िक
उससे य की मृत्यु कािरत होना सम्भाव्य है, ख को उस झाड़ी पर गोली चलाने के िलए क उत्पर्ेिरत करता है । ख गोली चलाता है और य
को मार डालता है । यहां, यह हो सकता है िक ख िकसी भी अपराध का दोषी न हो, िकन्तु क ने आपरािधक मानव वध का अपराध
िकया है ।
(ग) क एक मुग को मार डालने और उसे चुरा लेने के आशय से उस पर गोली चलाकर ख को, जो एक झाड़ी के पीछे है, मार
डालता है, िकन्तु क यह नह जानता था िक ख वहां है । यहां, य िप क िविधिवरु कायर् कर रहा था, तथािप, वह आपरािधक मानव
वध का दोषी नह है क्य िक उसका आशय ख को मार डालने का, या कोई ऐसा कायर् करके , िजससे मृत्यु कािरत करना वह सम्भाव्य
जानता हो, मृत्यु कािरत करने का नह था ।
स्पष्टीकरण 1—वह व्यिक्त, जो िकसी दूसरे व्यिक्त को, जो िकसी िवकार रोग या अंगशैिथल्य से गर्स्त है, शारीिरक क्षित कािरत
करता है और तद् ारा उस दूसरे व्यिक्त की मृत्यु त्विरत कर देता है, उसकी मृत्यु कािरत करता है, यह समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण 2—जहां िक शारीिरक क्षित से मृत्यु कािरत की गई हो, वहां िजस व्यिक्त ने, ऐसी शारीिरक क्षित कािरत की हो,
उसने वह मृत्यु कािरत की है, यह समझा जाएगा, य िप उिचत उपचार और कौशलपूणर् िचिकत्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा
सकती थी ।
स्पष्टीकरण 3—मां के गभर् म िस्थत िकसी िशशु की मृत्यु कािरत करना मानव वध नह है । िकन्तु िकसी जीिवत िशशु की मृत्यु
कािरत करना आपरािधक मानव वध की कोिट म आ सके गा, यिद उस िशशु का कोई भाग बाहर िनकल आया हो, य िप उस िशशु ने
श्वास न ली हो या वह पूणर्त: उत्पन्न न हुआ हो ।
300. हत्या—एतिस्मन् पश्चात् अपवािदत दशा को छोड़कर आपरािधक मानव वध हत्या है, यिद वह कायर्, िजसके ारा मृत्यु
कािरत की गई हो, मृत्यु कािरत करने के आशय से िकया गया हो, अथवा
दूसरा—यिद वह ऐसी शारीिरक क्षित कािरत करने के आशय से िकया गया हो िजससे अपराधी जानता हो िक उस व्यिक्त को
मृत्यु कािरत करना सम्भाव्य है िजसको वह अपहािन कािरत की गई है, अथवा
तीसरा—यिद वह िकसी व्यिक्त को शारीिरक क्षित कािरत करने के आशय से िकया गया हो और वह शारीिरक क्षित, िजसके
कािरत करने का आशय हो, पर्कृ ित के मामूली अनुकर्म म मृत्यु कािरत करने के िलए पयार्प्त हो, अथवा
चौथा—यिद कायर् करने वाला व्यिक्त यह जानता हो िक वह कायर् इतना आसन्न संकट है िक पूरी अिधसंभाव्यता है िक वह मृत्यु
कािरत कर ही देगा या ऐसी शारीिरक क्षित कािरत कर ही देगा िजससे मृत्यु कािरत होना संभाव्य है और वह मृत्यु कािरत करने या
पूव क्त रूप की क्षित कािरत करने की जोिखम उठाने के िलए िकसी पर्ितहेतु के िबना ऐसा कायर् करे ।
दृष्टांत
(क) य को मार डालने के आशय से क उस पर गाली चलाता है पिरणामस्वरूप य मर जाता है । क हत्या करता है ।
(ख) क यह जानते हुए िक य ऐसे रोग से गर्स्त है िक सम्भाव्य है िक एक पर्हार उसकी मृत्यु कािरत कर दे, शारीिरक क्षित कािरत
करने के आशय से उस पर आघात करता है । य उस पर्हार के पिरणामस्वरूप मर जाता है । क हत्या का दोषी है, य िप वह पर्हार िकसी
अच्छे स्वस्थ व्यिक्त की मृत्यु करने के िलए पर्कृ ित के मामूली अनुकर्म म पयार्प्त न होता । िकन्तु यिद क, यह न जानते हुए िक य िकसी
रोग से गर्स्त है, उस पर ऐसा पर्हार करता है, िजससे कोई अच्छा स्वस्थ व्यिक्त पर्कृ ित के मामूली अनुकर्म म न मरता, तो यहां, क,
य िप शारीिरक क्षित कािरत करने का उसका आशय हो, हत्या का दोषी नह है, यिद उसका आशय मृत्यु कािरत करने का या ऐसी
शारीिरक क्षित कािरत करने का नह था, िजससे पर्कृ ित के मामूली अनुकर्म म मृत्यु कािरत हो जाए ।
(ग) य को तलवार या लाठी से ऐसा घाव क साशय करता है, जो पर्कृ ित के मामूली अनुकर्म म िकसी मनुष्य की मृत्यु कािरत करने
के िलए पयार्प्त है, पिरणामस्वरूप य की मृत्यु कािरत हो जाती है, यहां क हत्या का दोषी है, य िप उसका आशय य की मृत्यु कािरत
करने का न रहा हो ।
(घ) क िकसी पर्ितहेतु के िबना व्यिक्तय के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनम से एक का वध कर देता है । क हत्या
का दोषी है, य िप िकसी िविशष्ट व्यिक्त की मृत्यु कािरत करने की उसकी पूवर्िचिन्तत पिरकल्पना न रही हो ।
अपवाद 1—आपरािधक मानव वध कब हत्या नह है—आपरािधक मानव वध हत्या नह है, यिद अपराधी उस समय जबिक वह
गम्भीर और अचानक पर्कोपन से आत्म संयम की शिक्त से वंिचत हो, उस व्यिक्त की, िजसने िक वह पर्कोपन िदया था, मृत्यु कािरत करे
या िकसी अन्य व्यिक्त की मृत्यु भूल या दुघर्टनावश कािरत करे ।
ऊपर का अपवाद िनम्निलिखत परंतुक के अध्यधीन है—
पहला—यह िक वह पर्कोपन िकसी व्यिक्त का वध करने या अपहािन करने के िलए अपराधी ारा पर्ितहेतु के रूप म ईिप्सत न
हो या स्वेच्छया पर्कोिपत न हो ।
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दूसरा—यह िक वह पर्कोपन िकसी ऐसी बात ारा न िदया गया हो जो िक िविध के पालन म या लोक सेवक ारा ऐसे लोक
सेवक की शिक्तय के िविधपूणर् पर्योग म, की गई हो ।
तीसरा—यह िक वह पर्कोपन िकसी ऐसी बात ारा न िदया गया हो, जो पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार और िविधपूणर् पर्योग म
की गई हो ।
स्पष्टीकरण—पर्कोपन इतना गम्भीर और अचानक था या नह िक अपराध को हत्या की कोिट म जाने से बचा दे, यह तथ्य का
पर्श्न है ।
दृष्टांत
(क) य ारा िदए गए पर्कोपन के कारण पर्दीप्त आदेश के असर म म का, जो य का िशशु है, क साशय वध करता है । यह हत्या है,
क्य िक पर्कोपन उस िशशु ारा नह िदया गया था और उस िशशु की मृत्यु उस पर्कोपन से िकए गए कायर् को करने म दुघर्टना या
दुभार्ग्य से नह हुई है ।
(ख) क को म गम्भीर और अचानक पर्कोपन देता है । क इस पर्कोपन से म पर िपस्तौल चलाता है, िजसम न तो उसका आशय य
का, जो समीप ही है िकन्तु दृिष्ट से बाहर है, वध करने का है, और न वह यह जानता है िक सम्भाव्य है िक वह य का वध कर दे । क, य
का वध करता है । यहां क ने हत्या नह की है, िकन्तु के वल आपरािधक मानव वध िकया है ।
(ग) य ारा, जो एक बेिलफ है, क िविधपूवर्क िगरफ्तार िकया जाता है । उस िगरफ्तारी के कारण क को अचानक और तीवर्
आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है । यह हत्या है, क्य िक पर्कोपन ऐसी बात ारा िदया गया था, जो एक लोक सेवक
ारा उसकी शिक्त के पर्योग म की गई थी ।
(घ) य के समक्ष, जो एक मिजस्टर्ेट है, साक्षी के रूप म क उपसंजात होता है । य यह कहता है िक वह क के अिभसा य के एक
शब्द पर भी िवश्वास नह करता और यह िक क ने शपथ-भंग िकया है । क को इन शब्द से अचानक आवेश आ जाता है और वह य का
वध कर देता है । यह हत्या है ।
(ङ) य की नाक ख चने का पर्यत्न क करता है । य पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के पर्योग म ऐसा करने से रोकने के िलए क को
पकड़ लेता है । पिरणामस्वरूप क को अचानक और तीवर् आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है । यह हत्या है, क्य िक
पर्कोपन ऐसी बात ारा िदया गया था जो पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के पर्योग म की गई थी ।
(च) ख पर य आघात करता है । ख को इस पर्कोपन से तीवर् कर्ोध आ जाता है । क, जो िनकट ही खड़ा हुआ है, ख के कर्ोध का लाभ
उठाने और उससे य का वध कराने के आशय से उसके हाथ म एक छु री उस पर्योजन के िलए दे देता है । ख उस छु री से य का वध कर
देता है, यहां ख ने चाहे के वल आपरािधक मानव वध ही िकया हो, िकन्तु क हत्या का दोषी है ।
अपवाद 2—आपरािधक मानव वध हत्या नह है, यिद अपराधी, शरीर या सम्पि की पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार को
सद्भावपूवर्क पर्योग म लाते हुए िविध ारा उसे दी गई शिक्त का अितकर्मण कर दे, और पूवर्िचन्तन िबना और ऐसी पर्ितरक्षा के
पर्योजन से िजतनी अपहािन करना आवश्यक हो उससे अिधक अपहािन करने के िकसी आशय के िबना उस व्यिक्त की मृत्यु कािरत कर
दे िजसके िवरु वह पर्ितरक्षा का ऐसा अिधकार पर्योग म ला रहा हो ।
दृष्टांत
क को चाबुक मारने का पर्यत्न य करता है, िकन्तु इस पर्कार नह िक क को घोर उपहित कािरत हो । क एक िपस्तौल िनकाल
लेता है । य हमले को चालू रखता है । क सद्भावपूवर्क यह िवश्वास करते हुए िक वह अपने को चाबुक लगाए जाने से िकसी अन्य साधन
ारा नह बचा सकता है गोली से य का वध कर देता है । क ने हत्या नह की है, िकन्तु के वल आपरािधक मानव वध िकया है ।
अपवाद 3—आपरािधक मानव वध हत्या नह है, यिद अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए, या ऐसे लोक सेवक को मद्द देते हुए,
जो लोक न्याय की अगर्सरता म कायर् कर रहा है, उसे िविध ारा दी गई शिक्त से आगे बढ़ जाए, और कोई ऐसा कायर् करके िजसे वह
िविधपूणर् और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कतर्व्य के सम्यक् , िनवर्हन के िलए आवश्यक होने का सद्भावपूवर्क िवश्वास करता है, और
उस व्यिक्त के पर्ित, िजसकी िक मृत्यु कािरत की गई हो, वैमनस्य के िबना मृत्यु कािरत करे ।
अपवाद 4—आपरािधक मानव वध हत्या नह है, यिद वह मानव वध अचानक झगड़ा जिनत आवेश की तीवर्ता म हुई अचानक
लड़ाई म पूवर्िचन्तन िबना और अपराधी ारा अनुिचत लाभ उठाए िबना या कर्ूरतापूणर् या अपर्ाियक रीित से कायर् िकए िबना िकया
गया हो ।
स्पष्टीकरण—ऐसी दशा म यह तत्वहीन है िक कौन पक्ष पर्कोपन देता है या पहला हमला करता है ।
अपवाद 5—आपरािधक मानव वध हत्या नह है, यिद वह व्यिक्त िजसकी मृत्यु कािरत की जाए, अठारह वषर् से अिधक आयु का
होते हुए, अपनी सम्मित से मृत्यु होना सहन करे , या मृत्यु की जोिखम उठाए ।
58
दृष्टांत
य को, जो अठारह वषर् से कम आयु का है, उकसा कर क उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है । यहां, कम उमर् होने के कारण य
अपनी मृत्यु के िलए सम्मित देने म असमथर् था, इसिलए, क ने हत्या का दुष्पर्ेरण िकया है ।
301. िजस व्यिक्त की मृत्यु कािरत करने का आशय था उससे िभन्न व्यिक्त की मृत्यु करके आपरािधक मानव वध—यिद कोई
व्यिक्त कोई ऐसी बात करने ारा, िजससे उसका आशय मृत्यु कािरत करना हो, या िजससे वह जानता हो िक मृत्यु कािरत होना
सम्भाव्य है, िकसी व्यिक्त की मृत्यु कािरत करके , िजसकी मृत्यु कािरत करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता
हो िक वह उसकी मृत्यु कािरत करे गा, आपरािधक मानव वध करे , तो अपराधी ारा िकया गया आपरािधक मानव वध उस भांित का
होगा िजस भांित का वह होता, यिद वह उस व्यिक्त की मृत्यु कािरत करता िजसकी मृत्यु कािरत करना उसके ारा आशियत था या वह
जानता था िक उस ारा उसकी मृत्यु कािरत होना सम्भाव्य है ।
302. हत्या के िलए दण्ड—जो कोई हत्या करे गा, वह मृत्यु या 1 [आजीवन कारावास] से दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दण्डनीय होगा ।
303. आजीवन िस दोष ारा हत्या के िलए दण्ड—जो कोई 1[आजीवन कारावास] के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करे गा,
वह मृत्यु से दिण्डत िकया जाएगा ।
304. हत्या की कोिट म न आने वाले आपरािधक मानव वध के िलए दण्ड—जो कोई ऐसा आपरािधक मानव वध करे गा, जो हत्या
की कोिट म नह आता है, यिद वह कायर् िजसके ारा मृत्यु कािरत की गई है, मृत्यु या ऐसी शारीिरक क्षित, िजससे मृत्यु होना संभाव्य
है, कािरत करने के आशय से िकया जाए, तो वह 1[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
अथवा यिद वह कायर् इस ज्ञान के साथ िक उससे मृत्यु कािरत करना सम्भाव्य है, िकन्तु मृत्यु या ऐसी शारीिरक क्षित, िजससे
मृत्यु कािरत करना सम्भाव्य है, कािरत करने के िकसी आशय के िबना िकया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
[304क. उपेक्षा ारा मृत्यु कािरत करना—जो कोई उतावलेपन से या उपेक्षापूणर् िकसी ऐसे कायर् से िकसी व्यिक्त की मृत्यु
2
कािरत करे गा, जो आपरािधक मानव वध की कोिट म नह आता, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर्
तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।]
[304ख. दहेज मृत्यु— (1) जहां िकसी स्तर्ी की मृत्यु िकसी दाह या शारीिरक क्षित ारा कािरत की जाती है या उसके िववाह के
3
सात वषर् के भीतर सामान्य पिरिस्थितय से अन्यथा हो जाती है और यह दिशत िकया जाता है िक उसकी मृत्यु के कु छ पूवर् उसके पित ने
या उसके पित के िकसी नातेदार ने, दहेज की िकसी मांग के िलए, या उसके संबध ं म, उसके साथ कर्ूरता की थी या उसे तंग िकया था
वहां ऐसी मृत्यु को “दहेज मृत्यु” कहा जाएगा और ऐसा पित या नातेदार उसकी मृत्यु कािरत करने वाला समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए “दहेज” का वही अथर् है जो दहेज पर्ितषेध अिधिनयम, 1961 (1961 का 28) की
धारा 2 म है ।
(2) जो कोई दहेज मृत्यु कािरत करे गा वह कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो आजीवन
कारावास की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा ।]
305. िशशु या उन्मत व्यिक्त की आत्महत्या का दुष्पर्ेरण—यिद कोई अठारह वषर् से कम आयु का व्यिक्त, कोई उन्मत व्यिक्त,
कोई िवपयर्स्तिच व्यिक्त, कोई जड़ व्यिक्त, या कोई व्यिक्त, जो म ता की अवस्था म है, आत्महत्या कर ले तो जो कोई ऐसी
आत्महत्या के िकए जाने का दुष्पर्ेरण करे गा, वह मृत्यु या 1[आजीवन कारावास] या कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् से अिधक की
न हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
306. आत्महत्या का दुष्पर्ेरण—यिद कोई व्यिक्त आत्महत्या करे , तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
307. हत्या करने का पर्यत्न—जो कोई िकसी कायर् को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी पिरिस्थितय म करे गा िक यिद वह उस
कायर् ारा मृत्यु कािरत कर देता तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक
की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा, और यिद ऐसे कायर् ारा िकसी व्यिक्त को उपहित कािरत हो
जाए, तो वह अपराधी या तो 1[आजीवन कारावास] से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतिस्मनपूवर् विणत है ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 12 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1986 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 10 ारा अंत:स्थािपत ।
59
आजीवन िस दोष ारा पर्यत्न— 1 [जब िक इस धारा म विणत अपराध करने वाला कोई व्यिक्त 2 [आजीवन कारावास] के
दण्डादेश के अधीन हो, तब यिद उपहित कािरत हुई हो, तो वह मृत्यु से दिण्डत िकया जा सके गा ।]
दृष्टांत
(क) य का वध करने के आशय से क उस पर ऐसी पिरिस्थितय म गोली चलाता है िक यिद मृत्यु हो जाती, तो क हत्या का दोषी
होता । क इस धारा के अधीन दण्डनीय है ।
(ख) क कोमल वयस के िशशु की मृत्यु करने के आशय से उसे एक िनजर्न स्थान म अरिक्षत छोड़ देता है । क ने उस धारा ारा
पिरभािषत अपराध िकया है, य िप पिरणामस्वरूप उस िशशु की मृत्यु नह होती ।
(ग) य की हत्या का आशय रखते हुए क एक बन्दूक खरीदता है और उसको भरता है । क ने अभी तक अपराध नह िकया है । य
पर क बन्दूक चलाता है । उसने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है, यिद इस पर्कार गोली मार कर वह य को घायल कर देता है,
तो वह इस धारा 3 [के पर्थम पैरे] के िपछले भाग ारा उपबिन्धत दण्ड से दण्डनीय है ।
(घ) िवष ारा य की हत्या करने का आशय रखते हुए क िवष खरीदता है, और उसे उस भोजन म िमला देता है, जो क के अपने
पास रहता है, क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध अभी तक नह िकया है । क उस भोजन को य की मेज पर रखता है, या उसको य
की मेज पर रखने के िलए य के सेवक को पिरद करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
308. आपरािधक मानव वध करने का पर्यत्न—जो कोई िकसी कायर् को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी पिरिस्थितय म करे गा
िक यिद उस कायर् से वह मृत्यु कािरत कर देता, तो वह हत्या की कोिट म न आने वाले आपरािधक मानव वध का दोषी होता, वह दोन
म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ; और
यिद ऐसे कायर् ारा िकसी व्यिक्त को उपहित हो जाए तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
क गम्भीर और अचानक पर्कोपन पर, ऐसी पिरिस्थितय म, य पर िपस्तौल चलाता है िक यिद तद् ारा वह मृत्यु कािरत कर देता
तो वह हत्या की कोिट म न आने वाले आपरािधक मानव वध का दोषी होता । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
309. आत्महत्या करने का पर्यत्न—जो कोई आत्महत्या करने का पर्यत्न करे गा, और उस अपराध के करने के िलए कोई कायर्
करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, 4 [या जुमार्ने से, या दोन से,] दिण्डत िकया जाएगा ।
310. ठग—जो कोई इस अिधिनयम के पािरत होने के पश्चात् िकसी समय हत्या ारा या हत्या सिहत लूट या िशशु की चोरी
करने के पर्योजन के िलए अन्य व्यिक्त या अन्य व्यिक्तय से अभ्यासत: सहयुक्त रहता है वह ठग है ।
311. दण्ड—जो कोई ठग होगा, वह 2[आजीवन कारावास] से दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
गभर्पात कािरत करने, अजात िशशु को क्षित कािरत करने, िशशु को अरिक्षत छोड़ने और जन्म िछपाने के िवषय म
312. गभर्पात कािरत करना—जो कोई गभर्वती स्तर्ी का स्वेच्छया गभर्पात कािरत करे गा, यिद ऐसा गभर्पात उस स्तर्ी का जीवन
बचाने के पर्योजन से सद्भावपूवर्क, कािरत न िकया जाए, तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा, और यिद वह स्तर्ी स्पन्दनगभार् हो, तो वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—जो स्तर्ी स्वयं अपना गभर्पात कािरत करती है, वह इस धारा के अथर् के अन्तगर्त आती है ।
313. स्तर्ी की सम्मित के िबना गभर्पात कािरत करना—जो कोई उस स्तर्ी की सम्मित के िबना, चाहे वह स्तर्ी स्पन्दनगभार् हो या
नह , पूवर्वत अिन्तम धारा म पिरभािषत अपराध करे गा, वह 2[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
314. गभर्पात कािरत करने के आशय से िकए गए काय ारा कािरत मृत्यु—जो कोई गभर्वती स्तर्ी का गभर्पात कािरत करने के
आशय से कोई ऐसा कायर् करे गा, िजससे स्तर्ी की मृत्यु कािरत हो जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस
वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
यिद वह कायर् स्तर्ी की सम्मित के िबना िकया जाए—और यिद वह कायर् उस स्तर्ी की सम्मित के िबना िकया जाए, तो वह
2
[आजीवन कारावास] से, या ऊपर बताए हुए दण्ड से, दिण्डत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस अपराध के िलए यह आवश्यक नह है िक अपराधी जानता हो िक उस कायर् से मृत्यु कािरत करना संभाव्य है ।
1
1870 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 11 ारा जोड़ा गया ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1891 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 और अनुसूची 2 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 7 ारा “और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
60
315. िशशु का जीिवत पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कािरत करने के आशय से िकया गया कायर्—जो कोई
िकसी िशशु के जन्म से पूवर् कोई कायर् इस आशय से करे गा िक उस िशशु का जीिवत पैदा होना तद् ारा रोका जाए या जन्म के पश्चात्
तद् ारा उसकी मृत्यु कािरत हो जाए, और ऐसे कायर् से उस िशशु का जीिवत पैदा होना रोके गा, या उसके जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु
कािरत कर देगा, यिद वह कायर् माता के जीवन को बचाने के पर्योजन से सद्भावपूवर्क नह िकया गया हो, तो वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
316. ऐसे कायर् ारा जो आपरािधक मानव वध की कोिट म आता है, िकसी सजीव अजात िशशु की मृत्यु कािरत करना—जो
कोई ऐसा कोई कायर् ऐसी पिरिस्थितय म करे गा िक यिद वह तद् ारा मृत्यु कािरत कर देता, तो वह आपरािधक मानव वध का दोषी
होता और ऐसे कायर् ारा िकसी सजीव अजात िशशु की मृत्यु कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
क, यह सम्भाव्य जानते हुए िक वह गभर्वती स्तर्ी की मृत्यु कािरत कर दे, ऐसा कायर् करता है, जो यिद उससे उस स्तर्ी की मृत्यु
कािरत हो जाती, तो वह आपरािधक मानव वध की कोिट म आता । उस स्तर्ी को क्षित होती है, िकन्तु उसकी मृत्यु नह होती, िकन्तु
तद् ारा उस अजात सजीव िशशु की मृत्यु हो जाती है, जो उसके गभर् म है । क इस धारा म पिरभािषत अपराध का दोषी है ।
317. िशशु के िपता या माता या उसकी देखरे ख रखने वाले व्यिक्त ारा बारह वषर् से कम आयु के िशशु का अरिक्षत डाल िदया
जाना और पिरत्याग—जो कोई बारह वषर् से कम आयु के िशशु का िपता या माता होते हुए, या ऐसे िशशु की देखरे ख का भार रखते हुए,
ऐसे िशशु का पूणर्त: पिरत्याग करने के आशय से उस िशशु को िकसी स्थान म अरिक्षत डाल देगा या छोड़ देगा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—यिद िशशु अरिक्षत डाल िदए जाने के पिरणामस्वरूप मर जाए, तो, यथािस्थित, हत्या या आपरािधक मानव वध
के िलए अपराधी का िवचारण िनवािरत करना इस धारा से आशियत नह है ।
318. मृत शरीर के गुप्त यन ारा जन्म िछपाना—जो कोई िकसी िशशु के मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा
उसका व्ययन करके , चाहे ऐसे िशशु की मृत्यु उसके जन्म से पूवर् या पश्चात् या जन्म के दौरान म हुई हो, ऐसे िशशु के जन्म को साशय
िछपाएगा या िछपाने का पर्यास करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या
जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
उपहित के िवषय म
319. उपहित—जो कोई िकसी व्यिक्त को शारीिरक पीड़ा, रोग या अंग-शैिथल्य कािरत करता है, वह उपहित करता है, यह कहा
जाता है ।
320. घोर उपहित—उपहित की के वल नीचे िलखी िकस्म “घोर” कहलाती ह—
पहला—पुंस्त्वहरण ।
दूसरा—दोन म से िकसी भी नेतर् की दृिष्ट का स्थायी िवच्छेद ।
तीसरा—दोन म से िकसी भी कान की शर्वणशिक्त का स्थायी िवच्छेद ।
चौथा—िकसी भी अंग या जोड़ का िवच्छेद ।
पांचवां—िकसी भी अंग या जोड़ की शिक्तय का नाश या स्थायी हर्ास ।
छठा—िसर या चेहरे का स्थायी िवदर्ूिपकरण ।
सातवां—अिस्थ या दांत का भंग या िवसंधान ।
आठवां—कोई उपहित जो जीवन का संकटापन्न करती है या िजसके कारण उपहत व्यिक्त बीस िदन तक तीवर्
शारीिरक पीड़ा म रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के िलए असमथर् रहता है ।
321. स्वेच्छया उपहित कािरत करना—जो कोई िकसी कायर् को इस आशय से करता है िक तद् ारा िकसी व्यिक्त को उपहित
कािरत करे या इस ज्ञान के साथ करता है िक यह संभाव्य है िक वह तद् ारा िकसी व्यिक्त को उपहित कािरत करे और तद् ारा िकसी
व्यिक्त को उपहित कािरत करता है, वह “स्वेच्छया उपहित करता है”, यह कहा जाता है ।
322. स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना—जो कोई स्वेच्छया उपहित कािरत करता है, यिद वह उपहित, िजसे कािरत करने
का उसका आशय है या िजसे वह जानता है िक उसके ारा उसका िकया जाना सम्भाव्य है घोर उपहित है, और यिद वह उपहित, जो
वह कािरत करता है, घोर उपहित को, तो वह “स्वेच्छया घोर उपहित करता है”, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण—कोई व्यिक्त स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करता है, यह नह कहा जाता है िसवाय जबिक वह घोर उपहित
कािरत करता है और घोर उपहित कािरत करने का उसका आशय हो या घोर उपहित कािरत होना वह सम्भाव्य जानता हो । िकन्तु
61
यिद वह यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए िक वह िकसी एक िकस्म की घोर उपहित कािरत कर दे वास्तव म दूसरी ही
िकस्म की घोर उपहित कािरत करता है, तो वह स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करता है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत
क, यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए िक वह य के चेहरे को स्थायी रूप से िवदर्ूिपत कर दे, य के चेहरे पर
पर्हार करता है िजससे य का चेहरा स्थायी रूप से िवदर्ूिपत तो नह होता, िकन्तु िजससे य को बीस िदन तक तीवर् शारीिरक पीड़ा
कािरत होती है । क ने स्वेच्छया घोर उपहित कािरत की है ।
323. स्वेच्छया उपहित कािरत करने के िलए दण्ड—उस दशा के िसवाय, िजसके िलए धारा 334 म उपबंध है, जो कोई
स्वेच्छया उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
324. खतरनाक आयुध या साधन ारा स्वेच्छया उपहित कािरत करना—उस दशा के िसवाय, िजसके िलए धारा 334 म
उपबंध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के िकसी उपकरण ारा या िकसी ऐसे उपकरण ारा जो यिद आकर्ामक आयुध के तौर पर
उपयोग म लाया जाए, तो उससे मृत्यु कािरत होना सम्भाव्य है, या अिग्न या िकसी तप्त पदाथर् ारा, या िकसी िवष या िकसी संक्षारक
पदाथर् ारा या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा या िकसी ऐसे पदाथर् ारा, िजसका श्वास म जाना या िनगलना या रक्त म पहुंचना मानव
शरीर के िलए हािनकारक है, या िकसी जीवजन्तु ारा स्वेच्छया उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
325. स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करने के िलए दण्ड—उस दशा के िसवाय, िजसके िलए धारा 335 म उपबंध है, जो कोई
स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत
िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
326. खतरनाक आयुध या साधन ारा स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना—उस दशा के िसवाय, िजसके िलए धारा 335
म उपबंध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के िकसी उपकरण ारा या िकसी ऐसे उपकरण ारा, जो यिद आकर्ामक आयुध के तौर पर
उपयोग म लाया जाए, तो उससे मृत्यु कािरत होना सम्भाव्य है, या अिग्न या िकसी तप्त पदाथर् ारा, या िकसी िवष या संक्षारक पदाथर्
ारा, या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा, या िकसी ऐसे पदाथर् ारा, िजसका श्वास म जाना या िनगलना या रक्त म पहुंचना मानव
शरीर के िलए हािनकारक है, या िकसी जीवजन्तु ारा स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा, वह 1 [आजीवन कारावास] से, या दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
[326क. अम्ल आिद का पर्योग करके स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना—जो कोई िकसी िक्त के शरीर के िकसी भाग या
2
िकन्ह भाग को उस िक्त पर अम्ल फककर या उसे अम्ल देकर या िकन्ह अन्य साधन का पर्योग करके , ऐसा कािरत करने के आशय
या ज्ञान से िक संभा है उनसे ऐसी क्षित या उपहित कािरत हो, स्थायी या आंिशक नुकसान कािरत करे गा या अंगिवकार करे गा या
जलाएगा या िवकलांग बनाएगा या िवदर्ूिपत करे गा या िन:शक्त बनाएगा या घोर उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् से कम की नह होगी िकतु जो आजीवन कारावास तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा :
परं तु ऐसा जुमार्ना पीिड़त के उपचार के िचिकत्सीय खच को पूरा करने के िलए न्यायोिचत और युिक्तयुक्त होगा :
परं तु यह और िक इस धारा के अधीन अिधरोिपत कोई जुमार्ना पीिड़त को संद िकया जाएगा ।
326ख. स्वेच्छया अम्ल फकना या फकने का पर्यत्न करना—जो कोई, िकसी िक्त को स्थायी या आंिशक नुकसान कािरत
करने या उसका अंगिवकार करने या जलाने या िवकलांग बनाने या िवदर्ूिपत करने या िन:शक्त बनाने या घोर उपहित कािरत करने के
आशय से उस िक्त पर अम्ल फके गा या फकने का पर्यत्न करे गा या िकसी िक्त को अम्ल देगा या अम्ल देने का पर्यत्न करे गा, वह दोन
म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1—धारा 326क और इस धारा के पर्योजन के िलए “अम्ल” म कोई ऐसा पदाथर् सिम्मिलत है जो ऐसे अम्लीय या
संक्षारक स्वरूप या ज्वलन पर्कृ ित का है, जो ऐसी शारीिरक क्षित करने योग्य है, िजससे क्षतिचह्न बन जाते ह या िवदर्ूपता या अस्थायी
या स्थायी िन:शक्तता हो जाती है ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम के सं० 13 की धारा 5 ारा अंत:स्थािपत ।
62
स्पष्टीकरण 2—धारा 326क और इस धारा के पर्योजन के िलए स्थायी या आंिशक नुकसान या अंगिवकार का अपिरवतर्नीय
होना आवश्यक नह होगा ।]
327. संपि उ ािपत करने के िलए या अवैध कायर् कराने को मजबूर करने के िलए स्वेच्छया उपहित कािरत करना—जो कोई
इस पर्योजन से स्वेच्छया उपहित कािरत करे गा िक उपहत व्यिक्त से, या उससे िहतब िकसी व्यिक्त से, कोई सम्पि या मूल्यवान
पर्ितभूित उ ािपत की जाए या उपहत व्यिक्त को या उससे िहतब िकसी व्यिक्त को कोई ऐसी बात, जो अवैध हो, या िजससे िकसी
अपराध का िकया जाना सुकर होता हो, करने के िलए मजबूर िकया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
328. अपराध करने के आशय से िवष इत्यािद ारा उपहित कािरत करना—जो कोई इस आशय से िक िकसी व्यिक्त की
उपहित कािरत की जाए या अपराध करने के , या िकए जाने को सुकर बनाने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए िक वह तद् ारा
उपहित कािरत करे गा, कोई िवष या जिड़माकारी, नशा करने वाली या अस्वास्थ्यकर ओषिध या अन्य चीज उस व्यिक्त को देगा या
उसके ारा िलया जाना कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत
िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
329. सम्पि उ ािपत करने के िलए या अवैध कायर् कराने को मजबूर करने के िलए स्वेच्छया घोर उपहित कािरत
करना—जो कोई इस पर्योजन से स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा िक उपहत व्यिक्त से या उससे िहतब िकसी व्यिक्त से कोई
सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित उ ािपत की जाए या उपहत व्यिक्त को या उससे िहतब िकसी व्यिक्त को कोई ऐसी बात, जो अवैध
हो या िजससे िकसी अपराध का िकया जाना सुकर होता हो, करने के िलए मजबूर िकया जाए, वह 1 [आजीवन कारावास] से, या दोन
म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
330. संस्वीकृ ित उ ािपत करने या िववश करके संपि का पर्त्यावतर्न कराने के िलए स्वेच्छया उपहित कािरत करना—जो
कोई इस पर्योजन से स्वेच्छया उपहित कािरत करे गा िक उपहत व्यिक्त से या उससे िहतब िकसी िक्त से कोई संस्वीकृ ित या कोई
जानकारी, िजससे िकसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके , उ ािपत की जाए अथवा उपहत व्यिक्त या उससे िहतब व्यिक्त
को मजबूर िकया जाए िक वह कोई सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित पर्त्यावितत करे , या करवाए, या िकसी दावे या मांग की पुिष्ट, या
ऐसी जानकारी दे, िजससे िकसी सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित का पर्त्यावतर्न कराया जा सके , वह दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
(क) क, एक पुिलस आिफसर, य को यह संस्वीकृ ित करने को िक उसने अपराध िकया है उत्पर्ेिरत करने के िलए यातना देता
है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(ख) क, एक पुिलस आिफसर, यह बतलाने को िक अमुक चुराई हुई सम्पि कहां रखी है उत्पर्ेिरत करने के िलए ख को यातना
देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(ग) क, एक राजस्व आिफसर, राजस्व की वह बकाया, जो य ारा शोध्य है, देने को य को िववश करने के िलए उसे यातना
देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(घ) क, एक जम दार, भाटक देने को िववश करने के िलए अपनी एक रै यत को यातना देता है । क इस धारा के अधीन अपराध
का दोषी है ।
331. संस्वीकृ ित उ ािपत करने के िलए या िववश करके सम्पि का पर्त्यावतर्न कराने के िलए स्वेच्छया घोर उपहित कािरत
करना—जो कोई इस पर्योजन से स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा िक उपहत व्यिक्त से या उससे िहतब िकसी व्यिक्त से कोई
संस्वीकृ ित या कोई जानकारी, िजससे िक िकसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके , उ ािपत की जाए अथवा उपहत व्यिक्त या
उससे िहतब व्यिक्त को मजबूर िकया जाए िक वह कोई सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित पर्त्यावितत करे या करवाए, या िकसी दावे या
मांग की पुिष्ट करे , या ऐसी जानकारी दे, िजससे िकसी सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित का पर्त्यावतर्न कराया जा सके , वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
332. लोक सेवक को अपने कतर्व्य से भयोपरत करने के िलए स्वेच्छया उपहित कािरत करना—जो कोई िकसी ऐसे व्यिक्त
को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कतर्व्य का िनवर्हन कर रहा हो अथवा इस आशय से िक उस
व्यिक्त को या िकसी अन्य लोक सेवक को, वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कतर्व्य के िविधपूणर् िनवर्हन से िनवािरत या भयोपरत
करे अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यिक्त ारा अपने कतर्व्य के िविधपूणर् िनवर्हन म की गई या िकए जाने के िलए पर्यितत िकसी
बात के पिरणामस्वरूप स्वेच्छया उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
333. लोक सेवक को अपने कतर्व्य से भयोपरत करने के िलए स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना—जो कोई िकसी ऐसे
व्यिक्त को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कतर्व्य का िनवर्हन कर रहा हो अथवा इस आशय से िक
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
63
उस व्यिक्त को, या िकसी अन्य लोक सेवक को वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कतर्व्य के िनवर्हन से िनवािरत या भयोपरत करे
अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यिक्त ारा अपने कतर्व्य के िविधपूणर् िनवर्हन म की गई या िकए जाने के िलए पर्यितत िकसी बात
के पिरणामस्वरूप स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो
सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
334. पर्कोपन पर स्वेच्छया उपहित कािरत करना—जो कोई गम्भीर और अचानक पर्कोपन पर स्वेच्छया उपहित कािरत
करे गा, यिद न तो उसका आशय उस व्यिक्त से िभन्न, िजसने पर्कोपन िदया था, िकसी व्यिक्त को उपहित कािरत करने का हो और न
वह अपने ारा ऐसी उपहित कािरत िकया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक
मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
335. पर्कोपन पर स्वेच्छया घोर उपहित कािरत करना—जो कोई गम्भीर और अचानक पर्कोपन पर 1 [स्वेच्छया] घोर उपहित
कािरत करे गा, यिद न तो उसका आशय उस व्यिक्त से िभन्न, िजसने पर्कोपन िदया था, िकसी व्यिक्त को घोर उपहित कािरत करने का
हो और न वह अपने ारा ऐसी उपहित कािरत िकया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध चार वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—अिन्तम दो धाराएं उन्ह परं तुक के अध्यधीन ह, िजनके अध्यधीन धारा 300 का अपवाद 1 है ।
336. कायर् िजससे दूसर का जीवन या वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो—जो कोई इतने उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कायर्
करे गा िक उससे मानव जीवन या दूसर का वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न होता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो ढ़ाई सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
337. ऐसे कायर् ारा उपहित कािरत करना, िजससे दूसर का जीवन या वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो जाए—जो कोई ऐसे
उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कायर् करने ारा, िजससे मानव जीवन या दूसर का वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो जाए, िकसी व्यिक्त को
उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच
सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
338. ऐसे कायर् ारा घोर उपहित कािरत करना, िजससे दूसर का जीवन या वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो जाए—जो कोई
ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कायर् करने के ारा, िजससे मानव जीवन या दूसर का वैयिक्तक क्षेम संकटापन्न हो जाए, िकसी
व्यिक्त को घोर उपहित कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने
से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
सदोष अवरोध और सदोष पिररोध के िवषय म
339. सदोष अवरोध—जो कोई िकसी व्यिक्त को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है िक उस व्यिक्त को उस िदशा म, िजसम उस
व्यिक्त को जाने का अिधकार है, जाने से िनवािरत कर दे, वह उस व्यिक्त का सदोष अवरोध करता है, यह कहा जाता है ।
अपवाद—भूिम के या जल के ऐसे पर्ाइवेट मागर् म बाधा डालना िजसके सम्बन्ध म िकसी व्यिक्त को सद्भावपूवर्क िवश्वास है
िक वहां बाधा डालने का उसे िविधपूणर् अिधकार है, इस धारा के अथर् के अन्तगर्त अपराध नह है ।
दृष्टांत
क एक मागर् म, िजससे होकर जाने का य का अिधकार है, सद्भावपूवर्क यह िवश्वास न रखते हुए िक उसको मागर् रोकने का
अिधकार पर्ाप्त है, बाधा डालता है । य जाने से तद् ारा रोक िदया जाता है । क, य का सदोष अवरोध करता है ।
340. सदोष पिररोध—जो कोई िकसी व्यिक्त का इस पर्कार सदोष अवरोध करता है िक उस व्यिक्त को िनिश्चत पिरसीमा
से परे जाने से िनवािरत कर दे, वह उस व्यिक्त का “सदोष पिररोध” करता है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत
(क) य को दीवार से िघरे हुए स्थान म पर्वेश कराकर क उसम ताला लगा देता है । इस पर्कार य दीवार की पिरसीमा से परे
िकसी भी िदशा म नह जा सकता । क ने य का सदोष पिररोध िकया है ।
(ख) क एक भवन के बाहर जाने के ार पर बन्दूकधारी मनुष्य को बैठा देता है और य से कह देता है िक यिद य भवन के
बाहर जाने का पर्यत्न करे गा, तो वे य को गोली मार दगे । क ने य का सदोष पिररोध िकया है ।
341. सदोष अवरोध के िलए दण्ड—जो कोई िकसी व्यिक्त का सदोष अवरोध करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध
एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
1
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 8 ारा अंत:स्थािपत ।
64
342. सदोष पिररोध के िलए दण्ड—जो कोई िकसी व्यिक्त का सदोष पिररोध करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपर तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।
343. तीन या अिधक िदन के िलए सदोष पिररोध—जो कोई िकसी व्यिक्त का सदोष पिररोध तीन या अिधक िदन के िलए
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।
344. दस या अिधक िदन के िलए सदोष पिररोध—जो कोई िकसी व्यिक्त का सदोष पिररोध दस या अिधक िदन के िलए
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दण्डनीय होगा ।
345. ऐसे व्यिक्त का सदोष पिररोध िजसके छोड़ने के िलए िरट िनकल चुका है—जो कोई यह जानते हुए िकसी व्यिक्त को
सदोष पिररोध म रखेगा िक उस व्यिक्त को छोड़ने के िलए िरट सम्यक् रूप से िनकल चुका है । वह िकसी अविध के उस कारावास के
अितिरक्त, िजससे िक वह इस अध्याय की िकसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय हो, दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा ।
346. गुप्त स्थान म सदोष पिररोध—जो कोई िकसी व्यिक्त का सदोष पिररोध इस पर्कार करे गा िजससे यह आशय पर्तीत
होता हो िक ऐसे पिररु व्यिक्त से िहतब िकसी व्यिक्त को या िकसी लोक सेवक को ऐसे व्यिक्त के पिररोध की जानकारी न होने
पाए या एतिस्मन्पूवर् विणत िकसी ऐसे व्यिक्त या लोक सेवक को, ऐसे पिररोध के स्थान की जानकारी न होने पाए या उसका पता वह
न चला पाए, वह उस दण्ड के अितिरक्त िजसके िलए वह ऐसे सदोष पिररोध के िलए दण्डनीय हो, दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा ।
347. सम्पि उ ािपत करने के िलए या अवैध कायर् करने के िलए मजबूर करने के िलए सदोष पिररोध—जो कोई िकसी
व्यिक्त का सदोष पिररोध इस पर्योजन से करे गा िक उस पिररु व्यिक्त से, या उससे िहतब िकसी व्यिक्त से, कोई सम्पि या
मूल्यवान पर्ितभूित उ ािपत की जाए, अथवा उस पिररु व्यिक्त को या उससे िहतब िकसी व्यिक्त को, कोई ऐसी अवैध बात करने के
िलए, या कोई ऐसी जानकारी देने के िलए िजससे अपराध का िकया जाना सुकर हो जाए, मजबूर िकया जाए, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी, दण्डनीय होगा ।
348. संस्वीकृ ित उ ािपत करने के िलए या िववश करके सम्पि का पर्त्यावतर्न करने के िलए सदोष पिररोध—जो कोई िकसी
व्यिक्त का सदोष पिररोध इस पर्योजन से करे गा िक उस पिररु व्यिक्त से, या उससे िहतब िकसी व्यिक्त से, कोई संस्वीकृ ित या
कोई जानकारी, िजससे िकसी अपराध या अवचार का पता चल सके , उ ािपत की जाए, या वह पिररु व्यिक्त या उससे िहतब कोई
व्यिक्त मजबूर िकया जाए िक वह िकसी सम्पि या िकसी मूल्यवान पर्ितभूित को पर्त्यावितत करे या करवाए या िकसी दावे या मांग
की तुिष्ट करे या कोई ऐसी जानकारी दे िजससे िकसी सम्पि या िकसी मूल्यवान पर्ितभूित का पर्त्यावतर्न कराया जा सके , वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
आपरािधक बल और हमले के िवषय म
349. बल—कोई व्यिक्त िकसी अन्य व्यिक्त पर बल का पर्योग करता है, यह कहा जाता है, यिद वह उस अन्य व्यिक्त म गित,
गित-पिरवतर्न या गितहीनता कािरत कर देता है या यिद वह िकसी पदाथर् म ऐसी गित, गित-पिरवतर्न या गितहीनता कािरत कर देता
है, िजससे उस पदाथर् का स्पशर् उस अन्य व्यिक्त के शरीर के िकसी भाग से या िकसी ऐसी चीज से, िजसे वह अन्य व्यिक्त पहने हुए है या
ले जा रहा है, या िकसी ऐसी चीज से, जो इस पर्कार िस्थत है िक ऐसे संस्पशर् से उस अन्य व्यिक्त की संवेदन शिक्त पर पर्भाव पड़ता है,
हो जाता है : परंतु यह तब जबिक गितमान, गित-पिरवतर्न या गितहीनता करने वाला व्यिक्त उस गित, गित-पिरवतर्न या गितहीनता
को एतिस्मन्पश्चात् विणत तीन तरीक म से िकसी एक ारा कािरत करता है, अथार्त् :—
पहला—अपनी िनजी शारीिरक शिक्त ारा ।
दूसरा—िकसी पदाथर् के इस पर्कार व्ययन ारा िक उसके अपने या िकसी अन्य व्यिक्त ारा कोई अन्य कायर् के िकए जाने के
िबना ही गित या गित-पिरवतर्न या गितहीनता घिटत होती है ।
तीसरा—िकसी जीवजन्तु को गितमान होने, गित-पिरवतर्न करने या गितहीन होने के िलए उत्पर्ेरण ारा ।
350. आपरािधक बल—जो कोई िकसी व्यिक्त पर उस व्यिक्त की सम्मित के िबना बल का पर्योग िकसी अपराध को करने के
िलए उस व्यिक्त को, िजस पर बल का पर्योग िकया जाता है, क्षित, भय या क्षोभ, ऐसे बल के पर्योग से कािरत करने के आशय से, या
ऐसे बल के पर्योग से सम्भाव्यत: कािरत करे गा यह जानते हुए साशय करता है, वह उस अन्य व्यिक्त पर आपरािधक बल का पर्योग
करता है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत
(क) य नदी के िकनारे रस्सी से बंधी हुई नाव पर बैठा है । क रिस्सय को उद्बंिधत करता है और उस पर्कार नाव को धार म
साशय बहा देता है । यहां क, य को साशय गितमान करता है, और वह ऐसा उन पदाथ को ऐसी रीित से व्ययिनत करके करता है िक
65
िकसी व्यिक्त की ओर से कोई अन्य कायर् िकए िबना ही गित उत्पन्न हो जाती है । अतएव, क ने य पर बल का पर्योग साशय िकया है,
और यिद उसने य की सम्मित के िबना यह कायर् कोई अपराध करने के िलए या यह आशय रखते हुए, या यह सम्भाव्य जानते हुए िकया
है िक ऐसे बल के पर्योग से वह य को क्षित, भय या क्षोभ कािरत करे , तो क ने य पर आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(ख) य एक रथ म सवार होकर चल रहा है । क, य के घोड़ को चाबुक मारता है, और उसके ारा उनकी चाल को तेज कर
देता है । यहां क ने जीवजन्तु को उनकी अपनी गित पिरवितत करने के िलए उत्पर्ेिरत करके य का गित-पिरवतर्न कर िदया है ।
अतएव, क ने य पर बल का पर्योग िकया है, और यिद क ने य की सम्मित के िबना यह कायर् यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते
हुए िकया है िक वह उससे य को क्षित, भय या क्षोभ उत्पन्न करे तो क ने य पर आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(ग) य एक पालकी म सवार होकर चल रहा है । य को लूटने का आशय रखते हुए क पालकी का डंडा पकड़ लेता है, और
पालकी को रोक देता है । यहां, क ने य को गितहीन िकया है, और यह उसने अपनी शारीिरक शिक्त ारा िकया है, अतएव क ने य पर
बल का पर्योग िकया है, और क ने य की सम्मित के िबना यह कायर् अपराध करने के िलए साशय िकया है, इसिलए क ने य पर
आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(घ) क सड़क पर साशय य को धक्का देता है, यहां क ने अपनी िनजी शारीिरक शिक्त ारा अपने शरीर को इस पर्कार गित
दी है िक वह य के संस्पशर् म आए । अतएव उसने साशय य पर बल का पर्योग िकया है, और यिद उसने य की सम्मित के िबना यह कायर्
यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए िकया है िक वह उससे य को क्षित, भय या क्षोभ उत्पन्न करे , तो उसने य पर
आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(ङ) क यह आशय रखते हुए या यह बात सम्भाव्य जानते हुए एक पत्थर फकता है िक वह पत्थर इस पर्कार य, या य के वस्तर्
के या य ारा ले जाई जाने वाली िकसी वस्तु के संस्पशर् म आएगा या यह िक वह पानी म िगरे गा और उछलकर पानी य के कपड़ पर
या य ारा ले जाई जाने वाली िकसी वस्तु पर जा पड़ेगा । यहां, यिद पत्थर के फके जाने से यह पिरणाम उत्पन्न हो जाए िक कोई पदाथर्
य, या य के वस्तर् के संस्पशर् म आ जाए, तो क ने य पर बल का पर्योग िकया है ; और यिद उसने य की सम्मित के िबना यह कायर् उसके
ारा य को क्षित, भय या क्षोभ उत्पन्न करने का आशय रखते हुए िकया है, तो उसने य पर आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(च) क िकसी स्तर्ी का घूंघट साशय हटा देता है । यहां, क ने उस पर साशय बल का पर्योग िकया है, और यिद उसने उस स्तर्ी
की सम्मित के िबना यह कायर् यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए िकया है िक उससे उसको क्षित, भय या क्षोभ उत्पन्न हो,
तो उसने उस आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(छ) य स्नान कर रहा है । क स्नान करने के टब म ऐसा जल डाल देता है िजसे वह जानता है िक वह उबल रहा है । यहां,
उबलते हुए, जल म ऐसी गित को अपनी शारीिरक शिक्त ारा साशय उत्पन्न करता है िक उस जल का संस्पशर् य से होता है या अन्य
जल से होता है, जो इस पर्कार िस्थत है िक ऐसे संस्पशर् से य की संवेदन शिक्त पर्भािवत होती है ; इसिलए क ने य पर साशय बल का
पर्योग िकया है, और यिद उसने य की सम्मित के िबना यह कायर् यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए िकया है िक वह उससे
य को क्षित, भय या क्षोभ उत्पन्न करे , तो क ने आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
(ज) क, य की सम्मित के िबना, एक कु े को य पर झपटने के िलए भड़काता है । यहां यिद क का आशय य को क्षित, भय या
क्षोभ कािरत करने का है तो उसने य पर आपरािधक बल का पर्योग िकया है ।
351. हमला—जो कोई, कोई अंगिवक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता है, या यह सम्भाव्य जानते हुए करता है िक ऐसे
अंगिवक्षेप या ऐसी तैयारी करने से िकसी उपिस्थत व्यिक्त को यह आशंका हो जाएगी िक जो वैसा अंगिवक्षेप या तैयारी करता है, वह
उस व्यिक्त पर आपरािधक बल का पर्योग करने ही वाला है, वह हमला करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण—के वल शब्द हमले की कोिट म नह आते । िकन्तु जो शब्द कोई व्यिक्त पर्योग करता है, वे उसके अंगिवक्षेप या
तैयािरय को ऐसा अथर् दे सकते ह िजससे वे अंगिवक्षेप या तैयािरयां हमले की कोिट म आ जाएं ।
दृष्टांत
(क) य पर अपना मुक्का क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए िहलाता है िक उसके ारा य को यह िवश्वास हो जाए
िक क, य को मारने वाला ही है । क ने हमला िकया है ।
(ख) क एक िहस्तर् कु े की मुखबन्धनी इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए खोलना आरं भ करता है िक उसके ारा य को
यह िवश्वास हो जाए िक वह य पर कु े से आकर्मण कराने वाला है । क ने य पर हमला िकया है ।
(ग) य से यह कहते हुए िक “म तुम्ह पीटूंगा” क एक छड़ी उठा लेता है । यहां य िप क ारा पर्योग म लाए गए शब्द िकसी
अवस्था म हमले की कोिट म नह आते और य िप के वल अंगिवक्षेप बनाना िजसके साथ अन्य पिरिस्थितय का अभाव है, हमले की
कोिट म न भी आए तथािप शब्द ारा स्पष्टीकृ त वह अंगिवक्षेप हमले की कोिट म आ सकता है ।
352. गम्भीर पर्कोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपरािधक बल का पर्योग करने के िलए दण्ड—जो कोई िकसी व्यिक्त
पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग उस व्यिक्त ारा गम्भीर और अचानक पर्कोपन िदए जाने पर करने से अन्यथा करे गा, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा,
या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
66
स्पष्टीकरण—इस धारा के अधीन िकसी अपराध के दण्ड म कमी गम्भीर और अचानक पर्कोपन के कारण न होगी, यिद वह
पर्कोपन अपराध करने के िलए पर्ितहेतु के रूप म अपराधी ारा ईिप्सत या स्वेच्छया पर्कोिपत िकया गया हो, अथवा
यिद वह पर्कोपन िकसी ऐसी बात ारा िदया गया हो जो िविध के पालन म, या िकसी लोक सेवक ारा ऐसे लोक सेवक की
शिक्त के िविधपूणर् पर्योग म, की गई हो, अथवा
यिद वह पर्कोपन िकसी ऐसी बात ारा िदया गया हो जो पर्ाइवेट पर्ितरक्षा के अिधकार के िविधपूणर् पर्योग म की गई हो ।
पर्कोपन अपराध को कम करने के िलए पयार्प्त गम्भीर और अचानक था या नह , यह तथ्य का पर्श्न है ।
353. लोक सेवक को अपने कतर्व्य के िनवर्हन से भयोपरत करने के िलए हमला या आपरािधक बल का पर्योग—जो कोई
िकसी ऐसे व्यिक्त पर, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वैसे लोक सेवक के नाते वह उसके अपने कतर्व्य का िनष्पादन कर रहा हो, या
इस आशय से िक उस व्यिक्त को वैसे लोक सेवक के नाते अपने कतर्व्य के िनवर्हन से िनवािरत करे या भयोपरत करे या ऐसे लोक सेवक
के नाते उसके अपने कतर्व्य के िविधपूणर् िनवर्हन म की गई या की जाने के िलए पर्यितत िकसी बात के पिरणामस्वरूप हमला करे गा या
आपरािधक बल का पर्योग करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से,
या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
354. स्तर्ी की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग—जो कोई िकसी स्तर्ी की लज्जा भंग
करने के आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए िक तद् ारा वह उसकी लज्जा भंग करे गा, उस स्तर्ी पर हमला करे गा या आपरािधक बल
का पर्योग करे गा, 1 [वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो पांच वषर् तक
की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
2
[354क. लिगक उत्पीड़न और लिगक उत्पीड़न के िलए दंड—(1) ऐसा कोई िनम्निलिखत कायर्, अथार्त् :—
(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (i) या खंड (ii) या खंड (iii) म िविनिदष्ट अपराध करे गा, वह कठोर कारावास से,
िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (iv) म िविनिदष्ट अपराध करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
354ख. िववस्तर् करने के आशय से स्तर्ी पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग—ऐसा कोई पुरुष, जो िकसी स्तर्ी को िववस्तर्
करने या िनवर्स्तर् होने के िलए बाध्य करने के आशय से उस पर हमला करे गा या उसके पर्ित आपरािधक बल का पर्योग करे गा या ऐसे कृ त्य
का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् से कम की नह होगी िकतु जो सात वषर् तक की
हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
354ग. दृश्यरितकता—ऐसा कोई पुरुष, जो कोई िकसी पर्ाइवेट कृ त्य म लगी िकसी स्तर्ी को, जो उन पिरिस्थितय म, िजनम वह
यह पर्त्याशा करती है िक उसे देखा नह जा रहा है, एकटक देखेगा या उस कृ त्य म िलप्त व्यिक्त या उस कृ त्य म िलप्त व्यिक्त के कहने
पर कोई अन्य व्यिक्त उसका िचतर् ख चेगा अथवा उस िचतर् को पर्सािरत करे गा, पर्थम दोषिसि पर दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध एक वषर् से कम की नह होगी िकतु जो तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा और ि तीय अथवा पश्चात्वत िकसी दोषिसि पर दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् से कम की
नह होगी िकतु जो सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1—इस धारा के पर्योजन के िलए, “पर्ाइवेट कृ त्य” के अंतगर्त ताकने का ऐसा कोई कृ त्य आता है जो ऐसे िकसी स्थान
म िकया जाता है, िजसके संबंध म, पिरिस्थितय के अधीन, युिक्तयुक्त रूप से यह पर्त्याशा की जाती है िक वहां एकांतता होगी और जहां
िक पीिड़ता के जननांग , िनतंब या वक्षस्थल को अिभदिशत िकया जाता है या के वल अधोवस्तर् से ढंका जाता है अथवा जहां पीिड़ता
िकसी शौचघर का पर्योग कर रही है ; या जहां पीिड़ता ऐसा कोई लिगक कृ त्य कर रही है जो ऐसे पर्कार का नह है जो साधारणतया
सावर्जिनक तौर पर िकया जाता है ।
1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 6 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
67
स्पष्टीकरण 2—जहां पीिड़ता िचतर् या िकसी अिभनय के िचतर् को ख चने के िलए सम्मित देती है िकन्तु अन्य िक्तय को उन्ह
पर्सािरत करने की सम्मित नह देती है और जहां उस िचतर् या कृ त्य का पर्सारण िकया जाता है वहां ऐसे पर्सारण को इस धारा के अधीन
अपराध माना जाएगा ।
354घ. पीछा करना—(1) ऐसा कोई पुरुष, जो—
(i) िकसी स्तर्ी का उससे िक्तगत अन्योन्यिकर्या को आगे बढ़ाने के िलए, उस स्तर्ी ारा स्पष्ट रूप से अिनच्छा
उपदिशत िकए जाने के बावजूद, बारं बार पीछा करता है और संस्पशर् करता है या संस्पशर् करने का पर्यत्न करता है ; या
(ii) जो कोई िकसी स्तर्ी ारा इं टरनेट, ई-मेल या िकसी अन्य पर्रूप की इलैक्टर्ािनक संसूचना का पर्योग िकए जाने को
मानीटर करता है,
पीछा करने का अपराध करता है :
परं तु ऐसा आचरण पीछा करने की कोिट म नह आएगा, यिद वह पुरुष, जो ऐसा करता है, यह सािबत कर देता है िक—
(i) ऐसा कायर् अपराध के िनवारण या पता लगाने के पर्योजन के िलए िकया गया था और पीछा करने के अिभयुक्त
पुरुष को राज्य ारा उस अपराध के िनवारण और पता लगाने का उ रदाियत्व स पा गया था ; या
(ii) ऐसा िकसी िविध के अधीन या िकसी िविध के अधीन िकसी िक्त ारा अिधरोिपत िकसी शतर् या अपेक्षा का
पालन करने के िलए िकया गया था ; या
(iii) िविशष्ट पिरिस्थितय म ऐसा आचरण युिक्तयुक्त और न्यायोिचत था ।
(2) जो कोई पीछा करने का अपराध करे गा, वह पर्थम दोषिसि पर दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ; और िकसी ि तीय या पश्चात्वत दोषिसि पर
िकसी भी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
355. गम्भीर पर्कोपन होने से अन्यथा िकसी व्यिक्त का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपरािधक बल का
पर्योग—जो कोई िकसी व्यिक्त पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग उस व्यिक्त ारा गम्भीर और अचानक पर्कोपन िदए जाने पर
करने, से अन्यथा, इस आशय से करे गा िक तद् ारा उसका अनादर िकया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
356. िकसी व्यिक्त ारा ले जाई जाने वाली संपि की चोरी के पर्यत्न म हमला या आपरािधक बल का पर्योग—जो कोई
िकसी व्यिक्त पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग िकसी ऐसी सम्पि की चोरी करने के पर्यत्न म करे गा िजसे वह व्यिक्त उस
समय पहने हुए हो, या िलए जा रहा हो, वह दोन म से, िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या
जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
357. िकसी व्यिक्त का सदोष पिररोध करने के पर्यत्न म हमला या आपरािधक बल का पर्योग—जो कोई िकसी व्यिक्त पर
हमला या आपरािधक बल का पर्योग उस व्यिक्त का सदोष पिररोध करने का पर्यत्न करने म करे गा, वह दोन म से, िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दिण्डत
िकया जाएगा ।
358. गम्भीर पर्कोपन िमलने पर हमला या आपरािधक बल का पर्योग—जो कोई िकसी व्यिक्त पर हमला या आपरािधक बल
का पर्योग उस व्यिक्त ारा िदए गए गम्भीर और अचानक पर्कोपन पर करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध एक मास तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—अंितम धारा उसी स्पष्टीकरण के अध्यधीन है िजसके अध्यधीन धारा 352 है ।
व्यपहरण, अपहरण, दासत्व और बलात्शर्म के िवषय म
359. व्यपहरण—व्यपहरण दो िकस्म का होता है ; 1 [भारत] म से व्यपहरण और िविधपूणर् संरक्षकता म से व्यपहरण ।
360. भारत म से व्यपहरण—जो कोई िकसी व्यिक्त का उस व्यिक्त की, या उस व्यिक्त की ओर से सम्मित देने के िलए वैध
रूप से पर्ािधकृ त िकसी व्यिक्त की सम्मित के िबना, 1[भारत] की सीमा से परे पर्वहण कर देता है, वह 1[भारत] म से उस व्यिक्त का
व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है ।
361. िविधपूणर् संरक्षकता म से व्यपहरण—जो कोई िकसी अपर्ाप्तवय को, यिद वह नर हो, तो 2 [सोलह] वषर् से कम आयु
वाले को, या यिद वह नारी हो तो 3 [अठारह] वषर् से कम आयु वाली को या िकसी िवकृ तिच व्यिक्त को, ऐसे अपर्ाप्तवय या
1
“िबर्िटश भारत” शब्द के स्थान पर अनुकर्मश: भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951
के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1949 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 2 ारा “चौदह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1949 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 2 ारा “सौलह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
68
िवकृ तिच व्यिक्त के िविधपूणर् संरक्षक की संरक्षकता म से ऐसे संरक्षक की सम्मित के िबना ले जाता है या बहका ले जाता है, वह ऐसे
अपर्ाप्तवय या ऐसे व्यिक्त का िविधपूणर् संरक्षकता म से व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “िविधपूणर् सरं क्षक” शब्द के अन्तगर्त ऐसा व्यिक्त आता है िजस पर ऐसे अपर्ाप्तवय या अन्य
व्यिक्त की देखरे ख या अिभरक्षा का भार िविधपूवर्क न्यस्त िकया गया है ।
अपवाद—इस धारा का िवस्तार िकसी ऐसे व्यिक्त के कायर् पर नह है, िजसे सद्भावपूवर्क यह िवश्वास है िक वह िकसी
अधमर्ज िशशु का िपता है, या िजसे सद्भावपूवर्क यह िवश्वास है िक वह ऐसे िशशु की िविधपूणर् अिभरक्षा का हकदार है, जब तक िक
ऐसा कायर् दुराचािरक या िविधिवरु पर्योजन के िलए न िकया जाए ।
362. अपहरण—जो कोई िकसी व्यिक्त को िकसी स्थान से जाने के िलए बल ारा िववश करता है, या िकन्ह पर्वंचनापूणर्
उपाय ारा उत्पर्ेिरत करता है, वह उस व्यिक्त का अपहरण करता है, यह कहा जाता है ।
363. व्यपहरण के िलए दण्ड—जो कोई 1 [भारत] म से या िविधपूणर् संरक्षकता म से िकसी व्यिक्त का व्यपहरण करे गा, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दण्डनीय होगा ।
[363क. भीख मांगने के पर्योजन के िलए अपर्ाप्तवय का व्यपहरण या िवकलांगीकरण—(1) जो कोई िकसी अपर्ाप्तवय का
2
इसिलए व्यपहरण करे गा या अपर्ाप्तवय का िविधपूणर् संरक्षक स्वयं न होते हुए अपर्ाप्तवय की अिभरक्षा इसिलए अिभपर्ाप्त करे गा िक
ऐसा अपर्ाप्तवय भीख मांगने के पर्योजन के िलए िनयोिजत या पर्युक्त िकया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दण्डनीय होगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
(2) जो कोई िकसी अपर्ाप्तवय को िवकलांग इसिलए करे गा िक ऐसा अपर्ाप्तवय भीख मांगने के पर्योजन के िलए िनयोिजत
या पर्युक्त िकया जाए, वह आजीवन कारावास से दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
(3) जहां िक कोई व्यिक्त, जो अपर्ाप्तवय का िविधपूणर् संरक्षक नह है, उस अपर्ाप्तवय को भीख मांगने के पर्योजन के िलए
िनयोिजत या पर्युक्त करे गा, वहां जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न कर िदया जाए, यह उपधारणा की जाएगी िक उसने इस उ ेश्य से
उस अपर्ाप्तवय का व्यपहरण िकया था या अन्यथा उसकी अिभरक्षा अिभपर्ाप्त की थी िक वह अपर्ाप्तवय भीख मांगने के पर्योजन के
िलए िनयोिजत या पर्युक्त िकया जाए ।
(4) इस धारा म,—
(क) “भीख मांगने” से अिभपर्ेत है—
(i) लोक स्थान म िभक्षा की याचना या पर्ािप्त चाहे गाने, नाचने, भाग्य बताने, करतब िदखाने या चीज
बेचने के बहाने अथवा अन्यथा करना,
(ii) िभक्षा की याचना या पर्ािप्त करने के पर्योजन से िकसी पर्ाइवेट पिरसर म पर्वेश करना,
(iii) िभक्षा अिभपर्ाप्त या उ ािपत करने के उ ेश्य से अपना या िकसी अन्य व्यिक्त का या जीवजन्तु का
कोई वर्ण, घाव, क्षित, िवरूपता या रोग अिभदिशत या पर्दिशत करना,
(iv) िभक्षा की याचना या पर्ािप्त के पर्योजन से अपर्ाप्तवय का पर्दिशत के रूप म पर्योग करना ;
(ख) अपर्ाप्तवय से वह व्यिक्त अिभपर्ेत है, जो—
(i) यिद नर है, तो सोलह वषर् से कम आयु का है ; तथा
(ii) यिद नारी है, तो अठारह वषर् से कम आयु की है ।]
364. हत्या करने के िलए व्यपहरण या अपहरण—जो कोई इसिलए िकसी व्यिक्त का व्यपहरण या अपहरण करे गा िक ऐसे
व्यिक्त की हत्या की जाए या उसको ऐसे व्ययिनत िकया जाए िक वह अपनी हत्या होने के खतरे म पड़ जाए, वह 3 [आजीवन कारावास]
से या किठन कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
(क) क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए िक िकसी देव मूित पर य की बिल चढ़ाई जाए 1[भारत] म से य का
व्यपहरण करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
1
“िबर्िटश भारत” शब्द के स्थान पर अनुकर्मश: भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951
के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1959 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
69
(ख) ख को उसके गृह से क इसिलए बलपूवर्क या बहकाकर ले जाता है िक ख की हत्या की जाए । क ने इस धारा म
पिरभािषत अपराध िकया है ।
1 [364क.िफरौती, आिद के िलए व्यपहरण—जो कोई इसिलए िकसी व्यिक्त का व्यपहरण या अपहरण करे गा या ऐसे
व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् ऐसे व्यिक्त को िनरोध म रखेगा और ऐसे व्यिक्त की मृत्यु या उसकी उपहित कािरत करने की धमकी
देगा या अपने आचरण से ऐसी युिक्तयुक्त आशंका पैदा करे गा िक ऐसे व्यिक्त की मृत्यु हो सकती है या उसको उपहित की जा सकती है
या ऐसे व्यिक्त को उपहित या उसकी मृत्यु कािरत करे गा िजससे िक सरकार या 2 [िकसी िवदेशी राज्य या अंतरराष्टर्ीय अंतर-सरकारी
संगठन या िकसी अन्य व्यिक्त] को िकसी कायर् को करने या करने से पर्िवरत रहने के िलए या िफरौती देने के िलए िववश िकया जाए,
वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
365. िकसी व्यिक्त का गुप्त रीित से और सदोष पिररोध करने के आशय से व्यपहरण या अपहरण—जो कोई इस आशय से
िकसी व्यिक्त का व्यपहरण या अपहरण करे गा िक उसका गुप्त रीित से और सदोष पिररोध िकया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
366. िववाह आिद के करने को िववश करने के िलए िकसी स्तर्ी को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्पर्ेिरत करना—जो
कोई िकसी स्तर्ी का व्यपहरण या अपहरण उसकी इच्छा के िवरु िकसी व्यिक्त से िववाह करने के िलए उस स्तर्ी को िववश करने के
आशय से या वह िववश की जाएगी यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा अयुक्त संभोग करने के िलए उस स्तर्ी को िववश या िवक्षुब्ध करने के
िलए या वह स्तर्ी अयुक्त संभोग करने के िलए िववश या िवलुब्ध की जाएगी यह संभाव्य जानते हुए करे गा, वह दोन म से िकसी भांित
के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ; 3 [और जो कोई
िकसी स्तर्ी को िकसी अन्य व्यिक्त से अयुक्त संभोग करने के िलए िववश या िवलुब्ध करने के आशय से या वह िववश या िवलुब्ध की
जाएगी यह संभाव्य जानते हुए इस संिहता म यथापिरभािषत आपरािधक अिभतर्ास ारा अथवा पर्ािधकार के दुरुपयोग या िववश करने
के अन्य साधन ारा उस स्तर्ी को िकसी स्थान से जाने को उत्पर्ेिरत करे गा, वह भी पूव क्त पर्कार से दिण्डत िकया जाएगा ।]
4 [366क.अपर्ाप्तवय लड़की का उपापन—जो कोई अठारह वषर् से कम आयु की अपर्ाप्तवय लड़की को अन्य व्यिक्त से अयुक्त
संभोग करने के िलए िववश या िवलुब्ध करने के आशय से या तद् ारा िववश या िवलुब्ध िकया जाएगा यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी
लड़की को िकसी स्थान से जाने को या कोई कायर् करने को िकसी भी साधन ारा उत्पर्ेिरत करे गा, वह कारावास से, िजसकी अविध दस
वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।]
366ख. िवदेश से लड़की का आयात करना—जो कोई इक्कीस वषर् से कम आयु की िकसी लड़की को 5 [भारत] के बाहर के
िकसी देश से 6 [या जम्मू-कश्मीर राज्य से] आयात, उसे िकसी अन्य व्यिक्त से अयुक्त संभोग करने के िलए िववश या िवलुब्ध करने के
आशय से या तद् ारा वह िववश या िवलुब्ध की जाएगी यह सम्भाव्य जानते हुए करे गा 7 *** वह कारावास से िजसकी अविध दस वषर्
तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।]
367. व्यिक्त को घोर उपहित, दासत्व, आिद का िवषय बनाने के उ ेश्य से व्यपहरण या अपहरण—जो कोई िकसी व्यिक्त का
व्यपहरण या अपहरण इसिलए करे गा िक उसे घोर उपहित या दासत्व का या िकसी व्यिक्त की पर्कृ ित िवरु काम वासना का िवषय
बनाया जाए या बनाए जाने के खतरे म वह जैसे पड़ सकता है वैसे उसे व्ययिनत िकया जाए या सम्भाव्य जानते हुए करे गा िक ऐसे
व्यिक्त को उपयुर्क्त बात का िवषय बनाया जाएगा या उपयुर्क्त रूप से व्ययिनत िकया जाएगा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
368. व्यपहृत या अपहृत व्यिक्त को सदोष िछपाना या पिररोध म रखना—जो कोई यह जानते हुए िक कोई व्यिक्त व्यपहृत
या अपहृत िकया गया है, ऐसे व्यिक्त को सदोष िछपाएगा या पिररोध म रखेगा, वह उसी पर्कार दिण्डत िकया जाएगा मानो उसने उसी
आशय या ज्ञान या पर्योजन से ऐसे व्यिक्त का व्यपहरण या अपहरण िकया हो िजससे उसने ऐसे व्यिक्त को िछपाया या पिररोध म
िनरु रखा है ।
369. दस वषर् से कम आयु के िशशु के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका पहरण या अपहरण—जो कोई दस वषर्
से कम आयु के िकसी िशशु का इस आशय से व्यपहरण या अपहरण करे गा िक ऐसे िशशु के शरीर पर से कोई जंगम सम्पि बेईमानी से
ले ले, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दण्डनीय होगा ।
8 [370. व्यिक्त का दुव्यार्पार—(1) जो कोई, शोषण के पर्योजन के िलए,—
1
1993 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा “िकसी अन्य व्यिक्त” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1923 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
4
1923 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
5
“िबर्िटश भारत” शब्द के स्थान पर अनुकर्मश: भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951
के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
7
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
8
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 8 ारा पर्ितस्थािपत ।
70
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1924 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
71
[स्पष्टीकरण 1—जबिक अठारह वषर् से कम आयु की नारी िकसी वेश्या को या िकसी अन्य िक्त को, जो वेश्यागृह चलाता हो
1
या उसका पर्बंध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययिनत की जाए, तब इस पर्कार ऐसी नारी को व्ययिनत करने
वाले व्यिक्त के बारे म, जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न कर िदया जाए, यह उपधारणा की जाएगी िक उसने उसको इस आशय से
यिनत िकया है िक वह वेश्यावृि के िलए उपयोग म लाई जाएगी ।
स्पष्टीकरण 2—“अयुक्त संभोग” से इस धारा के पर्योजन के िलए ऐसे व्यिक्तय म मैथुन अिभपर्ेत है जो िववाह से संयुक्त नह
ह, या ऐसे िकसी संयोग या बन्धन से संयुक्त नह ह जो य िप िववाह की कोिट म तो नह आता तथािप उस समुदाय की, िजसके वे ह
या यिद वे िभन्न समुदाय के ह तो ऐसे दोन समुदाय की, स्वीय िविध या रूिढ ारा उनके बीच म िववाह-सदृश सम्बन्ध अिभज्ञात
िकया जाता हो ।]
373. वेश्यावृि आिद के पर्योजन के िलए अपर्ाप्तवय का खरीदना—जो कोई 2 [अठारह वषर् के कम आयु के िकसी व्यिक्त को इस
आशय से िक ऐसा व्यिक्त िकसी आयु म भी वेश्यावृि या िकसी व्यिक्त से अयुक्त संभोग करने के िलए या िकसी िविधिवरु और
दुराचािरक पर्योजन के िलए काम म लाया या उपयोग िकया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए िक ऐसा व्यिक्त, िकसी आयु म भी] ऐसे
िकसी पर्योजन के िलए काम म लाया जाएगा या उपयोग िकया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा, या अन्यथा उसका कब्जा अिभपर्ाप्त
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दण्डनीय होगा ।
[स्पष्टीकरण 1—अठारह वषर् से कम आयु की नारी को खरीदने वाली, भाड़े पर लेने वाली या अन्यथा उसका कब्जा अिभपर्ाप्त
3
करने वाली िकसी वेश्या के या वेश्यागृह चलाने या उसका पर्बन्ध करने वाले िकसी व्यिक्त के बारे म, जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न
कर िदया जाए, यह उपधारणा की जाएगी िक ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अिभपर्ाप्त िकया है िक वह वेश्यावृि के
पर्योजन के िलए उपयोग म लाई जाएगी ।]
[स्पष्टीकरण 2—“अयुक्त संभोग” का वही अथर् है, जो धारा 372 म है ।]
374. िविधिवरु अिनवायर् शर्म—जो कोई िकसी व्यिक्त को उस व्यिक्त की इच्छा के िवरु शर्म करने के िलए िविधिवरु तौर
पर िववश करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से,
दिण्डत िकया जाएगा ।
4
[375. बलात्संग—यिद कोई पुरुष,—
(क) िकसी स्तर्ी की योिन, उसके मुह
ं , मूतर्मागर् या गुदा म अपना िलग िकसी भी सीमा तक पर्वेश करता है या उससे ऐसा
अपने या िकसी अन्य िक्त के साथ कराता है ; या
(ख) िकसी स्तर्ी की योिन, मूतर्मागर् या गुदा म ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो िलग न हो, िकसी भी सीमा
तक अनुपर्िवष्ट करता है या उससे ऐसा अपने या िकसी अन्य िक्त के साथ कराता है ; या
(ग) िकसी स्तर्ी के शरीर के िकसी भाग का इस पर्कार हस्तसाधन करता है िजससे िक उस स्तर्ी की योिन, गुदा, मूतर्मागर् या
शरीर के िकसी भाग म पर्वेशन कािरत िकया जा सके या उससे ऐसा अपने या िकसी अन्य िक्त के साथ कराता है ; या
(घ) िकसी स्तर्ी की योिन, मूतर्मागर्, गुदा पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने या िकसी अन्य िक्त के साथ
कराता है,
तो उसके बारे म यह कहा जाएगा िक उसने बलात्संग िकया है, जहां ऐसा िनम्निलिखत सात भांित की पिरिस्थितय म से िकसी के अधीन
िकया जाता है :—
पहला—उस स्तर्ी की इच्छा के िवरु ।
दूसरा—उस स्तर्ी की सम्मित के िबना ।
तीसरा—उस स्तर्ी की सम्मित से, जब उसकी सम्मित उसे या ऐसे िकसी िक्त को, िजससे वह िहतब है, मृत्यु या उपहित के
भय म डालकर अिभपर्ाप्त की गई है ।
चौथा—उस स्तर्ी की सम्मित से, जब िक वह पुरुष यह जानता है िक वह उस स्तर्ी का पित नह है और उस स्तर्ी ने सम्मित
इस कारण दी है िक वह यह िवश्वास करती है िक वह ऐसा अन्य पुरुष है िजससे वह िविधपूवर्क िववािहत है या िववािहत होने का
िवश्वास करती है ।
1
1924 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1924 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1924 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
4
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 9 ारा पर्ितस्थािपत ।
72
पांचवां—उस स्तर्ी की सम्मित से, जब ऐसी सम्मित देने के समय, वह िवकृ तिच ता या म ता के कारण या उस पुरुष ारा
िक्तगत रूप से या िकसी अन्य व्यिक्त के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदाथर् िदए जाने के कारण, उस बात की,
िजसके बारे म वह सम्मित देती है, पर्कृ ित और पिरणाम को समझने म असमथर् है ।
छठवां—उस स्तर्ी की सम्मित से या उसके िबना, जब वह अठारह वषर् से कम आयु की है ।
सातवां—जब वह स्तर्ी सम्मित संसिू चत करने म असमथर् है ।
स्पष्टीकरण 1—इस धारा के पर्योजन के िलए, “योिन” के अंतगर्त वृह ् भगौष्ठ भी है ।
स्पष्टीकरण 2—सम्मित से कोई स्पष्ट स्वैिच्छक सहमित अिभपर्ेत है, जब स्तर्ी शब्द , संकेत या िकसी पर्कार की मौिखक या
अमौिखक संसूचना ारा िविनिदष्ट लिगक कृ त्य म भाग लेने की इच्छा क्त करती है :
परं तु ऐसी स्तर्ी के बारे म, जो पर्वेशन के कृ त्य का भौितक रूप से िवरोध नह करती है, मातर् इस तथ्य के कारण यह नह समझा
जाएगा िक उसने लिगक िकर्याकलाप के पर्ित सम्मित पर्दान की है ।
अपवाद 1—िकसी िचिकत्सीय पर्िकर्या या अंत:पर्वेशन से बलात्संग गिठत नह होगा ।
अपवाद 2—िकसी पुरुष की अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लिगक कृ त्य, यिद पत्नी पंदर्ह वषर् से कम आयु की न हो,
बलात्संग नह है ।
376. बलात्संग के िलए दंड—(1) जो कोई, उपधारा (2) म उपबंिधत मामल के िसवाय, बलात्संग करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कठोर कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
(2) जो कोई—
(क) पुिलस अिधकारी होते हुए—
(i) उस पुिलस थाने की, िजसम ऐसा पुिलस अिधकारी िनयुक्त है, सीमा के भीतर बलात्संग करे गा; या
(ii) िकसी भी थाने के पिरसर म बलात्संग करे गा ; या
(iii) ऐसे पुिलस अिधकारी की अिभरक्षा म या ऐसे पुिलस अिधकारी के अधीनस्थ िकसी पुिलस अिधकारी
की अिभरक्षा म, िकसी स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(ख) लोक सेवक होते हुए, ऐसे लोक सेवक की अिभरक्षा म या ऐसे लोक सेवक के अधीनस्थ िकसी लोक सेवक की
अिभरक्षा म की िकसी स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(ग) कदर्ीय या िकसी राज्य सरकार ारा िकसी क्षेतर् म अिभिनयोिजत सशस्तर् बल का कोई सदस्य होते हुए, उस क्षेतर्
म बलात्संग करे गा ; या
(घ) तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा या उसके अधीन स्थािपत िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण गृह या अिभरक्षा के अन्य स्थान
के या िस्तर्य या बालक की िकसी संस्था के पर्बंधतंतर् या कमर्चािरवृंद म होते हुए, ऐसी जेल, पर्ितपर्ेषण गृह, स्थान या संस्था के
िकसी िनवासी से बलात्संग करे गा ; या
(ङ) िकसी अस्पताल के पर्बंधतंतर् या कमर्चािरवृंद म होते हुए, उस अस्पताल म िकसी स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(च) स्तर्ी का नातेदार, संरक्षक या अध्यापक अथवा उसके पर्ित न्यास या पर्ािधकारी की हैिसयत म का कोई िक्त
होते हुए, उस स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(छ) सांपर्दाियक या पंथीय िहसा के दौरान बलात्संग करे गा ; या
(ज) िकसी स्तर्ी से यह जानते हुए िक वह गभर्वती है, बलात्संग करे गा ; या
(झ) िकसी स्तर्ी से, जब वह सोलह वषर् से कम आयु की है, बलात्संग करे गा ; या
(ञ) उस स्तर्ी से, जो सम्मित देने म असमथर् है, बलात्संग करे गा ; या
(ट) िकसी स्तर्ी पर िनयंतर्ण या पर्भाव रखने की िस्थित म होते हुए, उस स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(ठ) मानिसक या शारीिरक िन:शक्तता से गर्िसत िकसी स्तर्ी से बलात्संग करे गा ; या
(ड) बलात्संग करते समय िकसी स्तर्ी को गंभीर शारीिरक अपहािन कािरत करे गा या िवकलांग बनाएगा या िवदर्ूिपत
करे गा या उसके जीवन को संकटापन्न करे गा ; या
(ढ) उसी स्तर्ी से बारबार बलात्संग करे गा,
73
वह कठोर कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् से कम की नह होगी, िकन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सके गी, िजससे उस
िक्त के शेष पर्ाकृ त जीवनकाल के िलए कारावास अिभपर्ेत होगा, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए,—
(क) “सशस्तर् बल” से नौसेना बल, सैन्य बल और वायु सैना बल अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त तत्समय पर्वृ िकसी
िविध के अधीन गिठत सशस्तर् बल का, िजसम ऐसे अधर्सैिनक बल और कोई सहायक बल भी ह, जो कदर्ीय सरकार या राज्य
सरकार के िनयंतर्णाधीन ह, कोई सदस्य भी है ;
(ख) “अस्पताल” से अस्पताल का अहाता अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त िकसी ऐसी संस्था का अहाता भी है, जो
स्वास्थ्य लाभ कर रहे िक्तय को या िचिकत्सीय देखरे ख या पुनवार्स की अपेक्षा रखने वाले िक्तय के पर्वेश और उपचार
करने के िलए है ;
(ग) “पुिलस अिधकारी” का वही अथर् होगा जो पुिलस अिधिनयम, 1861 (1861 का 5) के अधीन “पुिलस” पद म
उसका है ;
(घ) “िस्तर्य या बालक की संस्था” से िस्तर्य और बालक को गर्हण करने और उनकी देखभाल करने के िलए
स्थािपत और अनुरिक्षत कोई संस्था अिभपर्ेत है चाहे उसका नाम अनाथालय हो या उपेिक्षत िस्तर्य या बालक के िलए गृह हो
या िवधवा के िलए गृह या िकसी अन्य नाम से ज्ञात कोई संस्था हो ।
376क. पीिड़ता की मृत्यु या लगातार िवकृ तशील दशा कािरत करने के िलए दंड—जो कोई, धारा 376 की उपधारा (1) या
उपधारा (2) के अधीन दंडनीय कोई अपराध करे गा और ऐसे अपराध के दौरान ऐसी कोई क्षित पहुंचाएगा िजससे स्तर्ी की मृत्यु कािरत हो
जाती है या िजसके कारण उस स्तर्ी की दशा लगातार िवकृ तशील हो जाती है, वह ऐसी अविध के कठोर कारावास से, िजसकी अविध बीस
वषर् से कम की नह होगी िकतु जो आजीवन कारावास तक की हो सके गी, िजससे उस िक्त के शेष पर्ाकृ त जीवनकाल के िलए कारावास
अिभपर्ेत होगा, या मृत्युदड
ं से दंिडत िकया जाएगा ।
376ख. पित ारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथन ु —जो कोई, अपनी पत्नी के साथ, जो पृथक्करण की िडकर्ी के
अधीन या अन्यथा, पृथक् रह रही है, उसकी सम्मित के िबना मैथुन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध दो
वषर् से कम की नह होगी िकतु जो सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण— इस धारा म, “मैथुन” से धारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) म विणत कोई कृ त्य अिभपर्ेत है ।
376ग. पर्ािधकार म िकसी व्यिक्त ारा मैथन
ु —जो कोई,—
(क) पर्ािधकार की िकसी िस्थित या वैश्वािसक संबंध रखते हुए ; या
(ख) कोई लोक सेवक होते हुए ; या
(ग) तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा या उसके अधीन स्थािपत िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण-गृह या अिभरक्षा के अन्य
स्थान का या िस्तर्य या बालक की िकसी संस्था का अधीक्षक या पर्बंधक होते हुए ; या
(घ) अस्पताल के पर्बंधतंतर् या िकसी अस्पताल का कमर्चािरवृंद होते हुए,
ऐसी िकसी स्तर्ी को, जो उसकी अिभरक्षा म है या उसके भारसाधन के अधीन है या पिरसर म उपिस्थत है, अपने साथ मैथन ु करने हेतु,
जो बलात्संग के अपराध की कोिट म नह आता है, उत्पर्ेिरत या िवलुब्ध करने के िलए ऐसी िस्थित या वैश्वािसक संबंध का दुरुपयोग
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कठोर कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो दस वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1—इस धारा म, “मैथुन” से धारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) म विणत कोई कृ त्य अिभपर्ेत होगा ।
स्पष्टीकरण 2—इस धारा के पर्योजन के िलए, धारा 375 का स्पष्टीकरण 1 भी लागू होगा ।
स्पष्टीकरण 3—िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण-गृह या अिभरक्षा के अन्य स्थान या िस्तर्य या बालक की िकसी संस्था के संबंध म,
“अधीक्षक” के अंतगर्त कोई ऐसा िक्त है, जो जेल, पर्ितपर्ेषण-गृह, स्थान या संस्था म ऐसा कोई पद धारण करता है िजसके आधार पर वह
उसके िनवािसय पर िकसी पर्ािधकार या िनयंतर्ण का पर्योग कर सकता है ।
स्पष्टीकरण 4—“अस्पताल” और “िस्तर्य या बालक की संस्था” पद का कर्मशः वही अथर् होगा जो धारा 376 की
उपधारा (2) के स्पष्टीकरण म उनका है ।
376घ. सामूिहक बलात्संग—जहां िकसी स्तर्ी से, एक या अिधक िक्तय ारा, एक समूह गिठत करके या सामान्य आशय को
अगर्सर करने म कायर् करते हुए बलात्संग िकया जाता है, वहां उन िक्तय म से पर्त्येक के बारे म यह समझा जाएगा िक उसने बलात्संग
का अपराध िकया है और वह ऐसी अविध के कठोर कारावास से, िजसकी अविध बीस वषर् से कम की नह होगी िकतु जो आजीवन
74
कारावास तक की हो सके गी, िजससे उस िक्त के शेष पर्ाकृ त जीवनकाल के िलए कारावास अिभपर्ेत होगा, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा :
परं तु ऐसा जुमार्ना पीिड़ता के िचिकत्सीय खच को पूरा करने और पुनवार्स के िलए न्यायोिचत और युिक्तयुक्त होगा :
परं तु यह और िक इस धारा के अधीन अिधरोिपत कोई जुमार्ना पीिड़ता को संद िकया जाएगा ।
376ङ. पुनरावृि कतार् अपरािधय के िलए दंड—जो कोई, धारा 376 या धारा 376क या धारा 376घ के अधीन दंडनीय िकसी
अपराध के िलए पूवर् म दंिडत िकया गया है और तत्पश्चात् उक्त धारा म से िकसी के अधीन दंडनीय िकसी अपराध के िलए िस दोष
ठहराया जाता है, आजीवन कारावास से, िजससे उस िक्त के शेष पर्ाकृ त जीवनकाल के िलए कारावास अिभपर्ेत होगा, या मृत्युदड
ं से
दंिडत िकया जाएगा ।]
पर्कृ ित िवरु अपराध के िवषय म
377. पर्कृ ित िवरु अपराध—जो कोई िकसी पुरुष, स्तर्ी या जीवजन्तु के साथ पर्कृ ित की वस्था के िवरु स्वेच्छया
इिन्दर्यभोग करे गा वह 1 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी,
दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म विणत अपराध के िलए आवश्यक इिन्दर्यभोग गिठत करने के िलए पर्वेशन पयार्प्त है ।
अध्याय 17
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
75
(च) िजस गृह पर य का अिधभोग है उसके मेज पर य की अंगूठी क को िमलती है । यहां, वह अंगूठी य के कब्जे म है, और यिद क
उसको बेईमानी से हटाता है, तो वह चोरी करता है ।
(छ) क को राजमागर् पर पड़ी हुई अंगूठी िमलती है, जो िकसी िक्त के कब्जे म नह है । क ने उसके ले लेने से चोरी नह की है,
भले ही उसने संपि का आपरािधक दुिविनयोग िकया हो ।
(ज) य के घर म मेज पर पड़ी हुई य की अंगूठी क देखता है । तलाशी और पता लगने के भय से उस अंगूठी का तुरंत दुिविनयोग
करने का साहस न करते हुए क उस अंगूठी को ऐसे स्थान पर, जहां से उसका य को कभी भी िमलना अित अनिधसम्भा है, इस आशय से
िछपा देता है िक िछपाने के स्थान से उसे उस समय ले ले और बेच दे जबिक उसका खोया जाना याद न रहे । यहां, क ने उस अंगूठी को
पर्थम बार हटाते समय चोरी की है ।
(झ) य को, जो एक जौहरी है, क अपनी घड़ी समय ठीक करने के िलए पिरद करता है । य उसको अपनी दुकान पर ले जाता है ।
क, िजस पर उस जौहरी का, कोई ऐसा ऋण नह है, िजसके िलए िक वह जौहरी उस घड़ी को पर्ितभूित के रूप म िविधपूवर्क रोक सके ,
खुले तौर पर उस दुकान म घुसता है, य के हाथ से अपनी घड़ी बलपूवर्क ले लेता है, और उसको ले जाता है । यहां क ने भले ही आपरािधक
अितचार और हमला िकया हो, उसने चोरी नह की है, क्य िक जो कु छ भी उसने िकया बेईमानी से नह िकया ।
(ञ) यिद उस घड़ी की मरम्मत के संबंध म य को क से धन शोध्य है, और यिद य उस घड़ी को उस ऋण की पर्ितभूित के रूप म
िविधपूवर्क रखे रखता है और क उस घड़ी को य के कब्जे म से इस आशय से ले लेता है िक य को उसके ऋण की पर्ितभूित रूप उस संपि
से वंिचत कर दे तो उसने चोरी की है क्य िक वह उसे बेईमानी से लेता है ।
(ट) और यिद क अपनी घड़ी य के पास पण्यम करने के बाद घड़ी के बदले िलए गए ऋण को चुकाए िबना उसे य के कब्जे म से य
की सम्मित के िबना ले लेता है, तो उसने चोरी की है, य िप वह घड़ी उसकी अपनी ही संपि है, क्य िक वह उसको बेईमानी से लेता है ।
(ठ) क एक वस्तु को उस समय तक रख लेने के आशय से जब तक िक उसके पर्त्यावर्तन के िलए पुरस्कार के रूप म उसे य से धन
अिभपर्ाप्त न हो जाए, य की सम्मि के िबना य के कब्जे म से लेता है । यहां क बेईमानी से लेता है, इसिलए, क ने चोरी की ।
(ड) क, जो य का िमतर् है, य की अनुपिस्थित म य के पुस्तकालय म जाता है, और य की अिभ क्त सम्मित के िबना एक पुस्तक
के वल पढ़ने के िलए और वापस करने के आशय से ले जाता है । यहां यह अिधसम्भा है िक क ने यह िवचार िकया हो िक पुस्तक उपयोग
म लाने के िलए उसको य की िवविक्षत सम्मित पर्ाप्त है, यिद क का यह िवचार था, तो क ने चोरी नह की है ।
(ढ) य की पत्नी से क खैरात मांगता है । वह क को धन, भोजन और कपड़े देती है िजनको क जानता है िक वे उसके पित य के ह ।
यहां, यह अिधसंभा है िक क का यह िवचार हो िक य की पत्नी को िभक्षा देने का पर्ािधकार है । यिद क का यह िवचार था, तो क ने
चोरी नह की है ।
(ण) क, य की पत्नी का जार है । वह क को एक मूल्यवान संपि देती है िजसके संबधं म क यह जानता है िक वह उसके पित य की
है, और वह ऐसी संपि है, िजसको देने का पर्ािधकार उसे य से पर्ाप्त नह है । यिद क उस संपि को बेईमानी से लेता है, तो वह चोरी
करता है ।
(त) य की संपि को अपनी स्वयं की संपि होने का सद्भावपूवर्क िवश्वास करते हुए ख के कब्जे म से उस संपि को क ले लेता
है । यहां क बेईमानी से नह लेता, इसिलए वह चोरी नह करता ।
379. चोरी के िलए दंड—जो कोई चोरी करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
380. िनवास-गृह आिद म चोरी—जो कोई ऐसे िकसी िनमार्ण, तम्बू या जलयान म चोरी करे गा, जो िनमार्ण, तम्बू या जलयान
मानव िनवास के रूप म, या संपि की अिभरक्षा के िलए उपयोग म आता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
381. िलिपक या सेवक ारा स्वामी के कब्जे म संपि की चोरी—जो कोई िलिपक या सेवक होते हुए, या िलिपक या सेवक की
हैिसयत म िनयोिजत होते हुए, अपने मािलक या िनयोक्ता के कब्जे की िकसी संपि की चोरी करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
382. चोरी करने के िलए मृत्यु, उपहित या अवरोध कािरत करने की तैयारी के पश्चात् चोरी—जो कोई चोरी करने के िलए, या
चोरी करने के पश्चात् िनकल भागने के िलए, या चोरी ारा ली गई संपि को रखे रखने के िलए, िकसी िक्त की मृत्यु, या उसे उपहित
या उसका अवरोध कािरत करने की, या मृत्यु का, उपहित का या अवरोध का भय कािरत करने की तैयारी करके चोरी करे गा, वह किठन
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
(क) य के कब्जे म की संपि पर क चोरी करता है और यह चोरी करते समय अपने पास अपने वस्तर् के भीतर एक भरी हुई
िपस्तौल रखता है, िजसे उसने य ारा पर्ितरोध िकए जाने की दशा म य को उपहित करने के िलए अपने पास रखा था । क ने इस धारा म
पिरभािषत अपराध िकया है ।
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(ख) क, य की जेब काटता है, और ऐसा करने के िलए अपने कई सािथय को अपने पास इसिलए िनयुक्त करता है िक यिद य यह
समझ जाए िक क्या हो रहा है और पर्ितरोध करे , या क को पकड़ने का पर्यत्न करे , तो वे य का अवरोध कर । क ने इस धारा म पिरभािषत
अपराध िकया है ।
उ ापन के िवषय म
383. उ ापन—जो कोई िकसी िक्त को स्वयं उस िक्त को या िकसी अन्य िक्त को कोई क्षित करने के भय म साशय डालता
है, और तद् ारा इस पर्कार भय म डाले गए िक्त को, कोई संपि या मूल्यवान पर्ितभूित या हस्ताक्षिरत या मुदर्ांिकत कोई चीज, िजसे
मूल्यवान पर्ितभूित म पिरवितत िकया जा सके , िकसी िक्त को पिरद करने के िलए बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता है, वह “उ ापन”
करता है ।
दृष्टांत
(क) क यह धमकी देता है िक यिद य ने उसको धन नह िदया, तो वह य के बारे म मानहािनकारक अपमानलेख पर्कािशत करे गा ।
अपने को धन देने के िलए वह इस पर्कार य को उत्पर्ेिरत करता है । क ने उ ापन िकया है ।
(ख) क, य को यह धमकी देता है िक यिद वह क को कु छ धन देने के संबंध म अपने आपको आब करने वाला एक वचनपतर्
हस्ताक्षिरत करके क को पिरद नह कर देता, तो वह य के िशशु को सदोष पिररोध म रखेगा । य वचनपतर् हस्ताक्षिरत करके पिरद कर
देता है । क ने उ ापन िकया है ।
(ग) क यह धमकी देता है िक यिद य, ख को कु छ उपज पिरद कराने के िलए शािस्तयुक्त बंधपतर् हस्ताक्षिरत नह करे गा और ख
को न देगा, तो वह य के खेत को जोत डालने के िलए लठै त भेज देगा और तद् ारा य को वह बंधपतर् हस्ताक्षिरत करने के िलए और
पिरद करने के िलए उत्पर्ेिरत करता है । क ने उ ापन िकया है ।
(घ) क, य को घोर उपहित करने के भय म डालकर बेईमानी से य को उत्पर्ेिरत करता है िक वह कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर दे या
अपनी मुदर्ा लगा दे और उसे क को पिरद कर दे । य उस कागज पर हस्ताक्षर करके उसे क को पिरद कर देता है यहां, इस पर्कार
हस्ताक्षिरत कागज मूल्यवान पर्ितभूित म पिरवितत िकया जा सकता है, इसिलए क ने उ ापन िकया है ।
384. उ ापन के िलए दंड—जो कोई उ ापन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
385. उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को क्षित के भय म डालना—जो कोई उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को िकसी क्षित
के पहुंचाने के भय म डालेगा या भय म डालने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
386. िकसी िक्त को मृत्यु या घोर उपहित के भय म डालकर उ ापन—जो कोई िकसी िक्त को स्वयं उसकी या िकसी अन्य
िक्त की मृत्यु या घोर उपहित के भय म डालकर उ ापन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर्
तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
387. उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को मृत्यु या घोर उपहित के भय म डालना—जो कोई उ ापन करने के िलए िकसी
िक्त को स्वयं उसकी या िकसी अन्य िक्त की मृत्यु या घोर उपहित के भय म डालेगा या भय म डालने का पर्यत्न करे गा, वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
388. मृत्यु या आजीवन कारावास, आिद से दंडनीय अपराध का अिभयोग लगाने की धमकी देकर उ ापन—जो कोई िकसी िक्त
को स्वयं उसके िवरु या िकसी अन्य िक्त के िवरु यह अिभयोग लगाने के भय म डालकर िक उसने कोई ऐसा अपराध िकया है, या
करने का पर्यत्न िकया है, जो मृत्यु से या 1 [आजीवन कारावास] से या ऐसे कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी,
दंडनीय है, अथवा यह िक उसने िकसी अन्य िक्त को ऐसा अपराध करने के िलए उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न िकया है, उ ापन करे गा, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा,
तथा यिद वह अपराध ऐसा हो जो इस संिहता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो वह 1[आजीवन कारावास] से दंिडत िकया जा
सके गा ।
389. उ ापन करने के िलए िकसी िक्त को अपराध का अिभयोग लगाने के भय म डालना—जो कोई उ ापन करने के िलए
िकसी िक्त को, स्वयं उसके िवरु या िकसी अन्य िक्त के िवरु यह अिभयोग लगाने का भय िदखलाएगा या यह भय िदखलाने का
पर्यत्न करे गा िक उसने ऐसा अपराध िकया है, या करने का पर्यत्न िकया है, जो मृत्यु से या 1[आजीवन कारावास] से, या दस वषर् तक के
कारावास से दण्डनीय है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ; तथा यिद वह अपराध ऐसा हो जो इस संिहता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो वह 1[आजीवन
कारावास] से दंिडत िकया जा सके गा ।
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1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
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1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
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397. मृत्यु या घोर उपहित कािरत करने के पर्यत्न के साथ लूट या डकै ती—यिद लूट या डकै ती करते समय अपराधी िकसी घातक
आयुध का उपयोग करे गा, या िकसी िक्त को घोर उपहित कािरत करे गा, या िकसी िक्त की मृत्यु कािरत करने या उसे घोर उपहित
कािरत करने का पर्यत्न करे गा, तो वह कारावास, िजससे ऐसा अपराधी दिण्डत िकया जाएगा, सात वषर् से कम का नह होगा ।
398. घातक आयुध से सिज्जत होकर लूट या डकै ती करने का पर्यत्न—यिद लूट या डकै ती करने का पर्यत्न करते समय, अपराधी
िकसी घातक आयुध से सिज्जत होगा, तो वह कारावास, िजससे ऐसा अपराधी दिण्डत िकया जाएगा, सात वषर् से कम का नह होगा ।
399. डकै ती करने के िलए तैयारी करना—जो कोई डकै ती करने के िलए कोई तैयारी करे गा, वह किठन कारावास से, िजसकी
अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
400. डाकु की टोली का होने के िलए दण्ड—जो कोई इस अिधिनयम के पािरत होने के पश्चात् िकसी भी समय ऐसे िक्तय
की टोली का होगा, जो अभ्यासत: डकै ती करने के पर्योजन से सहयुक्त ह , वह 1 [आजीवन कारावास] से, या किठन कारावास से, िजसकी
अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
401. चोर की टोली का होने के िलए दण्ड—जो कोई इस अिधिनयम के पािरत होने के पश्चात् िकसी भी समय ऐसे िक्तय की
िकसी घूमती-िफरती या अन्य टोली का होगा जो, अभ्यासत: चोरी या लूट करने के पर्योजन से सहयुक्त ह और वह टोली ठग या डाकु
की टोली न हो, वह किठन कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा ।
402. डकै ती करने के पर्योजन से एकितर्त होना—जो कोई इस अिधिनयम के पािरत होने के पश्चात् िकसी भी समय डकै ती करने के
पर्योजन से एकितर्त पांच या अिधक िक्तय म से एक होगा, वह किठन कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी,
दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
सम्पि के आपरािधक दुिविनयोग के िवषय म
403. सम्पि का बेईमानी से दुिविनयोग—जो कोई बेईमानी से िकसी जंगम सम्पि का दुिविनयोग करे गा या उसको अपने
उपयोग के िलए संपिरवितत कर लेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने
से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क, य की सम्पि को उस समय जब िक क उस सम्पि को लेता है, यह िवश्वास रखते हुए िक वह सम्पि उसी की है, य के
कब्जे म से सद्भावपूवर्क लेता है । क, चोरी का दोषी नह है । िकन्तु यिद क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस सम्पि का बेईमानी
से अपने िलए िविनयोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(ख) क, जो य का िमतर् है, य की अनुपिस्थित म य के पुस्तकालय म जाता है और य की अिभ क्त सम्मि के िबना एक पुस्तक ले
जाता है । यहां यिद, क का यह िवचार था िक पढ़ने के पर्योजन के िलए पुस्तक लेने की उसको य की िवविक्षत सम्मित पर्ाप्त है, तो क ने
चोरी नह की है । िकन्तु यिद क बाद म उस पुस्तक को अपने फायदे के िलए बेच देता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(ग) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी ह । क उस घोड़े को उपयोग म लाने के आशय से ख के कब्जे म से उसे ले जाता है । यहां,
क को उस घोड़े को उपयोग म लाने का अिधकार है, इसिलए वह उसका बेईमानी से दुिविनयोग नह है । िकन्तु यिद क उस घोड़े को बेच
देता है, और सम्पूणर् आगम का अपने िलए िविनयोग कर लेता है तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
स्पष्टीकरण 1—के वल कु छ समय के िलए बेईमानी से दुिविनयोग करना इस धारा के अथर् के अंतगर्त दुिविनयोग है ।
दृष्टांत
क को य का एक सरकारी वचनपतर् िमलता है, िजस पर िनरं क पृष्ठांकन है । क, यह जानते हुए िक वह वचनपतर् य का है, उसे ऋण
के िलए पर्ितभूित के रूप म बककार के पास इस आशय से िगरवी रख देता है िक वह भिवष्य म उसे य को पर्त्यावितत कर देगा । क ने इस
धारा के अधीन अपराध िकया है ।
स्पष्टीकरण 2—-िजस िक्त को ऐसी सम्पि पड़ी िमल जाती है, जो िकसी अन्य िक्त के कब्जे म नह है और वह उसके स्वामी
के िलए उसको संरिक्षत रखने या उसके स्वामी को उसे पर्त्यावितत करने के पर्योजन से ऐसी सम्पि को लेता है, वह न तो बेईमानी से उसे
लेता है और न बेईमानी से उसका दुिविनयोग करता है, और िकसी अपराध का दोषी नह है, िकन्तु वह ऊपर पिरभािषत अपराध का
दोषी है, यिद वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज िनकालने के साधन रखते हुए अथवा उसके स्वामी को खोज िनकालने और सूचना
देने के युिक्तयुक्त साधन उपयोग म लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समथर् करने के िलए उस सम्पि की युिक्तयुक्त
समय तक रखे रखने के पूवर् उसको अपने िलए िविनयोिजत कर लेता है ।
ऐसी दशा म युिक्तयुक्त साधन क्या ह, या युिक्तयुक्त समय क्या है, यह तथ्य का पर्श्न है ।
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1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
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यह आवश्यक नह है िक पाने वाला यह जानता हो िक सम्पि का स्वामी कौन है या यह िक कोई िविशष्ट िक्त उसका स्वामी
है । यह पयार्प्त है िक उसको िविनयोिजत करते समय उसे यह िवश्वास नह है िक वह उसकी अपनी सम्पि है, या सद्भावपूवर्क यह
िवश्वास है िक उसका असली स्वामी नह िमल सकता ।
दृष्टांत
(क) क को राजमागर् पर एक रुपया पड़ा िमलता है । यह न जानते हुए िक वह रुपया िकसका है क उस रुपए को उठा लेता है । यहां
क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध नह िकया है ।
(ख) क को सड़क पर एक िच ी पड़ी िमलती है, िजसम एक बक नोट है । उस िच ी म िदए हुए िनदेश और िवषय-वस्तु से उसे ज्ञात
हो जाता है िक वह नोट िकसका है । वह उस नोट का िविनयोग कर लेता है । वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(ग) वाहक-देय एक चेक क को पड़ा िमलता है । वह उस िक्त के संबंध म िजसका चेक खोया है, कोई अनुमान नह लगा सकता,
िकन्तु उस चेक पर उस िक्त का नाम िलखा है, िजसने वह चेक िलखा है । क यह जानता है िक वह िक्त क को उस िक्त का पता
बता सकता है िजसके पक्ष म वह चेक िलखा गया था, क उसके स्वामी को खोजने का पर्यत्न िकए िबना उस चेक का िविनयोग कर लेता
है । वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(घ) क देखता है िक य की थैली, िजसम धन है, य से िगर गई है । क वह थैली य को पर्त्यावितत करने के आशय से उठा लेता है ।
िकन्तु तत्पश्चात् उसे अपने उपयोग के िलए िविनयोिजत कर लेता है । क ने इस धारा के अधीन अपराध िकया है ।
(ङ) क को एक थैली, िजसम धन है, पड़ी िमलती है । वह नह जानता है िक वह िकसकी है । उसके पश्चात् उसे यह पता चल जाता
है िक वह य की है, और वह उसे अपने उपयोग के िलए िविनयुक्त कर लेता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
(च) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी िमलती है । वह नह जानता है िक वह िकसकी है । क उसके स्वामी को खोज िनकालने का
पर्यत्न िकए िबना उसे तुरन्त बेच देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
404. ऐसी सम्पि का बेईमानी से दुिविनयोग जो मृत िक्त की मृत्यु के समय उसके कब्जे म थी—जो कोई िकसी सम्पि को,
यह जानते हुए िक ऐसी सम्पि िकसी िक्त की मृत्यु के समय उस मृत िक्त के कब्जे म थी, और तब से िकसी िक्त के कब्जे म नह
रही है, जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है, बेईमानी से दुिविनयोिजत करे गा या अपने उपयोग म संपिरवितत कर लेगा, वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा, और
यिद वह अपराधी, ऐसे िक्त की मृत्यु के समय िलिपक या सेवक के रूप म उसके ारा िनयोिजत था, तो कारावास सात वषर् तक का हो
सके गा ।
दृष्टांत
य के कब्जे म फन चर और धन था । वह मर जाता है । उसका सेवक क, उस धन के िकसी ऐसे िक्त के कब्जे म आने से पूवर्, जो
ऐसे कब्जे का हकदार है बेईमानी से उसका दुिविनयोग करता है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
आपरािधक न्यासभंग के िवषय म
405. आपरािधक न्यासभंग—जो कोई सम्पि या सम्पि पर कोई भी अखत्यार िकसी पर्कार अपने को न्यस्त िकए जाने पर उस
सम्पि का बेईमानी से दुिविनयोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग म संपिरवितत कर लेता है या िजस पर्कार ऐसा न्यास िनवर्हन िकया
जाना है, उसको िविहत करने वाली िविध के िकसी िनदेश का, या ऐसे न्यास के िनवर्हन के बारे म उसके ारा की गई िकसी अिभ क्त या
िवविक्षत वैध संिवदा का अितकर्मण करके बेईमानी से उस सम्पि का उपयोग या यन करता है, या जानबूझकर िकसी अन्य िक्त का
ऐसा करना सहन करता है, वह “आपरािधक न्यास भंग” करता है ।
[स्पष्टीकरण 2 [1]—जो िक्त, 3 [िकसी स्थापन का िनयोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कमर्चारी भिवष्य-िनिध और पर्कीणर्
1
उपबंध अिधिनयम, 1952 (1952 का 19) की धारा 17 के अधीन छू ट पर्ाप्त है या नह ], तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा स्थािपत
भिवष्य-िनिध या कु टुंब पशन िनिध म जमा करने के िलए कमर्चारी-अिभदाय की कटौती कमर्चारी को संदय
े मजदूरी म से करता है उसके
बारे म यह समझा जाएगा िक उसके ारा इस पर्कार कटौती िकए गए अिभदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यिद वह उक्त
िनिध म ऐसे अिभदाय का संदाय करने म, उक्त िविध का अितकर्मण करके ितकर्म करे गा तो उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसने
यथापूव क्त िविध के िकसी िनदेश का अितकर्मण करके उक्त अिभदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग िकया है ।]
[स्पष्टीकरण 2—जो िक्त, िनयोजक होते हुए, कमर्चारी राज्य बीमा अिधिनयम, 1948 (1948 का 34) के अधीन स्थािपत
4
कमर्चारी राज्य बीमा िनगम ारा धािरत और शािसत कमर्चारी राज्य बीमा िनगम िनिध म जमा करने के िलए कमर्चारी को संदय े
मजदूरी म से कमर्चारी-अिभदाय की कटौती करता है, उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसे अिभदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई
1
1973 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
2
1975 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 9 ारा स्पष्टीकरण को स्पष्टीकरण 1 के रूप म संख्यांिकत िकया गया ।
3
1988 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 27 ारा “िनयोजक होते हुए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1975 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
80
है, िजसकी उसने इस पर्कार कटौती की है और यिद वह उक्त िनिध म ऐसे अिभदाय के संदाय करने म, उक्त अिधिनयम का अितकर्मण
करके , ितकर्म करता है, तो उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसने यथापूव क्त िविध के िकसी िनदेश का अितकर्मण करके उक्त
अिभदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग िकया है ।]
दृष्टांत
(क) क एक मृत िक्त की िवल का िनष्पादक होते हुए उस िविध की, जो चीजबस्त को िवल के अनुसार िवभािजत करने के िलए
उसको िनदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के िलए िविनयुक्त कर लेता है । क ने आपरािधक
न्यासभंग िकया है ।
(ख) क भांडागािरक है । य यातर्ा को जाते हुए अपना फन चर क के पास उस संिवदा के अधीन न्यस्त कर जाता है िक वह भांडागार
के कमरे के िलए ठहराई गई रािश के दे िदए जाने पर लौटा िदया जाएगा । क उस माल को बेईमानी से बेच देता है । क ने आपरािधक
न्यासभंग िकया है ।
(ग) क, जो कलक ा म िनवास करता है, य का, जो िदल्ली म िनवास करता है अिभकतार् है । क और य के बीच यह अिभ क्त या
िवविक्षत संिवदा है िक य ारा क को पर्ेिषत सब रािशयां क ारा य के िनदेश के अनुसार िविनिहत की जाएंगी । य, क को इन िनदेश के
साथ एक लाख रुपए भेजता है िक उसको कं पनी पतर् म िविनिहत िकया जाए । क उन िनदेश की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस
धन को अपने कारबार के उपयोग म ले आता है । क ने आपरािधक न्यासभंग िकया है ।
(घ) िकतु यिद िपछले दृष्टांत म क बेईमानी से नह पर्त्युत सद्भावपूवर्क यह िवश्वास करते हुए िक बक आफ बंगाल म अंश धारण
करना य के िलए अिधक फायदापर्द होगा, य के िनदेश की अवज्ञा करता है, और कं पनी पतर् खरीदने के बजाय य के िलए बक आफ बंगाल
के अंश खरीदता है, तो य िप य को हािन हो जाए और उस हािन के कारण, वह क के िवरु िसिवल कायर्वाही करने का हकदार हो,
तथािप, यत: क ने, बेईमानी से कायर् नह िकया है, उसने आपरािधक न्यासभंग नह िकया है ।
(ङ) एक राजस्व आिफसर, क के पास लोक धन न्यस्त िकया गया है और वह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त िकया गया है,
एक िनिश्चत खजाने म जमा कर देने के िलए या तो िविध ारा िनदिशत है या सरकार के साथ अिभ क्त या िवविक्षत संिवदा ारा
आब है । क उस धन को बेईमानी से िविनयोिजत कर लेता है । क ने आपरािधक न्यासभंग िकया है ।
(च) भूिम से या जल से ले जाने के िलए य ने क के पास, जो एक वाहक है, संपि न्यस्त की है । क उस संपि का बेईमानी से
दुिविनयोग कर लेता है । क ने आपरािधक न्यासभंग िकया है ।
406. आपरािधक न्यासभंग के िलए दंड—जो कोई आपरािधक न्यासभंग करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
407. वाहक, आिद ारा आपरािधक न्यासभंग—जो कोई वाहक, घाटवाल, या भांडागािरक के रूप म अपने पास संपि न्यस्त
िकए जाने पर ऐसी संपि के िवषय म आपरािधक न्यासभंग करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर्
तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
408. िलिपक या सेवक ारा आपरािधक न्यासभंग—जो कोई िलिपक या सेवक होते हुए, या िलिपक या सेवक के रूप म िनयोिजत
होते हुए, और इस नाते िकसी पर्कार संपि , या संपि पर कोई भी अख्त्यार अपने म न्यस्त होते हुए, उस संपि के िवषय म आपरािधक
न्यासभंग करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
409. लोक सेवक ारा या बकर, ापारी या अिभकतार् ारा आपरािधक न्यासभंग—जो कोई लोक सेवक के नाते अथवा बकर,
ापारी, फै क्टर, दलाल, अटन या अिभकतार् के रूप म अपने कारबार के अनुकर्म म िकसी पर्कार संपि या संपि पर कोई भी अख्त्यार
अपने को न्यस्त होते हुए उस संपि के िवषय म आपरािधक न्यासभंग करे गा, वह 1 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
3 चुराई हुई संपि पर्ाप्त करने के िवषय म
410. चुराई हुई संपि —वह संपि , िजसका कब्जा चोरी ारा, या उ ापन ारा या लूट ारा अंतिरत िकया गया है, और वह
संपि , िजसका आपरािधक दुिविनयोग िकया गया है, या िजसके िवषय म आपरािधक न्यासभंग 2 *** िकया गया है, चुराई हुई “संपि ”
कहलाती है, 3 [चाहे वह अंतरण या वह दुिविनयोग या न्यासभंग 4 [भारत] के भीतर िकया गया हो या बाहर] । िकतु यिद ऐसी संपि
तत्पश्चात् ऐसे िक्त के कब्जे म पहुंच जाती है, जो उसके कब्जे के िलए वैध रूप से हकदार है, तो वह चुराई हुई संपि नह रह जाती ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1891 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 और अनुसूची 1 और 1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 9 ारा “का अपराध” शब्द िनरिसत ।
3
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
4
“िबर्िटश भारत” शब्द के स्थान पर, अनुकर्मशः भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
81
411. चुराई हुई संपि को बेईमानी से पर्ाप्त करना—जो कोई िकसी चुराई हुई संपि को, यह जानते हुए या िवश्वास करने का
कारण रखते हुए िक वह चुराई हुई संपि है, बेईमानी से पर्ाप्त करे गा या रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
412. ऐसी संपि को बेईमानी से पर्ाप्त करना जो डकै ती करने म चुराई गई है—जो कोई ऐसी चुराई गई संपि को बेईमानी से
पर्ाप्त करे गा या रखे रखेगा, िजसके कब्जे के िवषय म वह यह जानता है या िवश्वास करने का कारण रखता है िक वह डकै ती ारा अंतिरत
की गई है, अथवा िकसी ऐसे िक्त से, िजसके संबध ं म वह यह जानता है या िवश्वास करने का कारण रखता है िक वह डाकु की टोली
का है या रहा है, ऐसी संपि , िजसके िवषय म वह यह जानता है या िवश्वास करने का कारण रखता है िक वह चुराई हुई है, बेईमानी से
पर्ाप्त करे गा, वह 1[आजीवन कारावास] से, या किठन कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और
जुमार्ने से भी, दंडनीय होगा ।
413. चुराई हुई संपि का अभ्यासत: ापार करना—जो कोई ऐसी संपि , िजसके संबंध म वह यह जानता है, या िवश्वास करने
का कारण रखता है िक वह चुराई हुई संपि है, अभ्यासत: पर्ाप्त करे गा, या अभ्यासत: उसम वहार करे गा, वह 1 [आजीवन कारावास]
से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा ।
414. चुराई हुई संपि िछपाने म सहायता करना—जो कोई ऐसी संपि को िछपाने म, या यिनत करने म, या इधर-उधर करने
म स्वेच्छया सहायता करे गा, िजसके िवषय म वह यह जानता है या िवश्वास करने का कारण रखता है िक वह चुराई हुई संपि है, वह
दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
5 छल के िवषय म
415. छल—जो कोई िकसी िक्त से पर्वंचना कर उस िक्त को, िजसे इस पर्कार पर्वंिचत िकया गया है, कपटपूवर्क या बेईमानी
से उत्पर्ेिरत करता है िक वह कोई संपि िकसी िक्त को पिरद कर दे, या यह सम्मित दे दे िक कोई िक्त िकसी संपि को रख रखे
या साशय उस िक्त को, िजसे इस पर्कार पर्वंिचत िकया गया है, उत्पर्ेिरत करता है िक वह ऐसा कोई कायर् करे , या करने का लोप करे ,
िजसे वह यिद उसे हर पर्कार पर्वंिचत न िकया गया होता तो, न करता, या करने का लोप न करता, और िजस कायर् या लोप से उस िक्त
को शारीिरक, मानिसक, ख्याित संबंधी या साम्पि क नुकसान या अपहािन कािरत होती है, या कािरत होनी सभ्भा है, वह “छल”
करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण—तथ्य का बेईमानी से िछपाना इस धारा के अथर् के अंतगर्त पर्वंचना है ।
दृष्टांत
(क) क िसिवल सेवा म होने का िमथ्या अपदेश करके साशय य से पर्वंचना करता है, और इस पर्कार बेईमानी से य को उत्पर्ेिरत
करता है िक वह उसे उधार पर माल ले लेने दे, िजसका मूल्य चुकाने का उसका इरादा नह है । क छल करता है ।
(ख) क एक वस्तु पर कू टकृ त िचह्न बनाकर य से साशय पर्वंचना करके उसे यह िवश्वास कराता है िक वह वस्तु िकसी पर्िस
िविनमार्ता ारा बनाई गई है, और इस पर्कार उस वस्तु का कर्य करने और उसका मूल्य चुकाने के िलए य को बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता
है । क छल करता है ।
(ग) क, य को िकसी वस्तु का, नकली सैम्पल िदखलाकर य से साशय पर्वंचना करके उसे यह िवश्वास कराता है िक वह वस्तु उस
सैम्पल के अनुरूप है, और तद् ारा उस वस्तु को खरीदने और उसका मूल्य चुकाने के िलए य को बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता है । क छल
करता है ।
(घ) क िकसी वस्तु का मूल्य देने म ऐसी कोठी पर हुंडी करके , जहां क का कोई धन जमा नह है, और िजसके ारा क को हुंडी का
अनादर िकए जाने की पर्त्याशा है, आशय से य की पर्वंचना करता है, और तद् ारा बेईमानी से य को उत्पर्ेिरत करता है िक वह वस्तु
पिरद कर दे िजसका मूल्य चुकाने का उसका आशय नह है । क छल करता है ।
(ङ) क ऐसे नग को, िजनको वह जानता है िक वे हीरे नह ह, हीर के रूप म िगरवी रखकर य से साशय पर्वंचना करता है, और
तद् ारा धन उधार देने के िलए य को बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता है । क छल करता है ।
(च) क साशय पर्वंचना करके य को यह िवश्वास कराता है िक क को जो धन य उधार देगा उसे वह चुका देगा, और तद् ारा
बेईमानी से य को उत्पर्ेिरत करता है िक वह उसे धन उधार दे दे, जबिक क का आशय उस धन को चुकाने का नह है । क छल करता है ।
(छ) क, य से साशय पर्वंचना करके यह िवश्वास िदलाता है िक क का इरादा य को नील के पौध का एक िनिश्चत पिरमाण पिरद
करने का है, िजसको पिरद करने का उसका आशय नह है, और तद् ारा ऐसे पिरदान के िवश्वास पर अिगर्म धन देने के िलए य को
बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता है । क छल करता है । यिद क धन अिभपर्ाप्त करते समय नील पिरद करने का आशय रखता हो, और उसके
पश्चात् अपनी संिवदा भंग कर दे और वह उसे पिरद न करे , तो वह छल नह करता है, िकतु संिवदा भंग करने के िलए के वल िसिवल
कायर्वाही के दाियत्व के अधीन है ।
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
82
(ज) क साशय पर्वंचना करके य को यह िवश्वास िदलाता है िक क ने य के साथ की गई संिवदा के अपने भाग का पालन कर िदया
है, जब िक उसका पालन उसने नह िकया है, और तद् ारा य को बेईमानी से उत्पर्ेिरत करता है िक वह धन दे । क छल करता है ।
(झ) क, ख को एक संपदा बेचता है और हस्तांतिरत करता है । क यह जानते हुए िक ऐसे िवकर्य के पिरणामस्वरूप उस संपि पर
उसका कोई अिधकार नह है, ख को िकए गए पूवर् िवकर्य और हस्तांतरण के तथ्य को पर्कट न करते हुए उसे य के हाथ बेच देता है या
बंधक रख देता है, और य से िवकर्य या बंधक धन पर्ाप्त कर लेता है । क छल करता है ।
416. पर्ितरूपण ारा छल—कोई िक्त “पर्ितरूपण ारा छल करता है”, यह तब कहा जाता है, जब वह यह अपदेश करके िक
वह कोई अन्य िक्त है, या एक िक्त को िकसी अन्य िक्त के रूप म जानते हुए पर्ितस्थािपत करके , या यह पिदष्ट करके िक वह
या कोई अन्य िक्त, कोई ऐसा िक्त है, जो वस्तुत: उससे या अन्य िक्त से िभन्न है, छल करता है ।
स्पष्टीकरण—यह अपराध हो जाता है चाहे वह िक्त िजसका पर्ितरूपण िकया गया है, वास्तिवक िक्त हो या काल्पिनक ।
दृष्टांत
(क) क उसी नाम का अमुक धनवान बकर है इस अपदेश ारा छल करता है । क पर्ितरूपण ारा छल करता है ।
(ख) ख, िजसकी मृत्यु हो चुकी है, होने का अपदेश करने ारा क छल करता है । क पर्ितरूपण ारा छल करता है ।
417. छल के िलए दंड—जो कोई छल करे गा, दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी,
या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
418. इस ज्ञान के साथ छल करना िक उस िक्त को सदोष हािन हो सकती है िजसका िहत संरिक्षत रखने के िलए अपराधी
आब है—जो कोई इस ज्ञान के साथ छल करे गा िक यह सम्भा है िक वह तद् ारा उस िक्त को सदोष हािन पहुंचाए, िजसका िहत
उस सं वहार म िजससे वह छल संबंिधत है, संरिक्षत रखने के िलए वह या तो िविध ारा, या वैध संिवदा ारा, आब था, वह दोन म
से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
419. पर्ितरूपण ारा छल के िलए दंड—जो कोई पर्ितरूपण ारा छल करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
420. छल करना और संपि पिरद करने के िलए बेईमानी से उत्पर्ेिरत करना—जो कोई छल करे गा, और तद् ारा उस िक्त
को, िजसे पर्वंिचत िकया गया है, बेईमानी से उत्पर्ेिरत करे गा िक वह कोई संपि िकसी िक्त को पिरद कर दे, या िकसी भी मूल्यवान
पर्ितभूित को, या िकसी चीज को, जो हस्ताक्षिरत या मुदर्ांिकत है, और जो मूल्यवान पर्ितभूित म संपिरवितत िकए जाने योग्य है, पूणर्त:
या अंशत: रच दे, पिरवितत कर दे, या नष्ट कर दे, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
4 कपटपूणर् िवलेख और संपि यन के िवषय म
421. लेनदार म िवतरण िनवािरत करने के िलए संपि का बेईमानी से या कपटपूवक र् अपसारण या िछपाना—जो कोई िकसी
संपि का अपने लेनदार या िकसी अन्य िक्त के लेनदार के बीच िविध के अनुसार िवतिरत िकया जाना तद् ारा िनवािरत करने के
आशय से, या तद् ारा सम्भा त: िनवािरत करे गा यह जानते हुए उस संपि को बेईमानी से या कपटपूवर्क अपसािरत करे गा या
िछपाएगा या िकसी िक्त को पिरद करे गा या पयार्प्त पर्ितफल के िबना िकसी िक्त को अंतिरत करे गा या कराएगा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
422. ऋण को लेनदार के िलए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूवक र् िनवािरत करना—जो कोई िकसी ऋण का या मांग का,
जो स्वयं उसको या िकसी अन्य िक्त को शोध्य हो, अपने या ऐसे अन्य िक्त के ऋण को चुकाने के िलए िविध के अनुसार उपलभ्य
होना कपटपूवर्क या बेईमानी से िनवािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी,
या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
423. अन्तरण के ऐसे िवलेख का, िजसम पर्ितफल के संबध ं म िमथ्या कथन अन्तिवष्ट है, बेईमानी से या कपटपूवक
र् िनष्पादन—जो
कोई बेईमानी से या कपटपूवर्क िकसी ऐसे िवलेख या िलखत को हस्ताक्षिरत करे गा, िनष्पािदत करे गा, या उसका पक्षकार बनेगा, िजससे
िकसी सम्पि का, या उसम के िकसी िहत का, अंतिरत िकया जाना, या िकसी भार के अधीन िकया जाना, तात्पियत है, और िजसम ऐसे
अंतरण या भार के पर्ितफल से संबंिधत, या उस िक्त या उन िक्तय से संबंिधत, िजसके या िजनके उपयोग या फायदे के िलए उसका
पर्वितत होना वास्तव म आशियत है, कोई िमथ्या कथन अन्तिवष्ट है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर्
तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
424. सम्पि का बेईमानी से या कपटपूवक र् अपसारण या िछपाया जाना—जो कोई बेईमानी से या कपटपूवर्क अपनी या िकसी
अन्य िक्त की िकसी सम्पि को िछपाएगा या अपसािरत करे गा, या उसके िछपाए जाने म या अपसािरत िकए जाने म बेईमानी से या
कपटपूवर्क सहायता करे गा, या बेईमानी से िकसी ऐसी मांग या दावे को, िजसका वह हकदार है, छोड़ देगा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
83
िरिष्ट के िवषय म
425. िरिष्ट—जो कोई इस आशय से, या यह सम्भा जानते हुए िक, वह लोक को या िकसी िक्त को सदोष हािन या नुकसान
कािरत करे , िकसी सम्पि का नाश या िकसी सम्पि म या उसकी िस्थित म ऐसी तब्दीली कािरत करता है, िजससे उसका मूल्य या
उपयोिगता नष्ट या कम हो जाती है, या उस पर क्षितकारक पर्भाव पड़ता है, वह “िरिष्ट” करता है ।
स्पष्टीकरण 1—िरिष्ट के अपराध के िलए यह आवश्यक नह है िक अपराधी क्षितगर्स्त या नष्ट सम्पि के स्वामी को हािन या
नुकसान कािरत करने का आशय रखे । यह पयार्प्त है िक उसका यह आशय है या वह यह सम्भा जानता है िक वह िकसी सम्पि को
क्षित करके िकसी िक्त को, चाहे वह सम्पि उस िक्त की हो या नह , सदोष हािन या नुकसान कािरत करे ।
स्पष्टीकरण 2—ऐसी सम्पि पर पर्भाव डालने वाले कायर् ारा, जो उस कायर् को करने वाले िक्त की हो, या संयुक्त रूप से उस
िक्त की और अन्य िक्तय की हो, िरिष्ट की जा सके गी ।
दृष्टांत
(क) य की सदोष हािन कािरत करने के आशय से य की मूल्यवान पर्ितभूित को क स्वेच्छया जला देता है। क ने िरिष्ट की है ।
(ख) य की सदोष हािन करने के आशय से, उसके बफर् -घर म क पानी छोड़ देता है, और इस पर्कार बफर् को गला देता है । क ने
िरिष्ट की है ।
(ग) क इस आशय से य की अंगूठी नदी म स्वेच्छया फक देता है िक य को तद् ारा सदोष हािन कािरत करे । क ने िरिष्ट की है ।
(घ) क यह जानते हुए िक उसकी चीज-बस्त उस ऋण की तुिष्ट के िलए जो य को उस ारा शोध्य है, िनष्पादन म ली जाने वाली
है, उस चीज-बस्त को इस आशय से नष्ट कर देता है िक ऐसा करके ऋण की तुिष्ट अिभपर्ाप्त करने म य को िनवािरत कर दे और इस
पर्कार य को नुकसान कािरत करे । क ने िरिष्ट की है ।
(ङ) क एक पोत का बीमा कराने के पश्चात् उसे इस आशय से िक बीमा करने वाल को नुकसान कािरत करे , उसको स्वेच्छया
संत्यक्त करा देता है । क ने िरिष्ट की है ।
(च) य को, िजसने बाटमरी पर धन उधार िदया है, नुकसान कािरत करने के आशय से क उस पोत को संत्यक्त करा देता है । क ने
िरिष्ट की है ।
(छ) य के साथ एक घोड़े म संयुक्त संपि रखते हुए य को सदोष हािन कािरत करने के आशय से क उस घोड़े को गोली मार देता
है । क ने िरिष्ट की है ।
(ज) क इस आशय से और यह सम्भा जानते हुए िक वह य की फसल को नुकसान कािरत करे , य के खेत म ढोर का पर्वेश कािरत
कर देता है, क ने िरिष्ट की है ।
426. िरिष्ट के िलए दण्ड—जो कोई िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन मास तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
427. िरिष्ट िजससे पचास रुपए का नुकसान होता है—जो कोई िरिष्ट करे गा और तद् ारा पचास रुपए या उससे अिधक िरिष्ट की
हािन या नुकसान कािरत करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
428. दस रुपए के मूल्य के जीवजन्तु को वध करने या उसे िवकलांग करने ारा िरिष्ट—जो कोई दस रुपए या उससे अिधक के
मूल्य के िकसी जीवजन्तु या जीवजन्तु को वध करने, िवष देन,े िवकलांग करने या िनरुपयोगी बनाने ारा िरिष्ट करे गा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
429. िकसी मूल्य के ढोर, आिद को या पचास रुपए के मूल्य के िकसी जीवजन्तु को वध करने या उसे िवकलांग करने ारा िरिष्ट—
जो कोई िकसी हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भस, सांड़, गाय या बैल को, चाहे उसका कु छ भी मूल्य हो, या पचास रुपए या उससे अिधक
मूल्य के िकसी भी अन्य जीवजन्तु को वध करने, िवष देन,े िवकलांग करने या िनरुपयोगी बनाने ारा िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
430. िसचन संकमर् को क्षित करने या जल को दोषपूवक र् मोड़ने ारा िरिष्ट—जो कोई िकसी ऐसे कायर् के करने ारा िरिष्ट करे गा,
िजससे कृ िषक पर्योजन के िलए, या मानव पर्ािणय के या उन जीवजन्तु के , जो सम्पि है, खाने या पीने के , या सफाई के या िकसी
िविनमार्ण को चलाने के जलपर्दाय म कमी कािरत होती हो या कमी कािरत होना वह सम्भा जानता हो वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
431. लोक सड़क, पुल, नदी या जलसरणी को क्षित पहुंचाकर िरिष्ट—जो कोई िकसी ऐसे कायर् के करने ारा िरिष्ट करे गा, िजससे
िकसी लोक सड़क, पुल, ना , नदी या पर्ाकृ ितक या कृ ितर्म ना जलसरणी को यातर्ा या सम्पि पर्वहण के िलए अगम्य या कम िनरापद
बना िदया जाए या बना िदया जाना वह सम्भा जानता हो, वह दोन म से, िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
84
432. लोक जल िनकास म नुकसानपर्द जलप्लावन या बाधा कािरत करने ारा िरिष्ट—जो कोई िकसी ऐसे कायर् के करने ारा
िरिष्ट करे गा, िजससे िकसी लोक जलिनकास म क्षितपर्द या नुकसानपर्द जलप्लावन या बाधा कािरत हो जाए, या होना वह सम्भा
जानता हो, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत
िकया जाएगा ।
433. िकसी दीपगृह या समुदर्ी-िचह्न को नष्ट करके , हटाकर या कम उपयोगी बनाकर िरिष्ट—जो कोई िकसी दीपगृह को, या
समुदर्ी-िचह्न के रूप म उपयोग म आने वाले अन्य पर्काश के , या िकसी समुदर्ी-िचह्न या बोया या अन्य चीज के , जो नौ-चालक के िलए
मागर् पर्दशर्न के िलए रखी गई हो, नष्ट करने या, हटाने ारा अथवा कोई ऐसा कायर् करने ारा, िजससे कोई ऐसा दीपगृह, समुदर्ी-िचह्न,
बोया या पूव क्त जैसी अन्य चीज नौ-चालक के िलए मागर् पर्दशर्क के रूप म कम उपयोगी बन जाए, िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
434. लोक पर्ािधकारी ारा लगाए गए भूिम िचह्न के नष्ट करने या हटाने आिद ारा िरिष्ट—जो कोई लोक सेवक के पर्ािधकार
ारा लगाए गए िकसी भूिम िचह्न के नष्ट करने या हटाने ारा अथवा कोई ऐसा कायर् करने ारा, िजससे ऐसा भूिम िचह्न ऐसे भूिम
िचह्न के रूप म कम उपयोगी बन जाए, िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो
सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
435. सौ रुपए का या (कृ िष उपज की दशा म) दस रुपए का नुकसान कािरत करने के आशय से अिग्न या िवस्फोटक पदाथर् ारा
िरिष्ट—जो कोई िकसी सम्पि को, एक सौ रुपए या उससे अिधक का 1 [या (जहां िक सम्पि कृ िष उपज हो, वहां) दस रुपए या उससे
अिधक] का नुकसान कािरत करने के आशय से, या यह सम्भा जानते हुए िक वह तद् ारा ऐसा नुकसान कािरत करे गा, अिग्न या िकसी
िवस्फोटक पदाथर् ारा िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
436. गृह आिद को नष्ट करने के आशय से अिग्न या िवस्फोटक पदाथर् ारा िरिष्ट—जो कोई िकसी ऐसे िनमार्ण का, जो मामूली
तौर पर उपासना स्थान के रूप म या मानव-िवकास के रूप म या संपि की अिभरक्षा के स्थान के रूप म उपयोग म आता हो, नाश
कािरत करने के आशय से, या यह सभ्भा जानते हुए िक वह तद् ारा उसका नाश कािरत करे गा, अिग्न या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा
िरिष्ट करे गा, वह 2 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत
िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
437. तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से िरिष्ट—जो कोई िकसी तल्लायुक्त
जलयान या बीस टन या उससे अिधक बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बना देने के आशय से, या यह संभा जानते हुए िक
वह तद् ारा उसे नष्ट करे गा, या सापद बना देगा, उस जलयान की िरिष्ट करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
438. धारा 437 म विणत अिग्न या िवस्फोटक पदाथर् ारा की गई िरिष्ट के िलए दंड—जो कोई अिग्न या िकसी िवस्फोटक पदाथर्
ारा ऐसी िरिष्ट करे गा या करने का पर्यत्न करे गा, जैसी अंितम पूवर्वत धारा म विणत है, वह 2[आजीवन कारावास] से, या दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
439. चोरी, आिद करने के आशय से जलयान को साशय भूिम या िकनारे पर चढ़ा देने के िलए दंड—जो कोई िकसी जलयान को
यह आशय रखते हुए िक वह उसम अंतिवष्ट िकसी संपि की चोरी करे या बेईमानी से ऐसी िकसी संपि का दुिविनयोग करे , या इस
आशय से िक ऐसी चोरी या संपि का दुिविनयोग िकया जाए, साशय भूिम पर चढ़ा देगा या िकनारे से लगा देगा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
440. मृत्यु या उपहित कािरत करने की तैयारी के पश्चात् की गई िरिष्ट—जो कोई िकसी िक्त को मृत्यु या उसे उपहित या
उसका सदोष अवरोध कािरत करने की अथवा मृत्यु का, या उपहित का, या सदोष अवरोध का भय कािरत करने की, तैयारी करके िरिष्ट
करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
आपरािधक अितचार के िवषय म
441. आपरािधक अितचार—जो कोई ऐसी संपि म या ऐसी संपि पर, जो िकसी दूसरे के कब्जे म है, इस आशय से पर्वेश करता
है, िक वह कोई अपराध करे या िकसी िक्त को, िजसके कब्जे म ऐसी संपि है ; अिभतर्स्त, अपमािनत या क्षुब्ध करे ,
अथवा ऐसी संपि म या ऐसी संपि पर, िविधपूवक र् पर्वेश करके वहां िविधिवरु रूप म इस आशय से बना रहता है िक तद् ारा
वह िकसी ऐसे िक्त को अिभतर्स्त, अपमािनत या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है िक वह कोई अपराध करे ,
वह “आपरािधक अितचार” करता है, यह कहा जाता है ।
1
1882 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 10 ारा अंतःस्थािपत ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
85
442. गृह-अितचार—जो कोई िकसी िनमार्ण, तम्बू या जलयान म, जो मानव-िनवास के रूप म उपयोग म आता है, या िकसी
िनमार्ण म, जो उपासना-स्थान के रूप म, या िकसी संपि की अिभरक्षा के स्थान के रूप म उपयोग म आता है, पर्वेश करके या उसम बना
रह कर, आपरािधक अितचार करता है, वह “गृह-अितचार” करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण—आपरािधक अितचार करने वाले िक्त के शरीर के िकसी भाग का पर्वेश गृह-अितचार गिठत करने के िलए पयार्प्त
पर्वेश है ।
443. पर्च्छन्न गृह-अितचार—जो कोई यह पूवार्वधानी बरतने के पश्चात् गृह-अितचार करता है िक ऐसे गृह-अितचार को िकसी
ऐसे िक्त से िछपाया जाए िजसे उस िनमार्ण, तम्बू या जलयान म से, जो अितचार का िवषय है, अितचारी को अपविजत करने या बाहर
कर देने का अिधकार है, वह “पर्च्छन्न गृह-अितचार” करता है, यह कहा जाता है ।
444. रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार—जो कोई सूयार्स्त के पश्चात् और सूय दय से पूवर् पर्च्छन्न गृह-अितचार करता है, वह “रातर्ौ
पर्च्छन्न गृह-अितचार” करता है, यह कहा जाता है ।
445. गृह-भेदन—जो िक्त गृह-अितचार करता है, वह “गृह-भेदन” करता है, यह कहा जाता है, यिद वह उस गृह म या उसके
िकसी भाग म एतिस्मन्पश्चात् विणत छह तरीक म से िकसी तरीके से पर्वेश करता है अथवा यिद वह उस गृह म या उसके िकसी भाग म
अपराध करने के पर्योजन से होते हुए, या वहां अपराध कर चुकने पर, उस गृह से या उसके िकसी भाग से ऐसे छह तरीक म से िकसी
तरीके से बाहर िनकलता है, अथार्त् :—
पहला—यिद वह ऐसे रास्ते से पर्वेश करता है या बाहर िनकलता है, जो स्वयं उसने या उस गृह-अितचार के िकसी दुष्पर्ेरक ने वह
गृह-अितचार करने के िलए बनाया है,
दूसरा—यिद वह िकसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराध के दुष्पर्ेरक से िभन्न िकसी िक्त ारा मानव पर्वेश के िलए
आशियत नह है, या िकसी ऐसे रास्ते से, िजस तक िक वह िकसी दीवार या िनमार्ण पर सीढ़ी ारा या अन्यथा चढ़कर पहुंचा है, पर्वेश
करता है या बाहर िनकलता है,
तीसरा—यिद वह िकसी ऐसे रास्ते से पर्वेश करता है या बाहर िनकलता है िजसको उसने या उस गृह-अितचार के िकसी दुष्पर्ेरक ने
वह गृह-अितचार करने के िलए िकसी ऐसे साधन ारा खोला है, िजसके ारा उस रास्ते का खोला जाना उस गृह के अिधभोगी ारा
आशियत नह था,
चौथा—यिद उस गृह-अितचार को करने के िलए, या गृह-अितचार के पश्चात् उस गृह से िनकल जाने के िलए वह िकसी ताले को
खोलकर पर्वेश करता या बाहर िनकलता है,
पांचवां—यिद वह आपरािधक बल के पर्योग या हमले या िकसी िक्त पर हमला करने की धमकी ारा अपना पर्वेश करता है या
पर्स्थान करता है,
छठा—यिद वह िकसी ऐसे रास्ते से पर्वेश करता है या बाहर िनकलता है िजसके बारे म वह जानता है िक वह ऐसे पर्वेश या पर्स्थान
को रोकने के िलए बंद िकया हुआ है और अपने ारा या उस गृह-अितचार के दुष्पर्ेरक ारा खोला गया है ।
स्पष्टीकरण—कोई उपगृह या िनमार्ण जो िकसी गृह के साथ-साथ अिधभोग म है, और िजसके और ऐसे गृह के बीच आने जाने का
अ विहत भीतरी रास्ता है, इस धारा के अथर् के अंतगर्त उस गृह का भाग है ।
दृष्टांत
(क) य के गृह की दीवार म छेद करके और उस छेद म से अपना हाथ डालकर क गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
(ख) क तल्ल के बीच की बारी म से रग कर एक पोत म पर्वेश करने ारा गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
(ग) य के गृह म एक िखड़की से पर्वेश करने ारा क गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
(घ) एक बंद ार को खोलकर य के गृह म उस ार से पर्वेश करने ारा क गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
(ङ) य के गृह म ार के छेद म से तार डालकर िसटकनी को ऊपर उठाकर उस ार म पर्वेश करने ारा क गृह-अितचार करता है ।
यह गृह-भेदन है ।
(च) क को य के गृह के ार की चाबी िमल जाती है, जो य से खो गई थी, और वह उस चाबी से ार खोल कर य के गृह म पर्वेश
करने ारा गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
(छ) य अपनी ड् योढ़ी म खड़ा है । य को धक्के से िगराकर क उस गृह म बलात् पर्वेश करने ारा गृह-अितचार करता है । यह गृह-
भेदन है ।
(ज) य, जो म का दरबान है, म की ड् योढ़ी म खड़ा है । य को मारने की धमकी देकर क उसको िवरोध करने से भयोपरत करके उस
गृह म पर्वेश करने ारा गृह-अितचार करता है । यह गृह-भेदन है ।
86
446. रातर्ौ गृह-भेदन—जो कोई सूयार्स्त के पश्चात् और सूय दय से पूवर् गृह-भेदन करता है, वह “रातर्ौ गृह-भेदन” करता है, यह
कहा जाता है ।
447. आपरािधक अितचार के िलए दंड—जो कोई आपरािधक अितचार करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
448. गृह-अितचार के िलए दंड—जो कोई गृह-अितचार करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक
वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
449. मृत्यु से दंडनीय अपराध को करने के िलए गृह-अितचार—जो कोई मृत्यु से दंडनीय कोई अपराध करने के िलए गृह-अितचार
करे गा, वह 1 [आजीवन कारावास] से, या किठन कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् से अिधक नह होगी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
450. आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध को करने के िलए गृह-अितचार—जो कोई 1[आजीवन कारावास] से दंडनीय कोई
अपराध करने के िलए गृह-अितचार करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् से अिधक नह होगी,
दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
451. कारावास से दंडनीय अपराध को करने के िलए गृह-अितचार—जो कोई कारावास से दंडनीय कोई अपराध करने के िलए
गृह-अितचार करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दंडनीय होगा, तथा यिद वह अपराध, िजसका िकया जाना आशियत हो, चोरी हो, तो कारावास की अविध सात वषर् तक की
हो सके गी ।
452. उपहित, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गृह-अितचार—जो कोई िकसी िक्त को उपहित कािरत करने की,
या िकसी िक्त पर हमला करने की, या िकसी िक्त का सदोष अवरोध करने की अथवा िकसी िक्त को उपहित के , या हमले के , या
सदोष अवरोध के भय म डालने की तैयारी करके गृह-अितचार करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात
वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
453. पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन के िलए दंड—जो कोई पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन करे गा, वह दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
454. कारावास से दंडनीय अपराध करने के िलए पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन—जो कोई कारावास से दंडनीय अपराध
करने के िलए पर्च्छन्न गृह-अितचार का गृह-भेदन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो
सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा, तथा यिद वह अपराध, िजसका िकया जाना आशियत हो, चोरी हो, तो
कारावास की अविध दस वषर् तक की हो सके गी ।
455. उपहित, हमले या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन—जो कोई िकसी िक्त को
उपहित कािरत करने की या िकसी िक्त पर हमला करने की या िकसी िक्त का सदोष अवरोध करने की अथवा िकसी िक्त को
उपहित के , या हमले के , या सदोष अवरोध के भय म डालने की तैयारी करके , पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन करे गा, वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
456. रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ गृह-भेदन के िलए दंड—जो कोई रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ गृह-भेदन करे गा,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा ।
457. कारावास से दंडनीय अपराध करने के िलए रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ गृह-भेदन—जो कोई कारावास से दंडनीय
कोई अपराध करने के िलए रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ गृह-भेदन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा, तथा यिद वह अपराध िजसका िकया जाना
आशियत हो, चोरी हो, तो कारावास की अविध चौदह वषर् तक की हो सके गी ।
458. उपहित, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या रातर्ौ गृह-भेदन—जो कोई िकसी
िक्त को उपहित कािरत करने की या िकसी िक्त पर हमला करने की या िकसी िक्त का सदोष अवरोध या रातर्ौ गृह-भेदन करने
की अथवा िकसी िक्त को उपहित के , या हमले के , या सदोष अवरोध के , भय म डालने की तैयारी करके , रातर्ौ पर्च्छन्न गृह-अितचार या
रातर्ौ गृह-भेदन करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध चौदह वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा
और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
459. पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन करते समय घोर उपहित कािरत हो—जो कोई पर्च्छन्न गृह-अितचार या गृह-भेदन करते
समय िकसी िक्त को घोर उपहित कािरत करे गा या िकसी िक्त की मृत्यु या घोर उपहित कािरत करने का पर्यत्न करे गा, वह
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
87
[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा
1
दस्तावेज और संपि 2
*** िचह्न संबध
ं ी अपराध के िवषय म
463. कू टरचना— 3 [जो कोई, िकसी िमथ्या दस्तावेज या िमथ्या इलैक्टर्ािनक अिभलेख अथवा दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख
के िकसी भाग को] इस आशय से रचता है िक लोक को या िकसी िक्त को नुकसान या क्षित कािरत की जाए, या िकसी दावे या हक का
समथर्न िकया जाए, या यह कािरत िकया जाए िक कोई िक्त संपि अलग करे या कोई अिभ क्त या िवविक्षत संिवदा करे या इस
आशय से रचता है िक कपट करे , या कपट िकया जा सके , वह कू टरचना करता है ।
464. िमथ्या दस्तावेज रचना—3[उस िक्त के बारे म यह कहा जाता है िक वह िक्त िमथ्या दस्तावेज या िमथ्या इलैक्टर्ािनक
अिभलेख रचता है,—
पहला—जो बेईमानी से या कपटपूवर्क इस आशय से—
(क) िकसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रिचत, हस्ताक्षिरत, मुदर्ांिकत या िनष्पािदत करता है ;
(ख) िकसी इलैक्टर्ािनक अिभलेख को या िकसी इलैक्टर्ािनक अिभलेख के भाग को रिचत या पारे िषत करता है ;
(ग) िकसी इलैक्टर्ािनक अिभलेख पर कोई 4 [इलैक्टर्ािनक िचह्नक] लगाता है ;
(घ) िकसी दस्तावेज के िनष्पादन का या ऐसे िक्त या 4[इलैक्टर्ािनक िचह्नक] की अिधपर्मािणकता का ोतन करने वाला
कोई िचह्न लगाता है,
िक यह िवश्वास िकया जाए िक ऐसा दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलैक्टर्ािनक अिभलेख या 4[इलैक्टर्ािनक िचह्नक] की रचना,
हस्ताक्षरण, मुदर्ांकन, िनष्पादन, पारे षण या लगाना ऐसे िक्त ारा या ऐसे िक्त के पर्ािधकार ारा िकया गया था, िजसके ारा या
िजसके पर्ािधकार ारा उसकी रचना, हस्ताक्षरण, मुदर्ांकन या िनष्पादन, लगाए जाने या पारे िषत न होने की बात वह जानता है ; या
दूसरा—जो िकसी दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख के िकसी ताित्त्वक भाग म पिरवतर्न, उसके ारा या ऐसे िकसी अन्य िक्त
ारा, चाहे ऐसा िक्त, ऐसे पिरवतर्न के समय जीिवत हो या नह , उस दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख के रिचत या िनष्पािदत िकए
जाने या 4[इलैक्टर्ािनक िचह्न] लगाए जाने के पश्चात्, उसे र करके या अन्यथा, िविधपूवर्क पर्ािधकार के िबना, बेईमानी से या
कपटपूवर्क करता है ; अथवा
तीसरा—जो िकसी िक्त ारा, यह जानते हुए िक ऐसा िक्त िकसी दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख की िवषय-वस्तु को या
पिरवतर्न के रूप को, िवकृ तिच या म ता की हालत होने के कारण जान नह सकता था या उस पर्वंचना के कारण, जो उससे की गई है,
जानता नह है, उस दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख को बेईमानी से या कपटपूवर्क हस्ताक्षिरत, मुदर्ांिकत, िनष्पािदत या पिरवितत
िकया जाना या िकसी इलैक्टर्ािनक अिभलेख पर अपने 4[इलैक्टर्ािनक िचह्नक] लगाया जाना कािरत करता है ।]
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा “ ापार या” शब्द का लोप िकया गया ।
3
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 51 ारा पर्ितस्थािपत ।
88
दृष्टांत
(क) क के पास य ारा ख पर िलखा हुआ 10,000 रुपए का एक पर्त्यय पतर् है । ख से कपट करने के िलए क 10,000 म एक शून्य
बढ़ा देता है और उस रािश को 1,00,000 रुपए इस आशय से बना देता है िक ख यह िवश्वास कर ले िक य ने वह पतर् ऐसा ही िलखा था ।
क ने कू टरचना की है ।
(ख) क इस आशय से िक वह य की सम्पदा ख को बेच दे और उसके ारा ख से कर्य धन अिभपर्ाप्त कर ले, य के पर्ािधकार के िबना
य की मुदर्ा एक ऐसी दस्तावेज पर लगाता है, जो िक य की ओर से क की सम्पदा का हस्तान्तर-पतर् होना तात्पियत है । क ने कू टरचना
की है ।
(ग) एक बकर पर िलखे हुए और वाहक को देय चेक को क उठा लेता है । चेक ख ारा हस्ताक्षिरत है, िकन्तु उस चेक म कोई रािश
अंिकत नह है । क 10,000 रुपए की रािश अंिकत करके चेक को कपटपूवर्क भर लेता है । क कू टरचना करता है ।
(घ) क अपने अिभकतार् ख के पास एक बकर पर िलखा हुआ, क ारा हस्ताक्षिरत चेक, देय धनरािश अंिकत िकए िबना छोड़ देता
है । ख को क इस बात के िलए पर्ािधकृ त कर देता है िक वह कु छ संदाय करने के िलए चेक म ऐसी धनरािश, जो दस हजार रुपए से अिधक
न हो अंिकत करके चेक भर ले । ख कपटपूवर्क चेक म बीस हजार रुपए अंिकत करके उसे भर लेता है । ख कू टरचना करता है ।
(ङ) क, ख के पर्ािधकार के िबना ख के नाम म अपने ऊपर एक िविनमयपतर् इस आशय से िलखता है िक वह एक बकर से असली
िविनमयपतर् की भांित ब ा देकर उसे भुना ले, और उस िविनमयपतर् को उसकी पिरपक्वता पर ले ले, यहां क इस आशय से उस
िविनमयपतर् को िलखता है िक पर्वंचना करके बकर को यह अनुमान करा दे िक उसे ख की पर्ितभूित पर्ाप्त है, और इसिलए वह उस
िविनमयपतर् को ब ा लेकर भुना दे । क कू टरचना का दोषी है ।
(च) य की िवल म ये शब्द अन्तिवष्ट ह िक “म िनदेश देता हूं िक मेरी समस्त शेष सम्पि क, ख और ग म बराबर बांट दी जाए” ।
क बेईमानी से ख का नाम इस आशय से खुरच डालता है िक यह िवश्वास कर िलया जाए िक समस्त सम्पि उसके स्वयं के िलए और ग के
िलए ही छोड़ी गई थी । ख ने कू टरचना की है ।
(छ) क एक सरकारी वचनपतर् को पृष्ठांिकत करता है और उस पर शब्द “य को या उसके आदेशानुसार दे दो” िलखकर और
पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर करके उसे य को या उसके आदेशानुसार देय कर देता है । ख बेईमानी से “य को या उसके आदेशानुसार दे दो” इन
शब्द को छीलकर िमटा डालता है, और इस पर्कार उस िवशेष पृष्ठांकन को एक िनरं क पृष्ठांकन म पिरवितत कर देता है । ख कू टरचना
करता है ।
(ज) क एक सम्पदा य को बेच देता है और उसका हस्तांतर-पतर् िलख देता है । उसके पश्चात् क, य को कपट करके सम्पदा से वंिचत
करने के िलए उसी सम्पदा को एक हस्तान्तर-पतर् िजस पर य के हस्तान्तर-पतर् की तारीख से छह मास पूवर् की तारीख पड़ी हुई है, ख के
नाम इस आशय से िनष्पािदत कर देता है िक यह िवश्वास कर िलया जाए िक उसने अपनी सम्पदा य को हस्तान्तिरत करने से पूवर् ख को
हस्तान्तिरत कर दी थी । क ने कू टरचना की है ।
(झ) य अपनी िवल क से िलखवाता है । क साशय एक ऐसे वसीयतदार का नाम िलख देता है, जो िक उस वसीयतदार से िभन्न है,
िजसका नाम य ने कहा है, और य को यह पिदष्ट करके िक उसने िवल उसके अनुदश े के अनुसार ही तैयार की है, य को िवल पर
हस्ताक्षर करने के िलए उत्पर्ेिरत करता है । क ने कू टरचना की है ।
(ञ) क एक पतर् िलखता है और ख के पर्ािधकार के िबना, इस आशय से िक उस पतर् के ारा य से और अन्य िक्तय से िभक्षा
अिभपर्ाप्त करे , ख के नाम के हस्ताक्षर यह पर्मािणत करते हुए कर देता है िक क अच्छे शील का िक्त है और अनवेिक्षत दुभार्ग्य के कारण
दीन अवस्था म है । यहां क, ने य को सम्पि , अलग करने के िलए उत्पर्ेिरत करने की िमथ्या दस्तावेज रची है, इसिलए क ने कू टरचना
की है ।
(ट) ख के पर्ािधकार के िबना क इस आशय से िक उसके ारा य के अधीन नौकरी अिभपर्ाप्त करे , क के शील को पर्मािणत करते हुए
एक पतर् िलखता है, और उसे ख के नाम से हस्ताक्षिरत करता है । क ने कू टरचना की है क्य िक उसका आशय कू टरिचत पर्माणपतर् ारा य
को पर्वंिचत करने का और ऐसा करके य की सेवा की अिभ क्त या िवविक्षत संिवदा म पर्िवष्ट होने के िलए उत्पर्ेिरत करने का था ।
स्पष्टीकरण 1—िकसी िक्त का स्वयं अपने नाम का हस्ताक्षर करना कू टरचना की कोिट म आ सके गा ।
दृष्टांत
(क) क एक िविनमयपतर् पर अपने हस्ताक्षर इस आशय से करता है िक यह िवश्वास कर िलया जाए िक वह िविनमयपतर् उसी नाम
के िकसी अन्य िक्त ारा िलखा गया था । क ने कू टरचना की है ।
(ख) क एक कागज के टुकड़े पर शब्द “पर्ितगृहीत िकया” िलखता है और उस पर य के नाम के हस्ताक्षर इसिलए करता है िक ख
बाद म इस कागज पर एक िविनमयपतर्, जो ख ने य के ऊपर िकया है, िलखे और उस िविनमयपतर् का इस पर्कार परकर्ामण करे , मानो वह
य के ारा पर्ितगृहीत कर िलया गया था । क कू टरचना का दोषी है, तथा यिद ख इस तथ्य को जानते हुए क के आशय के अनुसरण म, उस
कागज पर िविनमयपतर् िलख देता है, तो ख भी कू टरचना का दोषी है ।
89
(ग) क अपने नाम के िकसी अन्य िक्त के आदेशानुसार देय िविनमयपतर् पड़ा पाता है । क उसे उठा लाता है और यह िवश्वास
कराने के आशय से स्वयं अपने नाम पृष्ठांिकत करता है िक इस िविनमयपतर् पर पृष्ठांकन उसी िक्त ारा िलखा गया था िजसके
आदेशानुसार वह देय है । यहां, क ने कू टरचना की है ।
(घ) क, ख के िवरु एक िडकर्ी के िनष्पादन म बेची गई सम्पदा को खरीदता है । ख सम्पदा के अिभगृहीत िकए जाने के पश्चात् य
के साथ दुस्सिन्ध करके क को कपटवंिचत करने और यह िवश्वास कराने के आशय से िक वह प ा अिभगर्हण से पूवर् िनष्पािदत िकया गया
था, नाममातर् के भाटक पर और एक लम्बी कालाविध के िलए य के नाम उस सम्पदा का प ा कर देता है और प े पर अिभगर्हण से छह
मास पूवर् की तारीख डाल देता हे । ख य िप प े का िनष्पादन स्वयं अपने नाम से करता है, तथािप उस पर पूवर् की तारीख डालकर वह
कू टरचना करता है ।
(ङ) क एक ापारी अपने िदवाले का पूवार्नुमान करके अपनी चीजवस्तु ख के पास क के फायदे के िलए और अपने लेनदार को
कपटवंिचत करने के आशय से रख देता है; और पर्ाप्त मूल्य के बदले म, ख को एक धनरािश देने के िलए अपने को आब करते हुए, एक
वचनपतर् उस सं वहार की सच्चाई की रं गत देने के िलए िलख देता है, और इस आशय से िक यह िवश्वास कर िलया जाए िक यह
वचनपतर् उसने उस समय से पूवर् ही िलखा था जब उसका िदवाला िनकलने वाला था, उस पर पहले की तारीख डाल देता है । क ने
पिरभाषा के पर्थम शीषर्क के अधीन कू टरचना की है ।
स्पष्टीकरण 2—कोई िमथ्या दस्तावेज िकसी किल्पत िक्त के नाम से इस आशय से रचना िक यह िवश्वास कर िलया जाए िक
वह दस्तावेज एक वास्तिवक िक्त ारा रची गई थी, या िकसी मृत िक्त के नाम से इस आशय से रचना िक यह िवश्वास कर िलया
जाए िक वह दस्तावेज उस िक्त ारा उसके जीवन काल म रची गई थी, कू टरचना की कोिट म आ सके गा ।
[स्पष्टीकरण 3—इस धारा के पर्योजन के िलए, “ 2 [इलैक्टर्ािनक िचह्नक] लगाने” पद का वही अथर् होगा जो उसका सूचना
1
पर्ौ ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (घ) म है ।]
दृष्टांत
क एक किल्पत िक्त के नाम कोई िविनमयपतर् िलखता है, और उसका परकर्ामण करने के आशय से उस िविनमयपतर् को ऐसे
किल्पत िक्त के नाम से कपटपूवर्क पर्ितगृहीत कर लेता है । क कू टरचना करता है ।
465. कू टरचना के िलए दण्ड—जो कोई कू टरचना करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
466. न्यायालय के अिभलेख की या लोक रिजस्टर आिद की कू टरचना— 3 [जो कोई ऐसे दस्तावेज की या ऐसे इलैक्टर्ािनक अिभलेख
की] िजसका िक िकसी न्यायालय का या न्यायालय म अिभलेख या कायर्वाही होना, या जन्म, बपितस्मा, िववाह या अन्त्येिष्ट का
रिजस्टर, या लोक सेवक ारा लोक सेवक के नाते रखा गया रिजस्टर होना तात्पियत हो, अथवा िकसी पर्माणपतर् की या ऐसी दस्तावेज
की िजसके बारे म यह तात्पियत हो िक वह िकसी लोक सेवक ारा उसकी पदीय हैिसयत म रची गई है, या जो िकसी वाद को संिस्थत
करने या वाद म पर्ितरक्षा करने का, उसम कोई कायर्वाही करने का, या दावा संस्वीकृ त कर लेने का, पर्ािधकार हो या कोई मुख्तारनामा
हो, कू टरचना करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और
जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
[स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए, “रिजस्टर” के अंतगर्त सूचना पर्ौ ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) की
1
धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (द) म पिरभािषत इलैक्टर्ािनक रूप म रखी गई कोई सूची, डाटा या िकसी पर्िविष्ट का अिभलेख भी है ।]
467. मूल्यवान पर्ितभूित, िवल, इत्यािद की कू टरचना—जो कोई िकसी ऐसी दस्तावेज की, िजसका कोई मूल्यवान पर्ितभूित या
िवल या पुतर् के द कगर्हण का पर्ािधकार होना तात्पियत हो, अथवा िजसका िकसी मूल्यवान पर्ितभूित की रचना या अन्तरण का, या उस
पर के मूलधन, ब्याज या लाभांश को पर्ाप्त करने का, या िकसी धन, जंगम सम्पि या मूल्यवान पर्ितभूित को पर्ाप्त करने या पिरद करने
का पर्ािधकार होना तात्पियत हो, अथवा िकसी दस्तावेज को, िजसका धन िदए जाने की अिभस्वीकृ ित करने वाला िनस्तारणपतर् या रसीद
होना, या िकसी जंगम संपि या मूल्यवान पर्ितभूित के पिरदान के िलए िनस्तारणपतर् या रसीद होना तात्पियत हो, कू टरचना करे गा वह
4
[आजीवन कारावास] से, या दान म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा
और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
468. छल के पर्योजन से कू टरचना—जो कोई कू टरचना इस आशय से करे गा िक 3[वह दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख िजसकी
कू टरचना की जाती है,] छल के पर्योजन से उपयोग म लाई जाएगी, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर्
तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा, और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
1
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 51 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
90
469. ख्याित को अपहािन पहुंचाने के आशय से कू टरचना— 1 [जो कोई कू टरचना इस आशय से करे गा िक वह दस्तावेज या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख] िजसकी कू टरचना की जाती है, िकसी पक्षकार की ख्याित की अपहािन करे गी, या यह सम्भा जानते हुए करे गा
िक इस पर्योजन से उसका उपयोग िकया जाए, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी,
दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
470. कू टरिचत 2 [दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख]—वह िमथ्या 2[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] जो पूणर्त: या भागत:
कू टरचना ारा रची गई है, “कू टरिचत 2[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख]” कहलाती है ।
471. कू टरिचत 2[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] का असली के रूप म उपयोग म लाना—जो कोई िकसी ऐसी 2[दस्तावेज या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख] को, िजसके बारे म वह यह जानता या िवश्वास करने का कारण रखता हो िक वह कू टरिचत 2[दस्तावेज या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख] है, कपटपूवर्क या बेईमानी से असली के रूप म उपयोग म लाएगा, वह उसी पर्कार दिण्डत िकया जाएगा, मानो
उसने ऐसी 2[दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक अिभलेख] की कू टरचना की हो ।
472. धारा 467 के अधीन दण्डनीय कू टरचना करने के आशय से कू टकृ त मुदर्ा, आिद का बनाना या कब्जे म रखना—जो कोई िकसी
मुदर्ा, प ी या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा या उसकी कू टकृ ित तैयार करे गा िक उसे कोई ऐसी कू टरचना करने
के पर्योजन के िलए उपयोग म लाया जाए, जो इस संिहता की धारा 467 के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से, िकसी ऐसी मुदर्ा, प ी
या अन्य उपकरण को, उसे कू टकृ त जानते हुए अपने कब्जे म रखेगा, वह 3 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास
से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
473. अन्यथा दण्डनीय कू टरचना करने के आशय से कू टकृ त मुदर्ा, आिद का बनाना या कब्जे म रखना—जो कोई िकसी मुदर्ा, प ी
या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा या उसकी कू टकृ ित करे गा, िक उसे कोई ऐसी कू टरचना करने के पर्योजन के
िलए उपयोग म लाया जाए, जो धारा 467 से िभन्न इस अध्याय की िकसी धारा के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से िकसी ऐसी मुदर्ा,
प ी या अन्य उपकरण को, उसे कू टकृ त जानते हुए अपने कब्जे म रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात
वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
474. धारा 466 या 467 म विणत दस्तावेज को, उसे कू टरिचत जानते हुए और उसे असली के रूप म उपयोग म लाने का आशय
रखते हुए, कब्जे म रखना—1[जो कोई, िकसी दस्तावेज या िकसी इलैक्टर्ािनक अिभलेख को उसे कू टरिचत जानते हुए और यह आशय
रखते हुए िक वह कपटपूवर्क या बेईमानी से असली रूप म उपयोग म लाया जाएगा, अपने कब्जे म रखेगा, यिद वह दस्तावेज या
इलैक्टर्ािनक अिभलेख इस संिहता की धारा 466 म विणत भांित का हो] तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध
सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा, तथा यिद वह दस्तावेज धारा 467 म विणत भांित
की हो तो वह 3[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत
िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
475. धारा 467 म विणत दस्तावेज के अिधपर्माणीकरण के िलए उपयोग म लाई जाने वाली अिभलक्षणा या िचह्न की कू टकृ ित
बनाना या कू टकृ त िचह्नयुक्त पदाथर् को कब्जे म रखना—जो कोई िकसी पदाथर् के ऊपर, या उसके उपादान म, िकसी ऐसी अिभलक्षणा
या िचह्न की, िजसे इस संिहता की धारा 467 म विणत िकसी दस्तावेज के अिधपर्माणीकरण के पर्योजन के िलए, उपयोग म लाया जाता
हो, कू टकृ ित यह आशय रखते हुए बनाएगा िक ऐसी अिभलक्षणा या ऐसे िचह्न की, ऐसे पदाथर् पर उस समय कू टरिचत की जा रही या
उसके पश्चात् कू टरिचत की जाने वाली िकसी दस्तावेज को अिधपर्माणीकृ त का आभास पर्दान करने के पर्योजन से उपयोग म लाया
जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदाथर् अपने कब्जे म रखेगा, िजस पर या िजसके उपादान म ऐसी अिभलक्षणा को या ऐसे िचह्न
की कू टकृ ित बनाई गई हो, वह 3[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो
सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
476. धारा 467 म विणत दस्तावेज से िभन्न दस्तावेज के अिधपर्माणीकरण के िलए उपयोग म लाई जाने वाली अिभलक्षणा या
िचह्न की कू टकृ ित बनाना या कू टकृ त िचह्नयुक्त पदाथर् को कब्जे म रखना—जो कोई िकसी पदाथर् के ऊपर, या उसके उपादान म, िकसी
ऐसी अिभलक्षणा या िचह्न की, िजसे इस संिहता की धारा 467 म विणत दस्तावेज से िभन्न 4 [िकसी दस्तावेज या इलैक्टर्ािनक
अिभलेख] के अिधपर्माणीकरण के पर्योजन के िलए, उपयोग म लाया जाता हो, कू टकृ ित यह आशय रखते हुए बनाएगा िक वह ऐसी
अिभलक्षणा या ऐसे िचह्न को, ऐसे पदाथर् पर उस समय कू टरिचत की जा रही या उसके पश्चात् कू टरिचत की जाने वाली िकसी दस्तावेज
को अिधपर्माणीकृ त का आभास पर्दान करने के पर्योजन से उपयोग म लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदाथर् अपने कब्जे म
रखेगा, िजस पर या िजसके उपादान म ऐसी अिभलक्षणा या ऐसे िचह्न की कू टकृ ित बनाई गई हो, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
477. िवल, द कगर्हण पर्ािधकार-पतर् या मूल्यवान पर्ितभूित को कपटपूवक
र् र , नष्ट, आिद करना—जो कोई कपटपूवर्क या
बेईमानी से, या लोक को या िकसी िक्त को नुकसान या क्षित कािरत करने के आशय से, िकसी ऐसी दस्तावेज को, जो िवल या पुतर् के
1
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा “दस्तावेज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा “िकसी दस्तावेज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
91
द कगर्हण करने का पर्ािधकार-पतर् या कोई मूल्यवान पर्ितभूित हो, या होना तात्पियत हो, र , नष्ट या िवरूिपत करे गा या र , नष्ट या
िवरूिपत करने का पर्यत्न करे गा, या िछपाएगा या िछपाने का पर्यत्न करे गा या ऐसी दस्तावेज के िवषय म िरिष्ट करे गा, वह 1 [आजीवन
कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने
से भी दण्डनीय होगा ।
2
[477क. लेखा का िमथ्याकरण—जो कोई, िलिपक, आिफसर या सेवक होते हुए, या िलिपक, आिफसर या सेवक के नाते िनयोिजत
होते या कायर् करते हुए, िकसी 3 [पुस्तक, इलैक्टर्ािनक अिभलेख, कागज, लेख,] मूल्यवान पर्ितभूित या लेखा को जो उसके िनयोजक का हो
या उसके िनयोजक के कब्जे म हो या िजसे उसने िनयोजक के िलए या उसकी ओर से पर्ाप्त िकया हो, जानबूझकर और कपट करने के
आशय से नष्ट, पिरवितत, िवकृ त या िमथ्याकृ त करे गा अथवा िकसी ऐसी 3[पुस्तक, इलैक्टर्ािनक अिभलेख, कागज, लेख] मूल्यवान
पर्ितभूित या लेखा म जानबूझकर और कपट करने के आशय से कोई िमथ्या पर्िविष्ट करे गा या करने के िलए दुष्पर्ेरण करे गा, या उसम से
या उसम िकसी ताित्त्वक िविशिष्ट का लोप या पिरवतर्न करे गा या करने का दुष्पर्ेरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के अधीन िकसी आरोप म, िकसी िविशष्ट िक्त का, िजससे कपट करना आशियत था, नाम बताए िबना
या िकसी िविशष्ट धनरािश का, िजसके िवषय म कपट िकया जाना आशियत था या िकसी िविशष्ट िदन का, िजस िदन अपराध िकया
गया था, िविनदश िकए िबना, कपट करने के साधारण आशय का अिभकथन पयार्प्त होगा ।]
4
[संपि 5
*** िचह्न और अन्य िचह्न के िवषय म
478. [ ापार िचह्न ।] ापार और पण्य िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) की धारा 135 और अनुसच
ू ी ारा
(25-11-1959 से) िनरिसत ।
479. सम्पि -िचह्न—वह िचह्न जो यह ोतन करने के िलए उपयोग म लाया जाता है िक जंगम संपि िकसी िविशष्ट िक्त
की है, सम्पि िचह्न कहा जाता है ।
480. [िमथ्या ापार िचह्न का पर्योग िकया जाना ।]— ापार और पण्य िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) की धारा 135
और अनुसूची ारा (25-11-1959 से) िनरिसत ।
481. िमथ्या सम्पि -िचह्न को उपयोग म लाना—जो कोई िकसी जंगम सम्पि या माल को या िकसी पेटी, पैकेज या अन्य पातर्
को, िजसम जंगम सम्पि या माल रखा है, ऐसी रीित से िचिह्नत करता है या िकसी पेटी, पैकेज या अन्य पातर् को, िजस पर कोई िचह्न
है, ऐसी रीित से उपयोग म लाता है, जो इसिलए युिक्तयुक्त रूप से पर्किल्पत है िक उससे यह िवश्वास कािरत हो जाए िक इस पर्कार
िचिह्नत सम्पि या माल, या इस पर्कार िचिह्नत िकसी ऐसे पातर् म रखी हुई कोई सम्पि या माल, ऐसे िक्त का है, िजसका वह नह
है, वह िमथ्या सम्पि -िचह्न का उपयोग करता है, यह कहा जाता है ।
482. िमथ्या सम्पि -िचह्न को उपयोग करने के िलए दण्ड—जो कोई 6 *** िकसी िमथ्या सम्पि -िचह्न का उपयोग करे गा, जब
तक िक वह यह सािबत न कर दे िक उसने कपट करने के आशय के िबना कायर् िकया है, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से दिण्डत िकया जाएगा ।
483. अन्य िक्त ारा उपयोग म लाए गए सम्पि -िचह्न का कू टकरण—जो कोई िकसी 7 *** सम्पि -िचह्न का, जो िकसी
अन्य िक्त ारा उपयोग म लाया जाता हो, कू टकरण करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
484. लोक सेवक ारा उपयोग म लाए गए िचह्न का कू टकरण—जो कोई िकसी सम्पि -िचह्न का, जो लोक सेवक ारा उपयोग
म लाया जाता हो, या िकसी ऐसे िचह्न का, जो लोक सेवक ारा यह ोतन करने के िलए उपयोग म लाया जाता हो िक कोई सम्पि
िकसी िविशष्ट िक्त ारा या िकसी िविशष्ट समय या स्थान पर िविनिमत की गई है, या यह िक वह सम्पि िकसी िविशष्ट क्वािलटी
की है या िकसी िविशष्ट कायार्लय म से पािरत हो चुकी है, या यह िक िकसी छू ट की हकदार है, कू टकरण करे गा, या िकसी ऐसे िचह्न को
उसे कू टकृ त जानते हुए असली के रूप म उपयोग म लाएगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की
हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
[485. सम्पि -िचह्न के कू टकरण के िलए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा—जो कोई सम्पि -िचह्न के कू टकरण के
8
पर्योजन से कोई डाई, प ी या अन्य उपकरण बनाएगा या अपने कब्जे म रखेगा, अथवा यह ोतन करने के पर्योजन से िक कोई माल ऐसे
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1895 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 4 ारा जोड़ा गया ।
3
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची ारा “पुस्तक, कागज, लेख” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1889 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 3 ारा मूल शीषर् और धारा 478 से 489 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा “ ापार” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा “िकसी िमथ्या ापार िचह्न या” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा “ ापार िचह्न या” शब्द का लोप िकया गया ।
8
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
92
िक्त का है, िजसका वह नह है, िकसी सम्पि -िचह्न को अपने कब्जे म रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।]
486. कू टकृ त सम्पि -िचह्न से िचिह्नत माल का िवकर्य— 1 [जो कोई िकसी माल या चीज को, स्वयं उन पर या िकसी ऐसी पेटी,
पैकेज या अन्य पातर् पर, िजसम ऐसा माल रखा हो, कोई कू टकृ त सम्पि -िचह्न लगा हुआ या छपा हुआ होते हुए, बेचेगा या बेचने के
िलए अिभदिशत करे गा या अपने कब्जे म रखेगा], जब तक िक वह यह सािबत न कर दे िक—
(क) इस धारा के िवरु अपराध न करने की सब युिक्तयुक्त पूवार्वधानी बरतते हुए, िचह्न के असलीपन के सम्बन्ध म संदह
े
करने के िलए उसके पास कोई कारण अिधकिथत अपराध करते समय नह था, तथा
(ख) अिभयोजक ारा या उसकी ओर से मांग िकए जाने पर, उसने उन िक्तय के िवषय म, िजनसे उसने ऐसा माल या
चीज अिभपर्ाप्त की थ , वह सब जानकारी दे दी थी, जो उसकी शिक्त म थी, अथवा
(ग) अन्यथा उसने िनद िषतापूवक
र् कायर् िकया था,
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
487. िकसी ऐसे पातर् के ऊपर िमथ्या िचह्न बनाना िजसम माल रखा है—जो कोई िकसी पेटी, पैकेज या अन्य पातर् के ऊपर,
िजसम माल रखा हुआ हो, ऐसी रीित से कोई ऐसा िमथ्या िचह्न बनाएगा, जो इसिलए युिक्तयुक्त रूप से पर्किल्पत है िक उससे िकसी
लोक सेवक को या िकसी अन्य िक्त को यह िवश्वास कािरत हो जाए िक ऐसे पातर् म ऐसा माल है, जो उसम नह है, या यह िक उसम
ऐसा माल नह है, जो उसम है, या यह िक ऐसे पातर् म रखा हुआ माल ऐसी पर्कृ ित या क्वािलटी का है जो उसकी वास्तिवक पर्कृ ित या
क्वािलटी से िभन्न है, जब तक िक वह यह सािबत न कर दे िक उसने वह कायर् कपट करने के आशय के िबना िकया है वह दोन म से
िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
488. िकसी ऐसे िमथ्या िचह्न को उपयोग म लाने के िलए दण्ड—जो कोई अिन्तम पूवर्गामी धारा ारा पर्ितिष िकसी पर्कार से
िकसी ऐसे िमथ्या िचह्न का उपयोग करे गा, जब तक िक वह यह सािबत न कर दे िक उसने वह कायर् कपट करने के आशय के िबना िकया
है, वह उसी पर्कार दिण्डत िकया जाएगा, मानो उसने उस धारा के िवरु अपराध िकया हो ।
489. क्षित कािरत करने के आशय से सम्पि -िचह्न को िबगाड़ना—जो कोई िकसी सम्पि -िचह्न को, यह आशय रखते हुए, या
यह सम्भा जानते हुए िक वह तद् ारा िकसी िक्त को क्षित करे , िकसी सम्पि -िचह्न को अपसािरत करे गा, नष्ट करे गा, िवरूिपत
करे गा या उसम कु छ जोड़ेगा, वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या
दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।]
2
[करसी नोट और बक नोट के िवषय म
489क. करे न्सी नोट या बक नोट का कू टकरण—जो कोई िकसी करे न्सी नोट या बक नोट का कू टकरण करे गा, या जानते हुए
करे न्सी नोट या बक नोट के कू टकरण की पर्िकर्या के िकसी भाग को सम्पािदत करे गा, वह 3 [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी
भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के और धारा 489ख, 4 [489ग, 489घ और 489ङ] के पर्योजन के िलए “बक नोट” पद से उसके वाहक को
मांग पर धन देने के िलए ऐसा वचनपतर् या वचनबंध अिभपर्ेत है, जो संसार के िकसी भी भाग म बककारी करने वाले िकसी िक्त ारा
पर्चािलत िकया गया हो, या िकसी राज्य या संपूणर् पर्भुत्व संपन्न शिक्त ारा या उसके पर्ािधकार के अधीन पर्चािलत िकया गया हो, और
जो धन के समतुल्य या स्थानापन्न के रूप म उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत हो ।
489ख. कू टरिचत या कू टकृ त करसी नोट या बक नोट को असली के रूप म उपयोग म लाना—जो कोई िकसी कू टरिचत या
कू टकृ त करे न्सी नोट या बक नोट को, यह जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक वह कू टरिचत या कू टकृ त है, िकसी अन्य
िक्त को बेचेगा या उससे खरीदेगा या पर्ाप्त करे गा या अन्यथा उसका दु ार्पार करे गा या असली के रूप म उसे उपयोग म लाएगा,
वह 3[आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दस वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया
जाएगा और जुमार्ने से भी दण्डनीय होगा ।
489ग. कू टरिचत या कू टकृ त करे न्सी नोट या बक नोट को कब्जे म रखना—जो कोई िकसी कू टरिचत या कू टकृ त करे न्सी नोट या
बक नोट को यह जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक वह कू टरिचत या कू टकृ त है और यह आशय रखते हुए िक उसे
असली के रूप उपयोग म लाए या वह असली के रूप म उपयोग म लाई जा सके , अपने कब्जे म रखेगा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
1
1958 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 135 और अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1899 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
3
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1950 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “489ग और 489घ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
93
489घ. करे न्सी नोट या बक नोट की कू टरचना या कू टकरण के िलए उपकरण या सामगर्ी बनाना या कब्जे म रखना—जो कोई
िकसी मशीनरी, उपकरण या सामगर्ी को िकसी करे न्सी नोट या बक नोट की कू टरचना या कू टकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के
पर्योजन से, या यह जानते हुए या िवश्वास करने के कारण रखते हुए िक वह िकसी करे न्सी नोट या बक नोट की कू टरचना या कू टकरण के
िलए उपयोग म लाए जाने के िलए आशियत है, बनाएगा, या बनाने की पर्िकर्या के िकसी भाग का संपादन करे गा या खरीदेगा, या बेचग े ा,
या यिनत करे गा, या अपने कब्जे म रखेगा, वह [आजीवन कारावास] से, या दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध
1
करे न्सी नोट या बक नोट होना तात्पियत हो या करे न्सी नोट या बक नोट के िकसी भी पर्कार सदृश हो या इतने िनकटत: सदृश हो िक
पर्वंचना हो जाना पर्किल्पत हो, रचेगा या रचवाएगा या िकसी भी पर्योजन के िलए उपयोग म लाएगा या िकसी िक्त को पिरद
करे गा, वह जुमार्ने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया जाएगा ।
(2) यिद कोई िक्त िजसका नाम ऐसी दस्तावेज पर हो, िजसकी रचना उपधारा (1) के अधीन अपराध है, िकसी पुिलस आिफसर
को उस िक्त का नाम और पता, िजसके ारा वह मुिदर्त की गई थी या अन्यथा रची गई थी, बताने के िलए अपेिक्षत िकए जाने पर उसे
िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना बताने से इं कार करे गा, वह जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा, दिण्डत िकया जाएगा ।
(3) जहां िक िकसी ऐसी दस्तावेज पर िजसके बारे म िकसी िक्त पर उपधारा (1) के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया हो,
या िकसी अन्य दस्तावेज पर, जो उस दस्तावेज के सम्बन्ध म उपयोग म लाई गई हो, या िवतिरत की गई हो, िकसी िक्त का नाम हो,
वहां जब तक तत्पर्ितकू ल सािबत न कर िदया जाए, यह उपधारणा की जा सके गी िक उसी िक्त ने वह दस्तावेज रचवाई है ।]
अध्याय 19
1
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1943 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
94
मानहािन के िवषय म
499. मानहािन—जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के िलए आशियत शब्द ारा या संकेत ारा, या दृश्यरूपण ारा िकसी िक्त
के बारे म कोई लांछन इस आशय से लगाता या पर्कािशत करता है िक ऐसे लांछन से ऐसे िक्त की ख्याित की अपहािन की जाए या यह
जानते हुए या िवश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या पर्कािशत करता है ऐसे लांछन से ऐसे िक्त की ख्याित की अपहािन होगी,
एतिस्मन्पश्चात् अपवािदत दशा के िसवाय उसके बारे म कहा जाता है िक वह उस िक्त की मानहािन करता है ।
स्पष्टीकरण 1—िकसी मृत िक्त को कोई लांछन लगाना मानहािन की कोिट म आ सके गा यिद वह लांछन उस िक्त की ख्याित
की, यिद वह जीिवत होता, अपहािन करता, और उसके पिरवार या अन्य िनकट सम्बिन्धय की भावना को उपहत करने के िलए
आशियत हो ।
स्पष्टीकरण 2—िकसी कम्पनी या संगम या िक्तय के समूह के सम्बन्ध म उसकी वैसी हैिसयत म कोई लांछन लगाना मानहािन
की कोिट म आ सके गा ।
स्पष्टीकरण 3—अनुकल्प के रूप म, या ंगोिक्त के रूप म अिभ क्त लांछन मानहािन की कोिट म आ सके गा ।
स्पष्टीकरण 4—कोई लांछन िकसी िक्त की ख्याित की अपहािन करने वाला नह कहा जाता जब तक िक वह लांछन दूसर की
दृिष्ट म पर्त्यक्षत: या अपर्त्यक्षत: उस िक्त के सदाचािरक या बौि क स्वरूप को हेय न करे या उस िक्त की जाित के या उसकी
आजीिवका के सम्बन्ध म उसके शील को हेय न करे या उस िक्त की साख को नीचे न िगराए या यह िवश्वास न कराए िक उस िक्त
का शरीर घृणोत्पादक दशा म है या ऐसी दशा म है जो साधारण रूप से िनकृ ष्ट समझी जाती है ।
1
1983 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
95
दृष्टांत
(क) क यह िवश्वास कराने के आशय से िक य ने ख की घड़ी अवश्य चुराई है, कहता है, “य एक ईमानदार िक्त है, उसने ख की
घड़ी कभी नह चुराई है” । जब तक िक यह अपवाद म से िकसी के अन्तगर्त न आता हो यह मानहािन है ।
(ख) क से पूछा जाता है िक ख की घड़ी िकसने चुराई है । क यह िवश्वास कराने के आशय से िक य ने ख की घड़ी चुराई है, य की
ओर संकेत करता है जब तक िक यह अपवाद म से िकसी के अन्तगर्त न आता हो, यह मानहािन है ।
(ग) क यह िवश्वास कराने के आशय से िक य ने ख की घड़ी चुराई है, य का एक िचतर् ख चता है िजसम वह ख की घड़ी लेकर भाग
रहा है । जब तक िक यह अपवाद म से िकसी के अन्तगर्त न आता हो यह मानहािन है ।
पहला अपवाद—सत्य बात का लांछन िजसका लगाया जाना या पर्कािशत िकया जाना लोक कल्याण के िलए अपेिक्षत है—िकसी
ऐसी बात का लांछन लगाना, जो िकसी िक्त के सम्बन्ध म सत्य हो, मानहािन नह है, यिद यह लोक कल्याण के िलए हो िक वह लांछन
लगाया जाए या पर्कािशत िकया जाए । वह लोक कल्याण के िलए है या नह यह तथ्य का पर्श्न है ।
दूसरा अपवाद—लोक सेवक का लोकाचरण—उसके लोक कृ त्य के िनवर्हन म लोक सेवक के आचरण के िवषय म या उसके शील
के िवषय म, जहां तक उसका शील उस आचरण से पर्कट होता हो, न िक उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कु छ भी हो, सद्भावपूवर्क
अिभ क्त करना मानहािन नह है ।
तीसरा अपवाद—िकसी लोक पर्श्न के सम्बन्ध म िकसी िक्त का आचरण—िकसी लोक पर्श्न के सम्बन्ध म िकसी िक्त के
आचरण के िवषय म, और उसके शील के िवषय म, जहां तक िक उसका शील उस आचरण से पर्कट होता हो, न िक उससे आगे, कोई राय,
चाहे वह कु छ भी हो, सद्भावपूवर्क अिभ क्त करना मानहािन नह है ।
दृष्टांत
िकसी लोक पर्श्न पर सरकार को अज देने म, िकसी लोक पर्श्न के िलए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने म, ऐसी सभा
का सभापितत्व करने म या उसम हािजर होने म, िकसी ऐसी सिमित का गठन करने म या उसम सिम्मिलत होने म, जो लोक समथर्न
आमंितर्त करती है, िकसी ऐसे पद के िकसी िविशष्ट अभ्यथ के िलए मत देने म या उसके पक्ष म पर्चार करने म, िजसके कतर् के
दक्षतापूणर् िनवर्हन से लोक िहतब है, य आचरण के िवषय म क ारा कोई राय, चाहे वह कु छ भी हो, सद्भावपूवर्क अिभ क्त करना
मानहािन नह है ।
चौथा अपवाद—न्यायालय की कायर्वािहय की िरपोट का पर्काशन— िकसी न्यायालय की कायर्वािहय की या िकन्ह ऐसी
कायर्वािहय के पिरणाम की सारत: सही िरपोटर् को पर्कािशत करना मानहािन नह है ।
स्पष्टीकरण—कोई जिस्टस आफ पीस या अन्य आिफसर, जो िकसी न्यायालय म िवचारण से पूवर् की पर्ारिम्भक जांच खुले
न्यायालय म कर रहा हो, उपरोक्त धारा के अथर् के अन्तगर्त न्यायालय है ।
पांचवां अपवाद—न्यायालय म िविनिश्चत मामले के गुणागुण या सािक्षय तथा सम्पृक्त अन्य िक्तय का आचरण—िकसी ऐसे
मामले के गुणागुण के िवषय म चाहे वह िसिवल हो या दािण्डक, जो िकसी न्यायालय ारा िविनिश्चत हो चुका हो या िकसी ऐसे मामले
के पक्षकार, साक्षी या अिभकतार् के रूप म िकसी िक्त के आचरण के िवषय म या ऐसे िक्त के शील के िवषय म, जहां तक िक उसका
शील उस आचरण से पर्कट होता हो, न िक उसके आगे, कोई राय, चाहे वह कु छ भी हो, सद्भावपूवर्क अिभ क्त करना मानहािन
नह है ।
दृष्टांत
(क) क कहता है “म समझता हूं िक उस िवचारण म य का सा य ऐसा परस्पर िवरोधी है िक वह अवश्य ही मूखर् या बेईमान होना
चािहए” । यिद क ऐसा सद्भावपूवर्क कहता है तो वह इस अपवाद के अन्तगर्त आ जाता है, क्य िक जो राय वह य के शील के सम्बन्ध म
अिभ क्त करता है, वह ऐसी है जैसी िक साक्षी के रूप म य के आचरण से, न िक उसके आगे, पर्कट होती है ।
(ख) िकन्तु यिद क कहता है “जो कु छ य ने उस िवचारण म दृढ़तापूवर्क कहा है, म उस पर िवश्वास नह करता क्य िक म जानता हूं
िक वह सत्यवािदता से रिहत िक्त है,” तो क इस अपवाद के अन्तगर्त नह आता है, क्य िक वह राय जो वह य के शील के सम्बन्ध म
अिभ क्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रूप म य के आचरण पर आधािरत नह है ।
छठा अपवाद—लोककृ ित के गुणागुण—िकसी ऐसी कृ ित के गुणागुण के िवषय म, िजसको उसके कतार् ने लोक के िनणर्य के िलए
रखा हो, या उसके कतार् के शील के िवषय म, जहां तक िक उसका शील ऐसी कृ ित म पर्कट होता हो, न िक उसके आगे, कोई राय
सद्भावपूवर्क अिभ क्त करना मानहािन नह है ।
स्पष्टीकरण—कोई कृ ित लोक के िनणर्य के िलए अिभ क्त रूप से या कतार् की ओर से िकए गए ऐसे काय ारा, िजनसे लोक के
िनणर्य के िलए ऐसा रखा जाना िवविक्षत हो, रखी जा सकती है ।
दृष्टांत
(क) जो िक्त पुस्तक पर्कािशत करता है वह उस पुस्तक को लोक के िनणर्य के िलए रखता है ।
96
(ख) वह िक्त, जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक के िनणर्य के िलए रखता है ।
(ग) वह अिभनेता या गायक, जो िकसी लोक रं गमंच पर आता है, अपने अिभनय या गायन को लोक के िनणर्य के िलए रखता है ।
(घ) क, य ारा पर्कािशत एक पुस्तक के संबंध म कहता है “य की पुस्तक मूखर्तापूणर् है, य अवश्य कोई दुबर्ल पुरुष होना चािहए । य
की पुस्तक अिशष्टतापूणर् है, य अवश्य ही अपिवतर् िवचार का िक्त होना चािहए” । यिद क ऐसा सद्भावपूवर्क कहता है, तो वह इस
अपवाद के अन्तगर्त आता है, क्य िक वह राय जो वह, य के िवषय म अिभ क्त करता है, य के शील से वह तक, न िक उससे आगे
सम्बन्ध रखती है जहां तक िक य का शील उसकी पुस्तक से पर्कट होता है ।
(ङ) िकन्तु यिद क कहता है “मुझे इस बात का आश्चयर् नह है िक य की पुस्तक मूखत
र् ापूणर् तथा अिशष्टतापूणर् है क्य िक वह एक
दुबर्ल और लम्पट िक्त है” । क इस अपवाद के अन्तगर्त नह आता क्य िक वह राय, जो िक वह य के शील के िवषय म अिभ क्त करता
है, ऐसी राय है जो य की पुस्तक पर आधािरत नह है ।
सातवां अपवाद—िकसी अन्य िक्त के ऊपर िविधपूणर् पर्ािधकार रखने वाले िक्त ारा सद्भावपूवक र् की गई पिरिनन्दा—
िकसी ऐसे िक्त ारा, जो िकसी अन्य िक्त के ऊपर कोई ऐसा पर्ािधकार रखता हो, जो या तो िविध ारा पर्द हो या उस अन्य
िक्त के साथ की गई िकसी िविधपूणर् संिवदा से उद्भूत हो, ऐसे िवषय म, िजनसे िक ऐसा िविधपूणर् पर्ािधकार सम्बिन्धत हो, उस अन्य
िक्त के आचरण की सद्भावपूवकर् की गई कोई पिरिनन्दा मानहािन नह है ।
दृष्टांत
िकसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के िकसी आिफसर के आचरण की सद्भावपूवर्क पिरिनन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश,
उन िक्तय की, जो उसके आदेश के अधीन है, सद्भावपूवर्क पिरिनन्दा करने वाला कोई िवभागाध्यक्ष, अन्य िशशु की उपिस्थित म
िकसी िशशु की सद्भावपूवर्क पिरिनन्दा करने वाला िपता या माता, अन्य िव ािथय की उपिस्थित म िकसी िव ाथ की सद्भावपूवर्क
पिरिनन्दा करने वाला िशक्षक, िजसे िव ाथ के माता-िपता के पर्ािधकार पर्ाप्त ह, सेवा म िशिथलता के िलए सेवक की सद्भावपूवक
र्
पिरिनन्दा करने वाला स्वामी, अपने बक के रोकिड़ए की, ऐसे रोकिड़ए के रूप म ऐसे रोकिड़ए के आचरण के िलए, सद्भावपूवर्क
पिरिनन्दा करने वाला कोई बककार इस अपवाद के अन्तगर्त आते ह ।
आठवां अपवाद—पर्ािधकृ त िक्त के समक्ष सद्भावपूवक र् अिभयोग लगाना—िकसी िक्त के िवरु कोई अिभयोग ऐसे
िक्तय म से िकसी िक्त के समक्ष सद्भावपूवर्क लगाना, जो उस िक्त के ऊपर अिभयोग की िवषय-वस्तु के सम्बन्ध म िविधपूणर्
पर्ािधकार रखते ह , मानहािन नह है ।
दृष्टांत
यिद क एक मिजस्टर्ेट के समक्ष य पर सद्भावपूवर्क अिभयोग लगाता है, यिद क एक सेवक य के आचरण के सम्बन्ध म य के मािलक
से सद्भावपूवर्क िशकायत करता है ; यिद क एक िशशु य के सम्बन्ध म य के िपता से सद्भावपूवर्क िशकायत करता है ; तो क इस अपवाद
के अन्तगर्त आता है ।
नौवां अपवाद—अपने या अन्य के िहत की संरक्षा के िलए िकसी िक्त ारा सद्भावपूवकर् लगाया गया लांछन—िकसी अन्य के
शील पर लांछन लगाना मानहािन नह है, परन्तु यह तब जबिक उसे लगाने वाले िक्त के या िकसी अन्य िक्त के िहत की संरक्षा के
िलए, या लोक कल्याण के िलए, वह लांछन सद्भावपूवर्क लगाया गया हो ।
दृष्टांत
(क) क एक दुकानदार है । वह ख से, जो उसके कारबार का पर्बन्ध करता है, कहता है, “य को कु छ मत बेचना जब तक िक वह तुम्ह
नकद धन न दे दे, क्य िक उसकी ईमानदारी के बारे म मेरी राय अच्छी नह है”। यिद उसने य पर यह लांछन अपने िहत की संरक्षा के
िलए सद्भावपूवर्क लगाया है, तो क इस अपवाद के अन्तगर्त आता है ।
(ख) क, एक मिजस्टर्ेट अपने विरष्ठ आिफसर को िरपोटर् देते हुए, य के शील पर लांछन लगाता है । यहां, यिद वह लांछन
सद्भावपूवर्क और लोक कल्याण के िलए लगाया गया है, तो क इस अपवाद के अन्तगर्त आता है ।
दसवां अपवाद—सावधानी, जो उस िक्त की भलाई के िलए, िजसे िक वह दी गई है या लोक कल्याण के िलए आशियत है—एक
िक्त को दूसरे िक्त के िवरु सद्भावपूवर्क सावधान करना मानहािन नह है, परन्तु यह तब जब िक ऐसी सावधानी उस िक्त की
भलाई के िलए, िजसे वह दी गई हो, या िकसी ऐसे िक्त की भलाई के िलए, िजससे वह िक्त िहतब हो, या लोक कल्याण के िलए
आशियत हो ।
500. मानहािन के िलए दण्ड—जो कोई िकसी अन्य िक्त की मानहािन करे गा, वह सादा कारावास से, िजसकी अविध दो वषर्
तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
501. मानहािनकारक जानी हुई बात को मुिदर्त या उत्कीणर् करना—जो कोई िकसी बात को यह जानते हुए या िवश्वास करने का
अच्छा कारण रखते हुए िक ऐसी बात िकसी िक्त के िलए मानहािनकारक है, मुिदर्त करे गा, या उत्कीणर् करे गा, वह सादा कारावास से,
िजसकी अविध दो वषर् तक हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
97
502. मानहािनकारक िवषय रखने वाले मुिदर्त या उत्कीणर् पदाथर् का बेचना—जो कोई िकसी मुिदर्त या उत्कीणर् पदाथर् को, िजसम
मानहािनकारक िवषय अन्तिवष्ट है, यह जानते हुए िक उसम ऐसा िवषय अन्तिवष्ट है, बेचेगा या बेचने की पर्स्थापना करे गा, वह सादा
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
अध्याय 22
1
1898 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 6 ारा मूल धारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1969 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा धारा 505 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “हर मजेस्टी की या इम्पीिरयल सिवस टर्ूप्स” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । “मजेस्टी” शब्द के पश्चात्वत “या रायल इं िडयन मैिरन
म” शब्द का 1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा लोप िकया गया था ।
4
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसैना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1961 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 4 ारा “दो वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1969 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
98
िरपोटर् सत्य है और 1 [वह उसे सद्भावपूवर्क तथा पूव क्त जैसे िकसी आशय के िबना] रचता है, पर्कािशत करता है या पिरचािलत
करता है ।
506. आपरािधक अिभतर्ास के िलए दण्ड—जो कोई आपरािधक अिभतर्ास का अपराध करे गा, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
यिद धमकी मृत्यु या घोर उपहित इत्यािद कािरत करने की हो—तथा यिद धमकी मृत्यु या घोर उपहित कािरत करने की, या अिग्न
ारा िकसी सम्पि का नाश कािरत करने की या मृत्यु दण्ड से या 2 [आजीवन कारावास] से, या सात वषर् की अविध तक के कारावास से
दण्डनीय अपराध कािरत करने की, या िकसी स्तर्ी पर असितत्व का लांछन लगाने की हो ; तो वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध सात वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत जाएगा ।
507. अनाम संसच
ू ना ारा आपरािधक अिभतर्ास—जो कोई अनाम संसूचना ारा या उस िक्त का, िजसने धमकी दी हो, नाम
या िनवास-स्थान िछपाने की पूवार्वधानी करके आपरािधक अिभतर्ास का अपराध करे गा, वह पूवर्वत अंितम धारा ारा उस अपराध के
िलए उपबिन्धत दण्ड के अितिरक्त, दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया
जाएगा ।
508. िक्त को यह िवश्वास करने के िलए उत्पर्ेिरत करके िक वह दैवी अपर्साद का भाजन होगा कराया गया कायर्—जो कोई
िकसी िक्त को यह िवश्वास करने के िलए उत्पर्ेिरत करके , या उत्पर्ेिरत करने का पर्यत्न करके , िक यिद वह उस बात को न करे गा, िजसे
उससे कराना अपराधी का उ ेश्य हो, या यिद वह उस बात को करे गा िजसका उससे लोप कराना अपराधी का उ ेश्य हो, तो वह या कोई
िक्त, िजससे वह िहतब है, अपराधी के िकसी कायर् से दैवी अपर्साद का भाजन हो जाएगा, या बना िदया जाएगा, स्वेच्छया उस
िक्त से कोई ऐसी बात करवाएगा या करवाने का पर्यत्न करे गा, िजसे करने के िलए वह वैध रूप से आब न हो, या िकसी ऐसी बात के
करने का लोप करवाएगा या करवाने का पर्यत्न करे गा, िजसे करने के िलए वह वैध रूप से हकदार हो, वह दोन म से िकसी भांित के
कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दिण्डत िकया जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क, यह िवश्वास कराने के आशय से य के ार पर धरना देता है िक इस पर्कार धरना देने से वह य को दैवी अपर्साद का भाजन
बना रहा है । क ने इस धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
(ख) क, य को धमकी देता है िक यिद य अमुक कायर् नह करे गा, तो क अपने बच्च म से िकसी एक का वध ऐसी पिरिस्थितय म
कर डालेगा िजससे ऐसे वध करने के पिरणामस्वरूप यह िवश्वास िकया जाए, िक य दैवी अपर्साद का भाजन बना िदया गया है । क ने इस
धारा म पिरभािषत अपराध िकया है ।
509. शब्द, अंगिवक्षेप या कायर् जो िकसी स्तर्ी की लज्जा का अनादर करने के िलए आशियत है—जो कोई िकसी स्तर्ी की लज्जा का
अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्विन या अंगिवक्षेप करे गा, या कोई वस्तु पर्दिशत करे गा, इस आशय से िक ऐसी स्तर्ी
ारा ऐसा शब्द या ध्विन सुनी जाए, या ऐसा अंगिवक्षेप या वस्तु देखी जाए, अथवा ऐसी स्तर्ी की एकान्तता का अितकर्मण करे गा,
3
[वह सादा कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दिण्डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।]
510. म िक्त ारा लोक स्थान म अवचार—जो कोई म ता की हालत म िकसी लोक स्थान म, या िकसी ऐसे स्थान म, िजसम
उसका पर्वेश करना अितचार हो, आएगा और वहां इस पर्कार का आचरण करे गा िजससे िकसी िक्त को क्षोभ हो, वह सादा कारावास
से, िजसकी अविध चौबीस घंटे तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दस रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
अध्याय 23
1
1969 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 10 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा “आजीवन िनवार्सन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1955 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 117 और अनुसूची ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
99
दृष्टांत
(क) क, एक सन्दूक तोड़कर खोलता है और उसम से कु छ आभूषण चुराने का पर्यत्न करता है । सन्दूक इस पर्कार खोलने के पश्चात्
उसे ज्ञात होता है िक उसम कोई आभूषण नह है । उसने चोरी करने की िदशा म कायर् िकया है, और इसिलए, वह इस धारा के अधीन
दोषी है ।
(ख) क, य की जेब म हाथ डालकर य की जेब से चुराने का पर्यत्न करता है । य की जेब म कु छ न होने के पिरणामस्वरूप क अपने
पर्यत्न म असफल रहता है । क इस धारा के अधीन दोषी है ।
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