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H193402 0
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आवश्यक है;
और मुदर्ा नीित का पर्ाथिमक उ ेश्य, िवकास के उ ेश्य को ध्यान म रखते हुए मूल्य िस्थरता बनाए रखना है;
और भारत म मुदर्ा नीित सम्बन्धी रूपरे खा भारतीय िरजवर् बक ारा पर्वितत की जाएगी;]
अत: एतद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत िकया जाता है :—
अध्याय 1
पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम भारतीय िरजवर् बक अिधिनयम, 1934 है ।
4
[(2) इसका िवस्तार 5 *** सम्पूणर् भारत पर है ।]
(3) यह धारा तुरंत पर्वृ होगी और इस अिधिनयम के शेष उपबंध ऐसी 6 तारीख या तारीख को पर्वृ ह गे, जो 7 [के न्दर्ीय
सरकार] भारत के राजपतर् म अिधसूचना ारा िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म, जब तक िक िवषय या संदभर् म कोई बात िवरु न हो,—
8
* * * * *
9
[(कii)] “िरजवर् बक” से इस अिधिनयम ारा गिठत भारतीय िरजवर् बक अिभपर्ेत है;
[(कiii) “अंतरराष्टर्ीय समाशोधन बक” से हेग म हस्ताक्षिरत 20 जनवरी, 1930 के करार के अनुसरण म,
10
िस्वटजरलड की िविध के अधीन उक्त नाम से स्थािपत िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है;]
(ख) “कदर्ीय बोडर्” से िरजवर् बक के िनदेशक का कदर्ीय बोडर् अिभपर्ेत है;
[(खvक) “उपभोक्ता मूल्य सूचकांक” से भारत सरकार ारा समय-समय पर पर्कािशत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
11
1
बमार् के भारत से पृथक् होने पर िरजवर् बक के बमार् म या बमार् के संबंध म कृ त्य के िलए इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 देिखए ।
यह अिधिनयम, 1941 के अिधिनयम सं० 4 ारा बरार को; 1962 के िविनयम सं० 6 ारा गोवा, दमण, और दीव को; 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2
और अनुसूची 1 ारा (1-7-1965 से) दादरा और नागर हवेली को; 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा लक्ष ीप पर; अिधसूचना सं० का० आ०
208 (अ), तारीख 15-5-1975, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3(ii) पृ० 1213 ारा िसिक्कम राज्य को िवस्तािरत िकया गया और (14-8-1976 से) िसिक्कम म पर्वृ
हुआ देिखए अिधसूचना सं० का० आ० 547(अ), तारीख 13-8-1976 ।
यह अिधिनयम 1964 के अिधिनयम सं० 28 ारा अनुपूिरत िकया गया है ।
2
भारतीय स्वतंतर्ता (कदर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश) आदेश, 1948 ारा “िबर्िटश भारत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 220 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-11-1956 से) “जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय” शब्द का लोप िकया गया ।
6
धारा 2 से धारा 19, धारा 47, धारा 48, धारा 50 से धारा 52, धारा 55 से धारा 58 और धारा 61, 1 जनवरी, 1935 से पर्वृ हुई, देिखए भारत का राजपतर्, 1934,
भाग 1, पृ० 1369; और अन्य धाराएं 1 अपर्ैल, 1935 से पर्वृ हुई, देिखए भारत का राजपतर्, 1935, भाग 1, पृ० 538 ।
7
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 6 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) खंड (क) और खंड (कi) का लोप िकया गया ।
9
1965 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (1-3-1966 से) खंड (कक) को खंड (कii) के रूप म पुन: अक्षरांिकत िकया गया ।
10
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
11
2016 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 221 ारा अंत:स्थािपत ।
2
[ [(खvi)] “िनक्षेप बीमा िनगम” से िनक्षेप बीमा िनगम अिधिनयम, 1961 (1961 का 47) की धारा 3 के अधीन
1 2
बक अिभपर्ेत है;
1
1961 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 51 और दूसरी अनुसूची ारा (1-1-1962 से) अंत:स्थािपत ।
2
1965 के आिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (1-3-1966 से) खंड (खखख) और खंड (खखखख) को कर्मश: खंड (खvi) और (खvii) के रूप म पुन:अक्षरांिकत
िकया गया ।
3
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और दूसरी अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
4
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और दूसरी अनुसूची (12-7-1982 से) खंड (खi), खंड (खii), खंड (खiii), खंड (iv), (खv) और (खviii) का लोप िकया गया ।
5
1981 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 40 और अनुसूची 2 ारा (1-1-1982 से) अंत:स्थािपत ।
6
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 3 ारा (21-7-1978 से) खंड (ग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
2016 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 221 ारा अंत:स्थािपत ।
8
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
9
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 ारा और दूसरी अनुसूची ारा (12-7-1982 से) अन्त:स्थािपत ।
10
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंत:स्थािपत ।
11
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982) खंड (गi), खंड (गiक), खंड (गii), खंड (गiii), और खंड (गiv) का लोप िकया गया ।
12
1984 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 71 और अनुसूची 3 ारा (20-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
13
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “िसल्वर” शब्द का लोप िकया गया ।
14
2011 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 20 ारा पर्ितस्थािपत ।
15
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत ।
16
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा (1-11-1951 से) “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
18
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
19
1976 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 33 ारा (26-9-1975 से) अंत:स्थािपत ।
3
1 2
[ [(ङख)] “स्टेट बक” से भारतीय स्टेट बक अिधिनयम, 1955 (1955 का 23) के अधीन गिठत स्टेट बक
अिभपर्ेत है]
3
* * * * * * *
[(चi) “राज्य िव ीय िनगम” से राज्य िव ीय िनगम अिधिनयम, 1951 (1951 का 63) के अधीन स्थािपत कोई
4
पालन”, “पर्ादेिशक गर्ामीण बक” और “राज्य सहकारी बक” के वही अथर् ह गे जो उनके राष्टर्ीय कृ िष और गर्ामीण िवकास
बक अिधिनयम, (1981 का 61) म ह;
(झ) “सहकारी बक”, “सहकारी पर्त्यय सोसाइटी”, “िनदेशक”, “पर्ाथिमक कृ िषक पर्त्यय सोसाइटी”, “पर्ाथिमक
सहकारी बक” और “पर्ाथिमक पर्त्यय सोसाइटी” के वही अथर् ह गे जो उनके बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949
(1949 का 10) के भाग 5 म ह ।]
अध्याय 2
िनगमन, 8 [पूज
ं ी,] पर्बंध और कारबार
3. िरजवर् बक की स्थापना और िनगमन—(1) 9 [के न्दर्ीय सरकार] से करे न्सी का पर्बन्ध गर्हण करने तथा बककारी का कारबार
इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार चलाने के पर्योजन के िलए भारतीय िरजवर् बक के नाम से एक बक गिठत िकया जाएगा ।
(2) िरजवर् बक भारतीय िरजवर् बक के नाम से एक िनगिमत िनकाय होगा िजसका शाश्वत उ रािधकार और सामान्य मुदर्ा
होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा ।
10
[4. िरजवर् बक की पूज
ं ी—िरजवर् बक की पूंजी पांच करोड़ रुपए होगी ।]
5. [शेयर पूज
ं ी का बढ़ाया या घटाया जाना ।]—1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 तथा अनुसूची ारा (1-1-1949) से
िनरिसत ।
6. कायार्लय, शाखाएं और अिभकरण—िरजवर् बक यथाशक्य शीघर् मुम्बई, कलक ा, 11 [िदल्ली और मदर्ास] 12 *** म
कायार्लय स्थािपत करे गा और भारत 13 *** म िकसी अन्य स्थान म या 9[के न्दर्ीय सरकार] की पूवर् मंजूरी से अन्यतर् शाखाएं या
अिभकरण स्थािपत कर सके गा ।
[7. पर्बंध—(1) के न्दर्ीय सरकार िरजवर् बक को समय-समय पर ऐसे आदेश दे सके गी जो वह बक के गवनर्र से परामशर् करने
14
1
1955 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 52 और तीसरी अनुसूची ारा (1-7-1955 से) अंत:स्थािपत । इससे पूवर् िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अंत:स्थािपत खंड
(ङङ) का 1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 4 ारा (1-11-1951 से) लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 33 ारा (26-9-1975 से) खंड (ङझ) को खंड (ङख) के रूप म पर्ितस्थािपत िकया गया ।
3
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और दूसरी अनुसूची ारा (12-7-1982 से) खंड (च) का लोप िकया गया ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 3 ारा (21-7-1978 से) अंत:स्थािपत ।
5
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत खंड (च) से (ट) का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 2 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया और 1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 4 ारा (1-11-1951 से) अंत:स्थािपत खंड (छ) का 1956 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 2 और अनुसूची ारा
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
6
1963 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 44 और दूसरी अनुसूची ारा (1-2-1964 से) अंत:स्थािपत ।
7
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और दूसरी अनुसूची ारा (12-7-1982 से) अंत:स्थािपत ।
8
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “शेयर पूंजी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) धारा 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 5 ारा (1-4-1947 से) “िदल्ली, मदर्ास और रं गून” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 3 “और लन्दन शाखा” शब्द का लोप िकया गया ।
13
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 से अंत:स्थािपत “या बमार्” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 5 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
14
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) धारा 7 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
[(3) के न्दर्ीय बोडर् ारा बनाए गए िविनयम म जैसा उपबिन्धत हो उसके िसवाय गवनर्र तथा उसकी अनुपिस्थित म उसके
1
ारा इस नाम िनिम िनिदष्ट िडप्टी गवनर्र को भी िरजवर् बक के काय और कामकाज के साधारण अधीक्षण और िनदेशन की शिक्तयां
ह गी और वह ऐसी सब शिक्तय का पर्योग कर सके गा और ऐसे सभी कायर् और बात कर सके गा जो िरजवर् बक ारा पर्योक्तव्य ह या
की जा सकती ह ।]]
8. के न्दर्ीय बोडर् का गठन और िनदेशक की पदाविध— 2 [(1) के न्दर्ीय बोडर् िनम्निलिखत िनदेशक से िमलकर बनेगा,
अथार्त् :—
(क) एक गवनर्र और 3 [चार से अनिधक] िडप्टी गवनर्र, जो 4 [के न्दर्ीय सरकार] ारा िनयुक्त िकए जाएंगे,
(ख) चार िनदेशक, जो 4[के न्दर्ीय सरकार] ारा नामिनिदष्ट िकए जाएंगे और िजनम धारा 9 के अनुसार गिठत चार
स्थानीय बोड म से पर्त्येक से एक होगा,
(ग) 5 [दस] िनदेशक, जो 4[के न्दर्ीय सरकार] ारा नामिनिदष्ट िकए जाएंगे, और
(घ) 6 [दो] सरकारी अिधकारी जो [के न्दर्ीय सरकार] ारा नामिनिदष्ट िकया जाएगा ।]
(2) गवनर्र और िडप्टी गवनर्र अपना सारा समय िरजवर् बक के काय म लगाएंगे और ऐसे वेतन और भ े पर्ाप्त करगे जो
के न्दर्ीय बोडर् ारा 4[के न्दर्ीय सरकार] के अनुमोदन से अवधािरत िकए जाएं :
7
[परन्तु यिद के न्दर्ीय बोडर् की यह राय है िक लोकिहत म ऐसा करना आवश्यक है तो वह गवनर्र या िडप्टी गवनर्र को ऐसा
अंशकािलक अवैतिनक काम, चाहे वह इस अिधिनयम के पर्योजन से संबंिधत हो या नह , िजससे, यथािस्थित, गवनर्र या िडप्टी गवनर्र
के रूप म उसके कतर्व्य म बाधा पहुंचने की सम्भाव्यता नह है, के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार के अनुरोध पर करने के िलए
अनुज्ञा दे सके गा :]
[परं तु यह और िक के न्दर्ीय सरकार बक से परामशर् करके िकसी उप-गवनर्र को राष्टर्ीय बक का अध्यक्ष ऐसे िनबंधन और
8
1
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 5 ारा (1-1-1949 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 ारा (1-1-1949 से) पूवर्वत उपधारा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) “तीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) “छ:” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
2012 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 35 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
7
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
8
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) अंत:स्थािपत ।
9
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 2 ारा परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) दूसरे पैरा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) “उपधारा (6) के उपबन्ध के अधीन” शब्द, अंक और कोष्ठक का लोप िकया गया ।
12
2013 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 17 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
13
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) अंत:स्थािपत ।
14
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) उपधारा (6) का लोप िकया गया ।
5
स्थानीय बोडर् गिठत िकया जाएगा और यथासम्भव पर्ादेिशक या आिथक िहत और सहकारी और देशी बक के िहत का पर्ितिनिधत्व
करने के िलए के न्दर्ीय सरकार ारा िनयुक्त िकए जाने वाले पांच सदस्य से िमलकर बनेगा ।
(2) स्थानीय बोडर् के सदस्य अपने म से एक व्यिक्त को बोडर् का सभापित िनवार्िचत करगे ।
2
[(3) स्थानीय बोडर् का पर्त्येक सदस्य चार वषर् की अविध के िलए 3 [पद धारण करे गा और पुनिनयुिक्त का पातर् होगा :
परन्तु ऐसा कोई सदस्य दो अविधय , अथार्त् िनरं तर या आंतराियक रूप से, आठ वषर् की अिधकतम अविध से अिधक के िलए
िनयुक्त नह िकया जाएगा ।]
(4) स्थानीय बोडर् के न्दर्ीय बोडर् को ऐसे मामल म सलाह देगा जो उसे साधारणतया या िविशष्टत: िनधार्िरत िकए जाएं और
ऐसे कतर्व्य का पालन करे गा जो के न्दर्ीय बोडर् उसे पर्त्यायोिजत करे ।]
10. िनदेशक और स्थानीय बोड के सदस्य की िनरहर्ताएं—(1) ऐसा कोई व्यिक्त िनदेशक या स्थानीय बोडर् का सदस्य न हो
सके गा—
(क) जो वैतिनक सरकारी अिधकारी है, 4 *** 5 ****, या
(ख) जो िदवािलया न्यायिनण त हुआ है या िकसी समय हुआ था अथवा िजतने भुगतान करना िनलिम्बत कर िदया
है या अपने लेनदार के साथ समझौता कर िलया है, या
(ग) जो पागल पाया गया है या िवकृ तिच हो जाता है, या
(घ) जो िकसी बक का अिधकारी या कमर्चारी है, या
[(ङ) 7 [जो बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10], की धारा 5 के खण्ड (ग) के अथर् म बककारी
6
अधीन बनाए गए बोडर् के लगातार तीन अिधवेशन से के न्दर्ीय बोडर् की इजाजत के िबना अनुपिस्थत रहता है तो वह पद धारण करने से
पिरिवरत हो जाएगा ।]
(3) यिद कोई िनदेशक या सदस्य धारा 10 की उपधारा (1) या उपधारा (2) म िविनिदष्ट िनरहर्ता म से िकसी से गर्स्त हो
जाता है तो उस िनदेशक को 8[के न्दर्ीय सरकार] और, स्थानीय बोडर् के उस सदस्य को के न्दर्ीय बोडर्, पद से हटा देगी या हटा देगा ।
1
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) धारा 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 5 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2013 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 17 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 “या ारा भारत के राज्य का वैतिनक पदधारी” शब्द का लोप िकया गया ।
5
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “ या बमार्” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 8 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
6
1965 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा (1-3-1966 से) मूल खंड (ङ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 3 ारा “बककारी कं पनी अिधिनयम, 1949” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 6 ारा (1-11-1951 से) “कोई अन्य िनदेशक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) परन्तुक का लोप िकया गया ।
11
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
(4) पूवर्गामी उपधारा के अधीन हटाया गया या पद धारण करने से पिरिवरत िनदेशक या िकसी स्थानीय बोडर् का सदस्य
िनदेशक के रूप म या स्थानीय बोडर् के सदस्य के रूप म पुनिनयुिक्त के िलए तब तक पातर् नह होगा जब तक िक उस पदाविध का
अवसान न हो जाए िजसके िलए उसकी िनयुिक्त की गई थी ।
(5) िकसी व्यिक्त का जो 1 [संसद् या 2 [िकसी राज्य के ] िवधान मंडल] का सदस्य है िनदेशक या स्थानीय बोडर् के सदस्य के
रूप म नामिनदशन 4 *** शून्य होगा जब तक िक वह अपना 3*** नामिनदशन 4*** की तारीख से दो मास के भीतर ऐसा सदस्य
3 ***
होने से पिरिवरत नह हो जाता है और यिद कोई िनदेशक या स्थानीय बोडर् का सदस्य 5 [संसद् या ऐसे िकसी िवधान-मंडल] के सदस्य के
रूप म िनवार्िचत या नामिनिदष्ट िकया जाता है तो वह, यथािस्थित, ऐसे िनवार्चन या नामिनदशन की तारीख से िनदेशक या स्थानीय
बोडर् का सदस्य होने से पिरिवरत हो जाएगा ।
(6) िनदेशक अपना पद 6 [के न्दर्ीय सरकार] को और स्थानीय बोडर् का सदस्य अपना पद के न्दर्ीय बोडर् को त्यागपतर् देकर त्याग
सके गा और उसके त्यागपतर् के स्वीकार िकए जाने पर वह पद िरक्त हो जाएगा ।
12. आकिस्मक िरिक्तयां और अनुपिस्थित—(1) यिद गवनर्र या िडप्टी गवनर्र अंग शैिथल्य के कारण या अन्यथा अपने
कतर्व्य का िनष्पादन करने के िलए असमथर् हो जाता है या छु ी पर या अन्यथा ऐसी पिरिस्थितय म अनुपिस्थत है िजनम उसका पद
िरक्त न हो तो 6[के न्दर्ीय सरकार] के न्दर्ीय बोडर् ारा इस बाबत की गई िसफािरश पर िवचार करने के पश्चात् िकसी अन्य व्यिक्त को
उस िरिक्त म स्थानपन्न रूप से िनयुक्त कर सके गी और ऐसा व्यिक्त धारा 10 की उपधारा (1) के ख्ांड (घ) म अन्तिवष्ट िकसी बात के
होते हुए भी िरजवर् बक का अिधकारी हो सके गा ।
7
* * * * * * *
(3) जहां स्थानीय बोडर् के िकसी सदस्य के पद म 8 *** कोई आकिस्मक िरिक्त हो जाती है वहां के न्दर्ीय बोडर् 9 *** व्यिक्त
को, िजसकी स्थानीय बोडर् के 10 [अन्य] सदस्य ने िसफािरश की है, उसके िलए नामिनिदष्ट कर सके गी ।
(4) जहां िनदेशक के पद म कोई ऐसी िरिक्त हो जाती है, जो उपधारा (1) म उपबंिधत िरिक्तय से िभन्न है वहां िरिक्त
11
[के न्दर्ीय सरकार ारा] भरी जाएगी ।
(5) 12 *** आकिस्मक िरिक्त की पूित करने के िलए इस धारा के अधीन नामिनिदष्ट 13
*** व्यिक्त अपने पूवार्िधकारी की
अविध के अपयर्विसत भाग तक पद धारण करे गा ।
13. के न्दर्ीय बोडर् के अिधवेशन—(1) के न्दर्ीय बोडर् के अिधवेशन पर्त्येक वषर् कम से कम छह बार और पर्त्येक ितमाही म कम से
कम एक बार गवनर्र ारा बुलाए जाएंगे ।
(2) कोई 14 [चार िनदेशक] िकसी भी समय गवनर्र से के न्दर्ीय बोडर् का अिधवेशन बुलाने की अपेक्षा कर सकगे गवनर्र तदनुसार
तुरन्त अिधवेशन बुलाएगा ।
(3) गवनर्र 15 [या यिद वह िकसी कारण से हािजर होने म असमथर् है,] तो धारा 8 की उपधारा (3) के परन्तुक के अधीन
उसकी ओर से मत देने के िलए पर्ािधकृ त िडप्टी गवनर्र, के न्दर्ीय बोडर् के अिधवेशन म पीठासीन होगा और समान मत की अवस्था म
उसका ि तीय या िनणार्यक मत होगा ।
14-16. [साधारण अिधवेशन । के न्दर्ीय बोडर् का पर्थम गठन । स्थानीय बोड का पर्थम गठन ।]—1948 के अिधिनयम संख्यांक
62 की धारा 7 तथा अनुसूची ारा (1-1-1949 से) िनरिसत ।
17. कारबार िजसे िरजवर् बक कर सके गा—िरजवर् बक एतत्पश्चात् िविनिदष्ट अनेक पर्कार के कारबार चलाने और उनका
िनष्पादन करने के िलए पर्ािधकृ त होगा, अथार्त् :—
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 6 ारा (1-11-1951 से) “भाग क राज्य या भाग ग राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1- 1949 से) “ िनयुिक्त” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “या िनवार्चन” शब्द का लोप िकया गया ।
5
िविध अनुकूलन आदेश 1950 ारा “ऐसा कोई िवधान-मंडल या पिरषद्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
8
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “स्थानीय बोडर् ारा िनवार्िचत िकसी िनदेशक के कायार्लय म िरिक्त से िभन्न” शब्द का
लोप िकया गया ।
9
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “अिहत” शब्द का लोप िकया गया ।
10
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “िनवार्िचत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “या िनवार्िचत” शब्द का लोप िकया गया ।
13
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “उपधारा (4) म अन्तिवष्ट परन्तुक के अधीन” शब्द का लोप िकया गया ।
14
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) “तीन िनदेशक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 5 ारा “उनकी अनुपिस्थित म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
(1) 1 *** 2 [के न्दर्ीय सरकार], 3 [ 4 *** 5 [राज्य] सरकार 6 ***] 7 *** स्थानीय पर्ािधकािरय , बक और िकन्ह अन्य
व्यिक्तय से और उनके िलए िबना ब्याज वाले िनक्षेप के रूप म धन का पर्ितगर्हण और धन का संगर्हण ।
(2) (क) दो या दो से अिधक मान्य हस्ताक्षर वाले, िजन हस्ताक्षर म से एक अनुसूिचत बक 8 [या राज्य सहकारी बक] 9 [या
िकसी ऐसी िव ीय संस्था का होगा जो िविनमयपतर् और वचनपतर् को पर्ितगृहीत करने म या िमतीकाटा लेकर उनका भुगतान करने म
पर्मुखत: लगी हुई हो और जो इस िनिम िरजवर् बैक ारा 9[ 10 *** अनुमोिदत हो] ऐसे िविनमयपतर् और वचनपतर् का कर्य, िवकर्य या
पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करना, 11 [जो भारत] 12 [म िलखे गए और देय ह] और जो सद्भावी वािणिज्यक या व्यापािरक
संव्यवहार से उद्भूत हुए ह और 13 [जो ऐसे कर्य या पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करने की तारीख से अनुगर्ह िदवस को छोड़कर—
(i) भारत से माल के िनयार्त से सम्बिन्धत िकसी ऐसे संव्यवहार से उद्भूत िविनमयपतर् तथा वचनपतर् की दशा म
एक सौ अस्सी िदन के अन्दर, और
(ii) िकसी अन्य दशा म नब्बे िदन के अन्दर,
पिरपक्व होने वाले ह,]
(ख) दो या दो से अिधक मान्य हस्ताक्षर वाले, िजन हस्ताक्षर म से एक अनुसूिचत बक 14 [या 15 [राज्य] सहकारी बक 9[या
िकसी ऐसी िव ीय संस्था का होगा जो िविनमयपतर् और वचनपतर् को पर्ितगृहीत करने म या िमतीकाटा लेकर उनका भुगतान करने म
पर्मुखत: लगी हुई हो और जो इस िनिम िरजवर् बक ारा अनुमोिदत ह ,] ऐसे िविनमयपतर् और वचनपतर् का कर्य, िवकर्य, या
पुन:िमतीकाटा लेकर भुगतान करना, 11[जो भारत] 12[म िलखे गए और देय ह] और 16 [कृ िष संिकर्या के ] या फसल के िवपणन
16
[िव पोषण] के पर्योजन के िलए िलखे गए या िदए गए ह और अनुगर्ह िदवस को छोड़कर ऐसे पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करने के
17 [पन्दर्ह मास] के भीतर पिरपक्व होने वाले ह;
18
* * * * *
[(खख) दो या दो से अिधक मान्य हस्ताक्षर वाले, िजनम से एक राज्य सहकारी बक [या िकसी ऐसी िव ीय संस्था का
19 9
होगा जो िविनमयपतर् और वचनपतर् को पर्ितगृहीत करने म या िमतीकाटा लेकर उनका भुगतान करने म पर्मुखत: लगी हुई हो और जो
इस िनिम िरजवर् बक ारा अनुमोिदत हो] ऐसे िविनमयपतर् और वचनपतर् का कर्य, िवकर्य और पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करना
जो भारत म िलखे गए और देय ह और िरजवर् बक ारा अनुमोिदत कु टीर और लघु उ ोग के उत्पादन या िवपणन िकर्या का
िव पोषण करने के पर्योजन के िलए िलखे गए या िदए गए ह और ऐसे कर्य या पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करने की तारीख से,
अनुगर्ह िदवस को छोड़कर, बारह मास के भीतर पिरपक्व होने वाले ह, परन्तु यह तब जबिक ऐसे िविनमयपतर् या वचनपतर् के मूल
और ब्याज की अदायगी राज्य सरकार ारा पूणर्त: पर्त्याभूत ह ;]
(ग) अनुसूिचत बक 20 *** के हस्ताक्षर वाले ऐसे िविनमयपतर् और वचनपतर् का कर्य, िवकर्य या पुन िमतीकाटा लेकर
भु्गतान करना 14[जो भारत म 12[िलखे गए और देय ह औ जो 21 [के न्दर्ीय सरकार 12[या 15[राज्य] सरकार] की पर्ितभूितयां 22 *** धारण
करने या उनका व्यापार करने के पर्योजन के िलए िदए गए या िलखे गए ह और ऐसे कर्य या पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करने की
तारीख से अनुगर्ह िदवस को छोड़कर, नब्बे िदन के भीतर पिरपक्व होने वाले ह ।
1
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “सेकर्ेटरी आफ स्टेट” शब्द का लोप िकया गया ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “स्थानीय सरकार ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “फे डरल रे लवे अथािरटी” शब्द का लोप िकया गया ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ांतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) “बमार् सरकार बमार् रे ल बोडर्” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1951 के अिधनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “भाग ख राज्य” शब्द का लोप िकया गया ।
8
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) अंत:स्थािपत ।
9
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
10
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “या िकसी बमार् अनुसूिचत बक” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा
(1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
11
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) “भारत या बमार् और भारत या बमार् म देय” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 “भारत म िलखे गए और देय” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ांतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
16
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा “मौसमी कृ िष संिकर्या के िव पोषण” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “नौ मास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
18
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत स्पष्टीकरण का 1965 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 4 ारा (1-3-1966 से) लोप िकया गया ।
19
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
20
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) “या िकसी बमार् अनुसूिचत बक” शब्द का लोप िकया गया ।
21
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “भारत सरकार या स्थानीय सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
22
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
8
(i) भारत से माल के िनयार्त से संबंिधत िकसी सद्भािवक संव्यवहार से उद्भूत िविनमयपतर् की दशा म, एक
सौ अस्सी िदन के अंदर, तथा
परन्तु भारत म ऐसा कोई कर्य, िवकर्य या पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करना अनुसूिचत बक या राज्य सहकारी बक
के साथ ही िकया जाएगा, अन्यथा नह ।]
5
* * * * * * *
6
[(3क) िकसी अनुसूिचत बक या राज्य सहकारी बक को ऐसे बक के ऐसे वचनपतर् पर, जो मांग पर, अथवा एक सौ
अस्सी िदन से अनिधक िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह, उधार और अिगर्म देना :
परन्तु यह तब जबिक उधार लेने वाला बक िलिखत रूप से इस भाव की घोषणा कर देता है िक—
(i) भारत से माल के िनयार्त से संबंिधत िकसी संव्यवहार से उद्भूत तथा ऐसे उधार या अिगर्म की रकम से
अन्यून मूल्य के ऐसे िविनमयपतर् वह धारण िकए हुए ह, जो—
(क) भारत म िलखे गए ह और जो भारत के बाहर के िकसी ऐसे देश के िकसी स्थान पर िलखे गए ह
जो अंतरराष्टर्ीय मुदर्ा िनिध का सदस्य है, अथवा िकसी अन्य देश म िलखे गए ह िजसे िरजवर् बक ने भारत के
राजपतर् म इस िनिम अिधसूिचत िकया है, और
7
[(ख) उधार या अिगर्म की तारीख से एक सौ अस्सी िदन से अनिधक समय पर पिरपक्व होने ह
तथा जब तक ऐसे उधार और अिगर्म का कोई भाग िबना चुकाया रहता है तब तक वह उतने मूल्य के ऐसे
िविनमयपतर् धारण िकए रहेगा िजनका मूल्य तत्समय बाकी ऐसे उधार या अिगर्म की रकम से कम नह है;
या]
8
[(ii) उसने िनयार्तक को या भारत म िकसी अन्य व्यिक्त को पोतवहन-पूवर् उधार या अिगर्म इस उ ेश्य से
िदया है िक वह भारत से माल का िनयार्त करने म समथर् हो जाए और िकसी समय िलए गए और बाकी उधार या
अिगर्म की रकम उस उधार या अिगर्म की रकम से कम नह रहेगी जो उधार लेने वाले बक ने िरजवर् बक से अिभपर्ाप्त
िकया है ।]
9
[(3ख) िकसी अनुसूिचत बक या राज्य सहकारी बक को, उस बक के वचनपतर् पर, ऐसे उधार और अिगर्म देना जो
मांग पर या एक सौ अस्सी िदन से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह :
परन्तु यह तब जब िक उधार लेने वाला बक िलिखत रूप म इस आशय की घोषणा करता है िक उसने उधार और अिगर्म
सद्भावी वािणिज्यक या व्यापािरक संव्यवहार के िलए या कृ िषक संिकर्या के या फसल के िवपणन या अन्य ऐसे कृ िष
पर्योजन के िव पोषण के िलए िदए ह जो घोषणा म उिल्लिखत ह और उक्त घोषणा के अंतगर्त ऐसी अन्य िविशिष्टयां
सिम्मिलत ह िजनकी िरजवर् बक अपेक्षा करे ;]
1
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “स्टिलग” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “और बमार् अनुसूिचत बक” शब्द का लोप
िकया गया ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
4
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा उपखंड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-11-1949 से) उपखंड (ग) का लोप िकया गया ।
6
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
7
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 24 ारा (1-2-1969) उपखंड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 24 ारा (1-2-1969) खंड (ii) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
9
(4) 1 *** स्थानीय पर्ािधकािरय , अनुसूिचत बक , 2 [ 3 *** 4 [राज्य] सहकारी बक 5 [और राज्य िव ीय िनगम ]] 6 *** को
िनम्निलिखत की पर्ितभूित पर ऐसे उधार और अिगर्म देना जो मांग पर अथवा नब्बे िदन से अनिधक िनयत कालाविधय के अवसान पर
पर्ितदेय ह ,—
(क) वे स्टाक, िनिधयां (स्थावर संपि से िभन्न) और पर्ितभूितयां िजनम न्यासी न्यास-धन को 7 [यूनाइटेड िकगडम
की] पािलयामट के िकसी अिधिनयम ारा या 8 [भारत] 9 *** म तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा िविनिहत करने के िलए
पर्ािधकृ त ह,
(ख) सोना या चांदी या उनके हक-दस्तावेज,
(ग) वे िविनमयपतर् और वचनपतर् जो िरजवर् बक ारा खरीदे जाने या पुन: िमतीकाटा लेकर भुगतान करने के योग्य
ह 10 [या जो मूल के पर्ितदान और ब्याज की अदायगी के िलए राज्य सरकार ारा संपूणर्त: पर्त्याभूत ह;]
(घ) िकसी अनुसूिचत बक 11 [ 12 [या 4[राज्य]] सहकारी बक] के वे वचनपतर् िजनका समथर्न माल पर हक संबंधी
13 [ऐसी दस्तावेज से] होता है जो सद्भावी वािणिज्यक या व्यापािरक संव्यवहार के िलए या 14 [कृ िषक संिकर्या ] या
फसल के िवपणन के 15 [िव पोषण] के पर्योजन के िलए 15[िदए गए उधार या अिगर्म] के िलए पर्ितभूित के रूप म ऐसे िकसी
बक को 13[अंतिरत] या समनुदिे शत कर दी गई है या उसके पास िगरवी रख दी गई है :
16 [परन्तु
भारत से माल के िनयार्त से संबंिधत िकसी संव्यवहार से उद्भूत होने वाले िविनमयपतर् तथा वचनपतर् की पर्ितभूित
पर िदए गए उधार और अिगर्म मांग पर अथवा एक सौ अस्सी िदन से अनिधक िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह गे ;]
िकसी राज्य िव ीय िनगम 6*** को के न्दर्ीय सरकार की या िकसी राज्य सरकार की कै सी ही पिरपक्वता वाली
17 [(4क)
पर्ितभूितय पर या उस िनगम ारा िनगर्िमत और संब राज्य सरकार ारा पर्त्याभूत और ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख से अठारह
मास से अनिधक की कालाविध के भीतर पिरपक्व होने वाले बंधपतर् और िडबचर पर ऐसे उधार या अिगर्म देना जो ऐसे उधार या
अिगर्म की तारीख से अठारह मास से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह :
[परन्तु राज्य िव ीय िनगम ारा उधार लेने के िलए राज्य सरकार का पूवर् अनुमोदन पर्ाप्त िकया जाएगा और उस िनगम
18
को इस खंड के अधीन िदए गए उधार और अिगर्म की कु ल रकम िकसी भी समय िनगम के शेयर की 19 [समाद पूज ं ी के दुगुन]े से
अिधक नह होगी ।]]
[(4कक) राष्टर्ीय कृ िष और गर्ामीण िवकास बक अिधिनयम, 1981 (1981 का 61) की कर्मश: धारा 42 और धारा 43 के
20
अधीन स्थािपत राष्टर्ीय गर्ामीण पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध और राष्टर्ीय गर्मीण पर्त्यय (िस्थरीकरण) िनिध म वािषक अिभदाय
करना;]
21
[(4ख) भारतीय औ ोिगक िव िनगम 6*** को ऐसे उधार और अिगर्म देना, जो—
(क) के न्दर्ीय सरकार की या िकसी राज्य सरकार की पर्ितभूितय पर, मांग पर या ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख
से नब्बे िदन से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितसंदय े ह, या
(ख) के न्दर्ीय सरकार की कै सी ही पिरपक्व होने वाली पर्ितभूितय पर या ऐसे िनगम ारा पुरोधृत और के न्दर्ीय
सरकार ारा पर्त्याभूत और ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख से अठारह मास से अनिधक की कालाविध के भीतर पिरपक्व
1
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “भाग ख राज्य” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “और पर्ांतीय सहकारी बक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-1-1947 से) “बमार् अनुसूिचत बक” शब्द का लोप िकया गया ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ांतीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1957 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) कितपय श्ाब्द का लोप िकया गया ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अंत:स्थािपत ।
8
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा (1-11-1951 से) “राज्य” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमटस) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “ या बमार्” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
10
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
11
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “या िकसी पर्ांतीय सहकारी बक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-1-1947 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “जो अंतिरत िकए गए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा “नकद पर्त्यय या अनुद (ओवर डर्ाफ्ट)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा “मौसमी कृ िष संिकर्या के िव पोषण” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
16
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
17
1960 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
18
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा पूवर्वत परं तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
19
1985 के अिधिनयम सं० 81 की धारा 2 ारा (1-5-1986 से) “शेयर की समाद पूंजी के नब्बे पर्ितशत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
20
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और दूसरी अनुसूची ारा (12-7-1982 से) खंड (4कक) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
21
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
10
होने वाले बंधपतर् और िडबचर पर ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख से अठारह मास से अनिधक की िनयत कालाविधय के
अवसान पर पर्ितदेय ह :
1
* * * * *
2
[(4खख) के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम अिधसूिचत िकसी िव ीय संस्था को उधार और अिगर्म देना जो—
(क) के न्दर्ीय सरकार की या िकसी राज्य सरकार की पर्ितभूितय पर, मांग पर या ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख
से नब्बे िदन से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह; या
(ख) के न्दर्ीय सरकार की या िकसी राज्य सरकार की कै सी ही पिरपक्व होने वाली पर्ितभूितय पर या उस िव ीय
संस्था ारा पुरोधृत और के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार ारा पर्त्याभूत और ऐसे उधार या अिगर्म की तारीख से
अठारह मास से अनिधक की कालाविध के भीतर पिरपक्व होने वाले बंधपतर् और िडबचर पर, ऐसे उधार या अिगर्म की
तारीख से अठारह मास से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय ह :
परन्तु उपखंड (ख) के अधीन िकसी िव ीय संस्था को िदए गए उधार और अिगर्म की रकम िकसी समय कु ल
िमलाकर, उसकी समाद शेयर पूंजी के साठ पर्ितशत से अिधक न होगी;
3
[(4खखख) यूिनट टर्स्ट को—
(i) ऐसे स्टाक, िनिधय और (स्थावर संपि से िभन्न) पर्ितभूितय की पर्ितभूित पर, िजनम न्यास-धन
िविनिहत करने के िलए कोई न्यासी भारत म तत्समय पर्वृ िविध ारा पर्ािधकृ त हो, ऐसा उधार और अिगर्म देना
जो मांगे जाने पर या उस उधार या अिगर्म की तारीख से नब्बे िदन से अनिधक की िनयत कालाविध के अवसान पर
पर्ितसंदय
े है,] 4 ***
(ii) के न्दर्ीय सरकार के अनुमोदन से िनगर्िमत और उसके ारा पर्त्याभूत यूिनट टर्स्ट के बंधपतर् की
पर्ितभूित पर, उधार या अिगर्म धन देना जो मांगे जाने पर या उस उधार या अिगर्म की तारीख से अठारह मास की
कालाविध के भीतर पर्ितसंदय े है;]
[(iii) भारतीय यूिनट टर्स्ट अिधिनयम, 1963 (1963 का 52) के अधीन पर्थम यूिनट स्कीम से िभन्न
5
िकसी स्कीम के पर्योजन के िलए ऐसे िनबंधन और शत पर, और यूिनट टर्स्ट की ऐसी अन्य संपि की पर्ितभूित
पर, जैसी िरजवर् बक ारा इस िनिम िविनिदष्ट की जाए, उधार और अिगर्म देना ।]
[(4ग) कृ िषक उपज (िवकास और भांडागारण) िनगम अिधिनयम, 1956 (1956 का 28) के अधीन स्थािपत भांडागारण
6
1
1988 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 5 ारा (30-12-1988 से) परन्तुक का लोप िकया गया ।
2
1960 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 2 ारा खंड (4खख) के , जो 1957 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत िकया गया था, स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1963 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 44 और अनुसूची 2 ारा (1-2-1964 से) अंत:स्थािपत ।
4
1966 के अिधिनयम सं० 17 की धारा 11 ारा (10-6-1966 से) “या” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1966 के अिधिनयम सं० 17 की धारा 11 ारा (10-6-1966 से) अंत:स्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 55 ारा (1-8-1956 से) अंत:स्थािपत ।
7
1961 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 51 और अनुसूची 2 ारा (1-1-1962 से) अंत:स्थािपत ।
8
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंत:स्थािपत ।
11
1
[(4ङ) राष्टर्ीय बक को—
(i) स्टाक, िनिधय तथा (स्थावर संपि से िभन्न) ऐसी पर्ितभूितय की पर्ितभूित पर, िजनम कोई न्यासी न्यास धन
का िविनधान करने के िलए भारत म तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा पर्ािधकृ त है; या
(ii) ऐसी अन्य शत या िनबंधन पर, जो बक ारा िविनिदष्ट िकए जाएं,
ऐसे उधार और अिगर्म देना जो मांग पर या ऐसे उधार या अिगर्म के िदए जाने की तारीख से अठारह मास से अनिधक की िनयत
कालाविधय के अवसान पर पर्ितसंदये ह;]
2
[(4च) यूिनट टर्स्ट की पर्ारं िभक पूंजी म अिभदाय करना;]
[(4छ) धारा 46ग के अधीन स्थािपत राष्टर्ीय औ ोिगक उधार (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध म से 4 *** 5 िनआ बक 6 [या
3
पुनिनमार्ण बक]] 7 [या लघु उ ोग बक] को उधार और अिगर्म धन देना, तथा उसके बंधपतर् और िडबचर कर्य करना;
[(4छछ) राष्टर्ीय आवास बक को धारा 46घ के अधीन स्थािपत राष्टर्ीय आवास पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध म से ऋण
8
1
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और दूसरी अनुसूची ारा (12-7-1982 से) खंड (4ङ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1963 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 44 और दूसरी अनुसूची ारा (1-2-1964 से) अंत:स्थािपत ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और दूसरी अनुसूची ारा (1-7-1964 से) अंत:स्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 2 और अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
5
1981 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 40 और दूसरी अनुसूची ारा (1-1-1982 से) अन्त:स्थािपत ।
6
1984 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 71 और तीसरी अनुसूची ारा (20-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
7
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और तीसरी अनुसूची ारा (7-3-1990 से) अंत:स्थािपत ।
8
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंत:स्थािपत ।
9
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
10
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा (7-3-1990 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1984 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 71 और अनुसूची 3 ारा (20-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
12
(ख) ऐसे िविनमय-पतर् या वचन-पतर् की पर्ितभूित पर उधार और अिगर्म देना, जो स ावपूवर्क िकए गए
वािणिज्यक या व्यापािरक संव्यवहार से उद्भूत होते ह, िजन पर दो या अिधक मान्य हस्ताक्षर ह और जो ऐसे उधार या
अिगर्म की तारीख से पांच वषर् के भीतर पिरपक्व होते ह;]
(5) 1 [के न्दर्ीय सरकार] 2 [ 3 *** 4 [और 5 [राज्य] सरकार]] को ऐसे अिगर्म देना और जो पर्त्येक दशा म अिगर्म देने की तारीख
से तीन मास से अनिधक के पश्चात् पर्ितदेय है;
[(6) अपने कायार्लय या अिभकरण म देय मांगदेय डर्ाफ्ट, तार, अन्तरणादेश और अन्य पर्कार के िवपर्ेषणादेश का
6
पर्ािधकारी 10 *** की ऐसी पर्ितभूितय का, जैसी के न्दर्ीय सरकार ने के न्दर्ीय बोडर् की िसफािरश पर तिन्निम िविनिदष्ट की ह , कर्य
और िवकर्य :
परन्तु मूल और ब्याज की बाबत िजन पर्ितभूितय के िलए पूरी पर्त्याभूित 11 [ऐसी िकसी सरकार 12
[या पर्ािधकारी]] ने दी है
वे इस खंड के पर्योजन के िलए ऐसी सरकार 12[या पर्ािधकारी] की पर्ितभूितयां समझी जाएंगी;
13
* * * * *
[(8क) 15 [ 16 [राष्टर्ीय बक], 17 [िनक्षेप बीमा िनगम], 18 *** स्टेट बक
14 19 [या के न्दर्ीय सरकार ारा तिन्निम अिधसूिचत
िकसी अन्य बक] 1 [या िव ीय संस्था] के शेयर और पूंजी का कर्य और िवकर्य;]]
1
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1948 ारा “संघीय रे लवे पर्ािधकारी” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “पर्ान्तीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-1-1951 से) खंड 6 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
8
1948 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 2 और अनुसूची ारा खंड (7) िनरिसत ।
9
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “भारत सरकार का या स्थानीय सरकार का” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “या ऐसा भाग ख राज्य” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
11
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “भारत सरकार, स्थानीय सरकार या भारत म राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1971 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “पर्ािधकारी या राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) दूसरे परन्तुक का लोप िकया गया ।
14
1955 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 52 और अनुसूची 3 ारा (1-7-1955 से) अंत:स्थािपत ।
15
1963 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 47 और अनुसूची 2 ारा (1-5-1963 से) अंत:स्थािपत ।
16
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) “कृ िषक पुनिव और िवकास िनगम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
1961 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 51 और अनुसूची 2 ारा (1-1-1962 से) अंत:स्थािपत ।
18
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
19
1956 के अिधिनयम सं० 79 की धारा 43 और अनुसूची 2 ारा (22-10-1956 से) “या उसका कोई समनुषंगी बक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
[(8कक) िकसी िव ीय संस्था का संवधर्न करना, स्थापन करना और उनकी सहायता करना या उसके संवधर्न, स्थापना और
2
अनुमोिदत िकया है उसकी जो बाध्यताएं ऐसे िकसी उधार और अिगर्म की बाबत अथवा ऐसी अन्य पर्त्यय सुिवधा की
बाबत, जो उसे िकसी बक या अन्य िव ीय संस्था ारा दी गई है; उस बक या अन्य िव ीय संस्था के पर्ित है, उनका सम्यक्
पालन उस संस्था ारा िकया जाएगा, तथा ऐसी पर्त्याभूित के संबंध म भुगतान ऐसे अिभकतार् के रूप म करना, तथा]
(ख) ऐसी िकसी स्कीम के पर्शासन म कायर् करना जो िकन्ह उधार या अिगर्म के सम्बन्ध म अथवा िकसी अन्य
पर्त्यय सुिवधा के सम्बन्ध म, जो भारत से िकसी िनयार्त का िव पोषण करने या िकसी िनयार्त को सुगम करने के पर्योजन से
बक ारा या अन्य िव ीय संस्था ारा दी गई ह या उपबिन्धत की गई ह, ब्याज या अन्य पर्भार की दर के िलए
सहािय्यकी देने की है, तथा के न्दर्ीय सरकार की ओर से ऐसे अिभकतार् के रूप म भुगतान करना;
1
1957 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंत:स्थािपत ।
3
1959 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 64 और अनुसूची 3 ारा (10-9-1959 से) अंत:स्थािपत ।
4
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश) अनुकूलन आदेश, 1948 ारा “सेकर्ेटरी आफ स्टेट” शब्द का लोप िकया गया ।
5
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1948 “पर्ान्तीय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) “या बमार् सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “या कोई भाग ख राज्य” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
10
1959 के अिधिनयम सं० 44 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
11
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
12
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
13
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) अंत:स्थािपत ।
14
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा “िकसी ऐसे व्यिक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1947 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत ।
16
1949 के अिधिनयम सं० 44 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
17
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा “पूव क्त िनगम के संबंध म” शब्द का लोप िकया गया ।
18
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 6 ारा “इसके ” शब्द का लोप िकया गया ।
19
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 24 ारा (1-2-1969 से) खंड (11क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 1960 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 2 ारा मूल खंड (11क)
अन्त:स्थािपत िकया गया था ।
20
1978 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 9 ारा (अिधसूिचत िकए जाने की तारीख से) खण्ड (11क) के उपखण्ड (क) का लोप िकया गया समझा जाएगा ।
14
1
[(12) सोने या चांदी के िसक्के और सोना-चांदी और िवदेशी मुदर्ा का कर्य और िवकर्य करना और िकसी िवदेश के पर्धान
करे न्सी पर्ािधकारी के पास अथवा अन्तरराष्टर्ीय समाशोधन बक या िकसी अन्तरराष्टर्ीय या पर्ादेिशक बक म अथवा ऐसे पर्धान करे न्सी
पर्ािधकारी या पर्ािधकािरय या िकसी िवदेशी सरकार ारा बनाई गई िव ीय संस्था म सोने का खाता खोलना;]
[(12क) भारत के बाहर के िकसी देश की सरकार ारा या भारत के बाहर स्थािपत िकसी संस्था या िनगिमत िनकाय ारा
2
िनगर्िमत िवदेशी करसी या िकसी अन्तरराष्टर्ीय या पर्शिमत करसी यूिनट म देय के रूप म अिभव्यक्त ऐसी पर्ितभूितय का कर्य और
िवकर्य करना जो िरजवर् बक ारा कर्य की दशा म कर्य की तारीख से दस वषर् की कालाविध के भीतर पिरपक्व होने वाली
पर्ितभूितयां ह :
परन्तु िकसी संस्था या िनगिमत िनकाय की पर्ितभूितय की दशा म ऐसी पर्ितभूितय के संबंध म मूल का पर्ितसंदाय और
ब्याज का संदाय संब देश की सरकार ारा पर्त्याभूत होगा;]
[(12कक) के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार की पर्ितभूितय को या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी की ऐसी पर्ितभूितय
3
को, जो के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम िविनिदष्ट की जाएं या िवदेशी पर्ितभूितय को उधार देना या उधार लेना;
(12कख) रे पो या िरवसर् रे प म व्यवहार करना :
परन्तु रे पो या िरवसर् रे पो के माध्यम से िनिधय को उधार देना या उधार लेना इस धारा म अंतिवष्ट िकसी पिरसीमा के
अध्यधीन नह होगा ।
स्पष्टीकरण—इस खंड के पर्योजन के िलए,—
(क) “रे पो” से के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार की पर्ितभूितय को या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी की ऐसी
पर्ितभूितय को, जो के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम िविनिदष्ट की जाएं या िवदेशी पर्ितभूितय को, उक्त पारस्पिरक रूप से
करार की गई भिवष्यवत तारीख को करार पाई गई कीमत पर, िजसके अंतगर्त उधार ली गई िनिधय पर ब्याज भी है, पुन:
कर्य करने के िलए करार के साथ उक्त पर्ितभूितय के , िवकर्य ारा िनिधयां उधार लेने के िलए कोई िलखत अिभपर्ेत है;
(ख) “िरवसर् रे पो” से के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार की पर्ितभूितय को या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी की,
ऐसी पर्ितभूितय को, जो के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम िविनिदष्ट की जाएं या िवदेशी पर्ितभूितय को, उक्त पारस्पिरक
रूप से करार की गई भिवष्यवत तारीख को करार पाई गई कीमत पर िजसके अंतगर्त उधार ली गई िनिधय पर ब्याज भी
है, पुन: िवकर्य करने के िलए करार के साथ पर्ितभूितय के कर्य ारा िनिधयां उधार देने के िलए कोई िलखत अिभपर्ेत है;]
अनुसूिचत बक , 5 *** 6 [िनआ बक], 7 [या पुनिनमार्ण बक या लघु उ ोग बक], औ ोिगक िव िनगम, िकसी राज्य
4 [(12ख)
िव ीय िनगम और िकसी अन्य ऐसी िव ीय संस्था को, जो िरजवर् बक की िसफािरश पर के न्दर्ीय सरकार ारा अनुमोिदत की जाए, और
ऐसे िनबंधन और शत पर, जो इस िनिम के न्दर्ीय सरकार िविनिदष्ट करे , यथािस्थित, ऐसे बक या िव ीय संस्था के वचनपतर् पर
िवदेशी करिसय म उधार और अिगर्म देना :
परन्तु यह तब जब िक, यथािस्थित, उधार लेने वाला बक या िव ीय संस्था इस आशय की िलिखत घोषणा कर देती है
िक—
(क) उसने अन्तराष्टर्ीय व्यापार का िव पोषण करने के िलए या पूंजीगत माल के आयात के िलए या ऐसे अन्य
पर्योजन के िलए जो के न्दर्ीय सरकार ारा अनुमोिदत िकए जाएं उधार और अिगर्म िदया है; और
(ख) इस पर्कार िदए गए और िकसी भी समय बकाया उधार या अिगर्म की रकम उसके ारा िरजवर् बक से िलए
गए उधार या अिगर्म की बकाया रकम से कम नह होगी;]
[(13) िकसी बक के , िजसके अन्तगर्त भारत म िनगिमत बक भी है, भारत के बाहर के कायार्लय म खाता खोलना अथवा
8
भारत के बाहर िनगिमत िकसी बक या िकसी देश म तत्समय पर्वृ िविध के अधीन उस देश के पर्धान करसी पर्ािधकारी अथवा िकसी
अन्तरराष्टर्ीय या पर्ादेिशक बक अथवा ऐसे पर्धान करसी पर्ािधकािरय या िवदेशी सरकार ारा बनाई गई िव ीय संस्था के साथ
अिभकरण-करार करना और उसके अिभकतार् या तत्स्थानी के रूप म कायर् करना, और िकसी ऐसे अन्तरराष्टर्ीय या पर्ादेिशक बक या
िव ीय संस्था या िकसी अन्य ऐसी िवदेशी संस्था के , जो इस िनिम के न्दर्ीय बोडर् ारा अनुमोिदत की जाए, शेयर और पर्ितभूितय म
िरजवर् बक की िनिधयां िविनिहत करना;]
1
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) खंड (12) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) खंड (12क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) अंत:स्थािपत ।
5
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
6
1981 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 40 ारा अनुसूची ारा 2 ारा (1-1-1982 से) अंत:स्थािपत ।
7
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
8
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (21-7-1978 से) खंड (13) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1
[(13क) िकसी अन्य देश या देश के समूह के साथ भारत के िवदेश व्यापार म े अथवा उस देश या उन देश के समूह को,
उनसे, िकन्ह पर्ेषण म े िकसी व्यिक्त या पर्ािधकारी से, या उसको शोध्य िकन्ह रकम के समाशोधन और उनके पिरिनधार्रण की
िकसी व्यवस्था म भाग लेना िजसके अन्तगर्त उसके संबंध म िकसी भी करसी म कोई रकम देना या पर्ाप्त करना भी है और उस पर्योजन
के िलए के न्दर्ीय सरकार के अनुमोदन से के न्दर्ीय बक , मुदर्ा पर्ािधकािरय या अन्य पर्ािधकािरय के िकसी अन्तरराष्टर्ीय या पर्ादेिशक
समाशोधन संघ का सदस्य होना, अथवा ऐसी िकन्ह समाशोधन व्यवस्था से सहयुक्त होना, अथवा के न्दर्ीय बक , मुदर्ा पर्ािधकािरय
या अन्य वैसे ही पर्ािधकािरय ारा बनाए गए िकसी िनकाय या संगम का सदस्य होना, अथवा उनके साथ िकसी रीित से सहयुक्त
होना;]
(14) िरजवर् बक के कारबार के पर्योजन के िलए एक मास से अनिधक की कालाविध के िलए धन उधार लेना और इस पर्कार
उधार िलए गए धन के िलए पर्ितभूित देना :
परन्तु भारत 2 *** म अनुसूिचत बक 3 *** से िभन्न िकसी व्यिक्त से या भारत 4 *** से बाहर ऐसे बक से, जो िकसी देश म
तत्समय पर्वृ िविध के अधीन उस देश का पर्धान करे न्सी पर्ािधकारी है, िभन्न िकसी व्यिक्त से इस खंड के अधीन कोई धन उधार नह
िलया जाएगा :
परन्तु यह और भी िक भारत 4*** म व्यिक्तय से इस पर्कार िलए गए उधार की कु ल रकम िकसी समय िरजवर् बक की
5 [पूंजी] की रकम से अिधक नह होगी;
6
* * * * * * *
(15) इस अिधिनयम के उपबन्ध के अधीन रहते हुए बक-नोट बनाना और िनगर्िमत करना 7 *** *** 8
की यह राय है िक ऐसी व्यवस्था से िरजवर् बक ारा अपनी शिक्तय और कृ त्य का पर्योग अथवा अपने कतर्व्य का िनवर्हन सुकर हो
सकता है;]
(16) साधारणत: ऐसे सब िवषय और ऐसी सब बात को करना जो इस अिधिनयम 11 *** के अधीन उसकी शिक्तय के
पर्योग या कतर्व्य के िनवर्हन के आनुषंिगक या पािरणािमक ह ।
18. िमितकाटा लेकर सीधा भुगतान करने की श्ािक्त— 12 *** जब 13 [िरजवर् बक] 14 *** की राय म ऐसा िवशेष अवसर आ
गया है िजसके कारण यह आवश्यक या समीचीन हो गया है िक भारतीय 15 *** व्यापार, वािणज्य, उ ोग और कृ िष के िहत म पर्त्यय
का िविनयमन करने के पर्योजन के िलए 16 [इस धारा के अधीन] कायर्वाही की जानी चािहए तो धारा 17 17 *** म अन्तिवष्ट िकसी
पिरसीमा के होते हुए भी, िरजवर् बक—
1
1973 के अिधिनयम सं० 44 की धारा 2 ारा (भूतलक्षी रूप से) अंत:स्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “या बमार्” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “या िकसी बमार् अनुसूिचत बक” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा
(1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
4
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “और बमार्” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 7 ारा (1-11-1951 से) “शेयर पूंजी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 79 की धारा 43 और अनुसूची 2 ारा (22-10-1956 से) अंत:स्थािपत खंड (14क) का 1959 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 64 और अनुसूची
3 ारा (1-10-1959 से) लोप िकया गया ।
7
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “और बमार् की िविध के अनुसार बक-नोट बनाना और िनगर्िमत करना” शब्द का 1947 के
अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा (1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
8
1945 के अध्यादेश सं० 47 की धारा 6 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1955 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 52 और अनुसूची 3 ारा (1-7-1955 से) खंड (15क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 24 ारा (1-2-1969 से) अंत:स्थािपत ।
11
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “और बमार् की िविध” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 11 ारा
(1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
12
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा कोष्ठक और अंक “(1)” का लोप िकया गया ।
13
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 8 ारा (1-1-1949 से) “के न्दर्ीय बोडर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
15
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत शब्द “या बमार्” का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 12 ारा (1-4-1947 से) लोप
िकया गया ।
16
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा “इस उपधारा के अधीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
16
[(1) कोई िविनमयपतर् या वचनपतर् खरीद सके गा या बेच सके गा या िमतीकाटा लेकर उसका भुगतान कर सके गा
1
भले ही ऐसा िविनमयपतर् या वचनपतर् िरजवर् बक ारा उस धारा के अधीन खरीदे या िमतीकाटा लेकर भुगतान िकए जाने के
योग्य न ह ; या]
2
* * * * * * *
3
[(3) (क) िकसी राज्य सहकारी बक को, या
(ख) िकसी राज्य सहकारी बक की िसफािरश पर, िकसी ऐसी सहकारी सोसाइटी को जो उस क्षेतर् म रिजस्टर्ीकृ त हुई
हो िजसम वह राज्य सहकारी बक काम करता है, या
(ग) िकसी अन्य व्यिक्त को,
मांग पर या नब्बे िदन से अनिधक की िनयत कालाविधय के अवसान पर पर्ितदेय उधार या अिगर्म ऐसे िनबन्धन और शत पर दे
सके गा िजन्ह िरजवर् बक पयार्प्त समझे ।
4* * * * *
5* * * * *
[18क. उधार या अिगर्म की िविधमान्यता का पर्श्नगत न िकया जाना—तत्समय पर्वृ
6
िकसी अन्य िविध म िकसी पर्ितकू ल
बात के होते हुए भी—
(क) इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसरण म िरजवर् बक ारा िदए गए उधार या अिगर्म की िविधमान्यता के वल
इस आधार पर पर्श्नगत नह की जाएगी िक पूव क्त जैसी िकसी अन्य िविध अथवा िकसी संकल्प, संिवदा, ज्ञापन, संगम
अनुच्छेद या िकसी अन्य िलखत की अपेक्षा का अनुपालन नह हुआ है :
परन्तु जहां िक कोई कम्पनी या सहकारी सोसाइटी उधार या अिगर्म को अिभपर्ाप्त करने के िलए अपने ज्ञापन
ारा सशक्त नह है, वहां इस खंड की कोई बात ऐसी कम्पनी या सहकारी सोसाइटी ारा अिभपर्ाप्त िकसी उधार या अिगर्म
को िविधमान्य नह बनाएगी;
(ख) जहां धारा 17 के ख्ांड (3क) या खण्ड (3ख) के अधीन कोई उधार या अिगर्म िदया गया है अथवा धारा 18 के
खण्ड (3) के अधीन िरजवर् बक ारा िकसी व्यिक्त को िदया गया कोई उधार या अिगर्म ऐसे व्यिक्त ारा िकसी उधार लेने
वाले को उधार या अिगर्म िदए जाने म पूणर्त: अथवा अंशत: उपयोिजत िकया गया है वहां—
(i) ऐसे िविनमयपतर् म ,े िजनकी बाबत धारा 17 के ख्ाण्ड (3क) के परन्तुक के खण्ड (i) के अधीन कोई
घोषणा पर्स्तुत की गई है अथवा उक्त परन्तुक के ख्ाण्ड (ii) म अथवा उक्त धारा के खण्ड (3ख) के परन्तुक म
िनिदष्ट उधार और अिगर्म के बकाय के पर्ितदाय या उनकी वसूली म ,े उधार लेने वाले बक ारा, या
(ii) उधार लेने वाले बक या िकसी अन्य व्यिक्त ारा िरजवर् बक से धारा 18 के अधीन अिभपर्ाप्त
िनिधय म से िकसी उधार लेने वाले को िदए गए उधार और अिगर्म के पर्ितदाय या उनकी वसूली से उस उधार
लेने वाले बक या अन्य व्यिक्त ारा,
पर्ाप्त कोई भी धनरािश, यथािस्थित, उस उधार लेने वाले बक या अन्य व्यिक्त ारा ऐसी रकम के पर्ितदाय के िलए ही उपयोग म लाई
जाएगी जो उस बक या उस व्यिक्त ारा िरजवर् बक को वापस करने के िलए शोध्य ह , और उस बक या व्यिक्त ारा िरजवर् बक के
िलए न्यास के रूप म उस समय तक रखी जाएगी, जब तक िक उन रकम का इस पर्कार पर्ितदाय नह हो जाता ।]
19. वह कारबार जो िरजवर् बक नह कर सके गा—धारा 17, 18, 7 [42] और 45 म जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय िरजवर्
बक—
(1) व्यापार म भाग नह ले सके गा या अन्यथा िकसी वािणिज्यक, औ ोिगक या अन्य उपकर्म म कोई पर्त्यक्ष िहत
ऐसे िहत के िसवाय नह रख सके गा िजसे वह अपने दाव म से िकसी की पूित के अनुकर्म म िकसी रीित से अिजत करे , परन्तु
ऐसे सारे िहत का शीघर्ाितशीघर् व्ययन कर िदया जाएगा;
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा ख्ांड (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 5 ारा (21-7-1978 से) खंड (2) का लोप िकया गया ।
3
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा ख्ांड (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) परं तुक का लोप िकया गया ।
5
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 7 ारा उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
6
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 8 ारा अंत:स्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (6-10-1956 से) अंत:स्थािपत ।
17
[(2) िकसी बककारी कम्पनी के या िकसी अन्य कम्पनी के शेयर नह खरीद सके गा या ऐसे िकन्ह शेयर की
1
1
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 9 ारा (1-11-1951 से) खंड (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश,1950 ारा “सेकर्ेटरी आफ स्टेट” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “और भाग क राज्य की सरकार” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “कर्मश: उनके खाते” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “उनके िविनमय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) अन्त:स्थािपत ।
8
धारा 20क िबर्िटश सैिनक पर्शासन बमार् के िलए कारबार का संव्यवहार जो 1945 के अध्यादेश सं० 19 ारा स्थायी रूप से अंत:स्थािपत की गई थी अब 1947 के
अिधिनयम सं० 11 ारा अध्यादेश िनरिसत होने के कारण िनरिसत हो गई ।
9
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “और राज्य सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
11
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “उनके ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “या कोई राज्य सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
13
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “उन्ह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “और पर्त्येक राज्य सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
15
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) उपधारा (4) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
16
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 11 ारा (1-11-1956 से) अंत:स्थािपत उपधारा (4) के स्थान पर पर्ितस्थािपत उपधारा (5) का 1956 के अिधिनयम सं० 37 की
धारा 104 ारा (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
17
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 12 ारा (1-11-1956 से) अंत:स्थािपत ।
18
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) “भाग ख” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
19
1969 के अिधिनयम सं० 55 की धारा 75 ारा अंत:स्थािपत “(स्वाशासी मे ालय राज्य सिहत)” कोष्ठक और शब्द का 1971 के अिधिनयम सं० 81 की धारा 72
ारा (21-1-1972 से) लोप िकया गया ।
18
(क) उसके धन संबंधी, िवपर्ेषणादेश संबंधी, िविनमय संबंधी और भारत म के बककारी संबंधी सब संव्यवहार,
िजसके अंतगर्त िबना ब्याज के िरवजर् बक म िनिक्षप्त नकद अितशेष िवशेष रूप से है, कर सके गा; और
(ख) उस राज्य के लोक ऋण का पर्बंध और नए उधार का िनगर्मन कर सके गा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया कोई करार िकए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघर् संसद् के समक्ष रखा जाएगा ।
1
[21ख. िरजवर् बक और कु छ राज्य की बीच सन् 1956 की पहली नवम्बर से पूवर् िकए गए करार का पर्भाव—(1) िरजवर्
बक और िनम्निलिखत स्पष्टीकरण म िविनिदष्ट िकसी राज्य की सरकार के बीच, धारा 21 या धारा 21क के अधीन िकया गया और
1956 के नवम्बर के पर्थम िदन के ठीक पूवर् पर्वृ , कोई करार उस िदन से ऐसे पर्भाव रखेगा मानो वह िरजवर् बक और तत्स्थानी राज्य
की सरकार के बीच धारा 21क के अधीन उस िदन उस करार के साधारण पर्वतर्न को पर्भािवत न करने वाले ऐसे उपान्तर सिहत, यिद
कोई ह , िकया गया करार हो जैसे िरजवर् बक और तत्स्थानी राज्य की सरकार के बीच करार पाए जाएं या ऐसे करार के अभाव म जैसे
के न्दर्ीय सरकार के आदेश ारा िकए जाएं ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा म “तत्स्थानी राज्य” से,—
(क) िरजवर् बक और आन्धर् राज्य के बीच करार की दशा म आन्धर् पर्देश राज्य;
(ख) िरजवर् बक और िकसी अन्य भाग क राज्य के , जैसा वह 1956 के नवम्बर के पर्थम िदन के पूवर् वतर्मान था, बीच
करार की अवस्था म उसी नाम वाला राज्य; और
(ग) िरजवर् बक और भाग ख राज्य मैसूर या ितरूवांकुर-कोचीन के बीच, जैसा वह 1956 के नवम्बर के पर्थम िदन से
पूवर् वतर्मान था, करार की दशा म कर्मश: मैसूर या के रल राज्य अिभपर्ेत है ।
(2) िरजवर् बक और भाग ख राज्य हैदराबाद, मध्य भारत या सौराष्टर् की सरकार के बीच धारा 21क के अधीन हुए िकसी
करार की बाबत यह समझा जाएगा िक उसका पयर्वसान सन् 1956 के अक्तूबर के 31व िदन को हो गया है ।]
22. बक-नोट िनगर्िमत करने का अिधकार—(1) िरजवर् बक को 2 [भारत] म बक-नोट िनगर्िमत करने का एकल अिधकार होगा
और वह उस काल के िलए िजसे के न्दर्ीय सरकार के न्दर्ीय बोडर् की िसफािरश पर िनयत करे गी, 3 [के न्दर्ीय सरकार] ारा अपने को िदए
गए करसी नोट िनगर्िमत कर सके गा और जब तक िक कोई पर्ितकू ल आशय न पर्तीत हो बक-नोट को इस अिधिनयम के जो उपबन्ध
लागू ह वे 3[के न्दर्ीय सरकार] ारा या िरजवर् बक ारा िनगर्िमत िकए गए भारत सरकार के सारे करे न्सी नोट को उसी रीित से लागू
ह गे मानो ऐसे करे न्सी नोट बक-नोट ह और इस अिधिनयम म बक-नोट के पर्ित िनदश का अथर् तदनुसार िकया जाएगा ।
(2) उस तारीख से ही िजससे यह अध्याय पर्वृ होता है 3[के न्दर्ीय सरकार] कोई करे न्सी नोट िनगर्िमत नह करे गी ।
23. िनगर्मन िवभाग—(1) बक-नोट का िनगर्मन िरजवर् बक ारा िनगर्मन िवभाग से िकया जाएगा जो बककारी िवभाग से
पृथक् कर िदया जाएगा और पूणत र् : सुिभन्न रहेगा और िनगर्मन िवभाग की आिस्तयां धारा 34 म एतत्पश्चात् यथापिरभािषत िनगर्मन
िवभाग के दाियत्व से िभन्न िकसी दाियत्व के अधीन नह ह गी ।
(2) िनगर्मन िवभाग, बककारी िवभाग या िकसी अन्य व्यिक्त को बक-नोट या अन्य बक नोट के या ऐसे िसक्क , सोना-चांदी
या पर्ितभूितय के िविनमय म ही िनगर्िमत करे गा िजनका आरिक्षत िनिध का एक भाग होना इस अिधिनयम ारा अनुज्ञात है
अन्यथा नह ।
4
* * * * *
[24. नोट का अंिकत मूल्य—(1) उपधारा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए बक नोट दो रुपए, पांच रुपए, दस रुपए, बीस
5
रुपए, पचास रुपए, सौ रुपए, पांच सौ रुपए, एक हजार रुपए, पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए या दस हजार रुपए से अनिधक
ऐसे अन्य अंिकत मूल्य के ह गे जो के न्दर्ीय बोडर् की िसफािरश पर के न्दर्ीय सरकार इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
(2) के न्दर्ीय सरकार के न्दर्ीय बोडर् की िसफािरश पर यह िनदेश दे सके गी िक ऐसे अंिकत मूल्य के बक-नोट का, जो वह इस
िनिम िविनिदष्ट करे , िनगर्मन न िकया जाए या िनगर्मन करना बन्द कर िदया जाए ।]
25. बक-नोट का रूप—बक-नोट ऐसे िडजाइन, रूप और सामगर्ी के ह गे जो के न्दर्ीय बोडर् ारा की गई िसफािरश पर िवचार
करने के पश्चात् 3[के न्दर्ीय सरकार] ारा अनुमोिदत की जाए ।
26. नोट वैध िनिवदा ह गे—(1) उपधारा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए पर्त्येक बक-नोट 2[भारत] म िकसी भी स्थान म
उसम अिभव्यक्त रािश की अदायगी म या लेखे वैध िनिवदा होगा और के न्दर्ीय सरकार ारा पर्त्याभूत होगा ।
1
1956 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 104 ारा (1-11-1956 से) अंत:स्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा (1-11-1951 से) “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत उपधारा (3) का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 13 ारा (1-4-1947 से) लोप िकया
गया ।
5
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 25 ारा (1-2-1969 से) धारा 24 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
19
(2) के न्दर्ीय बोडर् की िसफािरश पर के न्दर्ीय सरकार भारत के राजपतर् म अिधसूचना ारा यह घोिषत कर सके गी िक ऐसी
तारीख से, जो अिधसूचना म िविनिदष्ट हो, िकसी अंिकत मूल्य के बक-नोट का कोई कर्म 1 [िरजवर् बक के ऐसे कायार्लय या अिभकरण
ही या ऐसे िवस्तार तक म वैध िनिवदा रहेगा जैसा अिधसूचना म िविनिदष्ट है, अन्यथा नह ।]
2
* * * * * * *
[26क. कु छ बक-नोट वैध िनिवदा न रहगे—धारा 26 म िकसी बात के होते हुए भी 1946 की जनवरी के तेरहव िदन के पूवर्
3
िनगर्िमत पांच सौ रुपए, एक हजार रुपए या दस हजार रुपए के अंिकत मूल्य का कोई बक-नोट उसम अिधव्यक्त रािश की अदायगी या
लेखे वैध िनिवदा नह रहेगा ।]
27. नोट पर पुन: िनगर्मन—िरजवर् बक ऐसे बक-नोट को, जो फटे हुए, िवरूिपत या अत्यिधक मैले ह, िफर से िनगर्िमत नह
करे गा ।
28. खोए गए, चोरी िकए गए, िवकृ त या अपूणर् नोट का पर्त्यु रण— 4 *** िकसी अिधिनयिमित या िविध-िनयम म िकसी
पर्ितकू ल बात के होते हुए भी कोई व्यिक्त के न्दर्ीय सरकार या िरजवर् बक से भारत सरकार के िकसी खोए हुए, चोरी िकए गए, िवकृ त या
अपूणर् करे न्सी-नोट का मूल्य अिधकारे ण पर्त्युदधृ
् त करने का हकदार नह होगा :
परन्तु िरजवर् बक 5 [के न्दर्ीय सरकार] की पूवर् मंजूरी से वे पिरिस्थितयां िजनम और वे शत और पिरसीमाएं िविहत कर सके गा,
िजनके अधीन, ऐसे करे न्सी-नोट या बक-नोट का मूल्य अनुगर्ह स्वरूप पर्ितद िकया जा सके गा, और इस परन्तुक के अधीन बनाए गए
िनयम 6 *** 7 [संसद्] के पटल पर रखे जाएंगे ।
4
* * * * *
[28क. कु छ दशा म िवशेष बक-नोट और एक रुपए के िवशेष नोट का िनगर्मन—(1) भारत के बाहर बक-नोट के
8
पिरचालन को िनयंितर्त करने के पर्योजन के िलए िरजवर् बक, इस अिधिनयम के िकसी अन्य उपबन्ध म िकसी बात के होते हुए भी, पांच
रुपए, दस रुपए और एक सौ रुपए के अंिकत मूल्य वाले ऐसे िडजाइन, रूप और सामगर्ी के , जो उपधारा (3) के अधीन अनुमोिदत की
जाए, बक-नोट (िजन्ह एतत्पश्चात् इस धारा म िवशेष बक-नोट कहा गया है) िनगर्िमत कर सके गा ।
(2) भारत के बाहर सरकार के एक रुपए के नोट के पिरचालन को िनयंितर्त करने के पर्योजन के िलए के न्दर्ीय सरकार, इस
अिधिनयम के िकसी अन्य उपबन्ध म या करे न्सी अध्यादेश, 1940 (1940 का अध्यादेश सं० 4) म िकसी बात के होते हुए भी, एक रुपए
के अंिकत मूल्य वाले ऐसे िडजाइन, रूप और सामगर्ी के , जो उपधारा (3) के अधीन अनुमोिदत की जाए, भारत सरकार के नोट (िजन्ह
एतत्पश्चात् इस धारा म एक रुपए का िवशेष नोट कहा गया है) िनगर्िमत कर सके गी ।
(3) िवशेष बक-नोट का िडजाइन, रूप और सामगर्ी ऐसी होगी, जो के न्दर्ीय सरकार ारा उन िसफािरश पर, जो गवनर्र
ारा की गई है, िवचार करने के पश्चात् अनुमोिदत की जाए और एक रुपए के िवशेष नोट का िडजाइन, रूप और सामगर्ी ऐसे होगी
िजसे अपनाना के न्दर्ीय सरकार ठीक समझे ।
(4) न तो िवशेष बक-नोट और न एक रुपए के िवशेष नोट ही भारत म वै िनिवदा ह गे ।
(5) एक रुपए के िवशेष नोट के बारे म यह समझा जाएगा िक वह धारा 39 के िसवाय इस अिधिनयम के सब पर्योजन के
िलए “रुपए का िसक्का” पद के अन्तगर्त है िकन्तु यह न समझ जाएगा िक वह इस अिधिनयम के पर्योजन म से िकसी के िलए करे न्सी
नोट है ।
(6) जहां िवशेष बक-नोट म उसका िकसी िविनिदष्ट कायार्लय या िरजवर् बक की शाखा म देय होना अिभव्यक्त है वहां धारा
39 ारा अिधरोिपत बाध्यता के वल उस िविनिदष्ट कायार्लय या शाखा पर होगी िकन्तु ऐसे िविनयम के अधीन रहते हुए ही होगी जो
इस धारा के अधीन बनाए जाएं ।
(7) इस धारा के उपबंध को पर्भावी करने के पर्योजन के िलए िजन िवषय के िलए उपबन्ध करना आवश्यक या सुिवधापूणर् है
उन सब िवषय के िलए और िविशष्टतया उस रीित के िलए िजससे और उन शत और पिरसीमा के िलए िजनके अधीन रहते हुए—
(i) भारत के बाहर िकसी देश म पिरचािलत बक-नोट और एक रुपए के नोट को इस धारा के अधीन िनगर्िमत
िवशेष नोट से बदला जा सके गा;
1
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 13 ारा (1-11-1951 से) “बक के िकसी कायार्लय या अिभकरण के िसवाय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत उपधारा (3) का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 14 ारा (1-4-1947 से) लोप िकया
गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-11-1956 से) अंत:स्थािपत ।
4
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत कोष्ठक और अंक “(1)” और उपधारा (2) का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 15
ारा (1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
5
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “दोन सदन के ” शब्द का लोप िकया गया ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “के न्दर्ीय िवधान-मंडल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1959 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
20
(ii) िकन्ह ऐसे िवशेष नोट को िकन्ह अन्य बक-नोट या एक रुपए के नोट से बदला जा सके गा; उपबन्ध करने के
िलए िविनयम, िरजवर् बक, के न्दर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी से बना सके गा ।]
29. बक-नोट पर स्टाम्प-शुल्क से िरजवर् बक को छू ट पर्ाप्त होगी—िरजवर् बक अपने ारा िनगर्िमत बक-नोट पर 1 ***
भारतीय स्टाम्प अिधिनयम, 1899 (1899 का 2) के अधीन कोई स्टाम्प शुल्क देने के दाियत्वाधीन न होगा ।
30. के न्दर्ीय बोडर् को अितिष्ठत करने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त—(1) यिद 2 [के न्दर्ीय सरकार] की राय म िरजवर् बक इस
अिधिनयम 3 *** ारा या अधीन अपने ऊपर अिधरोिपत बाध्यता के पिरपालन म असफल रहा है तो 4 [के न्दर्ीय सरकार] भारत के
राजपतर् म अिधसूचना ारा के न्दर्ीय बोडर् को अितिष्ठत करने की घोषणा कर सके गी और तत्पश्चात् िरजवर् बक के काय का साधारण
अधीक्षण और संचालन उस अिभकरण को स पा जाएगा िजसे 2[के न्दर्ीय सरकार] अवधािरत करे और ऐसा अिधकरण ऐसी सब शिक्तय
का पर्योग कर सके गा और ऐसे कायर् तथा ऐसी बात कर सके गा जो इस अिधिनयम के अधीन के न्दर्ीय बोडर् ारा पर्योक्तव्य ह या की जा
सकती ह ।
(2) जब इस धारा के अधीन कायर्वाही की जाती है तब 2[के न्दर्ीय सरकार] िजन पिरिस्थितय के पिरणामस्वरूप वह
कायर्वाही करनी पड़ी है उन पिरिस्थितय का और की गई उस कायर्वाही की एक पूणर् िरपोटर् यथाश्ाक्य शीघर् और िकसी भी दशा म बोडर्
को अितिष्ठत करने वाली अिधसूचना के िनकाले जाने से तीन मास के अन्दर 5 [संसद्] के समक्ष रखवाएगी ।
31. मांग पर देय िवपतर् या नोट का िनगर्मन— 6 [(1)] िरजवर् बक से या इस अिधिनयम ारा अिभव्यक्त रूप से
यथापर्ािधकृ त 2[के न्दर्ीय सरकार] से िभन्न 7 [भारत] म कोई व्यिक्त वाहक की मांग पर देय कोई िविनमयपतर्, हुण्डी, वचनपतर् या
वचनबंध, जो धन देने के िलए ह, न तो िलखेगा न पर्ितगृहीत करे गा और न िनगर्िमत करे गा और न वाहक को ऐसे िकसी व्यिक्त की मांग
पर देय पतर् , हुंिडय या नोट पर कोई रािश या धन न तो उधार लेगा, न उसके िलए देनदार रहेगा और न लेगा :
परन्तु हुंिडय सिहत चैक या डर्ाफ्ट, जो वाहक की मांग पर या अन्यथा देय ह, िकसी व्यिक्त के ऐसे खाते पर िलखे जा सकगे
जो उसका िकसी बककार, सरार्फ या अिभकतार् के यहां है ।
[(2) पराकर्ाम्य िलखत अिधिनयम, 1881 (1881 का 26) म िकसी बात के होते हुए भी, िरजवर् बक से या इस अिधिनयम
8
ारा अिभव्यक्तत: यथापर्ािधकृ त के न्दर्ीय सरकार से िभन्न 7[भारत] म कोई व्यिक्त कोई ऐसा वचनपतर्, िजससे यह अिभव्यक्त है िक
िलखत के वाहक को वह देय है, न तो िलखेगा न ही िनगर्िमत करे गा ।]
32. [शािस्त ।]—भारतीय िरजवर् बक (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का 51) की धारा 9 ारा िनरिसत ।
33. िनगर्मन िवभाग की आिस्तयां—(1) िनगर्मन िवभाग की आिस्तयां सोने के िसक्क , सोने की िसिल्लय , 9 [िवदेशी
पर्ितभूितय ], रुपए के िसक्क और रुपय वाली पर्ितभूितय के रूप म इतनी कु ल रकम ह गी जो िनगर्मन िवभाग के एतत्पश्चात्
यथापिरिनिश्चत दाियत्व के योग से कम नह है ।
[(2) आिस्तय के रूप म धािरत सोने के िसक्क , सोने की िसिल्लय और िवदेशी पर्ितभूितय का कु ल मूल्य और इस पर्कार
10
से धािरत सोने के िसक्क और सोने की िसिल्लय का कु ल मूल्य िकसी समय कर्मश: दो सौ करोड़ रुपए और एक सौ पन्दर्ह करोड़ रुपए
से कम नह होगा ।]
[(3) शेष आिस्तयां रुपए के िसक्क , कै सी ही पिरपक्वता वाली भारत सरकार की रुपए वाली पर्ितभूितय , राष्टर्ीय बक
11
ारा धारा 17 की उपधारा (4ङ) के अधीन िकसी उधार या अिगर्म के िलए िलखे गए वचनपतर् और भारत म देय ऐसे िविनमयपतर्
और वचनपतर् के रूप म धारण की जाएगी जो धारा 17 के खण्ड (2) के उपखण्ड (क) या उपखण्ड (ख) या उपखण्ड (खख) के अधीन या
धारा 18 के खण्ड (1) के अधीन िरजवर् बक ारा कर्य िकए जाने योग्य ह ।]
(4) इस धारा के पर्योजन के िलए सोने के िसक्के और सोने की िसिल्लय का मूल्य 12 [तत्समय पर्चिलत अंतरराष्टर्ीय बाजार
कीमत से अनिधक कीमत पर] रुपए के िसक्क का मूल्य अपने अंिकत मूल्य के अनुसार और पर्ितभूितय का मूल्य तत्समय पर्चिलत
13 [बाजार की दर से अनिधक दर पर लगाया जाएगा ।]
1
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1947 ारा अंत:स्थािपत “या बमार् नोट पर” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 16 ारा (1-4-1947
से) लोप िकया गया ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत “या बमार् की िविध ारा या के अधीन” शब्द का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 17
ारा (1-4-1947 से) लोप िकया गया ।
4
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “वह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 “के न्दर्ीय िवधान मंडल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1946 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा धारा 31 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत ।
7
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा (1-11-1951 से) “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1946 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
9
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-11-1949 से) “स्टिलग पर्ितभूितय ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1957 के अिधिनयम सं० 48 की धारा 2 ारा (31-10-1957 से) पर्ितस्थािपत ।
11
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1991 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा (15-10-1990 से) पर्ितस्थािपत ।
13
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 26 ारा (1-2-1969 से) “बाजार दर पर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
21
(5) आिस्तय के रूप म धािरत सोने के िसक्के और सोने की िसिल्लय म कम से कम सतरह बटा बीस 1 [भारत] म धारण
िकया जाएगा और आिस्तय के रूप म धािरत सब सोने के िसक्के और सब सोने की िसिल्लयां िरजवर् बक या उसके अिभकरण की
अिभरक्षा म धारण िकए जाएंगे :
परन्तु िरजवर् बक का जो सोना िकसी अन्य बक म या िकसी टकसाल या कोषागार म या अिभवहन म है उसकी गणना
आिस्तय के भाग के रूप म की जा सके गी ।
2
[(6) जो िवदेशी पर्ितभूितयां आिस्तय के भाग के रूप म धारण की जा सकती ह, इस धारा के पर्योजन के िलए वे—
(i) िकसी ऐसे िवदेश के , जो अन्तरराष्टर्ीय मुदर्ा िनिध का सदस्य हे, करे न्सी म देय िनम्निलिखत पर्कार की
पर्ितभूितयां ह गी, अथार्त् :—
(क) ऐसे बक के पास, जो उस िवदेश का पर्धान करसी पर्ािधकारी है, जमा अितशेष और िवदेशी करसी म
कोई अन्य अितशेष या पर्ितभूितयां, जो अन्तरराष्टर्ीय मुदर्ा िनिध, अन्तरराष्टर्ीय पुनिनमार्ण और िवकास बक,
अन्तरराष्टर्ीय िवकास संगम या अन्तरराष्टर्ीय िव िनगम 3 [या एिशयाई िवकास बक] या अन्तरराष्टर्ीय
समाशोधन बक या इस िनिम 4 [के न्दर्ीय सरकार ारा 5 [अनुमोिदत] िकसी बककारी या िव ीय संस्था] ारा रखी
जाती हो या पुरोधृत की जाती हो, परन्तु यह तब जब वे 6 [दस वषर् की कालाविध] के भीतर पर्ितदेय ह ;
(ख) दो या दो से अिधक मान्य हस्ताक्षर वाले और उस िवदेश म िकसी स्थान पर िलखे गए और देय
नब्बे िदन से अनिधक पिरपक्वता वाले िविनमयपतर्; और
(ग) 7 [दस वष के भीतर] पिरपक्व होने वाली उस िवदेश की सरकारी पर्ितभूितयां;
(ii) रकम िनकालने का कोई अिधकार िजसका दाियत्व अन्तराष्टर्ीय मुदर्ा िनिध पर है ।
34. िनगर्मन िवभाग के दाियत्व—(1) िनगर्मन िवभाग के दाियत्व वह रकम होगी जो भारत सरकार के उन करे न्सी नोट और
उन बक नोट की कु ल रकम के बराबर है जो तत्समय पिरचालन म है ।
8
* * * * * * *
9
* * * * * * *
35. [पर्ारं िभक आिस्तयां और दाियत्व ।]—1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 तथा अनुसच
ू ी ारा (1-1-1949 से)
िनरिसत ।
36. [रुपए के िसक्के की आिस्तय के उतार-चढ़ाव के बारे म व्यौहार के ढंग ।]—1963 के अिधिनयम सं० 55 की धारा 3 ारा
(1-2-1964 से) िनरिसत ।
[37. िवदेशी पर्ितभूित िवषयक आिस्तय सम्बन्धी अपेक्षा का िनलंबन—पूवर्गामी उपबन्ध म िकसी बात के होते हुए भी
10
िरजवर् बक धारा 33 की उपधारा (2) से अपेिक्षत मूल्य से कम रकम की िवदेशी पर्ितभूितयां के न्दर्ीय सरकार की पूवर् मंजूरी से पर्थमत:
छह मास से अिधक की कालाविध के िलए, जो कालाविध वैसी ही मंजूरी से समय-समय पर एक बार म तीन मास से अनिधक की
कालाविध तक बढ़ाई जा सके गी, आिस्तय के रूप म धारण कर सके गा ।
11
* * * * *
38. रुपए के िसक्के की बाबत सरकार और िरजवर् बक की बाध्यताएं— 12 [के न्दर्ीय सरकार] िरजवर् बक के माध्यम ारा ही
13 ***कोई रुपया पिरचािलत करने के िसवाय पिरचािलत 14 *** न करने के िलए वचनब होगी और िरजवर् बक इसके िलए वचनब
होगा िक रुपए का िसक्का वह पिरचालन के पर्योजन के िलए व्ययिनत करने के िसवाय अन्यथा व्ययिनत न करे गा 14*** ।
1
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा (1-11-1951 से) “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 10 ारा उपधारा (6) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा (21-7-1978 से) अंत:स्थािपत ।
4
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा (21-7-1978 से) पर्ितस्थािपत ।
5
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 4 ारा (15-2-1984 से) “अिधसूिचत” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा (21-7-1978 से) “पांच वषर् की कालाविध” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 6 ारा (21-7-1978 से) “पांच वषर् के भीतर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1963 के अिधिनयम सं० 55 की धारा 2 ारा (1-2-1964 से) उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
9
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत उपधारा (3) का 1947 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 19 ारा (1-4-1947 से) लोप िकया
गया ।
10
1956 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 4 ारा (6-10-1956 से) धारा 37 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1957 के अिधिनयम सं० 48 की धारा 3 ारा (31-10-1957 से) परं तुक का लोप िकया गया ।
12
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1963 के अिधिनयम सं० 55 की धारा 4 ारा (1-2-1964 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
14
1940 के अध्यादेश सं० 4 की धारा 3 ारा “और जैसा उस धारा म उपबंिधत है” शब्द का लोप िकया गया ।
22
39. िविभन्न पर्कार की करे न्सी देने की बाध्यता—(1) िरजवर् बक मांग िकए जाने पर बक-नोट और भारत सरकार के करे न्सी
नोट के िविनमय म रुपए के िसक्के देगा और जो िसक्का 1 [िसक्का-िनमार्ण अिधिनयम, 2011 (2011 का 11)] के अधीन वैध िनिवदा है
उसके िविनमय म मांग िकए जाने पर करे न्सी नोट या बक-नोट देगा ।
(2) िरजवर् बक 2 [दो] रुपए या उससे ऊपर के करे न्सी नोट या बक-नोट के िविनमय म कम मूल्य के बक-नोट या करे न्सी नोट
या ऐसे अन्य िसक्के , जो 1[िसक्का-िनमार्ण अिधिनयम, 2011 (2011 का 11) के अधीन वैध िनिवदा ह, इतनी मातर्ा म देगा िजतनी
िरजवर् बक की राय म पिरचालन के िलए आवश्यक है, और 3 [के न्दर्ीय सरकार] िरजवर् बक को ऐसे िसक्के उसके िलए मांग होने पर
देगी । यिद 3[के न्दर्ीय सरकार] िकसी समय ऐसे िसक्के देने म असफल रहती है तो िरवजर् बक जनता को उन्ह देने की अपनी बाध्यता से
मुक्त हो जाएगा ।
4
[40. िवदेशी मुदर्ा म संव्यवहार—िरजवर् बक िकसी ऐसे पर्ािधकृ त व्यिक्त को या से, जो मुम्बई, कलक ा, िदल्ली या मदर्ास
के उसके कायार्लय म 5 [या उसकी ऐसी शाखा म, जैसी के न्दर्ीय सरकार आदेश ारा अवधािरत करे ,] इसकी बाबत मांग करता है,
िविनमय की ऐसी दर पर और ऐसी शत पर, जो के न्दर्ीय सरकार जहां तक िविनमय दर का सम्बन्ध है अन्तरराष्टर्ीय मुदर्ा िनिध की
अपनी बाध्यता को ध्यान म रखते हुए समय-समय पर साधारण या िवशेष आदेश ारा अवधािरत करे , िवदेशी मुदर्ा का कर्य या
िवकर्य करे गा :
परन्तु कोई व्यिक्त दो लाख रुपए से कम मूल्य की िवदेशी मु्दर्ा का कर्य या िवकर्य करने की मांग करने का हकदार नह होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “पर्ािधकृ त व्यिक्त” से ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है जो 6 [िवदेशी मुदर्ा िविनयमन अिधिनयम, 1973
(1973 का 46) ारा या अधीन, यथािस्थित, ऐसी िवदेशी मुदर्ा, िजससे उसकी मांग सम्ब है, कर्य या िवकर्य करने का हकदार है ।]
41क. 7 [भारत और बमार् के बीच पर्ेषण संबध
ं ी उपबंध की बाध्यता ।]—1947 के अिधिनयम संख्यांक 11 की धारा 22 ारा
(1-4-1947 से) िनरिसत ।
42. अनुसिू चत बक की नकद आरिक्षितय का िरजवर् बक म रखा जाना— 8 [(1) ि तीय अनुसूची म सिम्मिलत हर बक, िरजवर्
बक म एक औसत दैिनक अितशेष रखेगा िजसकी रकम 9 [उस बक के , उपधारा (2) म िनिदष्ट िववरणी म यथादिशत भारत म मांग और
कािलक दाियत्व के योग के ऐसे पर्ितशत से िजसे बक, समय-समय पर देश म आिथक िस्थरता को सुिनिश्चत करने की आवश्यकता
को ध्यान म रखते हुए, भारत के राजपतर् म अिधसूिचत करे , कम नह होगी ।]
10
* * * * *
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए—
(क) “औसत दैिनक अितशेष” से उन अितशेष का औसत अिभपर्ेत है जो 11
[पक्ष के ] पर्त्येक िदन काम-काज बन्द
होने पर धािरत ह;
12
[(ख) “पक्ष” से शिनवार से आगामी ि तीय शुकर्वार तक की कालाविध, िजसके अंतगर्त ये दोन िदन ह,
अिभपर्ेत है;]
13
[(ग) “दाियत्व ” के अन्तगर्त िनम्निलिखत नह ह :—
(i) बक की समाद पूंजी या आरिक्षितयां अथवा लाभ हािन खाते म कोई नकदी अितशेष;
(ii) िरजवर् बक से 14 *** 15 [अथवा िनआ बक से] 16 [अथवा पुनिनमार्ण बक से] 17 [अथवा राष्टर्ीय आवास
बक से] 18
[अथवा लघु उ ोग बक से] अथवा 19 [राष्टर्ीय बक] 20 *** से ली गई उधार की कोई रकम, तथा
1
2011 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 20 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “पांच” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1947 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 4 ारा धारा 40 और धारा 41 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 5 ारा अंत:स्थािपत ।
6
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 5 ारा (15-2-1984 से) “िवदेशी मुदर्ा िविनयमन अिधिनयम, 1947” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
इं िडया एंड बमार् (बमार् मोनेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा अंत:स्थािपत ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 5 ारा (6-10-1956 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
10
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा लोप िकया गया ।
11
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) “ सप्ताह के ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) खंड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1965 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 6 ारा (1-3-1966 से) खंड (ग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
15
1981 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 40 और अनुसूची 2 ारा (1-1-1982 से) अंत:स्थािपत ।
16
1984 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 71 और अनुसूची 3 ारा (20-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
17
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंत:स्थािपत ।
18
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा (अिधसूचना की तारीख से) अंत:स्थािपत ।
19
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 40 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) “कृ िषक पुनिव और िवकास िनगम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
20
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 11 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
23
(iii) राज्य सहकारी बक की दशा म, ऐसे बक ारा राज्य सरकार से 1 [या राष्टर्ीय सहकारी िवकास
िनगम अिधिनयम, 1962 (1962 का 26) के अधीन स्थािपत राष्टर्ीय सहकारी िवकास िनगम से] िलया गया कोई
उधार भी तथा आरिक्षत िनिध के रूप म धन का ऐसे बक म िनक्षेप अथवा उसका कोई भाग जो उस बक के
कायर्क्षेतर् म िस्थत िकसी सोसाइटी ारा उस बक म रखा गया है;
[(iv) िकसी ऐसे राज्य सहकारी बक की दशा म, िजसम अपने पास रखे गए िकसी अितशेष के आधार
2
पर कोई अिगर्म िदया है, उतना अितशेष िजतना ऐसी अिगर्म रकम की बाबत बकाया हो;]
[(v) िकसी पर्ादेिशक गर्ामीण बक की दशा म, ऐसे बक ारा अपने पर्ायोजक बक से िलया गया कोई
1
उधार भी ।]
[(घ) िनम्निलिखत बक और संस्था के पर्ित िकसी ऐसे अनुसूिचत बक के , जो राज्य सहकारी बक नह ह, कु ल
2
“दाियत्व ” म से उन अनुसूिचत बक के पर्ित ऐसे सभी बक और संस्था के कु ल दाियत्व को घटा िदया जाएगा, अथार्त् :—
(i) स्टेट बक;
(ii) भारतीय स्टेट बक (समनुषंगी बक) अिधिनयम, 1959 (1959 का 38) की धारा 2 म यथापिरभािषत
समनुषंगी बक;
(iii) बककारी कम्पनी (उपकर्म और अजर्न और अन्तरण) अिधिनयम, 1970 (1970 का 5) की धारा 3
ारा गिठत तत्स्थानी नया बक;
[(iiiक) बककारी कं पनी (उपकर्म और अजर्न और अन्तरण) अिधिनयम, 1980 (1980 का 40) की धारा
1
1
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 11 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 4 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
24
1
* * * * *
[(1ग) िरजवर् बक, इस धारा के पर्योजन के िलए, िकसी संव्यवहार या िकसी वगर् के संव्यवहार के बारे म समय-समय पर
2
यह िविनिदष्ट कर सके गा िक ऐसे संव्यवहार या संव्यवहार को भारत म िकसी अनुसूिचत बक का दाियत्व माना जाएगा और यिद इस
बाबात कोई पर्श्न उत्पन्न होता है िक क्या िकसी संव्यवहार या िकसी वगर् के संव्यवहार को इस धारा के पर्योजन के िलए भारत म
िकसी अनुसूिचत बक का दाियत्व माना जाए तो उस पर िरजवर् बक का िविनश्चय अिन्तम होगा ।]
3
[(2) पर्त्येक अनुसूिचत बक—
(क) मांग और कािलक दाियत्व की रकम और भारत म बक से िलए गए अपने उधार की रकम को 4 [मांग और
कािलक दाियत्व म वग कृ त करते हुए];
5
* * * * * * *
(ख) अपने ारा भारत म धािरत उन नोट और िसक्क की जो वैध िनिवदा है कु ल रकम;
(ग) अपने ारा भारत म िरजवर् बक म धािरत अितशेष;
(घ) अपने ारा अन्य बक म चालू खाते म धािरत अितशेष और भारत म मांग पर और अल्प-सूचना पर पर्ितदेय
धन;
(ङ) के न्दर्ीय और राज्य सरकार की पर्ितभूितय म बही मूल्य के अनुसार िविनधान िजनम खजाना िबल और खजाना
िनक्षेप रसीद सिम्मिलत ह गी;
(च) भारत म अिगर्म की रकम;
(छ) भारत म कर्य और िमतीकाटा लेकर भुगतान िकए गए अन्तदशीय-पतर् और 6 [कर्य और िमतीकाटा लेकर
भुगतान िकए गए िवदेशी िविनमयपतर्],
दिशत करने वाली ऐसी िववरणी, जो ऐसे बक के दो उ रदायी अिधकािरय ारा हस्ताक्षिरत होगी, 7 [पर्त्येक दूसरे शुकर्वार को काम-
काज बन्द होने पर िरजवर् बक के पास भेजेगा और ऐसी पर्त्येक िववरणी उस तारीख से पांच िदन के भीतर भेजी जाएगी िजससे वह
समब है] :
8 [परन्तु
बक पूवर्गामी खंड म िविनिदष्ट िकसी िविशिष्ट को, भारत के राजपतर् म अिधसूचना ारा, हटा सके गा या उसम
उपान्तर कर सके गा या उसम कु छ जोड़ सके गा :
परन्तु यह और िक] जहां परकर्ाम्य िलखत अिधिनयम, 1881 (1881 का 26) के अधीन शुकर्वार 9 [ऐसा दूसरा शुकर्वार] िकसी
अनुसूिचत बक के एक या एक से अिधक कायार्लय के िलए लोक अवकाश िदन है वहां िववरणी म ऐसे कायार्लय या कायार्लय की
बाबत पूवर्वत काम वाले िदन के अंक िदए जाएंगे िकन्तु ऐसा होने पर भी वह उस शुकर्वार से सम्ब समझी जाएगी :
[परन्तु यह और भी िक जहां िरजवर् बक का यह समाधान हो जाता है िक िकसी अनुसूिचत बक की दशा म ऐसे बक या
10
उसकी शाखा की भौगोिलक िस्थित के कारण इस उपधारा के अधीन पािक्षक िववरणी देना असाध्य है वहां िरजवर् बक ऐसे बक को
यह अनुज्ञा दे सके गा िक वह बक,—
(i) उपरोक्त कालाविध के भीतर उस पक्ष की अनिन्तम िववरणी दे, िजसके बाद उस तारीख से िजससे वह संब है,
बीस िदन के भीतर एक अिन्तम िववरणी दी जाएगी, या
(ii) पािक्षक िववरणी के बदले मािसक िववरणी दे, जो उस मास के , िजससे वह संब है, समाप्त होने के पश्चात्
बीस िदन के भीतर और मास के िलए काम-काज बन्द होने के समय तक ऐसे बक के बारे म ऐसे ब्य रे देकर भेजी जाएगी, जो
इस उपधारा म िविनिदष्ट है ।]
[(2क) जहां िकसी मास का अिन्तम शुकर्वार उपधारा (2) के पर्योजन के िलए दूसरा शुकर्वार नह है, वहां पर्त्येक अनुसूिचत
9
बक ऐसे अिन्तम शुकर्वार को काम-काज के बंद के समय तक या जहां ऐसा अिन्तम शुकर्वार परकर्ाम्य िलखत अिधिनयम, 1881
(1881 का 26) के अधीन लोक अवकाश िदन है वहां पूवर्वत काम वाले िदन काम-काज के बन्द होने के समय तक उपधारा (2) म
1
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा लोप िकया गया ।
2
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 11 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 11 ारा खंड (कक) का लोप िकया गया ।
6
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
7
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 11 ारा “परं तु यह िक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) अंत:स्थािपत ।
10
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) तीसरे पंरतुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
25
िविनिदष्ट ब्य रे देते हुए, िवशेष िववरणी िरजवर् बक को भेजेगा और ऐसी िववरणी उस तारीख के पश्चात् िजससे वह संब है, सात
िदन के भीतर भेजी जाएगी ।]
[(3) यिद िकसी अनुसूिचत बक ारा िकसी 2 [पक्ष] म िरजवर् बक म धािरत औसत दैिनक अितशेष उपधारा (1) या उपधारा
1
(1क) के ारा या अधीन िविहत न्यूनतम से कम है तो ऐसा अनुसूिचत बक उस 2[पक्ष] की बाबत िरजवर् बक को, उस रकम पर, िजससे
िरजवर् बक के पास जमा ऐसा अितशेष िविहत न्यूनतम से कम है, बक दर से तीन पर्ितशत अिधक दर पर, दांिडक ब्याज चुकाने के
दाियत्वाधीन होगा और यिद आगामी 2[पक्ष] म भी ऐसा औसत दैिनक अितशेष िविहत न्यूनतम से कम रहता है तो उस रकम पर,
िजससे िरजवर् बक म जमा ऐसा अितशेष िविहत न्यूनतम से कम है, दांिडक ब्याज की दर बढ़ा कर उस 2[पक्ष] की और पर्त्येक पश्चात्वत
2
[पक्ष] की, िजसके दौरान म व्यितकर्म होता रहता है, बक दर से पांच पर्ितशत अिधक दर दी जाएंगी ।]
[(3क) िकसी अनुसूिचत बक ारा उपधारा (3) के उपबन्ध के अधीन बक दर से पांच पर्ितशत अिधक की बढ़ी हुई दर के
3
अनुसार दंिडक ब्याज देय हो गया है 4 [और तत्पश्चात् यिद आगामी] 2[पक्ष] के दौरान भी िरजवर् बक म धािरत औसत दैिनक अितशेष
िविहत न्यूनतम से कम है, तो—
(क) अनुसूिचत बक का पर्त्येक िनदेशक, पर्बन्धक या सिचव, जो जानते हुए और जानबूझकर व्यितकर्म का पक्षकार
है, जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा और ऐसे अितिरक्त जुमार्ने से, जो उसके पश्चात्वत पर्त्येक 2[पक्ष] के िलए,
िजसम व्यितकर्म बना रहता है, पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा, और
(ख) िरजवर् बक उस अनुसूिचत बक को उक्त 2[पक्ष] के पश्चात् कोई नया िनक्षेप पर्ाप्त करने से पर्ितिष कर
सके गा,]
और यिद खंड (ख) म िनिदष्ट पर्ितषेध का अनुपालन करने म उस अनुसूिचत बक ारा व्यितकर्म िकया जाता है तो उस अनुसूिचत बक
का पर्त्येक िनदेशक और अिधकारी, जो जानते हुए और जानबूझकर ऐसे व्यितकर्म का पक्षकार है या जो उपेक्षा से या अन्यथा ऐसे
व्यितकर्म म सहायता देता है, ऐसे पर्त्येक व्यितकर्म की बाबत जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा और ऐसे अितिरक्त जुमार्ने
से, जो पहले िदन के पश्चात् ऐसे पर्त्येक िदन के िलए, िजसम ऐसे पर्ितषेध के उल्लंघन म पर्ाप्त िनक्षेप अनुसूिचत बक ारा पर्ितधािरत
िकया जाता है, पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा म “अिधकारी” के अंतगर्त 5 *** पर्बन्धक, सिचव, शाखा पर्बन्धक और शाखा सिचव है ।]
(4) उपधारा (2) के उपबन्ध के अनुपालन म असफल रहने वाला पर्त्येक अनुसूिचत बक ऐसे पर्त्येक िदन के िलए, िजसम
असफलता बनी रहती है, 6 [िरजवर् बक को] एक सौ रुपए की शािस्त देने के 6[दाियत्वाधीन होगा] ।
[(5) (क) उपधारा (3) और (4) ारा अिधरोिपत शािस्तयां उस तारीख से चौदह िदन की कालाविध के अन्दर देय ह गी
7
िजसको िरजवर् बक ारा िनकाली गई उनके चुकाए जाने की मांग करने वाली सूचना की तामील अनुसूिचत बक पर हुई है तथा
अनुसूिचत बक ारा ऐसी कालाविध के अन्दर उसके न िदए जाने पर उस क्षेतर् म, जहां व्यितकर्म करने वाले बक का कोई कायार्लय
िस्थत है, अिधकािरता रखने वाले पर्धान िसिवल न्यायालय के िनदेश से, उद्गृहीत की जा सके गी, ऐसा न्यायालय यह िनदेश िरजवर् बक
ारा तिन्निम िकए गए आवेदन पर ही देगा;
(ख) जब न्यायालय खण्ड (क) के अधीन कोई िनदेश देता है तो वह अनुसूिचत बक ारा देय रािश को िविनिदष्ट करते हुए
एक पर्माणपतर् देगा और ऐसा हर पर्माणपतर् उसी रीित से पर्वतर्नीय होगा मानो वह न्यायालय ारा िकसी वाद म की गई िडकर्ी हो;
(ग) यिद िरजवर् बक का यह समाधान हो जाता है िक उपधारा (1), (1क) या (2) के उपबन्ध का अनुपालन करने म असफल
रहने के िलए व्यितकर्मी बक के पास पयार्प्त हेतुक था तो इस धारा म िकसी बात के होते हुए भी वह, यथािस्थित, शािस्तक ब्याज या
शािस्त के िलए मांग नह करे गा ।
8
[(6) एतत्पश्चात् यथा उपबिन्धत को छोड़कर िरवजर् बक भारत के राजपतर् म अिधसूचना ारा—
(क) िकसी ऐसे बक का ि तीय अनुसूची म सिम्मिलत िकए जाने का िनदेश करे गा जो पहले से उसम सिम्मिलत नह
है और जो 9 [भारत म] बककारी का कारबार करता है, और—
(i) िजसके पास पांच लाख रुपए से अन्यून के संकिलत मूल्य की समाद पूंजी और आरिक्षत िनिधयां ह,
और
1
1956 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 5 ारा (6-10-1956 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 6 ारा (29-3-1985 से) “सप्ताह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1940 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 5 ारा (6-10-1956 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) “पर्बंध अिभकतार्” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 4 ारा उपधारा (5) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1949 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 55 और अनुसूची 1 ारा (16-3-1949 से) उपधारा (6) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) “भारत के िकसी राज्य म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
26
िकया जाए या उसम से िनकाला जाए, बक, इस पर्श्न पर राष्टर्ीय बक के पर्माणपतर् पर कायर् करने के िलए सक्षम होगा िक, यथािस्थित,
राज्य सहकारी बक या पर्ादेिशक गर्ामीण बक समाद पूंजी या आरिक्षत िनिधय के बारे म अपेक्षा को पूरा करते ह या नह या क्या
उनके काय का संचालन ऐसी रीित से नह िकया जा रहा है जो उनम िनक्षेपकतार् के िहत के पर्ितकू ल है ।]
[(7) िरजवर् बक िकसी अनुसूिचत बक को उसके सब कायार्लय या िकसी कायार्लय की बाबत या उसकी आिस्तय और
6
दाियत्व म से सब या उसके िकसी भाग की बाबत इस धारा के उपबन्ध से ऐसी छू ट, जो वह ठीक समझे, ऐसी कालाविध के िलए और
ऐसी शत के अधीन, जो िविनिदष्ट की गई ह , दे सके गा ।]
[43. िरजवर् बक ारा समेिकत िववरण का पर्काशन—िरजवर् बक पर्ित 8 [पक्ष] एक समेिकत िववरण पर्कािशत कराएगा
7
िजसम सभी अनुसूिचत बक के कु ल दाियत्व और आिस्तय को एक साथ िदखाया जाएगा जो इस अिधिनयम या तत्समय पर्वृ िकसी
अन्य िविध के अधीन पर्ाप्त िववरिणय और जानकारी पर आधािरत होगा ।]
[43क. स ावपूवक
9
र् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण—(1) िरजवर् बक या उसके अिधकािरय म से िकसी के िवरु कोई वाद
या अन्य िविधक कायर्वाही िकसी ऐसी बात के िलए नह की जाएगी जो धारा 42 या धारा 43 के अनुसरण म 10 [या अध्याय 3क के
उपबंध के अनुसरण म] स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत है ।]
(2) िरजवर् बक या उसके अिधकािरय म से िकसी के िवरु कोई वाद या अन्य िविधक कायर्वाही िकसी ऐसे नुकसान के िलए
नह की जाएगी जो िकसी ऐसी बात से हुआ है या िजसका िकसी ऐसी बात से होना सम्भाव्य है जो धारा 42 या धारा 43 के अनुसरण म
10
[या अध्याय 3क के उपबन्ध के अनुसरण म] स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत है ।
1
1957 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 4 ारा “भारतीय कं पनी अिधिनयम, 1913 (1913 का 7) की धारा 2 का खंड (2)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1965 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 6 ारा (1-3-1966 से) “कं पनी है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) “भारत के राज्य के बाहर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) अंत:स्थािपत ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 16 ारा (1-11-1951 से) अंत:स्थािपत ।
7
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 12 ारा धारा 43 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 7 ारा (29-3-1985 से) “सप्ताह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत ।
10
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 5 ारा अंत:स्थािपत ।
27
44. [सहकारी बक से िववरिणय की अपेक्षा करने की शिक्त ।]—बककारी िविध सहकारी सोसाइिटय को लागू अिधिनयम,
1965 (1965 का 23) की धारा 7 ारा (1-3-1966 से) िनरिसत ।
[45. अिभकतार् की िनयुिक्त—(1) जब तक िकसी स्थान के पर्ित िनदश से के न्दर्ीय सरकार ारा अन्यथा िनदेश न िदया
1
जाए बक लोक िहत म, बककारी सुिवधा , बककारी िवकास और ऐसे अन्य तथ्य को ध्यान म रखते हुए, जो उसकी राय म इस बारे म
सुसंगत ह राष्टर्ीय बक या स्टेट बक या बककारी कं पनी (उपकर्म का अजर्न और अन्तरण) अिधिनयम, 1970 (1970 का 5) की धारा 3
के अधीन गिठत तत्स्थानी िकसी नए बक या बककारी कम्पनी (उपकर्म का अजर्न और अंतरण) अिधिनयम, 1980 (1980 का 40) की
धारा 3 के अधीन गिठत तत्स्थानी िकसी नए बक या भारतीय स्टेट बक (समनुषंगी बक) अिधिनयम, 1959 (1959 का 38) म
यथापिरभािषत िकसी समनुषंगी बक को अपने अिभकतार् के रूप म भारत म सभी स्थान पर या िकसी स्थान पर, ऐसे पर्योजन के िलए
जो बक िविनिदष्ट करे , िनयुिक्त कर सके गा ।
(2) जहां िकसी िविध या िनयम, िविनयम या िविध का बल रखने वाली िकसी अन्य िलखत के अधीन बक म संदाय िकए जाने
के िलए अपेिक्षत कोई संदाय या बक म पिरद िकए जाने के िलए अपेिक्षत कोई िबल या हुंडी या अन्य पर्ितभूित को बक की ओर से
पर्ाप्त करने के िलए बक ने िकसी बक को उपधारा (1) के अधीन अपने अिभकतार् के रूप म िनयुक्त िकया है वहां उसका संदाय या
पिरदान बक के अिभकतार् के रूप म इस पर्कार िनयुक्त बक म िकया जा सके गा ।]
2
[अध्याय 3क
1
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) धारा 45 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1962 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 3 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 13 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 13 ारा अंत:स्थािपत ।
28
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 14 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2005 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 34 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
29
45च. पर्ितकर के कु छ दाव का विजत होना—िकसी व्यिक्त को इस अध्याय के उपबन्ध म से िकसी के पर्वतर्न के कारण हुई
िकसी हािन के िलए कोई पर्ितकर पाने का कोई भी अिधकार न तो संिवदा से, और न अन्यथा पर्ाप्त होगा ।
45छ. [शािस्तयां ।]—भारतीय िरजवर् बक (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का 51) की धारा 15 ारा िनरिसत ।
1
[अध्याय 3ख
िनक्षेप पर्ाप्त करने वाली गैर-बककारी संस्था से तथा िव ीय संस्था से सम्बिन्धत उपबंध
45ज. अध्याय 3ख का कितपय दशा म लागू न होना—इस अध्याय के उपबन्ध स्टेट बक को अथवा 2 [बककारी िविनयमन
अिधिनयम, 1949 (1949 का 10)] की धारा 5 म यथापिरभािषत बककारी कम्पनी को अथवा 3 [उस अिधिनयम की धारा 5 के खंड
(घक) म यथापिरभािषत तत्स्थानी नए बक या भारतीय स्टेट बक (समनुषंगी बक) अिधिनयम, 1959 (1959 का 38) म यथापिरभािषत
समनुषंगी बक का] अथवा 4 [पर्ादेिशक गर्ामीण बक या सहकारी बक या पर्ाथिमक कृ िषक पर्त्यय सोसाइटी या पर्ाथिमक पर्त्यय सोसाइटी]
को लागू न ह गे :
परन्तु इस अध्याय के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक 5 [तिमलनाडु इण्डस्टर्ीयल इनवेस्टमट कारपोरे शन िलिमटेड]
बककारी कम्पनी नह है ।
45झ. पिरभाषाएं—इस अध्याय म जब तक िक सन्दभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
[(क) “गैर-बककारी िव ीय संस्था के कारबार” से खंड (ग) म िनिदष्ट िकसी िव ीय संस्था के कारबार को चलाना
6
अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त खंड (च) म िनिदष्ट गैर-बककारी िव ीय कं पनी का कारबार है;]
[(कक) “कम्पनी” से कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 3 म यथापिरभािषत कम्पनी अिभपर्ेत है
7
और उस अिधिनयम की धारा 591 के अथर् के अन्दर िवदेशी कं पनी उसके अन्तगर्त है;
(ख) “िनगम” से वह िनगम अिभपर्ेत है जो िकसी िवधान-मण्डल के अिधिनयम ारा िनगिमत िकया गया है;
[(खख) “िनक्षेप” के अन्तगर्त िनक्षेप या उधार के रूप म या िकसी अन्य रूप म धन की कोई पर्ािप्त है और उसके
8
बारे म यह समझा जाएगा िक उसके अन्तगर्त वह सदैव से है िकन्तु उसके अंतगर्त िनम्निलिखत नह ह—
(i) शेयर पूंजी के रूप म एकितर्त रकम,
(ii) िकसी फमर् के भागीदार ारा पूंजी के रूप म अिभद रकम,
(iii) िकसी अनुसूिचत बक या िकसी सहकारी बक या बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का
10) की धारा 5 के ख्ांड (ग) म यथापिरभािषत िकसी अन्य बककारी कं पनी से पर्ाप्त रकम,
(iv) िनम्निलिखत से पर्ाप्त कोई रकम,—
9
* * * * * *
(ख) राज्य िव ीय िनगम,
(ग) भारतीय औ ोिगक िवकास बक अिधिनयम, 1964 (1964 का 18) की धारा 6क म या
उसके अधीन िविनिदष्ट िव ीय संस्था, या
(घ) अन्य संस्था जो बक ारा इस िनिम िविनिदष्ट की जाए;
(v) काम-काज के मामूली अनुकर्म म िनम्निलिखत रूप म पर्ाप्त रकम,—
(क) पर्ितभूित िनक्षेप,
(ख) व्यवहारी िनक्षेप,
(ग) अिगर्म धन, या
(घ) माल, सम्पि या सेवा के िलए आदेश पर अिगर्म;
1
1963 के अिधिनयम सं० 55 की धारा 5 ारा (1-12-1964 से) अंत:स्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 3 ारा “बककारी कं पनी अिधिनयम, 1949” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 8 ारा (15-2-1984 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 33 ारा (26-9-1975 से) “सहकारी बक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 16 ारा “मदर्ास इं डिस्टर्यल इन्वेस्टमट कारपोरे शन िलिमटेड” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (9-1-1977 से) अंत:स्थािपत ।
7
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (9-1-1977 से) खंड (क) को ख्ांड (कक) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
8
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 9 ारा (15-2-1984 से) खंड (खख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और अनुसूची ारा (2-7-2004 से) लोप िकया गया ।
30
(vi) सहकारी िनकाय से सम्बिन्धत ऐसी िकसी अिधिनयिमित के , जो िकसी राज्य म उस समय पर्वृ है,
अधीन रिजस्टर्ीकृ त ऐसे िकसी व्यिष्ट या फमर् या व्यिष्टय के संगम से जो िनगिमत नह है, पर्ाप्त रकम; और
(vii) िकसी िचट के संबंध म अिभदाय के रूप म पर्ाप्त रकम ।
स्पष्टीकरण—1 “िचट” का वही अथर् है जो िचट फं ड अिधिनयम, 1982 (1982 का 40) की धारा 2 के
ख्ांड (ख) म है ।
स्पष्टीकरण—2 िकसी संपि (जंगम या स्थावर) के िवकर्य पर िवकर्ेता ारा कर्ेता को िदया गया कोई
पर्त्यय इस खंड के पर्योजन के िलए िनक्षेप नह समझा जाएगा;]
[(ग) “िव ीय संस्था” से ऐसी कोई गैर-बककारी संस्था अिभपर्ेत है जो िनम्निलिखत िकसी िकर्याकलाप को अपने
1
भारतीय औ ोिगक िवकास बक अिधिनयम, 1964 (1964 का 18) की धारा 2 के ख्ांड (ग) के उपखंड (i) से उपखंड (xviii)
तक म िविनिदष्ट है;]
(घ) “फमर्” से भारतीय भागीदारी अिधिनयम, 1932 (1932 का 9) म यथापिरभािषत फमर् अिभपर्ेत
है; ***
4
(ङ) “गैर बककारी संस्था” से कम्पनी, िनगम 5 [या सहकारी सोसाइटी] अिभपर्ेत है;
3
[(च) “गैर-बककारी िव ीय कं पनी” से अिभपर्ेत है—
(i) कोई ऐसी िव ीय संस्था, जो एक कं पनी है;
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 17 ारा खंड (ग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (9-1-1997 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
4
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 9 ारा (15-2-1984 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
5
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 9 ारा (15-2-1984 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
31
(ii) कोई ऐसी गैर-बककारी संस्था, जो एक कं पनी है और िजसका मुख्य काराबार िकसी स्कीम
या ठहराव के अधीन या िकसी अन्य रीित से िनक्षेप के पर्ितगर्हण करने या िकसी रीित से उधार
देने का है;
(iii) ऐसी अन्य गैर-बककारी संस्था या ऐसे वगर् की संस्थाएं िजन्ह िरजवर् बक, कदर्ीय सरकार
के पूवर् अनुमोदन से और राजपतर् म अिधसूचना ारा, िविनष्ट करे ।]
[45झक. रिजस्टर्ीकरण की अपेक्षा और शु स्वािमत्वाधीन िनिध—(1) इस अध्याय म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध
1
म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, कोई गैर-बककारी िव ीय कं पनी िकसी गैर-बककारी िव ीय संस्था का कारबार—
(क) इस अध्याय के अधीन िदया गया रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् पर्ाप्त िकए िबना; और
(ख) पच्चीस लाख रुपए की शु स्वािमत्वाधीन िनिध या दो करोड़ से अनिधक ऐसी अन्य रकम रखे िबना, जो
िरजवर् बक, राजपतर् म अिधसूचना ारा िविनिदष्ट करे ,
पर्ारं भ नह करे गी या नह चलाएगी ।
(2) पर्त्येक गैर-बककारी िव ीय कं पनी िरजवर् बक को रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन ऐसे पर्रूप म, जो िरजवर् बक िविनिदष्ट
करे , करे गी :
परन्तु ऐसी कोई गैर-बककारी िव ीय कं पनी, जो भारतीय िरजवर् बक (संशोधन) अिधिनयम, 1997 के पर्ारं भ पर िव मान है
ऐसे पर्ारं भ से छह मास की समािप्त से पहले िरजवर् बक को रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करे गी और उपधारा (1) म िकसी बात के होते
हुए भी, तब तक गैर-बककारी िव ीय संस्था का कारबार करना चालू रख सके गी जब तक रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् उसे नह दे िदया
जाता या रिजस्टर्ीकरण के आवेदन के नामंजूर करने की संसूचना उसे नह दे दी जाती है ।
(3) उपधारा (1) म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, कोई गैर बककारी िव ीय कं पनी जो भारतीय िरजवर् बक (संशोधन)
अिधिनयम, 1997 के पर्ारं भ पर िव मान है और शु स्वािमत्वाधीन िनिध पच्चीस लाख रुपए से कम रखती है, ऐसी कं पनी को शु
स्वािमत्वाधीन िनिध की अपेक्षा को पूरा करने म समथर् बनाने के पर्योजन के िलए गैर-बककारी िव ीय संस्था का कारबार—
(i) ऐसे पर्ारं भ से तीन वषर् की अविध के िलए; या
(ii) ऐसी अितिरक्त अविध के िलए जो िरजवर् बक ऐसा करने के िलए कारण को लेखब करने के पश्चात्, बढ़ाए,
इस शतर् के अधीन चालू रख सके गी िक ऐसी कं पनी, शु स्वािमत्वाधीन िनिध की अपेक्षा पूरा करने के तीन मास के भीतर ऐसी पूित के
बारे म िरजवर् बक को सूिचत करे गी :
परन्तु इस उपधारा के अधीन कारबार चालू रखने के िलए अनुज्ञात अविध, िकसी भी दशा म, कु ल िमलाकर छह वषर् से
अिधक नह होगी ।
(4) िरजवर् बक, रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन पर िवचार करने के पर्योजन के िलए गैर-बककारी िव ीय कं पनी की बिहय के
िनरीक्षण ारा या अन्यथा यह समाधान करने की अपेक्षा कर सके गा िक िनम्निलिखत शत पूरी कर दी गई ह :—
(क) िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी अपने वतर्मान या भावी िनक्षेपकतार् को जब भी उनके दावे पर्ोद्भूत ह पूणर्
संदाय करने की िस्थित म है या होगी;
(ख) िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी के कायर्कलाप का संचालन ऐसी रीित म नह िकया जा रहा है जा िकए जाने
की संभावना नह है जो उसके वतर्मान या भावी िनक्षेपकतार् के िहत के िलए हािनकर हो;
(ग) िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी के पर्बंध या पर्स्तािवत पर्बंध का साधारण स्वरूप लोकिहत या उसके
िनक्षेपकतार् के िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला नह होगा;
(घ) िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी के पास पयार्प्त पूंजी-संरचना और उपाजर्न की संभावनाएं ह;
(ङ) िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी को भारत म कारबार पर्ारं भ करने या चलाने के िलए रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर्
देने से लोकिहत की पूित होगी;
(च) िक रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् के िदए जाने से मुदर्ा-िस्थरता, आिथक संवृि से संगत और ऐसे अन्य सुसंगत
कारण पर िवचार करते हुए जो िरजवर् बक, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िविनिदष्ट करे , िव ीय सेक्टर के पर्चालन और
समेकन पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा; और
1
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
32
(छ) िक कोई अन्य शतर्, िजसका पूरा करना िरजवर् बक की राय म यह सुिनिश्चत करने के िलए आवश्यक होगा िक
िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा भारत म कारबार पर्ारं भ करना या उसे चलाना लोकिहत या िनक्षेपकतार् के िहत
पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला नह होगा ।
(5) िरजवर् बक, यह समाधान हो जाने के पश्चात् िक उपधारा (4) म िविनिदष्ट शत पूरी कर दी गई ह, रिजस्टर्ीकरण
पर्माणपतर् ऐसी शत के अधीन दे सके गा, जो वह अिधरोिपत करना ठीक समझे ।
(6) िरजवर् बक, इस धारा के अधीन िकसी गैर बककारी िव ीय कं पनी को िदया गया रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् र कर सके गा,
यिद ऐसी कं पनी—
(i) भारत म गैर-बककारी िव ीय संस्था का कारबार चलाना बंद कर देती है; या
(ii) ऐसी िकसी शतर् का अनुपालन करने म असफल रहती है िजसके अधीन उसे रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् िदया गया
था; या
(iii) उपधारा (4) के ख्ांड (क) से खंड (छ) म िविनिदष्ट शत म से िकसी को पूरा करने म िकसी भी समय असफल
रहती है; या
(iv) (क) इस अध्याय के उपबंध के अधीन िरजवर् बक ारा िदए गए िकसी िनदेश के अनुपालन म; या
(ख) िकसी िविध की अपेक्षा या इस अध्याय के उपबंध के अधीन िरजवर् बक ारा िदए गए िकसी िनदेश या
आदेश के अनुसार लेखा को रखने म; या
(ग) अपनी लेखाबिहय और अन्य सुसंगत दस्तावेज को िनरीक्षण के िलए, जब िरजवर् बक के िकसी िनरीक्षण
पर्ािधकारी ारा ऐसी मांग की जाए तो, पर्स्तुत करने म,
असफल रहती है; या
(v) इस अध्याय के उपबंध के अधीन िरजवर् बक ारा िदए गए िकसी आदेश ारा िनक्षेप स्वीकार करने से
पर्ितिष की गई है और ऐसा आदेश कम से कम तीन मास की अविध के िलए पर्वतर्न म रहा है :
परन्तु यह िक इस आधार पर रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् को र करने से पहले िक गैर-बककारी िव ीय कं पनी खंड (ii) के
उपबंध का अनुपालन करने म असफल हो गई है या खंड (iii) म िनिदष्ट शत म से िकसी को पूरा करने म असफल हो गई है तो िरजवर्
बक, जब तक उसकी यह राय न हो िक रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् को र करने म िवलंब लोकिहत या िनक्षेपकतार् या गैर-बककारी
िव ीय कं पनी के िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला होगा, ऐसी कं पनी को, ऐसे िनबंधन पर, जो िरजवर् बक, ऐसे उपबंध का
अनुपालन या ऐसी शतर् की पूित कराने के िलए, आवश्यक कदम उठाने के िलए िविनिदष्ट करे , अवसर देगा :
परन्तु यह और िक रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् के र करने का कोई आदेश करने से पहले ऐसी कं पनी को सुनवाई का उिचत
अवसर िदया जाएगा ।
(7) रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन को खािरज करने या रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् को र करने के आदेश से व्यिथत कोई कं पनी,
के न्दर्ीय सरकार को उस तारीख से तीस िदन की अविध के भीतर, िजसको खािरज करने या र करने का ऐसा आदेश उसे संसूिचत िकया
जाता है, अपील कर सके गी और जहां कोई अपील के न्दर्ीय सरकार को की जाती है वहां उसका और जहां ऐसी कोई अपील नही की
जाती है वहां िरजवर् बक का िविनश्चय अंितम होगा :
परन्तु अपील के खािरज करने का कोई आदेश करने से पहले ऐसी कं पनी को सुनवाई का उिचत अवसर िदया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए—
(I) “शु स्वािमत्वाधीन िनिध” से—
(क) कं पनी के अंितम तुलन-पतर् म पर्किटत रूप म समाद साधारण पूंजी और खुली आरिक्षितय का वह
योग अिभपर्ेत है जो उसम से—
(i) हािन का संिचत अितशेष;
(ii) आस्थिगत राजस्व व्यय; और
(iii) अन्य अमूत आिस्तय ,
की कटौती करने के पश्चात्, और
(ख) इसके अितिरक्त—
(1) ऐसी कं पनी के —
33
िकसी रीित से िनकाली नह गई ह या उनका उपयोग नह िकया गया है या उन्ह िवल्लंगिमत नह िकया जाता है, जमा की
गई ह;
(iii) “ितमाही” से माचर्, जून, िसतंबर या िदसंबर के अंितम िदन को समाप्त होने वाली तीन मास की अविध
अिभपर्ेत है ।
45झग. आरिक्षत िनिध—(1) पर्त्येक गैर-बककारी िव ीय कं पनी एक आरिक्षत िनिध का सृजन करे गी और उसम पर्त्येक वषर्
अपने शु लाभ के बीस पर्ितशत से अन्यून ऐसी रािश का, जो लाभ और हािन लेखा म पर्कट की गई हो और कोई लाभांश घोिषत िकए
जाने से पूवर् अंतरण करे गी ।
(2) आरिक्षत िनिध म से िकसी रािश का कोई िविनयोग गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा के वल उस पर्योजन के िलए िकया
जाएगा जो िरजवर् बक ारा समय-समय पर, िविनिदष्ट िकया जाए, अन्यथा नह और ऐसे पर्त्येक िविनयोग की िरपोटर् िरजवर् बक को
ऐसे िनकाले जाने को तारीख से इक्कीस िदन के भीतर की जाएगी :
परं तु िरजवर् बक िकसी िविशष्ट मामले म और पयार्प्त हेतुक दिशत िकए जाने पर इक्कीस िदन की अविध को ऐसी और
अविध तक, जो वह ठीक समझे, बढ़ा सके गा या ऐसी िरपोटर् करने म िकसी िवलंब को माफ कर सके गा ।
(3) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, के न्दर्ीय सरकार, िरजवर् बक की िसफािरश पर और िकसी गैर-बककारी िव ीय
कं पनी की, उसके िनक्षेप दाियत्व के संबंध म, समाद पूंजी और आरिक्षितय की पयार्प्तता को ध्यान म रखते हुए, िलिखत आदेश ारा,
यह घोिषत कर सके गी िक उपधारा (1) के उपबंध, गैर-बककारी िव ीय कं पनी को, ऐसी अविध के िलए जो आदेश म िविनिदष्ट की
जाए, लागू नह ह गे :
परन्तु ऐसा कोई आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब तक उपधारा (1) के अधीन आरिक्षत िनिध म रकम अंश पर्ीिमयम
खाते म रकम सिहत गैर-बककारी िव ीय कं पनी की समादं पूंजी से कम नह है ।
45ञ. धन के िनक्षेप की याचना करने वाले पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन का िरजवर् बक ारा िविनयमन या पर्ितषेध—यिद िरजवर्
बक लोक िहत म यह बात करना आवश्यक समझता है तो वह साधारण या िवशेष आदेश ारा—
(क) जनता से धन के िनक्षेप की याचना करने वाले िकसी पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन के िकसी गैर-बककारी संस्था
ारा िनकाले जाने का िविनयमन या पर्ितषेध कर सके गा; तथा
(ख) वे शत िविनिदष्ट कर सके गा िजन पर कोई ऐसा पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन उस दशा म, िजसम िक उसका
िनकाला जाना पर्ितिष नह िकया गया है, िनकाला जा सके गा ।
[45ञक. नीित िनधार्िरत करने और िनदेश जारी करने की िरजवर् बक की शिक्त—(1) यिद िरजवर् बक का यह समाधान हो
1
जाता है िक लोकिहत म या देश की िव ीय पर्णाली को उसके फायदे के िलए िविनयिमत करने के िलए या िकसी गैर बककारी िव ीय
कं पनी के ऐसे कायर्कलाप को िनधार्िरत करने के िलए िजनका संचालन ऐसी रीित से िकया जा रहा है जो िनक्षेपकतार् के िहत के िलए
हािनकर है या ऐसी रीित से िकया जा रहा है जो गैर बककारी िव ीय कं पनी के िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला है और ऐसा
करना आवश्यक या समीचीन है तो वह नीित का िनधार्रण कर सके गा और सभी गैर बककारी िव ीय कं पिनय या उनम से िकसी को
आय मान्यता, लेखा मानक , डु बंत और शंकास्पद ऋण के िलए समुिचत उपबंध करने, आिस्तय के िलए जोिखत भार पर आधािरत
पूंजी पयार्प्तता तथा इतर तुलन-पतर् मद के िलए पर्त्यय संपिरवतर्न कारक के संबंध म और, यथािस्थित, िकसी गैर-बककारी िव ीय
कं पनी या िकसी वगर् की गैर-बककारी िव ीय कं पिनय या साधारणतया गैर-बककारी िव ीय कं पिनय ारा िनिधय के अिभिनयोजन
के संबंध म भी िनदेश दे सके गा और ऐसी गैर-बककारी िव ीय कं पिनयां इस पर्कार अवधािरत नीित और इस पर्कार जारी िकए गए
िनदश का अनुसरण करने के िलए आब ह गी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िनिहत शिक्तय की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, िरजवर् बक, गैर-बककारी िव ीय
कं पिनय को साधारणतया या िकसी वगर् की गैर-बककारी िव ीय कं पनी को अथवा िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी को िविशिष्टतया
िनम्निलिखत के बारे म िनदेश दे सके गा—
(क) वह पर्योजन िजसके िलए अिगर्म या अन्य िविध आधािरत या िनिध इ र आधािरत सौकयर् नह िकया जा
सके गा; और
(ख) वह अिधकतम रकम िजसके अिगर्म या अन्य िव ीय सौकयर् या शेयर और अन्य पर्ितभूितय के िविनधान जो,
गैर-बककारी िव ीय कं पनी की समाद पूंजी, आरिक्षितय और िनक्षेप को तथा अन्य सुसंगत बात को ध्यान म रखते हुए
उस गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा िकसी व्यिक्त या िकसी कं पनी या कं पिनय के िकसी समूह के िलए िकए जा सकगे ।]
45ट. गैर-बककारी संस्था से यह जानकारी संगह
ृ ीत करने की िक उनके यहां िकतने िनक्षेप ह तथा उन्ह िनदश देने की िरजवर्
बक की शिक्त—(1) िरजवर् बक िकसी समय यह िनदश दे सके गा िक हर गैर-बककारी संस्था उस गैर-बककारी संस्था ारा पर्ाप्त िनक्षेप
1
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 4 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
35
से सम्बिन्धत या संसक्त ऐसे कथन, ऐसी जानकारी या िविशिष्टयां िरजवर् बक को ऐसे पर्रूप म, ऐसे अन्तराल पर, और इतने समय के
अन्दर दे, जो िरजवर् बक ने साधारण या िवशेष आदेश ारा िविनिदष्ट की हो ।
(2) िरजवर् बक म उपधारा (1) के अधीन िनिहत शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना यह है िक जो कथन,
जानकारी या िविशिष्टयां उपधारा (1) के अधीन दी जानी ह वे िनम्निलिखत सब मामल से या उनम से िकसी से सम्बिन्धत हो सकगी
अथार्त् िनक्षेप की रकम, वे पर्योजन और कालाविधयां िजनके िलए तथा ब्याज की वे दर और वे अन्य िनबन्धन और शत िजन पर वे
पर्ाप्त की जाती ह ।
(3) यिद िरजवर् बक लोकिहत म यह बात करना आवश्यक समझता है तो िनक्षेप पर देय ब्याज की दर सिहत तथा उन
कालाविधय सिहत, िजनके िलए ऐसे िनक्षेप पर्ाप्त िकए जा सकगे, ऐसे िनक्षेप से सम्बिन्धत या संसक्त िकन्ह बात की बाबत
िनदेश वह गैर-बककारी संस्था को साधारणत: अथवा िकसी गैर-बककारी संस्था या गैर-बककारी संस्था के समूह को िविशिष्टत: दे
सके गा ।
(4) यिद कोई गैर-बककारी संस्था ऐसे िकसी िनदेश का अनुपालन करने म असफल रहती है, जो िरजवर् बक ारा उपधारा (3)
के अधीन िदया गया है तो िरजवर् बक उस गैर-बककारी संस्था को िनक्षेप लेने से पर्ितिष कर सके गा ।
1
* * * * *
(6) िनक्षेप पर्ाप्त करने वाली हर गैर-बककारी संस्था िरजवर् बक ारा यह अपेक्षा की जाने पर तथा इतने समय के अन्दर
िजतना िरजवर् बक िविनिदष्ट करे उस रूप म, िजसम िक वह उस वषर् के अिन्तम िदन है िजससे लेखा सम्बिन्धत है, अपने वािषक
तुलनपतर् की तथा लाभ-हािन लेखा की या अन्य वािषक लेखा की एक पर्ित अपने खच पर हर ऐसे व्यिक्त को िभजवाएगी िजससे उसके
पास उतनी रािश से अिधक के िनक्षेप ह िजतनी िरजवर् बक ारा िविनिदष्ट की गई हो ।
45ठ. िव ीय संस्था से जानकारी मांगने तथा िनदेश देने की िरजवर् बक की शिक्त—(1) यिद िरजवर् बक का समाधान हो
जाता है िक देश की पर्त्यय व्यवस्था को देश के लाभाथर् चलाने के िलए अपने को समथर् करने के िलए यह बात करना आवश्यक है तो
वह—
(क) साधारणत: िव ीय संस्था से या िविशष्टत: िव ीय संस्था के िकसी समूह अथवा िकसी िव ीय संस्था से
यह अपेक्षा कर सके गा िक ऐसी िव ीय संस्था या संस्था के कारबार से संबंिधत ऐसे कथन, ऐसी जानकारी या ऐसी
िविशिष्टयां, ऐसे पर्रूप म, ऐसे अंतराल पर और इतने समय के अन्दर वह िरजवर् बक को दे जैसा या िजतना िरजवर् बक ारा
साधारण या िवशेष आदेश ारा िविनिदष्ट िकया जाए;
(ख) साधारणत: ऐसी संस्था को या िविशष्टत: िकसी ऐसी संस्था को िव ीय संस्था या संस्था के रूप म अपने
कारबार का संचालन करने के बारे म िनदश दे सके गा ।
(2) िरजवर् बक म उपधारा (1) के ख्ाण्ड (क) के अधीन िनिहत शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना वे कथन,
जानकारी या िविशिष्टयां, जो िव ीय संस्था ारा दी जानी ह, िनम्निलिखत सब बात या उनम से िकन्ही से संबंिधत हो सकगी अथार्त्
समाद पूंजी, आरिक्षितयां, या अन्य दाियत्व, सरकारी पर्ितभूितय म या अन्यथा िकए गए िविनधान, वे व्यिक्त िजन्ह और वे पर्योजन
और कालाविधयां िजससे या िजनके िलए िव िदया गया है तथा ब्याज की दर सिहत वे िनबन्धन और शत, िजन पर वह िदया गया है ।
(3) िकसी िव ीय संस्था को उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन िनदेश देने म िरजवर् बक उन िस्थितय का िजनम और उन
उ ेश्य का िजनके िलए वह संस्था स्थािपत की गई है, उसके कानूनजात उ रदाियत्व का, यिद कोई ह , और उस पर्भाव का, जो ऐसी
िव ीय संस्था के कारबार की मुदर्ा और पूंजी बाजार के रुख पर पड़ना संभाव्य है, सम्यक् ध्यान रखेगा ।
45ड. गैर-बककारी संस्था का यह कतर्व्य िक िरजवर् बक ारा मांगे गए कथन आिद उसे द—हर गैर-बककारी संस्था का यह
कतर्व्य होगा िक वह इस अध्याय के उपबन्ध के अधीन मांगे गए कथन, जानकारी या िविशिष्टयां दे और िदए गए िकसी िनदेश का
अनुपालन करे ।
[45डक. लेखापरीक्षक की शिक्तयां और कतर्व्य—(1) िकसी गैर-बककारी संस्था के पर्त्येक लेखापरीक्षक का यह कतर्व्य होगा
2
िक वह यह जांच करे िक उस गैर-बककारी संस्था ने अपने ारा पर्ाप्त िनक्षेप से सम्बिन्धत या संसक्त ऐसे िववरण, जानकारी या
िविशिष्टयां िरजवर् बक को दी ह या नह िजनके िदए जाने की इस अध्याय के अधीन अपेक्षा की गई है और लेखापरीक्षक उस गैर-
बककारी संस्था ारा धृत ऐसे िनक्षेप की कु ल धनरािश की िरपोटर् िरजवर् बक को भेजेगा िकन्तु उस दशा म नह भेजेगा, िजसम ऐसी
जांच पर उसका यह समाधान हो गया हो िक उस गैर-बककारी संस्था ने ऐसे िववरण, जानकारी या िविशिष्टयां दे दी ह ।
3
[(1क) िरजवर् बक, यह समाधान हो जाने पर िक लोकिहत म या िनक्षेपकतार् के िहत म या लेखा बिहय के समुिचत
िनधार्रण के पर्योजन के िलए ऐसा करना आवश्यक है, िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी या िकसी वगर् की गैर-बककारी िव ीय
कं पिनय को साधारणतया या गैर-बककारी िव ीय कं पनी को या ऐसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी या कम्पिनय के लेखापरीक्षक को
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 18 ारा उपधारा (5) का लोप िकया गया ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 19 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 5 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
36
तुलनपतर्, लाभ और हािन लेखा, लेखा बिहय म दाियत्व के पर्कटीकरण या उससे संबंिधत िकसी बात की बाबत िनदेश जारी कर
सके गा ।]
(2) जहां 1 [िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी की दशा म] लेखापरीक्षक ने िरजवर् बक को उपधारा (1) के अधीन िरपोटर् भेज
दी है या उसका उसे भेजने का आशय है तो वह उस िरपोटर् की अंतवर्स्तु को, जो उसने, िरजवर् बक को भेज दी ह िजसे भेजने का उसका
आशय है, कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 227 की उपधारा (2) के अधीन अपनी िरपोटर् म सिम्मिलत करे गा ।
[(3) जहां िरजवर् बक की यह राय है िक लोकिहत म या गैर-बककारी िव ीय कम्पनी के िहत म या ऐसी कम्पनी के
2
िनक्षेपकतार् के िहत म ऐसा करना आवश्यक है, वहां पर िकसी भी समय आदेश ारा यह िनदेश दे सके गा िक ऐसे िकसी संव्यवहार या
िकसी वगर् के संव्यवहार के संबंध म या ऐसी अविध अथवा अविधय के िलए जो आदेश म िविनिदष्ट की जाएं, गैर-बककारी िव ीय
कं पनी के लेखा की िवशेष लेखापरीक्षा की जाएगी और िरजवर् बक, ऐसी िवशेष लेखापरीक्षा करने के िलए लेखापरीक्षक या
लेखापरीक्षक को िनयुक्त कर सके गा और लेखापरीक्षक या लेखापरीक्षक को उसे िरपोटर् पर्स्तुत करने के िलए िनदेश दे सके गा ।
(4) लेखापरीक्षक का पािरशर्िमक, जो िरजवर् बक ारा लेखापरीक्षा म अन्तवर्िलत कायर् की पर्कृ ित और मातर्ा को ध्यान म
रखते हुए िनयत िकया जाए और लेखापरीक्षा के या उससे आनुषंिगक व्यय इस पर्कार लेखापरीक्षा की गई गैर-बककारी िव ीय कं पनी
ारा वहन िकए जांएगे ।]
[45डख. िनक्षेप के पर्ितगर्हण और आिस्तय के अन्य संकर्ामण का पर्ितषेध करने की िरजवर् बक की शिक्त—(1) यिद कोई
3
गैर-बककारी िव ीय कं पनी िकसी धारा के उपबंध का अितकर्मण करती है या िरजवर् बक ारा इस अध्याय के उपबंध म से िकसी के
अधीन िदए गए िकसी िनदेश या आदेश का पालन करने म असफल रहती है तो िरजवर् बक, गैर-बककारी िव ीय कं पनी को िकसी
िनक्षेप का पर्ितगर्हण करने से पर्ितिष कर सके गा ।
(2) तत्स्मय पर्वृ िकसी करार या िलखत या िकसी िविध म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी, िरजवर् बक, यह समाधान हो
जाने पर िक लोकिहत म या िनक्षेपकतार् के िहत म ऐसा करना आवश्यक है, ऐसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी का, िजसके िवरु
िनक्षेप का पर्ितगर्हण करने से पर्ितिष करने वाला आदेश जारी िकया गया है, यह िनदेश दे सके गा िक वह अपनी संपि और आिस्तय
का िरजवर् बक की पूवर् िलिखत अनुज्ञा के िबना ऐसी अविध तक, जो आदेश की तारीख से छह मास से अिधक न हो, िवकर्य, अंतरण न
करे , उनको भािरत या बंधक न करे या उनके संबंध म िकसी भी रीित से व्यौहार न करे ।
45डग. पिरसमापन अज फाइल करने की बक की शिक्त—(1) िरजवर् बक, यह समाधान हो जाने पर िक कोई गैर-बककारी
िव ीय कं पनी—
(क) म अपने ऋण का संदाय करने म असमथर् है; या
(ख) धारा 45झक के उपबंध के आधार पर गैर-बककारी िव ीय संस्था का कारबार करने के िलए िनरिहत हो गई
है; या
(ग) िरजवर् बक ारा, िकसी आदेश से, िनक्षेप का पर्ितगर्हण करने से पर्ितिष कर दी गई है और ऐसा आदेश तीन
मास से अन्यून अविध के िलए पर्वृ रहा है; या
(घ) गैर-बककारी िव ीय कं पनी का बना रहना लोकिहत या कं पनी के िनक्षेपकतार् के िहत के िलए हािनकर है,
तो ऐसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी के पिरसमापन के िलए कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के अधीन आवेदन फाइल
कर सके गा ।
(2) िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी को अपने ऋण का संदाय करने म असमथर् तब समझा जाएगा जब उसने अपने िकसी
कायार्लय या अपनी िकसी शाखा म की गई िकसी िविधपूणर् मांग को पांच कायर् िदवस के भीतर पूरा करने से इं कार कर िदया है या वह
उसे पूरा करने म असफल रही है और िरजवर् बक िलिखत रूप म यह पर्मािणत करता है िक ऐसी कं पनी अपने ऋण का संदाय करने म
असमथर् है ।
(3) िरजवर् बक ारा उपधारा (1) के अधीन िकए गए पर्त्येक आवेदन की एक पर्ित कं पनी रिजस्टर्ार को भेजी जाएगी ।
(4) िकसी कं पनी के पिरसमापन से संबंिधत कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के सभी उपबंध िरजवर् बक ारा इस
उपबंध के अधीन िकए गए आवेदन पर आरम्भ की गई िकसी पिरसमापन कायर्वाही को लागू ह गे ।]
45ढ. िनरीक्षण— 4 [(1) िरजवर् बक िकसी भी समय अपने अिधकािरय या कमर्चािरय म से िकसी एक या अिधक अथवा
िकन्ह अन्य व्यिक्तय ारा (िजन्ह इस धारा म इसके पश्चात् िनरीक्षण पर्ािधकारी कहा गया है)—
1
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 5 ारा (9-1-1997 से) “िकसी ऐसी गैर-बककारी संस्था की दशा म, जो कम्पनी है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 5 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
3
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 6 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
4
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 20 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
37
(i) िकसी गैर-बककारी संस्था का, िजसके अंतगर्त िव ीय संस्था भी है, िनरीक्षण ऐसी िकसी िववरण, जानकारी या
िविशिष्टय के , जो िरजवर् बक को दी गई ह, सही होने या पूणर् होने का सत्यापन करने के पर्योजन के िलए या कोई ऐसी
जानकारी या िविशिष्टयां अिभपर्ाप्त करने के पर्योजन के िलए कर सके गा िजन्ह वह गैर-बककारी संस्था ऐसा करने की मांग
की जाने पर देने म असफल रही है; या
(ii) यिद िरजवर् बक िकसी गैर-बककारी संस्था का, जो िव ीय संस्था है, िनरीक्षण करना आवश्यक या समीचीन
समझता है तो वह उस संस्था का िनरीक्षण करा सके गा ।]
(2) ऐसे हर िनदेशक, िकसी सिमित या िनकाय के सदस्य का, िजसे गैर-बककारी संस्था के कायर्कलाप का पर्बंध तत्समय िदया
हुआ है या उसके अन्य अिधकारी या कमर्चारी का यह कतर्व्य होगा िक उसकी अिभरक्षा म या शिक्त के अधीन जो भी बिहयां, लेखे और
अन्य दस्तावेज ह उन्ह िनरीक्षण पर्ािधकारी के समक्ष पेश करे तथा उस पर्ािधकारी को उस संस्था के कारबार से संबंिधत ऐसे कथन, और
जानकारी, िजसकी वह पर्ािधकारी उससे अपेक्षा करे इतने समय के अन्दर दे दे, िजतना उस पर्ािधकारी ारा िविनिदष्ट िकया गया हो ।
(3) िनरीक्षण पर्ािधकारी ऐसे िकसी िनदेशक, सिमित या िनकाय के िकसी सदस्य की, िजसम गैर-बककारी संस्था के
कायर्कलाप का पर्बंध तत्समय िनिहत है अथवा उसके अन्य अिधकारी या कमर्चारी की शपथ पर परीक्षा उस संस्था के कारबार के संबंध
म कर सके गा और तदनुसार शपथ िदला सके गा ।
[45ढक. अपर्ािधकृ त व्यिक्त िनक्षेप की याचना नह करगे—कोई भी व्यिक्त िकसी गैर-बककारी संस्था की ओर से जनता से
1
धन के िनक्षेप की, कोई पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन पर्कािशत करके या करवाकर या िकसी भी अन्य रीित से, तब तक यह याचना नह
करे गा जब तक—
(क) उसे ऐसा करने के िलए उक्त गैर-बककारी संस्था ारा िलिखत रूप म पर्ािधकृ त न िकया गया हो और वह उस
संस्था का नाम िविनिदष्ट न करे िजसने उसे इस पर्कार पर्ािधकृ त िकया है; और
(ख) वह पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन धारा 45ञ के अधीन िरजवर् बक ारा िकए गए िकसी आदेश और तत्समय पर्वृ
िविध के िकसी अन्य उपबंध के अनुपालन म न हो जो ऐसे पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन के पर्काशन पर लागू होता है ।
2
[45ढख. जानकारी का पर्कटन—(1) िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी से संबंिधत कोई ऐसी जानकारी जो,—
(i) ऐसी कं पनी ारा इस अध्याय के उपबंध के अधीन पर्स्तुत िकए गए िकसी कथन या िववरणी म अंतिवष्ट है;
अथवा
(ii) िरजवर् बक ारा लेखापरीक्षा या िनरीक्षण के माध्यम से अथवा अन्यथा अिभपर्ाप्त की गई है,
गोपनीय समझी जाएगी और इस धारा म जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय, पर्कट नह की जाएगी ।
(2) इस धारा की कोई बात—
(क) िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा िरजवर् बक की पूवर् अनुज्ञा से उपधारा (1) के अधीन िरजवर् बक को दी
गई जानकारी के पर्कटन को;
(ख) िरजवर् बक ारा, यिद वह लोकिहत म ऐसा करना आवश्यक समझे, तो उपधारा (1) के अधीन उसके ारा
एकतर् की गई िकसी जानकारी के ऐसे समेिकत रूप म िजसे वह उिचत समझे, िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी या उसके
उधार लेने वाल का नाम पर्कट िकए िबना िकए गए पर्काशन को;
(ग) गैर-बककारी िव ीय कं पनी या िरजवर् बक ारा िकसी अन्य गैर-बककारी िव ीय कं पनी को ऐसी जानकारी के
या ऐसी कं पिनय के बीच चलन और रूिढ़गत पर्था के अनुसार या िकसी अन्य िविध के अधीन अनुज्ञात अथवा अपेिक्षत पर्कटन
या पर्काशन को,
लागू नह होगी :
परन्तु इस खंड के अधीन िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा पर्ाप्त की गई िकसी ऐसी जानकारी को कं पिनय के बीच
चलन और रूिढ़गत पर्था के अनुसार अथवा िकसी अन्य िविध के अधीन अनुज्ञात या अपेिक्षत रीित के अनुसार ही पर्कािशत िकया
जाएगा अन्यथा नह ।
(3) इस अिधिनयम या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, िरजवर् बक, यिद उसका यह समाधान
हो जाता है िक लोकिहत म या िनक्षेपकतार् अथवा गैर-बककारी िव ीय कं पनी के िहत म या िकसी ऐसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी
के ऐसे कायर्कलाप को िनवािरत करने के िलए, िजनका संचालन ऐसी रीित से िकया जाता रहा है, जो िनक्षेपकतार् के िहत के िलए
हािनकर है, ऐसा करना समीचीन है, तो स्वपर्ेरणा से या अनुरोध िकए जाने पर, िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी के कारबार के
संचालन के संबंध म कोई जानकारी िकसी िविध के अधीन गिठत िकसी पर्ािधकारी को दे सके गा अथवा संसूिचत कर सके गा ।
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 21 ारा अंत:स्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 7 ारा (9-11997 से) अंत:स्थािपत ।
38
(4) तत्समय पर्वृ िकसी िविध म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय या अिधकरण अथवा अन्य
पर्ािधकारी, िरजवर् बक को इस अध्याय के िकन्ह उपबंध के अधीन िरजवर् बक ारा अिभपर्ाप्त िकसी कथन या अन्य सामगर्ी को पेश
करने या उसका िनरीक्षण करने के िलए िववश नह करे गा ।
45ढग. छू ट देने की िरजवर् बक की श्ािक्त—िरजवर् बक, यह समाधान हो जाने पर िक ऐसा करना आवश्यक है, राजपतर् म
अिधसूचना ारा, यह घोिषत कर सके गा िक इस अध्याय का कोई या सभी उपबंध िकसी गैर-बककारी संस्था या िकसी वगर् की गैर-
बककारी संस्था या िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी या िकसी वगर् की गैर-बककारी िव ीय कं पिनय को साधारणतया अथवा ऐसी
िकसी अविध के िलए जो िविनिदष्ट की जाए, ऐसी शत , पिरसीमा या िनबर्न्धन के अधीन रहते हुए, िजन्ह वह अिधरोिपत करना
उिचत समझे, लागू नह ह गे ।]
45ण. [शािस्तयां ।]—भारतीय िरजवर् बक (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का 51) की धारा 22 ारा िनरिसत ।
45त. [अपराध का संज्ञान ।]—भारतीय िरजवर् बक (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का 51) की धारा 22 ारा िनरिसत ।
45थ. अध्याय 3ख अन्य िविधय पर अध्यारोही होगा—इस अध्याय के उपबंध इस बात के होते हुए भी पर्भावी ह गे िक िकसी
अन्य तत्समय पर्वृ िविध म अथवा िकसी ऐसी िविध के आधार पर पर्भावशील िकसी िलखत म उससे असंगत कोई बात है ।]
[45थक. िनक्षेप के पर्ित संदाय का आदेश देने की कं पनी िविध बोडर् की शिक्त—(1) गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा
1
पर्ितगर्हण िकए गए पर्त्येक िनक्षेप का, जब तब िक उसका नवीकरण नह कर िदया जाता, ऐसे िनक्षेप के िनबंधन और शत के अनुसार
पर्ितसंदाय िकया जाएगा ।
(2) जहां गैर-बककारी िव ीय कं पनी िकसी िनक्षेप या उसके िकसी भाग का ऐसे िनक्षेप के िनबंधन और शत के अनुसार
पर्ितसंदाय करने म असफल रही है वहां कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 10ङ के अधीन गिठत कं पनी िविध बोडर्, यिद
उसका यह समाधान हो जाता है िक कं पनी िनक्षेपकतार् के िहत की रक्षा करने के िलए अथवा लोक िहत म ऐसा करना आवश्यक है,
तो स्वपर्ेरणा से, अथवा िनक्षेपकतार् के आवेदन पर आदेश ारा गैर-बककारी िव ीय कं पनी को िनदेश दे सके गा िक वह ऐसे िनक्षेप का
या उसके भाग का तत्काल या ऐसे समय के भीतर और ऐसी शत के अधीन जो उस आदेश म िविनिदष्ट की जाएं, पर्ितसंदाय करे :
परन्तु कं पनी िविध बोडर्, इस उपधारा के अधीन कोई आदेश करने से पूवर् गैर-बककारी िव ीय कं पनी को और उस मामले म
िहतब अन्य व्यिक्तय को सुने जाने का युिक्तयुक्त अवसर दे सके गा ।
45थख. िनक्षेपकतार् ारा नामिनदशन—(1) जहां िकसी गैर-बककारी संस्था ारा कोई िनक्षेप िकसी एक या अिधक
व्यिक्तय के जमा खाते म रखा जाता है वहां, यथािस्थित, िनक्षेपकतार् या सभी िनक्षेपकतार् एक साथ के न्दर्ीय सरकार ारा बककारी
िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 45यक के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत रीित म एक व्यिक्त को
नामिनदिशत कर सकगे िजसको एकमातर् िनक्षेपकतार् की मृत्यु की दशा म अथवा सभी िनक्षेपकतार् की मृत्यु की दशा म गैर-बककारी
संस्था ारा िनक्षेप की रकम वापस की जा सके गी ।
(2) तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म अथवा ऐसे िनक्षेप के संबध
ं म िकसी व्ययन म, चाहे वह वसीयती अथवा अन्यथा है,
िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकया गया नामिनदशन िकसी व्यिक्त को गैर-बककारी संस्था से िनक्षेप की रकम पर्ाप्त करने का
अिधकार पर्दान करने के िलए तात्पियत हो, वहां नामिनदिशती, यथािस्थित, एकमातर् िनक्षेपकतार् की मृत्यु पर या सभी िनक्षेपकतार्
की मृत्यु पर ऐसे िनक्षेप के संबंध म अन्य सभी व्यिक्तय को अपविजत करते हुए, यथािस्थित, एकमातर् िनक्षेपकतार् अथवा िनक्षेपकतार्
के सभी अिधकार का हकदार हो जाएगा जब तक िक नामिनदशन, के न्दर्ीय सरकार ारा बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949
का 10) की धारा 45यक के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत रीित से पिरवितत या र नह कर िदया जाता है ।
(3) जहां नामिनदिशती अवयस्क है वहां नामिनदशन करने वाले िनक्षेपकतार् के िलए नामिनदिशती की अवयस्कता के दौरान
उसकी मृत्यु की दशा म बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 45यक के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा बनाए
गए िनयम ारा, िविहत रीित से िकसी व्यिक्त को िनक्षेप की रकम पर्ाप्त करने के िलए िनयुक्त करना िविधपूणर् होगा ।
(4) इस धारा के उपबंध के अनुसार गैर-बककारी संस्था ारा िकया गया संदाय गैर-बककारी संस्था को िनक्षेप की बाबत
अपने दाियत्व से पूणर्त: उन्मोिचत करे गा :
परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे िकसी अिधकार या दावे पर पर्भाव नह डालेगी, जो कोई व्यिक्त उस व्यिक्त के िवरु
रखता हो िजसे इस धारा के अधीन संदाय िकया जाता है ।
(5) उस व्यिक्त अथवा उन व्यिक्तय से, िजनके नाम म गैर-बककारी संस्था ारा िनक्षेप धािरत िकया जाता है, िभन्न िकसी
व्यिक्त के दावे की कोई सूचना गैर-बककारी संस्था ारा पर्ाप्त नह होगी और न गैर-बककारी संस्था ऐसी िकसी सूचना ारा आब
होगी भले ही उसे यह सूचना अिभव्यक्तत: दी गई हो :
1
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 8 ारा (9-1-1997 से) अंत:स्थािपत ।
39
परन्तु जहां ऐसे िनक्षेप के संबंध म सक्षम अिधकािरता वाले िकसी न्यायालय से कोई िडकर्ी, आदेश, पर्माणपतर् अथवा अन्य
पर्ािधकार िकसी गैर-बककारी संस्था के समक्ष पर्स्तुत िकया जाता है वहां गैर-बककारी संस्था ऐसी िडकर्ी, आदेश, पर्माणपतर् अथवा अन्य
पर्ािधकार का सम्यक् ध्यान रखेगी ।]
1
[अध्याय 3ग
1
1984 के अिधिनयम सं० 1 के धारा 10 ारा (15-2-1984 से) अंत:स्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 के धारा 9 ारा (1-4-1997 से) धारा 45ध के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
40
1
[अध्याय 3घ
1
2006 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
41
1
[अध्याय 3ङ
संयक्
ु त तंतर्
45म. संयक्
ु त तंतर्—इस अिधिनयम या भारतीय पर्ितभूित और िविनमय बोडर् अिधिनयम, 1992 (1992 का 15) या तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, यिद इस बारे म राय म कोई िभन्नता होती है िक—
(i) ऐसी कोई िलखत, जो इस अिधिनयम की धारा 45प के खण्ड (क) म िनिदष्ट कोई व्युत्पन्न या खंड (ख) म
िनिदष्ट मुदर्ा बाजार िलखत या खंड (ग) म िनिदष्ट रे प या खंड (घ) म िनिदष्ट िरवसर् रे प या खंड (ङ) म िनिदष्ट
पर्ितभूितयां ह; या
(ii) ऐसी कोई िलखत, जो बीमा अिधिनयम, 1938 (1938 का 4) या उसके अधीन बनाए गए िनयम या िविनयम
के अधीन जीवन बीमा की पािलसी है या पर्ितभूित संिवदा (िविनयमन) अिधिनयम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के
खण्ड (ज) के उपखंड (i), उपखंड (iक), उपखंड (iख), उपखंड (iग), उपखंड (iघ), उपखंड (Iङ), उपखंड (ii), उपखंड (iiक)
और उपखंड (iii) म िनिदष्ट िस्कर्प या कोई अन्य पर्ितभूितयां ह,
िमिशर्त या ऐसी संयुक्त िलखत है जो मुदर्ा बाजार िविनधान या पर्ितभूित बाजार िलखत का घटक है या खंड (i) या खंड (ii) म िनिदष्ट
बीमा या िकसी अन्य िलखत का घटक है और वह भारतीय िरजवर् बक या भारतीय पर्ितभूित और िविनमय बोडर् अिधिनयम, 1992
(1992 का 15) की धारा 3 के अधीन स्थािपत भारतीय पर्ितभूित और िविनमय बोडर् या बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण
अिधिनयम, 1999 (1999 का 41) की धारा 3 के अधीन स्थािपत बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण या भारत सरकार के संकल्प
सं० एफ सं० 1(6) 2007-पीआर, तारीख 14 नवम्बर, 2008 ारा गिठत पशन िनिध िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण की
अिधकािरता के अंतगर्त आता है, तो राय म ऐसी िभन्नता को िनम्निलिखत से िमलकर बनने वाली िकसी संयुक्त सिमित को िनिदष्ट
िकया जाएगा, अथार्त् :—
(क) संघ का िव मंतर्ी………………….पदेन, अध्यक्ष;
(ख) गवनर्र, भारतीय िरजवर् बक………………….पदेन, उपाध्यक्ष;
(ग) सिचव, आिथक कायर् िवभाग, िव मंतर्ालय, भारत सरकार………………….पदेन सदस्य;
(घ) सिचव, िव ीय सेवा िवभाग, िव मंतर्ालय, भारत सरकार………………….पदेन सदस्य;
(ङ) अध्यक्ष, बीमा िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण………………….पदेन सदस्य;
(च) अध्यक्ष, भारतीय पर्ितभूित और िविनमय बोडर्…………………पदेन सदस्य;
(छ) अध्यक्ष, पशन िनिध िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण………………….पदेन सदस्य ।
(2) सिचव, िव ीय सेवा िवभाग, िव मंतर्ालय, भारत सरकार, उपधारा (1) म िनिदष्ट संयुक्त सिमित की बैठक का,
संयोजक होगा ।
(3) उपधारा (1) म िनिदष्ट राय म िकसी िभन्नता की दशा म, उस उपधारा के खण्ड (ख), खंड (ङ), खंड (च) या खंड (छ) म
िनिदष्ट संयुक्त सिमित का कोई सदस्य संयुक्त सिमित को िनदिशत कर सके गा ।
(4) संयुक्त सिमित ऐसी पर्िकर्या का अनुसरण करे गी, जो वह समीचीन समझे और उपधारा (3) के अधीन िकए गए िनदश की
तारीख से तीन मास की अविध के भीतर उस पर अपने िविनश्चय, के न्दर्ीय सरकार को देगी ।
(5) संयुक्त सिमित का िविनश्चय, भारतीय िरजवर् बक, भारतीय पर्ितभूित और िविनमय बोडर्, बीमा िविनयामक और
िवकास पर्ािधकरण तथा पशन िनिध िविनयामक और िवकास पर्ािधकरण पर आब कर होगा ।]
2
[अध्याय 3च
मुदर्ा िनित
45य. इस अध्याय के उपबंध का अिधिनयम के अन्य उपबंध पर अिभभावी होना—इस अध्याय के उपबंध इस अिधिनयम के
िकन्ह अन्य उपबंध म अंतिवष्ट िकसी असंगत बात के होते हुए भी पर्भावी ह गे ।
45यक. मुदर्ा स्फीित ल य—(1) के न्दर्ीय सरकार, बक के परामशर् से पर्त्येक पांच वषर् म एक बार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के
िनबन्धनानुसार मुदर्ा स्फीित ल य का अवधारण करे गी ।
(2) के न्दर्ीय सरकार ऐसे अवधारण पर राजपतर् म मुदर्ा स्फीित ल य अिधसूिचत करे गी ।
1
2010 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2006 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 222 ारा अंत:स्थािपत ।
42
45यख. मुदर्ा नीित सिमित का गठन—(1) कदर्ीय सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा बक की मुदर्ा नीित सिमित के नाम से
एक सिमित का गठन करे गी ।
(2) मुदर्ा नीित सिमित म िनम्निलिखत सदस्य ह गे, अथार्त् :—
(क) बक का गवनर्र—अध्यक्ष, पदेन;
(ख) मुदर्ा िनित का भारसाधक बक का िडप्टी गवनर्र—सदस्य, पदेन;
(ग) बक का एक अिधकारी, जो कदर्ीय बोडर् ारा नामिनिदष्ट िकया जाएगा—सदस्य, पदेन; और
(घ) तीन व्यिक्त, िजन्ह कदर्ीय सरकार ारा िनयुक्त िकया जाएगा—सदस्य ।
(3) मुदर्ा नीित सिमित, मुदर्ा स्फीित ल य को पर्ाप्त करने के िलए अपेिक्षत नीित दर अवधािरत करे गी ।
(4) मुदर्ा नीित सिमित का िविनश्चय बक पर आब कर होगा ।
45यग. के न्दर्ीय सरकार ारा िनयुक्त सदस्य की पातर्ता और चयन—(1) धारा 45यख की उपधारा (2) के खंड (घ) म
िनिदष्ट मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य अथर्शास्तर् या बककारी या िव या मुदर्ा नीित के क्षेतर् म ज्ञान और अनुभव रखने वाले योग्यता,
सत्यिनष्ठा और पर्ितष्ठा पर्ाप्त व्यिक्तय म से कदर्ीय सरकार ारा िनयुक्त िकए जाएंगे :
परन्तु िकसी व्यिक्त को सदस्य के रूप म िनयुक्त नह िकया जाएगा यिद—
(i) ऐसे व्यिक्त ने सदस्य के रूप म िनयुिक्त की तारीख को स र वषर् की आयु पूरी कर ली है;
(ii) ऐसा व्यिक्त बक के िकसी बोडर् या सिमित का कोई सदस्य है;
(iii) ऐसा व्यिक्त बक का कोई कमर्चारी है;
(iv) ऐसा व्यिक्त भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 21 के अधीन यथापिरभािषत कोई लोक सेवक है;
(v) ऐसा व्यिक्त संसद् या िकसी राज्य िवधान-मंडल का कोई सदस्य है;
(vi) ऐसा व्यिक्त िकसी भी समय िदवािलया न्यायिनण त िकया गया है;
(vii) ऐसा व्यिक्त िकसी ऐसे अपराध के िलए दोषिस िकया गया है, जो एक सौ अस्सी िदन या उससे अिधक की
अविध के कारावास से दंडनीय है;
(viii) ऐसा व्यिक्त मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य के रूप म कतर्व्य के िनवर्हन म शारीिरक रूप से या मानिसक रूप
से असमथर् है;
(ix) ऐसे व्यिक्त का बक से िहत का ताित्त्वक िवरोध है और वह ऐसे िवरोध का समाधान करने म असमथर् है ।
(2) धारा 45यख की उपधारा (2) के खण्ड (घ) म िनिदष्ट मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य की िनयुिक्त कदर्ीय सरकार ारा
खोजबीन-सह-चयन सिमित ारा की गई िसफािरश पर की जाएगी िजसम िनम्निलिखत सदस्य ह गे, अथार्त् :—
(क) मंितर्मंडल सिचव—अध्यक्ष;
(ख) भारतीय िरजवर् बक का गवनर्र या उसका पर्ितिनिध (िडप्टी गवनर्र की पंिक्त से अिनम्न)—सदस्य;
(ग) सिचव, आिथक कायर् िवभाग—सदस्य;
(घ) अथर्शास्तर् या बककारी या िव या मुदर्ा नीित के क्षेतर् म तीन िवशेषज्ञ, जो कदर्ीय सरकार ारा नामिनिदष्ट
िकए जाएंगे—सदस्य ।
(3) खोजबीन-सह-चयन सिमित, सदस्य का चयन करते समय ऐसी पर्िकर्या का अनुसरण करे गी, जो के न्दर्ीय सरकार ारा,
िविहत की जाए ।
45यघ. मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य की िनयुिक्त के िनबंधन और शत—(1) धारा 45यख की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के
अधीन िनयुक्त मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य चार वषर् की अविध के िलए पद धारण करगे और पुनिनयुिक्त के पातर् नह ह गे ।
(2) मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य की िनयुिक्त के िनबंधन और शत ऐसी ह गी, जो के न्दर्ीय सरकार ारा, िविहत की जाएं
और ऐसे सदस्य को संदय े पािरशर्िमक और अन्य भ े ऐसे ह गे जो कदर्ीय बोडर् ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट िकए जाएं ।
(3) कोई सदस्य, उपधारा (1) के अधीन उसकी पदाविध की समािप्त से पूवर् िकसी भी समय कदर्ीय सरकार को छह सप्ताह से
अन्यून की िलिखत सूचना देकर मुदर्ा नीित सिमित से त्यागपतर् दे सके गा और कदर्ीय सरकार ारा त्यागपतर् स्वीकार िकए जाने पर वह
मुदर्ा नीित सिमित का सदस्य नह रहेगा ।
43
45यङ. मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य का हटाया जाना—(1) कदर्ीय सरकार धारा 45यख की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के
अधीन िनयुक्त मुदर्ा नीित सिमित के िकसी भी ऐसे सदस्य को पद से हटा सके गी,—
(क) जो िदवािलया है या िकसी भी समय न्यायिनण त िकया गया है; या
(ख) जो सदस्य के रूप म कायर् करने के िलए शारीिरक रूप से या मानिसक रूप से असमथर् हो गया है; या
(ग) जो िकसी ऐसे अपराध के िलए दोषिस िकया गया है, िजसम कदर्ीय सरकार की राय म नैितक अधमता
अंतवर्िलत है; या
(घ) जो अपनी िनयुिक्त के समय पर िकसी िहत के ताित्त्वक िवरोध को यथोिचत रूप से पर्कट करने म असफल रहा
है; या
(ङ) जो पूवर् छु ी अिभपर्ाप्त िकए िबना मुदर्ा नीित सिमित के तीन आनुकर्िमक अिधवेशन म उपिस्थत नह होता है;
या
(च) िजसने ऐसा िव ीय या अन्य िहत अिजत कर िलया है, िजससे सदस्य के रूप म उसके कृ त्य पर पर्ितकू ल पर्भाव
पड़ने की संभावना है; या
(छ) िजसने धारा45यग की उपधारा (1) के परं तुक के खंड (ii), खंड (iii), खंड (iv) और खंड (v) म िनिदष्ट कोई
पद अिजत कर िलया है; या
(ज) िजसने के न्दर्ीय सरकार की राय म अपने पद का ऐसा दुरुपयोग िकया है, िजससे उसका पद पर बने रहना लोक
िहत के िलए हािनकर है ।
(2) धारा 45यख की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के अधीन िनयुक्त कोई भी सदस्य उपधारा (1) के खंड (घ), खंड (ङ), खंड (च),
खंड (छ) और खंड (ज) के अधीन तब तक नह हटाया जाएगा जब तक िक उसे मामले की सुनवाई युिक्तयुक्त अवसर न दे िदया गया
हो ।
45यच. मुदर्ा नीित सिमित की कायर्वािहय का िरिक्तय आिद के कारण अिविधमान्य न होना—मुदर्ा नीित सिमित की कोई
भी कायर्वाही के वल इस कारण से अिविधमान्य नह होगी िक—
(क) मुदर्ा नीित सिमित म कोई िरिक्त है या उसके गठन म कोई तर्ुिट है; या
(ख) मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य के रूप म कायर् करने वाले िकसी व्यिक्त की िनयुिक्त म कोई तर्ुिट है; या
(ग) मुदर्ा नीित सिमित की पर्िकर्या म कोई ऐसी अिनयिमतता है िजससे मामले के गुणागुण पर पर्भाव नह पड़ता
हो ।
45यछ. मुदर्ा नीित सिमित का सिचव—(1) उक्त सिमित को सिचवीय सहायता पर्दान करने के िलए बक, मुदर्ा नीित सिमित
का एक सिचव िनयुक्त करे गा ।
(2) सिचव ऐसे कृ त्य का पालन ऐसी रीित म करे गा, जो कदर्ीय बोडर् ारा बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट की जाए ।
45यज. मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य के िलए सूचना—(1) बक, मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य को ऐसी सभी सूचनाएं उपलब्ध
कराएगा जो मुदर्ा स्फीित ल य को पर्ाप्त करने के िलए सुसंगत ह ।
(2) उपधारा (1) के अधीन बक ारा उपलब्ध कराई गई सूचना के अितिरक्त मुदर्ा नीित सिमित का कोई भी सदस्य िकसी भी
समय बक से अितिरक्त सूचना के िलए अनुरोध कर सके गा, िजसके अंतगर्त कोई भी डाटा, पर्ितमान या िवश्लेषण भी है ।
(3) बक, उपधारा (2) म मुदर्ा सिमित के सदस्य को यथा िनवेिदत ऐसी सूचना युिक्तयुक्त समय के भीतर उपलब्ध कराएगा,
जब तक िक—
(क) सूचना िकसी अिस्तत्व या व्यिक्त से संबंिधत है और सावर्जिनक रूप से उपलब्ध नह है; या
(ख) सूचना िकसी अिस्तत्व या व्यिक्त की पहचाल िकए जाने की अनुज्ञा देती है और सूचना सावर्जिनक रूप से
उपलब्ध नह है ।
(4) बक ारा, मुदर्ा नीित सिमित के िकसी सदस्य को उपलब्ध कराई गई कोई भी सूचना मुदर्ा नीित सिमित के सभी सदस्य
को उपलब्ध कराई जाएगी ।
45यझ. मुदर्ा नीित सिमित का बैठक—(1) बक, मुदर्ा नीित सिमित की एक वषर् म कम से कम चार बैठक आयोिजत करे गा ।
(2) बक ारा, िकसी वषर् के िलए मुदर्ा नीित सिमित की बैठक की समय सारणी उस वषर् की पर्थम बैठक के कम से कम एक
सप्ताह पहले पर्कािशत की जाएगी ।
44
साधारण उपबन्ध
46. आरिक्षत िनिध म के न्दर्ीय सरकार ारा अिभदाय— 1 [के न्दर्ीय सरकार] पांच करोड़ रुपए के मूल्य की रुपए म की
पर्ितभूितयां िरजवर् बक को अन्तिरत करे गी िजन्ह िरजवर् बक आरिक्षत िनिध म रख देगा ।
2
[46क. राष्टर्ीय गर्ामीण पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध और राष्टर्ीय गर्ामीण पर्त्यय (िस्थरीकरण) िनिध म
अिभदाय—बक पर्ितवषर् ऐसी धनरािश, िजसे वह आवश्यक और साध्य समझे, राष्टर्ीय कृ िष और गर्ामीण िवकास बक अिधिनयम, 1981
(1981 का 61) की धारा 42 और धारा 43 के अधीन स्थािपत और अनुरिक्षत कर्मशः राष्टर्ीय गर्ामीण पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध
और राष्टर्ीय गर्ामीण पर्त्यय (िस्थरीकरण) िनिध म अिभदाय करे गा ।]
3
[46ग. राष्टर्ीय औ ोिगक पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध—(1) िरजवर् बक एक िनिध स्थािपत करे गा और रखेगा जो
राष्टर्ीय औ ोिगक पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध कहलाएगी और िजसम िनम्निलिखत जमा िकए जाएंगे—
(क) िरजवर् बक ारा दी गई दस करोड़ रुपए की आरिम्भक रािश;
(ख) ऐसी अन्य धनरािशयां िजनका िरजवर् बक पर्त्येक वषर् अिभदाय करे ः
परन्तु जून, 1965 के तीसव िदन समाप्त होने वाले वषर् से पर्ारम्भ होने वाले पांच वष म से पर्त्येक के दौरान वािषक अिभदाय
पांच करोड़ रुपए से कम न होगाः
परन्तु यह और िक यिद पिरिस्थितवश ऐसा आवश्यक हो तो के न्दर्ीय सरकार िरजवर् बक को िकसी भी वषर् म पांच करोड़ रुपए
की उक्त रािश घटाने के िलए पर्ािधकृ त कर सके गी ।
(2) उक्त िनिध की रकम िरजवर् बक ारा के वल िनम्निलिखत उ ेश्य के िलए लगाई जाएगी, अथार्त्:—
4
* * * *
[(ग) 6 [यथािस्थित, िनआ बक या पुनिनमार्ण बक] के िकसी कारबार के पर्योजन के िलए 7 [यथािस्थित, िनआ बक
5
1
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची 2 ारा (12-7-1982 से) धारा 46क और धारा 46ख के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 38 और अनुसूची 2 ारा (1-7-1964 से) अंतःस्थािपत ।
4
2003 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 12 और अनुसूची ारा लोप िकया गया ।
5
1981 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 40 और अनुसूची 2 ारा (1-1-1982 से) अंतःस्थािपत ।
6
1984 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 71 और अनुसूची 3 ारा (20-3-1985 से) अंतःस्थािपत ।
7
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा (7-1-1990 से) अंतःस्थािपत ।
8
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंतःस्थािपत ।
46
(घ) 1 [यथािस्थित, िनआ बक या पुनिनमार्ण बक] 2 [या लघु उ ोग बक] ारा पुरोधृत बंधपतर् और िडबचर का
कर्य करना ।]
[46घ. राष्टर्ीय आवास पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध—(1) बक राष्टर्ीय आवास पर्त्यय (दीघर्कािलक पर्वतर्न) िनिध के
2
नाम से ज्ञात एक िनिध स्थािपत और अनुरिक्षत करे गा िजसम पर्ितवषर् ऐसी धनरािशयां, जैसी वह आवश्यक समझे जमा की जाएंगी ।
(2) उक्त िनिध की रकम का उपयोजन बक के वल िनम्निलिखत उ ेश्य के िलए करे गा, अथार्त्:—
(क) राष्टर्ीय आवास बक के िकसी कारबार के पर्योजन के िलए राष्टर्ीय आवास बक को ऋण और उधार देना;
(ख) राष्टर्ीय आवास बक ारा पुरोधृत वचनपतर् और िडबचर कर्य करना ।]
[47. अिधशेष लाभ का आबंटन—डू बंत और शंकास्पद ऋण , आिस्तय के अवक्षयण, कमर्चािरवृन्द और अिधवािषकी
3
िनिधय म अिभदाय के िलए 4 [और अन्य सब ऐसी बात के िलए, िजनके िलए] उपबंध इस अिधिनयम के ारा या अधीन िकया जाना
है या िजनके िलए पर्ायः बककार वस्था करते ह; वस्था करने के पश्चात् लाभ का अितशेष के न्दर्ीय सरकार को िदया जाएगा ।]
48. आय-कर और अिधकर से िरजवर् बक को छू ट—(1) 5 [आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43)] या आय-कर या
अिधकर की बाबत िकसी अन्य तत्समय पर्वृ अिधिनयिमित म िकसी बात के होते हुए भी िरजवर् बक अपनी आय, लाभ या अिभलाभ
म से िकसी पर, आय-कर या अिधकर देने के दाियत्वाधीन नह होगा ।
6
* * * *
49. िरजवर् बक दर का पर्काशन—िरजवर् बक समय-समय पर वह मानक दर पर्कािशत करे गा िजस पर वह िविनमयपतर् या
अन्य वािणिज्यक पतर्, जो इस अिधिनयम के अधीन कर्य िकए जाने योग्य ह, कर्य या पुनः िमतीकाटा लेकर भुगतान करने के िलए
तैयार ह ।
[50. संपरीक्षक—(1) के न्दर्ीय सरकार ारा दो से अन्यून संपरीक्षक िनयुक्त िकए जाएंगे और उनका पािरशर्िमक िनयत
7
िकया जाएगा ।
(2) संपरीक्षक एक वषर् से अनिधक की ऐसी अविध के िलए जो के न्दर्ीय सरकार उनकी िनयुिक्त करते समय िनयत करे , पद
धारण करगे और पुनः िनयुिक्त के िलए पातर् ह गे ।]
51. सरकार ारा िवशेष संपरीक्षक की िनयुिक्त—धारा 50 म अन्तिवष्ट िकसी बात पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना,
8 [के न्दर्ीय
सरकार] िकसी समय िरजवर् बक के लेखा की परीक्षा करने और उसकी बाबत पर्ितवेदन देने के िलए 9 [िनयंतर्क
महालेखापरीक्षक] 10 *** को िनयुक्त कर सके गी ।
52. संपरीक्षक की शिक्तयां और कतर् —(1) पर्त्येक संपरीक्षक को वािषक तुलनपतर् की एक पर्ित दी जाएगी और उसका
कतर् होगा िक वह उसकी परीक्षा उससे संब लेखा और वाउचर के साथ िमलाकर करे और पर्त्येक संपरीक्षक को िरजवर् बक ारा
रखी गई सब पुस्तक की एक सूची पिरद की जाएगी और उसकी पहुंच िरजवर् बक की बिहय , लेखा और अन्य दस्तावेज तक सभी
युिक्तयुक्त समय पर होगी, और वह ऐसे लेखा के अन्वेषण म अपनी सहायता के िलए लेखापाल या अन्य िक्त िरजवर् बक 11 ***
के य पर िनयोिजत कर सके गा और वह िरजवर् बक के िकसी िनदेशक या अिधकारी की ऐसे लेखा के संबंध म परीक्षा कर सके गा ।
(2) संपरीक्षक वािषक तुलनपतर् और लेखा के बारे म 12 *** 8[के न्दर्ीय सरकार] 13 *** को िरपोटर् भेजगे और ऐसी पर्त्येक
िरपोटर् म वे यह किथत करगे और िक क्या तुलनपतर् की बाबत उनकी यह राय है िक वह पूरा और ठीक तुलनपतर् है िजसम सब आवश्यक
िविशिष्टयां दी हुई ह और जो उिचत रीित म ऐसे तैयार िकया गया है िक उससे िरजवर् बक काम-काम की सच्ची और यथाथर् िस्थित
पर्दिशत होती है और उस दशा म, िजसम िक उन्ह ने िक के न्दर्ीय बोडर् से कोई स्पष्टीकरण या जानकारी मांगी है, यह भी किथत करगे
िक क्या वह दी गई है या नह और क्या वह समाधानपर्द है या नह है 14 *** ।
1
1989 के अिधिनयम सं० 39 की धारा 53 और दूसरी अनुसूची ारा (7-1-1990 से) अंतःस्थािपत ।
2
1987 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 56 और दूसरी अनुसूची ारा (9-7-1988 से) अंतःस्थािपत ।
3
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) धारा 47 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 8 ारा “और अन्य ऐसी आकिस्मकता जैसे” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 8 ारा (21-7-1978 से) “भारतीय आय-कर अिधिनयम, 1922” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) परं तुक और उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
7
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) धारा 50 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 18 ारा (1-11-1951 से) “महालेखापरीक्षक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “या ऐसे संपरीक्षक, िजन्ह वह उपयुक्त समझे” शब्द का लोप िकया गया ।
11
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 9 ारा कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
12
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “यथािस्थित” शब्द का लोप िकया गया ।
13
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “शेयरधारक को या” शब्द का लोप िकया गया ।
14
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) “शेयरधार को भेजी गई ऐसी कोई िरपोटर् के न्दर्ीय बोडर् की िरपोटर् के साथ वािषक साधारण
सभा म पढ़ी जाएगी” शब्द का लोप िकया गया ।
47
53. िववरिणयां—(1) िरजवर् बक 1 [ऐसे] पर्रूप म, जैसा 2 [के न्दर्ीय सरकार] भारत के राजपतर् म अिधसूचना ारा िविहत करे ,
िनगर्िमत िवभाग और बककारी िवभाग का एक सप्तािहत लेखा तैयार करे गा और 2[के न्दर्ीय सरकार] को भेजेगा । 2[के न्दर्ीय सरकार] इन
लेखा को 3 [भारत के राजपतर् म ऐसे अन्तराल पर और ऐसे उपांतिरत रूप म पर्कािशत करवाएगी जो वह ठीक समझे]।
(2) िरजवर् बक उस तारीख से, िजसको िरजवर् बक के वािषक लेखा बन्द िकए जाते ह, दो मास के अन्दर िरजवर् बक के वषर् भर
के संचालन की के न्दर्ीय बोडर् की िरपोटर् के साथ िरजवर् बक के गवनर्र, िडप्टी गवनर्र और मुख्य लेखापाल ारा हस्ताक्षिरत और
संपरीक्षक ारा पर्मािणत वािषक लेखा की एक पर्ित 2[के न्दर्ीय सरकार] को भेजेगा और 2[के न्दर्ीय सरकार] ऐसे लेखा और िरपोटर्
को भारत के राजपतर् म पर्कािशत कराएगी ।
4
* * * *
[54. गर्ामीण पर्त्यय और िवकास—बक गर्ामीण पर्त्यय और िवकास के िविभन्न पहलु
5
पर अध्ययन करने के िलए अनुभवी
कमर्चारी रख सके गा और िवशेष रूप से वह—
(क) राष्टर्ीय बक को अनुभवी मागर्दशर्न और सहायता दे सके गा;
(ख) एकीकृ त गर्ामीण िवकास के संवधर्न के िलए ऐसे क्षेतर् म जहां वह आवश्यक समझे, िवशेष अध्ययन
चला सके गा ।]
[54क. शिक्तय का पर्त्यायोजन—(1) गवनर्र इस अिधिनयम के 7 *** अधीन या िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध के अधीन
6
अपने ारा पर्योक्त ऐसी शिक्तय और कृ त्य को साधारण या िवशेष आदेश ारा ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए,
यिद कोई ह , जो आदेश म िविनिदष्ट की जाएं िडप्टी गवनर्र को पर्त्यायोिजत कर सके गा, जो वह िरजवर् बक के कृ त्य के दक्ष पर्शासन के
िलए आवश्यक समझे ।
(2) यह तथ्य िक कोई िडप्टी गवनर्र इस अिधिनयम के अनुसरण म िकसी शिक्त का पर्योग करता है या कोई कायर् या बात
करता है उसके ऐसा करने के पर्ािधकार का िनश्चायक सा य होगा ।
[54कक. अपने कमर्चािरय को अन्य संस्था म पर्ितिनयुक्त करने की िरजवर् बक की शिक्त— 9 [(1) तत्समय पर्वृ िकसी
8
िविध या िकसी करार म िकसी बात के होते हुए भी िरजवर् बक अपने कमर्चािरवृन्द के िकसी सदस्य को ऐसी अविध के िलए जो वह
ठीक समझे,—
(क) िकसी ऐसी संस्था म जो पूणर्तः या पयार्प्ततः िरजवर् बक के स्वािमत्व म है, पर्ितिनयुक्त कर सके गा;
(ख) िवकास बक म पर्ितिनयुक्त कर सके गा िकन्तु इस पर्कार िक ऐसी कोई पर्ितिनयुिक्त लोक िव ीय संस्था िविध
(संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 के पर्ारम्भ से तीस मास के अवसान के पश्चात् जारी नह रहेगी;
(ग) यूिनट टर्स्ट म पर्ितिनयुक्त कर सके गा, िकन्तु इस पर्कार िक ऐसी कोई पर्ितिनयुिक्त भारतीय यूिनट टर्स्ट
अिधिनयम, 1963 (1963 का 52) की धारा 4क की उपधारा (1) के अधीन; के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूिचत तारीख से तीस
मास के अवसान के पश्चात् जारी नह रहेगी,
और तब इस पर्कार पर्ितिनयुक्त िक्त अपनी पर्ितिनयुिक्त की अविध के दौरान उस संस्था की, िजसम वह इस पर्कार पर्ितिनयुक्त
िकया गया है, ऐसी सेवा करे गा जो वह संस्था अपेक्षा करे ।
(2) जहां कोई िक्त िकसी संस्था म उपधारा (1) के अधीन पर्ितिनयुक्त िकया गया है वहां वह इस बात का हकदार न होगा
िक वह ऐसे िकसी संबलम्, उपलिब्धय तथा सेवा के अन्य िनबंधन ओर शत का दावा करे िजनका हकदार वह उस दशा म न होता
िजसम िक वह ऐसे पर्ितिनयुक्त न िकया गया होता ।
(3) इस धारा की िकसी बात से िरजवर् बक को यह शिक्त न िमल जाएगी िक वह अपने कमर्चािरवृन्द के िकसी सदस्य को ऐसे
िकस संबलम्, ऐसी उपलिब्धय या सेवा के ऐसे अन्य िनबन्धन या शत पर, जो उसके िलए उससे कम अनुकूल ह िजसका वह ऐसे
पर्ितिनयोजन के ठीक पूवर् हकदार था, िकसी संस्था म पर्ितिनयुक्त कर दे ।
(4) इस धारा के पर्योजन के िलए िकसी संस्था की बाबत यह तभी समझा जाएगा िक वह पूणर्तः या सारतः िरजवर् बक के
स्वािमत्व म है यिद उस संस्था की पूंजी म िरजवर् बक का चालीस पर्ितशत से कम अंश नह है ।
1
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1978 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 9 ारा (21-7-1978 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) उपधारा (3) का लोप िकया गया ।
5
1981 के अिधिनयम सं० 61 की धारा 61 और अनुसूची ारा (12-7-1982 से) धारा 54 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1955 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 10 ारा अन्तःस्थािपत ।
7
1960 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “के ारा या” शब्द का लोप िकया गया ।
8
1968 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 28 ारा (1-2-1969 से) अन्तःस्थािपत ।
9
1975 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 20 ारा (16-2-1976 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
48
स्पष्टीकरण—“पूंजी” शब्द से यूिनट टर्स्ट के सम्बन्ध म उस टर्स्ट की आरं िभक पूंजी अिभपर्ेत है ।
55. और 56. [बक ारा िरपोटर् । रिजस्टर्ीकृ त अंश के स्वािमत्व के बारे म उद्घोषणा की अपेक्षा करने की शिक्त ।]—1948
के अिधिनयम संख्यांक 62 की धारा 7 और अनुसच
ू ी ारा (1-1-1949 से) िनरिसत ।
57. िरजवर् बक का समापन—(1) 1 [कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1)] की कोई बात िरजवर् बक को लागू नह होगी
और 2 [के न्दर्ीय
सरकार] के आदेश के िसवाय और ऐसी रीित के िसवाय, जो वह 3 [िनिदष्ट करे ,] िरजवर् बक का समापन नह िकया
जाएगा ।]
4
* * * *
58. के न्दर्ीय बोडर् की िविनयम बनाने की शिक्त—के न्दर्ीय बोडर् इस अिधिनयम के उपबन्ध को पर्भाव देने के वास्ते िजन
िवषय के िलए उपबन्ध करना आवश्यक या सुिवधाजनक है उन सब के िलए ऐसे िविनयम, जो अिधिनयम से संगत ह, 5 [के न्दर्ीय
सरकार] की पूवर् मंजूरी से 6 [राजपतर् म अिधसूचना ारा] बना सके गा ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी उपबन्ध की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िविनयम िनम्निलिखत सब िवषय
या उनम से िकसी के िलए उपबन्ध कर सकगे, अथार्त्:—
7
* * * *
(च) वह रीित िजससे के न्दर्ीय बोडर् का काम-काज िकया जाएगा और उसके अिधवेशन म अनुसरण की जाने वाली
पर्िकर्या;
(छ) स्थानीय बोडर् के काम-काज का संचालन और ऐसे बोड को शिक्तय और कृ त्य का पर्त्यायोजन;
(ज) के न्दर्ीय बोड की शिक्तयां और कृ त्य िरजवर् बक के 8 *** िडप्टी गवनर्र , िनदेशक या अिधकािरय को
पर्त्यायोिजत करना;
(झ) के न्दर्ीय बोड की सिमितयां बनाना और ऐसी सिमितय को के न्दर्ीय बोडर् की शिक्तय और कृ त्य का
पर्त्यायोजन और ऐसी सिमितय के काम-काज का संचालन;
(ञ) िरजवर् बक के अिधकािरय और सेवक के िलए कमर्चािरवृन्द और अिधवािषकी िनिधय का गठन और पर्बंध;
(ट) वह पर्रूप और रीित िजसम िरजवर् बक के िलए आब कर संिवदाएं हस्ताक्षिरत की जाएंगी;
(ठ) िरजवर् बक की कायार्लियक मुदर्ा संबंधी उपबंध तथा उसके पर्योग की रीित और पर्भाव;
(ड) वह पर्रूप और रीित िजसम िरजवर् बक का तुलनपतर् तैयार िकया जाएगा और लेखा रखे जाएंगे;
(ढ) िरजवर् बक के िनदेशक का पािरशर्िमक;
(ण) िरजवर् बक से अनुसूिचत बक का संबंध और अनुसूिचत बक ारा िरजवर् बक को भेजी जाने वाली िववरिणयां;
(त) 9 [बक (िजसके अंतगर्त डाकघर बचत बक ह)] के िलए समाशोधन-गृह का िविनयमन;
बक के बीच या बक और धारा 45झ के खंड (ग) म िनिदष्ट अन्य िव ीय संस्था के बीच इलैक्टर्ािनक
10 [(तत)
साधन के माध्यम से िनिध अंतरण का िविनयमन िजसके अंतगर्त उन शत का िजनके अधीन रहते हुए बक और अन्य िव ीय
संस्थाएं ऐसे िनिध अंतरण म भाग लगी, ऐसे िनिध अंतरण की रीित का और ऐसे िनिध अंतरण म भागीदारी के अिधकार
और बाध्यता का अिधकिथत िकया जाना भी है;]
(थ) वे पिरिस्थितयां िजनम और वे शत और पिरसीमाएं िजनके अधीन भारत सरकार के िकसी खोए, चोरी हो गए,
िवकृ या अपूणर् करे न्सी नोट या बक-नोट का मूल्य पर्ितद िकया जा सके गा;
11 [(थक) धारा 45यघ की उपधारा (2) के अधीन मुदर्ा नीित सिमित के सदस्य को संदय
े पािरशर्िमक और अन्य
भ े;
1
1957 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 5 ारा “इं िडयन कं पनीज ऐक्ट, 1913 (1913 का 7)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “जो वह िनिद करे ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
5
इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1988 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 6 ारा (30-12-1988 से) अन्तःस्थािपत ।
7
1948 के अिधिनयम सं० 62 की धारा 7 और अनुसूची ारा (1-1-1949 से) खंड (क) से खंड (ङ) का लोप िकया गया ।
8
1953 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 8 ारा “गवनर्र को, या” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1988 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 6 ारा (30-12-1988 से) “अनुसूिचत बक ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
2000 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 94 और अनुसूची ारा (अिधसूचना की तारीख से) अन्तःस्थािपत ।
11
2016 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 223 ारा अन्तःस्थािपत ।
49
िविनिदष्ट की जाए ।
(4) के न्दर्ीय बोडर् ारा बनाया गया पर्त्येक िविनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर् के न्दर्ीय सरकार को भेजा जाएगा और
वह सरकार उसकी एक पर्ित संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह सतर् म हो, तीस िदन की अविध के िलए रखवाएगी । यह अविध
एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी । यिद उस सतर् के , या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर्
के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िविनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही
पर्भावी होगा । यिद अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िविनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह
िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िविनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता
पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।]
2
[(5)] इस धारा के अधीन बनाए गए सब िविनयम की पर्ितयां जनता को उनका मूल्य चुकाने पर पर्ाप्त ह गी ।
[58क. स ावपूवक
3
र् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण—(1) इस अिधिनयम या इसके अधीन िकए गए या िदए गए िकसी
आदेश, िविनयम या िनदेश के अनुसरण म स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत िकसी बात के िलए कोई भी वाद,
अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही के न्दर्ीय सरकार, िरज़वर् बक या िकसी अन्य िक्त के िवरु न होगी ।
(2) इस अिधिनयम या इसके अधीन िकए गए या िदए गए िकसी आदेश, िविनयम या िनदेश के अनुसरण म स ावपूवर्क की
गई या की जाने के िलए आशियत िकसी बात ारा हुए या होने के िलए संभा िकसी नुकसान के िलए कोई भी वाद या अन्य िविधक
कायर्वाही के न्दर्ीय सरकार या िरज़वर् बक के िवरु न होगी ।]
4
[अध्याय 5
शािस्तयां
58ख. शािस्तयां—(1) जो कोई इस अिधिनयम या इसके अधीन िकए गए या िदए गए िकसी आदेश, िविनयम या िनदेश ारा
या उसके अधीन या उसके िकसी उपबन्ध के पर्योजन के िलए िकए गए आवेदन, की गई घोषणा, अपेिक्षत िववरणी, िववरण या दी गई
जानकारी या िविशिष्टय म अथवा िकसी ऐसे पर्ास्पेक्ट्स या िवज्ञापन म, जो िकसी िक्त ारा जनता से िनक्षेप आमिन्तर्त करने के
िलए या उसके सम्बन्ध म जारी िकया गया है, जानबूझकर ऐसा कथन, िजसका कोई महत्वपूणर् अंश िमथ्या है, यह जानते हुए करे गा िक
वह िमथ्या है, या कोई महत्वपूणर् कथन करने का जानबूझकर लोप करे गा, वह कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी,
और जुमार्ने से भी, दण्डनीय होगा ।
(2) यिद कोई िक्त कोई ऐसी बही, लेखा या अन्य दस्तावेज पेश करने म अथवा ऐसा कोई िववरण, जानकारी या
िविशिष्टयां देने म, िजसे पेश करने या देने का उसका कतर् इस अिधिनयम या इसके अधीन िकए गए या िदए गए िकसी आदेश,
िविनयम या िनदेश के अधीन है अथवा िकसी ऐसे पर्श्न का उ र देने म, जो इस अिधिनयम के उपबन्ध या उनके अधीन िकए गए या
िदए गए िकसी आदेश, िविनयम या िनदेश के अनुसरण म उससे पूछा जाता है, असफल रहेगा, तो वह जुमार्ने से, जो पर्त्येक अपराध की
बाबत दो हजार रुपए तक का हो सके गा तथा उस दशा म, िजसम िक वह बराबर ऐसे ही असफल रहेगा या अपने इन्कार पर डटा
रहेगा, अितिरक्त जुमार्ने से, जो पर्थम अपराध के पश्चात् ऐसे पर्त्येक िदन के िलए, िजसके दौरान वह अपराध चालू रहता है, एक सौ
रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(3) यिद कोई िक्त धारा 31 के उपबन्ध का उल्लंघन करे गा, तो वह जुमार्ने से, जो िविनमयपतर्, हुंडी, वचनपतर् या उस धन
के संदाय के िलए, िजसकी बाबत अपराध िकया गया है, वचनपतर् की रकम तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(4) यिद कोई िक्त उधार िवषयक िकसी ऐसी जानकारी का पर्कटन करे गा िजसे पर्कट करना धारा 45ङ के अधीन पर्ितिष
है, तो वह कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी; या जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दण्डनीय होगा ।
1
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 24 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 24 ारा उपधारा (3) को उपधारा (5) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 25 ारा अन्तःस्थािपत ।
4
1974 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 26 ारा अन्तःस्थािपत ।
50
[(4क) यिद कोई िक्त, धारा 45झक की उपधारा (1) के उपबंध का उल्लंघन करेगा तो वह कारावास से, िजसकी अविध
1
एक वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो पांच वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से, जो एक लाख रुपए से कम का नह होगा िकन्तु जो
पांच लाख रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(4कक) यिद कोई लेखापरीक्षक, िरजवर् बक ारा धारा 45डख के अधीन िदए गए िकसी िनदेश या िकए गए िकसी आदेश का
पालन करने म असफल रहेगा तो वह जुमार्ने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(4ककक) जो कोई, धारा 45थक की उपधारा (2) के अधीन कम्पनी िविध बोडर् ारा िकए गए िकसी आदेश का पालन करने म
असफल रहेगा तो वह कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सके गी, दंडनीय होगा और ऐसे पर्त्येक िदन के िलए िजसके
दौरान ऐसा अनुपालन जारी रहता है, पचास रुपए से अन्यून के जुमार्ने का भी दायी होगा ।]
(5) 2 [यिद लेखा परीक्षक से िभन्न कोई िक्त]—
(क) अध्याय 3ख के अधीन िदए गए िकसी िनदेश या आदेश के उल्लंघन म कोई िनक्षेप पर्ाप्त करे गा; या
[(कक) अध्याय 3ख के उपबंध म से िकसी उपबंध के अधीन िरजवर् बक ारा िदए गए िकसी िनदेश या िकए गए
3
हो सके गी या जुमार्ने से, जो उस धारा के उल्लंघन म ऐसे िक्त ारा पर्ाप्त िकए गए िनक्षेप की रकम के दुगुने तक का या दो हजार
रुपए तक का, इनम से जो भी अिधक हो, हो सके गा, या दोन से, दंडनीय होगाः
परन्तु तत्पर्ितकू ल ऐसे िवशेष और पयार्प्त कारण के अभाव म जो न्यायालय के िनणर्य म उिल्लिखत िकए जाएंगे, कारावास
एक वषर् से कम का नह होगा और जुमार्ना एक हजार रुपए से कम का नह होगा ।
(5ख) दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 29 म िकसी बात के होते हुए भी, महानगर मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर्
न्याियक मिजस्टर्ेट के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह उपधारा (5क) के अधीन िस दोष ठहराए गए िकसी िक्त पर उस धारा म
िविनिदष्ट सीमा से अिधक जुमार्ने का दंडादेश अिधरोिपत करे ।]
(6) यिद इस अिधिनयम के िकसी अन्य उपबन्ध का उल्लंघन िकया जाएगा अथवा इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए
िकसी आदेश, िविनयम या िनदेश या अिधरोिपत िकसी शतर् की या िकसी अन्य अपेक्षा का अनुपालन करने म कोई ितकर्म िकया
जाएगा तो ऐसे उल्लंघन या ितकर्म का दोषी कोई भी िक्त जुमार्ने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सके गा और जहां िक कोई
उल्लंघन या ितकर्म बराबर जारी रहता है वहां वह अितिरक्त जुमार्ने से, जो पर्थम अपराध के पश्चात् ऐसे पर्त्येक िदन के िलए,
िजसके दौरान वह उल्लंघन या ितकर्म जारी रहता है, एक सौ रुपए तक का हो सके गा, दण्डनीय होगा ।
58ग. कम्पिनय ारा अपराध—(1) जो धारा 58ख म िनिदष्ट उल्लंघन या ितकर्म करने वाला िक्त कोई कम्पनी हो
वहां पर्त्येक िक्त, जो उस उल्लंघन या ितकर्म के िकए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के िलए उस कम्पनी का
भारसाधक और उसके पर्ित उ रदायी था, और साथ ही वह कम्पनी भी, ऐसे उल्लंघन या ितकर्म के दोषी समझे जाएंगे तथा
तदनुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दिण्डत िकए जाने के भागी ह गेः
परन्तु इस उपधारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त को िकसी दण्ड का भागी नह बनाएगी यिद वह यह सािबत कर देता है
िक उल्लंघन या ितकर्म उसकी जानकारी के िबना िकया गया था या उसने ऐसे उल्लंघन या ितकर्म के िनवारण के िलए सब सम्यक्
तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध िकसी कम्पनी ारा िकया गया है
और यह सािबत होता है िक वह अपराध कम्पनी के िकसी िनदेशक, पर्बन्धक, सिचव या अन्य अिधकारी अथवा कमर्चारी की सहमित या
मौनानुकूलता से िकया गया है, या उस अपराध का िकया जाना उसकी िकसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा िनदेशक,
1
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 10 ारा (9-1-1997 से) अंतःस्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 10 ारा (9-1-1997 से) “यिद कोई िक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 10 ारा (9-1-1997 से) अंतःस्थािपत ।
4
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 11 ारा (15-2-1984 से) अंतःस्थािपत ।
51
पर्बन्धक, सिचव या अन्य अिधकारी अथवा कमर्चारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और, तदनुसार अपने िवरु कायर्वाही
िकए जाने और दंिडत िकए जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण 1—इस अिधिनयम के अधीन दण्डनीय िकसी अपराध के बारे म यह समझा जाएगा िक वह उस स्थान पर िकया
गया है जहां उस कम्पनी का भारत म कारबार का, यथािस्थित, रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय या पर्धान स्थान िस्थत है ।
स्पष्टीकरण 2—इस धारा के पर्योजन के िलए—
(क) “कम्पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त िनगम, गैर-बककारी संस्था, फमर्, सहकारी
सोसाइटी या िष्टय का अन्य संगम भी है;
(ख) फमर् के सम्बन्ध म “िनदेशक” से उस फमर् का भागीदार अिभपर्ेत है ।
58घ. धारा 58ख के लागू होने का वजर्न—धारा 58ख की कोई भी बात िकसी ऐसे मामले को या उसकी बाबत लागू नह
होगी िजसकी चचार् धारा 42 म की गई है ।
58ङ. अपराध का संज्ञान—(1) कोई भी न्यायालय इस अधिनयम के अधीन दण्डनीय िकसी अपराध का संज्ञान, िरजवर् बक
के ऐसे अिधकारी ारा, जो िरजवर् बक ारा िलिखत रूप म साधारणतया या िविशष्टतया इस िनिम पर्ािधकृ त है, िलिखत रूप म िकए
गए पिरवाद पर ही करे गा, अन्यथा नह और पर्ेिसडसी मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट से अवर कोई भी न्यायालय या उससे विरष्ठ
न्यायालय ऐसे अपराध का िवचारण नह करे गाः
धारा 58ख की उपधारा (5क) के अधीन दंडनीय िकसी अपराध के सम्बन्ध म िलिखत पिरवाद राज्य सरकार के ऐसे
1 [परन्तु
अिधकारी ारा भी िकया जा सके गा जो उस सरकार ारा िलिखत रूप म साधारणतया या िविशष्टतया इस िनिम पर्ािधकृ त है ।]
(2) दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) म िकसी बात के होते हुए भी, यिद मिजस्टर्ेट को ऐसा करने का कोई कारण
िदखाई देता है तो वह बक के उस अिधकारी को, िजसने पिरवाद फाइल िकया है, स्वीय हािजरी से अिभमुक्त कर सके गा, िकन्तु
मिजस्टर्ेट कायर्वािहय के िकसी भी पर्कर्म पर पिरवादी की स्वीय हािजरी का िनदेश स्विववेकानुसार दे सके गा ।
58च. जुमार्ने का उपयोजन—इस अिधिनयम के अधीन जुमार्ना अिधरोिपत करने वाला कोई भी न्यायालय यह िनदेश दे
सके गा िक पूरा जुमार्ना या उसका कोई भाग कायर्वाही के खच म या उन खच के संदाय के िलए उपयोिजत िकया जाएगा ।
[58छ. जुमार्ना अिधरोिपत करने की िरजवर् बक की शिक्त—(1) धारा 58ख म िकसी बात के होते हुए भी, यिद धारा 58ख
2
म उिल्लिखत पर्कृ ित का कोई उल्लंघन या ितकर्म िकसी गैर-बककारी िव ीय कम्पनी ारा िकया जाता है तो िरजवर् बक, ऐसी
गैर-बककारी िव ीय कम्पनी पर,—
(क) पांच हजार रुपए से अनिधक की शािस्त अिधरोिपत कर सके गा; या
(ख) जहां उल्लंघन या ितकर्म धारा 58ख की उपधारा (4क) या उपधारा (5) के खंड (क) या खंड (कक) के अधीन
हो, वहां पांच लाख रुपए से अनिधक की या ऐसे उल्लंघन या ितकर्म म, जहां रकम अनुमान्य है, अन्तवर्िलत रकम के दोगुने
की, इनम से जो भी अिधक हो शािस्त अिधरोिपत कर सके गा, और जहां ऐसा उल्लंघन या ितकर्म जारी रहने वाला है वहां
पर्थम शािस्त के पश्चात् पर्त्येक िदन के िलए, िजसके दौरान ऐसा उल्लंघन या ितकर्म जारी रहता है, पच्चीस हजार रुपए
तक की शािस्त और अिधरोिपत कर सके गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन शािस्त अिधरोिपत करने के पर्योजन के िलए िरजवर् बक, गैर-बककारी िव ीय कम्पनी पर सूचना
की तामील करे गा िजसम उससे इस बारे म कारण दिशत करने की अपेक्षा की जाएगी िक सूचना म िविनिदष्ट रकम शािस्त के रूप म
अिधरोिपत क्य न की जाए और ऐसी गैर-बककारी िव ीय कम्पनी को सुने जाने का युिक्तयुक्त अवसर पर्दान िकया जाएगा ।
(3) इस धारा के अधीन िरजवर् बक ारा अिधरोिपत कोई शािस्त, उस तारीख से िजसको िरजवर् बक ारा उक्त रािश के
संदाय की मांग करते हुए जारी की गई सूचना की गैर-बककारी िव ीय कं पनी पर तामील की जाती है, तीस िदन की अविध के भीतर
संदय
े होगी और गैर-बककारी िव ीय कं पनी के ऐसी अविध के भीतर उस रािश का संदाय करने म असफल रहने की दशा म, उस क्षेतर्
पर अिधकािरता रखने वाले पर्धान िसिवल न्यायालय ारा िदए गए िनदेश पर जहां गैर-बककारी िव ीय कं पनी का रिजस्टर्ीकृ त
कायार्लय या पर्धान कायार्लय िस्थत है, शािस्त उद्गृहीत की जा सके गीः
परन्तु पर्धान िसिवल न्यायालय ारा ऐसा कोई िनदेश इस िनिम पर्ािधकृ त िरजवर् बक के िकसी अिधकारी ारा िकए गए
आवेदन पर ही िदया जाएगा अन्यथा नह ।
(4) उपधारा (3) के अधीन िनदेश जारी करने वाला न्यायालय, गैर-बककारी िव ीय कं पनी ारा संदय े रािश को िविनिदष्ट
करने वाला पर्माणपतर् जारी करे गा और ऐसा पर्त्येक पर्माणपतर् उसी रीित से पर्वतर्नीय होगा मानो वह िकसी िसिवल वाद म न्यायालय
ारा दी गई िडकर्ी हो ।
1
1984 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 12 ारा (15-2-1984 से) अंतःस्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 11 ारा (9-1-1997 से) अंतःस्थािपत ।
52
(5) ऐसे िकसी उल्लंघन या ितकर्म की बाबत िजसके संबंध म इस धारा के अधीन िरजवर् बक ारा कोई शािस्त अिधरोिपत
की गई है, िकसी गैर-बककारी िव ीय कं पनी के िवरु कोई भी पिरवाद िकसी न्यायालय म फाइल नह िकया जाएगा ।
(6) जहां धारा 58ख म िनिदष्ट पर्कृ ित के िकसी उल्लंघन या ितकर्म के संबंध म िकसी न्यायालय म गैर-बककारी िव ीय
कं पनी के िवरु कोई पिरवाद फाइल िकया गया है वहां, उस गैर-बककारी िव ीय कं पनी के िवरु शािस्त अिधरोिपत करने के िलए
कोई कायर्वाही इस धारा के अधीन नह की जाएगी ।
59. से 61. [1906 के अिधिनयम संख्यांक 3 का संशोधन । िनरसन । 1913 के अिधिनयम संख्यांक 7 की धारा 11 का
संशोधन ।]—1937 के अिधिनयम संख्यांक 20 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा िनरिसत ।
1
[पर्थम अनुसच
ू ी
(धारा 9 देिखए)
2
[1. पिश्चमी क्षेतर्, गोवा, गुजरात, मध्य पर्देश और महाराष्टर् राज्य तथा दादरा और नागर हवेली और दमण और दीव के
संघ राज्यक्षेतर् से िमलकर बनेगा ।
2. पूव क्षेतर्, अरुणाचल पर्देश, असम, िबहार, मिणपुर, मेघालय, िमजोरम, नागालड, उड़ीसा, िसिक्कम, ितर्पुरा, और
पिश्चमी बंगाल राज्य तथा अंदमान और िनकोबार ीप के संघ राज्यक्षेतर् से िमलकर बनेगा ।]
3. उ री क्षेतर्, जम्मू-कश्मीर 3 [पंजाब, हिरयाणा,] 4 [िहमाचल पर्देश,] राजस्थान और उ र पर्देश के राज्य और 5 [चंडीगढ़]
6 [और िदल्ली] के संघ राज्यक्षेतर् से िमलकर बनेगा ।
4. दिक्षणी क्षेतर्, आंधर् पर्देश, 7 [कनार्टक], 8 [तिमलनाडु ] और के रल राज्य और 9 [पांिडचेरी और 10 [लक्ष ीप] के राज्यक्षेतर् से
िमलकर बनेगा]] ।]
11 [ि तीय अनुसच
ू ी
[धारा 42 और धारा 2 (ङ) देिखए]
अनुसिू चत बक
आन्धर् पर्देश स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, हैदराबाद ।
िबहार स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, पटना ।
गुजरात स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, अहमदाबाद ।
के रल स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, ितर्वेन्दर्म ।
मध्य पर्देश राज्य सहकारी बक मयार्िदत, जबलपुर ।
तिमलनाडु स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, मदर्ास ।
महाराष्टर् स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, मुम्बई ।
कनार्टक स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, बंगलौर ।
उड़ीसा स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, कटक ।
राजस्थान स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, जयपुर ।
उ र पर्देश स्टेट कोआपरे िटव बक िलिमटेड, लखनऊ ।
1
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा पूवर्वत अनुसूची के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1997 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 12 ारा (9-1-1997 से) मद 1 और 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
पंजाब पुनगर्ठन और िदल्ली उच्च न्यायालय (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1968 ारा (1-1-1966 से) “पंजाब” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
िहमाचल पर्देश राज्य (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1973 ारा (25-1-1971 से) अंतःस्थािपत ।
5
पंजाब पुनगर्ठन और िदल्ली उच्च न्यायालय (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1968 ारा (1-11-1966 से) अंतःस्थािपत ।
6
िहमाचल पर्देश राज्य (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1973 ारा (25-1-1971 से) “िहमाचल पर्देश और िदल्ली” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
मैसूर राज्य (नाम पिरवतर्न) (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1974 ारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
मदर्ास राज्य (नाम पिरवतर्न) (संघ िवषयक िविध अनुकूलन) आदेश, 1970 ारा (14-1-1969 से) “मदर्ास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1963 के िविनयम सं० 7 की धारा 8 ारा “संघ राज्यक्षेतर् लक्कादीव, िमनीकाय और अमीनदीवी ीप” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
लक्कादीव, िमिनकाय और अमीनदीवी ीप (नाम पिरवतर्न) िविध अनुकूलन आदेश, 1974 ारा (1-11-1973 से) “लक्कादीव, िमनीकाय और अमीनदीवी ीप” के स्थान
पर पर्ितस्थािपत ।
11
यह अनुसूची इं िडयन एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरजमट्स) आडर्र, 1937, 1955 के अिधिनयम सं० 23, 1956 के अिधिनयम सं० 79 और 1959 के अिधिनयम सं० 38
ारा और इस अिधिनयम की धारा 42(6) के अधीन समय-समय पर जारी अिधसूचना ारा संशोिधत रूप म यहां दी गई है ।
53
तृतीय अनुसूची—1955 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 52 और तीसरी अनुसूची ारा (1-7-1955 से) िनरिसत ।
पंचम अनुसूची—इं िडया एंड बमार् (बमार् मानेटरी अरे न्जमट्स) आडर्र, 1937 ारा िनरिसत ।
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