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िवदेशी मुदर्ा पर्बंध अिधिनयम, 1999

(1999 का अिधिनयम संख्यांक 42)


[29 िदसम्बर, 1999]
िवदेश व्यापार और संदाय को सुकर बनाने तथा भारत म िवदेशी
मुदर्ा बाजार के व्यविस्थत िवकास और अनुरक्षण का
संपर्वतर्न करने के उ ेश्य से िवदेशी मुदर्ा से
संबिं धत िविध का समेकन और संशोधन
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के पचासव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :—
अध्याय 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार, लागू होना और पर्ारम्भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम िवदेशी मुदर्ा पर्बन्ध अिधिनयम,
1999 है ।
(2) इसका िवस्तार संपूणर् भारत पर है ।
(3) यह भारत म िनवासी व्यिक्त के स्वािमत्वाधीन या िनयंतर्णाधीन भारत से बाहर की सभी शाखा , कायार्लय और
अिभकरण को भी और िकसी ऐसे व्यिक्त ारा िजसे यह अिधिनयम लागू होता है, भारत से बाहर उसके अधीन िकए गए िकसी
उल्लंघन को भी लागू होगा ।
(4) यह उस तारीख को पर्वृ होगा िजसे के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे :
परं तु इस अिधिनयम के िभन्न-िभन्न उपबंध के िलए िभन्न-िभन्न तारीख िनयत की जा सकगी और ऐसे िकसी उपबंध म इस
अिधिनयम के पर्ारं भ के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस उपबंध के पर्वृ होने के पर्ित िनदश है ।
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी” से धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन पर्ािधकृ त अिधकारी अिभपर्ेत है;
(ख) “अपील अिधकरण” से धारा 18 के अधीन स्थािपत िवदेशी मुदर्ा अपील अिधकरण अिभपर्ेत है;
(ग) “पर्ािधकृ त व्यिक्त” से ऐसा पर्ािधकृ त व्यवहारी, मुदर्ा पिरवतर्क, अपतट बककारी इकाई या कोई ऐसा अन्य
व्यिक्त अिभपर्ेत है जो तत्समय िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूितय का कारबार करने के िलए धारा 10 की उपधारा (1) के
अधीन पर्ािधकृ त है;
[(गग) “पर्ािधकृ त अिधकारी” से धारा 37क के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा पर्ािधकृ त पर्वतर्न िनदेशालय का कोई
1

अिधकारी अिभपर्ेत है ;]
(घ) “न्यायपीठ” से अपील अिधकरण की न्यायपीठ अिभपर्ेत है;
(ङ) “पूंजीगत लेखा संव्यवहार” से ऐसा संव्यवहार अिभपर्ेत है जो भारत म िनवासी व्यिक्तय की भारत से बाहर
आिस्तय या दाियत्व को, िजनके अन्तगर्त समािशर्त दाियत्व भी ह, या भारत से बाहर िनवासी व्यिक्तय की भारत म
आिस्तय या दाियत्व को पिरवितत करता है और इसके अन्तगर्त धारा 6 की उपधारा (3) म िनिदष्ट संव्यवहार भी है;
(च) “अध्यक्ष” से अपील अिधकरण का अध्यक्ष अिभपर्ेत है;
(छ) “चाटर्डर् अकाउन्टट” का वही अथर् होगा जो चाटर्डर् अकाउन्टट अिधिनयम, 1949 (1949 का 38) की धारा 2 की
उपधारा (1) के खंड (ख) म है;
1
[(छछ) “सक्षम पर्ािधकारी” से धारा 37क की उपधारा (2) के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा िनयुक्त पर्ािधकारी
अिभपर्ेत है ;]

1
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 138 ारा अंत:स्थािपत ।
2

(ज) “करसी” के अन्तगर्त सब करसी नोट, पोस्टल नोट, पोस्टल आडर्र, मनीआडर्र, चैक, डर्ाफ्ट, यातर्ी चैक, पर्त्यय-
पतर्, िविनमय पतर् और वचन पतर्, कर्ेिडट काडर् या ऐसी अन्य समरूप िलखत भी ह जो िरजवर् बक ारा अिधसूिचत की जाएं;
(झ) “करसी नोट” से अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त िसक्क और बक नोट के रूप म नकदी भी ह;
(ञ) “चालू खाता संव्यवहार” से पूंजीगत लेखा संव्यवहार से िभन्न संव्यवहार अिभपर्ेत है और पूवर्गामी ऐसे
संव्यवहार की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, इसके अंतगर्त िनम्न भी ह :—
(i) िवदेश व्यापार, अन्य चालू कारबार, सेवा और कारबार के मामूली अनुकर्म म अल्पकािलक
बककारी और पर्त्यय सुिवधा के संबंध म शोध्य संदाय;
(ii) उधार पर ब्याज के रूप म और िविनधान से शु आय के रूप म शोध्य संदाय;
(iii) िवदेश म रह रहे माता-िपता, पित-पत्नी और पुतर्-पुतर्ी की आजीिवका व्यय के िलए पर्ेषण; और
(iv) माता-िपता, पित-पत्नी और पुतर्-पुतर्ी की िवदेश यातर्ा, िशक्षा और िचिकत्सीय देखभाल के संबंध
म व्यय;
(ट) “पर्वतर्न िनदेशक” से धारा 36 की उपधारा (1) के अधीन िनयुक्त पर्वतर्न िनदेशक अिभपर्ेत है;
(ठ) “िनयार्त” से उसके व्याकरिणक रूपभेद और सजातीय पद सिहत, िनम्न अिभपर्ेत ह :—
(i) भारत से िकसी माल का, भारत से बाहर िकसी स्थान को ले जाया जाना;
(ii) भारत से बाहर िकसी व्यिक्त को भारत से सेवाएं उपलब्ध कराना;
(ड) “िवदेशी करसी” से भारतीय करसी से िभन्न कोई करसी अिभपर्ेत है;
(ढ) “िवदेशी मुदर्ा” से िवदेशी करसी अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त िनम्न भी ह,—
(i) िकसी िवदेशी करसी म संदय
े जमा रािशयां, जमा खाते और अितशेष;
(ii) भारतीय करसी म अिभव्यक्त या िलखे गए, िकन्तु िकसी िवदेशी करसी म संदय
े डर्ाफ्ट, यातर्ी चैक,
पर्त्यय-पतर् या िविनमय पतर्;
(iii) भारत से बाहर के बैक , संस्था या व्यिक्तय ारा िलखे गए िकन्तु भारतीय करसी म संदय

डर्ाफ्ट, यातर्ी चैक, पर्त्यय-पतर् या िविनमय पतर्;
(ण) “िवदेशी पर्ितभूित” से ऐसे शेयर, स्टाक, बंधपतर्, िडबचर या िकसी अन्य िलखत के रूप म कोई पर्ितभूित
अिभपर्ेत है िजनका अंिकत मूल्य या अिभव्यिक्त िवदेशी करसी म है और इसके अंतगर्त िवदेशी करसी म अिभव्यक्त
पर्ितभूितयां ह िकन्तु यह वहां जहां मोचन या वापसी का कोई रूप जैसे ब्याज अथवा लाभांश, भारतीय करसी म संदय
े है;
(त) “आयात” से, उसके व्याकरिणक रूपभेद और सजातीय पद सिहत, िकसी माल या सेवा का भारत म लाना
अिभपर्ेत है;
(थ) “भारतीय करसी” से ऐसी करसी अिभपर्ेत है जो भारतीय रुपय म अिभव्यक्त की गई या िलखी गई है िकन्तु
इसके अंतगर्त भारतीय िरजवर् बक अिधिनयम, 1934 (1934 का 2) की धारा 28क के अधीन जारी िकए गए िवशेष बक नोट
और एक रुपए वाले िवशेष नोट नह ह;
(द) “िविध व्यवसायी” का वही अथर् है जो अिधवक्ता अिधिनयम, 1961 (1961 का 25) की धारा 2 की उपधारा
(1) के खंड (i) म है;
(ध) “सदस्य” से अपील अिधकरण का सदस्य अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त उसका अध्यक्ष भी है;
(न) “अिधसूिचत करना” से राजपतर् म अिधसूिचत करना अिभपर्ेत है और “अिधसूचना” पद का तद्नुसार अथर्
लगाया जाएगा;
(प) “व्यिक्त” के अंतगर्त िनम्न है—
(i) कोई व्यिष्ट,
(ii) कोई अिवभक्त िहदू कु टु म्ब,
(iii) कोई कं पनी,
(iv) कोई फमर्,
(v) व्यिक्तय का कोई संगम या व्यिष्टय का िनकाय, चाहे िनगिमत हो या न हो,
3

(vi) ऐसा पर्त्येक कृ ितर्म िविधक व्यिक्त, जो पूवर्गामी उपखंड म से िकसी के अंतगर्त नह आता है, और
(vii) ऐसे व्यिक्त के स्वािमत्वाधीन या िनयंतर्णाधीन कोई अिभकरण, कायार्लय या शाखा;
(फ) “भारत म िनवासी व्यिक्त” से अिभपर्ेत है,—
(i) ऐसा कोई व्यिक्त जो पूवर्वत िव ीय वषर् के दौरान एक सौ बयासी िदन से अिधक तक भारत म
िनवास कर रहा था िकन्तु इसके अन्तगर्त :—
(अ) ऐसा व्यिक्त नह है जो—
(क) भारत से बाहर िनयोिजत होने के िलए या िनयोिजत हो जाने पर; या
(ख) भारत से बाहर कोई कारबार या व्यवसाय भारत से बाहर चलाने के िलए; या
(ग) ऐसी पिरिस्थितय म, िकसी अन्य पर्योजन के िलए िजनसे उसका भारत से
बाहर अिनिश्चत अविध तक ठहरने का आशय उपदिशत होता हो,
भारत से बाहर चला गया है या भारत से बाहर ठहरता है,
(आ) ऐसा व्यिक्त भी नह है जो—
(क) भारत म िनयोिजत होने के िलए या िनयोिजत हो जाने पर; या
(ख) भारत म कोई कारबार या व्यवसाय भारत म चलने के िलए; या
(ग) ऐसी पिरिस्थितय म िकसी अन्य पर्योजन के िलए िजनसे उसका भारत म
अिनिश्चत अविध तक ठहरने का आशय उपदिशत होता हो,
भारत लौट आता है या भारत म ठहरता है;
(ii) कोई व्यिक्त या भारत म रिजस्टर्ीकृ त या िनगिमत कोई िनगम िनकाय;
(iii) भारत के बाहर िनवासी िकसी व्यिक्त के स्वािमत्वाधीन या िनयंतर्णाधीन भारत म कोई कायार्लय,
शाखा या अिभकरण;
(iv) भारत म िनवासी िकसी व्यिक्त के स्वािमत्वाधीन या िनयंतर्णाधीन भारत से बाहर कोई कायार्लय,
शाखा या अिधकरण;
(ब) “भारत के बाहर िनवासी व्यिक्त” से ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है जो भारत म िनवासी नह है;
(भ) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;
(म) “भारत को संपर्त्यावितत करना” से वसूली गई िवदेशी मुदर्ा का भारत म लाना अिभपर्ेत है, और—
(i) ऐसी िवदेशी मुदर्ा का, भारत म िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त को रुपए के बदले म िवकर्य करना; या
(ii) वसूली गई रकम का, भारत म िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त के पास िकसी खाते म िरजवर् बक ारा
अिधसूिचत सीमा तक धारण करना;
और इसके अन्तगर्त वसूली गई रकम का िवदेशी मुदर्ा म अंिकत िकसी ऋण या दाियत्व के उन्मोचन के
िलए उपयोग भी आता है और “संपर्त्यावतर्न” पद का तद्नुसार अथर् लगाया जाएगा;
(य) “िरजवर् बक” से भारतीय िरजवर् बक अिधिनयम, 1934 (1934 का 2) की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन
गिठत भारतीय िरजवर् बक अिभपर्ेत है;
(यक) “पर्ितभूित” से शेयर, स्टाक, बंधपतर् और िडबचर, लोक ऋण अिधिनयम, 1944 (1944 का 18) म यथा
पिरभािषत सरकारी पर्ितभूितयां, ऐसे बचत पतर्, िजन्ह सरकारी बचत पतर् अिधिनयम, 1959 (1959 का 46) लागू होता है,
पर्ितभूितय की जमा रािश संबंधी रसीद, और भारतीय यूिनट टर्स्ट अिधिनयम, 1963 (1963 का 52) के अधीन स्थािपत
भारतीय यूिनट टर्स्ट के या िकसी पारस्पिरक िनिध के यूिनट अिभपर्ेत ह और इसके अंतगर्त पर्ितभूितय म हक के पर्माणपतर् ह;
िकन्तु इसके अंतगर्त सरकारी िविनमय पतर् या वचन पतर् से िभन्न िविनमय पतर् या वचन पतर् या कोई ऐसी अन्य िलखत जो
िरजवर् बक ारा इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए पर्ितभूित के रूप म अिधसूिचत की जाएं, नह है;
(यख) “सेवा” से िकसी पर्कार की ऐसी सेवा अिभपर्ेत है जो संभािवत उपयोगकतार् को उपलभ्य कराई जाती है
तथा इसम बककारी, िव पोषण, बीमा, िचिकत्सीय सहायता, िविधक सहायता, िचट फं ड, पूणर् स्वािमक स्थावर संपदा,
पिरवहन, पर्संस्करण, िव ुत या अन्य ऊजार् के पर्दाय, आवास या भोजन या दोन , मनोरं जन, आमोद-पर्मोद या समाचार
4

अथवा अन्य जानकारी जुटाने के संबंध म पर्सुिवधा की व्यवस्था भी सिम्मिलत है, िकन्तु िन:शुल्क या व्यिक्तगत सेवा की
संिवदा के अधीन िकसी सेवा का िदया जाना सिम्मिलत नह है;
(यग) “िवशेष िनदेशक (अपील)” से धारा 18 के अधीन िनयुक्त कोई अिधकारी अिभपर्ेत है;
(यघ) “िविनिदष्ट करना” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िविनयम ारा िविनिदष्ट करना अिभपर्ेत है और
“िविनिदष्ट” पद का तद्नुसार अथर् लगाया जाएगा;
(यङ) “अंतरण” के अंतगर्त िवकर्य, कर्य, िविनमय, बंधक, िगरवी, उपहार, उधार अथवा अिधकार, हक, कब्जा या
धारणािधकार के अंतरण का कोई अन्य रूप भी है ।
अध्याय 2

िवदेशी मुदर्ा का िविनयमन और पर्बंध


3. िवदेशी मुदर्ा आिद म व्यवहार करना—इस अिधिनयम, इसके अधीन बनाए गए िनयम अथवा िविनयम म या िरजवर् बक
की साधारण या िवशेष अनुज्ञा से जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय कोई भी व्यिक्त,—
(क) ऐसे िकसी व्यिक्त के साथ जो पर्ािधकृ त व्यिक्त नह है, िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूित म व्यवहार नह
करे गा या उसे अंतिरत नह करे गा;
(ख) भारत से बाहर िनवासी िकसी व्यिक्त को, िकसी रीित से संदाय नह करे गा या उसके नाम म जमा नह
करे गा;
(ग) िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त के माध्यम से िभन्न िकसी ऐसे व्यिक्त के या उसकी ओर से जो भारत से बाहर िनवास
करता है िकसी आदेश ारा िकसी रीित म कोई संदाय पर्ाप्त नह करे गा ।
स्पष्टीकरण—इस खंड के पर्योजन के िलए, जहां कोई व्यिक्त भारत म या भारत म िनवासी, भारत म िनवासी
कोई व्यिक्त भारत से बाहर िनवासी िकसी व्यिक्त के , या उसकी ओर से आदेश ारा कोई संदाय िकसी अन्य व्यिक्त के
माध्यम से (िजसके अंतगर्त पर्ािधकृ त व्यिक्त भी है) भारत से बाहर िकसी स्थान से तदर्ूपी आवक िवपर्ेषण के िबना पर्ाप्त करता
है तब ऐसे व्यिक्त के बारे म यह समझा जाएगा िक उसने पर्ािधकृ त व्यिक्त के माध्यम से अन्यथा ऐसा संदाय पर्ाप्त िकया है;
(घ) िकसी व्यिक्त ारा भारत से बाहर िकसी आिस्त के अजर्न, सृजन या अिजत करने के अिधकार के अंतरण के
पर्ितफल के रूप म या उसके साथ भारत म कोई िव ीय संव्यवहार नह करे गा ।
स्पष्टीकरण—इस खंड के पर्योजन के िलए “िव ीय संव्यवहार” से िकसी व्यिक्त के िलए या उसकी ओर से, आदेश
ारा, िकसी व्यिक्त को कोई संदाय करना या उसके नाम जमा करने के िलए कोई संदाय पर्ाप्त करना या िविनमय पतर् या
वचन पतर् िलखना, जारी करना या परकर्ािमत करना या कोई पर्ितभूित अंतिरत करना अथवा कोई ऋण्ा अिभस्वीकृ त करना
अिभपर्ेत है ।
4. िवदेशी मुदर्ा आिद धािरत करना—इस अिधिनयम म जैसा उपबंिधत है इसके िसवाय, भारत म िनवासी कोई व्यिक्त,
िकसी िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूित या भारत से बाहर िस्थत िकसी स्थावर संपि को धािरत नह करे गा, स्वािमत्व म या कब्जे म
नह रखेगा या अंतरण नह करे गा ।
5. चालू खाता संव्यवहार—कोई व्यिक्त, िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त को, िवदेशी मुदर्ा का िवकर्य कर सके गा या उससे ले सके गा
यिद ऐसा िवकर्य या लेना चालू खाता संव्यवहार है :
परन्तु के न्दर्ीय सरकार, लोकिहत म और िरजवर् बक के परामशर् से, चालू खाता संव्यवहार के िलए ऐसे युिक्तयुक्त िनबन्धन
अिधरोिपत कर सके गी, जो िविहत िकए जाएं ।
6. पूज
ं ीगत खाता संव्यवहार—(1) उपधारा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई व्यिक्त, िकसी पूंजीगत लेखा संव्यवहार
के िलए िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त को िवदेशी मुदर्ा का िवकर्य कर सके गा या उससे ले सके गा ।
(2) िरजवर् बक, के न्दर्ीय सरकार के परामशर् से,—
1 [(क) पूंजीगत खाता संव्यवहार के , िजसम ऋण िलखत अंतवर्िलत ह, ऐसे िकसी वगर् या वग को, जो अनुज्ञेय ह ;]
(ख) वह सीमा, िजस तक िवदेशी मुदर्ा ऐसे संव्यवहार के िलए अनुज्ञेय होगी ;
2
[(ग) ऐसी कोई शत जो ऐसे संव्यवहार पर लगाई जाएं,]
िविनिदष्ट कर सके गा :

1
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 139 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 139 ारा अंत:स्थािपत ।
5

[परन्तु िरजवर् बक या कदर्ीय सरकार, कारबार के मामूली अनुकर्म म उधार के अपकरण के म े या सीधे िविनधान के
1

अवक्षयण के िलए शोध्य संदाय के िलए िवदेशी मुदर्ा के िनकाले जाने पर काई िनबर्न्धन नह लगाएगी ।]
1
[(2क) के न्दर्ीय सरकार, िरजवर् बक के परामशर् से,—
(क) पूंजीगत खाता संव्यवहार के , िजसम ऋण िलखत अंतवर्िलत नह ह, ऐसे िकसी वगर् का या वग का, जो
अनुज्ञेय है ;
(ख) वह सीमा िजस तक िवदेशी मुदर्ा ऐसे संव्यवहार के िलए अनुज्ञेय होगी ; और
(ग) ऐसी कोई शत, जो ऐसे संव्यवहार पर लगाई जाएं,
िविहत कर सके गी]
2
* * * * * * *
(4) भारत म िनवासी कोई व्यिक्त िवदेशी करसी, िवदेशी पर्ितभूित या भारत से बाहर िस्थत िकसी स्थावर संपि का धारण
कर सके गा, उसे स्वािमत्व म रख सके गा, उसका अंतरण कर सके गा या उसम िविनधान कर सके गा, यिद ऐसी करसी, पर्ितभूित या
संपि , ऐसे व्यिक्त ारा तब अिजत की गई थी, धािरत की गई थी या उसके स्वािमत्व म थी जब वह भारत से बाहर िनवासी था या
उसने ऐसे व्यिक्त से िवरासत म पर्ाप्त की थी, जो भारत से बाहर िनवासी था ।
(5) भारत से बाहर िनवासी कोई व्यिक्त, भारतीय करसी, पर्ितभूित या भारत म िस्थत िकसी स्थावर संपि को धारण कर
सके गा, उसे स्वािमत्व म रख सके गा, उसका अंतरण कर सके गा या उसम िविनधान कर सके गा, यिद ऐसी करसी, पर्ितभूित या संपि ,
ऐसे व्यिक्त ारा तब अिजत, धािरत की गई थी या उसके स्वािमत्व म थी जब वह भारत म िनवासी था या उसने ऐसे िकसी व्यिक्त से
िवरासत म पर्ाप्त की थी जो भारत म िनवासी था ।
(6) इस धारा के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, िरजवर् बक, िविनयम ारा, भारत के बाहर के िनवासी िकसी व्यिक्त
ारा, िकसी शाखा, कायार्लय के भारत म स्थापन या कारबार के िकसी अन्य स्थान को, ऐसी शाखा, कायार्लय या कारबार के अन्य
स्थान से संबंिधत िकसी िकर्याकलाप को चलाने के िलए, पर्ितिष , िनबर्ंिधत या िविनयिमत कर सके गा ।
[(7) इस धारा के पर्योजन के िलए “ऋण िलखत” पद से ऐसी िलखत अिभपर्ेत ह जो कदर्ीय सरकार ारा िरजवर् बक के
1

परामशर् से अवधािरत की जाएं ।]


7. माल और सेवा का िनयार्त—(1) माल का पर्त्येक िनयार्तकतार्:—
(क) िरजवर् बक को या ऐसे अन्य पर्ािधकारी को एक घोषणा ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित से जो िविनिदष्ट की जाए,
पर्स्तुत करे गा िजसम सत्य और सही ताित्वक िविशिष्टयां, िजसके अन्तगर्त पूणर् िनयार्त मूल्य को जताने वाली रकम है या यिद
िनयार्त के समय माल का पूणर् िनयार्त मूल्य अिभिनिश्चत नह िकया जा सकता है तो वह मूल्य है िजसे िनयार्तकतार्, िव मान
बाजार दशा को ध्यान म रखते हुए भारत से बाहर बाजार म माल के िवकर्य पर पर्ाप्त करने की आशा रखता है, अन्तिवष्ट
ह गी;
(ख) िरजवर् बक को ऐसी अन्य जानकारी पर्स्तुत करे गा जो ऐसे िनयार्तकतार् ारा िनयार्त आगम की वसूली
सुिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए िरजवर् बक ारा अपेिक्षत ह ।
(2) िरजवर् बक, यह सुिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए िक माल का पूणर् िनयार्त मूल्य या माल का ऐसा घटा हुआ मूल्य, जो
िरजवर् बक, िव मान बाजार दशा को ध्यान म रखते हुए अवधािरत करे , िबना िकसी िवलंब के पर्ाप्त हो जाए, ऐसे िकसी िनयार्तकतार्
को ऐसी अपेक्षा को जो वह ठीक समझे, पूरा करने का िनदेश दे सके गा ।
(3) सेवा का पर्त्येक िनयार्तकतार्, िरजवर् बक को या ऐसे अन्य पर्ािधकारी को, एक घोषणा ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित से,
जो िविनिदष्ट की जाए, पर्स्तुत करे गा िजसम ऐसी सेवा के िलए संदाय के संबंध म सत्य और सही ताित्त्वक िविशिष्टयां, अन्तिवष्ट
ह गी ।
8. िवदेशी मुदर्ा की वसूली और संपर्त्यावतर्न—इस अिधिनयम म जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय, जहां िवदेशी मुदर्ा
म कोई रकम भारत म िनवासी िकसी व्यिक्त को शोध्य है या पर्ोद्भूत हो गई है, वहां ऐसा व्यिक्त, ऐसी िवदेशी मुदर्ा को ऐसी अविध के
भीतर और ऐसी रीित म, जो िरजवर् बक ारा, िविनिदष्ट की जाए, वसूल करने और भारत को संपर्त्यावितत करने के िलए सभी उिचत
कदम उठाएगा ।
9. कितपय मामल म वसूली और संपर्त्यावतर्न से छू ट—धारा 4 और धारा 8 के उपबंध िनम्निलिखत को लागू नह
ह गे, अथार्त्:—

1
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 139 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 139 ारा लोप िकया गया ।
6

(क) िकसी व्यिक्त ारा ऐसी सीमा तक, जो िरजवर् बक िविनिदष्ट करे , िवदेशी करसी या िवदेशी िसक्क का कब्जा
रखना;
(ख) ऐसे व्यिक्त या वगर् के व्यिक्तय ारा और वह सीमा िजस तक िरजवर् बक िविनिदष्ट करे िवदेशी करसी खाता
रखना या पर्चालन करना;
(ग) 8 जुलाई, 1947 के पूवर् अिजत या पर्ाप्त की गई िवदेशी मुदर्ा या उस पर उद्भूत या पर्ोद्भूत कोई आय, जो
िकसी व्यिक्त ारा िरजवर् बक ारा दी गई साधारण या िवशेष अनुज्ञा के अनुसरण म भारत से बाहर धृत है;
(घ) भारत म िनवासी िकसी व्यिक्त ारा ऐसी सीमा तक िजसे िरजवर् बक िविनिदष्ट करे , धृत िवदेशी मुदर्ा यिद
ऐसी िवदेशी मुदर्ा खंड (ग) म िनिदष्ट िकसी व्यिक्त से दान या िवरासत के रूप म अिजत की गई हो िजसके अंतगर्त उससे
उद्भूत कोई आय भी है;
(ङ) उस सीमा तक जो िरजवर् बक ारा िविनिदष्ट की जाए, िनयोजन, कारबार, व्यापार, व्यवसाय, सेवा ,
मानदेय, दान, िवरासत या िकसी अन्य िविधसम्मत साधन ारा अिजत िवदेशी मुदर्ा; और
(च) िवदेशी मुदर्ा की ऐसी अन्य पर्ािप्तयां, जो िरजवर् बक ारा िविनिदष्ट की जाएं ।
अध्याय 3

पर्ािधकृ त व्यिक्त
10. पर्ािधकृ त व्यिक्त—(1) इस िनिम िरजवर् बक से आवेदन िकए जाने पर, वह िकसी भी व्यिक्त को िवदेशी मुदर्ा का या
िवदेशी पर्ितभूितय का व्यवहार करने के िलए, पर्ािधकृ त व्यवहारी, मुदर्ा पिरवतर्क या अपतट बककारी यूिनट के रूप म, या िकसी अन्य
रीित से जो वह ठीक समझे, पर्ािधकृ त कर सके गा जो पर्ािधकृ त व्यिक्त के रूप म माना जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन पर्ािधकार िलिखत रूप म िदया जाएगा और वह उसम अिधकिथत शत के अध्यधीन होगा ।
(3) िरजवर् बक उपधारा (1) के अधीन िदए गए पर्ािधकार को िकसी भी समय, वापस ले सकता है यिद िरजवर् बक का
समाधान हो जाता है िक,—
(क) ऐसा करना लोकिहत म है; या
(ख) पर्ािधकृ त व्यिक्त, उस शतर् का अनुपालन करने म असफल रहा है िजसके अधीन रहते हुए पर्ािधकार िदया गया
था या उसने अिधिनयम के िकसी उपबंध या उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िविनयम, िनकाली गई अिधसूचना, िकए
गए िनदेश या आदेश के उपबंध म से िकसी का उल्लंघन िकया है :
परन्तु ऐसा कोई पर्ािधकार, खंड (ख) म िनिदष्ट िकसी आधार पर तब तक वापस नह िलया जाएगा जब तक िक पर्ािधकृ त
व्यिक्त को उस िवषय म अभ्यावेदन करने का उिचत अवसर न दे िदया गया हो ।
(4) पर्ािधकृ त व्यिक्त, िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूित के अपने सभी व्यवहार म उन साधारण या िवशेष िनदेश या आदेश
का अनुपालन करे गा, जो िरजवर् बक, समय-समय पर, देना ठीक समझे और िरजवर् बक की पूवर् अनुज्ञा के िबना कोई पर्ािधकृ त व्यिक्त
ऐसा संव्यवहार नह करे गा िजसका संबंध िकसी िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूित से है और जो इस धारा के अधीन उसके पर्ािधकार के
िनबंधन के अनुरूप नह है ।
(5) पर्ािधकृ त व्यिक्त, िकसी व्यिक्त की ओर से िवदेशी मुदर्ा का कोई संव्यवहार करने के पूवर् उस व्यिक्त से यह अपेक्षा कर
सके गा िक वह ऐसी घोषणा करे और ऐसी जानकारी दे िजससे उसका उिचत रूप से समाधान हो जाए िक उस संव्यवहार से इस
अिधिनयम या उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िविनयम, िनकाली गई अिधसूचना, िदए गए िनदेश या आदेश के उपबंध का कोई
उल्लंघन या अपवंचन नह होता है और न ही वह िकसी उल्लंघन या अपवंचन के पर्योजन के िलए पर्किल्पत है और जहां उक्त व्यिक्त,
ऐसी िकसी अपेक्षा का अनुपालन करने से इं कार करता है या के वल असमाधानपर्द पालन करता है वहां पर्ािधकृ त व्यिक्त, वह संव्यवहार
करने से िलिखत म इं कार करे गा और यिद उसके पास यह िवश्वास करने का कारण है िक वह व्यिक्त कोई यथापूव क्त उल्लंघन या
अपवंचन करने का िवचार रखता है तो वह उस मामले की िरपोटर् िरजवर् बक को करे गा ।
(6) पर्ािधकृ त व्यिक्त से िभन्न ऐसा कोई व्यिक्त िजसने उपधारा (5) के अधीन पर्ािधकृ त व्यिक्त को उसके ारा की गई
घोषणा म विणत िकसी पर्योजन के िलए िवदेशी मुदर्ा अिजत या कर्य की है, ऐसे पर्योजन के िलए उसका उपयोग नह करता है या
िविनिदष्ट अविध के भीतर पर्ािधकृ त व्यिक्त को अभ्यिपत नह करता है या इस पर्कार अिजत या कर्य की गई िवदेशी मुदर्ा का उपयोग
िकसी अन्य पर्योजन के िलए करता है िजसके िलए िवदेशी मुदर्ा का कर्य या अजर्न अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िनयम या
िविनयम के या िकए गए िनदेश या आदेश के उपबंध के अधीन अनुज्ञेय नह है, तो उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसने इस धारा
के पर्योजन के िलए अिधिनयम के उपबंध का उल्लंघन िकया है ।
11. पर्ािधकृ त व्यिक्तय को िनदेश देने की िरजवर् बक की शिक्तयां—(1) िरजवर् बक, इस अिधिनयम के उपबंध और उसके
अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम , िविनयम , िनकाली गई अिधसूचना या िदए गए िनदेश का अनुपालन सुिनिश्चत करने के पर्योजन
7

के िलए, पर्ािधकृ त व्यिक्तय को, िवदेशी मुदर्ा या िवदेशी पर्ितभूित से संबंिधत संदाय करने या कोई कृ त्य करने या करने से िवरत रहने
के िनदेश दे सके गा ।
(2) िरजवर् बक, इस अिधिनयम या उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िविनयम, िनकाली गई अिधसूचना, िदए गए िनदेश
या आदेश के उपबंध का अनुपालन सुिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए, िकसी पर्ािधकृ त व्यिक्त को, ऐसी जानकारी ऐसी रीित से देने
के िलए, जो वह ठीक समझे, िनदेश दे सके गा ।
(3) जहां कोई पर्ािधकृ त व्यिक्त, इस अिधिनयम के अधीन िरजवर् बक ारा िदए गए िकसी िनदेश का उल्लंघन करे गा या
िरजवर् बक ारा िनदेिशत रूप म कोई िववरणी फाइल करने म असफल रहेगा, तो िरजवर् बक, सुनवाई का युिक्तयुक्त अवसर देने
पश्चात् पर्ािधकृ त व्यिक्त पर ऐसी शािस्त, जो दस हजार रुपए तक की हो सके गी और चालू रहने वाले उल्लंघन की दशा म अितिरक्त
शािस्त, जो ऐसे पर्त्येक िदन के िलए िजसके दौरान ऐसा उल्लंघन चालू रहता है, दो हजार रुपए तक की हो सके गी, अिधरोिपत कर
सके गा ।
12. पर्ािधकृ त व्यिक्तय का िनरीक्षण करने की िरजवर् बक की शिक्तयां—(1) िरजवर् बक, िकसी भी समय, िकसी पर्ािधकृ त
व्यिक्त के कारबार का िनरीक्षण, जो उसे िनम्निलिखत पर्योजन के िलए आवश्यक या समीचीन पर्तीत हो, िरजवर् बक के िकसी ऐसे
अिधकारी ारा जो इस िनिम िरजवर् बक ारा िलिखत रूप म िवशेष रूप से पर्ािधकृ त िकया गया हो, करा सके गा,—
(क) िरजवर् बक को पर्स्तुत िकए गए िकसी कथन, जानकारी या िविशिष्टय की शु ता का सत्यापन करना;
(ख) ऐसी कोई जानकारी या िविशिष्टयां अिभपर्ाप्त करना, िजसे ऐसा पर्ािधकृ त व्यिक्त, ऐसी मांग िकए जाने पर,
देने म असफल रहा है;
(ग) इस अिधिनयम के उपबंध की या इसके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम , िविनयम , िदए गए िनदेश या
आदेश का अनुपालन सुिनिश्चत करना ।
(2) पर्त्येक पर्ािधकृ त व्यिक्त का और जहां ऐसा व्यिक्त कं पनी या फमर् है, यथािस्थित, ऐसी कं पनी या फमर् के पर्त्येक िनदेशक,
भागीदार या अन्य अिधकारी का यह कतर्व्य होगा िक वह उपधारा (1) के अधीन िनरीक्षण करने वाले िकसी अिधकारी को ऐसी बिहयां,
लेखा और अन्य दस्तावेज, जो उसकी अिभरक्षा या शिक्त म हो, पेश करे और उसे ऐसे व्यिक्त, कं पनी या फमर् के काय से संबंिधत ऐसा
कोई िववरण या जानकारी, जैसी िक उक्त अिधकारी अपेक्षा करे , ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीित से, जैसा िक उक्त अिधकारी
िनदेश दे, पर्दान करे ।
अध्याय 4

उल्लंघन और शािस्तयां
13. शािस्तयां—(1) यिद कोई व्यिक्त, इस अिधिनयम के िकसी उपबंध का उल्लंघन करे गा या इस अिधिनयम के अधीन
शिक्तय का पर्योग करते हुए बनाए गए िकसी िनयम, िविनयम, िनकाली गई अिधसूचना, िदए गए िनदेश या आदेश का उल्लंघन
करे गा या िकसी ऐसी शतर् का उल्लंघन करे गा िजसके अधीन रहते हुए िरजवर् बक ारा पर्ािधकार जारी िकया जाता है, तो वह,
न्यायिनणर्यन पर, ऐसी शािस्त का, जो ऐसे उल्लंघन म अन्तवर्िलत रािश की, जहां ऐसी रकम पिरमाणन योग्य है, तीन गुनी अथवा
जहां रकम पिरमाणन योग्य नह है वहां दो लाख रुपए तक की हो सके गी, और जहां ऐसा उल्लंघन जारी रहने वाला उल्लंघन है, वहां
अितिरक्त शािस्त का, जो उस पर्थम िदन के पश्चात् पर्त्येक िदन के िलए, िजसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है, पांच हजार रुपए तक
की हो सके गी, दायी होगा ।
यिद िकसी व्यिक्त के बारे म यह पाया जाता है िक उसने धारा 37क की उपधारा (1) के परं तुक के अधीन िविहत
1 [(1क)

अवसीमा से अिधक संकिलत मूल्य की कोई िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या भारत के बाहर अविस्थत स्थावर संपि अिजत की है, तो
वह ऐसे उल्लंघन और अिधहरण म अंतवर्िलत िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या भारत म अविस्थत स्थावर संपि के समतुल्य मूल्य की
रािश के तीन गुणा तक की शािस्त के िलए दायी होगा ।
(1ख) यिद न्यायिनणार्यक अिधकारी, उपधारा (1क) के अधीन की िकसी कायर्वाही म उिचत समझता है तो वह कारण को
लेखब करने के पश्चात् अिभयोजन आरं भ करने की िसफािरश कर सके गा और यिद पर्वतर्न िनदेशक का यह समाधान हो जाता है तो
वह कारण को लेखब करने के पश्चात् दोषी व्यिक्त के िवरु ऐसे अिधकारी ारा, जो सहायक िनदेशक की पंिक्त से नीचे का न हो,
दांिडक िशकायत फाइल करके अिभयोजन करने का िनदेश दे सके गा ।
(1ग) यिद िकसी व्यिक्त के बारे म यह पाया जाता है िक उसने धारा 37क की उपधारा (1) के परं तुक के अधीन िविहत
अवसीमा से अिधक संकिलत मूल्य की कोई िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या भारत के बाहर अविस्थत स्थावर संपि अिजत की है, तो
वह उपधारा (1क) के अधीन अिधरोिपत शािस्त के अितिरक्त, ऐसे कारावास से, िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने
से दंडनीय होगा ।

1
2015 के अिधनयम सं० 20 की धारा 140 ारा अंत:स्थािपत ।
8

(1घ) कोई भी न्यायालय, धारा 13 की उपधारा (1ग) के अधीन िकसी अपराध का संज्ञान, ऐसे अिधकारी की, जो
उपधारा (1ख) म िनिदष्ट सहायक िनदेशक की पंिक्त से नीचे का न हो, िलिखत िशकायत पर ही करे गा, अन्यथा नह ।]
(2) कोई न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी, उपधारा (1) के अधीन िकसी उल्लंघन का न्यायिनणर्यन करते समय, यिद वह ऐसी
शािस्त के अितिरक्त िजसे वह ऐसे उल्लंघन के िलए अिधरोिपत कर सकता है, उिचत समझता है तो यह िनदेश दे सके गा िक ऐसी कोई
मुदर्ा, पर्ितभूित या कोई अन्य धन या संपि िजसकी बाबत उल्लंघन हुआ है, के न्दर्ीय सरकार को अिधहृत हो जाएगी और आगे यह
िनदेश दे सके गा िक उल्लंघन करने वाले व्यिक्त की िवदेशी मुदर्ा धृितयां, यिद कोई ह , या उनका कोई भाग भारत म वापस लाया
जाएगा या भारत से बाहर इस िनिम िदए गए िनदेशानुसार पर्ितधािरत िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए “संपि ” के अंतगर्त िजसकी बाबत उल्लंघन हुआ है, िनम्निलिखत भी है—
(क) जहां उक्त संपि बक म िनक्षेप म पिरवितत कर दी जाती है, वहां बक म िनक्षेप;
(ख) जहां उक्त संपि भारतीय मुदर्ा म संपिरवितत कर दी जाती है, वहां भारतीय मुदर्ा;
(ग) ऐसी अन्य संपि जो उस संपि के संपिरवतर्न के पिरणामस्वरूप हो ।
14. न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के आदेश का पर्वतर्न—(1) धारा 19 की उपधारा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, यिद कोई
व्यिक्त, धारा 13 के अधीन, उस पर अिधरोिपत शािस्त का संपूणर् संदाय उस तारीख से िजसको उस पर ऐसी शािस्त के संदाय के िलए
सूचना तामील की गई थी, नब्बे िदन की अविध के भीतर करने म असफल रहेगा तो वह इस धारा के अधीन िसिवल कारावास का दायी
होगा ।
(2) िकसी व्यितकर्मी की िगरफ्तारी और िसिवल कारागार म िनरोध के िलए कोई आदेश तब तक नह िदया जाएगा, जब तक
िक न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ने ऐसी सूचना जारी न कर दी हो और व्यितकर्मी पर तामील न कर दी हो िजसम उससे उस सूचना म
िविनिदष्ट तारीख को उसके समक्ष उपसंजात होने और यह हेतुक दिशत करने के िलए कहा गया हो िक उसे िसिवल कारागार के सुपुदर्
क्य न कर िदया जाए और जब तक िक लेखब कारण से, न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी का यह समाधान नह हो जाता है िक :—
(क) व्यितकर्मी ने, शािस्त की वसूली म बाधा पहुंचाने या उसे रोकने के उ ेश्य से, न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा
सूचना जारी िकए जाने के पश्चात्, बेईमानी से अपनी संपि के िकसी भाग का अंतरण िकया है, उसे छु पाया या
हटाया है, या
(ख) व्यितकर्मी के पास, न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा सूचना जारी िकए जाने के समय से, बकाय का या उनके
एक बड़े भाग का संदाय करने के साधन ह या रहे ह, और वह उसका संदाय करने से इं कार करता है या उपेक्षा करता है अथवा
उसने इं कार कर िदया है या उपेक्षा की है ।
(3) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा व्यितकर्मी की िगरफ्तारी के िलए वारं ट तभी
जारी िकया जा सके गा जब न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी का, शपथपतर् ारा या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है िक पर्माणपतर् के
िनष्पादन म िवलंब करने के उ ेश्य या पर्भाव से यह संभावना है िक व्यितकर्मी या तो फरार हो जाएगा या वह न्यायिनणार्यक
पर्ािधकारी की अिधकािरता की स्थानीय सीमा को छोड़कर चला जाएगा ।
(4) जहां उपधारा (1) के अधीन जारी की गई और तामील की गई सूचना के अनुसरण म वह उपसंजात नह होता है वहां
न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी व्यितकर्मी की िगरफ्तारी के िलए वारं ट जारी कर सके गा ।
(5) उपधारा (3) या उपधारा (4) के अधीन न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा जारी िकए गए िगरफ्तारी वारं ट का िकसी ऐसे
अन्य न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा िनष्पादन िकया जा सके गा िजसकी अिधकािरता के भीतर व्यितकर्मी तत्समय पाया जाए ।
(6) इस धारा के अधीन िगरफ्तारी वारं ट के अनुसरण म िगरफ्तार िकए गए पर्त्येक व्यिक्त को वारं ट जारी करने वाले,
न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के समक्ष, यथासाध्य शीघर्ता से और िकसी भी दशा म उसकी िगरफ्तारी से चौबीस घंटे के भीतर (यातर्ा के
िलए अपेिक्षत समय को िनकालकर) लाया जाएगा :
परन्तु यिद व्यितकर्मी उसे िगरफ्तारी करने वाले अिधकारी को, बकाया और िगरफ्तारी के खच के रूप म िगरफ्तारी वारं ट म
पर्िवष्ट रकम का संदाय कर देता है तो ऐसा अिधकारी उसे तत्काल िनमुर्क्त कर देगा ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए, जहां व्यितकर्मी िहन्दू अिवभक्त कु टु म्ब हो वहां उस कु टु म्ब का कतार्
व्यितकर्मी समझा जाएगा ।
(7) जब व्यितकर्मी हेतुक दिशत करने की सूचना के अनुसरण म न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के समक्ष हािजर होता है या इस
धारा के अधीन न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के समक्ष लाया जाता है तब न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी व्यितकर्मी को इस बारे म हेतुक दिशत
करने का अवसर पर्दान करे गा िक उसे िसिवल कारागार म क्य न भेज िदया जाए ।
9

(8) न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी जांच के िनष्कषर् के लंिबत रहने के दौरान अपने िववेकानुसार यह आदेश दे सके गा िक
व्यितकर्मी को ऐसे अिधकारी की अिभरक्षा म िनरु रखा जाए िजसे न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी उिचत समझे या जब भी अपेिक्षत हो
उसकी हािजरी के िलए न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी अपने समाधान के िलए पर्ितभूित िदए जाने पर उसे िनमुर्क्त कर सके गा ।
(9) न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी, जांच के िनष्कषर् पर व्यितकर्मी के िसिवल कारागार म िनरोध के िलए आदेश कर सके गा और
उस दशा म, यिद वह पहले से ही िगरफ्तार न हो, उसे िगरफ्तार करवाएगा :
परन्तु न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी, व्यितकर्मी को बकाय को चुकाने का अवसर देने के उ ेश्य से िनरोध का आदेश करने से पूवर्,
व्यितकर्मी को उसे िगरफ्तार करने वाले अिधकारी या िकसी अन्य अिधकारी की अिभरक्षा म पन्दर्ह िदन से अनिधक िविनिदष्ट अविध
के िलए छोड़ सके गा या यिद बकाया नह चुकाए जाते ह, तो िविनिदष्ट अविध की समािप्त पर उसकी हािजरी के िलए न्यायिनणार्यक
पर्ािधकारी समाधान के िलए पर्ितभूित िदए जाने पर उसे िनमुर्क्त कर सके गा ।
(10) जब न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी उपधारा (9) के अधीन िनरोध का आदेश नह करता है तब, यिद व्यितकर्मी िगरफ्तार
हो, वह उसकी िनमुर्िक्त का िनदेश देगा ।
(11) पर्माणपतर् के िनष्पादन म िसिवल कारागार म िनरु पर्त्येक व्यिक्त को,—
(क) जहां पर्माणपतर् एक करोड़ रुपए से अिधक की रकम की मांग के िलए है, वहां तीन वषर् तक; और
(ख) अन्य िकसी दशा म छह मास तक,
िनरु िकया जा सके गा :
परं तु वह, उसके िनरोध के िलए वारं ट म विणत रकम का िसिवल कारागार के भारसाधक अिधकारी को संदाय कर िदए जाने
पर ऐसे िनरोध से िनमुर्क्त कर िदया जाएगा ।
(12) इस धारा के अधीन िनरोध से िनमुर्क्त िकया गया पर्त्येक व्यितकर्मी, मातर् अपनी िनमुर्िक्त के आधार पर, बकाय के िलए
अपने दाियत्व से उन्मोिचत नह होगा िकन्तु वह उस पर्माणपतर् के अधीन िजसके िनष्पादन म उसे िसिवल कारागार म िनरु रखा गया
था, िगरफ्तार िकए जाने का दायी नह होगा ।
(13) िनरोध आदेश भारत म िकसी भी स्थान पर दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) म िगरफ्तारी वारं ट के िनष्पादन के
िलए उपबंिधत रीित से िनष्पािदत िकया जा सके गा ।
15. उल्लंघन का शमन करने की शिक्त—(1) धारा 13 के अधीन िकसी उल्लंघन का शमन, ऐसा उल्लंघन करने वाले व्यिक्त
ारा िकए गए आवेदन पर पर्वतर्न िनदेशक या पर्वतर्न िनदेशालय के ऐसे अन्य अिधकािरय और िरजवर् बक के ऐसे अिधकािरय ारा,
जो के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम पर्ािधकृ त िकए जाएं, ऐसी रीित म, जो िविहत की जाए, आवेदन की पर्ािप्त की तारीख से एक सौ
अस्सी िदन के भीतर िकया जा सके गा ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन उल्लंघन का शमन कर िदया गया है वहां ऐसे शमन िकए गए उल्लंघन की बाबत ऐसा
उल्लंघन करने वाले व्यिक्त के िवरु उक्त धारा के अधीन, यथािस्थित, कोई कायर्वाही या आगे कायर्वाही, यथािस्थित, पर्ारं भ नह की
जाएगी या चालू नह रखी जाएगी ।
अध्याय 5

न्यायिनणर्यन और अपील
16. न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी की िनयुिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार, धारा 13 के अधीन न्यायिनणर्यन के पर्योजन के िलए, उस
व्यिक्त को िजसके िवरु यह अिभकथन है िक उसने धारा 13 के अधीन उल्लंघन िकया है, और िजसके िवरु उपधारा (2) के अधीन
पिरवाद िकया गया है (िजसे इस धारा म इसके पश्चात् उक्त व्यिक्त कहा गया है) कोई शािस्त अिधरोिपत करने के पर्योजन के िलए
सुने जाने का युिक्तयुक्त अवसर पर्दान करने के पश्चात् िविहत रीित म जांच करने के िलए राजपतर् म पर्कािशत आदेश ारा, के न्दर्ीय
सरकार के उतने अिधकािरय को न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के रूप म िनयुक्त कर सके गी िजतने वह उिचत समझे :
परन्तु जहां न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी की यह राय है िक उक्त व्यिक्त के फरार होने की संभावना है या िकसी रीित म शािस्त
के संदाय की यिद उद्गृहीत की जाती है, अपवंचना करने की संभावना है तो वह, उक्त व्यिक्त को, इतनी रकम का और ऐसी शत के
अधीन रहते हुए िजन्ह वह उिचत समझे, बंधपतर् या पर्त्याभूित देने का िनदेश दे सके गा ।
(2) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन न्यायािनणार्यक पर्ािधकािरय को िनयुक्त करते समय, राजपतर् म पर्कािशत आदेश
म, उनकी संबंिधत अिधकािरता को भी िविनिदष्ट करे गी ।
(3) कोई न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी, उपधारा (1) के अधीन कोई जांच, के न्दर्ीय सरकार के साधारण या िवशेष आदेश ारा
पर्ािधकृ त िकसी अिधकारी ारा िलिखत म िकए गए पिरवाद पर ही करे गा, अन्यथा नह ।
10

(4) उक्त व्यिक्त न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के समक्ष अपना पक्ष कथन पर्स्तुत करने के िलए या तो स्वयं हािजर हो सके गा या
अपनी पसंद के िकसी िविध व्यवसायी अथवा चाटर्डर् अकाउन्टट की सहायता ले सके गा ।
(5) पर्त्येक न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी को िसिवल न्यायालय की वही शिक्तयां ह गी, जो धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन
अपील अिधकरण को पर्दान की गई ह और,—
(क) उसके समक्ष सभी कायर्वािहयां भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के
अथार्न्तगर्त न्याियक कायर्वािहयां समझी जाएंगी;
(ख) वह दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 के पर्योजन के िलए िसिवल
न्यायालय समझा जाएगा ।
(6) पर्त्येक न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी उपधारा (2) के अधीन पिरवाद पर यथासंभव शीघर्ता से िवचार करे गा और उक्त
पिरवाद पर्ाप्त होने की तारीख से एक वषर् के भीतर अंितम रूप से िनपटारा करने का पर्यास करे गा :
परन्तु जहां पिरवाद का उक्त अविध के भीतर िनपटारा नह िकया जा सकता वहां न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी उक्त अविध के
भीतर पिरवाद का िनपटारा न कर पाने के िलए िलिखत म कारण को कािलक रूप से लेखब करे गा ।
17. िवशेष िनदेशक (अपील) को अपील—(1) के न्दर्ीय सरकार, इस धारा के अधीन न्यायिनणार्यक पर्ािधकािरय के आदेश के
िवरु अपील की सुनवाई करने के िलए एक या अिधक िवशेष िनदेशक (अपील), अिधसूचना ारा, िनयुक्त करे गी और उक्त
अिधसूचना म उन िवषय और स्थान को भी िविनिदष्ट करे गी िजनकी बाबत िवशेष िनदेशक (अपील) अिधकािरता का पर्योग कर
सके गा ।
(2) ऐसे न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा, जो पर्वतर्न सहायक िनदेशक या पर्वतर्न उप िनदेशक है, िकए गए आदेश से व्यिथत
कोई व्यिक्त िवशेष िनदेशक (अपील) को अपील कर सके गा ।
(3) उपधारा (1) के अधीन पर्त्येक अपील उस तारीख से िजसको न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा िकए गए आदेश की पर्ित
व्यिथत व्यिक्त को पर्ाप्त होती है, पतालीस िदन के भीतर फाइल की जाएगी और वह ऐसे पर्रूप म होगी, ऐसी रीित म सत्यािपत की
जाएगी और उसके साथ उतनी फीस होगी, जो िविहत की जाए :
परन्तु िवशेष िनदेशक (अपील) उक्त पतालीस िदन की अविध की समािप्त के पश्चात् भी अपील गर्हण कर सके गा यिद उसका
यह समाधान हो जाता है िक उस अविध के भीतर अपील फाइल न कर पाने के िलए पयार्प्त कारण था ।
(4) उपधारा (1) के अधीन अपील की पर्ािप्त पर, िवशेष िनदेशक (अपील), अपील के पक्षकार को सुने जाने का अवसर देने के
पश्चात् उस आदेश की, िजसके िवरु अपील की गई है, पुिष्ट करते हुए, उसे उपांतिरत करते हुए या अपास्त करते हुए उस पर ऐसा
आदेश पािरत कर सके गा जैसा वह उिचत समझे ।
(5) िवशेष िनदेशक (अपील), उसके ारा िकए गए पर्त्येक आदेश की एक-एक पर्ित अपील के पक्षकार और संबंिधत
न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी को भेजेगा ।
(6) िवशेष िनदेशक (अपील) को िसिवल न्यायालय की वही शिक्तयां ह गी जो धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन अपील
अिधकरण को पर्दान की गई ह और—
(क) उसके समक्ष सभी कायर्वािहयां, भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के
अथार्न्तगर्त न्याियक कायर्वािहयां समझी जाएंगी;
(ख) वह दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 के पर्योजन के िलए िसिवल
न्यायालय समझा जाएगा ।
18. अपील अिधकरण की स्थापना—के न्दर्ीय सरकार, इस अिधिनयम के अधीन न्यायिनणार्यक पर्ािधकािरय
पर्ािधकािरय ] और िवशेष िनदेशक (अपील) के आदेश के िवरु अपील की सुनवाई करने के िलए, िवदेशी मुदर्ा अपील
1 [,सक्षम

अिधकरण के नाम से ज्ञात अपील अिधकरण की, अिधसूचना ारा स्थापना करे गी ।
19. अपील अिधकरण को अपील—(1) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, के न्दर्ीय सरकार या धारा 17 की
उपधारा (1) म िनिदष्ट न्यायिनणार्यक पर्ािधकािरय से िभन्न न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी या िवशेष िनदेशक (अपील) ारा िकए गए
िकसी आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त, अपील अिधकरण को अपील कर सके गा :
परन्तु न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी या िवशेष िनदेशक (अपील) के शािस्त उ हण करने वाले आदेश के िवरु अपील करने
वाला व्यिक्त, अपील फाइल करते समय, ऐसी शािस्त की रकम ऐसे पर्ािधकारी के , िजसे के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूिचत िकया जाए,
पास जमा करे गा :

1
2015 के अधिनयम सं० 20 की धारा 141 ारा अंतस्थािपत ।
11

परन्तु यह और िक जहां िकसी िविशष्ट मामले म अपील अिधकरण की यह राय है िक ऐसी शािस्त जमा करने से ऐसे व्यिक्त
को असम्यक् किठनाई पैदा होगी, वहां अपील अिधकरण ऐसे जमा करने से, ऐसी शत के अधीन रहते हुए िजन्ह वह शािस्त की वसूली
को सुरिक्षत करने के िलए अिधरोिपत करना उिचत समझे, अिभमुिक्त दे सके गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन पर्त्येक अपील उस तारीख से िजसको न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी या िवशेष िनदेशक (अपील) ारा
िकए गए आदेश की पर्ित व्यिथत व्यिक्त या के न्दर्ीय सरकार को पर्ाप्त होती है, पतालीस िदन की अविध के भीतर फाइल की जाएगी
और वह ऐसे पर्रूप म होगी तथा ऐसी रीित म सत्यािपत की जाएगी तथा उसके साथ उतनी फीस होगी, जो िविहत की जाए :
परन्तु अपील अिधकरण, उक्त पतालीस िदन की अविध की समािप्त के पश्चात् भी अपील गर्हण कर सके गा यिद उसका यह
समाधान हो जाता है िक उस अविध के भीतर अपील फाइल न कर पाने के िलए पयार्प्त कारण था ।
(3) उपधारा (1) के अधीन अपील की पर्ािप्त पर, अपील अिधकरण, अपील के पक्षकार को सुने जाने का अवसर देने के
पश्चात् उस आदेश को िजसके िवरु अपील की गई है पुिष्ट करते हुए, उसे उपांतिरत करते हुए या अपास्त करते हुए उस पर ऐसा
आदेश पािरत कर सके गा, जैसा वह ठीक समझे ।
(4) अपील अिधकरण, उसके ारा िकए गए पर्त्येक आदेश की एक-एक पर्ित अपील के पक्षकार और, यथािस्थित, संबंिधत
न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी या िवशेष िनदेशक (अपील) को भेजेगा ।
(5) उपधारा (1) के अधीन अपील अिधकरण के समक्ष फाइल की गई अपील पर उसके ारा यथासंभव शीघर्ता से िवचार
िकया जाएगा और अपील पर्ाप्त होने की तरीख से एक सौ अस्सी िदन के भीतर उसके ारा अपील का अंितम रूप से िनपटारा करने का
पर्यास िकया जाएगा :
परन्तु जहां िकसी अपील का उक्त एक सौ अस्सी िदन की अविध के भीतर िनपटारा नह िकया जा सकता, वहां अपील
अिधकरण उक्त अविध के भीतर अपील का िनपटारा न कर पाने के अपने कारण को लेखब करे गा ।
(6) अपील अिधकरण, िकसी कायर्वाही के संबंध म, धारा 16 के अधीन न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा िकए गए िकसी आदेश
की वैधता, औिचत्य या शु ता की परीक्षा करने के पर्योजनाथर् स्वपर्ेरणा से या अन्यथा, ऐसी कायर्वािहय के अिभलेख मंगा सके गा और
मामले म ऐसा आदेश कर सके गा जैसा वह ठीक समझे ।
20. अपील अिधकरण की संरचना—(1) अपील अिधकरण, अध्यक्ष और उतने सदस्य से िमलकर बनेगा िजतने के न्दर्ीय
सरकार ठीक समझे ।
(2) इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन रहते हुए,—
(क) अपील अिधकरण की अिधकािरता का पर्योग उसकी न्यायपीठ ारा िकया जा सके गा;
(ख) न्यायपीठ का गठन, अध्यक्ष ारा, एक या अिधक सदस्य से, जो अध्यक्ष ठीक समझे, िकया जा सके गा;
(ग) अपील अिधकरण की न्यायपीठ सामान्यतया नई िदल्ली म और ऐसे अन्य स्थान पर अिधिवष्ट ह गी, जो
के न्दर्ीय सरकार, अध्यक्ष के परामशर् से, अिधसूिचत करे ;
(घ) के न्दर्ीय सरकार, उन क्षेतर् को अिधसूिचत करे गी िजनके संबंध म अपील अिधकरण की पर्त्येक न्यायपीठ
अिधकािरता का पर्योग कर सके गी ।
(3) उपधारा (2) म िकसी बात के होते हुए भी, अध्यक्ष िकसी सदस्य को एक न्यायपीठ से िकसी दूसरे न्यायपीठ म
स्थानांतिरत कर सके गा ।
(4) यिद िकसी मामले या िवषय की सुनवाई के िकसी पर्कर्म पर अध्यक्ष या िकसी सदस्य को यह पर्तीत होता है िक मामला या
िवषय ऐसी पर्कृ ित का है िजसकी सुनवाई दो सदस्य से िमलकर बनी िकसी न्यायपीठ ारा की जानी चािहए तो वह मामला या िवषय
अध्यक्ष ारा, यथािस्थित, ऐसी न्यायपीठ को अंतिरत िकया जा सके गा या अंतरण के िलए उसको िनिदष्ट िकया जा सके गा, जो अध्यक्ष
ठीक समझे ।
21. अध्यक्ष, सदस्य और िवशेष िनदेशक (अपील) की िनयुिक्त के िलए अहर्ताएं—(1) कोई व्यिक्त अध्यक्ष या िकसी सदस्य के
रूप म िनयुिक्त के िलए तभी अिहत होगा जब वह—
(क) अध्यक्ष की दशा म, िकसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो या होने के िलए अिहत हो; और
(ख) सदस्य की दशा म, िजला न्यायाधीश हो या रहा हो या होने के िलए अिहत हो ।
(2) कोई व्यिक्त िवशेष िनदेशक (अपील) के पद पर िनयुिक्त के िलए तभी अिहत होगा, जब वह,—
(क) भारतीय िविधक सेवा का सदस्य रहा हो और उसने उक्त सेवा की शर्ेणी का पद धारण िकया हो; या
(ख) भारतीय राजस्व सेवा का सदस्य रहा हो और भारत सरकार के संयुक्त सिचव के समतुल्य पद धारण
िकया हो ।
12

22. पदाविध—अध्यक्ष और पर्त्येक अन्य सदस्य, उस तारीख से, िजसको वह अपना पद गर्हण करता है, पांच वषर् की अविध के
िलए उस हैिसयत म पद धारण करे गा :
परन्तु कोई अध्यक्ष या अन्य सदस्य,—
(क) अध्यक्ष की दशा म, पैसठ वषर्; और
(ख) अन्य सदस्य की दशा म, बासठ वषर्,
की आयु पर्ाप्त कर लेने के पश्चात् उस हैिसयत म पद धारण नह करे गा ।
23. सेवा के िनबंधन और शत—अध्यक्ष, अन्य सदस्य और िवशेष िनदेशक (अपील) को संदय
े वेतन और भ े तथा उनकी सेवा
के अन्य िनबंधन और शत वे ह गी, जो िविहत की जाएं :
परन्तु अध्यक्ष के या िकसी सदस्य के न तो वेतन और भ म और न ही उसकी सेवा के अन्य िनबंधन और शत म उसकी
िनयुिक्त के पश्चात् उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न िकया जाएगा ।
24. िरिक्तयां—यिद अध्यक्ष या िकसी सदस्य के पद म, अस्थायी अनुपिस्थित से िभन्न कारण से कोई िरिक्त होती है तो
के न्दर्ीय सरकार, उस िरिक्त को भरने के िलए इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार िकसी अन्य व्यिक्त को िनयुक्त करे गी और अपील
अिधकरण के समक्ष कायर्वािहयां उसी पर्कर्म से जारी रखी जा सकगी िजस पर िरिक्त भरी जाती है ।
25. पदत्याग और हटाया जाना—(1) अध्यक्ष या कोई सदस्य, के न्दर्ीय सरकार को संबोिधत अपने हस्ताक्षर सिहत िलिखत
सूचना ारा अपना पद त्याग सके गा :
परन्तु अध्यक्ष या कोई सदस्य, जब तक िक के न्दर्ीय सरकार उसे अपना पद पहले छोड़ने के िलए अनुज्ञात न कर दे, ऐसी
सूचना की पर्ािप्त की तारीख से तीन मास के समाप्त होने तक या उसके पदो रवत के रूप म सम्यक् रूप से िनयुक्त िकसी व्यिक्त के
अपना पद गर्हण्ा करने तक या अपनी पदाविध के समाप्त होने तक, इनम से जो भी सबसे पहले हो, पद धारण करता रहेगा ।
(2) अध्यक्ष या िकसी सदस्य को उसके पद से, ऐसे व्यिक्त ारा, िजसे राष्टर्पित इस पर्योजन के िलए िनयुक्त करे , की गई
िकसी जांच के पश्चात्, िजसम संब अध्यक्ष या िकसी सदस्य को उसके िवरु आरोप के बारे म सूिचत कर िदया गया हो और ऐसे
आरोप के संबंध म सनुवाई का उिचत अवसर दे िदया गया हो, सािबत कदाचार या असमथर्ता के आधार पर के न्दर्ीय सरकार ारा िकए
गए आदेश से हटाया जाएगा, अन्यथा नह ।
26. कितपय पिरिस्थितय म सदस्य का अध्यक्ष के रूप म कायर् करना—(1) अध्यक्ष की मृत्यु, पदत्याग या अन्य कारण से
उसके पद म हुई िरिक्त की दशा म, ज्येष्ठतम सदस्य, उस तारीख तक अध्यक्ष के रूप म कायर् करे गा िजस तारीख को ऐसी िरिक्त को
भरने के िलए इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार िनयुक्त नया अध्यक्ष अपना पद गर्हण करता है ।
(2) जब अध्यक्ष, अनुपिस्थित, बीमारी या अन्य िकसी कारण से अपने कृ त्य का िनवर्हन करने म असमथर् है तब ज्येष्ठतम
सदस्य, उस तारीख तक अध्यक्ष के कृ त्य का िनवर्हन करे गा िजस तारीख को अध्यक्ष अपने कतर्व्य को िफर से संभालता है ।
27. अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) के कमर्चािरवृन्द—(1) के न्दर्ीय सरकार, अपील अिधकरण और िवशेष
िनदेशक (अपील) को उतने अिधकारी और कमर्चारी उपलब्ध कराएगी िजतने वह ठीक समझे ।
(2) अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) कायार्लय के अिधकारी और कमर्चारी अपने कृ त्य का िनवर्हन,
यथािस्थित, अध्यक्ष और िवशेष िनदेशक (अपील) के साधारण अधीक्षण के अधीन करगे ।
(3) अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) कायार्लय के अिधकािरय और कमर्चािरय के वेतन और भ े तथा उनकी
सेवा की अन्य शत वे ह गी जो िविहत की जाएं ।
28. अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) की पर्िकर्या और शिक्तयां—(1) अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक
(अपील) िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) ारा अिधकिथत पर्िकर्या से आब नह ह गे िकन्तु नैसिगक न्याय के िस ांत
ारा मागर्दिशत ह गे और इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) को
अपनी ही पर्िकर्या िविनयिमत करने की शिक्तयां ह गी ।
(2) अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) को, इस अिधिनयम के अधीन अपने कृ त्य का िनवर्हन करने के पर्योजन
के िलए, वही शिक्तयां ह गी जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन िकसी वाद का िवचारण करते समय
िनम्निलिखत िवषय की बाबत िकसी िसिवल न्यायालय म िनिहत ह, अथार्त् :—
(क) िकसी व्यिक्त को समन करना और उसे हािजर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेज के पर्कटीकरण और पेश िकए जाने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथपतर् पर सा य गर्हण करना;
13

(घ) भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 के उपबंध के अधीन रहते हुए,
िकसी कायार्लय से िकसी लोक अिभलेख या दस्तावेज अथवा ऐसे अिभलेख या दस्तावेज की पर्ित की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) सािक्षय या दस्तावेज की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालना;
(च) अपने िविनश्चय का पुनिवलोकन करना;
(छ) व्यितकर्म म िकसी अभ्यावेदन को खािरज करना या उसका एकपक्षीय रूप से िविनश्चय करना;
(ज) व्यितकर्म म िकसी अभ्यावेदन को खािरज करने के िकसी आदेश या उसके ारा एकपक्षीय रूप से पािरत िकसी
आदेश को अपास्त करना; और
(झ) कोई अन्य िवषय, जो के न्दर्ीय सरकार ारा िविहत िकया जाए ।
(3) अपील अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील) ारा इस अिधिनयम के अधीन िकया गया कोई आदेश अपील अिधकरण
और िवशेष िनदेशक (अपील) ारा िसिवल न्यायालय की िडकर्ी के रूप म िनष्पादनीय होगा और इस पर्योजन के िलए अपील अिधकरण
और िवशेष िनदेशक (अपील) को िसिवल न्यायालय की सभी शिक्तयां ह गी ।
(4) उपधारा (3) म िकसी बात के होते हुए भी, अपील अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील) अपने ारा िकए गए िकसी
आदेश को स्थानीय अिधकािरता रखने वाले िकसी ऐसे िसिवल न्यायालय को पारे िषत कर सके गा और ऐसा िसिवल न्यायालय उस
आदेश का इस पर्कार िनष्पादन करे गा मानो वह उस न्यायालय ारा की गई कोई िडकर्ी हो ।
(5) अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) के समक्ष सभी कायर्वािहयां भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा
193 और धारा 228 के अथर् म न्याियक कायर्वािहयां समझी जाएंगी और अपील अिधकरण दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की
धारा 345 और धारा 346 के पर्योजन के िलए िसिवल न्यायालय समझा जाएगा ।
29. न्यायपीठ म कायर् का िवतरण—जहां न्यायपीठ का गठन िकया जाता है वहां अध्यक्ष, समय-समय पर, अिधसूचना
ारा, अपील अिधकरण के कायर् के न्यायपीठ म िवतरण के बारे म उपबंध कर सके गा और उन िवषय के िलए भी उपबंध कर सके गा
िजनके बारे म पर्त्येक न्यायपीठ ारा कायर्वाही की जा सके गी ।
30. मामले अंतिरत करने की अध्यक्ष की शिक्त—िकसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकार को सूचना िदए जाने के
पश्चात् तथा उनम से ऐसे पक्षकार की सुनवाई करने के पश्चात् िजसे वह सुने जाने की वांछा करे या ऐसी सूचना के िबना स्वपर्ेरणा से,
अध्यक्ष िकसी एक न्यायपीठ के समक्ष लंिबत िकसी मामले को िनपटारे के िलए िकसी अन्य न्यायपीठ को अन्तिरत कर सके गा ।
31. बहुमत ारा िविनश्चय िकया जाना—यिद दो सदस्य से िमलकर बने िकसी न्यायपीठ के सदस्य की िकसी पर्श्न पर राय
म िभन्नता है तो वे उस पर्श्न या उन पर्श्न का कथन करगे िजन पर उनका मतभेद है और अध्यक्ष को िनदश करगे जो या तो उस पर्श्न
या उन पर्श्न की स्वयं सुनवाई करे गा या उस पर्श्न या उन पर्श्न पर अपील अिधकरण के अन्य सदस्य म से िकसी एक या अिधक
सदस्य ारा सुनवाई िकए जाने के िलए मामले को िनदिशत करे गा और ऐसे पर्श्न या पर्श्न का िविनश्चय अपील अिधकरण के उन
सदस्य के बहुमत के अनुसार िकया जाएगा िजन्ह ने मामले की सुनवाई की है िजनके अन्तगर्त वे सदस्य भी ह िजन्ह ने उसकी पर्थम
सुनवाई की थी ।
32. िविध व्यवसायी या चाटर्डर् अकाउटट की सहायता लेने का अपीलाथ का और उपस्थापक अिधकािरय की िनयुिक्त करने
का सरकार का अिधकार—(1) इस अिधिनयम के अधीन, अपील अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील) को अपील करने वाला व्यिक्त,
यथािस्थित, अपील अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील) के समक्ष अपना मामला उपस्थािपत करने के िलए या तो स्वयं उपिस्थत हो
सके गा या अपनी पसन्द के िकसी िविध व्यवसायी या चाटर्डर् अकाउं टट की सहायता ले सके गा ।
(2) के न्दर्ीय सरकार एक या अिधक िविध व्यवसाियय या चाटर्डर् अकाउं टेट को या अपने अिधकािरय म से िकसी को
उपस्थापक अिधकािरय के रूप म कायर् करने के िलए पर्ािधकृ त कर सके गी और इस पर्कार पर्ािधकृ त पर्त्येक व्यिक्त, यथािस्थित, अपील
अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील) के समक्ष िकसी अपील के संबंध म मामला उपस्थािपत कर सके गा ।
33. सदस्य , आिद का लोक सेवक होना—अपील अिधकरण के अध्यक्ष, सदस्य और अन्य अिधकािरय तथा कमर्चािरय ,
िवशेष िनदेशक (अपील) और न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी के बारे म यह समझा जाएगा िक वे, भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) की
धारा 21 के अथार्न्तगर्त लोक सेवक ह ।
34. िसिवल न्यायालय की अिधकािरता का न होना—िकसी िसिवल न्यायालय को िकसी ऐसे िवषय की बाबत कोई वाद या
कायर्वाही गर्हण करने की अिधकािरता नह होगी िजसको न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी या अपील अिधकरण या िवशेष िनदेशक (अपील)
इस अिधिनयम ारा या इसके अधीन अवधािरत करने के िलए सशक्त है, और इस अिधिनयम ारा या इसके अधीन पर्द शिक्त के
अनुसरण म की गई या की जाने वाली िकसी कारर् वाई की बाबत कोई व्यादेश िकसी न्यायालय या अन्य पर्ािधकारी ारा नह िदया
जाएगा ।
14

35. उच्च न्यायालय को अपील—अपील अिधकरण के िकसी िविनश्चय या आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त, अपील अिधकरण
का िविनश्चय या आदेश उसको संसूिचत िकए जाने की तारीख से साठ िदन के भीतर ऐसे आदेश से उद्भूत िविध के िकसी पर्श्न पर
उच्च न्यायालय को अपील फाइल कर सके गा :
परन्तु यिद उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक अपीलाथ को उक्त अविध के भीतर अपील फाइल करने से
पयार्प्त कारण से िनवािरत िकया गया था तो वह उसे साठ िदन से अनिधक की और अविध के भीतर अपील फाइल करने के िलए
अनुज्ञात कर सके गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “उच्च न्यायालय” से अिभपर्ेत है,—
(क) वह उच्च न्यायालय िजसकी अिधकािरता के भीतर व्यिथत पक्षकार मामूली तौर से िनवास करता है या
कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है; और
(ख) जहां के न्दर्ीय सरकार व्यिथत पक्षकार है वहां वह उच्च न्यायालय िजसकी अिधकािरता के भीतर पर्त्यथ ,
अथवा िकसी ऐसे मामले म जहां एक से अिधक पर्त्यथ ह, वहां, कोई पर्त्यथ , मामूली तौर से िनवास करता है या कारबार
करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है ।
अध्याय 6

पर्वतर्न िनदेशालय
36. पर्वतर्न िनदेशालय—(1) के न्दर्ीय सरकार, इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए एक पर्वतर्न िनदेशालय की स्थापना करे गी,
िजसम एक िनदेशक और ऐसे अन्य अिधकारी या अिधकािरय का वगर् होगा, जो वह ठीक समझे, िजन्ह पर्वतर्न अिधकारी कहा जाएगा ।
(2) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (1) के उपबन्ध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, पर्वतर्न सहायक िनदेशक की पंिक्त से नीचे के
पर्वतर्न अिधकािरय की िनयुिक्त करने के िलए पर्वतर्न िनदेशक या पर्वतर्न अपर िनदेशक या पर्वतर्न िवशेष िनदेशक या पर्वतर्न उप-
िनदेशक को, पर्ािधकृ त कर सके गी ।
(3) ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए जो के न्दर्ीय सरकार अिधरोिपत करे , पर्वतर्न अिधकारी इस अिधिनयम के
अधीन उसे पर्द शिक्तय का पर्योग और अिधरोिपत कतर्व्य का िनवर्हन कर सके गा ।
37. तलाशी, अिभगर्हण आिद की शिक्त—(1) पर्वतर्न िनदेशक और ऐसे अन्य पर्वतर्न अिधकारी जो सहायक िनदेशक की
पंिक्त से नीचे के न ह , धारा 13 म िनिदष्ट उल्लंघन के अन्वेषण का कायर् करगे ।
(2) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (1) के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, अिधसूचना ारा, के न्दर्ीय सरकार, राज्य
सरकार या िरजवर् बक के िकसी अिधकारी या अिधकािरय के िकसी वगर् को जो भारत सरकार के अवर सिचव की पंिक्त से नीचे का न
हो, धारा 13 म िनिदष्ट िकसी उल्लंघन का अन्वेषण करने के िलए भी पर्ािधकृ त कर सके गी ।
(3) उपधारा (1) म िनिदष्ट अिधकारी वैसी ही शिक्तय का पर्योग करगे जो आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) के
अधीन आय-कर पर्ािधकािरय को पर्दान की गई ह और ऐसी शिक्तय का पर्योग उस अिधिनयम के अधीन अिधकिथत पिरसीमा के
अधीन रहते हुए करगे ।
धारा 4 के उल्लंघन म भारत से बाहर धािरत आिस्तय के संबध
1 [37क. ं म िवशेष उपबंध—(1) िकसी जानकारी की पर्ािप्त
पर या अन्यथा यिद के न्दर्ीय सरकार ारा िविहत पर्ािधकृ त अिधकारी के पास यह िवश्वास करने का कारण है िक िकसी िवदेशी मुदर्ा,
िवदेशी पर्ितभूित या भारत के बाहर िस्थत िकसी स्थावर संपि के धारा 4 के उल्लंघन म धािरत िकए जाने का संदह
े है, तो वह कारण
को लेखब िकए जाने के पश्चात् आदेश ारा, ऐसी िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या भारत के भीतर स्थावर संपि के समतुल्य मूल्य
का अिभगर्हण कर सके गा :
परं तु ऐसा कोई अिभगर्हण ऐसे मामले म नह िकया जाएगा जहां ऐसी िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या भारत के बाहर
िस्थत िकसी स्थावर संपि का कु ल मूल्य उस मूल्य से कम है जो िविहत िकया जाए ।
(2) अिभगर्हण का सुसंगत सामगर्ी सिहत आदेश कदर्ीय सरकार ारा िनयुक्त ऐसे सक्षम अिधकारी के समक्ष, जो भारत
सरकार के संयुक्त सिचव की पंिक्त से नीचे का नह होगा ऐसे अिभगर्हण की तारीख से तीस िदन की अविध के भीतर रखा जाएगा ।
(3) सक्षम पर्ािधकारी ऐसी यािचका का िनपटारा पर्वतर्न िनदेशालय के पर्ितिनिधय और व्यिथत व्यिक्त को सुने जाने का
अवसर देने के पश्चात् अिभगर्हण की तारीख से एक सौ अस्सी िदन की अविध के भीतर ऐसे आदेश की पुिष्ट करके या उसे अपास्त
करके करे गा ।

1
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 142 ारा अंत:स्थािपत ।
15

स्पष्टीकरण—एक सौ अस्सी िदन की अविध की संगणना करते समय न्यायालय ारा मंजूर की गई रोक की अविध को
अपविजत िकया जाएगा और ऐसे रोक आदेश के बाितल िकए जाने की संसूचना की तारीख से कम से कम तीस िदन की अितिरक्त
अविध की मंजूरी दी जाएगी ।
(4) सक्षम पर्ािधकारी का समतुल्य आिस्त के अिभगर्हण की पुिष्ट करने संबध ं ी आदेश न्यायिनणर्यन की कायर्वािहय का
िनपटारा होने तक बना रहेगा और तत्पश्चात् न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी उपधारा (1) के अधीन िकए गए अिभगर्हण के बारे म और
कारर् वाई करने के संबंध म न्यायिनणर्यन संबध
ं ी आदेश म समुिचत िनदेश पािरत करे गा :
परं तु यिद इस अिधिनयम के अधीन कायर्वािहय के िकसी पर्कर्म पर व्यिथत व्यिक्त ऐसी िवदेशी मुदर्ा, िवदेशी पर्ितभूित या
स्थावर संपि के तथ्य को पर्कट करता है और उसे भारत म वापस लाता है तो, यथािस्थित, सक्षम पर्ािधकारी या न्यायिनणार्यक
पर्ािधकारी, व्यिथत व्यिक्त से इस संबंध म आवेदन की पर्ािप्त पर और व्यिथत व्यिक्त तथा पर्वतर्न िनदेशालय के पर्ितिनिधय को सुने
जाने का अवसर िदए जाने के पश्चात् ऐसा समुिचत आदेश पािरत करे गा जो वह ठीक समझे, िजसके अंतगर्त उपधारा (1) के अधीन
िकए गए अिभगर्हण को अपास्त िकए जाने का आदेश भी है ।
(5) सक्षम पर्ािधकारी ारा पािरत िकसी आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त अपील अिधकरण को अपील कर सके गा ।
(6) धारा 15 म अंतिवष्ट कोई बात इस धारा को लागू नह होगी ।]
38. अन्य अिधकािरय को सशक्त करना—(1) के न्दर्ीय सरकार, आदेश ारा और ऐसी शत तथा पिरसीमा के अधीन रहते
हुए िजन्ह वह अिधरोिपत करना ठीक समझे, सीमाशुल्क के िकसी अिधकारी या िकसी के न्दर्ीय उत्पाद-शुल्क अिधकारी या िकसी पुिलस
अिधकारी या के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार के िकसी अन्य अिधकारी को इस अिधिनयम के अधीन पर्वतर्न िनदेशक या िकसी अन्य
पर्वतर्न अिधकारी की ऐसी शिक्तय का पर्योग और ऐसे कतर्व्य का िनवर्हन करने के िलए, जो आदेश म किथत िकए जाएं, पर्ािधकृ त कर
सके गी ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट अिधकारी वैसी ही शिक्तय का, जो आय-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) के अधीन आय-
कर पर्ािधकािरय को पर्दान की गई ह, ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए पर्योग करगे िजन्ह के न्दर्ीय सरकार
अिधरोिपत करे ।
अध्याय 7

पर्कीणर्
39. कितपय मामल म दस्तावेज के बारे म उपधारणा—जहां कोई दस्तावेज—
(i) िकसी व्यिक्त ारा पेश की जाती है या दी जाती है अथवा िकसी व्यिक्त की अिभरक्षा या िनयंतर्ण से दोन
दशा म इस अिधिनयम के अधीन या िकसी अन्य िविध के अधीन अिभगर्हीत की जाती है; या
(ii) इस अिधिनयम के अधीन िकसी ऐसे उल्लंघन के अन्वेषण के दौरान, िजसके बारे म यह अिभकथन है िक िकसी
व्यिक्त ने उसे िकया है, भारत से बाहर िकसी स्थान से (ऐसे पर्ािधकारी या व्यिक्त ारा और ऐसी रीित से, जो िविहत की
जाए, सम्यक् रूप से अिधपर्मािणत रूप म पर्ाप्त की गई है), और ऐसी दस्तावेज इस अिधिनयम के अधीन िकसी कायर्वाही म
उसके िवरु अथवा उसके और िकसी अन्य ऐसे व्यिक्त के िवरु , िजसके िवरु उसके साथ संयुक्त रूप से कायर्वाही की गई
है, सा य म पर्स्तुत की गई है, वहां, यथािस्थित, न्यायालय या न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी,—
(क) जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत नह कर िदया गया हो, यह उपधारणा करे गा िक ऐसी दस्तावेज पर
हस्ताक्षर और उसका पर्त्येक अन्य भाग, िजसका िकसी िविशष्ट व्यिक्त के हस्तलेख म होना तात्पियत है या िजसकी
बाबत न्यायालय उिचत रूप से यह मान सकता है िक वह िकसी िविशष्ट व्यिक्त ारा हस्ताक्षिरत की गई ह या वह
उसके हस्तलेख म है, उस व्यिक्त के हस्तलेख म है और िनष्पािदत या अनुपर्मािणत दस्तावेज की दशा म, यह
उपधारणा करे गा िक वह उसी व्यिक्त ारा, िनष्पािदत या अनुपर्मािणत की गई थी िजसके ारा उसका िनष्पािदत
या अनुपर्मािणत िकया जाना तात्पियत है;
(ख) यिद ऐसी दस्तावेज सा य म अन्यथा गर्ा है तो उस दस्तावेज को इस बात के होते हुए भी, सा य
म गर्हण करे गा िक यह सम्यक् रूप से स्टांिपत नह है;
(ग) खंड (i) के अन्तगर्त आने वाले मामले म, जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न कर िदया गया हो, यह
उपधारणा भी करे गा िक ऐसी दस्तावेज की अंतवर्स्तुएं सही ह ।
40. इस अिधिनयम के पर्वतर्न का िनलंबन—(1) यिद के न्दर्ीय सरकार का समाधान हो जाता है िक ऐसी पिरिस्थितयां उत्पन्न
हो गई ह िजनके कारण यह आवश्यक हो गया है िक इस अिधिनयम ारा अनुद िकसी अनुज्ञा या अिधरोिपत िकसी िनबर्ंधन को
अनुद या अिधरोिपत िकया जाना समाप्त िकया जाना चािहए, या यिद वह लोकिहत म ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती
है, तो के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस अिधिनयम के सभी या िकन्ह उपबंध का पर्वतर्न, उस पिरमाण तक या तो
अिनिश्चतकाल के िलए या ऐसी अविध के िलए जो अिधसूिचत की जाए, िनलंिबत कर सके गी या उन्ह िशिथल कर सके गी ।
16

(2) जहां इस अिधिनयम के िकसी उपबंध का पर्वतर्न उपधारा (1) के अधीन अिनिश्चत काल के िलए िनलंिबत या िशिथल
िकया गया है वहां ऐसा िनलंबन या िशिथलीकरण, इस अिधिनयम के पर्वृ रहने के दौरान िकसी भी समय के न्दर्ीय सरकार ारा,
अिधसूचना ारा, हटाया जा सके गा ।
(3) इस धारा के अधीन िनकाली गई पर्त्येक अिधसूचना, िनकाले जाने के पश्चात् यथाशीघर् संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष,
जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखी जाएगी । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी
हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन, उस अिधसूचना म कोई
पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगी । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन
सदन सहमत हो जाएं िक वह अिधसूचना नह िनकाली जानी चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगी । िकन्तु अिधसूचना के
ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पडे़गा ।
41. िनदेश देने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त—इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए, के न्दर्ीय सरकार, समय-समय पर, िरजवर्
बक को ऐसे साधारण या िवशेष िनदेश दे सके गी जो वह ठीक समझे और िरजवर् बक, इस अिधिनमय के अधीन अपने कृ त्य के िनवर्हन
म, िकन्ह ऐसे िनदेश का पालन करे गा ।
42. कं पनी ारा उल्लंघन—(1) जहां इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िदए गए िकसी िनदेश या िकए
गए िकसी आदेश के उपबंध म से िकसी का उल्लंघन करने वाला कोई व्यिक्त कं पनी है, वहां ऐसा पर्त्येक व्यिक्त, जो उस उल्लंघन के
िकए जाने के समय उस कं पनी के कारोबार के संचालन के िलए उस कं पनी का भारसाधक और उसके पर्ित उ रदायी था और साथ ही
वह कं पनी भी, ऐसे उल्लंघन के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दंिडत िकए जाने के
भागी ह गे :
परन्तु इस उपधारा की कोई बात िकसी ऐसे व्यिक्त को दंड का भागी नह बनाएगी यिद वह यह सािबत कर देता है िक
उल्लंघन उसकी जानकारी के िबना िकया गया था या उसने ऐसे उल्लंघन के िकए जाने का िनवारण करने के िलए सब सम्यक् तत्परता
बरती थी ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िदए गए िकसी
िनदेश या िकए गए िकसी आदेश के उपबंध म से िकसी का कोई उल्लंघन, िकसी कं पनी ारा िकया गया है और यह सािबत हो जाता है
िक वह उल्लंघन कं पनी के िकसी िनदेशक, पर्बंधक, सिचव या अन्य अिधकारी की सहमित या मौनानुकूलता से िकया गया है या उस
उल्लंघन का िकया जाना उसकी िकसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा िनदेशक, पर्बंधक, सिचव या अन्य अिधकारी भी
उस उल्लंघन का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दंिडत िकए जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए,—
(i) “कं पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त फमर् या व्यिष्टय का अन्य संगम है; और
(ii) फमर् के संबंध म, “िनदेशक” से उस फमर् का भागीदार अिभपर्ेत है ।
43. कितपय मामल म मृत्यु या िदवािलयापन—धारा 13 के उपबंध के संबंध म उत्पन्न िकसी अिधकार, बाध्यता, दाियत्व,
कायर्वाही या अपील का उस धारा के अधीन दायी व्यिक्त की मृत्यु या िदवािलयापन के कारण उपशमन नह होगा और ऐसी मृत्यु या
िदवािलयापन होने पर ऐसे अिधकार और बाध्यताएं, यथािस्थित, ऐसे व्यिक्त के िविधक पर्ितिनिध या शासकीय िरसीवर या शासकीय
समनुदिे शती को न्यागत हो जाएंगी :
परन्तु यह िक मृतक का िविधक पर्ितिनिध के वल मृतक की िवरासत या सम्पदा तक ही दायी होगा ।
44. िविधक कायर्वािहय का वजर्न—इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम, िविनयम, िनकाली गई
अिधसूचना, िदए गए िनदेश या आदेश के अधीन स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत िकसी बात के िलए कोई वाद,
अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही के न्दर्ीय सरकार या िरजवर् बक अथवा के न्दर्ीय सरकार या िरजवर् बक के िकसी अिधकारी या
िकसी अन्य व्यिक्त के िवरु जो इस अिधिनयम के अधीन िकन्ह शिक्तय का पर्योग कर रहा है या िकन्ह कृ त्य का िनवर्हन कर रहा है
या िकन्ह कतर्व्य का पालन कर रहा है, नह होगी ।
45. किठनाइय को दूर करना—(1) यिद इस अिधिनयम के उपबंध को पर्भावी करने म कोई किठनाई उत्पन्न होती है तो
के न्दर्ीय सरकार, आदेश ारा, उस किठनाई को दूर करने के पर्योजन के िलए कोई भी ऐसी बात कर सके गी जो इस अिधिनयम के
उपबंध से असंगत न हो :
परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अिधिनयम के पर्ारं भ से दो वषर् की समािप्त के पश्चात् नह िकया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया पर्त्येक आदेश, िकए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष
रखा जाएगा ।
46. िनयम बनाने की शिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार, इस अिधिनयम के उपबंध को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम,
अिधसूचना ारा, बना सके गी ।
17

(2) पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम म िनम्निलिखत का उपबंध िकया जा सके गा,
अथार्त्:—
(क) धारा 5 के अधीन चालू खाता संव्यवहार पर उिचत िनबर्न्धन का अिधरोपण;
1
[(कक) ऐसी िलखत, िजन्ह धारा 6 की उपधारा (7) के अधीन ऋण िलखत अवधािरत िकया जाए ;
(कख) धारा 6 की उपधारा (2क) के अनुसार पूंजीगत खाता संव्यवहार के अनुज्ञेय वगर्, िवदेशी मुदर्ा की गर्ा ता
की पिरसीमाएं और ऐसे संव्यवहार का पर्ितषेध, िनबर्न्धन या िविनयमन ;]
(ख) वह रीित िजसम उल्लंघन का धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन शमन िकया जा सके गा;
(ग) न्यायिनणार्यक पर्ािधकारी ारा धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन जांच िकए जाने की रीित;
(घ) धारा 17 और धारा 19 के अधीन अपील का पर्रूप और ऐसी अपील फाइल करने के िलए फीस;
(ङ) धारा 23 के अधीन अपील अिधकरण के अध्यक्ष और सदस्य और िवशेष िनदेशक (अपील) को संदय
े वेतन और
भ े तथा तथा उनकी सेवा के अन्य िनबंधन और शत;
(च) धारा 27 की उपधारा (3) के अधीन अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) के कायार्लय के
अिधकािरय और कमर्चािरय के वेतन और भ े तथा उनकी सेवा की अन्य शत;
(छ) ऐसे अितिरक्त िवषय िजनकी बाबत अपील अिधकरण और िवशेष िनदेशक (अपील) धारा 28 की उपधारा (2)
के खण्ड (i) के अधीन िसिवल न्यायालय की शिक्तय का पर्योग कर सकगे;
1
[(छछ) धारा 37क की उपधारा (1) म िनिदष्ट िवदेशी मुदर्ा का सकल मूल्य ;]
(ज) वह पर्ािधकारी या व्यिक्त िजसके ारा और वह रीित िजससे कोई दस्तावेज धारा 39 के खण्ड (ii) के अधीन
अिधपर्मािणत िकया जा सके गा; और
(झ) कोई अन्य िवषय जो िविहत िकए जाने के िलए अपेिक्षत है या िविहत िकया जाए ।
47. िविनयम बनाने की शिक्त—(1) िरजवर् बक, इस अिधिनयम और उसके अधीन बनाए गए िनयम के उपबंध को
कायार्िन्वत करने के िलए िविनयम, अिधसूचना ारा, बना सके गा ।
(2) पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िविनयम म िनम्निलिखत के िलए उपबंध िकया जा
सके गा, अथार्त्:—
[(क) पूंजीगत लेखा संव्यवहार के ऐसे अनुज्ञेय वगर्, िजनम धारा 6 की उपधारा (7) के अधीन अवधािरत ऋण
2

िलखत अंतवर्िलत ह, ऐसे संव्यवहार के िलए िवदेशी मुदर्ा की गर्ा ता की पिरसीमाएं और धारा 6 के अधीन ऐसे पूंजीगत
लेखा संव्यवहार का पर्ितषेध, िनबर्न्धन या िविनयमन ;]
(ख) वह रीित िजससे और वह पर्रूप िजसम धारा 7 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन घोषणा की जानी है;
(ग) धारा 8 के अधीन िवदेशी मुदर्ा के संपर्त्यावतर्न की अविध और रीित;
(घ) वह सीमा िजस तक कोई व्यिक्त धारा 9 के खंड (क) के अधीन िवदेशी करसी या िवदेशी िसक्के रख सके गा;
(ङ) व्यिक्तय का वह वगर् और वह सीमा िजस तक धारा 9 के खण्ड (ख) के अधीन िवदेशी करसी खाता धािरत या
पर्चािलत िकया जा सके गा;
(च) वह सीमा िजस तक धारा 9 के खण्ड (घ) के अधीन अिजत िवदेशी मुदर्ा को छू ट दी जा सके गी;
(छ) वह सीमा िजस तक धारा 9 के खण्ड (ङ) के अधीन अिजत िवदेशी मुदर्ा पर्ितधािरत की जा सके गी;
3
[(छक) करसी या करसी नोट का िनयार्त, आयात या उन्ह रखना ;]
(ज) कोई अन्य िवषय जो िविनिदष्ट िकए जाने के िलए अपेिक्षत है या िविनिदष्ट िकया जाए ।
1
[(3) िरजवर् बक ारा, उस तारीख के पूवर्, िजसको इस अिधिनयम की धारा 6 और धारा 47 के अधीन पूंजीगत लेखा
संव्यवहार पर इस धारा के उपबंध अिधसूिचत िकए जाते ह, बनाए गए ऐसे सभी िविनयम, िजनकी बाबत िविनयम बनाने की शिक्त
अब के न्दर्ीय सरकार म िनिहत है, तब तक िविधमान्य बने रहगे जब तक के न्दर्ीय सरकार ारा उन्ह संशोिधत या िवखंिडत नह कर
िदया जाता है ।]

1
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 143 ारा अंत:स्थािपत ।
2
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 144 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
2015 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 144 ारा अंत:स्थािपत ।
18

48. िनयम और िविनयम का संसद् के समक्ष रखा जाना—इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम और िविनयम
बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा ।
यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक
बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम या िविनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे
पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िनयम या िविनयम नह बनाया
जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम या िविनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन
पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
49. िनरसन और व्यावृि —(1) िवदेशी मुदर्ा िविनयमन अिधिनयम, 1973 (1973 का 46) इसके ारा िनरिसत िकया जाता
है और उक्त अिधिनयम की (िजसे इसम इसके पश्चात् िनरिसत अिधिनयम कहा गया है) धारा 52 की उपधारा (1) के अधीन गिठत
अपील बोडर् का िवघटन हो जाएगा ।
(2) उक्त अपील बोडर् के िवघटन पर, अपील बोडर् के अध्यक्ष के रूप म िनयुक्त व्यिक्त और सदस्य के रूप म िनयुक्त पर्त्येक
अन्य व्यिक्त जो ऐसी तारीख के ठीक पूवर् उस रूप म पदधारण िकए हुए है, अपना-अपना पद िरक्त कर दगे और ऐसा कोई अध्यक्ष या
अन्य व्यिक्त अपनी पदाविध या सेवा की िकसी संिवदा की समयपूवर् समािप्त के िलए िकसी पर्ितकर का दावा करने का हकदार नह
होगा ।
(3) तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय, इस अिधिनयम के पर्ारम्भ की तारीख से
दो वषर् की अविध की समािप्त के पश्चात् िनरिसत अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का संज्ञान नह करे गा और कोई न्यायिनणार्यक
अिधकारी िनरिसत अिधिनयम की धारा 51 के अधीन िकसी उल्लंघन की अवेक्षा नह करे गा ।
(4) उपधारा (3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, िनरिसत अिधिनयम के अधीन िकए गए सभी अपराध िनरिसत अिधिनयम
के उपबंध ारा शािसत होते रहगे मानो वह अिधिनयम िनरिसत न हुआ हो ।
(5) ऐसे िनरसन के होते हुए भी,—
(क) इसके ारा िनरिसत अिधिनयम के अधीन की गई या की जाने के िलए तात्पियत कोई बात या कारर् वाई िजसके
अंतगर्त बनाया गया कोई िनयम, जारी की गई कोई अिधसूचना, या िकया गया िनरीक्षण, आदेश या िनकाली गई कोई सूचना
अथवा की गई कोई िनयुिक्त, पुिष्ट या घोषणा या दी गई कोई अनुज्ञिप्त, अनुज्ञा, पर्ािधकार या छू ट या िनष्पािदत कोई
दस्तावेज या िलखत या िदया गया कोई िनदेश है, जहां तक वह इस अिधिनयम के उपबंध से असंगत नह है, इस अिधिनयम
के तत्स्थानी उपबंध के अधीन की गई समझी जाएगी;
(ख) िनरिसत अिधिनयम की धारा 52 की उपधारा (2) के अधीन अपील बोडर् को की गई कोई अपील, जो इस
अिधिनयम के पर्ारं भ तक िनपटाई नह गई है, इस अिधिनयम के अधीन गिठत अपील अिधकरण को अंतिरत हो जाएगी और
उसका िनपटारा उसके ारा िकया जाएगा;
(ग) िनरिसत अिधिनयम की धारा 52 की उपधारा (3) या उपधारा (4) के अधीन अपील बोडर् के िकसी िविनश्चय
या आदेश से पर्त्येक अपील, यिद इस अिधिनयम के पर्ारं भ के पहले फाइल नह की गई है, तो उच्च न्यायलय के समक्ष ऐसे
पर्ारं भ के साठ िदन की अविध के भीतर फाइल की जाएगी :
परन्तु यिद उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाए िक अपीलाथ उक्त अविध के भीतर पयार्प्त कारणवश अपील फाइल
नह कर सका था तो वह साठ िदन की उक्त अविध की समािप्त के पश्चात् भी कोई अपील गर्हण कर सके गा ।
(6) उपधारा (3) म जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय, उपधारा (2), उपधारा (4) और उपधारा (5) म िविशष्ट मामल
के उल्लेख का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह िनरसन के पर्भाव के बारे म साधारण खण्ड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की
धारा 6 के साधारणतया लागू होने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालता है या उसको िकसी भी पर्कार पर्भािवत करता है ।

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