You are on page 1of 47

व्यापार िचह्न अिधिनयम, 1999

(1999 का अिधिनयम संख्यांक 47)


[30 िदसम्बर, 1999]
व्यापार िचह्न से संबिं धत िविध का संशोधन और समेकन करने,
माल और सेवा के िलए व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण
और बेहतर संरक्षण और कपटपूणर् िचह्न
के पर्योग का िनवारण करने का उपबंध
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के पचासव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
अध्याय 1

पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम व्यापार िचह्न अिधिनयम, 1999 है ।
(2) इसका िवस्तार सम्पूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा िजसे के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे :
परन्तु इस अिधिनयम के िभन्न-िभन्न उपबंध के िलए िभन्न-िभन्न तारीख िनयत की जा सकगी और ऐसे उपबंध म इस
अिधिनयम के पर्ारम्भ के पर्ित िकसी िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस उपबंध के पर्वृ होने के पर्ित िनदश है ।
2. पिरभाषाएं और िनवर्चन—(1) इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “अपील बोडर्” से धारा 83 के अधीन स्थािपत अपील बोडर् अिभपर्ेत है ;
(ख) “समनुदश
े न” से संबंिधत पक्षकार के कायर् ारा िलिखत रूप म समनुदश
े न अिभपर्ेत है ;
(ग) “सहयुक्त व्यापार िचह्न” से ऐसे व्यापार िचह्न अिभपर्ेत ह जो इस अिधिनयम के अधीन सहयुक्त व्यापार
िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त समझे जाते ह, या िजनका इस रूप म रिजस्टर्ीकरण अपेिक्षत है ;
(घ) “न्यायपीठ” से अपील बोडर् की न्यायपीठ अिभपर्ेत है ;
(ङ) “पर्माणीकरण व्यापार िचह्न” से वह िचह्न अिभपर्ेत है, जो माल के उ म, सामगर्ी, िविनमार्ण के ढंग या
सेवा के िनष्पादन, क्वािलटी, शु ता या अन्य लक्षण के बारे म िचह्न के स्वत्वधारी ारा पर्मािणत माल या सेवा की,
िजनके संबंध म उनका व्यापार के अनुकर्म म उपयोग होता है, उस माल या उन सेवा से, जो इस पर्कार पर्मािणत नह है,
सुिभन्नता दशार्ने योग्य ह और जो अध्याय 9 के अधीन पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी की हैिसयत से उस व्यिक्त
के नाम म उस माल या सेवा की बाबत, उस रूप म रिजस्टर िकए जाने योग्य ह ;
(च) “अध्यक्ष” से अपील बोडर् का अध्यक्ष अिभपर्ेत है ;
(छ) “सामूिहक िचह्न” से ऐसा व्यापार िचह्न अिभपर्ेत है जो व्यिक्तय के संगम के सदस्य के (जो भारतीय
भागीदारी अिधिनयम, 1932 (1932 का 9) के अथार्न्तगर्त भागीदारी नह है), जो िचह्न का स्वत्वधारी है, माल या सेवा
को अन्य के माल या सेवा से सुिभन्न करता है ;
(ज) “इतना समरूप िजससे धोखा हो जाए” यिद िकसी िचह्न का िकसी अन्य िचह्न से इतना िनकट सादृश्य है िक
धोखा या भर्म होना संभाव्य है तो यह समझा जाएगा िक वह िचह्न दूसरे िचह्न से इतना समरूप है िक धोखा हो जाए ;
(झ) “िमथ्या पण्य िववरण” से अिभपर्ेत है––
(I) वह पण्य िववरण, जो उस माल या उन सेवा की बाबत, िजन पर वह लगाया जाता है, ताित्त्वक
रूप से असत्य या भर्ामक है ; या
(II) पण्य िववरण का वह पिरवतर्न, जो उस माल या उन सेवा की बाबत िजन पर वह लगाया जाता
है, चाहे पिरवधर्न करके , िमटाकर या अन्यथा िकसी पर्कार से िकया गया हो, जहां वह पिरवतर्न उस िववरण को
ताित्त्वक रूप म असत्य या भर्ामक बना देता है ; या
2

(III) वह पण्य िववरण िजससे उस माल की बाबत िजस पर वह लगाया जाता है, यह ोतन या िववक्षा
होती है िक उसम अन्तिवष्ट मानक गज या मानक मीटर से अिधक गज या मीटर अंतिवष्ट ह ; या
(IV) वे िचह्न या उनका िवन्यास या संयोजन––
(क) जो माल पर ऐसे ढंग से लगाए जाते ह िजससे यह संभाव्य है िक व्यिक्त यह िवश्वास कर
ले िक वे माल उस व्यिक्त से, िजसकी वे वास्तव म पण्य या िविनिमित ह, िभन्न िकसी व्यिक्त की
िविनिमित या पण्य ह ;
(ख) जो सेवा के संबंध म ऐसे ढंग से लगाए जाते ह, िजससे यह संभाव्य है िक व्यिक्त यह
िवश्वास कर ले िक वे सेवाएं उस व्यिक्त से, िजसकी वे वस्तुत: सेवाएं ह, िभन्न व्यिक्त ारा उपलब्ध
कराई जा रही ह या दी जा रही ह ; या
(V) िकसी व्यिक्त का िमथ्या नाम या आ क्षर, जो माल या सेवा पर इस ढंग से लगाए गए ह मानो
वह नाम या वे आ क्षर पण्य िववरण ह, ऐसी िकसी अवस्था म िजसम वह नाम या वे आ क्षर––
(क) व्यापार िचह्न नह है या व्यापार िचह्न का भाग नह है ; और
(ख) उस व्यिक्त के नाम के आ क्षर से तदर्ूप या इतने समरूप ह िक धोखा हो जाए जो उसी
िववरण के माल या सेवा या दोन का कारबार करता है और िजसने ऐसे नाम या आ क्षर का पर्योग
पर्ािधकृ त नह िकया है ; और
(ग) िकसी किल्पत व्यिक्त के या िकसी ऐसे व्यिक्त के , जो ऐसे माल से संब कारबार
स ावपूवर्क नह कर रहा है, नाम या आ क्षर है,
और इस तथ्य से िक कोई पण्य िववरण व्यापार िचह्न है या िकसी व्यापार िचह्न का भाग है, इस अिधिनयम के
अथार्न्तगर्त ऐसे पण्य िववरण का िमथ्या पण्य िववरण होना िनवािरत नह होगा ;
(ञ) “माल” से कोई ऐसी वस्तु अिभपर्ेत है जो व्यापार या िविनमार्ण की वस्तु है ;
(ट) “न्याियक सदस्य” से, इस अिधिनयम के अधीन िनयुक्त अपील बोडर् का न्याियक सदस्य अिभपर्ेत है और इसके
अन्तगर्त अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ह ;
(ठ) “मयार्दा ” से (व्याकरिणक रूप सिहत) वे मयार्दाएं अिभपर्ेत ह जो िकसी व्यिक्त के व्यापार िचह्न के
स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर्ीकरण से उसके उपयोग के अनन्य अिधकार पर है और उसके अन्तगर्त इस अिधकार की वे
मयार्दाएं ह जो भारत के भीतर या भारत के बाहर उपयोग के ढंग या क्षेतर् के बारे म ह ;
(ड) “िचह्न” के अन्तगर्त कोई आकृ ित, छाप, शीषर्क, लेबल, िटकट, नाम, हस्ताक्षर, शब्द, अक्षर, अंक, माल का
आकार, पैकेिजग या रं ग का संयोजन या इनका कोई संयोजन है ;
(ढ) “सदस्य” से अपील बोडर् का कोई न्याियक सदस्य या कोई तकनीकी सदस्य अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ह ;
(ण) “नाम” के अंतगर्त नाम का कोई संक्षेप भी है ;
(त) “अिधसूिचत” से रिजस्टर्ार ारा पर्कािशत व्यापार िचह्न जनरल म अिधसूिचत करना अिभपर्ेत है ;
(थ) “पैकेज” के अंतगर्त कोई पेटी, बक्सा, आधान, आवेष्टक, फोल्डर, पातर्, बतर्न, संदक
ू ची, बोतल, लपेटन, लेबल,
प ी, िटकट, रील, चौखटा, कै प्सूल, टोपी, ढक्कन, डाट और काकर् ह ;
(द) “अनुज्ञात उपयोग” से िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के संबंध म व्यापार िचह्न का वह उपयोग
अिभपर्ेत है––
(i) जो व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ारा ऐसे माल या सेवा के संबंध म िकया जाता है,––
(क) िजनसे वह व्यापार के अनुकर्म म संयुक्त है ; और
(ख) िजनके बारे म व्यापार िचह्न तत्समय रिजस्टर्ीकृ त बना रहता है ; और
(ग) िजनके िलए वह रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर्ीकृ त है ; और
(घ) जो ऐसी िकन्ह शत या मदार् का अनुपालन करती है िजनके अधीन रिजस्टर्ीकृ त
उपयोक्ता का रिजस्टर्ीकरण है ; या
(ii) जो रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता से िभन्न ऐसे व्यिक्त ारा माल या सेवा के
संबंध म िकया जाता है,––
3

(क) िजससे वह व्यापार के अनुकर्म म संसक्त है ; और


(ख) िजनके बारे म व्यापार िचह्न तत्समय रिजस्टर्ीकृ त बना रहता है ; और
(ग) ऐसे रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी की, िलिखत करार ारा, सहमित से ; और
(घ) जो ऐसी िकन्ह शत या मयार्दा का अनुपालन करती है िजनके अधीन ऐसा उपयोक्ता
है और िजसके अधीन व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण है ;
(ध) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है ;
(न) “रिजस्टर” से धारा 6 की उपधारा (1) म िनिदष्ट व्यापार िचह्न रिजस्टर अिभपर्ेत है ;
(प) “रिजस्टर्ीकृ त” से (व्याकरिणक रूप सिहत) इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त अिभपर्ेत है ;
(फ) “रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी” से िकसी व्यापार िचह्न के संबध
ं म वह व्यिक्त अिभपर्ेत है जो व्यापार िचह्न के
स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर म तत्समय पर्िवष्ट है ;
(ब) “रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न” से वह व्यापार िचह्न अिभपर्ेत है जो वास्तव म रिजस्टर म है और पर्वृ है ;
(भ) “रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता” से वह व्यिक्त अिभपर्ेत है जो धारा 49 के अधीन इस रूप म तत्समय रिजस्टर्ीकृ त है ;
(म) “रिजस्टर्ार” से धारा 3 म िनिदष्ट व्यापार िचह्न रिजस्टर्ार अिभपर्ेत है ;
(य) “सेवा” से ऐसी िकसी भी पर्कार की सेवा अिभपर्ेत है जो संभावी उपयोक्ता को उपलब्ध कराई जाती है और
इसके अन्तगर्त बककारी, संचार, िशक्षा, िव पोषण, बीमा, िचटफं ड, स्थावर संपदा, पिरवहन, भंडारण, सामगर्ी अिभिकर्या,
पर्संस्करण, िव ुत या अन्य ऊजार् का पर्दाय, बोिडग, आवास, मनोरं जन, आमोद, सिन्नमार्ण, मरम्मत, समाचार अथवा सूचना
के पर्वहण और िवज्ञापन जैसे िकसी औ ोिगक या वािणिज्यक िवषय के कारबार से संसक्त सेवा की व्यवस्था करना है ;
(यक) “पण्य िववरण” से िनम्निलिखत के बारे म कोई पर्त्यक्ष या अपर्त्यक्ष वणर्न, कथन या अन्य उपदशर्न
अिभपर्ेत है––
(i) िकसी माल की संख्या, पिरमाण, माप, गेज या भार के बारे म ; या
(ii) व्यापार म सामान्यतया पर्युक्त या मान्य वग करण के अनुसार, िकसी माल या िकन्ह सेवा की
क्वािलटी के स्तर के बारे म ; या
(iii) िकसी माल की, जो ओषिध और पर्साधन सामगर्ी अिधिनयम, 1940 (1940 का 23) म
यथापिरभािषत “ओषिध” या खा अपिमशर्ण िनवारण अिधिनयम, 1954 (1954 का 37) म यथापिरभािषत
“खा ” है, इस पर्योजन के िलए उपयुक्तता, सामथ्यर्, कायर्करण या पर्ितिकर्या के बारे म ; या
(iv) उस स्थान या देश के बारे म िजसम या उस समय के बारे म जब कोई माल या सेवाएं, यथािस्थित,
बनाए गए थे या उत्पािदत िकए गए थे या उनकी व्यवस्था की गई थी ; या
(v) उस िविनमार्ता या सेवा की व्यवस्था करने वाले व्यिक्त के या उस व्यिक्त के , िजसके िलए माल
िविनिमत िकए गए ह या सेवा की व्यवस्था की गई है नाम और पते या पहचान के अन्य उपदशर्न के बारे म ; या
(vi) िकसी माल के िविनमार्ण या उत्पादन या सेवा के िदए जाने के ढंग के बारे म ; या
(vii) ऐसी िकसी सामगर्ी के बारे म िजससे कोई माल बना है ; या
(viii) ऐसे िकसी माल के बारे म जो िकसी िव मान पेटट, िवशेषािधकार या पर्ितिलप्यिधकार के
अधीन है,
और इसके अंतगर्त िनम्निलिखत भी ह :––
(क) िकसी िचह्न के उपयोग संबधं ी कोई िववरण जो व्यापार की रूिढ़ के अनुसार, सामान्यता उपयुर्क्त
िवषय म से िकसी का उपदशर्न माना जाता है ;
(ख) िकसी आयाितत माल संबंधी वह िववरण जो पर्वेश पतर् या पोत पिरवहन पतर् म अंतिवष्ट है ;
(ग) कोई अन्य िववरण िजसका उक्त िवषय म से सभी या िकसी के िलए भर्मवश या गलती से समझ
िलया जाना संभाव्य है ;
(यख) “व्यापार िचह्न” से ऐसा िचह्न अिभपर्ेत है जो रूिपत िकए जाने म समथर् है और जो एक व्यिक्त के माल या
सेवा को अन्य दूसरे व्यिक्तय के माल या सेवा से सुिभन्न करने म समथर् है और इसके अंतगर्त माल का आकार, उनकी
पैकेिजग और रं ग का संयोजन भी आ सके गा, और––
4

(i) (धारा 107 को छोड़कर) अध्याय 12 के संबंध म, रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न या वह िचह्न, जो
व्यापार के अनुकर्म म, यथािस्थित, माल या सेवा और ऐसे िकसी व्यिक्त के , िजसे स्वत्वधारी के रूप म िचह्न के
उपयोग का अिधकार है, बीच के संबंध का उपदशर्न करने के पर्योजनाथर् या उपदशर्न करते हुए, माल या सेवा के
संबंध म पर्योग िकया जाता है ; और
(ii) इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के संबंध म, वह िचह्न जो व्यापार के अनुकर्म म, यथािस्थित, माल
या सेवा और ऐसे िकसी व्यिक्त के , िजसे या तो स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोक्ता के रूप म, उस व्यिक्त की
पहचान के िकसी उपदशर्न सिहत या रिहत, िजसे उस िचह्न के उपयोग का अिधकार है, बीच के संबंध का उपदशर्न
करने के पर्योजनाथर् या उपदशर्न करते हुए, माल या सेवा के संबंध म पर्योग िकया जाता है, या पर्योग िकए जाने
का पर्स्ताव है, और उसके अंतगर्त पर्माणीकरण व्यापार िचह्न या सामूिहक िचह्न है ;
(यग) “पारे षण” से िविध की िकर्या से पारे षण, मृत व्यिक्त के वैयिक्तक पर्ितिनिध पर न्यागमन और समनुदश
े न के
िसवाय अंतरण के िकसी अन्य ढंग से पारे षण अिभपर्ेत है ;
(यघ) “तकनीकी सदस्य” से ऐसा सदस्य अिभपर्ेत है जो न्याियक सदस्य नह है ;
(यङ) “अिधकरण” से, यथािस्थित, रिजस्टर्ार या वह अपील बोडर् अिभपर्ेत है िजसके समक्ष संपृक्त कायर्वाही
लंिबत है ;
(यच) “उपाध्यक्ष” से अपील बोडर् का उपाध्यक्ष अिभपर्ेत है ;
(यछ) िकसी माल या सेवा के संबंध म, “सुिवख्यात व्यापार िचह्न” से ऐसा िचह्न अिभपर्ेत है जो जनता के ऐसे
पयार्प्त भाग म ऐसे माल या सेवा की बाबत सुिवख्यात हो गया है, जो ऐसे माल का इस पर्कार उपयोग करता है या ऐसी
सेवा पर्ाप्त करता है िक अन्य माल या सेवा के संबंध म ऐसे िचह्न के उपयोग को उस माल या सेवा और पर्थम उिल्लिखत
माल या सेवा के संबंध म िचह्न का उपयोग करने वाले िकसी िक्त के बीच व्यापार के या सेवा पर्दान करने के अनुकर्म म
संबंध के उपदशर्न के रूप म माना जाना संभाव्य होगा ।
(2) इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) “व्यापार िचह्न” के पर्ित िकसी िनदश के अन्तगर्त “सामूिहक िचह्न” या “पर्माणीकरण ापार िचह्न” के पर्ित
िनदश है ;
(ख) िकसी िचह्न के उपयोग के पर्ित िकसी िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस िचह्न के मुिदर्त या अन्य
दृश्यरूपण के उपयोग के पर्ित िनदश है ;
(ग) िकसी िचह्न के उपयोग के पर्ित िनदश का,––
(i) जो माल के संबंध म है, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसे माल पर या ऐसे माल के िकसी भौितक
या िकसी भी अन्य संबंध म िचह्न के उपयोग के पर्ित िनदश है ;
(ii) जो सेवा के संबंध म है, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसी सेवा की उपलब्धता, व्यवस्था या
कायर्करण के बारे म, िकसी कथन के रूप म या उसके भागरूप िचह्न के उपयोग के पर्ित िनदश है ;
(घ) रिजस्टर्ार के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक उसके अंतगर्त धारा 3 की उपधारा (2) के अनुसरण म
रिजस्टर्ार के कृ त्य का िनवर्हन करने वाले िकसी अिधकारी के पर्ित िनदश है ;
(ङ) व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक इसके अंतगर्त व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के
िकसी भी कायार्लय के पर्ित िनदश है ।
(3) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए माल और सेवाएं परस्पर सहयुक्त ह यिद यह संभावना है िक उन माल का िवकर्य या
अन्यथा व्यापार और उन सेवा की व्यवस्था उस माल के िववरण और सेवा के िववरण के साथ उसी कारबार ारा की जा
सकती ह ।
(4) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए “िव मान रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न” से इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के ठीक पूवर्,
व्यापार और पण्य-वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न अिभपर्ेत है ।
अध्याय 2

रिजस्टर और रिजस्टर्ीकरण की शत
3. रिजस्टर्ार और अन्य अिधकािरय की िनयुिक्त––(1) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, एक व्यिक्त िनयुकत
कर सके गी जो पेटेन्ट, िडजाइन और व्यापार िचह्न महािनयंतर्क के रूप म ज्ञात होगा तथा जो इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए
व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ार होगा ।
5

(2) के न्दर्ीय सरकार, ऐसे अन्य अिधकारी, ऐसे पदािभधान सिहत, जो वह ठीक समझे, रिजस्टर्ार के अधीक्षण और िनदेशन के
अधीन इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ार के ऐसे कृ त्य के िनवर्हन के पर्योजन के िलए, जैसे वह समय-समय पर िनवर्हन के िलए उन्ह
पर्ािधकृ त करे , िनयुक्त कर सके गी ।
4. मामल , आिद को वापस लेने या अंतिरत करने की रिजस्टर्ार की शिक्त––रिजस्टर्ार, धारा 3 की उपधारा (2) के उपबंध
की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, िलिखत आदेश ारा और उसम अिभिलिखत कारण से, उक्त उपधारा (2) के अधीन
िनयुक्त िकसी अिधकारी के समक्ष लिम्बत कोई मामला वापस ले सके गा और ऐसे मामले पर या तो नए िसरे से या उस पर्कर्म से, िजस
पर उसे वापस िलया गया था, स्वयं कायर्वाही कर सके गा अथवा उसे इस पर्कार िनयुक्त िकसी अन्य अिधकारी को अन्तिरत कर सके गा
जो अन्तरण के आदेश म िवशेष िनदेश के अधीन उस मामले पर या तो नए िसरे से या उस पर्कर्म से, िजस पर उसे अन्तिरत िकया गया
था, कायर्वाही कर सके गा ।
5. व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी और उसके कायार्लय––(1) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए एक व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी होगी
और व्यापार और पण्य-वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) के अधीन स्थािपत व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी, इस अिधिनयम के
अधीन व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी होगी ।
(2) व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी का मुख्य कायार्लय ऐसे स्थान पर होगा, जो के न्दर्ीय सरकार िविनिदष्ट करे और ापार िचह्न
के रिजस्टर्ीकरण को सुकर बनाने के पर्योजनाथर् ऐसे स्थान पर, िजन्ह के न्दर्ीय सरकार ठीक समझे, व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के शाखा
कायार्लय स्थािपत िकए जा सकगे ।
(3) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, वह राज्यक्षेतर्ीय सीमा पिरिनिश्चत कर सके गी िजसके भीतर व्यापार
िचह्न रिजस्टर्ी का कोई कायार्लय अपना कायर् कर सके गा ।
(4) व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी की एक मुदर्ा होगी ।
6. व्यापार िचह्न रिजस्टर––(1) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के पर्धान कायार्लय म एक
अिभलेख रखा जाएगा जो व्यापार िचह्न रिजस्टर कहलाएगा िजसम स्वत्वधािरय के नाम, पते और िववरण सिहत सभी रिजस्टर्ीकृ त
व्यापार िचह्न समनुदश े न और परे षण की अिधसूचनाएं, रिजस्टर्ीकृ त उपयोगकतार् के नाम, पते और िववरण, शत, िनबर्ंधन और
रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से संबंिधत ऐसे अन्य िवषय पर्िवष्ट िकए जाएंगे, जो िविहत िकए जाएं ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, रिजस्टर्ार के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह, ऐसे रक्षोपाय के अधीन रहते
हुए जो िविहत िकए जाएं, कम्प्यूटर फ्लािपय , िडस्के ट म या िकसी अन्य इलैक्टर्ािनक पर्रूप म अिभलेख को पूणर्त: या अंशत: रखे ।
(3) जहां उपधारा (2) के अधीन ऐसा रिजस्टर कम्प्यूटर म पूणर्त: या अंशत: रखा जाता है वहां रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट के
पर्ित इस अिधिनयम म िकसी िनदश का अथर् इस पर्कार लगाया जाएगा िक वह कम्प्यूटर म या िकसी अन्य इलैक्टर्ािनक पर्रूप म रखी
गई पर्िविष्ट के पर्ित िनदश है ।
(4) िकसी न्यास की कोई सूचना अिभव्यक्त या िवविक्षत या आन्वियक रूप म रिजस्टर म पर्िवष्ट नह की जाएगी और ऐसी
कोई सूचना रिजस्टर्ार ारा पर्ाप्य नह होगी ।
(5) रिजस्टर को रिजस्टर्ार के िनयंतर्ण और पर्बंध के अधीन रखा जाएगा ।
(6) व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के पर्त्येक शाखा कायार्लय म रिजस्टर की और धारा 148 म उिल्लिखत ऐसे अन्य दस्तावेज की,
िजन्ह के न्दर्ीय सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा िनिदष्ट करे , एक पर्ित रखी जाएगी ।
(7) इस अिधिनयम के पर्ारं भ पर िव मान व्यापार िचह्न रिजस्टर के भाग क और भाग ख दोन , इस अिधिनयम के अधीन
रिजस्टर म सिम्मिलत िकए जाएंगे और उसके भागरूप ह गे ।
7. माल और सेवा का वग करण––(1) रिजस्टर्ार माल और सेवा का वग करण, यावत्साध्य, व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के पर्योजन के िलए, माल और सेवा के अन्तरराष्टर्ीय वग करण के अनुसार करे गा ।
(2) िकसी ऐसे वगर् के बारे म, िजसके भीतर कोई माल या सेवाएं आती ह, उद्भूत कोई पर्श्न रिजस्टर्ार ारा अवधािरत िकया
जाएगा िजसका िविनश्चय अिन्तम होगा ।
8. वणार्नकर्
ु म म अनुकर्मिणका का पर्काशन––(1) रिजस्टर्ार, धारा 7 म िनिदष्ट माल और सेवा के वग करण की वणार्नुकर्म
अनुकर्मिणका िविहत रीित म पर्कािशत कर सके गा ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन पर्कािशत माल और सेवा की वणार्नुकर्म अनुकर्मिणका म कोई माल या सेवाएं िविनिदष्ट
नह की गई ह, वहां माल या सेवा के वग करण का अवधारण, रिजस्टर्ार ारा, धारा 7 की उपधारा (2) के अनुसार िकया जाएगा ।
9. रिजस्टर्ीकरण से इं कार करने के िलए आत्यंितक आधार––ऐसे व्यापार िचह्न का––
(क) िजनका कोई सुिभन्न स्वरूप नह है, अथार्त् जो िकसी व्यिक्त के माल या सेवा का उनसे सुभेद करने म
समथर् नह है, जो िकसी अन्य व्यिक्त के माल या सेवाएं ह ;
6

(ख) िजनम अनन्यत: ऐसे िचह्न या उपदशर्न िदए गए ह जो व्यापार म माल के उत्पादन या सेव के िदए जाने के
पर्कार, क्वािलटी, मातर्ा, आशियत पर्योजन, मूल्य, भौगोिलक उ व या समय या माल अथवा सेवा की अन्य िविशष्टता को
अिभिहत करने म काम आएं ;
(ग) िजनम अनन्यत: ऐसे िचह्न या उपदशर्न ह जो इस समय पर्चिलत भाषा म या व्यापार की स ािवक और
स्थािपत प ित म रूिढ़गत हो गए ह,
रिजस्टर्ीकरण नह िकया जाएगा :
परन्तु िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण से इं कार नह िकया जाएगा यिद रिजस्टर्ीकरण के आवेदन की तारीख के पूवर्
उसके उपयोग के पिरणामस्वरूप उसका एक सुिभन्न स्वरूप हो गया है या वह एक सुिवख्यात व्यापार िचह्न है ।
(2) कोई िचह्न व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा, यिद,––
(क) वह ऐसी पर्कृ ित का है िजससे जनसाधारण को धोखा या भर्म हो सकता है ;
(ख) उसम ऐसी कोई बात अंतिवष्ट है या समािवष्ट है िजससे भारत के नागिरक के िकसी वगर् या भाग की धािमक
भावना को ठे स पहुंचने की संभावना है ;
(ग) उसम कं लकात्मक या अश्लील सामगर्ी समािवष्ट या अन्तिवष्ट है ;
(घ) उसका उपयोग संपर्तीक और नाम (अनुिचत पर्योग िनवारण) अिधिनयम, 1950 (1950 का 12) के अधीन
पर्ितिष है ।
(3) कोई िचह्न, व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा यिद उसम अनन्य रूप से िनम्निलिखत है,––
(क) माल का आकार जो स्वयं माल की पर्कृ ित के पिरणामस्वरूप है ; या
(ख) माल का आकार जो तकनीकी पिरणाम अिभपर्ाप्त करने के िलए आवश्यक है ; या
(ग) वह आकार जो उस माल को सारवान् मूल्य पर्दान करता है ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए, ऐसे माल या सेवा की पर्कृ ित िजनके संबंध म व्यापार िचह्न पर्युक्त हुआ है
या पर्योग िकए जाने के िलए पर्स्तािवत है, रिजस्टर्ीकरण की इं कारी के िलए कोई आधार नह होगी ।
10. रं ग के बारे म मयार्दा––(1) व्यापार िचह्न पूणर्त: या भागत: रं ग के िकसी संयोजन तक मयार्िदत िकया जा सके गा और
िजस अिधकरण को व्यापार िचह्न के सुिभन्न स्वरूप का िनश्चय करना है वह ऐसी मयार्दा को ध्यान म रखेगा ।
(2) जहां कोई व्यापार िचह्न रं ग की मयार्दा के िबना रिजस्टर्ीकृ त है वहां यह समझा जाएगा िक वह सभी रं ग के िलए
रिजस्टर्ीकृ त है ।
11. रिजस्टर्ीकरण से इं कार करने के सापेक्ष आधार––(1) धारा 12 म यथा उपबिन्धत के िसवाय, िकसी व्यापार िचह्न का
रिजस्टर्ीकरण नह िकया जाएगा यिद,––
(क) िकसी पूवर्वत व्यापार िचह्न के साथ उसकी पहचान और उस ापार िचह्न के अन्तगर्त आने वाले माल या
सेवा की समरूपता ; या
(ख) िकसी पूवर्वत व्यापार िचह्न के साथ उसकी समरूपता और उस व्यापार िचह्न के अन्तगर्त आने वाले माल या
सेवा के साथ पहचान या समरूपता,
के कारण जनसाधारण म भर्म पैदा होने की संभावना है, िजनके अन्तगर्त पूवर्वत व्यापार िचह्न के साथ उसके सहयुक्त िकए जाने की
संभावना है ।
(2) कोई ऐसा ापार िचह्न जो,––
(क) िकसी पूवर्वत व्यापार िचह्न के तदर्ूप है या उसके समरूप है ; और
(ख) ऐसे माल या ऐसी सेवा के िलए रिजस्टर्ीकृ त िकया जाना है जो उनके समरूप नह है िजनके िलए पूवर्वत
व्यापार िचह्न िकसी िभन्न स्वत्वधारी के नाम रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है,
रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा यिद या उस सीमा तक िजस तक िक पूवर्वत व्यापार िचह्न भारत म एक सुिवख्यात व्यापार िचह्न है
और पश्चात्वत िचह्न का उपयोग िकसी सम्यक् हेतुक के िबना, पूवर्वत व्यापार िचह्न के सुिभन्न स्वरूप या ख्याित का अनुिचत लाभ
लेगा या उसके िवरु होगा ।
(3) कोई व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा यिद या उस सीमा तक िजस तक उसके भारत म उपयोग को––
7

(क) िकसी िविध, िविशष्टतया व्यापार के अनुकर्म म पर्युक्त अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का संरक्षण करने के िलए
चला देने वाली िविध के आधार पर ; या
(ख) पर्ितिलप्यिधकार की िविध के आधार पर,
िनवािरत िकया जा सकता है ।
(4) इस धारा की कोई बात, उस दशा म व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का िनवारण नह करे गी जहां पूवर्वत व्यापार िचह्न
या अन्य पूवर्वत अिधकार के स्वत्वधारी ने रिजस्टर्ीकरण की सहमित दे दी है और ऐसी दशा म, रिजस्टर्ार धारा 12 के अधीन, िवशेष
पिरिस्थितय के अधीन िचह्न का रिजस्टर्ीकरण कर सके गा ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए, पूवर्वत व्यापार िचह्न से िनम्निलिखत अिभपर्ेत है,––
[(क) कोई रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न या धारा 18 के अधीन कोई ऐसा आवेदन, िजस पर फाइल िकए जाने की
1

कोई पूवर्तर तारीख पड़ी है या धारा 36ङ म िनिदष्ट अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण या धारा 154 म िनिदष्ट अिभसमय आवेदन,
िजस पर पर्श्नगत ापार िचह्न के पूवर् की आवेदन की तारीख है, जहां समुिचत हो, वहां ापार िचह्न के बारे म दावाकृ त
पूिवकता का ध्यान रखते हुए,]
(ख) कोई व्यापार िचह्न, जो पर्श्नगत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के आवेदन की तारीख को या जहां समुिचत
हो, वहां आवेदन के बारे म दावाकृ त पूिवकता की तारीख को, सुिवख्यात व्यापार िचह्न के रूप म संरक्षण का हकदार था ।
(5) िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण से उपधारा (2) और उपधारा (3) म िविनिदष्ट आधार पर इं कार नह िकया
जाएगा, जब तक िक उन आधार म से िकसी एक या अिधक आधार पर पूवर्वत व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी ारा िवरोधी
कायर्वािहय म आक्षेप न िकया गया हो ।
(6) रिजस्टर्ार यह अवधािरत करते हुए िक कोई व्यापार िचह्न सुिवख्यात व्यापार िचह्न है या नह , ऐसे िकसी तथ्य को
गणना म लेगा जो वह िकसी व्यापार िचह्न को सुिवख्यात व्यापार िचह्न के रूप म अवधािरत करते समय सुसंगत समझता है, इसम
िनम्निलिखत सिम्मिलत ह :––
(i) जनता के सुसंगत भाग म उक्त व्यापार िचह्न का ज्ञान या मान्यता िजसके अन्तगर्त उक्त व्यापार िचह्न के
संपर्वतर्न के पिरणामस्वरूप अिभपर्ाप्त भारत म ज्ञान भी है ;
(ii) उक्त व्यापार िचह्न के िकसी उपयोग की अविध, सीमा और भौगोिलक क्षेतर् ;
(iii) उक्त व्यापार िचह्न के िकसी संपर्वतर्न की अविध, सीमा और भौगोिलक क्षेतर् िजसम उक्त माल या सेवा के
मेल या पर्दशर्िनय म िवज्ञापन या पर्चार और पर्स्तुित भी सिम्मिलत है िजन्ह उक्त व्यापार िचह्न लागू होता है ;
(iv) इस अिधिनयम के अधीन उक्त व्यापार िचह्न के िकसी रिजस्टर्ीकरण की अविध और भौगोिलक क्षेतर् या
रिजस्टर्ीकरण के िलए कोई आवेदन उस सीमा तक जहां तक वह उक्त व्यापार िचह्न के उपयोग या मान्यता को पर्ितिबिम्बत
करता है ;
(v) उक्त व्यापार िचह्न म अिधकार के सफलतापूवर्क पर्वतर्न का अिभलेख, िविशष्टतया वह सीमा, जहां तक
उक्त अिभलेख के अधीन िकसी न्यायालय या रिजस्टर्ार ारा उक्त व्यापार िचह्न को सुिवख्यात व्यापार िचह्न के रूप म
मान्यता दी गई है ।
(7) रिजस्टर्ार, उपधारा (6) के पर्योजनाथर् यह अवधािरत करते समय िक कोई व्यापार िचह्न जनता के िकसी सुसंगत भाग म
ज्ञात या मान्यतापर्ाप्त है या नह , िनम्निलिखत को ध्यान म रखेगा––
(i) माल या सेवा के वास्तिवक या संभािवत उपभोक्ता की संख्या ;
(ii) माल या सेवा की िवतरण पर्णािलय म अंतवर्िलत व्यिक्तय की संख्या ;
(iii) माल या सेवा म वहार करने वाले कारोबारी सिकल,
िजनको वह व्यापार िचह्न लागू होता है ।
(8) जहां िकसी न्यायालय या रिजस्टर्ार ारा भारत म जनता के कम से कम एक सुसंगत भाग म िकसी व्यापार िचह्न को
सुिवख्यात अवधािरत िकया गया हो वहां रिजस्टर्ार उक्त व्यापार िचह्न को इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िलए सुिवख्यात
व्यापार िचह्न समझेगा ।
(9) रिजस्टर्ार यह अवधािरत करने के िलए िक कोई व्यापार िचह्न सुिवख्यात व्यापार िचह्न है या नह िनम्निलिखत म से
िकसी की शतर् के रूप म अपेक्षा नह करे गा, अथार्त् :––

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 2 ारा पर्ितस्थािपत ।
8

(i) व्यापार िचह्न का भारत म उपयोग िकया गया है ;


(ii) व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है ;
(iii) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन भारत म दािखल िकया गया है ;
(iv) ापार िचह्न भारत से िभन्न िकसी अिधकािरता म :––
(क) सुिवख्यात है ; या
(ख) रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है ; या
(ग) उसके संबंध म रिजस्टर्ीकरण का आवेदन दािखल िकया गया है ; या
(v) उक्त व्यापार िचह्न भारत म साधारणतया जनता म सुिवख्यात है ।
(10) रिजस्टर्ार, िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के आवेदन और उसके संबध
ं म दािखल िकए गए िवरोध पर िवचार
करते समय,––
(i) िकसी सुिवख्यात व्यापार िचह्न का, तदर्ूप या समरूप व्यापार िचह्न से संरक्षण करे गा ;
(ii) आवेदक या िवरोधी के , व्यापार िचह्न से संबंिधत अिधकार को पर्भािवत करने वाले अस ाव पर िवचार
करे गा ।
(11) जहां कोई व्यापार िचह्न रिजस्टर्ार को ताित्त्वक सूचना पर्कट करते हुए, स ावपूवर्क रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है या िकसी
व्यापार िचह्न का अिधकार इस अिधिनयम के पर्ारं भ से पूवर् स ावपूवर्क उपयोग से अिजत िकया गया है वहां इस अिधिनयम की िकसी
बात से उक्त व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता या उक्त व्यापार िचह्न के उपयोग के अिधकार पर, इस आधार पर िक
उक्त व्यापार िचह्न िकसी अन्य सुिवख्यात, व्यापार िचह्न के तदर्ूप या समरूप है, कोई पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
12. स ािवक समवत उपयोग, आिद की दशा म रिजस्टर्ीकरण––स ािवक समवत उपयोग की दशा म या अन्य िवशेष
पिरिस्थितय म, िजनके कारण रिजस्टर्ार की राय म ऐसा करना उिचत है, रिजस्टर्ार उसी या समरूप माल या सेवा की बाबत
एकािधक स्वत्वधारी ारा ऐसे व्यापार िचह्न का, जो तदर्ूप या समरूप है (चाहे ऐसा कोई व्यापार िचह्न पहले से रिजस्टर्ीकृ त हो
या नह ) ऐसी शत और मयार्दा के अधीन, यिद कोई ह , िजन्ह रिजस्टर्ार अिधरोिपत करना ठीक समझे, रिजस्टर्ीकरण अनुज्ञात कर
सके गा ।
13. रासायिनक तत्त्व के नाम या अंतरार्ष्टर्ीय अस्वत्वधारी नाम के रिजस्टर्ीकरण का पर्ितषेध––कोई शब्द,––
(क) जो िकसी रासायिनक पदाथर् या िनिमित की बाबत िकसी एक रासायिनक तत्व या िकसी एक रासायिनक
यौिगक का (जो िमशर्ण से िभन्न है) सामान्यत: उपयोग िकया जाने वाला और स्वीकृ त नाम है, या
(ख) जो िवश्व स्वास्थ्य संगठन ारा अन्तरराष्टर्ीय अस्वत्वधारी नाम के रूप म घोिषत और रिजस्टर्ार ारा
समय-समय पर िविहत रीित म अिधसूिचत िकया गया है या जो ऐसे नाम के इतना समरूप है िक धोखा हो सकता है,
व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर नह िकया जाएगा और ऐसे िकसी रिजस्टर्ीकरण को धारा 57 के पर्योजनाथर्, रिजस्टर म िबना पयार्प्त
कारण के की गई पर्िविष्ट अथवा रिजस्टर म गलती से िव मान पर्िविष्ट के रूप म, जैसा पिरिस्थितय म अपेिक्षत हो, समझा जाएगा ।
14. जीिवत या हाल ही म मृत व्यिक्तय के नाम और पर्ितिनिधत्व का उपयोग––जहां िकसी ऐसे व्यापार िचह्न के िलए
आवेदन िकया जाता है िजसम िमथ्या रूप से यह उपलिक्षत होता है िक िकसी जीिवत व्यिक्त से या ऐसे व्यिक्त से, िजसकी मृत्यु
व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन की तारीख के पूवर् बीस वष के भीतर हुई थी, कोई संबंध है, वहां रिजस्टर्ार आवेदन पर
आगे कायर्वाही करने के पूवर् आवेदक से यह अपेक्षा कर सके गा िक वह व्यापार िचह्न म पर्तीत होने वाले संबंध के बारे म, यथािस्थित,
ऐसे जीिवत व्यिक्त की या मृत व्यिक्त के िविधक पर्ितिनिधय की, िलिखत सहमित उसके समक्ष पेश करे और जब तक आवेदक
रिजस्टर्ार को ऐसी सहमित पेश नह करता है तब तक आवेदन पर आगे कायर्वाही करने से इन्कार कर सके गा ।
15. व्यापार िचह्न के भाग का और आविल के रूप म व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण––(1) जहां िकसी व्यापार िचह्न का
स्वत्वधारी उस व्यापार िचह्न के िकसी भाग के पृथक्त: अनन्य उपयोग का हकदार होने का दावा करता है वहां वह समगर् व्यापार
िचह्न और उसके भाग को पृथक् व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर करने के िलए आवेदन कर सके गा ।
(2) ऐसा पर्त्येक पृथक् व्यापार िचह्न स्वतंतर् व्यापार िचह्न को लागू होने वाली सभी शत को पूरी करे गा और उसम स्वतंतर्
व्यापार िचह्न की सभी अनुषंगी बात ह गी ।
(3) जहां कोई व्यिक्त, जो उसी या समरूप माल या सेवा या उसी िववरण के माल या उसी िववरण की सेवा की बाबत
ऐसे अनेक व्यापार िचह्न का स्वत्वधारी होने का दावा करता है, जो अपनी ताित्त्वक िविशिष्टय म एक दूसरे के सदृश होते हुए भी,
िनम्निलिखत के संबंध म िभन्न ह––
9

(क) िजस माल या सेवा के संबंध म वे कर्मश: उपयोग िकए जाते ह या िजनका उपयोग पर्स्थािपत है उनके कथन के
संबंध म ; या
(ख) संख्या, कीमत, क्वािलटी या स्थान के नाम के कथन के संबंध म ; या
(ग) अन्य बात के संबंध म जो सुिभन्नकारी पर्कृ ित की नह ह और जो उस व्यापार िचह्न की पहचान को सारत:
पर्भािवत नह करती ह ; या
(घ) रं ग के संबंध म,
उन व्यापार िचह्न को रिजस्टर करना चाहता है वहां वे एक रिजस्टर्ीकरण म आविल के रूप म रिजस्टर्ीकृ त िकए जा सकगे ।
16. सहयुक्त ापार िचह्न के रूप म व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण––(1) जहां कोई व्यापार िचह्न, जो िकसी माल या
सेवा की बाबत रिजस्टर्ीकृ त है या रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन का िवषय है उसी स्वत्वधारी के नाम उसी माल या उसी िववरण के
माल या उसी सेवा या उसी िववरण की सेवा की बाबत रिजस्टर्ीकृ त है या रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन का िवषय है िकसी अन्य
व्यापार िचह्न के तदर्ूप है या इतना िनकटत: सदृश है िक यिद स्वत्वधारी के अितिरक्त, कोई व्यिक्त उसका उपयोग करे तो धोखा या
भर्म होने की संभाव्यता है, वहां रिजस्टर्ार िकसी भी समय, यह अपेक्षा कर सके गा िक वे व्यापार िचह्न रिजस्टर म सहयुक्त व्यापार
िचह्न के रूप म पर्िवष्ट िकए जाएंगे ।
(2) जहां व्यापार िचह्न की, जो रिजस्टर िकए जाते ह, पहचान है या वे उनके िनकट सदृश ह अथवा उसी स्वत्वधारी के नाम
म रिजस्टर्ीकरण के आवेदन की ऐसे माल और ऐसी सेवा के बारे म िवषय वस्तु है जो उस माल या उस िववरण के माल और उन
सेवा या उस िववरण की सेवा से सहयुक्त ह, वहां उपधारा (1) उसी पर्कार लागू होगी िजस पर्कार वह वहां लागू होती जहां उन
िचह्न की, जो रिजस्टर िकए गए ह, पहचान है या वे उनसे िनकट सदृश ह या वे उसी माल या वणर्न के माल या उन्ह सेवा या
वणर्न की सेवा के बारे म उसी स्वत्वधारी के नाम म रिजस्टर्ीकरण के आवेदन की िवषयवस्तु ह ।
(3) जहां धारा 15 की उपधारा (1) के उपबंध के अनुसार, कोई व्यापार िचह्न और उसका भाग उसी स्वत्वधारी के नाम म
पृथक् व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त है वहां वह सहयुक्त व्यापार िचह्न समझे जाएंगे और उसी रूप म रिजस्टर्ीकृ त िकए जाएंगे ।
(4) धारा 15 की उपधारा (3) के उपबंध के अनुसार, एक रिजस्टर्ीकरण म आविल के रूप म रिजस्टर्ीकृ त सभी व्यापार िचह्न
सहयुक्त व्यापार िचह्न समझे जाएंगे और उसी रूप म रिजस्टर्ीकृ त िकए जाएंगे ।
(5) सहयुक्त व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त दो या अिधक व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा िविहत
रीित म आवेदन करने पर यिद रिजस्टर्ार का समाधान हो जाता है िक यिद वह व्यापार िचह्न उस माल या उन सेवा या दोन म से
िकसी के संबंध म, िजसकी बाबत यह रिजस्टर्ीकृ त है, िकसी अन्य व्यिक्त ारा उपयोग िकया जाए तो धोखा या भर्म होने की संभाव्यता
नह है, तो वह उनम से िकसी की बाबत सहयोजन समाप्त कर सके गा और तद्नुसार रिजस्टर संशोिधत कर सके गा ।
17. िचह्न के भाग के रिजस्टर्ीकरण का पर्भाव––(1) जहां िकसी व्यापार िचह्न मे अनेक पदाथर् समािवष्ट ह वहां उसका
रिजस्टर्ीकरण स्वत्वधारी को उस सम्पूणर् व्यापार िचह्न के उपयोग का अनन्य अिधकार पर्दान करे गा ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जब िकसी व्यापार िचह्न म :––
(क) कोई ऐसा भाग अंतिवष्ट है––
(i) जो व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकरण के िलए स्वत्वधारी ारा िकए गए पृथक् आवेदन का िवषय
नह है ; या
(ii) जो व्यापार िचह्न के रूप म स्वत्वधारी ारा पृथक् रूप से रिजस्टर्ीकृ त नह है ; या
(ख) िजसम कोई ऐसी बात अंतिवष्ट है जो व्यापार के िलए सामान्य है या अन्यथा सुिभन्नकारी स्वरूप की नह है,
तब उसका रिजस्टर्ीकरण ऐसे पदाथर् म, जो इस पर्कार रिजस्टर्ीकृ त संपूणर् व्यापार िचह्न का के वल एक भाग है, कोई अनन्य अिधकार
पर्दान नह करे गा ।
अध्याय 3

रिजस्टर्ीकरण की पर्िकर्या और उसकी अिस्तत्वाविध


18. रिजस्टर्ीकरण के िलए ओवदन––(1) अपने ारा उपयोग िकए गए या उपयोग के िलए पर्स्थािपत िकसी व्यापार िचह्न का
स्वत्वधारी होने का दावा करने वाला कोई व्यिक्त, जो उसका रिजस्टर्ीकरण कराना चाहता है, रिजस्टर्ार को अपने व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के िलए िविहत रीित म िलिखत रूप म आवेदन करे गा ।
(2) माल और सेवा के िविभन्न वग के व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए एक ही आवेदन िकया जा सके गा और उसके
िलए संदय
े फीस माल या सेवा के पर्त्येक ऐसे वगर् की बाबत संदय
े होगी ।
10

(3) उपधारा (1) के अधीन पर्त्येक आवेदन उस व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी के कायार्लय म फाइल िकया जाएगा िजसकी
राज्यक्षेतर्ीय सीमा के भीतर आवेदक का भारत म कारबार का पर्धान स्थान िस्थत है या संयुक्त आवेदक की दशा म, उस आवेदक का
भारत म कारबार का पर्धान स्थान िस्थत है, िजसका नाम भारत म कारबार का स्थान रखने वाले के रूप म आवेदन म पर्थमत:
उिल्लिखत है :
परन्तु जहां आवेदक या संयुक्त आवेदक म से कोई भारत म कारबार नह करता है वहां आवेदन उस व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी
के कायार्लय म फाइल िकया जाएगा िजसकी राज्यक्षेतर्ीय सीमा के भीतर वह स्थान िस्थत है जो आवेदन म यथापर्किटत भारत म
तामील के िलए पते म उिल्लिखत है ।
(4) इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन रहते हुए, रिजस्टर्ार आवेदन को अस्वीकार कर सके गा या उसे आत्यंितकत: अथवा
ऐसे संशोधन , उपांतरण , शत या मयार्दा के अधीन रहते हुए, यिद कोई ह , जो वह ठीक समझे, स्वीकार कर सके गा ।
(5) िकसी आवेदन के अस्वीकार िकए या सशतर् स्वीकार िकए जाने की दशा म, रिजस्टर्ार ऐसी अस्वीकृ ित या सशतर् स्वीकृ ित
के आधार और अपने िविनश्चय पर पहुंचने के िलए स्वयं ारा उपयोग की गई समगर्ी, लेखब करे गा ।
19. स्वीकृ ित वापस लेना––जहां व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन की स्वीकृ ित के पश्चात् िकन्तु उसके
रिजस्टर्ीकरण के पूवर् रिजस्टर्ार का यह समाधान हो गया है––
(क) आवेदन गलती से स्वीकार िकया गया है ; या
(ख) मामले की पिरिस्थितय म व्यापार िचह्न को रिजस्टर नह िकया जाना चािहए या शत या पिरसीमा के
अधीन रिजस्टर्ीकृ त िकया जाना चािहए या िजन शत या पिरसीमा के अधीन स्वीकार िकया गया है, उनके अितिरक्त, शत
या उनसे िभन्न शत और पिरसीमा के अधीन रिजस्टर्ीकृ त िकया जाना चािहए,
वहां रिजस्टर्ार, यिद आवेदक ऐसा चाहता है तो उसे सुनने के पश्चात्, स्वीकृ ित वापस ले सके गा और इस पर्कार कायर्वाही करे गा मानो
आवेदन स्वीकार नह िकया गया था ।
20. आवेदन का िवज्ञापन––(1) जहां व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का आवेदन चाहे आत्यंितकत: या शत और मयार्दा के
अधीन स्वीकार िकया गया है वहां रिजस्टर्ार स्वीकृ ित के पश्चात् यथाशक्य शीघर्, यथास्वीकृ त आवेदन को उन शत और मयार्दा
सिहत, यिद कोई ह , िजनके अधीन वह स्वीकार िकया गया है, िविहत रीित म िवज्ञािपत कराएगा :
परन्तु यिद आवेदन ऐसे व्यापार िचह्न से संबंिधत है, िजसको धारा 9 की उपधारा (1) और धारा 11 की उपधारा (1) और
उपधारा (2) लागू होती है या िकसी अन्य दशा म, जहां उसे यह पर्तीत होता है िक असाधारण पिरिस्थितय के कारण ऐसा करना
समीचीन है वहां, रिजस्टर्ार आवेदन को स्वीकार करने के पूवर् िवज्ञािपत करा सके गा ।
(2) जहां––
(क) आवेदन को उपधारा (1) के अधीन स्वीकृ ित के पूवर् िवज्ञािपत िकया गया है ; या
(ख) आवेदन के िवज्ञापन के पश्चात्––
(i) आवेदन म कोई गलती शु की गई है ; या
(ii) आवेदन को धारा 22 के अधीन संशोिधत करने की अनुज्ञा दी गई है,
वहां रिजस्टर्ार, स्विववेकानुसार आवेदन को पुन: िवज्ञािपत करा सके गा या खण्ड (ख) म आने वाले िकसी मामले म, आवेदन म, आवेदन
को पुन: िवज्ञािपत कराने के स्थान पर, आवेदन म की गई शुि या संशोधन को िविहत रीित म अिधसूिचत कर सके गा ।
21. रिजस्टर्ीकरण का िवरोध–– 1 [(1) कोई व्यिक्त, रिजस्टर्ीकरण के आवेदन के िवज्ञापन या पुन: िवज्ञापन की तारीख से चार
मास के भीतर रिजस्टर्ीकरण के िवरोध की िलिखत सूचना, िविहत रीित म और ऐसी फीस के संदाय पर, जो िविहत की जाए, रिजस्टर्ार
को दे सके गा ।]
(2) रिजस्टर्ार, रिजस्टर्ीकरण के आवेदक पर सूचना की एक पर्ित तामील करे गा और आवेदक को िवरोध की सूचना की ऐसी
पर्ित के पर्ाप्त होने के दो मास के भीतर आवेदक रिजस्टर्ार को िविहत रीित म उन आधार का पर्ितकथन भेजेगा, िजनका वह अपने
आवेदन के िलए अवलम्ब लेता है, और यिद वह ऐसा नह करता है तो यह समझा जाएगा िक उसने अपने आवेदन का पिरत्याग कर
िदया है ।
(3) यिद आवेदक ऐसा पर्ितकथन भेजता है तो रिजस्टर्ार उसकी एक पर्ित िवरोध की सूचना देने वाले व्यिक्त पर तामील
कराएगा ।
(4) ऐसा कोई सा य िजसका अवलम्ब िवरोधकतार् और आवेदक ल, िविहत रीित म और िविहत समय के भीतर रिजस्टर्ार को
पर्स्तुत िकया जाएगा और यिद वे चाह तो रिजस्टर्ार उन्ह सुनवाई का अवसर देगा ।

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
11

(5) रिजस्टर्ार, यिद ऐसा अपेिक्षत हो, पक्षकार को सुनने के पश्चात् और सा य पर िवचार कर यह िविनश्चय करेगा िक
रिजस्टर्ीकरण अनुज्ञात िकया जाए या नह और िकन शत और पिरसीमा के अधीन, यिद कोई है, अनुज्ञात िकया जाए और वह आक्षेप
के िकसी आधार पर िवचार कर सके गा चाहे िवरोधकतार् ने उसका अवलंब िलया हो या नह ।
(6) जहां िवरोध की सूचना देने वाला, कोई व्यिक्त या ऐसी सूचना की पर्ित की पर्ािप्त के पश्चात् पर्ितकथन भेजने वाला कोई
आवेदक न तो भारत म िनवास करता है और न ही कारबार करता है, वहां रिजस्टर्ार उससे यह अपेक्षा कर सके गा िक वह रिजस्टर्ार के
समक्ष कायर्वािहय के खच की पर्ितभूित दे और सम्यक्त: पर्ितभूित देने म व्यितकर्म होने पर, यथािस्थित, िवरोध या आवेदन को
पिरत्यक्त मान सके गा ।
(7) रिजस्टर्ार, ऐसे िनबन्धन पर, िजन्ह वह न्यायसंगत समझे, पर्ाथर्ना करने पर, िवरोध की सूचना या पर्ितकथन म िकसी
गलती को शु करने की या उसका कोई संशोधन करने की अनुज्ञा दे सके गा ।
22. शुि और संशोधन––रिजस्टर्ार ऐसे िनबन्धन पर, िजन्ह वह न्यायसंगत समझे, िकसी भी समय चाहे धारा 18 के अधीन
रिजस्टर्ीकरण के आवेदन को स्वीकार करने के पहले या पश्चात् आवेदन म या उसके संबंध म िकसी गलती की शुि अनुज्ञात कर सके गा
या आवेदन का संशोधन अनुज्ञात कर सके गा :
परन्तु यिद धारा 18 की उपधारा (2) म िनिदष्ट एक ही आवेदन म कोई ऐसा संशोधन िकया जाता है िजसम ऐसे आवेदन का
दो या अिधक आवेदन म िवभाजन अन्तगर्र्स्त है, तो आरं िभक आवेदन करने की तारीख, इस पर्कार िवभािजत िकए गए िवभक्त
आवेदन को करने की तारीख समझी जाएगी ।
23. रिजस्टर्ीकरण––(1) धारा 19 के उपबंध के अधीन रहते हुए, जब िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन
स्वीकार िकया गया है और या तो––
(क) आवेदन का िवरोध नह िकया गया है और िवरोध की सूचना का समय समाप्त हो गया है ; या
(ख) आवेदन का िवरोध िकया गया है और िवरोध आवेदक के पक्ष म िविनिश्चत हुआ है,
तब रिजस्टर्ार, जब तक िक के न्दर्ीय सरकार अन्यथा िनदेश न दे, उक्त व्यापार िचह्न को 1 [आवेदन फाइल करने के अठारह मास
के भीतर] रिजस्टर करे गा और व्यापार िचह्न रिजस्टर िकए जाने पर उक्त आवेदन के िकए जाने की तारीख से रिजस्टर होगा, और वह
तारीख धारा 154 के उपबंध के अधीन, रिजस्टर्ीकरण की तारीख समझी जाएगी ।
(2) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण पर, रिजस्टर्ार, आवेदक को व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी की मुदर्ा से मुदर्ांिकत िविहत पर्ारूप म
उसके रिजस्टर्ीकरण का पर्माणपतर् जारी करे गा ।
(3) जहां आवेदक के व्यितकर्म के कारण, आवेदन की तारीख से बारह मास के भीतर व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण पूणर्
नह हो जाता है वहां रिजस्टर्ार आवेदक को िविहत रीित म सूचना देकर आवेदन को पिरत्यक्त मान सके गा जब तक िक वह सूचना म
इस िनिम िविनिदष्ट समय के भीतर पूणर् न कर िदया जाए ।
(4) रिजस्टर्ार लेखन गलती या स्पष्ट भूल की शुि के पर्योजनाथर्, रिजस्टर को या रिजस्टर्ीकरण के पर्माणपतर् को संशोिधत
कर सके गा ।
24. संयक्
ु त स्वािमत्व के व्यापार िचह्न––(1) उपधारा (2) म यथा उपबंिधत के िसवाय, इस अिधिनयम की कोई बात ऐसे दो
या अिधक व्यिक्तय का जो िकसी व्यापार िचह्न का स्वतंतर् रूप से उपयोग करते ह या ऐसे उपयोग की पर्स्थापना करते ह, उसके
संयुक्त स्वत्वधािरय के रूप म रिजस्टर्ीकरण पर्ािधकृ त नह करे गी ।
(2) जहां ापार िचह्न म िहतब दो या अिधक व्यिक्तय के संबंध ऐसे ह िक उनम से कोई भी एक अपने और उनम से दूसरे
या दूसर के बीच इस बात का हकदार नह है िक वह उसका उपयोग––
(क) दोन की या सभी की ओर से ; या
(ख) िजस वस्तु या सेवा से व्यापार के अनुकर्म म दोन या सभी संसक्त ह, उस वस्तु या सेवा के संबंध म,
उपयोग करने के िसवाय करे , वहां वे व्यिक्त उस व्यापार िचह्न के संयुक्त स्वत्वधािरय के रूप म रिजस्टर्ीकृ त िकए जा सकगे और यह
अिधिनयम उस व्यापार िचह्न के उपयोग के उन व्यिक्तय म िनिहत अिधकार के संबंध म इस पर्कार पर्भावी होगा मानो वे अिधकार
एक ही व्यिक्त म िनिहत ह ।
25. रिजस्टर्ीकरण की अिस्तत्वाविध, उसका नवीकरण, हटाया जाना और पर्त्यावतर्न––(1) इस अिधिनयम के पर्ारं भ के
पश्चात् व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण दस वषर् की अविध के िलए होगा िकन्तु उसे इस धारा के उपबंध के अनुसार, समय-समय पर
नवीकृ त िकया जा सके गा ।

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।
12

(2) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा िविहत पर्रूप म और िविहत अविध के भीतर आवेदन करने पर और
िविहत फीस के संदाय के अधीन रिजस्टर्ार, यथािस्थित, मूल रिजस्टर्ीकरण या रिजस्टर्ीकरण के अंितम नवीकरण के अवसान की
तारीख से (िजस तारीख को इस धारा म अंितम रिजस्टर्ीकरण का अवसान कहा गया है) दस वषर् की अविध के िलए व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण का नवीकरण करे गा ।
(3) व्यापार िचह्न के अंितम रिजस्टर्ीकरण के अवसान की सूचना से पूवर् िविहत समय पर, रिजस्टर्ार, रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी
को अवसान की तारीख की और फीस के संदाय संबंधी शत की, या अन्यथा िजन पर रिजस्टर्ीकरण का नवीकरण अिभपर्ाप्त िकया जा
सके गा, िविहत रीित म सूचना देगा और, यिद इस िनिम िविहत समय के अवसान पर उन शत का सम्यक्त: अनुपालन नह होता है
तो रिजस्टर्ार उस व्यापार िचह्न को रिजस्टर से हटा सके गा :
परन्तु यिद व्यापार िचह्न के अंितम रिजस्टर्ीकरण के अवसान से छह मास के भीतर िविहत पर्रूप म कोई आवेदन िकया जाता
है और िविहत फीस तथा अिधभार का संदाय कर िदया जाता है तो रिजस्टर्ार, रिजस्टर से व्यापार िचह्न को नह हटाएगा और
उपधारा (2) के अधीन दस वषर् की अविध के िलए व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का नवीकरण करे गा ।
(4) जहां व्यापार िचह्न िविहत फीस न देने के कारण रिजस्टर से हटा िदया गया है वहां अंितम रिजस्टर्ीकरण के अवसान से
छह मास के पश्चात् और एक वषर् के भीतर िविहत पर्रूप म आवेदन पर्ाप्त करने पर और िविहत फीस के संदाय पर, यिद रिजस्टर्ार का
समाधान हो जाता है िक ऐसा करना न्यायसंगत है तो वह व्यापार िचह्न को रिजस्टर म पर्त्यावितत करे गा और व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण का नवीकरण या तो साधारणत: ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन, िजन्ह अिधरोिपत करना वह ठीक समझे, अंितम
रिजस्टर्ीकरण के अवसान से दस वषर् की कालाविध के िलए करे गा ।
26. नवीकरण के िलए फीस देने म असफलता पर रिजस्टर से हटाए जाने का पर्भाव––जहां नवीकरण के िलए फीस देने म
असफलता पर व्यापार िचह्न को रिजस्टर से हटा िदया गया है वहां ऐसा होने पर भी हटाए जाने की तारीख के ठीक पश्चात्वत एक
वषर् के भीतर दूसरे व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए िकसी आवेदन के पर्योजन के िलए उसे पहले से ही रिजस्टर म पर्िवष्ट
व्यापार िचह्न समझा जाएगा, जब तक िक अिधकरण का यह समाधान न हो जाए िक या तो––
(क) जो व्यापार िचह्न हटाया गया है उसके हटाए जाने के ठीक पूवर्वत दो वष म उसका कोई स ावपूणर् व्यापार
उपयोग नह हुआ है ; या
(ख) जो व्यापार िचह्न हटाया गया है उसके िकसी पूवर् उपयोग के कारण उस व्यापार िचह्न के , जो रिजस्टर्ीकरण
के िलए आवेदन का िवषय है, उपयोग से कोई धोखा या भर्म उत्पन्न होने की संभाव्यता नह है ।
अध्याय 4

रिजस्टर्ीकरण का पर्भाव
27. अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अितलंघन के िलए कोई कारर् वाई न होगी––(1) कोई व्यिक्त िकसी अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार
िचह्न के अितलंघन के िनवारण के िलए या उसके िलए नुकसानी वसूल करने के िलए कोई कायर्वाही संिस्थत करने का हकदार
न होगा ।
(2) इस अिधिनयम की कोई बात माल या सेवा को िकसी अन्य व्यिक्त के माल या िकसी अन्य व्यिक्त ारा दी गई सेवा
के रूप म चला देने के िलए िकसी व्यिक्त के िवरु कारर् वाई के अिधकार या ति षयक उपचार को पर्भािवत करने वाली नह
समझी जाएगी ।
28. रिजस्टर्ीकरण से पर्द अिधकार––(1) इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी व्यापार िचह्न का
रिजस्टर्ीकरण, यिद वह िविधमान्य हो, तो उस व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी को, उस माल या उन सेवा के संबंध म,
िजनकी बाबत वह व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, उस व्यापार िचह्न के उपयोग का और इस अिधिनयम ारा उपबंिधत रीित म उस
व्यापार िचह्न के अितलंघन की बाबत अनुतोष अिभपर्ाप्त करने का, अनन्य अिधकार पर्दान करे गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन पर्द व्यापार िचह्न के उपयोग का अनन्य अिधकार उन्ह शत और मयार्दा के अधीन होगा
िजनके अधीन रिजस्टर्ीकरण है ।
(3) जहां दो या अिधक व्यिक्त ऐसे व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ह, जो एक दूसरे के तदर्ूप ह या िनकटत: सदृश
ह, वहां के वल व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण से यह नह समझा जाएगा िक उनम से िकसी एक व्यिक्त ने उनम से िकसी अन्य व्यिक्त
के िवरु (जहां तक उनके पृथक् अिधकार रिजस्टर म पर्िवष्ट शत या मयार्दा के अधीन ह, उनके िसवाय) उन व्यापार िचह्न के
उपयोग का अनन्य अिधकार अिजत कर िलया है, िकन्तु उनम से हर एक व्यिक्त के अन्य व्यिक्तय के िवरु (जो अनुज्ञात उपयोग के
रूप म उपयोग करने वाले रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता नह ह) अन्यथा, वही अिधकार ह गे, जो उसके होते, यिद वह एकमातर् रिजस्टर्ीकृ त
स्वत्वधारी होता ।
29. रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन––(1) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन उस िक्त ारा होता
है जो उस व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोग के रूप म उपयोग करने वाला व्यिक्त न होते हुए, िकसी माल
13

या िकन्ह सेवा के संबंध म, िजनकी बाबत वह व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, िकसी ऐसे िचह्न का, जो उस व्यापार िचह्न से तदर्ूप है
या इतना समरूप है िक धोखा हो जाए, व्यापार के अनुकर्म म और इस रीित से उपयोग करता है िक उस िचह्न के उपयोग का व्यापार
िचह्न के रूप म उपयोग समझे जाने की संभा ता हो जाती है ।
(2) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन उस व्यिक्त ारा होता है जो रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोग
के रूप म उपयोग करने वाला व्यिक्त न होने पर, व्यापार के अनुकर्म म ऐसे िचह्न का उपयोग करता है िजससे––
(क) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के साथ उसकी तदर्ूपता और ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अन्तगर्त आने वाले
माल या सेवा के साथ समरूपता के कारण ; या
(ख) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के साथ उसकी समरूपता और ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अन्तगर्त आने
वाले माल या सेवा के साथ उसकी तदर्ूपता या समरूपता के कारण ; या
(ग) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के साथ उसकी तदर्ूपता और ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अन्तगर्त आने वाले
माल या सेवा के साथ उसकी तदर्ूपता के कारण,
जनसाधारण म भर्म पैदा होने की संभा ता हो या िजसका रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से सहयोजन होना संभव हो ।
(3) उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन आने वाले िकसी मामले म, न्यायालय यह उपधारणा करे गा िक उससे जनसाधारण म
भर्म पैदा होना संभाव्य है ।
(4) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन उस व्यिक्त ारा होता है जो रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोग
के रूप म उपयोग करने वाला व्यिक्त न होने पर, व्यापार के अनुकर्म म ऐसे िचह्न का उपयोग करता है, जो––
(क) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के तदर्ूप या समरूप है ; और
(ख) ऐसे माल या सेवा के संबध
ं म उपयोग िकया जाता है जो उनके समरूप नह है िजनके िलए व्यापार िचह्न
रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है ; और
(ग) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न की भारत म ख्याित हो और उस िचह्न का सम्यक् हेतुक के िबना उपयोग,
रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के सुिभन्न स्वरूप या ख्याित का अनुिचत लाभ पर्ाप्त करता हो या उसके िलए अिहतकर हो ।
(5) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन उस व्यिक्त ारा होता है यिद वह ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का
उपयोग अपने व्यापार नाम या अपने व्यापार नाम के भागरूप या अपने कारबार समुत्थान के नाम या अपने उस कारबार समुत्थान के
नाम के भागरूप करता है जो उस माल या सेवा की बाबत है िजनके संबंध म व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है ।
(6) इस धारा के पर्योजन के िलए, कोई व्यिक्त रिजस्टर्ीकृ त िचह्न का उपयोग तब करता है जब वह िविशष्टतया––
(क) उसे माल या उसके पैकेज के साथ लगाता है ;
(ख) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अधीन माल को िवकर्य के िलए पर्स्थािपत या खुला छोड़ता है, उसे बाजार म
लाता है या उन पर्योजन के िलए उनका स्टाक करता है या उस रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अधीन सेवा की पर्स्थापना
या पर्दाय करता है ;
(ग) उस िचह्न के अधीन माल का आयात या िनयार्त करता है ; या
(घ) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का कारबार के कागजपतर् पर या िवज्ञापन म उपयोग करता है ।
(7) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन उस व्यिक्त ारा होता है जो ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का उपयोग
ऐसी सामगर्ी पर करता है जो माल पर लेबल लगाने या पैकेज के िलए कारबार कागज के रूप म या माल अथवा सेवा के िवज्ञापन के
िलए उपयोग की जानी आशियत है, परन्तु यह तब जब ऐसा व्यिक्त िचह्न का उपयोग करते समय जानता था या उसके पास यह
िवश्वास करने का कारण था िक िचह्न का लगाया जाना स्वत्वधारी या अनुज्ञिप्तधारी ारा सम्यक्त: पर्ािधकृ त नह है ।
(8) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन, उस व्यापार िचह्न के िकसी िवज्ञापन ारा तब होता है जब ऐसा
िवज्ञापन,––
(क) औ ोिगक या वािणिज्यक मामल म अनुिचत लाभ पर्ाप्त करता है और स ािवक प ितय के पर्ितकू ल है ; या
(ख) सुिभन्न स्वरूप के िलए अिहतकर है ; या
(ग) व्यापार िचह्न की ख्याित के िवरु है ।
(9) जहां रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के सुिभन्न तत्त्व म या उसके अन्तगर्त शब्द ह वहां उस व्यापार िचह्न का अितलंघन
उन शब्द के बोलने से तथा उनके दृश्य पर्ितरूपण से हो सकता है और इस धारा म िचह्न के उपयोग के पर्ित िनदश का अथर्
तद्नुसार होगा ।
14

30. रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के पर्भाव की सीमाएं––(1) धारा 29 की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह
िकसी व्यिक्त ारा स्वत्वधारी के व्यापार िचह्न के रूप म िकसी माल या सेवा की पहचान के पर्योजन के िलए रिजस्टर्ीकृ त व्यापार
िचह्न के उपयोग को िनवािरत करता है, परन्तु यह तब जब िक वह उपयोग––
(क) औ ोिगक या वािणिज्यक मामल से स ािवक प ितय के अनुसार हो ; और
(ख) ऐसा न हो जो व्यापार िचह्न के सुिभन्न स्वरूप या ख्याित का अनुिचत लाभ पर्ाप्त करता हो या उसके िलए
अिहतकर हो ।
(2) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का अितलंघन नह होता है––
(क) जहां माल या सेव के संबंध म उसका उपयोग माल के पर्कार, क्वािलटी, मातर्ा, आशियत पर्योजन, मूल्य,
भौगोिलक उ व, माल के उत्पादन या सेवा के िलए जाने का समय या माल या सेवा की अन्य िवशेषता को उपदिशत
करता हो ;
(ख) जहां व्यापार िचह्न िकन्ह शत या मयार्दा के अधीन रिजस्टर्ीकृ त ह, वहां िकसी भी स्थान म, िवकर्य िकए
जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल के संबंध म या उस माल के संबंध म, जो िकसी भी बाजार को िनयार्त
िकए जाने ह, या उन सेवा के संबंध म जो भारत से बाहर िकसी स्थान या देश म उपयोग के िलए ह या स्वीकृ ित के िलए
उपलभ्य ह, या नह अन्य पिरिस्थितय म िजनको, उन शत या मयार्दा पर ध्यान देते हुए, रिजस्टर्ीकरण का िवस्तार नह
है, उस ापार िचह्न के िकसी भी रीित म, उपयोग से ;
(ग) जहां िकसी व्यिक्त ारा िकसी व्यापार िचह्न का उपयोग,––
(i) व्यापार के अनुकर्म म, व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता से संसक्त माल के
संबंध म है, यिद उस माल या उस पर्पुंज या िजसका वह माल भागरूप है के बारे म रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ने या
अनुज्ञात के अनुरूपत: रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ने व्यापार िचह्न लगाया है और तत्पश्चात् उसे हटाया अथवा
िमटाया नह है या िकसी भी समय अिभव्यक्तत: या िववक्षतया, उस व्यापार िचह्न के उपयोग की अनुमित दी
है ; या
(ii) ऐसी सेवा के संबंध म है, िजस पर ऐसे िचह्न के स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोग के अनुरूपत:
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ने िचह्न के स्वत्वधारी या अनुज्ञात उपयोग के अनुरूपत: रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ने िचह्न
लगाया है, जहां िचह्न का उपयोग करने का पर्योजन और पर्भाव तथ्य के अनुसार, यह उपदिशत करता है िक वे
सेवाएं िचह्न के स्वत्वधारी या उसके रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ारा की गई है ;
(घ) जहां िकसी व्यिक्त ारा िकसी व्यापार िचह्न को उस माल के संबंध म उपयोग से, जो ऐसे अन्य माल या
सेवा के भागरूप या उसके उपसाधन होने के िलए अनुकूिलत ह िजस माल के बारे म इस अिधिनयम के अधीन
रिजस्टर्ीकरण ारा िदए गए अिधकार का अितलंघन िकए िबना व्यापार िचह्न का उपयोग िकया गया है, या तत्समय िकया
जा सकता है, यिद यह उपदिशत करने के िलए िक माल या सेवाएं इस पर्कार अनुकूिलत ह, व्यापार िचह्न का उपयोग
युिक्तयुक्तत: आवश्यक है, और व्यापार िचह्न के उपयोग को न तो यह उपदिशत करने का पर्योजन है और न ही यह पर्भाव है
िक व्यापार के अनुकर्म म, यथािस्थित, िकसी व्यिक्त और माल म या सेवा म तथ्य के अनुसार, जो संबंध है, उससे िभन्न कोई
संबंध है ;
(ङ) जहां इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकरण से िमले हुए व्यापार िचह्न के उपयोग के अिधकार के पर्योग म
ऐसे रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के उपयोग से, जो इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त उन दो या अिधक व्यापार िचह्न म
से एक है, जो एक दूसरे के तदर्ूप ह या िनकट सादृश्य रखते ह ।
(3) जहां रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न युक्त माल िकसी व्यिक्त ारा वैध रूप से अिजत िकया जाता है, वहां उस व्यिक्त ारा
या उसके अधीन या उसके माध्यम से दावा करने वाले व्यिक्त ारा बाजार म उस माल का िवकर्य व्यापार िचह्न का अितलंघन नह है,
यिद ऐसा के वल इस कारण से है िक––
(क) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न, उस माल के अजर्न के पश्चात् रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा िकसी अन्य व्यिक्त को
समनुिदष्ट िकया गया है ; या
(ख) माल या स्वत्वधारी ारा या उसकी सहमित से उस रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के अधीन बाजार म लाया
गया है ।
(4) उपधारा (3) वहां लागू नह होगी जहां स्वत्वधारी के िलए उस माल म आगे व्यवहार का िवरोध करने के िलए न्यायसंगत
कारण िव मान ह, िविशष्टतया जहां माल को बाजार म लाने के पश्चात् माल की दशा बदल गई है या उसका हर्ास हो गया है ।
15

31. रिजस्टर्ीकरण, िविधमान्यता का पर्थमदृष् ा सा य होना––(1) इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से
संबंिधत (धारा 57 के अधीन आवेदन सिहत) सभी िविधक कायर्वािहय म उस व्यापार िचह्न और व्यापार िचह्न के सभी पश्चात्वत
समनुदशे न और पारे षण के मूल रिजस्टर्ीकरण उनकी िविधमान्यता का पर्थमदृष् ा सा य ह गे ।
(2) यथापूव क्त सभी िविधक कायर्वािहय म, यिद यह सािबत कर िदया जाता है िक रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या उसके
हक-पूवार्िधकारी ने व्यापार िचह्न का उपयोग ऐसे िकया है िक वह रिजस्टर्ीकरण की तारीख को सुिभन्न हो गया है, तो ापार िचह्न
इस आधार पर अिविधमान्य नह िकया जाएगा िक वह धारा 9 के अधीन िबना सुिभन्नता के सा य के रिजस्टर करने के योग्य व्यापार
िचह्न नह था और यह िक रिजस्टर्ीकरण के पूवर् ऐसा सा य रिजस्टर्ार को पर्स्तुत नह िकया गया था ।
32. कितपय मामल म सुिभन्नता के आधार पर रिजस्टर्ीकरण का संरक्षण––जहां व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण धारा 9 की
उपधारा (1) का उल्लंघन करके िकया गया है वहां उसे अिविधमान्य घोिषत नह िकया जाएगा यिद उसका जो उपयोग िकया गया है
उसके पिरणामस्वरूप उससे रिजस्टर्ीकरण के पश्चात् और ऐसे रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता का आक्षेप करने वाली िकसी िविधक
कायर्वाही के पर्ारं भ के पूवर्, उस माल या सेवा के संबंध म, िजनके िलए उसे रिजस्टर्ीकृ त िकया गया है, सुिभन्न स्वरूप अिजत कर
िलया है ।
33. उपमित का पर्भाव––(1) जहां िकसी पूवर्वत ापार िचह्न का स्वत्वधारी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के उपयोग म, उस
उपयोग की जानकारी रखते हुए, लगातार पांच वषर् की अविध तक उपमत रहा है वहां उसे तब तक उस पूवर्वत व्यापार िचह्न के
आधार पर,––
(क) यह घोषणा करने के िलए आवेदन करने का हक नह होगा िक पश्चात्वत व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण
अिविधमान्य है ; या
(ख) उन माल या सेवा के संबंध म, िजनके संबधं म उनका इस पर्कार उपयोग िकया जाता रहा है, पश्चात्वत
व्यापार िचह्न के उपयोग का िवरोध करने का हक नह होगा,
जब तक िक पश्चात्वत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन स ावपूवक
र् नह िकया गया है ।
(2) जहां उपधारा (1) लागू होती है वहां पश्चात्वत व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी को, यथािस्थित, पूवर्वत व्यापार िचह्न के
उपयोग का िवरोध करने का या पूवर्वत अिधकार का समुपयोजन करने का इस बात के होते हुए भी हक नह होगा िक पूवर्वत व्यापार
िचह्न का अब उसके पश्चात्वत व्यापार िचह्न के िवरु अवलंब नह िलया जा सके गा ।
34. िनिहत अिधकार की व्यावृि ––इस अिधिनयम की कोई बात िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी या
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को इस बात के िलए हकदार नह बनाएगी िक वह उस व्यापार िचह्न के तदर्ूप या िनकट सादृश्य रखने वाले
िकसी ापार िचह्न के िकसी व्यिक्त ारा उन माल या सेवा के संबंध म उपयोग करने म हस्तक्षेप करे या उपयोग करने का
अवरोध करे , िजनके संबंध म वह व्यिक्त या उसका हक पूवार्िधकारी उस ापार िचह्न को, िनम्निलिखत तारीख म से जो भी पूवर्तर
तारीख हो, उससे लगातार उपयोग म लाता रहा है,––
(क) उन माल या सेवा के संबध
ं म पर्थम विणत व्यापार िचह्न को स्वत्वधारी या उसके हक पूवार्िधकारी ारा
उपयोग म लाने की तारीख, या
(ख) स्वत्वधारी या उसके हक पूवार्िधकारी के नाम उन माल या सेवा के बारे म पर्थम विणत व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण की तारीख,
और रिजस्टर्ार (ऐसा उपयोग सािबत हो जाने पर) पर्थम विणत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के ही कारण ि तीय विणत व्यापार
िचह्न को रिजस्टर करने से इन्कार नह करे गा ।
35. नाम, पता या माल या सेवा के वणर्न के उपयोग की व्यावृि ––इस अिधिनयम की कोई बात िकसी रिजस्टर्ीकृ त
व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को इस बात के िलए हकदार नह बनाएगी िक वह िकसी व्यिक्त ारा
स ावपूवर्क अपने नाम के या अपने व्यापार के स्थान के नाम के या कारबार म अपने पूवार्िधकारी के नाम म या कारबार के स्थान के
नाम के उपयोग म या िकसी व्यिक्त ारा उसके माल या सेवा के लक्षण या क्वािलटी के स ावपूवर्क वणर्न के उपयोग म हस्तक्षेप करे ।
36. िकसी वस्तु या पदाथर् या सेवा के नाम या वणर्न के रूप म उपयोग म लाए गए शब्द की व्यावृि ––(1) िकसी व्यापार
िचह्न का रिजस्टर्ीकरण के वल इस कारण अिविधमान्य हो गया नह समझा जाएगा िक रिजस्टर्ीकरण की तारीख के पश्चात् कोई एक
या अिधक शब्द, जो व्यापार िचह्न म अंतिवष्ट है या िजनसे िमलकर वह बनता है, िकसी वस्तु या पदाथर् या सेवा के नाम या वणर्न के
रूप म उपयोग म लाए गए ह :
परं तु यिद यह सािबत हो जाता है िक या तो––
(क) उस वस्तु या पदाथर् या सेवा के नाम या वणर्न के रूप म उक्त शब्द का उस व्यिक्त या उन व्यिक्तय ारा, जो
उसम व्यापार कर रहे ह, सुिवख्यात और पर्ितिष्ठत उपयोग है और ऐसा उपयोग व्यापार के अनुकर्म म स्वत्वधारी से या
16

व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता से संसक्त माल या सेवा से संब नह है या (पर्माणीकरण व्यापार िचह्न की
दशा म) स्वत्वधारी ारा पर्मािणत माल या सेवा से संब नह है ; या
(ख) वह वस्तु या पदाथर् पहले िकसी पेटेन्ट के अधीन िविनिमत होता था, उस पेटेन्ट की समािप्त के पश्चात् दो वषर्
या इससे अिधक की कालाविध व्यतीत हो चुकी है, और उक्त शब्द उस वस्तु या पदाथर् का के वल उपयोज्य नाम का वणर्न है,
तो उपधारा (2) के उपबंध लागू ह गे ।
(2) जहां उपधारा (1) के परं तुक के खण्ड (क) या खण्ड (ख) म उिल्लिखत तथ्य िकन्ह शब्द की बाबत सािबत कर िदए जाते
ह वहां,––
(क) धारा 57 के अधीन िकन्ह कायर्वािहय के पर्योजन के िलए यिद व्यापार िचह्न के वल ऐसे शब्द से ही िमलकर
बना है तो उस पर्श्नगत वस्तु या पदाथर् या उसी िववरण के िकसी माल या िकन्ह सेवा या उसी िववरण की िकन्ह सेवा
की बाबत, जैसा िक मामले म अपेिक्षत हो, रिजस्टर्ीकरण के िलए उस ापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण को रिजस्टर पर गलती
से रह गई पर्िविष्ट समझा जाएगा ;
(ख) व्यापार िचह्न से संबंिधत िकन्ह अन्य िविधक कायर्वािहय के पर्योजन के िलए––
(i) यिद व्यापार िचह्न के वल ऐसे शब्द से ही िमलकर बना है तो उस व्यापार िचह्न के उपयोग के बारे
म इस अिधिनयम या िकसी अन्य िविध के अधीन स्वत्वधारी के सब अिधकार ; या
(ii) यिद व्यापार िचह्न म ऐसे शब्द और अन्य बात ह तो ऐसे शब्द के उपयोग के बारे म स्वत्वधारी के
ऐसे सब अिधकार,
वस्तु या पदाथर् या उसी िववरण के िकसी माल के संबंध म या सेवा या उसी िववरण की िकन्ह सेवा के संबंध म, जैसा िक
मामल म अपेिक्षत हो, उस तारीख को समाप्त हो गए समझे जाएंगे िजस तारीख को उपधारा (1) के परन्तुक के खंड (क) म
उिल्लिखत उपयोग सवर्पर्थम सुिवख्यात और पर्ितिष्ठत हुआ या उक्त परन्तुक के खण्ड (ख) म उिल्लिखत दो वष की
कालाविध समाप्त हुई ।
1
[अध्याय 4क

मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के अधीन अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के माध्यम से


व्यापार िचह्न के संरक्षण के संबध
ं म िवशेष उपबंध
36क. मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के अधीन अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की दशा म अिधिनयम का लागू होना––इस अध्याय के उपबंध
अंतरराष्टर्ीय मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के अधीन अंतरराष्टर्ीय आवेदन और अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण को लागू ह गे ।
36ख. पिरभाषाएं––इस अध्याय म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) संिवदाकारी राज्य या संिवदाकारी संगठन के संबंध म “आवेदन” से ऐसे व्यिक्त ारा िकया गया आवेदन
अिभपर्ेत है जो, यथािस्थित, उस संिवदाकारी राज्य या ऐसे राज्य का, जो उस संिवदाकारी संगठन का सदस्य है, नागिरक है
या उसम अिधवासी है अथवा उसम उसका वास्तिवक और िकर्याशील औ ोिगक या वािणिज्यक स्थापन है ।
स्पष्टीकरण––इस खंड के पर्योजन के िलए “वास्तिवक और िकर्याशील औ ौिगक या वािणिज्यक स्थापन” से ऐसा
कोई स्थापन अिभपर्ेत है और इसके अंतगर्त है, जहां कु छ वास्तिवक औ ोिगक या वािणिज्यक िकर्याकलाप होते ह और
आवश्यकत: कारबार का मुख्य स्थान होना आवश्यक नह है ;
(ख) “मूल आवेदन” से धारा 18 के अधीन फाइल िकए गए व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन अिभपर्ेत
है, िजसका उपयोग अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करने के िलए आधार के रूप म िकया जाता है ;
(ग) “मूल रिजस्टर्ीकरण” से धारा 23 के अधीन व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण अिभपर्ेत है, िजसका उपयोग
अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करने के िलए आधार के रूप म िकया जाता है ;
(घ) “सामान्य िविनयम ” से मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के कायार्न्वयन से संबंिधत िविनयम अिभपर्ेत ह ;
(ङ) “संिवदाकारी संगठन” से ऐसा संिवदाकारी पक्षकार अिभपर्ेत है, जो अंतर-सरकारी संगठन है ;
(च) “संिवदाकारी पक्षकार” से मैिडर्ड पर्ोटोकॉल का संिवदाकारी राज्य या संिवदाकारी संगठन पक्षकार
अिभपर्ेत है ;
(छ) “संिवदाकारी राज्य” से मैिडर्ड पर्ोटोकॉल का पक्षकार देश अिभपर्ेत है ;

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 5 ारा अंत:स्थािपत ।
17

(ज) “अंतरराष्टर्ीय आवेदन” से मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के अधीन अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िलए या िकसी
संिवदाकारी पक्षकार को अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप संरक्षण के िवस्तारण के िलए आवेदन अिभपर्ेत है ;
(झ) “अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो” से िवश्व बौि क संपदा संगठन का अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो अिभपर्ेत है ;
(ञ) “अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण” से मैिडर्ड पर्ोटोकॉल के अधीन पर्भावी अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो के रिजस्टर म व्यापार
िचह्न का रिजस्टर्ीकरण अिभपर्ेत है ;
(ट) “मैिडर्ड करार” से 14 अपर्ैल, 1891 को मैिडर्ड म अंगीकृ त और तत्पश्चात् पुनरीिक्षत और संशोिधत िचह्न के
अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण से संबंिधत मैिडर्ड करार अिभपर्ेत है ;
(ठ) “मैिडर्ड पर्ोटोकॉल” से 27 जून, 1989 को मैिडर्ड म अंगीकृ त, समय-समय पर यथासंशोिधत िचह्न के
अंतरराष्टर्ीय रिजस्ट करण से संबंिधत मैिडर्ड करार के संबंध म पर्ोटोकॉल अिभपर्ेत है ।
36ग. अंतरराष्टर्ीय आवेदन पर कायर्वाही करने के िलए व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी––धारा 5 की उपधारा (3) म िकसी बात के
होते हुए भी, िकसी अंतरराष्टर्ीय आवेदन पर ापार िचह्न रिजस्टर्ी के पर्धान कायार्लय ारा या रिजस्टर्ी के ऐसे शाखा कायार्लय ारा
कायर्वाही की जाएगी, जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िविनिदष्ट करे ।
36घ. भारत से उद्भूत अंतरराष्टर्ीय आवेदन––(1) जहां व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन धारा 18 के अधीन
िकया गया है या व्यापार िचह्न धारा 23 के अधीन रिजस्टर कर िलया गया है, वहां आवेदक या उसका रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी उस
व्यापार िचह्न के अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िलए सामान्य िविनयम ारा िविहत पर्रूप म अंतरराष्टर्ीय आवेदन कर सके गा ।
(2) अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण धारक कोई व्यिक्त, ऐसे रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप िकसी अन्य संिवदाकारी पक्षकार को
संरक्षण के िवस्तारण के िलए सामान्य िविनयम ारा िविहत पर्रूप म अंतरराष्टर्ीय आवेदन कर सके गा ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अंतरराष्टर्ीय आवेदन, जहां अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप संरक्षण
अपेिक्षत है, संिवदाकारी पक्षकार को अिभिहत करे गा ।
(4) रिजस्टर्ार िविहत रीित म यह पर्मािणत करे गा िक अंतरराष्टर्ीय आवेदन म विणत िविशिष्टयां, धारा 18 के अधीन आवेदन
म या धारा 23 के अधीन रिजस्टर्ीकरण म पर्माणन के समय विणत िविशिष्टय के तदर्ूप है और, यथािस्थित, उस आवेदन की तारीख और
संख्या या उस रिजस्टर्ीकरण की तारीख और संख्या तथा उस आवेदन की तारीख और संख्या उपदिशत करे गा, िजसके पिरणामस्वरूप
रिजस्टर्ीकरण हुआ है और िविहत अविध के भीतर अंतरराष्टर्ीय आवेदन को अन्तरराष्टर्ीय ब्यूरो को रिजस्टर्ीकरण के िलए अगर्ेिषत करे गा
और अंतरराष्टर्ीय आवेदन की तारीख भी उपदिशत करे गा ।
(5) जहां अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण से पांच वषर् की अविध की समािप्त से पूवर् िकसी समय, चाहे ऐसा रिजस्टर्ीकरण िकसी
अन्य अन्य व्यिक्त को अंतिरत कर िदया गया है अथवा नह , यथािस्थित, धारा 18 के अधीन आवेदन या धारा 23 के अधीन
रिजस्टर्ीकरण वापस ले िलया गया है, र कर िदया गया है, समाप्त हो गया है अथवा अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण म सूचीब सभी या
कु छ माल या सेवा की बाबत अंितम रूप से नामंजूर कर िदया गया है, वहां ऐसे अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप संरक्षण
पर्भावी नह रहेगा :
परं तु जहां रिजस्टर्ीकरण के िविनश्चय के िवरु कोई अपील की जाती है और िकसी आवेदन की वापसी के िलए अनुरोध करते
हुए कोई कायर् या आवेदन का िवरोध अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण से पांच वषर् की अविध की समािप्त से पूवर् आरं भ िकया गया है वहां
वापसी, र करण समािप्त या इं कार म पिरणत कोई अंितम िविनश्चय अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण से पांच वषर् की अविध की समािप्त से
पूवर् िकया गया समझा जाएगा ।
(6) रिजस्टर्ार, अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की तारीख से आरं भ होने वाली पांच वषर् की अविध के दौरान, उपधारा (5) म
िनिदष्ट पर्त्येक सूचना को अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को पारे िषत करे गा ।
(7) रिजस्टर्ार अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को, यथािस्थित, मूल आवेदन या मूल रिजस्टर्ीकरण की वतर्मान पर्ािस्थित को ध्यान म रखते
हुए अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िकए जाने वाले र करण को अिधसूिचत करे गा ।
36ङ. जहां भारत को अिभिहत िकया गया है, वहां अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण––(1) रिजस्टर्ार, जहां भारत को अिभिहत
िकया गया है, वहां िकसी अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के बारे म अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो से सलाह लेने के पश्चात्, िविहत रीित म उस
अन्तरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की िविशिष्टय का अिभलेख रखेगा ।
(2) जहां, उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की िविशिष्टय को अिभिलिखत करने के पश्चात्,
रिजस्टर्ार का यह समाधान हो जाता है िक मामले की पिरिस्थितय म भारत म व्यापार िचह्न का संरक्षण पर्दान नह िकया जाना
चािहए या ऐसा संरक्षण ऐसी शत या पिरसीमा के या उन शत या पिरसीमा के अितिरक्त अथवा उनसे िभन्न शत के अधीन
रहते है, हुए पर्दान िकया जाना चािहए िजनके अधीन रहते हुए अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण स्वीकार िकया गया है, वहां वह, आवेदक को
सुनने के पश्चात्, यिद वह ऐसी वांछा करे , संरक्षण पर्दान करने से इं कार कर सके गा और उस तारीख से, िजसको उपधारा (1) म
िनिदष्ट सलाह पर्ाप्त हुई थी, अठारह मास के भीतर िविहत रीित म, अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को सूिचत करे गा ।
18

(3) जहां रिजस्टर्ार उपधारा (2) के अधीन संरक्षण पर्दान करने से इं कार करने के िलए अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की
िविशिष्टय म कु छ नह पाता है, वहां वह िविहत अविध के भीतर ऐसे अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण को िविहत रीित से िवज्ञािपत
कराएगा ।
(4) धारा 9 से धारा 21 (दोन धारा सिहत), धारा 63 और धारा 74 के उपबंध िकसी अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण को यथा
आवश्यक पिरवतर्न सिहत इस पर्कार लागू ह गे, मानो ऐसा अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण धारा 18 के अधीन व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन हो ।
(5) जब अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के संरक्षण का िवरोध नह िकया गया है और िवरोध की सूचना के िलए समय समाप्त हो
गया है, तब रिजस्टर्ार उपधारा (1) के अधीन सलाह की पर्ािप्त के अठारह मास की अविध के भीतर अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को ऐसे
अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के अधीन व्यापार िचह्न के संरक्षण के िवस्तारण को अपनी स्वीकृ ित के बारे म अिधसूिचत करे गा और यिद
रिजस्टर्ार अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को अिधसूिचत करने म असफल रहता है तो यह समझा जाएगा िक संरक्षण व्यापार िचह्न तक िवस्तािरत
िकया गया है ।
(6) जहां व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी भारत म उस िचह्न का अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण करता है और भारत
को अिभिहत करता है वहां रिजस्टर्ीकरण की तारीख से अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण ारा भारत म धािरत रिजस्टर्ीकरण को ऐसे पूवर् म
धािरत रिजस्टर्ीकरण के अधीन अिजत िकसी अिधकार पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, पर्ितस्थािपत िकया गया समझा जाएगा और
रिजस्टर्ार आवेदक के अनुरोध पर धारा 6 की उपधारा (1) म िनिदष्ट रिजस्टर म आवश्यक पर्िविष्ट करे गा ।
(7) िकसी व्यापार िचह्न के अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के धारक को, जो भारत को अिभिहत करता है और िजसको भारत म
संरक्षण िवस्तािरत नह िकया गया है, वही उपचार उपलब्ध होगा, जो धारा 18 के अधीन व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए
आवेदन करने वाले िकसी व्यिक्त को उपलब्ध है और जो धारा 23 के अधीन रिजस्टर्ीकरण म पिरणत नह हुआ है ।
(8) जहां िकसी समय अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की पांच वषर् की अविध की समािप्त से पूवर्, चाहे ऐसा रिजस्टर्ीकरण िकसी
अन्य व्यिक्त को अंतिरत िकया गया हो अथवा नह , यथािस्थित, संबंिधत मूल आवेदन या भारत से िभन्न िकसी संिवदाकारी पक्षकार
देश म मूल रिजस्टर्ीकरण वापस ले िलया गया है या र कर िदया गया है या समाप्त हो गया है या अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण म
सूचीब सभी या कु छ माल अथवा सेवा की बाबत अंितम रूप रूप से इं कार कर िदया गया है वहां भारत म ऐसे अंतरराष्टर्ीय
रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप संरक्षण पर्भावी नह रहेगा ।
36च. अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के पर्भाव––(1) िकसी ापार िचह्न के अंतरराष्टर्ीय की तारीख से, जहां भारत को
अिभिहत िकया गया है या व्यापार िचह्न के अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के पिरणामस्वरूप संरक्षण के भारत को िवस्तार के बारे म
अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो के रिजस्टर म लेखब तारीख से, भारत म व्यापार िचह्न का संरक्षण वैसा ही होगा मानो व्यापार िचह्न भारत म
रिजस्टर्ीकृ त िकया गया हो ।
(2) आवेदक ारा िदए गए माल और सेवा के वग का उपदशर्न व्यापार िचह्न के संरक्षण की पिरिध के अवधारण के संबंध
म रिजस्टर्ार पर आब कार नह होगा ।
36छ. अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की अविध और उसका नवीकरण––(1) अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो म िकसी व्यापार िचह्न का
अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण दस वषर् की अविध के िलए होगा और पूववर्त अविध की समािप्त से दस वषर् की अविध के िलए नवीकृ त
िकया जा सके गा ।
(2) िनयम ारा िविहत अिधभार के संदाय के अधीन रहते हुए, अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के नवीकरण के िलए छह मास की
अनुगर्ह अविध अनुज्ञात की जाएगी ।]
अध्याय 5

समनुदश
े न और पारे षण
37. रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी की समनुदशे न करने और रसीद देने की शिक्त––उस व्यिक्त को, जो रिजस्टर म तत्समय व्यापार
िचह्न के स्वत्वधारी के रूप म पर्िवष्ट है, इस अिधिनयम के उपबंध और रिजस्टर से िकसी अन्य व्यिक्त म िनिहत पर्तीत होने वाले
अिधकार के अधीन, व्यापार िचह्न के समनुदश े न की और ऐसे समनुदश े न के िलए िकसी पर्ितफल के िलए पर्भावी रसीद देने की
शिक्त होगी ।
38. रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न की समनुदश
े नीयता और पारे षणीयता––िकसी अन्य िविध म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए
भी, इस अध्याय के उपबंध के अधीन रहते हुए, रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न सम्पृक्त कारबार के गुडिवल सिहत या रिहत और या तो
उन सभी माल या सेवा की बाबत, िजनकी बाबत व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, या उन माल या सेवा म से के वल कु छ की बाबत
समनुदश
े नीय और पारे षणीय होगा ।
39. अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न की समनुदश
े नीयता और पारे षणीयता––िकसी अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न को सम्पृक्त
कारबार की गुडिवल सिहत या उसके िबना समनुदिे शत या पारे िषत िकया जा सके गा ।
19

40. जहां बहु अनन्य अिधकार सृिजत हो जाएंगे वहां समनुदश


े न या पारे षण पर िनबर्न्धन––(1) धारा 38 और धारा 39 म
िकसी बात के होते हुए भी, व्यापार िचह्न उस दशा म समनुदश े नीय या पारे षणीय नह होगा िजसम समनुदश े न या पारे षण के
पिरणामस्वरूप उन पिरिस्थितय म एकािधक सम्पृक्त व्यिक्तय को, चाहे इस अिधिनयम के अधीन हो या िकसी अन्य िविध
के अधीन,––
(क) उसी माल या सेवा ;
(ख) उसी िववरण वाले माल या सेवा ;
(ग) ऐसे माल या सेवाएं या माल या सेवा के िववरण, जो एक दूसरे से सहयुक्त ह,
के संबंध म एक दूसरे से िनकट सादृश्य रखने वाले व्यापार िचह्न या तदर्ूप व्यापार िचह्न के अनन्य उपयोग के अिधकार अिस्तत्ववान
हो जाएंगे, यिद माल और सेवा और व्यापार िचह्न की समरूपता को ध्यान म रखते हुए, उन अिधकार के पर्योग म ापार िचह्न
के उपयोग से धोखा या भर्म होने की सम्भा ता है :
परं तु समनुदश
े न या पारे षण इस उपधारा के अधीन अिविधमान्य नह समझा जाएगा यिद उसके पिरणामस्वरूप, सम्पृक्त
व्यिक्तय के अिस्तत्ववान अनन्य अिधकार उन पर अिधरोिपत पिरसीमा को ध्यान म रखते हुए, इस पर्कार के ह, जो भारत के भीतर,
वहां से िनयार्त िकए जाने से अन्यथा िवकर्य िकए जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल के संबंध म या भारत के बाहर एक
ही बाजार को िनयार्त िकए जाने वाले माल के संबंध म या भारत म स्वीकृ ित के िलए उपलभ्य सेवा के संबंध म, भारत म िकसी स्थान
पर या भारत के बाहर िकसी स्थान पर उपयोग के िलए सेवा के संबंध म या भारत के बाहर के एक ही देश या क्षेतर् म उपयोग के िलए
सेवा के संबंध म या उन व्यिक्तय म से दो या अिधक ारा पर्योक्तव्य नह ह ।
(2) व्यापार िचह्न का स्वत्वधारी जो उसे समनुदश े न करने की पर्स्थापना करता है, रिजस्टर्ार को िविहत रीित से
पिरिस्थितय का ब्यौरा देते हुए, मामले का कथन पर्स्तुत कर सके गा और रिजस्टर्ार उसे एक पर्माणपतर् दे सके गा िजसम यह कथन होगा
िक क्या मामले म िनिदष्ट माल या सेवा और ापार िचह्न की समरूपता को ध्यान म रखते हुए, उपधारा (1) के अधीन पर्स्थािपत
समनुदश े न अिविधमान्य होगा या नह होगा और इस पर्कार जारी िकया गया पर्माणपतर् अपील के अधीन रहते हुए और जब तक यह
दिशत नह िकया जाए िक पर्माणपतर् कपट या दुव्यर्पदेशन से अिधपर्ाप्त िकया गया था, उपधारा (1) के अधीन समनुदश े न की
िविधमान्यता या अिविधमान्यता के बारे म, जहां तक ऐसी िविधमान्यता या अिविधमान्यता मामले म किथत तथ्य पर िनभर्र है
िनश्चायक होगा, िकन्तु जहां तक िविधमान्यता के पक्ष म पर्माणपतर् का संबंध है, यह तभी होगा जब हकदार बनने वाले व्यिक्त के हक
के , धारा 45 के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन उस तारीख से, िजसको पर्माणपतर् जारी िकया जाता है, छह मास के भीतर ही कर
िदया जाता है ।
41. समनुदश
े न या पारे षण पर िनबर्न्धन यिद भारत के िभन्न भाग म अनन्य अिधकार सृिजत हो जाएंग–े –धारा 38 और
धारा 39 म िकसी बात के होते हुए भी, व्यापार िचह्न उस दशा म समनुदश े नीय या पारे षणीय नह होगा िजसम समनुदश े न या
पारे षण के पिरणामस्वरूप, उन पिरिस्थितय म, चाहे इस अिधिनयम के या िकसी अन्य िविध के अधीन,––
(क) सम्पृक्त व्यिक्तय म से एक को, भारत म िकसी भी स्थान म िवकर्य िकए जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए
जाने वाले माल के संबंध म, भारत म िकसी भी स्थान म उपयोग के िलए सेवा के या स्वीकार िकए जाने के िलए उपलभ्य
सेवा के संबंध म उपयोग के िलए मयार्िदत व्यापार िचह्न के उपयोग के िलए अनन्य अिधकार ; और
(ख) इन्ह सम्पृक्त व्यिक्तय म से िकसी अन्य व्यिक्त को––
(i) उसी माल या सेवा ; या
(ii) उसी िववरण वाले माल या सेवा ; या
(iii) ऐसी सेवा , जो उसी माल या उसी िववरण के माल से सहयुक्त ह या ऐसे माल, जो उन्ह सेवा
या उसी िववरण की सेवा से सहयुक्त ह,
के संबंध म पर्थम उिल्लिखत व्यापार िचह्न से िनकट सादृश्य रखने वाले व्यापार िचह्न या तदर्ूप व्यापार िचह्न के उपयोग का भारत म
िकसी अन्य स्थान म िवकर्य िकए जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल या उपयोग िकए जाने वाले या स्वीकार िकए जाने
के िलए उपलभ्य सेवा के संबंध म उपयोग के िलए मयार्िदत अनन्य अिधकार होगा :
परं तु िकसी भी ऐसी दशा म, व्यापार िचह्न के उस स्वत्वधारी ारा, जो उसे समनुदश े न करने की पर्स्थापना करता है या उस
व्यिक्त ारा, जो यह दावा करता है िक रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न उसे या उसके हक-पूवार्िधकारी को इस अिधिनयम के पर्ारं भ से ही
पारे िषत िकया गया है, िविहत रीित म आवेदन िकए जाने पर यिद रिजस्टर्ार का समाधान हो जाता है िक सभी पिरिस्थितय म, उक्त
अिधिनयम के पर्योग म व्यापार िचह्न का उपयोग लोकिहत के िवरु नह होगा तो वह समनुदश े न या पारे षण का अनुमोदन कर
सके गा और इस पर्कार अनुमोिदत समनुदश े न या पारे षण, जब तक यह दिशत न कर िदया जाए िक अनुमोदन कपट या दुव्यर्पदेशन से
अिभपर्ाप्त िकया गया था, इस धारा या धारा 40 के अधीन अिविधमान्य नह समझा जाएगा यिद हकदार बनने वाले व्यिक्त को धारा
45 के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन उस तारीख से, िजसको अनुमोदन िकया गया है, छह मास के भीतर कर िदया गया है या
पारे षण की दशा म, उस तारीख से पहले िकया गया था ।
20

42. िकसी कारबार की गुडिवल के संबध ं से अन्यथा समनुदश


े न की शत––जहां िकसी व्यापार िचह्न का, चाहे वह रिजस्टर्ीकृ त
हो या अरिजस्टर्ीकृ त, समनुदश े न उस कारबार की िजसम उस िचह्न का उपयोग िकया गया था या िकया जाता है, गुडिवल के संबंध से
अन्यथा िकया गया है वहां समनुदश े न पर्भावी नह होगा जब तक िक समनुदिे शती समनुदश े न की तारीख से छह मास के अवसान के
पहले या कु ल िमलकार तीन मास से अनिधक ऐसी िवस्तािरत अविध के भीतर, यिद कोई हो, जो रिजस्टर्ार अनुज्ञात करे , समनुदश े न के
िवज्ञापन की बाबत िनदश के िलए रिजस्टर्ार को आवेदन नह करता है और ऐसे पर्रूप और रीित म और इतनी अविध के भीतर िजतनी
िक रिजस्टर्ार िनिदष्ट करे , िवज्ञािपत नह करता है ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए िनम्निलिखत िववरण वाले व्यापार िचह्न के समनुदश
े न की बाबत यह नह
समझा जाएगा िक वह ऐसा समनुदश े न है जो उस कारबार के , िजसम उस िचह्न का उपयोग होता है, गुडिवल के संबंध से अन्यथा
िकया गया है, अथार्त् :––
(क) िजस माल या सेवा के िलए व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, उसम से कु छ की बाबत उस व्यापार िचह्न का
समनुदश
े न िजसके साथ के वल उस माल या सेवा से संपृक्त कारबार के गुडिवल का अंतरण हुआ है ; या
(ख) िजस व्यापार िचह्न का उपयोग भारत से िनयार्ितत माल के संबंध म या भारत से बाहर उपयोग के िलए
सेवा के संबंध म होता है उसका समनुदश
े न, यिद समनुदश
े न के साथ के वल िनयार्त कारबार के गुडिवल का अंतरण हुआ है ।
43. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न की समनुदशे नीयता और पारे षणीयता––पर्माणीकरण व्यापार िचह्न रिजस्टर्ार की सहमित
से ही समनुदश
े नीय या पारे षणीय होगा अन्यथा नह और इसके िलए आवेदन िलिखत रूप म िविहत रीित म िकया जाएगा ।
44. सहयुक्त व्यापार िचह्न की समनुदश
े नीयता और पारे षणीयता––सहयुक्त व्यापार िचह्न समगर् रूप से ही समनुदश
े नीय
और पारे षणीय ह गे पृथक्त: नह , िकतु इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन वे, सभी अन्य पर्योजन के िलए, पृथक् व्यापार िचह्न के
रूप म रिजस्टर्ीकृ त समझे जाएंगे ।
[45. समनुदश
1
े न और पारे षण का रिजस्टर्ीकरण––(1) जहां कोई व्यिक्त िकसी रिजस्टर्ीकरण व्यापार िचह्न का समनुदश े न
या पारे षण ारा हकदार हो जाता है, वहां वह अपने हक को रिजस्टर करने के िलए रिजस्टर्ार को िविहत रीित म आवेदन करे गा और
रिजस्टर्ार, आवेदन की पर्ािप्त पर, उस माल या सेवा की बाबत व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के रूप म उसे रिजस्टर करे गा, िजसकी
बाबत ऐसा समनुदश े न या पारे षण पर्भावी है और समनुदश
े न या पारे षण की िविशिष्टय को रिजस्टर म पर्िवष्ट कराएगा ।
(2) रिजस्टर्ार आवेदक से के वल वह जहां िदए गए िकसी कथन या िकसी दस्तावेज की सत्यता के बारे म कोई युिक्तयुक्त
संदह
े हो, यह अपेक्षा कर सके गा िक वह हक के सबूत म कोई सा य या अितिरक्त सा य दे ।
(3) जहां िकसी समनुदशे न या पारे षण की िविधमान्यता पक्षकार के बीच म िववादगर्स्त है, वहां रिजस्टर्ार ऐसे समनुदश
े न या
पारे षण को रिजस्टर करने से तब तक इं कार कर सके गा, जब तक िक पक्षकार के अिधकार सक्षम न्यायालय ारा अवधािरत नह िकए
जाते ह और सभी अन्य मामल म रिजस्टर्ार आवेदन का िनपटारा िविहत अविध के भीतर करे गा ।
(4) जब तक िक उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन फाइल नह िकया गया हो, तब तक समनुदश े न या पारे षण ऐसे व्यिक्त
के िवरु पर्भावी नह होगा, जो रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न म या उसके अधीन समनुदश
े न या पारे षण के ज्ञान के िबना िववादगर्स्त
िहत अिजत करता है ।]
अध्याय 6

व्यापार िचह्न का उपयोग और रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता


46. िनमार्ण, आिद की जाने वाली कं पनी ारा व्यापार िचह्न का पर्स्तािवत उपयोग––(1) के वल इस आधार पर यह पर्तीत
होता है िक आवेदक ापार िचह्न का उपयोग नह करता है या उपयोग करने की पर्स्थापना नह करता है, िकसी भी माल या सेवा
की बाबत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के आवेदन को नामंजूर और ऐसे रिजस्टर्ीकरण की अनुज्ञा को िवधािरत नह िकया जाएगा,
यिद रिजस्टर्ार का यह समाधान हो जाता है िक––
(क) कोई कं पनी, कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के अधीन िनिमत और रिजस्टर्ीकृ त होने ही वाली है और
आवेदक का आशय कं पनी ारा उन माल या सेवा की बाबत व्यापार िचह्न के उपयोग के उ ेश्य से उस कं पनी को उस
व्यापार िचह्न का समनुदश
े न करना है, या
(ख) स्वत्वधारी का ापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के पश्चात् िकसी व्यिक्त ारा रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म
उसका उपयोग िकए जाने का आशय है ।
(2) इस उपधारा ारा पर्द शिक्तय के अधीन रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के संबंध म धारा 47 के उपबंध वैसे ही पर्भावी
ह गे मानो उस धारा की उपधारा (1) के खण्ड (क) म रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदक के इस आशय के पर्ित िनदश के स्थान पर िक

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 6 ारा पर्ितस्थािपत ।
21

व्यापार िचह्न उसके ारा उपयोग िकया जाना चािहए उसके इस आशय के पर्ित िनदश पर्ितस्थािपत िकया गया है िक उसका उपयोग
सम्ब कं पनी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ारा िकया जाना चािहए ।
(3) अिधकरण उस मामले म, िजसम उपधारा (1) लागू होती है, आवेदक से, िवरोध या अपील से संबंिधत िकन्ह
कायर्वािहय के खच की पर्ितभूित देने की अपेक्षा कर सके गा और सम्यक्त: ऐसी पर्ितभूित देने म व्यितकर्म होने पर आवेदन को पिरत्यक्त
मान सके गा ।
(4) जहां उस मामले म, िजसको उपधारा (1) लागू होती है, िकसी माल या सेवा की बाबत कोई व्यापार िचह्न िकसी ऐसे
आवेदक के नाम रिजस्टर्ीकृ त है, जो िकसी कं पनी को व्यापार िचह्न का समनुदश
े न करने के आशय का अवलंब लेता है, वहां यिद ऐसी
अविध के भीतर, जो िविहत की जाए, या छह मास से अनिधक ऐसी अितिरक्त अविध के भीतर जो रिजस्टर्ार िविहत रीित म उसे
आवेदन करने पर अनुज्ञात करे , कं पनी उस माल या सेवा की बाबत व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर नह की जाती है,
तो रिजस्टर्ीकरण उनकी बाबत उस अविध के अवसान पर पर्भावशील नह होगा और रिजस्टर्ार तद्नुसार रिजस्टर को संशोिधत करे गा ।
47. अनुपयोग के आधार पर रिजस्टर से हटाना और मयार्दाएं अिधरोिपत करना––(1) कोई रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न िजस
माल या सेवा की बाबत वह रिजस्टर्ीकृ त है उनम से िकसी बाबत भी व्यिथत व्यिक्त ारा रिजस्टर्ार या अपील बोडर् को िविहत रीित
म आवेदन करने पर िनम्निलिखत आधार म से िकसी आधार पर रिजस्टर से हटाया जा सके गा, अथार्त् :––
(क) यह िक व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण, रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदक की ओर से इस स ावपूणर् आशय के
िबना िकया गया था िक उसका उपयोग उस माल या सेवा के संबंध म उसके ारा, या ऐसे माल म, िजसम धारा 46 के
उपबंध लागू होते ह, यथािस्थित, संपृक्त कं पनी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ारा, िकया जाएगा और यह िक वस्तुत: उस
व्यापार िचह्न का उस माल या सेवा के संबंध म तत्समय के िकसी स्वत्वधारी ारा आवेदन की तारीख से तीन मास पूवर्
की तारीख तक स ावपूणर् उपयोग नह हुआ था ; या
(ख) यह िक आवेदन की तारीख से तीन मास पूवर् की तारीख तक उस तारीख से िजसको व्यापार िचह्न वास्तव म
रिजस्टर म रिजस्टर्ीकृ त िकया गया था, पांच वषर् की िनरं तर अविध या इससे अिधक अविध व्यपगत हो चुकी है, िजसम
व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त था और िजसम उसका तत्समय के िकसी स्वत्वधारी ारा उस माल या सेवा के संबंध म कोई
स ावपूणर् उपयोग नह हुआ था :
परन्तु जहां आवेदक को धारा 12 के अधीन पर्श्नगत माल या सेवा की बाबत तदर्ूप या िनकट सादृश्य वाला
व्यापार िचह्न रिजस्टर करने के िलए अनुज्ञात िकया गया है या जहां अिधकरण की यह राय है िक उसे ऐसे व्यापार िचह्न
को इस पर्कार रिजस्टर करने के िलए अनुज्ञात करना उिचत होगा, उस दशा के िसवाय अिधकरण िकसी माल या सेवा के
संबंध म खण्ड (क) या खण्ड (ख) के अधीन आवेदन को नामंजूर कर सके गा यिद यह दशार्या जाता है िक, यथािस्थित, सुसंगत
तारीख के पहले या सुसंगत अविध के दौरान ापार िचह्न के तत्समय स्वत्वधारी ारा––
(i) उसी िववरण वाले माल या सेवा ; या
(ii) यथािस्थित, उसी िववरण वाले उस माल या सेवा से सहयुक्त माल या सेवा , जो ऐसे माल या सेवाएं ह
िजनके संबंध म व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है,
की बाबत व्यापार िचह्न का स ावपूवर्क उपयोग िकया गया है ।
(2) जहां िकसी माल या सेवा के संबंध म िजसकी बाबत व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है––
(क) उपधारा (1) के खण्ड (ख) म िनिदष्ट पिरिस्थितयां िव मान ह ऐसा भारत म िकसी िविशष्ट स्थान म िवकर्य
या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल (जो भारत से िनयार्त के िलए है उनसे अन्यथा) के संबंध म या भारत से बाहर िकसी
िविशष्ट बाजार म िनयार्त िकए जाने वाले माल के संबंध म या भारत म िकसी िविशष्ट स्थान म उपयोग की जाने वाली या
स्वीकार िकए जाने के िलए उपलभ्य या भारत से बाहर िकसी िविशष्ट बाजार के उपयोग के िलए िकन्ह सेवा के संबंध म
व्यापार िचह्न के अनुपयोग के बारे म दिशत िकया गया है ; और
(ख) िकसी व्यिक्त को धारा 12 के अधीन उन्ह माल के बारे म तदर्ूप या िनकट सादृश्य वाले व्यापार िचह्न िकसी
ऐसे रिजस्टर्ीकरण के अधीन जो िवकर्य िकए जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल के संबंध म या इस पर्कार
िनयार्त िकए जाने वाले माल के संबंध म या उसी स्थान म उपयोग के िलए या स्वीकार िकए जाने के िलए उपलभ्य या उसी
देश म उपयोग के िलए सेवा के संबंध म उपयोग के िलए िवस्तािरत है, रिजस्टर करने के िलए अनुज्ञात िकया गया है, या
अिधकरण की यह राय है िक उसे ऐसे व्यापार िचह्न को इस पर्कार रिजस्टर करने के िलए अनुज्ञात करना उिचत होगा,
वहां उस व्यिक्त ारा िविहत रीित म अपील बोडर् या रिजस्टर्ार को आवेदन करने पर, अिधकरण पहले उिल्लिखत व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण पर ऐसी मयार्दाएं अिधरोिपत की जा सकगी िजन्ह वह यह सुिनिश्चत करने के िलए उिचत समझे िक रिजस्टर्ीकरण का
ऐसे उपयोग तक िवस्तार समाप्त हो जाएगा ।
(3) उपधारा (1) के खण्ड (ख) के पर्योजनाथर् या उपधारा (2) के पर्योजनाथर् कोई आवेदक िकसी व्यापार िचह्न के अनुपयोग
का, िजसकी बाबत यह दिशत िकय जाता है िक वह व्यापार म िवशेष पिरिस्थितय के , िजनके अन्तगर्त भारत म व्यापार िचह्न के
22

उपयोग पर िकसी िविध या िविनयम ारा अिधरोिपत िनबर्न्धन भी है, कारण या व्यापार िचह्न का उस माल या सेवा के संबंध म,
िजनसे आवेदन संबंिधत है, पिरत्याग करने या उपयोग न करने के आशय के कारण नह था, अवलम्ब लेने का हकदार नह होगा ।
48. रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता––(1) धारा 49 के उपबंध के अधीन िकसी ापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी से िभन्न कोई
व्यिक्त उन सभी या िकन्ह माल या सेवा की बाबत िजसकी बाबत वह व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, उसके रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता
के रूप म रिजस्टर्ीकृ त िकया जा सके गा ।
(2) धारा 47 के पर्योजनाथर् या िकसी अन्य पर्योजन के िलए िजसके िलए, ऐसा उपयोग इस अिधिनयम या िकसी अन्य िविध
के अधीन ताित्त्वक है, व्यापार िचह्न का अनुज्ञात उपयोग उसके स्वत्वधारी ारा उपयोग िकया गया समझा जाएगा और यह समझा
जाएगा िक वह स्वत्वधारी से िभन्न िकसी व्यिक्त ारा उपयोग नह िकया जाएगा ।
49. रिजस्टर्ीकरण उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर्ीकरण––(1) जहां यह पर्स्थापना है िक िकसी व्यिक्त को व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर िकया जाए वहां रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और पर्स्थािपत रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता संयुक्तत:
िलिखत रूप म रिजस्टर्ार को िविहत रीित म आवेदन करगे और ऐसे पर्त्येक आवेदन के साथ िनम्निलिखत ह गे :––
(क) रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और पर्स्थािपत रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के बीच व्यापार िचह्न के अनुज्ञात उपयोग की
बाबत िकया गया िलिखत करार या उसकी सम्यक्त: अिधपर्मािणत पर्ित ; और
(ख) रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या इस िनिम कायर् करने के िलए रिजस्टर्ार के समाधानपर्द रूप म पर्ािधकृ त िकसी
व्यिक्त ारा िकया गया शपथपतर् िजसम––
(i) रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और पर्स्थािपत रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के बीच िव मान या पर्स्थािपत संबंध
की िविशिष्टयां उन िविशिष्टय सिहत दी हुई ह गी िजनम उस अनुज्ञात उपयोग पर जो उनके संबंध ारा पर्द
होगा, स्वत्वधारी ारा िनयंतर्ण की मातर्ा और यह बात दिशत होगी िक क्या यह उनके संबध ं का िनबन्धन है िक
पर्स्थािपत रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता एकमातर् रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता होगा या उन व्यिक्तय की बाबत कोई अन्य
िनबर्न्धन होगा िजनके रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन िकया जा सके गा ;
(ii) वे माल या सेवाएं किथत ह गी, िजनकी बाबत रिजस्टर्ीकरण पर्स्थािपत है ;
(iii) वे शत और िनबर्न्धन, यिद कोई ह , किथत ह गे, जो माल या सेवा के लक्षण की बाबत, अनुज्ञात
उपयोग के ढंग या स्थान की बाबत या िकसी अन्य बात की बाबत पर्स्थािपत है ;
(iv) यह किथत होगा िक क्या अनुज्ञात उपयोग िकसी अविध के िलए होगा या िबना सीमा की अविध के
िलए होगा, और यिद अविध के िलए है तो उसकी अिस्तत्वाविध ; और
(ग) ऐसे और दस्तावेज या अन्य सा य जो रिजस्टर्ार ारा अपेिक्षत ह या जो िविहत िकए जाएं ।
(2) उपधारा (1) की अपेक्षा का अनुपालन हो जाने पर, रिजस्टर्ार उन माल और सेवा की बाबत, िजनके बारे म उसका
इस पर्कार समाधान हो जाए, पर्स्थािपत रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को रिजस्टर्ीकृ त करे गा ।
(3) रिजस्टर्ार िकसी व्यिक्त के रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर्ीकरण की सूचना उस व्यापार िचह्न के अन्य
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को, यिद कोई ह , िविहत रीित म जारी करे गा ।
(4) यिद आवेदक ऐसी पर्ाथर्ना करे तो रिजस्टर्ार यह सुिनिश्चत करने के िलए कदम उठाएगा िक इस धारा के अधीन आवेदन
के पर्योजनाथर् दी गई सूचना (रिजस्टर म पर्िवष्ट बात के अितिरक्त) व्यापार म पर्ित िन्दय को पर्कट नह की जाएं ।
50. रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म रिजस्टर्ीकरण म फे रफार करना या उसे र करने की रिजस्टर्ार की शिक्त––(1) धारा 57
के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रूप म िकसी व्यिक्त का रिजस्टर्ीकरण––
(क) रिजस्टर्ार ारा, उन माल या सेवा के संबंध म, िजनकी बाबत वह पर्वृ है, व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त
स्वत्वधारी के िविहत रूप म िलिखत आवेदन करने पर, फे रफार िकया जा सके गा ;
(ख) रिजस्टर्ार ारा रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता या व्यापार िचह्न के िकसी अन्य रिजस्टर्ीकृ त
उपयोक्ता के िविहत रीित म िलिखत आवेदन करने पर, र िकया जा सके गा,
(ग) रिजस्टर्ार ारा, िकसी भी व्यिक्त के िविहत रीित म िलिखत आवेदन करने पर, िनम्निलिखत म से िकसी
आधार पर र िकया जा सके गा ; अथार्त् :––
(i) रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ने, व्यापार िचह्न का धारा 49 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन करार
से अन्यथा उपयोग िकया है या इस पर्कार से उपयोग िकया है िक धोखा या भर्म होता है या होने की संभाव्यता है;
23

(ii) स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ने, रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन के िलए िकसी ऐसे ताित्त्वक
तथ्य का दुव्यर्पदेशन िकया है या उसे पर्कट करने म असफल रहा है, िजसे यिद सही रूप म पदेिशत िकया जाता
या पर्कट िकया जाता तो उससे रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता का रिजस्टर्ीकरण न्यायसंगत नह होता ;
(iii) रिजस्टर्ीकरण की तारीख से पिरिस्थितयां इस पर्कार बदल गई ह िक र करने के िलए ऐसे आवेदन
की तारीख को वे रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रिजस्टर्ीकरण को न्यायसंगत नह बनाती ह ;
(iv) उस संिवदा के आधार पर, िजसके अनुपालन म आवेदक िहतब है, उसम िनिहत अिधकार को
ध्यान म रखते हुए, रिजस्टर्ीकरण नह िकया जाना चािहए था ;
(घ) रिजस्टर्ार ारा, स्वपर्ेरणा से या िकसी व्यिक्त ारा िविहत रीित म िलिखत आवेदन पर, इस आधार पर र
िकया जा सके गा िक रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के बीच करार म िकसी अनुबंध को, जो उस माल या
सेवा की क्वािलटी के बारे म है, िजसके संबंध म ापार िचह्न उपयोग िकया जाना है, लागू नह िकया जा रहा है या
उसका अनुपालन नह हो रहा है ;
(ङ) रिजस्टर्ार ारा उस माल या सेवा की बाबत, िजसके संबंध म व्यापार िचह्न अब रिजस्टर्ीकृ त नह है, र
िकया जा सके गा ।
(2) रिजस्टर्ार इस धारा के अधीन पर्त्येक आवेदन की बाबत सूचना उस व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और
(आवेदक से िभन्न) पर्त्येक रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को िविहत रीित म जारी करे गा ।
(3) रिजस्टर्ीकरण के र करण की पर्िकर्या ऐसी होगी जो िविहत की जाए :
परन्तु रिजस्टर्ीकरण के र करण के पूवर् रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी को सुने जाने का युिक्तयुक्त अवसर िदया जाएगा ।
51. रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता की बाबत करार से संबिं धत जानकारी मांगने की रिजस्टर्ार की शिक्त––(1) रिजस्टर्ार
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के रिजस्टर्ीकरण के जारी रहने के दौरान िकसी समय िलिखत सूचना ारा रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी से यह अपेक्षा
कर सके गा िक वह एक मास के भीतर उसे यह पुिष्ट करे िक धारा 49 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन फाइल िकया गया करार
पर्वृ बना हुआ है ।
(2) यिद रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी उपधारा (1) के अधीन यथा अपेिक्षत पुिष्ट एक मास के भीतर करने म असफल रहता है तो
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता उक्त अविध की समािप्त के ठीक पश्चात् के िदन को रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता नह रह जाएगा और रिजस्टर्ार उसे
अिधसूिचत करे गा ।
52. अितलंघन के िवरु कायर्वाही करने का रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता का अिधकार––(1) पक्षकार के बीच अिस्तत्ववान िकसी
करार के अधीन रहते हुए, कोई रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी को पर्ितवादी बनाते हुए अितलंघन के िलए अपने स्वयं के
नाम म कायर्वाही वैसे ही संिस्थत कर सके गा मानो वह रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी हो और ऐसे मामले म ऐसे उपयोगकतार् के अिधकार और
बाध्यताएं रिजस्टर्ीकृ त ापार िचह्न के स्वत्वधारी के अिधकार और बाध्यता के समवत ह ।
(2) िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, पर्ितवादी के रूप म इस पर्कार जोड़ा गया रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी िकसी
खच के िलए दायी नह होगा जब तक िक वह उपसंजात होकर कायर्वािहय म भाग नह लेता है ।
53. अनुज्ञात उपयोक्ता को अितलंघन के िवरु कायर्वाही करने का अिधकार न होना––धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (द)
के उपखंड (ii) म िनिदष्ट िकसी व्यिक्त को िकसी अितलंघन के िलए कोई कायर्वाही संिस्थत करने का अिधकार नह होगा ।
54. रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को समनुदश
े न या पारे षण का अिधकार न होना––इस अिधिनयम की कोई बात व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को उसके उपयोग के िलए कोई समनुदश े ीय या पारे षणीय अिधकार पर्द नह करे गी ।
स्पष्टीकरण 1––िनम्निलिखत मामल म व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता का अिधकार इस धारा के अथार्न्तगर्त
समनुदिे शत या पारे िषत नह समझा जाएगा, अथार्त् :––
(क) जहां रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता, जो एक व्यिक्त है, संपृक्त कारबार चलाने के िलए िकसी अन्य व्यिक्त के साथ
भागीदारी करता है ; िकन्तु ऐसी िकसी दशा म फमर् उस व्यापार िचह्न का उपयोग, यिद वह अन्यथा पर्वृ हो, तभी तक कर
सके गी जब तक रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता उस फमर् का सदस्य है ;
(ख) जहां रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के , जो एक फमर् है, गठन म तत्पश्चात् पिरवतर्न हो जाता है ; िकन्तु ऐसी दशा म
पुनगर्िठत फमर् उस व्यापार िचह्न का उपयोग, यिद वह अन्यथा पर्वृ हो तभी तक कर सके गी जब तक रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता
के रूप म रिजस्टर्ीकरण के समय मूल फमर् का कोई भागीदार पुनगर्िठत फमर् का भागीदार बना रहता है ।
स्पष्टीकरण 2––स्पष्टीकरण 1 के पर्योजन के िलए “फमर्” का वही अथर् है जो भारतीय भागीदारी अिधिनयम, 1932
(1932 का 9) म है ।
24

55. सहयुक्त या सारत: तदर्ूप व्यापार िचह्न म से एक का उपयोग दूसरे के उपयोग के समतुल्य होना––(1) जहां इस
अिधिनयम के उपबंध के अधीन रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के उपयोग की िकसी पर्योजन के िलए सािबत करने की अपेक्षा है वहां
अिधकरण, यिद और जहां तक वह ठीक समझे, रिजस्टर्ीकृ त सहयुक्त व्यापार िचह्न के उपयोग को या ऐसे पिरवधर्न या पिरवतर्न
सिहत व्यापार िचह्न के उपयोग को, जो उसकी पहचान को सारत: पर्भािवत नह करता है, उस उपयोग के समतुल्य मान सके गा
िजसका सािबत िकया जाना अपेिक्षत है ।
(2) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का समगर्त: उपयोग इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए उस व्यापार िचह्न का उपयोग भी
समझा जाएगा जो उसका भाग है और उसी स्वत्वधारी के नाम धारा 15 की उपधारा (1) के अनुसार रिजस्टर्ीकृ त है ।
(3) धारा 32 म िकसी बात के होते हुए भी, उपधारा (2) म रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के भाग का उपयोग इस अिधिनयम के
अधीन िकसी पर्योजन के िलए सुिभन्नता के उसके सा य के िलए िनश्चायक नह होगा ।
56. व्यापार िचह्न का िनयार्त व्यापार के िलए उपयोग और व्यापार संबध
ं का स्वरूप बदलने पर उपयोग––(1) भारत से
िनयार्त िकए जाने वाले माल को या भारत के बाहर उपयोग के िलए सेवा के संबंध म भारत म व्यापार िचह्न का उपयोजन और
भारत से इस पर्कार िनयार्त िकए जाने वाले माल या भारत से बाहर इस पर्कार की गई सेवा के संबंध म भारत म िकया गया कोई
अन्य कायर्, जो यिद भारत के भीतर िवकर्य िकए जाने वाले माल या उपबंिधत सेवा या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल या
सेवा के संबध ं म िकया जाता तो भारत म व्यापार िचह्न का उपयोग होता, उस माल या सेवा के संबंध म िकसी ऐसे पर्योजनाथर्,
िजसके िलए ऐसा उपयोग इस अिधिनयम या िकसी अन्य िविध के अधीन ताित्त्वक है, व्यापार िचह्न का उपयोग समझा जाएगा ।
(2) ऐसे माल या सेवा के संबंध म रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के उपयोग से, िजनके और िचह्न का उपयोग करने वाले
व्यिक्त के बीच व्यापार के अनुकर्म म िकसी पर्कार का संबंध अिस्तत्ववान है, यह नह समझा जाएगा िक उससे के वल इस आधार पर
धोखा या भर्म होने की संभावना है िक िचह्न का ऐसे माल या सेवा के संबंध म उपयोग िकया गया है या उपयोग िकया जाता है,
िजनके और उक्त व्यिक्त के या उस व्यिक्त के पूवर्वत के बीच व्यापार के अनुकर्म म कोई िभन्न संबंध अिस्तत्ववान था या है ।
अध्याय 7

रिजस्टर की पुिरशुि और शुि


57. रिजस्टर्ीकरण को र करने या उसम फे रफार करने और रिजस्टर को पिरशोिधत करने की शिक्त––(1) िकसी िथत
व्यिक्त ारा िविहत रीित म अपील बोडर् या रिजस्टर्ार को आवेदन करने पर अिधकरण िकसी उल्लंघन या उसके संबंध म रिजस्टर म
पर्िवष्ट शतर् का पालन करने म असफलता के आधार पर व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के र करने या इसम फे रफार करने का ऐसा
आदेश दे सके गा, जो वह ठीक समझे ।
(2) रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट के अभाव या लोप से या रिजस्टर म िबना पयार्प्त कारण से की गई िकसी पर्िविष्ट से या
रिजस्टर म गलती से रह गई िकसी पर्िविष्ट से या रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट म िकसी गलती या तर्ुिट से िथत व्यिक्त िविहत रीित म
अपील बोडर् या रिजस्टर्ार को आवेदन कर सके गा, और अिधकरण उसकी पर्िविष्ट करने, उसे िनकाल देने या उसम फे रफार करने के िलए
ऐसा आदेश दे सके गा, जो वह ठीक समझे ।
(3) इस धारा के अधीन िकसी कायर्वाही म अिधकरण िकसी ऐसे पर्श्न को िविनिश्चत कर सके गा िजसका रिजस्टर के
पिरशोधन के संबंध म िविनश्चय करना आवश्यक या समीचीन हो ।
(4) अिधकरण, स्वपर्ेरणा से, संपृक्त पक्षकार को िविहत रीित म सूचना देने के पश्चात् और उन्ह सुनवाई का अवसर देने के
पश्चात् उपधारा (1) या उपधारा (2) म िनिदष्ट आदेश दे सकता है ।
(5) अपील बोडर् के रिजस्टर को पिरशोिधत करने वाले आदेश म यह िनदेश होगा िक पिरशोधन की सूचना रिजस्टर्ार को
िविहत रीित म तामील की जाएगी और रिजस्टर्ार ऐसी सूचना की पर्ािप्त पर रिजस्टर को तद्नुसार पिरशोिधत करे गा ।
58. रिजस्टर की शुि ––(1) रिजस्टर्ार रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा िविहत रीित म आवेदन करने पर,––
(क) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी के नाम, पते या िववरण म िकसी गलती को व्यापार िचह्न से
संबंिधत िकसी अन्य पर्िविष्ट को शु कर सके गा ;
(ख) उस व्यिक्त के , जो व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर्ीकृ त है, नाम, पते या िववरण म कोई
पिरवतर्न पर्िवष्ट कर सके गा ;
(ग) रिजस्टर म व्यापार िचह्न की पर्िविष्ट को र कर सके गा ;
(घ) उस माल, माल के वगर् या सेवा म से, िजनकी बाबत कोई व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, िकसी माल या
माल के वगर् या सेवा को काट सके गा,
और रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् म कोई पािरणािमक संशोधन या पिरवतर्न कर सके गा और उस पर्योजनाथर् रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् को
अपने समक्ष पेश करने की अपेक्षा कर सके गा ।
25

(2) रिजस्टर्ार व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता ारा िविहत रीित म िकए गए आवेदन पर और रिजस्टर्ीकृ त
स्वत्वधारी को सूचना देने के पश्चात् या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के नाम, पते या िववरण म िकसी गलती को शु कर सके गा या उसम
िकसी पिरवतर्न की पर्िविष्ट कर सके गा ।
59. रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का पिरवतर्न––(1) व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी व्यापार िचह्न की अनन्यता को
सारत: पर्भािवत न करने वाली रीित म उस व्यापार िचह्न म पिरवधर्न या पिरवतर्न करने की इजाजत के िलए रिजस्टर्ार को िविहत
रीित म आवेदन कर सके गा और रिजस्टर्ार इजाजत देना अस्वीकार कर सके गा या ऐसी शत पर और ऐसी मयार्दा के अधीन दे
सके गा, जो वह ठीक समझे ।
(2) रिजस्टर्ार इस धारा के अधीन िकए गए आवेदन को ऐसी िकसी दशा म िविहत रीित म िवज्ञािपत करा सके गा, जहां उसे
यह पर्तीत होता हो िक ऐसा करना समीचीन है और जहां वह ऐसा करता है वहां यिद िवज्ञापन की तारीख से िविहत समय के भीतर
कोई व्यिक्त रिजस्टर्ार को िविहत रीित म आवेदन के िवरोध की सूचना देता है तो रिजस्टर्ार, यिद आवश्यक हो तो, पक्षकार को सुनने
के पश्चात् मामले का िविनश्चय करे गा ।
(3) जहां इस धारा के अधीन इजाजत दी जाती है वहां यथा पिरवितत व्यापार िचह्न तब तक िविहत रीित म िवज्ञािपत नह
िकया जाएगा जब तक िक धारा 2 के अधीन आवेदन पहले ही िवज्ञािपत नह कर िदया गया हो ।
60. रिजस्टर की पर्िविष्टय का माल या सेवा के संशोिधत या पर्ितस्थािपत वग करण के िलए अनुकूलन––(1) रिजस्टर्ार,
रिजस्टर म कोई ऐसा संशोधन नह करे गा िजसका पर्भाव संशोधन िकए जाने के ठीक पहले उस माल या माल के वग या सेवा म,
िजनकी बाबत व्यापार िचह्न (चाहे एक या अिधक वग म) रिजस्टर्ीकृ त है, िकसी माल या माल के वग या सेवा को जोड़ना होगा या
िकसी माल या सेवा की बाबत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण को पूवर् िदनांिकत करना होगा :
परं तु यह उपधारा तब लागू नह होगी, जब रिजस्टर्ार का यह समाधान हो जाता है िक उसके अनुपालन म असम्यक्
जिटलताएं ह और, यथािस्थित, वैसे जोड़े जाने या पूवर् िदनांकन से माल या सेवा का पयार्प्त पिरणाम पर्भािवत नह होगा और िकसी
व्यिक्त के अिधकार पर पयार्प्तत: पर्ितकू ल पर्भाव नह डालेगा ।
(2) रिजस्टर को इस पर्कार संशोिधत करने की पर्स्थापना पर्भािवत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी को सूिचत की
जाएगी और िविहत रीित म िवज्ञािपत की जाएगी और कोई भी व्यिथत व्यिक्त रिजस्टर्ार के समक्ष इस आधार पर िवरोध कर सके गा
िक पर्स्थािपत संशोधन उपधारा (1) के उपबंध का उल्लंघन करता है ।
अध्याय 8

सामूिहक िचह्न
61. सामूिहक िचह्न के िलए िवशेष उपबंध––(1) इस अिधिनयम के उपबंध इस अध्याय म अन्तिवष्ट उपबंध के अधीन रहते
हुए सामूिहक िचह्न को लागू ह गे ।
(2) सामूिहक िचह्न के संबंध म एक व्यिक्त के माल या सेवा के दूसरे िक्त के माल या सेवा से िवभेद के िलए धारा 2
की उपधारा (1) के खंड (यख) म िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे व्यिक्तय के एक संगम के सदस्य के माल या सेवा के दूसरे
व्यिक्तय के संगम के सदस्य के माल या सेवा से िवभेद के पर्ितिनदश ह ।
62. सामूिहक िचह्न का स्वरूप या महत्व के संबध
ं म भर्ामक न होना––कोई सामूिहक िचह्न रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा
यिद इससे, िविशष्टतया तब जब उसे सामूिहक िचह्न से अन्यथा िकसी रूप म गर्हण िकए जाने की संभावना हो, जनता म धोखा या
भर्म उत्पन्न होने की संभावना है तथा ऐसे माल म रिजस्टर्ार यह अपेक्षा कर सके गा िक ऐसे िचह्न म, िजसके बारे म रिजस्टर्ीकरण के
िलए आवेदन िकया गया है, ऐसा कु छ उपदशर्न हो िक यह सामूिहक िचह्न है ।
63. आवेदन के साथ सामूिहक िचह्न के उपयोग को शािसत करने वाले िविनयम का होना––(1) सामूिहक िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन के साथ ऐसे सामूिहक िचह्न के उपयोग को शािसत करने वाले िविनयम ह गे ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट िविनयम म िचह्न का उपयोग करने के िलए पर्ािधकृ त व्यिक्त, संगम की सदस्यता की शत और
िचह्न के उपयोग की शत, िजनके अंतगर्त दुरुपयोग के िवरु कोई शािस्त भी है और ऐसी अन्य बात, जो िविहत की जाएं, िविनिदष्ट
की जाएंगी ।
64. आवेदन और िविनयम का रिजस्टर्ार ारा स्वीकार िकया जाना––यिद रिजस्टर्ार को यह पर्तीत होता है िक रिजस्टर्ीकरण
के िलए अपेक्षाएं पूरी कर दी गई ह तो वह िविनयम के साथ आवेदन को या तो िबना िकसी शतर् या ऐसी शत के अधीन, िजनके
अंतगर्त उक्त िविनयम का संशोधन, यिद कोई हो, भी है जैसा वह ठीक समझे, स्वीकार करे गा या उसे स्वीकार करने से इं कार करे गा
और यिद स्वीकार करता है तो िविनयम को अिधसूिचत करे गा ।
65. िविनयम का िनरीक्षण के िलए खुला होना––धारा 63 की उपधारा (1) म िनिदष्ट िविनयम, सवर् साधारण के िनरीक्षण
के िलए वैसे ही खुले ह गे जैसे िक धारा 148 म यथाउपबंिधत रिजस्टर होते ह ।
26

66. िविनयम का संशोधन––धारा 63 की उपधारा (1) म िनिदष्ट िविनयम का कोई संशोधन तब तक पर्भावी नह होगा
जब तक िक संशोिधत िविनयम रिजस्टर्ार के पास फाइल नह िकए गए ह और उनको धारा 64 के अनुसार रिजस्टर्ार ारा स्वीकार और
पर्कािशत नह िकया गया है ।
67. सामूिहक िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा अितलंघन की कायर्वािहयां––वादी के रूप म सामूिहक िचह्न के
रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा संिस्थत अितल्लंघन के वाद म न्यायालय पर्ािधकृ त उपयोक्ता को हुई िकसी हािन या होने के िलए संभा
िकसी हािन को िहसाब म लेगा और ऐसे िनदेश दे सके गा, जो वह इस बारे म ठीक समझे िक ऐसे पर्ािधकृ त उपयोक्ता की ओर से िकसी
धनीय उपचार के आगम को वादी िकस िवस्तार तक धािरत करे गा ।
68. सामूिहक िचह्न के रिजस्टर्ीकरण को हटाने के िलए अितिरक्त आधार––सामूिहक िचह्न को रिजस्टर्ीकरण रिजस्टर से
िनम्निलिखत आधार पर भी हटाया जा सके गा––
(क) िजस रीित म सामूिहक िचह्न का उपयोग स्वत्वधारी या पर्ािधकृ त उपयोक्ता ारा िकया गया है, उससे उसका
सामूिहक िचह्न के रूप म जनता के िलए भर्ामक होना संभाव्य हो गया है ; या
(ख) स्वत्वधारी िचह्न के उपयोग को शािसत करने वाले िविनयम का पालन करने या पालन करने को सुिनिश्चत
करने म असफल रहा है ।
स्पष्टीकरण 1––इस अध्याय के पर्योजन के िलए जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो “पर्ािधकृ त उपयोक्ता” से िकसी
संगम का ऐसा कोई सदस्य अिभपर्ेत है जो उस संगम के रिजस्टर्ीकृ त सामूिहक िचह्न का पर्ािधकृ त उपयोग करने के िलए पर्ािधकृ त है ।
स्पष्टीकरण 2––इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए स्पष्टीकरण 1 म िनिदष्ट पर्ािधकृ त उपयोक्ता ारा सामूिहक िचह्न का
उपयोग उसके रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा िकया गया उपयोग समझा जाएगा ।
अध्याय 9

पर्माणीकरण व्यापार िचह्न


69. इस अिधिनयम के कितपय उपबंध का पर्माणीकरण व्यापार िचह्न को लागू न होना––इस अिधिनयम के िनम्निलिखत
उपबंध पर्माणीकरण व्यापार िचह्न को लागू नह ह गे, अथार्त् :––
(क) धारा 9 की उपधारा (1) का खंड (क) और खंड (ग) ;
(ख) धारा 18, धारा 20 और धारा 21, इस अध्याय ारा जहां अिभव्यक्तत: लागू िकए गए ह उनको छोड़कर ;
(ग) धारा 28, धारा 29, धारा 30, धारा 41, धारा 42, धारा 47, धारा 48, धारा 49, धारा 50, धारा 52, धारा 54
और धारा 56 की उपधारा (2) ;
(घ) अध्याय 12, धारा 107 को छोड़कर ।
70. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण––कोई िचह्न उस व्यिक्त के नाम म पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रूप
म रिजस्टर नह िकया जाएगा जो पर्माणीकृ त पर्कार के माल या पर्माणीकृ त पर्कार की सेवा की व्यवस्था का व्यापार करता है ।
71. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन––(1) िकसी िचह्न को पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रूप
म रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन रिजस्टर्ार को िविहत रीित म उस व्यिक्त ारा िकया जाएगा िजसे उसके स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर
करने की पर्स्थापना है और उसके साथ धारा 74 के अधीन जमा िकए जाने वाले िविनयम का पर्रूप भी होगा ।
(2) धारा 70 के उपबंध के अधीन रहते हुए, धारा 18, धारा 19 और धारा 22 के उपबंध इस धारा के अधीन आवेदन के संबध ं
म इस उपांतर के अधीन रहते हुए िक उसम आवेदन को स्वीकार िकए जाने के पर्ित िनदश का अथर् आवेदन के संबंध म कायर्वाही करने
के पर्ािधकार के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा, वैसे ही लागू ह गे िजस पर्कार वे धारा 18 के अधीन आवेदन के संबंध म लागू
होते ह ।
(3) इस धारा के अधीन िकसी आवेदन को उक्त उपबंध के अधीन िनपटाने म, अिधकरण, जहां तक सुसंगत हो, ऐसी बात
पर, मानो वह आवेदन धारा 18 के अधीन आवेदन है और इस धारा के अधीन आवेदन के िलए सुसंगत अन्य बात पर भी ध्यान देगा
िजसके अन्तगर्त यह सुिनिश्चत करने की वांछनीयता भी है िक पर्माणीकरण व्यापार िचह्न म कोई ऐसा उपदर्शन होगा िक वह
पर्माणीकरण व्यापार िचह्न है ।
72. रिजस्टर्ीकरण के आवेदन पर रिजस्टर्ार ारा िवचार––(1) रिजस्टर्ार धारा 71 के अधीन आवेदन पर िनम्निलिखत िवषय
के बारे म िवचार करे गा, अथार्त् :––
(क) क्या आवेदक उस माल को, िजसकी बाबत िचह्न, रिजस्टर िकया जाना है, पर्मािणत करने के िलए सक्षम है ;
(ख) क्या धारा 74 के अधीन फाइल िकए जाने वाले िविनयम का पर्रूप समाधानपर्द है ;
27

(ग) क्या आवेिदत रिजस्टर्ीकरण सभी पिरिस्थितय म सावर्जिनक लाभ के िलए होगा,
और या तो––
(i) आवेदन नामंजूर कर सके गा ; या
(ii) आवेदन स्वीकार कर सके गा और िविनयम के उक्त पर्रूप को या तो िबना उपांतर के और शतर् के िबना या
िकन्ह शत और पिरसीमा के अथवा आवेदन या िविनयम के िकन्ह संशोधन या उपांतर के अधीन रहते हुए, िजन्ह उक्त
िवषय म से िकन्ह पर ध्यान देते हुए वह आवश्यक समझे, अनुमोिदत कर सके गा ।
(2) उपांतर और शत के िबना स्वीकार और अनुमोिदत करने की दशा के िसवाय, रिजस्टर्ार आवेदक को सुनवाई का अवसर
िदए िबना उपधारा (1) के अधीन िकसी मामले का िविनश्चय नह करे गा ।
73. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का िवरोध––जब कोई आवेदन स्वीकार कर िलया जाता है तब रिजस्टर्ार,
तत्पश्चात् यथाशक्यशीघर्, यथास्वीकृ त आवेदन को िविहत रीित म िवज्ञािपत कराएगा और धारा 21 के उपबंध उस िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के संबंध म उसी पर्कार लागू ह गे िजस पर्कार वे धारा 18 के अधीन आवेदन के संबंध म लागू होते ह ।
74. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के उपयोग को शािसत करने वाले िविनयम को फाइल करना––(1) पर्माणीकरण व्यापार
िचह्न के रूप रिजस्टर्ीकृ त पर्त्येक िचह्न की बाबत उसके उपयोग को शािसत करने वाले िविनयम व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी म फाइल िकए
जाएंगे, िजसके अंतगर्त उन मामल के बारे म उपबंध भी ह गे िजनम स्वत्वधारी को माल या सेवा को पर्मािणत करना और
पर्माणीकरण ापार िचह्न के उपयोग को पर्ािधकृ त करना है और िजनम कोई अन्य उपबंध भी अंतिवष्ट हो सकगे िजन्ह रिजस्टर्ार
साधारण या िवशेष आदेश ारा, उनम अन्त:स्थािपत करने की अपेक्षा करे या अनुज्ञात करे (इसके अन्तगर्त स्वत्वधारी ारा माल को
पर्मािणत करने या िविनयम के अनुसार पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के उपयोग को पर्ािधकृ त करने से इं कार करने के िवरु रिजस्टर्ार
को अपील करने का अिधकार पर्दान करने वाले उपबंध भी ह) और इस पर्कार फाइल िकए गए िविनयम धारा 148 म जैसा उपबंिधत है,
रिजस्टर के समान ही िनरीक्षण के िलए खुले रहगे ।
(2) इस पर्कार फाइल िकए गए िविनयम, रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी के आवेदन पर, रिजस्टर्ार ारा पिरवितत िकए जा सकगे ।
(3) रिजस्टर्ार ऐसे आवेदन को ऐसी िकसी दशा म िवज्ञािपत करा सके गा जहां उसे यह पर्तीत हो िक ऐसा करना समीचीन है
और जहां वह ऐसा कराता है, वहां यिद िवज्ञापन म िविनिदष्ट समय के भीतर कोई व्यिक्त आवेदन के िवरोध की सूचना देता है,
तो रिजस्टर्ार पक्षकार को सुनवाई का अवसर िदए िबना मामले का िविनश्चय नह करे गा ।
75. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न का अितलंघन––उस व्यिक्त ारा धारा 78 ारा पर्द अिधकार का अितलंघन िकया जाता
है जो पर्माणीकरण व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या धारा 74 के अधीन फाइल िकए गए िविनयम के अधीन उसके ारा
इस िनिमत पर्ािधकृ त व्यिक्त तद्नुसार उसका उपयोग करने वाला व्यिक्त नह है और जो उस माल के या उन सेवा के संबंध म,
िजनकी बाबत वह िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, व्यापार के अनुकर्म म ऐसे िचह्न का उपयोग करता है जो पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के तदर्ूप
या इतना समरूप है िक धोखा हो जाए और इस रीित से उपयोग करता है िक इस बात की संभाव्यता है िक ऐसा उपयोग व्यापार िचह्न
के उपयोग के रूप म समझा जाए ।
76. वे कायर् जो पर्माणीकरण व्यापार िचह्न का अितलंघन नह ह––(1) इस अिधिनयम म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए
भी, रिजस्टर्ीकृ त पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के उपयोग के अिधकार का अितलंघन िनम्निलिखत काय से नह होता है :––
(क) जहां कोई पर्माणीकरण व्यापार िचह्न रिजस्टर म पर्िवष्ट शत या मयार्दा के अधीन रिजस्टर्ीकृ त है, वहां
िवकर्य िकए जाने वाले या अन्यथा व्यापार िकए जाने वाले माल के संबंध म या िकसी बाजार को िनयार्त िकए जाने वाले माल
के संबंध म या िकसी स्थान, देश या राज्यक्षेतर् म स्वीकार करने के िलए उपलब्ध या उपयोग के िलए सेवा के संबधं म, या
िकन्ह अन्य पिरिस्थितय म िजनको, ऐसी िकन्ह मयार्दा को ध्यान म रखते हुए, रिजस्टर्ीकरण का िवस्तार नह है ऐसे
िचह्न का िकसी ढंग से उपयोग ;
(ख) िचह्न के स्वत्वधारी ारा पर्मािणत माल या सेवा के संबंध म पर्माणीकरण व्यपार िचह्न का उपयोग, यिद
उस माल या उन सेवा के बारे म या िकसी पर्पुंज के बारे म िजसके वे भाग ह, स्वत्वधारी या सुसंगत िविनयम के अधीन
उनके पर्ािधकार के अनुसार िकसी अन्य ने िचह्न लगाया है और तत्पश्चात् उसे न तो हटाया है और न िमटाया है, या
स्वत्वधारी ने िकसी भी समय अिभव्यक्तत: या िवविक्षत रूप से िचह्न के उपयोग की सहमित दी है ;
(ग) पर्माणीकरण व्यापार िचह्न का उस माल या उन सेवा के संबंध म उपयोग, जो अन्य माल के , िजनके संबंध
म िचह्न का यथापूव क्त िदए गए अिधकार के अितलंघन के िबना उपयोग िकया गया है, या तत्समय उस पर्कार उपयोग
िकया जा सकता है, भागरूप बनाने के िलए या उपसाधन बनाने के िलए अनुकूिलत है, यिद िचह्न का उपयोग यह उपदिशत
करने के िलए युिक्तयुक्त रूप से आवश्यक है िक माल या सेवाएं इस पर्कार अनुकूिलत ह, और िचह्न के उपयोग का न तो यह
आशय है और न यह पर्भाव ही है िक इस तथ्य से िभन्नत: कु छ उपदिशत िकया जाए िक माल या सेवाएं स्वत्वधारी ारा
पर्मािणत ह ।
28

(2) उपधारा (1) का खंड (ख) ऐसे उपयोग के मामले म, जो िकसी पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के िकसी माल या सेवा को
लागू करता है, इस बात के होते हुए भी िक वे ऐसे माल या सेवाएं ह जो उस खंड म उिल्लिखत ह, उस दशा म लागू नह होगा यिद ऐसा
लागू िकया जाना उस खंड म िविनिदष्ट िविनयम के पर्ितकू ल है ।
(3) जहां पर्माणीकरण व्यापार िचह्न इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त दो या अिधक ापार िचह्न म से एक है जो एक
दूसरे से तदर्ूप या िनकटत: सदृश है, वहां रिजस्टर्ीकरण ारा पर्द उस व्यापार िचह्न के उपयोग के अिधकार के पर्योग म उन व्यापार
िचह्न म से िकसी का उपयोग उन व्यापार िचह्न म से िकसी अन्य के उपयोग के िलए उस पर्कार पर्द अिधकार का अितलंघन नह
समझा जाएगा ।
77. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का र िकया जाना या उसम फे रफार करना––रिजस्टर्ार िकसी व्यिथत
व्यिक्त के िविहत रीित म आवेदन पर और स्वत्वधारी को उस आवेदन का िवरोध करने का अवसर देने के पश्चात् िकसी पर्माणीकरण
व्यापार िचह्न से संबंिधत रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट को हटाने या उसम फे रफार करने के िलए या िविनयम म फे रफार करने के िलए
िनम्निलिखत आधार म से िकसी पर ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे, अथार्त् :––
(क) स्वत्वधारी उस माल या उन सेवा म से िकसी की दशा म, िजसकी बाबत िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है, उस माल या
सेव को पर्मािणत करने के िलए अब सक्षम नह है ;
(ख) स्वत्वधारी िविनयम के िकसी उपबंध का, िजनका उसे अनुपालन करना था, अनुपालन करने म असफल
रहा है ;
(ग) िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त बना रहना अब सावर्जिनक िहत म नह है ;
(घ) सावर्जिनक िहत के िलए यह अपेिक्षत है िक यिद िचह्न रिजस्टर्ीकृ त बना रहे तो िविनयम म फे रफार
िकया जाए ।
78. पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण ारा पर्द अिधकार––(1) धारा 34, धारा 35 और धारा 76 के उपबंध के
अधीन िकसी माल या िकन्ह सेवा की बाबत िकसी व्यिक्त के पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर्ीकरण से,
यिद वह िविधमान्य है तो, उस व्यिक्त को उस माल या उन सेवा की बाबत उस िचह्न के उपयोग का अनन्य अिधकार पर्ाप्त होगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के उपयोग का अनन्य अिधकार उन शत और मयार्दा के अधीन
होगा िजनके अधीन रिजस्टर्ीकरण है ।
1
* * * * * * *
अध्याय 11

अपील बोडर्
83. अपील बोडर् की स्थापना––के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा एक अपील बोडर् की स्थापना करे गी िजसका नाम
बौि क संपदा अपील बोडर् होगा, जो इस अिधिनयम ारा या इसके अधीन उसे पर्द अिधकािरता, शिक्तय और पर्ािधकार का
पर्योग करे गा ।
84. अपील बोडर् की संरचना––(1) अपील बोडर् एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और उतने अन्य सदस्य से, जो के न्दर्ीय सरकार ठीक
समझे, िमलकर बनेगा और इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, अपील बोडर् की अिधकािरता, शिक्तय और पर्ािधकार
का पर्योग उसके न्यायपीठ ारा िकया जा सके गा ।
(2) इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई न्यायपीठ एक न्याियक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य से
िमलकर बनेगा और वह ऐसे स्थान पर अिधिवष्ठ होगा जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िविनिदष्ट करे ।
(3) उपधारा (2) म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, अध्यक्ष––
(क) उस न्यायपीठ के , िजसम उसे िनयुक्त िकया जाता है न्याियक सदस्य या तकनीकी सदस्य के कृ त्य के िनवर्हन
के अितिरक्त िकसी अन्य न्यायपीठ के , यथािस्थित, न्याियक सदस्य या तकनीकी सदस्य के कृ त्य का भी िनवर्हन कर सके गा ;
(ख) िकसी सदस्य का एक न्यायपीठ से दूसरे न्यायपीठ म स्थानांतरण कर सके गा ;
(ग) एक न्यायपीठ म िनयुक्त उपाध्यक्ष, न्याियक सदस्य या तकनीकी सदस्य को िकसी अन्य न्यायपीठ के ,
यथािस्थित, न्याियक सदस्य या तकनीकी सदस्य के कृ त्य का िनवर्हन करने के िलए भी पर्ािधकृ त कर सके गा ।
(4) जहां िकन्ह न्यायपीठ का गठन िकया जाता है वहां के न्दर्ीय सरकार समय-समय पर अिधसूचना ारा न्यायपीठ म
अपील बोडर् के कारबार के िवतरण से संबिं धत उपबंध कर सके गी और उन मामल को िविनिदष्ट कर सके गी िजनका िनपटारा पर्त्येक
न्यायपीठ ारा िकया जाएगा ।

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 7 ारा लोप िकया गया ।
29

(5) यिद ऐसा कोई पर्श्न उत्पन्न होता है िक कोई मामला न्यायपीठ को आबंिटत कायर् के अंतगर्त आता है या नह , तो अध्यक्ष
का िविनश्चय अंितम होगा ।
स्पष्टीकरण––शंका को दूर करने के िलए यह घोषणा की जाती है िक “मामला” पद के अंतगर्त धारा 91 के अधीन कोई
अपील भी है ।
(6) यिद िकसी मु े पर िकसी न्यायपीठ के सदस्य के बीच मतभेद होता है तो वे उस मु े या उन मु का, िजन पर मतभेद है
उल्लेख करगे और अध्यक्ष को िनदश करगे, जो मु े या मु की या तो स्वयं सुनवाई करे गा या ऐसे मु े या मु की सुनवाई के िलए उसे
एक या अन्य सदस्य को िनिदष्ट करे गा और ऐसे मु े या मु का िविनश्चय उन सदस्य के बहुमत के अनुसार िकया जाएगा िजन्ह ने
मामले की सुनवाई की है, िजनके अंतगर्त वे सदस्य भी ह िजन्ह ने उसकी पहली बार सुनवाई की थी ।
85. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप म िनयुिक्त के िलए अहर्ताएं––(1) कोई व्यिक्त अध्यक्ष के रूप म िनयुिक्त के
िलए तभी अिहत होगा जब वह––
(क) िकसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है ; या
(ख) कम से कम दो वषर् तक उपाध्यक्ष का पद धारण कर चुका हो ।
(2) कोई व्यिक्त उपाध्यक्ष के रूप म िनयुिक्त के िलए तभी अिहत होगा जब वह––
(क) कम से कम दो वषर् तक न्याियक सदस्य या तकनीकी सदस्य के रूप म पद धारण कर चुका हो ; या
(ख) भारतीय िविध सेवा का सदस्य रहा है और उस सेवा के गर्ेड-1 म या िकसी उच्च पद पर कम से कम पांच वषर्
तक पद धारण कर चुका हो ।
(3) कोई व्यिक्त न्याियक सदस्य के रूप म िनयुिक्त के िलए तभी अिहत होगा जब वह––
(क) भारतीय िविध सेवा का सदस्य रहा है और उस सेवा के गर्ेड-1 म कम से कम तीन वषर् तक पद धारण कर चुका
है ; या
(ख) कम से कम दस वषर् तक कोई िसिवल न्याियक पद धारण कर चुका हो ।
(4) कोई व्यिक्त तकनीकी सदस्य के रूप म िनयुिक्त के िलए तभी अिहत होगा जब वह––
(क) कम से कम दस वषर् तक इस अिधिनयम या व्यापार और पण्य वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43)
के अधीन, या दोन के अधीन अिधकरण के कृ त्य का िनवर्हन कर चुका है और कम से कम पांच वषर् तक कोई ऐसा पद धारण
कर चुका है जो संयुक्त रिजस्टर्ार के पद से िनम्न पंिक्त का न हो ; या
(ख) कम से कम दस वषर् तक ऐसा अिधवक्ता रहा हो िजसे व्यापार िचह्न िविध म सािबत िवशेषज्ञीय अनुभव हो ।
(5) उपधारा (6) के उपबंध के अधीन रहते हुए, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और पर्त्येक अन्य सदस्य की िनयुिक्त भारत के राष्टर्पित
ारा की जाएगी ।
(6) अध्यक्ष के रूप म िकसी व्यिक्त की िनयुिक्त भारत के मुख्य न्यायमूित से परामशर् के पश्चात् ही की जाएगी,
अन्यथा नह ।
86. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य की पदाविध––अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य ऐसी तारीख से, िजसको वह अपना
पद गर्हण करते ह, पांच वषर् की अविध तक, या––
(क) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की दशा म पसठ वषर् की आयु पर्ाप्त होने तक, और
(ख) िकसी सदस्य की दशा म बासठ वषर् की आयु पर्ाप्त होने तक,
इनम से जो भी पूवर्तर हो, उस हैिसयत म अपना पद धारण करे गा ।
87. कितपय पिरिस्थितय म उपाध्यक्ष या ज्येष्ठतम सदस्य का अध्यक्ष के रूप म कायर् करना या उसके कृ त्य का िनवर्हन
करना––(1) अध्यक्ष के पद पर उसकी मृत्यु, त्यागपतर् के कारण या अन्यथा कोई िरिक्त होने की दशा म, उपाध्यक्ष और उसकी
अनुपिस्थित म ज्येष्ठतम सदस्य, उस तारीख तक, िजसको कोई नया अध्यक्ष इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार ऐसी िरिक्त को
भरने के िलए अपना पद गर्हण करता है, अध्यक्ष के रूप म कायर् करे गा ।
(2) जब अध्यक्ष अपनी अनुपिस्थित, बीमारी के कारण या िकसी अन्य कारण से अपने कृ त्य का िनवर्हन करने म असमथर् है,
तो उपाध्यक्ष और उसकी अनुपिस्थित म ज्येष्ठतम सदस्य, उस तारीख तक, िजसको अध्यक्ष अपना कतर्व्य गर्हण करता है, अध्यक्ष के
कृ त्य का िनवर्हन करे गा ।
30

88. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य के वेतन, भ े और उनकी सेवा के अन्य िनबंधन और शत––(1) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष
और सदस्य को संदय े वेतन और भ े तथा उनकी सेवा के अन्य िनबन्धन और शत (िजनके अंतगर्त पशन, उपदान और अन्य सेवािनवृि
फायदे ह) वे ह गी, जो िविहत की जाएं ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे िकसी व्यिक्त के बारे म जो, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप म
पद गर्हण करने की तारीख से ठीक पूवर् सरकारी सेवा म था, यह समझा जाएगा िक वह उस तारीख को, िजसको वह अध्यक्ष, उपाध्यक्ष
या अन्य सदस्य के रूप म पद गर्हण करता है, सेवा से िनवृ हो गया है ।
89. पदत्याग और हटाया जाना––(1) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य, भारत के राष्टर्पित को संबोिधत अपने हस्ताक्षर
सिहत िलिखत सूचना ारा, अपना पद त्याग सके गा :
परं तु अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य, जब तक िक उसे भारत के राष्टर्पित ारा उससे पहले अपना पद त्याग करने की
अनुज्ञा नह दी जाती, ऐसी सूचना की पर्ािप्त की तारीख से तीन मास की समािप्त तक या उसके पदो रवत के रूप म सम्यक् रूप से
िनयुक्त व्यिक्त ारा अपना पद गर्हण कर लेने तक या उसकी पदाविध समाप्त होने तक, इनम से जो भी पूवर्तर हो, अपना पद धारण
करता रहेगा ।
(2) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य अपने पद से, सािबत कदाचार या असमथर्ता के आधार पर, उच्चतम न्यायालय के
िकसी न्यायाधीश ारा ऐसी जांच िकए जाने के पश्चात् िजसम ऐसे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य को उसके िवरु लगाए गए
आरोप की सूचना दे दी गई है और उन आरोप के संबंध म सुनवाई का युिक्तयुक्त अवसर दे िदया गया है, भारत के राष्टर्पित ारा
िकए गए आदेश से ही हटाया जाएगा, अन्यथा नह ।
(3) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (2) म िनिदष्ट अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य के कदाचार या असमथर्ता का अन्वेषण करने
के िलए पर्िकर्या, िनयम ारा िविनयिमत कर सके गी ।
90. अपील बोडर् के कमर्चािरवृदं ––(1) के न्दर्ीय सरकार ऐसे अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय की िकस्म और पर्वगर्
अवधािरत करे गी जो अपील बोडर् को उसके कृ त्य का िनवर्हन करने म सहायता करने के िलए अपेिक्षत ह और अपील बोडर् के िलए ऐसे
अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय की व्यवस्था करे गी, जो वह ठीक समझे ।
(2) अपील बोडर् के अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय के वेतन और भ े तथा सेवा की शत ऐसी ह गी जो िविहत की जाएं ।
(3) अपील बोडर् के अिधकारी और अन्य कमर्चारी अध्यक्ष के साधारण अधीक्षण के अधीन अपने कृ त्य का िनवर्हन ऐसी रीित
से करगे, जो िविहत की जाए ।
91. अपील बोडर् को अपील––(1) कोई ऐसा व्यिक्त जो इस अिधिनयम या त ीन बनाए गए िनयम के अधीन रिजस्टर्ार के
आदेश या िविनश्चय से व्यिथत है, अपील बोडर् को ऐसी तारीख से, िजसको ऐसा आदेश या िविनश्चय िजसके िवरु अपील की जा रही
हो, अपील करने वाले ऐसे िक्त को संसूिचत िकया गया है, तीन मास के भीतर अपील कर सके गा ।
(2) यिद कोई अपील उपधारा (1) के अधीन िविनिदष्ट अविध की समािप्त के पश्चात् की जाती है तो वह गर्हण नह की
जाएगी :
परं तु कोई अपील उसके िलए िविनिदष्ट अविध की समािप्त के पश्चात् गर्हण की जा सके गी यिद अपीलाथ अपील बोडर् का
यह समाधान कर देता है िक उसके पास िविनिदष्ट अविध के भीतर अपील न करने का पयार्प्त हेतुक था ।
(3) अपील बोडर् को अपील िविहत पर्रूप म की जाएगी और वह िविहत रीित से सत्यािपत होगी और उसके साथ उस आदेश
या िविनश्चय की, िजसके िवरु अपील की जा रही है, एक पर्ित और ऐसी फीस, जो िविहत की जाए, होगी ।
92. अपील बोडर् की पर्िकर्या और शिक्तयां––(1) अपील बोडर्, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) म अिधकिथत
पर्िकर्या से आब नह होगा िकन्तु नैसिगक न्याय के िस ांत ारा मागर्दिशत होगा और इस अिधिनयम तथा त ीन बनाए गए िनयम
के ऐसे उपबंध के अध्यधीन होगा । अपील बोडर् को अपनी पर्िकर्या को, िजसके अंतगर्त सुनवाई का स्थान और समय िनयत करना भी है,
िविनयिमत करने की शिक्त होगी ।
(2) अपील बोडर् को इस अिधिनयम के अधीन अपने कृ त्य का िनवर्हन करने के पर्योजन के िलए वही शिक्तयां ह गी जो
िनम्निलिखत िवषय की बाबत िकसी वाद का िवचारण करते समय िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन िकसी
िसिवल न्यायालय म िनिहती होती ह, अथार्त् :––
(क) सा य गर्हण करना ;
(ख) सािक्षय की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालना ;
(ग) िकसी लोक अिभलेख की अध्यपेक्षा करना ; और
(घ) कोई अन्य िवषय, जो िविहत िकया जाए ।
31

(3) अपील बोडर् के समक्ष कोई कायर्वाही, भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अथर् म और
धारा 196 के पर्योजन के िलए न्याियक कायर्वाही समझी जाएगी और अपील बोडर् को दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा
195 और अध्याय 26 के सभी पर्योजन के िलए िसिवल न्यायालय समझा जाएगा ।
93. न्यायालय , आिद की अिधकािरता का वजर्न––कोई न्यायालय या अन्य पर्ािधकारी धारा 91 की उपधारा (1) म िनिदष्ट
िवषय के संबंध म िकसी अिधकािरता, शिक्तय या पर्ािधकार का पर्योग नह करे गा या उसके पर्योग करने का हकदार नह होगा ।
94. अपील बोडर् के समक्ष उपसंजात होने का वजर्न––अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य सदस्य पद धारण करना समाप्त होने पर,
अपील बोडर् या रिजस्टर्ार के समक्ष उपसंजात नह ह गे ।
95. अंतिरम आदेश करने के बारे म शत––इस अिधिनयम या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के िकन्ह अन्य उपबंध म
िकसी बात के होते हुए भी, कोई अंतिरम आदेश (चाहे वह व्यादेश या रोक के रूप म हो या िकसी अन्य रीित म) िकसी अपील पर या
उससे संबंिधत िकन्ह कायर्वािहय म तब तक नह िकया जाएगा जब तक––
(क) ऐसी अपील की और ऐसे अंतिरम आदेश के िलए अिभवाक् के समथर्न म सभी दस्तावेज की पर्ितयां उस
पक्षकार को नह दे दी जात िजसके िवरु ऐसी अपील की गई है या िकए जाने के िलए पर्स्थािपत है ; और
(ख) ऐसे पक्षकार को इस िवषय म सुनवाई का अवसर नह दे िदया जाता ।
96. मामल को एक न्यायपीठ से दूसरे न्यायपीठ को अंतिरत करने की अध्यक्ष की शिक्त––पक्षकार म से िकसी के आवेदन
पर और पक्षकार को सूचना देने के पश्चात् तथा उनम से िकसी को, िजसकी वह सुनवाई करना चाहे, सुने जाने के पश्चात् या ऐसी
सूचना के िबना स्वपर्ेरणा से, अध्यक्ष एक न्यायपीठ के समक्ष लंिबत िकसी मामले को िकसी अन्य न्यायपीठ को, िनपटारे के िलए,
अंतिरत कर सके गा ।
97. अपील बोडर् के समक्ष पिरशोधन, आिद, के िलए आवेदन की पर्िकर्या––(1) अपील बोडर् को धारा 57 के अधीन िकया गया
रिजस्टर के पिरशोधन के िलए आवेदन ऐसे पर्रूप म होगा जो िविहत िकया जाए ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से संबंिधत अपील बोडर् के पर्त्येक आदेश या िनणर्य की पर्मािणत पर्ित
बोडर् ारा रिजस्टर्ार को संसूिचत की जाएगी और रिजस्टर्ार बोडर् के आदेश को पर्भावी करे गा तथा जब ऐसा िनदेश िदया जाए तो, ऐसे
आदेश के अनुसार रिजस्टर म पर्िविष्टय का संशोधन या पिरशोधन करे गा ।
98. िविधक कायर्वािहय म रिजस्टर्ार का उपसंजात होना––(1) रिजस्टर्ार को––
(क) अपील बोडर् के समक्ष िकन्ह ऐसी िविधक कायर्वािहय म उपसंजात होने और सुने जाने का अिधकार होगा,
िजनम अपेिक्षत अनुतोष के अंतगर्त रिजस्टर म पिरवतर्न या उसका पिरशोधन है या िजनम व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी की पर्था
से संबंिधत कोई पर्श्न उद्भूत हुआ है ;
(ख) िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के आवेदन पर रिजस्टर्ार के आदेश के िवरु बोडर् को की गई िकसी ऐसी
अपील म उपसंजात होने और सुने जाने का अिधकार होगा––
(i) िजसका िवरोध नह िकया गया है, और आवेदन को रिजस्टर्ार ारा नामंजूर कर िदया गया है या
उसके ारा िकन्ह संशोधन, उपांतरण , शत या मयार्दा के अधीन रहते हुए स्वीकार िकया गया है, या
(ii) िजसका िवरोध िकया गया है और रिजस्टर्ार समझता है िक उसकी उपसंजाित लोकिहत म
आवश्यक है,
और रिजस्टर्ार िकसी मामले म उपसंजात होगा यिद बोडर् ारा ऐसा िनदेश िदया जाए ।
(2) जब तक िक अपील बोडर् अन्यथा िनदेश न दे, रिजस्टर्ार, उपसंजात होने के बदले अपने ारा हस्ताक्षिरत िलिखत रूप म
एक कथन पर्स्तुत कर सके गा, िजसम वह िववा क िवषय से संबंिधत उसके समक्ष कायर्वािहय के या उससे पर्भािवत होने वाले उसके
ारा िदए गए िकसी िविनश्चय के आधार के या उसी पर्कार के मामल म व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी की पर्था के या िववा क से सुसंगत
िकसी अन्य िवषय के संबंध म जो रिजस्टर्ार के रूप म उसकी जानकारी म है, उसके संबंध म ऐसी िविशिष्टयां देगा जो वह उिचत समझे
और ऐसा कथन कायर्वाही म सा य होगा ।
99. अपील बोडर् के समक्ष कायर्वािहय म रिजस्टर्ार के खच––इस अिधिनयम के अधीन अपील बोडर् के समक्ष सभी
कायर्वािहय म रिजस्टर्ार के खच बोडर् के िववेकािधकार म ह गे िकन्तु रिजस्टर्ार को िकसी भी पक्षकार के खच का संदाय करने का
आदेश नह िदया जाएगा ।
100. लंिबत कायर्वािहय का अपील बोडर् को अंतरण––रिजस्टर्ार के िकसी आदेश या िविनश्चय के िवरु अपील के सभी
मामले और उच्च न्यायालय के समक्ष लंिबत रिजस्टर की िकसी पिरशुि से संबंिधत सभी मामले, उस तारीख से अपील बोडर् को
अंतिरत हो जाएंगे जो के न्दर्ीय सरकार ारा राजपतर् म अिधसूिचत की जाए और अपील बोडर् इस िवषय म या तो नए िसरे से कायर्वाही
कर सके गा या उस पर्कर्म से कर सके गा िजससे ऐसा अंतरण हुआ था ।
32

अध्याय 12

अपराध, शािस्तयां और पर्िकर्या


101. व्यापार िचह्न और पण्य िववरण के लगाने का अथर्––(1) कोई व्यिक्त िकसी व्यापार िचह्न या िचह्न या पण्य िववरण
को माल या सेवा को लगाने वाला समझा जाएगा जो––
(क) माल पर ही उसे लगाता है और इसका सेवा के संबंध म उपयोग करता है ; या
(ख) उसे िकसी ऐसे पैकेज पर लगाता है िजसम या िजसके साथ माल िवकर्य िकया जाता है या िवकर्य के िलए
अिभदिशत िकया जाता है या िवकर्य के िलए या व्यापार या िविनमार्ण के पर्योजन के िलए कब्जे म रखा जाता है ; या
(ग) िकसी ऐसे माल को, जो िवकर्य िकया जाता है या िवकर्य के िलए अिभदिशत िकया जाता है या िवकर्य के िलए
या व्यापार या िविनमार्ण के पर्योजन के िलए कब्जे म रखा जाता है िकसी ऐसे पैकेज या अन्य वस्तु म या उसके साथ िजस पर
व्यापार िचह्न या िचह्न या पण्य िववरण लगाया गया है, रखता है, संलग्न करता है या आब करता है ; या
(घ) िकसी व्यापार िचह्न या िचह्न या पण्य िववरण का इस रीित म उपयोग करता है िजसके युिक्तयुक्त रूप से
यह िवश्वास होने की संभाव्यता है िक वह माल या सेवाएं, िजनके संबंध म उसका उपयोग िकया गया है, उस व्यापार िचह्न
या िचह्न या पण्य िववरण ारा अिभिहत या विणत माल या सेवाएं ह ; या
(ङ) माल या सेवा के संबंध म िकसी व्यापार िचह्न या पण्य िववरण का उपयोग िकसी संकेत, िवज्ञापन, बीजक,
सूचीपतर्, कारबार पतर्, कारबार कागज पतर्, कीमत सूची या अन्य वािणिज्यक दस्तावेज म करता है और इस पर्कार उपयोग
िकए गए व्यापार िचह्न या पण्य िववरण के िनदश म िकए गए अनुरोध या आदेश के अनुसरण म िकसी व्यिक्त को माल
पिरद िकया जाता है या सेवाएं पर्दान की जाती ह ।
(2) व्यापार िचह्न या िचह्न या व्यापार िववरण माल पर लगाया गया समझा जाएगा चाहे वह उस माल या िकसी पैकेज
या अन्य वस्तु म बुना जाए या उस पर छापा जाए या अन्यथा बनाया जाए या उपाब िकया जाए या िचपकाया जाए ।
102. व्यापार िचह्न का िमथ्याकरण और उन्ह िमथ्या रूप म लगाना––(1) कोई व्यिक्त िकसी व्यापार िचह्न को िमथ्याकृ त
करने वाला समझा जाएगा जो या तो––
(क) व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी की अनुमित के िबना उस व्यापार िचह्न को बनाता है या इतना समरूप व्यापार
िचह्न बनाता है िक धोखा हो जाए ; या
(ख) िकसी असली व्यापार िचह्न को चाहे पिरवतर्न करके , पिरवधर्न करके , िमटाकर या अन्यथा िमथ्याकृ त
करता है ।
(2) कोई व्यिक्त िकसी व्यापार िचह्न को माल या सेवा पर िमथ्या रूप से लगाने वाला समझा जाएगा जो व्यापार िचह्न
के स्वत्वधारी की अनुमित के िबना––
(क) ऐसे व्यापार िचह्न को या तो इतने समरूप िचह्न को िक िजससे धोखा हो जाए, माल या सेवा या िकसी
ऐसे पैकेज पर, िजसम माल है, लगाता है ;
(ख) ऐसे स्वत्वधारी के व्यापार िचह्न से तदर्ूप या इतने समरूप िचह्न वाले िक धोखा हो जाए, िकसी पैकेज या
उपयोग व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के असली माल से िभन्न िकसी माल को उसम पैक करने, भरने या लपेटने के पर्योजन के
िलए करता है ।
(3) उस व्यापार िचह्न को जो उपधारा (1) म यथाउिल्लिखत िमथ्याकृ त है या उपधारा (2) म यथाउिल्लिखत िमथ्या रूप से
लगाया गया है, इस अिधिनयम म िमथ्या व्यापार िचह्न के रूप म िनिदष्ट िकया गया है ।
(4) व्यापार िचह्न के िमथ्याकरण के िलए या माल या सेवा पर व्यापार िचह्न िमथ्या रूप से लगाने के िलए िकसी
अिभयोजन म स्वत्वधारी की अनुमित सािबत करने का भार अिभयुक्त पर होगा ।
103. िमथ्या व्यापार िचह्न, पण्य िववरण, आिद लगाने के िलए शािस्त––कोई व्यिक्त जो––
(क) िकसी व्यापार िचह्न का िमथ्याकरण करे गा ; या
(ख) माल या सेवा पर िकसी व्यापार िचह्न को िमथ्या रूप से लगाएगा ; या
(ग) िकसी ापार िचह्न के िमथ्याकरण या िमथ्याकरण के िलए उपयोग म लाए जाने के पर्योजन के िलए कोई
डाई, ब्लाक, मशीन, प ी या अन्य उपकरण बनाएगा, व्ययन करे गा या अपने कब्जे म रखेगा ; या
(घ) माल या सेवा पर िकसी िमथ्या व्यापार िववरण को लगाएगा ; या
33

(ङ) िकसी ऐसे माल पर िजस पर धारा 139 के अधीन उस देश या स्थान का, जहां वह बनाया गया या उत्पािदत
िकया गया था या िजस िविनमार्ता या व्यिक्त के िलए माल िविनिमत िकया गया है, उसके नाम और पते का उपदशर्न लगाने
की अपेक्षा है, ऐसे देश, स्थान, नाम या पते का िमथ्या उपदशर्न लगाएगा ; या
(च) िकसी ऐसे उ म संबंधी उपदशर्न को िजसे उस माल पर लगाया गया है िजस पर इसके लगाए जाने की धारा
139 के अधीन अपेक्षा है, िबगाड़ेगा, पिरवितत करे गा या िमटाएगा ; या
(छ) इस धारा म ऊपर उिल्लिखत िकन्ह बात को कराएगा,
जब तक वह यह सािबत न कर दे िक उसने कपट के आशय के िबना कायर् िकया था, कारावास से, िजसकी अविध छह मास से कम नह
होगी िकन्तु जो तीन वषर् तक की हो सके गी, और जुमार्ने से, जो पचास हजार रुपए से कम का नह होगा िकन्तु जो दो लाख रुपए तक
का हो सके गा, दंडनीय होगा :
परन्तु न्यायालय ऐसे पयार्प्त और िवशेष कारण से, जो िनणर्य म उिल्लिखत िकए जाएं, छह मास से कम अविध तक के
कारावास का दंडादेश या पचास हजार रुपए से कम का जुमार्ना अिधरोिपत कर सके गा ।
104. ऐसे माल का िवकर्य या ऐसी सेवाएं पर्दान करने के िलए शािस्त िजस पर िमथ्या व्यापार िचह्न या िमथ्या पण्य
िववरण लगाया गया है––कोई व्यिक्त जो िकसी ऐसे माल या वस्तु का िवकर्य करे गा, भाड़े पर देगा या िवकर्य या भाड़े के िलए
अिभदिशत करे गा या िवकर्य के िलए अपने कब्जे म रखेगा या ऐसी सेवाएं पर्दान करे गा या उन्ह भाड़े पर देगा, िजन पर कोई िमथ्या
व्यापार िचह्न या िमथ्या पण्य िववरण लगाया गया है या िजन पर उनके बनाए जाने या उत्पादन के देश या स्थान का या उस
िविनमार्ता, या उस व्यिक्त का, िजसके िलए, यथािस्थित, माल िविनिमत िकया गया है या सेवाएं पर्दान की गई ह, नाम और पते का
उपदशर्न धारा 139 के अधीन लगाने की अपेक्षा है, ऐसे अपेिक्षत उपदशर्न के िबना है, जब तक वह यह सािबत न कर दे िक :––
(क) इस धारा के िवरु अपराध करने के संबध ं म सभी युिक्तयुक्त पूव पाय कर लेने के पश्चात् उसके पास
अिधकिथत अपराध के िकए जाने के समय व्यापार िचह्न या पण्य िववरण के असलीपन पर या उस माल या उन सेवा की
बाबत कोई अपराध िकया गया है, यह संदह
े करने का कारण नह था ; या
(ख) अिभयोजक ारा या उसकी ओर से मांग िकए जाने पर उस व्यिक्त की बाबत, िजससे िक उसने वे माल या
वस्तुएं या सेवाएं अिभपर्ाप्त की थ , वह सब जानकारी दी जो उसकी शिक्त म थी ; या
(ग) उसने अन्यथा िनद ष रूप से कायर् िकया था,
कारावास से, िजसकी अविध छह मास से कम नह होगी िकन्तु जो तीन वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से, जो पचास हजार रुपए से
कम का नह होगा िकन्तु जो दो लाख रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा :
परन्तु न्यायालय ऐसे पयार्प्त और िवशेष कारण से, जो िनणर्य म उिल्लिखत िकए जाएं, छह मास से कम अविध तक के
कारावास का दंडादेश या पचास हजार रुपए से कम का जुमार्ना, अिधरोिपत कर सके गा ।
105. दूसरी या पश्चात्वत दोषिसि के िलए विधत शािस्त––जो कोई धारा 103 या धारा 104 के अधीन िकसी अपराध के
िलए पहले ही दोषिस िकए जाने पर ऐसे िकसी अपराध के िलए पुन: दोषिस िकया जाएगा वह दूसरे और पर्त्येक पश्चात्वत
अपराध के िलए कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो तीन वषर् तक की हो सके गी और जुमार्ने से, जो
एक लाख रुपए से कम का नह होगा िकन्तु जो दो लाख रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा :
परन्तु न्यायालय ऐसे पयार्प्त और िवशेष कारण से, जो िनणर्य म उिल्लिखत िकए जाएं, एक वषर् से कम अविध तक के
कारावास का दंडादेश या एक लाख रुपए से कम का जुमार्ना, अिधरोिपत कर सके गा :
परन्तु यह और िक इस धारा के पर्योजन के िलए इस अिधिनयम के पर्ारं भ से पूवर् की गई िकसी दोषिसि का संज्ञान नह
िकया जाएगा ।
106. धारा 81 के पर्ितकू ल थान वाला माल, आिद हटाने के िलए शािस्त––यिद कोई व्यिक्त धारा 81 म िनिदष्ट िकसी
पिरसर से ऐसे थान वाले माल या कपास के सूत या कपास के धागे को, जो उस धारा ारा यथाअपेिक्षत रूप म िचिह्नत नह है, िवकर्य
के िलए हटाएगा या हटाने का पर्यत्न करे गा या हटवाएगा या हटवाने का पर्यत्न करे गा या उसका िवकर्य करे गा या िवकर्य के िलए उसे
अिभदिशत करे गा या िवकर्य के िलए या व्यापार या िविनमार्ण के िकसी पर्योजन के िलए अपने कब्जे म रखेगा तो ऐसा पर्त्येक थान और
सूत की पर्त्येक लच्छी और ऐसा सब धागा और उसके पैिकग म उपयोग की गई पर्त्येक वस्तु सरकार को समपहृत हो जाएगी और ऐसा
िक्त जुमार्ने से, जो एक हजार रुपए तक का हो जाएगा, दंडनीय होगा ।
107. िकसी व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त रूप म िमथ्या रूप से व्यपदेशन करने के िलए शािस्त––(1) कोई व्यिक्त
िनम्निलिखत व्यपदेशन नह करे गा :––
(क) ऐसे िचह्न के संबंध म, जो रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न नह है, इस पर्भाव का िक वह रिजस्टर्ीकृ त व्यापार
िचह्न है ; या
34

(ख) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के भाग के संबंध म, जो व्यापार िचह्न के रूप म पृथक्त: रिजस्टर्ीकृ त भाग नह है,
इस पर्भाव का िक वह व्यापार िचह्न के रूप म पृथक्त: रिजस्टर्ीकृ त है ; या
(ग) इस पर्भाव का िक रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न ऐसे माल या सेवा की बाबत रिजस्टर्ीकृ त है िजनकी बाबत वह
वस्तुत: रिजस्टर्ीकृ त नह है ; या
(घ) इस पर्भाव का िक िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण से िकन्ह पिरिस्थितय म उसके उपयोग का अनन्य
अिधकार पर्ाप्त होता है जब िक रिजस्टर म पर्िवष्ट मयार्दा को ध्यान म रखते हुए उस रिजस्टर्ीकरण से वस्तुत: वह
अिधकार पर्ाप्त नह होता है ।
(2) यिद कोई व्यिक्त उपधारा (1) के िकन्ह उपबंध का उल्लंघन करे गा तो वह कारावास से, िजसकी अविध तीन वषर् तक
की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दंडनीय होगा ।
(3) इस धारा के पर्योजन के िलए, भारत म व्यापार िचह्न के संबंध म “रिजस्टर्ीकृ त” शब्द का उपयोग, या अिभव्यक्तत: या
िवविक्षत रूप से रिजस्टर्ीकरण को िनिदष्ट करने वाले िकसी अन्य पद, पर्तीक या संकेत का उपयोग िनम्निलिखत दशा के िसवाय
रिजस्टर म रिजस्टर्ीकरण के िनदश को ोतन करने वाला समझा जाएगा, अथार्त् :––
(क) जहां वह शब्द या अन्य पद, पर्तीक या संकेत अन्य शब्द के सीधे संसगर् म उपयोग िकया जाता है जो कम से
कम उतने ही बड़े अक्षर म अंिकत है िजतने म िक वह शब्द या अन्य पद, पर्तीक या संकेत अंिकत है और जो उपदिशत करते ह
िक वह िनदश ापार िचह्न के रूप म ऐसे रिजस्टर्ीकरण के पर्ित है जो भारत के बाहर के िकसी देश की िविध के अधीन है,
और जो देश ऐसा है िजसकी िविध के अधीन िनिदष्ट रिजस्टर्ीकरण वास्तव म पर्वृ है ; या
(ख) जहां वह अन्य पद, पर्तीक या संकेत स्वयं ऐसा है िक उससे यह उपदिशत होता है िक वह िनदश ऐसे
रिजस्टर्ीकरण के पर्ित है जो खंड (क) म विणत है ; या
(ग) जहां, वह शब्द ऐसे िचह्न के संबंध म उपयोग म लाया जाता है जो भारत के बाहर िकसी देश की िविध के
अधीन और उस देश को िनयार्त िकए जाने वाले माल के ही संबंध म या उस देश म उपयोग के िलए सेवा के संबंध म िकसी
व्यापार िचह्न के रूप म रिजस्टर्ीकृ त है ।
108. कारबार के स्थान को व्यापार िचह्न कायार्लय से संब रूप म अनुिचत वणर्न करने के िलए शािस्त––यिद कोई व्यिक्त
अपने कारबार के स्थान पर या अपने ारा जारी िकए गए िकसी दस्तावेज पर या अन्यथा ऐसे शब्द का उपयोग करे गा िजनसे
युिक्तयुक्त रूप से यह िवश्वास हो सकता है िक उसका कारबार का स्थान व्यापार िचह्न का कायार्लय है या व्यापार िचह्न कायार्लय
से शासकीय रूप से संब है तो वह कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, अथवा दोन से, दंडनीय
होगा ।
109. रिजस्टर म पर्िविष्टय के िमथ्याकरण के िलए शािस्त––यिद कोई व्यिक्त रिजस्टर म कोई िमथ्या पर्िविष्ट या कोई लेख
िजससे िमथ्या रूप से रिजस्टर की िकसी पर्िविष्ट का पर्ितिलिप होना तात्पियत है, यह जानते हुए करे गा या कराएगा िक वह पर्िविष्ट
या लेख िमथ्या है या ऐसे िकसी लेख को सा य म पर्स्तुत करे गा या िनिवद करे गा या पर्स्तुत या िनिवद कराएगा तो वह कारावास
से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, अथवा दोन से, दंडनीय होगा ।
110. कितपय दशा म कोई अपराध न होना––धारा 102, धारा 103, धारा 104 और धारा 105 के उपबंध रिजस्टर्ीकृ त
व्यापार िचह्न या ऐसे िचह्न के स्वत्वधारी के संबंध म, इस अिधिनयम ारा सृिजत या मान्यतापर्ाप्त अिधकार के अधीन ह गे और
कोई कायर् या लोप पूव क्त धारा के अधीन अपराध नह समझा जाएग, यिद––
(क) अिभकिथत अपराध रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से संबंिधत है और कायर् या लोप इस अिधिनयम के अधीन
अनुज्ञात है ; और
(ख) अिभकिथत अपराध रिजस्टर्ीकृ त या अरिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से संबंिधत है और कायर् या लोप तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन अनुज्ञात है ।
111. माल का सपमहरण––(1) जहां कोई िक्त धारा 103 या धारा 104 या धारा 105 के अधीन िकसी अपराध के िलए
िस दोष ठहराया गया है, या धारा 103 या धारा 104 के अधीन अपराध से, यह सािबत करने पर िक उसने कपट के आशय के िबना
कायर् िकया था, या धारा 104 के अधीन उस धारा के खंड (क), खंड (ख) या खंड (ग) म िविनिदष्ट मामल के सािबत करने पर दोषमुक्त
िकया गया है, वहां उसे िस दोष या दोषमुक्त करने वाला न्यायालय सरकार को उन सब माल और वस्तु के समपहरण िकए जाने का
िनदेश दे सके गा िजनके माध्यम से या िजनके संबंध म अपराध िकया गया है या यिद पूव क्त सबूत न होता तो िकया गया होता ।
(2) जहां दोषिसि पर समपहरण का िनदेश िदया जाता है और ऐसी दोषिसि के िवरु अपील होती है, वहां समपहरण के
िवरु भी अपील होगी ।
35

(3) जहां दोषमुिक्त पर समपहरण का िनदेश िदया जाता है और वह माल या वे वस्तुएं िजनसे िनदेश संबंिधत है, पचास रुपए
से अिधक मूल्य की है, वहां समपहरण के िवरु अपील िनदेश की तारीख से तीस िदन के भीतर, उस न्यायालय को की जा सके गी
िजसम अपीली मामल म समपहरण का िनदेश देने वाले न्यायालय के दंडादेश से अपील की जाती है ।
(4) जहां दोषिसि पर समपहरण का िनदेश िदया जाता है, वहां वह न्यायालय िजसके समक्ष वह व्यिक्त िस दोष है, िकन्ह
समपहृत वस्तु को नष्ट करने या उनका अन्यथा व्ययन करने का, जैसा न्यायालय ठीक समझे, आदेश दे सके गा ।
112. कारबार के सामान्य अनुकर्म म िनयोिजत कितपय व्यिक्तय को छू ट––जहां धारा 103 के अधीन अपराध के िलए
अिभयुक्त कोई व्यिक्त यह सािबत करता है िक––
(क) वह अपने कारबार के सामान्य अनुकर्म म अन्य व्यिक्तय की ओर से व्यापार िचह्न या पण्य िववरण लगाने के
िलए, या, यथािस्थित, व्यापार िचह्न बनाने म या बनाने म उपयोग के िलए डाई, ब्लाक, मशीन, प ी या अन्य उपकरण
बनाने के िलए िनयोिजत है ; और
(ख) वह, उस मामले म जो आरोप का िवषय है इस पर्कार िनयोिजत था और माल या अन्य वस्तु म, यथािस्थित,
ऐसे माल के िवकर्य या सेवाएं पर्दान करने पर आधािरत लाभ या कमीशन म िहतब नह था ; और
(ग) आरोिपत अपराध के करने के िवरु सभी युिक्तयुक्त पूवार्वधािनयां बरतने के पश्चात् उसके पास अिभकिथत
अपराध के िकए जाने के समय व्यापार िचह्न या पण्य िववरण के असली होने पर संदहे करने का कोई कारण नह था ; और
(घ) अिभयोजक ारा या उसकी ओर से मांग करने पर उसने उन व्यिक्तय की बाबत, िजनकी ओर से व्यापार
िचह्न या पण्य िववरण लगाया गया था, वह सब जानकारी दी जो उसकी शिक्त म थी,
वहां वह दोषमुक्त कर िदया जाएगा ।
113. जहां अिभयुक्त रिजस्टर्ीकरण की अिविधमान्यता का अिभवचन करता है, वहां पर्िकर्या––(1) जहां धारा 103 या
धारा 104 या धारा 105 के अधीन आरोिपत अपराध रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से संबंिधत है और अिभयुक्त यह अिभवचन करता है
िक व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण अिविधमान्य है, वहां िनम्निलिखत पर्िकर्या का अनुसरण िकया जाएगा––
(क) यिद न्यायालय का समाधान हो जाता है िक ऐसा पर्ितवाद पर्थमदृष्टया मान्य है तो वह आरोप पर आगे
कायर्वाही नह करे गा िकन्तु अिभयुक्त को इस आधार पर िक रिजस्टर्ीकरण अिविधमान्य है रिजस्टर को पिरशोिधत करने के
िलए इस अिधिनयम के अधीन अपील बोडर् के समक्ष आवेदन फाइल करने के िलए समथर् बनाने के िलए उस तारीख से,
िजसको अिभयुक्त का अिभवचन अिभिलिखत िकया गया है, तीन मास के िलए कायर्वाही स्थिगत कर देगा ;
(ख) यिद अिभयुक्त न्यायालय के समक्ष यह सािबत कर देता है िक उसने ऐसे पिरसीिमत या ऐसे अितिरक्त समय
के भीतर, जैसा न्यायालय पयार्प्त हेतुक पर अनुज्ञात करे , ऐसा आवेदन कर िदया है तो अिभयोजन म आगे कायर्वाही तब तक
रोक दी जाएगी जब तक पिरशोधन के ऐसे आवेदन का िनपटारा नह हो जाता है ;
(ग) यिद तीन मास की अविध के भीतर या ऐसे बढ़ाए गए समय के भीतर जो, न्यायालय अनुज्ञात करे , अिभयुक्त
रिजस्टर का पिरशोधन करने के िलए अपील बोडर् को आवेदन करने म असमथर् रहता है तो न्यायालय मामले म आगे इस
पर्कार कायर्वाही करे गा मानो रिजस्टर्ीकरण िविधमान्य है ।
(2) जहां उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी अपराध के िलए पिरवाद संिस्थत करने के पहले पर्श्नगत ापार िचह्न से संबंिधत
रिजस्टर के पिरशोधन के िलए आवेदन व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की अिविधमान्यता के आधार पर पहले ही अिधकरण के समक्ष
उिचत रूप से कर िदया गया है और लंिबत है, वहां न्यायालय पूव क्त आवेदन का िनपटारा होने तक अिभयोजन म आगे कायर्वािहयां
रोक देगा और जहां तक पिरवादी अपने िचह्न के रिजस्टर्ीकरण का अवलम्ब लेता है, न्यायालय अिभयुक्त के िवरु आरोप, पिरशोधन
के आवेदन के पिरणाम के अनुरूप अवधािरत करे गा ।
114. कं पिनय ारा अपराध—(1) यिद इस अिधिनयम के अधीन अपराध करने वाला िक्त कं पनी है, तो कं पनी और साथ
ही पर्त्येक िक्त, जो अपराध के समय उस कं पनी के कारबार के संचालन के िलए उस कं पनी का भारसाधक और उसके पर्ित उ रदायी
था, अपराध के िलए दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दंिडत िकए जाने का भागी होगा :
परन्तु इस उपधारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त को दंड का भागी नह बनाएगी यिद वह यह सािबत कर देता है िक
अपराध उसकी जानकारी के िबना िकया गया था, या उसने ऐसे अपराध के िकए जाने का िनवारण करने के िलए सब सम्यक् तत्परता
बरती थी ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध िकसी कं पनी ारा िकया गया है
और यह सािबत हो जाता है िक वह अपराध कं पनी के िकसी िनदेशक, पर्बंधक, सिचव या अन्य अिधकारी की सहमित या मौनानुकूलता
से िकया गया है या उस अपराध का िकया जाना उसकी िकसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा िनदेशक, पर्बंधक,
सिचव या अन्य अिधकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार, अपने िवरु कायर्वाही िकए जाने और दंिडत िकए
जाने का भागी होगा ।
36

स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए—


(क) “कं पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त फमर् या िष्टय का अन्य संगम भी है; और
(ख) फमर् के संबंध म, “िनदेशक” से उस फमर् का भागीदार अिभपर्ेत है ।
115. कितपय अपराध का संज्ञान और पुिलस अिधकारी की तलाशी लेने और अिभगर्हण करने की शिक्तयां––(1) कोई भी
न्यायालय धारा 107, धारा 108 या धारा 109 के अधीन अपराध का संज्ञान रिजस्टर्ार या उसके ारा िलिखत रूप से पर्ािधकृ त िकसी
अिधकारी ारा िलिखत पिरवाद के िबना नह करे गा :
परन्तु न्यायालय धारा 107 की उपधारा (1) के खंड (ग) के संबंध म िकसी अपराध का संज्ञान रिजस्टर्ार ारा जारी िकए गए
इस आशय के पर्माणपतर् के आधार पर करे गा िक कोई रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न ऐसे िकसी माल या सेवा की बाबत रिजस्टर्ीकृ त है
िजसके संबंध म वास्तव म वह रिजस्टर्ीकृ त नह है ।
(2) महानगर मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट से अवर कोई न्यायालय इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का
िवचारण नह करे गा ।
(3) धारा 103 या धारा 104 या धारा 105 के अधीन अपराध संज्ञेय ह गे ।
(4) यिद िकसी पुिलस अिधकारी का, जो पुिलस उप अधीक्षक या समतुल्य की पंिक्त से नीचे का नह है, यह समाधान हो
जाता है िक उपधारा (3) म िनिदष्ट अपराध म से कोई अपराध िकया गया है, िकया जा रहा है या िकए जाने की संभावना है तो वह
अपराध िकए जाने म अन्तवर्िलत माल, डाई, ब्लाक, मशीन, प्लेट, अन्य उपकरण या वस्तु की, जहां कह भी वे पाई जाएं, िबना
वारं ट तलाशी ले सके गा और उन्ह अिभगृहीत कर सके गा और इस पर्कार अिभगृहीत सभी वस्तुएं यथाशक्य शीघर्, यथािस्थित, पर्थम वगर्
न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट के समक्ष पेश की जाएंगी :
परन्तु पुिलस अिधकारी, कोई तलाशी लेने या अिभगर्हण करने से पूवर् व्यापार िचह्न से संबंिधत अपराध म अन्तगर्र्स्त तथ्य के
बारे म रिजस्टर्ार की राय अिभपर्ाप्त करे गा और इस पर्कार अिभपर्ाप्त राय का पालन करे गा ।
(5) उपधारा (4) के अधीन अिभगृहीत वस्तु म कोई िहत रखने वाला व्यिक्त, ऐसे अिभगर्हण के पंदर्ह िदन के भीतर, उसे
ऐसी वस्तुएं वापस िदलाए जाने के िलए, यथािस्थित, पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट को आवेदन करे गा और
मिजस्टर्ेट आवेदक और अिभयोजन की सुनवाई के पश्चात् आवेदन पर ऐसा आदेश पािरत करे गा, जो वह ठीक समझे ।
116. समुदर् ारा आयाितत माल के उ म का सा य––भारत म समुदर् ारा लाए गए माल की दशा म, इस अिधिनयम के
अधीन या सीमाशुल्क अिधिनयम, 1962 (1962 का 52) की धारा 112 के खंड (ख) के अधीन या धारा 111 के खंड (घ) के अधीन माल के
अिधगर्हण के संबध
ं म और माल के आयात से संबिं धत व्यापार िचह्न के संरक्षण के िलए उक्त अिधिनयम की धारा 11 की उपधारा (2)
के खंड (ढ) के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूिचत िकसी अपराध के िलए अिभयोजन म पोतभरण के प न का सा य पर्थमदृष् ा
उस स्थान या देश का सा य होगा िजसम माल बनाए गए या उत्पािदत िकए गए ह ।
117. पर्ितवाद या अिभयोजन का खचर्––इस अिधिनयम के अधीन िकसी अिभयोजन म, न्यायालय अिभयुक्त ारा पिरवादी
को या पिरवादी ारा अिभयुक्त को ऐसे खच का संदाय करने का आदेश दे सके गा िजन्ह न्यायालय मामले की समस्त पिरिस्थितय और
पक्षकार के आचरण पर ध्यान देते हुए, युिक्तयुक्त समझे और इस पर्कार अिधिनण त खचर् ऐसे वसूल िकया जाएगा मानो यह
जुमार्ना है ।
118. अिभयोजन की पिरसीमा––इस अिधिनयम के अधीन या सीमाशुल्क अिधिनयम, 1962 (1962 का 52) की धारा 112 के
खंड (ख) के अधीन या धारा 111 के खंड (घ) के अधीन माल के अिधहरण से संबंिधत और माल के आयात से संबंिधत व्यापार िचह्न के
संरक्षण के िलए उक्त अिधिनयम की धारा 11 की उपधारा (2) के खंड (ढ) के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूिचत अपराध के िलए
कोई अिभयोजन आरोिपत अपराध के िकए जाने के ठीक तीन वषर् या उसके अिभयोजक को पता चलने के दो वषर् के अवसान के पश्चात्
दोन अवसान म से जो भी पहले घिटत हो, पर्ारं भ नह िकया जाएगा ।
119. अपराध िकए जाने के बारे म इि ला––सरकार के िकसी अिधकारी को, िजसका कायर् इस अध्याय के उपबंध को पर्वृ
कराने म भाग लेना है, िकसी भी न्यायालय म यह कहने के िलए बाध्य नह िकया जाएगा िक इस अिधिनयम के िवरु िकसी अपराध
के िकए जाने के बारे म कोई इि ला उसे कहां से पर्ाप्त हुई ।
120. भारत के बाहर िकए गए काय के िलए भारत म दुष्पर्ेरण का दंड––यिद कोई व्यिक्त, जो भारत के भीतर है, भारत के
बाहर ऐसे िकसी कायर् को करने का दुष्पर्ेरण करता है, जो यिद भारत म िकया जाता तो इस अिधिनयम के अधीन अपराध होता तो
उसका भारत म िकसी भी स्थान पर जहां वह पाया जाए, ऐसे दुष्पर्ेरण के िलए िवचारण िकया जा सके गा और वह उसके िलए उस दंड
से दंिडत िकया जा सके गा िजससे वह दंडनीय होता यिद उस स्थान म स्वयं वह कायर् करता िजसका उसने दुष्पर्ेरण िकया है ।
121. दांिडक न्यायालय ारा अनुपालन के िलए के न्दर्ीय सरकार के अनुज्ञय े फे रफार संबधं ी अनुदश
े ––के न्दर्ीय सरकार,
राजपतर् म अिधसूचना ारा, संख्या, पिरमाण, माप, गेज या भार के बारे म फे रफार की सीमा संबंधी ऐसे अनुदश
े जारी कर सके गी, जो
िकसी माल की दशा म दांिडक न्यायालय ारा अनुज्ञेय माने जाएंगे ।
37

अध्याय 13

पर्कीणर्
122. स ावपूवक
र् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण––इस अिधिनयम के अनुसरण म स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए
आशियत िकसी बात की बाबत कोई भी वाद या अन्य िविधक कायर्वािहयां िकसी व्यिक्त के िवरु नह ह गी ।
123. कितपय व्यिक्तय का लोक सेवक होना––इस अिधिनयम के अधीन िनयुक्त पर्त्येक व्यिक्त और अपील बोडर् का पर्त्येक
सदस्य भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 21 के अथार्न्तगर्त लोक सेवक समझा जाएगा ।
124. जहां व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता पर्श्नगत की जाती है वहां कायर्वािहय का रोका जाना,
आिद––(1) जहां िकसी व्यापार िचह्न के अितलंघन के िलए िकसी वाद म––
(क) पर्ितवादी यह अिभवचन करता है िक वादी के व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकरण अिविधमान्य है ; या
(ख) पर्ितवादी धारा 30 की उपधारा (2) के खण्ड (ङ) के अधीन पर्ितवाद करता है और वादी पर्ितवादी के व्यापार
िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की अिविधमान्यता का अिभवचन करता है,
वहां वाद का िवचारण करने वाला न्यायालय (िजसे इसम इसके पश्चात् न्यायालय कहा गया है)––
(i) यिद वादी या पर्ितवादी के व्यापार िचह्न के संबंध म रिजस्टर के पिरशोधन के िलए कोई कायर्वािहयां
रिजस्टर्ार या अपील बोडर् के समक्ष लंिबत ह, तो ऐसी कायर्वािहय के अंितम िनपटारे के लिम्बत रहने तक वाद को रोक देगा ;
(ii) यिद कोई ऐसी कायर्वािहयां लंिबत नह ह और न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक वादी या पर्ितवादी
के व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की अिविधमान्यता के बारे म अिभवचन पर्थमदृष् ा मान्य है तो उनके बारे म िववा क
बनाएगा और मामले को िववा क बनाने की तारीख से तीन मास की अविध के िलए स्थिगत कर देगा िजससे िक संब
पक्षकार रिजस्टर के पिरशोधन के िलए अपील बोडर् को आवेदन करने म समथर् हो सके ।
(2) यिद संब पक्षकार न्यायालय म यह सािबत करता है िक उसने उपधारा (1) के खंड (ख) (ii) म िनिदष्ट ऐसा कोई
आवेदन उसम िविनिदष्ट समय के भीतर या ऐसे िवस्तािरत समय के भीतर जो न्यायालय पयार्प्त कारण से अनुज्ञात करे , िकया है, तो
जब तक पिरशोधन की कायर्वािहय का अंितम िनपटान न हो जाए तब तक वाद का िवचारण रुक जाएगा ।
(3) यिद यथापूव क्त कोई ऐसा आवेदन ऐसे िविनिदष्ट समय के भीतर या ऐसे िवस्तािरत समय के भीतर जो न्यायालय
अनुज्ञात करे , नह िकया गया है, तो संब व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता के बारे म िववा क पिरत्यक्त समझा
जाएगा और न्यायालय मामले म अन्य िववा क की बाबत वाद म आगे कायर्वाही करे गा ।
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) म िनिदष्ट पिरशोधन कायर्वािहय म िदया गया अंितम आदेश पक्षकार पर आब कर होगा
और जहां तक वह व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता के बारे म िववा क से संबंिधत है, न्यायालय वाद को ऐसे आदेश के
अनुरूप िनपटाएगा ।
(5) इस धारा के अधीन व्यापार िचह्न के अितलंघन के िकसी वाद को रोकने से न्यायालय वाद के रुके रहने की अविध
के दौरान (व्यादेश अनुद करने वाले, लेखा रखने का िनदेश देने वाले, िरसीवर िनयुक्त करने वाले या संपि कु कर् करने वाले िकसी
आदेश सिहत) कोई अन्तर्वत आदेश करने से पर्िवरत नह होगा ।
125. कितपय मामल म रिजस्टर के पिरशोधन के िलए आवेदन अपील बोडर् को िकया जाना––(1) जहां रिजस्टर्ीकृ त व्यापार
िचह्न के अितलंघन के िलए वाद म वादी के व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता को पर्ितवादी ारा पर्श्नगत िकया गया है
या जहां ऐसे िकसी वाद म पर्ितवादी ने धारा 30 की उपधारा (2) के खण्ड (ङ) के अधीन पर्ितवाद िकया है और वादी पर्ितवादी के
व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता को पर्श्नगत करता है, वहां संब व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता के
बारे म, िववा क रिजस्टर के पिरशोधन के िलए आवेदन पर ही अवधािरत िकया जाएगा और धारा 47 या धारा 57 म िकसी बात के
होते हुए भी, ऐसा आवेदन अपील बोडर् को िकया जाएगा, न िक रिजस्टर्ार को ।
(2) जहां, उपधारा (1) के उपबंध के अधीन रहते हुए, रिजस्टर के पिरशोधन के िलए कोई आवेदन धारा 47 या धारा 57 के
अधीन रिजस्टर्ार को िकया जाता है, वहां यिद रिजस्टर्ार ठीक समझे तो, वह कायर्वािहय के िकसी भी पर्कम पर आवेदन को अपील बोडर्
को िनिदष्ट कर सके गा ।
126. िचिह्नत माल के िवकर्य पर िवविक्षत वारं टी––जहां िवकर्य वाले माल पर या िकसी माल के िवकर्य के िलए या िकसी
सेवा के संबंध म संिवदा पर कोई िचह्न या व्यापार िचह्न या पण्य िववरण लगाया गया है, वहां यह समझा जाएगा िक िवकर्ेता ने यह
वारं टी दी है िक िचह्न असली िचह्न है और िमथ्या रूप से नह लगाया गया है या पण्य िववरण इस अिधिनयम के अथार्न्तगर्त िमथ्या
पण्य िववरण नह है, जब तक िक िवकर्ेता ारा या उसकी ओर से हस्ताक्षिरत िकसी लेख ारा पर्ितकू ल बात अिभव्यक्त न की गई हो
और माल के िवकर्य के समय या संिवदा पर सेवा का उपबन्ध करते समय कर्ेता को पिरद न की गई हो और उसके ारा पर्ितगृहीत न
की गई हो ।
38

127. रिजस्टर्ार की शिक्त––रिजस्टर्ार के समक्ष इस अिधिनयम के अधीन सभी कायर्वािहय म––


(क) रिजस्टर्ार को सा य लेने, शपथ िदलाने, सािक्षय को उपिस्थत कराने, दस्तावेज के पर्कटीकरण और उन्ह पेश
कराने और सािक्षय की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालने के पर्योजन के िलए िसिवल न्यायालय की सभी शिक्तयां ह गी ;
(ख) रिजस्टर्ार धारा 157 के अधीन इस िनिम बनाए गए िकन्ह िनयम के अधीन रहते हुए, खचर् के बारे म ऐसे
आदेश कर सके गा िजन्ह वह युिक्तयुक्त समझे और ऐसा कोई आदेश िसिवल न्यायालय की िडकर्ी के रूप म िनष्पािदत िकया
जाएगा :
परन्तु रिजस्टर्ार को पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी ारा माल को पर्माणीकृ त करने या सेवा का
उपबंध करने से इं कार करने या िचह्न का उपयोग पर्ािधकृ त करने के िवरु उसको की गई अपील म िकसी पक्षकार को या
उसके िवरु खचार् अिधिनण त करने की शिक्त नह होगी ;
(ग) िविहत रीित से आवेदन करने पर रिजस्टर्ार अपने िविनश्चय का पुनिवलोकन कर सके गा ।
128. रिजस्टर्ार ारा िववेकािधकार शिक्त का पर्योग––धारा 131 के उपबंध के अधीन रहते हुए, रिजस्टर्ार इस अिधिनयम
या त ीन बनाए गए िनयम ारा उसम िनिहत िकसी िववेकािधकार या अन्य शिक्त का पर्योग, उस शिक्त का पर्योग करने के िलए
आवेदन करने वाले व्यिक्त पर्ितकू लत: उस व्यिक्त को सुनवाई का अवसर (यिद उस व्यिक्त ारा िविहत समय के भीतर ऐसी अपेक्षा
की जाए) िदए िबना नह करे गा ।
129. रिजस्टर्ार के समक्ष सा य––इस अिधिनयम के अधीन िकसी कायर्वाही म रिजस्टर्ार के समक्ष सा य शपथपतर् ारा
िदया जाएगा :
परन्तु रिजस्टर्ार, यिद वह ठीक समझे, शपथपतर् ारा ऐसे सा य के बदले म या उसके अितिरक्त मौिखक सा य ले सके गा ।
130. कायर्वाही के पक्षकार की मृत्यु––यिद कोई व्यिक्त, जो इस अिधिनयम के अधीन कायर्वाही का (जो अपील बोडर् या
न्यायालय की कायर्वाही नह है) पक्षकार है, कायर्वाही के लंिबत रहते हुए मर जाता है, तो रिजस्टर्ार, अनुरोध पर और उसके
समाधानपयर्ंत मृत व्यिक्त के िहत का पारे षण सािबत कर देने पर कायर्वाही म उसके स्थान पर उसके िहत उ रािधकारी को
पर्ितस्थािपत कर सके गा, या, यिद रिजस्टर्ार की यह राय है िक मृत व्यिक्त का िहत, उ रजीवी पक्षकार ारा पयार्प्त रूप से
व्यपदेिशत है तो वह उसके िहत उ रािधकारी को पर्ितस्थािपत िकए िबना कायर्वािहयां चलाए रखने को अनुमित दे सके गा ।
131. समय का िवस्तार––(1) यिद रिजस्टर्ार का, िविहत रीित से और िविहत फीस के साथ िदए गए आवेदन पर यह
समाधान हो गया है िक िकसी कायर्वाही को करने के िलए समय का (जो इस अिधिनयम म अिभव्यक्तत: उपबंिधत समय नह है)
िवस्तार करने का पयार्प्त कारण है तो चाहे इस पर्कार िविनिदष्ट समय समाप्त हो गया हो या नह वह ऐसी शत के अधीन, जो वह
अिधरोिपत करना ठीक समझे, समय का िवस्तार कर सके गा और तद्नुसार पक्षकार को अिधसूिचत कर सके गा ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात रिजस्टर्ार से समय के िवस्तार के िलए आवेदन का िनपटारा करने के पहले पक्षकार को सुनने
की अपेक्षा करने वाली नह समझी जाएगी और इस धारा के अधीन रिजस्टर्ार के िकसी आदेश के िवरु कोई अपील नह होगी ।
132. पिरत्याग––जहां रिजस्टर्ार की राय म इस अिधिनयम या इस अिधिनयम के पर्ारं भ के पूवर् पर्वृ व्यापार िचह्न से
संबंिधत िकसी अिधिनयम के अधीन फाइल िकए गए िकसी आवेदन पर आगे कायर्वाही करने म कोई आवेदक व्यितकर्म करता है वहां
रिजस्टर्ार सूचना देकर आवेदन से िविनिदष्ट समय के भीतर उस व्यितकर्म का उपचार करने की अपेक्षा कर सके गा, और यिद ऐसी वांछा
हो, तो उसे सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् आवेदन को पिरत्यक्त समझ सके गा जब तक िक सूचना म िविनिदष्ट समय के भीतर
व्यितकर्म का उपचार नह कर िदया जाता है ।
133. सुिभन्नता के बारे म रिजस्टर्ार की पर्ारं िभक सलाह––(1) रिजस्टर्ार, िकसी व्यिक्त ारा, जो िकसी व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन की पर्स्थापना करता है, िविहत रीित से उसे आवेदन करने पर यह सलाह दे सके गा िक क्या उसे वह
ापार िचह्न पर्थमदृष् ा सुिभन्न पर्तीत होता है ।
(2) रिजस्टर्ार ने िजस व्यापार िचह्न के िलए यथापूव क्त सलाह सकारात्मक दी है उसके रिजटर्ीकरण के िलए सलाह देने के
पश्चात् तीन मास के भीतर आवेदन करने पर, यिद रिजस्टर्ार, अितिरक्त जांच या िवचार करने के पश्चात्, आवेदक को इस आधार पर
आक्षेप की सूचना देता है िक व्यापार िचह्न सुिभन्न नह है तो, आवेदक िविहत अविध के भीतर आवेदन वापस लेने की सूचना देने पर
उस फीस को वापस पाने का हकदार होगा जो आवेदन फाइल करने पर संद की गई थी ।
134. अितलंघन, आिद के िलए वाद का िजला न्यायालय के समक्ष संिस्थत िकया जाना––(1) कोई भी वाद––
(क) रिजस्टर्ीकृ त ापार िचह्न के अितलंघन के िलए ; या
(ख) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के िकसी अिधकार से संबंिधत ; या
(ग) पर्ितवादी ारा िकसी िचह्न के , जो वादी के व्यापार िचह्न से, चाहे वह रिजस्टर्ीकृ त हो या अरिजस्टर्ीकृ त,
समरूप है या इतना समरूप है िक धोखा हो जाए, उपयोग से उद्भूत चला देने के िलए,
39

वाद का िवचारण करने की अिधकािरता रखने वाले िजला न्यायालय के अवर िकसी न्यायालय म संिस्थत नह िकया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के खंड (क) और खंड (ख) के पर्योजन के िलए, “अिधकािरता वाले िजला न्यायालय” के अंतगर्त, िसिवल
पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, वह िजला न्यायालय है िजसकी
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर वाद या अन्य कायर्वाही संिस्थत करने के समय वाद या कायर्वाही संिस्थत करने वाला
व्यिक्त या जहां एक से अिधक ऐसे व्यिक्त ह वहां उनम से कोई वस्तुत: और स्वेच्छा से िनवास करता है या कारबार या अिभलाभ के
िलए व्यिक्तगत रूप से कायर् करता है ।
स्पष्टीकरण––उपधारा (2) के पर्योजन के िलए “व्यिक्त” के अंतगर्त रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी और रिजस्टर्ीकृ त उपयोगकतार्
भी है ।
135. अितलंघन के या चला देने के वाद म अनुतोष––(1) धारा 134 म िनिदष्ट अितलंघन या चला देने के िलए िकसी वाद म
न्यायालय जो अनुतोष अनुद कर सके गा उसके अंतगर्त (ऐसे िनबंधन के अधीन, यिद कोई ह , िजन्ह न्यायालय ठीक समझे), व्यादेश
और अितलंघन करने वाले लेबल और िचह्न को नष्ट करने या िमटाने के िलए उनके पिरदान के आदेश के सिहत या उसके िबना, वादी
के िवकल्प पर या तो नुकसानी या लाभ का लेखा भी है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन ादेश के अंतगर्त एकपक्षीय व्यादेश या िनम्निलिखत िवषय म से िकसी के िलए कोई अंतवर्त
आदेश हो सके गा, अथार्त् :––
(क) दस्तावेज का पर्कटीकरण ;
(ख) अितलंघनकारी माल, दस्तावेज या अन्य सा य का, जो वाद की िवषय-वस्तु से संबंिधत है, पिररक्षण ;
(ग) पर्ितवादी को अपनी आिस्तय का व्ययन करने या ऐसी रीित से उसके संबंध म ौहार करने से अवरु करना,
जो वादी की, नुकसानी, खच या अन्य धनीय उपचार को, जो वादी को अंितम रूप से अिधिनण त िकए जाएं, वसूल करने की
योग्यता को पर्ितकू लत: पर्भािवत करे ।
(3) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, न्यायालय (नाममातर् की नुकसानी से िभन्न) नुकसानी के रूप म या लाभ म े
कोई अनुतोष उस मामले म अनुद नह करे गा––
(क) जहां व्यापार िचह्न के अितलंघन के वाद म, पिरवािदत अितलंघन पर्माणीकरण व्यापार िचह्न या सामूिहक
िचह्न से संबंिधत है ; या
(ख) जहां अितलंघन के वाद म पर्ितवादी न्यायालय का समाधान कर देता है िक––
(i) जब उसके वाद म पिरवािदत व्यापार िचह्न का उपयोग पर्ारं भ िकया तब उसे यह ज्ञान नह था और
उसके पास यह िवश्वास करने का युिक्तयुक्त आधार नह था िक वादी का व्यापार िचह्न रिजस्टर म था या वादी
अनुज्ञात उपयोग के रूप म उपयोग करने वाला रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता था ; और
(ii) जब उसे व्यापार िचह्न म वादी के अिधकार की िव मानता और पर्कृ ित का ज्ञान हुआ तब उसने उस
माल या सेवा के संबंध म, िजनकी बाबत यह व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त था, उसका उपयोग करना तुरन्त बंद
कर िदया; या
(ग) जहां चला देने के वाद म पर्ितवादी न्यायालय का समाधान कर देता है िक––
(i) जब उसने वाद म पर्ितवािदत व्यापार िचह्न का उपयोग पर्ारं भ िकया तब उसे यह ज्ञान नह था और
उसके पास यह िवश्वास करने का कोई युिक्तयुक्त आधार नह था िक वादी का व्यापार िचह्न उपयोग म है ; और
(ii) जब उसे वादी के व्यापार िचह्न की िव मानता और पर्कृ ित का ज्ञान हुआ तब उसने पर्ितवािदत
व्यापार िचह्न का उपयोग करना तुंरत बंद कर िदया ।
136. रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को कितपय कायर्वािहय म पक्षकार बनाया जाना––(1) अध्याय 7 के अधीन या धारा 91 के
अधीन पर्त्येक कायर्वाही म अनुज्ञात उपयोग के रूप म व्यापार िचह्न का उपयोग करने वाले रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता को, जो उस अध्याय
या धारा के अधीन िकसी कायर्वाही की बाबत स्वयं आवेदक नह है, कायर्वाही म पक्षकार बनाया जाएगा ।
(2) िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, कायर्वाही का इस पर्कार पक्षकार बनाया गया रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता
िकसी खच के िलए तब तक दायी नह होगा जब तक िक वह उपसंजात न हो और कायर्वािहय म भाग न ले ।
137. रिजस्टर म पर्िविष्टय आिद का और रिजस्टर्ार ारा की गई बात का सा य––(1) रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट या
धारा 148 की उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी दस्तावेज की पर्ित, िजसका रिजस्टर्ार ारा पर्मािणत और व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी की मुदर्ा
म मुदर्ांिकत होना तात्पियत है, सभी न्यायालय म और सभी कायर्वािहय म अितिरक्त सबूत या मूल पेश िकए िबना सा य म गर्हण
की जाएगी ।
40

(2) कोई पर्माणपतर्, िजसका रिजस्टर्ार के हस्ताक्षर से होना तात्पियत है और जो िकसी पर्िविष्ट, िवषय या बात के बारे म ह,
िजसके बनाने या करने के िलए वह उस अिधिनयम या िनयम ारा पर्ािधकृ त है, उस पर्िविष्ट के िकए जाने या उसकी अंतवर्स्तु के या
उस िवषय या बात के िकए जाने या नह िकए जाने का पर्थमदृष् ा सा य होगा ।
138. रिजस्टर्ार और अन्य अिधकािरय का रिजस्टर, आिद पेश करने के िलए बाध्य न होना––रिजस्टर्ार या व्यापार िचह्न
रिजस्टर्ी का कोई अिधकारी, िकन्ह िविधक कायर्वािहय म, िजनका वह पक्षकार नह है, रिजस्टर या उसकी अिभरक्षा के िकसी अन्य
दस्तावेज को, िजसकी अंतवर्स्तु इस अिधिनयम के अधीन दी गई पर्मािणत पर्ित पेश करके सािबत की जा सकती है, पेश करने या उसम
अिभिलिखत िवषय को सािबत करने के िलए साक्षी के रूप म उपसंजात होने के िलए बाध्य नह िकया जाएगा जब तक िक िवशेष
कारण से न्यायालय आदेश न द ।
139. माल पर उ म का उपदशर्न करने की अपेक्षा करने की शिक्त––(1) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, यह
अपेक्षा कर सके गी िक अिधसूचना म िविनिदष्ट िकसी वगर् के माल पर, जो भारत की सीमा के बाहर बनाए या उत्पािदत िकए जाते ह
और भारत म आयात िकए जाते ह, या जो भारत की सीमा के भीतर बनाए गए या उत्पािदत िकए जाते ह, ऐसी तारीख से, जो
अिधसूचना ारा िनयत की जाए, जो उसके जारी करने से तीन मास से कम न होगी, उस देश या स्थान का, जहां वे बनाए या उत्पािदत
िकए गए थे या िविनमार्ता का अथवा उस व्यिक्त का, िजसके िलए माल िविनिमत िकए गए थे, नाम और पते का उपदशर्न उपयोिजत
िकया जाए ।
(2) अिधसूचना म वह रीित िविनिदष्ट की जा सके गी िजससे ऐसा उपदशर्न लगाया जाएगा, अथार्त् माल पर ही या िकसी
अन्य रीित से और वे समय या अवसर िविनिदष्ट िकए जा सकगे िजन पर उपदशर्न का होना आवश्यक होगा, अथार्त् के वल आयात पर,
या िवकर्य के समय भी, चाहे थोक या फु टकर या दोन पर्कार के िवकर्य पर ।
(3) इस धारा के अधीन कोई अिधसूचना तब तक नह िनकाली जाएगी, जब तक संबंिधत माल म व्यौहारी या िविनमार्ता,
उत्पादक या उपयोक्ता के िहत का सारत: पर्ितिनिधत्व करने वाले व्यिक्तय या संगम ारा उसे िनकाले जाने के िलए आवेदन न िकया
जाए, या जब तक के न्दर्ीय सरकार को, ऐसी जांच करके या उसके िबना, जो कदर्ीय सरकार आवश्यक समझे, अन्यथा यह िवश्वास नह
हो जाता िक अिधसूचना िनकालना लोक िहत म आवश्यक है ।
(4) साधारण खंड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 23 के उपबंध इस धारा के अधीन अिधसूचना िनकाले जाने को
उसी पर्कार लागू ह गे जैसे वे उन िनयम या उपिविध के बनाने को लागू होते ह िजनका बनाना पूवर् पर्काशन की शतर् के अधीन आता है ।
(5) इस धारा के अधीन अिधसूचना भारत की सीमा के बाहर बनाए गए या उत्पािदत और भारत म आयाितत माल को लागू
नह होगी, यिद उस माल की बाबत, सीमाशुल्क आयुक्त का आयात करने के समय समाधान हो गया है िक वे या तो भारत म
वाहनान्तरण के या भारत से होकर अिभवहन के पश्चात् या अन्यथा िनयार्त के िलए आशियत है ।
140. िमथ्या व्यापार िचह्न वाले आयाितत माल की जानकारी की अपेक्षा करने की शिक्त––(1) िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार
िचह्न का स्वत्वधारी या अनुज्ञिप्तधारी सीमाशुल्क कलक्टर को िकसी माल के आयात का पर्ितषेध करने के िलए िलिखत रूप म सूचना
उस दशा म दे सके गा यिद उक्त माल के आयात से धारा 29 की उपधारा (6) के खंड (ग) के अधीन अितलंघन होता है ।
(2) जहां माल, िजनका व्यापार िचह्न के संरक्षण के िलए भारत म आयात िकया जाना, सीमाशुल्क अिधिनयम, 1962
(1962 का 52) की धारा 11 की उपधारा (2) के खंड (ढ) के अधीन के न्दर्ीय सरकार की अिधसूचना ारा पर्ितिष है और जो आयात पर
उस अिधिनयम के अधीन अिधहृत िकए जाने के िलए दायी ह, भारत म आयात िकए जाते ह, वहां सीमाशुल्क आयुक्त, यिद उसे
अभ्यावेदन करने पर उसके पास िवश्वास करने का कारण है िक पिरवािदत व्यापार िचह्न िमथ्या व्यापार िचह्न के रूप म उपयोग
िकया गया है, उस माल के आयातकतार् या उसके अिभकतार् से माल से संबंिधत दस्तावेज जो उसके कब्जे म ह, पेश करने की और उस
व्यिक्त के नाम और पते की जानकारी देने की, िजसने माल भारत को पर्ेिषत िकया था और उस व्यिक्त के नाम और पते की जानकारी
देने की िजसको माल भारत म भेजा गया था, अपेक्षा कर सके गा ।
(3) आयातकतार् या उसका अिभकतार्, चौदह िदन के भीतर यथापूव क्त अपेक्षा का अनुपालन करे गा और यिद वह ऐसा करने
असफल रहेगा तो वह जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, दंडनीय होगा ।
(4) इस धारा के अधीन माल के आयातकतार् या उसके अिभकतार् से अिभपर्ाप्त कोई जानकारी सीमाशुल्क आयुक्त ारा उस
व्यापार िचह्न के , िजसका िमथ्या व्यापार िचह्न के रूप म उपयोग अिभकिथत है, रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोगकतार्
को संसूिचत की जा सके गी ।
141. िविधमान्यता का पर्माणपतर्––यिद अपील बोडर् के समक्ष रिजस्टर के पिरशोधन के िलए िविधक कायर्वाही म पर्ितवाद के
पश्चात् व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता के बारे म िववा क पर िविनश्चय व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी
के पक्ष म िदया गया है तो अपील बोडर् इस पर्भाव का पर्माणपतर् अनुद कर सके गा और यिद ऐसा पर्माणपतर् अनुद िदया जाता है, तो
िकसी पश्चात्वत िविधक कायर्वाही म, िजसम उक्त िविधमान्यता पर्श्नगत होती है, उक्त स्वत्वधारी उस व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण की िविधमान्यता को अपने पक्ष म अिभपुिष्ट करने वाले अंितम आदेश या िनणर्य को अिभपर्ाप्त करने पर, जब तक उक्त
अंितम आदेश या िनणर्य पयार्प्त कारण से अन्यथा िनदेश न दे, िविध-व्यवसायी और मुविक्कल के बीच अपने पूरे खच, पर्भार और
व्यय का हकदार होगा ।
41

142. िविधक कायर्वािहय की िनराधार धमिकयां––(1) जहां कोई व्यिक्त िकसी व्यिक्त को ऐसे व्यापार िचह्न के अितलंघन
के िलए जो रिजस्टर्ीकृ त है या िजसका रिजस्टर्ीकृ त होना पर्थम उिल्लिखत व्यिक्त ारा अिभकिथत है, कोई कारर् वाई या कायर्वाही करने
की या इस पर्कार की िकसी अन्य कायर्वाही करने की धमकी पिरपतर् , िवज्ञापन के माध्यम से या अन्यथा देता है, वहां व्यिथत व्यिक्त,
चाहे धमकी देने वाला व्यिक्त उस व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता हो या न हो, पर्थम उिल्लिखत
व्यिक्त के िवरु वाद ला सके गा और इस पर्भाव की घोषणा अिभपर्ाप्त कर सके गा िक धमिकयां न्यायोिचत नह ह, और धमिकय के
जारी रहने के िवरु व्यादेश पर्ाप्त कर सके गा और ऐसी नुकसानी (यिद कोई हो) वसूल कर सके गा, जो उसने उठाई ह । जब तक पर्थम
उिल्लिखत व्यिक्त न्यायालय का यह समाधान न कर दे िक व्यापार िचह्न रिजस्टर्ीकृ त है और िजन काय की बाबत कायर्वािहयां चलाने
की धमकी दी गई थी उनसे व्यापार िचह्न का अितलंघन हो जाता है या यिद वे िकए जाएंगे तो हो जाएगा ।
(2) अंितम पूवर्गामी धारा उस दशा म लागू नह होती है यिद व्यापार िचह्न का रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी या धारा 52 की
उपधारा (1) के अनुसरण म कायर् करने वाला रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता सम्यक् उ म से उस व्यिक्त के िवरु , िजसको व्यापार िचह्न के
अितलंघन की धमकी दी गई है, कायर्वाही पर्ारं भ करता है और चलाता है ।
(3) इस धारा की कोई बात िकसी िविध-व्यवसायी को या रिजस्टर्ीकृ त ापार िचह्न अिभकतार् को उसके ारा उसकी
व्यवसाियक हैिसयत म मुविक्कल की ओर से िकए गए िकसी कायर् की बाबत इस धारा के अधीन कारर् वाई के िलए दायी नह बनाएगी ।
(4) उपधारा (1) के अधीन कोई वाद िजला न्यायालय से अवर िकसी न्यायालय म संिस्थत नह िकया जाएगा ।
143. तामील के िलए पता––आवेदन या िवरोध की सूचना म किथत तामील के िलए पता, आवेदन या िवरोध की सूचना के
पर्योजनाथर्, यथािस्थित, आवेदक या िवरोधी का पता समझा जाएगा, और आवेदन या िवरोध की सूचना से संबंिधत सभी दस्तावेज,
यथािस्थित, आवेदक या िवरोधी को तामील के िलए पते पर छोड़कर या डाक से भेजकर तामील िकए जा सकगे ।
144. ापार की पर्था पर िवचार िकया जाना, आिद––व्यापार िचह्न से संबंिधत िकसी कायर्वाही म अिधकरण संबंिधत
व्यापार की पर्था और अन्य व्यिक्तय ारा िविधसम्मत उपयोग िकए जाने वाले िकसी सुसंगत व्यापार िचह्न या व्यापार नाम या
सज्जा का सा य गर्हण करे गा ।
145. अिभकतार्––जहां इस अिधिनयम ारा या उसके अधीन, शपथपतर् बनाने से िभन्न कोई कायर्, िकसी व्यिक्त ारा
रिजस्टर्ार के समक्ष िकए जाने की अपेक्षा है, वहां वह कायर्, इस िनिम बनाए गए िनयम के अधीन उस व्यिक्त ारा स्वयं करने के
स्थान पर, िविहत रीित से सम्यक्त: पर्ािधकृ त िकसी व्यिक्त ारा िकया जा सके गा जो––
(क) िविध-व्यवसायी है ; या
(ख) िविहत रीित से व्यापार िचह्न अिभकतार् के रूप म रिजस्टर्ीकृ त व्यिक्त है ; या
(ग) मािलक ारा अनन्यत: और िनयिमत रूप से िनयोिजत व्यिक्त है ।
146. िकसी अिभकतार् या पर्ितिनिध ारा पर्ािधकार के िबना रिजस्टर्ीकृ त िचह्न––यिद िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के
स्वत्वधारी का कोई अिभकतार् या पर्ितिनिध, पर्ािधकार के िबना, िचह्न का उपयोग करता है या अपने नाम म रिजस्टर करने का पर्यत्न
करता है या रिजस्टर कराता है, तो स्वत्वधारी को आवेिदत रिजस्टर्ीकरण का िवरोध करने या उसके र करण या रिजस्टर की पिरशुि
करने का हक होगा िजससे िक उसे उक्त िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी के रूप म उसके पक्ष म समनुदश
े न ारा लाया जा सके :
परन्तु ऐसी कारर् वाई व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी ारा अिभकतार् या पर्ितिनिध के आचरण से अवगत होने के
तीन वषर् के भीतर की जाएगी ।
147. अनुकर्मिणकाएं––रिजस्टर्ार के िनदेशन और पयर्वेक्षण के अधीन––
(क) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न की एक अनुकर्मिणका,
(ख) उन व्यापार िचह्न की एक अनुकर्मिणका िजनकी बाबत रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन लंिबत है,
(ग) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के स्वत्वधािरय के नाम की एक अनुकर्मिणका, और
(घ) रिजस्टर्ीकृ त उपयोक्ता के नाम की एक अनुकर्मिणका रखी जाएगी ।
148. दस्तावेज िजनका सावर्जिनक िनरीक्षण िकया जा सकता है––(1) धारा 49 की उपधारा (4) म जैसा अन्यथा उपबंिधत है
उसके िसवाय––
(क) रिजस्टर का और िकसी दस्तावेज का िजस पर रिजस्टर की कोई पर्िविष्ट आधािरत है ;
(ख) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िवरोध की पर्त्येक सूचना का, रिजस्टर्ार के समक्ष पिरशोधन के िलए आवेदन
का, उसके पर्ित कथन का और रिजस्टर्ार के समक्ष िकन्ह कायर्वािहय म पक्षकार ारा फाइल िकए गए िकसी शपथपतर् या
दस्तावेज का ;
42

(ग) धारा 63 या धारा 74 के अधीन जमा िकए गए सब िविनयम का, और ऐसे िविनयम म फे रफार करने के िलए
धारा 66 या धारा 77 के अधीन सभी आवेदन का ;
(घ) धारा 147 म उिल्लिखत अनुकर्मिणका का ; और
(ङ) ऐसे अन्य दस्तावेज का, जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िविनिदष्ट करे ,
ऐसी शत के अधीन, जो िविहत की जाएं, व्यापार िचह्न रिजस्टर्ी म सावर्जिनक िनरीक्षण िकया जाएगा :
परन्तु जहां कम्प्यूटर म ऐसा रिजस्टर पूणर्त: या अंशत: रखा जाता है वहां इस धारा के अधीन ऐसे रिजस्टर का िनरीक्षण
कम्प्यूटर म इस पर्कार रखे रिजस्टर की सुसंगत पर्िविष्ट की कम्प्यूटर मुिदर्त पर्ित से िकया जाएगा ।
(2) कोई भी व्यिक्त, रिजस्टर्ार को आवेदन देने पर, और ऐसी फीस का संदाय करने पर, जो िविहत की जाए, उपधारा (1) म
िनिदष्ट रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट या िकसी दस्तावेज की पर्मािणत पर्ित अिभपर्ाप्त कर सके गा ।
149. रिजस्टर्ार की िरपोट का संसद् के समक्ष रखा जाना––के न्दर्ीय सरकार, रिजस्टर्ार ारा या उसके अधीन इस अिधिनयम
के िनष्पादन के संबंध म एक िरपोटर् वषर् म एक बार संसद् के दोन सदन के समक्ष रखवाएगी ।
150. फीस और अिधभार––(1) इस अिधिनयम के अधीन 1 [आवेदन , अंतरराष्टर्ीय आवेदन ] और रिजस्टर्ीकरण तथा अन्य
बात की बाबत ऐसी फीस और अिधभार संद िकए जाएंगे जो के न्दर्ीय सरकार िविहत करे ।
(2) जहां रिजस्टर्ार ारा कोई कायर् करने की बाबत कोई फीस संदय
े है, वहां जब तक फीस संद नह की जाए, रिजस्टर्ार वह
कायर् नह करे गा ।
(3) जहां ापार िचह्न रिजस्टर्ी म िकसी दस्तावेज के फाइल करने की बाबत कोई फीस संदय
े है, वहां जब तक फीस संद
नह की जाए, दस्तावेज रिजस्टर्ी म फाइल िकया गया नह समझा जाएगा ।
151. अध्याय 12 के कितपय िवषय की बाबत व्यावृि ––अध्याय 12 की िकसी बात म––
(क) िकसी व्यिक्त को िकसी वाद या अन्य कायर्वाही से छू ट नह िमलेगी जो, यिद उस अध्याय म ऐसी कोई बात न
होती तो उसके िवरु लाई जा सकती थी ; या
(ख) िकसी व्यिक्त को यह हक नह होगा िक वह िकसी वाद या अन्य कायर्वाही म पूणर् पर्कटीकरण करने या िकसी
पर्श्न या पिरपर्श्न का उ र देने से इं कार कर दे, िकतु ऐसा पर्कटीकरण या उ र इस अध्याय के अधीन या सीमाशुल्क
अिधिनयम, 1962 (1962 का 52) की धारा 112 के खंड (ज) के संबंध म, जो उस अिधिनयम की धारा 111 के खंड (घ) के
अधीन माल के अिधहरण से संबंिधत है और माल के आयात से संबंिधत व्यापार िचह्न के संरक्षण के िलए उसकी धारा 11 की
उपधारा (2) के खंड (ढ) के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूिचत है, िकसी अपराध के िलए िकसी अिभयोजन म ऐसे
व्यिक्त के िवरु सा य म गर्ा नह होगा ; या
(ग) यह अथर् नह लगाया जाएगा िक भारत म िनवासी मािलक का कोई सेवक, िजसने ऐसे मािलक के अनुदशे के
पालन म स ावपूवर्क कायर् िकया है और अिभयोजन ारा या उसकी ओर से मांग की जाने पर अपने मािलक के संबध
ं म और
उन अनुदश े के संबंध म, जो उसे अपने मािलक से िमले थे, पूरी जानकारी दे दी है, उससे िकसी अिभयोजन या दंड के
दाियत्वाधीन हो जाए ।
152. व्यापार िचह्न के स्वािमत्व के संबध ं म घोषणा का रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1908 के अधीन रिजस्टर्ीकरण न
होना––रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1908 (1908 का 16) म िकसी बात के होते हुए भी, रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न से िभन्न िकसी
व्यापार िचह्न पर िकसी व्यिक्त के स्वािमत्व या हक को घोिषत करने वाले, या घोिषत करना तात्पियत करने वाले िकसी दस्तावेज को
उस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाएगा ।
153. सरकार का आब होना––इस अिधिनयम के उपबंध सरकार पर आब कर ह गे ।
154. अिभसमय देश के नागिरक से रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन से संबिं धत िवशेष उपबंध––(1) भारत के बाहर िकसी
देश या ऐसे देश के , जो देश के समूह या देश के संघ, अन्तर-शासनात्मक संगठन का सदस्य है, साथ जो भारत के नागिरक को उसी
पर्कार के िवशेषािधकार देता है जैसे उसके अपने नागिरक को अनुद िकए जाते ह, िकसी संिध, अिभसमय या ठहराव की पूित की
दृिष्ट से के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, ऐसे देश या देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन को इस
अिधिनयम के पर्योजन के िलए, यथािस्थित, अिभसमय देश, देश का समूह या देश का संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन घोिषत
कर सके गी ।
(2) जहां िकसी व्यिक्त ने िकसी अिभसमय देश या ऐसे देश म, जो देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक
संगठन का सदस्य है, व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन िकया है और वह व्यिक्त, या उसका िविधक पर्ितिनिध या

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 8 ारा पर्ितस्थािपत ।
43

समनुदिे शती, उस तारीख के पश्चात् िजसको उस अिभसमय देश या ऐसा देश, जो देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक
संगठन का सदस्य है, म आवेदन िदया गया था, छह मास के भीतर भारत म व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करता है,
वहां यिद वह व्यापार िचह्न इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर िकया जाता है तो वह उस तारीख से रिजस्टर िकया जाएगा िजस
तारीख को अिभसमय देश या ऐसे देश जो देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन का सदस्य है, म आवेदन िकया
गया था और इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए वह तारीख रिजस्टर्ीकरण की तारीख समझी जाएगी ।
(3) जहां व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन दो या अिधक अिभसमय देश म या ऐसे देश म जो देश के समूह या
देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन के सदस्य ह, िकए जाते ह, इससे ठीक पहले की उपधारा म िनिदष्ट छह मास की अविध की
गणना उस तारीख से की जाएगी िजसको उन आवेदन म से पहला या सबसे पहला आवेदन िकया गया था ।
(4) इस अिधिनयम की कोई भी बात िकसी व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी को, ऐसे अितलंघन के िलए नुकसानी वसूल करने का
हकदार नह बनाएगी जो इस अिधिनयम के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन की तारीख के पूवर् हुई हो ।
155. व्यितकािरता के िलए उपबंध––जहां के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम राजपतर् म अिधसूचना ारा िविनिदष्ट कोई देश
या ऐसा देश जो देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन का सदस्य है, भारत के नागिरक को व्यापार िचह्न के
रिजस्टर्ीकरण और संरक्षण की बाबत वही अिधकार नह देता है जो वह अपने रािष्टर्क को देता है, वहां, यथािस्थित, ऐसे देश या ऐसा
देश जो देश के समूह या देश के संघ या अन्तर-शासनात्मक संगठन का सदस्य है, का कोई रािष्टर्क या तो अके ले ही या िकसी अन्य
व्यिक्त से संयुक्तत:––
(क) व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करने के िलए, या उसके स्वत्वधारी के रूप म रिजस्टर्ीकरण
होने के िलए ;
(ख) रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी के समनुदिे शती के रूप म रिजस्टर्ीकृ त होने के िलए ; या
(ग) धारा 49 के अधीन व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त उपयोगकतार् के रूप म रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करने के
िलए या रिजस्टर्ीकृ त होने के िलए,
हकदार नह होगा ।
156. किठनाइय को दूर करने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त––(1) यिद इस अिधिनयम के उपबंध को पर्भावी करने म कोई
किठनाई उत्पन्न होती है, तो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म पर्कािशत आदेश ारा, ऐसे उपबंध कर सके गी, जो इस अिधिनयम के उपबंध
से असंगत न ह और जो किठनाई को दूर करने के िलए आवश्यक पर्तीत हो :
परं तु इस धारा के अधीन कोई भी आदेश, इस अिधिनयम के पर्ारं भ से पांच वषर् की समािप्त के पश्चात् नह िकया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया पर्त्येक आदेश िकए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष रखा
जाएगा ।
157. िनयम बनाने की शिक्त––(1) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा और पूवर् पर्काशन की शत के अधीन रहते
हुए, इस अिधिनयम के उपबंध को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम म िनम्निलिखत सभी या
िकन्ह िवषय के िलए उपबन्ध िकया जा सके गा, अथार्त् :––
(i) वे िवषय जो धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन व्यापार िचह्न रिजस्टर म सिम्मिलत िकए जाएंगे और उस
धारा की उपधारा (2) के अधीन कम्प्यूटर फ्लािपय या िडस्के ट म या अन्य इलेक्टर्ािनक पर्रूप म अिभलेख रखने म पालन
िकए जाने वाले रक्षोपाय ;
(ii) धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन माल और सेवा के वग करण की वणार्नुकर्म अनुकर्मिणका के पर्काशन
की रीित ;
(iii) वह रीित िजसम रिजस्टर्ार धारा 13 के अधीन िकसी शब्द को अन्तरराष्टर्ीय अस्वत्वधारी नाम के रूप म
अिधसूिचत कर सके गा ;
(iv) धारा 16 की उपधारा (5) के अधीन िकसी संगम के िवघटन के िलए आवेदन करने की रीित ;
(v) धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन करने की रीित ;
(vi) धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन रिजस्टर्ीकरण के िलए आवेदन के िवज्ञापन की रीित और उपधारा (2) के
अधीन शुि य या संशोधन को अिधसूिचत करने की रीित ;
44

[(vii) धारा 21 की उपधारा (1) के अधीन िवरोध की सूचना देने की रीित और ऐसी सूचना के िलए संदय
1
े फीस
तथा उपधारा (2) के अधीन पर्ितकथन भेजने और उपधारा (4) के अधीन सा य पर्स्तुत करने की रीित और उसके िलए
समय ;]
(viii) धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन रिजस्टर्ीकरण पर्माणपतर् का पर्रूप और उपधारा (3) के अधीन आवेदक
को सूचना देने की रीित ;
(ix) धारा 25 के अधीन नवीकरण और पर्त्यावतर्न के िलए आवेदन का पर्ारूप, वह समय िजसके भीतर ऐसा
आवेदन िकया जाएगा और ऐसे पर्त्येक आवेदन के साथ देय फीस और अिधभार, यिद कोई हो, और वह समय िजसके भीतर
रिजस्टर्ार उस धारा की उपधारा (3) के अधीन सूचना भेजेगा और ऐसी सूचना की रीित ;
[(ixक) वह समय, िजसके भीतर अन्तरराष्टर्ीय आवेदन अन्तरराष्टर्ीय ब्यूरो को अगर्ेिषत िकया जाना है और धारा
2

36घ की उपधारा (4) के अधीन रिजस्टर्ार ारा िविशिष्टय को पर्मािणत करने की रीित ;
(ixख) धारा 36ङ की उपधारा (1) के अधीन अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण की िविशिष्टय का अिभलेख रखने
की रीित ;
(ixग) धारा 36ङ की उपधारा (2) के अधीन अंतरराष्टर्ीय ब्यूरो को सूचना देने की रीित ;
(ixघ) अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्ीकरण के िवज्ञापन की रीित और वह समय, िजसके भीतर अंतरराष्टर्ीय रिजस्टर्कीरण
धारा 36ङ की उपधारा (3) के अधीन िवज्ञािपत िकया जाएगा ;]
(x) धारा 40 की उपधारा (2) के अधीन मामल के िववरण पर्स्तुत करने की रीित ;
(xi) धारा 41 के अधीन िकसी व्यापार िचह्न के स्वत्वधारी ारा आवेदन करने की रीित ;
(xii) धारा 43 के अधीन पर्माणीकरण व्यापार िचह्न के समनुदश
े न या पारे षण के िलए आवेदन करने की रीित ;
(xiii) धारा 45 की उपधारा (1) के अधीन हक रिजस्टर कराने के िलए रिजस्टर्ार को आवेदन की रीित ;
[(xiiiक) वह अविध, िजसके भीतर रिजस्टर्ार धारा 45 की उपधारा (3) के अधीन आवेदन का िनपटारा करे गा ;]
2

(xiv) वह रीित िजसम और वह अविध िजसके भीतर धारा 46 की उपधारा (4) के अधीन आवेदन िकया जाएगा ;
(xv) धारा 47 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने की रीित ;
(xvi) धारा 49 की उपधारा (1) के अधीन ऐसा आवेदन करने की रीित, वे दस्तावेज और अन्य सा य जो ऐसे
आवेदन के साथ ह गे, और वह रीित िजसम उपधारा (3) के अधीन सूचना जारी की जाएगी ;
(xvii) धारा 50 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित, उपधारा (2) के अधीन सूचना जारी की रीित
और उपधारा (3) के अधीन रिजस्टर्ीकरण र करने की पर्िकर्या ;
(xviii) धारा 57 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने की रीित, उपधारा (4) के अधीन
सूचना देने की रीित और उपधारा (5) के अधीन पिरशुि की सूचना की तामील करने की रीित ;
(xix) धारा 58 के अधीन आवेदन करने की रीित ;
(xx) धारा 59 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित, आवेदन के िवज्ञापन की रीित, ऐसी सूचना का
समय और रीित िजसके ारा आवेदन का उपधारा (2) और उपधारा (3) के अधीन िवरोध िकया जा सके गा ;
(xxi) धारा 60 की उपधारा (2) के अधीन िवज्ञापन की रीित ;
(xxii) धारा 63 की उपधारा (2) के अधीन िविनयम म िविनिदष्ट िकए जाने वाले अन्य िवषय ;
(xxiii) धारा 71 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित ;
(xxiv) धारा 73 के अधीन आवेदन के िवज्ञापन की रीित ;
(xxv) धारा 77 के अधीन आवेदन करने की रीित ;
3
* * * * * *

1
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 9 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 9 ारा अंत:स्थािपत ।
3
2010 के अिधिनयम सं० 40 की धारा 9 ारा लोप िकया गया ।
45

(xxix) धारा 88 की उपधारा (1) के अधीन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य को संदय
े वेतन और भ े तथा
उनकी सेवा के अन्य िनबंधन और शत ;
(xxx) धारा 89 की उपधारा (3) के अधीन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य के कदाचार या असमथर्ता के
अन्वेषण की पर्िकर्या ;
(xxxi) धारा 90 की उपधारा (2) अधीन अपील बोडर् के अिधकािरय और अन्य कमर्चािरय के वेतन और भ े तथा
उनकी सेवा की अन्य शत तथा वह रीित िजसम अपील बोडर् के अिधकारी और अन्य कमर्चारी धारा 90 की उपधारा (3) के
अधीन अपने कृ त्य का िनवर्हन करगे ;
(xxxii) धारा 91 की उपधारा (3) के अधीन अपील करने का पर्रूप, सत्यापन की रीित और संदय
े फीस ;
(xxxiii) वह पर्रूप िजसम और वे िविशिष्टयां जो धारा 97 की उपधारा (1) के अधीन अपील बोडर् को आवेदन
करने म सिम्मिलत की जाएंगी ।
(xxxiv) धारा 127 के खंड (ग) के अधीन पुनिवलोकन के िलए आवेदन करने की रीित ;
(xxxv) वह समय िजसके भीतर धारा 128 के अधीन रिजस्टर्ार को अपने िववेकािधकार का पर्योग करने के िलए
आवेदन िकया जाएगा ;
(xxxvi) धारा 131 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित और उसके िलए संदय
े फीस ;
(xxxvii) धारा 133 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीित और उपधारा (2) के अधीन ऐसे आवेदन के
वापस िलए जाने की अविध ;
(xxxviii) धारा 145 के अधीन कायर् को करने के िलए िकसी व्यिक्त को पर्ािधकृ त करने की रीित और व्यापार
िचह्न अिभकतार् के रूप म रिजस्टर्ीकरण की रीित ;
(xxxix) धारा 148 की उपधारा (1) के अधीन दस्तावेज के िनरीक्षण के िलए शत और उसकी उपधारा (2) के
अधीन रिजस्टर म िकसी पर्िविष्ट की पर्मािणत पर्ित अिभपर्ाप्त करने के िलए संदय
े फीस ;
(xl) धारा 150 के अधीन आवेदन करने तथा रिजस्टर्ीकरण और अन्य मामल के िलए संदय
े फीस और अिधभार ;
(xli) कोई अन्य िवषय जो िविहत िकया जाना है या िकया जाए ।
(3) इस धारा ारा पर्द िनयम बनाने की शिक्त के अंतगर्त उपधारा (2) के खंड (xxix) और खंड (xxxi) म िनिदष्ट िवषय
की बाबत उस तारीख से भूतलक्षी पर्भाव देने की शिक्त भी है, जो इस अिधिनयम के पर्ारं भ की तारीख से पूवर्वत नह होगी, िकन्तु ऐसे
िकसी िनयम को इस रूप म भूतलक्षी पर्भाव नह िदया जाएगा, िजससे ऐसे िकसी व्यिक्त के , िजसको ऐसा उपिनयम लागू होता हो,
िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव पड़ता हो ।
(4) इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष,
जब वह सतर् म हो, कु ल तीन िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी
हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत
जो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा िकन्तु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव
होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
158. संशोधन––अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट अिधिनयिमितयां उसम िविनिदष्ट रीित से संशोिधत की जाएंगी ।
159. िनरसन और व्यावृि यां––(1) व्यापार और पण्य-वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) िनरिसत िकया
जाता है ।
(2) िनरसन की बाबत साधारण खंड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) के उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, व्यापार
और पण्य-वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) के अधीन िनकाली गई अिधसूचना, बनाया गया िनयम, िकया गया आदेश, की
गई अपेक्षा, िकया गया रिजस्टर्ीकरण, िदया गया पर्माणपतर्, दी गई सूचना, िकया गया िविनश्चय, िकया गया अवधारण, िदया गया
िनदेश, अनुमोदन, पर्ािधकार, दी गई सम्मित, िकया गया आवेदन, की गई पर्ाथर्ना या बात यिद इस अिधिनयम के पर्ारं भ म पर्वृ है तो,
वह पर्वृ बनी रहेगी और इस पर्कार पर्भावी होगी मानो वह इस अिधिनयम के तत्स्थानी उपबंध के अधीन िनकाली गई, बनाया गया,
िकया गया, की गई, िदया गया या दी गई है ।
(3) इस अिधिनयम के उपबंध, इस अिधिनयम के पर्ारं भ के समय लंिबत व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकरण के िलए िकसी
आवेदन को और उस पर िकसी पािरणािमक कायर्वाही को और उसके अनुसरण म अनुद िकसी रिजस्टर्ीकरण को लागू ह गे ।
46

(4) धारा 100 के उपबंध के अधीन रहते हुए और इस अिधिनयम के िकसी अन्य उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, इस
अिधिनयम के पर्ारं भ पर िकसी न्यायालय म लंिबत कोई िविधक कायर्वाही उस न्यायालय म जारी रखी जाएगी मानो यह अिधिनयम
पािरत न हुआ हो ।
(5) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न का िविशष्ट उपयोग, इस
अिधिनयम के पर्ारं भ के पूवर् रिजस्टर्ीकृ त िकसी व्यापार िचह्न का अितलंघन नह है, वहां उस िचह्न का सतत उपयोग इस अिधिनयम
के अधीन अितलंघन नह होगा ।
(6) उपधारा (2) म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी ऐसे व्यापार िचह्न के , जो इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के पूवर् रिजस्टर्ीकृ त
है, रिजस्टर्ीकरण के अवसान की तारीख, सात वषर् की अविध के ठीक बाद की वह तारीख होगी, िजसके िलए इसे रिजस्टर्ीकृ त या
नवीकृ त िकया गया था :
परन्तु व्यापार और पुण्य-वस्तु िचह्न अिधिनयम, 1958 (1958 का 43) की धारा 47 म िनिदष्ट पर्ितरक्षात्मक व्यापार िचह्न
का रिजस्टर्ीकरण ऐसे पर्ारम्भ के पांच वषर् की समािप्त के ठीक बाद की या उस अविध की समािप्त के ठीक बाद की, िजसके िलए इसे
रिजस्टर्ीकृ त या नवीकृ त िकया गया था, इनम से जो भी पहले हो, तारीख को पर्भावी नह रहेगा ।
47

अनुसूची
(धारा 158 देिखए)

संशोधन

वषर् अिधिनयम संिक्षप्त नाम संशोधन


संख्यांक
1956 1 कं पनी अिधिनयम, 1956 (I) धारा 20 की उपधारा (2) के स्थान पर िनम्निलिखत उपधाराएं रखी
जाएंगी, अथार्त् :––
“(2) पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना यह है
िक उस नाम की बाबत––
(i) जो उसके समान है या उस नाम से अितसदृश है, िजस नाम
से िव मान कोई कं पनी पहले से रिजस्टर्ीकृ त रही है, या
(ii) जो व्यापार िचह्न अिधिनयम, 1999 के अधीन िकसी अन्य
व्यिक्त के िकसी रिजस्टर्ीकृ त व्यापार िचह्न के या िकसी ऐसे व्यापार
िचह्न के जो रिजस्टर्ीकरण के िलए िकसी आवेदन का िवषय है,
समान है या उससे अितसदृश है,
के न्दर्ीय सरकार ारा यह समझा जा सके गा िक वह उपधारा (1) के अथर् के
भीतर अवांछनीय है ।

(3) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (2) के खंड (ii) के अधीन आने वाले िकसी
नाम को अवांछनीय समझे जाने के पूवर् व्यापार िचह्न रिजस्टर्ार से परामशर् कर
सके गी ।” ।
(II) धारा 22 म,––
(i) उपधारा (1) म, “यिद कोई कं पनी” से पर्ारम्भ होने वाले और
“पर्थम विणत कं पनी” पर समाप्त होने वाले भाग के स्थान पर िनम्निलिखत
रखा जाएगा, अथार्त् :––
“यिद कोई कं पनी अपने पर्थम रिजस्टर्ीकरण पर या अपने नए
नाम के रिजस्टर्ीकरण पर उस नाम से अनवधानता से या अन्यथा
रिजस्टर्ीकृ त की जाती है, जो,––
(i) के न्दर्ीय सरकार की राय म, या तो वही नाम है या
उस नाम से अितसदृश है जो ऐसी िव मान कं पनी का है जो
चाहे इस अिधिनयम के अधीन या िकसी अन्य पूवर् कं पनी
िविध के अधीन पहले रिजस्टर्ीकृ त की गई है, तो पर्थमविणत
कं पनी ; या
(ii) िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त स्वत्वधारी
ारा आवेदन पर, के न्दर्ीय सरकार की राय म, व्यापार िचह्न
अिधिनयम, 1999 के अधीन ऐसे स्वत्वधारी के रिजस्टर्ीकृ त
व्यापार िचह्न के समान है या उससे अितसदृश है, तो ऐसी
कं पनी” ;
(ii) उपधारा (1) म िनम्निलिखत परन्तुक जोड़ा जाएगा, अथार्त् :––

“परन्तु खंड (ii) के अधीन िकसी व्यापार िचह्न के रिजस्टर्ीकृ त


स्वत्वधारी ारा कं पनी के रिजस्टर्ीकरण की सूचना होने के पांच वषर् के
पश्चात् िकए गए आवेदन पर के न्दर्ीय सरकार ारा िवचार नह िकया
जाएगा ।” ।
______

You might also like