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पिरसीमा अिधिनयम, 1963

(1963 का अिधिनयम संख्यांक 36)


[5 अक्तूबर, 1963]
वाद और अन्य कायर्वािहय की पिरसीमा और तत्सम्पृक्त पर्योजन से
सम्बिन्धत िविध का समेकन और संशोधन
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के चौदहव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
भाग 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ––(1) यह अिधिनयम पिरसीमा अिधिनयम, 1963 कहा जा सके गा ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय सम्पूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख 1 को पर्वृ होगा िजसे के न्दर्ीय सरकार, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं––इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो––
(क) “आवेदक” के अन्तगर्त आता है––
(i) अज दार ;
(ii) वह व्यिक्त, िजससे या िजसके माध्यम से आवेदक आवेदन करने का अपना अिधकार व्युत्पन्न
करता है ;
(iii) वह व्यिक्त िजसकी सम्पदा का पर्ितिनिधत्व आवेदक ारा िनष्पादक, पर्शासक या अन्य पर्ितिनिध के
तौर पर िकया जाता है ;
(ख) “आवेदन” के अन्तगर्त अज आती है ;
(ग) “िविनमय पतर्” के अन्तगर्त हुण्डी और चेक आते ह ;
(घ) “बन्धपतर्” के अन्तगर्त ऐसी कोई िलखत आती है िजसके ारा कोई व्यिक्त िकसी अन्य को धन देने के िलए
अपने को इस शतर् पर बाध्यता के अधीन कर लेता है िक यिद कोई िविनिदष्ट कायर् िकया जाए या न िकया जाए, जैसी भी
िस्थित हो, तो वह बाध्यता शून्य हो जाएगी ;
(ङ) “पर्ितवादी” के अन्तगर्त आता है––
(i) वह व्यिक्त िजससे या िजसके माध्यम से पर्ितवादी यह दाियत्व व्युत्पन्न करता है िक उस पर वाद
लाया जा सके ;
(ii) वह व्यिक्त िजसकी सम्पदा का पर्ितिनिधत्व पर्ितवादी ारा िनष्पादक, पर्शासक या अन्य पर्ितिनिध
के रूप म िकया जाता है ;
(च) “सुखाचार” के अन्तगर्त आता है संिवदा से उद्भूत न होने वाला ऐसा अिधकार िजसके ारा कोई व्यिक्त िकसी
अन्य की मृदा के िकसी भाग को या िकसी अन्य की भूिम म उगी हुई या उससे संलग्न या उस पर अिस्तत्ववान् िकसी चीज को
हटाने और अपने लाभ के िलए िविनयोिजत करने का हकदार होता है ;
(छ) “िवदेश” से अिभपर्ेत है भारत से िभन्न कोई भी देश ;
(ज) “सद्भाव”––कोई भी बात, जो सम्यक् सतकर् ता और ध्यान से नह की गई है सद्भावपूवर्क की गई नह समझी
जाएगी ;

1
1 जनवरी, 1964, अिधसूचना सं० का०आ० 3118, तारीख 29-10-1963 ारा, देिखए भारत का राजपतर्, भाग 2, अनुभाग 3 (ii), पृ० 3918. 1977 के पिश्चम बंगाल
अिधिनयम सं० 18 ारा पिश्चम बंगाल म संशोधन िकया गया ।
यह अिधिनयम 1-9-1984 से िसिक्कम राज्य म पर्वृ हुआ । देिखए अिधसूचना सं० का०आ० 647 (ग), तारीख 24-8-1984, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खंड 3 (ii) ।
2

(झ) “वादी” के अन्तगर्त आता है––


(i) वह व्यिक्त िजससे या िजसके माध्यम से वादी वाद लाने का अपना अिधकार व्युत्पन्न करता है ;
(ii) वह व्यिक्त िजसको सम्पदा का पर्ितिनिधत्व वादी ारा िनष्पादक, पर्शासक या अन्य पर्ितिनिध के
रूप म िकया जाता है ;
(ञ) “पिरसीमा काल” से वह पिरसीमा काल अिभपर्ेत है, जो िकसी वाद, अपील या आवेदन के िलए अनुसच
ू ी ारा
िविहत है और “िविहत काल” से वह पिरसीमा काल अिभपर्ेत है जो उस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार संगिणत पिरसीमा
काल हो;
(ट) “वचनपतर्” से ऐसी िलखत अिभपर्ेत है िजसके ारा उसका रचियता िकसी अन्य को धन की कोई िविनिदष्ट
रािश उसम पिरसीिमत समय पर या मांग की जाने पर या दशर्न पर देने के िलए आत्यिन्तकत: वचनब होता है ;
(ठ) “वाद” के अन्तगर्त अपील या आवेदन नह आता है ;
(ड) “अपकृ त्य” से ऐसा िसिवल दोष अिभपर्ेत है जो के वल संिवदा भंग या न्यासभंग न हो ;
(ढ) “न्यासी” के अन्तगर्त बेनामीदार, बंधक की तुिष्ट हो जाने के पश्चात् कब्जे म बना रहने वाला बंधकदार या हक
के िबना सदोष कब्जा रखने वाला व्यिक्त नह आता ।
भाग 2

वाद , अपील और आवेदन की पिरसीमा


3. पिरसीमा ारा वजर्न––(1) धारा 4 से 24 तक (िजनके अन्तगर्त ये दोन धाराएं आती ह), अन्तिवष्ट उपबंध के अध्यधीन
यह है िक िविहत काल के पश्चात् हर संिस्थत वाद, की गई अपील और िकया गया आवेदन खािरज कर िदया जाएगा य िप पर्ितरक्षा के
तौर पर पिरसीमा की बात उठाई न गई हो ।
(2) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए यह है िक––
(क) वाद की संिस्थित,––
(i) मामूली दशा म तब होती है, जब वादपतर् उिचत आिफसर के समक्ष उपिस्थत िकया जाता है ;
(ii) अिकचन की दशा म तब होती है, जब अिकचन के तौर पर वाद लाने की इजाजत के िलए उसके ारा
आवदेन िकया जाता है ; तथा
(iii) उस कम्पनी के िवरु दावे की दशा म िजसका न्यायालय ारा पिरसमापन िकया जा रहा हो तब
होती है जब दावेदार के दावे का पिरदान शासकीय समापक को पहली बार कािरत िकया जाता है ;
(ख) मुजरा या पर्ितदावे के तौर का दावा एक पृथक् वाद माना जाएगा, और यह समझा जाएगा िक ऐसा दावा––
(i) मुजरे की दशा म, उसी तारीख को, िजसको वह वाद संिस्थत िकया गया हो िजसम मुजरे का
अिभवचन िकया गया है ;
(ii) पर्ितदावे की दशा म उस तारीख को िजसको न्यायालय म पर्ितदावा िकया गया हो,
संिस्थत िकया गया समझा जाएगा ;
(ग) उच्च न्यायालय म पर्स्ताव की सूचना ारा आवेदन तब होता है, जब आवेदन उस न्यायालय के िलए उिचत
आिफसर के समक्ष उपिस्थत िकया जाता है ।
4. िविहत काल का अवसान जब न्यायालय बन्द हो––जहां िक िकसी वाद, अपील या आवेदन के िलए िविहत काल का
अवसान िकसी ऐसे िदन होता हो िजस िदन न्यायालय बंद हो, वहां उस िदन वाद संिस्थत िकया जा सके गा, अपील की जा सके गी या
आवेदन िकया जा सके गा िजस िदन न्यायालय िफर खुले ।
स्पष्टीकरण––न्यायालय इस धारा के अथर् के भीतर उस िदन बन्द समझा जाएगा िजस िदन वह अपने काम के िनयिमत काल
के िकसी भी भाग म बन्द रहे ।
5. िविहत काल का कितपय दशा म िवस्तारण––कोई भी अपील या कोई भी आवेदन, जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908
(1908 का 5) के आदेश 21 के उपबंध म से िकसी के अधीन के आवेदन से िभन्न हो, िविहत काल के पश्चात् गर्हण िकया जा सके गा यिद
अपीलाथ या आवेदक, न्यायालय का यह समाधान कर दे िक उसके पास ऐसे काल के भीतर अपील या आवेदन न करने के िलए पयार्प्त
हेतुक था ।
3

स्पष्टीकरण––यह तथ्य िक अपीलाथ या आवेदक िविहत काल का अिभिनश्चय या संगणना करने म उच्च न्यायालय के
िकसी आदेश, प ित या िनणर्य के कारण भुलावे म पड़ गया था, इस धारा के अथर् के भीतर पयार्प्त हेतुक हो सके गा ।
6. िविधक िनय ग्यता––(1) जहां िक कोई ऐसा व्यिक्त, िजसे वाद संिस्थत करने का या िकसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए
आवेदन करने का हक हो, उस समय, जब से िविहत काल की गणना की जानी है, अपर्ाप्तव्य या पागल या जड़ हो, वहां उस िनय ग्यता
का अन्त होने के पश्चात् वह उतने ही काल के भीतर वाद संिस्थत या आवेदन कर सके गा िजतना उसे अन्यथा अनुसूची के तीसरे स्तम्भ
म तद्थर् िविनिदष्ट समय से अनुज्ञात होता ।
(2) जहां िक ऐसा व्यिक्त, उस समय, जब से िविहत काल की गणना की जानी है, ऐसी दो िनय ग्यता से गर्स्त हो अथवा
जहां िक वह अपनी िनय ग्यता का अन्त होने के पूवर् िकसी दूसरी िनयोग्यता से गर्स्त हो जाए वहां वह दोन िनय ग्यता का अन्त होने
के पश्चात् उतने ही काल के भीतर वाद संिस्थत या आवेदन कर सके गा िजतना अन्यथा ऐसे िविनिदष्ट समय से अनुज्ञात होता ।
(3) जहां िक िनय ग्यता उस व्यिक्त की मृत्यु तक बनी रहे वहां उसका िविधक पर्ितिनिध उसकी मृत्यु के पश्चात् उतने ही
काल के भीतर वाद संिस्थत या आवेदन कर सके गा िजतना उसे अन्यथा ऐसे िविनिदष्ट समय से अनुज्ञात होता ।
(4) जहां िक उपधारा (3) म िनिदष्ट िविधक पर्ितिनिध िजस व्यिक्त का वह पर्ितिनिधत्व करता है, उसकी मृत्यु की तारीख
को ऐसी िकसी िनयोग्यता से गर्स्त हो वहां उपधारा (1) और (2) म अन्तिवष्ट िनयम लागू ह गे ।
(5) जहां िक िनय ग्यता के अधीन कोई व्यिक्त िनय ग्यता का अन्त हो जाने के पश्चात् िकन्तु उस काल के भीतर, जो उसके
िलए इस धारा के अधीन अनुज्ञात है, मर जाए वहां उसका िविधक पर्ितिनिध उसकी मृत्यु के पश्चात् उसी काल के भीतर वाद संिस्थत
या आवेदन कर सके गा िजतना उस व्यिक्त को अन्यथा उपलब्ध होता यिद उसकी मृत्यु न हुई होती ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए “अपर्ाप्तवय” के अन्तगर्त गभर्स्थ अपत्य आता है ।
7. कई व्यिक्तय म से एक की िनय ग्यता––जहां िक वाद संिस्थत करने या िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन करने के िलए
संयुक्तत: हकदार व्यिक्तय म से कोई एक ऐसी िकसी िनय ग्यता के अधीन हो और उस व्यिक्त की सहमित के िबना उन्मोचन िदया जा
सकता हो, वहां उन सबके िवरु समय का चलना आरम्भ हो जाएगा, िकन्तु जहां िक ऐसा उन्मोचन न िदया जा सकता हो वहां उनम से
िकसी के भी िवरु तब तक समय का चलना आरम्भ न होगा जब तक उनम से कोई एक अन्य की सहमित के िबना ऐसा उन्मोचन देने
के िलए समथर् न हो जाए या उस िनय ग्यता का अन्त हो जाए ।
स्पष्टीकरण 1––यह धारा हर पर्कार के दाियत्व से, िजसके अन्तगर्त स्थावर सम्पि संबंधी दाियत्व आता है, उन्मोचन को
लागू होती है ।
स्पष्टीकरण 2––िमताक्षरा िविध ारा शािसत िहन्दू अिवभक्त कु टु म्ब का कतार् कु टु म्ब के अन्य सदस्य की सहमित के िबना
इस धारा के पर्योजन के िलए उन्मोचन देने के िलए समथर् के वल तब समझा जाएगा जबिक वह अिवभक्त कु टु म्ब की सम्पि का पर्बंध
करता हो ।
8. िवशेष अपवाद––धारा 6 या धारा 7 की कोई भी बात शुफा अिधकार को पर्वितत कराने के वाद को लागू नह होती और
न िकसी वाद अथवा आवेदन के पिरसीमा काल को िनय ग्यता के अन्त से या उससे गर्स्त व्यिक्त की मृत्यु से तीन वषर् से अिधक
िवस्तािरत करने वाली समझी जाएगी ।
9. समय का िनरन्तर चलते रहना––जहां िक एक बार समय का चलना पर्ारं भ हो जाए वहां वाद संिस्थत करने या आवेदन
करने की िकसी भी पािश्चक िनय ग्यता या अयोग्यता वे वह नह रुकता :
परन्तु जहां िक िकसी लेनदार की संपदा का पर्शासन-पतर् उसके ऋणी को अनुद कर िदया गया हो वहां ऐसे ऋण को वसूल
करने के बाद के पिरसीमा काल का चलते रहना तब तक िनलिम्बत रहेगा जब तक वह पर्शासन चलता रहे ।
10. न्यािसय तथा उनके पर्ितिनिधय के िवरु वाद––इस अिधिनयम के पूवर्गामी उपबंध म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते
भी, िकसी ऐसे व्यिक्त के िवरु , िजसम सम्पि िकसी िविनिदष्ट पर्योजन के िलए न्यास-िनिहत हुई हो अथवा उसके िविधक
पर्ितिनिधय या समनुदिे शितय के िवरु (जो मूल्यवान पर्ितफलाथर् समनुदिे शती न ह ) उसके या उनके हस्तगत ऐसी सम्पि या उसके
आगम का पीछा करने के पर्योजन से या उस सम्पि या उसके आगम के लेखा के िलए कोई वाद िकतना भी समय बीत जाने के कारण
विजत न होगा ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए िकसी िहन्दू, मुसलमान या बौ धािमक या खैराती िवन्यास म समािवष्ट कोई
भी सम्पि एक िविनिदष्ट पर्योजन के िलए न्यास-िनिहत समझी जाएगी और सम्पि का पर्बंधक उसका न्यासी समझा जाएगा ।
11. िजन राज्यक्षेतर् पर इस अिधिनयम का िवस्तार है उनके बाहर की गई संिवदा के आधार पर वाद––(1) जम्मू-कश्मीर
राज्य या िवदेश म की गई संिवदा के आधार पर उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, संिस्थत िकए गए वाद इस
अिधिनयम म अन्तिवष्ट पिरसीमा िवषयक िनयम के अध्यधीन ह गे ।
(2) जम्मू-कश्मीर राज्य या िकसी िवदेश म पर्वृ पिरसीमा िवषयक कोई भी िनयम उस राज्य या िवदेश म की गई िकसी
संिवदा पर अवधािरत वाद म, जो उक्त राज्यक्षेतर् म संिस्थत िकया गया हो, तब के िसवाय पर्ितरक्षा न होगा, जबिक––
4

(क) उस िनयम ने उस संिवदा को िनवार्िपत कर िदया हो ; और


(ख) पक्षकार ऐसे िनयम ारा िविहत काल के दौरान उस राज्य या िवदेश के अिधवासी थे ।
भाग 3

पिरसीमा काल की संगणना


12. िविधक कायर्वािहय म समय का अपवजर्न––(1) िकसी वाद, अपील या आवेदन के पिरसीमा काल की संगणना करने म
वह िदन अपविजत कर िदया जाएगा, िजससे ऐसे पिरसीमा काल की गणना की जानी है ।
(2) िकसी अपील के िलए अथवा ऐसे आवेदन के िलए, जो अपील की इजाजत या पुनरीक्षण के , या िकसी िनणर्य के
पुनिवलोकन के िलए हो, पिरसीमा काल की संगणना करने म वह िदन, िजस िदन पिरवािदत िनणर्य सुनाया गया था तथा उस िडकर्ी,
दण्डादेश या आदेश की, िजसकी अपील की गई है या िजसका पुनरीक्षण या पुनिवलोकन ईिप्सत है पर्ितिलिप अिभपर्ाप्त करने के िलए
अपेिक्षत समय अपविजत कर िदया जाएगा ।
(3) जहां िक िकसी िडकर्ी या आदेश की अपील की जाती है या उसका पुनरीक्षण या पुनिवलोकन ईिप्सत है या जहां िक िकसी
िडकर्ी या आदेश की अपील की इजाजत के िलए आवेदन िकया जाता है, वहां उस िनणर्य की 1 *** पर्ितिलिप अिभपर्ाप्त करने के िलए
अपेिक्षत समय भी अपविजत कर िदया जाएगा ।
(4) िकसी पंचाट के अपास्त िकए जाने के िलए आवेदन के पिरसीमा काल की संगणना करने म पंचाट की पर्ितिलिप
अिभपर्ाप्त करने के िलए अपेिक्षत समय अपविजत कर िदया जाएगा ।
स्पष्टीकरण––िकसी िडकर्ी या आदेश की पर्ितिलिप अिभपर्ाप्त करने के िलए अपेिक्षत समय की इस धारा के अधीन संगणना
करने म वह समय अपविजत नह िकया जाएगा जो न्यायालय ने उस िडकर्ी या आदेश की पर्ितिलिप के िलए आवेदन िकए जाने से पूवर्
िडकर्ी या आदेश को तैयार करने म लगाया हो ।
13. उन दशा म समय का अपवजर्न जहां िक अिकचन के रूप म वाद लाने या अपील करने की इजाजत के िलए आवेदन
िकया गया हो––जहां िक अिकचन के रूप म वाद या अपील करने की इजाजत के िलए आवेदन िकया गया हो और वह पर्ितक्षेिपत हो
गया हो वहां उस वाद अथवा अपील के िलए िविहत पिरसीमा काल की संगणना म उतना समय अपविजत कर िदया जाएगा िजतने
समय के दौरान आवेदक इस इजाजत के िलए अपना आवेदन सद्भावपूवर्क अिभयोिजत करता रहा हो, तथा ऐसे वाद या अपील के िलए
िविहत न्यायालय फीस दे दी जाने पर न्यायालय उस वाद या अपील को वही बल और पर्भाव रखने वाली मानकार बरतेगा मानो
न्यायालय फीस पर्ारं भ म ही दे दी गई हो ।
14. िबना अिधकािरता वाले न्यायालय म सद्भावपूवक र् की गई कायर्वाही म लगे समय का अपवजर्न––(1) िकसी वाद की
पिरसीमा काल की संगणना म उतना समय िजतने समय के दौरान वादी चाहे पर्थम बार के चाहे अपील या पुनरीक्षण न्यायालय म
पर्ितवादी के िवरु अन्य िसिवल कायर्वाही सम्यक् तत्परता से अिभयोिजत करता रहा है, अपविजत कर िदया जाएगा जहां िक वह
कायर्वाही उसी िववा िवषय से संबंिधत हो और सद्भावपूवर्क िकसी ऐसे न्यायालय म अिभयोिजत की गई हो जो अिधकािरता की
तर्ुिट या वैसी ही पर्कृ ित के अन्य हेतुक से उसे गर्हण करने म असमथर् हो ।
(2) िकसी आवेदन के पिरसीमा काल की संगणना म उतना समय, िजतने के दौरान वादी चाहे पर्थम बार की अपील चाहे
पुनरीक्षण न्यायालय म उसी पक्षकार के िवरु उसी अनुतोष के िलए अन्य िसिवल कायर्वाही सम्यक् तत्परता से अिभयोिजत करता रहा
है, अपविजत कर िदया जाएगा जहां िक कायर्वाही सद्भावपूवर्क िकसी ऐसे न्यायालय म अिभयोिजत की गई हो जो अिधकािरता की
तर्ुिट या वैसी ही पर्कृ ित के अन्य हेतुक से गर्हण करने म असमथर् हो ।
(3) िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के आदेश 23 के िनयम 2 म अनिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी
उपधारा (1) के उपबन्ध उस आदेश के िनयम 1 के अधीन न्यायालय ारा दी गई अनुज्ञा के आधार पर संिस्थत नए वाद के संबंध म लागू
ह गे जहां िक ऐसी अनुज्ञा इस आधार पर दी गई है िक अिधकािरता म तर्ुिटयां वैसी ही पर्कृ ित के अन्य हेतुक से पहले वाद का असफल
होना अवश्यम्भावी है ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए––
(क) उस समय का अपवजर्न करने म, िजसके दौरान कोई पूवर्वत िसिवल कायर्वाही लिम्बत थी वह िदन, िजस िदन
वह कायर्वाही संिस्थत की गई और वह िदन िजस िदन उसका अन्त हुआ, दोन िगने जाएंगे ;
(ख) कोई वादी या आवेदक, जो िकसी अपील का पर्ितरोध कर रहा हो, कायर्वाही का अिभयोजन करता हुआ
समझा जाएगा ;
(ग) पक्षकार के या वाद-हेतुक के कु संयोजन को अिधकािरता म तर्ुिट जैसी पर्कृ ित का हेतुक समझा जाएगा ।

1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 33 ारा (1-7-2002 से) कु छ शब्द का लोप िकया गया ।
5

15. कु छ अन्य मामल म समय का अपवजर्न––(1) िकसी ऐसे वाद के या िकसी ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन के ,
िजसका संिस्थत या िनष्पािदत िकया जाना िकसी व्यादेश या आदेश ारा रोक िदया गया हो, पिरसीमा काल की संगणना म, उतना
समय, िजतने समय ऐसा व्यादेश या आदेश बना रहा हो, वह िदन िजस िदन वह िनकाला गया या िकया गया था और वह िदन िजस
िदन उसका पर्त्याहरण िकया गया था, अपविजत कर िदए जाएंगे ।
(2) िकसी तत्समय पर्वृ िविध की अपेक्षा के अनुसार िकसी ऐसे वाद के पिरसीमा काल की संगणना म, िजसकी सूचना दी
गई है या िजसके िलए सरकार या िकसी अन्य पर्ािधकारी की पूवर् सम्मित या मंजूरी अपेिक्षत है, ऐसी सूचना की कालाविध या,
यथािस्थित, ऐसी सम्मित अथवा मंजूरी अिभपर्ाप्त करने के िलए अपेिक्षत समय अपविजत कर िदया जाएगा ।
स्पष्टीकरण––सरकार या िकसी अन्य पर्ािधकारी की सम्मित या मंजूरी अिभपर्ाप्त करने के िलए अपेिक्षत समय का अपवजर्न
करने म वह तारीख िजसको सम्मित अथवा मंजूरी अिभपर्ाप्त करने के िलए आवेदन िकया गया था और वह तारीख, िजसको सरकार या
अन्य पर्ािधकारी का आदेश पर्ाप्त हुआ था, दोन िगनी जाएंगी ।
(3) िकसी व्यिक्त को िदवािलया न्यायिनण त करने की कायर्वाही म िनयुक्त िकसी िरसीवर या अन्तिरम िरसीवर ारा या
िकसी कम्पनी के पिरमापन की कायर्वाही म िनयुक्त िकसी समापक या अनंितम समापक ारा िकए गए िकसी वाद या िडकर्ी के
िनष्पादनाथर् आवेदन के पिरसीमा काल की संगणना म वह कालाविध अपविजत कर दी जाएगी जो ऐसी कायर्वाही को संिस्थत करने की
तारीख को पर्ारम्भ होकर, यथािस्थित, िरसीवर या समापक की िनयुिक्त की तारीख से तीन मास के अवसान पर समाप्त होती है ।
(4) िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म हुए िवकर्य म के कर्ेता ारा कब्जे के िलए वाद के पिरसीमा काल की संगणना म उतना समय
अपविजत कर िदया जाएगा िजसके दौरान िवकर्य अपास्त कराने के िलए कोई कायर्वाही अिभयोिजत की जाती रही हो ।
(5) िकसी वाद के पिरसीमा काल की संगणना म उतना समय अपविजत कर िदया जाएगा िजसके दौरान पर्ितवादी भारत से
तथा भारत के बाहर के उन राज्यक्षेतर् से जो के न्दर्ीय सरकार के पर्शासन के अधीन है, अनुपिस्थत रहा हो ।
16. वाद लाने का अिधकार पर्ोद्भूत होने पर या होने के पूवर् मृत्यु हो जाने का पर्भाव––(1) जहां िक कोई व्यिक्त, िजसे यिद
वह जीिवत रहता तो वाद संिस्थत करने या आवेदन करने का अिधकार होता, उस अिधकार के पर्ोद्भूत होने के पहले मर जाए या जहां
िक वाद संिस्थत करने या आवेदन करने का अिधकार िकसी व्यिक्त की मृत्यु पर ही पर्ोद्भूत होता हो वहां पिरसीमा काल की संगणना
उस समय से की जाएगी जब मृतक का ऐसा िविधक पर्ितिनिध हो जाए जो ऐसा वाद संिस्थत करने या आवेदन आवेिदत करने के िलए
समथर् हो ।
(2) जहां िक कोई व्यिक्त, िजसके िवरु यिद वह जीिवत रहता तो वाद संिस्थत करने या आवेदन करने का अिधकार पर्ोद्भूत
हुआ होता, उस अिधकार के पर्ोद्भूत होने के पहले मर जाए, या जहां िकसी व्यिक्त के िवरु वाद संिस्थत करने या आवेदन करने का
अिधकार उसकी मृत्यु पर पर्ोद्भूत होता हो, वहां पिरसीमा काल की संगणना उस समय से की जाएगी जब मृतक का ऐसा िविधक
पर्ितिनिध हो जाए िजसके िवरु वादी ऐसा वाद संिस्थत कर सके या आवेदन कर सके ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) की कोई भी बात शुफा अिधकार को पर्वितत कराने के वाद को अथवा िकसी स्थावर
सम्पि के या आनुवंिशक पद के कब्जे के वाद को लागू नह होती ।
17. कपट या भूल का पर्भाव––(1) जहां िक िकसी ऐसे वाद या आवेदन के मामले म, िजसके िलए इस अिधिनयम ारा कोई
पिरसीमा काल िविहत है––
(क) वह वाद या आवेदन पर्ितवादी या पर्त्यथ या उसके अिभकतार् के कपट पर आधािरत है ; अथवा
(ख) उस अिधकार या हक का ज्ञान, िजस पर वाद या आवेदन आधािरत है, िकसी यथापूव क्त व्यिक्त के कपट ारा
िछपाया गया है ; अथवा
(ग) वह वाद या आवेदन िकसी भूल के पिरणाम से मुिक्त के िलए है ; अथवा
(घ) वादी या आवेदक के अिधकार को स्थािपत करने के िलए आवश्यक कोई दस्तावेज उससे कपटपूवर्क िछपाई
गई है,
वहां पिरसीमा काल का चलना तब तक के िबना आरम्भ न होगा जब वादी या आवेदक को उस कपट या भूल का पता चल न जाए या
सम्यक् तत्परता से पता चल सकता था, अथवा िछपाई गई दस्तावेज की दशा म तब तक के िबना आरम्भ न होगा, जबिक िछपाई गई
दस्तावेज के पेश करने या उसका पेश िकया जाना िववश करने के साधन वादी या आवेदक को सवर्पर्थम पर्ाप्त न हुए ह :
परन्तु इस धारा की कोई भी बात िकसी ऐसी सम्पि के पर्त्यु रण के या उसके िवरु कोई भार पर्वितत कराने के या
तत्संबंधी िकसी संव्यवहार को अपास्त कराने के वाद का संिस्थत िकया जाना या आवेदन का िकया जाना शक्य नह बनाएगी जो––
(i) कपट के मामले म, िकसी ऐसे व्यिक्त ारा मूल्यवान पर्ितफलेन कर्य की गई हो िजसका न तो कपट म कोई हाथ
था, और न जो कर्य के समय यह जानता या यह िवश्वास करने का कारण रखता था िक कोई कपट िकया गया है, अथवा
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(ii) भूल के मामले म, उस संव्यवहार के पश्चात् िजसम भूल की गई, ऐसे व्यिक्त ारा मूल्यवान पर्ितफलेन कर्य की
गई है, जो न यह जानता या िवश्वास करने का कारण रखता था िक भूल की गई है, अथवा
(iii) िछपाई गई दस्तावेज के मामले म, ऐसे व्यिक्त ारा मूल्यवान पर्ितफलेन कर्य की गई है िजसका न तो िछपाने
म कोई हाथ था और न जो कर्य करने के समय यह जानता या िवश्वास करने का कारण रखता था िक वह दस्तावेज िछपाई
गई है ।
(2) जहां िक िकसी िनण तऋणी ने िकसी िडकर्ी या आदेश का पिरसीमा काल के भीतर िनष्पादन कपट या बल पर्योग ारा
िनवािरत कर िदया हो, वहां न्यायालय उक्त पिरसीमा काल के अवसान के पश्चात् िनण त लेनदार ारा िकए गए आवेदन पर िडकर्ी या
आदेश के िनष्पादन के िलए पिरसीमा काल को बढ़ा सके गा :
परन्तु यह तब जबिक ऐसा आवेदन, यथािस्थित, कपट का पता लगाने की या बल पर्योग के बन्द होने की तारीख से एक वषर् के
भीतर िकया गया हो ।
18. िलिखत अिभस्वीकृ ित का पर्भाव––(1) जहां िक िकसी सम्पि या अिधकार िवषयक वाद या आवेदन के िलए िविहत
काल के अवसान के पहले ऐसी सम्पि या अिधकार िवषयक दाियत्व की िलिखत अिभस्वीकृ त की गई है, जो उस पक्षकार ारा, िजसके
िवरु ऐसी सम्पि या अिधकार का दावा िकया जाता है, या ऐसे िकसी व्यिक्त ारा िजसम वह अपना अिधकार या दाियत्व व्युत्पन्न
करता है, हस्ताक्षिरत है वहां उस समय से, जब वह अिभस्वीकृ ित इस पर्कार हस्ताक्षिरत की गई थी एक नया पिरसीमा काल संगिणत
िकया जाएगा ।
(2) जहां िक वह लेख िजसम अिभस्वीकृ ित अन्तिवष्ट है, िबना तारीख का है वहां उस समय के बारे म जब वह हस्ताक्षिरत
िकया गया था मौिखक सा य िदया जा सके गा िकन्तु भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) के उपबन्ध के अध्यधीन यह है
िक उसकी अन्तवर्स्तु का मौिखक सा य गर्हण नह िकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए––
(क) अिभस्वीकृ ित पयार्प्त हो सके गी य िप वह उस सम्पि या अिधकार की यथावत् पर्कृ ित िविनदश न करती हो
अथवा यह पर्कथन करती हो िक संदाय, पिरदान, पालन या उपभोग का समय अभी नह आया है, अथवा वह संदाय, पिरदान
या पालन के अथवा उपभोग की अनुज्ञा के इं कार सिहत हो अथवा मुजरा के िकसी दावे से युक्त हो, अथवा उस सम्पि या
अिधकार के हकदार व्यिक्त से िभन्न िकसी अन्य व्यिक्त को सम्बोिधत हो ;
(ख) “हस्ताक्षिरत” शब्द से या तो स्वयं ारा या इस िनिम सम्यक् पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा हस्ताक्षिरत अिभपर्ेत
है ; तथा
(ग) वह आवेदन, जो िडकर्ी या आदेश के िनष्पादन के िलए हो िकसी सम्पि या अिधकार की बाबत आवेदन नह
समझा जाएगा ।
19. ऋण लेखे या वसीयत-सम्पदा का ब्याज लेखे संदाय का पर्भाव––जहां िक ऋण या वसीयत-सम्पदा के संदाय के िलए
दायी व्यिक्त ारा या उसके इस िनिम सम्यक् पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा कोई संदाय उस ऋण लेखे या उस वसीयत के ब्याज लेखे
िविहत काल के अवसान के पूवर् िकया जाता है, वहां उस समय से, जब संदाय िकया गया था, नया पिरसीमा काल संगिणत
िकया जाएगा ;
परन्तु उस दशा के िसवाय, िजसम ब्याज का संदाय सन् 1928 की जनवरी के पर्थम िदन के पूवर् िकया गया था यह तब होगा
जब उस संदाय की अिभस्वीकृ ित, संदाय करने वाले िक्त के हस्तलेख म या उसके ारा हस्ताक्षिरत लेख म हो ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए––
(क) जहां िक बन्धिकत भूिम, बन्धकदार के कब्जे म हो वहां ऐसी भूिम के भाटक या उपज की पर्ािप्त संदाय
मानी जाएगी :
(ख) “ऋण” के अन्तगर्त वह धन नह आता जो न्यायालय की िडकर्ी या आदेश के अधीन संदय
े हो ।
20. िकसी अन्य व्यिक्त ारा अिभस्वीकृ ित या संदाय का पर्भाव––(1) धारा 18 या धारा 19 म “इस िनिम सम्यक् पर्ािधकृ त
अिभकतार्” पद के अन्तगर्त िनय ग्यता के अधीन व्यिक्त की दशा म उसका िविधपूणर् संरक्षक, सुपुदद र् ार या पर्बन्धक या अिभस्वीकृ ित
हस्ताक्षर करने अथवा संदाय करने के िलए ऐसे संरक्षक, सुपुदद
र् ार या पर्बन्धक ारा सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त अिभकतार् आता है ।
(2) उक्त धारा म की कोई भी बात अनेक संयुक्त संिवदाकतार् , भागीदार , िनष्पादक या बन्धकदार म से िकसी एक को
उनम से िकसी अन्य या िकन्ह अन्य ारा या के अिभकतार् ारा हस्ताक्षिरत िलिखत अिभस्वीकृ ित या िकसी िकए गए संदाय के कारण
ही पर्भायर् नह कर देती ।
(3) उक्त धारा के पर्योजन के िलए––
7

(क) सम्पि के िकसी पिरसीिमत स्वामी ारा, जो िहन्दू िविध से शािसत हो या उसके सम्यक् पर्ािधकृ त अिभकतार्
ारा िकसी दाियत्व की बाबत हस्ताक्षिरत अिभस्वीकृ ित या िकया गया संदाय ऐसे दाियत्व को उ रािधकार म पाने वाले
उ रभोगी के िवरु , यथािस्थित, िविधमान्य अिभस्वीकृ ित या संदाय होगा, तथा
(ख) वह अिभस्वीकृ ित या संदाय, जो उस अिवभक्त िहन्दू कु टु म्ब के तत्समय कतार् या उसके सम्यक् पर्ािधकृ त
अिभकतार् ारा िकया गया है उस समस्त कु टु म्ब की ओर से िकया गया समझा जाएगा, यिद िकसी अिवभक्त िहन्दू कु टुम्ब की
उस हैिसयत म उसके ारा या उसकी ओर से कोई दाियत्व उपगत िकया गया हो ।
21. नया वादी या पर्ितवादी पर्ितस्थािपत करने या जोड़ने का पर्भाव––(1) जहां िक वाद संिस्थत होने के पश्चात् कोई नया
वादी या पर्ितवादी पर्ितस्थािपत िकया या जोड़ा जाए वहां वाद, जहां तक िक उसका संबंध है, तब संिस्थत िकया गया समझा जाएगा
जब वह इस पर्कार पक्षकार बनाया गया था :
परन्तु जहां िक न्यायालय का समाधान हो जाए िक नए वादी या पर्ितवादी को अन्तिवष्ट करने म लोप सद्भावपूवक र् की गई
भूल से हुआ था, वहां वह यह िनदेश दे सके गा िक वाद, जहां तक ऐसे वादी या पर्ितवादी का संबंध है, िकसी पूवर्वत तारीख से संिस्थत
िकया गया समझा जाएगा ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात ऐसे मामले को लागू न होगी िजसम वाद के लिम्बत रहने के दौरान हुए िकसी िहत के
समनुदशे न या न्यागमन के कारण कोई पक्षकार जोड़ा या पर्ितस्थािपत िकया जाए या िजसम िक वादी को पर्ितवादी या पर्ितवादी को
वादी समझा जाए ।
22. चालू रहने वाले भंग और अपकृ त्य––िकसी चालू रहने वाले संिवदा-भंग या चालू रहने वाले अपकृ त्य की दशा म एक नया
पिरसीमा काल उस समय के दौरान पर्ित क्षण चलना आरम्भ होता रहता है िजसम, यथािस्थित, ऐसा भंग या ऐसा अपकृ त्य चालू रहे ।
23. उन काय के िलए पर्ितकर का वाद जो िवशेष नुकसान के िबना, अनुयोज्य न ह ––उस कायर् के िलए, िजसम कोई वाद-
हेतुक तब तक उद्भूत नह होता जब तक उससे कोई िविनिदष्ट क्षित वस्तुत: नह होती, पर्ितकर के वाद की दशा म पिरसीमा काल उस
समय से संगिणत िकया जाएगा जब वह क्षित हो जाए ।
24. िलखत म विणत समय की संगणना––सब िलखत इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए िगर्गोिरयन कलडर को िनिदष्ट
करके िलखी गई समझी जाएंगी ।
भाग 4

कब्जे ारा स्वािमत्व का अजर्न


25. सुखाचार का िचरभोग ारा अजर्न––(1) जहां िक िकसी िनमार्ण के उपभोग के साथ-साथ उसम या उसके िलए पर्काश
या वायु के पर्वेश और उपयोग का उपभोग सुखाचार के तौर पर और सािधकार, िकसी िवघ्न के िबना और बीस वषर् तक शािन्तपूवर्क
िकया गया हो, तथा जहां िक िकसी मागर् का या जलसरणी का या िकसी जल के उपयोग का अथवा िकसी अन्य सुखाचार का चाहे (वह
सकारात्मक हो या नकारात्मक) उपभोग ऐसे िकसी व्यिक्त ने, जो सुखाचार के तौर पर और सािधकार उस पर हक रखने का दावा
करता हो िवघ्न के िबना और बीस वषर् शािन्तपूवक
र् तथा खुले तौर पर िकया हो वहां पर्काश या वायु के ऐसे पर्वेश और उपभोग का, या
ऐसे मागर्, जलसरणी, जल के उपयोग अथवा अन्य सुखाचार का अिधकार आत्यिन्तक और अजेय हो जाएगा ।
(2) बीस वषर् की उक्त कालाविधय म से हर एक ऐसी कालाविध मानी जाएगी िजसका अन्त उस वाद के संिस्थत िकए जाने
के अव्यविहत पूवर् के दो वष के भीतर हुआ हो, िजसम वह दावा िजससे ऐसी कालाविध संबंिधत है, पर्ितवािदत िकया जाता है ।
(3) जहां िक वह सम्पि , िजस पर िकसी अिधकार का दावा उपधारा (1) के अधीन िकया जाता है, सरकार की हो वहां वह
उपधारा ऐसे पढ़ी जाएगी मानो “बीस वषर्” शब्द के स्थान पर “तीस वषर्” शब्द पर्ितस्थािपत कर िदए गए ह ।
स्पष्टीकरण––कोई भी बात इस धारा के अथर् के अन्दर िवघ्न नह है जबिक दावेदार से िभन्न िकसी व्यिक्त के कायर् ारा हुई
बाधा के कारण उस कब्जे या उपभोग का वास्तिवक िवच्छेद नह हो जाता और जब तक िक, उस बाधा की तथा बाधा डालने वाले या
बाधा डाला जाना पर्ािधकृ त करने वाले व्यिक्त की सूचना दावेदार को हो जाने के पश्चात् एक वषर् तक वह बाधा सहन न कर ली गई हो
या उसके पर्ित उपमित न रही हो ।
26. अनुसव
े ी सम्पि के उ रभोगी के पक्ष म अपवजर्न––जहां िक कोई भूिम या जल िजसम, िजसके ऊपर या िजससे कोई
सुखाचार उपभुक्त या व्युत्पन्न िकया गया हो िकसी आजीवन िहत के अधीन या आधार पर या इतनी अविध पयर्न्त जो उसके अनुद
िकए जाने से तीन वषर् से अिधक हो धािरत रहा हो, वहां ऐसे सुखाचार का उपभोग िजतने समय तक ऐसे िहत या अविध के चालू रहने
के दौरान हुआ हो, उतना समय बीस वषर् की कालाविध की संगणना म उस दशा म, अपविजत कर िदया जाएगा िजसम उस पर के दावे
का पर्ितरोध ऐसे िहत या अविध के पयर्वसान के अव्यविहत पश्चात् तीन वषर् के अन्दर ऐसे व्यिक्त ारा िकया जाए जो ऐसे पयर्वसान
पर उक्त भूिम या जल का हकदार हो ।
27. सम्पि पर के अिधकार का िनवार्िपत होना––उस कालाविध के पयर्वसान पर, जो िकसी सम्पि के कब्जे का वाद
संिस्थत िकए जाने के िनिम िकसी व्यिक्त के िलए एतद् ारा पिरसीिमत है, ऐसी सम्पि पर उसका अिधकार िनवार्िपत हो जाएगा ।
8

भाग 5

पर्कीणर्
28. कु छ अिधिनयम का संशोधन––िनरसन तथा संशोधन अिधिनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 2 तथा पहली अनुसच
ू ी
ारा िनरिसत ।
29. व्यावृि यां––(1) इस अिधिनयम की कोई भी बात भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) की धारा 25 पर
पर्भाव नह डालेगी ।
(2) जहां िक कोई िवशेष या स्थानीय िविध िकसी वाद, अपील या आवेदन के िलए कोई ऐसा पिरसीमा काल िविहत करती है
जो अनुसूची ारा िविहत पिरसीमा काल से िभन्न है वहां धारा 3 के उपबन्ध ऐसे लागू ह गे मानो वह पिरसीमा काल अनुसूची ारा
िविहत पिरसीमा काल हो ; तथा िकसी वाद, अपील या आवेदन के िनिम िकसी िवशेष या स्थानीय िविध ारा िविहत पिरसीमा काल
का अवधारण करने के पर्योजन के िलए, धारा 4 से धारा 24 तक के (िजनके अन्तगर्त ये दोन धाराएं भी आती ह) उपबन्ध के वल वह
तक और उसी िवस्तार तक लागू ह गे जहां तक और िजस िवस्तार तक वे उस िवशेष या स्थानीय िविध ारा अिभव्यक्त तौर पर
अपविजत न ह ।
(3) िववाह और िववाह-िवच्छेद िवषयक िकसी तत्समय पर्वृ िविध म अन्यथा उपबिन्धत के िसवाय इस अिधिनयम की कोई
भी बात ऐसी िकसी िविध के अधीन के िकसी वाद या अन्य कायर्वाही को लागू नह होगी ।
(4) धाराएं 25 और 26 तथा धारा 2 म की “सुखाचार” की पिरभाषा, उन राज्यक्षेतर् म उद्भूत मामल को लागू नह होगी
िजन पर भारतीय सुखाचार अिधिनयम, 1882 (1882 का 5) का तत्समय िवस्तार हो ।
30. उन वाद आिद के िलए उपबन्ध िजनके िलए िविहत कालाविध इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 ारा िविहत कालाविध
से कम है––इस अिधिनयम म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी––
(क) कोई भी वाद, िजसके िलए पिरसीमा काल इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 (1908 का 9) ारा िविहत
पिरसीमा काल से कम है, इस अिधिनयम के पर्ारम्भ होने के अव्यविहत पश्चात्वत 1 [सात वषर्] की कालाविध और ऐसे वाद
के िलए इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 ारा िविहत पिरसीमा काल, इन दोन म से िजसका भी अवसान पहले हो जाए
उसके भीतर संिस्थत िकया जा सके गा :
[परन्तु यिद ऐसे िकसी वाद की बाबत सात वषर् की उक्त कालाविध का अवसान, उसके िलए इिण्डयन िलिमटेशन
ऐक्ट, 1908 (1908 का 9) के अधीन िविहत पिरसीमा काल के पहले हो जाए, और ऐसे वाद की बाबत इिण्डयन िलिमटेशन
ऐक्ट, 1908 के अधीन उतने पिरसीमा काल के सिहत, िजसका अवसान इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के पहले हो गया हो, सात
वषर् की उक्त कालाविध ऐसे वाद के िलए इस अिधिनयम के अधीन िविहत कालाविध से कम हो तो वह वाद इस अिधिनयम
के अधीन उसके िलए िविहत पिरसीमा काल के भीतर संिस्थत िकया जा सके गा ;]
ख) कोई भी अपील या आवेदन, िजसके िलए पिरसीमा काल इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 (1908 का 9) ारा
िविहत पिरसीमा काल से कम है, इस अिधिनयम के पर्ारम्भ होने के अव्यविहत पश्चात्वत नब्बे िदन की कालाविध और ऐसी
अपील या आवेदन के िलए इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 ारा िविहत पिरसीमा काल म से, िजसका भी अवसान पहले हो
जाए, उसके भीतर िकया जा सके गा ।
31. विजत या लिम्बत वाद आिद के बारे म उपबन्ध––इस अिधिनयम की कोई भी बात––
(क) ऐसे िकसी भी वाद, अपील या आवेदन का संिस्थत या िकया जाना शक्य नह करे गी िजसके िलए इिण्डयन
िलिमटेशन ऐक्ट, 1908 (1908 का 9) ारा िविहत पिरसीमा काल का अवसान इस अिधिनयम के पर्ारम्भ होने के पहले हो
गया हो ; अथवा
(ख) ऐसे पर्ारम्भ के पूवर् संिस्थत या िकए गए और ऐसे पर्ारम्भ के समय लिम्बत िकसी भी वाद, अपील या आवेदन
पर पर्भाव न डालेगी ।
32. [िनरिसत]––िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 2 और पहली अनुसच
ू ी ारा िनरिसत ।
______

1
1969 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 ारा (भूतलक्षी रूप से) “पांच वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9

अनुसूची
पिरसीमा काल
[धाराएं 2 (ञ) और 3 देिखए]
पर्थम खण्ड––वाद

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


भाग 1––लेखा सम्बन्धी वाद
1. पारस्पिरक, खुले तथा चालू खाते म शोध्य बाकी के तीन वषर् उस वषर् का अन्त, िजसम स्वीकृ त या सािबत हुई
िलए, जहां िक पक्षकार के बीच व्यितकारी मांग अिन्तम मद लेखे म पर्िवष्ट की गई ह, ऐसे वषर् की
हुई ह । संगणना वैसे ही की जाएगी जैसे वह खाते म की
गई हो ।
2. फै क्टर के िवरु लेखा के िलए । तीन वषर् जब अिभकरण के चालू रहने के दौरान लेखा मांगा
गया हो, और इं कार कर िदया गया हो, या जहां िक
ऐसी मांग नह की गई हो वहां जब अिभकरण का
पयर्वसान हो जाए ।
3. मािलक ारा अपने अिभकतार् के िवरु उस जंगम तीन वषर् जब अिभकरण के चालू रहने के दौरान लेखा मांगा
संपि के िलए जो अिभकतार् ारा पर्ाप्त की गई है गया हो, और देने से इं कार कर िदया गया हो, या जहां
िकन्तु िजसका लेखा-जोखा नह िदया गया हो िक ऐसी मांग नह की गई हो वहां जब अिभकरण का
पयर्वसान हो जाए ।
4. उपेक्षा या अवचार के िलए मािलक ारा अिभकतार् तीन वषर् जब उपेक्षा या अवचार वादी को ज्ञात हो जाए ।
के िवरु अन्य वाद ।
5. िवघिटत भागीदारी के लेखा और लाभ म अंश तीन वषर् िवघटन की तारीख ।
के िलए ।
भाग 2––संिवदा सम्बन्धी वाद
6. नािवक की मजदूरी के िलए तीन वषर् उस जल यातर्ा का अन्त िजसके दौरान मजदूरी
उपािजत की गई हो ।
7. िकसी अन्य व्यिक्त की दशा म मजदूरी के िलए । तीन वषर् जब मजदूरी पर्ोद्भूत शोध्य हो ।
8. होटल, पान्थशाला या बासा के चलाने वाले ारा बेचे तीन वषर् जब खा या पेय पिरद िकया गया हो ।
गए खा या पेय की कीमत के िलए ।
9. वास करने के िलए कीमत के िलए । तीन वषर् जब कीमत संदय
े हो जाए ।
10. वाहक के िवरु माल को खो देने या क्षित पहुंचाने के तीन वषर् जब वह खो जाए या उसे क्षित पहुंचे ।
िनिम पर्ितकर के िलए ।
11. वाहक के िवरु माल के अपिरदान के या पिरदान म तीन वषर् जब माल पिरद िकया जाना चािहए था ।
िवलम्ब के िनिम पर्ितकर के िलए ।
12. जीव-जन्तु , यान , नाव या घरे लू फन चर के भाड़े तीन वषर् जब भाड़ा संदय
े हो जाए ।
के िलए ।
13. पिरद िकए जाने वाले माल के िलए संदाय म अिगर्म तीन वषर् जब माल पिरद िकया जाना चािहए था ।
िदए गए बाकी धन के िलए ।
14. बेचे और पिरद िकए गए माल की कीमत के िलए तीन वषर् माल के पिरदान की तारीख ।
जहां िक उधार की िकसी िनयत कालाविध का करार
न हो ।
10

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


15. बेचे और पिरद िकए गए उस माल की कीमत के तीन वषर् जब उधार की कालाविध का अवसान हो जाए ।
िलए िजसके िलए संदाय उधार की िनयत कालाविध
के अवसान पर िकया जाना है ।
16. बेचे और पिरद िकए गए ऐसे माल की कीमत के तीन वषर् जब पर्स्थािपत िविनमय-पतर् देने की कालाविध बीत
िलए िजसका संदाय िविनमय-पतर् ारा िकया जाना जाए ।
था, िकन्तु ऐसा कोई िविनमय-पतर् िदया नह गया है ।
17. वादी ारा पर्ितवादी को बेचे गए पेड़ या उगती तीन वषर् िवकर्य की तारीख ।
फसल की कीमत के िलए जहां िक उधार की िकसी
िनयत कालाविध का करार न हो ।
18. पर्ितवादी की पर्ाथर्ना पर उसके िनिम वादी ारा तीन वषर् जब काम कर िदया जाए ।
िकए गए काम की कीमत के िलए जहां िक संदाय करने
के िलए कोई समय िनयत नह िकया गया है ।
19. उस धन के िलए जो उधार िदए गए धन की बाबत तीन वषर् जब उधार िदया जाए ।
संदय
े हो ।
20. वैसा ही वाद, जब िक उधार देने वाले ने धन के िलए तीन वषर् जब चेक का संदाय हो जाए ।
चेक िदया हो ।
21. उस धन के िलए, जो इस करार के अधीन उधार िदया तीन वषर् जब उधार िदया जाए ।
गया हो िक मांग पर वह संदय
े होगा ।
22. उस धन के िलए, जो इस करार के अधीन िनिक्षप्त तीन वषर् जब मांग की जाती है ।
िकया गया हो िक वह मांग पर संदय े होगा, िजसके
अन्तगर्त गर्ाहक का ऐसे संदय
े वह धन आता है जो
उसके बकर के हाथ म हो ।
23. उस धन के िलए जो पर्ितवादी के िनिम िदए गए धन तीन वषर् जब धन संद िकया जाए ।
की बाबत वादी को संदये हो ।
24. उस धन के िलए जो वादी को पर्ितवादी ारा उस धन तीन वषर् जब धन पर्ाप्त हुआ हो ।
की बाबत संदय े है जो पर्ितवादी को वादी के उपयोग
के िलए पर्ाप्त हुआ है ।
25. उस धन के िलए जो पर्ितवादी ारा वादी को शोध्य तीन वषर् जब ब्याज शोध्य हो जाए ।
धन पर ब्याज की बाबत संदय
े हो ।
26. उस धन के िलए जो वादी और पर्ितवादी के बीच तीन वषर् जब लेखा पर्ितवादी ारा या उसके इस िनिम सम्यक्
िववरिणत लेखा के अनुसार पर्ितवादी ारा वादी को पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा हस्ताक्षिरत लेख म
शोध्य िनकले धन के िलए वादी को संदय
े हो । िववरिणत िकया जाता है, िकन्तु जहां िक ऋण पूव क्त
जैसे हस्ताक्षिरत लेख म उसी समय समसामियक
करार से िकसी भावी समय पर संदय े िकया जाता है
तब जब वह समय आए ।
27. िकसी ऐसे वचन के भंग की बाबत पर्ितकर के िलए जो तीन वषर् जब िविनिदष्ट समय आता है या आकिस्मकता घिटत
िविनिदष्ट समय पर या सी िविनिदष्ट आकिस्मकता के होती है ।
घिटत होने पर कोई बात करने के िलए हो ।
28. सादे बन्धपतर् पर, जहां िक संदाय करने के िलए िदन तीन वषर् ऐसा िविनिदष्ट िदन ।
िविनिदष्ट हो ।
29. सादे बन्धपतर् पर जहां िक ऐसा िदन िविनिदष्ट न हो । तीन वषर् बन्धपतर् िनष्पािदत करने की तारीख ।
30. ऐसे बन्धपतर् पर जो शतर् के अध्यधीन हो । तीन वषर् जब शतर् को भंग िकया जाए ।
11

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


31. ऐसे िविनमय-पतर् या वचन-पतर् पर, जो तारीख के तीन वषर् जब िविनमय-पतर् या वचन-पतर् शोध्य हो जाए ।
पश्चात् िकसी िनयत समय पर संदय
े हो ।
32. िविनमय-पतर् पर, जो दशर्न पर या दशर्नोपरान्त न िक तीन वषर् जब िविनमय-पतर् उपिस्थत िकया जाए ।
िकसी िनयत समय पर, संदय े हो ।
33. िविनमय-पतर् पर िजसका िकसी िविशष्ट स्थान पर तीन वषर् जब िविनमय-पतर् उस स्थान पर उपिस्थत िकया
संदय
े होना पर्ितगृहीत हो । जाए ।
34. िविनमय-पतर् या वचन-पतर् पर, जो दशर्न या मांग के तीन वषर् जब उस िनयत समय का अवसान हो जाए ।
उपरान्त िकसी िनयत समय पर संदये हो ।
35. िविनमय-पतर् या वचन-पतर् पर, जो मांग पर संदय
े हो तीन वषर् िविनमय-पतर् या वचन-पतर् की तारीख ।
और वाद संिस्थत करने के अिधकार को अवरु या
मुल्तवी करने वाले िकसी लेख के सिहत न हो ।
36. ऐसे वचन-पतर् या बन्धपतर् पर, जो िकस्त म संदय
े तीन वषर् संदाय की पर्थम अविध के अवसान पर संदय
े भाग के
हो । बारे म उस समय जब उस अविध का अवसान हो
जाए और अन्य भाग के बारे म उस समय जब
संदाय करने की कर्िमक अविधय का अवसान हो
जाए ।
37. वचन-पतर् या बन्ध-पतर् पर, जो िकस्त म संदये हो और तीन वषर् जब व्यितकर्म िकया जाए िकन्तु जहां िक पाने वाला
िजसम यह उपबिन्धत है िक यिद एक या अिधक िकस्त या बाध्यताकारी इस उपबन्ध के फायदे का
के संदाय करने म व्यितकर्म िकया गया तो सम्पूणर् शोध्य अिधत्यजन कर दे वहां उस समय जब ऐसा कोई
हो जाएगा । व्यितकर्म िकया जाए िजसके बारे म ऐसा अिधत्यजन
नह िकया गया है ।
38. वचन-पतर् पर, िजसे रिचयता ने िकसी पर-व्यिक्त को तीन वषर् पाने वाले को पिरदान की तारीख ।
इसिलए िदया हो िक वह पाने वाले को उसे अमुक घटना
के घिटत होने पर पिरद कर दे ।
39. अनादृत िवदेशी िविनमय-पतर् पर, जहां िक पर्सा य कर तीन वषर् जब सूचना दी जाए ।
िदया गया हो, और सूचना दे दी गई हो ।
40. अपर्ितगर्हण ारा अनादृत िविनमय-पतर् के लेखीवाल के तीन वषर् पर्ितगर्हण करने से इन्कार करने की तारीख ।
िवरु पाने वाले ारा ।
41. सौकयर्-पतर् के पर्ितगृहीत ारा लेखीवाल के िवरु तीन वषर् जब पर्ितगृहीता ने िविनमय-पतर् की रकम का संदाय
िकया हो ।
42. पर्ितभू ारा मूल ऋणी के िवरु । तीन वषर् जब पर्ितभू ने लेनदार को संदाय िकया हो ।
43. एक पर्ितभू ारा सपर्ितभू के िवरु । तीन वषर् जब पर्ितभू ने स्वयं अपने अंश से अिधक कोई संदाय
िकया हो ।
44. (क) बीमा पािलसी पर, जबिक बीमाकतार् को मृत्यु तीन वषर् मृतक की मृत्यु की तारीख या जहां िक पािलसी पर
का सबूत िदए जाने या पर्ाप्त होने के बाद के दावे का भागत: या पूणर्त: पर्त्याख्यान िकया जाए,
बीमा-रािश संदय
े हो । वहां ऐसे पर्त्याख्यान की तारीख ।

(ख) बीमा पािलसी पर, जबिक बीमाकतार् को हािन तीन वषर् हािन पहुंचाने वाली घटना की तारीख या जहां िक
का सबूत िदए जाने या पर्ाप्त हो जाने के पश्चात् पािलसी पर के दावे का भागत: या पूणर्त:
बीमा-रािश संदय
े हो । पर्त्याख्यान िकया जाए, वहां ऐसे पर्त्याख्यान की
तारीख ।
45. बीमाकृ त ारा उन पर्ीिमयम की वसूली के िलए जो तीन वषर् जब बीमाकतार् पािलसी को शून्य करने का िनवार्चन
बीमाकतार् के िनवार्चन पर शून्यकरणीय पािलसी के करे ।
अधीन िदए गए ह ।
12

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


46. भारतीय उ रािधकार अिधिनयम, 1925 (1925 का तीन वषर् संदाय या िवतरण की तारीख ।
39) की धारा 360 या धारा 361 के अधीन ऐसे व्यिक्त
ारा पर्ितदाय िकया जाना िववश करने के िलए, िजसे
िकसी िनष्पादक या पर्शासक ने वसीयत सम्पदा दे दी हो
या आिस्तयां िवतिरत कर दी ह ।
47. ऐसे िव मान पर्ितफल के आधार पर, जो तत्पश्चात् तीन वषर् िनष्फल होने की तारीख ।
िनष्फल हो जाए, संद धन के िलए ।
48. अिभदाय के िलए ऐसे पक्षकार ारा, िजसने संयुक्त तीन वषर् वादी के अपने अंश से अिधक के संदाय की तारीख ।
िडकर्ी के अधीन शोध्य पूरी रकम या अपने अंश से
अिधक रकम संद कर दी हो या ऐसी संयुक्त सम्पदा के
ऐसे अंशधारी ारा, िजसने अपने और सह-
अंशधािरय से शोध्य राजस्व की पूरी रकम या अपने
अंश से अिधक रकम संद कर दी हो ।
49. सहन्यासी ारा मृतन्यासी की सम्पदा के िवरु तीन वषर् जब अिभदाय का अिधकार पर्ोद्भूत हो ।
अिभदाय का दावा पर्वितत कराने के िलए ।
50. अिवभक्त कु टु म्ब की संयुक्त सम्पदा के कतार् ारा उस तीन वषर् संदाय की तारीख ।
सम्पदा लेखे उसके ारा िकए गए संदाय के बारे म
अिभदाय के िलए ।
51. वादी की स्थावर सम्पि के उन लाभ के िलए, िजन्ह तीन वषर् जब लाभ पर्ाप्त िकए गए ह ।
पर्ितवादी ने सदोष पर्ाप्त िकया है ।
52. भाटक की बकाया के िलए । तीन वषर् जब बकाया शोध्य हो जाए ।
53. स्थावर सम्पि के िवकर्ेता ारा असंद कर्य धन के तीन वषर् िवकर्य को पूणर् करने के िलए िनयत समय या (जहां
वैयिक्तक संदाय के िलए । िक िवकर्य को पूणर् करने के िलए िनयत समय के
पश्चात् हक पर्ितगृहीत िकया जाए वहां) पर्ितगर्हण
की तारीख ।
54. िकसी संिवदा के िविनिदष्ट पालन के िलए । तीन वषर् पालन के िलए िनयत की गई तारीख, या यिद ऐसी
तारीख िनयत नह की गई है तो जब वादी को यह
सूचना हो जाए िक पालन से इन्कार कर िदया
गया है ।
55. एतिस्मत् िवशेषतया उपबिन्धत न की गई िकसी तीन वषर् जब संिवदा का भंग िकया गया है या (जहां िक
अिभव्यक्त या िवविक्षत संिवदा के भंग के िनिम आनुकर्िमक भंग हो वहां) जब वह भंग हुआ है ।
पर्ितकर के िलए । िजसके बारे म वाद संिस्थत िकया जाता है या (जहां
िक भंग िनरन्तर हो रहा है वहां) उस भंग का होना
बन्द हो जाए ।
भाग 3––घोषणा सम्बन्धी वाद
56. िनकाली गई या रिजस्टर्ीकृ त िलखत की कू टरचना को तीन वषर् जब िनकाला जाना या रिजस्टर्ीकरण वादी को ज्ञात
घोिषत करने के िलए । हो जाए ।
57. यह घोषणा अिभपर्ाप्त करने के िलए िक अिभकिथत तीन वषर् जब अिभकिथत द क-गर्हण वादी को ज्ञात हो
द क-गर्हण अिविधमान्य है या वास्तव म कभी हुआ ही जाए ।
नह ।
58. कोई अन्य घोषणा अिभपर्ाप्त करने के िलए । तीन वषर् जब वाद लाने का अिधकार पर्थम बार पर्ोद्भूत
होता है ।
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वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


भाग 4––िडकर्ी और िलखत सम्बन्धी वाद

59. िलखत या िडकर्ी को र या अपास्त करने के िलए या तीन वषर् जब वे तथ्य वादी को पहली बार ज्ञात होते ह िजनसे
संिवदा को िवखंिडत करने के िलए । िलखत या िडकर्ी को र या अपास्त या संिवदा को
िवखंिडत कराने का हक उसे पर्ाप्त होता है ।
60. पर्ितपाल्य के संरक्षक ारा िकए गए संपि के अन्तरण
को अपास्त करने के िलए––

(क) पर्ितपाल्य ारा जो पर्ाप्तवय हो गया है ; तीन वषर् जब पर्ितपाल्य वय पर्ाप्त करे ।
(ख) पर्ितपाल्य के िविधक पर्ितिनिध ारा––
(i) जबिक पर्ितपाल्य पर्ाप्तवय होने के तीन वषर् तीन वषर् जब पर्ितपाल्य पर्ाप्तवय हो जाए ।
के भीतर मर जाता है ;

(ii) जबिक पर्ितपाल्य पर्ाप्तवय होने के पूवर् मर तीन वषर् जब पर्ितपाल्य मर जाए ।
जाता है ।

भाग 5––स्थावर सम्पि सम्बन्धी वाद


61. बन्धककतार् ारा––

(क) बन्धिकत स्थावर सम्पि के मोचन के िलए या तीस वषर् जब मोचन का या कब्जे के पर्त्यु रण का अिधकार
कब्जे के पर्त्यु रण के िलए ; पर्ोद्भूत हो जाए ।

(ख) बन्धिकत और तत्पश्चात् बन्धकदार ारा बारह वषर् जब अन्तरण वादी को ज्ञात हो जाए ।
मूल्यवान, पर्ितफलाथर् अन्तिरत स्थावर सम्पि के कब्जे
के पर्त्यु रण के िलए ;
(ग) बन्धक की तुिष्ट हो जाने के पश्चात् बन्धकदार तीन वषर् जब बन्धककतार् बन्धिकत सम्पि पर पुन:पर्वेश
ारा िकए गए अिधशेष संगर्हण की वसूली के िलए । करे ।
62. ऐसे धन के संदाय के पर्वतर्न के िलए, जो बन्धक ारा बारह वषर् जब वह धन, िजसके िलए वाद लाया गया है, शोध्य
पर्ितभूत है या िजसका स्थावर सम्पि पर अन्यथा हो जाए ।
भार है ।
63. बन्धकदार ारा––
(क) पुरोबन्ध के िलए ; तीस वषर् जब बन्धक ारा पर्ितभूत धन शोध्य हो जाए ।
(ख) बन्धिकत सम्पि के कब्जे के िलए । बारह वषर् जब बन्धकदार कब्जे का हकदार हो जाए ।

64. स्थावर सम्पि के कब्जे के िलए, जो पूवर्वत कब्जे के बारह वषर् बेकब्जा िकए जाने की तारीख ।
आधर पर हो और हक के आधार पर न हो जबिक वादी
सम्पि पर कब्जा रखते हुए बेकब्जा कर िदया गया है ।
65. हक के आधार पर स्थावर सम्पि या उसम के िकसी बारह वषर् जब पर्ितवादी का कब्जा वादी के पर्ितकू ल हो
िहत के कब्जे के िलए । जाता है ।
स्पष्टीकरण––इस अनुच्छेद के पर्योजन के िलए––
(क) जहां िक वाद शेषभोगी, या (भू-स्वामी से
िभन्न) उ रभोगी, या वसीयतदार ारा है, वहां
पर्ितवादी का कब्जा के वल तब पर्ितकू ल हो गया समझा
जाएगा जबिक, यथािस्थित, शेषभोगी, उ रभोगी या
वसीयतदार को सम्पदा म कब्जे का हक उद्भूत
होता है ;
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वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


(ख) जहां िक दावा िहन्दू या मुिस्लम नारी की मृत्यु
पर स्थावर सम्पि के कब्जे के हकदार िहन्दू या मुिस्लम
ारा हो, वहां पर्ितवादी का कब्जा के वल तब पर्ितकू ल
हो गया समझा जाएगा जब उस नारी की मृत्यु होती है ;
(ग) जहां िक वाद िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म हुए
िवकर्य के कर्ेता ारा हो, वहां यिद िनण तऋणी िवकर्य
की तारीख को बेकब्जा था, तो कर्ेता उस िनण तऋणी
का पर्ितिनिध समझा जाएगा, जो बेकब्जा था ।
66. स्थावर सम्पि के कब्जे के िलए जबिक वादी िकसी बारह वषर् जब समपहरण उपगत हो या शतर् का भंग िकया
समपहरण या शतर् भंग के कारण कब्जे का हकदार हो जाए ।
गया हो ।
67. भू-स्वामी ारा, अिभधारी से कब्जे के पर्त्यु रण के बारह वषर् जब अिभधारण का अवसान हो जाए ।
िलए ।
भाग 6––जंगम सम्पि सम्बन्धी वाद
68. खोई हुई या चोरी से, या बेईमानी से िकए गए तीन वषर् जब सम्पि के कब्जे के अिधकारी व्यिक्त को पहली
दुिविनयोग या संपिरवतर्न से अिजत िविनिदष्ट जंगम बार यह ज्ञात हो िक वह सम्पि िकसके कब्जे म है ।
सम्पि के िलए ।
69. अन्य िविनिदष्ट जंगम सम्पि के िलए । तीन वषर् जब सम्पि सदोष ले ली जाए ।
70. िनक्षेपधारी या पण्यमदार से िनिक्षप्त या पण्यम रखी तीन वषर् मांग के पश्चात् इन्कार की तारीख ।
गई जंगम सम्पि के पर्त्यु रण के िलए ।
71. िनिक्षप्त या पण्यम रखी गई और तत्पश्चात् िनक्षेपधारी तीन वषर् जब वादी को िवकर्य ज्ञात हो जाए ।
या पण्यमदार से मूल्यवान पर्ितफल के िलए या की गई
जंगम संपि के पर्त्यु रण के िलए ।
भाग 7––अपकृ त्य सम्बन्धी वाद
72. ऐसा कायर् करने के या ऐसे कायर् का लोप करने के एक वषर् जब वह कायर् या लोप घिटत हो ।
िनिम पर्ितकर के िलए, जो उन राज्यक्षेतर् म, जहां इस
अिधिनयम का िवस्तार है, िकसी तत्समय पर्वृ
अिधिनयिमित के अनुसरण म होना अिभकिथत हो ।
73. अपर्ािधकृ त बन्दीकरण के िनिम पर्ितकर के िलए । एक वषर् जब बन्दीकरण का अन्त हो जाए ।
74. िव ष
े पूणर् अिभयोजन के िनिम पर्ितकर के िलए । एक वषर् जब वादी दोषमुक्त हो जाए या अिभयोजन का
अन्यथा पयर्वसान हो जाए ।
75. अपमान-लेख के िनिम पर्ितकर के िलए । एक वषर् जब अपमान-लेख पर्कािशत िकया जाए ।
76. अपमान-वचन के िनिम पर्ितकर के िलए । एक वषर् जब वे शब्द कहे जाएं या यिद शब्द स्वयं अनुयोज्य
नह ह , तो जब पिरवािदत िवशेष नुकसान फलीभूत
जो जाए ।
77. वादी के सेवक या पुतर्ी को िवलुब्ध करने से पहुंची एक वषर् जब हािन पहुंचे ।
सेवाहािन के िनिम पर्ितकर के िलए ।
78. वादी के साथ हुई संिवदा को भंग करने के िलए िकसी एक वषर् भंग की तारीख ।
व्यिक्त को उत्पर्ेिरत करने के िनिम पर्ितकर के िलए ।
79. अवैध, अिनयिमत या अत्यिधक करस्थम् के िनिम एक वषर् करस्थम् की तारीख ।
पर्ितकर के िलए ।
80. वैध आदेिशका के अधीन जंगम सम्पि के सदोष एक वषर् अिभगर्हण की तारीख ।
अिभगर्हण के िनिम पर्ितकर के िलए ।
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वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


81. िनष्पादक , पर्शासक या पर्ितिनिधय ारा िविधक एक वषर् उस व्यिक्त की मृत्यु की तारीख िजसके पर्ित दोष
पर्ितिनिध वाद अिधिनयम, 1855 (1855 का 12) के िकया गया है ।
अधीन ।
82. िनष्पादक , पर्शासक या पर्ितिनिधय ारा भारतीय दो वषर् मार डाले गए व्यिक्त की मृत्यु की तारीख ।
घातक दुघर्टना अिधिनयम, 1855 (1855 का 13) के
अधीन ।
83. िकसी िनष्पादक, पर्शासक या अन्य पर्ितिनिध के िवरु दो वषर् जब पिरवािदत दोष िकया जाए ।
िविधक पर्ितिनिध वाद अिधिनयम, 1855
(1855 का 12) के अधीन ।
84. ऐसे व्यिक्त के िवरु जो, िकसी सम्पि का िविनिदष्ट दो वषर् जब एतद् ारा क्षत व्यिक्त को दुरुपयोजन पहली
पर्योजन के उपयोग करने का अिधकार रखते हुए उसे बार ज्ञात हो ।
अन्य पर्योजन के िलए दुरुपयोजन कर ले ।
85. िकसी मागर् या जलसरणी म बाधा डालने के िनिम तीन वषर् बाधा की तारीख ।
पर्ितकर के िलए ।
86. जलसरणी के मोड़ने के िनिम पर्ितकर के िलए । तीन वषर् मोड़ने की तारीख ।
87. स्थावर सम्पि पर अितचार के िनिम पर्ितकर के तीन वषर् अितचार की तारीख ।
िलए ।
88. पर्ितिलिप-अिधकार या िकसी दूसरे अन्य िवशेषािधकार तीन वषर् अितलंघन की तारीख ।
के अितलंघन के िनिम पर्ितकर के िलए ।
89. दुव्यर्य रोकने के िलए । तीन वषर् जब दुव्यर्य आरम्भ हो ।
90. सदोष अिभपर्ाप्त व्यादेश से कािरत क्षित के िनिम तीन वषर् जब व्यादेश का पिरिवराम हो जाए ।
पर्ितकर के िलए ।
91. पर्ितकर के िलए––

(क) खोई हुई अथवा चोरी से या बेईमानी से िकए तीन वषर् जब सम्पि के कब्जे का अिधकार रखने वाले व्यिक्त
गए दुिविनयोग या संपिरवतर्न से अिजत िविनिदष्ट को यह पहली बार ज्ञात हो िक वह सम्पि िकस के
जंगम सम्पि को सदोष लेने या िनरु करने के िनिम कब्जे म है ;
पर्ितकर के िलए ;
(ख) िकसी अन्य िविनिदष्ट जंगम सम्पि को तीन वषर् जब सम्पि सदोष ली जाए या उसे क्षित की जाए
सदोष लेने या क्षित करने या सदोष िनरु करने लेखे अथवा जब िनरोध करने वाले का कब्जा िविधिवरु
पर्ितकर के िलए । हो जाए ।
भाग 8––न्यास और न्यास सम्पि सम्बन्धी वाद
92. न्यास के रूप म हस्तांतिरत या वसीयत की गई और बारह वषर् जब वह अन्तरण वादी को ज्ञात हो जाए ।
तत्पश्चात् न्यासी ारा मूल्यवान पर्ितफलाथर् अन्तिरत
की गई स्थावर सम्पि के कब्जे के पर्त्यु रण के िलए ।
93. न्यास के रूप म हस्तांतिरत या वसीयत की गई और तीन वषर् जब अन्तरण वादी को ज्ञात हो जाए ।
तत्पश्चात् न्यासी ारा मूल्यवान पर्ितफलाथर् अन्तिरत
की गई जंगम सम्पि के कब्जे के पर्त्यु रण के िलए ।
94. िहन्दू, मुिस्लम या बौ धािमक या खैराती िवन्यास म बारह वषर् जब वह अन्तरण वादी को ज्ञात हो जाए ।
समािवष्ट स्थावर सम्पि के अन्तरण को जो उसके
पर्बन्धक ारा मूल्यवान पर्ितफलाथर् िकया गया है
अपास्त कराने के िलए ।
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वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


95. िहन्दू, मुिस्लम या बौ धािमक या खैराती िवन्यास म तीन वषर् जब वह अन्तरण वादी को ज्ञात हो जाए ।
समािवष्ट जंगम सम्पि के अन्तरण को जो उसके
पर्बन्धक ारा मूल्यवान पर्ितफलाथर् िकया गया है
अपास्त कराने के िलए ।
96. िहन्दू, मुिस्लम या बौ धािमक या खैराती िवन्यास के बारह वषर् अन्तरक की मृत्यु, उसके पद-त्याग या हटाए जाने
पर्बन्धक ारा, िवन्यास म समािवष्ट उस जंगम या की तारीख, या िवन्यास के पर्बन्धक के रूप म वादी
स्थावर सम्पि के कब्जे के पर्त्यु रण के िलए जो की िनयुिक्त की तारीख जो भी पश्चात्वत हो ।
पूवर्तन पर्बन्धक ारा मूल्यवान पर्ितफलाथर् अन्तिरत
कर दी गई है ।
भाग 9––पर्कीणर् िवषय सम्बन्धी वाद
97. शुफा अिधकार के पर्वतर्न के िलए, चाहे वह अिधकार एक वषर् जब कर्ेता उस िवकर्य म िजस पर अिधक्षेप करना
िविध या साधारण पर्था पर चाहे िवशेष संिवदा पर ईिप्सत है, बेची गई सम्पूणर् सम्पि पर या उसके
आधािरत हो । भाग पर भौितक कब्जा करे अथवा जहां िवकर्य की
िवषय-वस्तु ऐसी है िक सम्पूणर् सम्पि या उसके
भाग पर भौितक कब्जा नह हो सकता वहां जब
िवकर्य की िलखत की रिजस्टर्ी की जाए ।
98. उस व्यिक्त ारा, िजसके िवरु िसिवल पर्िकर्या एक वषर् अिन्तम आदेश की तारीख ।
संिहता, 1908 (1908 का 5) के आदेश 21 के 1 [िनयम
63 म या िनयम 103 म िनिदष्ट आदेश] या पर्ेिसडसी
लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1882 (1882 का 5) की
धारा 28 के अधीन आदेश िकया गया है, उस अिधकार
को स्थािपत करने के िलए िजसके अिधकार का वह उस
आदेश म समािवष्ट सम्पि म दावा करता है ।
99. िसिवल या राजस्व न्यायालय ारा िकए गए िवकर्य को एक वषर् जब िवकर्य की पुिष्ट हो जाए या, यिद ऐसा कोई
या सरकारी राजस्व की बकाया के िलए या ऐसी वाद न लाया गया होता, तो जब वह अन्यथा
बकाया के रूप म वसूलीय िकसी मांग के िलए िकए गए अिन्तम और िनश्चायक हो जाता ।
िवकर्य को अपास्त करने के िलए ।
100. वाद से िभन्न कायर्वाही म िसिवल न्यायालय के िकसी एक वषर् यथािस्थित, न्यायालय के अिन्तम िविनश्चय या
िविनश्चय या आदेश को अथवा िकसी सरकारी आदेश की तारीख या आिफसर के कायर् या आदेश
आिफसर के अपनी पदीय हैिसयत म िकए गए िकसी की तारीख ।
कायर् या आदेश को पिरवितत या अपास्त करने
के िलए ।
101. िनणर्य के आधार पर िजसके अन्तगर्त िवदेशी िनणर्य तीन वषर् िनणर्य या मुचलके की तारीख ।
आता है, या मुचलके के आधार पर ।
102. उस सम्पि के िलए िजसे वादी ने उस समय तीन वषर् जब वादी पुन:स्वस्थिच हो जाए और उसे
हस्तान्तिरत िकया है जब वह उन्म था । हस्तान्तरण का ज्ञान हो जाए ।
103. न्यास-भंग से हुई हािन को मृत न्यासी की साधारण तीन वषर् न्यासी की मृत्यु की तारीख या, यिद हािन उस समय
सम्पदा म से पूरा करने के िलए । तक न हुई हो तो हािन की तारीख ।
104. कािलकत: आवत अिधकार को स्थािपत करने के िलए । तीन वषर् जब वादी के अिधकार के उपभोग को पहली बार
नकारा जाए ।
105. िकसी िहन्दू ारा भरण-पोषण की बकाया के िलए । तीन वषर् जब बकाया संदय
े हो ।

1
1964 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा “िनयम 63 या िनयम 103 के अधीन आदेश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है

106. िनष्पादक या पर्शासक के या सम्पदा का िवतरण करने बारह वषर् जब वसीयत-सम्पदा या अंश संदय
े या पिरदेय हो
के िलए वैध रूप से भारसाधन करने वाले िकसी अन्य जाए ।
व्यिक्त के िवरु वसीयत-सम्पदा के िलए या
वसीयतकतार् ारा वसीयत िकए गए िकसी अविशष्ट के
अंश के िलए या िनवर्सीयती की सम्पि के िवतरणीय
अंश के िलए ।
107. आनुवंिशक पद पर कब्जे के िलए । बारह वषर् जब पर्ितवादी उस पद पर वादी के पर्ितकू लत: कब्जा
कर ले ।
स्पष्टीकरण––आनुवंिशक पद पर उस समय कब्जा हो
जाता है, जब उसकी सम्पि यां पर्ाय: पर्ाप्त की जाती ह
या (यिद कोई सम्पि यां नह ह तो) जब उसके कतर्व्य
का पर्ाय: पालन िकया जाता है ।
108. िकसी िहन्दू या मुिस्लम नारी ारा िकए गए भूिम के बारह वषर् उस अन्य संकर्ामण की तारीख ।
अन्य संकर्ामण को उसके जीवनकाल तक के िसवाय या
उसका पुनिववाह होने तक के िसवाय, शून्य घोिषत
कराने के िलए ऐसी नारी के जीवनकाल म उस िहन्दू या
मुिस्लम ारा वाद जो भूिम पर कब्जा करने का हकदार
होगा यिद वाद संिस्थत करने की तारीख को उस नारी
की मृत्यु हो जाए ।
109. िमताक्षरा िविध से शािसत िहन्दू ारा उस अन्य बारह वषर् जब अन्य संकर्ािमत सम्पि का कब्जा ले ले ।
संकर्ामण को, जो उसके िपता ने पैतृक सम्पि का िकया
है अपास्त कराने के िलए ।
110. उस व्यिक्त ारा जो अिवभक्त कु टु म्ब की संपि से बारह वषर् जब अपवजर्न वादी को ज्ञात हो जाए ।
अपविजत िकया गया हो उसम अंश के िकसी अिधकार
को पर्वितत कराने के िलए ।
111. िकसी स्थानीय पर्ािधकारी ारा या उसकी ओर से तीस वषर् बेकब्जा िकए जाने या कब्जा छोड़ देने की तारीख ।
िकसी लोक मागर् या सड़क या उसके िकसी भाग पर
कब्जे के िलए, िजससे िक वह बेकब्जा कर िदया गया हो
या िजस पर कब्जा रखना उसने छोड़ िदया हो ।
112. के न्दर्ीय सरकार के या िकसी राज्य सरकार के िजसके तीस वषर् जब िकसी पर्ाइवेट व्यिक्त ारा लाए गए वैसे ही
अन्तगर्त जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार आती है, ारा वाद म पिरसीमा काल इस अिधिनयम के अधीन
या उसकी ओर से कोई वाद (िसवाय ऐसे वाद के जो चलना आरम्भ हो जाता ।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष उसकी आरिम्भक
अिधकािरता पर्योग म हो) ।
भाग 10––वाद िजनके िलए कोई िविहत पिरसीमा काल नह है
113. कोई भी वाद िजसके िलए कोई पिरसीमा काल इस तीन वषर् जब वाद लाने का अिधकार पर्ोद्भूत हो ।
अनुसच
ू ी म अन्यतर् उपबिन्धत नह है ।
18

दूसरा खण्ड––अपील
वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है
114. दोषमुिक्त के आदेश की अपील––
(क) दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) की नब्बे िदन उस आदेश की तारीख िजसको अपील की गई है ।
धारा 417 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन ;

(ख) उसी संिहता की धारा 417 की उपधारा (3) तीस िदन िवशेष इजाजत के अनुदान की तारीख ।
के अधीन ।

115. दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) के अधीन––


(क) उस मृत्यु दण्डादेश की जो सेशन न्यायालय तीस िदन दण्डादेश की तारीख ।
ारा या अपनी आरिम्भक दािण्डक अिधकािरता के
पर्योग म उच्च न्यायालय ारा पािरत िकया गया है ;
(ख) िकसी अन्य दण्डादेश की या ऐसे आदेश की जो
दोषमुिक्त का आदेश न हो––
(i) उच्च न्यायालय म । साठ िदन दण्डादेश या आदेश की तारीख ।
(ii) िकसी अन्य न्यायालय म । तीस िदन दण्डादेश या आदेश की तारीख ।

116. िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के


अधीन––
(क) िकसी उच्च न्यायालय म, िकसी िडकर्ी या नब्बे िदन िडकर्ी या आदेश की तारीख ।
आदेश की ;

(ख) िकसी अन्य न्यायालय म, िकसी िडकर्ी या तीस िदन िडकर्ी या आदेश की तारीख ।
आदेश की ;

117. िकसी उच्च न्यायाल की िडकर्ी या आदेश के िवरु उसी तीस िदन िडकर्ी या आदेश की तारीख ।
न्यायालय म ।
भाग 1––िविनिदष्ट मामल म आवेदन
118. संिक्षप्त पर्िकर्या के अधीन वाद म उपसंजात होने और दस िदन जब समन की तामील हो ।
पर्ितरक्षा करने की इजाजत के िलए ।
119. माध्यस्थम् अिधिनयम, 1940 (1940 का 10) के
अधीन––
(क) न्यायालय म पंचाट फाइल कराने के िलए ; तीस िदन पंचाट िदए जाने की सूचना की तामील की तारीख ।

(ख) िकसी पंचाट को अपास्त कराने या िकसी तीस िदन पंचाट फाइल िकए जाने की सूचना की तामील की
पंचाट को पुनिवचाराथर् िवपर्ेिषत कराने के िलए । तारीख ।

120. िकसी मृत वादी या अपीलाथ के या मृत पर्ितवादी या नब्बे िदन यथािस्थित वादी, अपीलाथ , पर्ितवादी या पर्त्यथ
पर्त्यथ के िविधक पर्ितिनिध को िसिवल पर्िकर्या की मृत्यु की तारीख ।
संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन पक्षकार बनवाने
के िलए ।
121. उसी संिहता के अधीन उपशमन को अपास्त कराने के साठ िदन उपशमन की तारीख ।
िलए ।
122. उपसंजाित म व्यितकर्म के कारण या अिभयोजन के तीस िदन खािरज होने की तारीख ।
अभाव के कारण या आदेिशका की तामील के खच देने
म असफलता या खच के िलए पर्ितभूित देने म
असफलता के कारण खािरज िकए गए वाद या अपील
या पुनिवलोकन या पुनरीक्षण के िलए आवेदन का
पर्त्यावतर्न कराने के िलए ।
19

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


123. एकपक्षीय पािरत िडकर्ी को अपास्त कराने के िलए या तीस िदन िडकर्ी की तारीख या जहां िक समन या सूचना की
एकपक्षीय िडकर्ीत या सुनी गई अपील की िफर से सम्यक् रूप से तामील नह हुई थी, वहां जब िडकर्ी
सुनवाई के िलए । का ज्ञान आवेदक को हुआ ।
स्पष्टीकरण––िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908
(1908 का 5) के आदेश 5 के िनयम 20 के अधीन
पर्ितस्थािपत तामील इस अनुच्छेद के पर्योजन के िलए
सम्यक् तामील नह समझी जाएगी ।
124. उच्चतम न्यायालय से िभन्न न्यायालय ारा िनणर्य के तीस िदन िडकर्ी या आदेश की तारीख ।
पुनिवलोकन के िलए ।
125. िडकर्ी का समायोजन या तुिष्ट अिभिलिखत कराने के तीस िदन जब संदाय या समायोजन िकया जाए ।
िलए ।
126. िडकर्ी की रकम या संदाय िकस्त म करने के िलए । तीस िदन िडकर्ी की तारीख ।
127. िडकर्ी के िनष्पादन म हुए िवकर्य को अपास्त कराने के 1
[साठ] िवकर्य की तारीख ।
िलए आवेदन िजसके अन्तगर्त िनण त-ऋणी ारा िकया िदन
गया ऐसा आवेदन आता है ।
128. स्थावर सम्पि से बेकब्जा िकए गए और िडकर्ीदार के तीस िदन बेकब्जा िकए जाने की तारीख ।
या िडकर्ी के िनष्पादन म हुए िवकर्य म के कर्ेता के
अिधकार पर िववाद उठाने वाले व्यिक्त ारा कब्जे के
िलए ।
129. िडकर्ीत या िडकर्ी के िनष्पादन म बेची गई स्थावर तीस िदन पर्ितरोध या बाधा की तारीख ।
सम्पि के कब्जे के पिरदान म पर्ितरोध या बाधा हटाने
के पश्चात् कब्जे के िलए ।
130. अिकचन के तौर पर अपील करने की इजाजत
के िलए––
(क) उच्च न्यायालय म ; साठ िदन िडकर्ी की तारीख, िजसको अपील की गई हो ।

(ख) िकसी भी उच्च न्यायालय म । तीस िदन िडकर्ी की तारीख, िजसको अपील की गई हो ।

131. िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) या दण्ड नब्बे िदन िजस िडकर्ी या आदेश या दण्डादेश का पुनरीक्षण
पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) के अधीन ईिप्सत हो उसकी तारीख ।
पुनरीक्षण की उसकी शिक्तय के पर्योग के िलए िकसी
न्यायालय म ।
132. उस पर्माणपतर् के िलए िक मामला उच्चतम न्यायालय साठ िदन िडकर्ी, आदेश या दण्डादेश की तारीख ।
म अपील के योग्य है संिवधान के अनुच्छेद 132 के
खण्ड (1), अनुच्छेद 133 या अनुच्छेद 134 के खण्ड (1)
के उपखण्ड (ग) के अधीन या िकसी अन्य तत्समय पर्वृ
िविध के अधीन उच्च न्यायालय म ।

1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 98 ारा “तीस” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
20

वाद का वणर्न पिरसीमा काल वह समय, जब से काल चलना आरम्भ होता है


133. अपील करने की िवशेष इजाजत के िलए उच्चतम
न्यायालय म,––
(क) उस मामले म िजसम मृत्यु दण्डादेश साठ िदन िनणर्य, अिन्तम आदेश या दण्डादेश की तारीख ।
अन्तविलत हो ;

(ख) उस मामले म िजसम उच्च न्यायालय ारा साठ िदन इन्कार करने के आदेश की तारीख ।
अपील की इजाजत देने से इन्कार िकया गया था ;
(ग) िकसी अन्य मामले म । नब्बे िदन िनणर्य या आदेश की तारीख ।

134. िडकर्ी के िनष्पादन म हुए िवकर्य म के स्थावर सम्पि एक वषर् जब िवकर्य आत्यिन्तक हो जाए ।
के कर्ेता ारा करने के पिरदान के िलए ।
135. आज्ञापक व्यादेश अनुद करने वाली िडकर्ी के पर्वतर्न तीन वषर् िडकर्ी की तारीख, या जहां िक पालन के िलए
के िलए । तारीख िनयत है वहां वह तारीख ।
136. िसिवल न्यायालय की (आज्ञापक व्यादेश अनुद करने बारह वषर् 1
[जब] िडकर्ी या आदेश पर्वतर्नीय हो जाता है,
वाली िडकर्ी से िभन्न) िकसी िडकर्ी या िकसी आदेश के अथवा जहां िक िडकर्ी या कोई पश्चात्वत आदेश
िनष्पादन के िलए । एक िनिश्चत तारीख को या आवत कालाविधय
पर िकसी रुपए का संदाय करने या िकसी सम्पि
का पिरदान करने का िनदेश देता है वहां जब वह
संदाय या पिरदान करने म व्यितकर्म होता है
िजसका िनष्पादन कराने की ईप्सा है :
परन्तु शाश्वत व्यादेश, अनुद करने वाली
िडकर्ी के पर्वतर्न या िनष्पादन के िलए आवेदन िकसी
पिरसीमा काल के अध्यधीन नह होगा ।
भाग 2––अन्य आवेदन
137. कोई अन्य आवेदन िजसके िलए इस खण्ड म अन्यतर् तीन वषर् जब आवेदन करने का अिधकार पर्ोद्भूत होता है ।
कोई पिरसीमा काल उपबंिधत नह है ।

______

1
1964 के अिधिनयम सं० 52 की धारा 3 और अनुसूची ारा “जहां” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।

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