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धारा का कर्म
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धाराएं
पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, पर्ारं भ और िवस्तार ।
2. पिरभाषाएं ।
3. न्यायालय की अधीनस्थता ।
4. ावृि यां ।
5. संिहता का राजस्व न्यायालय को लागू होना ।
6. धन-सम्बन्धी अिधकािरता ।
7. पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय ।
8. पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय ।
भाग 1
धाराएं
वाद का संिस्थत िकया जाना
26. वाद का संिस्थत िकया जाना ।
समन और पर्कटीकरण
27. पर्ितवािदय को समन ।
28. जहां पर्ितवादी िकसी अन्य राज्य म िनवास करता है वहां समन की तामील ।
29. िवदेशी समन की तामील ।
30. पर्कटीकरण और उसके सदृश बात के िलए आदेश करने की शिक्त ।
31. साक्षी को समन ।
32. ितकर्म के िलए शािस्त ।
िनणर्य और डीकर्ी
33. िनणर्य और िडकर्ी ।
ब्याज
34. ब्याज ।
खच
35. खच ।
35क. िमथ्या या तंग करने वाले दाव या पर्ितरक्षा के िलए पर्ितकरात्मक खच ।
35ख. िवलम्ब कािरत करने के िलए खचार् ।
भाग 2
िनष्पादन
साधारण
36. आदेश को लागू होना ।
37. िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय की पिरभाषा ।
वे न्यायालय िजनके ारा िडिकर्यां िनष्पािदत की जा सकगी
38. वह न्यायालय िजसके ारा िडिकर्यां िनष्पािदत की जा सके गी ।
39. िडकर्ी का अन्तरण ।
40. िकसी अन्य राज्य के न्यायालय को िडकर्ी का अन्तरण ।
41. िनष्पादन कायर्वािहय के पिरणाम का पर्मािणत िकया जाना ।
42. अन्तिरत िडकर्ी के िनष्पादन म न्यायालय की शिक्तयां ।
43. िजन स्थान पर इस संिहता का िवस्तार नह है, वहां के िसिवल न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन ।
44. िजन स्थान पर इस संिहता का िवस्तार नह है, वहां के राजस्व न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन ।
44क. ितकारी राज्यक्षेतर् के न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन ।
45. भारत के बाहर िडिकर्य का िनष्पादन ।
46. आज्ञापतर् ।
पर्श्न िजनका अवधारण िडकर्ी का िनष्पादन करने वाला न्यायालय करे गा
47. पर्श्न िजनका अवधारण िडकर्ी का िनष्पादन करने वाला न्यायालय करे गा ।
iii
धाराएं
िनष्पादन के िलए समय की सीमा
48. [िनरिसत ।]
अन्तिरती और िविधक पर्ितिनिध
49. अन्तिरती ।
50. िविधक पर्ितिनिध ।
िनष्पादन-पर्िकर्या
51. िनष्पादन कराने की न्यायालय की शिक्तयां ।
52. िविधक पर्ितिनिध के िवरु िडकर्ी का पर्वतर्न ।
53. पैतृक सम्पि का दाियत्व ।
54. सम्पदा का िवभाजन या अंश का पृथक् करण ।
िगरफ्तारी और िनरोध
55. िगरफ्तारी और िनरोध ।
56. धन की िडकर्ी के िनष्पादन म िस्तर्य की िगरफ्तारी या िनरोध का िनषेध ।
57. जीवन-िनवार्ह भ ा ।
58. िनरोध और छोड़ा जाना ।
59. रुग्णता के आधार पर छोड़ा जाना ।
कु क
60. वह सम्पि , जो िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् और िवकर्य की जा सके गी ।
61. कृ िष-उपज को भागतः छू ट ।
62. िनवास-गृह म सम्पि का अिभगर्हण ।
63. कई न्यायालय की िडिकर्य के िनष्पादन म कु कर् की गई सम्पि ।
64. कु क के पश्चात् सम्पि के पर्ाइवेट अन्य संकर्ामण का शून्य होना ।
िवकर्य
65. कर्ेता का हक ।
66. [िनरिसत ।]
67. धन के संदाय की िडिकर्य के िनष्पादन म भूिम के िवकर्य के बारे म िनयम बनाने की राज्य सरकार की शिक्त ।
स्थावर सम्पि के िवरु िडिकर्य का िनष्पादन करने की शिक्त का कलक्टर को पर्त्यायोजन
68—72. [िनरिसत ।]
आिस्तय का िवतरण
73. िनष्पादन-िवकर्य के आगम का िडकर्ीदार के बीच आनुपाितक रूप से िवतिरत िकया जाना ।
िनष्पादन का पर्ितरोध
74. िनष्पादन का पर्ितरोध ।
भाग 3
आनुषिं गक कायर्वािहयां
कमीशन
75. कमीशन िनकालने की न्यायालय की शिक्त ।
iv
धाराएं
76. अन्य न्यायालय को कमीशन ।
77. अनुरोध-पतर् ।
78. िवदेशी न्यायालय ारा िनकाले गए कमीशन ।
भाग 4
िवशेष कायर्वािहयां
माध्यस्थम्
89. न्यायालय के बाहर िववाद का िनपटारा ।
िवशेष मामला
90. न्यायालय की राय के िलए मामले का कथन करने की शिक्त ।
लोक न्यूसस और लोक पर पर्भाव डालने वाले अन्य दोषपूणर् कायर्]
91. लोक न्यूसस और लोक पर पर्भाव डालने वाले अन्य दोषपूणर् कायर् ।
92. लोक पूतर् कायर् ।
93. पर्ेिसडसी नगर से बाहर महािधवक्ता की शिक्तय का पर्योग ।
भाग 6
अनुपरू क कायर्वािहयां
94. अनुपूरक कायर्वािहयां ।
95. अपयार्प्त आधार पर िगरफ्तारी, कु क या ादेश अिभपर्ाप्त करने के िलए पर्ितकर ।
v
धाराएं
भाग 7
अपील
मूल िडिकर्य की अपील
96. मूल िडकर्ी की अपील ।
97. जहां पर्ारिम्भक िडकर्ी की अपील नह की गई है वहां अिन्तम िडकर्ी की अपील ।
98. जहां कोई अपील दो या अिधक न्यायाधीश ारा सुनी जाए वहां िविनश्चय ।
99. कोई भी िडकर्ी ऐसी गलती या अिनयिमतता के कारण िजससे गुणागुण या अिधकािरता पर पर्भाव नह पड़ता है न तो
उलटी जाएगी और न उपान्तिरत की जाएगी ।
99क. धारा 47 के अधीन तब तक िकसी आदेश को उलटा न जाना या उपान्तिरत न िकया जाना जब तक मामले के िविनश्चय
पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ता है ।
आदेश की अपील
104. वे आदेश िजनकी अपील होगी ।
105. अन्य आदेश ।
106. कौन से न्यायालय अपील सुनगे ।
अपील सम्बन्धी साधारण उपबन्ध
107. अपील न्यायालय की शिक्तयां ।
108. अपीली िडिकर्य और आदेश की अपील म पर्िकर्या ।
उच्चतम न्यायालय म अपील
109. उच्चतम न्यायालय म अपील कब ह गी ।
110. [िनरिसत ।]
111. [िनरिसत ।]
111क. [िनरिसत ।]
112. ावृि यां ।
भाग 8
धाराएं
भाग 9
ऐसे उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म िवशेष जो न्याियक आयुक्त के न्यायालय नह ह
116. इस भाग का कु छ उच्च न्यायालय को ही लागू होना ।
117. संिहता का उच्च न्यायालय को लागू होना ।
118. खच के अिभिनश्चय के पूवर् िडकर्ी का िनष्पादन ।
119. अपर्ािधकृ त व्यिक्त न्यायालय को संबोिधत नह कर सकगे ।
120. आरं िभक िसिवल अिधकािरता म उच्च न्यायालय को उपबन्ध का लागू न होना ।
भाग 10
िनयम
121. पर्थम अनुसच
ू ी म के िनयम का पर्भाव ।
122. िनयम बनाने की कु छ उच्च न्यायालय की शिक्त ।
123. कु छ राज्य म िनयम-सिमितय का गठन ।
124. सिमित उच्च न्यायालय को िरपोटर् करे गी ।
125. िनयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालय की शिक्त ।
126. िनयम का अनुमोदन के अधीन होना ।
127. िनयम का पर्काशन ।
128. वे िवषय िजनके िलए िनयम उपबन्ध कर सकगे ।
129. अपनी आरिम्भक िसिवल पर्िकर्या के सम्बन्ध म िनयम बनाने की उच्च न्यायालय की शिक्त ।
130. पर्िकर्या से िभन्न िवषय के सम्बन्ध म िनयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालय की शिक्त ।
131. िनयम का पर्काशन ।
भाग 11
पर्कीणर्
132. कु छ िस्तर्य को स्वीय उपसंजाित से छू ट ।
133. अन्य व्यिक्तय को छू ट ।
134. िडकर्ी के िनष्पादन म की जाने से अन्यथा िगरफ्तारी ।
135. िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तारी से छू ट ।
135क. िवधायी िनकाय के सदस्य को िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तार िकए जाने और िनरु िकए जाने से
छू ट ।
136. जहां िगरफ्तार िकया जाने वाला व्यिक्त या कु कर् की जाने वाली सम्पि िजले से बाहर है वहां पर्िकर्या ।
137. अधीनस्थ न्यायालय की भाषा ।
138. सा य के अंगर्ेजी म अिभिलिखत िकए जाने की अपेक्षा करने की उच्च न्यायालय की शिक्त ।
139. शपथ-पतर् के िलए शपथ िकसके ारा िदलाई जाएगी ।
140. उ ारण, आिद के मामल म असेसर ।
141. पर्कीणर् कायर्वािहयां ।
142. आदेश और सूचना का िलिखत होना ।
143. डाक महसूल
vii
धाराएं
144. पर्त्यास्थापन के िलए आवेदन ।
145. पर्ितभू के दाियत्व का पर्वतर्न ।
146. पर्ितिनिधय ारा या उनके िवरु कायर्वािहयां ।
147. िनय ग्यता के अधीन व्यिक्तय ारा सहमित या करार ।
148. समय का बढ़ाया जाना ।
148क. के िवयट दायर करने का अिधकार ।
149. न्यायालय-फीस की कमी को पूरा करने की शिक्त ।
150. कारबार का अन्तरण ।
151. न्यायालय की अन्तिनिहत शिक्तय की ावृि ।
152. िनणर्य , िडिकर्य या आदेश का संशोधन ।
153. संशोधन करने की साधारण शिक्त ।
153क. जहां अपील संक्षेपतः खािरज की जाती है वहां िडकर्ी या आदेश का संशोधन करने की शिक्त ।
153ख. िवचारण के स्थान को खुला न्यायालय समझा जाना ।
154. [िनरिसत ।]
155. [िनरिसत ।]
156. [िनरिसत ।]
157. िनरिसत अिधिनयिमितय के अधीन आदेश का चालू रहना ।
158. िसिवल पर्िकर्या संिहता और अन्य िवकिसत अिधिनयिमितय के पर्ित िनदश ।
दूसरी अनुसूची—[िनरिसत ।]
तीसरी अनुसूची—[िनरिसत ।]
चौथी अनुसूची—[िनरिसत ।]
पांचव अनुसच
ू ी—[िनरिसत ।]
उपाबन्ध ।
िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908
(1908 का अिधिनयम संख्यांक 5) 1
[21 माचर्, 1908]
िसिवल न्यायालय की पर्िकर्या से सम्बिन्धत िविधय का समेकन और संशोधन करने के िलए अिधिनयम
यह समीचीन है िक िसिवल न्यायालय की पर्िकर्या से सम्बिन्धत िविधय का समेकन और संशोधन िकया जाए, अतः
एतद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत िकया जाता है :—
पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, पर्ारं भ और िवस्तार—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 है ।
(2) यह सन् 1909 की जनवरी के पर्थम िदन को पर्वृ होगा ।
2
[(3) इसका िवस्तार—
(क) जम्मू-कश्मीर राज्य;
(ख) नागालैण्ड राज्य और जनजाित क्षेतर् ,
के िसवाय सम्पू्णर् भारत पर है ;
परन्तु संबंिधत राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस संिहता के उपबंध का या उनम से िकसी का िवस्तार,
यथािस्थित, सम्पूणर् नागालैण्ड राज्य या ऐसे जनजाित क्षेतर् या उनके िकसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक या पािरणािमक
उपान्तर सिहत कर सके गी जो अिधसूचना म िविनिदिष्ट िकए जाएं ।
1
यह अिधिनयम 1941 के असम अिधिनयम सं० 2 और 1953 के असम अिधिनयम सं० 3 ारा असम को; 1950 के मदर्ास अिधिनयम सं० 34, मदर्ास िविध अनुकूलन
आदेश, 1950 और 1970 के तिमलनाडु अिधिनयम सं० 15 ारा तिमलनाडु को; 1934 के पंजाव अिधिनयम सं० 7 ारा पंजाब को; 1925 के यू०पी० अिधिनयम
सं० 4, 1948 के यू०पी० अिधिनयम सं० 35, 1954 के यू०पी० अिधिनयम सं० 24, 1970 के यूपी अिधिनयम सं० 17, 1976 के यू०पी० अिधिनयम सं० 57 और 1978
के यू०पी० अिधिनयम सं० 31 ारा उ र पर्देश को; 1955 के मैसूर अिधिनयम सं० 14 ारा कनार्टक को; 1957 के के रल अिधिनयम सं० 13 ारा के रल को; 1958 के
राजस्थान अिधिनयम सं० 19 ारा राजस्थान को; 1960 के महारा अिधिनयम सं० 22 और 1970 के महारा अिधिनयम सं० 25 ारा महारा को लागू होने म
संशोिधत िकया गया । इसका िवस्तार बरार लाज ऐक्ट, 1941 (1941 का 4) ारा और शे ूल्ड िडिस्टर्क्ट्स ऐक्ट, 1874 (1874 का 14) की धारा 5 और धारा 5क के
अधीन जारी की गई अिधसूचना ारा बरार पर और िनम्निलिखत अिधसूिचत िजल पर भी िकया गया है :--
(1) जलपाईगुड़ी कछार (उ री कछार पहािड़य को छोड़कर), गोलपाड़ा (पूव ार को सिम्मिलत करते हुए), कामरूप, दारं ग, नौगांव (िमिकर पहाड़ी क्षेतर्
को छोड़कर), िसबसागर (िमिकर पहाड़ी क्षेतर् को छोड़कर), और लखीमपुर (िडबरूगढ़ सीमांत क्षेतर् को छोड़कर) के िजल पर भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909,
भाग 1, पृ० 5 और भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी) 1914 भाग 1 पृ० 1690 ।
(2) दािजिलग िजले और हजारीबाग, रांची पालामाऊ और छोटा नागपुर म मानभूम िजले पर; कलक ा राजपतर् (अंगर्ेजी) 1909 भाग 1, पृ० 25 और भारत
का राजपतर् (अंगर्ेजी) 1909 भाग 1 पृ० 33 ।
(3) कु माऊं तथा गढ़वाल पर्देश और तराई परगना पर (उपान्तरण सिहत) : संयुक्त पर्ान्त राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 3 और भारत का राजपतर्
(अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 31 ।
(4) देहरादून म जौनसर-बावर का परगना और िमजार्पुर िजले के अिधसूिचत भाग पर : संयुक्त पर्ान्त राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 4 और भारत का
राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 32।
(5) कु गर् पर : भारत का राजपतर्, (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 32 ।
(6) पंजाब के अिधसूिचत िजल पर; भारत का राजपतर्, (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 33 ।
(7) मदर्ास के सभी अिधसूिचत िजल पर धारा 36 से 43 तक : भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 152 ।
(8) मध्य पर्ान्त के अिधसूिचत िजल पर इस अिधिनयम के पहले से ही पर्वृ भाग को और उस भाग को छोड़कर िजतना िडकर्ी के िनष्पादन म स्थावर
सम्पि की कु क और िवकर्य को पर्ािधकृ त करता है िकन्तु इसम सम्पि के िवकर्य का िनदेश देने वाली िडकर्ी नह है : भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909 भाग 1,
पृ० 239 ।
(9) अजमेर-मेरवाड़ा पर धारा 1 और 155 से 158 तक को छोड़कर; भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 2, पृ० 480 ।
(10) परगना डालभूम, कल्हान म चाईवासा की नगरपािलका और िसहभूम िजले म पोरहट संपदा पर; कलक ा राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 453
और भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 443 ।
संथाल परगनाज सेिटलमेन्ट रे ग्यूलेशन (1872 का 3) की धारा 3 (3) (क) के अधीन, धारा 38 से 42 तक तथा धारा 156 और पर्थम अनुसूची के आदेश 21 के
िनयम 4 से 9 तक को संथाल परगन म और शेष संिहता की संथाल परगनाज जिस्टस रे ग्यूलेशन, 1893 (1893 का 5) की धारा 10 म िनिदष्ट वाद के िवचारण के िलए
पर्वृ घोिषत कर िदया गया है : कलक ा राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 45 देिखए ।
इसे पंथ पीपलोदा लाज रे ग्यूलेशन, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 ारा पंथ पीपलोदा म; खोण्डमाल लाज रे ग्यूलेशन, 1936 (1936 का 4) की धारा 3 और
अनुसूची ारा खोण्डमाल िजले म, और आंगुल लाज रे ग्यूलेशन, 1936 (1936 का 5) की धारा 3 और अनुसूची ारा आंगुल िजले म पर्वृ घोिषत िकया गया है ।
इसका िवस्तार उड़ीसा रे ग्यूलेशन (1951 का 5) की धारा 2 ारा कोरापुट और गंजाम िजल पर िकया गया है ।
इसका िवस्तार 1950 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 3 ारा (1-1-1957 से) मिणपुर राज्य म; 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा
(1-10-1967 से) सम्पूणर् संघ राज्यक्षेतर् लक्ष ीप पर; 1965 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 3 ारा (15-6-1966 से) गोवा, दमन और दीव पर; 1963 के िविनयम सं० 6
की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-7-1965 से) दादरा और नागर हवेली पर और अिधसूचना सं० का० आ० 599(अ), तारीख 13-8-1984, भारत का राजपतर्,
असाधारण, भाग 2, खंड 3 ारा (1-9-1984 से) िसिक्कम पर िकया गया है ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 2 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
स्पष्टीकरण—इस खण्ड म, “जनजाित क्षेतर्” से वे राज्यक्षेतर् अिभपर्ेत ह जो 21 जनवरी, 1972 के ठीक पहले संिवधान की
छठी अनुसचू ी के पैरा 20 म यथािनिदष्ट असम के जनजाित क्षेतर् म सिम्मिलत थे ।
(4) अमीनदीवी ीपसमूह और आन्धर् पर्देश राज्य म पूव गोदावरी, पिश्चमी गोदावरी और िवशाखापटनम् अिभकरण और
लक्ष ीप संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म, इस संिहता के लागू होने का कोई पर्ितकू ल पर्भाव, यथािस्थित, ऐसे ीपसमूह, अिभकरण या ऐसे
संघ राज्यक्षेतर् म इस संिहता के लागू होने के सम्बन्ध म तत्समय पर्वृ िकसी िनयम या िविनयम के लागू होने पर नह पड़ेगा ।]
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म, जब तक िक िवषय या संदभर् म कोई बात िवरु न हो,—
(1) “संिहता” के अन्तगर्त िनयम आते ह ;
(2) “िडकर्ी” से ऐसे न्यायिनणर्यन की पर्रूिपक अिभव्यिक्त अिभपर्ेत है जो, जहां तक िक वह उसे अिभ क्त करने
वाले न्यायालय से सम्बिन्धत है, वाद म के सभी या िकन्ह िववादगर्स्त िवषय के सम्बन्ध म पक्षकार के अिधकार का
िनश्चयक रूप से अवधारण करता है और वह या तो पर्ारिम्भक या अिन्तम हो सके गी । यह समझा जाएगा िक इसके अन्तगर्त
वादपतर् का नामंजूर िकया जाना और 1 *** धारा 144 के भीतर के िकसी पर्श्न का अवधारण आता है िकन्तु इसके अन्तगर्त,—
(क) न तो कोई ऐसा न्यायिनणर्यन आएगा िजसकी अपील, आदेश की अपील की भांित होती है ; और
(ख) न ितकर्म के िलए खािरज करने का कोई आदेश आएगा ।
स्पष्टीकरण—िडकर्ी तब पर्ारिम्भक होती है जब वाद के पूणर् रूप से िनपटा िदए जा सकने से पहले आगे और
कायर्वािहयां की जानी ह । वह तब अिन्तम होती है जब िक ऐसा न्यायिनणर्यन वाद को पूणर् रूप से िनपटा देता है । वह
भागतः पर्ारिम्भक और भागतः अिन्तम हो सके गी ;
(3) “िडकर्ीदार” से कोई ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है िजसके पक्ष म कोई िडकर्ी पािरत की गई है या कोई िनष्पादन-
योग्य आदेश िकया गया है ;
(4) “िजला” से आरिम्भक अिधकािरता वाले पर्धान िसिवल न्यायालय की (िजसे इसम इसके पश्चात् “िजला
न्यायालय” कहा गया है) अिधकािरता की स्थानीय सीमाएं अिभपर्ेत ह और इसके अन्तगर्त उच्च न्यायालय की मामूली
आरिम्भक िसिवल अिधकािरता की स्थानीय सीमाएं आती ह ;
[(5) “िवदेशी न्यायालय” से ऐसा न्यायालय अिभपर्ेत है जो भारत के बाहर िस्थत है और के न्दर्ीय सरकार के
2
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 3 ारा (1-2-1977 से) “धारा 47 या” शब्द और अंक का लोप िकया गया ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 4 ारा खण्ड (5) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 4 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1953 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 4 और अनुसूची 3 ारा अन्तःस्थािपत ।
3
(12) सम्पि के “अन्तःकालीन लाभ” से ऐसे लाभ पर ब्याज सिहत वे लाभ अिभपर्ेत ह जो ऐसी सम्पि पर
सदोष कब्जा रखने वाले व्यिक्त को उससे वस्तुतः पर्ाप्त हुए ह या िजन्ह वह मामूली तत्परता से उससे पर्ाप्त कर सकता था,
िकन्तु सदोष कब्जा रखने वाले व्यिक्त ारा की गई अिभवृि य के कारण हुए लाभ इसके अन्तगर्त नह आएंगे ;
(13) “जंगम सम्पि ” के अंतगर्त उगती फसल आती ह ;
(14) “आदेश” से िसिवल न्यायालय के िकसी िविनश्चय की पर्रूिपक अिभव्यिक्त अिभपर्ेत है जो िडकर्ी नह है ;
(15) “प्लीडर” से न्यायालय म िकसी अन्य व्यिक्त के िलए उपसंजात होने और अिभवचन करने का हकदार कोई
व्यिक्त अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त अिधवक्ता, वकील और िकसी उच्च न्यायालय का अटन आता है ;
(16) “िविहत” से िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है ;
(17) “लोक अिधकारी” से वह व्यिक्त अिभपर्ेत है जो िनम्निलिखत वणर्न म से िकसी वणर्न के अधीन आता है,
अथार्त् :—
(क) हर न्यायाधीश ;
(ख) 1 [अिखल भारतीय सेवा] का हर सदस्य ;
(ग) 2 [संघ] के सेना, 3 [नौसेना या वायु सेना] का 4 *** हर आयुक्त आिफसर या राजपितर्त आिफसर,
जब तक िक वह सरकार के अधीन सेवा करता रहे ;
(घ) न्यायालय का हर अिधकारी िजसका ऐसे अिधकारी के नाते यह कतर् है िक वह िविध या तथ्य के
िकसी मामले म अन्वेषण या िरपोटर् करे , या कोई दस्तावेज बनाए, अिधपर्मािणत करे , या रखे, या िकसी संपि का
भार संभाले या उस संपि का व्ययन करे , या िकसी न्याियक आदेिशका का िनष्पादन करे , या कोई शपथ गर्हण
कराए, या िनवचर्न करे , या न्यायालय म वस्था बनाए रखे और हर व्यिक्त, िजसे ऐसे कतर् म से िकन्ह का
पालन करने का पर्ािधकार न्यायालय ारा िवशेष रूप से िदया गया है ;
(ङ) हर व्यिक्त जो िकसी ऐसे पद को धारण करता है िजसके आधार पर वह िकसी व्यिक्त को पिररोध म
करने या रखने के िलए सशक्त है ;
(च) सरकार का हर अिधकारी िजसका ऐसे अिधकारी के नाते यह कतर् है िक वह अपराध का िनवारण
करे , अपराध की इि ला दे, अपरािधय को न्याय के िलए उपिस्थत करे , या लोक के स्वास्थ्य, क्षेम या सुिवधा की
संरक्षा करे ;
(छ) हर अिधकारी िजसका ऐसे अिधकारी के नाते यह कतर् है िक वह सरकार की ओर से िकसी
सम्पि को गर्हण करे , पर्ाप्त करे , रखे या य करे , या सरकार की ओर से कोई सवक्षण, िनधार्रण या संिवदा करे ,
या िकसी राजस्व आदेिशका का िनष्पादन करे , या सरकार के धन-सम्बन्धी िहत पर पर्भाव डालने वाले िकसी
मामले म अन्वेषण या िरपोटर् करे , या सरकार के धन-सम्बन्धी िहत से सम्बिन्धत िकसी दस्तावेज को बनाए,
अिधपर्मािणत करे या रखे, या सरकार के धन-सम्बन्धी िहत की संरक्षा के िलए िकसी िविध के ितकर्म को रोके ;
तथा
(ज) हर अिधकारी, जो सरकार की सेवा म है, या उससे वेतन पर्ाप्त करता है, या िकसी लोक कतर् के
पालन के िलए फीस या कमीशन के रूप म पािरशर्िमक पाता है ;
(18) “िनयम” से पहली अनुसूची म अन्तिवष्ट अथवा धारा 122 या धारा 125 के अधीन िनिमत िनयम और पर्रूप
अिभपर्ेत ह ;
(19) “िनगम-अंश” के बारे म समझा जाएगा िक उसके अन्तगर्त स्टाक, िडबचर स्टॉक, िडबचर या बन्धपतर् आते
ह ; तथा
(20) िनणर्य या िडकर्ी की दशा के िसवाय “हस्ताक्षिरत” के अन्तगर्त स्टािम्पत आता है ।
5
* * * *
3. न्यायालय की अधीनस्थता—इस संिहता के पर्योजन के िलए, िजला न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है और िजला
न्यायालय से अवर शर्ेणी का हर िसिवल न्यायालय और हर लघुवाद न्यायालय, उच्च न्यायालय और िजला न्यायालय के अधीनस्थ है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 3 ारा (1-2-1977 से) “भारतीय िसिवल सेवा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा “या नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा “िजनम िहज मैजेस्टी की भारतीय समुदर्ी सेवा भी सिम्मिलत है,” शब्द का लोप िकया गया ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अन्तःस्थािपत खण्ड (21) का 1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 4 ारा लोप िकया गया ।
4
4. ावृि यां—(1) इसके पर्ितकू ल िकसी िविनिदष्ट उपबन्ध के अभाव म, इस संिहता की िकसी भी बात के बारे म यह नह
समझा जाएगा िक वह िकसी िवशेष या स्थानीय िविध को, जो अब पर्वृ है या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा या उसके अधीन
पर्द िकसी िवशेष अिधकािरता या शिक्त को या िविहत पर्िकर्या के िकसी िवशेष रूप को पिरसीिमत करती है या उस पर अन्यथा
पर्भाव डालती है ।
(2) िविशष्टतया और उपधारा (1) म अन्तिवष्ट पर्ितपादना की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, इस संिहता की
िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह िकसी ऐसे उपचार को पिरसीिमत करती है या उस पर अन्यथा पर्भाव डालती
है, िजसे भू-धारक या भू-स्वामी कृ िष-भूिम के भाटक की वसूली ऐसी भूिम की उपज से करने के िलए तत्समय पर्वृ िकसी िविध के
अधीन रखता है ।
5. संिहता का राजस्व न्यायालय को लागू होना—(1) जहां कोई राजस्व न्यायालय पर्िकर्या सम्बन्धी ऐसी बात म िजन पर
ऐसे न्यायालय को लागू कोई िवशेष अिधिनयिमित मौन है, इस संिहता के उपबन्ध ारा शािसत है वहां राज्य सरकार 1 *** राजपतर्
म अिधसूचना ारा यह घोषणा कर सके गी िक उन उपबन्ध के कोई भी पर्भाग, जो इस संिहता ारा अिभ क्त रूप से लागू नह िकए
गए ह, उन न्यायालय को लागू नह ह गे या उन्ह के वल ऐसे उपान्तर के साथ लागू ह गे जैसे राज्य सरकार 2 *** िविहत करे ।
(2) उपधारा (1) म “राजस्व न्यायालय” से ऐसा न्यायालय से ऐसा न्यायालय अिभपर्ेत है जो कृ िष पर्योजन के िलए पर्युक्त
भूिम के भाटक, राजस्व या लाभ से सम्बिन्धत वाद या अन्य कायर्वािहय को गर्हण करने की अिधकािरता िकसी स्थानीय िविध के
अधीन रखता है िकन्तु ऐसे वाद या कायर्वािहय का िवचारण िसिवल पर्कृ ित के वाद या कायर्वािहय के रूप म करने के िलए इस
संिहता के अधीन आरिम्भक अिधकािरता रखने वाला िसिवल न्यायालय इसके अन्तगर्त नह आता ।
6. धन-सम्बन्धी अिधकािरता—अिभ क्त रूप से जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, इसकी िकसी बात का पर्भाव ऐसा नह
होगा िक वह िकसी न्यायालय को उन वाद पर अिधकािरता दे दे िजनकी रकम या िजनकी िवषय-वस्तु का मूल्य उसकी मामूली
अिधकािरता की धन-सम्बन्धी सीमा से (यिद कोई ह ) अिधक है ।
7. पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय—उन न्यायालय पर, जो पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1887 (1887 का 9) के
अधीन 3 [याबरार लघुवाद न्यायालय िविध, 1905 के अधीन] गिठत ह, या उन न्यायालय पर, जो लघुवाद न्यायालय की अिधकािरता
का पर्योग 4 [उक्त अिधिनयम या िविध के अधीन] करते ह 5 [या 6 [भारत के िकसी ऐसे भाग] के , 6[िजस पर उक्त अिधिनयम का
िवस्तार नह ह] उन न्यायालय पर, जो समरूपी अिधकािरता का पर्योग करते है,] िनम्निलिखत उपबन्ध का िवस्तार नह होगा,
अथार्त् :—
(क) इस संिहता के पाठ के उतने अंश का, जो—
(i) उन वाद से संबंिधत है जो लघुवाद न्यायालय के संज्ञान से अपवािदत ह,
(ii) ऐसे वाद म की िडिकर्य के िनष्पादन से संबंिधत है,
(iii) स्थावर सम्पि के िवरु िडिकर्य के िनष्पादन से संबंिधत है, तथा
(ख) िनम्निलिखत धारा का, अथार्त्—
धारा 9 का,
धारा 91 और धारा 92 का,
धारा 94 और धारा 95 का 7 [जहां तक िक वे—]
(i) स्थावर सम्पि की कु क के िलए आदेश ,
(ii) ादेश ,
(iii) स्थावर सम्पि के िरसीवर की िनयुिक्त, अथवा
(iv) धारा 94 के खण्ड (ङ) म िनिदष्ट अन्तवर्त आदेश , को पर्ािधकृ त करती है या उनसे
सम्बिन्धत है, तथा धारा 96 से धारा 112 तक की धारा और धारा 115 का ।
1
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और पहली अनुसूची के भाग 1 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल की पूवर् मंजूरी से” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और पहली अनुसूची के भाग 1 ारा “पूव क्त मंजूरी से” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1941 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और तीसरी अनुसूची ारा अन्तःस्थािपत ।
4
1941 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और तीसरी अनुसूची ारा “उस अिधिनयम के अधीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 5 ारा अन्तःस्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग ख राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1926 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 3 ारा “जहां तक िक वे आदेश और अन्तवर्त आदेश से संबंिधत ह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
8. पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय—धारा 24, धारा 38 से धारा 41 तक की धारा , धारा 75 के खण्ड (क), (ख) और (ग),
धारा 76, 1 [धारा 77, धारा 157 और धारा 158] म तथा पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1882 (1882 का 15) ारा यथा
उपबिन्धत के िसवाय, इस संिहता के पाठ के उपबन्ध का िवस्तार कलक ा, मदर्ास और मुम्बई नगर म स्थािपत िकसी लघुवाद
न्यायालय म के िकसी भी वाद या कायर्वाही पर नह होगा :
2
[परन्तु—
(1) यथािस्थित, फोटर् िविलयम, मदर्ास और मुम्बई के उच्च न्यायालय समय-समय पर राजपतर् म अिधसूचना ारा
िनदेश 3 दे सकगे िक ऐसे िकन्ह भी उपबन्ध का िवस्तार, जो पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1882 (1882 का 15)
के अिभ क्त उपबन्ध से असंगत न ह और ऐसे उपान्तर और अनुकूलन सिहत, जो उस अिधसूचना म िविनिदिष्ट िकए
जाएं, ऐसे न्यायालय म के वाद या कायर्वािहय पर या वाद या कायर्वािहय के िकसी वगर् पर होगा ।
(2) उक्त उच्च न्यायालय म से िकसी के भी ारा पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1882 (1882 का 15)
की धारा 9 के अधीन इसके पहले बनाए गए सभी िनयम िविधमान्यतः बनाए गए समझे जाएंगे ।]
भाग 1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 4 ारा (1-2-1977 से) “धारा 77 और 155 से लेकर 158 तक की धारा ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1914 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
3
िनदेश के ऐसे उदाहरण के िलए कलक ा राजपतर् (अंगर्ेजी), 1910, भाग 1, पृ० 814 देख ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 5 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण को स्पष्टीकरण 1 के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 5 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
6
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या कर्ाउन िरपर्ेजेन्टेिटव” शब्द का लोप िकया गया ।
9
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
स्पष्टीकरण 3—ऊपर िनदिशत िवषय का पूवर्वत वाद म एक पक्षकार ारा अिभकथन और दूसरे ारा अिभ क्त या
िवविक्षत रूप से पर्त्याख्यान या स्वीकृ ित आवश्यक है ।
स्पष्टीकरण 4—ऐसे िकसी भी िवषय के बारे म, जो ऐसे पूवर्वत वाद म पर्ितरक्षा या आकर्मण का आधार बनाया जा सकता
था और बनाया जाना चािहए था, यह समझा जाएगा िक वह ऐसे वाद म पर्त्यक्षतः और सारतः िववा रहा है ।
स्पष्टीकरण 5—वाद पतर् म दावा िकया गया कोई अनुतोष, जो िडकर्ी ारा अिभ क्त रूप से नह िदया गया है, इस धारा के
पर्योजन के िलए नामंजूर कर िदया गया समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण 6—जहां कोई व्यिक्त िकसी लोक अिधकार के या िकसी ऐसे पर्ाइवेट अिधकार के िलए सद्भावपूवक र् मुकदमा
करते ह िजसका वे अपने िलए और अन्य व्यिक्तय के िलए सामान्यतः दावा करते ह वहां ऐसे अिधकार से िहतब सभी व्यिक्तय के
बारे म इस धारा के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक वे ऐसे मुकदमा करने वाले व्यिक्तय से ुत्पन्न अिधकार के अधीन दावा
करते ह ।
[स्पष्टीकरण 7—इस धारा के उपबन्ध िकसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए कायर्वाही को लागू ह गे और इस धारा म िकसी
1
वाद, िववा क या पूवर्वत वाद के पर्ित िनदश का अथर् कर्मशः उस िडकर्ी के िनष्पादन के िलए कायर्वाही, ऐसी कायर्वाही म उठने वाले
पर्श्न और उस िडकर्ी के िनष्पादन के िलए पूवर्वत कायर्वाही के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 8—कोई िववा क जो सीिमत अिधकािरता वाले िकसी न्यायालय ारा, जो ऐसा िववा क िविनिश्चत करने के
िलए सक्षम है, सुना गया है और अिन्तम रूप से िविनिश्चत िकया जा चुका है, िकसी पश्चत्वत वाद म पूवर्-न्याय के रूप म इस बात के
होते हुए भी पर्वृ होगा िक सीिमत अिधकािरता वाला ऐसा न्यायालय ऐसे पश्चात्वत वाद का या उस वाद का िजसम ऐसा िववा क
वाद म उठाया गया है, िवचारण करने के िलए, सक्षम नह था ।]
12. अितिरक्त वाद का वजर्न—जहां वादी िकसी िविशष्ट वाद-हेतुक के सम्बन्ध म अितिरक्त वाद संिस्थत करने से िनयम
ारा पर्वािरत है वहां वह िकसी ऐसे न्यायालय म िजसे यह संिहता लागू है, कोई वाद ऐसे वाद-हेतुक म संिस्थत करने का हकदार
नह होगा ।
13. िवदेशी िनणर्य कब िनश्चयक नह होगा—िवदेशी िनणर्य उसके ारा उन्ह पक्षकार के बीच या उसी हक के अधीन
मुकदमा करने वाले ऐसे पक्षकार के बीच, िजनसे ुत्पन्न अिधकार के अधीन वे या उनम से कोई दावा करते ह, पर्त्यक्षतः न्यायिनण त
िकसी िवषय के बारे म वहां के िसवाय िनश्चयक होगा जहां—
(क) वह सक्षम अिधकािरता वाले न्यायालय ारा नह सुनाया गया है,
(ख) वह मामले के गुणागुण के आधार पर नह िदया गया है,
(ग) कायर्वािहय के सकृ त दशर्ने स्पष्ट है िक वह अन्तरराष्टर्ीय िविध के अशु बोध पर या 2 [भारत] की िविध को
उन मामल म िजनको वह लागू है, मान्यता देने से इं कार करने पर आधािरत है,
(घ) वे कायर्वािहयां, िजनम वह िनणर्य अिभपर्ाप्त िकया गया था, नैसिगक न्याय के िवरु ह,
(ङ) वह कपट ारा अिभपर्ाप्त िकया गया है,
(च) वह 2[भारत] म पर्वृ िकसी िविध के भंग पर आधािरत दावे को ठीक ठहराता है ।
14. िवदेशी िनणर्य के बारे म उपधारणा—न्यायालय िकसी ऐसे दस्तावेज के पेश िकए जाने पर जो िवदेशी िनणर्य की
पर्मािणत पर्ित होना तात्पियत है यिद अिभलेख से इसके पर्ितकू ल पर्तीत नह होता है तो यह उपधारणा करे गा िक ऐसा िनणर्य सक्षम
अिधकािरता वाले न्यायालय ारा सुनाया गया था िकन्तु ऐसी उपधारणा को अिधकािरता का अभाव सािबत करके िवस्थािपत िकया
जा सके गा ।
वाद करने का स्थान
15. वह न्यायालय िजसम वाद संिस्थत िकया जाए—हर वाद उस िनम्नतम शर्ेणी के न्यायलय म संिस्थत िकया जाएगा जो
उसका िवचारण करने के िलए सक्षम है ।
16. वाद का वहां संिस्थत िकया जाना जहां िवषय-वस्तु िस्थत है—िकसी िविध ारा िविहत धन-सम्बन्धी या अन्य
पिरसीमा के अधीन रहते हुए, वे वाद जो—
(क) भाटक या लाभ के सिहत या रिहत स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के िलए,
(ख) स्थावर सम्पि के िवभाजन के िलए,
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 5 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
(ग) स्थावर सम्पि के बन्धक की या उस पर के भार की दशा म पुरोबन्ध, िवकर्य या मोचन के िलए,
(घ) स्थावर सम्पि म के िकसी अन्य अिधकार या िहत के अवधारण के िलए,
(ङ) स्थावर सम्पि के पर्ित िकए गए दोष के िलए पर्ितकर के िलए,
(च) करस्थम् या कु क के वस्तुतः अधीन जंगम सम्पि के पर्त्यु रण के िलए,
ह, उस न्यायालय म संिस्थत िकए जाएंगे िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर वह सम्पि िस्थत है :
परन्तु पर्ितवादी के ारा या िनिम धािरत स्थावर सम्पि के सम्बन्ध म अनुतोष की या ऐसी सम्पि के पर्ित िकए गए दोष
के िलए पर्ितकर की अिभपर्ािप्त के िलए वाद, जहां चाहा गया अनुतोष उसके स्वीय आज्ञानुवतर्न के ारा पूवर् रूप से अिभपर्ाप्त िकया जा
सकता है, उस न्यायालय म िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर सम्पि िस्थत है या उस न्यायालय म िजसकी
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर पर्ितवादी वास्तव म और स्वेच्छा से िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभ के
िलए स्वयं काम करता है, संिस्थत िकया जा सके गा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “सम्पि ” से 1 [भारत] म िस्थत सम्पि अिभपर्ेत है ।
17. िविभन्न न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िस्थत स्थावर सम्पि के िलए वाद—जहां वाद िविभन्न न्यायालय की
अिधकािरता के भीतर िस्थत स्थावर सम्पि के सम्बन्ध म अनुतोष की या ऐसी सम्पि के िलए िकए गए दोष के िलए पर्ितकर की
अिभपर्ािप्त के िलए है वहां वह वाद िकसी भी ऐसे न्यायालय म संिस्थत िकया जा सके गा िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के
भीतर सम्पि का कोई भाग िस्थत है :
परन्तु यह तब जबिक पूरा दावा उस वाद की िवषय-वस्तु के मूल्य की दृिष्ट से ऐसे न्यायालय ारा संज्ञय
े है ।
18. जहां न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमाएं अिनिश्चत ह वहां वाद के संिस्थत िकए जाने का स्थान—(1) जहां
यह अिभकथन िकया जाता है िक यह अिनिश्चत है िक कोई स्थावर सम्पि दो या अिधक न्यायालय म से िकस न्यायालय की
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िस्थत है वहां उन न्यायालय म से कोई भी एक न्यायालय, यिद उसका समाधान हो जाता
है िक अिभकिथत अिनिश्चतता के िलए आधार है, उस भाव का कथन अिभिलिखत कर सके गा, और तब उस सम्पि से सम्बिन्धत िकसी
भी वाद को गर्हण करने और उसका िनपटारा करने के िलए आगे कायर्वाही कर सके गा, और उस वाद म उसकी िडकर्ी का वही पर्भाव
होगा मानो वह सम्पि उसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िस्थत हो :
परन्तु यह तब जबिक वह वाद ऐसा है िजसके सम्बन्ध म न्यायालय उस वाद की पर्कृ ित और मूल्य की दृिष्ट से अिधकािरता
का पर्योग करने के िलए सक्षम है ।
(2) जहां कथन उपधारा (1) के अधीन अिभिलिखत नह िकया गया है और िकसी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय के सामने
यह आक्षेप िकया जाता है िक ऐसी सम्पि से सम्बिन्धत वाद म िडकर्ी या आदेश ऐसे न्यायालय ारा िकया गया था िजसकी वहां
अिधकािरता नह थी जहां सम्पि िस्थत है वहां अपील या पुनरीक्षण न्यायालय उस आक्षेप को तब तक अनुज्ञात नह करे गा जब तक
िक उसकी राय न हो िक वाद के संिस्थत िकए जाने के समय उसके सम्बन्ध म अिधकािरता रखने वाले न्यायालय के बारे म अिनिश्चतता
के िलए कोई युिक्तयुक्त आधार नह था उसके पिरणामस्वरूप न्याय की िनष्फलता हुई है ।
19. शरीर या जंगम सम्पि के पर्ित िकए गए दोष के िलए पर्ितकर के िलए वाद—जहां वाद शरीर या जंगम सम्पि के पर्ित
िकए गए दोष के िलए पर्ितकर के िलए है वहां यिद दोष एक न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िकया गया था
और पर्ितवादी िकसी अन्य न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करता है या कारबार करता है या
अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है तो वाद वादी के िवकल्प पर उक्त न्यायालय म से िकसी भी न्यायालय म संिस्थत िकया जा
सके गा ।
दृष्टांत
(क) िदल्ली म िनवास करने वाला क कलक े म ख को पीटता है । ख कलक े म या िदल्ली म क पर वाद
ला सके गा ।
(ख) ख की मानहािन करने वाले कथन िदल्ली म िनवास करने वाला क कलक े म पर्कािशत करता है । ख कलक े म या
िदल्ली म क पर वाद ला सके गा ।
20. अन्य वाद वहां संिस्थत िकए जा सकगे जहां पर्ितवादी िनवास करते ह या वाद-हेतक
ु पैदा होता है—पूव क्त पिरसीमा
के अधीन रहते हुए, हर वाद ऐसे न्यायालय म संिस्थत िकया जाएगा िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर—
(क) पर्ितवादी, या जहां एक से अिधक पर्ितवादी ह वहां पर्ितवािदय म से हर एक वाद के पर्ारम्भ के समय वास्तव
म और स्वेच्छा से िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है ; अथवा
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
(ख) जहां एक से अिधक पर्ितवादी ह वहां पर्ितवािदय म से कोई भी पर्ितवादी वाद के पर्ारम्भ के समय वास्तव म
और स्वेच्छा से िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है, परन्तु यह तब जबिक ऐसी
अवस्था म या तो न्यायालय की इजाजत दे दी गई है या जो पर्ितवादी पूव क्त रूप म िनवास नह करते या कारबार नह
करते या अिभलाभ के िलए स्वयं काम नह करते, वे ऐसे संिस्थत िकए जाने के िलए उपमत हो गए ह; अथवा
(ग) वाद-हेतुक पूणर्तः या भागतः पैदा होता है ।
1* * * *
[स्पष्टीकरण]—िनगम के बारे म यह समझा जाएगा िक वह 3 [भारत] म के अपने एकमातर् या पर्धान कायार्लय म या िकसी
2
ऐसे वाद-हेतुक की बाबत, जो ऐसे िकसी स्थान म पैदा हुआ है जहां उसका अधीनस्थ कायार्लय भी है, ऐसे स्थान म कारबार करता है ।
दृष्टांत
(क) क कलक े म एक ापारी है । ख िदल्ली म कारबार करता है । ख कलक े के अपने अिभकतार् के ारा क से माल
खरीदता है और ईस्ट इं िडयन रे ल कम्पनी को उनका पिरदान करने को क से पर्ाथर्ना करता है । क तद्नुसार माल का पिरदान कलक े म
करता है । क माल की कीमत के िलए ख के िवरु वाद या तो कलक े म जहां वाद-हेतुक पैदा हुआ है, या िदल्ली म जहां ख कारबार
करता है, ला सके गा
(ख) क िशमला म, ख कलक े म और ग िदल्ली म िनवास करता है । क, ख और ग एक साथ बनारस म ह जहां ख और ग
मांग पर देय एक संयुक्त वचनपतर् तैयार करके उसे क को पिरद कर देते ह । ख और ग पर क बनारस म वाद ला सके गा, जहां वाद-
हेतुक पैदा हुआ । वह उन पर कलक े म भी, जहां ख िनवास करता है, या िदल्ली म भी, जहां ग िनवास करता है, वाद ला सके गा,
िकन्तु इन अवस्था म से हर एक म यिद अिनवासी पर्ितवादी आक्षेप करे , तो वाद न्यायालय की इजाजत के िबना नह चल सकता ।
21. अिधकािरता के बारे म आक्षेप— 4 [(1)] वाद लाने के स्थान के सम्बन्ध म कोई भी आक्षेप िकसी भी अपील या पुनरीक्षण
न्यायालय ारा तब तक अनुज्ञात नह िकया जाएगा जब तक िक ऐसा आक्षेप पर्थम बार के न्यायालय म यथासंभव सवर्पर्थम अवसर पर
और उन सभी मामल म, िजनम िववा क िस्थर िकए जाते ह, ऐसे िस्थरीकरण के समय या उसके पहले न िकया गया हो और जब तक
िक उसके पिरणामस्वरूप न्याय की िनष्फलता न हुई हो ।
िकसी न्यायालय की अिधकािरता की धन-सम्बन्धी पिरसीमा के आधार पर उसकी सक्षमता के बारे म कोई आक्षेप
5 [(2)
िकसी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय ारा तब तक अनुज्ञा नह िकया जाएगा जब तक िक ऐसा आक्षेप पर्थम बार के न्यायालय म
यथासंभव सवर्पर्थम अवसर पर और उन सभी मामल म, िजनम िववा क िस्थर िकए जाते ह, ऐसे िस्थरीकरण के समय या उसके पहले
न िकया गया हो और जब तक िक उसके पिरणामस्वरूप न्याय की िनष्फलता न हुई हो ।
(3) िकसी िनष्पादन-न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के आधार पर उसकी सक्षमता के बारे म कोई आक्षेप
अपील या पुनरीक्षण न्यायालय ारा तब तक अनुज्ञा नह िकया जाएगा जब तक िक ऐसा आक्षेप िनष्पादन-न्यायालय म यथासंभव
सवर्पर्थम अवसर पर न िकया गया हो और जब तक िक उसके पिरणास्वरूप न्याय की िनष्फलता न हुई हो ।]
[21क. वाद लाने के स्थान के बारे म आक्षेप पर िडकर्ी को अपास्त करने के िलए वाद का वजर्न—उसी हक के अधीन मुकदमा
6
करने वाले उन्ह पक्षकार के बीच या ऐसे पक्षकार के बीच िजनसे ुत्पन्न अिधकार के अधीन वे या उनम से कोई दावा करते ह, िकसी
पूवर्वत वाद म पािरत िडकर्ी की िविधमान्यता को वाद लाने के स्थान के बारे म िकसी आक्षेप के आधार पर पर्श्नगत करने वाला कोई
वाद नह लाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण—“पूवर्वत वाद” पद से वह वाद अिभपर्ेत है जो उस वाद के िविनश्चय के पहले िविनिश्चत हो चुका है िजनम
िडकर्ी की िविधमान्यता का पर्श्न उठाया गया है, चाहे पूवर्तन िनिश्चत वाद उस वाद से पहले संिस्थत िकया गया हो या बाद म िजसम
िडकर्ी की िविधमान्यता का पर्श्न उठाया गया है ।]
22. जो वाद एक से अिधक न्यायालय म संिस्थत िकए जा सकते ह उनको अन्तिरत करने की शिक्त—जहां कोई वाद दो या
अिधक न्यायालय म से िकसी एक म संिस्थत िकया जा सकता है और ऐसे न्यायालय म से िकसी एक म संिस्थत िकया गया है वहां
कोई भी पर्ितवादी अन्य पक्षकार को सूचना देने के पश्चत् यथासंभव सवर्पर्थम अवसर पर और उन सब मामल म, िजनम िववा क
िस्थर िकए जाते ह, ऐसे िस्थरीकरण के समय या उसके पहले िकसी अन्य न्यायालय को वाद अन्तिरत िकए जाने के िलए आवेदन कर
सके गा और वह न्यायालय, िजससे ऐसा आवेदन िकया गया है, अन्य पक्षकार के (यिद कोई ह ) आक्षेप पर िवचार करने के पश्चात् यह
अवधािरत करे गा िक अिधकािरता रखने वाले कई न्यायालय म से िकस न्यायालय म वाद चलेगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 7 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण 1 का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 7 ारा (1-2-1977 से) “स्पष्टीकरण 2” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 8 ारा (1-2-1977 से) धारा 21 उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 8 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 9 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
9
23. िकस न्यायालय म आवेदन िकया जाए—(1) जहां अिधकािरता रखने वाले कई न्यायालय एक ही अपील न्यायालय के
अधीनस्थ ह वहां धारा 22 के अधीन आवेदन अपील न्यायालय म िकया जाएगा ।
(2) जहां ऐसे न्यायालय िविभन्न अपील न्यायालय के अधीन होते हुए भी एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ ह वहां वह
आवेदन उक्त उच्च न्यायालय म िकया जाएगा ।
(3) जहां ऐसे न्यायालय िविभन्न उच्च न्यायालय के अधीनस्थ ह वहां आवेदन उस उच्च न्यायलय म िकया जाएगा िजसकी
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर वह न्यायालय िस्थत है िजसम वाद लाया गया है ।
24. अन्तरण और पर्त्याहरण की साधारण शिक्त—(1) िकसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकार को सूचना देने के
पश्चत् और उनम से जो सुनवाई के इच्छु क ह उनको सुनने के पश्चत् या ऐसी सूचना िदए िबना स्वपर्ेरणा से, उच्च न्यायालय या िजला
न्यायालय िकसी भी पर्कर्म म—
(क) ऐसे िकसी वाद, अपील या अन्य कायर्वाही को, जो उसके सामने िवचारण या िनपटारे के िलए लिम्बत है,
अपने अधीनस्थ ऐसे िकसी न्यायालय को, अन्तिरत कर सके गा जो उसका िवचारण करने या उसे िनपटाने के िलए सक्षम है,
अथवा
(ख) अपने अधीनस्थ िकसी न्यायालय म लिम्बत िकसी वाद, अपील या अन्य कायर्वाही का पर्त्याहरण कर सके गा,
तथा—
(i) उसका िवचारण या िनपटारा कर सके गा ; अथवा
(ii) अपने अधीनस्थ ऐसे िकसी न्यायालय को उसका िवचारण या िनपटारा करने के िलए अन्तिरत कर
सके गा, जो उसका िवचारण करने या उसे िनपटाने के िलए सक्षम है ; अथवा
(iii) िवचारण या िनपटारा करने के िलए उसी न्यायालय को उसका पर्त्यन्तरण कर सके गा, िजससे
उसका पर्त्याहरण िकया गया था ।
(2) जहां िकसी वाद या कायर्वाही का अन्तरण या पर्त्याहरण उपधारा (1) के अधीन िकया गया है वहां वह न्यायालय, िजसे
वाद या कायर्वाही का तत्पश्चत् िवचारण करना है या उसे िनपटाना है] अन्तरण आदेश म िदए गए िवशेष िनदेश के अधीन रहते
1 [ऐसे
हुए या तो उसका पुनः िवचारण कर सके गा या उस पर्कर्म से आगे कायर्वाही करे गा जहां से उसका अन्तरण या पर्त्याहरण िकया
गया था ।
2
[(3) इस धारा के पर्योजन के िलए, —
(क) अपर और सहायक न्यायाधीश के न्यायालय, िजला न्यायालय के अधीनस्थ समझे जाएंगे ;
(ख) “कायर्वाही” के अन्तगर्त िकसी िडकर्ी या आदेश के िनष्पादन के िलए कायर्वाही भी है ।]
(4) िकसी लघुवाद न्यायालय से इस धारा के अधीन अन्तिरत या पर्त्याहृत िकसी वाद का िवचारण करने वाला न्यायालय ऐसे
वाद के पर्योजन के िलए लघुवाद न्यायालय समझा जाएगा ।
[(5) कोई वाद या कायर्वाही उस न्यायालय से इस धारा के अधीन अन्तिरत की जी सके गी िजसे उसका िवचारण करने की
3
अिधकािरता नह है ।]
[25. वाद आिद के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय की शिक्त—(1) िकसी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकार को
4
सूिचत करने के पश्चत् और उनम से जो सुनवाई के इच्छु क ह उनको सुनने के पश्चत् यिद उच्चतम न्यायालय का िकसी भी पर्कर्म पर
यह समाधान हो जाता है िक न्याय की पर्ािप्त के िलए इस धारा के अधीन आदेश देना समीचीन है तो वह यह िनदेश दे सके गा िक िकसी
राज्य के िकसी उच्च न्यायालय या अन्य िसिवल न्यायालय से िकसी अन्य राज्य के िकसी उच्च न्यायालय या अन्य िसिवल न्यायालय को
कोई वाद, अपील या अन्य कायर्वाही अन्तिरत कर दी जाए ।
(2) इस धारा के अधीन पर्त्येक आवेदन समावेदन के ारा िकया जाएगा और उसके अनुसमथर्न म एक शपथपतर् होगा ।
(3) वह न्यायालय िजसको ऐसा वाद, अपील या अन्य कायर्वाही अन्तिरत की गई है, अन्तरण आदेश म िदए गए िवशेष
िनदेश के अधीन रहते हुए, या तो उसका पुनः िवचारण करे गा या उस पर्कर्म से आगे कायर्वाही करे गा िजस पर वह उसे अन्तिरत िकया
गया था ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 10 ारा (1-2-1977 से) “ऐसे वाद का तत्पश्चात् िवचारण करना है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 10 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 10 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 11 ारा (1-2-1977 से) धारा 25 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
(4) इस धारा के अधीन आवेदन को खािरज करते हुए यिद उच्चतम न्यायालय की यह राय है िक आवेदन तुच्छ था या तंग
करने वाला था तो वह आवेदक को यह आदेश दे सके गा िक वह उस व्यिक्त को िजसने आवेदन का िवरोध िकया है, पर्ितकर के रूप म दो
हजार रुपए से अनिधक ऐसी रािश संद करे जो न्यायालय मामले की पिरिस्थितय म उिचत समझे ।
(5) इस धारा के अधीन अन्तिरत वाद, अपील या अन्य कायर्वाही को लागू होने वाली िविध वह िविध होगी जो वह
न्यायालय िजसम वह वाद, अपील या अन्य कायर्वाही मूलतः संिस्थत की गई थी, ऐसे वाद, अपील या अन्य कायर्वाही को लागू करता ।]
वाद का संिस्थत िकया जाना
26. वाद का संिस्थत िकया जाना— 1 [(1)] हर वाद वादपतर् को उपिस्थत करके , या ऐसे अन्य पर्कार से, जैसा िविहत िकया
जाए, संिस्थत जाएगा ।
1
[(2) पर्त्येक वादपतर् म तथ्य शपथपतर् ारा सािबत िकए जाएंगे ।]
2
[परं तु ऐसा कोई शपथपतर्, आदेश 6, िनयम 15क के अधीन यथािविहत पर्रूप और रीित म होगा ।]
समन और पर्कटीकरण
27. पर्ितवािदय को समन—जहां कोई वाद सम्यक् रूप से संिस्थत िकया जा चुका है वहां उपसंजात होने और दावे का उ र
देने के िलए समन पर्ितवादी के नाम िनकाला जा सके गा 3 [और उसकी तामील ऐसे िदन को, जो वाद के संस्थापन की तारीख से तीस
िदन से बाद का न हो, िविहत रीित से की जा सके गी ।]
28. जहां पर्ितवादी िकसी अन्य राज्य म िनवास करता है वहां समन की तामील—(1) समन अन्य राज्य म तामील िकए जाने
के िलए ऐसे न्यायालय को और ऐसी रीित से भेजा जा सके गा जो उस राज्य म पर्वृ िनयम ारा िविहत की जाए ।
(2) वह न्यायालय िजसे ऐसा समन भेजा जाता है, उसकी पर्ािप्त पर आगे ऐसे कायर्वाही करे गा मानो वह उस न्यायालय ारा
ही िनकाला गया हो और तब वह उस समन को तथा उसके बारे म अपनी कायर्वािहय के अिभलेख को (यिद कोई हो) उसे िनकालने
वाले न्यायालय को लौटाएगा ।
[(3) जहां िकसी दूसरे राज्य म तामील के िलए भेजे गए समन की भाषा उपधारा (2) म िनिदष्ट अिभलेख की भाषा से िभन्न
4
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 2 ारा (1-7-2002 से) धारा 26 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 3 ारा (1-7-2002 से) अंत:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 12 ारा (1-5-1977 से) अन्तःस्थािपत
5
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 6 ारा धारा 29 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
(ख) ऐसे व्यिक्तय के नाम समन िनकाल सके गा िजनकी हािजरी या तो सा य देने या दस्तावेज पेश करने या
पूव क्त जैसे अन्य पदाथ को पेश करने के िलए अपेिक्षत ह ;
(ग) यह आदेश दे सके गा िक कोई तथ्य शपथपतर् ारा सािबत िकया जाए ।
31. साक्षी को समन—धारा 27, धारा 28 और धारा 29 के उपबन्ध सा य देने या दस्तावेज या अन्य भौितक पदाथ के पेश
करने के िलए समन को लागू ह गे ।
32. ितकर्म के िलए शािस्त—न्यायालय िकसी ऐसे व्यिक्त को िजसके नाम धारा 30 के अधीन समन िनकाला गया है,
हािजर होने के िलए िववश कर सके गा और उस पर्योजन के िलए—
(क) उसकी िगरफ्तारी के िलए वारण्ट िनकाल सके गा ;
(ख) उसकी सम्पि को कु कर् कर सके गा और उसका िवकर्य कर सके गा ;
(ग) उसके ऊपर 1 [पांच हजार रुपए से अनिधक] जुमार्ना अिधरोिपत कर सके गा ;
(घ) उसे आदेश दे सके गा िक वह अपनी उपसंजाित के िलए पर्ितभूित दे और ितकर्म करने पर उसको िसिवल
कारागार को सुपुदर् कर सके गा ।
िनणर्य और डीकर्ी
33. िनणर्य और िडकर्ी—न्यायालय मामले की सुनवाई हो चुकने के पश्चात् िनणर्य सुनाएगा और ऐसे िनणर्य के अनुसरण म
िडकर्ी होगी ।
ब्याज
34. ब्याज—(1) जहां और जहां तक िक िडकर्ी धन के संदाय के िलए है, न्यायालय िडकर्ी म यह आदेश दे सके गा िक
न्यायिनण त मूल रािश पर िकसी ऐसे ब्याज के अितिरक्त जो ऐसी मूल रािश पर वाद संिस्थत िकए जाने से पू्वर् की िकसी अविध के
िलए न्यायिनण त हुआ है, वाद की तारीख से िडकर्ी की तारीख तक ब्याज, ऐसी दर से जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे, 2 [ऐसी मूल
रािश पर] िडकर्ी की तारीख से संदाय की तारीख तक या ऐसी पूवर्तर तारीख तक जो न्यायालय ठीक समझे, 2[छह पर्ितशत पर्ित वषर् से
अनिधक ऐसी दर से जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे, आगे के ब्याज सिहत,] िदया जाए :
जहां इस पर्कार न्यायिनण त रािश के संबंध म दाियत्व िकसी वािणिज्यक सं वहार से उद्भूत हुआ था वहां ऐसे आगे
3 [परन्तु
के ब्याज की दर छह पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से अिधक हो सकती है, िकन्तु ऐसी दर ब्याज की संिवदात्मक दर से या जहां कोई
संिवदात्मक दर नह है वहां उस दर से अिधक नह होगी िजस पर वािणिज्यक सं वहार के संबध ं म राष्टर्ीयकृ त बक धन उधार या
अिगर्म देते ह ।]
स्पष्टीकरण 1—इस उपधारा म “राष्टर्ीकृ त बक” से बककारी कम्पनी (उपकर्म का अजर्न और अन्तरण) अिधिनयम, 1970
(1970 का 5) म यथापिरभािषत तत्स्थानी नया बक अिभपर्ेत है ।
स्पष्टीकरण 2—इस धारा के पर्योजन के िलए, कोई सं वहार वािणिज्यक सं वहार है, यिद वह दाियत्व उपगत करने वाले
पक्षकार के उ ोग, ापार या कारबार से सम्बिन्धत है ।]
(2) जहां 2[ऐसी मूल रािश पर] िडकर्ी की तारीख से संदाय की तारीख तक या अन्य पूवर्तर तारीख तक आगे के ब्याज के संदाय
के संबंध म ऐसी िडकर्ी मौन है वहां यह समझा जाएगा िक न्यायालय ने ऐसा ब्याज िदलाने से इन्कार कर िदया है और उसके िलए पृथक्
वाद नह होगा ।
खच
खच—(1) न्यायालय को, िकसी वािणिज्यक िववाद के संबंध म, तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध या िनयम म अंतिवष्ट
4 [35.
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 4 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 2 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 13 ारा (1-7-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
4
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
12
कायर्वाही म 2 [िजसके अन्तगर्त िनष्पादन कायर्वाही आती है िकन्तु 3 [अपील या पुनरीक्षण नह आता है]] कोई पक्षकार दावे या पर्ितरक्षा
के बारे म इस आधार पर आक्षेप करता है िक दावा या पर्ितरक्षा या उसका कोई भाग, जहां तक वह आक्षेपकतार् के िवरु है, वहां तक
उस पक्षकार के ज्ञान म िमथ्या या तंग करने वाला है, िजसके ारा वह िकया गया है, और तत्पश्चात् यिद ऐसा दावा या ऐसी पर्ितरक्षा
वहां तक पूणर्तः या भागतः नामंजूर, पिरत्यक्त या पर्त्याहृत की जाती है जहां तक वह आक्षेपकतार् के िवरु है, तो न्यायालय, 4 [यिद वह
ठीक समझे तो,] ऐसे दावे या पर्ितरक्षा को िमथ्या या तंग करने वाली ठहराने के िलए अपने कारण को अिभिलिखत करने के पश्चात्
1
1922 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 2 ारा धारा 35क का अन्तःस्थापन िकया गया था, िजसे उसकी धारा 1 (2) के अधीन िकसी भी राज्य म िकसी िविनिदष्ट तारीख
को राज्य सरकार ारा पर्वृ िकया जा सके गा । इसे मुम्बई, बंगाल, संयुक्त पर्ान्त, पंजाब, िबहार, मध्य पर्ान्त, असम, उड़ीसा और मदर्ास म इस पर्कार पर्वृ िकया
गया है ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 4 ारा “जो अपील नह है” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० की 104 धारा 14 ारा (1-2-1977 से) “िजसम से अपील अपविजत है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० की 66 धारा 4 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
यह आदेश कर सके गा िक आक्षेपकतार् को पर्ितकर के रूप म खच का संदाय वह पक्षकार करे िजसके ारा ऐसा दावा या पर्ितरक्षा की गई
है ।]
1
* * * * *
(3) कोई भी व्यिक्त, िजसके िवरु इस धारा के अधीन आदेश िकया गया है, इस कारण से कोई छू ट िकसी ऐसे आपरािधक
दाियत्व से नह पाएगा, जो उसके ारा िकए गए िकसी दावे या पर्ितरक्षा के संबंध म है ।
(4) िकसी िमथ्या या तंग करने वाले दावे या पर्ितरक्षा के संबंध म इस धारा के अधीन अिधिनण त िकसी पर्ितकर की रकम को
ऐसे दावे या पर्ितरक्षा के संबंध म नुकसानी या पर्ितकर के िलए िकए गए िकसी पश्चात्वत वाद म िहसाब म िलया जाएगा ।
[35ख. िवलम्ब कािरत करने के िलए खचार्—(1) यिद िकसी वाद की सुनवाई के िलए या उसम कोई कायर्वाही करने के िलए
2
िनष्पादन
साधारण
आदेश को लागू होना—इस संिहता के िडिकर्य के िनष्पादन से सम्बिन्धत उपबन्ध के बारे म (िजनके अन्तगर्त िडकर्ी
3 [36.
के अधीन संदाय से संबंिधत उपबन्ध भी ह) यही समझा जाएगा िक वे आदेश के िनष्पादन को (िजनके अन्तगर्त आदेश के अधीन संदाय
भी ह) वहां तक लागू ह जहां तक िक वे उन्ह लागू िकए जा सकगे ।]
37. िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय की पिरभाषा—जब तक िक कोई बात, िवषय या संदभर् म िवरु न हो, िडिकर्य के
िनष्पादन के सम्बन्ध म “िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय” पद के या उस पर्भाव वाले शब्द के बारे म यह समझा जाएगा िक उसके
या उनके अन्तगर्त—
(क) जहां िनष्पािदत की जाने वाली िडकर्ी अपीली अिधकािरता के पर्योग म पािरत की गई है वहां पर्थम बार का
न्यायालय आता है, तथा
(ख) जहां पर्थम बार का न्यायालय िव मान नह रह गया है या उसे िनष्पािदत करने की अिधकािरता उसे नह रह
गई है वहां वह न्यायालय आता है जो, यिद वह वाद िजसम िडकर्ी पािरत की गई है, िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन देने
के समय संिस्थत िकया जाता तो ऐसे वाद का िवचारण करने की अिधकािरता रखता ।
1
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 ारा और दूसरी अनुसूची ारा लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 15 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 16 ारा (1-2-1977 से) धारा 36 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1 [स्पष्टीकरण—पर्थम
बार के न्यायालय की िडकर्ी का िनष्पादन करने की अिधकािरता के वल इस आधार पर समाप्त नह हो
जाती िक उस वाद के संिस्थत िकए जाने के पश्चात् िजसम िडकर्ी पािरत की गई थी या िडकर्ी पािरत िकए जाने के पश्चात् उस
न्यायालय की अिधकािरता से कोई क्षेतर् िकसी अन्य न्यायालय की अिधकािरता म अन्तिरत कर िदया गया है िकन्तु ऐसे पर्त्येक मामले
म, ऐसे अन्य न्यायालय को भी िडकर्ी के िनष्पादन की अिधकािरता होगी यिद िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन करने के समय, उसे
उक्त वाद का िवचारण करने की अिधकािरता होती ।]
वे न्यायालय िजनके ारा िडिकर्यां िनष्पािदत की जा सकगी
38. वह न्यायालय िजसके ारा िडिकर्यां िनष्पािदत की जा सके गी—िडकर्ी या तो उसे पािरत करने वाले न्यायालय ारा या
उस न्यायालय ारा, िजसे वह िनष्पादन के िलए भेजी गई है, िनष्पािदत की जा सके गी ।
39. िडकर्ी का अन्तरण—(1) िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय िडकर्ीदार के आवेदन पर उसे 2 [सक्षम अिधकािरता वाले
अन्य न्यायालय को] िनष्पादन के िलए भेजेगा :—
(क) यिद वह व्यिक्त, िजसके िवरु िडकर्ी पािरत की गई है, ऐसे अन्य न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय
सीमा के भीतर वास्तव म और स्वेच्छा से िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता
है ; अथवा
(ख) यिद ऐसे व्यिक्त की सम्पि जो ऐसी िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पयार्प्त हो िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय
की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर नह है और ऐसे अन्य न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के
भीतर है ; अथवा
(ग) यिद िडकर्ी उसे पािरत करने वाले न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के बाहर िस्थत स्थावर
सम्पि के िवकर्य या पिरदान का िनदेश देती है ; अथवा
(घ) यिद िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय िकसी अन्य कारण से िजसे वह लेखब करे गा, यह िवचार करता है
िक िडकर्ी का िनष्पादन ऐसे अन्य न्यायालय ारा िकया जाना चािहए ।
(2) िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय स्वपर्ेरणा से उसे सक्षम अिधकािरता वाले िकसी भी अधीनस्थ न्यायालय को
िनष्पादन के िलए भेज सके गा ।
[(3) इस धारा के पर्योजन के िलए, िकसी न्यायालय को सक्षम अिधकािरता वाला न्यायालय समझा जाएगा यिद, उस
3
न्यायालय को िडकर्ी के अन्तरण के िलए आवेदन करने के समय, ऐसे न्यायालय को उस वाद का िवचारण करने की अिधकािरता होती
िजसम ऐसे िडकर्ी पािरत की गई थी ।]
[(4) इस धारा की िकसी बात से यह नह समझा जाएगा िक वह उस न्यायालय को, िजसने िडकर्ी पािरत की है, अपनी
4
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के बाहर ऐसी िडकर्ी को, िकसी व्यिक्त या संपि के िवरु िनष्पादन के िलए पर्ािधकृ त करती है ।]
40. िकसी अन्य राज्य के न्यायालय को िडकर्ी का अन्तरण—जहां िडकर्ी िकसी अन्य राज्य म िनष्पादन के िलए भेजी जाती है
वहां वह ऐसे न्यायालय को भेजी जाएगी, और ऐसी रीित से िनष्पािदत की जाएगी जो उस राज्य म पर्वृ िनयम ारा िविहत
की जाए ।
41. िनष्पादन कायर्वािहय के पिरणाम का पर्मािणत िकया जाना—वह न्यायालय, िजसे िडकर्ी िनष्पादन के िलए भेजी जाती
है ऐसी िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय को ऐसे िनष्पादन का तथ्य या जहां पूवर् किथत न्यायालय उसे िनष्पािदत करने म असफल
रहता है वहां ऐसी असफलता की पिरिस्थितयां पर्मािणत करे गा ।
42. अन्तिरत िडकर्ी के िनष्पादन म न्यायालय की शिक्तयां— 5 [(1)] अपने को भेजी गई िडकर्ी का िनष्पादन करने वाले
न्यायालय को ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन म वे ही शिक्तयां ह गी जो उसकी होती यिद वह उसके ही ारा पािरत की गई होती । वे सभी
व्यिक्त, जो िडकर्ी की अवज्ञा करते ह या उसके िनष्पादन म बाधा डालते ह, ऐसे न्यायालय ारा उसी रीित से दण्डनीय ह गे मानो
िडकर्ी उसने ही पािरत की हो और ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन म उसका आदेश अपील के बारे म उन्ह िनयम के अधीन रहेगा मानो िडकर्ी
उसके ही ारा पािरत की गई हो ।
[(2) उपधारा (1) के उपबन्ध की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, उस उपधारा के अधीन न्यायालय की शिक्तय
6
के अन्तगर्त िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय की िनम्निलिखत शिक्तयां ह गी, अथार्त् :—
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 17 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 18 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 18 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 2 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 19 ारा (1-2-1977 से) धारा 42 उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनः संख्यांिकत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 19 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
15
(क) धारा 39 के अधीन िकसी अन्य न्यायालय को िनष्पादन के िलए िडकर्ी भेजने की शिक्त ;
(ख) धारा 50 के अधीन मृत िनण त-ऋणी के िविधक पर्ितिनिध के िवरु िडकर्ी का िनष्पादन करने की शिक्त ;
(ग) िडकर्ी को कु कर् करने का आदेश देने की शिक्त ।
(3) उपधारा (2) म िविनिदष्ट शिक्तय के पर्योग म आदेश पािरत करने वाला न्यायालय उसकी एक पर्ित िडकर्ी पािरत करने
वाले न्यायालय को भेजेगा ।
(4) इस धारा की िकसी बात से यह नह समझा जाएगा िक वह उस न्यायालय को िजसको िडकर्ी िनष्पादन के िलए भेजी गई
है, िनम्निलिखत शिक्तय म से कोई शिक्त पर्दान करती है, अथार्त् :—
(क) िडकर्ी के अन्तिरती की पर्ेरणा से िनष्पादन का आदेश देने की शिक्त ;
(ख) िकसी फमर् के िवरु पािरत िडकर्ी की दशा म, आदेश 21 के िनयम 50 के उपिनयम (1) के खण्ड (ख) या खण्ड
(ग) म िनिदष्ट व्यिक्त से िभन्न िकसी व्यिक्त के िवरु ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन की इजाजत देने की शिक्त ।]
1
[43. िजन स्थान पर इस संिहता का िवस्तार नह है, वहां के िसिवल न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन—यिद
कोई िडकर्ी, जो िकसी ऐसे िसिवल न्यायालय ारा पािरत की गई है, जो भारत के िकसी ऐसे भाग म स्थािपत है िजस पर इस संिहता के
उपबन्ध का िवस्तार नह है या िकसी ऐसे न्यायालय ारा पािरत की गई है जो के न्दर्ीय सरकार के पर्ािधकार ारा भारत के बाहर
स्थािपत िकया गया है या चालू रखा गया है, उसे पािरत करने वाले न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िनष्पािदत नह की जा सकती,
तो इसम उपबंिधत रीित से वह उन राज्यक्षेतर् के , िजन पर इस संिहता का िवस्तार है, िकसी भी न्यायालय की अिधकािरता के भीतर
िनष्पािदत की जा सके गी ।]
िजन स्थान पर इस संिहता का िवस्तार नह है, वहां के राजस्व न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन—राज्य
2 [44.
सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, यह घोिषत कर सके गी िक भारत के ऐसे िकसी भाग के , िजस पर इस संिहता के उपबन्ध का
िवस्तार नह है, िकसी राजस्व न्यायालय की िडिकर्य का या ऐसी िडिकर्य के िकसी वगर् का राज्य म ऐसे िनष्पादन िकया जा सके गा
मानो वे उस राज्य म के न्यायालय ारा पािरत की गई थी ।]
3 [44क. ितकारी राज्यक्षेतर् के न्यायालय ारा पािरत िडिकर्य का िनष्पादन—(1) जहां 4 *** िकसी ितकारी राज्यक्षेतर्
के विरष्ठ न्यायालय म से िकसी की िडकर्ी की पर्मािणत पर्ित िकसी िजला न्यायालय म फाइल की गई है वहां उस िडकर्ी का 5 [भारत] म
िनष्पादन ऐसे िकया जा सके गा मानो वह उस िजला न्यायालय ारा पािरत की गई थी ।
(2) िडकर्ी की पर्मािणत पर्ित के साथ ऐसे विरष्ठ न्यायालय का ऐसा पर्माणपतर् फाइल िकया जाएगा िजसम उस िवस्तार का,
यिद कोई हो, उल्लेख होगा िजस तक वह िडकर्ी तुष्ट या समायोिजत की गई है, और ऐसा पर्माणपतर् इस धारा के अधीन की
कायर्वािहय के पर्योजन के िलए ऐसी तुिष्ट या समायोजन के िवस्तार का िनश्चायक सबूत होगा ।
(3) धारा 47 के उपबन्ध इस धारा के अधीन िडकर्ी का िनष्पादन करने वाले िजला न्यायालय की कायर्वािहय को उस िडकर्ी
की पर्मािणत पर्ित के फाइल िकए जाने के समय से लागू ह गे और यिद िजला न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह दिशत कर िदया
जाता है िक िडकर्ी धारा 13 के खण्ड (क) से खण्ड (च) तक म िविनिदष्ट अपवाद म से िकसी म आती है तो वह न्यायालय ऐसी िडकर्ी
का िनष्पादन करने से इं कार कर देगा ।
6 [स्पष्टीकरण1—“ ितकारी राज्यक्षेतर् ” से भारत के बाहर का ऐसा देश या राज्यक्षेतर् अिभपर्ेत है, िजसे के न्दर्ीय सरकार इस
धारा के पर्योजन के िलए राजपतर् म अिधसूचना ारा ितकारी राज्यक्षेतर् घोिषत करे ऐसे िकसी राज्यक्षेतर् के पर्ित िनदश से “विरष्ठ
न्यायालय” से ऐसे न्यायालय अिभपर्ेत ह जो उक्त अिधसूचना म िविनिदष्ट िकए जाएं ।
स्पष्टीकरण 2—विरष्ठ न्यायालय के पर्ित िनदश से पर्युक्त “िडकर्ी” शब्द से ऐसे न्यायालय की ऐसी िडकर्ी या िनणर्य अिभपर्ेत
है, िजसके अधीन ऐसी धनरािश संदय े है जो कर या समान पर्कृ ित के अन्य पर्भार के िलए अथवा जुमार्ने या अन्य शािस्त के बारे म
संदये रािश नह है, िकन्तु िकसी भी दशा म इसके अन्तगर्त माध्यस्थम् पंचाट नह होगा, य िप ऐसा पंचाट िडकर्ी या िनणर्य के रूप म
पर्वतर्नीय है ।]]
[45. भारत के बाहर िडिकर्य का िनष्पादन—इस भाग की पूवर्गामी धारा म से उतनी धारा का, िजतनी न्यायालय को
7
िकसी अन्य न्यायालय म िनष्पादन के िलए िडकर्ी भेजने के िलए सशक्त करती ह, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह िकसी राज्य म के
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 8 ारा धारा 43 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 9 ारा धारा 44 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1937 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1952 के अिधिनयम सं० 71 की धारा 2 ारा “यूनाइटेड िकगडम या” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1952 के अिधिनयम सं० 71 की धारा 2 ारा स्पष्टीकरण 1 से 3 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा धारा 45 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
16
न्यायालय को के न्दर्ीय सरकार के पर्ािधकार ारा 1 [भारत के बाहर] स्थािपत 2 *** िकसी ऐसे न्यायालय म िनष्पादन के िलए िडकर्ी
भेजने के िलए सशक्त करती है, िजसके बारे म उस राज्य सरकार ने राजपतर् म अिधसूचना ारा यह घोिषत िकया है िक उसे यह धारा
लागू होगी ।]
46. आज्ञापतर्—(1) जब कभी िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय िडकर्ीदार के आवेदन पर ठीक समझे तब वह िकसी ऐसे
अन्य न्यायालय को जो उस िडकर्ी के िनष्पादन के िलए सक्षम है, यह आज्ञापतर् िनकाल सके गा िक वह िनण त-ऋणी की उसी आज्ञापतर् म
िविनिदष्ट कोई भी सम्पि कु कर् कर ले ।
(2) वह न्यायालय, िजसे आज्ञापतर् भेजा जाता है, उस सम्पि को ऐसी रीित से कु कर् करने के िलए कायर्वाही करे गा जो िडकर्ी
के िनष्पादन म सम्पि की कु क के िलए िविहत है :
परन्तु जब तक िक कु क की अविध िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय के आदेश ारा बढ़ा न दी गई हो या जब तक िक कु क
के अवसान के पूवर् िडकर्ी कु क करने वाले न्यायालय को अन्तिरत न कर दी गई हो और िडकर्ीदार ने ऐसी सम्पि के िवकर्य के आदेश के
िलए आवेदन न कर िदया हो, आज्ञापतर् के अधीन कोई भी कु क दो मास से अिधक चालू न रहेगी ।
पर्श्न िजनका अवधारण िडकर्ी का िनष्पादन करने वाला न्यायालय करे गा
47. पर्श्न िजनका अवधारण िडकर्ी का िनष्पादन करने वाला न्यायालय करे गा—(1) वे सभी पर्श्न, जो उस वाद के पक्षकार के
या उनके पर्ितिनिधय के बीच पैदा होते ह, िजसम िडकर्ी पािरत की गई थी और जो िडकर्ी के िनष्पादन, उन्मोचन या तुिष्ट से संबंिधत
है, िडकर्ी का िनष्पादन करने वाले न्यायालय ारा, न िक पृथक् वाद ारा, अवधािरत िकए जाएंगे ।
3
* * * * *
(3) जहां यह पर्श्न पैदा होता है िक कोई व्यिक्त िकसी पक्षकार का पर्ितिनिध है या नह है वहां ऐसा पर्श्न उस न्यायालय
ारा इस धारा के पर्योजन के िलए अवधािरत िकया जाएगा ।
[स्पष्टीकरण 1—वह वादी िजसका वाद खािरज हो चुका है और वह पर्ितवादी िजसके िवरु
4
वाद खािरज हो चुका है इस
धारा के पर्योजन के िलए वाद के पक्षकार ह ।
स्पष्टीकरण 2—(क) िडकर्ी के िनष्पादन के िलए िवकर्य म सम्पि का कर्ेता इस धारा के पर्योजन के िलए उस वाद का
पक्षकार समझा जाएगा िजसम वह िडकर्ी पािरत की गई है ; और
(ख) ऐसी सम्पि के कर्ेता को या उसके पर्ितिनिध को कब्जा देने से संबंिधत सभी पर्श्न इस धारा के अथर् म िडकर्ी के
िनष्पादन, उन्मोचन या उसकी तुिष्ट से संबंिधत पर्श्न समझे जाएंगे ।]
िनष्पादन के िलए समय की सीमा
48. [कु छ मामल म िनष्पादन िविजत ।]—पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) की धारा 28 ारा (1 जनवरी, 1964
से) िनरिसत ।
अन्तिरती और िविधक पर्ितिनिध
49. अन्तिरती—िडकर्ी का हर अन्तिरती, उसे उन साम्या के (यिद कोई ह ) अधीन रहते हुए धारण करे गा िजन्ह िनण त-
ऋणी मूल िडकर्ीदार के िवरु पर्वितत करा सकता था ।
50. िविधक पर्ितिनिध—(1) जहां िडकर्ी के पूणर्तः तुष्ट िकए जाने से पहले िनण त-ऋणी की मृत्यु हो जाती है वहां िडकर्ी का
धारक िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय म आवेदन कर सके गा िक वह उसका िनष्पादन मृतक के िविधक पर्ितिनिध के िवरु करे ।
(2) जहां िडकर्ी ऐसे िविधक पर्ितिनिध के िवरु िनष्पािदत की जाती है वहां वह मृतक की सम्पि के उस पिरमाण तक ही
दायी होगा िजतने पिरमाण तक वह सम्पि उसके हाथ म आई है और सम्यक् रूप से यिनत नह कर दी गई है और िडकर्ी िनष्पािदत
करने वाला न्यायालय ऐसा दाियत्व अिभिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए स्वपर्ेरणा से या िडकर्ीदार के आवेदन पर ऐसे लेखा को,
जो वह न्यायालय ठीक समझे, पेश करने के िलए ऐसे िविधक पर्ितिनिध को िववश कर सके गा ।
िनष्पादन-पर्िकर्या
51. िनष्पादन कराने की न्यायालय की शिक्तयां—ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए, जो िविहत की जाए,
न्यायालय िडकर्ीदार के आवेदन पर आदेश दे सके गा िक िडकर्ी का िनष्पादन—
(क) िविनिदष्ट रूप से िडकर्ीत िकसी सम्पि के पिरदान ारा िकया जाए ;
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िकसी भारतीय राज्य म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या बनाए रखे गए” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 20 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 20 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17
(ख) िकसी सम्पि की कु क और िवकर्य ारा या उसकी कु क के िबना िवकर्य ारा की जाए ;
(ग) 1 [जहां धारा 58 के अधीन िगरफ्तारी और िनरोध अनुज्ञेय है वहां िगरफ्तारी और ऐसी अविध के िलए जो उस
धारा म िविनिदष्ट अविध से अिधक न हो,] कारगार म िनरोध ारा िकया जाए ;
(घ) िरसीवर की िनयुिक्त ारा िकया जाए ; अथवा
(ङ) ऐसी अन्य रीित से िकया जाए िजसकी िदए गए अनुतोष की पर्कृ ित अपेक्षा करे :
[परन्तु जहां िडकर्ी धन के संदाय के िलए है वहां कारगार म िनरोध ारा िनष्पादन के िलए आदेश तब तक नह िदया
2
जाएगा जब तक िक िनण त-ऋणी को इसके िलए हेतुक दिशत करने का अवसर देने के पश्चात् िक उसे कारगार को क्य न सुपुदर् िकया
जाए, न्यायालय का अिभिलिखत कारण से यह समाधान नह हो जाता है िक—
(क) िनण त-ऋणी इस उ ेश्य से या यह पिरणाम पैदा करने के िलए िक िडकर्ी के िनष्पादन म बाधा या
िवलम्ब हो,—
(i) न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा से फरार होने वाला है या उन्ह छोड़ने वाला
है, अथवा
(ii) उस वाद के संिक्षप्त िकए जाने के पश्चात् िजसम वह िडकर्ी पािरत की गई थी अपनी सम्पि के
िकसी भाग को बेईमानी से अन्तिरत कर चुका है, िछपा चुका है या हटा चुका है अथवा अपनी सम्पि के सम्बन्ध म
असद्भावपूणर् कोई अन्य कायर् कर चुका है, अथवा
(ख) िडकर्ी की रकम या उसके पयार्प्त भाग का संदाय करने के साधन िनण त-ऋणी के पास ह या िडकर्ी की तारीख
के पश्चात् रह चुके ह और वह उसे संद करने से इं कार या संद करने म उपेक्षा करता है या कर चुका है,
(ग) िडकर्ी उस रािश के िलए है, िजसका लेखा देने के िलए िनण त-ऋणी वैश्वावािसक हैिसयत म आब था ।
स्पष्टीकरण—खण्ड (ख) के पर्योजन के िलए, िनण त-ऋणी के साधन की गणना करने म, ऐसी सम्पि गणना म से छोड़ दी
जाएगी, जो िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् िकए जाने से तत्समय पर्वृ िकसी िविध या िविध का बल रखने वाली रूिढ़ ारा या उसके
अधीन छू ट-पर्ाप्त है ।
52. िविधक पर्ितिनिध के िवरु िडकर्ी का पर्वतर्न—(1) जहां िकसी मृत व्यिक्त के िविधक पर्ितिनिध के रूप म िकसी पक्षकार
के िवरु कोई िडकर्ी पािरत की गई है और िडकर्ी मृतक की सम्पि म से धन संद िकए जाने के िलए है और वहां वह ऐसी िकसी भी
सम्पि की कु क और िवकर्य ारा िनष्पािदत की जा सके गी ।
(2) जहां िनण त-ऋणी के कब्जे म ऐसी कोई सम्पि बाकी न बची हो और वह न्यायालय का यह समाधान करने म असफल
रहता है िक उसने मृतक की उस सम्पि का सम्यक् रूप से उपयोजन कर िदया है िजसका उसके कब्जे म आना सािबत कर िदया गया है
वहां िडकर्ी िनण त-ऋणी के िवरु उस सम्पि के पिरमाण तक, िजसके सम्बन्ध म वह न्यायालय का समाधान करने म असफल रहा है,
उसी रीित से िनष्पािदत की जा सके गी मानो वह िडकर्ी वैयिक्तक रूप से उसके िवरु पािरत की गई थी ।
53. पैतक
ृ सम्पि का दाियत्व—पुतर् या अन्य वंशज के हाथ म की ऐसी सम्पि के बारे म, जो मृत पूवर्ज के ऐसे ऋण के
चुकाने के िलए िहन्दू िविध के अधीन दायी ह, िजसके िलए िडकर्ी पािरत की जा चुकी है, धारा 50 और धारा 52 के पर्योजन के िलए
यह समझा जाएगा िक वह मृतक की ऐसी सम्पि है जो उसके िविधक पर्ितिनिध के रूप म पुतर् या अन्य वंशज के हाथ म आई है ।
54. सम्पदा का िवभाजन या अंश का पृथक् करण—जहां िडकर्ी िकसी ऐसी अिवभक्त सम्पदा के िवभाजन के िलए है, िजस पर
सरकार को िदए जाने के िलए राजस्व िनधार्िरत है, या ऐसी सम्पदा के अंश के पृथक् कब्जे के िलए है वहां सम्पदा का िवभाजन या अंश
का पृथक् करण कलक्टर या कलक्टर के ऐसे िकसी राजपितर्त अधीनस्थ ारा, िजसे उसने इस िनिम पर्ितिनयुक्त िकया हो, ऐसी
सम्पदा के िवभाजन या अंश के पृथक् कब्जे से सम्बिन्धत तत्समय पर्वृ िविध (यिद कोई हो) के अनुसार िकया जाएगा ।
िगरफ्तारी और िनरोध
55. िगरफ्तारी और िनरोध—(1) िनण त-ऋणी िडकर्ी के िनष्पादन म िकसी भी समय और िकसी भी िदन िगरफ्तार िकया जा
सके गा और यथासाध्य शीघर्ता से न्यायालय के समक्ष लाया जाएगा और वह उस िजले के िसिवल कारागार म, िजसम िनरोध का आदेश
देने वाला न्यायालय िस्थत है या जहां ऐसे िसिवल कारागार म उपयुक्त वास-सुिवधा नह है वहां ऐसे िकसी अन्य स्थान म, िजसे राज्य
सरकार ने ऐसे व्यिक्तय के िनरोध के िलए िनयत िकया हो, िजनके िवरु िकए जाने का आदेश ऐसे िजले के न्यायालय ारा िदया
जाए, िनरु िकया जा सके गा :
परन्तु पर्थमतः इस धारा के अधीन िगरफ्तारी करने के पर्योजन के िलए िकसी भी िनवास-गृह म सूयार्स्त के पश्चात् और
सूय दय के पूवर् पर्वेश नह िकया जाएगा :
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 21 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1936 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
18
परन्तु ि तीयतः िनवास-गृह का कोई भी बाहरी ार तब तक तोड़ कर नह खोला जाएगा जब तक िक ऐसा िनवास-गृह
िनण त-ऋणी के अिधभोग म न हो और वह उस तक पहुंच होने देने से मना न करता हो या पहुंच होने देना िकसी भांित िनवािरत न
करता हो, िकन्तु जबिक िगरफ्तार करने के िलए पर्ािधकृ त अिधकारी ने िकसी िनवास-गृह म सस्यक् रूप से पर्वेश कर िलया है, तब वह
िकसी ऐसे कमरे का ार तोड़ सके गा िजसके बारे म उसे यह िवश्वास करने का कारण है िक उसम िनण त-ऋणी है :
परन्तु तृतीयतः यिद कमरा िकसी ऐसी स्तर्ी के वास्तिवक अिधभोग म है जो िनण त-ऋणी नह है और जो देश की रूिढ़य के
अनुसार लोग के सामने नह आती है तो िगरफ्तारी करने के िलए पर्ािधकृ त अिधकारी उसे यह सूचना देगा िक वह वहां से हट जाने के
िलए स्वतंतर् है और उसे हट जाने के िलए युिक्तयु्क्त समय अनुज्ञात करने और हट जाने के िलए उसे युिक्तयुक्त सुिवधा देने के पश्चात्
वह िगरफ्तारी करने के पर्योजन से कमरे म पर्वेश कर सके गा :
परन्तु चतुथर्तः जहां वह िडकर्ी, िजसके िनष्पादन म िनण त-ऋणी को िगरफ्तार िकया गया है, धन के संदाय के िलए िडकर्ी है
और िनण त-ऋणी िडकर्ी की रकम और िगफ्तारी का खचार् उस अिधकारी को संद कर देता है, िजसने उसे िगफ्तार िकया है वहां ऐसा
अिधकारी उसे तुरन्त छोड़ देगा ।
(2) राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, यह घोषणा कर सके गी िक ऐसा कोई भी व्यिक्त या ऐसे व्यिक्तय का वगर्,
िजसकी िगरफ्तारी से लोग को खतरा या असुिवधा पैदा हो सकती है, िडकर्ी के िनष्पादन म ऐसी पर्िकर्या से िभन्न पर्िकर्या के अनुसार
जो राज्य सरकार इस िनिम िविहत करे , िगरफ्तारी िकए जाने के दाियत्व के अधीन नह होगा ।
(3) जहां िनण त-ऋणी धन के संदाय के िलए िडकर्ी के िनष्पादन म िगरफ्तार िकया जाता है और न्यायालय के समक्ष लाया
जाता है वहां न्यायालय उसे यह बताएगा िक वह िदवािलया घोिषत िकए जाने के िलए आवेदन कर सकता है और यिद उसने आवेदन
की िवषय-वस्तु के संबंध म कोई असद्भावपूणर् कायर् नह िकया है और यिद वह तत्समय पर्वृ िदवाला-िविध के उपबन्ध का अनुपालन
करता है तो वह 1 [उन्मोिचत िकया जा सके गा] ।
(4) जहां िनण त-ऋणी िदवािलया घोिषत िकए जाने के िलए आवेदन करने का अपना आशय पर्कट करता है और न्यायालय
को समाधानपर्द पर्ितभूित इस बात के िलए दे देता है िक वह ऐसा आवेदन एक मास के भीतर करे गा और वह आवेदन-संबंधी या उस
िडकर्ी-संबंधी िजसके िनष्पादन म वह िगरफ्तार िकया गया था, िकसी कायर्वाही म बुलाए जाने पर उपसंजात होगा वहां न्यायालय उसे
िगरफ्तारी से 2 [छोड़ सके गा] और यिद वह ऐसे आवेदन करने और उसंजात होने म असफल रहता है तो न्यायालय िडकर्ी के िनष्पादन म
या तो पर्ितभूित आप्त करने का या उस व्यिक्त को िसिवल कारागार को सुपुदर् िकए जाने का िनदेश दे सके गा ।
56. धन की िडकर्ी के िनष्पादन म िस्तर्य की िगरफ्तारी या िनरोध का िनषेध—इस भाग म िकसी बात के होते हुए भी,
न्यायालय धन के संदाय की िडकर्ी के िनष्पादन म स्तर्ी को िगरफ्तार करने और िसिवल कारगार म िनरु करने के िलए आदेश नह
देगा ।
57. जीवन-िनवार्ह भ ा—राज्य सरकार िनण त-ऋिणय के जीवन-िनवार्ह के िलए संदय
े मािसक भ के मापमान, उनकी
पंिक्त, मूलवंश और रािष्टर्कता के अनुसार शर्ेणीब करके िनयत कर सके गी ।
58. िनरोध और छोड़ा जाना—(1) िडकर्ी के िनष्पादन म िसिवल कारागार म िनरु हर व्यिक्त,—
(क) जहां िडकर्ी 3 [ 4 [पांच हजार रुपए]] से अिधक धनरािश का संदाय करने के िलए है 3[वहां तीन मास से अनिधक
अविध के िलए, और]
[(ख) जहां िडकर्ी दो हजार रुपए से अिधक िकन्तु पांच हजार रुपए से अनिधक धनरािश का संदाय करने के िलए है
5
नह है वहां धन के संदाय की िडकर्ी के िनष्पादन म िनण त-ऋणी को िसिवल कारागार म िनरु करने के िलए कोई आदेश नह िकया
जाएगा ।]
(2) इस धारा के अधीन िनरोध म से छोड़ा गया िनण त-ऋणी अपने छोड़े जाने के कारण ही अपने ऋण से उन्मोिचत नह हो
जाएगा, िकन्तु वह िजस िडकर्ी के िनष्पादन म िसिवल कारागार म िनरु िकया गया था, उसके िनष्पादन म पुनः िगरफ्तार नह िकया
जा सके गा ।
1
1921 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 2 ारा “उन्मोिचत िकया जाएगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1921 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 2 ारा “िनमुर्क्त कर देगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 22 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 5 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 5 ारा (1-7-2002 से) खण्ड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 22 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
7
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 5 ारा (1-7-2002 से) “पांच सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
19
59. रुग्णता के आधार पर छोड़ा जाना—(1) न्यायालय िनण त-ऋणी की िगरफ्तारी के िलए वारण्ट िनकाले जाने के पश्चात्
िकसी भी समय उसकी गंभीर रुग्णता के आधार पर उस वारण्ट को र कर सके गा ।
(2) जहां िनण त-ऋणी िगरफ्तार िकया जा चुका है वहां, यिद न्यायालय की यह राय है िक उसका स्वास्थ्य इतना ठीक नह
है िक उसे िसिवल कारागार म िनरु िकया जाए तो, वह उसे छोड़ सके गा ।
(3) यिद िनण त-ऋणी को िसिवल कारागार के सुपुदर् कर िदया गया है तो उसको वहां से—
(क) राज्य सरकार िकसी संकर्ामक या सांसिगक रोग होने के आधार पर छोड़ सके गी, अथवा
(ख) सुपुदर् करने वाला न्यायालय या ऐसा कोई न्यायालय, िजसके अधीनस्थ वह न्यायालय है, उस िनण त-ऋणी के
िकसी गम्भीर रुग्णता से पीिड़त होने के आधार पर छोड़ सके गा ।
(4) इस धारा के अधीन छोड़ा गया िनण त-ऋणी पुनः िगरफ्तार िकया जा सके गा, िकन्तु िसिवल कारागार म उसके िनरोध
की कु ल अविध धारा 58 ारा िविहत अविध से अिधक नह होगी ।
कु क
1
60. वह सम्पि , जो िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् और िवकर्य की जा सके गी—(1) िनम्निलिखत सम्पि िडकर्ी के िनष्पादन म
कु कर् और िवकर्य की जा सके गी अथार्त् भूिम, गृह या अन्य िनमार्ण, माल, धन, बक-नोट, चैक, िविनमय-पतर्, हुण्डी, वचनपतर्, सरकारी
पर्ितभूितयां, धन के िलए बन्धपतर् या अन्य पर्ितभूितयां, ऋण, िनगम-अंश और उसके िसवाय जैसा इसम इसके पश्चात् विणत है, िवकर्य
की जा सकने वाली अन्य ऐसी सभी जंगम या स्थावर सम्पि , जो िनण त-ऋणी की है या िजस पर या िजसके लाभ पर वह ऐसी
यन शिक्त रखता है िजसे वह अपने फायदे के िलए पर्योग कर सकता हो, चाहे वह िनण त-ऋणी के नाम म धािरत हो या िकसी अन्य
व्यिक्त ारा उसके िलए न्यास म या उसकी ओर से धािरत हो :
परन्तु िनम्निलिखत िविशष्ट वस्तुएं, ऐसे कु कर् और िवकर्य नह की जा सकगी, अथार्त् :—
(क) िनण त-ऋणी, उसकी पत्नी और उसके बच्च के पहनने के आवश्यक वस्तर्, भोजन पकाने के बतर्न, चारपाई
और िबछौने और ऐसे िनजी आभूषण िजन्ह कोई स्तर्ी धािमक पर्था के अनुसार अपने से अलग नह कर सकती ;
(ख) िशल्पी के औजार, और जहां िनण त-ऋणी कृ षक है वहां उसके खेती के उपकरण और ऐसे पशु और बीज, जो
न्यायालय की राय म उसे वैसी हैिसयत म अपनी जीिवका का उपाजर्न करने के िलए समथर् बनाने के िलए आवश्यक है और
कृ िष-उपज का या कृ िष-उपज के िकसी वगर् का ऐसा भाग जो ठीक अगली धारा के उपबंध के अधीन दाियत्व से मुक्त घोिषत
कर िदया गया है ;
(ग) वे गृह और अन्य िनमार्ण (उनके मलब और आस्थान के तथा उनसे अ विहत रूप से अनुलग्न और उनके
उपभोग के िलए आवश्यक भूिम के सिहत) जो 2 [कृ षक या शर्िमक या घरे लू नौकर के ह और उसके ] अिधभोग म ह ;
(घ) लेखा बिहयां ;
(ङ) नुकसानी के िलए वाद लाने का अिधकारमातर् ;
(च) वैयिक्तक सेवा कराने का कोई अिधकार ;
(छ) वे वृि काएं और उपदान जो सरकार के 3 [या िकसी स्थानीय पर्ािधकारी के या िकसी अन्य िनयोजक के ] पशन
भोिगय को अनुज्ञात ह या ऐसी िकसी सेवा कु टु म्ब पशन िनिध म से, जो 4 [के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार] ारा राजपतर्
म
5 अिधसूचना ारा इस िनिम अिधसूिचत की गई है, संदय
े है और राजनैितक पशन ;
6 (ज) शर्िमक और घरे लू नौकर की मजदूरी चाहे वह धन म या वस्तु के रूप म संदय
े हो 7 ***;
[(झ) 9 [भरणपोषण की िडकर्ी से िभन्न िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म] वेतन के
8 10 पर्थम 11 [एक हजार रुपए] और
बाकी का दो-ितहाई] ;
1
पूव पंजाब को लागू होने म धारा 60 के संशोधन के िलए देिखए 1940 के पंजाब अिधिनयम सं० 12 और 1942 के पंजाब अिधिनयम सं० 6 ारा यथासंशोिधत पंजाब
िरलीफ आफ इन्डेटेडनेस ऐक्ट, 1934 (1934 का पंजाव अिधिनयम सं० 7) की धारा 35 ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) “कृ षक के या उसके ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
उक्त अिधसूचना के िलए, भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1909, भाग 1, पृ० 5 देिखए ।
6
1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 2 ारा खण्ड (ज) और (झ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 1 जून, 1937 के पहले संिस्थत वाद से उद्भूत िकन्ह कायर्वािहय के बारे म
उस धारा ारा िकए गए संशोधन का कोई पर्भाव नह होगा ; 1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 3 देिखए ।
7
1943 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा “तथा वेतन के पर्थम एक सौ रुपए और ऐसे वेतन के बाकी का आधा” शब्द को लोप िकया गया ।
8
1943 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा खण्ड (झ) और परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 6 ारा अंतःस्थािपत ।
10
1963 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा “पर्थम सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 6 ारा (1-7-2002 से) “चार सौ रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
20
[परन्तु जहां ऐसे वेतन के पर्भाग का जो कु कर् िकया जा सकता है, कोई भाग, कु ल िमलाकर चौबीस मास की अविध
1
तक लगातार या आंतराियक रूप से कु कर् रहा है वहां जब तक आगे की बारह मास की अविध समाप्त न हो जाए तब तक ऐसे
भाग को कु क से छू ट पर्ाप्त होगी और जहां ऐसी कु क एक ही िडकर्ी के िनष्पादन म की गई है वहां कु ल िमलाकर चौबीस मास
की अविध तक कु क चालू रहने के पश्चात्, ऐसे भाग को उस िडकर्ी के िनष्पादन म कु क से अिन्तम रूप से छू ट पर्ाप्त होगी,]
2
[(झक) भरणपोषण की िडकर्ी के िनष्पादन म वेतन का एक-ितहाई ;]
[(ञ) ऐसे व्यिक्तय के वेतन और भ े िजन्ह वायु सेना अिधिनयम, 1950 (1950 का 45) या सेना अिधिनयम,
3
ऐसा कोई भ ा, िजसके बारे म 8 [समुिचत सरकार] राजपतर् म अिधसूचना ारा घोिषत करे िक वह कु क से छू ट-पर्ाप्त है और
9
[ऐसे िकसी सेवक] को उसके िनलम्बन-काल म िदया गया कोई जीवन-िनवार्ह अनुदान या भ ा ;]
(ड) उ रजीिवता ारा उ रािधकार की पर्त्याशा अथवा अन्य के वल समािशर्त या सम्भव अिधकार या िहत ;
(ढ) भावी भरणपोषण का अिधकार ;
(ण) ऐसा भ ा, िजसके बारे म 10 [िकसी भारतीय िविध] ने यह घोिषत िकया है िक वह िडकर्ी के िनष्पादन म कु क
या िवकर्य के दाियत्व से छू ट-पर्ाप्त है ;तथा
(त) जहां िनण त-ऋणी कोई ऐसा व्यिक्त है जो भू-राजस्व के संदाय के िलए दायी है वहां कोई ऐसी जंगम संपि ,
जो ऐसे राजस्व की बकाया की वसूली के िलए िवकर्य से ऐसी िविध के अधीन छू ट-पर्ाप्त है जो उसे तत्समय लागू है ।
11
[स्पष्टीकरण 1—खण्ड (छ), (ज), (झ), (झक), (ञ), (ठ) और (ण) म विणत वस्तु के संबंध म संदय े धन को, उनके वस्तुतः
संदय
े होने के पहले या उसके पश्चात् कु क या िवकर्य से छू ट-पर्ाप्त है और वेतन की दशा म उसका कु क योग्य पर्भाग, उसके वस्तुतः
संदये होने के पहले या उसके पश्चात् कु कर् िकया जा सकता है ।]
[ [स्पष्टीकरण 2—खण्ड (झ) और (झक) म] वेतन म से, ऐसे भ को छोड़कर जो खण्ड (ठ) के उपबन्ध के अधीन कु क
12 13
से छू ट पर्ाप्त घोिषत िकए गए ह, वे समस्त मािसक उपलिब्धयां अिभपर्ेत ह जो िकसी व्यिक्त को उसके िनयोजन से चाहे वह कतर् ारूढ़
हो या छु ी पर हो, ुत्पन्न होती है ।]
14
[स्पष्टीकरण 15 [3]—खण्ड (ठ) म “समुिचत सरकार” से अिभपर्ेत है—
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 6 ारा अंत:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) खण्ड (ञ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 2 ारा “1897” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
6
1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 2 ारा खण्ड (ठ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत, पाद िटप्पण 3 भी देिखए ।
7
1943 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा “लोक अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1943 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा “ऐसे िकसी अिधकारी या सेवक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “इिण्डयन काउिन्सल्स ऐक्ट्स, 1861 और 1892 के अधीन पािरत िकसी िविध” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत ।
11
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 2 ारा “खण्ड (ज) और (झ)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 1 जून, 1937 के पहले संिस्थत वाद से उद्भूत िकन्ह कायर्वािहय के
बारे म उस धारा ारा िकए गए संशोधन का कोई पर्भाव नह होगा ; 1937 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 3 देिखए ।
13
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) “स्पष्टीकरण 2—खण्ड (ज) और (झ) म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अंतःस्थािपत ।
15
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) “3” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
21
(i) के न्दर्ीय सरकार की सेवा म िकसी 1 [व्यिक्त] अथवा 2 [रे ल पर्शासन] के या छावनी पर्ािधकारी के या महाप न के
प न पर्ािधकारी के िकसी सेवक के बारे म, के न्दर्ीय सरकार ;
3
* * * * *
(iii) [सरकार के िकसी अन्य सेवक] या िकसी अन्य 4 *** स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक के बारे म, राज्य सरकार ।]
1
[स्पष्टीकरण 4—इस परन्तुक के पर्योजन के िलए, “मजदूरी” के अन्तगर्त बोनस है और “शर्िमक” के अन्तगर्त कु शल, अकु शल
5
या अधर्कुशल शर्िमक है ।
स्पष्टीकरण 5—इस परन्तुक के पर्योजन के िलए, “कृ षक” से ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है जो स्वयं खेती करता है और जो अपनी
जीिवका के िलए मुख्यतः कृ िष-भूिम की आय पर िनभर्र है चाहे स्वामी के रूप म या अिभधारी, भागीदार या कृ िष शर्िमक के रूप म ।
स्पष्टीकरण 6—स्पष्टीकरण 5 के पर्योजन के िलए, कोई कृ षक स्वयं खेती करने वाला समझा जाएगा, यिद वह—
(क) अपने शर्म ारा ; अथवा
(ख) अपने कु टु म्ब के िकसी सदस्य के शर्म ारा ; अथवा
(ग) नकद या वस्तु के रूप म (जो उपज का अंश न हो) या दोन म संदय
े मजदूिरय पर सेवक या शर्िमक ारा,
खेती करता है ।]
[(1क) तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हए भी, वह करार, िजसके
5
ारा वह व्यिक्त इस धारा के
अधीन छू ट के फायदे का अिधत्यजन करने का करार करता है, शून्य होगा ।]
(2) इस धारा की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह 6 *** िकन्ह ऐसे गृह या अन्य िनमार्ण को (उनके
मलब और आस्थान के तथा उनसे अ विहत रूप से अनुलग्न और उनके उपभोग के िलए आवश्यक भूिम के सिहत) ऐसे िकसी गृह,
िनमार्ण, आस्थान या भूिम के भाटक के िलए िडिकर्य के िनष्पादन म कु क या िवकर्य से छू ट देती है । 6***
6
* * * * *
61. कृ िष-उपज को भागतः छू ट— *** राज्य सरकार राजपतर् म पर्कािशत साधारण या िवशेष आदेश ारा यह घोषणा कर
7
सके गी िक कृ िष-उपज या कृ िष के िकसी वगर् के ऐसे पर्भाग को िजसकी बाबत राज्य सरकार को यह पर्तीत होता है िक वह उस आगामी
फसल तक उस भूिम पर सम्यक् खेती करने के िलए तथा िनण त-ऋणी और उसके कु टु म्ब के िनवार्ह के िलए उपबन्ध करने के पर्योजन के
िलए आवश्यक है, सभी कृ षक या कृ षक के िकसी वगर् की दशा म िडकर्ी के िनष्पादन म कु क या िवकर्य के दाियत्व से छू ट होगी ।
62. िनवास-गृह म सम्पि का अिभगर्हण—(1) कोई भी व्यिक्त इस संिहता के अधीन जंगम संपि का अिभगर्हण िनिदष्ट या
पर्ािधकृ त करने वाली िकसी आदेिशका का िनष्पादन करते हुए िकसी िनवास-गृह म सूयार्स्त के पश्चात् और सूय दय के पूवर् पर्वेश नह
करे गा ।
(2) िनवास-गृह का कोई भी बाहरी ार तब तक तोड़कर नह खोला जाएगा जब तक िक ऐसा िनवास-गृह िनण त-ऋणी के
अिधभोग म न हो और वह उस तक पहुंच होने देने से मना न करता हो या पहुंच होने देना िकसी भांित िनवािरत न करता हो, िकन्तु
जबिक ऐसी िकसी आदेिशका का िनष्पादन करने वाले व्यिक्त ने िकसी िनवास-गृह म सम्यक् रूप से पर्वेश कर िलया है, तब वह िकसी
ऐसे कमरे का ार तोड़ सके गा िजसके बारे म उसे यह िवश्वास करने का कारण है िक उसम ऐसी कोई सम्पि है ।
(3) जहां िनवास-गृह का कमरा िकसी ऐसी स्तर्ी के वास्तिवक अिधभोग म है जो देश की रूिढ़य के अनुसार लोग के सामने
नह आती है वहां आदेिशका का िनष्पादन करने वाला व्यिक्त ऐसी स्तर्ी को यह सूचना देगा िक वह वहां से हट जाने के िलए स्वतंतर् है
और उसे हट जाने के िलए युिक्तयुक्त समय अनुज्ञात करने और हट जाने के िलए उसे युिक्तयुक्त सुिवधा देने के पश्चात् और साथ ही
उस सम्पि के िछपा कर हटाए जाने के िनवारण करने के िलए ऐसी हर एक पूवार्वधानी बरत करके , जो इन उपबंध से संगत है, वह
सम्पि के अिभगर्हण के पर्योजन से ऐसे कमरे म पर्वेश कर सके गा ।
1
1973 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा “लोक अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश 1950 ारा “फे डरल रे ल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा खण्ड (ii) का लोप िकया गया ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “रे ल या” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 23 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
6
1914 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा अक्षर और कोष्ठक “(क)”, शब्द “या” और खण्ड (ख) िनरिसत ।
7
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और अनुसूची 1 के भाग 1 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल की पूवर् मंजूरी से” शब्द का लोप िकया गया ।
22
63. कई न्यायालय की िडिकर्य के िनष्पादन म कु कर् की गई सम्पि —(1) जहां वह सम्पि , जो िकसी न्यायालय की
अिभरक्षा म नह है, एक से अिधक न्यायालय की िडिकर्य के िनष्पादन म कु कर् की हुई है वहां वह न्यायालय, जो ऐसी सम्पि को पर्ाप्त
या आप्त करे गा और उसके संबंध म िकसी दावे का या उसकी कु क के संबंध म िकसी आक्षेप का अवधारण करे गा, वह न्यायालय होगा
जो उससे ऊंची शर्ेणी का है या जहां ऐसे न्यायालय के बीच म शर्ेणी का कोई अन्तर नह है वहां वह न्यायालय होगा, िजसकी िडकर्ी के
अधीन सम्पि सबसे पहले कु कर् की गई थी ।
(2) इस धारा की कोई भी बात ऐसी िडिकर्य म से एक का िनष्पादन करने वाले न्यायालय ारा की गई िकसी कायर्वाही को
अिविधमान्य करने वाली नह समझी जाएगी ।
[स्पष्टीकरण—उपधारा (1) के पर्योजन के िलए, “न्यायालय ारा की गई िकसी कायर्वाही” के अन्तगर्त ऐसे िडकर्ीदार को
1
िजसने िडकर्ी के िनष्पादन म िकए गए िवकर्य म सम्पि का कर्य िकया है, उसके ारा संदय
े कर्य कीमत के बराबर मुजरा अनुज्ञात करने
का आदेश नह है ।]
64. कु क के पश्चात् सम्पि के पर्ाइवेट अन्य संकर्ामण का शून्य होना— 2 [(1)] जहां कु क की जा चुकी है वहां कु कर् की गई
सम्पि या उसम के िकसी िहत का ऐसी कु क के पर्ितकू ल पर्ाइवेट अन्तरण या पिरदान और िकसी ऋण, लाभांश या अन्य धन का ऐसी
कु क के पर्ितकू ल िनण त-ऋणी को संदाय कु क के अधीन पर्वतर्नीय सभी दाव के मुकाबले म शून्य होगा ।
[(2) इस धारा की कोई बात, कु कर् की गई संपि या उसम िकसी िहत के िकसी ऐसे पर्ाइवेट अंतरण या पिरदान को लागू
3
नह होगी, जो कु क से पहले ऐसे अंतरण या पिरदान की संिवदा के अनुसरण म िकया गया हो और रिजस्टर्ीकृ त हो ।]
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए, कु क के अधीन पर्वतर्नीय सभी दाव के अन्तगर्त आिस्तय के आनुपाितक
िवतरण के दावे भी ह ।
िवकर्य
65. कर्ेता का हक—जहां िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म स्थावर सम्पि का िवकर्य िकया गया है और ऐसा िवकर्य आत्यिन्तक हो
गया है वहां यह समझा जाएगा िक सम्पि उस समय से, जब उसका िवकर्य िकया गया है, न िक उस समय से, जब िवकर्य आत्यिन्तक
हुआ है, कर्ेता म िनिहत हो गई है ।
4
* * * * *
67. धन के संदाय की िडिकर्य के िनष्पादन म भूिम के िवकर्य के बारे म िनयम बनाने की राज्य सरकार की
शिक्त— 5 [(1)] 6 *** राज्य सरकार िकसी भी स्थानीय क्षेतर् के िलए ऐसे िनयम, जो धन के संदाय की िडिकर्य के िनष्पादन म भूिम म
के िहत के िकसी वगर् के िवकर्य की बाबत शतर् अिधरोिपत करते ह , राजपतर् म अिधसूचना ारा बना सके गी यिद ऐसे िहत इतने
अिनिश्चत या अनवधािरत ह िक उनका मूल्य िनयत करना राज्य सरकार की राय म असंभव हो ।
[(2) यिद उस तारीख को, िजस तारीख को यह संिहता िकसी स्थानीय क्षेतर् म पर्वतर्न म आई थी, िडिकर्य के िनष्पादन म
7
भूिम के िवकर्य के बारे म कोई िवशेष िनयम वहां पर्वृ थे तो राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा ऐसे िनयम के बारे म यह
घोिषत कर सके गी िक वे पर्वृ ह या 6*** वैसे ही अिधसूचना ारा उन्ह उपान्तिरत कर सके गी ।
ऐसे चालू रखे गए या ऐसे उपान्तिरत िनयम, इस उपधारा ारा पर्द शिक्तय के पर्योग म िनकाली गई हर अिधसूचना म
उपविणत ह गे ।
8
[(3) इस धारा के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघर् राज्य िवधान-मंडल के समक्ष रखा
जाएगा ।]
स्थावर सम्पि के िवरु िडिकर्य का िनष्पादन करने की शिक्त का कलक्टर को पर्त्यायोजन
68—72. िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1956 (1956 का 66) की धारा 7 ारा िनरिसत ।
आिस्तय का िवतरण
73. िनष्पादन-िवकर्य के आगम का िडकर्ीदार के बीच आनुपाितक रूप से िवतिरत िकया जाना—(1) जहां आिस्तयां
न्यायालय ारा धािरत ह और ऐसी आिस्तय की अिभपर्ािप्त के पू्वर् एक से अिधक व्यिक्तय ने धन के संदाय की ऐसी िडिकर्य के , जो
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 24 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 3 ारा (1-7-2002 से) धारा 64 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 3 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
4
1988 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा (19-5-1988 से) धारा 66 का लोप िकया गया ।
5
1914 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 3 ारा धारा 67 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
6
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और अनुसूची के भाग 1 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल की पूवर् मंजूरी से” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1914 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 3 ारा जोड़ा गया ।
8
1983 के अिधिनयम सं० 20 की धारा 2 और अनुसूची ारा (15-3-1984 से) अंतःस्थािपत ।
23
एक ही िनण तऋणी के िवरु पािरत है, िनष्पादन के िलए आवेदन न्यायालय से िकए ह और उनकी तुिष्ट अिभपर्ाप्त नह की है, वहां
पर्ापण के खच को काट लेने के पश्चात् वे आिस्तयां ऐसे सभी व्यिक्तय के बीच आनुपाितक रूप से िवतिरत की जाएंगी :
परन्तु—
(क) जहां कोई सम्पि बंधक या भार के अधीन िवकर्य की गई है वहां बन्धकदार या िवल्लंगमदार ऐसे िवकर्य से
पैदा िकसी अिधशेष म से अंश पाने के हकदार नह ह गे ;
(ख) जहां िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्य के दाियत्वाधीन कोई सम्पि बन्धक या भार के अधीन है वहां न्यायालय
बन्धकदार या िवल्लंगमदार की सहमित से और बन्धकदार या िवल्लंगम्दार को िवकर्य के आगम म वही िहत देते हुए, जो
उसका िवकर्ीत सम्पि म था, सम्पि को बन्धक या भार से मुक्त रूप म िवकर्य करने के िलए आदेश दे सके गा ;
(ग) जहां कोई स्थावर सम्पि ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्य की जाती है जो उस पर िवल्लंगम के उन्मोचन के
िलए उसके िवकर्य िकए जाने का आदेश देती है वहां िवकर्य के आगम िनम्निलिखत के अनुसार उपयोिजत िकए जाएंगे—
पर्थमतः िवकर्य के य को चुकाने म ;
ि तीयतः िडकर्ी के अधीन शोध्य रकम के उन्मोचन म ;
तृतीयतः पािश्चक िवल्लंगम पर (यिद कोई ह ) शोध्य ब्याज और मूलधन के उन्मोचन म ; तथा
चतुथर्तः िनण तऋणी के िवरु धन के संदाय की िडिकर्य के ऐसे धारक के बीच आनुपाितक रूप म,
िजन्ह ने ऐसे िवकर्य का आदेश देने वाली िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय से, सम्पि के िवकर्य के पूवर् ऐसी
िडिकर्य के िनष्पादन के िलए आवेदन कर िदया है और उनकी तुिष्ट अिभपर्ाप्त नह की है ।
(2) जहां वे सभी या कोई आिस्तयां जो इस धारा के अधीन आनुपाितक रूप से िवतिरत िकए जाने के िलए दायी ह, ऐसे
व्यिक्त को दे दी जाती ह जो उन्ह पर्ाप्त करने का हकदार नह है वहां ऐसा हकदार कोई भी व्यिक्त उन आिस्तय का पर्ितदाय िववश
करने के िलए ऐसे व्यिक्त के िवरु वाद ला सके गा ।
(3) इस धारा की कोई भी बात सरकार के िकसी भी अिधकार पर पर्भाव नह डालेगी ।
िनष्पादन का पर्ितरोध
74. िनष्पादन का पर्ितरोध—जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक स्थावर सम्पि के कब्जे के िलए िडकर्ी के
िनष्पादन म िवकर्ीत स्थावर सम्पि का कर्ेता सम्पि पर कब्जा अिभपर्ाप्त करने म िनण त-ऋणी या उसकी ओर से िकसी व्यिक्त के
ारा पर्ितरु या बािधत िकया गया है और ऐसा पर्ितरोध या बाधा िकसी न्यायसंगत हेतुक के िबना है, वहां िडकर्ीदार या कर्ेता की
पर्ेरणा से न्यायालय िनण त-ऋणी या ऐसे अन्य व्यिक्त को ऐसी अविध के िलए िसिवल कारागार म िनरु करने का आदेश दे सके गा,
जो तीस िदन तक की हो सके गी और यह अितिरक्त िनदेश दे सके गा िक िडकर्ीदार या िवकर्ेता को सम्पि का कब्जा िदलाया जाए ।
भाग 3
आनुषिं गक कायर्वािहयां
कमीशन
75. कमीशन िनकालने की न्यायालय की शिक्त—ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए, जो िविहत की जाएं,
न्यायालय—
(क) िकसी व्यिक्त की परीक्षा करने के िलए ;
(ख) स्थानीय अन्वेषण करने के िलए ;
(ग) लेखा की परीक्षा या उनका समायोजन करने के िलए ; अथवा
(घ) िवभाजन करने के िलए ;
1
[(ङ) कोई वैज्ञािनक, तकनीकी या िवशेषज्ञ अन्वेषण करने के िलए ;
(च) ऐसी सम्पि का िवकर्य करने के िलए जो शीघर् और पर्कृ त्या क्षयशील है और जो वाद का अवधारण लिम्बत
रहने तक न्यायालय की अिभरक्षा म है ;
(छ) कोई अनुसिचवीय कायर् करने के िलए,]
कमीशन िनकाल सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 26 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
24
76. अन्य न्यायालय को कमीशन—(1) िकसी व्यिक्त की परीक्षा करने के िलए कमीशन उस राज्य से, िजसम उसे िनकालने
वाला न्यायालय िस्थत है, िभन्न राज्य म िस्थत िकसी ऐसे न्यायालय को िनकाला जा सके गा (जो उच्च न्यायालय नह है और) जो उस
स्थान म अिधकािरता रखता है िजसम वह व्यिक्त िनवास करता है िजसकी परीक्षा की जानी है ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िकसी व्यिक्त की परीक्षा करने के िलए कमीशन को पर्ाप्त करने वाला हर न्यायालय उसके
अनुसरण म उस व्यिक्त की परीक्षा करे गा या कराएगा और जब कमीशन सम्यक् रूप से िनष्पािदत िकया गया है तब वह, उसके अधीन
िलए गए सा य सिहत, उस न्यायालय को लौटा िदया जाएगा िजसने उसे िनकाला था, िकन्तु यिद कमीशन िनकालने के आदेश ारा
अन्यथा िनिदष्ट िकया गया है तो कमीशन ऐसे आदेश के िनबन्धन के अनुसार लौटाया जाएगा ।
77. अनुरोध-पतर्—कमीशन िनकालने के बदले न्यायालय ऐसे व्यिक्त की परीक्षा करने के िलए अनुरोध-पतर् िनकाल सके गा
जो ऐसे स्थान म िनवास करता है जो 1 [भारत] के भीतर नह है ।
िवदेशी न्यायालय ारा िनकाले गए कमीशन—ऐसी शत और पिरसीमा के अधीन रहते हुए जो िविहत की जाएं,
2 [78.
सािक्षय की परीक्षा करने के िलए कमीशन के िनष्पादन और लौटने के सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध उन कमीशन को लागू ह गे जो,—
(क) भारत के उन भाग म िजन पर इस संिहता का िवस्तार नह है, िस्थत न्यायालय ारा या उनकी पर्ेरणा से
िनकाले गए ह ; अथवा
(ख) के न्दर्ीय सरकार के पर्ािधकार ारा भारत से बाहर स्थािपत या चालू रखे गए न्यायालय ारा या उनकी पर्ेरणा
से िनकाले गए ह ; अथवा
(ग) भारत से बाहर के िकसी राज्य या देश म के न्यायालय ारा या उनकी पर्ेरणा से िनकाले गए ह ।]
भाग 4
की सरकार भी आती है) िवरु ] या ऐसे कायर् की बाबत िजसके बारे म यह तात्पियत है िक वह ऐसे लोक अिधकारी ारा अपनी पदीय
हैिसयत म िकया गया है, लोक अिधकारी के िवरु 6[कोई वाद तब तक] 7[संिस्थत नह िकया जाएगा] जब तक वाद-हेतुक का, वादी के
नाम, वणर्न और िनवास-स्थान का और िजस अनुतोष का वह दावा करता है उसका, कथन करने वाली िलिखत सूचना—
(क) के न्दर्ीय सरकार के िवरु वाद की दशा म, 8 [वहां के िसवाय जहां वह रे ल से सम्बिन्धत है], उस सरकार के
सिचव को ;
9
[(ख)] के न्दर्ीय सरकार के िवरु वाद की दशा म, जहां वह रे ल से संबंिधत है, उस रे ल के पर्धान पर्बन्धक को ;]
[(खख) जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार के िवरु वाद की दशा म, उस सरकार के मुख्य सिचव को या उस
10
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 11 ारा धारा 78 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा धारा 79 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन आदेश 1950 ारा “भारत डोिमिनयन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 27 ारा (1-2-1977 से) धारा 80 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 27 ारा (1-2-1977 से) “कोई वाद तब तक संिस्थत नह िकया जाएगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1963 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा (5-8-1964 से) “सरकार के िवरु संिस्थत नह िकया जाएगा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । रे खांिकत शब्द िविध अनुकूलन
आदेश, 1948 ारा “कर्ाउन के िवरु संिस्थत” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1948 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 2 ारा अन्तःस्थािपत ।
9
1948 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 2 ारा खण्ड (कक) अंतःस्थािपत और भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा
खण्ड (ख) के रूप म पुनः संख्यांिकत तथा पूवर्वत खंड (ख) का लोप िकया गया ।
10
1963 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा (5-6-1964 से) अंतःस्थािपत ।
11
1963 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा (5-6-1964 से) “राज्य सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
25
1
* * * * * *
2
[पिरद िकए जाने या उसके कायार्लय म छोड़े जाने के ,] और लोक अिधकारी की दशा म उसे पिरद िकए जाने या उसके कायार्लय म
छोड़े जाने के पश्चात् दो मास का अवसान न हो गया हो, और वादपतर् म यह कथन अन्तिवष्ट होगा िक ऐसी सूचना ऐसे पिरद कर दी
गई है या छोड़ दी गई है ।
[(2) सरकार के (िजसके अन्तगर्त जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार भी आती है), िवरु या ऐसे कायर् की बाबत िजसके बारे म
3
यह तात्पियत है िक वह ऐसे लोक अिधकारी ारा अपनी पदीय हैिसयत म िकया गया है, लोक अिधकारी के िवरु , कोई अत्यावश्यक
या तुरन्त अनुतोष अिभपर्ाप्त करने के िलए कोई वाद, न्यायालय की इजाजत से, उपधारा (1) ारा यथाअपेिक्षत िकसी सूचना की
तामील िकए िबना, संिस्थत िकया जा सके गा; िकन्तु न्यायालय वाद म अनुतोष, चाहे अन्तिरम या अन्यथा, यथािस्थित, सरकार या
लोक अिधकारी को वाद म आवेिदत अनुतोष की बाबत हेतुक दिशत करने का उिचत अवसर देने के पश्चात् ही पर्दान करे गा,
अन्यथा नह :
परन्तु यिद न्यायालय का पक्षकार को सुनने के पश्चात्, यह समाधान हो जाता है िक वाद म कोई अत्यावश्यक या तुरन्त
अनुतोष पर्दान करने की आवश्यकता नह है तो वह वाद-पतर् को वापस कर देगा िक उसे उपधारा (1) की अपेक्षा का पालन करने के
पश्चात् पर्स्तुत िकया जाए ।
(3) सरकार के िवरु या ऐसे कायर् की बाबत िजसके बारे म यह तात्पियत है िक वह ऐसे लोक अिधकारी ारा अपनी पदीय
हैिसयत म िकया गया है, लोक अिधकारी के िवरु संिस्थत िकया गया कोई वाद के वल इस कारण खािरज नह िकया जाएगा िक
उपधारा (1) म िनिदष्ट सूचना म कोई तर्ुिट या दोष है, यिद ऐसी सूचना म—
(क) वादी का नाम, वणर्न और िनवास-स्थान इस पर्कार िदया गया है जो सूचना की तामील करने वाले व्यिक्त की
शनाख्त करने म समुिचत पर्ािधकारी या लोक अिधकारी को समथर् करे और ऐसी सूचना उपधारा (1) म िविनिदष्ट समुिचत
पर्ािधकारी के कायार्लय म पिरद कर दी गई है या छोड़ दी गई है, तथा
(ख) वाद-हेतुक और वादी ारा दावा िकया गया अनुतोष सारतः उपदिशत िकया गया है ।]
81. िगरफ्तारी और स्वीय उपसंजाित से छू ट—ऐसे िकसी भी कायर् के िलए, जो लोक अिधकारी ारा उसकी पदीय हैिसयत म
िकया गया तात्पियत है, उसके िवरु संिस्थत िकए गए वाद म—
(क) िडकर्ी के िनष्पादन म से अन्यथा न तो िगरफ्तार िकए जाने का दाियत्व पर्ितवादी पर और न कु कर् िकए जाने का
दाियत्व उसकी सम्पि पर होगा; तथा
(ख) जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक पर्ितवादी लोक सेवा का अपाय िकए िबना अपने कतर् से
अनुपिस्थत नह हो सकता वहां, वह उसे स्वीय उपसंजाित से छू ट दे देगा ।
82. िडकर्ी का िनष्पादन— 4 [(1) जहां सरकार ारा या उसके िवरु या ऐसे कायर् की बाबत िजसके बारे म यह तात्पियत है
िक वह ऐसे लोक अिधकारी ारा अपनी पदीय हैिसयत म िकया गया है, उसके ारा या उसके िवरु िकसी वाद म, यथािस्थित, भारत
संघ या िकसी राज्य या लोक अिधकारी के िवरु िडकर्ी पािरत की जाती है वहां ऐसी िडकर्ी उपधारा (2) के उपबंध के अनुसार ही
िनष्पािदत की जाएगी, अन्यथा नह ।]
(2) 5 [ऐसी िडकर्ी] की तारीख से संगिणत तीन मास की अविध तक उस िडकर्ी के तुष्ट न होने पर ही िकसी ऐसी िडकर्ी के
िनष्पादन का आदेश िनकाला जाएगा ।
[(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबन्ध िकसी आदेश या पंचाट के सम्बन्ध म ऐसे लागू ह गे जैसे वे िडकर्ी के सम्बन्ध
6
1
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा खण्ड (घ) का लोप िकया गया ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट इन काउं िसल की दशा म, स्थानीय सरकार के सिचव को या िजले के कलक्टर को
पिरद िकए जाने या उसके कायार्लय म छोड़े जाने के ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 27 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 28 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 28 ारा (1-2-1977 से) “ऐसी िरपोटर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1949 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
7
िविध अनुकूलन आदेश 1950 ारा “भारत डोिमिनयन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
26
1
[अन्य देिशय ारा और िवदेशी शासक , राजदूत और दूत ारा या उनके िवरु वाद
83. अन्य देशीय कब वाद ला सकगे—अन्य देशीय शतर्ु, जो के न्दर्ीय सरकार की अनुज्ञा से भारत म िनवास कर रहे ह, और
अन्य देशीय िमतर् िकसी भी ऐसे न्यायालय म, जो वाद का िवचारण करने के िलए अन्यथा सक्षम ह, उस पर्कार वाद ला सकगे मानो वे
भारत के नागिरक ह , िकन्तु अन्य देशीय शतर्ु, जो ऐसी अनुज्ञा के िबना भारत म िनवास कर रहे ह या जो िवदेश म िनवास कर रहे ह
ऐसे िकसी भी न्यायालय म वाद नह लाएंगे ।
स्पष्टीकरण—ऐसे हर व्यिक्त के बारे म जो ऐसे िवदेश म िनवास कर रहा है िजसकी सरकार भारत से यु िस्थित म है और
जो के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम दी गई अनुज्ञिप्त के िबना उस देश म कारबार कर रहा है, इस धारा के पर्योजन के िलए यह
समझा जाएगा िक वह ऐसा अन्य देशीय शतर्ु है जो िवदेश म िनवास कर रहा है ।
84. िवदेशी राज्य कब वाद ला सकगे—कोई िवदेशी राज्य िकसी भी सक्षम न्यायालय म वाद ला सके गा :
परन्तु यह तब जब िक वाद का उ ेश्य ऐसे राज्य के िकसी शासक म या ऐसे राज्य के िकसी अिधकारी म उसकी लोक हैिसयत
म िनिहत पर्ाइवेट अिधकार का पर्वतर्न कराना हो ।
85. िवदेशी शासक की ओर से अिभयोजन या पर्ितरक्षा करने के िलए सरकार ारा िवशेष रूप से िनयुक्त िकए गए
व्यिक्त—(1) िवदेशी राज्य के शासक के अनुरोध पर या ऐसे शासक की ओर से कायर् करने की के न्दर्ीय सरकार की राय म सक्षम िकसी
व्यिक्त के अनुरोध पर, के न्दर्ीय सरकार ऐसे शासक की ओर से िकसी वाद का अिभयोजन करने या पर्ितरक्षा करने के िलए िकन्ह
व्यिक्तय को आदेश ारा िनयुक्त कर सके गी और ऐसे िनयुक्त िकए गए कोई भी व्यिक्त ऐसे मान्यतापर्ाप्त अिभकतार् समझे जाएंगे जो
ऐसे शासक की ओर से इस संिहता के अधीन उपसंजात हो सकगे और कायर् और आवेदन कर सकगे ।
(2) इस धारा के अधीन िनयुिक्त िकसी िविनिदष्ट वाद के या अनेक िविनिदष्ट वाद के पर्योजन के िलए या ऐसे सभी वाद के
पर्योजन के िलए की जा सके गी िजनका ऐसे शासक की ओर से अिभयोजन या पर्ितरक्षा करना समय-समय पर आवश्यक हो ।
(3) इस धारा के अधीन िनयुक्त व्यिक्त ऐसे िकसी वाद या िकन्ही वाद म उपसंजात होने तथा आवेदन और कायर् करने के
िलए िकन्ह अन्य व्यिक्तय को ऐसे पर्ािधकृ त या िनयुक्त कर सके गा मानो वह स्वयं ही उसका या उनका पक्षकार हो ।
86. िवदेशी राज्य , राजदूत और दूत के िवरु वाद—(1) िवदेशी राज्य 2 *** पर कोई भी वाद िकसी भी न्यायालय म, जो
अन्यथा ऐसे वाद का िवचारण करने के िलए सक्षम है, के न्दर्ीय सरकार की ऐसी सहमित के िबना नह लाया जा सके गा जो उस सरकार
के िकसी सिचव ारा िलिखत रूप म पर्मािणत की गई हो :
परन्तु वह व्यिक्त, जो स्थावर सम्पि के अिभधारी के तौर पर ऐसे 3 [िवदेशी राज्य] पर, िजससे वह सम्पि को धारण करता
है या धारण करने का दावा करता है, यथापूव क्त सहमित के िबना वाद ला सके गा ।
(2) ऐसी सहमित िविनिदष्ट वाद या अनेक िविनिदष्ट वाद या िकसी या िकन्ह िविनिदष्ट वगर् या वग के समस्त वाद के
बारे म दी जा सके गी और वह िकसी वाद या वाद के वगर् की दशा म उस न्यायालय को भी िविनिदष्ट कर सके गी, िजसम उस 3[िवदेशी
राज्य] के िवरु वाद लाया जा सके गा, िकन्तु वह तब तक नह दी जाएगी जब तक के न्दर्ीय सरकार को यह पर्तीत नह होता है िक वह
3
[िवदेशी राज्य]—
(क) उस व्यिक्त के िवरु जो उस पर वाद लाने की वांछा करता है, उस न्यायालय म वाद संिस्थत कर चुका
है, अथवा
(ख) स्वयं या िकसी अन्य व्यिक्त ारा उस न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर ापार
करता है, अथवा
(ग) उन सीमा के भीतर िस्थत स्थावर सम्पि पर कब्जा रखता है और उसके िवरु ऐसी सम्पि के बारे म या
उस धन के बारे म िजसका भार उस सम्पि पर है, वाद लाया जाना है, अथवा
(घ) इस धारा ारा उसे िदए गए िवशेषािधकार का अिधत्यजन अिभ क्त या िवविक्षत रूप से कर चुका है ।
[(3) के न्दर्ीय सरकार के सिचव ारा िलिखत रूप म पर्मािणत कोई िडकर्ी िवदेशी राज्य की सम्पि के िवरु
4
के न्दर्ीय सरकार
की सहमित से ही िनष्पािदत की जाएगी अन्यथा नह ।]
(4) इस धारा के पूवर्वत उपबन्ध िनम्निलिखत के सम्बन्ध म वैसे ही लागू ह गे 5 [जैसे वे िवदेशी राज्य के सम्बन्ध म लागू
होते ह—]
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 12 ारा पूवर्वत शीषर् और धारा 83 से 87 तक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) “के िकसी भी शासक” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) “शासक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
27
1
[(क) िवदेशी राज्य का कोई शासक ;]
2
[(कक)] िवदेशी राज्य का कोई भी राजदूत या दूत ;
(ख) कामनवेल्थ देश का कोई भी उच्चायुक्त ; तथा
(ग) 3 [िवदेशी राज्य के कमर्चािरवृन्द का या िवदेशी राज्य के राजदूत या दूत के ] या कामनवेल्थ देश के उच्चायुक्त
के कमर्चािरवृन्द या अनुचर वगर् का कोई भी ऐसा सदस्य िजसे के न्दर्ीय सरकार साधारण या िवशेष आदेश ारा इस िनिम
िविनिदष्ट करे ।
4
[(5) इस संिहता के अधीन िनम्निलिखत व्यिक्त िगरफ्तार नह िकए जाएंगे, अथार्त् :—
(क) िवदेशी राज्य का कोई शासक ;
(ख) िवदेशी राज्य का कोई राजदूत या दूत ;
(ग) कामनवेल्थ देश का कोई उच्चायुक्त ;
(घ) िवदेशी राज्य के कमर्चािरवृन्द का या िवदेशी राज्य के शासक, राजदूत या दूत के या कामनवेल्थ देश
के उच्चायुक्त के कमर्चािरवृन्द या अनुचर वगर् का कोई भी ऐसा सदस्य िजसे के न्दर्ीय सरकार साधारण या िवशेष
आदेश ारा इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
(6) जहां के न्दर्ीय सरकार को उपधारा (1) म िविनिदष्ट सहिमत देने का अनुरोध िकया जाता है वहां के न्दर्ीय सरकार ऐसे
अनुरोध को स्वीकार करने से पूणर्तः या भागतः इं कार करने से पहले अनुरोध करने वाले व्यिक्त को सुनवाई का उिचत अवसर देगी ।]
87. िवदेशी शासक का वाद के पक्षकार के रूप म अिभधान—िवदेशी राज्य का शासक अपने राज्य के नाम से वाद ला
सके गा और उसके िवरु वाद उसके राज्य के नाम से लाया जाएगा :
परन्तु धारा 86 म िनिदष्ट सहमित देने म के न्दर्ीय सरकार शासक के िवरु वाद िकसी अिभकतार् के नाम से या िकसी अन्य
नाम से लाए जाने का िनदेश दे सके गी ।
87क. “िवदेशी राज्य” और “शासक” की पिरभाषाएं—(1) इस भाग म—
(क) “िवदेशी राज्य” से भारत से बाहर का ऐसा कोई राज्य अिभपर्ेत है जो के न्दर्ीय सरकार ारा मान्यतापर्ाप्त
है ; तथा
(ख) िवदेशी राज्य के सम्बन्ध म “शासक” से ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है जो उस राज्य के अिधपित के रूप म के न्दर्ीय
सरकार ारा तत्समय मान्यतापर्ाप्त है ।
(2) हर न्यायालय इस तथ्य की न्याियक अवेक्षा करे गा िक—
(क) कोई राज्य के न्दर्ीय सरकार ारा मान्यतापर्ाप्त है या नह ;
(ख) कोई व्यिक्त राज्य के अिधपित के रूप म के न्दर्ीय सरकार ारा मान्यतापर्ाप्त है या नह ।
भूतपूवर् भारतीय राज्य के शासक के िवरु वाद
87ख. भूतपूवर् भारतीय राज्य के शासक को धारा 85 और धारा 86 का लागू होना— 5 [(1) िकसी भूतपूवर् भारतीय राज्य के
शासक ारा या उसके िवरु िकसी वाद की दशा म जो पूणत र् ः या भागतः ऐसे वाद हेतुक पर आधािरत है जो संिवधान के पर्ारम्भ से पूवर्
उद्भूत हुआ है या ऐसे वाद से उद्भूत होने वाली िकसी कायर्वाही की दशा म धारा 85 और धारा 86 की उपधारा (1) और (3) के
उपबन्ध ऐसे शासक के सम्बन्ध म उसी पर्कार लागू ह गे जैसे वे िकसी िवदेशी राज्य के शासक के सम्बन्ध म लागू होते ह ।]
(2) इस धारा म—
(क) “भूतपूवर् भारतीय राज्य” से वह भारतीय राज्य अिभपर्ेत है िजसे के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा,
इस धारा के पर्योजन के िलए िविनिदष्ट करे ; 6 ***
7
[(ख) “संिवधान का पर्ारम्भ” से 26 जनवरी, 1950 अिभपर्ेत है ; और
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) खंड (क) को खंड (कक) के रूप म पनः अक्षरांिकत िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 29 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
5
1972 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1972 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1972 के अिधिनयम सं० 54 की धारा 3 ारा खण्ड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
28
(ग) िकसी भूतपूवर् भारतीय राज्य के सम्बन्ध म “शासक” का वही अथर् है जो संिवधान के अनुच्छेद 363 म है ।]
अन्तरािभवाची
88. अन्तरािभवाची वाद कहां संिस्थत िकया जा सके गा—जहां दो या अिधक व्यिक्त उस ऋण, धनरािश या अन्य जंगम या
स्थावर सम्पि के बारे म दूसरे के पर्ितकू ल दावा िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त से करते ह जो पर्भार या खच से िभन्न िकसी िहत का उसम
दावा नह करता है और जो अिधकारवान दावेदार को उसे देने या पिरद करने के िलए तैयार है वहां ऐसा अन्य व्यिक्त समस्त ऐसे
दावेदार के िवरु अन्तरािभवाची वाद उस व्यिक्त के बारे म िजसे संदाय या पिरदान िकया जाएगा, िविनश्चय अिभपर्ाप्त करने और
अपने िलए पिरतर्ाण अिभपर्ाप्त करने के पर्योजन से संिस्थत कर सके गा :
परन्तु जहां ऐसा कोई वाद लिम्बत है िजसम सभी पक्षकार के अिधकार उिचत रूप से िविनिश्चत िकए जा सकते ह वहां ऐसा
कोई अन्तरािभवाची वाद संिस्थत नह िकया जाएगा ।
भाग 5
िवशेष कायर्वािहयां
माध्यस्थम्
न्यायालय के बाहर िववाद का िनपटारा—(1) जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक िकसी समझौते के ऐसे तत्त्व
1 [89.
िव मान ह, जो पक्षकार को स्वीकायर् हो सकते ह वहां न्यायालय समझौते के िनबंधन बनाएगा और उन्ह पक्षकार को उनकी टीका-
िटप्पणी के िलए देगा और पक्षकार की टीका-िटप्पणी पर्ाप्त करने के पश्चात् न्यायालय संभव समझौते के िनबंधन पुनः बना सके गा
और उन्ह :—
(क) माध्यस्थम् ;
(ख) सुलह ;
(ग) न्याियक समझौते िजसके अन्तगर्त लोक अदालत के माध्यम से समझौता भी है ; या
(घ) बीच-बचाव के िलए,
िनिदष्ट करे गा ।
(2) जहां कोई िववाद—
(क) माध्यस्थम् या सुलह के िलए िनिदष्ट िकया गया है वहां माध्यस्थम् और सुलह अिधिनयम, 1996 (1996 का
26) के उपबंध ऐसे लागू ह गे मानो माध्यस्थम् या सुलह के िलए कायर्वािहयां उस अिधिनयम के उपबंध के अधीन समझौते
के िलए िनिदष्ट की गई थ ;
(ख) लोक अदालत को िनिदष्ट िकया गया है, वहां न्यायालय उसे िविधक सेवा पर्ािधकरण अिधिनयम, 1987
(1987 का 39) की धारा 20 की उपधारा (1) के उपबंध के अनुसार लोक अदालत को िनिदष्ट करे गा और उस अिधिनयम के
सभी अन्य उपबंध लोक अदालत को इस पर्कार िनिदष्ट िकए गए िववाद के संबंध म लागू ह गे ;
(ग) न्याियक समझौता के िलए िनिदष्ट िकया गया है, वहां न्यायालय उसे िकसी उपयुक्त संस्था या व्यिक्त को
िनिदष्ट करे गा और ऐसी संस्था या व्यिक्त को लोक अदालत समझा जाएगा तथा िविधक सेवा पर्ािधकरण अिधिनयम, 1987
(1987 का 39) के सभी उपबंध ऐसे लागू ह गे मानो वह िववाद लोक अदालत को उस अिधिनयम के उपबंध के अधीन
िनिदष्ट िकया गया था ;
(घ) बीच-बचाव के िलए िनिदष्ट िकया गया है, वहां न्यायालय पक्षकार के बीच समझौता कराएगा और ऐसी
पर्िकर्या का अनुसरण करे गा जो िविहत की जाए ।]
िवशेष मामला
90. न्यायालय की राय के िलए मामले का कथन करने की शिक्त—जहां कोई व्यिक्त न्यायालय की राय के िलए िकसी मामले
का कथन करने के िलए िलिखत करार कर ले वहां न्यायालय िविहत रीित से उसका िवचारण और अवधारण करे गा ।
2
[लोक न्यूसस और लोक पर पर्भाव डालने वाले अन्य दोषपूणर् कायर्]
91. लोक न्यूसस और लोक पर पर्भाव डालने वाले अन्य दोषपूणर् कायर्— 3 [(1) लोक न्यूसस या अन्य ऐसे दोषपूणर् कायर् की
दशा म िजससे लोक पर पर्भाव पड़ता है या पर्भाव पड़ना संभव है, घोषणा और ादेश के िलए या ऐसे अन्य अनुतोष के िलए जो
मामले की पिरिस्थितय म समुिचत हो वाद,—
1
1940 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 49 और अनुसूची 3 ारा धारा 89 िनरिसत और 1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 7 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 30 ारा (1-2-1977 से) पूवर्वत शीषर् के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 30 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
29
िकसी अिभकिथत भंग के मामले म, या जहां ऐसे िकसी न्यास के पर्शासन के िलए न्यायालय का िनदेश आवश्यक समझा जाता है वहां
महािधवक्ता या न्यास म िहत रखने वाले ऐसे दो या अिधक व्यिक्त, िजन्ह ने 2 [न्यायालय की इजाजत] अिभपर्ाप्त कर ली है, ऐसा
वाद, चाहे वह पर्ितिवरोधात्मक हो या नह , आरिम्भक अिधकािरता वाले पर्धान िसिवल न्यायालय म या राज्य सरकार ारा इस
िनिम सशक्त िकए गए िकसी अन्य न्यायालय म िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर न्यास की सम्पूणर् िवषय-वस्तु या
उसका कोई भाग िस्थत है, िनम्निलिखत िडकर्ी अिभपर्ाप्त करने के िलए संिस्थत कर सकगे—
(क) िकसी न्यासी को हटाने की िडकर्ी ;
(ख) नए न्यासी को िनयुक्त करने की िडकर्ी ;
(ग) न्यासी म िकसी सम्पि को िनिहत करने की िडकर्ी ;
[(गग) ऐसे न्यासी को जो हटाया जा चुका है या ऐसे व्यिक्त को जो न्यासी नह रह गया है, अपने कब्जे म की
3
िकसी न्यास-सम्पि का कब्जा उस व्यिक्त को जो उस सम्पि के कब्जे का हकदार है, पिरद करने का िनदेश देने की
िडकर्ी ;]
(घ) लेखा और जांच को िनिदष्ट करने की िडकर्ी ;
(ङ) यह घोषणा करने की िडकर्ी िक न्यास-सम्पि का या उसम के िहत का कौन सा अनुपात न्यास के िकसी
िविशष्ट उ ेश्य के िलए आबंिटत होगा ;
(च) सम्पूणर् न्यास-सम्पि या उसके िकसी भाग का प े पर उठाया जाना, िवकर्य िकया जाना, बन्धक िकया जाना
या िविनमय िकया जाना पर्ािधकृ त करने की िडकर्ी ;
(छ) स्कीम िस्थर करने की िडकर्ी ; अथवा
(ज) ऐसा अितिरक्त या अन्य अनुतोष अनुद करने की िडकर्ी जो मामले की पर्कृ ित से अपेिक्षत हो ।
(2) उसके िसवाय जैसा धािमक िवन्यास अिधिनयम, 1863 (1863 का 20) ारा 4 [या 5 [उन राज्यक्षेतर् ] म, 5[जो 1 नवम्बर,
1956 के ठीक पूवर् भाग ख राज्य म समािवष्ट,] थे पर्वृ तत्समान िकसी िविध ारा] उपबिन्धत है, उपधारा (1) म िविनिदष्ट
अनुतोष म से िकसी के िलए दावा करने वाला कोई भी वाद ऐसे िकसी न्यास के सम्बन्ध म जो उसम िनिदष्ट है, उस उपधारा के
उपबन्ध के अनुरूप ही संिस्थत िकया जाएगा, अन्यथा नह ।
न्यायालय, पूतर् या धािमक पर्कृ ित के लोक पर्योजन के िलए सृष्ट िकसी अिभ क्त या आन्वियक न्यास के मूल पर्योजन
6 [(3)
म पिरवतर्न कर सके गा और ऐसे न्यास की सम्पि या आय को अथवा उसके िकसी भाग को िनम्निलिखत म से एक या अिधक
पिरिस्थितय म समान उ ेश्य के िलए उपयोिजत कर सके गा, अथार्त् :—
(क) जहां न्यास के मूल पर्योजन पूणर्तः या भागतः,—
(i) जहां तक हो सके पूरे हो गए ह, अथवा
(ii) िकर्यािन्वत िकए ही नह जा सकते ह या न्यास को सृष्ट करने वाले िलखत म िदए गए िनदेश के
अनुसार या जहां ऐसी कोई िलखत नह है वहां, न्यास की भावना के अनुसार िकर्यािन्वत नह िकए जा सकते ह,
अथवा
(ख) जहां न्यास के मूल पर्योजन म, न्यास के आधार पर उपलब्ध सम्पि के के वल एक भाग के उपयोग के िलए ही
उपबन्ध है ; अथवा
1
धारा 92 िबहार के िकसी धािमक न्यास को लागू नह होगी, देिखए 1951 का िबहार अिधिनयम सं० 1 ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 31 ारा (1-2-1977 से) “महािधवक्ता की िविशष्ट सम्मित” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 13 ारा अंतःस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग ख राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 31 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
30
(ग) जहां न्यास के आधार पर उपलब्ध सम्पि और समान पर्योजन के िलए उपयोिजत की जा सकने वाली अन्य
सम्पि का न्यास की भावना और सामान्य पर्योजन के िलए उसके उपयोजन को ध्यान म रखते हुए, िकसी अन्य पर्योजन के
साथ-साथ अिधक पर्भावी ढंग से उपयोग िकया जा सकता है और वह उस उ ेश्य से िकसी अन्य पर्योजन के िलए उपयुक्त
रीित से उपयोिजत की जा सकती है ; अथवा
(घ) जहां मूल पर्योजन पूणर्तः या भागतः, िकसी ऐसे क्षेतर् के बारे म बनाए गए थे जो ऐसे पर्योजन के िलए उस
समय एक इकाई था िकन्तु अब नह रह गया है ; अथवा
(ङ) जहां,—
(i) मूल पर्योजन को बनाए जाने के पश्चात्, पूणर्तः या भागतः, अन्य साधन से पयार्प्त रूप से वस्था
कर दी है ; अथवा
(ii) मूल पर्योजन बनाए जाने के पश्चात्, पूणर्तः या भागतः, समाज के िलए अनुपयोगी या अपहािनकर
होने के कारण समाप्त हो गए ह ; अथवा
(iii) मूल पर्योजन बनाए जाने के पश्चात् पूणर्तः या भागतः, िविध के अनुसार पूतर् नह रह गए ह ;
अथवा
(iv) मूल पर्योजन बनाए जाने के पश्चात्, पूणर्तः या भागतः, न्यास की भावना को ध्यान म रखते हुए,
न्यास के आधार पर उपलब्ध सम्पि के उपयुक्त और पर्भावी उपयोग के िलए िकसी अन्य रीित से उपबन्ध नह
करते ह ।]
93. पर्ेिसडसी नगर से बाहर महािधवक्ता की शिक्तय का पर्योग—महािधवक्ता को धारा 91 और धारा 92 ारा पर्द
शिक्तय का पर्योग पर्ेिसडसी नगर से बाहर राज्य सरकार की पूवर् मंजूरी से कलक्टर या ऐसा अिधकारी भी कर सके गा िजसे राज्य
सरकार इस िनिम िनयुक्त करे ।
भाग 6
अनुपरू क कायर्वािहयां
94. अनुपरू क कायर्वािहयां—न्यायालय न्यास के उ ेश्य का िवफल िकया जाना िनवािरत करने के िलए उस दशा म िजसम
ऐसा करना िविहत हो—
(क) पर्ितवादी को िगरफ्तार करने के िलए और न्यायालय के सामने उसको इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए
लाए जाने के िलए िक उसे अपने उपसंजात होने के िलए पर्ितभूित क्य नह देनी चािहए, वारण्ट िनकाल सके गा और यिद वह
पर्ितभूित के िलए िदए गए िकसी आदेश का अनुपालन करने म असफल रहता है तो उसे िसिवल कारागार को सुपुदर् कर
सके गा ;
(ख) पर्ितवादी को अपनी कोई सम्पि पेश करने के िलए पर्ितभूित देने का और उस सम्पि को न्यायालय के
िनयंतर्णाधीन रखने का िनदेश दे सके गा या िकसी सम्पि की कु क आिदष्ट कर सके गा ;
(ग) अस्थायी ादेश अनुद कर सके गा और अवज्ञा की दशा म उसके दोषी व्यिक्त को िसिवल कारागार को सुपुदर्
कर सके गा और आदेश दे सके गा िक उसकी सम्पि कु कर् की जाए और उसका िवकर्य िकया जाए ;
(घ) िकसी सम्पि का िरसीवर िनयुक्त कर सके गा और उसकी सम्पि को कु कर् करके और उसका िवकर्य करके
उसके कतर् का पालन करा सके गा ;
(ङ) ऐसे अन्य अन्तवर्त आदेश कर सके गा जो न्यायालय को न्यायसंगत और सुिवधापूणर् पर्तीत ह ।
95. अपयार्प्त आधार पर िगरफ्तारी, कु क या ादेश अिभपर्ाप्त करने के िलए पर्ितकर—(1) जहां िकसी वाद म, िजसम
इसके ठीक पहले की धारा के अधीन कोई िगफ्तारी या कु क कर ली गई है या अस्थायी ादेश िदया गया है—
(क) न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक ऐसी िगरफ्तारी, कु क या ादेश के िलए आवेदन अपयार्प्त आधार पर
िदया गया था, अथवा
(ख) वादी का वाद असफल हो जाता है और न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक उसके संिस्थत िकए जाने के िलए
कोई युिक्तयुक्त या अिधसंभा आधार नह था,
31
वहां पर्ितवादी न्यायालय से आवेदन कर सके गा और न्यायालय ऐसे आवेदन पर अपने आदेश ारा 1 [पचास हजार रुपए से अनिधक]
इतनी रकम वादी के िवरु अिधिनज त कर सके गा िजतना वह पर्ितवादी के िलए 2 [उसके ारा िकए गए य के िलए या उसे हुई क्षित
के िलए (िजसके अन्तगर्त पर्ित ा की हुई क्षित भी है)] युिक्तयुक्त पर्ितकर समझे :
परन्तु न्यायालय, अपनी धन-संबंधी अिधकािरता की पिरसीमा से अिधक रकम इस धारा के अधीन अिधिनण त
नह करे गा ।
(2) ऐसे िकसी आवेदन का अवधारण करने वाला आदेश ऐसी िगरफ्तारी, कु क या ादेश के संबंध म पर्ितकर के िलए िकसी
भी वाद का वजर्न करे गा ।
भाग 7
अपील
मूल िडिकर्य की अपील
96. मूल िडकर्ी की अपील—(1) वहां के िसवाय जहां इस संिहता के पाठ म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा
अिभ क्त रूप से अन्यथा उपबिन्धत है, ऐसी हर िडकर्ी की, जो आरिम्भक अिधकािरता का पर्योग करने वाले िकसी न्यायालय ारा
पािरत की गई है, अपील उस न्यायालय म होगी जो ऐसे न्यायालय के िविनश्चय की अपील को सुनने के िलए पर्ािधकृ त है ।
(2) एकपक्षीय पािरत मूल िडकर्ी की अपील हो सके गी ।
(3) पक्षकार की सहमित से जो िडकर्ी न्यायालय ने पािरत की है उसकी कोई अपील नह होगी ।
लघुवाद न्यायालय ारा संज्ञेय वाद म िकसी िडकर्ी से कोई अपील, यिद ऐसी िडकर्ी की रकम या उसका मूल्य 4 [दस
3 [(4)
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 8 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 32 ारा (1-2-1977 से) “उसके ारा िकए गए य या उसे हुई क्षित के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 33 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 9 ारा (1-7-2002 से) “तीन हजार रुपए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 34 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1928 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा अन्तःस्थािपत ।
7
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 35 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
32
धारा 47 के अधीन तब तक िकसी आदेश को उलटा न जाना या उपान्तिरत न िकया जाना जब तक मामले के
1 [99क.
िविनश्चय पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ता है—धारा 99 के उपबंध की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, धारा 47 के अधीन
कोई भी आदेश, ऐसे आदेश से संबंिधत िकसी कायर्वाही म िकसी गलती, तर्ुिट या अिनयिमतता के कारण तब तक न तो उलटा जाएगा
और न उसम सारत फे रफार िकया जाएगा जब तक ऐसी गलती, तर्ुिट या अिनयिमतता का मामले के िविनश्चय पर पर्ितकू ल पर्भाव नह
पड़ता है ।]
[100. ि तीय अपील—(1) उसके िसवाय जैसा इस संिहता के पाठ म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म अिभ क्त रूप
2
से उपबंिधत है, उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िकसी न्यायालय ारा अपील म पािरत पर्त्येक िडकर्ी की उच्च न्यायालय म अपील हो
सके गी, यिद उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक उस मामले म िविध का कोई सारवान् पर्श्न अन्तवर्िलत है ।
(3) इस धारा के अधीन अपील म अन्तवर्िलत िविध के उस सारवान् पर्श्न का अपील के ज्ञापन म पर्िमततः कथन िकया
जाएगा ।
(4) जहां उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक िकसी मामले म सारवान् िविध का पर्श्न अन्तवर्िलत है तो वह उस
पर्श्न को बनाएगा ।
(5) अपील इस पर्कार बनाए गए पर्श्न पर सुनी जाएगी और पर्ितवादी को अपील की सुनवाई म यह तकर् करने की अनुज्ञा दी
जाएगी िक ऐसे मामले म ऐसा पर्श्न अन्तवर्िलत नह है :
परन्तु इस धारा की िकसी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह, िविध के िकसी अन्य ऐसे सारवान् पर्श्न पर जो
न्यायालय के ारा नह बनाया गया है, न्यायालय का यह समाधान हो जाने पर िक उस मामले म ऐसा पर्श्न अन्तवर्िलत है, न्यायालय
की कारण को लेखब करके अपील सुनने की शिक्त वापस लेती है या उसे न्यून करती है ।]
[100क. कितपय मामल म आगे अपील का न होना—िकसी उच्च न्यायालय के िलए िकसी लेटसर् पेटट म या िविध का बल
3
रखने वाली िकसी िलखत म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकसी मूल या अपीली िडकर्ी या
आदेश से अपील की सुनवाई और उसका िविनश्चय िकसी उच्च न्यायालय के िकसी एकल न्यायाधीश ारा िकया जाता है वहां ऐसे
एकल न्यायाधीश के िनणर्य और िडकर्ी से आगे कोई अपील नह होगी ।]
101. ि तीय अपील का िकसी भी अन्य आधार पर न होना—कोई भी ि तीय अपील धारा 100 म विणत आधार पर होगी,
अन्यथा नह ।
[102. कितपय मामल म आगे ि तीय अपील का न होना—िकसी िडकर्ी से कोई ि तीय अपील नह होगी जब मूल वाद की
4
[103. तथ्य-िववा क का अवधारण करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—यिद अिभलेख म का सा य पयार्प्त हो तो िकसी
5
भी ि तीय अपील म उच्च न्यायालय ऐसी अपील के िनपटारे के िलए आवश्यक कोई िववा क अवधािरत कर सके गा, जो—
(क) िनचले अपील न्यायालय ारा या पर्थम बार के न्यायालय और िनचले अपील न्यायालय दोन ारा अवधािरत
नह िकया गया है, अथवा
(ख) धारा 100 म यथािनिदष्ट िविध के ऐसे पर्श्न के िविनश्चय के कारण ऐसे न्यायालय या न्यायालय ारा गलत
तौर पर अवधािरत िकया गया है ।]
आदेश की अपील
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 36 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 37 ारा (1-2-1977 से) धारा 100 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 4 ारा (1-7-2002 से) धारा 100क के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 5 ारा (1-7-2002 से) धारा 10क के स्थान पर अन्तःस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 40 ारा (1-2-1977 से) धारा 103 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1940 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 49 और अनुसूची 3 ारा खण्ड (क) से (च) तक का लोप िकया गया ।
7
1922 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 3 ारा अन्तःस्थािपत । पूव क्त धारा 35क का पाद-िटप्पण भी देख ।
33
[(चचक) धारा 91 या धारा 92 के अधीन, यथािस्थित, धारा 91 या धारा 92 म िनिदष्ट पर्कृ ित के वाद को
1
भारत के न्यायालय से अपील के संबंध म उच्चतम न्यायालय ारा समय-समय पर बनाए जाएं और इसम इसके पश्चात् अन्तिवष्ट
उपबंध के अधीन रहते हुए िकसी उच्च न्यायालय की िसिवल कायर्वाही म के िकसी िनणर्य, िडकर्ी या अिन्तम आदेश की अपील
उच्चतम न्यायालय म होगी यिद उच्च न्यायालय यह पर्मािणत कर देता है िक—
(i) मामले म ापक महत्व का कोई सारवान् िविधक पर्श्न अन्तवर्िलत है ; तथा
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 41 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1922 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 3 ारा अन्तःस्थािपत । पूव क्त धारा 35क का पाद-िटप्पण भी देख ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 42 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 2 ारा 109 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
34
(ii) उच्च न्यायालय की राय म उस पर्श्न का उच्चतम न्यायालय ारा िविनश्चय आवश्यक है ।
1
* * * * *
111. [कु छ अपील का वजर्न ।]—िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा िनरिसत ।
2
[111क. [फे डरल न्यायालय को अपील]—फे डरल न्यायालय अिधिनयम, 1941 (1941 का 21) की धारा 2 ारा
िनरिसत ]।
112. ावृि यां— 3 [(1) इस संिहता म अन्तिवष्ट िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह—
(क) संिवधान के अनुच्छेद 136 या अन्य िकसी उपबन्ध के अधीन उच्चतम न्यायालय की शिक्तय पर पर्भाव
डालती है, अथवा
(ख) उच्चतम न्यायालय म अपील को उपिस्थत करने के िलए या उसके सामने उनके संचालन के िलए उस
न्यायालय ारा बनाए गए और तत्समय पर्वृ िकन्ह िनयम म हस्तक्षेप करती है ।]
(2) इसम अन्तिवष्ट कोई भी बात िकसी भी दािण्डक या नाविधकरण िवषयक या उपनाविधकरण िवषयक अिधकािरता के
िवषय को अथवा पर्ाइज न्यायालय के आदेश और िडिकर्य की अपील को लागू नह होती ।
भाग 8
1
1973 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 3 ारा धारा 110 का लोप िकया गया ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अन्तःस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा पूवर्त उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा जोड़ा गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 43 ारा (1-2-1977 से) धारा 115 को उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
35
िववा क िविनश्चय करने वाले िकसी आदेश म तभी फे रफार करे गा या उसे उलटेगा जब ऐसा आदेश यिद वह पुनरीक्षण के िलए
आवेदन करने वाले पक्षकार के पक्ष म िकया गया होता तो वाद या अन्य कायर्वाही का अंितम रूप से िनपटारा कर देता ।]
[(2) उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन िकसी ऐसी िडकर्ी या आदेश म, िजसके िवरु
2
या तो उच्च न्यायालय म या उसके
अधीनस्थ िकसी न्यायालय म अपील होती है, फे रफार नह करे गा अथवा उसे नह उलटेगा ।]
3
[(3) न्यायालय के समक्ष वाद या अन्य कायर्वाही म कोई पुनरीक्षण रोक के रूप म पर्भावी नह होगी िसवाय वहां के जहां
ऐसे वाद या अन्य कायर्वाही को उच्च न्यायालय ारा रोका गया है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “ऐसे मामले के अिभलेख को मंगवा सके गा िजसका ऐसे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िकसी
न्यायालय ने िविनश्चय िकया है” अिभव्यिक्त के अन्तगर्त िकसी वाद या अन्य कायर्वाही के अनुकर्म म िकया गया कोई आदेश या कोई
िववा क िविनिश्चत करने वाला कोई आदेश भी है ।]
भाग 9
2
[ऐसे उच्च न्यायालय ] के सम्बन्ध म िवशेष जो 4 [न्याियक आयुक्त के न्यायालय नह ] ह
116. इस भाग का कु छ उच्च न्यायालय को ही लागू होना—यह भाग ऐसे उच्च न्यायालय को ही लागू होगा जो 5 [न्याियक
आयुक्त के न्यायालय नह ] ह ।
117. संिहता का उच्च न्यायालय को लागू होना—उसके िसवाय जैसा इस भाग म या भाग 10 म या िनयम म उपबिन्धत
है, इस संिहता के उपबंध ऐसे उच्च न्यायालय को लागू ह गे ।
118. खच के अिभिनश्चय के पूवर् िडकर्ी का िनष्पादन—जहां ऐसा कोई उच्च न्यायालय यह आवश्यक समझता है िक उसकी
अपनी आरं िभक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म पािरत कोई िडकर्ी वाद म के खच की रािश का िविनधार्रण ारा अिभिनश्चय िकए
जाने के पूवर् िनष्पािदत की जानी चािहए वहां वह न्यायालय यह आदेश दे सके गा िक िडकर्ी के उतने भाग के िसवाय िजतना खच से
सम्बिन्धत है, उस िडकर्ी का िनष्पादन तुरन्त िकया जाए ;
और उसके उतने भाग के बारे म िजसका खच से संबंध है, यह आदेश दे सके गा िक जैसे ही खच िविनधार्रण ारा
अिभिनिश्चत हो जाएं, वह िडकर्ी वैसे ही िनष्पािदत की जा सके गी ।
119. अपर्ािधकृ त व्यिक्त न्यायालय को संबोिधत नह कर सकगे—इस संिहता की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा
जाएगा िक वह िकसी व्यिक्त को वहां के िसवाय जहां िक न्यायालय ने अपने चाटर्र ारा पर्द शिक्त के पर्योग म उस व्यिक्त को ऐसा
करने के िलए पर्ािधकृ त कर िदया है, दूसरे व्यिक्त की ओर से उस न्यायालय को उसकी आरिम्भक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म
संबोिधत करने को या सािक्षय की परीक्षा करने को पर्ािधकृ त करती है, या अिधवक्ता , वकील और अटिनय के संबंध म िनयम
बनाने की उस उच्च न्यायालय की शिक्त म हस्तक्षेप करती है ।
120. आरं िभक िसिवल अिधकािरता म उच्च न्यायालय को उपबन्ध का लागू न होना—(1) िनम्निलिखत उपबन्ध, अथार्त्
धारा 16, धारा 17 और धारा 20 उच्च न्यायालय को उसकी आरिम्भक िसिवल अिधकािरता का पर्योग करने म लागू नह ह गे ।
6
* * * * *
भाग 10
िनयम
121. पर्थम अनुसच
ू ी म के िनयम का पर्भाव—पर्थम अनुसूची म के िनयम, जब तक िक वे इस भाग के उपबन्ध के अनुसार
बाितल या पिरवितत न कर िदए जाएं, ऐसे पर्भावशील ह गे, मानो वे इस संिहता के पाठ म अिधिनयिमत ह ।
122. िनयम बनाने की कु छ उच्च न्यायालय की शिक्त— 7 [ऐसे उच्च न्यायालय, जो 8 [न्याियक आयुक्त के न्यायालय नह ]
ह,] 9 *** अपनी स्वयं की पर्िकर्या और अपने अधीक्षण के अधीन आने वाले िसिवल न्यायालय की पर्िकर्या का िविनयमन करने के िलए
िनयम, पूवर् पर्काशन के पश्चात् समय-समय पर बना सकगे और वे ऐसे िनयम ारा पर्थम अनुसूची म के सभी िनयम को या उनम से
िकसी को बाितल या पिरवितत कर सकगे अथवा उन सभी म या उनम से िकसी म पिरवधर्न कर सकगे ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 12 ारा (1-7-2002 से) परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 43 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 12 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 14 ारा “चाटर्डर् उच्च न्यायालय ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य और भाग ख राज्य के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1909 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 127 और अनुसूची 3 ारा उपधारा (2) िनरिसत ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “ऐसे न्यायालय जो भारत शासन अिधिनयम 1935, के पर्योजन के िलए उच्च न्यायालय ह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य और भाग ख राज्य के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । काले शब्द 1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 15
ारा अंतःस्थािपत िकए गए थे ।
9
1923 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “और लोअर बमार् का मुख्य न्यायालय” शब्द िनरिसत ।
36
123. कु छ राज्य म िनयम-सिमितय का गठन—(1) 1 [ऐसे नगर म, जो धारा 122 म िनिदष्ट उच्च न्यायालय 2 *** म से हर
एक की बैठक का पर्ाियक स्थान है,] एक सिमित गिठत की जाएगी िजसका नाम िनयम-सिमित होगा ।
(2) ऐसी हर एक सिमित िनम्निलिखत व्यिक्तय से िमलकर गिठत होगी, अथार्त् :—
(क) ऐसे नगर म, जहां ऐसी सिमित का गठन हुआ है, स्थािपत उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश, िजनम से कम
से कम एक ऐसा होगा िजसने िजला न्यायाधीश या 3 *** खण्ड न्यायाधीश के रूप म तीन वषर् सेवा की है,
4 [(ख) दो िविध- वसायी, िजनके नाम उस न्यायालय म दजर् ह ,]
5 [(ग)] उस उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िसिवल न्यायालय का एक न्यायाधीश, 6 ***
7
* * * * *
(3) ऐसी हर सिमित के सदस्य 8 [उच्च न्यायालय] ारा िनयुक्त िकए जाएंगे, जो उनके सदस्य म से एक को सभापित भी
नामिनदिशत करे गा ।
9
* * * * *
(4) िकसी ऐसी सिमित का हर एक सदस्य ऐसी अविध के िलए पद धारण करे गा जो [उच्च न्यायालय] ारा इस िनिम
8
िविहत की जाए और जब कभी कोई सदस्य सेवािनवृ हो जाए, पदत्याग कर दे, उसकी मृत्यु हो जाए या वह उस राज्य म िजसम
सिमित का गठन हुआ है, िनवास करना छोड़ दे या सिमित के सदस्य के रूप म कायर् करने के िलए असमथर् हो जाए, तब उक्त 8[उच्च
न्यायालय] उसके स्थान पर अन्य व्यिक्त को सदस्य िनयुक्त कर सके गा ।
(5) हर एक ऐसी सिमित का एक सिचव होगा जो 8[उच्च न्यायालय] ारा िनयुक्त िकया जाएगा और ऐसा पािरशर्िमक
पाएगा, जो 10 [राज्य सरकार ारा] इस िनिम उपबिन्धत िकया जाए ।
124. सिमित उच्च न्यायालय को िरपोटर् करे गी—हर एक िनयम-सिमित, उस नगर म जहां उसका गठन हुआ है, स्थािपत
उच्च न्यायालय को पर्थम अनुसच ू ी म के िनयम को बाितल, पिरवितत या पिरविधत करने की या नए िनयम बनाने की िकसी भी
पर्स्थापना के बारे म िरपोटर् करे गी और धारा 122 के अधीन िकन्ह भी िनयम को बनाने से पूवर् वह उच्च न्यायालय ऐसी िरपोटर् पर
िवचार करे गा ।
125. िनयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालय की शिक्त—धारा 122 म िविनिदष्ट न्यायालय से िभन्न उच्च न्यायायल उस
धारा ारा पर्द शिक्तय को पर्योग ऐसी रीित से और ऐसी शत के अधीन रहते हुए कर सकगे 11 [जो 12 [राज्य सरकार] अवधािरत
करे ]:
परन्तु ऐसा कोई भी उच्च न्यायालय ऐसे िकन्ह भी िनयम का जो िकसी अन्य उच्च न्यायालय ारा बनाए गए ह, अपनी
अिधकािरता की स्थीनीय सीमा के भीतर िवस्तारण करने के िलए िनयम, पूवर् पर्काशन के पश्चात् बना सके गा ।
[126. िनयम का अनुमोदन के अधीन होना—पूवर्गामी उपबन्ध के अधीन बनाए गए िनयम उस राज्य सरकार के पूवर्
13
अनुमोदन के , िजसम वह न्यायालय िजसकी पर्िकर्या का िविनयमन वे िनयम करते ह, िस्थत है या यिद वह न्यायालय िकसी राज्य म
िस्थत नह है तो, 14 [के न्दर्ीय सरकार] के पूवर् अनुमोदन के अधीन रहगे ।]
127. िनयम का पर्काशन—इस पर्कार बनाए गए और 15 [अनुमोिदत िकए गए] िनयम 16 [राजपतर्] म पर्कािशत िकए जाएंगे
और पर्काशन की तारीख से या ऐसी अन्य तारीख से जो िविनिदष्ट की जाए, उस उच्च न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा
के भीतर िजसने उन्ह बनाया है, वही बल और पर्भाव रखगे मानो वे पर्थम अनुसूची म अन्तिवष्ट थे ।
1
1916 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 2 और अनुसूची ारा “कलक ा, मदर्ास, मुम्बई, इलाहाबाद, लाहौर और रं गून के नगर म से पर्त्येक नगर,” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत ।
2
1923 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “और मुख्य न्यायालय” शब्द का लोप िकया गया । 1925 के अिधिनयम सं० 32 ारा इन शब्द का पुनः
अन्तःस्थापन िकया गया था और तत्पश्चात इनका स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा लोप िकया गया ।
3
1923 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “(बमार् म)” को क और शब्द िनरिसत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 16 ारा मूल खण्ड (ख) और (ग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 16 ारा खण्ड (घ) को (ग) के रूप म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
6
1978 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा अन्त म आने वाले शब्द “तथा” का लोप िकया गया ।
7
1978 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा खण्ड (घ) का लोप िकया गया ।
8
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 44 ारा (1-2-1977 से) “मुख्य न्यायमूित या मुख्य न्यायाधीश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 44 ारा (1-2-1977 से) परन्तुक का लोप िकया गया ।
10
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “यथािस्थित, सपिरषद् गवनर्र जनरल ारा या स्थानीय स्वशासन ारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और अनुसूची 1 के भाग 1 ारा “जैसी सपिरषद् गवनर्र जनरल अधािरत करे ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “कु गर् के न्याियक आयुक्त के न्यायालय की दशा म, सपिरषद् गवनर्र जनरल और अन्य दशा म स्थानीय
स्वशासन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा धारा 126 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15
1917 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “मंजूर िकए गए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
16
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “यथािस्थित, भारत के राजपतर् या स्थानीय राजपतर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । सही अथर् म यह
पर्ितस्थापन “यथािस्थित, राजपतर् या राजपतर्” पढ़ा जाएगा, िकन्तु पश्चात्वत शब्द को अनावश्यक समझकर उनका लोप कर िदया गया है ।
37
128. वे िवषय िजनके िलए िनयम उपबन्ध कर सकगे—(1) ऐसे िनयम इस संिहता के पाठ म के उपबंध से असंगत नह ह गे
िकन्तु उनके अधीन रहते हुए, िसिवल न्यायालय की पर्िकर्या से सम्बिन्धत िकन्ह भी िवषय के िलए उपबंध कर सकगे ।
(2) िविशष्टतया और उपधारा (1) ारा पर्द शिक्तय की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम
िनम्निलिखत सभी िवषय या उनम से िकसी के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त् :—
(क) समन , सूचना और अन्य आदेिशका की साधारणतः या िकन्ह िविनिदष्ट क्षेतर् म डाक ारा या िकसी
अन्य पर्कार से तामील और ऐसी तामील का सबूत ;
(ख) िजतने समय पशु-धन और अन्य जंगम सम्पि कु क के अधीन रहे, उतने समय उसका भरण-पोषण और
अिभरक्षा, ऐसे भरण-पोषण और अिभरक्षा के िलए फीस और ऐसे पशु-धन और सम्पि का िवकर्य और ऐसे िवकर्य के आगम ;
(ग) पर्ितदावे के रूप म िकए गए वाद म की पर्िकर्या और अिधकािरता के पर्योजन के िलए ऐसे वाद का
मूल्यांकन ;
(घ) ऋण की कु क और िवकर्य के अितिरक्त या बदले म गारिनशी आदेश और भारण आदेश की पर्िकर्या ;
(ङ) जहां पर्ितवादी िकसी व्यिक्त के िवरु चाहे वह वाद का पक्षकार हो या नह , अिभदाय या क्षितपूित के िलए
हकदार होने का दावा करे वहां पर्िकर्या ;
(च) उन वाद म संिक्षप्त पर्िकर्या—
(i) िजनम वादी िकसी अिभ क्त या िवविक्षत संिवदा से अथवा िकसी अिधिनयिमित से उस दशा म
िजसम वह रािश, िजसकी वसूली चाही गई है िनयत धनरािश है या शािस्त से िभन्न कोई ऋण है, अथवा िकसी
पर्त्याभूित से उस दशा म िजसम मूल ऋणी के िवरु दावा िकसी ऋण या पिरिनधार्िरत मांग के िलए ही है, अथवा
िकसी न्यास से उद्भूत ऋण या पिरिनधार्िरत मांग को, जो पर्ितवादी ारा धन के रूप म संदय
े है, ब्याज सिहत या
िबना ब्याज के वसूल करना चाहता है ; अथवा
(ii) जो भाटक या अन्तःकालीन लाभ के िलए दाव के सिहत या िबना स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के
िलए भू-स्वामी ारा ऐसे अिभधारी के िवरु है, िजसकी अविध का अवसान हो गया है, या िजसकी अविध का
पयर्वसान खाली कर देने की सूचना ारा सम्यक् रूप से कर िदया गया है या िजसकी अविध भाटक के असंदाय के
कारण समपहरणीय हो गई है, अथवा ऐसे अिभधारी से ुत्पन्न अिधकार के अधीन दावा करने वाले व्यिक्तय के
िवरु है ;
(छ) ओिरिजनेिटग समन के रूप म पर्िकर्या ;
(ज) वाद , अपील और अन्य कायर्वािहय का समेकन ;
(झ) न्यायालय के िकसी रिजस्टर्ार, पर्ोथोनोटरी, मास्टर या अन्य पदधारी को िकन्ह न्याियक, न्याियक-कल्प या
न्याियके तर कतर् का पर्त्यायोजन ; तथा
(ञ) ऐसे सभी पर्रूप, रिजस्टर, पुस्तक, पर्िविष्टयां और लेखे, जो िसिवल न्यायालय के कारबार के सं वहार के
िलए आवश्यक या वांछनीय ह ।
129. अपनी आरिम्भक िसिवल पर्िकर्या के सम्बन्ध म िनयम बनाने की उच्च न्यायालय की शिक्त—इस संिहता म िकसी बात
के होते हुए भी, कोई ऐसा उच्च न्यायालय 1 [जो न्याियक आयुक्त का न्यायालय नह है] ऐसे िनयम बना सके गा जो उसकी स्थापना
करने वाले लेटसर् पेटेन्ट 2 [या आदेश] 3 [या अन्य िविध] से असंगत न हो और जो वह अपनी आरिम्भक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म
अपनी पर्िकर्या का िविनयमन करने के िलए ठीक समझे और इसम अन्तिवष्ट कोई भी बात िकन्ह ऐसे िनयम की िविधमान्यता पर
पर्भाव नह डालेगी जो इस संिहता के पर्ारं भ के समय पर्वृ ह ।
[130. पर्िकर्या से िभन्न िवषय के सम्बन्ध म िनयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालय की शिक्त—वह उच्च न्यायालय 5 [जो
4
ऐसा उच्च न्यायालय नह है िजसे धारा 129 लागू होती है,] पर्िकर्या से िभन्न िकसी भी िवषय के संबंध म कोई ऐसा िनयम राज्य
सरकार के पूवर् अनुमोदन से बना सके गा िजसे 6 [िकसी 7 *** राज्य का] उच्च न्यायालय अपनी अिधकािरता के अधीन राज्यक्षेतर् के
1
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य या भाग ख राज्य के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 17 ारा अन्तःस्थािपत ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा धारा 130 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “जो लेटसर् पेटेन्ट ारा िहज मजेस्टी ारा गिठत नह है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “इस पर्कार गिठत” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग क” शब्द और अक्षर का लोप िकया गया ।
38
िकसी ऐसे भाग के िलए, जो पर्ेिसडेन्सी नगर की सीमा के अन्तगर्त नह है, 1 [संिवधान के अनुच्छेद 227] के अधीन ऐसे िकसी िवषय
के िलए बना सकता है ।
131. िनयम का पर्काशन—धारा 129 या धारा 130 के अनुसार बनाए गए िनयम 2 [राजपतर्] म पर्कािशत िकए जाएंगे और
पर्काशन की तारीख से या ऐसी अन्य तारीख से जो िविनिदष्ट की जाए, िविध का बल रखगे ।
भाग 11
पर्कीणर्
132. कु छ िस्तर्य को स्वीय उपसंजाित से छू ट—(1) जो िस्तर्यां देश की रूिढ़य और रीितय के अनुसार लोग के सामने आने
के िलए िववश नह की जानी चािहएं उन्ह न्यायालय म स्वीय उपसंजाित से छू ट होगी ।
(2) इसम अन्तिवष्ट कोई भी बात ऐसे िकसी मामले म िजसम स्तर्ी की िगरफ्तारी इस संिहता ारा िनिष नह है, िसिवल
आदेिशका के िनष्पादन म िकसी स्तर्ी को िगरफ्तारी से छू ट देने वाली नह समझी जाएगी ।
133. अन्य व्यिक्तय को छू ट— 3 [(1) िनम्निलिखत व्यिक्त न्यायालय म स्वीय उपसंजाित से छू ट पाने के हकदार ह गे,
अथार्त् :—
(i) भारत का राष्टर्पित ;
(ii) भारत का उपराष्टर्पित ;
(iii) लोक सभा का अध्यक्ष ;
(iv) संघ के मंतर्ी ;
(v) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ;
(vi) राज्य के राज्यपाल और संघ राज्यक्षेतर् के पर्शासक ;
(vii) राज्य िवधान सभा के अध्यक्ष ;
(viii) राज्य िवधान पिरषद के सभापित ;
(ix) राज्य के मंतर्ी ;
(x) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ; तथा
(xi) वे व्यिक्त िजन्ह धारा 87क लागू होती है ।]
4
* * * * *
(3) जहां 5 *** कोई व्यिक्त ऐसी छू ट के िवशेषािधकार का दावा करता है और उसके पिरणामस्वरूप उसकी परीक्षा कमीशन
ारा करना आवश्यक है वहां यिद उसके सा य की अपेक्षा करने वाले पक्षकार ने कमीशन का खचार् नह िदया है तो वह व्यिक्त उसका
खचार् देगा ।
134. िडकर्ी के िनष्पादन म की जाने से अन्यथा िगरफ्तारी—धारा 55, धारा 57 और धारा 59 के उपबन्ध इस संिहता के
अधीन िगरफ्तार िकए गए सभी व्यिक्तय को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
135. िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तारी से छू ट—(1) कोई भी न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या अन्य न्याियक अिधकारी उस
समय िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तार नह िकया जा सके गा जब वह अपने न्यायालय को जा रहा हो, उसम पीठासीन हो या वहां
से लौट रहा हो ।
(2) जहां कोई मामला िकसी ऐसे अिधकरण के समक्ष लंिबत है िजसकी उसम अिधकािरता है, या िजसके बारे म वह
स ावपूवर्क यह िवश्वास करता है िक उसम उसकी ऐसी अिधकािरता है वहां उस मामले के पक्षाकार, उनके प्लीडर, मुख्तार, राजस्व
अिभकतार् और मान्यतापर्ाप्त अिभकतार् और उनके वे साक्षी जो समन के आज्ञानुवतर्न म कायर् कर रहे ह, ऐसी आदेिशका से, जो ऐसे
अिधकरण ने न्यायालय के अवमान के िलए िनकाली ह िभन्न िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तार िकए जाने से उस समय छू ट-पर्ाप्त
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत शासन अिधिनयम, 1935 की धारा 224” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “यथािस्थित, भारत के राजपतर् या स्थानीय राजपतर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । सही अथर् म, यह
पर्ितस्थापन “यथािस्थित, राजपतर् या राजपतर्” पढ़ा जाएगा, िकन्तु कु छ शब्द को अनावश्यक समझकर उनका लोप कर िदया गया है ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 12 उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 12 उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 12 “इस पर्कार छू ट पर्ाप्त” शब्द का लोप िकया गया ।
39
रहगे जब वे ऐसे मामले के पर्योजन के िलए ऐसे अिधकरण को जा रहे ह या उसम हािजर ह और जब वे ऐसे अिधकरण से लौट
रहे ह ।
(3) उपधारा (2) की कोई भी बात िनण त-ऋणी को तुरंत िनष्पादन के आदेश के अधीन या जहां ऐसा िनण त-ऋणी इस बात
का हेतुक दिशत करने के िलए हािजर हुआ है िक िडकर्ी के िनष्पादन म उसे कारागार म क्य न सुपुदर् िकया जाए वहां िगरफ्तारी से छू ट
का दावा करने के िलए समथर् नह बनाएगी ।
[135क. िवधायी िनकाय के सदस्य को िसिवल आदेिशका के अधीन िगरफ्तार िकए जाने और िनरु
1
िकए जाने से
छू ट— [(1) कोई व्यिक्त—
2
1
1925 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 45 ारा (1-2-1977 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
40
उपसंजाित के िलए या ऐसी िकसी िडकर्ी की तुिष्ट के िलए, जो उस न्यायालय ारा उसके िवरु पािरत की जाए, पयार्प्त पर्ितभूित दे दे
तो इन दोन दशा म से हर एक म वह न्यायालय, िजसने िगरफ्तारी की है, उसे छोड़ देगा ।
(4) जहां इस धारा के अधीन िगरफ्तार िकया जाने वाला व्यिक्त या कु कर् की जाने वाली जंगम सम्पि बंगाल के फोटर्
िविलयम, या मदर्ास के या मुम्बई के उच्च न्यायालय की 1 *** मामूली आरिम्भक िसिवल अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर है
वहां िगरफ्तारी के वारं ट की या कु क के आदेश की पर्ित और िगरफ्तारी या कु क के खच की अिधसंभा रकम, यथािस्थित, कलक ा,
मदर्ास 2 [या मुम्बई] के लघुवाद न्यायालय को भेजी जाएगी और वह न्यायालय उस पर्ित और उस रकम के पर्ाप्त होने पर ऐसे अगर्सर
होगा मानो वह िजला न्यायालय हो ।
137. अधीनस्थ न्यायालय की भाषा—(1) वह भाषा जो इस संिहता के पर्ारं भ पर उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िकसी
न्यायालय की भाषा है, उस अधीनस्थ न्यायालय की भाषा तब तक बनी रहेगी जब तक राज्य सरकार अन्यथा िनदेश न दे ।
(2) राज्य सरकार यह घोषणा कर सके गी िक िकसी भी ऐसे न्यायालय की भाषा क्या होगी और िकस िलिप म ऐसे
न्यायालय को आवेदन और उनम की कायर्वािहयां िलखी जाएंगी ।
(3) जहां यह संिहता सा य के अिभलेखन से िभन्न िकसी बात का िकसी ऐसे न्यायालय म िलखत रूप म िकया जाना अपेिक्षत
या अनुज्ञात करती है वहां ऐसा लेखन अंगर्ेजी म िकया जा सके गा, िकन्तु यिद कोई पक्षकार या उसका प्लीडर अंगर्ज
े ी नह जानता है तो
न्यायालय की भाषा म अनुवाद उसकी पर्ाथर्ना पर उसे िदया जाएगा और न्यायालय ऐसे अनुवाद के खच के संदाय के सम्बन्ध म ऐसा
आदेश करे गा जो वह ठीक समझे ।
सा य के अंगर्ज
3 138. े ी म अिभिलिखत िकए जाने की अपेक्षा करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—(1) 4 [उच्च न्यायालय],
राजपतर् म अिधसूचना ारा, ऐसी अिधसूचना म िविनिदष्ट या उसम िदए हुए वणर्न वाले िकसी न्यायाधीश के बारे म िनदेश दे सके गा
िक उन मामल म, िजनम अपील अनुज्ञात है, सा य अंगर्ेजी भाषा म और िविहत रीित से उसके ारा िलखा जाएगा ।
(2) जहां न्यायाधीश उपधारा (1) के अधीन िनदेश का अनुपालन करने से िकसी पयार्प्त कारण से िनवािरत हो जाता है वहां
वह उस कारण को अिभिलिखत करे गा और खुले न्यायालय म बोलकर सा य िलखवाएगा ।
139. शपथ-पतर् के िलए शपथ िकसके ारा िदलाई जाएगी—इस संिहता के अधीन िकसी भी शपथ-पतर् की दशा म,—
(क) कोई भी न्यायालय या मिजस्टर्ेट, अथवा
5 [(कक) नोटेरी अिधिनयम, 1952 (1952 का 53) के अधीन िनयुक्त नोटेरी, अथवा]
(ख) ऐसा कोई भी अिधकारी या अन्य व्यिक्त, िजसे उच्च न्यायालय इस िनिम िनयुक्त करे , अथवा
(ग) िकसी अन्य न्यायालय ारा, िजसे राज्य सरकार ने इस िनिम साधारणतया या िवशेष रूप से सशक्त िकया
है, िनयुक्त िकया गया कोई भी अिधकारी,
अिभसाक्षी को शपथ िदला सके गा ।
140. उ ारण, आिद के मामल म असेसर—(1) नाविधकरण या उपनाविधकरण िवषयक ऐसे मामले म जो उ ारण,
अनुकषर्ण या टक्कर का है, न्यायालय चाहे वह अपनी आरिम्भक अिधकािरता का पर्योग कर रहा हो या अपीली अिधकािरता का,
अपनी सहायता के िलए ऐसी रीित से, जो वह िनिदष्ट करे या जो िविहत की जाए, दो सक्षम असेसर को, यिद वह ठीक समझे, समन
कर सके गा और ऐसे मामले म के पक्षकार म से िकसी के िनवेदन पर समन करे गा और तद्नुसार ऐसे असेसर हािजर ह गे और
सहायता करगे ।
(2) हर ऐसा असेसर अपनी हािजरी के िलए ऐसी फीस पाएगा जो पक्षकार म से ऐसे पक्षकार ारा संद की जाएगी जो
न्यायालय िनिदष्ट करे या जो िविहत की जाए ।
141. पर्कीणर् कायर्वािहयां—उस पर्िकर्या का जो वाद के िवषय म इस संिहता म उपबिन्धत है, िसिवल अिधकािरता वाले
िकसी भी न्यायालय म की सभी कायर्वािहय म वहां तक अनुसरण िकया जाएगा जहां तक वह लागू की जा सके ।
6
[स्पष्टीकरण—इस धारा म, “कायर्वाही” शब्द के अन्तगर्त आदेश 9 के अधीन कायर्वाही है, िकन्तु इसके अन्तगर्त संिवधान के
अनुच्छेद 226 के अधीन कायर्वाही नह है ।]
1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “या लोअर बमार् के मुख्य न्यायालय की” शब्द का लोप िकया गया ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “मुम्बई या रं गून” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
असम को यथा लागू धारा 138 के िलए देिखए िसिवल पर्ोसीजर (असम अमडमट) ऐक्ट, 1941 (1941 का असम अिधिनयम सं० 2) की धारा 2 ।
4
1914 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और अनुसूची के भाग 1 ारा “स्थानीय स्वशासन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 46 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 47 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
41
142. आदेश और सूचना का िलिखत होना—वे सभी आदेश और सूचनाएं, िजनकी तामील इस संिहता के अधीन िकसी
व्यिक्त पर की जाए या जो उसे दी जाएं, िलिखत रूप म होगी ।
143. डाक महसूल—जहां इस संिहता के अधीन िनकाली गई और डाक ारा पर्ेिषत िकसी सूचना, समन या पतर् पर डाक
महसूल पर्भायर् है वहां ऐसा डाक महसूल और उनके रिजस्टर्ीकरण की फीस उस समय के भीतर संद की जाएगी जो उस पतर्- वहार के
िलए िकए जाने के पूवर् िनयत िकया जाएगा :
परन्तु राज्य सरकार 1 *** ऐसे डाक महसूल या फीस से या दोन से छू ट दे सके गी या उसके बदले म उद्गर्हणीय न्यायालय
फीस का मापमान िविहत कर सके गी ।
144. पर्त्यास्थापन के िलए आवेदन—(1) जहां िक और जहां तक िक िकसी िडकर्ी 2 [या आदेश] म 3 [िकसी अपील, पनुरीक्षण
या अन्य कायर्वाही म फे रफार िकया जाए या उसे उलटा जाए अथवा उसको इस पर्योजन के िलए संिस्थत िकसी वाद म अपास्त िकया
जाए या उपान्तिरत िकया जाए वहां और वहां तक वह न्यायालय िजसने िडकर्ी या आदेश पािरत िकया था], उस पक्षकार के आवेदन पर
जो पर्त्यास्थापन ारा या अन्यथा कोई फायदा पाने का हकदार है, ऐसे पर्त्यास्थापन कराएगा िजससे पक्षकार, जहां तक हो सके , उस
िस्थित म हो जाएंगे िजसम वे होते यिद वह िडकर्ी 2[या आदेश] या 3[उसका वह भाग िजसम फे रफार िकया गया है या िजसे उलटा गया
है या अपास्त िकया गया है या उपान्तिरत िकया गया है], न िदया गया होता और न्यायालय इस पर्योजन से कोई ऐसे आदेश िजनके
अन्तगर्त खच के पर्ितदाय के िलए और ब्याज, नुकसानी, पर्ितकर और अन्तःकालीन लाभ के संदाय के िलए आदेश ह गे, कर सके गा जो
3
[उस िडकर्ी या आदेश को ऐसे फे रफार करने, उलटने, आपस्त करने या उपान्तरण के उिचत रूप म पािरणािमक है ]।
[स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए, “वह न्यायालय िजसने िडकर्ी या आदेश पािरत िकया था” पद के बारे म यह
4
जाएगा, अथार्त् :—
(i) यिद उसने अपने को व्यिक्तगत रूप से दायी बनाया है तो उसके िवरु उस िवस्तार तक ;
(ii) यिद उसने पर्ितभूित के रूप म कोई सम्पि दी है तो ऐसी पर्ितभूित के िवस्तार तक सम्पि के िवकर्य ारा ;
(iii) यिद मामला खण्ड (i) और (ii) दोन के अधीन आता है तो उन खण्ड के िविनिदष्ट िवस्तार तक,
और ऐसे व्यिक्त के बारे म यह समझा जाएगा िक वह धारा 47 के अथर् म पक्षकार है :]
परन्तु यह तब जब िक ऐसी सूचना, जो न्यायालय हर एक मामले म पयार्प्त समझे, पर्ितभू को दी जा चुकी हो ।
1
1920 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 और अनुसूची 1 के भाग 1 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल की मंजूरी से” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 13 ारा अन्तःस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 48 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 48 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 49 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
42
146. पर्ितिनिधय ारा या उनके िवरु कायर्वािहयां—उसके िसवाय जैसा इस संिहता ारा या तत्समय पर्वृ िकसी िविध
ारा अन्यथा उपबिन्धत है, जहां िकसी व्यिक्त ारा या उसके िवरु कोई कायर्वाही की जा सकती है या आवेदन िकया जा सकता है
वहां उससे ुत्पन्न अिधकार के अधीन दावा करने वाले िकसी भी व्यिक्त ारा या उसके िवरु वह कायर्वाही की जा सके गी या
आवेदन िकया जा सके गा ।
147. िनय ग्यता के अधीन व्यिक्तय ारा सहमित या करार—उन सभी वाद म, िजनम िनय ग्यता के अधीन कोई व्यिक्त
पक्षकार है, िकसी भी कायर्वाही के सम्बन्ध म कोई भी सहमित या करार, यिद वह उसके वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक ारा न्यायालय
की अिभ क्त इजाजत से दी जाए या िकया जाए तो वह ऐसा ही बल या पर्भाव रखेगी या रखेगा मानो ऐसा व्यिक्त िकसी िनय ग्यता
के अधीन नह था और उसने ऐसी सहमित दी थी या ऐसा करार िकया था ।
148. समय का बढ़ाया जाना—जहां न्यायालय ने इसे संिहता ारा िविहत या अनुज्ञात कोई कायर् करने के िलए कोई अविध
िनयत या अनुद की है वहां न्यायालय ऐसी अविध को स्विववेकानुसार समय-समय पर बढ़ा सके गा, 1 [जो कु ल िमलाकर तीस िदन से
अिधक न हो], य िप पहले िनयत या अनुद अविध का अवसान हो चुका हो ।
[148क. के िवयट दायर करने का अिधकार—(1) जहां िकसी न्यायालय म संिस्थत या शीघर् ही संिस्थत होने वाले िकसी वाद
2
या कायर्वाही म िकसी आवेदन का िकया जाना पर्त्यािशत है या कोई आवेदन िकया गया है वहां कोई व्यिक्त जो ऐसे आवेदन की
सुनवाई म न्यायालय के समक्ष उपिस्थत होने के अिधकार का दावा करता है उसके बारे म के िवयट दायर कर सके गा ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई के िवयट दायर िकया गया है वहां वह व्यिक्त िजसके ारा के िवयट दायर िकया गया है
(िजसे इसम इसके पश्चात् के िवयटकतार् कहा गया है), उस व्यिक्त पर िजसके ारा उपधारा (1) के अधीन आवेदन िकया गया है या
िकए जाने की पर्त्याशा है, के िवयट के सूचना की तामील रसीदी रिजस्टर्ी डाक ारा करे गा ।
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई के िवयट दायर िकए जाने के पश्चात् िकसी वाद या कायर्वाही म कोई आवेदन फाइल
िकया जाता है वहां न्यायालय आवेदन की सूचना के िवयटकतार् को देगा ।
(4) जहां आवेदक पर िकसी के िवयट की सूचना की तामील की गई है वहां उसके ारा िकए गए आवेदन की और उस आवेदन
के समथर्न म उसके ारा फाइल िकए गए या फाइल जाने वाले िकसी कागज या दस्तावेज की पर्ितयां के िवयटकतार् के खच पर
के िवयटकतार् को तुरन्त देगा ।
(5) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई के िवयट दायर िकया गया है वहां ऐसा के िवयट उस तारीख से िजसको वह दायर िकया
गया था, नब्बे िदन के अवसान के पश्चात् पर्वृ नह रहेगा जब तक िक उपधारा (1) म िनिदष्ट आवेदन उक्त अविध के अवसान के पूवर्
नह िकया गया हो ।]
149. न्यायालय-फीस की कमी को पूरा करने की शिक्त—जहां न्यायालय से सम्बिन्धत तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा
िकसी दस्तावेज के िलए िविहत पूरी फीस या उसका कोई भाग संद नह िकया गया है वहां िजस व्यिक्त ारा ऐसी फीस संदय े है उसे
न्यायालय िकसी भी पर्कर्म म स्विववेकानुसार अनुज्ञात कर सके गा िक वह, यथािस्थित, ऐसी पूरी न्यायालय-फीस या उसका वह भाग
संद करे और ऐसा संदाय िकए जाने पर उस दस्तावेज का, िजसकी बाबत वह फीस संदय े है, वही बल और पर्भाव होगा मानो ऐसी
फीस पहली बार ही संद कर दी गई हो ।
150. कारबार का अन्तरण—उसके िसवाय जैसा अन्यथा उपबिन्धत है, जहां िकसी न्यायालय का कारबार िकसी अन्य
न्यायालय को अन्तिरत कर िदया गया है वहां िजस न्यायालय को कारबार इस पर्कार अन्तिरत िकया गया है उसकी वे ही शिक्तयां
ह गी और वह उन्ह कतर् का पालन करे गा जो उस न्यायालय को और उस पर इस संिहता ारा या इसके अधीन कर्मशः पर्द और
अिधरोिपत थे िजससे कारबार इस पर्कार अन्तिरत िकया गया था ।
151. न्यायालय की अन्तिनिहत शिक्तय की ावृि —इस संिहता की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक
वह ऐसे आदेश के देने की न्यायालय की अन्तिनिहत शिक्त को पिरसीिमत या अन्यथा पर्भािवत करती है, जो न्याय के उ ेश्य के िलए
या न्यायालय की आदेिशका के दुरुपयोग का िनवारण करने के िलए आवश्यक है ।
152. िनणर्य , िडिकर्य या आदेश का संशोधन—िनणर्य , िडिकर्य या आदेश म की लेखन या गिणत सम्बन्धी भूल या िकसी
आकिस्मक भूल या लोप से उसम हुई गलितयां न्यायालय ारा स्वपर्ेरणा से या पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर िकसी भी समय शु
की जा सकगी ।
153. संशोधन करने की साधारण शिक्त—न्यायालय िकसी भी समय और खचर्-सम्बन्धी ऐसी शत पर या अन्यथा जो वह
ठीक समझे, वाद की िकसी भी कायर्वाही म की िकसी भी तर्ुिट या गलती को संशोिधत कर सके गा, और ऐसी कायर्वाही ारा उठाए गए
या उस पर अवलंिबत वास्तिवक पर्श्न या िववा क के अवधारण के पर्योजन के िलए सभी आवश्यक संशोधन िकए जाएंगे ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 13 ारा (1-7-2002 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 50 ारा (1-5-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
43
पहली अनुसूची
आदेश 1
वाद के पक्षकार
िनयम
1. वािदय के रूप म कौन संयोिजत िकए जा सकगे ।
2. पृथक् िवचारण का आदेश करने की न्यायालय की शिक्त ।
3. पर्ितवािदय के रूप म कौन संयोिजत िकए जा सकगे ।
3क. जहां पर्ितवािदय के संयोजन से उलझन या िवचारण म िवलंब हो सकता है वहां पृथक् िवचारण का आदेश देने
की शिक्त ।
4. न्यायालय, संयुक्त पक्षकार म से एक या अिधक के पक्ष म या उनके िवरु िनणर्य दे सके गा ।
5. दावाकृ त सम्पूणर् अनुतोष म पर्ितवादी का िहतब होना आवश्यक नह है ।
6. एक ही संिवदा के आधार पर दायी पक्षकार का संयोजन ।
7. जब वादी को संदह
े है िक िकससे पर्िततोष चाहा गया है ।
8. एक ही िहत म सभी व्यिक्तय की ओर से एक व्यिक्त वाद ला सके गा या पर्ितरक्षा कर सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 51 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
44
िनयम
8क. न्यायालय की कायर्वाही म राय देने या भाग लेने के िलए िकसी व्यिक्त या व्यिक्तय के िनकाय को अनुज्ञात करने
की शिक्त ।
9. कु संयोजन और असंयोजन ।
10. गलत वादी के नाम से वाद ।
न्यायालय पक्षकार का नाम काट सके गा या जोड़ा सके गा ।
जहां पर्ितवादी जोड़ा जाए वहां वादपतर् का संशोधन िकया जाना ।
10क. न्यायालय की उसको सम्बोिधत करने के िलए िकसी प्लीडर से अनुरोध करने की शिक्त ।
11. वाद का संचालन ।
12. कई वािदय या पर्ितवािदय म से एक का अन्य के िलए उपसंजात होना ।
13. असंयोजन या कु संयोजन के बारे म आक्षेप ।
आदेश 2
वाद की िवरचना
1. वाद की िवरचना ।
2. वाद के अन्तगर्त सम्पूणर् दावा होगा ।
दावे के भाग का त्याग ।
कई अनुतोष म से एक के िलए वाद लाने का लोप ।
3. वाद-हेतुक का संयोजन ।
4. स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के िलए के वल कु छ दाव का संयोिजत िकया जाना ।
5. िनष्पादक, पर्शासक या वािरस ारा या उसके िवरु दावे ।
6. पृथक् िवचारण का आदेश देने की न्यायालय की शिक्त ।
7. कु संयोजन के बारे म आक्षेप ।
आदेश 3
िनयम
आदेश 5
िनयम
27. िसिवल लोक अिधकारी पर या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक पर तामील ।
28. सैिनक , नौसेिनक या वायुसैिनक पर तामील ।
29. उस व्यिक्त का कतर् िजसको समन तामील के िलए पिरद िकया जाए या भेजा जाए ।
30. समन के बदले पतर् का पर्ितस्थािपत िकया जाना ।
आदेश 6
अिभवचन साधरणतः
1. अिभवचन ।
2. अिभवचन म ताित्त्वक तथ्य का, न िक सा य का, कथन होगा ।
3. अिभवचन का पर्रूप ।
4. जहां आवश्यक हो वहां िविशिष्टय का िदया जाना ।
5. [िनरिसत ।]
6. पुरोभा शतर् ।
7. फे रबदल ।
8. संिवदा का पर्त्याख्यान ।
9. दस्तावेज के पर्भाव का कथन िकया जाना ।
10. िव ष
े , ज्ञान, आिद ।
11. सूचना ।
12. िवविक्षत संिवदा या सम्बन्ध ।
13. िविध की उपधारणाएं ।
14. अिभवचन का हस्ताक्षिरत िकया जाना ।
14क. सूचना की तामील के िलए पता ।
15. अिभवचन का सत्यापन ।
16. अिभवचन का काट िदया जाना ।
17. अिभवचन का संशोधन ।
18. आदेश के पश्चात् संशोधन करने म असफल रहना ।
आदेश 7
वादपतर्
1. वादपतर् म अन्तिवष्ट की जाने वाली िविशिष्टयां ।
2. धन के वाद म ।
3. जहां वाद की िवषयवस्तु स्थावर सम्पि है ।
4. जब वादी पर्ितिनिध के रूप म वाद लाता है ।
5. पर्ितवादी के िहत और दाियत्व का दिशत िकया जाना ।
6. पिरसीमा िविध से छू ट के आधार ।
7. अनुतोष का िविनिदष्ट रूप से कथन ।
8. पृथक् आधार पर आधािरत अनुतोष ।
9. वादपतर् गर्हण करने पर पर्िकर्या ।
47
िनयम
10. वादपतर् का लौटाया जाना ।
वादपतर् के लौटाए जाने पर पर्िकर्या ।
10क. जहां वादपतर् उसके लौटाए जाने के पश्चात् फाइल िकया जाना है वहां न्यायालय म उपसंजाित के िलए तारीख िनयत
करने की न्यायालय की शिक्त ।
10ख. समुिचत न्यायालय को वाद अन्तिरत करने की अपील न्यायालय की शिक्त ।
11. वादपतर् का नामंजूर िकया जाना ।
12. वादपतर् के नामंजूर िकए जाने पर पर्िकर्या ।
13. जहां वादपतर् की नामंजूरी से नए वादपतर् का उपिस्थत िकया जाना पर्वािरत नह होता ।
िनयम
8क. [िनरिसत ।]
9. पश्चात्वत अिभवचन ।
10. जब न्यायालय ारा अपेिक्षत िलिखत कथन को उपिस्थत करने म पक्षकार असफल रहता है तब पर्िकर्या ।
आदेश 9
िनयम
आदेश 11
पर्कटीकरण और िनरीक्षण
1. पिरपर्श्न ारा पर्कटीकरण कराना ।
2. िविशष्ट पिरपर्श्न का िदया जाना ।
3. पिरपर्श्न के खच ।
4. पिरपर्श्न का पर्रूप ।
5. िनगम ।
6. पिरपर्श्न के संबंध म उ र ारा आक्षेप ।
7. पिरपर्श्न का अपास्त िकया जाना और काट िदया जाना ।
8. उ र म िदए गए शपथपतर् का फाइल िकया जाना ।
9. उ र म िदए गए शपथपतर् का पर्रूप ।
10. कोई आक्षेप नह िकया जाएगा ।
11. उ र देने के या अितिरक्त उ र देने के िलए आदेश ।
12. दस्तावेज के पर्कटीकरण के िलए आवेदन ।
13. दस्तावेज संबंधी शपथपतर् ।
14. दस्तावेज का पेश िकया जाना ।
15. अिभवचन या शपथपतर् म िनिदष्ट दस्तावेज का िनरीक्षण ।
16. पेश करने की सूचना ।
17. जब सूचना दी गई है तब िनरीक्षण के िलए समय ।
18. िनरीक्षण के िलए आदेश ।
19. सत्यािपत पर्ितयां ।
20. समयपूवर् पर्कटीकरण ।
21. पर्कटीकरण के आदेश का अननुपालन ।
22. पिरपर्श्न के उ र का िवचारण म उपयोग ।
23. आदेश अवयस्क को लागू होगा ।
आदेश 12
स्वीकृ ितयां
1. मामले की स्वीकृ ित की सूचना ।
2. दस्तावेज की स्वीकृ ित के िलए सूचना ।
2क. यिद दस्तावेज की स्वीकृ ित के िलए सूचना की तामील के पश्चात् उनसे इं कार नह िकया जाता तो उन्ह स्वीकृ त
समझा जाना ।
3. सूचना का पर्रूप ।
3क. स्वीकृ ित के अिभलेखन की न्यायालय की शिक्त ।
4. तथ्य को स्वीकृ त करने की सूचना ।
5. स्वीकृ ितयां का पर्रूप ।
6. स्वीकृ ितय पर िनणर्य ।
50
िनयम
7. हस्ताक्षर के बारे म शपथपतर् ।
8. दस्तावेज को पेश करने के िलए सूचना ।
9. खच ।
आदेश 13
िनयम
1क. समन के िबना सािक्षय का पेश िकया जाना ।
2. समन के िलए आवेदन करने पर, साक्षी के य न्यायालय म जमा कर िदए जाएंगे ।
िवशेषज्ञ ।
य का मापमान ।
य का सािक्षय को सीधे संदाय िकया जाना ।
3. साक्षी को य का िनिवदान ।
4. जहां अपयार्प्त रािश जमा की गई है वहां पर्िकर्या ।
एक िदन से अिधक रोके जाने पर सािक्षय के य।
5. हािजरी के समय, स्थान और पर्योजन का समन म िविनिदष्ट िकया जाना ।
6. दस्तावेज पेश करने के िलए समन ।
7. न्यायालय म उपिस्थत व्यिक्तय को सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए अपेिक्षत करने की शिक्त ।
7क. तामील के िलए पक्षकार को समन का िदया जाना ।
8. समन की तामील कै से होगी ।
9. समन की तामील के िलए समय ।
10. जहां साक्षी समन का अनुपालन करने म असफल रहता है वहां पर्िकर्या ।
11. यिद साक्षी उपसंजात हो जाता है तो कु क पर्त्याहृत की जा सके गी ।
12. यिद साक्षी उपसंजात होने म असफल रहता है तो पर्िकर्या ।
13. कु क करने का ढंग ।
14. जो व्यिक्त वाद म परव्यिक्त ह उन्ह न्यायालय सािक्षय के रूप म स्वपर्ेरणा से समन कर सके गा ।
15. उन व्यिक्तय का कतर् जो सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए समन िकए गए ह ।
16. वे कब पर्स्थान कर सकगे ।
17. िनयम 10 से िनयम 13 तक का लागू होना ।
18. जहां पकड़ा गया साक्षी सा य नह दे सकता या दस्तावेज पेश नह कर सकता वहां पर्िकर्या ।
19. जब तक िक कोई साक्षी िकन्ह िनिश्चत सीमा के भीतर का िनवासी न हो वह स्वयं हािजर होने के िलए आिदष्ट नह
िकया जाएगा ।
20. न्यायालय ारा बुलाए जाने पर सा य देने से पक्षकार के इं कार का पिरणाम ।
21. सािक्षय िवषयक िनयम समिनत पक्षकार को लागू ह गे ।
आदेश 16क
िनयम
आदेश 17
स्थगन
1. न्यायालय समय दे सके गा और सुनवाई स्थिगत कर सके गा ।
स्थगन के खच ।
2. यिद पक्षकार िनयत िदन पर उपसंजात होने म असफल रहते ह तो पर्िकर्या ।
3. पक्षकार म से िकसी पक्षकार के सा य, आिद पेश करने म असफल रहने पर भी न्यायालय आगे कायर्वाही कर सके गा ।
आदेश 18
शपथपतर्
1. िकसी बात के शपथपतर् ारा सािबत िकए जाने के िलए आदेश देने की शिक्त ।
2. अिभसाक्षी की पर्ितपरीक्षा के िलए हािजर कराने का आदेश देने की शिक्त ।
3. वे िवषय िजन तक शपथपतर् सीिमत ह गे ।
53
िनयम
आदेश 20
िनणर्य और िडकर्ी
1. िनणर्य कब सुनाया जाएगा ।
2. न्यायाधीश के पूवर्वत ारा िलखे गए िनणर्य को सुनाने की शिक्त ।
3. िनणर्य हस्ताक्षिरत िकया जाएगा ।
4. लघुवाद न्यायालय के िनणर्य ।
अन्य न्यायालय के िनणर्य ।
5. न्यायालय हर एक िववा क पर अपने िविनश्चय का कथन करे गा ।
5क. िजन मामल म पक्षकार का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा न िकया गया हो उनम न्यायालय ारा पक्षकार को इस बात
की इि ला देना िक अपील कहां की जा सके गी ।
6. िडकर्ी की अन्तवर्स्तु ।
6क. िडकर्ी तैयार करना ।
6ख. िनणर्य की पर्ितयां कब उपलब्ध करवाई जाएंगी ।
7. िडकर्ी की तारीख ।
8. जहां न्यायाधीश ने िडकर्ी पर हस्ताक्षर करने से पूवर् अपना पद िरक्त कर िदया है वहां पर्िकर्या ।
9. स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के िलए िडकर्ी ।
10. जंगम सम्पि के पिरदान के िलए िडकर्ी ।
11. िडकर्ी िकस्त ारा संदाय के िलए िनदेश दे सके गी ।
िडकर्ी के पश्चात् िकस्त म संदाय का आदेश ।
12. कब्जा और अन्तःकालीन लाभ के िलए िडकर्ी ।
12क. स्थावर सम्पि के िवकर्य या प े की संिवदा के िविनिदष्ट पालन के िलए िडकर्ी ।
13. पर्शासन-वाद म िडकर्ी ।
14. शुफा के वाद म िडकर्ी ।
15. भागीदारी के िवघटन के िलए वाद म िडकर्ी ।
16. मािलक और अिभकतार् के बीच लेखा के िलए लाए गए वाद म िडकर्ी ।
17. लेखा के संबंध म िवशेष िनदेश ।
18. सम्पि के िवभाजन के िलए या उनम के अंश पर पृथक् कब्जे के िलए वाद म िडकर्ी ।
19. जब मुजरा या पर्ितदावा अनुज्ञात िकया जाए तब िडकर्ी ।
मजुरा या पर्ितदावा संबंधी िडकर्ी की अपील ।
20.िनणर्य और िडकर्ी की पर्मािणत पर्ितय का िदया जाना ।
आदेश 20क
खच
1. कु छ मद के बारे म उपबन्ध ।
2. उच्च न्यायालय ारा बनाए गए िनयम के अनुसार खच का अिधिनण त िकया जाना ।
54
िनयम
आदेश 21
िलिखत आवेदन ।
11क. िगरफ्तारी के िलए आवेदन म आधार का किथत होना ।
12. ऐसी जंगम सम्पि की कु क के िलए आवेदन जो िनण त-ऋणी के कब्जे म नह है ।
13. स्थावर सम्पि की कु क के आवेदन म कु छ िविशिष्टय का अन्तिवष्ट होना ।
14. कलक्टर के रिजस्टर म से पर्मािणत उ रण को कु छ दशा म अपेिक्षत करने की शिक्त ।
15. संयुक्त िडकर्ीदार ारा िनष्पादन के िलए आवेदन ।
16. िडकर्ी के अन्तिरती ारा िनष्पादन के िलए आवेदन ।
17. िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन पर्ाप्त होने पर पर्िकर्या ।
18. पर्ित-िडिकर्य की दशा म िनष्पादन ।
19. एक ही िडकर्ी के अधीन पर्ितदाव की दशा म िनष्पादन ।
20. बंधक-वाद म पर्ित-िडिकर्यां और पर्ितदावे ।
21. एक साथ िनष्पादन ।
22. कु छ दशा म िनष्पादन के िवरु हेतुक दिशत करने की सूचना ।
22क. िवकर्य से पूवर् िकन्तु िवकर्य की उद्घोषणा की तामील के पश्चात् िनण त-ऋणी की मृत्यु पर िवकर्य का अपास्त
न िकया जाना ।
23. सूचना के िनकाले जाने के पश्चात् पर्िकर्या ।
िनष्पादन के िलए आदेिशका
24. िनष्पादन के िलए आदेिशका ।
55
िनयम
25. आदेिशका पर पृष्ठांकन ।
िनष्पादन का रोका जाना
26. न्यायालय िनष्पादन को कब रोक सके गा ।
िनण त-ऋणी से पर्ितभूित अपेिक्षत करने या उस पर शत अिधरोिपत करने की शिक्त ।
27. उन्मोिचत िनण त ऋणी का दाियत्व ।
28. िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय का या अपील न्यायालय का आदेश उस न्यायालय के िलए आब कर होगा
िजससे आवेदन िकया गया है ।
29. िडकर्ीदार और िनण त-ऋणी के बीच वाद लिम्बत रहने तक िनष्पादन का रोका जाना ।
िनष्पादन की रीित
30. धन के संदाय की िडकर्ी ।
31. िविनिदष्ट जंगम संपि के िलए िडकर्ी ।
32. िविनिदष्ट पालन के िलए दाम्पत्य अिधकार के पर्त्यास्थापन के िलए या व्यादेश के िलए िडकर्ी ।
33. दाम्पत्य अिधकार के पर्त्यास्थापन की िडिकर्य का िनष्पादन करने म न्यायालय का िववेकािधकार ।
34. दस्तावेज के िनष्पादन या परकर्ाम्य िलखत के पृष्ठांकन के िलए िडकर्ी ।
35. स्थावर सम्पि के िलए िडकर्ी ।
36. जब स्थावर सम्पि अिभधारी के अिधभोग म है तब ऐसी सम्पि के पिरदान के िलए िडकर्ी ।
िगरफ्तारी और िसिवल कारागार म िनरोध
37. कारागार म िनरु िकए जाने के िवरु हेतुक दिशत करने के िलए िनण त-ऋणी को अनुज्ञा देने की वैवेिकक
शिक्त ।
38. िगरफ्तारी के वारण्ट म िनण त-ऋणी के लाए जाने के िलए िनदेश होगा ।
39. जीवन-िनवार्ह भ ा ।
40. सूचना के आज्ञानुवतर्न म या िगरफ्तारी के पश्चात् िनण त-ऋणी के उपसंजात होने पर कायर्वािहयां ।
41. िनण त-ऋणी की अपनी सम्पि के बारे म उसकी परीक्षा ।
42. भाटक या अन्त:कालीन लाभ या तत्पश्चात् अन्य बात के िलए, िजसकी रकम वाद म अवधािरत होनी है,
िडकर्ी की दशा म कु क ।
43. िनण त-ऋणी के कब्जे म की ऐसी जंगम सम्पि की कु क जो कृ िष उपज से िभन्न है ।
43क. जंगम सम्पि की अिभरक्षा ।
44. कृ िष उपज की कु क ।
45. कु कर् की गई कृ िष उपज के बारे म उपबन्ध ।
46. ऐसे ऋण, अंश या अन्य सम्पि की कु क जो िनण त-ऋणी के कब्जे म नह है ।
46क. गारिनशी को सूचना ।
46ख. गारिनशी के िवरु आदेश ।
46ग. िववादगर्स्त पर्श्न का िवचारण ।
46घ. जहां ऋण अन्य व्यिक्त का हो वहां पर्िकर्या ।
46ङ. अन्य व्यिक्त के बारे म आदेश ।
46च. गारिशनी ारा िकया गया संदाय िविधमान्य उन्मोचन होगा ।
56
िनयम
46छ. खच ।
46ज. अपील ।
46झ. परकर्ाम्य िलखत को लागू होना ।
47. जंगम सम्पि म अंश की कु क ।
48. सरकार या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक के वेतन या भ की कु क ।
48क. पर्ाइवेट कमर्चािरय के वेतन या भ की कु क ।
49. भागीदारी की सम्पि की कु क ।
50. फमर् के िवरु िडकर्ी का िनष्पादन ।
51. परकर्ाम्य िलखत की कु क ।
52. न्यायालय या लोक अिधकारी की अिभरक्षा म की सम्पि की कु क ।
53. िडिकर्य की कु क ।
54. स्थावर सम्पि की कु क ।
55. िडकर्ी की तुिष्ट पर कु क का उठाया जाना ।
56. िडकर्ी के अधीन हकदार पक्षकार को िसक्के या करसी नोट का संदाय िकए जाने का आदेश ।
57. कु क का पयर्वसान ।
दाव और आक्षेप का न्यायिनणर्यन
58. कु कर् की गई सम्पि पर दाव का और ऐसी सम्पि की कु क के बारे म आक्षेप का न्यायिनणर्यन ।
59. िवकर्य को रोकना ।
िवकर्य साधारणत:
64. कु कर् की गई सम्पि के िवकर्य िकए जाने और उसके आगम हकदार व्यिक्त को िदए जाने के िलए आदेश करने
की शिक्त ।
65. िवकर्य िकसके ारा संचािलत िकए जाएं और कै से िदए जाएं ।
66. लोक नीलाम ारा िकए जाने वाले िवकर्य की उद्घोषणा ।
67. उद्घोषणा करने की रीित ।
68. िवकर्य का समय ।
69. िवकर्य का स्थगन या रोका जाना ।
70. [िनरिसत ।]
71. व्यितकर्म करने वाला कर्ेता पुनिवकर्य म हुई हािन के िलए उ रदायी होगा ।
72. अनुज्ञा के िबना िडकर्ीदार सम्पि के िलए न बोली लगाएगा और न उसका कर्य करे गा ।
जहां िडकर्ीदार कर्य करता है वहां िडकर्ी की रकम संदाय मानी जा सके गी ।
72क. बंधकदार ारा न्यायालय की इजाजत के िबना िवकर्य म बोली का न लगाया जाना ।
73. अिधकािरय ारा बोली लगाने या कर्य करने पर िनबर्न्धन ।
जंगम सम्पि का िवकर्य
74. कृ िष उपज का िवकर्य ।
75. उगती फसल के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध ।
57
िनयम
76. परकर्ाम्य िलखत और िनगम के अंश ।
77. लोक नीलाम ारा िवकर्य ।
78. अिनयिमतता िवकर्य को दूिषत नह करे गी िकन्तु कोई भी व्यिक्त, िजसे क्षित हुई है, वाद ला सके गा ।
79. जंगम सम्पि , ऋण और अंश का पिरदान ।
80. परकर्ाम्य िलखत और अंश का अन्तरण ।
81. अन्य सम्पि की दशा म िनिहत करने वाला आदेश ।
स्थावर संपि का िवकर्य
82. कौन से न्यायालय िवकर्य के िलए आदेश कर सकगे ।
83. िवकर्य का इसिलए मुल्तवी िकया जाना िक िनण त-ऋणी िडकर्ी की रकम जुटा सके ।
84. कर्ेता ारा िनक्षेप और उसके व्यितकर्म पर पुनिवकर्य ।
85. कर्य धन के पूरे संदाय के िलए समय ।
86. संदाय म व्यितकर्म होने पर पर्िकर्या ।
87. पुनिवकर्य पर अिधसूचना ।
88. सह-अंशधारी की बोली को अिधमान पर्ाप्त होगा ।
89. िनक्षेप करने पर िवकर्य को अपास्त कराने के िलए आवेदन ।
90. िवकर्य को अिनयिमतता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के िलए आवेदन ।
91. िवकर्य का इस आधार पर अपास्त कराने के िलए कर्ेता ारा आवेदन िक उसम िनण त-ऋणी का कोई िवकर्य
िहत नह था ।
92. िवकर्य कब आत्यिन्तक हो जाएगा या अपास्त कर िदया जाएगा ।
93. कु छ दशा म कर्य धन की वापसी ।
94. कर्ेता को पर्माण-पतर् ।
95. िनण त-ऋणी के अिधभोग म की सम्पि का पिरदान ।
96. अिभधारी के अिधभोग म की सम्पि का पिरदान ।
िडकर्ीदार या कर्ेता को कब्जा पिरद िकए जाने म पर्ितरोध
97. स्थावर सम्पि पर कब्जा करने म पर्ितरोध या बाधा ।
98. न्यायिनणर्यन के पश्चात् आदेश ।
99. िडकर्ीदार या कर्ेता ारा बेकब्जा िकया जाना ।
100. बेकब्जा िकए जाने का पिरवाद करने वाले आवेदन पर पािरत िकया जाने वाला आदेश ।
101. अवधािरत िकए जाने वाले पर्श्न ।
102. वादकालीन अन्तिरती को इन िनयम का लागू न होना ।
103. आदेश को िडकर्ी माना जाना ।
104. िनयम 101 या िनयम 103 के अधीन आदेश लिम्बत वाद के पिरणाम के अधीन होगा ।
105. आवेदन की सुनवाई ।
106. एकपक्षीय रूप से पािरत आदेश , आिद का अपास्त िकया जाना ।
58
िनयम
आदेश 22
िनयम
आदेश 25
खच के िलए पर्ितभूित
1. वादी के खच के िलए पर्ितभूित कब अपेिक्षत की जा सकती है ।
2. पर्ितभूित म असफल रहने का पर्भाव ।
आदेश 26
कमीशन
सािक्षय की परीक्षा करने के िलए कमीशन
1. वे मामले िजनम न्यायालय साक्षी की परीक्षा करने के िलए कमीशन िनकाल सके गा ।
2. कमीशन के िलए आदेश ।
3. जहां साक्षी न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िनवास करता है ।
4. वे व्यिक्त िजनकी परीक्षा करने के िलए कमीशन िनकाला जा सके गा ।
4क. न्यायालय की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करने वाले िकसी व्यिक्त की परीक्षा के िलए कमीशन ।
5. जो साक्षी भारत के भीतर नह है उसकी परीक्षा करने के िलए कमीशन या अनुरोध-पतर् ।
6. कमीशन के अनुसरण म न्यायालय साक्षी की परीक्षा करे गा ।
7. सािक्षय के अिभसा य के साथ कमीशन का लौटाया जाना ।
8. अिभसा य कब सा य म गर्हण िकया जा सके गा ।
स्थानीय अन्वेषण के िलए कमीशन
9. स्थानीय अन्वेषण करने के िलए कमीशन ।
10. किमश्नर के िलए पर्िकर्या ।
िरपोटर् और अिभसा य वाद म सा य ह गे ।
किमश्नर की वैयिक्तक रूप से परीक्षा की जा सके गी ।
वैज्ञािनक अन्वेषण, अनुसिचवीय कायर् करने और जंगम संपि के िवकर्य के िलए कमीशन
10क. वैज्ञािनक अन्वेषण के िलए कमीशन ।
10ख. अनुसिचवीय कायर् करने के िलए कमीशन ।
10ग. जंगम संपि के िवकर्य के िलए कमीशन ।
लेखा की परीक्षा करने के िलए कमीशन
11. लेखा की परीक्षा या समायोजन करने के िलए कमीशन ।
12. न्यायालय किमश्नर को आवश्यक अनुदश
े देगा ।
कायर्वािहयां और िरपोटर् सा य ह गी । न्यायालय अितिरक्त जांच िनिदष्ट कर सके गा ।
िवभाजन करने के िलए कमीशन
13. स्थावर संपि का िवभाजन करने के िलए कमीशन ।
14. किमश्नर की पर्िकर्या ।
साधारण उपबन्ध
15. कमीशन के व्यय न्यायालय म जमा िकए जाएंगे ।
16. किमश्नर की शिक्तयां ।
16क. वे पर्श्न िजन पर किमश्नर के समक्ष आक्षेप िकया जाता है ।
60
िनयम
17. किमश्नर के समक्ष सािक्षय की हािजरी और उनकी परीक्षा ।
18. पक्षकार का किमश्नर के समक्ष उपसंजात होना ।
18क. िनष्पादन कायर्वािहय को आदेश का लागू होना ।
18ख. न्यायालय ारा कमीशन के लौटाए जाने के िलए समय िनयत िकया जाना ।
िवदेशी अिधकरण की पर्ेरणा पर िनकाले गए कमीशन
19. वे मामले िजनम उच्च न्यायालय साक्षी की परीक्षा करने के िलए कमीशन िनकाल सके गा ।
20. कमीशन िनकलवाने के िलए आवेदन ।
21. कमीशन िकसके नाम िनकाला जा सके गा ।
22. कमीशन का िनकाला जाना, िनष्पादन और लौटाया जाना और िवदेशी न्यायालय को सा य का पारे षण ।
आदेश 27
सरकार के या अपनी पदीय हैिसयत म लोक अिधकािरय ारा या उनके िवरु वाद
1. सरकार ारा या उसके िवरु वाद ।
2. सरकार के िलए कायर् करने के िलए पर्ािधकृ त व्यिक्त ।
3. सरकार ारा या उसके िवरु वाद म वादपतर् ।
4. आदेिशका पर्ाप्त करने के िलए सरकार का अिभकतार् ।
5. सरकार की ओर से उपसंजाित के िलए िदन िनयत िकया जाना ।
5क. लोक अिधकारी के िवरु वाद म सरकार को पक्षकार के रूप म संयोिजत िकया जाना ।
5ख. सरकार या लोक अिधकारी के िवरु वाद म िनपटारा कराने म सहायता करने के िलए न्यायालय का कतर्व्य ।
6. सरकार के िवरु वाद से संबंध रखने वाले पर्श्न का उ र देने योग्य व्यिक्त की हािजरी ।
7. समय का इसिलए बढ़ाया जाना िक लोक अिधकारी सरकार से िनदश करके पूछ सके ।
8. लोक अिधकारी के िवरु वाद म पर्िकर्या ।
8क. कु छ मामल म सरकार से या लोक अिधकारी से कोई पर्ितभूित अपेिक्षत न की जाएगी ।
8ख. “सरकार” और “सरकारी प्लीडर” की पिरभाषाएं ।
आदेश 27क
वे वाद िजनम संिवधान के िनवर्चन या िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता संबंधी कोई सारभूत िविध पर्श्न
अन्तगर्र्स्त ह
1. महान्यायवादी या महािधवक्ता को सूचना ।
1क. उन वाद म पर्िकर्या िजनम िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता अन्तगर्र्स्त है ।
2. न्यायालय सरकार को पक्षकार के रूप म जोड़ सके गा ।
2क. िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता संबध
ं ी वाद म सरकार या अन्य पर्ािधकारी को पर्ितवादी के रूप म जोड़ने की
न्यायालय की शिक्त ।
3. खच ।
4. इस आदेश का अपील को लागू होना ।
आदेश 28
िनयम
2. इस पर्कार पर्ािधकृ त व्यिक्त स्वयं कायर् कर सके गा या प्लीडर िनयुक्त कर सके गा ।
3. इस पर्कार पर्ािधकृ त व्यिक्त पर या इसके प्लीडर पर की गई तामील उिचत तामील होगी ।
आदेश 29
फम के या अपने नाम से िभन्न नाम म कारबार चलाने वाले व्यिक्तय ारा या उनके िवरु वाद
1. भागीदार का फमर् के नाम से वाद लाना ।
2. भागीदार के नाम का पर्कट िकया जाना ।
3. तामील ।
4. भागीदार की मृत्यु पर वाद का अिधकार ।
5. सूचना की तामील िकस हैिसयत म की जाएगी ।
6. भागीदार की उपसंजाित ।
7. भागीदार ारा ही उपसंजाित होगी अन्यथा नह ।
8. अभ्यापि पूवर्क उपसंजाित ।
9. सहभागीदार के बीच म वाद ।
10. स्वयं अपने नाम से िभन्न नाम से कारबार चलाने वाले व्यिक्त के िवरु वाद ।
आदेश 31
िनयम
8. वाद-िमतर् की िनवृि ।
9. वाद-िमतर् का हटाया जाना ।
10. वाद-िमतर् के हटाए जाने, आिद पर कायर्वािहय का रोका जाना ।
11. वादाथर् संरक्षक की िनवृि , हटाया जाना या मृत्यु ।
12. अवयस्क वादी या आवेदक ारा वयस्क होने पर अनुसरण की जाने वाली चयार् ।
13. जहां अवयस्क सहवादी, वयस्क होने पर वाद का िनराकरण करने की वांछा करता है ।
14. अयुिक्तयुक्त या अनुिचत वाद ।
15. िनयम 1 से िनयम 14 तक का (िजनम िनयम 2क सिम्मिलत नह है) िवकृ तिच वाले व्यिक्तय को लागू होना ।
16. व्यावृि यां
आदेश 32क
कु टुम्ब से संबध
ं रखने वाले िवषय से संबिं धत वाद
1. आदेश का लागू होना ।
2. कायर्वािहय का बन्द कमरे म िकया जाना ।
3. िनपटारे के िलए पर्यत्न करने का न्यायालय का कतर्व्य ।
4. कल्याण िवशेषज्ञ से सहायता ।
5. तथ्य की जांच करने का कतर्व्य ।
6. “कु टु म्ब” का अथर् ।
आदेश 33
िनधर्न व्यिक्तय ारा वाद
1. िनधर्न व्यिक्तय ारा वाद संिस्थत िकए जा सकगे ।
1क. िनधर्न व्यिक्तय से साधन की जांच ।
2. आवेदन की िवषय-वस्तु ।
3. आवेदन का उपस्थापन ।
4. आवेदक की परीक्षा ।
यिद आवेदन अिभकतार् ारा उपस्थािपत िकया जाता है तो न्यायालय आदेश दे सके गा िक आवेदक की परीक्षा कमीशन ारा
की जाए ।
5. आवेदन का नामंजूर िकया जाना ।
6. आवेदक की िनधर्नता के बारे म सा य लेने के िदन की सूचना ।
7. सुनवाई म पर्िकर्या ।
8. यिद आवेदन गर्हण कर िलया जाए तो पर्िकर्या ।
9. िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा का पर्त्याहरण ।
9क. िजस िनधर्न व्यिक्त का पर्ितिनिधत्व न हो उसके िलए न्यायालय ारा प्लीडर िनयत िकया जाना ।
10. जहां िनधर्न व्यिक्त सफल होता है वहां खच ।
11. पर्िकर्या जहां िनधर्न व्यिक्त असफल हो जाता है ।
11क. िनधर्न व्यिक्त के वाद के उपशमन पर पर्िकर्या ।
12. राज्य सरकार न्यायालय-फीस के संदाय के िलए आवेदन कर सके गा ।
63
िनयम
13. राज्य सरकार का पक्षकार समझा जाना ।
14. न्यायालय-फीस की रकम की वसूली ।
15. िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने के िलए आवेदन को अनुज्ञा देने से इं कार के कारण वैसी ही पर्कृ ित के पश्चात्वत
आवेदन का वजर्न ।
15क. न्यायालय-फीस के संदाय के िलए समय का िदया जाना ।
16. खच ।
17. िनधर्न व्यिक्त ारा पर्ितवाद ।
18. िनधर्न व्यिक्तय के िलए मुफ्त िविधक सेवा की व्यवस्था करने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त ।
आदेश 35
अन्तरािभवाची
1. अन्तरािभवाची वाद म वादपतर् ।
2. दावाकृ त चीज का न्यायालय म जमा िकया जाना ।
3. पर्िकर्या जहां पर्ितवादी वादी पर वाद चला रहा है ।
4. पहली सुनवाई म पर्िकर्या ।
5. अिभकतार् और अिभधारी अन्तरािभवाची वाद संिस्थत नह कर सकगे ।
6. वादी के खच का भार ।
64
िनयम
आदेश 36
िवशेष मामला
1. न्यायालय की राय के िलए मामले का कथन करने की शिक्त ।
2. िवषय-वस्तु का मूल्य कहां किथत करना होगा ।
3. करार वाद के रूप म फाइल िकया जाएगा और रिजस्टर म चढ़ाया जाएगा ।
4. पक्षकार न्यायालय की अिधकािरता के अधीन ह गे ।
5. मामले की सुनवाई और िनपटारा ।
6. िनयम 5 के अधीन पािरत िडकर्ी की अपील न होना ।
आदेश 37
संिक्षप्त पर्िकर्या
1. वे न्यायालय और वाद के वगर् िजन्ह यह आदेश लागू होना है ।
2. संिक्षप्त वाद का संिस्थत िकया जाना ।
3. पर्ितवादी की उपसंजाित के िलए पर्िकर्या ।
4. िडकर्ी को अपास्त करने की शिक्त ।
5. िविनमय-पतर्, आिद को न्यायालय के अिधकारी के पास जमा करने का आदेश देने की शिक्त ।
6. अनादृत िविनमय-पतर् या वचनपतर् के अपर्ितगर्हण का िटप्पण करने के खचर् की वसूली ।
7. वाद म पर्िकर्या
आदेश 38
िनयम
आदेश 39
िरसीवर की िनयुिक्त
1. िरसीवर की िनयुिक्त ।
2. पािरशर्िमक ।
3. कतर्व्य ।
4. िरसीवर के कतर्व्य को पर्वितत कराना ।
5. कलक्टर कब िरसीवर िनयुक्त िकया जा सके गा ।
आदेश 41
िनयम
7. [िनरिसत ।]
8. िडकर्ी के िनष्पादन म िकए गए आदेश की अपील म शिक्तय का पर्योग ।
अपील के गर्हण पर पर्िकर्या
9. अपील के ज्ञापन का रिजस्टर म चढ़ाया जाना ।
अपील का रिजस्टर ।
10. अपील न्यायालय अपीलाथ से खच के िलए पर्ितभूित देने की अपेक्षा कर सके गा जहां अपीलाथ भारत के बाहर िनवास
करता है ।
11. िनचले न्यायालय को सूचना भेजे िबना अपील खािरज करने की शिक्त ।
11क. समय िजसके भीतर िनयम 11 के अधीन सुनवाई समाप्त हो जानी चािहए ।
12. अपील की सुनवाई के िलए िदन ।
13. अपील न्यायालय उस न्यायालय को सूचना देगा िजसको िडकर्ी की अपील की गई है ।
अपील न्यायालय को कागज का पारे षण ।
उस न्यायालय म के िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, पर्दश की पर्ितयां ।
14. अपील की सुनवाई के िदन की सूचना का पर्काशन और तामील ।
अपील न्यायालय स्वयं सूचना की तामील करवा सके गा ।
15. सूचना की अन्तवर्स्तु ।
सुनवाई की पर्िकर्या
16. शुरू करने का अिधकार ।
17. अपीलाथ के व्यितकर्म के िलए अपील का खािरज िकया जाना ।
अपील की एकपक्षीय सुनवाई ।
18. जहां खच का िनक्षेप करने म अपीलाथ के असफल रहने के पिरणामस्वरूप सूचना की तामील नह हुई है वहां अपील
का खािरज िकया जाना ।
19. व्यितकर्म के िलए खािरज की गई अपील को पुन: गर्हण करना ।
20. सुनवाई को स्थिगत करने और ऐसे व्यिक्तय को जो िहतब पर्तीत होते ह , पर्त्यथ बनाए जाने के िलए िनिदष्ट करने
की शिक्त ।
21. उस पर्त्यथ के आवेदन पर पुन: सुनवाई िजसके िवरु एकपक्षीय िडकर्ी की गई है ।
22. सुनवाई म पर्त्यथ िडकर्ी के िवरु ऐसे आक्षेप कर सके गा मानो उसने पृथक् अपील की हो ।
आक्षेप का पर्रूप और उसको लागू होने वाले उपबन्ध ।
23. मामले का अपील न्यायालय ारा पर्ितपर्ेषण ।
23क. अन्य मामल म पर्ितपर्ेषण ।
24. जहां अिभलेख म का सा य पयार्प्त है वहां अपील न्यायालय मामले का अिन्तम रूप से अवधारण कर सके गा ।
25. अपील न्यायालय कहां िववा क की िवरचना कर सके गा और उन्ह उस न्यायालय को िवचारण के िलए िनिदष्ट कर
सके गा िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है ।
26. िनष्कषर् और सा य का अिभलेख म सिम्मिलत िकया जाना ।
िनष्कषर् पर आक्षेप ।
अपील का अवधारण ।
26क. पर्ितपर्ेषण के आदेश म अगली सुनवाई का उल्लेख िकया जाना ।
67
िनयम
27. अपील न्यायालय म अितिरक्त सा य का पेश िकया जाना ।
28. अितिरक्त सा य लेने की रीित ।
29. िवषय-िबन्दु का पिरभािषत और लेखब िकया जाना ।
अपील का िनणर्य
30. िनणर्य कब और कहां सुनाया जाएगा ।
31. िनणर्य की अन्तवर्स्तु, तारीख और हस्ताक्षर ।
32. िनणर्य क्या िनदेश दे सके गा ।
33. अपील न्यायालय की शिक्त ।
34. िवसम्मित का लेखब िकया जाना ।
अपील म की िडकर्ी
35. िडकर्ी की तारीख और अन्तवर्स्तु ।
िनणर्य से िवसम्मत न्यायाधीश के िलए िडकर्ी पर हस्ताक्षर करना आवश्यक नह ।
36. पक्षकार को िनणर्य और िडकर्ी की पर्ितय का िदया जाना ।
37. िडकर्ी की पर्मािणत पर्ित उस न्यायालय को भेजी जाएगी िजसकी िडकर्ी की अपील की गई थी ।
आदेश 42
आदेश की अपील
1. आदेश की अपील ।
1क. िडिकर्य के िवरु अपील म के ऐसे आदेश पर आक्षेप करने का अिधकार िजनकी अपील नह की जा सकती ।
2. पर्िकर्या ।
आदेश 44
िनयम
5. [िनरिसत ।]
6. पर्माणपतर् देने से इं कार का पर्भाव ।
7. पर्माणपतर् िदए जाने पर अपेिक्षत पर्ितभूित और िनक्षेप ।
8. अपील का गर्हण और उस पर पर्िकर्या ।
9. पर्ितभूित के पर्ितगर्हण का पर्ितसंहरण ।
9क. मृत पक्षकार की दशा म सूचना िदए जाने से अिभमुिक्त देने की शिक्त ।
10. अितिरक्त पर्ितभूित या संदाय का आदेश देने की शिक्त ।
11. आदेश का अनुपालन करने म असफलता का पर्भाव ।
12. िनक्षेप की बाकी की वापसी ।
13. अपील लंिबत रहने तक न्यायालय की शिक्तयां ।
14. अपयार्प्त पाए जाने पर पर्ितभूित का बढ़ाया जाना ।
15. उच्चतम न्यायालय के आदेश को पर्वृ कराने की पर्िकर्या ।
16. िनष्पादन संबंधी आदेश की अपील ।
17. [िनरिसत ।]
आदेश 46
िनदश
1. उच्च न्यायालय को पर्श्न का िनदश ।
2. न्यायालय ऐसी िडकर्ी पािरत कर सके गा जो उच्च न्यायालय के िविनश्चय पर समािशर्त है ।
3. उच्च न्यायालय का िनणर्य पारे िषत िकया जाएगा और मामला तदनुसार िनपटाया जाएगा ।
4. उच्च न्यायालय को िकए गए िनदश के खच ।
4क. धारा 113 के परन्तुक के अधीन उच्च न्यायालय को िनदश ।
5. िनदश करने वाले न्यायालय की िडकर्ी को पिरवितत करने आिद की शिक्त ।
6. लघुवाद म अिधकािरता संबंधी पर्श्न को उच्च न्यायालय को िनदिशत करने की शिक्त ।
7. लघुवाद म अिधकािरता संबंधी भूल के अधीन की गई कायर्वािहय को पुनरीक्षण के िलए िनवेिदत करने की िजला
न्यायालय की शिक्त ।
आदेश 47
पुनिवलोकन
1. िनणर्य म पुनिवलोकन के िलए आवेदन ।
2. [िनरिसत ।]
3. पुनिवलोकन के आवेदन का पर्रूप ।
4. आवेदन कब नामंजूर िकया जाएगा ।
आवेदन कब मंजरू िकया जाएगा ।
5. दो या अिधक न्यायाधीश से गिठत न्यायालय म पुनिवलोकन का आवेदन ।
6. आवेदन कब नामंजूर िकया जाएगा ।
7. नामंजूरी का आदेश अपीलनीय न होगा । आवेदन की मंजूरी के आदेश पर आक्षेप ।
8. मंजूर िकए गए आवेदन का रिजस्टर म चढ़ाया जाना और िफर से सुनवाई के िलए आदेश ।
69
िनयम
9. कु छ आवेदन का वजर्न ।
आदेश 48
पर्कीणर्
1. आदेिशका की तामील उसे िनकलवाने वाले पक्षकार के व्यय पर की जाएगी ।
तामील के खच ।
2. आदेश और सूचना की तामील कै से की जाएगी ।
3. पिरिशष्ट म िदए गए पर्रूप का उपयोग ।
आदेश 49
पहली अनुसूची
आदेश 1
वाद के पक्षकार
1 [1. वािदय के रूप म कौन संयोिजत िकए जा सकगे—वे सभी व्यिक्त वािदय के रूप म एक वाद म संयोिजत िकए जा
सकगे, जहां,—
(क) एक ही कायर् या संव्यवहार या काय या संव्यवहार की आवली के बारे म या उससे पैदा होने वाले अनुतोष
पाने का अिधकार उनम संयुक्तत: या पृथक् त: या अनुकल्पत: वतर्मान होना अिभकिथत है; और
(ख) यिद ऐसे व्यिक्त पृथक् -पृथक् वाद लाते तो, िविध या तथ्य का सामान्य पर्श्न पैदा होता ।]
2. पृथक् िवचारण का आदेश करने की न्यायालय की शिक्त—जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक वािदय के िकसी
संयोजन से वाद के िवचारण म, उलझन या िवलंब हो सकता है वहां न्यायालय वािदय से िनवार्चन करने को कह सके गा या पृथक्
िवचारण का या ऐसा अन्य आदेश दे सके गा जो समीचीन हो ।
[3. पर्ितवािदय के रूप म कौन संयोिजत िकए जा सकगे—वे सभी व्यिक्त पर्ितवािदय के रूप म एक वाद म संयोिजत िकए
1
जा सकगे जहां,—
(क) एक ही कायर् या संव्यवहार या काय या संव्यवहार की आवली के बारे म या उससे पैदा होने वाले अनुतोष
पाने का कोई अिधकार उनके िवरु संयुक्तत: या पृथक् त: या अनुकल्पत: वतर्मान होना अिभकिथत है; और
(ख) यिद ऐसे व्यिक्तय के िवरु पृथक् -पृथक् वाद लाए जाते तो, िविध या तथ्य का सामान्य पर्श्न पैदा होता ।]
[3क. जहां पर्ितवािदय के संयोजन से उलझन या िवचारण म िवलम्ब हो सकता है वहां पृथक् िवचारण का आदेश देने
2
की शिक्त—जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक पर्ितवािदय के संयोजन से वाद के िवचारण म उलझन या िवलम्ब हो सकता है
वहां न्यायालय पृथक् िवचारण का आदेश या ऐसा अन्य आदेश दे सके गा जो न्याय के िहत म समीचीन हो ।]
4. न्यायालय, संयक्
ु त पक्षकार म से एक या अिधक के पक्ष म या उनके िवरु िनणर्य दे सके गा—(क) वािदय म से जो एक
या अिधक वादी अनुतोष के हकदार पाए जाएं उसके या उनके पक्ष म, उस अनुतोष के िलए, िजसके वह या वे हकदार ह ;
(ख) पर्ितवािदय म से जो एक या अिधक पर्ितवादी दायी पाए जाएं उसके या उनके िवरु उनके अपने-अपने दाियत्व के
अनुसार, िनणर्य िकसी संशोधन के िबना िदया जा सके गा ।
5. दावाकृ त सम्पूणर् अनुतोष म पर्ितवादी का िहतब होना आवश्यक नह है—यह आवश्यक नह होगा िक हर पर्ितवादी
अपने िवरु िकसी वाद म दावाकृ त सम्पूणर् अनुतोष के बारे म िहतब हो ।
6. एक ही संिवदा के आधार पर दायी पक्षकार का संयोजन—वादी िकसी भी एक संिवदा के आधार पर पृथक् त: या
संयुक्तत: और पृथक् त: दायी सभी या िकन्ह व्यिक्तय को, िजनके अन्तगर्त िविनमय-पतर् , हुिण्डय और वचनपतर् के पक्षकार भी ह,
एक ही वाद के पक्षकार के तौर पर अपने िवकल्प के अनुसार संयोिजत कर सके गा ।
7. जब वादी को संदह े है िक िकससे पर्िततोष चाहा गया है—जहां वादी को इस बारे म संदह
े है िक वह व्यिक्त कौन है, िजससे
पर्िततोष अिभपर्ाप्त करने का वह हकदार है वहां वह दो या अिधक पर्ितवािदय को इसिलए संयोिजत कर सके गा िक सभी पक्षकार के
बीच इस पर्श्न के बारे म अवधािरत िकया जा सके िक पर्ितवािदय म से कौन और िकस िवस्तार तक दायी है ।
[8. एक ही िहत म सभी व्यिक्तय की ओर से एक व्यिक्त वाद ला सके गा या पर्ितरक्षा कर सके गा—(1) जहां एक ही वाद म
3
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) कर्मश: िनयम 1 और 3 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) िनयम 8 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
71
साध्य नह है वहां लोक िवज्ञापन ारा, जैसा भी न्यायालय हर एक मामले म िनिदष्ट करे , वाद के संिस्थत िकए जाने की सूचना वादी
के खच पर देगा ।
(3) कोई व्यिक्त िजसकी ओर से या िजसके फायदे के िलए उपिनयम (1) के अधीन कोई वाद संिस्थत िकया जाता है या ऐसे
वाद म पर्ितरक्षा की जाती है, उस वाद म पक्षकार बनाए जाने के िलए न्यायालय को आवेदन कर सके गा ।
(4) आदेश 23 के िनयम 1 के उपिनयम (1) के अधीन ऐसे वाद म दावे के िकसी भाग का पिरत्याग नह िकया जाएगा और उस
आदेश के िनयम 1 के उपिनयम (3) के अधीन ऐसे वाद का पर्त्याहरण नह िकया जाएगा और उस आदेश के िनयम 3 के अधीन ऐसे वाद
म कोई करार, समझौता या तुिष्ट अिभिलिखत नह की जाएगी जब तक िक न्यायालय ने इस पर्कार िहतब सभी व्यिक्तय को
उपिनयम (2) म िविनिदष्ट रीित से सूचना वादी के खच पर न दे दी हो ।
(5) जहां ऐसे वाद म वाद लाने वाला या पर्ितरक्षा करने वाला कोई व्यिक्त वाद या पर्ितरक्षा म सम्यक् तत्परता से कायर्वाही
नह करता है वहां न्यायालय उस वाद म वैसा ही िहत रखने वाले िकसी अन्य व्यिक्त को उसके स्थान पर रख सके गा ।
(6) इस िनयम के अधीन वाद म पािरत िडकर्ी उन सभी व्यिक्तय पर आब कर होगी िजनकी ओर से या िजनके फायदे के
िलए, यथािस्थित, वाद संिस्थत िकया गया है या ऐसे वाद म पर्ितरक्षा की गई है ।
स्पष्टीकरण—इस बात का अवधारण करने के पर्योजन के िलए िक वे व्यिक्त जो वाद ला रहे ह या िजनके िवरु वाद लाया
गया है या जो ऐसे वाद म पर्ितरक्षा कर रहे ह, िकसी एक वाद म वैसा ही िहत रखते ह या नह , यह सािबत करना आवश्यक नह है िक
ऐसे व्यिक्तय का वही वादहेतुक है जो उन व्यिक्तय का है िजनकी ओर से या िजनके फायदे के िलए, यथािस्थित, वे वाद ला रहे ह या
उनके िवरु वाद लाया जा रहा है या वे ऐसे वाद म पर्ितरक्षा कर रहे ह ।]
[8क. न्यायालय की कायर्वाही म राय देने या भाग लेने के िलए िकसी व्यिक्त या व्यिक्तय के िनकाय को अनुज्ञात करने की
1
शिक्त—यिद वाद का िवचारण करते समय न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक कोई व्यिक्त या व्यिक्तय का िनकाय िकसी
ऐसी िविध के पर्श्न म िहतब है जो िकसी वाद म पर्त्यक्षत: या सारत: िववा है और ऐसे व्यिक्त या व्यिक्तय के िनकाय को उस
िविध के पर्श्न पर अपनी राय देने के िलए अनुज्ञात करना लोकिहत म आवश्यक है तो वह ऐसे व्यिक्त या व्यिक्तय के िनकाय को ऐसी
राय देने के िलए और वाद की कायर्वािहय म ऐसे भाग लेने के िलए अनुज्ञात कर सके गा जो न्यायालय िविनिदष्ट करे ।]
9. कु संयोजन और असंयोजन—कोई भी वाद पक्षकार के कु संयोजन या असंयोजन के कारण िवफल नह होगा और न्यायालय
हर वाद म िववादगर्स्त िवषय का िनपटारा वहां तक कर सके गा जहां तक उन पक्षकार के , जो उसके वस्तुत: समक्ष है, अिधकार और
िहत का सम्बन्ध है :
1
[परं तु इस िनयम की कोई बात िकसी आवश्यक पक्षकार के असंयोजन को लागू नह होगी ।]
10. गलत वादी के नाम से वाद—(1) जहां कोई वाद वादी के रूप म गलत व्यिक्त के नाम से संिस्थत िकया गया है, या जहां
यह संदह े पूणर् है िक वह सही वादी के नाम म संिस्थत िकया गया है वहां यिद वाद के िकसी भी पर्कर्म म न्यायालय का यह समाधान हो
जाता है िक वाद स ािवक भूल से संिस्थत िकया गया है और िववाद म के वास्तिवक िवषय के अवधारण के िलए ऐसा करना आवश्यक
है तो, वह ऐसे िनबन्धन पर, जो वह न्यायसंगत समझे, वाद के िकसी भी पर्कर्म म िकसी अन्य व्यिक्त को वादी के रूप म पर्ितस्थािपत
िकए जाने या जोड़े जाने का आदेश दे सके गा ।
(2) न्यायालय पक्षकार का नाम काट सके गा या जोड़ सके गा—न्यायालय कायर्वािहय के िकसी भी पर्कर्म म या तो दोन
पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर या उसके िबना और ऐसे िनबन्धन पर जो न्यायालय को न्यायसंगत पर्तीत ह , यह आदेश दे सके गा
िक वादी के रूप म या पर्ितवादी के रूप म अनुिचत तौर पर संयोिजत िकसी भी पक्षकार का नाम काट िदया जाए और िकसी व्यिक्त का
नाम िजसे वादी या पर्ितवादी के रूप म ऐसे संयोिजत िकया जाना चािहए था या न्यायालय के सामने िजसकी उपिस्थित वाद म
अन्तवर्िलत सभी पर्श्न का पर्भावी तौर पर और पूरी तरह न्यायिनणर्यन और िनपटारा करने के िलए न्यायालय को समथर् बनाने की
दृिष्ट से आवश्यक हो, जोड़ िदया जाए ।
(3) कोई भी व्यिक्त, वाद-िमतर् के िबना वाद लाने वाले वादी के रूप म अथवा उस वादी के , जो िकसी िनय ग्यता के अधीन
है, वाद-िमतर् के रूप म उसकी सहमित के िबना जोड़ा जाएगा ।
(4) जहां पर्ितवादी जोड़ा जाए वहां वादपतर् का संशोधन िकया जाना—जहां कोई पर्ितवादी जोड़ा जाता है वहां जब तक
न्यायालय अन्यथा िनिदष्ट न करे वादपतर् का इस पर्कार संशोधन िकया जाएगा, जैसा आवश्यक हो, और समन की और वादपतर् की
संशोिधत पर्ितय की तामील नए पर्ितवादी पर, और यिद न्यायालय ठीक समझे तो मूल पर्ितवादी पर की जाएगी ।
(5) 2 [इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15)] की धारा 22 के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, पर्ितवादी के रूप म
जोड़े गए िकसी भी व्यिक्त के िवरु कायर्वाही समन की तामील पर ही पर्ारं भ की गई समझी जाएगी ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
अब पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) की धारा 21 देिखए ।
72
[10क. न्यायालय की उसको संबोिधत करने के िलए िकसी प्लीडर से अनुरोध करने की शिक्त—यिद िकसी वाद या
1
कायर्वाही म िववा िवषय पर न्यायालय के िविनश्चय का िकसी िहत पर पर्भाव पड़ना संभव है और उस पक्षकार का जो ऐसा िहत
रखता है िजसका इस पर्कार पर्भािवत होना संभव है, िकसी प्लीडर ारा पर्ितिनिधत्व नह िकया जाता है तो न्यायालय,
स्विववेकानुसार प्लीडर से यह अनुरोध कर सके गा िक वह ऐसे िहत के बारे म उसे सम्बोिधत करे ।]
11. वाद का संचालन—न्यायालय 2 [िकसी वाद] का संचालन ऐसे व्यिक्त को स प सके गा िजसे वह ठीक समझे ।
12. कई वािदय या पर्ितवािदय म से एक का अन्य के िलए उपसंजात होना—(1) जहां एक से अिधक वादी ह वहां उनम से
िकसी एक या अिधक को उनम से कोई अन्य वादी िकसी भी कायर्वाही म उस अन्य के िलए उपसंजात होने, अिभवचन करने या कायर्
करने के िलए पर्ािधकृ त कर सके गा और उसी पर्कार से, जहां एक से अिधक पर्ितवादी ह वहां उनम से एक या अिधक को उनम से कोई
अन्य पर्ितवादी िकसी भी कायर्वाही म उस अन्य के िलए उपंसजात होने, अिभवचन करने या कायर् करने के िलए पर्ािधकृ त कर सके गा ।
(2) वह पर्ािधकार िलिखत रूप म होगा और उसे देने वाले पक्षकार ारा हस्ताक्षिरत होगा और न्यायालय म फाइल िकया
जाएगा ।
13. असंयोजन या कु संयोजन के बारे म आक्षेप—पक्षकार के असंयोजन या कु संयोजन के आधार पर सभी आक्षेप यथासंभव
शीघर्तम अवसर पर िकए जाएंगे और ऐसे सभी मामल म िजनम िववा िस्थत िकए जाते ह, ऐसे िस्थरीकरण के समय या उससे पहले
िकए जाएंगे, जब तक िक आक्षेप का आधार पीछे पैदा न हुआ हो और यिद आक्षेप ऐसे नह िकया जाता है तो वह आक्षेप अिधत्यक्त कर
िदया गया समझा जाएगा ।
आदेश 2
वाद की िवरचना
1. वाद की िवरचना—हर वाद की िवरचना यावत्साध्य ऐसे की जाएगी िक िववादगर्स्त िवषय पर अंितम िविनश्चय करने के
िलए आधार पर्ाप्त हो जाए और उनसे सम्पृक्त अितिरक्त मुकदमेबाजी का भी िनवारण हो जाए ।
2. वाद के अन्तगर्त संपण
ू र् दावा होगा—(1) हर वाद के अन्तगर्त वह पूरा दावा होगा िजसे उस वाद-हेतुक के िवषय म करने
का वादी हकदार है, िकन्तु वादी वाद को िकसी न्यायालय की अिधकािरता के भीतर लाने की दृिष्ट से अपने दावे के िकसी भाग का
त्याग कर सके गा ।
(2) दावे के भाग का त्याग—जहां वादी अपने दावे के िकसी भाग के बारे म वाद लाने का लोप करता है या उसे साशय त्याग
देता है वहां उसके पश्चात् वह इस पर्कार लोप िकए गए या त्यक्त भाग के बारे म वाद नह लाएगा ।
(3) कई अनुतोष म से एक के िलए वाद लाने का लोप—एक ही वाद-हेतुक के बारे म एक से अिधक अनुतोष पाने का हकदार
व्यिक्त ऐसे सभी अनुतोष या उनम से िकसी के िलए वाद ला सके गा, िकन्तु यिद वह ऐसे सभी अनुतोष के िलए वाद लाने का लोप
न्यायालय की इजाजत के िबना करता है तो उसके पश्चात् वह इस पर्कार लोप िकए गए िकसी भी अनुतोष के िलए वाद नह लाएगा ।
स्पष्टीकरण—इस िनयम के पर्योजन के िलए, कोई बाध्यता और उसके पालन के िलए सांपािश्वक पर्ितभूित और उसी
बाध्यता के अधीन उद्भूत उ रो र दाव के बारे म यह समझा जाएगा िक वे कर्मश: एक ही वाद-हेतु गिठत करते ह ।
दृष्टांत
क एक घर ख को 1,200 रु० वािषक भाटक के प े पर देता है । सन् 1905, 1906 और 1907 इन सभी पूरे वष का भाटक
शोध्य है और िदया नह गया है । क सन् 1908 म ख पर के वल सन् 1906 के शोध्य भाटक के िलए वाद लाता है । ख के ऊपर क उसके
पश्चात् सन् 1905 या 1907 के शोध्य भाटक के िलए वाद नह लाएगा ।
3. वाद-हेतक ु का संयोजन—(1) उसके िसवाय जैसा अन्यथा उपबिन्धत है, वादी उसी पर्ितवादी या संयुक्तत: उन्ह
पर्ितवािदय के िवरु कई वाद-हेतुक एक ही वाद म संयोिजत कर सके गा और ऐसे वाद-हेतुक रखने वाले कोई भी वादी िजनम वे उसी
पर्ितवादी या संयुक्तत: उन्ह पर्ितवािदय के िवरु संयुक्तत: िहतब ह , ऐसे वाद-हेतुक को एक ही वाद म संयोिजत कर सकगे ।
(2) जहां वाद-हेतुक संयोिजत िकए जाते ह, वहां वाद के सम्बन्ध म न्यायालय की अिधकािरता संकिलत िवषय-वस्तु की
उस रकम या मूल्य पर िनभर्र होगी जो वाद के संिस्थत िकए जाने की तारीख पर है ।
4. स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के िलए के वल कु छ दाव का संयोिजत िकया जाना—जब तक िक न्यायालय की इजाजत न
हो स्थावर सम्पि के पर्त्यु रण के िलए वाद म िनम्निलिखत के िसवाय कोई भी वाद-हेतुक संयोिजत नह िकया जाएगा—
(क) उस दावाकृ त सम्पि या उसके िकसी भाग के अन्त:कालीन लाभ या भाटक की बकाया के िलए दावे;
(ख) िजस संिवदा के अधीन वह संपि या उसका कोई भाग धािरत है उसके भंग के िलए नुकसानी के िलए
दावे; तथा
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 52 ारा (1-2-1977 से) “वाद” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
73
हेतुक के संयोजन से िवचारण म उलझन या िवलम्ब हो जाएगा या ऐसा करना अन्यथा असुिवधाजनक होगा वहां न्यायालय पृथक्
िवचारण का आदेश दे सके गा या ऐसा अन्य आदेश दे सके गा जो न्याय के िहत म समीचीन हो ।]
7. कु संयोजन के बारे म आक्षेप—वाद-हेतुक के कु संयोजन के आधार पर सभी आक्षेप यथासंभव शीघर्तम अवसर पर िकए
जाएंगे और ऐसे सभी मामल म िजनम िववा क िस्थर िकए जाते ह, ऐसे िस्थरीकरण के समय या उससे पहले िकए जाएंगे, जब तक िक
आक्षेप का आधार पीछे पैदा न हुआ हो और यिद ऐसे आक्षेप िकया जाता है तो वह आक्षेप अिधत्यक्त कर िदया गया समझा जाएगा ।
आदेश 3
िक वह उस व्यिक्त ारा ऐसी िलिखत दस्तावेज ारा इस पर्योजन के िलए िनयुक्त न िकया गया हो जो उस व्यिक्त ारा या उसके
मान्यतापर्ाप्त अिभकतार् ारा या ऐसी िनयुिक्त करने के िलए मुख्तारनामे ारा या उसके अधीन सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त िकसी अन्य
व्यिक्त ारा हस्ताक्षिरत है ।
(2) हर ऐसी िनयुिक्त 4 [न्यायालय म फाइल की जाएगी और उपिनयम (1) के पर्योजन के िलए] तब तक पर्वृ समझी
जाएगी जब तक वह न्यायालय की इजाजत से ऐसे लेख ारा पयर्विसत न कर दी गई हो जो, यथािस्थित, मुविक्कल या प्लीडर ारा
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 53 ारा (1-2-1977 से) िनयम 6 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1926 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 2 ारा “कायर् करने के िलए सम्यक् रूप से िनयुक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1926 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 2 ारा िनयम 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 54 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
74
अिधकािरता के भीतर िनवास करता है अथवा िजसका कोई ऐसा प्लीडर नह है जो उसकी ओर से न्यायालय म कायर् करने के िलए
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 54 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 54 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 54 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत /
75
सम्यक् रूप से िनयुक्त िकया गया है, वाद के िकसी भी पर्कर्म पर यह आदेश दे सके गा िक वह अपनी ओर से आदेिशका की तामील का
पर्ितगर्हण करने के िलए िविनिदष्ट समय के भीतर ऐसा अिभकतार् िनयुक्त करे जो न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िनवास
करता है ।]
आदेश 4
उसे ऐसे िकसी अन्य िदन को िलिखत कथन फाइल करने के िलए अनुज्ञात िकया जाएगा जो न्यायालय ारा, उसके कारण को लेखब
करके और ऐसे खच का, जो न्यायालय ठीक समझे, संदाय करने पर िविनिदष्ट िकया जाए, िकतु जो समन के तामील की तारीख से एक
सौ बीस िदन के बाद का नह होगा और समन की तामील की तारीख से एक सौ बीस िदन की समािप्त पर पर्ितवादी िलिखत कथन
फाइल करने का अिधकार खो देगा और न्यायालय िलिखत कथन अिभलेख पर लेने के िलए अनुज्ञात नह करे गा ।]
(2) वह पर्ितवादी, िजसके नाम उपिनयम (1) के अधीन समन िनकाला गया है—
(क) स्वयं, अथवा
(ख) ऐसे प्लीडर ारा, जो सम्यक् रूप से अनुिदष्ट हो और वाद से संबंिधत सभी सारवान पर्श्न का उ र देने के
िलए समथर् हो, अथवा
(ग) ऐसे प्लीडर ारा, िजसके साथ ऐसा कोई व्यिक्त है जो ऐसे सभी पर्श्न का उ र देने के िलए समथर् है,
उपसंजात हो सके गा ।
(3) हर ऐसा समन न्यायाधीश या ऐसे अिधकारी ारा, जो वह िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत होगा और उस पर न्यायालय की
मुदर्ा लगी होगी ।
5
[2. समन से उपाब वादपतर् की पर्ित—पर्त्येक समन के साथ वादपतर् की एक पर्ित होगी ।]
3. न्यायालय पर्ितवादी या वादी को स्वयं उपसंजात होने के िलए आदेश दे सके गा—(1) जहां न्यायालय के पास पर्ितवादी की
स्वीय उपसंजाित अपेिक्षत करने के िलए कारण हो वहां समन ारा यह आदेश िकया जाएगा िक समन म िविनिदष्ट तारीख को वह
न्यायालय म स्वयं उपसंजात हो ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) अंत:स्थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 6 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
76
(2) जहां न्यायालय के पास वादी की उसी िदन स्वीय उपसंजाित अपेिक्षत करने के िलए कारण हो वहां वह ऐसी उपसंजाित
के िलए आदेश करे गा ।
4. िकसी भी पक्षकार को स्वयं उपसंजात होने के िलए तब तक आदेश नह िकया जाएगा जब तक िक वह िकन्ह िनिश्चत
सीमा के भीतर िनवासी न हो—िकसी भी पक्षकार को स्वयं उपसंजात होने के िलए के वल तभी आदेश िकया जाएगा जब वह—
(क) न्यायालय की मामूली आरिभक अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करता है, अथवा
(ख) ऐसी सीमा के बाहर िकन्तु ऐसे स्थान म िनवास करता है जो न्यायसदन से पचास मील से कम या (जहां उस
स्थान के जहां वह िनवास करता है और उस स्थान के जहां न्यायालय िस्थत है, बीच पंचषष्ठांश दूरी तक रे ल या स्टीमर
संचार या अन्य स्थािपत लोक पर्वहण है वहां) दो सौ मील से कम दूर है ।
5. समन या तो िववा क के िस्थरीकरण के िलए या अंितम िनपटारे के िलए होगा—न्यायालय समन िनकालने के समय यह
अवधािरत करे गा िक क्या वह के वल िववा क के िस्थरीकरण के िलए होगा या वाद के अिन्तम िनपटारे के िलए होगा और समन म
तदनुसार िनदेश अन्तिवष्ट होगा :
परन्तु लघुवाद न्यायालय ारा सुने जाने वाले हर वाद म समन वाद के अंितम िनपटारे के िलए होगा ।
6. पर्ितवादी की उपसंजाित के िलए िदन िनयत िकया जाना— 1 [िनयम 1 के उपिनयम (1) के अधीन] िदन, न्यायालय के चालू
कारबार, पर्ितवादी के िनवास-स्थान और समन की तामील के िलए आवश्यक समय के पर्ित िनदश से िनयत िकया जाएगा और वह िदन
ऐसे िनयत िकया जाएगा िक पर्ितवादी को ऐसे िदन उपसंजात होने और उ र देने को समथर् होने के िलए पयार्प्त समय िमल जाए ।
7. समन पर्ितवादी को यह आदेश देगा िक वह वे दस्तावेज पेश करे िजन पर वह िनभर्र करता है—उपसंजाित और उ र के
िलए समन म पर्ितवादी को आदेश होगा िक वह अपने कब्जे या शिक्त म की ऐसी 1[आदेश 8 के िनयम 1क म िविनिदष्ट सब दस्तावेज
या उनकी पर्ितय ] को पेश करे िजन पर अपने मामले के समथर्न म िनभर्र करने का उसका आशय है ।
8. अंितम िनपटारे के िलए समन िनकाले जाने पर पर्ितवादी को यह िनदेश होगा िक वह अपने सािक्षय को पेश करे —जहां
समन वाद के अंितम िनपटारे के िलए है वहां उसम पर्ितवादी को यह िनदेश भी होगा िक िजन सािक्षय के सा य पर अपने मामले के
समथर्न म िनभर्र करने का उसका आशय है उन सब को उसी िदन पेश करे जो उसकी उपसंजाित के िलए िनयत है ।
समन की तामील
न्यायालय ारा समय का पिरदान—(1) जहां पर्ितवादी उस न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िनवास करता है,
2 [9.
िजसम वाद संिस्थत िकया गया है या उस अिधकािरता के भीतर िनवास करने वाला उसका ऐसा अिभकतार् है, जो समन की तामील का
पर्ितगर्हण करने के िलए सशक्त है, वहां समन जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे उिचत अिधकारी को, उसके ारा या उसके
अधीनस्थ म से एक या ऐसी कू िरयर सेवा ारा, जो न्यायालय ारा अनुमोिदत हो तामील िकए जाने के िलए पिरद िकया या
भेजा जाएगा ।
(2) उिचत अिधकारी उस न्यायालय से िभन्न, िजसम वाद संिस्थत िकया गया है, िकसी न्यायालय का अिधकारी हो सके गा
और जहां वह ऐसा अिधकारी है वहां समन उसे ऐसी रीित से भेजा जा सके गा जो न्यायालय िनदेश दे ।
(3) समन की तामील, पर्ितवादी या तामील का पर्ितगर्हण करने के िलए सशक्त िकए गए उसके िकसी अिभकतार् को संबोिधत
रसीदी रिजस्टर्ी डाक ारा अथवा स्पीड पोस्ट ारा अथवा ऐसी कू िरयर सेवा ारा, जो उच्च न्यायालय या उपिनयम (1) म िनिदष्ट
न्यायालय ारा अनुमोिदत हो, अथवा उच्च न्यायालय ारा बनाए गए िनयम म यथा उपबंिधत दस्तावेज (िजसके अंतगर्त फै क्स
संदशे या इलेक्टर्ािनक डाक सेवा भी है) के पारे षण के िकसी अन्य साधन ारा उसकी एक पर्ित के पिरदान या पारे षण ारा की
जा सके गी :
परन्तु यह िक इस उपिनयम के अधीन समन की तामील वादी के खचर् पर की जाएगी ।
(4) उपिनयम (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां कोई पर्ितवादी उस न्यायालय की अिधकािरता के बाहर िनवास करता
है, िजसम वाद संिस्थत िकया गया है और न्यायालय यह िनदेश देता है िक उस पर्ितवादी को समन की तामील ऐसे माध्यम से की जाए,
जैसा िक उपिनयम (3) म िनिदष्ट है, रसीदी रिजस्टर्ीकृ त डाक से िभन्न), वहां िनयम 21 के उपबंध लागू नह ह गे ।
(5) जब कोई अिभस्वीकृ ित या अन्य पावती, िजस पर पर्ितवादी या उसके अिभकतार् ारा हस्ताक्षर होने तात्पियत ह,
न्यायालय ारा पर्ाप्त की जाती है अथवा डाक वस्तु, िजसम समन अन्तिवष्ट ह, न्यायालय ारा वापस पर्ाप्त िकए जाते ह िजस पर
डाक कमर्चारी या कू िरयर सेवा ारा पर्ािधकृ त िकसी व्यिक्त ारा िकया गया इस आशय का पृष्ठांकन तात्पियत है िक पर्ितवादी या
उसके अिभकतार् ने जब समन उसे भेजे गए या पारे िषत िकए गए थे तो उस डाक वस्तु का पिरदान लेने से इं कार कर िदया है िजसम
समन अन्तिवष्ट थे अथवा उपिनयम (3) म िविनिदष्ट िकसी अन्य साधन से लेने से इं कार कर िदया है, तो समन िनकालने वाला
न्यायालय यह घोषणा करे गा िक समन सम्यक् रूप से पर्ितवादी पर तामील कर िदए गए ह :
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 15 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 6 ारा (1-7-2002 से) िनयम 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
77
परन्तु जहां समन उिचत रूप म पता िलखकर, उस पर पूवर् संदाय करके और रसीदी रिजस्टर्ी डाक ारा सम्यक् रूप से भेजा
गया था, वहां इस उपिनयम म िनिदष्ट घोषणा इस तथ्य के होते हुए भी की जाएगी िक अिभस्वीकृ ित खो जाने या इधर-उधर हो जाने
या िकसी अन्य कारण से समन िनकालने की तारीख से तीस िदन के भीतर न्यायालय ारा पर्ाप्त नह हुई है ।
(6) यथािस्थित, उच्च न्यायालय या िजला न्यायाधीश, उपिनयम (1) के पर्योजन के िलए कू िरयर अिभकरण का एक पैनल
तैयार करे गा ।
9क. तामील के िलए वादी को समन का िदया जाना—(1) न्यायालय, िनयम 9 के अधीन समन की तामील के अितिरक्त,
वादी के आवेदन पर, पर्ितवादी के उपसंजात होने के िलए समन जारी करने के िलए ऐसे वादी को ऐसे पर्ितवादी पर ऐसे समन को
तामील करने के िलए अनुज्ञात कर सके गा और ऐसे िकसी मामले म ऐसे वादी को तामील के िलए समन का पिरदान करे गा ।
(2) न्यायालय के न्यायाधीश या ऐसे अिधकारी ारा, जो वह इस िनिम िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत और न्यायालय की मुदर्ा से
मुदर्ांिकत ऐसे समन की तामील, ऐसे वादी ारा या उसकी ओर से उसकी एक पर्ित वैयिक्तक रूप से पर्ितवादी को देकर या िनिवदान
करके की जाएगी या तामील की ऐसी प ित से की जाएगी जो िनयम 9 के उपिनयम (3) म उिल्लिखत है ।
(3) िनयम 16 और िनयम 18 के उपबंध इस िनयम के अधीन वैयिक्तक रूप से तामील िकए गए समन पर उसी पर्कार लागू
ह गे मानो तामील करने वाला व्यिक्त एक तामील करने वाला अिधकारी था ।
(4) यिद ऐसे समन को, उनके िनिवद िकए जाने पर, पर्ाप्त करने से इं कार िकया जाता है या तामील िकया गया व्यिक्त
तामील की अिभस्वीकृ ित पर हस्ताक्षर करने से इं कार करता है या िकसी कारणवश ऐसा समन व्यिक्तगत रूप से तामील नह िकया जा
सकता है तो न्यायालय, पक्षकार के आवेदन पर, न्यायालय ारा पर्ितवादी को तामील की जाने वाली रीित से तामील िकए जाने के
िलए समन को पुन: जारी करे गा ।]
10. तामील का ढंग—समन की तामील उसकी ऐसी पर्ित के पिरदान या िनिवदान ारा की जाएगी जो न्यायाधीश या ऐसे
अिधकारी ारा जो वह इस िनिम िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत हो और िजस पर न्यायालय की मुदर्ा लगी हो ।
11. अनेक पर्ितवािदय पर तामील—अन्यथा िविहत के िसवाय जहां एक से अिधक पर्ितवादी ह, वहां समन की तामील हर
एक पर्ितवादी पर की जाएगी ।
12. जब साध्य हो तब समन की तामील स्वयं पर्ितवादी पर, अन्यथा उसके अिभकतार् पर की जाएगी—जहां कह भी यह
साध्य हो वहां तामील स्वयं पर्ितवादी पर की जाएगी िकन्तु यिद तामील का पर्ितगर्हण करने के िलए सशक्त उसका कोई अिभकतार् है तो
उस पर उसकी तामील पयार्प्त होगी ।
13. उस अिभकतार् पर तामील िजसके ारा पर्ितवादी कारबार करता है—(1) िकसी कारबार या काम से संबंिधत िकसी ऐसे
वाद म जो िकसी ऐसे व्यिक्त के िवरु है, जो उस न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास नह करता है
िजसने समन िनकाला है, िकसी भी ऐसे पर्बन्ध या अिभकतार् पर तामील ठीक तामील समझी जाएगी जो तामील के समय ऐसी सीमा
के भीतर ऐसे व्यिक्त के िलए स्वयं ऐसा कारबार या काम करता है ।
(2) पोत के मास्टर के बारे म इस िनयम के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक वह स्वामी या भाड़े पर लेने वाले व्यिक्त
का अिभकतार् है ।
14. स्थावर सम्पि के वाद म भारसाधक अिभकतार् पर तामील—जहां स्थावर सम्पि की बाबत अनुतोष या उसके पर्ित
िकए गए दोष के िलए पर्ितकर अिभपर्ाप्त करने के वाद म तामील स्वयं पर्ितवादी पर नह की जा सकती और पर्ितवादी का उस तामील
का पर्ितगर्हण करने के िलए सशक्त कोई अिभकतार् नह है वहां तामील पर्ितवादी के िकसी ऐसे अिभकतार् पर की जा सके गी जो उस
सम्पि का भारसाधक है ।
[15. जहां तामील पर्ितवादी के कु टु म्ब के वयस्क सदस्य पर की जा सके गी—जहां िकसी वाद म पर्ितवादी अपने िनवास-
1
स्थान से उस समय अनुपिस्थत है जब उस पर समन की तामील उसके िनवास-स्थान पर की जानी है और युिक्तयुक्त समय के भीतर
उसके िनवास-स्थान पर पाए जाने की संभावना नह है और समन की तामील का उसकी ओर से पर्ितगर्हण करने के िलए सशक्त उसका
कोई अिभकतार् नह है वहां तामील पर्ितवादी के कु टु म्ब के ऐसे िकसी वयस्क सदस्य पर, चाहे वह स्तर्ी हो या पुरूष, की जा सके गी जो
उसके साथ िनवास कर रहा है ।
स्पष्टीकरण—इस िनयम के अथर् म सेवक कु टु म्ब का सदस्य नह है ।]
16. वह व्यिक्त िजस पर तामील की गई है, अिभस्वीकृ ित हस्ताक्षिरत करे गा—जहां तामील करने वाला अिधकारी समन की
पर्ित स्वयं पर्ितवादी को, या उसके िनिम अिभकतार् को या िकसी अन्य व्यिक्त को, पिरद करता है या िनिवद करता है वहां िजस
व्यिक्त को पर्ित ऐसे पिरद या िनिवद की गई है उससे वह यह अपेक्षा करे गा िक वह मूल समन पर पृष्ठांिकत तामील की
अिभस्वीकृ ित पर अपने हस्ताक्षर करे ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) िनयम 15 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
78
17. जब पर्ितवादी तामील का पर्ितगर्हण करने से इं कार करे या न पाया जाए, तब पर्िकर्या—जहां पर्ितवादी या उसका
अिभकतार् या उपरोक्त जैसा अन्य व्यिक्त अिभस्वीकृ ित पर हस्ताक्षर करने से इं कार करता है, या जहां तामील करने वाला अिधकारी
सभी सम्यक् और युिक्तयुक्त तत्परता बरतने के पश्चात् ऐसे पर्ितवादी को न पा सके , 1 [जो अपने िनवास-स्थान से उस समय अनुपिस्थत
है, जब उस पर समन की तामील उसके िनवास-स्थान पर की जानी है और युिक्तयुक्त समय के भीतर उसके िनवास-स्थान पर पाए
जाने की संभावना नह है] और ऐसा कोई अिभकतार् नह है जो समन की तामील का पर्ितगर्हण उसकी ओर से करने के िलए सशक्त है
और न कोई ऐसा अन्य व्यिक्त है िजस पर तामील की जा सके वहां तामील करने वाला अिधकारी उस गृह के , िजसम पर्ितवादी मामूली
तौर से िनवास करता है या कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है, बाहरी ार पर या िकसी अन्य सहजदृश्य भाग
पर समन की एक पर्ित लगाएगा और तब वह मूल पर्ित को उस पर पृष्ठांिकत या उससे उपाब ऐसी िरपोटर् के साथ, िजसम यह किथत
होगा िक उसने पर्ित को ऐसे लगा िदया है और वे कौन सी पिरिस्थितयां थ िजनम उसने ऐसा िकया, किथत ह गी, और िजसम उस
व्यिक्त का (यिद कोई हो) नाम और पता किथत होगा िजसने गृह पहचाना था और िजसकी उपिस्थित म पर्ित लगाई गई थी, उस
न्यायालय को लौटाएगा िजसने समन िनकाला था ।
18. तामील करने के समय और रीित का पृष्ठांकन—तामील करने वाला अिधकारी उन सभी दशा म, िजनम समन की
तामील िनयम 16 के अधीन की गई है उस समय को जब और उस रीित को िजससे समन की तामील की गई थी और यिद ऐसा कोई
व्यिक्त है िजसने उस व्यिक्त को, िजस पर तामील की गई है, पहचाना था और जो समन के पिरदान या िनिवदान का साक्षी रहा था तो
उसका नाम और पता किथत करने वाली िववरणी मूल समन पर पृष्ठांिकत करे गा या कराएगा या मूल समन से उपाब करे गा
या कराएगा ।
19. तामील करने वाले अिधकारी की परीक्षा—जहां समन िनयम 17 के अधीन लौटा िदया गया है वहां तामील करने वाले
अिधकारी की परीक्षा उसकी अपनी कायर्वािहय की बाबत न्यायालय स्वयं या िकसी अन्य न्यायालय ारा उस दशा म करे गा या
कराएगा िजसम उस िनयम के अधीन िववरणी तामील करने वाले अिधकारी ारा शपथपतर् ारा सत्यािपत नह की गई है और उस
दशा म कर सके गा या करा सके गा िजसम वह ऐसे सत्यािपत की गई है और उस मामले म ऐसी अितिरक्त जांच कर सके गा जो वह ठीक
समझे और या तो वह घोिषत करे गा िक समन की तामील सम्यक् रूप से हो गई है या ऐसी तामील का आदेश करे गा जो वह
ठीक समझे ।
2
* * * * *
20. पर्ितस्थािपत तामील—(1) जहां न्यायालय का समाधान हो जाता है िक यह िवश्वास करने के िलए कारण है िक
पर्ितवादी इस पर्योजन से िक उस पर तामील न होने पाए, सामने आने से बचता है या समन की तामील मामूली पर्कार से िकसी अन्य
कारण से नह की जा सकती वहां न्यायालय आदेश देगा िक समन की तामील उसकी एक पर्ित न्यायसदन के िकसी सहजदृश्य स्थान म
लगाकर और (यिद ऐसा कोई गृह हो) तो उस गृह के , िजसम पर्ितवादी का अिन्तम बार िनवास करना या कारबार करना या अिभलाभ
के िलए स्वयं काम करना ज्ञात है, िकसी सहजदृश्य भाग पर भी लगा कर या ऐसी अन्य रीित से, जो न्यायालय ठीक समझे, की जाए ।
[(1क) जहां उपिनयम (1) के अधीन कायर् करने वाला न्यायालय समाचारपतर् म िवज्ञापन ारा तामील का आदेश करता है
3
वहां वह समाचारपतर् ऐसा दैिनक समाचारपतर् होगा िजसका पिरचालन उस स्थानीय क्षेतर् म होता है, िजसम पर्ितवादी का अिन्तम बार
वास्तव म और स्वेच्छा से िनवास करना या कारबार करना या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करना ज्ञात है ।]
(2) पर्ितस्थािपत तामील का पर्भाव— न्यायालय के आदेश ारा पर्ितस्थािपत तामील इस पर्कार पर्भावी होगी मानो वह स्वयं
पर्ितवादी पर की गई हो ।
(3) जहां तामील पर्ितस्थािपत की गई हो वहां उपसंजाित के िलए समय का िनयत िकया जाना—जहां तामील न्यायालय के
आदेश ारा पर्ितस्थािपत की गई है वहां न्यायालय पर्ितवादी को उपसंजाित के िलए ऐसा समय िनयत करे गा जो उस मामले म
अपेिक्षत हो ।
[20क. डाक ारा समन की तामील ।]—िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 104) की धारा 55
4
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 15 ारा (1-7-2002 से) िनयम 19क का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा अन्त:स्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 15 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
79
22. बाहर के न्यायालय ारा िनकाले गए समन की पर्ेिसडसी नगर म तामील—जहां कलक ा, मदर्ास 1 [और मुम्बई] नगर
की सीमा से परे स्थािपत िकसी न्यायालय ारा िनकाले गए समन की तामील ऐसी सीमा म से िकसी सीमा के भीतर की जानी है
वहां वह उस लघुवाद न्यायालय को भेजा जाएगा िजसकी अिधकािरता के भीतर उसकी तामील की जानी है ।
23. िजस न्यायालय को समन भेजा गया है उसका कतर्व्य—वह न्यायालय, िजसको समन िनयम 21 या िनयम 22 के अधीन
भेजा गया है, उसकी पर्ािप्त पर इस भांित असर होगा मानो वह उसी न्यायालय ारा िनकाला गया था और तब वह उससे सम्बिन्धत
अपनी कायर्वािहय के अिभलेख के (यिद कोई हो) सिहत समन उसे िनकालने वाले न्यायालय को वापस भेज देगा ।
24. कारागार म पर्ितवादी पर तामील—जहां पर्ितवादी कारागार म पिररु है वहां समन कारागार के भारसाधक अिधकारी
को पर्ितवादी पर तामील के िलए पिरद िकया जाएगा या 2 [डाक ारा या ऐसी कू िरयर सेवा ारा जो उच्च न्यायालय ारा
अनुमोिदत हो, फै क्स संदश
े ारा या इलेक्टर्ािनक डाक सेवा ारा या िकसी अन्य साधन ारा िजसका उपबंध उच्च न्यायालय ारा
बनाए गए िनयम ारा िकया जाए] भेजा जाएगा ।
25. वहां तामील, जहां पर्ितवादी भारत के बाहर िनवास करता है और उसका कोई अिभकतार् नह है—जहां पर्ितवादी
3
[भारत] के बाहर िनवास करता है और उसका 3[भारत] म ऐसा कोई अिभकतार् नह है जो तामील पर्ितगृहीत करने के िलए सशक्त है
वहां, यिद ऐसे स्थान और उस स्थान के बीच जहां न्यायालय िस्थत है, डाक ारा संचार है तो, समन उस पर्ितवादी को उस स्थान के पते
पर, जहां वह िनवास कर रहा है 2[या डाक ारा या ऐसी कू िरयर सेवा ारा जो उच्च न्यायालय ारा अनुमोिदत हो, फै क्स संदश े
ारा या इलेक्टर्ािनक डाक सेवा ारा या िकसी अन्य साधन ारा िजसका उपबंध उच्च न्यायालय ारा बनाए गए िनयम ारा िकया
जाए] :
4
[परन्तु जहां ऐसा पर्ितवादी 5 [बंगलादेश या पािकस्तान म िनवास करता है] वहां समन उसकी एक पर्ित के सिहत, पर्ितवादी
पर तामील के िलए उस देश के िकसी ऐसे न्यायालय को भेजा जा सके गा (जो उच्च न्यायालय न हो) िजसकी उस स्थान म अिधकािरता
है जहां पर्ितवादी िनवास करता है :
परन्तु यह और िक जहां ऐसा कोई पर्ितवादी 6 [बंगलादेश या पािकस्तान म का लोक अिधकारी है (जो, यथािस्थित, बंगलादेश
या पािकस्तान की सेना, नौसेना या वायु सेना का नह है)] या उस देश म की रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी का सेवक है वहां समन
उसकी एक पर्ित के सिहत, उस पर्ितवादी पर तामील के िलए उस देश के ऐसे अिधकारी या पर्ािधकारी को भेजा जा सके गा िजसे के न्दर्ीय
सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ।]
7
[26. राजनीितक अिभकतार् या न्यायालय की माफर् त िवदेशी राज्यक्षेतर् म तामील—जहां—
(क) के न्दर्ीय सरकार म िनिहत िकसी वैदिे शक अिधकािरता के पर्योग म, िकसी ऐसे िवदेशी राज्यक्षेतर् म, िजसम
पर्ितवादी वास्तव म और स्वेच्छा से िनवास करता है, कारबार करता है या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता है, ऐसा
राजनीितक अिभकतार् िनयुक्त िकया गया है या न्यायालय स्थािपत िकया गया है या चालू रखा गया है िजसे उस समन की
तामील करने की शिक्त है, जो इस संिहता के अधीन न्यायालय ारा िनकाला जाए, अथवा
(ख) के न्दर्ीय सरकार ने िकसी ऐसे न्यायालय के बारे म जो िकसी ऐसे राज्यक्षेतर् म िस्थत है और पूव क्त जैसी िकसी
अिधकािरता के पर्योग म स्थािपत नह िकया गया या चालू नह रखा गया है, राजपतर् म अिधसूचना ारा घोषणा की है िक
न्यायालय ारा इस संिहता के अधीन िनकाले गए समन की ऐसे न्यायालय ारा तामील िविधमान्य मसझी जाएगी,
वहां समन ऐसे राजनीितक अिभकतार् या न्यायालय को पर्ितवादी पर तामील िकए जाने के पर्योजन के िलए डाक ारा या अन्यथा या
यिद के न्दर्ीय सरकार ारा इस पर्कार िनदेश िदया जाए तो उस सरकार के िवदेशी मामल से सम्बिन्धत मंतर्ालय की माफर् त या ऐसी
अन्य रीित से जो के न्दर्ीय सरकार ारा िविनिदष्ट की जाए, भेजा जा सके गा और यिद राजनीितक अिभकतार् या न्यायालय समन को ऐसे
राजनीितक अिभकतार् ारा या उस न्यायालय के न्यायाधीश या अन्य पर्ािधकारी ारा िकए गए तात्पियत इस आशय से पृष्ठांकन के
सिहत लौटा देता है िक समन की तामील पर्ितवादी पर इसम इसके पूवर् िनिदष्ट रीित से की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन तामील का
सा य समझा जाएगा ।
26क. िवदेश के अिधकािरय को समन का भेजा जाना—जहां के न्दर्ीय सरकार ने राजपतर् म अिधसूचना ारा िकसी िवदेशी
राज्यक्षेतर् के बारे म यह घोषणा की है िक उस िवदेशी राज्यक्षेतर् म वास्तव म और स्वेचछा से िनवास करने वाले या कारबार करने वाले
या अिभलाभ के िलए स्वयं काम करने वाले पर्ितवािदय पर तामील िकए जाने वाले समन िवदेशी राज्यक्षेतर् की सरकार के ऐसे
अिधकारी को जो के न्दर्ीय सरकार ारा िविनिदष्ट िकया जाए, भेजे जा सकगे वहां समन ऐसे अिधकारी को भारत सरकार के िवदेशी
मामल से सम्बिन्धत मंतर्ालय की माफर् त या ऐसी अन्य रीित से जो के न्दर्ीय सरकार ारा िविनिदष्ट की जाए, भेजे जा सकगे और यिद
1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “मुम्बई और रं गून” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 15 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) “पािकस्तान म िनवास करता है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 55 ारा (1-2-1977 से) िनयम 26 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
80
ऐसा अिधकारी िकसी ऐसे समन को उसके ारा िकए गए तात्पियत इस पृष्ठांकन के सिहत लौटा देता है िक समन की तामील पर्ितवादी
पर की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन तामील का सा य समझा जाएगा ।]
27. िसिवल लोक अिधकारी पर या रे ल कं पनी या स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक पर तामील—जहां पर्ितवादी लोक अिधकारी
है (जो 1 [भारतीय]सेना, 2 [नौसेना या वायुसेना] 3 *** का नह है) या रे ल कं पनी या स्थानीय पर्ािधकारी का सेवक है वहां, यिद
न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक समन की तामील अत्यन्त सुिवधापूवर्क ऐसे की जा सकती है तो वह उसे उसकी उस पर्ित के सिहत
जो पर्ितवादी ारा रख ली जानी है, उस कायार्लय के पर्धान को िजसम पर्ितवादी िनयोिजत है, पर्ितवादी पर तामील के िलए भेज
सके गा ।
28. सैिनक , नौसैिनक या वायुसिै नक पर तामील—जहां पर्ितवादी सैिनक, 4 [नौसैिनक] या 5 [वायुसैिनक] है वहां न्यायालय
समन को, उसकी उस पर्ित के सिहत जो पर्ितवादी ारा रख ली जानी है, उसके कमान आिफसर को तामील के िलए भेजेगा ।
29. उस व्यिक्त का कतर्व्य िजसको समन तामील के िलए पिरद िकया जाए या भेजा जाए—(1) जहां तामील के िलए िकसी
व्यिक्त को िनयम 24, िनयम 27 या िनयम 28 के अधीन पिरद िकया गया है या भेजा गया है वहां ऐसा व्यिक्त, उसकी तामील, यिद
संभव हो, करने के िलए और अपने हस्ताक्षर करके पर्ितवादी की िलिखत अिभस्वीकृ ित के साथ लौटाने के िलए आब होगा और ऐसे
हस्ताक्षर तामील के सा य समझे जाएंगे ।
(2) जहां िकसी कारण से तामील असंभव हो वहां समन ऐसे कारण के और तामील कराने के िलए की गई कायर्वािहय के पूणर्
कथन के साथ न्यायालय को लौटा िदया जाएगा और ऐसा कथन तामील न होने का सा य समझा जाएगा ।
30. समन के बदले पतर् का पर्ितस्थािपत िकया जाना—(1) इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, जहां
न्यायालय की यह राय है िक पर्ितवादी ऐसी पंिक्त का है जो इस बात का हकदार बनाती है िक उसके पर्ित ऐसा सम्मानपूणर् बतार्व िकया
जाए वहां वह समन के बदले ऐसा पतर्, पर्ितस्थािपत कर सके गा जो न्यायाधीश ारा या ऐसे अिधकारी ारा, जो वह इस िनिम
िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत होगा ।
(2) उपिनयम (1) के अधीन पर्ितस्थािपत पतर् म वे सब िविशिष्टयां अन्तिवष्ट ह गी िजनका समन म किथत होना अपेिक्षत है
और उपिनयम (3) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए वह हर तरह से समन माना जाएगा ।
(3) ऐसा पर्ितस्थािपत पतर् पर्ितवादी को डाक ारा या न्यायालय ारा चुने गए िवशेष संदश
े -वाहक ारा या िकसी ऐसी अन्य
रीित से जो न्यायालय ठीक समझे, भेजा जा सके गा और जहां पर्ितवादी का ऐसा अिभकतार् हो जो तामील पर्ितगृहीत करने के िलए
सशक्त है वहां वह पतर् ऐसे अिभकतार् को पिरद िकया जा सके गा या भेजा जा सके गा ।
आदेश 6
अिभवचन साधारणत:
1. अिभवचन—“अिभवचन” से वादपतर् या िलिखत कथन अिभपर्ेत होगा ।
[2. अिभवचन म ताित्त्वक तथ्य का, न िक सा य का, कथन होगा—(1) हर अिभवचन म उन ताित्त्वक तथ्य का, िजन पर
6
अिभवचन करने वाला पक्षकार, यथािस्थित, अपने दावे या अपनी पर्ितरक्षा के िलए िनभर्र करता है और के वल उन तथ्य का, न िक उस
सा य का िजसके ारा वे सािबत िकए जाने ह, संिक्षप्त कथन अन्तिवष्ट होगा ।
(2) हर अिभवचन आवश्यकतानुसार पैरा म िवभक्त िकया जाएगा, जो यथाकर्म संख्यांिकत िकए जाएंगे । हर अिभकथन
सुिवधानुसार पृथक् पैरा म िकया जाएगा ।
(3) अिभवचन म तारीख, रािशयां और संख्याएं अंक और शब्द म भी अिभव्यक्त की जाएंगी ।]
3. अिभवचन का पर्रूप—जब वे लागू होन योग्य ह तब पिरिशष्ट क म के पर्रूप और जहां वे लागू होने योग्य न ह वहां जहां
तक हो सके , लगभग वैसे ही पर्रूप सभी अिभवचन के िलए पर्युक्त िकए जाएंगे ।
[3क. वािणिज्यक न्यायालय म अिभवचन के पर्रूप—िकसी वािणिज्यक िववाद म, जहां ऐसे वािणिज्यक िववाद के
7
पर्योजन के िलए बनाए गए उच्च न्यायालय िनयम या िविध व्यवसाय िनदेश के अधीन अिभवचन के पर्रूप िविहत िकए गए ह,
अिभवचन उन पर्रूप म ह गे ।]
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मजेस्टी की” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या नौसेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा “या िहज मजेस्टी की भारतीय समुदर्ी सेवा” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा अन्त:स्थािपत ।
5
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा अन्त:स्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 56 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
81
4. जहां आवश्यक हो वहां िविशिष्टय का िदया जाना—उन सभी मामल म िजनम अिभवचन करने वाला पक्षकार िकसी
दुव्यर्पदेशन, कपट, न्यास-भंग, जानबूझकर िकए गए व्यितकर्म या असम्यक् असर के अिभवाक् पर िनभर्र करता है, और अन्य सभी
मामल म, िजनम उन िविशिष्टय के अलावा िविशिष्टयां जो पूव क्त पर्रूप म उदाहरणस्वरूप दिशत की गई ह, आवश्यक ह
अिभवचन म वे िविशिष्टयां (यिद आवश्यक हो तो तारीख और मद के सिहत) किथत की जाएंगी ।
1
* * * * *
6. पुरोभाव्य शतर्—िजस िकसी पुरोभाव्य शतर् के पालन का या घिटत होने का पर्ितवाद करना आशियत हो वह, यथािस्थित,
वादी या पर्ितवादी ारा अपने अिभवचन म स्पष्टत: िविनिदष्ट की जाएगी और उसके अधीन रहते हुए वादी या पर्ितवादी के पक्ष के
िलए आवश्यक सभी पुरोभाव्य शत के पालन या घिटत होने का पर्कथन उसके अिभवचन म िवविक्षत होगा ।
7. फे रबदल—िकसी भी अिभवचन म दावे का कोई नया आधार या तथ्य का कोई अिभकथन, जो उसका अिभवचन करने
वाले पक्षकार के पूवर्तन अिभवचन से असंगत हो, िबना संशोधन िकए न तो उठाया जाएगा और न अन्तिवष्ट होगा ।
8. संिवदा का पर्त्याख्यान—जहां िकसी अिभवचन म िकसी संिवदा का अिभकथन है वहां िवरोधी पक्षकार ारा िकए गए
उसके कोरे पर्त्याख्यान का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह के वल अिभव्यक्त संिवदा का, जो अिभकिथत की गई है, या उन तथ्य की
बात का, िजनसे वह संिवदा िवविक्षत की जा सके , पर्त्याख्यान है, न िक ऐसी संिवदा की वैधता या िविध की दृिष्ट म पयार्प्तता
का पर्त्याख्यान ।
9. दस्तावेज के पर्भाव का कथन िकया जाना—जहां कह िकसी दस्तावेज की अन्तवर्स्तु ताित्त्वक है वहां उसे सम्पूणर्त: या
उसके िकसी भाग को उपविणत िकए िबना उसके पर्भाव को यथासंभव संिक्षप्त रूप म अिभवचन म किथत कर देना पयार्प्त होगा, जब
तक िक दस्तावेज के या उसके िकसी भाग के यथावत् शब्द ही ताित्त्वक न ह ।
10. िव ष े , ज्ञान, आिद—जहां कह िकसी व्यिक्त के िव ष
े , कपटपूणर् आशय, ज्ञान या िच की अन्य दशा का अिभकथन
करना ताित्त्वक है, वहां उन पिरिस्थितय को उपविणत िकए िबना िजनसे उसका अनुमान िकया जाना है, उसे तथ्य के रूप म
अिभकिथत करना पयार्प्त होगा ।
11. सूचना—जहां कह यह अिभकथन करना ताित्त्वक है िक िकसी तथ्य, बात या वस्तु की सूचना िकस व्यिक्त की थी वहां
जब तक िक ऐसी सूचना का पर्रूप या उसके यथावत् शब्द या वे पिरिस्थितयां, िजनसे ऐसी सूचना का अनुमान िकया जाना है, ताित्त्वक
न ह , ऐसी सूचना को तथ्य के रूप म अिभकिथत करना पयार्प्त होगा ।
12. िवविक्षत संिवदा या सम्बन्ध—जब कभी पतर् की या वातार्लाप की आवली से या अन्यथा कई पिरिस्थितय से िकन्ह
व्यिक्तय के बीच म की कोई संिवदा या अन्य सम्बन्ध िवविक्षत िकया जाना है तब ऐसी संिवदा या सम्बन्ध को तथ्य के रूप म
अिभकिथत करना और ऐसे पतर् , वातार्लाप या पिरिस्थितय को ब्यौरे वार उपविणत िकए िबना उनके पर्ित साधारणतया िनदश करना
पयार्प्त होगा । और ऐसी दशा म यिद ऐसे अिभवचन करने वाला व्यिक्त ऐसी पिरिस्थितय से िवविक्षत की जाने वाली एक संिवदा या
सम्बन्ध से अिधक संिवदा या सम्बन्ध पर अनुकल्पत: िनभर्र करना चाहता है तो वह उनका कथन अनुकल्पत: कर सके गा ।
13. िविध की उपधारणाएं—िकसी तथ्य की बात को, िजसकी िविध िकसी पक्षकार के पक्ष म उपधारणा करती है या िजसके
सबूत का भार पर्ितपक्ष पर है, पक्षकार म से िकसी के ारा िकसी भी अिभवचन म अिभकिथत करना तब तक आवश्यक न होगा जब
तक िक पहले ही उसका पर्त्याख्यान िविनिदष्ट रूप से न कर िदया गया हो (उदाहरणाथर् जहां वादी दावे के सारभूत आधार के रूप म
िविनमय-पतर् पर न िक उसके पर्ितफल के िलए वाद लाता है वहां िविनमय-पतर् का पर्ितफल) ।
14. अिभवचन का हस्ताक्षिरत िकया जाना—हर अिभवचन पक्षकार ारा और यिद उसका कोई प्लीडर है तो उसके ारा
हस्ताक्षिरत िकया जाएगा : परन्तु जहां अिभवचन करने वाला पक्षकार अनुपिस्थित के कारण या िकसी अन्य अच्छे हेतुक से अिभवचन
पर हस्ताक्षर करने म असमथर् है वहां वह ऐसे व्यिक्त ारा हस्ताक्षिरत िकया जा सके गा जो उसकी ओर से उसे हस्ताक्षिरत करने के
िलए या वाद लाने या पर्ितरक्षा करने के िलए उसके ारा सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त है ।
[14क. सूचना की तामील के िलए पता—(1) पक्षकार ारा फाइल िकए जाने वाले हर अिभवचन के साथ पक्षकार के पते के
2
बारे म िविहत पर्रूप म कथन, िनयम 14 म उपबिन्धत रूप म हस्ताक्षिरत करके देना होगा ।
(2) ऐसे पते को, न्यायालय म सम्यक् रूप से भरे गए पर्रूप और सत्यािपत यािचका के साथ पक्षकार के नए पते का कथन
दािखल करके , समय-समय पर पिरवितत िकया जा सके गा ।
(3) उपिनयम (1) के अधीन िकए गए कथन म िदए गए पते को पक्षकार का “रिजस्टर्ीकृ त पता” कहा जाएगा और जब तक
पूव क्त रूप म सम्यक् त: पिरवितत न िकया गया हो तब तक वह वाद म या उसम दी गई िकसी िडकर्ी या िकए गए िकसी आदेश की
िकसी अपील म सभी आदेिशका की तामील के पर्योजन के िलए और िनष्पादन के पर्योजन के िलए पक्षकार का पता समझा जाएगा
और पूव क्त के अधीन रहते हुए इस मामले या िवषय के अिन्तम िनधार्रण के पश्चात् दो वष की अविध के िलए वही पता
माना जाएगा ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 16 ारा (1-7-2002 से) िनयम 5 का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 56 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
82
(4) िकसी आदेिशका की तामील पक्षकार पर सभी बात के बारे म उसके रिजस्टर्ीकृ त पते पर इस पर्कार की जा सके गी मानो
वह पक्षकार वहां िनवास करता रहा हो ।
(5) जहां न्यायालय को यह पता चलता है िक िकसी पक्षकार का रिजस्टर्ीकृ त पता अधूरा, िमथ्या या काल्पिनक है वहां
न्यायालय या तो स्वपर्ेरणा से या िकसी पक्षकार के आवेदन पर,—
(क) ऐसे मामले म जहां ऐसा रिजस्टर्ीकृ त पता वादी ारा िदया गया था वहां वाद के रोके जाने का आदेश दे
सके गा, अथवा
(ख) ऐसे मामले म जहां ऐसा रिजस्टर्ीकृ त पता पर्ितवादी ारा िदया गया था वहां उसकी पर्ितरक्षा काट दी जाएगी
और वह उसी िस्थित म रखा जाएगा मानो उसने पर्ितरक्षा पेश नह की हो ।
(6) जहां उपिनयम (5) के अधीन िकसी वाद को रोक िदया जाता है या पर्ितरक्षा काट दी जाती है, वहां यथािस्थित, वादी या
पर्ितवादी अपना सही पता देने के पश्चात् न्यायालय से, यथािस्थित, रोक-आदेश या पर्ितरक्षा काटने के आदेश को अपास्त करने वाले
आदेश के िलए आवेदन कर सके गा ।
(7) यिद न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक पक्षकार उिचत समय पर अपना सही पता फाइल करने म िकसी पयार्प्त
कारण से रोक िदया गया था, तो वह रोक-आदेश या पर्ितरक्षा काटने के आदेश को खच और अन्य बात के बारे म ऐसे िनबन्धन पर जो
वह ठीक समझे, अपास्त कर सके गा और, यथािस्थित, वाद या पर्ितरक्षा की कायर्वाही के िलए िदन िनयत करे गा ।
(8) इस िनयम की कोई बात न्यायालय को आदेिशका की तामील िकसी अन्य पते पर िकए जाने का िनदेश देने से, यिद वह
िकसी कारण से ऐसा करना ठीक समझे तो, नह रोके गी ।]
15. अिभवचन का सत्यापन—(1) उसके िसवाय जैसा िक तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा अन्यथा उपबिन्धत है, हर
अिभवचन उसे करने वाले पक्षकार ारा या पक्षकार म से एक के ारा या िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त ारा, िजसके बारे म न्यायालय को
समाधानपर्द रूप म सािबत कर िदया गया है िक वह मामले के तथ्य से पिरिचत है, उसके पाद-भाग म सत्यािपत िकया जाएगा ।
(2) सत्यापन करने वाला व्यिक्त अिभवचन के संख्यांिकत पैरा का िनदश करते हुए यह िविनिदष्ट करे गा िक कौन-सा पैरा
वह अपने िनजी ज्ञान के आधार पर सत्यािपत करता है और कौन-सा पैरा वह ऐसी जानकारी के आधार पर सत्यािपत करता है जो उसे
िमली है और िजसके बारे म उसका यह िवश्वास है िक वह सत्य है ।
(3) सत्यापन करने वाले व्यिक्त ारा वह सत्यापन हस्ताक्षिरत िकया जाएगा और उसम उस तारीख का िजसको और उस
स्थान का जहां वह हस्ताक्षिरत िकया गया था कथन िकया जाएगा ।
1
[(4) अिभवचन का सत्यापन करने वाला व्यिक्त अपने अिभवचन के समथर्न म शपथपतर् भी पर्स्तुत करे गा ।]
[15क. वािणिज्यक िववाद म अिभवचन का सत्यापन—िनयम 15 म अंिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, िकसी वािणिज्यक
2
िववाद म पर्त्येक अिभवचन इस अनुसूची के पिरिशष्ट म िविहत रीित और पर्रूप म शपथपतर् ारा सत्यािपत िकया जाएगा ।
(2) उपरोक्त उपिनयम (1) के अधीन कोई शपथपतर् कायर्वािहय के पक्षकार ारा या पक्षकार म से एक के ारा या ऐसे
पक्षकार या पक्षकार की ओर से िकसी अन्य व्यिक्त ारा, िजसके बारे म न्यायालय को समाधानपर्द रूप म सािबत कर िदया जाता है
िक वह मामले के तथ्य से पिरिचत है और ऐसे पक्षकार या पक्षकार ारा सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त है, हस्ताक्षिरत िकया जाएगा ।
(3) जहां िकसी अिभवचन म संशोधन िकया जाता है, वहां जब तक न्यायालय अन्यथा आदेश न दे, संशोधन को उपिनयम
(1) म िनिदष्ट पर्रूप और रीित से सत्यािपत िकया जाएगा ।
(4) जहां िकसी अिभवचन को उपिनयम (1) के अधीन उपबंिधत रीित से सत्यािपत नह िकया जाता है, वहां पक्षकार को
सा य के रूप म ऐसे अिभवचन पर या उसम उपविणत िवषय म से िकसी पर िनभर्र होने के िलए अनुज्ञात नह िकया जाएगा ।
(5) न्यायालय, िकसी ऐसे अिभवचन को, िजसे सत्यता के कथन अथार्त् इस अनुसूची के पिरिशष्ट म उपविणत शपथपतर् ारा
सत्यािपत नह कर िदया जाता है, काट सके गा ।]
[16. अिभवचन का काट िदया जाना—न्यायालय कायर्वािहय के िकसी भी पर्कर्म म आदेश दे सके गा िक िकसी भी
3
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 16 ारा (1-7-2002 से) अन्त:स्थािपत ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 56 ारा (1-2-1977 से) िनयम 16 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
83
िनबंधन पर, जो न्यायसंगत ह , अपने अिभवचन को पिरवितत या संशोिधत करने के िलए अनुज्ञात कर सके गा और वे सभी संशोधन
िकए जाएंगे जो दोन पक्षकार के बीच िववाद के वास्तिवक पर्श्न के अवधारण के पर्योजन के िलए आवश्यक ह :
परं तु िवचारण पर्ारं भ होने के पश्चात् संशोधन के िलए िकसी आवेदन को तब तक अनुज्ञात नह िकया जाएगा जब तक िक
न्यायालय इस िनणर्य पर न पहुंचे िक सम्यक् तत्परता बरतने पर भी वह पक्षकार, िवचारण पर्ारं भ होने से पूवर् वह िवषय नह उठा
सकता था ।
18. आदेश के पश्चात् संशोधन करने म असफल रहना—यिद कोई पक्षकार, िजसने संशोधन करने की इजाजत के िलए आदेश
पर्ाप्त कर िलया है, उस आदेश ारा उस पर्योजन के िलए पिरसीिमत समय के भीतर या यिद उसके ारा कोई समय पिरसीिमत नह
िकया गया है तो आदेश की तारीख से चौदह िदन के भीतर तदनुसार, संशोधन नह करता है तो, उसे, यथािस्थित, यथापूव क्त
पिरसीिमत समय के या ऐसे चौदह िदन के अवसान के पश्चात् संशोधन करने के िलए तब तक अनुज्ञात नह िकया जाएगा जब तक िक
न्यायालय ारा समय न बढ़ाया जाए ।]
आदेश 7
वादपतर्
1. वादपतर् म अन्तिवष्ट की जाने वाली िविशिष्टयां—वादपतर् म िनम्निलिखत िविशिष्टयां ह गी—
(क) उस न्यायालय का नाम िजसम वाद लाया गया है;
(ख) वादी का नाम, वणर्न और िनवास-स्थान;
(ग) जहां तक अिभिनिश्चत िकए जा सके , पर्ितवादी का नाम, वणर्न और िनवास-स्थान;
(घ) जहां वादी या पर्ितवादी अवयस्क या िवकृ त-िच व्यिक्त है वहां उस भाव का कथन;
(ङ) वे तथ्य िजनसे वाद-हेतुक गिठत है और वह कब पैदा हुआ;
(च) यह दिशत करने वाले तथ्य िक न्यायालय को अिधकािरता है;
(छ) वह अनुतोष िजसका वादी दावा करता है;
(ज) जहां वादी ने कोई मुजरा अनुज्ञात िकया है या अपने दावे का कोई भाग त्याग िदया है वहां ऐसी अनुज्ञात की
गई या त्यागी गई रकम; तथा
(झ) अिधकािरता के और न्यायालय-फीस के पर्योजन के िलए वाद की िवषय-वस्तु के मूल्य का ऐसा कथन उस
मामले म िकया जा सकता है ।
2. धन के वाद म—जहां वादी धन की वसूली चाहता है वहां दावा की गई ठीक रकम वादपतर् म किथत की जाएगी :
िकन्तु जहां वादी अन्त:कालीन लाभ के िलए या ऐसी रकम के िलए जो उसके और पर्ितवादी के बीच िहसाब िकए जाने पर
उसको शोध्य पाई जाए, 2 [या पर्ितवादी के कब्जे म की जंगम वस्तु के िलए या ऐसे ऋण के िलए िजनका मूल्य वह युिक्तयुक्त
तत्परता से भी पर्ाक्किलत नह कर सकता है, वाद लाता है वहां दावाकृ त रकम या मूल्य वादपतर् म लगभग मातर्ा म किथत
िकया जाएगा] ।
[2क. जहां वाद म ब्याज ईिप्सत है—(1) जहां वादी ब्याज की ईप्सा करता है, वहां वादपतर् म उपिनयम (2) और उपिनयम
3
(3) के अधीन उपविणत ब्यौरे के साथ उस पर्भाव का एक कथन अंतिवष्ट िकया जाएगा ।
(2) जहां वादी ब्याज की ईप्सा करता है, वहां वादपतर् म यह कथन िकया जाएगा िक क्या वादी िसिवल पर्िकर्या संिहता,
1908 (1908 का 5) की धारा 34 के अथार्न्तगर्त िकसी वािणिज्यक संव्यवहार के संबंध म ब्याज की ईप्सा कर रहा है और इसके
अितिरक्त, यिद वादी, ऐसा िकसी संिवदा के िनबंधन के अधीन या िकसी अिधिनयम के अधीन कर रहा है, तो उस दशा म वादपतर् म
उस अिधिनयम को िविनिदष्ट िकया जाएगा या यिद वह ऐसा िकसी अन्य आधार पर कर रहा है तो उस आधार का कथन िकया
जाएगा ।
(3) अिभवचन म िनम्निलिखत का भी कथन िकया जाएगा,—
(क) ऐसी दर, िजस पर ब्याज का दावा िकया गया है;
1
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 7 ारा (1-7-2002 से) िनयम 17 और 18 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 57 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
84
3. जहां वाद की िवषय-वस्तु स्थावर सम्पि है—जहां वाद की िवषय-वस्तु स्थावर सम्पि है वहां वादपतर् म सम्पि का
ऐसा वणर्न होगा जो उसकी पहचान कराने के िलए पयार्प्त है और उस दशा म िजसम ऐसी सम्पि की पहचान भू-व्यवस्थापन या
सवक्षण संबंधी अिभलेख म की सीमा या संख्यांक ारा की जा सकती है, वादपतर् म ऐसी सीमाएं या संख्यांक िविनिदष्ट ह गे ।
4. जब वादी पर्ितिनिध के रूप म वाद लाता है—जहां वादी पर्ितिनिध की हैिसयत म वाद लाता है वहां वादपतर् म न के वल
यह दिशत होगा िक उसका िवषय-वस्तु म वास्तिवक िव मान िहत है, वरन् यह भी दिशत होगा िक उससे सम्पृक्त वाद के संिस्थत
करने के िलए उसको समथर् बनाने के िलए आवश्यक कदम (यिद कोई हो) वह उठा चुका है ।
5. पर्ितवादी के िहत और दाियत्व का दिशत िकया जाना—वादपतर् म यह दिशत िकया जाएगा िक पर्ितवादी िवषय-वस्तु म
िहत रखता है या रखने का दावा करता है और वह वादी की मांग का उ र देने के िलए अपेिक्षत िकए जाने का दायी है ।
6. पिरसीमा िविध से छू ट के आधार—जहां वाद पिरसीमा िविध ारा िविहत अविध के अवसान के पश्चात् संिस्थत िकया
जाता है वहां वादपतर् म वह आधार दिशत िकया जाएगा िजस पर ऐसी िविध से छू ट पाने का दावा िकया गया है :
[परन्तु न्यायालय वादी को वाद म न िदए गए िकसी आधार पर, यिद ऐसा आधार वाद म उपविणत आधार से असंगत नह
1
न्यायालय म उपिस्थत िकए जाने के िलए लौटा िदया जाएगा िजसम वाद संिस्थत िकया जाना चािहए था ।
[स्पष्टीकरण—शंका को दूर करने के िलए इसके ारा यह घोिषत िकया जाता है िक अपील या पुनरीक्षण न्यायालय, वाद
5
म पािरत िडकर्ी को अपास्त करने के पश्चात्, इस उपिनयम के अधीन वादपतर् के लौटाए जाने का िनदेश दे सके गा ।]
(2) वादपतर् के लौटाए जाने पर पर्िकर्या—न्यायाधीश वादपतर् के लौटाए जाने पर, उस पर उसके उपिस्थत िकए जाने की और
लौआए जाने की तारीख, उपिस्थत करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटाए जाने के कारण का संिक्षप्त कथन पृष्ठांिकत करे गा ।
[10क. जहां वादपतर् उसके लौटाए जाने के पश्चात् फाइल िकया जाना है वहां न्यायालय म उपसंजाित के िलए तारीख िनयत
5
करने की न्यायालय की शिक्त—(1) जहां िकसी वाद म पर्ितवादी के उपसंजात होने के पश्चात् न्यायालय की यह राय है िक वादपतर्
लौटाया जाना चािहए वहां वह ऐसा करने के पूवर् वादी को अपने िविनश्चय की सूचना देगा ।
(2) जहां वादी को उपिनयम (1) के अधीन सूचना दी गई हो वहां वादी न्यायालय से—
(क) उस न्यायालय को िविनिदष्ट करते हुए िजसम वह वादपतर् के लौटाए जाने के पश्चात् पर्स्तुत करने की
पर्स्थापना करता है,
(ख) यह पर्ाथर्ना करते हुए िक न्यायालय उक्त न्यायालय म पक्षकार की उपसंजाित के िलए तारीख िनयत
करे , और
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 57 ारा (1-2-1977 से) जोड़ा गया ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 8 ारा (1-7-2002 से) िनयम 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
यह िनयम छोटा नागपुर टेनेन्सी ऐक्ट, 1908 ( 1908 का बंगाल अिधिनयम सं० 6) की धारा 265 के अधीन भाटक की वसूली के िलए वाद को लागू िकया गया है ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 57 ारा (1-7-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 57 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
85
(ग) यह अनुरोध करते हुए िक इस पर्कार िनयत तारीख की सूचना उसे और पर्ितवादी को दी जाए, आवेदन
कर सके गा ।
(3) जहां वादी ारा उपिनयम (2) के अधीन आवेदन िकया जाता है वहां न्यायालय वादपतर् लौटाए जाने के पूवर् और इस बात
के होते हुए भी िक उसके ारा वादपतर् के लौटाए जाने का आदेश इस आधार पर िकया गया था िक उसे वाद का िवचारण करने की
अिधकािरता नह थी,—
(क) उस न्यायालय म िजसम वादपतर् के उपिस्थत िकए जाने की पर्स्थापना है, पक्षकार की उपसंजाित के िलए
तारीख िनयत करे गा, और
(ख) उपसंजाित की ऐसी तारीख की सूचना वादी और पर्ितवादी को देगा ।
(4) जहां उपिनयम (3) के अधीन उपसंजाित की तारीख की सूचना दी जाती है वहां—
(क) उस न्यायालय के िलए िजसम वादपतर् उसके लौटाए जाने के पश्चात् उपिस्थत िकया जाता है, तब तक यह
आवश्यक नह होगा िक वह बाद म उपसंजाित के िलए समन पर्ितवादी पर तामील करे , जब तक िक वह न्यायालय,
अिभिलिखत िकए जाने वाले कारण से, अन्यथा िनदेश न दे, और
(ख) उक्त सूचना, उस न्यायालय म िजसम वादपतर् को लौटाने वाले न्यायालय ारा इस पर्कार िनयत तारीख को
वादपतर् उपिस्थत िकया जाता है, पर्ितवादी की उपसंजाित के िलए समन समझी जाएगी ।
(5) जहां न्यायालय वादी ारा उपिनयम (2) के अधीन िकए गए आवेदन को मंजरू कर लेता है वहां वादी वादपतर् लौटाए
जाने के आदेश के िवरु अपील करने का हकदार नह होगा ।
10ख. समुिचत न्यायालय को वाद अन्तिरत करने की अपील न्यायालय की शिक्त—(1) जहां वादपतर् के लौटाए जाने के
आदेश के िवरु अपील म अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय ऐसे आदेश की पुिष्ट करता है वहां अपील न्यायालय, यिद वादी
आवेदन ारा ऐसी वांछा करे तो वादपतर् लौटाते समय वादी को यह िनदेश दे सके गा िक वह वादपतर् को उस न्यायालय म िजसम वाद
संिस्थत िकया जाना चािहए था (चाहे ऐसा न्यायालय उस राज्य के भीतर हो या बाहर िजसम अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय
िस्थत है), पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, फाइल करे और उस न्यायालय म िजसम वादपतर्
फाइल िकए जाने का िनदेश िदया जाता है, पक्षकार की उपसंजाित के िलए तारीख िनयत कर सके गा और जब इस पर्कार तारीख िनयत
कर दी जाती है तब उस न्यायालय के िलए िजसम वादपतर् फाइल िकया गया है, वाद म उपसंजाित के िलए समन पर्ितवादी पर तामील
करना तब तक आवश्यक नह होगा जब तक िक वह न्यायालय िजसम वादपतर् फाइल िकया गया है, अिभिलिखत िकए जाने वाले
कारण से, अन्यथा िनदेश न दे ।
(2) न्यायालय ारा उपिनयम (1) के अधीन िकए गए िकसी िनदेश से पक्षकार के उन अिधकार पर पर्ितकू ल पर्भाव नह
पडे़गा जो उस न्यायालय की िजसम वादपतर् फाइल िकया गया है वाद का िवचारण करने की अिधकािरता को पर्श्नगत करने के
संबंध म ह ।]
11. वादपतर् का नामंजरू िकया जाना—वादपतर् िनम्निलिखत दशा म नामंजरू कर िदया जाएगा—
(क) जहां वह वाद-हेतुक पर्कट नह करता है;
(ख) जहां दावाकृ त अनुतोष का मूल्यांकन कम िकया गया है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के िलए न्यायालय
ारा अपेिक्षत िकए जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने िनयत िकया है, ऐसा करने म असफल रहता है;
(ग) जहां दावाकृ त अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है िकन्तु वादपतर् अपयार्प्त स्टाम्प-पतर् पर िलखा गया है और वादी
अपेिक्षत स्टाम्प-पतर् के देने के िलए न्यायालय ारा अपेिक्षत िकए जाने पर उस समय के भीतर, जो न्यायालय ने िनयत िकया
है, ऐसा करने म असफल रहता है;
(घ) जहां वादपतर् म के कथन से यह पर्तीत होता है िक वाद िकसी िविध ारा विजत है;
1
[(ङ) जहां यह दो पर्ितय म फाइल नह िकया जाता है;]
2
[(च) जहां वादी िनयम 9 के उपबंध का अनुपालन करने म असफल रहता है :]
3 [परन्तु
मूल्यांकन की शुि के िलए या अपेिक्षत स्टाम्प-पतर् के देने के िलए न्यायालय ारा िनयत समय तब तक नह बढ़ाया
जाएगा जब तक िक न्यायालय का, अिभिलिखत िकए जाने वाले कारण से यह समाधान नह हो जाता है िक वादी िकसी असाधारण
कारण से, न्यायालय ारा िनयत समय के भीतर, यथािस्थित, मूल्यांकन की शुि करने या अपेिक्षत स्टाम्प-पतर् के देने से रोक िदया गया
था और ऐसे समय के बढ़ाने से इं कार िकए जाने से वादी के पर्ित गंभीर अन्याय होगा ।]
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 17 ारा (1-7-2002 से) अन्त:स्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 8 ारा (1-7-2002 से) उपखंड (च) और (छ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 57 ारा (1-2-1977 से) जोड़ा गया ।
86
12. वादपतर् के नामंजरू िकए जाने पर पर्िकर्या—जहां वादपतर् नामंजूर िकया जाता है वहां न्यायालय इस भाव का आदेश
कारण सिहत अिभलिखत करे गा ।
13. जहां वादपतर् की नामंजरू ी से नए वादपतर् का उपिस्थत िकया जाना पर्वािरत नह होता—इसम इसके पूवर् विणत आधार
म से िकसी पर भी वादपतर् के नामंजूर िकए जाने पर के वल नामंजूरी के ही कारण वादी उसी वाद-हेतुक के बारे म नया वादपतर्
उपिस्थत करने से पर्वािरत नह हो जाएगा ।
वे दस्तावेज िजन पर वादपतर् म िनभर्र िकया गया है
[14. उन दस्तावेज की पर्स्तुित िजन पर वादी वाद लाता है या िनभर्र करता है—(1) जहां वादी िकसी दस्तावेज के आधार
1
पर वाद लाता है या अपने दावे के समथर्न म अपने कब्जे या शिक्त म की दस्तावेज पर िनभर्र करता है वहां वह उन दस्तावेज को एक
सूची म पर्िवष्ट करे गा और उसके ारा वादपतर् उपिस्थत िकए जाने के समय वह उसे न्यायालय म पेश करे गा और उसी समय दस्तावेज
और उसकी पर्ित को वादपतर् के साथ फाइल िकए जाने के िलए पिरद करे गा ।
(2) जहां ऐसी कोई दस्तावेज वादी के कब्जे या शिक्त म नह है वहां वह जहां तक संभव हो सके यह कथन करे गा िक वह
िकसके कब्जे म या शिक्त म है ।
[(3) ऐसा दस्तावेज िजसे वादी ारा न्यायालय म तब पर्स्तुत िकया जाना चािहए जब वादपतर् पर्स्तुत िकया जाता है, या
2
वादपतर् म जोड़ी जाने वाली या उपाब की जाने वाली सूची म पर्िवष्ट िकया जाना है, िकतु तदनुसार, पर्स्तुत या पर्िवष्ट नह िकया
जाता है तो उसे न्यायालय की अनुमित के िबना वाद की सुनवाई के समय उसकी ओर से सा य म गर्हण नह िकया जाएगा ।
(4) इस िनयम की कोई बात ऐसी दस्तावेज को लागू नह होगी जो वादी के सािक्षय की पर्ितपरीक्षा के िलए पेश िकए गए
ह या िकसी साक्षी को के वल उसकी स्मृित को ताजा करने के िलए िदए गए ह ।]
15. [दस्तावेज वादी के कब्जे या शिक्त म न होने की दशा म कथन]—1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 17 ारा (1-7-
2002 से) लोप िकया गया ।
16. खोई हुई परकर्ाम्य िलखत के आधार पर वाद—जहां वाद परकर्ाम्य िलखत पर आधािरत है और यह सािबत कर िदया
जाता है िक िलखत खो गई है और वादी ऐसी िलखत पर आधािरत िकसी अन्य व्यिक्त के दाव के िलए क्षितपूित, न्यायालय को
समाधानपर्द रूप म कर देता है वहां न्यायालय ऐसी िडकर्ी पािरत कर सके गा जो वह पािरत करता यिद वादी ने उस समय जब वादपतर्
उपिस्थत िकया गया था, उस िलखत को पेश िकया होता और उस िलखत की पर्ित वादपतर् के साथ फाइल िकए जाने के िलए उसी समय
पिरद कर दी होती ।
17. दुकान का बही खाता पेश करना—(1) वहां तक के िसवाय जहां तक िक बककार बही सा य अिधिनयम, 1891 (1891
का 18) ारा अन्यथा उपबिन्धत है, उस दशा म िजसम िक वह दस्तावेज िजसके आधार पर वादी वाद लाता है, दुकान के बही खाते या
अन्य लेखे म की जो उसके अपने कब्जे या शिक्त म है, पर्िविष्ट है, वादी उस पर्िविष्ट की िजस पर वह िनभर्र करता है, पर्ित के सिहत उस
बही खाते या लेखे को वादपतर् के फाइल िकए जाने के समय पेश करे गा ।
(2) मूल पर्िविष्ट का िचन्हांिकत िकया जाना और लौटाया जाना—न्यायालय या ऐसा अिधकारी िजसे वह इस िनिम
िनयुक्त करे तत्क्षण दस्तावेज को उसकी पहचान के पर्योजन के िलए िचन्हांिकत करे गा और पर्ित की परीक्षा और मूल से तुलना करने के
पश्चात् यिद वह सही पाई जाए तो यह पर्मािणत करे गा िक वह ऐसी है और बही खाता वादी को लौटाएगा और पर्ित को फाइल
कराएगा ।
18. [वादपतर् फाइल करते समय न पेश की गई दस्तावेज की अगर्ा ता ।]—2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 8 ारा
(1-7-2002 से) लोप िकया गया ।
आदेश 8
3
[िलिखत कथन, मुजरा और पर्ितदावा]
िलिखत कथन—पर्ितवादी, उस पर समन तामील िकए जाने की तारीख से तीस िदन के भीतर, अपनी पर्ितरक्षा का
4 [1.
अन्य िदन को िलिखत कथन फाइल करने के िलए अनुज्ञात िकया जाएगा जो न्यायालय ारा, उसके कारण को लेखब करके और ऐसे
खच का, जो न्यायालय ठीक समझे, संदाय करने पर िविनिदष्ट िकया जाए, िकतु जो समन के तामील की तारीख से एक सौ बीस िदन
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 17 ारा (1-7-2002 से) िनयम 14 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 8 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 58 ारा (1-7-1977 से) पूवर्वत शीषर् के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 9 ारा (1-7-2002 से) िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
87
के बाद का नह होगा और समन की तामील की तारीख से एक सौ बीस िदन की समािप्त पर पर्ितवादी िलिखत कथन फाइल करने का
अिधकार खो देगा और न्यायालय िलिखत कथन अिभलेख पर लेने के िलए अनुज्ञात नह करे गा ।]
1
[1क. पर्ितवादी को वे दस्तावेज पेश करने का कतर्व्य िजन पर उसके ारा अनुतोष का दावा िकया गया है या िनभर्र िकया
गया है—(1) जहां पर्ितवादी अपनी पर्ितरक्षा का आधार िकसी ऐसे दस्तावेज को बनाता है या मुजरा या पर्ितदावा के िलए अपनी
पर्ितरक्षा या दावे का समथर्न िकसी ऐसे दस्तावेज पर िनभर्र करता है जो उसके कब्जे या शिक्त म है, वहां वह ऐसे दस्तावेज को सूची म
पर्िवष्ट करे गा और उसे वह उसके ारा िलिखत कथन उपस्थािपत िकए जाने के समय न्यायालय म पेश करे गा उसी समय दस्तावेज और
उसकी एक पर्ित वह िलिखत कथन के साथ फाइल िकए जाने के िलए पिरद करे गा ।
(2) जहां ऐसी कोई दस्तावेज पर्ितवादी के कब्जे या शिक्त म नह है, वहां वह, जहां तक संभव हो सके यह कथन करे गा िक
वह िकसके कब्जे म या शिक्त म है ।
2
[(3) ऐसा दस्तावेज िजसे इस िनयम के अधीन पर्ितवादी ारा न्यायालय म पर्स्तुत िकया जाना चािहए, िकन्तु इस
पर्कार पर्स्तुत नह िकया जाता है, न्यायालय की इजाजत के िबना, वाद की सुनवाई के समय उसकी ओर से सा य म गर्हण नह
िकया जाएगा ।]
(4) इस िनयम की कोई बात ऐसे दस्तावेज को लागू नह ह गी जो—
(क) वादी के सािक्षय की पर्ितपरीक्षा के िलए पेश िकए जाएं; या
(ख) साक्षी को के वल अपनी स्मृित ताजा करने के िलए स पे जाएं ।]
2. नए तथ्य का िवशेष रूप से अिभवचन करना होगा—पर्ितवादी को अपने अिभवचन ारा वे सब बात उठानी ह गी िजनसे
यह दिशत होता है िक वाद या िविध की दृिष्ट से वह संव्यवहार शून्य है या शून्यकरणीय है और पर्ितरक्षा के सब ऐसे आधार उठाने ह गे
जो ऐसे ह िक यिद वे न उठाए गए तो यह संभाव्य है िक उनके सहसा सामने आने से िवरोधी पक्षकार चिकत हो जाएगा या िजनसे तथ्य
के ऐसे िववा क पैदा हो जाएंगे जो वादपतर् से पैदा नह होते ह । उदाहरणाथर् कपट, पिरसीमा, िनमुर्िक्त, संदाय, पालन या अवैधता
दिशत करने वाले तथ्य ।
3. पर्त्याख्यान िविनिदष्टत: होगा—पर्ितवादी के िलए यह पयार्प्त नह होगा िक वह अपने िलिखत कथन म उन आधार का
साधारणत: पर्त्याख्यान कर दे जो वादी ारा अिभकिथत ह, िकन्तु पर्ितवादी के िलए यह आवश्यक है िक वह नुकसानी के िसवाय ऐसे
तथ्य संबध
ं ी हर एक अिभकथन का िविनिदष्टत: िववेचन करे िजसकी सत्यता वह स्वीकार नह करता है ।
3
[3क. उच्च न्यायालय के वािणिज्यक पर्भाग का वािणिज्यक न्यायालय के समक्ष वाद म पर्ितवादी ारा
पर्त्याख्यान—(1) इस िनयम के उपिनयम (2), उपिनयम (3), उपिनयम (4) और उपिनयम (5) म उपबंिधत रीित से पर्त्याख्यान िकया
जाएगा ।
(2) पर्ितवादी अपने िलिखत कथन म यह कथन करे गा िक वादपतर् की िविशिष्टय म िकन अिभकथन का वह पर्त्याख्यान
करता है, िकन अिभकथन को वह स्वीकार करने या उनका पर्त्याख्यान करने म असमथर् है िकतु िजनको वह वादी से सािबत करने की
अपेक्षा करता है और िकन अिभकथन को वह स्वीकार करता है ।
(3) जहां पर्ितवादी वादपतर् म के तथ्य के िकसी अिभकथन का पर्त्याख्यान करता है, वहां उसे ऐसा करने के अपने कारण का
कथन करना होगा और यिद उसका आशय वादी ारा जो घटना का िववरण िदया गया है, उससे िभन्न िववरण पेश करने का है तो
उसे अपने स्वयं के िववरण का कथन करना होगा ।
(4) यिद पर्ितवादी न्यायालय की अिधकािरता के पर्ित िववाद करता है तो उसे ऐसा करने के कारण का कथन करना होगा
और यिद वह समथर् है तो इस बारे म उसे अपना स्वयं का कथन करना होगा िक िकस न्यायालय की अिधकािरता होनी चािहए ।
(5) यिद पर्ितवादी वादी के वाद के मूल्यांकन के पर्ित िववाद करता है तो उसे ऐसा करने के कारण का कथन करना होगा और
यिद वह समथर् है तो उसे वाद के मूल्य के बारे म अपना स्वयं का कथन करना होगा ।]
4. वाग्छलपूणर् पर्त्याख्यान—जहां पर्ितवादी वाद म के िकसी तथ्य के अिभकथन का पर्त्याख्यान करता है वहां उसे वैसा
वाग्छलपूणर् तौर पर नह करना चािहए, वरन् सार की बात का उ र देना चािहए । उदाहरणाथर्, यिद यह अिभकिथत िकया जाता है िक
उसने एक िनिश्चत धन की रािश पर्ाप्त की तो यह पर्त्याख्यान िक उसने वह िविशष्ट रािश पर्ाप्त नह की पयार्प्त नह होगा वरन् उसे
यह चािहए िक वह पर्त्याख्यान करे िक उसने वह रािश या उसका कोई भाग पर्ाप्त नह िकया या िफर यह उपविणत करना चािहए िक
उसने िकतनी रािश पर्ाप्त की और यिद अिभकथन िविभन्न पिरिस्थितय सिहत िकया गया है तो उन पिरिस्थितय सिहत उस
अिभकथन का पर्त्याख्यान कर देना पयार्प्त नह होगा ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 18 ारा (1-7-2002 से) अंत:स्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 9 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
88
5. िविनिदष्टत: पर्त्याख्यान— 1 [(1)] यिद वादपतर् म के तथ्य संबंधी हर अिभकथन का िविनिदष्टत: यह आवश्यक िववक्षा से
पर्त्याख्यान नह िकया जाता है या पर्ितवादी के अिभवचन म यह कथन िक वह स्वीकार नह िकया जाता तो जहां तक िनय ग्यताधीन
व्यिक्त को छोड़कर िकसी अन्य व्यिक्त का सम्बन्ध है वह स्वीकार कर िलया गया माना जाएगा :
परन्तु ऐसे स्वीकार िकए गए िकसी भी तथ्य के ऐसी स्वीकृ ित के अलावा अन्य पर्कार से सािबत िकए जाने की अपेक्षा
न्यायालय स्विववेकानुसार कर सके गा :
[परं तु यह और िक वादपतर् म तथ्य के पर्त्येक अिभकथन को, यिद इस आदेश के िनयम 3क के अधीन उपबंिधत रीित से
2
उसका पर्त्याख्यान नह िकया जाता है, तो िनय ग्यता के अधीन के िकसी व्यिक्त के िवरु अिभकथन होने के िसवाय, स्वीकार िकया
जाने वाला माना जाएगा ।]
[(2) जहां पर्ितवादी ने अिभवचन फाइल नह िकया है वहां न्यायालय के िलए वादपतर् म अन्तिवष्ट तथ्य के आधार पर
3
िनणर्य सुनाना, जहां तक िनय ग्यताधीन व्यिक्त को छोड़कर िकसी अन्य व्यिक्त का सम्बन्ध है, िविधपूणर् होगा, िकन्तु न्यायालय िकसी
ऐसे तथ्य को सािबत िकए जाने की अपेक्षा स्विववेकानुसार कर सके गा ।
(3) न्यायालय उपिनयम (1) के परन्तुक के अधीन या उपिनयम (2) के अधीन अपने िववेकािधकार का पर्योग करने म इस
तथ्य पर सम्यक् ध्यान देगा िक क्या वादी िकसी प्लीडर को िनयुक्त कर सकता था या उसने िकसी प्लीडर को िनयुक्त िकया है ।
(4) इस िनयम के अधीन जब कभी िनणर्य सुनाया जाता है तब ऐसे िनणर्य के अनुसार िडकर्ी तैयार की जाएगी और ऐसी िडकर्ी
पर वही तारीख दी जाएगी िजस तारीख को िनणर्य सुनाया गया था ।]
6. मुजरा की िविशिष्टयां िलिखत कथन म दी जाएंगी—(1) जहां तक धन की वसूली के वाद म पर्ितवादी न्यायालय की
अिधकािरता की धन-संबंधी सीमा से अनिधक धन की कोई अिभिनिश्चत रािश जो वह वादी से वैध रूप से वसूल कर सकता है वादी
की मांग के िवरु मुजरा करने का दावा करता है और दोन पक्षकार वही हैिसयत रखते ह जो वादी के वाद म उनकी है वहां पर्ितवादी
मुजरा के िलए चाही गई ऋण की िविशिष्टयां देते हुए िलिखत कथन वाद की पहली सुनवाई पर उपिस्थत कर सके गा, िकन्तु उसके
पश्चात् तब तक उपिस्थत नह कर सके गा जब तक िक न्यायालय ारा उसे अनुज्ञा न दे दी गई हो ।
मुजरा का पर्भाव—(2) िलिखत कथन का पर्भाव पर्तीपवाद म के वादपतर् के पर्भाव के समान ही होगा िजसे न्यायालय मूल
दावे और मुजरा दोन के सम्बन्ध म अिन्तम िनणर्य सुनाने के िलए समथर् हो जाए, िकन्तु िडकर्ीत रकम पर प्लीडर को िडकर्ी के अधीन
देय खच के बारे म उसके धारणािधकार पर इससे पर्भाव नह पड़ेगा ।
(3) पर्ितवादी ारा िदए गए िलिखत कथन सम्बन्धी िनयम मुजरा के दावे के उ र म िदए गए िलिखत कथन को भी लागू
होते ह ।
दृष्टांत
(क) ख को क 2,000 रुपए वसीयत करता है और ग को अपना िनष्पादक और अविशष्टीय वसीयतदार िनयुक्त करता है । ख
मर जाता है और ख की चीजबस्त का पर्शासन पतर् घ पर्ाप्त करता है । घ के पर्ितभू के रूप म ग 1,000 रुपए देता है । तब ग पर वसीयत
के िलए घ वाद लाता है । ग वसीयत के िवरु , 1,000 रुपए के ऋण का मुजरा नह कर सकता क्य िक वसीयत के सम्बन्ध म न तो ग
और न घ की वैसी हैिसयत है जैसी उनकी 1,000 रुपए के संदाय के सम्बन्ध म है ।
(ख) क िनवर्सीयती मर जाता है । उस समय वह ख के पर्ित ऋणी है । क की चीजबस्त का पर्शासन पतर् ग पर्ाप्त करता है और
ख चीजबस्त का भाग ग से मोल लेता है । ग के ारा ख के िवरु लाए गए कर्य धन के वाद म ख मूल्य के मुकाबले म ऋण का मुजरा
नह कर सकता है क्य िक ग की दो हैिसयत ह, एक तो ख के पर्ित िवकर्ेता की हैिसयत िजससे वह ख पर वाद लाता है और दूसरी क के
पर्ितिनिध की हैिसयत ।
(ग) ख पर िविनमय-पतर् के आधार पर क वाद लाता है । ख अिभकथन करता है िक क ने ख के माल का बीमा कराने म सदोष
उपेक्षा की है और क उसे पर्ितकर देने के िलए दायी है, िजसकी मुजराई का दावा ख करता है यह रकम अिभिनिश्चत न होने से मुजरा
नह की जा सकती ।
(घ) क 500 रुपए के िविनमय-पतर् के आधार पर ख पर वाद लाता है । क के िवरु 1,000 रुपए के िलए िनणर्य ख के पास है ।
ये दोन दावे िनिश्चत धन-सम्बन्धी मांग होने से मुजरा िकए जा सकगे ।
(ङ) क अितचार की बाबत पर्ितकर के िलए ख पर वाद लाता है । ख के पास क का 1,000 रुपए का वचन-पतर् है और ख यह
दावा करता है िक यह रकम ऐसी िकसी रािश से, जो वाद म क को अिधिनण त की जाए, मुजरा कर दी जाए । ख ऐसा कर सके गा,
क्य िक जैसे ही क के हक म अिधिनणर्य हो जाता है वैसे ही दोन रािशयां िनिश्चत धन-सम्बन्धी मांग हो जाती ह ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 58 ारा (1-2-1977 से) िनयम 5 को उपिनयम (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 58 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
89
(च) क और ख 1,000 रुपए के िलए ग के िवरु वाद लाते ह । ग उस ऋण को मुजरा नह कर सकता जो के वल क ारा उसे
शोध्य है ।
(छ) ख और ग के िवरु 1,000 रुपए के िलए क वाद लाता है । ख अपने उस ऋण का मुजरा नह कर सकता जो अके ले उसे
ही क से शोध्य है ।
(ज) क को ख और ग की भागीदारी फमर् को 1,000 रुपए देने ह । ग को उ रजीवी छोड़कर ख मर जाता है । ग पर उसकी
पृथक् हैिसयत से 1,500 रुपए के एक ऋण के िलए क दावा लाता है । ग 1,000 रुपए के ऋण का मुजरा कर सके गा ।
[6क. पर्ितवादी ारा पर्ितदावा—(1) वाद म पर्ितवादी िनयम 6 के अधीन मुजरा के अिभवचन के अपने अिधकार के
1
अितिरक्त वादी के दावे के िवरु पर्ितदावे के रूप म िकसी ऐसे अिधकार या दावे को, जो वादी के िवरु पर्ितवादी को, वाद फाइल
िकए जाने के पूवर् या पश्चात् िकन्तु पर्ितवादी ारा अपनी पर्ितरक्षा पिरद िकए जाने के पूवर् या अपनी पर्ितरक्षा पिरद िकए जाने के
िलए पिरसीिमत समय का अवसान हो जाने के पूवर्, िकसी वाद-हेतुक के बारे म पर्ोद्भूत हुआ हो, उठा सके गा चाहे ऐसा पर्ितदावा
नुकसानी के दावे के रूप म हो या न हो :
परन्तु ऐसा पर्ितदावा न्यायालय की अिधकािरता की धन-संबंधी सीमा से अिधक नह होगा ।
(2) ऐसे पर्ितदावे का पर्भाव पर्ितवाद के पर्भाव के समान ही होगा िजससे न्यायालय एक ही वाद म मूल दावे और पर्ितदावे
दोन के सम्बन्ध म अिन्तम िनणर्य सुनाने के िलए समथर् हो जाए ।
(3) वादी को इस बात की स्वतन्तर्ता होगी िक वह पर्ितवादी के पर्ितदावे के उ र म िलिखत कथन ऐसी अविध के भीतर जो
न्यायालय ारा िनयत की जाए, फाइल करे ।
(4) पर्ितदावे को वादपतर् के रूप म माना जाएगा और उसे वही िनयम लागू ह गे जो वादपतर् को लागू होते ह ।
6ख. पर्ितदावे का कथन िकया जाना—जहां कोई पर्ितवादी, पर्ितदावे के अिधकार का समथर्न करने वाले िकसी आधार पर
िनभर्र करता है वहां वह अपने िलिखत कथन म यह िविनिदष्टत: कथन करे गा िक वह ऐसा पर्ितदावे के रूप म कर रहा है ।
6ग. पर्ितदावे का अपवजर्न—जहां पर्ितवादी कोई पर्ितदावा उठाता है और वादी यह दलील देता है िक उसके ारा उठाए गए
दावे का िनपटारा पर्ितदावे के रूप म नह वरन् स्वतंतर् वाद म िकया जाना चािहए, वहां वादी पर्ितदावे के सम्बन्ध म िववा क के तय
िकए जाने के पूवर् िकसी भी समय न्यायालय से इस आदेश के िलए आवेदन कर सके गा िक ऐसे पर्ितदावे का अपवजर्न िकया जाए और
न्यायालय ऐसे आवेदन की सुनवाई करने पर ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
6घ. वाद के बन्द कर िदए जाने का पर्भाव—यिद िकसी ऐसे मामले म िजसम पर्ितवादी कोई पर्ितदावा उठाता है, वादी का
वाद रोक िदया जाता है, बन्द या खािरज कर िदया जाता है तो ऐसा होने पर भी पर्ितदावे पर कायर्वाही की जा सके गी ।
6ङ. पर्ितदावे का उ र देने म वादी ारा व्यितकर्म—यिद वादी पर्ितवादी ारा िकए गए पर्ितदावे का उ र पर्स्तुत करने म
व्यितकर्म करता है तो न्यायालय वादी के िवरु उस पर्ितदावे के सम्बन्ध म जो उसके िवरु िकया गया है, िनणर्य सुना सके गा या
पर्ितदावे के सम्बन्ध म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
6च. जहां पर्ितदावा सफल होता है वहां पर्ितवादी को अनुतोष—जहां िकसी वाद म वादी के दावे के िवरु पर्ितरक्षा के रूप म
मुजरा या पर्ितदावा िस कर िदया जाता है और कोई ऐसा अितशेष पाया जाता है जो, यथािस्थित, वादी या पर्ितवादी को शोध्य है
वहां न्यायालय ऐसे पक्षकार के पक्ष म जो ऐसे अितशेष के िलए हकदार हो, िनणर्य दे सके गा ।
6छ. िलिखत कथन संबध
ं ी िनयम का लागू होना—पर्ितवादी ारा िदए गए िलिखत कथन से सम्बिन्धत िनयम पर्ितदावे के
उ र म फाइल िकए गए िलिखत कथन को भी लागू ह गे ।
7. पृथक् आधार पर आधािरत पर्ितरक्षा या मुजरा—जहां पर्ितवादी पृथक् और सुिभन्न तथ्य पर आधािरत पर्ितरक्षा के या
मुजरा के 1[या पर्ितदावे के ] कई सुिभन्न आधार पर िनभर्र करता है वहां उनका कथन जहां तक हो सके , पृथक् त: और सुिभन्नत:
िकया जाएगा ।
8. पर्ितरक्षा का नया आधार—पर्ितरक्षा का कोई भी ऐसा आधार जो वाद के संिस्थत िकए जाने के या मुजरा का दावा करने
वाले िलिखत कथन 1[या पर्ितदावे के ] के उपिस्थत िकए जाने के पश्चात् पैदा हुआ है, यथािस्थित, पर्ितवादी या वादी ारा अपने
िलिखत कथन म उठाया जा सके गा ।
8क. [पर्ितवादी का उन दस्तावेज को पेश करने का कतर्व्य िजनके आधार पर उनसे अनुतोष का दावा िकया है]—1999 के
अिधिनयम सं० 46 की धारा 18 ारा (1-7-2002 से) लोप िकया गया ।
[9. पश्चात्वत अिभवचन—पर्ितवादी के िलिखत कथन के पश्चात् कोई भी अिभवचन, जो मुजरा के या पर्ितदावे के िवरु
2
पर्ितरक्षा से िभन्न हो, न्यायालय की इजाजत से ही और ऐसे िनबंधन पर, जो न्यायालय ठीक समझे, उपिस्थत िकया जाएगा, अन्यथा
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 58 ारा (1-2-1977) से अन्त:स्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 9 ारा (1-7-2002 से) िनयम 9 और 10 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
90
नह , िकन्तु न्यायालय, पक्षकार म िकसी से भी िलिखत कथन या अितिरक्त िलिखत कथन िकसी भी समय अपेिक्षत कर सके गा और
उसे उपिस्थत करने के िलए तीस िदन से अनिधक का समय िनयत कर सके गा ।
10. जब न्यायालय ारा अपेिक्षत िलिखत कथन को उपिस्थत करने म पक्षकार असफल रहता है तब पर्िकर्या—जहां ऐसा कोई
पक्षकार, िजससे िनयम 1 या िनयम 9 के अधीन िलिखत कथन अपेिक्षत है, उसे, न्यायालय ारा, यथािस्थित, अनुज्ञात या िनयत समय
के भीतर उपिस्थत करने म असफल रहता है वहां न्यायालय, उसके िवरु िनणर्य सुनाएगा या वाद के संबंध म ऐसा आदेश करे गा जो
वह ठीक समझे और ऐसा िनणर्य सुनाए जाने के पश्चात् िडकर्ी तैयार की जाएगी ।]
[परं तु यह और िक कोई न्यायालय, िलिखत कथन फाइल करने के िलए इस आदेश के िनयम 1 के अधीन उपबंिधत समय
1
जाना—जहां ऐसे िनयत िदन को यह पाया जाए िक पर्ितवादी पर समन की तामील इसिलए नह हुई है िक न्यायालय फीस या डाक
महसूल, यिद कोई हो, जो ऐसी तामील के िलए पर्भायर् है, देने म या आदेश 7 के िनयम 9 ारा अपेिक्षत वाद-पतर् की पर्ितयां उपिस्थत
करने म वादी असफल रहा है वहां न्यायालय यह आदेश कर सके गा िक वाद खािरज कर िदया जाए :
परं तु ऐसी असफलता के होते हुए भी, यिद पर्ितवादी उस िदन, जो उसके उपसंजात होने और उ र देने के िलए िनयत है, स्वयं
या जब वह अिभकतार् के ारा उपसंजात होने के िलए अनुज्ञात है, अिभकतार् के ारा उपसंजात हो जाता है तो ऐसा कोई आदेश नह
िकया जाएगा ।]
3. जहां दोन म से कोई भी पक्षकार उपसंजात नह होता है वहां वाद का खािरज िकया जाना—जहां वाद की सुनवाई के
िलए पुकार होने पर दोन म से कोई भी पक्षकार उपसंजात नह होता है वहां न्यायालय यह आदेश दे सके गा िक वाद खािरज कर
िदया जाए ।
4. वादी नया वाद ला सके गा या न्यायालय वाद को फाइल पर पर्त्यावितत कर सके गा—जहां वाद िनयम 2 या िनयम 3 के
अधीन खािरज कर िदया जाता है वहां वादी नया वाद (पिरसीमा िविध के अधीन रहते हुए) ला सके गा या वह उस खािरजी को अपास्त
कराने के आदेश के िलए आवेदन कर सके गा और यिद वह न्यायालय का समाधान कर देता है िक 3 [यथािस्थित, िनयम 2 म िनिदष्ट
असफलता के िलए] या उसकी अपनी अनुपसंजाित के िलए पयार्प्त हेतुक था तो न्यायालय खािरजी को अपास्त करने के िलए आदेश
करे गा और वाद म आगे कायर्वाही करने के िलए िदन िनयत करे गा ।
5. जहां वादी, समन तामील के िबना लौटाने के पश्चात् एक मास तक नए समन के िलए आवेदन करने म असफल रहता है
वहां वाद का खािरज िकया जाना— 4 [(1) जहां समन पर्ितवादी या कई पर्ितवािदय म से एक के नाम िनकाले जाने और तामील के
िबना लौटाए जाने के पश्चात् उस तारीख से 5 [सात िदन] की अविध तक, िजसकी न्यायालय को उस अिधकारी ने िववरणी दी है, जो
तामील करने वाले अिधकािरय ारा दी जाने वाली िववरिणय को न्यायालय को मामूली तौर से पर्मािणत करता है, वादी न्यायालय
से नए समन िनकालने के िलए आवेदन करने म असफल रहता है वहां न्यायालय यह आदेश करे गा िक वाद ऐसे पर्ितवादी के िवरु
खािरज कर िदया जाए िकन्तु यिद वादी ने न्यायालय का यह समाधान उक्त अविध के भीतर कर िदया है िक—
(क) िजस पर्ितवादी पर तामील नह हुई है उसके िनवास-स्थान का पता चलाने म वह अपने सव म पर्यास करने
के पश्चात् असफल रहा है, अथवा
(ख) ऐसा पर्ितवादी आदेिशका की तामील होने देने से अपने को बचा रहा है, अथवा
(ग) समय को बढ़ाने के िलए कोई अन्य पयार्प्त कारण है,
तो ऐसा आवेदन करने के िलए समय को न्यायालय इतनी अितिरक्त अविध के िलए बढ़ा सके गा िजतनी वह ठीक समझे ।]
(2) ऐसी दशा म वादी (पिरसीमा िविध के अधीन रहते हुए) नया वाद ला सके गा ।
1
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 10 ारा (1-7-2002 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 59 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1920 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 19 ारा (1-7-2002 से) “एक मास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
91
6. जब के वल वादी उपसंजात होता है तब पर्िकर्या(1) जहां वादी की सुनवाई के िलए पुकार होने पर वादी उपसंजात होता
है और पर्ितवादी उपसंजात नह होता है वहां
जब समन की तामील सम्यक् रूप से की गई हैयिद यह सािबत हो जाता है िक समन की तामील सम्यक्
1 [(क)
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 59 ारा (1-2-1977 से) खण्ड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
92
जमा करने के या अन्यथा ऐसे िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे, न्यायालय यह आदेश करे गा िक जहां तक िडकर्ी उस पर्ितवादी के िवरु
है वहां तक वह अपास्त कर दी जाए, और वाद म आगे कायर्वाही करने के िलए िदन िनयत करे गा :
परन्तु जहां िडकर्ी ऐसी है िक वह के वल ऐसे पर्ितवादी के िवरु अपास्त नह की जा सकती वहां वह अन्य सभी पर्ितवािदय
या उनम से िकसी या िकन्ह के िवरु भी अपास्त की जा सके गी :
1 [परन्तु
यह और िक यिद िकसी न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक पर्ितवादी को सुनवाई की तारीख की सूचना थी
और उपसंजात होने के िलए और वादी के दावे का उ र देने के िलए पयार्प्त समन था तो वह एकपक्षीय पािरत िडकर्ी को के वल इस
आधार पर अपास्त नह करे गा िक समन की तामील म अिनयिमतता हुई थी ।]
2 [स्पष्टीकरणजहां
इस िनयम के अधीन एकपक्षीय पािरत िडकर्ी के िवरु अपील की गई है और अपील का िनपटारा इस
आधार से िभन्न िकसी आधार पर कर िदया गया है िक अपीलाथ ने अपील वापस ले ली है वहां उस एकपक्षीय िडकर्ी को अपास्त करने
के िलए इस िनयम के अधीन कोई आवेदन नह होगा ।]
14. कोई भी िडकर्ी िवरोधी पक्षकार को सूचना के िबना अपास्त नह की जाएगीकोई भी िडकर्ी पूव क्त जैसे िकसी भी
आवेदन पर तब तक अपास्त नह की जाएगी जब तक िक उसकी सूचना की तामील िवरोधी पक्षकार पर न कर दी गई हो ।
आदेश 10
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 59 ारा (1-2-1977 से) जोड़ा गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 59 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 20 ारा (1-7-2002 से) अंत:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 60 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
यह िनयम अवध के मुख्य न्यायालय को लागू नह होता है । देिखए अवध कोट्सर् ऐक्ट, 1925 (1925 का यू० पी० अिधिनयम सं० 4) की धारा 16(2) ।
93
4. उ र देने से प्लीडर के इन्कार का या उ र देने म उसकी असमथर्ता का पिरणाम(1) जहां प्लीडर ारा उपसंजात होने
वाले पक्षकार का प्लीडर, या प्लीडर के साथ वाला ऐसा व्यिक्त जो िनयम 2 म िनिदष्ट है, वाद से संबिं धत िकसी ऐसे ताित्त्वक पर्श्न का
उ र देने से इं कार करता है या उ र देने म असमथर् रहता है, िजसके बारे म न्यायालय की राय है िक उसका उ र उस पक्षकार को देना
चािहए िजसका वह पर्ितिनिधतव करता है और यह संभव है िक यिद स्वयं पक्षकार से पिरपर्श्न िकया जाए तो वह उसका उ र देने म
समथर् होगा, वहां न्यायालय 1 [वाद की सुनवाई िकसी ऐसे िदन के िलए जो पहली सुनवाई की तारीख से सात िदन से पश्चात् का न हो,
मुल्तवी कर सके गा] और िनदेश दे सके गा िक ऐसा पक्षकार उस िदन स्वयं उपसंजात हो ।
(2) यिद ऐसे िनयत िदन पर ऐसा पक्षकार िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना स्वयं उपसंजात होने म असफल रहता है तो न्यायालय
उसके िवरु िनणर्य सुना सके गा या वाद के सम्बन्ध म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
2 [आदेश 11
उच्च न्यायालय के वािणिज्यक पर्भाग या वािणिज्यक न्यायालय के समक्ष वाद म दस्तावेज का पर्कटन,
पर्कटीकरण और िनरीक्षण
1. दस्तावेज का पर्कटन और पर्कटीकरण(1) वादी, वादपतर् के साथ वाद से संब ऐसे सभी दस्तावेज की सूची और ऐसे
सभी दस्तावेज की फोटोपर्ितयां फाइल करेगा, जो उसकी शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह, िजनके अंतगर्त
िनम्निलिखत भी ह,
(क) ऐसे दस्तावेज, जो वादी ारा वादपतर् म िनिदष्ट िकए गए ह और िजन पर उसने िनभर्र िकया है ;
(ख) कायर्वािहय म पर्श्नगत िकसी िवषय से संबंिधत दस्तावेज, जो वादपतर् फाइल िकए जाने की तारीख को वादी
की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म है, इस बात पर िवचार िकए िबना िक वह वादी के पक्षकथन के समथर्न म है या
उसके पर्ितकू ल है ;
(ग) इस िनयम म की कोई बात वािदय ारा पेश िकए गए दस्तावेज को और ऐसे दस्तावेज को लागू नह होगी
जो के वल,
(i) पर्ितवादी के सािक्षय की पर्ितपरीक्षा के िलए सुसंगत ह ; या
(ii) वादपतर् फाइल िकए जाने के पश्चात् पर्ितवादी ारा िकए गए िकसी पक्षकथन का उ र देने के िलए
सुसंगत ह ; या
(iii) िकसी साक्षी को उसकी स्मृित को ताजा करने के िलए ह ।
(2) वादपतर् के साथ फाइल िकए गए दस्तावेज की सूची म यह िविनिदष्ट िकया जाएगा िक क्या ऐसे दस्तावेज, जो वादी की
शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह, मूल दस्तावेज ह अथवा कायार्लय पर्ितयां ह या फोटोपर्ितयां ह और सूची म पर्त्येक दस्तावेज के
पक्षकार के ब्यौरे , पर्त्येक दस्तावेज के िनष्पादन, जारी करने या उसकी पर्ािप्त के ढंग और उसकी अिभरक्षा की पंिक्त को भी संक्षेप म
उपविणत िकया जाएगा ।
(3) वादपतर् म वादी की ओर से सशपथ यह घोषणा अंतिवष्ट होगी िक वादी ारा आरं भ की गई कायर्वािहय के तथ्य और
पिरिस्थितय से संबंिधत ऐसे सभी दस्तावेज का, जो उसकी शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह, पर्कटन कर िदया गया है और
उसकी पर्ितयां वादपतर् के साथ संलग्न कर दी गई ह और वादी के पास उसकी शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म कोई अन्य
दस्तावेज नह है ।
स्पष्टीकरणइस उपिनयम के अधीन सशपथ घोषणा पिरिशष्ट म यथा उपविणत सत्यता के कथन म अंतिवष्ट होगी ।
(4) वादी शपथ-पतर् के अजन्ट फाइल िकए जाने की दशा म, उसका उपरोक्त घोषणा के भागरूप और न्यायालय ारा ऐसी
इजाजत िदए जाने के अधीन रहते हुए अितिरक्त दस्तावेज पर िनभर्र करने की इजाजत की ईप्सा कर सके गा और वादी, न्यायालय म
ऐसे अितिरक्त दस्तावेज सशपथ ऐसी घोषणा के साथ िक वादी ारा आरं भ की गई कायर्वािहय के तथ्य और पिरिस्थितय से संबंिधत
उसकी शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म के सभी दस्तावेज पेश कर िदए गए ह और वादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा
म कोई अन्य दस्तावेज नह है, वाद फाइल िकए जाने के तीस िदन के भीतर फाइल करे गा ।
(5) वादी को न्यायालय की इजाजत के िसवाय, ऐसे दस्तावेज पर िनभर्र रहने के िलए अनुज्ञात नह िकया जाएगा, जो वादी
की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म थे और उनका वादपतर् के साथ या ऊपर उपविणत िवस्तािरत अविध के भीतर पर्कटन नह
िकया गया था और ऐसी इजाजत के वल वादी को वादपतर् के साथ अपर्कटन के युिक्तयुक्त कारण िस िकए जाने पर ही दी जाएगी ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 20 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
94
(6) वादपतर् म ऐसे दस्तावेज के ब्यौर को उपविणत िकया जाएगा िजनके बारे म वादी को यह िवश्वास है िक वे पर्ितवादी
की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह और िजन पर वादी िनभर्र करना चाहता है और िजनको उक्त पर्ितवादी ारा उनके पेश
िकए जाने की इजाजत की ईप्सा करता है ।
(7) पर्ितवादी, वाद से संब ऐसे सभी दस्तावेज की सूची और ऐसे सभी दस्तावेज की फोटोपर्ितयां, जो उसकी शिक्त, कब्जे,
िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह, िलिखत कथन के साथ या उसके पर्ितदावे के साथ, यिद कोई हो, फाइल करे गा, िजनके अंतगर्त िनम्निलिखत
भी ह,
(क) ऐसे दस्तावेज, जो पर्ितवादी ारा िलिखत कथन म िनिदष्ट िकए गए ह और िजन पर वह िनभर्र करता है ;
(ख) कायर्वाही म पर्श्नगत िकसी िवषय से संबंिधत ऐसे सभी दस्तावेज, जो पर्ितवादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या
अिभरक्षा म ह इस बात पर िवचार िकए िबना िक वे पर्ितवादी की पर्ितरक्षा के समथर्न म ह या उसके पर्ितकू ल ;
(ग) इस िनयम की कोई बात पर्ितवािदय ारा पेश िकए गए दस्तावेज को और ऐसे दस्तावेज को लागू नह होगी
जो के वल,
(i) वादी के सािक्षय की पर्ितपरीक्षा के िलए सुसंगत ह ; या
(ii) वादपतर् फाइल िकए जाने के पश्चात् वादी ारा िकए गए िकसी पक्षकथन का उ र देने के िलए
सुसंगत ह ; या
(iii) िकसी साक्षी को उसकी स्मृित को ताजा करने के िलए ह ।
(8) िलिखत कथन या पर्ितदावे के साथ फाइल िकए गए दस्तावेज की सूची म यह िविनिदष्ट िकया जाएगा िक क्या ऐसे
दस्तावेज, जो पर्ितवादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह, मूल दस्तावेज ह, कायार्लय पर्ितयां ह या फोटोपर्ितयां ह और सूची
म पर्ितवादी ारा पेश िकए गए पर्त्येक दस्तावेज के पक्षकार के ब्यौरे , पर्त्येक दस्तावेज के िनष्पादन, जारी करने या उसकी पर्ािप्त के
ढंग, और उसकी अिभरक्षा की पंिक्त को भी संक्षेप म उपविणत िकया जाएगा ।
(9) अिभसाक्षी ारा िलिखत कथन या पर्ितदावे म सशपथ यह घोषणा अंतिवष्ट होगी िक उन दस्तावेज के िसवाय, जो
उपरोक्त उपिनयम (7)(ग)(iii) म उपविणत ह, ऐसे सभी दस्तावेज का, जो पर्ितवादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म ह,
वादी ारा आरं भ की गई कायर्वािहय या पर्ितदावे म के तथ्य और पिरिस्थितय से संबंिधत ह, पर्कटन कर िदया गया है और उसकी
पर्ितयां िलिखत कथन या पर्ितदावे के साथ संलग्न कर दी गई ह और यह िक पर्ितवादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म कोई
अन्य दस्तावेज नह ह ।
(10) पर्ितवादी को उपिनयम (7)(ग)(iii) के िसवाय, ऐसे दस्तावेज पर न्यायालय की इजाजत के िसवाय, िनभर्र रहने के िलए
अनुज्ञात नह िकया जाएगा, जो पर्ितवादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा म थे और िजनका िलिखत कथन या पर्ितदावे के साथ
पर्कटन नह िकया गया था और ऐसी इजाजत के वल पर्ितवादी ारा िलिखत कथन या पर्ितदावे के साथ अपर्कटन के युिक्तयुक्त कारण
िस िकए जाने पर ही दी जाएगी ।
(11) िलिखत कथन या पर्ितदावे म ऐसे दस्तावेज के ब्यौर को उपविणत िकया जाएगा जो वादी की शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण
या अिभरक्षा म ह और िजन पर पर्ितवादी िनभर्र करना चाहता है और िजनका वादपतर् म पर्कटन नह िकया गया है और िजनकी वादी
ारा उन्ह पेश िकए जाने की मांग की गई है ।
(12) ऐसे दस्तावेज के पर्कटन का कतर्व्य, जो िकसी पक्षकार की जानकारी म आते ह, वाद का िनपटारा होने तक
बना रहेगा ।
2. पिरपर्श्न ारा पर्कटीकरण करना(1) िकसी भी वाद म वादी या पर्ितवादी िवरोधी पक्षकार या ऐसे पक्षकार म से
िकसी एक या अिधक की परीक्षा करने के िलए िलिखत पिरपर्श्न न्यायालय की इजाजत से पिरद कर सके गा और पिरद िकए जाते
समय पिरपर्श्न म यह पाद िटप्पण होगा िक ऐसे व्यिक्तय म से हर एक ऐसे पिरपर्श्न म से िकनका उ र देने के िलए अपेिक्षत है :
परं तु कोई भी पक्षकार एक ही पक्षकार को पिरपर्श्न के एक संवगर् से अिधक उस पर्योजन के िलए आदेश के िबना पिरद
नह करे गा :
परं तु यह और िक वे पिरपर्श्न जो वाद म पर्श्नगत िकन्ह िवषय से संबिधत नह ह, इस बात के होते हुए भी िवसंगत समझे
जाएंगे िक साक्षी की मौिखक पर्ितपरीक्षा करने म वे गर्ा होते ।
(2) पिरपर्श्न के पिरदान के िलए इजाजत के िलए आवेदन पर वे िविशष्ट पिरपर्श्न, िजनका पिरदान िकए जाने की पर्स्थापना
है, न्यायालय के समक्ष रखे जाएंगे और वह न्यायालय उक्त आवेदन के फाइल िकए जाने के िदन से सात िदन के भीतर िविनश्चय करे गा,
ऐसे आवेदन पर िविनश्चय करने म न्यायालय िकसी ऐसी पर्स्थापना पर भी िवचार करे गा जो उस पक्षकार ने िजससे पिरपर्श्न िकया
जाना है, पर्श्नगत बात या उनम से िकसी से संबंिधत िविशष्टय को पिरद करने या स्वीकृ ितयां करने या दस्तोवज पेश करने के िलए
की ह और उसके समक्ष रखे गए पिरपर्श्न म से के वल ऐसे पिरपर्श्न के संबंध म इजाजत दी जाएगी िजन्ह न्यायालय या तो वाद के
ऋजु िनपटारे के िलए या खच म बचत करने के िलए आवश्यक समझे ।
95
(3) वाद के खच का समायोजन करने म ऐसे पिरपर्श्न के पर्दशर्न के औिचत्य के संबंध म जांच िकसी पक्षकार की पर्ेरणा पर
की जाएगी और यिद िविनधार्रक अिधकारी या न्यायालय की राय, जांच के िलए आवेदन पर या ऐसे आवेदन के िबना, यह हो िक ऐसे
पिरपर्श्न अयुिक्तयुक्तत: तंग करने के िलए या अनुिचत िवस्तार के साथ पेश िकए गए ह तो उक्त पिरपर्श्न और उनके उ र के कारण
हुए खच िकसी भी िस्थित म उस पक्षकार ारा िदए जाएंगे, िजसने यह कसूर िकया है ।
(4) पिरपर्श्न िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक 2 म िदए गए पर्रूप म ऐसे
फे रफार के साथ ह गे, जो पिरिस्थितय म अपेिक्षत ह ।
(5) जहां वाद का कोई पक्षकार िनगम या व्यिक्तय का ऐसा िनकाय है, चाहे वह िनगिमत हो या नह , जो िविध ारा
सशक्त है िक स्वयं अपने नाम से या िकसी अिधकारी के या अन्य व्यिक्त के नाम से वाद ला सके या उस पर वाद लाया जा सके वहां
कोई भी िवरोधी पक्षकार ऐसे िनगम या िनकाय के िकसी भी सदस्य या अिधकारी को पिरपर्श्न पिरद करने के िलए अपने को अनुज्ञा
देने वाले आदेश के िलए आवेदन कर सके गा और आदेश तद्नुसार िकया जा सके गा ।
(6) िकसी भी पिरपर्श्न का उ र देने की बाबत इस आधार पर िक वह पिरपर्श्न कलंकात्मक या िवसंगत है या वाद के पर्योजन
के िलए सद्भावपूणर् पर्दिशत नह िकया गया है या वे िवषय, िजनके बारे म पूछताछ की गई है, उस पर्कर्म म पयार्प्त रूप से ताित्त्वक
नह ह, या िवशेषािधकार के आधार पर या िकसी अन्य आधार पर कोई भी आपेक्ष उ र म िदए गए शपथपतर् म िकया जा सके गा ।
(7) कोई भी पिरपर्श्न इस आधार पर अपास्त िकए जा सकगे िक वे अयुिक्तयुक्तत: या तंग करने के िलए पर्दिशत िकए गए ह
या इस आधार पर काट िदए जा सकगे िक वे अितिवस्तृत, पीड़ा पहुंचाने वाले, अनावश्यक या कलंकात्मक ह और इस पर्योजन के िलए
कोई भी आवेदन पिरपर्श्न की तामील के पश्चात् सात िदन के भीतर िकया जा सके गा ।
(8) पिरपर्श्न का उ र शपथपतर् ारा िदया जाएगा, जो दस िदन के भीतर या ऐसे अन्य समय के भीतर, जो न्यायालय
अनुज्ञात करे , फाइल िकया जाएगा ।
(9) पिरपर्श्न के उ र म िदया गया शपथ-पतर् िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक
3 म िदए गए पर्रूप म ऐसे फे रफार के साथ होगा जो पिरिस्थितय म अपेिक्षत हो ।
(10) उ र म िदए गए िकसी शपथ-पतर् पर कोई भी आक्षेप नह िकए जाएंगे, िकन्तु ऐसे िकसी शपथ-पतर् पर के अपयार्प्त
होने का आक्षेप िकए जाने पर उसका पयार्प्त होना या न होना न्यायालय ारा अवधािरत िकया जाएगा ।
(11) जहां कोई व्यिक्त िजससे पिरपर्श्न िकया गया है उ र देने का लोप करता है या अपयार्प्त उ र देता है वहां पिरपर्श्न
करने वाला पक्षकार न्यायालय से इस आदेश के िलए आवेदन कर सके गा िक उस पक्षकार से यह अपेक्षा की जाए िक वह, यथािस्थित,
उ र दे या अितिरक्त उ र दे और उससे यह अपेक्षा करने वाला आदेश िकया जा सके गा िक वह, न्यायालय ारा जैसा भी िनदेश िदया
जाए, या तो शपथ-पतर् ारा या मौिखक परीक्षा ारा उ र दे या अितिरक्त उ र दे ।
3. िनरीक्षण(1) सभी पक्षकार पर्कट िकए गए सभी दस्तावेज का िनरीक्षण, िलिखत कथन फाइल करने या पर्ितदावे का
िलिखत कथन फाइल करने की तारीख से, इनम से जो पश्चात्वत हो, तीस िदन के भीतर पूरा करगे । न्यायालय आवेदन िकए जाने पर
इस समय-सीमा को अपने िववेकानुसार बढ़ा सके गा, िकन्तु िकसी भी दशा म ऐसा िवस्तार तीस िदन से अिधक का नही होगा ।
(2) कायर्वािहय का कोई भी पक्षकार, कायर्वािहय के िकसी भी पर्कर्म पर, अन्य पक्षकार से ऐसे दस्तावेज को, िजनके
िनरीक्षण के िलए उस पक्षकार ारा इं कार कर िदया गया है या उन दस्तावेज को उन्ह पेश िकए जाने की सूचना जारी िकए जाने के
बावजूद पेश नह िकया गया है, उनका िनरीक्षण करने या पेश करने के िलए न्यायालय से िनदेश की ईप्सा कर सके गा ।
(3) ऐसे िकसी आवेदन के संबध ं म आदेश, ऐसा आवेदन फाइल िकए जाने के , िजसके अन्तगर्त उ र और पर्त्यु र (यिद
न्यायालय अनुज्ञात करे ) फाइल करना और उनकी सुनवाई भी है, तीस िदन के भीतर िकया जाएगा ।
(4) यिद उपरोक्त आवेदन अनुज्ञात िकया जाता है तो ऐसे आदेश के पांच िदन के भीतर ईप्सा करने वाले पक्षकार को
िनरीक्षक और उसकी पर्ितयां पेश िकए जाएंगे ।
(5) िकसी भी पक्षकार को, न्यायालय की इजाजत के िसवाय, ऐसे िकसी दस्तावेज पर िनभर्र होने की अनुज्ञा नह दी जाएगी,
िजसे वह पर्कट करने म असफल रहा है या िजसका िनरीक्षण नह करने िदया गया है ।
(6) न्यायालय िकसी ऐसे व्यितकर्मी पक्षकार के िवरु , जो जानबूझकर या उपेक्षापूवर्क िकसी वाद से संबंिधत ऐसे मामले म
िविनश्चय के िलए आवश्यक सभी दस्तावेज को पर्कट करने म असफल रहा है और जो उसकी शिक्त, कब्जे, िनयंतर्ण या अिभरक्षा के
अधीन थे या जहां कोई न्यायालय यह अिभिनधार्िरत करता है िक िकन्ही दस्तावेज के िनरीक्षण या उनकी पर्ितयां को गलत तौर पर या
अयुिक्तयुक्त रूप से िवधािरत िकया गया है या उससे इं कार िकया गया है, िनदशार्त्मक खच अिधरोिपत कर सके गा ।
4. दस्तावेज को स्वीकृ ित और पर्त्याख्यान(1) पर्त्येक पक्षकार उन सभी दस्तावेज को, जो पर्किटत ह और िजनका िनरीक्षण
पूरा हो गया है, िनरीक्षण पूरा होने की तारीख के पन्दर्ह िदन के भीतर या न्यायालय ारा यथा िनयत िकसी पश्चात्वत तारीख को
स्वीकृ ितय या पर्त्याख्यान का एक िववरण भेजेगा ।
96
(2) स्वीकृ ितय और पर्त्याख्यान के िववरण म सुस्पष्ट रूप से यह उपविणत होगा िक क्या ऐसे पक्षकार ने िनम्निलिखत की
स्वीकृ ित दी है या उसका पर्त्याख्यान िकया है,
(क) दस्तावेज की अंतवर्स्तु की शु ता ;
(ख) दस्तावेज का अिस्तत्व ;
(ग) दस्तावेज का िनष्पादन ;
(घ) दस्तावेज का जारी होना या पर्ािप्त ;
(ङ) दस्तावेज की अिभरक्षा ।
स्पष्टीकरणउपिनयम (2)(ख) के अनुसार दस्तावेज के अिस्तत्व की स्वीकृ ित या पर्त्याख्यान से संबंिधत िववरण म दस्तावेज
की अंतवर्स्तु की स्वीकृ ित या उनका पर्त्याख्यान सिम्मिलत होगा ।
(3) पर्त्येक पक्षकार उपरोक्त म से िकसी आधार पर दस्तावेज के पर्त्याख्यान के कारण को उपविणत करे गा और कोरे और
असमिथत पर्त्याख्यान को िकसी दस्तावेज का पर्त्याख्यान नह समझा जाएगा और ऐसे दस्तावेज के सबूत से न्यायालय के िववेकानुसार
अिभमुिक्त पर्दान की जा सके गी ।
(4) तथािप, कोई पक्षकार कोरे पर्त्याख्यान िकसी ऐसे अन्य पक्षकार के दस्तावेज के िलए पेश कर सके गा िजनकी पर्त्याख्यान
कर रहे पक्षकार को िकसी भी पर्कार से, िकसी रीित म उसकी कोई िनजी जानकारी नह है, और िजसम पर्त्याख्यान कर रहा पक्षकार
कोई पक्षकार नह है ।
(5) स्वीकृ ितय और पर्त्याख्यान के िववरण के समथर्न म एक शपथ-पतर् िववरण की अंतवर्स्तु की शु ता की पुिष्ट करते
हुए फाइल िकया जाएगा ।
(6) यिद न्यायालय यह अिभिनधार्िरत करता है िक िकसी पक्षकार ने उपरोक्त मानदंड म से िकसी के अधीन िकसी दस्तावेज
को गर्हण करने से असम्यक् रूप से इं कार िकया है, तो िकसी दस्तावेज की गर्ा ता का िविनश्चय करने के िलए न्यायालय ारा उस
पक्षकार पर खच (िजसम िनदशार्त्मक खच भी ह) अिधरोिपत िकए जा सकगे ।
(7) न्यायालय, गृहीत दस्तावेज के , िजनके अंतगर्त उस पर और सबूत का अिधत्यजन या िकन्ह दस्तावेज का अस्वीकार
करना भी है, आदेश पािरत कर सके गा ।
5. दस्तावेज का पेश िकया जाना(1) िकसी कायर्वाही का कोई पक्षकार िकसी वाद के लंिबत रहने के दौरान िकसी भी
समय िकसी पक्षकार या व्यिक्त ारा, ऐसे दस्तावेज को, जो उस पक्षकार या व्यिक्त के कब्जे म है, ऐसे वाद के िकसी पर्श्नगत िवषय के
संबंध म पेश करने की ईप्सा कर सके गा या न्यायालय ऐसा आदेश कर सके गा ।
(2) ऐसे दस्तावेज को पेश करने की सूचना िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के पिरिशष्ट ग के पर्रूप सं० 7 म
उपबंिधत पर्रूप म जारी की जाएगी ।
(3) िकसी भी ऐसे पक्षकार या व्यिक्त को, िजसे दस्तावेज पेश करने की सूचना जारी की गई है, ऐसे दस्तावेज को पेश करने
या ऐसे दस्तावेज को पेश करने की अपनी असमथर्ता बताने के िलए सात िदन से अन्यून और पन्दर्ह िदन से अनिधक का समय िदया
जाएगा ।
(4) न्यायालय, दस्तावेज पेश करने की सूचना जारी होने के पश्चात्, ऐसे दस्तावेज को पेश करने से इं कार करने वाले और
जहां इस पर्कार दस्तावेज पेश न करने के िलए पयार्प्त कारण नह िदए गए ह, िकसी पक्षकार के िवरु पर्ितकू ल िनष्कषर् िनकाल सके गा
और खच के बारे म आदेश कर सके गा ।
6. इलेक्टर्ािनक अिभलेख(1) इलेक्टर्ािनक अिभलेख के पर्कटन और िनरीक्षण की दशा म [सूचना पर्ौ ोिगकी अिधिनयम,
2000 (2000 का 21) म यथा पिरभािषत] मुिदर्त पर्ित देना, उपयुर्क्त उपबंध की अनुपालना के िलए पयार्प्त होगा ।
(2) पक्षकार के िववेक पर या जहां अपेिक्षत हो (जब पक्षकार दृश्य-शर्व्य अंतवर्स्तु पर िनभर्र करने के इच्छु क ह ) इलेक्टर्ािनक
अिभलेख की पर्ितयां या तो मुिदर्त पर्ित के अितिरक्त या उसके बदले म इलेक्टर्ािनक रूप म दी जा सकगी ।
(3) जहां इलेक्टर्ािनक अिभलेख पर्किटत दस्तावेज के भागरूप ह, वहां िकसी पक्षकार ारा फाइल की जाने वाली सशपथ
घोषणा म िनम्निलिखत िविनिदष्ट ह गे,
(क) ऐसे इलेक्टर्ािनक अिभलेख के पक्षकार ;
(ख) वह रीित, िजसम ऐसा इलेक्टर्ािनक अिभलेख पेश िकया गया था और िकसके ारा पेश िकया गया था ;
(ग) ऐसे पर्त्येक इलेक्टर्ािनक अिभलेख के तैयार िकए जाने या भंडारण या जारी अथवा पर्ाप्त िकए जाने की तारीख
और समय ;
97
(घ) ऐसे इलेक्टर्ािनक अिभलेख का सर्ोत और वह तारीख और समय, जब इलेक्टर्ािनक अिभलेख मुिदर्त िकया
गया था ;
(ङ) ई-मेल आईडी की दशा म, ऐसे ई-मेल आईडी के स्वािमत्व, अिभरक्षा और पहुंच के ब्यौरे ;
(च) िकसी कं प्यूटर या कं प्यूटर सर्ोत पर भंडािरत (िजसके अंतगर्त बा सवर्र या क्लाउड भी है) दस्तावेज की दशा
म, कं प्यूटर या कं प्यूटर सर्ोत पर ऐसे डाटा के स्वािमत्व, अिभरक्षा और पंहुच के ब्यौरे ;
(छ) अिभसाक्षी की अंतवर्स्तु की और अंतवर्स्तु की सत्यता की जानकारी ;
(ज) क्या ऐसे दस्तावेज या डाटा को तैयार करने या पर्ाप्त करने या भंडािरत करने के िलए पर्युक्त कं प्यूटर या
कं प्यूटर सर्ोत उिचत रूप से कायर् कर रहा था या अपिकर्या की दशा म ऐसी अपिकर्या से भंडािरत दस्तावेज की अंतवर्स्तुएं
पर्भािवत नह हुई ;
(झ) दी गई मुिदर्त पर्ित या पर्ित मूल कं प्यूटर या कं प्यूटर सर्ोत से ली गई थी ;
(4) िकसी इलेक्टर्ािनक अिभलेख की मुिदर्त पर्ित या इलेक्टर्ािनक रूप म पर्ित पर िनभर्र करने वाले पक्षकार से इलेक्टर्ािनक
अिभलेख के िनरीक्षण कराए जाने की अपेक्षा नह की जाएगी, परं तु यह तब, जब ऐसे पक्षकार ारा यह घोषणा कर दी गई है िक ऐसी
पर्त्येक पर्ित, जो पेश की गई है, मूल इलेक्टर्ािनक अिभलेख से बनाई गई है ।
(5) न्यायालय कायर्वािहय के िकसी भी पर्कर्म पर इलेक्टर्ािनक अिभलेख की गर्ा ता के िलए िनदेश दे सके गा ।
(6) कोई भी पक्षकार न्यायालय से िनदेश की ईप्सा कर सके गा और न्यायालय अपनी स्वपर्ेरणा पर िकसी इलेक्टर्ािनक
अिभलेख का, िजसके अंतगर्त मेटाडाटा या लॉग्स भी है, इलेक्टर्ािनक अिभलेख के गर्हण िकए जाने के पूवर् अितिरक्त सबूत पेश करने का
िनदेश जारी कर सके गा ।
7. िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के कितपय उपबंध का लागू न होनाशंका को दूर करने के िलए यह स्पष्ट िकया जाता
है िक िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) का आदेश 13, िनयम 1, आदेश 7, िनयम 14 और आदेश 8, िनयम 1क उच्च
न्यायालय के वािणिज्यक पर्भाग या वािणिज्यक न्यायालय के समक्ष वाद या आवेदन को लागू नह ह गे ।]
आदेश 12
स्वीकृ ितयां
1. मामले की स्वीकृ ित की सूचनावाद का कोई भी पक्षकार अपने िलिखत अिभवचन ारा या अन्यथा िलिखत रूप म
सूचना दे सके गा िक वह िकसी अन्य पक्षकार के पूरे मामले की या उसके िकसी भाग की सत्यता को स्वीकार करता है ।
2. दस्तावेज की स्वीकृ ित के िलए सूचनादोन पक्षकार म से कोई भी पक्षकार दूसरे पक्षकार से यह अपेक्षा कर सके गा िक
वह 1 [िकसी दस्तावेज को सभी न्यायसंगत अपवाद को छोड़कर सूचना की तामील की तारीख से 2 [सात] िदन के भीतर स्वीकार कर
ले] और ऐसी सूचना के पश्चात् स्वीकृ त करने से इन्कार या उपेक्षा करने की दशा म, जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे िकसी
भी ऐसी दस्तावेज को सािबत करने के खचर् ऐसी उपेक्षा या इन्कार करने वाले पक्षकार ारा िदए जाएंगे चाहे वाद का पिरणाम कु छ भी
हो और जब तक िक ऐसी सूचना नह दे दी गई हो िकसी दस्तावेज को सािबत करने का कोई भी खचर् के वल तभी अनुज्ञात िकया जाएगा
जब ऐसी सूचना न देना न्यायालय की राय म व्यय की बचत है ।
यिद दस्तावेज की स्वीकृ ित के िलए सूचना की तामील के पश्चात् उनसे इंकार नह िकया जाता तो उन्ह स्वीकृ त
3 [2क.
समझा जाना(1) ऐसी हर दस्तावेज, िजसको स्वीकार करने की मांग पक्षकार से की जाती है, उस पक्षकार ारा अिभवचन म या
दस्तावेज की स्वीकृ ित की सूचना के अपने उ र म िविनिदष्टत: या आवश्यक िववक्षा से पर्त्याख्यात नह की जाती है या उसको
स्वीकार न िकए जाने का कथन नह िकया जाता है, िसवाय ऐसे व्यिक्त के िवरु जो िनय ग्यताधीन है, स्वीकृ त समझी जाएगी :
परन्तु न्यायालय स्विववेकानुसार और लेखब िकए जाने वाले कारण से यह अपेक्षा कर सके गा िक इस पर्कार स्वीकृ त कोई
दस्तावेज ऐसी स्वीकृ ित से िभन्न रूप से सािबत की जाए ।
(2) जहां पक्षकार दस्तावेज की स्वीकृ ित की सूचना की तामील अपने पर िकए जाने के पश्चात् िकसी दस्तावेज को स्वीकार
करने म अयुिक्तयुक्त रूप से उपेक्षा करता है या इं कार करता है वहां न्यायालय उसे दूसरे पक्षकार को पर्ितकर के रूप म खचार् देने का
िनदेश दे सके गा ।]
3. सूचना का पर्रूपदस्तावेज को स्वीकृ त करने की सूचना पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक 9 म ऐसे फे रफार के साथ होगी जो
पिरिस्थितय से अपेिक्षत हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 62 ारा (1-2-1977 से) “िकसी दस्तावेज को सब न्यायसंगत अपवाद को छोड़कर स्वीकार कर ले” शब्द के स्थान पर
पर्ितस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 22 ारा (1-7-2002 से) “पन्दर्ह” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 62 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
98
स्वीकृ ित के अिभलेखन की न्यायालय की शिक्तदस्तावेज को स्वीकार करने के िलए सूचना िनयम 2 के अधीन न दी
1 [3क.
जाने पर भी न्यायालय अपने समक्ष वाली कायर्वाही के िकसी भी पर्कर्म म स्वयं अपनी पर्ेरणा से िकसी भी पक्षकार से कोई दस्तावेज
स्वीकार करने की अपेक्षा कर सके गा और ऐसी दशा म यह अिभलेखन करे गा िक क्या पक्षकार ऐसी दस्तावेज को स्वीकार करता है या
स्वीकार करने से इं कार करता है या स्वीकार करने की उपेक्षा करता है ।]
4. तथ्य को स्वीकृ त करने की सूचनाकोई भी पक्षकार िकसी भी अन्य पक्षकार से सुनवाई के िलए िनयत िदन से कम से कम
नौ िदन पहले िकसी भी समय िलिखत सूचना ारा अपेक्षा कर सके गा िक वह ऐसी सूचना म विणत िकसी या िकन्ह िविनिदष्ट तथ्य या
तथ्य को के वल वाद के पर्योजन के िलए स्वीकार कर ले । और ऐसी सूचना की तामील के पश्चात् छह िदन के भीतर या ऐसे अितिरक्त
समय के भीतर जो न्यायालय ारा अनुज्ञात िकया जाए उसको या उनको स्वीकृ त करने से इं कार या उपेक्षा करने की दशा म तथ्य या
तथ्य के सािबत करने का खचार् जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे , इस पर्कार उपेक्षा करने या इं कार वाले पक्षकार ारा िदया
जाएगा चाहे वाद का पिरणाम कु छ भी क्य न हो :
परन्तु ऐसी सूचना के अनुसरण म की गई िकसी भी स्वीकृ ित के बारे म यह समझा जाएगा िक वह उस िविशष्ट वाद के
पर्योजन के िलए ही की गई है और वह ऐसी स्वीकृ ित नह समझी जाएगी िजसका उस पक्षकार के िवरु िकसी अन्य अवसर पर या
सूचना देने वाले पक्षकार से िभन्न िकसी व्यिक्त के पक्ष म उपयोग िकया जा सकता है :
2* * * * *
5. स्वीकृ ितय का पर्रूपतथ्य को स्वीकार करने के िलए सूचना पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक 10 म और तथ्य की
स्वीकृ ितयां पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक 11 म ऐसे फे रफार के साथ ह गी जो पिरिस्थितय से अपेिक्षत हो ।
स्वीकृ ितय पर िनणर्य(1) जहां अिभवचन म या अन्यथा, चाहे मौिखक रूप से या िलिखत रूप म तथ्य की स्वीकृ ितयां
3 [6.
की जा चुकी ह वहां न्यायालय वाद के िकसी पर्कर्म म या तो िकसी पक्षकार के आवेदन पर या स्वपर्ेरणा से और पक्षकार के बीच िकसी
अन्य पर्श्न के अवधारण की पर्तीक्षा िकए िबना ऐसी स्वीकृ ितय को ध्यान म रखते हुए ऐसा आदेश या ऐसा िनणर्य कर सके गा जो वह
ठीक समझे ।
(2) जब कभी उपिनयम (1) के अधीन िनणर्य सुनाया जाता है तब िनणर्य के अनुसार िडकर्ी तैयार की जाएगी और िडकर्ी म
वही तारीख दी जाएगी िजस तारीख को उक्त िनणर्य सुनाया गया था ।]
7. हस्ताक्षर के बारे म शपथपतर्यिद दस्तावेज या तथ्य को स्वीकार करने की िकसी सूचना के अनुसरण म की गई
स्वीकृ ितय के सम्यक् हस्ताक्षर की बाबत सा य की अपेक्षा की जाती है तो प्लीडर या उसके िलिपक का ऐसी स्वीकृ ितय के बारे म
शपथपतर् पयार्प्त सा य होगा ।
8. दस्तावेज को पेश करने के िलए सूचनादस्तावेज को पेश करने के िलए सूचना पिरिशष्ट ग के पर्रूप संख्यांक 12 म ऐसे
फे रफार के साथ होगी जो पिरिस्थितय से अपेिक्षत हो । पेश करने के िलए िकसी सूचना की तामील के बारे म और उस समय के बारे म
जब उसकी तामील की गई थी, प्लीडर या उसके िलिपक का शपथपतर् उसे पेश करने की सूचना की पर्ित के सिहत सभी दशा म सूचना
की तामील के बारे म और उस समय के बारे म जब उसकी तामील की गई थी, पयार्प्त सा य होगा ।
9. खचयिद स्वीकृ ित या पेश करने की सूचना ऐसी दस्तावेज को िविनिदष्ट करती है जो आवश्यक नह है तो उसके कारण
हुए खच ऐसी सूचना देने वाले पक्षकार ारा वहन िकए जाएंगे ।
आदेश 13
सभी दस्तावेजी सा य जहां उनकी पर्ितयां वादपतर् या िलिखत कथन के साथ फाइल की गई ह, िववा क के िस्थरीकरण के समय या
उसके पूवर् पेश करे गा ।
(2) न्यायालय इस पर्कार पेश की गई दस्तावेज को ले लेगा :
परन्तु यह तब जब िक उनके साथ ऐसे पर्रूप म तैयार की गई एक सही-सही सूची हो जो उच्च न्यायालय ने िनिदष्ट
िकया हो ।
(3) उपिनयम (1) की कोई भी बात ऐसे दस्तावेज को लागू नह होगी, जो
(क) दूसरे पक्षकार के सािक्षय की पर्ितपरीक्षा करने के िलए पेश िकए गए ह, अथवा
1
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 22 ारा (1-7-2002 से) दूसरे परन्तुक का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 62 ारा (1-2-1977 से) िनयम 6 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 23 ारा (1-7-2002 से) िनयम 1 और 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
99
(ख) जहां वाद ऐसा है िक उसम अपील अनुज्ञात है वहां उस समय होगा जब न्यायालय का समाधान हो जाता है
िक अपील करने का समय बीत चुका है और अपील नह की गई है या यिद अपील की गई है तो उस समय होगा जब अपील
िनपटा दी गई हो :
[परन्तु इस िनयम ारा िविहत समय से पूवत
1
र् र िकसी भी समय दस्तावेज लौटाया जा सके गा यिद उसकी वापसी के िलए
आवेदन करने वाला व्यिक्त
(क) समुिचत अिधकारी हो
(i) वाद के पक्षकार की दशा म मूल के स्थान पर रखने के िलए पर्मािणत पर्ित पिरद करता है, और
(ii) िकसी अन्य व्यिक्त की दशा म ऐसी मामूली पर्ित पिरद करता है, जो आदेश 7 के िनयम 17 के
उपिनयम (2) म विणत रीित से परीिक्षत, िमलान की गई और पर्मािणत है, और
(ख) यह वचन देता है िक यिद उससे ऐसी अपेक्षा की गई तो वह मूल को पेश कर देगा :]
परन्तु यह और भी िक ऐसी कोई दस्तावेज नह लौटाई जाएगी जो िडकर्ी के बल से पूणर्तया शून्य या िनरुपयोगी हो गई है ।
(2) सा य म गृहीत दस्तावेज की वापसी पर उसे पर्ाप्त करने वाले व्यिक्त ारा रसीद दी जाएगी ।
10. न्यायालय स्वयं अपने अिभलेख म से या अन्य न्यायालय के अिभलेख म से कागज मंगा सके गा(1) न्यायालय
स्वपर्ेरणा से या वाद के पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर स्विववेकानुसार अपने अिभलेख म से या िकसी अन्य न्यायालय के
अिभलेख म से िकसी अन्य वाद या कायर्वाही का अिभलेख मंगा सके गा और उसका िनरीक्षण कर सके गा ।
(2) इस िनयम के अधीन िकया गया हर आवेदन का (जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे ) एक ऐसे शपथपतर् ारा
समथर्न िकया जाएगा िजसम यह दिशत होगा िक उस वाद म, िजसम आवेदन िकया गया है, वह अिभलेख कै से ताित्वक है और यह िक
आवेदन अयुिक्तयुक्त िवलम्ब या व्यय के िबना उस अिभलेख की या उसके ऐसे भाग की िजसकी उसे आवश्यकता है, सम्यक् रूप से
अिधपर्माणीकृ त पर्ित अिभपर्ाप्त नह कर सकता है या यह अिभलेख िक मूल की पेशी न्याय के पर्योजन के िलए आवश्यक है ।
(3) इस िनयम की कोई भी बात िकसी भी ऐसी दस्तावेज को, जो वाद म सा य की िविध के अधीन अगर्ा होती, सा य म
उपयोग करने के िलए, न्यायालय को समथर् बनाने वाली नह समझी जाएगी ।
11. दस्तावेज से सम्बिन्धत उपबन्ध का भौितक पदाथ को लागू होनादस्तावेज के सम्बन्ध म इसम अन्तिवष्ट उपबन्ध
सा य के रूप म पेश िकए जाने योग्य सभी अन्य भौितक पदाथ को जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
2
आदेश 13क
संिक्षप्त िनणर्य
1. ऐसे वाद की व्यािप्त और वगर्, िजनको यह आदेश लागू होता है(1) इस आदेश म वह पर्िकर्या उपविणत है, िजसके ारा
कोई न्यायालय मौिखक सा य अिभिलिखत िकए िबना िकसी वािणिज्यक िववाद से संबंिधत िकसी दावे का िविनश्चय कर सके गा ।
(2) इस आदेश के पर्योजन के िलए, “दावा” शब्द के अंतगर्त िनम्निलिखत ह गे
(क) िकसी दावे का भाग ;
(ख) कोई िविशष्ट पर्श्न, िजस पर दावा (चाहे पूणर् रूप से या भागत:) िनभर्र है ; या
(ग) यथािस्थित, कोई पर्ितदावा ।
(3) इस आदेश के अधीन संिक्षप्त िनणर्य के िलए कोई आवेदन, िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी, िकसी वािणिज्यक िववाद
की बाबत िकसी ऐसे वाद म नह िकया जाएगा, जो मूल रूप से आदेश 37 के अधीन िकसी संिक्षप्त वाद के रूप म फाइल िकया गया है ।
2. संिक्षप्त िनणर्य के िलए आवेदन का पर्कर्मआवेदक, पर्ितवादी पर समन की तामील िकए जाने के पश्चात् िकसी भी समय
संिक्षप्त िनणर्य के िलए आवेदन कर सके गा :
परं तु ऐसे आवेदक ारा, संिक्षप्त िनणर्य के िलए कोई आवेदन वाद के संबंध म न्यायालय ारा िववा क िवरिचत िकए जाने
के पश्चात् नह िकया जाएगा ।
3. संिक्षप्त िनणर्य के िलए आधारन्यायालय िकसी दावे पर िकसी वादी या पर्ितवादी के िवरु संिक्षप्त िनणर्य दे सके गा
यिद उसका यह िवचार है िक,
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 63 ारा (1-2-1977 से) परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
101
(क) यथािस्थित, वादी की दावे पर सफल होने की वास्तिवक संभावना नह है या पर्ितवादी ारा दावे का
सफलतापूवर्क पर्ितवाद करने की वास्तिवक संभावना नह है; और
(ख) इस बात का कोई अन्य बाध्यकारी कारण नह है िक दावे का मौिखक सा य अिभिलिखत करने के पहले
िनपटारा क्य नह िकया जाना चािहए ।
4. पर्िकर्या(1) न्यायालय को संिक्षप्त िनणर्य के िलए िकए गए िकसी आवेदन म, ऐसे िकन्ह िवषय के अितिरक्त, िजन्ह
आवेदक सुसंगत समझे, इसके अंतगर्त नीचे विणत उपखंड (क) से उपखण्ड (च) म विणत िवषय ह गे
(क) आवेदन म इस बात का कथन अवश्य अंतिवष्ट होना चािहए िक यह आवेदन इस आदेश के अधीन संिक्षप्त
िनणर्य के िलए िकया गया है ;
(ख) आवेदन म पर्िमतत: सभी ताित्त्वक तथ्य अवश्य पर्कट िकए जाने चािहएं और िविध के पर्श्न, यिद कोई ह , की
पहचान की जानी चािहए ;
(ग) यिद आवेदक, िकसी दस्तावेजी सा य पर िनभर्र करने की ईप्सा करता है, तो आवेदक ारा अवश्य
(i) अपने आवेदन म ऐसे दस्तावेजी सा य सिम्मिलत िकए जाने चािहएं ; और
(ii) ऐसे दस्तावेजी सा य की सुसंगत अन्तवर्स्तु की पहचान की जानी चािहए िजस पर आवेदक िनभर्र
करता है ;
(घ) आवेदन म अवश्य इस बात के कारण बताएगा िक, यथािस्थित, दावे म सफल होने या दावे का पर्ितवाद करने
की वस्तुत: कोई संभावनाएं क्य नह ह ;
(ङ) आवेदन म अवश्यक इस बात का उल्लेख िक आवेदक िकस अनुतोष की ईप्सा कर रहा है और उसम ऐसे
अनुतोष की ईप्सा करने का संिक्षप्त कथन िकया जाना चािहए ।
(2) जहां संिक्षप्त िनणर्य के िलए कोई कोई सुनवाई िनयत कर दी जाती है, वहां पर्त्यथ को कम से कम तीस िदन की सूचना
िनम्निलिखत के बारे म अवश्य दी जानी चािहए
(क) सुनवाई के िलए िनयत तारीख ; और
(ख) दावा, िजसका ऐसी सुनवाई म न्यायालय ारा िविनश्चय िकया जाना पर्स्तािवत है ।
(3) पर्त्यथ , संिक्षप्त िनणर्य के आवेदन की सूचना या सुनवाई की सूचना की पर्ािप्त (जो भी पूवर्तर हो) के तीस िदन के भीतर
ऐसे िकन्ह अन्य िवषय के अितिरक्त, िजन्ह पर्त्यथ सुसंगत समझता है नीचे विणत खंड (क) से खंड (च) म विणत िवषय के पर्ित उ र
दे सके गा
(क) उ र म पर्िमतत:
(i) सभी ताित्त्वक तथ्य अवश्य पर्कट िकए जाने चािहएं ; और
(ii) िविध के पर्श्न की, यिद कोई हो, अवश्य पहचान की जाएगी ; और
(iii) वे कारण अवश्य बताए जाने चािहएं िक आवेदक ारा ईिप्सत अनुतोष क्य मुजूर नह िकया जाना
चािहए ;
(ख) यिद पर्त्यथ अपने उ र म िकसी दस्तावेजी सा य पर िनभर्र करने की ईप्सा करता है तो पर्त्यथ ारा
अवश्य,
(i) अपने उ र म ऐसे दस्तावेजी सा य सिम्मिलत िकए जाने चािहएं ; और
(ii) ऐसे दस्तावेजी सा य की सुसंगत अन्तवर्स्तु की पहचान की जानी चािहए िजस पर पर्त्यथ िनभर्र
करता है ;
(ग) उ र म इस बात के कारण अवश्य बताए जाने चािहएं िक, यथािस्थित, दावे म सफल होने या दावे का
पर्ितवाद करने की वस्तुत: कोई संभावनाएं क्य नह ह ;
(घ) उ र म पर्िमतत: उन िववा क का कथन अवश्य होना चािहए, जो िवचारण के िलए िवचिरत िकए जाने
चािहएं ;
(ङ) उ र म इस बात की पहचान अवश्य की जानी चािहए िक िवचारण पर ऐसा कौन सा अितिरक्त सा य
अिभलेख पर लाया जाएगा जो संिक्षप्त िनणर्य के पर्कर्म पर अिभलेख पर नह लाया जा सका ; और
102
(च) उ र म यह अवश्य कथन होना चािहए िक अिभलेखब सा य या सामगर्ी, यिद कोई हो, के पर्काश म
न्यायालय को संिक्षप्त िनणर्य की कायर्वाही क्य नह करनी चािहए ।
5. संिक्षप्त िनणर्य की सुनवाई के िलए सा य(1) इस आदेश म िकसी बात होते हुए भी, यिद पर्त्यथ संिक्षप्त िनणर्य के
िकसी आवेदन म सुनवाई के दौरान अितिरक्त दस्तावेजी सा य पर िनभर्र करने की इच्छा करता है, तो पर्त्यथ को—
(क) ऐसा दस्तावेजी सा य आवश्य फाइल करना चािहए, और
(ख) ऐसे दस्तावेजी सा य की पर्ितयां, आवेदन के पर्त्येक अन्य पक्षकार पर, सुनवाई की तारीख से कम से कम पन्दर्ह
िदन पूवर्, अवश्य तामील करनी चािहए ।
(2) इस आदेश म िकसी बात के होते हुए भी, यिद संिक्षप्त िनणर्य के िलए आवेदक, पर्ितवादी के दस्तावेजी सा य के उ र म
दस्तावेजी सा य पर िनभर्र करने की इच्छा करता है, तो आवेदक को—
(क) उ र म ऐसा दस्तावेजी सा य अवश्य फाइल करना चािहए ; और
(ख) ऐसे दस्तावेजी सा य की पर्ित की पर्त्यथ पर, सुनवाई की तारीख से कम से कम पांच िदन पूवर्, अवश्य तामील
करनी चािहए ।
(3) तत्पर्ितकू ल िकसी बात के होते हुए भी, उपिनयम (1) और उपिनयम (2) म, दस्तावेजी सा य
(क) फाइल िकया जाना अपेिक्षत नह होगा यिद ऐसा दस्तावेजी सा य पहले ही फाइल िकया जा चुका है ; या
(ख) उस पक्षकार पर तामील करना अपेिक्षत नह होगा िजस पर उसकी पहले ही तामील की जा चुकी है ।
6. आदेश, जो न्यायालय ारा िकए जा सकगे(1) इस आदेश के अधीन िकए गए िकसी आवेदन पर, न्यायालय, ऐसे आदेश
कर सके गा जो वह स्विववेकानुसार उिचत समझे, िजसम िनम्निलिखत भी ह,
(क) दावे पर िनणर्य का आदेश ;
(ख) इसम नीचे विणत िनयम 7 के अनुसार सशतर् आदेश ;
(ग) आवेदन को खािरज करने का आदेश ;
(घ) दावे के भाग को खािरज करने का और दावे के भाग पर िनणर्य का आदेश जो िक खािरज नह िकया गया है ;
(ङ) अिभवचन को (चाहे पूणर्त: या भागत:) हटाने का आदेश ; या
(च) आदेश 15क के अधीन वाद पर्बंधन के िलए कायर्वाही करने के और िनदेश देने का आदेश ।
(2) जहां न्यायालय उपिनयम (1) (क) से उपिनयम (1) (च) म से कोई आदेश करता है, वहां न्यायालय ऐसा आदेश करने के
अपने कारण अिभिलिखत करे गा ।
7. सशतर् आदेश(1) जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक इस बात की संभावना है िक दावा या पर्ितवाद सफल हो
जाए िकतु यह अनिधसंभाव्य है िक वह ऐसा करे गा, वहां न्यायालय िनयम 6(1) (ख) म यथा उपविणत कोई सशतर् आदेश कर सके गा ।
(2) जहां न्यायालय कोई सशतर् आदेश करता है, वहां वह
(क) ऐसा िनम्निलिखत सभी शत या उनम से िकसी के अधीन रहते हुए कर सके गा :
(i) पक्षकार से न्यायालय म धनरािश जमा करने की अपेक्षा करना ;
(ii) पक्षकार से, यथािस्थित, दावे या पर्ितवाद के संबंध म िविनिदष्ट कदम उठाने की अपेक्षा करना ;
(iii) पक्षकार से खच को वापस करने के िलए, यथािस्थित, ऐसी पर्ितभूित देने या ऐसे पर्ितभू की
व्यवस्था करने की अपेक्षा करना, जो न्यायालय ठीक और उिचत समझे ;
(iv) ऐसी अन्य शत अिधरोिपत करना, िजनके अंतगर्त ऐसी हािनय की क्षितपूित के िलए, जो िकसी
पक्षकार को वाद के लंिबत रहने के दौरान होने की संभावना है, ऐसी पर्ितभूित देना, जो न्यायालय स्विववेकानुसार
ठीक समझे ; और
(ख) सशतर् आदेश के अनुपालन म असफल रहने के पिरणाम को िविनिदष्ट कर सके गा िजसके अन्तगर्त ऐसे पक्षकार
के िवरु िनणर्य पािरत करना भी है िजसम सशतर् आदेश का अनुपालन नह िकया है ।
8. खच अिधरोिपत करने की शिक्तन्यायालय, संिहता की धारा 35 और धारा 35क के उपबंध के अनुसार संिक्षप्त िनणर्य
के िकसी आवेदन म खच के संदाय का आदेश कर सके गा ।]
103
आदेश 14
िववा क पर िकया जा सके गा, न्यायालय उपिनयम (2) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए सभी िववा क पर िनणर्य सुनाएगा ।
(2) जहां िविध िववा क और तथ्य िववा क दोन एक ही वाद म पैदा हुए ह और न्यायालय की यह राय है िक मामले या
उसके िकसी भाग का िनपटारा के वल िविध िववा क के आधार पर िकया जा सकता है वहां यिद वह िववा क
(क) न्यायालय की अिधकािरता, अथवा
(ख) तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा सृष्ट वाद के वजर्न,
से सम्बिन्धत है तो वह पहले उस िववा क का िवचारण करे गा और उस पर्योजन के िलए यिद वह ठीक समझे तो, वह अन्य िववा क
का िनपटारा तब तक के िलए मुल्तवी कर सके गा जब तक िक उस िववा क का अवधारण न कर िदया गया हो और उस वाद की
कायर्वाही उस िववा क के िविनश्चय के अनुसार कर सके गा ।]
3. वह सामगर्ी िजससे िववा क की िवरचना की जा सके गीन्यायालय िनम्निलिखत सभी सामगर्ी से या उसम से िकसी से
िववा क की िवरचना कर सके गा
(क) पक्षकार ारा या उनकी ओर से उपिस्थत िकन्ह व्यिक्तय ारा ऐसे पक्षकार के प्लीडर ारा शपथ पर
िकए गए अिभकथन ;
(ख) अिभवचन या वाद म पिरद पिरपर्श्न के उ र म िकए गए अिभकथन ;
(ग) दोन पक्षकार म से िकसी के ारा पेश की गई दस्तावेज की अन्तवर्स्तु ।
4. न्यायालय िववा क की िवरचना करने के पहले सािक्षय की या दस्तावेज की परीक्षा कर सके गाजहां न्यायालय की
यह राय है िक िकसी ऐसे व्यिक्त की परीक्षा िकए िबना जो न्यायालय के सामने नह है, या िकसी ऐसी दस्तावेज का िनरीक्षण िकए
िबना जो वाद म पेश नह की गई है, िववा क की ठीक-ठीक िवरचना नह की जा सकती है वहां 3 [वह िववा क की िवरचना िकसी
ऐसे िदन के िलए स्थिगत कर सके गा जो सात िदन के पश्चात् का न हो] और (तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन रहते हुए) समन या
अन्य आदेिशका ारा िववश करके िकसी व्यिक्त की हािजरी करा सके गा या उस व्यिक्त ारा िकसी दस्तावेज को पेश करा सके गा
िजसके कब्जे या शिक्त म वह दस्तावेज है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 64 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 64 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 24 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
104
िववा क का संशोधन और उन्ह काट देने की शिक्त(1) न्यायालय िडकर्ी पािरत करने से पूवर् िकसी भी समय ऐसे
1 [5.
िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे, िववा क म संशोधन कर सके गा या अितिरक्त िववा क की िवरचना कर सके गा और सभी ऐसे
संशोधन या अितिरक्त िववा क जो पक्षकार के बीच िववादगर्स्त बात के अवधारण के िलए आवश्यक ह , इस पर्कार संशोिधत िकए
जाएंगे या िवरिचत िकए जाएंगे ।
(2) न्यायालय िडकर्ी पािरत करने से पूवर् िकसी भी समय ऐसे िकन्ह िववा क को काट सके गा िजनके बारे म उसे पर्तीत
होता है िक वे गलत तौर पर िवरिचत या पुर: स्थािपत िकए गए ह ।]
6. तथ्य के या िविध के पर्श्न करार ारा िववा क के रूप म किथत िकए जा सकगेजहां वाद के पक्षकार तथ्य के या िविध
के ऐसे पर्श्न के बारे म रजामंद हो गए ह जो उनके बीच िविनिश्चत िकया जाना है वहां वे उसका िववा क के रूप म कथन कर सकगे
और िलिखत रूप म यह करार कर सकगे िक ऐसे िववा क पर न्यायालय के सकारात्मक या नकारात्मक िनष्कषर् पर
(क) ऐसी धनरािश जो करार म िविनिदष्ट है या न्यायालय ारा या ऐसी रीित से जो न्यायालय िनदेश करे ,
अिभिनिश्चत की जानी है, पक्षकार म से एक ारा उनम से दूसरे को संद की जाएगी या उनम से एक पक्षकार ऐसे िकसी
अिधकार का हकदार या ऐसे िकसी दाियत्व के अधीन घोिषत िकया जाएगा जो करार म िविनिदष्ट है ;
(ख) कोई सम्पि जो करार म िविनिदष्ट है और वाद म िववादगर्स्त है, पक्षकार म से एक ारा उनम से दूसरे को
या ऐसे पिरद की जाएंगी जैसे िक वह दूसरा िनदेश करे ; अथवा
(ग) पक्षकार म से एक या अिधक पक्षकार करार म िविनिदष्ट और िववादगर्स्त बात से सम्बिन्धत कोई िविशष्ट
कायर् करगे या करने से िवरत रहगे ।
7. यिद न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक करार का िनष्पादन सद्भावपूवक र् हुआ था तो वह िनणर्य सुना
सके गाजहां न्यायालय का ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह उिचत समझे, यह समाधान हो जाता है िक
(क) करार पक्षकार ारा सम्यक् रूप से िनष्पािदत िकया गया था ;
(ख) पूव क्त पर्श्न के िविनश्चय म उनका सारवान् िहत है; तथा
(ग) वह इस योग्य है िक उसका िवचारण और िविनश्चय िकया जाए,
वहां वह उस िववा क को अिभिलिखत करने और उसका िवचारण करने के िलए अगर्सर होगा,
और उस पर अपने िनष्कषर् या िविनश्चय उसी रीित से कथन करे गा मानो उस िववा क की िवरचना न्यायालय ारा की गई हो, और
ऐसे िववा क के िनष्कषर् या िविनश्चय के आधार पर वह करार के िनबन्धन के अनुसार िनणर्य सुनाएगा और इस पर्कार सुनाए गए
िनणर्य के अनुसरण म िडकर्ी होगी ।
2
* * * * *
3
[आदेश 15क
1
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 11 ारा (1-7-2002 से) िनयम 5 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा आदेश 15 का लोप िकया गया ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
105
(छ) मौिखक बहस करने के िलए पक्षकार और उनके अिधवक्ता के िलए समय सीमाएं तय करने वाला,
आदेश पािरत कर सके गा ।
3. िवचारण पूरा करने की समय सीमाइस आदेश के िनयम 2 के पर्योजन के िलए तारीख िनयत करने या समय सीमाएं
तय करने म न्यायालय यह सुिनिश्चत करे गा िक बहस पर्थम मामला पर्बंधन सुनवाई की तारीख से छह मास तक पूरी हो जाए ।
4. िदन पर्ितिदन आधार पर मौिखक सा य का अिभिलिखत िकया जानान्यायालय यथासंभव यह सुिनिश्चत करे गा िक
सा य का अिभलेखन िदन पर्ितिदन आधार पर तब तक िकया जाएगा, जब तक िक सभी सािक्षय की पर्ितपरीक्षा पूरी नह हो जाती है ।
5. िवचारण के दौरान मामला पर्बंधन सुनवाईन्यायालय, यिद आवश्यक हो, समुिचत आदेश जारी करने के िलए िवचारण
के दौरान िकसी भी समय मामला पर्बंधन सुनवाइयां भी कर सके गा िजससे िनयम 2 के अधीन िनयत तारीख का पक्षकार ारा पालन
सुिनिश्चत िकया जा सके और वाद के त्विरक िनपटान को सुकर बनाया जा सके ।
6. मामला पर्बंधन सुनवाई म न्यायालय की शिक्तयां(1) इस आदेश के अधीन हुई िकसी मामला पर्बंधन सुनवाई म,
न्यायालय को िनम्निलिखत के िलए शिक्त होगी
(क) िववा क को िवरिचत करने से पूवर्, आदेश 13क के अधीन पक्षकार ारा फाइल िकए गए लंिबत आवेदन पर
सुनवाई करना तथा उस पर िविनिश्चय करना ;
(ख) ऐसे दस्तावेज या अिभवचन के संकलन को, जो िववा क को िवरिचत करने के िलए सुसंगत तथा आवश्यक
ह , फाइल करने के िलए पक्षकार को िनदेश देना ;
(ग) िकसी प ित, िनदेश या न्यायालय आदेश का अनुपालन करने के िलए समय बढ़ाना या उसे कम करना, यिद
उसे ऐसा करने के िलए पयार्प्त कारण िदखाई पड़ता है ;
(घ) सुनवाई को स्थिगत करना या अगर्नीत करना, यिद न्यायालय को ऐसा करने के िलए पयार्प्त कारण िदखाई
पड़ता है ;
(ङ) आदेश 10 के िनयम 2 के अधीन परीक्षा के पर्योजन के िलए पक्षकार को न्यायालय म हािजर होने के िलए
िनदेश देना ;
(च) कायर्वािहय को समेिकत करना ;
(छ) िकसी साक्षी के नाम अथवा ऐसे सा य को हटाना, िजसे वह िवरिचत िववा क के पर्ित असंगत समझे ;
(ज) िकसी िववा क के पृथक् िवचारण का िनदेश देना ;
(झ) ऐसे आदेश का िविनश्चय करना, िजसम िववा क पर िवचारण िकया जाएगा ;
(ञ) िकसी िववा क को उस पर िवचार िकए जाने से अपविजत करना ;
(ट) पर्ारं िभक िववा क पर िविनश्चय के पश्चात् िकसी दावे को खािरज करना या उस पर िनणर्य देना ;
(ठ) आदेश 26 के अनुसार, जहां आवश्यक हो, िकसी कमीशन ारा सा य को अिभिलिखत िकए जाने का िनदेश
देना ;
(ड) पक्षकार ारा फाइल िकए गए ऐसे सा य के िकसी शपथ-पतर् को, िजसम असंगत, अगर्ा या तकार्त्मक
सागगर्ी अन्तिवष्ट है, नामंजूर करना ;
(ढ) पक्षकार ारा फाइल िकए गए सा य के शपथ-पतर् के िकसी भाग को िजसम असंगत, अगर्ा या तकार्त्मक
सामगर्ी अन्तिवष्ट है, हटाना ;
(ण) सा य के अिभलेखन कायर् इस पर्योजन के िलए न्यायालय ारा िनयुक्त ऐसे पर्ािधकारी को पर्त्यायोिजत
करना ;
(त) िकसी कमीशन या िकसी अन्य पर्ािधकारी ारा सा य अिभलेखन को मानीटर करने से संबंिधत कोई आदेश
पािरत करना ;
(थ) िकसी पक्षकार को खच के बजट को फाइल करने तथा उसका आदान-पर्दान करने के िलए आदेश देना ;
(द) मामले का पर्बंधन करने और वाद के दक्षतापूवर्क िनपटान को सुिनिश्चत करने के अध्यारोही उ ेश्य को अगर्सर
करने के पर्योजन के िलए िनदेश जारी करना या कोई आदेश पािरत करना ।
(2) जब न्यायालय इस आदेश के अधीन अपनी शिक्तय का पर्योग करते हुए आदेश पािरत करता है तो वह,
106
(क) ऐसा आदेश, ऐसी शत के अधीन रहते हुए, िजनम एक शतर् न्यायालय म धनरािश का संदाय करने की भी है,
कर सके गा ; और
(ख) आदेश या िकसी शतर् का अनुपालन करने म असफल रहने के पिरणाम को िविनिदष्ट कर सके गा ।
(3) मामला पर्बंधन सुनवाई की तारीख िनयत करते समय, यिद न्यायालय का यह मत है िक पक्षकार के बीच समझौते की
संभावना है तो वह ऐसी मामला पर्बंधन सुनवाई म पक्षकार को भी उपिस्थत रहने का िनदेश दे सके गा ।
7. मामला पर्बंधन सुनवाई का स्थगन(1) न्यायालय मातर् इस कारण से िक िकसी पक्षकार की ओर से उपसंजात होने वाला
अिधवक्ता उपिस्थत नह है, मामला पर्बंधन सुनवाई स्थिगत नह करे गा :
परन्तु यिद सुनवाई के स्थगन की ईप्सा, अिगर्म म आवेदन करके की जाती है, तो न्यायालय ऐसे आवेदन करने वाले पक्षकार
ारा ऐसे खच के संदाय पर, जो वह ठीक समझे, सुनवाई को िकसी अन्य तारीख तक स्थिगत कर सके गा ।
(2) इस िनयम म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, यिद न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक अिधवक्ता की
अनुपिस्थित का न्यायोिचत कारण है तो वह ऐसे िनबंधन और शत पर, जो वह ठीक समझे, सुनवाई को िकसी अन्य तारीख तक
स्थिगत कर सके गा ।
8. आदेश के अननुपालन के पिरणामजहां कोई पक्षकार मामला पर्बंधन सुनवाई म पािरत न्यायालय के आदेश का
अनुपालन करने म असफल रहता है, वहां न्यायालय को िनम्निलिखत की शिक्त होगी,--
(क) न्यायालय को खच के संदाय पर, ऐसे अननुपालन को माफ करना ;
(ख) िवचारण म, यथािस्थित, अनुपालन न करने वाले पक्षकार के शपथ-पतर् फाइल करने, सािक्षय की पर्ितपरीक्षा
करने, िलिखत िनवेदन फाइल करने, मौिखक बहस करने या आगे और तकर् देने के अिधकार को पुरोबंध करना ; या
(ग) जहां ऐसा अननुपालन जानबूझकर िकया गया है, पुन: िकया गया है और खच का अिधरोपण, अनुपालन
सुिनिश्चत करने के िलए पयार्प्त नह है, वहां वादपतर् को खािरज करना या वाद को मंजूर करना ।]
आदेश 16
िववा क का िनपटारा कर िदए जाने से पन्दर्ह िदन पश्चात् न हो, पक्षकार न्यायालय म ऐसे सािक्षय की सूची पेश करगे िजन्ह वे या
तो सा य देने के िलए या दस्तावेज को पेश करने के िलए बुलाने की पर्स्थापना करते ह और न्यायालय म ऐसे व्यिक्तय की हािजरी के
िलए उनके नाम समन अिभपर्ाप्त करगे ।
(2) यिद कोई पक्षकार िकसी व्यिक्त की हािजरी के िलए कोई समन अिभपर्ाप्त करना चाहता है तो वह पक्षकार न्यायालय म
आवेदन उसम उस पर्योजन का कथन करते हुए फाइल करे गा िजसके िलए साक्षी को समन िकया जाना पर्स्थािपत है ।
(3) न्यायालय कारण अिभिलिखत करते हुए पक्षकार को िकसी ऐसे साक्षी की जो उपिनयम (1) म िनिदष्ट सूची म विणत
नाम से िभन्न हो, चाहे न्यायालय की माफर् त समन ारा या अन्यथा बुलाने की अनुमित के वल तभी दे सके गा जब ऐसा पक्षकार उक्त
सूची म ऐसे साक्षी के नाम का वणर्न करने म लोप के िलए पयार्प्त कारण दिशत कर दे ।
(4) उपिनयम (2) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, इस िनयम म िनिदष्ट समन पक्षकार ारा न्यायालय से या ऐसे अिधकारी
से जो 2 [उपिनयम (1) के अधीन सािक्षय की सूची पर्स्तुत करने के पांच िदन के भीतर न्यायालय ारा इस िनिम ] िनयुक्त िकया जाए,
आवेदन करके अिभपर्ाप्त िकए जा सकगे ।]
[1क. समन के िबना सािक्षय का पेश िकया जानािनयम 1 के उपिनयम (3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, वाद का कोई
3
पक्षकार िनयम (1) के अधीन समन के िलए आवेदन िकए िबना िकसी साक्षी को सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए ला सके गा ।]
2. समन के िलए आवेदन करने पर, साक्षी के व्यय न्यायालय म जमा कर िदए जाएंग े (1) समन के िलए आवेदन करने वाला
पक्षकार समन के अनुद िकए जाने के पहले और उस अविध के भीतर जो िनयत की जाए 4 [जो िनयम 1 के उपिनयम (4) के अधीन
आवेदन करने की तारीख से सात िदन के पश्चात् की न हो] ऐसी रािश न्यायालय म जमा करे गा जो समिनत व्यिक्त के उस न्यायालय
तक िजसम हािजर होने की अपेक्षा उससे की गई है, आने और वहां से जाने के यातर्ा सम्बन्धी और अन्य व्यय और एक िदन की हािजरी
के व्यय को चुकाने के िलए न्यायालय को पयार्प्त पर्तीत हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 25 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1क के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 25 ारा (1-7-2002 से) अंत:स्थािपत ।
107
(2) िवशेषज्ञइस िनयम के अधीन देय रकम का अवधारण करने म न्यायालय, िवशेषज्ञ के नाते सा य देने के िलए समिनत
िकसी व्यिक्त की दशा म उस समय के िलए युिक्तयुक्त पािरशर्िमक अनुज्ञात करे गा जो सा य देने म और मामले के िलए आवश्यक
िवशेषज्ञीय स्वरूप के िकसी कायर् के करने म लगा हो ।
(3) व्यय का मापमानजहां न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है वहां ऐसे व्यय का मापमान िनयत करने म उन
िनयम का ध्यान रखा जाएगा जो उस िनिम बनाए गए ह ।
[(4) व्यय का सािक्षय को सीधे संदाय िकया जानाजहां पक्षकार ारा समन साक्षी पर सीधे तामील िकया जाता है वहां
1
उपिनयम (1) म िनिदष्ट व्यय साक्षी को पक्षकार या उसके अिभकतार् ारा संद िकया जाएगा ।]
3. साक्षी को व्यय का िनिवदानयिद समन की तामील समिनत व्यिक्त पर वैयिक्तक रूप से की जा सकती है तो समन की
तामील करते समय वह रािश जो न्यायालय म ऐसे जमा की गई है, समिनत व्यिक्त को िनिवद की जाएगी ।
4. जहां अपयार्प्त रािश जमा की गई है वहां पर्िकर्या(1) जहां न्यायालय को या ऐसे अिधकारी को िजसे वह इस िनिम
िनयुक्त करता है यह पर्तीत होता है िक न्यायालय म जमा की गई रािश ऐसे व्यय या युिक्तयुक्त पािरशर्िमक को पूरा करने के िलए
पयार्प्त नह है वहां न्यायालय समिनत व्यिक्त को ऐसी अितिरक्त रािश के िदए जाने के िलए िनदेश दे सके गा जो उस भ े आवश्यक
पर्तीत होती हो और संदाय करने म व्यितकर्म की दशा म यह आदेश दे सके गा िक ऐसी रािश समन करने वाले पक्षकार की जंगम संपि
की कु क और िवकर्य के ारा उद्गृहीत की जाए या न्यायालय समिनत व्यिक्त से सा य देने की अपेक्षा िकए िबना उसे उन्मोिचत कर
सके गा या ऐसे उद्गर्हण का और ऐसे व्यिक्त के यथापूव क्त उन्मोचन दोन का आदेश दे सके गा ।
(2) एक िदन से अिधक रोके जाने पर सािक्षय के व्ययजहां समिनत व्यिक्त को एक िदन से अिधक अविध के िलए रोक
रखना आवश्यक है वहां न्यायालय समय-समय पर उस पक्षकार को िजसकी पर्ेरणा पर वह समिनत िकया गया था, न्यायालय म ऐसी
रािश जमा करने का आदेश दे सके गा जो ऐसी अितिरक्त अविध के िलए उसके रोक रखने के व्यय को चुकाने के िलए पयार्प्त हो और
ऐसे िनक्षेप करने म व्यितकर्म होने पर आदेश दे सके गा िक ऐसी रािश ऐसे पक्षकार की जंगम संपि की कु क और िवकर्य के ारा
उद्गृहीत की जाए या न्यायालय समिनत व्यिक्त से सा य देने की अपेक्षा िकए िबना उसे उन्मोिचत कर सके गा या ऐसे उद्गर्हण का और
ऐसे व्यिक्त के यथापूव क्त उन्मोचन दोन का आदेश दे सके गा ।
5. हािजरी के समय, स्थान और पर्योजन का समन म िविनिदष्ट िकया जानासा य देने या दस्तावेज पेश करने को िकसी
व्यिक्त की हािजरी के िलए हर समन म वह समय और स्थान िविनिदष्ट होगा िजसम वह हािजर होने के िलए अपेिक्षत है और यह भी
िविनिदष्ट होगा िक उसकी हािजरी सा य देने के पर्योजन के िलए या दस्तावेज पेश करने के पर्योजन के िलए या दोन पर्योजन के िलए
अपेिक्षत है और ऐसी कोई िविशष्ट दस्तावेज िजसे पेश करने की समिनत व्यिक्त से अपेक्षा की गई है, समन म युिक्तयुक्त शु ता के
साथ विणत होगी ।
6. दस्तावेज पेश करने के िलए समनकोई भी व्यिक्त सा य देने के िलए समन िकए िबना, दस्तावेज पेश करने के िलए
समन िकया जा सके गा और के वल दस्तावेज पेश करने के िलए ही समिनत कोई व्यिक्त, यिद उसे पेश करने के िलए स्वयं हािजर होने के
बदले ऐसी दस्तावेज को पेश करवा देता है तो उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसने समन का अनुपालन कर िदया है ।
7. न्यायालय म उपिस्थत व्यिक्तय को सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए अपेिक्षत करने की शिक्तन्यायालय म
उपिस्थत िकसी भी व्यिक्त से न्यायालय यह अपेक्षा कर सके गा िक वह व्यिक्त सा य दे या ऐसी कोई दस्तावेज पेश करे , जो उस समय
और वहां उसके कब्जे या शिक्त म है ।
[7क. तामील के िलए पक्षकार को समन का िदया जाना(1) न्यायालय िकसी व्यिक्त की हािजरी के िलए समन िनकालने
1
के िलए िकसी पक्षकार के आवेदन पर, ऐसे पक्षकार को उस व्यिक्त पर समन की तामील करने के िलए अनुज्ञा दे सके गा और ऐसी दशा
म उस पक्षकार को तामील के िलए समन पिरद करे गा ।
(2) ऐसे समन की तामील ऐसे पक्षकार ारा या उसकी ओर से साक्षी की वैयिक्तक रूप से उसकी पर्ित जो न्यायाधीश ारा
या न्यायालय के ऐसे अिधकारी ारा िजसे वह इस िनिम िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत हो और जो न्यायालय की मुदर्ा से मुदर्ांिकत हो,
पिरद या िनिवद करके की जाएगी ।
(3) आदेश 5 के िनयम 16 और िनयम 18 के उपबन्ध इस अिधिनयम के अधीन वैयिक्तक रूप से तामील िकए गए समन को
इस पर्कार लागू ह गे मानो तामील करने वाला व्यिक्त तामील करने वाला अिधकारी हो ।
(4) यिद ऐसा समन िनिवद िकए जाने के समय अगृहीत कर िदया जाता है या वह व्यिक्त िजस पर तामील की गई है,
तामील की अिभस्वीकृ ित पर हस्ताक्षर करने से इं कार कर देता है या िकसी कारण से ऐसा समन वैयिक्तक रूप से तामील नह िकया जा
सकता है तो न्यायालय पक्षकार के आवेदन पर ऐसा समन उसी रीित से न्यायालय ारा तामील िकए जाने के िलए िजससे पर्ितवादी को
समन तामील िकया जाता है, पुन: िनकालेगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
108
(5) जहां इस िनयम के अधीन पक्षकार ारा समन तामील िकया जाता है वहां पक्षकार से ऐसी फीस संद करने की अपेक्षा
नह की जाएगी जो समन की तामील के िलए अन्यथा पर्भायर् होती । ]
8. समन की तामील कै से होगी 1 [इस आदेश के अधीन हर समन की तामील जो िनयम 7क के अधीन पक्षकार को तामील के
िलए पिरद समन नह है,] जहां तक संभव हो सके , वैसी ही रीित से की जाएगी जैसी पर्ितवादी के नाम िनकाले गए समन की तामील
की जाती है और आदेश 5 के वे िनयम जो तामील के सबूत से सम्बिन्धत ह, उन सभी समन की दशा म लागू ह गे िजनकी तामील इस
िनयम के अधीन की गई है ।
9. समन की तामील के िलए समयसभी दशा म तामील उस समय से पयार्प्त समय पूवर् की जाएगी जो समिनत व्यिक्त
की हािजरी के िलए समन म िविनिदष्ट हो, िजससे उसे तैयारी करने के िलए और उस स्थान तक जहां पर उसकी हािजरी अपेिक्षत है,
यातर्ा करने के िलए युिक्तयुक्त समय िमल सके ।
10. जहां साक्षी समन का अनुपालन करने म असफल रहता है वहां पर्िकर्या 2 [(1) जहां वह व्यिक्त िजसके नाम सा य देने
को हािजर होने के िलए या दस्तावेज पेश करने के िलए समन िनकाला गया है, ऐसे समन के अनुपालन म हािजर होने या दस्तावेज पेश
करने म असफल रहता है वहां न्यायालय
(क) यिद तामील करने वाले अिधकारी का पर्माणपतर् शपथपतर् ारा सत्यािपत नह िकया गया है या यिद समन की
तामील पक्षकार या उसके अिभकतार् ारा कराई गई है तो, यथािस्थित, तामील करने वाले ऐसे अिधकारी या पक्षकार या
उसके अिभकतार् की िजसने शपथपतर् की तामील कराई थी, समन की तामील होने या न होने के बारे म शपथपतर् करे गा या
िकसी न्यायालय ारा उसकी इस पर्कार परीक्षा कराएगा ; अथवा
(ख) यिद तामील करने वाले अिधकारी का पर्माणपतर् इस पर्कार सत्यािपत िकया गया है तो, यथािस्थित, तामील
करने वाले ऐसे अिधकारी या पक्षकार या उसके अिभकतार् की िजसने शपथपतर् की तामील कराई थी, समन की तामील होने
या न होने के बारे म शपथपतर् पर परीक्षा कर सके गा या िकसी न्यायालय ारा उसकी इस पर्कार परीक्षा करा सके गा ।]
(2) जहां न्यायालय को यह िवश्वास करने के िलए कारण िदखाई देता है िक ऐसा सा य या ऐसा पेश िकया जाना ताित्त्वक है
और ऐसे समन के अनुपालन म हािजर होने या ऐसी दस्तावेज पेश करने म ऐसा व्यिक्त िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना असफल रहा है या
उसने तामील से अपने को साशय बचाया है वहां वह उससे यह अपेक्षा करने वाली उद्घोषणा िनकाल सके गा िक वह उसम नािमत
समय और स्थान म सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए हािजर हो और ऐसी उद्घोषणा की पर्ित उस गृह के बाहर ार पर या
अन्य सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी िजसम वह मामूली तौर से िनवास करता है ।
(3) न्यायालय ऐसे व्यिक्त की िगरफ्तारी के िलए वारं ट पर्ितभूित के सिहत या िबना ऐसी उद्घोषणा के बदले म या उसे
िनकालने के समय या तत्पश्चात् िकसी भी समय, स्विववेकानुसार िनकाल सके गा और उसकी सम्पि की कु क के िलए आदेश ऐसी
कु क के खच की और िनयम 12 के अधीन अिधरोिपत िकए जाने वाले िकसी जुमार्ने की रकम से अनिधक ऐसी रकम के िलए कर सके गा
जो वह ठीक समझे :
परन्तु कोई भी लघुवाद न्यायालय स्थावर सम्पि की कु क के िलए आदेश नह करे गा ।
11. यिद साक्षी उपसंजात हो जाता है तो कु क पर्त्याहृत की जा सके गीजहां ऐसा व्यिक्त अपनी सम्पि की कु क के
पश्चात् िकसी समय उपसंजात हो जाता है और
(क) न्यायालय का समाधान कर देता है िक समन का अनुपालन करने म वह िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना असफल
नह रहा है या उसने तामील से अपने को साशय नह बचाया है, तथा
(ख) जहां वह अिन्तम पूवव
र् त िनयम के अधीन िनकाली गई उद्घोषणा म नािमत समय और स्थान म हािजर होने
म असफल रहा है वहां न्यायालय का समाधान कर देता है िक ऐसी उद्घोषणा की कोई सूचना उसे ऐसे समय पर नह हुई थी
िक वह हािजर हो सकता,
वहां न्यायालय यह िनदेश देगा िक सम्पि कु क से िनमुर्क्त की जाए और कु क के खच के सम्बन्ध म वह ऐसा आदेश करे गा जो वह
ठीक समझे ।
12. यिद साक्षी उपसंजात होने म असफल रहता है तो पर्िकर्या 3 [(1)] जहां ऐसा व्यिक्त उपसंजात नह होता है या
उपसंजात तो होता है िकन्तु न्यायालय का समाधन करने म असफल रहता है वहां न्यायालय उसकी सांसािरक िस्थित और मामले की
सभी पिरिस्थितय को ध्यान म रखते हुए पांच सौ रुपए से अनिधक ऐसा जुमार्ना उस पर अिधरोिपत कर सके गा जो वह ठीक समझे
और इस पर्योजन से िक यिद कोई युक्त जुमार्ना हो तो उस जुमार्ने की रकम के सिहत ऐसी कु क के सभी खच को चुकाया जो सके यह
आदेश दे सके गा िक उसकी सम्पि या उसका कोई भाग कु कर् िकया जाए और उसका िवकर्य िकया जाए या यिद वह पहले ही िनयम 10
के अधीन कु कर् िकया जा चुका है तो उसका िवकर्य िकया जाए :
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) िनयम 12 को उपिनयम (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
109
परन्तु यिद वह व्यिक्त िजसकी हािजरी अपेिक्षत है उक्त खच और जुमार्ने को न्यायालय म जमा कर देता है तो न्यायालय
सम्पि को कु क से िनमुर्क्त िकए जाने का आदेश देगा ।
[(2) इस बात के होते हुए भी िक न्यायालय ने न तो िनयम 10 के उपिनयम (2) के अधीन उद्घोषणा िनकाली है, और न उस
1
िनयम के उपिनयम (3) के अधीन वारं ट िनकाला है और न कु क का आदेश िकया है, न्यायालय ऐसे व्यिक्त को यह हेतुक दिशत करने के
िलए सूचना देने के पश्चात् िक जुमार्ना क्य नह अिधरोिपत िकया जाना चािहए, इस िनयम के उपिनयम (1) के अधीन जुमार्ना
अिधरोिपत कर सके गा ।]
13. कु क करने का ढंगिडकर्ी के िनष्पादन म सम्पि की कु क और िवकर्य के बारे म उपबन्ध जहां तक िक वे लागू होने
योग्य ह , इस आदेश के अधीन िकसी कु क और िवकर्य को उसी पर्कार लागू समझे जाएंगे मानो वह िजसकी सम्पि इस पर्कार कु कर् की
गई है, िनण तऋणी हो ।
14. जो व्यिक्त वाद म पर व्यिक्त ह उन्ह न्यायालय सािक्षय के रूप म स्वपर्ेरणा से समन कर सके गाहािजरी और
उपिस्थित के बारे म इस संिहता के उपबन्ध और तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन रहते हुए, जहां न्यायालय िकसी भी समय यह
आवश्यक समझता है िक 2 [िकसी ऐसे व्यिक्त की परीक्षा की जाए िजसके अन्तगर्त वाद का पक्षकार भी है] और जो वाद के पक्षकार ारा
साक्षी के रूप म नह बुलाया गया है वहां न्यायालय स्वपर्ेरणा से ऐसे व्यिक्त को, ऐसे िदन जो िनयत िकया जाएगा, सा य देने के िलए
या अपने कब्जे म की कोई दस्तावेज पेश करने के िलए साक्षी के रूप म समन करवा सके गा और साक्षी के रूप म उसकी परीक्षा कर
सके गा या उससे ऐसी दस्तावेज पेश करने के िलए अपेक्षा कर सके गा ।
15. उन व्यिक्तय का कतर्व्य जो सा य देने या दस्तावेज पेश करने के िलए समन िकए गए हठीक ऊपर वाले िनयम के
अधीन रहते हुए कोई व्यिक्त जो िकसी वाद म उपसंजात होने और सा य देने के िलए समन िकया जाता है वह उस पर्योजन के िलए
समन म नािमत समय और स्थान म हािजर होगा और कोई व्यिक्त जो दस्तावेज पेश करने के िलए समन िकया जाता है वह ऐसे समय
पर और ऐसे स्थान म या तो उसे पेश करने के िलए हािजर होगा या उसे पेश कराएगा ।
16. वे कब पर्स्थान कर सकगे(1) इस पर्कार समिनत और हािजर होने वाला व्यिक्त, जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश
न करे , हर एक सुनवाई म तब तक हािजर होता रहेगा जब तक िक वाद का िनपटारा न हो जाए ।
(2) दोन पक्षकार म से िकसी भी आवेदन पर और न्यायालय की माफर् त समस्त आवश्यक व्यय के (यिद कोई ह ) संद िकए
जाने पर, न्यायालय इस पर्कार समिनत और हािजर होने वाले िकसी भी व्यिक्त से अपेक्षा कर सके गा िक वह अगली या िकसी अन्य
सुनवाई म या तब तक, जब तक िक वाद का िनपटारा न हो जाए, हािजर होने के िलए पर्ितभूित दे और ऐसी पर्ितभूित देने म उसके
व्यितकर्म करने पर आदेश कर सके गा िक उसे िसिवल कारगार म िनरु िकया जाए ।
17. िनयम 10 से िनयम 13 तक का लागू होनािनयम 10 से िनयम 13 तक के उपबन्ध के बारे म जहां तक िक वे लागू होने
योग्य ह, यह समझा जाएगा िक वे िकसी भी ऐसे व्यिक्त को लागू होते ह, जो समन के अनुपालन म हािजर होने पर, िनयम 16 के
उल्लंघन म िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना पर्स्थान कर गया है ।
18. जहां पकड़ा गया साक्षी सा य नह दे सकता या दस्तावेज पेश नह कर सकता वहां पर्िकर्याजहां वारं ट के अधीन
िगरफ्तार िकया गया कोई व्यिक्त न्यायायलय के समक्ष अिभरक्षा म लाया जाता है और पक्षकार की या उनम से िकसी की अनुपिस्थित
के कारण वह ऐसा सा य नह दे सकता है या ऐसी दस्तावेज पेश नह कर सकता है िजसे देने या पेश करने के िलए वह समन िकया गया
है वहां न्यायालय उससे यह अपेक्षा कर सके गा िक वह ऐसे समय और ऐसे स्थान म जो न्यायालय ठीक समझे, अपनी उपसंजाित के िलए
युिक्तयुक्त जमानत या अन्य पर्ितभूित दे और ऐसी जमानत या पर्ितभूित के िदए जाने पर उसे िनमुर्क्त कर सके गा और उसके ऐसी
जमानत या पर्ितभूित देने म व्यितकर्म करने पर आदेश दे सके गा िक उसे िसिवल कारागार म िनरु िकया जाए ।
19. जब तक िक कोई साक्षी िकन्ह िनिश्चत सीमा के भीतर का िनवासी न हो वह स्वयं हािजर होने के िलए आिदष्ट नह
िकया जाएगािकसी भी व्यिक्त को स्वयं हािजर होने के िलए के वल तभी आदेश िकया जाएगा जब वह
(क) न्यायालय की मामूली आरिम्भक अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर, अथवा
(ख) ऐसी सीमा के बाहर िकन्तु ऐसे स्थान म जो न्याय-सदन से 3 [एक सौ िकलोमीटर] से कम या (जहां उस
स्थान के जहां वह िनवास करता है और उस स्थान के जहां न्यायालय िस्थत है, बीच पंचषष्टांश दूरी तक रे ल या स्टीमर
संचार या अन्य स्थािपत लोक पर्वहण है वहां) 4 [पांच सौ िकलोमीटर] से कम दूर है,
िनवास करता है :
[परन्तु जहां इस िनयम म विणत दोन स्थान के बीच वायु मागर् ारा यातायात उपलब्ध है और साक्षी को वायु मागर् का
1
यातर्ी भाड़ा संद िकया गया है, वहां उसे स्वयं हािजर होने का आदेश िकया जा सके गा ।]
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) “पचास मील” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 66 ारा (1-2-1977 से) “दो सौ मील” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
110
20. न्यायालय ारा बुलाए जाने पर सा य देने से पक्षकार के इं कार का पिरणामजहां वाद का ऐसा पक्षकार जो न्यायालय
म उपिस्थत है, न्यायालय ारा अपेक्षा िकए जाने पर, सा य देने से या ऐसे दस्तावेज को जो उस समय और वह उसके कब्जे या शिक्त
म है, पेश करने से इं कार िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना करता है वहां न्यायालय उसके िवरु िनणर्य सुना सके गा या वाद के सम्बन्ध म ऐसा
आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
21. सािक्षय िवषयक िनयम समिनत पक्षकार को लागू ह गेजहां वाद के िकसी पक्षकार से सा य देने या दस्तावेज पेश
करने के िलए अपेक्षा की गई है वहां उसे सािक्षय िवषयक उपबन्ध वहां तक लागू ह गे जहां तक िक वे लागू होने योग्य ह ।
1
[आदेश 16क
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 67 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
111
(ग) ऐसी अविध के िलए अिभरक्षा म है जो आदेश का अनुपालन करने के िलए और उस कारागार म िजसम वह
पिररु या िनरु है वापस ले आने के िलए अपेिक्षत समय के समाप्त होने के पूवर् समाप्त हो जाएगी, अथवा
(घ) ऐसा व्यिक्त है िजसको राज्य सरकार ारा िनयम 4 के अधीन िकया गया आदेश लागू होता है,
वहां कारागार का भारसाधक अिधकारी न्यायालय के आदेश को कायार्िन्वत नह करे गा और ऐसा न करने के कारण का िववरण
न्यायालय को भेजेगा ।
6. बन्दी का न्यायालय म अिभरक्षा म लाया जानाकारागार का भारसाधक अिधकारी, िकसी अन्य मामले म, न्यायालय का
आदेश पिरद िकए जाने पर उसम नािमत व्यिक्त को न्यायालय म िभजवाएगा िजससे वह उस आदेश म उिल्लिखत समय पर
उपिस्थत हो सके और उसे न्यायालय म या उसके पास अिभरक्षा म तब तक रखवाएगा जब तक उसकी परीक्षा न कर ली जाए या जब
तक न्यायालय उसको उस कारागार म िजसम वह पिररु या िनरु है, वापस ले जाने के िलए उसे पर्ािधकृ त न करे ।
7. कारागार म साक्षी की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालने की शिक्त(1) जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक
कारागार म, चाहे वह राज्य के भीतर हो या भारत म अन्यतर् हो, पिररु या िनरु व्यिक्त का सा य वाद म ताित्त्वक है, िकन्तु ऐसे
व्यिक्त की हािजरी इस आदेश के पूवर्वत उपबन्ध के अधीन सुिनिश्चत नह की जा सकती है वहां न्यायालय उस व्यिक्त की परीक्षा
उस कारागार म िजसम वह पिररु या िनरु है, करने के िलए कमीशन िनकाल सके गा ।
(2) आदेश 26 के उपबन्ध जहां तक हो सके कारागार म ऐसे व्यिक्त की कमीशन ारा परीक्षा के सम्बन्ध म वैसे ही लागू ह गे
जैसे वे िकसी अन्य व्यिक्त की कमीशन ारा परीक्षा के सम्बन्ध म लागू होते ह ।]
आदेश 17
स्थगन
1. न्यायालय समय दे सके गा और सुनवाई स्थिगत कर सके गा 1 [(1) यिद वाद के िकसी भी पर्कर्म म पयार्प्त हेतुक दिशत
िकया जाता है तो न्यायालय ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे पक्षकार या उनम से िकसी को भी समय दे सके गा और वाद की
सुनवाई को समय-समय पर स्थिगत कर सके गा :
परन्तु ऐसा कोई स्थगन वाद की सुनवाई के दौरान िकसी पक्षकार को तीन बार से अिधक अनुद नह िकया जाएगा ।]
(2) स्थगन के खचन्यायालय ऐसे हर मामले म वाद की आगे की सुनवाई के िलए िदन िनयत करे गा और 2 [ऐसे स्थगन के
कारण हुए खच या ऐसे उच्चतर खच के संबंध म िजन्ह न्यायालय ठीक समझे, ऐसे आदेश करे गा :]
3
[परन्तु
(क) यिद वाद की सुनवाई पर्ारम्भ हो गई है तो जब तक न्यायालय उन आसाधारण कारण से जो उसके ारा
लेखब िकए जाएंगे, सुनवाई का स्थगन अगले िदन से परे के िलए करना आवश्यक न समझे, वाद की सुनवाई िदन-पर्ितिदन
तब तक जारी रहेगी जब तक सभी हािजर सािक्षय की परीक्षा न कर ली जाए ;
(ख) िकसी पक्षकार के अनुरोध पर कोई भी स्थगन ऐसी पिरिस्थितय को छोड़कर जो उस पक्षकार के िनयंतर्ण के
बाहर हो, मंजूर नह िकया जाएगा ;
(ग) यह तथ्य स्थगन के िलए आधार नह माना जाएगा िक िकसी पक्षकार का प्लीडर दूसरे न्यायालय म स्त है ;
(घ) जहां प्लीडर की रुग्णता या दूसरे न्यायालय म उसके स्त होने से िभन्न कारण से, मुकदमे का संचालन करने
म उसकी असमथर्ता को स्थगन के िलए एक आधार के रूप म पेश िकया जाता है वहां न्यायालय तब तक स्थगन मंजूर नह
करे गा जब तक उसका यह समाधान नह हो जाता है िक ऐसे स्थगन के िलए आवेदन करने वाला पक्षकार समय पर दूसरा
प्लीडर मुकरर् र नह कर सकता था ;
(ङ) जहां कोई साक्षी न्यायालय म उपिस्थत है िकन्तु पक्षकार या उसका प्लीडर उपिस्थत नह है अथवा पक्षकार
या प्लीडर न्यायालय म उपिस्थत होने पर भी िकसी साक्षी की परीक्षा या पर्ितरक्षा करने के िलए तैयार नह है वहां
न्यायालय, यिद वह ठीक समझे, तो, साक्षी का कथन अिभिलिखत कर सके गा और, यथािस्थित, पक्षकार या उसके प्लीडर
ारा जो उपिस्थत न हो अथवा पूव क्त रूप म तैयार न हो, साक्षी की मुख्य परीक्षा या पर्ितपरीक्षा करने को अिभमुक्त करते
हुए ऐसे आदेश पािरत कर सके गा जो वह ठीक समझे ।]
2. यिद पक्षकार िनयत िदन पर उपसंजात होने म असफल रहते ह तो पर्िकर्या—वाद की सुनवाई िजस िदन के िलए स्थिगत
हुई है यिद उस िदन पक्षकार या उनम से कोई उपसंजात होने म असफल रहते ह तो न्यायालय आदेश 9 ारा उस िनिम िनिदष्ट ढंग
म से एक से वाद का िनपटारा करने के िलए अगर्सर हो सके गा या ऐसा अन्य आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 26 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 26 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 68 ारा (1-2-1977 से) पूवर्वत परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
112
[स्पष्टीकरण—जहां िकसी पक्षकार का सा य या सा य का पयार्प्त भाग पहले ही अिभिलिखत िकया जा चुका है और ऐसा
1
पक्षकार िकसी ऐसे िदन िजस िदन के िलए वाद की सुनवाई स्थिगत की गई है उपसंजात होने म असफल रहता है वहां न्यायालय
स्विववेकानुसार उस मामले म इस पर्कार अगर्सर हो सके गा मानो ऐसा पक्षकार उपिस्थत हो ।]
3. पक्षकार म से िकसी पक्षकार के सा य, आिद पेश करने म असफल रहने पर भी न्यायालय आगे कायर्वाही कर
सके गा—जहां वाद का कोई ऐसा पक्षकार िजसे समय अनुद िकया गया है, अपना सा य पेश करने म या अपने सािक्षय को हािजर
कराने म या वाद की आगे पर्गित के िलए आवश्यक कोई ऐसा अन्य कायर् करने म िजसके िलए समय अनुज्ञात िकया गया है, असफल
रहता है 2 [वहां न्यायालय ऐसे ितकर्म के होते हुए भी,—
(क) यिद पक्षकार, उपिस्थत ह तो वाद को तत्क्षण िविनिश्चत करने के िलए अगर्सर हो सके गा, अथवा
(ख) यिद पक्षकार या उनम से कोई अनुपिस्थत ह तो िनयम 2 के अधीन कायर्वाही कर सके गा ।]
आदेश 18
रूप से और सुिभन्न शीष के अधीन िलिखत तकर् पेश करे गा और ऐसे िलिखत तकर् अिभलेख का भाग ह गे ।
(3ख) िलिखत तक म तक के समथर्न म उद्धृत की जा रही िविधय के उपबंध तथा पक्षकार ारा िजन िनणर्य के उ रण
पर िनभर्र िकया जा रहा है, उनको स्पष्टतया उपदिशत िकया जाएगा और उसम पक्षकार ारा िनभर्र िकए जा रहे ऐसे िनणर्य की
पर्ितयां ह गी ।
(3ग) ऐसे िलिखत तक की पर्ित उसी समय िवरोधी पक्षकार को दी जाएगी ।
(3घ) न्यायालय, यिद वह ठीक समझता है तो बहस के समाप्त हो जाने पर, बहस की समािप्त की तारीख के पश्चात् एक
सप्ताह से अनिधक की अविध के भीतर पुनरीिक्षत िलिखत तकर् फाइल करने के िलए पक्षकार को अनुज्ञात कर सके गा ।
(3ङ) िलिखत तकर् फाइल करने के पर्योजन के िलए कोई स्थगन तब तक मंजूर नह िकया जाएगा, जब तक िक उन कारण के
िलए, जो लेखब िकए जाएं, ऐसा स्थगन मंजूर करना वह आवश्यक न समझे ।
(3च) न्यायालय मामले की पर्कृ ित और जिटलता को ध्यान म रखते हुए मौिखक िनवेदन के िलए समय को सीिमत करने के
िलए स्वतंतर् होगा ।]
4
* * * * *
3. जहां कई िववा क ह वहां सा य—जहां कई िववा क ह िजनम से कु छ को सािबत करने का भार दूसरे पक्षकार पर है वहां
आरम्भ करने वाला पक्षकार अपने िवकल्प पर या तो उन िववा क के बारे म अपना सा य पेश कर सके गा या दूसरे पक्षकार ारा पेश
िकए गए सा य के उ र के रूप म पेश करने के िलए उसे आरिक्षत रख सके गा और पश्चात्किथत दशा म, आरम्भ करने वाला पक्षकार
दूसरे पक्षकार ारा उसका समस्त सा य पेश िकए जाने के पश्चात् उन िविव क पर अपना सा य पेश कर सके गा और तब दूसरा
पक्षकार आरम्भ करने वाले पक्षकार के ारा इस पर्कार पेश िकए गए सा य का िवशेषतया उ र दे सके गा, िकन्तु तब आरम्भ करने
वाला पक्षकार पूरे मामले के बारे म साधारणतया उ र देने का हकदार होगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 68 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 68 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 27 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (4) का लोप िकया गया ।
113
[3क. पक्षकार का अन्य सािक्षय से पहले उपसंजात होना—जहां कोई पक्षकार स्वयं कोई साक्षी के रूप म उपसंजात होना
1
चाहता है वहां वह उसकी ओर से िकसी अन्य साक्षी की परीक्षा िकए जाने के पहले उपसंजात होगा, िकन्तु यिद न्यायालय ऐसे कारण
से, जो लेखब िकए जाएंगे, उसे पश्चात्वत पर्कर्म म स्वयं अपने साक्षी के रूप म उपसंजात होने के िलए अनुज्ञात करे तो वह वाद म
उपिस्थत हो सके गा ।]
[4. सा य का अिभलेख—(1) पर्त्येक मामले म िकसी साक्षी की मुख्य परीक्षा का सा य शपथ-पतर् पर िलया जाएगा और
2
उसकी पर्ितयां उस पक्षकार ारा, जो उसे सा य के िलए बुलाती है, िवरोधी पक्षकार को दी जाएंगी :]
परं तु जहां दस्तावेज फाइल िकए गए ह और पक्षकार उन दस्तावेज पर िनभर्र करते ह , वहां शपथ-पतर् के साथ फाइल िकए
गए ऐसे दस्तावेज का सबूत और गर्ा ता न्यायालय के आदेश के अधीन रहते हुए होगी ।
[(1क) सभी सािक्षय के सा य शपथ-पतर्, िजनका िकसी पक्षकार ारा सा य िदया जाना पर्स्तािवत है, पर्थम मामला
3
पर्बंधन सुनवाई म िनिदष्ट समय पर उस पक्षकार ारा समसामियक रूप से फाइल िकए जाएंगे ।
(1ख) कोई पक्षकार िकसी साक्षी का (िजसके अन्तगर्त ऐसा साक्षी भी है, जो पहले ही शपथ-पतर् फाइल कर चुका है) शपथ-पतर्
ारा अितिरक्त सा य तब तक पेश नह करे गा, जब तक उस पर्योजन के िलए आवेदन म पयार्प्त कारण नह िदया जाता है और
न्यायालय ारा ऐसे अितिरक्त शपथ-पतर् को अनुज्ञात करने का कारण देते हुए आदेश पािरत नह िकया जाता है ।
(1ग) तथािप, िकसी पक्षकार को उस साक्षी की पर्ितपरीक्षा पर्ारम्भ होने से पहले िकसी समय पर इस पर्कार फाइल िकए गए
िकन्ह शपथ-पतर् के ऐसे पर्त्याहरण के आधार पर कोई पर्ितकू ल िनष्कषर् िनकाले िबना पर्त्याहरण का अिधकार होगा :
परन्तु कोई अन्य पक्षकार सा य देने का हकदार होगा और ऐसे पर्त्याहृत शपथ-पतर् म की गई िकसी स्वीकृ ित पर िनभर्र करने
का हकदार होगा ।]
(2) हािजर साक्षी का सा य (पर्ित परीक्षा और पुनः परीक्षा), िजसका सा य (मुख्य परीक्षा) न्यायालय को शपथ-पतर् ारा
िदया गया है या तो न्यायालय ारा या उसके ारा िनयुक्त किमश्नर ारा अिभिलिखत िकया जाएगा :
परन्तु न्यायालय, इस उपिनयम के अधीन कमीशन िनयुक्त करते समय ऐसे सुसंगत कारण को, जो वह ठीक समझे, गणना म
लेने पर िवचार करे गा ।
(3) यथािस्थित, न्यायालय या किमश्नर सा य को, यथािस्थित, न्यायाधीश या किमश्नर की उपिस्थित म या तो िलिखत रूप
से या यांितर्क रूप से अिभिलिखत करे गा और जहां ऐसा सा य किमश्नर ारा अिभिलिखत िकया जाता है, तो वह ऐसे सा य को अपनी
िलिखत और हस्ताक्षिरत िरपोटर् सिहत उसे िनयुक्त करने वाले न्यायालय को वापस करे गा और उसके अधीन िलया गया सा य वाद के
अिभलेख का भाग होगा ।
(4) किमश्नर परीक्षा के समय िकसी साक्षी की भावभंगी की बाबत ऐसे िटप्पण लेखब करे गा जो वह ताित्त्वक समझे :
परन्तु किमश्नर के समक्ष सा य लेखब िकए जाने के दौरान उठाए गए कोई आक्षेप उसके ारा लेखब िकए जाएंगे और
न्यायालय ारा बहस के पर्कर्म पर िविनिश्चत िकए जाएंगे ।
(5) किमश्नर की िरपोटर्, कमीशन िनकाले जाने की तारीख से साठ िदन के भीतर कमीशन िनयुक्त करने वाले न्यायालय को
पर्स्तुत की जाएगी िसवाय तब के जब न्यायालय लेखब िकए जाने वाले कारण से समय का िवस्तार कर दे ।
(6) यथािस्थित, उच्च न्यायालय या िजला न्यायाधीश इस िनयम के अधीन सा य लेखब करने के िलए किमश्नर का एक
पैनल तैयार करे गा ।
(7) न्यायालय साधारण या िवशेष आदेश ारा किमश्नर की सेवा के िलए पािरशर्िमक के रूप म संद की जाने वाली रकम
िनयत कर सके गा ।
(8) आदेश 26 के िनयम 16, 16क, 17 और 18 के उपबंध, वहां तक जहां तक वे लागू होते ह, इस िनयम के अधीन उस
कमीशन को िनकालने, िनष्पादन और वापसी को लागू ह गे ।]
[ 5. िजन मामल की अपील हो सकती है उनम सा य कै से िलखा जाएगा—िजन मामल म अपील अनुज्ञात की जाती है उन
4 5
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 12 ारा (1-7-2002 से) िनयम 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) िनयम 5 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
िनयम 5 के उपबंध, जहां तक वे सा य लेने की रीित से संबंिधत ह, अवध के मुख्य न्यायालय को लागू नह होते ह देिखए अवध कोट्र्स ऐक्ट, 1925 (1925 का यू०पी०
अिधिनयम सं० 4) की धारा 16 (2) ।
114
(i) न्यायाधीश ारा या उसकी उपिस्थित म और उसके वैयिक्तक िनदेशन और अधीक्षण म िलखा
जाएगा ; या]
(ii) न्यायाधीश के बोलने के साथ ही टाइपराइट पर टाइप िकया जाएगा ; या
(ख) यिद न्यायाधीश अिभिलिखत िकए जाने वाले कारण से ऐसा िनदेश दे तो न्यायाधीश की उपिस्थित म
न्यायालय की भाषा म यंतर् ारा अिभिलिखत िकया जाएगा ।]
6. अिभसा य का भाषान्तर कब िकया जाएगा—जहां सा य उस भाषा से िभन्न भाषा म िलखा गया है िजसम वह िदया
1
गया है और साक्षी उस भाषा को नह समझता िजसम वह िलखा गया है वहां उस सा य का, जैसा िक वह िलखा गया है, उस भाषा म
भाषान्तर उसे सुनाया जाएगा िजसम वह िदया गया था ।
7. धारा 138 के अधीन सा य—धारा 138 के अधीन िलखा गया सा य िनयम 5 ारा िविहत पर्रूप म होगा और वह पढ़कर
1
सुनाया जाएगा और हस्ताक्षिरत िकया जाएगा और यिद अवसर से ऐसा अपेिक्षत हो तो उसका भाषान्तर और शोधन उसी पर्कार िकया
जाएगा मानो वह उस िनयम के अधीन िलखा गया हो ।
1
8. जब सा य न्यायाधीश ारा स्वयं नह िलखा गया हो तब ज्ञापन—जहां सा य न्यायाधीश ारा नह िलखा गया है 2 [या
खुले न्यायालय म उसके ारा बोलकर नह िलखवाया गया है या उसकी उपिस्थित म यंतर् ारा अिभिलिखत नह िकया गया है] वहां
जैस-े जैसे हर एक साक्षी की परीक्षा होती जाती है वैस-े वैसे हर एक सा य के अिभसा य के सारांश का ज्ञापन बनाने के िलए न्यायाधीश
आब होगा और ऐसा ज्ञापन न्यायाधीश ारा िलखा जाएगा और हस्ताक्षिरत िकया जाएगा और अिभलेख का भाग होगा ।
[ 9. सा य अंगर्ज
3 1
े ी म कब िलखा जा सके गा—(1) जहां न्यायालय की भाषा अंगर्ेजी नह है िकन्तु वाद के वे सभी पक्षकार जो
स्वयं उपसंजात ह, और उन पक्षकार के जो प्लीडर के ारा उपसंजात ह, प्लीडर ऐसे सा य के जो अंगर्ेजी म िदया जाता है, अंगर्ज े ीम
िलखे जाने पर आक्षेप नह करते ह वहां न्यायाधीश उसे उसी रूप म िलख सके गा या िलखवा सके गा ।
(2) जहां सा य अंगर्ेजी म नह िदया जाता है िकन्तु वे सभी पक्षकार जो स्वयं उपसंजात ह और उन पक्षकार के जो प्लीडर
के ारा उपसंजात ह, प्लीडर ऐसे सा य के अंगर्जे ी म िलखे जाने पर आक्षेप नह करते ह वहां न्यायाधीश ऐसा सा य अंगर्जे ी म िलख
सके गा या िलखवा सके गा ।]
10. कोई िविशष्ट पर्श्न और उ र िलखा जा सके गा—यिद ऐसा करने के िलए कोई िवशेष कारण पर्तीत होता है तो न्यायालय
िकसी िविशष्ट पर्श्न और उ र को या िकसी पर्श्न के सम्बन्ध म िकसी आक्षेप को स्वपर्ेरणा से या िकसी पक्षकार या उसके प्लीडर के
आवेदन पर िलख सके गा ।
11. वे पर्श्न िजन पर आक्षेप िकया गया है और जो न्यायालय ारा अनुज्ञात िकए गए ह—जहां िकसी साक्षी से िकए गए
4
िकसी पर्श्न पर िकसी पक्षकार या उसके प्लीडर ारा आक्षेप िकया गया है और न्यायालय उसका पूछा जाना अनुज्ञात करता है वहां
न्यायाधीश उस पर्श्न, उ र, आक्षेप और उसे करने वाले व्यिक्त के नाम को उस पर न्यायालय के िविनश्चय के सिहत िलखेगा ।
12. सािक्षय की भावभंगी के बारे म िटप्पिणयां—न्यायालय साक्षी की परीक्षा िकए जाते समय उसकी भावभंगी के बारे म
िटप्पिणयां, िजन्ह वह ताित्त्वक समझता हो, अिभिलिखत कर सके गा ।
5
[13. िजन मामल म अपील नह हो सकती है उन मामल म सा य का ज्ञापन—ऐसे मामले म, िजनम अपील अनुज्ञात नह
है, यह आवश्यक नह होगा िक सािक्षय का सा य िवस्तार सिहत िलखा जाए या बोलकर िलखवाया जाए या अिभिलिखत िकया जाए
िकन्तु न्यायाधीश, जैसे-जैसे हर एक साक्षी की परीक्षा होती है वैस-े वैसे, उसके अिभसा य के सार का ज्ञापन िलखेगा या बोलने के साथ
ही टाइपराइटर पर टाइप कराएगा या यंतर् ारा अिभिलिखत कराएगा और ऐसा ज्ञापन न्यायाधीश ारा हस्ताक्षिरत िकया जाएगा या
अन्यथा अिधपर्मािणत िकया जाएगा और अिभलेख का भाग होगा ।]
14. [ऐसा ज्ञापन बनाने म असमथर् न्यायाधीश अपनी असमथर्ता के कारण अिभिलिखत करे गा ।]—िसिवल पर्िकर्या संिहता
4
(संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 104) की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) िनरिसत ।
15. िकसी अन्य न्यायाधीश के सामने िलए गए सा य का उपयोग करने की शिक्त—(1) जहां मृत्यु, स्थानान्तरण या अन्य
4
कारण से न्यायाधीश वाद के िवचारण की समािप्त करने से िनवािरत हो जाता है वहां उसका उ रवत , पूवर्गामी िनयम के अधीन
िलए गए िकसी भी सा य या बनाए गए िकसी भी ज्ञापन का उसी पर्कार उपयोग कर सके गा मानो ऐसा सा य या ज्ञापन उक्त िनयम
1
िनयम 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14 और 15 के उपबंध, जहां तक वे सा य लेने की रीित से संबंिधत ह, अवध के मुख्य न्यायालय को लागू नह होते ह देिखए अवध कोट्र्स
ऐक्ट, 1925 (1925 का यू०पी० अिधिनयम सं० 4) की धारा 16 (2) ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) िनयम 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
िनयम 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14 और 15 के उपबंध, जहां तक वे सा य लेने की रीित से संबंिधत ह, अवध के मुख्य न्यायालय को लागू नह होते ह देिखए अवध कोट्र्स
ऐक्ट, 1925 (1925 का यू०पी० अिधिनयम सं० 4) की धारा 16 (2) ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) पूवर्वत िनयम के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
115
के अधीन उसी के ारा या उसके िनदेश के अधीन िलया गया था या बनाया गया था, और वह वाद म उस पर्कर्म से अगर्सर हो सके गा
िजसम उसे उसके पूवर्वत ने छोड़ा था ।
(2) उपिनयम (1) के उपबन्ध धारा 24 के अधीन अन्तिरत वाद म िलए गए सा य को वहां तक लागू समझे जाएंगे जहां तक वे
लागू िकए जा सकते ह ।
16. साक्षी की तुरन्त परीक्षा करने की शिक्त—(1) जहां साक्षी न्यायालय की अिधकािरता से बाहर जाने वाला है या इस
1
बात का पयार्प्त कारण न्यायालय को समाधानपर्द रूप म दिशत कर िदया जाता है िक उसका सा य तुरन्त क्य िलया जाना चािहए
वहां न्यायालय वाद के संिस्थत िकए जाने के पश्चात् िकसी भी समय ऐसे साक्षी का सा य िकसी भी पक्षकार या उस साक्षी के आवेदन
पर उसी रीित से ले सके गा जो इसम इसके पूवर् उपबिन्धत है ।
(2) जहां ऐसा सा य तत्क्षण ही और पक्षकार की उपिस्थित म न िलया जाए वहां परीक्षा के िलए िनयत िदन की ऐसी
सूचना, जो न्यायालय पयार्प्त समझे, पक्षकार को दी जाएगी ।
(3) ऐसे िलया गया सा य साक्षी को पढ़कर सुनाया जाएगा और यिद वह स्वीकार करता है िक वह शु है तो वह उसके ारा
हस्ताक्षिरत िकया जाएगा और न्यायालय उसे यिद आवश्यक हो तो शु करे गा और हस्ताक्षिरत करे गा और तब उस वाद की िकसी भी
सुनवाई म वह पढ़ा जा सके गा ।
17. न्यायालय साक्षी को पुनः बुला सके गा और उसकी परीक्षा कर सके गा—न्यायालय वाद के िकसी भी पर्कर्म म ऐसे िकसी
भी साक्षी को पुनः बुला सके गा िजसकी परीक्षा की जा चुकी है और (तत्समय पर्वृ सा य की िविध के अधीन रहते हुए) उससे ऐसे पर्श्न
पूछ सके गा जो न्यायालय ठीक समझे ।
17क. [ऐसे सा य का पेश िकया जाना िजसकी सम्यक् तत्परता के होते हुए भी पहले जानकारी नह थी या जो पेश नह
िकया जा सका था ।]—िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1999 (1999 का 46) की धारा 27 ारा (1-7-2002 से) लोप
िकया गया ।
18. िनरीक्षण करने की न्यायालय की शिक्त—न्यायालय ऐसी िकसी भी सम्पि या वस्तु का िनरीक्षण वाद के िकसी भी
पर्कर्म म कर सके गा िजसके सम्बन्ध म कोई पर्श्न पैदा हो 2 [और जहां न्यायालय िकसी सम्पि या वस्तु का िनरीक्षण करता है वहां वह
यथासाध्य शीघर्, ऐसे िनरीक्षण म देखे गए िकन्ह सुसंगत तथ्य का ज्ञापन बनाएगा और ऐसा ज्ञापन वाद के अिभलेख का भाग होगा ।]
[19. कथन को कमीशन ारा अिभिलिखत कराने की शिक्त—इन िनयम म िकसी बात होते हुए भी, न्यायालय, खुले
3
न्यायालय म सािक्षय की परीक्षा करने के बजाय आदेश 26 के िनयम 4क के अधीन उनके कथन को कमीशन ारा अिभिलिखत िकए
जाने के िलए िनदेश दे सके गा ।]
आदेश 19
शपथपतर्
1. िकसी बात के शपथपतर् ारा सािबत िकए जाने के िलए आदेश देने की शिक्त—कोई भी न्यायालय िकसी भी समय पयार्प्त
कारण से आदेश दे सके गा िक िकसी भी िविशष्ट तथ्य या िकन्ह भी िविशष्ट तथ्य को शपथपतर् ारा सािबत िकया जाए या िकसी
साक्षी का शपथपतर् सुनवाई म ऐसी शत पर पढ़ा जाए जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे :
परन्तु जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक दोन म से कोई भी पक्षकार सद्भाव से यह चाहता है िक पर्ितपरीक्षा के िलए
साक्षी को पेश िकया जाए और ऐसा साक्षी पेश िकया जा सकता है वहां ऐसे साक्षी का सा य शपथपतर् ारा िदए जाने का पर्ािधकार देने
वाला आदेश नह िकया जाएगा ।
2. अिभसाक्षी की पर्ितपरीक्षा के िलए हािजर कराने का आदेश देने की शिक्त—(1) िकसी भी आवेदन पर सा य शपथपतर्
ारा िदया जा सके गा, िकन्तु न्यायालय दोन पक्षकार म से िकसी की भी पर्ेरणा पर अिभसाक्षी को आदेश दे सके गा िक वह पर्ितपरीक्षा
के िलए हािजर हो ।
(2) जब तक िक अिभसाक्षी न्यायालय म स्वीय उपसंजाित से छू ट न पाया हुआ हो या न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे , ऐसी
हािजरी न्यायालय म होगी ।
3. वे िवषय िजन तक शपथपतर् सीिमत ह गे—(1) शपथपतर् ऐसे तथ्य तक ही सीिमत ह गे िजनको अिभसाक्षी अपने िनजी
ज्ञान से सािबत करने म समथर् है, िकन्तु अन्तवर्त आवेदन के शपथपतर् म उसके िवश्वास पर आधािरत कथन गर्ा हो सकगे:
परन्तु यह तब जब िक उनके िलए आधार का कथन िकया गया हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) पूवर्वत िनयम के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 69 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 27 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
116
(2) िजस शपथपतर् म अनुशर्ुत या तािकक बात या दस्तावज की पर्ितयां या दस्तावेज के उ रण अनावश्यक रूप से दजर् िकए
गए ह, ऐसे हर एक शपथपतर् के खच (जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न करे ) उन्ह फाइल करने वाले पक्षकार ारा िदए जाएंगे ।
[4. न्यायालय सा य िनयंितर्त कर सके गा—(1) न्यायालय, िनदेश ारा, ऐसे िववा क के बारे म, िजनम सा य अपेिक्षत
1
है, सा य को और ऐसे रीित को, िजससे ऐसा सा य न्यायालय के समक्ष पेश िकया जा सके गा, िविनयिमत कर सके गा ।
(2) न्यायालय, स्विववेकानुसार और ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएं, ऐसे सा य को अपविजत कर सके गा, जो
पक्षकार ारा अन्यथा पेश िकया जाए ।
5. सा य का संशोधन या खािरज िकया जाना—न्यायालय, स्विववेकानुसार ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएं,—
(i) मुख्य परीक्षा शपथ-पतर् के ऐसे भाग का, िजससे उसकी दृिष्ट म सा य का गठन नह होता है, संशोधन कर
सके गा या संशोधन करने का आदेश कर सके गा; या
(ii) ऐसे मुख्य परीक्षा शपथ-पतर् को, िजससे गर्ा सा य का गठन नह होता है, वापस या खािरज कर सके गा ।
6. सा य के शपथ-पतर् का रूपिवधान और मागर्दशर्क िस ान्त—िकसी शपथ-पतर् म नीचे िदए गए पर्रूप और अपेक्षा का
अनुपालन होगा :—
(क) ऐसा शपथ-पतर् ऐसी तारीख और घटना तक, जो िकसी तथ्य या उससे संबंिधत िकसी अन्य िवषय को
सािबत करने के िलए सुसंगत ह, सीिमत होगा और उसम उन तारीख और घटना का कालानुकर्म अनुसार अनुसरण करना
होगा जो िकसी तथ्य या उससे संबंिधत िकसी अन्य िवषय को सािबत करने के िलए सुसंगत है;
(ख) जहां न्यायालय का यह मत है िक शपथ-पतर् के वल अिभवचन का पुनः पेश िकया जाना है या उसम िकन्ह
पक्षकार के पक्षकथन के िविधक आधार अन्तिवष्ट ह, वहां न्यायालय, आदेश ारा शपथ-पतर् या शपथ-पतर् के ऐसे भाग को,
जो वह ठीक और उपयुक्त समझे, काट सके गा;
(ग) शपथ-पतर् का पर्त्येक पैरा, यथासंभव, िवषय के सुिभन्न भाग तक सीिमत होना चािहए;
(घ) शपथ-पतर् म यह कथन होगा िक :—
(i) इसम के कौन से कथन अिभसाक्षी ने िनजी ज्ञान से िकए गए ह और कौन से सूचना और िवश्वास के
िवषय ह; और
(ii) सूचना या िवश्वास के िकन्ह िवषय के सर्ोत का कथन होगा;
(ङ) (i) शपथ-पतर् के पृ को पृथक् दस्तावेज के रूप म (या िकसी एक फाइल म अंतिवष्ट िविभन्न दस्तावेज को
एक रूप म) कर्मवत रूप से संख्यांिकत होना चािहए;
(ii) शपथ-पतर् संख्यांिकत पैरा म िवभािजत होना चािहए;
(iii) शपथ-पतर् म सभी संख्या को, िजनके अन्तगर्त तारीख भी ह, अंक म अिभ क्त िकया गया होना
चािहए; और
(iv) यिद शपथ-पतर् के पाठ म िनिदष्ट दस्तावेज म से िकसी को िकसी शपथ-पतर् या िकन्ह अन्य अिभवचन से
उपाब िकया जाता है तो ऐसे उपाबंध और ऐसे दस्तावेज की, िजन पर िनभर्र िकया जाता है, पृ संख्याएं देनी चािहए ।]
आदेश 20
िनणर्य और िडकर्ी
1. िनणर्य कब सुनाया जाएगा— [(1) यथािस्थित, वािणिज्यक न्यायालय, वािणिज्यक पर्भाग या वािणिज्यक अपील पर्भाग,
2
बहस के समाप्त होने के नब्बे िदन के भीतर िनणर्य सुनाएगा और िववाद के सभी पक्षकार को इलेक्टर्ािनक मेल के माध्यम से या अन्यथा
उनकी पर्ितयां जारी करे गा ।]
[(2) जहां िलिखत िनणर्य सुनाया जाना है वहां यिद पर्त्येक िववा क पर न्यायालय के िनष्कष को और मामले म पािरत
3
अंितम आदेश को पढ़ िदया जाता है तो वह पयार्प्त होगा और न्यायालय के िलए यह आवश्यक नह होगा िक वह सम्पू्णर् िनणर्य को
पढ़कर सुनाए] 4 *** ।
1
2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 16 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 को उपिनयम 1 के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया और 2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा
16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 28 ारा (1-7-2002 से) लोप िकया गया ।
117
(3) िनणर्य खुले न्यायालय म आशुिलिपक को बोलकर िलखाते हुए के वल तभी सुनाया जा सके गा जब न्यायाधीन उच्च
न्यायालय ारा इस िनिम िवशेष रूप से सशक्त िकया गया है :
परन्तु जहां िनणर्य खुले न्यायालय म बोलकर िलखाते हुए सुनाया जाता है वहां इस पर्कार सुनाए गए िनणर्य की अनुिलिप
उसम ऐसी शुि यां करने के पश्चात्, जो आवश्यक ह , न्यायाधीश ारा हस्ताक्षिरत की जाएंगी, उस पर वह तारीख िलखी जाएगी
िजसको िनणर्य सुनाया गया था और वह अिभलेख का भाग होगी ।]
2. न्यायाधीश के पूवव र् त ारा िलखे गए िनणर्य को सुनाने की शिक्त—न्यायाधीश ऐसे िनणर्य को 1 [सुनाएगा] जो उसके
पूवर्वत ने िलखा तो है िकन्तु सुनाया नह है ।
2
3. िनणर्य हस्ताक्षिरत िकया जाएगा—िनणर्य सुनाए जाने के समय न्यायाधीश उस पर खुले न्यायालय म तारीख डालेगा और
हस्ताक्षर करे गा और जब उस पर एक बार हस्ताक्षर कर िदया गया है तब धारा 152 ारा उपबिन्धत के िसवाय या पुनिवलोकन के
िसवाय उसके पश्चात् उसम न तो कोई पिरवतर्न िकया जाएगा और न कोई पिरवधर्न िकया जाएगा ।
2
4. लघुवाद न्यायालय के िनणर्य—(1) लघुवाद न्यायालय के िनणर्य म अवधायर् पर्श्न और उनके िविनश्चय से अिधक और
कु छ अन्तिवष्ट होना आवश्यक नह है ।
(2) अन्य न्यायालय के िनणर्य —अन्य न्यायालय के िनणर्य के मामले का संिक्षप्त कथन, अवधायर् पर्श्न, उनका िविनश्चय
और ऐसे िविनश्चय के कारण अन्तिवष्ट ह गे ।
5. न्यायालय हर एक िववा क पर अपने िविनश्चय का कथन करे गा—उन वाद म, िजनम िववा क की िवरचना की गई
2
है, जब तक िक िववा क म से िकसी एक या अिधक का िनष्कषर् वाद के िविनश्चय के िलए पयार्प्त न हो, न्यायालय हर एक पृथक्
िववा क पर अपना िनष्कषर् या िविनश्चय उस िनिम कारण के सिहत देगा ।
3
[5क. िजन मामल म पक्षकार का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा न िकया गया हो उनम न्यायालय ारा पक्षकार को इस बात
की इि ला िदया जाना िक अपील कहां की जा सके गी—उस दशा के िसवाय िजसम दोन पक्षकार का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा िकया
गया है, न्यायालय ऐसे मामल म िजनकी अपील हो सकती है, अपना िनणर्य सुनाते समय न्यायालय म उपिस्थत पक्षकार को यह
इि ला देगा िक िकस न्यायालय म अपील की जा सकती है और ऐसी अपील फाइल करने के िलए परीसीमा काल िकतना है और
पक्षकार को इस पर्कार दी गई इि ला को अिभलेख म रखेगा ।]
6. िडकर्ी की अन्तवर्स्तु—(1) िडकर्ी िनणर्य के अनुरूप होगी, उसम वाद का संख्यांक, 4 [पक्षकार के नाम और वणर्न, उनके
रिजस्टर्ीकृ त पते] और दावे की िविशिष्टयां अन्तिवष्ट ह गी और अनुद अनुतोष या वाद का अन्य अवधारण उसम स्पष्टतया िविनिदष्ट
होगा ।
(2) वाद म उपगत खच की रकम भी और यह बात भी िक ऐसे खच िकसके ारा या िकस सम्पि म से और िकसी अनुपात म
संद िकया जाने ह, िडकर्ी म किथत होगी ।
(3) न्यायालय िनदेश दे सके गा िक एक पक्षकार को दूसरे पक्षकार ारा खच िकसी ऐसी रािश के िवरु मुजरा िकए जाएं
िजसके बारे म यह स्वीकर िकया गया है या पाया गया है िक वह एक दूसरे को शोध्य ह ।
[6क. िडकर्ी तैयार करना—(1) यह सुिनिश्चत करने के िलए हर पर्यास िकया जाएगा िक िडकर्ी जहां तक संभव हो शीघर्ता से
5
और िकसी भी दशा म उस तारीख से पंदर्ह िदन के भीतर िजसको िनणर्य सुनाया जाता है, तैयार की जाए ।
(2) िडकर्ी की पर्ित फाइल िकए िबना िडकर्ी के िवरु अपील की जा सके गी और िकसी ऐसी दशा म न्यायालय ारा पक्षकार
को उपलब्ध कराई गई पर्ित आदेश 41 के िनयम 1 के पर्योजन के िलए िडकर्ी मानी जाएगी । िकन्तु जैसे ही िडकर्ी तैयार हो जाती है,
िनणर्य िनष्पादन के पर्योजन के िलए या िकसी अन्य पर्योजन के िलए िडकर्ी का पर्भाव नह रखेगा ।
6ख. िनणर्य की पर्ितयां कब उपलब्ध कराई जाएंगी—जहां िनणर्य सुना िदया गया है वहां िनणर्य की पर्ितयां पक्षकार को
िनणर्य के सुनाए जाने के ठीक पश्चात् अपील करने के िलए ऐसे पर्भार के संदाय पर उपलब्ध कराई जाएंगी जो उच्च न्यायालय ारा
बनाए गए िनयम म िविनिदष्ट िकए जाएं ।]
7. िडकर्ी की तारीख—िडकर्ी म उस िदन की तारीख होगी िजस िदन िनणर्य सुनाया गया था और न्यायाधीश अपना समाधान
कर लेने पर िक िडकर्ी िनणर्य के अनुसार तैयार की गई है िडकर्ी पर हस्ताक्षर करे गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) “सुना सके गा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िनयम 1, 2, 3, 4 और 5 के उपबंध, अवध के मुख्य न्यायालय को लागू नह होते ह । देिखए अवध कोट्र्स ऐक्ट, 1925 (1925 का यू०पी० अिधिनयम सं० 4) की धारा
16 (2) ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 को उपिनयम 1 के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया और 2016 के अिधिनयम सं० 4 की धारा
16 और अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) “पक्षकार के नाम और पते” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 28 ारा (1-7-2002 से) िनयम 6क और 6ख के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
118
8. जहां न्यायाधीश ने िडकर्ी पर हस्ताक्षर करने से पूवर् अपना पद िरक्त कर िदया है वहां पर्िकर्या—जहां न्यायाधीश के िनणर्य
सुनाने के पश्चात्, िकन्तु िडकर्ी पर हस्ताक्षर िकए िबना अपना पद िरक्त कर िदया है वहां ऐसे िनणर्य के अनुसार तैयार की गई िडकर्ी
पर उसका उ रवत या यिद उस न्यायालय का अिस्तत्व ही समाप्त हो गया है तो ऐसे िकसी न्यायालय का न्यायाधीश िजसके
अधीनस्थ ऐसा न्यायालय था, हस्ताक्षर करे गा ।
9. स्थावर सम्पि के पर्त्यु ण के िलए िडकर्ी—जहां वाद की िवषयवस्तु स्थावर सम्पि है वहां िडकर्ी म ऐसी सम्पि का
ऐसा वणर्न अन्तिवष्ट होगा जो उसकी पहचान करने के िलए पयार्प्त हो और जहां ऐसी सम्पि सीमा ारा या भू- वस्थापन या
सवक्षण के अिभलेख के संख्यांक ारा पहचानी जा सके वहां िडकर्ी म ऐसी सीमाएं या संख्यांक िविनिदष्ट ह गे ।
10. जंगम सम्पि के पिरदान के िलए िडकर्ी—जहां वाद जंगम सम्पि के िलए है और िडकर्ी ऐसी सम्पि के पिरदान के िलए
है वहां यिद पिरदान नह कराया जा सकता है तो िडकर्ी म धन के उस पिरमाण का भी कथन िकया जाएगा जो अनुकल्पतः िदया
जाएगा ।
11. िडकर्ी िकस्त ारा संदाय के िलए िनदेश दे सके गी—(1) यिद और जहां तक कोई िडकर्ी धन के संदाय के िलए है तो और
वहां तक न्यायालय उस संिवदा म, िजसके अधीन धन संदय े है, अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी 1 [उन पक्षकार को जो अिन्तम
सुनवाई म स्वयं या प्लीडर ारा उपसंजात थे, सुनने के पश्चात्, िनणर्य के पूवर् िडकर्ी म िकसी पयार्प्त कारण से यह आदेश सिम्मिलत
कर सके गा] िक िडकर्ीत रकम का संदाय ब्याज के सिहत या िबना मुल्तवी िकया जाए या िकस्त म िकया जाए ।
(2) िडकर्ी के पश्चात् िकस्त म संदाय का आदेश—ऐसी िकसी िडकर्ी के पािरत िकए जाने के पश्चात् न्यायालय िनण त-ऋणी
के आवेदन पर और िडकर्ीदार की अनुमित से आदेश दे सके गा िक ब्याज के संदाय-संबंधी, िनण त-ऋणी की सम्पि की कु क -सम्बन्धी,
उससे पर्ितभूित लेने सम्बन्धी या अन्य ऐसे िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे, िडकर्ीत रकम का संदाय मुल्तवी िकया जाए या िकस्त म
िकया जाए ।
12. कब्जा और अन्तःकालीन लाभ के िलए िडकर्ी—(1) जहां वाद स्थावर सम्पि के कब्जे का पर्त्यु ण करने और भाटक या
अन्तःकालीन लाभ के िलए है वहां न्यायालय ऐसी िडकर्ी पािरत कर सके गा जो—
(क) सम्पि के कब्जे के िलए हो ;
ऐसे भाटक के िलए हो जो वाद के संिस्थत िकए जाने के पूवर् की िकसी अविध म सम्पि पर पर्ोद्भूत हुए ह
2 [(ख)
प े की िकसी संिवदा के िविनिदष्ट पालन के िलए िकसी िडकर्ी म यह आदेश है िक कर्य-धन या अन्य रािश कर्ेता या प ेदार ारा संद
की जाए वहां उसम वह अविध िविनिदष्ट की जाएगी िजसके भीतर संदाय करना होगा ।]
13. पर्शासन-वाद म िडकर्ी—(1) जहां वाद िकसी सम्पि के लेखा के िलए और न्यायालय की िडकर्ी के अधीन उसके सम्यक्
पर्शासन के िलए है वहां न्यायालय अिन्तम िडकर्ी पािरत करने के पूवर् ऐसे लेखा के िलए जाने और जांच के िकए जाने का आदेश देने
वाली और ऐसे अन्य िनदेश देने वाली जो न्यायालय ठीक समझे, पर्ारिम्भक िडकर्ी पािरत करे गा ।
(2) िकसी मृत व्यिक्त की सम्पि का न्यायालय ारा पर्शासन िकए जाने म, यिद ऐसी सम्पि उसके ऋण और दाियत्व के
पूरे संदाय के िलए अपयार्प्त सािबत हो तो, पर्ितभूत और अपर्ितभूत लेनदार के अपने-अपने अिधकार के बारे म और ऐसे ऋण और
दाियत्व के बारे म जो सािबत िकए जा सकते ह और वािषिकय के और भावी और समािशर्त दाियत्व के मूल्यांकन के बारे म कर्मशः
उन्ह िनयम का अनुपालन िकया जाएगा जो न्यायिनण त या घोिषत िदवािलया व्यिक्तय की सम्पदा के बारे म उस न्यायालय की
स्थानीय सीमा के भीतर तत्समय पर्वृ ह िजनम पर्शासन-वाद लिम्बत है और वे सभी व्यिक्त जो ऐसे िकसी मामले म ऐसी सम्पि
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) खण्ड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
119
म से संदाय पाने के हकदार ह गे, पर्ारिम्भक िडकर्ी के अधीन आ सकगे और उस सम्पि के िवरु ऐसे दावे कर सकगे िजनके िलए वे इस
संिहता के आधार पर कर्मशः हकदार ह ।
14. शुफा के दावे म िडकर्ी—(1) जहां न्यायालय सम्पि के िकसी िविशष्ट िवकर्य के बारे म शुफा के दावे की िडकर्ी देता है
और कर्य-धन ऐसे न्यायालय म जमा नह िकया गया है वहां िडकर्ी म—
(क) ऐसा िदन िविनिदष्ट होगा िजस िदन या िजसके पूवर् कर्य-धन ऐसे जमा िकया जाएगा, तथा
(ख) यह िनदेश होगा िक वादी के िवरु िडकर्ीत खच के सिहत (यिद कोई ह ) ऐसे कर्य-धन को न्यायालय म उस
िदन या उस िदन के पूवर्, जो खण्ड (क) म िनिदष्ट िकया गया है, जमा कर िदए जाने पर पर्ितवादी सम्पि का कब्जा वादी
को पिरद कर देगा िजसका हक ऐसे जमा करने की तारीख से उस पर पर्ोद्भूत हुआ समझा जाएगा ; िकन्तु यिद कर्य-धन
और खच (यिद कोई ह ) ऐसे जमा नह िकए जाएंगे तो वाद खच के सिहत खािरज कर िदया जाएगा ।
(2) जहां न्यायालय ने शुफा के परस्पर िवरोधी दाव का न्यायिनणर्यन कर िदया है वहां िडकर्ी म यह िनिदष्ट होगा िक—
(क) यिद और जहां तक िडकर्ीत दावे समान कोिट के ह तो और वहां तक उपिनयम (1) के उपबन्ध का अनुपालन
करने वाले हर एक शूफािधकारी का दावा उस सम्पि के आनुपाितक अंश के बारे म पर्भावी होगा, िजस सम्पि के अन्तगर्त
ऐसा कोई आनुपाितक अंश भी होगा िजसके बारे म िकसी ऐसे शुफािधकारी का, जो उक्त उपबन्ध का अनुपालन करने म
असफल रहा है, दावा ऐसा ितकर्म न होने पर पर्भावी होता ; तथा
(ख) यिद और जहां तक िडकर्ीत दावे िविभन्न कोिट ह तो और वहां तक अवर शुफािधकारी का दावा तब तक
पर्भावी नह होगा जब तक विर शुफािधकारी उक्त उपबंध का अनुपालन करने म असफल न हो गया हो ।
15. भागीदारी के िवघटन के िलए वाद म िडकर्ी—जहां तक वाद भागीदारी के िवघटन के िलए या भागीदारी के लेखा के
िलए जाने के िलए है वहां न्यायालय अंितम िडकर्ी देने के पूवर् ऐसी पर्ारिम्भक िडकर्ी पािरत कर सके गा िजसम पक्षकार के आनुपाितक
अंश घोिषत ह गे, वह िदन िनयत होगा िजसको भागीदारी िवघिटत हो जाएगी या िवघिटत हुई समझी जाएगी, और ऐसे लेखा के
िलए जाने का और अन्य ऐसे कायर् के , जो वह न्यायालय ठीक समझे, िकए जाने का िनदेश होगा ।
16. मािलक और अिभकतार् के बीच लेखा के िलए लाए गए वाद म िडकर्ी—मािलक और अिभकतार् के बीच धन-संबंधी
सं वहार की बाबत लेखा के िलए वाद म, और ऐसे िकसी अन्य वाद म, िजसके िलए इसम इसके पूवर् उपबन्ध नह िकया गया है, जहां
यह आवश्यक हो िक उस धन की रकम को, जो िकसी पक्षकार को या पक्षकार से शोध्य है, अिभिनिश्चत करने के िलए लेखा िलया जाना
चािहए, न्यायालय अपनी अिन्तम िडकर्ी पािरत करने के पूवर् ऐसी पर्ारिम्भक िडकर्ी पािरत कर सके गा िजसम ऐसे लेखा के िलए जाने
का िनदेश होगा िजनका िलया जाना वह ठीक समझे ।
17. लेखा के सम्बन्ध म िवशेष िनदेश—न्यायालय या तो लेखा िलए जाने के िलए िनदेश देने वाली िडकर्ी ारा या िकसी
पश्चात्वत आदेश ारा उस ढंग के बारे म िवशेष िनदेश दे सके गा िजसम लेखा िलया जाना है या पर्मािणत िकया जाना है और
िविशष्टतः यह िनदेश दे सके गा िक लेखा लेने म उन लेखा बिहय को, िजनम पर्श्नगत लेखा रखे गए ह , उन बात की सत्यता के
पर्थमदृष् ा सा य के रूप म िलया जाएगा जो उनम अन्तिवष्ट ह । िकन्तु िहतब पक्षकार को यह स्वतंतर्ता होगी िक वे उन पर ऐसे
आक्षेप कर सकगे जो वे ठीक समझ ।
18. सम्पि के िवभाजन के िलए या उनम के अंश पर पृथक् कब्जे के िलए वाद म िडकर्ी—जब न्यायालय सम्पि के िवभाजन
के िलए या उसम के अंश पर पृथक् कब्जे के िलए िडकर्ी पािरत करता है तब—
(1) यिद और जहां तक िडकर्ी ऐसी सम्पदा से सम्बिन्धत है िजस पर सरकार को संदय
े राजस्व िनधार्िरत है तो और
वहां तक िडकर्ी सम्पि म िहतब िविभन्न पक्षकार के अिधकार की घोषणा करे गी, िकन्तु वह यह िनदेश देगी िक ऐसा
िवभाजन या पृथक्करण ऐसी घोषणा और धारा 54 के उपबन्ध के अनुसार कलक्टर ारा या उसके ारा इस िनिम
पर्ितिनयुक्त उसके िकसी ऐसे अधीनस्थ ारा िकया जाए जो राजपितर्त हो ;
(2) यिद और जहां तक ऐसी िडकर्ी िकसी अन्य स्थावर सम्पि से या जंगम सम्पि से सम्बिन्धत है तो और वहां
तक न्यायालय यिद िवभाजन या पृथक्करण अितिरक्त जांच के िबना सुिवधापूवर्क नह िकया जा सकता तो सम्पि म
िहतब िविभन्न पक्षकार के अिधकार की घोषणा करने वाली और ऐसे अितिरक्त िनदेश देने वाली जो अपेिक्षत हो,
पर्ारिम्भक िडकर्ी पािरत कर सके गा ।
19. जब मुजरा या पर्तीदावा अनुज्ञात िकया जाए तब िडकर्ी—(1) जहां पर्ितवादी को वादी के दावे के िवरु मुजरा 1 [या
पर्तीदावा] अनुज्ञात िकया गया है वहां िडकर्ी म यह कथन होगा िक वादी को िकतनी रकम शोध्य है और पर्ितवादी को िकतनी रकम
शोध्य है और वह िकसी ऐसी रािश की वसूली के िलए होगी जो दोन पक्षकार म से िकसी को शोध्य पर्तीत हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
120
(2) मुजरा या पर्तीपदावा सम्बन्धी िडकर्ी की अपील—िकसी ऐसे वाद म, िजसम मुजरा का दावा 1 [या पर्तीपदावा] िकया
गया है पािरत कोई भी िडकर्ी अपील के बारे म उन्ह उपबन्ध के अधीन होगी िजनके अधीन वह होती यिद िकसी मुजरा का दावा 1[या
पर्तीपदावा] न िकया गया होता ।
(3) इस िनयम के उपबन्ध लागू ह गे चाहे मुजरा, आदेश 8 के िनयम 6 के अधीन या अन्यथा अनुज्ञेय हो ।
20. िनणर्य और िडकर्ी की पर्णािणत पर्ितय का िदया जाना—िनणर्य और िडकर्ी की पर्मािणत पर्ितयां पक्षकार को न्यायालय
से आवेदन करने पर और उनके खचर् पर दी जाएंगी ।
2
[आदेश 20क
खच
1. कु छ मद के बारे म उपबन्ध—खच के बारे म इस संिहता के उपबन्ध की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना,
न्यायालय िनम्निलिखत के सम्बन्ध म खच अिधिनण त कर सके गा, अथार्त् :—
(क) वाद संिस्थत करने से पू्वर् िकसी ऐसी सूचना के , जो िविध ारा दी जाने के िलए अपेिक्षत है, िदए जाने के िलए
उपगत य;
(ख) िकसी ऐसी सूचना पर उपगत य, जो िविध ारा दी जाने के िलए अपेिक्षत न होने पर भी वाद के िकसी
पक्षकार ारा िकसी दूसरे पक्षकार को वाद संिस्थत करने से पूवर् दी गई हो ;
(ग) िकसी पक्षकार ारा फाइल िकए गए अिभवचन को टाइप कराने, िलखने या मुिदर्त कराने पर उपगत य;
(घ) वाद के पर्योजन के िलए न्यायालय के अिभलेख के िनरीक्षण के िलए िकसी पक्षकार ारा संद पर्भार ;
(ङ) िकसी पक्षकार ारा सािक्षय को पेश करने के िलए उपगत य चाहे वे न्यायालय के माध्यम से समन न िकए
गए ह ; और
(च) अपील की दशा म िकसी पक्षकार ारा िनणर्य और िडिकर्य की पर्ितयां करने म उपगत पर्भार, जो अपील के
ज्ञापन के साथ फाइल की जाने के िलए अपेिक्षत है ।
2. उच्च न्यायालय ारा बनाए गए िनयम के अनुसार खच का अिधिनण त िकया जाना—इस िनयम के अधीन खच ऐसे
िनयम के अनुसार अिधिनण त िकए जाएंगे जो उच्च न्यायालय ारा इस िनिम बनाए जाएं ।]
आदेश 21
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 70 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 71 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
121
(ख) पक्षकार के या जहां दो से अिधक वादी या दो से अिधक पर्ितवादी ह वहां, यथािस्थित, पहले दो वािदय और
दो पर्ितवािदय के नाम;
(ग) पर्ेिषत धन का समायोजन िकस पर्कार िकया जाना है, अथार्त् वह संदाय मूल के पर्ित, ब्याज के पर्ित या खच के
पर्ित है;
(घ) न्यायालय के िनष्पादन मामले का संख्यांक जहां ऐसा मामला लंिबत है; और
(ङ) संदायकतार् का नाम और पता ।
(4) उपिनयम (1) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन संद िकसी रकम पर ब्याज, यिद कोई हो, उपिनयम (2) म िनिदष्ट
सूचना की तामील की तारीख से नह लगेगा ।
(5) उपिनयम (1) के खण्ड (ख) के अधीन संद िकसी रकम पर ब्याज, यिद कोई हो, ऐसे संदाय की तारीख से नह लगेगाः
परन्तु जहां िडकर्ीदार मनीआडर्र या बक के माध्यम से संदाय स्वीकार करने से इं कार करता है वहां ब्याज, उस तारीख से,
िजसको धन उसे िनिवद िकया गया था, नह लगेगा अथवा जहां वह मनीआडर्र या बक के माध्यम से िकए गए संदाय को स्वीकार
करने से बचता है, वहां ब्याज उस तारीख से, िजसको धन उसे, यथािस्थित, डाक पर्ािधकािरय के या बक के कारबार के मामूली अनुकर्म
म िदया गया होता, नह लगेगा ।]
2. िडकर्ीदार को न्यायालय के बाहर संदाय—(1) जहां िकसी पर्कार की िडकर्ी के अधीन संदये कोई धन न्यायालय के बाहर
संद िकया गया है [या िकसी पर्कार की पूरी िडकर्ी या उसके िकसी भाग का समायोजन िडकर्ीदार को समाधानपर्द रूप म अन्यथा कर
1
िदया गया है] वहां िडकर्ीदार उस न्यायालय को, िजसका कतर् िडकर्ी का िनष्पादन करना है, यह पर्मािणत करे गा िक ऐसा संदाय या
समायोजन कर िदया है और न्यायालय उसे तद्नुसार अिभिलिखत करे गा ।
(2) िनण तऋणी 2 [या कोई ऐसा व्यिक्त भी जो िनण तऋणी के िलए पर्ितभू है,] ऐसे संदाय या समायोजन की इि ला
न्यायालय को दे सके गा और न्यायालय से आवेदन कर सके गा िक न्यायालय अपने ारा िनयत िकए जाने वाले िदन को वह हेतुक दिशत
करने के िलए सूचना िडकर्ीदार के नाम िनकाले िक ऐसे संदाय या समायोजन के बारे म यह क्य न अिभिलिखत कर िलया जाए िक वह
पर्मािणत है, और यिद िडकर्ीदार ऐसी सूचना की तामील के पश्चात् यह हेतुक दिशत करने म असफल रहता है िक संदाय या समायोजन
के बारे म यह अिभिलिखत नह िकया जाना चािहए िक वह पर्मािणत है तो न्यायालय उसे तद्नुसार अिभिलिखत करेगा ।
2
[(2क) िनण तऋणी की पर्ेरणा पर कोई भी संदाय या समायोजन तब तक अिभिलिखत नह िकया जाएगा जब तक—
(क) वह संदाय िनयम 1 म उपबिन्धत रीित से न िकया गया हो; या
(ख) वह संदाय या समायोजन दस्तावेजी सा य ारा सािबत न हो; या
(ग) वह संदाय या समायोजन िडकर्ीदार ारा या उसकी ओर से उस सूचना के उसके उ र म जो िनयम 1 के
उपिनयम (2) के अधीन दी गई है या न्यायालय के समक्ष स्वीकार न िकया गया हो ।]
3 (3)
वह संदाय या समायोजन जो पूव क्त रीित से पर्मािणत या अिभिलिखत नह िकया गया है, िडकर्ी िनष्पादन करने वाले
िकसी न्यायालय ारा मान्य नह िकया जाएगा ।
िडिकर्यां िनष्पादन करने वाले न्यायालय
3. एक से अिधक अिधकािरता म िस्थत भूिम—जहां स्थावर सम्पि दो या अिधक न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय
सीमा के भीतर िस्थत एक सम्पदा या भूधृित के रूप म है वहां पूरी सम्पदा या भूधृित को ऐसे न्यायालय म से कोई भी एक न्यायालय
कु कर् कर सके गा और उसका िवकर्य कर सके गा ।
4. लघुवाद न्यायालय को अन्तरण—जहां िडकर्ी िकसी ऐसे वाद म पािरत की गई है, िजसका वादपतर् म उपविणत मूल्य दो
हजार रुपए से अिधक नह है और जहां तक उसकी िवषय-वस्तु का सम्बन्ध है वह या तो पर्ेिसडेन्सी या पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय के
संज्ञान से तत्समय पर्वृ िविध ारा अपवािदत नह है और वह न्यायालय िजसने उसे पािरत िकया था यह चाहता है िक वह कलक ा,
मदर्ास 4 [या मुम्बई] म िनष्पािदत की जाएं वहां ऐसा न्यायालय, यथािस्थित, कलक ा, मदर्ास 4[या मुम्बई] म के लघुवाद न्यायालय को
िनयम 6 म विणत पर्ितयां और पर्माणपतर् भेज सके गा और तब ऐसा लघुवाद न्यायालय उस िडकर्ी का िनष्पादन ऐसे करे गा मानो वह
स्वयं उसके ारा पािरत की गई हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
3
अिधिनयम के पंजाब को लागू करने के िलए पंजाब िरलीफ आफ इन्डेिटडनेस ऐक्ट, 1934 (1934 का पंजाब अिधिनयम सं०7) की धारा 36 ारा उपिनयम (3) िनरिसत
िकया गया ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “मुम्बई या रं गून” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
122
[5. अन्तरण की रीित—जहां िडकर्ी िनष्पादन के िलए दूसरे न्यायालय को भेजी जानी है वहां वह न्यायालय िजसने ऐसी
1
िडकर्ी पािरत की है िडकर्ी को सीधे ऐसे दूसरे न्यायालय को भेजेगा चाहे ऐसा दूसरा न्यायालय उसी राज्य म िस्थत हो या न हो, िकन्तु
वह न्यायालय िजसको िडकर्ी िनष्पादन के िलए भेजी गई है उस दशा म िजसम उसे िडकर्ी को िनष्पािदत करने की अिधकािरता नह है
ऐसे न्यायालय को भेजेगा िजसे ऐसी अिधकािरता है ।]
6. जहां न्यायालय यह चाहता है िक उसकी अपनी िडकर्ी िकसी अन्य न्यायालय ारा िनष्पािदत की जाए वहां
पर्िकर्या—िडकर्ी को िनष्पादन के िलए भेजने वाला न्यायालय िनम्निलिखत भेजेगा, अथार्त्:—
(क) िडकर्ी की पर्ित;
(ख) यह उपविणत करने वाला पर्माणपतर् िक िडकर्ी की तुिष्ट उस न्यायालय की अिधकािरता के भीतर िजसने उसे
पािरत िकया था िनष्पादन ारा अिभपर्ाप्त नह की गई है या जहां िडकर्ी का िनष्पादन भागतः हुआ है वहां वह िवस्तार िजस
तक तुिष्ट अिभपर्ाप्त कर ली गई है और िडकर्ी का जो भाग अतुष्ट रहा है वह भाग उपविणत करने वाला पर्माणपतर्; तथा
(ग) िडकर्ी के िनष्पादन के िकसी आदेश की पर्ित या यिद ऐसा कोई भी आदेश नह िकया गया है तो उस भाव का
पर्माणपतर् ।
7. िडकर्ी आिद की पर्ितयां पर्ाप्त करने वाला न्यायालय उन्ह सबूत के िबना फाइल कर लेगा—वह न्यायालय िजसे िडकर्ी ऐसे
भेजी गई है, ऐसी पर्ितय और पर्माणपतर् को उस िडकर्ी या आदेश के जो िनष्पादन के िलए है या उसकी पर्ितय के िकसी अितिरक्त
सबूत के िबना, फाइल कर लेगा यिद वह उन िवशेष कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे और िजन पर न्यायाधीश के हस्ताक्षर ह गे, ऐसे
सबूत की अपेक्षा न करे ।
8. िडकर्ी या आदेश का उस न्यायालय ारा िनष्दापन िजसे वह भेजा गया है—जहां ऐसी पर्ितयां इस पर्कार फाइल कर ली
गई ह वहां यिद वह न्यायालय िजसे वह िडकर्ी या आदेश भेजा गया है, िजला न्यायालय है तो वह ऐसे न्यायालय ारा िनष्पािदत िकया
जा सके गा या सक्षम अिधकािरता वाले िकसी अधीनस्थ न्यायालय को िनष्पादन के िलए अन्तिरत िकया जा सके गा ।
9. अन्य न्यायालय ारा अन्तिरत िडकर्ी का उच्च न्यायालय ारा िनष्पादन—जहां वह न्यायालय िजसे िडकर्ी िनष्पादन के
िलए भेजी गई है उच्च न्यायालय है वहां िडकर्ी ऐसे न्यायालय ारा उसी रीित से िनष्पािदत की जाएगी मानो वह ऐसे न्यायालय ारा
अपनी मामूली आरिम्भक िसिवल अिधकािरता के पर्योग म पािरत की गई थी ।
िनष्पादन के िलए आवेदन
10. िनष्पादन के िलए आवेदन—जहां िडकर्ी का धारक उसका िनष्पादन कराना चाहता है वहां वह िडकर्ी पािरत करने वाले
न्यायालय से या इस िनिम िनयुक्त अिधकारी से (यिद कोई हो) या यिद िडकर्ी िकसी अन्य न्यायालय को इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट
उपबन्ध के अधीन भेजी गई है तो उस न्यायालय से या उसके उिचत अिधकारी से आवेदन करे गा ।
11. मौिखक आवेदन—(1) जहां िडकर्ी धन के संदाय के िलए है वहां, यिद िनण तऋणी न्यायालय की पिरसीमा के भीतर है
तो, न्यायालय िडकर्ी पािरत करने के समय िडकर्ीदार ारा िकए गए मौिखक आवेदन पर आदेश दे सके गा िक वारण्ट की तैयारी के पूवर्
िडकर्ी का अिवलम्ब िनष्पादन िनण तऋणी की िगरफ्तारी ारा िकया जाए ।
(2) िलिखत आवेदन—उसके िसवाय जैसा उपिनयम (1) ारा उपबिन्धत है, िडकर्ी के िनष्पादन के िलए हर आवेदन िलखा
हुआ और आवेदक या िकसी अन्य ऐसे व्यिक्त ारा, िजसके बारे म न्यायालय को समाधानपर्द रूप म सािबत कर िदया गया है िक वह
मामले के तथ्य से पिरिचत है, हस्ताक्षिरत और सत्यािपत होगा और उसम सारणीब रूप म िनम्न िविशिष्टयां ह गी, अथार्त्:—
(क) वाद का संख्यांक;
(ख) पक्षकार के नाम;
(ग) िडकर्ी का तारीख;
(घ) क्या िडकर्ी के िवरु कोई अपील की गई है;
(ङ) क्या िडकर्ी के पश्चात् पक्षकार के बीच कोई संदाय या िववादगर्स्त बात का कोई अन्य समायोजन हुआ है और
(यिद कोई हुआ है तो) िकतना या क्या;
(च) क्या िडकर्ी के िनष्पादन के िलए कोई आवेदन पहले िकए गए ह और (यिद कोई िकए गए ह तो) कौन से ह और
ऐसे आवेदन की तारीख और उनके पिरणाम;
(छ) िडकर्ी म े शोध्य रकम, यिद कोई ब्याज हो तो उसके सिहत, या उसके ारा अनुद अन्य अनुतोष, िकसी
पर्ित-िडकर्ी की िविशिष्टय के सिहत चाहे वह उस िडकर्ी की तारीख के पूवर् या पश्चात् पािरत की गई हो िजसका िनष्पादन
चाहा गया है;
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 5 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
123
के िलए आवेदन िकया जाता है वहां उसम उन आधार का िजन पर िगरफ्तारी के िलए आवेदन िकया गया है, कथन होगा या उसके
साथ एक शपथपतर् होगा िजसम उन आधार का िजन पर िगरफ्तारी के िलए आवेदन िकया गया है, कथन होगा ।]
12. ऐसी जंगम सम्पि की कु क के िलए आवेदन जो िनण तऋणी के कब्जे म नह है—जहां िकसी ऐसी जंगम सम्पि की
कु क के िलए आवेदन िकया गया है जो िनण तऋणी की है िकन्तु उसके कब्जे म नह है वहां िडकर्ीदार उस सम्पि का िजसकी कु क की
जानी है युिक्तयुक्त रूप से यथाथर् वणर्न अन्तिवष्ट करने वाली एक सम्पि तािलका आवेदन के साथ उपाब करे गा ।
13. स्थावर सम्पि की कु क के आवेदन म कु छ िविशिष्टय का अन्तिवष्ट होना—जहां िनण तऋणी की िकसी स्थावर
सम्पि की कु क के िलए आवेदन िकया जाता है वहां उस आवेदन के पाद-भाग म िनम्निलिखत बात अन्तिवष्ट ह गी, अथार्त्:—
(क) ऐसी सम्पि का ऐसा वणर्न जो उसे पहचानने के िलए पयार्प्त है और उस दशा म िजसम ऐसी सम्पि
सीमा ारा या भू- वस्थापन या सवक्षण के अिभलेख के संख्यांक के ारा पहचानी जा सकती है, ऐसी सीमा या
संख्यांक का िविनदश; तथा
(ख) िनण तऋणी का ऐसी सम्पि म, जो अंश या िहत आवेदक के सव म िवश्वास के अनुसार है और जहां तक
वह उसका अिभिनश्चय कर पाया हो वहां तक उस अंश या िहत का िविनदश ।
14. कलक्टर के रिजस्टर म से पर्मािणत उ रण की कु छ दशा म अपेक्षा करने की शिक्त—जहां िकसी ऐसी भूिम की कु क
के िलए आवेदन िकया जाता है जो कलक्टर के कायर्लय म रिजस्टर्ीकृ त है वहां न्यायालय आवेदक से अपेक्षा कर सके गा िक वह उस भूिम
के स्वत्वधारी के रूप म या उस भूिम म या उसके राजस्व म कोई अन्तरणीय िहत रखने वाले के रूप म या उस भूिम के िलए राजस्व देने
के दायी के रूप म रिजस्टर म दजर् व्यिक्तय का और रिजस्टर म दजर् स्वत्वधािरय के अंश को िविनिदष्ट करने वाला पर्मािणत उ रण
ऐसे कायार्लय के रिजस्टर म से पेश करे ।
15. संयक्
ु त िडकर्ीदार ारा िनष्पादन के िलए आवेदन—(1) जहां िडकर्ी एक से अिधक व्यिक्तय के पक्ष म संयुक्त रूप से
पािरत की गई है वहां, जब तक िक िडकर्ी म इसके पर्ितकू ल कोई शतर् अिधरोिपत न हो, पूरी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन ऐसे
व्यिक्तय म से कोई एक या अिधक अपने सभी के फायदे के िलए या जहां उनम से िकसी की मृत्यु हो गई है वहां मृतक के उ रजीिवय
और िविधक पर्ितिनिधय के फायदे के िलए कर सके गा ।
(2) जहां न्यायालय िडकर्ी का िनष्पादन इस िनयम के अधीन िकए गए आवेदन पर अनुज्ञात करने के िलए पयार्प्त हेतुक देखे
वहां वह ऐसा आदेश करे गा जो वह उन व्यिक्तय के जो आवेदन करने म सिम्मिलत नह हुए ह, िहत के संरक्षण के िलए
आवश्यक समझे ।
16. िडकर्ी के अन्तिरती ारा िनष्पादन के िलए आवेदन—जहां िकसी िडकर्ी का या, यिद कोई िडकर्ी दो या अिधक व्यिक्तय
के पक्ष म संयुक्त रूप से पािरत की गई है तो िडकर्ी म िकसी िडकर्ीदार के िहत का अन्तरण िलिखत समनुदश े न ारा या िविध की िकर्या
ारा हो गया है वहां अन्तिरती उस न्यायालय से, िजसने िडकर्ी पािरत की थी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन कर सके गा और िडकर्ी
उसी रीित से और उन्ह शत के अधीन रहते हुए इस पर्कार िनष्पािदत की जा सके गी मानो आवेदन ऐसे िडकर्ीदार के ारा िकया गया
होः
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपखण्ड (ii) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
124
िवषयवस्तु है, अिधकार का कोई अन्तिरती िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन, इस िनयम ारा यथा अपेिक्षत िडकर्ी के पृथक्
समनुदश
े न के िबना, कर सके गा ।]
17. िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन पर्ाप्त होने पर पर्िकर्या—(1) िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन िनयम 11 के
उपिनयम (2) ारा उपबिन्धत रूप म पर्ाप्त होने पर न्यायालय यह अिभिनिश्चत करे गा िक क्या िनयम 11 से 14 तक की अपेक्षा म
से उनका जो उस मामले म लागू ह, अनुपालन िकया जा चुका है और यिद उनका अनुपालन नह िकया गया है 2 [तो न्यायालय तर्ुिट का
तभी और वहां ही या उस समय के भीतर, जो उसके ारा िनयत िकया जाएगा, दूर िकया जाना अनुज्ञात करे गा] ।
1
[(1क) यिद तर्ुिट इस पर्कार दूर नह िक जाती है तो न्यायालय आवेदन को नामंजूर करे गाः
परन्तु जहां न्यायालय की राय म, िनयम 11 के उपिनयम (2) के खण्ड (छ) और (ज) म िनिदष्ट रकम के बारे म कोई अशुि
हो वहां न्यायालय आवेदन को नामंजूर करने के बजाय (कायर्वािहय के दौरान रकम को अिन्तम रूप से िविनिश्चत कराने के पक्षकार
के अिधकार पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना) अनिन्तम रूप से रकम िविनिश्चत करे गा और इस पर्कार अनिन्तम रूप से िविनिश्चत रकम
वाली िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आदेश करे गा ।]
(2) जहां आवेदन उपिनयम (1) के उपबन्ध के अधीन संशोिधत िकया जाता है वहां वह िविध के अनुसार और उस तारीख
को, िजसको वह पहले पेश िकया गया था, पेश िकया गया समझा जाएगा ।
(3) इस िनयम के अधीन िकया गया हर संशोधन न्यायाधीश ारा हस्ताक्षिरत या आ क्षिरत िकया जाएगा ।
(4) जब आवेदन गर्हण कर िलया जाए तब न्यायालय उिचत रिजस्टर म आवेदन का िटप्पण और वह तारीख िजस िदन वह
िदया गया था, पर्िवष्ट करे गा और इसम इसके पश्चात् अन्तिवष्ट उपबन्ध के अधीन रहते हुए, आवेदन की पर्कृ ित के अनुसार िडकर्ी के
िनष्पादन के िलए आदेश देगाः
परन्तु धन के संदाय के िलए िडकर्ी की दशा म कु कर् की गई सम्पि का मूल्य िडकर्ी के अधीन शोध्य रकम के यथाशक्य लगभग
बराबर होगा ।
18. पर्ित-िडिकर्य की दशा म िनष्पादन—(1) जहां न्यायालय से आवेदन ऐसी पर्ित-िडिकर्य के िनष्पादन के िलए िकए जाते
ह जो दो रािशय के संदाय के िलए पृथक् -पृथक् वाद म उन्ह पक्षकार के बीच पािरत की गई है और ऐसे न्यायालय ारा एक ही समय
िनष्पादनीय ह, वहां—
(क) यिद दोन रािशयां बराबर ह तो दोन िडिकर्य म तुिष्ट की पर्िविष्ट कर दी जाएगी; तथा
(ख) यिद दोन रािशयां बराबर नह है तो बड़ी रािश वाली िडकर्ी के धारक ारा ही और के वल उतनी ही रािश के
िलए जो छोटी रािश को घटाने के पश्चात् शेष रहती ह, िनष्पादन कराया जा सके गा और बड़ी रािश वाली िडकर्ी म छोटी
रािश की तुिष्ट की पर्िविष्ट कर दी जाएगी और साथ ही साथ छोटी रािश वाली िडकर्ी म भी तुिष्ट की पर्िविष्ट कर
दी जाएगी ।
(2) इस िनयम के बारे म यह समझा जाएगा िक ये वहां लागू ह जहां दोन म से कोई पक्षकार उन िडिकर्य म से एक का
समनुदिे शती है और मूल समनुदश
े क ारा शोध्य िनण त-ऋण के बारे म भी वैसे ही लागू ह जैसे स्वयं समनुदिे शती ारा शोध्य िनण त-
ऋण को ।
(3) इस िनयम के बारे म यह नह समझा जाएगा िक यह लागू है जब तक िक—
(क) उन वाद म से, िजनम िडकर्ीयां की गई ह एक म का िडकर्ीदार दूसरे म का िनण तऋणी न हो और हर एक
पक्षकार दोन वाद म एक सी ही हैिसयत न रखता हो; तथा
(ख) िडिकर्य के अधीन शोध्य रािशयां िनिश्चत न ह ।
(4) कई व्यिक्तय के िवरु संयुक्ततः और पृथक्त: पािरत िडकर्ी का धारक अपनी िडकर्ी को ऐसी िडकर्ी के सम्बन्ध म जो ऐसे
व्यिक्तय म एक या अिधक पक्ष म अके ले उसके िवरु पािरत की गई हो पर्ित-िडकर्ी के रूप म बरत सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
125
दृ ांत
(क) ख के िवरु 1,000 रुपए की िडकर्ी क के पास है । क के िवरु 1,000 रुपए के संदाय के िलए एक िडकर्ी ख के पास है, जो
तब संदय
े होगी जबिक क कितपय माल िकसी भिवष्यवत िदन को पिरदान करने म असफल रहे । ख अपनी िडकर्ी को पर्ित-िडकर्ी के
रूप म इस िनयम के अधीन नह बरत सकता ।
(ख) सहवादी ख और क 1,000 रुपए की िडकर्ी ग के िवरु अिभपर्ाप्त करते ह और ख के िवरु ग 1,000 रुपए की िडकर्ी
अिभपर्ाप्त करता है । इस िनयम के अधीन ग अपनी िडकर्ी को पर्ित-िडकर्ी के रूप म नह बरत सकता ।
(ग) क 1,000 रुपए की िडकर्ी ख के िवरु अिभपर्ाप्त करता है । ग जो ख का न्यासी है ख की ओर से क के िवरु 1,000 रुपए
की िडकर्ी अिभपर्ाप्त करता है । ख इस िनयम के अधीन ग की िडकर्ी को पर्ित-िडकर्ी के रूप म नह बरत सकता ।
(घ) क, ख, ग, घ और ङ संयुक्ततः और पृथक्त: च ारा अिभपर्ाप्त िडकर्ी के अधीन 1,000 रुपए के देनदार ह । क अके ला च
के िवरु 100 रुपए की िडकर्ी अिभपर्ाप्त करता है और उस न्यायालय से िनष्पादन के िलए आवेदन करता है िजसम वह संयुक्त िडकर्ी
िनष्पािदत की जा रही है । च इस िनयम के अधीन अपनी संयुक्त िडकर्ी को पर्ित-िडकर्ी के रूप म बरत सके गा ।
19. एक ही िडकर्ी के अधीन पर्ितदाव की दशा म िनष्पादन—जहां न्यायालय से आवेदन ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए
िकया गया है िजसके अधीन दो पक्षकार एक दूसरे से धन की रािशयां वसूल करने के हकदार ह, वहां—
(क) यिद दोन रािशयां बराबर ह तो दोन के िलए तुिष्ट की पर्िविष्ट िडकर्ी म कर दी जाएगी; तथा
(ख) यिद दोन रािशयां बराबर नह ह तो बड़ी रािश के हकदार पक्षकार ारा ही और के वल उतनी ही रािश के
िलए जो छोटी रािश के घटाने के पश्चात् शेष रहती है, िनष्पादन कराया जा सके गा, और छोटी रािश की तुिष्ट की पर्िविष्ट
िडकर्ी म कर दी जाएगी ।
20. बंधक-वाद म पर्ित-िडिकर्यां और पर्ितदावे—िनयम 18 और िनयम 19 म अन्तिवष्ट उपबन्ध, बन्धक या भार का पर्वतर्न
कराने म िवकर्य की िडिकर्य को लोगू ह गे ।
21. एक साथ िनष्पादन—न्यायालय िनण तऋणी के शरीर और सम्पि के िवरु एक साथ िनष्पादन करने से इं कार
स्विववेकानुसार कर सके गा ।
22. कु छ दशा म िनष्पादन के िवरु हेतक
ु दिशत करने की सूचना—(1) जहां िनष्पादन के िलए आवेदन—
(क) िडकर्ी की तारीख के 1 [दो वषर्] के पश्चात् िकया गया है, अथवा
(ख) िडकर्ी के पक्षकार के िविधक पर्ितिनिध के िवरु िकया गया है, 2 [अथवा जहां धारा 44क के उपबन्ध के अधीन
फाइल की गई िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन िकया गया है], 3 [अथवा]
[(ग) जहां िडकर्ी का पक्षकार िदवािलया न्यायिनण त िकया गया है वहां िदवाले म समनुदिे शती या िरसीवर के
3
िकया जाना—जहां िकसी सम्पि का िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्य िकया जाता है वहां के वल इस कारण िक िवकर्य की उद्घोषणा
के जारी िकए जाने की तारीख और िवकर्य की तारीख के बीच िनण तऋणी की मृत्यु हो गई है और इस बात के होते हुए भी िवकर्य
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “एक वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1937 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
126
अपास्त नह िकया जाएगा िक िडकर्ीदार ऐसे मृत िनण तऋणी के िविधक पर्ितिनिध को उसके स्थान पर रखने म असफल रहा है, िकन्तु
ऐसी असफलता की दशा म न्यायालय िवकर्य को उस दशा म अपास्त कर सके गा िजसम उसका समाधान हो जाता है िक िवकर्य का मृत
िनण तऋणी के िविधक पर्ितिनिध पर पर्ितकू ल पर्भाव पड़ा है ।]
23. सूचना के िनकाले जाने के पश्चात् पर्िकर्या—(1) जहां वह व्यिक्त, िजसके नाम 1 [िनयम 22] के अधीन के अधीन सूचना
िनकाली गई है, उपसंजात नह होता है या न्यायालय को समाधानपर्द रूप म हेतुक दिशत नह करता है िक िडकर्ी का िनष्पादन क्य न
िकया जाए वहां न्यायालय आदेश देगा िक िडकर्ी का िनष्पादन िकया जाए ।
(2) जहां ऐसा व्यिक्त िडकर्ी के िनष्पादन के िवरु कोई आक्षेप पेश करता है वहां न्यायालय ऐसे आक्षेप पर िवचार करे गा
और ऐसा आदेश करे गा जो वह ठीक समझे ।
िनष्पादन के िलए आदेिशका
24. िनष्पादन के िलए आदेिशका—(1) जब पूवर्गामी िनयम ारा अपेिक्षत पर्ारिम्भक उपाय (यिद कोई ह ) िकए जा चुके ह
तब, जब तक िक न्यायालय को इसके पर्ितकू ल हेतक
ु िदखाई न दे, वह उस िडकर्ी के िनष्पादन के िलए अपनी आदेिशका िनकालेगा ।
(2) हर ऐसी आदेिशका म उस िदन की तारीख िलखी जाएगी िजस िदन वह िनकाली गई है और वह न्यायाधीश ारा या ऐसे
अिधकारी ारा जो न्यायालय इस िनिम िनयुक्त करे , हस्ताक्षिरत की जाएगी और न्यायालय की मुदर्ा से मुदर्ांिकत की जाएगी और
िनष्पािदत िकए जाने के िलए उिचत अिधकारी को पिरद की जाएगी ।
[(3) हर ऐसी आदेिशका म वह िदन िविनिदष्ट िकया जाएगा िजस िदन या िजसके पूवर् वह िनष्पािदत की जाएगी और वह
2
िदन भी िविनिदष्ट िकया जाएगा िजस िदन या िजसके पूवर् वह न्यायालय को वापस की जाएगी, िकन्तु कोई भी आदेिशका उस दशा म
शून्य नह समझी जाएगी िजसम उसके लौटाए जाने के िलए कोई िदन उसम िविनिदष्ट नह िकया गया हो ।]
25. आदेिशका पर पृष्ठांकन—(1) वह अिधकारी िजसे आदेिशका का िनष्पादन स पा गया है, उस पर वह िदन जब, और वह
रीित, िजससे वह िनष्पािदत की गई है, और यिद उसके लौटाए जाने के िलए आदेिशका म िविनिदष्ट अिन्तम िदन से अिधक समय
िनकल गया है तो िवलम्ब का कारण या यिद वह िनष्पािदत नह की गई थी तो वह कारण िजससे उसका िनष्पादन नह िकया गया,
पृष्ठांिकत करे गा और उस आदेिशका को ऐसे पृष्ठांकन के साथ न्यायालय को लौटाएगा ।
(2) जहां पृष्ठांकन इस भाव का है िक ऐसा अिधकारी आदेिशका का िनष्पादन करने म असमथर् है वहां न्यायालय उसकी
अिभकिथत असमथर्ता के बारे म उसकी परीक्षा करे गा और यिद वह ऐसा करना ठीक समझे तो ऐसी असमथर्ता के बारे म सािक्षय को
समन और उनकी परीक्षा कर सके गा और पिरणाम को अिभिलिखत करे गा ।
िनष्पादन का रोका जाना
26. न्यायालय िनष्पादन को कब रोक सके गा—(1) वह न्यायालय, िजसे िडकर्ी िनष्पादन के िलए भेजी गई है, ऐसी िडकर्ी का
िनष्पादन पयार्प्त हेतुक दिशत िकए जाने पर युिक्तयुक्त समय के िलए इसिलए रोके गा िक िनण तऋणी समथर् हो सके िक वह िडकर्ी
पािरत करने वाले न्यायालय से या िडकर्ी के या उसके िनष्पादन के बारे म अपीली अिधकािरता रखने वाले िकसी न्यायालय से िनष्पादन
रोक देने के आदेश के िलए आवेदन कर ले या िडकर्ी या िनष्पादन से सम्बिन्धत िकसी ऐसे अन्य आदेश के िलए आवेदन कर ले जो पर्थम
बार के न्यायालय ारा या अपील न्यायालय ारा िकया जाता यिद िनष्पादन उसके ारा जारी िकया गया होता या यिद िनष्पादन के
िलए आवेदन उससे िकया गया होता ।
(2) जहां िनण तऋणी की सम्पि या शरीर िनष्पादन के अधीन अिभगृहीत कर िलया गया है वहां वह न्यायालय, िजसने
िनष्पादन जारी िकया है, ऐसे आवेदन का पिरणाम लिम्बत रहने तक ऐसी सम्पि के पर्त्यास्थापन या ऐसे व्यिक्त के उन्मोचन के िलए
आदेश कर सके गा ।
(3) िनण तऋणी से पर्ितभूित अपेिक्षत करने या उस पर शत अिधरोिपत करने की शिक्त—न्यायालय िनष्पादन को रोकने के
िलए या सम्पि के पर्त्यास्थापन के िलए या िनण तऋणी के उन्मोचन के िलए आदेश करने से पहले िनण तऋणी से 3 [ऐसी पर्ितभूित
अपेिक्षत करे गा या उस पर ऐसी शत अिधरोिपत करे गा जो वह ठीक समझे] ।
27. उन्मोिचत िनण तऋणी का दाियत्व—िनयम 26 के अधीन पर्त्यास्थापन या उन्मोचन का कोई भी आदेश िनष्पादन के
िलए भेजी गई िडकर्ी के िनष्पादन म िनण तऋणी की सम्पि या शरीर को िफर से अिभगृहीत िकए जाने से िनवािरत नह करे गा ।
28. िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय का या अपील न्यायालय का आदेश उस न्यायालय के िलए आब कर होगा िजससे
आवेदन िकया गया है—िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय का या पूव क्त जैसे अपील न्यायालय का ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के संबंध म
कोई आदेश उस न्यायालय के िलए आब कर होगा िजसे िडकर्ी िनष्पादन के िलए भेजी गई है ।
1
1978 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा “इसके ठीक पहले के िनयम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
127
29. िडकर्ीदार और िनण तऋणी के बीच वाद लिम्बत रहने तक िनष्पादन का रोका जाना—जहां उस व्यिक्त की ओर से,
िजसके िवरु िडकर्ी पािरत की गई थी, कोई वाद ऐसे न्यायालय की िडकर्ी के धारक के 1 [या ऐसी िडकर्ी के जो ऐसे न्यायालय ारा
िनष्पािदत की जा रही है, धारक के ] िवरु िकसी न्यायालय म लिम्बत है वहां न्यायालय पर्ितभूित के बारे म या अन्यथा ऐसे िनबन्धन
पर, जो वह ठीक समझे, िडकर्ी के िनष्पादन को तब तक के िलए रोक सके गा जब तक लिम्बत वाद का िविनश्चय न हो जाएः
[परन्तु यिद िडकर्ी धन के संदाय के िलए है तो न्यायालय उस दशा म िजसम वह पर्ितभूित अपेिक्षत िकए िबना उसका रोकना
1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “छह मास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1923 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “एक वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
128
खच पर िकया जा सके गा और कायर् कर िदया जाने पर जो य उपगत हुए ह वे ऐसी रीित से अिभिनिश्चत िकए जा सकगे जो
न्यायालय िनिदष्ट करे और इस पर्कार वसूल िकए जा सकगे मानो वे िडकर्ी म ही सिम्मिलत ह ।
[स्पष्टीकरण—शंका को दूर करने के िलए यह घोषणा की जाती है िक “वह कायर् िजसके िकए जाने की अपेक्षा की गई थी”
1
ऐसा अिधकारी जो न्यायालय ारा इस िनिम पर्ािधकृ त िकया जाए, ऐसी िविध के अनुसार दस्तावेज का रिजस्टर्ीकरण कराएगा ।
1
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
2
1923 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
3
1923 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा “कारागार म िनरोध ारा िनष्पािदत नह की जाएगी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1923 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 3 ारा “और िडकर्ीदार पत्नी है” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (6) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
129
(ख) जहां दस्तावेज का रिजस्टर्ीकरण इस पर्कार अपेिक्षत नह है िकन्तु िडकर्ीदार उसका रिजस्टर्ीकरण कराना चाहता है वहां
न्यायालय ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
(ग) जहां न्यायालय िकसी दस्तावेज के रिजस्टर्ीकरण के िलए कोई आदेश करता है वहां वह रिजस्टर्ीकरण के य के बारे म
ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।]
35. स्थावर सम्पि के िलए िडकर्ी—(1) जहां िडकर्ी िकसी स्थावर सम्पि के पिरदान के िलए है वहां उसका कब्जा उस
पक्षकार को िजसे वह न्यायिनण त िकया गया है या ऐसे व्यिक्त को िजसे वह अपनी ओर से पिरदान पर्ाप्त करने के िलए िनयुक्त करे ,
और यिद आवश्यक हो तो िडकर्ी ारा आब िकसी ऐसे व्यिक्त को जो सम्पि को खाली करने से इन्कार करता है, हटा कर के पिरद
िकया जाएगा ।
(2) जहां िडकर्ी स्थावर सम्पि के संयुक्त कब्जे के िलए है वहां सम्पि म के िकसी सहजदृश्य स्थान पर वारण्ट की पर्ित को
लगाकर और िडकर्ी के सार को िकसी सुिवधाजनक स्थान पर ड डी िपटवा कर या अन्य रूिढ़क ढंग से उद्घोिषत करके ऐसे कब्जे का
पिरदान िकया जाएगा ।
(3) जहां िकसी िनमार्ण या अहाते के कब्जे का पिरदान िकया जाना है और कब्जा रखने वाला व्यिक्त िडकर्ी ारा आब होते
हुए वहां तक अबाध पहुंच नह होने देता है वहां न्यायालय देश की रूिढ़य के अनुसार लोग के सामने न आने वाली स्तर्ी को युिक्तयुक्त
चेतावनी देकर और हट जाने की सुिवधा देने के पश्चात् अपने अिधकािरय के माध्यम से िकसी ताले या चटकनी को हटा सके गा या
खोल सके गा या िकसी ार को तोड़ कर खोल सके गा या िडकर्ीदार को कब्जा देने के िलए आवश्यक िकसी भी अन्य कायर् को कर सके गा ।
36. जब स्थावर सम्पि अिभधारी के अिधभोग म है तब ऐसी सम्पि के पिरदान के िलए िडकर्ी—जहां िडकर्ी िकसी ऐसी
स्थावर सम्पि के पिरदान के िलए है जो ऐसे अिभधारी या अन्य व्यिक्त के अिधभोग म है जो उस पर अिधभोग रखने का हकदार है
और िडकर्ी ारा इस बात के िलए आब नह है िक ऐसा अिधभोग त्याग दे वहां न्यायालय यह आदेश देगा िक सम्पि म के िकसी
सहजदृश्य स्थान पर वारण्ट की पर्ित को लगाकर और सम्पि के सम्बन्ध म िडकर्ी के सार को िकसी सुिवधाजनक स्थान पर ड डी
िपटवा कर या अन्य रूिढ़क ढंग से अिधभोगी को उद्घोिषत करके पिरदान िकया जाए ।
िगरफ्तारी और िसिवल कारागार म िनरोध
37. कारागार म िनरु िकए जाने के िवरु हेतक ु दिशत करने के िलए िनण तऋणी को अनुज्ञा देने की वैविे कक
शिक्त—(1) इन िनयम म िकसी बात के होते हुए भी, जहां धन के संदाय के िलए िडकर्ी का िनष्पादन ऐसे िनण तऋणी की जो आवेदन
के अनुसरण म िगरफ्तार िकए जाने के दाियत्व के अधीन है, िगरफ्तारी और िसिवल कारागार म िनरोध के ारा करने के िलए आवेदन
है वहां न्यायालय उसकी िगरफ्तारी के िलए वारण्ट िनकालने के बदले उससे यह अपेक्षा करने वाली सूचना उसके नाम 1 [िनकालेगा] िक
उस िदन को जो उस सूचना म िविनिदष्ट िकया जाएगा, वह न्यायालय म उपसंजात हो और हेतुक दिशत करे िक िसिवल कारागार को
उसे क्य न सुपुदर् कर िदया जाएः
[परन्तु यिद न्यायालय का शपथपतर् ारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है िक यह सम्भा ता है िक िनण तऋणी िडकर्ी
2
के िनष्पादन म िवलम्ब करने के उ ेश्य से फरार हो जाए या न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा को छोड़ दे या उसके ऐसा
करने का पिरणाम यह होगा िक िडकर्ी के िनष्पादन म िवलम्ब होगा तो ऐसी सूचना देना आवश्यक नह होगा ।]
(2) जहां सूचना के आज्ञानुवर्तन म उपसंजाित न की जाए वहां यिद िडकर्ीदार ऐसा अपेिक्षत करे तो न्यायालय िनण तऋणी
की िगरफ्तारी के िलए वारण्ट िनकालेगा ।
38. िगरफ्तारी के वारण्ट म िनण तऋणी के लाए जाने के िलए िनदेश होगा—िनण तऋणी की िगरफ्तारी के वारण्ट म उस
अिधकारी को िजसे उसका िनष्पादन न्यस्त िकया गया है, यह िनदेश होगा िक वह उसे न्यायालय के समक्ष सुिवधानुसार पूणर् शीघर्ता से
लाए यिद िनण तऋणी वह रकम िजसे देने के िलए वह आिदष्ट िकया गया है, उस पर ऐसे ब्याज के और यिद कोई खचार् हो तो ऐसे खच
के सिहत, िजसके िलए वह दायी है, पहले ही संद नह कर देता है ।
39. जीवन-िनवार्ह भ ा—(1) जब तक और िजस समय तक िडकर्ीदार ने न्यायालय म ऐसी रािश जमा न कर दी हो, जो
न्यायाधीश िनण तऋणी की िगरफ्तारी से लेकर उसके न्यायालय के समक्ष लाए जा सकने तक उसके जीवन-िनवार्ह के िलए पयार्प्त
समझता है, तब तक कोई िनण तऋणी िडकर्ी के िनष्पादन म िगरफ्तार नह िकया जाएगा ।
(2) जहां िनण तऋणी िडकर्ी के िनष्पादन म िसिवल कारागार को सुपुदर् िकया जाता है वहां न्यायालय उसके जीवन-िनवार्ह के
िलए ऐसा मािसक भ ा िनयत करे गा िजतने के िलए वह धारा 57 के अधीन िनयत मापमान के अनुसार हकदार है या जहां ऐसे कोई
मापमान िनयत नह िकए गए ह वहां िजतना उसके िवचार म उस वगर् के बारे म पयार्प्त हो िजस वगर् का िनण तऋणी है ।
(3) न्यायालय ारा िनयत िकया गया मािसक भ ा उस पक्षकार ारा, िजसके आवेदन पर िनण तऋणी िगरफ्तार िकया
गया है, अिगर्म मािसक संदाय ारा हर एक मास के पर्थम िदन के पूवर् िदया जाएगा ।
1
1936 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 3 ारा “िनकाल सके गा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1936 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
130
(4) पहला संदाय न्यायालय के उिचत अिधकारी को चालू मास के ऐसे भाग के िलए िकया जाएगा जो िनण तऋणी के िसिवल
कारागार को सुपुदर् िकए जाने के पूवर् शेष है और पश्चात्वत संदाय (यिद कोई हो) िसिवल कारागार के भारसाधक अिधकारी को िकए
जाएंगे ।
(5) िसिवल कारागार म िनण तऋणी के जीवन-िनवार्ह के िलए िडकर्ीदार ारा संिवतिरत की गई रािशयां वाद के खच
समझी जाएंगीः
परन्तु िनण तऋणी ऐसे संिवतिरत की गई िकसी भी रािश के िलए न तो िसिवल कारागार म िनरु िकया जाएगा और न
िगरफ्तार िकया जाएगा ।
[40. सूचना के आज्ञानुवतर्न म या िगरफ्तारी के पश्चात् िनण तऋणी के उपसंजात होने पर कायर्वािहयां—(1) जब
1
िनण तऋणी िनयम 37 के अधीन िनकाली गई सूचना के आज्ञानुवतर्न म न्यायालय के सामने उपसंजात होता है या धन के संदाय की
िडकर्ी के िनष्पादन म िगरफ्तार िकए जाने के पश्चात् न्यायालय के सामने लाया जाता है तब न्यायालय िडकर्ीदार को सुनने के िलए
अगर्सर होगा और ऐसे सभी सा य लेगा जो िनष्पादन के िलए अपने आवेदन के समथर्न म उसके ारा पेश िकया जाए और तब
िनण तऋणी को हेतुक दिशत करने का अवसर देगा िक वह िसिवल कारागार को क्य न सुपुदर् कर िदया जाए ।
(2) उपिनयम (1) के अधीन या तो जांच की समािप्त लिम्बत रहने तक न्यायालय स्विववेकानुसार आदेश कर सके गा िक
िनण तऋणी न्यायालय के अिधकारी की अिभरक्षा म िनरु िकया जाए या उसके ारा न्यायालय को समाधानपर्द रूप म इस बात की
पर्ितभूित िदए जाने पर िक अपेिक्षत िकए जाने पर वह उपसंजात होगा न्यायालय उसे छोड़ सके गा ।
(3) उपिनयम (1) के अधीन जांच की समािप्त पर न्यायालय धारा 51 के उपबन्ध और इस संिहता के अन्य उपबन्ध के
अधीन रहते हुए िनण तऋणी के िसिवल कारागार म िनरु िकए जाने का आदेश कर सके गा और उस दशा म जब वह पहले से ही
िगरफ्तारी म नह है उसे िगरफ्तार कराएगाः
परन्तु िनण तऋणी को िडकर्ी की तुिष्ट करने का अवसर देने के िलए न्यायालय िनरोध का आदेश करने के पहले िनण तऋणी
को न्यायालय के अिधकारी की अिभरक्षा म पन्दर्ह िदन से अनिधक िविनिदष्ट अविध के िलए रहने दे सके गा या उसके िविनिदष्ट अविध
के अवसान पर उपसंजात होने के िलए, यिद िडकर्ी की तुिष्ट उससे पहले ही न कर दी गई हो तो, उसके ारा न्यायालय को समाधानपर्द
रूप म पर्ितभूित िदए जाने पर उसे छोड़ सके गा ।
(4) इस िनयम के अधीन छोड़ गया िनण तऋणी पुनः िगरफ्तार िकया जा सके गा ।
(5) जब न्यायालय उपिनयम (3) के अिधन िनरोध का आदेश न करे तब वह आवेदन को नामंजूर करे गा और यिद
िनण तऋणी िगरफ्तारी म हो तो उसको छोड़े जाने का िनदेश देगा ।]
सम्पि की कु क
41. िनण तऋणी की अपनी सम्पि के बारे म उसकी परीक्षा— 2 [(1)] जहां िडकर्ी धन के संदाय के िलए है वहां िडकर्ीदार
न्यायालय से इस आदेश के िलए आवेदन कर सके गा िक—
(क) िनण तऋणी की, अथवा
(ख) 3 [उस दशा म िजसम िनण तऋणी िनगम हो] उसके िकसी अिधकारी की, अथवा
(ग) िकसी भी अन्य व्यिक्त की,
यह मौिखक परीक्षा की जाए िक क्या िनण तऋणी को कोई ऋण शोध्य ह और ह तो कौन से ह और क्या िनण तऋणी की ऐसी कोई
अन्य सम्पि या साधन ह िजनसे िडकर्ी की तुिष्ट की जा सके और ह तो कौन से ह और न्यायायलय ऐसे िनण तऋणी या अिधकारी या
अन्य व्यिक्त की हािजरी और उसकी परीक्षा के िलए और िकन्ह बिहय या दस्तावेज के पेश िकया जाने के िलए आदेश कर सके गा ।
[(2) जहां धन के संदाय के िलए कोई िडकर्ी तीस िदन की अविध तक अतुष्ट रही है वहां न्यायालय, िडकर्ीदार के आवेदन पर
4
और उपिनयम (1) के अधीन अपनी शिक्तय पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, आदेश ारा, िनण तऋणी से या जहां िनण तऋणी िनगम
है वहां उसके िकसी अिधकारी से यह अपेक्षा कर सके गा िक वह िनण तऋणी की आिस्तय की िविशिष्टय का कथन करने वाला एक
शपथ-पतर् दे ।
(3) उपिनयम (2) के अधीन िदए गए िकसी आदेश की अवज्ञा की दशा म, आदेश देने वाला न्यायालय या कोई ऐसा न्यायालय
िजसे कायर्वाही अन्तिरत की गई है, िनदेश दे सके गा िक आदेश की अवज्ञा करने वाले व्यिक्त को िसिवल कारागार म उतनी अविध के
िलए जो तीन मास से अनिधक की हो सके गी, तब तक िनरु िकया जाए जब तक िक ऐसी अविध के अवसान से पूवर् न्यायालय उसको
छोड़े जाने का िनदेश न दे ।]
1
1936 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 4 ारा िनयम 40 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 41 को उपिनयम (1) के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “िनयम की दशा म” के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
131
42. भाटक या अन्तःकालीन लाभ या तत्पश्चात् अन्य बात के िलए, िजसकी रकम बाद म अवधािरत होनी है, िडकर्ी की
दशा म कु क —जहां िडकर्ी भाटक या अन्तःकालीन लाभ या िकसी अन्य बात के िलए जांच िनिदष्ट करती है वहां िनण तऋणी की
सम्पि इसके पूवर् िक िनण तऋणी ारा शोध्य रकम अिभिनिश्चत कर ली गई हो ऐसे कु कर् की जा सके गी जैसे धन के संदाय की मामूली
िडकर्ी की दशा म कु क की जा सकती है ।
43. िनण तऋणी के कब्जे म की ऐसी जंगम सम्पि की कु क जो कृ िष उपज से िभन्न है—जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि
िनण तऋणी के कब्जे म की कृ िष उपज से िभन्न जंगम संपि है वहां कु क वास्तिवक अिभगर्हण के ारा की जाएगी और कु क करने
वाला अिधकारी सम्पि को स्वयं अपनी अिभरक्षा म या अपने अधीनस्थ म से एक की अिभरक्षा म रखेगा और उसकी सम्यक् अिभरक्षा
के िलए उ रदायी होगाः
परन्तु जब अिभगृहीत सम्पि शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है या जब उसे अिभरक्षा म रखने का य उसके मूल्य से ज्यादा
होना संभा है तब कु कर् करने वाला अिधकारी उसका तुरन्त ही िवकर्य कर सके गा ।
[43क. जंगम सम्पि की अिभरक्षा—(1) जहां कु कर् की गई सम्पि पशुधन, कृ िष उपकरण या अन्य ऐसी चीज ह जो
1
सुिवधापूवर्क हटाई नह जा सकती और कु कर् करने वाला अिधकारी िनयम 43 के परन्तुक के अधीन कायर् नह कर सकता है वहां वह,
िनण तऋणी की या िडकर्ीदार की या ऐसी सम्पि म िहतब होने का दावा करने वाले िकसी अन्य व्यिक्त की पर्ेरणा पर उसे उस गांव
या स्थान म जहां उसकी कु क की गई है, िकसी पर्िति त व्यिक्त की अिभरक्षा म (िजसे इसम इसके पश्चात् “अिभरक्षक” कहा गया है)
छोड़ सके गा ।
(2) यिद अिभरक्षक, सम्यक् सूचना के पश्चात्, ऐसी सम्पि को न्यायालय ारा बताए गए स्थान पर उस अिधकारी के समक्ष
जो उस पर्योजन के िलए पर्ितिनयुक्त िकया जाए, पेश करने म या उसे उस व्यिक्त को, िजसके पक्ष म न्यायालय ारा पर्त्यावतर्न का
आदेश िकया गया है, पर्त्यावितत करने म असफल रहता है या यिद वह सम्पि इस पर्कार पेश या पर्त्यावितत िकए जाने पर वैसी ही
दशा म नह है िजस दशा म वह न्यस्त िकए जाने के समय थी तो—
(क) अिभरक्षक उस हािन नुकसान के िलए जो उसके ितकर्म से हुआ हो, िडकर्ीदार, िनण तऋणी या िकसी अन्य
व्यिक्त को जो उसके पर्त्यावतर्न का हकदार पाया जाए, पर्ितकर संद करने के दाियत्व के अधीन होगा, और
(ख) ऐसे दाियत्व का पर्वतर्न—
(i) िडकर्ीदार की पर्ेरणा पर इस पर्कार िकया जा सके गा मानो अिभरक्षक धारा 145 के अधीन पर्ितभू हो;
(ii) िनण तऋणी या ऐसे अन्य व्यिक्त की पर्ेरणा पर, िनष्पादन के िलए आवेदन िकए जाने पर, िकया जा
सके गा; तथा
(ग) ऐसे दाियत्व का अवधारण करने वाला कोई आदेश िडकर्ी की तरह अपीलनीय होगा ।]
44. कृ िष उपज की कु क —जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि कृ िष उपज है वहां कु क के वारण्ट की एक पर्ित—
(क) उस दशा म, िजसम ऐसी उपज उगती फसल है, उस भूिम पर लगाकर िजसम ऐसी फसल उगी है, अथवा
(ख) उस दशा म, िजसम ऐसी उपज काटी जा चुकी है या इक ी की जा चुकी है, खिलहान म या अनाज गाहने के
स्थान म या तद्रूप स्थान म या चारे के ढेर पर, िजस पर या िजसम वह िनिक्षप्त की गई है,
लगा कर और एक अन्य पर्ित उस गृह के , िजसम िनण तऋणी मामूली तौर से िनवास करता है, बाहरी ार पर या िकसी अन्य
सहजदृश्य भाग पर लगाकर, या न्यायालय की इजाजत से उस गृह के , िजसम वह कारबार करता है या अिभलाभ के िलए
स्वयं काम करता है या िजसके बारे म यह ज्ञात है िक वहां वह अिन्तम बार िनवास करता था या कारबार करता था या
अिभलाभ के िलए स्वयं काम करता था, बाहरी ार पर या उसके िकसी अन्य सहजदृश्य भाग पर लगाकर कु कर् की जाएगी
और तब यह समझा जाएगा िक उपज न्यायालय के कब्जे म आ गई है ।
45. कु कर् की गई कृ िष उपज के बारे म उपबन्ध—(1) जहां कृ िष उपज की कु क की गई है वहां न्यायालय उसकी अिभरक्षा के
िलए ऐसा इन्तजाम करे गा जो वह पयार्प्त समझे और उगती फसल की कु क के िलए हर आवेदन म न्यायालय को ऐसे इन्तजाम करने के
िलए समथर् करने के पर्योजन से वह समय िविनिदष्ट होगा जब यह संभा ता है िक वह काटे जाने या इक ी की जाने के योग्य
हो जाएगी ।
(2) ऐसी शत के अधीन रहते हुए जो कु क के आदेश म या िकसी पश्चात्वत आदेश म न्यायालय ारा इस िनिम
अिधरोिपत की जाए, िनण तऋणी उपज की देखभाल कर सके गा, उसे काट सके गा, इक ी कर सके गा, भण्डार म रख सके गा और उसके
पकाने या पिररक्षण के िलए आवश्यक कोई अन्य कायर् कर सके गा और यिद िनण तऋणी ऐसे सभी काय को या उनम से िकसी को करने
म असफल रहता है तो िडकर्ीदार न्यायालय की अनुज्ञा से और ऐसी ही शत के अधीन रहते हुए सभी काय या उनम से िकसी को या तो
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
132
स्वयं कर सके गा या अपने ारा इस िनिम िनयुक्त िकसी व्यिक्त ारा करा सके गा और िडकर्ीदार ारा उपगत खच िनण तऋणी से
ऐसे वसूल िकए जा सकगे मानो वे िडकर्ी के अन्तगर्त ह या उसके भागरूप ह ।
(3) उगती फसल के रूप म कु कर् की गई उपज के बारे म के वल इस कारण िक वह काट कर धरती से अलग कर ली गई है यह न
समझा जाएगा िक वह कु क के अधीन नह रह गई है और न उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसकी पुनः कु क करना अपेिक्षत है ।
(4) जहां उगती फसल की कु क के िलए आदेश फसल के काटे जाने या इक े िकए जाने के योग्य होने की संभा ता के बहुत
समय पूवर् िदया गया है वहां न्यायालय आदेश का िनष्पादन ऐसे समय के िलए िनलिम्बत कर सके गा जो वह ठीक समझे और कु क के
आदेश के िनष्पादन के लिम्बत रहने तक फसल के हटाने को पर्ितिषि करने वाला अितिरक्त आदेश स्विववेकानुसार कर सके गा ।
(5) वह उगती फलस जो अपनी पर्कृ ित के कारण भण्डार म रखने योग्य नह है, िकसी ऐसे समय पर इस िनयम के अधीन कु कर्
नह की जाएगी जो उस समय से पूवर् बीस िदन से कम का हो िजस समय पर उसके काटे जाने या इट् ठी िकए जाने के योग्य होने की
संभा ता है ।
46. ऐसे ऋण, अंश या अन्य सम्पि की कु क जो िनण तऋणी के कब्जे म नह ह—(1) (क) ऐसे ऋण की दशा म जो
परकर्ाम्य िलखत के ारा पर्ितभूत नह है,
(ख) िकसी िनगम की पूंजी म के अंश की दशा म,
(ग) िकसी न्यायालय म िनिक्षप्त या उसकी अिभरक्षा म की सम्पि के िसवाय िकसी अन्य ऐसी जंगम सम्पि की दशा म जो
िनण तऋणी के कब्जे म नह है,
कु क —
(i) ऋण की दशा म जब तक िक न्यायालय का अितिरक्त आदेश न हो, तब तक लेनदार को ऋण की वसूली करने
से और ऋणी को उस ऋण को चुकाने से;
(ii) अंश की दशा म उस व्यिक्त को, िजसके नाम म अंश उस समय दजर् है उसे अन्तिरत करने से या उस पर के
िकसी लाभांश को पर्ाप्त करने से;
(iii) पूव क्त को छोड़कर अन्य जंगम सम्पि की दशा म उस पर कब्जा रखने वाले व्यिक्त को उसे िनण तऋणी को
देने से,
पर्ितिष करने वाले िलिखत आदेश ारा की जाएगी ।
(2) ऐसे आदेश की एक पर्ित न्याय-सदन के िकसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी और एक अन्य पर्ित ऋण की दशा म
ऋणी को, अंश की दशा म िनगम के उिचत अिधकारी को, और (पूव क्त को छोड़कर) अन्य जंगम सम्पि की दशा म उस पर कब्जा
रखने वाले व्यिक्त को भेजी जाएगी ।
(3) उपिनयम (1) के खण्ड (i) के अधीन पर्ितिष ऋणी अपने ऋण की रकम न्यायालय म जमा कर सके गा और ऐसे जमा
करने से वह वैसे ही पर्भावी तौर पर उन्मोिचत हो जाएगा जैसे वह उसे पाने के हकदार पक्षकार को संदाय करने से उन्मोिचत
हो जाता ।
गािरिनशी को सूचना—(1) न्यायालय (बन्धक या पर्भार ारा पर्ितभूत ऋण से िभन्न) ऐसे ऋण की दशा म, िजसकी
1 [46क.
िनयम 46 के अधीन कु क की गई है, कु क कराने वाले लेनदार के आवेदन पर ऐसे ऋण का संदाय करने के दाियत्वाधीन गारिनशी को
सूचना दे सके गा िजसम उससे यह अपेक्षा की जाएगी िक वह िनण तऋणी को उसके ारा शोध्य ऋण या उसका इतना भाग िजतना
िडकर्ी और िनष्पादन के खच को चुकाने के िलए पयार्प्त हो, न्यायालय म जमा करे या उपसंजात हो तथा कारण दिशत करे िक उसे
वैसा क्य नह करना चािहए ।
(2) उपिनयम (1) के अधीन कोई आवेदन शपथपतर् पर िकया जाएगा िजसम अिभकिथत तथ्य सत्यािपत ह गे और यह किथत
होगा िक अिभसाक्षी को िवश्वास है िक गारिनशी िनण तऋणी का ऋणी है ।
(3) जहां गारिनशी िनण तऋणी को उसके ारा शोध्य रकम या उसका इतना भाग िजतना िडकर्ी और िनष्पादन के खच को
चुकाने के िलए पयार्प्त है, न्यायालय म जमा कर देता है वहां न्यायालय िनदेश दे सके गा िक वह रकम िडकर्ी की तुिष्ट और िनष्पादन के
खच को चुकाने के िलए िडकर्ीदार को संद कर दी जाए ।
46ख. गारिनशी के िवरु आदेश—जहां गारिनशी िनण तऋणी को उसके ारा शोध्य रकम या उसका इतना भाग िजतना
िडकर्ी की तुिष्ट और िनष्पादन के खच को चुकाने के िलए पयार्प्त है तुरन्त न्यायालय म जमा नह करता है और उपसंजात नह होता है
तथा सूचना के अनुसरण म कारण दिशत नह करता है वहां न्यायालय गारिनशी को आदेश दे सके गा िक वह ऐसी सूचना के िनबन्धन
का अनुपालन करे और ऐसे आदेश पर िनष्पादन इस पर्कार िकया जा सके गा मानो ऐसा आदेश उसके िवरु िडकर्ी हो ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 46क से 46झ तक अंतःस्थािपत ।
133
46ग. िववादगर्स्त पर्श्न का िवचारण—जहां गारिनशी दाियत्व के बारे म िववाद करता है वहां न्यायालय आदेश कर सके गा
िक दाियत्व के अवधारण के िलए िकसी िववा क या आवश्यक पर्श्न का िवचारण इस पर्कार िकया जाएगा मानो वह वाद म का
िववा क हो और ऐसे िववा क के अवधारण पर ऐसा आदेश या ऐसे आदेश करे गा जो वह ठीक समझेः
परन्तु यिद वह ऋण, िजसके सम्बन्ध म िनयम 46क के अधीन आवेदन िकया गया है, इतनी धनरािश के बारे म है जो
न्यायालय की धनसंबंधी अिधकािरता के बाहर है तो न्यायालय िनष्पादन के मामले को उस िजला न्यायाधीश के न्यायालय को भेजेगा
िजसके उक्त न्यायालय अधीनस्थ है और तब िजला न्यायाधीश का न्यायालय या कोई अन्य सक्षम न्यायालय िजसे वह
िजला न्यायाधीश ारा अंतिरत िकया जाए उसे उसी पर्कार िनपटाएगा मानो वह मामला पर्ारम्भ म उसी न्यायालय म संिस्थत िकया
गया हो ।
46घ. जहां ऋण अन्य व्यिक्त का हो वहां पर्िकर्या—जहां यह सुझाया जाता है या संभा पर्तीत होता है िक ऋण िकसी अन्य
व्यिक्त का है या ऐसे ऋण पर िकसी अन्य व्यिक्त का धारणािधकार या पर्भार अथवा उसम अन्य िहत है वहां न्यायालय ऐसे अन्य
व्यिक्त को आदेश दे सके गा िक वह उपसंजात हो और ऐसे ऋण के बारे म अपने दावे की पर्कृ ित और िविशिष्टयां यिद कोई ह , किथत
करे और उसे सािबत करे ।
46ङ. अन्य व्यिक्त के बारे म आदेश—ऐसे अन्य व्यिक्त और िकसी ऐसे व्यिक्त या व्यिक्तय को िजन्ह तत्पश्चात् उपसंजात
होने का आदेश िदया जाए, या जहां ऐसा अन्य या दूसरा व्यिक्त या दूसरे व्यिक्त ऐसा आदेश िदए जाने पर उपसंजात नह होते ह वहां
न्यायालय ऐसा आदेश कर सके गा जो इसम इसके पूवर् उपबंिधत है या ऐसे अन्य अथवा दूसरे व्यिक्त या व्यिक्तय के , यथािस्थित,
धारणािधकार, पर्भार या िहत के सम्बन्ध म, ऐसे िनबन्धन पर, यिद कोई ह , ऐसा अन्य आदेश या ऐसे अन्य आदेश दे सके गा जो वह
ठीक और उिचत समझे ।
46च. गारिनशी ारा िकया गया संदाय िविधमान्य उन्मोचन होगा—िनयम 46क के अधीन सूचना पर या पूव क्त िकसी
आदेश के अधीन गारिनशी ारा िकया गया संदाय िनण तऋणी और पूव क्त रूप से उपसंजात होने के िलए आिदष्ट िकसी अन्य व्यिक्त
के िवरु उस रकम के िलए जो संद की गई हो या उद्गृहीत की गई हो उसका िविधमान्य उन्मोचन होगा चाहे वह िडकर्ी िजसके
िनष्पादन म िनयम 46क के अधीन आवेदन िकया गया था, या ऐसे आवेदन पर की गई कायर्वािहय म पािरत आदेश अपास्त कर िदया
जाए या उलट िदया जाए ।
46छ. खच—िनयम 46क के अधीन िकए गए िकसी आवेदन के और उससे होने वाली िकसी कायर्वाही के अथवा उसके
आनुषंिगक खच न्यायालय के िववेक के अधीन ह गे ।
46ज. अपील—िनयम 46ख, िनयम 46ग या िनयम 46ङ के अधीन िकया गया कोई आदेश िडकर्ी के रूप म अपीलनीय होगा ।
46झ. परकर्ाम्य िलखत को लागू होना—िनयम 46क से 46ज तक के (िजनके अन्तगर्त ये दोन िनयम भी ह) उपबन्ध िनयम
51 के अधीन कु कर् की गई परकर्ाम्य िलखत के सम्बन्ध म जहां तक हो सके वैसे ही लागू ह गे जैसे वे ऋण के सम्बन्ध म लागू होते ह ।]
47. जंगम सम्पि म अंश की कु क —जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि ऐसी जंगम सम्पि म िनण तऋणी के अंश या िहत के
रूप म है जो सहस्वािमय के रूप म उसकी और िकसी अन्य की है वहां कु क िनण तऋणी को अपने अंश या िहत का अन्तरण करने से
या उसे िकसी भी रूप म भािरत करने से पर्ितिषि करने वाली सूचना ारा की जाएगी ।
48. सरकार या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक के वेतन या भ की कु क —(1) जहां कु कर् की जाने वाली संपि
1 [सरकार के सेवक] या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी के सेवक का 2 [या िकसी ापार या उ ोग म लगे िकसी िनगम के जो
के न्दर्ीय, पर्ान्तीय या राज्य अिधिनयम ारा स्थािपत िकया गया हो, सेवक का या कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा
617 म यथापिरभािषत िकसी सरकारी कम्पनी के सेवक का] वेतन या भ ा है वहां न्यायालय, चाहे िनण तऋणी या संिवतरक
अिधकारी ऐसे न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर हो या नह , यह आदेश कर सके गा िक वह रकम, धारा 60 के
उपबन्ध के अधीन रहते हुए, ऐसे वेतन या भ म से या तो एक संदाय म या मािसक िकस्त म जैसा न्यायालय िनिदष्ट करे , िवधािरत
की जाएगी और ऐसे अिधकारी को, जो 3 [समुिचत सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा,] 4 [इस िनिम ] िनयुक्त करे , इस आदेश की
सूचना हो जाने पर—
[(क) जहां ऐसा वेतन या भ े उन स्थानीय सीमा के भीतर संिवतिरत िकए जाने ह, िजन पर इस संिहता का
4
तत्समय िवस्तार है वहां वह अिधकारी या अन्य व्यिक्त िजसका कतर् उसका संिवतरण करना है, यथािस्थित, आदेश के
अधीन शोध्य रकम या मािसक िकस्त िवधािरत करे गा और न्यायालय के पास भेजेगा;
(ख) जहां ऐसा वेतन या ऐसे भ े उक्त सीमा से परे संिवतिरत िकए जाने ह वहां उन सीमा के भीतर वाला
वह अिधकारी या अन्य व्यिक्त, िजसका कतर् संिवतिरत िकए जाने वाले वेतन या भ की रकम की बाबत संिवतरक
पर्ािधकारी को देना हो, यथािस्थित, आदेश के अधीन शोध्य रकम या मािसक िकस्त न्यायालय के पास भेजेगा और संिवतरक
1
1943 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा “लोक अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
3
1942 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 3 और अनुसूची ारा “के न्दर्ीय सरकार या पर्ान्तीय सरकार उनके राजपतर् म अिधसूचना ारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1939 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा पर्ितस्थािपत ।
134
पर्ािधकारी को िनदेश देगा िक वह समय-समय पर संिवतिरत की जाने वाली रकम के योग म से उन रकम के योग को घटा दे
जो न्यायालय के पास समय-समय पर भेजी गई ह ।]
(2) जहां ऐसे वेतन या भ का कु क योग्य भाग कु क के िकसी पूवर्तन और अतुष्ट आदेश के अनुसरण म पहले से ही
िवधािरत िकया जा रहा है और िकसी न्यायालय के पास भेजा जा रहा है वहां 1 [समुिचत सरकार] ारा इस िनिम िनयुक्त अिधकारी
पश्चात्वत आदेश को तत्काल उस न्यायालय को िजसने उसे िनकाला है, िव मान कु क की सभी िविशिष्टय के पूरे कथन के सिहत
लौटा देगा ।
[(3) इस िनयम के अधीन िकया गया हर आदेश, जब तक िक वह उपिनयम (2) के उपबन्ध के अनुसरण म लौटा न िदया
2
जाए, अितिरक्त सूचना या अन्य आदेिशका के िबना, उस समय तक जब तक िक िनण तऋणी उन स्थानीय सीमा के भीतर है िजन
पर इस संिहता का तत्समय िवस्तार है और यिद वह भारत की संिचत िनिध म से या राज्य की संिचत िनिध म से या भारत म िकसी रे ल
कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी या िनगम या सरकारी कम्पनी की िनिध म से संदय
े कोई वेतन या भ े पा रहा है तो उस समय तक भी,
जब तक िक वह उन सीमा के परे है, यथािस्थित, समुिचत सरकार या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी या िनगम या सरकारी
कम्पनी को आब करे गा और, यथािस्थित, समुिचत सरकार या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकारी या िनगम या सरकारी कम्पनी इस
िनयम के उल्लंघन म संद की गई िकसी भी रािश के िलए दायी होगी ।]
3
[स्पष्टीकरण—इस िनयम म “समुिचत सरकार” से अिभपर्ेत है,--
(i) के न्दर्ीय सरकार की सेवा म के िकसी व्यिक्त के या रे ल पर्शासन के या छावनी पर्ािधकारी के या महाप न के
प न पर्ािधकारी के िकसी सेवक के या िकसी ापार या उ ोग म लगे िकसी िनगम के जो के न्दर्ीय अिधिनयम ारा स्थािपत
िकया गया हो, िकसी सेवक के या ऐसी सरकारी कम्पनी के िजसम शेयर पूंजी का कोई भाग के न्दर्ीय सरकार ारा या एक से
अिधक राज्य सरकार ारा या भागतः के न्दर्ीय सरकार और भागतः एक या अिधक राज्य सरकार ारा धािरत हो िकसी
सेवक के सम्बन्ध म, के न्दर्ीय सरकार;
(ii) सरकार के िकसी अन्य सेवक के या िकसी अन्य स्थानीय पर्िधकारी के िकसी सेवक के या िकसी ापार या
उ ोग म लगे िकसी िनगम के जो पर्ान्तीय या राज्य अिधिनयम ारा स्थािपत िकया गया हो, िकसी सेवक के या िकसी अन्य
सरकारी कम्पनी के िकसी सेवक के सम्बन्ध म, राज्य सरकार ।]
[48क. पर्ाइवेट कमर्चािरय के वेतन या भ की कु क —(1) जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि ऐसे सेवक से िजसको िनयम
4
48 लागू होता है, िभन्न िकसी सेवक का वेतन या भ ा है वहां न्यायालय उस दशा म िजसम उस कमर्चारी का संिवतरक अिधकारी
न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर है, यह आदेश कर सके गा िक वह रकम, धारा 60 के उपबन्ध के अधीन रहते
हुए, ऐसे वेतन या भ म से या तो एक संदाय म या मािसक िकस्त म, जैसा न्यायालय िनिदष्ट करे , िवधािरत की जाएगी और ऐसे
संिवतरक अिधकारी को इस आदेश की सूचना हो जाने पर, ऐसा संिवतरक अिधकारी, यथािस्थित, आदेश के अधीन शोध्य रकम या
मािसक िकस्त न्यायालय के पास भेजेगा ।
(2) जहां ऐसे वेतन या भ का कु क योग्य भाग कु क के िकसी पूवर्तन और अतुष्ट आदेश के अनुसरण म पहले से ही
िवधािरत िकया जा रहा है या न्यायालय के पास भेजा जा रहा है वहां संिवतरक अिधकारी पश्चात्वत आदेश को तत्काल उस
न्यायालय को िजसने उसे िनकाला है, िव मान कु क की सभी िविशिष्टय के पूरे कथन के सिहत लौटा देगा ।
(3) इस िनयम के अधीन िकया गया हर आदेश जब तक िक वह उपिनयम (2) के उपबन्ध के अनुसरण म लौटा न िदया जाए,
अितिरक्त सूचना या अन्य आदेिशका के िबना, उस समय तक जब तक िक िनण तऋणी उन स्थानीय सीमा के भीतर है िजन पर इस
संिहता का तत्समय िवस्तार है और यिद वह भारत के िकसी भाग म के िकसी िनयोजक की िनिध म से संदय
े कोई वेतन या भ े पा रहा
है तो उस समय तक भी जब तक िक वह उन सीमा से परे है, िनयोजक को आब करे गा और िनयोजक इस िनयम के उल्लंघन म
संद की गई िकसी भी रािश के िलए दायी होगा ।]
49. भागीदारी की सम्पि की कु क —(1) इस िनयम ारा अन्यथा उपबिन्धत के िसवाय, िकसी भागीदारी की सम्पि उस
फमर् के िवरु या उस फमर् के भागीदार के िवरु उनकी उस हैिसयत म पािरत िडकर्ी से िभन्न िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् नह की
जाएगी और न उसका िवकर्य िकया जाएगा ।
(2) न्यायालय िकसी भागीदार के िवरु िडकर्ी के धारक के आवेदन पर आदेश कर सके गा िक िडकर्ी के अधीन शोध्य रकम के
संदाय का भार भागीदारी की सम्पि म ऐसे भागीदार के िहत और लाभ पर डाल िदया जाए और उसी या पश्चात्वत आदेश से उन
लाभ म (चाहे वे पहले ही घोिषत िकए जा चुके ह या पर्ोद्भूत हो रहे ह ) ऐसे भागीदार के अंश का और ऐसे िकसी अन्य धन का, जो
भागीदारी म े उसे िमलता हो, िरसीवर िनयुक्त कर सके गा और लेखा और जांच के िलए िनदेश दे सके गा और ऐसे िहत के के िवकर्य
1
1942 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “यथािस्थित, के न्दर्ीय सरकार या पर्ान्तीय सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
135
के िलए आदेश कर सके गा या ऐसे अन्य आदेश कर सके गा जो िकए जाते या िनिदष्ट िकए जाते यिद ऐसे भागीदार ने अपने िहत को
िडकर्ीदार के पक्ष म भािरत कर िदया होता या जैसे मामले की पिरिस्थितयां अपेिक्षत कर ।
(3) अन्य भागीदार या भागीदार को यह स्वतंतर्ता होगी िक वे भािरत िहत का मोचन िकसी भी समय कर ल या िवकर्य के
िलए िनदेिशत िकए जाने की दशा म उसे कर्य कर ल ।
(4) उपिनयम (2) के अधीन आदेश के िलए हर आवेदन की तामील िनण तऋणी पर और उसके भागीदार पर या उनम से
ऐस पर, जो 1 [भारत] के भीतर ह , की जाएगी ।
(5) िनण त ऋणी के िकसी भी भागीदार ारा उपिनयम (3) के अधीन िकए गए हर आवेदन की तामील िडकर्ीदार पर और
िनण तऋणी पर और अन्य भागीदार म से ऐस पर, जो आवेदन म सिम्मिलत नह हुए ह और जो 1[भारत] के भीतर ह , की जाएगी ।
(6) उपिनयम (4) या उपिनयम (5) के अधीन की गई तामील सभी भागीदार पर तामील समझी जाएगी और ऐसे आवेदन
पर िकए गए सभी आदेश की तामील उसी पर्कार होगी ।
50. फमर् के िवरु िडकर्ी का िनष्पादन—(1) जहां िडकर्ी िकसी फमर् के िवरु पािरत की गई है वहां िनष्पादन—
(क) भागीदारी की िकसी सम्पि के िवरु ;
(ख) िकसी ऐसे व्यिक्त के िवरु जो आदेश 30 के िनयम 6 या िनयम 7 के अधीन स्वयं अपने नाम म उपसंजात
हुआ है या िजसने अपने अिभवचन म यह स्वीकार िकया है िक वह भागीदार है या जो भागीदार न्यायिनण त िकया जा
चुका है;
(ग) िकसी ऐसे व्यिक्त के िवरु िजस पर समन ारा भागीदार के रूप म व्यिक्तगत तामील की गई है और जो
उपसंजात होने म असफल रहा है,
अनुद िकया जा सके गाः
परन्तु इस उपिनयम की कोई भी बात 2 [भारतीय भागीदारी अिधिनयम, 1932 (1932 का 9) की धारा 30] के उपबन्ध को
पिरसीिमत करने वाली या उन पर अन्यथा पर्भाव डालने वाली नह समझी जाएगी ।
(2) जहां िडकर्ीदार िडकर्ी का िनष्पादन िकसी ऐसे व्यिक्त से िभन्न जो उपिनयम (1) के खण्ड (ख) और (ग) म िनिदष्ट है,
िकसी व्यिक्त के िवरु उसके फमर् म भागीदार होने के नाते कराने का हकदार होने का दावा करता है वहां वह िडकर्ी पािरत करने वाले
न्यायालय से इस इजाजत के िलए आवेदन कर सके गा और जहां ऐसे दाियत्व के बारे म िववाद नह िकया जाता है वहां ऐसा न्यायालय
ऐसी इजाजत दे सके गा या जहां ऐसे दाियत्व के बारे म िववाद िकया जाता है वहां आदेश कर सके गा िक ऐसे व्यिक्त के दाियत्व का
िवचारण और अवधारण िकसी ऐसी रीित से िकया जाए िजससे वाद का कोई िववा क िवचािरत और अवधािरत िकया जा सकता है ।
(3) जहां िकसी व्यिक्त के दाियत्व का िवचारण और अवधारण उपिनयम (2) के अधीन िकया गया है वहां उस पर िकए गए
आदेश का वह बल होगा और वह अपील के बारे म या अन्यथा उन्ह शत के अधीन रहेगा मानो वह िडकर्ी हो ।
(4) भागीदार की िकसी सम्पि के िवरु हुई िडकर्ी को छोड़कर, िकसी फमर् के िवरु िडकर्ी उस फमर् म के िकसी भागीदार
को तभी िनमुर्क्त करे गी, दायी बनाएगी, या उसम के िकसी भागीदार पर पर्भाव डालेगी, जब िक उपसंजात होते और उ र देने के िलए
समन की तामील उस पर हो चुकी हो ।
[(5) इस िनयम की कोई बात आदेश 30 के िनयम 10 के उपबन्ध के आधार पर िकसी िहन्दू अिवभक्त कु टु म्ब के िवरु
3
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
136
53. िडिकर्य की कु क —(1) जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि या तो धन के संदाय की या बन्धक या भार के पर्वतर्न म िवकर्य
की िडकर्ी है वहां कु क —
(क) यिद िडिकर्यां उसी न्यायालय के ारा पािरत की गई थ तो, ऐसे न्यायालय के आदेश ारा की जाएगी, तथा
(ख) यिद वह िडकर्ी िजसकी कु क चाही गई है, िकसी अन्य न्यायालय ारा पािरत की गई थी तो उस िडकर्ी को
िजसका िनष्पादन चाहा गया है, पािरत करने वाले अन्य न्यायालय ारा ऐसे न्यायालय को यह अनुरोध करने वाली सूचना
देकर की जाएगी िक वह अपनी िडकर्ी का िनष्पादन तब तक के िलए रोक दे जब तक िक—
(i) िजस िडकर्ी का िनष्पादन चाहा गया है उस िडकर्ी को पािरत करने वाला न्यायालय सूचना को र न
कर दे, अथवा
1 [(ii) (क) िजस िडकर्ी का िनष्पादन चाहा गया है उस िडकर्ी का धारक, या
(ख) ऐसे िडकर्ीदार की िलिखत पूवर् सहमित से या कु कर् करने वाले न्यायालय की अनुज्ञा से उसका
िनण तऋणी,
ऐसी सूचना पर्ाप्त करने वाले न्यायालय से यह आवेदन न करे िक वह कु कर् की गई िडकर्ी का िनष्पादन करे ।]
(2) जहां न्यायालय उपिनयम (1) के खण्ड (क) के अधीन आदेश करता है या उक्त उपिनयम के खण्ड (ख) के उपशीषर् (ii) के
अधीन आवेदन पर्ाप्त करता है वहां उस लेनदार के िजसने िडकर्ी कु कर् कराई है या उसके िनण तऋणी के आवेदन पर वह कु कर् की गई
िडकर्ी का िनष्पादन करने के िलए अगर्सर होगा और शु आगम को उस िडकर्ी की तुिष्ट म लगाएगा िजसका िनष्पादन चाहा गया है ।
(3) िजस िडकर्ी का िनष्पादन उपिनयम (1) म िविनिदष्ट पर्कृ ित की िकसी अन्य िडकर्ी की कु क ारा चाहा गया है उस िडकर्ी
के धारक के बारे म यह समझा जाएगा िक वह कु कर् की गई िडकर्ी के धारक का पर्ितिनिध है और कु कर् की गई ऐसी िडकर्ी का िनष्पादन
ऐसी िकसी भी रीित से कराने का हकदार है जो उस िडकर्ी के धारक के िलए िविधपूणर् हो ।
(4) जहां िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् की जाने वाली सम्पि उपिनयम (1) म िनिदष्ट पर्कृ ित की िडकर्ी से िभन्न िडकर्ी है, वहां
कु क , उस िडकर्ी को िजसका िनष्पादन चाहा गया है, पािरत करने वाले न्यायालय ारा उस िडकर्ी के धारक को िजसकी कु क चाही गई
है, ऐसी सूचना देकर िक वह उसे िकसी भी पर्कार अन्तिरत या भािरत न करे और जहां ऐसी िडकर्ी िकसी अन्य न्यायालय ारा पािरत
की गई वहां ऐसे अन्य न्यायालय को भी यह सूचना भेजकर िक वह उस िडकर्ी का िजसकी कु क चाही गई है, िनष्पादन करने से तब तक
पर्िवरत रहे जब तक ऐसी सूचना को वह न्यायालय र न करे दे िजसने उसे भेजा है, की जाएगी ।
(5) इस िनयम के अधीन कु कर् की गई िडकर्ी का धारक िडकी का िनष्पादन करने वाले न्यायालय को ऐसी जानकारी और
सहायता देगा जो युिक्तयुक्त रूप से अपेिक्षत की जाए ।
(6) िजस िडकर्ी का िनष्पादन िकसी अन्य िडकर्ी की कु क ारा चाहा गया है उस िडकर्ी के धारक के आवेदन पर वह न्यायालय
जो इस िनयम के अधीन कु क का आदेश करे , ऐसे आदेश की सूचना उस िनण तऋणी को देगा जो कु कर् की गई िडकर्ी से आब है, और
कु कर् की गई िडकर्ी का कोई भी ऐसा संदाय या समायोजन जो ऐसे आदेश का उल्लंघन करके िनण तऋणी 2 [उसकी जानकारी रखते हुए
या] ऐसे आदेश की सूचना की पर्ािप्त के पश्चात् या तो न्यायालय की माफर् त या अन्यथा करता है, िकसी भी न्यायालय ारा उस समय
तक मान्य नह िकया जाएगा जब तक कु क पर्वृ रहती है ।
54. स्थावर सम्पि की कु क —(1) जहां सम्पि स्थावर है, वहां कु क ऐसे आदेश ारा की जाएगी जो सम्पि को िकसी भी
पर्कार से अन्तिरत या भािरत करने से िनण तऋणी को और ऐसे अन्तरण या भार से कोई भी फायदा उठाने से सभी व्यिक्तय को
पर्ितिष करता है ।
[(1क) आदेश म िनण तऋणी से यह अपेक्षा की जाएगी िक वह िवकर्य की उद्घोषणा के िनबन्धन को तय करने के िलए
2
िनयत की जाने वाली तारीख की सूचना पर्ाप्त करने के िलए िकसी िविनिदष्ट तारीख को न्यायालय म हािजर हो ।]
(2) वह आदेश ऐसी सम्पि म के या उसके पाश्वर्स्थ िकसी स्थान पर ड डी िपटवा कर या अन्य रूिढ़क ढंग से उद्घोिषत
िकया जाएगा और ऐसे आदेश की पर्ित सम्पि के िकसी सहजदृश्य भाग पर और तब न्यायसदन के िकसी सहजदृश्य भाग पर और जहां
सम्पि सरकार को राजस्व देने वाली भूिम है वहां उस िजले के िजसम वह भूिम िस्थत है, कलक्टर के कायार्लय म भी लगाई जाएगी
2
[और जहां सम्पि िकसी गांव म िस्थत भूिम है वहां उस गांव पर अिधकािरता रखने वाली गर्ाम पंचायत के , यिद कोई हो, कायार्लय म
भी लगाई जाएगी] ।
55. िडकर्ी की तुिष्ट पर कु क का उठाया जाना—जहां—
(क) िडकर्ीत रकम खच और िकसी सम्पि की कु क के पािरणािमक पर्भार और य के साथ न्यायालय म जमा
कर दी जाती है, अथवा
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपखंड (ii) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
137
(ख) िडकर्ी की तुिष्ट अन्यथा न्यायालय की माफर् त कर दी जाती है या न्यायालय को पर्मािणत कर दी जाती
है, अथवा
(ग) िडकर्ी अपास्त कर दी जाती है या उलट दी जाती है,
वहां कु क पर्त्याहृत समझी जाएगी और स्थावर सम्पि की दशा म यिद िनण तऋणी ऐसा चाहे तो पर्त्याहरण उसके य पर
उद्घोिषत िकया जाएगा और उद्घोषणा की एक पर्ित अिन्तम पूवव
र् त िनयम ारा िविहत रीित से लगाई जाएगी ।
56. िडकर्ी के अधीन हकदार पक्षकार को िसक्के या करे न्सी नोट का संदाय िकए जाने का आदेश—जहां कु कर् की गई सम्पि
चालू िसक्का है या करे न्सी नोट है वहां न्यायालय कु क के चालू रहने के दौरान िकसी भी समय िनदेश दे सके गा िक ऐसा िसक्का या ऐसे
नोट या उनका उतना भाग िजतना िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पयार्प्त हो, उस पक्षकार को दे िदया जाए जो िडकर्ी के अधीन उसे पाने का
हकदार है ।
कु क का पयार्वसान—(1) जहां कोई सम्पि िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् कर ली गई है और न्यायालय िकसी
1 [57.
कारण से िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन को खािरज करने का आदेश पािरत करता है वहां न्यायालय यह िनदेश देगा िक कु क जारी
रहेगी या समाप्त हो जाएगी और वह अविध िजस तक ऐसी कु क जारी रहेगी और वह तारीख िजसको कु क समाप्त हो जाएगी, भी
उपदिशत करे गा ।
(2) यिद न्यायालय ऐसा िनदेश देने म लोप करता है तो यह समझा जाएगा िक कु क समाप्त हो गई है ।]
2
[दाव और आक्षेप का न्यायिनणर्यन
58. कु कर् की गई संपि पर दाव का और ऐसी संपि की कु क के बारे म आक्षेप का न्यायिनणर्यन—(1) जहां िडकर्ी के
िनष्पादन म कु कर् की गई िकसी सम्पि पर कोई दावा या उसकी कु क के बारे म कोई आक्षेप इस आधार पर िकया जाता है िक ऐसी
सम्पि ऐसे कु कर् िकए जाने के दाियत्व के अधीन नह है वहां न्यायालय ऐसे दावे या आक्षेप का न्यायिनणर्यन करने के िलए इसम
अन्तिवष्ट उपबन्ध के अनुसार अगर्सर होगाः
परन्तु कोई ऐसा दावा या आक्षेप उस दशा म गर्हण नह िकया जाएगा िजसम—
(क) दावा या आक्षेप करने से पूवर् कु कर् की गई सम्पि का िवकर्य कर िदया गया है; या
(ख) न्यायालय का यह िवचार है िक दावा या आक्षेप करने म पिरकल्पनापूवर्क या अनावश्यक रूप से िवलम्ब िकया
गया है ।
(2) इस िनयम के अधीन कायर्वाही के पक्षकार के बीच या उनके पर्ितिनिधय के बीच पैदा होने वाले तथा दावे या आक्षेप के
न्यायिनणर्यन से सुसंगत सभी पर्श्न (िजनके अन्तगर्त कु कर् की गई सम्पि म अिधकार, हक या िहत से सम्बिन्धत पर्श्न भी ह) दावे या
आक्षेप के सम्बन्ध म कायर्वािहयां करने वाले न्यायालय ारा अवधािरत िकए जाएंगे, न िक पृथक् वाद ारा ।
(3) उपिनयम (2) म िविनिदष्ट पर्श्न के अवधारण पर, न्यायालय ऐसे अवधारण के अनुसार,—
(क) दावे या आक्षेप को अनुज्ञात करे गा और सम्पि या तो पूणर्तः या उस िवस्तार तक जो वह ठीक समझे, कु क से
िनमुर्क्त कर देगा; या
(ख) दावे या आक्षेप को अनुज्ञात करे गा; या
(ग) कु क को िकसी व्यिक्त के पक्ष म िकसी बन्धक, भार या अन्य िहत के अधीन जारी रखेगा; या
(घ) ऐसा आदेश पािरत करे गा जो वह मामले की पिरिस्थितय म ठीक समझे ।
(4) जहां िकसी दावे या आक्षेप पर न्यायिनणर्यन इस िनयम के अधीन िकया गया है वहां उस पर िकए गए आदेश का वही बल
होगा और वह अपील या अन्य बात के बारे म वैसी ही शत के अधीन होना मानो वह िडकर्ी हो ।
(5) जहां कोई दावा या आक्षेप िकया जाता है और न्यायालय उपिनयम (1) के परन्तुक के अधीन उसे गर्हण करने से इन्कार
करता है वहां वह पक्षकार िजसके िवरु ऐसा आदेश िकया जाता है उस अिधकार को िस करने के िलए िजसके िलए वह िववादगर्स्त
सम्पि म दावा करता है, वाद संिस्थत कर सके गा; िकन्तु ऐसे वाद के , यिद कोई हो, पिरणाम के अधीन रहते हुए दावे या आक्षेप को
गर्हण करने से इस पर्कार इन्कार करने वाला आदेश िनश्चायक होगा ।
59. िवकर्य को रोकना—जहां कु कर् की गई सम्पि दावे या आक्षेप के िकए जाने से पूवर् िवकर्य के िलए िवज्ञािपत की जा चुकी
है वहां न्यायालय—
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 57 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) शीषर् और िनयम 58 से 63 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
138
(क) यिद संपि , जंगम है तो दावे या आक्षेप न्यायिनणर्यन तक के िलए िवकर्य को मुल्तवी करने का आदेश दे
सके गा;
(ख) यिद सम्पि स्थावर है तो वह आदेश दे सके गा िक दावे या आक्षेप के न्यायिनणर्यन तक सम्पि का िवकर्य नह
िकया जाएगा या ऐसे न्यायिनणर्यन तक सम्पि का िवकर्य िकय जा सकता है िकन्तु िवकर्य को पुष्ट नह िकया जाएगा,
और ऐसा कोई आदेश पर्ितभूित या अन्य बात के बारे म ऐसे िनबन्धन और शत के अधीन िकया जा सके गा जो न्यायालय ठीक
समझे ।]
िवकर्य साधारणतः
64. कु कर् की गई संपि के िवकर्य िकए जाने और उसके आगम हकदार व्यिक्त को िदए जाने के िलए आदेश करने की शिक्त—
िडकर्ी का िनष्पादन करने वाला कोई भी न्यायालय आदेश कर सके गा िक उसके ारा कु कर् की गई और िवकर्य के दाियत्व के अधीन िकसी
भी सम्पि या उसके ऐसे भाग का जो िडकर्ी की तुिष्ट के िलए आवश्यक पर्तीत हो, िवकर्य िकया जाए और ऐसे िवकर्य के आगम या
उनका पयार्प्त भाग उस पक्षकार को दे िदया जाए जो िडकर्ी के अधीन उन्ह पाने का हकदार है ।
65. िवकर्य िकसके ारा संचािलत िकए जाएं और कै से िकए जाएं—जैसा अन्यथा िविहत है उसे छोड़कर, िडकर्ी के िनष्पादन
म िकया जाने वाला हर िवकर्य न्यायालय के अिधकारी ारा या िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त ारा िजसे न्यायालय इस िनिम िनयुक्त करे ,
संचािलत िकया जाएगा और िविहत रीित से लोक नीलाम ारा िकया जाएगा ।
66. लोक नीलाम ारा िकए जाने वाले िवकर्य की उद्घोषणा—(1) जहां िकसी सम्पि का िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म लोक
नीलाम ारा िवकर्य िकए जाने का आदेश िकया गया है वहां न्यायालय आशियत िवकर्य की उद्घोषणा उस न्यायालय की भाषा म
कराएगा ।
(2) ऐसी उद्घोषणा िडकर्ीदार और िनण तऋणी को सूचना िदए जाने के पश्चात् तैयार की जाएगी और उसम िवकर्य का
समय और स्थान किथत होगा और िनम्निलिखत बात यथासंभव ऋजुता और यथाथर्ता से िविनिदष्ट ह गी—
(क) वह सम्पि िजसका िवकर्य िकया जाना है 1 [या जहां सम्पि का कोई भाग िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पयार्प्त
होगा वहां वह भाग];
(ख) जहां वह सम्पि िजसका िवकर्य िकया जाना है, सरकार को राजस्व देने वाली िकसी सम्पदा म या सम्पदा के
भाग म कोई िहत है वहां उस सम्पदा पर या सम्पदा के भाग पर िनधार्िरत राजस्व;
(ग) कोई िवल्लंगम िजसके िलए वह सम्पि दायी हो;
(घ) वह रकम िजसकी वसूली के िलए िवकर्य आिदष्ट िकया गया है; तथा
(ङ) हर अन्य बात िजसके बारे म न्यायालय का िवचार है िक सम्पि की पर्कृ ित और मूल्य का िनणर्य करने के िलए
उसकी जानकारी कर्ेता के िलए ताित्त्वक हैः
[परन्तु जहां उद्घोषणा के िनबन्धन को तय करने की तारीख की सूचना िनयम 54 के अधीन िकसी आदेश के माध्यम से
1
िनण तऋणी को दी गई है वहां जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे िनण तऋणी को इस िनयम के अधीन सूचना देना आवश्यक
नह होगाः
परन्तु यह और िक इस िनयम की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह न्यायालय से यह अपेक्षा करती है िक
वह िवकर्य की उद्घोषणा म सम्पि के मूल्य की बाबत अपने पर्ाक्कलन पर्िवष्ट कर, िकन्तु उद्घोषणा के अन्तगर्त दोन पक्षकार या
उनम से िकसी के ारा िदया गया पर्ाक्कलन, यिद कोई हो, होगा ।]
(3) इस िनयम के अधीन िवकर्य के आदेश के िलए हर आवेदन के साथ एक ऐसा कथन होगा, िजसे अिभवचन के हस्ताक्षर
और सत्यापन के िलए इसम इसके पूवर् िविहत रीित से हस्ताक्षिरत और सत्यािपत िकया गया हो और उद्घोषणा म िविनिदष्ट िकए
जाने के िलए उपिनयम (2) ारा अपेिक्षत बात उसम वहां तक अन्तिवष्ट ह गी जहां तक िक सत्यापन करने वाले व्यिक्त को वे ज्ञात ह
या उसके ारा अिभिनिश्चत की जा सकती ह ।
(4) न्यायालय उन बात को अिभिनिश्चत करने के पर्योजन से जो उद्घोषणा म िविनिदष्ट की जानी है, िकसी भी ऐसे व्यिक्त
को समन कर सके गा िजसे वह समन करना आवश्यक समझे और वैसी िकन्ह भी बात के बारे म उसकी परीक्षा कर सके गा और उससे
अपेक्षा कर सके गा िक वह उससे सम्बिन्धत अपने कब्जे या शिक्त म की िकसी दस्तावेज को पेश करे ।
67. उद्घोषणा करने की रीित—(1) हर उद्घोषणा, जहां तक हो सके , ऐसी रीित से की जाएगी और पर्कािशत की जाएगी जो
िनयम 54 के उपिनयम (2) ारा िविहत है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
139
(2) जहां न्यायालय ऐसा िनदेश देता है वहां ऐसी उद्घोषणा राजपतर् या स्थानीय समाचारपतर् म भी या दोन म पर्कािशत
की जाएगी और ऐसे पर्काशन के खच िवकर्य के खच समझे जाएंगे ।
(3) जहां सम्पि पृथक् रूप से िवकर्य िकए जाने के पर्योजन से लाट म िवभािजत की गई है वहां हर एक लाट के िलए पृथक्
उद्घोषणा करना तब तक आवश्यक नह होगा जब तक िक न्यायालय की यह राय न हो िक िवकर्य की उिचत सूचना अन्यथा नह दी
जा सकती ।
68. िवकर्य का समय—िनयम 43 के परन्तुक म विणत िकस्म की सम्पि की दशा म के िसवाय, इसके अधीन कोई भी िवकर्य
िनण तऋणी की िलिखत सहमित के िबना तब तक न होगा जब तक िक उस तारीख से िजसको उद्घोषणा की पर्ित िवकर्य का आदेश देने
वाले न्यायाधीश के न्यास-सदन म लगाई गई है, गणना करके स्थावर सम्पि की दशा म कम से कम 1 [पन्दर्ह िदन] का और जंगम
सम्पि की दशा म कम से कम 2 [सात िदन] का अवसान न हो गया हो ।
69. िवकर्य का स्थगन या रोका जाना—(1) न्यायालय इसके अधीन िवकर्य को िकसी भी िविनिदष्ट िदन और घण्टे तक के
िलए स्विववेकानुसार स्थिगत कर सके गा और ऐसे िकसी िवकर्य का संचालन करने वाला अिधकारी स्थगन के अपने कारण को लेखब
करते हुए िवकर्य को स्विववेकानुसार स्थिगत कर सके गाः
परन्तु जहां िवकर्य न्याय-सदन म या उसकी पर्सीमा के भीतर िकया जाता है वहां ऐसा कोई भी स्थगन न्यायालय की
इजाजत के िबना नह िकया जाएगा ।
(2) जहां िवकर्य 3 [तीस िदन] से अिधक की अविध के िलए उपिनयम (1) के अधीन स्थिगत िकया जाता है वहां, तब के िसवाय
जब िक िनण तऋणी उसका अिधत्यजन करने के िलए अपनी सहमित दे दे, िनयम 67 के अधीन नई उद्घोषणा की जाएगी ।
(3) यिद लाट के िलए बोली के समाप्त होने से पहले ही ऋण और खच (िवकर्य के खच के सिहत) िवकर्य का संचालन करने
वाले अिधकारी को िनिवद कर िदए जाते ह या उसको समाधानपर्द रूप म यह सबूत दे िदया जाता है िक ऐसे ऋण की रकम और खच
उस न्यायालय म जमा करा िदए गए ह िजसने िवकर्य के िलए आदेश िदया था तो ऐसा हर िवकर्य रोक िदया जाएगा ।
70. [कु छ िवकर्य की ावृि ]—िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1956 (1956 का 66) की धारा 14 ारा
िनरिसत ।
71. ितकर्म करने वाला कर्ेता पुनिवकर्य म हुई हािन के िलए उ रदायी होगा—कर्ेता के ितकर्म के कारण होने वाले
पुनिवकर्य म जो कमी कीमत म हो जाए, वह और ऐसे पुनिवकर्य म हुए सब य उस अिधकारी या अन्य व्यिक्त ारा जो िवकर्य करता
है, न्यायालय 4 *** को पर्मािणत िकए जाएंगे और वह ितकर्म करने वाले कर्ेता से या तो िडकर्ीदार या िनण तऋणी की पर्ेरणा पर उन
उपबन्ध के अधीन वसूलीय ह गे जो धन के संदाय की िडकर्ी के िनष्पादन से सम्बिन्धत ह ।
72. अनुज्ञा के िबना िडकर्ीदार सम्पि के िलए न बोली लगाएगा और न उसका कर्य करे गा—(1) िजस िडकर्ी के िनष्पादन म
सम्पि का िवकर्य िकया जाता है उस िडकर्ी का कोई भी धारक न्यायालय की अिभ क्त अनुज्ञा के िबना सम्पि के िलए न तो बोली
लगाएगा और न उसका कर्य करे गा ।
(2) जहां िडकर्ीदार कर्य करता है वहां िडकर्ी की रकम संदाय मानी जा सके गी—जहां िडकर्ीदार ऐसी अनुज्ञा से कर्य करता है
वहां कर्यधन और िडकर्ी म े शोध्य रािश, धारा 73 के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, एक दूसरे के िवरु मुजरा की जा सके गी और िडकर्ी
का िनष्पादन करने वाला न्यायालय िडकर्ी की पूणर्तः या भागतः तुिष्ट की पर्िविष्ट तद्नुसार करे गा ।
(3) जहां िडकर्ीदार ऐसी अनुज्ञा के िबना स्वयं या िकसी अन्य व्यिक्त के माध्यम से कर्य करता है वहां यिद न्यायालय
िनण तऋणी के या िकसी अन्य व्यिक्त के िजसके िहत िवकर्य से पर्भािवत होते ह, आवेदन पर ऐसा करना ठीक समझे तो वह िवकर्य को
आदेश ारा अपास्त कर सके गा, और ऐसे आवेदन और आदेश के खच और कीमत म की कोई कमी जो पुनिवकर्य पर हो, और ऐसे
पुनिवकर्य म हुए सभी य िडकर्ीदार ारा िदए जाएंगे ।
[72क. बंधकदार ारा न्यायालय की इजाजत के िबना िवकर्य म बोली का न लगाया जाना—(1) िनयम 72 म िकसी बात के
5
होते हुए भी स्थावर सम्पि का कोई बंधकदार, बन्धक पर िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्ीत सम्पि के िलए बोली नह लगाएगा या उसे
कर्य नह करे गा जब तक िक न्यायालय उसे उस सम्पि के िलए बोली लगाने या उसे कर्य करने की इजाजत न दे दे;
(2) यिद ऐसे बन्धकदार को बोली लगाने की इजाजत दी जाती है तो न्यायालय बन्धकदार के सम्बन्ध म कोई आरिक्षत कीमत
िनयत करे गा और जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे आरिक्षत कीमत—
(क) यिद सम्पि का िवकर्य एक लाट म िकया जाता है तो बंधक के संबंध म मूलधन, ब्याज और खच म े उस
समय शोध्य रकम से कम नह होगी; और
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “तीस िदन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “पन्दर्ह िदन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “सात िदन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा “या, यथािस्थित, कलेक्टर या कलेक्टर के अधीनस्थ अिधकारी” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
140
(ख) िकसी सम्पि का िवकर्य लाट म िकए जाने की दशा म उतनी रािश से कम नह होगी िजतनी पर्त्येक लाट के
सम्बन्ध म न्यायालय को यह पर्तीत हो िक वह बन्धक पर मूलधन, ब्याज और खच म े उस समय शोध्य रकम के सम्बन्ध म
उस लाट के िलए उिचत मानी जा सकती है ।
(3) अन्य मामल म, िनयम 72 के उपिनयम (2) और (3) के उपबन्ध उस िनयम के अधीन िडकर्ीदार ारा कर्य के सम्बन्ध म
लागू ह गे ।]
73. अिधकािरय ारा बोली लगाने या कर्य करने पर िनबर्न्धन—कोई भी अिधकारी या अन्य व्यिक्त िजसे िकसी िवकर्य के
सम्बन्ध म िकसी कतर् का पालन करना हो, िवकर्य की गई सम्पि म के िकसी िहत के िलए न तो पर्त्यक्ष और न अपर्त्यक्ष रूप से बोली
लगाएगा और न उसे अिजत करे गा और न अिजत करने का पर्यत्न करे गा ।
जंगम सम्पि का िवकर्य
74. कृ िष उपज का िवकर्य—(1) जहां िवकर्य की जाने वाली सम्पि कृ िष उपज है वहां िवकर्य—
(क) यिद ऐसी उपज उगती फसल है तो उस भूिम पर या उसके पास िकया जाएगा िजसम ऐसी फसल उगी है,
अथवा
(ख) यिद ऐसी उपज काटी जा चुकी है या इक ी की जा चुकी है तो उस खिलहान पर या अनाज गाहने के स्थान या
तदर्ूप स्थान या चारे के ढेर पर या उसके पास िजस पर या िजसम वह िनिक्षप्त की गई है, िकया जाएगाः
परन्तु यिद न्यायालय की यह राय है िक वैसा करने से उपज का अिधक फायदे पर िवकर्य िकया जा सकता है तो वह यह
िनदेश दे सके गा िक िवकर्य लोक समागम के िनकटतम स्थान पर िकया जाए ।
(2) जहां उपज िवकर्य के िलए पुरोधृत िकए जाने पर—
(क) िवकर्य करने वाले व्यिक्त के अनुमान से उसके िलए ऋजु मूल्य की बोली नह लगाई गई है, तथा
(ख) उस उपज का स्वामी या उसकी ओर से कायर् करने के िलए पर्ािधकृ त व्यिक्त िवकर्य को आगामी िदन तक या
यिद िवकर्य के स्थान पर हाट लगती हो तो अगली हाट लगने के िदन तक के िलए मुल्तवी करने के िलए आवेदन करता है,
वहां िवकर्य तद्नुसार मुल्तवी कर िदया जाएगा और तत्पश्चात् उपज के िलए चाहे कोई भी कीमत लगे िवकर्य पूरा कर िदया जाएगा ।
75. उगती फसल के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध—(1) जहां िवकर्य की जाने वाली सम्पि उगती फसल है और फसल अपनी
पर्कृ ित से ऐसी है जो भण्डार म रखने के योग्य है िकन्तु तब तक भण्डार म नह रखी गई है वहां िवकर्य का िदन ऐसे िनयत िकया जाएगा
िक उस िदन के आने से पहले वह भण्डार म रखने के योग्य हो जाए और िवकर्य तब तक नह िकया जाएगा जब तक फसल काट नह ली
गई है या इक ी नह कर ली गई है और भण्डार म रखने के योग्य नह हो गई है ।
(2) जहां फसल अपनी पर्कृ ित से ऐसी नह है जो भण्डार म रखने के योग्य है वहां उसका काटी जाने और इक ी की जाने से
पहले िवकर्य िकया जा सके गा और कर्ेता भूिम पर पर्वेश करने और उसकी देखभाल करने और काटने या इक ी करने के पर्योजन से सभी
आवश्यक बात करने का हकदार होगा ।
76. परकर्ाम्य िलखत और िनगम के अंश—जहां िवकर्य की जाने वाली सम्पि परकर्ाम्य िलखत या िनगम-अंश है वहां
न्यायालय लोक नीलाम ारा िवकर्य िकए जाने के िलए िनदेश देने के बजाय यह पर्ािधकृ त कर सके गा िक ऐसी िलखत या अंश का िवकर्य
िकसी दलाल की माफर् त िकया जाए ।
77. लोक नीलाम ारा िवकर्य—(1) जहां जंगम सम्पि का लोक नीलाम ारा िवकर्य िकया जाता है वहां हर एक लाट का
मूल्य िवकर्य के समय पर संद िकया जाएगा या उसके पश्चात् शीघर् ही ऐसे समय पर संद िकया जाएगा जो वह अिधकारी या अन्य
व्यिक्त िनिदष्ट करे जो िवकर्य कर रहा है, और संदाय म ितकर्म होने पर सम्पि का तत्क्षण ही िफर िवकर्य िकया जाएगा ।
(2) कर्यधन का संदाय कर िदए जाने पर उसके िलए रसीद वह अिधकारी या अन्य व्यिक्त देगा जो िवकर्य कर रहा है और
िवकर्य आत्यिन्तक हो जाएगा ।
(3) जहां िवकर्य की जाने वाली जंगम सम्पि ऐसे माल म अंश है जो माल िनण तऋणी और िकसी सह-स्वामी का है, और
दो या अिधक व्यिक्त िजनम से एक ऐसा सह-स्वामी है, कर्मशः ऐसी सम्पि या उसके िकसी लाट के िलए एक सी ही रािश की बोली
लगाते ह वह बोली उस सह-स्वामी की बोली समझी जाएगी ।
78. अिनयिमतता िवकर्य को दूिषत नह करे गी िकन्तु कोई भी व्यिक्त, िजसे क्षित हुई है, वाद ला सके गा—जंगम सम्पि के
िवकर्य के पर्काशन या संचालन म की कोई भी अिनयिमतता िवकर्य को दूिषत नह करे गी िकन्तु िजस िकसी व्यिक्त को कोई क्षित ऐसी
अिनयिमतता के कारण िकसी अन्य व्यिक्त ारा हुई है वह उसके िवरु पर्ितकर के िलए या (यिद वह अन्य व्यिक्त कर्ेता है) तो उसी
िविनिदष्ट सम्पि के पर्त्यु रण के िलए और ऐसे पर्त्यु रण म ितकर्म होने पर पर्ितकर के िलए वाद ला सके गा ।
141
79. जंगम संपि , ऋण और अंश का पिरदान—(1) जहां िवकर्य की गई सम्पि ऐसी जंगम सम्पि है िजसका वास्तिवक
अिभगर्हण कर िलया गया है वहां वह कर्ेता को पिरद की जाएगी ।
(2) जहां िवकर्य की गई सम्पि िनण तऋणी से िभन्न िकसी व्यिक्त के कब्जे म की जंगम सम्पि है वहां कर्ेता को उसका
पिरदान कब्जा रखने वाले व्यिक्त को यह पर्ितषेध करने वाली सूचना देकर िकया जाएगा िक वह उस पर कब्जा कर्ेता के िसवाय िकसी
अन्य व्यिक्त को न दे ।
(3) जहां िवकर्य की गई सम्पि ऐसा ऋण है जो िकसी परकर्ाम्य िलखत ारा पर्ितभूत नह है या िनगम-अंश है वहां उसका
पिरदान न्यायालय के ऐसे िलिखत आदेश ारा िकया जाएगा जो उस ऋण को या उस म े िकसी ब्याज को लेने से लेनदार को और
उसका संदाय कर्ेता को करने के िसवाय िकसी अन्य व्यिक्त को करने से ऋणी को पर्ितिष करता है या जो उस व्यिक्त को िजसके नाम
वह अंश उस समय है, अंश का कोई भी अन्तरण कर्ेता को करने के िसवाय िकसी अन्य व्यिक्त को करने से या उस म े िकसी भी लाभांश
या ब्याज का संदाय पर्ाप्त करने से और उस िनगम के पर्बंधक, सिचव या अन्य उिचत अिधकारी को ऐसे िकसी भी अन्तरण के िलए
अनुज्ञा या ऐसा कोई भी संदाय कर्ेता को देने या करने के िसवाय िकसी भी अन्य व्यिक्त को देने या करने से पर्ितिष करता है ।
80. परकर्ाम्य िलखत और अंश का अन्तरण—(1) जहां दस्तावेज का िनष्पादन या उस पक्षकार ारा पृ ांकन िजसके नाम म
वह परकर्ाम्य िलखत या िनगम-अंश उस समय है, ऐसी परकर्ाम्य िलखत के या अंश के अन्तरण के िलए अपेिक्षत है वहां न्यायाधीश या
ऐसा अिधकारी िजसे वह इस िनिम िनयुक्त करे , ऐसी दस्तावेज का िनष्पादन कर सके गा या ऐसा पृ ांकन कर सके गा जो आवश्यक हो
और ऐसे िनष्पादन या पृ ांकन का वही पर्भाव होगा जो पक्षकार ारा िकए गए िनष्पादन या पृष्ठांकन का होता है ।
(2) ऐसा िनष्पादन या पृ ांकन िनम्निलिखत पर्रूप म िकया जा सके गा, अथार्त् :—
क ख, के िवरु ङ च ारा लाए गए वाद म क ख की ओर से........न्यायालय का न्यायाधीश (या यथािस्थित)
गघ।
(3) न्यायालय ऐसी परकर्ाम्य िलखत या ऐसे अंश का अन्तरण होने तक आदेश ारा िकसी व्यिक्त को इसिलए िनयुक्त कर
सके गा िक वह उस पर शोध्य िकसी ब्याज या लाभांश को पर्ाप्त करे और उसके िलए रसीद पर हस्ताक्षर करे और इस पर्कार हस्ताक्षिरत
कोई भी रसीद सभी पर्योजन के िलए ऐसे ही मान्य और पर्भावी होगी मानो स्वयं पक्षकार ने उस पर हस्ताक्षर िकए ह ।
81. अन्य सम्पि की दशा म िनिहत करने वाला आदेश—िकसी ऐसी जंगम सम्पि की दशा म िजसके िलए इसम इसके पूवर्
उपबन्ध नह िकया गया है, न्यायालय ऐसी सम्पि को कर्ेता म या जैसा िनदेश कर्ेता दे उसके अनुसार िनिहत करने वाला आदेश कर
सके गा और ऐसी सम्पि तद्नुसार िनिहत होगी ।
स्थावर सम्पि का िवकर्य
82. कौन से न्यायालय िवकर्य के िलए आदेश कर सकगे—िडिकर्य का िनष्पादन करने म स्थावर सम्पि के िवकर्य के िलए
आदेश लघुवाद न्यायालय से िभन्न िकसी भी न्यायालय ारा िकया जा सके गा ।
83. िवकर्य का इसिलए मुल्तवी िकया जाना िक िनण तऋणी िडकर्ी की रकम जुटा सके —(1) जहां स्थावर सम्पि के िवकर्य
के िलए आदेश िकया जा चुका है वहां यिद िनण तऋणी न्यायालय का समाधान कर सके िक यह िव ास करने के िलए कारण है िक
िडकर्ी का धन ऐसी सम्पि या उसके िकसी भाग के , या िनण तऋणी की िकसी अन्य स्थावर सम्पि के , बंधक या प े या पर्ाइवेट िवकर्य
ारा जुटाया जा सकता है तो उसके आवेदन करने पर न्यायालय िवकर्य के आदेश म समािवष्ट सम्पि के िवकर्य को ऐसे िनबन्धन पर
और ऐसी अविध के िलए जो वह उिचत समझे, इसिलए मुल्तवी कर सके गा िक उस रकम को जुटाने म वह समथर् हो जाए ।
(2) ऐसी दशा म न्यायालय िनण तऋणी को ऐसा पर्माणपतर् देगा जो उसम विणत अविध के भीतर और धारा 64 म िकसी
बात के होते हुए भी पर्स्थािपत बन्धक, प ा या िवकर्य करने के िलए उसे पर्ािधकृ त करता हैः
परन्तु ऐसे बन्धक, प े या िवकर्य के अधीन संदय
े सभी धन वहां तक के िसवाय जहां तक िक िडकर्ीदार ऐसे धन को िनयम 72
के उपबन्ध के अधीन मुजरा करने का हकदार है न्यायालय को िदए जाएंगे, न िक िनण तऋणी कोः
परन्तु यह और भी िक इस िनयम के अधीन कोई भी बन्धक, प ा या िवकर्य तब तक आत्यिन्तक नह होगा जब तक िक वह
न्यायालय ारा पुष्ट न कर िदया जाए ।
(3) इस िनयम की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह ऐसी सम्पि के िवकर्य को लागू होती है िजसके
बारे म ऐसी सम्पि के बन्धक या उस सम्पि पर के भार का पर्वतर्न कराने के िलए िवकर्य की िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्य िकए जाने
का िनदेश िदया गया है ।
84. कर्ेता ारा िनक्षेप और उसके ितकर्म पर पुनिवकर्य—(1) स्थावर सम्पि के हर िवकर्य पर वह व्यिक्त िजसका कर्ेता
होना घोिषत िकया गया है, अपने कर्यधन की रकम के पच्चीस पर्ितशत का िनक्षेप िवकर्य का संचालन करने वाले अिधकारी या अन्य
व्यिक्त को ऐसी घोषणा के तुरन्त पश्चात् देगा और ऐसा िनक्षेप करने म ितकर्म होने पर उस सम्पि का तत्क्षण िफर िवकर्य िकया
जाएगा ।
142
(2) जहां िडकर्ीदार कर्ेता है और कर्यधन को िनयम 72 के अधीन मुजरा करने का हकदार है वहां न्यायालय इस िनयम की
अपेक्षा से अिभमुिक्त दे सके गा ।
85. कर्यधन के पूरे संदाय के िलए समय—कर्यधन की संदय
े पूरी रकम को कर्ेता इसके पूवर् िक सम्पि के िवकर्य से पन्दर्हव
िदन न्यायालय बन्द हो, न्यायालय म जमा कर देगाः
परन्तु न्यायालय म ऐसे जमा की जाने वाली रकम की गणना करने म कर्ेता िकसी भी ऐसे मुजरा का फायदा उठा सके गा
िजसका वह िनयम 72 के अधीन हकदार हो ।
86. संदाय म ितकर्म होने पर पर्िकर्या—अिन्तम पूवर्वत िनयम म विणत अविध के भीतर संदाय करने म ितकर्म होने पर
िनक्षेप, यिद न्यायालय ठीक समझे तो िवकर्य के य को काटने के पश्चात् सरकार को समपहृत िकया जा सके गा और सम्पि का िफर
से िवकर्य िकया जाएगा और उस सम्पि पर या िजस रािश के िलए उसका तत्पश्चात् िवकर्य िकया जाए उसके िकसी भाग पर ितकर्म
करने वाले कर्ेता के सभी दावे समपहृत हो जाएंगे ।
87. पुनिवकर्य पर अिधसूचना—स्थावर सम्पि का हर पुनिवकर्य जो कर्यधन का संदाय उस अविध के भीतर करने म जो ऐसे
संदाय के िलए अनुज्ञात है, ितकर्म के कारण होना हो, ऐसी रीित से और ऐसी अविध के िलए जो िवकर्य के िलए इसम इसके पूवर्
िविहत की गई है, नई उद्घोषणा िनकालने के पश्चात् िकया जाएगा ।
88. सह-अंशधारी की बोली को अिधमान पर्ाप्त होगा—जहां िवकर्ीत सम्पि अिवभक्त स्थावर सम्पि का अंश है, और दो
या अिधक व्यिक्त िजनम से एक ऐसा सह-अंशधारी है, कर्मशः ऐसी सम्पि या उसके िकसी लाट के िलए एक सी ही रािश की बोली
लगाते ह वहां वह बोली उस सह-अंशधारी की बोली समझी जाएगी ।
89. िनक्षेप करने पर िवकर्य को अपास्त कराने के िलए आवेदन—(1) जहां स्थावर सम्पि का िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म
िवकर्य िकया गया है 1 [वहां िवकर्ीत सम्पि म िवकर्य के समय या आवेदन करने के समय िकसी िहत का दावा करने वाला अथवा ऐसे
व्यिक्त के िलए या उसके िहत म कायर् करने वाला कोई व्यिक्त—]
(क) कर्यधन के पांच पर्ितशत के बराबर रकम कर्ेता को संद िकए जाने के िलए, तथा
(ख) िवकर्य की उद्घोषणा म ऐसी रकम के रूप म िजसकी वसूली के िलए िवकर्य का आदेश िदया गया था,
िविनिदष्ट रकम उसम से वह रकम घटाकर जो िवकर्य की उद्घोषणा की तारीख से लेकर तब तक िडकर्ीदार को पर्ाप्त हो
चुकी है, िडकर्ीदार को संद िकए जाने के िलए,
न्यायालय म िनिक्षप्त करने पर िवकर्य को अपास्त कराने के िलए आवेदन कर सके गा ।
(2) जहां कोई व्यिक्त अपनी स्थावर सम्पि के िवकर्य को अपास्त कराने के िलए आवेदन िनयम 90 के अधीन करता है, वहां,
जब तक िक वह अपना आवेदन लौटा न ले, वह इस िनयम के अधीन आवेदन देने का या उसको आगे चलाने का हकदार नह होगा ।
(3) इस िनयम की कोई भी बात िनण तऋणी को ऐसे िकसी दाियत्व से अवमुक्त नह करे गी िजसके अधीन वह उन खच और
ब्याज के सम्बन्ध म हो जो िवकर्य की उद्घोषणा के अन्तगर्त नह आते ।
िवकर्य को अिनयिमतता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के िलए आवेदन—(1) जहां िकसी िडकर्ी के िनष्पादन म
2 [90.
िकसी स्थावर सम्पि का िवकर्य िकया गया है वहां िडकर्ीदार, या कर्ेता, या ऐसा कोई अन्य व्यिक्त जो आिस्तय के आनुपाितक िवतरण
म अंश पाने का हकदार है या िजसके िहत िवकर्य के ारा पर्भािवत हुए ह, िवकर्य को उसके पर्काशन या संचालन म हुई ताित्त्वक
अिनयिमतता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के िलए न्यायालय से आवेदन कर सके गा ।
(2) उसके पर्काशन या संचालन म हुई अिनयिमतता या कपट के आधार पर कोई भी िवकर्य तब तक अपास्त नह िकया
जाएगा जब तक सािबत िकए गए तथ्य के आधार पर न्यायालय का यह समाधान नह हो जाता है िक ऐसी अिनयिमतता या कपट के
कारण आवेदन को सारवान् क्षित हुई है ।
(3) इस िनयम के अधीन िवकर्य को अपास्त कराने के िलए कोई आवेदन ऐसे िकसी आधार पर गर्हण नह िकया जाएगा िजसे
आवेदक उस तारीख को या उससे पूवर् आधार मान सकता था िजसको िक िवकर्य की उद्घोषणा तैयार की गई थी ।
स्पष्टीकरण—िवकर्ीत सम्पि की कु क का न होना या कु क म तर्ुिट अपने आप म इस िनयम के अधीन िकसी िवकर्य को
अपास्त करने के िलए कोई आधार नह होगी ।]
91. िवकर्य का इस आधार पर अपास्त कराने के िलए कर्ेता ारा आवेदन िक उसम िनण तऋणी का कोई िवकर्य िहत नह
था—िडकर्ी के िनष्पादन म ऐसे िकसी भी िवकर्य म का कर्ेता, िवकर्य को अपास्त कराने के िलए आवेदन न्यायालय से इस आधार पर कर
सके गा िक िवकर्य की गई सम्पि म िनण तऋणी का कोई िवकर्य िहत नह था ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 90 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
143
92. िवकर्य कब आत्यिन्तक हो जाएगा या अपास्त कर िदया जाएगा—(1) जहां िनयम 89, िनयम 90 या िनगम 91 के अधीन
कोई भी आवेदन नह िकया गया है या जहां ऐसा आवेदन िकया गया है और अननुज्ञात कर िदया गया है वहां न्यायालय िवकर्य को पुष्ट
करने वाला आदेश करे गा और तब िवकर्य आत्यिन्तक हो जाएगा :
[परन्तु जहां िकसी संपि का, ऐसी संपि के िकसी दावे का अिन्तम िनपटारा होने तक या उसकी कु क के िलए आक्षेप के
1
लंिबत रहने तक िडकर्ी के िनष्पादन म िवकर्य िकया गया है वहां न्यायालय ऐसे िवकर्य को ऐसे दावे या आक्षेप के अंितम िनपटारे तक
पुष्ट नह करे गा ।]
(2) जहां ऐसा आवेदन िकया गया है और अनुज्ञात कर िदया गया है और जहां िनयम 89 के अधीन आवेदन की दशा म वह
िनक्षेप जो उस िनयम ारा अपेिक्षत है, िवकर्य की तारीख से 2 [साठ िदन] के भीतर कर िदया गया है 3 [या उस दशा म िजसम िनयम 89
के अधीन िनिक्षप्त रकम, िनक्षेपकतार् की ओर से हुई िकसी िलिपकीय या गिणत संबंधी भूल के कारण कम पाई जाती है और ऐसी कमी
इतने समय के भीतर पूरी कर दी जाती है िजतना न्यायालय ारा िनयत िकया जाए वहां न्यायालय िवकर्य को अपास्त करने वाला
आदेश करे गाः]
परन्तु जब तक िक आवेदन की सूचना उसके ारा पर्भािवत सभी व्यिक्तय को न दे दी गई हो, ऐसा कोई आदेश नह
िकया जाएगा ।
[परन्तु यह और िक इस उपिनयम के अधीन िनक्षेप, उन सभी मामल म जहां तीस िदन की अविध, िजसके भीतर िनक्षेप
4
िकया जाना था, िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 2002 के पर्ारं भ से पहले समाप्त नह हुई है साठ िदन के भीतर िकया
जा सके गा ।]
(3) इस िनयम के अधीन िकए गए आदेश को अपास्त कराने के िलए कोई भी वाद ऐसे िकसी व्यिक्त ारा नह लाया जाएगा
िजसके िवरु ऐसा आदेश िकया गया है ।
[(4) जहां कोई अन्य पक्षकार नीलाम-कर्ेता के िवरु
5
वाद फाइल करके िनण तऋणी के हक को चुनौती देता है, वहां
िडकर्ीदार और िनण तऋणी वाद के आवश्यक पक्षकार ह गे ।
(5) यिद उपिनयम (4) म िनिदष्ट वाद की िडकर्ी दे दी जाती है तो न्यायालय िडकर्ीदार को िनदेश देगा िक वह नीलाम-कर्ेता
को धन वापस कर दे और जहां ऐसा आदेश पािरत िकया जाता है वहां िनष्पादन की कायर्वािहयां िजनम िवकर्य िकया गया था, उस
दशा के िसवाय िजसम न्यायालय अन्यथा िनदेश देता है, उस पर्कर्म पर पुनः पर्वितत की जाएंगी िजस पर िवकर्य का आदेश िकया गया
था ।]
93. कु छ दशा म कर्यधन की वापसी—जहां स्थावर सम्पि का िवकर्य िनयम 92 के अधीन अपास्त कर िदया जाता है वहां
कर्ेता अपना कर्यधन ब्याज के सिहत या रिहत, जैसे भी न्यायालय िनिदष्ट करे , वापस पाने का आदेश उस व्यिक्त के िवरु पर्ाप्त करने
का हकदार होगा िजसे कर्यधन दे िदया गया है ।
94. कर्ेता को पर्माणपतर्—जहां स्थावर सम्पि का िवकर्य आत्यिन्तक हो गया है वहां न्यायालय िवकर्ीत सम्पि को और
िवकर्य के समय िजस व्यिक्त को कर्ेता घोिषत िकया गया है उसके नाम को िविनिदष्ट करने वाला पर्माणपतर् देगा । ऐसे पर्माणपतर् म उस
िदन की तारीख होगी िजस िदन िवकर्य आत्यिन्तक हुआ था ।
95. िनण तऋणी के अिधभोग म की सम्पि का पिरदान—जहां िवकर्ीत स्थावर सम्पि िनण तऋणी के या उसकी ओर से
िकसी व्यिक्त के या ऐसे हक के अधीन िजसे िनण तऋणी ने ऐसी सम्पि की कु क हो जाने के पश्चात् सृष्ट िकया है, दावा करने वाले
िकसी व्यिक्त के अिधभोग म है और उसके बारे म पर्माणपतर् िनयम 94 के अधीन िदया गया है वहां न्यायालय कर्ेता के आवेदन पर यह
आदेश करे गा िक उस सम्पि पर ऐसे कर्ेता का या ऐसे िकसी व्यिक्त का िजसे कर्ेता अपनी ओर से पिरदान पाने के िलए िनयुक्त करे ,
कब्जा करा कर और यिद आवश्यक हो तो ऐसे व्यिक्त को हटाकर जो उस सम्पि को िरक्त करने से इन्कार करता है, पिरदान
िकया जाए ।
96. अिभधारी के अिधभोग म की सम्पि का पिरदान—जहां िवकर्ीत सम्पि अिभधारी के या उस पर अिधभोग रखने के
हकदार अन्य व्यिक्त के अिधभोग म है और उसके सम्बन्ध म पर्माणपतर् िनयम 94 के अधीन िदया गया है वहां न्यायालय कर्ेता के
आवेदन पर आदेश करे गा िक िवकर्य के पर्माणपतर् की एक पर्ित सम्पि के िकसी सहजदृश्य स्थान पर लगा कर और िकसी सुिवधापूणर्
स्थान पर ड डी िपटवा कर या अन्य रूिढ़क ढंग से यह बात अिधभोगी को उद्घोिषत करके िक िनण तऋणी का िहत कर्ेता को अंतिरत
हो गया है, पिरदान िकया जाए ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) “तीस िदन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) “वहां न्यायालय िवकर्य को अपास्त करने वाला आदेश करे गा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 14 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
144
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) िनयम 98 से 103 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
145
[104. िनयम 101 या िनयम 103 के अधीन आदेश लिम्बत वाद के पिरणाम के अधीन होगा—िनयम 101 या िनयम 103 के
1
अधीन िकया गया पर्त्येक आदेश, उस कायर्वाही के िजसम ऐसा आदेश िकया जाता है पर्ारं भ की तारीख को लिम्बत िकसी वाद के
पिरणाम के अधीन उस दशा म होगा िजसम उस वाद म ऐसे पक्षकार ारा िजसके िवरु िनयम 101 या िनयम 103 के अधीन आदेश
िकया जाता है, ऐसा अिधकार स्थािपत करना चाहा गया है िजसका िक वह उस सम्पि के वतर्मान कब्जे की बाबत दावा करता है ।
105. आवेदन की सुनवाई—(1) वह न्यायालय िजसके समक्ष इस आदेश के पूवर्गामी िनयम म से िकसी िनयम के अधीन कोई
आवेदन लिम्बत है, उसकी सुनवाई के िलए िदन िनयत कर सके गा ।
(2) जहां िनयत िदन या िकसी िदन िजस तक सुनवाई स्थिगत की जाए मामले की सुनवाई के िलए पुकार होने पर आवेदक
उपसंजात नह होता है वहां न्यायालय आदेश कर सके गा िक आवेदन खािरज कर िदया जाए ।
(3) जहां आवेदक उपसंजात होता है और िवरोधी पक्षकार िजसको न्यायालय ारा सूचना दी गई है, उपसंजात नह होता है
वहां न्यायालय आवेदन को एकपक्षीय रूप से सुन सके गा और ऐसा आदेश पािरत कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
स्पष्टीकरण—उपिनयम (1) म िनिदष्ट िकसी आवेदन के अन्तगर्त िनयम 58 के अधीन िकया गया कोई दावा या आक्षेप
भी है ।
106. एकपक्षीय रूप से पािरत आदेश , आिद का अपास्त िकया जाना—(1) आवेदक िजसके िवरु िनयम 105 के उपिनयम
(2) के अधीन कोई आदेश िकया जाता है अथवा िवरोधी पक्षकार िजसके िवरु उस िनयम के उपिनयम (3) के अधीन या िनयम 23 के
उपिनयम (1) के अधीन कोई एकपक्षीय आदेश पािरत िकया जाता है उस आदेश को अपास्त करने के िलए न्यायालय से आवेदन कर
सके गा और यिद वह न्यायालय का समाधान कर देता है िक आवेदन की सुनवाई के िलए पुकार होने पर उसके उपसंजात न होने के िलए
पयार्प्त कारण था तो न्यायालय खच या अन्य बात के बारे म ऐसे िनबंधन पर जो वह ठीक समझे, आदेश अपास्त करे गा और आवेदन
की आगे सुनवाई के िलए िदन िनयत करे गा ।
(2) उपिनयम (1) के अधीन आवेदन पर कोई आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब तक उस आवेदन की सूचना की तामील
दूसरे पक्षकार पर न कर दी गई हो ।
(3) उपिनयम (1) के अधीन आवेदन आदेश की तारीख से तीस िदन के भीतर िकया जाएगा या जहां एकपक्षीय आदेश की
दशा म, सूचना की सम्यक् रूप से तामील नह हुई थी वहां उस तारीख से जब आवेदक को आदेश की जानकारी हुई थी, तीस िदन के
भीतर िकया जाएगा ।]
आदेश 22
पक्षकार की मृत्यु, उनका िववाह और िदवाला
1. यिद वाद लाने का अिधकार बचा रहता है तो पक्षकार की मत्यु से उसका उपशमन नह हो जाता—यिद वाद लाने का
अिधकार बचा रहता है तो वादी या पर्ितवादी की मृत्यु से वाद का उपशमन नह होगा ।
2. जहां कई वािदय या पर्ितवािदय म से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अिधकार बचा रहता है वहां
पर्िकर्या—जहां एक से अिधक वादी या पर्ितवादी ह और उनम से िकसी की मृत्यु हो जाती है और जहां वाद लाने का अिधकार अके ले
उ रजीवी वादी या वािदय को या अके ले उ रजीवी पर्ितवादी या पर्ितवािदय के िवरु बचा रहता है वहां न्यायालय अिभलेख म उस
भाग की एक पर्िविष्ट कराएगा और वाद उ रजीवी वादी या वािदय की पर्ेरणा पर या उ रजीवी पर्ितवादी या पर्ितवािदय के िवरु
आगे चलेगा ।
3. कई वािदय म से एक या एकमातर् वादी की मृत्यु की दशा म पर्िकर्या—(1) जहां दो या अिधक वािदय म से एक की मृत्यु
हो जाती है और वाद लाने का अिधकार अके ले उ रजीवी वादी को या अके ले उ रजीवी वािदय को बचा नह रहता है, या एक मातर्
वादी या एक मातर् उ रजीवी वादी की मृत्यु हो जाती है, और वाद लाने का अिधकार बचा रहता है वहां इस िनिम आवेदन िकए जाने
पर न्यायालय मृत वादी के िविधक पर्ितिनिध को पक्षकार बनवाएगा और वाद म अगर्सर होगा ।
(2) जहां िविध ारा पिरसीिमत समय के भीतर कोई आवेदन उपिनयम (1) के अधीन नह िकया जाता है वहां वाद का
उपशमन वहां तक हो जाएगा जहां तक मृत वादी का संबंध है और पर्ितवादी के आवेदन पर न्यायालय उन खच को उसके पक्ष म
अिधिनण त कर सके गा जो उसने वाद की पर्ितक्षा म उपगत िकए ह और वे मृत वादी की सम्पदा से वसूल िकए जाएंगे ।
4. कई पर्ितवािदय म से एक या एकमातर् पर्ितवादी की मृत्यु की दशा म पर्िकर्या—(1) जहां दो या अिधक पर्ितवािदय म से
एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अिधकार अके ले उ रजीवी पर्ितवादी के या अके ले उ रजीवी पर्ितिविदय के िवरु बचा
नह रहता है या एकमातर् पर्ितवादी या एकमातर् उ रजीवी पर्ितवादी का मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अिधकार बचा रहता है
वहां उस िनिम िकए गए आवेदन पर न्यायालय मृत पर्ितवादी के िविधक पर्ितिनिध को पक्षकार बनवाएगा और वाद म अगर्सर होगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 72 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
146
(2) इस पर्कार पक्षकार बनाया गया कोई भी व्यिक्त जो मृत पर्ितवादी के िविधक पर्ितिनिध के नाते अपनी हैिसयत के िलए
समुिचत पर्ितरक्षा कर सके गा ।
(3) जहां िविध ारा पिरसीिमत समय के भीतर कोई आवेदन उपिनयम (1) के अधीन नह िकया जाता है वहां वाद का, जहां
तक वह मृत पर्ितवादी के िवरु है, उपशमन हो जाएगा ।
[(4) न्यायालय, जब कभी वह ठीक समझे, वादी को िकसी ऐसे पर्ितवादी के जो िलिखत कथन फाइल करने म असफल रहा
1
है या जो उसे फाइल कर देने पर, सुनवाई के समय उपसंजात होने म और पर्ितवाद करने म असफल रहा है, िविधक पर्ितिनिध को
पर्ितस्थािपत करने की आवश्यकता से छू ट दे सके गा और ऐसे मामले म िनणर्य उक्त पर्ितवादी के िवरु उस पर्ितवादी की मृत्यु हो जाने
पर भी सुनाया जा सके गा और उसका वही बल और पर्भाव होगा मानो वह मृत्यु होने के पूवर् सुनाया गया हो ।
(5) जहां—
(क) वादी, पर्ितवादी की मृत्यु से अनिभज्ञ था और उस कारण से वह इस िनयम के अधीन पर्ितवादी के िविधक
पर्ितिनिध का पर्ितस्थापन करने के िलए आवेदन, परीसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) म िविनिदष्ट अविध के भीतर
नह कर सकता था और िजसके पिरणामस्वरूप वाद का उपशमन हो गया है; और
(ख) वादी, परीसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) म इसके िलए िविनिदष्ट अविध के अवसान के पश्चात्,
उपशमन अपास्त करने के िलए आवेदन करता है और उस अिधिनयम की धारा 5 के अधीन उस आवेदन को इस आधार पर
गर्हण िकए जाने के िलए भी आवेदन करता है िक ऐसी अनिभज्ञता के कारण उक्त अिधिनयम म िविनिदष्ट अविध के भीतर
उसके आवेदन न करने के िलए उसके पास पयार्प्त कारण था,
वहां न्यायालय उक्त धारा 5 के अधीन आवेदन पर िवचार करते समय ऐसी अनिभज्ञता के तथ्य पर, यिद सािबत हो जाता है तो,
सम्यक् ध्यान देगा ।]
[4क. िविधक पर्ितिनिधक न होने की दशा म पर्िकर्या—(1) यिद िकसी वाद म न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक ऐसे
1
िकसी पक्षकार का िजसकी मृत्यु वाद के लिम्बत रहने के दौरान हो गई है, कोई िविधक पर्ितिनिध नह है तो न्यायालय वाद के िकसी
पक्षकार के आवेदन पर, मृत व्यिक्त की सम्पदा का पर्ितिनिधत्व करने वाले व्यिक्त की अनुपिस्थित म कायर्वाही कर सके गा या आदेश
ारा, महापर्शासक या न्यायालय के िकसी अिधकारी या िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त को िजसको वह मृत व्यिक्त की सम्पदा का
पर्ितिनिधत्व करने के िलए ठीक समझता है, वाद के पर्योजन के िलए िनयुक्त कर सके गा, और वाद म तत्पश्चात् िदया गया कोई िनणर्य
या िकया गया कोई आदेश मृत व्यिक्त की सम्पदा को उसी सीमा तक आब करे गा िजतना िक वह तब करता जब मृत व्यिक्त का िनजी
पर्ितिनिध वाद म पक्षकार रहा होता ।
(2) न्यायालय इस अिधिनयम के अधीन आदेश करने के पूवर्,--
(क) यह अपेक्षा कर सके गा िक मृत व्यिक्त की सम्पदा म िहत रखने वाले ऐसे व्यिक्तय को (यिद कोई ह ) िजनको
न्यायालय ठीक समझता है, आदेश के िलए आवेदन की सूचना दी जाए; और
(ख) यह अिभिनिश्चत करे गा िक िजस व्यिक्त को मृत व्यिक्त की सम्पदा का पर्ितिनिधत्व करने के िलए िनयुक्त
िकया जाना पर्स्थािपत है, वह इस पर्कार िनयुक्त िकए जाने के िलए रजामंद है और वह मृत व्यिक्त के िहत के पर्ितकू ल कोई
िहत नह रखता है ।]
5. िविधक पर्ितिनिध के बारे म पर्श्न का अवधारण—जहां इस सम्बन्ध म पर्श्न उद्भूत होता है िक कोई व्यिक्त मृत वादी या
मृत पर्ितवादी का िविधक पर्ितिनिध है या नह वहां ऐसे पर्श्न का अवधारण न्यायालय ारा िकया जाएगाः
[परन्तु जहां ऐसा पर्श्न अपील न्यायालय के समक्ष उद्भूत होता है वहां वह न्यायालय पर्श्न का अवधारण करने के पूवर् िकसी
1
अधीनस्थ न्यायालय को यह िनदेश दे सके गा िक वह उस पर्श्न का िवचारण करे और अिभलेख को, जो ऐसे िवचारण के समय
अिभिलिखत िकए गए सा य के , यिद कोई हो, अपने िनष्कषर् के और उसके कारण के साथ वापस करे , और अपील न्यायालय उस पर्श्न
का अवधारण करने म उन्ह ध्यान म रख सके गा ।]
6. सुनवाई के पश्चात् मृत्यु हो जाने से उपशमन न होना—पूवर्गामी िनयम म िकसी बात के होते हुए भी, चाहे वाद हेतुक
बचा हो या न बचा हो, सुनवाई की समािप्त और िनणर्य के सुनाने के बीच वाले समय म िकसी भी पक्षकार की मृत्यु के कारण कोई भी
उपशमन नह होगा, िकन्तु ऐसी दशा म मृत्यु हो जाने पर भी, िनणर्य सुनाया जा सके गा और उसका वही बल और पर्भाव होगा मानो
वह मृत्यु होने के पूवर् सुनाया गया हो ।
7. स्तर्ी पक्षकार के िववाह के कारण वाद का उपशमन न होना—(1) स्तर्ी वादी या स्तर्ी पर्ितवादी का िववाह वाद का
उपशमन नह करे गा, िकन्तु ऐसा हो जाने पर भी वाद िनणर्य तक अगर्सर िकया जा सके गा और जहां स्तर्ी पर्ितवादी के िवरु िडकर्ी है
वहां वह उस अके ली के िवरु िनष्पािदत की जा सके गी ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 73 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
147
(2) जहां पित अपनी पत्नी के ऋण के िलए िविध ारा दायी है वहां िडकर्ी न्यायालय की अनुज्ञा से पित के िवरु भी
िनष्पािदत की जा सके गी, और पत्नी के पक्ष म हुए िनणर्य की दशा म िडकर्ी का िनष्पादन उस दशा म िजसम िक पित िडकर्ी की
िवषयवस्तु के िलए िविध ारा हकदार है, ऐसी अनुज्ञा से पित के आवेदन पर िकया जा सके गा ।
8. वादी का िदवाला कब वाद का वजर्न कर देता है—(1) िकसी ऐसे वाद म िजसे समनुदिे शती या िरसीवर वादी के लेनदार
के फायदे के िलए चला सकता है, वाद का उपशमन वादी के िदवाले से उस दशा म के िसवाय नह होगा िजसम िक ऐसा समनुदिे शती
या िरसीवर ऐसे वाद को चालू रखने से इन्कार कर दे या (जब तक िक न्यायालय िकसी िवशेष कारण से अन्यथा िनिदष्ट न करे ) उस
वाद के खच के िलए पर्ितभूित ऐसे समय के भीतर जो न्यायालय िनिदष्ट करे , देने से इन्कार कर दे ।
(2) जहां समनुदिे शती वाद चालू रखने या पर्ितभूित देने म असफल रहता है वहां पर्िकर्या—जहां समनुदिे शती या िरसीवर वाद
चालू रखने और ऐसे आिदष्ट समय के भीतर ऐसी पर्ितभूित देने की उपेक्षा करता है या देने से इन्कार करता है वहां पर्ितवादी वाद को
वादी के िदवाले के आधार पर खािरज कराने के िलए आवेदन कर सके गा और न्यायालय वाद को खािरज करने वाला और पर्ितवादी को
वे खच िजन्ह उसने अपनी पर्ितरक्षा करने म उपगत िकया है, अिधिनण त करने वाला आदेश कर सके गा और ये खच ऋण के तौर पर
वादी संपदा के िवरु सािबत िकए जाएंगे ।
9. उपशमन या खािरज होने का पर्भाव—(1) जहां वाद का इस आदेश के अधीन उपशमन हो जाता है या वह खािरज िकया
जाता है वहां कोई भी नया वाद, उसी वाद हेतुक पर नह लाया जाएगा ।
(2) वादी या मृत वादी का िविधक पर्ितिनिध होने का दावा करने वाला िक्त या िदवािलया वादी की दशा म उसका
समनुदिे शती या िरसीवर, उपशमन या खािरजी अपास्त करने वाले आदेश के िलए आवेदन कर सके गा और यिद यह सािबत कर िदया
जाता है िक वाद चालू रखने से वह िकसी पयार्प्त हेतुक से िनवािरत रहा था तो न्यायालय खच के बारे म ऐसे िनबन्धन पर या अन्यथा
जो वह ठीक समझे, उपशमन या खािरजी अपास्त करे गा ।
(3) 1 [इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15) की धारा 5 के उपबन्ध उपिनयम (2) के अधीन आवेदन को
लागू ह गे ।]
[स्पष्टीकरण—इस िनयम की िकसी बात का अथर् नह लगाया जाएगा िक वह िकसी पश्चात्वत वाद म ऐसे तथ्य पर
2
उपसंजात होने वाले प्लीडर को जब कभी यह जानकारी पर्ाप्त हो िक उस पक्षकार की मृत्यु हो गई है तो वह न्यायालय को इसकी
इि ला देगा और तब न्यायालय ऐसी मृत्यु की सूचना दूसरे पक्षकार को देगा और इस पर्योजन के िलए प्लीडर और मृत पक्षकार के बीच
हुई संिवदा अिस्तत्व म मानी जाएगी ।]
11. आदेश का अपील को लागू होना—इस आदेश को अपील को लागू करने म जहां तक हो सके , “वादी” शब्द के अन्तगर्त
अपीलाथ , “पर्ितवादी” शब्द के अन्तगर्त पर्त्यथ और “वाद” शब्द के अंतगर्त अपील समझी जाएगी ।
12. आदेश का कायर्वािहय को लागू होना—िनयम 3, िनयम 4 और िनयम 8 की कोई भी बात िकसी िडकर्ी या आदेश के
िनष्पादन की कायर्वािहय को लागू नह होगी ।
आदेश 23
पर्ितवािदय या उनम से िकसी के िवरु अपने वाद का पिरत्याग या अपने दावे के भाग का पिरत्याग कर सके गा :
परन्तु जहां वादी अवयस्क है या ऐसा व्यिक्त है, िजसे आदेश 32 के िनयम 1 से िनयम 14 तक के उपबन्ध लागू होते ह वहां
न्यायालय की इजाजत िबना न तो वाद का और न दावे के िकसी भाग का पिरत्याग िकया जाएगा ।
1
अब पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) की धारा 4 और 5 देिखए ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 73 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 74 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
148
(2) उपिनयम (1) के परन्तुक के अधीन इजाजत के िलए आवेदन के साथ वाद-िमतर् का शपथपतर् देना होगा और यिद
पर्स्थािपत अवयस्क या ऐसे अन्य व्यिक्त का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा िकया जाता है तो, प्लीडर को इस आशय का पर्माणपतर् भी देना
होगा िक पिरत्याग उसकी राय म अवयस्क या ऐसे अन्य व्यिक्त के फायदे के िलए है ।
(3) जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक—
(क) वाद िकसी पर्रूिपक तर्ुिट के कारण िवफल हो जाएगा, अथवा
(ख) वाद की िवषय-वस्तु या दावे के भाग के िलए नया वाद संिस्थत करने के िलए वादी को अनुज्ञात करने के
पयार्प्त आधार ह,
वहां वह ऐसे िनबन्धन पर िजन्ह वह ठीक समझे, वादी को ऐसे वाद की िवषय-वस्तु या दावे के ऐसे भाग के सम्बन्ध म नया वाद
संिस्थत करने की स्वतंतर्ता रखते हुए ऐसे वाद से या दावे के ऐसे भाग से अपने को पर्त्याहृत करने की अनुज्ञा दे सके गा ।
(4) जहां वादी—
(क) उपिनयम (1) के अधीन िकसी वाद का या दावे के भाग का पिरत्याग करता है, अथवा
(ख) उपिनयम (3) म िनिदष्ट अनुज्ञा के िबना वाद से या दावे के भाग से पर्त्याहृत कर लेता है,
वहां वह ऐसे खच के िलए दायी होगा जो न्यायालय अिधिनण त करे और वह ऐसी िवषय-वस्तु या दावे के ऐसे भाग के बारे म कोई
नया वाद संिस्थत करने से पर्वािरत होगा ।
(5) इस िनयम की िकसी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह न्यायालय को अनेक वािदय म से एक वादी को
उपिनयम (1) के अधीन वाद या दावे के िकसी भाग का पिरत्याग करने या िकसी वाद या दावे का अन्य वािदय की सहमित के िबना
उपिनयम (3) के अधीन पर्त्याहरण करने की अनुज्ञा देने के िलए पर्ािधकृ त करती है ।]
[1क. पर्ितवािदय को वािदय के रूप म पक्षान्तरण करने की अनुज्ञा कब दी जाएगी—जहां िनयम 1 के अधीन वादी ारा
1
वाद का पर्त्याहरण या पिरत्याग िकया जाता है और पर्ितवादी आदेश 1 के िनयम 10 के अधीन वादी के रूप म पक्षान्तिरत िकए जाने के
िलए आवेदन करता है वहां न्यायालय, ऐसे आवेदन पर िवचार करते समय इस पर्श्न पर सम्यक् ध्यान देगा िक क्या आवेदक का कोई
ऐसा सारवान् पर्श्न है जो अन्य पर्ितवािदय म से िकसी के िवरु िविनश्चय िकया जाना है ।]
2. पिरसीमा िविध पर पहले वाद का पर्भाव नह पड़ेगा—अिन्तम पूवर्वत िनयम के अधीन दी गई अनुज्ञा पर संिस्थत िकसी
भी नए वाद म वादी पिरसीमा िविध ारा उसी रीित से आब होगा मानो पर्थम वाद संिस्थत नह िकया गया हो ।
3. वाद म समझौता—जहां न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर िदया जाता है िक वाद 2 [पक्षकार ारा
िलिखत और हस्ताक्षिरत िकसी िविधपूणर् करार या समझौते के ारा] पूणर्तः या भागतः समायोिजत िकया जा चुका है या जहां
पर्ितवादी वाद की पूरी िवषय-वस्तु के या उसके िकसी भाग के सम्बन्ध म वादी की तुिष्ट कर देता है वहां न्यायालय ऐसे करार, समझौते
या तुिष्ट के अिभिलिखत िकए जाने का आदेश करे गा और 2[जहां तक िक वह वाद के पक्षकार से सम्बिन्धत है, चाहे करार, समझौते या
तुिष्ट की िवषय-वस्तु वही हो या न हो जो िक वाद की िवषय-वस्तु है वहां तक तद्नुसार िडकर्ी पािरत करे गाः]
[परन्तु जहां एक पक्षकार ारा यह अिभकथन िकया जाता है और दूसरे पक्षकार ारा यह इं कार िकया जाता है िक कोई
1
समायोजन या तुिष्ट तय हुई थी वहां न्यायालय इस पर्श्न का िविनश्चय करे गा, िकन्तु इस पर्श्न के िविनश्चय के पर्योजन के िलए िकसी
स्थगन की मंजूरी तब तक नह दी जाएगी जब तक िक न्यायालय, ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे, ऐसा स्थगन मंजूर करना
ठीक न समझे ।]
[स्पष्टीकरण—कोई ऐसा करार या समझौता जो भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) के अधीन शून्य या
1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 74 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 74 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
149
पर्ेरणा से या िकसी पर्ितवादी के आवेदन पर, ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे, यह आदेश वादी को दे सके गा िक वह िकसी भी
1
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
150
पर्ितवादी ारा उपगत और संभवतः उपगत िकए जाने वाले सभी खच के संदाय के िलए पर्ितभूित न्यायालय ारा िनिश्चत समय के
भीतर देः
परन्तु ऐसा आदेश उन सभी मामल म िकया जाएगा िजनम न्यायालय को यह पर्तीत हो िक एकमातर् वादी या (जहां एक से
अिधक वादी ह वहां) सभी वादी भारत के बाहर िनवास करते ह और ऐसे वादी के पास या ऐसे वािदय म से िकसी के भी पास भारत
के भीतर वादान्तगर्त संपि से िभन्न कोई भी पयार्प्त स्थावर संपि नह है ।
(2) जो कोई भारत से ऐसी पिरिस्थितय म चला जाता है िजनसे यह युिक्तयुक्त अिधसंभा ता है िक जब कभी उसे खच देने
के िलए बुलाया जाएगा वह नह िमलेगा तो उसके बारे म यह समझा जाएगा िक वह उपिनयम (1) के परन्तुक के अथर् म भारत के बाहर
िनवास करता है ।]
2. पर्ितभूित देने म असफल रहने का पर्भाव—(1) उस दशा म, िजसम िक िनयत समय के भीतर ऐसी पर्ितभूित नह दी जाती
है, न्यायालय वाद को खािरज करने वाला आदेश करे गा, जब तक िक वादी या वािदय को उससे पर्त्याहृत हो जाने के िलए अनुज्ञा न दे
दी गई हो ।
(2) जहां वाद इस िनयम के अधीन खािरज कर िदया गया है वहां वादी खािरजी अपास्त कराने के आदेश के िलए आवेदन कर
सके गा और यिद न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर िदया जाता है िक वह अनुज्ञात समय के भीतर पर्ितभूित देने से िकसी
पयार्प्त हेतुक से िनवािरत रहा है तो न्यायालय पर्ितभूित और खच संबंधी ऐसे िनबन्धन पर या अन्यथा, जो वह ठीक समझे, खािरजी
अपास्त करे गा और वाद म अगर्सर होने के िलए िदन िनयत करे गा ।
(3) जब तक िक ऐसे आवेदन की सूचना की तामील पर्ितवादी पर न कर दी गई हो खािरजी अपास्त नह की जाएगी ।
आदेश 26
कमीशन
सािक्षय की परीक्षा करने के िलए कमीशन
1. वे मामले िजनम न्यायालय साक्षी की परीक्षा करने के िलए कमीशन िनकाल सके गा—कोई भी न्यायालय िकसी भी वाद म
अपनी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करने वाले िकसी ऐसे व्यिक्त की पिरपर्श्न ारा या अन्यथा परीक्षा करने के
िलए कमीशन िनकाल सके गा िजसे न्यायालय म हािजर होने से इस संिहता के अधीन छू ट िमली हो या जो बीमारी या अंगशैिथल्य के
कारण उसम हािजर होने म असमथर् होः
[परन्तु पिरपर्श्न ारा परीक्षा के िलए कमीशन तब तक नह िनकाला जाएगा जब तक िक न्यायालय ऐसे कारण से जो
1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार के िकसी ऐसे िसिवल या सैिनक अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) “परीक्षा करने के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
151
जहां िकसी व्यिक्त को आदेश 16 के िनयम 19 के अधीन न्यायालय म स्वयं हािजर होने के िलए मजबूर नह िकया
1 [परन्तु
जा सकता है वहां, उसका यिद सा य न्याय के िहत म आवश्यक समझा जाए तो, उसकी परीक्षा के िलए कमीशन िनकाला जाएगाः
परन्तु यह और िक पिरपर्श्न ारा ऐसे व्यिक्त की परीक्षा के िलए कमीशन तब तक नह िनकाला जाएगा जब तक िक
न्यायालय ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे ऐसा करना आवश्यक न समझे ।]
(2) ऐसा कमीशन उच्च न्यायालय से िभन्न िकसी भी ऐसे न्यायालय के नाम िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के
भीतर ऐसा व्यिक्त िनवास करता है या िकसी भी प्लीडर या अन्य व्यिक्त के नाम, िजसे कमीशन िनकालने वाला न्यायालय िनयुक्त
करे , िनकाला जा सके गा ।
(3) न्यायालय कोई भी कमीशन इस िनयम के अधीन िनकालने पर यह िनदेश देगा िक कमीशन उस न्यायालय को या िकसी
अधीनस्थ न्यायालय को लौटाया जाएगा ।
[4क. न्यायालय की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करने वाले िकसी व्यिक्त की परीक्षा के िलए कमीशन—इन िनयम
2
म िकसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय िकसी वाद म न्याय के िहत म या मामले को शीघर् िनपटाने के िलए या िकसी अन्य कारण
से अपनी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िनवास करने वाले िकसी व्यिक्त की पिरपर्श्न पर या अन्यथा परीक्षा के िलए
कमीशन िनकाल सके गा और इस पर्कार अिभिलिखत सा य को सा य म पढ़ा जाएगा ।]
5. जो साक्षी भारत के भीतर नह है उसकी परीक्षा करने के िलए कमीशन या अनुरोधपतर्—जहां िकसी ऐसे न्यायालय का
िजसको िकसी ऐसे स्थान म िनवास करने वाले व्यिक्त की जो 3 [भारत] के भीतर का स्थान नह है, परीक्षा करने का कमीशन िनकालने
के िलए आवेदन िकया गया है, समाधान हो जाता है िक ऐसे व्यिक्त का सा य आवश्यक है वहां न्यायालय ऐसा कमीशन िनकाल सके गा
या अनुरोधपतर् भेज सके गा ।
6. कमीशन के अनुसरण म न्यायालय साक्षी की परीक्षा करे गा—िकसी व्यिक्त की परीक्षा करने के िलए कमीशन पर्ाप्त करने
वाला हर न्यायालय उसके अनुसरण म उस व्यिक्त की परीक्षा करे गा या कराएगा ।
7. सािक्षय के अिभसा य के साथ कमीशन का लौटाया जाना—जहां कमीशन का सम्यक् रूप से िनष्पादन कर िदया गया है
वहां वह उसके अधीन िलए गए सा य सिहत उस न्यायालय को िजसने उसे िनकाला था, उस दशा के िसवाय लौटा िदया जाएगा िजसम
िक कमीशन िनकालने वाले आदेश ारा अन्यथा िनिदष्ट िकया गया हो और उस दशा म कमीशन ऐसे आदेश के िनबन्धन के अनुसार
लौटाया जाएगा और कमीशन और उसके साथ वाली िववरणी और उसके अधीन िदया गया सा य 4 [(िनयम 8 के उपबन्ध के अधीन
रहते हुए)] वाद के अिभलेख का भाग ह गे ।
8. अिभसा य कब सा य म गर्हण िकया जा सके गा—कमीशन के अधीन िलया गया सा य वाद म सा य के तौर पर उस
पक्षकार की सहमित के िबना िजसके िवरु वह िदया गया है, उस दशा के िसवाय गर्हण नह िकया जाएगा, िजसम िक—
(क) वह व्यिक्त िजसने सा य िदया है, न्यायालय की अिधकािरता के परे है या उसकी मृत्यु हो गई है या वह
बीमारी या अगंशैिथल्य के कारण वैयिक्तक रूप से परीक्षा की जाने के िलए हािजर होने म असमथर् है या न्यायालय म स्वीय
उपसंजाित से छू ट पाया हुआ है या 5 [सरकार की सेवा म का ऐसा व्यिक्त] है िजसके बारे म न्यायालय की राय है िक वह लोक
सेवा का अपाय िकए िबना हािजर नह हो सकता; अथवा
(ख) न्यायालय खण्ड (क) म विणत पिरिस्थितय म से िकसी के सािबत िकए जाने से अिभमुिक्त स्विववेकानुसार दे
देता है और िकसी व्यिक्त के सा य को वाद म सा य के तौर पर गर्हण िकया जाना, इस सबूत के होते हुए भी िक कमीशन के
माध्यम ारा ऐसा सा य लेने का हेतुक उसके गर्हण िकए जाने के समय जाता रहा है, पर्ािधकृ त कर देता है ।
स्थानीय अन्वेषण के िलए कमीशन
9. स्थानीय अन्वेषण करने के िलए कमीशन—िकसी भी वाद म िजसम न्यायालय िववाद म के िकसी िवषय के िवशदीकरण के
या िकसी संपि के बाजार-मूल्य के या िकन्ह अन्तःकालीन लाभ या नुकसानी या वािषक शु लाभ की रकम के अिभिनश्चयन के
पर्योजन के िलए स्थानीय अन्वेषण करना, अपेक्षणीय या उिचत समझता है, न्यायालय ऐसे व्यिक्त के नाम िजसे वह ठीक समझे, ऐसा
अन्वेषण करने के िलए और उस पर न्यायालय को िरपोटर् देने के िलए उसे िनदेश देते हुए कमीशन िनकाल सके गाः
परन्तु जहां राज्य सरकार ने उन व्यिक्तय के बारे म िनयम बना िदए ह िजनके नाम ऐसा कमीशन िनकाला जा सके गा वहां
न्यायालय ऐसे िनयम से आब होगा ।
10. किमश्नर के िलए पर्िकर्या—(1) किमश्नर ऐसे स्थानीय िनरीक्षण के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे और अपने ारा िलए
गए सा य को लेखब करने के पश्चात् अपने ारा हस्ताक्षिरत अपनी िलिखत िरपोटर् सिहत ऐसे सा य को न्यायालय को लौटाएगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 29 ारा (1-7-2002 से) अंतःस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार का कोई ऐसा िसिवल या सैिनक अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
152
(2) िरपोटर् और अिभसा य वाद म सा य ह गे—किमश्नर की िरपोटर् और उसके ारा िलया गया सा य (न िक सा य िरपोटर्
के िबना) वाद म सा य होगा और अिभलेख का भाग होगा, िकन्तु न्यायालय या न्यायालय की अनुज्ञा से वाद म के पक्षकार म से कोई
भी पक्षकार, किमश्नर की वैयिक्तक रूप से परीक्षा खुले न्यायालय म उन बात म से िकसी के बारे म जो उसे िनदिशत की गई थी या
िजनका वणर्न उसकी िरपोटर् के बारे म या उस रीित के बारे म िजसम उसने अन्वेषण िकया है, कर सके गा ।
(3) किमश्नर की वैयिक्तक रूप से परीक्षा की जा सके गी—जहां न्यायालय िकसी कारण से किमश्नर की कायर्वािहय से
असंतुष्ट है वहां वह ऐसी अितिरक्त जांच करने के िलए िनदेश दे सके गा जो वह ठीक समझे ।
1
[वैज्ञािनक अन्वेषण, अनुसिचवीय कायर् करने और जंगम सम्पि के िवकर्य के िलए कमीशन
10क. वैज्ञािनक अन्वेषण के िलए कमीशन—(1) जहां वाद म उद्भूत होने वाले िकसी पर्श्न म कोई ऐसा वैज्ञािनक अन्वेषण
अन्तगर्र्स्त है जो न्यायालय की राय म न्यायालय के समक्ष सुिवधापूवर्क नह िकया जा सकता है वहां न्यायालय, यिद वह न्याय के िहत
म ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे तो ऐसे व्यिक्त के नाम िजसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह िनदेश देते हुए िनकाल
सके गा िक वह ऐसे पर्श्न की जांच करे और उसकी िरपोटर् न्यायालय को दे ।
(2) इस आदेश के िनयम 10 के उपबन्ध इस िनयम के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म जहां तक हो सके उसी पर्कार
लागू ह गे िजस पर्कार वे िनयम 9 के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म लागू होते ह ।
10ख. अनुसिचवीय कायर् करने के िलए कमीशन—(1) जहां वाद म उद्भूत होने वाले िकसी पर्श्न म कोई ऐसा अनुसिचवीय
कायर् करना अन्तगर्र्स्त है जो न्यायालय की राय म न्यायालय के समक्ष सुिवधापूवर्क नह िकया जा सकता है, वहां न्यायालय, ऐसे कारण
से जो लेखब िकए जाएंगे, यिद न्यायालय की यह राय हो िक न्याय के िहत म ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो, ऐसे व्यिक्त के
नाम िजसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह िनदेश देते हुए िनकाल सके गा िक वह उस अनुसिचवीय कायर् को करे और उसकी िरपोटर्
न्यायालय को दे ।
(2) इस आदेश के िनयम 10 के उपबन्ध इस िनयम के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म उसी पर्कार लागू ह गे िजस
पर्कार वे िनयम 9 के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म लागू होते ह ।
10ग. जंगम संपि के िवकर्य के िलए कमीशन—(1) जहां िकसी वाद म िकसी ऐसी जंगम संपि का जो वाद के अवधारण के
लिम्बत रहने के दौरान न्यायालय की अिभरक्षा म है और जो सुिवधापूवर्क पिररिक्षत नह की जा सकती है िवकर्य करना आवश्यक हो
जाता है, वहां न्यायालय ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे यिद न्यायालय की यह राय हो िक न्याय के िहत म ऐसा करना
आवश्यक या समीचीन है तो, ऐसे व्यिक्त के नाम िजसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह िनदेश देते हुए िनकाल सके गा िक वह ऐसे
िवकर्य का संचालन करे और उसकी िरपोटर् न्यायालय को दे ।
(2) इस आदेश के िनयम 10 के उपबन्ध इस िनयम के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म उसी पर्कार लागू ह गे िजस
पर्कार वे िनयम 9 के अधीन िनयुक्त किमश्नर के सम्बन्ध म लागू होते ह ।
(3) ऐसा पर्त्येक िवकर्य जहां तक हो सके िडकर्ी के िनष्पादन म जंगम संपि के िवकर्य के िलए िविहत पर्िकर्या के अनुसार
िकया जाएगा ।]
लेखा की परीक्षा करने के िलए कमीशन
11. लेखा की परीक्षा या समायोजन करने के िलए कमीशन—न्यायालय ऐसे िकसी भी वाद म िजसम लेखा की परीक्षा
या समायोजन आवश्यक है, ऐसी परीक्षा या समायोजन करने के िलए ऐसे व्यिक्त के नाम उसे िनदेश देते हुए िजसे वह ठीक समझे
कमीशन िनकाल सके गा ।
12. न्यायालय किमश्नर को आवश्यक अनुदश
े देगा—(1) न्यायालय किमश्नर को कायर्वािहय को ऐसा भाग और ऐसे अनुदश े
देगा जो आवश्यक ह और ऐसे अनुदश े म यह स्पष्टतया िविनिदष्ट होगा िक क्या किमश्नर के वल उन कायर्वािहय को पारे िषत करे
िजन्ह वह ऐसी जांच म करता है या उस बात के बारे म अपनी राय की भी िरपोटर् करे जो उसकी परीक्षा के िलए िनदिशत की
गई है ।
(2) कायर्वािहयां और िरपोटर् सा य ह गी । न्यायालय अितिरक्त जांच िनिदष्ट कर सके गा—किमश्नर की कायर्वािहयां और
िरपोटर् (यिद कोई हो) वाद म सा य ह गी, िकन्तु जहां न्यायालय के पास उनसे असन्तुष्ट होने के िलए कारण ह वहां वह ऐसी अितिरक्त
जांच िनिदष्ट कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
िवभाजन करने के िलए कमीशन
13. स्थावर संपि का िवभाजन करने के िलए कमीशन—जहां िवभाजन करने के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी पािरत की गई है वहां
न्यायालय िकसी भी मामले म िजसके िलए धारा 54 ारा उपबन्ध नह िकया गया है, ऐसी िडकर्ी म घोिषत अिधकार के अनुसार
िवभाजन या पृथक्करण करने के िलए ऐसे व्यिक्त के नाम िजसे वह ठीक समझे कमीशन िनकाल सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
153
14. किमश्नर की पर्िकर्या—(1) किमश्नर ऐसी जांच करने के पश्चात् जो आवश्यक हो, सम्पि को उतने अंश म िवभािजत
करे गा िजतने उस आदेश ारा िनिदष्ट ह िजसके अधीन कमीशन िनकाला गया था और ऐसे अंश का पक्षकार म आवंटन कर देगा और
यिद उसे उक्त आदेश ारा ऐसा करने के िलए पर्ािधकृ त िकया जाता है तो वह अंश के मूल्य को बराबर करने के पर्योजन के िलए दी
जाने वाली रािशयां अिधिनण त कर सके गा ।
(2) तब हर एक पक्षकार का अंश िनयत करके और (यिद उक्त आदेश ारा ऐसा करने के िलए िनदेश िदया जाता है) तो हर
एक अंश को माप और सीमांकन करके किमश्नर अपनी िरपोटर् तैयार और हस्ताक्षिरत करे गा या (जहां कमीशन एक से अिधक व्यिक्तय
के नाम िनकाला गया था और वे परस्पर सहमत नह हो सके ह वहां) किमश्नर पृथक् -पृथक् िरपोटर् तैयार और हस्ताक्षिरत करगे । ऐसी
िरपोटर् या ऐसी िरपोट कमीशन के साथ उपाब की जाएंगी और न्यायालय को पारे िषत की जाएंगी और पक्षकार जो कोई आक्षेप िरपोटर्
या िरपोट पर करे , न्यायालय उन्ह सुनने के पश्चात् उसे या उन्ह पुष्ट, उसम या उनम फे रफार या उसे या उन्ह अपास्त करे गा ।
(3) जहां न्यायालय िरपोटर् या िरपोट को पुष्ट करता है या उसम या उनम फे रफार करता है वहां वह उसके पुष्ट या फे रफार
िकए गए रूप के अनुसार िडकर्ी पािरत करे गा िकन्तु जहां न्यायालय िरपोटर् या िरपोट को अपास्त कर देता है वहां वह या तो नया
कमीशन िनकालेगा या ऐसा अन्य आदेश करे गा जो वह ठीक समझे ।
साधारण उपबन्ध
15. कमीशन के य न्यायालय म जमा िकए जाएंग— े न्यायालय इस आदेश के अधीन कोई कमीशन िनकालने से पूवर् आदेश दे
सके गा िक ऐसी रािश (यिद कोई हो) जो वह कमीशन के य के िलए युिक्तयुक्त समझे, िनयत िकए जाने वाले समय के भीतर
न्यायालय म उस पक्षकार ारा जमा की जाए िजसकी पर्ेरणा पर या िजसके फायदे के िलए कमीशन िनकाला जाना है ।
16. किमश्नर की शिक्तयां—इस आदेश के अधीन िनयुक्त कोई भी किमश्नर उस दशा के िसवाय िजसम िनयुिक्त के आदेश
ारा उसे अन्यथा िनिदष्ट िकया गया हो,--
(क) स्वयं पक्षकार की और ऐसे साक्षी की िजसे वे या उसम से कोई पेश करे और िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त की, िजसे
किमश्नर अपने को िनदिशत मामले म सा य देने के िलए बुलाना ठीक समझे, परीक्षा कर सके गा;
(ख) जांच के िवषय से सुसंगत दस्तावेज और अन्य चीज को मंगवा सके गा और उनकी परीक्षा कर सके गा;
(ग) आदेश म विणत िकसी भी भूिम म या िनमार्ण के भीतर िकसी युिक्तयुक्त समय पर पर्वेश कर सके गा ।
[16क. वे पर्श्न िजन पर किमश्नर के समक्ष आक्षेप िकया जाता है—(1) जहां इस आदेश के अधीन िनयुक्त किमश्नर के समक्ष
1
कायर्वािहय म साक्षी से पूछे गए िकसी पर्श्न पर िकसी पक्षकार या उसके प्लीडर ारा आक्षेप िकया जाता है, वहां किमश्नर पर्श्न,
उ र, आक्षेप को और इस पर्कार आक्षेप करने वाले, यथािस्थित, पक्षकार या प्लीडर का नाम िलखेगाः
परन्तु किमश्नर िकसी ऐसे पर्श्न का िजस पर िवशेषािधकार के आधार पर आक्षेप िकया जाता है, उ र नह िलखेगा िकन्तु वह
साक्षी की परीक्षा िवशेषािधकार का पर्श्न न्यायालय ारा िविनिश्चत कराने के िलए पक्षकार पर छोड़ते हुए, जारी रख सकता है और
जहां न्यायालय िविनश्चय करता है िक िवशेषािधकार का कोई पर्श्न नह है वहां साक्षी को किमश्नर ारा पुनः बुलाया जा सकता है
और उसके ारा परीक्षा की जा सकती है या न्यायालय ारा उस पर्श्न की बाबत िजस पर आक्षेप िवशेषािधकार के आधार पर िकया
गया था, साक्षी की परीक्षा की जा सकती है ।
(2) उपनियम (1) के अधीन िलखे गए िकसी उ र को वाद म सा य के रूप म न्यायालय के आदेश के िबना नह
पढ़ा जाएगा ।]
17. किमश्नर के समक्ष सािक्षय की हािजरी और उनकी परीक्षा—(1) सािक्षय को समन करने, सािक्षय की हािजरी और
सािक्षय की परीक्षा सम्बन्धी और सािक्षय के पािरशर्िमक और उन पर अिधरोिपत की जाने वाली शािस्तय सम्बन्धी इस संिहता के
उपबन्ध उन व्यिक्तय को लागू ह गे िजनसे सा य देने की या दस्तावेज पेश करने की अपेक्षा इस आदेश के अधीन की गई है, चाहे वह
कमीशन िजसका िनष्पादन करने म उनसे ऐसी अपेक्षा की गई है, 2 [भारत] की सीमा के भीतर िस्थत न्यायालय ारा या 2[भारत] की
सीमा से परे िस्थत न्यायालय ारा िनकाला गया हो और किमश्नर के बारे म इस िनयम के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक
वह िसिवल न्यायालय हैः
[परन्तु जब किमश्नर िसिवल न्यायालय का न्यायाधीश नह है तब वह शािस्तयां अिधरोिपत करने के िलए सक्षम नह होगा,
1
िकन्तु ऐसे किमश्नर के आवेदन पर ऐसी शािस्तयां उस न्यायालय ारा िजसने कमीशन िनकाला था, अिधरोिपत की जा सकगी ।]
(2) किमश्नर कोई ऐसी आदेिशका िनकालने के िलए, िजसे वह साक्षी के नाम या उसके िवरु िनकालना आवश्यक समझे,
ऐसे िकसी न्यायालय से (जो उच्च न्यायालय नह है) और िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर ऐसा साक्षी िनवास
करता है, आवेदन कर सके गा और ऐसा न्यायालय स्विववेकानुसार ऐसी आदेिशका िनकाल सके गा जो वह युिक्तयुक्त और
उिचत समझे ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
154
18. पक्षकार का किमश्नर के समक्ष उपसंजात होना—(1) जहां कमीशन इस आदेश के अधीन िनकाला जाता है वहां
न्यायालय िनदेश देगा िक वाद के पक्षकार किमश्नर के समक्ष या तो स्वयं या अपने अिभकतार् के या प्लीडर के ारा उपसंजात ह ।
(2) जहां सभी पक्षकार या उनस से कोई इस पर्कार उपसंजात न ह वहां किमश्नर उनकी अनुपिस्थित म कायर्वाही
कर सके गा ।
[18क. िनष्पादन कायर्वािहय को आदेश का लागू होना—इस आदेश के उपबन्ध िडकर्ी या आदेश के िनष्पादन म
1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 75 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
2
1932 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
3
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “इिण्डयन हाई कोट्सर् ऐक्ट, 1861 या भारत शासन अिधिनयम, 1915 के अधीन उच्च न्यायालय स्थािपत
िकया जाता है और” शब्द का लोप िकया गया ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “इसकी मामूली आरिम्भक िसिवल अिधकािरता” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 76 ारा (1-2-1977 से) “16, 17 और 18” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
155
रूप से िनष्पािदत कर िदया गया हो तब वह उसके अधीन िलए गए सा य के सिहत उच्च न्यायालय को लौटाया जाएगा जो उसे िवदेशी
न्यायालय को पारे िषत करने के िलए अनुरोधपतर् सिहत के न्दर्ीय सरकार को अगर्ेिषत कर देगा ।
आदेश 27
सरकार के िवरु िनकाली गई आदेिशकाएं लेने के पर्योजन के िलए सरकार का अिभकतार् होगा ।]
5. सरकार की ओर से उपसंजाित के िलए िदन िनयत िकया जाना—न्यायालय वह िदन िनयत करते समय िजस िदन वादपतर्
का उ र 1[सरकार] ारा िदया जाना है, इतना युिक्तयुक्त समय अनुज्ञात करे गा िजतना सरकार को आवश्यक संसच ू ना उिचत पर्णाली
ारा भेजने के िलए और [सरकार] *** की ओर से उपसंजात होने और उ र देने के िलए [सरकारी प्लीडर] को अनुदश
5 6 7 े देने के िलए
आवश्यक हो और उस समय को स्विववेकानुसर बढ़ा सके गा, 8 [िकन्तु इस पर्कार बढ़ाया गया समय कु ल िमलाकर दो मास से अिधक नह
होगा ।]
[5क. लोक अिधकारी के िवरु वाद म सरकार को पक्षकार के रूप म संयोिजत िकया जाना—जहां लोक अिधकारी के िवरु
8
वाद िकसी ऐसे कायर् के बारे म िजसके सम्बन्ध म यह अिभकिथत िकया गया है िक वह उसने अपनी पदीय हैिसयत म िकया है, नुकसानी
या अन्य अनुतोष के िलए संिस्थत िकया जाता है वहां सरकार को वाद म पक्षकार के रूप म संयोिजत िकया जाएगा ।
5ख. सरकार या लोक अिधकारी के िवरु वाद म िनपटारा कराने म सहायता करने के िलए न्यायालय का कतर् —(1) ऐसे
पर्त्येक वाद या कायर्वाही म िजसम सरकार या अपनी पदीय हैसीयत म कायर् करने वाला लोक अिधकारी पक्षकार है, न्यायालय का यह
कतर् होगा िक वह वाद की िवषय-वस्तु के बारे म िनपटारा कराने म पक्षकार की सहायता करने के िलए हर पर्यास पर्थमतः करे जहां
ऐसा करना मामले की पर्कृ ित और पिरिस्थितय से सुसंगत हो ।
(2) यिद िकसी ऐसे वाद या कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक पक्षकार के बीच िनपटारा होने
की युिक्तयुक्त सम्भावना है तो न्यायालय कायर्वाही को ऐसी अविध के िलए जो वह ठीक समझे, स्थिगत कर सके गा िजससे िक ऐसा
िनपटारा कराने के िलए पर्यत्न िकए जा सक ।
(3) उपिनयम (2) के अधीन पर्द शिक्त कायर्वािहय को स्थिगत करने के िलए न्यायालय की िकसी अन्य शिक्त के
अितिरक्त है ।]
6. सरकार के िवरु वाद से संबध ं रखने वाले पर्श्न का उ र देने योग्य व्यिक्त की हािजरी—न्यायालय िकसी ऐसे मामले म
िजसम [सरकारी प्लीडर] के साथ [सरकार] की ओर से ऐसा कोई व्यिक्त नह है जो वाद सम्बन्धी िकन्ह भी ताित्त्वक पर्श्न का उ र
7 1
1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत के सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत के सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट इन काउिन्सल के िवरु ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा ‘या यिद वाद सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट के िवरु है तो “सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट” शब्द’
शब्द का लोप िकया गया ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा िनयम 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत के उक्त सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
भारत शासन (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा “या सरकार” शब्द का लोप िकया गया ।
7
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकारी प्लीडर” के िलए रखे गए “कर्ाउन प्लीडर” के स्थान पर िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा
पर्ितस्थािपत ।
8
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 76 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
156
वहां वह न्यायालय से आवेदन कर सके गा िक समन म िनयत समय उसके िलए इतना बढ़ा िदया जाए िजतना उसे उिचत पर्णाली ारा
ऐसा िनदेश करने के और उस पर आदेश पर्ाप्त करने के िलए आवश्यक है ।
(2) न्यायालय ऐसे आवेदन पर उस समय को उतना बढ़ा देगा िजतना उसे आवश्यक पर्तीत हो ।
8. लोक अिधकारी के िवरु वाद म पर्िकर्या—(1) जहां िकसी लोक अिधकारी के िवरु िकसी वाद की पर्ितरक्षा करने का
िजम्मा सरकार लेती है वहां 1 [सरकारी प्लीडर] उपसंजात होने और वादपतर् का उ र देने का पर्ािधकार िदए जाने पर न्यायालय से
आवेदन करे गा और न्यायालय ऐसे आवेदन पर उसके पर्ािधकार का िटप्पण िसिवल वाद के रिजस्टर म पर्िवष्ट कराएगा ।
(2) जहां उस िदन को जो पर्ितवादी के उपसंजात होने और उ र देने के िलए सूचना म िनयत है, या उस िदन के पूवर् कोई
आवेदन 1[सरकारी प्लीडर] ारा उपिनयम (1) के अधीन नह िकया जाए वहां मामला ऐसे चलेगा जैसे वह पर्ाइवेट पक्षकार के बीच
चलता हैः
परन्तु पर्ितवादी की िगरफ्तारी या उसकी सम्पि की कु क िडकर्ी के िनष्पादन म ही की जा सके गी अन्यथा नह ।
[8क. कु छ मामल म9 सरकार से या लोक अिधकारी से कोई पर्ितभूित अपेिक्षत न की जाएगी—सरकार से या जहां सरकार
2
ने वाद की पर्ितरक्षा का िजम्मा िलया है वहां िकसी ऐसे लोक अिधकारी से िजस पर िकसी ऐसे कायर् के बारे म वाद लाया गया है िजसके
सम्बन्ध म यह अिभकिथत िकया गया है िक वह उसने अपनी पदीय हैिसयत म िकया है आदेश 41 के िनयम 5 और िनयम 6 म
यथाविणत पर्ितभूित की अपेक्षा नह की जाएगी ।
8ख. “सरकार” और “सरकारी प्लीडर” की पिरभाषाएं—इस आदेश म 3 [जब तक िक अिभ क्त रूप से अन्यथा उपबिन्धत
न हो,] सरकार और 1[सरकारी प्लीडर] से कर्मशः—
(क) ऐसे वाद के सम्बन्ध म जो 4 *** के न्दर्ीय सरकार ारा या उसके िवरु है या उस सरकार की सेवा म के िकसी
लोक अिधकारी के िवरु है, के न्दर्ीय सरकार और ऐसा प्लीडर अिभपर्ेत है जो वह सरकार, चाहे साधारणतः या िवशेषतः,
इस आदेश के पर्योजन के िलए िनयुक्त करे ;
5
* * * *
(ग) ऐसे वाद के सम्बन्ध म जो राज्य सरकार ारा या उसके िवरु है या राज्य की सेवा म के लोक अिधकारी के
िवरु है, राज्य सरकार और 3[धारा 2 के खण्ड (7) म यथापिरभािषत] सरकारी प्लीडर या ऐसा अन्य प्लीडर अिभपर्ेत है जो
राज्य सरकार, चाहे साधारणतः, या िवशेषतः इस आदेश के पर्योजन के िलए िनयुक्त करे ।]
6
[आदेश 27क
वे वाद िजनम 7 [संिवधान के िनवर्चन 8 [या िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता सम्बन्धी] कोई सारभूत िविध-पर्श्न अन्तगर्र्स्त ह
1. महान्यायवादी या महािधवक्ता को सूचना—िकसी भी ऐसे वाद म िजसम न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक
9 [ 10 [संिवधान
के अनुच्छेद 147 के साथ पिठत अनुच्छेद 132 के खण्ड (1) म] यथािनिदष्ट कोई पर्श्न] अन्तगर्र्स्त है, न्यायालय उस पर्श्न
का अवधारण करने के िलए तब तक अगर्सर नह होगा जब तक, यिद वह िविध-पर्श्न के न्दर्ीय सरकार से सम्बिन्धत है तो 11 [भारत के
महान्यायवादी] को और यिद वह िविध-पर्श्न िकसी राज्य सरकार से सम्बिन्धत है तो उस राज्य के महािधवक्ता को सूचना न दे दी
गई हो ।
[1क. उन वाद म पर्िकर्या िजनम िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता अन्तगर्र्स्त है—िकसी ऐसे वाद म िजसम न्यायालय
8
को यह पर्तीत होता है िक िकसी कानूनी िलखत की िविधमान्यता के सम्बन्ध म कोई ऐसा पर्श्न अन्तगर्र्स्त है जो िनयम 1 म विणत पर्कृ ित
का पर्श्न नह है, न्यायालय,—
(क) यिद वह पर्श्न सरकार से सम्बिन्धत है तो, सरकारी प्लीडर को, अथवा
(ख) यिद वह पर्श्न सरकार से िभन्न िकसी पर्ािधकारी से सम्बिन्धत है तो, उस पर्ािधकारी को िजसने कानूनी िलखत
जारी की थी,
1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा और िविध् अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “कर्ाउन प्लीडर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा िनयम 8क और 8ख अन्तःस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अंतःस्थािपत ।
4
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा ‘सेकर्ेटरी ऑफ स्टेट या” शब्द का लोप िकया गया ।
5
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
6
1942 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
7
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत शासन अिधिनयम, 1935 या तद्धीन िकए गए पिरषद् के िकसी आदेश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 77 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
9
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा ‘भारत शासन अिधिनयम, 1935 या त ीन िकए गए पिरषद् के िकसी आदेश
का िनवर्चन सम्बन्धी कोई सारभूत िविध-पर् ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत शासन अिधिनयम, 1935 की धारा 205 की उपधारा (1) म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत के महािधवक्ता” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
157
1
भारतीय स्वतंतर्ता (के न्दर्ीय अिधिनयम और अध्यादेश का अनुकूलन) आदेश, 1948 ारा ‘भारत शासन अिधिनयम, 1935 या त ीन िकए गए पिरषद् के िकसी आदेश
का िनवर्चन सम्बन्धी कोई सारभूत िविध-पर् ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत शासन अिधिनयम, 1935 की धारा 205 की उपधारा (1) म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत के महािधवक्ता” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 77 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 77 ारा (1-2-1977 से) िनयम 3 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
7
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या सैिनक” तथा “या कोई सैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा “सेना या वायु सेना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकारी सेवा म है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1927 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 2 ारा “या सैिनक” तथा “या कोई सैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
158
स्पष्टीकरण—इस आदेश म “कमान आिफसर” पद से ऐसा आिफसर अिभपर्ेत है जो उस रे िजमट, कोर, 1 [पोत,] टु कड़ी या
िडपो का तत्समय वास्तिवक समादेशन करता है िजसम वह आिफसर, 2 [सैिनक, 1[नौसैिनक] या वायुसैिनक] है ।
2. इस पर्कार पर्ािधकृ त व्यिक्त स्वयं कायर् कर सके गा या प्लीडर िनयुक्त कर सके गा—आिफसर, 3 [सैिनक, 1[नौसैिनक] या
वायुसैिनक] ारा उसकी अपनी ओर से वाद के अिभयोिजत करने या वाद म पर्ितरक्षा करने के िलए पर्ािधकृ त कोई भी व्यिक्त स्वयं उसे
ऐसे अिभयोिजत कर सके गा या उसम ऐसे पर्ितरक्षा कर सके गा जैसे वह आिफसर, 2[सैिनक, 3[नौसेिनक] या वायुसैिनक] करता यिद वह
उपिस्थत होता या वह उस आिफसर 2[सैिनक, 3[नौसैिनक] या वायुसैिनक] की ओर से वाद अिभयोिजत करने या वाद म पर्ितरक्षा करने
के िलए प्लीडर िनयुक्त कर सके गा ।
3. इस पर्कार पर्ािधकृ त व्यिक्त पर या उसके प्लीडर पर की गई तामील उिचत तामील होगी—िकसी आिफसर 3[सैिनक,
1
[नौसैिनक] या वायुसैिनक] ारा िनयम 1 के अधीन पर्ािधकृ त िकए गए िकसी भी व्यिक्त पर या ऐसे व्यिक्त ारा पूव क्त रीित से
िनयुक्त िकसी भी प्लीडर पर तामील की गई आदेिशकाएं वैसे ही पर्भावी ह गी मानो उसकी तामील स्वयं पक्षकार पर की गई हो ।
आदेश 29
िनगम ारा या उनके िवरु वाद
1. अिभवचन पर हस्ताक्षर िकया जाना और उसका सत्यापन—िकसी िनगम ारा या उसके िवरु वाद म कोई भी
अिभवचन उस िनगम की ओर से उस िनगम के सिचव या िकसी िनदेशक या अन्य पर्धान अिधकारी ारा, जो मामले के तथ्य के बारे म
अिभसा य देने योग्य हो, हस्ताक्षिरत और सत्यािपत िकया जा सके गा ।
2. िनगम पर तामील—आदेिशका की तामील का िविनयमन करने वाले िकसी भी कानूनी उपबन्ध के अधीन रहते हुए, जहां
वाद िकसी िनगम के िवरु है वहां समन की तामील—
(क) उस िनगम के सिचव या िकसी भी िनदेशक या अन्य पर्धान अिधकारी पर की जा सके गी, अथवा
(ख) उसके रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय म या यिद कोई रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय नह है तो उस स्थान पर जहां िनगम
कारबार चलाता है, छोड़कर या समन को ऐसे कायार्लय या स्थान के पते से िनगम को सम्बोिधत करके डाक ारा भेजकर की
जा सके गी ।
3. िनगम के अिधकारी की स्वीय हािजरी अपेिक्षत करने की शिक्त—वाद के िकसी भी पर्कर्म म न्यायालय यह अपेक्षा कर
सके गा िक िनगम का सिचव या कोई िनदेशक या अन्य पर्धान अिधकारी, जो वाद से सम्बिन्धत सारवान् पर्श्न का उ र देने योग्य है,
स्वयं उपसंजात हो ।
आदेश 30
फम के या अपने नाम से िभन्न नाम म कारबार चलाने वाले व्यिक्तय ारा या उनके िवरु वाद
1. भागीदार का फमर् के नाम से वाद लाना—(1) कोई भी दो या अिधक व्यिक्त, जो भागीदार की हैिसयत म दावा करते ह
या दायी ह और 4 [भारत] म कारबार चलाते ह, या उन पर उस फमर् के नाम से (यिद उसका कोई नाम हो) िजसके िक ऐसे व्यिक्त वाद
हेतुक के पर्ोद्भूत होने के समय भागीदार थे, वाद ला सकगे या उन पर वाद लाया जा सके गा और वाद का कोई भी पक्षकार ऐसे मामले
म न्यायालय से आवेदन कर सके गा िक उन व्यिक्तय के जो वाद-हेतुक के पर्ोद्भूत होने के समय ऐसी फमर् म भागीदार थे, नाम और
पत का कथन ऐसी रीित से िकया जाए और सत्यािपत िकया जाए जो न्यायालय िनिदष्ट करे ।
(2) जहां उनकी फमर् के नाम म भागीदार की हैिसयत म वाद उपिनयम (1) के अधीन कोई व्यिक्त लाते ह या उन पर लाया
जाता है वहां िकसी अिभवचन या अन्य दस्तावेज की दशा म िजसका वादी या पर्ितवादी ारा हस्ताक्षिरत, सत्यािपत या पर्मािणत
िकया जाना इस संिहता ारा या इसके अधीन अपेिक्षत है, यह पयार्प्त होगा िक ऐसा अिभवचन या अन्य दस्तावेज ऐसे व्यिक्तय म से
िकसी भी एक ारा हस्ताक्षिरत, सत्यािपत या पर्मािणत कर दी जाए ।
2. भागीदार के नाम का पर्कट िकया जाना—(1) जहां कोई वाद भागीदार ारा अपनी फमर् के नाम म संिस्थत िकया जाता
है वहां वादी या उनका प्लीडर िकसी भी पर्ितवादी ारा या उसकी ओर से िलिखत मांग की जाने पर उस फमर् को गिठत करने वाले
सभी व्यिक्तय के नाम और िनवास के स्थान की िलिखत घोषणा तत्क्षण करे गा िजनकी ओर से वाद संिस्थत िकया गया है ।
(2) जहां वादी या उनका प्लीडर उपिनयम (1) के अधीन की गई िकसी मांग को पूरा करने म असफल रहता है वहां वाद की
सारी कायर्वािहयां उस पर्योजन के िलए िकए गए आवेदन पर ऐसे िनबन्धन पर रोकी जा सकगी जो न्यायालय िनिदष्ट करे ।
1
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा अंतःस्थािपत ।
2
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची ारा “या सैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1934 के अिधिनयम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या िकसी सैिनक” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
159
(3) जहां भागीदार के नाम उपिनयम (1) म िनिदष्ट रीित से घोिषत कर िदए जाते ह वहां वाद उसी पर्कार अगर्सर होगा
और सभी दृिष्टय से वे ही पिरणाम ह गे मानो वे वािदय के रूप म वादपतर् म नािमत थेः
[परन्तु सारी कायर्वािहयां तब भी फमर् के नाम म चालू रहगी िकन्तु उपिनयम (1) म िविनिदष्ट रीित से पर्कट िकए गए
1
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 78 ारा (1-2-1977 से) परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 78 ारा (1-2-1977 से) िनयम 8 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
160
9. सहभागीदार के बीच म वाद—यह आदेश फमर् और उसके एक या अिधक भागीदार के बीच के वाद को और ऐसे वाद
को, जो उन फम के बीच ह, िजनके एक या अिधक भागीदार सहभागीदार ह, लागू होगा, िकन्तु ऐसे वाद म कोई भी िनष्पादन
न्यायालय की इजाजत के िबना जारी नह िकया जाएगा और ऐसे िनष्पादन को जारी करने की इजाजत के िलए आवेदन िकए जाने पर
ऐसे सभी लेखा का िलया जाना और जांच की जानी िनिदष्ट की जा सके गी और ऐसे िनदेश िदए जा सकगे जो न्यायसंगत ह ।
[10. स्वयं अपने नाम से िभन्न नाम से कारबार चलाने वाले व्यिक्त के िवरु वाद—अपने नाम से िभन्न नाम या अिभनाम
1
से कारबार चलाने वाले िकसी भी व्यिक्त पर या िकसी नाम से कारबार चलाने वाले िहन्दू अिवभक्त कु टु म्ब पर वाद उसी नाम या
अिभनाम म इस पर्कार लाया जा सके गा मानो वह फमर् का नाम हो और इस आदेश के सभी िनयम वहां तक लागू ह गे जहां तक िक उस
मामले की पर्कृ ित से अनुज्ञात हो ।]
आदेश 31
न्यािसय , िनष्पादक और पर्शासक ारा या उनके िवरु वाद
1. न्यािसय , आिद म िनिहत सम्पि से सम्पृक्त वाद म िहतािधकािरय का पर्ितिनिधत्व—िकसी न्यासी, िनष्पादक या
पर्शासक म िनिहत सम्पि से सम्पृक्त ऐसे सभी वाद म िजनम िक ऐसी सम्पि म फायदा पाने वाले के रूप म िहतब व्यिक्तय के
और िकसी पर-व्यिक्त के बीच पर्ितिवरोध है, न्यासी, िनष्पादक या पर्शासक इस पर्कार िहतब व्यिक्तय का पर्ितिनिधत्व करे गा और
उन्ह वाद म पक्षकार बनाना, मामूली तौर से आवश्यक नह होगा, िकन्तु यिद न्यायालय ठीक समझे तो वह आदेश दे सके गा िक उन्ह या
उनम से िकसी को पक्षकार बनाया जाए ।
2. न्यािसय , िनष्पादक और पर्शासक का संयोजन—जहां कोई न्यासी, िनष्पादक या पर्शासक हो वहां ऐसे वाद म जो उनम
से एक या अिधक के िवरु ह , वे सभी पक्षकार बनाए जाएंगे :
परन्तु िजन्ह ने अपने वसीयतकतार् की िवल को सािबत नह िकया है, ऐसे िनष्पादक को और 2 [भारत] से बाहर के न्यािसय ,
िनष्पादक और पर्शासक को पक्षकार बनाना आवश्यक नह होगा ।
3. िववािहता िनष्पािदका का पित संयोिजत नह होगा—जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे िववािहता न्यासी,
पर्शािसका या िनष्पािदका का पित होने के नाते ही ऐसे वाद म पक्षकार न होगा जो उस स्तर्ी ारा या उसके िवरु लाया गया हो ।
आदेश 32
अवयस्क और िवकृ तिच व्यिक्तय ारा या उनके िवरु वाद
1. अवयस्क वाद-िमतर् ारा वाद लाएगा—अवयस्क ारा हर वाद उसके नाम म ऐसे व्यिक्त ारा संिस्थत िकया जाएगा जो
ऐसे वाद म अवयस्क का वाद-िमतर् कहलाएगा ।
[स्पष्टीकरण—इस आदेश म “अवयस्क” से वह व्यिक्त िजसने भारतीय अवयस्कता अिधिनयम, 1875 (1875 का 9) की
3
धारा 3 के अथर् म अपनी वयस्कता पर्ाप्त नह की है, अिभपर्ेत है जहां वाद उस अिधिनयम की धारा 2 के खण्ड (क) और खण्ड (ख) म
विणत िवषय म से िकसी िवषय या िकसी अन्य िवषय के सम्बन्ध म है ।]
2. जहां वाद-िमतर् के िबना वाद संिस्थत िकया जाए वहां वादपतर् फाइल से िनकाल िदया जाएगा—(1) जहां अवयस्क ारा
या उसकी ओर से वाद, वाद-िमतर् के िबना संिस्थत िकया जाता है वहां पर्ितवादी यह आवेदन कर सके गा िक वादपतर् फाइल से िनकाल
िदया जाए और खच उस प्लीडर या अन्य व्यिक्त ारा िदए जाएं िजसने उसे उपिस्थत िकया था ।
(2) ऐसे आवेदन की सूचना ऐसे व्यिक्त को दी जाएगी और उसके आक्षेप (यिद कोई ह ) सुनने के पश्चात् न्यायालय उस
िवषय म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
[10क. वाद-िमतर् ारा पर्ितभूित का तब िदया जाना जब इस पर्कार आिदष्ट िकया जाए—(1) जहां अवयस्क की ओर से
3
उसके वाद-िमतर् ारा वाद संिस्थत िकया जाता है वहां न्यायालय वाद के िकसी भी पर्कर्म म या तो स्वपर्ेरणा से या िकसी पर्ितवादी के
आवेदन पर और ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे, वाद-िमतर् को यह आदेश दे सके गा िक वह पर्ितवादी ारा उपगत या उपगत
िकए जाने संभा सभी खच के संदाय के िलए पर्ितभूित दे ।
(2) जहां िनधर्न व्यिक्त ारा ऐसा वाद संिस्थत िकया जाता है वहां पर्ितभूित के अन्तगर्त सरकार को संदय
े न्यायालय फीस
भी होगी ।
(3) जहां न्यायालय इस िनयम के अधीन पर्ितभूित देने का िनदेश देते हुए आदेश करता है वहां आदेश 25 के िनयम 2 के
उपबन्ध वाद को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।]
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 78 ारा (1-2-1977 से) िनयम 10 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) अंतःस्थािपत ।
161
3. अवयस्क पर्ितवादी के िलए न्यायालय ारा वादाथर् संरक्षक की िनयुिक्त—(1) जहां पर्ितवादी अवयस्क है वहां न्यायालय
उसकी अवयस्कता के तथ्य के बारे म अपना समाधान हो जाने पर उिचत व्यिक्त को ऐसे अवयस्क के िलए वादाथर् संरक्षक िनयुक्त
करे गा ।
(2) वादाथर् संरक्षक की िनयुिक्त के िलए आदेश अवयस्क के नाम म और उसकी ओर से या वादी ारा िकए गए आवेदन पर
अिभपर्ाप्त िकया जा सके गा ।
(3) ऐसा आवेदन इस तथ्य को सत्यािपत करने वाले शपथपतर् ारा समिथत होगा िक िहत अवयस्क का है उस िहत के
पर्ितकू ल कोई िहत पर्स्थािपत संरक्षक का नह है और वह ऐसे िनयुक्त िकए जाने के िलए ठीक व्यिक्त है ।
(4) कोई भी आदेश इस िनयम के अधीन िकए गए आवेदन पर तब के िसवाय नह िकया जाएगा जब िक 1 *** अवयस्क के
िकसी ऐसे संरक्षक को जो ऐसे पर्ािधकारी ारा िनयुक्त या घोिषत िकया गया है जो इस िनिम सक्षम है या जहां ऐसा संरक्षक नह है
वहां 2 [अवयस्क के िपता को या जहां िपता नह है वहां माता को या जहां िपता या माता नह है वहां अन्य नैसिगक संरक्षक को] या
जहां 2[िपता, माता या अन्य नैसिगक संरक्षक नह ] है वहां उस व्यिक्त को िजसकी देख-रे ख म अवयस्क है, 2[सूचना दी गई है] और िजस
िकसी व्यिक्त पर इस उपिनयम के अधीन सूचना की तामील की गई है, उस व्यिक्त की ओर से िकया गया कोई भी आक्षेप सुन िलया
गया है ।
3
[(4क) यिद न्यायालय िकसी मामले म ठीक समझे तो वह अवयस्क को भी उपिनयम (4) के अधीन सूचना दे सके गा ।]
[(5) जो व्यिक्त अवयस्क के िलए वादाथर् संरक्षक उपिनयम (1) के अधीन िनयुक्त िकया गया है, यिद उसकी िनयुिक्त का
4
पयर्वसान िनवृि , हटाए जाने या मृत्यु के कारण न हो गया हो तो, वह उस वाद म उद्भूत होने वाली सभी कायर्वािहय के पूरे दौरान
म िजनके अन्तगर्त अपील न्यायालय या पुनरीक्षण न्यायालय म की गई कायर्वािहयां और िडकर्ी के िनष्पादन की कायर्वािहयां आती ह
उसी हैिसयत म बना रहेगा ।]
[3क. अवयस्क के िवरु िडकर्ी का तब तक अपास्त न िकया जाना जब तक िक उसके िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव न पड़ा
3
हो—(1) अवयस्क के िवरु पािरत कोई िडकर्ी के वल इस आधार पर अपास्त नह िक जाएगी िक अवस्यक के वाद के िलए वाद-िमतर् या
संरक्षण वाद की िवषयवस्तु म अवयस्क के िहत के पर्ितकू ल कोई िहत रखता है, िकन्तु यह तथ्य िक वाद के िलए वाद-िमतर् या संरक्षक के
ऐसे पर्ितकू ल िहत के कारण अवयस्क के िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव पड़ा है, िडकर्ी अपास्त करने के िलए आधार होगा ।
(2) इस िनयम की कोई बात अवयस्क को, वाद के िलए वाद-िमतर् या संरक्षक की ओर से ऐसे अवचार या घोर उपेक्षा के
कारण िजसके पिरणामस्वरूप अवयस्क के िहत पर पर्ितकू ल पर्भाव पड़ा है, िविध के अधीन उपलभ्य कोई अनुतोष अिभपर्ाप्त करने से
पर्वािरत नह करे गी ।]
4. कौन वाद-िमतर् की हैिसयत म कायर् कर सके गा या वादाथर् संरक्षक िनयुक्त िकया जा सके गा—(1) जो व्यिक्त स्वस्थिच है
और वयस्क है वह अवयस्क के वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक की हैिसयत म कायर् कर सके गाः
परन्तु यह तब जब िक ऐसे व्यिक्त का िहत अवयस्क के िहत के पर्ितकू ल न हो और वाद-िमतर् की दशा म वह पर्ितवादी न हो
या वादाथर् संरक्षक की दशा म वह वादी न हो ।
(2) जहां अवयस्क का ऐसा संरक्षक है जो सक्षम पर्ािधकारी ारा िनयुक्त या घोिषत िकया गया है वहां जब तक िक न्यायालय
का उन कारण से, जो लेखब िकए जाएंग,े वह िवचार न हो िक अवयस्क का इसम कल्याण है िक दूसरे व्यिक्त को उसके वाद-िमतर् की
हैिसयत म कायर् करने के िलए अनुज्ञात िकया जाए या उसको वादाथर् संरक्षक िनयुक्त िकया जाए, ऐसे संरक्षक से िभन्न कोई व्यिक्त,
यथािस्थित, न तो इस पर्कार कायर् करे गा और न इस पर्कार िनयुक्त िकया जएगा ।
(3) कोई भी व्यिक्त अपनी 3[िलिखत] सहमित के िबना वादाथर् संरक्षक िनयुक्त नह िकया जाएगा ।
(4) जहां वादाथर् संरक्षक की हैिसयत म कायर् करने के िलए कोई भी अन्य व्यिक्त योग्य और रजामन्द नह है वहां न्यायालय
अपने अिधकािरय म से िकसी को ऐसा संरक्षक होने के िलए िनयुक्त कर सके गा और िनदेश दे सके गा िक ऐसे संरक्षक की हैिसयत म
अपने कतर्व्य के पालन म ऐसे अिधकारी ारा उपगत खच या तो वाद के पक्षकार ारा या पक्षकार म से िकसी एक या अिधक के
ारा न्यायालय म की िकसी ऐसी िनिध म से िजसम अवयस्क िहतब है 3[या अवयस्क की सम्पि म से], िदए जाएंगे और ऐसे खच के
पर्ितसंदाय या उनके अनुज्ञात िकए जाने के िलए ऐसे िनदेश दे सके गा जो न्याय और मामले की पिरिस्थितय से अपेिक्षत ह ।
5. वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक ारा अवयस्क का पर्ितिनिधत्व(1) अवयस्क की ओर से हर ऐसा आवेदन जो िनयम 10 के
उपिनयम (2) के अधीन आवेदन से िभन्न है, उसके वाद-िमतर् या उसके वादाथर् संरक्षक ारा िकया जाएगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) “अवयस्क को और” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) अन्तःस्थािपत ।
4
1937 के अिधिनयम सं० 16 की धारा 2 ारा अन्तःस्थािपत ।
162
(2) जहां अवयस्क का पर्ितिनिधत्व, यथािस्थित, वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक ारा नह हुआ है वहां हर आदेश जो न्यायालय
के समक्ष के वाद म या आवेदन पर िकया गया है और िजससे ऐसा अवयस्क िकसी पर्कार सम्बिन्धत है या िजसके ारा उस पर िकसी
पर्कार पर्भाव पड़ता है, अपास्त िकया जा सके गा और उस दशा म खच सिहत अपास्त िकया जा सके गा िजसम उस पक्षकार का िजसकी
पर्ेरणा पर ऐसा आदेश अिभपर्ाप्त िकया गया था, प्लीडर ऐसी अवयस्कता के तथ्य को जानता था या युिक्तयुक्त रूप से जान सकता था,
जो खचार् उस प्लीडर ारा िकया जाएगा ।
6. अवयस्क की ओर से वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक को िडकर्ी के अधीन सम्पि की पर्ािप्त(1) वाद-िमतर् या वादाथर्
संरक्षक न्यायालय की इजाजत के िबना न तो
(क) िडकर्ी या आदेश के पूवर् समझौते के तौर पर, और न
(ख) अवयस्क के पक्ष म िडकर्ी या आदेश के अधीन,
िकसी भी धन या अन्य जंगम सम्पि को अवयस्क की ओर से पर्ाप्त करे गा ।
(2) जहां वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक अवयस्क की सम्पि का संरक्षक होने के िलए समक्ष पर्ािधकारी ारा िनयुक्त या
घोिषत नह िकया गया है या ऐसे िनयुक्त या घोिषत िकए जाने पर धन या अन्य जंगम सम्पि को पर्ाप्त करने के िलए ऐसी िकसी
िनय ग्यता के अधीन है जो न्यायालय को ज्ञात है वहां, यिद न्यायालय सम्पि पर्ाप्त करने के िलए उसे इजाजत देता है तो, वह ऐसी
पर्ितभूित अपेिक्षत करे गा और ऐसे िनदेश देगा िजनसे न्यायालय की राय म सम्पि की दुव्यर्य से पयार्प्त रूप से संरक्षा होगी और उसका
उिचत उपयोजन सुिनिश्चत होगा :
1 [परन्तु
न्यायालय वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक को िडकर्ी या आदेश के अधीन धन या अन्य जंगम सम्पि पर्ाप्त करने की
इजाजत देते समय ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंग,े ऐसी पर्ितभूित देने से उस दशा म अिभमुक्त कर सके गा िजसम ऐसा वाद-
िमतर् या संरक्षक
(क) िहन्दू अिवभक्त कु टु म्ब का कतार् है और िडकर्ी या आदेश कु टु म्ब की सम्पि या कारबार के सम्बन्ध
म है ; अथवा
(ख) अवयस्क का माता या िपता है ।]
7. वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक ारा करार या समझौता(1) कोई भी वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक अवयस्क की ओर से
कोई करार या समझौता उस वाद के बारे म िजसम वाद-िमतर् या संरक्षक की हैिसयत म वह कायर् करता है, न्यायालय की इजाजत के
िबना नह करे गा जो इजाजत कायर्वािहय म स्पष्ट रूप से अिभिलिखत की जाएगी ।
[(1क) उपिनयम (1) के अधीन इजाजत के िलए आवेदन के साथ, यथािस्थित, वाद-िमतर् या वादाथर् संरक्षक का शपथपतर्
1
होगा और यिद अवयस्क का पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा िकया जाता है तो, प्लीडर का इस आशय का पर्माणपतर् भी होगा िक पर्स्थािपत
करार या समझौता उसकी राय म अवयस्क के फायदे के िलए है :
परन्तु शपथपतर् म या पर्माणपतर् म इस पर्कार अिभव्यक्त की गई राय, न्यायालय को यह जांच करने से पर्वािरत नह करे गी
िक क्या पर्स्थािपत करार या समझौता अवयस्क के फायदे के िलए है ।]
(2) न्यायालय की इस पर्कार अिभिलिखत इजाजत के िबना िकया गया कोई भी करार या समझौता अवयस्क से िभन्न सभी
पक्षकार के िवरु शून्यकरणीय होगा ।
8. वाद-िमतर् की िनवृि (1) जब तक िक न्यायालय ारा अन्यथा आिदष्ट न िकया जाए वाद-िमतर् अपने स्थान म रखे जाने
वाले योग्य व्यिक्त को पहले उपाप्त िकए िबना, और उपगत खच के िलए पर्ितभूित िदए िबना िनवृ नह होगा ।
(2) नए वाद-िमतर् की िनयुिक्त के िलए आवेदन यह दिशत करने वाले शपथपतर् ारा समिथत होगा िक पर्स्थािपत व्यिक्त
ठीक है और और अवयस्क के िहत के पर्ितकू ल उसका कोई िहत नह है ।
9. वाद-िमतर् का हटाया जाना(1) जहां अवयस्क के वाद-िमतर् का िहत अवयस्क के िहत के पर्ितकू ल है या जहां उस
पर्ितवादी से िजसका िहत अवयस्क के िहत के पर्ितकू ल है, उसकी ऐसी संसिक्त है िजससे यह असंभाव्य हो जाता है िक अवयस्क के िहत
की संरक्षा वह उिचत रूप से करे गा या जहां वह अपना कतर्व्य नह करता है या वाद के लिम्बत रहने के दौरान 2 [भारत] के भीतर
िनवास करना छोड़ देता है वहां या िकसी भी अन्य पयार्प्त कारण से उसके हटाए जाने के िलए आवेदन अवयस्क की ओर से या िकसी
पर्ितवादी ारा िकया जा सके गा और यिद समनुिदष्ट हेतुक की पयार्प्तता के बारे म न्यायालय का समाधान हो जाता है तो, वह वाद-
िमतर् के तद्नुसार हटाए जाने के िलए आदेश कर सके गा और खच के सम्बन्ध म ऐसा अन्य आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
(2) जहां वाद िमतर् इस िनिम सक्षम पर्िधकारी ारा िनयुक्त या घोिषत संरक्षक नह है और ऐसे िनयुक्त या घोिषत संरक्षक
ारा जो यह वांछा करता है िक वह वाद-िमतर् के स्थान म िनयुक्त िकया जाए, आवेदन िकया जाता है वहां जब तक िक न्यायालय का
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
163
उन कारण से जो उसके ारा लेखब िकए जाएंगे, यह िवचार न हो िक संरक्षक को अवयस्क का वाद-िमतर् िनयुक्त नह िकया जाना
चािहए, वह वाद-िमतर् को हटा देगा और तब वाद-िमतर् होने के िलए उसके स्थान म आवेदक की िनयुिक्त वाद म पहले उपगत खच के
सम्बन्ध म ऐसे िनबन्धन पर करे गा जो वह ठीक समझे ।
10. वाद-िमतर् के हटाए जाने, आिद पर कायर्वािहय का रोका जाना(1) अवयस्क के वाद-िमतर् की िनवृि , हटाए जाने या
मृत्यु पर आगे की कायर्वािहयां तब तक रोक रखी जाएंगी जब तक उसके स्थान म वाद-िमतर् की िनयुिक्त न हो जाए ।
(2) जहां ऐसे अवयस्क का प्लीडर नए वाद-िमतर् के िनयुक्त िकए जाने के िलए युिक्तयुक्त समय के भीतर कायर्वाही करने का
लोप करता हे वहां उस अवयस्क म या िववादगर्स्त बात म िहत रखने वाला कोई भी व्यिक्त न्यायालय से आवेदन कर सके गा िक वाद-
िमतर् िनयुक्त िकया जाए और न्यायालय ऐसे व्यिक्त की िनयुिक्त कर सके गा िजसे वह ठीक समझे ।
11. वादाथर् संरक्षक की िनवृि , हटाया जाना या मृत्यु(1) जहां वादाथर् संरक्षक िनवृ होने की वांछा करता है, या अपना
कतर्व्य नह करता या जहां अन्य पयार्प्त आधार िदखाया जाता है वहां न्यायालय ऐसे संरक्षक को िनवृ होने के िलए अनुज्ञा दे सके गा
या उसे हटा सके गा और खच के सम्बन्ध म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
(2) जहां वादाथर् संरक्षक वाद के लिम्बत रहने के दौरान िनवृ हो जाता है, उसकी मृत्यु हो जाती है या वह न्यायालय ारा
हटा िदया जाता है वहां न्यायालय उसके स्थान म नया संरक्षक िनयुक्त करे गा ।
12. अवयस्क वादी या आवेदक ारा वयस्क होने पर अनुसरण की जाने वाली चयार्(1) अवयस्क वादी या वह अवयस्क जो
वाद म पक्षकार तो नह है िकन्तु िजसकी ओर से आवेदन लिम्बत है, वयस्क होने पर यह िनवार्िचत करे गा िक वह वाद या आवेदन आगे
चलाएगा या नह ।
(2) जहां वह वाद या आवेदन आगे चलाने का िनवार्चन करता है वहां वह वाद-िमतर् के उन्मोचन के आदेश के िलए और स्वयं
अपने नाम से आगे कायर्वाही चलाने की इजाजत के िलए आवेदन करे गा ।
(3) ऐसी दशा म उस वाद या आवेदन का शीषर्क इस भांित शु िकया जाएगा िक उसका रूप तत्पश्चात् िनम्न पर्कार
का हो जाए
“क ख, भूतपूवर् अवयस्क अपने वाद-िमतर् ग घ, ारा, िकन्तु जो अब वयस्क है ।”
(4) जहां वह वाद या आवेदन का पिरत्याग करने का िनवार्चन करता है वहां, यिद वह एकमातर् वादी या एकमातर् आवेदक है
तो, वह इस आदेश के िलए आवेदन करे गा िक जो खचार् पर्ितवादी या िवरोधी पक्षकार ारा उपगत िकया गया है या जो उसके वाद-िमतर्
ारा िदया गया है, उस खचर् के पर्ितसंदाय पर वाद या आवेदन खािरज कर िदया जाए ।
(5) इस िनयम के अधीन कोई आवेदन एकपक्षीय िकया जा सके गा, िकन्तु वाद-िमतर् को उन्मोिचत करने वाला और अवयस्क
वादी को स्वयं अपने नाम से आगे कायर्वाही करने के िलए अनुज्ञा देने वाला कोई भी आवेदन वाद-िमतर् को सूचना िदए िबना नह िकया
जाएगा ।
13. जहां अवयस्क सहवादी, वयस्क होने पर वाद का िनराकरण करने की वांछा करता है(1) जहां अवयस्क सहवादी,
वयस्क होने पर वाद का िनराकरण करने की वांछा करता है वहां वह यह आवेदन करे गा िक सहवादी की हैिसयत से उसका नाम काट
िदया जाए और यिद न्यायालय का यह िनष्कषर् हो िक वह आवश्यक पक्षकार नह है तो न्यायालय खच के सम्बन्ध म या अन्यथा ऐसे
िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे, उसे वाद से खािरज कर देगा ।
(2) आवेदन की सूचना की तामील वाद-िमतर् पर, िकसी सहवादी पर और पर्ितवादी पर की जाएगी ।
(3) ऐसे आवेदन के सभी पक्षकार के और वाद म िक तब तक की गई सभी या िकन्ह कायर्वािहय के खच ऐसे व्यिक्तय ारा
िदए जाएंगे िजन्ह न्यायालय िनिदष्ट करे ।
(4) जहां आवेदक वाद का आवश्यक पक्षकार है वहां न्यायालय उसे पर्ितवादी बनाए जाने का िनदेश दे सके गा ।
14. अयुिक्तयुक्त या अनुिचत वाद(1) यिद अवयस्क एक-मातर् वादी है तो वह वयस्क होने पर आवेदन कर सके गा िक
उसके नाम म उसके वाद-िमतर् ारा संिस्थत वाद इस आधार पर खािरज कर िदया जाए िक वह अयुिक्तयुक्त या अनुिचत था ।
(2) इस आवेदन की सूचना की तामील संब सभी पक्षकार पर की जाएगी और ऐसी अयुिक्तयुक्तता या अनौिचत्य के बारे
म अपना समाधान हो जाने पर न्यायालय आवेदन को मंजूर कर सके गा और आवेदन के सम्बन्ध म सभी पक्षकार के खच का और वाद
म की गई िकसी बात म हुए खच को देने के िलए आदेश वाद-िमतर् को दे सके गा या ऐसा अन्य आदेश दे सके गा जो वह ठीक समझे ।
िनयम 1 से िनयम 14 तक का (िजनम िनयम 2क सिम्मिलत नह है) िवकृ तिच वाले व्यिक्तय को लागू होना
1 [15.
िनयम 1 से िनयम 14 तक (िजनम िनयम 2क सिम्मिलत नह है) ऐसे व्यिक्तय को, जहां तक हो सके , लागू ह गे जो वाद के लिम्बत
रहने के पूवर् या उसके दौरान िवकृ तिच के न्यायिनण त िकए जाते ह और ऐसे व्यिक्तय को भी लागू ह गे जो य िप ऐसे न्यायिनण त
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) िनयम 15 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
164
नह िकए जाते ह, िकन्तु जब वे वाद लाते ह या उनके िवरु वाद लाया जाता है तब वे न्यायालय ारा जांच िकए जाने पर िकसी
मानिसक दौबर्ल्य के कारण अपने िहत की संरक्षा करने म असमथर् पाए जाते ह ।]
व्यावृि यां(1) इस आदेश की कोई बात िवदेशी राज्य के ऐसे शासक को लागू नह होगी जो अपने राज्य के नाम से
1 [16.
वाद लाता है या िजसके िवरु उसके राज्य के नाम से वाद लाया जाता है या के न्दर्ीय सरकार के िनदेश से िजसके िवरु अिभकतार् के
नाम से या िकसी अन्य नाम से वाद लाया जाता है ।
(2) इस आदेश की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह अवयस्क ारा या उनके िवरु अथवा पागल या
िवकृ तिच वाले अन्य व्यिक्तय ारा या उनके िवरु वाद के सम्बन्ध म िकसी तत्समय पर्वृ स्थानीय िविध के उपबन्ध पर पर्भाव
डालती है या िकसी रूप म उन्ह अल्पीकृ त करती है ।]
2
[आदेश 32क
कु टु म्ब से संबध
ं रखने वाले िवषय से सम्बिन्धत वाद
1. आदेश का लागू होना(1) इस आदेश के उपबन्ध कु टु म्ब से सम्बन्ध रखने वाले िवषय से सम्बिन्धत वाद या कायर्वािहय
को लागू ह गे ।
(2) िविशष्टतया और उपिनयम (1) के उपबन्ध की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, इस आदेश के उपबन्ध कु टु म्ब से
सम्बिन्धत िनम्निलिखत वाद या कायर्वािहय को लागू ह गे, अथार्त् :
(क) िववाह-िवषयक अनुतोष के िलए कोई वाद या कायर्वाही िजसके अन्तगर्त िकसी व्यिक्त के िववाह की या
िववाह-िवषयक पर्ािस्थित की िविधमान्यता के बारे म घोषणा के िलए वाद या कायर्वाही भी है ;
(ख) िकसी व्यिक्त के धमर्जत्व के बारे म घोषणा के िलए वाद या कायर्वाही ;
(ग) िकसी व्यिक्त की संरक्षता या कु टु म्ब के िकसी अवयस्क या अन्य िन:शक्त सदस्य की अिभरक्षा के बारे म कोई
वाद या कायर्वाही ;
(घ) भरणपोषण के िलए कोई वाद या कायर्वाही ;
(ङ) द कगर्हण की िविधमान्यता या पर्भाव के बारे म कोई वाद या कायर्वाही ;
(च) िवल, िनवर्सीयतता और उ रािधकार के बारे म कु टुम्ब के िकसी सदस्य ारा संिस्थत िकया गया कोई
वाद या कायर्वाही ;
(छ) िकसी ऐसे अन्य िवषय के बारे म कोई वाद या कायर्वाही िजसके सम्बन्ध म पक्षकार अपनी स्वीय िविध के
अधीन है ।
(3) इस आदेश का उतना भाग िजतना िकसी ऐसे वाद या कायर्वाही से सम्बन्ध रखने वाली िकसी िवशेष िविध ारा
उपबिन्धत िवषय के सम्बन्ध म है, उस वाद या कायर्वाही को लागू नह होगा ।
2. कायर्वािहय का बन्द कमरे म िकया जानाऐसे पर्त्येक वाद या कायर्वाही म िजसे यह आदेश लागू होता है, यिद
न्यायालय ऐसी वांछा करे तो, कायर्वािहयां बन्द कमरे म की जा सकगी और यिद दोन पक्षकार म से कोई ऐसी वांछा करे तो
कायर्वािहयां बन्द कमरे म की जाएंगी ।
3. िनपटारे के िलए पर्यत्न करने का न्यायालय का कतर्व्य(1) ऐसे पर्त्येक वाद या कायर्वाही म िजसे यह आदेश लागू होता
है, न्यायालय वाद की िवषय-वस्तु के बारे म िनपटारा कराने म पक्षकार की सहायता करने के िलए हर मामले म जहां ऐसा करना
मामले म पर्कृ ित और पिरिस्थितय से सुसंगत संभव हो, पर्थमत: पर्यास करे गा ।
(2) यिद ऐसे िकसी वाद या कायर्वाही के िकसी पर्कर्म म न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक पक्षकार के बीच िनपटारे की
युिक्तयुक्त संभावना है तो न्यायालय कायर्वाही को ऐसी अविध के िलए, जो वह ठीक समझे, स्थिगत कर सके गा िक ऐसा िनपटारा
करने के िलए पर्यत्न िकए जा सक ।
(3) उपिनयम (2) ारा पर्द शिक्त, कायर्वािहयां स्थिगत करने की न्यायालय की िकसी अन्य शिक्त के अितिरक्त होगी, न
िक उसके अल्पीकरण म ।
4. कल्याण िवशेषज्ञ से सहायताऐसे पर्त्येक वाद या कायर्वाही म िजसे यह आदेश लागू होता है न्यायालय को इस आदेश के
िनयम 3 ारा अिधरोिपत कृ त्य के िनवर्हन म न्यायालय की सहायता के पर्योजन के िलए ऐसे व्यिक्त की सेवाएं (िवशेषकर मिहला की
सेवा, यिद उपलभ्य हो) चाहे वह पक्षकार का नातेदार हो या न हो, इसके अन्तगर्त कु टु म्ब के कल्याण की पर्ोन्नित म वृि क तौर पर
लगा हुआ व्यिक्त भी है िजसे न्यायालय ठीक समझे, पर्ाप्त करने की स्वतंतर्ता होगी ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 79 ारा (1-2-1977 से) िनयम 15 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 80 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
165
5. तथ्य की जांच करने का कतर्व्यऐसे पर्त्येक वाद या कायर्वाही म िजसे यह आदेश लागू होता है, न्यायालय का यह कतर्व्य
होगा िक वह वादी ारा अिभकिथत तथ्य की और पर्ितवादी ारा अिभकिथत िकन्ह तथ्य की जांच वहां तक करे जहां तक िक वह
युिक्तयुक्त रूप से कर सकता है ।
6. “कु टु म्ब” का अथर्इस आदेश के पर्योजन के िलए िनम्निलिखत व्यिक्तय म से पर्त्येक के बारे म यह समझा जाएगा िक
उससे िमलकर कु टु म्ब बनता है, अथार्त् :
(क) (i) एक साथ रहने वाले पुरुष और उसकी पत्नी ;
(ii) कोई बालक जो उनकी या ऐसे पुरुष की या ऐसी पत्नी की संतान हो या ह ;
(iii) कोई बालक िजसका या िजनका भरणपोषण ऐसे पुरुष और पत्नी ारा िकया जाता है ;
(ख) ऐसा पुरुष, िजसकी पत्नी न हो या जो अपनी पत्नी के साथ न रहता हो, कोई बालक जो उसकी संतान हो या
ह और कोई बालक िजसका भरणपोषण उसके ारा िकया जाता है ;
(ग) ऐसी स्तर्ी, िजसका पित न हो या जो अपने पित के साथ न रहती हो, कोई बालक, जो उसकी संतान हो या ह
और कोई बालक िजसका भरणपोषण उसके ारा िकया जाता है ;
(घ) कोई पुरुष या स्तर्ी और उस पुरुष या स्तर्ी का भाई, बिहन, पूवर्ज या पारम्पिरक वंशज जो उसके साथ
रहता हो ; और
(ङ) इस िनयम के खण्ड (क), खण्ड (ख), खण्ड (ग) या खण्ड (घ) म िविनिदष्ट वग म से एक या अिधक का कोई
समुच्चय ।
स्पष्टीकरणशंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक िनयम 6 के उपबन्ध से िकसी स्वीय िविध म या
तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म “कु टु म्ब” की धारणा पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।]
आदेश 33
1
[िनधर्न व्यिक्तय ारा वाद]
1. िनधर्न व्यिक्त ारा वाद संिस्थत िकए जा सकगेिनम्निलिखत उपबन्ध के अधीन रहते हुए कोई भी
वाद 2 [िनधर्न व्यिक्तय ] ारा संिस्थत िकया जा सके गा ।
3 [स्पष्टीकरण 1कोई व्यिक्त िनधर्न व्यिक्त तब है
(क) जब उसके पास इतना पयार्प्त साधन (िडकर्ी के िनष्पादन म कु क से छू ट पर्ाप्त संपि से और वाद की
िवषय-वस्तु से िभन्न) नह है िक वह ऐसे वाद म वाद-पतर् के िलए िविध ारा िविहत फीस दे सके ; अथवा
(ख) जहां ऐसी कोई फीस िविहत नह है वहां, तब वह एक हजार रुपए के मूल्य की ऐसी सम्पि का, जो िडकर्ी के
िनष्पादन म कु क से छू ट पर्ाप्त सम्पि से और वाद की िवषय-वस्तु से िभन्न है, हकदार नह है ।
स्पष्टीकरण 2इस पर्श्न पर िवचार करने म िक आवेदक िनधर्न व्यिक्त है या नह , िकसी ऐसी सम्पि को ध्यान म रखा
जाएगा िजसको उसने िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद चलाने की अनुज्ञा के िलए अपना आवेदन पर्स्तुत करने के पश्चात् और आवेदन का
िविनश्चय होने के पूवर् अिजत िकया है ।
स्पष्टीकरण 3जहां वादी पर्ितिनिध की हैिसयत म वाद लाता है वहां इस पर्श्न का अवधारण िक वह िनधर्न व्यिक्त है, उन
साधन के पर्ित िनदश से िकया जाएगा जो ऐसी हैिसयत म उसके पास ह ।]
[1क. िनधर्न व्यिक्तय के साधन की जांचइस पर्श्न की हर जांच िक कोई व्यिक्त िनधर्न व्यिक्त है या नह जब तक िक
4
न्यायालय अन्यथा िनदेश न दे तब तक, पर्थम बार म न्यायालय के मुख्य िलिपक वग य अिधकारी ारा की जाएगी और न्यायालय ऐसे
अिधकारी की िरपोटर् को अपने िनष्कषर् के रूप म मान सके गा या न्यायालय उस पर्श्न की जांच स्वयं कर सके गा ।]
2. आवेदन की िवषयवस्तु2[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के हर आवेदन म वाद म के वाद-पतर् के सम्बन्ध
म अपेिक्षत िविशिष्टयां अन्तिवष्ट ह गी, आवेदन की जंगम या स्थावर सम्पि की अनुसच ू ी उस सम्पि के पर्ाक्किलत मूल्य के सिहत
उससे उपाब होगी, और वह उस रीित से हस्ताक्षिरत और सत्यािपत होगा जो अिभवचन के हस्ताक्षरण और सत्यापन के िलए
िविहत ह ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन ारा वाद” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
166
3. आवेदन का उपस्थापनइन िनयम के िकसी बात के होते हुए भी, आवेदन स्वयं आवेदक ारा न्यायालय म उपस्थािपत
िकया जाएगा िकन्तु यिद न्यायालय म उपसंजात होने से उसे छू ट दे दी गई हो तो आवेदन ऐसे पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा उपस्थािपत
िकया जा सके गा, जो आवेदन से सम्बिन्धत सभी सारवान् पर्श्न का उ र दे सकता हो और िजसकी उसी रीित से परीक्षा की जा सके गी
जैसे उस पक्षकार की जाती िजसका पर्ितिनिधत्व वह कर रहा है, यिद वह पक्षकार स्वयं उपसंजात हुआ होता :
1 [परन्तु जहां एक से अिधक वादी ह वहां, यिद आवेदन उन वािदय म से िकसी एक ारा उपस्थािपत िकया जाता है तो, यह
पयार्प्त होगा ।]
4. आवेदक की परीक्षा(1) जहां आवेदन उिचत पर्रूप म है और सम्यक् रूप से उपस्थािपत िकया गया है वहां यिद न्यायालय
ठीक समझे तो वह आवेदक की या जब आवेदक अिभकतार् ारा उपसंजात होने के िलए अनुज्ञात है तब उसके ऐसे अिभकतार् की परीक्षा
दावे के गुणागुण और आवेदक की सम्पि के बारे म कर सके गा ।
(2) यिद आवेदन अिभकतार् ारा उपस्थािपत िकया जाता है तो न्यायालय आदेश दे सके गा िक आवेदक की परीक्षा कमीशन
ारा की जाएजहां आवेदन अिभकतार् ारा उपस्थािपत िकया जाता है वहां यिद न्यायालय ठीक समझे तो वह आदेश दे सके गा िक
आवेदक की परीक्षा कमीशन ारा उस रीित से की जाए जैसे अनुपिस्थत साक्षी की, की जा सकती है ।
5. आवेदन का नामंजरू िकया जाना 2 [िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए आवेदन न्यायालय वहां
नामंजूर कर देगा
(क) जहां िनयम 2 और िनयम 3 म िविहत रीित से उसकी िवरचना नह की गई है और वह उपस्थािपत नह िकया
गया है, अथवा
(ख) जहां आवेदक 2[िनधर्न व्यिक्त] नह है, अथवा
(ग) जहां उसने आवेदन उपस्थािपत करने के ठीक पहले वाले दो मास के भीतर कपटपूवर्क या इसिलए िक
वह 2[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए आवेदन कर सके , िकसी संपि का व्ययन कर िदया है :
[परन्तु यिद आवेदक ारा व्ययिनत संपि के मूल्य को िहसाब म लेने पर भी आवेदक िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद
1
पेश िकए गए सािक्षय की (यिद कोई ह ) परीक्षा करे गा और आवेदक या उसके अिभकतार् की परीक्षा कर सके गा और 4 [उनके सा य का
पूणर् अिभलेख तैयार करे गा] ।
[(1क) उपिनयम (1) के अधीन सािक्षय की परीक्षा िनयम 5 के खण्ड (ख), खण्ड (ग) और खण्ड (ङ) म िविनिदष्ट िवषय
1
तक ही सीिमत रखी जाएगी, िकन्तु आवेदक या उसके अिभकतार् की परीक्षा िनयम 5 म िविनिदष्ट िवषय म से िकसी के संबंध म हो
सके गी ।]
(2) न्यायालय ऐसा तकर् भी सुनेगा िजसे पक्षकार इस पर्श्न पर देना चाहे िक क्या आवेदन के या ऐसे सा य के (यिद कोई हो)
जो न्यायालय ने 4[िनयम 6 के अधीन या इस िनयम के अधीन] िलया हो, देखते ही यह पर्कट है िक आवेदक िनयम 5 म िविनिदष्ट
पर्ितषेध म से िकसी के अधीन है या नह है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इस िनयम के उपबन्ध, जहां तक वे ज्ञापन तैयार करने से संबंिधत ह, अवध के उच्च न्यायालय को लागू नह ह गे, अवध कोट्सर् ऐक्ट, 1925 (1925 का सं० पर्ा०
अिधिनयम सं० 4) की धारा 16(2) देिखए ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
167
(3) तब न्यायालय आवेदक को 1 [िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने के िलए अनुज्ञात करे गा या अनुज्ञा करने से इं कार
करे गा ।
8. यिद आवेदन गर्हण कर िलया जाए तो पर्िकर्याजहां आवेदन मंजूर िकया जाता वहां वह संख्यांिकत और रिजस्टर्ीकृ त
िकया जाएगा और उस वाद म वाद-पतर् समझा जाएगा और अन्य सभी बात म वह वाद मामूली रीित से संिस्थत वाद के रूप म आगे
चलेगा, िसवाय इसके िक वादी िकसी यािचका, प्लीडर की िनयुिक्त या वाद से संसक्त अन्य कायर्वाही के संबंध म कोई न्यायालय-फीस
2 [या आदेिशका की तामील के िलए देय फीस] देने का दायी नह होगा ।
9. िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा का पर्त्याहरणपर्ितवादी या सरकारी प्लीडर के आवेदन पर, िजसकी पूरे
सात िदन की िलिखत सूचना वादी को दे दी गई हो, न्यायालय यह आदेश दे सके गा िक वादी को िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने के
िलए दी गई अनुज्ञा िनम्निलिखत दशा म पर्त्याहृत कर ली जाए, अथार्त् :
(क) यिद वादी वाद के दौरान तंग करने वाले या अनुिचत आचरण का दोषी है ;
(ख) यिद यह पर्तीत होता है िक वादी के साधन ऐसे ह िक 1[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म उसे वाद नह करते रहना
चािहए ; अथवा
(ग) यिद वादी ने वाद की िवषय-वस्तु के बारे म ऐसा कोई करार िकया है िजसके अधीन िकसी अन्य व्यिक्त ने ऐसी
िवषय-वस्तु म कोई िहत अिभपर्ाप्त कर िलया है ।
िजस िनधर्न व्यिक्त का पर्ितिनिधत्व न हो उसके िलए न्यायालय ारा प्लीडर िनयत िकया जाना(1) जहां िकसी
3 [9क.
ऐसे व्यिक्त का िजसे िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा दी गई है, पर्ितिनिधत्व प्लीडर ारा नह िकया जाता है वहां
न्यायालय उसके िलए प्लीडर तब िनयत कर सके गा जब मामले की पिरिस्थितय म ऐसा िकया जाना अपेिक्षत हो ।
(2) उच्च न्यायालय राज्य सरकार के पूवर् अनुमोदन से िनम्निलिखत का उपबन्ध करने के िलए िनयम बना सके गा, अथार्त् :
(क) उपिनयम (1) के अधीन िनयत िकए जाने वाले प्लीडर के चयन की रीित ;
(ख) न्यायालय ारा ऐसे प्लीडर को दी जाने वाली सुिवधाएं ;
(ग) कोई अन्य िवषय जो उपिनयम (1) के उपबन्ध को पर्भावी करने के िलए िनयम ारा अपेिक्षत हो या
उपबिन्धत िकया जाए ।]
10. जहां िनधर्न व्यिक्त सफल होता है वहां खचजहां वादी वाद म सफल हो जाता है, वहां न्यायालय फीस की उस रकम
की संगणना करे गा जो यिद उसे 1[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने के िलए अनुज्ञा न दी गई होती तो वादी ारा संद की जाती,
ऐसी रकम 4 [राज्य सरकार] ारा उस पक्षकार से वसूलीय होगी जो उसे संद करने के िलए िडकर्ी ारा आिदष्ट है और वह वाद की
िवषय-वस्तु पर पर्थम भार होगी ।
11. पर्िकर्या जहां िनधर्न व्यिक्त असफल हो जाता हैजहां वादी वाद म असफल हो जाता है या िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद
लाने के िलए दी गई अनुज्ञा पर्त्याहृत कर ली गई है या जहां वाद पर्त्याहृत कर िलया जाता है या इस कारण से खािरज कर िदया जाता
है िक
(क) उपसंजात होने और उ र देने के िलए पर्ितवादी के नाम समन की तामील पर्ितवादी पर इस बात के
पिरणामस्वरूप नह हो पाई िक वादी ऐसी तामील के िलए पर्भायर् न्यायालय-फीस या डाक सहसूल को (यिद कोई ह ) देने
म 3[या वाद-पतर् की या संिक्षप्त कथन की पर्ितयां उपिस्थत करने म] असफल रहा है, अथवा
(ख) जब वाद की सुनवाई के िलए पुकार हुई तब वादी उपसंजात नह हुआ, वहां न्यायालय वादी को, या वाद म
सहवादी के तौर पर जोड़े गए िकसी भी व्यिक्त को आदेश देगा िक वह ऐसी न्यायालय-फीस दे जो यिद
वादी 1[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने के िलए अनुज्ञात नह िकया गया होता तो वादी ारा दी जाती ।
5 [11क.िनधर्न व्यिक्त के वाद के उपशमन पर पर्िकर्याजहां वाद का उपशमन वादी की या सहवादी के तौर पर जोड़े गए
िकसी व्यिक्त की मृत्यु के कारण हो जाता है वहां न्यायालय आदेश देगा िक न्यायालय-फीस की वह रकम जो यिद
वादी 1[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने के िलए अनुज्ञात नह िकया गया होता तो वादी ारा दी जाती, मृत वादी की सम्पदा से
राज्य सरकार ारा वसूलीय होगी ।]
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार” के िलए रखे गए “पर्ान्तीय सरकार” के स्थान पर िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा
पर्ितस्थािपत ।
5
1942 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
168
12. राज्य सरकार न्यायालय-फीस के संदाय के िलए आवेदन कर सके गी 1 [राज्य सरकार] को यह अिधकार होगा िक वह
न्यायालय से िकसी समय िनयम 10, 2 [िनयम 11 या िनयम 11क] के अधीन न्यायालय फीस के संदाय का आदेश िकए जाने के िलए
आवेदन करे ।
13. राज्य सरकार का पक्षकार समझा जाना1[राज्य सरकार] और वाद के िकसी भी पक्षकार के बीच िनयम 10,
िनयम 11, 2[िनयम 11क] या िनयम 12 के अधीन पैदा होने वाली सभी बात वाद के पक्षकार के बीच धारा 47 के अथर् म पैदा होने वाले
पर्श्न समझी जाएंगी ।
3 [14. न्यायालय-फीस की रकम की वसूलीजहां िनयम 10, िनयम 11 या िनयम 11क के अधीन आदेश िकया जाता है वहां
न्यायालय िडकर्ी या आदेश की एक पर्ित तत्क्षण ही कलक्टर को िभजवाएगा; वसूली के िकसी अन्य ढंग पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना,
कलक्टर उसम िविनिदष्ट न्यायालय-फीस की रकम संद करने के िलए दायी व्यिक्त या सम्पि से ऐसी रकम को वैसे ही वसूल कर
सके गा मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।]
15. िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने के िलए आवेदक को अनुज्ञा देने से इं कार के कारण वैसी ही पर्कृ ित के पश्चात्वत
आवेदन का वजर्न 4 [िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने के िलए आवेदक को अनुज्ञा देने से इन्कार करने वाला आदेश, वाद लाने के
उसी अिधकार के िलए उसके ारा वैसी ही पर्कृ ित के िकसी भी पश्चात्वत आवेदन के िलए वजर्न होगा, िकन्तु उसी अिधकार के संबंध
म मामूली रीित से वाद संिस्थत करने के िलए आवेदक स्वतन्तर् होगा :
5 [परन्तु
यिद वह िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने की इजाजत के िलए अपने आवेदन का िवरोध करने म 1[राज्य सरकार]
ारा और िवरोधी पक्षकार ारा उपगत िकए गए खच का (यिद कोई ह ) वाद संिस्थत िकए जाने के समय या उसके पश्चात् ऐसे समय
के भीतर जो न्यायालय अनुज्ञात करे , संदाय नह करता है तो वाद-पतर् नामंजूर कर िदया जाएगा] ।
6
[15क. न्यायालय-फीस के संदाय के िलए समय का िदया जानािनयम 5, िनयम 7 या िनयम 15 की कोई बात न्यायालय
को िनयम 5 के अधीन आवेदन को नामंजूर या िनयम 7 के अधीन आवेदन को अनुज्ञप्त करने से इं कार करते समय इस बात से नह
रोके गी िक वह आवेदक को अपेिक्षत न्यायालय-फीस का ऐसे समय के भीतर संदाय करने के िलए समय दे, जो न्यायालय ारा िनयत
िकया जाए या समय-समय पर उसके ारा बढ़ाया जाए और ऐसा संदाय िकया जाने पर और िनयम 15 7 *** म िनिदष्ट खच का उस
समय के भीतर संदाय िकए जाने पर यह समझा जाएगा िक वाद उस तारीख को संिस्थत िकया गया था िजस तारीख को िनधर्न व्यिक्त
के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए आवेदन उपस्थािपत िकया गया था ।]
16. खच4[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए आवेदन के और िनधर्नता की जांच करने के खच वाद के
खच ह गे ।
6
[17. िनधर्न व्यिक्त ारा पर्ितवादिकसी ऐसे पर्ितवादी को जो मुजरा या पर्ितपदावे का अिभवचन करने की वांछा करता
है, िनधर्न व्यिक्त के रूप म ऐसा दावा अिभकिथत करने की अनुज्ञा दी जा सके गी और इस आदेश म अन्तिवष्ट िनयम, जहां तक हो सके ,
उसे इस पर्कार लागू ह गे, मानो वह वादी हो और उसका िलिखत कथन वादपतर् हो ।
18. िनधर्न व्यिक्तय के िलए मुफ्त िविधक सेवा की व्यवस्था करने की के न्दर्ीय सरकार की शिक्त(1) इस आदेश के
उपबन्ध के अधीन रहते हुए, के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार उन व्यिक्तय के िलए, िजन्ह िनधर्न व्यिक्तय के रूप म वाद लाने की
अनुज्ञा दी गई है, मुफ्त िविधक सेवा की व्यवस्था करने के िलए ऐसे अनुपूरक उपबन्ध बना सके गी जो वह ठीक समझे ।
(2) उच्च न्यायालय उपिनयम (1) म िनिदष्ट िनधर्न व्यिक्तय के िलए िविधक सेवा की व्यवस्था करने के िलए के न्दर्ीय
सरकार या राज्य सरकार ारा बनाए गए अनुपूरक उपबन्ध को कायार्िन्वत करने के िलए राज्य सरकार के पूवर् अनुमोदन से िनयम बना
सके गा और ऐसे िनयम के अन्तगर्त ऐसी िविधक सेवा की ऐसी पर्कृ ित तथा िवस्तार और वे शत भी ह गी िजनके अधीन ऐसी सेवाएं
उपलभ्य की जा सकगी तथा वे िवषय ह गे िजनके बारे म और वे अिभकरण भी ह गे िजनके माध्यम से, ऐसी सेवाएं की जाएंगी ।]
आदेश 34
स्थावर सम्पि के बन्धक के सम्बन्ध म वाद
1. पुरोबन्ध, िवकर्य और मोचन के वाद के पक्षकारइस संिहता के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, बन्धक पर्ितभूित म या
मोचन के अिधकार म िहतब सभी व्यिक्त िकसी भी वाद म, जो बन्धक से सम्बिन्धत ह , पक्षकार के तौर पर संयोिजत िकए जाएंगे ।
1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार” के िलए रखे गए “पर्ान्तीय सरकार” के स्थान पर िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा
पर्ितस्थािपत ।
2
1942 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा “या िनयम 11” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1942 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा िनयम 14 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 81 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
7
1988 के अिधिनयम सं० 19 की धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा लोप िकया गया ।
169
स्पष्टीकरणपूिवक बन्धकार को वाद का पक्षकार बनाए िबना पािश्चक बन्धकार पुरोबन्ध के िलए या िवकर्य के िलए वाद
ला सके गा और पािश्चक बन्धक का मोचन कराने के वाद म पूिवक बन्धकदार को संयोिजत करना आवश्यक नह है ।
[2. पुरोबन्ध वाद म पर्ारिम्भक िडकर्ी(1) पुरोबन्ध वाद म यिद वादी सफल हो जाता है तो न्यायालय ऐसी पर्ारिम्भक
1
1
1929 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 4 ारा िनयम 2 से 8 तक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
170
(3) जहां उपिनयम (1) के अनुसार संदाय नह िकया गया है वहां न्यायालय वादी ारा इस िनिम िकए गए आवेदन पर यह
िनदेश देने वाली अिन्तम िडकर्ी पािरत करे गा िक बंधक सम्पि या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य कर िदया जाए और िवकर्य के आगम
से ऐसी रीित से बरता जाए जो िनयम 4 के उपिनयम (1) म उपबिन्धत है ।
6. िवकर्य के वाद म बन्धक पर शोध्य बाकी रकम की वसूलीजहां 1 [िनयम 5] के अधीन िकए गए िकसी भी िवकर्य के शु
आगम वादी को शोध्य रकम का संदाय करने के िलए अपयार्प्त पाए जाते ह वहां, यिद बाकी रकम िवकर्ीत सम्पि के अितिरक्त
पर्ितवादी से अन्यथा वैध रूप से वसूलीय है तो, न्यायालय वादी ारा िकए गए आवेदन पर ऐसी बाकी रकम के िलए िडकर्ी पािरत कर
सके गा ।
7. मोचन के वाद म पर्ारिम्भक िडकर्ी(1) मोचन के वाद म यिद वादी सफल हो जाता है तो न्यायालय ऐसी पर्ारिम्भक िडकर्ी
पािरत करे गा जो
(क) यह आदेश देगी िक
(i) बन्धक पर के मूलधन और ब्याज म ,े
(ii) वाद के ऐसे खच म ,े यिद कोई ह , जो उसके पक्ष म अिधिनण त िकए गए ह , तथा
(iii) अपनी बन्धक-पर्ितभूित की बाबत उस तारीख तक उसके ारा उिचत रूप से उपगत अन्य खच ,
पर्भार और व्यय म े उन पर ब्याज सिहत,
जो कु छ पर्ितवादी को ऐसी िडकर्ी की तारीख पर शोध्य है उसका लेखा िलया जाए ; अथवा
(ख) ऐसी रकम घोिषत करे गी जो उस तारीख पर शोध्य है ; तथा
(ग) यह िनदेश देगी िक
(i) यिद वादी ऐसे शोध्य पाई गई या शोध्य घोिषत रकम न्यायालय म, यथािस्थित, उस तारीख से
िजसको न्यायालय ने खण्ड (क) के अधीन िलए गए लेखा को पुष्ट और पर्ितहस्ताक्षिरत िकया है या उस तारीख से
िजसको न्यायालय ने खण्ड (ख) के अधीन ऐसी रकम को घोिषत िकया है, छह मास के भीतर की उस तारीख को
िजसे न्यायालय िनयत करे या उसके पूवर् जमा कर देता है और तत्पश्चात् ऐसी रकम जो िनयम 10 म यथा
उपबिन्धत पश्चात्वत खच , पर्भार और व्यय की बाबत शोध्य न्यायिनण त की जाए और ऐसी रािशय पर ऐसे
पािश्चक ब्याज सिहत जो िनयम 11 म उपबिन्धत है, न्यायालय म जमा कर देता है तो पर्ितवादी वादी को या उस
व्यिक्त को िजसे वादी िनयुक्त करे , बन्धक सम्पि संबंधी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, पिरद
कर दे और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उस बन्धक से और पर्ितवादी ारा या उससे व्युत्पन्न अिधकार
के अधीन दावा करने वाले िकसी भी व्यिक्त ारा, या जहां पर्ितवादी व्युत्पन्न हक के आधार पर दावा करता है,
वहां उन ारा िजनसे व्युत्पन्न अिधकार के अधीन वह दावा करता है, सृष्ट बन्धक और सभी िवल्लंगम से मुक्त
करके सम्पि वादी को उसके खच पर पर्ित-अन्तिरत कर दे और यिद आवश्यक हो तो वादी का कब्जा भी सम्पि
पर करा दे; तथा
(ii) यिद पर्ारिम्भक िडकर्ी के अधीन या उसके ारा शोध्य पाई गई या शोध्य घोिषत रकम का संदाय इस
पर्कार िनयत की गई तारीख को या उसके पूवर् नह िकया जाता है या वादी पश्चात्वत खच , पर्भार , व्यय और
ब्याज की बाबत शोध्य न्यायिनण त रकम को ऐसे समय के भीतर जो न्यायालय िनयत करे , संद करने म असफल
रहता है तो पर्ितवादी
(क) भोगबन्धक, सशतर् िवकर्य ारा बन्धक या ऐसे िवलक्षण बन्धक से, िजसके िनबन्धन के वल
पुरोबन्ध के िलए न िक िवकर्य के िलए, उपबन्ध करते ह, िभन्न िकसी बन्धक की दशा म इस अिन्तम
िडकर्ी के िलए आवेदन करने का हकदार होगा िक बन्धक सम्पि का िवकर्य कर िदया जाए, अथवा
(ख) सशतर् िवकर्य ारा बन्धक या पूव क्त जैसे िवलक्षण बन्धक की दशा म इस अिन्तम िडकर्ी
के िलए आवेदन करने का हकदार होगा िक वादी सम्पि का मोचन कराने के सभी अिधकार से
िवविजत कर िदया जाए ।
(2) उपिनयम (1) के अधीन शोध्य पाई गई या शोध्य घोिषत रकम के या पश्चात्वत खच , पर्भार , व्यय और ब्याज की
बाबत शोध्य न्यायिनण त रकम के संदाय के िलए िनयत समय को, यथािस्थित, पुरोबन्ध या िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी पािरत करने
के पूवर् िकसी भी समय न्यायालय अच्छा हेतुक दिशत िकए जाने पर और ऐसे िनबन्धन पर जो न्यायालय ारा िनयत िकए जाएं,
समय-समय पर बढ़ा सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) “अिन्तम पूवर्वत िनयम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
172
8. मोचन के वाद म अिन्तम िडकर्ी(1) जहां बन्धक सम्पि के मोचन कराने के सभी अिधकार से वादी को िवविजत करने
वाली अंितम िडकर्ी पािरत िकए जाने के पूवर् या इस िनयम के उपिनयम (3) के अधीन पािरत अिन्तम िडकर्ी के अनुसरण म िकए गए
िवकर्य के पुष्ट िकए जाने के पूवर् वादी िनयम 7 के उपिनयम (1) के अधीन अपने ारा शोध्य सभी रकम न्यायालय म जमा कर देता है
वहां न्यायालय अिन्तम िडकर्ी या यिद ऐसी िडकर्ी पािरत कर दी गई है, तो आदेश वादी के इस िनिम िकए गए आवेदन पर पािरत
करे गा, जो
(क) पर्ारिम्भक िडकर्ी म िनिदष्ट दस्तावेज को पिरद करने के िलए आदेश पर्ितवादी को देगा,
और यिद आवश्यक हो तो
(ख) उक्त िडकर्ी म यथािनिदष्ट बन्धक सम्पि को वादी के खच पर पर्ित-अन्तिरत करने के िलए आदेश पर्ितवादी
को देगा,
और यिद आवश्यक हो तो
(ग) वादी का कब्जा सम्पि पर कराने के िलए भी आदेश पर्ितवादी को देगा ।
(2) जहां बन्धक सम्पि या उसके िकसी भाग का इस िनयम के उपिनयम (3) के अधीन पािरत िडकर्ी के अनुसरण म िवकर्य
कर िदया गया है वहां जब तक िक वादी उपिनयम (1) म विणत रकम के अितिरक्त ऐसी रािश जो कर्यधन की उस रकम के पांच
पर्ितशत के बराबर हो िजसके कर्ेता ने न्यायालय म जमा िकया है, कर्ेता को देने के िलए न्यायालय म िनिक्षप्त नह कर देता, न्यायालय
इस िनयम के उपिनयम (1) के अधीन आदेश पािरत नह करे गा ।
जहां ऐसा िनक्षेप कर िदया गया है वहां कर्ेता कर्यधन की उस रकम के जो उसने न्यायालय म जमा की थी, पांच पर्ितशत के
बराबर रािश के सिहत उस रकम के पर्ितसंदाय के आदेश का हकदार होगा ।
(3) जहां उपिनयम (1) के अनुसार संदाय नह िकया गया है वहां न्यायालय, पर्ितवादी ारा इस िनिम िकए गए
आवेदन पर,
(क) सशतर् िवकर्य ारा बन्धक की दशा म या ऐसे िवलक्षण बन्धक की दशा म जो इसम इसके पूवर् िनयम 7 म
िनिदष्ट िकया गया है, यह घोषणा करने वाली िक वादी और उससे व्युत्पन्न अिधकार के अधीन दावा करने वाले सभी व्यिक्त
बन्धक सम्पि का मोचन कराने के सभी अिधकार से िवविजत िकए जाते ह और यिद आवश्यक हो तो वादी को यह आदेश
भी देने वाली िक वह बन्धक सम्पि पर कब्जा पर्ितवादी को दे दे, अिन्तम िडकर्ी पािरत करे गा ; अथवा
(ख) ऐसे िकसी अन्य बन्धक की दशा म जो भोगबन्धक नह ह, यह अिन्तम िडकर्ी पािरत करे गा िक बन्धक सम्पि
या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य िकया जाए और िवकर्य के आगम (उनम से िवकर्य के व्यय को काटने के पश्चात्) न्यायालय
म जमा कराए जाएं और जो कु छ पर्ितवादी को शोध्य पाया गया है उसका संदाय करने म उपयोिजत िकए जाएं और यिद कु छ
बाकी रहे तो उसे वादी को या ऐसे अन्य व्यिक्तय को दे िदया जाए जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह ।
मोचन के वाद म बन्धक पर शोध्य बाकी रकम की वसूलीजहां 2 [िनयम 8] के अधीन िकए गए िकसी भी िवकर्य के
1 [8क.
शु आगम पर्ितवादी को शोध्य रकम का संदाय करने के िलए अपयार्प्त पाए जाते ह वहां यिद बाकी रकम िवकर्ीत सम्पि के अितिरक्त
वादी से अन्यथा वैध रूप से वसूलीय है तो न्यायालय 3 [पर्ितवादी ारा िनष्पादन म िकए गए आवेदन पर] ऐसी बाकी रकम के िलए
िडकर्ी पािरत कर सके गा ।]
9. िडकर्ी जहां कु छ भी शोध्य नह पाया जाए या जहां बंधकदार को अितसंदाय कर िदया गया होयिद िनयम 7 म िनिदष्ट
लेखा लेने पर यह पर्तीत हो िक पर्ितवादी को कु छ भी शोध्य नह है या उसे अितसंदाय कर िदया गया है तो न्यायालय इसम इसके पूवर्
िकसी बात के होते हुए भी यह िनदेश देने वाली िडकर्ी पािरत करे गा िक पर्ितवादी, यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो, सम्पि को
पर्ित-अन्तिरत करे और वादी को वह रकम दे जो उसको शोध्य पाई जाए और यिद आवश्यक हो तो वादी का कब्जा बन्धक सम्पि पर
करा िदया जाएगा ।
बन्धकदार के खच जो िडकर्ी के पश्चात् हुए हपुरोबन्ध, िवकर्य या मोचन की दशा म जो रकम बन्धकदार को दी
4 [10.
जानी है उसका अिन्तम रूप से समायोजन करने म न्यायालय तब के िसवाय जब िक वाद म के खच की दशा म उसका आचरण
ऐसा रहा है जो उसे उनके िलए िनहर्िकत कर देता है ऐसे वाद के खच और अन्य खच, पर्भार और व्यय, जो पुरोबन्ध, िवकर्य या मोचन के
िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी की तारीख से वास्तिवक संदाय के समय तक उसके ारा समुिचत रूप से उपगत िकए गए ह, बन्धक धन म जोड़
देगा :
1
1929 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 5 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) “अिन्तम पूवर्वत िनयम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) “उसके ारा िकए गए आवेदन पर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1929 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 6 ारा िनयम 10 और 11 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
173
1 [परन्तु
जहां बन्धककतार् बन्धक पर शोध्य रकम या ऐसी रकम जो न्यायालय की राय म सारत: कम नह है वाद के संिस्थत
िकए जाने के पूवर् या के समय िनिवद या िनिक्षप्त कर देता है वहां उसे बन्धकदार को वाद के खच देने का आदेश नह िदया जाएगा
और बन्धककतार् वाद के अपने खच को बन्धकदार से वसूल करने के िलए तब तक हकदार रहेगा जब तक िक न्यायालय ऐसे कारण से
जो लेखब िकए जाएंगे, अन्यथा िनदेश न दे ।]
[10क. अन्त:कालीन लाभ का संदाय करने के िलए बन्धकदार को िनदेश देने की न्यायालय की शिक्तजहां पुरोबन्ध के
1
वाद म बन्धककतार् ने बन्धक पर शोध्य रािश या ऐसी रािश जो न्यायालय की राय म सारत: कम नह है, वाद के संिस्थत िकए जाने के
पूवर् या के समय िनिवद या िनिक्षप्त कर दी है वहां न्यायालय बन्धकदार को यह िनदेश देगा िक वह बन्धककतार् को वाद संिस्थत िकए
जाने से पर्ारम्भ होने वाली अविध के िलए अन्त:कालीन लाभ का संदाय करे ।]
11. ब्याज का संदायपुरोबन्ध, िवकर्य या मोचन के वाद म पािरत िकसी भी िडकर्ी म न्यायालय जहां ब्याज वैध रूप से
वसूलीय हो, यह आदेश दे सके गा िक बन्धकदार को िनम्निलिखत ब्याज िदया जाए, अथार्त् :
(क) पर्ारिम्भक िडकर्ी के अधीन शोध्य पाई गई या शोध्य घोिषत रकम िजस तारीख को या िजस तारीख के पूवर्
बन्धककतार् ारा या िकसी अन्य व्यिक्त ारा जो बन्धक का मोचन करा रहा है संद की जाती है, उस तारीख तक का
(i) उस दर से, जो मूलधन पर संदय
े है या जहां ऐसी दर िनयत नह है वहां ऐसी दर से जो न्यायालय
युिक्तयुक्त समझे, उस मूलधन की रकम पर जो बन्धक पर शोध्य पाई गई है, या शोध्य घोिषत की गई है, ब्याज,
2
* * * *
(iii) उस दर से जो पक्षकार म करार पाई गई है या ऐसी दर के अभाव म 3 [छह पर्ितशत पर्ितवषर् से
अनिधक ऐसी दर से जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे,] उन खच , पर्भार और व्यय म े जो बन्धक-पर्ितभूित की
बाबत बन्धकदार ने पर्ारिम्भक िडकर्ी की तारीख तक उिचत रूप से उपगत िकए ह और जो बन्धक धन म जोड़ िदए
गए ह , बन्धकदार को शोध्य न्यायिनण त रकम पर ब्याज; तथा
[(ख) ऐसी दर से जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे, उन मूल रािशय के जो खण्ड (क) म िविनिदष्ट ह, उस खण्ड के
4
अनुसार संगिणत योग पर वसूली की या वास्तिवक संदाय की तारीख का पािश्चक ब्याज ।]]
12. पूिवक बन्धक के अधीन सम्पि का िवकर्यजहां कोई सम्पि िजसका िवकर्य इस आदेश के अधीन िनिदष्ट िकया गया
है, पूिवक बन्धक के अधीन है वहां न्यायालय पूिवक बन्धकदार की सहमित से यह िनदेश दे सके गा िक ऐसे पूिवक बन्धकदार को िवकर्य
के आगम म वही िहत देकर जो िवकर्ीत सम्पि म उसका था, उस सम्पि का उस बन्धक से मुक्त करके िवकर्य िकया जाए ।
13. आगम का उपयोजन(1) ऐसे आगम न्यायालय म लाए जाएंगे और िनम्न पर्कार से उपयोिजत िकए जाएंगे,
पर्थमत:, िवकर्य से आनुषंिगक या िकसी पर्यितत िवकर्य म उिचत रूप से उपगत व्यय का संदाय करने म ;
ि तीयत:, पूिवक बन्धक म े जो कु छ पूिवक बन्धकदार को शोध्य ह उसका और उसके बारे म उिचत रूप म उपगत
खच का संदाय करने म ;
तृतीयत:, िजस बन्धक के पिरणामस्वरूप िवकर्य िनिदष्ट िकया गया था उस म े शोध्य सभी ब्याज का और उस
वाद म के िजसम िक िवकर्य का िनदेश देने वाली िडकर्ी पािरत की गई थी, खच का संदाय करने म ;
चतुथर्त: उस बन्धक म े शोध्य मूलधन का संदाय करने म ; तथा
अन्तत:, यिद कु छ अविशष्ट रहे तो वह उस व्यिक्त को जो यह सािबत कर दे िक िवकर्ीत सम्पि म वह िहतब है,
या यिद ऐसे व्यिक्त एक से अिधक ह तो ऐसे व्यिक्तय को, उस सम्पि म अपने-अपने िहत के अनुसार या उनकी संयुक्त
रसीद पर दे दी जाएगी ।
(2) इस िनयम की या िनयम 12 की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह सम्पि अन्तरण अिधिनयम,
1882 (1882 का 4) की धारा 57 ारा पर्द शिक्तय पर पर्भाव डालती है ।
14. बन्धक सम्पि का िवकर्य कराने के िलए आवश्यक िवकर्य का वाद(1) जहां बन्धकदार ने बन्धक के अधीन उद्भूत होने
वाले दावे की तुिष्ट म धन के संदाय के िलए िडकर्ी अिभपर्ाप्त कर ली है वहां वह बन्धक के पर्वतर्न के िलए िवकर्य का वाद संिस्थत करके
ही बन्धक सम्पि का िवकर्य कराने का हकदार होगा, अन्यथा नह और वह आदेश 2 के िनयम 2 म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए
भी ऐसा वाद संिस्थत कर सके गा ।
(2) उपिनयम (1) की कोई भी बात उन राज्यक्षेतर् को लागू नह होगी िजन पर सम्पि अन्तरण अिधिनयम, 1882 (1882
का 4) का िवस्तारण नह िकया गया है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा उपखण्ड (ii) का लोप िकया गया ।
3
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा खण्ड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
174
हक िवलेख के िनक्षेप ारा बंधक और भार 2 [(1)] इस आदेश के वे सभी उपबन्ध जो साधारण बन्धक को लागू ह,
1 [15.
सम्पि अन्तरण अिधिनयम, 1882 (1882 का 4) की धारा 58 के अथर् म हक िवलेख के िनक्षेप ारा बन्धक को और धारा 100 के अथर्
म भार को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
3
[(2) जहां िडकर्ी म धन संदाय करने का आदेश िदया जाता है और उसके संदाय म व्यितकर्म िकए जाने पर उस िडकर्ी को
स्थावर सम्पि पर भािरत िकया जाता है वहां वह रकम उस िडकर्ी के िनष्पादन म उस सम्पि के िवकर्य ारा वसूल की
जा सके गी ।]]
आदेश 35
अन्तरािभवाची
1. अन्तरािभवाची वाद म वादपतर्हर एक अन्तरािभवाची वाद के वादपतर् म, वादपतर् के िलए आवश्यक अन्य कथन के
अितिरक्त,
(क) यह कथन होगा िक वादी पर्भार या खच के िलए दावा करने से िभन्न िकसी िहत का दावा िववाद की िवषय-
वस्तु म नह करता है ;
(ख) पर्ितवािदय ारा पृथक्त: िकए गए दावे किथत ह गे ; तथा
(ग) यह कथन होगा िक वादी और पर्ितवािदय म से िकसी भी पर्ितवादी के बीच कोई दुस्सिन्ध नह है ।
2. दावाकृ त चीज का न्यायालय म जमा िकया जानाजहां दावाकृ त चीज ऐसी है िक वह न्यायालय म जमा की जा सकती है
या न्यायालय की अिभरक्षा म रखी जा सकती है वहां वादी से अपेक्षा की जा सके गी िक वह वाद म िकसी भी आदेश का हकदार हो
सकने के पूवर् उसे ऐसे जमा कर दे या रख दे ।
3. पर्िकर्या जहां पर्ितवादी वादी पर वाद चला रहा हैजहां अन्तरािभवाची वाद के पर्ितवािदय म से कोई पर्ितवादी, वादी
पर ऐसे वाद की िवषय-वस्तु की बाबत वास्तव म वाद चला रहा है वहां वह न्यायालय िजसम वादी के िवरु वाद लिम्बत है, उस
न्यायालय ारा िजसम अन्तरािभवाची वाद संिस्थत िकया गया है, इि ला िदए जाने पर वादी के िवरु कायर्वािहय को रोक देगा और
ऐसे रोके गए वाद म वादी के जो खच हुए ह वे ऐसे वाद म उपबिन्धत िकए जा सकगे, िकन्तु यिद और जहां तक वे उस वाद म
उपबिन्धत नह िकए जाते ह तो और वहां तक अन्तरािभवाची वाद म उपगत उसके खच म जोड़े जा सकगे ।
4. पहली सुनवाई म पर्िकर्या(1) पहली सुनवाई म न्यायालय
(क) घोिषत कर सके गा िक वादी दावाकृ त चीज के संबंध म पर्ितवािदय के पर्ित सभी दाियत्व से उन्मोिचत हो गया
है, उसे उसके खच अिधिनण त कर सके गा और वाद म से उसे खािरज कर सके गा ; अथवा
(ख) यिद यह समझता है िक न्याय या सुिवधा की दृिष्ट से ऐसा करना अपेिक्षत है तो वह वाद का अिन्तम िनपटारा
हो जाने तक सभी पक्षकार को बनाए रख सके गा ।
(2) जहां न्यायालय का यह िनष्कषर् है िक पक्षकार की स्वीकृ ितयां या अन्य सा य उसे ऐसा करने के योग्य कर देते ह वहां वह
दावाकृ त चीज पर के हक का न्यायिनणर्यन कर सके गा ।
(3) जहां पक्षकार की स्वीकृ ितयां न्यायालय को ऐसे न्यायिनणर्यन करने के योग्य नह कर देती वहां वह िनदेश
दे सके गा िक
(क) पक्षकार के बीच िववा क या िववा क की िवरचना की जाए और उनका िवचारण िकया जाए, तथा
(ख) मूल वादी के बदले म या उसके अितिरक्त िकसी दावेदार को वादी बना िदया जाए,
और वाद का मामूली रीित से िवचारण करने के िलए अगर्सर होगा ।
5. अिभकतार् और अिभधारी अन्तरािभवाची वाद संिस्थत नह कर सकगेइस आदेश की िकसी भी बात के बारे म यह नह
समझा जाएगा िक वह अिभकतार् को अपने मािलक पर, या अिभधािरय को अपने भू-स्वािमय पर, इस पर्योजन से वाद लाने को
समथर् करती है िक वे मािलक या भू-स्वामी ऐसे िकन्ह व्यिक्तय से जो ऐसे मािलक या भू-स्वािमय से व्युत्पन्न अिधकार के अधीन
दावा करने वाले व्यिक्तय से िभन्न ह , अन्तरािभवचन करने के िलए िववश िकए जाएं ।
1
1929 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 7 ारा िनयम 15 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) िनयम 15 को उपिनयम (1) के रूप म पुन: संख्यांिकत िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 82 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
175
दृष्टांत
(क) आभूषण का बक्स अपने अिभकतार् के रूप म ख के पास क िनिक्षप्त करता है । ग का यह अिभकथन है िक आभूषण क ने
उससे सदोष अिभपर्ाप्त िकए थे और वह उन्ह ख से लेने के िलए दावा करता है । क और ग के िवरु अन्तरािभवाची वाद ख संिस्थत
नह कर सकता ।
(ख) आभूषण का एक बक्स अपने अिभकतार् के रूप म ख के पास क िनिक्षप्त करता है । तब वह इस पर्योजन से ग को िलखता
है िक ग को जो ऋण उस ारा शोध्य है उसकी पर्ितभूित वह उन आभूषण को बना ले । क तत्पश्चात् यह अिभकथन करता है िक ग के
ऋण की तुिष्ट कर दी गई है और ग इसके िवपरीत अिभकथन करता है । दोन ख से आभूषण लेने का दावा करते ह । क और ग के
िवरु अन्तरािभवाची वाद ख संिस्थत कर सके गा ।
6. वादी के खच का भारजहां वाद उिचत रूप से संिस्थत िकया गया है वहां न्यायालय मूल वादी के खच के िलए उपबन्ध
दावाकृ त चीज पर उसका भार डाल कर अन्य पर्भावी तौर पर कर सके गा ।
आदेश 36
िवशेष मामला
1. न्यायालय की राय के िलए मामले का कथन करने की शिक्त(1) जो पक्षकार तथ्य या िविध के िकसी पर्श्न के िविनश्चय
म िहतब होने का दावा करते ह वे ऐसा िलिखत करार कर सकगे िजसम ऐसे पर्श्न का मामले के रूप म कथन न्यायालय की राय के
िलए होगा और यह उपबन्ध होगा िक ऐसे पर्श्न के बारे म न्यायालय के िनष्कषर् पर
(क) वह धनरािश जो पक्षकार ारा िनयत की गई है या न्यायालय ारा अवधािरत की जाए पक्षकार म से एक के
ारा उनम से दूसरे को दी जाएगी ; अथवा
(ख) करार म िविनिदष्ट कोई सम्पि , चाहे वह जंगम हो या स्थावर, पक्षकार म से एक के ारा उनम से दूसरे को
पिरद की जाएगी ; अथवा
(ग) पक्षकार म से एक या अिधक पक्षकार करार म िविनिदष्ट कोई दूसरा िविशष्ट कायर् करगे या करने
से िवरत रहगे ।
(2) इस िनयम के अधीन किथत हर मामला कर्मवत संख्यांिकत पैरा म बांटा जाएगा और उसम ऐसे तथ्य का संिक्षप्त
कथन होगा और ऐसी दस्तावेज का िविनदश होगा जो न्यायालय का उसके ारा उठाए गए पर्श्न का िविनश्चय करने म समथर् बनाने के
िलए आवश्यक ह ।
2. िवषय-वस्तु का मूल्य कहां किथत करना होगाजहां करार िकसी सम्पि के पिरदान के िलए या िकसी िविशष्ट कायर् को
करने से िवरत रहने के िलए है वहां जो सम्पि पिरद की जानी है या िजसके पर्ित िविनिदष्ट कायर् का िनदश है, उसका पर्ाक्किलत
मूल्य करार म किथत िकया जाएगा ।
3. करार वाद के रूप म फाइल िकया जाएगा और रिजस्टर म चढ़ाया जाएगा(1) यिद करार इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट
िनयम के अनुसार िवरिचत िकया गया है 1 [तो वह उस न्यायालय म आवेदन के साथ फाइल िकया जा सके गा िजसको] ऐसा वाद गर्हण
करने की अिधकािरता हो, िजस वाद की रकम या िवषय-वस्तु का मूल्य करार म की रकम या िवषय-वस्तु के मूल्य के बराबर है ।
(2) जब 2 [आवेदन] इस पर्कार फाइल कर िदया जाता है तब वह वादी या वािदय के तौर पर िहतब होने का दावा करने
वाले पक्षकार म से एक या अिधक और पर्ितवादी या पर्ितवािदय के तौर पर िहतब उनम से अन्य या अन्य के बीच के वाद के रूप म
संख्यांिकत िकया और रिजस्टर म चढ़ाया जाएगा और उस पक्षकार या उन पक्षकार से िभन्न, िजसने या िजन्ह ने 3 [आवेदन उपस्थािपत
िकया है,] करार के सभी पक्षकार को सूचना दी जाएगी ।
4. पक्षकार न्यायालय की अिधकािरता के अधीन ह गेजहां करार इस पर्कार फाइल कर िदया गया है वहां उसम के पक्षकार
न्यायालय की अिधकािरता के अधीन ह गे और उसम अन्तिवष्ट कथन से आब ह गे ।
5. मामले की सुनवाई और िनपटारा(1) वह मामला मामूली रीित से संिस्थत वाद के रूप म सुनवाई के िलए रखा जाएगा
और ऐसे वाद को इस संिहता के उपबन्ध वहां तक लागू ह गे जहां तक िक वे लागू होने योग्य ह ।
(2) जहां पक्षकार की परीक्षा करने के पश्चात् या ऐसा सा य लेने के पश्चात्, जो न्यायालय ठीक समझे, न्यायालय का
समाधान हो जाता है िक
(क) करार उनके ारा सम्यक् रूप से िनष्पािदत िकया गया था,
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 83 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 83 ारा (1-2-1977 से) “करार” के स्व्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 83 ारा (1-2-1977 से) “उसे उपस्थािपत िकया है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
176
होगा, अथार्त्
(क) उच्च न्यायालय, नगर िसिवल न्यायालय और लघुवाद न्यायालय ; और
(ख) अन्य न्यायालय :
परन्तु उच्च न्यायालय खण्ड (ख) म िनिदष्ट न्यायालय के बारे म, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस आदेश के पर्वतर्न को
वाद के के वल ऐसे पर्वग तक िनबर्िन्धत कर सके गा, जो वह उिचत समझे और इस आदेश के पर्वतर्न के अधीन लाए जाने वाले वाद के
पर्वग को समय-समय पर, राजपतर् म अिधसूचना ारा, मामले की पिरिस्थितय म यथा अपेिक्षत और िनबर्िन्धत कर सके गा, बढ़ा
सके गा या उसम फे रफार कर सके गा जो वह उिचत समझे ।
(2) उपिनयम (1) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए यह आदेश िनम्निलिखत वाद के वग को लागू होता है, अथार्त् :
(क) िविनमय-पतर् , हुिण्डय और वचन-पतर् के आधार पर वाद ;
(ख) ऐसे वाद िजनम वादी, पर्ितवादी ारा संदये ऋण या धन के रूप म पिरिनधार्िरत मांग को ब्याज सिहत या
ब्याज के िबना के वल वसूल करना चाहता है जो िनम्निलिखत के आधार पर उद्भूत होता है, अथार्त् :
(i) िलिखत संिवदा ;
(ii) ऐसी अिधिनयिमित िजसम वसूल की जाने वाली रािश कोई िनयत धनरािश है या िकसी शािस्त से
िभन्न ऋणस्वरूप है, अथवा
(iii) ऐसी पर्त्याभूित िजसम के वल िकसी ऋण या पिरिनधार्िरत मांग के बारे म मूल धन के िलए दावा
िकया गया है ;
4 [(iv) पर्ाप्तवय के िकसी समनुदिे शती ारा पर्ाप्तवय की वसूली के िलए संिस्थत कोई वाद ।]
[2. संिक्षप्त वाद का संिस्थत िकया जाना(1) यिद वादी िकसी ऐसे वाद को िजसे यह आदेश लागू होता है, इसके अधीन
5
आगे चलाने की वांछा करता है तो वह ऐसा वादपतर् करके उपस्थािपत करके संिस्थत िकया जा सके गा, िजसम िनम्निलिखत बात ह गी,
अथार्त् :
(क) इस आशय का िविनिदष्ट पर्कथन िक वाद इस आदेश के अधीन फाइल िकया जाता है ;
(ख) ऐसे िकसी अनुतोष का दावा वादपतर् म नह िकया गया है, जो इस िनयम के िवस्तार के अन्तगर्त नह आता
है ; और
(ग) वाद के शीषर्क म वाद के संख्यांक के ठीक नीचे िनम्निलिखत अन्तलखन िकया गया है, अथार्त् :
“(िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 37 के अधीन)” ।
(2) वाद का समन पिरिशष्ट ख के पर्रूप संख्यांक 4 म या िकसी ऐसे अन्य पर्रूप म होगा जो समय-समय पर िविहत
िकया जाए ।
(3) पर्ितवाद उपिनयम (1) म िनिदष्ट वाद की पर्ितरक्षा तब तक नह करे गा जब तक िक वह उपसंजात नह होता है और
उपसंजात होने म व्यितकर्म होने पर वादपतर् म के अिभकथन स्वीकृ त कर िलए गए समझे जाएंगे और वादी िविनिदष्ट दर पर, यिद
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 83 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 84 ारा (1-2-1977 से) “परकर्ाम्य िलखत पर” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 84 ारा (1-2-1977 से) िनयम 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2012 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 35 और अनुसूची ारा अंत:स्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 84 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
177
कोई हो, िडकर्ी की तारीख तक के ब्याज सिहत िकसी ऐसी रािश के िलए जो समन म विणत रािश से अिधक न हो और खच की ऐसी
रािश के िलए तो उच्च न्यायालय उस िनिम बनाए गए िनयम ारा समय-समय पर अवधािरत करे , िडकर्ी पाने का हकदार होगा और
ऐसी िडकर्ी तत्काल िनष्पािदत की जा सके गी ।]
[3. पर्ितवादी की उपसंजाित के िलए पर्िकर्या(1) िकसी ऐसे वाद म िजसे यह आदेश लागू होता है, वादी पर्ितवादी पर
1
वादपतर् और उसके उपाबन्ध की एक पर्ित िनयम 2 के अधीन समन के साथ तामील करे गा और पर्ितवादी ऐसी तामील के दस िदन के
भीतर िकसी भी समय स्वयं या प्लीडर ारा उपसंजात हो सके गा और दोन दशा म वह उस पर सूचना की तामील के िलए पता
न्यायालय म फाइल करे गा ।
(2) जब तक अन्यथा आदेश न िदया गया हो तब तक ऐसे सभी समन, सूचनाएं और अन्य न्याियक आदेिशकाएं जो पर्ितवादी
पर तामील िकए जाने के िलए अपेिक्षत ह , उस पर सम्यक् रूप से तामील की गई तब समझी जाएंगी जब वे उस पते पर छोड़ दी गई ह
जो ऐसी तामील के िलए उसके ारा िदया गया था ।
(3) उपसंजात होने के िदन ऐसी उपसंजाित की सूचना पर्ितवादी ारा वादी के प्लीडर को या यिद वादी स्वयं वाद लाता है
तो स्वयं वादी को, ऐसी सूचना पिरद करके या पहले से डाक महसूल िदए गए, पतर् ारा, यथािस्थित, वादी के प्लीडर के या वादी के
पते पर भेजकर की जाएगी ।
(4) यिद पर्ितवादी उपसंजात होता है तो उसके पश्चात् वादी पर्ितवादी पर िनणर्य के िलए समन पिरिशष्ट ख के पर्रूप
संख्यांक 4क म या ऐसे अन्य पर्रूप म जो समय-समय पर िविहत िकया जाए, तामील करे गा । ऐसा समन तामील की तारीख से दस िदन
से अन्यून समय म वापस िकए जाने वाला होगा और िजसका समथर्न वाद-हेतुक और दावाकृ त रकम का सत्यापन करने वाले शपथपतर्
ारा िकया जाएगा और उसम यह कथन िकया गया होगा िक उसके िवश्वास म वाद म इस िनिम कोई पर्ितरक्षा नह है ।
(5) पर्ितवादी िनणर्य के िलए ऐसे समन की तामील से दस िदन के भीतर िकसी भी समय शपथपतर् ारा या अन्यथा ऐसे तथ्य
पर्कट करते हुए जो पर्ितरक्षा करने के िलए उसे हकदार बनाने के िलए पयार्प्त समझे जाएं, ऐसे वाद की पर्ितरक्षा की इजाजत के िलए
ऐसे समन के आधार पर आवेदन कर सके गा और उसे पर्ितरक्षा करने की इजाजत िबना शतर् या ऐसे िनबंधन पर जो न्यायालय या
न्यायाधीश को न्यायसंगत पर्तीत ह , मंजूर की जा सके गी :
परन्तु पर्ितरक्षा की इजाजत तब तक नामंजूर नह की जाएगी जब तक न्यायालय का यह समाधान नह हो जाता है िक
पर्ितवादी ारा पर्कट िकए गए तथ्य यह उपदिशत नह करते ह िक उसके ारा कोई सारवान् पर्ितरक्षा की जानी है या पर्ितवादी ारा
की जाने के िलए आशियत पर्ितरक्षा तुच्छा या तंग करने वाली है :
परन्तु यह और िक जहां वादी ारा दावाकृ त रकम का कोई भाग पर्ितवादी ारा उससे शोध्य होना स्वीकार कर िलया जाता
है तो वाद की पर्ितरक्षा की इजाजत तब तक मंजूर नह की जाएगी जब तक शोध्य होने के िलए इस पर्कार स्वीकार की गई रकम
पर्ितवादी ारा न्यायालय म जमा न कर दी जाए ।
(6) िनणर्य के िलए ऐसे समन की सुनवाई के समय
(क) यिद पर्ितवादी ने पर्ितरक्षा करने की इजाजत के िलए आवेदन नह िकया है या यिद ऐसा आवेदन िकया गया है
और नामंजूर कर िदया गया है तो वादी तत्काल िनणर्य का हकदार हो जाएगा ; अथवा
(ख) यिद पर्ितवादी को पूणर् दावे या उसके िकसी भाग की पर्ितरक्षा करने की अनुज्ञा दी जाती है तो न्यायालय या
न्यायाधीश उसे िनदेश दे सके गा िक वह ऐसी पर्ितभूित ऐसे समय के भीतर दे जो न्यायालय या न्यायाधीश ारा िनयत िकया
जाए, और न्यायालय या न्यायाधीश ारा िविनिदष्ट समय के भीतर ऐसी पर्ितभूित देने म या ऐसे अन्य िनदेश का पालन
करने म जो न्यायालय या न्यायाधीश ारा िदए गए ह असफल होने पर वादी तत्काल िनणर्य का हकदार हो जाएगा ।
(7) न्यायालय या न्यायाधीश, पर्ितवादी ारा पयार्प्त कारण दिशत िकए जाने पर, पर्ितवादी को उपसंजात होने या वाद की
पर्ितरक्षा करने की इजाजत के िलए आवेदन करने म िवलम्ब के िलए माफी दे सके गा ।]
4. िडकर्ी को अपास्त करने की शिक्तिडकर्ी देने के पश्चात् यिद न्यायालय को िवशेष पिरिस्थितय के अधीन ऐसा करना
युिक्तयुक्त लगे तो वह ऐसे िनबन्धन पर जो न्यायालय ठीक समझे, िडकर्ी को अपास्त कर सके गा और यिद आवश्यक हो तो उसका
िनष्पादन रोक सके गा या अपास्त कर सके गा और समन पर उपसंजात होने और वाद म पर्ितरक्षा करने की पर्ितवादी को इजाजत दे
सके गा ।
5. िविनमय-पतर्, आिद को न्यायालय के अिधकारी के पास जमा करने का आदेश देने की शिक्तइस आदेश के अधीन िकसी
भी कायर्वाही म न्यायालय आदेश दे सके गा िक वह िविनमय-पतर्, हुण्डी या वचन-पतर्, िजस पर वाद आधािरत है, न्यायालय के
अिधकारी के पास तत्काल जमा कर िदया जाए और यह अितिरक्त आदेश दे सके गा िक सभी कायर्वािहयां तब तक के िलए रोक दी जाएं
जब तक वादी उनके खच के िलए पर्ितभूित न दे दे ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 84 ारा (1-2-1977 से) िनयम 3 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
178
6. अनादृत िविनमय-पतर् या वचन-पतर् के अपर्ितगर्हण का िटप्पण करने के खचर् की वसूलीहर अनादृत िविनमय-पतर् या
वचन-पतर् के धारक को ऐसे अनादरण के कारण उसके अपर्ितगर्हण या असंदाय का िटप्पण कराने म या अन्यथा उपगत व्यय की वसूली
के िलए वही उपचार ह गे जो उसे ऐसे िविनमय-पतर् या वचन-पतर् की रकम की वसूली के िलए इस आदेश के अधीन ह ।
7. वाद म पर्िकर्याइस आदेश ारा जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, इसके अधीन वाद म पर्िकर्या वही होगी जो मामूली
रीित से संिस्थत िकए गए वाद म होती है ।
आदेश 38
1
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
179
परन्तु कोई भी व्यिक्त कारागार म इस िनयम के अधीन िकसी भी दशा म छह मास से अिधक की अविध के िलए और यिद
वाद की िवषय-वस्तु की रकम या मूल्य पचास रुपए से अिधक नह है तो छह सप्ताह से अिधक की अविध के िलए िनरु नह िकया
जाएगा :
परन्तु यह भी िक ऐसे आदेश का उसके ारा अनुपालन कर िदए जाने के पश्चात् कोई भी व्यिक्त इस िनयम के अधीन
कारागार म िनरु नह रखा जाएगा ।
िनणर्य के पहले कु क
5. सम्पि पेश करने के िलए पर्ितभूित देने की अपेक्षा पर्ितवादी से कब की जा सके गी(1) जहां वाद के िकसी भी पर्कर्म म
न्यायालय का शपथपतर् ारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है िक पर्ितवादी ऐसी िकसी िडकर्ी के जो उसके िवरु पािरत की जाए,
िनष्पादन को बािधत या िनलिम्बत करने के आशय से
(क) अपनी पूरी सम्पि या उसके िकसी भाग को व्ययिनत करने ही वाला है, अथवा
(ख) अपनी पूरी सम्पि या उसके िकसी भाग को न्यायालय की अिधकािरता की स्थानीय सीमा से हटा देने
ही वाला है,
वहां न्यायालय, पर्ितवादी को िनदेश दे सके गा िक उस समय के भीतर जो न्यायालय ारा िनयत िकया जाएगा या तो वह उक्त सम्पि
को या उसके मूल्य को या उसके ऐसे भाग को जो िडकर्ी को तुष्ट करने के िलए पयार्प्त हो, अपेक्षा की जाने पर पेश करने के िलए और
न्यायालय से व्ययनाधीन रखने के िलए, ऐसी रािश की जो आदेश म िविनिदष्ट की जाए, पर्ितभूित दे या उपसंजात हो और यह हेतुक
दिशत करे िक उसे पर्ितभूित क्य न देनी चािहए ।
(2) िजस सम्पि की कु क की अपेक्षा की गई है, उसको और उसके पर्ाक्किलत मूल्य को, जब तक न्यायालय अन्यथा िनिदष्ट
न करे , वादी िविनिदष्ट करे गा ।
(3) न्यायालय आदेश म यह िनदेश भी दे सके गा िक इस पर्कार िविनिदष्ट की गई पूरी सम्पि या उसके िकसी भाग की सशतर्
कु क की जाए ।
1 (4) यिद इस िनयम के उपिनयम (1) के उपबंध का अनुपालन िकए िबना कु क का आदेश िकया जाता है तो ऐसी कु क शून्य
होगी ।]
6. जहां हेतक
ु दिशत नह िकया जाता या पर्ितभूित नह दी जाती वहां कु क (1) जहां पर्ितवादी न्यायालय ारा िनयत
समय के भीतर यह हेतुक दिशत करने म असफल रहता है िक उसे पर्ितभूित क्य नह देनी चािहए या अपेिक्षत पर्ितभूित देने म असफल
रहता है वहां न्यायालय यह आदेश दे सके गा िक िविनिदष्ट सम्पि या उसका ऐसा भाग जो िकसी ऐसी िडकर्ी को तुष्ट करने के िलए
पयार्प्त पर्तीत होता है जो वाद म पािरत की जाए, कु कर् कर िलया जाए ।
(2) जहां पर्ितवादी ऐसा हेतुक दिशत करता है या अपेिक्षत पर्ितभूित दे देता है और िविनिदष्ट सम्पि या उसका कोई भाग
कु कर् कर िलया गया है वहां न्यायालय कु क का पर्त्याहरण िकए जाने के िलए आदेश देगा या ऐसा अन्य आदेश देगा जो वह ठीक समझे ।
7. कु क करने की रीितअिभव्यक्त रूप से जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, कु क उस रीित से की जाएगी जो िडकर्ी के
िनष्पादन म सम्पि की कु क के िलए उपबंिधत है ।
िनणर्य के पूवर् कु कर् की गई सम्पि के दावे का न्यायिनणर्यनजहां कोई दावा िनणर्य के पूवर् कु कर् की गई सम्पि के िलए
2 [8.
िकया गया है वहां ऐसे दावे का न्यायिनणर्यन उस रीित से िकया जाएगा जो धन के संदाय के िलए िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् की गई
सम्पि के दाव के न्यायिनणर्यन के िलए इसम इसके पूवर् उपबिन्धत है ।]
9. पर्ितभूित दे दी जाने पर या वाद खािरज कर िदए जाने पर कु क का हटा िलया जानाजहां िनणर्य के पूवर् कु क के िलए
आदेश िकया जाता है वहां जब पर्ितवादी अपेिक्षत पर्ितभूित, उस पर्ितभूित के सिहत जो कु क के खच के िलए हो, दे देता है या जब वाद
खािजर कर िदया जाता है तब न्यायालय कु क के पर्त्याहरण के िलए आदेश देगा ।
10. िनणर्य से पहले की गई कु क से न तो पर व्यिक्तय के अिधकार पर्भािवत ह गे और न िवकर्य के िलए आवेदन करने से
िडकर्ीदार विजत होगािनणर्य से पहले की गई कु क से न तो उन व्यिक्तय के जो वाद के पक्षकार नह ह, अिधकार पर जो कु क के
पूवर् ही िव मान थे, पर्भाव पड़ेगा और न पर्ितवादी के िवरु िडकर्ी धारण करने वाला कोई व्यिक्त ऐसा कु क के अधीन सम्पि का
िवकर्य ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन म कराने का आवेदन करने से विजत होगा ।
11. िनणर्य से पहले कु कर् की गई सम्पि िडकर्ी के िनष्पादन म पुन: कु कर् नह की जाएगीजहां सम्पि इस आदेश के उपबंध
के आधार पर की गई कु क के अधीन हो और वादी के पक्ष म तत्पश्चात् िडकर्ी पािरत कर दी जाए वहां ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए
िकए गए आवेदन म उस सम्पि को पुन: कु कर् करने के िलए आवेदन करना आवश्यक नह होगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 85 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 85 ारा (1-2-1977 से) िनयम 8 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
180
कु क को लागू होने वाले उपबन्ध(1) इस संिहता के ऐसे उपबंध जो िडकर्ी के िनष्पादन म की गई कु क को लागू
1 [11क.
होते ह, िनणर्य के पूवर् की गई ऐसी कु क को, जहां तक हो सके , लागू ह गे जो िनणर्य के पश्चात् िनयम 11 के उपबंध के आधार पर जारी
रहती है ।
(2) िकसी ऐसे वाद म जो व्यितकर्म म कारण खािरज कर िदया जाता है, िनणर्य के पूवर् की गई कु क के वल इस तथ्य के कारण
पुन: पर्वितत नह होगी िक व्यितकर्म के कारण वाद खािरज करने का आदेश अपास्त कर िदया गया है और वाद पर्त्यावितत कर िदया
गया है ।]
12. कृ िष-उपज िनणर्य के पूवर् कु कर् नह होगीइस आदेश की कोई भी बात िकसी कृ षक के कब्जे म की िकसी कृ िष-उपज की
कु क के िलए आवेदन करने की वादी को पर्ािधकृ त करने वाली या ऐसी उपज को कु कर् करने या पेश करने का आदेश देने को न्यायालय
को सशक्त करने वाली नह समझी जाएगी ।
लघुवाद न्यायालय स्थावर सम्पि को कु कर् नह करे गाइस आदेश की कोई भी बात स्थावर सम्पि की कु क के िलए
2 [13.
आदेश करने को िकसी लघुवाद न्यायालय को सशक्त करने वाली नह समझी जाएगी ।]
आदेश 39
अन्य आदेश की अवज्ञा की दशा म या िजन िनबन्धन पर व्यादेश िदया गया था या आदेश िकया गया था उनम से िकसी िनबन्धन के
भंग के दशा म व्यादेश देने वाला या आदेश करने वाला न्यायालय या ऐसा कोई न्यायालय, िजसे वाद या कायर्वाही अन्तिरत की गई है,
यह आदेश दे सके गा िक ऐसी अवज्ञा या भंग करने के दोषी व्यिक्त की सम्पि कु कर् की जाए और यह भी आदेश दे सके गा िक वह व्यिक्त
तीन मास से अनिधक अविध के िलए िसिवल कारागार म तब तक िनरु िकया जाए जब तक िक इस बीच म न्यायालय उसकी
िनमुर्िक्त के िलए िनदेश न दे दे ।
1
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 85 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1926 के अिधिनयम सं०1 की धारा 4 ारा अन्त:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (3) और (4) का लोप िकया गया ।
181
(2) इस अिधिनयम के अधीन की गई कोई कु क एक वषर् से अिधक समय के िलए पर्वृ नह रहेगी, िजसके खत्म होने पर यिद
अवज्ञा या भंग जारी रहे तो कु कर् की गई सम्पि का िवकर्य िकया जा सके गा और न्यायालय आगम म से ऐसा पर्ितकर जो वह ठीक
समझे उस पक्षकार को िदलवा सके गा िजसकी क्षित हुई हो, और यिद कु छ बाकी रहे तो उसे उसके हकदार पक्षकार को देगा ।]
3. व्यादेश देने से पहले न्यायालय िनदेश देगा िक िवरोधी पक्षकार को सूचना दे दी जाएवहां के िसवाय जहां यह पर्तीत
होता है िक व्यादेश देने का उ ेश्य िवलम्ब ारा िनष्फल हो जाएगा, न्यायालय सब मामल म व्यादेश देने से पूवर् यह िनदेश देगा िक
व्यादेश के आवेदन की सूचना िवरोधी पक्षकार को दे दी जाए :
1 [परन्तु
जहां यह पर्स्थापना की जाती है िक िवरोधी पक्षकार को आवेदन की सूचना िदए िबना व्यादेश दे िदया जाए वहां
न्यायालय अपनी ऐसी राय के िलए िक िवलम्ब ारा व्यादेश देने का उ ेश्य िवफल हो जाएगा, कारण अिभिलिखत करे गा और आवेदक
से यह अपेक्षा कर सके गा िक वह
(क) व्यादेश देने वाला आदेश िकए जाने के तुरन्त पश्चात् व्यादेश के िलए आवेदन की पर्ित िनम्निलिखत के साथ
(i) आवेदन के समथर्न म फाइल िकए गए शपथपतर् की पर्ित ;
(ii) वादपतर् की पर्ित ; और
(iii) उन दस्तावेज की पर्ितयां, िजन पर आवेदक िनभर्र करता है,
िवरोधी पक्षकार को दे या उसे रिजस्टर्ीकृ त डाक ारा भेजे, और
(ख) उस तारीख को िजसको ऐसा व्यादेश िदया गया है या उस िदन के ठीक अगले िदन को यह कथन करने वाला
शपथपतर् फाइल करे िक पूव क्त पर्ितयां इस पर्कार दे दी गई ह या भेज दी गई ह ।]
[3क. व्यादेश के िलए आवेदन का न्यायालय ारा तीस िदन के भीतर िनपटाया जानाजहां कोई व्यादेश िवरोधी पक्षकार
1
को सूचना िदए िबना िदया गया है वहां न्यायालय आवेदन को ऐसी तारीख से िजसको व्यादेश िदया गया था, तीस िदन के भीतर
िनपटाने का पर्यास करे गा और जहां वह ऐसा करने म असमथर् है वहां वह ऐसी असमथर्ता के िलए कारण अिभिलिखत करे गा ।]
4. व्यादेश के आदेश को पर्भावोन्मुक्त, उसम फे रफार या उसे अपास्त िकया जा सके गाव्यादेश के िकसी भी आदेश को उस
आदेश से असन्तुष्ट िकसी पक्षकार ारा न्यायालय से िकए गए आवेदन पर उस न्यायालय ारा पर्भावोन्मुक्त, उसम फे रफार या उसे
अपास्त िकया जा सके गा :
[परन्तु यिद अस्थायी व्यादेश के िलए िकसी आवेदन म या ऐसे आवेदन का समथर्न करने वाले िकसी शपथपतर् म िकसी
1
पक्षकार ने िकसी ताित्त्वक िविशिष्ट के सम्बन्ध म जानते हुए िमथ्या या भर्ामक कथन िकया है और िवरोधी पक्षकार को सूचना िदए
िबना व्यादेश िदया गया था तो न्यायालय व्यादेश को उस दशा म र कर देगा िजसम वह अिभिलिखत िकए जाने वाले कारण से यह
समझता है िक न्याय के िहत म ऐसा करना आवश्यक नह है :
परन्तु यह और िक जहां िकसी पक्षकार को सुनवाई का अवसर िदए जाने के पश्चात् व्यादेश के िलए आदेश पािरत िकया गया
है वहां ऐसे आदेश को उस पक्षकार के आवेदन पर तब तक पर्भावोन्मुक्त, उसम फे रफार या अपास्त नह िकया जाएगा जब तक
पिरिस्थितय के बदले जाने से ऐसा पर्भावोन्मुक्त, फे रफार या अपास्त िकया जाना आवश्यक न हो गया हो या जब तक न्यायालय का
यह समाधान नह हो जाता है िक आदेश से उस पक्षकार को असम्यक् कष्ट हुआ है ।]
5. िनगम को िनिदष्ट व्यादेश उसके अिधकािरय पर आब कर होगािकसी िनगम को िनिदष्ट व्यादेश न के वल िनगम पर
ही आब कर होगा बिल्क िनगम के उन सभी सदस्य और अिधकािरय पर भी आब कर होगा िजनके वैयिक्तक कायर् को अवरु करने
के िलए वह चाहा गया है ।
अंतवर्त आदेश
6. अन्तिरम िवकर्य का आदेश देने की शिक्तन्यायालय वाद के िकसी भी पक्षकार के आवेदन पर ऐसे आदेश म नािमत िकसी
भी व्यिक्त ारा और ऐसी रीित से और ऐसे िनबन्धन पर जो न्यायालय ठीक समझे, िकसी भी ऐसी जंगम सम्पि के िवकर्य का आदेश
दे सके गा, जो ऐसे वाद की िवषय-वस्तु है या ऐसे वाद म िनणर्य के पहले कु कर् की गई है और जो शीघर्तया और पर्कृ त्या क्षयशील है या
िजसकी बाबत िकसी अन्य न्यायसंगत और पयार्प्त हेतुक से यह वांछनीय हो िक उसका तुरन्त िवकर्य कर िदया जाए ।
7. वाद की िवषय-वस्तु का िनरोध, पिररक्षण, िनरीक्षण आिद(1) न्यायालय वाद के िकसी भी पक्षकार के आवेदन पर और
ऐसे िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे,
(क) िकसी भी ऐसी सम्पि के , जो ऐसे वाद की िवषय-वस्तु है या िजसके बारे म उस वाद म कोई पर्श्न उद्भूत हो
सकता हो, िनरोध, पिररक्षण या िनरीक्षण के िलए आदेश कर सके गा ;
1
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
182
(ख) ऐसे वाद के िकसी भी अन्य पक्षकार के कब्जे म की िकसी भी भूिम या भवन म पूव क्त सभी या िकन्ह
पर्योजन के िलए पर्वेश करने को िकसी भी व्यिक्त को पर्ािधकृ त कर सके गा ; तथा
(ग) पूव क्त सभी या िकन्ह पर्योजन के िलए िकन्ह भी ऐसे नमून का िलया जाना या िकसी भी ऐसे पर्ेक्षण या
पर्योग का िकया जाना, जो पूरी जानकारी या सा य अिभपर्ाप्त करने के पर्योजन के िलए आवश्यक या समीचीन पर्तीत हो,
पर्ािधकृ त कर सके गा ।
(2) आदेिशका के िनष्पादन-सम्बन्धी उपबन्ध पर्वेश करने के िलए इस िनयम के अधीन पर्ािधकृ त व्यिक्तय को यथावश्यक
पिरवतर्न सिहत लागू ह गे ।
8. ऐसे आदेश के िलए आवेदन सूचना के पश्चात् िकया जाएगा(1) वादी ारा िनयम 6 और िनयम 7 के अधीन आदेश के
िलए आवेदन वाद के संिस्थत िकए जाने के पश्चात् िकसी भी समय 1 *** िकया जा सके गा ।
(2) पर्ितवादी ारा ऐसे ही आदेश के िलए आवेदन उपसंजात होने के पश्चात् िकसी भी समय 2 *** िकया जा सके गा ।
इस पर्योजन के िलए िकए गए आवेदन पर िनयम 6 या िनयम 7 के अधीन आदेश करने के पूवर् न्यायालय उसकी सूचना
3 [(3)
िवरोधी पक्षकार को देने का िनदेश वहां के िसवाय देगा जहां यह पर्तीत हो िक ऐसा आदेश करने का उ ेश्य िवलम्ब के कारण
िनष्फल हो जाएगा ।]
9. जो भूिम वाद की िवषय-वस्तु है उस पर पक्षकार का तुरन्त कब्जा कब कराया जा सके गाजहां सरकार को राजस्व देने
वाली भूिम या िवकर्य के दाियत्व के अधीन भू-धृित वाद की िवषय-वस्तु है वहां, यिद वह पक्षकार जो ऐसी भूिम या भू-धृित पर कब्जा
रखता है, यथिस्थित, सरकारी राजस्व या भू-धृित के स्वत्वधारी को शोध्य भाटक देने म उपेक्षा करता है और पिरणामत: ऐसी भूिम या
भू-धृित के िवकर्य के िलए आदेश िदया गया है तो उस वाद के िकसी भी अन्य पक्षकार का जो ऐसी भूिम या भू-धृित म िहतब होने का
दावा करता है, उस भूिम या भू-धृित पर तुरन्त कब्जा िवकर्य के पहले के शोध्य राजस्व या भाटक का संदाय कर िदए जाने
पर (और न्यायालय के िववेकानुसार पर्ितभूित सिहत या रिहत) कराया जा सके गा ;
और इस पर्कार संद रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सिहत जो न्यायालय ठीक समझे, न्यायालय अपनी िडकर्ी म
व्यितकर्मी के िवरु अिधिनण त कर सके गा या इस पर्कार संद रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सिहत जो न्यायालय आदेश करे ,
लेखा के िकसी ऐसे समायोजन म, जो वाद म पािरत िडकर्ी ारा िनिदष्ट िकया गया हो, पर्भािरत कर सके गा ।
10. न्यायालय म धन, आिद का जमा िकया जानाजहां वाद की िवषय-वस्तु धन या कोई ऐसी अन्य चीज है, िजसका
पिरदान िकया जा सकता है, और उसका कोई भी पक्षकार यह स्वीकार करता है िक वह ऐसे धन या ऐसी अन्य चीज को िकसी अन्य
पक्षकार के न्यासी के रूप म धारण िकए हुए है या यह अन्य पक्षकार की है या अन्य पक्षकार को शोध्य है वहां न्यायालय अपने
अितिरक्त िनदेश के अधीन रहते हुए यह आदेश दे सके गा िक उसे न्यायालय म जमा िकया जाए या पर्ितभूित सिहत या रिहत ऐसे
अिन्तम नािमत पक्षकार को पिरद िकया जाए ।
आदेश 40
िरसीवर की िनयुिक्त
1. िरसीवर की िनयुिक्त(1) जहां न्यायालय को यह न्यायसंगत और सुिवधापूणर् पर्तीत होता है वहां न्यायालय
आदेश ारा
(क) िकसी संपि का िरसीवर चाहे िडकर्ी के पहले या पश्चात् िनयुक्त कर सके गा ;
(ख) िकसी संपि पर से िकसी व्यिक्त का कब्जा या अिभरक्षा हटा सके गा ;
(ग) उसे िरसीवर के कब्जे, अिभरक्षा या पर्बन्ध के सुपुदर् कर सके गा ; तथा
(घ) वाद के लाने और वाद म पर्ितरक्षा करने के बारे म और संपि के आपन, पर्बन्ध, संरक्षण, पिररक्षण और
सुधार, उसके भाटक और लाभ के संगर्हण, ऐसे भाटक और लाभ के उपयोजन और व्ययन तथा दस्तावेज के िनष्पादन के
िलए सभी ऐसी शिक्तयां जो स्वयं स्वामी की ह, या उन शिक्तय म से ऐसी शिक्त जो न्यायालय ठीक समझे, िरसीवर को
पर्द कर सके गा ।
(2) इस िनयम की िकसी भी बात से न्यायालय को यह पर्ािधकार नह होगा िक वह िकसी ऐसे व्यिक्त का संपि पर से,
कब्जा या अिभरक्षा हटा दे िजसे ऐसे हटाने का वतर्मान अिधकार वाद के िकसी भी पक्षकार को नह है ।
2. पािरशर्िमकन्यायालय िरसीवर की सेवा के िलए पािरशर्िमक के रूप म दी जाने वाली रकम को साधारण या िवशेष
आदेश ारा िनयत कर सके गा ।
1
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) “पर्ितवादी को सूचना देने के पश्चात्” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) “वादी को सूचना देने के पश्चात्” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं०104 की धारा 86 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
183
समय के भीतर िजतना अपील न्यायालय अनुज्ञात करे , अपील म िववादगर्स्त रकम िनिक्षप्त करे गा या उसके सम्बन्ध म ऐसी पर्ितभूित
देगा जो न्यायालय ठीक समझे ।]
2. आधार जो अपील म िलए जा सकगेअपीलाथ , न्यायालय की इजाजत के िबना, आक्षेप के िकसी भी ऐसे आधार को जो
अपील के ज्ञापन म उपविणत नह है, न तो पेश करे गा और न उसके समथर्न म सुना ही जाएगा, िकन्तु अपील न्यायालय अपील का
िविनश्चय करने म आक्षेप के उन आधार तक ही सीिमत न रहेगा जो अपील के ज्ञापन म उपविणत ह या जो न्यायालय की इजाजत से
इस िनयम के अधीन िकए गए ह :
परन्तु न्यायालय अपने िविनश्चय को, िकसी अन्य आधार पर तब तक आधािरत नह करे गा जब तक उस पक्षकार को िजस
पर इसके ारा पर्भाव पड़ता है उस आधार पर मामले का पर्ितवाद करने का पयार्प्त अवसर न िमल गया हो ।
3. ज्ञापन का नामंजरू िकया जाना या संशोधन(1) जहां अपील का ज्ञापन इसम इसके पूवर् िविहत रीित से िलखा नह गया
है वहां वह नामंजूर िकया जा सके गा या अपीलाथ को ऐसे समय के भीतर संशोिधत िकए जाने के पर्योजन से जो न्यायालय ारा िनयत
िकया जाएगा, लौटाया जा सके गा या तभी और वहां ही संशोिधत िकया जा सके गा ।
(2) जहां न्यायालय िकसी ज्ञापन को नामंजूर करे वहां वह ऐसी नामंजूरी के कारण को लेखब करे गा ।
1
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
184
(3) जहां अपील के ज्ञापन का संशोधन िकया जाता है वहां न्यायाधीश या ऐसा अिधकारी जो उसने इस िनिम िनयुक्त िकया
हो, उस संशोधन को हस्ताक्षिरत या आ क्षिरत करे गा ।
िवलम्ब की माफी के िलए आवेदन(1) जब कोई अपील उसके िलए िविहत पिरसीमाकाल के पश्चात् उपस्थािपत की
1 [3क.
जाती है, तब उसके साथ ऐसे शपथपतर् ारा समिथत आवेदन होगा िजसम वे तथ्य उपविणत ह गे िजन पर अपीलाथ न्यायालय का यह
समाधान करने के िलए िनभर्र करता है िक ऐसी अविध के भीतर अपील न करने के िलए उसके पास पयार्प्त कारण था ।
(2) यिद न्यायालय यह समझता है िक पर्त्यथ को सूचना जारी िकए िबना आवेदन को नामंजूर करने का कोई कारण नह है
तो उसकी सूचना पर्त्यथ को जारी की जाएगी और, यथािस्थित, िनयम 11 या िनयम 13 के अधीन अपील को िनपटाने के िलए अगर्सर
होने के पूवर् न्यायालय ारा उस मामले का अिन्तम रूप से िविनश्चय िकया जाएगा ।
(3) जहां उपिनयम (1) के अधीन कोई आवेदन िकया गया है वहां न्यायालय उस िडकर्ी के िजसके िवरु अपील फाइल िकए
जाने की पर्स्थापना है, िनष्पादन, को रोकने के िलए आदेश उस समय तक नह करे गा जब तक न्यायालय िनयम 11 के अधीन सुनवाई के
पश्चात् अपील सुनने का िविनश्चय नह कर लेता है ।]
4. कई वािदय या पर्ितवािदय म से एक पूरी िडकर्ी को उलटवा सके गा जहां वह ऐसे आधार पर दी गई है जो उन सभी के
िलए सामान्य हैजहां वाद म एक से अिधक वादी या पर्ितवादी ह और वह िडकर्ी िजसकी अपील की जाती है, िकसी ऐसे आधार पर दी
गई है जो सभी वािदय या सभी पर्ितवािदय के िलए सामान्य है वहां वािदय या पर्ितवािदय म से कोई भी एक पूरी िडकर्ी की अपील
कर सके गा और अपील न्यायालय तब उस िडकर्ी को, यथािस्थित, सभी वािदय के या पर्ितवािदय के पक्ष म उलट सके गा या उसम
फे रफार कर सके गा ।
कायर्वािहय का और िनष्पादन का रोका जाना
5. अपील न्यायालय ारा रोका जाना(1) अपील का पर्भाव िजस िडकर्ी या आदेश की अपील की गई है, उसके अधीन की
कायर्वािहय को रोकना नह होगा, िकन्तु यिद अपील न्यायालय आदेश दे तो कायर्वािहयां रोकी जा सकगी । के वल इस कारण से िक
िडकर्ी से अपील की गई है, िडकर्ी का िनष्पादन नह हो जाएगा, िकन्तु अपील न्यायालय ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के रोके जाने के िलए
आदेश पयार्प्त हेतुक से दे सके गा ।
[स्पष्टीकरणिडकर्ी के िनष्पादन को रोकने के िलए अपील न्यायालय का आदेश पर्थम बार के न्यायालय को ऐसे आदेश की
1
संसूचना की तारीख से पर्भावी होगा, िकन्तु िनष्पादन को रोकने के िलए आदेश की या उसके पर्ितकू ल िकसी आदेश की, अपील
न्यायालय से पर्ािप्त होने तक पर्थम बार का न्यायालय अपीलाथ की उसकी वैयिक्तक जानकारी पर आधािरत ऐसे शपथपतर् पर
कायर्वाही करे गा िजसम यह किथत हो िक िडकर्ी के िनष्पादन को रोकने के िलए अपील न्यायालय ारा आदेश दे िदया गया है ।]
(2) िजस न्यायालय ने िडकर्ी पािरत की थी उसके ारा रोका जानाजहां िकसी अपीलनीय िडकर्ी के िनष्पाउन के रोके जाने
के िलए आवेदन उस समय के अवसान से पूवर् जो उसकी अपील करने के िलए अनुज्ञात है, िकया जाता है वहां िडकर्ी पािरत करने वाला
न्यायालय िनष्पादन के रोके जाने के िलए आदेश पयार्प्त हेतुक दिशत िकए जाने पर दे सके गा ।
(3) िनष्पादन रोके जाने के िलए कोई भी आदेश उपिनयम (1) या उपिनयम (2) के अधीन तब तक नह िकया जाएगा जब
तक उसे देने वाले न्यायालय का यह समाधान नह हो जाता िक
(क) यिद वह आदेश न िकया गया तो पिरणाम यह हो सकता है िक िनष्पादन के रोके जाने का आवेदन करने वाले
पक्षकार को सारवान् हािन हो ;
(ख) आवेदन अयुिक्तयुक्त िवलम्ब के िबना िकया गया है ; तथा
(ग) आवेदक ने ऐसी िडकर्ी या आदेश के सम्यक् रूप से पालन के िलए जो अन्त म उसके िलए आब कर हो,
पर्ितभूित दे दी है ।
(4) 2 [उपिनयम (3) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए] न्यायालय आवेदन की सुनवाई लिम्बत रहने तक िनष्पादन के रोके जाने
के िलए एकपक्षीय आदेश कर सके गा ।
[(5) पूवर्गामी उपिनयम म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, जहां अपीलाथ िनयम 1 के उपिनयम (3) म िविनिदष्ट
1
िनक्षेप करने म या पर्ितभूित देने म असफल रहता है वहां न्यायालय िडकर्ी का िनष्पादन रोकने वाला आदेश नह करे गा ।]
6. िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आदेश की दशा म पर्ितभूित(1) जहां ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आदेश िकया गया है
िजसकी अपील लिम्बत है वहां िडकर्ी पािरत करने वाला न्यायालय अपीलाथ ारा पयार्प्त हेतुक दिशत िकए जाने पर िकसी ऐसी
सम्पि के पर्त्यास्थापन के िलए जो िडकर्ी के िनष्पादन म ली जाए या ले ली गई है या ऐसी सम्पि के मूल्य को देने के िलए और अपील
न्यायालय की िडकर्ी या आदेश के सम्यक् पालन के िलए पर्ितभूित का िलया जाना अपेिक्षत करे गा या वैसे ही हेतुक के िलए यह िनदेश
अपील न्यायालय िडकर्ी पािरत करने वाले न्यायालय को दे सके गा िक वह ऐसी पर्ितभूित ले ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
185
(2) जहां िडकर्ी के िनष्पादन म स्थावर सम्पि के िवकर्य का आदेश कर िदया गया है और ऐसी िडकर्ी की अपील लिम्बत है
वहां उस न्यायालय से िजसने आदेश िकया था, िनण त-ऋणी के आवेदन करने पर िवकर्य को पर्ितभूित देने के बारे म या अन्यथा ऐसे
िनबन्धन पर जो न्यायालय ठीक समझे, तब तक के िलए रोक िदया जाएगा जब तक अपील का िनपटारा न हो जाए ।
7. 1 [कु छ मामल म सरकार से या लोक अिधकारी से कोई पर्ितभूित अपेिक्षत न की जाए।]भारत शासन (भारतीय िविध
अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा िनरिसत ।
8. िडकर्ी के िनष्पादन म िकए गए आदेश की अपील म शिक्तय का पर्योगजहां अपील िडकर्ी के िवरु नह बिल्क िडकर्ी के
िनष्पादन म िकए गए आदेश के िवरु की जाए या की गई है वहां िनयम 5 और िनयम 6 ारा पर्द शिक्तय का पर्योग िकया जा
सके गा ।
अपील के गर्हण पर पर्िकर्या
अपील के ज्ञापन का रिजस्टर म चढ़ाया जाना(1) वह न्यायालय िजसकी िडकर्ी के िवरु अपील होती है, अपील के
2 [9.
ज्ञापन को गर्हण करे गा और उस पर उसके उपस्थािपत िकए जाने की तारीख पृष्ठांिकत करे गा और अपील को उस पर्योजन के िलए रखी
जाने वाली पुस्तक म चढ़ाएगा ।
(2) ऐसी पुस्तक अपील का रिजस्टर कहलाएगी ।]
10. अपील न्यायालय अपीलाथ से खच के िलए पर्ितभूित देने की अपेक्षा कर सके गा(1) अपील न्यायालय या तो पर्त्यथ
के उपसंजात होने और उ र देने के िलए बुलाए जाने के पहले या तत्पश्चात् पर्त्यथ के आवेदन पर अपील के या मूल वाद के या दोन के
खच के िलए पर्ितभूित अपीलाथ से स्विवकानुसार मांग सके गा :
जहां अपीलाथ भारत के बाहर िनवास करता हैपरन्तु न्यायालय उन सभी मामल म ऐसी पर्ितभूित की मांग करे गा िजनम
अपीलाथ 3 [भारत] के बाहर िनवास करता है और उसके पास अपील से संबंिधत संपि से (यिद कोई हो) िभन्न 3[भारत] के भीतर
कोई पयार्प्त स्थावर संपि नह है ।
(2) जहां ऐसी पर्ितभूित ऐसे समय के भीतर न दी जाए जो न्यायालय ने आिदष्ट िकया है वहां न्यायालय अपील
नामंजूर कर देगा ।
11. िनचले न्यायालय को सूचना भेजे िबना अपील खािरज करने की शिक्त 4 [(1) अपील न्यायालय, अपीलाथ या उसके
प्लीडर को सुनने के िलए िदन िनयत करने के पश्चात् और यिद वह उस िदन उपसंजात होता है तो तद्नुसार उसे सुनने के पश्चात्
अपील को खािरज कर सके गा] ।
(2) यिद िनयत िदन को या िकसी अन्य िदन को िजसके िलए सुनवाई स्थिगत की गई हो, अपीलाथ अपील की सुनवाई के
िलए पुकार होने पर उपसंजात न हो तो न्यायालय आदेश कर सके गा िक अपील खािरज कर दी जाए ।
(3) इस िनयम के अधीन अपील का खािरज िकया जाना उस न्यायालय को अिधसूिचत िकया जाएगा िजसकी िडकर्ी की
अपील की गई है ।]
[(4) जहां कोई अपील न्यायालय जो उच्च न्यायालय न हो, उपिनयम (1) के अधीन िकसी अपील को खािरज करता है वहां
5
वह वैसा करने के िलए अपने आधार को संक्षेप म लेखब करते हुए िनणर्य देगा और िनणर्य के अनुसार िडकर्ी िलखी जाएगी ।]
[11क. समय िजसके भीतर िनयम 11 के अधीन सुनवाई समाप्त हो जानी चािहएपर्त्येक अपील िनयम 11 के अधीन
5
यथासंभव शीघर्ता से सुनी जाएगी और ऐसी सुनवाई को उस तारीख से िजसको अपील का ज्ञापन फाइल िकया गया है, साठ िदन के
भीतर समाप्त करने का पर्यास िकया जाएगा ।]
12. अपील की सुनवाई के िलए िदन(1) यिद अपील न्यायालय िनयम 11 के अधीन अपील को खािरज न कर दे तो वह
अपील की सुनवाई के िलए िदन िनयत करे गा ।
6 [(2) ऐसा िदन न्यायालय के चालू कारबार को ध्यान म रखते हुए िनयत िकया जाएगा ।]
7* * * * *
14. अपील की सुनवाई के िदन की सूचना का पर्काशन और तामील(1) िनयम 12 के अधीन िनयत िकए गए िदन की सूचना
अपील न्याय-सदन म लगाई जाएगी और वैसी ही सूचना अपील न्यायालय ारा उस न्यायालय को भेजी जाएगी िजसकी िडकर्ी की
1
उपरोक्त आदेश 27 का िनयम 8क देिखए ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) िनयम 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 ारा “राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) िनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
6
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) िनयम 13 का लोप िकया गया ।
186
अपील की गई है और पर्त्यथ पर या अपील न्यायालय म उसके प्लीडर पर उसकी तामील उस रीित से की जाएगी जो उपसंजात होने
और उ र देने के िलए समन की पर्ितवादी पर तामील के िलए उपबंिधत है, और ऐसे समन को और उनकी तामील िवषयक
कायर्वािहय को लागू सभी उपबन्ध ऐसी सूचना की तामील को लागू ह गे ।
(2) अपील न्यायालय स्वयं सूचना की तामील करवा सके गािजस न्यायालय की िडकर्ी की अपील की गई है उसे सूचना
भेजने के बजाय अपील न्यायालय पर्त्यथ पर या उसके प्लीडर पर सूचना की तामील ऊपर िनिदष्ट उपबंध के अधीन स्वयं करवा
सके गा ।
1
[(3) पर्त्यथ पर तामील की जाने वाली सूचना के साथ अपील के ज्ञापन की एक पर्ित होगी ।]
(4) उपिनयम (1) म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी, िकसी अपील की आनुषंिगक िकसी कायर्वाही की सूचना की
तामील अपील न्यायालय म पर्थम बार पक्षकार बनाए गए व्यिक्त से िभन्न िकसी पर्त्यथ पर करनी आवश्यक नह होगी जब तक िक
पर्थम बार के न्यायालय म वह उपसंजात न हुआ हो और उसने तामील के िलए कोई पता फाइल न िकया हो या वह अपील म उपसंजात
न हुआ हो ।
(5) उपिनयम (4) की कोई भी बात अपील म िनिदष्ट पर्त्यथ को उसका पर्ितवाद करने से विजत नह करे गी ।]
2* * * * *
सुनवाई की पर्िकर्या
16. शुरू करने का अिधकार(1) िनयत िदन को या ऐसे िकसी अन्य िदन को िजसके िलए सुनवाई स्थिगत की गई हो,
अपीलाथ को अपील के समथर्न म सुना जाएगा ।
(2) तब यिद न्यायालय अपील को तुरन्त खािरज न कर दे तो वह अपील के िवरु पर्त्यथ को सुनेगा और ऐसी दशा म
अपीलाथ उ र देने का हकदार होगा ।
17. अपीलाथ के व्यितकर्म के िलए अपील का खािरज िकया जाना(1) जहां िनयत िदन को या िकसी अन्य िदन को, िजसके
िलए सुनवाई स्थिगत की गई है, अपीलाथ अपील की सुनवाई के िलए पुकार होने पर उपसंजात नह होता है वहां न्यायालय आदेश कर
सके गा िक अपील खािरज की जाए ।
[स्पष्टीकरणइस उपिनयम की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह न्यायालय को गुणागुण के आधार पर
1
न्यायालय, ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे खच सम्बन्धी ऐसे िनबन्धन पर जो वह ठीक समझे, वैसा करने की अनुज्ञा नह दे
देता ।]
21. उस पर्त्यथ के आवेदन पर पुन: सुनवाई िजसके िवरु एकपक्षीय िडकर्ी की गई हैजहां अपील एकपक्षीय सुनी जाती है
और पर्त्यथ के िवरु िनणर्य सुना िदया जाता है वहां वह अपील न्यायालय से अपील को पुन: सुनने के िलए आवेदन कर सके गा और
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) िनयम 13 का लोप िकया गया ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) िनयम 18 का लोप िकया गया ।
4
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) “या िनयम 18” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) िनयम 20 को उसके उपिनयम (1) के रूप म पुन: संख्यांिकत िकया गया ।
187
यिद वह न्यायालय का समाधान कर देता है िक सूचना की तामील सम्यक् रूप से नह की गई थी वह अपील की सुनवाई के िलए पुकार
होने पर उपसंजात होने से पयार्प्त हेतुक से िनवािरत हो गया था तो न्यायालय खच सम्बन्धी या अन्यथा ऐसे िनबन्धन पर जो पर्त्यथ
पर अिधरोिपत करना वह ठीक समझे, उस अपील को पुन: सुनेगा ।
22. सुनवाई म पर्त्यथ िडकर्ी के िवरु ऐसे आक्षेप कर सके गा मानो उसने पृथक् अपील की हो(1) कोई भी पर्त्यथ , य िप
उसने िडकर्ी के िकसी भाग के िवरु अपील न की हो, 1 [न के वल िडकर्ी का समथर्न कर सके गा बिल्क यह कथन भी कर सके गा िक िनचले
न्यायालय म उसके िवरु िकसी िववा क की बाबत िनणर्य उसके पक्ष म होना चािहए था और िडकर्ी के िवरु कोई ऐसा पर्त्याक्षेप भी
कर सके गा] जो वह अपील ारा कर सकता था :
परन्तु यह तब जब िक उसने ऐसा आक्षेप अपील न्यायालय म उस तारीख से एक मास के भीतर िजसको उस पर या उसके
प्लीडर पर अपील की सुनवाई के िलए िनयत िदन की सूचना की तामील हुई थी, या ऐसे अितिरक्त समय के भीतर िजसे अनुज्ञात करना
अपील न्यायालय ठीक समझे, फाइल कर िदया हो ।
[स्पष्टीकरणकोई पर्त्यथ जो िनणर्य म उस न्यायालय के िकसी ऐसे िनष्कषर् से िजस पर िडकर्ी आधािरत है िजसके िवरु
2
अपील की गई है इस िनयम के अधीन पर्त्याक्षेप, जहां तक िक वह िडकर्ी उस िनष्कषर् पर आधािरत है, इस बात के होते हुए भी फाइल
कर सके गा िक न्यायालय के िकसी अन्य िनष्कषर् पर जो उस वाद के िविनश्चय के िलए पयार्प्त है िविनश्चय के कारण वह िडकर्ी पूणर्त:
या भागत: उस पर्त्यथ के पक्ष म है ।]
(2) आक्षेप का पर्रूप और उसको लागू होने वाले उपबन्धऐसा पर्त्याक्षेप ज्ञापन के पर्ारूप म होगा और िनयम 1 के उपबन्ध
उसे वहां तक लागू ह गे जहां तक वे अपील के ज्ञापन के पर्ारूप और अन्तवर्स्तु से सम्बिन्धत ह ।
3* * * * *
(4) जहां िकसी ऐसे मामले म िजसम आक्षेप के ज्ञापन को पर्त्यथ ने इस िनयम के अधीन फाइल कर िदया है, मूल अपील
पर्त्याहृत कर ली जाती है या व्यितकर्म के िलए खािरज कर दी जाती है वहां ऐसा होने पर भी वह आक्षेप जो ऐसे फाइल िकया गया है,
अन्य पक्षकार को ऐसी सूचना के पश्चात् जो न्यायालय ठीक समझे, सुना और अवधािरत िकया जा सके गा ।
(5) िनधर्न व्यिक्तय ारा अपील से सम्बिन्धत उपबन्ध इस िनयम के अधीन आक्षेप को भी वहां तक लागू ह गे जहां तक वे
लागू िकए जा सकते ह ।
23. मामले का अपील न्यायालय ारा पर्ितपर्ेषणजहां उस न्यायालय ने िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, वाद का
िनपटारा िकसी पर्ारिम्भक बात पर कर िदया है और िडकर्ी अपील म उलट दी गई है वहां यिद अपील न्यायालय ऐसा करना ठीक समझे
तो वह मामले का आदेश ारा पर्ितपर्ेषण कर सके गा और यह अितिरक्त िनदेश दे सके गा िक ऐसे पर्ितपर्ेिषत मामले म कौन से िववा क
या िववा क का िवचारण िकया जाए और अपने िनणर्य और आदेश की पर्ित उस न्यायालय को िजसको िडकर्ी की अपील की गई है, इन
िनदेश के साथ भेजेगा िक वह वाद, िसिवल वाद के रिजस्टर म अपने मूल संख्यांक पर पुन: गर्हण िकया जाए और वाद के अवधारण के
िलए आगे कायर्वाही की जाए, और यिद कोई सा य मूल िवचारण के दौरान म अिभिलिखत कर िलया गया था तो वह सभी न्यायसंगत
अपवाद के अधीन रहते हुए, पर्ितपर्ेषण के पश्चात् वाले िवचारण के दौरान म सा य होगा ।
2
[23क. अन्य मामल म पर्ितपर्ेषणजहां उस न्यायालय ने िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है मामले का िनपटारा िकसी
पर्ारिम्भक बात पर करनेसे अन्यथा कर िदया है और िडकर्ी अपील म उलट दी गई है और पुनिवचारण आवश्यक समझा गया है वहां
अपील न्यायालय की वही शिक्तयां ह गी जो उसकी िनयम 23 के अधीन ह ।]
24. जहां अिभलेख म का सा य पयार्प्त है वहां अपील न्यायालय मामले का अिन्तम रूप से अवधारण कर सके गाजहां
अिभलेख म का सा य अपील न्यायालय ारा िनणर्य सुनाए जाने के िलए पयार्प्त है वहां अपील न्यायालय, यिद आवश्यक हो,
िववा क का पुन: िस्थरीकरण करने के पश्चात् वाद का इस बात के होते हुए भी अिन्तम रूप से अवधारण कर सके गा िक उस
न्यायालय का िनणर्य िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, पूणर्त: उस आधार से िभन्न आधार पर िकया गया है िजस आधार पर अपील
न्यायालय ने कायर्वाही की है ।
25. अपील न्यायालय कहां िववा क की िवरचना कर सके गा और उन्ह उस न्यायालय को िवचारण के िलए िनिदष्ट कर
सके गा िजसकी िडकर्ी की अपील की गई हैजहां उस न्यायालय ने िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, ऐसे िकसी िववा क की
िवरचना या िवचारण म या िकसी ऐसे तथ्य के पर्श्न के अवधारण म लोप िकया है जो अपील न्यायालय को वाद के गुणागुण पर ठीक
िविनश्चय के िलए परमावश्यक पर्तीत होता है वहां यिद आवश्यक हो तो अपील न्यायालय िववा क की िवरचना कर सके गा और उन्ह
उस न्यायालय को िवचारण के िलए िनिदष्ट कर सके गा िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है और ऐसी दशा म ऐसे न्यायालय को
अपेिक्षत अितिरक्त सा य लेने के िलए िनदेश देगा,
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1999 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 31 ारा (1-7-2002 से) उपिनयम (3) का लोप िकया गया ।
188
और ऐसा न्यायालय ऐसे िववा क के िवचारण के िलए अगर्सर होगा और सा य को उस पर अपने िनष्कष के सिहत और
उनके िलए अपने कारण के सिहत 1 [ऐसे समय के भीतर जो अपील न्यायालय ारा िनयत िकया जाए या उसके ारा समय-समय पर
बढ़ाया जाए,] अपील न्यायालय को लौटा देगा ।
26. िनष्कषर् और सा य का अिभलेख म सिम्मिलत िकया जाना । िनष्कषर् पर आक्षेप(1) ऐसा सा य और ऐसे िनष्कषर् वाद
के अिभलेख का भाग ह गे और दोन पक्षकार म से कोई भी ऐसे समय के भीतर जो अपील न्यायालय ारा िनयत िकया जाएगा, िकसी
भी िनष्कषर् के पर्ित आक्षेप का ज्ञापन उपस्थािपत कर सके गा ।
(2) अपील का अवधारणऐसे ज्ञापन के उपस्थािपत िकए जाने के िलए इस पर्कार िनयत की गई अविध के अवसान के
पश्चात् अपील न्यायालय अपील का अवधारण करने के िलए अगर्सर होगा ।
[26क. पर्ितपर्ेषण के आदेश म अगली सुनवाई का उल्लेख िकया जानाजहां अपील न्यायालय िनयम 23 या िनयम 23क के
1
अधीन मामला पर्ितपर्ेिषत करता है या िनयम 25 के अधीन िववा क की िवरचना करता है और उन्ह िवचारण के िलए िनिदष्ट करता
है वहां वह उस मामले म आगे कायर्वाही के बारे म उस न्यायालय के िजसकी िडकर्ी की अपील की गई थी, िनदेश पर्ाप्त करने के पर्योजन
के िलए उस न्यायालय के समक्ष पक्षकार की उपसंजाित के िलए तारीख िनयत करे गा ।]
27. अपील न्यायालय म अितिरक्त सा य का पेश िकया जाना(1) अपील के पक्षकार अपील न्यायालय म अितिरक्त सा य
चाहे वह मौिखक हो या दस्तावेजी, पेश करने के हकदार नह ह गे िकन्तु यिद
(क) उस न्यायालय ने िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, ऐसा सा य गर्हण करने से इन्कार कर िदया है जो गर्हण
िकया जाना चािहए था, अथवा
[(कक) वह पक्षकार जो अितिरक्त सा य पेश करना चाहता है यह िस कर देता है िक वह सम्यक् तत्परता का
1
पर्योग करने के बावजूद ऐसे सा य की जानकारी नह रखता था या उसे उस समय पेश नह कर सकता था जब वह िडकर्ी
पािरत की गई थी िजसके िवरु अपील की गई है, अथवा]
(ख) अपील न्यायालय िकसी दस्तावेज के पेश िकए जाने की या िकसी साक्षी की परीक्षा की जाने की अपेक्षा या तो
स्वयं िनणर्य सुनाने के समथर् होने के िलए या िकसी अन्य सारवान् हेतुक के िलए करे ,
तो अपील न्यायालय ऐसे सा य का िलया जाना या दस्तावेज का पेश िकया जाना या साक्षी की परीक्षा का िकया जाना अनुज्ञात कर
सके गा ।
(2) जहां कह अितिरक्त सा य पेश करने के िलए अपील न्यायालय अनुज्ञा दे देता है वहां न्यायलय ऐसे सा य के गर्हण िकए
जाने के कारण को लेखब करे गा ।
28. अितिरक्त सा य लेने की रीितजहां कही अितिरक्त सा य पेश करने की अनुज्ञा दी जाती है वहां अपील न्यायालय
ऐसा सा य स्वयं ले सके गा या उस न्यायालय को िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है या िकसी अन्य अधीनस्थ न्यायालय को ऐसा सा य
लेने के िलए और उसके ले िलए जाने पर अपील न्यायालय को उसे, भेजने के िलए िनदेश दे सके गा ।
29. िवषय-िबन्दु का पिरभािषत और लेखब िकया जानाजहां अितिरक्त सा य लेने का िनदेश िदया जाता है या अनुज्ञा
दी जाती है वहां अपील न्यायालय उन िवषय-िबन्दु को िविनिदष्ट करे गा िजन तक सा य को सीिमत रखना है, और अपनी
कायर्वािहय म उन िवषय-िबन्दु को लेखब करे गा जो इस पर्कार िविनिदष्ट िकए गए ह ।
अपील का िनणर्य
30. िनणर्य कब और कहां सुनाया जाएगा 2 [(1)] अपील न्यायालय पक्षकार को या उनके प्लीडर को सुनने के पश्चात्
और अपील की या उस न्यायालय की िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, कायर्वािहय के ऐसे िकसी भाग का अवलोकन करने के
पश्चात् िजसका अवलोकन करना आवश्यक समझा जाए खुले न्यायालय म तुरंत या िकसी भिवष्यवत िदन को िजसकी सूचना पक्षकार
को या उनके प्लीडर को दी जाएगी, िनणर्य सुनाएगा ।
[(2) जहां कोई िलिखत िनणर्य सुनाया जाना है वहां अवधायर् पर्श्न, उन पर िविनश्चय और अपील म पािरत अिन्तम आदेश
1
को पढ़ा जाना पयार्प्त होगा और न्यायालय के िलए सम्पूणर् िनणर्य को पढ़ना आवश्यक नह होगा, िकन्तु पक्षकार या उनके प्लीडर को
पिरशीलन के िलए सम्पूणर् िनणर्य की पर्ित िनणर्य सुनाए जाने के तुरंत पश्चात् उपलब्ध कराई जाएगी ।]
31. िनणर्य की अन्तवर्स्तु, तारीख और हस्ताक्षरअपील न्यायालय का िनणर्य िलिखत होगा और उसम
(क) अवधायर् पर्श्न ;
(ख) उन पर िविनश्चय ;
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) िनयम 30 को उसके उपिनयम (1) के रूप म पुन: संख्यांिकत िकया गया ।
189
न्यायालय ने िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, ऐसा आदेश नह िकया है या ऐसा आदेश करने से इन्कार िकया है ।]
दृष्टांत
क यह दावा करता है िक भ या म से उसे एक धनरािश शोध्य है और दोन के िवरु वाद म भ के िवरु िडकर्ी अिभपर्ाप्त कर
लेता है । भ अपील करता है और क और म पर्त्यथ ह । अपील न्यायालय भ के पक्ष म िविनश्चय करता है । उसकी यह शिक्त है िक वह
भ के िवरु िडकर्ी पािरत करे ।
34. िवसम्मित का लेखब िकया जानाजहां अपील एक से अिधक न्यायाधीश ारा सुनी जाती है वहां न्यायालय के िनणर्य
से िवसम्मत कोई भी न्यायाधीश उस िविनश्चय या आदेश का जो वह समझता है िक अपील म पािरत िकया जाना चािहए, िलिखत रूप
म कथन करे गा और वह उसके िलए अपने कारण का कथन कर सके गा ।
अपील म की िडकर्ी
िडकर्ी की तारीख और अन्तवर्स्तु(1) अपील न्यायालय की िडकर्ी पर उस िदन की तारीख होगी िजस िदन िनणर्य
3 35.
सुनाया गया था ।
(2) िडकर्ी म अपील के संख्यांक, अपीलाथ और पर्त्यथ के नाम और वणर्न, तथा िदया गया अनुतोष या िकए गए अन्य
न्यायिनणर्यन का स्पष्ट िविनदश अन्तिवष्ट ह गे ।
(3) अपील म उपगत खच की रकम भी और यह बात भी िक ऐसे खच और वाद के खचर् िकसके ारा या िकस सम्पि म से
और िकस अनुपात म िदए जाएंग,े िडकर्ी म किथत ह गी ।
(4) िडकर्ी उस न्यायाधीश या उन न्यायाधीश ारा िजसने या िजन्ह ने उसे पािरत िकया हो, हस्ताक्षिरत और िदनांिकत की
जाएगी ।
िनणर्य से िवसम्मत न्यायाधीश के िलए िडकर्ी पर हस्ताक्षर करना आवश्यक नह परन्तु जहां एक से अिधक न्यायाधीश ह
और उनम मतभेद हो वहां न्यायालय के िनणर्य से िवसम्मत िकसी भी न्यायाधीश के िलए यह आवश्यक नह होगा िक वह िडकर्ी पर
हस्ताक्षर करे ।
36. पक्षकार को िनणर्य और िडकर्ी की पर्ितय का िदया जानाअपील के िनणर्य और िडकर्ी की पर्मािणत पर्ितयां पक्षकार
को अपील न्यायालय से आवेदन करने पर और उनके व्यय पर दी जाएंगी ।
37. िडकर्ी की पर्मािणत पर्ित उस न्यायालय को भेजी जाएगी िजसकी िडकर्ी की अपील की गई थीिनणर्य और िडकर्ी की एक
पर्ित अपील न्यायालय ारा या ऐसे अिधकारी ारा जो वह इस िनिम िनयुक्त करे , पर्मािणत की जाकर उस न्यायालय को भेजी
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 87 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1922 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 4 ारा अन्त:स्थािपत, िजसे उक्त अिधिनयम की धारा 1(2) के अधीन िकसी भी िविनिदष्ट तारीख को िकसी राज्य म राज्य
सरकार ारा पर्वृ िकया जा सके गा । यह अिधिनयम मुम्बई, बंगाल, संयुक्त पर्ान्त, पंजाब, िबहार, मध्य पर्ान्त, असम, उड़ीसा और तिमलनाडु म पर्वृ िकया गया है ।
3
यह िनयम अवध के मुख्य न्यायालय की अपीली अिधकािरता के पर्योग म लागू नह होता है । देिखए अवध कोट्सर् ऐक्ट, 1925 (1925 का यू०पी० अिधिनयम सं० 4)
की धारा 16(3) ।
190
जाएगी िजसके ारा वह िडकर्ी पािरत की गई थी िजसकी अपील की गई है और वाद की मूल कायर्वािहय के साथ फाइल की जाएगी
और अपील न्यायालय के िनणर्य की पर्िविष्ट िसिवल वाद के रिजस्टर म की जाएगी ।
आदेश 42
अपीली िडिकर्य की अपील
1. पर्िकर्याआदेश 41 के िनयम अपीली िडिकर्य की अपील को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
न्यायालय की यह िनदेश देने की शिक्त िक उसके ारा बनाए गए पर्श्न पर अपील सुनी जाएआदेश 41 के िनयम 11
1 [2.
के अधीन ि तीय अपील की सुनवाई के िलए आदेश िकए जाने के समय, न्यायालय धारा 100 ारा यथा अपेिक्षत सारवान् िविध-पर्श्न
बनाएगा और ऐसा करने म न्यायालय िनदेश कर सके गा िक ि तीय अपील इस पर्कार बनाए गए पर्श्न पर सुनी जाएगी और अपीलाथ
न्यायालय की इजाजत के िबना जो धारा 100 के उपबन्ध के अनुसार दी गई हो, अपील म कोई अन्य आधार िनवेिदत करने के िलए
स्वतंतर् नह होगा ।
3. आदेश 41 के िनयम 14 का लागू होनाआदेश 41 के िनयम 14 के उपिनयम (4) म पर्थम बार के न्यायालय के पर्ित
िनदश का िकसी अपीली िडकर्ी या आदेश की अपील की दशा म यह अथर् लगाया जाएगा िक वे उस न्यायालय के पर्ित िनदश ह िजसम
मूल िडकर्ी या आदेश की अपील की गई थी ।
आदेश 43
आदेश की अपील
1. आदेश की अपीलधारा 104 के उपबन्ध के अधीन िनम्निलिखत आदेश की अपील होगी, अथार्त् :
(क) वादपतर् के उिचत न्यायालय म उपिस्थत िकए जाने के िलए लौटाने का आदेश जो आदेश 7 के िनयम 10 के
अधीन िदया गया हो, 2 [िसवाय उस दशा के जब आदेश 7 के िनयम 10क म िविनिदष्ट पर्िकर्या का अनुसरण िकया गया हो] ;
3
* * * *
(ग) वाद की खािरजी को अपास्त करने के आदेश के िलए (ऐसे मामले म िजसम अपील होती है) आवेदन को
नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 9 के िनयम 9 के अधीन िदया गया हो ;
(घ) एकपक्षीय पािरत िडकर्ी को अपास्त करने के आदेश के िलए (ऐसे मामले म िजसम अपील होती है) आवेदन के
नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 9 के िनयम 13 के अधीन िदया गया हो ;
3
* * * *
(च) आदेश 11 के िनयम 21 के अधीन आदेश ;
3
* * * *
(झ) दस्तावेज के या पृष्ठांकन के पर्ारूप पर िकए गए आक्षेप पर आदेश जो आदेश 21 के िनयम 34 के अधीन
िदया गया हो ;
(ञ) िवकर्य को अपास्त करने का या अपास्त करने से इं कार करने का आदेश जो आदेश 21 के िनयम 72 या िनयम
92 के अधीन िदया गया हो ;
[(ञक) आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 21 के िनयम 106 के उपिनयम (1) के अधीन िकया गया हो
2
परन्तु मूल आवेदन पर अथार्त् उस आदेश के िनयम 105 के उपिनयम (1) म िनिदष्ट आवेदन पर आदेश अपीलनीय है ;]
(ट) वाद के उपशमन या खािरजी को अपास्त करने से इं कार करने का आदेश जो आदेश 22 के िनयम 9 के अधीन
िदया गया हो ;
(ठ) इजाजत देने का या इजाजत देने से इं कार करने का आदेश जो आदेश 22 के िनयम 10 के अधीन िदया गया हो ;
3
* * * *
(ढ) वाद की खािरजी को अपास्त करने से इं कार करने का आदेश के िलए (ऐसे मामले म िजसम अपील होती है)
आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 25 के िनयम 2 के अधीन िदया गया हो ;
[(ढक) िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 33 के
2
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 88 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 89 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 89 ारा (1-2-1977 से) खण्ड (ख), (ङ), (छ), (ज), (ड), (ण), और (फ) का लोप िकया गया ।
191
1* * * *
(त) अन्तरािभवाची वाद म आदेश जो आदेश 35 के िनयम 3, िनयम 4 या िनयम 6 के अधीन िदया गया हो ;
(थ) आदेश 38 के िनयम 2, िनयम 3 या िनयम 6 के अधीन आदेश ;
(द) आदेश 39 के िनयम 1, िनयम 2, 2 [िनयम 2क], िनयम 4 या िनयम 10 के अधीन आदेश ;
(ध) आदेश 40 के िनयम 1 या िनयम 4 के अधीन आदेश ;
(न) अपील को आदेश 41 के िनयम 19 के अधीन पुन: गर्हण करने या आदेश 41 के िनयम 21 के अधीन पुन: सुनने से
इं कार करने का आदेश ;
(प) जहां अपील न्यायालय की िडकर्ी की अपील होती हो वहां मामले को पर्ितपर्ेिषत करने का आदेश जो आदेश 41
के िनयम 23 2[या िनयम 23क] के अधीन िदया गया हो ;
1
* * * *
(ब) पुनिवलोकन के िलए आवेदन मंजूर करने का आदेश जो आदेश 47 के अधीन िदया गया हो ।
[1क. िडिकर्य के िवरु अपील म के ऐसे आदेश पर आक्षेप करने का अिधकार िजनकी अपील नह की जा
2
सकती(1) जहां इस संिहता के अधीन कोई आदेश िकसी पक्षकार के िवरु िकया जाता है और तदुपरान्त िनणर्य ऐसे पक्षकार के
िवरु सुनाया जाता है और िडकर्ी तैयार की जाती है वहां ऐसा पक्षकार िडकर्ी के िवरु अपील म यह पर्ितवाद कर सके गा िक ऐसा
आदेश नह िकया जाना चािहए था और िनणर्य नह सुनाया जाना चािहए था ।
(2) ऐसी िडकर्ी के िवरु अपील म जो समझौता अिभिलिखत करने के पश्चात् या समझौता अिभिलिखत िकया जाना
नामंजूर करने के पश्चात् वाद म पािरत की गई है, अपीलाथ को इस आधार पर िडकर्ी का पर्ितवाद करने की स्वतंतर्ता होगी िक
समझौता अिभिलिखत िकया जाना चािहए था या नह िकया जाना चािहए था ।]
2. पर्िकर्याआदेश 41 के िनयम, आदेश की अपील को, जहां तक हो सके , लागू ह गे ।
आदेश 44
3
[िनधर्न व्यिक्तय ारा अपील]
1. 4 [िनधर्न व्यिक्त के रूप म] कौन अपील कर सके गा 5 [(1)] अपील करने का हकदार कोई भी व्यिक्त जो अपील के ज्ञापन
के िलए अपेिक्षत फीस देने म असमथर् है, अपील के ज्ञापन के साथ आवेदन उपिस्थत कर सके गा और सभी बात म िजनके अन्तगर्त ऐसे
आवेदन को उपिस्थत करना भी है, उन उपबन्ध के जो 6 [िनधर्न व्यिक्तय ] ारा वाद के सम्बन्ध म ह वहां तक अधीन रहते हुए जहां
तक ऐसे उपबन्ध लागू करने योग्य ह, 6[िनधर्न व्यिक्त] के रूप म अपील करने के िलए अनुज्ञात िकया जा सके गा :
7* * * *
8* * * *
न्यायालय फीस के संदाय के िलए समय िदया जानाजहां आवेदन को िनयम 1 के अधीन नामंजूर िकया जाता है वहां
9 [2.
न्यायालय आवेदन नामंजूर करते समय आवेदक को यह अनुज्ञा दे सके गा िक वह अपेिक्षत न्यायालय फीस ऐसे समय के भीतर जो
न्यायालय ारा िनयत िकया जाए या उसके ारा समय-समय पर बढ़ाया जाए, संद करे और ऐसा संदाय कर देने पर उस अपील के
ज्ञापन का िजसके संबंध म फीस संदय
े है, वही बल और पर्भाव होगा मानो वह फीस पर्थम बार म संद कर दी गई हो ।
3. इस पर्श्न के बारे म जांच िक आवेदक िनधर्न व्यिक्त है या नह (1) जहां िनयम 1 म िनिदष्ट आवेदक को उस न्यायालय
म िजसकी िडकर्ी की अपील की गई है, िनधर्न व्यिक्त के रूप म वाद लाने या अपील करने के िलए अनुज्ञात िकया गया था वहां, यिद
आवेदक ने यह कथन करते हुए शपथपतर् िदया है िक वह उस िडकर्ी की तारीख से िजसकी अपील की गई है, िनधर्न व्यिक्त न रहने से
पिरिवरत नह हुआ है तो, इस पर्श्न के बारे म िक वह िनधर्न व्यिक्त है या नह , कोई अितिरक्त जांच आवश्यक नह होगी, िकन्तु यिद
सरकारी प्लीडर या पर्त्यथ ऐसे शपथपतर् म िकए गए कथन पर िववाद करता है तो पूव क्त पर्श्न की जांच अपील न्यायालय ारा या
अपील न्यायालय के आदेश के अधीन उसी न्यायालय के अिधकारी ारा की जाएगी ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 89 ारा (1-2-1977 से) खण्ड (ख), (ङ), (छ), (ज), (ड), (ण), और (फ) का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 89 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 90 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन अपील ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 90 ारा (1-2-1977 से) “अिकचन के रूप म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा िनयम 1 को उपिनयम (1) के रूप म पुन: संख्यांिकत िकया गया ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 90 ारा (1-2-1977 से) कर्मश: “अिकचन ” और “अिकचन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा परन्तुक का लोप िकया गया ।
8
1956 के अिधिनयम सं० 66 की धारा 14 ारा अन्त:स्थािपत उपिनयम (2) का 1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 90 ारा (1-2-1977 से) लोप िकया गया ।
9
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 90 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
192
(2) जहां िनयम 1 म िनिदष्ट आवेदक के बारे म यह अिभकथन िकया जाता है िक वह उस िडकर्ी की तारीख से िजसकी अपील
की गई है, िनधर्न व्यिक्त हो गया है वहां इस पर्श्न की जांच िक वह िनधर्न व्यिक्त है या नह , अपील न्यायालय ारा या अपील
न्यायालय के आदेश के अधीन उसी न्यायालय के अिधकारी ारा उस दशा म की जाएगी िजसम अपील न्यायालय मामले की
पिरिस्थितय म यह आवश्यक नह समझता िक जांच ऐसे न्यायालय ारा की जानी चािहए िजसके िविनश्चय की अपील की गई है ।]
आदेश 45
1
[उच्चतम न्यायालय] म अपील
1. “िडकर्ी” की पिरभाषाइस आदेश म, जब तक िक िवषय या संदभर् म कोई बात िवरु न हो, “िडकर्ी” पद के अन्तगर्त
अिन्तम आदेश भी आएगा ।
2. उस न्यायालय से आवेदन िजसकी िडकर्ी पिरवािदत है 2 [(1)] जो कोई 3 [उच्चतम न्यायालय] म अपील करना चाहता है
वह उस न्यायालय म अज ारा आवेदन करे गा िजसकी िडकर्ी पिरवािदत है ।
उपिनयम (1) के अधीन हर अज की सुनवाई यथासंभव शीघर्ता से की जाएगी और आवेदन के िनपटारे को उस तारीख
4 [(2)
से िजसको वह अज उपिनयम (1) के अधीन न्यायालय म उपस्थािपत की जाती है, साठ िदन के भीतर समाप्त करने का पर्यास िकया
जाएगा ।]
3. मूल्य या औिचत्य के बारे म पर्माणपतर् 5 [(1) हर अज म अपील के आधार किथत ह गे और ऐसे पर्माणपतर् के िलए
पर्ाथर्ना होगी िक
(i) मामले म सामान्य महत्व का सारवान् िविध-पर्श्न अन्तगर्र्स्त है, तथा
(ii) न्यायालय की राय म उक्त पर्श्न का िविनश्चय उच्चतम न्यायालय ारा िकया जाना आवश्यक है ।]
(2) न्यायालय ऐसी अज की पर्ािप्त पर िनदेश देगा िक िवरोधी पक्षकार पर इस सूचना की तामील की जाए िक वह यह हेतुक
दिशत करे िक उक्त पर्माणपतर् क्य न दे िदया जाए ।
4. [वाद का समेकन ।]िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का 49) की धारा 4 ारा िनरिसत ।
5. [पर्थम बार के न्यायालय को िववाद का पुन: भेजा जाना ।]िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973
का 49) की धारा 4 ारा िनरिसत ।
6. पर्माणपतर् देने से इं कार का पर्भावजहां ऐसा पर्माणपतर् देने से इंकार कर िदया जाता है वहां अज खािरज की जाएगी ।
7. पर्माणपतर् िदए जाने पर अपेिक्षत पर्ितभूित और िनक्षेप(1) जहां पर्माणपतर् दे िदया जाता है वहां आवेदक पिरवािदत
िडकर्ी की तारीख से 6 [नब्बे िदन या हेतुक दिशत िकए जाने पर न्यायालय ारा अनुज्ञात की जाने वाली साठ िदन से अनिधक अितिरक्त
अविध] के भीतर या पर्माणपतर् िदए जाने की तारीख से छह सप्ताह की अविध के भीतर जो भी तारीख पश्चात्वत हो,
(क) पर्त्यथ के खच के िलए पर्ितभूित 7 [नकद या सरकारी पर्ितभूितय म] देगा, तथा
(ख) वह रकम िनिक्षप्त करे गा जो वाद म के पूरे अिभलेख को अनुवाद कराने, अनुिलिप कराने, अनुकर्मिणका तैयार
करने, 8 [मुदर्ण] और उसकी शु पर्ित के 3[उच्चतम न्यायालय] को पारे षण के व्यय की पूित के िलए अपेिक्षत हो िकन्तु
िनम्निलिखत के िलए रकम िनिक्षप्त नह कराई जाएगी :
(1) वे पर्रूिपक दस्तावेज िजनका अपविजत िकया जाना 9 [उच्चतम न्यायालय के ] तत्समय पर्वृ िकसी
भी [िनयम] ारा िनिदष्ट हो ;
9
(2) ऐसे कागज िजन्ह पक्षकार अपविजत करने के िलए सहमत हो जाएं ;
(3) ऐसे लेखा या लेखा के पर्भाग, िजन्ह न्यायालय ारा इस पर्योजन के िलए सशक्त अिधकारी
अनावश्यक समझे और िजनके बारे म पक्षकार ने िविनिदष्ट रूप म मांग नह की है िक वे सिम्मिलत िकए जाएं ;
तथा
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िकग-इन-काउं िसल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 91 ारा (1-2-1977 से) िनयम 2 को उसके उपिनयम (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 91 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 4 ारा उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1920 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा “छह मास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1920 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा अन्त:स्थािपत ।
8
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अन्त:स्थािपत ।
9
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल के आदेश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
193
(4) ऐसी अन्य दस्तावेज िजन्ह अपविजत करने के िलए उच्च न्यायालय िनदेश दे :
[परन्तु न्यायालय पर्माणपतर् देने के समय िकसी ऐसे िवरोधी पक्षकार को जो उपसंजात हो, सुनने के पश्चात्
1
िवशेष कष्ट के आधार पर यह आदेश दे सके गा िक पर्ितभूित िकसी अन्य रूप म दी जाए :
परन्तु यह और िक ऐसी पर्ितभूित की पर्कृ ित के संबंध म पर्ितवाद करने के िलए िवरोधी पक्षकार को कोई भी स्थगन
नह िदया जाएगा ।
2* * * *
8. अपील का गर्हण और उस पर पर्िकर्याजहां न्यायालय को समाधानपर्द रूप म ऐसी पर्ितभूित दे दी गई है और िनक्षेप कर
िदया गया है वहां न्यायालय
(क) यह घोिषत करे गा िक अपील गर्हण कर ली गई है,
(ख) उसकी सूचना पर्त्यथ को देगा,
(ग) उक्त अिभलेख की यथापूव क्त के िसवाय शु पर्ित न्यायालय की मुदर्ा सिहत 3 [उच्चतम न्यायालय] को
पारे िषत करे गा ; तथा
(घ) दोन म से िकसी भी पक्षकार को वाद के कागज म से िकसी भी कागज की एक या अिधक अिधपर्माणीकृ त
पर्ितयां उनके िलए उसके ारा आवेदन िकए जाने पर और उनकी तैयारी म उपगत युिक्तयुक्त व्यय के संद िकए
जाने पर देगा ।
9. पर्ितभूित के पर्ितगर्हण का पर्ितसंहरणन्यायालय अपील के गर्हण िकए जाने के पूवर् िकसी भी समय हेतुक दिशत िकए
जाने पर िकसी ऐसी पर्ितभूित के पर्ितगर्हण का पर्ितसंहरण कर सके गा और उसके बारे म अितिरक्त िनदेश दे सके गा ।
मृत पक्षकार की दशा म सूचना िदए जाने से अिभमुिक्त देने की शिक्तइन िनयम की िकसी भी बात के बारे म जो
4 [9क.
िवरोधी पक्षकार या पर्त्यथ पर िकसी भी सूचना की तामील या िकसी सूचना का उसे िदया जाना अपेिक्षत करती है यह नह समझा
जाएगा िक वह मृत िवरोधी पक्षकार या मृत पर्त्यथ के िविधक पर्ितिनिध पर िकसी सूचना की तामील या उसे ऐसी िकसी सूचना का
िदया जाना उस दशा म भी अपेिक्षत करती है िजसम ऐसा िवरोधी पक्षकार या पर्त्यथ उस न्यायालय म िजसकी िडकर्ी पिरवािदत है,
सुनवाई के समय या उस न्यायालय की िडकर्ी से पश्चात्वत िकन्ह कायर्वािहय म उपसंजात नह हुआ है :
परन्तु िनयम 3 के उपिनयम (2) के अधीन और िनयम 8 के अधीन सूचनाएं उस िजले के न्यायाधीश के न्याय सदन म िजस
िजले म वाद मूलत: लाया गया था, िकसी सहज-दृश्य स्थान म लगा कर दी जाएगी और ऐसे समाचार-पतर् म जो न्यायालय िनिदष्ट
करे , पर्काशन ारा दी जाएगी ।]
10. अितिरक्त पर्ितभूित या संदाय का आदेश देने की शिक्तजहां अपील के गर्हण िकए जाने के पश्चात् िकन्तु यथापूव क्त के
िसवाय अिभलेख की पर्ित 3[उच्चतम न्यायालय] को पारे िषत िकए जाने के पूवर् िकसी भी समय ऐसी पर्ितभूित अपयार्प्त पर्तीत हो,
अथवा यथापूव क्त के िसवाय अिभलेख के अनुवाद कराने, अनुिलिप कराने, मुदर्ण, अनुकर्मिणका तैयार करने या उसकी पर्ित
का पारे षण करने के पर्योजन के िलए अितिरक्त संदाय अपेिक्षत हो,
वहां न्यायालय अपीलाथ को आदेश दे सके गा िक वह अन्य और पयार्प्त पर्ितभूित उस समय के भीतर दे जो न्यायालय ारा
िनयत िकया जाएगा या उतने ही समय के भीतर वह संदाय करे जो अपेिक्षत है ।
11. आदेश का अनुपालन करने म असफलता का पर्भावजहां अपीलाथ ऐसे आदेश का अनुपालन करने म असफल रहता है
वहां कायर्वािहयां रोक दी जाएंगी,
और अपील म 3[उच्चतम न्यायालय] के इस िनिम आदेश के िबना आगे कायर्वाही नह की जाएगी,
और िजस िडकर्ी की अपील की गई है उसका िनष्पादन इस बीच नह रोका जाएगा ।
12. िनक्षेप की बाकी की वापसीजब यथापूव क्त के िसवाय अिभलेख की पर्ित 3[उच्चतम न्यायालय] को पारे िषत कर दी
गई है तब अपीलाथ िनयम 7 के अधीन उसके ारा िनक्षेप की गई रकम की बाकी को, यिद कोई हो, वापस ले सके गा ।
13. अपील लंिबत रहने तक न्यायालय की शिक्तयां(1) जब तक न्यायालय अन्यथा िनिदष्ट न करे तब तक उस िडकर्ी का
िजसकी अपील की गई है, िबना शतर् िनष्पादन िकसी अपील के गर्हण के िलए पर्माणपतर् के दे िदए जाने पर भी िकया जाएगा ।
1
1920 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 ारा जोड़ा गया ।
2
िविध अनुकूलन आदेश 1950 ारा उपिनयम 3 का लोप िकया गया ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1920 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 4 ारा अन्त:स्थािपत ।
194
(2) यिद न्यायालय ठीक समझे तो वह ऐसे िवशेष हेतुक से जो वाद म िहतब िकसी पक्षकार ारा दिशत िकया गया हो या
न्यायालय को अन्यथा पर्तीत हुआ हो
(क) िववादगर्स्त िकसी भी जंगम सम्पि को या उसके िकसी भी भाग को पिरब कर सके गा, अथवा
(ख) पर्त्यथ से ऐसी पर्ितभूित लेकर जो न्यायालय िकसी ऐसे आदेश के सम्यक् पालन के िलए ठीक
समझे जो, 1 [उच्चतम न्यायालय] अपील म करे , उस िडकर्ी का िजसकी अपील की गई है, िनष्पादन अनुज्ञात कर सके गा,
अथवा
(ग) अपीलाथ से ऐसी पर्ितभूित लेकर जो उस िडकर्ी के िजसकी अपील की गई है या ऐसी 2 [िकसी िडकर्ी या आदेश]
के जो [उच्चतम न्यायालय] अपील म करे , सम्यक् पालन के िलए न्यायालय ठीक समझे उस िडकर्ी का िजसकी अपील की गई
1
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िकसी आदेश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “आदेश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा उपिनयम (3) का लोप िकया गया ।
5
1920 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 5 ारा अन्त:स्थािपत ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “जब तक िक िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल अन्यथा िनदेश न दे, िहज मैजेस्टी इन काउिन्सल का कोई आदेश” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत ।
195
आदेश 46
िनदश
1. उच्च न्यायालय को पर्श्न का िनदशजहां ऐसे वाद या अपील की िजसम िडकर्ी की अपील नह होती, सुनवाई के पूवर् या
सुनवाई म अथवा जहां िकसी ऐसी िडकर्ी के िनष्पादन म िकसी िविध का या िविध का बल रखने वाली पर्था का कोई ऐसा पर्श्न उत्पन्न
होता है िजसके बारे म वह न्यायालय जो वाद या अपील का िवचारण कर रहा है या िडकर्ी का िनष्पादन कर रहा है, युिक्तयुक्त शंका
रखता है वहां वह न्यायालय स्वपर्ेरणा से या पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर, मामले के तथ्य का और उसे िवषय-िबन्दु का िजसके
बारे म शंका है, कथन तैयार कर सके गा और ऐसे कथन को उस िवषय-िबन्दु के बारे म अपनी राय के सिहत उच्च न्यायालय के
िविनश्चय के िलए िनिदष्ट कर सके गा ।
2. न्यायालय ऐसी िडकर्ी पािरत कर सके गा जो उच्च न्यायालय के िविनश्चय पर समािशर्त हैन्यायालय कायर्वािहय को
रोक सके गा या ऐसे िनदश के िकए जाने पर भी मामले म अगर्सर हो सके गा और उच्च न्यायालय की िनिदष्ट िकए गए िवषय-िबन्दु के
िविनश्चय पर समािशर्त िडकर्ी पािरत कर सके गा या आदेश कर सके गा ;
िकन्तु िकसी भी ऐसे मामले म िजसम ऐसा िनदश िकया गया है, कोई भी िडकर्ी या आदेश िनष्पािदत नह िकया जाएगा जब
तक िक उस िनदश पर उच्च न्यायालय के िनणर्य की पर्ित पर्ाप्त न हो जाए ।
3. उच्च न्यायालय का िनणर्य पारे िषत िकया जाएगा और मामला तद्नुसार िनपटाया जाएगायिद पक्षकार उपसंजात ह
और सुनवाई की वांछा कर तो उच्च न्यायालय उन्ह सुनने के पश्चात् इस पर्कार िनिदष्ट िकए गए िवषय-िबन्दु का िविनश्चय करे गा
और अपने िनणर्य की रिजस्टर्ार ारा हस्ताक्षिरत पर्ित उस न्यायालय को पारे िषत करे गा िजसने िनदश िकया था और ऐसा न्यायालय
उसकी पर्ािप्त उस मामले को उच्च न्यायालय के िविनश्यच के अनुरूप िनपटाने के िलए अगर्सर होगा ।
4. उच्च न्यायालय को िकए गए िनदश के खचउच्च न्यायालय के िविनश्चय के िलए िकए गए िनदश के पिरणामस्वरूप
खच (यिद कोई ह ) मामले के खच ह गे ।
धारा 113 के परन्तुक के अधीन उच्च न्यायालय को िनदशन्यायालय ारा धारा 113 के परन्तुक के अधीन िकए गए
1 [4क.
िकसी भी िनदश को िनयम 2, िनयम 3 और िनयम 4 के उपबन्ध वैसे ही लागू ह गे जैसे वे िनयम 1 के अधीन िकए गए िनदश को लागू
होते ह ।]
5. िनदश करने वाले न्यायालय की िडकर्ी को पिरवितत करने आिद की शिक्तजहां उच्च न्यायालय को िकसी मामले का
िनदश िनयम 1 के अधीन 1[या धारा 113 के परन्तुक के अधीन] िकया जाता है वहां उच्च न्यायालय मामले को संशोधन के िलए लौटा
सके गा और िकसी ऐसी िडकर्ी या आदेश को पिरवितत, र या अपास्त कर सके गा िजसे िनदश करने वाले न्यायालय ने उस मामले म
िकया है या पािरत िकया है िजसम से िनदश उठा था और ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
6. लघुवाद म अिधकािरता सम्बन्धी पर्श्न को उच्च न्यायालय को िनदिशत करने की शिक्त(1) जहां िनणर्य के पूवर् िकसी
भी समय वह न्यायालय िजसम वाद संिस्थत िकया गया है यह शंका करता है िक क्या वह वाद लघुवाद न्यायालय ारा संज्ञेय है या इस
पर्कार संज्ञेय नह है वहां वह वाद की पर्कृ ित के बारे म शंका के िलए अपने कारण के कथन सिहत अिभलेख को उच्च न्यायालय को
िनवेिदत कर सके गा ।
(2) अिभलेख और कथन के पर्ाप्त होने पर, उच्च न्यायालय उस न्यायालय को वाद म अगर्सर होने के िलए या वादपतर् के ऐसे
अन्य न्यायालय म उपिस्थत िकए जाने के िलए िजसके बारे म वह अपने आदेश ारा घोिषत करे िक वह न्यायालय वाद का संज्ञान करने
के िलए सक्षम है, लौटाने के िलए आदेश दे सके गा ।
7. लघुवाद म अिधकािरता सम्बन्धी भूल के अधीन की गई कायर्वािहय को पुनरीक्षण के िलए िनवेिदत करने की िजला
न्यायालय की शिक्त(1) जहां िजला न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक उसका अधीनस्थ न्यायालय यह गलत धारणा करने के
कारण िक वाद लघुवाद न्यायालय ारा संज्ञेय है या इस पर्कार संज्ञेय नह है अपने म िविध ारा िनिहत की गई अिधकािरता का पर्योग
करने म असफल रहा है या इस पर्कार िनिहत न की गई अिधकािरता का पर्योग कर चुका है वहां िजला न्यायालय इस बारे म िक वाद
की पर्कृ ित की बाबत अधीनस्थ न्यायालय की राय गलत है अपने कारण के कथन सिहत अिभलेख को उच्च न्यायालय को िनवेिदत कर
सके गा और यिद पक्षकार ारा अपेिक्षत िकया जाए तो िनवेिदत करे गा ।
(2) अिभलेख और कथन की पर्ािप्त पर उच्च न्यायालय मामले म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
(3) ऐसे मामले म जो उच्च न्यायालय को इस िनयम के अधीन िनवेिदत िकया गया है, िडकर्ी की पश्चात्वत िकन्ह भी
कायर्वािहय के बारे म उच्च न्यायालय ऐसा आदेश कर सके गा जो पिरिस्थितय म उसे न्यायसंगत और उिचत पर्तीत ह ।
(4) िजला न्यायालय का अधीनस्थ न्यायालय ऐसी अध्यपेक्षा का अनुपालन करे गा जो िजला न्यायालय इस िनयम के
पर्योजन के िलए िकसी अिभलेख या जानकारी के िलए करे ।
1
1951 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
196
आदेश 47
पुनिवलोकन
1. िनणर्य के पुनिवलोकन के िलए आवेदन(1) जो कोई व्यिक्त
(क) िकसी ऐसी िडकर्ी या आदेश से िजसकी अपील अनुज्ञात है िकन्तु िजसकी कोई अपील नह की गई है,
(ख) िकसी ऐसी िडकर्ी या आदेश से िजसकी अपील अनुज्ञात नह है, अथवा
(ग) लघुवाद न्यायालय ारा िकए गए िनदश पर िविनश्चय से,
अपने को व्यिथत समझता है और जो ऐसी नई और महत्वपूणर् बात या सा य के पता चलने से जो सम्यक् तत्परता के पर्योग के पश्चात्
उस समय जब िडकर्ी पािरत की गई थी या आदेश िकया गया था, उसके ज्ञान म नह था या उसके ारा पेश नह िकया जा सकता था,
या िकसी भूल या गलती के कारण जो अिभलेख के देखने से ही पर्कट होती हो या िकसी अन्य पयार्प्त कारण से वह चाहता है िक उसके
िवरु पािरत िडकर्ी या िकए गए आदेश का पुनिवलोकन िकया जाए वह उस न्यायालय से िनणर्य के पुनिवलोकन के िलए आवेदन कर
सके गा िजसने वह िडकर्ी पािरत की थी या वह आदेश िकया था ।
(2) वह पक्षकार जो िडकर्ी या आदेश की अपील नह कर रहा है, िनणर्य के पुनिवलोकन के िलए आवेदन इस बात के होते हुए
भी िकसी अन्य पक्षकार ारा की गई अपील लंिबत है वहां के िसवाय कर सके गा जहां ऐसी अपील का आधार आवेदक और अपीलाथ
दोन के बीच सामान्य है या जहां पर्त्यथ होते हुए वह अपील न्यायालय म वह मामला उपिस्थत कर सकता है िजसके आधार पर वह
पुनिवलोकन के िलए आवेदन करता है ।
1 [स्पष्टीकरणयह
तथ्य िक िकसी िविध-पर्श्न का िविनश्चय िजस पर न्यायालय का िनणर्य आधािरत है, िकसी अन्य मामले
म विरष्ठ न्यायालय के पश्चात्वत िविनश्चय ारा उलट िदया गया है या उपान्तिरत कर िदया गया है, उस िनणर्य के पुनिवलोकन के
िलए आधार नह होगा ]
2. [पुनिवलोकन के िलए आवेदन िकसको िकए जाएंगे ।]िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1956 (1956 का
66) की धारा 14 ारा िनरिसत ।
3. पुनिवलोकन के आवेदन का पर्रूपवे उपबन्ध जो अपील करने के पर्रूप के बारे म है, पुनिवलोकन के आवेदन को
यथावश्यक पिरवतर्न सिहत लागू ह गे ।
4. आवेदन कब नामंजरू िकया जाएगा(1) जहां न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक पुनिवलोकन के िलए पयार्प्त आधार
नह है वहां वह आवेदन को नामंजूर कर देगा ।
(2) आवेदन कब मंजरू िकया जाएगाजहां न्यायालय की राय है िक पुनिवलोकन के िलए आवेदन मंजूर िकया जाना चािहए
वहां वह उसे मंजरू करे गा :
परन्तु
(क) ऐसा कोई भी आवेदन िवरोधी पक्षकार को ऐसी पूववत सूचना िदए िबना मंजूर नह िकया जाएगा िजससे
वह उपसंजात होने और उस िडकर्ी या आदेश के िजसके पुनिवलोकन के िलए आवेदन िकया गया है, समथर्न म सुने जाने के
िलए समथर् हो जाएं ; तथा
(ख) ऐसा कोई भी आवेदन ऐसी नई बात या सा य के पता चलने के आधार पर िजसके बारे म आवेदक अिभकथन
करता है, िक वह उस समय जब िडकर्ी पािरत की गई थी या आदेश िकया गया था, उसके ज्ञान म नह थी या उसके ारा पेश
नह िकया जा सकता था, ऐसे अिभकथन के पूणर् सबूत के िबना मंजरू नह िकया जाएगा ।
5. दो या अिधक न्यायाधीश से गिठत न्यायालय म पुनिवलोकन का आवेदनजहां वह न्यायधीश या वे न्यायधीश या उन
न्यायधीश म से कोई एक, िजसने या िजन्ह ने वह िडकर्ी पािरत की थी या आदेश िकया था िजसके पुनिवलोकन के िलए आवेदन िकया
गया है, उस न्यायालय म उस समय िनयुक्त है या ह जब िक पुनिवलोकन के िलए आवेदन उपिस्थत िकया जाता है और आवेदन से
अगले छह मास की अविध तक उस िडकर्ी या आदेश पर िवचार करने से िजसके बारे म वह आवेदन है, अनुपिस्थित या अन्य हेतुक से
पर्वािरत नह है या नह ह वहां ऐसा न्यायाधीश या ऐसे न्यायाधीश या उनम से कोई भी उस आवेदन को सुनग े ा या सनगे और उस
न्यायालय का या के कोई भी अन्य न्यायाधीश उसे नह सुनेगा या नह सुनगे ।
6. आवेदन कब नामंजरू िकया जाएगा(1) जहां पुनिवलोकन का आवेदन एक से अिधक न्यायाधीश ारा सुना जाता है और
न्यायालय राय म बराबर बंटा हो वहां आवेदन नामंजूर िकया जाएगा ।
(2) जहां बहुमत है वहां िविनश्चय बहुमत की राय के अनुसार होगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 92 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
197
7. नामंजरू ी का आदेश अपीलनीय न होगा । आवेदन की मंजरू ी के आदेश पर आक्षेप 1 [(1) आवेदन को नामंजूर करने वाले
न्यायालय का आदेश अपीलनीय नह होगा ; िकन्तु आवेदन मंजूर करने वाले आदेश पर आक्षेप, आवेदन मंजूर करने वाले आदेश की
अपील ारा या वाद म अिन्तम रूप से पािरत िडकर्ी या िकए गए आदेश की अपील म, तुरन्त िकया जा सके गा ।]
(2) जहां आवेदन, आवेदक के उपसंजात होने म असफल रहने के पिरणामस्वरूप नामंजूर कर िदया गया है, वहां वह नामंजूर
िकए गए आवेदन को फाइल पर लाए जाने के आदेश के िलए आवेदन कर सके गा और जहां न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत
कर िदया जाता है िक आवेदक उस समय जब ऐसे आवेदन की सुनवाई के िलए पुकार हुई थी, उपसंजात होने से िकसी पयार्प्त हेतुक
ारा िनवािरत हो गया था वहां न्यायालय खच सम्बन्धी ऐसे िनबन्धन पर या अन्यथा जो वह ठीक समझे, उसके फाइल पर लाए जाने
का आदेश करे गा और उसकी सुनवाई के िलए िदन िनयत करे गा ।
(3) जब तक आवेदन की सूचना की तामील िवरोधी पक्षकार पर न हो गई हो कोई भी आदेश उपिनयम (2) के अधीन नह
िकया जाएगा ।
8. मंजरू िकए गए आवेदन का रिजस्टर म चढ़ाया जाना और िफर से सुनवाई के िलए आदेशयिद पुनिवलोकन का आवेदन
मंजूर कर िलया जाता है तो उसका िटप्पण रिजस्टर म िकया जाएगा और न्यायालय मामले को तुरन्त िफर सुन सके गा या िफर से
सुनवाई के बारे म ऐसा आदेश कर सके गा जो वह ठीक समझे ।
9. कु छ आवेदन का वजर्नपुनिवलोकन के आवेदन पर िकए गए आदेश के या पुनिवलोकन म पािरत िडकर्ी या िकए गए
आदेश के पुनिवलोकन के िलए कोई भी आवेदन गर्हण नह िकया जाएगा ।
आदेश 48
पर्कीणर्
1. आदेिशका की तामील उसे िनकलवाने वाले पक्षकार के व्यय पर की जाएगी(1) जब तक िक न्यायालय अन्यथा िनिदष्ट
न करे इस संिहता के अधीन िनकाली गई हर आदेिशका की तामील उस पक्षकार के व्यय पर की जाएगी िजसकी ओर से वह िनकाली
गई है ।
(2) तामील के खचऐसी तामील के िलए पर्भायर् न्यायालय फीस उस समय के भीतर संद की जाएगी जो आदेिशका के
िनकाले जाने के पूवर् िनयत िकया जाएगा ।
2. आदेश और सूचना की तामील कै से की जाएगीउन सभी आदेश , सूचना और अन्य दस्तावेज की तामील िजनका
िकसी व्यिक्त को िदया जाना या िकसी व्यिक्त पर तामील िकया जाना इस संिहता ारा अपेिक्षत है, उस रीित से की जाएगी जो समन
की तामील के िलए उपबिन्धत है ।
3. पिरिशष्ट म िदए गए पर्रूप का उपयोगपिरिशष्ट म िदए गए पर्रूप ऐसे फे रफार सिहत जो हर एक मामले म
पिरिस्थितय से अपेिक्षत ह , उन पर्योजन के िलए जो उसम विणत ह, उपयोग म लाए जाएंगे ।
आदेश 49
चाटर्िरत उच्च न्यायालय
1. उच्च न्यायालय की आदेिशका की तामील कौन कर सके गापर्ितवािदय को समन, िनष्पादन-िरट और पर्त्यिथय को
दी जाने वाली सूचना को छोड़कर दस्तावेज को पेश करने के िलए िनकाली गई सूचना की, उन समन की जो सािक्षय को ह और
हर अन्य न्याियक आदेिशका की जो उच्च न्यायालय की आरिम्भक िसिवल अिधकािरता के और उसकी िववाह िवषयक, वसीयतीय और
िनवर्सीयतीय अिधकािरता के पर्योग म िनकाले गए ह, या िनकाली गई ह, तामील वाद म अटिनय ारा या उनके ारा िनयोिजत
व्यिक्तय ारा या ऐसे अन्य व्यिक्तय ारा की जा सके गी जो उच्च न्यायालय िकसी िनयम या आदेश ारा िनिदष्ट करे ।
2. चाटर्िरत उच्च न्यायालय के बारे म व्यावृि इस अनुसच ू ी की िकसी भी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह
चाटर्िरत उच्च न्यायालय ारा िकसी सा य के िलए जाने के या िनणर्य और आदेश के अिभिलिखत िकए जाने के ऐसे िकन्ह भी िनयम
को जो इस संिहता के पर्ारम्भ पर पर्वृ थे, पिरसीिमत या अन्यथा पर्भािवत करती है ।
3. िनयम का लागू होनािकसी भी चाटर्िरत उच्च न्यायलय को उसकी मामूली या गैर-मामूली आरिम्भक िसिवल
अिधकािरता का पर्योग करने म िनम्निलिखत िनयम लागू नह ह गे, अथार्त् :
(1) आदेश 7 के िनयम 10 और िनयम 11 के खण्ड (ख) और खण्ड (ग) ;
(2) आदेश 10 का िनयम 3 ;
(3) आदेश 16 का िनयम 2 ;
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 92 ारा (1-2-1977 से) उपिनयम (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
198
(4) आदेश 18 के िनयम 5, 6, 8, 9, 10, 11, 13, 14, 15 और 16 (जहां तक वे सा य लेने की रीित से
सम्बिन्धत ह) ;
(5) आदेश 20 के िनयम 1 से 8 तक के िनयम ; तथा
(6) आदेश 33 का िनयम 7 (जहां तक वह ज्ञापन बनाने से सम्बिन्धत है) ;
और आदेश 41 का िनयम 35 उसकी अपीली अिधकािरता के पर्योग म िकसी भी ऐसे उच्च न्यायालय को लागू नह होगा ।
आदेश 50
पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय
1. पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालयइसम इसके पश्चात् िविनिदष्ट उपबन्ध का िवस्तार पर्ान्तीय लघुवाद न्यायालय अिधिनयम,
1887 (1887 का 9) 1 [या बरार लघुवाद न्यायालय िविध, 1905 के अधीन] गिठत न्यायालय पर या 2 [उक्त अिधिनयम, या िविध के
अधीन] लघुवाद न्यायालय की अिधकािरता का पर्योग करने वाले न्यायालय पर 3 [या 4 [भारत के िकसी भी भाग] म 4[िजस पर उक्त
अिधिनयम का िवस्तार नह है,] समरूपी अिधकािरता का पर्योग करने वाले न्यायालय पर] नह होगा, अथार्त् :
(क) इस अनुसूची का उतना भाग िजतना
(i) लघुवाद न्यायालय के संज्ञान से अपवािदत वाद से या वैसे वाद की िडिकर्य के िनष्पादन से,
(ii) स्थावर सम्पि के िवरु िडिकर्य के िनष्पादन से या भागीदारी सम्पि के िकसी भागीदार के
िहत से,
(iii) िववा क के िस्थरीकरण से,
सम्बिन्धत है ; तथा
(ख) िनम्निलिखत िनयम और आदेश :
आदेश 2 का िनयम 1 (वाद की िवरचना) ;
आदेश 10 का िनयम 3 (पक्षकार की परीक्षा का अिभलेख) ;
आदेश 15, िनयम 4 के उतने भाग के िसवाय िजतना िनणर्य के तुरन्त सुनाए जाने के िलए उपबन्ध
करता है ;
आदेश 18 के िनयम 5 से लेकर 12 तक के िनयम (सा य) ;
आदेश 41 से लेकर 45 तक के आदेश (अपील) ;
आदेश 47 के िनयम 2, 3, 5, 6, 7 (पुनिवलोकन) ;
आदेश 51 ।
आदेश 51
पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय
1. पर्िसडेन्सी लघुवाद न्यायालयआदेश 5 के िनयम 22 और िनयम 23, आदेश 21 के िनयम 4 और िनयम 7 और आदेश 26
के िनयम 4 म और पर्ेिसडेन्सी लघुवाद न्यायालय अिधिनयम, 1882 (1882 का 15) ारा यथा उपबिन्धत के िसवाय, इस अनुसच ू ी का
िवस्तार कलक ा, मदर्ास और मुम्बई नगर म स्थािपत िकसी भी लघुवाद न्यायालय म के िकसी भी वाद या कायर्वाही पर नह होगा ।
पिरिशष्ट क
अिभवचन
1
1941 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और तीसरी अनुसूची ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1941 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और तीसरी अनुसूची ारा “उक्त अिधिनयम के अधीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 18 ारा अन्त:स्थािपत ।
4
िविध अनुकूलन (सं० 2) आदेश, 1956 ारा “भाग ख राज्य ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
199
बनाम
ग घ (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए)........................................................................................................पर्ितवादी
(2) िविशष्ट मामल म पक्षकार का वणर्न
1 [यथािस्थित, भारत संघ या.........................................................]राज्य ।
...............................................................................................................का महािधवक्ता
...............................................................................................................का कलक्टर
...............................................................................................................राज्य ।
क ख कम्पनी, िलिमटेड, िजसका रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय......................................................................म ह ।
ग घ कम्पनी का लोक अिधकारी क ख ।
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान पर भी िलिखए) अपनी ओर से और मृत ग घ (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) के सब
अन्य लेनदार की ओर से । –––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) अपनी ओर से और ……………………………………………......कम्पनी
िलिमटेड ारा पुरोधृत िडबेन्चर के अन्य सब धारक की ओर से ।
–––––––––––––––
शासकीय िरसीवर ।
क ख, अवयस्क (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) अपने वाद-िमतर् ग घ ारा (या पर्ितपाल्य अिधकरण ारा) ।
––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) िवकृ तिच या दुबर्लिच (व्यिक्त, अपने वाद-िमतर् ग घ ारा ।
–––––––––––––––––
क ख,.................................म भागीदार म कारोबार करने वाली फमर् ।
–––––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) अपने िनयत अटन ग घ (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) ारा ।
––––––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) ठाकु र जी का सेवायत ।
––––––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) मृतक ग घ का िनष्पादक ।
–––––––––––––––––––
क ख (वणर्न और िनवास-स्थान भी िलिखए) मृतक ग घ का वािरस ।
–––––––––––––––––––
(3) वादपतर्
संख्यांक 1
उधार िदया गया धन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०.......................................को उसने पर्ितवादी को..............................................
रुपए उधार िदए थे जो ता०.......................................को पर्ितसंदय
े थे ।
2. पर्ितवादी ने....................................रुपय के िसवाय िजनका संदाय ता०...................................को िकया गया,
उस रकम का संदाय नह िकया है ।
[यिद वादी िकसी पिरसीमा िविध से छू ट का दावा करता है तो िलिखए :]
3. वादी ता०....................................से ता०....................................तक अवयस्क या [या उन्म ] था ।
4. [वे तथ्य िजनसे यह दिशत होता है िक वाद-हेतुक कब पैदा हुआ और यह िक न्यायालय को अिधकािरता है ।]
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “यथािस्थित, सेकर्ेटरी आफ इं िडया या फे डरे शन आफ इिण्डया या ………पर्ांत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
200
संख्यांक 2
अितसंद धन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. चांदी की…………………...............छड़....................................आने पर्ित तोला पिरष्कृ त चांदी की दर से खरीदने
के िलए वादी ने और बेचने के िलए पर्ितवादी ने ता०...........................................को करार िकया ।
2. वादी ने उक्त छड़ को ङच ारा परखाने के िलए उपाप्त िकया ; पर्ितवादी ने उस परख के िलए ङच को पािरशर्िमक िदया
और ङच ने यह घोिषत िकया िक हर छड़ म 1,500 तोले पिरष्कृ त चांदी है; और वादी ने पर्ितवादी को तदनुसार
..............................रुपय का संदाय िकया ।
3. उक्त छड़ म से हर एक म के वल 1,200 तोले पिरष्कृ त चांदी थी, और जब वादी ने संदाय िकया उस समय वह इस तथ्य से
अनिभज्ञ था ।
4. पर्ितवादी ने इस अितसंद रािश का अभी तक पर्ितसंदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है।]
संख्यांक 3
िनयत कीमत पर िवकर्य िकया गया और पिरद माल
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..............................को ङच ने [आटे के एक सौ बोरे या इससे उपाब अनुसूची म विणत माल या िविवध माल]
पर्ितवादी को िवकर्य िकया और पिरद िकया ।
2. पर्ितवादी ने उस माल के िलए..................................रुपए पिरदान पर [या ता०................................को, वादपतर्
फाइल िकए जाने से पहले िकसी िदन] देने का वचन िदया था ।
3. उसने वे रुपए अभी तक नह िदए ह ।
4. ङच की मृत्यु ता०..............................को हुई । अपने अिन्तम िवल से उसने अपने भाई अथार्त् वादी को अपना
िनष्पादक िनयुक्त िकया ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
7. ङच के िनष्पादक के नाते वादी [वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है] का दावा करता है ।
संख्यांक 4
युिक्तयुक्त कीमत पर िवकर्य िकया गया और पिरद माल
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०………………………….को वादी ने पर्ितवादी को [घरेलू फन चर की िविवध वस्तुए]ं िवकर्य की और पिरद की
िकन्तु कीमत के बारे म कोई अिभव्यक्त करार नह िकया गया ।
2. इस माल का युिक्तयुक्त मूल्य…………………………………………………………………रुपए था ।
3. पर्ितवादी ने इस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
201
संख्यांक 5
पर्ितवादी की पर्ाथर्ना पर बनाया गया, िकन्तु स्वीकार न िकया गया माल
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०…………………………….को ङ च ने वादी से यह करार िकया था िक वादी उसके िलए [छह मेज और पचास
कु िसयां] बनाए और ङ च माल के पिरदान पर उसके िलए……………………………………रुपय का संदाय करे ।
2. वादी ने यह माल बनाया और ता०…………………………………..को ङ च को उसका पिरदान करने की पर्स्थापना
की, और वादी ऐसा करने के िलए तब से बराबर तैयार और रजामन्द रहा है ।
3. ङ च ने उस माल को स्वीकार नह िकया है और न उसके िलए संदाय िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 6
[नीलाम म िवकर्य िकए गए माल के ] पुनिवकर्य म हुई कमी
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..........................को वादी ने िविवध [माल] इस शतर् पर नीलाम पर चढ़ाया िक िवकर्य के पश्चात् [दस िदन] के
भीतर कर्ेता ने िजस माल के िलए संदाय नह िकया और िजसे हटाया नह उस सब माल का उस कर्ेता के लेखे नीलाम ारा पुनिवकर्य
कर िदया जाएगा, और इस शतर् की सूचना पर्ितवादी को थी ।
2. पर्ितवादी ने [चीनी के बतर्न का एक कर्ेट] उस नीलाम म...........................................रुपए कीमत पर कर्य िकया ।
3. पर्ितवादी को माल का पिरदान करने के िलए वादी िवकर्य की तारीख को और उसके पश्चात् [दस िदन] तक तैयार और
रजामन्द रहा ।
4. पर्ितवादी ने िजस माल का कर्य िकया उसे वह िवकर्य के पश्चात् [दस िदन] के भीतर ओर बाद म न तो ले गया और न
उसके िलए उसने संदाय िकया ।
5. ता०..................................को वादी ने पर्ितवादी के लेखे उस [चीनी के बतर्न का कर्ेट] का लोक नीलाम
ारा...............................रुपए म पुनिवकर्य िकया ।
6. उस पुनिवकर्य पर.................................रुपए का व्यय हुआ ।
7. ऐसे हुई......................................रुपय की कमी का संदाय पर्ितवादी ने अब तक नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 7
युिक्तयुक्त दर पर सेवाएं
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०....................................और ता०............................के बीच...................................म, वादी ने पर्ितवादी
की पर्ाथर्ना पर उसके िलए [िविवध रे खािचतर्, रूपांकन और आरे ख तैयार िकए] ; िकन्तु इन सेवा के िलए दी जाने वाली रािश के बारे
म कोई अिभव्यक्त करार नह िकया गया था ।
2. इन सेवा का युिक्तयुकत मूल्य.........................................रुपए था ।
3. पर्ितवादी ने इस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
202
संख्यांक 8
युिक्तयुक्त दाम पर सेवाएं और सामगर्ी
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..................................................को........................................म वादी ने पर्ितवादी की पर्ाथर्ना पर उसके
िलए एक गृह का िनमार्ण िकया [जो...........................................म,..................................................................संख्यांक के
गृह के नाम से ज्ञात है] और उसके िलए सामगर्ी जुटाई, िकन्तु इस काम और सामगर्ी के िलए दी जाने वाली रकम के बारे म कोई
अिभव्यक्त करार नह िकया गया था ।
2. िकए गए काम और पर्द सामगर्ी का युिक्तयुक्त मूल्य....................................................रुपए था ।
3. पर्ितवादी ने उस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 9
उपयोग और अिधभोग
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख जो मृतक भ म की िवल का िनष्पादक है, यह कथन करता है िक
1. पर्ितवादी ने उक्त भ म की अनुज्ञा से [………………………………गली म.................................संख्यांक वाला
गृह] ता०...........................से ता०.................................तक अपने अिधभोग म रखा और उक्त पिरसर के उपयोग के िलए
संदाय के बारे म कोई करार नह िकया गया था ।
2. उक्त पिरसर के उक्त अविध के िलए उपयोग का युिक्तयुक्त मूल्य..........................................रुपए था ।
3. पर्ितवादी ने इस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है।]
4. भ म के िनष्पादक के नाते वादी यह दावा करता है िक........................................[वह अनुतोष िजसका दावा िकया
गया है ।]
संख्यांक 10
पंचाट पर
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. वादी की पर्ितवादी म [उस मांग के , जो वादी ने तेल के दस पीप की कीमत के िलए की थी और िजसका संदाय करने से
पर्ितवादी ने इन्कार कर िदया था,] संबंध म मतभेद होने पर वादी और पर्ितवादी ने उस मतभेद को ङ च और छ ज के माध्यस्थम् के
िलए पर्स्तुत करने का िलिखत करार ता०..........................................................को िकया था और मूल दस्तावेज इसके साथ
उपाब है ।
2. ता०.............................को मध्यस्थ ने यह पंचाट िदया िक पर्ितवादी [वादी को.....................................रुपए दे] ।
3. पर्ितवादी ने उस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 11
िवदेशी िनणर्य पर
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
203
संख्यांक 12
भाटक के संदाय के िलए पर्ितभू के िवरु
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०.................................को ङ च ने वादी से [.....................................गली म.................................संख्यांक
वाला गृह]………………………..रुपए वािषक भाटक पर, जो [पर्ितमास] संदय े था,........................................................वषर्
की अविध के िलए भाड़े पर िलया ।
2. पिरसर का प ा ङ च के नाम िकए जाने के पर्ितफलस्वरूप पर्ितवादी ने भाटक के यथासमय संदाय की पर्त्याभूित देने का
करार िकया ।
3. .......................................मास के भाटक का, िजसकी रकम...................................................................रुपए
है, संदाय नह िकया गया है ।
[यिद करार के िनबन्धन ारा यह अपेिक्षत है िक पर्ितभू को सूचना दी जाए तो िलिखए :]
4. ता०..................................को वादी ने पर्ितवादी को भाटक का संदाय न िकए जाने की सूचना दी और उसके संदाय की
मांग की ।
5. पर्ितवादी ने उसका संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 13
भूिम कर्य करने के करार का भंग
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..........................................को वादी और पर्ितवादी ने एक करार िकया, िजसकी मूल दस्तावेज इसके साथ
उपाब है ।
[या, ता०................................को वादी और पर्ितवादी ने परस्पर करार िकया िक वादी.......................गर्ाम म चालीस
बीघा भूिम का.......................................रुपए म िवकर्य पर्ितवादी को करे गा और पर्ितवादी वादी से उसका कर्य करे गा ।]
2. ता०....................................को वादी ने, जो तब सम्पि का आत्यिन्तक स्वामी था [और वह सम्पि सब पर्कार के
िवल्लंगम से मुक्त थी ऐसा पर्ितवादी को पर्तीत कराया गया था], करार की गई धनरािश के पर्ितवादी ारा िदए जाने पर अन्तरण की
एक पयार्प्त िलखत पर्ितवादी को िनिवद की थी [या उसे पर्ितवादी को एक पयार्प्त िलखत ारा अन्तिरत करने के िलए तैयार और
रजामन्द था और अब भी तैयार और रजामन्द है और इस बात की पर्स्थापना कर चुका है ।]
3. पर्ितवादी ने उस धन का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 14
िवकर्य िकए गए माल का पिरदान न िकया जाना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
204
1. ता०.......................................को वादी और पर्ितवादी ने परस्पर करार िकया िक पर्ितवादी [आटे के सौ बोर का]
वादी को ता०....................................को पिरदान करे गा और वादी, पिरदान पर उसके िलए..........................................रुपय
का संदाय करे गा ।
2. [उक्त] िदन उक्त माल के पिरदान पर वादी उक्त रािश का पर्ितवादी को संदाय करने के िलए तैयार और रजामन्द था और
उसने वह रािश देने की पर्स्थापना की ।
3. पर्ितवादी ने माल का पिरदान नह िकया है और वादी उन लाभ से वंिचत रहा है जो ऐसे पिरदान से उसे पर्ोद्भूत होते ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 15
सदोष पदच्युित
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०………………………..को वादी और पर्ितवादी ने परस्पर करार िकया िक वादी, पर्ितवादी की सेवा [लेखापाल के
या फोरमैन या िकसी अन्य के रूप म] करे गा और पर्ितवादी वादी को [एक वषर्] की अविध के िलए उस रूप म िनयोिजत रखेगा और
उसकी सेवा के िलए उसे.................................रुपए [पर्ितमास] देगा ।
2. ता०.......................................को वादी पर्ितवादी की सेवा म पर्िवष्ट हुआ और उक्त वषर् की शेष अविध के दौरान
ऐसी सेवा म रहने के िलए तब से बराबर तैयार और रजामन्द रहा है और अब भी है और इस बात की सूचना पर्ितवादी को सदैव रही है
।
3. ता०..................................को पर्ितवादी ने वादी को सदोष सेवोन्मुक्त कर िदया और उक्त रूप म सेवा करने से वादी
को अनुज्ञा देने से या उसकी सेवा के िलए उसे संदाय करने से इन्कार कर िदया ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 16
सेवा करने की संिवदा का भंग
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..................................को वादी और पर्ितवादी ने परस्पर करार िकया िक वादी......................................रुपए
के [वािषक] वेतन पर पर्ितवादी को िनयोिजत करे गा और पर्ितवादी [कलाकार] के रूप म वादी की सेवा [एक वषर्] की अविध के िलए
करे गा ।
2. वादी करार के अपने भाग का पालन करने के िलए सदैव तैयार और रजामन्द रहा है [और ता०.............................को
उसने ऐसा करने की पर्स्थापना की] ।
3. पर्ितवादी उक्त िदन वादी की सेवा म [पर्िवष्ट हुआ] िकन्तु तत्पश्चात् उसने वादी की उक्त रूप म सेवा करने से
ता०.....................................को इन्कार कर िदया ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 17
तर्ुिटपूणर् कमर्कौशल के िलए िनमार्णकतार् के िवरु
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०...............................को वादी और पर्ितवादी ने एक करार िकया, िजसका मूल दस्तावेज इसके साथ उपाब है [या
संिवदा का तात्पयर् िलिखए] ।
[2. वादी ने करार के अपने भाग की सब शत का सम्यक् रूप से पालन कर िदया है ।]
3. पर्ितवादी ने [करार म िनिदष्ट गृह का िनमार्ण बुरे पर्कार से और अकु शलता से िकया है ]।
205
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 18
िलिपक की िवश्वस्तता के बन्धपतर् पर
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०......................................को वादी ने च छ को िलिपक के रूप म अपनी सेवा म िनयोिजत िकया ।
2. उसके पर्ितफलस्वरूप पर्ितवादी ने वादी से ता०............................................को करार िकया िक यिद िलिपक के रूप
म च छ वादी के पर्ित अपने कतर्व्य का पालन िनष्ठापूवर्क नह करे गा या यिद वह उस सब धन, ऋण के सा य या अन्य सम्पि का,
जो उसे वादी के उपयोग के िलए पर्ाप्त हुई है, लेखा वादी को देने म असफल रहेगा तो उस कारण वादी जो भी हािन उठाए उसके िलए
पर्ितवादी वादी को.....................................................रुपए से अनिधक का संदाय करे गा ।
[या 2. उसके पर्ितफलस्वरूप पर्ितवादी ने उसी तारीख के अपने बन्धपतर् ारा वादी को....................................रुपए की
शािस्तक रािश देने के िलए इस शतर् पर अपने को आब िकया िक यिद िलिपक और रोकिड़ए के रूप म च छ वादी के पर्ित अपने
कतर्व्य का पालन िनष्ठापूवर्क करे गा और यिद वह उस सब धन, ऋण के सा य या अन्य सम्पि का िजसे वह वादी के िलए िकसी भी
समय न्यासत: धािरत करे , लेखा न्यायसंगत रूप म वादी को दे देगा तो बन्धपतर् शून्य होगा ।]
[या 2. उसके पर्ितफलस्वरूप उसी तारीख को पर्ितवादी ने वादी के पक्ष म एक बन्धपतर् िनष्पािदत िकया, िजसकी मूल
दस्तावेज इसके साथ उपाब है ।]
3. ता०.....................................और ता०.............................के बीच च छ को वादी के उपयोग के िलए धन और अन्य
सम्पि , िजसका मूल्य..........................रुपए है, पर्ाप्त हुई और इस रािश का लेखा उसने वादी को नह िदया है और वह अब तक
शोध्य है और उसका संदाय नह िकया गया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 19
उस अिभधारी ारा िजसे िवशेष नुकसान हुआ है, भू-स्वामी के िवरु
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०..........................................को पर्ितवादी ने वादी को रिजस्टर्ीकृ त िलखत ारा [...............................गली म
......................................संख्यांक वाला गृह]........................................वषर् की अविध के िलए वादी से यह संिवदा करके प े
पर िदया था िक वह, अथार्त् वादी, और उसके िविधक पर्ितिनिध उसके कब्जे का शािन्तपूणर् उपभोग उक्त अविधपयर्ंत करगे ।
2. सब शत पूरी कर दी गई और ऐसी सब आवश्यक बात घिटत हुई ह िजनसे वादी यह वाद चलाने का हकदार हो जाता है ।
3. उक्त अविध के दौरान म ता०..................................को च छ ने जो उक्त गृह का िविधपूणर् स्वामी है, वादी को वहां से
िविधपूवर्क बेदखल कर िदया और अब भी उसने उसका कब्जा वादी को देने से रोक रखा है ।
4. वादी इस बात से [उक्त स्थान म दज के रूप म अपना कारबार चलाने से िनवािरत हो गया, वहां से हटकर दूसरी जगह
जाने म उसे.....................................रुपए व्यय करने पड़े और ऐसे हट जाने के कारण उसे ज झ और ट ठ की गर्ाहकी की हािन हो
गई ।]
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 20
क्षितपूित के करार पर
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०.................................को वादी और पर्ितवादी ने, जो क ख और ग घ अिभनाम से िकए जाने वाले व्यापार म
भागीदार ह, अपनी भागीदारी का िवघटन कर िदया और परस्पर करार िकया िक पर्ितवादी भागीदारी की सब सम्पि ले लेगा और
206
रखेगा, फमर् के सब ऋण चुकाएगा और फमर् की ऋिणता म े वादी के िवरु जो दावे िकए जाएं उन सब दाव के िलए वादी की
क्षितपूित करे गा ।
2. वादी ने करार के अपने भाग की सब शत का सम्यक् रूप से पालन कर िदया ।
3. ता०......................................को [फमर् ारा च छ को शोध्य ऋण म े एक िनणर्य च छ ारा ...........................के
उच्च न्यायालय म वादी और पर्ितवादी के िवरु पर्ाप्त कर िलया गया और ता०...................................को] वादी ने [उसकी तुिष्ट
म]..............................................रुपए का संदाय िकया ।
4. पर्ितवादी ने वादी को उस रकम का संदाय नह िकया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया ह ।]
संख्यांक 21
कपट ारा संपि उपाप्त करना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. पर्ितवादी ने वादी को इस बात के िलए उत्पर्ेिरत करने पर्योजन से िक वह पर्ितवादी का कु छ माल बेचे ता०................को
वादी से यह व्यपदेशन िकया िक [वह अथार्त् पर्ितवादी शोधक्षम है और उसकी अपने सब दाियत्व से....................................रुपए
अिधक की मािलयत है ।]
2. इससे वादी........................................रुपए मूल्य की [सूखी वस्तुए]ं पर्ितवादी को बेचने [और उनका पिरदान करने] के
िलए उत्पर्ेिरत हो गया ।
3. उक्त व्यपदेशन िमथ्या थे [यहां िविशष्ट िमथ्या बात का कथन कीिजए] और उनका ऐसा होना पर्ितवादी को
तब ज्ञात था ।
4. पर्ितवादी ने माल के िलए संदाय नह िकया है [या, यिद माल का पिरदान नह िकया गया है तो] वादी ने उस माल को
तैयार करने और पोत ारा भेजने और उसका पर्त्यावतर्न कराने म............................................रुपए व्यय िकए ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 22
अन्य व्यिक्त को उधार पर िदया जाना, कपटपूवक
र् उपाप्त करना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ता०...........................................को पर्ितवादी ने वादी से व्यपिदष्ट िकया िक च छ शोधक्षम है और उसकी अच्छी
साख है तथा उसकी अपने सब दाियत्व से.........................................रुपए अिधक की मािलयत है [या िक च छ उ रदाियत्वपूणर्
ओहदे पर है और अच्छी पिरिस्थितय म है और उधार पर माल देने के िलए उसका पूरा िवश्वास िकया जा सकता है ।]
2. इस पर वादी च छ को.......................................रुपए मूल्य का [चावल]..................................[मास के उधार
पर] बेचने के िलए उत्पर्ेिरत हो गया ।
3. उक्त व्यपदेशन िमथ्या थे और उनका ऐसा होना पर्ितवादी को तब ज्ञात था और वे उसके ारा वादी से पर्वंचना और कपट
करने के [या वादी से पर्वंचना करने और उसे क्षित पहुचाने के ] आशय से िकए गए थे ।
4. च छ ने [उक्त उधार की अविध के समाप्त होने पर उक्त माल के िलए संदाय नह िकया, या] उसने उक्त चावल के िलए
संदाय नह िकया और वादी को उस सारे चावल की हािन हो गई है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 23
वादी की भूिम के नीचे के जल को पर्दूिषत करना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
207
संख्यांक 24
अपायकर िविनमार्ण चलाना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. ….......................नाम से ज्ञात और........................................म िस्थत कु छ भूिमयां वादी के कब्जे म ह और इसम
आगे िलिखत सब समय पर थ ।
2. ता०........................से बराबर पर्ितवादी कु छ पर्गालन संकम से िजन्ह पर्ितवादी चला रहा है, बड़ी मातर्ा म क्लेशकर
और अस्वास्थकर धुआं तथा अन्य वाष्प और अपायकर पदाथर् दोषपूवर्क िनकाल रहा है, जो उक्त भूिमय के ऊपर फै ल जाते ह और
िजन्ह ने वायु को भर्ष्ट कर िदया है और जो भूिम तल पर जम गए ह ।
3. वादी के उन भूिमय म उगने वाले वृक्ष , झािड़य , हिरयाली और फसल को उससे नुकसान हुआ और उनके मूल्य म कमी हो
गई और उन भूिमय पर वादी के ढोर और जीवधन अस्वस्थ हो गए ह और उनम से बहुत से िवषाक्त होकर मर गए ।
4. वादी ढोर और भेड़ को उन भूिमय पर वैसे चराने म असमथर् रहा जैसे वह अन्यथा उन्ह चरा सकता था और वह अपने
ढोर , भेड़ और कृ िष-धन को वहां से हटाने के िलए िववश हो गया और भूिमय का वैसा फायदापर्द और अच्छा उपयोग और अिधभोग
करने से िनवािरत रहा जैसा वह अन्यथा कर सकता था ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 25
मागार्िधकार म बाधा डालना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक
1. वादी का कब्जा [……………………गर्ाम म के एक गृह पर] है और इसम आगे उिल्लिखत समय पर था ।
2. वादी वषर् म सब समय पर [गृह] से लोक राजमागर् तक अमुक खेत म होकर [यान म या पैदल] जाने के िलए और लोक
राजमागर् से उस खेत से होकर उस गृह तक [यान म या पैदल] लौट कर आने के िलए स्वयं और अपने सेवक के िलए मागार्िधकार का
हकदार था ।
3. ता०...............................को पर्ितवादी ने उक्त मागर् को दोषपूवर्क बािधत कर िदया िजससे वादी [यान म या पैदल या
िकसी पर्कार से] उस रास्ते पर होकर न जा सका [और वह उसे तब से बराबर दोषपूवर्क बािधत िकए हुए है] ।
4. (यिद कोई िवशेष नुकसान हुआ हो तो वह िलिखए ।)
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 26
राजमागर् म बाधा डालना
(शीषर्क)
1. पर्ितवादी……………………से............................को जाने वाले लोक राजमागर् म दोषपूवर्क एक खाई खोद दी है
और उस पर िम ी और पत्थर ऐसे जमा कर िदए ह िजससे वह बािधत हो गया है ।
208
2. उक्त लोक राजमागर् से िविधपूवर्क जाते हुए वादी उस बाधा के कारण उक्त िम ी और पत्थर पर [या उक्त खाई म] िगर
पड़ा और उसकी बांह टू ट गई और उसे बहुत पीड़ा सहनी पड़ी और बहुत समय तक वह अपने कारबार की देखभाल नह कर सका और
उसे अपनी िचिकत्सा-पिरचयार् म व्यय उपगत करना पड़ा ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 27
जल-सरणी को मोड़ना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी का कब्जा……..……………….िजले के ……………………..गर्ाम म………………………..नाम से ज्ञात
(धारा) पर िस्थत िमल पर है और इसम आगे उिल्लिखत समय पर था ।
2. ऐसे कब्जे के कारण वादी अपनी िमल को चलाने के िलए उस धारा के पर्वाह का हकदार था ।
3. ता०………………………………को पर्ितवादी ने धारा के िकनारे को काटकर उसके जल को दोषपूवर्क मोड़ िदया
िजससे वादी की िमल म पानी कम आने लगा ।
4. इस कारण वादी पर्ितिदन……………………………से अिधक बोरे पीसने म असमथर् रहा है जब िक जल के उक्त मोड़े
जाने के पूवर् वह पर्ितिदन…………………………..बोरे पीस लेता था ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 28
जल का िसचाई के िलए उपयोग करने के अिधकार म बाधा डालना
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी का कब्जा…………………………इत्यािद म िस्थत कु छ भूिमय पर है और इसम आगे उिल्लिखत समय पर था
और वादी अमुक धारा के जल का एक भाग उक्त भूिमय की िसचाई के िलए लेने और उपयोग म लाने का हकदार है और इसम आगे
उिल्लिखत समय पर था ।
2. ता०…………………………..को पर्ितवादी ने उक्त धारा को दोषपूवर्क बािधत करके तथा उसे मोड़कर वादी को उक्त
जल के उक्त भाग को उक्त रूप म लेने और उपयोग म लाने से रोक िदया ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 29
रे ल-पथ पर उपेक्षा से हुई क्षितयां
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. ता०…………………………..को पर्ितवादी…………………………..और……………………………के बीच
रे ल ारा याितर्य को ले जाने के िलए सामान्य वाहक थे ।
2. उस िदन वादी उक्त रे ल-पथ पर पर्ितवादी के िडब्ब म से एक म यातर्ी था ।
3. जब वह ऐसा यातर्ी था तब………………………….म (या…………………………के स्टेशन के िनकट
या………………………और………………………….स्टेशन के बीच) पर्ितवािदय के सेवक की उपेक्षा और अकौशल के कारण
उक्त रे ल पर टक्कर हो गई, िजससे वादी को अपनी टांग टूट जाने, अपना िसर फट जाने इत्यािद से और यिद कोई िवशेष नुकसान हुआ
हो तो िलिखए) बहुत क्षित हुई और उसे अपनी िचिकत्सीय-पिरचयार् पर व्यय उपगत करना पड़ा और वह िबकर्ीकतार् के रूप म अपना
पूवर्वत कारबार करने से स्थायी रूप से अशक्त हो गया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
209
[या इस भांित—2. उस िदन पर्ितवािदय ने इं जन और उससे संलग्न िडब्ब की रे लगाड़ी को पर्ितवािदय की रे ल की लाइन
पर िजसको वादी िविधपूवर्क उस समय पार कर रहा था, अपने सेवक के ारा ऐसी उपेक्षा और अकौशल से चलाया और उसका
संचालन िकया िक उक्त ईंजन और रे लगाड़ी आगे बढ़कर वादी से टकरा गई िजसके कारण……………………………….इत्यािद
जैसा िक पैरा 3 म है ।]
संख्यांक 30
उपेक्षापूवर्क गाड़ी चलाने से हुई क्षितयां
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी जूता बनाने वाला है और अपना कारबार………...……………………………………म करता है ।
पर्ितवादी……………………का व्यापारी है ।
2. ता०....…………………………को लगभग 3 बजे अपराह्न म वादी कलक ा नगर म चौरं गी म दिक्षण की ओर जा
रहा था । उसे िमिडलटन स्टर्ीट पार करनी पड़ी जो चौरं गी से समकोण पर िमलती है । जब वह उस स्टर्ीट को पार कर रहा था, और
इससे ठीक पहले िक वह उसकी दूसरी ओर वाले पाद पथ पर पहुंचे, दो घोड़ ारा ख ची जाने वाली पर्ितवादी की गाड़ी, जो पर्ितवादी
के सेवक के भारसाधन और िनयंतर्ण म थी सहसा और िकसी चेतावनी के िबना बड़ी तेजी से और ख़तरनाक गित से िमिडलटन स्टर्ीट से
चौरं गी म उपेक्षापूवर्क मुड़ी । गाड़ी का बम वादी से टकराया और वादी नीचे िगर पड़ा और घोड़ के पांव से कु चल गया ।
3. टक्कर लगने और िगरने और पाव के नीचे कु चले जाने से वादी की बाईं बांह टू ट गई और उसकी बगल म और पीठ पर
नील पड़ गए और क्षित पहुंची और साथ ही उसे भीतरी क्षित भी हुई और उसके पिरणामस्वरूप वादी चार मास तक रोगगर्स्त रहा और
कष्ट भोगता रहा और अपने कारबार की देखभाल करने म असमथर् रहा, और उसे भारी िचिकत्सीय और अन्य व्यय उपगत करने पड़े
तथा उसे कारबार और लाभ की बड़ी हािन सहनी पड़ी ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 31
िव ष
े पूणर् अिभयोजन के िलए
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. ता०………………………….को पर्ितवादी ने……………………….से (जो उक्त नगर का मिजस्टर्ेट है या जो
िस्थित हो वह िलिखए)……………………….के आरोप पर िगरफ्तारी का वारण्ट अिभपर्ाप्त िकया और उसके बल पर वादी
िगरफ्तार िकया गया और…………………………….(िदन या घण्ट के िलए) कारावािसत रहा और (अपनी िनमुर्िक्त के िलए
उसने………………….रुपय की जमानत दी ।)
2. ऐसा करने म पर्ितवादी ने िव ष
े पूवर्क और युिक्तयुक्त या अिधसम्भाव्य हेतुक के िबना कायर् िकया ।
3. ता०………………………को मिजस्टर्ेट ने पर्ितवादी का पिरवाद खािरज कर िदया और वादी को दोषमुक्त कर िदया ।
4. अनेक व्यिक्तय ने, िजनके नाम वादी को अज्ञात ह, िगरफ्तारी की बात सुनकर और वादी को अपराधी अनुमान करके
उसके साथ कारबार करना छोड़ िदया है; या ङच के िलिपक के रूप म अपने पद को वादी उक्त िगरफ्तारी के पिरणामस्वरूप खो बैठा;
या पिरणामस्वरूप वादी को शरीर और मन की पीड़ा सहनी पड़ी और वह अपना कारबार करने से िनवािरत रहा और उसकी साख को
क्षित पहुंची, और उक्त कारावास से िनमुर्क्त होने के िलए और उक्त पिरवाद के िवरु अपनी पर्ितरक्षा करने के िलए उसे व्यय उपगत
करना पड़ा ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है, और वह अनुतोष िजसका दावा िकया गया है ।]
संख्यांक 32
जंगम माल का सदोष िनरोध
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
210
1. ता०……………………….……को वादी इसके साथ उपाब अनुसूची म विणत माल का (या माल का वणर्न
कीिजए), िजसका पर्ाक्किलत मूल्य…………………………..रुपए है, स्वामी था [या वे तथ्य िलिखए िजनसे कब्जे का अिधकार
दिशत होता है ।]
2. उस िदन से इस वाद के पर्ारम्भ होने तक पर्ितवादी ने उस माल को वादी से रोक रखा है ।
3. वाद आरम्भ होने से पहले, अथार्त् ता०……………………….को, वादी ने पर्ितवादी से माल मांगा, िकन्तु उसने माल
का पिरदान करने से इं कार िकया ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी यह दावा करता है िक—
(1) उक्त माल का पिरदान कराया जाए, या यिद उसका पिरदान नह कराया जा सकता
तो……………..……..रुपए िदलाए जाएं;
(2) उसको रोक रखे जाने के पर्ितकरस्वरूप……………………….रुपए िदलाए जाएं ।
अनुसूची
संख्यांक 33
कपटी िवकर्ेता और उसकी सूचना सिहत अन्तिरती के िवरु
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. ता०……………………………..को पर्ितवादी ग घ ने वादी को उसे कु छ माल बेचने के िलए उत्पर्ेिरत करने के पर्योजन
से वादी से यह व्यपिदष्ट िकया िक [वह शोधक्षम है और उसकी उसके सब दाियत्व से……………………..रुपए अिधक की मािलयत
है ।]
2. इससे वादी ग घ को [चाय के एक सौ बक्से] बेचने और उनका पिरदान करने के िलए उत्पर्ेिरत हुआ । इनका पर्ाक्किलत
मूल्य……………………………रुपए है ।
3. उक्त व्यपदेशन िमथ्या थे और गघ को उनका िमथ्या होना तब ज्ञात था [या उक्त व्यपदेशन करने के समय, ग घ
िदवािलया था और वह अपनी यह िस्थित जानता था ।]
4. ग घ ने तत्पश्चात् उक्त माल पर्ितवादी च छ को िकसी पर्ितफल के िबना [या च छ को िजसे व्यपदेशन के िमथ्या होने की
सूचना थी], अन्तिरत कर िदया ।
[जैसा पर्रूप सं० 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
5. [कब वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ था और िकस न्यायालय की अिधकािरता है, को दशार्ने वाले तथ्य………………………]
6. अिधकािरता के पर्योजन के िलए वाद की िवषय-वस्तु का मूल्य…………………रुपए है और न्यायालय फीस के पर्योजन
के िलए………………..रुपए है ।
7. वादी यह दावा करता है िक—
(1) उक्त माल का पिरदान कराया जाए, या यिद उसका पिरदान नह कराया जा सकता
तो……………………रुपए िदलाए जाएं ।
(2) उस माल को रोक रखने के पर्ितकरस्वरूप…………………………रुपए िदलाए जाएं ।
संख्यांक 34
संिवदा का भूल के आधार पर िवखण्डन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. ता०………………………….को पर्ितवादी ने वादी से व्यपिदष्ट िकया िक अमुक भू-खण्ड, जो पर्ितवादी का है
और…………………………म िस्थत है [दस बीघे] का है ।
211
2. इससे वादी उसे…….....…………….रुपए की कीमत पर इस िवश्वास पर खरीदने के िलए उत्पर्ेिरत हो गया िक उक्त
व्यपदेशन सत्य है और उसने एक करार पर हस्ताक्षर िकए िजसकी मूल पर्ित इसके साथ उपाब है । िकन्तु भूिम उसे अन्तिरत नह की
गई है ।
3. ता०………………………….को वादी ने पर्ितवादी को कर्यधन के भाग रूप………………………….रुपए दे िदए ।
4. उक्त भू-खण्ड वास्तव म के वल [पांच बीघे] का है ।
[जैसा पर्रूप सं० 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
5. [कब वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ था और िकस न्यायालय की अिभकािरता है, को दशार्ने वाले तथ्य………..]
6. अिधकािरता के पर्योजन के िलए वाद की िवषय-वस्तु का मूल्य……………रुपए है और न्यायालय फीस के पर्योजन के
िलए…………..रुपए है ।
7. वादी यह दावा करता है िक—
(1) ता०…………………………से ब्याज सिहत……………………….रुपए िदलाए जाएं;
(2) उक्त करार लौटाया जाए और र कर िदया जाए ।
संख्यांक 35
दुव्यर्य रोकने के िलए व्यादेश
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी [सम्पि का वणर्न कीिजए] का आत्यिन्तक स्वामी है ।
2. पर्ितवादी का उस पर कब्जा वादी से िलए गए प े के अधीन है ।
3. पर्ितवादी ने वादी की सहमित के िबना [िवकर्य के पर्योजन के िलए कई मूल्यवान वृक्ष काट डाले ह और अन्य बहुत से काट
डालने की धमकी दे रहा है ।]
[जैसा पर्रूप सं० 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
4. [कब वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ था और िकस न्यायालय की अिभकािरता है, को दशार्ने वाले तथ्य…………………]
5. अिधकािरता के पर्योजन के िलए वाद की िवषय-वस्तु का मूल्य……………….रुपए है और न्यायालय फीस के पर्योजन के
िलए………………..रुपए है ।
6. वादी यह दावा करता है िक पर्ितवादी को उक्त पिरसर म कोई अितिरक्त दुव्यर्य करने या करने देने से व्यादेश ारा
अवरु िकया जाए ।
[धन के रूप म पर्ितकर का भी दावा िकया जा सकता है ।]
संख्यांक 36
न्यूसस रोकने के िलए व्यादेश
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी [कलक ा की……………………..स्टर्ीट के ……………………………संख्यांक वाले गृह] का आत्यिन्तक
स्वामी है और इसम आगे उिल्लिखत सब समय पर था ।
2. पर्ितवादी [उसी…………………………स्टर्ीट म एक भू-खण्ड] का आत्यिन्तक स्वामी है और उक्त सब समय पर था ।
3. ता०………………………….को पर्ितवादी ने अपने उक्त भू-खण्ड म एक वधशाला िनिमत की और उसे वह अब भी
बनाए हुए है और उस िदन से आज तक वह बराबर वहां ढोर मंगवा कर उन्ह मरवा डालता है [और रक्त और ओझड़ी को वादी के उक्त
गृह के सामने वाली गली म िफकवा देता है ।]
[4. पिरणामत: वादी उक्त गृह का पिरत्याग करने के िलए िववश हो गया है और उसे भाटक पर नह उठा सका है ।]
5. [कब वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ था और िकस न्यायालय की अिभकािरता है, को दशार्ने वाले तथ्य………………………]
212
संख्यांक 37
लोक न्यूसस
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. पर्ितवादी ने……………………की लोक सड़क पर, जो…………………….गली के नाम से ज्ञात है, िम ी और पत्थर
का ढेर दोषपूवर्क ऐसे लगा िदया है िक उस सड़क पर लोग को आने-जाने म बाधा पड़ती है और वह यह धमकी दे रहा है िक उसका यह
आशय है िक जब तक उसे ऐसा करने से अवरु नह िकया जाता है वह उक्त दोषपूणर् कायर् को चालू रखेगा और उसे दुहराता रहेगा ।
1 [*2. वादी ने न्यायालय की इजाजत इस वाद को संिस्थत करने के िलए अिभपर्ाप्त कर ली है ।
*जहां वाद महािधवक्ता ारा संिस्थत िकया जाता है वहां पर यह लागू नह है ।]
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
5. वादी यह दावा करता है िक—
(1) यह घोषणा की जाए िक पर्ितवादी उक्त लोक सड़क पर लोग के आने-जाने म बाधा डालने का हकदार नह है;
(2) उक्त लोक सड़क पर लोग के आने-जाने म बाधा डालने से पर्ितवादी को अवरु करने वाला और पूव क्त रूप
से दोषपूवर्क इक ी की गई िम ी और पत्थर को हटाने के िलए पर्ितवादी को िनदेश देने वाला व्यादेश िनकाला जाए ।
संख्यांक 38
जल-सरणी मोड़ने के िवरु व्यादेश
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
[जैसा पर्रूप संख्यांक 27 म है ।]
वादी दावा करता है िक पूव क्त जल-सरणी को मोड़ने से पर्ितवादी व्यादेश ारा अवरु िकया जाए ।
संख्यांक 39
उक्त जंगम संपि के पर्त्यावतर्न के िलए िजसके िवनाश की धमकी दी जा रही है, और व्यादेश के िलए
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी (अपने िपतामह के रूपिचतर् का, जो एक पर्िस िचतर्कार ारा बनाया गया था) स्वामी है और इसम आगे उिल्लिखत
सब समय पर था और उस रूपिचतर् की दूसरी पर्ित िव मान नह है [या वे तथ्य िलिखए िजनसे यह दिशत होता है िक सम्पि इस
पर्कार की है िक उसकी पूित धन से नह की जा सकती है ।]
2. ता०…………………………को उसने उसे पर्ितवादी के पास सुरिक्षत रूप से रखने के िलए िनिक्षप्त िकया था ।
3. ता०…………………………को उसने पर्ितवादी से उसे वापस मांगा और उसे भण्डार म रखने के सब युिक्तयुक्त
पर्भार को देने की पर्स्थापना की ।
4. पर्ितवादी उस रूपिचतर् का वादी को पिरदान करने से इन्कार करता है और यह धमकी दे रहा है िक यिद उससे उसका
पिरदान करने की अपेक्षा की गई तो वह उसे िछपा देगा या उसका व्ययन कर देगा या उसे काट देगा या क्षत कर देगा ।
5. उस [रं गिचतर्] की हािन के िलए वादी को कोई धनीय पर्ितकर पयार्प्त पर्ितकर नह होगा ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 93 ारा (1-2-1977 से) पैरा 2 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
213
संख्यांक 40
अन्तरािभवाची
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. इसम आगे उिल्लिखत दाव की तारीख के पहले ज झ ने वादी के पास [सम्पि का वणर्न कीिजए] को [सुरिक्षत रूप से
रखने के िलए] िनिक्षप्त िकया था ।
2. पर्ितवादी ग घ [ज झ से उसके अिभकिथत समनुदश
े न के अधीन] उसका दावा करता है ।
3. पर्ितवादी च छ भी [ज झ के ऐसे आदेश के अधीन, िजसके ारा वह उसे अन्तिरत की गई थी] उसका दावा करता है ।
4. वादी, पर्ितवािदय के अपने-अपने अिधकार के बारे म अनिभज्ञ है ।
5. उसका उस सम्पि पर, पर्भार और खच से िभन्न, कोई दावा नह है और वह उसका उन व्यिक्तय को पिरदान करने के
िलए तैयार और रजामन्द है िजन्ह देने का न्यायालय िनदेश दे ।
6. यह वाद दोन पर्ितवािदय म से िकसी के साथ दुस्सिन्ध करने के बाद नह लाया गया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
9. वादी दावा करता है िक—
(1) पर्ितवादी को वादी के िवरु उसके सम्बन्ध म कोई कायर्वाही करने से व्यादेश ारा अवरु कर िदया जाए;
(2) उनसे अपेक्षा की जाए िक वे उक्त सम्पि पर अपने दाव के बारे म परस्पर अन्तरािभवचन करे ;
[(3) इस मुकदमे के लिम्बत रहने तक उक्त सम्पि को पर्ाप्त करने के िलए िकसी व्यिक्त को पर्ािधकृ त िकया जाए;]
(4) उसका ऐसे [व्यिक्तय ] को पिरदान कर देने पर वादी उसके सम्बन्ध म पर्ितवािदय म से िकसी के भी पर्ित सब
दाियत्व म उन्मोिचत िकया जाए ।
संख्यांक 41
लेनदार ारा अपनी ओर से और सब लेनदार की ओर से पर्शासन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. मृत ङच, जो………………………….का था, अपनी मृत्यु के समय वादी के पर्ित……………………[यहां ऋण की
पर्कृ ित और यिद कोई पर्ितभूित हो तो उसका उल्लेख कीिजए] की रािश का ऋणी था और उसकी सम्पदा अभी तक उस ऋण से भािरत
है ।
2. ङच की मृत्यु ता०.............................को या उसके लगभग हुई थी । उसने तारीख……………………की अपनी
अिन्तम िवल ारा ग घ को अपना िनष्पादक िनयुिक्त िकया (या, यथािस्थित, उसने अपनी सम्पदा न्यास के रूप म वसीयत ारा दी,
इत्यािद या वह िनवर्सीयती मर गया) ।
3. िवल ग घ ारा सािबत की गई [या पर्शासन-पतर् अनुद िकए गए, इत्यािद ।]
4. पर्ितवादी ने ङच की जंगम सम्पि [और स्थावर सम्पि या स्थावर सम्पि के आगम ] पर अपना कब्जा कर िलया है और
वादी को उसका ऋण नह चुकाया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
7. वादी दावा करता है िक मृत ङच की जंगम [और स्थावर] सम्पि का लेखा िलया जाए और न्यायालय की िडकर्ी के अधीन
उसका पर्शासन िकया जाए ।
214
संख्यांक 42
िविनिदष्ट वसीयतदार ारा पर्शासन
(शीषर्क)
[पर्रूप संख्यांक 41 को इस पर्कार पिरवितत कीिजए]
[पैरा 1 छोड़ दीिजए और पैरा 2 इस पर्कार आरम्भ कीिजए] मृत ङच की जो, …………………………का था, मृत्यु
ता०……………………को या उसके लगभग हुई । उसने ता०…………………………..की अपनी अंितम िवल ारा ग घ को
अपना िनष्पादक िनयुक्त िकया और वादी को [यहां िविनिदष्ट वसीयत सम्पदा िलिखए] वसीयत की ।
पैरा 4 के स्थान पर यह िलिखए िक—
पर्ितवादी ङच की जंगम सम्पि पर कब्जा रखता है और अन्य चीज के साथ [यहां िविनिदष्ट वसीयत की िवषय-
वस्तु का नाम दीिजए] पर भी कब्जा रखता है ।
पैरा 7 के पर्ारम्भ के स्थान पर यह िलिखए िक—
वादी दावा करता है िक पर्ितवादी को आदेश िदया जाए िक वह [यहां िविनिदष्ट वसीयत की िवषय-वस्तु का नाम दीिजए]
वादी को पिरद करे या िक, इत्यािद ।
संख्यांक 43
धनीय वसीयतदार ारा पर्शासन
(शीषर्क)
[पर्रूप संख्यांक 41 को इस पर्कार पिरवितत कीिजए]
[पैरा 1 छोड़ दीिजए और पैरा 2 के स्थान पर यह िलिखए िक] मृत ङच की, जो……………………….का था, मृत्यु
तारीख…………………………को या उसके लगभग हुई । उसने तारीख……………………..की अपनी अिन्तम िवल ारा ग घ
को अपना िनष्पादक िनयुक्त िकया और वादी को……………………….रुपए की वसीयत की ।
पैरा 4 म “उसका ऋण नह चुकाया है” शब्द के स्थान पर “उसकी वसीयत सम्पदा का संदाय नह िकया है” शब्द
पर्ितस्थािपत कीिजए ।
दूसरा पर्रूप
(शीषर्क)
उक्त वादी ङच यह कथन करता है िक—
1. क ख की जो,………………………..…म ट क था, तारीख…………………………को मृत्यु हुई । उसने
तारीख.........................की अपनी अिन्तम िवल ारा पर्ितवादी को और ड ढ को [िजसकी मृत्यु वसीयतकतार् के जीवन काल म ही हो
गई थी] अपना िनष्पादक िनयुक्त िकया और अपनी सम्पि चाहे वह जंगम थी या स्थावर, अपने िनष्पादक को इस न्यास पर िक वे
उसके भाटक और आय वादी को उसके जीवनपयर्न्त देते रह, और वादी की मृत्यु के पश्चात् और उसके ऐसा पुतर् न होने पर, जो इक्कीस
वषर् की आयु पर्ाप्त कर ले या ऐसी पुतर्ी न होने पर, जो वह आयु पर्ाप्त कर ले या िववाह कर ले, अपनी स्थावर सम्पि उस व्यिक्त के
पक्ष म न्यास पर, जो वसीयतकतार् का िविधना वािरस होगा और अपनी जंगम सम्पि उन व्यिक्तय के पक्ष म न्यास पर जो यिद वादी
की मृत्यु के समय वसीयतकतार् िनवर्सीयत मरता और वादी के ऐसी सन्तान न होती, िजसका उल्लेख ऊपर िकया गया है तो वसीयतकतार्
के िनकटतम कु ल्य होते, वसीयत की थी ।
2. पर्ितवादी ने िवल ता०…………………को सािबत कर दी थी । वादी ने िववाह नह िकया है ।
3. वसीयतकतार् अपनी मृत्यु के समय जंगम और स्थावर सम्पि का हकदार था; पर्ितवादी ने स्थावर सम्पि के भाटक पर्ाप्त
करना आरम्भ कर िदया है और जंगम सम्पि अपने कब्जे म कर ली है; उसने स्थावर सम्पि का कु छ भाग बेच िदया है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी दावा करता है िक—
(1) क ख की जंगम और स्थावर सम्पि का पर्शासन इस न्यायालय म िकया जाए और उस पर्योजन के िलए सब
उिचत िनदेश िदए जाएं और लेखा िलए जाएं;
(2) ऐसा अितिरक्त या अन्य अनुतोष िदया जाए जैसा मामले की पर्कृ ित से अपेिक्षत हो ।
215
संख्यांक 44
न्यास का िनष्पादन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वह ता०………………………या उसके लगभग की तारीख की व्यवस्थापन िलखत के अधीन, जो व्यवस्थापन
पर्ितवादी के िपता और माता ङच और छ ज के िववाह के अवसर पर िकया गया था [या पर्ितवादी ग घ के और ङच के अन्य लेनदार के
फायदे के िलए ङच की सम्पदा और चीजबस्त के अन्तरण की िलखत के अधीन], न्यािसय म से एक है ।
2. क ख ने उक्त न्यास का भार अपने ऊपर िलया है और उक्त िलखत ारा अन्तिरत जंगम और स्थावर सम्पि [या उसके
आगम] उसके कब्जे म है ।
3. ग घ िलखत के अधीन फायदापर्द िहत का हकदार होने का दावा करता है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी उक्त स्थावर सम्पि के सब भाटक और लाभ का [और उक्त स्थावर सम्पि के या उसके भाग के िवकर्य के आगम
का या जंगम सम्पि का या उक्त जंगम सम्पि के या उसके भाग के िवकर्य के आगम का या उक्त न्यास के िनष्पादन म से न्यासी के
रूप म वादी को पर्ोद्भूत होने वाले लाभ का] लेखा देना चाहता है, और पर्ाथर्ना करता है िक न्यायालय उक्त न्यास का लेखा ले, और
यह भी िक उक्त सम्पूणर् न्यास सम्पदा का इस न्यायालय म पर्शासन पर्ितवादी ग घ के और उन सब अन्य व्यिक्तय के , जो ऐसे पर्शासन
म िहतब ह फायदे के िलए ग घ की और इस पर्कार िहतब अन्य ऐसे व्यिक्तय की, िजन्ह न्यायालय िनिदष्ट करे , उपिस्थित म िकया
जाए या िक ग घ इसके पर्ितकू ल अच्छा हेतुक दिशत कर ।
[कृ पया ध्यान द—जहां वाद िहतािधकारी ारा है वहां वादपतर् वसीयतदार के वादपतर् के नमूने पर, आवश्यक पिरवतर्न
सिहत, तैयार िकया जाए ।]
संख्यांक 45
पुरोबन्ध या िवकर्य
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी पर्ितवादी की भूिमय का बन्धकदार है ।
2. बन्धक की िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह—
(क) (तारीख);
(ख) (बन्धककतार् और बन्धकदार के नाम);
(ग) (पर्ितभूित रािश);
(घ) (ब्याज की दर);
(ङ) (बन्धक के अधीन सम्पि );
(च) (अब शोध्य रकम);
(छ) (यिद वादी का हक अन्य से व्युत्पन्न है तो िजन अन्तरण या न्यागमन के अधीन वह दावा करता है वे संक्षेप
म िलिखए ।)
(यिद वादी सकब्जा बन्धकदार है तो यह िलिखए—)
3. वादी ने बन्धक सम्पि का कब्जा ता०……………………को िलया और वह सकब्जा बन्धकदार के रूप म उस समय से
लेखा देने के िलए तैयार है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी दावा करता है िक—
(1) उसे संदाय िकया जाए या उसम व्यितकर्म होने पर [िवकर्य या] पुरोबन्ध िकया जाए [और कब्जा िदलाया
जाए];
216
संख्यांक 46
मोचन
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वादी उन भूिमय का बन्धककतार् है िजनका बन्धकदार पर्ितवादी है ।
2. बन्धक की िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह—
(क) (तारीख);
(ख) (बन्धककतार् और बन्धकदार के नाम);
(ग) (पर्ितभूत रािश);
(घ) (ब्याज की दर);
(ङ) (बन्धक के अधीन सम्पि );
(च) (यिद वादी का हक अन्य से व्युत्पन्न है तो िजन अन्तरण या न्यागमन के अधीन वह दावा करता है वे संक्षेप म
िलिखए) ।
[यिद पर्ितवादी सकब्जा बन्धकदार है तो यह िलिखए—]
3. पर्ितवादी ने बन्धक सम्पि का कब्जा ले िलया है (या उसका भाटक पर्ाप्त कर िलया है) ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी उक्त सम्पि के मोचन का और 2 [अन्त:कालीन लाभ के साथ] उसे अपने को वापस हस्तांतिरत कराने का (और उस
पर कब्जा पर्ाप्त करने का) दावा करता है ।
संख्यांक 47
िविनिदष्ट पालन (संख्यांक 1)
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. तारीख…………………………के और पर्ितवादी ारा हस्ताक्षिरत करार ारा पर्ितवादी ने उसम विणत और िनिदष्ट
कु छ स्थावर सम्पि …………………………रुपय म वादी से खरीदने की (या वादी को बेचने की) संिवदा की थी ।
2. वादी ने पर्ितवादी से आवेदन िकया िक वह करार के अपने भाग का िविनिदष्ट पालन करे , िकन्तु पर्ितवादी ने ऐसा नह
िकया है ।
3. वादी करार के अपने भाग का िविनिदष्ट पालन करने के िलए तैयार और रजामन्द रहा है और अब भी है, िजसकी सूचना
पर्ितवादी को है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
6. वादी दावा करता है िक न्यायालय पर्ितवादी को करार का िविनिदष्ट पालन करने के िलए, और उक्त सम्पि का वादी को
पूरा कब्जा िदलाने के िलए सब आवश्यक कायर् करने के िलए [या उक्त सम्पि का अन्तरण और कब्जा पर्ितगृहीत करने के िलए,] और
वाद के खच देने के िलए आदेश दे ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 93 ारा (1-2-1977 से) “बाकी के िलए िडकर्ी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 93 ारा (1-2-1977 से) जोड़ा गया ।
217
संख्यांक 48
िविनिदष्ट पालन (संख्यांक 2)
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. तारीख………....……………को वादी और पर्ितवादी ने िलिखत करार िकया, िजसकी मूल दस्तावेज इसके साथ
उपाब है ।
पर्ितवादी करार म विणत स्थावर सम्पि का आत्यंितक रूप से हकदार था ।
2. ता०……………………………को वादी ने पर्ितवादी को…….………………………..रु० पर्स्तुत िकए और उक्त
सम्पि का अन्तरण पयार्प्त िलखत ारा िकए जाने की मांग की ।
3. ता०…………………………को वादी ने ऐसा अन्तरण िकए जाने की िफर मांग की [या पर्ितवादी ने उसे वादी को
अन्तिरत करने से इन्कार कर िदया ।]
4. पर्ितवादी ने कोई अन्तरण िलखत िनष्पािदत नह की है ।
5. वादी उक्त संपि का कर्यधन पर्ितवादी को देने के िलए अब भी तैयार और रजामन्द है ।
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
8. वादी दावा करता है िक—
(1) पर्ितवादी (करार के िनबन्धन के अनुसार) उक्त सम्पि वादी को पयार्प्त िलखत ारा अन्तिरत कर दे;
(2) उस सम्पि को रोक रखने के िलए उसे………………………रुपए पर्ितकर दे ।
संख्यांक 49
भागीदारी
(शीषर्क)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है िक—
1. वह और पर्ितवादी ग घ िपछले…………………………..वषर् (या मास) से भागीदारी के िलिखत अनुच्छेद के अधीन
[या िवलेख के अधीन या मौिखक करार के अधीन] इक े कारबार करते रहे ह ।
2. ऐसे भागीदार के रूप म वादी और पर्ितवादी के बीच ऐसे कई िववाद और मतभेद व्युत्पन्न हुए ह िजनके कारण भागीदारी
का कारबार भागीदार के फायदापर्द रूप म चलाना असम्भव हो गया है । [या पर्ितवादी ने भागीदारी के अनुच्छेद के िनम्निलिखत भंग
िकए ह—
(1)
(2)
(3) ।]
[जैसा पर्रूप संख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 म है ।]
5. वादी दावा करता है िक—
(1) भागीदारी का िवघटन िकया जाए;
(2) लेखा िलया जाए;
(3) िरसीवर िनयुक्त िकया जाए ।
[कृ पया ध्यान द—िकसी भी भागीदारी के पिरसमापन के वाद म, िवघटन के िलए दावा छोड़ िदया जाए, और उसके स्थान
पर एक पैरा जोड़ िदया जाए, िजसम भागीदारी का िवघटन कर िदए जाने के तथ्य किथत ह ।]
218
साधारण पर्ितरक्षाएं
इं कार—पर्ितवादी इस बात से इन्कार करता है िक (तथ्य िलिखए) ।
पर्ितवादी यह स्वीकार नह करता है िक (तथ्य िलिखए) ।
पर्ितवादी स्वीकार करता है िक………………...……………..िकन्तु उसका कहना है िक.........................................।
पर्ितवादी इस बात से इन्कार करता है िक वह……………………………वाली पर्ितवादी की फमर् म भागीदार है ।
अभ्यापि —पर्ितवादी इस बात से इन्कार करता है िक उसने वादी से अिभकिथत संिवदा या कोई संिवदा की ।
पर्ितवादी इस बात से इन्कार करता है िक उसने वादी से अिभकिथत रूप म संिवदा या कोई भी संिवदा की ।
पर्ितवादी आिस्तय को स्वीकार करता है िकन्तु वादी के दावे को स्वीकार नह करता ।
पर्ितवादी इस बात से इं कार करता है िक वादी ने वादपतर् म विणत माल या उसम से कोई भी माल पर्ितवादी को बेचा ।
पिरसीमा—वाद, इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15) 1 की ि तीय अनुसूची के
अनुच्छेद………………………या अनुच्छेद…………………………… ारा विजत है ।
अिधकािरता—वाद की सुनवाई की अिधकािरता न्यायालय को इस आधार पर नह है िक (आधार िलिखए) ।
अिभकिथत वाद हेतुक के उन्मोचन म ता०…………………………..को पर्ितवादी ने एक हीरे की अंगूठी वादी को पिरद
की थी और वादी ने उसे पर्ितगृहीत िकया था ।
िदवाला—पर्ितवादी िदवािलया न्यायिनण त कर िदया गया है ।
वादी वाद के संिस्थत िकए जाने से पहले िदवािलया न्यायिनण त कर िदया गया था और वाद करने का अिधकार िरसीवर म
िनिहत हो गया था ।
अवयस्कता—पर्ितवादी अिभकिथत संिवदा की जाने के समय अवयस्क था ।
न्यायालय म जमा करना—पर्ितवादी ने पूरे दावे की रकम (या, यथािस्थित, दावाकृ त धन के
भागरूप……………………रुपए) की बाबत न्यायालय म…………………रुपए जमा कर िदए ह और उसका कहना है िक यह
रािश वादी के दावे की [या उपयुर्क्त भाग की] तुिष्ट के िलए पयार्प्त है ।
पालन का पिरहार—अिभकिथत वचन के पालन का पिरहार (तारीख)…………………………….को कर िदया था ।
िवखण्डन—संिवदा वादी और पर्ितवादी के बीच हुए करार ारा िवखिण्डत कर दी गई थी ।
पूव-र् न्याय—वादी का दावा (यहां िनदश दीिजए) वाद की िडकर्ी ारा विजत है ।
िवबन्ध—वादी (यहां वह कथन िलिखए िजसके बारे म िवबन्ध का दावा है) की सत्यता से इन्कार करने से इसिलए िवब है
िक (यहां वे तथ्य िलिखए िजन पर िनभर्र इसिलए िकया गया है िक उनसे िवबन्ध का सृजन होता है) ।
वाद के संिस्थत िकए जाने का पश्चात्वत पर्ितरक्षा का आधार—वाद के संिस्थत िकए जाने के पश्चात्,
अथार्त्……………….को (यहां तथ्य िलिखए) ।
संख्यांक 1
िवकर्य िकए गए और पिरद माल के िलए वाद म पर्ितरक्षा
1. पर्ितवादी ने माल के िलए आदेश नह िदया था ।
2. माल का पिरदान पर्ितवादी को नह िकया गया था ।
3. कीमत………………………रुपए नह थी ।
[या]
4. 1.
5. ...…………………रुपए के बारे के िसवाय वही पर्ितरक्षा है जो 2. म है ।
6. 3.
1
अब पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) देिखए ।
219
7. पर्ितवादी [या पर्ितवादी के अिभकतार् कख] ने दावे की तुिष्ट वाद के पूवर् वादी [या वादी के अिभकतार् ग घ] को
ता०…………………को संदाय करके कर दी थी ।
8. पर्ितवादी ने दावे की तुिष्ट वाद के पश्चात् वादी को ता०................................को संदाय करके कर दी थी ।
संख्यांक 2
बन्धपतर् पर वाद म पर्ितरक्षा
1. बन्धपतर् पर्ितवादी का बन्धपतर् नह है ।
2. पर्ितवादी ने बन्धपतर् की शत के अनुसार िनयत िदन पर वादी को संदाय कर िदया था ।
3. पर्ितवादी ने बन्धपतर् म विणत मूलधन और ब्याज का संदाय वादी को नािमत िदन के पश्चात् और वाद के पूवर् कर
िदया था ।
संख्यांक 3
पर्त्याभूितय पर वाद म पर्ितरक्षा
1. मूल ऋणी ने दावे की तुिष्ट वाद के पूवर् संदाय करके कर दी थी ।
2. वादी ने मूल ऋणी को एक आब कर करार के अनुसरण म समय िदया था और उससे पर्ितवादी िनमुर्क्त हो गया था ।
संख्यांक 4
ऋण के िकसी भी वाद म पर्ितरक्षा
1. दावा िकए गए धन के 200 रुपए की बाबत पर्ितवादी उस माल के िलए जो उसने वादी को बेचा और पिरद िकया है,
मुजराई का हकदार है—
िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह :
रुपए
25 जनवरी, 1907…………………………………………………………. 150
1 फरवरी, 1907………………………………………………………….… 50
जोड़ 200
2. पूरी रकम की [या दावा िकए गए धन के भागरूप........................................रुपए की] बाबत पर्ितवादी ने वाद के
पूवर्…….……..रुपए िनिवद िकए और उन्ह न्यायालय म जमा कर िदया है ।
संख्यांक 5
उपेक्षापूवर्क गाड़ी चलाने से हुई क्षितय के िलए वाद म पर्ितरक्षा
1. पर्ितवादी इस बात से इन्कार करता है िक वादपतर् म विणत गाड़ी पर्ितवादी की गाड़ी थी और वह पर्ितवादी के सेवक के
भारसाधन या िनयंतर्ण म थी । गाड़ी……………………….गली, कलक ा के ……………………………की थी, जो भाड़े पर
घोड़ा देने के िलए अस्तबल चलाते ह तथा िजन्ह पर्ितवादी को गािड़य और घोड़ का पर्दाय करने के िलए पर्ितवादी ने िनयोिजत िकया
है और वह व्यिक्त िजसके भारसाधन और िनयंतर्ण म उक्त गाड़ी थी उक्त………………………का सेवक था ।
2. पर्ितवादी यह स्वीकार नह करता है िक उक्त गाड़ी िमिडलटन स्टर्ीट से या तो उपेक्षापूवर्क, सहसा या चेतावनी िदए िबना
या तेज या खतरनाक गित से मोड़ी गई ।
3. पर्ितवादी का कहना है िक युिक्तयुक्त सावधानी और तत्परता बरत कर वादी उक्त गाड़ी को अपनी ओर आते हुए देख
सकता था और उससे टक्कर बचा सकता था ।
4. पर्ितवादी वादपतर् के पैरा 3 म अंतिवष्ट कथन को स्वीकार नह करता ।
संख्यांक 6
दोष के िलए सभी वाद म पर्ितरक्षा
1. िविभन्न काय [या बात ] का िजनके संबंध म पिरवाद िकया गया है, पर्त्याख्यान ।
220
संख्यांक 7
माल के िवरोध के वाद म पर्ितरक्षा
1. माल वादी की संपि नह थी ।
2. माल उस धारणािधकार से िनरु िकया गया था िजसका पर्ितवादी हकदार था । िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह—
3 मई, 1907—िदल्ली से कलक ा को दावाकृ त माल के वहन की बाबत—
2 रुपए पर्ित मन की दर से 45 मन की बाबत……………………… 90 रुपए ।
संख्यांक 8
पर्ितिलप्यिधकार के अितलंघन के वाद म पर्ितरक्षा
1. वादी लेखक [समनुदिे शती, इत्यािद] नह है ।
2. पुस्तक रिजस्टर्ीकृ त नह थी ।
3. पर्ितवादी ने अितलंघन नह िकया ।
संख्यांक 9
व्यापार-िचह्न के अितलंघन के वाद म पर्ितरक्षा
1. व्यापार-िचह्न वादी का नह है ।
2. अिधकिथत व्यापार-िचह्न व्यापार-िचह्न नह है ।
3. पर्ितवादी ने अितलंघन नह िकया ।
संख्यांक 10
न्यूसस संबंधी वाद म पर्ितरक्षा
1. वादी के पर्काश मागर् पर्ाचीन नह ह [या उसके अन्य अिभकिथत िचरभोगािधकार का पर्त्याख्यान कीिजए ।]
2. वादी के पर्काश म पर्ितवादी के िनमार्ण से तत्त्वत: बाधा नह पहुंचेगी ।
3. पर्ितवादी इस बात का पर्त्याख्यान करता है िक वह या उसके सेवक जल को पर्दूिषत करते ह [या वह करते ह िजसका
पिरवाद िकया गया है ।]
[यिद पर्ितवादी दावा करता है िक िजस बात का पिरवाद िकया गया है वह करने का अिधकार उसे िचरभोग ारा या अन्यथा
पर्ाप्त है तो उसे ऐसा कहना चािहए और अपने दावे के आधार का कथन करना चािहए अथार्त् यह कथन करना चािहए िक वे अिधकार
िचरभोग या अनुदान ारा ह या िकस आधार पर ह ।]
4. वादी अितिवलम्ब का दोषी रहा है िजसकी िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह—
1870 म वादी की िमल ने काम शुरू िकया ।
1871 म वादी का कब्जा हुआ ।
1883 म पहला पिरवाद िकया गया ।
5. नुकसानी के िलए वादी के दावे की बाबत पर्ितवादी पर्ितरक्षा के उक्त आधार पर िनभर्र करे गा और उसका यह कहना है
िक पिरवािदत काय से वादी को कोई नुकसान नह हुआ है । [यिद अन्य आधार पर िनभर्र िकया जाता है तो उनका, जैसे भूतकािलक
नुकसान के बारे म पिरसीमा, इत्यािद, का कथन करना चािहए ।]
संख्यांक 11
पुरोबन्ध के वाद म पर्ितरक्षा
1. पर्ितवादी ने बन्धक िनष्पािदत नह िकया था ।
2. बन्धक वादी को अन्तिरत नह िकया गया था [यिद एक से अिधक अन्तरण का अिभकथन िकया गया है तो यह बताइए
िक िकस अन्तरण का पर्त्याख्यान िकया जाता है] ।
221
3. वाद इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1877 1 (1877 का 15) की ि तीय अनुसूची के अनुच्छेद…………………………. ारा
विजत है ।
4. िनम्निलिखत संदाए िकए गए ह, अथार्त् :—
रुपए
[यहां तारीख िलिखए]………………………………………………………………. 1,000
[यहां तारीख िलिखए]…………………………………………………………….… 500
5. वादी ने ता०……………………को कब्जा िलया था और वह तब से बराबर भाटक पर्ाप्त करता रहा है ।
6. वादी ने ता०……………………को ऋण का िनम चन कर िदया था ।
7. पर्ितवादी ने अपना सब िहत ता०………………………..की दस्तावेज ारा क ख को अन्तिरत कर िदया था ।
संख्यांक 12
मोचन के वाद म पर्ितरक्षा
1. वादी का मोचन अिधकार इिण्डयन िलिमटेशन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15)1 की ि तीय अनुसच
ू ी के
अनुच्छेद…………………………… ारा विजत है ।
2. वादी ने सम्पि म अपना सब िहत क ख को अन्तिरत कर िदया ।
3. पर्ितवादी ने ता०………………………..की दस्तावेज ारा बन्धक ऋण म तथा बन्धक म समािवष्ट सम्पि म अपना
सब िहत क ख को अन्तिरत कर िदया था ।
4. पर्ितवादी ने बन्धक सम्पि का कब्जा कभी नह िलया था और न उसका भाटक पर्ाप्त िकया है ।
[यिद पर्ितवादी के वल कु छ समय के िलए कब्जा स्वीकार करता है तो उसे उस समय का उल्लेख करना चािहए और जो कु छ
वह स्वीकार करता है उसके परे के कब्जे का पर्त्याख्यान करना चािहए ।]
संख्यांक 13
िविनिदष्ट पालन के वाद म पर्ितरक्षा
1. पर्ितवादी ने करार नह िकया था ।
2. क ख पर्ितवादी का अिभकतार् नह था [यिद ऐसा अिभकथन वादी ारा िकया गया हो ।]
3. वादी ने िनम्निलिखत शत का पालन नह िकया—[शत]
4. पर्ितवादी ने [भािगक पालन के अिभकिथत कायर्] नह िकए ।
5. उस सम्पि म, िजसके बेचने का करार हुआ था, वादी का हक ऐसा नह है िक िनम्निलिखत बात के कारण पर्ितवादी उसे
स्वीकार करने के िलए आब हो [कारण िलिखए ।]
6. करार िनम्निलिखत बात के बारे म अिनिश्चत है—[वे बात िलिखए ।]
7. [या] वादी िवलम्ब का दोषी रहा है ।
8. [या] वादी कपट या [दुव्यर्पदेशन] का दोषी रहा है ।
9. [या] करार अनुिचत है ।
10. [या] करार भूल से िकया गया था ।
11. (7), (8), (9), (10) [या जैसी िस्थित हो] उसकी िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह ।
12. करार का िवखण्डन िवकर्य की शतर् संख्यांक 11 के अधीन [या परस्पर करार ारा] कर िदया गया था ।
[उन मामल म, िजनम नुकसानी का दावा िकया गया है और पर्ितवादी नुकसानी की बाबत अपने दाियत्व के बारे म िववाद
करता है उसे करार का या अिभकिथत भंग का पर्त्याख्यान करना चािहए, या पर्ितरक्षा के िजस दूसरे आधार पर िनभर्र करने का वह
आशा रखता है उसे दिशत करना चािहए, उदाहरणाथर् भारतीय पिरसीमा अिधिनयम1 सहमित और तुिष्ट, िनम चन, कपट, इत्यािद ।]
1
अब पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) देिखए ।
222
संख्यांक 14
धनीय वसीयतदार ारा लाए गए पर्शासन वाद म पर्ितरक्षा
1. क ख की िवल म ऋण-भार अन्तिवष्ट था । जब उसकी मृत्यु हुई तब वह िदवािलया था । अपनी मृत्यु के समय वह कु छ
स्थावर सम्पि का हकदार था िजसे पर्ितवादी ने बेच िदया और िजससे…………………………रुपए की शु रािश का आगम हुआ,
और वसीयतकतार् की कु छ जंगम सम्पि थी, िजस पर पर्ितवादी ने कब्जा िकया और िजससे………………………रुपए की शु
रािश का आगम हुआ ।
2. पर्ितवादी ने उक्त सब रािशय का और……………………….…….रुपए की रािश का जो पर्ितवादी को स्थावर
सम्पि के भाटक के रूप म पर्ाप्त हुई, उपयोजन वसीयतकतार् की अन्त्येिष्ट और वसीयती व्यय का और ऋण म से कु छ का संदाय
करने म िकया ।
3. पर्ितवादी ने अपने लेखा को पूरा करके उनकी एक पर्ित वादी को ता०……………………….को भेज दी थी और यह
पर्स्थापना की थी िक उन लेखा का सत्यापन करने के िलए वादी वाउचर को अबाध रूप से देख सकता है िकन्तु उसने पर्ितवादी की
पर्स्थापना का फायदा उठाने से इंकार कर िदया ।
4. पर्ितवादी का यह िनवेदन है िक इस वाद के खच वादी ारा िदए जाने चािहएं ।
संख्यांक 15
सत्यिनष्ठ पर्रूप म वसीयत का पर्ोबेट
1. मृतक की उक्त िवल और कर्ोड़पतर् इं िडयन सक्सेशन ऐक्ट, 1865 1 (1865 का 10) [या िहन्दू िवल्ज ऐक्ट, 18701] (1870
का 21) के उपबन्ध के अनुसार सम्यक् रूप से िनष्पािदत नह िकए गए थे ।
2. िजस समय कर्मश: उक्त िवल और कर्ोड़पतर् का िनष्पादन िकया जाना तात्पियत है उस समय मृतक स्वस्थ िच , स्मृित और
बोध का नह था ।
3. उक्त िवल और कर्ोड़पतर् का िनष्पादन वादी के (और उसके साथ कायर् करने वाले अन्य लोग के , िजनके नाम इस समय
पर्ितवादी को ज्ञात नह ह) असम्यक् असर से अिभपर्ाप्त िकया गया था ।
4. उक्त िवल और कर्ोड़पतर् का िनष्पादन वादी के कपट से अिभपर्ाप्त िकया गया था । जहां तक उस कपट की पर्ितवादी को
इस समय जानकारी है वह (कपट की पर्कृ ित िलिखए) ।
5. उक्त िवल और कर्ोड़पतर् का िनष्पादन करते समय मृतक को उसकी अन्तवर्स्तु की [या, यथािस्थित, उक्त िवल के
अविशष्टीय खण्ड की अन्तवर्स्तु की] जानकारी नह थी और उसने उनका अनुमोदन नह िकया था ।
6. मृतक ने अपनी सही अिन्तम िवल 1 जनवरी, 1873 को की और उससे उसने पर्ितवादी को उसका एकमातर् िनष्पादक
िनयुक्त िकया था ।
पर्ितवादी दावा करता है िक—
(1) न्यायालय वादी ारा पर्ितपािदत िवल और कर्ोड़पतर् के िवरु िनणर्य सुनाए;
(2) न्यायालय मृतक की 1 जनवरी, 1873 की िवल के िविध िविहत सत्यिनष्ठ पर्रूप म पर्ोबेट की िडकर्ी दे ।
संख्यांक 16
िविशिष्टयां (आदेश 6 का िनयम 5)
(वाद का शीषर्क)
िविशिष्टयां—ता०……………………..के आदेश के अनुसरण म पिरद [यहां वे बात िलिखए िजनके बारे म िविशिष्टयां
देने का आदेश िदया गया है] की िविशिष्टयां िनम्निलिखत ह—
(यहां आिदष्ट िविशिष्टय को, यिद आवश्यक हो तो पैरा म िलिखए)
1
अब भारतीय उ रािधकार अिधिनयम, 1925 (1925 का 39) देिखए ।
223
पिरिशष्ट ख
आदेिशका
संख्यांक 1
वाद िनपटारे के िलए समन (आदेश 5 के िनयम 1 और 5)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
............................
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
........................ने आपके िवरु …………………..के िलए वाद संिस्थत िकया है । आपको इस न्यायालय म
तारीख……………….को िदन म………………..बजे दावे का उ र देने के िलए उपसंजात (हािजर) होने के िलए समन िकया जाता
है आप न्यायालय म स्वयं या िकसी ऐसे प्लीडर ारा उपसंजात हो सकते ह िजसे सम्यक् अनुदश े िदए गए ह और जो इस वाद से
संबंिधत सभी सारवान् पर्श्न का उ र दे सके या िजसके साथ ऐसा कोई व्यिक्त हो जो ऐसे सब पर्श्न का उ र दे सके । न्यायालय म
आपकी उपसंजाित के िलए जो िदन िनयत िकया गया है वह इस वाद के अंितम िनपटारे के िलए िनयत िदन है । इसिलए आपको उस
िदन अपने उन सब सािक्षय को या उन सब दस्तावेज को पेश करने के िलए तैयार रहना चािहए िजन पर आप अपनी पर्ितरक्षा के िलए
िनभर्र रहना चाहते ह ।
आपको सूिचत िकया जाता है िक यिद आप ऊपर बताई गई तारीख को इस न्यायालय म उपसंजात नह ह गे तो वाद की
सुनवाई और उसका िनपटारा आपकी अनुपिस्थित म िकया जाएगा ।
यह आज तारीख…………………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया है ।
न्यायाधीश
कृ पया ध्यान द—1. यिद आपको यह आशंका है िक आपके साक्षी अपनी मज से हािजर नह ह गे तो आप िकसी साक्षी को
हािजर होने के िलए िववश करने के िलए और ऐसी कोई दस्तावेज पेश कराने के िलए, िजसे पेश करने के िलए साक्षी से अपेक्षा करने का
आपको अिधकार है, समन इस न्यायालय से आवेदन करके और आवश्यक व्यय की रकम जमा करके ले सकते ह ।
2. यिद आप दावे को स्वीकार करते ह तो आपको चािहए िक वाद के खच के साथ उस दावे का धन न्यायालय म जमा कर द
िजससे िक िडकर्ी का िनष्पादन स्वयं आपके या आपकी सम्पि या दोन के िवरु न करना पड़े ।
संख्यांक 2
िववा क के िस्थरीकरण के िलए समन (आदेश 5 के िनयम 1 और 5)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
.........................................................
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
..................................ने आपके िवरु …………….……………..के िलए वाद संिस्थत िकया है । आपको इस
न्यायालय म तारीख………..……………….को िदन म…..……………….…..बजे दावे का उ र देने के िलए उपसंजात (हािजर)
होने के िलए समन िकया जाता है । आप न्यायालय म स्वयं या िकसी ऐसे प्लीडर ारा उपसंजात हो सकते ह िजसे सम्यक् अनुदश
े िदए
गए ह और जो इस वाद से संबंिधत सभी सारवान् पर्श्न का उतर दे सके या िजसके साथ ऐसा कोई व्यिक्त हो जो ऐसे सब पर्श्न का
उ र दे सके । 1 [आपको यह िनदेश भी िदया जाता है िक आप उस िदन अपनी पर्ितरक्षा का िलिखत कथन दािखल कर और उस िदन
ऐसी सब दस्तावेज जो आपके कब्जे या शिक्त म ह पेश कर िजन पर आपकी पर्ितरक्षा या मुजराई का दावा या पर्ितदावा आधािरत है ।
और यिद आप िकसी अन्य दस्तावेज पर, चाहे वह आपके कब्जे या शिक्त म हो या न हो, अपनी पर्ितरक्षा या मुजराई के दावे या
पर्ितदावे के समथर्न म सा य के रूप म िनभर्र करते ह तो आप ऐसी दस्तावेज की, िलिखत कथन के साथ उपाब की जाने वाली सूची
म पर्िविष्ट कर] ।
आपको सूिचत िकया जाता है िक यिद आप ऊपर बताई गई तारीख को इस न्यायालय म उपसंजात नह ह गे तो वाद की
सुनवाई और उसका िनपटारा आपकी अनुपिस्थित म िकया जाएगा ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 94 ारा (1-2-1977 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
224
संख्यांक 3
स्वयं उपसंजात होने के िलए समन (आदेश 5 का िनयम 3)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
.........................................................
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
.............................ने आपके िवरु …….……………..के िलए वाद संिस्थत िकया है । आपको इस न्यायालय म
तारीख………..…………….को िदन म…..……………..बजे दावे का उ र देने के िलए उपसंजात होने के िलए समन िकया जाता
है । आपको िनदेश िदया जाता है िक आप उस िदन उन सब दस्तावेज को पेश कर िजन पर अपनी पर्ितरक्षा के िलए िनभर्र रहना चाहते
ह।
आपको सूिचत िकया जाता है िक यिद आप ऊपर बताई गई तारीख को इस न्यायालय म उपसंजात नह ह गे तो वाद की
सुनवाई और उसका अवधारण आपकी अनुपिस्थित म िकया जाएगा ।
यह आज तारीख…………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया है ।
न्यायाधीश
1
[संख्यांक 4
संिक्षप्त वाद म समन
(आदेश 37 का िनयम 2)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
..................................................
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
.............................ने िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 37 के अधीन आपके िवरु …….……………..रुपय और
ब्याज के िलए वाद संिस्थत िकया है । आपको समन िकया जाता है िक आप इस समन की तामील होने की तारीख से दस िदन के भीतर
उपसंजात (हािजर) ह । यिद आप ऐसा नह करगे तो दस िदन की उक्त अविध के बीत जाने के पश्चात् वादी
को……......……………….रुपय से अनिधक रािश के िलए और खच की बाबत……………........………रुपय की रािश के
िलए ऐसे ब्याज सिहत, यिद कोई ह , जैसा न्यायालय आिदष्ट करे , िडकर्ी अिभपर्ाप्त करने का हक होगा ।
यिद आप उपसंजात होते ह तो वादी तत्पश्चात् आपको िनणर्य के िलए समन तामील करे गा िजसकी सुनवाई के समय आपको
वाद की पर्ितरक्षा करने की इजाजत के िलए न्यायालय से समावेदन करने का हक होगा ।
यिद आप शपथपतर् ारा या अन्यथा न्यायालय का यह समाधान कर देते ह िक वाद की पर्ितरक्षा गुणागुण के आधार पर की
जा सकती है या यह युिक्तयुक्त है िक आपको पर्ितरक्षा करने के िलए अनुज्ञा दी जानी चािहए तो पर्ितरक्षा करने की इजाजत दी जा
सके गी ।
यह आज ता०……………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया है ।
न्यायाधीश]
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 94 ारा (1-2-1977 से) पर्रूप 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
225
1
[संख्यांक 4क
संिक्षप्त वाद म िनणर्य के िलए समन
(आदेश 37 का िनयम 3)
(शीषर्क)
…..………………....म………..……………….के न्यायालय म 19.............................का वाद
संख्यांक………………..
भमय वादी
बनाम
कखग पर्ितवादी
न्यायालय वादी के शपथपतर् को पढ़ने के उपरांत िनम्निलिखत आदेश करता है, अथार्त् :—
सम्ब सभी पक्षकार, यथािस्थित, न्यायालय या न्यायाधीश के समक्ष तारीख……………..…को पूवार्ह्न
म…..……….…बजे वादी के इस आवेदन की सुनवाई के िलए हािजर ह िक वह पर्ितवादी के िवरु (या यिद एक या कु छ या कई
पर्ितवादी ह तो उसका या उनके नाम िलख)……………………..रुपए के िलए और ब्याज तथा खच के िलए इस वाद म िनणर्य
पर्ाप्त करने के िलए स्वतंतर् होगा ।
तारीख……………………….]
न्यायाधीश
संख्यांक 5
उस व्यिक्त को सूचना िजसके बारे म न्यायालय समझता है िक उसे सहवादी के रूप म जोड़ा जाना चािहए
(आदेश 1 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
..................................................
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
.............................ने……………………के िवरु …………………….के िलए वाद संिस्थत िकया है और यह
आवश्यक पर्तीत होता है िक उक्त वाद म आपको वादी के रूप म इसिलए जोड़ा जाए िक न्यायालय उससे जुड़े हुए सब पर्श्न का पर्भावी
तौर पर और पूणर् रूप से न्यायिनणर्यन कर सके और उन्ह िनपटा सके ।
आपको सूिचत िकया जाता है िक आप ता०……………………को या उसके पूवर् इस न्यायालय को बताएं िक क्या आप इस
पर्कार जोड़े जाने के िलए सहमत ह ।
यह आज ता०…………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई है ।
न्यायाधीश
संख्यांक 6
मृतक पर्ितवादी के िविधक पर्ितिनिध को समन
(आदेश 22 का िनयम 4)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
.....................................................................................
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 94 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
226
……………………………….वादी ने इस न्यायालय म
ता०……………………को………………………पर्ितवादी के िवरु वाद संिस्थत िकया था । पर्ितवादी की अब मृत्यु हो चुकी है
और उक्त वादी ने यह अिभकथन करते हुए इस न्यायालय म आवेदन िकया है िक आप उक्त…………………..मृतक के िविधक
पर्ितिनिध ह और यह इच्छा पर्कट की है िक आपको उसके बदले म पर्ितवादी बनाया जाए ।
आपको समन िकया जाता है िक आप उक्त वाद म पर्ितरक्षा करने के िलए ता०……………………को……………….बजे
पूवार्ह्न इस न्यायालय म हािजर ह और यिद आप ऊपर बताई गई तारीख को उपसंजात नह ह गे तो वाद की सुनवाई और उसका
अवधारण आपकी अनुपिस्थित म िकया जाएगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 7
अन्य न्यायालय की अिधकािरता म तामील िकए जाने के िलए समन के पारे षण का आदेश
(आदेश 5 का िनयम 21)
(शीषर्क)
यह कथन िकया गया है िक…………………….जो िक उक्त वाद म पर्ितवादी/साक्षी है, आजकल…………………म
िनवास कर रहा है । यह आदेश िदया जाता है िक ता०………………………...को लौटाया जाने वाला समन और इस कायर्वाही की
दूसरी पर्ित…………………..के …………………न्यायालय को उक्त पर्ितवादी/साक्षी पर तामील िकए जाने के िलए भेज दी जाए ।
समन की बाबत पर्भायर्…………………………की न्यायालय फीस स्टाम्प के रूप म इस न्यायालय म वसूल कर ली गई
है । ता०………………….19…………………..
न्यायाधीश
संख्यांक 8
कै दी पर तामील िकए जाने के िलए समन के पारे षण का आदेश
(आदेश 5 का िनयम 25)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
……………………की जेल का अधीक्षक ।
िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 5 के िनयम 24 के उपबन्ध के अधीन दो पर्ितय म
समन………………………….……पर्ितवादी पर जो…………..……………….जेल म कै दी है तामील के िलए भेजा जा रहा है
। आपसे अनुरोध है िक उक्त समन की एक पर्ित की तामील उक्त पर्ितवादी पर करा द और उक्त पर्ितवादी ारा हस्ताक्षिरत मूल पर्ित,
आप उस पर तामील का कथन स्वयं पृष्ठांिकत करके , इस न्यायालय को लौटा द ।
न्यायाधीश
संख्यांक 9
लोक सेवक या सैिनक पर तामील िकए जाने के िलए समन के पारे षण का आदेश
(आदेश 5 के िनयम 27 और 28)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
………………………………………..
िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 5 के िनयम 27 [या यथािस्थित िनयम 28] के उपबन्ध के अधीन दो पर्ितय म
समन………………………पर्ितवादी पर, िजसके बारे म यह कथन िकया गया है िक वह आपके अधीन सेवा कर रहा है, तामील के
िलए इसके साथ भेजा जा रहा है । आपसे अनुरोध है िक उक्त समन की एक पर्ित की तामील उक्त पर्ितवादी पर करा द और उक्त
पर्ितवादी ारा हस्ताक्षिरत मूल पर्ित, आप उस पर तामील का कथन स्वयं पृष्ठांिकत करके , इस न्यायालय को लौटा द ।
न्यायाधीश
227
संख्यांक 10
दूसरे न्यायालय के समन को लौटाने का पर्रूप
(आदेश 5 का िनयम 23)
(शीषर्क)
…………………..न्यायालय की उन कायर्वािहय को पिढ़ए िजनके ारा उस न्यायालय के ……………………संख्यांक
वाले वाद म………………………पर तामील के िलए…………………….भेज गया है ।
तामील करने वाले अिधकारी के उस पृष्ठांकन को पिढ़ए िजसम कहा गया है िक………………………...और उक्त का
सबूत……………………और…………………..की शपथ पर मेरे ारा सम्यक् रूप से ले िलए जाने पर यह आदेश िदया जाता है
िक……………………….इस कायर्वाही की एक पर्ित के साथ…………………को लौटा िदया जाए ।
न्यायाधीश
कृ पया ध्यान द—यह पर्रूप समन से िभन्न ऐसी आदेिशका को भी लागू होगा िजसकी तामील उसी पर्कार से की जानी हो ।
संख्यांक 11
आदेिशका-तामीलकतार् का शपथपतर् जो समन या सूचना की िववरणी के साथ भेजा जाएगा
(आदेश 5 का िनयम 18)
(शीषर्क)
…………………….के पुतर्…………………….का शपथपतर् ।
शपथ लेता हूं
म....................................... और यह कथन करता हूं िक :—
पर्ितज्ञान करता हूं
का समन
………………………………………………………………………………………………पर तामील के
की सूचना
के िलए मुझे ता०……………………………………………………………………को पर्ाप्त हुआ था ।
हुई थी ।
शपथ ली ।
समक्ष ।
पर्ितज्ञान िकया
अिभसािक्षय को शपथ िदलाने के िलए
िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की धारा 139 के अधीन सशक्त ।
229
संख्यांक 12
पर्ितवादी को सूचना (आदेश 9 का िनयम 6)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
…………………………………………………………………………..
(नाम, वणर्न और िनवास-स्थान)
उक्त वाद की सुनवाई के िलए आज का िदन िनयत िकया गया था और आपके नाम समन िनकाला गया था । वादी इस
न्यायालय म उपसंजात हुआ है और आप उपसंजात नह हुए ह । नािजर की िववरणी से न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत
हो गया है िक उक्त समन की तामील आप पर हुई थी िकन्तु वह तामील इतने पयार्प्त समय म नह हुई िक आप उक्त समन म िनयत
िदन उपसंजात होकर उ र दे सक ।
आपको सूिचत िकया जाता है िक वाद की सुनवाई आज स्थिगत कर दी गई है और उसकी सुनवाई के िलए अब
तारीख…………………………िनयत की गई है । यिद आप उक्त तारीख को उपसंजात नह ह गे तो वाद की सुनवाई और उसका
िनपटारा आपकी अनुपिस्थित म िकया जाएगा ।
यह आज तारीख…………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगा कर दी गई है ।
न्यायाधीश
संख्यांक 13
साक्षी को समन (आदेश 16 के िनयम 1 और 5)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
......................................................................................
उक्त वाद म………………………..की ओर से आपकी हािजरी……………………..के िलए अपेिक्षत है । आपसे अपेक्षा
की जाती है िक आप तारीख……………………को…………………………बजे पूवार्ह्न इस न्यायालय के समक्ष [स्वयं] उपसंजात
ह और अपने साथ…………………………लाएं (या इस…………………………न्यायालय को भेज) ।
आपकी यातर्ा और अन्य खच के और एक िदन के िनवार्ह भ े के रूप म………………………..रुपए की रािश इसके साथ
भेजी जाती है । यिद आप इस आदेश का अनुपालन करने म िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना असफल रहगे तो आपको गैर-हािजरी के वे
पिरणाम भोगने ह गे जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 16 के िनयम 12 म अिधकिथत ह ।
यह आज तारीख……………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
सूचना—(1) यिद अपको के वल दस्तावेज पेश करने के िलए, न िक सा य देने के िलए समन िकया गया है और आप वह
दस्तावेज पूव क्त िदन और समय इस न्यायालय म पेश करवा देते ह तो यह समझा जाएगा िक आपने समन का अनुपालन कर िदया है ।
(2) यिद आपको पूव क्त िदन के पश्चात् भी रोक िलया जाता है तो िविनिदष्ट िदन के पश्चात् की पर्ितिदन की हािजरी के
िलए आपको……………………………रुपए की रािश िनिवद की जाएगी ।
संख्यांक 14
साक्षी से हािजर होने की अपेक्षा करने वाली उद्घोषणा (आदेश 16 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
......................................................................................
230
तामील करने वाले अिधकारी की शपथ पर परीक्षा करने से यह पर्तीत होता है िक साक्षी पर समन की तामील िविध ारा
िविहत पर्कार से नह की जा सकी । यह भी पर्तीत होता है िक उस साक्षी का सा य ताित्त्वक है और वह समन की तामील से बचने के
पर्योजन से फरार हो गया है और सामने आने से बचता है । अत: यह उद्घोषणा िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 16 के िनयम
10 के अधीन िनकाली जाती है और साक्षी से अपेक्षा की जाती है िक वह ता०………………………को……………………….बजे
पूवार्ह्न म, और जब तक उसे पर्स्थान करने की इजाजत न दे दी जाए तब तक िदन पर्ितिदन, इस न्यायालय म हािजर हो । यिद वह
साक्षी पूव क्त िदन और समय पर हािजर होने म असफल रहता है तो उसके साथ िविध के अनुसार बरता जाएगा ।
यह आज ता०……………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 15
साक्षी से हािजर होने की अपेक्षा करने वाली उद्घोषणा (आदेश 16 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
......................................................................................
तामील करने वाले अिधकारी की शपथ पर परीक्षा करने से यह पर्तीत होता है िक साक्षी पर समन की तामील सम्यक् रूप से
हो चुकी है । यह भी पर्तीत होता है िक उस साक्षी का सा य ताित्त्वक है और वह उस समन के अनुपालन म हािजर होने म असफल रहा
है । अत: यह उद्घोषणा िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 16 के िनयम 10 के अधीन िनकाली जाती है और साक्षी से अपेक्षा की
जाती है िक वह ता०………………..को……………….बजे पूवार्ह्न म, और जब तक उसे पर्स्थान करने की इजाजत न दे दी जाए
तब तक िदन पर्ितिदन, इस न्यायालय म हािजर हो । यिद वह साक्षी उक्त िदन और समय पर हािजर होने म असफल रहता है तो उसके
साथ िविध के अनुसार बरता जाएगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 16
साक्षी की संपि की कु क का वारं ट (आदेश 16 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
न्यायालय का बेिलफ ।
……………… ारा नािमत साक्षी……………………उसकी हािजरी के िलए िनकाली गई उद्घोषणा म िविनिदष्ट
अविध के बीतने के पश्चात् इस न्यायालय म उपसंजात नह हुआ है अत: आपको िनदेश िदया जाता है िक आप उक्त साक्षी
की……………….तक मूल्य की…………………….सम्पि कु कर् करके रख और उसकी तािलका के सिहत
िववरणी…………………….िदन के भीतर भेज द ।
यह आज ता०…………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 17
साक्षी की िगरफ्तारी का वारं ट (आदेश 16 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
न्यायालय का बेिलफ ।
231
……………………पर समन की सम्यक् रूप से तामील हो चुकी है, िकन्तु वह हािजर होने म असफल रहा है । (समन की
तामील से बचने के पर्योजन से फरार हो गया है और सामने आने से बचता है) अत: आपको आदेश िदया जाता है िक आप
उक्त……………………को िगरफ्तार करके न्यायालय के समक्ष लाए ।
आपको यह भी आदेश िदया जाता है िक आप इस वारण्ट को वह िदन िजसको, और वह रीित, िजससे इसका िनष्पादन िकया
गया है या वह कारण िजससे यह िनष्पािदत नह िकया गया है, पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन के सिहत
ता०……………………….को या उसके पूवर् लौटा द ।
यह आज ता०…………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 18
सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट (आदेश 16 का िनयम 16)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
……………………(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी ।
वादी (या पर्ितवादी) ने ऊपरनािमत वाद म इस न्यायालय से आवेदन िकया है िक ता०………………………को सा य देने
के िलए (या दस्तावेज पेश करने के िलए)………………………….की उपसंजाित के िलए पर्ितभूित ली जाए और न्यायालय ने
उक्त…………………..से ऐसे पर्ितभूित देने की अपेक्षा की है, और वह ऐसा करने म असफल रहा है; अत: आप से अपेक्षा की जाती है
िक आप उक्त………………………….को िसिवल कारागार म अपनी अिभरक्षा म ले ल और उसे इस न्यायालय के समक्ष उक्त
िदन…………………….बजे या ऐसे अन्य िदन या िदन को िजसका या िजनका बाद म आदेश िदया जाए पेश करे ।
यह आज ता०………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 19
सुपद
ु ग
र् ी का वारण्ट (आदेश 16 का िनयम 18)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
……………………(स्थान) की जेल का भारसाधक अिधकारी ।
…………………….को, िजसकी हािजरी इस न्यायालय म ऊपर िलखे हुए वाद म सा य देने के िलए (या दस्तावेज पेश
करने के िलए) अपेिक्षत है, िगरफ्तार कर िलया गया है और इस न्यायालय के समक्ष अिभरक्षा म लाया गया है, और वादी (या
पर्ितवादी) की अनुपिस्थित के कारण उक्त…………………..ऐसा सा य नह दे सकता (या ऐसे दस्तावेज पेश नह कर सकता), और
न्यायालय ने उक्त……………………..से ता०……………………को………………….बजे उसकी उपसंजाित के िलए पर्ितभूित
देने की अपेक्षा की थी, िजसे देने म वह असफल रहा है । अत: आप से यह अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त……………………….को
िसिवल कारागार म अपनी अिभरक्षा म ले ल और ता०…………………….को……………………..बजे उसे इस न्यायालय के
समक्ष पेश कर ।
यह आज ता०………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
पिरिशष्ट ग
पर्कटीकरण, िनरीक्षण और स्वीकृ ित
संख्यांक 1
पिरपर्श्न के पिरदान के िलए आदेश (आदेश 11 का िनयम 1)
……………………के न्यायालय म
232
संख्यांक 2
पिरपर्श्न (आदेश 11 का िनयम 4)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
उक्त (वादी या पर्ितवादी ग घ) की ओर से उक्त (पर्ितवादी च छ और ज झ या वादी) की परीक्षा करने के िलए पिरपर्श्न ।
1. क्या उसने इत्यािद, इत्यािद नह िकया ।
2. क्या……………………इत्यािद, इत्यािद नह है ।
…………………………इत्यािद………………………इत्यािद…………………….इत्यािद ।
[पर्ितवादी च छ से अपेक्षा की जाती है िक वह…………………………संख्यांक वाले पिरपर्श्न का उ र दे ।]
[पर्ितवादी ज झ से अपेक्षा की जाती है िक वह…………………………संख्यांक वाले पिरपर्श्न का उ र दे ।]
संख्यांक 3
पिरपर्श्न का उ र (आदेश 11 का िनयम 9)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
उक्त वादी ारा उक्त पर्ितवादी च छ की परीक्षा करने के िलए पिरपर्श्न का उक्त पर्ितवादी च छ ारा उ र,
उक्त पिरपर्श्न के उ र म, म उक्त च छ शपथ लेता हूं और यह कथन करता हूं िक :—
1.
संख्यांक 4
दस्तावेज की बाबत शपथपतर् के िलए आदेश (आदेश 11 का िनयम 12)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
..........................को सुनने के पश्चात् यह आदेश िदया जाता है िक..........................इस आदेश की तारीख से
........................िदन के भीतर शपथपतर् पर उ र दे िजसम यह बताया गया हो िक इस वाद म पर्श्नगत बात से सम्ब
कौन सी दस्तावेज उसकी शिक्त या कब्जे म ह या रही ह और इस आवेदन के खच..................ह गे ।
संख्यांक 5
दस्तावेज की बाबत शपथपतर् (आदेश 11 का िनयम 13)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
म उक्त पर्ितवादी ग घ शपथ लेता हूं और यह कथन करता हूं िकः—
233
1. इस वाद म पर्श्नगत बात से संबंिधत वे दस्तावेज मेरे कब्जे या शिक्त म ह िजनका उल्लेख इसकी पर्थम अनुसूची के पहले
और दूसरे भाग म िकया गया है ।
2. म इसकी पर्थम अनुसच
ू ी के दूसरे भाग म उिल्लिखत उक्त दस्तावेज को पेश करने के बारे म आक्षेप करता हूं (आक्षेप के
आधार िलिखए) ।
3. वाद म पर्श्नगत बात से संबंिधत वे दस्तावेज, िजनका उल्लेख इसकी ि तीय अनुसच
ू ी म िकया गया है, मेरे कब्जे या
शिक्त म थी, िकन्तु अब नह ह ।
4. अिन्तम विणत दस्तावेज मेरे कब्जे या शिक्त म अिन्तम बार (यहां समय िलिखए और यह िलिखए िक उनका क्या हुआ
और वे िकसके कब्जे म ह) ।
5. मेरे सव म ज्ञान, जानकारी और िवश्वास के अनुसार उन दस्तावेज को छोड़कर जो इसकी उक्त पर्थम और ि तीय
अनुसच ू ी म उिल्लिखत ह, ऐसा कोई लेखा, लेखा पुस्तक, वाउचर, रसीद, पतर्, ज्ञापन, कागज या लेख, या ऐसी िकसी दस्तावेज की कोई
पर्ित या उ रण, या कोई ऐसी अन्य दस्तावेज, जो इस वाद म पर्श्नगत बात से या उनम से िकसी से संबंिधत हो या िजसम ऐसी बात
के या उनम से िकसी के संबंध म कोई पर्िविष्ट की गई हो, मेरे कब्जे, अिभरक्षा या शिक्त म या मेरे प्लीडर या अिभकतार् के कब्जे,
अिभरक्षा या शिक्त म या मेरी ओर से िकसी अन्य व्यिक्त के कब्जे, अिभरक्षा या शिक्त म न अब है और न कभी थी ।
संख्यांक 6
िनरीक्षण के िलए दस्तावेज पेश करने का आदेश (आदेश 11 का िनयम 14)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
....................को सुनने और...................के शपथपतर् को, जो ता०........................को फाइल िकया गया था, पढ़ने के
पश्चात्, यह आदेश िदया जाता है िक..........................युिक्तयुक्त सूचना िदए गए जाने पर, सब युिक्तयुक्त समय
पर...........................म िस्थत......................................म िनम्निलिखत दस्तावेज, अथार्त्..............................पेश करे ,
और...................................को, ऐसे पेश की गई दस्तावेज का िनरीक्षण करने और पिरशीलन करने की और उनकी अन्तवर्स्तु को
िलख लेने की स्वतंतर्ता होगी । यह आदेश िदया जाता है िक इस बीच म सब अितिरक्त कायर्वािहयां रोक दी जाएं, और इस आवेदन के
खच..........................ह गे ।
संख्यांक 7
दस्तावेज के पेश करने के िलए सूचना (आदेश 11 का िनयम 16)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
आपको सूिचत िकया जाता है िक (वादी या पर्ितवादी) आपसे अपेक्षा करता है िक आप ता०.................................के अपने
(वादपतर् या िलिखत कथन या शपथपतर् म) िनिदष्ट िनम्निलिखत दस्तावेज को उसके िनरीक्षण के िलए पेश कर:
[यहां अपेिक्षत दस्तावेज का वणर्न कीिजए ।]
.................................का प्लीडर भ म ।
...............................के प्लीडर य को ।
संख्यांक 8
दस्तावेज के िनरीक्षण के िलए सूचना (आदेश 11 का िनयम 17)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
आपको सूिचत िकया जाता है िक आप ता०.................................की अपनी सूचना म विणत दस्तावेज का (उस सूचना म
संख्यांक.....................................के सामने िलखी दस्तावेज को छोड़कर) अगले बृहस्पितवार ता०...........................को 12 बजे
और 4 बजे िदन के बीच (यहां िनरीक्षण का स्थान िलिखए) म िनरीक्षण कर सकते ह ।
या, (वादी या पर्ितवादी) ता०...........................को अपनी सूचना म विणत दस्तावेज का आपको िनरीक्षण करने देने के
बारे म इस आधार पर आक्षेप करता है िक (आधार िलिखए) ।
234
संख्यांक 9
दस्तावेज को स्वीकार करने के िलए सूचना (आदेश 12 का िनयम 3)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
आपको सूिचत िकया जाता है िक वादी (या पर्ितवादी) इसम आगे िविनिदष्ट अनेक दस्तवेज को इस वाद म सा य म देने की
पर्स्थापना करता है और पर्ितवादी (या वादी), उसके प्लीडर या अिभकतार् ारा................................(तारीख)
को.............................(समय) के बीच................................(स्थान) म उनका िनरीक्षण िकया जा सकता है । पर्ितवादी (या वादी)
से यह अपेक्षा की जाती है िक वह, वाद म सा य के रूप म इन सब दस्तावेज की गर्ा ता के बारे म सब न्यायसंगत अपवाद के
छोड़कर, अिन्तम विणत समय से अड़तालीस घंट के भीतर यह स्वीकार कर ले िक उक्त दस्तावेज म से ऐसी दस्तावेज िजनके बारे म
यह िविनिदष्ट है िक वे मूल दस्तावेज ह कर्मशः ऐसे िलखी, हस्ताक्षिरत या िनष्पािदत की गई थ जैसे उनका कर्मशः िलखा जाना,
हस्ताक्षिरत िकया जाना या िनष्पािदत िकया जाना तात्पियत है िक उनम से िजनके बारे म यह िविनिदष्ट है िक वे पर्ितयां ह, वे सही
पर्ितयां ह और िजन दस्तावेज के बारे म यह किथत है िक उनकी तामील की गई या उन्ह भेजा गया या पिरद िकया गया, उनकी ऐसी
तामील की गई या उन्ह ऐसे भेजा गया या पिरद िकया गया ।
ज झ, वादी (या पर्ितवादी) का प्लीडर (या अिभकतार्) ।
पर्ितवादी (या वादी) के प्लीडर (या अिभकतार्) च छ को ।
(यहां दस्तावेज का वणर्न कीिजए और हर एक दस्तावेज के बारे म यह िविनिदष्ट कीिजए िक वह मूल दस्तावेज है या
दस्तावेज की पर्ित है) ।
संख्यांक 10
तथ्य को स्वीकार करने के िलए सूचना (आदेश 12 का िनयम 5)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
आपको सूिचत िकया जाता है िक वादी (या पर्ितवादी) इस वाद म पर्ितवादी (या वादी) से अपेक्षा करता है िक वह इसम आगे
कर्मशः िविनिदष्ट अनेक तथ्य को के वल इस वाद के पर्योजन के िलए स्वीकार कर ले, और पर्ितवादी (या वादी) से यह अपेक्षा की जाती
है िक वह, इस वाद म सा य के रूप म ऐसे तथ्य की गर्ा ता के बारे म सब न्यायसंगत अपवाद को छोड़कर, इस सूचना की तामील से
छह िदन के भीतर उक्त िविभ तथ्य को स्वीकार कर ले ।
ज झ, वादी (या पर्ितवादी) का प्लीडर (या अिभकतार्) ।
पर्ितवादी (या वादी) के प्लीडर (या अिभकतार्) च छ को ।
वे तथ्य िजनका स्वीकार िकया जाना अपेिक्षत है, िनम्निलिखत ह, अथार्त्:—
1. यह िक ड की मृत्यु पहली जनवरी, 1890 को हुई ।
2. यह िक वह िनवर्सीयती मरा ।
3. यह िक ढ उसका एकमातर् धमर्ज पुतर् था ।
4. यह िक ण की मृत्यु पहली अपर्ैल, 1896 को हुई ।
5. यह िक ण का िववाह कभी नह हुआ ।
संख्यांक 11
सूचना के अनुसरण म तथ्य की स्वीकृ ित (आदेश 12 का िनयम 5)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
इस वाद म पर्ितवादी (या वादी) इसम आगे कर्मशः िविनिदष्ट अनेक तथ्य को, इस वाद म सा य के रूप म िकन्ह ऐसे तथ्य
की या उनम से िकन्ह की गर्ा ता के बारे म सब न्यायसंगत अपवाद को छोड़कर, इसम आगे यिद कोई िवशेषक या पिरसीमाएं
िविनिदष्ट ह तो उनके अधीन रहते हुए, के वल इस वाद के पर्योजन के िलए स्वीकार करता हैः
परन्तु यह स्वीकृ ित के वल इस वाद के पर्योजन के िलए की गई है, और यह ऐसी स्वीकृ ित नह है जो पर्ितवादी (या वादी) के
िवरु िकसी अन्य अवसर पर अथवा वादी (या पर्ितवादी या स्वीकृ ित की अपेक्षा करने वाले पक्षकार) से िभ िकसी िक्त ारा
पर्युक्त की जा सके ।
ङ च, पर्ितवादी (या वादी) का प्लीडर (या अिभकतार्) ।
वादी (या पर्ितवादी) के प्लीडर (या अिभकतार्) छ ज को ।
235
स्वीकृ त तथ्य वे िवशेषक या पिरसीमाएं, यिद कोई ह , िजनके अधीन रहते हुए
वे स्वीकार िकए गए ह
1. यह िक ड की मृत्यु पहली जनवरी, 1890 को हुई । 1.
2. यह िक वह िनवर्सीयती मरा । 2.
3. यह िक ढ उसका धमर्ज पुतर् था । 3. िकन्तु यह नह िक वह उसका एकमातर् धमर्ज पुतर् था ।
4. यह िक ण मर गया । 4. िकन्तु यह नह िक उसकी मृत्यु पहली अपर्ैल, 1896 को हुई ।
5. यह िक ण का िववाह कभी नह हुआ । 5.
संख्यांक 12
पेश करने के िलए सूचना (साधारण पर्रूप) (आदेश 12 का िनयम 8)
(शीषर्क, जैसा पूवर्वत संख्यांक 1 म है)
आपको सूिचत िकया जाता है िक आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप सब पुस्तक, कागज, पतर्, पतर् की पर्ितयां और अन्य लेख
और दस्तावेज, जो आपकी अिभरक्षा, कब्जे या शिक्त म ह और िजनम इस वाद म पर्श्नास्पद बात से संबंिधत कोई पर्िविष्ट, ज्ञापन या
कायर्वृ अन्तिवष्ट है, इस वाद की पहली सुनवाई म न्यायालय के समक्ष पेश कर और न्यायालय को िदखाएं और िवशेष रूप
से.........................।
छ ज वादी (या पर्ितवादी) का प्लीडर (या अिभकतार्) ।
पर्ितवादी (या वादी) के प्लीडर (या अिभकतार्) ङ च को ।
पिरिशष्ट घ
िडिकर्यां
संख्यांक 1
मूल वाद म िडकर्ी (आदेश 20 के िनयम 6 और 7)
(शीषर्क)
.................................के िलए दावा ।
वादी की ओर से.............................की और पर्ितवादी की ओर से..................................की उपिस्थित म इस वाद के
आज तारीख.........................को...........................के समक्ष अिन्तम िनपटारे के िलए पेश होने पर, आदेश िकया जाता है और
िडकर्ी दी जाती है िक..............................और इस वाद के खच लेखे..........................रुपए की रािश, आज की तारीख से वसूली
की तारीख तक उस पर.....................पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से ब्याज सिहत............................. ारा…….………………..को
दी जाए ।
यह आज ता०.................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
वाद के खच
वादी पर्ितवादी
रु० आ० पा० रु० आ० पा०
1. वादपतर् के िलए स्टाम्प शिक्तपतर् के िलए स्टाम्प
2. शिक्तपतर् के िलए स्टाम्प अज के िलए स्टाम्प
3. पर्दश के िलए स्टाम्प प्लीडर की फीस
4. ............रुपए पर प्लीडर की सािक्षय के िलए िनवार्ह- य
फीस
236
संख्यांक 2
सादी धन-िडकर्ी (धारा 34)
(शीषर्क)
.....................के िलए दावा ।
वादी की ओर से.........................की और पर्ितवादी की ओर से...................................की उपिस्थित म इस वाद के
आज तारीख.............................को.........................के समक्ष अिन्तम िनपटारे के िलए पेश होने पर, आदेश िकया जाता है
िक...........................को........................रुपए की रािश............................से उक्त रािश की वसूली की तारीख
तक......................पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से उस पर ब्याज सिहत दे और वाद के खचर् के ..............................रुपए, आज की
तारीख से वसूली की तारीख तक..........................पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से उस पर ब्याज सिहत दे ।
यहा आज ता०..............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायायलय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
वाद के खच
वादी पर्ितवादी
रु० आ० पा० रु० आ० पा०
1. वादपतर् के िलए स्टाम्प शिक्तपतर् के िलए स्टाम्प
2. शिक्तपतर् के िलए स्टाम्प अज के िलए स्टाम्प
3. पर्दश के िलए स्टाम्प प्लीडर की फीस
4. ............रुपए पर प्लीडर की सािक्षय के िलए िनवार्ह- य
फीस
5. सािक्षय के िलए िनवार्ह- य आदेिशका की तामील
6. किमश्नर की फीस किमश्नर की फीस
7. आदेिशका की तामील
जोड़ जोड़
1
[संख्यांक 3
पुरोबन्ध के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी
(आदेिशका 34 का िनयम 2—जहां लेखा िलए जाने का िनदेश िदया गया है)
(शीषर्क)
इस वाद के आज......................................को पेश होने पर आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक
यह..........................................को किमश्नर के रूप म िनम्निलिखत लेखा लेने के िलए िनदिशत िकया जाए—
(i) वादपतर् म विणत अपने बन्धक पर मूलधन और ब्याज म े आज की तारीख को वादी को जो कु छ शोध्य है
उसका लेखा (ऐसे ब्याज की संगणना उस दर से की जाएगी जो मूलधन पर संदय े है या जहां ऐसी दर िनयत नह है वहां
ब्याज छह पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से या ऐसी दर से, जो न्यायालय युिक्तयुक्त समझे, संगिणत िकया जाएगा);
1
1929 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 8 और अनुसूची ारा मूल पर्रूप 3 से 11 तक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
237
(ii) बन्धक-संपि की जो आय वादी ारा, या वादी के आदेश से या वादी के उपयोग के िलए िकसी अन्य िक्त
ारा, आज की तारीख तक पर्ाप्त की गई है, या जो तब पर्ाप्त हो सकती थी जब वादी ने या ऐसे िक्त ने जानबूझकर
ितकर्म न िकया होता, उस आय का लेखा;
(iii) बन्धक पर्ितभूित की बाबत (वाद के खच से िभ ) खच , पर्भार और य के िलए आज की तारीख तक वादी
ारा जो धनरािशयां उिचत रूप से उपगत की गई ह उन सब का, उन पर ब्याज सिहत, लेखा (ऐसा ब्याज पक्षकार के बीच
करार की गई दर से या ऐसी दर के अभाव म उस दर से, जो मूलधन पर संदय े है, या ऐसी दोन दर के अभाव म नौ पर्ितशत
पर्ितवषर् की दर से संगिणत िकया जाएगा);
(iv) बन्धक-सम्पि को वादी के िकसी ऐसे कायर् या लोप ारा, जो सम्पि के िलए िवनाशक या स्थायी रूप से
क्षितकर है, या उस पर िकसी भी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा या बन्धक-िवलेख के िनबन्धन ारा अिधरोिपत कतर् म से
िकसी का पालन करने म उसकी असफलता से जो हािन या नुकसान इस तारीख से पहले पहुंचा है, उसका लेखा ।
2. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक उक्त खण्ड (ii) के अधीन पर्ाप्त या खण्ड (iv) के अधीन शोध्य
न्यायिनण त कोई रकम, उस पर ब्याज सिहत पहले उन रािशय के पर्ित समायोिजत की जाएगी िजनका संदाय वादी ने खण्ड (iii) के
अधीन िकया है और उन रािशय म उन पर ब्याज भी सिम्मिलत होगा, और यिद कु छ बाकी बचे तो उसे बन्धक-धन म जोड़ िदया
जाएगा या, यथािस्थित, शोध्य न्यायिनण त मूल रािश पर ब्याज म े वादी को जो रकम शोध्य है उसको घटाने के िलए और तत्पश्चात्
मूलधन को घटाने या उन्मोिचत करने के िलए िवकिलत (डेिबट) िकया जाएगा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है िक उक्त किमश्नर वह लेखा, उसम सभी न्यायसंगत मोक देने के पश्चात् सुिवधानुसार
शीघर्ता से ता०...............................................को या उसके पूवर् इस न्यायालय म पर्स्तुत करे गा और किमश्नर की ऐसी िरपोटर् के
पर्ाप्त होने पर वह ऐसे उपान्तर के साथ पुष्ट और पर्ितहस्ताक्षिरत की जाएगी जैसे िक वाद के पक्षकार के ऐसे आक्षेप पर, जो वे कर,
िवचार करने के पश्चात् आवश्यक ह ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) पर्ितवादी ता०...................................को या उसके पूवर् या ऐसी िकसी पश्चात्वत तारीख को या उसके
पूवर्, िजस तक संदाय करने के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए, ऐसी रािश, जैसी न्यायालय शोध्य पाए, और वाद
के उन खच के िलए जो वादी को अिधिनण त िकए गए ह.............................................रुपए की रािश न्यायालय म
जमा कर दे;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर् जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की, और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदय े खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत जमा
कर दी जाने पर वादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, न्यायालय
म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज पर्ितवादी को या ऐसे िक्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी, और यिद
वादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से मुक्त करके और वादी ारा, या ऐसे िकसी िक्त
ारा, जो उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है, या ऐसे िकसी िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के अधीन
वादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके तथा इस बन्धक या इस वाद से, जो कोई दाियत्व उद्भूत
होते ह, उन सब से मुक्त करके पर्ित हस्तान्तिरत या पर्ितअन्तिरत करे गा, और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह
पर्ितवादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर वादी
न्यायालय से इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक तत्पश्चात् पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसूची म विणत बन्धक-
सम्पि का मोचन कराने के सब अिधकार से पूणर्तः िवविजत और पुरोबिन्धत होगा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह वादी
को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से आवश्यकतानुसार आवेदन
कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक सम्पि का वणर्न
संख्यांक 3क
पुरोबन्ध के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 2—जहां न्यायालय शोध्य रकम घोिषत करता है)
(शीषर्क)
वादी.................................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०..................................को पेश
होने पर, यह घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत वादी के बन्धक पर वादी को आज ता०.........................................तक
238
संगिणत शोध्य रकम मूलधन म .े ........................रुपए की रािश, उक्त मूलधन पर ब्याज म .े ..............................रुपए की
रािश (वाद के खच से िभ ) उन खच , पर्भार और य के िलए, जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत वादी ने उिचत रूप म उपगत िकए
ह, उन पर ब्याज के सिहत.....................................रुपए की रािश, और इस वाद के , जो खच वादी को अिधिनण त िकए गए ह,
उन खच के िलए......................रुपए की रािश, कु ल िमलाकर........................रुपए की रािश होती है ।
2. यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) पर्ितवादी ता०...................................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके
पूवर्, िजस तक संदाय के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए.................................रुपए की उक्त रािश न्यायालय
म जमा कर दे;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर् जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की, और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदय े खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत जमा
कर दी जाने पर वादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह न्यायालय
म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज पर्ितवादी को या ऐसे क्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी और यिद वादी
से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को बन्धक से मुक्त करके और वादी ारा, या िकसी ऐसे िक्त ारा, जो उससे
ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है, या िकसी ऐसे क्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के अधीन वादी दावा करता
है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके तथा इस बन्धक या इस वाद से जो कोई दाियत्व उद्भूत होते ह उन सब से
मुक्त करके पर्ितहस्तान्तिरत या पर्ितअन्तिरत करे गा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह पर्ितवादी को उक्त सम्पि
का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर
वादी न्यायालय से इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक तत्पश्चात् पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसूची म
विणत बन्धक-सम्पि का मोचन कराने के सब अिधकार से पूणर् रूप से िवविजत और पुरोबिन्धत होगा, और यिद उससे ऐसी
अपेक्षा की जाए तो वह वादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा और पक्षकार समय-समय पर
न्यायालय से अपनी आवश्यकतानुसार आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे
वह ठीक समझे ।
अनुसूची
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
239
संख्यांक 5
िवकर्य के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 4—जहां लेखा िलए जाने का िनदेश िदया गया है)
(शीषर्क)
वादी......................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०............................................को पेश
होने पर, यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक यह...........................................को किमश्नर के रूप म िनम्निलिखत
लेखा लेने के िलए िनदिशत िकया जाए—
(i) वादपतर् म विणत अपने बन्धक पर मूलधन और ब्याज म े आज की तारीख को वादी को जो कु छ शोध्य है
उसका लेखा (ऐसे ब्याज की संगणना उस दर से की जाएगी जो मूलधन पर संदय े है या जहां िक ऐसी दर िनयत न हो वहां,
ब्याज छह पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से या ऐसी दर से, जो न्यायालय युक्तयुक्त समझे, संगिणत िकया जाएगा);
(ii) बन्धक-सम्पि की जो आय वादी ारा, या वादी के आदेश म या वादी के उपयोग के िलए िकसी अन्य िक्त
ारा, आज की तारीख तक पर्ाप्त की गई है, या जो तब पर्ाप्त हो सकती थी जब वादी ने या ऐसे क्त ने जानबूझकर
ितकर्म न िकया होता, उस आय का लेखा;
(iii) बन्धक पर्ितभूित की बाबत (वाद के खच से िभ ) खच , पर्भार और य के िलए आज की तारीख तक वादी
ारा जो धनरािशयां उिचत रूप से उपगत की गई ह उन सब का, उन पर ब्याज सिहत, लेखा (ऐसा ब्याज, पक्षकार के बीच
करार की गई दर से या ऐसी दर के अभाव म उस दर से जो मूलधन पर संदय े है, या ऐसी दोन दर के अभाव म नौ पर्ितशत
पर्ितवषर् की दर से संगिणत िकया जाएगा);
(iv) बन्धक सम्पि को वादी के िकसी ऐसे कायर् या लोप ारा, जो सम्पि के िलए िवनाशक या स्थायी रूप से
क्षितकर है, या उस पर िकसी भी तत्समय-पर्वृ िविध ारा या बन्धक िवलेख के िनबन्धन ारा अिधरोिपत कतर् म से
िकसी का पालन करने म उसकी असफलता से जो हािन या नुकसान इस तारीख से पहले पहुंचा है, उसका लेखा ।
2. यह भी आदेश िकया जाता है िक उक्त खण्ड (ii) के अधीन पर्ाप्त या खण्ड (iv) के अधीन शोध्य न्यायिनण त कोई रकम,
उस पर ब्याज सिहत, पहले उन िकन्ह रािशय के पर्ित समायोिजत की जाएंगी िजनका संदाय वादी ने खण्ड (iii) के अधीन िकया है,
और उन रािशय म उन पर ब्याज भी सिम्मिलत होगा, और यिद कु छ बाकी बचे तो उसे बन्धक-धन म जोड़ िदया जाएगा या,
यथािस्थित, शोध्य न्यायिनण त मूल रािश पर ब्याज म े वादी को जो रकम शोध्य है उसको घटाने के िलए और तत्पश्चात् मूलधन को
घटाने या उन्मोिचत करने के िलए िवकिलत (डेिबट) िकया जाएगा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है िक उक्त किमश्नर समस्त न्यायसंगत मोक देने के पश्चात् उस लेखा को सुिवधानुसार शीघर्ता
से ता०................................................को या उसके पूवर् इस न्यायालय म पर्स्तुत करे और किमश्नर की ऐसी िरपोटर् के पर्ाप्त होने
पर वह ऐसे उपान्तर के साथ पुष्ट और पर्ित हस्ताक्षिरत की जाएगी जैसे िक वाद के पक्षकार के ऐसे आक्षेप पर, जो वे कर, िवचार
करने के पश्चात् आवश्यक ह ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) वादी ता०.........................................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके
पूवर्, िजस तक संदाय करने के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए, ऐसी रािश, जैसी न्यायालय शोध्य पाए, और वाद
के उन खच के िलए, जो वादी को अिधिनण त िकए गए ह...................................रुपए की रािश न्यायालय म जमा कर
द;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम, जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदये ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत
जमा कर दी जाने पर, वादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज न्यायालय म लाएगा जो उसके कब्जे
या शिक्त म ह और ऐसी सब दस्तावेज पर्ितवादी को या ऐसे िक्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी, और यिद
वादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को बन्धक से मुक्त करके और वादी ारा या िकसी ऐसे िक्त ारा, जो
उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है या िकसी ऐसे िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के अधीन वादी दावा
करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके पर्ित-हस्तान्तिरत या पर्ित-अन्तिरत करेगा, और यिद उससे ऐसी
अपेक्षा की जाए तो वह पर्ितवादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर वादी
न्यायालय से बन्धक-सम्पि के िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा, और ऐसा आवेदन िकए जाने पर बन्धक-
240
सम्पि के या उसके पयार्प्त भाग के िवकर्य का िनदेश िदया जाएगा और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए वादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी
वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह िनयुक्त करे , पेश करे गा ।
6. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और
(िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह वादी को इस िडकर्ी के अधीन और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के अधीन, जैसे इस वाद म
पािरत िकए जाएं, संदये रकम का संदाय करने म और ऐसी रकम का, जैसी न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता,
1908 की पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े खच , पर्भार और य की बाबत वादी को शोध्य न्यायिनण त
करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी
बचे तो वह पर्ितवादी को या अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा ।
7. यह भी आदेश िकया जाता है िक और िडकर्ी दी जाती है िक यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन वादी को पूव क्त रूप म
संदय
े रकम के पूणर् संदाय के िलए पयार्प्त न हो तो वादी (जहां िक ऐसा उपचार उसके िलए बन्धक के िनबन्धन के अधीन पर्ाप्त है और
िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) पर्ितवादी के िवरु बाकी की रकम के िलए वैयिक्तक िडकर्ी के िलए आवेदन कर
सके गा; और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से अपनी आवश्यकतानुसार आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या
अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक सम्पि का वणर्न
संख्यांक 5क
िवकर्य के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी (आदेश 34 का िनयम 4—जहां न्यायालय शोध्य रकम घोिषत करता है)
(शीषर्क)
वादी......................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०..............................को पेश होने पर,
यह घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत बन्धक पर वादी को आज ता०.........................................तक संगिणत शोध्य
रकम मूलधन म .े .......................................रुपए की रािश, उक्त मूलधन पर ब्याज म .े .......................................रुपए की
रािश (वाद के खच से िभ ) उन खच , पर्भार और य के िलए, जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत वादी ने उिचत रूप म उपगत िकए
ह, उन पर ब्याज के सिहत.................................................रुपए की रािश, और इस वाद के जो खच वादी को अिधिनण त िकए
गए ह, उन खच के िलए........................................रुपए की रािश कु ल िमलाकर.....................................रुपए की रािश होती
है ।
2. यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) पर्ितवादी ता०.......................................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके
पूवर्, िजस तक संदाय के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए..............................................रुपए की उक्त रािश
न्यायालय म जमा कर द;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकया संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदय े खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत जमा
कर दी जाने पर, वादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म है न्यायालय
म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज पर्ितवादी को या ऐसे िक्त को िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी और यिद वादी
से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को बन्धक से मुक्त करके और वादी ारा या ऐसे िकसी िक्त ारा, जो उससे
ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता हो या ऐसे िकसी िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के अधीन वादी दावा करता
है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके पर्ित-हस्तान्तिरत या पर्ित-अन्तिरत करे गा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की
जाए तो वह पर्ितवादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर वादी
न्यायालय से बन्धक-सम्पि के िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा और ऐसा आवेदन िकए जाने पर बन्धक-
सम्पि के या उसके पयार्प्त भाग के िवकर्य का िनदेश िदया जाएगा और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए वादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी
ऐसी सब दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह िनयुक्त करे , पेश करे गा ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और
(िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह वादी को इस िडकर्ी के और िकन्ह ऐसे अितिरक्त आदेश के अधीन, जैसे इस वाद म पािरत
िकए जाएं, संदये रकम का संदाय करने म और ऐसी रकम का, जैसी न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकया संिहता, 1908
की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े खच , पर्भार और य की बाबत वादी को शोध्य न्यायिनण त करे ,
241
िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो
वह पर्ितवादी को या अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा ।
5. यह भी आदेश िदया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन वादी को पूव क्त रूप म संदय
े
रकम का पूणर् संदाय करने के िलए पयार्प्त न हो तो वादी (जहां िक ऐसा उपचार उसके िलए बन्धक के िनबन्धन के अधीन अनुज्ञात है
और िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) पर्ितवादी के िवरु बाकी की रकम के िलए वैयिक्तक िडकर्ी के िलए आवेदन कर
सके गा, और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से अपनी आवश्यकतानुसार आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या
अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक सम्पि का वणर्न
संख्यांक 6
िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी (आदेश 34 का िनयम 5)
(शीषर्क)
इस वाद म ता०....................................को पािरत पर्ारिम्भक िडकर्ी को और ता०...........................................के
अितिरक्त आदेश को (यिद कोई ह ) और अिन्तम िडकर्ी के िलए वादी के ता०...........................................के आवेदन को, पढ़ने पर
और पक्षकार को सुनने के पश्चात् और यह पर्तीत होने पर िक उक्त िडकर्ी और आदेश ारा िनिदष्ट संदाय पर्ितवादी ारा या उसकी
ओर से िकसी िक्त ारा या उक्त बन्धक का मोचन कराने के हकदार िकसी अन्य िक्त ारा नह िकया गया है;
यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त पर्ारिम्भक िडकर्ी म विणत बन्धक-सम्पि का या उसके पयार्प्त
भाग का िवकर्य कर िदया जाए और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए वादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज या उसके कब्जे या
शिक्त म ह, न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह िनयुक्त करे , पेश करे गा ।
2. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और
(िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह वादी को पूव क्त पर्ारिम्भक िडकर्ी के और िकन्ह ऐसे अितिरक्त आदेश के अधीन, जैसे इस
वाद म पािरत िकए गए ह , संदय े रकम का संदाय करने म, और ऐसी रकम का, जैसी न्यायालय इस आवेदन के खच के सिहत वाद के
ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े खच , पर्भार और य
की बाबत वादी को शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उयोिजत
िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह पर्ितवादी को या अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा ।
संख्यांक 7
जहां िक बन्धककतार् ारा संदाय म ितकर्म होने पर पुरोबन्ध के िलए िडकर्ी पािरत की जाती है वहां मोचन के
िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी (आदेश 34 का िनयम 7—जहां लेखा िलए जाने का िनदेश िकया गया है)
(शीषर्क)
वादी................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०...................................को पेश होने पर,
यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक यह........................................को किमश्नर के रूप म िनम्निलिखत लेखा लेने
के िलए िनदिशत िकया जाए—
(i) वादपतर् म विणत बन्धक पर मूलधन और ब्याज म े आज की तारीख को पर्ितवादी को जो कु छ शोध्य है उसका
लेखा (ऐसे ब्याज की संगणना उस दर से की जाएगी जो मूलधन पर संदय े है या जहां ऐसी दर िनयत न हो वहां, ब्याज छह
पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से या ऐसी दर से, जो न्यायालय युक्तयुक्त समझे, संगिणत िकया जाएगा);
(ii) बन्धक-सम्पि की जो आय पर्ितवादी ारा, या पर्ितवादी के आदेश से या पर्ितवादी के उपयोग के िलए िकसी
अन्य िक्त ारा, आज की तारीख तक पर्ाप्त की गई है, या जो तब पर्ाप्त हो सकती थी जब वादी ने या ऐसे िक्त ने
जानबूझकर ितकर्म न िकया होता, उस आय का लेखा;
(iii) बन्धक पर्ितभूित की बाबत (वाद के खच से िभ ) खच , पर्भार और य के िलए आज की तारीख तक
पर्ितवादी ारा जो धनरािशयां उिचत रूप से उपगत की गई ह उन सब का, उन पर ब्याज सिहत लेखा(ऐसा ब्याज, पक्षकार
के बीच करार की गई दर से या ऐसी दर के अभाव म उस दर से, जो मूलधन पर संदय े है, या ऐसी दोन दर के अभाव म नौ
पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से संगिणत िकया जाएगा);
242
(iv) बन्धक सम्पि को पर्ितवादी के ऐसे िकसी कायर् या लोप ारा, जो सम्पि के िलए िवनाशक या स्थायी रूप से
क्षितकर है या उस पर िकसी भी तत्समय-पर्वृ िविध ारा या या बन्धक िवलेख के िनबन्धन ारा अिधरोिपत कतर् म से
िकसी का पालन करने म उसकी असफलता से जो हािन या नुकसान इस तारीख से पहले पहुंचा है, उसका लेखा ।
2. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक उक्त खण्ड (ii) के अधीन पर्ाप्त या खण्ड (iv) के अधीन शोध्य
न्यायिनण त कोई रकम, उस पर ब्याज सिहत, पहले उन िकन्ह रािशय के पर्ित समायोिजत की जाएगी िजनका संदाय पर्ितवादी ने
खण्ड (iii) के अधीन िकया है, और िजन रािशय म उन पर ब्याज भी सिम्मिलत होगा, और यिद कु छ बाकी बचे तो उसे बन्धक-धन म
जोड़ िदया जाएगा, या, यथािस्थित, शोध्य न्यायिनण त मूल रािश पर ब्याज म े पर्ितवादी को जो रकम शोध्य है उसको घटाने के िलए
और तत्पश्चात् मूलधन को घटाने या उन्मोिचत करने के िलए िवकिलत िकया जाएगा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता िक उक्त किमश्नर वह लेखा, उसम सभी न्यायसंगत मोक देने के पश्चात् सुिवधानुसार शीघर्ता
से ता०.........................................को या उसके पूवर् इस न्यायालय म पर्स्तुत करे गा और किमश्नर की ऐसी िरपोटर् पर्ाप्त होने पर
वह ऐसे उपान्तर के साथ पुष्ट और पर्ितहस्ताक्षिरत की जाएगी जैसी िक वाद के पक्षकार के ऐसे अक्षेप पर, जो वे कर, िवचार करने के
पश्चात् आवश्यक ह ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) वादी ता०..................................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्,
िजस तक संदाय करने के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए, ऐसी रािश, जैसी न्यायालय शोध्य पाए, और वाद के
उन खच के िलए जो पर्ितवादी को अिधिनण त िकए गए ह...........................................रुपए की रािश न्यायालय म
जमा कर दे;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की, और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदये ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत
जमा कर दी जाने पर, पर्ितवादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह,
न्यायालय म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज वादी को या ऐसे िक्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी और
यिद पर्ितवादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से मुक्त करके और पर्ितवादी ारा या ऐसे िकसी
िक्त ारा जो उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है या िकसी ऐसे िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के
अधीन पर्ितवादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत, और मुक्त करके तथा इस बन्धक से या इस वाद से जो कोई
दाियत्व उद्भूत होते ह, उस सब से मुक्त करके , पर्ित-हस्तान्तिरत या पर्ित-अन्तिरत करे गा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की
जाए तो वह वादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर पर्ितवादी
न्यायालय से इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक तत्पश्चात् वादी इसके साथ उपाब अनुसच ू ी म विणत बन्धक-सम्पि
का मोचन कराने के सब अिधकार से पूणर्तः िवविजत और पुरोबिन्धत होगा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह पर्ितवादी को
उक्त सम्पि पर िनबार्ध और शािन्तपू्णर् कब्जा पिरद करे गा और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से आवश्यकतानुसार आवेदन कर
सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे िक वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक-सम्पि का वणर्न
संख्यांक 7क
जहां िक बन्धककतार् ारा संदाय म ितकर्म होने पर िवकर्य के िलए िडकर्ी पािरत की जाती है वहां मोचन के
िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी (आदेश 34 का िनयम 7—जहां लेखा िलए जाने का िनदेश गया जाता है)
(शीषर्क)
वादी.............................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०...........................को पेश होने पर, यह आदेश
िकया जाता है और िडकर्ी िद जाती है िक यह..................................को किमश्नर के रूप म िनम्निलिखत लेखा लेने के िलए िनदिशत
िकया जाए—
(i) वादपतर् म विणत बन्धक पर मूलदन और ब्याज म े आज की तारीख को पर्ितवादी को जो कु छ शोध्य है उसका
लेखा (ऐसे ब्याज की संगणना उस दर से की जाएगी जो मूलधन पर संदय े है या जहां ऐसी दर िनयत न हो वहां, ब्याज छह
पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से या ऐसी अन्य दर से, जो न्यायालय युक्तयुक्त समझे, संगिणत िकया जाएगा);
243
(ii) बन्धक-सम्पि की जो आय पर्ितवादी ारा, या पर्ितवादी के आदेश से या पर्ितवादी के उपयोग के िलए िकसी
अन्य िक्त ारा आज की तारीख तक पर्ाप्त की गई है या जो तब पर्ाप्त हो सकती थी जब पर्ितवादी ने या ऐसे िक्त ने
जानबूझकर ितकर्म न िकया होता, उस आय का लेखा;
(iii) बन्धक पर्ितभूित की बाबत (वाद के खच से िभ ) खच , पर्भार और य के िलए आज की तारीख तक
पर्ितवादी ारा जो धनरािशयां उिचत रूप से उपगत की गई ह उन सब का, उन पर ब्याज सिहत, लेखा (ऐसा ब्याज,
पक्षकार के बीच करार की गई दर से या ऐसी दर के अभाव म उस दर से, जो मूलधन पर संदय
े है, या ऐसी दोन दर के
अभाव म नौ पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से, संगिणत िकया जाएगा);
(iv) बन्धक-सम्पि को पर्ितवादी के ऐसे िकसी कायर् या लोप ारा, जो सम्पि के िलए िवनाशक या स्थायी रूप से
क्षितकर है, या उस पर िकसी भी तत्समय-पर्वृ िविध ारा या बन्धक िवलेख के िनबन्धन ारा अिधरोिपत कतर् म से
िकसी का पालन करने म उसकी असफलता से जो हािन या नुकसान इस तारीख से पहले पहुंचा है, उसका लेखा ।
2. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक उक्त खण्ड (ii) के अधीन पर्ाप्त या खण्ड (iv) के अधीन शोध्य
न्यायिनण त कोई रकम, उस पर ब्याज सिहत, पहले उन िकन्ह रािशय के पर्ित समायोिजत की जाएंगी िजनका संदाय पर्ितवादी ने
खण्ड (iii) के अधीन िकया है, और िजन रािशय म उन पर ब्याज भी सिम्मिलत होगा, और यिद कु छ बाकी बचे तो उसे बन्धक-धन म
जोड़ िदया जाएगा या, यथािस्थित, शोध्य न्यायिनण त मूल रािश पर ब्याज म े पर्ितवादी को जो रकम शोध्य है उसको घटाने के िलए
और तत्पश्चात् मूलधन को घटाने या उन्मोिचत करने के िलए िवकिलत (डेिबट) िकया जाएगा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है िक उक्त किमश्नर वह लेखा, उसम सभी न्यायसंगत मोक देने के पश्चात् सुिवधानुसार
शीघर्ता से ता०..............................को या उसके पूवर् इस न्यायालय म पर्स्तुत करे गा और किमश्नर को ऐसी िरपोटर् के पर्ाप्त होने पर
वह ऐसे उपान्तर के साथ पुष्ट और पर्ितहस्ताक्षिरत की जाएगी जैसे िक वाद के पक्षकार के ऐसे आक्षेप पर, जो वे कर, िवचार करने के
पश्चात् आवश्यक ह ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) वादी ता०............................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस
तक संदाय करने के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए, ऐसी रािश, जैसी न्यायालय शोध्य पाए, और वाद के उन
खच के िलए जो पर्ितवादी को अिधिनण त िकए गए ह...............................रुपए की रािश न्यायालय म जमा कर द;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की, और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदये ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत
जमा कर दी जाने पर, पर्ितवादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज, जो उसके कब्जे या शिक्त म है,
न्यायालय म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज वादी को या ऐसे िक्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी, और
यिद पर्ितवादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से मुक्त करके और पर्ितवादी ारा या िकसी ऐसे
िक्त ारा, जो उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है या िकसी ऐसे िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के
अधीन पर्ितवादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके पर्ित हस्तान्तिरत या पर्ित अन्तिरत करे गा,
और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह वादी को उक्त सम्पि पर िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर पर्ितवादी
न्यायालय से बन्धक-सम्पि के िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा, और ऐसा आवेदन िकए जाने पर बन्धक-
सम्पि के या उसके पयार्प्त भाग के िवकर्य का िनदेश िदया जाएगा और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए पर्ितवादी बन्धक-सम्पि
सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह िनयुक्त करे , पेश
करे गा ।
6. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और
(िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह पर्ितवादी को इस िडकर्ी के अधीन और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के अधीन, जैसे इस वाद
म पािरत िकए जाएं, संदय े रकम का संदाय करने म और ऐसी रकम का, जैसी न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या
संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत पर्ितवादी को शोध्य
न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदये पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद
कु छ बाकी बचे तो वह वादी को या अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा ।
7. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन पर्ितवादी को पूव क्त रूप म
संदय
े रकम के पूणर् संदाय के िलए पयार्प्त न हो तो पर्ितवादी (जहां िक ऐसा उपचार उसके िलए बन्धक के िनबन्धन के अधीन पर्ाप्त है
और िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) वादी के िवरु बाकी की रकम के िलए वैयिक्तक िडकर्ी के िलए आवेदन कर
सके गा; और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से आवश्यकतानुसार आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे
िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
244
अनुसूची
बन्धक सम्पि का वणर्न
संख्यांक 7ख
जहां बन्धककतार् ारा संदाय म ितकर्म करने पर पुरोबन्ध के िलए िडकर्ी पािरत की जाती है वहां मोचन के
िलए पर्ारं िभक िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 7—जहां न्यायालय शोध्य रकम घोिषत करता है)
(शीषर्क)
वादी.................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०.................................को पेश होने पर, यह
घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत बन्धक पर पर्ितवादी को आज ता०........................तक संगिणत शोध्य रकम मूलधन
म े...................रुपए की रािश, उक्त मूल धन पर ब्याज म े.............................रुपए की रािश (वाद के खच से िभ ), उन खच ,
पर्भार और य के िलए जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत पर्ितवादी ने उिचत रूप म उपगत िकए ह, उन पर ब्याज के
सिहत………………………..रुपए की रािश और इस वाद के जो खच पर्ितवादी को अिधिनण त िकए गए ह उन खच के
िलए..............................रुपए की रािश, कु ल िमलाकर...........................रुपए की रािश होती है ।
2. यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) वादी ता०...........................को या उसके पूवर् या िकसी ऐसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस तक
संदाय के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया जाए.......................रुपए की उक्त रािश न्यायालय म जमा कर द;
(ii) ऐसे जमा कर िदए जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख से पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम, जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की, और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदये खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, जमा
कर दी जाने पर, पर्ितवादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी ऐसी सब दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह
न्यायालय म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज वादी को या ऐसे िक्त को, िजसे वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी, और
यिद पर्ितवादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से मुक्त और पर्ितवादी ारा या िकसी ऐसे
िक्त ारा, जो उसम ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है, या िकसी ऐसे िक्त ारा, िजसे ुत्प अिधकार के
अधीन पर्ितवादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके तथा इस बन्धक या इस वाद से जो कोई
दाियत्व उद्भूत होते ह उन सबसे मुक्त करके पर्ितहस्तान्तिरत या पर्ित अन्तिरत करे गा, और यिद उससे ऐस अपेक्षा की जाए
तो वह वादी को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा ।
3. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त रूप म रकम जमा करने म ितकर्म होने पर पर्ितवादी
न्यायालय से इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक तत्पश्चात् वादी इसके साथ उपाब अनुसचू ी म विणत बन्धक सम्पि
का मोचन कराने के सब अिधकार से पूणर्तः िवविजत और पुरोबिन्धत होगा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह पर्ितवादी को
उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा और पक्षकार समय-समय पर न्यायालय से आवश्यकतानुसार आवेदन कर
सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक सम्पि का वणर्न
संख्यांक 7ग
जहां बन्धककतार् ारा संदाय म ितकर्म होने पर िवकर्य के िलए िडकर्ी पािरत की जाती है वहां मोचन के िलए
पर्ारिम्भक िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 7—जहां न्यायालय शोधक रकम घोिषत करता है)
(शीषर्क)
वादी..................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज तारीख...........................को पेश होने पर, यह
घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत बन्धक पर पर्ितवादी को आज ता०..................................तक संगिणत शोध्य रकम मूल
धन म े.....................रुपए की रािश, उक्त मूल धन पर ब्याज म े..............................रुपए की रािश (वाद के खच से िभ ), उन
खच , पर्भार और य के िलए, जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत पर्ितवादी ने उिचत रूप म उपगत िकए ह, उन पर ब्याज
245
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
246
2. यह भी घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत उक्त बन्धक से या इस वाद से उद्भूत जो भी दाियत्व वादी का आज
तक है वह सब इसके ारा उन्मोिचत और िनवार्िपत िकया जाता है ।
संख्यांक 7ङ
बन्धककतार् ारा संदाय म ितकर्म होने पर मोचन वाद म िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 8)
(शीषर्क)
इस वाद म ता०.............................को पािरत पर्ारं िभक िडकर्ी को और ता०..........................के अितिरक्त आदेश को
(यिद कोई ह ) और अंितम िडकर्ी के िलए पर्ितवादी के ता०..................................के आवेदन को पढ़ने पर और पक्षकार को सुनने के
पश्चात् और यह पर्तीत होने पर िक उक्त िडकर्ी और आदेश ारा िनिदष्ट संदाय वादी ारा या उसकी ओर से िकसी िक्त ारा या
उक्त बन्धक का मोचन कराने के हकदार िकसी अन्य िक्त ारा नह िकया गया है;
यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पूव क्त पर्ारं िभक िडकर्ी म विणत बन्धक-सम्पि या उसके पयार्प्त भाग
का िवकर्य कर िदया जाए और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए पर्ितवादी बन्धक-सम्पि संबंधी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या
शिक्त म ह न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह िनयुक्त करे , पेश करे गा ।
2. यह भी आदेश िदया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और
(िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह पर्ितवादी को पूव क्त पर्ारं िभक िडकर्ी के अधीन और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के अधीन
जैसे इस वाद म पािरत िकए गए ह , संदये रकम का संदाय करने म, और ऐसी रकम का, जैसी न्यायालय इस आवेदन के खच के सिहत
वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े ऐसे खच ,
पर्भार और य की बाबत पर्ितवादी को शोध्य न्यायिनण त करे िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म
सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह वादी को या अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के िलए
हकदार ह , िदया जाएगा ।
संख्यांक 7च
पुरोबन्ध, िवकर्य या मोचन के वाद म जहां बन्धककतार् िडकर्ी की रकम दे दे वहां अिन्तम िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 3, 5, और 8)
(शीषर्क)
यह वाद और आगे िवचार के िलए आज ता०.................................को पेश होने पर और यह पर्तीत होने पर िक बन्धकतार्
ने या...................................ने, जो मोचन कराने का हकदार िक्त है, वह सब रकम, जो ता०.............................की पर्ारं िभक
िडकर्ी के अधीन बन्धकदार को शोध्य है, ता०................................को न्यायालय म जमा कर दी है;
यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) बन्धकदार पूव क्त पर्ारं िभक िडकर्ी म विणत सम्पि का पर्ितहस्तान्तरण िवलेख बन्धककतार् *(या
यथािस्थित,...................के िजसने सम्पि का मोचन कराया है) पक्ष म िनष्पािदत कर दे या अपने को शोध्य रकम की
अिभस्वीकृ ित उसके पक्ष म िनष्पािदत कर दे;
(ii) बन्धकदार वाद म की बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह न्यायालय
म लाए ।
यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक बन्धकदार ारा पर्ितहस्तान्तरण िवलेख या अिभस्वीकृ ित पूव क्त
रीित से िनष्पािदत िकए जाने पर,—
(i) ..........................रुपए की उक्त रािश बन्धकदार को न्यायालय म से दे दी जाए;
(ii) न्यायालय म लाए गए उक्त िवलेख और दस्तावेज न्यायालय म से बन्धककतार् को *(या संदाय करने वाले
िक्त को) पिरद कर दी जाएं और यिद बन्धकदार से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह बन्धककतार् *(या संदाय करने वाले अन्य
िक्त) के खच पर उक्त पर्ितहस्तान्तरण िवलेख या अिभस्वीकृ ित को....................के उपरिजस्टर्ार के कायार्लय म
रिजस्टर्ीकृ त करने के िलए सहमत हो; तथा
(iii) (यिद, यथािस्थित, बन्धकदार, वादी या पर्ितवादी बन्धक-सम्पि पर कब्जा रखता है तो) बन्धकदार पूव क्त
पर्ारं िभक िडकर्ी म विणत बन्धक-सम्पि पर कब्जा बन्धककतार् को *(या यथापूव क्त िक्त को, िजसने संदाय िकया है)
तुरन्त पिरद कर दे ।
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
247
संख्यांक 8
बन्धक-सम्पि के िवकर्य के पश्चात् बाकी रकम के िलए बन्धककतार् के िवरु वैयिक्तक िडकर्ी
(आदेश 34 का िनयम 6 और 8क)
(शीषर्क)
बन्धकदार (यथािस्थित, वादी या पर्ितवादी) के आवेदन को पढ़ने पर और वाद म ता०............................को पािरत अंितम
िडकर्ी को पढ़ने पर, और न्यायालय का यह समाधान हो जाने पर िक पूव क्त अंितम िडकर्ी के अधीन िकए गए िवकर्य के शु
आगम...............................रुपए थे और वे ता०............................को न्यायालय म से आवेदक को दे िदए गए ह और पूव क्त
िडकर्ी के अधीन अब उसको शोध्य...................................रुपए बाकी ह;
और न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक उक्त रकम स्वयं बन्धककतार् (यथािस्थित, वादी या पर्ितवादी) से वैध रूप से
वसूलीय है;
अतः यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
बन्धककतार् (यथािस्थित, वादी या पर्ितवादी) बन्धकदार (यथािस्थित, पर्ितवादी या वादी) को...........................रुपए की
उक्त रािश, ता०...................................(न्यायालय म से उस संदाय की तारीख िजसके पर्ित ऊपर िनदश िकया गया है) से उक्त
रािश की वसूली की तारीख तक छह पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से अितिरक्त ब्याज और इस आवेदन के खच के सिहत, दे ।
संख्यांक 9
पुरोबन्ध या िवकर्य के िलए पर्ारं िभक िडकर्ी
[वादी...................................................................पहला बन्धकदार,
बनाम
पहला पर्ितवादी.........................................................बन्धककतार्,
दूसरा पर्ितवादी..........................................................दूसरा बन्धकदार ।]
(आदेश 34 के िनयम 2 और 4)
(शीषर्क)
वादी.............................आिद की उपिस्थित म इस वाद के आज ता०...................................को पेश होने पर, यह
घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत बन्धक पर वादी की आज ता०....................................तक संगिणत शोध्य रकम
मूलधन म .े ...........................रुपए की रािश, उक्त मूलधन पर ब्याज म … े ……………................................रुपए की रािश
(वाद के खच से िभ ), उन खच , पर्भार और य के िलए, जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत वादी ने उपगत िकए ह, उन पर ब्याज
सिहत,.............................................................रुपए की रािश, और वाद के जो खच वादी को अिधिनण त िकए गए ह उन खच के
िलए...............................रुपए की रािश, कु ल िमलाकर...........................रुपए की रािश होती है ।
(यिद दूसरे पर्ितवादी को अपने बन्धक की बाबत बन्धक-धन वाद की तारीख पर संदय
े हो गया है तो दूसरे पर्ितवादी को उसके
बन्धक पर शोध्य रकम की बाबत भी ऐसी ही घोषणाएं िलखी जाएंगी)
2. यह भी घोिषत िकया जाता है िक वादी अपने को शोध्य रकम का संदाय दूसरे पर्ितवादी से पूवर् पाने का हकदार है । *[या
(यिद कई पािश्चक बन्धकदार ह तो) इसके िविभ पक्षकार अपने को शोध्य रािशय के संदाय के िलए िनम्निलिखत कर्मानुसार हकदार
है—]
3. यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(i) (क) वादी को शोध्य....................................................रुपए की उक्त रािश पर्ितवादी या उनम से कोई एक
ता०........................................को या उसके पूवर् या िकसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस तक संदाय के िलए
समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया गया है, न्यायालय म जमा करा दे; तथा
(ख) दूसरे पर्ितवादी को शोध्य....................................रुपए की उक्त रािश पहला पर्ितवादी
ता०.........................को या उसके पूवर् या ऐसी िकसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस तक संदाय के िलए समय
न्यायालय ारा बढ़ा िदया गया है, न्यायालय म जमा कर दे; तथा
(ii) वादी को शोध्य घोिषत रािश खण्ड (i) (क) म िविहत रीित से पर्ितवािदय ारा या उनम से िकसी एक ारा
जमा कर दी जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जैसी न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम, जैसी न्यायालय वाद के ऐसे
248
खच की बाबत और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े ऐसे खच ,
पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत जमा कर दी जाने
पर वादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, न्यायालय म लाएगा,
और ऐसी सब दस्तावेज.................................पर्ितवादी को (िजसने रािश जमा की है) या ऐसे िक्त को, िजसे वह
िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी, और यिद वादी से ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से मुक्त करके
और वादी ारा या िकसी ऐसे िक्त ारा, जो उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है, या िकसी ऐसे िक्त ारा
िजससे ुत्प अिधकार के अधीन वादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त करके और इस बन्धक से या
इस वाद से जो कोई दाियत्व उद्भूत होते ह उन सबसे मुक्त करके पर्ितहस्तान्तिरत या पर्ित अन्तिरत करे गा और यिद उससे
ऐसी अपेक्षा की जाए तो..........................पर्ितवादी को (िजसने रािश जमा की है) उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर्
कब्जा पिरद करे गा ।
(यिद पहला पर्ितवादी दूसरे पर्ितवादी को शोध्य पाई गई या घोिषत रकम दे देता है तो ऐसी ही घोषणाएं, ऐसे फे रफार के
सिहत जैसे उसके बन्धक की पर्कृ ित को देखते हुए आवश्यक ह , िलखी जाएंगी) ।
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक वादी को शोध्य रकम के यथापूव क्त संदाय म ितकर्म होने पर
वादी न्यायालय से इस अंितम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक—
(i) [सशतर् िवकर्य ारा बन्धक या िवलक्षण बन्धक की दशा म िजसम िक बन्धक िवलेख म उपबिन्धत एकमातर्
उपचार िवकर्य नह बिल्क पुरोबन्ध है] पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसच ू ी म विणत बन्धक-सम्पि का मोचन कराने के
सब अिधकार से, संयुक्ततः और पृथक्तः तथा पूणर्तः िवविजत और पुरोबिन्धत ह गे, और यिद उनसे अपेक्षा की जाए तो उक्त
सम्पि का िनबार्ध और शांितपूणर् कब्जा वादी को पिरद करगे; अथवा
(ii) *[िकसी अन्य बन्धक की दशा म] बन्धक-सम्पि का या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य कर िदया जाएगा और
वादी ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए वादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह,
न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह न्यायालय िनयुक्त करे , पेश करे गा; तथा
(iii) *[उस दशा म िजसम िक ऊपर के खण्ड 4 (ii) के अधीन िवकर्य का आदेश िकया जाता है] ऐसे िवकर्य से वसूल
हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और (उसम से िवकर्य के य को काटकर) वह वादी को, इस िडकर्ी के अधीन और
ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के , जैसे इस वाद म पािरत िकए गए ह , अधीन संदय े रकम का संदाय करने म और ऐसी िकसी
रकम का, जैसी न्यायालय वाद के खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनमय 10
के अधीन संदय े ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े ऐसे पािश्चक
ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह दूसरे पर्ितवादी को
शोध्य रकम का संदाय करने म उपयोिजत िकया जाएगा और, यिद िफर भी कु छ बाकी बचे तो वह पहले पर्ितवादी को या
अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा; तथा
(iv) यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन वादी और दसूरे पर्ितवादी को शोध्य रकम के पूणर् संदाय के िलए पयार्प्त न
हो तो, यथािस्थित, वादी या दूसरा पर्ितवादी या वे दोन (जहां ऐसा उपचार उनके अपने बन्धक के िनबन्धन के अधीन
अनुज्ञात है और िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) पहले पर्ितवादी के िवरु उस रकम के िलए, जो कर्मशः
उनको शोध्य रह गई हो, वैयिक्तक िडकर्ी के िलए आवेदन कर सकगे ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है—
(क) यिद दूसरा पर्ितवादी इस वाद म वह रकम न्यायालय म जमा कर देता है िजसके बारे म यह न्यायिनण त
िकया गया है िक वह वादी को शोध्य है, िकन्तु पहला पर्ितवादी उक्त रकम के संदाय म ितकर्म करता है तो दूसरा पर्ितवादी
न्यायालय से यह आवेदन िक वादी का बन्धक मेरे फायदे के िलए जीिवत रखा जाए और [उसी रीित से िजससे िक ऊपर के
खण्ड (4) के अधीन वादी आवेदन कर सकता था] इस अंितम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक—
[(i) पहला पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसच
*
ू ी म विणत बन्धक-सम्पि के मोचन के सब अिधकार
से तत्पश्चात् पूणत
र् ः िवविजत और पुरोबिन्धत होगा, और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह दूसरे पर्ितवादी
को उक्त सम्पि का िनबार्ध और शांितपूणर् कब्जा पिरद करे गा;] अथवा
[(ii)] बन्धक-सम्पि का या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य िकया जाएगा और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के
*
िलए दूसरा पर्ितवादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह, न्यायालय के समक्ष
या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह न्यायालय िनयुक्त करे , पेश करे गा;] तथा
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
249
(ख) (यिद दूसरे पर्ितवादी के आवेदन पर पुरोबन्ध के िलए ऐसी अिन्तम िडकर्ी पािरत की जाती है तो) वादी के
बन्धक से या दसूरे पर्ितवादी के बन्धक से या इस वाद से उद्भूत पहले पर्ितवादी के सब दाियत्व के बारे म यह समझा जाएगा
िक वे उन्मोिचत और िनवार्िपत कर िदए गए ह ।
6. (जहां िक ऊपर के खण्ड 5 के अधीन िवकर्य का आदेश िकया गया ह, वहा) यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी
जाती है िक—
(i) ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और (िवकर्य के य को उसम से काटकर) वह
सबसे पहले वादी के बन्धक की बाबत दूसरे पर्ितवादी ारा दी गई रकम का और उससे सम्बिन्धत वाद के खच का संदाय
करने म और ऐसी िकसी रकम का, जैसी न्यायालय उक्त रकम पर पािश्चक ब्याज की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , संदाय
करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह दूसरे पर्ितवादी को अपने बन्धक की बाबत
इस िडकर्ी के अधीन और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के , जो पािरत िकए जाएं, अधीन शोध्य न्यायिनण त की गई रकम का
संदाय करने म और ऐसी रकम का, जो न्यायालय इस वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम
अनुसचू ी के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन संदय े ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम
11 के अधीन संदय े ऐसे पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म उपयोिजत िकया जाएगा, और यिद िफर भी कु छ बाकी बचे
तो वह पहले पर्ितवादी को या ऐसे अन्य िक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , िदया जाएगा; तथा
(ii) यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन वादी के बन्धक या दूसरे पर्ितवादी के बन्धक की बाबत शोध्य रकम का पूणर्
संदाय करने के िलए पयार्प्त न हो तो दूसरा पर्ितवादी (जहां ऐसा उपचार उसके बन्धक के िनबन्धन के अधीन उसके िलए
अनुज्ञात है और िकसी तत्समय-पर्वृ िविध ारा विजत नह है) पहले पर्ितवादी के िवरु बाकी की रकम के िलए वैयिक्तक
िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा ।
7. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पक्षकार समय-समय पर इस न्यायालय से आवश्यकतानुसार
आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक-सम्पि का वणर्न
संख्यांक 10
पूिवक बन्धक के मोचन के िलए और पािश्चक बन्धक पर पुरोबन्ध या िवकर्य के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी
[वादी.................................................................................................दूसरा बन्धकदार,
बनाम
पहला पर्ितवादी....................................................................................बंधककतार्
दूसरा पर्ितवादी....................................................................................पहला बन्धकदार ।]
(आदेश 34 के िनयम 2, 4 और 7)
(शीषर्क)
वादी..................................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज...............................को पेश होने पर, यह
घोिषत िकया जाता है िक वादपतर् म विणत बन्धक पर दूसरे पर्ितवादी को आज ता०..................................तक संगिणत शोध्य
रकम, मूलधन म .े ..........................रुपए की रािश, उक्त मूलधन पर ब्याज म .े .............................रुपए की रािश, (वाद के
खच से िभ ) उन खच , पर्भार और य के िलए, जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत दूसरे पर्ितवादी ने उिचत रूप म उपगत िकए ह, उन
पर ब्याज के सिहत,........................रुपए की रािश, और इस वाद के जो खच दूसरे पर्ितवादी को अिधिनण त िकए गए ह उन खच के
िलए....................................रुपए की रािश कु ल िमलाकर....................................रुपए की रािश होती है ।
(यिद वादी को अपने बन्धक की बाबत बन्धक-धन वाद तारीख पर संदय
े हो गया हो तो उसे पहले पर्ितवादी से शोध्य रकम
की बाबत भी ऐसी ही घोषणाएं िलखी जाएंगी)
2. यह भी घोिषत िकया जाता है िक दूसरा पर्ितवादी अपने को शोध्य रकम का संदाय वादी से पूवर् पाने का हकदार है
*[या (यिद कई पािश्चक बन्धकदार ह तो) इसके िविभ पक्षकार अपने को शोध्य रािशय के संदाय के िनम्निलिखत कर्मानुसार हकदार
है—] ।
3. यह आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
250
(i) (क) दूसरे पर्ितवादी को शोध्य...............................रुपए की उक्त रािश वादी या पहला पर्ितवादी या उनम
से कोई एक ता०......................................को या उसके पूवर् या ऐसी िकसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस
िदन तक संदाय के िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया गया है, न्यायालय म जमा कर दे; तथा
(ख) वादी को शोध्य...............................रुपए की उक्त रािश पहला पर्ितवादी
ता०.................................को या उसके पूवर्, या ऐसी िकसी पश्चात्वत तारीख को या उसके पूवर्, िजस तक संदाय के
िलए समय न्यायालय ारा बढ़ा िदया गया है, न्यायालय म जमा कर दे; तथा
(ii) दूसरे पर्ितवादी को शोध्य घोिषत रािश खण्ड (i) (क) म िविहत रीित से वादी और पहले पर्ितवादी या उनम से
िकसी एक ारा जमा कर दी जाने पर और तत्पश्चात् ऐसी तारीख के पूवर्, जो न्यायालय िनयत करे , ऐसी रकम, जो
न्यायालय वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के िनयम 10 के अधीन
संदये खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े पािश्चक ब्याज के सिहत, जमा
कर दी जाने पर, दूसरा पर्ितवादी वादपतर् म विणत बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे, या शिक्त म ह
न्यायालय म लाएगा और ऐसी सब दस्तावेज वादी या पर्ितवादी को (िजसने भी रािश जमा की है) या ऐसे िक्त को, िजसे
वह िनयुक्त करे , पिरद की जाएंगी और यिद दूसरे पर्ितवादी से अपेक्षा की जाए तो वह उक्त सम्पि को उक्त बन्धक से
मुक्त करके और दूसरे पर्ितवादी ारा या िकसी ऐसे िक्त ारा, जो उससे ुत्प अिधकार के अधीन दावा करता है या
िकसी ऐसे िक्त ारा, िजससे ुत्प अिधकार के अधीन पर्ितवादी दावा करता है, सृष्ट सब िवल्लंगम से रिहत और मुक्त
करके और इस बन्धक से या इस वाद से कोई दाियत्व उद्भूत होते ह उन सबसे मुक्त करके पर्ितहस्तान्तिरत या पर्ित अन्तिरत
करे गा और यिद उससे अपेक्षा की जाए तो उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा वादी या पहले पर्ितवादी को
(िजसने भी रािश जमा की है) पिरद करे गा ।
(यिद पहला पर्ितवादी वादी को शोध्य पाई गई या घोिषत रकम दे देता है तो ऐसी ही घोषणाएं ऐसे फे रफार के सिहत, जैसे
िक उसके बन्धक की पर्कृ ित को देखते हुए आवश्यक ह , िलखी जाएंगी ।)
4. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक दूसरे पर्ितवादी को शोध्य रकम के यथापूव क्त संदाय म ितकर्म
होने पर दूसरा पर्ितवादी न्यायालय से वाद के खािरज िकए जाने के िलए या इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आदेश कर सके गा िक—
(i) *(सशतर् िवकर्य ारा बन्धक या िवलक्षण बन्धक की दशा म, िजसम िक बन्धक िवलेख म उपबिन्धत एकमातर्
उपचार िवकर्य नह बिल्क पुरोबन्ध है) वादी और पहला पर्ितवादी संयुक्ततः और पृथक्तः इसके साथ उपाब अनुसूची म
विणत बन्धक सम्पि के मोचन कराने के सब अिधकार से तत्पश्चात् संयुक्ततः और पृथक्तः तथा पूणर्तः िवविजत और
पुरोबिन्धत ह गे, और यिद उनसे ऐसी अपेक्षा की जाए तो उक्त सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा दूसरे पर्ितवादी को
पिरद करे गा; अथवा
(ii) (िकसी अन्य बन्धक की दशा म) बन्धक सम्पि का या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य कर िदया जाएगा और
दूसरा पर्ितवादी ऐसे िवकर्य के पर्योजन के िलए बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह
न्यायालय के समक्ष या उस अिधकारी के समक्ष, िजसे वह न्यायालय िनयुक्त करे , पेश करे गा; तथा
(iii) *[उस दशा म िजसम िक ऊपर के खण्ड 4 (ii) के अधीन िवकर्य का आदेश िकया जाता है] ऐसे िवकर्य से वसूल
हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और (उसम से िवकर्य के य को काटकर) वह दूसरे पर्ितवादी को इस िडकर्ी के
अधीन और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के , जैसे इस वाद म पािरत िकए जाएं, अधीन संदय े रकम का संदाय करने म और
ऐसी िकसी रकम का जैसी न्यायालय वाद के खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 34 के
िनयम 10 के अधीन संदाय ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े
पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह वादी को
शोध्य रकम का संदाय करने म उपयोिजत िकया जाएगा और यिद िफर भी कु छ बाकी बचे तो वह पहले पर्ितवादी को या
अन्य व्यिक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह िदया जाएगा; तथा
(iv) यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन दूसरे पर्ितवादी और वादी को शोध्य रकम के पूणर् संदाय के िलए पयार्प्त न
हो तो, यथािस्थित, दूसरा पर्ितवादी या वादी या वे दोन (जहां िक ऐसा उपचार उनके अपने बन्धक के िनबन्धन के अधीन
अनुज्ञात है और िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) पहले पर्ितवादी के िवरु उस रकम के िलए जो कर्मशः
उनको शोध्य रह गई हो, वैयिक्तक िडकर्ी के िलए आवेदन कर सकगे ।
5. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक—
(क) यिद वादी इस वाद म वह रकम न्यायालय म जमा कर देता है िजसके बारे म न्यायिनण त िकया गया है िक
वह दूसरे पर्ितवादी को शोध्य है िकन्तु पहला पर्ितवादी उक्त रकम का संदाय करने म ितकर्म करता है तो वादी न्यायालय
से यह आवेदन िक दूसरे पर्ितवादी का बन्धक मेरे फायदे के िलए जीिवत रखा जाए और [उसी रीित से िजससे िक ऊपर के
खण्ड (4) के अधीन दूसरा पर्ितवादी आवेदन कर सकता था] इस अिन्तम िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा िक—
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
251
[(i) पहला पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसच ू ी म विणत बन्धक-सम्पि के मोचन के सब अिधकार
से तत्पश्चात् पूणत
र् ः िवविजत और पूरोबिन्धत होगा और यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह वादी को उक्त
सम्पि का िनबार्ध और शािन्तपूणर् कब्जा पिरद करे गा;] अथवा
[(ii) बन्धक-सम्पि का या उसके पयार्प्त भाग का िवकर्य िकया जाएगा और ऐसे िवकर्य के पर्योजन के
*
िलए वादी बन्धक-सम्पि सम्बन्धी वे सभी दस्तावेज जो उसके कब्जे या शिक्त म ह न्यायालय के समक्ष या उस
अिधकारी के समक्ष; िजसे वह न्यायालय िनयुक्त करे , पेश करे गा;] तथा
(ख) (यिद दूसरे पर्ितवादी के आवेदन पर पुरोबन्ध के िलए ऐसी अिन्तम िडकर्ी पािरत की जाती है तो) वादी के
बन्धक से या दूसरे पर्ितवादी के बन्धक से या इस वाद से उद्भूत पहले पर्ितवादी के सब दाियत्व के बार म यह समझा जाएगा
िक वे उन्मोिचत और िनवार्िपत कर िदए गए ह ।
6. (जहां िक ऊपर के खण्ड 5 के अधीन िवकर्य का आदेश िदया गया है वहां) यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती
है िक—
(i) ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन न्यायालय म जमा िकया जाएगा और (िवकर्य के य को उसम से कटाकर) वह
सबसे पहले दूसरे पर्ितवादी के बन्धक की बाबत वादी ारा दी गई रकम का, और उससे संबंिधत वाद के खच का संदाय करने
म और ऐसी िकसी रकम का, जैसी न्यायालय उक्त रकम पर पािश्चक ब्याज की बाबत शोध्य न्यािनण त करे , संदाय करने म
सम्यक् रूप से उपयोिजत िकया जाएगा और यिद कु छ बाकी बचे तो वह वादी को अपने बन्धक की बाबत इस िडकर्ी के अधीन
और ऐसे िकन्ह अितिरक्त आदेश के , जो पािरत िकए जाएं, अधीन शोध्य न्यायिनण त की गई रकम का संदाय करने म और
ऐसी रकम का, जो न्यायालय इस वाद के ऐसे खच की और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की पर्थम अनुसूची के आदेश 34 के
िनयम 10 के अधीन संदय े ऐसे खच , पर्भार और य की बाबत शोध्य न्यायिनण त करे , िनयम 11 के अधीन संदय े ऐसे
पािश्चक ब्याज के सिहत, संदाय करने म उपयोिजत िकया जाएगा और यिद िफर भी कु छ बाकी बचे तो वह पहले पर्ितवादी
को या ऐसे अन्य व्यिक्तय को, जो उसे पर्ाप्त करने के हकदार ह , संद िकया जाएगा; तथा
(ii) यिद ऐसे िवकर्य से वसूल हुआ धन दूसरे पर्ितवादी के बन्धक या वादी के बन्धक की बाबत शोध्य रकम का पूणर्
संदाय करने के िलए पयार्प्त न हो तो दूसरा पर्ितवादी (जहां िक ऐसा उपचार उसके बन्धक के िनबन्धन के अधीन उसके िलए
अनुज्ञात है ओर िकसी तत्समय-पर्वृ -िविध ारा विजत नह है) पहले पर्ितवादी के िवरु बाकी की रकम के िलए वैयिक्तक
िडकर्ी के िलए आवेदन कर सके गा ।
7. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पक्षकार समय-समय पर इस न्यायालय से आवश्यकतानुसार
आवेदन कर सकगे और न्यायालय ऐसे आवेदन पर या अन्यथा ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक-सम्पि का वणर्न
संख्यांक 11
िवकर्य के िलए पर्ारिम्भक िडकर्ी
[वादी..................................................................अनुबन्धकदार या ुत्प बन्धकदार;
बनाम
पहला पर्ितवादी..........................................................................बन्धककतार्,
दूसरा पर्ितवादी.............................................................................मूल बन्धकदार ।]
(आदेश 34 का िनयम 4)
(शीषर्क)
वादी............................इत्यािद की उपिस्थित म इस वाद के आज.............................को पेश होने पर, यह घोिषत
िकया जाता है िक दूसरे पर्ितवादी को उसके बन्धक पर आज तारीख..................................तक संगिणत शोध्य रकम मूलधन
म .े .....................रुपए की रािश, उक्त मूलधन पर ब्याज म .े ...........................रुपए की रािश (वाद के खच से िभ ), उन
खच, पर्भार और य के िलए जो बन्धक पर्ितभूित की बाबत ह उन पर ब्याज सिहत.................................रुपए की रािश, और
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
252
पर्ितवादी (यथािस्थित) पुरोबन्ध या िवकर्य के िलए अिन्तम िडकर्ी के िलए न्यायालय से आवेदन कर सके गा—(दूसरे पर्ितवादी के बन्धक
की पर्कृ ित के और उसके अधीन उसे अनुज्ञात उपचार के अनुसार घोषणाएं मामूली पर्रूप म िलखी जाएंगी) ।
8. यह भी आदेश िकया जाता है और िडकर्ी दी जाती है िक पक्षकार न्यायालय से आवश्यकतानुसार आवेदन कर सकगे और
ऐसे आवेदन पर या अन्यथा न्यायालय ऐसे िनदेश दे सके गा जैसे वह ठीक समझे ।
अनुसूची
बन्धक-सम्पि का वणर्न
संख्यांक 12
िलिखत की पिरशुि की िडकर्ी
(शीषर्क)
यह घोिषत िकया जाता है िक तारीख...........................की.................................उस............................के पक्षकार
के आश्य को ठीक-ठीक क्त नह करती है ।
यह िडकर्ी दी जाती है िक उक्त............................की पिरशुि ..............................करे ।
संख्यांक 13
लेनदार से कपट करने के िलए िकया गए अन्तरण को अपास्त करने की िडकर्ी
(शीषर्क)
यह घोिषत िकया जाता है िक..................................और.................................के बीच िकया गया
तारीख..............................का..................................वहां तक शून्य है जहां तक वह वादी के और पर्ितवादी के अन्य लेनदार के ,
यिद कोई ह , िवरु है ।
संख्यांक 14
पर्ाइवेट न्यूसन्े स के िवरु ादेश
(शीषर्क)
पर्ितवादी.........................., उसके अिभकतार्, सेवक और कमर्कार पर्ितवादी के भूखण्ड म, जो उपाब रे खांक म ख िचहर् से
िचिहर्त है, ईंट पकाने या पकवाने से, जो उस िनवास गृह या बाग के , िजसके बारे म वादपतर् म विणत है िक वह वादी का है या वादी के
अिधभोग म है, स्वामी या अिधभोगी के रूप म वादी के िलए न्यूसेन्स करने वाला हो, शाश्वत्काल के िलए अवरु रहे ।
संख्यांक 15
पुरानी ऊंचाई से अिधक ऊंचाई का िनमार्ण करने के िवरु ादेश
(शीषर्क)
पर्ितवादी........................................, उसके ठे केदार, अिभकतार् और कमर्कार......................................के अपने
पिरसर म उस ऊंचाई से अिधक ऊंचाई का, जो उसके अपने उक्त पिरसर म पहले खड़े उन िनमार्ण की थी जो हाल म ही िगरा िदए गए
ह, िकसी गृह या िनमार्ण का बनाया जाना ऐसे या ऐसी रीित से चालू रखने म शाश्वत्काल के िलए अवरु रह, जैसे या िजससे वादी के
उक्त पिरसर की िखड़िकयां, जो उसके पर्ाचीन पर्काशमागर् ह, अंधेरी, क्षितगर्स्त या बािधत हो जाएं ।
संख्यांक 16
पर्ाइवेट मागर् के उपयोग का अवरोध करने वाला ादेश
(शीषर्क)
पर्ितवादी....................................., उसके अिभकतार्, सेवक और कमर्कार..................................गली के िकसी भी
भाग का, िजसकी तल-भूिम वादी की है, उपाब रे खांक म ख िचहर् से िचिहर्त भूिम तक ठे ल , गािड़य या अन्य यान के जाने या वहां से
आने के िलए रास्ते के रूप म या िकसी अन्य पर्योजन के िलए उपयोग करने या उपयोग करने की अनुज्ञा देने से शा त्काल के िलए
अवरु रहे ।
254
संख्यांक 17
पर्शासन-वाद म पर्ारिम्भक िडकर्ी
(शीषर्क)
यह आदेश िदया जाता है िक िनम्निलिखत लेखा िलए जाएं और जांच की जाए, अथार्त्:—
लेनदार के वाद म—
1. इसका लेखा िलया जाए िक वादी को और मृतक के अन्य सब लेनदार को क्या शोध्य है ।
यहां उिचत अिधकारी का नाम िलिखए ।
255
12. यह आदेश िदया जाता है िक ज झ स्थावर सम्पि के िवकर्य का संचालन करे गा और िवकर्य की शत और संिवदा
को.......................................... के अनुमोदन के अधीन रहते हुए तैयार करे गा और यिद कोई शंका या किठनाई पैदा हो तो उसे तय
करने के िलए न्यायाधीश के पास कागज भेजे जाएंगे ।
13. यह भी आदेश िदया जाता है िक इसम इसके पूवर् िनिदष्ट जांच के पर्योजन के िलए *..............................समाचारपतर्
म इस न्यायालय को प ित के अनुसार िवज्ञापन कराएगा या िकसी ऐसी अन्य रीित से ऐसी जांच करे गा िजसकी
बाबत.................................. * यह पर्तीत हो िक उससे ऐसी जांच का उपयोगी पर्चार अिधकतम होगा ।
14. यह आदेश िदया जाता है िक तारीख..........................................* के पूवर् वे जांच कर ली जाएं और वे लेखा ले िलए
जाएं िजनका उल्लेख ऊपर िकया गया है और वे सब कायर् पूरे कर िलए जाएं िजनके िकए जाने के िलए आदेश िदया गया है और
*
................................जांच और लेखा के पिरणाम को और यह िक सब अन्य आिदष्ट कायर् पूरे कर िदए गए ह पर्मािणत करे और
अपना उस िनिम पर्माणपतर् तारीख..................................को पक्षकार के िनरीक्षण के िलए तैयार रखे ।
15. अन्त म यह आदेश िदया जाता है िक यह वाद (या कायर्वाही) अिन्तम िडकर्ी करने के िलए तारीख...........................के
िलए स्थिगत रहे ।
(इस िडकर्ी का के वल वह भाग उपयोग म लाया जाए जो िविशष्ट मामले म लागू हो)
संख्यांक 18
वसीयतदार ारा लाए गए पर्शासन-वाद म अिन्तम िडकर्ी
(शीषर्क)
1. यह आदेश िदया जाता है िक पर्ितवादी.......................................... * वसीयतकतार्..........................................की
सम्पदा के लेखे उस बाकी की, जो उक्त पर्माणपतर् ारा उक्त पर्ितवादी से शोध्य पाई गई है, ......................................रुपए की
रािश और तारीख.................................................से तारीख....................................तक.....................................पर्ितशत
पर्ितवषर् की दर से ब्याज
म .े .........................................................................................................................................रुपए की रािश भी,
कु ल िमलाकर............................................रुपए की रािश न्यायालय म तारीख...............................................को या उसके
पूवर् जमा कर दे ।
2. उक्त न्यायालय का *....................................इस वाद म वादी और पर्ितवादी के खच का िविनधार्रण करे और जब
उक्त खच ऐसे िविनधार्िरत कर िदए गए ह तब उनकी रकम न्यायालय म पूव क्त रूप म जमा िकए जाने के िलए
आिदष्ट...........................................रुपए की उक्त रािश म से िनम्निलिखत रीित से दी जाए, अथार्त्:—
(क) वादी के खच उसके अटन (या प्लीडर) शर्ी................................................................ को और
पर्ितवादी के खच उसके अटन (या प्लीडर) शर्ी...........................................................को िदए जाएं;
(ख) और (यिद कोई ऋण शोध्य है तो) वादी और पर्ितवादी के खच के उक्त संदाय के पश्चात् उक्त रािश म से
अविशष्ट....................................रुपय म से उन रािशय का जो *.............................................................के
पर्माणपतर् की.......................................................................................अनुसच
ू ी म िविभ विणत लेनदार को
शोध्य पाई गई है, उन ऋण पर िजन पर ब्याज लगता है पािश्चक ब्याज के सिहत संदाय कर िदया जाए और ऐसे संदाय के
पश्चात्...............................................अनुसूची म विणत िविभ वसीयतदार को िमलने वाली रकम पािश्चक ब्याज
के सिहत (जो पूव क्त रूप म सत्यािपत िकया जाएगा) उन्ह दे दी जाए ।
3. यिद तब कु छ अविशष्ट रहे तो यह अविशष्टीय वसीयतदार को दे िदया जाए ।
संख्यांक 19
जहां िनष्पादक वसीयत-सम्पदा के संदाय के िलए वैयिक्तक रूप से दायी पाया गया है वहां वसीयतदार के
पर्शासन-वाद म पर्ारिम्भक िडकर्ी
(शीष क)
1. यह घोिषत िकया जाता है िक पर्ितवादी वादी को वसीयत की गई *............................................................रुपए
की वसीयत सम्पदा के संदाय के िलए वैयिक्तक रूप से दायी है ।
2. यह आदेश िदया जाता है िक उक्त वसीयत-संपदा लेखे मूलधन और ब्याज म े जो शोध्य ह उसका लेखा िलया जाए ।
यहां उिचत अिधकारी का नाम िलिखए ।
256
संख्यांक 20
िनकटतम कु ल्य ारा पर्शासन-वाद म अिन्तम िडकर्ी
(शीषर्क)
1. उक्त न्यायालय का................................................................................... * इस वाद म वादी पर्ितवादी के खच
को िविनधार्िरत करे और जब उक्त वादी के खच ऐसे िविनधार्िरत कर िदए जाएं तब उक्त पर्माणपतर् ारा िनवर्सीयती िक्त च छ की
वैयिक्तक सम्पदा लेखे उक्त पर्ितवादी से शोध्य पाई गई बाकी की................................................रुपए की रािश म से वादी को
खच उक्त *....................................................................... ारा उक्त खच के िविनधार्रण के पश्चात् एक स ाह के भीतर
पर्ितवादी ारा संद िकए जाएं और जब पर्ितवादी के खच िविनधार्िरत हो जाएं तब पर्ितवादी उनकी रकम उक्त रािश म से अपने
उपयोग के िलए रखे रहे ।
2. यह आदेश िदया जाता है िक वादी और पर्ितवादी के खच का संदाय पूव क्त पर्कार से करने के पश्चात्
...............................................रुपए की उक्त रािश की अविशष्ट रािश पर्ितवादी ारा िनम्निलिखत रूप से संद और उपयोिजत
की जाए ।
(क) पर्ितवादी *..................................................................... ारा उक्त खच के पूव क्त रूप म
िविनधार्रण के पश्चात् एक स ाह के भीतर उक्त अविशष्ट रािश का तृतीयांश वादी क ख को और उसकी प ी ग घ को उक्त
िनवर्सीयती िक्त च छ की बिहन और िनकटतम कु ल्य म से एक होने के नाते, संद कर दे ।
(ख) पर्ितवादी उक्त िनवर्सीयती िक्त च छ की माता और िनकटतम कु ल्य म से एक होने के नाते उक्त अविशष्ट
रािश का अन्य तृतीयांश अपने उपयोग के िलए रखे रहे ।
(ग) पर्ितवादी *............................................. ारा उक्त खच के पूव क्त रूप से िविनधार्रण के पश्चात् एक
स ाह के भीतर उक्त अविशष्ट रािश का शेष तृतीयांश उक्त िनवर्सीयती िक्त च छ के भाई और अन्य िनकटतम कु ल्य होने
के नाते ज झ को संद कर दे ।
संख्यांक 21
भागीदारी के िवघटन और भागीदारी के लेखा लेने के वाद म पर्ारिम्भक िडकर्ी
(शीषर्क)
यह घोिषत िकया जाता है िक भागीदारी के पक्षकार के आनुपाितक अंश िनम्निलिखत ह:
यह घोिषत िकया जाता है िक यह भागीदारी तारीख ………......................................................................से
िवघिटत हो जाएगी (या िवघिटत कर दी गई समझी जाएगी) और यह आदेश िदया जाता है िक उसका उस िदन से िवघटन
..............................................................राजपतर्, इत्यािद म िवज्ञािपत िकया जाए ।
यह आदेश िदया जाता है िक...........................................इस वाद म भागीदारी सम्पदा और चीजबस्त का िरसीवर हो
और भागीदारी के सब बही-ऋण और दाव को, जो परादेय ह , वसूल करे ।
यह आदेश िदया जाता है िक िनम्निलिखत लेखा िलए जाएं, अथार्त:् —
1. उक्त भागीदारी के वतर्मान जमा पावन , सम्पि और चीजबस्त का लेखा;
2. उक्त भागीदारी के ऋण और दाियत्व का लेखा;
3. वादी और पर्ितवादी के बीच हुए सब लेन-देन और सं वहार का लेखा जो इस वाद म पर्दिशत और (क) िचहर्
से िचहर्ांिकत िस्थरीकृ त लेखा की अंितम मद के पश्चात् के ह और यह लेखा लेने म िकन्ह पश्चात्वत िस्थरीकृ त लेखा
म हस्तक्षेप न िकया जाए ।
यहां उिचत अिधकारी का नाम िलिखए ।
257
यह आदेश िदया जाता है िक वादी और पर्ितवादी ारा वादपतर् म विणत रीित से अब तक िकए जाने वाले कारबार
की गुडिवल और ापार स्टाक का िवकर्य उसके पिरसर पर ही कर िदया जाए और .........................................ऐसे
िवकर्य के सब लाट या इनम से िकसी के िलए आरिक्षत बोली पक्षकार म से िकसी के आवेदन पर िनयत कर सके गा और
दोन पक्षकार को िवकर्य म बोली लगाने की स्वतंतर्ता होगी ।
यह आदेश िदया जाता है िक तारीख *.................................के पूवर् उक्त लेखा ले िलए जाएं और वे सब कायर्
पूरे कर िलए जाएं िजनका िकया जाना अपेिक्षत है और *...................................लेखा के पिरणाम को और यह िक सब
अन्य कायर् पूरे कर िदए गए ह, पर्मािणत करे और अपना उस िनिम पर्माणपतर् तारीख...............................को पक्षकार
के िनरीक्षण के िलए तैयार रखे ।
अन्त म यह आदेश िदया जाता है िक यह वाद अिन्तम िडकर्ी पािरत करने के िलए तारीख........................के िलए
स्थिगत रहे ।
संख्यांक 22
भागीदारी के िवघटन और भागीदारी के लेखा लेने के वाद म अिन्तम िडकर्ी
(शीषर्क)
यह आदेश िदया जाता है िक....................................रुपए की जो िनिध अब न्यायालय म है वह िनम्निलिखत रीित से
उपयोिजत की जाए—
1. *......................................के पर्माणपतर् म दजर् भागीदारी ारा शोध्य ऋण का, जो कु ल
िमलाकर................................रुपए होते ह, संदाय करने म ।
2. इस वाद के सब पक्षकार के खच का, जो कु ल िमलाकर............................रुपए होते ह, संदाय करने म । (ये
खच िडकर्ी के तैयार िकए जाने के पूवर् अिभिनिश्चत कर िलए जाने चािहएं ।)
3. वादी को भागीदारी की आिस्तय म उसके अंश के रूप म....................................रुपए की रािश का, जो
न्यायालय म अब पर्ितवादी को भागीदारी की आिस्तय म उसके अंश के रूप म..............................................रुपए की
रािश का, जो न्यायालय म अब जमा...............................................रुपए की उक्त रािश की अविशष्ट रािश है, संदाय
करने म ।
[या, और........................................................रुपए की उक्त रािश का शेष उक्त वादी (या पर्ितवादी)
को...............................रुपए की उस रािश का भािगक संदाय करने म, जो भागीदारी लेखा की बाबत उसे शोध्य
पर्मािणत की गई ह, संद िकया जाए ।]
4. और पर्ितवादी (या वादी) वादी (या पर्ितवादी) को उसे शोध्य..................................रुपए की उक्त रािश की
बाकी.....................................रुपए की रािश जो तब भी शोध्य रह गई हो, तारीख..................................को या
उसके पूवर् संद करे ।
संख्यांक 23
भूिम और अन्तःकालीन लाभ की वसूली के िलए िडकर्ी
(शीषर्क)
इसके ारा िनम्निलिखत िडकर्ी दी जाती है—
1. पर्ितवादी इसके साथ उपाब अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट सम्पि पर वादी का कब्जा करा दे ।
2. पर्ितवादी उन अन्तःकालीन लाभ म े, जो वाद के संिस्थत िकए जाने के पूवर् शोध्य हो चुके ह..................रुपए
की रािश, वसूली की तारीख तक...................................पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से उस पर ब्याज सिहत, वादी को
संद करे ।
या
2. उन अन्तःकालीन लाभ की रकम के बारे म जांच की जाए जो वाद के संिस्थत िकए जाने के पूवर् शोध्य हो
चुके ह ।
यहां उिचत अिधकारी का नाम िलिखए ।
258
3. वाद के संिस्थत िकए जाने की तारीख से (िडकर्ीदार को कब्जा पिरद िकए जाने तक) (िडकर्ीदार को न्यायालय
के माध्यम से सूचना देकर िनण तऋणी ारा कब्जे के त्याग तक) (िडकर्ी की तारीख से तीन वषर् के अवसान तक) के
अन्तःकालीन लाभ की रकम के बारे म जांच की जाए ।
अनुसूची
पिरिशष्ट ङ
िनष्पादन
संख्यांक 1
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक संदाय या समायोजन को पर्मािणत के रूप म क्य न
अिभिलिखत कर िलया जाए ।
(आदेश 21 का िनयम 2)
(शीषर्क)
पर्ेिषती—
उक्त वाद की िडकर्ी के िनष्पादन म......................................ने इस न्यायालय से आवेदन िकया है िक उस िडकर्ी के अधीन
वसूलीय...................रुपए की रािश संद कर दी गई है और वह पर्मािणत की गई अिभिलिखत की जाए, अतः आपको
समायोिजत कर ली
यह सूचना दी जाती है िक आप इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए िक उक्त संदाय/समायोजन/पर्मािणत के रूप म क्य न
अिभिलिखत िकया जाए ता०.................................को इस न्यायालय के समक्ष उपसंजात ह ।
यह आज ता०..............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 2
आज्ञापतर् (धारा 46)
(शीषर्क)
िडकर्ीदार को सुनने के पश्चात् यह आदेश िदया जाता है िक यह आज्ञापतर्.........................के ............................न्यायालय
को िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की धारा 46 के अधीन इस िनदेश के साथ भेजा जाए िक वह न्यायालय उपाब अनुसूची म
िविनिदष्ट सम्पि को कु कर् कर ले और ऐसे िकसी आवेदन के िकए जाने तक उसे कु कर् रखे, जो िडकर्ी के िनष्पादन के िलए िडकर्ीदार ारा
िकया जाए ।
अनुसूची
ता०................................
न्यायाधीश
संख्यांक 3
दूसरे न्यायालय को िनष्पादन के िलए िडकर्ी भेजने का आदेश
(आदेश 21 का िनयम 6)
(शीषर्क)
उक्त वाद म िडकर्ीदार ने यह अिभकथन करते हुए िक............................के ..............................न्यायालय की
अिधकािरता की स्थानीय सीमा के अन्दर िनण तऋणी िनवास करता है या उसकी सम्पि है इस न्यायालय से यह आवेदन िकया है
िक उक्त न्यायालय को पर्माणपतर् उक्त वाद की िडकर्ी का उक्त न्यायालय ारा िनष्पादन िकए जाने के िलए भेजा जाए और िसिवल
पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 21 के िनयम 6 के अधीन पर्माणपतर् उक्त न्यायालय को भेजना आवश्यक और उिचत समझा गया है,
अतः यह आदेश िदया जाता है िक.................................
िडकर्ी की और ऐसे िकसी आदेश की, जो उसके िनष्पादन के िलए िदया गया हो, पर्ित के सिहत और तुिष्ट न होने के पर्माणपतर्
के सिहत इस आदेश की पर्ित....................................को भेजी जाए ।
259
ता०..................................
न्यायाधीश
संख्यांक 4
िडकर्ी की तुिष्ट न होने का पर्माणपतर्
(आदेश 21 का िनयम 6)
(शीषर्क)
यह पर्मािणत िकया जाता है िक 19...............................के ............................संख्यांक वाले वाद म इस न्यायालय की
उस िडकर्ी की, िजसकी पर्ित इसके साथ संलग्न है, तुिष्ट इस न्यायालय की अिधकािरता के अन्दर िनष्पादन ारा नह 1 हुई है ।
ता०....................................
न्यायाधीश
संख्यांक 5
दूसरे न्यायालय को अन्तिरत िडकर्ी के िनष्पादन का पर्माणपतर्
(आदेश 21 का िनयम 6)
(शीषर्क)
वसूल की गई रकम
वाद का पक्षकार िनष्पादन िनष्पादन कौन-कौन िनष्पादन खच मामले िटप्पिणयां
संख्यांक के नाम के िलए मामले आदेिशकाएं का
और उस आवेदन का िनकाली गई िनपटा
न्यायालय की संख्यांक और उनकी रा कै से
का नाम तारीख तामील हुआ
िजसने िकस-िकस
िडकर्ी तारीख को
पािरत की हुई
थी
1 2 3 4 5 6 7 8 9
रु. आ. पा. रु. आ. पा.
1
यिद भािगक तुिष्ट हुई है तो “नह ” शब्द काट दीिजए और यह िलिखए िक िकतनी तुिष्ट हुई है ।
260
संख्यांक 6
िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन-पतर्
(आदेश 21 का िनयम 11)
.............................................के न्यायालय म
म........................................., िडकर्ीदार, इसके ारा नीचे दी गई िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन करता हूं :
1897 का 789 1 वाद का संख्यांक
कखवादी, 2 पक्षकार का नाम
गघपर्ितवादी
11 अक्तूबर, 1897 3 िडकर्ी की तारीख
नह 4 क्या िडकर्ी की कोई अपील की गई है
कोई नह 5 यिद कोई संदाय या समायोजन िकया गया है तो वह संदाय या
समायोजन
तारीख 4 माचर्, 1899 को आवेदन िकया गया और उस पर 6 यिद पहले कोई आवेदन िकया गया है तो उसकी तारीख और
अिभिलिखत 72 रु० 4 आने वसूल हुए पिरणाम
314 रु० 8 आने 2 पाई मूल धन (िडकर्ी की तारीख से संदाय 7 िडकर्ी की रकम, उस पर शोध्य ब्याज के सिहत या एतद् ारा
तक 6 पर्ितशत वािषक ब्याज) अनुद अन्य अनुतोष पर्ित िडकर्ी की िविशिष्टय के सिहत
रु. आ. पा. 8 यिद खच म े कोई रकम अिधिनण त की गई है तो वह रकम
िडकर्ी म अिधिनण त िकए गए 47 10 4
तत्पश्चात् उपगत 8 2 0
जोड़ 55 12 4
[जब आशय यह हो िक जंगम सम्पि की कु क और उसका 10 वह ढंग िजससे न्यायालय की सहायता अपेिक्षत है
िवकर्य िकया जाए ।]
म पर्ाथर्ना करता हूं िक मूलधन पर (संदाय की तारीख तक
ब्याज के सिहत) कु ल रु०.....................की रकम और यह
िनष्पादन कराने के खच पर्ितवादी की उस जंगम संपि की,
जो उपाब सूची म दजर् है, कु क और िवकर्य ारा वसूल
िकए जाएं और मुझे िदए जाएं ।
[जब आशय यह हो िक स्थावर सम्पि की कु क और उसका
िवकर्य िकया जाए]
म पर्ाथर्ना करता हूं िक मूलधन पर (संदाय की तारीख तक
ब्याज के सिहत) कु ल...........................रु० की रकम और
यह िनष्पादन कराने के खच पर्ितवादी की उस िविनिदष्ट
स्थावर सम्पि की, जो इस आवेदन-पतर् के पाद भाग म
िविनिदष्ट है, कु क और िवकर्य ारा वसूल िकए जाएं और
मुझे िदए जाएं ।
म............................................घोषणा करता हूं िक इसम जो भी िलखा गया है, वह मेरे सव म ज्ञान और िवश्वास के
अनुसार सत्य है ।
ता०.............................
हस्ताक्षर..............................
िडकर्ीदार
261
संख्यांक 7
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक िनष्पादन क्य न िकया जाए 1 [(आदेश 21 का िनयम 16)]
(शीषर्क)
पर्ेिषती
……………………ने 19 ........................के ...................संख्यांक वाले वाद की िडकर्ी के िनष्पादन के िलए
इस न्यायालय से आवेदन यह अिभकथन करते हुए िकया है िक उक्त िडकर्ी उसे समनुदश े न ारा 2 [या समनुदश े न के िबना] अंतिरत कर
दी गई है, अत: आप को यह सूचना दी जाती है िक आप इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए िक िनष्पादन क्य न मंजूर िकया जाए
ता०............................को इस न्यायालय के समक्ष उपसंजात ह ।
यह आज ता०………………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 8
धन की िडकर्ी के िनष्पादन म जंगम सम्पि की कु क का वारण्ट (आदेश 21 का िनयम 66)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
19…………….............……..के ......................................संख्यांक वाले वाद म ता०.....................................को पािरत
इस न्यायालय की िडकर्ी ारा.............................................को यह आदेश िदया गया था िक वह पाश्वर् म दजर् ................... रुपए
की रािश का संदाय वादी को करे और...............................................रुपए की उक्त रािश का
िडकर्ी
संदाय नह िकया गया है, अंत: आपको यह समादेश िदया जाता है िक उक्त............................की
मूल.................................. वह जंगम संपि , जो इससे उपाब अनुसूची म दजर् है, या जो आपको
उक्त.................................................................. ारा िदखाई जाए कु कर् कर ल और जब तक
ब्याज...............................
िक उक्त…………....................................आपको .............................................रुपए की
िनष्पादन के खच.................. उक्त रािश का इस कु क के खच की बाबत.......................................................रुपए की रािश
सिहत संदाय न कर दे उस सम्पि को इस न्यायालय के अगले आदेश तक कु कर् रख ।
अितिरक्त ब्याज...................
जोड़
आपको यह भी समादेश िदया जाता है िक आप इस वारण्ट को वह िदन िजसको और वह रीित, िजससे, यह िनष्पािदत िकया गया हो या
वह कारण िजससे यह िनष्पािदत नह िकया गया पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन सिहत ता०...................................को या उसके पूवर्
लौटा द ।
यह आज ता०............................को मेरे हस्ताक्षर और न्यायालय की मुहर लगाकर िदया गया ।
1
1914 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “(आदेश 21 का िनयम 22)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 95 ारा (1-2-1977 से) अंत:स्थािपत ।
262
अनुसूची
न्यायाधीश
संख्यांक 9
िडकर्ी ारा न्यायिनण त िविनिदष्ट जंगम सम्पि के अिभगर्हण के िलए वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 31)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
19….................के .....................संख्यांक वाले वाद म ता०........................को पािरत इस न्यायालय की िडकर्ी
ारा............................को आदेश िदया गया था िक वह इसके साथ उपाब अनुसच ू ी म िविनिदष्ट जंगम सम्पि (या जंगम सम्पि
म..........................अंश) वादी को पिरद करे और उक्त सम्पि (या अंश) पिरद नह िकया गया है ।
अत: आपको यह समादेश िदया जाता है िक आप उक्त जंगम सम्पि को (या उक्त जंगम सम्पि
के ................अंश को) अिभगृहीत कर ल और उसे वादी को या ऐसे व्यिक्त को, िजसे वह इस िनिम िनयुक्त करे , पिरद कर द ।
यह आज ता०............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
अनुसूची
न्यायाधीश
संख्यांक 10
दस्तावेज के पर्ारूप के बारे म आक्षेप का कथन करने के िलए सूचना
(आदेश 21 का िनयम 34)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
आपक यह सूचना दी जाती है िक ता०...................को िडकर्ीदार ने उक्त वाद म इस न्यायालय के समक्ष यह आवेदन
उपस्थािपत िकया था िक न्यायालय इसम नीचे िविनिदष्ट स्थावर सम्पि का...................................िवलेख, िजसका पर्ारूप इसके
साथ उपाब है, आपकी ओर से िनष्पािदत करे और ता०.............................उक्त आवेदन की सुनवाई के िलए िनयत है और आप
उक्त िदन उपसंजात होने के िलए और उस पर्ारूप के िवरु आक्षेप िलिखत रूप म देने के िलए स्वतंतर् ह ।
सम्पि का वणर्न
यह आज ता०..................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 11
भूिम इत्यािद का कब्जा िदलाने का बेिलफ को वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 35)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
इसम आगे विणत सम्पि जो....................के अिधभोग म है इस वाद के वादी........................को िडकर्ीत है, अत:
आपको िनदेश िदया जाता है िक आप उक्त.....................................को उसका कब्जा िदला द और आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है
िक आप िडकर्ी से आब ऐसे िकसी व्यिक्त को, जो उसे खाली करने से इं कार करे , वहां से हटा द :
यह आज ता०...........................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
263
अनुसूची
न्यायाधीश
संख्यांक 12
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक िगरफ्तारी का वारण्ट क्य न िनकाला जाए
(आदेश 21 का िनयम 37)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
……………………ने 19.........................के .............................संख्यांक वाले वाद म िडकर्ी का िनष्पादन आपको
िगरफ्तार कराकर और कारगार म रखवा कर कराने के िलए आवेदन इस न्यायाल से िकया है, अत: आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए िक आपको उक्त िडकर्ी के िनष्पादन म िसिवल कारगार के सुपुदर् क्य न िकया जाए,
ता०.............................को इस न्यायालय के समक्ष उपसंजात ह ।
यह आज ता०.......................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 13
िनष्पादन म िगरफ्तारी का वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 38)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
....................................न्यायालय का बेिलफ ।
िडकर्ी 19.....................के ......................संख्यांक वाले वाद म तारीख .................की इस न्यायालय
की िडकर्ी ारा..................................के बारे म यह न्यायिनण त िकया गया था िक वह पाश्वर् म
मूल..................................
दजर्........................रुपए की रािश िडकर्ीदार को दे और..................................रुपए की उक्त
ब्याज............................... रािश उक्त िडकर्ीदार को उक्त िडकर्ी की तुिष्ट म नह दी गई है, अत: आपको यह समादेश िदया
जाता है िक आप उक्त िनण तऋणी को िगरफ्तार कर ल और, जब तक उक्त िनण तऋणी
िनष्पादन के खच..................
आपको...........................................रुपए की उक्त रािश, इस आदेिशका के िनष्पादन के खच के
जोड़ िलए....................रुपए के सिहत न दे । उक्त पर्ितवादी को सुिवधानुसार शीघर्ता से इस न्यायालय
के समक्ष लाएं । आपको यह और समादेश िदया जाता है िक आप इस वारण्ट को वह िदन िजसको,
और वह रीित िजससे, यह िनष्पािदत िकया गया है या वह कारण िजससे यह िनष्पािदत नह िकया गया पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन
सिहत ता०........................को या उसके पूवर् लौटा द ।
यह आज ता०.............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 14
िनण तऋणी को जेल सुपद
ु र् करने का वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 40)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………………की जेल का भारसाधक अिधकारी ।
..............................जो ता०...........................को इस न्यायालय ारा की गई और सुनाई गई उस िडकर्ी के ,
िजस िडकर्ी ारा उक्त...........................को आदेश िदया गया था िक वह......................................को..........................दे,
िनष्पादन म वारण्ट के अधीन आज ता०...........................को इस न्यायालय के समक्ष लाया गया है और उक्त.........................ने
264
िडकर्ी का आज्ञानुवतर्न नह िकया है और न न्यायालय का यह समाधान िकया है िक वह अिभरक्षा से उन्मोिचत िकए जाने का
हकदार है ; अत: आपको 1 *** समादेश िदया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त....................................को
िसिवल कारगार म ले ल और स्वीकार कर और वहां.......................................से अनिधक अविध के िलए या तब तक, जब तक की
उक्त िडकर्ी की पूरी तुिष्ट न कर दी जाए या जब तक की उक्त………..........……..िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 की धारा 58 के
िनबन्धन और उपबन्ध के अनुसार िनमुर्क्त िकए जाने का अन्यथा हकदार न हो जाए, उसे कारवािसत रख; और सुपुदग र् ी के इस वारण्ट
के अधीन उक्त......................................के पिररु रहने के दौरान उसके जीवनिनवार्ह के िलए मािसक भ ा 2 *** पर्ित िदन की
दर से न्यायालय िनयत करता है ।
यह आज ता०.......................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 15
िडकर्ी के िनष्पादन म कारावािसत व्यिक्त की िनमुिर् क्त का आदेश
(धारा 58, 59)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
..................................की जेल का भारसाधक अिधकारी ।
आज पािरत आदेश के अधीन आपको िनदेश िदया जाता है िक आप..............................िनण तऋणी को, जो इस समय
आपकी अिभरक्षा म है, मुक्त कर द ।
ता० ............................
न्यायाधीश
संख्यांक 16
िनष्पादन म कु क
जहां कु कर् की जाने वाली सम्पि ऐसी जंगम सम्पि है िजसका पर्ितवादी िकसी अन्य व्यिक्त के धारणािधकार
या उस पर तत्काल कब्जा करने के अिधकार के अधीन रहते हुए हकदार है वहां पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 46)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
..............................19 के ...........................संख्यांक वाले वाद म ता०....................................को...................के
िवरु और..............................के पक्ष म............................रुपए के िलए पािरत िडकर्ी की तुिष्ट करने म......................असफल
रहा है, अत: यह आदेश िदया जाता है िक जब तक इस न्यायालय का अगला आदेश न हो, पर्ितवादी उक्त...................................के
कब्जे की िनम्निलिखत सम्पि अथार्त्...................................., िजसका िक पर्ितवादी उक्त...............................................के
िकसी दावे के अधीन रहते हुए हकदार है, पर्ाप्त करने से पर्ितिष और अवरु होगा और उसे पर्ितिष और अवरु िकया जाता है और
जब तक न्यायालय का अगला आदेश न हो उक्त सम्पि िकसी व्यिक्त या िकन्ह व्यिक्तय को, चाहे वे कोई भी ह , पिरद करने से
उक्त......................................पर्ितिष और अवरु िकया जाता है ।
यह आज ता०.............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
3
[संख्यांक 16क
िनण तऋणी ारा आिस्तय के बारे म शपथपतर् िदया जाना
[आदेश 21 का िनयम 41 (2)]
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भारत के समर्ाट के नाम म” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 95 ारा (1-2-1977 से) “आने” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 95 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
265
............................................के न्यायालय म
कख िडकर्ीदार
बनाम
ग िनण त-ऋणी
.......................................................का म ............................................................................................
शपथ
पर िनम्निलिखत रूप म कथन करता हूं :
सत्यिनष्ठ पर्ितज्ञान
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
266
संख्यांक 17
िनष्पादन म कु क
जहां सम्पि ऐसे ऋण के रूप म है जो परकर्ाम्य िलखत से पर्ितभूत नह है वहां पर्ितषेधात्मक ओदश
(आदेश 21 का िनयम 46)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………..उस िडकर्ी की तुिष्ट करने म असफल रहा है जो 19............................के .......................संख्यांक वाले
वाद म……..........................को.................................के िवरु ....................................और....................................के
पक्ष म..................................रुपए के िलए पािरत की गई थी ; अत: यह आदेश िदया जाता है िक जब तक इस न्यायालय का अगला
आदेश न हो पर्ितवादी आपसे वह ऋण, िजसके बारे म यह अिभकिथत है िक वह उक्त पर्ितवादी को आपके ारा इस समय शोध्य है,
अथार्त्.......................................का ऋण, पर्ाप्त करने से पर्ितिष और अवरु हो और िकया जाता है और जब तक न्यायालय का
अगला आदेश न हो उक्त ऋण या उसके िकसी भाग को िकसी व्यिक्त को, चाहे वह कोई भी हो, या इस न्यायालय म जमा कराने से
अन्यथा, देने से आप उक्त (नाम)...............................पर्ितिष और अवरु रहे और िकए जाते ह ।
यह आज ता०...............................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 18
िनष्पादन म कु क
जहां िक सम्पि िकसी िनगम की पूज
ं ी म अंश के रूप म है वहां पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 46)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
पर्ितवादी..................................और........................िनगम के सिचव............................................................. ।
.............................उस िडकर्ी की तुिष्ट करने म असफल रहा है जो 19.........................को..........................संख्यांक
वाले वाद म…........................................को……............................के िवरु और.............................................के पक्ष म
....................... रुपए के िलए पािरत की गई थी ; अत: यह आदेश िदया जाता है िक जब तक इस न्यायालय का अगला आदेश न हो
आप, पर्ितवादी, उक्त िनगम म अथार्त्.................................म..............................अंश का कोई अन्तरण करने या उन पर
िकन्ह लाभांश का संदाय लेने से पर्ितिष और अवरु रह और िकए जाते ह और आप..........................., उक्त िनगम के सिचव,
िकसी ऐसे अन्तरण की अनुज्ञा देने या कोई भी ऐसा संदाय करने से पर्ितिष और अवरु िकए जाते ह ।
यह आज ता०............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 19
लोक अिधकारी या रे ल कम्पनी या स्थानीय पर्ािधकरण के सेवक के वेतन की कु क का आदेश
(आदेश 21 का िनयम 48)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………….., उक्त मामले म िनण तऋणी (िनण तऋणी के पद का वणर्न कीिजए) है जो अपना वेतन (या भ े)
आपसे पा रहा है; और उक्त मामले म िडकर्ीदार................................ने िडकर्ी के अधीन अपने को शोध्य............................तक
उक्त..............................के वेतन (या भ ) की कु क के िलए इस न्यायालय म आवेदन िकया है; अत: आपसे अपेक्षा की जाती है िक
आप........................रुपए की उक्त रािश..............................के वेतन म से,.........................की मािसक िकस्त म िवधािरत
कर ल और उक्त रािश (या मािसक िकस्त) इस न्यायालय को भेज द ।
267
संख्यांक 20
परकर्ाम्य िलखत की कु क के िलए आदेश
(आदेश 21 का िनयम 51)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
ता०................................को........................की कु क के िलए आदेश इस न्यायालय ारा पािरत िकया गया है ; अत:
आपको िनदेश िदया जाता है िक आप उक्त..............................को अिभगृहीत कर ल और इस न्यायालय म ले जाए ।
यह आज ता०.......................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 21
कु क
जहां सम्पि , न्यायालय या 1 [लोक अिधकारी] की अिभरक्षा म धन या िकसी पर्ितभूित के रूप म है वहां
पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 52)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
महोदय,
वादी ने ऐसे कु छ धन की कु क के िलए िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 21 के िनयम 52 के अधीन आवेदन िकया है
जो धन इस समय आपके पास जमा है (यहां यह िलिखए िक यह क्य अनुमान है िक धन सम्बोिधत व्यिक्त के पास जमा है, िकस लेखे
जमा है, (इत्यािद) ; अत: म आपसे पर्ाथर्ना करता हूं िक आप इस न्यायालय के अगले आदेश के अधीन रहते हुए उक्त धन को अपने पास
धािरत रख ।
ता० ..................................
भवदीय
न्यायाधीश
संख्यांक 22
कु क
िडकर्ी की कु क की उस न्यायालय को सूचना िजसने िडकर्ी पािरत की है
(आदेश 21 का िनयम 53)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
...........................................के न्यायालय का न्यायाधीश ।
महोदय,
मुझे आपको यह जानकारी देनी है िक 19.........................के संख्यांक..........................वाले वाद म ता०...................
1
भारत शासन (िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकारी अिधकारी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
268
संख्यांक 23
िडकर्ी की कु क की िडकर्ी के धारक को सूचना
(आदेश 21 का िनयम 53)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
उक्त वाद म िडकर्ीदार ारा इस न्यायालय म उस िडकर्ी की कु क के िलए आवेदन िकया गया है जो आपने 19...................
के ...............................संख्यांक वाले वाद म.........................................के न्यायालय म तारीख.....................................को
अिभपर्ाप्त की थी और िजसम.................................था और ....................................था ; अत: यह आदेश िदया जाता है िक जब
तक इस न्यायालय का अगला आदेश न हो उसे िकसी रीित से अन्तिरत या भािरत करने से आप उक्त.................................पर्ितिष
और अवरु रह और िकए जाते ह ।
यह आज ता०...........................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 24
िनष्पादन म कु क
जहां सम्पि स्थावर सम्पि के रूप म है वहां पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 54)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
...................................पर्ितवादी ।
आप उस िडकर्ी की तुिष्ट करने म असफल रहे ह जो 19.…..........................के ...................................संख्यांक वाले
वाद म ता०...............................को............................के पक्ष म...................................रुपए के िलए आपके िवरु पािरत
की गई थी; अत: यह आदेश िदया जाता है िक जब तक इस न्यायालय का अगला आदेश न हो, इसके साथ उपाब अनुसूची म
िविनिदष्ट सम्पि को िवकर्य या दान ारा या अन्यथा अन्तिरत या भािरत करने से आप उक्त..............................पर्ितिष और
अवरु रह और िकए जाते ह, और सब व्यिक्त उसे कर्य या दान ारा या अन्यथा पर्ाप्त करने से पर्ितिष रह और िकए जाते ह ।
1 [यहभी आदेश िदया जाता है िक आप िवकर्य की उद्घोषणा के िनबंधन को तय करने के िलए िनयत तारीख की सूचना
पर्ाप्त करने के िलए तारीख..................................को न्यायालय म हािजर ह ।]
यह आज ता०.............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 95 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
269
अनुसूची
संख्यांक 25
उस धन आिद का जो पर-व्यिक्त के हाथ म है संदाय वादी आिद को करने का आदेश
(आदेश 21 का िनयम 56)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
िनम्निलिखत सम्पि अथार्त्.........................................उस िडकर्ी के िनष्पादन म कु कर् की गई है, जो 19...................के
…………………………संख्यांक वाले वाद म ता०...............................को...................................के पक्ष म..............रुपए
के िलए पािरत की गई थी; अत: यह आदेश िदया जाता है िक आप उक्त..................................ऐसे कु कर् की गई सम्पि ,
जो.........................रुपए के िसक्क और.................................के करे न्सी नोट से िमलकर बनी है, या उक्त िडकर्ी की तुिष्ट करने
के िलए उसका पयार्प्त भाग...............................को दे द ।
यह आज ता०.............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 26
कु क कराने वाले लेनदार को सूचना
(आदेश 21 का िनयम 58)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………………..ने........................19....................................के .......................संख्यांक वाले वाद की
िडकर्ी के िनष्पादन म आपकी पर्ेरणा पर.............................की कु क को, उठा लेने के िलए इस न्यायालय से आवेदन िकया है, अत:
आपको यह सूचना दी जाती है िक आप या तो स्वयं या न्यायालय के ऐसे प्लीडर ारा िजसे सम्यक् अनुदश े िमला हुआ हो, कु क कराने
वाले लेनदार के रूप म अपने दावे का समथर्न करने के िलए ता०.............................को इस न्यायालय के समक्ष उपसंजात ह ।
यह आज ता०.............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 27
धन की िडकर्ी के िनष्पादन म सम्पि की कु क का वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 66)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
आपको यह समादेश िदया जाता है िक आप 19…............................के ....................................संख्यांक वाले वाद
म...................................के पक्ष की िडकर्ी के िनष्पादन म ता०.............................के इस न्यायालय के वारण्ट के अधीन
कु कर् .................................सम्पि का, या उक्त सम्पि म से उतनी का िवकर्य, िजतनी से...........................रुपए की रािश वसूल
हो जाए, जो रािश उक्त िडकर्ी और खच की अब तक अतुष्ट बची रकम है........................................िदन की पूवर् सूचना इस
न्याय-सदन म लगाकर और सम्यक् उद्घोषणा के पश्चात् नीलम ारा कर द ।
आपको यह भी समादेश िदया जाता है िक आप वह रीित, िजससे यह वारण्ट िनष्पािदत िकया गया है या वह कारण िजससे
यह िनष्पािदत नह िकया गया है पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन सिहत इस वारण्ट को तारीख...............................को या उसके पूवर्
लौटा द ।
यह आज ता०................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
270
संख्यांक 28
िवकर्य उद्घोषणा तय करने के िलए िनयत िदन की सूचना
(आदेश 21 का िनयम 66)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
.............................िनण ताऋणी
उक्त वाद म...............................िडकर्ीदार ने........................................के िवकर्य के िलए आवेदन िकया है, अत:
आपको यह इि ला दी जाती है िक ता०.....................................िवकर्य की उद्घोषणा के िनबन्धन को तय करने के िलए िनयत की
गई है ।
यह ता०...........................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 29
िवकर्य की उद्घोषणा (आदेश 21 का िनयम 66)
(शीषर्क)
(1)...........................के ..................... ारा िविनिश्चत 19........................के ........................संख्यांक वाला वाद
िजसम.......................वादी था और...............................पर्ितवादी था ।
यह सूचना दी जाती है िक इस न्यायालय ने उपाब अनुसूची म विणत कु कर् सम्पि का, पाश्वर् म विणत वाद (1) म
िडकर्ीदार के दावे की, जो खच और िवकर्य की तारीख तक के ब्याज सिहत.............................रुपए की रािश का है, तुिष्ट म िवकर्य
करने के िलए िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 21 के िनयम 64 के अधीन आदेश िदया है ।
िवकर्य लोक नीलाम ारा िकया जाएगा और सम्पि अनुसूची म िविनिदष्ट लाट म िवकर्य के िलए रखी जाएगी । िवकर्य
उकत िनण तऋिणय की उस सम्पि का होगा जो िनम्निलिखत अनुसच ू ी म विणत है, और उक्त सम्पि से संलग्न दाियत्व और दावे,
जहां तक िक उनका अिभिनश्चय िकया जा सका है, वे ह जो हर एक लाट के सामने अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट ह ।
जब तक मुल्तवी करने का आदेश न िकया जाए यह िवकर्य ता०………................................को............................बजे
.................म पर्ारम्भ होने वाले मािसक िवकर्य म................................ ारा िकया जाएगा । िकन्तु यिद ऊपर िविनिदष्ट ऋण और
िवकर्य के खच िकसी लाट के िलए बोली अिन्तम होने के पूवर् िनिवद या संद कर िदए जाते ह तो िवकर्य बन्द कर िदया जाएगा ।
िवकर्य म सवर्साधारण को या तो स्वयं या सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त अिभकतार् ारा बोली लगाने के िलए िनमंितर्त िकया जाता
है । िकन्तु उपिरविणत िनण त लेनदार ारा या उनके िनिम लगाई गई कोई भी बोली स्वीकार नह की जाएगी और न्यायालय ारा
पहले से दी गई अिभव्यक्त अनुज्ञा के िबना उनको िकया गया िवकर्य िविधमान्य न होगा ।िवकर्य की अितिरक्त शत िनम्निलिखत ह :
िवकर्य की शत
1. िनम्निलिखत अनुसच
ू ी म िविनिदष्ट िविशिष्टयां न्यायालय की सव म जानकारी के अनुसार िलखी गई ह, िकन्तु इस
उद्घोषणा म िकसी गलती, अशु कथन या लोप के िलए न्यायालय उ रदायी नह होगा ।
2. वह रकम िजतनी से बोिलयां बढ़ाई जानी ह िवकर्य संचािलत करने वाले अिधकारी ारा अवधािरत की जाएंगी । यिद
लगाई गई बोली की रकम के बारे म या बोली लगाने वाले के बारे म कोई िववाद पैदा होता है तो वह लाट तुरन्त पुन: नीलाम पर
चढ़ाया जाएगा ।
3. िकसी भी लाट की सबसे ऊंची बोली लगाने वाला व्यिक्त उस लाट का कर्ेता घोिषत िकया जाएगा, परन्तु यह तब जब िक
वह बोली लगाने के िलए वह वैध रूप से अिहत हो, यह बात न्यायालय के या िवकर्य करने वाले अिधकारी के िववेकािधकार म होगी िक
वह सबसे ऊंची बोली को स्वीकार करने से उस दशा म इन्कार कर दे िजसम लगाई गई कीमत स्पष्टत: इतनी अपयार्प्त पर्तीत हो िक
ऐसे इन्कार करना वांछनीय हो जाता है ।
4. िवकर्य संचािलत करने वाले अिधकारी के िववेकािधकार म यह बात होगी िक ऐसे कारण से, जो अिभिलिखत िकए जाएंगे
वह िवकर्य को आदेश 21 के िनयम 69 के उपबन्ध के अधीन रहते हुए स्थिगत कर द ।
271
5. जंगम सम्पि की दशा म हर एक लाट की कीमत िवकर्य के समय या उसके इतने शीघर् पश्चात्, िजतना िवकर्य करने वाला
अिधकारी िनिदष्ट करे , दी जाएगी और संदाय म व्यितकर्म होने पर सम्पि तत्काल पुन: नीलाम पर चढ़ाई जाएगी और उसका पुन:
िवकर्य िकया जाएगा ।
6. स्थावर सम्पि की दशा म, वह व्यिक्त, जो कर्ेता घोिषत िकया गया है उस घोषणा के पश्चात् अिवलम्ब अपने कर्यधन की
रकम का पच्चीस पर्ितशत िवकर्य संचािलत करने वाले अिधकारी के पास िनिक्षप्त कर देगा और ऐसा िनक्षेप करने म व्यितकर्म होने पर
सम्पि तत्काल पुन: नीलाम पर चढ़ाई जाएगी और उसका पुन: िवकर्य िकया जाएगा ।
7. कर्ेता ारा कर्यधन की पूरी रकम सम्पि के कर्य िदन को छोड़कर सम्पि के िवकर्य के पश्चात् पन्दर्हव िदन या यिद
पन्दर्हवां िदन इतवार हो या अन्य अवकाश िदन हो तो पन्दर्हव िदन के पश्चात् कायार्लय खुलने के पहले िदन न्यायालय के बन्द होने के
पूवर् संद कर दी जाएगी ।
8. कर्यधन की बाकी रकम का संदाय अनुज्ञात अविध के अन्दर करने म व्यितकर्म होने पर सम्पि का पुन: िवकर्य, िवकर्य की
नई अिधसूचना िनकाली जाने के पश्चात् िकया जाएगा । यिद न्यायालय ठीक समझे तो िनक्षेप, उसम से िवकर्य के व्यय को काट लेने के
पश्चात् सरकार के पक्ष म समपहृत कर िलया जाएगा और व्यितकर्म करने वाले कर्ेता के सम्पि पर या िजस रािश के िलए वह सम्पि
बाद म बची जाए उस रािश के िकसी भी भाग पर सब दावे समपहृत हो जाएंगे ।
यह आज ता०...............................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर जारी की गई ।
न्यायाधीश
सम्पि की अनुसच
ू ी
लाट का उस संपि का वणर्न यिद वह सम्पि सम्पि िजन सम्पि के बारे 1
[िडकर्ीदार िनण तऋणी
संख्यांक िजसका िवकर्य िकया िजसका िवकर्य िवल्लंगम के म िकए गए दावे ारा यथा ारा यथा-
जाना है, और जहां एक िकया जाना है, दाियत्व के (यिद कोई है) किथत सम्पि किथत संपि
से अिधक िनण तऋणी है सरकार को अधीन है और उनकी का मूल्य का मूल्य]]
वहां उसके साथ हर एक राजस्व देने वाली उनका ब्यौरा पर्कृ ित और मूल्य
स्वामी का नाम । सम्पदा या पर पर्भाव
सम्पदा के भाग डालने वाली
म िहत है तो कोई अन्य ज्ञान
संपदा या सम्पदा िविशिष्टयां
के भाग पर
िनधार्िरत राजस्व
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 95 ारा (1-2-1977 से) अन्त: स्थािपत ।
272
संख्यांक 30
िवकर्य की उद्घोषणा की तामील कराने के िलए नािजर को आदेश (आदेश 21 का िनयम 66)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का नािजर ।
िनण तऋणी की उस सम्पि के िवकर्य के िलए, जो इसके साथ उपाब अनुसच ू ी म िविनिदष्ट है, आदेश िदया गया है और
तारीख..............................उक्त सम्पि के िवकर्य के िलए िनयत की गई है ; अत: िवकर्य की उद्घोषणा की...........................
पर्ितया इस वारण्ट ारा आपके हवाले की जाती है और आपको आदेश िदया जाता है िक आप उक्त अनुसच ू ी म िविनिदष्ट सम्पि य म
से हर एक पर ड डी िपटवा कर इस उद्घोषणा को पर्कािशत कर, उक्त उद्घोषणा की एक पर्ित उक्त सम्पि य म से हर एक के
सहजदृश्य भाग म और तत्पश्चात् न्याय-सदन म लगाएं और िफर वे तारीख िजनको, और वह रीित, िजससे उद्घोषणा का पर्काशन
िकया गया है, दिशत करने वाली िरपोटर् इस न्यायालय को भेज ।
ता० ................................
न्यायाधीश
अनुसूची
संख्यांक 31
कर्ेता के व्यितकर्म के कारण सम्पि के पुनिवकर्य म कीमत म हुई कमी का िवकर्य करने वाले अिधकारी ारा
पर्माणपतर्
(आदेश 21 का िनयम 71)
(शीषर्क)
यह पर्मािणत िकया जाता है िक उक्त वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म हुई सम्पि के उस पुनिवकर्य म जो..................कर्ेता
के व्यितकर्म के पिरणामस्वरूप िकया गया, उक्त सम्पि की कीमत म.............................रुपए की कमी रही है और उस पुनिवकर्य
के सम्बन्ध म...............................रुपए व्यय हुए और यह रकम कु ल...........................रुपए होती है जो व्यितकर्म करने वाले से
वसूलीय है ।
ता० .............................
िवकर्य करने वाला अिधकारी
संख्यांक 32
िनष्पादन म बेची गई जंगम सम्पि पर कब्जा रखने वाले व्यिक्त को सूचना
(आदेश 21 का िनयम 79)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
...........................उक्त वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म हुए लोक िवकर्य म...........................का, जो अब आपके कब्जे
म है, कर्ेता हो गया है, अत: उक्त..................................पर कब्जा उक्त..............................के िसवाय िकसी व्यिक्त को पिरद
करने से आपको पर्ितिष िकया जाता है ।
यह आज ता० ........................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
273
संख्यांक 33
िनष्पादन म बेचे गए ऋण का संदाय कर्ेता से िभन्न िकसी व्यिक्त को करने के िवरु पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 79)
(शीषर्क)
पर्ेिषती..............................और...............................
......................................................................उक्त वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म हुए लोक िवकर्य म उक्त ऋण का,
जो आप/.........................के ारा आप/........................................को शोध्य है, कर्ेता हो गया है, अत: यह आदेश िदया जाता है िक
आप..................................................उक्त ऋण को वसूल करने से और आप………….............................उक्त ऋण का संदाय
उक्त.......................................के िसवाय िकसी व्यिक्त या व्यिक्तय को करने से पर्ितिष रह और िकए जाते ह ।
यह आज ता०........................................को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 34
िनष्पादन म बेचे गए अंश के अन्तरण के िवरु पर्ितषेधात्मक आदेश
(आदेश 21 का िनयम 79)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
..............................और .....................................िनगम के सिचव.............................
.........................................उक्त वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म हुए लोक िवकर्य म उक्त िनगम के कु छ अंश का अथार्त्
......................................का, जो िक आप…..........................के नाम म दजर् ह, कर्ेता हो गया है, अत: यह आदेश िदया जाता है
िक आप..........................उक्त अंश को पूव क्त कर्ेता उक्त....................................के िसवाय िकसी व्यिक्त को अन्तिरत करने से
या उन पर कोई लाभांश पर्ाप्त करने से और उक्त िनगम के सिचव आप………………………िकसी ऐसे अन्तरण के िलए अनुज्ञा देने
से या पूव क्त कर्ेता उक्त………………………के िसवाय िकसी व्यिक्त को ऐसा संदाय करने से पर्ितिष रह और िकए जाते ह ।
यह आज ता०…………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 35
सम्पि को बंधक रखने, प े पर देने या उसका िवकर्य करने के िलए िनण तऋणी को पर्ािधकृ त करने के िलए
पर्माणपतर्
(आदेश 21 का िनयम 83)
(शीषर्क)
उक्त वाद म पािरत िडकर्ी के िनष्पादन म………………………………………….िनण तऋणी की नीचे िलिख सम्पि
के िवकर्य के िलए ता०…………………………को आदेश िदया गया था और न्यायालय ने, उक्त िनण तऋणी के आवेदन पर, उक्त
िवकर्य को मुल्तवी कर िदया है िजससे िक वह उक्त सम्पि या उसके िकसी भाग के बन्धक, प े या पर्ाइवेट िवकर्य ारा िडकर्ी की रकम
पर्ाप्त कर सके ।
अत: यह पर्मािणत िकया जाता है िक न्यायालय ने इस पर्माणपतर् की तारीख से………………….की अविध के भीतर
पर्स्थािपत बन्धक, प ा या िवकर्य करने के िलए िनण तऋणी को पर्ािधकृ त कर िदया है, परन्तु बन्धक, प े या िवकर्य के अधीन संदय
े सब
धन इस न्यायालय को, न िक उक्त िनण तऋणी को, िदए जाएंगे ।
सम्पि का वणर्न
यह आज ता०……………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
274
संख्यांक 36
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक िवकर्य क्य अपास्त न कर िदया जाए
(आदेश 21 के िनयम 90 और 92)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
नीचे िलखी सम्पि का िवकर्य उक्त वाद म पािरत िडकर्ी के िनष्पादन म ता०……………………..को िकया गया था
और……………………………िडकर्ीदार ने (या िनण तऋणी ने) उक्त सम्पि के िवकर्य को िवकर्य के पर्काशन या संचालन म
िनम्निलिखत ताित्त्वक अिनयिमतता (या कपट) के आधार पर अपास्त करने के िलए इस न्यायालय से आवेदन िकया है,
अथार्त्…………………………..
अत: आपको यह सूचना दी जाती है िक यिद आपके पास कोई ऐसा हेतुक दिशत करने को है िजससे उक्त आवेदन मंजूर नह
िकया जाना चािहए तो आप अपने सबूत के सिहत इस न्यायालय म ता०………………………को, जब उक्त आवेदन सुना और
अवधािरत िकया जाएगा, उपसंजात ह ।
यह आज ता०………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
सम्पि का वणर्न
संख्यांक 37
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक िवकर्य अपास्त क्य न कर िदया जाए
(आदेश 21 के िनयम 91 और 92)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
उक्त वाद म पािरत िडकर्ी के िनष्पादन म ता०………………………………को बेची गई नीचे िलखी सम्पि के
कर्ेता…………………….ने उस सम्पि का िवकर्य इस आधार पर अपास्त करने के िलए इस न्यायालय से आवेदन िकया है िक
िनण तऋणी……………………………….का उसम कोई िवकर्ेय िहत नह था ।
अत: आपको यह सूचना दी जाती है िक यिद आपके पास कोई ऐसा हेतुक दिशत करने को है िजससे उक्त आवेदन मंजूर नह
िकया जाना चािहए तो आप अपने सबूत के सिहत इस न्यायालय म ता०……………………….को, जब उक्त आवेदन सुना और
अवधािरत िकया जाएगा, उपसंजात ह ।
यह आज ता०………………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
सम्पि का वणर्न
संख्यांक 38
भूिम के िवकर्य का पर्माणपतर्
(आदेश 21 का िनयम 94)
(शीषर्क)
यह पर्मािणत िकया जाता है िक इस वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म ता०…………………………को लोक नीलाम ारा
िकए गए………………………..के िवकर्य म………………………कर्ेता घोिषत कर िदया गया है और उक्त िवकर्य की पुिष्ट इस
न्यायालय ने सम्यक् रूप से कर दी है ।
यह आज ता०……………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
275
संख्यांक 39
िनष्पादन म िवकर्ीत भूिम का पिरदान पर्मािणत कर्ेता को करने के िलए आदेश
(आदेश 21 का िनयम 95)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
19………………………….के ………………………संख्यांक वाले वाद म की िडकर्ी के िनष्पादन म िकए गए िवकर्य
म……………………………….का पर्मािणत कर्ेता…………………………हो गया है; अत: आपको आदेश िदया जाता है िक
आप उक्त…………………………..को, जो यथापूव क्त पर्मािणत कर्ेता है, उसका कब्जा िदला द ।
यह आज ता०………………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 40
िडकर्ी के िनष्पादन म बाधा डालने के आरोप पर उपसंजात होने और आरोप का उ र देने के िलए समन
(आदेश 21 का िनयम 97)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
उक्त वाद म िडकर्ीदार………………………………ने इस न्यायालय म पिरवाद िकया है िक आपने कब्जे के िलए वारण्ट
के िनष्पादन के भारसाधक अिधकारी का पर्ितरोध िकया (या उसको बाधा पहुंचाई); अत: आपको उक्त पिरवाद का उ र देने के िलए
ता०…………………………को……………………….बजे पूवार्ह्न म इस न्यायालय म उपसंजात होने के िलए समन िकया
जाता है ।
यह आज ता०………………………………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया
गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 41
सुपद
ु ग
र् ी वारण्ट
(आदेश 21 का िनयम 98)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
........................................की जेल का भारसाधक अिधकारी ।
नीचे िलखी सम्पि के िलए िडकर्ी इस वाद के वादी…………………………….के पक्ष म कर दी गई है और न्यायालय का
यह समाधान हो गया है िक……………………….उक्त………………………………….को सम्पि पर कब्जा अिभपर्ाप्त करने
से……………………िकसी न्यायसंगम हेतुक के िबना पर्ितरु (या बािधत) करता रहा है और अब भी पर्ितरु (या बािधत कर रहा
है, और उक्त……………………………ने इस न्यायालय से आवेदन िकया है िक उक्त……………………………िसिवल
कारागार को सुपुदर् िकया जाए ।
अत: आपको समादेश िकया जाता है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त…………………………को िसिवल
कारागार म ल और पर्ाप्त कर और उसे वहां………………………………………िदन की अविध के िलए कै द रख ।
यह आज ता०………………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
276
संख्यांक 42
भूिम के लोक िवकर्य को रोकने के िलए कलक्टर का पर्ािधकरण (धारा 72)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
शर्ी………………………..के कलक्टर,
महोदय,
आपके …………….…………………………संख्यांक और तारीख……………………………………के उस पतर् के
उ र म, िजसम आपने यह व्यपिदष्ट िकया था िक इस वाद की िडकर्ी के िनष्पादन म…………………………………भूिम का, जो
आपके िजले के अन्दर िस्थत है, िवकर्य आपि जनक है, मुझे आपको यह जानकारी देना है िक उक्त िडकर्ी की पुिष्ट के िलए उस रीित से
व्यवस्था करने के िलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है िक िजस रीित से व्यवस्था करने की आपने िसफािरश की है ।
भवदीय
न्यायाधीश
पिरिशष्ट च
अनुपरू क कायर्वािहयां
संख्यांक 1
िनणर्य से पूवर् िगरफ्तारी का वारण्ट
(आदेश 38 का िनयम 1)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
उक्त वाद म वादी………………………………………………पाश्वर् म अंिकत……………………………………..रुपए की
रािश का दावा करता है और उसने न्यायालय को समाधनपर्द रूप म
मूल यह सािबत कर िदया है िक यह िवश्वास करने के िलए अिधसम्भाव्य
हेतुक है िक……………………………………………पर्ितवादी
ब्याज ……………………………………….ही वाला है; अत: आपको
समादेश िदया जाता है िक आप वादी के दावे की तुिष्ट के िलए पयार्प्त
रकम के रूप म……………………………………..रुपए की रािश
उक्त………………...…………से मांगे और पर्ाप्त कर और जब तक
खचर् िक…………………………………………...रुपए की उक्त रािश
योग उक्त……………………… ारा या उसकी ओर से आपको तत्काल
पिरद न कर दी जाए आप उक्त…………………….को अपनी
अिभरक्षा म ले ल और उसे इस न्यायालय के समक्ष इसिलए लाएं
िक वह हेतुक दिशत करे िक वह तब तक के िलए जब तक उक्त वाद पूणर्त: और अिन्तम रूप से िनपटा न िदया जाए और जब तक ऐसी
िडकर्ी की तुिष्ट न हो जाए तो इस वाद म उसके िवरु पािरत की जाए, इस न्यायालय म स्वयं अपनी उपसंजाित के
िलए…………………रुपए की रकम की पर्ितभूित क्य न दे ।
यह आज ता०…………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
277
संख्यांक 2
िनणर्य से पूवर् िगरफ्तार िकए गए पर्ितवादी की उपसंजाित के िलए पर्ितभूित
(आदेश 38 का िनयम 2)
(शीषर्क)
उक्त वाद म वादी……………………………की पर्ेरणा पर पर्ितवादी………………………..िगरफ्तार िकया गया है
और इस न्यायालय के समक्ष लाया गया है;
उक्त पर्ितवादी के इस बात का हेतुक दिशत करने म असफल रहने पर िक अपनी उपसंजाित के िलए वह पर्ितभूित क्य न दे
न्यायालय ने िकसी पर्ितभूित देने का उसे आदेश िदया है;
अत: म……………………………….स्वेच्छया पर्ितभू बन गया हूं और इसके ारा अपने को तथा अपने वािरस और
िनष्पादक को उक्त न्यायालय के पर्ित आब करता हूं िक उक्त पर्ितवादी वाद के लिम्बत रहने के दौरान और ऐसी िकसी िडकर्ी की
तुिष्ट होने तक, जो उक्त वाद म उसके िवरु पािरत की जाए, िकसी भी समय बुलाए जाने पर उपसंजात होगा; और ऐसी उपसंजाित
म व्यितकर्म होने पर उस न्यायालय को उसके आदेश पर ऐसी कोई धनरािश, जो उक्त वाद म उक्त पर्ितवादी के िवरु न्यायिनण त की
जाए, देने के िलए म अपने को तथा अपने वािरस और िनष्पादक को आब कर करता हूं ।
मने आज ता०………………………..को…………………………….म हस्ताक्षर िकए ।
साक्षी (हस्ताक्षिरत)
1.
2.
संख्यांक 3
पर्ितभू के अपने उन्मोचन के िलए आवेदन पर पर्ितवादी को उपसंजात होने के िलए समन
(आदेश 38 का िनयम 3)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………………………
………………………………ने, जो उक्त वाद म आपकी उपसंजाित के िलए ता०……………………..को पर्ितभू बना
था, अपनी बाध्यता से उन्मोिचत िकए जाने के िलए इस न्यायालय से आवेदन िकया है;
अत: आपको ता०…………………….को……………………….बजे पूवार्ह्न म, जब उक्त आवेदन सुना और अवधािरत
िकया जाएगा, इस न्यायालय म स्वयं उपसंजात होने के िलए समन िकया जाता है ।
यह आज ता०…………………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 4
सुपद
ु ग
र् ी का आदेश
(आदेश 38 का िनयम 4)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………………………
इस वाद म वादी……………………………ने, इस न्यायालय म आवेदन िकया है िक पर्ितवादी…………………से, इस
वाद म उसके िवरु जो कोई िनणर्य िदया जाए उसके बारे म उ रदाियत्व का िनवार्ह करने के िलए उसकी उपसंजाित के िलए पर्ितभूित
ली जाए, और न्यायालय ने पर्ितवादी से अपेक्षा की है िक वह ऐसी पर्ितभूित दे या पर्ितभूित के बदले म पयार्प्त िनक्षेप पर्स्थािपत करे
और वैसा करने म वह असफल रहा है । अत: यह आदेश िदया जाता है िक उक्त पर्ितवादी……………………………….इस बात
278
िविनश्चय होने तक या यिद उसके िवरु िनणर्य सुनाया जाए तो िडकर्ी की तुिष्ट िकए जाने तक के िलए िसिवल कारागार के सुपुदर्
िकया जाए ।
यह आज ता०…………………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 5
िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पर्ितभूित की अपेक्षा करने के आदेश के सिहत िनणर्य से पूवर् कु क
(आदेश 38 का िनयम 5)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
………………….…………………ने न्यायालय को समाधानपर्द रूप म यह सािबत कर िदया है िक उक्त वाद म
पर्ितवादी…………………………...;
अत: आपको यह समादेश िदया जाता है िक आप उक्त पर्ितवादी………………………….से यह अपेक्षा कर िक वह या तो
…………………………………को या उसके मूल्य को या उस मूल्य के ऐसे भाग को, उस िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पयार्प्त हो जो
उसके िवरु पािरत की जाए उस समय जब उससे ऐसा करने की अपेक्षा की जाए इस न्यायालय म पेश करने और न्यायालय के
व्ययनाधीन रखने के िलए………………………..रुपए की रािश की पर्ितभूित ता०………………….को या उसके पूवर् दे; या
उपसंजात हो और इस बात का हेतुक दिशत करे िक उसे ऐसी पर्ितभूित क्य नह देनी चािहए । आपको यह आदेश भी िदया जाता है िक
आप उक्त…………………को कु कर् कर ल और, जब तक न्यायालय का अगला आदेश न हो, उसे अपनी सुरिक्षत अिभरक्षा म रखे और
आपको यह समादेश भी िदया जाता है िक आप इस वारण्ट को वह िदन िजसको, और वह रीित िजससे, यह िनष्पािदत िकया गया है या
वह कारण, िजससे यह िनष्पािदत नह िकया गया, पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन के सिहत ता०………………………..को या उसके
पूवर् लौटा द ।
यह आज ता०…………………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 6
सम्पि पेश करने के िलए पर्ितभूित
(आदेश 38 का िनयम 5)
(शीषर्क)
उक्त वाद म वादी……………………………की पर्ेरणा पर इस न्यायालय ने पर्ितवादी…………………..को यह िनदेश
िदया है िक वह इससे उपाब अनुसूची म िविनिदष्ट संपि को न्यायालय के समक्ष पेश करने और न्यायालय के व्ययनाधीन रखने के
िलए………………………….रुपए की पर्ितभूित दे;
अत: म…………………………….स्वेच्छया पर्ितभू बन गया हूं और इसके ारा अपने को तथा अपने वािरस और
िनष्पादक को उक्त न्यायालय के पर्ित आब करता हूं िक उक्त पर्ितवादी उक्त अनुसूची म िविनिदष्ट संपि को या उसके मूल्य को या
उसके ऐसे भाग को, जो िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पयार्प्त हो, उस समय, जबिक उससे ऐसा करने की अपेक्षा की जाए, न्यायालय के समक्ष
पेश करे गा और न्यायालय के व्ययनाधीन रखेगा, और पर्ितवादी के ऐसा करने म व्यितकर्म करने पर उक्त न्यायालय को उस न्यायालय
के आदेश पर…………………………रुपए की उक्त रािश या उक्त रािश से अनिधक ऐसे रािश, जो उक्त न्यायालय न्यायिनण त
करे , देने के िलए म अपने को तथा अपने वािरस और िनष्पादक को आब करता हूं ।
अनुसूची
मने आज ता०…………………………को…………………………..म हस्ताक्षर िकए ।
साक्षी (हस्ताक्षिरत)
1.
2.
279
संख्यांक 7
पर्ितभूित देने म असफलता सािबत िकए जाने पर िनणर्य से पूवर् कु क
(आदेश 38 का िनयम 6)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
न्यायालय का बेिलफ ।
इस वाद म वादी………………………ने इस न्यायालय से आवेदन िकया है िक वह पर्ितवादी………………………..से
अपेक्षा करे िक पर्ितवादी ऐसी िकसी िडकर्ी की तुिष्ट के िलए पर्ितभूित दे जो इस वाद म उसके िवरु पािरत की जाए और न्यायालय ने
ऐसी पर्ितभूित देने के िलए उक्त………………………………से अपेक्षा की िजसे देने म वह असफल रहा है ।
अत: आपको यह समादेश िदया जाता है िक आप उक्त…………………………….की सम्पि ……………………..को
कु कर् कर ल और जब तक न्यायालय का अगला आदेश न हो उसे सुरिक्षत अिभरक्षा म रखे । आपको यह समादेश भी िदया जाता है िक
आप इस वारण्ट को, वह तारीख िजसको, और वह रीित िजससे इसका िनष्पादन िकया गया है या वह कारण, िजससे इसका िनष्पादन
नह िकया गया, पर्मािणत करने वाले पृष्ठांकन के सिहत ता०……………………………..को या उसके पूवर् लौटा द ।
यह आज ता०…………………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 8
अस्थायी व्यादेश
(आदेश 39 का िनयम 1)
(शीषर्क)
वादी क ख के प्लीडर या (काउन्सेल)………………………..……. ारा इस न्यायालय से पर्स्ताव िकए जाने पर और उक्त
वाद के इस मामले म (आज) फाइल की गई अज को (या इस वाद म ता०……………..………………….को फाइल िकए गए
वादपतर् को या उक्त वादी के ता०…………….………………….को फादल िकए गए िलिखत कथन को) पढ़ने के पश्चात् और उसके
समथर्न म………………………………….…के और………….…….………………..के सा य को सुनने के पश्चात् (यिद
सूचना के पश्चात् पर्ितवादी उपसंजात न हुआ हो तो यह भी िलिखए, और इस आवेदन की सूचना की तामील पर्ितवादी ग घ पर होने के
बारे म……………………....….के सा य को भी सुनने के पश्चात्), यह न्यायालय आदेश देता है िक वादी के उक्त वाद म वादपतर् म
विणत (या वादी के िलिखत कथन या अज म और इस आवेदन की सुनवाई पर सा य म विणत)……………………….ताल्लुका म
िहन्दूपुर के गांधी मागर् के संख्यांक………………….वाले गृह को िगराने या िगरा देने से और िजस सामगर्ी से उक्त गृह बना हुआ है
उसको बेचने से तब तक के िलए, जब तक इस वाद की सुनवाई न हो जाए या जब तक न्यायालय का अगला आदेश न हो, पर्ितवादी ग
घ को तथा उसके सेवक , अिभकतार् और कमर्कार को अवरु करने के िलए व्यादेश मंजूर िकया जाए ।
ता०………………………………
न्यायाधीश
[जहां वचन-पतर् या िविनमयपतर् के परकर्ामण को अवरु करने के िलए व्यादेश चाहा गया है वहां आदेश के आदेशक भाग का
रूप इस पर्कार हो सकता है]
(जहां िकसी पुस्तक के भाग मातर् के िवषय म अवरु करना है) वादपतर् म (या अज और सा य इत्यािद म) िजस पुस्तक के
बारे म यह विणत है िक वह पर्ितवादी ारा पर्कािशत की गई है उस पुस्तक के इसम आगे िविनिदष्ट ऐसे भाग को, अथार्त् उक्त पुस्तक
के उस भाग को िजसका शीषर्क………………………है और उस भाग को भी िजसका शीषर्क…………………………है (या जो
पृष्ठ…………………….से पृष्ठ……………………तक म, िजसके अन्तगर्त ये दोन पृष्ठ भी आते ह, अन्तिवष्ट ह) मुिदर्त करने,
पर्कािशत करने, बेचने या अन्यथा व्ययिनत करने से तब तक के िलए, जब तक………………………….इत्यािद पर्ितवािद ग घ को
तथा उसके सेवक , अिभकतार् या कमर्कार को अवरु करने के िलए ।
(पेटेण्ट के मामल म)
वादी के वादपतर् (या अज , इत्यािद का िलिखत कथन, इत्यािद) म विणत और वािदय के या उनम से िकसी के उद्भवन के
िस ान्त पर कोई िछिदर्त ईंटे (या यथािस्थित) वादी के वादपतर् (या यथािस्थित) म विणत पेटेन्ट की कर्िमक अविधय के अविशष्ट काल
के दौरान बनाने या बेचने से और उन उद्भवन का या उनम से िकसी का भी कू टरकरण, नकल या सादृष्टया करने से या उनम कु छ
बढ़ाने से या उनम से कोई कमी करने से तब तक के िलए, जब तक सुनवाई न हो जाए, इत्यािद पर्ितवादी ग घ को तथा उसके
अिभकतार् , सेवक और कमर्कार को अवरु करने के िलए, इत्यािद ।
(व्यापार िचन्ह के मामल म)
कोई संरचना या स्याही (या यथािस्थित) ऐसी बोतल म िजन पर वादी के वादपतर् (या अज , इत्यािद) म विणत जैसे लेिबल
या अन्य ऐसे लेिबल लगे हुए ह जो िमलती जुलती नकल के कारण या अन्यथा इस रूप के बने ह, या ऐसे अिभव्यंजनापूणर् ह िक उनसे
यह व्यपिदष्ट होता है िक पर्ितवादी ारा बेची जाने वाली संरचना या स्याही वह संरचना या स्याही (या यथािस्थित) है िजसके बारे म
यह विणत है या तात्पियत है िक वह वादी क ख ारा िविनिमत स्याही है, बेचने से या िवकर्य के िलए अिभदिशत करने से या बेचने के
िलए उपाप्त करनेसे और ऐसे व्यापार-काड का उपयोग करने से, जो ऐसे बनाए गए ह या ऐसी अिभव्यंजनापूणर् है िक उनसे यह
व्यपिदष्ट होता है िक पर्ितवादी ारा बेचनी जाने वाली या बेचे जाने के िलए पर्स्थािपत कोई संरचना या स्याही वही संरचना या स्याही
वह संरचना या स्याही है जो वादी क ख ारा िविनिमत की या बेची जाती है तब तक के िलए, जब तक
िक……………………………इत्यािद, पर्ितवादी ग घ को, उसके सेवक , या अिभकतार् या कमर्कार को अवरु करने के िलए ।
(कारबार म िकसी पर्कार से हस्तक्षेप करने से भागीदार को अवरु करने के िलए)
ख और घ की भागीदारी फमर् के नाम म कोई ऐसी संिवदा करने से और कोई िविनमयपतर्, वचन-पतर् या िलिखत पर्ितभूित
पर्ितगृिहत करने, िलखने, पृष्ठांिकत करने या, परकर्ािमत करने से और उक्त ख और घ की भागीदारी फमर् के नाम म या पर्त्यय पर ऐसे
कोई ऋण लेने से, कोई माल खरीदने और बेचने से और कोई मौिखक या िलिखत वचन, करार या वचनबन्ध करने से और कोई ऐसा
कायर् करने या कराने से, िजससे उक्त भागीदारी फमर् िकसी रीित से िकसी धन रािश के संदाय के िलए या िकसी संिवदा, वचन या
वचनबन्ध का पालन करने के दाियत्व के अधीन हो सकती है या हो जाए या की जा सकती है या कर दी जाए तब तक के िलए, जब
तक……………………पर्ितवादी ग घ को तथा उसके अिधकतार् और सेवक को अवरु करने के िलए, इत्यािद ।
संख्यांक 1 [9]
िरसीवर की िनयुिक्त
(आदेश 40 का िनयम 1)
(शीषर्क)
पर्ेिषती………………………………………………………….
उक्त वाद म ता०………………………………..को………..……………………के पक्ष म पािरत िडकर्ी के िनष्पादन
म…………………..कु कर् कर ली गई है; अत: (इस बात के अधीन रहते हुए िक आप न्यायालय को समाधानपर्द रूप म पर्ितभूित दे द)
आपको उक्त सम्पि का िरसीवर, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 40 के उपबन्ध के अधीन की सब शिक्तय सिहत उक्त
आदेश के अधीन िनयुक्त िकया जाता है ।
आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप उक्त सम्पि की बाबत अपनी सब पर्ािप्तय और व्यय का सम्यक् और उिचत लेखा
ता०…………………….को दे द इस िनयुिक्त के पर्ािधकार के अधीन अपनी पर्ािप्तय पर आप…………………………पर्ितशत
की दर से पािरशर्िमक पाने के हकदार ह गे ।
यह आज ता०……………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया है ।
न्यायाधीश
1
पर्रूप का संख्यांक, जो मूल से 6 के रूप म गलत छप गया था और 6 था, 1914 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा ठीक कर िदया गया था ।
281
संख्यांक 1 [10]
िरसीवर ारा िदया जाने वाला बन्धपतर्
(आदेश 40 का िनयम 3)
(शीषर्क)
यह सब को ज्ञात हो िक हम…….………….............और…………………….……और………………….के न्यायालय
के ………………………..को या उसके तत्समय पद उ रवत को………………………….रुपए देने के िलए
उक्त……………………….के पर्ित संयुक्तत: और पृथक्त: आब ह । इसका पूणर् संदाय करने के िलए हम इस िवलेख ारा अपने को
और अपने म से हर एक को और अपने म से हर एक के वािरस , िनष्पादक और पर्शासक को संयुक्तत: और पृथक्त: आब करते ह ।
ता०…………………………….
………………………………ने……………………….के िवरु न्यायालय म…………………….(यहां वाद का
उ ेश्य िलिखए) के पर्योजनाथर् वादपतर् फाइल िकया है;
उक्त न्यायालय के आदेश ारा उक्त……………………………..को वादपतर् म नािमत………………………की
स्थावर सम्पि के भाटक और लाभ पर्ाप्त करने के िलए और उसकी परादेय जंगम सम्पि ले लेने के िलए िनयुक्त िकया गया है;
इस बाध्यता की शतर् यह है िक यिद उक्त रूप म आब व्यिक्त…………………….उस सब धनरािश और उन सब
धनरािशय म से हर एक का सम्यक् रूप से लेखा, जो वह उक्त………………………..की स्थावर सम्पि के भाटक और लाभ की
बाबत और उसकी जंगम सम्पि की बाबत पर्ाप्त करे ऐसी अविधय म, जो न्यायालय ारा िनयुक्त की जाएं, दे देगा और वे बाकी
रकम, िजनके बारे म समय-समय पर पर्मािणत िकया जाए िक वे उसके ारा शोध्य ह, ऐसे दे द जैसे उक्त न्यायालय ने िनिदष्ट िकया है
या उक्त न्यायालय इसके पश्चात् िनिदष्ट करे तो यह बाध्यता शून्य होगी अन्यथा यह पूणर्त: पर्वृ रहेगी ।
उक्त रूप म आब व्यिक्त ने इस पर………………………….की उपिस्थित म हस्ताक्षर िकए और पिरदान िकया ।
िटप्पणयिद धन का िनक्षेप िकया जाता है तो उसका ज्ञापन बन्धपतर् की शतर् की भाषा के अनुसार होना चािहए ।
पिरिशष्ट छ
अपील, िनदश और पुनिवलोकन
संख्यांक 1
अपील का ज्ञापन
(आदेश 41 का िनयम 1)
(शीषर्क)
उक्त………………………के ………………संख्यांक वाले वाद म ता०……………………..की………………..की
िडकर्ी की अपील……………………..म के ………………………..न्यायालय म करता है और िजस िडकर्ी की अपील की जा रही है
उसके िवरु आक्षेप के िनम्निलिखत आधार उपविणत करता है, अथार्त् :
संख्यांक 2
िडकर्ी का िनष्पादन रोकने का आदेश िकए जाने पर िदया जाने वाला पर्ितभूित-बन्धपतर्
(आदेश 41 का िनयम 5)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………………………………..
िडकर्ी का िनष्पादन रोक िदए जाने पर…………………………… ारा िनष्पािदत यह पर्ितभूित-बन्धपतर् िनम्निलिखत का
सा य है :
1
पर्रूप का संख्यांक, जो मूल से 7 के रूप म गलत छप गया था और 7 था, 1914 के अिधिनयम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा ठीक कर िदया गया था ।
282
अनूसूची
साक्षी (हस्ताक्षिरत)
1.
2.
संख्यांक 3
अपील लिम्बत रहने के दौरान िदया जाने वाला पर्ितभूित-बंधपतर्
(आदेश 41 का िनयम 6)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………………………………..
िडकर्ी का िनष्पादन रोक िदए जाने पर…………………………… ारा िनष्पािदत यह पर्ितभूित-बन्धपतर् िनम्निलिखत का
सा य है
…………………………. ारा, जो 19…………………के संख्यांक वाले वाद मवादी है,
पर्ितवादी…………………पर इस न्यायालय म वाद चलाए जाने पर और ता०................................को वादी के पक्ष म िडकर्ी
पािरत की जाने पर और उक्त िडकर्ी की अपील……………………….न्यायालय म पर्ितवादी ारा की जाने पर उक्त अपील अब तक
लिम्बत है ।
अब वादी िडकर्ीदार ने उक्त िडकर्ी के िनष्पादन के िलए आवेदन िकया है और उससे पर्ितभूित देने की अपेक्षा की है । तद्नुसार
म अपनी स्वतन्तर् इच्छा से……………………………………….रुपए तक की पर्ितभूित देता हूं और उसके िलए इसके साथ
उपाब अनुसच ू ी म िविनिदष्ट सम्पि य को बन्धक करता हूं और यह पर्संिवदा करता हूं िक यिद पर्थम न्यायालय की िडकर्ी अपील
न्यायालय ारा उलट दी जाती है या उसम फे रफार कर िदया जाता है तो वादी उस सम्पि का पर्त्यावतर्न कर देगा जो उक्त िडकर्ी के
िनष्पादन म ली जाए या ले ली गई है और वह अपील न्यायालय की िडकर्ी के अनुसार सम्यक् रूप से कायर् करे गा और जो कु छ उसके
अधीन उसके ारा संदय े होगा वह उसका संदाय करे गा और यिद वे ऐसा करने म असफल रहेगा तो ऐसे संदाय की कोई भी रकम इसके
ारा बन्धक की गई सम्पि य से वसूल कर ली जाएगी और यिद उक्त सम्पि य के िवकर्य के आगम शोध्य रकम के संदाय के िलए
अपयार्प्त हो तो म और मेरे िविधक पर्ितिनिध बाकी रकम देने के िलए वैयिक्तक रूप से दायी ह गे । इस आशय का यह पर्ितभूित
बन्धपतर् म आज ता०…………..............को िनष्पािदत करता हूं ।
अनूसूची
साक्षी
(हस्ताक्षिरत)
1.
2.
283
संख्यांक 4
अपील के खच के िलए पर्ितभूित
(आदेश 41 का िनयम 10)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
अपील के खच के िलए…………………………….. ारा िनष्पािदत यह पर्ितभूित बन्धपतर् िनम्निलिखत का सा य है :
अपीलाथ ने 19…………..……………………के ……………………………...संख्यांक वाले वाद की िडकर्ी की
अपील पर्त्यथ के िवरु की है और अपीलाथ से पर्ितभूित देने की अपेक्षा की गई है । तद्नुसार म अपनी स्वतंतर् इच्छा से अपील के
खच के िलए पर्ितभूित देता हूं और उसके िलए इसके साथ उपाब अनुसूची म िविनिदष्ट सम्पि य को बन्धक करता हूं । म उक्त
सम्पि य को या उनक िकसी भी भाग को अन्तिरत नह करूंगा और अपीलाथ की ओर से कोई व्यितकर्म िकए जाने की दशा म ऐसे
िकसी भी आदेश का सम्यक् रूप से पालन करूंगा जो अपील के खच के संदाय की बाबत मेरे िवरु िदया जाए । ऐसे संदाय की कोई
रकम इसके ारा बन्धक की गई सम्पि य से वसूल कर ली जाएगी और यिद उक्त सम्पि के िवकर्य के आगम शोध्य रकम के संदाय के
िलए अपयार्प्त ह तो म और मेरे िविधक पर्ितिनिध बाकी रकम देने के िलए वैयिक्तक रूप से दायी ह गे । इस आशय का यह पर्ितभूित
बन्धपतर् म आज ता०……………………..को िनष्पािदत करता हूं ।
(हस्ताक्षिरत)
अनूसूची
साक्षी
1.
2.
संख्यांक 5
अपील गर्हण की जाने की िनचले न्यायालय को पर्ज्ञापना
(आदेश 41 का िनयम 13)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
आपको िनदेश िदया जाता है िक आप यह सूचना ल िक उक्त वाद म…………………………शर्ी……………………..ने
उस िडकर्ी की जो आपने उस वाद म ता०…………………………..को पािरत की थी, अपील इस न्यायालय म की है ।
आपसे पर्ाथर्ना है िक आप समस्त शीघर्ता से वाद के सब ताित्त्वक कागज भेज द ।
ता०…………………………….
न्यायाधीश
संख्यांक 6
अपील की सुनवाई के िलए िनयत िदन की पर्त्यथ को सूचना
(आदेश 41 का िनयम 14)
(शीषर्क)
……………………………..के न्यायालय की तारीख……………………….की………………………की अपील ।
पर्ेिषती
आपको सूचना दी जाती है िक इस मामले म…………………की िडकर्ी की अपील………………… ारा उपस्थािपत की
गई है और इस न्यायालय म रिजस्टर कर ली गई है और इस अपील की सुनवाई के िलए इस न्यायालय ारा ता०…………िनयत की
गई है ।
284
यिद इस अपील म आपकी ओर से आप स्वयं या आपके प्लीडर या आपके िलए कायर् करने के िलए िविधना पर्ािधकृ त कोई
व्यिक्त उपसंजात नह होगा तो यह आपकी अनुपिस्थित म सुनी और िविनिश्चत की जाएगी ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
[िटप्पणयिद िनष्पादन रोक देने का आदेश दे िदया गया है तो इस तथ्य की पर्ज्ञापना इस सूचना म दी जानी चािहए ।]
संख्यांक 7
वाद के उस पक्षकार की सूचना जो अपील म पक्षकार नह बनाया गया है िकन्तु न्यायालय ारा पर्त्यथ के रूप म
संयोिजत कर िलया गया है
(आदेश 41 का िनयम 20)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
आप…………………..…………………..के न्यायालय म………………………………..के संख्यांक वाले वाद म
पक्षकार थे, और……………………………………ने उक्त वाद म अपने िवरु पािरत िडकर्ी की अपील इस न्यायालय म की है
और इस न्यायालय को यह पर्तीत होता है िक आप अपील के पिरणाम म िहतब ह,
अत: आपको सूचना दी जाती है िक उक्त अपील म आपके पर्त्यथ बनाए जाने के िलए इस न्यायालय ने िनदेश िदया है और
इस अपील की सुनवाई ता०……………………..को………………….बजे पूवार्ह्न के िलए स्थिगत कर दी है । यिद उक्त िदन और
उक्त समय आपकी ओर से उपसंजाित नह हुई तो अपील आपकी अनुपिस्थित म सुनी और िविनिश्चत की जाएगी ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 8
पर्त्याक्षेप का ज्ञापन
(आदेश 41 का िनयम 22)
(शीषर्क)
…………………..ने 19……………………के ………………….....संख्यांक वाले वाद म……………………….की
ता०………………..की िडकर्ी की अपील………………………….म के ………………….न्यायालय म की है, और अपील की
सुनवाई के िलए िनयत िदन की सूचना की तामील………………………..पर ता०………………………को हो गई थी, अत:
…………………..िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 41 के िनयम 22 के अधीन पर्त्याक्षेप का यह ज्ञापन फाइल करता है और
उस िडकर्ी पर, िजसकी अपील की गई है आक्षेप के िनम्निलिखत आधार उपविणत करता है, अथार्त् :
संख्यांक 9
अपील म िडकर्ी
(आदेश 41 का िनयम 35)
(शीषर्क)
ता०……………………की………………न्यायालय की िडकर्ी की अपील संख्यांक………………19………………
अपील का ज्ञापन
…………………………….…वादी ।
…………………………..पर्ितवादी ।
उक्त……………………………..उपयुर्क्त वाद म……………………….की ता०…………….…………..की िडकर्ी
की अपील…………………………न्यायालय म िनम्निलिखत कारण से करता है, अथार्त्:
285
संख्यांक 10
अिकचन के रूप म अपील करने के िलए आवेदन
(आदेश 44 का िनयम 1)
(शीषर्क)
म उक्त……………………उक्त वाद की िडकर्ी की अपील का संलग्न ज्ञापन उपस्थािपत करता हूं और आवेदन करता हूं िक
मुझे अिकचन के रूप म अपील करने की अनुज्ञा दी जाए ।
इसके साथ मेरी सब जंगम और स्थावर सम्पि की पूरी और ठीक अनुसूची उस सम्पि के पर्ाक्किलत मूल्य के सिहत
उपाब है ।
ता०……………………….
(हस्ताक्षिरत)
िटप्पणजहां आवेदन वादी ारा िकया गया है वहां उसे यह भी िलखना चािहए िक क्या उसने पर्थम बार के न्यायालय म
अिकचन के रूप म वाद करने के िलए आवेदन िकया था और उसे उस रूप म वाद करने की अनुज्ञा दी गई थी ।
संख्यांक 11
अिकचन के रूप म अपील की सूचना
(आदेश 44 का िनयम 1)
(शीषर्क)
उक्त………………………….ने उक्त वाद म ता०………………………..की िडकर्ी की अपील अिकचन के रूप म
करने की अनुज्ञा दी जाने के िलए आवेदन िकया है, और आवेदन की सुनवाई के िलए ता०………………………..िनयत की गई है,
अत: आपको सूचना दी जाती है यिद आप इस बात का हेतुक दिशत करना चाहते ह िक आवेदक को अिकचन के रूप म अपील करने की
अनुज्ञा न दी जाए तो ऐसा करने का अवसर आपको पूव क्त तारीख को िदया जाएगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
286
संख्यांक 12
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक 1 [उच्चतम न्यायालय] म अपील करने के िलए पर्माणपतर् क्य
न अनुद िकया जाए
(आदेश 45 का िनयम 3)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………………
2
[आपको यह सूचना दी जाती है िक………………………….….ने इस न्यायालय म इस पर्माणपतर् के िलए आवेदन िकया
है िक
(i) इस मामले म सावर्जिनक महत्व का सारवान् िविध-पर्श्न जुड़ा है; और
(ii) इस न्यायालय की राय म यह आवश्यक है िक इस पर्श्न का िविनश्चय उच्चतम न्यायालय ारा िकया जाए ।]
यह दिशत करने के िलए िक न्यायालय वह पर्माणपतर् क्य न दे जो मांगा गया है, आप के िलए ता०…………………िनयत
की गई है ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
रिजस्टर्ार
संख्यांक 13
1
[उच्चतम न्यायालय] म की गई अपील गर्हण की जाने की पर्त्यथ को सूचना
(आदेश 45 का िनयम 8)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
उक्त मामले म………………………….ने िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 के आदेश 45 के िनयम 7 ारा अपेिक्षत
पर्ितभूित दे दी है और िनक्षेप कर िदया है;
अत: आपको यह सूचना दी जाती है िक 3 [उच्चतम न्यायालय] उक्त……………..…..की अपील
ता०…………………को गर्हण कर ली गई है ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
रिजस्टर्ार
संख्यांक 14
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए सूचना िक पुनिवलोकन क्य न मंजरू िकया जाए
(आदेश 47 का िनयम 4)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
आपको सूचना दी जाती है िक………………………………..ने उक्त मामले म ता०………………………को पािरत
इस न्यायालय की िडकर्ी के पुनिवलोकन के िलए इस न्यायालय म आवेदन िकया है । इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए िक इस
मामले म अपनी िडकर्ी की पुनिवलोकन न्यायालय क्य न मंजूर करे आपके िलए ता०……………………………िनयत की गई है ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िकग इन काउं िसल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 4 ारा पूवर्वत पैरा के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िहज मैजेस्टी इन काउं िसल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
287
पिरिशष्ट ज
पर्कीणर्
संख्यांक 1
िवचारण िकए जाने वाले िववा क की बाबत पक्षकार का करार
(आदेश 14 का िनयम 6)
(शीषर्क)
हम, जो उक्त वाद म पक्षकार ह, अपने बीच िविनिश्चत िकए जाने वाले तथ्य के (या िविध के ) पर्श्न की बाबत सहमत ह और
हमारे बीच िववादास्पद पर्श्न यह है िक ता०………………………..के और उक्त वाद म पर्दशर्………………………के रूप म
फाइल िकए गए बन्धपतर् पर आधािरत दावा पिरसीमा कानून के परे है या नह है (या जो भी पर्श्न िववादास्पद हो वह यहां िलिखए);
अत: हम अपने को पृथक्त: आब करते ह िक इस िववा क पर न्यायालय के नकारात्मक (या सकारात्मक) िनष्कषर्
पर…………………..उक्त…………………..को……………………..रुपए की रािश (या ऐसी रािश जैसी न्यायालय उस पर
शोध्य ठहराए) दगे, और बन्धकपतर् पर अपने दावे की पूरी तुिष्ट म म उक्त……………………………रुपय की उक्त रािश (या
ऐसी रािश जेसी न्यायालय शोध्य ठहराए) स्वीकार करूंगा (या ऐसे िनष्कषर् पर म उक्त……………………….करूंगा या करने से
पर्िवरत रहूंगा, इत्यािद, इत्यािद) ।
वादी
पर्ितवादी
साक्षी :
1.
2.
ता०………………………
संख्यांक 2
िवचारण के िलए वाद का अन्तरण दूसरे न्यायालय को कराने के िलए आवेदन की सूचना
(धारा 24)
………………………..के िबना न्यायाधीश के न्यायालय म 19…………..का संख्यांक………………………..।
पर्ेिषती
…………………के …………………...न्यायालय म अब लिम्बत है 19…………………के ………………..संख्यांक
वाले वाद म, िजसम………………………वादी है और…….……………………पर्ितवादी है............................ने िवचारण के
िलए वाद का अन्तरण……………………….के ……………………..न्यायालय को करने के िलए ता०……………………का
आवेदन इस न्यायालय म िदया है;
अत: आपको इि ला दी जाती है िक आवेदन की सुनवाई के िलए ता०……………………..िनयत की गई है और यिद आप
उसके िवरु कोई आक्षेप करना चाहते ह तो उस िदन आपकी सुनवाई की जाएगी ।
यह आज ता०……………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
1 [संख्यांक 2क
वादी/पर्ितवादी ारा आहूत िकए जाने के िलए पर्स्थािपत सािक्षय की सूची
(आदेश 16 का िनयम 1)
उस पक्षकार का नाम जो साक्षी को आहूत साक्षी का नाम और पता िटप्पणी]
करने की पर्स्थापना करता है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 96 ारा (1-2-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
288
संख्यांक 3
न्यायालय म जमा कर िदए जाने की सूचना
(आदेश 24 का िनयम 2)
(शीषर्क)
आपको यह सूचना दी जाती है िक पर्ितवादी ने……………………………..रुपए न्यायालय म जमा कर िदए ह और वह
कहता है िक वादी के दावे के पूणर् संदाय के िलए यह रािश पयार्प्त है ।
वादी के प्लीडर य को ।
भ म, पर्ितवादी का प्लीडर
संख्यांक 4
हेतुक दिशत करने के िलए सूचना (साधारण पर्रूप)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
उक्त………………………….ने इस न्यायालय म यह आवेदन िकया है िक…………………..;
अत: आपको चेतावनी दी जाती है िक आप उस आवेदन के िवरु हेतुक दिशत करने के िलए
ता०………………………को…………………..……पूवार्ह्न म स्वयं या अपने प्लीडर ारा िजसे सम्यक् रूप से अनुदश े िदया
गया हो, उपसंजात हो । यिद आप ऐसा करने म असफल रहगे तो उक्त आवेदन की सुनवाई और उसका िनपटारा एकपक्षीय रूप से
िकया जाएगा ।
यह आज ता०……………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 5
वादी/पर्ितवादी ारा पेश की गई दस्तावेज की सूची
पर्ितवादी
(आदेश 13 का िनयम 1)
(शीषर्क)
संख्यांक दस्तावेज का वणर्न यिद दस्तावेज पर कोई तारीख पड़ी पक्षकार या प्लीडर के हस्ताक्षर
है तो वह तारीख
1 2 3 4
संख्यांक 6
जो साक्षी अिधकािरता से बाहर जाने ही वाला है उसकी परीक्षा करने के िलए िनयत िदन की पक्षकार को सूचना
(आदेश 18 का िनयम 16)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
………………………..वादी (या पर्ितवादी)
289
संख्यांक 7
अनुपिस्थत साक्षी की परीक्षा करने के िलए कमीशन
(आदेश 26 का िनयम 4 और 18)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………………का सा य को उक्त वाद म……………………… ारा अपेिक्षत है, और…………………..
अत: आपसे िनवेदन है िक आप या तो पिरपर्श्न ारा (या मौिखक रूप से) उस साक्षी……………………..का सा य ले ल
और इस पर्योजन के िलए आपको कमीश्नर िनयुक्त िकया जाता है । यिद पक्षकार या उनके अिभकतार् हािजर ह तो उनकी उपिस्थित म
सा य िलया जाएगा और िविनिदष्ट बात के बारे म साक्षी म से पर्श्न पूछने की उन्ह स्वतंतर्ता होगी, और आपसे यह भी िनवेदन है िक
आप ऐसा सा य उसके िलए जाने के पश्चात् तुरन्त यहां भेज द ।
साक्षी की हािजरी िववश कराने के िलए आदेिशका आपके आवेदन पर अिधकािरता रखने वाले िकसी न्यायालय ारा िनकाली
जाएगी ।
ऊपर विणत के िलए आपकी फीस की बाबत………………………रुपए की रािश इसके साथ भेजी जाती है ।
यह आज ता०……………………………को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 8
अनुरोध पतर्
(आदेश 26 का िनयम 5)
(शीषर्क)
(शीषर्क :इत्यािद, इत्यािद, के अध्यक्ष और न्यायाधीश को, या यथािस्थित)
…………………………म एक वाद, िजसम क ख वादी ह और ग घ पर्ितवादी ह, इस समय लिम्बत है और उक्त वाद म
वादी दावा करता है िक……………………………
(दावे का सार)
और उक्त न्यायालय से यह व्यपिदष्ट िकया गया है िक न्याय के पर्योजन के िलए और पक्षकार के बीच िववादगर्स्त बात के
सम्यक् अवधारण के िलए ऐसी बात के बारे म शपथ पर साक्षी के रूप म िनम्निलिखत व्यिक्तय की, अथार्त् :
………………………….के च छ
…………………………….के ज झ और
………………………….के ट ठ
की परीक्षा करना आवश्यक है और यह पर्तीत होता है िक ये साक्षी आपके माननीय न्यायालय के अिधकािरता के अन्दर
िनवास करते ह ।
अत: उक्त न्यायालय के ………………………के रूप म मुझे………………………को अनुरोध करना है और म इसके
ारा यह अनुरोध करता हूं िक पूव क्त कारण से और उक्त न्यायालय की सहायता के िलए आप उक्त……….……………..के
अध्यक्ष और न्यायाधीश के रूप म या आप म से कोई एक या अिधक उक्त साक्षी को (और ऐसे अन्य सािक्षय को िजन्ह समन करने के
290
िलए आप से उक्त वादी और पर्ितवादी के अिभकतार् िवनमर्ता से िलिखत पर्ाथर्ना कर) अपने म से एक या अिधक के समक्ष या ऐसे अन्य
व्यिक्त के समक्ष, जो आपके न्यायालय की पर्िकर्या के अनुसार सािक्षय की परीक्षा करने के िलए सक्षम हो, ऐसे समय और ऐसे स्थान म,
जो आप िनयुक्त कर, हािजर होने के िलए समन करने की कृ पा कर और इस अनुरोध-पतर् के साथ भेजे जा रहे पिरपर्श्न ारा (या
मौिखक रूप से) वादी और पर्ितवादी के अिभकतार् की, या उनम से उनकी जो सम्यक् सूचना िदए जाने पर ऐसी परीक्षा म उपिस्थत
ह , उपिस्थित म उक्त पर्श्नगत बात के बारे म ऐसे सािक्षय की परीक्षा करवाएं ।
आपसे यह भी अनुरोध है िक उक्त सािक्षय के उ र को लेखब कराने की आप कृ पा कर और ऐसी परीक्षा म पेश की गई
सब पुस्तक , िचि य कागज-पतर् और दस्तावेज की पहचान के िलए उन्ह सम्यक् रूप से िचिन्हत कराएं और ऐसी परीक्षा को अपने
अिधकरण की मुदर्ा ारा या ऐसी अन्य रीित से जो आपकी पर्िकर्या के अनुसार हो, अिधपर्माणीकृ त कराएं और अन्य सािक्षय की परीक्षा
करने के िलए ऐसी िलिखत पर्ाथर्ना के साथ, यिद कोई हो, उसे उक्त न्यायालय को लौटा द ।
िटप्पणयिद अनुरोध िवदेशी न्यायालय से िकया जाता है तो 1 [“भारत सरकार के िवदेश मंतर्ालय] की माफर् त पारे िषत िकए
जाने के िलए” ये शब्द इस पर्रूप की अिन्तम पंिक्त म “उक्त न्यायालय को” के पश्चात् जोड़ दीिजए ।)
संख्यांक 9
स्थानीय अन्वेषण के िलए या लेखा की परीक्षा के िलए कमीशन
(आदेश 26 का िनयम 6 और 11)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
इस वाद के पर्योजनो के िलए यह अपेिक्षत समझा गया है िक……………………………….के िलए कमीशन िनकाला
जाए; अत: आपको……………………………………के पर्योजन के िलए किमश्नर िनयुक्त िकया जाता है ।
ऐसे िकन्ह सािक्षय को आपके समक्ष हािजर करने के िलए या ऐसी िकन्ह दस्तावेज को आपके समक्ष पेश कराने के िलए,
िजनकी परीक्षा या िजनका िनरीक्षण आप करना चाह, आदेिशका, अिधकािरता रखने वाले िकसी भी न्यायालय ारा आपके आवेदन पर
िनकाली जाएगी ।
उपयुर्क्त के िलए आपकी फीस की बाबत……………………………रुपए की रािश इसके साथ भेजी जाती है ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
न्यायाधीश
संख्यांक 10
िवभाजन करने के िलए कमीशन
(आदेश 26 का िनयम 13)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
इस वाद के पर्योजन के िलए यह अपेिक्षत समझा गया है िक इस न्यायालय की तारीख………………………की िडकर्ी म
िविनिदष्ट सम्पि का िवभाजन या पृथक्करण उक्त िडकर्ी म घोिषत अिधकार के अनुसार करने के िलए कमीशन िनकाला जाए; अत:
उक्त पर्योजन के िलए आपको किमश्नर िनयुक्त िकया जाता है, और आपको िनदेश िदया जाता है िक आप ऐसी जांच के पश्चात् जैसी
आवश्यक हो, उक्त सम्पि को उक्त िडकर्ी म दजर् अंश म अपने सव म कौशल और िनणर्य के अनुसार िवभक्त कर द, और िविभन्न
पक्षकार को ऐसे अंश आबंिटत कर द । अंश के मूल्य को समतुल्य करने के पर्योजन से जो रािश िकसी एक पक्षकार ारा िकसी दूसरे
पक्षकार को संदय
े हो वह रािश अिधिनण त करने के िलए आपको पर्ािधकृ त िकया जाता है ।
ऐसे िकसी साक्षी को आपके समक्ष हािजर कराने के िलए या ऐसी िकसी दस्तावेज को आपके समक्ष पेश कराने के िलए,
िजसकी परीक्षा या िजसका िनरीक्षण आप करना चाह, आदेिशका, अिधकािरता रखने वाले िकसी भी न्यायालय ारा आपके आवेदन पर
िनकाली जाएगी ।
उपयुर्क्त के िलए आपकी फीस की बाबत…………………….रुपए की रािश इसके साथ भेजी जाती है ।
यह आज ता०………………………..को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर िदया गया ।
1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िवदेश कायर् के िलए िहज मैजेस्टी के सेकर्ेटरी आफ स्टेट” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
291
न्यायाधीश
1
[संख्यांक 11
पर्माणपतर् पर्ाप्त, नैसिगक या वास्तिवक संरक्षण को सूचना
(आदेश 32 का िनयम 3)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
(पर्माणपतर् पर्ाप्त, नैसिगक या वास्तिवक संरक्षक)
उक्त वाद म वादी की ओर से /अवयस्क पर्ितवादी की ओर से*, अवयस्क पर्ितवादी……………………………..के िलए
वादाथर् संरक्षक की िनयुिक्त के िलए आवेदन िकया गया है, अत: आपको (यहां न्यायालय ारा िनयुक्त या घोिषत संरक्षक या नैसिगक
संरक्षक या िजस व्यिक्त की देख-रे ख म अवयस्क है, उस व्यिक्त का नाम िलिखए) सूचना दी जाती है िक यिद आप न्यायालय के समक्ष
मामले की सुनवाई के िलए िनयत और उपाब समन म किथत िदन को या उसके पूवर् उपसंजात नह होते ह और अवयस्क के िलए
वादाथर् संरक्षक के रूप म कायर् करने के िलए अपनी सहमित अिभव्यक्त नह करते ह तो न्यायालय िकसी अन्य व्यिक्त को उक्त वाद के
पर्योजन के िलए, अवयस्क के संरक्षक के रूप म कायर् करने के िलए िनयुक्त करने के िलए अगर्सर होगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 11क
अवयस्क पर्ितवादी को सूचना
(आदेश 32 का िनयम 3)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
अवयस्क पर्ितवादी
उक्त वाद म वादी की ओर से, आप अवयस्क पर्ितवादी के िलए…………………………*की वादाथर् संरक्षक के रूप म
िनयुिक्त के िलए आवेदन उपिस्थत िकया गया है । अत: आपको सूचना दी जाती है और आपसे अपेक्षा की जाती है िक आप इस आवेदन
के िवरु हेतुक दिशत करने के िलए इस न्यायालय म ता०………………………को……………………बजे पूवार्ह्न म स्वयं
उपसंजात ह । यिद आप ऐसा करने म असफल रहगे तो उक्त आवेदन की सुनवाई और उसका अवधारण एकपक्षीय रूप से िकया
जाएगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 12
अिकचनता के सा य की सुनवाई के िलए िनयत िदन की िवरोधी पक्षकार को सूचना
(आदेश 33 का िनयम 6)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
…………………………….ने इस न्यायालय से……………………………..के िवरु वाद िसिवल पर्िकर्या संिहता,
1908 के आदेश 33 के अधीन अिकचन के रूप म संिस्थत करने की अनुज्ञा के िलए आवेदन िकया है, और न्यायालय को इस आवेदन को
नामंजूर करने का कोई कारण नह िदखाई देता है, और ऐसी िकसी सा य को लेने के िलए, जो आवेदक अपनी अंिकचनता सािबत करने
के िलए दे और ऐसे िकसी सा य को सुनने के िलए, जो उसको नासािबत करने के िलए िदया जाए ता०………………………..िनयत
की गई है ।
1
1976 के अिधिनयम सं० 104 की धारा 96 ारा (1-2-1977 से) पर्रूप 11 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
अनपेिक्षत शब्द काट िदए जाएं ।
292
अत: आपको आदेश 33 के िनयम 6 के अधीन सूचना दी जाती है िक यिद आप आवेदक की अिकचनता को नासािबत करने के
िलए कोई सा य पेश करना चाह तो आप इस न्यायालय म उक्त ता०………………………………को उपसंजात होकर ऐसा कर
सकते ह ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
संख्यांक 13
पर्ितभू को िडकर्ी के अधीन उसके दाियत्व की सूचना
(धारा 145)
(शीषर्क)
पर्ेिषती
आप………………….…..िकसी ऐसी िडकर्ी के पालन के िलए जो उक्त वाद म पर्ितवादी उक्त……………………..के
िवरु पािरत की जाए पर्ितभू के रूप म ता०……………………………को दायी हुए थे, और……………………………के
संदाय के िलए िडकर्ी उक्त पर्ितवादी के िवरु ता०……………………………………..को पािरत की गई थी, तथा उक्त िडकर्ी को
आपके िवरु िनष्पािदत करने के िलए आवेदन िकया गया है ।
अत: आपको सूचना दी जाती है िक आपसे अपेिक्षत है िक आप इस बात का हेतुक िक उक्त िडकर्ी आपके िवरु िनष्पािदत
क्य न दी जाए ता०………………………………..को या उसके पूवर् दिशत कर और यिद िविनिदष्ट समय के अन्दर न्यायालय को
समाधानपर्द रूप म पयार्प्त हेतुक दिशत नह िकया गया तो उक्त आवेदन के िनबन्धन के अनुसार िनष्पादन के िलए आदेश तुरन्त
िनकाल िदया जाएगा ।
यह आज ता०……………………….को मेरे हस्ताक्षर से और न्यायालय की मुदर्ा लगाकर दी गई ।
न्यायाधीश
293
िनष्पादन की िववरणी
िगरफ्तार िकया गया
और हर एक
संदाय या िगरफ्तारी
से िभन्न िववरणी के
िववरणी की तारीख
िटप्पण : जहां िक अनेक वादी या अनेक पर्ितवादी ह वहां, यथािस्थित, के वल पर्थम वादी या पर्थम पर्ितवादी का नाम रिजस्टर म पर्िवष्ट िकया जाए ।
वृ
आवेदन की तारीख
आदेश की तारीख
िनष्पादन
िकसके िवरु
िकस बात के िलए या यिद धन के िलए है तो िकस
रकम के िलए
………….िस्थत……………………..का न्यायालय
वषर् 19………………का िसिवल वाद का रिजस्टर
खच की रकम
अपील म िनणर्य
िसिवल वाद का रिजस्टर
(आदेश 4 का िनयम 2)
तारीख
संख्यांक 14
िनणर्य
वादी
पर्ितवादी
िविशिष्टयां
दावा
रकम का मूल्य
वणर्न
नाम
िनवास-स्थान
वादी
वणर्न
नाम
वाद संख्यांक
वाद पतर् उपस्थािपत करने की तारीख
294
िनणर्य
फे रफार िकया गया
तारीख
पर्त्यथ
वषर् 19………………की िडिकर्य की अपील का रिजस्टर
उपसंजाित अपीलाथ
………….िस्थत न्यायालय [या उच्च न्यायालय]
अपील की गई है
िडकर्ी िजसकी
अपील का रिजस्टर
िविशिष्टयां
संख्यांक 15
िकस न्यायालय की है
िनवास-स्थान
पर्त्यथ
वणर्न
नाम
िनवास-स्थान
अपीलाथ
वणर्न
नाम
अपील का संख्यांक
ज्ञापन की तारीख
दूसरी अनुसूची[माध्यस्थम् ।] माध्यस्थम् अिधिनयम, 1940 (1940 का 10) की धारा 49 (1) और तीसरी अनुसूची ारा
िनरिसत ।
तीसरी अनुसूची[कलक्टर ारा िडिकर्य का िनष्पादन ।] िसिवल पर्िकया संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1956 (1956
का 66) की धारा 15 ारा िनरिसत ।
चौथी अनुसूची[अिधिनयिमितयां संशोिधत ।] िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1952 (1952 का 548) की धारा 2 और
पहली अनुसच
ू ी ारा िनरिसत ।
पांचव अनुसच
ू ी[अिधिनयिमितयां िनरिसत ।] ि तीय िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1914 (1914 का 17) की
धारा 3 और दूसरी अनुसूची ारा िनरिसत ।
_______
295
उपाबंध
िसिवल पर्िकर्या संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का अिधिनयम संख्यांक 104)
* * * * *
अध्याय 5
िनरसन और व्यावृि
97. िनरसन और व्यावृि (1) इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के पूवर् िकसी राज्य िवधान-मण्डल या उच्च न्यायालय ारा मूल
अिधिनयम म िकया गया कोई संशोधन या अंत:स्थािपत कोई उपबन्ध, वहां तक के िसवाय जहां तक िक ऐसा संशोधन या उपबन्ध इस
अिधिनयम ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम के उपबन्ध से संगत है, िनरिसत हो जाएगा ।
(2) इस बात के होते हुए भी िक इस अिधिनयम के उपबन्ध पर्वृ हो गए ह, या उपधारा (1) के अधीन िनरसन पर्भावी हो
गया है और साधारण खण्ड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के उपबन्ध की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना,
(क) इस अिधिनयम की धारा 3 ारा मूल अिधिनयम की धारा 2 के खण्ड (2) म िकया गया संशोधन िकसी ऐसी
अपील पर पर्भाव नह डालेगा जो धारा 47 म िनिदष्ट िकसी पर्श्न के अवधारण के िवरु की गई है और पर्त्येक ऐसी अपील
से ऐसे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 3 पर्वृ नह हुई हो;
(ख) इस अिधिनयम की धारा 7 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 20 के उपबंध िकसी ऐसे वाद को जो
उक्त धारा 7 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् लंिबत था, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद का
िवचारण ऐसे िकया जाएगा मानो धारा 7 पर्वृ नह हुई हो;
(ग) इस अिधिनयम की धारा 8 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 21 के उपबन्ध िकसी ऐसे वाद को जो
उक्त धारा 8 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् लिम्बत था, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद का
िवचारण ऐसे िकया जाएगा मानो धारा 8 पर्वृ नह हुई हो;
(घ) इस अिधिनयम की धारा 11 ारा यथापर्ितस्थािपत मूल अिधिनयम की धारा 25 के उपबन्ध िकसी ऐसे वाद,
अपील या अन्य कायर्वाही को िजसम उक्त धारा 11 के पर्ारम्भ के पूवर् धारा 25 के उपबन्ध के अधीन कोई िरपोटर् की गई है,
लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद, अपील या अन्य कायर्वाही से ऐसे बरता जाएगा मानो
उक्त धारा 11 पर्वृ नह हुई हो;
(ङ) इस अिधिनयम की धारा 13 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 34 के उपबन्ध उस दर पर पर्भाव
नह डालगे िजस दर पर ब्याज िकसी ऐसे वाद म जो उक्त धारा 13 के पर्ारम्भ के पूवर् संिस्थत िकया गया था, िडकर्ी पर
अनुज्ञात िकया जा सके गा और ऐसे वाद म पािरत िडकर्ी पर ब्याज धारा 34 के उपबन्ध के िजस रूप म वे इस अिधिनयम की
धारा 13 के पर्ारम्भ के पूवर् थे, अनुसार ऐसे आिदष्ट िकया जाएगा मानो उक्त धारा 13 पर्वृ नह हुई हो;
(च) इस अिधिनयम की धारा 14 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 35क के उपबन्ध पुनरीक्षण की
िकसी ऐसी कायर्वाही को जो उक्त धारा 14 के पर्ारम्भ के पूवर् लिम्बत थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे;
और ऐसी हर कायर्वाही से ऐसे बरता जाएगा और उसका िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 14 पर्वृ नह
हुई हो;
(छ) इस अिधिनयम की धारा 23 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 60 के उपबन्ध ऐसी िकसी कु क को
जो उक्त धारा 23 के पर्ारम्भ के पूवर् की गई है, लागू नह ह गे;
(ज) इस अिधिनयम की धारा 27 ारा मूल अिधिनयम की धारा 80 का संशोधन िकसी ऐसे वाद को जो उक्त धारा
27 के पर्ारम्भ के पूवर् संिस्थत िकया गया था, लागू नह होगा या उस पर कोई पर्भाव नह डालेगा; और पर्त्येक ऐसे वाद से
ऐसे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 27 ारा धारा 80 का संशोधन नह िकया गया हो;
(झ) इस अिधिनयम की धारा 28 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 82 के उपबन्ध िकसी ऐसी िडकर्ी को
लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे जो, यथािस्थित, भारत संघ या िकसी राज्य या लोक अिधकारी के िवरु
उक्त धारा 28 के पर्ारम्भ के पूवर् पािरत की गई थी या ऐसी िकसी िडकर्ी के िनष्पादन को लागू नह ह गे; और ऐसी हर िडकर्ी
या िनष्पादन से ऐसे बरता जाएगा, मानो उक्त धारा 28 पर्वृ नह हुई हो;
(ञ) इस अिधिनयम की धारा 30 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 91 के उपबंध िकसी ऐसे वाद,
अपील या कायर्वाही को जो उक्त धारा 30 के पर्ारं भ के पूवर् संिस्थत या फाइल की गई थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई
296
पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद, अपील या कायर्वाही का िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 30 पर्वृ
नह हुई हो;
(ट) इस अिधिनयम की धारा 31 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 92 के उपबन्ध ऐसे िकसी वाद,
अपील या कायर्वाही को, जो उक्त धारा 31 के पर्ारम्भ के पूवर् संिस्थत या फाइल की गई थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई
पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद, अपील या कायर्वाही का िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 31 पर्वृ
नह हुई हो;
(ठ) इस अिधिनयम की धारा 33 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 96 के उपबन्ध िकसी ऐसी अपील
को, जो उक्त धारा 33 के पर्ारम्भ के पूवर् संिस्थत िकसी वाद म पािरत िडकर्ी के िवरु की गई है, लागू नह ह गे या उस पर
कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसी हर अपील से ऐसे बरता जाएगा मानो धारा 33 पर्वृ नह हुई हो;
(ड) इस अिधिनयम की धारा 37 ारा यथापर्ितस्थािपत मूल अिधिनयम की धारा 100 के उपबन्ध अपीली िडकर्ी
या आदेश की िकसी ऐसी अपील को, जो उक्त धारा 37 के पर्ारम्भ के पूवर् आदेश 41 के िनयम 11 के अधीन सुनवाई के पश्चात्
गर्हण की गई थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे गर्हण की गई हर अपील से ऐसे बरता जाएगा
मानो उक्त धारा 37 पर्वृ नह हुई हो;
(ढ) इस अिधिनयम की धारा 38 ारा मूल अिधिनयम म यथा अन्त:स्थािपत धारा 100क िकसी लेटसर् पेटेन्ट के
अधीन उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के िविनश्चय के िवरु िकसी ऐसी अपील को जो उक्त धारा 38 के पर्ारम्भ के
पूवर् गर्हण की गई थी, लागू नह होगी या उस पर कोई पर्भाव नह डालेगी; और ऐसी हर अपील का िनपटारा इस पर्कार
िकया जाएगा मानो उक्त धारा 38 पर्वृ नह हुई हो;
(ण) इस अिधिनयम की धारा 43 ारा मूल अिधिनयम की धारा 115 का संशोधन पुनरीक्षण की िकसी ऐसी
कायर्वाही को, जो उक्त धारा 43 के पर्ारम्भ के पूवर्, पर्ारिम्भक सुनवाई के पश्चात् गर्हण की गई थी, लागू नह होगा या उस
पर कोई पर्भाव नह डालेगा; और पुनरीक्षण की ऐसी हर कायर्वाही का िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा
43 पर्वृ नह हुई हो;
(त) इस अिधिनयम की धारा 47 ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम की धारा 141 के उपबंध िकसी ऐसी
कायर्वाही को जो उक्त धारा 47 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् लिम्बत थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और
ऐसी हर कायर्वाही से ऐसे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 47 पर्वृ नह हुई हो;
(थ) इस अिधिनयम की धारा 72 ारा, यथािस्थित, यथासंशोिधत या पर्ितस्थािपत या अन्त:स्थािपत पर्थम
अनुसचू ी के आदेश 21 के िनयम 31, 32, 48क, 57 से 59 तक, 90 और 97 से 103 तक के उपबंध िनम्निलिखत को लागू नह
ह गे या उन पर कोई पर्भाव नह डालगे :
(i) उक्त धारा 72 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् िव मान कोई कु क ; अथवा
(ii) कोई वाद जो ऐसे पर्ारम्भ के पूवर् पूव क्त िनयम 63 के अधीन कु कर् की गई सम्पि म अिधकार
स्थािपत करने के िलए या पूव क्त िनयम 103 के अधीन कब्जा स्थािपत करने के िलए संिस्थत िकया गया था;
अथवा
(iii) िकसी स्थावर सम्पि का िवकर्य अपास्त करने के िलए कोई कायर्वाही,
और ऐसी हर कु क , वाद या कायर्वाही इस पर्कार चालू रखी जाएगी मानो उक्त धारा 72 पर्वृ नह हुई हो;
(द) इस अिधिनयम की धारा 73 ारा यथा पर्ितस्थािपत पर्थम अनुसूची के आदेश 22 के िनयम 4 के उपबंध उक्त
धारा 73 के पर्ारम्भ के पूवर् िकए गए िकसी उपशमन आदेश को लागू नह ह गे;
(ध) इस अिधिनयम की धारा 74 ारा पर्थम अनुसूची के आदेश 23 म िकए गए संशोधन या पर्ितस्थापन िकसी ऐसे
वाद या कायर्वाही को जो उक्त धारा 74 के पर्ारम्भ के पूवर् लिम्बत हो, लागू नह ह गे;
(न) इस अिधिनयम की धारा 76 ारा यथा अन्त:स्थािपत आदेश 27 के िनयम 5क और 5ख के उपबंध िकसी ऐसे
वाद को जो उक्त धारा 76 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् सरकार या िकसी लोक अिधकारी के िवरु लिम्बत था, लागू नह ह गे;
और ऐसे हर वाद से ऐसे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 76 पर्वृ नह हुई हो;
(प) इस अिधिनयम की धारा 77 ारा, यथािस्थित, यथा अन्त:स्थािपत या पर्ितस्थािपत आदेश 27क के िनयम 1क,
2क और 3 के उपबंध िकसी ऐसे वाद को जो उक्त धारा 77 के पर्ारम्भ के पूवर् लंिबत था, लागू नह ह गे या उस पर कोई
पर्भाव नह डालगे;
(फ) इस अिधिनयम की धारा 79 ारा, यथािस्थित, यथासंशोिधत या पर्ितस्थािपत पर्थम अनुसूची के आदेश 32 के
िनयम 2क, 3क और 15 िकसी ऐसे वाद को जो उक्त धारा 79 के पर्ारम्भ के समय लंिबत था, लागू नह ह गे, और ऐसे हर
वाद से ऐसे बरता जाएगा और उसका िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 79 पर्वृ नह हुई हो;
297
(ब) इस अिधिनयम की धारा 81 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 33 के उपबंध िकसी ऐसे वाद या
कायर्वाही को जो उक्त धारा 81 के पर्ारम्भ के पूवर् अिकचन के रूप म वाद लाने की अनुज्ञा के िलए लिम्बत थी, लागू नह ह गे
या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे हर वाद या कायर्वाही से ऐसे बरता जाएगा और उसका िनपटारा इस पर्कार
िकया जाएगा मानो उक्त धारा 81 पर्वृ नह हुई हो;
(भ) इस अिधिनयम की धारा 84 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 37 के उपबंध िकसी ऐसे वाद को जो
उक्त धारा 84 के पर्ारम्भ के पूवर् लिम्बत था, लागू नह ह गे, और ऐसे हर वाद से ऐसे बरता जाएगा और उसका िनपटारा इस
पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 84 पर्वृ नह हुई हो;
(म) इस अिधिनयम की धारा 86 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 39 के उपबंध िकसी ऐसे व्यादेश को
जो उक्त धारा 86 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् िव मान था, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसा हर
व्यादेश और ऐसे व्यादेश की अवज्ञा के िलए कायर्वाही से ऐसे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 86 पर्वृ नह हुई हो;
(य) इस अिधिनयम की धारा 87 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसूची के आदेश 41 के उपबंध िकसी ऐसी अपील को,
जो उक्त धारा 87 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् लिम्बत थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसी हर अपील
का िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 87 पर्वृ नह हुई हो ।
(यक) इस अिधिनयम की धारा 88 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 42 के उपबंध िकसी ऐसी अपीली
िडकर्ी या आदेश की िकसी अपील को, जो उक्त धारा 88 के पर्ारम्भ के पूवर् आदेश 41 के िनयम 11 के अधीन सुनवाई के
पश्चात् गर्हण की गई थी, लागू नह ह गे या उस पर कोई पर्भाव नह डालगे; और ऐसे गर्हण की गई हर अपील से ऐसे बरता
जाएगा मानो उक्त धारा 88 पर्वृ नह हुई हो;
(यख) इस अिधिनयम की धारा 89 ारा यथासंशोिधत पर्थम अनुसच ू ी के आदेश 43 के उपबंध िकसी ऐसी अपील
को जो उक्त धारा 89 के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् लिम्बत िकसी आदेश के िवरु की गई थी, लागू नह ह गे; और ऐसी हर अपील
का िनपटारा इस पर्कार िकया जाएगा मानो उक्त धारा 89 पर्वृ नह हुई हो ।
(3) उपधारा (2) म जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, इस अिधिनयम ारा यथासंशोिधत मूल अिधिनयम के उपबंध ऐसे हर
वाद, कायर्वाही, अपील या आवेदन को जो इस अिधिनयम के आरम्भ पर लिम्बत था अथवा ऐसे पर्ारम्भ के पश्चात् संिस्थत या फाइल
िकया गया है, इस बात के होते हुए भी लागू ह गे िक िजस अिधकार या वादहेतुक के अनुसरण म ऐसा वाद, कायर्वाही, अपील या
आवेदन संिस्थत या फाइल िकया जाता है, वह ऐसे पर्ारम्भ के पूवर् अिजत िकया गया था या पर्ोद्भूत हुआ था ।
* * * * *
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